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संरक्षक श्री प्रद्युम्न व्यास मुख्य सलाहकार विजय सिंह कटियार संपादक डॉ. दिनेश कुमार प्रसाद परामर्शदाता सिद्धार्थ स्वामीनारायण मयंक लूंकर
निदेशक, राष्ट् रीय डिज़ाइन संस्थान, अहमदाबाद
गतिविधि अध्यक्ष, आरऐंडपी, राष्ट् रीय डिज़ाइन संस्थान, अहमदाबाद हिन्दी अधिकारी, राष्ट् रीय डिज़ाइन संस्थान, अहमदाबाद
अध्यक्ष एवं प्रमुख , सामान्य प्रशासन संकाय सदस्य, एग्ज़ीबिशन डिज़ाइन
डिज़ाइन एवं लेआउट परामर्श तरूण दीप गिरधर वरिष्ठ संकाय, ग्राफिक डिज़ाइन डिज़ाइन एवं लेआउट मोनिका नागर अंकिता ठाकुर
पीजी छात्रा, ग्राफिक डिज़ाइन पीजी छात्रा, ग्राफिक डिज़ाइन
सहयोगी हिना कंसारा
हिन्दी अधीक्षक
छवि संग्रह वालजी सोलंकी
फोटोग्राफर
© 2017 राष्ट् रीय डिज़ाइन संस्थान इस पत्रिका में व्यक्त विचार रचनाकारों के निजी विचार हैं। यह आवश्यक नहीं कि संपादक मंडल पत्रिका में प्रकाशित लेखकों के विचारों और उनके द्वारा प्रस्तुत तथ्यों से सहमत हों। साथ ही किसी दूसरे की रचना अपने नाम से भेजने वाले कर्मचारी, संकाय सदस्य एवं छात्र इसके लिए स्वयं उत्तरदायी होंगे। राष्ट् रीय डिज़ाइन संस्थान डीआईपीपी के अधीन स्वायत्त संस्थान वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार पालडी, अहमदाबाद - 380007 दूरभाष 91-79- 26629500/26629600, फैक्स 91-79- 26621167 वेबसाइट www.nid.edu
प्रिन्ट पर्यवक्ष े ण - तरूण दीप गिरधर, िदलिप ओझा चयनित कागज- नैचरु ल ऐवल्युशन मुद्रक - स्मृति ऑफसेट प्रा.लि. अहमदाबाद चयनित फोंट्स: बलू , सारं ग कुलकर्णी कलम, लिपि रावल और जॉनी पिनहाॅर्न हलंत , सत्य राजपुरोहित और पिटर िबल’क एक मुक्त, गिरीश दलवी और यशोदीप घोलाप
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अनुक्रमणिका निदेशक की कलम से रूपांकन का उद्देश्य संपादकीय
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डिज़ाइन स्तम्भ
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ऑटोमोबाइल डिज़ाइन का भविष्य – प्रद्युम्न व्यास साक्षात्कार – सुशांत और प्रविणसिंह सोलंकी के साथ एनआईडी में ऑनलाईन कार्यक्रम – रूपेश व्यास एवं गायत्री मेनन कला एवं शिल्प को वापस लाता उद्यम – पुष्पलता स्वर्णकार इनोवेशन पर एक दृष्टि – प्रद्युम्न व्यास
भाषा स्तम्भ
(क) लेख महात्मा गाँधी के भारतीय डाक-टिकट – कुमारपाल परमार (ख) कविता सम्बित प्रधान की लघु कविताएं निर्मल सिंह की दो कविताएं क्या? – राघवेन्द्र यादव चाहत खुदा की – रोहन डिंडे चित्त – आलोक जोशी आत्म मंथन – नीला सुरेश राजेन्द्र दत्त की दो कविताएं आकाश मौर्या की दो कविताएं
अन्य गतिविधियां
वर्ष 2015 में संस्थान की महत्वपूर्ण गतिविधियां हिन्दी पखवाड़ा उत्सव– 2016 की झलक कार्यालय में प्रतिदिन काम में आने वाले प्रशासनिक शब्द एवं लघु वाक्य
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10 12 18 22 24
29 30 34 36 38 39 40 41 42 44
47 48 54 58
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निदेशक की कलम से प्रद्युम्न व्यास निदेशक, एनआईडी
वर्तमान समय में हिन्दी को वैश्विक संदर्भ प्रदान करने में उसके बोलने वालों की संख्या, हिदी फिल्में, पत्र पत्रिकाएं , विभिन्न हिन्दी चैनल, विज्ञापन एजेंसिया, उसका विश्वस्तरीय साहित्य तथा साहित्यकार
इनका विशेष प्रदेय है। इसके अतिरिक्त हिन्दी को विश्वभाषा बनाने
“पॉपुलर हिंदी ने तकनीकी विस्तार के साथ तालमेल कर हिंदी भाषा को नया विस्तार दिया है।”
में इंटरनेट की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हिन्दी अपने आप
में संपर्ण ू है -विन्यास की दृष्टि से, ग्राह्यता की दृष्टि से, प्रयोजन की दृष्टि से तथा प्रयोग की दृष्टि से भी हिन्दी हर रूप में सक्षम है। इस
सुबोध, सरल, सशक्त, भाषा को आवश्यकता है व्यापक संदर्भो में विकसित करने की। नई आवश्यकताओं के अनुरूप इसके प्रयोग
को बढावा देने की। रचनात्मक लेखन, ब्लॉग, फेसबुक, एस. एम.
एस., टी.वी., रे डियो और रं गमंच में मुख्यतः यही व्यावहारिक या कहें
पॉपुलर हिंदी नज़र आती है। इस पॉपुलर हिंदी ने तकनीकी विस्तार के साथ तालमेल कर हिंदी भाषा को नया विस्तार दिया है। भाषा हमारी
अनुभति ू यों का आधार है। आज हमारी अनुभति ू यों के पैरामीटर्स बदल रहे हैं। तो हमें अपनी अभिव्यक्ति की भाषा के मापदंडों को भी बदलने की ज़रुरत है। शुद्धतावाद को छोड़ सहजता की तरफ बढ़ना होगा।
हिन्दी की इसी व्यावहारिकता और सहजता को और मज़बूती प्रदान
करने के लिए डिज़ाइन जैसे तकनीकी शिक्षा के किताबों का अनुवाद व्यावहारिक हिन्दी में करना आवश्यक है। ताकि सभी वर्ग के छात्र
इससे लाभान्वित हो सकें। डिज़ाइन जैसी तकनीकी शिक्षा का ज्ञान आसानी से प्राप्त कर सकें। कहते हैं यदि आप दुनियां को बदलना
चाहते हैं तो सबसे पहले अपने आप को बदलिए। इसी कथ्य को ध्यान में रखते हु ए एनआईडी ने डिज़ाइन के महत्वपूर्ण किताबों का अनुवाद व्यावहारिक हिन्दी में करने का कार्य शुरू किया है। जल्द ही डिज़ाइन
की महत्वपूर्ण सामाग्रियां देश की अपनी भाषा, हिन्दी में उपलब्ध होगी। कहते हैं किसी भाषा को सशक्त करने में पत्रिकाओं का योगदान
महत्वपूर्ण होता है , इसी बात को ध्यान में रखते हु ए संस्थान के हिन्दी अनुभाग द्वारा हिन्दी पत्रिका “रूपांकन” का प्रकाशन किया जाता है।
इस पत्रिका का उद्देश्य केवल लोगों में डिज़ाइन जागरूकता को बढ़ाना ही नहीं बल्कि संस्थान के कर्मचारियों, संकाय सदस्यों एवं छात्रों की अभिव्यक्ति को एक मंच प्रदान करना भी है। रूपांकन के संपादक मंडल को मैं अपनी ओर से विशेष शुभकामनाएं देता हू ं। धन्यवाद
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रूपांकन का उद्देश्य विजय सिंह कटियार प्रधान डिज़ाइनर एवं अध्यक्ष, हिन्दी उत्सव समिति, एनआईडी
यह प्रसन्नता की बात है कि हिन्दी अनुभाग रूपांकन के तीसरे अंक
का प्रकाशन कर रहा है। हिन्दी को बढ़ावा देने में यह सराहनीय प्रयास है। हिन्दी देश की सबसे लोकप्रिय भाषा है , पूरे भारत वर्ष में इसका प्रचलन है। भारत में सभी लोग इसे भली-भांति समझते और प्रयोग
करते हैं। भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भी इसकी लोकप्रियता में
“हिन्दी देश की सबसे लोकप्रिय भाषा है, पूरे भारत वर्ष में इसका प्रचलन है।”
वृद्धि हो रही है।
सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने की देशा में ऐसी पत्रिकाओं का योगदान सराहनीय होता है। हिन्दी को बढ़ावा देने के
साथ ही रूपांकन का उद्देश्य छात्रों, संकाय सदस्यों और कर्मचारियों को उनकी अभिव्यक्ति के लिए एक मंच प्रदान करना है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि संस्थान का हिन्दी विभाग राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में भरसक प्रयास कर रही है , शायद यही
कारण है कि हिन्दी उत्सव समिति ने भी पूरे साल भर संस्थान में
हिन्दी गतिविधियों के आयोजन करने का फैसला किया है। मुझे पूरा विश्वास है कि इन गतिविधियों से छात्रों एवं कर्मचारियों में हिन्दी के
प्रति जागरूकता बढ़ेगी। मैं इस नेक कार्य के लिए हिन्दी विभाग को बधाई देता हू ं।
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संपादकीय डॉ. दिनेश प्रसाद राजभाषा अधिकारी एवं उपाध्यक्ष, प्रकाशन विभाग, एनआईडी
राष्ट्रपिता माहात्मा गांधी ने कहा था – “राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा
है , हिन्दी ही भारत की राष्ट्र भाषा हो सकती है।” गांधी जी के साथ ही
रवीन्द्रनाथ टैगोर, डॉ. जाकिर हु सन ै , नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, सरदार पटेल, बाल गंगाधर तिलक, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन आदी सभी राष्ट् रीय महापुरूषों ने हिन्दी को भारत देश की राष्ट्र भाषा के रूप में
“राष्ट्रपिता माहात्मा गांधी ने कहा था – राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है, हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है।”
सम्मान प्रदान करने की प्रबल समर्थन किया था। आजादी के 69 वर्षों में हिन्दी ने भारत सहित विश्व के अनेक प्रमुख देशों में अपनी महत्ता स्थापित की है। हिन्दी आज विश्व की दूसरी ऐसी भाषा है , जिसके
बोलने वालों की संख्या सर्वाधिक है। फिर क्या कारण है कि हिन्दी
अपने ही देश में प्रमुख राष्ट्र भाषा न होकर राष्ट्र भाषा की 22 श्रृंखलाओं
में से एक है ? संभवतः इसके पीछे अंग्ज रे ी और अंग्रेजियत का समर्थन
करने वाले वे लोग हैं जो भाषा को राष्ट्र की अस्मिता, इसके स्वाभिमान के रूप में नहीं देखते। जबकि भाषा किसी भी राष्ट्र की एक प्रमुख
पहचान होती है , ठीक उसके संविधान, राष्ट् रीय ध्वज और राष्ट्रगान की भांति।
हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित करने और उसे प्रोत्साहित करने की दिशा में “रूपांकन” हमारा एक छोटा सा प्रयास है। मैं इस अंक के सभी रचनाकारों एवं सहयोगियों का हृदय से आभार प्रगट करता हू ं जिनके सहयोग से इस अंक का प्रकाशन संभव हो सका है।
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डिज़ाइन स्तम्भ हमने पत्रिका को तीन स्तम्भों में विभाजित किया है जिसका यह पहला स्तम्भ है। इस स्तम्भ में डिज़ाइन से संबंधित लेखों एवं गतिविधियों को प्रकाशित किया जाएगा। आम जनता विशेष कर छात्रों में डिज़ाइन के बारे में जागरूकता को बढ़ाने के लिए इस स्तम्भ का सृजन किया गया है।
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डिज़ाइन स्तम्भ
ऑटोमोबाइल डिज़ाइन का भविष्य – प्रद्युम्न व्यास
“डिज़ाइन का मसला सिर्फ तकनीकी पर ही आधारित नहीं होता है, बल्कि यह सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक जैसे गंभीर विषयों से जुड़ा हुआ होता है।” पिछले 50 वर्षों से हम संसाधनों का जिस तीव्र गति से दोहन कर रहे हैं ,
अहमदाबाद ने वर्ष 2006 में ट्रांसपोर्टेशन एवं ऑटोमोबाइल डिज़ाइन में
सहायता से डिज़ाइन प्रक्रिया, उत्पाद एवं संसाधनों के चुनाव के प्रचलन
वैयक्तिक तौर पर उच्च सृजनात्मक क्षमता विकसित करना था, जिससे
उसी गति से उसकी भरपाई करना लगभग असंभव है। नए डिज़ाइन की को बदल सकते हैं। लोगों को ऐसा महसूस होने लगा है कि नवीन और क्षमतावान् उत्पादन, संवहनीय डिज़ाइन (सस्टेनब े ल डिज़ाइन) पर ही
आधारित है , न कि सिर्फ पुरानी पद्धतियों पर। हम जिस पर्यावरण में रहते हैं , उसमें सुधार लाने के लिए स्मार्ट तकनीक आवश्यक है।
आज मोटरगाड़ियों के कारण पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ रहा है। अनुमानतः 1.2 अरब गाड़िया हर दिन सड़कों पर चलती हैं। हमारी
कार्यात्मकता परिवहन पर ही निर्भर हो गयी है। स्वच्छ एवं प्रदूषणरहित
स्नातकोत्तर कार्यक्रम को शामिल किया है। इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य भविष्य में आवागमन से जुड़े चुनौतियों का उचित तरीके से समाधान कर सकें। यह कार्यक्रम परिवहन की प्रकृति, सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक
पहलुओ ं पर केन्द्रित है। इसमें बाह्य एवं आंतरिक सौन्दर्य मानवीय पहलू , वाहन पैकेजिंग, प्रदर्शन तथा एक-दूसरे के साथ संयोजन आदि शामिल
हैं। हमारा उद्देश्य निजी और सार्वजनिक परिवहन के विस्तृत पहलुओ ं और उसकी जटिलताओं को नियंत्रित करना है।
आवागमन प्रदान करना ही आज के शहरों के लिए सबसे गंभीर मुद्दा है।
वास्तव में देखा जाए तो ट्रांसपोर्टेशन एवं ऑटोमोबाइल डिज़ाइन एक बहु -
यह सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक जैसे गंभीर विषयों से जुड़ा हु आ
जिसमें हम विकलांगता को भी ध्यान में रखते हैं , दोनों में कटिंग एज
डिज़ाइन का मसला सिर्फ तकनीकी पर ही आधारित नहीं होता है , बल्कि होता है। आज आवागमन से जुड़ी कुछ चुनौतियां ही तकनीक से जुड़ी हु ई है , पर इसके अलावा भी बहु त सारी चुनौतियों का सामना हम कर रहे
हैं। उदाहरणस्वरूप उपयुक्त ऊर्जा संचयन की प्रक्रिया, सही तरीके की डिज़ाइनिंग तकनीक, किसी प्रणाली को विकसित करने के तरीके में
विषयक (Multi disciplinary) क्षेत्र है जहां तकनीक हो या मानवशास्त्र, तकनीक का प्रयोग करते हैं। इसके लिए उत्पाद का 3डी विजुआलाइजेशन रे पिड प्रोटोटाइपिंग आदि की आवश्यकता होती है , जो डिज़ाइन डेवलपमेंट के दौरान उचित निर्णय लेने में सहायक होता है।
सुधार आदि।
एनआईडी के ट्रांसपोर्टेशन एवं ऑटोमोबाइल डिज़ाइन कार्यक्रम की सबसे
फिर भी आवगमन का मानवीय पहलू ही सर्वाधिक चुनौतिपूर्ण कारक
में शामिल किया गया है जिससे डिज़ाइन छात्रों को व्यवसायिक तरीके
है। इसी को मद्देनज़र रखते हु ए राष्ट् रीय डिज़ाइन संस्थान (एनआईडी),
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बड़ी विशेषता यह है कि यहां उद्योग में चल रहे परियोजनाओं को पाठ्यक्रम से काम करने में सहायक होती है। इससे शुरूआत से ही उद्योग से बेहतर
सम्पर्क स्थापित हो पाता है। एनआईडी से उत्तीर्ण कई प्रतिभाशाली छात्रों ने
बहु त महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं गे। ऐसी स्थिति में हम अपने देश के नगरों
डिज़ाइन स्टूडियो में सेवाएं प्रदान की है। आज बहु त सारे स्नातक छात्र भी
को परखना होगा। इन उत्पादों और सेवाओं को इस तरह से समावेशित
भारतीय ट्रांसपोर्टेशन एवं ऑटोमोबाइल उद्योग में और विदेशों में भी अग्रणी एक सफल उद्यमी हैं।
पेनीनफेरीना, इटली के साथ एमओयू हस्ताक्षर और फिएट डिज़ाइन
प्रतियोगिता ‘डिज़ाइन द इटेलियन वे’ में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया
जाना और वहां एनआईडी छात्र द्वारा अल्फा रोमियो कॉन्सेप्ट प्रस्तावित कर श्रेष्ठ डिज़ाइन पुरस्कार जीतना अब तक एनआईडी की सबसे महत्वपूर्ण
और शहरों के आधारभूत संरचना और सामाजिक स्थिति की जटिलताओं करना होगा जिससे लोगों के बीच का सामंजस्य न टू टे। हमें तकनीकी को संभावना के रूप में देखना चाहिए, जो हमें हमारे सांस्कृतिक विविधताओं के अनुसार सुरक्षित, सुखी, योग्य और पर्यावरण के अनुकूल बनाती है। सबसे महत्वपूर्ण, इसे लोगों को सशक्त बनाने के साथ उनकी नैतिकता और आचरण का भी ख्याल रखना चाहिए।
उपलब्धि है। इससे एनआईडी के छात्रों का आत्मविश्वास काफी बढ़ा है।
सिस्टम-लेवल की सोच का महत्व प्रोडक्ट लेवल डेवलपमेंट से कहीं
इंजीनियरिंग एडु केशन (पेस) जो जनरल मोटर्स, ऑटोडेस्क हेवलेट-पैकर्ड
भी अच्छी तरह से समझना होगा। इस प्रयास में हमें विविधताओं से भरे
मार्च 2009 में, एनआईडी, पार्टनर फॉर द एडवांसमेंट ऑफ कोलोबेरेटीव सिमन्स और ओरे कल द्वारा बनाई हु ई एक कॉर्पोरे ट समझौता है , उसमें
सहभागी हु ई है। एनआईडी के छात्रों ने पेस इनीसीयेटीव के अन्तर्गत भी अपने सुझावों के बल-बूते कई पुरस्कार जीते हैं।
आज हमलोग चौथी औद्योगिक क्रान्ति के मोड़ पर पहुंच चुके हैं जो
हमारी जीवनशैली और काम करने के माहौल को बदलने को प्रतिबद्ध है।
ज्यादा है। आज सबका ध्यान स्मार्टसिटी पर है। अतः सबको स्मार्ट का अर्थ सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना होगा। सम्मिलत विकास हमें उस समाज की ओर अग्रसर करे गा जहां समानता होगी। स्मार्ट सिटी
में भविष्य के परिवहन की परिकल्पना इन महत्वपूर्ण घटकों के बिना नहीं
की जा सकती। हमें एक भविष्य निर्मित करना है जो सबके लिए और एक समान हो।
चौथी औद्योगिक क्रान्ति, वो अवस्था है जब फिजिकल, डिजिटल और
बायोलॉजिकल क्षेत्रों के बीच दूरियां मिट जाएगी। ट्रांसपोर्टेशन डिज़ाइन का भविष्य अब इन्हीं मानकों पर निर्धारित होने वाला है , जहां शारीरिक प्रणाली (Physical System) और कृत्रिम बुद्धी (Artificial Intelligence)
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डिज़ाइन स्तम्भ
“बेम्बू इनीशियटीव” पर एक साक्षात्कार
– सुशांत और प्रविणसिंह सोलंकी के साथ मयंक लूंकर एवं दिनेश प्रसाद ने की बातचीत
“काफी मंचों में लोग बोलते हैं, ये गरीबों की लकड़ी है। आप क्यों इसे लक्ज़री बना रहे हैं। पर भगवान ने इसे यह सोचकर तो नहीं बनाया है।” बाँस से आपका परिचय कब और कैसे हु आ ?
