जनकृति लोकभाषा विशेषांक अवधी

Page 1

ISSN 2454-2725

जनकृ ित अंतररा ीय पि का/Jankriti का Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

लोकभाषा िवशेषांक

अवधी अितिथ सपं ादक

शैले कुमार शु ल

1|P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 201 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

सपं ादक य जनकृ ित पि का म लोकभाषा िवशेषांक के अतं गत अवधी भाग का स पादन करते हए यह महससू हआ िक मातृभाषाओ ं के ित अभी िहदं ी वाल का ख आधिु नक संदभ म बहत कुछ संकुिचत है। लोकभाषा या मातृभाषा के हक क बात होते ही बहत से क र सा ा यवादी िहिं दय के पेट िपराने लगते ह। उ ह लगता है िक अवधी, भोजपरु ी, छ ीसगढ़ी, बघेली, क नौजी आिद तमाम भाषाएँ अगर अपने अि त व क बात करने लगगी तो िहदं ी का वच व टूट जाएगा, और िहदं ी के भाषा-भाषी कम हो जाएंग,े इस तरह िहदं ी सक ं ट क ि थित म बरु े फंस जाएगी। मझु े लगता है िक अगर िहदं ी इतनी ही कमजोर और दयनीय भाषा है तो इसे चक ु जाना ही जायज है। और अगर ऐसी बात है तो िहदं ी आने वाले समय म सं कृ त क तरह देवलोक क िनयित बन कर रह जाएगी। आज हम यह िफर से सोचना चािहए िक आिखर िहदं ी है या! उसक जमीनी ताकत कहाँ है , उसका सक ु होकर नह घबराना चािहए, िक ं ोच और िव तार कहाँ-कहाँ िनिहत है। इसके िहतैिसय को कम-से-कम भावक िहदं ी के नाम पर उनका जो धंधा चल रहा है वह बैठ जाएगा। िहदं ी हमारी संपक भाषा है वह एक मानक कृ त याकरण से बाकायदा तैयार क हई भाषा है। इस भाषा को मानक ग के िलए सोच-समझ कर तमाम िहिं दय के बीच से ठीक िकया गया है। इसका काम स पणू भारतवष को एक सू म बांधने क ितब ता का था लेिकन ज दबाज़ी म और अपनी कमजो रय के चलते परू े भारत म न सही कम-से-कम उ र भारत को तो जोड़ने का काम इसने मख ु ता से िकया ही है। और यह आगे भी यह काम करती रहेगी। सबसे पहले हम िहिं दय और िहदं ी के बीच फक समझ लेना चािहए। िहदं ी श द का ाचीन ा प आप यिद देखे तो समझ जाएगं े क िक िहदं ी श द का योग बहबचना मक प म होता था। ातं िवशेष के लोग के िलए। आज समझने के िलए हमारे पास और भी दसू रे उदाहरण ह। जैसे पंजाब के लोग को बाहर वाले आज भी पंजाबी कहते ह। इसका मतलब वहाँ क जनता को हम पंजाबी कहते ह यह उनक ‘पहचान’ का श द है। उनके यवहार और सािह य क भाषा भी पंजाबी जानी गई। यहाँ जो पजं ाबी बनी वह कई पजं ािबय म से एक मानक कृ त है। इसे सं कृ त से भी समझ सकते ह। सं कृ त अपने समय क एक मानक कृ त प म राजाि त हो कर िति त हई उस समय हम जानना चाह तो जानगे क कई सं कृ त मानषु यापार म थ । िफराक साहब को याद करते हये िव नाथि पाठी ने इस बात का िज भी िकया है। िफराक साहब यह मानते और जानते थे“िफराक साहब के वल ऐसी ही बात नह करते थे, दूसरी बात भी करते थे जैसे एक बात पहले पहल उ ह ने ही मुझसे बताई है। एक िदन वे कहने लगे िक पािणनी के जमाने म न बे सं कृितयाँ चलती थ और उसम से एक को टडडाइज िकया था पािणनी ने। िफराक साहब सं कृत को सं कृितयाँ कहते थे। उनके कहने का मतलब था सं कृत। तो िफराक ने जब ये बात मुझे बताई तो म सुन रहा था लेिकन उनका चेहरा एकदम से बदल गया और बोले िक 'तुम तो िब कुल इस ं े सेिटव आदमी हो। इतनी बड़ी 2|P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बात म कह गया और तु हारे चेहरे पर कोई इमोशन ही नह आया। जब मने पहले पहल ये बात डॉ. तारा चंद के मुँह से सुनी थी तो म तो तीन िदन तक र स करता घूमा था।'” यहाँ जो न बे सं कृ ितयां (सं कृ त) िफराक साहब कह रहे ह इसका मतलब उस समय बहत सी और भी भाषाएँ थी जो जीती-जागती थी। सं कृ त स ा और शासन के िलए तैयार क गई भाषा थी, यह मानक प म लाई गई थी, जैसे तमाम िहिं दय के बीच से एक खड़ी को मानक कृ त कर िहदं ी के प म सरकारी कामकाज के िलए उपयोगी बनाई गई। यह िसफ भारत म सं कृ त और िहदं ी के साथ घिटत होने वाली घटना नह है यह दिु नया के तमाम देश क परु ानी भाषाओ ं के साथ यही हआ है। इसे शु तावादी सनु कर अपिव ता महससू कर सकते ह। िजस समय सं कृ त का मानक कृ त प सामने आया तो इसका मतलब यह कतई नह हो सकता क दसू री सं कृ त स यता के ठे केदार ने िमटा दी ह गी, या उनके बलबतू े यह संभव हो सका हो । वह भी जीिवत रह । पाली और ाकृ त इसके माण ह। आज िज ह म िहिं दयाँ कह रहा हँ इनके ाचीन प कभी िफराक क भाषा म न बे सं कृ त म मौजदू थे। आजकल मातृभाषाओ ं के संिवधान क अ म अनसु ूची म शािमल होने क बात लगातार उठ रही है, इनम सबसे मख ु वर भोजपरु ी का है। भोजपु रए अपनी आवाज स ा तक लगातार पहचं ा रहे ह और अपनी वािजब मांग रख रहे ह। वह िजस भाषा म जीते-जागते ह उसके िलए उनका आवाज उठाना उनक सं कृ ित धिमता को पु करता है। यह काम सारी उपेि त मातृभाषा वाल को िनतांत आव यक प म करना चािहए। दरअसल ये मल ू -भाषाएँ बचगी तो िहदं ी भी बची रहेगी, इनम ही िहदं ी क ताकत िनिहत है, यह संपक- प म िहदं ी को अपनाते ह। इनक पहली कूिलंग के तौर पर सीखी हई भाषा िहदं ी है। मातृभाषाओ ं को स मािनत संवधै ािनक दजा िमलने से िहदं ी क संपक-भािषक आव यकता ठीक तरीके समझी जा सके गी। इससे िहदं ी का कोई नक ु सान नह होगा हाँ िहदं ी के एकल वच ववादी मठाधीश के सामने अ य, इ यािद या हािसए के लोग भी स मान का भाव अपने म जगा सकने म समथ ह गे। अवधी भाग क संपादक य अवधी म ही िलखने का मन मेरा मन था, लेिकन इधर उठे सवाल को यान म रखते हए, और उनके िलए भी जो सवाल धांगने े म तो मािहर ह लेिकन अवधी आिद मातृभाषाओ ं क समझ नह । कहगे यह तो समझ म ही नह आता तब याद आते ह लोकिवद िवजयादान देथा, आचाय िकशोरीदास वाजपेई जो यह कब से अपने पु तक पर यह ख़ा रज करते आए ह यह िहदं ी से इतर भाषाएँ ह। इस बोध के बावजदू िहदं ी वच ववाद का झ डा उठाने वाल को और मातृभाषाओ ं को बोली कह कर छु ी लेने वाल को शम नह आती। खैर राहल साक ं ृ यायन जी ने इ ह खबू फटकारा था, काश उ ह ही पढ़े होते यह। यह काम िहदं ी म इ ह वीर के िलए कर रहा हँ। वैसे संपादक य का काम पि का के िलए िनतांत आव यक नह होता, िफर भी अपने उ े य बताने म या हज। यह अवधी वाले तो समझगे ही बाक जो िहदं ी के शु तावादी मानक कृ त परु ोिहत ह वह भी समझ सकगे। दो-तीन महीने पहले जब लोकभाषा िवशेषांक िनकालने क बात बनी तो यह बात फे सबक ु के मा यम से हमने लोग तक पहचं ाई। इसक सचू ना लगते ही िहदं ी को बचाने क पैरोकारी करते हए एक पहला आलेख परम 3|P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) िहदं ी भावक ु ेमी डॉ. अमरनाथ जी का िमला, िजसम उ ह ने यह आपि जताई िक यह िहदं ी िवरोधी काम हो रहा है। वह बहत आहत थे। म उस समय से यह सोच रहा हँ िक 1857 से अब तक िहदं ी वाल ने िकतने अवधी, जभाषा, भोजपरु ी, मगही, मैिथली, क नौजी, इ यािद अनेक मातृभाषा िवरोधी काम िकए ह, उनके इितहास म आधिु नक यगु का अवधी सािह य कहाँ ह, पढ़ीस का मू यांकन कहाँ िकया ह इ ह ने, वश ं ीधर शु ल पर िकतनी बात क है िहदं ी के आलोचक ने, रमई काका को अब तक िकस िकताब म पछ ू े हो। अवधी यिद िहदं ी क बोली थी तो इसक िकतनी परवाह आप ने क है। अमरनाथ जी से म यह पछ ू ना चाहता हँ िक रामच रतमानस और प ावत के िबना तो आप तो आप काल िवशेष को वण नह कर सकते लेिकन आधिु नकता म थोड़ा खड़ी देख आप सब के साथ ताला-बंद सािजश करने म य मशगल ू हए ? आप ने िकतनी परवाह क है मातृभाषाओ ं क ? आप क इस कायरता को हम या कह िक अविधये और भोजपु रये या और सब जो अपनी मातृभाषा म सपना देखते ह, अपने भािषक स मान क बात कर, सािह य िलख, अपनी बात उठाएँ, पि का िनकाल, आठव अनसु चू ी म दजा मांगे तो आप जैसे िहदं ी वाल का दम य घटु ने लगता है ? आप क िहदं ी ‘िचंदी-िचंदी’ य होने लगती है ? जब क आप क हजार सािजश और अपमान का घटंू पीकर भी ये मातृभाषाएँ जीिवत ह। बाक बातै िफर कबहँ ह इह। अभै बस एतना िक िवशेषांक मा अवधी भाग के स पादन का जोन काम िमला विहते यिह बात के र पता चलत क अविधयन का अबही बहत मेहनत क ज रत आय। यह ई-पि का आय और परू े प ते अ योसाइक आय, हम सािहि यक सामा ी टाइप करावे का खचा उठावे िलए स म न हन, और हमार बहत अविधया सािह यकार कंपूटर क तकनीक ते दू र ह, यिहव कारन ते कुछ-कुछ छूिट गा। कुछ पुरान अविधया यिह कारन िहयन न भेिज पाये िक यिह मा कोई नए आदमी लोड न लेय लाग । कुछ ते खूब खुशामद िकएन लेिकन बाज न आए। लेिकन जौन कुछ अपने सुधी-बुधी-जन भेिजन और उ साह देखाइन, औ ताकत िदहीन उनके हम आभारी हन। हम जस यह अवधी अंक सोचे रहन, वैस न बन सका, यिह बात का हमका खेद है लेिकन यिहके एक कोिशश समझा जाय । िहयाँ जौन मटे रयल टाइप िमला वािहमा ते नीक-नीक छांिट के अिवकल तुत िकन गा है। यिह िवशेषांक िनकारे मा बड़े भाई और गितशील अविधया अमरे नाथ ि पाठी का बड़ा योगदान रहा, उनके सहयोग के िबना यह संभव न रहे। बाक िजनका सहयोग रहा उनका आभार और जौन असहयोग क रन उनकौ ध यबाद । -शैले कुमार शु ल वधा, महारा

4|P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

िवषय-सूची लेख जनता ारा मू यािं कत किव ह रमई काका! /िव नाथ ि पाठी अवधी उप यास क नई रोशनी- चंदावती/रवी का यायन आधिु नक अवधी का य म यं य /डॉ. अरिवदं कुमार अवधी स ाट पं. बंशीधर शु ल को याद करते हए/ राहल देव राजनीितक चेतना के किव रफ क शादानी / अटल ितवारी िशवमिू त क कहािनय म अवध-लोक क पैठ / दीप ि पाठी अवधी लोकगीत म विणत ी सम या का अ ययन /आशु यादव अवधी क ितरोधी सं कृ ित और वश ं ीधर शु ल / जग नाथ दबु े किवतई बजरंग िबहारी बज भारते दु िम रामशक ं र वमा संतोष ि वेदी चं काश पा डेय ओम काश ितवारी दीप शु ल अमरे नाथ ि पाठी आशाराम ‘जागरथ’ कुमार अरिवदं

5|P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) इं श े भदौ रया राहल देव राघव देवश े

बतकही अवधी कै िति त किव चतभु जु शमा से भारते दु िम कै बतकही बतकह : डॉ. यामसु दर िम “मधपु ” से बातचीत पर आधा रत एक सिं

तिु त..!

डायरी यक अविधया के री डायरी से..अमरे नाथ ि पाठी उप यास अंश िफरोजी अिं धयाँ : ह न तब समु ‘िनहाँ’

6|P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृ ित अंतररा ीय पि का/Jankriti का Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

जनता ारा रा मू यांिकत किव ह रमई काका : िव नाथ ि पाठी यह ’४८-’४९ क बात है, भारत आजाद हो गया था। म बलरामपरु म पढ़ता था। बलरामपरु रयासत थी थी, अवध क मशहर तालक ु े दारी थी वहाँ, समिझये िक लखनऊ और गोरखपरु के बीच क सबसे बड़ी जगह वही थी। वह म डी.ए.वी. कूल से हाई कूल कर रहा था। वहाँ एक बहत अ छा कूल था, था एल.सी.. कहलाता था, लॊयल कॊिलिजएट, महाराजा का बनवाया हआ था और बहत अ छा था। उसम बहत अ छे अ यापक होते थे। सं कृ त के प.ं राम गट मिण थे। उदू म थे इशरत साहेब िजनको हम गु जी कहते थे। वहाँ मश ु ायरे बहत अ छे होते थे, बहत अ छे किव स मेलन होते थे। एक बार किव स मेलन हआ वहाँ, उसी म रमई काका आये हए थे।

रमई काका के साथ एक किव थे, ‘सरोज’ नाम म था उनके । नये किव थे, मशहर थे। लेिकन रमई काका यादा मशहर थे। तब रमई काका क उमर रही होगी ३५-४० के बीच म। अ छे िदखते थे, पतले थे। काली शेरवानी पहने थे। पान खाए हए थे। उ ह ने का यय-पाठ िकया। उ ह ने जो किवताएँ पढ़ , तो उसक पंि याँ सभी को याद हो गई।ं अवधी म थी, बैसवाड़ी म। इतना भाव पड़ा उनके का य-पाठ का, िक हम लोग ने एक बार उनका का य-पाठ य पाठ सनु ा और किवताएँ याद हो गय । किव स मेलन समा होने के बाद भी हम लोग उन किवताओ ं को पढ़ते घमू ते। जो किवता उनक सनु ी थी, उसका शीषक था — वाखा होइगा। अभी याद है, इसक पंि याँ इस तरह हह: हम गयन याक िदन लखनउवै , क कू संजोगु अइस प रगा पिहलेहे पिहल हम सह दीख , सो कहँ–कहँ वाखा होइगा! जब गएँ नमु ाइस ाखै हम , जंह क कू भारी रहै भीर दईु तोला चा र पइया कै , हम बेसहा सोने कै जजं ीर लिख भई ंघरै ितन गलगल बह , मल िद मा रंग बदला ु चा र िदनन उन कहा िक पीत र लै आयौ , हम कहा बड़ा वाखा होइगा! होइगा

इसम िफर तमाम ि थितयाँ आती ह,, हम कहाँ-कहाँ गये िफर वहाँ या हआ। एक जो गाँव का ामीण है वह शहर 7|P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 201 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) जाता है तो उसे अप रिचत दिु नया िमलती है। उस अप रिचत दिु नया म वह अपने को ढाल नह पाता। वहाँ का आचार-िवचार- यवहार सब अप रिचत होता है। वह भी उस दिु नया म आ य म रहता है और दसू रे भी उसे लेकर आ य म पड़ते ह। इसम एक जगह है, दक ु ान म जैसे औरत क मिू त बनाकर कपड़े पहना देते ह तो वह ामीण उसे सचमचु क औरत समझ बैठता है, लोग के बताने पर समझ म आता है िक ‘ वाखा होइगा।’ िफर एक जगह सचमचु क औरत को वह माटी क मिू त समझ कर हाथ रख बैठता है, ि थित इस तरह बन जाती है, ‘उइ झझिक भकु र खउ वाय उठ , हम कहा िफ रव वाखा होइगा!’ बहत अ छी किवता है। रमई काका क किवताएँ देशभि क भावना से भरी हई ह। उनक हर तरह क किवताओ ं म, चाहे वह हा य किवताएँ ह , यं य क किवताएँ ह , शृगं ार क किवताएँ ह ; सबम देशभि का भाव रचा-बसा है। एक तो देशभि का भाव दसू रे वे किवताएँ आदमी को बनाने क , संवारने क , कत य पथ पर लगाने क ेरणा देती थ । एक तरफ तो किवताओ ं म देशभि का पाठ था दसू री तरफ वे किवताएँ एक आचार-सिं हता भी इससे ततु करती थ ; चाहे हा य से, चाहे यं य से, चाहे क णा से, चाहे उ साह देकर। ये किवताएँ जीवनवादी किवताएँ भी ह। चँिू क ये किवताएँ अवधी म थ इसिलए बड़ी आ मीय थ । बड़ा फक पड़ जाता है, किवता कोई अपनी बोली म हो, किवता कोई रा भाषा म हो और किवता कोई िवदेशी भाषा म हो। आ वाद म भी बड़ा अतं र पड़ जाता है। भारत वष नया नया आजाद हआ था। उस समय बड़ा उ साह-आ ाद था। आशा-आकां ा भी थी। हालांिक िवभाजन क ासदी झेल रहा था देश, और वह भी किवता म य होता था। ये जो किवताएँ अवधी म ह, भोजपरु ी म ह या दसू री बोिलय म ह, हम लोग समझते ह िक इनम यादातर हा य या यं य क ही किवताएँ होती ह। इन किवताओ ं के स दय-प क कई बात क हम उपे ा कर देते ह। जैसे ‘बौछार’ क यह किवता अवधी महै‘िवधाता कै रचना’: जगत कै रचना सघु र िनहा र कोयिलया बन-बन करित पक ु ार झरे ह झर-झर दख ु के पात लहिक गे खन के सब गात डरै यन नये पात दरसािन पलैयन नये वाप अगं ु यािन पतौवन गु छा परे लखाय परी है गु छन कली देखाय कली का देिख हँसी है कली गग रया अम रत क िनरमली कृ ित क इतनी सु दर किवताएँ िनराला को छोड़ दीिजये तो शायद ही खड़ी बोली के िकसी किव के यहाँ िमल। िनराला क भाषा और इस भाषा म िकतना अतं र है। एकदम सीधे असर! ‘जगत कै रचना सघु र िनहा र / 8|P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) कोयिलया बन-बन करित पक ु ा र’ : अब इसका आप िव े षण कर तो कोयल जो बोल रही है वह जगत क सु दर रचना को िनहार करके बोल रही है। यह िनहारना ि या अ ु त ि या है। इसका उपयु योग खड़ी बोली म िनराला ने िकया है। ‘सरोज मृित’ म जब सरोज के भाई ने उसे पीटा, दोन ब चे थे खेल रहे थे, तो पीट कर मनाने लगे सरोज को — ‘चमु कारा िफर उसने िनहार’। बेचारी छोटी बहन है, रो रही है, ये सारी बात उस िनहारने म आ गय । ‘िनहार’ का अ ितम कालजयी उपयोग तल े ु सीदास ने िकया है। जनक के दतू जब दशरथ के यहाँ पहँचे सदं श ले कर िक दोन भाई सकुशल ह, तो दशरथ दतू से कहते ह: भैया, कुसल कहौ दोउ बारे । तमु नीके िनज नैन िनहारे ॥ ‘िनहारना’ देखना नह है। मन लगा कर देखने को िनहारना कहते ह। कोयिलया बन-बन पक ु ार रही है। यह तो सीधे लोकगीत से आया है। हमारे यहाँ अवधी के किव ह, बेकल उ साही, बलरामपरु के ह, हमारे साथ पढ़ते थे। उनक पहली किवता जो बहत मशहर हई थी, ‘सिख बन-बन बेला फुलािन’। बन-बन का मतलब सव । ये हमारे जो किव ह, अ य को दोष या दँू मने भी नह िकया यह काम, िजनके अदं र स दय है उनका िव ेषण हम लोग नह करते। बाक किवताओ ं का तो करते ह। होता यह है िक िफर ये हमारे किव उपेि त रह जाते ह। जो इनके यो य है, वह इ ह िमलता नह है। दभु ा य कुछ ऐसा है िक िजन लोग ने अवधी भाषा को, इसके स दय को ऊपर उठाने का िज मा ले रखा है जोिक अ छा काम है लेिकन म इस अवसर पर ज र कहना चाहता हँ िक उन लोग क गितिविधय को देख करके ऐसा नह लगता िक ये लोग सचमचु िकसी उ च आदश से, देश ेम से या अवधी के ेम से काम कर रहे ह। कभी-कभी तो यह शक होने लगता है िक वे अपने छोटे-छोटे िकसी वाथ से लगे हए ह। ऐसे म भी ये किव उपेि त रह जाते ह। ऐसे ही किवय म रमई काका भी ह। वरना ज रत तो यह है िक बहत यापक ि से इन किवय का पनु मू याक ं न या कह, मू यांकन ही नह हआ है, यह िकया जाय। लेिकन जनता ने इनका मू यांकन िकया है। अभी भी जहाँ रमई काका क किवताएँ पढ़ी जाती ह, लोग सनु ते ह, उन पर इनका असर होता है। ( तुित: अमरे नाथ ि पाठी। यह लेख िव नाथ ि पाठी जी ारा ‘बोला’ गया, िजसे बाद म िलिपब िकया गया।साभार: ‘अवधी कै अरघान’ से)

9|P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

अवधी उप यास क नई रोशनी- चंदावती – रवी का यायन

िहदं ी सािह य के िव तार के साथ-साथ िहदं ी क उपभाषाओ ं म भी आज नई-नई िवधाओ ं म रचनाकम हो रहा है। अवधी, भोजपरु ी, ज, मैिथली आिद म िलखे हए सािह य क परंपरा बहत पहले से है। लेिकन आज िजस तरह क रचनाएँ इन उपभाषाओ ं म िलखी जा रही ह, उस तरह क पहले नह िलखी गई।ं इसका नया उदाहरण है अवधी म िलखे जाने वाले उप यास क परंपरा। अवधी म नए उप यास क रचना अवधी म एक नया थान िबंदु है। भारते दु िम के दो अवधी उप यास – नई रोसनी और चंदावती के ारा अवधी म उप यास लेखन का नया दौर शु हआ है। िजसके िलए डॉ. िव ािब दु िसंह ने िलखा है- “भाई भारते दु िम कै ई अवधी उप यास एक बड़े अभाव कै पिू त करै वाला है। वै ई उप यास िलिख कै एक लीक बनाइन ह जौने से अवधी म िलखै वाले अवधीभासी ेरणा पाय सकिथन।” (भिू मका, चंदावती) भारते दु िम का नया उप यास चंदावती समकालीन भारतीय ाम का यथाथ प ततु करता है। यह उनके पहले उप यास नई रोसनी का िव तार ही है िजसम एक नई कथा और नए वातावरण ारा आज के भारत का गाँव पनु ः जीवतं हो जाता है। इस गाँव म सामािजक, धािमक और राजनीितक प म जो हो रहा है, उसका यथाथ िच ण चदं ावती का मख ु उ े य है जो पाठक को तो आकिषत करता ही है, इसके साथ उनके मन म कई कार के असहज करने वाले भी खड़े करता है। लोक म रची-बसी सं कृ ित का सू म और मनोहारी वणन भी कथाकार क सफलता है। आज के बदलते गाँव क त वीर चंदावती उप यास म इस तरह ततु क गई है िक वो हमारे सामने एक व न भी िनिमत करता है। व न प रवतन का, व न एक नई यव था का, व न जाित- यव था के ाचीन भँवर म फंसे समाज को उससे मु करने का और सबसे ज़ री व न ी क मिु का- वह भी ामीण ी क मिु का। ामीण- ी, जो शायद कुलीन ी-िवमश के के म नह है। बहरहाल... चंदावती क कथा है एक बाल-िवधवा लड़क चंदावती और गाँव के स य, कुलीन और िवधरु ा ण हनमु ान शु ल क ेम कथा क , िजसक प रणित िववाह म होती है। िववाह भी नए कार का। ामीण यव था म आज से तीस साल पहले इस तरह का िववाह एक ािं तकारी कदम था। गाँव के बाहर कुछ लोग नरिसहं भगवान के चबतू रा के सामने जाते ह और सरपंच के सामने पंचायत होती है। िफर वह हनमु ान शु ल और चंदावती तेिलन का िववाह होता है। न िसफ़ जाित के बंधन टूटने के तर पर बि क ी और पु ष क सोच म प रवतन के तर पर भी यह िववाह अनोखा था। यही नह समाज को जब पता चलता है, तो भी दोन को कोई फ़क नह पड़ता है। हाँ हनमु ान के छोटे भाई छोटकऊ से उनका अलगाव घर म पहले ही हो चक ु ा था, खेती को छोड़कर। और यह खेती ही चंदावती क ह या और दौलतपरु गाँव म ी जागरण का कारण बनती है।

10 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हािशए का िवमश अवधी म इस तरह शायद पहली बार िदखाई िदया है। लोक गीत और लोक सं कृ ित म तो बहत से िच ण हए ह लेिकन आज के ज़माने का यह िच ण अवधी म िबलकुल नया है। ी कमज़ोर तो है लेिकन उसके साथ कदम से कदम िमलाकर चलने वाली गाँव क अ य मिहलाएँ भी खड़ी हो जाती ह। उसे जब उसका देवर और भतीजा उसके पित हनमु ान शु ल क मृ यु के बाद घर से बाहर िनकाल देते ह तो वो रोती नह बि क अपने घर के बाहर अनशन पर बैठ जाती है। यह है आज क ी क जागृित- अपने अिधकार के िलए। चंदावती शु से ही ऐसी ही िनडर रही है। जब उसके सामने हनमु ान शु ल िववाह का ताव भेजते ह तो वो उ ह अपने घर बल ु ाती है और उनसे पछ ू ती है िक तु हारे घर म हमारी ि थित या होगी? प नी क या रखैल क ? हमारे ब च को ज़मीन ज़ायदाद म िह सा िमलेगा या नह ? आिद-आिद । कहना न होगा िक इस तरह का साहस हमारे समाज क लड़िकय म आज भी नह िमलता है। यिद हमारी लड़िकयाँ चदं ावती क तरह साहस और िववेक से काम ल तो न िसफ़ उनके ित अपराध कम ह गे बि क उनके िख़लाफ़ होने वाले अ याचार को भी िवराम लगेगा।

पु ष यव था के षड़यं इतने ख़तरनाक ह िक ऐसी साहसी चदं ावती भी पु ष ारा छली गई। हनमु ान शु ल ने उसे िववाह से पहले नह बताया िक वो पहलवानी करते हए चोट लगने से नामद हो चक ु े ह। जब उसे पता चलता है तो बहत नाराज़ होती है लेिकन या कर सकती थी। िजतनी कोिशश कर सकती थी, उसने क लेिकन कोई संतान न हई। और तीस साल के लबं े वैवािहक जीवन के बाद हनमु ान क मृ यु ने उसे नए भँवरजाल म फंसा िदया। तेरह क रात को ही उसके देवर ने उसे घर से बाहर िनकल जाने को कहा और सबु ह होते ही उसे बाँह पकड़कर घर से िनकाल िदया िक अब तु हारा यहाँ कोई काम नह । चंदावती सोच रही है- “सीता होय चहै मीरा यिह दिु नया मा हर औरत का प र छा देक परित है। जीका मसं वा न होय, तीक कविनउ इ जित नह । औरत तौ अदमी िक छाँह मानी जाित है, आदमी ख़तम तौ औरत जीते िजउ आपइु खतम हइ जाित है। बेवा िक िज दगी मजु रम िक िज दगी तना कटित है। ाखौ अब हमरी िक मित मा का िलखा है।” (पृ. 20)

इस षड़यं म गाँव का धान ठाकुर रामफल भी शािमल है, िजसने उन दोन क शादी कराई थी। चदं ावती को उस िदन क याद आ गई जब कूटी पर पं ह बीस लोग क पंचायत लग गई थी- फे रे लेने से पहले। अिधकतर लोग का िवरोध ही था। सबसे अिधक हनमु ान के छोटे भाई छोटकऊ का। लेिकन जायदाद के बँटवारे को रोकने के िलए वो मान गया। िफर धम के ठे केदार पिं डतजी दि णा बढ़ाकर मं पढ़ने के िलए तैयार हो गए। धान रामफल हनमु ान से बहत से काम िनकालता था सो उसने उनके िहसाब से ही सबको तैयार करवा िदया। पंिडत ने कहा“तमु सब जनै तैयार हौ तौ िबिध-िबधान हम करवाय ाबै। हमका तौ मतं र पढ़ैक है, संखु बजावैक है, अपिन दि छना लेक है। यू िबहाव नई तना का है। यिहमा दि छना सवाई हइ जाई जजमान। िबहाव होई तो चंदावती तेिलन ते सक ु ु लाइन हइ जाई। काहे ते जाित तो मद िक होित है। भगवान िकसन िक तौ सािठ हजार रानी रहै, सबक अलग-अलग जाित रहै। सबका वहै सनमान रहै। परधान दादा जाित तो करमन ते बनित है, बेदन मा यहै 11 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) सबु िलखा है।” (पृ. 36) और इसी िदन को याद करके चंदावती सोच रही है- “िक़ औरत िक िज दगी विहके मद के िबना साँचौ माटी है- मद चहै सार नपसंु क होय, चहै कुकरमी होय लेिकन होय ज र।” (पृ. 46)

लेिकन चंदावती हार नह मानती है और गाँव क ही अ य िवधवा कंु ता फूफू के साथ वह धरने पर बैठ जाती है। उन दोन का साथ देने को गाँव क अ य ि याँ भी शािमल हो जाती ह। चदं ावती के भाई सक ं र क बेिटयाँ मीरा, मीना और ममता भी इस जगं म शािमल हो जाती ह। चंदावती ि य के इस गटु को देवी दल का नाम देती है। वे सब वह पर देवी गीत, भजन गाती ह और बीच-बीच म नारा लगाती ह- िसव परसाद होश म आओ, चंदावती से ना टकराओ। यह जागरण ामीण- ी का नया जागरण है जो उसे इ क सव सदी क नारी बनाता है। देवी दल क थापना भी चदं ावती का सपना है य िक ि य क एकता ही उ ह मद के अ याचार से मु करवा सकती है। उसके िलए दिु नया भर क ि याँ देवी ह िज ह जागृत करने क आव यकता है। वह अपने भाई संकर से कहती है“दिु नया भरे िक मेहे आ हमरे लेखे देबी आँय। वइु िज दगी भ र अदिमन क कुछ न कुछ दीनै करती ह, जेतना अदमी उनका देित है विहके बदले वइु हजारन गनु ा लउटाय देती ह। वइु अदमी क पैदा करै वाली ह। अदमी हरामजादा वहेक बे जत करित है, वहेक नंगा क न चहित है- वहे महतारी िबिटया के नाम ते याक दसु रे क ग रयावित है। अब जमाना बदिल गवा है अब हमरे देस िक रा पित ितभा देबी िसंह ह।” (पृ. 73) चंदावती के िवरोध म गाँव का मिु खया, सारा सवण समाज, उसका देवर और उसका प रवार, पिु लस यव था सब शािमल हो जाते ह लेिकन अपनी बिु और साहस के चलते चंदावती हार नह मानती। उसका मानना है िक दिु नया क हर ी क एक ही जाित है- ी जाित िजसके पास िछपाने को कुछ भी नह है। सभी एक तरह क दख ु -तकलीफ़ सहती ह, सभी एक तरह अपना घर-प रवार छोड़कर दसू रे के घर म अपनी जगह बनाती है और सब एक तरह से ही बाल-ब चा पैदा करती ह, और सब एक तरह ही पित क लात खाती ह। इसिलए वह अपने गाँव क ि य को एक जगह इक ा करती है और उ ह जागृत करती है। वह उ ह जगाने के िलए एक गीत बनाती है जो देवी दल का वर बन जाता है“गइु याँ मोरी डिटकै रहौ गइु याँ मोरी बिचकै रहौ दद अपन आपस मा खिु ल कै कहौ।” (पृ. 101)

लेिकन चंदावती और कंु ता दोन का साहस भी उन दोन क ह या को रोक नह पाता है। उ ह नह पता था िक उनका सामना पेशवे र ह यार से है जो िकसी भी तरह से उ ह छोड़ने वाले नह । धन-संपि , जायदाद आिद के िलए तो लोग कुछ भी कर सकते ह। ऐसे म छोटकऊ और िसवपरसाद अपने घर क ी चदं ावती के साहस से बौखलाकर उसके ऊपर हमले पर हमले करते ह और अतं म कंु ता फूफू के साथ उसक ह या तक करवा देते ह। लेिकन जो काम चंदावती जीते-जी नह कर सक , वो उसक ह या ने कर िदया। चंदावती के ह यारे न िसफ़ पकड़े 12 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) गए, बि क उसके हक क संपि पर देवी दल, कूल और ि य के वरोज़गार के क थापना भी हई।

चंदावती उप यास को न िसफ़ ामीण- ी िवमश के िलए याद िकया जाएगा वरन् अपनी सां कृ ितक िविवधता के वणन के िलए भी भल ु ाया नह जा सकता। इसम अवध के गाँव क सं कृ ित जीवतं प से अिभ य हई है। िववाह म होने वाले नकटौरा का वणन बड़ा ही अ ु त बन पड़ा है। लोकाचार भी इसम आज क ि थित के अनसु ार िदखाई देते ह। आज के गाँव म राजनीित िकस तरह अपना दखल देने लगी है, इसम पता चलता है। छोटे से काम के िलए मं ी िनरह परसाद क िसफ़ा रश लगवाना िकस तरह घातक हो सकता है, चंदावती उप यास म पढ़ा जा सकता है। पिु लस, प कार, मं ी और धान िमलकर िकस तरह एक नई यव था का िनमाण कर रहे हइस कृ ित म बड़ी स चाई से दिशत होता है। सबसे बड़ी बात यह िक इ क सव सदी म भारत म जाित यव था के अभी भी वैसी ही जड़ जमाए हए ह, जो आज़ादी से पहले थे। भले ही चंदावती ने अतं रजातीय िववाह िकया था, वो भी तीस साल पहले लेिकन अभी भी जाित के समीकरण अपनी परू ी शि के साथ िज़दं ा ह। ऐसा नह होता तो प कार पए लेकर धान ठाकुर रामफल का नाम रपोट से िनकाल न देता। रामफल प कार से कहता है िक- “तमु री बनायी खब र यार माने होित है। िसवपरसाद, िबनोद औ छोटकौनू का किसकै लपेिट देव। सब सार चिू तया बाँभन आँय। अपनी िबरादरी यार- माने हमार यान राखेव।” (पृ. 122) । इस पर प कार कहता है- “दादा तमु तो मजबरू कै दी हेव।” (वही) इससे पता चलता है िक जाित का दबाव अभी भी समाज म बहत अिधक है िजसका अ छा-बरु ा भाव समाज पर हमेशा पड़ता है। एक और आकषण है इस उप यास का िक यह बेहद पठनीय है और पवू दी शैली का उपयोग करता है। चंदावती को बार-बार याद आता है िक िकस तरह उनका िववाह हआ था हनमु ान शु ल के साथ। उप यास वतमान और अतीत के बीच कथा को इस तरह सनु ाता है जैसे िक सा सनु ा रहा हो। और इस िक सागोई म वतमान और अतीत के सभी नाते- र ते, संबंध उघड़ते चले जाते ह। हर बात कहने के िलए कथाकार के पास कोई न कोई नया पा है जो अपनी टाइल म उस बात को बताता है। लेिकन इस वतमान और अतीत क लक ु ा-िछपी के बीच कथारस म कोई बाधा नह आती है। कह -कह चंदावती का व न वाह भी है, जब वो अपने अतीत क गहराइय म खो जाती है। गाँव म ि य को जागृत करने के िलए लोक गीत का सहारा िलया गया है। इतना ही नह , ामीण सं कृ ित म रची बसी गािलय का योग भी इसक भाषा को और अिधक आकषक और ामािणक बना देता है। छुतेहर, भतारकाटी, दिहजार आिद गािलयाँ अ ील नह लगती बि क लोक भाषा को जीवतं बना देती ह। ये उप यास ी क कहानी तो है ही, पु ष-स ा के षड़यं को समझने का एक साथक औजार भी है। गाँव म पु ष-स ा को चनु ौती देने का काम िकसी ी ने शायद ही िकया हो। चदं ावती गावं क पु षवादी यव था म अपनी उपि थित दज़ कराती है और उसम साथक प रवतन भी लाती है, भले ही उसे अपनी कुरबानी देनी पड़ती है- यह इस कृ ित क सबसे बड़ी िवशेषता है। इसका ग इसक ऊजा है जो कह भी बािधत नह होता और िबना के पढ़ा जाता है। नई रोसनी और चंदावती के बाद भारते दु से अवधी उप यास परंपरा को और भी आगे बढ़ाने क उ मीद है। िहदं ी कहानी के शीष ह ता र िशवमिू त का कहना है- “यिद च दावती िह दी या िकसी अ य भाषा मे िलखी जाती तो बे टसेलर बक ु होती।”

13 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

________________________________________________________________________ संपकःअ य , िहदं ीिवभागएवस ं ंयोजकप का रताएवंजनसंचार, मिणबेननानावटीमिहलामहािव ालय, िवलेपाल (प), मंुबई-400056. मोबाइलः 09324389238. ईमेल: katyayans@gmail.com

14 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) आधिु नक अवधी का य म यं य- डॉ. अरिवदं कुमार

जब से सृि का िवकास हआ है तब से मानव अपनी मनः भावनाओ ं क अिभ यि करता रहा है। हसं ना मु कराना,रोना,एवं यं य करना उसका वाभािवक गणु है। अवधी का य म यं य का प जो िमलता है वह गो वामी तुलसीदास ारा िवरिचत ‘रामच रत मानस’के नारद मिु न के मोह से िमलता है। एक बार मायावश नारद जी को ‘कामाि न’ सतायी तो नारद जी भगवान िव णु के पास प मागं ने गये तो भगवान िव णु के पास प मागं ने गए तो भगवान िव णु ने कहा, “हरिस िमले उिठ रमािनके ता। बैठे आसन रहिस समेता॥ बोले िबहिस चराचर राया। बहते िदनन क ि ह मिु न दाया॥ रमािनवास भगवान् उठकर बड़े आन द से उनसे िमले और ऋिष (नारद जी) के साथ आसन पर बैठ गये। चराचर के वामी भगवान हँसकर बोले - हे मिु न! आज आपने बहत िदन पर दया क ।’’ 1 भगवान ने नारद जी को आगे भी सावधान होने के िलए कहा, “ ख बदन क र बचन मृदु बोले ी भगवान। तु हरे सिु मरन त िमटिह मोह मार मद मान॥ भगवान खा महँु करके कोमल वचन बोले - हे मिु नराज! आपका मरण करने से दसू र के मोह-काम-मद और अिभमान िमट जाते ह। िफर आपके िलए तो कहना ही या है”2 वयंवर म िशवजी के गण उन पर यं य करने लगते है। जैसेिक “करिहं कूिट नारदिह सनु ाई। नीिक दीि ह ह र सु दरताई ॥ रीिझिह राजकुआँ र छिब देखी। इ हिह ब रिह ह र जािन िबसेसी॥ वे नारद जी को सनु ा-सनु ाकर यं य वचन कहते थे - भगवान ने इनको अ छी ‘संदु रता’ दी है । इनक शोभा देखकर रीझ ही जाएगी औ ‘ह र’ (वानर) जानकर इ ह को खास तौर से वरे गी।’’3 आगे चलकर नारद जी का मोह भगं हो गया। खीिझ कर नारद जी ने गण को ाप दे देते है। यह खीझ मानव के मन म िव मान है। इ ह खीझ के कारण उसके मानस पटल म यं य क ‘सृि ’ होने लगती है। आधिु नक अवधी किवय म वश े ’ राजेश दयालु ‘राजेश’ ं ीधर शु ल‘रमई काका’गु साद िसहं ‘मृगश बल भ दीि त ‘पढ़ीस’ आ ा साद िम ‘उ म ’ ा रका साद िम ’ ि लोचन शा ी’,जमु ई खॉ आजाद’ 15 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) आ ा साद पीयषू ’ जगदीश पीयषू ’ सश ु ील िस ाथ,भारतदु िम , िवशाल मिू त िम ‘िवशाल’ िनझर ताप गढ़ी’ दयाशक ं र दीि त देहाती’ काका बैसवारी’ िवकल ग डवी’ लवकुश दीि त’ के दारनाथ िम ’ ‘‘चंचल’ अजमल सु तानपरु ी’ सतीश आय’ अदम ग डवी’ इ यािद क सजना मक ितभा ने अवधी को अिभ यि का नया अदं ाज िदया है। बलभ साद दीि त ‘पढ़ीस’ क एक मा अवधी का य सं ह ‘चक लस’ (१९३३) है। पढ़ीस जी के ाम- जीवनानभु व का मािणक द तावेज है। पढ़ीस के अनुभव -जगत का एक पहलू गाँव का सम या त और िवसंगितमय जीवन हैिजस पर यं य मल ू क भाषा म चोट करना वे अपना क य-कम मानते ह। ‘मनई’ ‘सोनामाली’ ितरफला’ ‘िस ाचार’ ‘भलेमानस’ ‘रईसी’,ठाटु’ हम और तुम’‘ल रकउनू एम.ए. पास िकिहन’ ‘हम कनउिजया बाभन आिहन’ इ यािद इसी कोिट म आने वाली किवताएँ ह। ‘मनई’ किवता म ‘दु र ’ यि य ‘रा स’ होने तक क सं ा देते ह। जैसेिक

‘जो अपनिय मा बड़ू ा बाढ़ा, संसा सियंित किय स िक िलिहस वहु राकसु हिय, वह दानव हिय! अबकउनु कही सदंु र मनई 4

वश ु िबषय है गाँव और िकसान पर उनका िकसान ‘गाँव’ खेत के ित ं ीधर शु ल क किवता का सव मख नह अपने देश के ित भी सजग है। अिश ाअ ानता वाथनई स यतापरु ानी परंपराओ ं और रीितय म होने वाले बदलाव पर यं य करते हए ‘राम-मड़ैया’ किवता म कहते हैः ‘क रया अ छर भिस बराब र उजड़ मढ़ू भगवान मचा अँधे

वाथ का गाना बै रन का स मान।

जहाँ नह यापी अगं रे जी जिम न सक सल ु तानी, नई स यता ड र ड र भागी घर-घर रीित परु ानी।’ 5 ‘िकसान के अज ’ किवता म भारतीय समाज म िनधनता पर यं य करते हए किव कहता है : ‘गु लर हाँथन ते छीनइ भइँिसन का खबू खवावइ 16 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) जब मेहरी मिँु ह ते माँगइतब उ कुतवा हइरावइ। वह हकु -हकु कइ रोवइिग र-प र कै घर का आवइ जब झरु सइ लगइ करे जा तब पानी स िच जड़ु ावइ।’’ 6 च भषू ण ि वेदी ‘रमईकाका’ का रचना े ा य जीवन के अनभु व को िव तृत फलक पर िचि त िकया है। गाँव क जड़ता और वहाँ के अधं िव वास पर हार करने वाली उनक शैली पाठक और ोता के मन को बरबस बाँध लेती है। ‘कचेहरी’ ‘बरखोज’ ‘बढ़ु ऊ का याह’,‘यह छीछा याद र ाखौ’ ‘िदसासल ू ’ ‘पहली नौकरी’ ‘तलब’ ‘ वारवा’ साहब ते याँट’ इ यािद किवताओ ं से उनके यं य-िवषय प होते ह। ‘दादा का खेत’ु किवता म किव िवरासत म िमली जमीन को पाकर फूले नह समाता हैजसै ेिक ‘है िमला बपौती मा हमका , िफ र हकु कस दसु रे यार हो। के तिनहँ देवा रन पर यिहका गहबर अँिधया३ भगावा है।’’ 7 ि लोचन शा ी का एक मा पवू अवधी म िलिखत ‘अमोला’ (१९८७) का य है। इस का य म २७०० बरवै संकिलत ह। ‘अमोला’ (१९८७) क रचनाशीलता के िवषय म िव नाथ ि पाठी का कथन हैअमोला ि लोचन क सबसे सहज कृ ित है। यह अिभ यि उनक रचना मक अिनवायता थी। इसम मु क म संकिलत अतं रंग जीवन-कथा का रस है। ‘अमोला’ जनपदीय हैइसीिलए वा तिवक भी और सावभौम भी। इसम युग क पीड़ा िनजी पीड़ा म िनिहत होकर आई है। पीड़ा को ि लोचन ने बैसवाड़े के िकसान का बोली म हम सनु ाया है इसी फ कड़पने म अगं ीकार करके । मानो उपवासबेकारीभख ू उपे ाआकाशवन पिति य-संयोग आिद जीवन 8 -अमोला क डाले, प ,े जड़े और फुनिगयाँ ह ।’’ किव ि लोचन कहते है चतरु यि से सदैव सावधान रहोवह मीठा बोलकर र ता बना लेगा : ‘चाँड़ चँड़ासे के ह के ह से नगचाइ। लिख के बोलइ दादा काका भाइ॥’’9 किव ऐसे लोग के बारे म कहता है िज ह ने आपके साथ बरु ा यवहार िकया है। यिद चतरु िम आपके साथ कूिटनीित करता है, तो समयानुकुल आपको चपु रहना होगा। किव का कथन है : ‘राज’ू तोहँकाँ िलहेन सङ्हती लिू ट। चपु मारा जे सनु े ऊ करे कूिट॥’’ 10 किव िव नाथ पाठक भी ‘सवमगं ला’ महाका य म देश ोिहय पर यं य िकया है । याय यव था को कटघरे म खड़ा करते हए कहता है : 17 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘उ लू बइठे यायासन पै राजदडं लै हाथे वै हसं न का याय पढ़ाव, बड़े गरब के साथ।’’ 11 यहाँ उ लू’ श द से आशय अपा यि से’ तथा हसं न’ श द का अथ पा ’ यि से अथात यायशील यि से है। स ा शासन अ यायीअ याचारी यि य के हाथ ‘ यायव था’ आ गयी है। उ म च र वाल के हाथ म ‘ याय यव था’ दु र यि य के हाथ म चली गई है। आ ा साद िम ‘उ म ’ अनेक किवताओ ं म यं य क सहज अिभ यि हई है। उनका िनतातं अिहसं क है। उनका आ ोश ू रता तक नह आता । वे आ ोश के आ ामक प और यं य के तीखेपन को हा य क िनमलता म ढाल देने वाले िस ह त किव ह। उनक यं य किवताओ ं म ‘तोहरी नानी के हाँड़े मा’ ‘झाड़े रौ मँहगआ ु ’ ‘दैजा कै मारी कलिझ-कलिझ पंिडत कै परबितया म रगै’ इ यािद ह। ‘माटी और महतारी’ किवता संकलन म उ म जी सां दाियक उ माद को उ प न करने वाल क अ छी खबर लेते है। ‘कबहँ मि जद कबहँ मिं दर कबहँ गु ारा कै बवाल हर परब तीज-ितउहारे मा मनई मरु गा अस भै हलाल। ई चाल-ढाल झडं ा- नारा तोहका दसु रे न से मोह अहै आपन परु खा आपन धरती तोहका अपनेन से ोह अहै। सख ु पाया अपनी धरती पै दसु रे कै झडं ा गाड़े मा। तोहरी नानी कै हाँड़े मा।’’12 (तोहरी नानी कै हाँड़े मा किवता से) इसी तरह उ म जी ने अपनी किवता ‘झाड़े रौ मँहगआ ु ’ म राजनेताओ ं और उनके चमच -िप छलगआ ु ं पर तीखा यं य िकया है। वै ीकरण के इस दौर जब सम त िव को एक ‘ ाम’ के प म थािपत कर िदया है। ऐसे म हम एक वा तिवक दिु नया का समाज देखने के िलए सपना देख रहे ह। तब भारत के एक ही गाँव म जाित-धमऊँच-नीचछोटे-बड़े क भावना ख म होने का नाम ही नह लेती। इस उ र आधिु नक यगु म छुआछूत

18 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अपने परू े वैभव और ठाटबाट के साथ जीिवत है। जमु ई खाँ आजाद क किवता ‘कवन मनई’ म इस करारे यं य का वाद िलया जा सकता है। जैसेिक‘छुवई पाई न बसनवाँ कवन मनई। छुआछूम औ भेद-भाव मां फरक न तिनकौ आवा इतना िदन होइगा सोराज का तबौ न फुरसत पावा। खावा पतवा मा भोजनवाँ कवन मनई। छुवई पाई न बसनवाँ कवन मनई॥’’13 एक ओर हम गित पथ पर चलने का झठू ा िदखावा कर रहे हदसू री ओर लैकमेिलंग, लैक माकिटंग,घसू खोरी, ाचार म सचमचु आगे बढ़ते जा रहे है। हाँ देश के महान होने का िढढं ोरा ज र पीट रहे ह। नेताओ ं का ज मिदन अव य मना रहे ह। नौकरी के िलए आयोिजत सम त परी ाओ ं को संदहे के घेरे म खड़ा करके ‘पउआ िभड़ा रहे ह’ घसू दे रहे ह और नौकरी ा कर रहे ह। इन ि थितय पर यं य करने वाली आजाद क ‘ज मिदन’ किवता सराहनीय है :

“भरतीय भाव से आरती सािज कै , लीडरन कै ज मिदन मनावत रहब। तेल चाही खरीदबै िबलके इ से हम, मल ु गित पथ पर िदयना जरावत रहब। ---------------------------------------------------------------------------स त काननू बिनयन बरे बन गवा, अब िमलावट कै कौनो सवालइ न बा। अफसरी रंग आपन जमाये अहै, चोरी-डाका कै कौनो बवालै न बा॥’’ 14 अवधी यं यकार म िवशालमिू त िम ‘िवशाल’ का एक अलग थान है। उनक यं य किवताओ ं म ‘इनके कौन भरोसा लेइह वेिच वतनवाँ’ ‘जमु के ह आन कै जमु ाना माँगै हमसे’ ‘हे भइया अपना देश महान के तना’ ‘ससरु ी बेइमिनयाँ’ ‘खिटया खड़ी िव तरा गोल’ ‘र ा िकहा तहु ी भगवान’ ‘रे मा गिय ससरु ी परधानी’ ‘छाता कै अकाल मौत’, पी.ए.सी। कै भरती’ झठू ी बात नह अब फुरवइ सोनिचरै या त र गिय’‘पलिट के देखा मसु क मारै मसु मात मँहगाई’ ‘फ ल गडु फै टर’ ‘काट्या सब कै कान बहादरु गजब िक ा’ ‘खबू िक ा क यान बहादरु गजब िक ा’ इ यािद इनक हा य- यं यपरक े अवधी किवताएं ह। िफर भी ‘भारत देश महान’। िकतना कडुवा यं य है - हम तमाचा मारकर गाल लाल कर रहे ह। भारतीय वोट राजनीित का पोल खोलते हए किव कहता है : -

19 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) जनता माने के वल ओट । बाक सब कुछ उनकै नोट, ए कै ल य एक संधान - र ा िकहा तहु ी भगवान। ..

..

..

..

