84 Tears

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84 Tears (Anti-Sikh Pogroms & Bhopal Gas Tragedy, 1984)

Art – Ravi Shankar (Bagh) Poetry, Script & Research – Mohit Sharma (Trendster) © Freelance Talents (2010), all rights reserved.


ददद ...दख ु , विऩदा...अधधकतय रोगो को इन शब्दों के भामने तफ ऩता चरते है जफ ऐसा कुछ दख ु द उनके साथ होता है . ऐसा गरत है मा नह ॊ भुझे खद ु नह ॊ ऩता ऩय ऐसे रोग जफ खद ु ऩे फन आने ऩय भानिाधधकाय, सॊिेदनह नता, शासन की राऩयिाह की फात कयते है तो फडा

अजीफ रगता है . साथ ह उन रोगो के लरए भन भे श्रद्धा आ जाती है जो अऩने ननजी जीिन के ऊऩय दस ू यो की खश ु ी के लरए काभ कयते है मा दस ू यो के अधधकायों के लरए सॊघर्द कयते है . बोऩार गैस त्रासद औय लसख वियोधी दॊ गे, मे दो त्रासददमाॉ कापी कभ अॊतयार भे िर्द 1984 भे बायत भे हुई. इन घटनाओ ऩय भैंने लरखने की ठानी जजसकी एक िजह थी. एक फाय भेय

कऺा भे इन त्रासददमों के सॊदबद भे कुछ फात कह गमी थी औय भुझे आश्चमद हुआ की ककसी

को इस फाये भे कुछ खास जानकाय नह ॊ थी. कपय भैंने अऩने साथ के कुछ औय रोगो से फात की तो बी मह पर ननकरा. रोगो ने कहा की "हाॉ, कह ॊ सुना तो है इनका नाभ...क्मा पकद ऩडता है?" फहुत पकद ऩडता है ! तफ भैंने सोच लरमा की अऩनी तयप से कुछ तो करॉगा की रोगो को इन घटनाओ के फाये भे जानकाय लभरे औय बायत के इस कारे अध्माम से हभ रोग सफक रे सके...साथ ह ऩीड़डत रोगो, ऩरयिायों को इॊसाप लभरे. इस प्रमास का कोई याजनैनतक भतरफ नह ॊ है ... भैं मे भानता हूॉ की जैसी बायत की दशा है औय तत्कार न थी ककसी बी सत्ताधाय दर के शासन भे ऐसा हो सकता था. बायत की इतनी फडी जनता ने

खद ु को इतना ऩॊगु कय यखा है की फडी अऺम्म गरनतमाॉ कयने के फाद बी रोग शान से खर ु े घूभते है औय अनधगनत रोग न्माम की याह तकते यह जाते है . मे गरत है औय हय फाय कह ॊ हुई नाइॊसापी भे हभाय इस अऩॊग सोच से पकद ऩडता है...फहुत ज्मादा पकद ऩडता है !

इन घटनाओ ऩय अऩनी कल्ऩना औय शब्दों को रगामा है जजनका ककसी जीवित मा भत ृ

व्मजक्त, िस्तु, विचायधाया से कोई सॊफॊध नह ॊ है . इन फेजान शब्दों को करारऩ ददमा है श्री

यवि शॊकय (यवि फागेश्िय) ने. शब्दों से करा भे आने भे कुछ फातें यह गमी औय कुछ त्रदु टमाॉ

हुई है जजनकी भैं ऺभा भाॊगता हूॉ. ऩय आशा है की आऩ तक भेया सॊदेश, ऩीड़डत रोगो की बािनामें ऩहुॊचे. एक ऐसा बायत फने जहाॉ कबी ऐसा नह ॊ हो. इस ककताफ से होने िार आम से हभ ऐसे औय बी कामद आगे कय सकेंगे औय उनका फडे स्तय ऩय प्रचाय-प्रसाय कय ऩामेंगे. - भोदहत शभाद


