संस्करण : प्रथम संस्करण, २०१२
Right : सर्वाधिकवर प्रकवशनविीन सरु क्षित अनर् ु वद : दे र्ी नवगरवनी
९-डी, कॉनार व्यू सोसवइटी,
१५/३३ रोड, बवंद्रव, मंब ु ई - ४०००५० मो. : ०९९८७९-२८३५८
प्रकवशक : संयोग प्रकवशन
९/ए, ध त ं वमणण, आर.एन.पी.पवका, भवईंदर (पर् ू )ा , मंब ु ई - ४०१ १०५. मो. : ९९२०३११६८३ प्रतत : ५००
मल् ू य : रुपये १५०/-
और मैं बडी हो गई /
अनक्र ु मणणकव वर्षय
कहवनीकवर पष्ृ ठ सो , कथवनक, पवत्र.--संतोष श्रीर्वस्तर् १
जीर्न तथव मल् ू यों कव दपाण --दे र्ी नवगरवनी २
1. र्ो जहवाँ - ये मन ए.जे. उत्तम १
2. मवसम ू यवदें कमलव मोहनलवल बेलवनी 3. और मैं बडी हो गई दे र्ी नवगरवनी 4. मस् ु कवन और ममतव कलव प्रकवश
5. पीडव मेरी ज़िन्दगी जगदीश लछवनी
6. कहवनी और ककरदवर डॉ. कमलव गोकलवनी 7. पैंतीस रवतें -छत्तीस ददन ठवकुर 8. जीने की कलव दे र्ी नवगरवनी
वर्लव
9. हम सब नंगे हैं कीरत बवबवनी 10.
छोटव दख ु - बडव दख ु बंसी खूब ंदवनी
12.
नई मवाँ दे र्ी नवगरवनी
11. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20.
किा की दरख़्र्वस्त लवल पष्ु प दस्तवर्ेि नवरवयण भवरती
और गंगव बहती रही सतीश रोहडव जल ु स ू इज़न्दरव र्वसर्वनी
बबजली कौंि उठी मवयव रवही
ज़जओ और जीने दो दे र्ी नवगरवनी जेल की डवइरी र्ीनव शशरं गी
सच् व पवककस्तवनी हरी पंकज बवरूद हरी मोटर्वणी
और मैं बड़ी हो गई /
समर्पण
उस पल को जो मेरे भीतर शोर में ख़वमश ु ी,
शोलों में शबनम सन्नवटों में संगीत कव अहसवस ज़िंदव रखतव है .....!!
सोच, कथानक, र्ात्र एवं घटनाओं का कोलाज
१८५८ में शसन्िी भवषव को अपनी शलवप शमली। हवलवाँकक इसके पहले भी शसन्िी लेखकों के
द्र्वरव सवदहत्य सज ृ न होतव रहव है , वर्शेषकर कवर्तवएाँ... बज़ल्क शसन्िी सवदहत्य कव आरम्भ ही कवव्य से हुआ । सूफ़ी फ़कीरों की कवर्तवएाँ सवम्प्रदवतयकतव से मुक्त सीिे ईश्र्र से सविवत्कवर करवती हैं । जब शसन्िी सवदहत्य ने गद्य लेखन में ददम रखव तो कहवतनयों, उपन्यवसों तथव तनबन्िों कव रूप तो लौककक रहव लेककन अथा में आध्यवज़त्मक अशभव्यंजनव स्पष्ट दे खी गई । शसन्िी सवदहत्य में प्रेमकथवओं के खण्ड शलखे गये किर पूरी कहवतनयवाँ शलखी जवने लगीं ।
दे र्ी नवगरवनी शसन्िी सवदहत्य की ऐसी लेणखकव हैं ज़जनकव दहन्दी पर भी पूरव र् स् ा र् है
और उदा ू पर भी। अनुर्वद की ददशव में उन्होंने बेहतरीन कवम ककयव है । शसन्िी कव गद्य सवदहत्य अधिकतर अनुर्वद रूप में ही है । मौशलक लेखकों में शमिवा कली
बेग को हम यवद कर सकते
हैं ज़जन्होंने २०० पस् ु तकें शलखीं । १८९० में शलखव उनकव उपन्यवस ‘िीनत’ शसन्िी कव पहलव
मौशलक उपन्यवस है ज़जसमें शसन्िी जीर्न कव यथव तथ्य ध त्रण शमलतव है । शसन्िी सवदहत्य अपनी रसीली और यथवथार्वदी कहवतनयों, प्रगततर्वदी र नवओं तथव जवसस ू ी कहवतनयों के कवरण कवफ़ी लोकवप्रय है । लेककन
ाँ कू क शसन्िी शलवप और भवषव कव ज्ञवन सभी सवदहत्य प्रेशमयों को
नहीं है अतः अनर् ु वद ही र्ो कवरगर सविन है ज़जसके द्र्वरव हम शसन्िी सवदहत्य की पडतवल कर सकते हैं । इसी तरह अन्य भवषवओं के सवदहत्य कव शसन्िी में अनर् ु वद शसन्िी सवदहत्य प्रेशमयों तक लेखकों की पहुाँ
के सत्र ू जोडतव है । इन सत्र ू ों के जोडने की ददशव में दे र्ी नवगरवनी बखब ू ी
ििा तनभव रही हैं । यही र्जह है कक आज शसन्िी सवदहत्य मवलवमवल हो रहव है । और उसकव मूल रूप अनुर्वद के िररए हम तक पहुाँ
पव रहव है ।
‘और मैं बडी हो गई’ की सभी कहवतनयवाँ दे र्ी नवगरवनी के द्र्वरव अनुर्वद की गई ऐसी
कहवतनयवाँ हैं जो वर्शभन्न लेखकों द्र्वरव शलखी जवने के बवर्जूद सं्रहह के प्रर्वह को बवधित नहीं
करतीं और अलग-अलग सो , कथवनक, पवत्र एर्ं मौजूदव समय के कैनर्वस पर स्पष्ट दे ख सकते हैं । ए.जे. उत्तम की कहवनी ‘र्ो जहवन - ये मन’ में ‘दोस्त’ शब्द से अतीत में लौटे लेखक ने वर्भवजन की त्रवसदी कव ममवांतक र्णान ककयव है । शसंधियों कव भवरत में शरणवथकी की तरह जीर्नयवपन एक ऐसी वर्भीवषकव है ज़जसमें मुम्बई के कल्यवण में बैरकों में गुिर रहे ददन उन ददनों की ओर णखं े
ले जवते हैं जब केर्ल दहन्दस् ु तवन हुआ करतव थव और शसन्िी में उनकव बडे-बडे कमरों र्वलव हर्वदवर घर थव । कहवनी के अंत में भवजीर्वली कव र्वक्य किर समू ी कहवनी को सही स्पेस दे ने में कवमयवब रहव । ठवकुर
वर्लव की कहवनी ‘पैंतीस रवतें -छत्तीस ददन’ कहवनी में नवतयकव आशव की शवदी
ज़जस्मवनी तौर से अस्र्स्थ लडके से होती है । ससुरवल दहे ज की मवाँग की बबनवय पर तवने दे तव रहतव है । इस इंततहव की लवल
के बवर्जूद र्ह शसफ़ा पतत कव वर्श्र्वस
वहती रही... उसने सवरी
बवतें डवयरी में नोट कर ससुरवल में बीते पैंतीस रवतें और छत्तीस ददन कव हर्वलव ददयव है । कहवनी ररश्तों की बुतनर्वयद वर्श्र्वस पर रखने कव बहुत गहरव संदेश समवज को दे ती है । नवरवयण भवरती की कहवनी ‘दस्तवर्ेि’ वर्भवजन के पहले की शसंि की कहवनी है । ज़जसमें मुज़स्लम रसूल बख़्श कव दीन हीन किर भी भवई वरे की नीयत से भरव
ररत्र है और तमवम
भवर्नवओं से परे केर्ल सौदे बविी में डूबव मंिनमल कव व्यवपवरी मन है , जब खेतों में बोने के शलए रसूल बख़्श मंिनमल से बीज के दवनों की मदद ख़रीदनव
वहतव है तो र्ह बदले में उसकी िमीन
वहतव है । अंत में उसकव वर्र्ेक उसे कों तव है कक जब उस पर मस ु ीबत आई थी तब
रसल ू बख़्श ने ही उसकी दहफ़वित की थी और उसे सही सलवमत लवरकवणव पहुाँ वयव थव । उस र्क़्त उसने गवडी कव ककरवयव तक नहीं शलयव और आज बीज के न्द दवनों के शलए र्ह उसकी िमीन कव सौदव कर रहव है । आाँसू दतरव-दतरव बहते रहे उसके और सवमने रखे दस्तवर्ेि पर धगरकर शसयवही से शलखे अिरों को िि ाँु लव करते रहे । यह कहवनी इन्सवतनयत के तदविे को उभवरती है ।
र्ीनव शशरं गी की कहवनी ‘जेल की डवयरी’ मुखौटव लगवये एक ऐसे शख़्स की असशलयत कव
बख़वन है जो पत्नी के ज़जस्म की कमवई से अमीर बनव, ऐशोआरवम की ज़िन्दगी व्यतीत कर रहव है । पतत-पज़त्न दोनों खब ू सूरत हैं । लेककन इस ज़िल्लत की ज़िन्दगी से छुटकवरव पवने के शलए
पत्नी पतत कव और बेटी कव कत्ल कर दे ती है । बेटी कव इसशलए कक उसकव वपतव कौन है यह कहनव मुज़श्कल थव । जेल की डवयरी में नवतयकव सवरी सच् ी दवस्तवन बयवाँ कर खद ु को गोली
मवर लेती है । औरत की अस्मत से णखलर्वड कव बदलव लेकर र्ह दतु नयव से रुख़सत होती है । डवयरी में अंततम पंज़क्त के रूप में यह शलखकर कक - ‘संसवर के इस कुरुिेत्र के ज्र्वर में आज मैंने ज़िन्दगी को शशकस्त दी है ।’
कीरत बवबवनी की कहवनी ‘हम सब नंगे हैं’ कई सर्वलों के जर्वब तलवशने को मिबूर
करती है । औरत पर मदा के िुल्म की र्हशत की घटनवएाँ सददयों से दोहरवई जव रही हैं पर
इसकी र्जहें हुआ करती हैं । कहवनी में नंगी औरत के इस अंजवम की कोई स्पष्ट र्जह नहीं है , सर्वल छोडती इस कहवनी कव यह र्वक्य बहुत गहरे मन में उतरतव है जब कहवनी कव नवयक उसके नंगेपन को ढाँ कने के शलए उसे
वदर ओढ़ने को दे तव है तो र्ह कहती है ‘मैं नंगी नहीं हूाँ, ये आपकव असली रूप है , आप सब नंगे हैं ।’ इस सं्रहह में दे र्ी नवगरवनी की
वर कहवतनयवाँ हैं । ‘ज़जयो और जीने दो’ अिरू े प्यवर की
खब ू सूरत कहवनी है जो ज़जये और जीने दो के िवमल ूा े को नकवरती शसफ़ा ‘जीने दो’ के बेरहम
शशकंजे में अपनी ज़िन्दगी को पवती है । कहवनी र्हवाँ ममवांतक हो उठती है जब उमेश की इंकवरी पर उमकी अपने बवबव की कोठी पर बवदी की ज़िन्दगी बसर करने आती है यह मवनकर कक यह इन्सवन कव स्र्वथा ही तो है जो अपनी सहूशलयतों से अिरों कव जवल बुनकर एक आिवद ज़िन्दगी को दैद बख़्शतव है । ‘और मैं बडी हो गई’ में दे र्ी नवगरवनी ने वपत ृ सत्तवत्मक सो
कव जीतव जवगतव उदवहरण पेश ककयव है । शमनी जर्वनी की दहलीि पर ददम रख
ुकी है ।
उसके मन में तमवम बेजव पररज़स्थततयों के शलए वर्द्रोह है जबकक मवाँ के शलये औरत की उम्र की हर अर्स्थव समवज द्र्वरव र े खवाँ ों में दैद है । शमनी दे खती है कक पुरुष के शलए मयवादवओं कव उल्लंघन ही मदवानगी है । वपतव के ग़ैर औरत से सम्बन्ि, मवाँ की बे वरगी और उसके अपने
ब पन कव ख़वत्मव... इस बत्रकोण में िाँसी शमनी मवन लेती है कक र्ह बडी हो गई है । ‘जीने की कलव’ कहवनी मे दे र्ी जी ने एक ऐसी सवहसी औरत कव हर्वलव ददयव है ज़जसने अपने आत्मबल से जन्मजवत ददल के सरु वख़ को झठ ु लवकर ददल के शलये घवतक नत्ृ य को ही अपनव जीर्न
समवपात ककयव । जीने की कलव इसी को कहते हैं । ‘नयी मवाँ’ औरत की त्रवसदी को उकेरती ममास्पशकी कहवनी है । अपनी उम्र से बडी सौतेली बेटी उस के ददा पर तब िवहव लगव दे ती है जब र्ह उसकी ओर शमत्रतव कव हवथ बढ़वती है र्रनव कलव को लगव थव कक उसके ददम आगे बढ़ने के बजवय जवने ककतनी सददयवाँ पीछे की तरफ़ लवाँघ गये हैं जहवाँ औरत के शलए ख़वमोश ददा थव और ररश्तों के बविवर में वपसती बेदटयवाँ थीं । दे र्ी नवगरवनी की ये
वरों कहवतनयवाँ और उनके द्र्वरव अनूददत इस सं्रहह की सभी
कहवतनयवाँ शसन्िी सवदहत्य कव प्रतततनधित्र् करती हैं । अमूमन मूल कथव से अनूददत कथव में थोडव बबखरवर् होतव है यव किर अनुर्वदक के अपने वर् वरों से भी कथव कव टकरवर् होतव है
लेककन ये अनुर्वद कथव की रो कतव बनवए रखने में पूणत ा यव सिम हैं । मैं शसन्िी सवदहत्य के उज्ज्र्ल भवर्ष्य की और दे र्ी नवगरवनी की असरदवर दलम के भवर्ष्य की कवमनव करती हूाँ । संतोष श्रीर्वस्तर् 204 केदवरनवथ सोसवइटी, कवंददर्ली (प) मुंबई 400067 Email - kalamkar.santosh@gmail.com Mob: 09769 023 188
कहाऩी-मानव़ीय संवेदनाओं, ज़ीवन तथा मल् ू यों का दर्पण: और मैं बड़ी हो गई सवदहत्य र्ही है जो समय कव स
सवमने लवये, और कहवनी र्ही है जो
पवठक की कसौटी पर परू ी उतरे । लेखक कव र नवत्मक कौशल मवनर्ीय सम्बन्िों
को उजवगर करतव हुआ कहवनी कव रूप िवरण करतव है, जहवं पवत्र और पररर्ेश की कलवत्मक अशभव्यज़क्त से कहवतनयवाँ पररपक्र्तव पवती है. लेखन की पहली कसौटी यही है कक र्ह पवठक को अपनी रौ में बहव ले जवय.
कहवनी मवनर् की बवह्य ही नहीं अवपतु गहरी आन्तररक अनभ ु तू तयों की
अशभव्यज़क्त कव मवध्यम है , जो अपने वर्स्तवर में जीर्न के कई अनसन ु े और
अनछुए पहलओ ु ं को उद्घवदटत करती है जो उसने ज़जये और भोगे हैं। समय के
बहुआयवमी यथवथा, व्यज़क्त और समवज, एर्ं नकवरवत्मक प्रर्ततायों को बडे ही तीखे तेर्रों से ककरदवरों के मवध्यम से सवमने लवने में कहवनी आज सिम हुई है। र्ैसे दे खव जवय तो दतु नयव की कोई भी कहवनी नई नहीं है . हर ददन ज़जंदगी
एक नयव मोड लेती है और अनेक अनभ ु र् के दरर्विे खोलती है . हर ककस्सव परु वनव होने के बवर्जद ू भी जब ददा से नम होतव है तो लगतव है ददल के तहखवनों में
सन्नवटव भर जवतव है , और उसी सन्नवटे भरी सरु ं ग से हमें अपनव भवर्ष्य ददखवई दे तव है .
कहवनी में लेखक अपने र नवत्मक संसवर में वर्लीन हो जवतव है , अपने पवत्रों
के सवथ उठतव-बैठतव है , उन्हीं की तरह सो तव है , सकक्रय रहतव है और यहीं आकर कल्पनव यथवथा कव रूप िवरण करती है। इन्हीं कहवतनयों के मवध्यम से लेखक
अपने ही मन की बंिी हुई गवंठें और मवनर्-मन की परतों को भी उिेडतव है । र्ैसे भी मवनर् जब अपने आस-पवस की पररधि के अन्दर और बवहर की
दतु नयव से जड ु तव है तो जीर्न की हदीदतों से पररध त होतव है . पवररर्वररक सम्बंि ररश्तों की पह वन, अपने परवये कव भ्रम, गददा शों कव उतवर- ढवर्, दःु ख-सख ु की
िप ू छवाँर् और अपने ज़जये हुए तजब ु ों को जब दलम की रर्वनी अशभव्यक्त करती है तब सवफ़-शफ़वद सो नई और परु वनी तस्र्ीर को दे ख पवती है . यह पररपक्र्तव तब ही हवशसल होती है जब आदमी उन पलों को जीतव है , भोगतव है . एक समय
की पररधि में हम सब अपनी- अपनी यवत्रव करते हैं।
मवनर् प्रकृतत भख ू से जड ु ी हुई है, मन की भख ू , तन की भख ू , सो की भख ू अशभव्यज़क्त की भख ू , शवन -शौकत की भख ू , और सबसे ज़ियवदव दौलत की भख ू !! वहतें ही तो इन्सवन को भटकव दे ती हैं,
वहतों के जंगल में ही सवरे के सवरे लोग
भटक गए हैं। रे धगस्तवन में समय के सवथ लडते हुए हम किर भी जी रहे हैं, अपने ही र्जूद की तलवश में खंडहर सी बस्ती में खडे हुए हैं जहवं जीर्न के भीषण झंझवर्तों से संघषा करनव हमवरी वर्र्शतव बनती है और यही वर्र्शतव कहवनी के ककरदवरों की भी है , जो आपसे, हमसे, सबसे रू-ब-रू होने को आतुर हैं।
एक कहवनीकवर कव असली कथ्य उसकी कहवतनयवाँ ही होती हैं, जो मवनर्ीय
संर्ेदनवओं, जीर्न तथव मल् ू यों कव दपाण भी होती हैं। तो आइये इन अनदू दत
कहवतनयों के मवध्यम से कहवतनयों की यवत्रव में पवत्र, पररर्ेश और समवज, यहवाँ तक कक र्ररष्ठ शसन्िी लेखकों के सवथ हम भी इस तीथा के सहयवत्री बनें. कहवनी शलखनव भी तो एक तीथायवत्रव है........!!
दे र्ी नवगरवनी
पतव: ९-डी॰ कॉनार व्यू सोसवइटी, १५/ ३३ रोड, बवंद्रव , मुंबई ४०००५० फ़ोन: 9987938358
14 नर्म्बर, 2012
ससन्ध़ी कहाऩीवो जहान - ये मन मूल: ए. जे.उत्तम
मुझे बोि नहीं थव कक
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
वरों तरफ़ िैले हुए बवहरी जहवन के तपोबन कव एक ततनकव भी इतनव बलर्वन है कक अंतमान पर सवलों की अंिेरी गफ़ ु वओं पर जमव हुआ मैल, छुहवर् से ही शमटव दे गव । इस मवकेट में बैठी भवजी र्वली के दो- वर शब्दों में जवने क्यव बवत थी जो अंदर में हल ल म
गई । जवने क्यव सो कर शशकवयत कर बैठी ‘‘मझ ु े आिे रुपए में शसफ़ा दो
वर पत्ते
कोतमीर ददये है , पर उस दस ू रे आदमी को तो ढे र सवरव कोतमीर दे ददयव। मैंने भवज़जयवाँ भी
ज़्यवदव ली हैं, और मैं तो तम् ु हवरी रोि की ्रहवहक भी हूाँ। मगर ये आदमी तेरव कौन लगतव है ?’’ भवजी र्वली अल्हड जर्वन थी सो शोखी से कहव - ‘‘ये यवर लगतव है ’’ यह सन ु कर और भवजी र्वशलयवाँ भी हाँसने लगीं और बे वरव र्ह आदमी हक्कव-बक्कव-सव होकर
लतव रहव ।
मैं भी कुछ परे शवन हुई, पर किर भी भवजी र्वली को तच् ु छतव कव अहसवस ददलवने की खवततर कहव - ‘‘इस यवर की बवत सन ु कर कहीं तेरव पतत तझ ु े न मवरे !’’
र्ह तुनककर बोली - ‘‘क्यों मवरे गव ? उसको भी तो शमल में मिदरू सहे शलयवाँ ‘यवर’ बुलवती हैं ।’’ मैंने कहव - ‘‘यह सुनकर तुझे ईष्यवा नहीं होती उसकी सहे शलयों से ?’’
कहने लगी - ‘‘कौन-सी पत्नी को ईष्यवा नहीं होगी ? पर घर-बवर और इस कवम के बी
इतनी
फ़ुसात कहवाँ है जो उस ईष्यवा को ले बैठें ? ये आप जैसे फ़ुसात शमजवज लोगों कव मिा है । आपके पतत के सवथ कोई जर्वन लडकी मुस्करवकर दो मीठे बोल बोलेगी तो भी हसद और अवर्श्र्वस होगव कक कहीं र्ह उसे आप से छीन न ले।’’
ऐसव कहकर र्ह शमल मिदरू की पत्नी भवजी र्वली तो हाँ सने लगी पर सवथ में सुर
शमलवकर और भवजी र्वशलयवाँ भी हाँसने लगीं।
मेरे मन ने और ज़्यवदव सुनने में अपनी लव वरी ददखवई और मैं भवजी की थैशलयवाँ लेकर
घर की ओर रर्वनव हुई । पर उस भवजी र्वली के सीिे-सवदे अल्फ़वि - ‘ये यवर लगतव है , ये आप जैसे फ़ुसात-शमिवज लोगों कव मिा है ।’ मेरे अंदर में प्रततध्र्तनत होकर गाँज ू ने लगे और मेरे पवाँर् घर पहुाँ ने को बेतवब हो उठे । घर पहुाँ ी, दरर्विे पर दस्तक दी तो दरर्विव खल ु ते ही बहू को तैयवर होकर सहे ली के सवथ ऑकिस के शलये तनकलते दे खव । बेटव तो पहले ही ऑकिस गयव हुआ थव।
मुझे दे खकर सहे ली ने मेरी बहू से कहव - ‘‘अच्छव यवर, लो जल्दी करो ।’’ ये न हो कक बहू मेरे सवथ बवत करने के शलए रुक जवए । कैसी मशीनी मनोर्ज़ृ त्त हो गई है ! िमवनव भी ककतनव
बदल गयव है । हर ककसी को लडककयों ने ‘यवर-दोस्त’ बनव शलयव है । मुझे इस लफ़्ज से जुडव मेरव मविी यवद आने लगव। मुझे वर्भवजन के र्क़्त की शसंि की यवद सतवने लगी। जब एक
कंर्वरी ने इस लफ़्ज ‘दोस्त’ से मेरे मन में हसद और अवर्श्र्वस कव बीज बोयव थव, ज़जसने यहवाँ आकर मेरे पतत को दख ु के घेरवर् में घेर शलयव।
उस र्क़्त शसंि में मैदिक ही पवस की थी कक मुल्क कव वर्भवजन हुआ। कॉलेज में पढ़ने की ककतनी खश ु ी और ख़्र्वदहश थी, लेककन इस वर्भवजन ने हमवरी हर ख़ुशी और ख़्र्वदहश कव अंत कर ददयव । हमवरे शलये
वरों ओर डर, दहशत और बेसलवमती र्वली हवलत पैदव हो गई,
बवर्जद ू इसके शसन्ि में बवहर से आए लोग बसने लगे तो र्हवाँ रहनव और ही संकटमय हो गयव ।
अं्रहेजों द्र्वरव वर्भवजन के ऐलवन से रवतों-रवत हम शसंि िरती के मवशलक, ग़ैर से हो गए और आए हुए ग़ैर िवकड महमवन मवशलक बन गए, क्योंकक र्े मस ु लमवन थे और हम दहन्द ू । यह मतभेद कव िहर, प्यवर-मह ु ब्बत में रहने र्वले दहन्दओ ु ं में नए शसरे से िैल गयव, हवलवाँकक
ज़जस ज़जन्नव सवहब ने दहंद-ू मुसलमवन को जुदव दौम कहकर बाँटर्वरव करवयव, उसने पवककस्तवन को गर्नार-जेनरल होने पर पहले ददन कहव कक अब पवककस्तवन में न कोई मुसलमवन और न
कोई दहन्द ू बुलवयव जवएगव, पर मुल्क कव एक जैसव शहरर्वसी बरवबर और हददवर रहे गव, मगर इस ऐलवनों पर अमल नहीं ककयव गयव ।
इसशलये जर्वन पीढ़ी को जैसे मौदव शमलव र्ैसे ही अपनव घर, उसमें सजवई हुई हर शै को कौड़डयों के दवम बे कर जवनव पडव । कुछ तो अपने कच् ी उम्र की कन्यवओं की शवदी करवने में लग गए । रवतो-रवत मंगनी और ब्यवह होने लगे । कहीं पर न पूरी तरह से शवदी की रस्में
तनभवई गईं, न खश ु ी के सवथ नव नव-गवनव ही हुआ । बस ख़वमोशी की घट ु न में ही बंिन बवाँिे गए और सवत िेरे लगर्वए गए । न जवत कव पतव लगर्वयव, न सूरत और सीरत, न इल्म, न ही अक़्ल, न प्यवर र् पसंदी, न स्र्भवर् और वर् वरों को ही दे खव गयव ।
मैं भी इसी तरह बंिन में बवाँि दी गई, ख़द ु से सवत-आठ सवल बडी उम्र र्वले कॉलेज पढ़े
हुए एक मवस्टर के सवथ, मवाँ-बवप की अनेकों शमन्नतें की कक मैं अभी नवबवशलग बवशलकव हूाँ, कॉलेज में पढ़ने दो, छोटी उम्र में ही शवदी के जंजवल में न िाँसवओ पर उन्होंने मुझे मेरी उम्र की
औरतों को ददखवते हुए कहव कक र्े उसकी उम्र में दो-तीन बच् ों की मवएाँ बन क ु ी है । इस तरह मुझे शवदी करर्वकर मेरी मवाँ, छोटव भवई और बहन शसंि से ले गए। है दरवबवद स्टे शन पर, िे न में
ढ़ते समय उन्हें भेड-बकररयों की तरह जूझने कव निवरव यवद करके आज भी मेरी छवती में
िडकन तेि हो जवती है ।
मैके की रर्वनगी के बवद हम घर लौटे तो मेरव पतत मुझे भीतर छोडकर, ख़द ु पडोस में
मुज़स्लम दोस्तों के पवस
लव गयव। मैंने भीतर आकर कुछ सवाँस ली ही थी कक सवस ने कोई
ककतवब मझ ु े दे ते हुए नवटकीय ढं ग से कहव - ‘‘अरी बहुररयव, ये दे ख, र्ो पडोस र्वली कॉलेजी
छोरी है न, उसने यह ककतवब तेरे पतत के शलये ददयव है । जब पूछव कक तू उसकी कौन लगती
हो, तो खश ु ी से हाँसते हुए कहव – र्ह मेरव दोस्त है ।’’ र्ही ‘दोस्त’ लफ़्ज, ‘यवर’ के रूप में आज उस भवजी र्वली के माँह ु से सुनकर तीस सवल
पहले की शसंि की कहवनी आाँखों के आगे किर उभर आई । उस िमवने में दोस्त लफ़्ज पर मेरी सवस को तो अजब लगव थव, पर मेरी भी सो
झुंझलव गई । किर उस ककतवब में अं्रहेजी शवयर
बवयरन कव ‘‘डवन जवन’’ कव इश्की ककस्सव र् रोमवंस र्वले िोटो दे खे तो ख़ून कुछ जमने-सव लगव । र्े तस्र्ीरें सवस को ददखवते हुए कहव - ‘‘दे खो अपने लवडले के करतत ू , कैसी ककतवबें पढ़वतव है काँर्वरी लडककयों को ?’’ यह सन ु ते ही सवस ने जो सन ु वयव र्ह आज तक नहीं भल ू ी हूाँ मैं, कहव - ‘‘बेडव ग़रद हो िमवने कव, दे खो नव कंर्वरी छोरी को क्यव िरूरत थी जो तेरे पतत को दोस्त बनवने ली है ।’’ मझ ु े सवस कव यह स
ददल से लगव जो आज भी नहीं बबसरव । हदीदत में मेरी
स्र्गार्वसी सवस सीिी-सवदी, सवफ़ गोयवई र् स
कहने की पििर थी । कभी उसकव बेटव उसके
णखलवफ़ की हुई मेरी शशकवयत मवनकर उसे कुछ कहतव तो र्ह बेिडक कहती थी - ‘‘पगलव गयव है । ददा पीकर तुझे जनम ददयव है । मवाँ कव अदब-शलहवि कर, बीर्ी कव ग़ल ु वम न बन ।’’ यह सुनकर सवरे घर में एक णखलणखलवहट कव स्र्र सुनवई दे तव, पर मैंने उस र्वयुमंडल
को पवर करते जब पतत को गुस्से से कहव - ‘‘यह दे खो ‘डवन’ जवन की रोमवंस कव ककतवब आपकी सहे ली दे गई है ।’’
उसने मवाँ की तरह सीिे-सवदे अंदवि में कहव, ‘‘तुमने कॉलेज नहीं पढ़व है , नहीं तो इस
ककतवब पर इस ददर गुस्सव र् हसद न होतव । यह आिवदी के पैगंबर कवर् बवइरन और शैली
र्गैरह कॉलेजी कोसा में पढ़ने पडते हैं । ख़द ु हमवरे टै गोर, जर्वहरलवल के भी ये वप्रय कवर् थे ।
यह ‘डवन जवन’ ककतवब पडोसन शमस भवरर्वनी ने ख़द ु पढ़ने के शलये कॉलेज की लवइब्रेरी से शलयव है , र्ही मुझे भी पढ़ने को दे रही है । स
मवनो ककतवब ही हमवरी सब से दल ा दोस्त है ।’’ ु भ
मैंने तन्िी रर्ैये से पूछव - ‘‘उस सहे ली शमस भवरर्वनी से भी ?’’
