ALPANA MISHRA KA STREE VIMARSH: SAAJHEE DUNIYA KA SWAPN

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Research Paper

Social Science

E-ISSN No : 2454-9916 | Volume : 7 | Issue : 7 | Jul 2021

ALPANA MISHRA KA STREE VIMARSH: SAAJHEE DUNIYA KA SWAPN

वन अ पना िम का ी िवमश: साझी दिनया का ु Dr. Sophia Rajan Associate Professor, Govt Arts & Science College, Tanur, Kerala, India. ABSTRACT

ी लेखन, ी के सघन सामािजक सरोकार का लेखा जोखा है । उ र-आधुिनक िवक ण बताते ह क 'पाठ' सबका अलग-अलग होता है । ी ववादी पाठ और पु षवादी पाठ रचना के टे ट के भीतर िछपे समाजशा , मनोिव ान और धमशा को अपने-अपने ढंग से अनू दत और िति त करते चलते ह । कसी भी रचनाकार के सािह य पर सम तः िवचार करने का अथ है उसक रचना क के ीय संवेदना को उ ा टत करना । उसके वैचा रक, भावना मक, कला मक िवकास क िमक ऊ वगामी अव था को िचि हत करना । अ पना िम का मह व इसिलए नह क उ ह ने िवपुल मा ा म सािह य रचा ह,ै वे के वल इसिलए ासंिगक और पठनीय नह है क उ ह कई पुर कार से स मािनत कया गया है । अ पना िम क शि इस बात म िनिहत है क उ ह ने नारी मन के भीतर झांककर उसके भीतर क परत-दर-परत खोल डाली है । उ र-आधुिनक सै ांित कयाँ ी ववादी िवमश को नए प म प रभािषत करती है । नए लोबल जनतं म और नए पूँजीवादी उ र-आधुिनक दौर म लंग-क त िवमश को जगह िमलने लगी । एक नई िवखंडना मक ि थित पैदा हो गई है । ी ववादी िवमश 'पाठ' क िजस िविश ता और अि तीयता को थािपत करता है उससे अब तक चली आ रही स दयशा िहलने लगी है । कसी भी अनुभव के कथन का 'सावभौिमक' ित िनधान असंभव हो जाता है । KEY WORDS: वच ववादी मानिसकता, सावभौिमक, फे िमिन म, िपतृस ा मक औ ोिगक यथाथ , उपभो ा सं कृ ित 'भीतर का व ' (२००६) कहानी सं ह के साथ अ पना िम का सािह य जगत म बेआहट वेश एक धमाके दार गितिविध है । धमाके दार इसिलए क ी के भीतर झांकने का उनका अ दाज वाकई उ लेख यो य है । दरअसल ी मन के भीतर क अतल गहराई तक संपृ होने क यह ताकत ही अ पना क कहािनय को अनंत-ऊजि वता दत े ी है । िवपरीत प रि थितय के भीतर से सजना मकता और आ मिवकास क संभावना को चुनकर अपनी मानवीय पहचान के िलए पूरी सामािजक व था को झंझोड़ डालना २००० के बाद के ी कथा लेखन क एक मह वपूण उपलि ध ह,ै िजसे दभ ु ा य वश ी-िवमश का नाम दक े र बहस के ऐन बीचोबीच रखा जाता ह,ै ले कन यादातर हािशए पर धके ल दया जाता है । यह सच है क कालखंड म बाँधकर समय और सािह य को सम ता म नह समझा जा सकता । क तु इ सव सदी के थम दशक कथा े म कई अिव सनीय गुणा मक बदलाव के साथ आया है । आज का समय नारी िवमश के तीसरे चरण का समय माना जाता है । आज क नारी अपने अिधकार से अपे ाकृ त अिधक अवगत है । वतमान म नारी िवमश सािह य क दशा और दशा बदल रही है । अिधक मा ा म नारीकृ त लेखन सजन है । नारी िवमश पर शा ीय, समी ा मक वत िच तन तुत हो रहा है । ी के अि त व के दृ यमान हो उठने के पीछे िव के तर पर उस

