Written by Akhil Khatyal
आज आज फेसबुक पर तुम्हारे बचपन कि एक तस्वीर दिख गयी। कुछ छे-सात साल के होगे, भूरी नेकर और उसमें घुसाई हुई नीली 'हाल्फ-स्लीव' शर्ट जो कि कोहनियों तक बेशर्म झूलती जा रही है। हम नाइंटी-नाइंटीज़ के बच्चे हि ऐसे बेडौल कपड़े पहनते थे, अब देखो तो कितने भद्दे लगते है,ं उन्हीं कपड़ों में जिनको शौक से चढ़ाए शाम को मोहल्ले में फिरा करते थे। कॉलोनी कि मेन सड़क पर टहलते-टहलते पड़ोसी दिख जाएँ तो 'नमस्ते अंकल,' 'नमस्ते आंटी' करके अपनेआप को बड़ा समझदार मानते, कंघी किये हुए बालों में अपने मम्मी-पापा का स्टेटस चिपकाए चलते और अंग्रेज़ी के इस्तमाल से कुछ लोंगों को दबाने में मज़े लेते। अब तुम्हारी इस तस्वीर में मुझे अपना छे-सात साल वाला वही बेढंगापन दिखाई देता है। लगता है इस तस्वीर के खिंचने के एक-दो दिन पहले नाइ ने तुम्हारे सर पर एक कटोरा रख कर बाकी बाल छांट डाले थे। इस कटोरे-कट में हस्ते हो तो बिलकुल लंगूर लगते हो। अब ये मैं मानूं तो कैसे मानूं कि कल रात यही बाल सवारें थे मैंन,े इन्हीं को एक तरफ से हलके-हलके दूजी तरफ किया था, और तुम्हारे साथ, इन्हीं में मुंह छिपाए इक पूरा अरसा जिया था।