और पतत ने उस तन्ि कव जर्वब बेहद सवदगी से ददयव, ‘‘अरे हवाँ, और नहीं तो क्यव?’’ उन्हें बरवबर ककतवबों से बेहद प्यवर थव, र्े बेहद
वर् के सवथ पढ़व करते थे, जो कुछ उन्हें
अहम लगतव थव उसके नी े लकींरे खीं ते थे । ककतने ही आदमी उनके पवस ककतवब दे ने-लेने
और सलवह करने आयव करते थे। पर भूल से भी र्ही सहे ली उनके पवस आई थी तो बहुत जलन और हसद हुआ करतव थव और उसके कहे लफ़्ज ‘र्ो मेरव दोस्त’ है , ददमवग़ पर हथौडे की तरह ोट करते ।
मैं इसशलये ही शसंि से तब्दीली के शलये पतत को बरबस कहती रही, पर र्े ऐसव करने को तैयवर न थे । इस ददर कक उसके सब ररश्तेदवर भी र्हवाँ से
ले गये, पर किर भी कहने
लगे - ‘‘ये जननी जन्म भशू म कैसे छोडूाँ ? श्री रवम न्द्र जी ने भी अपनी जन्मभशू म अयोध्यव को
सोने की लंकव के आगे तुच्छ समझव थव । हमवरी शसंिडी हमवरे शलये ऐसी ही अहम पवर्त्र भूशम है ।’’ नहीं
पर मेरव शक किर भी बढ़तव रहव कक ये सब बहवने बनव रहे हैं, र्ो इस सहे ली से दरू होनव
वहते । हसद और शक ने मन पर मैल की परतें
ढ़व दीं । उस सहे ली के लफ्ि यवद
आयव करते थे - ‘र्ो मेरव दोस्त है ।’ के बी
र्हवाँ वर्भवजन के कवरण मुल्क की हवलत बदत्तर होने लगी । अख़बवरों में दहन्द-ू मुज़स्लम में नफ़रत और कुलफ़त बढ़ जवने की खबरें छपने लगी। शसन्ि में जहवाँ पहले दहन्द ू
मस ु लमवन पवस पडोस में मवई-बवप बनकर बैठे थे, र्े अभी एक दस ू रे के दोस्त और मददगवर भी नहीं बन सके । इसके बवर्जद ू मेरे पतत शसन्ि को छोडने की मेरी बवत से सहमत नहीं हुए । उस र्क़्त वर्भवजन को छः महीने भी नहीं हुए थे कक बवहरी लोग भीतर आए और है दरवबवद में फ़सवद को बढ़वर्व दे ने लगे । कुछ र्क़्त पहले करव ी में भी उन्होंने िसवद करर्वयव थव, जो
वर्भवजन के पहले शसन्ि में नहीं हुए थे । उन फ़सवदों में हमवरे शसन्िी मुसलमवन दोस्तों कव र्क़्त के पहले हमें आगवह करनव और मदद करनव हमवरे ब वर् कव कवरण बनव, और कई जगहों पर भी शसन्िी
मुसलमवन दहन्दओ ु ं
कव ब वर् हुआ, जैसे भवरत में भी फ़सवदों के र्क़्त दहन्दओ ु ं ने अपने मुज़स्लम पडोशसयों और दोस्तों कव ब वर् ककयव थव ।
उस मनहूस जनर्री महीने के अंत में दे शवपतव महवत्मव गवंिी की शहीदी की ख़बर सुनकर हवहवकवर म गयव । मेरे पतत ने तो रोकर ख़द ु को बेहवल कर ददयव । र्े इतने दख ु ी और उदवस हुए कक आणख़र शसन्ि छोडने के मेरे प्रस्तवर् को मवन शलयव, हवलवाँकक उनकी सहे ली अभी भी र्हवाँ से कहीं गई न थी । तब जवकर ख़श ै शमलव। लेककन ु ी हुई और मेरे मन को कुछ न
अजब तब लगव जब र्हवाँ से रर्वनव हो रहे थे, तब र्ह मेरे पतत से शमलने आई तो ददल में दबव हसद किर जवग उठव। हाँसते हुए उसने कहव - ‘‘इस बहन को भी सवथ लेकर नहीं जवओगे ?’’ मैंने जब उसको दे खव अनदे खव ककयव तो उसने किर से अं्रहेजी में अपने दोस्त से कहव - ‘‘मुझको भुलव भूलव तो न दोगे ?’’ तो मैं जलभुन उठी । हवलवाँकक इसी अंदवज में मेरे पतत के दोस्तों ने
भी मेरे सवथ अपनवइय से बवत की है , पर उनको तो कभी भी हसद नहीं हुआ है । आज भी उस भवजी र्वली की गुफ़्तवर ने इस निवरे को मन के पदे पर ज़िन्दव करके खडव कर ददयव है । हम मम् ु बई की ओर रर्वनव होने के शलये करव ी में आए, र्हीं पतत के कुछ मुज़स्लम
दोस्त अलवर्दव कहने आए और भरे गले से बवर-बवर कहव - ‘‘मवाँ शसंिडी को न भुलवनव।’’ मेरे पतत को अलवर्दव कहने कहव - ‘‘दआ ु करनव कक यहीं अपनी मवाँ के पवस जल्दी लौट आएाँ ।’’
मुझे उसकी यह बवत बबलकुल भी भली नहीं लगी और मैंने पतत से कहव - ‘‘अब यहवाँ कौन-सव ररश्तेदवर बैठव है , ज़जसके पवस लौट कर आनव है ? अभी तविी शवदी की है , पत्नी की ओर भी
कुछ फ़जा पवलने कव ख़्यवल है यव नहीं ?’’ जर्वब में बडे स्नेह से कहव, ‘‘यहवाँ दे खव नहीं कक तेरव
ख़्यवल इतनव रखव कक मवाँ से जोरू के गुलवम कव णख़तवब शमलव । उसके जवने के बवद यह ख़बर न रखी कक घर र्वले अब कहवाँ है ?’’
मैंने भी खन ु की के सवथ कहव - ‘‘र्ैसे तो आपसे बंि जवने के बवद मैंने भी तो अपनों को
भुलव ददयव है ।’’
हम जब मुंबई जैसे अजगर शहर में पहुाँ े तो हमसे पहले आए शसन्िी बडे दर-बदर थे । जवने ककतनव अरसव खल ु े आसमवन के नी े बबतवनव पडव, उसके बवद कल्यवण कैम्प की बैरकों में टवट के परदे लगवकर भी रहनव पडव । कभी टीन की तपती छतों के नी े तो कभी बवररश में
बहती छतों के नी े भी सोनव पडव । रोिगवर के शलये अपने कवंिों पर भरोसव होने के बवर्जद ू भी मकवनों में कवम करते मवशलकों की बवतें सन ु नी और सहनी पडती थी । ऐसी मस ु ीबत के र्क़्त में शसन्ि
के कुशवदे कमरों और बडे आाँगन र्वले हर्वदवर घरों में गज ु वरे सख ु के पल और
शवंतमय जीर्न की बहुत यवद आती थी । स में हवथ से सबकुछ छूट जवने के बवद ही हर शै की दद्र होती है , जैसे शसन्ि र्वलों को भी अब हमवरी दद्र हुई है । हम कैम्प छोडकर मुम्बई की बसी हुई बज़स्तयों में आ बसे, दो-तीन सवलों में ही हम दो से
वर हो गए । मेरव सवरव र्क़्त घर में ही बेटे और बेटी के लवलन-पवलन में गुिर जवतव थव,
इसशलये पतत ने भी नौकरी करने के शलये िोर नहीं ददयव । ख़द ु ही सवरव समय आजीवर्कव के शलये मवस्टरी और टयूशन करते रहे , पर कभी कोई जर्वन छोकरी पतत के पवस पढ़ने, ट्यूशन लेने यव ककसी और कवम से आती तो उनकी शसन्ि र्वली सहे ली यवद आ जवती। उसकव कभी-
कभी ख़त आतव रहतव थव। तब मेरे मन में हसद जवग उठतव, इसशलये घर में अक्सर खट-पट लती रहती थी। बेटी बडी होते ही बवप की, और बेटव मेरी तरफ़दवरी करने लगव । एक ददन मुम्बई के बवहर बसे शसन्िी घर में बेटी की शवदी हो गई, पर र्ह सुखी न रही।
बेटव कॉलेज पढ़ने के सवथ-सवथ नौकरी भी करने लगव । कॉलेज पूरव करके, शसवर्ल मैरेज करके
बहू घर ले आयव। न सलवह, न मश्र्रव और न कोई शगुन-रस्म। बस शवदी कर ली। इसशलये घर में ककलककल और बढ़ गई । बेटव मेरी तरफ़ थव, पर बहू ससुर की तरफ़दवरी करती रही, तो हसद की आग और भडक उठी। किर हसद के सवथ स्त्री हठ हमजोली हुआ तो पतत के णखलवफ़ मन मैलव ही रहव ।
आणख़र एक ददन अ वनक ही ददल टूटने के कवरण र्ह स्र्गार्वसी हुए । तब बहू ने उस घटनव के शलए कई दोष मुझपर मडे, पर हवशसद र् हठीलव मन मवनकर भी न मवन पवयव । मन मसोसे कई ददन पडी रही। आणख़र सब्िी-तरकवरी के शलये घर से तनकलनव ही पडव और बदले हुए िमवने से सविवत्कवर हुआ, ज़जसमें एक मिदरू की पत्नी भवजीर्वली के सवफ़, सीिे, सच् े शब्द मेरे हवशसद और हठीले मन को शशक्सत दे गए । (१९८८)
ससन्ध़ी कहाऩी – मासूम यादें
मूल: कमलव मोहनलवल बेलवणी अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
इक सोि भरी कहवनी, खून के आाँसू बहवती हुई रवधगनी बनकर मेरे अंदर को ीरती रही । मेरे अंदर से यह ककसी आर्वि आलवप बनकर कह रही है तुमने ऐसव क्यों ककयव ? क्यों इन्सवतनयत कव ख़न ू ककयव ?
मैं रोती हूाँ... तडपती हूाँ... नैनों से असर् ु न कव आबशवर बहवती हूाँ... बवर्जद ू इसके जग में जीती हूाँ । मैंने उसको बवर-बवर म ू व, उसकी उं गशलयों को अपनी ऊाँगशलयों से उलझवकर स्पशा महसस ू करती रही । र्ह शमवा जवतव थव । उसकी शमकीली मस् ु करवहट पर मैं अपनव सर दुरबवन करने को तैयवर थी। नहीं जवनती थी कक उसकी आाँखों में कौन-सव जवद ू भरव थव।
वहती थी कक
मैं उसकी आाँखों में बस जवऊाँ, र्ह आाँखें बंद कर ले और मैं उनमें समव जवऊाँ ।
उसने मेरे गवलों पर अपनव हवथ िेरव थव । मेरी आाँखों से आाँखें शमलवई थी । ख़वमोश िुबवन से ये भी कहव थव - ‘‘हमवरव संबंि जनम-जनम कव है ।’’ मैंने बवर-बवर उसकव नवम पूछव थव, पर र्ह मेरी तरफ़ दे खकर शसफ़ा मुस्करवतव थव। शवयद ।
ह े रे की मुस्कवन ही उसकव नवम थव
मैं हर शवम बवग़ में जवती रही, उसकव इन्तिवर करती रही । न कभी मैंने और न कभी
उसने नवगव ककयव । संयोग से अगर रवस्ते में शमल जवतव, तो र्ह अपनव हवथ मेरी तरफ़ बढ़व
दे तव थव और सहज ही मेरे माँह ु से तनकल जवतव थव - ‘‘मैं तो तुम्हवरी तरफ़ आ रही थी ।’’ एक अजीब कशमकश थी, एक अनोखी कशशश भरी प्रीत थी ।
एक शवम र्ह बगी े में दे र से आयव । मैं बवग़ के कोने में एक मुंडरे पर बैठी थी । र्ह
मेरी तरफ़ बढ़व और ददम की रफ़्तवर बढ़वते हुए आकर मेरे गले से शलपट गयव। कुछ आदमी हमवरी तरफ़ बढ़ रहे थे। र्ह उनको दे खकर सुबकने लगव और मैंने उसे
अपनी बवहों के घेरे में और ज़्यवदव कस शलयव । मैंने ऐसे महसूस ककयव जैसे हम दोनों एक हो गए हैं। अजनबी बढ़ते रहे - जैसे र्े निदीक आते रहे र्ैसे ही र्ह मेरी छवती से बेल की तरह
ध पकतव रहव । मैंने उनसे पूछव - ‘‘आप इस तरह मेरी तरफ़ सवर्ली तनगवहों से क्यों दे ख रहे हैं ?’’
एक ने कहव - ‘‘यह हररजन है ।’’ दस ू रव बोलव - ‘‘यह गाँग ू व है ।’’
तीसरे ने कहव - ‘‘अनवथ बवलक है । आश्रम से भवग आयव है ।’’
मेरी बवंहें ढीली पड गई। मेरी मवसूम मुहब्बत कव महल पल में ढे र हो गयव। उफ़ ! मैंने
हररजन बवलक को गले से लगवयव थव! उसने मेरे गवलों पर हवथ िेरव थव! मैंने उसके गवलों को म ू व थव!
मैं सवरी रवत रोती रही, गीली आाँखों से दरू गगन की ओर दे खती रही। तवरे -शसतवरे
दटमदटमव रहे थे । एक तवरव आसमवन की छवती से टूटकर तेि रफ़्तवर से धगरतव हुआ ग़वयब हो गयव । मेरे सीने से सदा आह तनकली । ददल के ददा की रफ़्तवर बढ़ती रही, महसूस ककयव जैसे कोई भवरी भरकम र्िन मेरी छवती पर रखव हुआ हो । ददा के दबवर् को मैं झेल नहीं पवई । ख़श्ु क लबों पर जीभ िेरी, शससकी को रोकने की कोशशश की, पर अनवयवस र्ो बवहर आई । लगवतवर शससककयों की आर्वि पर मेरे घर के सदस्य नींद से जवग उठे । पतत ने पछ ू व - ‘‘क्यों क्यव हुआ ?’’ सवस ने कहव - ‘‘कहवाँ पर ददा है ?’’ मैंने होश साँभवलते हुए उनसे कहव कक मैं बबलकुल ठीक हूाँ र्ो जवकर आरवम से सो गए । दस ू रे ददन मैं दस्तूर के मुतवबबक बवग़ में गई । र्ह नहीं आयव । उसके बबनव सवरव मन उजडव हुआ लगव । मवली िूलों की क्यवररयों को जड से उखवड कर िेंक रहव थव। निर उठवकर उनकी ओर दे खव तक नहीं, शवयद र्े मुरझव ही न रही।
क ु े थे, बदिेब हो गए थे। उन िूलों की जैसे बवग़ में िरूरत
सवमने तवलवब के पवनी में कमल कव िूल गदा न ऊाँ ी ककये खडव थव । उस िूल के सवमने
शवयद और िूल शमवा गए, क्योंकक कमल तनलेप है , पवर्त्र है । ऐसे पवर्त्र िूल के आगे और ककसी िूल की महक कव क्यव महत्र्? संसवर कव हररजन कव अनवथ बवलक और गाँग ू व... !!
लन ही ऐसव है । मैं ब्रवह्मण हूाँ और र्ह
ये मुरझवए िूल अपनी कहवनी कमल िूल को सुनव नहीं सकते, क्योंकक र्े बेिुबवन है ,
हररजन है , अनवथ है ।
मैंने हररजन आश्रम में ददम रखव । गवाँिी कव अमर पुतलव दे खव । उनके हवथ में लकडी
दे खी... उनके ददम दे खे, उनकी आाँखों से आाँखें शमलव न सकी ।
मेरी र्ेशभूषव दे खकर हररजन बच् े सहमे से अपने कमरों की ओर दौडने लगे । मुझे उसकी तलवश थी ।
मैंने
एक सेर्क से पूछव - ‘‘र्ह कहवाँ है जो हर शवम बवग़ में आतव थव ?’’
जर्वब शमलव - ‘‘कौन ? क्यव र्ही गाँग ू व हररजन अनवथ बवलक जो शवम को प्रवथानव के र्क़्त ग़वयब हो जवतव थव ?’’
मैंने कहव - ‘‘प्रवथानव से प्रीत प्यवरी समझी होगी । इस सबब में हूाँ ।’’
लव आतव थव... मैं उसी की तलवश
सेर्वदवर ने उत्तर में कहव - ‘‘र्ो आपको अब किर नहीं शमलेगव । कल शवम जब उसे बवग़ से पकडकर ले आ रहे थे, तो बी मर गयव ।’’
रवस्ते में र्ह हवथ छुडवकर भवगव और मोटर के नी े आकर
मुझपर अनवयवस कौंिती बबजली बरसी । ठं डी आह भरते हुए होश संभवलव और घर लौट आई । उस पल से मेरे नैनों की नींद अिरू ी है । हर रवत गवंिीजी की लवठी की ठक-ठक सुनती हूाँ । िीरे -िीरे र्ह आर्वि मेरी कवनों से दरू होती जवती है । ज़जतनी दरू र्ह आर्वि जवती है , उतनी ही र्ह मेरे ददल के दरीब होती जवती है । कवश ! यह बवपू की अिरू ी कहवनी, शसफ़ा लेखकों और शवयरों की दलम की नोक तक नहीं, बज़ल्क उनके सीने की गहरवइयों तक पहुाँ े और समवज के ठे केदवरों के ददलों में हल ल म वए ।
शसन्िी कहवनी
और मैं बड़ी हो गई -दे र्ी नवगरवनी
ं लतव और नटखटतव उसकी नस-नस में बसी थी, जो जर्वनी की तरह उमड-उमड कर अपनव इिहवर ककसी न ककसी स्र्रूप में करती थी,
वहे र्ह उसकव उठनव - बैठनव हो यव बवत
करनव हो । ‘अब मैं दो
ोंदटयवाँ नहीं बनव सकती, पर क्यों ?’
‘क्योंकक तुम बडी हो गई हो?’ ‘तो क्यव बडे होकर दो
ोदटयवाँ करनव मनव है ?’
‘अरे मनव नहीं है , पर हर इक उम्र की बदलती अर्स्थवएाँ होती हैं, ररश्ते बदल जवते हैं, ररश्तों के नवम बदलते हैं, और ऐसे में अपनी दे ख-रे ख,
वल- लन और बतवार् भी तो बदलनव पडतव है यव
नहीं ?’ मवाँ ने एक टूक जर्वब दे ते हुए शमनी को प ु करवनव वहव । ‘आपकव मतलब है ररश्तों के नवम बदल जवने से हमें भी बदलनव पडतव है यव बदलवर् लवनव पडतव है ?’ ‘अरे बवबव, तुमसे बवत करनव बहुत ही मुज़श्कल है शमनी । बवल की खवल तनकवलने लगती हो । बेटव उन ऊाँ -नी की गशलयों से गुिरने के शलये मैं तम् ु हें नहीं समझवऊाँगी, तो और कौन आकर तुम्हें यह दतु नयवदवरी के सलीके बतवएगव यव समझवएगव ।’ मवाँ शमनी के मवथे में तेल डवलकर, उसके बवलों को संर्वर रही थी और शमनी को बहुत अच्छव लगतव थव जब ऐसव होतव थव, पर आज मवाँ जवने कैसी उलझी बवतें ले बैठी थी ।
‘पर तुम ये सब बवतें आज क्यों लेकर बैठी हो मवाँ ?’ शमनी ने अपनव मवथव खज ु वते हुए कहव । ‘इसशलए कक अब तुम छोटी नहीं रही । जब लडककयवाँ बडी होती हैं, तो उन्हें औरत कव नवम ददयव जवतव है , और औरत बदलवर् ‘तुम
वहती है ।’ मवाँ ने उसकी आाँखों में झवाँकते हुए कहव । वहती हो कक दतु नयव की सब लडककयवाँ जब औरत बन जवएाँ तो र्े सबकुछ
भूल जवएाँ, हाँ सनव, मुस्करवनव, लंगडी खेलनव, कबड्डी-कबड्डी, तू-तू, मैं-मैं जो ब पन से लेकर आज तक र्ह करती रही हैं । और सब तेरी तरह बन जवएाँ, दो पवटों के बी
वपसती हुई एक सविवरण िवन कव दवनव । क्यव लडकी कव जीर्न मवत्र नवरी होने में नहीं है जो सहजतव से उसे र्रदवन में शमलतव है ? क्यव हर शवदी कव अंत ऐसव ही होतव है ? पतत की सेर्व, उसके मवतववपतव के पवाँर् दबवनव, उसके बच् ों को पैदव करनव, उनकव लवलन-पवलन करनव, उन्हें खवनव बनवकर णखलवनव, स्कूल के शलये तैयवर करनव और उनकी जरूरत और मवाँगों की कशमकश में
तघरे रहनव, कुछ इस तरह कक अपने होने कव एहसवस भी यवद न रहे , बस ख़द ु ही िवन, ख़द ु ही
क्की बनकर ।’
लती रहे , वपसती रहे , जैसे कोई टूटी-िूटी नवर्
‘यह तुम क्यव कह रही हो शमनी?
ल रही हो महवकवल की भंर्र में
क्यव हो गयव है तुझे ? ये तो बवग़ी सो
है । पररर्वर के
शलये अपनव समस्त अवपात कर दे नव दुरबवनी नहीं, यह तो कताव्य होतव है । र्ो मेरे हैं और उनकव पररर्वर भी मेरव है ।’
‘यह तुम कह रही हो मवाँ ? अब मैं छोटी नहीं हूाँ जो यह भी न समझ सकाँू । तुम ज़जनकी बवत कर रही हो, र्ह मेरे वपतव होते हुए भी जैसे मेरे वपतव नहीं है । उन्हें यह भी नहीं मवलम ू कक मैं ककस किव में पढ़ती हूाँ । मेरव छोटव भवई ककस पवठशवलव में जवतव है , क्यव ओढ़तव है , क्यव बबछवतव है ? बस सवल में एक-दो बवर जब उन्हें होश होतव है तो पछ ू लेते हैं ‘पढ़वई कैसे ल रही है ’ और ऊपर से सझ ु वर् दे कर शमनी अपनी उम्र की बवग़ी सो मवाँ की थी ।
लते बनते हैं - ‘मवाँ की बवत सन ु व और मवनव करो ।’
को उडेलते हुए कहती रही । प्ु पी दे खते हुए शमनी ने उन्हें उकसवने की कोशशश की, र्ह मवाँ कव मन टटोलनव
वहती
‘मवाँ तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे र्े कभी तुम्हवरी बवत सुनते हैं और मवनते हैं, मुझे तो लगतव है उन्हें अपने नशे में और जर्वनी की
ौखट पर बैठी उस मैत्री के ख़म ु वर के शसर्व कुछ यवद ही
नहीं रहतव । क्यव तुम इसे कताव्य कहती हो, जो फ़दत एक तरफ़व ही रह गयव है , और ज़जसे तनभवने के शलए तुम खद ु भी जीनव भूल गयी हो ।’
‘बेटे अपने घर की लवज रखनव, रखर्वनव नवरी मवत्र की जर्वबदवरी होती है , क्योंकक र्ह सब
ररश्तों से बढ़कर ममत्र् की रिव करनव
वहती है । मुझे तेरी बहुत किक्र है , यह भी एक कवरण है कक मैं बहस नहीं करती, बस ख़ैरख्र्वही की दआ ु एाँ मवाँगती रहती हूाँ ।’
‘अपने घर को घर मवनने की ज़िम्मेदवरी क्यव शसफ़ा तुम्हवरी है मवाँ ?’ शमनी अब मवाँ को कुरे दने लगी थी । ‘.........’ ‘मवाँ क्यव सो
रही हो....?’ शमनी ने भी जैसे बवत की तहों तक पहुाँ ने की ज़िद पकड ली हो । ‘शमनी, ररश्तों में अगर तनभवने से ज़्यवदव झेलने की बवरी आ जवए, तो मुलवयम ररश्ते ख़शलश दे ने पर उतवरू हो जवते हैं । किर भी उन
तो िक्के मवरकर ज़िंदगी की गवडी को
वहे -अन वहे अहसवसों के सवथ जीनव पडतव है , कभी कहीं लवनव पडतव है !’
‘पर मवाँ ररश्तों में तो प्यवर होतव है , अपनवपन होतव है , जर्वबदवररयवाँ और ििा होते हैं, जो सभी को बरवबर-बरवबर तनभवने पडते हैं । पतत-पत्नी एक दज ू े के सहवयक आिवर होते हैं, है न मवाँ... ?’
मवाँ की िुबवन को अब तवले लग गये । स
ही तो कह रही है शमनी । ददखने में र्ो
ल ु बुली है पर समझ में कवफ़ी सतका है , समझदवर, दतु नयवदवरी की समझ रखने र्वली । दसर्ीं
में पढ़ रही है पर दतु नयवदवरी को समझते हुए भी न समझने कव ददखवर्व करती है । शमनी अपनी मवाँ की सखी है , उसकी हर आहट से उसके अंतरमन के तट को छू आती है , उसकी आाँखों में छुपे हुए डर को, हर सर्वल को पढ़ लेती है । मन की गहरवइयों में छुपे िख़्मों के छवलों को कभी-कभी अपनी ऐसी ही बवलपन की बवतों से िोड आती है - तवकक मवाँ के ददल कव ददा िहर बनने के पहले अश्रु बनकर बह तनकले। मवाँ के मन के संघषा से र्ह भली-भवाँतत
पररध त थी, उठते हुए बर्ंडर से भी र्वकदफ़ थी, पर कहती कुछ न थी । अपनी तरफ़ से एक अनजवन ददखवर्े को ओढ़कर र्ह वर् रती रहती, पर निर वरों ओर घम ू ती, उस घर की
वरददर्वरी के अंदर और बवहर । उसे यह भी पतव रहतव थव कक कहवाँ क्यव हो रहव है । ऊाँ -नी
समझने कव सवमथ्या उसमें है । बस मवाँ के िख़्मी ददल को और सर्वलों से उसे टटोलती।
ोट न पहुाँ े इसशलए ही ऐसे ही
जब मवाँ के पवस उन सर्वलों कव कोई जर्वब न होतव तो र्ह घर की दहलीि, उसकी मयवादव के सुर कव सुर अलवपते हुए रोती । अपने मन में छुपे हुए भय को शमनी के सवथ यह कहते हुए बवाँटती - ‘बेटव हर घर की एक कहवनी होती है, एक मयवादव होती है । जब एक लडकी की बेटी, दज ू े घर की बहू बनकर उस घर की बन जवती है ।’
ौखट के भीतर पवाँर् िरती है तो र्ह लवजर्ंती
बस मवाँ को इसी घर और उसकी दहलीज की मयवादव के सुर अलवपते हुए सुनती है , पर आज बवत कव रुख बेरुख-सव बनतव जव रहव थव । शवयद मवाँ अपने भीतर के डर को शब्दों में ढवल पवने में असमथा हो रही थी...! ‘बेटव घर की बवत घर में ही रहे तो बेहतर। मुझे तेरी भी तो ध त ं व लगी रहती है । सवलभर में
कोई अच्छव लडकव दे खकर तेरी शवदी कर दाँ ग ू ी, तेरी कश्ती पवर हो जवए, किर मेरी नैयव कव जो हो सो हो । तेरव भवई तो लडकव है , ज़िंदगी के सफ़र में मदों को कई ददशवएाँ शमलती हैं । कई मोड आते हैं जहवाँ र्े अपनव मन वहव पडवर् डवल लेते हैं । दतु नयव उसे गर्वरव कर पवती है पर
औरत कव एक ग़लत ददम, उसकी मयवादव को कलंककत कर जवतव है । ज़जसके बवद उम्मीदों के सवरे दरर्विे अपने आप उस पर बंद होते
ले जवते हैं ।’
अब शमनी कुछ संजीदव होकर ग़ौर से सुनने लगी और सो ती रही कक मवाँ क्यों ऐसव कह
रही है और क्यव कहनव
वह रही है ? और ऐसी क्यव बवत है , कोई अनजवनव डर है जो अंदर ही
अंदर उसे खवए जव रहव है । और जो र्ह मुझसे कहनव सवथ दे ने से कतरव रही है ।
वह रही है, उसकी जुबवन भी उसकव
वपतवजी ने आाँगन के उस पवर कुछ ओतवक जैसव मवहौल बनव रक्खव थव, ज़जसमें कुछ
नशे को बनवए रखने कव सवमवन सजव हुआ थव, पवन कव बक्सव, बीड़डयों के
द ं छल्ले, मव ीस
की तीशलयवाँ यहवाँ-र्हवाँ बबखरी हुई, दे सी दवरू की भरी और खवली बोतलें , ज़जनकी महक से र्ह कमरव गंिमय होतव जव रहव थव । कभी-कभी मवाँ को लवतों से मवरकर उस कमरे की सिवई की तवकीद करते शमनी सुन तो लेती, पर र्ह नहीं जवनती थी कक मवाँ र्ह कवम कब करती है । यह मैंने खल ु ी आाँखों से कभी नहीं दे खव, पर जवनती हूाँ हमवरी पलकों में नींद भर जवने के बवद र्ह करती रही होगी । यह है मेरी मवाँ । सो के भी डर लगने लगतव है कक ऐ औरत ! क्यव यही
तेरी कहवनी है ? क्यव कभी इन बेजुबवन ररसते जख्मों को दे खकर इंसवन कव दवमन आाँसुओं से नहीं भरतव ? और ऐसे कई शसलशसलों को दे खकर, उन्हें महसस ू करते हुए मझ ु े लगतव रहव है जैसे मवाँ के सवथ मैं र्ह दौर खद ं ल ु जी रही हूाँ - उन दररंदों के ग ु कव शशकवर बनकर, ज़जनमें इंसवतनयत कव नवमों-तनशवन दरू तक बवकी नहीं ।
आज घर के आाँगन को पवर करते हुए दो बवर मैत्री वपछर्वडे के कमरे में वपतवजी के सवथ बेिडक भीतर ली गई थी और तब मवाँ की आाँखों की उदवसी और गहरी होती हुई दे खी थी उसने । शमनी की पैनी निरों से यह सब छुपव नहीं थव ।
‘मवाँ तुम ककस सन्दभा में बवत कर रही हो ? तुमने कौन-सव डर मन में पवल शलयव है मुझे बतवओ, शवयद मैं अपने ढं ग से कुछ सो
पवऊाँ और ककसी सुझवर् कव दरर्विव खटखटव सकाँू ।
समस्यव कव समविवन तो तनकवलव जव सकतव है , पर जब तक तुम कहोगी नहीं !’