व था, िवखंडना मक ि थित, उ र-

उ र-औ ोिगक यथाथ का योगदान है जो औ ोिगक स यता और युग के थािपत जीवन मू य को बदल रहा है । ी का इस अथ म एक उ र-आधुिनक है । उ र-आधुिनक ि थितय ने उन के को थ कर दया जो मूलतः पु ष के थे । बीसव शता दी के उ रा म फे िमिन ट ने लंग भेदी िवचार को नया आयाम दया और इस कार लंग संबंधी उ र-आधुिनक मु ा सामने आया । उ र-आधुिनक प रदृ य का एक िह सा होकर ी िवमश ने सं कृ ित के मद क त सामा य िस ांत को लात मारी है । उससे तमाम सां कृ ितक िवमश क चूल िहल गई ह । फे िमिन म एक नया उ र-आधुिनक सामािजक े है और उसक अनदख े ी संभव नह । नए ी- े का वीकार हमारी अथ- व था के नए चरण का ही वीकार है । इस अथ म ी े और उ र-आधुिनकता क अपनी 'अथ- व था' ह ै । यानी क ी क के जागरण के पीछे ठोस, क तु अित-चंचल उ रआधुिनक कारण स य है । उ र-आधुिनक दौर म फे िमिन ट ने लंग भेदी िवचार को नया आयाम दया । इस कार लंग संबंधी एक उ र-आधुिनक मु ा सामने आया । ी िवमश के जागरण के पीछे दो उ र-आधुिनक प रदृ य स य ह । एक ी का दृ य म अिधक होना और दृ य म उसक दह े का होना । ये दोन प रदृ य अित पूँजीवाद के प रणाम ह िज ह हम उपभो ा सं कृ ित के उपादान के प म, मा यम म

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E-ISSN No : 2454-9916 | Volume : 7 | Issue : 7 | Jul 2021

िव ापन म पाते ह । यह एक नया सां कृ ितक जन े बन रहा है । इसके िनमाण म उपभो ा सं कृ ित का योगदान है । नया ी िवमश, जो नए मीिडया िवमश के साथ-साथ आया ह,ै म पहली बार ी के अपने अनुभव 'िस ' हो रहे ह । अब तक का वृ ा त 'मद' का ही था । अब तक क भाषा मद क भाषा थी । इितहास भी उसी का था । दह े क उ र-आधुिनक उपि थित चिलत सां कृ ितक मदवादी दिुनया को कस तरह तोड़ती है यह दख े ना है । यह से उ र-आधुिनक कथा बनती है । यही वे सां कृ ितक नए प है जहाँ नए अनुभव बनते ह । अ पना िम का मह व इसिलए नह क उ ह ने िवपुल मा ा म सािह य रचा ह,ै वे के वल इसिलए ासंिगक और पठनीय नह है क उ ह कई पुर कार से स मािनत कया गया है । अ पना िम क शि इस बात म िनिहत है क उ ह ने नारी मन के भीतर झांककर उसके भीतर क परत-दर-परत खोल डाली है । अ पना िम क सबसे बड़ी शि है ' ी िवमश' को पु ष एजडे से मु करना । सं थन पि का(के रल) को दए सा ा कार म वे कहती ह – “ ी िवमश, ी जीवन क सम या , उसक पीड़ा, यातना, शोषण और िपतृस ा ारा कया गया अनुकूलन इ या द का सै ांितक प है । वह िपतृस ा क वच ववादी मानिसकता, उसके ारा ी को िनयंि त करने के तरीक का िवरोधी है । पु ष का िवरोधी नह है । एक संतुिलत समाज म पु ष से 1 सहयोगी भूिमका क अपे ा होती है ।” अ पना िम ने कसी सै ांितक िवचार धारा से अपने को कभी नह जोड़ा । उनके कथा लेखन म नारीवाद मानिसकता के ल ण सीधे-सीधे नह दखलाई पड़ते । अ पना का लेखन ी के भीतर सांस लेते 'मनु य' को पहचानने क कोिशश करता है । उ ह ने जहाँ मनु य मन िवशेषकर ी मन के अ तस् म झांका वह उसके बाहरी प रवेश को भी रे खां कत कया । लेिखका एक ी होने के नाते ी मन के सं ास, उलझन आ द से काफ प रिचत ह । उसक संवेदना को अपनी संवेदना का बाना पहनाकर उ ह ने अपनी कथा के ारा तुत कया । नारी अि मता के िभ धरातल क पड़ताल करते अ पना का कथा संसार भारतीय समाज म ी का कोलाज सा रचते दीखते ह । जहाँ उनक कहािनयाँ ीसच का बेबाक पहचान ह,ै वह उनका उप यास का कथा वृ ा त ी-अि मता के पार जाकर 'अपने होने का अथ' ढू ँढता है । उनका लेखन ी मानस के तलघर को िबना कसी छेड़छाड़ के सामने रखता है जहाँ व था के िवरोध म उफनती क ँ ार ह । अ पना के कथाकार के स मुख मुख है संवेदना का हरहराता समंदर । अ पना क ी का गढ़त पारं प रक ी से ज़रा भी िभ नह है । वही द बू वही असुरि त, वही शंकालू । तभी रोिहणी अ वाल िलखती ह – “बेशक नई ी क बो ड छिव को तुत नह करती अ पना, िजसक झलक मीिडया और मे ो सं कृ ित म 2 भरपूर दख े ने को िमलती है ।” सच तो यह है क समूचा भारत न मे ो सं कृ ित म िनब है न मीिडया से जीवनी शि पाता ह ै । पर परा और आधुिनकता क आपसी टकराहट को ी दह े और मानस दोन तर पर झेल रही है । आज के ी के ऊपर परं परा 23