वैसे उदई भान वैसे भान। न उनके पँछ ू न उनके कान, सब कुछ होय आन कै तान - र ा िकहा तहु ी भगवान॥’’ 15 जगदीश पीयूष अपने नव गीत म देश क ासद ि थित पर यं य करते हए िलखते हैः‘भवा देश म चलन। भाई भाई से जलन॥ कै से िजयरा कै हिलया बताई माई जी। के का चबरा कै गलवा देखाई माई जी॥ रोव किनया म लाल । भये बिनया बेहाल॥ * * * होय लटू पाट मार। बाटै रे वड़ी अ हार॥’’ 16 मँहगाई के मार से आम - जनजीवन त है। सम त उ पाद खा ा न, डीजल, पे ोल, मँहगा होने से उ हे खरीद पाना मिु कल है। किव अपने गीत म इस वेदना को यं य के प म ततु करते हए कहते है : “डीजल आवै दनू े दाम। िबजरु ी होइगै जै जै राम॥ ल रका पांव नाह सेवई औ खीर रामजी। महं गी होइगै हमरी गटई कै जंजीर रामजी॥’’ 17

20 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ाथिमक िश ा म ‘िश क ’ पर यं य करते हए सश ु ील िस ाथ भारतीय िश ा यव था क पोल खोलते है। उनके गीत से प समझा जा सकता है : ‘बारा बजे मह र आये तइकै सोइ रहे तिनयाये किहकै गदहौ पढ़ौ पहाड़ा, चु पे ते। िस छा के भे बंद कवाड़ा, चु पे ते॥ *

*

*

चाद र ओिढ़ यव था वावै फाइल फाइल कुतवा रवावै ास क आिं ख म प रगा माड़ाचु पे ते॥’’ 18 दिु नया आज सं मण काल क प रिध म आ गयी है सं कृ ित भी भाव पड़ना लाजमी है। भारतीय समाज पि मी स यता का असर पड़ रहा है। ऐसे म किव क पैनी नजर तरु ं त भाँप लेती है। भारतदु िम के गीत म इस पीड़ा क कसक यं य के प म देखी जा सकती है। जैसेिक : “रीित रवाज पि मी हइगे लगै लािग पिछयाह।’’ 19 भारतीय समाज म या दहेज एक िवकराल सम या है इसका िजतना इलाज िकया जा रहा है उतना ही बढ़ता जा रहा है। भारतदु िम क नजर इससे ओझल नह होने पाई है : “सिवता क िकरनै फूिट रह कुता - छंगो सख ु ु लिू ट रह ितकड़म क चाल ते अजान िबनु याही िबिटया है जवान ।’’ 20 ‘दहेज’ को आज लोग ने वीकार कर िलया है य िक लोग ले रह है लोग दे रह है। इसका हल यही है िक ‘दहेज’ लेने व ‘दहेज’ देने वाल के घर ‘िववाह’ ही न करे ‘यवु ा’। इस बात को माता-िपता को भी समझना होगा।

21 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अनीस देहाती अवधी रचनाकार म अपना िविश थान बनाए हए है। वह बहत ही सधा यं य करते है तो लोग ितलिमला उठते है । ‘करम कमाई’,‘चँहटा म बड़ू अहै’,‘अरे राम! इतनी अधं ेर’,‘के हका देई वोट’,‘मेल मोह बत’,‘ पइया क खाितर’ इ यािद से ओत - ोत किवताएं ह। ‘मेल - मोह बत किवता म ‘िहदं -ु मिु लम’ पर यं य करते हए कहते ह : “मेल –मोह बत’दआ ु – बदं गी, अस गायब भै पाँड़े । वह देखा ! अ दु लौ च चा,खसके न आँड़े-आँड़े।’’ 21 य िक बात-चीत ,मेल-िमलाप आपस म र ते मजबतू होते है । ऐसे तो आपसी भाई-चारा म दरार पड़ती है। अनीस देहाती इस दरार को िमटाना चाहते ह। उनक रचनाओ ं म िव तार ही देखा जा सकता है । किव कह न कह भा यवादी है वह वयं पर यं य करता है : ‘‘सबर करा इ आपन -आपन करम कमाई बाबू जी। के देिखस कब चोर-पिु लस मा, हाथापाई बाबू जी। जवन उठा लगंु ाड़ा िछन मा, टोला ज रके राख भवा, एकादसी का ल रकै खेलेन हड़ाहडाई बाबू जी।’’ 22 किव जयिसंह ‘ यिथत’ स जन को सचेत करते हए ‘दरु जन’ क पहचान कै से करनी चािहए। उदाहरण देते हए कहते है : स जनता कै ढाल लईदरु जन करै अहेर। िसधवा-िसधवा पेड़ का , करै कािट कै ढेर॥ दरु जन अपनी ताक मा, सदा लगावै दावँ। पिह र अँचला संत कै ,घमू ै गाँव गाँव ॥’’ 23 22 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘ यिथत’ ‘फै सन’ किवता म ‘प रधान’ पर यं य करते ह । फै सन के कारण ‘असली व त’ु एवं नकलीव तु म पहचान करना बेहद मिु कल हो गया है। “खान पान सनमान मा,फै सन बा अगवु ान । असली का नकली कहै,नकली भा भगवान॥ *

*

*

देखे घर-घर जाइकै फै सन कै करततू । छोटके बड़के पै चढ़ाई पि म कै भतू ॥’’ 24 किव इतने से ही संतु नह है, वह धरम-करम,जाितवाद,भख ू ,दहेज, वा य,शराब से होने वाले नक ु सान इ यािद पर भी यं य करता है। िवजय बहादरु िसंह ‘अ खड़’ ‘बोड परी ा’,‘देखा देखी’,‘हमहँ अबक परधान होब’ प रवेश का यथाथ िच ण यं य के प म िकया है। िदखावेपन का किव उि लिखत करता हआ कहता है । जब िपता शराब िपयेगातो पु भी उसी का अनसु रण करे गा। जैसेिक “देखा-देखी पाप होइ रहादेखा-देखी पु न बाप म त गाँजा मा बेटवा दा पी के टु न।’’ 25 आज तो समय एकल प रवार का हो गया हैसयं ु प रवार िवरले ही देखने म शायद िमल जाय। ऐसे म ‘एकल प रवार’ िवखिं डत संरचना का मु य कारण आये िदन हो ने वाले पा रवा रक झगड़े,आमदनी का ोत कम होना,कमाए एक उसी पर सम त प रवार का िटके रहना । आये िदन िखच – िखच,िचक-िचक,मोटे तौर सास -बह के संब ध म खटास होना । आजकल तो सास को अपनी ि य बह नह समझतीन ही बह ‘सास’ समझती है। य िक ‘सास’ बह को दसू रे क िबिटया समझती रहतीऔर बह ‘सास’ बह को कभी अपनी ‘माँ’ नह समझ पाती है। इ ह किमय को ‘िनझर तापगढ़ी’ ने ‘आज क सास पतोह’ नामक किवता म यं य के प् म ततु िकया है : “अपवु ा बढ़ु ायी दाय सोरहौ िसंगार कर िदन भै घमु ित रह गाँव -गली नाका। अपवु ा सपु ारी खाय िप च थँिू क रह ओकरे जौ मन होय प र जाय डाका। 23 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) मधु कै माछी एस भनु -भनु - भनु -भनु लािग रह सनु त -सनु त ओकर िजउ भवा पाका । दौिड़ के पतोह एक बेलना हचिक िदहेस सासु जी क खोपड़ी मा लाग तीन टाँका”। 26 िन कषतः इन रचनाकार क किवताओ ं के मा यम से बेइमान , ाचा रय , नौकरशाहआधिु नक िश ा- यव था,दहेज फै शन,चोर ,लटु ेर ,दु र ,खल-कामी,दजु न,पा रवा रक िवख डन क िवसगं ितय ,राजनीितक छल-छदम,सा दाियक उ माद,ऊँच-नीच,छुआ-छूत,बेरोजगारी,रीित- रवाज परंपराओ ं म प रवतन ,पि मी स यता का भाव इ यािद पर यं य िकया गया है।

संदभ: 1. रामच रत मानस : तल ु सीदास ,टीकाकार हनमु ान साद पो ार (मझला साइज गीता ेस,गोरखपरु ,सं करण 2007,पृ० 115 2. वहीपृ० 115 -116 3. वहीपृ० 119-120 4. आधिु नक अवधी का यः सं० डा० महावीर साद उपा याय, काशन क डालीगजं रे लवे ािसंग, सीतापरु रोड लखनऊपृ० 70 5. वहीपृ० 80 6. वहीपृ० 81 7. वहीपृ० 151 8. यगु तेवर : स०ं कमल नयन पा डेय, ैमािसक ,िदस० - फरवरी 2008-09 वष 3-4अक ं -4,पृ० 192 9. अमोला : ि लोचन शा ी,पृ० 93 10. वहीपृ० 95 11. आधिु नक अवधी का य : स०ं डॉ० महावीर साद उपा याय,पृ० 103 12. माटी औ महतारी : आ ा साद िम उ म ,पृ० 49-50 13. पह आ : जमु ई खाँ आजाद,पृ० 74 14. वही, पृ० 35 15. गीता माधरु ी : िवशालमिू त िम ‘िवशाल’ पृ० 109 16. अवधी ि धारा : सं० राम बहादरु िम ,अवधी अकादमीसृजनपीठ गौरीगजं ,सु तानपरु (उ० ०)सं करण 2007,पृ० 54 24 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) 17. वहीपृ० 55 18. वहीपृ० 90 19. वहीपृ० 120 20. वहीपृ० 107 21. करम कमाई : अनीस देहाती ,अनजु काशन बाबागंज, तापगढ़ उ० ० सं करण 2009,पृ० 52 22. वहीपृ० 88 23. अवध सतसई : डा० जयिसहं यिथत,गजु रात िहदं ी िव ापीठ,कमलेश पाक महे री नगरओढ़वअहमदाबादसं० 1999पृ० 44 24. वही, पृ० 66 25. िनझर तापगढ़ी : हा य फुलझिडयाँ ़ पृ 53

सं ितः अिस० ो० िहदं ी रा० म० महािव० िढंढुईप ी तापगढ़उ० ०

25 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अवधी स ाट प.ं बश ं ीधर शु ल को याद करते हए

राहल देव अवधलोक क वह ृ

यी म से एक जनक व बंशीधर शु ल का ज म उ तर दे श के लखीमपुर (खीर ) िजले के म यौरा

गाँव के एक कृषक प रवार म वसंतपंचमी के दन सन 1904 ई. को हुआ था | इनके पता पं. छे द लाल शु ल कम से कृषक और दय से क व थे | वह अपने प रवेश का िज़

े म आ हा गायक के

स थे | अपने आसपास के इस अनुकूल

भाव बालक बंशीधर शु ल पर भी पड़ा | सन 1919 म पता क मृ यु हो जाने के बाद पा रवा रक

मेदा रय का भार अ पायु म ह उनके क ध पर आ पड़ा | पता क असाम यक मृ यु से शु ल जी क व यालयीय

श ा क ा आठ तक ह हो सक | बाद म घर पर ह उ ह ने ान

पम

वा याय से सं कृत-उद-ू ह द -अं ेजी भाषाओ का

ा त कया | जी वका के लए कुछ समय के लए उ ह ने पु तक यवसाय का काय भी भी कया। इसी बीच

वह क वताएं भी लखने लगे। पु तक यवसाय से जड़ ु ने के कारण उनका अ सर कानपरु आना-जाना होता था। इसी दौरान वह गणेश शंकर व याथ के संपक म आए और उ ह ं क

ेरणा से वह सन 1921 म राजनी त म स

हुए। सन 1938 म आप ने लखनऊ म रे डय म नौकर भी क | जीवनसंघष ने क व बंशीधर शु ल के यि त व और कृ त व को धीरे -धीरे जीवंत और जीवट बना दया | शु ल जी ने बापू के नमक आंदोलन से लेकर आजाद भारत म लगाई गयी इमेज सी म भी जेल या ाय क । खूनी परचा, राम मड़ैया, कसान क अज़ , ल डराबाद, राजा क कोठ , बेदखल , सूखा आ द रचनाये उस दौर म जनमानस म खूब

च लत रह । आजाद के बाद 1957 म पं. बंशीधर शु ल

लखीमपरु

से वधायक बने। अपनी राजनी तक दौर म भी वह बेहद सादगी के साथ रहे | 1978 म शु ल जी

को उ तर

दे श ह द सं थान ने उ ह ‘म लक मोह मद जायसी परु कार’ से स मा नत कया। बाद म सं थान ने

इस जनक व को अपनी

ांज ल अ पत करते हुए उनक रचनाओं का सम

संकलन रचनावल के प म भी का शत

कया | आज़ाद के सपाह और अवधी सा ह य के अन य उपासक बंशीधर शु ल ने 76 वष क आयु म अ ैल सन 1980 म इस द ु नया को अल वदा कह दया | समाजवाद

झान के शु ल जी क रचनाओं म वषयगत व वधता है | गर ब और कसान वग क

यथा-कथा से

तो इनका का य भरा पड़ा है । ऐसी ह उनक एक मा मक क वता ‘अछूत क होर ’ को दे ख तो, “हम यह हो रउ झुरसावइ। खेत ब नज ना गो

गैया ना घर दध ू न पूत।

मड़ई पर गाँव के बाहर, सब जन कह अछूत॥ वार कोई झँकइउ ना आवइ। ..हम यह हो रउ झुरसावइ। ठठुरत मर त जाड़ु सब का टत, हम औ द ु खया जोइ। चा र टका तब मलै मजूर , जब िजउ डार खोइ॥ दःु ख कोई ना बँटवावइ।

26 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ..हम यह हो रउ झुरसावइ। नई फ सल कट रह खेत मा चरइउ कर कुलेल। हम वहे मेहनत के दाना नह ं लोनु न तेल॥ खेलु हमका कैसे भावइ। ..हम यह हो रउ झुरसावइ। गाँव नगर सब होर खेल, रं ग अबीर उड़ाय। हमर आँत जर भूख ते, तलफै अँधर माय॥ बात कोई पँछ ू इ न आवइ। ..हम यह हो रउ झरु सावइ। सुनेन रा त मा ज र गइ होर , ज र के गई बुझाय। हमरे िजउ क बुझी न होर ज र ज र जार त जाय॥ नैन जल कब ल जुड़वावइ। ..हम यह हो रउ झुरसावइ। हाड़ मास ज र खन ु ाय। ू ौ झरु सा, धुनी जरै धध ुँ व जरे चाम क ई खलइत का त ृ णा रह चलाय॥ आस पर दम आवइ जावइ। ..हम यह हो रउ झुरसावइ। यह होर औ पब दे वार , हम कछू न सोहाइ। आप जरे पर लोनु लगावै, आवै यह ज र जाइ॥ कौनु सख ु ु हमका पहुँचावइ। ..हम यह हो रउ झुरसावइ। हमर सगी बलैया, कु तया रोजुइ घर म थ जाय। साथी सगे चरै या कौवा, जा ग जगाव आय॥ मौत सु ध लेइउ न आवइ। ..हम यह हो रउ झुरसावइ।“ क व के सामािजक सरोकार और उसक जनप धर सोच को दशाती यह क वता 1936 म लखी गयी थी | यात य है क हंद सा ह य जगत म वह समय

ग तशील चेतना के उभार का दौर था | ऐसे म शु ल जी अवधांचल म

इस तरह क क वता लख रहे थे | या न क उ ह अपने समय का भल भां त को

भा वत कर सकने म सफल हो पातीं थीं | दख ु द है क इस स दभ म उनका सम

आलोचक म

ान था तभी उनक रचनाएँ लोग

वारा उनक रचनाध मता को लेकर लगातार उपे ा क गयी |

न यह है क

मू यांकन न हो सका | या

े ीयता आलोचना

कावट डालने का कोई मापदं ड थी, वचार कर तो हम पाते ह क ऐसा नह ं है | सो चये अगर ऐसा होता तो

तुलसी बाबा सा ह य जगत म आज कहाँ पर होते ? हंद प ी के कई

तभाशाल क वय के साथ यह दोहरा यवहार

हुआ | अवधी, ज, मै थल , राज थानी, मगधी, छ तीसगढ़ , भोजपुर , बु दे लखंडी आ द हंद क तमाम सार बो लयाँ ह | फर आलोचक का यह पूवा ह समझ से परे है | उ ह समझना होगा क हंद भाषा अगर एक व ृ

है तो उसक

बो लयाँ उसक शाखाएं ह िजसे उससे अलग नह ं कया जा सकता | अ य लोग क तो छोड़ द िजये अब तो अंचल 27 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) के लोग भी अपनी भाषा के

त जाग क नज़र नह ं आते | वै वीकरण और भाषाई दरु ा ह से आज बो लयाँ भी अपने

अि त व से जूझ रह ह | हमार अि मता पर मंडराता यह संकट गंभीर है इसे सभी को समझना होगा | इसके अ त र त ‘उठो सोने वाल सबेरा हुआ है ..’ जैसी पंि तयाँ ह या ‘उठ जाग मुसा फर भोर भई..’ जैसी कालजयी क वता । ‘उठ जाग मुसा फ़र भोर भई’ क वता से मेरा पुराना नाता है

य क बचपन म अ सर सुबह सुबह घर पर

माता जी या पता जी इस गीत को गाया करते थे | शु ल जी अपने समय म बहुत लोक य क व रहे थे | उनके इसी योगदान को लेकर आज भी हम उ ह स मान के साथ याद करते ह | जनमानस म उनक लोक यता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता था क अवध के गाँव-गाँव म लोग को उनक रचनाएँ जबानी याद थीं | जीवन-जगत क तमाम ि थ तय -प रि थ तय ने उनम यव था के

त व ोह

वर पैदा कया था | उस समय

दे श म वतं ता आ दोलन अपने चरम पर था | इस सबका भाव क व बंशीधर शु ल पर भी पड़ा और उ ह ने वतं ता आ दोलन म अपनी स जी से भी बहुत

य भागीदार करते हुए अनेक बार जेल गये | शु ल जी वैचा रक तर पर कह ं न कह ं गाँधी

भा वत थे | गाँधी जी को याद करते हुए लखी गयी उनक ‘गाँधी बाबा के बना’ शीषक यह क वता

ट य है , “हमरे दे सवा क मँझ रया वैगै सू न, अकेले गाँधी बाबा के बना। कौनु डा ट के पेट लगावै, कौनु सन ु ावै बात नई, कौनु बप त माँ दे य सहारा, कौनु चलावै राह नई, को झँझा माँ डटै अकेले, बना स

सं ाम करै ,

को सब संकट बथा झे ल, दस ु मन का कामु तमाम करै । स य अ हंसा क उजे रया

वैगै सू न,

अकेले गाँधी बाबा के बना।“ उ ह ने

वतं ता से पहले अगर अं ेज क

खलाफत क तो वह

वरोधी चेहरे को दे खकर उ ह ने यह भी कहा, “ओ शासक नेह

वतं ता मलने के बाद लोकतं सावधान/ पलटो नौकरशाह

दे गा तुमको/ मजदरू , वीर, यो ा, कसान |” उनक सामािजक, आ थक और राजनी तक

के समाजवाद

वधान/ अ यथा पलट

ि ट व साफगोई यहाँ

प ट

है | शु ल जी ने हंद और अवधी दोन म लेखन कया | अवधी उनक मातभ ृ ाषा थी | उ ह भान था क लोग के बीच अपनी बात रखने का सव े ठ मा यम उनक अपनी भाषा-बोल म ह संभव है इसी लए उ ह ने एक स चे जनक व क भां त अपना अ धकतर लेखन लोकभाषा अवधी म ह उनक एक

कया |

क वता ‘महगाई’ को दे ख, 28 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) “हमका चू स रह मंहगाई। पया रोजु मजरू पाई, ानी पाँच िजयाई, पाँच सेर का खरचु ठौर पर, सेर भरे माँ खाई। सरकार कं ो लत ग ला हम ना ढूँढे पाई, छा दप ु हर खराबु कर तब कहूँ कलो भर पाई। हमका चू स रह मंहगाई।“ बंशीधर शु ल क ल बे लेखन सफ़र (1925 से लेकर 1980 तक) के पीछे एक वह ृ अनुभव संसार था | अपने प रवेश से उ ह जो कुछ भी मला उसे उ ह ने अपनी लेखनी के मा यम से वे लगातार अपनी पूर ईमानदार और

तब ता

के साथ अ भ य त करते रहे | वष 2014 म आपक ज मशती पर ‘अवध यो त’ प का के वारा वशेषांक नकाला जा रहा है | यह काय बहुत ह सराहनीय है | इस तरह के

यास को और ग त मलनी चा हए | कुल मलाकर कहा

जाय तो

शु ल जी लोकचेतना से संपृ एक रा वादी किव ह | उ ह मालूम है िक लोक से िवमुख रहकर सािह य रचने का कोई मतलब नह | उनका स पूण सािह य समाज को नई राह िदखाने वाला सािबत हआ | ऐसे रचनाकार को सािह य म आज उनका उिचत थान न िदया जाना िहदं ी सािह य क कृत नता ही कही जाएगी |

संपक सू 48/9 -सािह य सदन(. .स (अवध) महमदू ाबाद ,कोतवाली माग , ईमेल- rahuldev.bly@gmail.com --

29 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

राजनीितक चेतना के किव रफ क शादानी : अटल ितवारी

किव स मेलन और मश ु ायर को लटू ने वाले अवधी किव रफ क शादानी क किवताओ ं म यं य धान वर है। उनक किवताओ ं म अपने समय और समाज के नये से नये घटना म क उपि थित है। साथ ही उनम अखबारी समाचार क ताजगी िमलती है। एक तरह से उनक किवताओ ं म िबना िकसी लाग-लपेट के राजनीितक और सामािजक प धरता प है। रफ क शादानी क किवताएं पढ़ते हए एक मक ु मल राय यह बनती है िक वह मल ू तः राजनीितक चेतना के किव ह। सबसे अिधक उ ह ने अपनी किवताओ ं म राजनीितक िवसंगितय अथवा िवरोधाभास को के ि त िकया है। इस लेख म हम उनक राजनीितक किवताओ ं पर ही बात करगे।

रफ क शादानी अपने समय म भारतीय राजनीित म घट रहे घटना म पर पैनी नजर रखते थे। वह राजनीित क उठा-पटक को परखते थे। इस देखने-परखने के बीच उ ह जहां भी िवसंगितयां और िव ूपताएं िवचिलत करती थ वहां वह किवता के मा यम से अपनी िति या य करते थे। उनक राजनीितक किवताएं देश क राजनीित क िनमम त वीर पेश करती ह। वैसे तो राजनीित के ि त उनक सभी किवताएं अहम ह, लेिकन अगर नमु ाइदं गी क बात क जाए तो उनक दो किवताएं ‘िजयौ बहादरु ’ और ‘वजीर हन यारे ’ समचू ी भारतीय राजनीित क िवसंगितय का खाका पेश करती ह। इसम ‘िजयौ बहादरु ’ तो एक तरह से मश ु ायर और किव स मेलन म उनक पहचान बन गई थी। इस किवता म राजनीितक िवसगं ितय का मािमक िच ण किव ने पेश िकया है। कभी गाधं ी क खादी नेताओ ं का तीक मानी जाती थी। िवचार के प म वह वाधीनता आदं ोलन का प रधान बन गई थी, लेिकन आज वह म कारी और धतू ता का बाना बन चक ु है। आम जनता खादी पहनने वाले अिधकतर नेताओ ं को कुछ इसी नजर से देखती है? खादी का िलबास पहनने वाले नेता िकस तरह देश क बोली लगा रहे ह? आने वाली ाकृ ितक आपदाओ ं तक म िकस तरह लटू -खसोट कर रहे ह? धम और राजनीित का मजबतू गठजोड़ बनाकर िकस तरह राजनीित क रोिटयां सक रहे ह, शादानी इन सबक पोल ‘िजयौ बहादरु ’ शीषक किवता म खोलते हई महँगाई ई बेकारी नफरत कय फइली बीमारी दख ु ी अहय जनता बेचारी िबक जात बा लोटा थारी! 30 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) िजयौ बहादरु ख रधारी! *** धिू मल भय गाँधी कय खादी पिहरय लागे अवसरवादी या तौ पिहरयं बड़े फसादी देस का लटू ौ बारी-बारी! िजयौ बहादरु ख रधारी! *** तन कय गोरा मन कय ग दा मि जद-मि दर नाम पै च दा सबसे बिढ़या तोहरा धंधा न तौ नमाजी न तौ पजु ारी! िजयौ बहादरु ख रधारी!

इसी तरह से ‘वजीर हन यारे ’ किवता के ज रए दल के दलदल म धसं ी आज क राजनीित पर करारा हार िकया गया है। मौजदू ा दौर क राजनीित और राजनेताओ ं म देश और समाज क भावना दरू -दरू तक नजर नह आती है। उनम नजर आता है तो अहम, सीनाजोरी, लटू पाट से लेकर राजसी भोग-िवलास। किवता क पंि यां देिखए-

दगं ा हर-हाल हय मोरे दम से सख ु ी चडं ाल हय मोरे दम से देस कंगाल हय मोरे दम से सख ु क छाती पै तीर हन यारे

31 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) आजकल हम वजीर हन यारे ! भोली जनता का हम सताइत हय दादा लोगन के काम आइत हय वनही लोगन का बस डेराइत हय खाली बोलिहन मा वीर हन यारे आजकल हम वजीर हन यारे !

यह किवता राजनीित और नेताओ ं के च र को परू ी तरह से बेनकाब करती है। किवता के ज रए शादानी के वल नेताओ ं के मन क बात ही नह करते बि क उनम आए बदलाव का रे खांकन और आम आदमी से धिनक राजा म बदलने का उनका क चा िच ा भी पेश करते ह-

जब से आयन हय मतं री बिनकय खचड़ा गाड़ी से मरसरी बिनकय आवत हर चीज हय िफरी बिनकय कािहल-ए-बेनजीर हन यारे आजकल हम वजीर हन यारे !

िजस तरह साल दर साल राजनीित के नमु ाइदं क संपि म इजाफा होता जा रहा है। संसद और िवधान सभाओ ं म पहचं ने वाले नेताओ ं क देखते ही देखते कोिठयां खड़ी हो जाती ह। कंपिनयां खल ु जाती ह। वह करोड़ -अरब के मािलक हो जाते ह। सामा यजन क ेणी से िनकलकर िवशेषजन क ेणी म आ जाते ह। उनका परू ा जीवन तर बदल जाता है। एक तरह से भोग-िवलास क चकाचध म वह खो जाते ह। इस बदलाव को रफ क शादानी ने ‘ध तेरी ऐसी क तैसी’ किवता म दज िकया हैभयौ मिन टर भरौ ितजोरी घमू ौ नैनीताल मसरू ी 32 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अइसन क रहौ दरू गरीबी ध तेरी ऐसी क तैसी

राजनीित के घोटालेबाज क खबर भी शादानी ने ली है। साथ ही राजनीित म िकस तरह बाबाडम ने वेश िकया और समय के साथ उनक िकस तरह ततू ी बोलने लगी। वह सरकार म मं ी बनवाने और बदलवाने लगे। सरकार बनवाने म भिू मका िनभाने लगे। सरकार के फै सले भािवत करने लगे। इतना ही नह यह बाबाडम िकस तरह वै ािनक चेतना को दरिकनार करते हए अधं िव ास को बढ़ावा दे रहा है, किव ने उस पर भी तजं (ओफ्ओह) कसा है-

देिखके बोले हजारी ओफ्ओह एक िसकार एतने िसकारी ओफ्ओह च ा वामी राव जी सख ु राम जी देश मा एतने पजु ारी ओफ्ओह

चनु ावी अखाड़े म उतरने वाले नेताओ ं क बातचीत ई के फाहे जैसी मल ु ायम होती है। उनक बोली-बानी म जैसे फूल झरते ह। लोग से ऐसे िमलते ह जैसे उनक लंबे समय से जान-पहचान रही है। वह अपने चनु ावी े के च कर पर च कर लगाते ह, लेिकन चनु ाव जीतते ही उनके इस यवहार म बदलाव आ जाता है। उनक जर-ज रया म इजाफा होने लगता है। उनक बातचीत का रंग-ढंग बदल जाता है। समय का अतं हीन अभाव हो जाता है। आम आदमी के दख ु और तकलीफ से उनका वा ता नह रह जाता है। उनक जीवन शैली परू ी तरह बदल जाती है, इन सारी प रि थितय का बयान रफ क शादानी ने ‘कहां राजा भोज’ शीषक किवता म िकया है। साथ ही किवय और शाइर के हालात का िज भी-

नेता हयं कंस और किव हयं सदु ामा हम अम रत का सागर वइ िसगरे ट पैनामा मक ु र मा नेता के मोटर-हवेली 33 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) सायर बेचारे के चमचा न चेली ऊ आदत मा उधमी हम आदत मा मेली कहां राजा भोज कहां गगं आ ु तेली

इन पंि य क कड़ी म ही ‘तु हारा या काम है’ किवता पढ़ी जानी चािहए। भारतीय लोकतं को दिु नया भर म रे खांिकत िकया जाता है। आम जनमानस के बीच उसक जड़ मजबूत ह। इन जड़ को मजबतू ी दान करने क िज मेदारी पंचायत ितिनिधय से लेकर िवधानसभा और संसद क नमु ाइदं गी करने वाले राजनेताओ ं पर होती है, लेिकन वह अपनी िज मेदारी का िनवहन करने के बजाय िकस तरह आम जनमानस से कटते जा रहे ह, इसक बानगी इन पिं य से िमलती है-

हम लोगै जेका इले शन िजतायन एमपी-एमेले-िमिन टर बनायन बंगले पे पहचं ेन, पिू छस का नाम है मोरे अगं ने म तु हारा या काम है

चनु ाव जीतने के बाद वाले इस य से पहले के हालात का बयान भी किव ने िकया है, जब मतदाता क पछू बढ़ जाती है। उसके घर पर बारी-बारी से कुशल- ेम पछ ू ने आने वाल के न बर लग जाते ह। चनु ावी मैदान म उतरे याशी और उनके का र दे िकस तरह लोग के खान-पान से लेकर दसू री चीज का यान रखते ह। इस पर शादानी िलखते (ताव आवत हय) ह-

जब नगीचे चनु ाव आवत हय भात मागं ौ पल ु ाव आवत हय

34 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) भारतीय समाज म िजस तरह से धन क भख ू बढ़ती जा रही है, उससे अनेक गनु ा अिधक जनता के सेवक बने नेताओ ं म धन क हवस बढ़ी है। इस हवस को िमटाने के िलए वह गलत काम करने से नह िहचकते। ऐसा करते हए वह अपनी अथवा अपने राजनीितक दल क बदनामी होने तक से भी नह डरते। ऐसा करने वाल क आख ं का पानी मर जाता है। यही कारण है िक एक पर एक घोटाले म िल होते जाते ह। गैरकाननू ी काम करते ह। राजनीित म वेश का उनका मख ु उ े य होता है धन कमाना। ऐसे ही नेताओ ं को इिं गत करते हए शादानी िलखते (बइठे हयं) ह-

देस कय सेवक बिन-बिन कय जादाद बनाये बइठे हयं बड़े-बड़े लालच मा फँ िस कय नाक कटाये बइठे हयं!

देश के चनु ावी लोकतं क िमसाल परू ी दिु नया म दी जाती है, लेिकन यहां के नेता और उनके राजनीितक दल उसे िवकृ त करने म लगे रहते ह। चनु ाव म वोट हािसल करने के िलए धन का अनैितक इ तेमाल िकया जाता है। जनता म पैस का िवतरण कर एक तरह से चनु ावी लोकतं क बोली लगाई जाती है। खल ु ेआम शराब बांटी जाती है। दावत क भरमार होती है। नेता मानते ह िक ऐसा करके आम मतदाता को अपने प म मोड़ा जा सकता है। उनका वोट हािसल िकया जा सकता है। इसे ‘िब ली क िनगरानी मा’ किवता क दो पिं य से देखा जा सकता है-

नेता लोगै घमू य लागे आपन-आपन जजमानी मा उठौ कािहलौ छोड़ौ िखचड़ी मारौ हाथ िबरयानी मा

इन पंि य के साथ ही ‘एक से बिढ़के एक’ किवता क पंि य को देखा जाना चािहए। िपछले कुछ साल से भारतीय राजनीित म काले धन को लेकर खबू ह ला मचा है, लेिकन ह ला मचाने वाले ही सबसे अिधक काले धन का इ तेमाल चनु ाव म करते ह। अपराधीकरण को बढ़ावा देते ह। अपराध म िल /आरोिपत नेताओ ं क सं या बढ़ती जाती है। ऐसा करते हए वह चनु ाव आयोग के िनयम-कायद क बिखया उधेड़ते ह। आए िदन ऐसी 35 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) घटनाएं सामने भी आती ह। इसके बावजदू राजनीितक दल अपने िगरे बान म झांकना नह चाहते। राजनीित म गहरे तक या हो चक ु इस बरु ाई पर ये पिं यां बड़ी माक क ह-

चनु ाव क कर रहे तयारी एक से बिढ़के एक छटे मदारी छटे िशकारी एक से बिढ़के एक

राजनीितक दल ारा चनु ाव म अधं ाधधंु पैसा लटु ाया जाता है। इतना ही नह एक दल िवशेष के िलए तो यह भी कहा जाता है िक वह िवधानसभा और लोकसभा चनु ाव म करोड़ पए लेकर िटकट देता है। इस दल से जड़ु े रहे अनेक नेता यदा-कदा इस उगाही को लेकर आरोप- यारोप लगाते रहे ह। यह कुछ-कुछ उसी तरह का है िक पैसे के दम पर पद खरीदे और बेचे जाते ह। रा यसभा म पहचं ने वाले अनेक कारोबारी भी कुछ इसी तरह के उदाहरण पेश कर रहे ह। यह बीमारी ऊपर से लेकर िनचले तर तक के चनु ाव म या हो चक ु है, िजसे रफ क शादानी ने ‘का करय’ शीषक किवता म दज िकया है-

जब बीस लाख खच िकिहस परमख ु ी िमली अब ऊ बेचारा देश कय क यान का करय

इसी तरह किव, ाम धानी के चनु ाव और धान के कामकाज पर भी नजर डालता है। चनु ाव जीतने के बाद िकस तरह धान के ठाट-बाट हो जाते ह। िकस तरह उनके िसपहसालार क तादाद बढ़ जाती है। कोटा-ठे का लेने वाले खास लोग क आवाजाही तेज हो जाती है। मनरे गा म काम पाने वाले लोग आसपास मडं राने लगते ह। अनेक बार िबना काम पाए ही भगु तान हो जाता है। िकस तरह उनके धन-धा य म इजाफा होता है। िकस तरह से उनका रहन-सहन बदलता है। यहां तक िक खाना-पीना तक बदल जाता है और हारने पर उनक या हालत होती है, उसे शादानी ने ‘सरऊ’ किवता म य िकया है-

खबू िकहेउ मनमानी सरऊ तबै गई परधानी सरऊ

36 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अब तौ िखचरी नीक न लागय खात रहेउ िबरयानी सरऊ

नेताओ ं क रै िलय और उसम होने वाले र मी भाषण को भी रफ क बड़े यान से सनु ते ह। यहां कही जाने वाली बात और घोषणाओ ं पर िकतना अमल होता है, इसे वह आजादी के करीब साठ साल बाद तक देखते रहे ह। इस देखने-सनु ने के बाद वह इस नतीजे पर पहचं ते ह िक अिधकतर नेताओ ं क रै िलय और भाषण क सारी कवायद कुस और माल को लेकर होती है। यह बात अलग है िक भाषण म वह सबसे अिधक देश क िचतं ा करते ह। ‘कुरसी कय आिसक’ किवता देिखए-

भासन मा हय देस कय िचतं ा आिसक कुरसी माल कय हौ पाइ गयौ मखमल कय रजाई लायक तौ ितरपाल कय हौ

भाषण म नेता िदन-रात िजस देश क िचतं ा करते ह वहां क बड़े पैमाने पर गरीब जनता को सद और बा रश के मौसम म खल ु े आसमान के नीचे िजदं गी के िदन काटने पड़ते ह। सरकार चाहे िजतना िवकास का गणु गान कर। िवकास के आक ं ड़े पेश कर, लेिकन हक कत यह है िक आज भी बड़ी सं या म लोग के पास सर ढकने के िलए छत नह है। करोड़ लोग िव थापन क िजदं गी जी रहे ह। गरीब क इस िजदं गी को रफ क शादानी ने अपने से जोड़ा है और महससू ते हए ‘नवा साल आवा’ शीषक किवता िलखी है-

जाड़े कय मौसम दहु ाई-दहु ाई िबलोक िमयां खांय मगु ा मलाई नेता के कमरे मा ग ा रजाई सायर के िह से मा ितरपाल आवा

37 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) तब जाइके ई नवा साल आवा

इस किवता से ही जोड़कर इन पंि य को भी पढ़ा जाना चािहए, िजसम आए िदन होने वाले चनु ाव क मार िकस तरह गरीब जनता पर पड़ती है। उसे महगं ाई से कै से दो-चार होना पड़ता है, क पीड़ा किव ने य (िढसम िढसम) क है-

जब जब चनु ाव होत हय यिह देस कय गरीब महगं ाई से करत हय बेचारा िढसम िढसम

बीसव सदी के अिं तम दशक से लेकर 2004 तक अटल िबहारी बाजपेयी के नेतृ व म छह साल तक के म रा ीय जनतांि क गठबंधन (राजग) क सरकार रही। उस समय हए लोकसभा चनु ाव के दौरान बाजपेयी सरकार और भाजपा ने इिं डया शाइिनंग और भारत उदय जैसे नारे गढ़े थे। साथ ही फ लगडु को लेकर खबू शोर-शराबा िकया था। िव ापन के ज रए जनता को भरमाने का यास िकया गया था, लेिकन जनता इन नार के मजाल म नह फंसी। इस सरकार के ारा िकए गए काम और गढ़े गए नार पर रफ क शादानी पैनी नजर डालते हए िलखते (आपय डूब गए) ह-

सहर गावं के नगं े भख ू े लोगन मा फ लगडु का नारा लइके खबू गए पंचै देखउ सच कय यही अजं ाम भवा भारत उदय करय मा आपय डूब गए

इस चनु ाव म मीिडया से लेकर िव े षक तक भाजपा के नार म उलझ गए थे। वह अटल िबहारी बाजपेयी के नेतृ व वाली राजग सरकार के दोबारा स ा म आने का ऐलान कर रहे थे। उस समय सोिनया गांधी के नेतृ व म कां ेस ने भाजपा को हराकर मीिडया से लेकर िव े षक तक को करारा झटका िदया था। उस चनु ाव प रणाम को किव ने इन पिं य (मिं दर मु ा होइगा फे ल) के ज रए जनता के सामने पेश िकया38 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

ई देखौ कुदरत का खेल कांगरे स क चिल गय रे ल मिं दर मु ा होइगा फे ल अब अडवानी बेचयं तेल

उस चनु ाव म भले भाजपा हार गई थी, लेिकन इससे पहले और बाद म भी भाजपा ने स ा हािसल करने के िलए धम का सहारा िलया। उसने योजनाब तरीके से धम क राजनीित को बढ़ावा िदया। इसके िलए धािमक उ माद को भी फै लाया। ऐसा करते हए उसने देश को काफ नक ु सान पहचं ाया। गगं ा-जमनु ी तहजीब और िमली-जल ु ी सं कृ ित को चोट पहचं ाई। ऐसा करते हए उसने एक तरह से जनता से धोखा िकया। धम का सहारा लेकर उसके नेता पहली बार स ा तक पहचं े िफर तो हर चनु ाव म मिं दर का राग अलापने लगे। बीस-तीस साल से लगातार ऐसा करते हए वह एक बार भी नह सोचते िक आिखर जनता को कब तक बेवकूफ बनाया जा सकता है। उनके इस मिं दर राग को ल य करते हए किव ने ‘जब राम कय मंिदर बिन जाये’ शीषक से किवता िलखी-

का किह कय च दा मिं गहयं जनता से छल-बल का क रहयं जब राम कय मि दर बिन जाये तब जोसी िसंघल का क रहय!ं मि दर-मि जद बनय न िबगड़य सोन िचरइया फंसी रहय भाड़ मा जाय देस कय जनता आपन कुस बची रहय!

39 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बीसव सदी के अिं तम दशक और इ क सव सदी के शु आती साल म देश और देश क राजनीित उठा-पटक वाली रही है। राजनीितक दल के बीच अनेक बेमल े गठजोड़ हए। ऐसे गठजोड़ िवचारधारा के आधार पर नह बि क िनजी वाथ को लेकर िकए गए थे। यही वजह रही िक उनम लंबे समय तक सामजं य नह रहा। वह झटके म धराशायी होते गए। उसका बखान रफ क शादानी ने इन पंि य (ओफ्ओह) म िकया है-

भाजपा बसपा मा साझा भय रहा भेिड़या बकरी मा यारी ओफ्ओह हर परे शानी का अड्डा मोर घर देिखके बोले बोखारी ओफ्ओह

उ र देश म कमडं ल वाले दौर क राजनीित पर शादानी क पैनी नजर है। इसी दौर म भाजपा ने क याण िसंह को दो बार मु यमं ी बनाया था। दसू रे कायकाल के दौरान ही उनक भाजपा के बड़े नेताओ ं से अनबन हो गई। हालात यहां तक पहचं गए िक क याण िसंह को तब भाजपा को अलिवदा कहना पड़ा था। इस घटना म को के ि त करते हए ‘बरु ा मिनहयं’ किवता है-

हम झठू कही राम औ रमजान बरु ा मिनहयं हम सच जौ कहा चाही परधान बरु ा मिनहयं दईु मरतबा बीजेपी मख ु मतं री बनाइस बीजेपी कय गनु गाई क याण बरु ा मिनहयं

इन पंि य के साथ ही ‘िखिसयान खड़े हयं’ किवता भी पढ़नी चािहए, िजसम सरकार ारा समाचार प म िदए जा रहे बड़े पैमाने पर िव ापन और इ तेमाल क जाने वाली मु यमं ी और मिं य क फोटो पर िनशाना साधा गया है। यह किवता उस समय िलखी गई थी जब देश के मु यमं ी क याण िसंह थे और त कालीन धानमं ी अटल िबहारी बाजपेयी से उनका मनमटु ाव जािहर हो चक ु ा था। इसी दर यान समाचार प म कािशत हो रहे

40 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) िव ापन म क याण िसंह क त वीर कािशत होती थ । नेताओ ं के संबंध म आई खटास और िव ापन म छप रही त वीर को लेकर किव ने भाव य िकया है-

पेपर मा नये ढंग से क यान खड़े हयं ह ठन पै िलए नकली मु कान खड़े हयं लोगय कहयं अटल से रिसयान खड़े हयं हमरी समझ मा भइया िखिसयान खड़े हयं

राजनीित म िवचारधारा के मायने लगभग गौड़ हो गए ह। अब राजनीित म आने वाले राजनेताओ ं के िलए िनजी िहत ही सव प र होते ह। वह िकसी भी समय दसू रे दल का दामन थाम लेते ह। लोकसभा और िवधानसभा चनु ाव के समय तो दल म भगदड़ सी मचती है। इ क सव सदी म ाचार के नाम पर हए आदं ोलन से िनकले दल के नेता तो यहां तक कहते ह िक िवचारधारा से राजनीित का या मतलब? रफ क शादानी ने इस िगरावट को काफ पहले महससू कर िलया था तभी तो उ ह नरिस हा राव और आडवाणी म अतं र नह िदखा। ‘िब ली क िनगरानी मा’ शीषक से िलखी गई किवता देिखए-

हमका कौनौ फक न लागय नरिस हा अडवानी मा लोग कहत हयं दनु ौ जनन कय गयी भस अब पानी मा यही बाता होत रही कल रामदास रमजानी मा दधू कय मटक धय न भइया िब ली क िनगरानी मा

िपछले कुछ समय से संसद क कटीन म खाने-पीने के रे ट को लेकर मीिडया म बहस-मबु ािहसा होता रहा है। सवाल इस बात पर उठे िक िजतने कम रे ट पर वहां खाना-पीना िमलता है या उतने कम रे ट पर िह दु तान के िकसी कोने म खाना िमलना संभव है? जािहर सी बात है िक उतने कम पैसे म खाना नह िमल सकता। िलहाजा इसम शक क गंजु ाइश नह रह जाती िक संसद क कटीन म खाने-पीने का पैसा एक तरह जनता से िलया जाता है। इसी तरह से किव ने िकसान क बदहाली के िलए िज मेदार राजनीित को कठघरे म खड़ा िकया है और गोहं और 41 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) भसू ा जैसे श द को तीक मानते हए परू ी यव था क नंगी त वीर पेश क है। इस परू े वाकये को रफ क शादानी अपने श द (जरी हम) म कुछ इस तरह िपरोते ह-

पाखडं ी रहयं छांव मा घामे मा जरी हम जलपान करयं नेता भगु तान करी हम! भारत के िकसानन कय दरु भाग तनी देखौ गोहँ का धरय िद ली भसू ा का धरी हम!

सभु ाष च बोस को याद करते हए किव उस दौर को याद करता है। उस दौर को याद करने का मतलब भारतीय वतं ता आदं ोलन को याद करना है। उसके मू य को याद करना है। देश के िलए मर िमटने वाले ज बे को याद करना है। उस परू े दौर को याद करते हए नेताओ ं और उनके काम को ‘लइन लेब’ किवता के ज रए रे खांिकत िकया गया है। शादानी उस समय के नेताओ ं के ‘खश ु हाल भारत’ वाले ज बे को आज के नेताओ ं के बर स रखते ह िफर आज के नेताओ ं क ढगं से खबर लेते ह। किवता देिखए-

सभु ाष नेता एक समय मा देस का नारा िदिहन रहा हमका आपन खनू देव तू हम तहु क ं ा आजादी देब अब कय नेता बड़े यार से

42 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) कहत हयं अपने वोटर से हमका आपन वोट देव तू खनु वा तौ हम लइन लेब!