तो क्या उसमें रं जन भी सम्मिलित थे ?
सुशांत – बाँस भारत में सब जगह उपलब्ध है। गाँव में इसका उपयोग मुख्य
सुशांत – आउटरीच की परियोजना होने के कारण रं जन इसमें शामिल
लिए नया नहीं था, लेकिन एनआईडी में आने के बाद जाना कि बाँस में और
उसका काफी प्रभाव हु आ और प्रदर्शनियाँ भी लगी। उसी समय हमारे यहाँ
रूप से खेतों की बागड़ और गेट बनाने के लिए किया जाता है। बाँस मेरे
भी कई संभावनाएँ हैं। मैंने 1997-98 में पहली बार बाँस पर काम किया।
एनआईडी के नाट्य क्लब के साथ पूरा सेट बाँस में बनाया। यह शुरूआत थी। पढ़ाई खत्म करने के बाद आउटरीच विभाग के साथ जुड़ा। उनके साथ
नहीं थें। मैं छह महीनों तक हर महीने 15 दिनों के लिए गुवाहाटी जाता था। बीसीडीआई (बैम्बू ऐ ंड केन डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट) का प्रोजेक्ट आया। उसमें प्रो. रं जन प्रमुख थे। मेरे अलावा टीम में श्रद्धा, मयूरा, संदेश, ज़ामा, काफी लोग थे। त्रिपुरा में जाकर हमने क्षेत्र दौरा किया।
पहला डिज़ाइन कार्यशाला अगरतला में किया। 1980 में प्रो. रं जन और
एनआईडी जाकर कैसे आपको लगा कि कुछ करने की आवश्यकता है ?
समझने की कोशिश की और रं जन के सुझाव से उसे आगे बढ़ाया। 15
सुशांत – एनआईडी में पढ़ते समय बाँस से नाटक का सेट, गरबा ग्राउं ड
साथ एक कार्यशाला का आयोजन किया।
बनाए थे। पर रं जन के साथ काम करने के बाद बांस के प्रति हमारी नजरिए
गजानन उपाध्याय ने एनआईडी में बाँस का काम शुरू किया था। उसे
साल के अंतराल के बाद वही काम दुबारा किया। अगरतला के लोगों के
डीसी हेन्डीक्राफ्ट के प्रायोजन पर डिज़ाइनर्स को हाँन्ग-काँन्ग, थाईलेन्ड
जाकर मार्केट सर्वे के आधार पर नॉर्थ ईस्ट में एक कार्यशाला करना था।
भारत सरकार की ओर से विदेश यात्रा कर 2001-02 में छह कार्यशालाओं का आयोजन किया। इसकी जानकारी प्रो. रं जन की सीडी, बियोन्ड
ग्रासरुट में उपलब्ध है। हम यात्रा से 100 प्रोडक्ट्स लेकर आए थे। उनकी जाँईनरी, फिनिश आदी को अच्छे से समझने की कोशिश की।
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की सजावट आदि हमने किया था। कभी लैम्प-शेड कभी अन्य उत्पाद भी में बदलाव आया।
बाँस के साथ काम करते हु ए आपको कितना समय हो रहा है ? और इसके दौरान आप क्या बदलाव पाते हैं ?
सुशांत – 16-17 साल से मैं बांस के साथ काम कर रहा हूं। वर्ष 2000 में
बाँस की चर्चा कम होती थी। केरल और नॉर्थ ईस्ट के अलावा अन्य जगहों
में बांस इतना प्रचलित नहीं था। लेकिन वर्ष 2003 में बैम्बू मिशन स्थापित
होने के बाद प्रदेश सरकारों ने बैम्बू बोर्ड बनाए। वे वन विभाग के अंतर्गत
क्या किसी ने कमिशन किया था?
तकनीक पर ही हम निर्भर थे। अपनी तकनीक को विकसित करने के लिए
सुशांत – यह एक सरकारी परियोजना थी। 1985-86 में रं जन और
सकता था, हमने किया।
में पवेलियन डिज़ाइन किया। 1999 में अचानक बाँस संबंधित कार्यों में
आते थे और ज्यादातर बाँस-रोपण की गतिविधियां होती थी। अभी भी चीनी कोई सरकारी निवेश नहीं था। 5-10 लाख के बजट के अंदर जो भी हो
प्रविण आपने बाँस में काम करना कब शुरू किया? प्रविण – वैसे तो बांस से मेरा परिचय काफी पुराना है लेकिन ठोस रूप
से वर्ष 2014 में बांस के साथ जुड़ा। प्रो. रं जन बांस पर काम फिर से शुरु करना चाहते थे। उन्होंने सुशांत और निदेशक से बात करने का सुझाव
दिया। उन्होंने विश्वास दिखाया और 2014 में पुनः बाँस पर काम शुरू किया। एनआईडी में बाँस फोकस में कब आया? सुशांत – 1977 में “टेक्सटाईल क्राफ्ट” नामक पुस्तक के लिए अदिति
रं जन ने नॉर्थ ईस्ट का सर्वे किया था। उससे भी पहले गौतम साराभाई ने
एनआईडी परिसर में बाँस का एक घर बनाया था। जो कि बहु मंजिला था।
वह बांस से बना पहला काम था। उसके बाद अदिति रं जन, नीलम अय्यर,
उपाध्याय ने त्रिपुरा का एक प्रोजेक्ट किया। उसके बाद मणिपुर और दिल्ली उछाल आ गया। छात्रों ने डिप्लोमा, सिस्टम आदि किये। 1999 में रं जन की UNDP प्रकाशित होने के बाद प्रोजेक्ट आए। चीन से बाँस-बोर्ड मंगाकर एनआईडी में अन्तर्राष्ट् रीय कार्यशालाएं की गईं। प्रदर्शनियाँ लगाई गईं।
2003 में राष्ट् रीय बैम्बू मिशन आने के बाद दिल्ली में वर्ल्ड बैम्बू काँन्ग्रेस
का आयोजन किया गया। वह काफी ज्ञानवर्धक था। वहाँ से गुवाहाटी में
सीबीटीसी (Centre for Bamboo Technology andCraft) चालू
किया गया। हमने उनके संपर्क में आकर साथ में काम करना शुरू किया। एनआईडी का नाम फैलने लगा। क्यूब स्टू ल को भी इसी दौरान बनाया गया। अगरतला, गुवाहाटी आदि में क्यूब स्टू ल की कार्यशाला की गई।
प्रगति मैदान के गिफ्ट फेअर में प्रदर्शनी कराई गई जहां एनआईडी के काम को काफी सराहा गया।गुवाहाटी आदि में क्यूब स्टू ल की कार्यशाला की। प्रगति मैदान के गिफ्ट फेअर में प्रदर्शनी की तो एनआईडी के काम को काफी सराहना मिली।
कृष्णा पाण्डे ने बुक के लिए बाँस पर काम किया, जिसका प्रकाशन वर्ष 1986 में हु आ।
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डिज़ाइन स्तम्भ
एनआईडी में “बैम्बू इनीशिएटिव्स” कब स्थापित हु आ ? क्या उसका कोई मिशन बनाया गया था?
सुशांत – 2002-03 में हमने अपने कार्यों पर “एनआईडी सेंटर फॉर बैम्बू इनीशिएटिव्स” नाम डालना शुरू किया। जैसा कि हम सब जानते हैं बाँस
की कई प्रजातियां होती हैं। जैसे क्यूब स्टू ल हम 2-3 प्रजातियों से ही बना
सकते हैं। बाँस की प्रारं भिक जाँच के बाद ही उसकी उपयोगिता निश्चित की
बाँस इतना उपयोगी है , तो इस ओर शासन का ध्यान क्यों नही है ? सुशांत – सरकार का घ्यान बैम्बू मिशन के रूप में केवल इसके रोपण पर
गया है। उत्पाद और तकनीकि विकास की ओर कभी किसी ने नहीं सोचा। अभी तक चीन-ताईवान की तकनीक की नकल कर हम काम कर रहे हैं। हमने कोई भारतीय तकनीक विकसित नहीं की है।
जाती है। कर्नाटक में पाई जाने वाली बाँस की एक प्रजाति का वृत
हमें ग्रामिण स्तर पर जीविका चाहिये, हस्तकला चाहिये। परन्तुं साथ ही हमें
म.प्र. से स्टिकटस और नॉर्थ ईस्ट कठलमारा से कोन्साइस भी लेकर
काम सीमित है। उसकी बहु त संभावनाएँ है। पिछली बार मैंने मंत्री को भी
(diameter) 9-11’ होता है। वहाँ से हमने एक ट्रक बाँस मंगवाया।
आए। भारत के मध्य, पूर्वोत्तर और दक्षिण से अलग-अलग प्रकार के बाँस
लाकर 1 महीने की कार्यशाला आयोजित की। साथ ही नॉर्थ ईस्ट से 20-25 कारीगरों को भी बुलवाया। जहाँ-जहाँ से बाँस मंगाया गया था वहीं से
कारीगर भी बुलवाए गए। एक महीने तक कार्यशाला चली। उस कार्यशाला के दौरान बनाए गए वस्तुओ ं को दिल्ली में प्रदर्शित किया गया।
वर्ष 2005 में मुझे एनआईडी के बैंगलूरू शाखा में स्थानांतरित किया गया। पालडी परिसर में रंजन और संदश े रामन नामक एक संकाय ने काम जारी रखा।
औद्योगिक स्तर पर भी प्रगति की आवश्यकता है। कुछे क पॉकेट्स तक ही एनआईडी को दीर्घ-कालीन परियोजना देने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसमें डिज़ाइन और तकनीक दोनों का विकास हो। मेरे और प्रविण के
बनाए हैंगर्स को ही लीजिए। इनमें अपार संभावनाएँ हैं। पर बहु -उत्पाद की क्षमता नहीं है।
अभी तक हम परियोजनाओं पर ही निर्भर हैं। बाँस के विकास के लिए हमें
कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। शासन एक नई बाँस-परियोजना बनाने की प्रक्रिया में है। हमने अपने सुझाव दिये हैं।
2008 में मैंने बैंगलूरु में एक कार्यशाला आयोजित की। एनआईडी
भारत सरकार ने हाईवे मंत्रालय के अन्तर्गत नितिन गड़करी के अन्तर्गत
हम आइडिऐशन करते थे और वे उत्पादन। डिज़ाइन और उत्पादन को भी
निदेशक, पूर्व म.प्र. बैम्बू मिशन के निदेशक हैं। वे ग्रीन हाईवे के लिए बाँस
बैंगलूरू के पास ही इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाई है। उसे हमने सहभागी बनाया। पूर्ण तकनीक के साथ, बाज़ार के लिए उपर्युक्त वस्तु बनाया।
2009 में, रं जन के कहने पर कठलमार में एक कार्यशाला का आयोजन
किया गया। इस कार्यशाला का आधार प्रोडक्शन था। प्रसिद्ध कठलमारा कुर्सी की बहु मात्रा में उत्पादन करना था। दो ग्रामों के कारीगरों की टीम
को यह लक्ष्य दिया गया था। उन्हें बहु -उत्पादन करने के तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया गया था। 10 दिनों में 25 कुर्सियां बनाई गई।
नयी योजना बनाई है। नेशलन ग्रीन हाईवे मिशन नामक परियोजना के
को प्राथमिकता दे रहे हैं। हाइवे के पास यथासंभव बाँस उगाने की कोशिश है। बाँस किसी भी अन्य पेड़ की अपेक्षा अधिक CO2 ग्रसित कर O2 बाहर निकालता है। प्रदूषण को रोकने और पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए
यह एक अच्छा उपाय साबित हो सकता है। साथ ही हाईवे की अतिरिक्त
सुविघाएँ जैसे बस स्टॉप, ट्री-गार्ड, डिवाइडर, बैरिकेड इत्यादि बाँस से बनाने का सुझाव है।
भारत में आदिवासी और जनजातियाँ काफी समय से बाँस में काम कर
यह प्रोजेक्ट मिल गया तो एनआईडी के तीनों परिसरों को लाभ होगा। यह ड्रीम प्रोजेक्ट है। ल़ाखों कि.मी. हाइवे के लिए उत्पादन करना होगा। इससे
सुशांत – एनआईडी का मुख्य उद्देश्य है -जीविका निर्माण। बाज़ार में
वैश्विक स्तर पर बाँस को लेकर भारत की क्या स्थिति है ?