मवाँ कुछ कह न पवई, शवयद उसे हर आहट पर एक अन वहव डर सवमने आतव हुआ निर ददखवई दे तव । समविवन की संभवर्नव अब कहवाँ ददल को ढवंढस बाँिव पवती ? शवयद इस घर में रहते-रहते मवाँ यह जवन गई थी की समविवन की जवं उपरवंत हुआ करती है , और उसके अंततम है ! हल रवहों पर ही छल शलए जवते हैं ।
पडतवल एक घटनव के गुिर जवने के
रण में पहुाँ ने के पहले दस ू री घटनव घट
क ु ी होती
‘शमनी...’ और मवाँ आाँसुओं के दररयव में डूबती हुई निर आई । ‘मवाँ कहो नव क्यव बवत है जो तुम मुझसे वहकर भी नहीं कह पव रही हो ?
‘बेटी तुम्हवरे वपतव तुम्हवरे ररश्ते की बवत कर रहे थे... और मैं जवनती हूाँ उन ररश्तों की नींर्
ककतनी कमिोर होती है ’ मवाँ ने शससकते हुए कहव । मैं सुनकर जैसे बहरी हो गई, और मवाँ कहती रही - ‘बस कोई लडकव तलवश करके तेरे हवथ पीले करनव
वहती हूाँ और यह प्रवथानव करूाँगी कक तू इस घर से दरू , बहुत दरू जहवाँ ये िहरीली हर्वएाँ तेरी सवाँसों में घुटन न पैदव कर सके !’ उसी समय
ली जव,
रमरवती आर्वि के सवथ पुरवने दरर्विे कव ककर्वड खल ु व और अंदर आने
र्वलों में सबसे पहले थे वपतव, उनके सवथ माँह ु में पवन दबवये, इठलवती, कमर ल कवती, मुस्करवती मैत्री और सवथ में एक नर्युर्क कव नयव
हरव निर आयव, जो अपनी भूखी निरों से
मुझ पर निर डवलतव हुआ आाँगन से गुिरकर आाँगन के उस पवर र्वले कमरे में
लव गयव।
पर आज जो हुआ र्ह पहले कभी नहीं हुआ, इस हवदसे के गुिर जवने के बवद लग रहव है मैं बडी हो गई हूाँ ! र्हीं उसी ौखट पर मेरव ब पन लुट गयव, मवसशू मयत लूट गई। र्ह णखलणखलवनव, र्ह नटखटतव और
ल ु बुलवहट उस है र्वतनयत के आगे घुटने टे क कर रह गई ।
शवयद अमवनुष बननव ज़्यवदव आसवन है । मनुष्य तो बस दीमत *
क ु वने के शलये होतव है !
शसन्िी कहवनी मुस्कान और ममता मूल: कहवनीकवर: कलव प्रकवश अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
यह ममतव की मूतता मेरे सवमने बेजवन पडी है । ख़ुद बेजवन है पर ममतव को जवनदवर
बनवकर गई है । नई ज़िन्दगी को जन्म दे कर, अपनी ज़िन्दगी कुबवान करने र्वली इस नवरी की तरफ़ दे खते ही मेरी आाँखें भर आती हैं। उसकी हर एक बवत यवद आती है , शवयद मैं कुछ भी नहीं भूली हूाँ। कल रवत मेरी रवत पवली थी।
क्कर लगवते उसके बबस्तरे के पवस आई । ददन र्वली नसा
ने बतवयव - ‘इसे आज तकलीफ़ है, शवयद रवत को ही ड़डशलर्री हो जवए।’ ‘अच्छव!’
मैंने खश े रे की तरफ़ मुस्करवकर ु ी से उसकव हवथ पकडते हुए कहव। किर उसके िदा ह दे खते हुए कहव - ‘बस तीन घंटों की दे री है , बतवओ बेटव वदहये यव बेटी?’ पीडव की र्िह से उसकव ह े रव पसीने से तर थव, किर भी मेरव सर्वल सुनकर र्ह मुस्करवई । मैंने किर पूछव - ‘बतवओ?’
आाँखों में शमा मुस्करवयव, शवयद यह पहलव बच् व थव । मैंने मेि से घंटी उठवकर उसे दे ते
हुए कहव - ‘जब ज़्यवदव तकलीफ़ हो तब यह घंटी िोर-िोर से बजवनव।’ मझ ु से घंटी लेकर, तककये के नी े रखते हुए र्ह मस् ु करवई। मैं भी अपने कवम में लग गई । रवत को दरीब तीन बजे उसने घंटी बजवई। मैं दौडती हुई गई । बबस्तर से उठते उसने तककये की दवईं तरफ़ रखे गल ु वब के दो तीन िूल उठव शलये। मैंने उसे बवाँहों कव सहवरव दे ते हुए पछ ू व- ‘ये िूल ड़डशलर्री रूम में ले
लोगी ?’
उसने कहव - ‘शसस्टर तम् ु हें दे रही हूाँ !’ िूलों से ककतनव प्यवर थव उसे । उससे मेरी पह वन भी िूलों के िररये हुई थी। नी े ‘आउट डोर पेशेंट ड़डपवटा मेंट’ में रोि सुई लगर्वने आती थी। मुझे बबलकुल भी यवद नहीं आतव
कक उसने कभी ककसी ददा की शशकवयत की हो । बवदी औरतों की तरह कभी मेरव समय बबवाद नहीं ककयव। इसीशलये र्ह जब भी दरर्विे से भीतर आती तो मैं हाँ सकर उसकव स्र्वगत करती । एक ददन मुझे गुलवब कव िूल दे ते हुए उसने कहव – ‘शसस्टर बबनव पह वन के हर रोि एक मिरु मुस्कवन से मेरव स्र्वगत करती हो, इस शुक्र अदवई के शलये यह िूल दे रही हूाँ, दबूल करोगी ?’ मैंने खश ु होकर कहव -‘िरूर।’
इस र्वडा में र्ह वपछले हफ़्ते से रही पडी है । उसकव पतत
न्दर हर रोि उसके शलये
िूल लवतव है । पहले ददन मैं ददन की ड्यूटी पर थी। मुझे बुलवकर अपने पतत से परर य
करवर्वयव। उसे मेरव नवम बतवते हुए कहव - ‘यह शसस्टर बहुत ही मिरु मुस्कवन की मवलककन है । ‘ उस ददन शवम छः बजे जवते समय
द ं र मेरे पवस आयव और कहने लगव - ‘शसस्टर, कोई
खौफ़-ख़तरव तो नहीं है ?’ मैंने कहव - ‘बबलकुल नहीं, थोडी कमिोर है इसशलये उसे पहले ही दवणख़ल कर ददयव है । सुई के सवथ दर्व भी दे रहे हैं। र्ह बबलकुल ठीक हो जवएगी।’
ड़डशलर्री रूम के बवहर तनहवयत सन् ु दर और तंदरु ु स्त बच् ों की तस्र्ीरें टं गी हुई हैं। न्दर की तनगवहें उनपर जव अटकीं। कुछ रुककर, दह कक वते हुए कहव - ‘मझ ु े मोटे और तंदरू ु स्त बच् े पसंद हैं, ऐसे बच् े ज़जन्हें िक्कव मवरो तो भी न रोएाँ।’ मझ ु े लगव र्ह कहने को तो कह गयव , पर बवद में ख़द ु बहुत शरमवयव।
o अल्लव! र्ह अभी आतव ही होगव । उसे ऐसी अशभ ु ख़बर सन ु वने के शलये मैं ही क्यों
ड्यूटी पर हूाँ ? इतनव सवहस मैं कहवाँ से लवऊाँगी जो उसे सुनव सकाँू कक उसकी पत्नी अब इस दतु नयव में नहीं!
अभी अभी तो थी। तीन घंटों के अन्दर यह क्यव हो गयव ? मैं ग्यवरह सवल इस
अस्पतवल में नौकरी कर
क ु ी हूाँ । मैंने अनेक मौतें अपनी आाँखों के आगे दे खी हैं। किर इसकी मौत पर आज मैं क्यों अपने बस में नहीं हूाँ ? शवयद उसके सवथ मेरव नवतव गहरव हो गयव थव! आाँखों के सवमने अभी भी रवत र्वलव मंिर रक्स कर रहव है , कुछ और ददखवई नहीं दे तव।
वर बजे के दरीब तनहवयत ददा भरी आर्वि में उसने पुकवरव। मैंने पवस जवकर पूछव -
‘क्यव हुआ, क्यव हुआ है ? घबरवओ मत, कहो क्यव बवत है !’ असहनीय ददा को छे दती एक शससकी सुनवई दी। र्ह शसिा इतनव कह पवई - ‘मुझे न जवने क्यव हो रहव है शसस्टर ! मैं बतव नहीं सकती ।’
उसकी आर्वि में बेपनवह पीडव समवई थी। मैंने उसके पेट पर कवन रखकर बच् े की हवलत जवं ी। हवलत कुछ बबगडी निर आई । मैंने र्ॉडा ब्र्ॉय को भेजकर डॉक्टर कुमवरी शवह को उसके क्र्वटर से बुलर्व शलयव । पंद्रह शमनट की जवाँ उसने कहव - ‘ड़डशलर्री फ़ौरन ही होनी
के उपरवंत, पेशवनी पर ध त ं व के ध न्ह शलए
वदहए, नहीं तो इसे ख़तरव है ।’
मैंने पवस र्वले र्ॉडा से दो नसें माँगर्व लीं। प्रभवत के पवाँ
बजे तक प्रसर् पीडव तनरन्तर
बढ़ती रही। आणख़र जब ख़द ु को रोक न पवई तो रो पडी । मैंने बहुत ददलवसव ददयव कक ऐसव मत करो। मेरे हवथों पर स्नेह से दबवर् डवलते हुए कहने लगी - ‘मुझे खद ु शरम आ रही है शसस्टर
कक मैं रो रही हूाँ। पर मैं क्यव करूाँ ? मुझे जवने क्यव हो रहव है ?’ उसकी इसी असहवय, बेबस आर्वि ने मझ ु े रुलव ददयव। उसके ‘शसस्टर’ कहने के अंदवि में भी एक अपनवपन थव । उसकव दख ु मेरे शलये असहनीय हो गयव ।
डॉ. शवह ने लौटकर आते ही कहव - ‘उसको ऑक्सीजन दो’। किर उसकव ब्लडप्रेशर दे खकर मुझे बुलवते हुए कहव - ‘हवलत बबगड रही है ।’ यह तो मैं भी दे ख रही थी। उसे ऑक्सीजन ददयव गयव, पवाँ -पवाँ
शमनट बवद सुई भी
लगती रही । यहवाँ डॉ. शवह उसकव ब्लडप्रेशर दे ख रही थी, र्हवाँ उसकव रोनव तीव्र होतव रहव। डॉ. शवह ने बबनव समय गाँर्वए उससे कवग़ि पर हस्तविर शलये और अपनव कवम शुरू ककयव। दसपंद्रह शमनट में ड़डशलर्री हो गई !
बच् े ने ‘ऊाँआ..ऊाँ..आाँ..’ की, और उसके होठों पर मस् ु कवन दौड गई, ममतव को अमर
करने र्वली मस् ु कवन! बच् े की ‘ऊाँआ..ऊाँ..आाँ..’ से उसे क्यव शमलव, ककतनव शमलव, इसकव
मल् ू यवंकन फ़दत एक मवाँ ही कर सकती है । उसकी नब्ि ढीली होती गई, र्ह ख़द ु पीली पडती गई। मैं ज़जस र्क़्त उसे
ौथी सई ु लगव रही थी, तब घवयल ममतव ने मझ ु से पछ ू व - ‘शसस्टर,
बेबी कव र्िन ककतनव है ?’
मैंने भरे गले से कहव - ‘पवाँ
पवउन्ड !’
उसने अपनी आाँखें बंद करते हुए िीमे से कहव - ‘तुम न्दर से कहनव छः पवउन्ड र्िन है ।’ मेरव हृदय रू - रू हो गयव, िबरदस्ती मुस्करवते हुए कहव - ‘हवाँ, हवाँ, तुम ध त ं व मत करो, मैं सवत पवउन्ड कहूाँगी ।’ उसने आाँखे खोलीं और मुस्करवते हुए कहव - ‘तुम बहुत अच्छी हो शसस्टर!’ ये क्यव हो रहव थव? उसकी नब्ि ढीली पडती जव रही थी। समझ नहीं आयव र्ह कैसे बवत कर पव रही थी ? कैसे मुस्करव रही थी ? हम सब उदवस
हरे शलये एक दस ू रे को दे खते
रहे । उसे ब वने की भरपूर कोशशश हो रही थी, पर मौत तेि कदमों से उसकी ओर बढ़ रही थी । हम ज़िन्दगी को मौत से ब वने के प्रयवसों में जुटे थे, पर र्ह जो दो पवटों की कशमकश में थी, उसे कुछ पतव ही न पडव। मौत न तो उसकी आाँखों की
मक छीन सकी, न होठों की मुस्कवन ।
उसके एक ज़िन्दगी कव तनमवाण ककयव और मौत को शशकस्त दी थी । पल के शलये ददल ने
वहव कक उसे बतव दाँ ू कक र्ह शवयद कुछ पलों की मेहमवन है , पर
उसकी आाँखों में जो सुंदर सपने सजे थे, उनको छीनने की शज़क्त मुझमें न थी ।
मैं भी ‘मवाँ’ हूाँ, मुझे पतव है उस पल में उसने कैसे कैसे सपने दे खे होंगे। मेरी बेटी ‘कुसुम’ कव जन्म भी इसी कमरे में हुआ थव, उसके जनम के पंद्रह ददन पहले मैं हॉज़स्पटल के सवलवनव जलसे में आई थी । र्हवाँ सवत सवल की एक बवशलकव ने ददलकश नत्ृ य ककयव थव । कुसुम की ‘ऊाँ..आाँ..ऊाँ..आाँ..’ सुनकर मैंने भी सपने साँजोये थे। सो व थव अपनी बेटी को नत्ृ य की शशिव
िरूर ददलवऊंगी। मेरी आाँखों के आगे अस्पतवल के जलसे कव स्टे ज घूम रहव थव, जैसे मेरी कुसुम नव
कर रही हो। सवत सवलों कव सपनव मैंने पवाँ
शमनटों में पवल शलयव थव।
मुझे यदीन है कक उस र्क़्त र्ह भी कुछ ऐसे ही सपनों में खोई होगी । घर में बच् ी के
शलये फ़्रवक तैयवर रख आई होगी। उसे कहवाँ सल ु वनव है , उसकव वर् वर ककयव होगव। कौन-सव दि ू
वपलवनव है , यह भी सो व होगव। शवयद यह भी तय ककयव होगव कक उसे कौन से स्कूल में दवणख़ल करर्वएगी !
सबसे ज़्यवदव उत्सुकतव उसे उस समय हुई होगी, जब सो व होगव कक शवम को न्दर आएगव, बच् े को गोद में उठवएगव, प्यवर करे गव और उसे छे डते हुए पूछेगव - ‘र्िन ककतनव है ?’ र्ह झूठ भी नवि के सवथ कहे गी - ‘छः पवउं ड ।’ न्दर कहे गव - ‘ ल झूठी।‘
र्ह इतरवते हुए कहे गी - ‘वर्श्र्वस नहीं होतव तो शसस्टर से पछ ू लो ।’ उस र्क़्त र्ह ऐसे ही मिरु , मद ु सपनों में खोई थी। जब उसके ब ने की उम्मीद ृ ल ददखवई न दी, तब मैने पछ ू व - ‘तम् ु हवरे घर कव फ़ोन दे सकोगी?’ ‘हवाँ! ’ तम ु
न्दर को फ़ोन करोगी शसस्टर ?’
मैंने ददल थवमकर कहव - ‘हवाँ, फ़ोन करके उसे आने के शलए कहती हूाँ !’ र्ह णखल उठी। उससे फ़ोन नम्बर पछ ू कर मैं बवहर ली आई। लौटकर दे खव तो उसकव बेजवन शरीर पडव थव ।
मेरी आाँखों में आाँसू भर आए । कुछ पल पहले जो बततयवती थी, र्ह थी कहवाँ ? मैंने
उसके हल्दी समवन पीले
ह े रे की तरफ़ दे खव । उसके बेजवन होठों पर अब भी मुस्कवन धथरक
रही थी, जैसे र्ह लुभवर्नी मुस्करवहट कह रही हो - ‘मैं अभी तक दवयम हूाँ, मैं ममतव हूाँ, मुझे कोई नहीं मवर सकतव! मैं युगों से यूं ही खेलती रही हूाँ, मेरे अमर होने के अर्सर को कोई नहीं छीन सकतव!’
मैंने सो व - स
है ! तनष्कवम प्रेम शसफ़ा मवाँ ही करती है , बच् े को प्यवर करते हुए फ़दत मवाँ ही अपनी हस्ती, अपनव र्जूद भुलव सकती है । मैंने
वरों तरफ़ निर किरवई । र्ह इस कमरे में जो िूल लेकर आई थी, उनकी पंखड़ु डयवाँ
िमीन पर बबखरी पडी थीं । मैंने उन मुरझवए िूलों की पंखड़ु डयवाँ समेटीं और उसकी नन्ही बेटी के नन्हें हवथों में दी और उसकी पेशवनी
म ू ते हुए कहव - ‘तुम्हवरी मवाँ को हद से ज़्यवदव तकलीफ़ होने के बवर्जूद भी रोने में शमा आती थी। उसे मुस्करवनव बेहद अच्छव लगतव थव । तुम उसकी अमर तनशवनी हो, उम्र भर मुस्करवती रहनव!’ *
ससन्ध़ी कहाऩी ऱ्ीडा मेरी ज़िन्दग़ी
मूल: जगदीश लच्छवणी
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
हमवरी ज़िन्दगी हमेशव संपूणत ा व की ओर बढ़ती है । जब हम संपूणा हो जवते हैं तब हमवरव
जीर्न शवंतमय हो जवतव है ।
पर ऐसव भी नहीं है कक शवंतत में ही कोई संपण ा व समवई है । दर हदीकत यह अपण ा व ही ू त ू त
है जो हमवरी ज़िन्दगी को सम्पण ू ा होने में मदद करती है , न कक शवंतत। ज़िन्दगी की हल ल से भरपरू घड़डयों की अगर हम लहरों से समवनतव करें तो इसमें कोई अत्यज़ु क्त न होगी।
लहरें ककनवरे की तरि दौडती िरूर है , लेककन ककनवरव उनकव मक़्सद नहीं है । उन्हें तो
फ़दत तडपने में आनंद और म लने में मिव आतव है । हर पल उनमें नई और नई ज़िन्दगी अंगडवइयवाँ लेती है और ये अलबेली कशमकश की शवइक लहरें आगे और आगे दौडती हैं! आज मैं एक तरफ़ सम्पण ा व और अपण ा व के ू ा हूाँ तो दस ू री ओर अपण ू ा भी। इस संपण ू त ू त शमलन की एर्ि मेरे ज़जगर की तहों में कुछ िडक रहव है , यही मेरी ज़िन्दगी कव मिरु संगीत है और मौत कव हवहवकवर भरव आलवप !
मेरे ददल की तहों में मेरी वर्शवलतव िैली है , ज़जसे भरपूर कोशशश के बवर्जूद भी समेट न
पवऊाँगव। हवाँ ! बवकी उस वर्शवलतव के ज़जस जज़्बे कव बयवन कर पवऊाँगव, र्ही करूाँगव। सो
उस दहस्से कव बयवन, जो मैं करूाँगव, र्ो मुकज़म्मल होगव यव नहीं, कैसे कहूाँ ? क्योंकक रहव हूाँ, उस वर्शवलतव कव िरवा-िरवा भी तो अनन्त है । आज मेरी ज़िन्दगी मौत की
वदर ओढ़कर लेटी हुई है , गोयव रोशनी पर अंिेरव हवर्ी हुआ हो और रोशनी घुटन से दम तोड रही हो। ये घड़डयवाँ भी ककतनी पीडव बख़्शती हैं, ददल करतव है कहीं दरू -दरू जवकर भटकाँू , जहवाँ न सुबह हो, न शवम... बस हरसाँू हलकव प्रकवश हो और कुछ भी नहीं।
पर अंिेरे में प्रकवश की तमन्नव ! मैं भी ककतनव पवगल हूाँ। आज की रवत कवली है , मगर र्ह रवत ककतनी सुन्दर थी, ककतनी सुहवर्नी, शसतवरों और मुस्करवते द्र ं मव के सवए में हिवर हसरतें पली थीं उस रवत, कौन जवनतव थव कक हम हसरतें पूरी न होने के शलये पवल रहे हैं।
अरमवनों कव उददत होनव, उभरकर बडव होनव और परर्ररश के सीशमत समय में ही वर्िर्स्त हो जवनव, जीर्न के सवथ ककतनव बडव मिवक है ।
उस रवत जीर्ती ने सर्वल ककयव थव - ‘दीप, तददीर के बवरे में तुम्हवरव क्यव वर् वर है ?’
और कहते-कहते उसकी सर्वली आाँखें मेरे
ह े रे पर आकर ठहर गईं।
‘तददीर, मेरी तददीर तो तुम हो जीर्ती...’ मैंने मुस्करवते हुए जर्वब ददयव थव। ‘मैं तुम्हवरी तददीर हूाँ ! र्ो कैसे दीप ? मैं तो तददीर को बंिन मवनती हूाँ। तो क्यव तुम मुझे
बंिन मवनते हो ? नहीं दीप, मैं तुम्हवरे शलये बंिन कैसे बन सकती हूाँ? मैं तो तुम्हवरी वर्शवलतव में लुप्त होनव वहती हूाँ, प्रवण !’ और उसकी आाँखें मक उठीं, उनमें उसकी उन्मुक्त आत्मव की झलक िवदहर हो रही थी ।
वरों तरफ़ नदी की असीम लहरें िैली हुई थीं, ज़जनके सीने पर हमवरी कश्ती इठलवती, बलखवती, एक और मंज़जल की ओर बढ़ रही थी । जीर्ती की बवतों ने मझ ु े वर् वरों की दतु नयव में गहरे िंसने पर मजबरू ककयव, और मैंने
सो व ‘क्यव तददीर स
में बंिन होती है ? क्यव हमवरी ज़िन्दगी तददीर के हवथों में स
में
शसमट कर रह जवती है ? पर जीर्ती तो मझ ु से भी वर्शवल है , मझ ु से हर बवत में पहल करती हुई, किर मेरे शलये र्ह बंिन कैसे सवबबत होगी ? वर्शवलतव तो वर्शवलतव को पवकर और भी वर्शवल हो जवती है ।’
... और ठीक उसी समय, मुझे ददल में अपूणत ा व और सम्पूणत ा व कव शमलव-जुलव अहसवस हुआ। पल को तो मैं िडक उठव थव यह कहकर - ‘जीर्ती तुम क्यव कम वर्शवल हो, जो मेरी वर्शवलतव में लुप्त होनव
वहती हो?’
‘दीप, मैं वर्शवल कहवाँ ? ज़जतने तुम वर्शवल हो, मैं तो उनकी हदें भी नहीं बनव पवती, किर मैं वर्शवल ककस तरह हुई।’ ‘ककसी की वर्शवलतव को स्र्ीकवरनव क्यव कम वर्शवलतव है , जीर्ती?’ मैंने बहस कव शसलशसलव जवरी रखते हुए कहव थव। ‘ऐसे मत कहो दीप, नहीं तो मैं यह समझूंगी कक तुम मुझको अपनवनव नहीं और तुम में समव जवने के शसर्व, समझते हो मेरी हवलत कैसी होगी ?’
वहते । खद ु में ,
और र्ह ख़यवलों की
हल ल में कुछ लरि गई थी । उसकी बवतों में बनवर्ट बबलकुल भी न थी। किर भी मुझे उसकी भवर्नव कव पूणा स
समझ में नहीं आयव थव। और जो कुछ समझव, र्ह थव - ‘हमें एक दस ू रे की
वर्शवलतव की िरूरत है , न कक बंिन की, हम वर्शवल हैं, बंिन मुक्त हैं, हम कभी भी एक दस ू रे में समवर्ेश नहीं हो पवते, फ़कत अलग-अलग दवयरों में और ज़्यवदव र्सीह होते जवएाँगे ।’ पूणणामव कव
वाँद अपनी ख़श ु नुमव ककरणें िैलवकर शवयद ख़श ु ी में िूलव नहीं समव रहव थव
। उसकी हर नूरे-निर मदमस्त होकर मुस्करव रही थी । ये उसकी जर्वनी कव सवलवनव प्रदशान थव । र्ो शरद पूणणामव कव
वाँद थव ।
मल्लवह िीरे -िीरे गुनगुनव रहव थव और उसकव हवथ गुनगुनवहट के तवल पर नवर् कव टप्पू
लव रहव थव । नवर् पवनी की लहरों पर तैर रही थी, हम आनन्द की लहरों पर बहते
ले जव
रहे थे। उससे पहले भी कई बवर नैयव की सैर कर में मदमस्त होकर घड़डयव गुजवरीं थीं । लेककन इस
क ु े थे । जवने ककतनी
अलग-सी रं गत ।
वाँदनी रवतों के आगोश
वाँदनी में कुछ और ही जुंबबश थी, कुछ
मैंने वर् वरिवरव कव रुख़ बदलते हुए कहव - ‘जीर्ती, यह ‘क्यों दीप, फ़नव कव वर् वर आ रहव है क्यव?’
वाँदनी बवदी ककतनव र्क़्त?’
‘यवतन ?’ ‘यवतन तम ु कहनव
वहते हो कक यह
वाँदनी हमेशव नहीं रहे गी, यही नव ?’
‘हवाँ, पर क्यव उसकी यवद भी सदव नहीं रहे गी ?’ ‘र्ैसे तो सब कुछ हमेशव ही रहतव है , फ़दत हमवरे वर्श्र्वस ही पैदव होते हैं और मरते हैं और हमें याँू महसस ू होतव है गोयव दतु नयव पहलू बदल रही है ।’ ‘तो कह सकते हैं कक हमवरे वर्श्र्वस ही नश्र्र हैं ?’ ‘बेशक, पर यह हरधगि नहीं भल ु वनव
वदहये कक वर्श्र्वस के भवग्य-दवतव भी हम ही हैं। ज़जतने
हम वर्शवल उतने ही हम वर्नवशी !’
‘तो जीर्ती हम सीशमत क्यों होते हैं ?’ ‘हम सीशमत कहवाँ, दीप ? हम तो अनन्त हैं ! हमवरी निर ही कभी-कभी महदद ू हो जवती है और हम समझते है हम महदद ू हैं, अिीन हैं... पर हदीदत में यह सब हमवरी कमिोरी कव ही सबब होतव है ।’
मैं कुछ दे र तक दरू आकवश को तकतव रहव, बबलकुल तनशब्द !
ऐसे में जीर्ती ने कहव - ‘दीप, आज ददल करतव है कुछ स्र्वथा की बवत करूाँ !’
‘तुम स्र्वथकी कब से हुई हो जीर्ती?’ ‘मैं तो हूाँ ही स्र्वथकी । जब से तम ु मेरे जीर्न में आए हो, बस एक ही स्र्वथा लेकर किर रही हूाँ, कवश, तुमको पव सकती! तुमने ही तो मुझे स्र्वथकी बनव ददयव है , मेरे प्रवण !’ ‘पर मैंने तो सब कुछ तम् ु हें समवपात कर ददयव है प्यवरी !’
‘यही तो मेरी कमिोरी है , तुमने जो कुछ मुझे अपाण ककयव है , मैं र्ह कुछ भी नहीं पव सकी हूाँ ।’ ‘अच्छव, तुम्हवरे ददल कव स्र्वथा भी तो सुनाँ’ू , मैंने कुछ मुस्करवते हुए कहव । ‘अतज़ृ प्त। ’
मेरे होठों से मुस्कवन जवने कहवाँ गवयब हो गई, ऐसे महसूस हुआ जैसे ककसी ने मुझसे मेरे जीर्न भर की पाँूजी की मवाँग की हो । मैंने बवत को बदलते हुए कहव - ‘आज कोई गीत सुनवओ जीर्ती ।’ लेककन मेरी कोशशश नवकवम रही। उसने पूछव - ‘कौन-सव गीत दीप, तज़ृ प्त कव यव अतज़ृ प्त कव ।’ मैं उसकी झक ु ी हुई पलकों की ओर तकतव रहव, कहव - ‘तज़ृ प्त कव ।’
‘तो, तुम्हें तज़ृ प्त ही
वदहये ?’
