मरु त्तिब आले रसल ू अहमद कटिहारी
सर सूए रौज़ा झुका फिर तुझ को क्या इमाम अहले सुन्नत अज़ीमुल बरकत आला हज़रत
अल शाह इमाम अहमद रज़ा खाां अलैहहररहमाां बरे ली शरीफ़
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शर्मिंदा क्यूूँ ऐसे हालात करें
शैखल ु इस्लाम वल मस्ु स्लमीन हज़रत
अल्लामा सय्यद मुहम्मद मदनी ममयाां अल-अशरफ़ी ककछौछा शरीफ
स्ज़क्रे जहााँ में हम सब पड़ कर कयूाँ ज़ा-अ लम्हात करें आओ पढ़े वश शम्स की सरू त रूए नबी की बात करें
स्जन के आने की बरकत से धरती की तक़दीर खुली आओ हम सब उन चरणों पर जान व टदल सौगात करें
नरू ए खद ु ा है नरू ए नबी है नरू है दीां और नरू े ककताब हम
ऐसे
रोशन
कक़स्मत
कयों
तारीकी
की
बात
करें
रहमत वाले प्यारे नबी पर पढ़ते रहो टदन रात दरू ु द आओ
लोगों
अपने
उपर
रहमत
की
बरसात
करें
कया यह सूरत उन को टदखाने के लाएक़ है गौर करो सामने क़ब्र बबगड़ी
उन
में
के
हूाँ शममिंदा कयाँू ऐसे हालात ھا ھا ال ادریकहने की रुसवाई से
हालत
अहले
इश्क
अहले
खखरद
कब गज़ ु र के
बनती जाते
बस
में
है
हैं
चाहे
दार
नहीां
है
लाख व
अहले
नार इश्क
करें
बचो करें
ھیھات की की
मांस्जल
से
मात
करें
यह लाज्ज़ात की दनु नया कब तक ? इस की असीरी ठीक नहीां आओ समझ से काम लें अख्तर ख़द ु को तामलब ए ज़ात करें (तजस्ल्लयात ए सुखन पष्ृ ि ३४)
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दश्ु मने दीन ए हसन झूटे
िसाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने बद
तमीजी
तो
है
पैदाइशी
खसलत
तेरी
हक़ को बाततल से ममलाना यह है फितरत तेरी रब की आयात का इनकार है आदत तेरी अहल ए हैं
ईमान पे जाहहर है ख़बासत तेरी शयातीन
तेरे नाज़ उठाने
जश्ने
दे वबंद
मुसरस त
से
मनाते
हो
तम ु
इंहदरा गााँधी के मलये बज़्म सजाते हो तम ु मश ु ररका कैसी
के
मलए
मक्काररयााँ
कुरान
करते
हो
पढाते
हो
कराते
हो
तम ु
दीन तो है नहीं, हदल बीच के खाने वाले
वाले
ओ वहाबी ओ
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
वाले
वाले
त ुम
मज़ारात को ढहाने वाले
औमलया से है अक़ीदत हमें और तझ को बैर ु
िाततहा
यह
हलवे
यह
ममठाई
ज़दे
तू
खीर और पूडी है दीवाली की जाइज़ ले ले
वह हैं अल्लाह के अपने तू समझता है गैर
सभी न जाइज़ व बबद-अत तेरे आगे ठहरे
तेरे
और
है
बदबख़्त
माथे
कहााँ
पे
तो
तेरे
शैतान
मक़ ु द्दर ने
रखा
में
खैर
है
पैर
तझ ु पे हूाँ आयात ममटाने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले हैं
िूल
फैज़
अल्लाह
के
मज़ारात
पे
लाते
हम
हैं
महबूबों
से
पाते
हम
हैं
क्यों तो मरता है अगर उसस मनाते हम हैं
िूल, खश ु बू
कपूरे
कौवे
ए
मज़ारात
से
चचढता
है
तू
बदबू को खश ु बू तो खश ु बू को बताए बदबू
तू मुसलमान नहीं तझ में है भंगी की ख़ू ु दरू हट गंद की
सोगंद
उठाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
नंगे मस्जजद में नहाता है तो तबलीग है यह भोज मस्जजद पकाता है तो तबलीग है यह नाक मस्जजद में बजाता है तो तबलीग है यह बदबू मस्जजद में उडाता है तो तबलीग है यह ओ
हैं
पोतडे नानी के ममल जाएाँ तो बााँटते खश ु बू
दश्ु मने औमलया ओ दोज़खी थाने वाले
थू थू मस्जजद में
जाइज़
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
इहतराम और अक़ीदत से जो आते हम जो
फक
क्यों न तो गंद बके गंद के खाने वाले
लानतें
चादर
बतलाये
ख़रु ािात मचाने वाले
वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
सरवरे दीन
को कहे मर के वह ममट्टी में ममले
गौस और ख्वाजा हैं बेबस तू यह बकवास करे क़ब्र
से
घर
इस को
उस
पर
ममठाई
मुदे की
कैसा बेशमस है
तेरा
दादा
लाए
स्जंदा करामत जाने
मक्कार
ओ वहाबी ओ मज़ारात को
बहाने
वाले
ढहाने वाले
जश्न ए ममलाद मनाने पे तू रोता क्यों है
उनको ख़ामलक़
नारा ए जश्न से औसान तू खोता क्यों है
लेफकन इक तेरे ही फफरके का लाईन शाततर
इस क़दर ददस तेरे सीने में होता क्यों है
इस हदन शैतान का बन जाता तू पोता क्यों है हाय तकदीर
तेरी नार
जाने
वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले
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ने बनाया है नबी ए आखखर
खद ु नबी ने भी फकया है यही सब पर ज़ाहहर करके इंकार फकया तम ु को भी ख़द ु सा काफफर ये हैं क़ाइद
तेरे दोज़ख के हठकाने वाले
ओ वहाबी
ओ मज़ारात को ढहाने वाले
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इल्मे
गैब
और
शैतान
रब
के
हााँ
मगर
ए
नबवी को
मशकस
नज़र
अल्लाह
महबब ू ों
की
थानवी
आए
का
तारीफ
मरदद ू
साझी
बरु ी
का
तझ ु े
जाने
तझ ु को
कामलमा
लगे
पढ
ले
लेता
है
चढा
दे ता
है
तेरा
नेता
है
क्या यही दीन है शैतानी घराने वाले ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले दाढी
वाले
जो
जो
भरी
बीवी
भीड
ऐसा
बद
अपनी
इज़्ज़त
में
का भी
फे-अल
भी
का
गला
ओ शैतान को
मज़ा
टांग रूहानी तूने
तो
खद ु
रे ता
है
अक़ताब बताने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले दे ख
यह
रं डियों कर
बात के
दी
फक
बताती
यहााँ
उस
पीर
त-वाइि
ने
है
जाते ने
थे
इक
फकया
तेरे तेरे
बात
कुछ
पीर
यह तेरे शेख हैं
घर
के
गंगा में
की
फकताब
आली
जनाब
इस
दजास
खराब
मुंह
में
पेशाब
नहाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले कोई फकसी
गुजताख़, मरदद ू
कोई कोई
नबी ने
बेहूदा
बदबख़्त
को
कहे
अपने
जैसा
()ﷺ
को
मजबूर
कहा
()ﷺ
सरकार
बके
इल्म,
यह
मलखता
बहाइम है
यह कमीने हैं तेरे अगले
फक
हम
स्जतना
से
सीखा
जमाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले रब
को
और
जो
झट ू ा
मसद्दीक
नजसल ु
कहें ,
हुए से
ऐन
हैं
झठ ू
वह में
माहहर
बदतर
स्जन को ज़ामलम कहा रब ने वह हैं नामसर तेरे क्या तेरे
अकाबबर
हुए
तेरे तेरे
ताहहर
तेरे
भैजे में कीडे हैं पखाने वाले
ओ वहाबी ओ मज़ारात को ढहाने वाले बाब
ए
सुन
हर
ममल अपने
तौबा इक
फकसी
है काफफर
रिजवी
ज़ुल्मत
कुशादा व
से, कदा
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वहाबी
मुनकर
पाक हदल
फिर यह अय्याम ओ
अभी से अपना
में ,
तौबा
कर
ले
फकनारा
कर
ले
अकीदा
कर
ले
उजाला
कर
ले
नहीं लौट आने वाले
ओ मज़ारात को ढहाने वाले http://aalerasoolahmad.blogspot.com
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जमाअते अहल ए हदीस का नया दीन लेखक ख़लीफा ए शैखल ु इस्लाम हज़ित यहहया अंसािी अशिफ़ी
अल वहाबियत लेखक
मन ु ाज़ज़िे इस्लाम मह ु म्मद ज़ज़या उल्लाह क़ादिी अशिफ़ी
गस् ु ताखे िसल ू गरु ु ह के सेक्सी मल् ु ला लेखक
मुनाज़ज़िे अहल ए सुन्नत हज़ित अब्दस् ु सत्ताि हमदानी ििकती लेखक
दे विंहदयत के िुतलान का इंकशाफ़
मुनाज़ज़िे इस्लाम मुहम्मद काशशफ इकिाल मदनी िज़वी
बदरु ू र अहला
कन्जुल हकायक
अल रौज़तुन नद्या अिुसल जादी
नुज़ुलुल अबरार
ितवा नज़ीररया
मल्िूज़ाते हकीमुल उम्मत बेहश्ती ज़ेवर
लग ु ातल ु हदीस
अल-दा ए वद-दाए
हहिजुल इमान
फतवा अल बातनया
अिाजातुल यौममया नैलअल औतार
ररसाला अल इमदाद
अरवाहे सलासा
फज़ाइल ए आमाल
मसलक ए दे वबंद
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन की ग़ैर मुजतनद नमाज़ सवाततउल इलहाम
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फतवा सत्ताररया बराहीने काततआ तहजीरून नास संगीन फफतना
तक्वीयतल ु इमान http://aalerasoolahmad.blogspot.com
आहद Page 5
﷽
प्रथम सूचना
तक़लीद की अतनवायसता होना अक़ली दलील से भी साबबत
होता है और नक़ली दलील से भी। जब आप रोगी होते हैं
आपकी बद् ु चध क्या कहती है फक आप फकसके पास जाएाँगे इंजीतनयर के पास या िॉक्टर के पास ?
जाहहर है फक बुद्चध िॉक्टर के पास जाने का आदे श करती
है । जब मनष्ु य जवयं शरीअत से पररचचत न हो और नरक में
जाने से बचने के मलए शरीअत का पालन करना चाहता हो तो समजया पछ ू ने के मलए फकसकी तरफ बढें गे ? धमसगरू ु या अज्ञानी की तरि ?
सामान्य ज्ञान यही कहती है फक उस की तरि जाना चाहहए
जो धमस के आदे शों में पररचचत हो और ववद्वान हो। वह ववद्वान खुद धमस में ववशेषज्ञ होगा या फकसी ववशेषज्ञ के नज ु खे को बताएगा इसी जपेशमलजट को मज ु तहहद कहते हैं और इन के बातों पर अमल करने वालों को मुक़स्ल्लद कहते हैं | मुक़स्ल्लद शरीयत ए इजलाममया की एक इस्जतलाह है । अहले सन् ु नत व जमाअत के चार इमाम हैं:
1.इमाम आज़म अबू हनीिा (علیہالرحمہववसाल 150 हहजरी) 2. इमाम मामलक ( علیہالرحمہववसाल 189 हहजरी) 3. इमाम शाफई ( علیہالرحمہववसाल 204 हहजरी) 4. इमाम अहमद बबन हम्बल ( علیہالرحمہववसाल 241 हहजरी)
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इन आ-इम्मा ए फकराम ने अपनी ख़द ु ा दाद इल्मी व
फफकरी क्षमताओं और मुज्तहहदाना अंतर्दसस्ष्ट के आधार पर अपने अपने कायसकाल में हजबे ज़रूरत कुरआन और हदीस से
मसाइल ए फफक़ह संकमलत फकए यंू इन इमामों के पदचचन्ह चार फफक़्ही मतों के रूप में अस्जतत्व में आए।
इन चारों आ इम्मा ए फकराम में से फकसी भी फफक़्ही
ववचारधारा का पालन करने वाले को मुक़ज़ल्लद कहते हैं। जैसे इमाम ए आज़म अबू हनीफा علیہ الرحمہके मक़ ु स्ल्लदीन को हनफी, इमाम मामलक علیہ الرحمہके मुक़स्ल्लदीन मामलकी और
इमाम शािई علیہ الرحمہके मुक़स्ल्लदीन शावािअ और इमाम
अहमद बबन हन्बल علیہ الرحمہके मक़ ु स्ल्लदीन को हम्बली कहा जाता है । तजवीर में दे खें ..........
इसके ववपरीत यहद कोई व्यस्क्त उनमें से फकसी का
पैरोकार नहीं हो तो वह ग़ैि मक़ ु ज़ल्लद है । Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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यह एक तारीखी हकीक़त (ऐततहामसक तथ्य) है फक ग़ैर मुक़स्ल्लदीन (जो खुद को अहले हदीस कहते हैं) का वजद ू (जथावपत) अंग्रेजों के दौर से पहले न था | अंग्रेजों के समय से
पहले भारत में न उनकी (ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन की) कोई मस्जजद थी ना मदरसा और ना कोई पुजतक | अंग्रेजों ने भारत में
क़दम जमाया तो अपना अव्वलीन हलीि (सबसे पहली सहयोगी)
उलमाए दे वबंद को पाया और जब उलमा ए अहले
सन् ु नत व जमात (सफ ू ी मस्ु जलम) ने अंग्रेजों के खखलाि स्जहाद
का ितवा हदया और हजारों मुसलमानों को अंग्रेज़ के ववरोध मैदाने स्जहाद में ला खडा फकया तो स्जस ने अंग्रेज़ के ववरोध
यातन स्जहाद को हराम करार हदया और मुसलमानों में तिरका और इस्न्तशार (ववभाजन एवं अराजकता) िैलाया वह ग़ैर
मक़ ु स्ल्लदीन हज़रात थे और आज तक अपनी रववश (ववचध) पर क़ायम हैं | अल्लाह
हम सब की इमान की हहिाज़त िरमाए आमीन |
फफक़ह हनफी जो लगभग बारह लाख (1200000) मासाइल
का मजमुआ (संग्रह) हैं इस अजीमुश्शान फफक़ह के चंद एक
मसाइल पर ऐतराज़ करते हुए ग़ैर मुक़स्ल्लदीन अवाम को यह बताने की कोमशश करते हैं फक फफक़ह, क़ुरान व हदीस के ववरोध है और ग़ैर मुक़स्ल्लद अवाम की जब ु ान पर तो यह एक
चलता हुआ जम ु ला फक "फफक़ह हनफी में िुलां िुलां और ह्या सोज़ मसअला है" इस मलए ज़रू ु रत महसूस हुई फक अवाम को अगाह (सावधान) फकया जाये फक ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन की मज ु तनद
फकताबों में क्या क्या गंदे और हया सोज़ मसाइल (तघनौनी बातें ) भरे पडे हैं | अफसोस ग़ैर मक़ ु स्ल्लद उलमा ने यह Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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मसाइल क़ुरान व हदीस का नाम लेकर बयान फकये हैं | आप यकीन करें
स्जतने हयासोज़ मसाइल (तघनौनी बातें ) ग़ैर
मुक़स्ल्लदीन ने अल्लाह और उसके रसूल सल्लाहू अलैहह व सल्लम से मनसब ू (संबंचधत) फकये हैं फकसी हहन्द,ू मसख, इसाई या यहूदी ने भी अपने मज़हबी पेशवा (धाममसक गुरु) से मनसब ू (संबंचधत) नहीं फकये होंगे | ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन जान बझ ू कर के इन मसाइल को छुपाते रहे हैं | इनकी कोमशश रही है
फक हनफी पर खाह मखाह के इतराज़ फकये जायें ताफक उनके अपने मसाइल अवाम से छुपी रहें |
आप यह मसाइल पढे गें तो हो सकता है फक कानों को हाथ
लगायें और तौबा तौबा करें | शायद यह भी कहे फक ऐसी बातें
मलखने की क्या जरूरत थी लेफकन यह हकीक़त है फक स्जस तेज़ी से इखलाक को बालाए ताक रखते हुए ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन अपना बुकलेट (Literature) िैला रहे हैं हकीक़त को उजागर करना हमारी मजबरू ी है | हदए गए हवाले में कोई गलती हो
तो मुत्तला िरमायें ताफक जल्द से जल्द इजलाह कर दी जाये | दआ करें फक अल्लाह तआला ग़ैर मुक़स्ल्लदीन और दे वबंहदयों ु को हहदायत िरमाएं और उम्मत को इन खास्बबस फितने से बचायें आमीन|
जमात अलहे हदीस दौर जदीद का एक तनहायत ही पुर
फफतन बद अक़ीदा, दहशत गदस , वहशतनाक और बबद्दती
फिरका है स्जसका बुतनयादी मक़सद इजलामी मूल्यों, मसद्धांतों Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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व ववचारों और सहाबा
ए कराम
, ताबईन ए
इज़ाम,
मुहद्दीसीने ममल्लत, िुकहा ए उम्मत, औमलया अल्लाह, आइम्मा ए दीन, मुज्तहहदीन व मुजदद्हदन ए इजलाम और
असलाफ ए सामलहीन के खखलाि एलान ए बगावत, तिसीर ए बबल-राय, अहादीस ए मुबारका की मन मानी तशरीह ख़ुद
साख्ता (अपना बनाया हुआ), अक़ाइद व मसाइल, इंकार ए फफक्ह और आ-इम्मा अरबा ख़ुसूसन इमाम ए आज़म ( )رضی اہلل عنہकी शान में बेअदबी व बकवास इस फफरका का ख़स ु स ू ी पहचान है |
(ग़ैर मुक़ल्ललद)
जमात ए अहले हदीस (ग़ैर मक़ ु स्ल्लद) का मज़हब, क़ुरान
व सुन्नत, असलाफ ए उम्मत, आ-इम्मा ए ममल्लत ख़ास कर के इज्मा ए उम्मत के खखलाफ है | इसी
तरह यह
लोग
अपनी राह
उम्मत
के खखलाफ
इस्ख़्तयार करते हुए सवादे आज़म से कटे हुए हैं, रहमत ए खद ु ावन्दी से महरूम है हजरु अकरम नरू मज ु जसम ()صلی ہللا علیہ وسلم का िरमान है " " ید ہللا علی الجماعۃयानी अक्सररयत पर अल्लाह का
दजते करम है चन ु ांचे यह चगरोह बहुमत (अक्सररयत) से कट कर रसूल ए आज़म ( )صلیہللاعلیہوسلمकी बबशारत से महरूम है |
ग़ैर मुक़स्ल्लहदयत हक़ीक़त में राफ्ज़ीयों (मशया) नेचाररयों,
दहररयों, काद्यानीयों, वहाबबयों, नज्दीयों, तबलीगीयों और मौदद ू ीयों की जमातों का मल्गूबा व माजन ू े मुरक्कब हैं यानी इन तमाम फफरको से ममलकर बना है | Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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ग़ैर मुक़स्ल्लदीन अपने को पहले मुवस्ह्हद फिर कुछ हदनों
के बाद मुहम्मदी कहलाते थे और एक ज़माना के बाद तनहायत जादई ु तरीकों से अहले हदीस हो गए |
ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन ने "अहले हदीस" नाम को इस्ख़्तयार कर
के लोगो को यह बताना चाहा फक इनकी जमाअत वह
जमाअत है जो हदीस पर अमल करती है और तमाम सही हदीस पर अमल करना ही उस का मज़हब है इस बात को खुद ग़ैर मुक़स्ल्लदीन उलमा बार बार दावा के शकल में दह ु राते
रहते हैं यानी एक ग़ैर मुक़स्ल्लद साहब बडे ख़ुश हो कर िरमाते हैं "वह
(अहले हदीस) बुखारी, मुस्जलम की हदीसों को
और तमाम सही हदीसों को काबबले अमल जानते हैं |
(ममल्लत ए मुहम्मदी पष्ृ ट 5)
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन ने अपनी इस बात या अपने इस दावा को
बडे तश्हीरी (Propaganda) अंदाज़ में िैलाया है और बहुत से वह लोग जो ग़ैर मुक़स्ल्लदीन फक मज़हब से सही जानकारी
नहीं रखते इन के इस दावा को सही समझने लगे हैं मौजद ू ा
दौर की इस मशगूल दतु नया में फकसे इतनी िुससत है फक वो फकसी बात की असल हकीक़त मालम ू करने के मलए तहकीक
करे और अगर करना भी चाहें तो ग़ैर मुक़स्ल्लदीन उलमा की फकताबों तक हर फकसी को रसाई (पहुाँच) आसान नहीं |
मलहाज़ा जरूरत थी फक ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन के इस िरे ब से
लोगों को तनकाला जाये और जो असल वाफकया है उस को Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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सामने लाकर ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन के मज़हब की हकीक़त से आगाह कराया जाये |
ग़ैर मुक़ल्ललदीन
►
हक़ीक़त
हाजी इमदादल् ु लाह साहि महाज़जि मक्की
)(علیہ الرحمہ
जो फक
इकाबबर ए दे वबंद मौलवी कामसम नानोतवी, मौलवी रशीद अहमद गंगोही, मौलवी अशरि अली थानवी, मौलवी खलील अहमद अन्बेठ्वी वगैरह के पीर व मुमशसद हैं वहाबबया नस्ज्दया के संबंध में िरमाते हैं फक " ग़ैर मक़ ु स्ल्लद
लोग
दीन
के
रहज़न
(लट ू े रा)
हैं
इनके
इस्ख्तलात (मेल जोल) से इस्ह्तयात (परहे ज़) करना चाहहए | (शमा इमे इम्दाहदया पष्ृ ट 28) ►
िानी
ए
मदिसा
दे विंद
काशसम
नानोत्वी
ने
ग़ैर
मक़ ु स्ल्लदीन को बे वकूि क़रार दे कर मलखा है फक फकसी आमलम को ग़ैर मुक़स्ल्लद दे ख कर जाहहल अगर तकलीद छोड दे तो यूं कहो इल्म था या ना था | अक्ल ए दीन भी दश्ु मनों को नसीब हुई और जाहहलों को जाने दीस्जये| (तस्जिया अल अक़ाइद पष्ृ ट ३5 प्रकामशत दे वबंद)
►
वहाबियों औि दे विंहदयों के मौलवी अशिफ अली थानवी के मल्िूज़ में है फक एक साहब ने अजस क्या फक हज़रत ! ग़ैर मुक़स्ल्लद ब जाहहर तो सुन्नतों पर अमल करने वाले