निवेश न कर, आसानी से उपलब्ध तकनीक के साथ, नई कौशल और नए
सुशांत – संभावनाएँ तो अपार हैं पर कुछ हो नहीं रहा। रोपण और डिज़ाइन
हेतु कोई बड़ा निवेश नहीं आया। सीमित अर्थ में मैंने और प्रविण ने नागालैंड
साबुन, नमक, बीयर और भी कई चीजें बना रहे हैं। परन्तु हम अभी भी
रहे हैं , तो डिज़ाइन हस्तक्षेप की आवश्यकता क्यों पडी़?
विक्रिय योग्य उत्पाद बनाना भी हमारा ध्येय था। मशीन आदि पर बड़ा
उत्पाद सिखाना हमारी योजना थी। बाँस की नई तकनीक विकसित करने में छह कार्यशालाओं का आयोजन किया। केवल 6 लाख का बजट हमारे पास था।
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गाँवों को भी फायदा होगा।
के अतिरिक्त उत्पादन में हम कमजोर हैं। चीन में बाँस के कपड़े, तेल,
उत्पादन में लगे हैं। एनआईडी के पास क्षमता तो है पर आर्थिक सहायता नहीं है।
चलिए सरकार की रवैये पर हम रौशनी डाल चुके हैं लेकिन
भारत में बाँस की कितनी प्रजातियाँ है और कितनी डिज़ाइन के लिए
सुशांत – देखिए प्राइवेट निवेश तो काफी है पर उन्हें बाँस मिलना मुश्किल
सुशांत – बहु त सी प्रजातियाँ हैं। लगभग 220 से 230 तक। परन्तु उपयोग
गैर-सरकारी तौर पर इस क्षेत्र में निवेश इतना कम क्यो हैं ?
है। वन विभाग के नियम इसमें बाधक हैं। मानिये मैं एक किसान हू ँ और मेरे पास 50 एकड़ बाँस की खेती है। अगर मैं 50 कि.मी. दूर फैक्टरी
लगाना चाहू ँ , तो खेत से बाँस काटकर ले जाना मुश्किल है। मुझे परमिट
लेना पड़ेगा। स्वयं का खेत होने पर भी। इस वजह से प्राइवेट उद्यमियों को परे शानी है। बाँस जहाँ पर उगता है वहीं काम करना पड़ता है।
अनूकुल है ?
की जाने वाली 10-12 ही हैं अलग-अलग क्षेत्रों में।
आपके अनुसार भविष्य में एनआईडी इस क्षेत्र में क्या भूमिका निभा सकता है ?
उत्पाद निर्मित हो जाने पर टिक्कत नहीं है।
सुशांत – एनआईडी के एलमनाई रे बक्का े रयूबन्स े और संदीप संगारू
परमिशन लेना क्या लंबी प्रक्रिया है ?
संदीप की बैंगलूरु में फेक्टरी है। इनका बाँस के क्षेत्र में बड़ा योगदान है।
सुशांत – परमिशन मिलना मुश्किल है। सारे बाँस के लिए परमिशन नहीं
मिलती। कुछ पर (कर) भी होता है। एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश ले जाना भी
मुश्किल कार्य है। उपलब्धता नहीं होने की वजह से लोगों ने विदेश से बाँस मंगाना शुरु कर दिया है। अच्छा और सस्ता बाँस ओर्डर करने के 15 दिनों के अंदर मिल जाता है। कोंकण की तरफ, कोर्नबैंक में, संजीव कोर्पकर
भारत में बाँस डिज़ाइन के अग्रदूत बन रहे हैं। रे बक े ा की अहमदाबाद और इन्होंने एनआईडी में बाँस को बढ़ावा देने में भी सहायता की है। एनआईडी का बाँस ज्ञान उनके जरिये प्रसारित हो रहा है। भारत में और उसके
बाहर भी। एनआईडी को यह जारी रखना है और डिज़ाइन और तकनीकि
सम्मेलन की ओर भी विकास करना है। हम अभी तक औद्योगिक स्तर तक नही पहूंचे हैं।
ने लोगों के सहयोग से काफी बड़ा सिस्टम बनाया है। शायद देश में बाँस
प्रविण – मेरे अनुसार एनआईडी को एक पूरे बाँस केन्द्र, मशीनों से परिपूर्ण
सिखाया। इस प्रकार माल की उपलब्धता सुनिश्वित कर, उत्पादन यूनिट
अतिरिक्त हमें कारीगरों की आवश्यक्ता है। सिर्फ सुब्रतो अभी हमारे पास
का सबसे बड़ा सिस्टम है। पहले उसने ग्रामिणों को बाँस की खेती करना डाली। बड़े स्तर पर बनी इस परियोजना की गुणवत्ता भी अच्छी है।
होने की आवश्यकता है। सभी मशीनें एक जगह कार्यरत हों। इसके
है। उसके बिना हम अपंग-असहाय हो जाते हैं। हमें ऐसी टीम का संगठन
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डिज़ाइन स्तम्भ
करना है जो तीनों परिसरो में जाकर शिक्षण दे सके। ऐसी गतिविधियों को
डिज़ाइन्स उन कारीगरों तक पहु ँचे और वे अपने सीमित माध्यमों में ही
दूसरा, जब ऐसे उत्पादन बनकर आएँ तो एक कमेटि द्वारा कुछ अच्छे
उच्च तकनीक की आवश्यकता ही न हो। बहु मात्रा में वस्तु बन सकें। इस
होना आवश्यक है। उत्पादन के लिए एनआईडी को किसी के साथ टाई-अप
अल्प समय में ज्यादा वस्तु बना पाएँ । दलालों को हटा कर कारीगरों को
फांउन्डेशन से ही बढ़ावा देना चाहिये।
डिज़ाइनर्स को चुनकर उनका बहु -उत्पादन कराना चाहिये। स्वदेशी निर्माण करना चाहिये। एनआईडी, यूएस और अन्य चैनल्स के माध्यम से अपने
डिज़ाइन्स को बाज़ार में दिखाने चाहिये। वर्तमान में, भारत की अपेक्षा चीन
से बाँस उत्पाद मंगाना सस्ता विकल्प है। वहाँ बाँस का माल, तकनीक और मांग सभी उपलब्ध हैं।
सुशांत – हमारे डिज़ाइन्स अभी ज्यादा प्रसारित नहीं हु ए हैं , कुछे क
प्रदर्शनियों के अलावा। बहु त कोशिशों के बाद नरे न्द्र बालू नामक एक
व्यक्ति ने सफलता प्राप्त की है। रं जन के संपर्क से वह प्रोत्साहित हु आ और हमारे कुछ पूर्वी उत्पादों को बनाने लगा। फिर उसने अपने उत्पाद
भी बनाएं । निफ्ट के छात्रों को भी प्रोजेक्ट्स दिये। उसका पहला शो रूम बैंगलूरू के एम.जी. रोड़ पर खुलने वाला है।
अच्छे उत्पाद बना सकें।
प्रकार वे अधिक कमा सकेंगे। हफ्तों तक एक ही काम करने की जगह वे मुख्य बाज़ार से जोड़ना होगा।
हस्तशिल्प/कला के बिना भारत की विरासत अपूर्ण है। और भारत अपनी श्रेष्ठ विरासत के लिए जाना जाता है। इसके संरक्षण की आवश्यक्ता है। इसे प्रोत्साहन मिलना चाहिये। दिनचर्या और दैनिक जीवन में बाँस का
उपयोग बढ़ाना चाहिये। इमारत बनाने में क्यों न आंतरिक विभाजक/ दीवारें बाँस की हो? क्यों उसे इँट, काँन्क्रीट का ही होना चाहिये ?
बाँस एक ईको-फ्रेन्डली और सस्टेनब े ल चीज़ है। अगर हम बाकी चीज़े
जैसे ईंट, स्टील, प्लास्टिक आदि कम करके बाँस का उपयोग बढ़ा सकें, तो बहु त ही अच्छा होगा। पर्यावरण के लिए भी अच्छा होगा। यह एक कभी न खत्म न होने वाला संसाधन है। बाँस जितना काटो उतना ही बढ़ता है।
हमें हर जगह स्व-उद्यमी चाहिये। जो निवेश कर सके। हम उन्हें सहारा देंग।े
प्रविण – बाँस हरा सोना है। लकड़ी अब चलन से बाहर है। लकड़ी को
अभाव में डिज़ाइन बाहर नहीं जाएँ गे।
के लायक हो जाता है। बाँस का उपयोग बढ़ाकर हम दुनिया को बेहतर
हम केवल प्रोजेक्ट ही ले सकते हैं। डिज़ाइन दे सकते हैं। स्वरोजगार के
अगले 5-10 सालों के लिए “बैम्बू इनीशिएटिव्स” की क्या योजना है ? सुशांत – सबसे पहले तो डिज़ाइन गतिविधि को जारी रखना है। नया
परिपक्व होने में 100 साल लगते हैं। जबकि बाँस दो साल में ही उपयोग बना सकते हैं। हमारे बच्चों और भविष्य के बारे में हम कब सोचते हैं ? यह
सही समय है। इस प्रकार हम बाँस-शिल्प और पृथ्वी दोनों को संरक्षित कर सकते हैं।
काम करते रहना होगा। जैसे प्रविण ने हैंगर डिज़ाइन को नई दिशा दी। हमें
सुशांत – एनआईडी को प्रशासन की ओर से अच्छी पूज ँ ी मिल सके तो
करना है। कोरिया, मलेशिया, सिंगापुर, इथीयोपिया आदि से बात चल
चाहिये। जहाँ बाँस में बहु त सारा कार्य हो सके। मशीनों से काम आसान
कुछ बड़ी फंडिंग प्राप्त करना है। अंतर्राष्ट् रीय एं जेसियों के साथ टाई-अप
रही है। प्रविण ने जर्मनी में कार्यशाला की, मैंने भी फ्रांस के छात्रों के साथ कार्यशाला की। इस प्रकार अंतर्राष्ट् रीय गतिविधियों में भी हम
बहु त ही अच्छा होगा। प्रविण ने जैसे कहा कि हमें एक सर्व संपर्ण ू केन्द्र और जल्दी हो सकेगा। एक माॅडल होना चाहिये।
संलग्न हैं।
प्रविण – रं जन से बातचीत के बाद यह एक चुनौती थी। कार्यशाला में हमने
प्रविण – हमारे लिए यह आवश्यक है कि अपने डिज़ाइन्स हम गाँवों तक
से सुंदर हैंगर्स बनाए। जिसे लोग गरीबों की लकड़ी बोलते थे, उस बाँस को
पहु चाँए जहाँ क्राफ्ट बसता है। क्राफ्ट घट रहा है। कम ही लोग इस क्षेत्र
में आना चाहते हैं। वे लोग टोकरी बुनते हैं और कम कमा पाते हैं। दलालों के हाथ ज्यादा पैसा आता है। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हमारे
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हाथ से काम किया। केवल कटिंग करके प्रोड़क्ट्स बनाएं । सरल प्रक्रिया नया आयाम हमने दिया है।
सुशांत – काफी मंचों में लोग बोलते हैं , ये गरीबों की लकड़ी है। आप क्यों
इसे लक्ज़री बना रहे हैं। पर भगवान ने इसे यह सोचकर तो नहीं बनाया
है। यह सस्ते में उपलब्ध है इस कारण इसको डिज़ाइनर्स नहीं उपयोग कर सकते -ऐसा नहीं होना चाहिए बल्कि इस वस्तु का फायदा उठा सारी
दुनियां तक पहुंचाना डिज़ाइनर का काम है। यह एक बहस का विषय रहा है। प्रविण – हम यहाँ भी इसको प्रोमोट कर रहे हैं। लोग जब तक देखग ें े नहीं
विश्वास नहीं करें ग।े उपयोग नहीं करें ग।े लोग सोचें -अरे ! ये मुझे खरीदना है। साउथ कोरिया में प्रदर्शनी के दौरान, रोकिंग होर्स सभी माँओं का यह आकर्षण बना रहा। यह इतना प्रसिद्ध हु आ कि मंत्री भी उसके ऊपर बैठे
और वह टू टा भी नहीं। यह बाँस की क्षमता है। बड़े से बड़े मोटे से मोटे लोगों का भार ले सकता है।
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डिज़ाइन स्तम्भ
एनआईडी
में ऑनलाईन कार्यक्रम – रुपेश व्यास एवं गायत्री मेनन
“समकालीन शिक्षा प्रणाली न सिर्फ नए तरीकों से पढ़ाने की चुनौती स्वीकारती है बल्कि हर आयु-वर्ग और जीवन क्षेत्र के लोगों में शिक्षा को गति प्रदान करती है।” परिप्रेक्ष्य/ भूमिका-प्रतिदिन बढ़ती डिजिटली सक्षम सूचना और प्रयुक्त
इस ऑनलाइन डिज़ाइन शिक्षा कार्यक्रम का उद्देश्य है ताकि ऐसे छात्र
डिजिटली सक्षम इंटरफेस व शिक्षा-क्षेत्र में प्रस्तावित पारं परिक शिक्षा-
असमर्थ होते हैं।
शिक्षा के सामने नई चुनौतियां एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
पद्धति समानांतर रूप से काम करते हैं। इन नवीन तरीकों ने समकालीन
लाभान्वित हो सकें जो औपचारिक रूप से क्लासरूम शिक्षण लेने में
शिक्षा जैसी पद्धति के लिए अप्रत्याशित संभावनाएँ विकसित की हैं।
ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से डिज़ाइन अभ्यास की संभावनाएँ
समकालीन शिक्षा प्रणाली न सिर्फ नए तरीकों से पढ़ाने की चुनौती
आवश्यकता है जिसकी प्रकृति सौंदर्यात्मक, रचनात्मक और गतिशील हो।
स्वीकारती है बल्कि हर आयु-वर्ग और जीवन क्षेत्र के लोगों में शिक्षा को
गति प्रदान करती है। समय और स्थान के बंधन से मुक्त, ऑनलाईन शिक्षण प्रतिभागियों को अपनी सुविधानुसार अलग-अलग समय पर लॉग-इन और संवाद करने की सुविधाएं और संभावनाएं देती हैं। कार्यक्रम विवरण और उद्देश्य:
यदि हम डिज़ाइन शिक्षण की बात करें तो एनआईडी ने हमेशा से ही
अंतर्राष्ट् रीय स्तरमानक और अद्वितीय प्रणालियों के माध्यम से शिक्षा प्रदान
किया है , जो कि न केवल छात्रों को एक उत्कृष्ट डिज़ाइनर बनाता है बल्कि राष्ट् रीय एवं अंतर्राष्ट् रीय मंच पर वे अपनी जगह भी बना पाते हैं।
इसी उद्देश्य और आवश्यकता के साथ, एनआईडी ने समकालीन शिक्षण पद्धति को अपनाकर ऑनलाइन डिज़ाइन शिक्षा कार्यक्रम की शुरूआत की है। शिक्षण प्रणाली के बदलते परिवेश के साथ, डिज़िटली और
तकनीकि रूप से सक्षम विश्व में सीखने की अनेकों संभावनाएँ बनाना भी
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धीरे -धारे बढ़ रही है। लेकिन सही दिशा में डिज़ाइन शिक्षण की प्रबल समय के साथ-साथ इसमें सुधार आता जाएगा।
संग्रहित वार्ता छात्रों को कक्षा-संवाद का पुनः मूल्यांकन करने में सहायक होगा। उच्च स्तर विचार और ध्यान के ज़रिये अगले सेशन के लिए तैयार रहने का अवसर प्रदान करता है और यह छात्रों में संलंग्नता और गहनता लाने में सहायक है। एनआईडी का ऑनलाइन डिज़ाइन शिक्षा कार्यक्रम अपनी शिल्प-कौशल और ज्ञान वर्धन के इच्छु क पेशव े रों और छात्रों के
लिए संभावनाएँ प्रदान करे गा। फिल्मों के जरिए उनके पोर्टफोलिओ को बेहतर बनाएगा ।
डिज़ाइन समुदाय में खोजें, उनके साथ जुड़ें और चर्चा करें -जैसा कि
इस कार्यक्रम का उद्देश्य विश्व के कोने-कोने के छात्रों तक पहुंचना है ,
अलग-अलग संस्कृति और क्षेत्रों के लोग एक गतिशील पर्यावरण बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देंग।े
