Unseen Poem Class 7 in Hindi | Latest Unseen poem

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Unseen Poem for Class 7 in Hindi Unseen poem class 7 covers a significant bit of the Hindi paper. It contains around 24% imprints weightage in the test. Along these lines, students who need to score good grades in Class 7 Hindi should rehearse the understanding entry preceding the test. To help them in their planning, we have given the CBSE Unseen poems to Class 7 Hindi.Students should go through them and tackle the inquiries dependent on these appreciation sections.

Read the Unseen Poem Class 7 in Hindi 01 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें : हारा हूँ सौ बार, गन ु ाहों से लड़-लड़कर लेकिन बारं बार लड़ा हूँ, मैं उठ-उठ कर। इससे मेरा हर गन ु ाह भी मझ ु से हारा, मैंने अपने जीवन को इस तरह उबारा। डूबा हूँ हर रोज़ किनारे तक आ-आकर लेकिन मैं हर रोज उगा हूँ जैसे दिनकर बनकर। इससे मेरी असफलता भी मझ ु से हारी,


मैंने अपनी सद ंु रता भी इस तरह सँवारी। उपरोक्त काव्यांश के आधार पर पछ ू े गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए | (क) कवि अपने हर गन ु ाह को कैसे जीत पाया? उत्तर- कवि गन ु ाहों से निरं तर संघर्ष करता रहा। इस संघर्ष में वह कभी हारता तो कभी जीतता। सैकड़ों बार इस तरह संघर्ष करने से उसका गन ु ाह हारता गया और अंततः वह विजयी रहा। (ख) “डूबा हूँ हर रोज किनारे तक आ-आकर” का आशय स्पष्ट कीजिए। उत्तर- कवि अपने लक्ष्य को पाने के लिए सतत प्रयास करता रहा। इस प्रयास के कारण वह लक्ष्य के समीप तक पहुँच गया, परं तु इसके बाद भी लक्ष्य को प्राप्त न कर सका। (ग) काव्यांश का मख् ु य संदेश स्पष्ट कीजिए। उत्तर- काव्यांश का संदेश यह है कि मनष्ु य को अपने जीवन की असफलताओं से हारे बिना निरं तर संघर्ष एवं प्रयास करना चाहिए। सफलता की प्राप्ति में दे री होने पर भी हमें निराश नहीं होना चाहिए तथा आशावान बने रहना चाहिए।

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02 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें : बहुत दिनों के बाद अब की मैंने जी-भर दे खी पकी सन ु हली फसलों की मस ु कान -बहुत दिनों के बाद बहुत दिनों के बाद अब की मैंने जी-भर भोगे धान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान -बहुत दिनों के बाद बहुत दिनों के बाद अब की मैंने जी-भर सघ ंू े मौलसिरी के ढे र-ढे र से ताजे-टटके फूल -बहुत दिनों के बाद


बहुत दिनों के बाद अब की मैं जी-भर छू पाया अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धल ू -बहुत दिनों के बाद बहुत दिनों के बाद अबकी मैंने जी-भर तालमखाना खाया गन्ने चस ू े जी भर -बहुत दिनों के बाद बहुत दिनों के बाद अब की मैं जी-भर सन ु पाया गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ भू पर -बहुत दिनों के बाद उपरोक्त काव्यांश के आधार पर पछ ू े गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए | (क) कवि ने यव ु तियों को क्या करते दे खा? उनका स्वर कैसा था? उत्तर- गाँव में कवि ने किशोरियों को धान कूटते दे खा। धान कूटते हुए वे गीत गा रही थी। उनका स्वर कोयल के समान कर्णप्रिय और मधरु था। (ख) कवि ने किन फूलों को सघ ंू ा? उनकी विशेषताएँ लिखिए। उत्तर- कवि ने गाँव में बहुत दिनों के बाद मौलसिरी के फूल सघ ंू े। मौलसिरी के ये फूल बहुत सारे जो ताजे-ताजे खिले थे। (ग) कवि ने अपनी किन-किन इंद्रियों को तप्ृ त किया और कैसे? उत्तर- कवि ने अपनी नाक, कान, जीभ, आँख और त्वचा और पाँचों इंद्रियों को तप्ृ त किया। उसने फूल सँघकर नाक को, गायन सन ु कर कान को, गन्ने चस ू कर जीभ को, फ़सलों को दे खकर आँख को तथा चंदनवर्णी धल ू छूकर त्वचा को तप्ृ त किया।

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03 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें : मैत्री की राह बताने को


