Chirian vali chader hindi (1)

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कहानी

चिड़ियों वाली िादर डॉ. रतन रीहल प्रीती अपने दहे ज के ललए िादर पर बिपन से चिड़ियों की कढ़ाई करती हुई जवान हुई। िादर पर चिड़ियों की कढ़ाई को लसखाने वाली उसकी करतारो नानी थी। प्रीती ने जब से होश संभाला, वह अपने नननहाल वाले गांव में रही, वहीं पढ़ी और जवान

हुई। करतारो भी इस तरह की कढ़ाई वाली िादर दहे ज में लाई थी। प्रीती का नाना चिड़ियों वाली िादर को पलंग पर बबछाने से तब हटा था जब उसकी उम्र की तरह िादर भी निस-फट गई। करतारो प्रीती से उसके नाना की अक्सर तारीफ़ें ककया

करती थी, “पलंग पर बबछी िादर दे खकर तेरा नाना मेरी तारीफ़ें करता थकता नहीं था। कभी वह कहता कक ककतनी मगज़मारी की थी तन ू े करतारो ! कभी कहता कक इतनी ननगाह लगाते हुए तेरे दीदे नहीं दख ु े ? कभी मझ ु े बाहों में भरकर कहा करता था कक ककतना िाव है तुझे िादर काढ़ने का और गौने वाली रात को पलंग

पर बबछाने का ? िादर दे ख दे खकर मेरा मन करता है करतारो कक तुझे दबा दबाकर तेरे बिपन की थकान लमटा दूँ ।ू ”

औरत में कुदरती अपने मदद के ललए सत्कार होता है । प्रीती भी नाना के बारे

में बात करती नानी के अवरुद्ध कंठ को अपने हृदय में बसाये रखती और िादर की कढ़ाई में अपने को डुबो लेती। कई बार सई ु पपरोते समय उसकी उं गललयों की

पोरों में सई ु िभ ु ती, पर ननकले खन ू को प्रीती िस ू िस ू कर बंद करती रहती। कई

बार नानी की झझिककयाूँ भी सहती रही। ददनभर की कढ़ी हुई दसत ू ी की कढ़ाई भी दस ू रे ददन उधेिती रही, पर उसका मन िादर की कढ़ाई से कभी ऊबा नहीं। स्कूल

से छुट्टी होती, सीधी िर आती, उसको खाने-पीने की कोई सध ु न रहती। बस, आते ही िादर की कढ़ाई में लग जाती। कई बार उसकी नानी जब ककसी काम में

व्यस्त होती तो उसके ललए खाली रहना कदठन हो जाता। यूँू तो नाना ने सारे रं गों 1


के रे शमी धागों का िर में अंबार लगा रखा था, पर नानी के िर की अिोसनेंपिोसनें उसको नये रं ग भरने के ललए कहती रहतीं। प्रीती को कई कई ददन िर आने वाले नये धागों की प्रतीक्षा रहती। इस समय भी वह खाली न बैठती। नानी

के अनभ ु व के साथ वह सई ु -धागा लेकर अगले िर में जाकर कढ़ाई करने लग

पिती। पता नहीं क्यों उसका छोटी उम्र में ही िादर की कढ़ाई में मन लग गया था। कई बार उसकी सहे ललयाूँ भी आकर उसका हाथ बंटाती रहतीं, पर प्रीती को

सहे ललयों की कढ़ाई पसन्द न आती। एक बार उसकी नानी ने सई ु का तोपा गलत डाल ददया तो प्रीती बहुत हूँ सी। नानी ने कसकर थप्पि मार उसके गालों पर उं गललयों के ननशान डाल ददए। प्रीती ने कफर भी अपनी नानी को उसकी गलती के

बारे में नहीं बताया कक उसने दो तोपे पहले उठा ललए हैं जजससे पिने वाली अगली

चिड़ियों की शक्लें कुछ और ही हो जानी थीं। उस रात रातभर वह जागती रही और

अपनी नानी की कढ़ाई को उसने पहले उधेिा और कफर सई ु लेकर पहले दो तोपे सीधे भरकर कढ़ाई को सीधा कर ललया और कफर सारी रात िादर पर सई ु दौिाती