भोपाऱ गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) कोई इतना राऩयिाह औय सॊिेदनह न कैसे हो सकती है ? रगाताय चेतािननमाॉ लभरने के फाद बी कीटनाशक (पसरो को खाने िारे कीट जो उस िक़्त पसरो को बाय भात्र भे फफादद कय दे ते थे) सेविन (Sevin) फनाने िार अभेरयकी कॊऩनी मूननमन काफादइड ने सुयऺा के लरए सराह के अनुसाय न इॊतज़ाभ ककमे, न ह अरग से रोग यखे. अरफत्ता जानरेिा यसामनों को आस-ऩास के िाताियण भे पैरने से योकने के इन्तेजाभो भे ऩैसा व्मम कयना कभ कय ददमा औय पेक्र भे रगे कभदचारयमों को बी कभ कय ददमा जजसकी िजह से मे फडी त्रासद हुई. ऊऩय से ऐसे यसामनों का इस्तेभार कयती कॊऩनी के ऩास बाय आफाद िार गय फ फजस्तमों को फसने दे ना....एक औय फहुत फडी बूर. उस ददन बोऩार शहय का हार शामद सोचा बी नह ॊ जा सकता. हय तयप हिा भे घुरे ज़हय

की अदृश्म जानरेिा भौत से बागते रोग, औय बागने भे िो जजतनी ज्मादा औय रम्फी साॉसे रेते उतना ह भौत के कय फ आ जाते. भय जों से बये हुए बोऩार औय आस-ऩास के ऺेत्रो के

अस्ऩतार, औय अस्ऩतार के फाहय रगे ऩॊडार जहाॉ अनधगनत भय जों से नघये चॊद असहाम डाक्टय औय उनके सहामक मा भेड़डकर छात्र. गैस मे अॊधे हुए रोग, खन ू की उरट कयते

रोग...भयते हुए रोग औय उनके आस-ऩास चीखते-बफरखते उनके अऩने. बय हुई साभदू हक कब्रे, सडको ऩय फेजान भिेशी, ऩरयॊदे...औय इॊसान. जाने ककतनी ह भत ृ भाॉ औय उनकी गोद

भे निजात फच्चे. तफ बायत भे शाददमों की फहाय यहती है , खश ु , जश्न भानते रोग कुछ ऩरो भे ह भत ृ हो गमे.

फोन ऩय धचल्राते, योते हुए डाक्टसद को मूननमन काफादइड ने कबी इन यसामनों के घटकों की जानकाय नह ॊ द क्मोकक शामद मे थे ह इतने ज़हय रे की मे ककसी बी सयकाय भानक ऩय खये न उतयते...ऩय बायत भे तो हय चीज़ का औय हय काभ कयिाने का जग ु ाड होता है न? (जजसका कई रोगो को नाज़ है ). इसके घटक न ऩता चर ऩाने की िजह से जो कई फाय

ऩूछने ऩय बी अभेरयका भे फैठे मूननमन काफादइड के अधधकाय मों ने नह ॊ फतामे , भयते मा


ऩीड़डत रोगो को फचने के लरए कोई दिाई नह ॊ फन ऩामी. हाॉ, भयते हुए रोगो को मे सराह

ज़रय द गमी की ज्मादा से ज्मादा ऩानी वऩमें ताकक यसामन की भात्र कभ हो शय य भे औय भुहॊ ऩय गीरा कऩडा फाॊध कय यखे. शभद आती है ..कोई ऐसा कैसे कय सकता है ? ऩय 'ऐसा' तो अक्सय होता है . रोगो का भयना सॊख्मा फन जाता है . अफ सजा मा भआ ु िज़े की फात कयना

ह फेभानी रगता है औय भन भे गहय ट स छोड जाती है . सफसे मे ननिेदन है की अगय आऩ ऐसी जस्थनत मा ऩद ऩय है जहाॉ आऩ कुछ कय सकते है तो ज़रय कीजजमे. जब भोपाऱ गैस काण्ड के दोषषयों की बात होती है तो ऐसा ऱगता है हर चीज़ उन्होंने खरीद ऱी है ...शायद ये शहर भी! मे ग़ज़र बोऩार गैस त्रासद ऩय लरखी है .