के वजना यु दबाव है और दस ू री तरफ आधुिनकता के िडमां डग ं आ ह के कारण उसके पास पैर टकाने को जमीन नह । अ पना बेपरवाह होकर सहज ढं ग से इसी

ी क दा तान कहे जा रही है

। िबना कसी शैि पक आडब ं र के िबना ज टलता के । सन् 2006 म अ पना िम का थम कहानी सं ह 'भीतर का व ' कािशत आ िजसे लेिखका ने अंधेरे से जूझती ि य के अनवरत यास और अद य इ छा के नाम सम पत कया है । कहानी सं ह म 'उपि थित', 'भय', 'कथा के गैर ज़ री दश े म', 'अंधेरी सुरंग म टेढ़-मेढ़े अ र', 'बेतरतीब', 'भीतर का व ' इस कार छः कहािनयाँ सि मिलत ह । कहािनय म एक अलग अ दाज है । स े अथ म अ पना इन कहािनय के ारा सघनता और सहजता के साथ मानवीय स ब ध और ि थितय क बाहरी दिुनया से ी के भीतर को दख े ती है । ी के इ तेमाल हो जाने क िववशता पर ममघात कया है । नारी जीवन को छू ने वाली कई एहम मु पर काश डाला गया है । नारी मन के गोपनीय से गोपनीय रह य का पदाफाश कया है वो भी मयादा क सीमा का उ लंघन न करके । ी लेखन म िवशेषकर उ र-आधुिनकता के दौर के ी लेखन म उभरती नई ी-छिव दह े को पाप-पु य, शील-अ ील, मयादाअमयादा जैसी गढ़ी गई संरचना से मु कर िवशु बायॉलॉिजकल त य के प म दख े ती है । अ पना िम ी के इसी जैिवक अनुभव का पदाफाश अपनी कहािनय म करती ह । इस नई ी से मदवादी ी-पु ष सारा समाज खौफजदा है । ले कन सच तो यह है क अ पना िम क कहािनयाँ िजस सघनता और सहजता के साथ स ब ध और ि थितय क बाहरी दिुनया से 'भीतर' को दख े ती है वह आज के ी-मन म हो रहे बड़े प रवतन क ओर संकेत करते ह । आज क ी अपनी लिगक वजना