रही। सब ु ह स्कूल जाना था, पर उस ददन वह नानी द्वारा उठाये जाने पर भी न उठी। प्रीती पीठ के बल बबस्तर में गहरी नींद सोई पिी थी। पहना हुआ तंग कुरता–पाजामा प्रीती के ऊूँिे-नीिे शरीर को दरसा रहा था। करतारो ने आज पहली बार महसस ू ककया कक प्रीती अब जवान हो गई है और पववाह करवाने के काबबल है । उसी सवेर करतारो ने अपनी बेटी जीतो को प्रीती का पववाह कर दे ने की सलाह दे ने का मन बना ललया था। प्रीती की नानी को अंदाज़ तो था कक प्रीती रात में

िादर की कढ़ाई कर रही थी, पर उसकी पता नहीं कब आूँख लग गई थी। सवेरे

उठकर प्रीती की नानी ने लपेटी हुई िादर खोलकर दे खी तो उसको पता िला कक प्रीती ने उसकी कढ़ाई को उधेिकर नई कढ़ाई कर दी है । वह प्रीती के हाथ की सफ़ाई दे खकर बहुत है रान हुई और उस ददन से नानी ने दब ु ारा कभी प्रीती को कुछ बताने की कोलशश इसललए नहीं की क्योंकक अब उसको पता िल गया था कक प्रीती उसके बढ़ ू े ददमाग से आगे ननकल गई थी। करतारो ने एक ददन हूँ सते हुए प्रीती से कहा, “लिकी, िादर को जल्दी जल्दी खत्म कर ले। कहाूँ गीला पीसने बैठी है ? तेरे बाप ने तेरे ललए वर खोज ललया है।”

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प्रीती ने अपनी नानी से कहा, “भापा जी को कह दो, प्रीती अभी पववाह नहीं

करवाएगी, अभी िादर की कढ़ाई बाकी रहती है ।”

“न न बेटी ! ये तो संजोगों के मामले होते हैं। पववाह करवाकर तझ ु े ससरु ाल

जाना ही पिेगा।”

“नहीं नानी जी, मझ ु े ससरु ाल नहीं जाना, मैं सारी उम्र तेरे पास ही रहू​ूँगी।“ प्रीती ने नानी के सामने दोनों हाथ जोि कर पवनती की।

“तू कफक्र न कर प्रीती, पहले पववाह करवा ले। ससरु ाल वाले िर से मैं तझ ु े

अपने पास वापस लाने का कोई सबब बना लंग ू ी। तेरा मामा तो मरजाणे एक्सीडेंट ने खा ललया। मैं अब अकेली ही हू​ूँ। तेरे नाना के अलावा मेरा तू ही एक सहारा है

बेटी। हम तो पके हुए आम हैं। पता नहीं कौन सी आूँधी में झि जाएूँ। सन ु ! अभी तेरे पववाह में छह महीने बाकी हैं। िल हम दोनों लमलकर िादर की कढ़ाई परू ी कर लेते हैं।” उसकी नानी ने हौसला ददया।

“नहीं नानी जी, आप बढ़ ू ी हो गई हैं। आपसे तो सई ु में धागा भी नहीं पिता।

नानी जी, जब तक मैं आपके ललए सई ु में धागा डालंग ू ी, तब तक तो मैं िार बट ू े डाल लूँ ग ू ी। अब मझ ु े कढ़ाई करना आ गया है । इस िादर को मैं ही परू ा करंगी।

आझिर इस िादर पर मेरे पनत ने ही सोना है ।” प्रीती ने अपनी नानी की ढलती

सेहत की ओर दे खते हुए कहा। “अभी ही अंधी… अभी तो मझ ु े तेरी छोटी बहन को भी िादर काढ़नी लसखानी है । मैंने तेरी माूँ को कईबार िादर काढ़ने के ललए कहा, पर कढ़ाई में उसके दीदे

नहीं लगे। मझ ु े इस कला को अपने साथ लेकर नहीं मरना। इसललए मैंने तेरी माूँ

से कहकर तुझे यहाूँ अपने पास बल ु वा ललया था।” करतारो ने प्रीती को जवाब ददया।

प्रीती को पववाह के िाव से अचधक िादर की कढ़ाई की चिंता रहती। वह

ददनरात िादर की कढ़ाई में लगी रहती। एक बार प्रीती बीमार पि गई, पता िलने

पर उसका बापू उसे नननहाल से लेने आ गया। प्रीती ने अपनी नानी से कहा कक बापू को यह कहकर वापस भेज दे कक अभी स्कूल की पढ़ाई में एक महीना बाकी