‘तो क्यव तुम हमेशव अतप्ृ त ही रहनव
वहती हो, जीर्ती?’
‘क्यव सदव अतप्ृ त रहव नहीं जव सकतव ?’ ‘पर स्र्वथा तो हमेशव तज़ृ प्त मवाँगतव है ।’
‘पर मेरव स्र्वथा तो अतज़ृ प्त कव शवइक है , दीप !’
‘अजीब शौद है तुम्हवरे स्र्वथा कव’ मैंने उसे ध ढ़वने के शलए शलहवि से कहव ।
‘अजीब स्र्वथा कैसे दीप ? अजीब तो ज़िन्दगी है , तप्ृ त रहते हुए भी अतप्ृ त, अतप्ृ त रहते हुए भी तप्ृ त !’ मैं कुछ उलझ गयव, तप्ृ त रहते भी अतप्ृ त, अतप्ृ त रहते भी तप्ृ त ! मेरे कवनों में शब्द
गाँज ू े और शवंत हो गए । लेककन जवने क्यों मैं उन्हें किर-किर सन ु पवने कव इच्छुक बन गयव,
बवर-बवर ददल में र्ही शब्द दोहरवने की कोशशश की और दोहरवकर उन्हें समझने की भी कोशशश की । ‘क्यों दीप ख़वमोश हो गए ?’ जीर्ती ने कहव । ‘तुम्हवरी बवत में उलझ गयव हूाँ जीर्ती, कुछ समझ में नहीं आ रहव है ।’ और मैं किर से सो ने लगव ।
कुछ पल रुककर उसने कहव - ‘दे खो दीप, आज हम एक दस ू रे के बहुत निदीक हैं, किर भी जवने क्यों मैं यह सो रही हूाँ, हम दोनों अलग-अलग शज़क्तयवाँ हैं, ज़जनकव आपस में शमलनव और जुदव होनव दोनों ही रूप से भयवनक है , यवतन हम दोनों एक दस ू रे को पवकर तप्ृ त भी हैं
और अतप्ृ त भी । तप्ृ त इसशलये क्योंकक तुमने मुझमें और मैंने तुम में अपनी मंज़िल शमलने की
सवंत्र्नव पवई है और अतप्ृ त इसशलये कक हमवरी जरूरतें समवप्त नहीं हुईं हैं । कोई भी मंज़िल हमवरी आणख़री मंज़िल नहीं है । जो मंज़िल आज है र्ही कल शवयद दस ू री मंज़िल के शलए पहली सीढ़ी बन जवए और हम उसी नई मंज़िल के पधथक!’
प्रेम मेरी ददल की सतह पर उभर आयव । मैं उसकव हवथ होठों तक ले आयव । जीर्ती कव हवथ बफ़ा जैसव, लगव जैसे र्ह एक पत्थर की दे र्ी कव हवथ है , ऐसी दे र्ी ज़जसमें न गुण है न दोष, न जज़्बवत है , न होश । उसकी तनगवहें लहरों की तरह वर् शलत थीं और र्ह धथर पुतली
की तरह बैठी रही । मेरी हरदत उसकी मुद्रव में कोई तब्दीली नहीं लव पवई। जवने क्यों मेरव मन बस के बवहर हो गयव । मैंने उसकी कलवई थवमकर उसे अपनी ओर खीं ने की कोशशश की।
अ वनक ही णखं वर् पर र्ह थोडव झुकी, पर आभवस होते ही दरू हट गई, कहने लगी - ‘छी, छी ! शवस्त्रों के अनुसवर स्पशा गुनवह है , पवप है । हम शवस्त्रीय ढं ग से प्यवर करें गे और उस पवप से दरू रहें गे !’ और र्ह हाँसने लगी ।
मेरे ददल में बसे मेरे मुहब्बत के जज़्बे को ठोकर लगी । मैं यूाँ महसूस करने लगव जैसे
जीर्ती के हवथों मेरव घोर अपमवन हुआ हो ।
उसे भी इस बवत कव बहुत जल्द ही अहसवस हुआ, उसने अपनव तन मेरे सीने पर शलटव ददयव। मैं ख़वमोश गुमसुम बैठव रहव । उसकी जुल्िों की महक मेरे ददमवग़ पर छवने लगी। मैंने उसके बवलों की एक लट को उाँ गशलयों पर लपेटने लगव । ‘तुम्हवरे
ौडे सीने पर लेटने में ककतनव आनंद शमलतव है, दीप !’
‘बनव तो नहीं रही हो जीर्ती?’ मैंने कुछ अवर्श्र्वस िवदहर करते हुए कहव । ‘मैंऽऽ, नहीं, बबलकुल नहीं, यह निवरव तुम्हें बनव रहव है , दीप ! हम ज़जतने धथर हैं, उतने ही ं ल भी हैं ।’
‘तम् ु हवर कोई दसरू नहीं है , क्योंकक तम ु
ं ल होते हुए भी कमिोर नहीं हो...।’ उस रवत मेरी वर् वरिवरव में कवफ़ी हल ल रही । सैर से लौटते ही मैं जीर्ती के पवस ही रह गयव । जीर्ती अपने कमरे में जवकर सोई, लेककन मैं एक पल के शलये भी न सो सकव । सो तेसो ते मेरे सवमने गोपी की सरू त उभर आई । गोपी, एक कॉलेज गला, एक ऐसी कॉलेज गला
ज़जसकी आाँखों के आगे लवल, हरे नोट सदव तैरते रहते थे । एक ऐसी कॉलेज गला, ज़जसके ददल में नमा गद्दों पर सोने की ख़्र्वदहश रहती, ज़जसके ददल में मोटरकवर में सैर करने की तमन्नव रहती थी । ऐसी कॉलेज गला गोपी, उसके सवथ रहकर अपने ढोंग भरी मुहब्बत के एर्ि पैसे और
मदहोशी कव सवमवन न पवकर उससे दरू हो गई । एक ग़रीब कलव प्रेमी और ढोंग भरी मवलदवर कॉलेज गला कव भलव क्यव मेल?
मैं ददल को तसल्ली दे तव रहव, सो तव रहव, सो ते-सो ते मेरव ध्यवन जीर्ती की ओर मुडव, उसकी शज़ख़्सयत की ओर मुडव, उसकी मुहब्बत की ओर मुडव और मुझे महसूस हुआ जैसे मैंने कुछ भी न गाँर्वकर, बहुत कुछ पवयव हो ।
एक ददन मैंने उससे कहव - ‘जीर्ती, कवर्तव से शुरू हुई यह घटनव, अब तो कहवनी बनने लगी है ।’ र्ह मंद-मंद मुस्करवने लगी - ‘ऊाँ... हूाँ.... कहवनी छोटी होती है , दो वर ददनों की, यव ज़्यवदव से ज़्यवदव कुछ महीनों की। मैं तो इसे पूरव उपन्यवस बनवनव वहती हूाँ ।’ मैं उदवस हो गयव। यह सुनकर और कोई जर्वब न दे सकव। मुझे उदवस दे खकर उसके
ह े रे पर भी उदवसी के आसवर िैल गए। उसने ग़मगीन लहिे में कहव- ‘ प ु क्यों हो गए, दीप
?’
मैंने उसके सर्वल कव जर्वब न दे ते हुए उससे पूछव - ‘एक सर्वल पूछूाँ, जीर्ती ? यह सुनकर र्ह और भी उदवस हो गई, बोली - ‘क्यव तुम और भी कुछ पछ ू नव वहते हो दीप ?’ मैंने कहव - ‘पूछनव नहीं, बहुत कुछ सुननव
वहतव हूाँ’ और आाँखों में भरपूर उदवसी शलये उसकी
ओर दे खने लगव। ।’
यह सुनकर र्ह और सहम गई । मेरी छवती में
ह े रव छुपवते हुए कहव - ‘कहो
मैंने कहव - ‘यह तुम्हवरव पहलव प्यवर है न ?’ ‘हवाँ’, उसने आदहस्तव से जर्वब ददयव ।
‘पहले प्यवर की तडप और समपाण को तुमने समझव है , इसशलये तुम्हें सुनव रहव हूाँ जीर्ती ज़िंदगी में मैंने भी एक बवर ऐसव प्यवर ककयव थव। पर उस प्यवर ने मुझे िोखव ददयव। मेरी
ज़िन्दगी र्ीरवन हो गई । मैं सो ने लगव, मेरे इस पीड़डत जीर्न कव अंत क्यों नहीं होतव? मगर एक और वर् वर किर करर्ट लेतव कक एक ही तो ज़िन्दगी शमली है , उससे भी इतनी नफ़रत क्यों ? उसके बवद कोई भी मझ ु े अपनी ओर खीं
नहीं पवयव । बहुत सवलों बवद जब किर तम् ु हें अपनी ओर आते दे खव, तब र्ह पीडव सवकवर रूप से मझ ु े परे शवन करने लगी, र्ही पीडव जो नवकवम मह ु ब्बत कव अंजवम होती है , इसशलये
वहते हुए भी तम् ु हें ‘नव’ नही कर सकव । सो व मझ ु जैसी पीडव तम् ु हें न शमले। जीर्ती उसके शलये मैंने कोशशश भी की, कोशशश ही नहीं, बेहद कोशशश की, पर मुझे यह मुमककन ही नहीं लगतव। टूटव हुआ पत्थर शवयद किर जुड जवए पर टूटव हुआ ददल जुड नहीं सकतव!’ मैंने कुछ दे र रुककर किर कहव - ‘उस र्क़्त मैं जीर्न से तंग आ
घर बवर को ततलवंजली दे कर दहमवलय पहवड की ओर
क ु व थव । एक ददन
ल पडव, तद्पश् वत ् कवशी, हररद्र्वर,
नवशशक, अम्बरनवथ, बद्रीनवथ न जवने कहवाँ-कहवाँ भटकव । मैंने अपने भीतर उठती आाँिी को शवंत करनव
वहव।’
मैंने जीर्ती की ओर दे खव, उसकी आाँखों से दो आाँसू बहे , नी े न धगरकर, र्हीं उसकी
पलकों पर ठहर गए । मैंने किर िीमे-िीमे कहनव शुरू ककयव - ‘बीते हुए जीर्न ने मेरी प्यवस को बढ़व ददयव है । मैं बख़ब ू ी यह जवनने कव प्रयवस कर रहव हूाँ कक पुरुष क्यव है ? स्त्री क्यव है ? और दोनों के होने कव महत्र् क्यव है ? इसशलये भी मैं शवदी नहीं करनव
वहतव। शवदी से सुख
शमलतव है और सुख के उजवले में ज्ञवन घट जवतव है । मैं उसे अभवर् के अाँिेरे से सदव सुजवग रखनव
वहतव हूाँ । वप्रय, क्यव तुम मुझे इस कवम में मदद नहीं करोगी ?’ र्ह शससकने लगी । जब र्ह शवंत हुई तो कहने लगी - ‘क्यव तम् ु हें ज़िंदगी में कभी भी
स्त्री की िरूरत नहीं पडेगी ? स्त्री न सही, एक शमत्र के नवते ही मुझे अपने पवस रहने दो, मेरे दीप !’
‘हवाँ, िरूरत तो सबको होती है । जवनती हो, मैं रवत को दे र-दे र तक भटकतव रहतव हूाँ । अपनी हो, इसीशलये तुम्हें सबकुछ बतव रहव हूाँ। इस तरह क्यव तुम्हवरव अपमवन नहीं होगव ?’ ‘पर क्यव तुम्हवरे इस रर्ैये में मेरव अपमवन नहीं?’ ‘जीर्ती, तुम्हवरव अपमवन हो, यह मैं कभी नही हवथों अपमवन हो, यह न मैंने कभी
वहूाँगव । तुम्हवरव क्यव ककसी भी नवरी कव मेरे वहव है , न कभी वहूाँगव। ज़जसके बबनव मेरव जीर्न ही अिरू व
है , उसकव अपमवन मैं कैसे कर सकतव हूाँ ? ख़द ु एक नवरी के हवथों अपमवतनत होकर भी मैं यह सब कह रहव हूाँ ।’ उसने एक लम्बी सवंस लेते हुए कहव - ‘यह पीडव मैं कैसे सह सकाँू गी, दीप ?’ ‘असह्य अपमवन होतव है , पीडव नहीं, और पीडव सही नहीं, भोगी जवती है ।’ ‘वप्रये, तुम्हें दे ने के शलये मेरे पवस पीडव के शसर्वय और है ही क्यव ?’
र्ह जैसे पत्थर की बुत बन गई । मैंने उसे बवहों में लेते हुए कहव ‘सो तव हूाँ, तुम मेरी ज़िन्दगी में पहले क्यों न आई, क्यों न आई जीर्ती ?’ उसने उदवस लहिे में कहव - ‘क्यव यह कहवनी, कहवनी ही रह जवएगी, उपन्यवस न हो सकेगी ?’ मैंने उत्तर ददयव - ‘ज़िन्दगी को एक कहवनी ही रहने दो जीर्ती। उसको िबरदस्ती नॉर्ेल बनवने से र्ह कहवनी भी न बन पवएगी ।’ और किर हमने एक दस ू रे से वर्दव ली । o एक ददन, दो ददन, दो महीने, दो सवल बीत गए हैं । उस ददन की बबदवई के बवद हमवरव शमलनव बंद हो गयव, बंद ही नहीं बबलकुल ही बंद हो गयव ।
एक ददन अ वनक जीर्ती आकर हवज़िर हुई, मैं उसकी तरफ़ दे खतव ही रहव । र्ह मेरे ा़ पवस आकर बैठ गई । मेरे माँुह से तनकल गयव - ‘जीर्ती इतने ददनों के बवद तुम ?’ र्ो शरमवई नहीं, शसफ़ा उदवसी भरी हाँसी हाँ सते हुए बोली - ‘तुम तो अभी महवपुरुष हो गए हो। तुमको मैं पूरी तरह समझ ही न पवई ।’ ‘दे र्ी, मैं महवपुरुष नहीं, प्रोिेसर बन गयव हूाँ ?’
‘खैर, छोडो इन बवतों को, अभी मैं शवदी कर रही हूाँ, और यही तुम्हें सुनवने आई हूाँ ।’ मैं गंभीर हो गयव । बोलव - ‘जीर्ती तुम सदव सुहवगन रहो और भगर्वन करे तीनों लोकों कव सुख पवओ।’
र्ह शवंत खडी रही । मैं ख़वमोशी में गुम, उसकी ओर दे खतव ही रहव ।
अ वनक उसने कहव - ‘दीप, हमवरी कहवनी अभी पूरी नहीं हुई है । तुमने एक ददन कहव थव कक - सतपुरुषों के शसर्व पूणत ा व नहीं होती ।’ मेरे ऊपर जैसे बबजली धगरी ।
र्ह बबलकुल मेरी दरीब आई, कहने लगी - ‘सो व थव, दतु नयव में अतप्ृ त और अपूणा
रहकर भी ज़जयव जव सकतव है , लेककन लगतव है जीर्न की कथव को यह अंत नहीं ददयव जव सकतव। यह स
मेरी ज़िंदगी में बहुत पहले प्रकट हुआ थव, पर किर भी मन की आन की र्जह से मैं उसे िवदहर न कर सकी । मुद्दत से मेरी एक तमन्नव थी दीप, सो ती थी ज़िंदगी में भले
एक ही कहवनी हो, लेककन र्ह पूरी तरह से संपूणा हो। ककसी भी पहलू से र्ह अपूणा और अिरू ी न हो । यह
वहत थी कक मैं तुम्हवरे बच् ों की मवाँ बनाँ,ू तुम्हवरे बहुत सवरे बच् ों की मवाँ !’ र्ह कुछ रुकी और किर कहने लगी ‘आज मैं अपनी इस कहवनी को पूरव करने आई हूाँ, मेरी कहवनी तुम्हवरे छुहवर् के बबनव अिरू ी ही रहे गी, कभी भी पूरी न होगी । मुझे अपनव लो मेरे दीप, मुझे दबूल कर लो।’
जीर्ती की कहवनी पूरी हो गई है और मेरी कहवनी जैसे नए शसरे से शुरू हुई है । जीर्ती संपण ू ा हो गई है, मैं अपण ू ा रह गयव हूाँ, उफ़ मंज़िल ककसकी, शमल ककसको गई !
*
शसन्िी कहवनी
कहवनी और ककरदवर मूल: डॉ. कमलव गोकलवनी
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
गौरर् बबस्तर पर करर्ट बदलतव रहव । कोशशश के बवर्जूद भी उसे नींद नहीं आई। सवथ
में लेटी सीमव ने किर से जवनने की नवकवशमयवब कोशशश की ।
‘आणखर क्यव हुआ है ? इतने परे शवन क्यों हो ?’ पर गौरर् ने बबनव जर्वब ददये दस ू री तरफ़ पलटते हुए परमवत्मव को प्रवथानव की, कक मवनसी ने उसके मुत्तल्लक फ़ैसलव लेते समय अपने पुरवने स्र्भवर् से कवम शलयव हो ।
उसके सवमने क्लवस रूम कव मंिर उभर आयव । बीस बरसों की नौकरी में उसने ख़द ु को
इतनव बौनव महसस ू कभी नहीं ककयव । बोडा ऑि एड्यक ू े शन की ओर से सेन्सर क्लवसेि की
परीिव िवरी है । आज उसकी ड्यट ू ी रूम नं. ४ में रही । उस कमरे में ड्यट ू ी करने से हर एक
इन वजा कतरवतव है । आजकल आम तौर पर शवधगदा अड़डयल और ग़ैर ज़जम्मेदवर ही है , पर रूम नं. ४ कव रवकेश, कहकर तौबव करलो!
उसे नदल करने से रोकने र्वले कव, र्ह घर-बवर डवंर्वडोल
कर दे तव है । इसशलये रवकेश के मवमले में दे खव अनदे खव करनव पडतव है , पर गौरर् ईमवनदवरी और इन्तिवम कव तनबवह करने र्वलव है । इसशलये घर से तनकलते र्क़्त भी सीमव तवदीद दे ती रही कक जवनबूझ कर वर्र्ेक के गुलवम बनकर अन वही परे शवनी न मोल लेनव । जैसे कक आज बोडा से
के कंग के शलये खवस पवटी आ रही है, इसशलये वप्रज़न्सपल ने जवन-
बूझकर उसकी ड्यूटी रूम नं. ४ में लगवई ।
रवकेश बेल बजने के १० शमनट पश् वत ् ही क्लवस में आतव है । आज भी ऐसव ही हुआ, इसशलये गौरर् ने यह सो कर कक और शवधगदा को शलखने में बविव न हो, उसे बबनव तलवशी के परीिव शलखने दी और उसने सो व कक अभी पवं
ोर को सुरवग़
शमनट भी नहीं बीते कक
के सवथ पकडने कव मौकव भी शमलेगव ।
के कंग पवटी आ गई। उसके कमरे में पवटी की
कन्िोलर शमस मवनसी पहुाँ ी, जो अपने सख़्त शमिवज के शलये मशहूर है । र्ह अक्सर अख़बवर और मैग़िीन्स में मवनसी के बवरे में पढ़तव थव कक र्ह अपनी मेहनत और मिबूती के बलबूते
पर एक आम टी र से इस अहम ओहदे पर पहुाँ ी है । पर यह जवनकवरी फ़दत गौरर् को है , कक मवनसी के सख़्त ददल होने कव ज़िम्मेदवर र्ह ख़द ु है । र्ह तो हाँ सती, णखलणखलवती मस्त रहने र्वली ईिी गोइंग लडकी थी ।
‘टे क इट ईिी’ उसकव तकदयव दलवम रहव । इस ददर कक ज़िन्दगी के अहम संजीदव मोड पर भी उसने ककसी फ़ैसले को इतनी संजीदगी से नहीं शलयव ।
जैसे बवि की तेि निर शशकवर पर होती है , र्ैसे मवनसी भी सीिे रवकेश के टे बल के पवस आ खडी हुई । रवकेश बेकफ़क्र होकर कवगि पर से सर्वलों कव जर्वब ढूाँढ़ रहव थव। मवनसी ने गुस्से से गौरर् से कहव - ‘मवस्टर सवहब ! इतनी ग़ैर ज़जम्मेर्वरी से ड्यट ू ी दे रहे हो ? आपने इस लडके की तलवशी ली थी ? तुरन्त इसकी तलवशी ली जवए ।’ और किर रवकेश से मुखवततब होकर सख़्ती से पूछव - ‘तुम्हवरव नवम क्यव है ?’
रवकेश ने शरवरती मुस्कवन के सवथ कहव - ‘५३३४९५’ । मवनसी ने कहव - ‘अपनव ऐडशमशन कवडा ददखवओ।’
रवकेश ने जैसे ही जेब से अपनव कवडा तनकवलव, तो सवथ में एक कवग़ज िमीन पर धगर पडव। जवाँ
करने पर उस कवग़ज पर नक़्ल करने र्वले मैटर की अनक्र ु म सू ी थी कक कौन-सव
मैटर कहवाँ है । इस बी
गौरर् ने रवकेश की जेब से जर्वबों के कुछ कवग़ज तनकवले, पर रवकेश
पर ककसी बवत कव असर ही नहीं हुआ । इत्मीनवन से जेब से कंघी तनकवली और मवनसी की आाँखों में दे खते हुए बवलों को साँर्वरने लगव । उसे दे खकर गौरर् कुछ झेंप गए । मवनसी को बीस सवल पुरवने मंिर यवद आए जब गौरर् भी ऐसे ही उसकी आाँखों में दे खकर बवल संर्वरते हुए कहतव थव - ‘‘मवनू बस ऐसे ही उम्र भर तेरे नयनों में तनहवरतव रहूाँ...’’ और मवनसी गदा न
झुकवकर शमवाती थी । कुछ पलों में मवनसी मविी की यवदों से बवहर आई, जब गौरर् ध ल्लवयव ‘‘अरे इसके जुरवबों में रवमपुरी
वकू !’’
रवकेश के णखलवफ़ कवनूनी कवरा र्वई कव केस तैयवर करने कव फ़ैसलव वप्रज़न्सपल और तमवम
टीम ने शलयव, शवयद यह िरूरी थव, पर जैसे ही इस ग़ैर ज़जम्मेर्वर कवया के शलये गौरर् को दोषी ठहरवते हुए उसके णखलवफ़ ररपोटा शलखने की शुरुर्वत मवनसी ने की तो वप्रज़न्सपल ने हवथ जोडकर बबनती की - ‘‘मैडम ! ये नव इन्सवफ़ी मत करनव । गौरर् इस स्कूल कव तनहवयत ही
ईमवनदवर और मेहनती शशिक है । मैंने इस सवल उसकव नवम शशिक पुरस्कवर के शलये प्रपोि
ककयव है । आपकी ररपोटा , उसकी की गई सवलों की सेर्व को दवग़दवर बनव दे गी । दरअसल रवकेश बदलव लेने के शलये ककसी भी हद तक धगर सकतव है ।’’ ‘हूाँ’ मवनसी ने सख़्त लहिे में कहव - ‘‘र्ो लडकव तो मेरे णखलवफ़ भी ददम उठव सकतव है , इसकव मतलब यह तो नहीं कक गन ु हगवर को गुनवह करने की छूट दे दी जवए, उसके णखलवफ़ कोई कवरा र्वई ही न की जवए ?’’
इतने में ‘पवटा A’ पेपर के खत्म होने पर घाँटी बजी और गौरर् भी फ़वररग होकर ऑकफ़स पहुाँ व और अत्यन्त वर्नम्रतव से कहव - ‘मैडम, आइ एम सॉरी’। दरअसल रवकेश के क्लवस में दे र से आने के कवरण मेरे मन में ड्यूटी और पररर्वर के ििा के बी में जंग रही और आप आ गई । सीमव ने लेनव ।’
लते- लते भी कहव थव - ‘बच् ों की दसम, जवनबूझकर कोई परे शवनी मोल न
हवलवत दे खते हुए मवनसी ने किलहवल कवग़ज िवइल में रक्खे । र्ह एक बवर किर अतीत की ओर लौट गई । इस सीमव ने ही उसे गौरर् से जुदव ककयव थव । कुछ ददन तो र्ह बेहद मवयूस रही, पर जल्द ही ख़द ु को संभवलकर सवरव ध्यवन कैररयर पर लगव ददयव । सो ती रही ‘‘आज सीमव के एर्ि र्ही गौरर् के बच् ों की मवाँ होती तो और क्यव
वहती ?’’
उसे यवद आयव कक र्ह और गौरर् एक ही स्कूल में शशिक थे । हमख़यवली होने के नवते
दोनों कव उठनव-बैठनव सवथ होतव थव । ररसेस के र्क़्त, फ्री पीररयड गैर िरूरी बवतों में र्क़्त जवयव करते थे तब ये दोनों
में भी, जब दस ू रे शशिक
वय पीते-पीते कभी अदब और कलव के
बवरे में बवतें , यव बहस करते । ककसी नई कहवनी यव नॉर्ल पढ़ने के पश् वत ् उसकव पोस्ट मवटा म
करते, उसके ककरदवरों की कमिोररयों और खबू बयों पर रवय पेश करते । गौरर् हमेशव उन नवटकों पर अफ़सोस िवदहर करतव ज़जसमें नवयक अपनी नवतयकव को अिवबों की गददा श में छोडकर,
बि ु ददली से मैदवन छोडकर भवग जवते। बहस करते मवनसी उसे समझवने की कोशशश करती कक
सच् व प्यवर करने र्वले नवयक के शलये, िरूर कोई ऐसी मजबरू ी रही होगी और र्ह बेहद लव वरी की हवलत में प्यवर को दुरबवन करते हुए उस रवह से मुड जवतव होगव । सच् व प्यवर तो अमर है , कभी ख़त्म होने र्वलव नहीं । बडी बवत तो यह है कक शवदी और प्यवर कव इतनव गहरव सम्बंि नहीं कक बबनव उसके दीर्वनवपन छव जवए । वर्परीत इसके शवदी के बवद फ़िा और हदों की जंग में ्रहहस्ती की ओढ़ी हुई ज़जम्मेर्वररयों की र्जह से प्यवर कव नफ़ीस जज़्बव कुरबवन हो जवतव है । ‘पवगल है र्ो नवयक जो रवत-ददन प्यवर-प्यवर तो करते हैं, पर र्क़्त आने पर पीठ ददखवकर नवतयकव को सवरी ज़िन्दगी रोने के शलये छोड जवते हैं...’ गौरर् बेहद संजीदगी से कहतव और
मवनसी णखलणखलवकर जर्वब दे ती - ‘‘गौरर् ! टे क इट ईिी, क्यों सब कुछ सीररयस्ली लेते हो । कहवनी के कदरदवर और हदीदी ज़िन्दगी में बहुत फ़का है । लेखक कहवनी शलखने के पहले अपने ककरदवर कव अंत तय कर लेतव है , जो कभी सुखवंत तो कभी दख ु वंत होतव है । पर असली
ज़िन्दगी में इन्सवन हवलवत के बस होकर सुलह करते हुए फ़ैसलव करतव है । ऐसे फ़ैसले अिवब दे ने र्वले और दख ु दवई भी होते हैं, और न वहते हुए भी ग़लतफ़हशमयवाँ पैदव करने र्वले भी, और किर दोनों के बी
में लम्बी खवमुशी छव जवती थी ।’’
उनकी गुफ़्तगू अब स्टवि रूम तक सीशमत न रही थी । सुनसवन र्वददयवाँ, पहवडी-झरने,
बहती नददयवाँ, पेड-पौिे उनकी मुलवदवत के िवशमन रहे । ऐततहवशसक इमवरतों की सैर करते र्ो दोनों भी ख़द ु को ककसी रवजव रवनी से कम नहीं समझते । कभी-कभी मवनसी गौरर् से कहती ‘अगर तुम्हवरे मवाँ-बवप हमवरे मेल-शमलवप को बदवाश्त न कर पवए तो ?’ गौरर् बबनव ककसी सो
के बुलंद आर्वि में मदवानगी ददखवते कहतव - ‘मवनू दतु नयव की कोई भी तवदत तुझको मुझसे
छीन नहीं सकती । मैं जल्द ही वपतवजी को मनवकर इस ररश्ते को सवमवज़जक मवन्यतव ददलवऊाँगव ।’
पर, जब गौरर् ने मवनसी कव ज़िक्र घर में ककयव तो गोयव तूफ़वन उठ खडव हो गयव । गौरर् को यह पतव नहीं थव कक घर में उसे एक िडकते ददल र्वलव इन्सवन न मवनकर, एक ‘ ीि’
समझकर उसके वपतव ने उसकव सौदव एक सवहूकवर की बेटी से कर ददयव थव और उनसे दहे ज की बवत ीत के आिवर पर अपनी दो बेदटयों के ररश्ते भी तय कर ददये थे । गौरर् बहुत ही तडपव, पर उसके वपतव ने उसे शलखे हुए पर े ददखवते हुए कहव कक अगर र्ह इन्कवर करे गव तो उसके मवाँ-बवप दोनों आत्महत्यव कर लेंगे । पवगलपन की हदों से गुिरतव हुआ गौरर् स्कूल से छुट्टी लेकर घर बैठ गयव, शवयद मवनसी से निर शमलवने की उसमें िमतव न थीं ।
आणखर मवनसी
खद ु उसके पवस आई और गौरर् ने आज जैसी ही लव वरगी से कहव थव - ‘मवन,ू मेरे मन में प्यवर और ििा के बी ...।’
मवनसी ने शवंत मन से कहव - ‘टे क इट ईिी प्लीज । हम कोई कहवनी के कदर दवर नहीं हैं। मेरी ध त ं व मत करो, मझ ु में यह सदमव बदवाश्त कर पवने कव आत्मबल है ।’
आज सीमव कव नवम सन ु ते मवनसी थोडी दे र के शलये डवंर्वडोल हुई पर किर सो व बब वरी सीमव कव क्यव दोष ? यही कक र्ह एक िनर्वन की बेटी है और मवनसी की ग़रीब वर्िर्व मवाँ में दहे ज दे पवने की तौफ़ीद नहीं थी । ये नहीं तो कोई और सीमव गौरर् की जीर्न संधगनी बन जवती थी । कोई भी औरत ककसी और कव हद छीनकर कहवाँ
न ै पव सकेगी?