एक किव िकस तरह अपने देश और समाज को देखता है। उसम फै लती जा रही नफरत क बीमारी िकस तरह देश के िलए नक ु सानदेह है या यंू किहए िक िकस तरह वह देश और समाज को दीमक क तरह खाए जा रही है और राजनेता, देश के आम आदमी क िकस तरह अनदेखी कर रहे ह। जनता के दख ु ी, शोिषत, पीिड़त होने के बावजदू वह उसके काम नह आते। ‘हलाल करौ मा’ नामक किवता कहती है िक जो नेता अपने देश के दख ु ी लोग के काम न आए उसका मर जाना कह यादा अ छा है-

देसवा कय अपने भाग संव र जाय तौ अ छा नफरत कय भतू सर से उत र जाय तौ अ छा जो नेता दख ु ी वोटरन के काम न आवय दइु चार रोज मा ऊ गजु र जाय तौ अ छा

इस तरह रफ क शादानी अपनी रचना मक िति या के ज रए बताते ह िक िजस लोकतािं क राजनीित को परू ी दिु नया फ से देखती है वह आज पंजू ी के आगे नतम तक है। इस पंजू ी और राजनीित के गठजोड़ ने राजनीित को सेवा के बजाय पेशे म त दील कर िदया है। यह पेशा ही है िजसके कारण राजनेता येन-के न- कारे ण चनु ाव म जीतना चाहते ह। स ा पाना चाहते ह। इसके िलए वह लोकतांि क मू य क बिल चढ़ाते ह। मि दर-मि जद के नाम पर जनता म सा दाियक उ माद फै लाते ह। जाित और े के आधार पर लोग को बाटं ते ह। जनता का सेवक बनकर चनु ाव लड़ते ह और जीतने के बाद पंजू ीपितय क सेवा म लग जाते ह। इसके िलए िनयम को धता 43 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बताते हए ाचार से लेकर अनेक तरह के छल- पंच करते ह। राजनीित म िदन-दनू े बढ़े ाचार पर किव ने यं य के ज रए करारा हार िकया है तो मि दर-मि जद के नाम पर राजनीित करने वाले नेताओ ं को बेनकाब करने म तिनक भी संकोच नह िकया। यही वजह थी िक वह िह दू और मिु लम के संबंध पर कहते थे िक िजतनी भी गड़बड़ी है वह राजनीित ने खड़ी क है। मु क और अवाम के बारे म उनका मानना था िक िकतनी भोली है िह दु तान क जनता और िकतने काईयां ह उसके नेता। राजनीितक दल और उनके नेताओ ं के इन कारनाम पर रफ क शादानी अपने समय म िग ि लगाए रहे और समयानसु ार उसे अपनी किवताओ ं म रे खांिकत करते रहे। उनम राजनीित के सच को कहने का अपार साहस था। इसीिलए उ ह राजनीितक चेतना का झडं ाबरदार किव कहना उिचत होगा।

अटल ितवारी ारा जय चंद गोला 352-इ/4/इ, मिु नरका, नई िद ली-110067 मोबाइल-9868325191

44 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

िशवमूित क कहािनय म अवध-लोक क पैठ दीप ि पाठी आजमगढ़, उ र- देश Mob- 08928110451 tripathiexpress@gmail.com

कहािनय क संरचना म लोक-जीवन क उपि थित क एक लंबी फे ह र त रही है। इन लेखक क रचनाओ ं म जो लोक-च र , लोक-सम याएँ, लोक-परंपराएँ, लोक-भाषा एवं लोक-गीत िचि त ह, िनि त प से उ लेखनीय है। यह बात अलग है िक अचं ल िवशेष के कारण उसक बोली और उसक सम याओ ं क कृ ित म फक पड़ सकता है परंतु लोक-जीवन क जो सामा य कृ ित है, वह िकसी भी लोक समाज म िदखेगी ही। िशवमिू त लोक-जीवन के सश ह ता र ह। उनका सरोकार अवध े से है। उनक रचनाओ ं म आचं िलकता क गहरी पैठ है। ेमचदं और रे णु क परंपरा के वे एक ऐसे कथाकार ह िज ह ने िहदं ी कहानी म ही नह अिपतु परू े कथा-सािह य म समाज के भल ू े-भटके और बेहद सामा य च र को िजस तरह से लािसक बनाया, िन संदहे मह वपणू है। िशवमिू त का सबसे बड़ा योगदान उनक लोक-जीवन के ित गहरी संवदे ना, लोक-च र क गहरी समझ व अिभ यि रही है। उनके समचू े सािह य म अपने समाज को जीवतं बनाने वाले ऐसे च र क समृ उपि थित रही है जो तेजी से बदलती दिु नया म लु होते जा रहे ह। 'के शर-क तरू ी’ क के शर, 'ित रयाच र र’ क िवमली जैसे पा इसके सश उदाहरण ह। िशवमिू त क कहािनय का क िबंदु हािशए का समाज रहा है। वे समाज से ऐसे पा को उठाते ह जो अ य रचनाकार क सोच से या तो परे होते ह या वे उन चीज को सू म समझकर िकनारे कर देते ह। िशवमिू त क कहािनयाँ कला, सवं दे ना एवं लोक के उस को ततु करती ह िजसम जीत अंतत: संवदे ना क ही होती है। लोक-भाषा का वैिश ् य भाषा क बनु ावट म लोक का अपना अलग ही वैिश ्य है। िकसी भी रचनाकार को उसके िश प और सवं दे ना से अलग करके नह देखा जा सकता है। भाषा-शैली क बनु ावट ही रचना सश एवं जीवतं बनती है। भाषा-रचना म भावािभ यि का मह वपणू थान होता है। िशवमिू त क कहािनय म रचना-िश प क अहम िवशेषता उनक भाषा है। िशवमिू त अपनी कहािनय क भाषा वयं नह बनु ते बि क अपने पा के ारा ही बनु वाते ह। उनके पा क भाषा खाँटी अवधी है। िशवमिू त क भाषा के साथ सवं दे नाएँ वतः जड़ु ी हई होती ह। यह ऊजा उ ह लोक से ही िमलती है। िशवमिू त क यह वृि उ ह एक बड़े रचनाकार होने का ही प रचय नह िदलाती बि क उ ह थािपत भी करती है। उदाहरण के िलए कहानी 'िसरी उपमा जोग म लालू क माइ के प को देखा जा सकता है-''सरब िसरी उपमा जोग, खत िलखा लालू क माइ क तरफ से ,लालू के ब पा को पाँव छूना 45 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) पहचं े... आगे समाचार मालमू हो िक हम लोग यहाँ पर राजी खश ु ी से ह और आप क राजी खश ु ी के िलए भगवान से नेक मनाया करते ह।.... इधर दो-तीन साल से आपके चाचा जी ने हम लोग को सताना शु कर िदया है, िकसी न िकसी बहाने कभी-कभी कमला को भी मारते-पीटते रहते ह।... कहते ह- गाँव छोड़कर भाग जाओ नह तो महतारी बेटे का मड़ू काट लेग” िजस सादगी एवं सरलता क बात हम िशवमिू त कहािनय म करते ह उसका एक मह वपणू आयाम लोक-जीवन क भाषा है। वह श द को लोक से चरु ाते ह जो न के वल सरल और सबु ोध ह बि क यंजक और पारदश भी ह। िशवमिू त क भाषा अपनी सादगी म संदु र और िनतांत सं ेषणीय है। उनक कहािनयाँ ा य-जीवन एवं आचं िलकता से लैस ह। वे अनभु व क गहराइ से उपजी भाषा है। रिव भषू ण के श द म कह तो - ''ये िशवमिू त के अनभु व ही ह जो उनक भाषा म गथु कर सिू याँ बने। ये वे सिू याँ ह िजनम जीवन का स य बोलता है। वाह, सरलता, िच मयता, यजं कता और सारगिभता िशवमिू त के रचना मक भाषा के वे गणु ह जो उनक रचनाओ ं को ल बा आयु य देते ह।” िशवमिू त क भाषा के कइ प-रंग ह। अपना ठाठ भी है। उनका वा य-िव यास िभ न है, वा य छोटे ह। वा य म सहायक ि याओ ं का कम योग करना उनक िविश शैली है। भाषा के तर पर िशवमिू त म बड़ा वैिव य नह रहा है। वे आज भी जन-भाषा के समथक ह। ेमचंद ने 'सािह य का उ े य’ िनबंध म इस बात क ओर सक ं े त िकया है- ''जो जन-साधारण का है, वह जन-साधारण क भाषा िलखता है।” िशवमिू त क कथा-भाषा लोक-भाषा है चँिू क उनके सभी पा लगभग ामीण प रवेश के ह। उनक भाषा म अवधी लहजे के साथ त व और देशज श द का योग सवािधक है। उनक भाषा अथगिभत है, सरल संगानक ु ू ल है। िशवमिू त क भािषक संरचना का अपना एक अलग ही अदं ाज है। समकालीन िहदं ी कथाकार क भाषा से उनक भाषा-शैली पणू तया िभ न है। िशवमिू त ने अपनी भाषा के संदभ म वयं कहा है िक-''भाषा क ताकत म लोक-जीवन और लोक-गीत से बटोरता ह.ँ .. म चिलत मुहावर क शि सजोता रहता ह।ँ म अपनी कहािनय म इस शि को िव तार देता ह।ँ ” इससे यह पणू त: प हो जाता है िक िशवमिू त का रचना-ससं ार लोक से ही िनिमत होता है। लोक ही उनक कहािनय का रंग है। देशकाल, थान, पा -संबधं आिद के आधार पर यह भाषा अपने िविवध प म कट हइ है। िशवमिू त के यहाँ भाषा का जनतािं क प है। इनके यहाँ लोक-भाषा का परू ा स मान है। कइ वा य सिू य क तरह ह। के शर-क तरू ी कहानी म के शर जब यह कहती है-''दुख काटने से कटे गा, भागने से तो और िपछुआएगा।” तो यह उि िनजी न होकर सामािजक हो जाती है। कोइ भी रचनाकार अपने समय और समाज से िकसी न िकसी प से भािवत अव य होता है। िशवमिू त क रचनाओ ं को यिद शैलीगत ि से देखा जाय तो इन पर रे णु क शैली का असर िदखता है। यह उनक शैली से भािवत ही नह बि क कइ कदम आगे तक भी जाते ह। िशवमिू त का िश प अ यतं सहज है। उनके पा क भाषा क य को सहज सरल एवं भाशावली बनाने म सहयोग देती है। जािहर है, गाँव क उबड़-खाबड़ जमीन से िनकलने के कारण िशवमिू त के पा वहाँ क बोली, लहजे और नज़ाकत से वािकफ़ ह। िशवमिू त के यहाँ ामीण-जीवन का बहत ही ठोस एवं मक ु मल िच है। 46 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) िशवमिू त ने अपनी कहािनय म आचं िलकता के साथ-साथ े ीय श द और रंग का भरपरू योग िकया है। उनक भाषा िविवध रंग के साथ-साथ लोक ( ामीण) सवं दे ना को परू ी शालीनता से ततु करती है। वे सामा य श दावली को ही अथ-ग रमा और सांकेितकता देने म सफल िस हए ह। इनके साधारण वा य यापक अथव ा के साथ यंजनापणू ह। इनक कहािनय म िचि त लोक-जीवन कहािनय म जहाँ रोचकता दान करता है वह िश प के नए-नए िविवध आयाम भी खोलता है। लोक-कथा लोकोि य एवं महु ावर के सहारे िशवमिू त अपनी कहािनय को धार देते ह और लोक-भाषा उस धार को अित ती ण करती है िजससे उनक भाषा और अिधक सारगिभत बन जाती है। उदाहरण के तौर पर हम उनक कहानी ' वाजा! ओ मेरे पीर’ क शु आती पंि य को देख सकते ह-''माधवपरु से िसंहगढ़ तक सड़क पास हो गइ। तो सरकार ने आिखर मान ही िलया िक ऊसर जगं ल का यह इलाका भी िह दु तान का ही िह सा है।” िशवमिू त का िश प पाठक क सवं दे ना और यगु ानक ु ू ल अिभ यि म िनिहत है। अचं ल म या जीवन क गहराइ, जीवनगत यथाथ और उन थापनाओ ं के वातावरण को कट करने म भी िशवमिू त सवथा िच कार से तीत होते ह।

भाषा क ताकत म लोक-जीवन और लोक-गीत से बटोरता ह:ँ िशवमूितलोक-गीत लोक के द:ु ख-दद और सवं दे ना क गहरी अनुभिू त कराते ह। िशवमिू त लोक-गीत के सश योगकता ह। उनका मानना है िक लोक-गीत का योग िकसी भी रचना को सश एवं जीवतं बनाने म मक ु मल होते ह। उ ह ने अपनी कहािनय म लोकगीत का अ ु त योग िकया है। िमसाल के तौर पर के शर-क तरू ी कहानी को देखा जा सकता है''मोिछया तोहार ब पा हेठ न होइ ह, पगड़ी के ह न उतारी, जी.. इ इ। टुटही मँड़इया म िजनगी िबतउबै नाह जाबै आन क दुआरी जी इ इ ।।” (के शर-क तूरी) ऐसा ही एक और गीत िजसम िवमली क तरफ आकिषत िब लर गाँव-घर के यथाथ को विणत करता है साथ ही िवमली को अपने ेम का संदेश भी देता है''...अरे टुटही मँड़इया के हम ह राजा करीला गुजारा थोरे मा तोर मन लागै न लागै पतरक मोर मन लागल बा तोरे मा।...” ((के शर-क तूरी) िनि त प से िशवमिू त एक मजे हए रचनाकार ह। उनके पास अपनी बात को सं ेप म रखने का हनर है। ामीण जीवन म पव - यौहार के गीत का िकस कार से लोग िनवाह करते चले आ रहे ह उसक अिभ यि हम ' वाजा! ओ मेरे पीर’ कहानी म मामा के होली-गीत के ज रये देख सकते ह47 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ''सब िदन बसंत जग िथर न रहै आवत पुिन जात चला....रे ...पपीहा या ....रे –” िशवमिू त लोक से गहरे प म संपृ ह। उ ह अपने समाज का खाँटी अनभु व है, उसे वह अपनी रचनाओ ं म हबह टाँकने म कोई कसर नह छोड़ते। िशवमिू त अपनी कहािनय म लोकगीत का योग करने के साथ-साथ उसक सु ढ़ परंपरा को बचाए रखने क कोिशश करते ह। उनक यही कला उ ह अपने समकालीन रचनाकार से अलग करती है। लोकोि याँ और मुहावरे रचना को जीवतं एवं सारगिभत बनाते हमहु ावरे अथवा लोकोि याँ एक अनभु वपरक ऐसी अिभ यि है िजसम जीवन के सख ु -द:ु ख हास-प रहास, रंग- यं य, अतीत-वतमान का ितिबंब िदखाइ देता है। िशवमिू त क कहािनय म इसका अ ु त योग हआ है। उदाहरण के प म हम उनक कहािनय म लोकोि य एवं महु ावर को देख सकते ह- भेड़ ही खेत खा गइ, कसाइ क गाय, अँिखया फूट गइ है (ित रयाच र र), दधू -पानी अलग करै वाले (कसाइबाड़ा), चनू ा लगाना इ यािद। उनक कहािनय म कहावत क भी भरमार है। जैस-े जेकर काम उही से होय, गदहा कहै कुकुर से रोय, (कसाइबाड़ा) आिद। िशवमिू त ने अपनी कहािनय म भाषा को जीवतं ता दान करने के िलए ामीण महु ावरो एवं कहावत का योग िकया है। इससे भाषा म गांभीय, वाह एवं अिभ यि म प ता आइ है। िशवमिू त ने अपनी कहािनय म तीक का भी सहारा िलया है। रत धी, नाक, सिठयाना, हेडलाइट, िछकनहवा, काितक क कुितया, िवभीषण, पके कै थ क महक, गाँठ पकड़ लेना जैसे येक िबबं उनक कहािनय के क य को और सारगिभत बना देते ह। गौर कर तो भाषा के धरातल पर िशवमिू त अ यंत सरस ह। गाँव-देहात क श दावली या उ चारण का योग कहानी को सं ेषण क ि से और सश बनाते ह। कनमनाना ( यान जाना) मरु ाही (नटखट), सतु ं ( वतं ), िनमरी (दबु ली-पतली), पतरक (पतली), बेसी ( यादा), टेम (समय), आिद श द कहानी को जीवतं बनाने के साथ-साथ श द-अथ क िविभ न छिवय को भी उजागर करते ह। इस कार हम कह सकते ह िक िशवमिू त अपनी कहािनय म िजस िश प (भाषा, महु ावरे , लोकोि य श द- योग आिद) को लेकर आते ह वह अ ु त तो है ही साथ ही उनक िविश पहचान भी है।

48 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

अवधी लोकगीत म विणत ी सम या का अ ययन आशु यादव

मानव क अतं रंग कृ ित ही लोककलाओ ं को ज म देती है। तदा तर मानव अपने अब तक के उपािजत सं कार से उसे है। यगु सदं भानक ु ू ल या अपने यि व के अनक ु ू ल ढालकर अिभ य करता (लोककला प को) कृ ित म घटने वाली घटनाओ ं के ित वह बेखबर नह रहता है । वह उसे जानना और समझना चाहता है। अगर वह उसे समझ लेता है तो उसे अिभ य करना चाहता है। यही अिभ यि लोककलाओ ं के िविभ न प म हम ा है । लोकसािह य म भावािभ यि क एक िवधा लोकगीत भीहै। लोकगीत को के वल मनोरंजन का साधन नह माना जा सकता, न ही लोकगीत िब कुल का पिनक होते ह । बि क उनम कह न कह सामािजक स चाई िछपी होती है।लोकगीत क सव थम यु पि उस समय हई, जब समाज अिवभ और एका म व प म था। जनसमदु ाय के बीच उठते क धते िवचार, िवषय एवं अनुभाव का समावेश लोकगीत म होता है।लोकगीत भारतीय लोक सं कृ ित का िचरवाहक और ाणाधार है।लोकगीत म त कालीन सामािजक जीवन एवं गोचर सं कृ ित यथा नगर, ाम, समाज, प रवार, पशपु ी-, हाटबाजार-, यु ेम-, गंृ ारक ण-, आ थापरा म का -अधं िव ावस तथा शौयजीवतं व सहज िच ण हआ है। लोकगीत लोकमन क अिभ यि है इनके मल ू म संगीत और नृ य के त व िनिहत ह । लोकगीत िकसी एक ह यि ारा रिचत नह होते बि क परू े समाज ारा रचे जाते ह। लोकगीत मानव जीवन म परू ी तर रच बस गए ह । लोकगीत लोकजीवन क म ती के प रचायक-, जीवन क रसा मकता, रागा मकता के उ ार एवं उमगं का चटक रंग ह । दख ु , अपने प रवेश कृ ित म जो कुछ देखता है, उससे ु का जो अनभु व करता है-मनु य अपने जीवन म सख सहज प से उ प न भाव को वह अपनी वाणी तथा हावभाव से य करता है । साधारण जन अपने मि त क और दय पर भाव डालने वाली घटनाओ ं के बारे म गाकर, नाचकर रागा मक भावनाओ ं क भाषागत अिभ यि करता है । लोकगीत लोक जीवन म ितिदन उषाकाल से म य राि तक िकसी ि या से िनिववाद प से जड़ु े होकर मनु य को फूित दान करते ह । इसिलए लोकगीत को ‘ वत फूत गीत :’ कहा गया ह । समाज अथवा रा के उदय म ी और पु ष का समान मह व होता है पु ष यिद घर के बाहर के काय को उ नत एवं सचु ा प से करता है तो ी सेवा एवं नेह आिद के साथ घर के िविभ न काय का िनवाह करती है

49 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ी और पु ष एक दसू रे के परू क है, जीवन म ी एवं पु ष दोन च के समान प से चलने पर ही जीवन सख ु मय बनता है । समाज म ी के िविभ न प ह जैसेपु ी-, प नी, माता आिद । ी समाज का एक अिभ न अगं है ी के िबना समाज क क पना ही नह जा सकती है। ी सवदा अपना काय कत य िन ा के साथ पणू करती है । ी को उसके सामािजक अिधकार कभी नह िमल पाए ह। ी चाहे पु ी, प नी, माता के प म हो उसके साथ पु ी होने पर पु के साथ तल ु ना, प नी होने पर प रवार के साथ तल ु ना तथा माता होने पर िज़ मेदारी के नाम पर अमानवीय यवहार िकया जाता है । यहाँ पर मनु ारा कही गई बात िस होती है िक नारी को बचपन म िपता, जवानी म पित तथा ौढ़ावा था म पु के सरं ण म रहना चािहए। भारतीय समाज क स पणू ढांचागत यव था ी का शोषण करती आ रही ह। पु ष अपने आप को बचाने के िलए मनु नाम क चादर ओढ़ना भी नही भल ू ता है। भारतीय समाज म ी क वेदना, कंु ठा, क णा, पीड़ा, भावनाओ ं और सम याओ ं का यापक वणन मिहल ने लोकगीत के मा यम से भी िकया है । अवधी म ी सबं िं धत अनेक लोकगीत िमलते ह। अवधी पवू िहदं ी क एक बोली है। यह उ र देश म लखनऊ, रायबरे ली, सु तानपरु , बाराबक ं , हरदोई, फतेहपरु , सीतापरु , लखीमपरु , तापगढ़ फै जाबाद और आिं शक प से िमजापरु , जौनपरु , इलाहाबाद आिद िजल म बोली जाती है। तल ु सीदास ने अपने म "रामच रतमानस" अयो या को 'अवधपरु ी' कहा है। इसी े का परु ाना नाम 'कोसल' भी था िजसक मह ा ाचीन काल से चली आ रही है। अवधी लोकसािह य म तर् ी संबंिधत लोकगीत क चरु ता है । िवषयव तु के आधार पर इन गीत का वग करण इस कार िकया जा सकता है सं कार गीत –, पव यौहार के गीत-, धािमक गीत, ऋतु गीत, जाित गीत, पारंप रक खेल गीत, रा ीय गीत, सां कृ ितक गीत, म गीत, अ य गीत आिद । इन सभी लोकगीत म ी क भागीदारी यापक तर पर िमलती ह। बाल िववाह क सम या -का वणन िमलता ह। जैसे अवधी लोकगीत म ि य क अनेक सम याओ,ं क या णू ह या क सम या, दहेज़ था क सम या, बेमल े िववाह क सम या, सती था क सम या, परदा था क सम या, सती व परी ा, गोदना क था, बं या ी क सम या और िवधवा ी क सम या इ यािद । बाल िववाह ाचीन समय से ही भारत म बाल िववाह का चलन रहा है। खेलत रिहइउ म मइया क गोिदया, खेलत चउंक परीउरे । 50 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) के िहके दवु ारे बइया बाजन बाजे, के ई के दआ ु रे क चार रे । तु हरे दवु ारे बेटी बाजन बाजे, तु हरे दवु ारे का चार रे ।

क या ूण ह या क सम या भारतीय समाज म धािमक अंधिव ास, पु षा मकस ा, दहेज था आिद के कारण क या णू ह या क सम या िदन पर िदन बढ़ती जा रही ह । इसी पीड़ा को अवधी समाज क ि य ने अवधी लोकगीत के मा यम से य िकया है जो इस कार है – भीतरा से दायज अँगना म गने कोसय बेटी जनमवां जनितउ जो बेटी जनम लेह मोरी डिलितउ म कोिखया िगराय रे मरितउ जहर िवष खाय रे दहेज था भारतीय समाज म दहेज था एक बहत बड़ी कुरीित है इसके कारण मातािपता के िलए लड़िकय का िववाह िववाह क अिनवायता कुलीन िववाह-। जीवन साथी चनु ने का सीिमत े बाल एक अिभशाप बन गया हैिश ा एवं सामािजक ित ा, धन का मह व ,महगं ी िश ा, सामािजक था एवं दशन तथा झठू ी शान आिद के कारण दहेज लेना और देना आव यक हो गया है। दहेज था के मातािववाह यो य वर से नही कर िपता अपनी पु ी कापाते । अवधी लोकगीत म दहेज क सम या का वर◌्ण इस कार है िक संदु र क या के अनु प यो य वर न िमलने से िपता िनराश होकर उसे कुमारी रहने को कहता है । 51 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘वै वर मांगै हाथी से घोड़ा मागं ै मोहरा पचास वै वर मांगै बेटी नौ लाख दहेज मोरे बतू े दइयो न जाय ।

बं या ी क सम या भारतीय समाज म िजस ी के कोई ब चा नह होता उसे बं या कहा जाता है । इसके साथसाथ अगर िकसी र म उसे ी के के वल पु ी हो और उसने िकसी पु को ज म नह िदया तो उसे भी लोग बं या कहते है और प रवा तरह के ताने सनु ने पड़ते है । इसके साथ ही उसका पित या तो द-तरह◌ूसरी शादी कर लेता है या उसे छोड़ देता है ये भी एक सम या है िजसे अवधी लोकगीत के मा यम से ि याँ अपनी पीड़ा को य करती ह । "सासू मोरी कहे बिझिनया, ननद वृजवािसन, जेकर बारी िवयािहया वै घरा से िनकारे । पा रवा रक कलेह भारतीय समाज हमेशा से सयंु प रवार के प म रहता था और संयु प रवार म कभीकभी पा रवा रक बह कलह-सास -कलेह होते रहते थे । जैसे, ननदभोजाई कलह और देवरानी और जेठानी का कलह लेिकन। रण ी चपु चाप पा रवा रक कलह को सहती रहती है। यहाँ तक अगर कभी सामािजक मयादाओ ं के का पत-पित◌्नी म िकसी बात को लेकर बहस हो जाती थी तो ी यह समझ के चपु हो जाती थी िक पित उसका परमे र है और वह उसके साथ कुछ भी कर सकता है । य ने अवधी लोकगीत के मा यम से य िकया है । प रवारी कलह क इस सम या को अवध ांत क ि भाभी का एक गीत इ-ननदस कार िजसम ननद अपनी भाभी को बहत दख ु ी करती ह तो भाभी गीत के मा यम से यथा– कथा य करती हैदपु ह रया से झगरा डालेओ मोरी ननदी 52 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) भोरोरे हम बढ़नी से अगं ना बहारे न फइलाएओ मोरी ननदी । अँगना मा कूड़ा बेमेल िववाह बाल िववाह एवं जीवन साथी के चनु ाव क वत ता के नह होने के कारण कई बार लड़िकय का िववाह अनपु यु लड़क से करवा िदया जाता है। िश ा क असमानता, आिद के कारण उनम वैचा रक मतभेद उ प न हो जाता है और उनका वैवािहक जीवन सफल नह होता है। ऐसी ि थित म ी को ही अिधक क उठाने पड़ते है। अिश ा एवं परंपरावादी यव था के चलते आज भी अनमेल िववाह हो रहे है। अवधी लोकगीत म बेमल े िववाह बािलका व वृ का िववाह), बालक व युवती का िववाह आिद( बहिववाह था का मािमक िववाह का मज़ाक उड़ाया गया है।-इस िववाह गीत म वृ -देखने को िमलता है। यथा अक ं न बरहै ब रसवा कै मो र रँ गरै ली अिसया बरिस क दमाद। िनक र न आवै तू मो र रँ गरै ली अजगर ठाढ़ दवु ार।।1।। बाहर िकचिकच आँगन िकचिकच बढ़ु ऊ िगरै महँु बाय। सात सखी िमिल बढ़ु ऊ उठाव बढ़ु ऊ क सरग िदखाय।।2।। सती व परी ा ननद क ई यामय िशकायत के प रणाम व प कुलवधू को अपने सती व क - वासी पित के लौटने पर सास परी ा देनी पड़ती थी । अवधी लोकगीत म इस परी ा का वणन िमलता है और तर् ी को अपने सती व क परी ा अि न, जल, सयू या पृ वी को सा ी मानकर शपथ या सती व परी ा का वणन िमलता है जो इस कार हैजब बिहनी चली ह अिगिन िक रयवां खौला तेल भये जड़ु पिनया हो रामा जब बिहनी चली ह गगं ा िक रयवां गगरी गई है झरु ाई हो रामा जब बिहनी चली ह सु जु िक रयवां उगा सु जु गए ह िछपाए हो रामा जब बिहनी चली ह धरती िक रयवां धरती म उठा भंइु डोलवा हो रामा

k-5 jaitpur extn part-1, near arpan public school, badarpur new delhi 110044

53 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अवधी क ितरोधी सं कृित और वश ं ीधर शु ल -जग नाथ दुबे

21व सदी लोबल के समानांतर लोके ल क तरफ उ मख ु होती हई सदी है। 20व सदी के अिं तम दो दशक म िजस तरह के सं िमत मू य का िवकास हआ उनक मानवता िवरोधी ि थितयां ज द ही प भी होने लग । ऐसी दशा म नया मनु य अपने ितमान खदु गढ़ने को िववश हआ। उसके सम स पणू मानवता को बचाये रख पाने का खतरा मौजदू था। उसक या ा िकस िदशा म हो जहाँ िक वह सबकुछ के साथ जीवन के रंग भी बचा पाने म समथ हो सके ? वह िवकास के चकाच ध म इस तरह च िधयाया हआ था िक यथाथ क पना लगता था और क पिनक सच यथाथ। उसे सबकुछ जादईु िदखता था। इस देखने परखने के खतर से बचने के िलए उसने अपनी जड़ क ओर लौटना शु िकया। जहाँ से िव िवजय क या ा पर िनकला था वहां आकर वहां से िव को एक नजर िफर से देखने क कोिशश क । यह कोिशश रागा मक मू य से कटे मनु य के पनु ः उसक ाि क कोिशश थी। इसम वह सफल हआ। उसक लौटने क यह या ा उ वमख ु ी सािबत हई। यहाँ जब उसने देखा तो उसक ऑखं फ़टी रह गय । इतनी अकूत स पदा? िजसे उसने पइया समझकर छोड़ िदया था अ न का भडं ार तो वही िनकला। िफर या था?उसने उस भडं ार को सहेजना शु िकया। और इस तरह वह अपनी जड़ो को मजबूत करने क तरफ उ मख ु हआ। यह सहेजने क ि या 21व सदी म परू ी दिु नया म बढ़ती हई िदखाई दी है। य य समाज,राजनीित और अथतं लोबल होता गया है कला क दिु नया उसी अनपु ात म लोके ल को य देने क तरफ बढ़ी है। यह अनायास नही है िक िपछले दो दशको म उभरा िहदं ी े का ायः हर ितब रचनाकार अपने लोके ल को सहेजकर ही आगे क या ा तय कर सका है। जो लोके ल से कट गया या िक ही कारण से उसक पकड़ म ठीक से नही आया उसक रचना मकता बहत ज दी चक ु सी गयी।

90 के बाद का दशक कला के हर े म लोके ल के मह व क वीकृ ित का दशक है,खासकर िहदं ी किवता को देख तो 90 के बाद का कोई िबरला ही रचनाकार होगा िजसक रचनाओ ं म उसका पासपड़ोस बहत मख ु र नहआ हो। उसक अपनी थानीयता चा रि क व प म न आई हो। उसके ल◌ेखन क उ वमख ु ता उसके लोके ल के सहारे आगे न बढ़ी हो। यह जो लोके ल का इतना ेशर है रचनाकार म वह तब और यादा सोचने का िवषय हो जाता है जब दिु नया के और दसू रे अनश ु ासन लोबल क तरफ बढ़ रहे ह । कला का यह ितरोध असल म उस परू ी यव था का ितरोध है जो इन नवीन मू य के साथ आगे बढ़ रही थी। सा ा य के घटाटोप म जो कुछ भी लोबल हो रहा था सािह य क सं कृ ित उन सबका नकार करते हए असल म सा ा य का ही नकार कर रही थी।

54 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) इस नकार का जो सकारा मक पहलू िनकला वह यह िक उन े ीय बोिलय भाषाओँ को िजनके सहा-रे िहदं ी भाषा और सािह य िवकास पा पाया हम बहत दरू छोड़कर आगे बढ़ गए थे उनमे सरं ि त मू य को तलाशने हम उनके पास तक गए। वहां हमे सैकड़ो आइए रचनाकार िमले जो अपनी ितब ता और ितरोधी तेवर म सािह य क तथाकिथत गभं ीर सािह य धारा के मह वपणू रचनाकार से िकसी भी मामले म कमजोर नही पड़ते। वे एक खास े म िसमटकर रह जाने क वजह से चचा के क म नही आ पाये जबिक उनका तेवर बहत ही जनु नू ी िक म का रहा है। ऐसे सैकड़ो रचनाकर हमारी िविभ न बोिलय भाषाओँ म िव मान ह। भोजपरु ी लोक म िभखारी ठाकुर जैसा लोक नाट्यकार इतना समा त होने के बावजदू इधर के वष म सािह य क मु यधारा के क म आया। ऐसे ही अवधी क स पणू ितरोधी चेतना िजनमे मौजदू िमलेगी ऐसे वंशीधर शु ल के रचना मकता क बात कम ही सनु ाई पड़ती है और यहाँ जब म अवधी क स पणू ितरोधी चेतना क बात कर रहा हँ तो भारतीय वत ता सं ाम के दौरान अवधी जनमानस क ितरोधी चेतना क बात कर रहा हँ। स पणू ांित आदं ोलन के समय अवधी जनमानस क ितब ता क बात कर रहा हँ। उससे पवू म ययगु ीन िचंतनधारा क सामािसक सं कृ ित क बात कर रहा हँ। िनरगिु नया किवय क दो टूक बयानी क बात कर रहा हँ। पलटू साहब क बात कर रहा हँ। यानी अवधी लोक के स पणू इितहास बोध के साथ उसके सामािजकसां कृ ितक मोच पर िकये गए संघषऔर ितरोध क बात कर रहा हँ।

िकसी भी गितचेता रचनाकार क रचना मकता िजतना अपने समय से भािवत होती है उससे कई गनु ा यादा वह अपने समय और समाज के इितहास बोध और भगू ोल से भािवत होती है और यही कारण है िक िजस समयसमाज का इितहास बोध और भगू ोल अ यवि थत होता है उसके वतमान से भी िकसी गितशील मू य क उ मीद नही क जा सकती। तमाम कारण से आधिु नकता के िवकास के साथ िहदं ी क बोिलय का सािह य उपेि त होता गया। आज ि थितयां बदली ह और लोग का यान उस ओर जा रहा है पर ऐसा कभी नही हआ िक इसक रचना मकता क धार जरा भी कु द हई (जब यह उपे ा का िशकार हआ तब भी नही) हो। अपनी ितब ता म यह लगातार अपने सामािसक िवकास और ितरोधी तेवर को बचाये रखने म कामयाब रहा है। आज जब हम अवधी क िपछले हजार वष क सािहि यक पर परा क तरफ ि डालते ह तो समय और समाज के बदलते सामािजकसां कृ ितक व प के साथ उसक रचना मकता का- जनवादी व प और यादा साफ़ होता चला गया है। वश ं ीधर शु ल का लेखन इस परू ी पर परा का अपने समय का ितिनिध लेखन है। इस लेख का उ े य अवधी क ितरोधी सं कृ ित के बहाने वश ं ीधर शु ल क रचना मकता का िववेचनिव े षण करना है। उनक स पणू रचना मकता का वािजब मू यांकन िकसी एक लेख म हो सके गा यह अस भव है पर अगर उसके कुछ अ स भी िदखाई दे जाएँ जहाँ से आगे उनपर बात हो सके तो इसे म अपनी सफलता समझगँू ा। वश ं ीधर शु ल का किव समय छायावाद से शु होता है पर उनका का य समय छायावादी नही है। उनक रचना मकता वैसे नही बन रही थी जैसे पंत, साद या काफ हद तक िनराला क बन रही थी। वश ं ीधर शु ल को 55 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) कई वजह से लोग अवधी किवता का िनराला कहना पसंद करते ह पर यह कहना भी एक हद तक बेमानी है। िनराला का जीवन सघं ष बेिमशाल है। उसपर कोई ऊँगली नही उठा सकता पर-सघं ष और रचना मक-वश ं ीधर शु ल को िकसी और क उपािध देना उनके साथ अ याय करना होगा। वंशीधर शु ल जो िलखते थे उसके िह सा होकर िलखते थे। उनका लेखन िवशु लेखन नही था। मझु े तो कई बार लगता है िक अगर वश ं ीधर शु ल आज िज दा होते तो वे किवताएँ न िलखते बि क गािलयां देते। पागलपन क हद तक जाकर। उ ह धतू ता,म कारी,बेईमानी, छलधोखा जैसी हरकते एकदम नही पसंद थ । वे जीवन को किवता क तरफ संदु र -छ देखना चाहते थे। वह जीवन संदु र नही था इसिलए किवताओ ं को भी असंदु र बना डाला। उनक किवताएँ सुघड़ बनावट वाली और बहत सजीधजी नही िदखत । वे च-◌ाहते भी नही थे िक वैसी िदख। ज रत भी नही थी। वे किवता के भीतर आम आदमी क चीख पक ु ार लेकर आये। शासन यव था क धतू ता और म कारी का पदाफास िकया। सच को सच क तरह कहने का जोिखम मोल िलया। जब सबक जबु ान ब द थी तब भी वे बोले। बोलने से कभी डरे नही। िजस ि िटश हकूमत का चहओ ं र डंका बजता था उसके िखलाफ खनू ी पचा बाँटने वाले थे वश ु ालफ़त क वह अपनेआप म म ं ीधर शु ल। खनू ी पचा म उ ह ने िजस तरह से ि िटश हकूमत क मख़ अ ितम है। ि िटश िवरोध क वैसी किवता कम से कम मने नही पढ़ी।ि िटश राज क हक कत बया◌ं करते हए पि डतजीिलखतेह-

तमु हो ज़ािलम,दगाबाज,म कार,िसतमगर अ यारे । डाकू,चोर,िगरहकट,रहजन,जािहल,कौमी ग ारे । खगंू र,तोतेच म,हरामी नावकर औ बदक ् ारे । दोजख के कु े खदु गज , नीच ,जािलया, ह यारे । अब तेरी फरे बबाजी से रंच न दहशत खाऊंगा। जबतक तझु को िमटा न दगंू ा चैन न िकंिचत पाउँगा। इस तरह का प रचय कराने के बाद इस ल बी किवता म पंिडत जी ि िटश हकूमत क ू र िनयित और उसक अमानवीयता का भी हवाला देते चलते ह। यह परू ी किवता अपनेआप म किवता- से यादा ि िटश राज का काला िच ा और भारतीय जन क सघं षशीलता का वणन मालमू पड़ती है। पिं डत जी िलखते ह िक िकस तरह ये जािहल,म कार अं ेज भारत म यापार कर अपनी रोजी रोटी चलाने के िलए आये थे। हमने तो अपनी उदारता वस इ ह शरण दी पर ये तो मेरी दौलत देखदेखकर लगे फाइल म ललचाने। और इस लालच का प रणाम यह हआ िकराजाओ के मिं य और सेना को तोड़कर अपना सा ा य थािपत करने का उप म करने लगे। लेिकन रचना मक बेचैनी और उ मीद का बाना देिखये िक रचनाकार उसी म आगे कहता है।तेरी काली करततू का ये जो काली करततू का भडं ाफोड़ कराने क बात है दरअसल - भडं ाफोड़ कराऊंगा।रचना मकता क बिु नयादी िवशेषता भी यही है। शासक वग के काले कारनामे जनता म िव सनीयता के साथ बता पाना िकसी यगु के 56 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बिु जीवीरचनाकार क बहत बड़ी उपलि ध मानी जाती है। आज के समय म यह िकतना मौजू है िक हम जनता को उसके शोषक के काले कारनामे उसे िव ास मे◌ं लेकर नही बता पा रहे। और मझु े लगता है समय क अिधकांश बगड़बिड़यां भी यह से होती ह। िजस समाज का बिु जीवी िव सनीयता के संकट से गजु र रहा हो वह समाज गितशील समाज बन सके गा इसपर मझु े संदहे है। वंशीधर शु ल जैसे रचनाकार ि िटश राज क काली करततू जनता तक पहचं ाने म कामयाब रहे। यह किवता 1930 के आसपास िलखी गयी और हमे यह यान रखना होगा िक यही वह समय है जब गांधी,अ बेडकर, सरदार पटेल और नेह जैसे नेताओ ं के साथ भारतीय समाज का दिलत, िकसान और आिदवासी कंधे से कंधा िमलाकर भारतीय वत ता आदं ोलन म मु य भिू मका िनभा रहा था। हमे यह यान रखना होगा िक हम िजस जनता के प म खड़े होकर स ा से टकराते ह उस जनता म अपनी िव सनीयता हािसल करना भी उतना ही ज री है िजतना िक स ा से टकराना। कोई भी ािं त या आदं ोलन तबतक सफल नही हआ है जबतक िक वह िजनके िलए िकया जा रहा हो उनक सीधीगीदारी न हई हो। सीधी भाअवाम मजबूती से खड़ी हई। वंशीधर -भारतीय वत ता सं ाम भी तभी अपने चरम पर पहचं ा जब यहाँ क आम अवाम क एक िव सनीय आवाज थे। वे वत भारत क -शु ल उस आम सि य राजनीित म िह सा लेते हए असे बली म भी गए लेिकन वहां भी उ ह ने कोई समझौता नही िकया। जहाँ भी जनता को दबाया गया उसका हक छीना गया वे तरु त बगावत कर बैठे। जब परू ा देश नेह क सफलता पर मु ध होकर उनके नाम का जाप कर रहा था उस समय वश ं ीधर शु ल 'वो शासक नेह सावधान' िलख रहे थे। इतना ही नही चीन के साथ हए यु म जहाँ नागाजनु जैसा किव िसफ इतना िलखकर शांत हो गया िक

अब तो महु म दही जम गयी अब तो आती है उबकाई। बोलो िफर से कौन कहेगा िहदं ी चीनीभाई भाई।-

वह वश ं ीधर शु ल ने नेह क परू ी तरह लानत मलानत करते हए उनसे ग ी छोड़ने क बात क । और-उ ह भारत क उस महान िज ी पर परा क याद िदलाई िजसमे कौरव ने सईु के नोक भर जमीन के बदले अ ारह अ ौिहणी सेनाये कटवा दी थी। उ ह ने यु का खल ु कर समथन िकया और कहाँ -

यह या कायर सी आदत है लड़ने से दम दबु काते हो। ×××××××××××××××××× जाओ उतरो िद ली छोडो आनदं भवन म करो नृ य। य भारत देश उजाड़ रहे करके अनीित करके कुकृ य।

57 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) वे देश पर आये िकसी भी तरह के संकट से मिु के िलए तैयार रहने क बात करते ह। उ ह समझौतावाद जरा भी पसदं नही था। लोिहया के समाजवाद के समथक वश ं ीधर शु ल भारत िवभाजन के िलए नेह को सबसे बड़ा दोशी मानते थे। उ किवता म ही उ ह ने िलखा है-

बदनाम हए शौकतिज ना पर तमु ने लीग बढ़ाई थी।कां ेस कमान क िबना राय तमु ने जनता बंटवाई थी।

वे स ा क ू र िनयित से बखबू ी वािकफ थे इसीिलए जनता को आगाह िकया था िक-'पलिटये बार बार-सरकार' और कहा-

णपलट करने से- ण उलट-,जनता के सचेत रहने से; शासक अधं याय भी करता, बल िवरोधी दल बनने से; जो न िवरोधी ह तो शासक करता अ याचार। पलिटये बारबार सरकार।-

हमारे समय का बुि जीवी िजस जनता के बरगलाये जाने क बात लगातार कर रहा है उसके सचेत रहने पर ही यव था के ठीक रहने क बात वश ं ीधर शु ल जैसे रचनाकार कर रहे थे। तो वाया वश ं ीधर शु ल अपने समय के बिु जीवी से भी यह सवाल है िक िजस जनता क प धरता क बात वश ं ीधर शु ल जैसे रचनाकार कर रहे थे या िजन शि य से सचेत रहने क बात मिु बोध कर रहे थे उनसे सचेत रहकर हमने जनता को िकतना सचेत िकया यह भी एक सवाल है जब िहदं ी समाज मिु बोध का शता दी वष मना रह है तब।

वश ं ीधर शु ल क अिधकाश ं किवताएँ ऐसे दौर क ह िजसमे देश पराधीन था। उस पराधीनता क कसक और उससे मिु का आ यान उनक रचना मकता क रीढ़ है। उनके बहत सारे गीत का शीषक सीधे तौर पर ांित क ेरणा से िलखा गया लगता है। जैसे 'िसर पर बंधे कफनवा हो शहीद क टोली िनकली' या 'आ पगलर गदर मचाए'ं या 'पलिटये बारबार सरकार-' लेिकन इसका यह मतलब नही िक उनक ि और कह नही है। यह ज र है िक वे जहाँ से भी देखते ह अभाव त जनता का दःु ख ही िदखता है। चाहे वो 'िकसान क दिु नया हो' या 'राजा क कोठी' या हमका चिू स रही महं गाई' या यक िकसान क रोटी' ऐसे ही बहत साड़ी किवताएँ ह िजनमे वे अपने समय क िवकराल होती जाती प रि थितय का बयान करते ह। खड़ी बोली के साथ ही उ ह ने अवधी म भी बेहद मह वपणू किवताये ँ िलखा है। वे एक बेहतरीन िक सागो भी थे। हालाँिक उ ह ने कहािनयाँ बहत नही िलख पर 58 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) िजतनी िलख उनमे कहानीपन मौजदू है। उसे पढ़ते हए पढ़ने और सनु ने दोन का आनंद िमलता है।उनक एक अवधी कहानी है िजसका शीषक है 'बेदखली' कहानी का शु आती अश ं देिखयेसबेरे यार पह है -,िचरै या चचु वु ाय रही,कौवा कुकुवाय रहे,महोखा कुटुपीस लगाये,घास आसं ू बहाये, अधं े भाजभाज ु ु मचाये-,उजे आव आव लगाये,पंिडत महु त मनाये,च दन क ख़ौ र लगाये,मगु ा बांग लगाये,िकसान बध मिचयाये ह काँधे ओअर धरे ,कुदारी लटकाये, पैना तमतमाये अपने खेत क वा र नौबा करत जाय रहे ह।-

इस छोटे से अश ं म ही गांव क परू ी सं कृ ित का वणन िजस त लीनता से िकया गया है वह कािबले गौर है। तो कहने का कुल आशय इतना िक पंिडत वंशीधर शु ल क रचना मकता का एक मजबतू पहलू उनक राजनैितक चेतना और उनका ांितकारी तेवर तो है पर उसके साथ ही गांव िगरांव क सं कृ ित और पर परा भी उनके लेखन के क म है। वे िहदं ी किवता के एक ऐसे ज री किव ह िजनको समझना भारतीय जन और उसके कंसन को समझना है।

शोध-छा , िहदं ी िवभाग, काशी िह दू िव िव ालय, वाराणसी

59 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृ ित अंतररा ीय पि का/Jankriti का Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

किवतई बजरंग िबहारी ‘बज ’ बजरंग िबहारी ‘बज ’ [1] हे रत है इितहास जौन िदन झठू बदिल कै फुर होइगा झरू आँख असं वु ात जौन िदन झठू बदिल कै फुर होइगा। हडं ा चढ़ा िसकार िमले िबनु राजाजी बेिफिकर रहे बोटी जब पहचं ी थ रया मा झठू बदिल कै फुर होइगा। िबन दहेज सादी कै चचा पंिडत जी आदस बने कोठी गाड़ी प आपाइन झठू बदिल कै फुर होइगा। “खाली हाथ चले जाना है” साहजी उनसे बोले ब ती खाली क आइन जब झठू बदिल कै फुर होइगा। ‘बज ’ का देिखन महथं जी जोरदार परबचन भवा संका सब कपरू बिन उिड़गै झठू बदिल कै फुर होइगा। [2[ चढ़ेन मडंु ेर मल ु नटवर न िमला काव करी भयी अबेर मल ु नटवर न िमला काव करी। पैया तीस धरी जेब, रचाज या रासन पिहलकै ठीक मल ु नटवर न िमला काव करी। ज री जौन है हमरे िलए हमसे न कहौ होत है देर मल ु नटवर न िमला काव करी। माल बेखोट है लेटे ट सेट ई एं ाइड नयी नवेल मल ु नटवर न िमला काव करी। रहा वादा िक चटनी चािट कै हम खबर करब िबस रगा वाद मल ु नटवर न िमला काव करी। 60 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 201 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) [3[ गजल मामल ू ी है लेिकन िलहेबा स चाई िबथा िकसान कै खोली िक लाई गहराई। इ क से उपजै इसारा चढ़ै मानी कै परत िबना जाने कसस बोली दरद से मु काई। तस वरु दिु नया रचै औ’ तस वफ ु अथ भरै न यहके तीर हम डोली न यहका लक ु ु वाई5। धरम अ या म से न काम बने जािनत है ककहरा राजनीित कै , पढ़ी औ’ समझाई। समय बदले समाज बोध का बदल डारे िबलाये व गजल ई कहैम न सरमाई। चएु ओरौनी जौन बरसे सब देखाए परे ‘बज ’ कै सच न छुपे दबै कहाँ असनाई। [4[ चले लखनऊ पहचं े िद ली, चतरु चौगड़ा बिनगा िग ली7। हाटडाग सरदी भय खाियन, झाझं र भये सु मा िस ली9। समिझ बिू झ कै करो दो ती, नेक सलाह उड़ावै िख ली। ब बर सेर कार मा बैठा , संकट देिख दबु िक भा िब ली। ‘बज ’ बिच कै र ो सहर मा, दरिक जाय न पातर िझ ली।

[5] का बेसा ो कस रहा मेला राह सनू ी िनक र गा रे ला। बरफ िपघली पोर तक पानी 61 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) मजा–खहस संग– संग झेला। के उठाए साल भर खचा जेिब टोव पास ना धेला। गे नगरची औ मक ु ु टधारी मचं खाली परू भा खेला। बहत सोयौ राित भर ‘बज ‘ अब न लप यो भोर क बेला। [6] िजयै कै ढंग सीखब बोिलगे काका भोरहरे तीर जमनु ा डोिलगे काका। आँिख अगं ार कूट धान काक , परु नका घाव िफर से छोिलगे काका। झरै या ह ल होइगे मं फंू कत जहर अस गांव भीतर घोिलगे काका। िनहार खेत बीदरु कािढ़ घरु ह, हक ं ा रन पसु पगहवा खोिलगे काका। िबराज ऊँच िसघं ासन ी ी नफा नकसान आपन तोिलगे काका। भतीजा हौ तौ पहचं ौ घाट ‘बज ‘ महातम कमलदल कै झो रगे काका।

[7] उठाए बीज कै गठरी सवाल बोइत है दबाए फूल कै मोटरी बवाल पोइत है। इ ह माय उ ह काट्यौ तब न यास बझु ी रकत ड र कै कहां िछिपगा नसै निस टोइत है। जआ ु ठा कांधे पर धारे जबां पर क ित–कथा सभे जानै िक हम जागी असल मा सोइत है । कहं खोदी कहं तोपी िसवान चािल उठा महाजन देिख कै सोची मजरू ी खोइत है। 62 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ई घटाटोप अ ह रया उजाड़ रे ह भरी अहेरी भ दरोर यही से रोइत है। [8] देस–दाना भवा दभू र रा –भसू ी अस उड़ी कागजी फूलन कै अबक साल िक मत भै खड़ी। िमली चटनी िबना रोटी पेट खाली महंु भरा घपु अमावस लाइ रोिपन तब जलाव फुलझड़ी। नरदहा दावा करै खसु बू कै हम वा रस िहयां खोइ िह मत िसर िहलाव अिकल पर चादर पड़ी। कोट काला िबन मसाला भये लाला हमिु क गे। बीर अिभम यू कराहै धतू ता अब नग जड़ी। िमल ‘बज ’ तौ बताव रा ता के ं िध गा मृगिसरा िमरगी औ’ साखामृग कै अनदेखी कड़ी। _____ स पक: लैट न.ं - 204, दसू री मिं जल, मकान नं. T-134/1, गाँव- बेगमपरु , डाकखाना- मालवीय नगर, नई िद ली-110 017 फोन- 09868 261895

63 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

भारते दु िम

हरी जवानी हम िकसान हन याला के िबरवा जैसी तकदीर सारी दिु नया पजू ै हमका स यनरायन वामी के हमहे मडं प हन बेफै बेफै लोग िहयं ा आरती उतारै पिढ़ पोथी िफ र हमका सरधा ते अक याव लोिटयन भ र भ र नी चढ़ाव भजन सनु ाव आँखी मिंू द पंिडतउनू तब संखु बजाव पोिथन मा अपनी इ जित पर झिू म-झिू म हरसाई िदन दनू े औ रात चौगनु े फूिल फूिल ह रयाई फूल चढ़ा तौ बितया आय ितनक ु पोढाई 64 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अब तौ फल पर ललआ ु बधु आ ु सबही क नजर ललचाई ं पािहले गह र कािट लैगे िफ र जड़ ते काटेिन िहिल िमिल कै पजू ा का फल अपनन मा बाटेिन क ते रोई -कौनु सनु ी हमारी यह िबथा िकहानी लिू ट चक ु े ह गावं ै वाले हमारी फसल कािट रहे ह जड़ अबह है हरी जवानी |

बढु वा बकलोली कर (दोहे ) 1 ताजे गडु क ग ध ते/महिक उठा हर ठाँव बढु वा बकलोली कर/उमडै परू ा गाँव। 2 अब न धरै िसरका कोऊ/िमरचा यार अचार। बआ ु गय तौ हइ गवा /सारा घर लाचार। 3 उनके हाथे मा रहै/चटनी का सब वाद। कहाँ िसलौटी सहर मा/सब हइगा बे वाद। 4 जाितन मा ट्वाला बँटा/िछया िबया भा गाँव। अबक कुछ अइसा भवा/मिु खया यार चनु ाव। 5 दा क निदया बही/आये खबू लठै त। चढी कढैया राित िदन/भासन िदिहन बकै त। 6 कौनौ माया क कहै/कौनौ गावै राम। 65 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) कौनौ ली हे साइिकल/दौरै सबु हो साम। 7 नापदान सबके भरे /नाला बना न एक। रोज लडाई होित है/आँधर भवा िबबेक। 8 गाँवन मा ब बा लगे/कँु इया गयी सख ु ाय। करकट ते गडही पटी/यहै तर क आय। 9 बरगद के नीचे कहँ/उगी न क बौ घास। बडे बडेन क छाँव मा/ छोटके रहे उदास। 10 ह का गवा जडु ाय अब/बिु झगे सबै अलाव। आिग भरी है जलन क /झल ु सै परू ा गाँव। 11 पैसा क मिहमा बढी/जाित न पँछ ू ै कोय। काम बनै ,नेता िमलै/पैसा ते सब होय। 12 जीक कोठरी बिह गवै/प का रहै इमान। अब सब िमिलकै किह रहे/यहै रहै बैमान। 13 खेत बँटे, खेितहर घटे/सहरन गये हजरू । बढु वन के साथी बचे/कुतवा-सुआ-मँजरू । 14 िबजल ु ी आयी गाँव मा/िमटा नही अँिधया कबहँ-कबहँ होित है/राित राित उिजया । 15 जो हरी िच रया चिु न गय /पानी गवा िबलाय। आँसौ सख ू ा मा मरे /सुआ- कुतउनू -गाय। 16 पानी बरसा सात िदन/नदी बना गिलयार। मरा ल रकवा,छित िगरी/मिु खया ह बीमार। 17 नेता दौरे सब तरफ/िमली न ह रयर दबू । बहस छपी अखबार मा/बकलोली भै खबू । 18 सडक बनी- थाना बना/हरहा गये हेराय। गाँव गाँव प थर लगे/ यहौ तर क आय। 66 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

भारतदु िम सी-45/वाई-4 िदलशाद गाडन िद ली-110095 9868031384

*प रचय: के वल अवधी म िकए गए काय-1.िबरवा-5-(सन-1989)म सव थम अवधी नवगीत कािशत|,2.कस परजविट िबसारी (अवधी किवता एवं अवधी लघिु नबधं सं ह,सन-२००० म कािशत| ),3.नई रोसनी (अवधी उप यास-सन-2009म कािशत),4.चंदावती- (अवधी उप यास-सन-2012म कािशत)5.लखनऊ तथा िद ली ि थत सािह य अकादमी,िह दी अकादमी,दरू दशन,आकाशवाणी जैसे अनेक मचं ो से अवधी किवताओ ं का पाठ| 6.अवधी के ग प को िवकिसत करने के िलए लगातार 2009 से अतं रजाल पर लाग लेखन|}

67 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) रामशक ं र वमा

1. तुम भेड़हा हौ हम भेड़ी हन

तमु भेड़हा हौ हम भेड़ी हन।

तमु लक ु े िछपौ आबादी ते हम िनभय अ ना चरा करी। तमु हउला डॉंगर मा र भरौ हम दइु पाती ते पेटु भरी। तमु गाजर घास कनाडा कै औ हम यातन कै खेड़ी हन।

तमु िप जा बगर चाउमीन हम गड़ु धिनया बाटी वाखा तु हरी गगं ा कै िक रया पर हम पॉचं साल खाई वाखा। तमु लकाल कु हौ राजमाग औ हम गोइड कै मेड़ी हन।

तमु खािद यू रया डीएपी हम सरी पॉंिस घरू े वाली 68 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) तु हरे बटुअन के बदहजमी हमरी थैली फटही खाली तमु यक ू िल टस सरउवा औ हम बरगद कै पेड़ी हन।

तमु माछी हौ हम भनु गा हन तमु सरपट हौ हम ढ़नगा हन तमु पह◌ॅ◌ं यौ यार च दरमा पर कब ते खजरू पर िबलॅगें हम। तमु भयो जमानित नेता कै हम चना वार कै बेड़ी हन।

न घर मा िपलवा अस कुकुहाव

न घर मा िपलवा अस कुकुहाव भिू क कै बाहेर ितनक ु देखाव।

सजन जी ाखौ ऑिं ख उघा र नवा जगु ु बैिठ गवा चौपा र मची चौिगदा िच लगोहा र कलटू ी बिनगे नीित िबला र 69 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) छीिन कै तमु हँ रोटी खाव।

धरौ िह दी कै लोिटया डो र िसखौ अगं रे जी हॅसौं िनपो र िपयौ वारथ कै बटू ी घो र अपनपौ गगं ा जी मा बो र नात र न ते िपंडु छोड़ाव।

िकसानी वाड़ौ ठे का िलयौ दधू ु िघउ वाड़ौ कोला िपयौ मथानी ददु हॅिडं ़ का बनु िदयौ करै कोउ कुछौ मल ु ा महु िसयौ पढ़ौ ल रकन का यहै पढ़ाव।

2. जब सार पजावै खॅजड़ ं है

हम इनक चपु री बातन का दउवा कइसे िब वास करी। जब सार पजावै खॅजड़ ं है कस नीक िदनन कै आस करी।

मड़ू े के बार हमा र सनु ौ 70 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) न घामे मा भे ह सनई ई घघचिु ल जइसी ऑिं खन ते हम खबु पिहचािनत है मनई ई जउिन पॅजें रा मा घमू ित ब दक ू ै लइ के धमधसू र इनके ब पा परधान अह जी जोित िलिहन परती ऊसर सरकारी ह ना मा र-मा र मढ़वाइन सोने कै खॅझरी। ं

मल ु ु यह तौ याक बानगी है कुनबा का कुनबा नासी है को ह का बापु भवा जब ते छोटकउना नेता कासी है माथे मा गे आ ितलकु जीिभ ते बानी वालै माहर कै हमह का वोट िद ौ न तो यह धरती छोिड़ िदयौ तरु तै जोखू जु मन सिु न सकपकॉंय अब होरी ईिद ककस सपरी।

71 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) 3. वहै बढ़कउनू गॉवं हमार

जहॉं बॅदरवा ु झल ं झल ु आ ू पकरे मउहा क डार। वहै बढ़कउनू गॉवं हमार।

प छे गड़ही म पढ िमझं क ु ु री िगिटर िपिटर का पाठु परु बै तालु िसघं ारन वाला जेिहमा घोिबन घाटु याक टॉगं पर कर बकुलवा मछ रन यार िसकार।

चौिगदा ऑबं न क बागै बीच म जमनु ी बेल गल ू र पीपर बॅसवा ं रन म याल िग ली खेल ह क हआ कर अधरितया चउक दार िसयार।

मनई का कहौ िहयॉं क िचरइउ कइ कै खॉंय 72 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बया बनावे वॉंझै लोखरी मॉंिद खोिद सु तॉयं कर कमासतु ह माची का भोरह रोजु िसगं ार।

धिन माटी औ यिहके बेटवा बना रहै स ब धु बनी रहै करमन कै खेती लड़ै न कउनौ ब धु बनी रहै गल ु झार हरे री हरहन का प रवार।

4. देवारी अइसे मनइबे

सखी िहयना मा िदयना जलइबे। देवारी अइसे मनइबे।

अतं रे दआ ु रे म वारथ का कूड़ा देहरी क पोर-पोर 73 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) माया म बड़ू ा। िब ा क बढ़नी बनइबे।

आसा क गगरा उमगं न क कलसा जीवन कै दीविट औ उ सव का जलसा। किवता कै माला चढ़इबे।

दख ु क अॅधें रया ते ऑखं ी मट का क रह उजे रया के िग नी पट का। धीरज कै खजं ड़ी बजइबै।

काया के िदयना क मिल-मिल धोइबै सांसन का तेलु बरे िबिधना मनइबे। करमन कै बाती बनइबे।

74 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

5. वोटन कै रतु है जवािन

वोटन कै रतु है जवािन। बरसाती िमझं क ु ा देखािन।

पॉचं साल बने रहे गदहा क स गै हमरी डरै यन पर मौजन क प गै धू र रहेन हम पंचै छािन।

खेती के टुकड़ा भे रोटी माली ल रका िनरछर भे अ ना मवाली घर कु रया हमरी िबकािन।

िफ र हमते कइह िक हम तु हरे ब पा खाय िलयो वादन के 75 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) गोल गोल ग पा अकड़ आजु इनकै िबलािन।

हम इनक नस नस ते वािकफ ह भइया खोिल-खोिल दसु रे न के गो औ गइया कोठी खड़ी सीना तािन।

ह रयल अपनपौ का सिू ख गवा िबरवा जाित धरम भासा का लािग गवा िकरवा अिकल हवै हमरी हेरािन।

6. िपया देवर करै रॅगबाजी ं

िपया देवर करै रॅ गबाजी ं करौ यिहकै ज दी ते सादी।

पोथी िकताबन ते 76 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) परदा करत है खेती िकसानी न पाले परित है बना िफरै मरु हन का काजी।

घड़ी घड़ी सीसा म जु फै सॅवारै ं देह औ कपड़न म खयाब ु ् ू दॅवारै ं सउखै करै नरगाजी।

‘वी’ वाली िफ म मोबाइल म ाखै का जानी भेजा म का िखचड़ी पाकै टुकुर टुकुर िचतव िपताजी।

7. अ मा कुंवा अब आवत है

77 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बातन के मीिठ बतासा खबु छोटक बह रया बनावत है। फुिलयाय उठे कासा वन मा अ मा कंु वा अब आवत है।

बरखा बंदू न के जनू ा ते धरती अकास चमकाय िदिहिस। चौिगदा दरी हरे री कै गल ु गिु ल गल ु गिु ल िबछवास िदिहस। िततिु लन का दल चक ं वड़ मइहॉं अब िहयॉं-हवॉं मॅडरावत है। ं

लइ मोगरी सरू ज घामे कै कथरी बदरै कै धिु न डारे िस। िचरइन कै सेना उतरी है सब सांवां काकुिन चिु न डारे िस। चनु वु ॉं गु याल क गोली ते धानन के सवु ा उड़ावत है।

िभनसारे औ सझं लउखे अब कछु ठंडी लािग बया र बहै। भै राित जो हइया ते जगमग 78 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) जो घटाटोप ते का र रहै। आवै वाली रतु परबन कै यह सोिच िहया हलसावत है।

रामशक ं र वमा पताटी-3/21, वा मी कालोनी उतरे िठया, लखनऊ-226029 / मोब. -9415754892.