पिा है । दसवीं की परीक्षा पास करके ही आएगी। जब उसका बापू वापस लौट गया 3


तो वह बीमार पिी-पिी उठ खिी हुई। अब िादर भी परू ी होने वाली थी और उसकी बीमारी भी ठीक हो गई थी। िादर की कढ़ाई परू ी हो जाने पर उसको धो-संवार कर ट्रं क में रखने से पहले एक बार पलंग पर बबछाकर, मन में कुछ सोिते हुए वह बिी हसरत से दे खती रही। िादर की ककनारी पर लिीवार रं ग-बबरं गी चिड़ियों के लभन्न-लभन्न पोज़ थे – कोई िग्ु गा िग ु ती, कोई पानी पीती, कोई पंख फैलाकर बैठी

हुई और कोई पैर उठाकर शरीर पर फेरती हुई – इन सबकी आकृनत उसको साफ़ ददखाई दी। उसने अपनी आूँखों को कसकर बंद ककया और कफर खोलकर दे खा। एक चिड़िया ऐसी थी जजसकी एक टांग की कढ़ाई ही नहीं हुई थी। यह दे खकर वह हूँ सी और बद ु बद ु ाई, ‘िलो, एक चिड़िया लंगिी ही सही।’ िादर के बीिोबीि एक बिे-से पेि के पहले दो टहने हैं। कफर दो टहनों से आगे दो दो और टहने और ननकलते हैं

और कफर कई और टहननयां। पहले दो टहनों के आसन पर चिड़िया और चि​िा बिे

प्यार से िोंि में िोंि फंसाये बैठे हैं। यह दे खकर प्रीती ने अपने होंठों पर जीभ फेरी और मस् ु करा पिी। बायीं ओर के टहने पर िोंसले में एक चिड़िया अपने बच्िे को िग्ु गा झखला रही है । उसने अपने पेट पर हाथ फेरा। जैसे कोई आम का पेि आमों से लदा होता है , ठीक इसी तरह पेि पर बैठी चिड़ियाूँ कई तरह के पोज़

बनाकर बैठी हुई दे खती है । पेि के नीिे बबल्ली ने अपने पंजे में एक चिड़िया को दबोि रखा है और चिड़िया ने अपने दोनों पंख फैला रखे हैं। उसके इदद -चगदद उिती चिड़ियों के पंख फिफिाते हैं। प्रीती ने अपने होंठ टे ढ़े ककए और बद ु बद ु ाई, ‘तेरी

ककस्मत चिड़िया ! अगर तेरी जगह मैं होती तो सबसे पहले उि जाती।’ बबल्ली के पैरों तले दबी चिड़िया की कढ़ाई प्रीती के अपने ददमाग की उपज है । इसमें उसकी

नानी का कोई योगदान नहीं है । प्रीती अच्छे नंबरों से दसवीं कक्षा पास हो गई। उसने कहा, “िल नानी, अब मझ ु े मेरी माूँ के पास छोि आ।”

प्रीती चिड़ियों वाली िादर साथ ही ले गई। चिड़ियों वाली िादर उसने अपनी

माूँ को बिे िाव से ददखाई। उसकी माूँ को याद आया कक कैसे उसका बाप इस

चिड़ियों वाली िादर की प्रशंसा ककया करता था। वह उस समय को याद करके

पछताती जब उसने कढ़ाई-लसलाई की ओर अपनी कोई रुचि नहीं ददखाई थी। प्रीती

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की इस लगन को दे खकर वह बहुत उत्सादहत हुई और ददल ही ददल में बद ु बद ु ाई, ‘िलो अगर माूँ ने नहीं तो बेटी ने तो दीदे लगा ही ललए।” ?”

माूँ को गम ु सम ु हुआ दे खकर प्रीती ने कहा, “माूँ ककन सोिों में डूबी हुई हो

“कुछ नहीं बेटी, मैं सोिती थी कक ककतना कदठन काम तू करती रही है !