पाठ्यक्रम:
कोर्पोरे ट, सरकारी और गैर-सरकारी कार्यरत पेशव े रों के लिए
विकास, पाठ्यक्रम की प्रकृति एवं प्रतिभागियों के प्रकार को ध्यान में
कार्यरत पेशव े र, अपना ज्ञान और कौशल वर्ध्धन के इच्छु क और आधुनिक
ऑनलाइन डिज़ाइन शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत प्रद्त पाठ्यक्रमों का
रखकर िकया गया हैं। जिससे सफलतापूर्वक विषय-वस्तु और शिक्षणशास्र का संकलन हो सके।
डिज़ाइन अध्ययन पूर्व स्कूल शिक्षण:
विशेष पाठ्यक्रम:
प्रवृत्तियाँ जान कर अपने कैरियर को उँ चाई देने के लिए, एनआईडी द्वारा
ऑनलाइन डिज़ाइन शिक्षा कार्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध पाठ्यक्रमों में से कोई एक पाठ्यक्रम चुन सकते हैं।
उच्च और उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ रहे छात्र, जो डिज़ाइन में
इन्फोर्मेशन (सूचना) डिज़ाइन या/ यूएक्स डिज़ाइन, मानव-कम्प्यूटर
रचनात्मक सोच पर पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। इससे उनमें डिज़ाइन की समझ
डिज़ाइन विचार और अन्य विषयों में से इंडस्ट् री की जरूरतों के हिसाब से
कैरियर के बारे में जिज्ञासु हैं , उनके लिए डिज़ाइन के मूलभूत विषयों और बढ़े गी और रचनात्मक और डिज़ाइन विचार पर सामान्य क्षमता प्रदान करे गा।
स्नातक और स्नातकोत्तर पढ़ाई:
स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रमों जैसे इंजीनीयरिंग और ललित कला इत्यादि में पढ़ रहे छात्र, सामान्य रचना और डिज़ाइन विचार एवं , विशेष
माँड्यूल जैसे – “डिज़ाइन और तकनीकी” इंजीनियर्स के लिए, “सामाजिक डिज़ाइन”, समाजशास्त्र के छात्रों के लिए, दोनों का लाभ उठा सकते हैं।
इंटेरेक्शन डिज़ाइन, डिज़ाइन प्रक्रिया और प्रणाली, डिज़ाइन परिचय, खोजा जा सकता है।
“डिज़ाइन और नवीनीकरण / इनोवेशन”, “सिस्टम डिज़ाइन” आदि से उद्योग में कार्यरत पेशव े रों को उनकी क्षमताएँ , ज्ञान और कौशल को
और अधिक विकसित करने की संभावनाएँ हैं। विशेष पाठ्यक्रम जैसे –
“प्रोटोटाईप निर्माण”, “आइडेन्टीटी निर्माण”, “प्रदर्शनी डिज़ाइन” आदि, इन विशेष क्षेत्रों में काम कर रहे पेशव े रों को फायदा पहु ँचा सकते हैं।
ऐसे पाठ्यक्रम, सामान्य और विशेष दोनों प्रकार के हैं -परन्तु इनका कठिनाई स्तर बेहद कम होता हैं। जिससे कोई भी रुचि रखनेवाला
विद्यार्थी इनके माध्यम से डिज़ाइन की बुनियादी समझ प्राप्त कर सके।
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विषय-वस्तुं निर्माण:
पाठ्यक्रम को व्यापक और इंटेरेक्टीव बनाने के लिए व छात्र संलग्नता बढ़ानें के लिए, इन कार्यशालाओं की विषय साम्रगी निम्नलिखित हैं – दृश्य-श्रवण प्रस्तुति या फिल्म:
दृश्य श्रवण (ऑडियो वीडियो) प्रस्तुति या फिल्म संकाय सदस्यों द्वारा बने
होंगे। इन साम्रगियों को सहभागियों के समक्ष एक रोचक तरीके से प्रस्तुत
किया जाता हैं , जिससे लंबे समय तक यह उनकी स्मृति में रहे। इसके लिए एकल वस्तुएं जैसे फिल्में जो विषय की बेहतर रूप से समझने में सहायक हों।
लगने वाले घंटे /सेशन पर भी विचार िकया गया हैं। कार्य का प्रस्तुतिकरण और मूल्यांकन भी प्रणाली अनुसार होगा। संवादात्मक सत्र/ इंटरै क्टीव सेशन:
संकाय सदस्यों के साथ संवादात्मक सत्र का आयोजन किया जाता है जहाँ छात्र अपने विचार और समझ साझा कर सकें, और संकाय उन्हें स्पष्टता
प्रदान करें । यह विचारों, शंकाओ और प्रश्नों के अदान-प्रदान का मंच, एक
दूसरे और संकाय के साथ, अप्रत्याशित दिशाएँ दिखाता है । यह प्रश्न-उत्तर वाचक हो सकता है। केस-स्टडी सेशन भी सह-शिक्षण में मददगार होता हैं।
गृहकार्य /असाइनमेंट:
मूल्यांकन एवं प्रमाणीकरण:
कार्य उन्मुखी बनाने के लिए उसी अनुसार गृहक्रार्य बनाने चाहिये। इसमें
जाता है।
प्रतिभागियों को व्यावहारिक व क्रियाशील अनुभव देने के लिए और उन्हें
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गृहकार्यों का मूल्यांकन व प्रमाणीकरण निम्न दृष्टिकोण के साथ किया
आँडिट कोर्स – इसमें छात्र विषय-वस्तु को जानकर उससे संबंधित संसाधनों से सम्मुख होते हैं। इनका कोई मूल्यांकन नहीं होता हैं।
प्रमाणीकरण – छात्रों को कार्य प्रस्तुत करने पर प्रमाणपत्र दिया जाएगा। यह प्रमाणीकरण कार्य के संतोषजनक मुल्यांकन पर ही होगा।
शीघ्र ही आॅनलाइन िडजा़इन प्रशिक्षण हिन्दी में भी उपलब्ध होगी। सभी दृश्य-श्रवण प्रस्तुति या फिल्म हिन्दी भाषा में उपलब्ध कराया जाएगा।
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डिज़ाइन स्तम्भ
कला एवं शिल्प को वापस लाता उद्यम – पुष्पलता स्वर्णकार
“भारत सर्वोंच्च विकासशील दे शों में से एक है, लेकिन अभी भी इसके कुछ कार्य दुनिया से कटे हुए हैं।”
हाँलाकि भारत सर्वोंच्च विकासशील देशों में से एक है , लेकिन अभी भी
औद्योगिक डिज़ाइन के कोर्स सिरामिक ऐ ंड ग्लास डिज़ाइन में विशेषज्ञता
प्राधिकारी उनकी कई जरूरतों को नजर अंदाज करते हैं। इस बात को
दिलवाने में सहायता की है। उड़ीसा में आदिवासी क्षेत्रों में काम करने के
इसके कुछ कार्य दुनिया से कटे हु ए हैं। पहचाने जाने के बावजूद भी
ध्यान में रखते हु ए एनआईडी स्नातक, झारखण्ड की पुष्पलता स्वर्णकार ने इन आदिवासियों की जरूरतों को समझने के लिए एवं उनका जीवन
सुधारने के लिए इस वर्ष 5 मई को सेरेने डिज़ाइन ऐ ंड मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड नामक एक उद्यम शुरू किया है। जहाँ ज्यादातर नई कम्पनियाँ
बड़े-बड़े विचारों पर ध्यान दे रही हैं , वहीं पुष्पलता ने कुम्हारों एवं कलाकारों
एवं इस क्षेत्र के प्रति उनके रूझान में ही उन्हें इस प्रयोग में सफलता
दौरान वह वहाँ के स्थानीय कुम्हारों एवं कलाकारों के संपर्क में आई। उन्हें यह ज्ञात हु आ कि अत्यधिक हू नर होने के बावजूद भी वे अपना परिवार
चलाने में असमर्थ हैं। इसी कारण पुष्पलता के दिमाग में इस नवीन विचार ने जन्म लिया।
की मदद करना ठीक समझा है।
उन्होंने बाजार में आसानी से मिलने वाले हाथ से बने उद्पादों के अतिरिक्त
उनकी इस शुरूआत को नेशनल डिज़ाइन्ड बिज़नेस इनक्यूबटे र की
किया। पुष्पलता ने टेराकोटा अभूषण बनाने की कला सीखा कर
सहायता प्राप्त है। इसे सरकार स्टार्टअप योजना के अंतर्गत निधि भी प्राप्त है। इनके उद्पाद जैसे स्प्राउट वेसल (मिट्टी से बना) फेसबुक पर वाजिब
दरों पर बेचे जा रहे हैं एवं ये एनआईडी, अहमदाबाद के स्टोर में भी उपलब्ध
हैं। इसे इस प्रकार बनाया गया है कि भिगे हु ए बीज को इस पात्र में रखने से अगले दिन ताजे स्प्राउट प्राप्त किए जा सकते हैं।
यह पूरी प्रक्रिया परे शानी मुक्त है। पुष्पलता ने कई गुजराती कुम्हारों को यह कला सिखाई एवं उनको अपने उद्पाद सही दरों पर बेचने में भी मदद की।
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आदिवासियों को स्प्राउट बर्तन बनाने की तकनीक सिखाने का निश्चय
आदिवासी महिलाओं को भी सशक्त किया है। “मेरा काम करने का तरीका आदिवासी कलाकारों की जीवनी में सुधार लाता है। ये हमारी परं परागत कला एवं संस्कृति को सुरक्षित रखता है साथ ही साथ उन्हें अंतर्राष्ट् रीय स्तर प्रदान करता है। कई व्यक्ति आदिवासियों को सशक्त करने का
प्रयास करते हैं। परं तु वे यह भूल जाते हैं कि केवल जानकारी, संख्या और फाइलों से कुछ नहीं होगा, हमें उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने की
जरूरत है।” साथ ही मैं आदिवासी महिलाओं के जीवन में सुधार लाने का भी प्रयत्न कर रही हू ँ।
हम हमारे विविध क्षेत्रों के अनुभव जैसे – कलाकृति, प्रॉडक्ट डिज़ाइन,
सामाजिक नवोन्मेष, आपूर्ति शृंखला, विपणन(मार्केटिंग), तथा आईटी से निम्नलिखित क्षेत्रों मे सहयोग करते है :
– डिज़ाइन सहयोग से आदिवाशी कलाकृतियों को बाजार आधारित वस्तुएं बनाने मे मदद मिलती है।
– इन वस्तुओ ं के मूल्य को बढ़ाने के लिये ब्रांडिंग ऐ ंड मार्केटिंग सहयोग करते हैं।
– इन वस्तुओ ं को विविध बाज़ारों जैसे -ऑनलाइन, रियल स्टेट व्यापार, अत्यधिक मूल्य देने वाले कॉर्पोरटेस से भी जोड़ते हैं , ताकि आदिवासी कलाकारों के आमदनी में अधिक से अधिक वृद्धि हो सके।
पुष्पलता आशा करती है कि वे ज्यादा से ज्यादा आदिवासी काम तक पहु ँच पाएं एवं उनकी जरूरतों को समझकर आगे आने वाले समय में उद्पाद बनाने में उनकी मदद कर पाएँ ।
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डिज़ाइन स्तम्भ
इनोवेशन पर एक दृष्टि – प्रद्युम्न व्यास
“इनोवेशन, अपने आप में एक बहुमुखी और बहु-विषयक गतिविधि है और यह, विचार प्रक्रिया में एक नया या अलग नज़रिया ला सकता है।”
इनोवेशन, अपने आप में एक बहु मख ु ी और बहु -विषयक गतिविधि है और यह, विचार प्रक्रिया में एक नया या अलग नज़रिया ला सकता है। अपनी
जीवंत अर्थव्यवस्था के चलते, भारत अभी भी एक अत्यंत ही रोमांचक दौर से गुज़र रहा है , जो शायद ही कभी 100 साल में एक बार आने की उम्मीद
थी। ज्ञान का भंडार पहले से ही हमारी व्यवस्था में मौज़ूद है और इनोवेशन, डिजाइन, बौद्धिक संपदा यह सभी हमारी देश की छु पी हु ई शक्तियां हैं।
जापान, कोरिया और ताइवान जैसे छोटे-छोटे देश अपने नवाचारों के ज़रिए अपनी वैश्विक शक्ति दिखा रहे हैं। 1961 में कोरिया दुनिया का पांचवां सबसे गरीब देश था और आज यह दुनिया का पांचवां सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था
का स्वामी है। व्हाइट माल परिवहन, ऑटोमोबाइल सेक्टर, कोरियाई कंपनी जैसे एलजी, सैमसंग, हुंडई आदि हमारे देश में अत्यंत परिचित नाम हैं।
वे इतने सफल इसलिए रहे हैं क्योंकि वे इनोवेशन दृष्टिकोण की नब्ज़ तक
पहु ँचे हैं और इसी इनोवेशन दृष्टिकोण के चलते ही वे अनेक उत्पाद जैसे कि एयर कंडीशनर, फ्रिज या कार, इन्हीं के ज़रिए भारतीय बाजार पर कब्जा किया है।
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इनोवेशन के प्रकार सफल इनोवेशन:
इनोवेशन को हम कई भागों में परिभाषित कर सकते हैं। जिसमें से एक
है सफल इनोवेशन, जिसे हम यूँ परिभाषित कर सकते हैं कि एक लक्ष्य
की प्राप्ति के लिए समय, अनुसंधान व पूंजी का निवेश करना। वास्तव में, दवा के क्षेत्र में सफल इनोवेशन दृष्टिमान है। इसके जरिए विश्व बाजार पर आसानी से क़ब्ज़ा किया जा सकता है। वृद्धिशील इनोवेशन:
रफ़्तार, कास्ट और गुणवत्ता, इस प्रक्रिया में यह तीन कारक शामिल है ,
यानी या तो इसका उत्पादन तेजी से करें या गुणवत्ता में सुधार और लागत
में कमी लाकर उसका निर्माण किया जाए। इंजीनियरिंग में, इनोवेशन कुछ इसी तरह की ही सोच रखता है , जिसमें हम संवर्द्धित तौर से हर बार पहले से कुछ बेहतर करते हैं।
भावनात्मक इनोवेशन:
तीसरे इनोवेशन क्षेत्र में हम हमारे इर्द-गिर्द की भावनाओं, संस्कृति और रचनात्मक संस्कृति उद्योग से रू-ब-रू होते हैं और कोरिया वास्तव में
भावनात्मक इनोवेशन के साथ काम कर रहा है। भारतीय बाजार में कोरिया के घरे लू उत्पादों की उपस्थिति भावनात्मक इनोवेशन का एक उदाहरण है। भारतीय उपयोगकर्ताओं की भावनाओं पर आधारित अध्ययन के कारण उन्हें संस्कृति पहलू में झाकने का मौका मिल गया और उन्होंने अपने
उत्पादों को भारतीय उत्पादों की तुलना में बेहतर बना दिया और प्रगति करते गए।
औद्योगिक क्रांति के चार चरण
और आईटी शक्ति है , जिसमें 1970 से भारत को आईटी क्रांति में एक
वैश्विक उपस्थिति मिल गयी है। अब हम चौथे औद्योगिक क्रांति की ओर
अग्रसर हैं जो डिजिटल क्रांति है , जहां डिजिटल, भौतिक, जैविक क्षेत्रों की
सीमाओं को विलय कर रहे हैं , जहां डिजिटल और साइबर स्पेस चारों ओर बढ़ रहे हैं।
डिजिटल क्रांति:
इसका एक जीवित उदाहरण मोबाइल है , जो इस देश में अरबों लोगों के
साथ जुड़ा हु आ है। उबर, एयर बी ऐ ंड बी और फ़ेसबुक आदि जैसे डेटाबेस
