(िजनदगी) अपवादो का एक चक
स्तब्धता के आगोश में शयनरत यह अनंत राित्रि का अंधकार व्यस्त है िवकृ त मिस्तष्क अशांत हैं काितल हाथ, शयनरत हैं घृणा और िलप्सा?
चनद्रमा का शुभ्र प्रकाश
अनधकार का सीना चीर स्तब्ध राित्रि में कोलाहल कर आवाहन करता है चैतनय का िखिलाता है राित्रि में प्रेम कमल. स्तब्ध और अंधकारमय राित्रि जीवन को संघष र्ष का अवसर भी नहीं देता बस एक चीखि और वनस्पित का फड़फड़ाना एक कु िटिल मुस्कान और चमकती गोल दो आँखिे संतुष्ट हो िनशाचर उड़ जा बैठता है कहीं दूर दूर कहीं ध्रुव तारा लालटिेन की तरह लटिका रोशन करता है ज्ञान की तरं गो का मागर्ष जो इस मिस्तष्क से िनकल िवलीन हो जाती है दूर ब्रह्माण्ड में एक आकाश गंगा का अंश बन आत्मा की क्षुधा को परमात्मा से िमल शांत करती है सुगिनधत मन मोहक गंधसार वृक्षो से गुजरती बयार मन को प्रफु िल्लत कर जीवन को नया आयाम दे जाती जंतुओं की गलती हुई लाशो से िनकलती सड़ैनध िनमत्रिण दे जाती है कौवो, िगद्धो और लकड्बग्घो को इस तरह अपवादो के चक में रात आगे बढ़ती है. सुनहरे नक्षर और पिक्षयो के कलरव के साथ स्तब्धता और राित्रि का अनधकार दफ़न हो इं तज़ार करता है कब्र से बाहर िनकलने का मुंड नृत्य का और मन भवन वीणा वादन का