ये उनका शहर है! काततऱ आॉधियों मे ककसका ये असर है ? ददखता क्यों नहीॊ है हवा मे जो ज़हर है ? चीखें सूखती सी कहाॉ मेरा बशर है ? ये उनका शहर है ....

ि​ि ॉ ऱा आसमाॊ क्यों शाम-ओ-सहर है ? आदमखोर जैसा ऱगता क्यों सफ़र है ? ढऱता क्यों नहीॊ है ये कैसा पहर है? ये उनका शहर है .... जानें ऱीऱती है खन ू ी जो नहर है .

माझी क्यों ना समझे कश्ती पर ऱहर है ? हआ एक जैसा सबका क्यों हषर है ? ये उनका शहर है ... रोके क्यों ना रुकता...हर दम ये कहर है ? है सबके जो ऊपर..कहाॉ उसकी मेहर है ?


जानी तेरी रहमत ककस्मत जो ससफर है ! ये उनका शहर है .... इॊसानों को तोऱे दौऱत का ग़दर है ! नज़र जाए जहाॉ तक मौत का मॊज़र है ! उजडी बस्स्तयों मे मेरा घर ककिर है ? ये उनका शहर है ...

The Bhopal gas tragedy, a gas leak incident in India, considered one of the world's worst industrial catastrophes. It occurred on the night of December 2–3, 1984 at the Union Carbide India Limited (UCIL) pesticide plant in Bhopal, Madhya Pradesh, India. A leak of methyl isocyanate gas and other chemicals from the plant resulted in the exposure of hundreds of thousands of people. Estimates vary on the death toll. The official immediate death toll was 2,259 and the government of Madhya Pradesh has confirmed a total of 3,787 deaths related to the gas release. Others estimate 3,000 died within weeks and another 8,000 have since died from gas-related diseases. A government affidavit in 2006 stated the leak caused 558,125 injuries including 38,478 temporary partial and approximately 3,900 severely and permanently disabling injuries. As many as 25,000 deaths have been attributed to the disaster in recent estimates . UCIL was the Indian subsidiary of Union Carbide Corporation (UCC), with Indian Government controlled banks and the Indian public holding a 49.1 percent stake. In 1994, the Supreme Court of India allowed UCC to sell its 50.9 percent share. Union Carbide sold UCIL, the Bhopal plant operator, to Eveready Industries India Limited in 1994. The Bhopal plant was later sold to McLeod Russel (India) Ltd. Dow Chemical Company purchased UCC in 2001. Civil and criminal cases are pending in the United States District Court, Manhattan and the District Court of Bhopal, India, involving UCC, UCIL employees, and Warren Anderson, UCC CEO at the time of the disaster. In June 2010, seven exemployees, including the former UCIL chairman, were convicted in Bhopal of causing death by negligence and sentenced to two years imprisonment and a fine of


about $2,000 each, the maximum punishment allowed by law. An eighth former employee was also convicted, but died before judgment was passed. Even 27 years later the lakes around contain the toxic gas and people still drink it. Partial blindness, paralysis, impaired immune systems all struck lacs of people in just a few years. People waiting for justice. Permanent injuries getting Rupees 1500, this is not a joke. Mr. Warren Anderson visited India after the tragedy fle & so far is absconding.







ससख षवरोिी दॊ गे (Anti-Sikh Pogroms, October 31-November 3, 1984) न जाने ककतनी फाय हभ रोग कुछ रोगो के भतरफ का न लसपद लशकाय होते है फजल्क

अनजाने भे उनके भोहये फन जाते है . बायत का इनतहास ऐसे उदाहयणो की कभी नह ॊ है . हभ अऩनी विविधता ऩय नाज़ कयते है की हभ विलबन्न जगहों, प्राॊतो, धभो के रोग, सेंकडो बार्ाओँ -फोलरमों को फोरने िारे साथ यहते है . ऩय इस साथ यहने के कुछ कभज़ोय ऩहरओ ु ॊ

का भट्ठ ु ी बय रोग अक्सय भजाक उडाते हुए हभ रोगो से हभाये ह दे शिालसमों को रडिाते है . फडी फातों के नाभ ऩय अनधगनत 'छोटे ' रोग गरत कय फैठते है .