मवनसी ने उस स्कूल से अपनव तबवदलव करव शलयव थव । पर सीमव के बवरे में स्टवि से
जवनकवरी शमली थी कक र्ह तनहवयत कोमल हृदय र्वली नवरी थी । उसे अगर पतव होतव तो र्ह ख़द ु ही मवनसी के रवस्ते से हट जवती । ख़ैर, ज़िन्दगी एक हदीकत है कोई कहवनी नहीं । यह सो कर मवनसी ने गौरर् के णख़लवफ़ शलखी हुई ररपोटा िवड दी । *
शसन्िी कहवनी र्ैंत़ीस रातें -छत्त़ीस ददन
मल ू :ठवकुर
वर्लव
अनर् ु वद: दे र्ी नवगरवनी
‘‘मवमी ! अगर मेरी शवदी कवशमयवब होती तो आज मेरी अपने ससुरवल में पहली होली होती ।
मेरव पतत मुझे गुलवल लगवने के शलये पीछे से तछप-तछप कर आने के बहवने ढूाँढ़तव और मेरी सवस भी तो मुझपर न्यौछवर्र जवती।’’ ऐसव कहते आशव नम आाँखों से बवलकनी में मवमी उसके पीछे
ली आई और उसके सर पर हवथ िेरने लगी। र्ह
ली गई।
वहती थी कक आशव अपने
भीतर दबी हुई र्ेदनव को बवहर तनकवले । सुलझी हुई आशव के सपने छत्तीस ददन में ही तवश के बने महल की तरह ढह गए । छः महीने और छत्तीस ददन उसके जीर्न की पगडंडी की दवस्तवं हैं। जब र्ह छोटी थी, गोद में शलये जवने की उम्र में , तब र्ह बच् ों की हस्पतवल में मरते-मरते ब ी थी और ब पन से यूं ही बडी होती रही । मवतव-वपतव और नवनी के अथवह मोह ने उसे लवडली बनव ददयव। र्ह कोई भी
ख़्र्वदहश लबों पर लवती और उसकी पूतता के शलये कमर कसी जवती। पढ़वई हो यव दतु नयवर्ी सुख उसको बेहतरीन कोध ग ं क्लवस में दवणख़ल करर्वकर बहुत अच्छे अंको से कवशमयवब करने कव प्रयवस ककयव जवतव। शसन्िी और शसन्िी सूफ़ी संगीत सीखने की वह उसे कॉलेज में संगीत प्रततयोधगतव में अव्र्ल लवकर खडव करती।
दस ू री तरफ़ आशव के मवतव-वपतव, उसके सुखमय जीर्न के शलये र्र तलवशते रहे । ररश्ते-
नवतों के मवमले में हर बवत पसंद आए, ऐसव तो मुज़श्कल होतव है । ककतनी ही नवपसंद बवतों को निर-अंदवि करनव पडतव और र्ही आशव ने भी ककयव और उसके मवतव-वपतव ने भी यही करते
हुए उस ररश्ते को दुबूल ककयव । छः महीने मंगनी के बवद र्ह बैठी रही । हफ़्ते में एक बवर र्ह उसे कभी बवहर, तो कभी घर में भी शमलने आयव करतव थव । एकवंत में सन ु हरे आनेर्वले कल के
मकते शसतवरे ददखवते
हुए र्ह कहतव ‘मेरव एक बंगलव है , नई मम् ु बई में प्रॉपटी है । मैं अपनी िमा में मैनेज़जंग डवयरे क्टर हूाँ, एक लवख के करीब महीने की आमदनी है । शवदी के पश् वत ् हनीमन ू के शलये तम् ु हें मॉररशशयस यव ज़स्र्िरलैंड ले
लाँ ग ू व । तम ु
वहो तो अपनी ऑकफ़स खोल सकती हो, ज़जसमें तम ु
कॉम्प्यट ु र शसखव सकती हो। तम् ु हवरे जन्म-ददन पर तम् ु हें सीिे शो-रूम से नई कवर सौग़वत के तौर ख़रीद दाँ ग ू व...।’
मंगनी हुई और शवदी की रस्मों की वा होती रही। लडके ने िवदहर ककयव कक कोई रस्म उनकी तरफ़ से न होगी क्योंकक यह उनकी रीतत-रस्मों में शवशमल नहीं है और सवरव कव
सवरव शवदी कव ख़ ा भी लडकी र्वलों को उठवनव होगव। वर्र्वह के सभी शगुन सम्पन्न हुए पर लडकी र्वलों के ख ा पर, और शवदी कव मुहूरत भी लडके ने अपने समयवनुकूल तय ककयव।
शवदी िम ा यव स्र्स्थ नहीं थव, यह ू -िवम से सम्पन्न हुई पर लडकव ज़जस्मवनी तौर से पूणत बवत छुपवई गई। दल् ू हे ने यह छल ककयव पर मजबूरन आशव और उनके पररर्वर र्वलों ने र्ह
कमिोरी िवदहर न की। शवदी की पहली रवत, जहवाँ दल् ू हे -दल ु हन कव कमरव सजव हुआ होनव वदहए थव, दीर्वरो पर गुलवब की लड़डयवाँ और बबस्तर पर रे शमी वदर िूलों से महकी हुई होनी वदहये थी, ऐसव कुछ नही थव र्हवाँ । उनके कमरे कव दरर्विव सवरी रवत खल ु व रहव, जहवाँ िीमी रोशनी के बजवय तेि रोशनी रही। दहे ज से लवई हुई नवइटी पहनने के बजवय उसे िल ु व हुआ कुतवा-पैजवमव पहनने को ददयव गयव । अपनी वर्िर्व मवाँ कव परु वनव मंगलसत्र ू उसे पहनवयव गयव। दरर्विे के
पवस घर कव पवलतू कुत्तव लेटव रहव और रोती हुई आशव करर्टें बदलते सो ती रही कक यह कैसी शवदी है, हवाँ नई दल् ु हन की कोई ्रहह प्रर्ेश की रस्म अदव नहीं हुई और न ही घाँघ ू ट हटवने की? आशव ने अपनी डवयरी में शलखव है कक उसकी सवस ने दस ू रे ददन सब ु ह की
वय पीते हुए कहव - ‘‘मैं समझी हवल में रखने के शलये तुम मवाँ से डी र्ी डी और २९’’ की टी.र्ी. ले आओगी।’’
मैं सुनकर है रवन हो गई । शवदी के तीसरे ददन र्वली तवरीख़ के तहत आशव ने शलखव
है - आज सुबह जब मैंने स्नवन घर में शवर्र
लवकर स्नवन ककयव तो थोडव पवनी बवहर तनकल
आयव और मेरे बवहर आते ही मुझे न शसफ़ा अपने पतत से सुननव पडव कक - ‘मैं गाँर्वर हूाँ, मुझमें कोई अच्छव संस्कवर नहीं है ’, और सवस ने भी कहव कक ‘मवाँ ने तुम्हें क्यव शसखवयव है ।‘
मुझे
बहुत दख ु हुआ और उसके बवद मैंने कभी शॉर्र को छुआ तक नहीं। ‘तम ु अपने को समझती क्यव हो, कोई हूर तो हो नहीं, कवली भैंस की तरह हो। क्यों नए-नए कपडे पहन कर ख़द ु को सजवती हो। मम्मी की पुरवनी सवड़डयवाँ तनकवल कर पहन लो।’
‘‘हर बवर जब मैके जवओ, लौटते हुए कोई न कोई कवम की ीज लेकर आओ, पैसे, ओर्न, ध्रहलर र्गैरह’’ यह डवइरी में दजा है । जब हनीमून के शलये हर्वई जहवि कव दटकट करर्वने गयव तो मुझे सवथ नहीं ले गयव। लौटते ही कहव - दहन्दस् ु तवन के बवहर जवने से सब दोस्त मनव कर रहे हैं । मॉररशस और ज़स्र्ट्जरलैंड की बजवय सवउथ में
लो घूम आते हैं। मैंने
प्ु पी सवि ली ।
मुझे बहस करके बवत बढ़वनव बेमतलब लगव । र्हवाँ भी जब-जब समुद्र के ककनवरे बैठकर कोई भी बवत करते तो र्ह बहस बन जवती । र्ह अपनी ज़जस्मवनी कमिोरी को छुपवने के शलये हर बवत को मोड दे ते थे, यहवाँ तक कक ज़जतने ददन हम सवथ में रहने र्वले थे, उससे
वर ददन पहले ही
घर लौट आए। मुझे अभी भी अच्छी तरह यवद है , उसने कहव ‘तम ु अपनी बवत ीत,
वल- लन बदलो
और उसके शलये मैं तुम्हें छः महीने दे तव हूाँ, अगर तुम न बदली तो मैं तुम्हें छोड दाँ ग ू व।’ इस तरह शवदी के पश् वत ् छत्तीस ददन मैंने पतत और सवस के तवने सहे और एक ददन कहीं से उडती ख़बर कवनों तक आई कक मेरे पतत ने कुछ ददन पहले ही मदवानगी से लवगू एक
छोटव ऑपरे शन करवयव है । इस बवरे में मुझे कुछ भी बतवयव नहीं गयव, न ही मुझे वर्श्र्वस में
शलयव गयव। गर ऐसव करते तो मैं भी शवयद उनकव सवथ दे ती। मेरे सवथ वर्श्र्वसघवत हुआ इसकी मुझे कफ़क्र नहीं पर उन्होंने ककसी न ककसी बहवने मेरे मवतव वपतव को छलव, उनसे सोनव, जेर्र और कीमती
ीिे हवशसल करते रहे । आणख़र सब्र कव बवंि टूटव और छत्तीस ददन के बवद मैं मवाँ
के आगोश में और नवनी की गोद में छलक पडी। इतनव रोई कक मेरे दख ु आबशवर बनकर बहने लगे ।
सब ु ह खौफ़ के सवथ उठव करती थी, इस डर में जीती थी कक आज कव ददन जवने कैसे
बीतेगव । छत्तीसर्ें ददन पतत की मौसी के पवस खवनव थव। रवत १.३० बजे लौटते समय दोनों
मझ ु े मेरी मवाँ के घर छोडने आए यह कहते हुए कक वर-पवं ददन यहवाँ रह लो तवकक मन बहल जवए और मैं भी सो ने लगी कक रोि की जली-कटी सन ु ने से कुछ ददन तनजवत हवशसल हो।
डवयरी के ४२ र्े पन्ने पर र्ह शलखती है ‘‘आज छः ददन भी परू े हो गए है , रवत कव एक
बजव है । इन छः ददनों में एक बवर भी उन्होंने फ़ोन नहीं ककयव और न ही मेरी कोई खोज ख़बर ली। इससे तो यही लगतव है कक यह छत्तीस ददनों की दवस्तवं थी !’’ कवश ररश्तों की बुतनयवद वर्श्र्वस की नींर् पर रखी गई होती तो ककसी को भी छल-कपट कव रं ज न होतव, ज़िन्दगी में ददलों की बी
की दरवरें
ौडी न होती । तबवही पर अंकुश लग
जवतव अगर ददल की गहरवइयों से प्यवर के झरने िूट पडते !! *
शसन्िी कहवनी
ज़ीने की कला
पवाँर् में पवयल पहने छम छम करती दहरनी जैसी
-दे र्ी नवगरवनी
वल से धथरकती, र्ह संगीत की लय
और तवल पर हवथ, पवाँर् और नयनों के हवर्-भवर् से तवल मेल रखते हुए नत्ृ य करती रही और जब नत्ृ य समवप्त हुआ तो दे र तक हॉल में तवशलयों की गाँज ू सन ु वई दे ती रही और सव थ-सवथ उसके एक और आर्वि जो सन ु वई दे रही थी र्ह थी ‘र्न्स मोर, र्न्स मोर’ और यह आर्वि यकव-यक बंद हो गई, जैसे स्पीड में
लती हुई गवडी को अ वनक ब्रेक लग गयव हो । स्टे ज कव पदवा जो डवन्स के बवद नी े धगरव थव, किर उठव और दशाकों की आाँखें स्टे ज पर
जवकर ठहरीं । उनकी मन पसंद कलवकवर हिवरों ददलों की िडकन, नत्ृ य जगत की मयरू ी
पणू णामव, उनके सवमने खडी थी । पर यह क्यव ? उसकव रं ग रूप क्यों उजडव हुआ है , ह े रे पर पसीने की बाँूदें, आाँखों में बुझती हुई रोशनी की लौ क्यों है ? होंठों की लवली की जगह गहरे सवए, और गवलों की रं गत ऐसे उडी हुई, जैसे ककसी ने उनपर सिेदी पोत दी हो । दो सवथी कलवकवरों कव सहवरव लेकर खडी थी, खडी भी नहीं, यूाँ कहे कक जैसे उन दो बैसवणखयों के आिवर पर
लडखडवने से ब ी हुई थी पूणणामव, ज़जसकी वल कुछ पल पहले दहरणी की तरह धथरक रही थी । र्ह इस र्क़्त सहवरे की मोहतवज थी, क्यों ? ह े रे पर णखले हुए सुमन की लवली की जगह सफ़ेदी छवई हुई है , क्यों ? मुस्कवन मुरझवई हुई क्यों ? हर एक मन में सर्वल पर सर्वल उठव, ज़जसकव उत्तर सभी हॉल में बैठे दशाक पवनव वहते थे। पर सब प ु थे जैसे उन्हें सवाँप साँघ ू गयव हो । ‘र्न्स मोर, र्न्स मोर’ बोलने र्वली िुबवनों पर जैसे तवले लग गये थे... और... शवंतत के इस सन्नवटे को तोडव एक जवनी-पह वनी लज़िाश भरी आर्वि ने । यह आर्वि ककसी और की
नहीं पर वप्रय पूणणामव की मवाँ तनमालव दे र्ी की थी, जो बेटी के सवथ, उसकव सहवरव बन कर आाँखों में नमी शलए हवथ जोडे खडी थी !
‘प्यवरे दोस्तों मैं अपनी ओर से और आपकी महबूब कलवकवर पूणणामव की ओर से मवफ़ी
मवाँगती हूाँ । आज पहली बवर आपकी िरमवइश पूरी न करने कव दख ु है और दग ु नव और दख ु इस बवत कव है कक आज मेरी बेटी कव दख ु आपके दख ु कव कवरण बनव है । पूणणामव ददल की मरीि है , ददल के दौरे ने अभी-अभी दस्तक दे कर किर उसे हमवरे सवमने इस हवल में खडव कर ददयव है । इसमें शवयद आप सब की दआ ु एाँ और शुभकवमनवएाँ शवशमल है जो र्ह आपके सवमने नत्ृ य कर
पवई । अब आप हमें इजवित दें । पुणणामव की डॉक्टर भी अब आ गई है ’ ऐसव कहते हुए तनमालव दे र्ी ने बेटी को सहवरव दे कर स्िे र पर शलटवयव, जो उसी र्क़्त स्टे ज पर लवयव गयव थव । डॉ. ममतव ने र्हीं पर जवं
करने की करर्वई शुरू कर दी और दे खते ही दे खते भवगमभवग कव
तहलकव म
गयव । स्िे र अस्पतवल की गवडी में रखव गयव और गवडी
ली गई आगे और
आगे, जब तक आाँखों से ओझल नहीं हुई । और पीछे रह गयव वहने र्वलों कव कवकफ़लव, ज़जनके हवथ दआ के शलये उठे हुए थे । बबनव होंठ दहलवए की गई प्रवथानव हवरे हुए इन्सवन कव एक मवत्र ु आिवर होती है , ददल की गहरवइयों से तनकली यह तनशब्द बंदगी हर खवली दवमन को भरने कव एक मवत्र स व और सशक्त सविन है , जहवाँ ददल की बवत कहने के पहले सुन ली जवती है , हर
अनकहे सर्वल कव जर्वब ददल के ककसी कोने में रवहत बख़्शतव है , दर्व से पहले दआ की दौलत ु से ऐसी बन्दगी मवलवमवल कर दे ती है !
थोडी दे र में हॉल खवली हो गयव, न आर्वि थव, न शोर, बस ख़वमोशी रही, याँू लगव जैसे
कोई मंददर से, तो कोई धगरजव घर से और कोई मज़स्जद से मवशलक की रहमत की दआ मवाँगकर ु तनकलव हो, उस कलवकवर के शलए जो ददलों की िडकनों कव सं वर करती रही और आज उसकव ददल अपनी बहकी-बहकी
वल के सवथ अस्पतवल की ओर जव रहव थव।
तनमालव दे र्ी आय.सी.यू के बवहर लगवतवर अपनी बे तै नयों के सवथ टहल रही थी । बेटी
के ददा और उसकी असहनीय पीडव कव भरपूर अहसवस थव उसे । यह कोई पहलव अर्सर नहीं थव, जो ऐसव हुआ हो, पहले भी दो बवर नत्ृ य करते हुए ऐसव हो क ु व है । पहली बवर तब जब पूणणामव सवत सवल की थी और दस ू री बवर जब र्ह मैदिक में पढ़व करती थी । पहली बवर ही डॉक्टर ने जवाँ
करके िवदहर ककयव थव कक उसके ददल में सुरवख़ है जो उसकी बढ़ती हुई उम्र के सवथ-सवथ बढ़तव रहे गव । जब-जब ददल की िडकन तेि होगी, उस पर दबवर् कव डर बनव रहे गव । डॉक्टरों ने तो यहवाँ तक कहव और तनमालव दे र्ी को आगवह भी ककयव कक नत्ृ य कलव कव यह शौक पूणणामव के शलए ख़तरे से खवली नहीं होगव। नत्ृ य के दौरवन ददल की िडकन की रफ़्तवर
इतनी तेि हो जवती है कक आम इन्सवन को भी ऑक्सीजन की िरूरत पडती है । पूणणामव तो... ! इस हदीदत को तनमालव दे र्ी ने मवाँ होकर जवनव, भोगव और पल-पल ज़जयव । हर सच् वई के
दौर से गुिरते हुए र्ह इस बवत से बहुत अच्छी तरह से र्वकदफ़ थी और उससे ज़्यवदव ददा नवक बवत यह है कक र्ह अपनी बेटी के शलए कुछ न कर पवने बेबेसी महसूस कर रह थी। पवाँ
सवल की उम्र से ही पूणणामव ने इस कलव की शशिव पवनी शुरू की । गवनव और
नव नव दोनों सवथ-सवथ
लते रहे , पर जल्द ही उसे गवने की इच्छव को त्यवगनव पडव क्योंकक
गवते समय सवाँस रोककर सुर लगवने में दश ु र्वरी पैदव हो रही थी और संगीत बबनव ररयवि के
कहवाँ पूणा होतव है ? पूणणामव नत्ृ य को कभी भी ख़ुद से अलग न कर पवई । मवाँ के हर तका कव
जर्वब थव उसके पवस ‘अगर मैं शरीर हूाँ तो नत्ृ यकलव मेरी आत्मव है , अगर आत्मव शरीर से जुदव कर दी जवए तो शरीर मुदवा हो जवएगव । अगर नत्ृ य मुझसे छुडवयव जवएगव तो मैं भी मर जवऊाँगी ।’ बस यहीं आकर इस तका के सवमने मवाँ तो नहीं, लेककन मवाँ की ममतव तनज़श् त ही हवर जवती थी ।
जब पूणणामव मैदिक में थी तो अलवर्दव पवटी में नत्ृ य संगीत कव भी आयोजन ककयव गयव
थव । पूणणामव ने मवाँ और अपनी डॉक्टर की सलवह को निर अंदवि करके नत्ृ य में भवगीदवरी ली । ररयवि करते-करते र्ह थक कर हतवश हो जवती, पर जैसे प्यवर और जंग में सब उध त होतव
है , उसी प्रकवर पूणणामव को भी लगव कक जीर्न के सवथ जुडी यह मौत की छवयव भी उसके सवथ-
सवथ रहे गी जब तक उसके जीर्न की सवाँसें सलवमत है, उनके सवथ जूझनव भी जंग के बरवबर है । कोशशश करनव अगर करम है तो किर करम कैसे नवर्वज़जब हो सकतव है ? उसी तका से र्ह खद ु को, मवाँ को तसल्ली ददयव करती थी । इस संघषा की रवह पर कभी पैदल
लकर, कभी
दौडते, कभी हाँसते-नव ते, कभी स्िे र पर लेटे, र्ह अपने इस इकलौते शौद को संघषा कव एक दहस्सव मवनकर बडे सवहस के सवथ आगे बढ़ती । इस जन ु न ू की बेइंततहवई पर, इलवज करने र्वले डॉक्टर भी है रत में पड जवते थे । डॉक्टर ममतव अक्सर पणू णामव और उसकी मवाँ तनमालव दे र्ी के सवथ प्रो्रहवम के दौरे में भी शवशमल रहती थी, कब जवने ककस दवु र्िवजनक ज़स्थतत में उसकी
िरूरत पड जवए । कभी तो उसे लगतव थव कक शवयद अभी, हवाँ बस अभी, ददल िडकते-िडकते थम जवएगी, रुक जवएगी, पर ऐसव होतव नहीं थव । पूणणामव कव शरीर रूपी तन, मन मयूर रूपी आत्मव एक लय, एक तवल पर ज़िंदगी के सुर तवल पर नत्ृ य करते सवाँसों कव सवथ तनभवते।
आत्मव भी कभी मरती है ? अगर नहीं तो उसकव आर्रण बनव शरीर कैसे कुम्हलव सकतव है ज़जसमें ऐसी अमर आत्मव र्वस करती है , जो सवाँसों के सवि पर रक्स करती है , हर पल, हर िण, ददन-रवत, आद जुगवद से...! अपनी
डॉक्टर भी है रवन हो जवते थे पूणणामव की ऐसी बवतें सुनकर, जो र्ह दलीलों के तौर पर
वहत को ज़िंदव रखने के शलए पेश करती । र्े ऐसे मौकों पर मुस्करवते हुए बवहर आते, तनमालव दे र्ी को आश्र्वसन दे कर, उसे पूणणामव के होश में आने कव इंतिवर करने को कहते । मवाँ ही तो थी, र्ह मवाँ जो अपनी ममतव के आगे कमिोर थी, कुछ और नहीं शसफ़ा पूणणामव के होश
में आने कव इंतिवर करती । र्ह जवनती थी कक बेटी जब-जब ज़्यवदव र्क़्त नव ग े ी उसे किर-किर इस दौर से गुिरनव होगव, पीडव को भोगनव पडेगव, उन पलों को जीनव होगव, यही तनयतत है । ‘मैडम आप मरीि से शमल सकती हैं’ यह नसा की आर्वि थी । तनमालव दे र्ी ने कमरे में भीतर आकर बेटी के
ह े रे पर एक नूर दे खव, लगव जैसे ककसी ने
अजंतव एलोरव की मूतता में जवन िाँू क दी हो । पूणणामव कव मवथव दमक रहव थव, आाँखें वर्नम्रतव
की नमी से उजली, होंठों की मुस्कवन जीर्न के वर्श्र्वस के सवथ भरपूर, जैसे अनन्त से आती
हुई िन ु पर धथरकती हुई उसकी िडकन वर्लीनतव में डूबी हो, जहवाँ शरीर शरीर नहीं रहतव, र्ह आत्मव में घुल-शमल गयव हो । तनमालव ने थोडव आगे झुककर उसकव मवथव
म ा वसी की ू ते हुए कहव ‘दस ू रे महीने में पूणम रवत’ के शलए इज़न्सट्यूट र्वले तवरीख़ मवाँग रहे है , क्यव कहूाँ उनसे?’
‘र्ही जो हमेशव कहती हो, तुम्हवरी आशीष से ही मैं तुम्हवरे हर डर को झूठव सवबबत करके, तुम्हवरी हर नवरविगी से ब
जवती हूाँ । इसशलए तुम खश ु ी-खश ु ी हवाँ कर दो मवाँ । दो-तीन ददन यहवाँ आरवम, दो तीन ददन घर में आरवम, किर र्ही शसलशसलेर्वर थकवन! हर पडवर् पर रुकनव, सवंस लेनव और किर आगे बढ़नव और मंज़जल को निर में रखते हुए आगे और लते रहनव ही तो जीर्न है । मवाँ, मेरी प्यवरी मवाँ ! लने दो, यूाँ ही लने दो इस शसलशसले को । हवाँ, एक शता है , मेरे सफ़र में तुम ही मेरी हमसफ़र रहो, तुम्हवरे कदमों के नक़्शे-पव पर
लते हुए मैं ज़िन्दगी कव सफ़र तय करूाँ । तम ु मेरी कश्ती और तम ु ही णखर्ैयव हो, तम् ु हें ही इसे पवर लगवनव है !’
कहते हुए पणू णामव ने आाँखें बंद कर ली जैसे र्ह स में ही आरवम की तलबगवर हो । ‘ ल पगली, ल अब बस कर । जवनती हूाँ कक तू गण ु ी और ज्ञवनी है । इस में कोई शक नहीं, मैं ही तेरी नवर् और तेरव णखर्ैयव,
ल अब थोडी दे र आरवम कर ले’ कहते हुए तनमालव दे र्ी ने उसके सर पर स्नेह भरव हवथ िेरते हुए उसके मवथे को म ू शलयव । उसे यदीन-सव होतव जव रहव थव कक पणू णामव ने अपने जीने के मदसद को पह वनव है , और सवथ में जीने की कलव पर भी महवरत पव ली है! *
शसन्िी कहवनी
हम सब नंगे हैं -कीरत बवबवणी
अनर् ु वद: दे र्ी नवगरवनी
र्ह बबल्कुल नग्न थी, शसर से पवाँर् तक, शसफ़ा छवती पर एक पट्टी बवंिी हुई थी । जर्वन थी, बदन भी स् ु त थव । मैं अपने ख़यवलों में गुम, समुद्र के ककनवरे श्यवमल िि ुं लके में पैदल तेि ददमों को आगे बढ़तव जव रहव थव । र्ो कहवाँ से आई, कब आई, कैसे मुझ तक पहुाँ ी इस बवत की कतई भनक ही नहीं पडी । जब तक उसने अपने हवथ से मेरी कलवई को थवमव ।
उसकी पकड बहुत मिबूत थी । इस अ वनक के हमले से मैं सरवपव दहल गयव, शवयद डर भी गयव ! अपने तन-मन की हल ल और हवलत कव क्यव बयवन करूाँ । ये मेरी ज़िन्दगी के सवथ
हुआ पहलव हवदसव थव । र्ह मेरी कलवई को मिबूती से पकडे हुए थी । बस उसके माँह ु से शसफ़ा ‘‘िमवल... िमवल... िमवल....’’ लफ़्ि तनकल रहव थव । उस शब्द की परतों में छुपी ददा की सरसरवहट हर्व के झोंकों के सवथ कििवओं में िैल रही थी ।
ककतने पल तो मैं बुत बनव रहव, पर जल्द ही होश संभवलव । क्रोि भरे स्र्र में मैंने श ्...श ्... कव स्र्र तनकवलव बबलकुल उसी भवर् से जैसे कोई गंदी करतव है ।
ीि से ककनवरव करते, घण ृ व ददखवते हुए
जब बवर-बवर मेरी नवपसंदगी िवदहर होने के पश् वत ् भी उसने मेरी कलवई पर से अपनी
धगरफ़्त ढीली नहीं की तो मैंने गुस्से से उसे िक्कव ददयव और अपनी कलवई आिवद करर्व ली ।
एक डरे हुए प्रवणी की तरह मैं तेि ददम बढ़वते हुए आगे बढ़व । मेरव ददल तेिी से िडक रहव थव, पसीने के बवर्जूद भी मेरव बदन ठं डव होतव जव रहव थव । पीछे मुडकर दे खने की दहम्मत नहीं थी, ऐसव लगव जैसे कोई भूत मेरव पीछव कर रहव हो ।
कवफ़ी आगे बढ़ जवने के पश् वत ् मेरे डर कव अहसवस कम हुआ और ददल की िडकन भी सविवरण रफ़्तवर से लने लगी । तब जवकर ख़द ु पर सो ने की पहल की । मैं भी ककतनव बहवदरु और सवहसी आदमी हूाँ । एक औरत आकर मेरी बवाँह पकड लेती है और मैं सरवपव डर से मवत खव गयव । आज एक औरत को िक्कव मवरकर खद ु को आिवद करर्व शलयव, ऐसे जैसे र्ह
मझ ु े खव जवती । बहवदरु ी कव क्यव शमसवल कवयम ककयव है मैंने जीर्न में ? र्ो कौन से मन की दशव और ददशव थी कक मैं उस औरत के नंगेपन से डर गयव ? क्यव मेरे डर कव कवरण मेरे
आसपवस से गि ु रते लोगों की निरें थी जो है रत और नफ़रत से मेरी ओर दे ख रही थी ? यव र्ह छुपव हुआ डर थव कक कहीं कोई आर्वरव शख़्स ऐसी हवलत में मेरी तस्र्ीर न उतवर ले और किर
मेरी नैततकतव पर हमलव करते हुए मुझे ब्लैकमेल न करे ? ऐसव भी हो सकतव है कक यह मेरे मन कव खोखलव-सव डर बनकर मेरव पीछव कर रहव हो । ऐसी ककतनी दलीलों की कशमकश में भी मैं रवहत न पव सकव । अपने ककये गये शमानवक व्यर्हवर के शलये मेरी कोई भी दलील मुझे अपनी परे शवनी से बवहर लवने में कवमयवब न हुई । यह हवदसव मुझपर इतनव हवर्ी रहव कक मैं अपने घर र्वपस भी ककसी दस ू रे रस्ते से गयव, इस डर से कक कहीं किर न उसी हवलवत से रू-ब-रू हो जवऊाँ । घर पहुाँ व तो खवमोश रहव, हवलवाँकक डर कव अहसवस भी िीरे -िीरे कम हुआ जव रहव थव, पर मेरव मन शवंत न थव । डर के स्थवन पर अब गन ु वह कव अहसवस उभर आयव। अपने भले मवनस ु होने कव भ्रम
कनव रू हो
क ु व थव । गन ु वह कव अहसवस िहरीलव िवयकव पैदव करके मेरे
मन, शरीर को झकझोरतव रहव । किर-किर सब ु ह र्वलव दृश्य मेरे सवमने किरतव रहव, और मैं
अपने कवया को धिक्कवरतव रहव । र्ह सवरव ददन मैंने परे शवनी की हवलत में गि ु वरव । मन कव
ध्यवन केन्द्र से हटवने के शलये तनरं तर कमरे में रखी हरे क र्स्तु को एकदटकी लगवकर दे खतव, किर दस ू री र्स्तु की ओर जवतव। यह शसलशसलव ददन तमवम
लव, पर भीतर की हल ल बरदरवर
रही ।
दस ू रे ददन तनयमवनुसवर तैयवर होकर समुद्र ककनवरे टहलने के शलये तनकलव । मन में डर
और शमा कव एक शमलव-जुलव अहसवस थव । बे न ै ी थी और कल र्वले हवदसे की किर से होने की संभवर्नव भी मन में उभर कर आई । मैं िीरे -िीरे
लतव, आकर बबलकुल उसी जगह पर रुक गयव ।
वरों तरफ़ निरे घुमवई,
हर कोनव निर से गुिरव, दरू छोशलयवाँ मवरते समन्दर तक निर गई । पर कल र्वली औरत
मुझे कहीं निर नहीं आई, ककसी से उसकव पतव भी नहीं पूछ सकतव थव, ऐसी बेहयवई भी नहीं कर सकतव थव कक एक ऐसी औरत कव पतव पूछूाँ !