जो मझ ु से नहीं हुआ, तूने कर ददखाया है।” ऐसा कहती हुई जीतो प्रीती के दोनों हाथ पकिकर उसकी उं गललयों को सहलाने लगी। चिड़ियों वाली िादर पर ददखाई अपनी कला पर प्रीती को बहुत गवद था। इस िादर के मान के कारण उसने अपनी ससरु ाल जाते समय ददल में ज़रा भी खौफ़ नहीं खाया। उसका ददल कहता था कक इस चिड़ियों वाली िादर के कारण उसकी

ससरु ाल में उसका बहुत यश होगा। ससरु ाल में इकट्ठा हुईं जवान लिककयों में निरी वह खद ु को उनका सरदार समझती। उसको अपनी कला पर इतना गवद था

कक वह समझती कक ये इकट्ठा हुई जवान लिककयों के पल्ले तो कला का एक धेला भी नहीं है । प्रीती उन जवान लिककयों में यंू रि-बस गई जैसे सालों से उन्हें जानती हो। प्रीती का िरवाला सख ु राज उन जवान लिककयों में से एक सन ु यनी

लिकी से खुलकर बातें करता था। प्रीती को सख ु राज की आदत का अब तक पता

िल िक ु ा था कक वह बहुत ही हूँ समख ु स्वभाव वाला मनष्ु य है । प्रीती ने लिककयों में बैठी उस सन ु यनी लिकी जो आूँखों से ही बात करती थी और उसकी तरफ़ टकटकी लगाकर लगातार दे ख रही थी, से पछ ू ा, “तम ु ने अपने दहे ज के ललए कोई िीज़ बनाई है ?”

“क्यों, हम क्यों बनाएं ? क्या हमारे कहीं माूँ-बाप मर गए है !” सन ु यनी

लिकी ने तपाक से जवाब ददया।

इतने में सभी जवान लिककयाूँ एक ही स्वर में बोल उठीं, “तू क्या अपने

दहे ज में बनाकर लाई है बेबे ?”

“चिड़ियों वाली िादर ! परू े दस साल लगाकर मैंने खुद कढ़ाई करके अपने

दहे ज के ललए बनाई है ।” प्रीती ने बिे गवद के साथ कहा।

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“अच्छा ! चिड़ियों वाली िादर पर तुमने खुद कढ़ाई की है !” सारी जवान

लिककयों ने है रान होते हुए एक साथ ही कहा और सन ु यनी लिकी ने उसके दोनों हाथ पकिकर िम ू ललए। ससरु ाल वाले गांव की औरतों का जब िर में आना-जाना बंद हो गया तो

एक ददन प्रीती ने चिड़ियों वाली िादर अपने पनत सख ु राज को ददखाई और अपनी दस सालों की मेहनत के बारे में सख ु राज के मूँह ु से प्रशंसा सन ु ने की प्रतीक्षा करने लगी। जब सख ु राज ने मूँह ु से प्रशंसा का एक शब्द न बोला तो प्रीती ने उसकी

छाती पर अपना लसर रखते हुए बिे मोह में कहा, “जी ! सालों मैं यह सोिकर कढ़ाई करती रही कक एक ददन इस िादर पर मेरे पनत-परमेश्वर जी सख ु की नींद सोयेंगे।”

“िल कफर आज बबस्तर पर यही िादर बबछा लेते हैं।” सख ु राज ने िादर को

झािकर पलंग पर तान ददया।

“नहीं जी, अभी नहीं, जब माूँ जी मझ ु े इस िर में काम करने की इजाज़त

दें गे, कफर मैं इस िादर को अपने हाथों पलंग पर बबछाऊंगी।” प्रीती ने िादर इकट्ठी करते हुए कहा। “तूने मेरा कहना मानना है या मेरी माूँ का ?” सख ु राज ने उससे कहा।

“कहना तो मझ ु े आपका ही मानना है , पर माूँ का कहना मानना आपका भी

फज़द है ।” जब प्रीती ने ऐसा कहा तो सुखराज ने अपनी जजद्द छोि दी। समय

बीतते दे र नहीं लगती। आज प्रीती बहुत खश ु थी। रात में प्रीती की सास ने िल् ू हािौका करने की इजाज़त दे दी थी। वह मूँह ु -अूँधेरे उठ खिी हुई। दध ू बबलौया। मक्खन ननकाला। लस्सी बनाई। िल् ू हा तपाया। दाल धरी। रोदटयाूँ पकाईं। िाय बनाई। रसोई का सारा काम ननपटाकर स्नान ककया और नई नवेली बनकर बैठ गई। जब तक िर के अन्य सदस्य भी नींद से जागे तो रसोई के सारे काम हो