श्रीभती इॊददया गाॉधी जी की भत्ृ मु के फाद शुर हुए लसख वियोधी दॊ गे हभाय इसी सददमों

ऩुयानी कभजोय की एक औय दख ु द कडी है . इसकी नीि यखी बार्ामी याजनीती ने जो हभाय स्ितॊत्रता के सभम यखी गमी. भतबेद सुरझाने की कबी कोलशश नह ॊ ककमे गमी औय

दशको से ज़भीन के नीचे दफे औय फढ़ यहे भतबेद सतह ऩय आ गए. खद ु को फुवद्धजीिी औय

प्रोढ़ भानने िारे फडो ने फच्चो जैसे ननणदम लरए औय जजनका एक अॊजाभ मे ननकरा. बायत भे ऐसे भतबेदों की कभी नह ॊ है जजनका एक औय उदाहयण हभ ऩि ू ोतय याज्मों भे दे ख सकते है . फाद भे ऑऩये शन ब्रेक थॊडय औय ऑऩये शन िड ू योज़ हुए.

ऩहरे से ह सॊिेदनशीर भद्द ु ों को हभ रोग औप्चरयक्तओ भे उरझा कय औय जदटर कय दे ते है . ऩीड़डत रोगो की ऩीडा को अगय कभ न कय सके ऩय फढ़ामे तो नह ॊ. कुछ रोगो को एक भौत का फदरा रेना था जो उन्होंने हजायो को भायकय औय राखो को घामर, फेघय कयके

लरमा. विडॊफना तो मे है की इस विविध दे श भे हभ सफ लभरकय यहते है ....तो लसख घयो को फकामदा याशन काडो औय िोटयलरस्ट से ढूॉढा गमा औय अनऩढ़ बीड को उन घयो को जराने

औय उनभे यहने िारो को भयने भे कोई ददक्कत न हो तो उन घयो को धचजन्हत बी ककमा गमा. सािदजाननक ये ड़डमो ऩय उग्र बार्ण औय "खन ू का फदरा खन ू " जैसे नाये ददए गमे. इस

नयसॊहाय औय दे श को फाॊटने िार किमा के फाद जफ फडो की नीॊद टूट तफ सलभनतमाॊ बफठाने की औप्चरयक्ता औय साक्ष्म लभटाने की कोलशशें शर ु हो गमी. कयोडो रोगो से फने सभद ु ाम

मा उनकी विचायधायाएॊ कबी गरत नह ॊ होती...गरत होते है फडे ऩदों ऩय आसीन कुछ रोग


औय उनके ऩीछे बागते अनधगनत रोग. कहा तो जाता है की ऐसी घटनाएॉ बायत भे अफ नह ॊ होती ऩय फाफय , गोधया, औय उनके फाद हुई घटनामे तो कुछ औय ह कहानी कहती है . उठो! ऱडो! दे श के सऱए ऱडो....दे श से मत ऱडो.

यह कषवता समषपित है उन सभी मासम ू को और आिाररत है आॉखों दे खे वणिन और दृश्यों पर!

उस बेरहम वक़्त को झेऱती एक जवान ससख ऱडकी की कहानी...... ....84 की टीस (Pogrom 84) िीये ऩग ना ऩहननमो, के ककस्भत कपय जामेगी. फयसो टर क़माभत, आज फस मूॉ आमेगी.... आॉखों दे खा भॊज़य क्मों मे ददर ना भाने? खालरस्तानी फोर लबॊदयिारे जाने. आॉगन रार है भेया, यो-यो रार है आॉखें. सुफह जजनके ऩैयो ऩय अऩने हाथ रगामे,

शाभ को धचथडो भे से हाथ फस ऩैय िो आमे. अऩनी पसरे जराई, द िाये घय की ढहाई. कपय बी लभर ना ठॊ डक...


तो ऩग विच आग रगाई. सीने ऩय जो िज़न रदा ऐसे, साॊस रॉ ू अफ फता भै कैसे?