79 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) सतं ोष ि वेदी

हमका माफ़ करौ तुम गाँधी !

भटक कु पी लेहे तेवारी नेतन के घर रोजु देवारी

जसन मनाव पिहने खादी। अइसी भली िमली आज़ादी।। हमका माफ़ करौ तमु गाँधी।

िचंदी िचंदी बदन होइ गवा दधू ु सड़ु क गा मोटा िपलवा देस मा बादं र खबू बािढ़ गे, टुकुर टुकुर तिक रहे ल रकवा।।

अफसर,नेता काट चाँदी। अइसी भली िमली आजादी।। हमका माफ़ करौ तमु गाँधी।।

80 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

दािल-भातु सब दभू र होइगा यातन मा कोउ पाथर बोइगा बड़ू ा, सख ू ा कबौ न वाड़ै,

मर भरोसे पीट छाती। अइसी भली िमली आजादी।। हमका माफ़ करौ तमु गाँधी।।

कहाँ गए वो गाँव

गाँव,िग ,गौरे या गायब कोठरी,डेहरी,कथरी गायब, अब तो सख ू े साख खड़े ह कुआँ ते ह पिनहा रन गायब !

गाँव िकनारे वाला पीपल,

81 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बरगद और लस हड़ा गायब, मजंू ,सनई कै खिटया,उबहिन दरवाजे कै लाठी गायब !

बाबा कै बकुली औ धोती अिजया के र उघ नी गायब, ल रकन के र करगदा,कंठा िबिटयन कै िबिछया भै गायब !

नानी के र कहानी गायब, लोिटया अउर करइहा गायब, अ मा कै दधु हिं ड़ औ भिठया, ब पा कै रामायन गायब !

आ बन ते अि बया ह गायब चू हे-भजंू ा ारा गायब, सोहरै ,बनरा,गारी गावैवाली सघु र मेहे रया गायब !

82 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) पइसन के आगे अब भइया र ते-नाते,र ते गायब, शहर िकहे हलकान बहत अब तो चैन िहय ते गायब !

सतं ोष ि वेदी जे 3/78 ए ,पहली मिं जल, िखड़क ए स.,मालवीयनगर नई िद ली-110017 थायी पता: दल ू ापरु ,नीबी,रायबरे ली http://www.baiswari.blogspot.in http://www.santoshtrivedi.blogspot.in 9818010808

83 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

काश पा डेय

(1)

ईटां गारा कै लेबै

एकु जनू क रोटी का*

यिह असाढ़

झलबदरी भै सवनौ िकिहिस दगाबाजी याक न मािनस परु वा पछुआ जािलम खदु ै बना काजी राह धरब परदेसै कै ल रकन बरे लंगोटी का* बिू ढ़-बािढ़ ब पा अ भा जाड़ कटी कै से इनका फ स कै हड्डी गटई अटं क काह कही यिह दिु दन का, 84 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) खै सख ू िनबिह लेबै याहक अगहाँ छोटी का* िबसआ ु खाँड़ िकसानी माह झरू ा बाढ़ महामारी खनू ु पसीना एकु क न मल ु ु टरी ना महं गाई टारी, बनी न बेगरी सोचु िकहे भ या िकसमत खोटी का*

(2)

आड़ी ितरछी जउिन परी हम कािट लायन िदन भाई कब क न है काज बटन औ कब क न तरु पाई धोती फा र के टोपी क हा बीते िदन हरजाई जिस पावा मड़यी पु रखन ते 85 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) तइिसन अबहँ छाई आँधी पानी जउनै आई ं सबते हाथु िमलावा गाँव भरे के छपरा छानी अगह जाय छवावा गाँव ठाढ़ भा हम रव खाितन का कम क न कमाई छोिट बड़ेन के बर िबयाह भे ली हे दी हे िनपटे रहेन ठािढ़ सख ु दख ु मा सबके तकुली ड्वारा लिपटे स चे रिहहौ जो यह खेती कबहँ नािहं मरु झाई

(3)

वाँर न हरहा यात च रिस है द ा तु हरे पाँय परी* मािलक तु हा र हम परजा हन जउनै देहौ तउनै पाई भला कब बोकरी के महंु मा कोहड़ा कउिनउ तरा समाई, तमु ते रा र िकहे द ा हम कउनी दिु नया जाय मरी* कलआ ु कै महतारी िदन मा वाझन घासु छीिल लावै बड़े करे रे खटँू न बाँधै 86 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हरहा कत जाय न पाव, कसम खाय के किहत है मािलक झिू ठ कही तौ तरु त मरी* कउनौ िकिहिस दसु मनी हमते िबरथा कान भ रिस है मािलक चहौ तौ द ा पंिू छ िलयौ तमु बसे परोसे गगं ू खािलक, कोपु करे व तौ भािग याब हम बीबी बेटवा लइ गठरी

(4)

-दो छंद-यिह आँगन मा तल ु सी िबरवा अ सरू अटारी पै छान है िह दी यान कबीर को ऊँ च मडु ेरो न व परी रसखािन है िह दी गगं गनु ीनन छांदस् ड्योढ़ी दीप रहीम मान है िह दी घन आँनद या घर घे र रहै बिन गीत किब सुजान है िह दी * 2* सजु ला सफ ु ला भिु व मडं ल शीश िदपै गगना िदनमान है िह दी यह राधा बनी ज भाषा बनी अवधी बिन सीता समान है िह दी धिन भािग िक देश क बानी बनी यिह काजिहं काज िकसान है िह दी 87 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) माला म धागा सरीखी गथंु ी मनका मनका गितमान है िह दी

(5)

उठु रे मनु वु ाँ छािड़ दे खिटया पु ब अलंग ते राित कै टिटया धीरे धीरे खसिक रही है | झ ैप तयारी कइ के चलौ हार ह माची लइ के भोर कै िबिटया अबं र मँइहाँ लािल िपछउरी फटिक रही है | हथं नौ पाँव चल अगं नैयाँ सु ज बेटउनँू बंइयाँ बंइयाँ फुलवा टाँके ह रयर कंथा भोरहर िछन िछन फुदिक रही है |

(6)

88 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) *अवधी दोहा* ~ब चा के नाम अ मा कै िच ी~~~ बेटवा गाँवै न िफरे व,बड़ा नीक परदेस बारबार िच ी पिढ़िस,अ मा का संदसे * कािट याब जेतनी बची,अब का छोड़ी गाँव, ब पा का िजव तंग है,भज तु हारै नाव* निहन घरौटिन है बची,रावन बसे परोस वई दगाबाजी कर,िजन पर रहै भरोस* सासु बह कु ती लड़,बाप पतू मा मा कटाजु झ घर घर मची,िजनगी होइगै भा * िकसना का बेटवा बड़ा,होनहार िबरवान डेरभतु क हे गाँव का,कहा जात िस रमान* चंदमख ु ी दधू ू गई,गै गौन ई हेराय स रया सोहर अब कहाँ,िफलमी धिु न घ नाय* उम र हमा रव पाओ तमु ,िछन िछन यहै असीस दधू न पतू न ते फरै ,बहरे वा जगदीस*

(7)

बड़ी दू र ते आयो पाहन बैठौ तउु ँ संिहतं ाय लेव पनिपयाव कै िलयौ घरै ितिन गु पानी लै आई ंह 89 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) कुसल छे म बितयाय रहौ जँऊ आवा ितनक ु चबाय लेव* चढ़ी दपु हरी तपै जेठ कै ई तरवा भिु लभिु ल छीले है बहत िदनन के बािद िम यो है सख ु ु दख ु ु तनी बितयाय लेव * सब ते राम जोहार बनी है हाँ ल रका सधू े वालित ह पछ ु ितव ह का कब बह रया ब पा रोटी खाय लेव * मदं परी है घमसी कुछ कुछ अब धरो तमाखू चौकस है लेव यह दोहरौ कुछु गिठयाय लेव *

संपक चं काश पा डेय नई बजार,मेन रोडलालगंज,रायबरे ली उ. .1166955 मोबा.नं. 09621166955

90 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

ओम काश ितवारी

बरदेखी मा जतू ा िघिस डायन ................................................... िबिटया याहै कै सख ु पायन, बरदेखी म जतू ा िघिस डायन। भगवान बहत िदन तरसाइन, तौ मलिकन िबिटया का जाइन, माई कै मन तौ मिलन भवा, पर आय पड़ोसी समझाइन; न मन का तिनक हतास करौ, नाचौ-गावो उ लास करौ, गड़ु कै भेली बांटौ गोइयाँ, तोहरे घर लिछमी ह आइन। तौ मन तिनका भै पोढ़ भवा, सबका बोलाय सोहर गायन। बरदेखी म जतू ा -------खिु सयाली मा बरहा कइके , 91 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हम लिछमी नाव धराय िदहन, जब पढ़ै-िलखै कै उिम र भई, एडमीसन जाय कराय िदहन; ऊ सब का ो मा तेज रही, इटं र मा यपू ी टाप िकिहस, जौ िडगरी ए मे कै लाई, जानौ हम गावं म टाप िकहन। मल ु खिु सयाली काफुर होइगै, जौ बर ाखै का हम धायन। बरदेखी म जतू ा -------सतआ ु -िपसान लै के िनकरे न, पहचं ेन यक िदन सक ु ु लाही मा, सक ु ु लै सतकार िकिहन परु हर, मल ु िमली न स कर चाही मा; ल रका कै बड़ा बखान िकिहन, लै आए गाँव गवाही मा, िफर पता लाग ऊ य त अहै, अपनेन घर क हरवाही मा। िडगरी बीए कै फ ट िकलास, उनकै सग रव फज पायन। बरदेखी म जतू ा ------पांड़ेपरु कै घर सही लाग, बर रहा मल ु ा तिनका नाटा, जौ ठीकठाक वै बतलाते, तौ रहा नह तिनकौ घाटा; मल ु सात पु त पीछे कै वै, पिहले तौ बतलाइन गाथा, िफर तीन लाख नगदी के संग, 92 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) वै माँिग िलिहन मोटर टाटा। पांड़े का हम परनाम िकहन, औ सइिकल घर का रपटायन। बरदेखी म जतू ा -------िमिल गए यक जने दबू े जी, खदु उनके रह सात िबिटया, वहमां से पाँच का यािह चक ु े, न छूट िबचार तबौ घिटया; वै सातौ िबिटया कै कजा, हमिहन से भाटा चहत रहे, जौ उनसे हम सबं धं क रत, न बचत घरे लोटा-टिठया। दबू े न टस से म स भए, हम के तनौ उनका समझायन। बरदेखी म जतू ा -----दबू े से चार गनु ा चौबे, चौबे से आगे रहे िमिसर, ल रका का धरे तराजू पै, वै भाव लगाव िघिसर-िघिसर; समधी पावै कै आस रही, मल ु िमले िहयाँ सब सौदागर, लंबी दहेज कै िल ट देिख, हम घर कै र ता गयन िबसर। मोटर-गहना के च कर मा, हम दौरत-दौरत भ र पायन।

93 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) प पू के पापा तहु ँ लड़ा ............................................ प पू के पापा तहु ँ लड़ा अबिकन चनु ाव मा हअव खड़ा। िनरह-घरु ह अस कइव जने सब दावं इले सन मा जीते, ससं द का समिझन समिधयान सब जने देस का लइ बीते ; न के ह कै वै भला िकिहन न के ह कै क यान िकिहन, सीना फुलाय घमू जइसे वै हव िसकंदर जग जीते। टुटहा घर बिनगा महल अइस, ह छािपन नोटवा कड़ा-कड़ा। प पू के पापा ------न काम िकिहन न काज िकिहन सोने के भाव अनाज िकिहन, बभनौटन से तहु क ं ा लड़ाय अपनु ा िद ली मा राज िकिहन ; वै किहन जाय िनपटाउब हम दख ु -दद सकल भयवादी कै , लेिकन स ा क ग ली मा वै जाय कोढ़ मा खाज िकिहन। ख र कै रंग चढ़ा अस क , होइ गवा करै ला नीम चढ़ा । प पू के पापा ---------

94 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) उनक थइली मा माल भवा तौ झरू गलु का लाल भवा, मोटर पै िबजरु ी लाल जरै हारन िजउ कै जजं ाल भवा ; सब गांव खड़ंजा का तरसै वै घर तक रोड बनाय िलिहन, जे तिनकौ मड़ू उठाय िदिहस ऊ िपपरे कै बैताल भवा । के ह गड़ही मा परा िमला, के ह पै मोटर जाय चढ़ा । प पू के पापा -------मँगनी कै धोती पिहर-पिहर वै नात-बाँत के जात रह , घर मा यक जनू जरै चू हा वै भ री-भाँटा खात रह ; अब नेता कै मेह र बिन के गहना से लदी-फँ दी घमू , सोझे महँु बात न चीत कर नखरा नकचढ़ा अमात नह । काने म झमु क हीरा कै , नेकुना पै स जा बड़ा-बड़ा । प पू के पापा ------उनके ल रका कै सनु ौ हाल िकरवा झ र जइह काने कै , वकरे चपरहपन के िक सा से रंगा रिज टर थाने कै ; िबिटया-पतअ ु ह घर बंद भई ं पहरा लागै डड़वारे पै, 95 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) सगरौ पव त ऊबा वहसे च कर काटै देवथा हे कै । है गाँव-देस मा अब चचा, इनके पापन कै भरा घड़ा । प पू के पापा -------

सरकारी अ पताल ............................... यह अ पताल सरकारी है। यह अ पताल --------हमहँ टुटही टँगरी लइके पहँचेन जब यक िदन अ पताल, सब चले गए ाइक पै प र गवा डॉ टरन का अकाल ; ह भली-भाँित िनवािह रहे डॉ टर अपनी िज मेदारी, यह अ पताल है सरकारी यह अ पताल है ------अिगले ह ता हम िफर पहँचेन तब िमले डॉ टर शमा जी, वै किहन सी रयस है मसला तमु आओ देखब घर मा जी; अब समझ म आवा अ पताल सरकारी िश ाचारी है । यह अ पताल ------घर पै वै भारी फ स िलिहन पया नौ सौ चालीस िलिहन, 96 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) औ किहन िक आओ अ पताल झ ै भत होइ जाव का ह; अपरे सन होई अब तु हार टाँगन मा ै टर भारी है। यह अ पताल -------अिगले िदन भत भयन जाय यक िब तर खाली रहै हआँ, बगलिहन चाय के होटल से छिन-छिन के आवत रहै धआ ु ;ँ को कहै िचिक सक से साहेब यह तो यक नई बेमारी है। यह अ पताल ---------भत कइके वै िकिहन आय हमसे अपरे सन कै चचा, धीरे -धीरे समझाय िदिहन हमका सगरौ खचा-बचा ; वै ना जािनन हमरे मड़ू े पै के तनी िज मेदारी है। यह अ पताल -------वै किहन दवा-दा तमु का लावै का परी बजारै से, यादा न लागे खच-बच बस पं ह-बीस हजारै से; अपरे सन तौ हम िफरी करब पर आगे खसु ी तु हारी है। यह अ पताल --------यतना गदं ा है अ पताल जइसे झमु री कै हवै ताल, 97 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) िकरवा िनकसत ह खाने मा है काई जमी पखाने मा; यक टाँग तौ पिहलेन टूिट रही अब दसु रे व क तैयारी है। यह अ पताल ------िबन पइसा के तौ िहयाँ कोऊ यक बँदू दवा पावत नाह , अपरे सन का तरस मरीज घटं न िबजरु ी आवत नाही; औ जगं लगे औजारन से िहयाँ श य िचिक सा जारी है। यह अ पताल सरकारी है । यह अ पताल --------

अबक चनु ाव हम लिड़ जाबै .............................................. तोहरै सपोट चाही ददआ ु , अबक चनु ाव हम लिड़ जाबै। क हन बहतेरे कै चार, जय बोलेन सबक धआ ु धँ ार, दइु पड़ू ी के अहसान तले, सगरौ िदन क हन हम बेगार; जब तलक नाँिह प र गवा वोट, नेकुना से िघिस डा रन दआ ु र, अब जीित गए तो ई ससरु ै , ची हत नाँह चेहरा हमार । 98 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

अबक इनिहन सबके िखलाफ हम िटकस क खाितर अिड़ जाबै। तोहरै सपोट चाही--------छपवु ाउब बड़े-बड़े पचा, करबै परु हर खचा-बचा, ददआ ु , तिनकौ कमजोर परब, तौ माँगब तुमहँ से कजा; चहँ िदिस होई हमरी चचा, पउबै हम नेता कै दजा, लोगै हमका ाखै खाितर, क रह दस कारे का हजा। अबक िद ली दरबार म हम, अपिनउ यक चौक ध र ाबै। तोहरै सपोट चाही--------मठँू ा राखब आपन िनसान, पटकब िबप का पक र कान, करवाय िलयब क च रंग बथू , बंटवाय िदयब सतवु ा-िपसान; अबह तक छोलेन घाँस बहत, अब राजनीित म भै झान, तौ जीित के ददआ ु दम लेबै, मन ही मन मा हम िलहन ठान। धोबी कै वोट िमलै खाितर, गदहौ के पाँयन प र जाबै। तोहरै सपोट चाही------जब पिहर के िनकरब संसद मा, 99 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हम उ जर कुता खादी कै , कोने म धरा रिह जाए ददआ ु सगरौ नकसा गाँधी कै ; अबिकन चनु ाव मा नािप िलयब, जलवा इन सबक आँधी कै , यक िदन मा लइ लेबै िहसाब, हम भारत क बरबादी कै । मड़ू े पै टोपी बदिल-बदिल हम राजनीित मा जिम जाबै । तोहरै सपोट चाही----है याक अज तमु सब जन से, अबक िबजयी क रहौ मठँू ा, जैसन जीतब ददआ ु तुमका, िदलवइबै स कर कै कोटा; भगवान भगौती सब जन का चढ़वइबै पड़ू ी कै जोटा, तमु सबका स सन करवइबै, जहता कै थ रया औ लोटा। िव ास करौ हम ससं द मा यक टका दलाली न याबै। तु हरै सपोट -------- ओम काश ितवारी 07, िज सी, मेन ीट, हीरानदं ानी गाड स, पवई , मुंबई - 400076

100 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

दीप शु ल

1.

भइया हम तो खेितहर िकसान

अब तीन पांच हम का जानी भइया हम तो खेितहर िकसान

तमु हमरे बल पर दौ र र ो हमही का आँख देखाय र ो चाहै तमु विहका डबल कहौ गेहऐं क तो रोटी खाय र ो जब हम तु हरे शहर आई तमु नाक िस वारित हौ भईया तमु ऐसे हम का हांकित हौ जैसे हम हन तमु री गईया जो तमु का हम दतु का र देई कै से बिचह तमु रे परान भइया हम तो खेितहर िकसान

अब तीन पांच हम का जानी 101 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) भइया हम तो खेितहर िकसान

टी बी के अ दर बैठ बैठ बिढ़या बिढ़या बातै क रहौ ऐसन लागी बस अबह तमु हमरे पायन माँ िस ध रहौ मौक़ा िमलतै तमु तो हमरे पीठी माँ छूरा भ िक देतु बस हमरा नाम लगाय क तमु अपनी ही रोटी सिक लेतु हम तो गरीब मनई हमका तमु काहे क हे हौ परे शान भइया हम तो खेितहर िकसान

अब तीन पाच ं हम का जानी भइया हम तो खेितहर िकसान

जैसे चनु ाव नजदीक आई तमु पिह र क ख र दौ र िल ो िदन राित पलगी मा र र ो तमु हमरे सथहै य र र ो हम जािनित चनु ाव मा जीततै तमु 102 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) िफ र पांच बरस तक ना अइहौ जो तमु का हम ना वोट दीन तौ सबके समहे ग रयइहौ हमका समझावै क रहै देव हम जािनित सब धधं ा परु ान भइया हम तो खेितहर िकसान

अब तीन पांच हम का जानी भइया हम तो खेितहर िकसान

अब हमका बाबू माफ़ करौ िदन चलै हमार ऐसई खराब बड़का बहरे वा क पीट रहा जब ते आवा पीकै शराब छोटकौनो सार फे ल होइगा लागित बु ी का वाट आय िबिटया हमा र सब ते िपया र वह तो लाखन माँ याक आय दईु साल ते ल रका देिख रहेन ढूँढ़ित ढूँढ़ित िजउ हलेकान भइया हम तो खेितहर िकसान

103 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अब तीन पांच हम का जानी भइया हम तो खेितहर िकसान

अिकल म पाथर प रगे रह जो मेला ते हम भिस लाएन वाझन करबी वह खाित रोजु पर याकौ बार न वह िबयान चाहे वह वारै दधू ु देित विह ते अ छी गईया हमा र विह कै महतारी लाय रह काफ िदन भे ब पा हमार लागित है नाखाव र चली अबे गइया अबक बिछया िबयान भइया हम तो खेितहर िकसान

अब तीन पांच हम का जानी भइया हम तो खेितहर िकसान

कचेहरी के च कर कािट कािट होईगै हमा र हालत खराब परधान ते िमिल भैवा हमार 104 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बनवाईिस झठू ी इ तखाब िबलरे वा दधू ु िगराय िदिहिस सबु है ते चाय क तरिस रहेन बेमतलब क बातन मा हम घरवाली पर बरिस रहेन अ मा न बे के आस पास दईु मिहना ते खिटया पर ह दईु िदन ते अब िजउ बिू ड़ रहा जानै कहां अटके परान भइया हम तो खेितहर िकसान

अब तीन पांच हम का जानी भइया हम तो खेितहर िकसान

.2

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव तमु वोट िद ो अब घरै जाव !

मिहनन ते च कर कािट कािट 105 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) चौदह जोड़ी जतू ा िघिसगे ई चनु ाव के चा कर मा चेलवा हमार के तना िपिसगे उई रोजु िबचारे िमलै जायँ तमु झु ै बस बहाना बनाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव तमु वोट िद ो अब घरै जाव !

आयोग रोजु िच लाय रहा क वोट अपन ना तमु बे यो हर कंडीडेट ते अलग अलग लेिकन तमु खबु पैसा ख यो झठू े म कार तो बहत हो तमु अब हम ते सब कुछु ना कहाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव तमु वोट िद ो अब घरै जाव !

काका चाचा किहकै तमु री दाढ़ी माँ हाँथु लगाये रहेन जो तमु भरी दपु हरी का 106 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) है राित क ो तो राित कहेन लेिकन तु हार आडर होईगा सरगै ते तोरई टू र लाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव तमु वोट िद ो अब घरै जाव !

जब जब हम तु हरे घरै गयेन पानी खौलाय क दई दी ो औ पायँ प पायँ चढ़ाय क तमु दिु नया भ र क बात क ो जब कहेन हमा र पैरवी करौ तमु मोड़ीही दी ो बतकहाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव तमु वोट िद ो अब घरै जाव !

बस सात वोट खाितर हम ते तमु दईु हजार िपया ली ो पर एत यो पर हमका शक है क वोट न हमका तमु दी ो चपु चाप िहयाँ ते िखसिक लेव 107 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हमका तमु गु सा ना देवाव

बेमतलब खोपड़ी ना पकाव तमु वोट िद ो अब घरै जाव !

.3

ई चनु ाव के झझं ट मा

ई चनु ाव के झझं ट मा खौ याय िलिहन तौ का होईगा दईु जने जो याक दसू रे का िफ र नीच किहन तौ का होईगा

िजउ गम मा िब लाय रहा कोउ बेमतलब बौराय रहा बहन भाइय , बहन भाइय िदन भर कोउ िच लाय रहा अब कोह क जबान िफसली पागल किह िदिहन तौ का होईगा

108 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) दईु जने जो याक दसू रे का िफ र नीच किहन तौ का होईगा

ई याठ क भरी दपु हरी मा गम माथे ऊपर चिढ़गै बस बात नह बतकहाव ट्याढ बेमतलब मा वह बिढ़गै उई कहित िक तुम बेईमान र ो उई कहित िक तमु अपमान के ो मारौ गोली अब घरै जाव कुछ कही िदिहन तौ का होइगा

ई चनु ाव के झझं ट मा खौ याय िलिहन तौ का होईगा दईु जने जो याक दसू रे का िफ र नीच किहन तौ का होईगा

.4

लागित अबक सख ू ा प रगा

सब उड़े जाित सख ू े सूखे 109 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बादर काहे बरसित नाह लिख रहे गांव शायद हमार लागित ढूंढ पावित नाह

गिलयारे कै ब आ तिपगै भिु ल भिु ल पायन का खाय लेित ठूंठन माँ चले चले जतू ा दईु मिहना माँ महु बाय देित गरमी के मारे हलेकान बेरवौ ह अब ढूढं ित छाँही

ताल गढ़ या सिू ख सब सब मछ रन का फांसी होइगै झ नू कहार के ल रका कै मल ु ु कमाई अ छी खासी होइगै भसी वादा माँ लोिट रही मरे ो पर वह िनकरित नाह

सब उड़े जाित सख ू े सख ू े बादर काहे बरसित नाह लिख रहे गांव शायद हमार लागित ढूंढ पावित नाह 110 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

.5

ओ गा ही जी ओ गा ही जी

कहाँ छुपे हौ ओ गा ही जी तनी िनहारौ ओ गा ही जी !!

तु हरे नाम प भगम छ है कहाँ िबलाने हौ गा ही जी !!

हाँथे मा त वीर तु हा र है कमर मा क ा है गा ही जी !!

स य अिहसं ा सदाचार क कर सफाई ओ गा ही जी !!

सबसे पीछे खड़ा बधु ै या वहै पक ु ारै ओ गा ही जी !!

विहक कोउ सनु ै वाला ना ओ गा ही जी ओ गा ही जी !! 111 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

,6

नई बह रया दावत ठाने है

काक बइठे िजरिजराँय कोउ बात न माने है नए साल मा नई बह रया दावत ठाने है

काक खिटया पर बरोठ मा खाँसे जाती ह बीच बीच मा काका के ऊपर िच लाती ह

काका ाख टुकुर टुकुर बैठे िसरहाने ह नए साल मा नई बह रया दावत ठाने है

' पानी पानी -' के ऊपर बस 112 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) नािच रहे सारे बहत देर ते पानी माँगित काका बेचारे

अधखाई थाली खिटया र खी पैताने है नए साल मा नई बह रया दावत ठाने है

बड़क भौजी डारे घघँू ट नािच रह जमके नई बह रया पट पिहन परू े आँगन िथरके

खाँिस खखारित ससरु ौ का वह ना पिहचाने है नए साल मा नई बह रया दावत ठाने है

.7 113 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) सरू ज देउता कहाँ छुपाने हौ

नए साल मा जाने कौिन अदावत ठाने हौ ई जाड़े मा सरू ज देउता कहाँ छुपाने हौ.

अिजया बैठे िकटिकटायँ कथरी ग दरी ओढ़े िह मित नह जो चली जायँ लोिटया लइकै ग ड़े

िठठुरन मा काहे उनका क हे बैठाने हो ई जाड़े मा सरू ज देउता कहाँ छुपाने हौ

लकड़ी गाँवन मा बची नह तपता बार कईसे काका रजाई ते झाँिक रहे घघु आ ु झाँकै जईसे

114 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) महु ँ वालौ काहे कोिहरा क चादर ताने हौ ई जाड़े मा सरू ज देउता कहाँ छुपाने हौ

िनकरौ बाहर देिख लेव बस क ले आम मचा चउतरफा दिु नया मा के वल घपु अँिधयार बचा

ज दी ते कुछु करौ, कहे बिद बैठ िचयाने हौ ई जाड़े मा सरू ज देउता कहाँ छुपाने हौ

.8

फगनु हटा निग याय रहा

छोिड रजाई बाहर झाँकौ फगनु हटा निग याय रहा

115 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) झा र क अपन परु ाने प ा नी बी लगै नवेली फंु गनी पर अब ह रयर सगु ना करै लाग अठखेली

िपछवारे महए का िबरवा गिलयारा महकाय रहा छोिड रजाई बाहर झाँकौ फगनु हटा निग याय रहा

आँिख खल ु ै सरू ज क ज दी िकरन दौ र क लिपट धपू देिख कै मगन मरु ै ला पखनन कइहां झटक

दू र ताल पर सारस जोड़ा आपस मा बे हराय रहा छोिड रजाई बाहर झाँकौ फगनु हटा निग याय रहा

गेहँ है उ मीद ते अब तो खड़ी खड़ी मसु काय 116 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) पीली चनू र ओढ़े सरस देिख देिख शरमाय

चने क बटू ा घू र रहा ना पलकन का झपकाय रहा छोिड रजाई बाहर झाँकौ फगनु हटा निग याय रहा

.9

बरु ा न मानौ होरी है

वोट दीन अब खेतौ लेहौ यह तो सीना जोरी है साहेब बस मसु काय क बोले बरु ा न मानौ होरी है

पु रखन कै यह आय िनशानी हम मािनित है भ या बल ु ेट ेन लेिकन जब चिलह लिखह तु हरी ग या 117 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) सब ल रकन का रोज़गार मा मगंू फली क झोरी है बरु ा न मानौ होरी है

पइसा तमु का िमली तो मन चाहा तमु विहका फका यही के मारे सड़क के दनू ओर खल ु ावा ठे का खाओ पीयो मउज मनाऔ यह िजनगी बस थोरी है बरु ा न मानौ होरी है

रोजु रोजु घामे मा काहे क ो खनू पसीना हम संभा र याब तमु बइठौ, हमरे छ पन सीना करौ, ख़दु कुशी लीगल होइगै अबह चादर कोरी है बरु ा न मानौ होरी है

118 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

.10

कहौ अब कहाँ म र जाई

चैतु चलै परु वाई कहौ अब कहाँ म र जाई

खड़ी फसल मा ओला प रगे दाना सब बािलन ते झ रगे आवै लािग लाई कहौ अब कहाँ म र जाई

तमु तो सािहब रहतु िबदेसवा िहयाँ गाँव मा आजु सरु े सवा कािट िलिहस है कलाई कहौ अब कहाँ म र जाई

जिहका पईसा लीन िबयाजे वह डेहरी पर रोजु िबराजे आवित होई कसाई कहौ अब कहाँ म र जाई

119 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) खेतु आय यह परधानन का पईसा िमली तो िमिल जाई उनका हम तो लीन बटाई कहौ अब कहाँ म र जाई

एतना तो खाता मा डारौ खाय लेय प रवार हमारौ चहू ा मार दवाई कहौ अब कहाँ म र जाई

120 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

अमरे नाथ ि पाठी अवधीहमा र.… अवधीहमा र.… जँहिभनसारहवैिचरइनसे, फूटैिकरन-उछाह म-संसक रत-देविकसानै पकड़ैखते ी-राह मिं दर-मिं दर ‘मानस’ गजंू ै, महिजजकरै अजान गटैअसिभनसारजहाँपै, तहाक ं ाहकै चाह यहअवधइलाकाऔ’ अवधीका, कइसेकेयपु ाएिबसा र…. अवधीहमा र.… अवधीहमा र.… जँहसािह यिलखागाउ म, भारतकै जगजािहर दगं कै िदिहनिनजकिव से, का य-िववेक -मािहर सफ ू किवयनकै बानी, भाखा-समताबरसाियस, तल ु सीजीअिं धयारभगाियन, बचानअ दर-बािहर पिढ़-पिढ़बाबाकै चौपाई जनजीवजीवनिनखा र…. अवधीहमा र.… अवधीहमा र.… ऊजे ‘पढ़ीस’ कापिढ़सनाय ‘बसं ीधर’ कै बसं ीनासिु नस ‘रमईकाका’ मारमानाय तेकाजानीअवधीहमा र. 121 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अवधीहमा र.… अवधीहमा र.… हाँ! आजहजबमनदख ु ीहवै, औ’ करमकरै सेिजउपछरै , अवधीसािह यउलिटडारौ, ईभासालेतँहु कास हा र अवधीहमा र.… अवधीहमा र.…

नौदइु यारहह

याकयाकिमिलजांयतौभैया यारहह औ’ गायबहोइजांय ,तौनौदइु यारहह ‘नंबर दइु ’ कै काम फबतहै नेतनका पांचसालके जसनमानौदइु यारहह भेदखल ु ाबिनगये ‘िछहतरा’ कुछ,तौकुछ क बलमािघउपीके , नौदइु यारहह कोटेदरऊअह ‘चार सौ बीस’ बड़े चीनीतेलउड़ायके , नौदइु यारहह ‘तीन-पाच ं ’ कै कामहरजगहनारदकै आगलगाये, खसु ीमानौदइु यारहह गरजफंसेपैभैयावैतौ ‘ितरसठ’ ह गरजघसकजाएपै,नौदइु यारहह सौतरहैतौकटाजु झहै ‘छि स’ कै िमलैअके लीछांहतौनौदइु यारहह पढ़ैिलखैमाउनके ललऊ ‘जीरो’ ह यहीिलयेप रनाममानौदइु यारहह यारकरै माउनके ललऊ ‘चौवन’ ह िलहेमहे रयासंघने ौदइु यारहह ‘तीनकै तेरह’ करवही यापारीह हचकके ािफटलैकेनौदइु यारहह लाग-जगत, िट पणी-‘फे र-िन या बे’ 122 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अ -सतककुछठ कके नौदइु यारहह.

123 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अके लैबढ़ौहो! के उनसनु ैजउपक ु ार, अके लैबढ़ौहो! के उकहै-सनु ैनकुछू, महँु िफराइलेइ। असअभािगजािगजाइ, भयिदखाइदेइ। अपनेमहँु अ े पनबाित, मनमागहौहो! ..अके लैबढ़ौहो! डगर-डगरकाँटभरी, के ऊनह पास। असअभािगजािगजाइ, दरू जाँयखास। राह-राह, काँट-काँट, रउँिदचलौहो! ..अके लैबढ़ौहो! जउअँजोरके उनकरै , याहराितहोइ। असअभािगजािगजाइ, बवडं रझँकोइ। िहयेपीर-अगनकइ, अँजोरकरौहो! ..अके लैबढ़ौहो! [मल ू (बां ला) – रव नाथटैगोर, ‘एकलाचलोरे ’ / अनवु ाद(अवधी) – अमर ]

124 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हजरतअमीरखसु रो चेहराचेहराढूंिढनखसु रो, खबू पहेलीबिू झनखसु रो गोरकलइया, ह रयरचु रया, आिखरके िहकादेिखनखसु रो किठनडगरहैपनघटके री, जानेकेतनाभिं छनखसु रो राजपाटसबपािन बु जा, छे राजनसेसीिखनखसु रो इ के -मजाजीसेउिबयाने, इ के -हक क सािधनखसु रो

हमकापढ़उबै!

हमकापढ़उबै तहु ेम-पोथी !/? मछ रयाकतैरै भलाके िसखाइस िचरै याकिबचरै भलाके बताइस. हमकापढ़उबै तहु ेम-पोथी !/? अपनेनभरोसे पिनयामलहरौ अपनेनभरोसे 125 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अकसवा मछहरौ. हमकापढ़उबै तहु ेम-पोथी !/? िकताबैिसखाइन कबढाई-आखर? तारीखीआिसक भये हिनर छर. हमकापढ़उबै तहु ेम-पोथी !/? [ मल ू : िनजारक बानीके र किवता / अनवु ाद : अमरे ]

पसोपेच

नहसं ौ, तौकिहह : घरु मिु सहाहौ! हसं िदयौ, तौकिहह : यंगबानहै!

चपु रहौ, तौकिहह : घमडं ीहौ! बोलिदयौ, तौकिहह : बेसहरहौ!

लगेहवौ, तौकिहह : गरजआ ु नहौ! 126 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) फरकहवौ तौकिहह : मतलबीयारहौ!

आशाराम ‘जागरथ’

.1 यारजाित-पैसा हरामी है बबआ ु ! हम समझी िपयार करत है ऊ तौ पैसा देखावत है ओ कै बिहिनयै नीक बा भईया पै मरत है बस यही से डरत है .  नाह बबआ ु नाह ! घास डारै का कवन बात तु हरै मा खाइत है 127 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) तु हरै मा पीइत है तु हरै मा रिहत है तु हरै मा जीइत है हम नखरा नाह देखाइत है तू पैसा देखावत हौ .

 ई का िकहौ भईया ईका भगाय लायौ बबआ ु कां नाह डरायौ पढ़िलख कै भीनाह समझ पायौ कहाँ जइह बापू कहाँ जइह मइया का होई हमार का होई तोहार.  तू का कईलू बिहनी दगा दई गयू अिपन गयू 128 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हम सबका लै गयू हम पैसा देखसमझ गयन तू नाह देख पायू जाित. कुजाितहमै अब कुछ करै का पड़ी उठा चलो साथे हमरे तहु ै तहु रे घरे करी .

 िलऔ बबआ ु लइ जाव लइ जाव आपन बिहिनयां रा यौ सहेज कै जइसै राखत हौ पैसा ठीक वैसै पैसा िदहौ तौ सबके सामने बिहन िदहौ तोसबके सामने राखौ आपन इ जत 129 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) घर मा क रयाय कै .  हाय रे दइया ! तू ई का कय डार ् यौ’ अपने बिहिनयै कागोली मार डार ् यौ’ इतना बड़ा पाप कइसै क र डारयौ ् ’ इ जत खाितर िजउ लई डारयौ ् ’ दसु रे कय जान तू काहे मार ् .यौ’  ई का बबआ ु ! का करत हौ िकंविड़या काहे बदं करत हौ जाय िदऔ बबआ ु जाय िदऔ हमका हमका हमरे घरे जाय िदऔ .

130 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

मत बढ़ौ आगे हाथ मत लगाऔ मत छुऔ हमका महंु मत पकड़ौ हाय ! बचाऔ ! भईया ! भ.....या...य...ई... ऊँ......ऊँ ...ऊँ ... ई ं। ....ई ं....ई ं....  आज कलभईया लापता है..... बबआ ु के क ल क – त तीस जारी है... खाक हये हवेली म पिु लस सरु ाग ढूढ़ रही है..... यार, पैसा और जाित पर ‘जागरथ......का शोध जारी है ‘

’ सं ह- कािशत किवता)किवता कलािवहीन‘ से (

131 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) 2

किस कै दाँते काटी रोटी दईु छूत अछूत रहे साथी –

हे नीम छाँह मा तोहरे हम ! खीसा सच बइठ सनु े बाटी

कै बैल तरु ा ‘छुतऊ’य गवा साथे साथे हेरै िनकरे –

हेरत हेरत संझा होय गय – घर लौटे बैल दवु ौ पकरे

साथी बोला िक िक जा या कहवाँ जा या अब राती मा

यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह बचा बा पाहीमाफ मा

132 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) राती जब खाना खाय क् भवा यक बड़ा अड़ंगा बािझ गवा

टुटहा ज़ ता वाला बरतन िपछवारे कहँ लक ु ाय गवा

घरमलिकन बोल काव करीबनये हम हई दाल रोटी –

उ पर से दिलयौ पातर बा के रा कै पाता ना रोक

हम कहत रहेन िक जाय िदया तोहरे सब रोिक िल ा वोकां

यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह बचा बा पाहीमाफ मा

चपु रहौ कतौ ना करौ िफ़कर अ बै जगु ाड़ कुछ क रबै हम

बोले बढ़ु ऊ बाबा अहीर 133 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बु ी मा अबहँ बा दमख़म

फंिड़याय कै धोती खिटया से उतरे लइकै लमका खरु पा

तिनका वहरी से पक र िलयौ घसु काइब हम छोटका त ता

खोिदन यक िब ा गड्ढा वै मड़हा के कोने भईू ंमा

यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह बचा बा पाहीमाफ मा

के रा कै पाता दोह रयाय गड्ढा मा हलके से दबाय

तइयार अजबू ा भै बरतन बोले अब मजे से िलयौ खाय

ऊ रहा भख ु ान सवेरे कै कुछ भनु भनु ाय आवाज़ िकिहस 134 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

इ ज़त बेल ज़त भिू ल गवा – मड़ू ी नवाय कै खाय िलिहस

साथी बोला बाहर िनकरा या पानी िपया अँजरू ी मा

यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह बचा बा पाहीमाफ मा

िभनसारे उिठ कै चलै लाग भ िसया बहत अफनात रही‘

िपतरी के बड़े मा ‘पराते’ बिसयान खाब ऊ खात रही

िफर नज़र परी दालानी मा ऊ आँख फा र कै देखअ थै

कानी कुितया म लही येक 135 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) थ रया कै बारी चाटअ थै

ना दआ ु बंदगी के ह सेचपु चाप चला गै चु पे मा

यकतनहा नीम कै पेड़ गवाह बचा बा पाहीमाफ मा

‘पाहीमाफ यक गाँव रहा’ सं ह-अवधी का य) से

136 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

कुमार अरिवदं

चेहरा बदिल गवा ( यह किवता मसहर समाज सेवी अ ना हजारे क टीम को राजनीितक पाट बनाने पर भट) अ ना जी तमु जब ज तर-मतं र पर भाषण देत रहौ, तब हमरौ मनवु ा हलस पड़त र अब तमु काहे कदम हटाय िलहौ। एकु सालु तमु जनता कहा सज-बाग िदखायेव रहौ भ ाचार िमटावै के खितर लोगन के िहरदै मा घ बनाय िलहौ। ज तर-मतं र क धरती पर तमु जीतै के पिहले ही हिथयार डािल िदहौ। यह एलान कर िदहौ ई मं ी जी अब कुछु न सिु नह। हम अब नई पारटी बनाउब देश यार भ ाचार तेने उ ार करब। अ ना जी अब तमु सनु ौ तमु रे ई सब बस क बात नाई रही जाओ आपन दसू र रा ता वाजौ। अरे , यहै करै क रहै तौ जनता कहा सबजबाग काहे िदख लायेव। का गारंटी है तमु री पारटी महा कौनौ नेता भर नाई होइ। करोरन पइया कहाँ से लइहौ 137 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ई राजनीित मा दइु ही िस ा त चलत ह तमु हँ खाव, हमहँ खाई। जौन इनका नाइ मानत है समझौ राजनीित क दिु नया तेने विहका प ा साफु , अब बताव तमु बात सिहन है िक झठू । यहे करै का रहै तौ , यू चोला काहे पिहिनव दिु नया कइहाँ काहे भरमायेव अ ना जी सच-ु सचु बतलाव हमार मनु काहे दख ु ायेव। हमतौ जानेनु ‘गा ही’ का अवता आएगा लेिकन यू का भा , तमु तौ रंगा िसयार बा। ई दिु नया मा, इसं ान का पिहचानब समझौ बहत किठन बा, यू टेढ़ी खीर भा, जाित पाित का भेद िमटावै वाला सब लोगन का स चाई के र राह िदखावै वाला कइसे अपने मारग तेने िवचिलत होइगा। कुछु समझु मा न आवा हम का बहतै बड़ा संसै होइगा भ ाचार िमटी क नाइ, हम तौ किहत है भइया कौनौ के कहेम न लागौ अपने िहरदय ते भ ाचार िमटाव तब समझु ौ ई देशवा ते यह दानव अपनै आपु न हइ जाइ। नइ तौ भइया, आपन रोटी याक ं ै क खाितर सब तमु का भरमइहै। जबु िमटी िहरदय ते , लालचु औ म कारी तबु समझौ ई देशवा मा सख ु क अमरबेिल बिढ़ जाइ। अ नाजी हमका सबका, तमु अबु औ न भरमाव जाओ औ कला बाजी न करौ िहट होइकै िपट गयेव। अब तमु कौ कौनौ नाइ पछ ू ी जाओ राजनीित क चउपड़ मा 138 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) तमु हँ आपन िक मत अजमाव।

प ी यार याला जब से नाम सनु ा प ी याला, हमरौ मनवु ा टनिक पड़ा। तब हमहँ ब पा सेन पछ ू े नु ब पा कै िदन याला के रिहगे। ब पा बोिलन हम सेन, का रे ललआ ु तिु हका याला का बहत पड़ी। पढ़ाई-िलखाई का खिु टया मा टाँग िदिहस याला- याला िच लावत। ब पा का एतना बोलु सिु नकै , हमह भइया िसट िपटाए गयेन।ु िदन गजु रे , याला का िदन आवा, िमली इजाजित याला ाखै क समझौ हमरी बाछै िखल गईन । हमहँ अपने साथी -स लािहन के साथै मा, याला ाखै का िनकल पडे़न।ु यू समझौ क य ा खश ु रहनु, अ मा-ब पा क चेताइ बातै सब भल ू गयेनु। िमलै लाग र ता मा गोलु पर गोलु हम सब जने का पछाड़तै जाइ अ ा खश ु ी हमरे मन मा समाइ रहे। लेिकन का देिखत हम र ता मा बिु धया क अ मा बिु धया का ग रयाय रही चलौ दिहजरौनू तमु री याला मा याट चढ़़ाइत चलै। इ छार इ ग रयाव, उइ छार बड़कउ ने अपने ल रका के दइु चा र किस दीहेन । इतने म गोलु क अ मा बोली, अरे , बिहनी ज दी-ज दी चली आव का साम िहयं ै कइ ाहौ। जइसे जइसे हम बड़तै जाइ आगे इधरौ से चला आवै याला 139 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) उधरौ से चला आवै याला िजधर ाखौ उधरै याला। दू र से देिखन याक जगइहा जलेबी बनत रह। चट िखलता मा हाथु डालेनु, दस-दस क सौ ठौ नोटै पड़ी रहै। जलेबी वाले कइहाँ दइ दीहेन।ु विहने हमका दइु ठो छ ा पकडाय िदिहस झट से हमहँ लपिक लीिन । कुछ सोच गएनु दस पया मा दइु ठो छ ा। छिक कै खबु खायेनु जलेबी, आधे पइया जलेबी मा चले गए। आगे बढ़ेनु तौ का ाखा, दनु ह ओर बने जलेबी अब हमरौ माथा ठनका, हमतौ ठिग गयेन।ु लेिकन िफर का सोिचनु िहयं ाँ बड़े िमठुवा है। जोनु ाखौ तौनु जलेबी खरीदत रहा। यहै सोिच का मनका समझु ाइ िलिहन। आगे का ाखा, िहयं ा िहडोलना, हवाँ िहडं ोलना, अइसी सरकसु लाग रहा वइसी िसनेमा। कोई तरु त फोटो उतरावै, काहे का उनका आजु वाका िमलगा। आजु मजा लइलेव इ नैहर रहना िदन चा र। पपीहरा सनु ावै पपीहा, रसु लइ लौ धना जइहौ चली। अब हम का बताइ, कुछु समझ मा आवै, कुछु नाइ। कौनौ कौनेन क बात सनु ै न, म त रह सब अपने मा। अतने मा हम ‘लेडीज लब’ पहँच गयेन,ु परा चमोटा गाले पर, गाल हमार थराय गवा अिकल ठे काने लािग गइ भइया, हम पछ ू े नु काहे मारे व भइया , एकु रहपटा िफर प रगा। देखता नह साले लेडीज लब है, साले गवं ार मेला देखने चले आते। तु रतै भइया भागेनु, आक िकनारे बइठ गयेनु अपनौ गालु सोहरावै लागेनु। मिझलउनु बोलेन,‘का होइगा लिडकउन ़ ू,’ खायेक िमल गवा र ते भरे का, 140 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) घरमा बतावत नाइ बनी क हमहँ मारे गयेन।ु इ प ी का याला भइया भ मा भतू ी याला।

141 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) इं ेश भदौ रया

दू र तब अ यान होई जबै बेटवन क तना िबिटया धरा पर यार पइह। ज म पर बाजी बधइया बाप माँ खिु सयाँ मनइह। जबै भल ू सधु ार होई लोग िबिटयन का पढ़इह। औ देवइह नीिक िस छा भािग िबिटयन के जगइह। कली बिनह फूल सु दर बािटका अरघान होई। दू र तब अ यान होई। जब दहेजु का पाप मिनह िबन दहेजु िबयाह होई। दहेजु लोभी ससरु के मन जब बह कै चाह होई। ननद औ भौजाई िमिलके सारे घर के काम क रह। जबै िबिटया - बह का सासइु बराबर यार क रह। लेन - देन निहं होई तिनकौ सु क यादान होई। दू र तब अ यान होई। जबै घँघू ट कै कुपरथा यिह समाज से दू र होई। बेटी बिन रिहह बह रया कामना सब पू र होई। जब देखावा दू र होइह सादगी सब मा देखाई। जब घम ड मा चरू मनई फालतू न धन गवं ाई। झाड़ फँू क से दू र रिहके सदगणु न कै खान होई। दू र तब अ यान होई। जब िबबस िबधवा बेचारी मान व स मान पाई। निहं कोह पर बोझ बिनके फे र घ आपन बसाई। जब सपतू न के िहया िबधवा िबयाह कै चाह जागी। 142 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) फे र क र िबयाह िबधवा रही पित कै ेम पागी। जब कुरीती दू र होइह नीक मगं ल - गान होई। दू र तब अ यान होई। जो बने धनवान घमू त जब बड़ पन का देखइह। कै गरीबन तो मोह बत यार ते छाती लगइह। मनई - मनई एकु होइह ेम से सब काम होइह। औ िमटी अँिघयार मनका नीित का डंका बजइह। तब कटी यह रीित दख ु द िबहान होई। ु कै अउर सख दू र तब अ यान होई।

