Unseen Poem for Class 12 in Hindi Unseen poem class 12 covers a significant bit of the Hindi paper. It contains around 24% imprints weightage in the test. Along these lines, students who need to score good grades in Class 12 Hindi should rehearse the understanding entry preceding the test. To help them in their planning, we have given the CBSE Unseen poems to Class 12 Hindi.Students should go through them and tackle the inquiries dependent on these appreciation sections.
Read the Unseen Poem Class 12 in Hindi 01. निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :
दिवसावसान का समय, मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या - सद ंु री परी - सी धीरे - धीरे - धीरे | तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,
मधरु - मधरु है दोनों उसके अधर किन्तु जाता गंभीर - नहीं है उनमे हास - विलास | हँसता है तो केवल तारा एक गथ ंु ा हआ उन घघ ंु राले काले - काले बालों से ह्रदयराज्य की रानी का वह करता है अभिषेक | अलसता की सी लता किन्तु कोमलता की वह काली सखी नीरवता के कंधे पर डाले बाह, छाँह-सी अम्बर पथ से चली | नहीं बजती उसके हाथों में कोई विणा, नहीं होता कोई अनरु ाग - राग आलाप नप ू रु ों में भी रुनझन ु - रुनझन ु नहीं सिर्फ एक अव्यक्त शब्द सा "चप ु , चप ु , चप ु " है गज ंू रहा सब ु कहींउपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए(क) इस काव्यांश में किस काल का वर्णन है ? (ख) मेघमय आसमान से कौन उतर रही है ? (ग) संध्या - सद ंु री के अधरों की क्या विशेषता है ? (घ) संध्या की सखी कौन है ? (ड़) संध्या को कवि ने अलसता की सी लता क्यों कहा है ? उपरोक्त गद्यांश के संभावित उत्तर(क) इस काव्यांश में सर्या ू स्त को लेकर संधायकाल का वर्णन हुआ है | (ख) मेघमय और बदलो से घिरे आसमान से संध्या रूपी परी जैसी नायिका धरती पर उतर रही है | (ग) संध्या - सद ंु री के अधरों की यह विशेषता है कि वे स्वाभाविक रूप से लालिमायक् ु त और सक ु ोमल मधरु है , लेकिन उनमे हास - विलास नहीं है | (घ) संध्या की सखी नीरवता है , अर्थात संध्याकाल में जो निस्तब्धता रहती है , वही उसकी सखी है |
(ड़) संध्याकाल आने पर अभी प्राणी दिनभर की थकन मिटने चाहते है | इस कारण उनके शरीर आलस्य से व्याप्त रहते है | इसी कारण संध्या को अलसता फ़ैलाने वाली लता कहा गया है |
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02 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :
उठे राष्ट्र तेरे कंधो पर, बढे प्रगति के प्रांगण में , पथ् ृ वी को रख दिया उठाकर तन ू े नभ के आँगन में | तेरे प्राणो के ज्वरो पर, लहराते है दे श सभी, चाहे जिसे इधर कर दे तू चाहे जिसे उधर क्षण में | विजय वैजयंती फहराती जो, जग के कोने - कोने में , उनमे तेरा नाम लिखा है जीने में बलि होने में | घहरे राण घनघोर बढ़ी सेनाए तेरा बल पाकर, स्वर्ण - मक ु ु ट आ गए चरण तल तेरे शस्त्र संजोने में | तेरे बाहुदंड में वह बल, जो केहरि- कटि तोड़ सके, तेरे दृढ़ कंधो में वह बल जो गिरी से ले होड़ सके |
उपरोक्त काव्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए(क) 'उठे राष्ट्र तेरे कंधो पर'- इसमें 'तेरे' किसके लिए कहा गया है ? उत्तर. प्रस्तत ु काव्यांश में 'तेरे' शब्द दे श के नवयव ु को अर्थात दे श के तरुणो के लिए कहा गया है ; क्योकि दे श कि बागडोरअब बढ़ ू े कि अपेक्षा जवानो के हाथो में होनी चाहिए| दे श का उद्धार और चौमख ु ी प्रगति वे ही कर सकते है | (ख) प्रस्तत ु काव्यांश का मल ू भाव क्या है ? लिखिए उत्तर. प्रस्तत ु काव्यांश के मल ू भाव यह है कि संसार में जितने भी सामाजिक परिवर्तन एवं लोक कल्याण के कार्य हुए है , वे नौजवानो कि आदम्य शक्ति एवं साहस से ही हुए है | यदि वे कर्तव्य बोध और आत्मविश्वास से मंडित हो जावे, तो वे अपनी क्षमता का सही उपयोग क्र सकते है तथा विश्व में समरसता एवं मानवता कि स्थापना क्र सकते है | (ग) प्रस्तत ु काव्यांश में कविको तरुणोसे क्या क्या अपेक्षाएं है ? उत्तर. प्रस्तत ु काव्यांश में कवि का तरुणो से ये अपेक्षाएं है (1) वे दे श कि प्रगति और रक्षा का बाहर अपने कंधो पर ले | (2) वे दे श में सकारात्मक क्रांति और बदलाव लाये | (3) वे मश्कि लों का मक ु ु ाबला करे और बाधाओं से जरा भी नहीं घबराये | (4) वे कमजोर लोगों एवं पद- दलितोंकि रक्षा करे | (5) वे अपनी शक्ति का परू ा उपयोग करे | (घ) 'केहरि-कटि' से कवि क्या आशय है ? उत्तर. 