20+ ■स कबीरदास के दोहे | kabirdas ke dohe collectionsvs.com/कबीरदास-के-दोहे/
कबीरदास के दोहे : अगर आप िस कबीरदास के दोहे kabirdas ke dohe) ढूढ ँ रहे ह। तो हमारे पास है 20+ िस कबीरदास के दोहे । ये सभी दोहे अथ तथा सं ग सिहत ह।
कबीरदास
1/12
कबीर जी के ज म को ले कर िव ान म मतभे द है । इनका ज म 1398 ई. म हुआ। पर ज म थल को ले कर अलग अलग मत है । कुछ काशी, कुछ मगहर तथा कुछ आज़मगढ़ मानते ह। अिधकतर ने काशी का समथन िकया। कबीर जी का ज म एक िवधवा मिहला से हुआ। िज ह ने इ ह नदी म फक िदया। नदी से इ ह नी और नीमा नामक दं पि जु लाह ने अपनाया। इनका नाम कबीर उ ह ने ही रखा। कबीर जी की पि न – लु ई, पु – कमाल, पु ी – कमाली थे । कबीर जी के गु रामान द थे । इनकी मृ यु 1518 ई. म मगहर म हुई। रचनाएं – कबीर जी को िश ा ा त नहीं थी। वे अनपढ़ थे । इनकी रचनाओं को धमदास ारा सं गिहत िकया गया। इसे “बीजक” नाम से जाना जाता है । बीजक के तीन भाग ह –
क). साखी – इसम दोह तथा छं द को िलखा गया है । 2/12
ख). सबद – इसम इनके सं गीता मक गाए जाने वाले पद शािमल ह। ग). रमै नी – इसम चौपाई, दोहे छं द के प म िलिखत है । इसम रह यवादी, दाशिनक िवचार शािमल ह। कबीरदास के दोहे – गु मिहमा
गु पारस को अ तरो, जानत ह सब स त। वह लोहा कं चन करे , ये किर लये मह त अथः गु म और पारस – प थर म अ तर है । यह सब स त जानते ह। पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है । पर तु गु िश य को अपने समान महान बना ले ता है ।
3/12
गु सो ान जु लीिजये , सीस दीजये दान। बहुतक भोंद ू बिह गये , सिख जीव अिभमान अपने िसर की भट देकर गु से ान ा त करो। पर तु यह सीख न मानकर और तन, धनािद का अिभमान धारण कर िकतने ही मूख संसार से बह गये । गु को िसर रािखये , चिलये आ ा मािहं। कह कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नािहं गु को अपना िसर मु कुट मानकर, उनकी आ ा पर चलो। कबीर सािहब कहते ह, ऐसे िश य – से वक को तीनों लोकों से भय नहीं है । कबीरदास के दोहे – आचरण क मिहमा
4/12
किव तो कोिट कोिट ह, िसर के मूड़े कोट | मन के मूड़े दे िख किर, ता संग िलजै ओट | करोडों – करोडों ह किवता करने वाले , और करोडों है । िसर मु ड़ाकर घूमने वाले वे षधारी। पर तु ऐ िज ासु ! िजसने अपने मन को मूंड िलया हो, ऐसा िववे की सतगु देखकर तू उसकी शरण ले। जौ मानुष गह धम यु त, राखै शील िवचार | गु मु ख बानी साधु संग, मन वच से वा सार | जो गह थ – मनु य गृ ह थी धम – यु त रहता, शील िवचार रखता, गु मु ख वािणयों का िववे क करता। साधु का संग करता और मन, वचन, कम से से वा करता है । उसी को जीवन म लाभ िमलता है । कबीरदास के दोहे – संगत क मिहमा
5/12
कोयला भी हो ऊजला, जिर बिर हो जो से त | मूरख होय न अजला, यों कालम का खे त | कोयला भी उजला हो जाता है जब अ छी तरह से जलकर उसमे सफेदी आ जाती है । लिकन मु ख का सुधरना उसी कार नहीं होता जै से ऊसर खे त म बीज नहीं उगते । एक घड़ी आधी घड़ी, आधी म पु िन आध | कबीर संगत साधु की, कटै कोिट अपराध | एक पल आधा पल या आधे का भी आधा पल ही संतों की संगत करने से मन के करोडों दोष िमट जाते ह। कबीर संगित साधु की, िन फल कभी न होय | ऐसी चंदन वासना, नीम न कहसी कोय | संतों की संगत कभी िन फल नहीं होती। मलयिगर की सु गंधी उड़कर लगने से नीम भी च दन हो जाता है । िफर उसे कभी कोई नीम नहीं कहता। कबीरदास के दोहे – सेवक क मिहमा
6/12
आशा करै बै कुंठ की, दु रमित तीनों काल | शु
कही बिल ना करीं, ताते गयो पताल |