क सीमा को लाघ ं कर अपने

ि

व क खोज कर रही

है और यह खोज बौि क वावल ब क ओर उ मुख है । कृ णा सोबती 'भीतर का व ' के आमुख म िलखती ह – “ ी क पालतू रस परस मु ा और इ तेमाल हो जाने क िववशता पर ममाघात करने क अ भुत मता अ पना म मौजद ू है । हम अ पना से उस गहरी अ तदिृ क भी अपे ा करते ह जो ी क जीिवका और आ थक वतं ता के नये संवेदन सं कार को भी अिभ करे गी।”3 अ पना का ी िवमश इस त य क ओर संकेत करता है क हा दकता और आ था के िबना ेम के आंत रक व प का सा ा कार नह कया जा सकता । उनक कहानी 'उपि थित' म इसी त य को इसी ददनाक स य को उजागर कया गया है । पितप ी एक ही घर म रहते ए भी अजनबी । हाऊस वाइफ प ी िड ेशन का िशकार हो जाती है । इतनी िड ेसड क एक म खी से बात करना शु कर दत े ी है । कथा नाियका काबेरी के ही श द म – “वे ब द दरवाजा थे । मु य दरवाजा म भीतर से घुमड़कर उन तक जाती थी, िसर पटकती और लौट आती ।“4 पित-प ी के बीच का अजनबीपन काफ खौफनाक होता है । दम घुटने लगता है । दम घुटते दा प य संबंध को अ पना िम समय-समय पर International Education & Research Journal [IERJ]


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रपेयर करने क सलाह दत े ी है । अ पना के मुतािबक 'हाऊस वाइफ' बनना 'कु छ भी बन' जाना नह होता । िड ेशन क िशकार हाऊस वाइफ क दद भरी दा तान है अ पना क 'उपि थित' कहानी । 'भय' कहानी नारी के उस भय से जुड़ा है जो अबोरशन के प म भयानक आकार हण कर लेता है । महीने के उन चार दन म दाग लगने का 'भय' जो लड़क को एक उ के बाद हमेशा सताता है । नारी क शारी रक जैिवक अनुभव का खुलापन हम दख े सकते ह । 'भय' कहानी से ही – “स दह े , हर जगह स दह े । इस स दह े -वाली बात पर मुझे कु छ याद आता है और म फर से भरसक गरदन मोड़कर अपनी कमर के पीछे का 5 कु ता दख े रही ँ – कु छ लगा तो नह ?” ब ा िगरने(अबोरशन) का हादसा, खून से लथपथ होने का एहसास इस कार के जैिवक अनुभव का खुलापन उ र आधुिनक दौर म सामने आने लगी । एक ज़माना था जब ऐसी बात का िज सािह य म नह होता था । गोपनीय रखा जाता था । अबोरशन औरत के िलए या मायने रखता है । उसे मानिसक एवं मनोवै ा नक तौर पर वह कस तरह भािवत करता है इस ओर उनका 'भय' कहानी इं िगत करता है । अ पना ी क आकां ा एवं इ छा को नया रं ग दत े ीह। उनका मानना है क ि य क भी इ छा होती है क कोई यार से उ ह दख े । आँख -आँख से िमलाकर ठहर जा । दह े के भीतर उगी ेम का िज तो अ पना करती है ले कन समाज ऐसी

ी को

कस नजर से दख े ती ह इस पर उनका व कु छ इस कार है – “लोग, जो उनके इद-िगद ह, कभी सहन नह कर पा गे क एक औरत दह े क ऐसी इ छा क बात कर रही है । भला कै सी है वह ी ? च र हीन ? वे या ?”6 'कथा के गैर ज री दश े म' कहानी क नाियका जो क अपने