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मालम ू होते हैं | फरमाया जी हााँ यहााँ तक फक सन् ु नत के पीछे कुछ फराइज़ तक को भी छोड बैठते हैं यह ऐसे मुत्तबा ए सुन्नत हैं| अकाबबर ए उम्मत की शान में गुजताखी करना, क्या यह फजस तकस (छोडना) नहीं ? बहुत ही बे बाक फिरका है | (अिा जातल ु यौममया भाग 5 पष्ृ ट ३0६-३0७)
►
दे विंहदयों के मौलवी मुतज़ त ा हसन ने अपने अखबार अल अदल में मलखा है कौल ए खद ु ा और हदीस ए रसल ू हुक्म है , और हुक्म होता है और दलील और आदम को सजदा करो यह हुक्म अपने नफस के मलए दलील नहीं हो सकता, जो इस हुक्म ए वास्जबल ु तामील होने के मलए दलील है , वह यहााँ मजकूर नहीं इस वजह से इस कौल को (स्जस के साथ वास्जब अल तजलीम होने की दलील स्ज़क्र नहीं की गई) बबला दलील तजलीम करता है तो तकलीद है और शैतान ने इस हुक्म को बबला दलील ना माना ग़ैर मुक़स्ल्लद हो कर काफफर और मुरतद हो गया | (अख़बार अल अदल ७, /09/192७) ितवा ए अहले हदीस पष्ृ ट 90)
►
दारूल उलूम दे विंद का फतवा मौलवी सनाउल्लाह दजस करते हैं फक हाफिज़, कारी, आमलम, जाहहद, मत्त ु क़ी ग़ैर मक़ ु स्ल्लद को इमाम बनाना नहीं चाहहए | (अख़बार अहले हदीस अमत ृ सर 0३/08/1945)
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►
मौलवी िशीद अहमद गंगोही ने मलखा है फक जो उलमा ए दीन की तौहीन और उन पर तअन व
तशनीअ करते हैं
कब्र के अन्दर उनका मुंह फक़बला से फिर जाता है बस्ल्क यह फरमाया फक स्जस का जी चाहे दे ख ले | ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन चाँ फू क आ-इम्मा ए दीन को बुरा कहते हैं इस मलए उन के पीछे नमाज़ पढनी मकरूह फरमाया है | (तजफकरा अल रशीद भाग 2 सतर 21-2३) ►
मौलवी सल ु ेमान नदवी ने फिरका वहाबबया को ग़ाली फफरका करार हदया है | (अहले हदीस अमत ृ सर 2६/05/1944 पष्ृ ट 5)
►
दे विंहदयों के शैख़अल इस्लाम मौलवी हुसैन अहमद मदनी के संबध दारुल उलम ू दे वबंद में ज़ेरे तालीम ग़ैर मुक़स्ल्लद वहाबी छात्र ने वहाबी मौलवी अबदल ु मुबीन मंजर को ख़त मलखा फक "मौलाना मदनी अपनी तकरीरों में कहते हैं फक उन का (वहाबबयों का) वजद ू शैतान से हुआ
है यह नस्जस हैं | (अख़बार अहले हदीस हदल्ली
कॉलम ३ ,15/04/1954) ►
दे विंहदयों के मदिसा दे विंद के मफ़् ु ती मौलवी अजीजिु िहमान मलखते हैं फक अक्सर ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के अक़ाइद भी ख़राब होते हैं आ-इमा ए दीन पर खुसस ू न तअन करना, इमाम ए हुमाम हजरत अबू हनीिा
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)(رضی ہللا عنہ
पर
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उनका मशआर (उनकी पहचान) हैं और रवाफिज़ (मशओं) की तरह सलि सामलहीन को तअन कर के अपना दीन व इमान ख़राब करते हैं | (अहले हदीस ►
अमत ृ सर
2६/0६/1914 पष्ृ ट 2)
दे विंदी लोगों के मौलवी मुहम्मद थानवी भी वहाबीयों के संबंध में मलखते हैं ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन वहाबीयों का अक़ीदा है फक आ-इम्मा अरबा में से फकसी एक की तकलीद करना मशकस है और जो वहाबीयों के मुखामलफत करते हैं वह
भी मश ु ररक हैं | वहाबी अहल ए सन् ु नत व जमाअत
को क़त्ल करना और उनकी औरतों को क़ैद कर लेना जाइज़ समझते हैं इस के इलावा और दीगर अक़ाइद ए िासीदा भी हैं फक हम तक सक् ु का लोगों के ज़ररए पहुंचे हैं और अक़ाइद तो हम ने उन से खुद भी सन ु े हैं वह एक खारजी फिरका है | (हामशया तनसाई शरीि भाग 1 पष्ृ ट ३६0 प्रकामशत हदल्ली) ►
सईदल ु हक़ फी तख़रीज जाअलहक़ में हैं फक " भारत में 1245 हहजरी में यह नया फफरका
(ग़ैि मक़ ु ज़ल्लद)
जाहहर हुआ
स्जस के बानी अबदल ु हक़ बनारसी थे यह लोग तक़लीद को मशकस कहते हैं और मज़ाहहबे अरबअ को मश ु ररक फिरका कहते हैं |
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(सईदल ु हक़ फी तख़रीज जाअल हक़ पष्ृ ट 4३)
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मनी (वीयत) पाक है औि खाना भी जाएज़ ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के नज़दीक मनी (वीयस) पाक है और खाना
भी जाएज़ है जैसा फक मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: "मनी हर चंद पाक है " (अिुसल्जादी फारसी 10)
मनष्ु य फक वीयस के नापाक होने की कोई दलील नहीं आई| (बदरु ू र अहला 15)
दोनों (परुष और महहला) की वीयस पाक है | (अल रौज़तुन नद्या
भाग 1 पष्ृ ट 1३)
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मारुफ ग़ैर मक़ ु स्ल्लद आमलम अल्लामा वहहदज् ु ज़मा खान
मलखते हैं: "मनी (वीयस) खाह गाढी हो या पतली, खुश्क (सुखा) हो या तर (भीगा) हर हाल में पाक है "| पष्ृ ट 49)
(नुज़ुलुल अबरार भाग 1
और नामवर ग़ैर मक़ ु स्ल्लद आमलम मोलाना अबल ु हसन
मुहीउद्दीन मलखते हैं: "मनी (Sperm) पाक है और एक कौल में खाने की भी इजाज़त है "| (फफक़ह महु म्महदया भाग 1 पष्ृ ट 41)
हिप्पणी: कुज़ल्फयां िनायें, कस्िर्त जमायें या आइस क्रीम
िनायें ग़ैि मुक़ज़ल्लद मज़े उड़ायें |
नापाक के नसीब में नापाक ही होती है अल्लाह तआला ने
दर अजल ग़ैर मुक़स्ल्लदों को यह सज़ा दी है की वह मुअतबर Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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(पववत्र) खाना स्जस पर कुरान शरीि, दरू ु द शरीफ, कामलमा शरीफ पढी गई हो वह खाना उनको नसीब न हो क्यूंफक इन ख़बीसों के नज़दीक यह खाना मुअतबर (पववत्र) नहीं है
शमत गाह (योनन) की िति ु त (पानी/िस) पाक
ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन के नजदीक महहला की शमस गाह (योतन) की
रतुबत (पानी/रस) पाक है जैसा फक मशहूर व मारुफ ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम वहीदज् ु जामा खान ने मलखा है : "महहला की शमस गाह (योतन) की रतब ु त पाक है " (कन्जुल हकायक पष्ृ ट 1६)
जब बच्चा महहला की योतन से बहर तनकले और इस पर
योतन फक रतूबत (पानी/ नमी) हो तो वह भी पाक है |
(फफकाह मुहम्महदया पष्ृ ट 2३)
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वहाबी मौलववयों को सझ ू ी फक हम तो निसानी ख्वाहहशात
के मुक़स्ल्लद हैं | हम से इतने हदन कैसे सब्र हो सकता है
मलहाज़ा अपना उल्लू सीधा करने के मलए अकाबबर ए वहाबबया
ने हदीस नबवी की मख ु ामलफत करते हुए यह कहना शरू ु कर हदया फक है ज़ की कोई मुद्दत नहीं |
है ज़ की कोई मद् ु दत नहीं
वहाबबयों के मज ु तहहद क़ाज़ी शौकानी ने मलखा है फक है ज़
(माहवारी/ मामसक धमस) की कम और ज़यादह हदनों की कोई मुद्दत (Period) नहीं| (हहदयतुल मेहदी भाग ३ पष्ृ ट 50)
है ज़ (मामसक धमस) की मद् ु दत (Period) नहीं | अख़बार ए अहले
हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 1३, 9 अप्रैल 19३७)
इमामुल वहाबबया वहीदज् ु जमा ने मलखा है फक जमाना ए है ज़
में काला (मसयाह) रं ग के खन ू के इलावा फकसी और रं ग का खन ू है ज़ नहीं | (हहदय्यतुल मेहदी भाग ३ पष्ृ ट 52)
ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन महहला
है ज़ (माहवािी) से कैसे पाक हो मारूि ग़ैर मक़ ु स्ल्लद आमलम अल्लामा वहहदज् ु ज़मा ग़ैर
मुक़स्ल्लद औरतों को है ज़ (माहवारी) से पाक का तरीका बाते
हुए मलखते हैं: "महहला जब है ज़ से पाक हो तो दीवार के साथ पेट लगा कर खडी हो जाये और एक टांग इस तरह उठाए जैसे कुत्ता वपशाब करते वक़्त (समय) उठता है और कोई रोई Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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के गाले
िुजस (योतन) के अन्दर भरे इस तरह वह परू ी पाक
होगी"| (लुगातुल हदीस)
हिप्पणी: ग़ैि मक़ ु ज़ल्लद का अजीि व गिीि नुस्खा है ग़ैि मक़ ु ज़ल्लद तजििा कि के दे खें |
है ज़ (माहवािी) से पाकी के शलए खुशिू का प्रयोग
मारूि ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मौलवी अबुलहसन मोही
उद्दीन मलखते हैं: "हाईज़ा है ज़ से पाक हो कर गज ु ल कर ले
फिर रूई की धज्जी के साथ खुशबू लगाकर शमस गाह (योतन) के अन्दर रख ले" | (फफक़ह मुहम्महदया भाग 4 पष्ृ ट 22)
हिप्पणी: जो क़ब्र को खश ु िू लगाये वह क़ब्रपिस्त जो शमतगाह को खुशिू लगाये वह शमतगाह पिस्त |
औित का मज़स्जद में आना जाना अल्लामा वहहदज् ु ज़मा मलखते हैं: जन् ु बी नापाक आदमी हाईजा
औरत को मस्जजद में आने जाने की इजाज़त है वहां ठहरना ना चाहहए | (हदीयतल ु मेहदी पष्ृ ट 5७)
आगे मलखते हैं फक हाईजा औरतों और जनाबत (नापाकी) वाले लोगो को कुरान पढना जायज़ है | (हदीयतुल मेहदी पष्ृ ट 58)
औित की इमामत ग़ैर मुक़स्ल्लदों का मज़हब है फक औरत मदस की इमामत
कर सकती है | (अरिुल जावी पष्ृ ट ३७) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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हज़रत जाबबर िरमाते हैं फक मैं ने रसल ू ए आज़म को
ममम्बर पर यह िरमाते हुए सुना फक हरचगज़ कोई औरत फकसी मदस की इमामत न करे | (इबन ए माजा )
वहाबियों ! तम् ु हारे अकाबबर फकतने अजीब मसाइल तनकाल
कर तुम्हें लुत्फ अन्दोज़ होने के मौक़ा दे ते हैं फक नमाज़ पढते
हुए भी इस्न्तशार हो और आनंहदत (लत्ु फ अन्दोज़) हो जब वहाबबन इमाम होगी और उसके पीछे वहाबी हज़रात मक् ु तदी हूाँ
तो जब इन की इमाम रूकू और सजदे में जाएगी तो वहाबबयों में क्यूाँ ना इस्न्तशार होगा और क्यूाँ न लुफ्त अन्दोज़ होंगे |
औितों का मदत इमाम नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक इस बात से
रोकना फक मदस उन औरतों की इमामत ना करे स्जन के साथ मदस न हो इसके अदम जवाज़ पर हमें कोई दलील नहीं| (अिुसल जावी पष्ृ ट ३७)
ना िाशलग िच्चे की इमामत
नवाब नरु ू ल हसन भोपाली ने मलखा है फक ना बामलग बच्चे
की इमामत सही है | (अिुसल जावी फारसी पष्ृ ट ३७)
ग़ैि मक़ ु ज़ल्लदीन औितों की नमाज़
मशहूर ग़ैर मक़ ु स्ल्लद आमलम नवाब नरु ू ल हसन खान मलखते हैं: "नमाज़ में स्जसकी शमस गाह (योतन) सब के सामने नम ु ाया (ज़ाहहर) रही उसकी नमाज़ सही है "|(अिुसल जादी पष्ृ ट 22) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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नंगे हो कि नमाज़ पढ़ना मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: "महहला तनहा (अकेली) बबलकुल नंगी नमाज़ पढ सकती है | महहला दोसरी महहलाओं के साथ सब नंगी नमाज़
पढें तो नमाज़ सही है | ममयां बीवी दोनों अकट्ठे मादर जाद नंगे (Connatural Naked) नमाज़ पढें तो नमाज़ सही है | महहला अपने बाप, बेटे, भाई, चाचा, मामा सब के साथ मादरजाद नंगी नमाज़ पढे तो नमाज़ सही है "| (बदरु ू ल अहलह पष्ृ ट ३9)
यह ना समझें कक यह मजिूिी के मसाइल होंगे |
अल्लामा वहीदज् ु जामा पररभावषत (वज़ाहत) करते हैं " फक
कपडे पास होते हुए भी नंगे नमाज़ पढें तो नमाज़ सही है "| (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पष्ृ ट ६5)
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नमाज़ में चलने से नमाज़ नहीं िूिती
वहाबबयों के इमाम मौलवी वहीदज् ु जामा खां ने मलखा है फक
अगर घर में कोई ना हो और जरूरत पडे तो नमाज़ में चल कर दरवाज़ा खोला जा सकता है इस चलने से नमाज़ पढने वाले की नमाज़ में कोई िकस नहीं पडेगा | (कन्जुल हक़ा इक पष्ृ ट 2७)
कािा शिीफ़ की तिफ मुंह किना
वहाबबयों के इमाम मौलवी अबुल हसन ने मलखा है फक
संभोग के समय फक़बला (काबा शरीफ) की तरि मुंह करना जाईज़ है भले इमारतों में हो या मैदान में | (फफक़ह मुहम्महदया पष्ृ ट 11
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पायखाने के समय फक़बला (काबा शरीि) को मह ु ं और पीठ
करना जायज़ है और अगर कोई आढ न हो तो कुछ लोग कहते है फक आढ ना भी हो तो जाईज़ है |
(फफक़ह मुहम्महदया पष्ृ ट 10-11)
दे वबंहदयों के मौलवी अशरि अली थानवी ने भी फतवा
हदया है फक इजतंजा के समय फक़बला (काबा शरीि को मुंह करना जाइज़ है | (इमदादल ु ितवा भाग 1 पष्ृ ट ३)
काबा शरीि के जातनब पांव (पैर) कर के सोना जायज़ है | (फतवा ए सत्ताररया भाग 01 पष्ृ ट 152)
कुरान पाक को तअज़ीमन बोसा दे ना (चम ू ना) जाएज़ नहीं
नीज़ बे वज़ू कुरान पाक को छूना जाएज़ है |
(फतवा ए सत्ताररया भाग 01 पष्ृ ट 182)
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यह है वहाबबयंु दे वबंहदयों का मज़हब मगर हमारे आक़ा
( )ﷺका िरमान है फक जब तुम पखाना को जाओ तो (पखाना
करते समय ) फक़बला (काबा शरीि) की ओर मुंह न करो और न पीठ करो |
(ममश्कात शरीि पष्ृ ट 42)
खड़े होकि पपशाि किना जायज़ है वहाबबयों के मौलवी अबल ु हसन ने मलखा है फक "अगर
कोई खडे होकर पेशाब करे तो बबला कराहत जाईज़ है "|
(िैजुल बारी भाग 1 पष्ृ ट 121)
मौलवी वहीदज़ ु ज़मा ने भी तयजसरुल बारी में मलखा है फक
"खडे होकर और बैठ कर दोनों तरह वपशाब करना जायज़ है "| (तयजसरुल बारी भाग 1 पष्ृ ट 12६)
वहाबी मौलवी तो खडे हो कर पेशाब करने के बबला कराहत
जायज़ क़रार दे रहा है मगर हुज़रू ( )ﷺने इस को प्रततबंचधत फरमाई है जैसा फक हदीस शरीि में है फक खडे होकर पेशाब न करो | (ममश्कात शरीि पष्ृ ट 42, ततमसज़ी पष्ृ ट 4)
शमे नबी खौफे खद ु ा यह भी नहीां वह भी नहीां पानी में पेशाि मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है फक अगर कसरत
से ममक़दार में पानी जमा हो और उस में थोडी सी ममक़दार में
पेशाब िाल हदया जाये तो वह पाक रहे गा | (अिाज़ातुल यौममया भाग 8 पष्ृ ट 158)
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ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन का िहन औि िेिी से
आला ए तानासल ु (शलंग) को हाथ लगवाना
ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन के शैखल ु कुल फिल कुल ममयां नज़ीर
हुसैन दे हलवी मलखते हैं: "हर शख्स अपनी बहन, बेटी, बहु, से अपनी रानों की मामलश करवा सकता है और बवक्ते ज़रूरत अपने आलाए तानासुल (मलंग) को भी हाथ लगवा सकते हैं" (ितवा नज़ीररया भाग ३ पष्ृ ट 1७६)
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पीछे के िास्ते सुहित (संभोग) किना ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन के मलए जायज़ है और गुजल भी वास्जब नहीं
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: "शमस गाह (योतन) के अंदर झांकने के मकरूह होने पर कोई दलील नहीं" | (बदरुू ल अहला पष्ृ ट 1७5)
आगे मलखते हैं: “रानुं में सुहबत (संभोग) करना और दब ु ुर (चत ू ड) में सह ु बत करना जायज़ है कोई शक नहीं बस्ल्क यह सुन्नत से साबबत है ”
(बदरु ु ल अहला पष्ृ ट 15७) استغفرہللا ۔ معاذ ہللا
और मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम वहीदज् ु जामा मलखते हैं: “बीवीयुं और लोंिीयूं के ग़ैर फफतरी मुकाम (पीछे के मक ु ाम) के इस्जतमाल पर इनकार जाएज़ नहीं”| आगे मलखते हैं:
(हहदयुल मेहदी भाग 1 पष्ृ ट 118)
“दब ु रु (पीछे के मक ु ाम/ चत ू ड) में सह ु बत
(संभोग) करने से गुसल भी वास्जब नहीं होता”
(नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पष्ृ ट 2३)
आदमी के पैखाने के जथान में संभोग फकया तो ग़ज ु ल
वास्जब नहीं |
(नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पष्ृ ट 24)
जानवरों की दब ु रु में संभोग फकया तो ग़ज ु ल वास्जब नहीं | (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पष्ृ ट 2३)
मुदास औरत से स्जमा (संभोग) फकया तो ग़ज ु ल फजस नहीं | (नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पष्ृ ट 2३)
हिप्पणी :ज़जंदा तो ज़जंदा मुदों को भी नहीं छोड़ा | Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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अगर कोई औरत लकडी या लोहे का मलंग बनकर प्रयोग करे तो ग़ज ु ल फज़स नहीं |
(नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पष्ृ ट 2३)
जानवर चौपाए (पश)ु के पेशाब गाह में कोई परुष अपना
मलंग दाखखल करे तो हमारे (अहले हदीसों) के नज़दीक हक बात यह है फक उस शख्स पर ग़ज ु ल नहीं है | हहदयातुल मेहदी भाग ३ पष्ृ ट 24)
हिप्पणी: इन िातों से पता चलता है कक इन ग़ैि
मुक़ज़ल्लदों के यहााँ ऐसी गंदी औि निनौनी हिकतें की जाती हैं|
फुलां जगह (दि ु ुि) में िख लो
दे वबंदी मौलवी मलखते हैं फक जब वह शख्स शाह साहब के ख़त लेकर उस के पास पंहुचा तो गज ु ताख ने उस ख़त को मोड कर एक बत्ती सी बना दी और कहा ले जाओ | शाह साहब से कहो इस को अपनी िुलां जगह (दब ु रु ) में रख लो | गाली दी यह शख्स भी अजीब था यह सीधा शाह साहब के पास वापस
आया और जो अल्िाज़ उस ने कहे थे नक़ल कर हदए |
िरमाया अगर में जानता मेरे उस अमल से तेरा काम हो जाएगा तो मैं इस में भी तामुल (सोच-ववचार) ना करता मगर में
जानता हूाँ फक यह लग्व (बे हूदा) हरकत है | (मजमलसे हकीमुल उम्मत पष्ृ ट
259)
वहाबबयों के इमाम मौलवी वहीदज् ु जामा ने एक अजीब व ग़रीब
मसअला ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन के मलए यह भी बयान फकया है फक: “खुद अपना आला ए तनासल ु (मलंग) अपनी ही दब ु ुर (चूतड) में दाखखल फकया तो गज ु ल वास्जब नहीं”| Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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(नुज़ुलुल अबरार भाग 1 पष्ृ ट 24)