पर नए इनोवेशन से, कनेक्टिविटी में नई क्रांति लाई गयी है। हमारे युवाओं ने आईटी क्रांति में एक नयी चहल-पहल पैदा कर दी है , उदाहरण के तौर पर, जब आप एक स्थान से माउस की एक क्लिक के साथ एक कमांड
वाष्प ऊर्जा:
देते है तो आप किसी ग्रामीण इलाक़े में जहाँ 3डी प्रिंटर है , उसका निर्माण
क्योंकि तब वाष्प ऊर्जा औद्योगिक गतिविधियों के प्रमुख पहियों में से एक
एक संबल है , अंत में उपयोगकर्ता, निर्माता, और वातावरण ही है जो एक
अन्य चीजों का निर्माण व्यवसाय शुरू किया गया और तीसरा इलेक्ट्रॉनिक
लिए उपयोगी साबित होने चाहिए।
पहली औद्योगिक क्रांति 1784 में भाप इंजन के माध्यम से ही की गयी थी
कर रहे हैं , रोबोट आदि द्वारा की गयी सर्जरी, इत्यादि पर तकनीक मात्र
थी; दूसरा क्रांति 1870 में विद्युत ऊर्जा से थी जिसमें की विद्युत मोटर और
महत्वपूर्ण इकाई है। इसलिए, प्रौद्योगिकी के उपयोग हमारे पर्यावरण के
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इनोवेशन का लालन-पालन:
होने का प्रयास करते हैं। हम ऐसे कई उदाहरण देखते हैं जहां, कोई भी
हमारी युवा शक्ति की रचनात्मक क्षमता को समझने की जरूरत है।
एक फिटर या एक मिस्त्री की है , ऐसा होने से अपने विचारों, कल्पना और
भविष्य के लिए हमें इनोवेशन विचारों पर ध्यान देने की ज़रूरत है , और प्रतियोगिता, एक मजबूत तरीका है जिससे कि आप उन नवीन विचारो को
आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। हालांकि, प्रोत्साहन का मुख्य मुद्दा बेहतर दृष्टिकोण होना चाहिए। हम भारत में डॉक्टरों के ऐसे सम्मेलनों
जिसे उच्च सम्मान से नवाज़ा गया हो उनकी पृष्ठभूमि, एक बढ़ई की या
क्रियान्वन में वे एक नया दृष्टिकोण ला पाए जिसकी वजह से वे वह कार्य बहु त प्रभावी ढं ग से कर पाए।
की व्यवस्था करते हैं जिसमें केवल डॉक्टर ही भाग ले सकते हैं। इसी तरह,
इनोवेशन में एक बहु -विषयक दृष्टिकोण का उदाहरण है एटीएम मशीन।
कर रहे हैं। परं तु यदि एक डिजाइनर सम्मेलन हो रहा है , तो उसमे डॉक्टर,
कौन है ? यह मूल प्रश्न है। इसमें बैंक, इंजिनियर व अन्य लोग जो इसके
इंजिनियर, इंजीनियरों से बात कर रहे हैं और डिज़ाइनर, डिजाइनरों से बात इंजीनियर, पुलिस को भी शामिल करना चाहिए ताकि वे एक नया परिप्रेक्ष्य ला सके।
इसके अतिरिक्त, व्यावसायिक प्रशिक्षण, किसी भी संस्था का एक बहु त
हम सब एटीएम मशीन के उपयोगकर्ता हैं लेकिन इसके हितधारक
उपयोगकर्ता हैं , वे भी हितधारक हैं। पर पते की बात यह है कि इनके
अलावा अन्य कई छिपे हितधारक हैं , व एटीएम मशीन डिज़ाइन करते समय हमें इन सभी हितधारकों, का भी ध्यान रखना होगा।
ही महत्वपूर्ण हिस्सा है और अगर एनआईडी सफल हु आ है तो यह सिर्फ़
विद्युत इंजीनियर, मैकेनिकल इंजीनियर, उत्पादन इंजीनियर, बैंक ये सब
प्रशिक्षण तरीके में विश्वास रखता है , जो 1961 से सूत्रबद्ध है। सहभागिता
पुलिस भी कुछ अन्य हितधारक हैं जिनका ख्याल हमें रखना होगा,
इसलिए क्योंकि एनआईडी एक बहु त ही प्रयोगात्मक व्यावसायिक
में काम करना, लोगों से मिलना, ग़लत सही हर तरह की कोशिश करते
हैं , समझते हैं और इस सृजन को बनाने के लिए सहभागी के रूप में एक
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स्पष्ट रूप से इस डिज़ाइन से जुड़े हु ए होंगे, लेकिन नगर निगम, यातायात क्योंकि यदि आप इस एटीएम मशीन को ऐसी जगह स्थापित करें जहाँ यह यातायात को बाधित करे गा, तो इस डिज़ाइन का उद्देश्य पराजित साबित
होगा। तो आपको उनका नज़रिया भी जानना होगा। इसी प्रकार, यदि
इनोवेशन – देने की खुशी:
विकलांग हैं , व्हीलचेयर पर होते हैं , बूढ़े , नेत्रहीन, उनके लिए यह अत्यंत
महत्वपूर्ण परिसंपत्ति के साथ जुड़ा हु आ है और वह है जीवन। हमारे कोई
आप इसे एक बहु त ही तटस्थ या एकांत जगह में डाल देंगे तो वो लोग, जो असुविधाजनक होगा। लेकिन हमने कभी इस पर विचार ही नहीं किया कि असलियत मे हितधारक कौन हैं। इनके अलावा चोर, वे भी एक महत्वपूर्ण हितधारक हैं , क्योंकि ये वही लोग हैं जिन्हें इस बात से मतलब है के यह
किस मेटीरियल (सामाग्री) से बना है क्योंकि उन्हें ही उसे तोड़ना है व पैसे
निकालने हैं। वास्तव में, एनआईडी में हम कैदियों के साथ ही मिलकर ऐसी
डिज़ाइन्स बनाते हैं जिनकी सहायता से चोरी की दर न्यूनतम की जा सके। यदि अब एक समस्या आती है तो हम उसे वृद्धिशील तरीके से सुलझाते है ,
इसके बाद यदि एक और समस्या आए तो उसे फिर सुलझाते है , इस तरह, एक समग्र तरीके से हम समस्याओं पर गौर करते हैं व इनका समाधान
निकालते हैं और इसी विधि को हम डिज़ाइन प्रोसेस कहते हैं। यही कारण है कि हमें लगता है कि डिज़ाइन की प्रक्रिया एक बहु -विषयक दृष्टिकोण है
किसी भी इनोवेशन में हम क्या कर रहे हैं यह इस ग्रह के एक बहु त ही भी विचार या गतिविधि जो हम कर रहे हैं , समाज के साथ जुड़ा होना
चाहिए। और केवल मानव जीवन से नहीं लेकिन उन सभी जीवन से जो
इस पर्यावरण के चक्र में मौजूद हैं क्योंकि सबसे टिकाऊ बातें हैं जो आप
प्रकृति में देखते हैं या जानते हैं , जहां प्रकृति है , उसमें एक शून्य बर्बादी है , और यही हमारी प्रेरणा का स्त्रोत होना चाहिए। इसलिए जब भी हम कभी भी, कोई भी इनोवेशन करते हैं , तो हमारे ध्यान में यह होना चाहिए कि
कैसे हमारी सोच इस ग्रह की हर एक जीवन की गुणवत्ता में सुधार या उसे बेहतर कर सकता है। जैसा कि मशहू र विज्ञानी आइंस्टीन ने कहा है कि “एक सफल आदमी बनने की नहीं अपितु एक मूल्यवान, नैतिक इंसान बनने का प्रयत्न करें और इसी नींव पर जीवन में अग्रसर हों।”
जिसे इंजीनियरिंग व मेडिकल कॉलेजों में भी सिखाई जानी चाहिए।
यहाँ तक कि नौकरशाहों को भी सिखाया जाना चाहिए उन्हें पता चल
सके कि यह कार्य प्रणाली कैसे काम करती है व इसे कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
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भाषा स्तम्भ भाषा स्तम्भ रूपांकन का दूसरा और महत्वपूर्ण चरण है। इसका उद्देश्य संस्थान के शैक्षणिक, गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों एवं छात्रों की रचनात्मक प्रतिभा को उजागर करना और राजभाषा हिन्दी के प्रति जो हमारी नैतिक जिम्मेवारी है उसका निर्वहन करना है।
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भाषा स्तम्भ
महात्मा गाँधी के भारतीय डाक-टिकट – कुमारपाल परमार
“मोहन से महात्मा बने गांधीजी ने अपने प्रयोगों, अनुभवों, कार्यों आदि से भविष्य के लोगों को प्रेरणा प्रदान की है और अपने विचार समाज में प्रसारित किये हैं।” वर्तमान समय में मानव, संघर्ष और हिंसा की काली छाया में डू बा हु आ है।
के किसी भी नेता को नहीं दिया गया। यह उनकी महानता को भली-भांति
गांधीजी के विचारों को किसी न किसी माध्यम से समाज में रखे जाते रहे
पोलेण्ड, रोमानिया, म्यानमार आदि द्वारा डाक सामग्री प्रसारित की गयी
आतंकवाद, सम्प्रदायवाद, रूढ़िवाद विनाश रूप ले रहे हैं तब राष्ट्र द्वारा
हैं। मोहन से महात्मा बने गांधीजी ने अपने प्रयोगों, अनुभवों, कार्यों आदि से भविष्य के लोगों को प्रेरणा प्रदान की है और अपने विचार समाज में
प्रसारित किये हैं। अहिंसा और सत्य से सब कुछ जीता जा सकता है , ऐसी प्रेरणा उन्होंने पूरे विश्व भर को दिया है। गांधीजी का परिचय देना आसान
नहीं है , वे गुजरात के ही बापू नहीं, बल्कि सम्पूर्ण देश के महात्मा, दक्षिण आफ्रिका के गाँधीभाई, प्रख्यात सत्याग्रह सेनापति, स्वतंत्र भारत के
राष्ट्र पिता, इतना नहीं संपर्ण ू जगत के महापुरुष थे, और आगे भी रहेंग।े
अंग्रेज शासन से भारत को मुक्त करवाना ही महात्मा का एकमात्र ध्येय नहीं था बल्कि देश की जनता को राष्ट्र के हित के लिए जागृत करना, देश के लोगों में राष्ट्र वाद का फैलाव करना भी उनका स्वप्न था।
सम्पूर्ण विश्व में भारत के आलावा तकरीबन 100 से भी अधिक राष्ट् रों ने
गांधीजी पर 300 से ज्यादा डाक-टिकट जारी की है। ऐसा सन्मान दुनिया
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दर्शाता है। अमेरिका ने सन् 1961 में इसकी पहल की थी, बाद में कोंगो, है। भारत में, सिंध के कमिश्नर मी. बार्टल फ्रेरे द्वारा सिंध प्रांतो में सन्
1852 में डाक खर्च अदा किये गए की निशानी रूप डाक-टिकट जारी
की गई थी। “सिंध डॉक्स” नाम की यह टिकट सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि
सम्पूर्ण एशिया में जारी किया गया था। डेप्युटी सर्वेयर जनरल, कैप्टन तुईये ने लिथोग्राफी पद्धति से डाक टिकट छपाई की शुरुआत की। बाद में,
टाइपोग्राफी, लिथोग्राफी, एनग्रेविंग (इन्टाग्लीयो) और फोटोग्रव्योर पद्धति से डाक-टिकट की छपाई की शुरुआत हु ई।
भारतीय डाक विभाग द्वारा भी डाक-टिकट के माध्यम से गांधीजी के कार्यो
एवं मूल्यों को देश और दुनिया के समक्ष रखने में पीछे नहीं रहा। भारत देश में आजादी के बाद से लेकर अब तक भारतीय डाक विभाग द्वारा कई डाक टिकट पारित की गई है। जिसमें से यहाँ कुछ टिकट के माध्यम से गांधीजी के विचारों को प्रगट करने की कोशिश की गई है।
इस डाक-टिकट को “भारत की आजादी की पहली सालगिरह” नाम दिया गया था। दिनांक 15 अगस्त 1948 को भारत की आजादी की वर्षगांठ
के पर्व पर प्रदर्शित की गयी। यह डाक-टिकट भारत प्रतिभूति मुद्रणालय, नाशिक द्वारा 8 रं गों के प्रयोग से फोटोग्रेव्योर पद्धति से ग्रेनाईट कागज
पर छपाई गई थी एवं उसके साथ “प्रथम दिवस आवरण” और “केन्स्लेशन मोहर” तस्वीर अनुसार तैयार किये गए थे। यह डाक-टिकट उस समय
की सबसे मूल्यवान डाक-टिकट थी। यह भारत की व्यापक सांस्कृतिक
विरासत का चित्रण समान है। 10 रुपए मूल्य की डाक-टिकट विशेष रूप
से सरकारी उपयोग के लिए केवल भारत के गवर्नल जनरल को प्रदान की
गई थी। दिनांक 5 अक्टूबर 2007 को इस टिकट के सेट को 38,000 यूरो में नीलाम किया गया था।
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दिनांक 12 फरवरी 2011 को इन्डिपेक्स 2011 के अवसर पर भारतीय
डाक विभाग ने महात्मा गांधी जी पर विश्व का सर्व प्रथम खादी से निर्मित डाक-टिकट जारी किया। इस डाक-टिकट का अनावरण भारत की
तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल द्वारा किया गया। इह अद्भूत
डाक-टिकट का डिज़ाइन श्री शंख सामंत द्वारा किया गया और विशेष रूप से निर्मित खादी सूती कपडे ़ पर छपाई की गई।
श्री शंख सामंत द्वारा तैयार की गयी चार विभिन्न डिज़ाइन के माध्यम से
यह डाक-टिकट महात्मा गाँधी की 50वीं पूण्यतिथि पर दिनांक 31 जनवरी 1998 के दिन एक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें तत्कालीन
राष्ट्रपति श्री आर. के. नारायणन के हाथों से 4 डाक-टिकट की मिनिएचर शीट का विमोचन किया गया। इस डाक-टिकट के माध्यम से गाँधीजी
के चार आदर्श कृषक कल्याण, सामाजिक उत्थान, नमक सत्याग्रह एवं
सांप्रदायिक सद्भाव को प्रगट करने की कोशिश की गयी है। जैसे की आप देख सकते हैं चारों डाक-टिकट की पृष्टभूमि पर लाल किला अंकित किया गया है , जो स्वतंत्रता का द्दोतक है। इस संदर्भ में प्रगट की गई विवरणिका का मुखपाठ “इंडियन स्ट्र गल फॉर इंडिपेनडेंस” महात्मा गाँधी पब्लिकेशन डिवीजन द्वारा लिखा गया है।
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यह एक प्रेरणादायक शब्द है “करें गे या मरें गे” दिनांक 2 अगस्त 1992 के दिन भारत छोड़ो आंदोलन की 50वीं वर्षगांठ पर यह दो डाक-टिकट प्रगट की गयी। “करें गे या मरें गे” गांधीजी के यह एक प्रेरणादायक शब्द है इस नारा को प्रदर्शित कर श्री शंख सामंत ने डिज़ाइन तैयार की थी। जिसे दो रं गों में स्वदेशी एड़ेसिव डाक-टिकट कागज पर छपवाया गया। यह 0.6 मिलियन प्रत्येक 35 की शिट में छपवाई गई थी।
दिसम्बर 1946 को बंधारण सभा का निर्माण हु आ, जिसमें तमाम शक्तिओं और सत्ता का व्यवस्थापन करना था। डॉ. भीमराव अम्बेडकर जो बंधारण सभा के अध्यक्ष थे। जिस वजह से प्रथम दिवस आवरण पर डॉ. बी. आर.