अ वनक मेरे भीतर एक सर्वल ने जन्म शलयव कक मैं उस औरत की तलवश आणखर ककस
कवरण कर रहव हूाँ ? कल ही तो मैंने उसे िक्कव दे कर खद ु को आिवद करर्वयव थव । आज मेरे मन में पछतवर्े कव अहसवस है यव उससे गुनवह मवफ़ करर्वने की आशव? अगर र्ह औरत किर
से अपने उसी हवल में आकर मेरे सवमने खडी हो जवए तो क्यव मैं उसकी नग्नतव की दहशत सह पवऊाँगव यव किर भवगकर जवन ब वऊाँगव ? इन्ही सर्वलों में उलझतव, अब मैं एक नये भ्रम कव शशकवर होने लगव कक मुझे हदीदत में ऐसी औरत से पूरी हमददी होनी हवलत कव ददा महसूस करनव
वदहये । उसके शलये कुछ सो नव
वदहये, उसकी उस
वदहए और उसकी बेबसी भरी
ज़जन्दगी की कहवनी की तहों तक पहुाँ नव वदहए । हवलवाँकक मैंने ये भी जवनव कक र्ह औरत हमददी जैसे जज़्बे से बहुत ऊपर उठ क ु ी थी । दख ु , पीडव, शमा से बेमुख हो क ु ी थी और शवयद मैं खद ु से सुलह करने के शलये ये सब सो
रहव थव ।
यहवाँ किर ददल में एक और ख़यवल आयव । मैंने सो व -
लो मैं मवन भी लाँ ू कक मैंने
एक नैततक गुनवह ककयव है , पर यह दोष क्यव मुझपर बवहरी हवलवत ने नहीं थोपव क्यव? क्यव मैं ऐसे गुनवह से दवमन ब व सकतव थव ? अगर खद ु को आिवद करवकर भवग न जवतव तो दस ू रव
कौन-सव रवस्तव थव उस हवलत से बवहर तनकलने कव ? मैं तो उसकी लवज भी ढवाँप नहीं सकतव थव, उसके अहसवसवत को भी समझ नहीं सकव । उसके िमवल... िमवल... िमवल... लफ़्िों के बी
के ददा को भी पढ़ नहीं सकव । मैं उसे कोई भी सहवरव दे न सकव, तो किर मैं क्यव कर
सकतव थव ? मैं
वहते हुए भी उस हवदसे को भल ु व नही पवयव । न ही अपनव रोि कव समंदर ककनवरे सैर करने कव तनयम तोड पवयव । इसशलये र्हवाँ पहुाँ ते ही वहे -अन वहे निरे उस औरत को तलवशती, एक तरह से यह हवदसव मेरे जीर्न के सवथ जड ु गयव । उस औरत की िै ज़जडी मेरे
वर्र्ेक में दवणखल हो गई थी और मैं उसके जीर्न के उस दख ु दवई पहलू पर सो तव रहतव । मन के ध त्रपट पर अनेक कहवतनयवाँ उभरतीं, एक कहवनी बन ु तव, उसे शमटवकर दस ू री गढ़तव। ऐसे कई आकवर बने और शमटते
ले गए, पर ककसी कहवनी कव तवनव-बवनव रवस न आयव।
और किर एक रवत, जैसे मैं सोयव हुआ थव, र्ह मेरे घर आई ! मैं बबलकुल है रत में पड गयव, पर इस बवर मैं डरव नहीं । मैंने अपनी ओढ़ी हुई वदर उसे दी, जैसे र्ह ख़द ु को ढवाँप पवए। उसने मेरव कहव मवनव । मैंने उसे सवमने सोफ़व पर बैठने को कहव, उसने यह बवत भी मवन ली । कुछ समय हमवरे बी
ख़वमोशी दवयम रही, पर मेरे भीतर तीव्र मंथन जवरी थव ।
आणखर मैंने मौन तोडते हुए पूछव - ‘‘तुम्हवरे जीर्न में कैसी दघ ा नव हुई जो तुमने हयव ु ट कव परदव हटव ददयव है ? जरूर ऐसव कुछ भयवनक ही हुआ होगव ।’’
मेरी बवत सुनकर कुछ दे र तो र्ह शससकती रही, आाँसू बहवती रही । ख़वमोशी में उसकव
सख़्त हृदय वपघलतव रहव, बहतव रहव और आाँसुओं कव सैलवब जब कम हुआ तो मेरे बहुत पूछने पर र्ह है रत से मेरी ओर दे खकर कहने लगी - ‘‘तुम मेरी कहवनी सुननव वहते हो ? कहवनी एक नहीं है, मेरी सौ-सौ कहवतनयवाँ हैं । मैं अकेली तो नहीं हूाँ, मेरी जैसी और भी हैं ! हमवरी ये
कहवतनयवाँ आप जैसे मदों की बदसूरती की कहवतनयवाँ हैं, आपकी नंगी र्हशत की कहवतनयवाँ हैं ।’’ ‘‘मैं एक ग़रीब पर भले पररर्वर की लडकी थी । मैंने अपनी ख़ब ू सूरत जर्वनी लेकर ककसी पुरुष की मुहब्बत कव सहवरव शलयव, अपनव सबकुछ उसे अपाण कर ददयव । अपनी सभी ख़्र्वदहशें और तमन्नवएाँ उसकी खश ु ी पर दुरबवन कर दीं । पर कोई फ़वयदव न हुआ, मदा की र्हशत की कोई सीमव ही नहीं है , कोई मयवादव, कोई अंत ही नहीं है । एक ददन उसने मझ ु पर हवथ उठवयव । उसके पररर्वर के सदस्य भी उसके सवथ शवशमल हो गए । मैं बेबस, बेसहवरव बन गई । मेरी
ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी शुरू हुई, मैं शसतम सहती रही, पर उस शसतम भरे जीर्न को कवटने कव हद भी मेरव नहीं थव, उस हद को मझ ु से छीनने की कोशशश की गई । पहले तो मुझे ख़द ु कुशी करने पर मजबरू ककयव गयव, मगर मैं अपने जीने कव हद छोडने के शलये तैयवर न थी... और
किर ? किर जैसव होतव है , र्ैसव ही हुआ । ज़जनको अपनवयव थव, ज़िन्दगी कव सहवरव समझव थव, र्े मुझे अथकी पर सुलवकर जलवने की तैयवररयवाँ करने लगे । मुझे इस बवत की भनक पड गई कक मेरव दफ़न तैयवर हो रहव है और एक ददन स
में , जब मुझपर घवसलेट उडेलव गयव, मैंने सभी
को िक्के दे कर, घवसलेट से गीले कपडे उतवर कर िेंक ददये । उन सभी सदस्यों को नंगव करके मैं घर के बवहर तनकल आई । उसके बवद मैंने र्े र्स्त्र किर नहीं पहने । जो र्स्त्र स्त्री की हयव को ढवाँपने के सविन है , उसको भी अगर आप मदा , उसकी ही मौत कव सवमवन बनव दे ते हो, तो किर नवरी र्ह र्स्त्र पहने ही क्यों ? एक बेबस औरत के ऊपर उस हवलत में क्यव गि ु रव होगव,
र्ो तो तम ु मदा िवत होकर अच्छी तरह समझ सकते हो । मेरव यह जीर्न इन्सवनी है भी और नहीं भी, पर मैं अपनव अन्त लवनव नहीं अच्छव है ।’’
वहती । तम ु मदों के ढोंग पर से पदवा उठव रहे , र्ही
ऐसव कहकर र्ह उठी, की कक कम से कम
वदर उतवरकर िोर से मेरे माँह ु पर दे मवरी । मैंने बहुत शमन्नतें वदर ओढ़कर अपनव नंगवपन ढवाँप ले, पर उसकव एक ही उत्तर थव - ‘मैं
नंगी नहीं हूाँ, ये आपकव असली रूप है, आप सब नंगे हैं ।’ मैं किर भी
वदर लेकर उसकी तरफ़ भवगव, पर बंद दरर्वजे से टकरवकर नी े िमीन पर
धगर पडव ।
शसंिी कहवनी
छोटा दख ु - बडा दख ु
बंसी खब ं वनी ू द
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
‘जल्दी करो शवन्ती, मुझे ऑकफ़स के शलये दे र हो रही है और तुमने अभी तक नवश्तव तैयवर नहीं
ककयव है । मुझे आज सुबह ही बॉस को वपछले महीने की प्रो्रहेस ररपोटा भी दे नी है । जल्दी करो कुछ हवथ
लवओ ।’
‘दे ख नहीं रहे हो कक मेरे हवथ कवम कर रहे हैं, और मुझे भी दो ही हवथ है
वर नहीं, अगर
इतनी जल्दी थी तो ख़द ु नवश्तव बनवते ! तुम्हें तो पतव है मैंने आज छुट्टी ली है ।’
‘हवाँ, पर मुझे तो छुट्टी नहीं है न ! जब तुम्हें ऑकिस जवनव होतव है तो कैसे र्क़्त से नवश्तव बनवती हो, बवदी मेरे शलये... ।’
शवन्ती रसोईघर के दरर्विे पर कमर पर हवथ रखकर खडी शसद्धवथा की ओर दे खती रही । किर उसकव गुस्सव मन के सवगर से बवढ़ की तरह उिन आयव । र्ह रसोईघर से थोडव आगे
आकर, पतत के पवस में खडी होकर हवथ दहलवते हुए कहने लगी - ‘आणख़र तम ु भी इतनव रोब ककस बवत पर जतवते हो ? मेरी पगवर तम् ु हवरी पगवर से पवं हिवर ज़्यवदव ही है । मैं अपनी ज़िन्दगी खद ु है तो
लव सकती हूाँ, तम ु मझ ु पर इतनव रुबवब मत ददखवओ ! अभी अगर नवश्तव करनव प ु वप टे बल पर बैठो, नहीं तो ऑकिस की कैंदटन तो खल ु ी ही पडी है ।’
इतनव कहकर शवन्ती पैर पटकती रसोईघर में
ली गई और शसद्धवथा आर्क् -सव खडव उसे
दे खतव रहव । किर आदहस्तव-आदहस्तव अपनी गदा न झक ु वए, ऑकिस कव बैग लेकर र्ह दरर्विे के बवहर आयव ।
घर के बवहर ऑटो पकडने की नवकवम कोशशश की, पर कोई भी ऑटो र्वलव अंिेरी स्टे शन लने को तैयवर नहीं । र्ह दो-तीन ऑटो र्वलों से झगडव भी करतव है , उन्हें आर.टी.ओ में शशकवयत करने की िमकी भी दे तव है , पर ऑटो र्वले मुस्करवते हुए आगे बढ़ जवते हैं । र्ह सो तव है कक अंिेरी में दस हजवर से भी ज़्यवदव ऑटो हैं किर भी उसे ऑटो नहीं शमलतव ! पर उसे सर्वलों कव जर्वब कौन दे ? आणखर सवमने से बस आती ददखवई दे ती है , र्ह जैस-े तैसे बस में पहुाँ तव है । उसे
ढ़कर अंिेरी स्टे शन
ग ा ेट जवनव है । र्ैसे भी र्ह अंिेरी से रर्वनव होने र्वली िीमी िे न से ही
ग ा ेट जवतव है , पर आज तो उसे र्ैसे भी दे र हो गई है । उसे बॉस को ररपोटा भी तो दे नी है !
आज र्ह बोरीर्ली से आती िवस्ट िे न पकडतव है ।
गवडी में भीड तो है , पर जैसे कक यह बवरह ड़डब्बों र्वली िे न है , र्ह आसवनी से गवडी में घुस पवतव है और कुछ िोर लगवकर अन्दर बैठने र्वले स्थवन के पवस जवकर खडव होतव है । आज र्ह खद ु को थकव हुआ महसूस कर रहव है , जैसे ककसी ने उसके शरीर से ख़न ू ही तनकवल ददयव हो । ऑटो र्वलों कव बतवार् तो र्ह भूल जवतव है पर शवंन्ती के कहे शब्द उसके कवनों में अभी भी रें ग रहे हैं ।
? मेरी पगवर तुम्हवरी पगवर से पवं ।’
हिवर ज़्यवदव ही है । मैं अपनी ज़िन्दगी खद ु
हवाँ, अगर उसे अपनी ज़िन्दगी खद ु
अपनी ज़िंदगी खद ु
लवती ।
शवन्ती शसद्धवथा से
‘आणखर तुम इतनव रोब ककस बवत पर जतवते हो
लव सकती हूाँ
लवनी थी तो किर उसने मझ ु से शवदी क्यों की ?
वर सवल बडी है । एक ही ऑकिस में कवम करते हैं और शवन्ती की
पोिीशन भी शसद्धवथा से ऊाँ ी है और पगवर भी ज़्यवदव, ज़जसकी शोखी उसने आज सब ु ह ही उसने जतवई। शसद्धवथा को र्ह ददन यवद आतव है जब र्ह लं
रूम में उसके सवथ खवनव खव रहव थव
और शवन्ती की एक मरवठी सहे ली ने उससे पूछव - ‘शवन्ती तुम कब अपनी शवदी की दवर्त दोगी ? तीस सवल की हो गई हो, अभी क्यव जोगन बनके रहनव है ?’ जोगन बनकर रहने की बवत से लं बी
में ही बवहर
रूम में ठहवके लगने लगे । शवन्ती खवनव छोडकर
ली गई । उसकी आाँखों में उमड आए आाँसू शसद्धवथा ने दे ख शलये थे, उसे लगव
कक र्ह जवकर शवन्ती से हमददी जतवए, पर दहम्मत न जुटव पवयव ।
उस शवम ऑकिस के छूटने के पश् वत ् जब र्ह बवहर तनकलव तो शवन्ती को भी सीदढ़यों
से उतरते दे खव । र्ह जैसे ही तेि रफ्तवर से सीदढ़यवाँ उतरने लगी, उसकव पवाँर् णखसकव और र्ह वर-पवं
पवयदवनों से लुढ़कती हुई नी े धगर पडी । उसकव पसा भी कहीं छूट गयव और दप ु ट्टव कहीं धगरव, गनीमत कक र्ह सलर्वर कमीि पहने हुए थी, अगर सवडी होती तो जवने क्यव होतव ? शवन्ती को धगरतव दे खकर शसद्धवथा लगभग सीदढ़यवाँ छलवंगतव हुआ नी े आयव और शवन्ती को हवथ दे कर उठवने में मदद की । पसा और दप ु ट्टव दे ते हुए पूछव - ‘आप को कहीं आई है ?’
ोट तो नहीं
‘नहीं !’ कहते हुए शवंन्ती ने शसद्धवथा को थैंक्स कहव और र्ह आगे बढ़ गई । शसद्धवथा ने ज़जस हवथ कव सहवरव दे कर शवतत को उठवयव थव, र्ह हवथ उस स्पशा से जैसे गमा हो गयव थव। उसके मन-मज़स्तष्क में मंथन होने लगव । र्ह ककसी अनजवन शज़क्त के तहत शवन्ती के पीछे तेि कदमों से बढ़व । उसके सवमने खडे होकर उसकी आाँखों में दे खते हुए कह बैठव - ‘शमस शवन्ती मैं आपसे शवदी करने के शलये तैयवर हूाँ !’ इतनव कहकर र्ह आगे बढ़व, पर शवन्ती
प ु वप र्हीं खडी रही । दस ू रे ददन र्ह जैसे ही
अपनी ऑकिस की टे बल के पवस आयव तो र्हवाँ उसने एक छोटव
सफ़ेद शलफ़वफ़व
पवयव। आश् याजनक ज़स्थतत में शलफ़वफ़व खोलव तो उसमें से एक छोटव पत्र तनकलव ज़जस पर शलखव थव ‘यस !’ शसद्धवथा ने सर ऊपर उठवयव तो पवयव सवमने शवन्ती मुस्करव रही थी, र्ह भी मुस्करव उठव
! यह सवत सवल पहले की बवत है ।
र्ह बीते हुए कल की यवदों से बवहर तनकलव, तो दे खव िवस्ट गवडी दवदर स्टे शन पहुाँ ने र्वली है और पवस में दो सीटें भी खवली हुई थीं । र्ह बैठ गयव तो उसे लगव कक उसकी टवंगों के सवथ-सवथ मन को भी रवहत शमली है । बैठते ही उसे मोबवइल की घंटी सन ु वई दी । पहले तो
उसने समझव कक पवस में बैठे आदमी कव है , पर जब उसने कहव - ‘आपकव मोबवइल बज रहव है ’ तो उसने ऑकिस बैग से िोन तनकवलकर दे खव, शवन्ती कव फ़ोन थव । फ़ोन उठवते ही शसद्धवथा ने सन ु व उसकव ध ल्लवनव कक र्ह िोन क्यों नहीं उठव रहव है , र्ह उसे पंद्रह बवर िोन कर
क ु ी है ...
र्गैरह ! शसद्धवथा पहले ही शवन्ती से नवरवि थव, र्ह भी ध ल्लवकर कह सकतव कव गदी में उसे
फ़ोन की आर्वि सन ु वई नहीं दी और अगर र्ह ध ल्लवनव बंद नहीं करे गी तो र्ह फ़ोन बंद कर दे गव ।
जैसे ही र्ह फ़ोन बंद करने जव रहव थव, उसे शवन्ती की शससकी सुनवई दी । रोते हुए शवन्ती बवर-बवर अपने पवं सवल के बेटे गौतम कव नवम लेती रही । शसद्धवथा ने नमकी से रोती हुई शवंन्ती से पूछव - ‘शवन्ती शवन्त हो जवओ और मुझे बतवओ कक बवत क्यव है ? गौतम तो स्कूल गयव है नव ?’
रोती हुई शवन्ती ने उसे बतवयव कक - टी र के बुलवर्े पर र्ह इस समय स्कूल में ही है , गौतम को तेि बुख़वर है और र्ह क्यव करे उसे
समझ नहीं आ रहव । सवथ में शसद्धवथा को जल्द से जल्द स्कूल पहुाँ ने के शलये कहव । पर दो पल प ु रहकर खद ु को साँभवलते हुए शसद्धवथा ने कहव - ‘मैं अगली स्टे शन पर उतरकर अंिेरी की गवडी पकडतव हूाँ, तब तक तुम गौतम को िैशमली डॉक्टर अशोक शवह के पवस ले जवओ । मैं सीिव र्हीं पहुाँ तव हूाँ और उसे फ़ोन भी कर दे तव हूाँ । तुम ऑटो लेकर सीिे डॉक्टर के पवस आओ ।’ ‘कम फ़वसले पर ऑटो र्वले भी नहीं
लते’ रोते हुए शवन्ती ने कहव । शसद्धवथा को अपनव सुबह र्वलव मंजर यवद आयव, पर गौतम को तो डॉक्टर के पवस ले जवनव ही थव । नमकी से शवन्ती को समझवते हुए कहव - ‘ऑटो र्वले को दग ु ुने पैसे दे नव और बच् े के ठीक न होने की बवत बतवनव । मुझे वर्श्र्वस है कक तम् ु हें ऑटो शमल जवएगव । सब ऑटो र्वले एक जैसे तो नहीं होते है न ? अब मैं फ़ोन रखतव हूाँ और जल्द ही डॉक्टर के यहवाँ शमलतव हूाँ ।’ शसद्धवथा मुंबई सेंिल स्टे शन पर उतरकर, सवमने प्लेटिवमा से अंिेरी जवने र्वली िे न
पकडतव है । उसके मन में गौतम और शवन्ती के शलये प्यवर और ध त ं व उमड आई । उसकी आाँखों के आगे गौतम कव बीमवर
ह े रव और शवन्ती कव रोतव हुआ मन में तफ़ ू वन के आसवर भी मंडरवने लगे ।
ह े रव, दोनों रक्स करने लगे,
इस र्क़्त उसके मन से सुबह शवन्ती के सवथ हुए झगडे और उन कडर्ी बवतों कव कहीं नवमोतनशवन नहीं थव । र्ह सब भूल बैठव है । यह मन भी अजीब है । ककस तरह एक छोटे दख ु को बडे दख ु के नी े दबव दे तव है और इन्सवन ? क्यव इन्सवन मन कव इतनव गुलवम है कक छोटे दख ु और बडे दख ु में र्ह फ़का महसूस नहीं कर सकतव ? कौन जवने! *
शसन्िी कहवनी
किप की दरख़्वास्त मूल: लवल पुष्प
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
अब तक शवयद हे ड क्लवका की निर उस पर नहीं पडी थी । लगतव है जैसे र्ह सवरव र्क़्त दीर्वरों से बवत करतव रहव हो । ‘प्लीि सर’, उसने किर नए शसरे से अपनी बवत कहनी
वही ।
‘एक शमनट ठहरो’ हे डक्लवका कहकर किर िवइल्स में गुम हो गयव । ‘िरूरी केस है ।’
र्ह िैसलव नहीं कर पवयव कक कहे गये शब्द उसके शलए कहे गये थे यव फ़दत हर्व में उछवले गए थे। िवदहर है , और अगर उसे शक है तो र्ह बेर्कूफ़ है । उसको अभी और इन्तिवर करनव पडेगव । उसने
वरों ओर दे खव, सबकी ओर दे खव, हवलवाँकक उसे परू व वर्श्र्वस थव कक ककसी
कव भी ध्यवन उसकी ओर नहीं गयव है , उसकी बवत ककये हुए लफ़्िों को सन ु नव तो दरू की बवत है , इसके बवर्जद ू भी उसके र्हवाँ होने और अपनी कही बवत अनसन ु ी हो जवने की बवत खटकती रही ।
उसे र्क़्त कव होश नहीं रहव, बस हे डक्लवका के सवमने अडव रहव। ‘आज मैं बहुत बबिी हूाँ ।’ उसने सुनव और कहनव वहव कक - अगर यह स पूरव एक घंटव कैिेटीररयव के एक कोने में शमसेि दे शपवंडे के सवथ वय की रहव थव, और लबों के बी
में र्ह र्वदहयवत मुस्करवहट ककसकी थी?
है तो किर सुबह
ज़ु स्कयवाँ कौन भर
लेककन उसने कुछ नहीं कहव, उसे पतव थव कक उसकव बोलनव नवजवयि है । कुछ बवतें
शसफ़ा सुनने के शलये और सो ने के शलये होती है । र्ैसे भी भलव र्ह हे डक्लवका को कैसे बतव
सकतव थव कक उसमें और क्लवका में कोई फ़का नहीं है । सर्वल यह है कक र्ह खद ु भी ऑनड्यूटी थव और कैफ़ेटीररयव के सबसे दरू कोने में बैठकर हे डक्लवका की र्वदहयवत मुस्कुरवहट को पूरव घंटव जवाँ तव रहव, इसमें से सवफ़ िवदहर है कक र्ह खद ु हे डक्लवका से पहले आयव थव और दे र से तनकलव थव ।
‘तुम्हें कुछ कहनव है ?’
‘मैं अपनी दरख़्र्वस्त के शलये आयव हूाँ।’ ‘ककस बवत की दरख़्र्वस्त ?’ ‘प्रवर्डेंट िंड - किा की !’ ‘दरख़्र्वस्त कब दी थी ?’
‘सर, आपको यह तो मवलूम है , हफ़्तव पहले आपने कहव थव कक सुपररटे न्डेन्ट की सैंक्शन लेकर अकवउं ट्स ऑकिस में भेजेंगे ।’
‘तो क्यव अभी तक नहीं भेजी ?’ ‘सर, कल मैं अकवउं ट्स ऑकफ़स गयव थव, इन वजा ने बतवयव कक ऐसे कोई दरख्र्वस्ट उनके हवथों में नहीं आई है ।’ ‘ड़डस्पै
क्लवका से जवं
कर लेते ?’
‘सर, र्ह मैटरतनटी-लीर् पर है ।’ ‘तो उसकी जगह पर दस ू रव क्लवका होनव ड़डस्पै
क्लवका के बबनव कवम
वदहए । क्यव तम ु यह कहने की कोशशश कर रहे हो कक
लवनव मम ु ककन है ।’
‘यह ठीक बवत है सर, पर पतव पडव कक र्ह आज से छुट्टी पर गई है और उसकी जगह पर ककसी और क्लवका को मद ु रा र करने के अभी ऑडार नहीं तनकवले गए हैं ।’
‘तो इसमें मैं क्यव कर सकतव हूाँ, कहो.... ?’ ‘सर, आपने हफ़्तव पहले अंजवम ककयव थव कक आप दे खेंगे कक मुझे एक हफ़्ते के अन्दर किा शमले । आपको पतव है कक मेरी हवलत, मेरव केस बबलकुल जेन्युन है ।’
‘ऐड्शमतनसिे शन को इस बवत से कोई र्वस्तव नहीं, कक तुम्हवरव केस जेन्युन है कक नहीं।
मुख्य
बवत है कक लवगू फ़वमा भरकर उसके सवथ सदटा किकेट पेश ककयव गयव है यव नहीं, तुम्हवरी हवलत में .. !.’
‘हवाँ, सर, मैंने िरूरी फ़वमा भरे , उसके सवथ अपने फ़ैशमली डॉक्टर कव सदटा किकेट भी पेश ककयव है कक मेरी पत्नी को इस िहीन इलवज की िरूरत है और उसके शलये दर्वओं र्गैरह कव बबल हमको भरनव है ।’ हे डक्लवका ने कहव - ‘अच्छव तो तुम थोडी दे र ठहरकर आ जवओ, तब तक मैं इस िवइल से िवररग़ हो जवऊाँ ।’ उसने कहनव
वहव - ‘सर, हफ़्तव पहले भी आपने...’
लेककन उसने कुछ न कहव, उसे पतव थव कक उसे कुछ भी नहीं कहनव है । कुछ बवतें शसफ़ा
सुनने के शलए होती हैं और सो ने के शलये । जबकक कुछ घड़डयवाँ ऐसी भी आती हैं जब र्ह सो तव है । आणखर बवत भी ग़ैर िरूरी है , सो नव ग़ैर िरूरी-बेमवनी !