िबयाह याहे कै ज दी नह करौ पापा, पिहले तो देउ पढाय रे । पढ़े - िलखे कै बातै अउ र पापा, सिु न लेउ यान लगाय रे । इ टर बीए एमे करबै हम पापा, होइ जइबै होिसयार रे । देवर ननद सब खसु होइ जइह, भउजी है नाह गवाँर रे । सास ससरु तब कानी न म रह, िसिख याबै सब काम रे । िस छा का िभ छा लइके पापा, करबै जगत मा नाव रे । पिढ़ िलिख के जब ससरु े जइबै, खसु होई घर प रवार रे । सबक िपयारी बिनके रहब हम, मानउ यह बचन हमार रे । बोले ह पापा तब सनु मेरी बेटी, पढ़उ इ कूल मा जाय रे । जेतना तमु पिढ़हौ उतना पढ़इबै, खबू पढ़ै मनवा लगाय रे । 143 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) सोच करो जिन सोने क िचरइया, नह हऔ तमु परे सान रे । जइसेन चिहहौ वइसेन करब हम, तमु हौ िबिटया महान रे । िबिटया नह तमु देबी हौ घर क , दगु ा लछमी क अउतार रे । तमु िहिन से घर मा फइलै उँजे रया, तमु िहिन से घर अँिधयार रे । बढ़ी िलखा घर आवै जो बह रया, घर का चमन क र देय रे । अनपढ़ बह रया घर मा जो आवै, घर का नरक क र देय रे ।

दइु छंद (१) बरसात के हाल कही किहसे, अब लागत है रोजइु झलबदरा। निहं काम हवै निहं धाम हवै, सब देिख परै जइसे अदगदरा। िदन - राित रहत बँिु दयात जलै, चचु आ ु इ रह छानी अ छपरा। अस ऊधम जो◌ेित रहा मौसम, िनकरे ह पाँव न बाढ़त चदरा। (२) तन पीर बढ़ी मन धीर नह , है सल ु िु ग रहा पािनउ मा िजयरा। अब नेह - िनहो बढ़ा अइसा, जस भाँग भँगड़े ी है छाने परा। जस हमरी है तस तु ह रउ दसा, कुदसै - कुदसा हमरी अ तु हरा। 144 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हम घर मा हन परदेस म तमु , होइग अिस पोिढ़ ह सबके िहयरा।

पर स पित लाय धरै मनई अब तो सबका यह हाल हवै, सख ु पर का देिख जरै मनई। िबगड़ै यिहका कइसे कारज, यिह सोचन माँिह मरै मनई। छलछ द हवै मद अ ध हवै, पर स पित लाय धरै मनई। निहं काम करै निहं धाम करै , बिस कुकरम रोजु करै मनई। मनई सबु एकु तना है नह , कुछ अ छे व देिख पर मनई। महतारी व बाप कै सेवा कर, प रवार के िह मर मनई। िनत खात कमात रह सख ु से, झगड़ा न फसाद कर मनई। मनई बिनके जग मा िबचर, म रके िनजु नाव कर मनई। इ श े भदौ रया "रायबरे ली "

145 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बनाओ सु दर-सघु र समाज अरे तमु जेिहका कहत अछूत। वहउ है ई र यार सपतू । वह का माँस - खनू है वहै। जउन तु हरे चोला मा बहै। अछूतन का काहे िनदराव। भेदु तमु हमका आजु बताव। कमी है तमु का कउिन देखात। छुओ ना तमु अछूत कर गात। दू र से तमु विहते बतलाव। मल ु ा निहं पास कबौ िनयराव। कहत निहं यह परु ान औ बेद। करउ मनई - मनई मा भेद। बने तमु धरम के ठे केदार। करउ सब ओछे पन के कार। अरथु तमु अइसा रहेव लगाय। बड़ेन का ऊँ चा रहेव बताय। छोटकयेन का समझु त हौ नीच। िकहेव है बड़े - छोट मा बीच। करायेव देउतन तक से बैर। धरै निहं ह रजन मि दर पैर। बढ़ायो आपस मा तमु बैर। समिु झ के तमु अछूत का गैर। िदहेव तमु मनई - मनई बाँिट। िलहेव अपने हाथन का कािट। मल ु ा अब बदलउ आपिन रीित। करौ सब जन अछूत से ीित। लाव अपने मन मा बदलाव। अछूतन का तमु गले लगाव। मािनके उनका आपन अगं । चलो सबका लइके िनज संग। 146 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) तजौ अब जग के रीित रवाज। बनाओ सु दर - सघु र समाज।

घनच कर तमु मनई हौ या घनच कर । है भैराभु बोखार चढ़ा, है बकत िबटीवा अ ट-स ट। तमु कहत लािगग नारिसंह, गटई मा बाँधत घ ट-प ट। डा टर का नह देखाय रहेन, िनत आवत ओझा औ फक र। बीमा रउ बढ़तै जाय रही,तमु पँिू ज रहेव औिलया - पीर। िबना दवा िकहे ना काम करी, टोना - टटका, ज तर - म तर। तमु मनई हौ या घनच कर । ल रकउना अरजी िदहे रहा, आवा ततकाल बोलउवा है। है भरती पिु लस दरोगा कै , लगवायौ तगड़ा पउवा है। मल ु ु जाय िदहेव न तुम विहका, बतलायो भ र िदसासरू । भरती विहकै न होइ पाई, बतलाओ के िहका है कसरू । अब सोस िसफा रस करै का, जब पालेव है अइसा च कर। तमु मनई हौ या घनच कर । तमु चलेउ बर देखी का घर के , िबिलरीवा र ता िदिहिस कािट। च ै तमु लउिट परे न घर का, िफर िनकरे व घर ते दिहउ चािट। 147 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) यिह लउट पउट के च कर मा, हरबर - हरबर टेसन आयेव। गै छूिट गड़ीवा पता चला, तब बहतै मन मा पिछतायेव। अइसेन पिछतइहौ राितउ िदन, जो पिलहौ िढ़िन का च कर। तमु मनई हौ या घनच कर । क रया अ छर से ल चला, िनत रहेव लक रन के फक र। िबना सोचे समझे अँिधयारे मा, अब तक तमु मारत रहेव तीर। अब बदलौ आपन ढंग - ढरा, िस छा ते वारा करउ ीित। यह झाड़-फँू क, टोना-टटका, जादू का जानउ तमु कुरीित। जब यान जगा अ यान हटी तो, खइहौ िदन िदन िघउ स कर। तमु मनई हौ या घनच कर ।

बताई का ददआ ु वाड़ा िपट अकाज बताई का ददआ ु । गदहन के िसर ताज बताई का ददआ ु । अ मा - ब पा के पइसा से सेखी मार, अइसे ह रंगबाज बताई का ददआ ु । दह कै देउखरी लगाव रोजु मेह रया, लागत नह है लाज बताई का ददआ ु । िनरधिनया कै लाज लिू ट धनवानन ली हा, चु पे बइठ समाज बताई का ददआ ु । जो गरीब का रकत - पसीना चिू स रहे, िगरत ना उनपर गाज बताई का ददआ ु । 148 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) भासन से मनइिन का खाली पेटु भरत ह, नेता राम नेवाज बताई का ददआ ु । िजनका दी हा वोट बने संसद मा ाखौ, लोक - त कै खाज बताई का ददआ ु ।

पंचौ, लागत है कुछ खरी - खोटी सनु ाय दीन जाय का? कै हो इ देव काह? फूिट गय दू हौ हव, ज ता कै ािह- ािह तमु का न देखात है। बड़ा है घम ड तमु का दख ु निहं देिख परै , उमिड़ - घमु िड़ के देखावत औकात है। गाँठत आब मल ु ा पानी तो िगरत नाह , दम - खम कुछौ नह हमका देखात है। कहँ बाढ़ कहँ सख ँू ा, ू ा मरत िकसान भख सरु जौ तपत सब जरा - बरा जात है।

इ श े भदौ रया * रायबरे ली *

149 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

राहल देव

खबर गाँव से :

झोपिड़न मा ई बार अइिस आिग बरसी सल ु िग गए चालीस घर जिल रहा गाँव सख ू त रहयं घाव जौन िफर से कुरे िद िदहेव आधं ी और पानी मा डूिब गय खड़ी फ़सिल

िबिटया के र शादी औ बेटवा के र पढ़ाई सबै कुछ छूिट गवा उमा अ मक िबमारी ते कोढ़ मइहाँ खाजु भवा मवु वजा के नाम पईहाँ जऊन हमरे हाथ आवा नईका परधान विहमा िह सा बटाय िलिहस जाने कतने अफसर आए जाने क े नेता 150 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हमरी कहानी सिु न दशा कइहाँ ता र िदिहन

सिु नित हन – कहँ पानी िबलाय गवा कहँ पहाड़ लिचकाय गवा कहँ दगं ा भड़िक गवा कहँ बम फूिट गवा कहँ भाव घटु ाला तो कहँ मारकाट मची

लिु ट रहा सबकुछ उजड़ी रहे गाँवघर–

सिु नित हनभगवान अवतार लेह हमका बचइह सिु नित हनपरधानमं ी अइह अ छे िदन लइह

पचास सािलस ऊपर हइगे आज़ादी के र ! गाँधी बाबा यार सब सपना सेराय गवा !!

151 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) चनु ावी बयार लेव आइ गवा मउसम चनु ाव यार प फलेट छपय लाग खटारा खड़बड़ाय लागी ँ अदमी दउरय लािग िबजरु ी के रे दरशन दरु लभ रहै िक जो लु पलु प होित रहयअब तो जातेन नाही ँ पानी के री टोँटी जो आँसू बहाउत रहय फूिट गए भाग जी के वहव आज बोिल परी पािनन पानी देखाय लाग चनु ावन के रे फे र मा दउरा चलय लाग लेिकन चाहे जतना रमलु बनाय लेव ई तमु रा परु ाना हालु है हमसे कछु िछपा नाही ँ हमे ँ मरू ख न समझ िलयो यू अवध के रा गाँव आय औ अवधी हमरी भासा मल ु ा कमपटू र हमहँ जािनत हन गल ु बलाइजेसन के री बयार मा लपिट गये गाँवगाँवफे रफे र आवैदल ु रावै रोबोटवा इटं रनेट के रे जालु मइहा फँ सय सेने बचे रहे िम ी हमरी सोना है मसं ा तु हार समिझित हन भले अधकचरा हन तमु े ँ बड़ा खतरा है ओटु वहै पइहै जो परमाने ट रइहै अ ा तमु जािन लेव चहव अगर स ा

152 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) तो हमका पिहचािन लेव हमरे गाँवन मा झाँिक लेव।.. -सपं क सू 48/9 -सािह य सदन(अवध) महमूदाबाद ,कोतवाली माग ,, सीतापरु , उ261203 . . मो –.09454112975 ईमेल-rahuldev.bly@gmail.com

153 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) राघव देवेश

पानी न बरसय के जाती हाल बहत खराब बाय, यही पय चा र छः लाईन.. हम सङक के िकनारे जात रहेन अपनेन मा कुछ बितयात रहेन । न जाने कब बादर बरसय ? यिहके िबना सबही तरसय । जोतय -बोवय मा न रहा नफा, खेती से िजव होइ गवा खफा। ह रयाली कय कवनव बात नही, रही-सही बस याद बची । तबक दइया ऊ जब रही िमली, सरसई के खेते मा रही िखली। इ सब सख ु अब दरू भवा, सख ु चैन जइसे होइ गवा हवा। न जानय कब बरसे बादर, ह रयाली कय फइले चादर। हम सङक से होइके जात रहेन मनही-मन इ बुदबदु ात रहेन।

तरो-ताज़ा है -१

अबिहवं तरो-ताज़ा है, ऊ माई कै किनयाँ। भइया कै घोड़इयाँ।

154 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बगैइचा कै खइ्याँ। बचपन कै गोइयाँ। अबिहवं ............।(१)

अबिहवं तरो-ताज़ा है, उ आमे कै फरब । िटकोरा कै तरू ब । चोपी सधु ेन खाब । औ महँु े कै फबदब । अबिहवं .............।(२)

अबिहवं तरो-ताज़ा है, अपने ब पा कै वादा। दसई ंकै पास हवब । सइिकल कै बधं ाउब। घंिटव िफट कराउब। अबिहवं ...............।(3) 155 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

अबिहवं तरो-ताज़ा है, िबचपटे से िनकरब । घंटी कै टन-टनाउब। वनकै बाहेर आउब। आँखी कै डोलाउब। अबिहवं ................।(४)

अबिहवं तरो-ताज़ा है, पिहली फसल कै कटब। सेवाने मा खाना बनब। देउथाने पै वहकै चढ़ब। पड़ू ी-लपसी कय भँजब। अबिहवं .....................।(५)

अबिहवं तरो-ताज़ा है, ऊ जाँते कय दर-बराब । 156 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) चािकया कय दर-दराब । िसल लोढ़ा कै खटखटाब। नोने सगं चबैइना चबाब । अबिहवं ......................(६)

अबिहवं तरो-ताज़ा है, िबयाहे कय माडव । सबु ेरे िखचरी कय खाँब। मेहरा न कै गा रयाउब। ससरु का िनिकयाउब। अबिहवं ....................(७)

अबिहवं तरो-ताज़ा है, बेटवा कै पैइदा हवब। था रया कय बाजब। खबु नेग- चार बटब । अऊर बचत कै घटब। 157 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अबिहवं .................(८)

158 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

अवधी कै िति त किव चतुभुज शमा से भारते दु िम कै बतकही

(रामपरु मथरु ा -सीतापरु के याक किव स मेलन मा किवता पाठ करित भये िकसान किव चतभु जु शमा) (1910-1998) भारतीय म सं कृ ित क िववेचना कर तो िमलेगा िक हमारे यहाँ जल ु ाहे ,बढई,नतिकयाँ और िकसान भी किवता करते रहे ह। का यं करोिम निह चा तरं करोिम य ना करोिम यिद चा तरं करोिम। हे साहसांकमौिलमिणमि डतपादपीठ कवयािम वयािम यािम च। यह एक जल ु ाहे क किवता है िजसे सनु कर राजा भोज ने अपने समय म उसे किवताई का समिु चत परु कार देकर िवदा िकया था। आचाय चतभु जु शमा ऐसे िकसान किव ह िज होने जीवनपयत िकसानी क कभी अपनी कािवता क एक भी पंि कागज पर नही िलखी। उ हे सबकुछ क ठ थ था।माने वो तो चलती िफरती िकताब थे।जब (कुमदु श े जयंती 16अ ू बर सन-1985)मैने उनसे बात क तो पाया िक चतभु जु शमा िह दी जगत के एक वीकृ त ान त भ ह िजनका प रचय गाँव के अपढ से लेकर िव िव ालयो के तमाम शोधछा ो से भी बराबर बना है। पढीस-वश ं ीधर शु ल-रमई काका क परवत पर परा म अवधी किवयो मे चतुभजु शमा का नाम आता है। वे अवधी के िवकास हेतु नशील थे उनिदनो। नािदरा महाका य,सीताशोधख डका य, परशरु ाम ित ा,ताराबाई, िसंहिसयार,ई याका फल,तल ु सीदास क जीवनी,महा मागा धी क जीवनी,हनमु ान शतक,कु ा भेडहा के र लडाई आिद अनेक रचनाएँ शमा जी कंठा थी। ऐसे िकसान किव चतभु जु शमा सीतापरु के ाम बीहटबीरम के िनवासी थे। ततु है उससमय हई बातचीत के मख ु अश ं -भारते दु िम भा.िम. आपने नािदरा महाका य क रचना क है तो उसक ेरणा आपको कहाँ से िमलीशमा जी159 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) नािदरा खडी बोली मे रचा गया ब ध का य है। ये हरगीितका छ द म है। जहाँ तक ेरणा का है तो मैने एक दफे सीतापरु पडाव पर नािदरा िफ म देखी उसम नािदरा के जीवन के बडे का िणक य थे।मझु पर कुछ ऐसा भाव पडा िक बस इस नाियका को लेकरकुछ िलखने क ेरणा जग गयी। उसके बाद कथानक के िव तार के िलए मै लाहौर गया -वहाँ से कोई 30 िकमी.दरू एक मकबरा है िजसम नािदरा क मजार है।वहाँ जहागीर और नािदरा के तैलिच भी मैने देखे वह से फारसी भाषा मे नािदरा से स बि धत कुछ सािह य भी सल ु भ हो पाया..तो इस कार मैने नािदरा पर का य िलखा। भा.िम. आप तो अवधी मे भी बहत किवताएँ िलख चक ु े ह तो या अवधी िह दी क िवभाषा मा है या उसका अपना अलग अि त व भी है..? शमा जीभैया अवधी बडी सश भाषा है। येक अनभु िू त का येक िवधा मा अिभ य करै मा समथ है।गो वामी तल ु सीदास का सािह य इस बात का माण है। आजकल के सािह यकारो का यथोिचत सहयोग अवधी को नही िमल रहा है।कुछ मख ू लोग इसे गवाँरो क भाषा मान कर अवधी से परहेज करने लगे ह परंतु मै तो अपना का यगु तल ु सीदास को ही मानता हँ।खेद है िक आजकिवस मेलनी किव अवधी को के वल हा य क भाषा बनाने मे जटु े है। जबिक िह दी क िवभाषाओ मे िजतना यापक थान / े अवधी का है उतना िह दी क अ य िकसी िवभाषा(बृज,बु देली,भोजपरु ी,बघेली आिद) का नही है। खेदजनक है िक कुछ वाथ लोगो ने आधिु नक अवधी के ितिनिध किव वश ं ीधर शु ल को भी एक िव िव ालय के पाठ्य म से िनकाल िदया है। यह अवधी के िलए ही नही वरन िह दी भाषा के िवकास के िलए घातक है। भा.िम. अवधी मे का य क िकन िवधाओ का योग िकया जा रहा है.? ..आपक मख ु अवधी किवताए कौन सी ह ? शमा जी अवधी मे गीत-गजल-दोहा-सोरठा-किव -और सवैया के अलावा मु छ द आिद का यिवधाओ का योग िकया जा रहा है। मैने भी इस िदशा मे कुछ योग िकए ह। मघई काका क चौपाल,कु ा भेडहन के र लडाई,महा मागा धी ,बरखा,िकसान कै अरदास,बजरंग िब दावली आिद अवधी क रचनाए ह। भा.िम. कुछ नवयवु को के मनोभावो को लेकर िलखा हो तो सनु ाएँशमा जी भैया िलखा तो बहत है चार लाइन सनु ौहौ बडे पतू बडे घर के ,तमु का का परी िहयाँ आफित होई। रोकौ न राह अबेर भई,ननदी कहँ ढूढित आवित होई। जाइ अबै किहबा घर माँ,तब जािन परी जब साँसित होई। ऐसे कुचािल न भाव हमै हटौ दू र रहौ,कोऊ ाखित होई। 160 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) भा.िम., ,वाह या बात है गाँ क यवु ती और यवु क के मनोभावो का मनोरम िच है यह तो दादा। भा.िम. शमा जी मु छ द किवता के बारे मे आपक या राय है ? शमा जी छ द या छ दोब रचना सनु कर गनु गनु ाई जाती है,वह याद हो जाती है।मानस क चौपाइयाँ ,गीता के ोक सब ाचीन सािह य छ दोब है जो आज भी समाज का क ठहार है,और यगु तक रहेगा। नई किवता या छ दमु किवता मेरे समझ से परे है। यिद यही दशा रही तो छा किवता क आ मा से कभी प रिचत नही हो पायगे। वाथ से े रत सािह यकारो को या कह..। भा.िम. या आज के किवस मेलनो मे सािहि यकता िव मान है.? शमा जीआजकल किवस मेलनो का तर बहत िगर चक ु ा है,इसिलए मै अ सर किवस मेलनो मे नही जाता। अब तो किवस मेलन एक यवसाय हो गया है। अब जो ोताओ को हँसाकर मु ध करदे वही सफल किव है। उन किवताओ मे तरीय सािह य खोजना मख ू ता है। भा.िम. आपक ि मे किवता के मायने या ह..? शमा जीकिवता या है यह तो समी क ही जान।मै तो जो वातं : सख ु ाय गनु गनु ाता हँ सनु ने वाले उसे किवता मान लेते हकोरो गवाँर पढो निलखो,कछु सािहत क चतरु ाई न जान । कूर कुसंग सनी मित है,सतसंगित क गित भाई न जान । काँट करीलन मे उरझो परो,आमन क अमराई न जान । गावत ह रघनु दन के गनु ,गढू िबसय किबताई न जान ॥ भा.िम. वाह वाह शमा जी बहत सु दर..। कुछ और सनु ाइए,आपने तो अवधी मे बहत िलखा है। कुछ कृ ित वणन से सनु ाइए.. शमा जी स या के समय का एक िच देिखए-िजसे गोधिू ल कहा जाता है िदनु भ र दौरा धपू ी कै अब रथ ते सजु उत र आये। गो ,हरहा सब जगं ल ते अपने घर च र च र आये। बछरन ते गैया हक ं ा र िमल ,गैया का उमिग िपया परा। 161 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) चरवाह बैिठ सँहताय लाग,घिसयारन बोझु उता र धरा।। ...एक और वषा सु दरी का िच देिखएिबजरु ी चमिक उजे िदखावै,मेघ मृदगं बजावै बैिठ ताल पर याकै सरु माँ मेढुका आ हा गाव। धरती िफरते भई सहु ािगन पिहरे ह रयर सारी रंग िबरंगी फूल किलन क गोटा जरी िकनाई। बीर बहटी बडी दरू ते सदरु लइके आयी न ी नाउिन पाँव पखारै ,नेगु पाय हरषाई। भा.िम. वाह दादा या कहने ह..परू ा पक हइगा..औ न ी नाउिन का तो जवाब नही..बहत सु दर..। शमा जी कालजयी रचनाकार आप िकसे मानते ह.? शमा जीभैया जहाँ तक कालजयी रचनाकार क बात है तो कालजयी वही रचनाकार होता है िजसक रचना क िवषयव तु शा त होती है। ऐसी रचनाएँ काल क प रिध को पार कर जाती ह।कबीर-तल ु सी-सरू -िबहारी-िनराला- साद-पढीस-बश ं ीधर शु ल-रमई काका आिद क रचनाएँ शा त ह।ये अपने समय के कालजयी रचनाकार ह। =====

162 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृ ित अंतररा ीय पि का/Jankriti का Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बतकह : डॉ. यामसु दर िम “मधुप” से बातचीत पर आधा रत एक संि

तुित..!

मधपु जी के साथ यो ना जी..

सीतापरु (उ. .) िजले के सरै ना-मैमैरासी ाम म सन् १९२६ को ज मे डॉ. यामसु दर िम ““मधपु ” जी समकालीन अवधी सािह य के िविश ह ता र ह। मधपु जी का परू ा जीवन अवधी भाषा-सािह भाषा सािह य के सेवाथ समिपत रहा। इ ह ने रचना और समी ा दोन ही तर पर अवधी को समृ िकया। ‘अवधी अवधी का इितहास इितहास’ िलखने का ेय भी मधपु जी को जाता है। अवधी रचनाओ ं के कई सं ह िलख चक जनपद म रहते हये अ ािप ु े मधपु जी सीतापरु जनप सृजनरत ह। ततु पो ट मधपु जी से यो ना जी क मल ु ाकात पर आधा रत है। यो ना जी भी सीतापरु क रहनेवाली ह और इस पोटल क सहयोगी भी ह। मधपु जी से यह बतकह इस कार है: [अमरे अमरे नाथ ि पाठी पाठी]

आज के युग म अवधी भाषा का या मह व है? व मान काल भाषाओँ के संर ण और प रव न का काल है. येक रा म अपनी सं कृ ित अपनी जातीय धरोहर को संिचत, संरि त, करने क ललक है, अवधी तो हमारे रा क एक अ यंत मह वपणू भाषा है िजसम गो वामी तल तमानस जैसा महाका य रच कर िव को एक िवल ण महा थं िदया है िजस ु सीदास जी ने रामच रतमानस पर आज भी ग एवं प म अ यंत मह वपूण थ िलखे जा रहे ह. 163 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 201 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अवधी और समकालीन खड़ी बोली सािह य म आप या अंतर पाते ह? जहाँ व मान काल म खड़ी बोली म बंध महाका य और ख डका य का अभाव िदखाई देता है वही ँ अवधी म बंध धारा पणू वेग से वाहमान है. कृ णायन, गांधीच रतमानस, हनमु त िवनय, पा रजात, ब वु ाहन, वु च रत आिद आधिु नक अवधी बंध का य ह, जो िहदं ी के खजाने को दोन हाथ भरने म स म ह. आधिु नकता के ि कोण से देख तो अवधी म खड़ी बोली क समानांतर का य धारा पुराने व प म िदखती है. य ? जहाँ तक समकालीन अवधी का यधारा का है, आधिु नक अवधी किव अ छा िलख रहे ह. “घास के घर दे”, मेरा का य सं ह आधिु नक का य धारा का ही ितिनिध व करता है. समकालीन अवधी किवय म मख ु प से सीतापरु के यवु ा किव भपू े दीि त का नाम उभर कर आया है. “नखत” म उनक का य ितभा क बानगी देखी जा सकती है. मेरे “अवधी का इितहास” म भी कुछ रचनाय ह िज ह पढकर अवधी का य के संदभ म नयी अनभु िू तयाँ ह गी. इसके अलावा डॉ. भारतदु िम , डॉ. ानवती, स यधर शु ल आिद आधिु नक अवधी के जा व यमान न ह. अवधी ग अवधी प क तुलना म कम है, इसका या कारण है? ऐसा नह है क अवधी ग िलखा नह जा रहा है, वह खबू िलखा जा रहा है, पर तु काश म कम आया है. डॉ. ानवती का “गोमा तीरे ” आधिु नक अवधी का थम मौिलक उप यास है जो अ कािशत है. गोमती नदी क भिू म पर एक आम आदमी के दःु ख दद क कहानी, संवदे नहीन रा यतं , अ याश नेता और अभाव म छटपटाता जन-जीवन अवध े का रे खािच है गोमा तीरे . ये छपेगा तो तेहे का मच जायेगा. वैसे भारतदु िम , रि मशील, डॉ. राम बहादरु , भपू े दीि त आिद अवधी म खबू िलख रहे ह. भिव य को इनसे बड़ी आशाएं ह. व. िदनेश दादा भी अवधी ग का भ डार भर रहे थे. अवधी को आज भी उसका उिचत थान नह िमला, इस स दभ म आप का या कहना है? अवधी को कभी रा या य नह िमला. इतना चरु सािह य होते हए भी अ य भाषाओ ं के म य इसको समिु चत थान नह िमल पाया. जो नेता अवध े म है, वे अवधी का दाय नह चक ु ा सके ह. अवधी सािह याकार म इतनी गटु बंदी है िक समिपत सािह यकार भीड़ म पीछे िछप जाता है. अ छे रचनाकार को तथाकिथत खेमबे ाज़ लेिकन सािह य के दीवािलये उभरने ही नह देत.े सीतापरु क रचनाधिमता तो खासकर इसक िशकार है. महािव ालय के रटायड अ यापक इनके िसरमौर ह जो इस वृि को बढ़ावा दे रहे ह. अवधी ेिमय के िलए आपका स देश:

164 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ितभा को कोई रोक नह सकता, उसका तो िव फोट होगा ही. अवधी को अवधी के गटु बाज से खतरा है और िकसी से नह . अवधी को जाितवाद, े ीयतावाद और ओछी मानिसकता से दरू रखना होगा. अवधी का भिव य उ वल है. *****

मधपु जी के बरवै क कुछ पिं याँ: निदया लावइ पानी, पी खदु जाइ। यात परे सब सख ू इँ, त कुि हलाइ॥ बादर गरजिहं तरपिह,ं बरसइँ नाँिह। पिपहा मरइ िपयासा, ताल सख ु ाँिह॥ िकहेउ िबधाता कस यह, तो -मरो । भिस वहे क जेिहक , लािठम जो ॥ उिगलइ आिग चँदरमा, सजु अँ यार। मछरी बैिठ िबरउना, िपक मजधार॥ कागा पजू न देिखक, िपक उदास। चहँ िदिस दिध के प म, िबकै कपास॥ *****

कुछ और बरवै: सनू पड़े द तरवा, हािकम लेट बात न कर अधी क, िबन कुछ भट।

165 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) सर बापू ति ब रया पंजन के र देउ पांच ते कम तौ देबइं फे र। सोची हाय सरु िजया का प रनाम िबक ग रबवा घर-घर, कस िदन दाम। मार मौज बड़कवा, लटू इं देस मरे भख ू ते बढु वा, सतू पर के स। लिू टन कस परदेिसया भारत देस लटू इं आज वदेिसया जो कुछ सेस। [ वरा य से]

(‘अवधी कै अरघान’: अमरे नाथ ि पाठी से साभार)

166 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

यकअविधयाके रीडायरीसे.. अमरे नाथ ि पाठी २१नवबं र२०११ िजसतरह यि य के म य भु यि क वृि य कासंचरणहोताजाताहै, उसीतरहभभू ागिवशेषमिकसी भु थलका भावभीफै लनेलगताहै।इसके ित वाचकताकमअनक ु रणअिधकिकया जाताहै।लखनऊक िजस ‘सं कृ ित’ क बातक जातीहै, उसमआजभीमल ू तःनवाबीदौरक अकमकता, शेषअवधसेअसंवाद, नाजक ु -तमीज-तहजीबआिदके आ ममु धीमहु ावर के चलतेआतम् समी ाभावकाअभावऔरतमाम वर कोअनदेखा करनेसेविै व य-समृि क अनपु ि थित प तौरपरिदखतीहै।यहांक पृ भिू मपरकथाकार ेमचंदक कहानी ‘शतरंजके िखलाड़ी’ कोस ा-क पररखकरदेिखए, आजभीवहमनोिव यासिदखेगा।यहांक चरकोलेकरएकखासिक मकािवभाजनहै, िजसक तरफ यानिदलानेपरवह के िम नेकहा – यह ‘क चर’ और ‘ए ीक चर’ कािडफरसहै, औरदोन मफकहोनाचािहए।मऐसािवभाजनबेमानीसमझताह,ं िजसमपोएिटकक चरक बातहोवए ीक चरल र जटेशनकोछांटिदयाजाए।मसलन, ए ीक चरके किवघाघकोछाटं करकोईशामे-अवधक लखनवीसरू तरचे, तोयक ननउसममग रये-अमीरशाहीिदखसकतीहै, लेिकनअवधक अिव मरणीयिकसानी-सं कृ ितनह िदखेगी।मझु से म याइसीसेहिै कलखनऊअवधक िजसक चरलपैकेिजगं कानामहोतारहाहै, उसमअवधीसं कृ ितकािनतांतअभावहै।यहांवहअवधीसं कृ ित य नह िदखती, िजसमजनभाषाकाकम-स दयहो? लखनऊमिकतनीहैअवधी? उसके बादभीशामे-अवधलखनऊ? एकखासतरीके काबासीए थेिट सक चरकामल ु माचढ़ा-चढ़ाके जीताहैलखनऊम! वैिव यकहां? गितकहां? ि कहां? ितरोधकहां? ितकारकहां? लोककहा?ं जनकहां? जनभाषाकहां? – यायहपरंपराएनं ह होनीचािहएलखनऊम? एक ि डािलए, दोशहर क चालके तल एकलखनऊवदसू राबनारस! ु ना मकअ ययनपर! एकक चरयहऔरएकक चरवहभी।यहाआ ं पकोअिधकससं ाधनमकमआउट-पटु िदखेगा (राजनीितकअवसर परदीठडालनेपर), वह बनारसपरु ानीलीकपरचलनेकेबादभीएकसां कृ ितकदािय वकोिनभाताहआिमलेगा।बनारसपवू ाचलक जातीयता कावाहकिदखेगा, लेिकनलखनऊअवधीजातीयताकावाहकनह ।भाषासं कृ ित- पहै, इसके हवालेसेकहतं ोबनारसमआपकोभोजपरु ी-भाषीप रवारिमलगे, घरके भीतरवबाहरसबबोलतेहभोजपरु ी, लेिकनलखनऊमइसतरहअवधीकोगौरवबोधके साथबोलतेहएप रवारनह िमलगे।लखनऊनेिहदं ी-उदकेू सामनेऐसेघटु नाटेका, जैसेइसक अपनीकोईजातीयभाषाहीनहो।फलतःजातीयिनमाणक ि यामलखनऊने – अवधीक चरकािम यादावाकरनेकेबावजदू – नकारा मकभिू मकािनभायी।मैिथलीजातीयतािमलेगीआपको, भोजपरु ीजातीयतािमलेगीआपको, लेिकनअवधीजातीयतापरकुठाराघातलखनऊनेहीकरिदया। (इसेआकाशवाणीलखनऊमिवगत 6-7 दशक के अवधीकाय मके िगरतेहए ाफसेदख े सकतेह) 167 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) जबिकअवध-अवधीक सचेतजातीयताभाषासेअलगभीिविवधसां कृ ितक प महै, िजसक पहचानखदु कोइलाके काक चरल-हबकहलानेवालेलखनऊनेनह क , तोइसके मल ू मवहांलोग कोजानाचािहए। मयहनह कहरहािकलखनऊ ‘नरक’ हैबि कयहकहरहाहिं किजसनफासती-तहजीबी ‘ वग’ कादावािकयाजाताहैऔरपरू े अवधक क चरलपैकेिजंगकरदीजातीहै, उसकाहकदारलखनऊकतईनह है।इसीबातकोकहतेहएिजनकिवय नेकुछकहा, उनक बातकोबड़ेह के मिलयागया।खदु परसोचनेका यासनह िकयागया।देशभाषाक किवताओमं िनिहत यं येतर ( यं यहोनेपरभी) सां कृ ितकसमी ाकोनह देखागया।इतनी यं यरचनाएं यायंहू ीआगय ! बकौलमिु बोधकिव/लेखककाकामसां कृ ितकसमी ाकाहै।अवधीकिवरमईकाकाजीनेअपनीकिवताओमं संगसंगपरअपनीबातकहीहै, लखनऊमसां कृ ितकदायक उपे ाकाभावदेखकर! यं यकाकाक शैलीहै, परउनकाकायसां कृ ितकसमी ाकाहीहै।उ ह नेदख े ाथािकओसकोनाजक ु बरसातकहलोगछातालगातेथे।इसीकोल य करतेहएउनक अवधीगजलक दोपंि यांह… ै नाजक ु सहरमानाजक ु हरबात ैरहीहै! अबलखनऊमानाजक ु बरसात ैरहीहै! (अथके िलए : अवधीमसबं धं सचू क ‘मा’ का योगहोताहै, जोखड़ीबोली-िहदं ीम ‘म’ है।) इसके अित र एककिवतामकाकाजीनेतोिव तारमलखनौ वाक चरकोतार-तारकरके िदखायाहै।क चरके िविश तौर -तरीके मढलेनगरऔरनाग रक परउनक यहकिवतागौरतलबहै… ईआह प कालखनौ वा कहचीजके दनू ेदाम, बातबातमाकरसलाम, चीकटतिकयाचटखिलहाफ, घरमागदं बे ाहरसाफ, बड़ातक लफ ु कै के खायं , याककौ कास रदांय, नाजक ु देह िसरपरप ला, आिं खनसरु माअगं ु रनछ ला, यालिनतबैठकुवाखेल, आपआपमाछोड़रे ल, िततरु लड़ावकबौबटेर, कब कबतु रनके हफे र, ितउ-ितउहारउड़ैकनकौ वा, जािनिल ोप कालखनौ वा! 168 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) (अथके िलए : प ला – टोपी / बैठकुवाखेल कमरे केभीतरखेलनेवालेखल े जैसेतास-शतरंजआिदिजसकायहां यजं कसक ं े तसमयके काटनेऔरकम-हीनतासेह।ै कनकौ वा – पतंग)

– /

परंतऐु सीआलोचनाओकं ोसमी ाके िलएज रीसमझाहीनह गया।यहमानागयािकयहसबबात ा य-दोषक पैदावारह। यहआजतकनह समझमआयािकमु यधाराके खास डक रचनाओकं ोही ‘रचना’ य मानाजाताहैजबउससेकम भावकारीबात ा य-िगरामहोनेपरउनकोमू याक ं नके यो य य नह समझाजाता! लखनऊके ऐसेहीमाहौलपरलखनऊसे 25-30 िकमीके फासलेपरबाराबंक के अवधीकिवमृगेशनेिलखा… जौअइसनटेकिनरालीतौिबसहौ याला- याली, लखनऊसहरमारिहके दइु चारिलखौकौ वाली, सम योमरू खचदं बढ़ु ौनजू गु बदला! तमु करौकिबतईबंदबढ़ु ौनजू गु बदला! इसके बावजदू कभीभीइनआलोचनाओपं रिवचारनह हआ, जबिकसािह य-सं कृ ितकाठे कािलयेवह अपनीगढ़ीहईप रभाषाओमं म तरहा।इसम तीकागौरवगानहआ।िजसइला के म ेमचदं के ‘गोदान’ क सामािजकसरं चनाआजभीमौजदू हो, वहां ‘होरी’ क जबु ानआजभीअपनीपहचानऔरसवाल उपे ामहीहै।उ टेिदखायाऐसेजाताहैिकसबचु त-दु त-चकाचकहै! ऊपरिजनकिवय कािज िकयाहै, येलोगकमोबेशउसीदौरमिलखरहेथे, जबबंबैयािसनेमाआदशऔरक पनाक लभु ाऊछ कलगाकरलखनऊकाइस पमगौरवगानकररहाथा… येलखनऊक सरजम येरंग पकाचमन येह न-ओ-इ ककावतन येतोवहीमकामहै जहाअ ं वधक शामहै जवां-जवाहं स -हस येलखनऊक सरजम ! अबसवालहैिक यारमईकाकाआिदजनभाषाके किवय कािदमागखराबथा, जोलखनऊक शानमगु ताखीकररहेथे? नह भाई, नह ! लखनऊक इसप रणितपरऔर नेभीिलखाहै।जनभाषाएसं हजहोतीह, सीधा-सपाटकहतीह।अबमइससंदभम ानपीठस मानसेस मािनतकंु वरनारायणजीक किवताकाहवालादगंू ा।यादरहे िककंु वरजीपैदाहएफै जाबादम, रहेअिधकांशजीवनलखनऊम, अबिद लीमह।हमउनके संदभमनह कहसकतेिकवेिकसी ा यिगरा-सल ु भदोषके िशकारहयावेलखनऊकोसमझनह र हे।उ हक चरक बखबू ीसमझहै, िकसीहड़बड़ीमनह कहरहेह! एकसोचहै! लखनऊपरउनक ‘लखनऊ’ किवताके अंशदेिखए… 169 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) िकसीनौजवानके जवानतरीक पर यौ रयांचढ़ाये एकटूटीआरामकुस पर अधलेटे अधमरे बढ़ू ेसाखांसताहआलखनऊ। कॉफ -हाउस, हजरतगजं अमीनाबादऔरचौकतक चारतहजीब मबंटाहआलखनऊ। … िकसीमदु ाशानो-शौकतक क सा, िकसीबेवाके स सा, जजरगबंु द के ऊपर अवधक उदासशाम काशािमयानाथामे, िकसीतवाइफक गजलसा हरआनेवालािदनिकसीबीतेहएकल-सा, कमान-कमरनवाबके झक ु े हए शरीफआदाब-सालखनऊ, खडं हर मिसमटतेहएिकसीबेगमके शबाब-सालखनऊ, बारीकमखमलपरकढ़ीहईबारीिकय क तरह इसशहरक कमजोरनफासत, नवाबीजमानेक जनानीअदाओमं िकसीमनचलेको रझानेकेिलए क वािलयांगातीहईनजाकत: िकसीमरीजक तरहनयीिजदं गीके िलएतरसता, सरशारऔरमजाजकालखनऊ, िकसीशौक नऔरहायिकसीबेिनयाजकालखनऊ: यहहैिक ला हमाराऔरआपकालखनऊ। [कंु वरनारायण, सं ह ‘अपनेसामने’ 1979] अतं तःयहीकहगं ािक ‘नयीिजदं गीके िलएतरसतेलखनऊ’ कोसमझनाअ यंतज रीहै।किमय को या लोरीफाईकरना! क चरके नयेढबतराशनेक ज रतहै। मतकरीबनसालभररहाहँलखनऊम।अगरअवधीक बातक ँ तोसंभवहोअवधीबोलनािकसीघरप रवारकासचहो, लेिकनमैनेलखनऊमअवधीक अनपु ि थितदेखीहै।दोपड़ोसीजोअवधीजानतेह, लखनऊमयहभाषाआपसीबात-चीतमनह लाते।यहीवजहहैिकलखनऊम – स ाशि कासुलभक होनेकेबादभी – अवधीभाषाके िवकासके िलयेलोगकभीकतारब नह हये।अवधीके अ ययनकाकोईपीठनह है।वहाँकेिव िव ालय 170 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) मअवधीक यिू नटनह है।भोजपरु ीके आठव अनसु चू ीमलानेक माँगबनारस-गोरखपरु सेउठसकतीहैलेिकनअवधीके आ ठव अनसु चू ीमलानेक माँगलखनऊसेनह उठती।आकाशवाणीनेकबकाहीअलिवदाकहनाशु िकया, इसतरहिकरमईकाकाक अवधीग क धरोहर – सकड़ रे िडयोएकांिकयाँ – आकाशवाणीमबड़ेआरामसेबबादकरडालीगय ।यहसबिदखाताहैिकवहाँिकतनीअवधीहैऔरउसकोलेकरस मानका भाव! इनसबनकारा मकताओकं ोलेकरवहाँकेलोग याकभीआदं ोिलतहये?? यहउनक अवधीक जाग कताकोिदखाताहै।हक कतबताताहै।आजभीवहाँकेलोग मउसभाषाके ितसहज-स मानका भावनह हैजोथोड़ीदरू िकसानो-मजरू क जीवन-भाषाहै, करोड़ क जीवतं भाषाहै।अवधीमहु ावरे आिदतोिद लीमभीबोलेजारहेह, लेिकनइसीसेबातनह बनती! सवालउसपरू ीभाषाका, उसपूरीभािषकअि मताका, उसपरू ीजातीयताका, उसपरू े ामरकाहैिकवहकहाँजारहाहै, िकतनािमटनशीलहै!!

१५िदसंबर२०११ रामिवलासशमाजीकोमलबं ेसमयतकलोकभाषाऔरखासकरअवधीकासमथकमानतारहा।लेिकनउनके ारािलखी ‘िनरालाक सािह यसाधना, भाग -१’ के पेज३९परिलखीइनबात कोपढ़करदेरतकसोचतारहगया :

171 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक)

िनरालाके िनबधं सं ह ‘ बधं ितमा’ के इसअंशमिनरालाके भीिवचारगौरकरनेलायकह।िनरालाके इसिवचारपरशमाजीक टीपभीउतनीहीकािबले-गौरहै।जा िहरहै, दोन चाहरहेहिकमातृभाषाके पमउ रभारतमहरजगहअवधी, भोजपरु ीआिदलोकभाषाएँख मह औरज दीसेिह दीके िलएमैदानखालीकर।अजीबहैयह।िकतनादिु च ापनहै! बीसव सदीके हीदोबड़ेअवधीकिवह, बलभ साददीि त ‘पढ़ीस’ औररमईकाका।पढ़ीसके का यसं ह ‘चक लस’ क भिू मकािनरालानेिलखीथीऔररमईकाकाके का यसं ह ‘बौछार’ क भिू मकारामिवलासशमानेिलखीथी।इससेलगताहैिकयेबड़ेअवधी ेमीरहेह गे।अवधीके भिव यकोलेकरिचंिततऔर िहतआ ु -सेरहेह गे।लेिकनयहाँजैसािवचारइनदोन नेरखेहउससेएकदसू रीहीछिवबनरहीहैइनक । याउससेभिव यमिक सीपढ़ीसयाकाकाके पैदाहोनेक सभं ावनान नह कररहेयेिव ान- य? जबिकअवधीअवधके जनसमाजक िजदं ाभाषाहै।येकैसेअवधीके ेमीह! कहतेहिकअवधीकोलेकररामिवलासजीनेबहतकामिकया।अवधीको े िडटिदलाया।लेिकनयहसमझनेवालीबातहैिक यहसबउ ह नेअवधीके ‘इितहास’ के िलएिकयाहै, निकवतमानऔरभिव यके िलए।औरऐसाकरके ‘िहदं ीजातीयता’ क िनिमितमउ ह नेक ीय थानपरअवधीकोरखा।परइससेअवधीकािकतनाभलाहआ। यायहीअवधीकाभलाहैिकअ वधीअपनेवतमानक समृि औरभिव यक संभावनाओकं ोभल ‘महानव तु’ ू करसं कृ तक तरहइितहासक 172 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) के पमिगनीजाय।इसमअवधीका याभलािकवतमानक िह दीके स ा/शि -संघषमभसमकरदे।अवधीके अतीतको भाषा मकिदखानेसेऔरमहानबतानेसेरामिवलासशमाका ‘आलोचनाकाआयोजन’ भािवतनह होताथाऔरअवधी ेमभीखरु ाकपाजाताथालेिकनअवधीके वतमानकोवेकदािपइस पमसायासनह देख पारहेथेिजससेअवधीभाषाके पमखड़ीबोली-िह दीको ‘हट’ करे ।इसीिलएवेअवधीको ‘बोली’ वाले तरपरदेखतेथेअपनेसमयम, य िकइससेउनक िह दीजातीयताके भिव यकोसिु नि तकरनेममददिमलतीथी। रामिवलासशमालोकभािषय याअविधय के साथचलतेहए-सेिदखतोयहभीदेखनाज रीहैिकवेउसआदमीके जैसेचलते हिजसके कदमतोबेशकआपके साथचलतेहए-सेहलेिकनउसकामहँु औरिनगाहकह औरहोतीहै।वेऐसेहमराहीहिजसक मिं जलवहीनह जोआपक ।

५जनवरी२०१२ इधरिह दीअकादिमक के लोग सेअवधीऔरलोकभाषाकाप रखतेहएमनेदख े ािकहमतक/त यसेउतनानह माराजाता िजतनािकदभं से।इसेमिह दीदभं कहनेलगाहँ। िह दी-दभं सेमरे ाआशय याहै? िह दी/उदभाषाआर ं भमभारतमसंपकभाषाके पम भवु ग क भाषाबनी, ू और तकभीगयी, परहर े क अपनीअलगव वतं भाषारही।आजादीके आदं ोलनम भवु गक संपकभाषाहोनेकेकारणयहभाषा यव त हईय िपअ यभाषाएँभीजागृतऔरकमतरनह रह जैसे१८५७परलोकभाषाओमं लोकगीतिमलगेऔरिह दीमइस पन ह ।उ नीसव सदीके उ रा मग क भाषाके पमयहखड़ीबोलीफै ली।परलोकभाषाएँअपनी-अपनीजमीन परकायमर ह ।बीसव शता दीमिह दीअकादिमक ारापरू े उ र-भारतके िह दी देश मथोपनेक कोिशशइस पमहईिकयेसारी व तं भाषाएँिह दीक ‘बोिलयाँ’ ह।यहएकसां कृ ितकस यनह बि किसयासीआयोजनथा।चँिू कइसीसमयखड़ीबोलीकोरा वादीआधारिमला, उदिवरोधकािह दवू ादीआधारिमला(सरहदपारउदकेू संदभमउदकोगै ू ू र-िह दवू ादीआधार), िह दी देश मपहचानकोलेकरजाग कताके अभावकाआधारिमला, फलतःखड़ीबोलीकाएकसा ा य थािपतहोगया।इससा ा यमआरंभसेही ानक लपेटम ‘पावर-बैलस’ रहाहैइसिलयेएकिक मकाएरोगसआया।अ यभाषाओकं े ितयहएरोगसिदखा/िदखायागयािजसकािवरोधभीहआ, तिमलािदजगह परमख (इसएरोगसकोिहदी-दभं के अतं गतसमिझये) ु र पम। इधरिह दीअकादिमक नेिह दीकोलेकरसव-समेटीफतवेिदये, िजसमकईउ रभारतीय वतं लोकभाषाओकं ोिह दीक ‘बोिलयाँ’ कहकरउनके वाभािवकिवकासकागलाघोटना मख ु रहा।इसपरू े थल ू औरसू म, अकादिमकऔरगैर-अकादिमकआयोजनमजोमानिसकतारही, उसीकोमिह दी-दभं कहरहाहँ। इसिवषयपरिह दीिवभागके लोग सेबातचीतके दौरानिह दी-दभं मरामिवलासशमाक िह दी-जातीयताक िसयासीअव धारणाक घनघोरतरफदारीहोतीहै।अ यमु पररामिवलासशमाकोभलेकोईग रयायेलेिकनइसमु पे रशमाजीक पजू ाहो तीरहीहै।इससेइतरि यसन, सनु ीितकुमारचाटु या, उदयनारायणितवारी, राहलजी, 173 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) िशवदानिसहं चौहान(िह दीसािह यके अ सीवष) आिदक अवधारणा-धाराकोतािककहोनेकेबादभीउपेि त, अलि तऔरथथू ू-कृ तिकयाजाताहै, य िकइनलोग क बात मयहकहागयाहैिकिह दीिजनभाषाओकं ोअपनीखेतीकहकर ‘बोिलयाँ’ बतातीहैवसे ब वतं भाषाएँह।इससेउलटरामिवलासशमाक अवधारणािह दी-दभं परसेटबैठतीहैिजसेिह दीिवभागपरी ा-पाठ्य म-चयन-अ यापनआिदसारे प मपजू तारहताहै। रामिवलासजीक िह दीजाितक अवधारणा सी टािलनक जातीयताक अवधारणासेआयािततहै, कुछइसतरहिककोईिकसीकाकुतालेआयेऔरिफरिकसीऔर यि कोपहनायाजाय, जबलगेिककह कह छोटा-बड़ाहोरहाहैतोकभीइधरकचीमारदीजायतोकभीउधरकचीमारदीजाय।गौरतलबहैिकसंपक भाषाके पमिह दीसहजहीबढ़ेतोउसकाभारतमशायदहीकोईिवरोधकरे लेिकनजबवहइसीके िलयेतमामझठू कासहारा लेतीहैतोिवरोधकाआधारबननेलगताहै।िसनेमानेिह दीको वतःफै लाया, उसकाकभीिकसीनेिवरोधनह िकयाउ टेदि णभारतऔरउ रभारतके बहतसारे लोग नेसंपकभाषाके तौरिह दी हणभी िकया।परजबयहीिह दीभाषायीवरीयता-वच वके दावेकेसाथआनेलगे, िह दी-दभं के साथआनेलगे, तबिवरोधहोनेलगताहै।स चाईभीिह दीवाल को वीकारनह होती, आिखरहािलयागजु रातीिकसान के ारािह दीनसमझपानाऔरसं ेषणके िलहाजसेगजु रातकोट ारा ‘अजानी’ भाषाकहाजानातोएकस चाईहीहै। बहरहालिह दीनेजबउ रभारतक अवधी, भोजपरु ीजैसीतमामलोकभाषाओकं ोअपनीखेतीकहातोज रीथािक १- लोकभाषाक रचनाशीलताकोहतो सािहतिकयाजाय, २- िह दीआनेकेबादक लोकभाषाओकं रचनाशीलताकोहािसयेपरडालिदया, ३- स मान/परु कारआिदसेलोकभाषाओकं ो यानदेकरछाँटाजाय, ४- मातृभाषाके तौरपरिह दीको ो सािहतिकयाजाय, ५- लोकभाषाओकं ोमातृभाषाके पमबढ़नेक ि थितपरउसेअप रमािजत-अशु -गँवारआिदकाटैगिदयाजाय. ऐसेकाय कोअजं ामतकपहँचातेहएिह दी-दभं देखनेलायकहोताहै!