ी लप ं ट पित से तंग आ चुक है

अपनी आकां ा का बयान इस कार करती है – “यह दह े , यही आधार ह,ै मन क अतृि इसी म उठा-पटक करती इसे ही अश और बीमार बना दत े ी है । मन क उछल-उछल कर उठती तरं ग 7 को समेटकर कहाँ रख द ? कै से नकार दँू भला अपनी ही दह े ?” 'भीतर का व ' कहानी म सव के तुर त बाद माँ के अनुभव पर काश डालती है -- “मेरा दध ू िगरा जा रहा था । लाउज़ भीग रहा था । अपनी साड़ी लाउज के बीच फँ साकर मने दध ू िगरने से रोकने क कोिशश क । यह मेरा पहला दध ू था, िजसे डा टर के 8 अनुसार ब े को पीना ही चािहए ।” अ पना 'भीतर का व ' कहानी म अपील करती है कू ल से क वे कृ पया अपने पा म म ब ा पैदा करने जैसे िनहायत ज़ री बात को शािमल कर । शादी, ब ा पैदा होने और उसके बाद के तमाम सच । 'भीतर का व ' कहानी से ही – “म क नह सकती थी । कना खतरनाक लग रहा था । ली डग ं होते जाने के कारण िचि तत भी थी । मुझे ठीक से पता नह था क ऐसा होने पर या हो सकता ह ै ? बस इतना समझ आया था क खून िनकल रहा है तो ब ा मर सकता है । उस व मुझे अपने बॉयोलॉजी न पढ़े होने का कतना अफसोस आ, कह नह सकती । लड़ कय को शरीर िव ान पढ़ाना कॉ पलसरी करना चािहए । शादी, ब ा पैदा होने और International Education & Research Journal [IERJ]

उसके बाद क तमाम सच... म कू ल से अपील करती ँ क वे कृ पया अपने पा म म इन िनहायत ज़ री बात को शािमल 9 कर ।” इ सव सदी म भी भारतीय ी क हालत कु छ इस तरह है । उसे अपने शरीर िव ान का ही पया ान नह । ी मुि एवं फे िमिन म कस हद तक इस यथाथ को बदल सक है ? अ पना ी िवमश को के वल दह े वादी िवमश मानने से इ कार करती ह । अपने सा ा कार म उ ह ने इस िवषय पर य ित या क है -- “ ी-िवमश के पुरोधा जो लोग बनने चले थे, उ ह ने ी िवमश को दह े िवमश क गिलय म खूब भटकाया । उ ह ने यह नह सोचा क पढ़ी-िलखी और आ मिनभर होती ी-जीवन के ावहा रक प को समझने लगेगी और ब त ज द इस म से िनकल जाऐगी, यही आ भी । दह े पर िनणय क ि थित भी तभी बन पाती है जब ी चेतना संप , पढ़ी िलखी और आ म-िनभर हो, िलव इन रलेशनिशप क ि थित भी 10 तभी बनती है ।” सन् 2008 म अ पना िम का दस ू रा कहानी सं ह 'छावनी म बेघर' कािशत आ । 'मुि संग', 'िमड डे मील', 'तमाशा', 'बेदखल', 'िज मी के सपने', 'िल ट से गायब', 'इस जहाँ म हम' और 'छावनी म बेघर' नामक आठ कहािनयाँ इसम स हीत ह । 'मुि संग' ी िवमश का एक नया आयाम तुत करती है । कामकाजी औरत को अ दर और बाहर के दबाव को झेलना पड़ता है । बस एवं सावजिनक थान पर बुजुग पु ष क काम लोलपता का पदाफाश इसम बखूबी कया गया है । वे िलखती ह ु ीय क बस या ा पर -- “एक बार बस म चढ़ जाएँ और भा यवश या चिलए कमवश कह लीिजए अथात् छीनते-झपटते ए य द कनारे िखड़क के पास क सीट िमल जाए और य द भा यवश उनके बगल म कोई बुजुग(स य भाषा म वे बुजुग कह दत े ी ह, पर इस बुजुग से उनका ता पय कमीने अधेड़ , कुं ठत बु ढ़ या फर सेि सयाये आदिमय से होता ह)ै बैठ न पाये या फर कोई दु जवान बैठते-बैठते रह जाय तो इसे वे कम से इतर 11 ही मानगी ।” 'मुि संग' म वे यार और पालतूपन के अजीब र ते पर िवचार करती ह -- ' या यार और पालतूपन एक ही चीज है या दो िब कु ल अलग-अलग िचज़े ? पालने वाले के लगाव और वतः फू त यार जैसी ऊजा म वैसे ही अ तर ह,ै जैसे शादी और यार म जैसे शादी म िछपा है पालतूपन और मोह । तो या 12 ी एक पालतू जानवर है ?” नौकरी पेशा ीय को आज भी अपनी आय पर अिधकार नह । इस स य क ओर भी वे काश डालती ह । ी मुि आ दोलन ,अ तरा ीय मिहला वष, वुमे स डे वगैरह कतनी भी गुजर जा अगर ी को अपने कमाए पर िनणय लेने का हक नह तो या फायदा ? वे िलखती ह -- “वैसे भी औरत के हाथ म पैसा रखने से औरत िबगड़ जाती है । (हवाले से डॉ साहब) तो जब से उ ह इस भाग दौड का इनाम िमलना शु आ अथात् वेतन, तो पहले दो चेक डॉ साहब ने अपने एकाउं ट म जमा करवाये, ले कन तीसरे महीने िव ालयी अिनवायता के चलते उ ह अपना एकाउं ट ऋिषके श म खोलना ही पड़ा । उनके 24