िक ु े थे। उसकी सास ने है रान होकर कहा, “प्रीती इतनी जल्दी उठने की भी क्या ज़ररत थी। ज़रा सरू ज तो िढ़ने दे ती।”

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“नहीं माूँ जी, समय से काम हो जाना िादहए। मझ ु से और खाली नहीं बैठा

जाता। आप अब आराम करो। सारे काम मैं संभाल लूँ ग ू ी।” प्रीती ने अपनी सास को अवकाश लेने के ललए पवनती की।

आज सख ु राज भी काम पर नहीं गया था। प्रीती ने सख ु राज से कहा कक वह

माूँ जी से पछ ू ले कक मैं चिड़ियों वाली िादर पलंग पर बबछानी िाहती हू​ूँ क्योंकक प्रीती माूँ जी को बातों बातों में ऐसा कई बार याद ददला िक ु ी थी, पर उसने प्रीती की बात का कोई हुंकारा नहीं भरा था। “ला ननकाल चिड़ियों वाली िादर ट्रं क में से। मैं बबछा दे ता हू​ूँ।” सख ु राज ने

ट्रं क की ओर इशारा करते हुए प्रीती से कहा। “हाय मैं मर जाऊूँ, यह काम तो मेरा है ।” ऐसा कहती प्रीती के शब्दों में डर था।

प्रीती के रोकते रोकते सख ु राज ने ट्रं क खोला और िादर पलंग पर बबछा दी

और खुद बाहर िला गया। जब दे र बाद वह िर लौटा तो पलंग पर चिड़ियों वाली िादर नहीं थी। उसने अपनी माूँ से पछ ू ा, “पलंग पर से िादर ककसने उठाई है ?” “मैंने उठाई है ।” प्रीती ने तुरंत जवाब ददया।

“क्यों, तूने क्यों उठाई है ?” सख ु राज ने पछ ू ा।

“माूँ जी ने कहा था।” प्रीती ने डरते हुए जवाब ददया। “माूँ, प्रीती को पलंग पर से िादर उठाने के ललए आपने क्यों कहा ?”

सख ु राज ने अपनी माूँ से सवाल कर ददया।

“राज बेटा, ये चिड़ियों वाली िादर बहुत सन् ु दर है और हमने तेरी छोटी बहन मनी के दहे ज में रखनी है , इसललए।” माूँ ने कोरा जवाब ददया। सख ु राज अपनी माूँ का कहा मोि न सका, पर प्रीती के शब्द उसके कानों में

गंज ू ते लगे कक मैं आपके ललए इस िादर पर दस साल दसत ू ी की कढ़ाई करती रही हू​ूँ। वह अंदर ही अंदर जल उठा। समय बीत गया। उनके िर एक पत्र ु ी मीतो ने जन्म ललया और सख ु राज

पररवारवाला हो गया। तीन साल बाद एक लिके बलराज ने जन्म ललया। बेटी जन्मने के कारण िर में प्रीती की जजतनी बेकद्री थी, बलराज के जन्म ने प्रीती की 7


कफर िर में इज्ज़त बढ़ा दी। प्रीती की बेटी ग्यारहवें साल में हो गई और बलराज तीसरी कक्षा में दाझिल हो गया था। इसके िार साल पहले एक के बाद एक उनके

िर में पहले जगराज ने जन्म ललया और कफर लसरताज के पैदा होने की खलु शयाूँ मनाई गईं। मीतो हालांकक ग्यारहवें में थी, पर प्रीती से एक बबलांद लम्बी ददखती थी। उसके नयन-नक्श सख ु राज पर गए थे। प्रीती ने िर के सारे कामकाज अपने हाथ में ले ललए थे। उसका पविार था, हर प्राणी दस ू रे प्राणी की ज़ररत के कारण

ही उसको पसंद करता है और इस पविार के अधीन उसने िर के सारे कामकाज ं ार-पट्टी को खुद संभालकर अपनी सास को ननखट्टू बना ददया था और अपनी लशग