१३जून२०१२ आजपरू ािदनअजीबखामोस-धसू रउदासीमाबीता. लेटसेउठे नऔक पटू रखोलेनतौफे बिु कयनसेजानकारीपायेनिकगजलगायक कै िहमालयमेहदीहसनसािहबयिहसंसार मानायरिहगे. मनपैदःु खकै बोझउठायेिदनकै सु आतभै. कियउसालसेसािहबबीमारचलतरहेिफरअतं माजाइके कराचीके आगाखानअ पतालमादमतोड़िदिहन. आवाजक दिु नयाकै भगवानचलागा. असगायकनके हअबह लेभानआगेहोये. 174 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) जइसेताजमहलदइु नायहोइसकते, चँदरमादइु नायहोइसकते, मिलकाये-गजल(बेगमअ तरसािहबा) दइु नायहोइसकत , वइसनैसाहसं ाहे-गजलदइु नायहोइसकते! य कै हऔय कै रिहह – मेहदीहसनसािहब! यनक आवाजकजेयकदाँयसिु निलिहसऊहमेसाके िलएमरु ीदहोइगा. जे यारके िदननमारहाऊइन सरु नके सायेमाहसीनराितकािटस. जेिबछोहमारहाऊइनसरु नके सहारे करे जमे ालािगकटारकै दरदसिहडा रस. जेना टाि जकभाऊइनसरु नके माहौलमाअपनेक पना-लोकमास थायिलिहस. मेहदीसािहबअपनेबेिमसालकुदरतीफनके ज रयेजानेकेतनेलोगनकै िहरदयछुइन, ढाढसबधं ाइन. मनईभलेचलागामल परु असर! ु ाईआवाजहमेसारहे, जइसेफूलके मरे केबादउसगु धं नायमरत! नाि तयेषांयशःकायेजरामरणजं भयम!् बरबसऊपिहलािदनयादआवतअहैजबयिहआवाजसेपिहलीमल ु ाक़ातभैरही. घामरहाऔहमकियउकोससैिकलीसेपारकै के यकसरकारीब बापैपानीिपयैआवारहेन. पानीिपयेनऔबैिठके स थायलागेन. निगचवैएकबाजाबाजतरहाजेिहपैअसगौनईआवतरही – “सामनेआके तझु कोपक ु ारानह / तेरी सवाईमझु कोगंवारानह ..”. सनु तै-खनगीतिदलो-िदमागमाबैिठगा. तबलेहमनाहीजानतरहेनिकमेहदीहसननावकै के हगायकहव. ईगीतभल ु ायनायसके न, हाँजबघरछोड़के पढ़ाईबदेिद लीआयेनतौजानेनिकजौनगानाविहदपु ह रयामाजड़ु वायेरहाविहकै गायकमेहदीहसनसा िहबह. िहयाँआयेपैयनहीकै गाईऔरउगीत-गजलसनु ेनऔयिहअफ़सोसपैिसरधनु ेनिकअबतकहमयिहगायकसेअनजानकाहेर हेन. आवाजसेजािनगारहेनिक ‘सामनेआके तझु कोपक ु ारानह ’ मेहदीसाहबगाइनहलेिकनविहिदनके बादतबतकिफरकहसं नु ैकनाहीपाइसकारहेन. अउरतमामगानासनु ेनलेिकनईगानासनु ैकै यासबनीरिहगैरही. कुछकै िसटदक ू े नमल ु ाईगीतनाहीपाइसके न. ु ाननपैपछ एकिदनिबनमागं ेईगीतसनु ैकैसौभा यिमलगा. कुछसालपिहले ‘वड पेससैटेलाईटरे िडयो’ कै कने सनिलहेरहेन, जेिहपैयकिदनअचानकईगानासुनैकिमिलगवा. भल ू ीिबसरीलाइननकतरु ं तनोटिकहेन. विहके बादसौभा यसेचल-त बीरके साथमेहदीसािहबकईगीतगावत यू-ट्यबू पैपायेन. अबकारहािफर! ‘मिु दतछुिधतजनपु ाइसनु ाज’ू ! तबसेजानेकेतनीदाँयसनु ेन! आजतकहमिजनदइु गजलगायकनकसबसे यादापसंदक रतहैविहमाएकहसनसािहबहऔदसु रक बेगमअ तरसािह बा. गजलजौनलेखनक दिु नयामाचलतरहीवािहकामौिसक क दिु नयाकै अमानतबनावेमाइनदइु गायकनकै अिमट योगदान है. मेहदीहसनसाहबसेपिहलेगजलनका लािसक पैगावैकैढराउ तादबरकतअलीऔबेगमअ तरसािहबाके ज रयेिनकर चक यिहढराकपोढ़करै कैकामहसनसािहबिकिहन. ु ारहा. कौनौदइु रायनाहीनिकयिहकामकपरू ीसफलताके साथमेहदीसाहबअजं ामतकपहचं ाइनऔआवैवालेसमयमागजलगाय कनके ताईचनु ौतीरिखगयेिकहोइसकै तौयिहढराकाआगेबढ़ाओ, िनखारौ! मल ु ा, यहौसचहैिकअबनतौके हबेगमअ तरहोइपाये, नमेहदीहसन! हजारसालनमाअसके हयकपैदाहअतहैअउरअपनेजायेकेसाथदिु नयाकहसरतभरीआख ं नके साथछोिडजातहै. 175 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) मेहदीसािहबभारतमा१९२७कपैदाभारहे. राज थानमा. १९४७मादेसकै बटवाराभाअउरमेहदीसािहबपािक तानचलागये. इतनीदरू िकजानेकेतनेलोगनकै उनकादेखक ै ै हलासकबौनपरू ीहोइसकै . असनहअततौहमहँअबतकमेहदीसािहबकै दरसनिकहेहोइत! लेिकनचलौ, सरु क, आवाजक, हवाकभलाकौनसरहदबांिटसकतहै! हमनाचीजहजरू क सानमाजादाकावकिहनसिकतहै, बसयहीिकसािहबकज नतिमलै! हमारसरधांजिलपहचं ै! (३१अ टूबर२०१६) अवधके यादातरपाखडं ीबाभनरामच रतमानसऔरहनुमानचालीसातोअवधीभाषामरटगे।घोखगे।लाउड पीकरसेका न-फोड़अखडं रमायनमचाएँगे।लेिकनउसीभाषामबोलनेवालीअपनीनयीब चा-पीढ़ीकोडाटगेिकध , देहातीनबोल।गंवा नबोल।अरे , इसक जबानकोठीककरो।जबानठीककरनेकामतलब, खड़ीबोलीक िह दीबोलनाऔरवहभीकुछअं ेज़ीके श द क िम ीडलीके साथ।इनपाखिं डय काबसचलेतोयेलॊडमैका लेकोक सेखोदलाएँ।संजीवनीमतं रसेउसमदु म ाणफँू के ।िफरउनसेअजकरिकमेरेमािलक, मेरेनौिनहाल के अदं रसीधेअं ेजीपेलद।इसपरभीइनमसेकुछचनु े-िचरकुटकभी-कभीदेश ेम/रा ीयता/सं कृ ित/स य ता.. परअपानवायछ ु ोड़नेलगतेह।अपनसेतोबरदासनह होता।थू! आक् थ!ू ! (२नवंबर२०१६) अवधीक बातकरताहँलेिकनइसएफ़.बी. ोफाइलसेअवधी “ही” म य नह िलखता.... अलग-अलगभाषाभािषय के बीचएक ‘संपकभाषा’ क ज रतहोतीहै।िह दीमेरीइसीज रतकोपरू ाकरतीहै।मेरीमातृभाषायीज रतअवधीसेपरू ीहोतीहै।कईिम नेपछ ू ािक ‘अवधी’ क बातआपकरतेहतोअवधीमही य नह िलखते, इसएफ़.बी. ोफाइलसे।मेराकहनाहैिकअवधीभीतोिलखताहँ, िलखताहीरहाहँ, िलखगंू ाभी; लेिकनयहाँिसफ़अवधीलोगहीमेरीिम सचू ीमनह ह।उनसबसेसंपक-संवाद अवधीहीके मा यमसेनह होसकता।यह िह दीक ज रतहै। अवधीमिलखताहँ।वेबसाइटइसीकोिशशसेचालहू ।ै अविधय के बीचमअवधीहीबोलताहँ।यहीचाहताहँउधरसेभी।योज नाएँऔरह! समय, साधनदेखतेहएउनपरकामक ँ गा। यहभीसमझनेक बातहैिकअवधीक बातमिह दीमा यमसेकरताहँ, गैर-अवधी े तकपहँचाताहँतोयहभीएकसकारा मकबातहै।दसू रीभाषाके सहयोगसेअपनीभाषाकोमजबतू करनाभीए कतरीकाहै।जैसे वाधीनताआदं ोलनके दौरानिह दीके िहतक कईबातअं ेजीभाषामक गय ।कोिशशिनहायतबेमानीतो नह थी। अपनेघरमहीरहँ, अपनेइलाके मही, तोअवधी ‘ही’ सेकामपरू ाहोजाएगा।लेिकनआजके समयमयहसंभवनह ।िद लीमहँ।िह दीकाटीचरहँ।बहत से, जोअवधीनह ह, िमलताहँ।कईजगहमजबरू न ‘अं ेजी’ काभीइ तेमालकरनापड़ताहै।मझु ये हउतनाअनिु चतनह लगतािजतनाअपनेघर, 176 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अपनेइलाके औरअपनेभाषाभािषय के बीचअवधीनबोलना/िलखना/पढ़ना।यहअिधकदख ु दहै।यहाँसेअवधीकागायब होना, बहतबड़ीसं यामअविधय ाराअपनीमातृभाषाके पमहीअवधीकोनपहचाननाअिधकिच ताकािवषयहै।यहिच ता िकसीभीभाषाम य होअवधी/अविधय काभलाकरे गी। िफरभीिज ह ने ीितवशअवधी “ही” के िलएकहा, उनकाध यवाद! (१३नवंबर२०१६) भोजपरु ीकोआठव अनसु चू ीमशािमलकरनेकेिलएगृहमं ीनेआ ासनिदयाहै।लोकभाषाके इसअदनेसमथकक तरफसे भोजपु रय के भाषायीसंघषकोमबु ारकबाद! उ मीदहैिकयहआ ासनभोजपरु ीके स मानक वा तिवकताबनेगी।अविधय कोभोजपु रय औरमैिथिलय सेसीखनेक ज रतहै! भलेहीआपकाका येितहासबहतअ छाहोलेिकनवतमानक लड़ाईआपकोलड़नीहोगी! मगु ालतेमनरिहये।

(१७नवंबर२०१६) भोजपरु ीकोआठव अनसु चू ीमशािमलिकयेजानेकामसमथकहँ।िब कुलमानताहँिकभोजपरु ी ‘बोली’ नह भाषाहै।इस ि सेउनतमामआदरणीय सेमरे ािवन मतभेदहैजोइसेिह दीिवरोधीगितिविधमानतेह।उनके ऐसामानने कोमलोकभाषािवरोधीमानताहँ। िह दीइसदेशक यापकसंपकभाषाहै; इसी पममिह दीसे यारकरताहँ।लेिकनइसझठू ममेरािव ासनह हैिकिह दीमेरीमातृभाषाहै।इसझठू कोनबोलतेहएभीह मसंपकभाषािह दीसे यारकरसकतेह।मझु पे णू िव ासहैिकमेरामातृभाषा ेमिह दीिवरोधीनह ह। िह दीकासबसेबड़ानक ु सानइ ह फतवेबाज नेिकयाहैजोदसू रे केऊपरिह दीिवरोधकाआरोपमढ़देतेह।िह दीजहाँसेकम जोरहई, इसेिजतनीज दीईमानदारीसेसमझगे, िह दीऔरआपदोन के िलएबेहतरहोगा। जोमानताहँउसेइस पमशेयरिकयाथा, िफरशेयरकररहाहँ.. ॥िह दीको, िह दीवाल ने॥ बलभरलटू ाऔरखसोटा, िह दीकोिह दीवाल ने। पठलाया-िसखलायाझठू ा, िह दीकोिह दीवाल ने। एक याकरणदोदोभाषा गदर-काटचलगयातमाशा उदकहकरख दु हीकूटा, ू िह दीकोिह दीवाल ने। 177 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृ ित अंतररा ीय पि का/Jankriti का Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) बरनाकुलर-बवालमचाया सबकोअपनामालबताया दि खनतकबनवायास टा िह दीकोिह दीवाल ने। (१८नवबं र२०१६) कुछअवधीवालेअबभोजपरु ीके आठव अनसु चू ीमशािमलिकएजानेक सभं ावनाकोदेखतेहएयहबोलनेलगेहिकआठ व अननसु चू ीक यव थाहीख मकरदीजाय।ऐसीबातमख ू तापणू ह।आपहमेशाअपनीइसपड़ोसीभाषायानीभोजपरु ीकोऐ ली-गैगैलीटाइपल वेजके पमदेखतेरहे।अबसं याबलके ज रयेलोकतािं कआधारपरबजरहेभोजपरु ीके डंकेक आवाज आपकोअखररहीहै।आपनखदु अपनीमातृभाषाको यारकरनाजानतेहऔरनहीपड़ोसीके मातृभाषायी ेमकोबरदासकर पातेह। ---जैसेिह दनू ेतािगरीिच लातीहिह दधू मखतरे म, जैसेमिु लमनेतािगरीिच लातीहैइसलामखतरे म; वैसेहीिह दीभाषाक नेतािगरीिच लातीहैिकिह दीखतरे म। कोईखतरानह संपकभाषािह दीको।खासकरलोकभाषाओसं े।भोजपरु ीसे। ---िकतनीसािजशहैभाई! िह दीवाले वालेबोलतेहिकभोजपरु ीके इसआदं ोलनमसा ा यवादीसािजशहै! बाजारक सािजशहै! पँजू ीवादक सािजशहै! अं ेजीक सािजशहै! एकहीसािजशबचीलगतीहै.. वहहै, िकआपबोलदेविक ‘आइिससक आइिससक भीसािजशहै’ :) (२३नवंबर२०१६) िह दीदक ‘अलगज कासौदा’ ु ानम बेचनेवालेकुछबिु -बबरलोगलोकभाषाओ कभाषाओकं ोदबानेकेहीनकाममअकादिमकशरू वीरतािदखानेलगेह।लोकभाषाओ ं को ‘बोिलयां’ कहकरअपनीपँजू ीमदजकरानेयाअपनामालबतानेकाधतू अिभयानिह दीबीरवष सेकरतेआरहेह।लोकभाषाओकं े जीव टिसपािहय ! आपकोहतो सािहतहोनेक ज़राभीज रतनह ।अपनीकरनीयेख़दु जायगे। यापताइसबदिमजाजअका यापताइसबदिमजाजअकादिमक क यहअं ितमभभकहो! माननापड़ेगािकभोजपरु ीके हालिफलहालके बने ‘पि लक फ यर’ नेइ हबौखलाके रखिदयाहै।मजेदारबदहवासीछायीहै। “यी ‘बले सर’ भोजपरु ीझंडागाड़ीिमतवा ागाड़ीिमतवा”! (२७नवंबर२०१६) नीमर-ददबू रसेिभड़करहमबड़ेलड़ैयाबननेकादभं पालेरखतेह।यहबातिह दीबीर परलागहू ोतीहै।सोरहोआने।येिह दीर ाम भोजपरु ी, 178 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 201 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अवधीआिदसेिभड़तेह।इनलोकभाषाओकं ोघसु मड़ु देतेह।िवजेताकादभं जीलेतेह।लेिकनजबसामनेअं ेजीआतीहैतोब गलेझाक ं नेलगतेह।भीगीिबलारबनजातेह।अपनेनौिनहाल कोअं ेजीमाईक सेवा-खाितरमलगादेतेह।उन कूल मपढ़ा तेहजहाँिह दीबोलनेपरफाइनहोताहै, तबहािह दी, हािह दीकािवलापखरगोशक स गक तरहउिछ नहोजाताहै। य भाई? अपनेब च कोवहाँस पतेहजहाँमां-बापकाअं ेजीमइटं र यिू दयाजानाज रीहोताहै, नह तोइनके साबेहजादे कूलमभत हीनह ।तबिह दी-चेतनाकहाँभसमहोजातीहैभाई? इससबके िखलाफिह दीबीर नेकभीआदं ोलनिकया? नह ना! सारीलड़ाईइ ह लोकभाषाओकं ोपीट-पीटकरजीतनीहै याजी? भोजपरु ीयाकोईभीमातृभाषा ेमीआपके इस ‘दोहरे च र ’ कािशकारनह होनाचाहता।उसेचािहएआठव अनसु चू ी।कम-से-कमअपनी ‘भाषायी’ पहचानके िलए।अलगअि त वके अिभ ानके िलए।औरजािहरसीबातहै; आपके झांसेसेबचनेकेिलएभी। (२८नवबं र२०१६) ‘िह दीक बोिलयाँ’ कहनेवाल ने याकभीसोचाहोगा..! बातपी.एम. क महानताक नह , कदािचत् यौपारी-िववशताक हो..िफरभी. बीसव सदीके शु आतीदशकसेबनरहेिह दीके अकादिमकिफिटंगने याकभीसोचाहोगािकइ क सव सदीमकुछइसतर हसेभीहोगा! आिखर या? यहीिकभारतसंघके एकगजु राती धानमं ीिह दीवीर ाराबनायी/बतायी “बोलीभोजपरु ी” के इलाके मजाकरकुशीनगरभिू मपरभाषणकाशु आतीढाई-तीनिमनटभोजपरु ीमबोलगे! बोलीिगरीकािह दी-पाखडं ऐसेही, अनायास ही, टूटताजायेगा। भोजपरु ीके उपेि त-से ‘पि लक फ यर’ क यहमह वपणू उपलि धहीतोहै।यहउपलि धअवधीके पासतोिफलहालनह ह।अबअवधीवालेआपरहइसगमु ानमआ पसािह -फािह मबड़ेतीसमारखाहं ! वतमानक इनउपलि धय मआपमील पीछे हभोजपरु ीसे।कुफुतमकाहेग रयातेहभोजपरु ीके आठव अनसु चू ीमजानेकेदा वेको! उ हपरू ाहकहै।