हिप्पणी: यह कैसे मम ु ककन है ग़ैि मक़ ु ज़ल्लदीन तजिात
(अनुभाव) कि के हदखायें |
अपनी मााँ से ज़ज़ना एक शख्स अपनी मााँ से स्ज़ना करता था और कहता था फक
जब में पूरा इस के अन्दर था और अब अगर मेरा एक अज़व (हहजसा) अंदर चला गया तो क्या हज़स है तो मौलवी अशरि अली थानवी क्या कहते हैं जकैन पेज दे खें | (मल्िूज़ाते उम्मत पष्ृ ट ६७)
हकीमुल
ग़ैि मक़ ु ज़ल्लदीन के नज़दीक ज़ज़ना किना जायज़ है
नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने तो चूतड और रानो वगैरह
से आनंद लेने की इजाज़त दी है मगर इसके बेटे मौलवी नरु ू ल Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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हसन भोपाली ने तो मजबरू न स्ज़ना (व्यमभचार) को भी जायज़
क़रार दे हदया है जैसा फक मलखा है "जो शख्स स्ज़ना पर मजबूर फकया जाये इस पर हद वास्जब नहीं क्यूंफक अहकामे शर इया इस्ख़्तयार से मक़ ु य्यद है "| (अरिुल जावी पष्ृ ट 215)
नफस का पुजाररयों ने तो ग़ैर मुक़द्द्मलदीन मदस और
औरतों के मलए सारे दरवाजे खोल हदए जैसा फक मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान मलखते हैं: “स्जनको स्ज़ना पर मजबूर फकया जाये उसको स्ज़ना करना जायज़ है
और कोई हद वास्जब नहीं | महहला की मजबूरी तो ज़ाहहर है |
पुरूष भी अगर कहे फक मेरा इरादा ना था मझ ु े कुवते शहवत
(Sexual Excitation) ने मजबर ू फकया तो मान मलया जाएगा
अगरचे इरादा स्ज़ना का न हो” | (अिुसल जादी पष्ृ ट 20६)
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मााँ, िहन, औि िेिी से ज़जना की इजाज़त मौलवी वहहदज् ु ज़मा ने वहाबबयों के मलए अपनी मााँ, बहन,
बेटी से स्जना की खल ु ी इजाज़त दे दी है जैसा फक मौलवी
साहब मलखते हैं: अगर फकसी ने मुहरीमत (मााँ, बहन, बेटी अत्यादी) से स्ज़ना फकया तो उसको हक ए महर की ममजल अदा करना पडेगा | (नुज़ूलुल अबरार भाग 2 पष्ृ ट ३1)
ससिु का िहु से ज़जमा किना
मशहूर ग़ैर मक़ ु स्ल्लद मौलवी वहहदज् ु ज़मा ने मलखा है फक और इसी तरह कोई शख्स ने अपने बेटे की बीवी (बहु) से स्जमा (संभोग) फकया तो उसके बेटे पर औरत हराम नहीं होगी| (नज़ ु ल ू ुल अबरार भाग 2 पष्ृ ट 28)
ग़ैर मक़ ु स्ल्लद मौलववयों ने मााँ, बहन, बेटी और बहु अत्यादी से स्जमा (संभोग) की जो इजाजत दी है आप ने पढ ली है यह मसलमसला यहााँ तक ही नहीं बस्ल्क अपनी सास से भी स्जमा की इजाज़त इन लफ्जों में दे रखी है |
सास से ज़जमा मशहूर ग़ैर मक़ ु स्ल्लद मौलवी वहहदज् ु ज़मा ने मलखा है फक और अगर इसी तरह कोई शख्स ने अपने सास से स्जमा (संभोग) फकया तो उस पर उसकी औरत हराम नहीं होती | (नज़ ु ल ू ुल अबरार भाग 2 पष्ृ ट 28)
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सगी नानी औि दादी से ननकाह जायज़ है मौलाना सनानुल्लाह अमत ृ सरी ने एक सवाल के जवाब में
दादी, और नानी के साथ तनकाह करने को मब ु ह और जायज़ कर हदया और सौतीले भांजा की पोती से तनकाह जायज़ कर
हदया | (फकताब अल तौहीद व अल सुन्नाह पष्ृ ट 2७३ / अख़बार
अलहे हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 4, 11 रमज़ान 1३28 हहजरी) अलाम खखस्ल्कल्लाह पष्ृ ट ३, 10६ )
सौतेली मााँ से ननकाह इमाम अल वहाबबया सनाउल्लाह अमत ृ सरी ने अख़बार ए
अहले हदीस में एक प्रशन का उत्तर दे ते हुए सौतीली मााँ से तनकाह जायज़ क़रार हदया मलखते हैं फक मेरे नाफकस इल्म में
इसकी हुरमत की कोई दलील नहीं ममलती| (अख़बार ए अहले हदीस पष्ृ ट 12, 14 अप्रैल 191६)
साली से ज़ज़ना इमामल ु वहाबबया मौलवी सनाउल्लाह ने सवाल का जवाब
दे हुए मलखते है फक साली से स्ज़ना करने से मन्कूहा (बीवी) हरम नहीं होती" | (अख़बार ए अहले हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 10, 2६ जनवरी
1912)
आप हज़िात वहाबी अकाबबर की नफस परजती और शहवत
ए ज़नी के इन अजीब अंदाज़ से बहुत है रान होते होंगे | है रानगी फक कोई बात नहीं दर हक़ीक़त वहाबी अकाबबर ने Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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अपनी फकताबों में कुछ ऐसे मसाइल की तालीम और तरगीब अपने वहाबबयों को दी है स्जस से निसानी जज़्बात उभरते हैं|
मुतआ(अस्थायी पववाह)जाएज़ है
वहाबबयों के सबसे बडा इमाम मौलवी वहीदज् ु जामा ने मलखा
है फक “मुतआ (कुछ समय के मलए औरत से तनकाह करना)
की अबाहत (जाएज़ होना कुरान की कतई आयात से साबबत है ”| (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पष्ृ ट ३३)
वहाबबया नस्ज्दया के इमाममया पाटी मखु खया मौलवी अबदल ु
वह्हाब और अबदज ु सत्तार दे हलवी के नजदीक मुतआ जाएज़ है | (अख़बार मुहम्मदी हदल्ली पष्ृ ट 15, 1 जनवरी 1941 ईजवी)
ज़जस कफ़िका के मसाइल िे हयाई औि निनौनी हो उस
कफ़िका के िािे में आप खुद ही ज़िा सोच लें | सहीफा अहले हदीस में है फक .....
المتعۃحرامالییومالقیامۃ
मुतआ फकयामत तक हराम है |
(सहहिा अहले हदीस कराची 1६ सफर 1३8७ हहजरी )
र्शया लड़की के साथ ननकाह दे वबंहदयों के मुफ़्ती और इमाम मौलवी फकिायतुल्लाह
दे हलवी ने मलखा फक मशया लडकी के साथ सन् ु नी मदस का तनकाह दरु ु जत है | (फकफायतुल मुफ़्ती भाग 1 पष्ृ ट 2७8)
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ग़ैर मुकललीदीन का
माूँ, बहन, बेटी का ल्िस्म (शरीर) दे खना मशहूर ग़ैर मक़ ु स्ल्लद आमलम नवाब नरु ू ल हसन खान मलखते हैं: " मााँ, बहन, बेटी वग़ैरह फक क़बलो दब ु रु (योतन एवं चत ू ड) के मसवा परू ा बदन दे खना जायज़ है "
(अिुसल जादी पष्ृ ट 52)
हिप्पणी: यह मसाइल पढ़कि हमें शमत आती है ना जाने ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन इन पि कैसे अमल किते होंगे |
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ग़ैि मुक़ज़ल्लद महहला का
दाढ़ी वाले परू ु ष को दध ू पपलाना
वहाबबयों के मि ु स्जसर और मह ु द्हदस मौलवी वहीदल् ु ज्ज़मा
है दरबादी ने मलखा हैं:"जायज़ है फक महहला ग़ैर पुरूष को
अपना दध ू छाततयों से वपलाये अगरचे वह परू ु ष दाढी वाला होता फक एक दस ु रे को दे खना जायज़ हो जाये"| (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पष्ृ ट ७७)
वहाबबयों के मज ु द्हदद काजी शोकानी ने मलखा है जाइज़ है
दध ू वपलाना बडी उम्र वाले को अगरचे दाढी रखता हो वाजते जवाज़ नज़र के | (अल दररुल बबह पष्ृ ट ३4) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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हिप्पणी: हो सकता हो फक वहाबी मौलववयों ने इसमलए औरतों का ग़ैर मदों को दे खना जायज़ क़रार हदया है ताफक ग़ैर मुक़स्ल्लदीन औरतें अपनी पसंद के मदों को ढूध वपला लें और इमामल ु वहाबबया सनाउल्लाह अमत ृ सरी ने भी इसमलए औरतों को मैक अप करने और सरों के बालों पर िूल झाडडयााँ बनाने की इजाज़त दी है ताफक अपनी बनावट से मदों को क़ाबू कर
लें | याद रहे फक यह मसाइल क़ुरान व हदीस के नाम पर बयान फकया जा रहा है |
औित के शलए ग़ैि मदत को दे खना वहाबबयों के मि ु स्जसर और मुहद्हदस मौलवी वहीदल् ु ज्ज़मा
ने मलखा हैं:" और औरत का ग़ैर आदमीयों को दे खना जायज़ है और हदीस फक नबी पाक मत ु हहरात
ٰ )رضی ہللا (تعالی عنہن
()صلی ہللا علیہ وسلم
ने अपनी अज्वाज ए
को फरमाया फक अबदल् ु लाह बबन मक्तम ू
तो नाबीना (आाँखों में रौशनी न होना) है क्या तुम भी नाबीनी हो | यह नबी पाक
( )صلیہللاعلیہ وسلمकी
अज्वाज ए मत ु हहरात
ٰ )رضیہللا (تعالی عنہن
के मलए ही ख़ास था |" (नुजूलुल अबरार भाग 2 पष्ृ ट ७4)
वहाबी मौलवी ने वहाबी औरतों को अजनबी और ग़ैर
मह ु ररम मद ु ों को दे खने और उनका नज़ारा करने की इजाज़त हदीस ए मुजतफा
()صلی ہللا علیہ وسلم
की फकस मक्कारी से मुखामलित
करते हुए दी है और शैतान मरदद ू की शैतातनयत की कैसे परु ज़ोर समथसन की है | हज़रत अली ( )کرم ہللا وجہہ الکریمनबी करीम
()صلی ہللا علیہ وسلم
की खखदमत में
हास्ज़र हैं फक आप ने सब से दरयाफ्त फरमाया फक बतलाओ Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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औरत के मलए कौन सी बात सबसे बहतर (अच्छा) है ? इस पर तमाम सहाबा खामूश रहे और फकसी ने कोई जवाब न हदया हज़रत अली
()کرمہللا وجہہ الکریم
हज़रत फाततमा ज़हरा
िरमाते हैं फक मैं ने वापस आकर
ٰ )رضی ہللا (تعالی عنہا
सब से बहतर क्या बात है ? उन्हों
ٰ )رضی ہللا (تعالی عنہا
से पछ ू ा फक औरतों के मलए
ने फरमाया फक न वह ग़ैर मदों को दे खे
और न ग़ैर मदस उन्हें दे खें |
मौला अली मुस्श्कल कुशा
ने यह जवाब हुज़रू से अजस फकया तो हुज़रू ने खश ु हो कर इशासद फरमाया फक वह ٰ )رضیہللاमेरे हदल के टुकडे हैं | (दार अल क़ुतनी) (تعالی عنہا ( )کرم ہللا وجہہ الکریم
सह्हा ए मसत्ता में से ततमसज़ी शरीि और अबू दाऊद शरीि
में हदीस शरीि है फक कुछ उम्माहातुल मोमीन हजरू
()صلیہللا علیہ وسلم
ٰ )رضی ہللا (تعالی عنہن
की खखदमत में थीं | उसी वक़्त इबन ए मक्तम ू
ٰ )رضی ہللاको आए | हुज़रू ( )صلی ہللا علیہ وسلمने अज्वाज ए मुतहहरात (تعالی عنہن पदास का हुक्म फरमाया उन्हों ने अजस की फक वह तो नाबीना
हैं फरमाया तम ु तो ना बीना नहीं हो |
मौलवी नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक पदास
वाली आयत ख़ास नबी पाक मुतहहरात
()صلی ہللا علیہ وسلم
की अज्वाज ए
के बारे में वाररद (नास्ज़ल हुई है ) उम्मत की दोसरी औरतों के वाजते नहीं है | (बुन्यनुल मसूस पष्ृ ट 1६8) ٰ )رضی ہللا (تعالی عنہن
खुद बदलते नहीं क़ुरान बदल दे ते हैं
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िे पदत गी की इजाज़त मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है फक एक अंग्रेज़ ने
सवाल फकया था बमअ अपनी अहमलया (अपनी बीवी के साथ)
के मुसलमान हो गया था फक हम हहंदज ु तान आना चाहते हैं
और हमारी मेम (बीवी) भी हमराह (साथ) होगी और वह ना पदास करे गी | मैं ने मलख हदया आप के मलए इजाज़त है | (अिाज़ातुल यौममया भाग 8 पष्ृ ट 25६)
दे विंदी मि ु ज़ल्लगे आज़म की िीवी फ़ैशन के शलए ब्यि ू ी पालति में
मारूि दे वबंदी मुबस्ल्लग मौलवी ताररक जमील की बीवी
और भाभी फैशन के मलए एक बयूटी पालसर पर गयीं वहां पर उनके ज़ेवेरात चोरी हो गई | (रोजनामा नवाए वक़्त लाहोर 25 जुलाई 200७ – रोजनामा जंग लाहोर 28 जुलाई 200७)
नज़दी वहाबबन औरतें क़ब्रुजतान जाया करें गी (फतवा अल
बातनया पष्ृ ट ३04-३05)
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ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन का
अपनी िेिी से ननकाह (शादी) मशहूर ग़ैर मक़ ने ु स्ल्लद आमलम मौलवी वहहदज् ु ज़मा मलखा है फक और अगर फकसी औरत से स्जना फकया हो तो उस मदस के मलए मस्ज्नयााँ की मााँ और बेटी जाएज़ है | (नज ु ल ू ल ु अबरार भाग 2 पष्ृ ट 21)
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान मलखते हैं: "अगर फकसी महहला से ज़ैद ने स्ज़ना फकया और उसी से लडकी पैदा हुई तो ज़ैद को अपनी बेटी से तनकाह कर सकता है | (अिुसल जादी पष्ृ ट 109)
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ग़ैि मुक़ज़ल्लद पुरूष के शलए
चाि से अधीक शादीयों की इजाज़त मशहूर ग़ैर मक़ ु स्ल्लद आमलम नवाब मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: "चार की कोई हद नहीं (ग़ैर मुस्क्ल्लद मदस ) स्जतनी औरतें चाहे तनकाह में रख सकता है " | (ज़िरुल अमानी पष्ृ ट 141/ (अिुसल जादी पष्ृ ट 115)
भािती औितें हूिें हैं
दे वबंदी वहाबी के मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है
फक "मैं तो कहा करता हूाँ फक हहन्दज ु तानी औरतें हूरें हैं (अिाजातुल यौममया भाग 4 पष्ृ ट 220)
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नाम ननहाद हूरूं से ज़ज़ना
एक हाफिज़ जी अंधे थे हरीस थे उन्हों ने कहीं सुन मलया
फक ख़द ु ा ए तआला ने जन्नत में मोममनीन के मलए हूरें पैदा की हैं बस हर वक़्त वह (हाफिज़ जी) दआ फकया करते थे फक ु
ए अल्लाह हूरें भेज ! हूरें भेज ! बाज़ारी औरतें बडी शरीर (बदतमीज) होती हैं | कहीं उन्होंने सुन मलया, (उन बाज़ारी औरतों ने) आपस में मशवरा फकया फक चलो (हम) हाफिज़ को हूरों से तौबा करा दें | सब जमा हो के आयीं, आप (हाफिज़ साहब) ने खटका सुन कर पुछा कौन ? औरतों ने कहा हूर | (हाफिज़ जी) बडे खुश हुए फक बहुत हदनों में मेरी दआ कुबूल हूई | खैर ु
मुंह काला फकया (स्ज़ना फकया) | दस ू री (बाज़ारी औरत) आई
पछ ू ा कौन हूर कहने लगी फिर सही | उस से भी मंह ु काला फकया | गज़स बहुत सी (वह औरतें ) थी | उनका भी कई वषस का जोश था | आखख़र कहााँ तक वह पूरा हो चूका तो और (औरत)
आई पूछा कौन, कहा हूर | गाली दे के (हाफिज़ जी) कहने लगे | सब हूरें मेरी ही फकजमत में आ गयीं | सो हज़रत स्जस तरह से वह हूर से घबरा गए उस तरह तम ु नरू से घबराते |
(बरकाते रमज़ान मश्मूला खत्ु बाते हकीमल ु उम्मत भाग 1६, पष्ृ ट 248 -हफ्ते अख्तर ६/105)
शमत गाह (योनन) का महल (स्थान) काइम (ििक़िाि) िखने का नुस्खा
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के शैखेकुल फिलकुल ममयां नजीर हुसैन दहलवी मलखेते हैं: "महहला को ज़ेरे नाि बाल उसतुरे से साफ Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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करना चाहहए उखाड ने से महल (योतन) ढीला हो जाता है "| (फतवा नज़ीररया भाग 4 पष्ृ ट 52६)
मुश्तजनी (हस्तमैथुन) जायज़ है
मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम नवाब नूरुल हसन खान मलखते हैं: अगर गन ु ाह से बचना हो तो मश्ु तज़नी (हजतमैथन ु ) वस्जब है | (अिुसल जादी पष्ृ ट 20७)
मौलवी वहीदज् ु जामा ने भी यही मलखा है फक
कुछ लोगो ने
मश्ु तज़नी (हजतमैथन ु ) को जाएज़ क़रार हदया है और नबी पाक ))صلی ہللا علیہ وسلم
का जो इशासद मुबारक मुश्तज़नी (हजतमैथुन) की
वईद और मम ु ातनअत में है उस को ज़-इि क़रार हदया है | (नुजल ू ुल अबरार)
हिप्पणी: औि आगे जो शलखा है वह
हदल थम के पहढ़ये
िात क़ारिऐन ज़िा
"और बअज़ (कुछ) सहाबा ( )علیہمالرضوانभी फकया करते थे" |
(मआ ु ज़ल्ला) (अिुसल जादी पष्ृ ट 20७)
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एहनतलाम िोकने की तहकीक ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी नवाब मसद्दीक हसन भोपाली मलखते हैं"
अगर दाएाँ रान पर आदम का नाम और बाएं रान पर हव्वा का नाम मलख हदया जाये तो इहततलाम नहीं होता | (अल-दा ए वद-दाए पष्ृ ट 1७9)
एक महहला पपता एवं पुत्र के दोनों के शलए हलाल
ग़ैर मुक़स्ल्लद मौलवी वहहदज् ु ज़मा मलखते हैं: "अगर बेटे ने एक महहला से स्ज़ना फकया तो यह महहला बाप के मलए हलाल
है इसी तरह इसके बरअक्स (ववपरीत) भी" | (नुज़ुलुल अबरार भाग 2 पष्ृ ट 28)
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िाप औि िेिे की मुश्तिक (साझा) िीवी
अल्लामा वहहदज् ु ज़मा मलखते हैं: अगर फकसी ने अपनी मााँ से
स्ज़ना फकया, खाह स्ज़ना कर ने वाला बामलग हो या ना बामलग या क़रीबुल बुलूग, तो वह अपने खाववंद (पतत) पर हराम नहीं हूई | (नज़ ु ल ु ल ु अबरार भाग 2 पष्ृ ट 28 )
हिप्पणी: िहुत खूि ! ननकाह औि ज़ज़ना दोनों की गाड़ी चलती िहे | Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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खून औि क़ै वज़ू नहीं िूिता
नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक वज़ू खून
और क़ै से (अगरचे इसकी ममक़दार फकतनी भी हो) नहीं टूट ता (अिुसल जावी पष्ृ ट 14)
बिला वज़ू औि ग़स् ु ल के कुिान छूना
नवाब मसद्दीक हसन भोपाली ने मलखा है फक स्जस का वज़ू
और ग़ज ु ल न हो ऐसे शख्स को क़ुरान करीम का छूना जाएज़ है | (अिुसल जावी पष्ृ ट 15)
ज़ज़ना की औलाद िांिने का तिीका ग़ैर मक़ ु स्ल्लद मौलवी वहहदज् ु ज़मा ने मलखा है अल्लामा
वहहदज् ु ज़मा मलखते हैं: एक महहला (ग़ैर मुक़स्ल्लदह) से तीन Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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(ग़ैर मक़ ु स्ल्लद) बारी बारी सह ु बत (सेक्स) करते रहे और इन
तीनों की सुहबत से लडका पैदा हुआ तो लडके पर कुरआ अंदाजी (आकवषसत कायस) होगी | स्जसके नाम क़ुरआ (आकवषसत) तनकल आया उसको बेटा ममल जायेगा और बाक़ी दो को यह
बेटा लेने वाला ततहाई हदयत (दे यधन) दे गा | (नुज़ल ु ुल अबरार भाग 2 पष्ृ ट ७5)
गभतशय का चचत्र हाफिज अबदल् ु लाह रोपडी मलखते हैं: रहम मसाना (वपशाब
की थैली / मुत्रशय) और रोदा मुजतक़ीम (पखाना तनकलने की अंतडी) के दरममयान पट् ु ठे की तरह सादा रं ग का गदस न वाला एक अज़व (अंग) है स्जस की शक्ल क़रीब क़रीब उलटी सुराही की बतलाया करते है मगर परू ा नक्शा उसका क़ुदरत ने खद ु
पुरूष के अन्दर रखा है | पुरूष अपनी आलत (मलंग) को उठाकर पैरूं के साथ लगा ले तो आलत मअ खस्ु जसतीने रहम का पूरा चचत्र है "| (तंज़ीम यकुम मई 19३2 पष्ृ ट ६ कालम नम्बर 1) हिप्पणी : ग़ैि मक़ ु ज़ल्लद मौलवी सनाउल्लाह अज़ततसिी इस
पि हिप्पणी किते हैं "चचत्र िना दे ते तो शायद लाभ होता" |
औित की शमतगाह कैसी होती है ???