र्ह र्हवाँ से उठकर बवहर तनकलव, र्क़्त जो गुिवरनव थव । ककतनव ? थोडव ! लेककन र्ह
थोडव न जवने ककतनव होतव है । कहने र्वलव अपने दहसवब से र्क़्त को मवप लेतव है , मिे की बवत यह है कक ख़द ु उसे अपनी ‘मवप’ पूरी तरह से पतव नहीं होती।
और किर भी हम हर लफ़्ि की मवइने समझने में मवत खव जवते हैं ! ‘मवइने’ कौन से लफ़्ि की होती है ? ग़ौर करने पर यह बवत बेकवर लगी । रोिमरवा के गददा शी जीर्न की तरफ़ हम इतने ईमवनदवर हैं कक उस िआ ु ाँिवर स
की तरफ़ बेईमवन बन गए हैं।
‘र्ह’, जहवाँ नहीं जवनव थव, र्हवाँ भी गयव कक हे डक्लवका कव कहव र्ह ‘थोडव’ पूरव हो जवए ।
र्हीं खडे सभी तविी अख़बवरों की हे डलवइन्स पढ़ ली। हवलवाँकक यह बवत उसे बबलकुल अच्छी नहीं लगती थी । उन ख़बरों में और ऑकफ़स के िवईलों में न जवने कहवाँ और कैसी समवनतव महसूस होती रहीं । र्ह हर जगह गयव, और हर कहीं खडव रहव । ज़जतनी जगहों पर र्ह गयव, ज़जतनव
र्क़्त खडव रहव, उससे उसे यदीन होने लगव कक कवफ़ी र्क़्त गि ु र गयव होगव और हे डक्लवका कव र्ह ‘थोडव’ कब कव परू व हो गयव होगव । यदीन करने के शलये जब उसने प्लैटिवमा पर लगे
रविसी घड़डयवल की तरफ़ दे खव तो र्ह भीतर से बबलकुल खवली हो गयव, शसफ़ा और शसफ़ा दस शमनट गि ु रे थे ।
र्क़्त शसफ़ा कैकफ़टीररयव में गि ु रतव है , यही सो कर र्ह भीड के होते हुए भी एक कोने में बैठने कव स्थवन पव गयव। उसने जवन-बूझकर कॉफ़ी कव ऑडार दे र से ददयव । जब ददयव, और कॉफ़ी आई तो र्ह जवन-बूझकर छोटी-छोटी र्क़्त र्ह खद ु को इस सो
ज़ु स्कयवाँ बहुत ही िीरे -िीरे लेने लगव। यह सवरव से अलग न कर सकव कक दरख़्र्वस्त के सवथ डॉक्टर कव सटीकफ़केट
उसने अच्छी तरह से लगवयव थव यव नहीं, कहीं वपन, हवलवाँकक उसने अच्छी तरह से टवाँकी थी, कहीं धगर तो नहीं गई... क्योंकक उस हवलत में उसे किर नए शसरे से उसी किा के शलए उन्हीं
हवलवतों से गुिरनव होगव । र्ैसे भी यह बवत अनहोनी नहीं है , ककतनी ही बवर ककतनों को उस छोटी-सी वपन ने ऊपर नी े करर्वयव है । तविव शमसवल कपूर कव है , बब वरे ने अपनी शवदी के
शलये किा की दरख़्र्वस्त की थी, महीने के बवद उसे ऑकिशशयल लेटर शमलव, तब जब शवदी में शसफ़ा छः ददन बवदी ब े थे, यह कहते हुए कक - ‘तुम्हवरी दरख़्र्वस्त र्वपस भेज रहे हैं । मवाँगे हुए सटीकफ़केट के सवथ किर से पेश करो ।’
कपूर भी इरवदे कव पक्कव थव, पढ़े हुए जवसूसी नॉर्ल मददगवर सवबबत हुए । बडे अफ़सर की ऑकिस के बवहर उिम म वयव - ‘अगर मैंने सटीकिकेट अटै नहीं ककयव तो किर दरख़्र्वस्तिवमा के कोने पर टव नी (वपन) के तनशवन कहवाँ से आए ?’ नतीजे में हे डक्लवका कव हुक्म शमलव, तुरंत जवाँ करो, सटीकफ़केट िे स करो, किर मेरी टे बल पर सबशमट करो, शसग्ने र लेकर ख़द ु अकवउं ट्स ऑकफ़स में जवओ, रू-ब-रू किा पवस करवओ । मुख्तसर में मतलब यह है कक शमस्टर कपूर को
ौबीस घंटों में दिा के पैसे शमलने
वदहये । ऑकफ़सर ने यह भी जोडव, इस रवट्न कंिी में शवदी किर नहीं होती, कक ककसी की शवदी
के किा की दरख़्र्वस्त ऐसे ...। उसने ख़द ु को िटकवरव कक र्ह कपूर के जैसव स्मवटा क्यों नहीं हो पवयव । अच्छे सवदहत्य
और गंभीर ककतवबों की बजवए जवसस ू ी नॉर्ल उसने क्यों नहीं पढ़े । अगर र्ो ऐसे करतव तो
आज इतनव हौसलव और इतनी दहशत समेट पवतव ! हो न हो, फ़िा करो अब यहवाँ से उठने के बवद, ऑकफ़स में हे ड् क्लवका के सवमने खडव होकर र्ही हवलवत पैदव करे तो भी कपूर की तरह शवयद ही हौसलव और दहशत ददखव पवए । शवयद शक है नहीं यदीन है नहीं अगर, उस हवलत में , र्ह ध ल्लवनव
वहे गव तो उसकी आर्वि नहीं तनकलेगी, हवथ
दहलवकर रह जवएगव र्ह। बहुत बोलनव वहे गव पर ख़वमोश रह जवएगव । दस ू री हवलत में अंट-शंट बोल दे गव बहुत ही तेि रफ़्तवर के सवथ किर अ वनक रुक जवएगव, रवह गंर्वाँ बैठेगव जैसे स्पीड में दौडती िे न अ वनक पटररयों से उतरकर ढे र हो जवए... यव िुग्गे में गैस जल्दी-जल्दी भर दी जवए और िुग्गव िूलतव िूलते अ वनक ही िुस करके िट जवए... यव... !
हे ड क्लवका उसे दे खकर मुस्करवयव और कहव - ‘क्यों बहुत दे र लगव दी ?’ तो उसकव मक उठव। ह े रे पर तनी हुए रे खवएाँ ढीली पड गईं ।
ह े रव
‘तुम्हवरी दरख़्र्वस्त शमल गई है ।’ ‘ओह ! थैंक यू सर !’
‘अब एक कवम करो !’ ‘यस सर !’ ‘तुम तुरंत शमस्टर गुजरवल से शमलो ।’ ‘गुजरवल से क्यों सर’
‘जैसे मैं कह रहव हूाँ, करो !’ ‘ओ.के. सर !’
‘हवाँ यह लो, अपनी दरख्र्वस्त उसके पवस ले जवओ’ ‘सर...’ ‘जैसे कह रहव हूाँ र्ैसे करो, तुम्हवरी भलवई के शलये है ’ ‘दरख़्र्वस्त में कोई ग़लती हुई है ?’ ‘नहीं, तुम्हवरी कोई ग़लती नहीं है ।’
‘सर, मुझे खल ु वसव करके बतवएाँ कक दरख़्र्वस्त में ककसकी ग़लती है और कौन-सी ग़लती है ।
अगर ककसी और की ग़लती है तो, दस ू री ककसी की इसशलये कह रहव हूाँ कक आपने ख़द ु कहव कक ग़लती है, पर मेरी नहीं है । पर अब तो यह िवदहर है कक कहीं न कहीं ककसी की कोई न कोई ग़लती अर्श्य है , मख् ु य बवत यही है , मेरव मतलब है कक ग़लती है किर
वहे र्ह ककसी से भी
हुई हो । पर मैं खद ु पर दोष लेने को तैयवर हूाँ, की सख़्त िरूरत है । मैं आपको पहले ही बतव
वहे उसमें मेरव कोई भी दोष न हो, मुझे पैसों
ुकव हूाँ, मेरी पत्नी कव इलवज और िवरी रखनव वदहए, यह डॉक्टर कव कहनव है । उसे और सुइयवाँ लगर्वनी है ... सुइयवाँ, दर्वइयवाँ, गोशलयवाँ,
टॉतनक... आपने हफ़्तव पहले कहवथव!’ र्ह
प ु हो गयव, और उसे यह लगव कक पहले र्ह समझ तो जवतव कक हे डक्लवका यव
उसकव गुजरवल क्यव कहतव है । इस बवर उसे लगव कक सबकी, यव सबमें से ककन की निरें
उसकी तरफ़ उठीं । इतनी बकर्वस करते र्क़्त, ख़द ु को बेर्कूफ़ समझते हुए ख़द ु को कोसव उसने । शमस्टर गज ु रवल। गोरे बदन र्वलव पंजवबी पवन
बव रहव थव ।
‘शमस्टर गज ु रवल... ’
‘यस शमस्टर, आओ बैठो।’ ‘मझ ु े शमस्टर सेठ ने भेजव है ’ ‘इन र्ॉट कनेक्शन ?’
‘मेरी इस दरख़्र्वस्त के बवरे ...’ उसने दरख़्र्वस्त शमस्टर गुजरवल के आगे रखते हुए कहव - ‘शमस्टर सेठ ने शवयद आपसे इस बवरे में पहले ही बवत की है ।’ ‘मुझे कुछ यवद नहीं आ रहव है , पर तुम कहो मैं तुम्हवरे शलये क्यव कर सकतव हूाँ।’ ‘मेहरबवनी करके गवइड कीज़जये कक इस दरख़्र्वस्त में क्यव ग़लती है ?’ किर कुछ रुककर - ‘ग़लती है िरूर, शमस्टर सेठ ने मुझे बतवयव है ।
हवलवाँकक मेरी कोई ग़लती नहीं है , पर किर भी ग़लती है िरूर, शसफ़ा यह पतव नहीं पड
रहव है कक इसमें क्यव ग़लती है और ककसकी ग़लती है ?’ र्ह किर लंबी सवंसे लेने लगव, उसे लगव कक र्ह अपनी बवत अच्छी तरह से समझव नहीं पव रहव है । हवलवाँकक समझवने जैसी उसमें कोई बवत भी नहीं थी । पर उसे यह जरूर लगव कक उसे बतवने के शलये मन वहे शब्द नहीं शमल पव रहे हैं । गुजरवल ने दरख़्र्वस्त दे ते हुए कहव - ‘बरवबर इसमें ग़लती है , उसे जवइिव लेते हुए कहव ।’ ‘शमस्टर सेठ ठीक ही कह रहे थे ।’ ‘यह दरख़्र्वस्त नहीं
लेगी ।’
‘शमस्टर गुजरवल...’
‘यह फ़वमा रद कर ददयव गयव है ।’ ‘मुझे मवलूम न थव ।’
‘ऐडशमतनस्िे शन ने इस किा को पवने के शलये नयव फ़वमा बनर्वयव है ।’ ‘कौन-सव !’
‘भवई, उसकव तो मुझे भी पतव नहीं है ।’ उसने बस उठकर र्हवाँ से
ले जवनव
गुजरवल ने किर कहव - ‘मैंने स
वहव । में र्ह नयव फ़वमा दे खव तक नहीं है । मैं जवननव
वहतव
हूाँ कक ककसी ने भी दे खव है क्यव? किर भी मुझे वर्श्र्वस है कक इस फ़वमा पर तो दरख़्र्वस्त नहीं लेगी । अभी कल ही भेजी हुई सब अज़िायवाँ अकवउं ट्स ऑकफ़स से लौट आई हैं। हर एक अिकी के नी े ‘िुट नोट’ लगव हुआ है - ‘मेहरबवनी करके नये फ़वमा पर अज़िायवाँ भेजी जवएाँ ।’ कोई फ़वयदव नहीं थव, उसने सो व - कोई भी सर्वल उठवने से... और र्ह तत्पर उठकर र्हवाँ से जवनव
वहतव थव ।
शसन्िी कहवनी
नय़ी मााँ -दे र्ी नवगरवनी
एक ही रवत में र्ह मवाँ बन गई । सौतेली ही सही, पर पदवधिकवररणी हुई र्ह दो बेदटयों की । यह र्रदवन उसे वर्रवसत में शमलव । ममतव कैसे झोशलयवाँ भरती है , बच् े की ककलकवररयवाँ क्यव होती है , छवती से दि ू की िवरें ककस तरह छलकती है , कुछ भी जवने बबनव र्ह मवाँ बन गई । तनयतत कव र्रदवन !
बडी बेटी र नव अपनी नई मवाँ के मनोभवर् समझ पव रही थी, जो इस महवद्र्ंद्र् के पवटों के बी
कशमकश के दौर से गि ु र रही थी । कलव, हवाँ कलव ही उसकी नई मवाँ कव नवम थव । सग ु दठत बदन,
गोरव रं ग, तीखे नयन-नक्श, एक कलवत्मक मतू ता की छटव र् आभव शलये हुए र्ह अंिेरों में उजवलव भरने की िमतव रखने र्वली एक अिणखली नर्यर् ु ती, जो उम्र में उससे आठ सवल छोटी और उसकी बहन कमल की उम्र से आठ सवल बडी ।
र नव घर की बडी बेटी होने के नवते संबि ं ों केव जवनती थी, ररश्तों के बी
के रख-रखवर् को
पह वनती थी । सगी मवाँ बीमवर थी, इलवज ककयव गयव, पैसव पवनी की तरह बहवयव गयव । पर पैसव
जीर्नदवन कहवाँ दे पवतव है ? संसवर में तमवम सविन जुटवने में पैसव सहयोग दे तव है । उसी पैसे के िोर पर परु वनी मवाँ की मौत के कुछ अरसे बवद ही नई मवाँ आ गई । वपतव ने नई मवाँ को लवने में ज़जतनी
जल्दी की, अपनी बज़च् यों के सवथ संबि ं जोडने में उतनी ही दे र लगव दी । र्ह मयवादव जो ररश्तों को जोडती है , र्ही शवयद वपतव के जीर्न कव दहस्सव न बन सकी । ररश्तों कव टूटनव और जुडनव एक व्यवर्हवररक
लन-सव बन गयव उनके शलये । ररश्तों कव तनबवह और तनर्वाह क्यव है , यह उनकी कफ़तरत में
शवशमल ही न थव । थव तो बस लोकलवज, बैठकों में मवन-मयवादव, ददखवर्े की सविन, जो उनके तनजी सख ु ों में बढ़ोत्तरी लव सके ।
मक-दमक और हर र्ह
‘‘र नव कभी-कभी अपनी नई मवाँ कव कवम में हवथ बंटव ददयव करो, उसे थोडव र्क़्त लगेगव सीखने में ...
और तम ु ... ।’ वपतव कव आदे श थव प्यवर-रदहत, अपनेपन से खवली। र्ह आदे श कम, एक हुकुमनवमव थव जो न जवने ककस रर्वयत की तहत र्े पररर्वर के सदस्यों पर थोपते रहे , हमेशव की तरह... जैसे र्े नई मवाँ के पहले सगी मवाँ को भी आदे श स्र्रूप ददयव करते थे ।
‘‘आप अपनी नई बीर्ी की बवत कर रहे हैं?’’ र नव ने करवरे कटवि के सवथ र्वर ककयव । र्वतवर्रण में ज़जतनी भी र्ह तब्दीशलयवाँ दे खती उतनी ही उसकी बवग़ी सो
प्रततकक्रयव में पेश करती ।
‘‘हवाँ तम् ु हवरी नई मवाँ की ही बवत कर रहव हूाँ । अच्छव होगव जो तम ु इस नए और परु वने ररश्ते की झीनी दीर्वर तोडकर उसे मवाँ कहकर संबोधित करो ।’’ वपतव ने अपने गमा तेर्र िवदहर करते हुए कहव ।
‘‘पर मैं उसे न मवाँ मवनती हूाँ, और न उसे मवाँ कहकर पक ु वर सकती हूाँ । र्ह तो उम्र में भी मझ ु से आठ सवल छोटी है । खूंटे से बवंिकर आपने बस उस के सवथ एक ररश्तव जोड शलयव, एक नवम दे ददयव - जवने ककस स्र्वथा के कवरण...!’’ ‘‘र नव, अपनी सो
को भटकने न दो...।’’ वपतव ने अस्पष्ट शब्दों में वर्रोि ककयव ।
‘‘ररश्तव जोडनव एक बवत है , उसे तनभवनव एक और बवत... और उसे पररपण ू ा करने के शलये आपको अपने बच् ों कव सहयोग लेनव पडे, यह न तो उध त है और न ही शशष्टव वर के शलहवि से सही ।’’ कहकर र नव बेरुख़ी से
लने को हुई । ‘‘रुको... तम ु मवाँ को मवाँ नहीं मवनती, क्यव यही कहनव ‘‘नहीं, कहनव तो नहीं
वहती हो तम ु ।’’
वहती, पर कहे बबनव रह भी नहीं सकती । आप मझ ु े यह अहसवस ददलवने की
कोशशश न करें कक जो ररश्ते आप मझ ु पर थोपें ग,े र्ो मझ ु े यव कमल को मवन्य होंगे ? मझ ु े अच्छे -बरु े
की पह वन है , भले-बरु े में फ़का समझती हूाँ । इस घर की बेटी की उम्र से छोटी उम्र र्वली ककसी और घर की बेटी को आप ब्यवह कर लवए है और अब आप मझ ु े इस बवत के शलये ककसी तनवर्पण ू ा ज़स्थतत में न डवलें तो बेहतर होगव । उन नर्व्यवहतव लडकी कव अपनी सो दवयरे में अपनी सो
पररपक्र् सो
से दख़ल नहीं दे नव
वहती ।’’
की मवलककन र नव अभी तक उस स
पर परू व अधिकवर होनव
वदहए, मैं उसके
को स्र्ीकवर नहीं पव रही थी। प्यवर और
मजबरू ी, न्यवय और अन्यवय कव हर सफ़् आ अपनी कहवनी कह रहव थव। औरत अपनी सत्तव कव प्रमवण कब तक दे ती रहे गी ? क्यव उसकी मिकी मदों की मनमवतनयों की डगर पर सर िोडकर रह जवएगी ? क्यव उसकी
वहत परु ु षर्वदी सत्तव की दलदल में िंसती रहे गी ?
मवाँ की मौत ने र नव के मन को गहरी
ले आनव एक और र्वर रहव ।
ोट पहुाँ वई और थोडे ही र्क्त में वपतव कव नई मवाँ को ोट ददा कव अहसवस दे जवती है और यही अहसवस बहुत कुछ समय के
पहले शसखव भी दे तव है - प्यवर, निरत, ईष्यवा, स्नेह, घण ृ व, ममत्र् । जहवाँ हर है । समझौते के नवम पर ररश्ते नंगे हो जवते हैं । यही बवग़ी सो
ेहरव बेनदवब-सव हो जवतव
र नव के भीतर बर्ंडर बनकर रर्वं हो
रही थी । अब संर्ेदनव ददल को कहवाँ ढवंढस बंिव पवती है । एक समविवन की जवं -पडतवल यवदों में अिूरी ही रहती है तो दस ू री घटनव संपण ू ा हो जवती है । एक कवंड के पीछे एक और कवंड इस रफ़्तवर से सवमने आते हैं कक हल अिूरे के अिूरे समविवनों के अंिेरे में खो जवते हैं । ‘‘आपकी
।
वय लवई हूाँ’’ वर्नम्र सल ु झव हुआ स्र्र सन ु व । सो से पैदव हुई मन की कडर्वहट, गमा वय की भवप की तरह रफ़ू क्कर हो गई । दे खव, कलव वय पवस र्वली ततपवई पर रखकर जवने को मड ु ी
‘‘सन ु ो’’ और आगे र नव कुछ कह न पवई ।
‘‘जी’’ यह कलव कव स्र्र थव, जो अपने अंतद्ार्न्द्र् में उलझी हुई थी कक र नव को र्ह कैसे संबोधित करे । कैसे बवत करे ? कैसे उसे वर्श्र्वस ददलवए कक र्ह उसकी और कमल की मवनशसक ज़स्थतत से र्वकदफ़ है , मन के वर् वरों की उलझन जवनती है , उनकव दख ु -ददा बवाँट सकती है , उनकी सखी बन सकती है । पर नयी मवाँ के रूप में शवयद उनकी आशवओं पर परू ी उतरने में सफ़ल न हो पवए । o कलव कव ब पन बीतने पर, जर्वनी बबनव आहट आई और बहवर आने के पहले पतझड सवथ लवई ।
‘‘बेटी अब तू स्कूल न जवयव कर, घर कव कवमकवज सीख ले, आगे कवम आएगव। ’’ - मवाँ ने कहव थव । ‘‘पढ़नव भी तो कवम आएगव कक नहीं मवाँ ? घर कव कवम तो औरत को तव-उम्र करनव होतव है और हर
लडकी जब औरत बनती है तो र्ह सहज ही उसे अपनी िरूरतों के आिवर पर सीख लेती है । ’’ - कहकर कलव ने पस् ु तकें उठवईं और छत पर पढ़ने के शलए ददम आगे बढ़वयव ।
‘‘अरी सन ु , अनसन ु व न ककयव कर ! तेरे बवबज ू ी कहीं बवत ीत ‘‘आदमी...!’’ और कलव की
लव रहे हैं । अच्छे घर कव आदमी है ।’’
प्ु पी में अनधगनत सर्वलों ने दम तोड ददयव ।
‘‘अरे हवाँ, र्ह सेठ दयवलरवय ज़जसकी पत्नी दो मवह पहले गि ु र गई । इतनव बडव कवरोबवर, हवट-हर्ेली, दो बेदटयवाँ हैं पर घर कव र्वररस नहीं है । कोई तो हो जो इस सवरे वर्स्तवर की बवगडोर संभवल ले । ऐसे ही
तो नहीं बीतेगव यह अस्त-व्यस्त जीर्न । अगर तेरी बवत र्हवाँ पक्की हो जवए, तो किर तेरे र्वरे -न्यवरे हो जवएाँगे और हम भी सख ु की सवंस ले पवएाँगे । तेरे पीछे दो बहनें और भी तो है । मझ ु े वर्श्र्वस है यह ररश्तव उनके शलये भी स्र्गा कव द्र्वर खोल दे गव ।’’ कहकर मवाँ ने दोनों हवथ जोडकर न जवने मन में कौन-सी मन्नत मवाँगी ।
छत की ओर जवती सीढ़ी पर पवंर् िरव ही न थव कक दठठक कर रुक गई कलव, कलवर्ती
कमलवप्रसवद - यही नवम उसके स्कूल के दवणख़ले के र्क़्त रज़जस्टर में दजा हुआ थव । यवदों की दीर्वरें शीशों की होती है । झीनी-झीनी-सी नविुक र्े यवदें कभी बबनव ोट के ूर- ूर होने की तबीयत रखती है , बेआर्वि ही भरभरव कर रह जवती है । मवाँ की ओर दे खते हुए कलव सो ती रही । नवम की पह वन क्यव शसफ़ा वपतव के नवम से होती है , जन्मदवततनी मवाँ क्यव शसफ़ा नवम की मवाँ होती है , जो बच् ों पर अपनव सर्ास्र् तो लट ु वती है , पर अपनव नवम तक नहीं दे पवती । उनकी पह वन नहीं बन सकती । यह कैसी
िवरणव है , कैसी रीतत है कक मदा, शसफ़ा मदा ही हर लडकी की पह वन कव बवइि हो... कभी वपतव, कभी भवई, कभी बेटव और कभी पतत बनकर ।
“मवाँ क्यव औरत की पह वन कव कोई र्जूद नहीं है ?”। कहनव
वहकर भी कलव कह न पवई ।
सीढ़ी पर पवंर् िरते ही सो व हर औरत को अपनी पह वन बनवने कव, खद ु कव जीर्न सजवने-संर्वरने कव परू व अज़ख्तयवर होनव
वदहए । पर क्यव परु ु ष प्रिवन समवज में औरत अपनी कोई पह वन नहीं पवती ?
नवरी की संपण ा व मवाँ होने में है और र्ह उसकव जन्मशसद्ध अधिकवर है । यही मवतत्ृ र् ही तो उसे अपनी ू त पह वन और पररपण ा व दे तव है । अपनी तनणायवत्मक सो ू त होनव
वदहए ।
पर और भवर्नवओं पर उसकव परू व अधिकवर
‘‘अरे भवग्यर्वन सन ु ती हो । कल शवम कलव कव ररश्तव सेठ दयवलरवय जी के सवथ शगन ु के सवथ तय होगव । र्े शगन ु लेकर पवाँ
बजे आएाँगे । दे खनव स्र्वगत में कोई कमी कसर न रहे ।’’ कहते हुए कमलव प्रसवद अपनी िोती कव पल्लू संभवलते हुए अपने कमरे की ओर गए और कलव के पवंर् आगे बढ़ने के बजवय जवने ककतनी सीदढ़यवाँ पीछे की तरि लवंघ आए ।
कुछ टूटकर बबखरव । र्ो क्यव थव ये नहीं जवनव । जो कुछ भी हुआ र्ो न जवनव पह वनव अहसवस थव, न अपनव ! ददल अपने भीतर के खवलीपन में डूबतव लव गयव और तीरगी के सवये पल-पल गहरे होते रहे । ज़िन्दगी की रौनकें पल में िीकी पड गईं । बझ ु े
रवग़ों की तरह इच्छवओं की आहटें सहम गई
, ददल पर दस्तक दे नव भल ू गई । िूल णखलने के पहले मरु झवने लगे, अनसन ु ी रह गई रवग की बवंसरु ी,
अनछुई रह गई िूल की पवंखरु ी । खवमोश ददा की शससककयवाँ कौन सन ु तव ? इन ररश्तों के बविवर में लेनेदे ने के शसलशसलों में वपस जवती है बेदटयवाँ, उनकव समस्त अज़स्तत्र्, उनकी ज़िन्दगी की पह वन एक वर्र्वद पर आकर ठहर जवती है । ‘‘आप भी अपनी
वय यहीं ले आएाँ, सवथ में वपएाँगे !’’
यह र नव कव कोमल स्र्र थव । जब ररश्ते जुड जवते हैं तो
वहकर भी उन्हें तोडव नहीं जवतव,
बस तनभवने की रर्वयतें अपनवनी पडती है । र्ैसे भी स्त्री की लडवई उसके अपने आसपवस की पररज़स्थततयों के कु क्र में िाँसी रहती है , ज़जससे र्ह मज़ु क्त पवनव को स्र्ीकवरनव शवयद अपनी तनयतत समझ बैठी है । कलव को लगव जैसे र्ह घट ु न के
वहती है । हवलवत की समू ी
ुनौततयों
क्रव्यह ू से आिवद हो गई हो। मन के र्वद-वर्र्वद की दैद से
तनकलकर आिवद मवहौल में आ गई और मज़ु क्त कव द्र्वर उसे आशलंगन में लेने को आतरु थव । िण भर में र्ह ‘नयी ’ न रहकर परु वनी हो गई ।
शसन्िी कहवनी
दस्तावेि
मूल:नवरवयण भवरती
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
मंघनमल बैरक के बवहर र्रवंडे में पडी खवट पर बैठव शसन्ि से लेकर आए दस्तवर्ेिों, रसीदों और बही-खवतों की पोटली खोलकर उसमें से एक-एक पुशलंदव तनकवलकर दे खतव रहव। हर
एक कवग़ि पर सरसरी निर डवलतव, रुक-रुक कर होठों में कुछ बडबडवतव जवतव, कभी ठं डी सवंस लेतव, कभी अपनी पेशवनी पर हवथ ठोकते
- ‘अबो कदस्मत ! नहीं तो...।’ कहकर कुछ दस्तवर्ेि
एक तरफ़ रखतव गयव, तो कभी उनकी एक अलग गड्डी बनवकर रखतव।
दो तीन ददन पहले उसे क्लेम्स ऑकफ़स से नोदटस शमलव थव - ‘‘दस तवरीख़ की सुबह
ग्यवरह बजे तुम्हवरी हवज़िरी दस ू रे नम्बर कैंप की ऑकफ़स में तय हुई है । समय पर अपने दस्तवर्ेि, उनकी जेरॉक्स र् सभी शलखे कवग़ि सबूत के तौर, गर्वहों के सवथ हवज़िर रहनव ग़ैर मौजूदगी की हवलत में एक तरफ़व िैसलव ककयव जवएगव।’’
मंघनमल ने िमीनों कव क्लेम भरव थव और घरों कव भी लेककन यह हवज़िरी घरों के
क्लेम की थी । उन घरों के शलखे हुए सबत ू ों को ले जवने के शलये र्ह घरों के दस्तवर्ेि ढूाँढ़ रहव थव। एक-एक दस्तवर्ेि दे खकर, घर र्वले कवग़ि जद ु व कर रहव थव । एक दस्तवर्ेि पर सरसरी निर डवली और पढ़ते ही उसके सवमने तस्र्ीर की तरह उस
जगह कव नक़्शव किरने लगव । उसकी गोशवलव र्वली जगह दहन्दओ ु ं की बस्ती में थी। उसके पवस ही सम ु न दहन्द ू रहतव थव । र्ह मंघनमल की खेत में हल
लवयव करतव थव। खेत के पवस ही
सख ू व घवस और भस ू व रखने की जगह थी । इस तरह एक जगह, दस ू री जगह, तीसरी जगह... कुछ दस्तवर्ेि दस सवल परु वने थे, तो कुछ बीस सवल परु वने। कुछ तो तीस,
वलीस सवल से भी
ऊपर के थे । कुछ घर उसकी स्मतृ त से भी पहले के शलये हुए थे, कुछ कव तो तनमवाण उसके सवमने ही हुआ।
शसदद्दद सूतवर उसके घर में बैठकर, दर-दरर्विे, तज़ख्तयवाँ और िरूरत के सवमवन बनवतव,
र्ह उसे भवलू कहकर ध ढ़वतव थव, जो उसे अच्छी तरह से यवद थव । दस्तवर्ेि दे खते ऐसी अनेक कहवतनयवाँ उसके मन में उभर आईं। उसने एक-एक करके ककतने दस्तवर्ेि दे खे और दे खते-दे खते उसकी निरे इन अिरों पर जम गईं - ‘‘रसूल बख़्श बेटव तनबी बख़्श, रहर्वसी मीरल गवंर्’’,
उसकी तनगवहें किर आगे बढ़ीं और र्ह पढ़ने लगव - ‘‘इदरवर करतव हूाँ और अपनी रिव-खश ु ी के
सवथ शलखकर दे तव हूाँ, मैं रसूल बख़्श, बेटव तनबी बख़्श, जवत - मंगयो, कवम - खेती करनव, उम्र
- ३० सवल, स्थवयी तनर्वस - मीरल गवंर्, तवलुकव-कंबर, ज़िलव-लवरकवणो। एक जगह शसकनी, गवंर्
- मीरल, तवलुकव - कंबर, ज़जलव - लवरकवणव, ज़जसमें तीन कोदठयवाँ, एक कमरव और नीम कव पेड है । उत्तर की तरफ़ पवठशवलव है
ज़जसमें मुसलमवनों के लडके पढ़ते हैं--३३ िुट, हद दक्षिण में
घर अली हुस्न गुरमवनी कव, ३३ िुट, हद उतर आम जलिवरव २१ िुट, दक्षिण में खैरल की जगह २१ िुट, बवहर कव दरर्विव उत्तर की तरफ़ और कोदठयों के टे रेस से पवनी के तनकवले जवने कव रस्तव आम जलिवरव में । ऊपर ज़िक्र की गई जगह के सभी हद और र्वस्ते दो सौ रुपये में , सेठ मंघनमल, र्वशलद सेठ कौडोमल, जवत दहन्द ू लोहवणो, उम्र ३५ सवल, कवम - दक ु वनदवरी, रहनेर्वलव मीरल कव, उसे बे
ददयव है ।’’
मंघनमल आगे ज़्यवदव पढ़ नहीं पवयव। उसकव हृदय भर आयव । उसके आाँखों के आगे रसल ू बख़्श की जगह, उसकी पत्नी और छोटे पत्र ु कव ध त्र णखं तव बख़्श कभी-कभी खेत पर ले जवयव करतव थव।
लव गयव, ज़जसको रसल ू
उसकी दक ु वन के सवमने पहुाँ ते से गि ु रते ही र्ह अपनी तोतली िब ु वन में कहतव - ‘‘भर्तवर, मझ ु े अपनव रर्वहव न बनवओगे ? मैं तम् ु हवरी गवयभैंस
रर्वऊाँगव’’ और िबवन से हुंकवर करते हुए ख़यवली बैल को आगे बढ़वतव, किर ख़द ु भी दौडतव हुआ लव जवतव । खेत से अनवज के ढे र उठर्वते र्क़्त मंघनमल भी िवन कव कुछ दहस्सव तनकवलकर रसूल बख़्श को दे कर कहते - ‘‘ये अपने रमिवन कव है ।’’
इन बवतों की यवद तविव होते ही उसके होठों पर मुस्कवन आ गई। पवककस्तवन होने से
तेरह- ौदह महीने पहले, एक ददन सुबह के पहले पहर रसूल बख़्श उसके पवस आयव और कहने लगव - ‘‘भर्तवर, बीज
वदहये, नहीं तो खेत सूख जवएगी और मुझ शमस्कीन की नैयव डूब
जवएगी। मेहरबवनी करके बीज के दवने दे दो ।’’
मंघनमल ने शोखी से कहव - ‘‘शमयवाँ दौ सौ रुपये के दरीब पहले से ही तुझपर बवदी हैं ।
अभी तक र्ही नहीं लौटवए हैं। अब और के शलये आए हो। मेरे पवस कोई खैरवत तो नहीं बंट रही है । मुझसे कुछ न पवओगे, जवकर ककसी और से शमलो।’’ ऐसव कहकर मंघनमल
प्पल में पवंर् रखकर
लने लगव तो रसूल बख़्श दरर्विे की
ौखट से उठव, सर कव पटकव उतवरकर उसके पैरों में रखते कहव - ‘‘भर्तवर, इस बवर यह करम करो, किर जैसव कहोगे र्ैसव करूाँगव। मेरे पवस सवमवन नहीं है जो जवकर धगरर्ी रखूाँ । औरत के
गले में भी जो शवदी र्वली सवंकली थी, र्ह उस ददन जसू व्यवपवरी के पवस रख आयव हूाँ । कपडव वदहये थव, नंगे तो नहीं रह सकते ? रोटी-कपडे के शसर्व कहवाँ बसर होतव है !’’ ‘‘अच्छव शमयवाँ, अच्छव अब आए हो तो लौटवऊाँगव नहीं । पर वपतव के समय से खेती बवडी कर रहे हो, हमवरे पवस न आओगे, तो कहवाँ जवओगे ? तुम्हवरव-हमवरव तो स्नेह कव ररश्तव, पर
र्क़्त यक-सव नहीं होतव । आने र्वली पीढ़ी कव क्यव भरोसव, किर क्यों बैठकर कोटा के दरर्विे दे खें । इसशलये पच् वस रुपये अभी लो और डेढ़ सौ पहले र्वले, र्ो हुए दो सौ । दो सौ में अपने घर की जगह शलखकर दे दो !’’ ऐसव कहकर मंघनमल ने
प ु ी सवि ली। रसल ू बख़्श भी सो
में पड गयव ।
‘भर्तवर, ले दे के यही जगह ब ी है , र्ो भी...।’ मंघनमल ने उसे बी
में ही टोकते हुए कहव ‘‘शमयवाँ, र्ह तुमसे कौन छीन रहव है । तुम जैसे उसमें बैठे हो, र्ैसे ही बैठे रहो। जब ख़द ु व तुम्हें दवने दे तो किर से शलखव पढ़ी करके जगह के मवशलक बन जवनव। अभी तो जगह तुम्हवरे ही
हर्वले है , बैठे रहो । मेरव तुमसे िुबवनी जगह लौटवने कव र्वदव है । र्ैसे तो मैं यह भी न लाँ ,ू पर अपनों के बी
रहनव है ? किर यही व्यवपवरी कहें गे कक दे खव सवई मंघन रसूली के... तुम ख़द ु
समझदवर हो और िमवने में उठते-बैठते हो !’’