भी सवरनी को यह कहकर सौंप दी थी कक कामकाज में व्यस्त होने के कारण ं ार करने का समय ही नहीं है । सवरनी ननत्य सख उसके पास लशग ु द रं ग के भिकीले

ं ार करती तो यूँू लगता मानो और कई रं ग-बबरं गे सट ू पहनती, तरह तरह का लशग वह गौने पर जा रही हो। प्रीती का दांव िल गया था। एक ददन शीशे के सामने

खिी होकर अपने आप को कह रही थी, “मैं वो चिड़िया नहीं जजसे बबल्ली अपने पैरों तले दबोि ले।”

अब प्रीती ने पलंग के पास एक िारपाई बबछाकर सख ु राज से कह ददया कक

वह पलंग पर तब तक नहीं सोयेगी जब तक चिड़ियों वाली िादर नहीं बबछे गी। सवरनी यह नहीं िाहती थी कक चिड़ियों वाली िादर मैली हो और न ही वह मफ़् ु त

की काम करने वाली प्रीती को अपने हाथों से गंवाना िाहती थी। िर में रोज़ रोज़ का क्लेश लमटाने के ललए उसने सख ु राज को साफ़ कह ददया था कक िािा के िर

के साथ वाला खल ु ा िर उनको दे दे गी, पर चिड़ियों वाली िादर तो वह अपनी बेटी

मनी के दहे ज में ही दे गी। स्कूल की छुट्दटयों में प्रीती अपने बच्िों को साथ लेकर

मायके िली गई। उसने अपनी माूँ को सारी बात बताई तो उसने फैसला ही कर ददया कक तेरी नानी छह बीिे ज़मीन और अपना पक्का मकान तेरे नाम कर गई

है , तुम लोग वहाूँ िले जाओ। प्रीती ने अपनी ससरु ाल वापपस आकर सख ु राज को मनाया और वह चिड़ियों वाली िादर लेकर जुदा हो गए।

इस चिड़ियों वाली िादर ने सख ु राज को अपने माूँ-बाप से जद ु ा कर ददया।

सख ु राज की तो जैसे हूँ सी ही उि गई। वह ददन के समय कामकाज में व्यस्त 8


रहता और रात में शराब पीने का आदी हो गया। एक ददन सख ु राज जब सवेरे उठा

तो वह प्रीती को बिे प्यार के साथ अपनी बांहों में लेकर बोला, “माललक उसके काम में तरक्की करने वाला है । प्रीती यह अपनी बेटी मीतो की ही ककस्मत है । तरक्की हो जाने के बाद उसका दहे ज आसानी से बन जाएगा।”

प्रीती ददनभर सख ु राज के काम पर से वापस लौटने की प्रतीक्षा करती रही।

उसने बहुत हसरत से पलंग पर चिड़ियों वाली िादर को बबछाया। आधी रात हो गई, पर सख ु राज िर वापस न आया। बच्िे इंतज़ार करते करते दे र रात गहरी नींद में सो गए। आधी रात के बाद जब सख ु राज नशे में धत्त ु िर लौटा तो उसकी हालत दे खकर प्रीती सहम गई। वह अपने कारखाने के माललक का नाम ले लेकर

गाललयाूँ दे रहा था और जो मूँह ु में आता बके जा रहा था। प्रीती ने बिे प्यार से उसको समझाने की कोलशश की, पर वह बकवास करता करता पलंग पर चगरते ही गहरी नींद में सो गया। प्रीती रातभर उसके लसरहाने पीढ़ी पर बैठी उसके होश में

आने की प्रतीक्षा करती रही थी, पर सख ु राज को होश सवेरे दस बजे आई जब िमकते सरू ज ने उसकी आूँखें िंचु धया दीं। सख ु राज ने दे खा कक प्रीती िारपाई की बाही पर अपनी दोनों बाहें रखें दायें कान के भार सोई पिी थी। उसने बबना खटका

ककए जल्दी जल्दी मूँह ु हाथ धोया और बग़ैर कोई बात ककए वह काम पर जाने लगा। प्रीती ने अपनी आूँखें खोलते हुए सख ु राज की बांह पकिकर रात के बारे में पछ ू ना िाहा तो वह काम पर जाते जाते कह गया, “माललक ने तरक्की ककसी दस ू रे की कर दी है ।”