उप यास अंश िफरोजीआंिधयाँ : ह न तब सुम ‘िनहाँ’ 179 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) १ गांवनरै नापरु ।भारतनेपालक सीमासेजड़ु ाहआअ यंतिपछड़ाऔरिवप न ाम।सामनेबहतीिवशालरा ी।जैसेवहां िवकासके सारे रा तेरा ीनेहीरोकरखेह ।इसके परू बमलौकाही ामिवकासपि ममसने रयाऔरउ रमपहाड़ि थतह।दि णमभारतवष।यहगांवभारतवनेपालकोआपसमजोड़ताहै।इसकाआधाभागभारतमतथाशेषआधाभागनेपालमि थतहै। अथातयेगािवसाभारतवनेपालकोआपसजोड़ताहै।इसक जनसं यालगभग४०हजारहै।िपछड़ाहोनेकेकारणिश ाआ िदका तरकाफ िगराहआहै। वा यसंबंधीभीकोई यव थानह है।छोटे-छोटेकाम के िलएशहरकामहँु देखनापड़ताहै।श हरजानेकेिलएरा ीपारकरनापड़ताहैबा रशवबाढ़के िदन मयेभीसंभवनह होता।लोग कामु य यवसायलकड़ीकाटकर बेचनाहै।वेभोरहीलकिडया ं ाटनेिनकलजातेहऔरदोपहरतकिफरउ हेबेचनेकेिलएरा ीपारशहरिनकलिनकलजातेह। ़ क कुछलोगका तकार के यहांखेत ममजदरू ीभीकरनेजातेह।मगरवहांका तकारभीिकतनेह।बसिगनतीके ।कुछभीखमांगने भीशहरजातेह। मधू ीवहांकेसरकारी कूलमए वाइटं करभेजीगईअ यािपकाहै।मधयू हांतीनसालसेिनयु हैिकंतिु श ाके नामपरव ह ामकोकुछनादेसक ।कारण, वेगांवके लोगपढ़ाईम िचरखतेहीनह ।िफरनाउनके पासपाठ्यपु तके हनापया संसाधन।पा रवा रकि थितअ यंतशोच नीयहोनेकेकारण ामीणब च कोपढ़ानेकेबजायउ हछोटे-छोटेकाम मलगादेतेह।हालांिकउसनेकाफ यासिकया।गांव वाल सेभीआ हिकयािकवेअपनेब च को कूलभेज।िकंतक ु ोईअसरनह हआ।अतं तःउसनेभी यासकरनाछोड़िदया। िव ालयआतीऔरड्यटू ीिनभाके चलतीहोतीहै। रा ीके समीपहीछोरपरमधू ीकािनवासहै।वहदोकमर काभाड़ेकामकानलेकररहतीहै।कमर सेलगाहआचौड़ासाबराम दाहैजहांवहभरसक य नकरब च कोबल ु ातीहैबिु नयादीतालीमदेनेकेिलए।हालांिकब चेकमहीआतेहयािफरनह आ ते।गावं मथा जनजाितके लोगअिधकसं यामिनवासकरतेह।कुछदसू रीजाितयावं कुछअ पसं यकमसु लमानभीह। लिलतएकअसतं ु औरअवसािदतनवयवु कहै।उसे ामक एक-एकईटसे ं िशकायतहै।सारा ामहीअिशि त यंहू ,ै शािपत यंहू ,ै पढ़नेक लालसाहोतेहएभीवहबड़ीमिु कलसेन व तकहीपढ़सका।अबतो ामम कूलहैभी, तबतोउसेरा ीपारकरके पढ़ाईकरनेजानापड़ताथा।एकरोजसंझाको कूलसेआयातो यादेखताहैिकघरमपरू ागांवजमाहै। भीतरगयातोहाथपांवसे ाणहीिनकलगएजैसे।िपताजमीनपेमटमैलीचादरमिलपटेपड़ेथे।पताचला, चलबसे।अ मानेकहा ‘‘अबजगं लतमु जाओगे।‘‘ कूलबंद।दसू रे िदनसेवहकु हाड़ीस भालेजगं लकोिनकलपड़ा।एकबारिफरजगं लक लक िडया ु वायाहै।दसू रे हीिदनना ़ ंउसकावउसके प रवारकापेटपालनेलग ।एकिदनसनु नेमआयािकसरकारनेगांवम कूलखल गाकरके वहअपनेचार भाईबहन कादािखलावहांकरवाआया।एकिदनजगं लमहीलकडीकाटतेकाटतेजोधाचाचीनेउला हाथा‘‘काहेरेलिलतवा, ततू अबसारे छुटक ननकाडागटर, मा टरबनाएके छोड़ी ‘‘ ‘‘जऊनहोईजायचाचीवहायबहतहय।िचिठयातबांिचनलहयं भला‘‘ ‘‘हांहक ं ाहैनाह ‘‘ ’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’ संझाबातीकरके हमेशाक तरहलिलत ांि टरलेकरबाहरबैठगया।कुछभीहोवहशामक खबरसनु नाकभीनह भल ू ता।यही 180 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) नह वहसमाचारसनु करलोग मखासखासखबरबतानाभीनह भल ू ता।उसिदनजोसमाचार सा रतहआउसेसनु करवह व यगं दगदहोगया‘‘सनु ाहोताया, नेपालसरकारक नईघोषणा।िव ालयमांबालक-बािलकनकातालीमके साथे-साथेकपड़ा, कापीकलम, िकताबअऊरयाक-याकछगड़ीउिदहाजाई।हयनामजेदारखबर।‘‘ हतबिढयाबहतबि ढया।‘‘ ़ ़ जैसेतैसेरातकटीसबु हहीलिलतिव ालयपहँचाऔरहेडमा टरके सामनेजाखड़ाहआ‘‘ मा टरजी, सरकार कूलमब चेनख ीकपड़ा, कापी, िकताब, कलमअउरयाक-याकछगड़ीदेकघोषड़ािकिहसहय...कबलेिमली ?‘‘ ‘‘ईलेव...खबरसिु नननाह िकचलैआएमहंु उठाए...अरे जबबांटीतबबांटी।सरकारीकामआए..सालछःमहीनातलािगन जाई...अभीतसरकारबसिनणयलीनहै।सरकारीकाममईहांटैमलागतहयभैया।. अभैकागजसरकारीअफसरनके लगेहोत-होतहमलोनके ◌ेपासअईहय।.तबकहपं हचं ीतल ू ोनतक।तिनधैयराखौ।तलेब चाव चाबढ़ाव कुिलयम‘‘ ‘‘मनैआईउ...‘‘ ‘‘ अबसरकारभेजीतज रआईका‘‘ ि लतखश ु ीसेझमू ताहआलौटा-‘‘ अबगं वमिस छाज रफईली...‘‘ औरउसनेपरू े गांवमखबरफै लादी।लोग सेबढ़च ढ़कर कूलभरनेक अपीलक ।दसू रे हीिदनसे कूलमब च कामेलालगगया।हेडमा टरसाहबजब कूलपहचं ेतोयहमजं र देखकरदगं रहगए। ‘‘ काबातहयभ या... सभैलोनिहयं ांकईसै...?‘‘ ‘‘मा टरजीहमसबैअपनब चनकयदािखलाकरावयलायहन...‘‘ ‘‘....बहतनीके ...बहतनीके ...िव ालयकै तभागजािगगए..नाह तहमलोनतबल ु ायबल ु ायहयरानहोईगएनएकौब चा नायआवाचलौदरव जाखोिलतहय ‘‘ अभीवहतालेकेपेटमचाभीघमु ाहीरहेथेिकसहअ यािपकामधू ीआगई।उं हपताचलचक ु ाथािकगांवमिश ाक लहर िकसनेदौड़ाईहै।यहभीपताथािकयेसबभितयांपढ़नेकेिलएनह बि कअ यलाभकमानेकेिलएहोरह थ ।िफरभीमनहीमन गदगदहोतेहएलिलतकोशाबासीदेडाली।उसिदन, िदनभरऔरिफरअगलेस ाहतकिसफदािखलेहीिलएगए।िकंतसु म यावही, कापीिकताब, कलमथैलेआिदनदारद।आिखरएकिदनमा टरजीनेसमझाया‘‘...ब चालोन, मनैजबलेसरकारीपईसानायआवतहैतल ू ोनअपनैयाक-याकपु तकलैआओ! पढ़ाईकानक ु सानतोनायहोय....‘‘ ब च नेघरपेजाकरकहाभीपरबातअिभभावक के िसरके उपरसेगजु रगई।एकिदनजगं लमहीचलतेचलतेखरै ातीनेलिलत सेपछ ू ा‘‘काहेलिलतभ या, तसू हीखबरसनु ैरहाकाबाजामां?‘‘ ‘‘....हेदाई.., स चैसनु ारहा, माईकसम।हेडमा टरौजीकामालूमहयईबितया‘‘ ‘‘तअभैतककउनवमददआईनाह ...ब चनका कूलजाततचारमहीनाहोईगवा..‘‘ ‘‘हांईतहय‘‘ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ 181 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ’’’’’’’’’’ जबसेसरकारनेनयाएजडापासिकयाहैहािकम क खश ु ीकािठकानानह है।बसवेज दसेज दअपने-अपने े के पैकेजपा सकरवानेमलगेह। येक े येकगा.िव.स।के िलए१०से२०करोड़तकके ०आवंिटतिकएगएह।िजनम ामो मख ु स भीकाय म परपैसेखचकरनेह।उसका३० ितशतिव ालय के िवकासतथानवीनीकरणमखचकरनाहै।सबक एक याप क परे खाबनाईगईहै।िकंतछ ु ु टभै य कोतोअपनीटटगमकरनेक ज दीहै। धानअ य क बाछ ं िखलीहसोअलग।आ िखरसरकारीपैसाआएगातोउनके खातेमही।भलािक ाखचकरगे।य िपगांव क सम याकापारावारनह १-जातीयभेदभाव २-जगं ल मपेड़ क कटान ३-राजनीितकदल क घसु पैठ ४-जजरिव ालयविव ालय यव था ५-बाढ़सम या ६-िनधनता ७-बेरोजगारी ८-अिश ा ९-मौसमीबीमा रय का कोप १०-आपसी ११-थानाअदालतक सम या १२-घरे लूिहसं ा ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ स समा होते-होतेहािकम और धाना य के खातेसरकारीपैस सेभरगए।अलब ाबीसकरोड़िघसतेिघसते५क रोडहीरहगया।इसकाअसरनरै नापरु परभीपड़ा। ाम धाना य ने ामो थानके बजाएअपनाउ थानकरनाशु करिदया। गांवके उ रमपड़ेल बेचौड़े लॉटपरउसक कोठीक न वपड़गईऔरकामशु होगया।जमीदारानाऐश।सरकारीअफसर त कअपनीपैठबनाईऔरआम वाल क आएिदनदावतहोनेलगी।यहीनह जब-तबआम के आदमीउसके िवशालबरामदेम ताशप ाखेलतेनजरआजाते।एकिदनहेडमा टरजीको धानअ य नेबल ु वाभेजा।वहआए। ‘‘जीहजरू ...कासेवा‘‘ ‘‘अरे मा टरजीसेवातहमकाआपक करै कचाही।अ ाबड़ाकामकरतहव।िनर रनकापढ़ायकयइसं ानबनावतहव।सनु ाह यगवं मिस ाक ािं तआएगएहै।सगरागं व‘कब चापढ़ैआवतहयं ....‘‘ ‘‘...उसबैपढ़ैनायआवतहयं हजरू ।जउनैसरकारघ षणािकिहसरहावहैकफायदाउठावैकच करमांआवतहयं ।कासरकार ब चनकाकापीिकताबकपड़ाकलमऔछगड़ी ाकघोषणािकिहसरहा।‘‘ ‘‘....अ छाअ छा...चलौहोईहै .....ईलेवमा टरजीपचासहजारके रचेकओजउनैकरावेकहोय कूलवमकरवाएदेव...‘ ‘ ‘‘पचासहजारमा ..हमसमझैननाह धानजी, अतनेपईसमिव ालयके रनवीनीकरण।औउब चनके रकापीिकताब, कपड़ाअउछगड़ीजउनदेकहय...‘‘ ‘‘उक िचंतानाकरौिव ालयखबू रंगरोगनकरवायदेव।बिकयाबालकबािलकनकै नावकािटकयभगायदेव।ईसबक ड़ाम कोड़ाकापिढबा..‘‘ ़ ‘‘ अ य महोदय, बड़ाअनथहोईजाई....लिलतवाकतजनतयहव...हगं ामाखड़ाकियदेयी‘‘ ‘‘तमु हगं ु जी..., काकईलीससु राहा.ं ..काकईली...अगरअईसनक रामकोरनसेभयखाईतहोईचुकाकाम..?‘‘ 182 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) मा टरजीटुकुरटुकुरचेकदेखतेरहेिफरलौटपड़े।सीधेमधू ीके वाटरपरपहचं े।वहच क ‘‘अरे मा टरजी......सबठीकतोहैना, कै सेआनाहआ?‘‘ मा टरजीिनढालसेपलंगपरबैठगएऔरचेकिनकालकरउसक तरफबढ़ािदया‘‘ ठीककहाबं िहनी, ईदेखौ, ईदेखौपचासहजारके रचेकिदिहसहयरामसरन...कहतहययहीमसाराकाजकरवायदेव...जउनोतामझामकरवावैकहोय। अबइमाहमकाओढ़ीकािबछाई...‘‘ ‘‘आपनेबतायानह िकिव ालयक बाउं ीभीिघरवानीहै।छतभीनह है।एकनलक ज रतहै।बाक जोहमलोगोनेब च क िल टबनाकरभेजीथीिकउनके िलएकापीकलमवपाठ्यपु तके चािहए, उसकाआडरभीतोहमहीदेनाहै। ‘‘ ‘‘ ऊसबयहीमांहय। ‘‘ ‘‘ यहतोअ यायहै, गांववालेभड़कजाएगं े। ‘‘ ‘‘वहयतो, मनैहमकातुकाका...सबजाव धाना य सेआपैिहसाबल ‘‘ ‘‘लोचायिपयोमा टरजी‘‘ -मा टरजीनेचायक यालीथामलीऔरदरू दरू नजरदौड़ातेकह शू यमखोगए।मधू ीभीकुस ख चकरबैठगईऔरचपु चाप चायिसपकरनेलगी।आिखरउसनेहीमौनतोड़ा‘‘ सरकारकुछचाहतीहैहािकमकुछचाहताहै।िकसेनह पतािक येक ामके िलएिकतनािकतनापैसाआयाहै।परसम या वैसेकेवैसेहीबनीहईहै।नािकसान कोराहतिमली, नाबीजबांटेगए, नाखा बंटी, पेड़ क कटानवैसेहीजारीहै। ामीणआजभीबेरोजगारह।िश ाकातोपछ ू ोहीमत।िजतनीर तारसेदािखलेहएथेउतनीर ता रसेिव ालयखालीभीहोजाएगा।‘‘ ‘‘ ईतोबादक बात, ईस चौ ामवासीक रहयं का, कहहं म रनखालनाउधेड़डार।ईसभैकमजगं लीनाय...‘‘ ‘‘...हमारीखाल यंउू धेड़गे, हमने यािकयाहै?’’ ‘‘..िव ालयके माफततउलोनहमकै तक ु ातोजानै....’’ ‘‘..........................‘‘ एकल बीचु पी।मा टरजीनेचायख मिकयाऔरउठगए‘‘ ठीकहयतचिलतहय।पईसावईसािनकारीअउकामसु कराई...ज ाहोईसक क रब...‘‘ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ग◌ ं ावमसनु गनु ीफै लगईथीिकसरकारीपैसाआगयाहै।मगरकहांआया, पतानह । ायः ामवासीलिलतसे करते‘‘मनैसमाचारमाईं नायआवाहयिकपईसवािककयहाथेमआवा ‘‘ ‘‘काहेनाय... ामा य के हाथेम...अउिककै हाथेम....‘‘ लिलतजवाबदेता ‘‘तिनधैयराखौ...सरकारीपईसाआए...‘‘ -इसी ो रीऔरसश ं य-असश ं यमतीनचारमहीनाऔरबीतगए।दसू रास भीएकितहाईबीतगयाथा।िव ालयक बाउ ीजबिघरनेलगीतो ामवािसय कोथेाड़ीआसबंधी।िव ालयक छतपड़गई।रंग-रोगनहोगया।ब च मउ साहके क ले फूटनेलगे।उनमकुछ-कुछखश ु ीक लहरवैसेहीिदखीजैसेअपनाहीघरसजायाजारहाहो।बीच-बीचमगांवक मिहलाएआ ं आकरमधू ीकािसरखातीरहत ‘‘...काहोम टराईन...डेढ़सालहोईगवानाकापीिकताब...नाकपड़ाल ा...सनु ेमआवाहयिकपईसवौवआईगवाहय‘‘ ‘‘....हाआ ं यातोहै।येिव ालयक मर मतउसीपैसेसेतोहोरहीहै। ‘‘अउरब चनका...‘‘ ‘‘वोभीहोगाजराधैयरिखए।‘‘ 183 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) -मधू ीऔरहेडमा टरने ामीणब च कोककहरािसखानेमकोईकोरकसरबाक नह रखीथी।डेढ़साल मब च कोभलेही सरकारीकलमकापीिकताबइ यािदनािमलेह मगरवेजोअपनीतरफसेपाठ्यपु तकलेकरआएथेउसमसेकाफ कुछउ ह िसखािदयागयाथा।एकदसू रे सेपु तकअदला-बदलीकरवाके साझापढ़ाईभीकरवादेते।इससेिजनके पासपाठ्यसाम ीका अभावथावेभीककहरातोसीखहीगएथे।भलेहीवेर तोताही यनू ाह ।धीरे -धीरे दसू रे स क छमाहीपरी ाक तैयारीशु हो गई।टाईम-टेबल ु िलखवािदयागया।लिलतह बएमामल ू जगं लजाता, लकिडया ़ ंकाटकरलाता।रा ीपारशहरजाता।लकिडया ़ ंबेचकरवापसआताऔरिफरगांवमइधर-उधरघमू -घामकरनई-नई खबरसनु ाता।शहरजातातोचारदसू रे गावं क खबरभीबटोरलाता।शहरमस जीवाले, खचेवाले, आिदसेउसक अ छीदआ ु सलामथी।एकिदनबाबूआढ़तीनेउसेबात बात मबताया ‘‘अबतबाबिू सरफखावै-िपएकिचंतारिहगएहय, दईु बेटवारहासरकारखदु यउनके िज मालईिलिहस..‘‘ ‘‘ हांईतौहै, अब ाखौक िे दननमांइकाअमलमांलावाजातहय।‘‘ ‘‘ कततेिदननका.., कईिदिहस।सरकारबड़ीर तारसेकामकरवायरहीहय।अिभनिपछलयस ाहमांतहमारलईकनकािकताबकलमऔकपड़ा िमलाहय।अगलेमहीनाछगड़ीदेककिहनहयं ।‘‘ ‘‘ काकहतहवबाबभू ाई...‘‘ ‘‘ संचकिहतहय...मांकसम...‘‘ लिलतके िदमागक चरखीघमू ी-‘‘ तोकाहेडमा टरवाचोरिनक रगवा...ससरु काछोिड़ बनाह ...‘‘ -अपनालकड़ीकाग रऔने-पौनेदामपरबेचकरवहभागा।उसेइसीबातक ज दीथीिककै सेगांवपहचं करमामलेकापताल गाए।सरू जडूबतेनाडूबतेवहरा ीपारकरघरपहचं गया।अधं ेर क परतगहरातीजारहीथ ।वहज दी-ज दीहाथ-पांवधोके बा हरिनकलगयाजबिकबहनकालीचायिलएउसेपक ु ारतीहीरहगई।सीधेवहलखैयाके वहांपहचं ा।लखैयाकोलेकररामसमझु औरिफरमसं रू के वहांपहचं ा।मसं रू ने ारे परहीपलंगडालदी।चार बैठगए।लिलतनेसारीसरू तएहालकहसनु ाई।सबसनु करल खैयाक मु यांिभचं गई-ं ‘‘ कुछनह , हेडमा टरक करततू लागतहय।छोिडबनासस रु का।‘‘ मसं रू क भीभ हतनगई-ं ़ ‘‘..अउरउजउनमैडिमया...बड़ीिहरोईनीबनीिफरतहय, उकापिहलयझपं िडयाईब।‘‘ ़ -लिलतनेहाथउठाके ितवादिकया‘‘नाह नाही, अईसनकुछनाहीहोएकहय।कलहमलोन कुिलयमजायकै हेडमा टरसनीसराफतसेबातिकहाजाई।त बौकामनायबनात उंगलीटेढ़ीक नजाई।‘‘ ‘‘..ठीक, कलजगं लनाह जावाजाई‘‘ रामसमझु नेमहु रलगादी। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ भोरपंछीकुलकुलानेलगेथे। ामीण-हलचलचालहू ोगईथी।कोईिदशामैदानके िलएिनकलरहाहैतोकोईकांधेपेहलध रे जतु ाईके िलएिनकलगयाहै।गांवक लगभगसारीमिहलाएंमहंु अधं ेरेहीिदशामैदानहोआतीह।िफरबासीकूसीखा-खाके जं गलहोलेतीह।लेिकनजबखेत मकामहोताहैवेजगं लजानाबंदकरदेतीहै।जैसेकटाई, मड़ाईयारोपाईइ यािद।लेिकनकंु छघर के लड़़क नेजबसेिकशोराव थामकदमरखाहै, उ होनेमाबं हन कोजगं लजानेरोकिदयाहै।इनमलिलत, मसं रू , लखैयाऔररामसमझु जैसे विभमानीनवयवु कभीह।इनक बाहं ामक त वीरबदलनाचाहतीह।लिलतक अ मानेचादर ख ची184 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘ हेलिलतवा, जगं लनांयजावैकका...?‘‘ ‘‘..नाह अ मा, ईलोगनका कूलभेजदे...हमकाकछुकामहै...‘‘ -ठीकदसबजेकासमय। ामकाएकमा सरकारीिव ालयब च क फसलसेलहलहारहाथा।िकंतल े े के वलदोहीअ ु ेदक यापक।मधू ीएकतरफबरामदेमब च कोबैठाए यामपटपेिहसाबपढ़ारहीहै।हेडमा टरसाहबएककोनेममेजऔरएकब चडाले, रिज टरकाढेरिलएबैठेह।िव ालयक गंजू फै लरहीहैमधक ू े वरम‘‘...पांचमसेदोगयाब च िक ाबचा?‘‘ -ब च क भरपरू गजंू ‘‘....ती......न....‘‘ ‘‘..चारमसेतीनगया...‘‘ ‘‘.....ए...क...‘‘ -िकचारयवु कधड़धड़ातेसे कूलमघसु तेह।सबसेआगेलिलत‘‘..ब चालोन...आपसबघरे जावाजाए..आजकै िदनछु ी...‘‘ -सनु तेहीब चेउड़नछूहोगए।मधू ीचीखतीहीरहगई-ं ‘‘....ये याबेवकूफ है।...ये याबदत् मीजीहै...‘‘ मा टरजीभीदौड़े‘‘....अरे अरे ...ईब चेकहांजाईरहेह...‘‘ ‘‘...आजहमइनसबकाछु ीदईदी हमा टरजी।हमआपसेकछुबितयाईब।‘‘ लिलतआगेआताहआबोला। ‘‘...हाबं ातकईिलहेवबािकरईलईकनकाकाहेभगाएिदहेव..?‘‘ ‘‘..हमउसबके सामनेतोहारबेइ जतीकरै बनाएचािहतरहा...‘‘ ‘‘...बेइ जती...मगरकाहेक रहौबेइ जती...‘‘वहतैशमआतेहएबोले। ‘‘..नानामा टरजीआपबईठाजाएहमआरामसेबातक रब, हेमसं रू ...मा टरजीके ख ीकुस लईके आ ...‘‘ मसं रू दौड़करकुस उठालाया।मा टरजीहां-हांकरतेरहगए।तबतककु स आगई।वहबीचबरामदेमहीकुस परबैठगए। ‘‘...मा टरजीईबतावाजाएहमगवं वावालेनडेढ़सालपिहलैबालकबािलकनकादािखला कुलवमकरावारहा।काहैख ी ...िकइनकाकापी, िकताब, झोलाऔतमामसिु भधािमली।ईसबसा छरहोईजईहयं ...का..‘‘ ‘‘..ओमा टरजीदसु रे गवं वनमांिव ािथनका, काकानायिमला।अउरसबछौड़ौ.याकयाकबिछयौिमलाहय।‘‘ ‘‘...देखौ, उसबठीकहयमनैउमाहमारकाकसरू हय...‘ ‘‘...तिककै कसरू , हेडमा टरतहू व।िव ालयतमु रे निज मे...‘‘ ‘‘...देखवभै या..ईसबतल ु ोनकयगलतफहमीहोय...हमरीड्यटु ीके वलपढ़ावैकहय...नापढ़ावाहोयतकहव...‘‘ ‘‘...हमसेबातनाबनाव, िव ालयके रछ परराखागवा, रंगरोगनिकहागवा, ईकातोरे ब पाकराईगए...‘‘ -पीछे खड़ीमधसू ेअबबदा तनाहआ।वहउनचार कोहाथ सेपरे करतीबोली‘‘...देखो, आपलोगतमीजसेबातक रए।यहतमु लोग के िपताके समानह।बाक आपलोग कोजोपछ ू नाहोजाकर धाना य सेपिू छ ये।उ ह नेइ हइतनेकामके िलएहीपैसेिदएथे।िसफपचासहजार।औरपचासहजारकािहसाबहैहमारे पास।इसके िसवाउ ह ने एकपाईभीनह दी।आपलोगखदु स चोहमइ पे ैसेम या-कयाकरते? औरपैसामांगातोगयाथापर धाना य नेदने ेसेइनकारकरिदया।हमलोगतोखदु चाहतेहब च काक याणहो।गांवकाक याणहोबाक ब चेपढ़जाएइं सके िलएहमलोगखदु हीकहा-ं कहांसेपाठ्यपसु तक काइतं जामकरतेरहे।इनडेढसाल मआ पनेिकतनाखचिकयाइनक पढ़ाईपरऔरसरकारनेिकतनादेिदया।बसब चेलाकरभरिदए।िफरभीउ हहमनेतालीमदी।अ 185 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) र ानकराया, बिु नयादीिश ादीतबकभीआपलोग नेपछ ू ाआकरिकिबनासाम ीके हमलोगकै सेइ हपढ़ारहेह॥‘‘ मधू ीके ल बेले च रसेचारके चेहरे लटकगए।रामसमझु नेअपनीगलतीमानी‘‘...आपसहीकहतहवमैडमजी...हमलोनअपनगलतीमािनतहय।हमलोनसिमदाहन।‘‘ ‘‘ असलमांमडै मजीअउरगं वनमांसनु ाहयतेजीसेकामहोईरहाहय। कुलमबहतसधु ारिकहागवाहय।ब सयहयसनु कै ता वआएगवा।‘‘ लिलतनेअपनीबातरखी। ‘‘...ठीकहैपरदसू रे गावं मतोऔरभीचीजसधु ारीगईह। धानने ामीण◌ाके िलएमु तखा , बीजक यव थक है।घर-घरशौचालयबनवाएह।दवाएंबांटीगईह।सरकारनेइसके िलएभीअनदु ानिदयाहै।परआपके ाम मयेसबहआ ?...स िचए...‘‘ -जैसेसबक तीसरीआंखखल ु गई। ‘‘..नाह तौ...कहां...?‘‘ ‘‘..तोइसके िलएिकसकोघेरगे।यहातं ोघेरावकरिलयाहमारा।कमजोरकोसबदबानाचाहतेह।मगरहमदबानेसेआपक सम याकाहलनह होगा।पछ ू नाहैतोजाकर धानसेपछ ू ो।‘‘ -वेजसै ेिखिसयागए।धीमेसेलिलतनेइतनाकहा‘‘ठीककहेवमैडमजी।मागदसनकै ख ीध यवाद, अबईसवाल धाना य ैसनीिकहाजाई....‘‘ -औरचार वापसहोगए।लगभगदौड़तेहएवो धाना य के घरपहचं े।दोपहरकासमयथा। धानअपनेआम सािथय के सा थबाहरीबरामदेमबैठेताशखेलरहेथे।चार कोअचानकदेखच कपड़े। ‘‘....कारे लिलतवा...सबनीकै भएना...‘‘ ‘‘.. धाना य जी...आपसनीकछुज रीबातकरै कहय...।‘‘ - धाना य नेएकिनंगाहअपनेआम सािथय परडाली‘‘...अभीआएरहेहजरादेखकामामलाहय...‘‘ -वेउ हलेकरबरसातीसेदरू पकिडयाके ़ नीचेलेकरचलेगए। ‘..हां...बताव..‘‘ ‘‘.. धानजी, सरकारआपकाजतनापईसािदिहसहय ामिवकासकयख ीहमकाउकािहसाबचाही।‘‘ ‘‘...का, तिनिफरसेकहवतौ, िहसाबचाही।तल ु ड़उहो...िहसाबचाही, जावअपनकाजकरवनाहीकछुपाईजईहवकायदेस।‘‘ ‘‘...आपबातिबगाड़तहव धानजी।‘‘ मसं रू बोला। ‘‘..काहेकाकियलेहौ....चलौनाईदियतहयिहसाब...हमकाजहांउिचतलागाहवं ाखचिकहा।...अबचलौभागौिहयं स... दबु ारािदखाईनािदहेव...‘‘ -आम वालेदरू सेहीजायजालेतेरहे।वेचार खनू काघटंू पीके रहगए।व क नजाकतभापं के चपु चापिनकलिलए।िकंतिु दमा गमआधं ीचलरहीथी।जीमतफ ू ानघमु ड़रहाथा। ‘‘...ईसरासरअ यायहय...सिहतैरिहबतबढ़तजाई.....मगरनाह ..सिहबनाह ....मक ु ाबलाक रब...नाह तइक िह मत बाढ़तजाई....‘‘ चार इसीतरहक मं णामउलझेरहे।दोपहरसेदेरराततकखिलहानमबैठे-बैठेिसरधनु तेरहेिकअचानकल खैयाउठाऔरएकओरचलिदया।तीन नेएकदसू रे कोदेखापरकोईबोलाकुछनह ।जैसेिकसीनेमहंु परहाथरखिदयाहो।लखै याघु पअधं ेरेमगमु गया।तीनो, लिलत, मसं रू औररामसमझु देरतकखिलहानमहीबैठेिसरधनु तेरहे।करीब यारहबजेलखैयावापसआया।उ हिहलाके जगाया‘‘..ए...रे सबउठौ...‘‘ लिलतहड़बड़ाके उठबैठा186 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘...ह...कहांगवारहयरे ...‘‘ -उसनेलिलतके हाथ मकुछपकड़ाया‘‘..ईदेख...‘‘ -लिलतच का‘‘..ह...ईबंदक ू कहसं उठायलावा?‘‘ ‘‘...ईनापछ ू ौ...‘‘ ‘‘बतावतौ...‘‘ ‘‘.. धाना य के रहोय।उकाचहेतानउकरनरायनहमारलंगोिटयायारहोएना...वहीसके राएपलाएहन।‘‘ -लिलतहसं ा ‘‘...इससेक रहवका...?‘‘ ‘‘इससेस चउगलवाईबससरु से।‘‘ ‘‘ ईठीकहय...वईसैहवं ातं ोबड़़ापिहरारहतहय‘‘ मसं रू बोला। ‘‘..उसबनास चौ।सबर तादेखभालिलहाहय।‘‘ ‘‘..तोचलौ...‘‘ रामसमझु नेअपनीसहमितजताई। िफरकोईकुछनह बोला।चार घु पअधं ेरेमखोगए। ठीकएकबजेवे धाना य के शयनक के सामनेखड़ेथ।लिलतबाहरसेदहाड़ा‘‘अबेरामसरनवा, बािहरिनकर...ततिन...‘‘ - धानाधय च ककरउठबैठा‘‘...क....क...कउ...न‘‘ ‘‘तरु ाब पा...दरव जाखोल...‘‘ ‘‘..नाह , पिहलयबतावतक ु ोहो..‘‘ ‘‘िनकरतहविकदरव जािगराई‘‘ ‘‘ जराठिहरौ....‘‘-सहमे-सहमे धाननेधोतीबांधीऔरदरवाजाखोलिदयापीछे -पीछे धािननभीआखड़ीहई।दरवाजा खोलतेहीओसारे क ह क पीलीरोशनीम धाननेउनलोग कोपहचाननेका यासिकया‘‘...ह.....तल ु ोन....‘‘ ‘‘..हातं तू अईसैिहसाबदेहवना।तहमलोनईरा ताअपनावा....‘‘ ‘‘...अ बैदियतहयिहसाब.....नरायन....होनरायन.....तिनबंदिु कयातलाव...तो‘‘ ‘‘..उिहयं ाहय...अबबताविमलीिहसाब...िकिगरायदीिहयं ...‘‘ रामसमझु धाना य पेबंदक ू तानतेहएबोला। ‘‘...ईतल ु ोनकाकहािं मली....‘‘ धाना य हत भरहगए। ‘‘ उबादमांबताईब...का‘‘ ‘‘.. ाखौभै या...जउनैिमलाहममा टरकादईिदहा...अबउकुछइधरउधरिकिहसहोयतोहमनायजािनतहय।‘‘ ‘‘सही-सहीबताव...‘ लिलतदहाड़ा। ‘‘ धाना य जी,.याक-याक ामेका२०-२०करोड़िमलाहयका।गांवमांिकसाननख ी, नल, ताल, बागान, शैाचालय..ख ीजउनपईसाआवाहयउकहागं वा।बािकरहमलोनिव ालयमापं चासहजारकािहसाबदेिखआएहन।अ ै िदहेरहवना...‘‘ लखईयागरजातो धाना य सहमगया‘‘...हा.ं ...हांअ ै...‘‘ 187 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘अउरकहांगवा?‘‘ ‘‘...अउरिव ालयसिमितअउर ामिवकाससिमित।हमसबउनह◌ ं ीलोनकादियिदहारहां...‘‘ ‘‘ तउकालपसटिबगहपजउनतोरमहलबनतहयउकातोरमेहरा ककमाईआए?‘‘ रामसमझु नेफटकारलगाई।िक धान कालड़़काओकं ारदहाड़ा‘‘...हे...कु व ....खबरदारजोहमरीअ माककछुकहेव...‘‘ िकलिलतनेउसकािगरे हबानपकड़ाऔरथ पड़के थ पड़ज ड़िदयेऔरघमू करइशारािकया-‘‘चलौअबिहन ामिवकाससिमितउसनीिहसाबलीतहय‘‘ ‘‘..चार के िसरपेआजजानेकैसाभतू सवारथा।जीहोरहाथाकोठीवाल कोखैखानकरडाल।तभीकुछस चकररामसमझु िफ रपीछे घमू ा।वहलोगसहमगए-‘‘ धाना य जीतिनगिडयाक चाभीिदहेव...‘‘ ़ ‘‘..चाभी...ह...हमकासबु ेनसुबेसहरजाएकहय ‘‘ ‘‘ फईलाएवनौटंक ....देतहविकनाह ...अउरहांअपन-अपनमोबाईलौलाव।‘‘ - धाना य नेिबनािकसीहीलह जतके समपणकरिदया। ‘‘बेटाओकं ार...दईदेवचाभीअउरमोबाईल।तमु हौदईदेव िधानन‘‘ अपनीप नीऔरबेटेकोआदेशदेतेहए धाना य ने दोनोमोटरसाईिकल क चािभयांऔरअपनेअपनेमोबाईलदेिदए। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ रातक तीसरापहर।कु काभयावह दन।लहलहातीरा ीके तटपरि थतसंदु रबंगलेकेसामनेदोगािडया ़ ंआकर क ।चारफदगािडय ़ सेउतरे औरबंगलेक जािनबबढ़गए।वेभीतरजानाचाहरहेथेिकसतं रय नेरोकिदया‘‘..हे.....कहांघसु ेजाएरहेहव...‘‘ ‘‘ईबंदिु कयादेखहे व ...िहयं ैयढ़ेरकईदईब...‘‘ -दोनोसंतरीपीछे हटगए।वेधड़धडातेअदं रपहचं ेऔरकमरे -कमरे झांकतेउपरीमंिजलपेि थतकमरे केसामनेपहचे।आवाज दीतो ामिवकाससिमितके सिचवहड़बड़ाएसेबाहरिनकले।औरदेखतेहीआवाजलगाई‘‘...च.... चो...र...चोर..‘‘ ‘‘चेा प...तोरीबिहिनक....गटैयादबायदियब....चोरततैहयिकहमसबैकअिधकारभकोसकयिहयं ाआरामसनीकमरम िपलासोयरहाहय।औहवं ाहमरे घरे कलियकाखल ु ीछतैकनीचेपढ़जाव...हमसबराि याकदिू षतपानीपी-पीरोगीहोईगएन। ‘‘... हरीहो हरी...‘‘ -सिचवनेइधरउधरनजरदौड़ाई।नीचेसंतरीचु पीसाधेखड़ेरहे। ‘‘..उलोननायअईहयं ।अबतहु मकाउपईसकिहसाबदेवजउनैसरकार ामिवकासख ीिदिहसरहाउपईसागवाकहा।ं ‘‘ ‘‘..अबेतुमसेमतलब...सालेजानवर...िहसाबलगे।अभीदेतेहयं िहसाब।‘‘ ‘‘...तोईलेव...‘‘-कहतेहएरामसमझु नेकईगोिलयांउसके सीनेमउतारद ।वहएकचीखके साथलहराकरिगरपड़ा।स नाटा िफरसेछागया।वेबंगलेकेपीछे जाकरनीचेउतरगए।एकझटके मगािडया ़ ं टाटक औरिनकलगए।िफरकाफ दरू जाकरदोन गािडया ़ रं ा ीमबहाद औरजगं लक तरफबढ़िलए।अभीअधं ेराफै लाहीथा।भोरके चारबजरहेथे।वेिबनाबोलेखामोशचलते रहेिकसामनेसेआतीहईदोआकृ ितयांिदख ।लिलतनेहाथके इशारे सेतीन कोठहरनेकासंकेतिकया।िफरदरू सेपछ ू ा‘‘...कउन..?‘‘ कोईनह बोला।बि कआगेबढ़तारहा।रामसमझु नेहड़काया‘‘..हेकउनचलाआएरहाहय... आएं .ं ..अउरआगेबढ़ेवतोईगोलीअभैसीनेमदतारदियब.‘‘ ‘‘..नाह नाह दायी।हमआपैकेअदमीआई।याकखबरहय..‘‘ ‘‘..ईतनारायनकयभैवानरे सलगरहा‘‘ वेसमीपआए188 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘ लिलतदाई, बरु ीखबरहय। धानकै कहेपआम वालेहमारभईवाकऔतोहरीमहातारीकपकिडलईगएह‘‘ ़ ‘‘..का, छोड़बनाह सालनका‘‘ लिलतचीखां। ‘‘ ..नाह नाह जोशसेनाह होससेकामलेव....ठ डेिदमागसेकौनवरा तािनकारौ ‘‘लखैयानेसमझा◌ाया। ‘‘ हमरे िवचारसेअबहीतल ू ोनसीधेजगं लयमािं नक रलेव।गवं ामािमिल वालेपिहराजमायहयं ।तमामखतराहय।थोड़ातह िदलयायलेविफरकुछकरौहमतल ू ोनकाचोरीछु पैसबखबरदियजावाक रब।तिनिछमिछरहोएतहमलोननारायनदायीऔ तोरीमहतारीकदेखी।यहयबतावैकमारे तल ू ोनकातलासक रतरहा...‘‘ -नरे शनेसारीसरू तेहालबताईऔरउसलड़के के साथवापसहोगया।लिलतक आख ं मबादलभरआए।तभीरामसमझु नेलप ककरनरे शकाहाथपकड़ाऔरफुसफुसाया‘‘ नरे शहमलोनजगं लैमिमिलब।तहु ोईसकतएकदईु रायफलनकाअउबंदोब तकईदेव...अबआमनेसामनेकेरलड़ाईहोई ‘‘ ‘‘ठीकहयदेिखतहय....रामआसरे िहयं ांमांिगब, िदिहनतोिदिहन‘‘ हतेहएवेतेजीसेिनकलगए।मसं रू नेसहमतेहएकहा‘‘ जानैकाहेकछुअ छानायलागतहय।तक ु ागोलीनायचलावैकरहा।अनथहोईगवाहयअनजानेम।िजनगीभरे कख ीस कूनचलागवा।‘‘ ‘‘ गोलीचलावैकतहमहनं ायचाहारहा।उतअनजानेमचिलगए।‘‘ ‘‘ अबसांपम रगवातलक रनायपीटौ।तिनतेजचलौउजेरहोतजातहय..‘‘ लखैयानेचेताया। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ वेअबजगं लके घनेपनके बीचसरु ि तथे।करीबदोघ टेतकचलतेहएवेकाफ दरू िनकलआएथे।िफरजगं लीबेल क झािडय ु ू नक सांसली।अबतकसयू िनकलआयाथा।िदनचमकनेलगाथा।गांववालेलकिडया ़ के बीचबैठकरउ हां◌ेनेसक ़ ं काटनेचलेआरहेथकुछकाटकरवापसजारहेथे।कह उ हकोईदेखनाले, इसकाभयभीथा।रामसमझु नेझाड़ीमबंदक ू छुपादी।िफरजगं लके दसू रे छोरपरमारे -मारे िफरनेलगे।लिलतकोरह-रहके मांका यालसतानेलगा।मगरनारायणको यंपू कड़ा।जानतनायगवािकरामसमझु कारायफलवहयमहु ै याकरवाईसहै।मसं रू आ िखरबोला‘‘ लिलत, अभीमहीनाभरे ख ीहमलोननदीके रा तेइि डयािनकलचिलतहय।काहेसिकसिचववालामामलाअ ीज दीठ डायक नाईहय। ‘‘..ह.ं ..हऔजउनहमरीमहतारीकसारपकिडलईगएह यं उ..?‘‘ ़ ‘‘ ..तकाअपनहक ं पकड़ाएदेहव।‘‘ लखैयानेसवालिकया। िफरकोईकुछनह बोला।रामसमझु उठाऔरकुछदरू चलागया।आधेघ टेबादलौटाकोछे मजंगलीबे रयांभरे । ‘‘..लेवबड़ीभख ू लगरहीरहय।यहयखायकै पेटपालव।ईमोबाईलहयमगरकौनौकामके रनाह ।फोनकरौतोकहा।ं गवं मकोई कलगेमोबाईलवयनाह ।‘‘ ‘‘ अदमीके पासखावैकठौरनायहयऔमोबाईलकै बातकरतहव।हसं ीआवतहय‘‘-लखैयानेिझड़का।चार बेरखानेलगे। मसं रू नेिफरदोहराया‘‘तबतकके ख ीइि डयािनक रचलौ।ईमोबाईलहवं यबचिदहाजाई।‘‘ ‘‘..नाह , अभीनाह ,...ज दबािजमकउनौकामनाह ।इकाअपनलगेर बखखतरे सखालीनाईहय।इनकालईजावऔराि यमपईरा यदेव।‘‘ लिलतनेरायदीतोतीन नेसहमितमिसरिहलािदया।मगरलिलतनेइि डयाजानेक सहमितनह दी।बैठे-बैठेशामसे 189 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) रातहोगईमगरकोईरा तानह िनकला।वेवह प परलेटरहे।रामसमझु नेचेताया‘‘पिहलबदं क ू हवं ासेिनकाललाईतहय।‘‘वहजाकरबदं क ू िनकाललाया। ‘‘ अबतल ु ोनसोहमजािगतहय।एकआदमीकाजागतरहैकचाही।सतकताज रीहय।‘‘ -तीन सोगए।रामसमझु बैठा-बैठाअपनी ेयसीके बारे मस चतारहा।िबचारीपरे सानहोईहय।फागनु मागं वनालावैककहार हा।कासेकाहोईगवा।मगरईसबकासबकिसखावबौज रीरहा।सारनकै परिनक रआएहयं ।हरामखोर...हमकाचोरकहतहं य।ईनायसरकारीचोर। ...हमरे ब चैभख ू नमरईमजामार। ‘‘ स चते-स चतेरामसमझु क भवतनगई।ं देररातकोलिलतक आख ु ी।वहउठबैठा।इधरउधरदेखा।कालाअधं ेरा। ं खल ‘‘ सबठीकहयरामसमझु ?‘‘? ‘‘ठीकनाहोततजगईतेननाह ।‘‘ ‘‘ लेवअबअसलहाथामौ।हमतिनसोईली ‘‘ -लिलतआख ं िमचिमचातेबैठारहा।रामसमझु लेटरहा।लिलतक आख ं ◌ामप रवारके एकएकसद यक त वीरघमू नेल गी।अ मा, छोटीबहन, दोन छोटेभाई।हमरीऔअ माक गैर-मौजदू गीमांउतीन कईसैरहतहोईहयं ।सीधा-पानीकहसं आवतहोईहय।ईकउनैजंजा लमांफंिसगएन।जबभागमांजगं लयकाटेकिलखारहयतकाहेबड़ा-बड़ासपनादेखा।पढ़ाई-िलखाईतएकतरफ, दईु टैमक रोटीरहयवहवगए।सक ु ू नवगवा।आजनरे सौसारनायआवा।जानैहमलोनकाढूंढ़ैनापाईसहोय।याकहईं आम वाले ससरु े वहकतनायलुकलईगे।‘‘ -इसीउधेड़बनु मजानेिकतनासमयबीतगया।रातलगभगबीतगई।भेारपछ ं ीच -च करनेलगे।बाक तीनोभीउठकरबैठगए।मं सरू नेलिलतकोबैठेदख े ातोबोला‘‘ लिलतदायी, जगईबौनायिकहौ।रितयाभरतहु ीबईठरहेव। ‘‘ ‘‘ कासोईत, रितयाभरिनंिदयैयनायआई।वईसयअबतिजनं गीभरजागैनकाहै।अबन दकहां...‘‘ -धीरे धीरे िदनचढ़गया।सयू क िकरणल कारे मारत उनके चेहरे कोछूनेलग ।वेिफरसेजंगलमलोपहोगए।भख ू के मारे उनके पै टपीठएकहोरहेथे।जैसेिकसीनेसारीताकतिनचोड़लीहो।नरे शजोबीड़ीदेगयाथाउसीकोसल ु गाके वेकशलेतेरहे।मसं रू नेजसै े यादिदलाया‘‘...काबातहयनरे सवैावनायआवा। ‘‘ ‘‘ यहयिचतं ातहमकौहोयरहीहय।‘‘ लखैयाबोला। ‘‘ अईसातनायपिु लसवहैकखईचलईगएहोए। ‘‘ रामसमझु नेआशक ं ाजताईतोलिलतझझंु लागयां ‘‘ तमु हौतउससेअसलहालावैककिहिदहेरहव।उके रभैवापिहलैअसलहाकमामलेमबदं पड़ाहय।तक ु ापताहय। २ भोर, ह बेमामल ू महंु अधं ेरेहीगावं जागउठा।लोगिदशामैदानके िलएिनकले।बाहरअभीनीमअधं ेराथा।कुछलोगजगं लक ओर लकड़ीकाटनेिनकलगएथ।कुछलोगखेतक तरफकांधेपेहलऔरग ईिलएिनकलपड़े ।िनमलिम ीकालड़कारा ीके तट ं क तरफदौड़तागयाहाथमबा टीिलए।पर तसु मीपपहचं ातोचीखतेहएबा टीफककरभागा।रा तेमहीअनवरक अ माने रोकिलया‘‘ काहवारे ...ननके ..‘‘ वहठहराऔरउनसेिलपटगया। ‘‘...बवु ारे हवं ाकछुपड़ाहय...‘‘ ‘‘...कहां...चलैदिे ख...‘‘ 190 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘..नाह हमनाजाब...‘‘ ‘‘..अरै चिलतौहमहननातोरे साथेकछुनायहोई...‘‘ वहननके काहाथपकड़करजबरद तीख चलेगई।ननके नेमाग दशन िकया।अनवरक अ मावहांतकपहचं ी, देखातोचीखपड़ी।‘‘ हायरे बपई...ईतनारायनपासीकालहासआए‘‘ ननकै क लाईथेाड़ी क ।वहअपनीबा टीउठानेकुछदरू बढ़ातोपनु ः चीखपड़ा‘‘...हायबवु ायहरतआ ....‘‘ वहदौड़ीसीआई‘‘.ईदेख ...‘‘ ‘‘...हे...हेईतजगु रिनयाआए...‘‘ ‘‘..यहवम रगएका...‘.‘ ननकै सहमताहआबोला। ‘‘..कापता, जातयगवं ावालेनकबलायकलाहमिहयं हन ‘‘ -ननकै दौड़ा। -कुछही णमरा ीकापवू िकनाराभरीभरकमभीड़सेभरगया।नारायनमरचक ु ाथा।मगरजगु रानाक सासं चलरहीथी।लड़के िहलाडुलारहेथे‘‘..जररानाचाची, ु् होजगु रानाचाची।‘‘ मगरवहहरएक यि कोघरू तीरहीथीनािकसीसेकुछबोलीनािकसीकोपहचाना।होशोहवासगमु ।जै सेिकसीदसू रीदिु नयामआगईहो।बससबकोफटी-फटीआख ं सेदेखतीभररहगई। हरीकायालयमसिू चतिकयागया।फौरन पिु लसआई।भीड़कोहटाया।दरोगानेआशक ं ाजताई‘‘..कुछनह , ईउचारभगोडे़िसरिफरनक करततू लागतहय।माओवादीहोईगएहयं सार......‘‘ ‘‘..माओवादीकाहजरू ...‘‘ ‘‘..मनैअततायीअउ का...‘‘ ‘‘..ईकईसैहोईसकतहयहजरू ...ईतलिलतकयमहातारीआए...अउरनारायनौसउक कउनदु मनी...‘‘ ‘‘..हहतल ु ोनकाकापताबं ाक महतारीकतिजदं ाछोिडनिदिहनहयं ...अउकाचाही, नारायनसेअसलहामांिगनहोईहयं ।उनाउपल धकराएपाईसहोई ?‘‘ ‘‘..मगरहजरू ...पकिडकै ़ तआम वालेलईगएरहा।‘‘ -इतनासनु तेहीदरोगानेएकझ नाटेदारथ पड़उस यि कोरसीदिकया‘‘...सार...िजरहकरतहय....‘‘ -सबचपु ।अबतकमधू ीऔरमा टरसाहबभीआपहचं ेथे।मधु ीनेजरगरानाकोटटोलटटालकरिहलाड ु् ु लाकरदेखा। ‘‘...सरशीइजशॉ ड...‘‘ -दरोगानेचोरिनंगाह सेमधू ीकोदेखािफरबोला‘‘...लहासलईजावअउरि याकरमकईदेव...अउरई ीकाउके घरे पहचं ायदेव।एकादिदननमाठं ीकहोईजाई..‘‘ ‘‘...नह दरोगाजी, लाशकोपो टमाटमके िलएभेिजएऔरइसमिहलाकोडॉ टरीके िलए।तािकपतातोचलै...‘‘ ‘‘...मैडमआपईमसलमनायबोलौतजादाअ छारही।हमकाअपनकामकरयदेवतजू ावअपन कुलवास भारव‘‘ ‘‘..वैसेदोिदनसेयेलोगगायबहयं इसक रपोटआपके थानेमभीिलखीगईहै।‘‘ ‘‘..कईसी रपोट ?कोिलिखस रपोट ?‘‘ दरोगाके चेहरे परकुिटलमु कानतैरगई।मधू ीकोध कासालगा। ‘‘..ओह...‘‘ -रोतािबलखतानारायनकाप रवारउसक लाशकोलेकरचलागया।जगु रानाकोगांववालेउसके घरपहचं ाआए।मधू ीमा टरसाहबके साथवापस कूलआगई।अतं समच वातउठरहेथे।......ऐसाअ याय...ऐसाउ पीड़न...काननू काऐसाअप 191 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) मान...ऐसाअधं ाकाननू ...इन मवािसय के भा यकािवधाताकौनहयई रिकइनसबके भा यमअधं ेरेहीअधं ेरेिलखिदएगए ह।मा टरसाहबबोले‘‘..भईजबकाननू कयरखवालेनगाममांआतंकफै लाएरहेहतआमअदिमनक सम याकोसुलझा◌ाई।ससरु उमनैमाओ वादीआएतं तक े व...अदमीकह याकरदेवईसबकाहेाए..मनैकउनौपछ ू ाआव ? अउरतक इ जतसेखल ू ै वालाहय ?.‘‘ ‘‘..लगताहयमा टरजी, यही ं ितकासहीसमयहय।अब ं ितआएगी।जनताकहांतकउ पीड़नऔरअ यायसहेगी।अबयेगांववालेचपु नह बैठनेवा ले।नारायनके भाईके तेवरदेखथे े ?‘‘ ‘‘..अरे बिहनी, काननू अउरसरकारसनीभलाकउनवपालामारपावाहय, िवरोधकरके कहांजाईहयं ?‘‘ ‘‘..येनाकिहएमा टरजी...िवदेश मदेिखएिकतनी ाि तयांहईह।सबउ पीिडतऔरआमआदमीने हीिकया।शोषणकहां ़ बदा तिकयागया।तानाशाहनदी-नाल ममहंु छुपातेिफरे ।‘‘ ‘‘...खैरछोड़ौअईसाकरौ... कूलबंदकरौतघू रे जावऔहमकाथोड़ाकामहय...रा ीपारजाएकहय।ब चातोअईहयं नाआ जअके रस ारीबईठकै काक रहव...‘‘ -मधू ीनेरिज टरउठाकरकमरे मरखा।तालालगायाऔरघरचलीआई। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ नरे ससिहतगावं वाल नेिमलकरनारायनकादाहसं कारकरिदया।नारायनक िवधवापछाड़खा-खाके िगररहीथी।दोन ब चेगमु सुमसेबैठेटुकुर-टुकुरसबकाचेहरादेखरहेथे।नारायनक अ मारह-रहके धाना य कोग रयारहीथ ‘‘..यहयहमरे पतु वाकपकड़ाईसरहा...हेभगवानइकाक ड़ेमकोडे़नक मउतमारे व....‘‘ -घरखचाखचभीड़सेभराहआथा।कुछबजु गु मिहलाएंतस लीदेरहीथ ।तोकुछचपु चापखड़ीइधरउधरताकरहीथ याखसु रपसु रकररहीथ ।तभीह लाउड़ा‘‘... धं ाना य जीआएहयं ... धाना य जीआएहयं ...‘‘ औरभीड़चीरताएक -पु आदमी कटहआिकनारायन क मांऔरप नीझपट ‘‘..िनक रजाहमरे घरे सपु रखनकाटा...जउनैघड़ी-घड़ीतोहराहकुमबजाईसवहैाकनायहआतै...‘‘ औरपलकझपकतेही नारायनक मानं ेकईथ पड़जड़िदए धाना य के चेहरे पे। धाना य ह काब का...।लोग नेपीछे धके लकर धानकोब चाया‘‘...आपजाव धानजीनाह हमरे वसीनेकआगभड़कउठी।‘‘ नरे शके चाचादहाड़े। धाना य नेिफजाख ं राबदेखीतोउ टेपांववापसहोिलएऔरगाड़ीमबैठकरएकदोतीनहोगए।नरे शके चाचानेदांतपीसा‘‘..ससरु ाआवाहयिहयं ाअपनसफाईपेसकरै ।अरे हमारपहाड़कसलियकावािपसलायसकतहयका..?‘‘ -लोग नेउ हपीढ़ेपरबैठािदयाऔरसमझानेलगे।मगर ामवािसय के अदं रएकअलगतरहकारोषधीरे धीरे िसरउठारहाथा। ‘‘...कबतकआिखरकबतक...?‘‘ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ धाना य भागकरसीधे हरीकायालयपहचं े।दरोगाके सामनेवोध मसेबैठगए‘‘... दरोगासहेब...ईगावं वालेनकै तोबड़ेपरिनकरै लागेहयं ।...हाहं मरीदोनौगिडयनकापतालागा।‘‘ ़ ‘‘हहांउतराि मिमलीहयं ।उलोनगिडयावहै मफंकके चंपतहोईगए।अउररायफलकापतानाह लागी।नातउलउंडवनकाप ़ तालागा।पिु लसतलाशमांहय।‘‘ 192 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘...उसबतठीकहयसरकार, मगरईजउनघटनादरघटनागजु रतयजातहयकहईं िव ोहका पनालईलेय...‘‘ ‘‘...िव ोह....ह.ं ..ह....उकाकुचलिदहाजाईहो‘‘ ‘‘..काकहतहव...‘‘ ‘‘..अउ का...‘‘ ‘‘...तोिफरआपैदख े ेभालेव...जउनखचापानीबताएव...िदहाजाई...‘‘ -दरोगानेिसपाहीकोआवाजदी।वहदौड़ाआया‘‘...हजरू ..‘‘ ‘‘‘तिनदईु िचयालाउनं.ू ...‘‘ ‘‘...हजरू ...‘‘ वहचलागया। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ि लतके घरकाअजब य।दोन ब चेमांकोघेरेखड़ेथे। ‘‘...माई...कछुबोल...काहोईगातोरअविजयाक।‘‘ मालतीनेबुलकारा।पड़ोसनठकुराईननेिहलाया‘‘..जगु राना, ईदेखतोहारबचवै।तिनबोलदिय।सभैक ाहैरानहयं ।मालतीतिनअपनमायीकापानीिपयाऔकछुखायवालाहोयत...वह. .‘‘ -मालतीदौड़करगईऔर टीलक लिु टयामपानीऔरहरमोिनयमक थालीमगणु औरआधीरोटीलेकरआई।ठकुराईननेउस के हाथसलेिलया‘‘..लाओ ,तिनपेटेमकछुपड़ैतो...हेलिलतक महतारीईदेखतिनखायले....‘‘ -बाक मिहलाएऔ ु ाररह थ परवहवैसेहीबतु बनीबैठीथी।इधर-उधरदेखजे ारहीथं।जैसेिकसी ं रलड़िकयांभीलगातारपक अदभतु दिु नयामआगईहो।तभीकोईपीछे सेबोला‘‘ चाचीहटौउधरमा टरनीजीआईहयं । ‘‘ सनु तेहीजगहबनगई।भीड़क िनंगाहमधू ीपरकि तथ ।मधू ीनेआगेबढ़करपछ ू ा‘‘...कुछखायािपयाइ हांने ...कुछबोल ..?‘‘ ‘‘ कहामं ा टरनीजी...अईसेनटुकुर-टुकुरताकतहयं ।‘‘ रहीमक बीबीआमनानेकराहते वरमकहा। ‘‘...ओह...गहराशॉकलगाहै...‘‘ ‘‘मनैकालागाहय..?‘‘ ‘‘शॅाक.‘‘ ‘‘..मतलबसमिझननाह ...‘‘ ‘‘ मतलबगहरीचोटलगीहै।‘‘ ‘‘..तमनैम रबौिकिहनहयं दिहजरै ...‘‘ कहतेहएआमनाजगु रानाके गलेवशरीरके अ यभाग परदेखनेलगी। -चोटतकहदं ख े ातनायीहय। ‘‘ शरीरपेनह िदमागीचोटलगीहै।यहांपरकोईडॉ।है याआसपास।?‘‘ कोईजवाबनह ।सबखामोशरह ।कुछदपु टटेममहंु छुपाके मु कुरानेलग ।जैसेकोईिविच सवालकरिदयागयाहो। ‘‘..इसमहसं नेक याबातहै।मकुछपछ ू रहीह।ं तोलिलतक बहनमालतीने प िकया‘‘मैडमयाकह पतिलयापिहलैरहामगरउसुवरकाबाड़ाबनायिदहागवा।हवं ागंवावालेसवु रअउरअपनसारे मवेसीबांधतहं य।डॉतक बौयहरअईबैनायिकहा।‘‘ 193 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘ मा टरनीजी..याकओझाहय..‘‘ आयशाबोली। ‘‘ चपु रहोओझा याकरे गा।‘‘ ‘‘...तौ..‘‘ ‘‘ तमु लोगअपनीदवाएक ं हासं ेलातेहो।िकसेिदखातेहो?‘‘ ‘‘...रा ीपारसनीलाईतहय।जादाकछुभवातयहायओझासनीझराईतहय..क बौक बौगोिलयवदेतहयवा‘‘ ‘‘...ओह..येबातछोड़ो...कलतुमलोगइ हकै सेभीशहरलेकरजाओगे।औरिकसीअ छे डॉ।कोिदखाना।इनके िदमागपर असरआगयाहै।‘‘ ‘‘ मगरलईकयजाईको।बड़ालड़कवातकबसेफरारै हय।मरदवौनाईहय। ‘‘ ‘‘ आपलोगजाईए।आपके पड़ोसीपरिवपदाआईहैतोआपसाथनह दग? आजइनपरहै।कलआपपरहोसकताहय।ह पतालमपैसानह पड़ता।बेिसक ीटमटतोहोहीसकताहै।वैसेएकऔरबात, आपलोगअपनाघरबंदकरके सोईएगा।रातमकोईिकतनाभीपक ु ारे , िच लाएबाहतनह आईएगा।अभीखतराहै।औरमालतीतमु भी।‘‘ -सारीिहदायतदेकरमधू ीवापसलौटआई।लौटते-लौटतेमधू ीकोरातके १०बजगए।रातकालीिघरआई।अभीखानाभी बनानाथा।िदनभरकुछखायानह ।अबतेजभख ू लगरहीथी। ३ सायंकेसातबजचक ु े थे।नमअधं ेर नफजांकोपरू ीतरहसेअपनीआगोशमलेिलयाथा।ठंडीहवारह-रहके सीटीबजाती िनकलजाती।जगं लमघेारअधं कारके िबबं ।हाथकोहाथनह सझू रहाथा।चार भगोड़ेपड़े-पड़ेरीतरहेथे।अलकसाएसेकरवट ...दरकरवट...मगरचैनकहां ? -तभीप ख े ड़के ।लिलतनेबंदक ू तानीऔरचार तेजीसेसरपटसमीपके वृ पेचढ़गए।आनेवालेदो यि थे।मसं रू नेपहचाना ‘‘..नरे सवा...‘‘ ‘‘..हादं ायीके हेरहव...तिनसोझेआवखतरे ककउनवबातनाह ?‘‘ -चार नीचेउतरआए।नरे शनेपोटलीमबाधीरोिटयांमसं रू कोथमाद औरलखैयाकोएकरायफल। ‘‘...ईकहांिमली ?‘‘ ‘‘....रायबहादरु जीसेहमारचाचालाएहयं जउन धनवासेचारसालसेिकटिकटानबईठहयं ।अउरसनु ौ...हमारनारायनदायी नायरिहगए‘‘ ‘‘..का..‘‘ चार के महंु एकसाथखल ु ेरहगए। ‘‘ कईसय...मनैकाहआ...‘‘ ‘‘..वहयआम वाले...दायीकामारत-मारतमा रनडा रनतकै रा ीपारतटवापईहांछोिडिदिहन।औचाचीका...‘‘ ़ ‘‘....काभवाहमारअ मक...?‘‘ लिलततड़पकरबोला। ‘‘ उनह◌ ं ुकगवं मफकवाएिदिहन।िजदं ातहयं मगरमरे सबत नाबोलतहयं नाजीमं...नाकउनवहरकतबसटुकुर-टुकुरयहर वहरताकाकरतह ...‘‘ -लिलतके जैसे ाणिनकलगए। ं आसं ाहोगया।नरे शचलागया।चार वह प परपड़ेिगरे सेबैठरह।मगरबहतकहनेपरभील िलतनेरोटीनह छुई।बसयहीकहतारहा‘‘ जबलेई धनवािजदं ाहयहमारखानापीनाहराम...‘‘ -बाक तीन नेह का-फु काखायािफररोटीवैसेहीबांधकरपेड़क शाखाओकं े बीचख सदीऔरलेटरहे।पहरादेनेकािज मा लिलतनेलेिलया194 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘ तल ु ोनअबहीसोहमकान दनायआवतहय..हमबईठहन‘‘ ‘‘मगरईसमझमानं ायआवािककाननू कबसेखनू कै बदलैखनू वालातरीकाअपनायिलिहस।‘‘ मसं रू बोला। ‘‘ अउरनायसनु ैवदरोगवाहमलोनकामाओभादीकहतरहा...माओभादी..‘‘ ‘‘ कामतलब?‘‘ ‘‘ कोजानउकै मै याक......‘‘ -तीन क िमलीजल ु ीहसं ी।मगरलिलतिनरपे भावसेतट थबैठारहा।उसेजैसेकुछसनु ाईहीनापड़ा।मानोकाठमारगयाहो। ................................... ............................................... ..................................................... -मधू ीउलझतीसीघरवापसआगई।तालाखोलकरजैसेहीघरमघसु ी, मोबाईलबजउठा।वहवह छोटेसेआगं नमपड़ेपलगं परबैठगई।फोन रसीविकया‘‘ जीमा टरजीकै सेह‘‘ ‘‘..हमतोठीकहनं हवं ाकै काहालहय ‘‘ ‘‘ यहांकाहाल याहोगा।नारायनकाि या महोगयाहै।उसमिहलाके वहांगईथीउसक हालतवैसीहीहै।बगैरइलाजके उ समिहलाकाठीकहोनाअसंभवहै।अभीमचलीहीआरहीह।ं ‘‘ -वहफोनरखकरकमरे क साक ु ाथा।पहलेतोवहच क िफरस चाशायदगलतीसेरहग ं लखेलनेचलीतोदेखावोपहलेहीखल याहो।दरवाजाखेलातोचीखहीपड़ी।लिलतनेबढ़करउसके महंु पेहथेलीरखदी। ‘‘..हां...ह.ं ..चीखेवनाह ....‘‘ -औरमधू ीकोवह चेयरपरबैठािदया।खदु पलंगपरबैठगया। ‘‘ मईडमजीआजहम धनवककामतमामकरिदहा...‘‘ ‘‘क...क...ब..‘‘ ‘‘..अ बिहनतव...‘‘ ‘‘परतमु यहांआएकै से...?‘‘ ‘‘ दीवारतड़ककै ...‘‘ ‘‘ तु हयहांलोगदेखगेतोमझु ेभी...तमु कै सेभीजाओयहांसे‘‘ ‘‘..चलाजाईबतसु ेइि तजाहयहमारघरे कखबरलेतरहेवउनकािदलासािदहेरहेव।‘‘ ‘‘...िबनातु हारे वापसआएकुछनह होगा।‘‘ ‘‘..उतअसंभवहय..‘‘ ‘‘..यहसबठीकनह हैलिलत, जीवनभरकासक ु ू न, शािं तखोजाएगी।‘‘ ‘‘उतअबख मैहोईसमझौकछुखाएवालाहय?‘‘ ‘‘खानातोअबबनानेवालीथी।तु हारे हीयहांतोगईथी।आतेआतेदरे होगई...‘‘ ‘‘...तोज दीबनाव।अभीचलतैर ताहय।देररातकै िनक रजाईब।...हमकसमखावारहाजबले धानकै सांसचलीहमारखा नापीनाहराम...‘‘ -मधू ीउठकरबरामदेमल े गे टालनमु ािकचनक तरफबढ़गई।जीमसहमतोभरीहीथी।स चरहीथीज दीसेिखलािपलाके द फाक ं , नहीतो...‘‘ -उ टेसीधेउसनेरोिटयांतैयारक ।स जीबनाईऔरउसेदिे दया।बोली195 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘ लिलत, तमु बांधकरलेजाओखाना।वह खालेना।मझु बे हतडरलगरहाहै। ‘‘ कउनैबातकाडेर।हमरे पकड़ेजावैकडेरयाअपनीसाखखराबहोएकडेर....‘‘ लिलतनेमधू ीक तरफथोड़ाझक ु के धीम सेयहबातकही।मधू ीअचकचागई। ‘‘..मैडमजीकुछनाएहोई।हमकाआरामसनीखायलेदवे ।आपौखायलेव। ‘‘ -मधू ीकुछनह बोली।खानेक थालीउसके आगेरखदी।‘‘ तमु खाओ।मबादमखालंगू ी।वहखानेलगा।मधू ीबाहरहीइध र-उधरिखड़क झरोख सेबाहरक आहटलेतीरह ।जबवहवापसकमरे मलौट तोलिलतखाचक े करबोलाु ाथा।उसेदख ‘‘..मैडमजीअबहमकाआ ादेवहाक ं उनवपरु ानधेातीहोयतलाव..‘‘ ‘‘.. यंू..‘‘ ‘‘..अबअईसैभेसमांकहांजायपाईब।कुछअदला-बदलीतक रनकापड़ी...‘‘ -उसनेएकसादीधोतीलेकरलंगु ीक सीबांधली।िफरबंदक ू कोपेपर मलपेटिलयाऔरिसरपरबड़ासामरु ै ठाबांधिलया।िखड़ क सेइधर-उधरझांककरदेखा।सुनसान।गांववालेआधेितहाईसोगएथे।बिकया धाना य के घरइक ाथे।लिलतके िलए अ छामौकाथा।रा ीके िकनारे िकनारे होताहआगांवक सीमालांघगया। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ रामसमझु क देररातकोआख ु ीतोकांपगया।लिलतगायबथा।इघर-उधरखोजतारहा।तीनचारआवाजभीदी।मग ं खल रनह ।वहपरे शानहोगया।कह ईससरु े आम वाले..... -तभीप क सरसराहटहई।कोईध मसेउसके बाजमू आके बैठगया।रामसमझु नेझ लातेहएकहा‘‘कहांरहौ...?‘‘ ‘‘..इकापकड़ौखाना, आज धनवाकठाहेबईठाएिदहा।‘‘ ‘‘..मनैसमझेननाह ..‘‘ ‘‘ मा रआएनसरउक...बड़ाकूदतरहा।अबरहबीसलाखेकेरमहलमां ‘‘ ‘‘बहतबिढयामोरे सेर।‘‘ ़ हतेहएउसनेपोटलाखोला‘‘अरे वाह...बड़ीबिढयाख ़ सु बूआएरहीहयखानेस। धािननबांधिदिहनहयं का....‘‘ िफरदोन हसं िदए। ‘‘.. कोबंिधहय....उअपनीमा टरनीहयना कूलवाली।वहयिदिहनहयं ।‘‘ ‘‘ उकहाभं टायगई...?‘‘ -िफरलिलतनेसारीकहानीकहडाली।अबतकलखैयाऔरमंसरू भीजागगएथे।तीन नेपरू ीकहानीसुनी।मसं रू नेल बीसांस खीची‘‘चलौअपनेकरनीकफलपाईगएससरु ।‘‘ ‘‘..अबकछुिदननख ीिहयं सटललेव।जईसाहमकिहतहय।‘‘ लखेयाबोला।लिलतनेधीरे सेकहा‘‘...हांचलाजाई।परइि डयानाह ‘‘ िफरएकगहरीखामोशीफै लगई। ४ काठमा डूकाअ यंतसहु ावनामनोरमपा र य।जैसे वगयह उतरआयाहो।पहाड पररगतीबसके साथ-साथउनकाजेहन भीधीरे -धीरे , गोल-गोलरगरहाथा।इससेपवू काठमां डूकेदशनउ हकभीहएहीनाथे।चार तरफउंचे-उंचेपवत।उनपवत के बीचसेिनकल तीहईबस।नीचेझांककरदेखोतोवेिखलौन सीिदखाईपड़त । यारीदारखेतओरनाजाने या- या।पतानह चलाकबसबु ह 196 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हईकबशामऔररात।जबबस क औरक ड टरक आवाजबनजेलगी.. ‘‘ बस-पाक, बस-पाक....बस-पाक...‘‘ उनक चेतनाभगं हई।वेआख ं मलतेबससेउतरे औरइधर-उधरमंडरानेलगे।तभीएकनीलीकार चौराहेकेदाएिं कनारे परआकरखड़ीहोगई।गाड़ीमसेएकथुलथल ु यि िनकलाऔरएकबड़ासाभारीग ागाड़ीमसेबाहर ख चनेलगा।चार उसे ड़े यानसेदख े रहेथे।लिलतनेदौड़करउसक मददक । ‘‘ कहांपहचं ायदी?‘‘ ‘‘ बसउक पलै सतक...‘‘ लिलतनेउसकासामानवहांपहचं ायाऔरवापसअपनेसािथय के पासआगया।मसं रू एकढाबे के बाहरजाकरबैठगया।रामसमझु इधर-उधरटहलतारहा।लिलतऔरलखैयािकनारे खड़ीएकमोटरसाईिकलसेटेकलगाए खड़ेरहे।तभीएक हरीआधमका‘‘‘‘हेितिमह कोहो ?‘ (ऐकौनहोतमु लोग) ‘‘‘‘हजरू हामीह कामखोजनाकोलािगआएकोह ‘‘ ( जी, हमलोगयहांकामढूंढ़नेआएह) ‘‘.... योगाड़ीमांअड़ेसलािगरकामखेाजीरहेकोछः‘‘ (येगाड़ीपेिटकाकामढूंढ़रहाहै) वहहसं ा। ‘‘ हजरू ...हमीह ठीकमनरहेकाछौ‘‘ ( हमसहीकहतेहसाहब) ‘‘ कहांबाटआएकौहौ ?‘‘ (कहांसेआएहो) तबतकरामसमझु औरमसं रू भीआगए।मगरदरू ीबनाएहीखडे़रहे।येनह जािहरहोनेिदयािकवेसाथह।बसखड़ेउनक वाताला पसनु तेरहे।पिु लसवालेनल े िलतकोिगरहबानसेपकड़ातोवहिगड़िगड़ा◌ानेलगा।इतनेमवोनीलीगाड़ीवालाआदमीवापस आगयाउसके हाथमबहतसारािकरानेकासामानथा।बाहरइसतरहकामाहौलदेखातोउधरहीबढ़आयाऔरआवाजलगाई‘‘ हरीजी, रहनिदनसू ...इनीह हामीह कोसगं छ ै न....‘‘( हरीजी, रहनेदीिजए, येलोगहमारे साथह) ‘‘ कोहोित ो ?‘‘( कौनहतु हारे ) ‘‘..माईसरवट‘‘ ‘‘हो...हो...‘‘ पिु लसवालादसू रीतरफमड़ु गया।उसआदमीनेलिलतकोसंबोिघतिकया‘‘ आउबाबू ..‘‘ (आओबाब.ू ..) -उसनेकहातोदोन नेबढ़करउसकासामानउठािलयाऔरगाड़ीमरखवािदया, िफरउसके कहनेपरवे वयंगाड़ीमबैठगए।जबगाड़ीआगेबढ़ीतोउ ह यानआयािकउनके दोसाथीतोवह छूटगए। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ तमामजगं लपवतपारकरतेहएनीलीगाड़ीबागमतीनदीके तटपरबनीएकभ यइमारतके सामनेजाकरठहरगई।वेनीचेउतरे ।गे टपरदोबदं क ू धारीगोरखाखड़ेथे।उसआदमीनेउ हअपनेपीछे आनेकाकहकरआगे-आगेिनकलगया। णभरकोदोन गोर खानेउ हघरू करदेखाऔरघड़ु का‘‘..ह.ं ..ह...‘‘ तोउस यि नेपीछे मड़ु करकहा‘‘ इ लाईआउनदैउ ‘‘( इ हआनेदो) -दोनोपीछे -पीछे भीतरचलेगए।कोठीगोल-गोलबनीथी।जैसेउंचीपानीक टंक हो।भीतरसेपरू ािव तारिलएहए।बड़े-बड़ेहॉ ल।खबू सरू त स।अटै डटाईलेटऔरबाथ म।सामनेहसँ ताहआिव तृतलॉन।पीछे कल-कलकरतीचंचलबागमती।पू रीलोके शनमअजब र ....िवमोहकसरु ताल।एकअलहदािक मक जादईु िफजां।जेठक तपतीऋतक ु ोठगािदखातीमल ु ा यम-मल े ातोदेखतेहीरहगए।महंु खल ु ायमठ डीबयार।संदु रसलोनाबंगला, उ ह नेदख ु ाकाखल ु ाहीरहगया‘‘....वा........ह‘‘ वेसधु -बधु खोएखड़ेथेिकवहीमहाशयकरीबआकरबोले‘‘ क तोलागीरहेछ ?‘‘ (कै सालगरहाहै) ‘‘ धैरैरा ो‘‘(बहतअ छा) 197 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘आउमाथीिहनौ..‘‘ (आओउपरचल) -औरउनदोन कोवहगोल-गोलघमु ातेहएतीसरीमिं जलपरलेगया।एकबड़ेसेसुसि जतकमरे मलेजाकरछोड़िदया‘‘ लौ...ितमीह यह बसा, जबासमांमनबसितमीलाईइितग नाछः...मियतोितमीलाईपछीभनदीनछू।तबास मितमीह आरामगर...‘‘( लोयह तु मलोगरहोजबतकजीचाहे।बस, तु हइतनाकरनाहैिक....मबादमबतादगंू ा....िफलहालतुमलोगआरामकरो।) ‘‘..हजरू ...‘‘ -इतनाबताकरवो यि चलागया।लिलतऔरलखैयाहैरानसेबैठेरहे।वेकभीअपनेमल ै ेकुचैलेकपड़ औरधआ ु चं ेह ंु -ं धआ र क बाबतस चतेकभीउसगनगनातीसंदु रतामिथरकतीशानोशौकतकोिनहारते।आिखरलिलतबोला‘‘ माजराकछुसमझमांनायआवतहय।हमजईसैिघसे-िपटेपसवु नकाईमखमलीभवनमांलावैककातक ु ?‘‘ ‘‘...अिभनईसबछोड़ौ...तिननहानघरमांचलौमहँु हाथेधेाएकै अदमीबनाजाए।‘‘ ि लतधीरे सेहसँ ा।लखैयाबाथ ममगया।नलके ट टेऔरहिडलटोए-टाए।बेिसनको यानसेदख े तारहा।मनहीमनबड़बडा या‘‘..मल ु ाइमांतोबड़ातमासाहैकईसैकािकहाजाई ‘‘ बड़बडातेहएउसनेएकहिडलघमु ायािकबा रशसीहोनेलगी।वहचीखा‘‘ तिनदउड़तलिलतवा...ईतबरखाआईगवा।िभतरयबरसैलाग।‘‘ -लिलतदौड़ा।देखातोमु कुराया। ‘‘ तक ु ानायपता, ईफ वाराआए।बड़ेलोनइमानहायकयबरखाके रमजालेतहयं ।हमरा ीपारएकबाबक ू ै हवं ादेखारहय।‘‘ -कहतेहएउसनेफौ वाराबंदकरिदया।रामसमझु परू ाभ गचक ु ाथा। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ रातके आठबजेनौकरउ हबल ु ानेआया‘‘ जाउखानाखाईहालन‘ु ‘ (चलोखाखालो) -वेदोनोचपु चापउसके पीछे चलिदए।सप लीसीिढय ़ परपेचलतेहएवेएकबड़ेसेडाईिनंग ममपहचं े।जहांवह यि पहलेसे हीिवराजमानथा।उ हदेखतेहीहसं ा‘‘ आउ...आउ....खानाखाउ...‘‘ वेअगलबगलबैठगए।उसी यि नेदोनोक लेटमखानापरोसा।िफरखदु क थाली मस जीपरोसाऔरतीन खानेलगे।खाते-खातेवही यि बोला‘‘ साईतितिमह मलाईिच हौहोला, ितिमह लेकैलासआनंदकोनावसु नभू ायकोछः‘‘-( शायदतुमलोगमझु पे हचानतेहो।तुमलोग नेकैलाशआनंदकानाम तोसनु ाहीहोगादोनांअपनी-अपनीया ा तक आजमाईशकरनेलगे।तभीलिलतबोला‘‘ उमधेसीनेतातवनाए....‘‘ ‘‘ हांवहय...तल ू ोनकामधेसीआवतहय?‘‘ ‘‘ हजरू ...‘‘ ‘‘ तहमवहायआएन।अ छाछाड़ो।हमईकिहतरहातूलोनकाखालीयाकै कामहय...उकाजहांहमसबु िहयागएरहन।तोरा मा अ क ै ामहैहमारसामनवाहवं ांवहयदक ु ाइ ु िनयामांपहचं ावैकहय...अउबसवािपसआएजावैकहै।अउरकुछनाए।तक कै बदलेतनखािमली।खानाकपड़ाअउररहैकिठकाना।याक-याकबदं क ू अपनसरु छाख ीअउरआवैजावैख ीगाड़ी।मग रजईहवहवं जहांहमकिहब।‘‘ ‘‘ हजरू ..‘‘ 198 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) -खानाख महआतोवेअपनेकमरे मजाकरसोगए।एकमु तके बादऐसीन दआईथीउ ह।रातकरीब३बजेलिलतक आख ं िकसीअजीबसीआवाजसे लगई।वहिव तु गितसेउठाऔरआंखिमचिमचातेहएकुछदेरबैठारहा।बंगलेकेपीछे कुछदरू ी परखाटरपटरक आवाजआरहीथ ।वहउठा।आगेबढ़ाऔरिखड़क खोलदीजोबंगलेकेपीछे क तरफलगीहईथ ।नीचेझां कातोवा तवमकुछअसामा यलगरहाथा।हालांिकह काधंधु लाउजालाथापरचीजसाफनजरआरहीथ ।उसनेआकरल खैयाकोिझझं ोड़ा‘‘..हेकंु भकरनक अउलाद....उठ...‘‘ लखैयाहड़बड़ाकरउठबैठा।लिलतउसेख चतेहएउधरलेगया‘‘...उदेख...‘‘ ‘‘...ईकाआए...‘‘ लखैयाआंखिमचिमचातेहएबोला। ‘‘ गोरखधंधा ‘‘ ‘‘..का...काकहेव...?‘‘ उसकामाथािसकुड़गया। िफरदोन पनु ःबेडपरआकरबैठरहे।लिलतलेटतेहएबोला‘‘ कछुनाकछुदारमांकालाहयज र।‘‘ लिलतस चतासाबोला। ‘‘..चलौहमसेका, हमकािठकानािमलगवा, सोआरामसे.‘‘ ‘‘ आरामकै काहमकाघरे किफिकरसतावतहय।.जानैउससरु े नकाअगलाकदमकाहोई।‘‘ ‘‘अईसाकछुनाएहोई।ससरु े नकािमलगवाहयनीके से।वईसैतोरे घरबारक देख-रे खकािज मातउम टराईनजीिलहेहयं ...तु काकहेकिफिकर...?‘‘ लिलतनेउसेचपु चापदेखापरबोलाकुछनह औरउधरकरवटबदलली। -सबु हिकसीक खटखटसेउनक आख ु ी।लखैयानेउठकरदरवाजाखोलां खल ‘‘..हजरू नम ते..‘ ‘‘..नम तेनम ते...राि कसबीती ?‘‘ ‘‘...बहतझ कासहजरू ...अ ानरमिबछउना, अ ाक मतीकमरा...हमतकभौसपनेहमनायसचारहा..‘‘ ‘‘...ओहोहो...चलोना तापानीकयलेवचलकै अवअपनकामपिनक रजाउ...‘‘ ‘‘ हजरू ...‘‘ दोन एकसाथबोलेऔरउठगए। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ न तापानीकरके उठे तोनौकरनेउ हदोजोड़ीकपड़ेलाकरिदए। ‘‘ ईकाहोई...‘‘ लिलतनेपछ ू ा। ‘‘..पिहनलेव‘‘ ‘‘..ओह..‘‘ -दोन कपड़ेलेकरउपरअपनेकमरे मचलेगए।कुछदेरबादवेउसीकपड़ेमनीचेआए।नीलीपटओरिफरोजीशटमलिलतऔर पीलीपटऔरहरीशटमलखैया।दोन के िसरपरपहाड़ीटोपी।नीचेलगेआदमकदआईनेमउ ह नेकईदफाखदु कोघमू -घमू कर देखाऔरमु कुराउठे ‘‘..ईबिढयाभवा...‘‘ िकतभीकै लाशआनंदने वेशिकया‘‘ अरे वाह...तहु जनौतलागतहवबाबबू िनगवा, बहतबिढया...बहतबि ढयाअबचलौगाड़ीतै य्◌ारहय....‘‘ ़ ़ ‘‘...मगरकहां...‘‘ ‘‘ उ ाईबरवकमालूमहय।वईसै, जहांकालगएरहौहवं ...आओबताई..‘‘ -दोन उसके पीछे चलिदये।बाहरगाड़ीखड़ीथी।वहदोन कोगाड़ीके पासलेजाकरसमझा◌ानेलगे199 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘ इमाकछुज रीसामानभराहय।तमु कायहीड बाउवहयदक ु िनयमपहचं ावैकहयजहांहमदईकै आएरहा।कछुपिू छनतई काडिदखाएिदहेव।‘‘ -औरदोन कोअपनािविजिटंगकाडपकड़ािदयािफर ाईवरकोआवाजलगाई‘‘..डरे बरहो...‘‘ ‘‘ हजरू ...‘‘ कहतेहएवहदौड़ाहआआयाऔरगाड़ीकाअगलादरवाजाखोलअपनीजगहसेटहोगया।दोनोपीछे संभलकर बैठगए।कुछहीदेरमगाड़ीनेर तारपकड़ली।लिलतपरू े समयरा तेपरहीनजरिटकाएरहा, कौनसारा तािकसओरजाताहै।लखैयाइसखामोशीसेबोरहोनेलगा।उसने ाईवरकोबल ु कारा‘‘..के डरे बरभै या, तक ू हांसेहव..?‘‘ ‘‘..भागलपरू ....िबहार...‘‘ ‘‘..तिहयं ांनउक रकच करमांआवागवाहयका ?‘‘ ‘‘..अपनसािहबौतौहवं क ै आए।भागलपरु े क, िहयं ांएनकै कारोबारहयतिहयं ांरहतहयं ं।हमहक ं साथेिलहेआय‘‘ ‘‘.. अ छायाकबितयाबताव..‘‘ ‘‘..हजरू ‘‘ ‘‘..काहमलोनकातनखावनखािमली ?‘‘ ‘‘..काहेनािमली।कामक रहवतज रिमली..‘‘ -बातो-बात मरा तापारहोगया।गाड़ीमाकटसेहोतीहईउसीमॉलके सामनेआकर कगई।दोन नीचेउतरे ।ग ानीचेउतारा। लिलतउसग क े ोउठाके मॉलके भीतरचलागया।लखैयाबाहरहीठहरगया।इधरउधरदेखतारहायंहू ीिकउसेएककपड़ेक दु कानपरमसं रू िदखगयाझाड़लगातेहए।वहच का‘‘....अरे ...ईमसं रु ‘वािहयं ांकाकरतहय...‘‘ वहह के कदम सेउसके समीपपहचं ा, पीछे जाकरखड़ाहोगयाऔरिफरधीमसेबुलाया‘‘...हेरे....मसं रु ‘वा ‘‘ मसं रू हड़बड़ागया‘‘...को.... कोहोत.ू ..‘‘ -िफरपहचानतेहीवहचहका‘‘..अरे बाबईू तबड़ासटू बटू मांआवाहय।सबठीकतहयना ‘‘ ‘‘...सबठीकहय...उदेखलिलत...‘‘ -लिलतवह खड़ेहोकरलखेयाकोटटोलनेलगा।कहाच ु ारा-‘‘ हेलिलतदायी...तिनयहरआ ं लागवासार...िकमसं रू नेपक ओयहर...‘‘ -तभी ाईवरनेहॉनिदयातोलिलतच का‘‘..आईगएन...आईगएनभईयाओलखैया...वहरकाउखारतहय...चलयहर ‘‘ िफरधीमसे ाईवरक तरफसंकेतिकया।लखैयानेबातबनाई‘‘...हजरू , आईतहयआईतहयतिनपानलेकरहय...‘‘ औरकौशलआनंदवालाकाडधीमसेिनकालकरमंसरू कोथमािदया‘‘...यहयिठगानाहमार...‘‘ औरआगेबढ़गया। ५ रातके तीसरे पहरजोभीजागाच कपड़ा। ‘‘ हायदईया...काभवा..?‘‘ 200 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘..ईह ला ...सोरगल ु कस...‘‘ ‘‘..मनैकुकुरवनक भकाई ाखौ -लोगजागतेऔरभागते।परू े गांवमह लाहोगया‘‘..परधानेकह याहोईगई।‘ ‘‘..कोिकिहस...?‘‘ ‘‘...कोजानै...‘‘ -भेारहोते-होतेगावं पिु लसक छावनीबनगया।आम के जवानसीमासेसीमातकमु तैद।जगं लमभीजगह-जगहआम के आ दमीफै लगए।गावं वालेघरमदबु कगए। यापतािसरिफरे आम वाल कोकबिकसपेसदं हे होजाएऔरभनू डाल।नारायनऔर जगु रानाक गतभल ू ेनह थेव।े रात-रातभरग तलगती।रे िडयोपरलोग यजू सनु तेरहते।हालांिकगांवमइ कादु कारे िडयोही थे। मधू ीसहमीसीस चमबैठीथीिकअबउसगांवकाकुछनह होसकता।हेडमा टरनेरायदीिककुछिदनके िलएअपनेश हरलौटजाए।सास सरु क सेवाकरे कूलतोअबगयाभाड़म।नाब चेपढ़नेआएगं ने ाअिभभवकहीपढ़ानाचाहगे।मगरउस काजीकहांमानता ? बेचारे गांववालेांपरिवपदाआईहैतोवहभीभागखड़ीहो।िफरलिलतअपनाप रवारउसेसौपगयाहै, उसे याजवाबदेगी ? उसनेघड़ीपरनजरडाली, सबु हकाचारबजरहाहै।गांवकाशोरतेजहोरहाहै।तभीिकसीनेदरवाजेपरद तकदी।वहच क िफरधीरे सेउठी‘‘..कौन..‘‘ ‘‘..हम, ज गक ू अ मामा टरनीजीतिनदरव जाखोलौ..‘‘उसनेउठकरदरवाजाखेालिदया।सामनेज गक ू खड़ीथ छूटतेहीबोल ‘‘...अरे मा टरनीजीकछुसनु ेव धना य के रह याहोईगए ?‘‘ ‘‘...ओहोतोम याक ं ।...अ छीखासीसोरहीथीमैतमु लोगभीना..मरनेदोउसेपापवोकरे गातोभगु तेगाकौनकरे गा?.देखा नह तमु लोग काहकमारकरउसनेकोठीबनवाईथीपरकुछलेकरगया, एकिदनभीतोउसमसोनेनापाया।भगवानसबदेखताहैजाओतमु भीजाकरसोजाओरा स क मौतपरशोकनह मनाते।‘‘ -ज गक े रहीथी।वहच क ..‘‘ ू मांअजीब-अजीबिनंगाह सेउसेदख ‘‘.. याहै........?‘‘ ‘‘..कछुनाह मा टरनीजी...तसू हीकहतहव...हमारबड़कयबेटवाकै जमीनयहयतबईमानीसहिथयायिलिहसहमकाकाप ड़ीहैसोकमनावैक...‘‘ -वहलौटगई।मधिू फरजाकरलेटरही।स च क चरखीपनु ःघमू नेलगी-मधू ीमल ू तःइलाहाबादक रहनेवालीहै।एकिवदषू ीमिहला।आय३ु ०वषतक।सन१९९२मनेपालके िजलाबांकमएकस मं् ातप रवारमउसकािववाहहआ।पितवससरु यवसायीथे।िकंतदु भु ा यवशिववाहके दोवषबादहीपितकादेहावसानहोग या।हसं तेगनु गनु ातेप रवारपरआईअचानकिवपदानेमधक ू ोतोड़िदया।वहिदनबिदनशामक तरहढलतीजारहीथी।सास, ससरु नेबारहासमझायािकपनु िववाहकरलेिकंतउु सके अतं सनेयहसमझौताकुबल ू नह िकया।वहइसीअ वीकृ तवतमानके साथजीलेनाचाहतीथी।अतं तःससरु नेउसेिकसीनौकरीमलगजानेक सलाहदी‘‘...बिहनीकउनवकाजैस भा रलेव।अईसैकबलेचिल।तिनमन-बिहलावहोईजावाक र।धरमपरी-परीतपलंिगयैयलाग जईहव।हमारयाकै लियकाअबवहवनायरहा, तअबतहु यै एकै िनसानीकै पमांबचीहव।अबतहू मारपतोनाह िबिटयाहो...‘‘ -िफरउ ह ने यासकरके उसेइस कूलमलगवािदया।तबसेवहइसीगांवमरहनेलगी।गांवममनभीलगगया।वहपाबंदीसेअप नीड्यटू ीिनभातीरहीऔरखश ु रही।िकंतक ु ु छिदन सेखामोशमनमजैसेहलचलसीमचनेलगीथा।अजीबचांदनीऔरिहलो 201 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) र सेभरगयाथामन। -िकंतनु ह ... वि नलऋतओ ु कं बजाएगावं मलगीइसअबझू ीआगक बाबतस चना यादाआव यकथा।खैरवहउठी े शहई।िफर धानके घरक तरफचलदी। - धानके घरके आसपासखासाशोरशराबाथा।स बधं ीऔरघरक मिहलाएजं ोर-जोरसेकारनकरके रोरहीथी।आमजनता काकोलाहलखबू था।ि याकरमकातोअभीकोईऔिच यहीनह था।पो टमाटमके िलएलाशलपेटीजानेलगीिकनरे शस मेतगांवके अ यनवयवु क नेिवरोधशु करिदया‘‘..नायहोएदियब...पो टमाटम।‘‘ ‘‘...काहे..?‘‘ िसपाहीनेपछ ू ा। ‘‘..जबहमारभाईनरयनामरारहातईलोनपो टमाटमवाख ीलहासलईजावैसमनाकयिदिहनरहा, तअबकाहेअ ीछटापेटीमचीहय‘‘ तभी धानके लड़के ओकं ारका वरगजंू ा‘‘...तल ू ोनहटतहविकचलाईबंदिु कया..‘‘ िकंतनु ह , लोग नेसीनातानिदया‘‘..अबहमलोनगोिलसनायडरयवालेहन।चलाओगोली...‘‘ ओकं ारके हाथपैरफूलगए।तभीभीड़चीरतीहईमधु ीआगे आई।उ हदेखलोगखदु बखदु थेाड़ापीछे हटगए।नरे शनेमधू ीकोदेखातोकुछकहनाचाहा।मगरमधू ीनेपहलेहीहाथउठा करइशारािकया‘‘..नरे श, बवालनह ...जानेदोइ ह।वैसेभीकाफ देरहोचक ु है।‘‘ ‘‘..काबातकरतहवमैडम...उिदनतक ु ानाययाद...‘‘ ‘‘..मझु से बयादहै।मगरइससेकोईफायदानह ।ज रीनह िकअगलाशेतानहैतोहमतुमभीशैतानबनजाए।ं ‘‘ िकओकं ारगर जा‘‘...मईडिमया...तक ु ातहमदेखलियब...‘‘ -भीड़नेएकनजरमधू ीकोदेखा।मधू ीकोझरु झरु ीसीआगई।कुछलोगओकं ारक तरफझपटेिकमधू ीनेरोकिदया। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ रातकाआचं लधीरे धीरे िव तृतहोताजारहाथा।पंिछय नेअपनीच -च ताखपेरखकरखमोशअपनेघ सल मफै लगएथे।गां वके बाक भीहोड़लपेटके सोरहेथे।मगर धाना य के भवनमअबभीरातहारीहईथी।लोगबागजागरहेथे।िसंसिकयांअब भीवहांरगरहीथ ।ब चेकसमसा-कसमसाके जागसोरहेथे।मिहलाओकं ाआलापजारीथा।मगरबैठकक फजांकुछऔरथी ।ओकं ारकुछआम के जवान के साथबैठािकसीगहनगु तगमू त लीनथा।एकआम जवानकहरहाथा‘‘...ओकं ारबाबू...जनतामाथीदबावरपकड़बनाउनअिनवायभईसके कोछ ‘‘( ओकं ारबाबू, जनतापेपकड़बनानाबहतज रीहै) ‘‘...कछुसमझमानं ाह आवतहय..‘‘ ओकं ारके चेहरे सेिनतातं असहताटपकरहीथी। ‘‘...हािमह आफनोबल योगगर ?‘‘ (हमलोगअपनीताकतआजमाएं?) ‘‘...करौ...तहु ीलोनकछुकरौ...हमारिदमागतअबशू यहोईगवा। ‘‘..हं छ...हामीहेछम‘‘ (ठीकहै, देखतेह) कहतेहएपांच आम यवु कबाहरिनकलेऔरअधं ेरेमखोगए।हांउनके बातचीतका वरभलेहीस नटेमतैररहेथे‘‘...उनीजनु चारके टाह िथयो..पिहलाितनीह लाईसमातनआ ु व यकछ, पिहलेतेह िहड़ ‘‘ (वोजोचारलड़के थेना, पहलेउनपरपकड़कसनाहैपहलेवह चलतेह ) ‘‘..योठीकछ ‘‘ (यहसहीहै) 202 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘..माल मलिलतके वहांजाताह, ं िलतको याजा हिं तिमचारछुटै-छुटैघरमांगयरकठोरतालसोहनेगरा‘‘( तमु चार अलग-अलगघरांमजाकरपछ ंू ताछ ं करो) ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ रातके लगभगएकबजचक ु े थे।गांवमसोतापड़ाथा।रह-रहकरकु का दनभलेहीरातके स नाट कोचीरजाता।तभीलिलत के घरकादरवाजाखड़का‘‘..कउनयवईछ...खोलनसू ...‘‘ (कोईहै, खोलो) ‘‘...हजरू ...को...?‘‘ भीतरसेसहमीसीआवाजआई। ‘‘...खोलनसू ...म हरी...‘‘(खोलो, मपिु लस) -मालतीडरके मारे कांपगई।अ ीरातगए हरी...? भलाकरौभगवानअबकउनैिदनिदखईहव... औरआगेबढ़के उसनेदरवाजाखोलिदया।दरवाजाखल ु तेहीवहिसपाहीअदं रघसु ा‘‘..लिलतकताछ?‘‘ ( लिलतकहाहं ै ) ‘‘..उनाईहयहजरू ...‘‘ ‘‘...तोतहोसमाईिडयर..‘‘ ( ततू ोहैमाईिडयर) आम िसपाहीनेउसेबांह मभ चिलया।औरिफरमालतीक चीखपुकारके इतरउसनेअपनीतृि क औरचलताबना।उसरात ऐसामजं रचारऔरघर महआ।उसरातऐसाहीमंजरचारऔरघर महआ।िशकारहईऔरतकटेपेड़क तरहरातभरपड़ीअपने भा यपररोतीरह ।उसरातमालतीके िसवासभु ानक बीबी, लखैयाक बेवाभाभी, रामसमझु क सालीऔररमेसक बीबीभीउनक हवसकािशकारबनी।परू े गांवममरीमसानपड़गई।परू ीरातग रयरे कोसतेगजु रगईऔरसवेराहोतेहोतेरमेसनेअपनीप नीकोयहकहके झ टापकड़करबाहरकरिदयािक‘‘...िनक रजाहमरे घरे स।अबतैजठू नकालईकै हमकाकरबै ?‘‘ -वहलाखचीखतीरही।िच लातीरही।हाथपावं जोड़तीरहीपररमेसकाजीनह पसीजातोमायके चलीहीगई।उधरसभु ानने भीतीनल जबोलकररफादफाकरिदया‘‘.....ितलाक.....ितलाक....ितलाक......‘‘ ‘‘...नाह िसमरनके अ ब.ू ..हमरीकागलती...हमरीिनयतमाक ं उनवखोटहोईतीतबकिहतेव..‘‘ ‘‘...अबतनू ापाकहोईगईवहमरे कािबलनायरहीउ....औउसारनसनीतहमिनपटलेबय‘‘ सभु ानगरजातोबीबीकोभीरोष आगया‘‘ हहं उनसेकािनपिटहव...उबखततचड़ू ीपिहरै बईठरहवबादमागु सामेहा ‘पउतारतहव।धेाबी‘सजीतनापाउगदह‘क कानउमेठौ।तबकहांघसु गईरहातोरीमदानगी।हमरे महंु ‘पतलाकमा रकै अबझठू ीमदानगीिदखावैचलैहव...तलाकतह मै तक ु ादेकचाहीिकह ाक ामरदघरे मबईठरहाअउरबीवीक सरु छानायकईपाईस।तख ू दु यनाईहयहमरे लाईकरे आ....त.् .. थ.ू ..‘‘ औरसभु नके आगेथक ू करवहभीतरचलीगईऔरअपनेकपड़ेबांधनेलगी।उसकाथक ू नासभु ानकोकांटसाचभु ा।ित लिमलाके रहगया।लखैयाक बेवाभाभीजानेकौनसमयमघरसेबाहरिनकलगईऔरअपनेब चेसमेतरा ीमछलांगमारदी। सबु हजबनदीमभसनहलानेगएब च कोउसक लाशिदखीतोसारे भागेभागेआए।रामसमझु क सालीकोघरवाल नेबड़ीम श कतसेसमझाया।औरकहामंहु बंदरखे।वनाजोगितरमेयऔरसुभानक प नीक हईहैवहीउसक होनेवालीहै। ‘‘ हमलोनकिहदईब...िहयं ाक ं उनवअईबयनायिकहारहा...‘‘ -तबजाके उसकािवलापबंदहआथा।हांउसके पितजगजीतकोसिू चतकरिदयागयाथािकआकरउसेलेजाएगांवक िफजां ठीकनह है।उसक ससु रालभारतके अगैयागांवमथीजोसीमासेलगाहआनाहोकरकाफ दरू ीपरथा।िज लेकेबाहर। 203 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) मलतीदोन भाईय समेतघरमहीबंदबैठीरही।उनके भीतरएकभयावहसहमउतरगईथी।मांजगु रानावैसेहीफटीफटीआं ख सेयहावं हादं ख े तीरहीथी।मालतीकाचेहरासजू ाहआथा।बदनपरखर चके िनशानथे।कपड़े, जोपहलेहीफटेथेऔरफटनचु गएथे।संदु रचेहराउदासीऔरददसेकालापड़गयाथा।अचानकछोटाभाईउठाऔरबाहरचला गया। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ दरवाजेपर ,खटखटक आवाजउभरीतोमधू ीक आख ु ी।घड़ीपरनजरपड़ीतोहड़बड़ागईसबु हके आठबजचक ुे ं खल थे।वहउठकरकमराखोलबाहरआईऔरवह सेपछ ू ा‘‘ कौन...?‘‘ ‘‘ हमहोईमैडमजी..‘‘ ‘‘..रोिहत..?‘‘ उसनेकहतेहएदरवाजाखोलिदया।सामने आसं ासारोिहतखड़ाथा। ‘‘... याबातहैबेटा..?‘‘ -उसक आख ू गए। ं मआसं आ ‘‘..मैडमजीयाकआम वालारितय‘मघरे मघिु सयावारहामालीतदीदीके साथे...‘‘ कहतेकहतेवहिसंसिकयांभरनेलगा।म धू ीध सेरहगई।उसनेकुछखानेकासामानथैलेमभरकरउसेपकड़ायािफरमहंु परपानीडालाऔरउसके साथचलदी। -लिलतके घरपहचं ीतोमालतीखामोशबैठीथी।उसेएकउचटतीिनंगाहसेदख े ािफरदसू रीतरफदेखनेलगी। ६ सबु हके छःबजेह।कोहरातोनह हैपरह क ह क फुहारसीपड़रहीहिजससेमौसमखश ु गवारहोउठाहै।कै लाशआनदं नीचे लॉनमचायिसपकरतेहएकोईपु तकपढ़रहेह।लिलतऔरलखैयासोकरउठे तो ै शहोकरसीधेउ ह के पासचलेआएऔरस पीपपहचं करपांवछूिलया।उ ह नेच कदेखा‘‘..ओह...उिठगएतूलोन...गडु मॉिनग...‘‘ दोनोबोलनेकेबजाएहसं िदए। ‘‘...बैठो...‘‘ वेकरीबहीनीचेघासपरबैठगए।लिलतबोला‘‘...हजरू कापढ़ाजातहय...?‘‘ ‘‘...माओ सेतंगु ...‘‘ ‘‘...का..?‘‘ ‘‘..तनू ासमिझयाबईठवबताईतहय...‘‘ िफरनौकरकोआवाजदी-‘‘ होबहादरु ...तिनतीनिचयालानसू ..‘‘ िफरउसक त रफमख ु ाितबहए‘‘ माओ सेतंगु कयजनमअं ेजीके ितिथ१८९३/१२/२६गतेभवारहा।ईचीनी ाि तकारी, राजनीितक, िभचारक, सा यवादीदलकयनेतारहय।इनिहकदेखरे खमांचीनकय ाि तभयी।जउनसफलभई।ईजनभादीगणतं क थापनािकिह नअउरउिमरभरचीनकयदेखरे खिकिहन।ईमा सवभादीअउरलेिननभादीकयसैिनकरणनीितजोड़कयजउनैिस ांतका ितपादनिकिहनउमाओवादकयनामेसजानाजातहय।वतमानमईहां क ं छुलोनईस दकािववादा पदबनायिदिहनहयं ।बा िकरचीनमांतउराजक य पमां ाि तकारी, राजनीितक, रणनीितकार, सईिनक, परु ोधा, अउरदेसभ मानेजातह।चीनकयअनसु ारमाओअपननीितअउरका रकरमकयमा यमसेआिथक, तकनीक , अउरसां कृ ितकिवकासकयसाथे-साथेिव वमां मख ु सि कय पमांमु यभिू मकािनभाईन।िनधनअउरमजदरू लोगन काउनकै अिधकारिदवाईन।गरीबवअमीरकयबीचक खाईभरे मइनकयबड़ायोगदानरहा।‘‘ दोन के महंु खल ु ेकेखल ु ेरहगए।लखैयामनहीमनबदु बदु ाया-‘‘ औउदरोगवासारकहतरहामाओवादीमतलबआततायी... ..सार..., 204 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) अबहमहल ं ोनकाइनिहककदमपकदमराखैकहय...‘‘ तभीमेनगेटपरपेपरवालाआयाऔरपेपरडालगया।लखैयानेदौड़क रपेपरउठायाऔरकौशलआनंदकोदेिदया।वहअखबारलेकरपलटनेलगे।तोदोन वहांसेउठिलए।आगेबढ़करदोन एकदसू रे कोदेखकरमु कुराए।लिलतआंखनचाकरबोला‘‘..तहमलोनहोईमाओभादी...‘‘औरदोन हसं पड़े। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ दोनोकोशहरजातेमहीनाभरहोगया।अपनेिनि तसमयपरगाड़ीमजाबैठते।गाड़ीचलदेती।शहरपहचं करवेका पलै स ‘‘िदहीवेन‘‘ मघसु जाते।और ‘‘हे दीटे ट‘‘ नामक दक ु ाकातभीहोती ु ानमअपनासामानस पतेऔरचलतेबनते।हांआतेजातेरामसमझु औरमसं रू सेमल रहती।जैसेहीनीलीगाड़ीआतीिदखतीरामसमझु औरमसं रू िकसीबहानेसेकॉ पले सक तरफहोलेतेऔरआसपासमडं राने लगते। एकिदनकै लाशआनदं सेउनके ाईवरनेइसबातकािज करहीिदया।उ ह नेफौरनदोन कोतलबिकया‘‘..आयं होतल ू ोनउमाकिटयामांकउनैदईु लोनसनीभयं् ांटकरतहवकउनआएउलोन..?‘‘ ‘‘...उलोनहमारसाथीआएहं जरू ।हमचारिमलागवं ‘वसआएरहनकामैक तलासमां।उदोन हवकहझं ाड़बहा क नउकरी करतहयं । ‘‘ ‘‘...ठीकहय।अबजाउबािकर...जईसैतूलोनसेअपे ाक नजातहयउकै िखलाफजायककोिससनािकहेव...उलोनसेवईसै दरू ै रहेककोिससिकहेव....सामकयहमारपाट कै मीिटंगहयतहु लोनकासािमलहोयकहय...‘‘ ‘‘...हजरू ...‘‘ दोन नेहांमिसरिहलायाऔरहॉलसेबाहरहोगए। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ सायं६बजेनीचेकेबड़ेहाॅ लमसभाकाआोजजनहआ।काय मआयोिजतहोनेतकपरू ाहॉलभरचक ु ाथा।वेदोन भीआ करबैठगए।काठमा ड के कईसुनेसनु ाएनाम के सा ातदशनहएउ ह।सभीमअपनेअि त वकोलेकरिचतं ाथी।अपनेवजदू कोलेकररोषथा।खदु कोजमीनसेजोड़नेक छटपटाहटथी।इनलोग म ोफे सजथे, छा थे, नेताथे, कलाकारथे, मिु लमनेताऔसमाजसधु ारकथे।सामनेएकबैनरटंगाथािजसपेिलखथा अवधीमहो सव२०६८ (२०१२) काितक-१७-१८गते अवधीभाषातथासं कृ ितसंगो ी एवं बहभािषककिवगो ी, आयोजक-नेपालकला ित ान, काठमा डो सयं ोजक-अवधीसां कृ ितकिवकासप रषद वेदोन भीकोनेमदबु के बैठेरहे।नेपाल-भारतमै ीसंघके अ य रमेसकुमारमदरु ईनेसबका वागत ािपतिकयािफरमधेसने ता पनारायणिसंहकोमचं परआमिं तिकयाइसआदं ोलनकाएजे डापढ़नेकेिलए।वहमचं परआएओरएजडपढ़नाआर भिकयाआदरणीयमचं अउरस मख ु बईठसभैभाईबंधु...जईसािकआपसभैकापताहोएकचाहीिकमधेसीआदं ोलनकोईनवाआदं ो लननाह हय।इकै सु वातहमारपुरखैकईगएरहा।अबवहयकाआगेबढ़ायकयहमकासफलबनावैकहै।नेपालसरकारहमम धेिसनभाईनकाउदजानायदईरहीजउनैकयहमहकदारहन।ईहमारज मभिू म, करमभिू मत बौहमअजनबीकअसिहयं ारिहतहय।हमारभाषाउपेि त, 205 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) हमारसं कृ ितउपेि त।इकै सबकानेपालर मांजगहिदयावैख ीहमसबकाएकजटु होयकयसंघषकरै कपडी।याबईठकव हयसघं षक अगलीकड़ीहय...हममधेसीलोनकयएजडाकउनवबड़ाएजडानाईहय....अबहमतूभईयालोनकाअपनसमू हकयएजडापिढकयस नु ाईतहय...‘‘़ १-नेपालमाअ ं वधीबोलयवालेपं हलाखलोनहयं , ितहवइका ादेिसकभाषामानाजायरहाहय।हमारउ से यहयइकानेपालमांजगहिदयावैक‘‘ २-क ा१से५तकमातृभाषाक िश ाहोयकचाही। ३-क ा६से८तकबहभािषकिश ा।ईबहभािषकिश ामातृभाषाआधा रतहोयकचाही। ४-भईयालोन...ईनेपालसरकारमांहममधेसीनसेबड़ाभेदभावक नजातहै।हमलोनकाबािहरकयमानाजातहय।हमकासे नामांभत नायिकहाजातहय।हमारएज डाकयचउथाज रीमांगहयिकहममधेिसनकासेनामांभत िकहाजावै। ५-अवधीभाषातराईके रभाषाहोय।इकयतराईकयभाषामांतीसर थानहय। ६-कोहलपरु सारणक काअवधी सारणके बनावाजाय। ७हमारमधेसनेतादगु ानदं झा, अउरगज नारायणिसहं जउनैईरा के ख ीअपनजानदईिदिहनउनक मृितमाक ं उनवपरु कारभेाजनाजारीिकहाजावै। ८- हममधेिसनकािवख डनकारीकहाजातहै।हमरे ितसरकारकयया ि कोणबदलैकपड़ी। ९- भ यालोनअपननाराआए ‘‘ स मान, विभमान, पिहचान‘‘ १०-भारतअउरनेपालकयबीचरोटीबेटीकयसंबंधिफरसनी थािपतकरै का।बसअ ।ै औरवहअपनीजगहपेिफरसेआकरबैठगए।िफरलखनउसेपधारे एडवोके टअतल ु झानेअपनाभाषणशु िकया‘‘ भाईलोग नेपालक संिवधानसभा ारापेशिकएगएसंिवधानके मसौदेमभारतके साथरोटी-बेटीकासंबंधसमा करनेका यासिकयागयाहै।नएमसौदेकेमतु ािबकभारतीयसेशादीकरनेवालेनेपालीनाग रकक संतानदेशमरा पित, उपरा पित, मु यमं ीऔरसेना मख ु सिहतअ यमह वपूणपद परकािबजनह होसकती।मसौदेकेअतं गतदेशके मह वपू पदोके िलए नेपालीवश ू के नेपालीनाग रक ं कोहीउपयु मानागयाहै।इसकासबसेअिधक भावभरतीयमल ‘‘मधेिशय ‘‘परहीपड़ेगा।इसनएमसौदेकेअनसु ारभरतीययािवदेशीसेिववाहकरनेवालेनेपालीपु षक प नीअथवामिह लाके पितकोअगं ीकृ तनाग रकतादीजाएगी।अगं ीकृ तनाग रकदेशके अहमपदोके यो यनह मानेजाएगं ।े यिदयेमसौदासिं व धानक श ललेलेताहैतोइसेअदालतमभीचनु ौतीनह दीजासकती य िकसंिवधानअप रवतनीयहै।इसिलएसंिवधानअ पनेपणू पमआएइससेपहलेहमएकबड़ाआदं ोलनकरनाहोगा।यहीनहीहममधेिसय के िलएअलग ा तक भीबातकरगे। ...‘‘ इतनाबोलकरवहबैठगए।लोग नेतालीबजाकरउनके िवचार का वागतिकया।स ावनापाट के अ य राज माधोनेअप नेव यमकहािक‘‘नेपालके करीब५०फ सदीमधेिशय काभारतके साथरोटीबेटीकासंबंधहै।नेपालसरकारकायेदु यासइनसंबंधाकोसमा करदेनेकादु कृ यहै।‘‘ नेपालगजं सेआएजीत चौबेनेअपनेिवचारअवधीमहीरख‘‘... कृ ितकसषु मातेअिभमि डत, श यामलाअवधभिू मपरु ातनकालसेआपनगौरवगाथाकै बखानकरतचलीआवतहै। याग, काशी, अयो या, िव याचलजैसनतीरथयह अवधकै पनु ीतधरामांिव मानहै।च वत स ाट, राजामा धाता, िदलीप, नहष, रघ,ु दशरथयहीपिव़ मेदनीकािमलेह।तल कबीर, जायसी, ु सी, िनरालाजैसनलोकसािह यकारनकाजनभावयवालीयहैजननीज मभिू महोय।रानील मीबाई, चं शेखरआजाद ,रानावेनीमाधविसंहजईसन ाि तकारीसपूतनकै ज मदा ीयहैअवधभिू महोय।गगं ायमनु ा, सर वती, 206 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) गोमती, सरयू, अिचरावती (रा ी) जैसनस रतनसेअिभिसंिचतयहपावन देसबरहोमहीनामेला, ितिथ योहारनसेगजंू तरहतहै।बाराबक ं , अबबहराइचकै दरगाहशरीफ, अब यागकै कंु भमेला, उ नावकै तिकयामेला, दिु नयाभरमा िस है।ितलोईकै ताल, अमेठीकै उसरयही े मांपड़तहै।संगीतसमार् टतानसेनकाजनमयहीअवधम डलके रीवा े़ मांभवारहै।यहीलोकसािह यकै िनमाणनेपालकै दि खन, तराई देशकै बांके, बिदया, कै लाली, किपलव तू, नवलपरासीऔदांगिजलनमांभवा।यीिजलनकै मख ु बोलीबानीअवधीहै।यीअवधी े़ भारतकै उ र देशकै २०िजलन तकसीिमतहै।ग डा, फै जाबाद, सु तानपरु , ापगढ़, इलाहाबाद, जौनपरु , सीतापरु , िमजापरु , बादं ा, हरदोई, औकानपरू ।नेपालमांलगभग१०लाखऔभारतमां१०करोड़जनताअवधीभाषाभाषीहै।इहकारणतेहममधेसीनकानेपाल कै संिवधानमाजगािमलैकचाहीऔअवधीभाषाकरा ीयदरजािमलेकचाही...बसअततैकिहनाहैहमार...‘‘ उसके बादभीऔरलोग ने-अपनेअपनेपचपढे।अवधीभाषाके यकरणपरभीचचाक गई।इसतरहकईघ ट तकयेसभाच ली।सभीके मनमअ िव ानथे, ं पनेअि त वकोलेकरिचंताथी।इनमसेकुछलोगभारतसेभीथे।येसारे लो ोफे सरथे, छा ़ थेऔरनेताथे, कलाकारथेऔरसमाजसधु ारकथे।कुछछा नेयहातं ककहडालािकमधेिसय काअपनाअलग ा तहोनाचािहए।परयह बातलिलतकोअखरगई। ‘‘...ह.ं .हईइिं डयावालेटुकड़ाकरै मबड़ामािहरहयं ।ईतहमनाहोईदेब।हमारदेसकयटुकड़ाक रहयं ताखांदडारब...‘‘ औरझंु झलाकरउठगया।पीछे -पीछे लखैयाचलाआया।देरराततकमीिटंगचलतीरही।िफरमीिटंगका पपाट नेलेिलया।पीनेिपला नेकादौरशु हआ।जखैयानेअपनादोन काखानाउपरहीमंगवािलयाऔरखापीकरलेटगए।लखैयाकोतोन दआगईपरवह देरराततककरवटबदलतारहा। ...वहयहां याकररहाहै।नाजानेघरपर याहआहो।सबसरु ि तहिकनह ।मैडमहतोवहां, परऔरतजातसेआम वाल का यामक ु ाबला।स चतेस चतेउसेजानेकबन दआगई। ७ मसं रू औररामसमझु नेगोलमाकटमहीअपनाकामधामढूंढ़िलयाथा।मसं रू एकमेिडकल टोरपरलगगयाथाऔररामस मझु कुछगजक दरू ीपरहीएकि लीिनकपरकामकरनेलगाथा।मािलक नेउ हएकएकिबछावनऔरएक-एकक बलउ हदे िदयाथा।मसु रू नेएकमेिडकल टोरके आगेहीपड़ीबरसातीके एककोनेमअपनाअडडाजमािलयाथा।रातकोवह ओढ़लपेट करसोरहता।इससेमिे डकल टोरक चौक दारीभीहोतीरहती।कुछऐसीहीि थितरामसमझु क भीथी।िबछावनतोमािलकने िदयाथा, िकंतिु ठकानेकाबंदोब तउसेखदु करनाथा।आसपासक खालीपड़ीिकसीनािकसीदक ु ानके सामनेपड़ीिकसीजगहपरअप नािबछावनिबछालेताऔरसोरहता।कुछिदनयहीि थितरहीिफरएकिदनमसं रू नेअपनेमािलकसेकहके उसके सोनेक यव थाअपनेवहांबरसातीमहीकरली।मंसरू को२५ ०राजिमलतेऔररामसमझु को२० ० ितिदन।उसीमउनकाखानापीना भीथा।कभीकभीवेझझंु लाजाते‘‘....तकाहमलोनक िजदं गीअईसनबीतजईहय....?‘‘ रामसमझु एकिदनलेटेलेटेयंहू ीबोला‘‘...कापता...उदोन अईतवहयं तदरू ै स ाखकै चलताबनतहयं ।कउनवमंसबू ा, कउनविपलानकछुपतयनाय...काहमयहयख ीअ ाबड़ाकदमउठायहन, हवं ाजानैकउनकउनदसाहोईहमारप रवारनकय।तीसरकामहीनालागैकचाहतहय।‘‘ मसं रू नेिचंताजताई। ‘‘...अउरतअउरअगरकहहं मदनू क िसना तलागगईतजेलेमपरे -परे उम रकिटजाई...‘‘ रामसमझु नेयादिदलाई।िफरवह कुछस चतासाबोला‘‘...अईसनकरौ, 207 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) किलहाजबउदोनौिमलादक ु िनयमजावतबातकरै कप रयासिकहाजाई।औनाहोयपाईतसंझकफोनिकहाजाई।उकरडवात तरु े लगेहयना...‘‘ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ बह-सबु हमि जदमहोरहीअजानक आवाजसेउनक आँखखल ु गई।मसं रू नेलेटेहीलेटेहीकरवटबदलीिफरगहु ारा‘‘..हेरामसमझु वाउिठहयनाकाअ बैछःबजाउलोनअईतयहोईहयं ‘‘ रमसमझु नेलेटे-लेटेहीअगं डाईली़ ‘‘.. तकासबु ेरवाहोईगा...‘‘ ‘‘..अउ काअजिनयानायसनु तहव...?‘‘ ‘‘....ईतोरअ लािमंयांबिढयासोवईतवहयं ...जगईतवहयं ...‘‘ कहतेहएवहचरमरअंगड़ाईलेतेउठबैठा।दोन नेिब तरलपेटकरएककोनेमजमािदया।शटरखोलकरबाहरिनकलगएऔर शटरबंदकरिदया।कईगजक दरू ीपरनालेकेपासजहांबड़े-बड़ेकूड़ेकेढेरलगेथेयािफरकु औरसवु रक रे लमपेलथी, वह जाकर े शहए।सरकारीनलपरआकरहाथमहंु धल ु ाऔरब स...तबतकबगलवालेढाबेपरचायखौलनेलगीथी।दोन शटमहाथरगड़तेहएढाबेमघसु े‘‘... यानहु ोस, िचयाधैरैिचसोलािगरहेकोछ‘‘ ( लाओहोचायलाओठ डलगरहीहै) -दोन नेदो-दो ०क नमक नवचायलीऔरपीकरचलिदए।तबतक८बजगएथे।दक ु ानदारअपनीदक ु ान के शटरउठानेलगे थे।उ ह नेभीजाकरअपनीदक ु ानकाशटरउठािदया।तबतकउनके मािलकभीआगए।मसं रू ि लिनकक तरफहोिलया।दक ु ा नमझाड़बहु ा करके रामसमझु नेधपू अगरब ीसुलगाई।काउ टरपरपोछामारा।दवाओकं आलमा रय परकपड़ेसेझाड़ा प छाऔरिफरएकतरफ टूलपरबैठगया।िफरआरंभहईवहीिदनचया।गोलमाकटकागोल-गोलदायरा।गोलदायरे मगोलगोलगोलाईसे थािपतक गई ं ंखलाब दक ं।आगेजाके दसू रे मोह लेयामा ु ान।बीच-बीचसेचलीगईपतलीबारीकगिलया ं कटके हाथ महाथदेतीहई।सबकुछउपल धहैइसमाकटम।संईू सेलेकरसजू ते क।अिधकतरदक ु ान परमिहलाओकं ाराजहै याजापानीगिु डय सपाटचेहर परनैसिगकचमक, ़ जैसीटीनएजजका।िब कुलदिू धया, सख ु बारीकह ठ।बड़ीचौड़ीमछली-आख ं के चार ओरकाजलकामोटाघेराऔरिकनारे मोटीसीलक र।यहीनेपालीस दय मु धकरलेताहै।बि कनेपालकायहीिवमोहकस दयनेपालकोनेपालबनाताहै।िकंतरु ामसमझु उ हदेख-देखकुछऔरस च ताहै।येिकछो रयाभं ीदक ु ानस भलेबैठीह।एकहमहिकमजरू ीभीढगं क नह ।सेठनह होनाचाहतामगरकुछौआमदनीका ो ततोहोवैकचाही।हमरे पासउहवनाईहय।क ािपछड़ाहमार ाम।हमह या, अपराधनाकरीतकरीका...? दक ु नदारक आवाजपरउसक तं ाटूटी। ‘‘...ऐकांछा....दईु ठािचया यारआ ‘‘ (हेछोकरे दोचायलेकरआ) -वहपैसेलेकरदौड़गया।ढाबेपरगया।वहादं ोपिु लसके आदमीबैठेथे।उसेझरु झरु ीसीछू गई।मगरितरछाघमू गयाऔरचायको कहा।मननहीमनस चरहाथा‘‘...हे... हरी...कह िसना ततोनायपाएगए..कहक ं ु छगड़बड़नाहोईजावै....बचावइलाही....‘‘ तभीवहच का।लडका चायदेरहाथा।वहचायलेकरभागआयाऔरथेाड़ाउधरिखसककरकोनेमबैठगया।दरू सेभ◌ ं ापताभीरहा।कुछदेरबाददोन िसपाहीउसीमेिडकल टोरक तरफबढ़ेऔरसमीपआकर कगए‘‘..क तोछ ेमदाई..?‘‘ (कै सेहो ेमभै या) ‘‘..रा छ ै ु हजरू , के सेवाग ं तपईको ‘‘ (ठीकहसं ाहब, यासेवाक ं आपक ) -िसपाहीनेएकपचािनकालकरिदया। ेमनेपचादेखािफररामसमझु कोआवाजलगाई।चोरकािदलिकतना।वहहड़बड़ाग या‘‘....हजरू ...‘‘ ‘‘..लौ...हजरू कोलागीिचया योरआउ..‘‘ ( लोसाहबके िलएचायलेकरआओ) 208 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) ‘‘ नाईनाईए कोके हआव यकछै ना...मलाईहतारमयीरहेकोछ ‘‘ ( नह इसक ज रतनह है।िफरकभी, ज दीमह)ं - ेमनेसीरपिनकालकरिदयाऔरवेिसपाहीबाहरचलेगए।जबवेदक ु ानसेबाहरचलेगएतबउसक जानमजानआई। -ठीकदसबजे ‘‘िदहीवेन‘‘ के सामनेगाड़ीआकर क औरलिलतऔरलखैयाउतरकरड बेकेसाथकॉ पलै समघसु गए।रामसमझु उ ह दरू सेहीदेखतारहा।मगरआजसबु हइतनीखराबहईथीिकउसकागाड़ीक तरफबढ़नेकामनिब कुलनाहआ।वहवह सेबैठा देखतारहा।लिलतऔरलखैयाबाहरिनकलेऔरसरसरीिनंगाहसेयहांवहांटटोला।शायदवेउ हहीतलाशकररहेथे।िकंतनु ह ।उसकामनपहलेहीकसैलाहोरहाथा।नह उठाअपनीजगहसे।गाड़ीकाहॅानबजावेतरु ं तगाड़ीमजाबैठेऔरगाड़ीचलदी।मं सरू भीअपनीि लिनकसेउनलोग परनजररखेरहािकअभीरामसमझु जाएगा, कुछबातपताचलेगी।िकंतनु ह ।गाड़ीओझलहोगई।वहस चताहीरहगयािक ‘‘आिखररामसमझु काहोईकागवा‘‘ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ संझके पांचबजे। कृ ितक छटामडूबाझीलकािकनारा।िकनारे कोछूताहआमखमलीघासकाहरा-हरा ाउ ड।िकनारे सहे ट करलगभग२०गजक दरू ीपरएकबड़ीसीगोलमेजपड़ीहैिजसेपांचशीशेक कुिसयांचार तरफसेघरे े हएह।कै लाशआनंदपी लीहॉफपट, नीलीटीशटऔरिछबरीपहाड़ीटोपीलगाएएकचेयरपरबैठैह।हाथमकोईपु तकहैिजसेवहबड़ेमनोयोगसेपढ़रहेहदसू रीपु तकमेजपररखीहईहै ‘‘ िदपॉवट ऑफिफलॉसफ ‘‘।पु तकपढ़तेहएउनकाएकपैरधीरे -धीरे िहलरहाहैिजससेलगताहैवहपु तकमकह गहरे डूबेहएह।तभीउ हढूंढ़ते-ढूंढ़ते लिलतऔरलखैयाआधमकतेह।कुछदेरवेकुछदरू ीपरखड़े-खड़ेवह सेकैलाशआनदं कोदेखतेहिफरएकदसू रे कोदेखकरमु कुरातेह।ै तभीकै लाशआनंदक नजरउनपरपड़तीहै‘‘...कहांहोतल ु ोनटहरतहव...?‘‘ वोदोनोसमीपआकरउनके कदम के पासबैठगए। ‘‘..हजरू कापु तकनसेबड़ै ेमहयलागतहय‘‘ ‘‘...हाल ं िलततनू ायजानतहव, ईजादआ ु ानापड़ाहय।ईिकतिबएतिकरा तीपईदाकईिदिहनहयं ...‘‘ ू एजाद.ू ..ईपु तकनमांबड़ा-बड़ारह यलक ‘‘..अ छा...‘‘ दोन एकसाथहीबोलउठे । ‘‘..अउ का...ईदेखव...‘‘ कहतेहएउ ह नेहाथक पु तकमेजपररखदीऔरउसपररखीदसू रीपु तकउठाली‘‘..ई ाखौ, कालमा सक िकराि तकारीपु तक, ‘िदपॉवट ऑफिफलॉसफ ‘‘ ईपु तकमईहां ंमा स िमकनकयदयनीयदसा ाखकयउनकाशोिषतवगमारं ि खन, अउरइकै कारनशोषकवगयािनपंजू ीपितयनकाबताईनहयं ं।अउरइकै हलसझु ावतहयेसभै िमकनकासंगिठतहोईकयिक राि तकयघोषणािकिहन।मु य पसेईपु तकशोिषतवगऔसवहाराकै ख ीरचागवाहय ‘‘ -लिलतउनके हाथसेपु तकलेकरउलटनेपलटनेलगािककौशलआनदं नेदसू रीपु तकउठाई‘‘..औईह यंलेिनन।ईतीसपु तकिलिखनिजमसयाकयहवआय। ‘‘ देसमपंजू ीवादीकािवकास‘‘।इमामा सवादीिस ांतकयआधारप सकयआिथकउ नितकयिवसलेसणकय य न क नगवाहय।यहयिकरा तीकारीिभचारनख ी१८९५मांलेिननकाबंदीगृहमांडा रिदहागवा।बािकरईतीसपु तकनक रच नािकिहनिजमायाकयहआए।ईमनयमन सकयिनधनअउरसवहारावगकययाकदल थािपतकरै कभोजनाबनाईन।ईदलमईहां ं िमकनकयमिु कयख ी य नकरै वालेउसभै सीमा सवादीरहयं िजनकाजारसाहीकयअ याचारसेपीिडतहोईकयदे सकयबाहररहेकपड़तरहा।.... ़ अउरनायजानेव...,इ ह लेिननकयअ य तामांसोिवयतसंघकय थापनािकहागवा।िजमासाि तपिभसेसबलिदहागवा। 209 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) जमीदारनसेभिू मछीनकयसारीभसू पि परा कय वािम व थािपतकरवायिदहागवा। यवसायअउरकारखाननप िम कनकयिनयं णहोईगवा।बईकनअउरप रवहनसाधननकारा ीकरणकयदीनगवा। िमकनतथािकसाननकापंजू ीपितय ं नअउजमीदारनसनीछुटकारािमलगवा।अउसम तदेसकयिनवासनमांपणू समता थािपतकयलीनगवातथानव- थािपत सोिवयत जातं क र ाकयख ी ‘‘ लालसेना‘‘ कयिनमानक नगवा।ईभवालेिननभाद।‘‘ ‘‘..हजरू ..‘‘ दोन साथहीबोले।एकदीघ ासिलयालिलतने।जैसेलेिनन, मा सकोएकहीसांसमआ मसातकरिलयाहो।लखैयाक आख ु ीक खल ु ीरहगई।बोलां खल ं ‘‘..हजरू , आपकातबड़ाजानकारीभय।‘‘ -कौशलआनंदमनहीमनअपनीपीठथपथपातेगदगदहोउठे ।फूलकरकु पा।बोले‘‘..अउ...उईिदनकाबतावारहा...माओकयिभषयमां।उइनह पु तकनसनीतिस छािलिहन।इनह कयिभचारनकयअनु सरनिकिहनहयं ।इनके मल ु माहयतोहय...मा सवभाद, लेिननभाद...बनाम...माओभाद....।समझेविकनाह ?‘‘ -लिलतनेठहरे हएश द मकहा‘‘...सबसमिझगएन, कछुबाक नायरहाहजरू ।वईसैयाकआ हहयआपसनी, ईिकतिबयादईु िदनाख ीहमकादईदेव।िभ तारसनीपढ़ैकचािहतहय..‘‘ ‘‘...िब कुललेव।ईलेव, िहदं ीवाली।लेिननकय...‘‘ समपंजू ीभािदनकािभकास‘‘बािकरमा सभादीतअं ेिजमहय।ईनायठीकहय..िकपिढले ़ हे व ?‘‘ ‘‘...नाह , यहयचाही।अं ेजीहमकाजानी।जानैकउनजतनसनीिहदं ीयैयपिढपावाहै ।‘‘ ़ ‘‘..ठीक...ठीक....पिढले ़ व..‘‘ ‘‘..अ छा...हजरू ...अबचली।‘‘ िकतभीपीछे सेनौकरनेपक ु ारलगाई। ‘‘ हजरू , फोनआएकोछ ‘‘ ( साहबफोनआयाहै) ‘‘...कोहो...‘‘ ( कौनहै) ‘‘..इनीह कोकोईसाथी...‘‘ ( इनदोन काकोईदो त) -दोन उठनेउठनेकोहएिकयेसचू नासनु करपैर के तलेसेजमीनिनकलगई।काटोतोखनू नह ।कै लाशआनंदकाचेहराभीतमत मागया।वहअपनागु सारोकतेहएबोले‘‘..काहेहो...के कािदहेहवहमारफोननबं र ?‘‘ ‘‘...हजरू ...उजउनहमारिम लोनमाकिटयमरहतहयं ...‘‘ लिलतनेजवाबिदया। -वहआगबबल ू ाहोगया‘‘.. बहतैगलतबात...याकबातकानखोलकयसिु नलेवआगेसेनाकभक ू ौनवकािहयं ांकेरनंबरिदहेवअउरनापता...िबनाहमसे पछ ंू े ।अउरउनसेकिहिदहेवआगेसिहयं ाफ ं ोननाक रह।‘‘ ‘‘..हजरू ..‘‘ ‘‘...जाओ‘‘ -दोन दौड़तेहएअदं रगएऔरहॉलमपहचं करफोनउठािलया।लखैयाकईबारहलोहलोिच लाया।तोनौकरहसं ा‘‘..अभीहवं रिखदेव।फोनकिटगवाहय।अ बैचाहेिफरकर..‘‘ लखैयानेिनराशहोकर रसीवररखिदया।लिलतवह खड़ाखड़ाहाथमथमीपु तकउलटनेपलटनेलगा।लखैयानेउलाहा‘‘..तमु काक रहवईिकताबपिढकय?‘‘ ़ ‘‘..ईिकताबनाय...हमारलोगनकयउ थानकयकंु जीआए।‘‘ 210 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) -तभीफोनक घ टीबजी।दोन लपके ।लिलतनेफोनउठायिलयाऔरछूटतेहीफटकारा‘‘..काहेरे...कउनकामरहयफोनकरै क...‘‘ ‘‘....कउनौकामनाह ।ईबतावअबहवं रहेकइरादाहययाकछुअउरौिक रहौ।उजउनगवं मआगलगायकआवागाहयउकै काहोई?‘‘ मसं रू बोला। ‘‘..कछुिदनअउर कौ।हमसबस चेहन।िमलके बताईब।अउरसुनौ, अबिहयं ांफोननािकहेव, सारउमिलकवाबडाहरामीहै।बडाबमकतरहय।हमज दीनिमलबऔछलफलकईकै कउनौरा तािनकािलब..‘‘ ‘‘..ठीकहय...अबकाटी ?‘‘ ‘‘..हां...काटौ..‘‘ ’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ८ तीनमहीनाहोनेकोथेगांवनरै नापरु ममौतऔरजु मकाता डवबढ़ताहीजारहाथा।आमजनतानेतोघरसेिनकलनाहीबंदकर िदयाथा।आम के आदमीहरजगहघातलगाएबैठेथे।नरे शकोिचतं ासतारहीथीिकइसदर यानवेचार कहाल ं ोपहोगए। ायः छुप-छुपाके अके लेयाकभीदोचारलोग कोलेकरवहउ हतलाशनेिनकलपड़ता।यहआशक ं ाभीसतातीिककह वेचार मारे तोनह गए।एकिदनउसनेराजबहादरु जीके छोटेबेटेरजतसेस लाहमशवरािकयाऔररातदोढाईबजेदोनोजगं लक ओरचल पड़े।रातकाफ अधं ेरीथी।हाथकोहाथनह सझू रहेथे।तभीरजतचलते-चलतेिकसी यि सेटकरायाऔरअगलेही णदबो चिलयागया।मगरछुड़ाकरभागा।पीछे -पीछे नरे श।मगर णभरमदोतीनगोिलयाछ ं ू टीऔरदोन कोधराशायीकरगई।िफरकु छआम वालेदौडेआएऔर काशकर-करके तड़पतीलाश कामआ ु यनाकरनेलगे।आपसमकुछमं णाक औरउनलाश कोउठाकरगांवके िकनारे डलवािदया।अल सबु ह...रमजानक अ मािदसामैदानकोिनकल िकउनकापांविकसीचीजसेट कराया।वहघबराकरपीछे हटगई।िफरझक ु करदेखाऔरचीखपड़ी‘‘...हायरे द या, ...‘‘ आवाजइतनीतेजथीिकआस-पासजोइ कादु कालोगआजारहेथेउधरहीदौड़आए‘‘..काभवा...काभवा‘....?‘‘ -औररमजानक अ माके संकेतकरनेपरउधरहीझक ु जातेऔरझक ु तेहीचेहरे परददऔरपीड़ाकाभावफै लजाता।धीरे -धीरे पू रागांवइकटठाहोगया।पिु लसआई।लाश कापंचनामाहआ।पो टमाटमके िलएभेजिदयागया।पिु लसवालेगांववाल कोय हयक निदलानेमलगेरहेिकइनक ह याउनचार भगेड़ओनं ेक हैिकंतजु नतायहमाननेकोतैयारनाथी।गांववाल काबयान थािकयहआम वाल क करतूतहै।आिखरना-नाकरतेहएभीपिु लसकोराजबहादरु के दबदबेकेकारणआम के िखलाफ र पोटदजकरनीपड़ीऔरजगं लीइलाके मतैनातउनदोन आम के आदिमय कािनल बनहोगया।इससेआम के जवानकाफ ु ीमनाई।िकंतक ु ु छिदन बादगांववाल कोउनलोग नेकुछ यादातंगकरनाशु करिदया।जोकुछे ु घहोगए।गांवनेखबू खश कगांववालेलकिडया ़ ंलेनेजातेथेउनकोभीजगं लआनेसेरोकिदया।गांववाल क रोटीकमाईकाअिं तमिवक पभीजातार हा।मधू ीकािव ालयसेभीमोहभगं होचक ु ाथा।वहअपने वाटरमपड़ी-पड़ीकुढाकरती।दसू रे तीसरे जाकरलिलतके घरका हाललेआयाकरती।मालतीकोतीनमहीनेकागभठहरगया।अपनेपेटके बढ़तेआकारकोदेखके वहसहमजाती।आरंभममधू ीनेउसेकईबाररा ीपारलेजानेक कोिशशक िजससेउसकागभपातकरवासके मगरमालतीटससेमसनह हई।जबजगं ल कारा ताबंदहोगयातोदोनोभाईरा ीपारजानेलगेमजदरू ीकरने। ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’ धाना य के वहाअ ं भीभीआम वाल क बैठक जसक तसजारीथी।देरराततकओकं ारशराबऔरताशके प मडू बारहतािजसमआम वालेभीखबू साथदेते।गांवनकबनताजारहाथा।मिहलाओनं ेखते , 211 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