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वेतन से स बि धत सारे मामले डॉ साहब ही दख े ा करते । यहाँ तक क सारी इ कमटै स बचत वॉ ट होती । सोचा था उ ह ने, इस नौकरी म आते ही उनके दःुख दा र य के दन समा हो जा गे । (धूरे के भी दन फरते ह) पर कहाँ ? डॉ साहब इतने चुपचाप उनक नौकरी पर कुं डली मारकर बैठे क वे दख े ती रह गय । अगर पैसा न द तो घर म टशन, पा रवा रक अशाि त का कारण पैसा ? िछः वे कभी सोच भी नह सकती, लो ले जाओ पैसे, पर शाि त बने रहने दो, पर शाि त कसक ? डॉ साहब क या उनक 13 ?” अ पना जी क 'तमाशा' कहानी आज क कामकाजी नारी क वा तिवक अव था का िच ण करती है । औरत जब पढ़ने िलखने, या फर नौकरी के वा ते घर के बाहर कदम रखती है तो उसे इस कार के ताने पु ष ारा सुनने पड़ते ह -- “औरत होने का नाजायज फायदा लेती ह ये लोग । हाँ, नह तो । तमाशा बना रखा है । हाँ । किहए इ तज़ार कर । यह भी तो इं टर ू है । कसने मज़बूर कया है क आएँ पढ़ने ? या ज़ रत है चौका-चू हा छोड़कर आने क ?घर का स यानाश अलग करती ह ये लोग ?” औरत का मन, िच ता हमेशा घर-प रवार ब तभी नौकरी पर या पढ़ाई पर वे पूण प से त । घर क परे शािनयाँ पु ष को उस तरह नह औरत को । तभी तो वे पूछती ह -- “खुदा

से जुड़ा रहता है । लीन नह हो पाती िहलाती िजस तरह को हािजर-नािजर

जानकर किहए क आपने कभी सुना है – इं टर ू म लड़के अपना इं टर ू िसफ इसिलए ज दी करवाना चाहते ह क घर पर उनके छोटे ब े अके ले ह या क पेट फला है (गभवान) तबीयत घबरा ू रही ह,ै उ टी- उ टी जैसा लग रहा है या क सबेरे से कु छ खाये नह ह,ै पेट के ब े पर असर न पड़ जाए । या क अ पताल म आदमी भत है ।” पु ष के िलए ये छोटी- छोटी बात ह िजसपर 14

वे अिधक यान ही न दत े े । तो ये मानिसक धरातल पर नारी और पु ष म जो फक है उसे लेिखका एक एहम मु ा मानती ह । 'रोती ई औरत, और भी यादा औरत होती ह ।' बेशक नई ी क बो ड छिव नह तुत करती अ पना । वे चाहती ह क पु ष क दिुनया म ी को वावल बी होना ही है – मानिसक तौर पर भी और रोजमरा क ज़ रत म भी । रोिहणी अ वाल अ पना जी क नारी िवमश पर य िलखती ह - अ पना ी क असुर ा और तनाव को ही 'मुखर नह करत , 'तनाव' और 'असुर ा' जैसी िनरीह कातरता को हिथयार बना पु ष व था क द रदगी को बेनकाब करती ह । ी को तमाशा बनाकर उसक बेचारगी और कमजोरी का ' वाद' और 'लाभ' लेने वाले पु ष समाज को आड़े हाथ लेती ह वे । रोिहणी अ वाल अ पना िम के लेखन को समकालीन ी लेखन से जोड़ते ए िलखती ह - “दरअसल ी-कथा लेखन ी क ओर से बेहद असुिवधाजनक मानवीय सवाल को ही उठाता है िजस कारण वह िवरोध, िव ष े और ितर कार का िशकार होता रहा है । ये सवाल औरत क संकुिचत बुि और संक ण दिुनया को ित बंिबत नह करते, इन सवाल को नजरं दाज कर या मण करती ष े पूण िपतृस ा मक व था क ओर उं गली उठाते ह । तमाम रे शमी आवरण को 25