दे खे कोई भुझे आसभाॊ से,

खोर यखा है घय के दयो को, आओ-आओ भझ ु े भाय डारो. गॉज ू ते नायों ने फतामा,

जजसभे भैंने होश सॊबारा, हय सािन का झूरा डारा, भेया दे श है िो ऩयामा!

यॊ गीन ट .िी. जो तू प्माय से रामा,

रार सडक ऩय उसभे तझ ु े भयता ददखामा. ढकने सािन को ऩतझड आमा,

अफ रॊगय नह ॊ रगाता गर का गरु ु द्िाया. बाय औय नभ हिा कुछ फतामे .... खन ू की गॊध अऩनों की रामे.

कहते ककसको क़माभत ऩता क्मा? रुट गमा भेया जो बी जहाॉ था. दौडी फी जी भेय चौक तक म,ूॉ

ककतनी चीखें सुनी क्मा फताऊॉ? हाय कय कानो ऩय हाथ आमे,

तफ बी ज़ेहन से चीखें ना जामे . याशन-िोटय काडद कबी अऩने काभ ना आमे,


सयकाय दफ्तयों से उनकी लरस्ट िो रामे. सुखद ननशान घयो ऩे हभाये फनामे ,

सोचती हूॉ कहाॉ है उसका करेजा? राशों से जो िो लरस्ट लभरामे.

जीते जी भैंने इज्ज़त फचा र , खद ु ह अऩनी नस काट डार . फेयहभ भौत तफ बी ना आमे, ददद अफ तो सहा ना जामे. घय भे यहकय माद घयिारो की सतामे, ऩहुॊची हूॉ भै नघसट कय छत तक....औय कुदॉ ग ू ी... ....क्मों? ...क्मोकक...ऊऩय दे ख! भेये फी जी-िीया भुझे फुरामे! The 1984 Anti-Sikh pogroms / riots or the 1984 Sikh Massacre were four days of violence in northern India, particularly Delhi, during which armed mobs killed Sikhs, looted and set fire to Sikh homes, businesses and schools, and attacked gurdwaras, in response to the assassination of then Prime Minister, Indira Gandhi by her Sikh bodyguards. In the 1970s, during the Indian Emergency, thousands of Sikhs campaigning for autonomous government were imprisoned. The sporadic violence continued as a result of an armed Sikh separatist group which was designated as a terrorist entity by the government of India. In June 1984, during Operation Blue Star, Indira Gandhi ordered the Indian Army to secure the Golden Temple and eliminate any insurgents, as it had been occupied by Sikh Separatists who were stockpiling weapons. Later operations by Indian paramilitary forces were initiated to clear the separatists from the countryside of Punjab. Even today many Sikhs perceived the actions as an assault on their religion and rights, while the issue is contentious with abusive crimes committed by both sides.


The violence in Delhi was triggered by the assassination of Indira Gandhi on 31 October 1984, by two of her Sikh bodyguards in response to her actions authorising the military operation. The Government of India reported 2,700 deaths in the ensuing chaos. In the aftermath of the pogrom, the Government of India reported 20,000 had fled the city, however the PUCL reported "at least" 50,000 displaced persons. The most affected regions were neighborhoods in Delhi. Human rights organizations and the newspapers believe the massacre was organized. The collusion of political officials in the massacres and the failure to prosecute any killers alienated normal Sikhs and increased support for the Khalistan movement. The Akal Takht, the governing religious body of Sikhism, considers the killings to be a genocide. After the assassination of Indira Gandhi on 31 October 1984, by two of her Sikh bodyguards, riots erupted on 1 November 1984, and continued in some areas for days, killing some 800 Sikhs. Sultanpuri, Mangolpuri, Trilokpuri, and other TransYamuna areas of Delhi were the worst affected. Mobs carried iron rods, knives, clubs, and combustible material, including kerosene. The mobs swarmed into Sikh neighborhoods, arbitrarily killing any Sikh men or women they could find. Their shops and houses were ransacked and burned. In other incidents, armed mobs stopped buses and trains, in and around Delhi, pulling out Sikh passengers to be lynched or doused with kerosene and burnt.












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