प्रीती ने चिड़ियों वाली िादर को ज्यों का त्यों लपेटा और ट्रं क में रख ददया।

बरस बीत गए, पर प्रीती ने उस िादर की तरफ़ झांककर भी नहीं दे खा। सख ु राज

अपनी बेटी मीतो का दहे ज बनाने के वास्ते ददन रात काम कर रहा था। सख ु राज को अब जवान बेटी मीतो के हाथ पीले करने की चिंता खाए जाती थी।

प्रीती अब तक िार बच्िों की माूँ बन िक ु ी थी। उनकी बिी बेटी मीतो का

पववाह भी तय हो गया। प्रीती ने सख ु राज को कईबार कहा कक वह मीतो के बनाए दहे ज को अच्छी तरह दे ख ले, पर वह जवाब में यही कहता रहा, “मझ ु े तेरे पर परू ा

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यकीन है प्रीती। अगर और पैसों की ज़ररत है तो बता, बाकी का दहे ज तैयार करने की सारी जजम्मेदारी तेरी ही है।”

प्रीती ने सख ु राज की आचथदक जस्थनत को समझते हुए अपने पववाह की वरी में से कपिे लगाकर दहे ज परू ा कर ललया था और सख ु राज को हौसला दे ने के ललए कहा, “जजतने आपने दहे ज बनाने के ललए पैसे ददए थे, वे बहुत थे। मैंने तो उनमें से बिा भी ललए हैं।” “शाबास !” सख ु राज ने कहा।

पववाह के कामों से फुरसत पाकर सख ु राज ने थोिा होश संभाला। बच्िों को

स्कूल से छुट्दटयाूँ होने के कारण पपछले महीने प्रीती अपनी माूँ के पास रहने िली गई थी। जैसा कक कहते हैं कक बबछिकर ही ककसी की याद आती है , सख ु राज को

प्रीती का बोलना, बात करना बहुत याद आता और िर के कामकाज का सारा बोझ लसर पर उठाने का अहसास होता, पर उसने सब्र ककया कक एक और सप्ताह की

बात है , बच्िों के स्कूल खुलने वाले हैं, कफर प्रीती िर आ ही जाएगी। प्रीती िर आ

गई। सख ु राज बहुत खुश-खुश था। प्रीती ने भी प्यार जताकर उसकी खुशी को दग ु ना कर ददया। काफ़ी ददनों बाद, एक ददन बच्िे अपनी नानी को लमलने गए हुए थे। उस ददन सख ु राज ने लट्ठे के िादरे पर मलमल का कुताद पहन रखा था और तुरे वाली तोतारं गी पगिी बांध रखी थी। कटी दाढ़ी के बीि मरोिा दे कर मंछ ू ों को

कंु डलदार बना रखा था। सख ु राज ने बिे ही अपनत्व के साथ प्रीती से कहा, “आज तेरी भी हसरत परू ी कर दे ते हैं। ला, चिड़ियों वाली िादर बबछा। मेरा ददल चिड़ियों वाली िादर पर सोने को करता है ।”

यह सन ु कर प्रीती बहुत गंभीर हो गई। सख ु राज द्वारा बार बार पछ ू ने पर भी अपने ददल का पेि नहीं खोल रही थी। सख ु राज के अंदर उमि रहा प्रेम दे खकर

वह सोि में डूब गई। चिड़ियों वाली िादर के बारे में वह सख ु राज को क्या जवाब दे ? जजस काम के बदले उसने बिपन के लेकर जवानी तक अपनी आूँखें फोिी थीं, वह समय अब आ गया था, पर…

सख ु राज ने प्रीती को झझंझोिकर पछ ू ा, “क्या बात है ? बोलती क्यों नहीं ?”

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“जी, चिड़ियों वाली िादर तो मैंने अपनी बेटी मीतो के दहे ज में दे दी है ।”

अपने अंदर कुछ खोये हुए को महसस ू करते हुए बहुत सहमकर उसने कहा। सख ु राज ने प्रीती की मेहनत में प्यार और सत्कार महसस ू करते हुए उसको अपनी बाहों में कसते हुए कहा, “प्रीती, चिड़ियों वाली िादर पर की गई मेहनत तो तेरे पास ही है !” Dr. Rattan Reehal

07976970039

rcommunity@btconnect.com

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