'केहरि - कटि' शब्द वस्तत ु : उपमान है | शेर की कमर लचीली और मजबत ू मानी जाती है | शेर अपने शरीर की इस विशेषता से वन्य जीवों का आसानी से शिकार कर लेता है तथा अतीव वेग से दौड़ सकता है | कवि का यहां यही आशय है | (ड़) ' विजय वैजयंती फहरी' से कवि का क्या तापर्य है ? उत्तर. 'विजय वैजयंती फहरी' से कवि का तातपर्य यह है कि दे श के नौजवान जिधर अपनी नजरे दौडा दे ते है अर्थात जिधर अपना पराक्रम दिखते है उधर ही अपनी विजय पताका फहरा दे ते है |
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03 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :
अब न गहरी नींद में तम ु सो सकोगे, गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ | अतल अस्ताचल तम् ु हे जाने न दं ग ू ा, अरुण उदयकाल सजाने आ रहा हूँ || कल्पना में आज तक उड़ाते रहे तम ु , साधना से मड़ ु कर सिहरते रहे तम ु | अब तम् ु हे आकाश में उड़ने न दं ग ू ा, आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ || सख ु नहीं यह, नींद में सपने संजोना, दःु ख नहीं यह शीश पर गरु ु भर ढोना || शल ू तम ु जिसको समझते थे अभी तक, फूल मैं उसको बनाने आ रहा हूँ || फूल को जो फूल समझे, भल ू है यह, शल ू को जो शल ू समझे, भल ू है यह | भल ू में अनक ु ू ल या प्रतिकूल के कण, धलि ू भल ू ो की हटाने आ रहा हूँ || दे खकर मंझधार में घबड़ा न जाना, हाथ ले पतवार को घबड़ा न जाना | मैं किनारे पर तम् ु हे थकने न दं ग ू ा, पार मैं तम ु को लगाने आ रहा हूँ || उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए(क) प्रस्तत ु काव्यांश में क्या सन्दे श व्यक्त हुआ है ? उत्तर. प्रस्तत ु काव्यांश में कवि न दे श के नवयव ु को को सन्दे श दिया है कि वे कोरी कल्पनाओं को छोड़कर यथार्थ को समझने का प्रयास करें | जीवन में आलस्य, निराशा, अधीरता और संकीर्णता को त्यागकर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर बने और दासता अस्वीकार कर वंदनीय बनने का प्यास करें , तभी दे श का कल्याण और उनका जीवन सफल हो सकेगा | (ख) 'शल ू को जो शल ू समझे, भल ू है यह'- कवी न ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर. 'शल ू ' का अर्थ है दःु ख और बाधा| दःु ख से मत घबराओ तथा घबराकर पीछे भी मत हटो | उससे सबक लो, उसका मक ु ाबला करो और ऐसा काम करो कि हमारे तथा दस ु त रहे | अतएव शल ू से ु रो के दःु ख वेदना से मक् मत घबराओ, अपितु उससे प्रेरणा प्राप्त करो| (ग) 'अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ '- इसका क्या आशय है ? उत्तर. रात्रि के बढ़ प्रभातकाल होता है , अस्ताचल के बाद उदयाचल पर आभा फैलती है | इसी प्रकार जीवन में निराशा के बाद आशा का संचार करो, आलस्य के स्थान पर सक्रियता अपनाओ| तभी जीवन मार्ग प्रशस्त हो सकेगा| (घ) 'गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ' में कवी किसे जगाने की बात कह रहा है और क्यों? समझाइये | उत्तर. इसमें कवि नवयव ु को को जगाने कि बात ख रहा है ; क्योकि आज का नवयव ु क आलस्य, अधीरता और संकीर्णता को अपना सख ु मानकर कल्पनाओं में जी रहा है | (ड़) 'अब तम् ु हे आकाश में उड़ने न दं ग ू ा' से कवी का क्या आशय है ? उत्तर. कवि उन नवयव ु को को सचेत करते है जो कल्पनाओं के संसार में जी रहे है , उन्हें कोरी कल्पनाओं को छोड़कर यथार्थ जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए|
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04 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें :
दे खकर बाधा विविध, बहु विध्न घबराते नहीं | रह भरोसे भाग के दःु ख भोग पछताते नहीं || काम कितना हे कठिन हो किन्तु उकताते नहीं | भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं || हो गए एक आन में उनके बरु े दिन भी भले | सब जगह सब काल में वे हे मिले फुले फैले || व्योम का छूते हुए दर्गा ु स पहाड़ो के शिखर | वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर || गर्जते जलराशि की उठती हुई ऊँची लहर || आग की भयदायिनी फैली दिशाओ में लबर || ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं |
भल ू कर भी वह नहीं नाकाम रहता है कही || चिलचिलाती धप ु को जो चांदनी दे वे बना | काम पड़ने पर करे जो शेर का भी सामना || जो की हँस-हँस के चबा लेते है लोहे का चना | 'है कठिन कुछ भी नहीं' जिनके है जी में ठान || कोस कितने ही चले पर वे कभी थकते नहीं | कौन सी है गाँठ जिसको खोल वे सकते नहीं || उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए(क) विध्न बाधाओं से कौन नहीं घबराते है ? उनकी विशेषताएं बताइये| उत्तर. जो कर्मनिष्ठा रखते है और कर्मवीर होते है , वे विध्न बाधाओं से नहीं घबराते है | वे भाग्यवादी न होकर कठिन परिश्रम, धीर-वीर, दृढ़-निश्चयी और आन-बान निभाने वाले है | वे कठिन से कठिन काम को भी आसान बना दे ते है तथा सदा निर्भय बने रहते है | (ख) 'चबा लेते है लोहे का चना' से क्या आशय है ? उत्तर. अत्यधिक कठिन एवं असाध्य काम को करना - इस आशय के लिए लोहे के चने चबाना मह ु ावरा प्रसिद्ध है | यहाँ भी इसका यही आशय है | कर्मवीर निर्भय होकर सफलता से सारे कामो को साध लेते है , उनके लिए कोई काम असाध्य नहीं है | (ग) चिलचिलाती धप ु को चांदनी बनाने से क्या सन्दे श व्यक्त हुआ है ? उत्तर. विपरीत या कठिन परस्थितियो को अनक ु ू ल बनाकर चलने से कर्मवीर का जीवन सफल रहता है | इससे यह सन्दे श व्यक्त हुआ है कि हमे कठिन परस्थितियों को अनक ु ू ल बनाने का प्रयास करना चाहिए तथा सदा दृढ़ निश्चयी बनकर उद्यम करना चाहिए | (घ) 'जिनके है जी में ठना' से कवि का क्या आशय है ? उत्तर. 'जिनके है जी में ठान' से कवि का आशय है कि कर्म में विश्वास रखने वाले वीर परु ु ष जो कुछ अपने मन में प्रण कर लेते है वे उसे परू ा करके ही रहते है | (ड़) इस काव्यांश का क्या आशय है ? उत्तर. इस काव्यांश में कवि ने कर्म में विश्वास रखने वाले धीर, वीर, गंभीर और आन- बान पर मर मिटने वाले महापरु ु षो का उल्लेख किया है जो कभी विपरीत या कठिन प्रस्तितियो से घबरा कर अपने कर्म-पथ से वापस नहीं लौटते चाहे मार्ग में कितनी ही कठिनाई क्यों न आये उन्हें वे बिना हारे -थके आसानी से पार कर लेते है |
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05 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें : यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ। है अगम चेतना की घाटी, कमज़ोर बड़ा मानव का मन ममता की शीतल छाया में होता कटुता का स्वयं शमन ज्वालाएँ जब घल ु जाती हैं, खल ु -खल ु जाते हैं मँद ू े नयन होकर निर्मलता में प्रशांत, बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन संकट में यदि मस ु का न सको, भय से कातर हो मत रोओ यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ। उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर लिखिए(क) फूल और कॉटे बोने का प्रतीकार्थ क्या है ? उत्तर. फूल बोने का प्रतीकार्थ है - मानव मात्र की भलाई के कार्य करते हुए मानवता के प्रतीकों का पोषण एवं संरक्षण करना, जबकि काँटे बोने का प्रतीकार्थ है -मानव और मानवता के विरुद्ध कार्य करना। (ख) मन किन स्थितियों में अशांत होता है और कैसी स्थितियाँ उसे शांत कर दे ती हैं? उत्तर. मन जीवनविरोधी अर्थात ् त्रासद और द:ु खद स्थितियों में अशांत होता है , लेकिन वो ममता, प्रेम एवं सहयोग और सकारात्मक भाव की स्थितियों का सहारा पाकर शांत हो जाता है । (ग) संकट आ पड़ने पर मनष्ु य का व्यवहार कैसा होना चाहिए और क्यों? उत्तर. संकट आ पड़ने पर मनष्ु य का व्यवहार धैर्यपर्ण ू होना चाहिए क्योंकि धैर्यपर्व ू क संकट का सामना करने पर वह अंततः टल जाता है , लेकिन यदि हम उससे भयभीत होने लगते है , तो वह निरं तर बढ़ता ही जाता है । (घ) मन में कटुता कैसे आती है और वह कैसे दरू हो जाती है ? उत्तर. अनक ु ू ल स्थितियाँ न होने पर या दस ू रों की प्रगति दे खकर मनष्ु य के मन में कटुता आ जाती है , लेकिन जब वह दस ू सह-अस्तित्व में विश्वास करता है , तब उसके मन की ू रों के बारे में भी सोचता है और सहयोगपर्ण कटुता दरू हो जाती है ।
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