अम्बेडकर की तस्वीर अंकित की गई। भारत गणराज्य की 50वीं वर्षगांठ पर यह डाक-टिकट प्रगट की गयी। श्री रं ग द्वारा डिज़ाइन तैयार करके
महात्मा गाँधी को श्रद्धांजलि दी गई। दो रं गों में तैयार इस डाक-टिकट को दिनांक 27 जनवरी 2000 को प्रदर्शित किया गया।
“दांडी यात्रा-नमक सत्याग्रह” नामक डाक-टिकट दिनांक 2 अक्तू बर
1980 को दांडी यात्रा की 50वीं वर्षगांठ पर डिज़ाइन कि गई थी। श्री एस. रामचद्रन द्वारा चार रं गों के प्रयोग से यह डाक-टिकट की डिज़ाइन तैयार की गई थी और प्रथम दिवस आवरण की डिज़ाइन श्री चरनजीत लाल
द्वारा फोटोग्रेव्योर पद्धति से तैयार की गई थी। गांधीजी की मुखाकृति के
साथ-साथ 386 किलोमीटर की दांडी यात्रा के बड़े-बड़े शहरो के नाम से 7 केन्स्लेशन तैयार किये थे।
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त्रिवेणी
त्रिवेणी, सुविख्यात कवि, लेखक, गीतकार व फ़िल्म निर्देशक गुलज़ार द्वारा शुरू की गई तीन पँक्तियों की एक काव्य शैली है। एक त्रिवेणी में तीन पँक्तियाँ या मिसरे होते हैं। पहले दो मिसरे अपने आप में मुक़्क़मिल जुमला, शेर या नज़्म होते हैं। तीसरा मिसरा, भले उनसे कुछ अलहदा लगे, पर पहले दो मिसरों को एक नया आयाम, एक नया दृष्टिकोण देते हुए, एक पूरी त्रिवेणी बनाता है।
ख़्वाबों की कोशिश ख़्वाबों की कोशिश खुली आँखों से होती हैं रातें तो जागते गुज़रती नहीं, बस कटतीं हैं या तुम आ जाओ, या वो नींद ही आ जाए।
कुछ और उबलता रहता है, अंदर जलता है है कुछ, पर कुछ और की तरह है
भाषा स्तम्भ
न ग़ुस्सा न दर्द फिर क्यों यादें हैं?
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मैं? वो पत्थर नहीं जिसे गुज़रती हवा तराश दे दीवार ईंट की जो बस कतरा कतरा बिखरे सुना है के मैं हूँ , क्या सचमुच ये मैं ही हूँ ?
छाप सीसे की ग़लती रबड़-रगड़ निकलता है सियाही रगड़ो तो क़ाग़ज़ उधड़ जाता है मीटने को तैयार हूँ , ये छाप मीट जाए।
पोशीदा इक अर्सा हुआ आज सियाही अब कुछ भी न रही क़ाग़ज़ पर क़लम के पोशीदा निशान होते जाते है ज़रा सा छूँ कर देखना, उँ गलियाँ पढ़ लेंगीं ज़ख्म।
कवि सम्बित प्रधान पूर्व छात्र एनआईडी, अहमदाबाद
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पापा की परी पापा की वह परी को जब रोज सताया जाता है। फूल सी कोमल काया को जब आग में झोला जाता है। दहेज के दानव का यह कैसा अन्याय है। लक्ष्मी का अवतार कह के लाखों में बेचा जाता है। बाप का आंगन मां का आंचल छोड़कर वह चली आती है। तुम्हारा जीवन संवारने को वह अपनों को छोड़ कर आती है। खुश तो है ना बेटा मेरे जब फोन घर से आता है। झूठ मूठ की हं सी से वो सबका मन बहलाती है। अपनों से भी अब तो वो चोरी चुपके मिलती है। रोती आंखों से बेटी पापा को पूछा करती है। आपकी इस परी को पापा क्यों रोज सताया जाता है।
भाषा स्तम्भ
मुझे क्यों सताया जाता है।
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चित्रण
कवि
श्वेता रतनपुरा ग्राफिक डिज़ाइन एनआईडी, अहमदाबाद
निर्मल सिंह राठौर पीजी कैम्पस, एनआईडी, गांधीनगर
हे मां हे मां मैं तुझसे मेरे दर्द दिखाने आया हूं । मेरे मन के सारे सवाल मां तुझको सुनाने आया हूं । मेरी मां का आंचल छोड़कर तेरे आंगन में आया हूं । किसी महकते गजरे की खुशबू को छोड़ कर आया हूं । मेरी नन्हीं चिड़ियां को मैं चहकता छोड़ कर आया हूं । तेरी हिफाजत करने को मां दीवार बन कर आया हूं । हां मां मैं तेरी दीवार बनकर आया हूं।
चित्रण
कवि
अंकिता ठाकुर ग्राफिक डिज़ाइन एनआईडी, अहमदाबाद
निर्मल सिंह राठौर पीजी कैम्पस, एनआईडी, गांधीनगर
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क्या
उस काफ़िले को देख कर लगा कहीं आग लगी है क्या, रास्ते भी मंज़िलों को चल पड़े हैं जन्नत से कोई परी उतरी है क्या। मैं अक्सर सोचता रहता हूँ कि कितने लोग बचे हैं इस दुनिया में मैं रोज बनाता रहता हूँ कोई मिटाता रहता है क्या। नहीं चाहिये ए ताज़-वो-तख़्त कोई सियासत में ऐसा कहता है क्या कुर्बान हो जाता है लौ पर पतंगा ऐसा मोहब्बत कभी देखा है क्या। कभी फ़ुर्सत में मिलना, हम दिन में तुम्हें चाँद दिखाएँ गे वर्ना अमावस में चाँद कभी निकलता है क्या। आज ज़मीं पर कई चाँद उतरे हैं बस कुछ देर को, यहाँ ठहरें हैं ये माहौल ही पूरा ख़ुसनूमा हो गया है वर्ना हर परिंदा खुश रहता है क्या। नहीं, नहीं होगा कोई नुमाइश-ए-मंज़र मेरा मोहब्बत खामोश होकर बोलेगा, वर्ना खुदा तो बस इशारे करता है
भाषा स्तम्भ
इं शा कभी चुप रहता है क्या।
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चित्रण
कवि
नीला सुरेश एेनिमेशन डिज़ाइन, एनआईडी, अहमदाबाद
राघवेन्द्र यादव फर्निचर डिज़ाइन एनआईडी, अहमदाबाद
चाहत खुदा की खुदा को ये कभी मंजूर न था कि हम बूँद बनकर नदी में बह जाएँ , उसकी तो थी एक ही तमन्ना कि हम बादल बन के पहाडोँ पर बरस जाएँ ।
खदु ा
र, हता कि हम झुकें नहीं चा नक ब े ध ौ प किसी आँधी के सामने कि हम दें छाँव हजारोँ को वो चाहे एक बड़ा सा पेड़ बनकर।
खुदा को न था मंजूर अंत हमारे फाँसलों का जहाँ से हम गुजरें वहाँ था लिखा उसने, नाम नए रास्तों का।
हमें बहुत थी चाहत और था लगाव भी हमारे ज़मीन से, मगर न जाने क्यूँ खुदा ने ही तय किया, रिश्ता हमारा आसमान से।
कवि रोहन डिंडे डिज़ाइन फॉर रिटेल एक्सपीरीयंस आरऐ ंडडी कैम्पस, एनआईडी, बैंगलूरू
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चित्त कहा जाता है कि मन बड़ा ही चंचल होता है। असल में, शायद गंभीर भी उतना ही होता है। जीवन में अलग-अलग परिस्थितियां इस मन को एक नया अनुभव, एक नयी सोच और अलग दृष्टिकोण देती है और कभी-कभी असमंजसता भी। इसी तरह की कुछ असमंजसता और संवेदनाओं के बीच के कश्मकश को एक कविता का रूप देने का प्रयास किया है।
जेल ना है, पर कैद है भेद ना है, पर खेल है होश ना है, पर जोश है मौज है या खोज है हार है या जीत है ये चित्र जरा विचित्र है चित्त ही तो बड़ा विचित्र है बांधे तो गाँठ है, नहीं तो छूट जाय जेल ना है, पर कैद है भेद ना है, पर खेल है
भाषा स्तम्भ
मौज है या खोज है।
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चित्रण
कवि
अर्ची मोदी टेक्सटटाइल डिज़ाइन, एनआईडी, अहमदाबाद
आलोक जोशी डिज़ाइन एसोसिएट / इंस्ट्रक्टर एनआईडी, अहमदाबाद
आत्म मंथन सोच कर चले थे कुछ और हम,
और कहीं अलग दिशा में चल दिए खुशियों का था दामन थामना हमें, पर भ्रम का साथ देते चले गए उड़ना है पंछियों की तरह आसमानों में हमें पर न जाने क्यों घोंसला बनाने में उलझ गए न जाने कब समझेंगे खुद को हम या पता चलेगा दुनिया को कि हम खुद को बिना समझे ही दुनिया से चल दिए।
कवि एं व चित्रण नीला सुरेश एेनिमेशन डिज़ाइन, एनआईडी, अहमदाबाद
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मेरे संस्थान की महक मेरा मित्र कहता है कि मेरी एक सुंदर सखी है, मैंने कहा कि तेरी सखी से सुंदर तो मेरी संस्थान है। जहां मैं नौकरी करता हूं वो बाग-बागीचों से हरी-भरी साबरमती किनारे , अहमदाबाद के पालडी इलाके में मेरी संस्थान है। मेरे जीवन का आधार, मेरे जीवन की धड़कन मेरा जीवन फूलों सा महका रही है, वैसी मेरी संस्थान है। समाज और दुनिया से उदास हो जाऊं तो मुझे सहारा देती यदि मुझसे कुछ भूल हो जाये तो मुझे माफ कर देती है, ऐसी मेरी संस्थान है। किसी भी ऑफिस में जाओ वहां का माहोल दिल में समा जाए और बड़े-ब़डे वर्क शॉप कुशल कारीगरों से भरी मेरी संस्थान है। डिज़ाइन की दुनिया में नंबर वन ऐसी लोकप्रिय डिज़ाइन के सभी रं गों में रं गी हुई, ऐसी मेरी संस्थान है। अलग-अलग कंपनियों का लोगो बनाने में माहिर डिज़ाइन क्षेत्र में देश-विदेश में बहुत नाम कमाया ऐसी मेरी संस्थान है। कोन्वोकेशन में फैकल्टी-स्टुडेन्ट के ग्रुप फोटो का दृश्य देखकर दिल खुश हो जाए, ऐसी मेरी संस्थान है। प्रिन्सीपल डिज़ाइनर ने सेंकड़ों डिज़ाइनर बनाये एम्स प्लाजा बाग में स्टूडेन्ट डिग्री ले कर जश्न मनाएं , ऐसी मेरी संस्थान है। डिस्कवरी ऑफ इं डिया जैसे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट को देश-दुनिया में दिखाये इतने साल की कड़ी महेनत से नेशनल इम्पोटे न्स जो मिला, ऐसी मेरी संस्थान है। आंनद महेन्द्र, शासी परिषद के अध्यक्ष रह चुके है और यहां रतनटाटा और गोदरे ज जैसे उद्योगपति आते हैं, ऐसी मेरी संस्थान है। डॉ. अब्दुल कलाम जैसे दिगज्ज राष्ट्रपति और भूटान की रानी यहां पदवीदान समारोह में अतिथि के रूप में आए, ऐसी मेरी संस्थान है। संस्थान तेरी याद में मझे कविता लिखने की प्रेरणा दे गई राजेन्द्र दत्त कहे कि कविता के शब्द में समा गई, ऐसी मेरी संस्थान है।
चित्रण
भाषा स्तम्भ
वैष्णवी खंडवाल एग्ज़ीबिशन डिज़ाइन एनआईडी, अहमदाबाद
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राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान
– एक विद्यालय
बाग-बगीचों, पेड़-पौधों सा हरा-भरा गांधीजी के गांधीनगर में विद्यालय हमारा यहां प्रोफेसर हैं विद्या की खान जैसे मृत जीवन में भर दें प्राण। साफ-सफाई का रखती ध्यान हमको उसके लिए है मान मिलजुल कर रहना सीखलाती भेद-भाव को दूर भगाती। जो कहो आप सेक्रेटरी या जनरल हेड कृष्णा पटे ल है हमारी सेंटर हेड गुरू-शिष्य में भेद नहीं, नात-जात में यहां डिज़ाइन बन जाती है बात-बात में। भारत देश में लोग जात-जात के यहां सिम्बोल बनाएं भात-भात के जो विद्यालय में पढ़ने आते कुछ ही साल में डिज़ाइनर बन जाते। जो शिष्य को सच्चा सीखलाए सभी कहते हैं उनको गुरू कई सालों तक दिया डिप्लोमा अब डिग्री देना हुआ शुरू। इस विद्यालय की अलग है रीति इससे बढ़ रही है प्रद्युम्न जी की कीर्ति। कई साल तक थी गुलामी तुम्हारी अब आगे बढ़ गई है नारी ये है राष्ट्रीय डिज़ाइन संस्थान हमारी जिसको जाने दुनियां सारी।
कवि राजेन्द्र दत्त अकादमी विभाग, एनआईडी, अहमदाबाद
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एक कविता ऐसी थी कभी पूरी न हो सकी कहानी बनने के आस में बेचारी अधूरी, कविता भी न बन सकी कभी इस रस कभी उस अलंकार के ख्वाब में रहकर खुद को न जाने किस दहलीज़ पर ले गई जो आज भी पूरी न हो सकी, बेचारी आधी-अधूरी ही रह गई बेगारी के इस माहौल में आज भी खुद को देखती है, टटोलती है, न जाने क्या ढू ं ढ़ती है खुद के अंदर, बड़ी हिम्मत करके फिर से अपने अरमानों को खोलती है लेकिन अपने मुकम्मल पे आने तक फिर यही देखती है मैं बेचारी ही रह गई, आधी-अधूरी, न कविता न कहानी बन सकी समाज के इस आधे-अधूरे पुराने पन्नो को पलटे हुए एक दिन किसी नयी परिभाषा से जा मिली फिर अगले दौर में नए ख्वाब के साथ अपने पुराने जस्बातों को छोड़कर अपनी नयी पहचान को लेकर बोलते हुए निकल पड़ी कहते हुए “तो क्या हुवा अगर मैं न कहानी न कविता बन सकी” लेकिन मैं आधी-अधूरी तो बन गई।
एक अधूरी कविता कवि
भाषा स्तम्भ
आकाश मौर्या प्रोडक्ट डिज़ाइन एनआईडी, अहमदाबाद
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थोड़ा और सो लेता हूँ यह रात बड़ी लम्बी है कुछ और तो कह सकता नहीं, यह बात बड़ी लम्बी है। यह बिस्तर यह चादर यह फूल सब लोग क्यों ल रहे हैं अभी लगता है कोई नया जशन है वक़्त तो है नहीं कि मैं शरीक हूँ फिर भी क्या कहूं जाने दो यह रात तो बड़ी लम्बी है। यह बेशुमार जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा है लगता है सब सोये नहीं यह नए पीढ़ियों की बात है खैर छोड़ो थोड़ा और सो लेता हूँ यह रात बड़ी लम्बी है।
थोड़ा और सो लेता हूँ
जशन भी लगता नहीं सब चेहरों पे अंधकार है कोई सिसक रहा है तो किसी को बिछड़ने का प्यार है मुझे क्या मैं तो मस्त हूँ , चलो छोड़ो भी अब यह रात बड़ी लम्बी है। कितनी लम्बी है यह रात जाती ही नहीं, है भीड़ भी बढ़ रही कहीं कोई उत्सव का माहौल भी है नहीं, आखिर है क्या यह रात भी जाती नहीं, बेवजह बड़ी लम्बी है। बात भी बताओ क्या बेवज़ह बड़ी लम्बी है मुझे क्या चलो थोड़ा और सो लेता हूँ यह रात बड़ी लम्बी है।
