बसंत : If Spring Comes, Can Summer Be Far Behind?

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बसंत If Spring comes, can Summer be far behind?* ऋतु राज को पधारे आधा मास भर हुआ है । िकसी िबन बु लाये महमान की तरह अपनी रं ग और गंध की पोटली िलए जैसे बस गए हैं । जाने का नाम पता नहीं कब लें गे । शु क्र है िदल्ली के हुडदं गी टू िरस्ट जा चु के हैं ।अभी दे खने को ना बफर् है और ना ही मै दानों की गमीर् से बचने की जरूरत। बसंत केवल हम शहरवालों के एक्सक्लूिज़व महमान हैं । शहर खाली है । पर घर के सन्नाटे का कारण 'off-season' नहीं है । घर में तो मातम ऐसा छाया है , जैसे बे टी िकसी गै र मजहबी के साथ भाग गई है । िकसी के गु ज़र जाने के बाद भी कुछ महीनों में लोग जीने की कम से कम झूठी कोिशश तो शु रू कर ही दे ते हैं ।पर यहाँ लगता है काले बादल छाए ही रहें गे , बरसें गे नहीं। इकलौते बे टे ने शादी से इनकार जो कर िदया है । बस ! अब जीवन में रह ही क्या गया है ? ना घर में माँ गल गीत गाए जाएँगे ना कभी बच्चों की िकलकािरयाँ ही गूँ जेंगी। इनके सभी भाइयों की संतानों में अपना लड़का सबसे बड़ा है , पर शादी का नंबर अभी तक नहीं आया है ।अब तो उसके चचे रे -ममे रे भाइयों की शािदयाँ भी िनबटने लगीं हैं । शादी से पता नहीं क्यों घबराता है । अपने िदमाग में अपने ही बारे में ना जाने क्या-क्या गन्दगी भर ली है । सब western influence की दे न है । बचपन से ही मोटी-मोटी पोिथयाँ पढ़ता रहता था। उसी का असर है । ऊपर से T.V. में भी तो आजकल न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप चलता रहता है । कहता है , "मैं ने काफी िरसचर् कर ली है और तभी इस नतीजे पर पहुँचा हूँ। आप को सब बात साफ़-साफ़ तो बोल ही चु का हूँ। अब आप एक मनोवै ज्ञािनक को िमलो, वह ही समझा सकेगा। " जब सब बातें हमारे ग्रंथों में पहले से ही िलखी जा चु की हैं वो यह मनोवै ज्ञािनक क्या ख़ाक बताएगा? यह पाश्चात् य-पद्यित में िशक्षा िलए हुए डॉक्टर आिखर जानते ही क्या हैं ? हमारे संस्कार भी कुछ चीज़ हैं के नहीं? कभी-कभी लगता है भगवान् इसे थोड़ी अकल कम ही दे ते तो बिढ़या था। ज्यादा सोचने वाला इं सान भी दु खी ही रहता है । लड़का संवे दनशील है । कहता है िक लड़की के साथ धोखा नहीं कर सकता। अब दे िखये िकतनी बड़ी बात है । बस इसी बात के िलए दु ःख होता है । अगर नालायक होता तो और बात थी । मैं ने कहा, "बस मु झे अपने दो साल दे दे । उसके बाद चाहे जो करना हो कर ले ना । दो साल, एक दो बच्चे। चाहे गोद ही ले ले ना। बस।" पू छता है क्या लड़की इस बारे में राज़ी है ? मैं ने कहा, "यह बात ते रे और मे रे बीच में ही है । यह हमारी deal है । लड़की को कुछ नहीं बोलना है ।" सब जानते हैं एक बार केवल हाँ कर दे िफर बीवी को कौन छोड़ता है । शादी के बाद सब अपने आप ही ठीक हो जाता है । पर वहीँ अड़ा हुआ है , "शु रुआत धोखे से नहीं की जा सकती है ।" सीधा सा है । यह एक और कारण है िचंता का। थोड़ा टे ढ़ा, जरा चंट-चालाक होता तो मैं आराम से आँखें बंद कर ले ती। पर घोड़े जैसा सीधा चलता है । अकेला कुछ नहीं कर पाये गा। उसे सहारे की जरूरत रहे गी। िकसकी बातों में आ गया है , वह मैं जानती हूँ । जरा अपना दु खड़ा रो दो इस के सामने , बस ! यह आपका हुआ। मैं ने कहा, " जो बीत गया उसे भू ल जा। पीछे अँधे रा था। आगे दे ख।" िनयित भी चीज़ है । जबसे इसने वह पत्र भे ज था, मैं ने तो इसकी शादी की बातें करना बंद ही कर िदया था। यह िरश्ता तो अपने आप झोली में आ कर िगरा है । "लड़की पायलट है । उसने तो िबना दे खे ही हाँ कर दी है । तू ही सोच िकतनी भली लड़की है । " "भली कैसे ?" " अरे ! जो अपने माँ -बाप की बात िबना कुछ बोले


मान ले , लड़का तक दे खे िबना, तो िकतने अच्छे संस्कार हों गे। तू ही सोच। यह golden opportunity है । इसे नहीं खोना है । कम से कम चल के दे ख ले , िफर चाहे ना ही कर दे ना। बिरस्ता में बु ला लूँ ?" " आपको दे खना हो तो दे ख लो, मु झे नहीं करनी है शादी। " िफर चु प। मैं तो जैसे थी ही नहीं वहाँ "तू सु न भी रहा है में क्या कह रही हूँ? तू मान क्यों नहीं रहा मे री बात? बस मे रे िलए यह काम कर दे । " जैसे जम गया होगा, सतह खरोचो तो आगबबू ला हो रहा था, पर बोला कुछ नहीं। शायद आजकल माँ - बाप के प्रित बच्चों का कोई कत्तर्व्य नहीं है ? कुछ घन्टों में सु बह हो जाएगी । नींद और आँखों का बै र अब बासी हो रहा है । रात में बस सन्नाटा गूँ जता है । िबस्तर पर ले टे -ले टे उसी सन्नाटे में कोई जवाब सु नने की कोिशश करती हूँ। कभी-कभी ऊपर कमरे से बे टे के खाँ सने की आवाज़ ख़ामोशी भे दती है । पता नहीं अपना ने बु लाइज़र पास में रख कर सोया है या नहीं। मौसम जब भी करवट बदलता है उसको नागवार गु जरता है । डॉक्टर pollen-allergy कहते हैं । बहू होती तो यह िचंता करना मे रा काम न होता…….… न डाँ ट से न प्यार से न ही िकसी की कसम खाने से , लड़का है िक मानता ही नहीं है । यिद उसके मन को टटोल पाती तो शायद कोई प्रलोभन ही दे दे ती? पर पता नहीं क्या सोचता है । क्या चलता है उसके मन में । खैर...गीज़र on िकया जाए। लगता है यह ठण्ड नहीं जाये गी, इस बार गिर्मयाँ दे र से आयें गी । *with apologies to Percy Bysshe Shelley


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