हटाकर मृद-ुशालीन चेहरे के पीछे झाक ं ते बबर पशु के

प म कौन

अपना प रचय पाना चाहग े ा ? जािहर है ऐसे ी-िवमश का 15 िवरोध होगा ही ।” ी शोषण के पर िवचार करते ए अ पना िम क पना प त जी से अपनी सा ा कार म कहती ह -“पूँजीवादी सोच अपने मुनाफे को सबसे आगे रखती ह,ै वह साम ती सोच से बनी, ी को व तु समझे जाने क मनोवृि को उकसाती है और उसका उपयोग बाजार क उ ेजना बढ़ाने म, अपने िहत म करती है । इस तरह ये सब िमलकर ी को िवकास क सहज ि थितय से और बुि के बेहतर इ तेमाल क दशा म बढ़ने से भी रोकते ह, उस पर अपनी पकड़ बनाये रखते ह और सहज मानवीय ग रमा के साथ उसका जीना मुि कल बनाते ह ।”16 सन् 2012 म अ पना िम का तीसरा कहानी सं ह 'क भी कै द औ जंजीर भी' कािशत आ । इस कहानी सं ह म कु ल नौ कहािनयाँ सं हीत ह -- 'गैरहािजरी म हािजर', गुमशुदा, राहगुज़र क पोटली, महबूब जमाना और जमाने म वे, उनक तता, 'मेरे हमदम मेरे दो त', सड़क मु त कल, पु पक िवमान और 'ऐ अिह या'। मनु यता के रण क िवराट अमानुिषक स ाइय के बर स िवकिसत होता आ लेिखका का कथा संसार इस भयावहता के सामने मामूली लोग क िनह थी लड़ाइय , सपन और कोिशश म शािमल होता है । यथाथ से करीबी जुड़ाव को अपेि त तट थता के स य रचना मक पाठ म बदल दन े े का लेिखका का संघष नए अनुभव े म धँसने क चुनौती लेता है । वैयि क, िनवयि क के चिलत िवधान से बे फ लेिखका के िलए सबसे भरोसेमंद चीज़ वयं जीवन है िजसके पं दत रसरत भरे अनुभव को बृह र यथाथ से उसक अ त या समेत उठाना और दज करना उसके िलए ज़ री आ है । ी के ऊपर हो रहे ज़ म, दहज े ह या , छ आधुिनकता, ी शोषण से जुड़ी घटना अ पना क कहािनय के के म ह । उनक कहािनयाँ आलंका रक नह ह, वे उ पीड़न के िखलाफ मानवीय आ दोलन का प रखती ह । लैप पर ानरं जन जी ने ठीक िलखा है क 'अ पना अपनी कहािनय के िलए ब त दरू नह जाती, िनकटवत दिुनया म रहती ह ।' 'उसक तता' शीषक कहानी म लेिखका आधिनक समय म मौजूद म ययुगीन बबरता ु के नए चेहरे से पहचान कराती है । यह एक ैिजक अ त वाली कहानी है िजसे नाटक य और थूल होने से लेिखका ने बचाया है । व तुतः क य क दिृ से यह कहानी एक बेहद आजमाए गए या क खंगाल िलए गए िवषय पर के ि त है । ससुराल म नव याहता का उ पीड़न जैसा क य है मगर अ पना िम इसे नए िडटे स के साथ िवकिसत करती ह और एक िवल ण ितभाशाली आजाद लड़क के ससुराल म यातनापूण ह को गहरे संकेत म उभारती ह । मनु यता के रण क िवराट अमानुिषक स ाइय के बर स िवकिसत होता आ लेिखका का कथा-संसार इस भयावहता के सामने मामूली लोग क िनह थी लड़ाइय , सपन और कोिशश म शािमल होता है । यथाथ से करीबी जुड़ाव को अपेि त International Education & Research Journal [IERJ]