चित्रण
कवि
अंकिता ठाकुर ग्राफिक डिज़ाइन एनआईडी, अहमदाबाद
आकाश मौर्या प्रोडक्ट डिज़ाइन एनआईडी, अहमदाबाद
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अन्य गतिविधियां डिज़ाइन, भाषा, साहित्य के अलावा संस्थान के कुछ अन्य गतिविधियां जैसे हिन्दी पखवाड़ा का विवरण, संस्थान में परिचालित पाठ्यक्रमों की जानकारी आदि-आदि को भी इस पत्रिका में स्थान दिया गया है। इस स्तम्भ का उद्देश्य लोगों को संस्थान की गतिविधियों से रूबरू कराना है।
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अन्य गतिविधियां
वर्ष 2015-16 में संस्थान
की कुछ गतिविधियों की एक झलक
“वर्ष 2015 में संस्थान में कई गतिविधियों का आयोजन किया गया। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण गतिविधियों का लेखा-जोखा यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।”
“एनआईडी अहमदाबाद में 60/60, पाब्लो बारथोलोम्यु द्वारा 02 अप्रैल 2016 को एनआईडी अहमदाबाद में 60/60 बाय पाब्लो बारथोलोम्यु, फोटोग्राफी प्रदर्शनी का आयोजन हुआ।” पाब्लो बारथोलोम्यु नई दिल्ली, भारत में बसे एक अवार्ड विनिंग
फोटोजर्नलिस्ट तथा एक स्वतंत्र फोटोग्राफर है। उन्होंने हाल ही में नवीन
भारतीय इतिहास के कई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को कवर किया है , जैसे कि भोपाल गैस त्रासदी, इन्दिरा गांधी की हत्या व उसके परिणाम, और बाबरी मस्जिद विध्वंस आदि उनमें से कुछ हैं। उन्होंने द वल्डॅ प्रेस फोटो अवार्डस् (1975, 1984) भारतीय सरकार द्वारा पद्मश्री (2013) फ्रेन्च सांस्कृतिक
मंत्रालय द्वारा ओर्द्रे देस आर्टस इट देस लेटर्स (2014) सहित कई अनेक अवार्ड प्राप्त किये हैं।
“यह फोटोग्राफ्स का संग्रह, 60/60, वह चयनित 60 फोटोग्राफ्स हैं , जो कि 1970 व 80 के दशक के मेरे संग्रह का आखिरी जीवित प्रमाण होंगी।
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पहले ही तीन एक्जीबिशन, ‘आउटसाइड इन-ए टेल ऑफ थ्री सीटीज
(2007)’ ‘बॉम्बे क्रॉनिकल्स ऑफ ए पास्ट लाइफ’ (2011) और ‘कलकत्ता डायरिज’ (2012) में इन छवियों को प्रदर्शित किया जा चुका है। 60/60 एक विजुअल उपहार या समर्पण है उन दोस्तों और कला से जुड़े हु ए उन
व्यक्तियों के लिए जिनका साथ मुझे अपने जीवन के शुरूआती दौर में हो रहे उतार-चढ़ावों के समय मिला। ये लोग जो कि ज्यादातर कला और
संस्कृति से हैं जैसे चित्रकार, फिल्म निर्माता, थियेटर निर्देशक, अभिनेता, लेखक, कवि, सक्रियवादी, कुछ अभी भी जीवित हैं , अन्य कुछ जो अब
गुजर चुके हैं , वे पिछले 2 दशकों में हु ए महत्वपूर्ण सांस्कृतिक बदलाव की ओर देखने का एक झरोखा सा प्रतीत होते हैं। मेरे लिए तो यह एक उत्सव है , उन यादों को दोबारा जीने का अवसर जो मैं दिसम्बर 2015 में अपने 60 वर्ष पूर्ण होने पर मना रहा हूं। यह एक शोक संदेश भी है , अभिनेता
सईद ज़ाफरी तथा कलाकार जेराम पटेल, दो पारिवारिक मित्रों को खोने का। विडम्बना देखिए, मुंबई में एक्जीबिशन प्रारं भ होने के चार दिन पहले ही 18 जनवरी 2016 को जेराम का बड़ोदा में निधन हो गया।” -पाब्लो बारथोलोम्यु लोगों के लिये यह प्रदर्शनी डिज़ाइन गैलरी, एनआईडी,
अहमदाबाद में 2 अप्रैल से 24 अप्रैल 2016 तक अपराहन 4:00 बजे से अपराहन 8:00 बजे तक खुली रही।
“महारानीस – वुमन ऑफ रॉयल इंडिया – फोटोग्राफी प्रदर्शनी, एनआईडी, गांधीनगर” इस प्रदर्शनी में दिखाये गये फोटोग्राफ हमें आधी से ज्यादा फोटोग्राफिक
म्युजियम व नेशनल पोट्रेट गैलरी, अमर महल म्यूजियम ऐ ंड लाइब्रेरी, जम्मू
स्थिति से अवगत कराती है। ये छवियां उस समय के सांस्कृतिक और
मुख्यतयः इस प्रदर्शनी में शामिल किया गया है। लोगों के लिए यह प्रदर्शनी,
आ सकती हैं तथा कई जटिल मसलों में प्रमाण या सहायक लेख के रूप
अप्रैल 2016 तक अपराहन 4:00 से अपराहन 8:00 तक खुली रही।
प्रगति को क्रमानुसार सदी को दर्शाती है तथा उस दौरान महिलाओं की
तथा देश भर के अलग-अलग राज परिवारों से प्राप्त निजी फोटोग्राफों को
सामाजिक तौर-तरीके (सामाजिक-ऐतिहासिक दस्तावेज ) के रुप में काम
डिज़ाइन गैलरे ी, एनआईडी पीजी परिसर, गांघीनगर में 15 अप्रैल से 24
में उपयोगी हैं जैसे – लिंग विवाद, भारतीय राज परिवारों के बीच के जटिल संबंध , उपनिवेशवाद अथवा अतीत को लेकर हमारी संकल्पना। म्युजियम ऑफ आर्ट ऐ ंड फोटोग्राफी, बैंगलूरू, लंदन के विक्टोरिया ऐ ंड अल्बर्ट
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“लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड – डिज़ाइन 2016”
“एलेन मेकआर्थर फाउन्डेशन”
श्री प्रद्युम्न व्यास, निदेशक, राष्ट् रीय डिज़ाइन संस्थान, को पहले ‘इण्डिया
तथा फिलिप्स और सिस्को द्वारा सहायतार्थ ‘ग्लोबल हैकथौन’ नामक
यु एक्स डिज़ाइन अवार्ड’ में, डिज़ाइनिंग कम्युनिटी में उनके योगदान
तथा डिज़ाइन के क्षेत्र में उनके मार्गदर्शन, प्रयास और प्रोत्साहन के लिए
‘लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड -डिज़ाइन 2016’ से सम्मानित किया गया। पुरस्कार समारोह 16 मार्च 2016 को बैगलूरू में सम्पन्न हु आ।
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एनआईडी, पीजी परिसर, गांधीनगर ने ‘एलेन मेकआर्थर फाउन्डेशन’, यूके अन्तर्राष्ट् रीय इवेन्ट की मेजबानी की गई। हैकथौन में एक चैलन्ज े दिया गया था, जिसे 48 घंटे के अन्दर सुलझाना था। टीमों को फिलिप्स तथा सिस्को
के इंडस्ट् री एक्सपर्ट तथा एनआईडी संकायों ने एलेन मेकआर्थर फाउन्डेशन के वर्चुअल सपोर्ट से टीमों को दिशा-निर्देश दिए।
“गुड डिज़ाइन सेमिनार 2016” पांचवें इंडिया डिज़ाइन मार्क के चयनित प्रतिभागियों की घोषणा 4 मार्च
उसी प्रकार से टेक्नोलॉजिस्ट्स, इनोवेटर्स, इन्टरप्रेनुअर, स्टुडेन्टस्
मार्क दिया गया। 12 सदस्यों की अन्तर्राष्ट् रीय ज्यूरी पैनल ने, जिसमें जापान,
कार्यशालाओं इत्यादि का आयोजन किया गया। जिसका विषय था
2016 को बैंगलूरू में हु ई तथा 59 प्रोडक्ट्स को प्रतिष्ठित इंडिया डिज़ाइन स्विटजरलॅन्ड और भारत के डिज़ाइनर टेक्नोलॉजिस्ट, मार्केटिंग और ब्रांडिंग एक्सपर्ट शामिल थे, प्रोडक्ट्स को जांचा-परखा।
परिणाम घोषित होने के पहले, ‘गुड डिज़ाइन सेमिनार 2016’ का आयोजन किया गया। जिसमें जानकार लोगों नें अच्छे डिज़ाइन के रहस्यों को
परिभाषित किया। इंडिया डिज़ाइन मार्क 2016 के प्रतिभागी, गुड डिज़ाइन अवार्ड एक्जीबिशन, जापान तथा ताइवान इन्टरनेशनल स्टूडेन्ट डिज़ाइन
प्रतियोगिता 2015 के विजेताओं को मिलाकर एक सार्वजनिक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
द्वारा ‘डिज़ाइन ओपन’ नामक दो दिवसीय बातचीत/चर्चा, की-नोट्स, बिजनेस, डिज़ाइन व टेकनोलॉजी का आगामी दौर।
इंडिया डिज़ाइन मार्क एक डिज़ाइन स्टेन्डर्ड है , एक प्रतीक जो अच्छे
डिज़ाइन निर्धारित करता है। अच्छे डिज़ाइन को भली-भांति जांचने-परखने के बाद ही इंडिया डिज़ाइन काउन्सिल, इंडिया डिज़ाइन की स्वीकृति प्रदान करता है। इंडिया डिज़ाइन मार्क , फार्म, काम गुणवत्ता, सुरक्षा,
सस्टेनबिलिट े ी इनोवेशन में उत्कृष्ठता का प्रतीक है , वो यह सुनिश्चित करता है कि प्रोडक्ट यूजब ़े ल, ड्यूरेबल, एस्थेटिकली अपीलिंग होने के साथ-साथ सोशल रिसपोन्सिबल भी हो।
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“लीगेसी ऑफ फोटोजर्नलिज़्म” डिज़ाइन गैलरी, एनआईडी, पीजी परिसर में ‘लीगेसी ऑफ
उनके फोटोग्राफ के संग्रह में कई ऐसे भी थे, जिन्होंने डॉक्यूमट्री ें -एस्थेटिक
शुक्रवार 11 मार्च 2016 को हु ई। तस्वीर की दसवीं सालगिरह पर आयोजित
आभार व्यक्त करता है जिन्होंने कईयों के जीवन की दिशा
फोटोजर्नलिज़्म’, दीपक पुरी कलेक्शन फोटोग्राफी प्रदर्शनी की शरुआत इस प्रदर्शनी में अंतर्राष्ट् रीय ख्याति प्राप्त जर्नलिस्ट जैसे, जेम्स नैचवे,
सेबास्टियो सेलगाडो और रघुराय जैसे कई जानी-मानी हस्तियों सहित
पर उमदा काम किया। यह संग्रह उस एक किंवदंती के प्रति मित्रता तथा ही बदल दी।
30 फोटोग्राफरों ने हिस्सा लिया। म्युजियम ऑफ आर्ट ऐ ंड फोटोग्राफी
यह भिन्न-भिन्न तस्वीरें , मात्र अपने विषयवस्तु के लिए ऐतिहासिक नहीं हु ई,
इस 20वीं सदी के देश के जर्नलिज्म का सबसे महत्वपूर्ण संग्रह यह
यह मालूम होता है कि फोटोग्राफ सिर्फ सामाजिक-ऐतिहासिक दस्तावेज
(मैप , बैंगलूरू) को दीपकपुरी द्वारा सहायता प्रदान करने के कारण ही, एक्जीबिशन, पहली बार लोगों के लिए भी उपलब्घ हो सका है।
‘टाइन एशिया’ के दिल को घड़कन समझे जाने वाले, दीपक पुरी, जो कई वर्षो तक इसके फोटो -एडिटर भी थे, वे दरअसल किसी जादूगर से कम न थे, जिन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया। यह सुनिश्चित किया कि दुनिया, फोटोग्राफी के इन सर्वज्ञानियों का काम देख पाएं ।
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अपितु अपनें बहु रूपी स्टाइल के कारण भी हु ई। इस प्रदर्शनी के द्वारा हमें
नहीं है , यह हमें आत्मीयता से परिपूर्ण कहानियां बताने का भी एक बेजोड़
माघ्यम है , जो अच्छे फोटो जर्नलिज्म की आधारशिला है। यह एक्जीबिशन लोगों के लिए डिज़ाइन गैलरी एनआईडी, पीजी परिसर, गांघीनगर में 20 मार्च 2016 तक अपराहन 4:00 से लेकर अपराहन 8:00 तक खुली रही।
“इण्डिया डिज़ाइन शो – 2016”
“वॉर्किंग हैण्ड इन हैण्ड ऐट एनआईडी”
बड़े सम्मान और गर्व की बात है कि एनआईडी, इण्डिया डिज़ाइन
“वॉर्किंग हैण्ड इन हैण्ड” का हिस्सा होने के नाते राष्ट् रीय डिज़ाइन संस्थान
आयोजित, इण्डिया डिज़ाइन शो का उद्घाटन माननीय भारत के प्रधानमंत्री
एनआईडी, पालडी परिसर में “वॉर्किंग हैण्ड इन हैण्ड” नामक फैशन शो
काउन्सिल और सीआईआई द्वारा शनिवार 13 फरवरी 2016 को मुम्बई में
श्री नरे न्द्र मोदी द्वारा हु आ। बड़ी प्रसन्नता का विषय है कि उनके साथ स्वीडन के प्रधानमंत्री मिस्टर “स्टीफन लोकवेन”, फिनलैण्ड के प्रधानमंत्री “मिस्टर
और क्राफ्ट डिज़ाइन सोसायटी ने मिलकर 26 फरवरी 2016 को का आयोजन किया।
जुहा सिवीला” और मिस्टर पैत्योर ग्लिंस्की, डिप्टी प्राइम मिनिस्टर तथा
“वॉर्किंग हैण्ड इन हैण्ड” के दौरान चिकनकारी, लहरिया, अजरख,
अवसर प्राप्त हु आ। उनके साथ मिस निर्मला सीतारामन, मिनिस्टर ऑफ
जैसे कई भारतीय क्राफ्ट को सामने आने का एक मंच मिला। जाने माने
मिनिस्टर ऑफ कल्चर ऐ ंड नेशनल हेरिटेज , पोलेंड का स्वागत करने का स्टेट फोर कोमर्स और इण्डस्ट् री (इण्डिपेन्डेन्ट चार्ज) भारत सरकार, श्री
देवन्द्र े फडनवीस, मुख्यमंत्री महाराष्ट्र और श्री अमिताभ कान्त, सेक्रेटरी,
डिपार्टमन्ट े ऑफ इण्डस्ट् रीयल पॉलिसी और प्रमोशन, वाणिज्य एवं उद्योग
कलमकारी, बनारसी, बांधनी, पटोला, किमकाम और सुंजनी एम्ब्रायड्री मलेशियन सिंगर इमिल हेमलिन ने कार्यक्रम के दौरान गायन प्रस्तुत
किया। दो एनआईडी के छात्रों ने भी कार्यक्रम में कत्थक नृत्य प्रस्तुत किये।
मंत्रालय, भारत सरकार तथा दूसरे गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे। उपरोक्त सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत डॉ. नौशाद फोर्ब्स,
मेम्बर ऑफ एनआईडी गवर्निग काउन्सिल तथा प्रेसिडेन्ट डेज़िगनेट,
कोनफेडरे शन ऑफ इण्डियन इण्डस्ट् री (सीआईआई) तथा को-चेयरमेन ऑफ फोर्ब्स मार्शल और श्री प्रद्युमन व्यास, निदेशक, राष्ट् रीय डिज़ाइन
संस्थान (एनआईडी) तथा सदस्य-सचिव, इण्डियन डिज़ाइन काउन्सिलिंग द्रारा किया गया।
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अन्य गतिविधियां
हिन्दी पखवाड़ा उत्सव – 2015 की झलक
“हिन्दी मात्र एक भाषा नहीं संस्कृति है, भावना है, हमारी पहचान है।”
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी संस्थान में हिन्दी उत्सव बड़े धूम-धाम से
निम्नलिखित सदस्यों ने इस कार्यक्रम के आयोजन का कार्य भार सँभाला:
तक अहमदाबाद एवं गाँधीनगर दोनों परिसरों में क्रमबद्ध रूप से हिन्दी की
श्री सौरभ श्रीवास्तव – सदस्य (गाँधीनगर एवं अहमदाबाद),