एक बार भरे मजमा में हज़रत (गंगोही) की फकसी तक़रीर पर एक नो उम्र हदहाती बे तकल्लि ु पछ ू बैठा फक हज़रत जी औरत की शमसगाह कैसी होती है ? अल्लाह रे तालीम, सब हास्ज़रीन ने
गदस नें झुका ली मगर आप मुतलक़ चीं ब चीं ना हुए बस्ल्क बे Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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साख्ता फरमाया फक जैसे गेहूं का दाना | (तस्ज्करतरु रशीद भाग 2 पष्ृ ट 100)
ग़ैि मक़ ु ज़ल्लदीन के शलए िेहतिीन महहला
वहाबबयों के मशहूर व मारूि मौलवी वहहदज् ु ज़मा ने मलखा है : "ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन के मलए (बहतर महहला वह है स्जसकी
िुजस (योतन) तंग हो और शहवत (सेक्सी) के मारे दांत रगड रही हो और जमाअ (संभोग / हमबबजतरी) कराते समय करवट से लेटी हो" | (लग ु ातल ु हदीस भाग ६ पष्ृ ट 428)
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ईदे न का खुतिा
मौलवी मसद्दीक हसन भोपाली मलखते हैं फक ईदे न का
खत ु बा बे वजू जायज़ है | (बदरुू ल अहहल्लह पष्ृ ट ७9)
नमाज़ में लड़का या लड़की को उठाना वहाबबयों की मशहूर फकताब फफक्ह मह ु म्महदया में मलखा है फक लडके और लडकी को नमाज़ में उठाना दरु ु जत है , बराबर है नमाज़ ए फजस हो या नफ्ली और इसी तरह जायज़ है ,
नमाज़ में उठाना हर जानवर पाक का, पररंदे और बकरी का" | (फफक्ह मुहम्महदया भाग 1 पष्ृ ट 14७)
कुत्ते को उठाकि नमाज़
अल्लामा वहहदज् ु ज़मा मलखते हैं: कुत्ते को उठाकर नमाज़
पढने से नमाज़ िामसद नहीं होती | (नुज़ुलुल अबरार पष्ृ ट ३0)
िे नमाज़ काकफ़ि व मश ु रिक है
वहाबबया नस्ज्दया के ररसाला सहीफा अहले हदीस में
मलखा है फक बे नमाज़ शरीअत की रू से काफफर मुशररक है | (सहीफा अहले हदीस कराची पष्ृ ट 19, 1६ मई 195७)
वहाबबयों के मौलवी रिीक खां पसरोरी ने भी मलखा है फक
"बे नमाज़ काफफर है " | (इजलाह अक़ाइद पष्ृ ट 108)
बे नमाज़ का जनाज़ा नहीं (सहीफा अहले हदीस कराची पष्ृ ट
22, 15 जमाद अल सानी 1३७३ हहजरी)
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िे वज़ू पढ़ शलया किो औि
शिाि भी पी शलया किो दे वबंदी मौलवी अपने शैख़ के बारे में मलखते है फक आप
खान साहब के पास तशरीफ ले गए तो रं िी पास बैठी हुई थी और नशा में मजत थे | आप ने खान साहब से फरमाया फक
भाई खान साहब ! अगर तम ु नमाज़ पढ मलया करो तो चार आदमी और जमा हो जाया करें और मस्जजद आबाद हो जाए | खान साहब ने कहा फक मेरे से वज़ू नहीं होता और ना यह दो
बरु ी आदतें छूटती हैं | आप ने फरमाया फक बे वज़ू पढ मलया करो और शराब भी पी मलया करो | (तज़फकरा मशाइख दे वबंद पष्ृ ट 8,9७ – अरवाहे सलासा पष्ृ ट 21६)
अफ़ीम ((Opium) इतनी खा शलया कि हज़रत मौलाना गंगोही से एक शख्स गााँव का रहने वाला
मुरीद होने आया, कहता हैं फक मैं अफीम खाता हूाँ | फरमाया अच्छा यह बतला फकतनी खाता है ? इतनी मेरे हाथ पर रख दे | चन ु ांचे उस ने एक गोली बना
कर हाथ पर रख दी | हज़रत मने उस का एक हहजसा तोड
कर उस को खखला हदया फक इतनी खा मलया कर | (अिाज़ातल ु यौममया भाग 4 पष्ृ ट ३18)
एक दे हाती आप से बैअत हुआ और अपनी दे हाती जब ु ान में अज़स फकया मोल्बी जी और तो सारी चीज़ें छोड दं ग ू ा पर Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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अफ़्हीम (अफ्यन ं ा | आप ने इशासद फरमाया जा ना ू ) ना छोिूग छोडना | (तज़फकरा मशाइख दे वबंद पष्ृ ट 8,148)
भक ू प्यास वाले िोज़ा फ़ज़त नहीं
अल्लामा वहहदज् ु ज़मा मलखते हैं: स्जस को ज्यादा भक ू लगे उस पर रोज़ा फजस नहीं है | (अिुसल जावी पष्ृ ट 80)
तअज्जब ु है फक इतनी अहम ् इबादत जो फज़स है इसके बारे
में ग़ैर मुक़स्ल्लदों ने अपनी राय से यह िैसला कर मलया फक स्जसको भूक लगे वह रोज़ा न रखे | अल्लाह और उसके रसूल
के िरमान के मुकाबबले में यह हहम्मत और दीन व शरीअत के साथ मुस्ल्हदों के मसवा ऐसा मजाक कौन कर सकता है
???
आगे फिर बेबाकी के साथ मलखा है फक.....
िोज़ा का कफदया दे ना वाज़जि नहीं जो रोज़ा रखने पर क़ाहदर (ताक़त) ना हो उसको रोज़ा का
फिदया दे ना वास्जब नहीं है | (अिुसल जावी पष्ृ ट 80)
हालते िोज़ा में संभोग ग़ैर मुक़स्ल्लदीन का मज़हब है फक अगर रोज़ा दार अपनी
औरत से योतन के इलावा या दब ु रु (पीछे के मुकाम) में संभोग करे और वीयस न तनकले तो इससे रोज़ा न टूटे गा जैसा मलखते
हैं अगर फकसी ने अपनी औरत से योतन के इलावा या दब ु ुर (पीछे के मक ु ाम) में संभोग करे तो इस का रोज़ा नहीं टूटे गा| (कंज अल हका इक पष्ृ ट 4७) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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इस से मालम ू हुआ फक ग़ैर मुक़स्ल्लदों के यहााँ औरतों से दब ु ुर के मक़ाम में संभोग फकया जाता है और रोज़े के हालत में भी कर ले तो रोज़ा नहीं टूटे गा |
हज किने वालों को ज़कात दे ना ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन का मज़हब है फक हज करने के मलए
ज़कात दी जा सकती है जैसा फक नवाब वहहदज् ु ज़मा खां मलखते हैं" हज करने वालों को ज़कात दे नी जाएज़ है | (कन्जुल हक़ा इक पष्ृ ट 4६)
जबफक अल्लाह
()جلجاللہ
ने साहहब ए इस्जतताअत पर हज फज़स
फकया है जो मज ु तती (हज करने के ताक़त न रखता हो) नहीं उस पर हज फज़स नहीं है |
ज़ेवेिात पि कोई जकात नहीं इमाम ए वहाबबया मौलवी सनाउल्लाह अमत ृ सरी ने ितवे
हदया है फक ज़ेवेरात पर जकात फजस वास्जब नहीं हैं | (बदरू ल अहला पष्ृ ट 101) अख़बार ए अहले हदीस पष्ृ ट1३, 8 अक्टूबर 1915 )
जूती समेत मज़स्जद में नमाज़
वहाबबयों के नवाब मसद्दीक हसन भोपाली के लडके नूरुल
हसन भोपाली ने मलखा है फक "गंदगी और नजासत से भरे हुए जत ू े का ज़मीन से रगडना उसको पाक कर दे ता है , यही कािी है और उस में नमाज़ अदा करना और उसी से मस्जजद में दाखखल होना जायज़ है " | (अिुसल जावी फारसी पष्ृ ट 11) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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मौलवी वहीदज् ु जामा ने भी मलखा है फक "मस्जजद में जत ू ा
पहन कर जाना सुन्नत है , नमाज़ जत ू े समेत पढना सुन्नत है "| (तयजसरुल बारी भाग 1 पष्ृ ट 100)
वहाबी मौलवी अबदल ु काहदर हसारी ने मलखा है फक" नंगे पाऊं
नमाज़ पढना मुशाबबहत ए यहूद (यहूहदयों की पहचान) है "| (सहीफा अहले हदीस कराची पष्ृ ट 29, 1६ जमाहदल अव्वल 1३8७)
सजदा ए नतलावत की जगह रूकू
वहाबबयों के मौलवी सनाउल्लाह ने फतवा हदया है फक
सजदा ए ततलावत की जगह रूकू कािी है (अख़बार ए अहले हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 2 कॉलम ३, 2३ अगजत 19६4)
लड़ककयों का िि में गाना वहाबी के मौलवी सनाउल्लाह अमत ृ सरी ने मलखा है फक
लडफकयों का गाना घर में ईद या शादी के मौके पर जायज़ है
इन को राग से कोई संबध नहीं | (अख़बार ए अहले हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 12, 1६ अप्रैल 1915)
वहाबी के सरदार जी मौलवी सनाउल्लाह अमत ृ सरी ने मलखा है
फक शादी में गाना बजाना जाएज़ है | (अख़बार ए अहले हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 10, 5 जनवरी 1912)
ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन के मौलवी वहीदज् ु जामा ने मलखा है फक
शादी,
खतने,
और
इसी
फकजम
की
ख़ुशी
की
प्रोग्राम
(तक़रीबात) में ग़ना गाना बजाना और मज़ामीर में कोई हजस नहीं | (नुजूलुल अबरार पष्ृ ट ७३ प्रकामशत बनारस) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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शादी में वलीमा की दावत हो और फकसी एक तरि ढोलक वगैरह बजती हो तो खाने खाते क्यूंफक शादी में इतने की
इजाज़त आई है | (अख़बार ए अहले हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 12, 14 जनवरी 191६)
ग़ैि मक़ ु ज़ल्लदीन के नजदीक सूअि की अज़मत (महीमा)
अल्लामा वहहदज् ु ज़मा मलखते हैं: सूअर पाक है सूअर की
हड्िी, पट् ु ठे , खुर, सींग और थोथनी सब पाक है "| (कन्जल ु हक़ा इक़ पष्ृ ट 1३)
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सूअि मााँ (माता) की तिह पाक है
अल्लामा मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: सूअर के हराम
होने से इसका नापाक होना हरचगज़ साबबत नहीं होता जैसे फक मााँ हराम है मगर नापाक नहीं" | (बदरुू ल अहला पष्ृ ट 1६)
सअ ू ि का झठ ू ा औि कुत्ते का पपशाि पखाना पाक है
अल्लामा वहहदज् ु ज़मा खान मलखते हैं: "लोगों ने कुत्ते और
सअ ू र और इनके झठ ू े के संबंध में ववरोध फकया ज्यादा रास्जह (सबसे सही) यह है फक इनका झूठा पाक है ऐसे लोगों ने कुत्ते के वपशाब, पखाना के संबंध ववरोध फकया है हक़ बात यह है फक इनके नापाक होने पर कोई दलील नहीं"| भाग 4 पष्ृ ट 50)
(नुज़ुलुल अबरार
मौलवी वहीदज़ ु ज़मा ग़ैर मक़ ु मलद ने मलखा है फक कुत्तों का
पेशाब नस्जस नहीं है | (हदीयतुल मेहदी भाग ३ पष्ृ ट ७8)
गधी, कुनतया औि सोिनी का दध ू ग़ैि मक़ ु ज़ल्लदीन के शलए पाक है
मारुफ ग़ैर मक़ ु स्ल्लद आमलम नवाब मसद्दीक हसन खान
मलखते हैं: "गधी, कुततया और सोरनी का दध ू पाक है " | (बदरु ू ल अहला पष्ृ ट 1६)
हिप्पणी: मनी भी पाक औि यह दध ू भी पाक ग़ैि पक़ ु ज़ल्लदीन का शमल्क शैक तैयाि है | Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन के नज़दीक
हलाल जानविों का पेशाि एवं पखाना पाक है मफ़् सत्तार इमामे फिकास गरु बाए अहले हदीस ु ती अबदस ु
िरमाते हैं: "हलाल जानवारूं का पेशाब एवं पखाना पाक है
स्जस कपडे पर लगा हो उस से नमाज़ पढनी दरु ु जत है नीज बतौरे अद्ववयात (दवाई) का पयोग करना दरु ु जत है |
(फतवा
सत्ताररया भाग 4 पष्ृ ट 105)
हिप्पणी: यानी शितते ि नफ्शा ना शमला तो िोड़े का पेशाि पी शलया बिना र्ोल के िजाये लेद चिाली जवारिशे कमोनी के िजाये भैंसे का गोिि खा शलया | Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन के नज़दीक
िोड़ा हलाल है इसकी कुिातनी (िशल) भी जरूिी है
नवाब नरु ु ल हसन खान मलखते हैं: घोडा हलाल है | (अरिुल
जादी पष्ृ ट 2३६)
मुफ़्ती अबदज ु सत्तार साहब मलखते हैं: घोडे की कुबासनी (बमल)
करना भी साबबत बस्ल्क जरूरी है | (फतवा सत्ताररया भाग 1 पष्ृ ट 14७-152)
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गोह हलाल है नवाब नुरुल हसन खान मलखते हैं: "गोह (तछपकली नुमा
एक जानवर) हलाल है " | (अरिुल जादी पष्ृ ट 2३६)
काकफ़ि का जिीहा वहाबी मौलवी वहीदज् ु जामा ने मलखा है फक और इसी तरह
काफफर के हाथ का स्जबह फकया हुआ
जानवर भी हलाल है |
(नज ु ल ू ल ु अबरार भाग ३ पष्ृ ट ७8)
खाि पश्ु त हलाल है
नवाब नरु ु ल हसन खान मलखते हैं: खार पश्ु त (कााँटों वाला
चूहा) खाना हलाल है " | (अरिुल जादी पष्ृ ट 2३६)
कुत्ता, सअ ू ि औि सााँप हलाल है
वहाबी के मुजतहहद क़ाज़ी शोकानी ने मलखा है फक सब
दररयाई जानवर (पश)ु हलाल है यहााँ तक फक कुत्ता, सूअर और सााँप भी हलाल हैं | (नैलअल औतार भाग 1 पष्ृ ट 2७
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प्रकामशत ममस्र)
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ग़ैि मुक़ज़ल्लदीन के नज़दीक
खश्ु की (सख ू े) के वह जानवि हलाल
मसद्दीक हसन खान मलखते हैं: "खश्ु की के वह तमाम
जानवर हलाल हैं स्जन में खून नहीं"|
(बदरु ू ल अहला पष्ृ ट ३48)
नोट: यानी कीडे मकोडे, मक्खी, मच्छर तछपकली आहद |
िहिी (समुन्री) मुदात हलाल है
नवाब नुरुल हसन खान मलखते हैं: "बहरी (समुन्री) मुदास
हलाल है यानी में िक, सअ ु र कछवा, केकडा, सााँप इसान आहद" (अरिुल जादी पष्ृ ट 2३६)
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अब्दल् ु लाह िोपड़ी के क़ुिानी मुआरिफ़
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के बद नसीब फफरके ने अपनी स्जन्सी
आग बझ ु ाने के मलए कुरान पाक जैसी पववत्र ग्रंथ को भी न
बख्शा | मशहूर ग़ैर मुक़स्ल्लद आमलम और ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मुहद्हदस ज़ीशान हाफिज़ अबदल् ु लाह रोपडी ने कुरान के मुआररि (अनुवाद) बयान करते हुए महहला और पुरुष के शमसगाह की हीयत (रूपांतरण) और पुरूष व महहला के संभोग की कैफियत (स्जथतत) जैसी खरु ािात बयान करके अपने
नामाए आमाल की मसयाही में बढोतरी फकया है आईये इनके पहचानने के तरीके के कुछ नमम ु े दे खें |
महहला के िहम (गभतशय) की पहचान ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मुहद्हदसे आज़म अबदल् ु लाह रोपडी
िरमाते हैं: “रहम (गभसशय) की शक्ल लगभग सुराही की है
रहम की गदस न आम तौर पर छ: अंगुल से ग्यारह अंगुल उस महहला की होती है | संभोग करते वक़्त क़ज़ीब (मलंग) गदस ने
रहम में दाखखल होता है और इस राजते मनी रहम में पहुाँचती है अगर गदस ने रहम और क़ज़ीब लम्बाई में बराबर हूाँ तो (मनी) वीयस वजत (बीच) रहम में पहुाँच जाती है वरना वरे रहती है ”| (तंज़ीम यकुम मई 19३2 पष्ृ ट ६ कालम नम्बर 1) हिप्पणी : क्या महहला को अपनी ग्यािह उन्गशलयुं से शादी से पहले दल् ु हा की आलत (शलंग) नाप लेना चाहहए कक मनी वस्त िहम (िीच) तक पहुंचा सके गा या नहीं ? Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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मनी िहम (गभतशय) में पह ु ं चाने का दस ू िा तिीका
हाफिज अबदल् ु लाह रोपडी मलखते हैं:"और कई मतसबा परु ु ष
की मनी ज्यादा दफ् ु क़ (ज़ोर) के साथ तनकले तो यह भी एक
ज़ररया वजत (बीच) में पहुाँचने का है मगर यह ताक़त कुवते मदस म ु ी (पुरूष शस्क्त) पर मौकूि (तनभसर) है "| (तंज़ीम यकुम मई 19३2 पष्ृ ट ६ कालम नम्बर 1)
परू ु ष औि महहला की शमत गाहों का शमलाप औि क़िािे हमल (गभातवस्था)
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मुहद्हदस रोपडी साहब मलखते हैं:
"आलत (मलंग) ब मंस्जला गदस ने रहम के है और खस्ु जसतीन
बमंस्जला वपछले रहम के हैं | वपछला हहजसा रहम का नाि (नाभी) के क़रीब से शरू ु होता है और गदस ने की महहला की शमसगाह में वाकअ (स्जथत) होती है जैसे एक आजतीन दस ु रे
आजतीन में हो गदस ने रहम पर ज़ाइद (अधीक) गोश्त लगा होता है इसको रहम का मुंह कहते हैं और यह मुंह हमेशा बंद रहता है संभोग के वक़्त आलत (मलंग) के अन्दर जाने से
खल ु ता है या जब मशशु का जन्म होता है | क़ुदरत ने रहम के मुंह में खुसूमसयत के साथ लज्ज़त (आनंद) का इहसास रखा है अगर आलत इसको छूए तो दोनों मह्जज़ ू (आनंहदत) होते हैं
ख़ासकर जब आलत और गदस ने रहम की लम्बाई यकसां (बराबर) होतो यह परु ु ष एवं महहला की कमाले मह ु बबत (प्रेम) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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और ज्यादती लज्ज़त (आनंद की बढोतरी) और गभस ठहरने का जररया है | रहम मनी का शाइक़ (शौकीन) है इसमलए संभोग
के वक़्त रहम का स्जजम गदस न के तरि माईल (इच्छुक) हो
जाता है गदस ने रहम की तकरीबन छ: अंगश्ु त (ऊाँगली) महहला
की होती है और ज्यादा से ज्यादह ग्यारह उन्गुश्त होती है " | (तंज़ीम यकुम मई 19३2 पष्ृ ट ६ कालम नम्बर 1)
हिप्पणी: हाकफज िोपड़ी को वासी (पवयापक अनभ ु ाव) तजित िा है |
दाई ने िांगें पकड़ कि खींच शलया मौलवी अशरि अली थानवी जी ने मलखा है फक मैं कहता हूाँ फक मााँ के पेट से तनकलने को कब जी चाहता था दाई ने टांगें पकड कर ज़बरदजती खींच मलया | (अिाज़ातल ु यौममया भाग 2 पष्ृ ट ३1३)
िहम का महले (स्थान) वकूअ
हाफिज अबदल् ु लाह रोपडी मलखते हैं: मंह ु रहम का महहला
की शमसगाह में वपशाब के सुराख़ से एक ऊाँगली से कुछ कम पीछे होता है "| (तंज़ीम यकुम मई 19३2 पष्ृ ट ६ कालम नम्बर 1) हिप्पणी : हाकफज साहि ने खि ू पैमाइश (माप) की है |
अन्दि की कहानी हाफिज अबदल् ु ला रोपडी ग़ैर मक़ ु स्ल्लद अन्दर की परू ी