सबको सन्मार्ग पर लाने को, दर्यो ु धन को समझाने को भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान हस्तिनापरु आए, पांडवों का संदेशा लाए। “दो न्याय अगर तो आधा दो पर इसमें भी यदि बाधा हो तो दे दो केवल पाँच ग्राम रखो अपनी धरती तमाम हम वहीं खश ु ी से खाएँगे परिजन पर असि न उठाएँगे।” उपरोक्त काव्यांश के आधार पर पछ ू े गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए | (क) मैत्री की राह बताने की आवश्यकता किसे थी? यह कार्य करने कौन आया था? उत्तर- कौरव, मित्रता और न्याय की बातें भल ू कर यद् ु ध करने को तत्पर थे। वे कोई बात मानने को तैयार न थे। कौरवों को मित्रता की राह बताने के लिए श्रीकृष्ण पांडवों का दत ू बनकर हस्तिनापरु आए थे। (ख) काव्यांश में किस भीषण विध्वंस की ओर संकेत किया गया है ? उत्तर- काव्यांश में उस विध्वंस की ओर संकेत किया गया है , जो कौरव एवं पांडवों के बीच समझौता न हो पाने के कारण हो सकता था। ऐसी दशा में यहायद् ु ध होना तय था। (ग) श्रीकृष्ण, पांडवों का क्या संदेश लेकर, किसके पास गए थे? उत्तर- श्रीकृष्ण, दर्यो ु ार आधा राज्य दे दो, पर इसमें ु धन के पास पांडवों का यह संदेश लाए थे कि न्याय के अनस यदि कोई बाधा हो तो पांडवों को केवल पाँच गाँव ही दे दो। वे वहीं खश ु ी से रह लेंगे और हथियार नहीं उठाएँगे।

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04 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें : नारद गए विष्णु लोक, बोले भगवान से “दे खा किसान को


दिनभर में तीन बार नाम उसने लिया है । बोले विष्ण-ु नारद जी, आवश्यक दस ू रा एक काम आया है , तम् ु हें छोड़कर कोई और नहीं कर सकता। साधारण विषय यह बाद का विवाद होगा तक तब यह आवश्यक कार्य परू ा कीजिए, तेल पात्र यह लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भम ं ल की। ू ड ध्यान रहे सविशेष एक बद ंू भी इससे तेल न गिरने पाए। उपरोक्त काव्यांश के आधार पर पछ ू े गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए | (क) नारद ने भगवान विष्णु के पास जाकर उन्हें क्या सच ू ना दी? उत्तर- नारद मनि ु ने भगवान विष्णु के पास जाकर उन्हें यह सच ू ना दी कि उस किसान ने परू े दिन में आपका नाम तीन बार ही लिया है । (ख) भगवान विष्णु ने क्या कहते हुए नारद को दस ू रा काम बताया? उत्तर- विष्णु ने यह कहते हुए नारद को दस ू रा काम सौंपा कि उस काम को उनके अलावा कोई दस ू रा नहीं कर सकता है । (ग) भगवान विष्णु ने नारद को कौन-सा आवश्यक कार्य सौंपा? उत्तर- विष्णु ने नारद को तेल से भरा पात्र लेकर पथ् ृ वी का एक चक्कर लगा आने का कार्य सौंपा। (घ) नारद को किस बात का विशेष ध्यान रखना था? उत्तर- नारद को यह विशेष ध्यान रखना था कि पथ् ंू बाहर ृ वी का चक्कर लगाते समय तेल के पात्र से एक भी बद न गिरने पाए। (ड) 'पात्र' शब्द के दो अर्थ लिखते हुए वाक्य प्रयोग कीजिए। उत्तर- पात्र या बर्तन अब घरों में मिट्टी के पात्र कम दिखाई दे ते हैं। योग्य या लायक इस परु स्कार के सच्चे पात्र तम् ु ही हो।


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05 निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्नों का उत्तर दें : हँसते खिलखिलाते रं ग-बिरं गे फूल क्यारी में दे खकर जी तप्ृ त हो गया। नथन ु ों से प्राणों तक खिंच गई गंध की लकीर-सी आँखों में हो गई रं गों की बरसात अनायास कह उठा दिल वाह! धन्य है वसंत ऋतु ! उपरोक्त काव्यांश के आधार पर पछ ू े गए प्रश्नो के उत्तर लिखिए | (क) कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया है ? (i) पतझड़ (ii) वसंत (iii) वर्षा (iv) ग्रीष्म उत्तर- (ii) (ख) रं ग-बिरं गे फूलों को दे खकर कवि के हृदय में कौन-सा भाव आया? (i) प्रसन्नता (ii) कृतज्ञता (iii) संतष्टि ु (iv) चापलस ू ी उत्तर- (iii) (ग) “गंध की लकीर-सी’ से क्या अभिप्राय है (i) गंध की रे खा


(ii) हृदय में सग ं की अनभ ु ध ु ति ू (iii) खश ु बू (iv) सग ं से हृदय में प्रसन्नता की अनभ ु ध ु ति ू उत्तर- (ii) (घ) काव्यांश का उपर्युक्त शीर्षक होगा (i) रं ग-बिरं गे फूल (ii) वसंत ऋतु (iii) गंध की लकीर (iv) रं गों की बरसात उत्तर- (ii)

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