मनाया गया। इस उत्सव के दौरान 1 सितंबर 2015 से 8 अक्टू बर 2015 विभिन्न प्रतियोगिताएँ आयोजित की गयी।
हर वर्ष हिन्दी उत्सव को एक विषय (थीम) दिया जाता है। इस वर्ष हिन्दी उत्सव का थीम भारतीय रे ल रखा गया। अर्थात हिन्दी प्रतियोगिताओं के विषय भारतीय रे ल से संबधं ित विभिन्न विषयों को रखा गया।
इस कार्यक्रम के दौरान पूरे एनआईडी समुदाय यथा छात्र, कर्मचारी एवं संकाय सदस्यों ने अलग-अलग प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और इस कार्यक्रम को सफल बनाया।
मूलत: हिन्दी उत्सव 2015 का उद्श्य दे डिज़ाइन के परिवेश के संदर्भ में
हिन्दी भाषा का महत्व, विकास और प्रचार-प्रसार में योगदान करना रहा। इस वर्ष के दौरान संस्थान में श्री विजयसिंह कटियार (प्रधान डिज़ाइनर) की अध्यक्षता में हिन्दी पखवाड़ा समिति की बैठक दिनांक 12 अगस्त
2015 को आयोजित की गई एवं सभी सदस्यों एवं छात्र संयोजक को कार्यभार सौंपा गया।
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श्री मयंक लूक ं र – सदस्य,
श्री अमित सिन्हा – सदस्य,
सुश्री निर्मला सागर – सदस्य, (गाँधीनगर) डॉ. त्रिधा गज्जर – सदस्य,
सुश्री श्रख ृँ ला आरे न – सदस्य,
सुश्री जया सोलंकी – सदस्य (अहमदाबाद), सुश्री जागृति गलफड़े – सदस्य (बैंगलुरू),
सुश्री हिना कंसारा – सदस्य एवं संयोजक,
डॉ. दिनेश प्रसाद – सदस्य एवं सलाहकार (अहमदाबाद एवं गाँधीनगर) सुश्री अमृता बक्षी एवं सुश्री कनु प्रिया झा – छात्र संयोजक
इस आयोजन में छात्रों का उत्साह देखते ही लगता था जैसे संपर्ण ू
एनआईडी –अहमदाबाद एवं गाँधीनगर में हिन्दीमय वातावरण हो गया था। छात्र अपने नियमित पाठ्यक्रम के साथ-साथ विभिन्न प्रतियोगिताओं की
तैयारियों में भी तल्लीन देखे गए। कोई हिन्दी-के काव्य पठन, कोई पोस्टर, टी-शर्ट डिज़ाइन और कार्टून बनाने में कोई गीत-गायन की तैयारी कर रहा था, कोई निबन्ध की, तो कोई प्रश्नोत्तरी एवं हिन्दी नाटक के पात्रों की।
इस कार्यक्रम में रे ल से संबंधित विषयों पर हिन्दी में निम्नलिखित
अधीक्षक, राजभाषा द्वारा इसका संचालन किया गया। एक से एक,
प्रतियोगिता, हिन्दी संवाद प्रतियोगिता, कॉमिक्स व कार्टून प्रतियोगिता,
कैम्पस में संकाय सदस्य एवं हिन्दी पखवाड़ा के सदस्यगण के रूप में
प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया: निबंध प्रतियोगिता, स्लोगन पोस्टर व टी-शर्ट डिज़ाइन, कैलिग्राफी प्रतियोगिता। इसके अलावा
प्रादेशिक व लोक संगीत पर आधारित गीत-गायन प्रतियोगिता, स्वरचित एवं अन्य रचयिता की कविता पठन प्रतियोगिता का आयोजन किया
गया। प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी थियेटर आधारित हिन्दी नाटक
अच्छे से अच्छे निबंध रे ल पर प्रस्तुत किए गए। इसी तरह, गाँधीनगर श्री सौरभ श्रीवास्तव एवं श्री अमित सिन्हा ने अभीमुखी कार्यक्रम की
संक्षिप्त में प्रस्तृति की। हिन्दी निबंध प्रतियोगिता में गाँधीनगर से कुल 25 भागीदारों ने भाग लिया, श्री सौरभ जी ने इसका संचालन किया।
प्रतियोगिता का विशेष आयोजन किया गया।
स्लोगन प्रतियोगिता:
इस तरह अहमदाबाद और गाँधीनगर दोनों परिसरों में पखवाड़ा का
अहमदाबाद में डॉ. त्रिधा, डॉ. दिनेश प्रसाद, श्री मयंक लूंकर एवं गाँधीनगर
आयोजन किया गया जिसमें अहमदाबाद से लगभग 170 प्रतिभागियों
ने और गाँधीनगर से लगभग 175 प्रतिभागियों ने प्रतिभागिताओं में भाग लिया। करीबन कुल मिलाकर 200 छात्रों और लगभग 150 कर्मचारी
एवं संकाय सदस्यों ने पूरे कार्यक्रम में भागीदारी जताई। दोनों परिसरों में लगभग 1 माह तक यह कार्यक्रम चला।
झलकः
दोनों परिसरों में एक ही दिन इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
में सौरभ श्रीवास्तव एवं श्री अमित सिन्हा ने निर्णायक के रूप में सहयोग
दिया, वहीं छात्रों एवं कर्मचारी सदस्यों ने एक से एक स्लोगन प्रस्तुत किए। रे ल पर नए-नए स्लोगन हिन्दी में प्रस्तुत किए गए। इस प्रतियोगिता में
कुल 20 प्रतिभागियों ने रे ल पर आधारित स्लोगन प्रस्तुत किया। विभिन्न स्लोगनों की प्रस्तृति ने ज्यूरी सदस्यों को आश्चर्यचकित कर दिया। सुश्री हिना कंसारा एवं सुश्री निर्मला ने क्रमशः अहमदाबाद एवं गाँधीनगर में इसका संचालन किया।
अभिमुखी कार्यक्रम एवं निबंध प्रतियोगिता:
हिन्दी संवाद प्रतियोगिता:
जानकारी हिन्दी अधिकारी डॉ. दिनेश प्रसाद द्वारा दी गई, हिन्दी निबंध
अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत किया। उपर्युक्त हिन्दी पखवाड़ा समिति के
अभीमुखी कार्यक्रम में सभी प्रतिभागियों को पूरे आयोजन की संक्षिप्त में में अहमदाबाद से कुल 32 भागीदारों ने भाग लिया, सुश्री हिना कंसारा,
इस प्रतियोगिता में रे ल पर आधारित विषयों पर वार्तालाप हु आ। सभी ने सदस्यों ने दोनों कैम्पसों में निर्णायकगण के रूप में योगदान किया।
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अन्य गतिविधियां
कॉमिक्स व कार्टून प्रतियोगिता:
गीत-गायन प्रतियोगिता:
ली। उनकी एक-एक प्रस्तुति कमाल की थी। इस प्रतियोगिता में प्रस्तुत
व्यास ने विशेष समय देकर भागीदारों को प्रोत्साहित करने हेतु अपनी
कॉमिक्स व कार्टून प्रतियोगिता में विशेष रूप से छात्रों ने खूब रूची
कॉमिक्स /कार्टून की एक छोटी किताब भी इस समिति के सदस्यों द्वारा
तैयार की गई है। कृतियाँ इतनी सुंदर और भावपूर्ण थीं कि निर्णायक मंडल के सदस्य दुविधा में पड़ गए कि किस कृति को पुरस्कृत करें किसे नहीं। इसी कारण से विशेष पुरस्कार भी प्रदान किए गए।
पोस्टर व टी शर्ट प्रतियोगिता इस प्रतियोगिता की मुख्य बात यह थी कि छात्रों के साथ-साथ स्टाफ सदस्यों ने भी भागीदारी ली और सुंदर
पोस्टर /टी-शर्ट डिज़ाइन की कृतियाँ प्रस्तुत की जो रे ल पर आधारित विषयों पर थी।
हिन्दी कैलिग्राफी प्रतियोगिता:
हिन्दी कैलिग्राफी प्रतियोगिता अहमदाबाद से सबसे ज्यादा 33 भागीदारों
ने इसमें भाग लिया जबकि गाँधीनगर कैम्पस से भी इसमें काफी लोगों ने भाग लिया। रे ल पर आधारित चूने गए स्लोगनों में से किसी एक स्लोगन पर कैलिग्राफी करना था।
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गीत-गायन प्रतियोगिता इस प्रतियोगिता में संस्थान के निदेशक, श्री प्रद्युम्न उपस्थिति जताई एवं उन्होंने भी इस कार्यक्रम में प्रस्तुत लोक संगीत पर
आधारित गीतों एवं प्रादेशिक गीतों की प्रस्तुति को सुना और भरपूर आनंद उठाया। विशेष अतिथि के रूप में श्री तरूण नागर जी ने हमें किशोर कुमार
के गीतों की यादें ताजा किया। इसमें कुछ भागीदारों ने हिन्दी के साथ-साथ प्रादेशिक भाषाओं जैसे मराठी, गुजराती, कन्नड़, बंगाली आदि भाषाओं के लोक संगीत की प्रस्तुति की।
हिन्दी कविता पठन प्रतियोगिता:
हिन्दी कविता पठन प्रतियोगिता में भी भागीदारों ने अपनी स्वरचित एवं
अन्य रचयिताओं की कविताओं का पठन कर प्रस्तुत किया। उनका प्रदर्शन सभी निर्णायकगणों एवं दर्शकगणों ने सहारा।
हिन्दी नाटक प्रतियोगिता:
सदस्यों की भागीदारी सराहनीय थी। निदेशक ने समिति के अध्यक्ष की
ने बढ़-कर हिस्सा लिया। 20 नवम्बर 2015 को दोनों परिसरों के सभी
स्मृति चिन्ह प्रदान कर उनका विशेष आभार प्रकट किया। राजभाषा प्रभाग
हिन्दी नाटक प्रतियोगिता दोनों परिसरों में इस अंतिम प्रतियोगिता में सभी प्रतियोगिताओं के विजेताओं को संस्थान के निदेशक, श्री प्रद्युम्न व्यास के कर कमलों से प्रमाण-पत्र एवं प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार प्रदान किए गए।
अनुपस्थिति में समिति के सभी सदस्यों, छात्र संयोजकों, एवं अतिथियों को ने भी सभी परिसरों के एनआईडी परिवार का हृदय पूर्वक आभार प्रकट
किया।प्रकट किया। राजभाषा प्रभाग ने सभी कैम्पस के एनआइडी परिवार का हृदय पूर्वक आभार प्रकट किया।
इस आयोजन की एक विशेष बात यह भी रही कि इन प्रतियोगिताओं में न
हिन्दी उत्सव 2015 सफलतापूर्वक आयोजन के लिए सभी एनआईडी
के दूसरे सरकारी संस्थानों को भी इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए
यह रे ल चली और आगे भी चलती रहेगी।
केवल संस्थान के छात्रों और कर्मचारियों ने भाग लिया बल्कि अहमदाबाद आमंत्रित किया गया था। आमंत्रण-पत्र संस्थान के छात्रों ने तैयार किया
एवं अहमदाबाद एवं गाँधीनगर स्थित अन्य संस्थानों में भी प्रचार हेतु भेजा
गया। संस्थान के दोनों परिसरों में छात्रों के साथ-साथ संकाय एवं कर्मचारी
परिवार के समुदाय के उत्साह और जोश की भागीदारी एवं सहयोग से ही
धन्यवाद
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अन्य गतिविधियां
कार्यालय में प्रतिदिन
काम में आने वाले प्रशासनिक शब्द एवं लघु वाक्य “प्रतिदिन काम में आने वाले प्रशासनिक शब्द एवं लघु वाक्य का विवरण”
अनुमोदन Approval
चर्चा के अनुसार As discussed
यथा प्रस्तावित As proposed
कृपया एक स्वत पूर्ण टिप्पणी प्रस्तुत करें Please put up self -contained note
मैं उपर क से सहमत हू ँ I agree with A above
तुरंत अनुस्मारक भेजिए Issue remainder urgently
कृपया चर्चा करें Please Speak /Discuss
विसंगति का समाधान कर लिया जाए Discrepancy may be reconciled
इसे मुल्तवी/स्थगित रखा जाए Keep in abeyance
शीध्र ही कार्यवाही करें Expedite action
अगली रिपोर्ट की प्रतीक्षा करें Keep in abeyance
कृपया संबंधित फाइलों/कागजा़त/- दस्तावेज के साथ प्रस्तुत करें Please put up with relevant files/paper/documents
कृपया अद्यतन अनुदेशों के अनुसार-मामले की पुनः जांच करें Please re-examied with reference to latest instructions यथा संशोधित As amended 58
यह मामला........के विचाराधीन है The matter is under consideration इसे......महोदय के पास/को भेजना जरूरी नहीं है .....need not be troubled
कृपया हाशिए में दी गई टिप्पणी देखें Please see remarks in the margin
इस कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दें Give top priority to this work
मामला न्यायालय के विचाराधीन है The matter is Sub-Judice
न्यूनतम दरें स्वीकार की जाएं Lowest quotation may be accepted
कृपया सूचना मंगाए Please call for information
कृपया उत्तर का मसौदा/प्रारूप प्रस्तुत करें Please put up draft reply
आदेशार्थ/अनुमोदनार्थ प्रस्तुत Submitted for orders/approval please
विलंब/देरी का क्या कारण है What delays?
इस व्यय के लिए बजट में प्रावधान किया गया है Budget provision exists for this expenditure
कृपया बैठक की कार्यसूची/कार्यवृत्त प्रस्तुत करें Please put up agenda/Minutes of the meeting
आंशिक रूप में यथा संशोधित As slightly amended
पिछली तारीख से/अगली तारीख से प्रभावी Retrospective/prospective effect
कृपया...को तदनुसार सूचित करें Please inform…….accordingly
कृपया इनके उपदान से संबंधित मामले पर उचित कार्र वाही करें Please process his/her gratuity case
स्पष्टीकरण मांगा जाए Explanation may be called for
पदों का सृजन Creation of posts
देख लिया, धन्यवाद Seen Thanks
शक्तियों का प्रत्यायोजन Delegation of powers
भुगतान के लिए पास किया जाता है Passed for payment
पदों की समाप्ति Abolition of posts
अनुमति दी जाती है Permitted
स्थायी/अर्ध-स्थायी/अस्थायी Permanent/quasi-permanent/Temporary
आवेदन की गई छु ट्टी/अर्जित छु ट्टी/- परिणत छु ट्टी/प्रतिपूर्ति छु ट्टी/पेशगी मंजरू की जाती है CL/PLCommuted leave/CPL -advance sanctioned as applied for
आज ही भेजिए/जारी करें Issue today
प्रेस विज्ञप्ति/प्रेस टिप्पणी जारी करें Issue Press Communique/note स्वीकृत Sanctioned
सहमति प्रदान की जाती है Concurred in कुलसचिव/निदेशक......महोदय के अनुमोदनार्थ RG/DT……..May kindly see for approval सक्षम/नियंत्रक प्राधिकारी......के प्रति हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत Submitted for counter signature of... 59
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