कहानी से वाफकि हैं मलखते हैं: "और गदस ने रहम की फकसी महहला में दायें जातनब (ओर) और फकसी में बाएं ओर माइल Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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होती है रहम के बहर की तरि अगरचे ऐसी नमस नहीं होती लेफकन बाततन इसका तनहायत नमस और, चचकनदार होता है
ताफक आलत के दख ु ूल के समय दोनों मह्जज़ ू (आनंहदत)) हूाँ नीज रबड की तरह खेंचने से खींच जाता है ताफक स्जतनी आलत दाखखल हो उतना ही बढता जाये | कंु वारी औरतों में
रहम के मंह ु पर कुछ रगें सी तनी होती हैं जो पहली सह ु बत में िट जाती है इसको अज़ालाए बुकारत कहते हैं | (तंजीम अहले हदीस रोपडी पथसम जून 19३2 पष्ृ ट ३ कालम नंबर ३)
ग़ैि मक़ ु ज़ल्लदीन के शलए
संभोग किने का िहतिीन सूित
ग़ैर मुक़स्ल्लदीन के मुहद्हदसे आज़म हाफिज अबदल् ु ला
रोपडी मलखते हैं: “और संभोग का बहतर सरू त यह है फक महहला चचत लेटी हो और पुरूष ऊपर हो | महहला की रान
उठाकर बहुत सी छे ड छाड के बाद जब महहला की आाँखों की रं गत बदल जाये और इसकी तबीअत में कमाले जोश आ जाये और परु ु ष को अपनी ओर खींचे तो उस वक़्त दख ु ल ू करे इससे
पुरुष महहला का पानी एक्ठ्ठे तनकल कर अमूमन गभस करार पाता है ” | (अखबारे मुहम्मदी 15 जून 19३9 पष्ृ ट नंबर 1३ कालम नंबर ३)
क़ािी एन किाम: यह थे हाफिज अबदल्ु ला रोपडी के
क़ुरानी मआ ु ररि – मशहूर ग़ैर मक़ ु स्ल्लद आमलम मौलाना मुहम्मद जन ू ा गाढी ने भी यह मुआररि अपने “अखबारे Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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मह ु म्मदी” में नक़ल फकये और उन्वान हदया “ अबदल् ु ला रोपडी एडिटर (संपादक) तंजीम के मुआररि क़ुरानी” इसे कोक शाश्तर कहें या लज्ज़ततस्न्नसा या तगीबे बद्कारी)
मौलाना जन ू ा गाढ़ी का
मुआरिफे कुिानी पि हिप्पणी
इन मुआररिे कुरानी पर हटप्पणी करते हुए मारूि (मशहूर) ग़ैर मक़ ु स्ल्लद आमलम शैख़ मह ु म्मद जन ू ा गाढी ग़ैर मक़ ु स्ल्लद के मुफस्जसरे कुरान और मुहद्हदसे ज़ीशान हाफिज अबदल् ु ला रोपडी के बारे में मलखते हैं: रोपडी ने मआ ु ररिे कुरानी बयान करते हुए रं िीयूं और भडवों का अरमान पूरा फकया और तमाश बीनों के तमाम हथकंिे अदा फकये | (अखबारे महु म्मदी 15 अप्रैल 19३9 पष्ृ ट नंबर 1३)
जूना गाढ़ी की मुहज्जि जुिान
पाठको ! महु म्मद जन ू ा गाढी साहब की “मह ु ज्ज़ब” भाषा
का नमन ू ा आप ने मल ु ाहे ज़ा फकया अफसोस फक आज सऊदी अरब में जो उदस ू तजम ुस ा ए कुरान तकसीम (ववतरण) हो रहा है
वह उन्ही मह ु म्मद जन ू ा गाढी का है काश सऊदी हकुमत फकसी मुत्तकी
(परहे जगार)
आमलम
का
तजम ुस ा
ए
(प्रकामसत) करने का अह्तमाम करती |
कुरान
शाए
मुहम्मद की महु ब्बत दीन ए हक़ की शते अव्वल है इसी में हो अगर ख़ामी तो सब कुछ ना मुकम्मल है Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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िौज़ा ए निी को चगिाना वाज़जि है वहाबबयों के नवाब मौलवी मसद्दीक हसन भोपाली के बेटे
नरु ू ल हसन भोपाली ने मलखा है फक लग ु त के मलहाज़ से हर
उस चीज़ पर जो उठी हुई हो कब्र का लफ्ज़ साहदक आता है और वह शरीअत के मुनफकरत से है उससे मना करना और उसको ममटटी के बराबर करना मुसलमानों पर वास्जब है बगैर फकसी इस्म्तयाज़ के चाहे पैगम्बर की कब्र हो या फकसी और की हो | (अिुसल जावी पष्ृ ट ६1)
इबन ए क़स्य्यम के नज़दीक क़ब्रों पर जो कुबबे बने हुए हैं इन को चगरना वास्जब है | (फतहुल मजीद शरह फकताब अल तौहीद पष्ृ ट 200)
सऊदी अरब में एक फकताब सरह अल सुदरू प्रकामशत हुई है स्जस के हामशया पर उन्हों ने मलखा है फक "पस हुज़रू ए
अकरम की क़ब्र ए मुक़द्दस हर मलहाज़ से बुत (मूततस) है काश फक लोग इस बात को समझें | (सरह अल सुदरू पष्ृ ट 25 प्रकामशत सऊदी)
सि क़ब्रों से अफज़ल क़ब्र अशिफ अली थानवी की
ख्वाजा अजीज़ल् ु हसन और मौलवी अबदल ु हक ने मलखा है फक
"सब क़ब्रों से अशरि वह क़ब्र है जो हज़रत अशरि (अली थानवी) की लाश को अन्दर मलए हुए हैं जो दीन के मुजद्हदद थे क्या कोई उनका हमसर" | (अशरिुल सवातनह भाग 4 पष्ृ ट 189) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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यह नादान अंबबया ए कराम, सहाबा और औमलया की क़ब्रों से भी अिज़ल मान रहा है |
इबन ए सउद ने जलीलल ु क़दर सहाबा कराम ) )علیہم الرضوانके
मज़ारात चगराए तो दे वबंहदयों के अमीरे शरीअत अताउल्लाह
शाह बख ु ारी इबने सउद के तरफदार थे | (अताउल्लाह शाह बख ु ारी पष्ृ ट 54)
क़ाद्यानीयों के शलए तावीलें दे वबंदी मौलवी अशरि अली थानवी के खलीफा मौलवी
अबदल ु मास्जद दररयाबादी ने मलखा है फक "मेरा हदल तो काद्यानीयों की तरि से भी हमेशा तावील ही तलाश करता रहता है | (हकीमुल उम्मत पष्ृ ट 259)
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दे वबंदी फिरका के मौलाना अबल ु कलाम आज़ाद कहते हैं
फक वफात ए मसीह (हज़रत ईसा की मौत) का स्ज़क्र ख़ुद क़ुरान में है | (मल्िूजाते आज़ाद पष्ृ ट 1३0)
वहाबियों का काशलमा الالہاالہللاعبدالجبارامامہللا
(अख़बार ए अहले हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 8७७, 9जुलाई 1915,
अख़बार ए अहले हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 11 कॉलम ३ , 5 अप्रैल 1912)
शतिं ज खेलना जाईज़ वहाबबयों के मौलवी वहीदज् ु जमा ने शतरं ज खेलना भी
जाईज़ क़रार हदया है "शतरं ज खेलने पर इंकार जायज़ नहीं | (हहदयतुल मेहदी पष्ृ ट 118 प्रकामशत हदल्ली)
मदों को सोने के दांत लगाना ग़ैर मक़ ु ल्ल्दीन के मज़हब में है फक मदों को सोने के दांत
लगाना जायज़ है | (अख़बार ए अहले हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट 8, 15 जनवरी 194३)
सलातल ु तस्िीह की नमाज़
इमाम अल वहाबबया मौलवी सनाउल्लाह अमत ृ सरी ने
सलातुल तजबीह पढने से भी लोगों को मना करने की कोमशस की है चन ु ांचे फतवा दे ते हैं फक सलातल ु तजबीह जो मशहूर है
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इसकी फज़ीलत के संबंध में कोई सही हदीस शरीि नहीं आई" | (अख़बार अहले हदीस अमत ृ सर पष्ृ ट2, 25 जून 194३)
वहाबबया नस्ज्दया के इमाम ने फकस तरह झूट बोलते हुए लोगों को तजबीह और तहलील से रोकने की कोमशश करके शैतान मरदद ू की मदद की है |
दे विंहदयों का काशलमा ال الہاالہللااشرفعلیرسولہللا اللھمصلیعلیسیدناونبیناوموالنااشرفعلی (ररसाला अल इमदाद पष्ृ ट ३5 बाबत सिर 1३३६ हहजरी)
दे विंदी उलमा की अजीि गंदी हिकत हज़रत वामलद मास्जद मौलाना हाफिज़ मुहम्मद अहमद
साहब, चाचा साहब मौलाना हबीबुर रहमान ने बयान फकया है
फक एक मतसबा गंगोह की खानकाह में भीड (मजमअ) थी | Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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हज़रत गंगोही और नानोतवी के मरु ीद व शाचगदस (छात्र) सब
जमा थे और यह दोनों हजरात भी वहीं भीड में तशरीफ िरमा थे फक हजरत गंगोही ने हज़रत नानोतवी से मुहबबत भरे
लहजा में फरमाया फक यहााँ ज़रा लेट जाओ | हज़रत नानोतवी कुछ शरमा से गए मगर हज़रत ने फिर फरमाया, तो मौलाना बहुत अदब के साथ चचत लेट गए | हज़रत भी उसी तरह चारपाई पर लेट गए और मौलाना की तरि करवट ले कर अपना हाथ उनके सीने पर रख हदया जैसे कोई आमशक ए साहदक अपने क़ल्ब को तजकीन हदया करता है मौलाना हर चंद िरमाते फक ममयां क्या कर रहे हो यह लोग क्या कहें गे ??? हज़रत ने फरमाया फक लोग कहें गे कहने दो" | (अरवाहे सलासा हहकायत नम्बर ३05 पष्ृ ट 248, हहकायत ए
औमलया लेखक मौलवी अशरि अली थानवी हहकायत नम्बर ३05 पष्ृ ट 2७३ प्रकामशत जकाररया बुक डिपो दे वबंद सहारन पूर, अरवाहे सलासा मौलवी अशरि अली थानवी हहकायत नम्बर ३05, पष्ृ ट 289 क़ुतुब खाना इमदाद अल गुरबा सहारनपुर)
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यह लोंिे बाज़ी नहीं तो और क्या है ? और यह इतना खतरनाक काम (िअल) है स्जस से इन्सान तो इन्सान शैतान भी खौि खाता है चुनांचे हज़रत इबन ए अबबास
( )رضی ہللا عنہ
का
बयान है फक जब मदस मदस पर सवार होता है तो शैतान इस खौि से भागता है फक कहीं यह लानत इसपर न आ जाये |
पुिानी जोरू से मेल जोल में
मौलवी अशरिी अली थानवी साहब की दो बीववयााँ थीं पहली बीवी बहुत परु ानी थी और दोसरी बहुत कममसन और नई थी तो क्या थानवी साहब की पहली बीवी पुरानी जोरू होने की वजह से बा कौल खद ु थानवी साहब की अम्मा कह लाई
जाएाँगी |
"फरमाया फक बहुत लोग हरारत ए अजीस्जया की मजती को रूहानी लज्ज़त समझ लेते हैं, उनको बढ ु ापे में अपनी गलती का एहसास होता है क्यंफू क उस वक़्त
हरारत ए अजीस्जया कम हो
जाती है और स्जसको जवानी में रूहानी लज्ज़त हामसल हो चुकी है , बढ ु ापे में इसकी लज्ज़त कम नहीं होती जैसे परु ानी जोरू से
उन्स में ज्यादती होती है " | (कमालात ए अशरफिया लेखक मौलवी इसा इलाहबादी मल्िूज़ नम्बर 11३, पष्ृ ट ६8 प्रकामशत मक्तबा ए थानवी दे वबंद सहारनपरु )
मज़ा तो मज़ी ननकलने में आता है
मौलवी अशरि अली थानवी साहब अपनी असली रूप हदखाते हुए अल्लाह के स्ज़क्र में मज़ा हामसल करने की ख्वाहहश करने वालो से कहते हैं फक "मज़ा तो मज़ी तनकलने में आता है लूहे Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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के चने चबाने में मज़ा कहााँ"| (हसनल ु अज़ीज़ मरु वत्तब मौलवी हकीम योसफ ु बबज्नोरी भाग ३ पष्ृ ट ३0६ दे वबंद सहारनपुर)
प्रकामशत तलीित ए अशरफिया
मज़ी ननकलेगी िहुत मज़ा आएगा
मौलवी अशरि अली थानवी ने एक शख्स को जवाब इस अंदाज़ में दे ते हैं फक "लोग तो कैफियात के पीछे पडे हैं और लज्ज़त के तामलब हैं, है तो िहश (गंदी) बात मगर मैं तो इस लज्ज़त के तलब पर यह कहा करता हूाँ फक अगर मज़े ही की खवाहहश है तो ममयां मज़ा तो मज़ी में आता है | बीवी को बगल में लेकर बेठ जाओ, चूमो, चाटो, मज़ी तनकले गी बहुत मज़ा आएगा | (कमालात ए अशरफिया लेखक मौलवी इसा इलाहबादी, मल्िूज़ नम्बर 250, पष्ृ ट 544 प्रकामशत मक्तबा ए थानवी दे वबंद सहारनपुर)
मज़ा तो मज़ी में होता है
मौलवी अशरिी अली थानवी में शहवत ए निसानी का िामसद माद्दा (sex mania) इतनी कसरत से था फक हर वक़्त उनके हदमाग में शहवत का भूत सवार रहता था और उनको हर बात और हर चीज़ में शहवत का ही ख्याल आता था यहााँ तक
फक अल्लाह तआला के मुक़द्दस स्ज़क्र के मलए भी वह शहवत संबंध रखने वाली िुहश (गन्दी) ममसालें दे ते थे हद तो यह हो
गई फक थानवी साहब ने एक दो मतसबा इवत्तिफकया यह जम ु ला नहीं कहा बस्ल्क यह जम ु ला तफकया कलाम के तौर पर हमेशा
बोलते थे और अल्लाह के मक़ ु द्दस स्ज़क्र की तौहीन व तजलील Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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बस्ल्क तमजखरु करते थे | मात्र सात महीने ग्यारह हदन के
इतने कम समय में थानवी साहब ने यह िुहश जम ु ला पांच बार इशासद फरमाया है यातन एक साल से भी कम समय में | यहााँ पर मसिस एक ही मजमलस का स्जक्र फकया जाता है बाक़ी आप तमाम हवाले जम ु ले के साथ मुनास्ज़रे अहले सुन्नत हज़रत
अल्लामा अबदज ु सत्तार हमदानी मसरूि बरकती नरू ी साहब फक़बला की फकताब "गुजताखे रसल ू के चगरोह सेक्सी मुल्ला" से हामसल कर सकते हैं |
मौलवी अशरि अली थानवी ने कहा फक "एक शख्स ने मुझ
से कहा फक स्ज़क्र में मज़ा नहीं आता, मैं ने कहा फक मज़ा स्ज़क्र
में कहााँ, मज़ा तो मज़ी में होता है जो बीवी से मल ु ाअबत (संभोग) के वक़्त ख़ाररज होती है , यहााँ कहााँ मज़ा ढूनते फिरते हो " | (अल अिाज़ातुल यौममया ममनल अिादातुल कौममया थानवी साहब के मल्िूज़ प्रकामशत मक्तबा ए दातनश दे वबंद मल्िूज़ नम्बर 42, भाग ६ पष्ृ ट ३5)
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जी चाहता है गुफ्तगू जािी िहे
फरमाया फक अल्िाज़ तो उस के पास न थे मगर ख़ुलूस
था जी चाहता था फक इस बे तहज़ीबी के साथ मसलमसला ए गुफ्तगू जारी रहे | (अफा ज़ातुल यौममया भाग 1 पष्ृ ट ३2)
وہللا العظیمमौलाना थानवी के पावों धोकर पीना तनजात ए
उखरवी का सबब है | (तस्ज्करातरु रशीद भाग 1 पष्ृ ट 11३)
दे विंदी मौलवी िं डर्यों के मकान में दे वबंदी पीर स्ज़ ना खाने में ठहरा हुवा था कहता हैं फक फुला (रं िी) मेरी मुरीदनी क्यूाँ नहीं आई अजस की गई फक पीर जी वह कहती है में बहुत गन ु ाहगार हूाँ, फरमाया उसे लाओ , लाया गया ,फरमाया "बी शमासती क्यूाँ हो (तुम्हारे साथ स्ज़ना) करने
वाला कौन कराने वाला (दलाल) कौन, इतना सुनना था फक रं िी आग बगूला हो गई| रं िी ने कहा ऐसे पीर के मुंह में पेशाब भी नहीं करती | (तस्ज्करातुर रशीहदया भाग 2 पष्ृ ट 242)
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पुिानी जोरू अम्मा हो जाती हैं
मौलवी अशरि अली साहब को औरत के संबंध अनेक फकजम
के लग्व व िुहाश (गंदे) जम ु ले प्रयोग करने में ना मालम ू क्या
आनंद (लुत्फ) आता था कहते हैं फक पुरानी जोरू (बीवी) अम्मा हो जाती हैं | (अल अिाज़ातुल यौममया ममनल अिादातल ु कौममया (थानवी साहब के मल्िूज़)
नम्बर 5३4, भाग 1 फक़जत 2
प्रकामशत मक्तबा ए दातनश दे वबंद मल्िूज़ पष्ृ ट 11६)
काश ! मैं औित होती औि थानवी साहि की िीवी होती मौलवी अशरिी थानवी की बीवी बन ने की तमन्ना करने
वाले ख्वाजा उजैरुल हसन साहब गौरी, थानवी साहब के मुरीद ए
ख़ास बस्ल्क सबसे चहीते मुरीद और महबूब मुरीद थे और थानवी साहब के मौत तक सफर व हज़र में साया की तरह
साथ हदया | एक बार इश्क व मुहबबत के जोश में हज़रत ए
वाला से बहुत खझझकते और शमासते हुए दबी जब ु ान से अजस फकया फक हज़रत ! एक बहुत ही बे हुदा खखयाल हदल में बार बार आता है स्जस को ज़ाहहर करते हुए भी शमस दामनगीर होती है हज़रत वाला ने कहा कहहये कहहये ! शमस से सर झुकाते हुए अजस फकया फक मेरे हदल में बार बार यह ख्याल आता है फक काश ! मैं औित होता, हुज़िू के ननकाह में "| (अशरि अल सवातनह लेख़क ख्वाजा उजैरुल हसन साहब गौरी प्रकामशत मक्तबा ए थानवी दे वबंद, भाग 2 पष्ृ ट ७0)
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दाढ़ी वाली दल् ु हन
वहाबी, दे वबंदी और तबलीगी जमात के पेशवा और स्जन को तबलीगी जमा अत के मानने वाले "मुजद्हदद और इमाम ए रबबानी के लक़ब से याद करते हैं, वह
मौलवी रशीद अहमद
गंगोही साहब की हालत ए स्ज़न्दगी कलमबंद करने वाले दे वबंदी मौलवी और नामवर लेखक मौलवी आमशक इलाही मेरठी साहब मलखते है फक गंगोही साहब ने ख्वाब बयान फकया फक ख्वाब में मैंने ने दे खा फक मौलवी कामसम दल् ु हन बने हुए हैं और मेरा उनसे तनकाह हुआ और फिर आगे ख्वाब बयान करते हैं फक "सो स्जस तरह से ज़न (बीवी) और शोहर में एक को दस ु रे से
फाइदा (लाभ) पहुाँचता है इसी तरह मझ ु े उनसे और उन्हें मझ ु से फाइदा (लाभ) पहुंचा है | (तस्ज्करतुर रशीद लेखक मौलवी आमशक इलाही मेरठी प्रकामशत दारुल फकताब भाग 2 पष्ृ ट ३६2/29७ )
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शहजादी ए िसल ू हज़ित
िीिी फ़ानतमा
()رضیہللاعنہا
की शान में गुस्ताखी
मौलवी अशरि अली थानवी अपने एक मौलवी िजलुरसहमान
की ज़ब ु ानी बयान करते हैं फक "हम ने ख़्वाब में हज़रत बीबी फाततमा ( )رضی ہللا عنہاको दे खा उन्होंने ने हम को अपने सीने से चचमटा मलया | (अल अिाज़ातल ु यौममया भाग 5 पष्ृ ट ३७)
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गस् ु ताखे िसल ू के िािे में सख्त लफ्ज़ का प्रयोग
तू अपने माबद ू लात की पेशाब गाह को चाट | (फज़ाइल ए
आमाल पष्ृ ट 1७७)
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कौआ खाना सवाि
सवाल: स्जस जगह ज़ाग ए मारोफा (आम कौआ) को अक्सर
हराम जानते हूाँ और खाने वाले को बरु ा कहते हूाँ तो ऐसी जगह इस कौए खाने वाले को कुछ सवाब होगा न सवाब होगा न अजाब ?