आशा तो वग की करता है। लिकन तीनों काल म दु बुि से रिहत नहीं होता। बिल ने गु शु ाचाय जी की आ ा अनु सार नहीं िकया। तो रा य से वंिचत होकर पाताल भेजा गया। सतगु श द उलंघ के, जो सेवक कहुँ जाय | जहाँ जाय तहँ काल है , कह कबीर समझाय | स त कबीर जी समझाते हुए कहते ह। िक अपने सतगु के यायपूण वचनों का उ लंघन करता है । वो से वक अ याय की ओर जाता है , वह जहाँ जाता है वहाँ उसके िलए काल है । कबीरदास के दोहे – भि
क मिहमा 7/12
भि त बीज पलटै नहीं, जो जु ग जाय अन त | ऊँ च नीच घर अवतरै , होय स त का स त |
की हुई भि त के बीज िन फल नहीं होते चाहे अनंतो यु ग बीत जाये । भि तमान जीव स त का स त ही रहता है । चाहे वह ऊँ च – नीच माने गये िकसी भी वण – जाती म ज म ले । जब लग नाता जाित का, तब लग भि त न होय | नाता तोड़े गु बजै , भ त कहावै सोय |
जब तक जाित – भांित का अिभमान है । तब तक कोई भि त नहीं कर सकता। सब अहंकार को याग कर गु की सेवा करने से गु – भ त कहला सकता है।
8/12
भि त िबन निहं िन तरे , लाख करे जो कोय | श द सने ही होय रहे , घर को पहुच ँ े सोय | कोई भि त को िबना मु ि त नहीं पा सकता चाहे लाखो लाखो य न कर ले । जो गु के िनणय वचनों का े मी होता है । वही स संग रा अपनी ि थित को ा त करता है । कबीरदास के दोहे – काल क मिहमा
बे टा जाये या हुआ, कहा बजावे थाल | आवन जावन होय रहा, यों कीड़ी का नाल | तेरे पु का ज म हुआ है , तो या बहुत अ छा हुआ है ? और संता म तू या थाली बजा रहा है ? ये तो चींिटयों को पंि त के समान जीवों का आना जाना लगा है । 9/12
जो उगै सो आथवै , फू ले सो कुि हलाय | जो चुने सो ढ़िह पड़ै , जनम सो मिर जाय | उगने वाला डू बता है , िखलने वाला सूखता है । बनायी हुई व तु िबगड़ती है , ज मा हुआ ाणी मरता है । कबीरदास के दोहे – उपदेश क मिहमा
ऐसी बानी बोिलये , मन का आपा खोय | औरन को शीतल करै , आपौ शीतल होय | मन के अहंकार को िमटाकर। ऐसे और नम वचन बोलो, िजससे दूसरे लोग सु खी हों और खु द को भी शाि त िमले । 10/12
या दु िनया दो रोज की, मत कर यासो हे त | गु चरनन िचत लाइये , जो पूरन सु ख हे त |
इस संसार का झमे ला दो िदन का है । अतः इससे मोह – संबध न जोड़ो। सतगु के चरणों म मन लगाओ, जो पूण सु ख दे ने वाला है । दे ह खे ह होय जागती, कौन कहे गा दे ह | िन चय कर उपकार ही, जीवन का फन ये ह |
मरने के बाद तु मसे कौन दे ने को कहे गा! अतः िन चयपूवक परोपकार करो, येही जीवन का फल है। कबीरदास के दोहे – श द क मिहमा
11/12
मुख आवै सोई कहै, बोलै नहीं िवचार | हते पराई आ मा, जीभ बाँिध तरवार | िकतने ही मनु य जो मुख म आया, िबना िवचारे बोलते जी जाते ह। ये लोग परायी आ मा को दु ःख दे ते रहते है । अपने िज हा म कठोर वचन पी तलवार बांधकर। एक श द सुख खािन है , एक श द दु ःखरािख है | एक श द ब धन कटे , एक श द गल फं िस |
समता के श द सुख की खान है, और िवषमता के श द दुखो की ढेरी है। िनणय के श दो से िवषय – ब धन कटते ह, और मोह – माया के श द गले की फांसी हो जाते ह। Thank you so much ❤️ sir / ma’am I hope you enjoy it. For more you may visit our other blogs we have lots of shayari, poems, Jokes, thoughts and quotes
Other top blogs ( click ⬇️ here ) 20+ surdas ke pad in hindi | सूर के पद | ■स सूरदास के पद – संग | अथ सिहत 25+ self confidence quotes in hindi | confidence quotes | आ मिव ास quotes 25+ painful quotes in hindi | hurt quotes | दद quotes | दद status 30+ birthday shayari in hindi | ज मिदन मुबारक status | ज मिदन मुबारक शायरी
12/12