ISSN 2454-2725

जनकृित अंतररा ीय पि का/Jankriti International Magazine (लोकभाषा िवशेषांक) जगं लआिद थान परजानाबंदकरिदयाथा।वेघरमहीरहत ।घरके पु षरा ीपारमजदरू ीकरनेचलेजाते।आम के जवानइस काभीलाभउठाते।अवसरपाकरिकसीभीघरमघसु जातेऔरअपनीहबसिमटाके िनकलआते।ि याख ं ामोशरहजात , वेअपनीअ यवि थतिजदं गीकोऔरकलहपणू बनानानह चाहतीथ , इसिलएचपु रहत ।अलब ामधू ीसेवअ े व यिदलकाहवालकहदेत मगरयेताक दकरदेत िकउनक येबातउनके घरके म दनाजान।वेपहलेहीइतनेतनावमजीतेहऔरतनावमरहगे, यािफरकोईउ टासीधाकदमउठालगे।इससेबेहतरहैजीवनमजोथेाड़ीबहतशांितबचीहैवहबनीरहे।इसतरहअबमधू ीपरू े गांवक औरत के रह य काबोझअपनेिसरपेिलएमंडरातीरहती।वह जगजीतइसगांवकोबरकतीमानतारहा।उसकाकहना थािकइसगावं मकदमरखतेहीउसक बीवीके पावं भारीहोगए।बड़ाशभु रहायहगांव।पाच ं सालसेवहबेऔलादथा।मगरइस बारबहनोईरामसमझु के घरआईतोउसके पांवभारीहोगए।प नीको याचािहए।बीजकह काभीहो, फूलतोउसक गोदमहीिखलेगा।वहभीखश ु ीममदम त।वहभीस चती-भलाहआजोबिहनके वहांजीजारामसमझु काहाल लेनेचलीगईथी।खैरएकिदनजगजीतइसीखश ु ीमआकरगांवमिमठाईभीबांटगया। येसारीि थितयांबड़ीहीिवषमऔरजीिघनानेवालीथ ।मधू ीभीअबउबचक ु थी।मनकसैलाहोतारहता।जोब चेकु छिदनपहले कूलमझोलािहलातेघमू तेथेवोअबिफरबरसातीक ड़ क तरहपरू े पा र यपरफै लगएथे।िव ालयिफरसनू ासनू ाहोगया।मा टरजीकािदलभीअबबझु चक ु ाथा।कोईिदनभर कूलमत हाबैठकर याकरे गा।मधू ीक भीवहीहालत।व हकभी-कभीउसेरायदेते‘‘...जावघरे बईठव...इनकाइनके हालपछोिडदे ़ व...हमरे तरु े बसकानाईहयईगांवकादभु ा यसनीबचावैक...‘‘ -मगरउसकामनयहगवारानह करता‘‘..यहतोकायरताहै, वाथहैमा टरजी।‘‘ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’ ’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’

212 | P a g e

Vol.2, issue21, November 2016.वष 2, अंक 21,नवंबर 201.6


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.