उत्ति: सवाब होगा | (फतवा रशीहदया लेखक मौलवी रशीद अहमद गंगोही पष्ृ ट ६३७)
तजफकरा रशीहदया में मलखा है फक मझ ु को क्या खबर थी फक हक तआला ने इसमें इस कदर अज्र रखा था |
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हज़ित इमाम हुसैन की शान में गुस्ताखी
मुहम्मद दीन बट्ट ने मलखा है फक "इमाम हुसैन ने जमाअत में तफरक़ा िाला और जमाअत से अलग हो कर शैतान के हहजसे में चले गए" | (रशीद इबन रशीद पष्ृ ट 225)
दस ू री जगह मलखता है फक "पस हुसैन बागी और बैअत तोडने वाले वाले ठहरे | (रशीद इबन रशीद 184) ٰ )رضی ہللا नबी करीम ( )صلی ہللا علیہ والہ وسلمने हज़रत इमाम हुसैन )تعالی عنہ को सरदारे नौजवानाने जन्नत का लक़ब अता फरमाया और
आपकी शहादत की पैशग ं ोई िरमाई अब जरा इनकी गंदी सोच पर गौर करें फक यह सअ ु र से भी ज्यादह गंदे लोग नबी करीम ( )صلی ہللا علیہ والہ وسلمके मुकाबबले में जन्नत के नौजवानों के सरदार
को बागी, मआज़ल्लाह शैतान के हहजसे में चले जाने वाला कहते हैं हालााँफक यह लोग खुद दे व के हहजसे में चले गए हैं इनके हदल व हदमाग में दे व बंद है | इसमलए गंदे गंदे बातें करते हैं |
दे वबंदीयों के मौलवी ने यजीद पलीद को अमीरुल मोममनीन मलखा और उनकी की शान में क़सीदे भी ....
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सिील लगाना शिित पपलाना हिाम है
मौलवी रशीद गंगोही ने मलखा है "सबील लगाना शरबत
वपलाना हराम है " (ितवा रशीहदया भाग ३ पष्ृ ट 11३)
हुज़िू ( (ﷺपि निनौना इलज़ाम
दे वबंदी मुनास्जर अमीन सफदर औकाडवी मलखता है फक आप
नमाज़ पढाते रहे और कुवत्तया सामने खेलती रही और गधी भी साथ थी दोनों के शमसगाहों पर नज़र पडती रही | (ग़ैर मुक़स्ल्लदीन की ग़ैर मुजतनद नमाज़ ३8)
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हुज़ूि ()ﷺकी ग़ैि औित से िगलगीि होना
थानवी साहब ने अपनी मुरीदनी का ख़्वाब मलखा है फक
मरु ीदनी ने कहा फक ख्वाब में हुज़रू ﷺमझ ु से बगलगीर हुए और इस ज़ोर से भींच हदया फक तख़्त सारा हहल गया स्जस पर खडे थे | (अजसदकुर रूया भाग 2 पष्ृ ट 2३)
मोशमनों की अम्मी जान हज़ित आयशा शसद्दीका
ٰ (رضی ہللا (تعالیعنہا
की शान में गुस्ताखी
एक मुरीद सामलह को मक्शफ ू (कश्फ) हुआ फक अहक़र (अशरि अली थानवी) के घर हज़रत बीबी आयशा आने वाली हैं उन्हों ने मुझ से कहा मेरा (अशरि अली थानवी) का ज़हन (हदल व हदमाग) उसी तरि मुन्ताफकल हुआ फक (कममसन औरत हाथ आएगी) इस मन ु ामसबत से फक जब हुजरू ( )صلی ہللا علیہ والہ وسلمने हज़रत आयशा
से तनकह फकया तो हुज़रू सन्न (उम्र) शरीफ पचास से ज्यादह था हज़रत आयशा बहुत कम उम्र थीं ٰ (رضی ہللا (تعالی عنہا
वही फकजसा यहााँ है | (ररसाला अल इमदाद माह सफर 1३३5 हहजरी)
हज़ित ख़दीजा( (رضیہللا ٰتعالیعنہاऔि हज़ित आयशा
ٰ (رضیہللا (تعالیعنہا
फियादी िन कि दे विंदी दिवाज़े पि आज हज़रत आयशा मसद्दीका
ख़दीजा
ٰ (رضی ہللا (تعالی عنہا
ٰ (رضی ہللا (تعالی عنہا
और हज़रत
मफ़् ु ती फकिायतल् ु ला दे हलवी और अहमद
सईद के दरवाज़े पर आयीं और फरमाया हम तुम्हारी माएाँ हैं
फकया तुम्हें मालम ू नहीं फक आज कुफ्फार ने हमें गामलयााँ दी Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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हैं और दे खो वह उम्मल ु मोममनीन आयशा
ٰ (رضی ہللا (تعالی عنہا
दरवाज़े
पर तो खडी नहीं | (अताउल्लाह शाह बुखारी पष्ृ ट 199)
सहािा को काकफ़ि कहने वाला सन् ु नी मस् ु लमान ही िहता है
दे वबंदी के इमाम मौलवी रशीद अहमद गंगोही ने मलखा है
फक जो शख्स सहाबा ए कराम में से फकसी की तकिीर करे
वह अपने गन ु ाह ए कबीरा के सबब सन् ु नत जमाअत से ख़ाररज ना होगा | (फतवा रशीहदया पष्ृ ट 248)
मौलवी थानवी की कहानी उन्हीं की जि ु ानी
मौलवी अशरि अली थानवी साहब ने फरमाया फक एक रोज़ में पेशाब कर रहा था भाई साहब ने आकर मेरे सर पर पेशाब करना शरू ु कर हदया, एक रोज़ ऐसा आया फक भाई साहब
पेशाब कर रहे थे मैं ने उन के सर पर पेशाब करना शरू ु कर हदया | (मल्िूजात ए हकीमल ु उम्मत भाग 4 पष्ृ ट 2६0)
मौलवी अशरिी अली थानवी साहब ततचथ 21 जमाहदल
अव्वल 1३15 हहजरी बादे नमाज़ ए जम ु ा अपनी मजमलस में बे
हया औरत फक हया की ममसाल दे ते हुए इशासद िरमाते हैं फक एक शख्स फकसी मकान पर उसको दरयाफ्त (तलाश) करने आया तो उसकी बीवी नई बयाही हुई थी, जब ु ान से कैसे बोले और बतलाना जरूरी था, इसमलए कहा नहीं, लहंगा उठा कर और Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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मत ू कर और उस पर िांद कर गई स्जस से बतला हदया गया
फक दररया पार गया है बस या शमस की, फक मुंह से ना बोली और शमसगाह हदखा दी" | (अल अिाजातुल यौममया भाग 2 पष्ृ ट 28)
यह वाफकयात मामल ू ी मौलवी की नहीं दे वबंदी फिरका के
मुजद्हदद के हैं |
िीवी खफ़ा हो तो उस्तुिे से सफ़ाई
मौलवी अशरि अली थानवी ने मलखा है फक एक शख्स मेरे
पास आया फक मेरी तोंद बढी हुई है नापाकी के बाल फकस तरह लूं और कहा फक िुलां आमलम ने मेरे सवाल के जवाब में बतलाया फक बीवी से उतरवा मलया करो और स्जन्हूं ने बतलाया है वह बहुत बडे आमलम हैं इस वजह से वह शख्स परे शान था मैं ने कहा फक यहााँ एक लतीिा है फक कसीिा है
वह यह फक अगर बीवी खफा हो जाए और उजतुरा से साि कर दे तो बडा मज़ा है | (अिाजातुल यौममया भाग ७ पष्ृ ट 259 )
थाना भवन में िे हयाइ िहते हैं यहााँ तो जो बहुत बे हया होगा वह ठहर सकता है वरना अगर ज़रा भी गैरत होगी हरचगज़ न ठहर सकता, कौन स्ज़ल्लत ग्वारा करे | (अिाज़ातुल यौममया भाग ३ पष्ृ ट 118)
आ मादा (नािी) नि (परु ु ष) आ गया
मौलवी अशरि अली थानवी ने मज़ा हन फरमाया फक आप को एलान कर दे ना था फक आ मादा (नारी) नर (पुरुष) आ गया | (अिाज़ातुल यौममया भाग 4 पष्ृ ट ३0७) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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कुिान शिीफ पि.......किना
एक दिआ (बार) एक बन्दे ने अजस फकया फक मैं ने ख़्वाब
दे खा है मेरा अंदेशा है फक मेरा इमान न जाता रहे , हज़रत
(थानवी) ने फरमाया ! ममयां बयान तो करो, उन साहब ने अजस फकया फक मैंने दे खा है फक कुरान शरीि पर पेशाब कर रहा हूाँ, हज़रत (अशरि अली थानवी) ने फरमाया यह तो बहुत अच्छा ख़्वाब है " | (मज़ीदल ु मजीद पष्ृ ट 1६६, अल अिाजातुल यौममया)
दे विंहदयों का तिरुत क मौलवी अशरि अली थानवी एक मतसबा (बार) मौलाना हसन
अमरोही के घर बैतल ू खला में गए तो मौलाना अहमद हसन ने
अपने हाथों से इजतंजे के ढे ले और लोटा बैतूल खला में रखा मौलवी अशरि अली ने बहुत "पास व पेश की हालत में फरमाया फक यह ढे ले तो तबरुस क हो गए अब इजतंजा का हे से फकया जाए | (अशरि अल सवातनह भाग 1 पष्ृ ट 25७)
मौलवी आमशक इलाही मेरठी, मौलवी कामसम नानोतवी की
नानी साहहबा के संबंध में मलखते है " स्जस मरीज़ को तीन साल मज़स ए इजहाल में इस तरह गुजरीं फक करवट बदलना भी
दश ु वार हो तो इसके संबंध यह खखयाल बे मौक़ा न था फक बबजतर की बदबू धोबी के यहााँ भी ना जाएगी, मगर दे खने वालों
ने दे खा फक ग़ज ु ल के मलए चारपाई से उतारने पर पोतडे (पखाना लगे हुए कपडे) तनकाले गए जो नीचे रख हदए गए थे तो इन में बदबू की जगह खश ु बू और ऐसी तनराली महक िूट ती थी फक
एक दस ु रे को सुंघाते और हर मदस औरत तअज्जुब करता, चुनांचे Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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बगैर धल ु वाए उन को तबरुस क बना कर रख मलया गया | (तास्ज्करातल ु खलील पष्ृ ट 9६-9७)
सुल्तानुल औमलया कुतुबुल अक़ताब हज़रत शैख़ अबदल ु काहदर
स्जलानी ( )رضی ہللا عنہके इसाल ए सवाब के मलए तकसीम की जाने वाली, हलाल व
पाकीज़ा कमाई की जायज़ रक़म से खरीदी हुई ममठाई के मलए वहाबी दे वबंदी तबलीगी जमाअत के हकीमल ु
उम्मत मौलवी अशरि अली थानवी ने यह हुक्म हदया फक इसे खाना नहीं चाहहए बस्ल्क ज़मीन में दिन कर दे ना चाहहए | (कमालात ए अशरफिया लेखक मुहम्मद इसा अल्लाहबदी बाब 01, मल्िूज़ ६28, पष्ृ ट 152)
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नफ़स को खूि खखलाओ
हज़रत हाजी साहब फरमाया करते थे फक नफस को खूब
खखलाओ वपलाओ | (अिाज़ातुल यौममया भाग ३ पष्ृ ट 288)
हलवे के लालच में दांतों को जवाि एक साहब ने हज़रत गंगोही से अज़स फकया था फक हज़रत
दांत बनवा लीस्जए फरमाया फक फकया होगा दांत बनवा कर फिर बोहटयााँ चबानी पडेंगी | अब तो दांत ना होने की वजह से लोगों को रहम आता है और नरम – नरम हलवा ममलता है | (अिाज़ातुल यौममया भाग 2 पष्ृ ट 94 – क़-स-सल ु अकाबबर पष्ृ ट 142)
दआ शमठाई के िगैि दआ चचपकती नहीं ु ु
सब ने मौलाना से दआ की दरखाजत फक मौलाना ने ु
फरमाया : तुम लोग दआ करो मैं भी दआ करूंगा मगर मेरी ु ु दआ तो ममठाई के बगैर चचपकती नहीं | ु
(अरवाहे सलासा पष्ृ ट 82)
वहािी सकतस का मसखिा
मौलवी अशरि अली थानवी साहब के मल्िूज़त का मजमआ ु
हसनुल अज़ीज़ में है फक थानवी साहब का एक नौकर था स्जस
का नाम तनयाज़ था, तनयाज़ के घर लडका पैदा हुआ मलहाज़ा वह थानवी साहब से लडके का नाम क्या रखूाँ ? यह पूछता है | थानवी साहब ने जवाब हदया फक तेरा नाम तनयाज़ है मलहाज़ा अपने लडके का नाम प्याज़ रख ले
ताफक बाक बेटे का नाम
हम वज़न काफफया हो जाएाँ | (हसनुल अज़ीज़) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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नोट: ऐसी लग्व, मलचर, िोहड, िुहश, बेहूदा, बे तक ु ी, बे मानी, अहमकाना बातें थानवी साहब के मल्िूज़ और सवातनह हयात से संबंध रखने वाली फकताबों में इतनी अधीक तादाद में
हैं फक अगर सीरत इन बातों और जम ु लों को जमा फकया जाये
तो एक बहुत बडी फकताब बन जाएगी | हाफिज़ (ज़ाममन) साहब को मछली के मशकार का बहुत शौक़ था | एक बार नदी पर मशकार खेल रहे थे फकसी ने कहा हज़रत हमें आप ने फरमाया अि की मािों तेिी | (अरवाहे सलासा पष्ृ ट 225 लाहोर)
हाकफज़ जी का कक़स्सा कक ननकाह में िड़ा मज़ा है
एक मसलमसले में मौलाना अशरि अली थानवी साहब ने फरमाया फक मकतब के लडकों ने हाफिज़ जी को तनकाह की तरगीब दी फक हाफिज़ जी तनकाह कर लो बडा मज़ा है , हाफिज़ जी ने कोमशश कर के तनकाह कर फकया और रात भर रोटी (योतन के साथ) से लगाकर खाई मज़ा कया खाक आता, सुबह
को लडकों पर खिा होते हुए आए फक सस ु रे कहते थे फक बडा मज़ा है ,बडा मज़ा है , हम ने रोटी लगा कर खाई हमें तो ना नमकीन मालम ू हुई न मीठी ना कडवी, लडकों ने कहा हाफिज़ मारा करते हैं, आई शब ् (रात) हाफिज़ जी ने बे चारी को खब ू ज़द कोब फकया दे जत ू ा दे जत ू ा, तमाम महल्ला जाग उठा और
जमा हो गया और हाफिज़ जी को बरु ा भला कहा, फिर सब ु ह को आए और
कहने लगा फक ससरों ने दक कर हदया, रात हम ने
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मारा भी कुछ भी मज़ा न आया और रुसवाई भी हुई, तब लडकों ने खुल कर हक़ीक़त बयान की फक मारने से मरु ाद यह है अब
जो शब ् (रात) आई तब हाफिज़ जी को हक़ीक़त मुन्कमशि हुई, सब ु ह को जो आए तो मंछ ू का एक एक बाल खखल रहा था और खुशी में भर हुए थे "|
(मल्िूज़ाते हकीमल ु उम्मत भाग 20 पष्ृ ट 94)
सि पि इमामे के िजाए औित का पाएजामा मशहूर है फक कोई बुज़ग ु स थे, उनकी शादी हुई, पहली रात (शब) थी, कपडे क्यूाँ ना उतारे जाते सब ु ह सवेरे जब उठ कर बाहर आने लगे तो अाँधेरे में गलती से इमामा समझ कर बीवी
का पायजामा सर से लपेट मलया बाहर तनकले तो बडा मखूल
हुआ | अिाज़तुल यौममया भाग 9 पष्ृ ट 25३ – अशरिुल लताइफ पष्ृ ट 1७0)
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यक़ीनन यह बज़ ु गस दे वबंदी ही होंगे इस मलए फक इन के
यहााँ ग़ैर दे वबंदी तो बुज़ग ु स हो ही नहीं सकता खुद थानवी साहब मलखते हैं फक अहले बबद-अत और गैरल्लाह की इबादत
करने वालों की ममसाल ऐसी है जैसे शैतान की | (मज़ीदल ु मजीद पष्ृ ट ७३ – मल्िूजाते हकीमुल उम्मत भाग 15 पष्ृ ट 1७६)
ब्याह का मज़ा मैं ने अपने बचपन में एक छोटी से फकताब दे खी उस में
मलखा था फक फकसी लडकी ने अपनी सहे ली से दरयाफ्त (पूछा) फकया फक शादी होने के बाद क्या होता है वह हमें भी बतला दो | उस शादी शद ु ा ने जवाब हदया फक तम ु जब मझ ु जैसे हो जाओ गी खुद जान लो गी |
बयाह जाँह ू ी जब तुम्हारा होवे गा जब मज़ा मालम ू सारा होवे गा
(मज़ीदल ु मजीद पष्ृ ट ६9 – मल्िूजाते हकीमुल उम्मत भाग 15
पष्ृ ट 1७३ – अिाज़ातल ु यौममया भाग 10 पष्ृ ट 240)
अशिफ अली थानवी अंग्रेजों का वजीफा ख़ोि
हज़रत मौलाना अशरि अली थानवी साहब हमारे आप के मस्ु जलम बज़ ु ग ु स व पेशवा थे इन के संबंध में कुछ लोगों को यह
कहते हुए सुना गया है फक उन को ६00 रूपया माहवार हुकूमत की जातनब से हदए जाते थे| (अल सरै न पष्ृ ट 9) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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हिपण्णी : उस समय शसपाही की तनखाह ७०० से ९०० रूपए होती थी |
दे विंदी िच्चीयों के शलए थानवी साहि का ख़ास तुहफ़ा
बेहश्ती ज़ेवर मौलवी अशरि अली थानवी साहब ने मसिस औरतों के मलए मलखी थी लेफकन इस में कुछ ततबबी चुट्फकले भी दजस िरमाएं हैं: मुलाहहजा करतें हैं | 1.
एक सरू त यह है फक अज़व तानासल ु (मलंग) जड में पतला और आगे से मोटा हो जावे |
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(बेहश्ती ज़ेवर भाग 11 पष्ृ ट ७३1)
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2. ख़वाहहशे नफ्सनी बहाल खद ु हो मगर अज़व तानासल ु
(मलंग) में कोई नक़ ु स पड जाये इसकी इस वजह से संभोग पर कुदरत (ताक़त) न हो,इसकी कई सूरतें (वजह ू ात) हैं एक यह फक मसिस
जअ ु ि और ढीला पर हो | (बेहश्ती ज़ेवर भाग
11 पष्ृ ट ७३0- ७३1) ३. खुजया का उपर चढ जाना इस मज़स (बबमारी) से चचनक भी
होती है | (बेहश्ती ज़ेवर भाग 11 पष्ृ ट ७३७)
नोट: दे वबंदी मौलवी जब अज़व मखसस ू (मलंग) के मुख्तमलि तसव्वरु ात
व
हालत
के
पाठ
अपनी
दे वबंदी
दो
मशजाओं
(लडफकयों) को पढाते होंगे तो फिर इस की तशरीह करते हुए शायद ........... और जब लडफकयााँ इस फकताब का मत ु ाला करती होंगी तो खखयाल ही खखयाल में अपने महबूब के इन हहजसों का तसव्वरु कर के कहााँ पहुाँच जाती होगी | याद रहे फक बेहश्ती
ज़ेवर मसिस लडफकयों के मलए मलखी है और आज तास्क्वतुल इमान के बाद बेहश्ती ज़ेवर को दे वबंदी के हर घर में होना जरूरी समझा जाता है तजबास कर लें फक दे वबंदी हो और उस के Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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घर में यह दो फकताबें न हूाँ यह हो ही नहीं सकता बस्ल्क हर दे वबंदी अपनी लडकी को जहे ज़ में बहश्ती ज़ेवर जो कई रं गों में छापी गई है दे ना लास्जम समझते हैं |
थानवी की फुहश गोई से िगित
मौलवी अशरि अली थानवी साहब लतीिों बस्ल्क बेहूदा-बेहूदा और िुहश-िुहश हहकायतों से भी वह नताइज (सीख) और नसाइह
(नसीहत)
सुबहानल्लाह....