Research Paper

E-ISSN No : 2454-9916 | Volume : 7 | Issue : 7 | Jul 2021

तट थता के साथ रचना मक पाठ म बदलने म अ पना सफल होती है । सं ेप म कह सकते ह क अ पना िम िह दी कथा सािह य समाज म अिनवाय प से शािमल ह । उनका कहानी लेखन िन य ही थायी दू रय तक जाऐगा । आज पाठक और कथाकार के बीच क जो दरूी है वो कु छ अिधक ही बढ़ती जा रही है ले कन अ पना िम क कहािनय म यह दरूी नह िमलेगी । उनक कहािनयाँ आलंका रक नह ह, वे उतपीड़न के मानवीय आ दोलन का प रखती ह और इस तरह सामािजक कायरता से हम मु कराने का रचना मक यास करती ह । अ पना िम क ी क गढ़त पारं प रक ी से ज़रा भी िभ नह । वही द बू,

XII.

अ पना िम (२००८) छावनी म बेघर;(ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं 1 6

XIII.

अ पना िम (२००८) छावनी म बेघर;(ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं 1 6 -17

XIV. अ पना िम (२००८) छावनी म बेघर;(ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं51 XV.

रोिहणी अ वाल. (२०११): ी लेखन व और संक प;( थम सं), राजकमल काशन, द ली, पृ सं230

XVI. संवेद-सृजना मकता क नयी पौध-2 ,युवा लेिखका अ पना िम से क पना पंत क बातचीत ,पृ 62,माच 2013

वही असुरि त, वही शक ं ालू – आ मदया, आ म हस ं ा और आ मनकार के दायर को छू ती साठ- स र के दशक क ी सरीखी । इस कार के आ ेप भले ही अ पना िम के ी पर लगाए जा पर ह तो वे स ाई ही । आज का यथाथ ही उनक ी पा म दखलाई दत े ा है । सच तो यह है क ी क असुर ा एवं तनाव को ही मा अ पना िम 'मुखर' नह करती । ी क 'असुर ा' एवं 'तनाव' जैसे िनरीह कातरता को वे हिथयार बनाती ह, िजसके बल पर वे िपतृस ा मक व था क द रं दगी को बेनकाब करती ह । पु ष क ण मानिसकता पर वे िनर तर हार करती ह । संदभ: I.

सो फया राजन. (२०१४). ी क वतं ता िववेक बु ी के साथ जुड़ी होती ह.ै सं थन, फरवरी २०१४,पृ सं ४५

II.

रोिहणी अ वाल. (२०११): ी लेखन व और संक प; ( थम सं), राजकमल काशन, द ली, पृ सं229

III.

अ पना िम (२००६) भीतर का व ; (ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पेपर बेक

IV.

अ पना िम (२००६) भीतर का व ; (ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं 19

V.

अ पना िम (२००६) भीतर का व ; (ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं 29

VI.

अ पना िम (२००६) भीतर का व ; (ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं63

VII.

अ पना िम (२००६) भीतर का व ; (ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं64

VIII.

अ पना िम (२००६) भीतर का व ; (ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं123

IX.

अ पना िम (२००६) भीतर का व ; (ि तीय सं करण),भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं127

X.

सो फया राजन. (२०१४). ी क वतं ता िववेक बु ी के साथ जुड़ी होती ह.ै सं थन, के रल, फरवरी २०१४,पृ सं 45

XI.

अ पना िम (२००८) छावनी म बेघर (ि तीय सं करण), भारतीय ानपीठ, नई द ली, पृ सं 1

International Education & Research Journal [IERJ]

26


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