मुजतन्बत
(बयान)
िरमाते
फक
(अशरिुल सवातनह भाग 1 पष्ृ ट)
थानवी के मामू की कहानी थानवी साहि की ज़ुिानी
मौलाना अशरि अली साहब के मामू ने वाअज़ (बयान) कहने
की यह शतस लगाईं फक" मैं बबलकुल नंगा हो कर बाज़ार से
तनकलों इस तरह फक एक शख्स तो आगे से मेरे अज़व तनासुल
(मलंग) को पकड कर खींचें और दोसरा पीछे से ऊाँगली करे , साथ
में लडकों की िौज हो और वह शोर मचाते जाएाँ, भड़वा है िे , भड़वा है िे , भड़वा है िे | (अल अिाज़ातुल यौममया भाग 9 पष्ृ ट 212)
लड़की नहीं िज़ल्क लड़के से इश्क़
उलमा दे वबंद के अकाबबर उलमा के फकरदार के िोहड पर के संबंध से कािी मुताला फरमाया | अकाबबर हूाँ या असाचगर, उलमा ए दे वबंद के जमाअत में अचधकतर ऐसे मल् ु लाओं की पाई जाती है जो हदल से हदल अटकने और ममलाने के मआ ु मले में Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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फौरन हदल को पानी कर दे ते हैं | मौलवी कामसम नानोतवी, बानी ए दारुल उलूम दे वबंद के शाचगदस रशीद मौलवी मंसूर अली साहब मुरादाबादी का ऐसा एक ग़ैर फितरी कारनामा खुद उनकी
ज़ब ु ानी सन ु े | इस वाफकया को वहाबी, दे वबंदी के हकीमल ु उम्मत मौलवी अशरि अली थानवी ने फकताब" हहकायते औमलया" में नक़ल फरमाया है | हहकायत: हज़रत वामलद साहहब मरहूम ने फरमाया फक मौलाना मंसरू अली खान मरहूम मरु ादाबादी हज़रत नानोतवी रहमतुल्लाह के तलाममज़ा (शाचगदस ) में से थे | तबीअत के बहुत पख् ु ता थे इसमलए स्जधर माइल होती थी पोख्तगी और इनहहमाक के साथ उधर झुकते थे | उन्होंने ने अपना वाफकया खुद भी मुझ से नक़ल फरमाया फक मुझे एक लड़के से इश्क हो
गया और इस कदर मह ु बबत ने गलबा पाया फक रात हदन उसी की तसव्वुर में गुजरने लगे मेरी अजीब हालत हो गई | तमाम
कामों में अस्ख्तलाल हो ने लगा | हज़रत की फिरासत ने भांप मलया लेफकन सब ु हानल्लाह तरबीयत व तनगरानी इसे कहते हैं
फक तनहायत बे तकल्लि ु ी के साथ हज़रत ने मेरे साथ दोजताना बरताव शरू ु फकया और इस क़दर बढा या फक जैसे दो यार
आपस में बे तकल्लुि हदल लगी फकया करते हैं, यहााँ तक खुद ही इस मुहबबत का स्ज़क्र छे डा, फरमाया फक हााँ भाई वह (लड़का) तुम्हािे पास कभी आते भी हैं या नहीं मैं शमस व हहजाब
से चप ु रहा तो फरमाया फक नहीं भाई यह हालात तो इंसान ही पर आते हैं इस में छुपाने की क्या बात है गरज इस तरीक से
मझ से गफ् ु ु तगू की फक मेरी ही जब ु ान से उस (लड़के) की Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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मुहब्ित का इक़िाि किा शलया | (हहकयात ए औमलया लेख़क मौलवी
अशरि अली थानवी प्रकामशत क़ुतुब खाना नाइममया दे वबंद हहकायत नम्बर 251 पष्ृ ट 2६4)
हजरत (मौलवी खलील अहमद) का एक जाफकर शाचगल
खाहदम एक मदरसा में मुद्दररस (उजताद) थे उन को एक
अमिद (िे-िे श) लड़का से ताअल-लुक हो गया उस की सूित दे खे िगैि चैन न आता था | (तज़फकरा तल ु खलील पष्ृ ट 49)
थानवी को अपने नफस पि इतमाद नहीं
मैं ने अपने लोगों को मम ु ातनयत (मना) कर दी थी फक
तसनीि के कमरे में जहााँ में तन्हा होता हूाँ फकसी नो उम्र (अमरद) लड़के को ना भेजा किें मझ ु े अपने नफस पि एनतमाद (कंट्रोल) नहीं | (मजमलसे हकीमुल उम्मत पष्ृ ट 5७)
िअज़ अहले इल्म दे विंदी के नज़दीक जन्नत में लवातत का अमल
बअज़ अहले इल्म ने मलख हदया है फक जन्नत में लवातत (लडकों के साथ गंदा काम करना) होगी | हालााँफक या िअल (काम) क़बीह (बहुत गंदा) है इस मलए इस फक इजाज़त वहां भी नहीं हो सकती, फिर फरमाया स्जन लोगों की तबीअत उसी तरफ माइल है वह दतु नया में तो वजह ए तक्वा इस िअल (काम) से
बचे रहे मगर उन्हों ने वहााँ के मलए गूंजाइश तनकल ली | (हसनल ु अज़ीज़ पष्ृ ट 89)
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ख़ूिसूित लड़के (अमिद) को दे खना
लखनऊ के अतराफ में एक मुक़ाम पर एक आमलम रहते
थे वह एक लड़के पि आशशक़ थे और उस को बहुत मह ु बबत से पढाते थे | जब वामलद साहब को उस के हुजन का फक़जसा मालूम हुआ | वह हजबे आदत उसे दे खने चल हदए ..... स्जस वक़्त वामलद साहब पहुंचे हैं तो उस वक़्त लडका कोठरी के अन्दर था वामलद साहब असबाब रख कर उन आमलम से
मस ु ािहा करने गए | जब यह सह दरी में पहुंचे तो वह लडका उन को दे ख कर सह दरी में से तनकला | वामलद साहब ने मस ु ािहा के मलए (उन आमलम साहब से) हाथ बढाए थे फक
उन फक नज़र उस लडके पर पड गई | स्जस से मुसािहा तो
रह गया और वामलद साहब उस लडके को दे खने में मज ु तगकस हो गए | उन आमलम ने जब यह दे खा फक यह मुसािहा करना चाहते थे मगर यह मुसािाहा नहीं कर सके तो उन्होंने
मुंह िेर कर अपने पीछे दे खा तो उनको मालूम हुआ फक लडका खडा है और यह उस को दे खने में मसरूि हैं | जब उनको मालम ू हुआ फक यह हज़रत भी हमारे माह रं ग मालम ू होते हैं तो उन्हों ने उस लडके को आवाज़ दी और कहा फक इन साहब से मस ु ािहा करो | (अरवाहे सलासा भाग 5 पष्ृ ट 2३4)
औित से नज़ि िाज़ी एक मौलवी साहब ने अपने एक खाहदम से अपना वाफकया
बयान फकया | उस खाहदम ने मझ ु से ररवायत की, फक मैं ने Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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एक बहली का फकराया फकया जब बहली शहर के फकनारे पहुंची तो वहााँ उस बहली का मकान था वहां उस ने बहली को रोका
उसकी बीवी उस को खाना दे ने आई वह बहलीबान इस क़दर बद शक्ल था फक शायद
ही कोई और दस ू रा ऐसा हो और वह
ऐसी हसीन फक शायद ही कोई दस ू री हो मगि उस वक़्त उस को दे ख िहा था कक या मेिी तिफ़ नज़ि किती है या नहीं | (अिाज़ातुल यौममया भाग 4 पष्ृ ट 2६8)
ज़जस का हदल हदलिि में हो कि उस को िस आती है नींद किविें
ही लेते
साफ़
उड़
जाती
है
नींद
(अिाज़ातुल यौममया भाग 2 पष्ृ ट 108)
अवाम का आस्था शमस्ल गधे का शलंग
आ-मतुल मुस्जलमीन स्जन को अवाम कहा जाता हैं उन की
तादाद बे शम ु ार है | अवाम के आजथा (इवत्तकाद) का मजाक और हं सी उडाते हुऐ थानवी साहब ने अवाम के आजथा को गधे के मलंग से ममसाल दी है | मलखते हैं "अवाम के इवत्तकाद
(आजथा) है ही क्या चीज़, हमारे मौलाना मह ु म्मद याकूब साहब रहमतुल्लाह इस इवत्तकाद (आजथा) की एक ममसाल बयान फरमाया करते थे, है तो िुहश मगर है बबलकुल चजपााँ, फरमाया
करते थे फक अवाम के अक़ीदे की बबलकुल ऐसी हालत है जैसे
गधे का अज़व मखसूस (मलंग), बढे तो बढता ही चला जाए और गायब हो तो बबलकुल पता ही नहीं, वाक़ई अजीब ममसाल है " |
(अल अिाज़ातुल यौममया ममनल अिादातुल कौममया (थानवी साहब के
मल्िूज़)
प्रकामशत मक्तबा ए दातनश दे वबंद मल्िूज़ नम्बर ३44 , भाग
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2
फकजत 2
पष्ृ ट ३5 / हसनुल अज़ीज़ लेखेक मौलवी अशरि थानवी
भाग ३ हहजसा ३ फकजत 14, प्रकामशत तमलित ए अशरफिया थाना भवन स्जला मज़ ु फ्िर नगर )
अशरि अली थानवी साहब मलखते हैं फक एक शख्स फकसी माकन में अन्दर से कुण्िी लगा कर फकसी औरत से स्जना कर रहा था लोगों ने दजतक दी तो अन्दर से कहता है ममयां यहााँ
जगह कहााँ है यहााँ तो खुद आदमी पर आदमी पडा है | (अल अिाज़ातुल यौममया ममनल अिादातुल कौममया (थानवी साहब के मल्िूज़)
पष्ृ ट 4७)
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कमि िंद खोल दे ना
आप (मौलवी कामसम नानोतवी, बानी ए दारुल उलूम दे वबंद)
बच्चों से बहुत हाँसी मजाक िरमाते थे उन के कमर बंद खोल हदया करते थे | (सवातनह कासमी भाग 1 पष्ृ ट 444)
कुछ कुफ्री अकीदे
अल्लाह झूि िोल सकता है
ٰ मौलवी रशीद अहमद गंगोही मलखते हैं फक अल्लाह )وتعالی )سبحانہ झट ू बोल सकता है | (फतवा रशीहदया काममल )
ٰ )سبحانہको पहले से इल्म नहीं होता अल्लाह )وتعالی
ٰ मौलवी हुसैन अली मलखते हैं फक अल्लाह )وتعالی )سبحانہको पहले से इल्म नहीं होता फक बंदा क्या करें गे जब बन्दे करते हैं तो अल्लाह को इल्म (मालूम) होता है | (तफसीर बलगतुल है रान पष्ृ ट 15७-158)
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अल्लाह की शान में गुस्ताखी
बानी ए दे वबंद मौलवी कामसम नानोतवी ने बचपन में
ٰ ख़्वाब दे खा था... गोया फक अल्लाह )وتعالی )سبحانہकी गोद में बैठा हुवा हूाँ | (सवातनह कासमी भाग 1 पष्ृ ट 1३2, मशाइख ए दे वबंद पष्ृ ट 14३)
ٰ )سبحانہ दे वबंदी मौलवी अशरि अली थानवी में अल्लाह )وتعالی
को मकर करना (फरे ब करने वाला मलखा है | (सुरह आले इमरान आयत 54) معاذہللا
हुज़ूि अकिम
()صلیہللاعلیہوسلم
का इल्म
मौलवी खलील अहमद अम्बेठ्वी ने मलखा है फक शैतान और मल्कुल्मौत का इल्म हुज़रू अकरम (बराहीन
()صلی ہللا علیہ وسلم
से ज्यादह है |
ए काती आ पष्ृ ट 51)
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दे वबंहदयों के सरदार मौलवी अशरिी अली थानवी ने मलखा है फक हुज़रू अकरम ( )صلی ہللا علیہ وسلمको अल्लाह ने जैसा इल्म और स्जतना इल्म गैब अता फरमाया है वैसा इल्म जानवरों, पागलों और बच्चों को भी हामसल हैं | (हहिजुल इमान पष्ृ ट 1३)
हुजूि उदत ू जुिान दे विंद के उलमा से सीखी
मौलवी खलील अहमद अम्बेठ्वी ने मलखा है फक हुजूर को दे वबंद के उलमा के ताअल्लक़ ु से उदस ू जब ु ान आई | (बराहीने काततआ पष्ृ ट 2६)
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दे विंहदयों को दे विंद नाम से िदिू आती है
मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद रफी उजमानी मलखते हैं फक मेरे वामलद
साहब ने दे वबंदी मलखने से मना फरमाया क्यंफू क चगरोह बंदी की बदबू आती है | (मसलक ए दे वबंद पष्ृ ट 20)
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अब दारुल उलूम दे वबंद के हकीक़त पढें फक वहााँ पर कैसी
तालीम दी जाती है स्जस पढ कर आप खुद ही समझ जायेगें |
दारुल उलूम दे विंद के छात्रों की शिाितें
दे वबंदी मौलवी मुनास्जर अहसान चगलानी ने दे वबंद के त-ल-बा
(छात्रों) की
मुख्तमलि (ववमभन्न) शरारतों का स्ज़क्र (उल्लेख)
फकया है | हम यहााँ मसिस खौि ए तवालत की वजह से दो चीज़ें
नक़ल करते हैं | हमारी त ल बा की यह टोली इस फकजम की हरकात भी फकया करती थी यानी गोश्त (मास) की झल्ल्ली में पटास वाले पटाखे की गोमलयों को लपेट कर कुत्तों के आगे िाल दे ती स्जस में पत्थर का टुकडा भी महिूज़ कर हदया जाता, कुत्ते
ग़रीब गोश्त की लालच में परू ा मंह ु उन पर मारते | दांतों के नीचे दबने के साथ ही यह गोली मुंह के अन्दर िटती और एक
है बतनाक आवाज़ आती | ग़रीब एक अजीब मुसीबत में मुबतला हो जाता इस तरह चााँदनी रातों में यही टोली यह हरकत भी फकया करती थी फक कजबा में इधर उधर गधे जो मारे मारे फिरते, उन को पकडते और दम ु उठा कर वपसी हुई मसयाह ममचों का सिूफ (पाउिर) उस के (शमसगाह) अन्दर िाल हदया करते | तामलब इ इल्म उस पर सवार हो जाते और ममचों की वजह से
गधों पर एक हाल तारी हो जाता फक लाख उन को रोकते मगर वह भागते चले जाते थे और खर सवारों का यह चगरोह अपनी अपनी शह सवारीयों के कमालात हदखाता | में बीते हुए हदन पष्ृ ट 9-198 प्रकामशत मुल्तान)
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(इहाता दारुल उलूम
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गैि औित से संभोग
मौलवी अशरि अली थानवी साहब ने दे वबंदी लडफकयों के
मलए मलखी गई मशहूर व मारूि फकताब िेहश्ती ज़ेवि में मलखते हैं फक अपनी बीवी समझ कर गैर औरत से सुहबत कर ली, कुछ गन ु ाह नहीं | (बेहश्ती ज़ेवर भाग 4 पष्ृ ट 1६8)
गैि मक़ ु ज़ल्लदीन के नज़दीक
औित के मुंह में (शलंग) र्ालना जायज़ है
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दे विंहदयों के वाहहयापन औि उरूज पि
मौलवी गुलाम गौस दे वबंदी का अपने अमीरे शरीअत आता
उल्लाह बख ु ारी के मंह ु में
खा या ए इबलीस (शैतान का मलंग)
का नुजखा िाल हदया दे वबंदी के अमीरे शरीअत ने सब जान लेने के बाद भी गैरत न खाई और ना उलटी फक बस्ल्क क़हक़हा
लगाया खा या ए इबलीस के म अ दे से अंत में मुन्ताफकल कर ते हुए िकाररया कत-आ मलखा : मुलाहहजा करें .... (सवाततउल इलहाम पष्ृ ट 14)
तिलीगी जमाअत अपनी नज़ि में
मौलवी मंज़रू अहमद में गल से तबलीचगयों ने पछ ू ा फक आप के
मदरसे में दीन का काम होता है तो मौलवी साहब ने गज ु सा में
आकर िरमाया फक "िस हदन को यह त ल िा (छात्र) मेिे ऊपि औि िात को मैं इन के ऊपि होता हूाँ | (संगीन फफतना) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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िे सनद हकीमुल उम्मत
ना फ़क़ीह ना मफ़ ु ज़स्सि िज़ल्क जाहहल
मुझ को मदरसे से सनद नहीं ममली | मदरसा ने दी ही नहीं
हम ने मांगी नहीं क्यूंफक यह इतक़ाद (यक़ीन) था फक हम को कुछ आता नहीं फिर सनद क्या मांगते | (अिाज़ातुल यौममया भाग 1 पष्ृ ट 282 – मजमलस ए हकीमुल उम्मत पष्ृ ट 244)
मैं फक़ीह नहीं मुहद्हदस नहीं मुजतहहद नहीं मुिस्जसर नहीं | (अिाज़ातुल यौममया भाग 1 पष्ृ ट 1७1)
अल हम्दमु लल्लाह ! अब तक यही एतक़ाद है आप चाहे हलफ
ले लीस्जये मुझे कुछ नहीं आता |
(अिाज़ातुल यौममया भाग 9 पष्ृ ट 1६३)
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मैं तवाजो (इन्क्सारी) से नहीं कहता | वाफकया है फक (मझ ु े)
इल्मी मलयाक़त कभी हामसल हूई ही नहीं |
(अिाज़ातुल यौममया भाग 4 पष्ृ ट 1६३)
थानवी का इक़िाि दे वबंहदयों के हकीमुल उम्मत मौलवी अशरि अली थानवी
ने इकरार फकया है फक हम ना लाएक हैं गुनाहगार हैं मसयाह्कार हैं नाबबकार हैं गुजताख़ हैं | (अिा जातुल यौममया भाग ६ पष्ृ ट ३21)
फिर दस ू री फकताब में मलखा गया है फक मैं तो अपने को
कुत्तों और सूअरों से भी बदतर समझता हूाँ अगर फकसी को यकीन ना हो तो मैं इस पर हलफ उठा सकता हूाँ | (अशरिुल सवातनह भाग 4 पष्ृ ट 4३)
थानवी साहब िरमाते थे फक मैं खबीस हूाँ | (हज़रत थानवी
के है रत अंगेज़ वफक़आत पष्ृ ट ६३0- मल्िूज़ात हकीमूल उम्मत भाग ६ पष्ृ ट ३00)
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दे वबंदी मौलवी याकूब नानोतवी ने भी कहा है फक मैं भी
ख़बीस हो | (अिाज़ातुल यौममया भाग ६ पष्ृ ट 211 )
सच तो यह है फक हमारे बुज़ग ु स हम को बबगाड गए कोई
और पसंद ही नहीं आता | (अिाज़ातल ु यौममया भाग ६ पष्ृ ट 205)
िद तमीज़ी की मश्क़ थानवी पि दे वबंदी हकीमुल उम्मत अशरि अली थानवी फरमाते हैं फक
सारे दतु नया से बद तमीज़ी सीख कर आते हैं और मुझ पर मश्क़ की जाती है |
(अिाज़ातुल यौममया भाग ६ पष्ृ ट 2६३)
वली होने में तो मेरे शक नहीं मगर बबगाडने का वली हूाँ संवारने का नहीं | अरवाहे सलासा पष्ृ ट ३३5 – मवा इज़ ममलादन्ु नबी पष्ृ ट 28७)
चचडड़या छोड़ आऊं दे वबंदी हकीमुल उम्मत अशरि अली थानवी फरमाते हैं फक
यहााँ पर एक हाफिज़ साहब थे बच्चों को पढाया करते थे उन्हों ने एक क़ाईदा (क़ानन ू ) मक़ ु रस र फकया था और वह इस वजह से
फक लडके वहीीँ बैठे बैठे बदबू िैलाते रहते थे | हाफिज़ साहब
ने परे शान हो कर हुक्म हदया फक बाहर जाकर ऐसा फकया करो | हाफिज़ साहब ने यह तजवीज़ फरमाया फक यह कह कर इजाज़त मलया करो फक चचडडया छोड आऊं | बस बच्चों को एक बात हाथ आ गई | हर वक़्त उनके मलए शग ु ल हो गया | एक इधर से उठता है हाफिज़ जी ! चचडडया छोड आऊं, एक
उधर से उठता है हाफिज़ जी ! चचडडया छोड आऊं | हाफिज़ Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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जी बे चारे हदक (तंग) आ गए, तब कहा अबे यहीं छोड हदया करो | (अिाज़ातुल यौममया भाग 8 पष्ृ ट 25६)
थानवी के ज़जस्म का मैल फक
मौलवी अशरि अली थानवी ने खाहदम से इरशाद फरमाया कमर मल दो, उन्होंने कमर मलना शरू ु की तो दरयाफ्त
फरमाया फक मैल भी तनकल रहा है या नहीं
उन्होंने ने कहा
फक नहीं ..... थानवी ने कहा में तो समझता हूाँ फक मैल जो बदन से नहीं तनकलता वह सब हदल में जमा होता रहता हैं | (अिाज़ातुल यौममया भाग 9 पष्ृ ट 2७1)
नमाज़ में हुज़ूि
()صلیہللاعلیہوسلم
का ख्याल
मौलवी इजमाइल दे हलवी ने मलखा है फक नमाज़ में हुज़रू अकरम ( )صلی ہللا علیہ وسلمकी तरि खखयाल का मसिस जाना भी बैल, गधे के खखयाल में िूब जाने से बुरा है | (सीरत ए मुजतकीम फारसी पष्ृ ट 8६)
मौलवी कामसम नानोतवी ने मलखा है फक उम्मती बा ज़ाहहर
अमल में नबी से बढ जाता है |
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(तहजीरून नास पष्ृ ट 05)
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मौलवी कामसम नानोतवी ने मलखा है फक जो खस ू मु सयात नबी अकरम
()صلیہللا علیہوسلم
की है वही दज्जाल की है | (आबे हयात पष्ृ ट 1६9)
मौलवी इजमाइल दे हलवी ने मलखा है हुज़रू मर कर मट्टी में ममल गए | (तक्वीयतुल इमान पष्ृ ट 59)
इंसाफ किो ! दे वबंहदयों के मौलवी ने मलखा है फक भाई हम
तो क़ब्र में मसिस नमाज़ पढा करें गे | (अरवाहे सलासा पष्ृ ट ३5७)
दे वबंदी मौलवी इजमाइल दे हलवी ने मलखा है नबी, रसूल सब
नाकारा हैं |
(तक्वीयतल ु इमान पष्ृ ट 29)
इजमाइल दे हलवी ने मलखा है फक तमाम मख्लक़ ू अल्लाह की
शान के आगे चमार से भी ज़लील है | (तक्वीयतुल इमान पष्ृ ट 1६)
मौलवी इजमाइल दे हलवी ने मलखा है फक गााँव में जैसा दजास चोधरी, जमीनदार का है ऐसा दजास उम्मत में नबी का है | (तक्वीयतल ु इमान पष्ृ ट ६1) Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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मौलवी इजमाइल दे हलवी ने मलखा है फक स्जस का नाम मुहम्मद या अली है वह फकसी चीज़ का मुख़्तार नहीं, नबी और वाली कुछ नहीं कर सकते |
(तक्वीयतुल इमान पष्ृ ट 41)
मौलवी इस्माइल दे हलवी का एतिाफ़
मौलवी इजमाइल दे हलवी ने तक्वीयतल ु इमान मलखने के
बाद अपने ख़ास ख़ास लोगों को जमा (इकठ्ठा) फकया और
उनके सामने तक्वीयतल ु इमान पेश की और फरमाया फक मैंने यह फकताब मलखी है और मैं जानता हूाँ इसमें बअज (कुछ) जगह ज्यादह तेज़ अल्िाज़ भी आ गए हैं और बअज़ जगह तशद्दद ु भी हो गया है मसलन (जैसे फक) उन उमूर को जो मशकस ए ख़िी थे मशकस ए जली मलख हदया गया है इन वजह ू (सबब) से मझ ु े अंदेशा है इसकी ईशाअत (प्रजतत ु )
से शोररश (दं गा िसाद)
जरूर होगी मैंने यह फकताब मलख दी, गो (अगरचे) इस से Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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शोररश होगी मगर तवक्को (उम्मीद) है फक लड मभड कर खद ु ठीक हो जायेंगे | (अरवाहे सलासा हहकायत 59)
रशीद गंगोही ने मलखा है फक हहंदओ ू ं की होली, दीवाली का
प्रशाद वगैरह जायज़ है | (ितवा रशीहदया भाग 2 पष्ृ ट 12३)
फाततहा खाने या शीरनी पर पढना बबदअत ज़लालत है हरचगज़ हरचगज़ ना करना चाहहए | (ितवा रशीहदया)
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ममलाद शरीि में भी मशरकत करना दरुजत नहीं ितवा रशीहदया भाग 2 पष्ृ ट 1३0)
मौलवी ज़काररया कान्धल्वी ने मलखा है फक दरु ू द ताज ना
पसंदीदा है और पढना ना जायज़ है | (फज़ाइल ए आमाल पष्ृ ट 52७३ बाब फज़ाइल दरूद शरीफ प्रकामशत मक्तबा आररिीन कराची)
दरू ु द ए ताज वगैरह ना पसंद थे |
(तस्ज्करुतुल ख़लील)
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यह तो थे बतौर नमन ू ा ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन और दे वबंहदयों की
पुजतक के चंद हवाले से वरना अगर आप ग़ैर मुक़स्ल्लदीन और दे वबंहदयों की पज ु तकों को उठा कर दे खें तो आप को बे
शम ु ार हया सोज़ और गंदे मसाइल ममलें गे और वह भी कुरान व हदीस के नाम पर, आखखर में हम पाठकों से पूछते हैं फक
स्जतने गंदे और हया बाखता मसाइल ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन और दे वबंहदयों ने अल्लाह और उसके रसूल
))صلی ہللا علیہ والہ وصحابہ وسلم
से मनसूब
फकए हैं क्या फकसी हहन्द,ू मसख, इसाई, या यहूदी ने भी अपने मज़हबी पेशवाओं (धाममसक गुरु) से मनसूब फकये हैं ???
या ग़ैर मुक़स्ल्लदीन और दे वबंदी उन सब पर सबक़त
(बढत) ले गए हैं ?
आखखर मैं हम अल्लाह तआला से दआ करते हैं अल्लाह ु
तअला ग़ैर मक़ ु स्ल्लदीन और दे वबंहदयों को हहदायत की दौलत से नवाजें और उम्मत मुस्जलमा को इस फितने के मकर व फरे ब से महिूज़ रखे ! (आमीन)
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वसीयत-ए-आला हजित स्जस से अल्लाह व रसूल की शान में अदना तौहीन पाओ
कफर वो तुम्हारा कैसा ही प्यारा हो उस से जद ु ा हो जाओ |
स्जसको बारगाह-ए-ररसालत में जरा भी गस् ु ताख दे खो कफर वो
तुम्हारा कैसा ही मुअज्जम कयूाँ न हो अपने अन्दर से उसे दध ू से मकखी की तरह ननकालकर फेंक दो |
मैं पौने चौदह बरस की उम्र से यही बताता रहा और इस
वकत कफर यही अजज करता हूाँ | अल्लाह तआला जरूर अपने
दीन की टहमायत के मलये ककसी बांदे को खड़ा कर दे गा |
मगर नहीां मालम ू मेरे बाद जो आये कैसा हो और तुम्हें कया बताये |इसमलये इन बातों को खब लो हुज्जतल् ू सन ु ु लाह कायम हो चुकी | अब मैं कब्र से उठ कर तुम्हारे पास बताने
न आऊाँगा | स्जसने इसे सन ु ा और माना कयामत के टदन उसके मलये नूर-व-नेजात है और स्जसने न माना उसके मलये जल् ु मत-व- हलाकत |"
दवात ए अमल
1. ईमान की रक्षा के मलए आला हज़रत अल शाह इमाम अहमद रजा खान अलैहहर रह्मां और अन्य उलेमा ए अहले सन् ु नत व जमाअत की पज ु तकों का अध्ययन कीस्जए जो
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हज़रात खद ु न पढ सकें वह अपने पढे मलखे भाई से अनरु ोध करें फक वह पढकर सन ु ाए। 2. मसलके अहले सुन्नत व जमाअत और मशरबे
क़ादरीयत
या चचश्तीयत या सुहरवदीयत या नकशबंदीयत पर मज़बूती से स्जथर रहें और बदमज़हबों की सह ु बत से बचें । ३. फराइज़
व
वास्जबात
की
अदाई
को
हर
कायस
पर
प्राथममकता दीस्जए इसी तरह हराम और मकरूह कायों और बबदआत से परहे ज़ कीस्जए फक इसी में दतु नया और आखखरत की भलाई है । 4. िरीज़ा ए नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात तमाम तर
कोमशश
से अदा कीस्जए फक कोई साधना और मुजाहहदा इन फराइज़ की अदाई के बराबर नहीं है । 5. पााँचों वक्तों की नमाज़ें अपने तनकट के सुन्नी मस्जजदों में अदा करें और इमाम साहब का भी ख्याल रखा करें क्योंफक वह कौम का रहबर व रहनम ु ा है | ६. ज्यादा से ज्यादा शरीअत की पाबंदी करें | ७. ख़ुश इख्लाकी, हुसन ए मामला और वादा विाई से
अपनी
पहचान बनाइए। 8. अपनी जब ु ान, हाथ या फकसी और तरीके से हरचगज़ हरचगज़ कभी भी फकसी को तकलीफ न पहुंचाए | यहााँ तक फक पेड, पौधों और जानवरों को भी | Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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9. क़जस हर हाल में भुगतान कीस्जए फक शहीद के सभी पापों को माि कर हदए जाते हैं लेफकन क़जस माि नहीं फकया जाता है । फकताबों में है फक जो दतु नया में लगभग तीन पैसे क़जस दबालेगा फक़यामत के हदन उस के बदले सो बा जमाअत नमाज़ दे नी पड जाएंगी। गौरतलब है फक आप से हुकूकुल एबाद (बन्दों के हक़ की अदाइ) में कोताही न हो। 10.
.कुरान शरीि की ततलावत कीस्जए और उसके मतलब
व मिाहीम समझने के मलए क़ुरआने पाक
का सबसे
अच्छा कंज़ल ु इमान तजम ुस ा ए कुरान (इमाम अहले सन् ु नत अल-शाह इमाम अहमद रजा खान अलैहहर रह्मां) पढकर इमान ताजा कीस्जए। 11.
अपने अपने मशरब के शजरा शरीि में हदए गए
वज़ाइफ की पाबंदी करें । 12.
प्रत्येक चांर मास की ६ तािीख को सुल्तानल ु हहन्द
हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़
))قدس سرہ النورانی
११ तािीख को ग़ौस
आज़म महबूबे सुबहानी शेख अबदल ु काहदर स्जलानी
))قدس سرہ النورانی
और २८ तािीख को ग़ौसुल आलम महबूबे यज़दानी सुल्तान सैयद अशरि जहांगीर मसमनानी
))قدس سرہ النورانی
की िाततहा का
व्यवजथा करें ।
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1३.
िाततहा, उसस, ममलाद शरीि, शाहदयों और इस तरह के
सभी समारोहों में भोजन, ममठाई और िलों के इलावा उलेमा-ए-अहले सुन्नत की पुजतकों का भी ववतरण कीस्जए। 14.
अल्लाह और उसके हबीब सल्लल्लाहु अलैहह व सल्लम
के अहकाम व िरमान जानने, उन पर अमल करने और दस ू रों तक पहुंचाने के मलए सभी सन् ु नी
संगठनों और
आंदोलनों अपने आप को और दस ू रों को भी शाममल कीस्जए। 15.
हर शहर में सन्ु नी पबत्रकाओं, मलटरे चर या फकताबें प्रदान
करने के मलए पुजतकालय जथावपत कीस्जए यह तबलीग़ भी है और अच्छी व्यापार भी। 1६.
इजलामी बहनों की मशक्षा और प्रमशक्षण के मलए कम
से कम हर महीने में अपने क़ुबस व जवार में
इजलामी
बहनों की समारोहों इस्न्तज़ाम कीस्जए। 1७.
मज़ारात में उल्टी-सीधी हरकतें करना जैसे बे पदास
महहलाओं का जाना, नाच गाना करना, चरस पीना, जगह जगह नकली आममलों और नकली पीरों की बोिस होना आहद। इन सब कामों को अहले सुन्नत व जमाअत पर िाल बदनाम करने की नापाक कोमशश की जाती है इसमलए इन सभी ख़राफातों से मक् ु त करने की भरपरू कोमशश करें ।
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18.
कोई व्यस्क्त मज़ाराते औमलया पर जाकर सजदा या
पररक्रमा करता है तो उसे सख्ती से रोका जाए और उन्हें अहले सुन्नत व जमाअत की सही
मशक्षाओं से अवगत
कराया जाए। 19.
ऑल इंडर्या उलेमा
व मशाईख िोर्त की सदजयता
जवीकार कीस्जए, और सदजयता िामस कायासलय से हामसल कीस्जए। अंत ................................... में اللھم اختم لنا بحسن الخاتمہ والتختم علینا بسوء الخاتمہ اللھم ارزقنی شھادۃ فی سییلک واجعل مو تی فی بلد رسول لک صلی اہلل علیہ وسلم وصلی اہلل علی خیر خل قہ دمحم والہ واصحابہ اجمعین برجمتک با ارجم الراجمین मौत आए दर ए नबी
) )صلیہللا علیہوالہوصحابہوسلم
पर सय्यद
वरना थोडी सी जमीं हो शहे मसमनां के क़रीब फक़ीर ए क़ादरी गदा ए अशरफ ए मसमनां आले रसल ू अहमद अल-मसद्दीक़ी अल-अशरफी अल-क़ादरी कहटहारी ररयाद (सऊदी अरब)
11 रबीउल गौस 14३७ हहजरी बरोज़ गुरुवार बाद नमाज़े मग़ररब
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Introduction to AIUMB All India Ulama & Mashaikh Board (AIUMB) has been established with the basic purpose of popularizing the message of peace of Islam and ensuring peace for the country and community and the humanity. AIUMB is striving to propagate Sunni Sufi culture globally .Mosques, Dargahs, Aastanas, and Khanqwahs are such fountain heads of spirituality where worship of God is supplemented with worldly duties of propagating peace, amity, brotherhood and tolerance. AIUMB is a product of a necessity felt in the spiritual, ethical and social thought process of Khaqwahs.Khanqwahs also have made up their mind to update the process and change with the changing times. As it is a fact that Khanqwahs cannot ignore some of the pressing problems of the community so the necessity to change the work culture of these centers of preaching and learning and healing was felt strongly. AIUMB condemns all those deeds and words that destabilize the country as it is well known that this religion of peace never preaches hatred .Islam is for peace. Security for all is the real call. AIUMB condemns violence in all its form and manifestation and always ready to heal the wounds of all the mauled and oppressed human beings. The integral part of the manifesto of AIUMB is peace and development. And that is why Board gives first priority to establish centers of quality modern education in Sunni Sufi dominated ares of the country. The other significant objectives of the Board are protection of waqf properties, development of Mosques, Aastanas, Dargahs and Khanqwahs. This Board is also active in securing workable reservation for Muslims in education and employment in proportion to their population. For this we have been organizing meetings in U.P, Rajasthan, Gujrat, Delhi, Bihar, West Bengal, Jharkhand, Chattisgadh, Jammu& Kashmir, and other states besides huge Sunni Sufi conferences and Muslim Maha Panchayets. Sunni conference (Muradabad 3rd Jan 2011) Bhagalpur (10th May 2010) and Muslim Maha Panchayet at Pakbara Muradabad (16th October 2011) and also Mashaikh e tareeqat conference of Bareilly (26th November 2011) are some of the examples. Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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HISTORICAL FACT AND THE NEED OF THE HOUR
The history of India bears witness to that fact that when Alama Fazle Haq Khairabadi gave the clarion call to fight for the freedom of our country all the Khanqahs and almost all the Ulama and Mashaikh of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat rose in unison and gave proof of their national unity and fought for Independence which resulted in liberation of our country from British rule. But after gaining freedom, our Khanqahs and The Ulama of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat went back to the work of dawa and spreading Islam, thinking that the efforts that were undertaken to gain freedom are distant from religion and leaving it to others to do the job. Thus the Independence for which our Ulama and Mashaikh paid supreme sacrifice and laid down their lives resulted in us being enslaved and thereby depriving us legimative right to participate in the governance of our country. After the Independence hundreds of issues were faced by the Umma, whether religious or economic were not dealt with in a proper way and we kept lagging behind. During the lat 50 years or so a handful of people of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat could become MLA’s, MP’s and minister due to their individual efforts lacking all along solid organized community backing as a result of which Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat remained disassociated with the Government machinery and we find that we have not been able to found foothold in the Waqf Board, Central Waqf Board, Hajj Committee, Board for Development of Arbi, Persian & Urdu or Minorities Commission. Similarly when we look towards political parties big or small we see a specific non-Sunni lobby having strong presence. In all the Institution mentioned above and in all political parties Sunni presence is conspicuous by its absence. Time and again Ulama and Mashaikh have declared that the Sunni’s constitutes a total of approximately 75% of all Muslim population. This assertion have lived with us as a mere slogan and we have not been able to assert ourselves nor have we made any concerted efforts to do so. It is the need of the hour that The Ulama and Mashaikh should unite and come on single platform under the banner of Ahl-E- Sunnah Wal-Jamaat to put forward their message to the Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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Sunni Qaum. To propagate our message Sunni conferences should be held in the District Head Quarters and State Capitals at least once a year to show our strength and numbers this is an uphill task and would require huge efforts but rest assured that once we do that we shall be able to demonstrate our number leaving the non-Sunni way behind thereby changing the perception of political parties towards us and ensuring proper representation in every field.
AIMS AND OBJECTIVES OF AIUMB To safeguard the right of Muslim in general and Ahl-ESunnah Wal-Jamaat in particular. To fight for proper representation of responsible person of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat in national and regional politics by creating a peaceful mass movement. To ensure representation of Sunni Muslim in Government Organization especially in Central Sunni Waqf Boards and Minorities Commission. To fight against the stranglehold and authoritarianism of nonSunni’s in State Waqf Board. To ensure representation of Ahl-E-Sunnah Wal-Jamaat in the running of the state waqf board. To end the unauthorized occupation of the Waqf properties belonging to Dargahs, Masajids, Khanqahs and Madarasas, by ending the hold of non-Sunni’s and to safeguard Waqf properties and to manage them according to the spirit of Waqf. To create an envoirment of trust and understanding among Sunni Mashaikh, Khanqahs and Sunni Educational institution by realizing the grave danger being paced by Ahl-E-Sunnah Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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Wal-Jamaat. To rise above pettiness, narrow mindedness and short sightedness to support common Sunni mission. To work towards helping financially weak educational institutions. To provide help to people suffering from natural calamities and to work for providing help from Government and other welfare institutions. To help orphans, widows, disabled and uncared patients. To help victims of communalism and violence by providing them medical, financial and judicial help. To organize processions on the occasion of Eid-MiladunNabi (SAW) in every city under the leadership of Sunni Mashaikh. To restore the leadership of Sunni Mashaikh in Juloos-E-Mohammadi (SAW) wherever they were organized by Wahabi and Deobandis. To serve Ilm-O-Fiqah and to solve the problem in matters relating to Shariah by forming Mufti Board to create awareness among the Muslims to understand Shariah. To establish Interaction with electronic and print media at district and state level to express our viewpoint on sensitive issues. Ashrafe–Millat Hazrat Allama Maulana Syed Mohammad Ashraf Kichhowchhwi President & Founder All India Ulama & Mashaikh Board Email: ashrafemillat@yahoo.com Twitter: www.twitter.com/ashrafemillat Facebook: www.facebook.com/AIUMBofficialpage Website: www.aiumb.com Nafs Ka Pujari Wahabi Deobandi
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Head Office : 20, Johri Farm, 2nd Floor, Lane No. 1 Jamia Nagar, Okhla New Delhi India -25 Cell : 092123-57769 Fax : 011-26928700 Zonal Office: 106/73-C, Nazar Bagh, Cantt. Road, Lucknow Uttar Pradesh India. Email : aiumbdel@gmail.com
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نشیفاوررپدہ ؤمفلمیکحاالتمرضحتیتفمادمحایراخںیمیعنارشیف इमाम अहमद रज़ा खाां अलैटहरजहमा दे वबांटदयों की नज़र में ( टहांदी)
وضحریتفمامظعدنہیکامنزانجزہاکاامموکن؟
زوکۃاوردصۂقرطف
Ashrafi Dulha ( Roman Urdu)
بشرباتآزادییکرات
Aala Hazrat Aur Radd e Bid'at ( Roman Urdu) अक़ीदा ए इल्म ए गैब
और दे वबांद की क़लाबस्ज़यााँ ( टहांदी)
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رضحتدیسانااممنیسحاورزیدیدیلپنباعموہیاخدلیاومی
हुज़ूर का साया न था
ایحتدیسدخمومارشفاہجریگنانمسینریضاہللہنع
اخونادۂارشہیفیکاعیملدراگسںیہ
Ashrafi Dulha ( Roman Urdu)
اٰیلعرضحتارشیفایمںوھچکوھچیریضاہللہنع
A'ala Hazrat Ashrafi Miyan ( English) दे वबांटदयों की
रसूल दश्ु मनी की ताज़ा ममसाल
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ی احیجدیسدبعارلزاقونرانیعلانسحلواینیسحل
Devbandi Vs Devbandi
رجشہاقدرہیہیتشچارشہیف
رکاامتدیساطلسنارشفاہجریگنانمسیندقسرسہ
)ارشیفجنپوسرہ(زریرتبیت Scribd: www.scribd.com/aale8rasool8ahmad Slideshare:www.slidshare.net/mdalerasool www.archive.com/aale_rasool_ahmad www.aalerasoolamad.blogspost.com
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