बस याँू ही जगह कव दस्तवर्ेि शलखव गयव। मंघनमल दस्तवर्ेि दे खकर इन सब बवतों को
यवद कर रहव थव। सो ने लगव- अब रसल ू कहवाँ होगव ? भलव र्ह भी मझ ु े यवद करत होगव यव नहीं ?
एक बवत कव उसे बहुत अफ़सोस थव र्ह यह कक अगर र्ह क्लेम ऑकफ़स में यह दस्तवर्ेि ददखवतव है , और र्वपसी में उसे उस जगह के पैसे शमलते हैं तो किर िरूर पवककस्तवनी सरकवर रसल ू से जगह छीनकर, नीलवम करके पैसे र्सल ू करे गी। और अगर ऐसव हुआ तब रसल ू कहवाँ रहे गव ? मंघनमल अपने मन में सो रहव थव, कक रसूल ने ककतनी मेहनत की और आणख़र तक उसकव सवथ तनभवयव। अंत तक भी जब दस ू रे मुसलमवनों की नीयत में बदलवर् आयव, र्ह
तब भी अपनी ईमवनदवरी पर दवयम रहव । गवंर् कव मुणखयव ध ढ़ गयव, इस ददर कक सबसे कह ददयव कक व्यवपवररयों को कोई भी
ीि लेकर जवने न दे नव, उनपर मोमनों कव हद है । इसके
बवर्जूद रसूल ने रवतोंरवत सवमवन उठर्वकर उसे लवरकवणव पहुाँ व आयव। इतनव ही नहीं, है दरवबवद तक भी र्ह सवथ आयव, गवडी पर बबठवकर किर लौटव थव... बब वरे ने ककरवयव तक नहीं शलयव । ककतनव न मैंने िोर भरव पर र्ह कहतव रहव - ‘‘नव सवईं, नव, सवरी उम्र तो आपकव ददयव खवयव, ये तो हमवरव फ़जा है, कुरवन भी तो यही शशिव दे तव है कक पवस-पडोस र्वलों से भवई वरव तनभवओ ।’’
और मैं उससे उसकी जगह छीन लाँ ू ? इस वर् वर मवत्र से ददल को सदमव पहुाँ व। रसूल बख़्श की यवद आते ही सवथ में शसन्ि की यवद आाँखों में नमी भर गई। आाँसू दतरव-दतरव बहते हुए सवमने रखे दस्तवर्ेि पर धगरकर शसयवही से शलखे उन अिरों को िि ुं लव बनवते रहे ।
शसन्िी कहवनी
और गंगा बहत़ी रही मूल:
सतीश रोहडव
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
रविव आणख़र पवनी से बवहर तनकल आई और घवट की तीसरी सीढ़ी पर बैठ गई। उसके बवलों और कपडों से पवनी बहतव हुआ नी े उतरती सीदढ़यों की िवर में शमलतव जव रहव थव। रविव ने सवमने दे खव, सूरज की पहली ककरणें गंगव के पवनी में णझलशमलव रही थीं, पर सूरज अभी पूरी
तरह से िवदहर नहीं हुआ थव । रविव सूरज की लवली की ओर दे खते हुए अपने ख़यवलों में खो गई । र्ह सुबह कव उजवलव होने के पहले घवट पर पहुाँ ी थी और कुछ पल घवट की अंततम सीढ़ी पर खडे होने के पश् वत ् र्ह नी े पवनी में उतर गई। उसकव इरवदव तो पवनी में और आगे बढ़ने कव थव, पर जब पवनी
उसकी नवक तक पहुाँ व तो र्ह रुक गई, वहते हुए भी आगे न बढ़ पवई । उसने र्हीं पर डुबककयवाँ लेनी शुरू की और लगवतवर लेती रही, जैसे र्ह अंततम डुबकी के सवथ अन्दर ही समव जवए... बवहर न आए । पर जैसे ही उसकी सवंस िूलने लगी, उसकव शसर ख़ुद-ब-ख़द ु पवनी से बवहर तनकल आयव।
द ं घड़डयों के शलये र्ह गदा न तक के पवनी में खडी रही और किर
आदहस्तव-आदहस्तव घवट की तरफ़ बढ़ने लगी। घवट पर पहुाँ कर र्ह बवहर तनकल आई और घवट की दो सीदढ़यों को छोडकर तीसरी पर बैठ गई। िीरे -िीरे अंिेरव कम हुआ जव रहव थव और सवमने सरू ज के आगमन की तैयवररयवाँ निर आ रही थीं । रविव जहवाँ बैठी थी र्हीं बैठी रही । सवमने गंगव की िवर बह रही थी और सवथ उसके बह रही थी रविव की ज़िन्दगी की गंगव,
ज़जसकव एक शसरव उसे स्कूल के सवथ जड ु व हुआ ददखवई दे रहव थव । रविव उस र्क़्त दसर्ीं किव में थी। बोडा की परीिव निदीक आ रही थी, इसशलये र्ह स्कूल टी र के पवस ही सवइन्स और गणणत की ट्यश ू न लेने उसके घर जवती । कुछ ददनों के
पश् वत ् टी र कव एक दोस्त, जो ककसी और स्कूल में पढ़वतव थव, र्हवाँ आने लगव। र्ह वर्ज्ञवन और गणणत के शसर्वय और वर्षयों में उसकी मदद करतव थव। कुछ ददनों के बवद - ‘तझ ु े सभी वर्षयों कव नोट्स बनवकर दें गे, तुम्हें परीिव में आने र्वले सर्वलों के जर्वब पहले ही शलखर्व दें गे।
तुम्हें इतने अच्छे नम्बर शमलेंगे कक तुम ‘मेररट शलस्ट’ में आ पवओगी ।’
बवर-बवर ऐसे र्वक्य सुनने के बवद रविव के शलये और सो ने को कुछ नहीं रहव। किर
र्ही हुआ जो होनव थव । दोनों उस्तवदों ने ककये हुए र्वदों की दीमत रविव से र्सूल करली। रविव ने ट्यूशन पर जवनव छोड ददयव। मवाँ के पूछने पर कहव - ‘अभी परीिव निदीक आ
ही है , मैं ख़द ु पढूाँगी ।’ रविव बोडा की परीिव तो दे आई, पर महीनव पूरव होने के पश् वत ् मवाँ को
इस बवत के नतीजे की भनक पडी । रविव की मवाँ उसे पीछे र्वले एक कमरे में ले गई और दरर्विव अन्दर से बंद ककयव, ज़जसे दे खकर रविव के ददल की िडकन िीमी होने लगी। मवाँ ने उसे बवलों से पकडते हुए िोर दवर वंटव मवरव कक रविव के अन्दर कव रवि बवहर उलटी की तरह आ गयव । मवाँ ने किर दो- वर वंटे और लवतें उसे यूाँ मवरी कक रविव बस प ु वप सहती रही और रोती रही।
अपने ककसी ररश्तेदवर के यहवाँ जवने की कहकर, रविव की मवाँ रविव को लेकर बहुत दरू अपनी एक सहे ली के पवस गई। दस पंद्रह ददन में रविव के शरीर पर लगे पवप के तनशवन शमटर्व ददए और लौट आई । अब रविव घर कव सब कवम करती रहती है , खवती है , सोती है , बततयवती है , पर उसकी
ं लतव, आाँखों की
मक और
ह े रे की रौनक गवयब है । गंगव बहती जव रही है
। कुछ अरसे के बवद रविव की मवाँ कव एक बहुत दरू कव भवंजव गोपवल, उसके घर आकर ठहरव । गोपवल पवस के ही शहर में रहतव है । उसकव अपनी पत्नी के सवथ झगडव हुआ है , जो झगडव करने अपने मैके ली गई है । गोपवल अपने ददल कव हवलव रविव की मवाँ के सवथ करतव है और उसके तलवक लेने की भी बवत बतवतव है । इस तरह गोपवल हमददी बटोरकर अक्सर उनके यहवाँ आकर रहतव और तलवक की बवत किर-किर दोहरवतव । जवने कैसे रविव की मवाँ को गोपवल को पत्नी से तलवक शमलनव अपनी बेटी रविव की मुज़क्त के सवथ जुडव हुआ लगव । इसशलये गोपवल और रविव के बी भी निदीककयवाँ बढ़ने लगी । इस बवत को रविव की मवाँ निर अंदवि करती रही ।
‘मैं उसे तलवक दे ने के बवद तुमसे शवदी करनव ककसी
वहतव हूाँ, अपनव घर-पररर्वर होगव, मेरे पवस
ीि की कमी नहीं है ’ ऐसी बवतें ‘नोट्स और अच्छे नंबरों’ से ज़्यवदव ददलकश थीं किर
र्ही हुआ जो होनव थव। गोपवल कव आनव कम होकर बंद हो गयव और रविव की मवाँ ौकन्नी हुई । दो- वर तमव े मवरे और रविव कव अंदर खवली हो गयव, भीतर तो कुछ नहीं रहव पर पेट! रविव की मवाँ ने सो व शवयद गोपवल कव िमीर अब भी ज़िन्दव हो और र्ह रविव से शवदी करने को
तैयवर हो जवए, इसशलये र्ह तदलीफ़ लेकर उसके घर गई । पहले तो र्ह हिवर आनवकवतनयवाँ करतव रहव, किर बेशमा होकर बोलव - ‘मौसी तुमने तो दतु नयव दे खी है । झूठी थवली लेकर कौन डवइतनंग टे बल पर रखेगव ?’ रविव की मवाँ बबनव कुछ कहे लौट आई । किर ककसी ररश्तेदवर के
पवस जवने के बहवने बेटी को उसी सहे ली के पवस ले गई । इस बवर रविव बहुत रोई, ीखीध ल्लवई - ‘मुझे बच् व वदहए, मैं उसे पवलाँ ूगी ।’ पर सब व्यथा ! मवाँ की मवर ने किर से रविव के शरीर की स्लेट से र्ो तनशवन शमटव ददए और र्ह सवफ़ सुथरी होकर घर पहुाँ ी । अब रविव कव दतु नयव से मोह तनकल गयव। मवाँ के मनव करने के बवर्जूद भी र्ह सफ़ेद कपडे पहनने लगी, बवहों में लोहे के कडे और गले में रुद्रवि की मवलव डवल ली । अब उसकव ज़्यवदव समय पडोस की एक दरबवर में सेर्व करते हुए
गुिवरती ।
दरबवर में र्क़्त-र्क़्त पर सविू सन्त आते रहते, सत्संग करते रहते, उन महवपुरुषों कव
उपदे श सुनते-सुनते रविव भी सत्संग करनव सीख गई। उसकव स्र्र र्ैसे भी बहुत सुरीलव थव, सो उसके गवए भजन सभी के ददलों को छू लेते थे । सन्तों की ग़ैर हवज़िरी में र्ह सत्संग करती और इस तरह र्ह सत्संधगयों की
हे ती बन गई जो अब उसे ‘सखी रविव’ कहकर पुकवरतीं ।
इस दरबवर कव मुख्य आश्रम हररद्र्वर में है और र्ररष्ठ स्र्वमी र्हीं रहते हैं । ददर्वली के
मौदे पर हररद्र्वर में कवफ़ी िम ू -िवम होती है , दहन्दस् ु तवन में जहवाँ कहीं भी उनकी शवखवएाँ हैं,
इस मौदे पर सभी स्र्वमी कव दशान करने आते। इस बवर भी र्ही हुआ, सत्संधगयों ने हररद्र्वर जवने कव प्रबन्ि ककयव और रविव के जवने कव सर्वल ही नहीं उठतव थव क्योंकक एक र्ही तो थी जो सब को जवने के शलए प्रोत्सवदहत र् बंदोबस्त करती रही। हररद्र्वर में प्रिवनव वयों को भी यह संदेश शमलव। आणखर मुदरा र ददन पर सभी सत्संगी
हररद्र्वर आश्रम पहुाँ े । स्टे शन से आश्रम तक और र्हवाँ रहने, खवने-पीने कव प्रबंि बहुत ही अच्छव ककयव गयव थव । आश्रम में उपदे श, ध्यवन, अभ्यवस, स्र्वमी जी कव प्रर् न सभी प्रेम से सुनते और मग्न रहते । पवाँ
ददन गुिर गए इस कवयाक्रम को और आज सखी रविव ने दो ददलसोि भजन गवए
जो कृष्ण के वर्योग में रविव की रूह की बे न ै ी और तडप कव बयवन कर रहे थे । लगव कक
भजन में रविवकृष्ण की व्यवकुलतव जैसे सखी रविव के रूह की बे न ै ी थी । सत्संग पूरव होने के
पश् वत ् एक दरबवर के सेर्क ने रविव को यह संदेश ददयव कक आपको रवत भोजन के बवद स्र्वमी महवरवज के दशान के शलये जवनव है , यह स्र्वमी जी की इच्छव है ! संदेश सुनकर सखी रविव के मन में हल ल म
गई, तरह-तरह के सर्वल ददल में उठने लगे । स्र्वमी महवरवज ने उसे क्यों
बुलवयव है ? यह बवत उसे समझ में नहीं आई ! भोजन के उपरवंत भी उसके मन में कवफ़ी
हल ल थी । र्ह अपने कमरे में गई । रविव के बवल, छलेदवर है और बहुत खब ू सूरत भी । उनकी सुंदरतव छुपवने के शलये र्ह शसर पर एक रे शमी स्कविा बवाँि शलयव करती थी । पतव नहीं कक स्कविा के कवरण उसके बवलों की सुंदरतव कम होती है यव उसके
ह े रे कव आकषाण और
बढ़तव है । आज सुबह से, भजन गवते समय तक भी र्ह स्कविा सर पर बवंिे हुए थी । कमरे में आते ही उसने उसे खोलव और ब्रश से छलेदवर बवलों को सहलवती रही और साँर्वरती रही । ऐसव उसने क्यों ककयव, इसकव पतव ख़द ु उसे नहीं है ! तब तक सब सत्संगी रसोई कर
क ु े थे । दरबवर के बी
र्वलव खवली मैदवन थव । दरबवर
के एकदम पीछे स्र्वमी महवरवज कव घर है । ज़जसे सब ‘स्र्वमी मंददर’ कहते हैं। र्हीं महवरवज जी अकेले रहते हैं । दरबवर के बवजू से मुडकर स्र्वमी मंददर में जवयव जव सकतव है । र्ैसे दरबवर में से भी स्र्वमी मंददर के शलये रवस्तव है , पर र्ह शसफ़ा स्र्वमी जी इस्तेमवल करते हैं और र्ह भी
कभी-कभी। रविव को इस रवस्ते कव पतव थव, इसशलये उसे र्हवाँ पहुाँ ने में कोई ददक्कत नहीं हुई। मंददर कव दरर्विव खल ु व पडव थव, रविव अन्दर पहुाँ ी जहवाँ स्र्वमी महवरवज तख़्त पर पलथी
मवरकर, आाँखें बंद ककये हुए वर्रवजमवन थे । इसके बवर्जूद रविव के अंदर पहुाँ ते ही उन्होंने कहव - ‘आओ दे र्ी, बैठो ।’ रविव ने स्र्वमी महवरवज जी के सवमने िमीन पर बैठने कव रुख़ ककयव तो स्र्वमी महवरवज बोले - ‘नहीं दे र्ी, िमीन पर नहीं, ऊपर कुसकी पर बैठो’ और रविव तख़्ते के सवमने पडी गद्देदवर कुसकी पर बैठ गई । रविव की गदा न झुकी हुई थी पर बवर्जूद इसके उसने यह दे खव कक स्र्वमी जी महवरवज के हवथ में रुद्रवि की मवलव थी जो र्े आदहस्तव-आदहस्तव किरव रहे थे । र्ैसे तो
उनकी आाँखें बंद थीं, पर लगतव थव जैसे र्े बंद आाँखों से सब दे ख रहे थे । कुछ समय के बवद
‘ओम शवंतत’ कहकर उन्होंने आाँखें खोली और हवथ में थवमी मवलव को पवस में रखी एक छोटी-सी रं गीन रे शमी थैली में डवलव । कुछ पल र्े रविव को तनहवरते रहे और किर आर्वि दी - ‘दे र्ी !’
रविव ने सर उठवकर स्र्वमीजी की तरफ़ दे खव, स्र्वमीजी भी तनरं तर रविव की ओर दे खते रहे , किर बोले - ‘दे र्ी, तम् ु हवरे ललवट में ददव्य ज्योतत समवई हुई है । तम् ु हवरी आत्मव परमवत्मव से शमलकर एक होने को व्यवकुल है , पर इसके बी में रुकवर्ट है तम् ु हवरव मन ।’ रविव ने सर्वली आाँखों से महवरवज की तरफ़ दे खव, ज़जसकी उत्सुकतव दे खते स्र्वमी महवरवज ने कहव - ‘दे र्ी, तुम्हवरव मन अभी
ं ल है , जब तक र्ह
ं ल रहे गव, तब तक आत्मव-परमवत्मव कव शमलन न हो पवएगव ।’
रविव सर झुकवकर सुनती रही, किर िीमे स्र्र में बोली - ‘स्र्वमी मन की
दरू होगी ?’ स्र्वमी ने मुस्करवकर कहव - ‘दे र्ी, मन की
ं लतव कैसे
ं लतव कव कवरण र्वसनवएाँ होती हैं, जो
र्वसनवएाँ तप्ृ त नहीं होतीं, र्ो अ त े न मन में घर कर लेती हैं । उसी कवरण मन इसशलये सबसे पहले जरूरी है अतप्ृ त र्वसनवओं को तप्ृ त करनव ।’
ं ल होतव है ।
किर पतव नहीं पडव ककसकी अतप्ृ त र्वसनव तप्ृ त हुई, स्र्वमी जी की यव रविव की ! सुबह के अंिेरे में रविव दरबवर से बवहर तनकलकर घवट की तरि लने लगी । मन में
सो ती रही कक आज गंगव मैयव में आणख़री डुबकी लगवकर हमेशव के शलए खद ु को अपाण कर
दे गी । घवट पर पहुाँ कर रविव ने पवनी में उतरनव शुरू ककयव, यह सो ते हुए कक र्ह तब तक पवनी में उतरती जवएगी, जब तक उसकव समस्त र्जूद पवनी में लीन नहीं हो जवतव । लेककन
जब पवनी उसकी नवक तक पहुाँ व तो खद ु -ब-खद ु उसके पवाँर् रुक गए। अब उसने सो व कक र्ह आणखरी डुबकी लगवकर पवनी में ही बैठ जवएगी, पर ऐसव भी नहीं हो सकव । जैसे ही पवनी उसके माँह ु और नवक में भरने लगव, उसकी सवंस उखडने लगी और उसकव शसर पवनी के ऊपर आ गयव । शवयद गंगव मैयव उसे इस तरह दबूल करने के शलये तैयवर न थी । र्ह मुडी और घवट की ओर
लने लगी । र्हवाँ पहुाँ कर बवहर तनकल आई, और घवट की सीढ़ी पर बैठ गई । रविव के कपडों और बवलों से पवनी बहकर, सीदढ़यों से उतरकर गंगव की िवरव में शमलतव रहव । अब कवफ़ी उजली सुबह हुई थी, घवट पर हुई गीत की आर्वि रविव के कवनों तक पहुाँ ी -
वय की दक ु वन खल ु गई है और होटल से आती
रवम तेरी गंगव मैली हो गई, पववपयों के पवप िोते-िोते.....
और रविव सो ने लगी ‘मेरी जीर्न गंगव ? र्ह तो बस बहती रहती है , र्ह ककसके पवप िोती आ रही है , ककसी और के यव उसके? और सवमने गंगव
प ु वप बहती रही ।
शसन्िी कहवनी
जुलस ू मूल: इज़न्दरव र्वसर्वनी
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
जुलूस आिवदी के ददन ही बवबव कव सुबह सर्ेरे दे हवन्त हुआ, र्ैसे उसके पहले ददन उनकी तबीयत इतनी ख़रवब न थी । ख़रवब क्यव, बबलकुल कुछ भी न थव, पर अ वनक ही बवबव ने आिी रवत को बे न ै ी महसूस की थी । दवदव, तवऊ दोनों ने बबनव समय गाँर्वए उन्हें हॉज़स्पटल में दवणख़ल करव ददयव । तवऊ ने मवरुती इतनी तेि
लवई कक हॉज़स्पटल पहुाँ ने में वर शमनट से ज़्यवदव न लगे । डॉक्टरों ने जवने ककतने प्रयवस ककये, सुइयवाँ लगवईं, पर बवबव को ब वने में हर कोशशश नवकवशमयवब रही।
तवऊ की जवन-पह वन कव वर्स्तवर र्ैसे भी बडव है , दवदव तो है ठं डे घडे की तरह, िप ू में
रखो यव छवाँर् में , पवनी हमेशव ठं डव रहतव। तवऊ ऐसे नहीं ! र्दवलत के कवम में कवफ़ी तनपुण हैं
और रवजनीतत के खेल में भी मवदहर हो रहे हैं । र्ह भी जबसे सरकवरी पवटी में उनकव एक ख़वस मक ु वम बनव है उनकी बहुत लने लगी है । बवबव के दे हवन्त पर मवाँ शवंत ही रही, दवदव की आाँखों के आाँसू थमने कव नवम नहीं ले रहे थे, बवदी तवऊ ने ख़द ु पर िवब्तव रखने की भरपरू कोशशश जवरी रखी ।
ककतनी ग़रु बत में ददन गि ु वरे थे । टूटी हुई प्पल और शसलवई की हुई कमीि पहनकर तवऊ स्कूल जवते थे । तवऊ ज़जतने ही पढ़ने में होशशयवर थे, उतने ही बवत करने में भी रहे । कभी-कभी स्कूल में भी वर्षयों पर बहस में भवगीदवरी शलयव करते थे । इनवम भी जीते थे, इसशलये मवस्टरों कव भी र्ह वप्रय शवधगदा बन गयव थव ।
एक कमरे र्वलव घर थव ज़जसमें सभी रहते थे । घर के बवहर ही एक छोटी कैबबन में बवबव िरूरत की
ीिें रखकर बे ते थे। मवाँ सुबह उठकर कभी
ने, कभी माँग ू तो किर कभी
ौली पकवकर उन्हें थवल में भरकर दे ती, जो दो-तीन घंटों में ही बबक जवते थे। उन्हीं पैसों से र्ह घर की िरूरत की
ीिे लेकर, खवने कव जुगवड करती । ‘लवओ तो खवओ’ र्वलव दहसवब थव, पर
बवबव ने कभी ददल को मवयूस होने नहीं ददयव। र्े दख ु ों को ज़िन्दगी की सुन्दरतव मवनते थे और कहव करते थे कक इन्सवन कभी एक-सी अर्स्थव में नहीं रहतव । यही ज़िन्दगी जो बबतवई उससे र्े कवफ़ी संतुष्ट थे। यही कवरण थव कक आगे
लकर तवऊ की अच्छी कमवई के बवर्जूद भी र्े
इस एक कमरे र्वले पुरवने मकवन को छोडकर नए बडे घर में जवने को तैयवर न थे ।
दख ु के ददन बीत गए, तवऊ सबसे आगे तनकल गए । र्कवलत के िंिे में िन र् शोहरत
दोनों कमवए । अपने शलये पढ़ी-शलखी, नौकरी करती हुई लडकी ढूाँढ़कर उससे ब्यवह कर शलयव ।
अपने बच् ों को अं्रहेजी स्कूल में दवणख़लव ददलवई । घर की व्यर्स्थव सब ठीक ही
ल रही थी ।
अपने बडे घर में एक दहस्सव दवदव और छोटे भवई को ददयव। बवदी एक भवई पुरवने एक कमरे
र्वले घर में ही रहव । तवऊ ने बवबव से कहव थव - ‘‘अब यह कैबबन बन्द करके घर में आरवम करो ।’’ बवबव ने कहव - ‘‘बेटव जब तक ज़जन्दव हूाँ तब तक इस कैबबन से तनभवऊाँगव । मेरे मरने के बवद जैसे वहो र्ैसे कर लेनव ! कमवई के शलये िंिव नहीं करतव हूाँ, बस र्क़्त कट जवतव है । र्ैसे भी बडी उम्र में शरीर से कवम लेनव ही
वदहए, नहीं तो हड्ड़डयवाँ जम जवती है ।’’
तवऊ के मन वहे वर्षय थे दहन्दी और रवजनीतत, रवजनीतत कव उन्हें शौक रहव और अच्छव अभ्यवस भी करते थे । एक बवर आिवद उम्मीदर्वर के तौर
न ु वर् में खडे रहे । सरकवरी पवटी
की तरफ़ से बहुत पैसे दे कर उनकव हवथ ऊपर करर्वयव, बवद में उसी पवटी कव सदस्य बनकर कवम करते रहे । सवमवज़जक कवम, नौकरी लेकर दे नव, छोटे -मोटे झगडों को तनपटवने के शलये मशहूरी भी शमली । हवलवाँकक शरु ु र्वती दौर में उसके दश्ु मन भी बहुत थे । िीरे -िीरे पवनी में ठहरवर् आते गयव और उनके दहमवयती बढ़ते गए ।
बवबव सुबह गुिरे , तवऊ को झंडे की सलवमी के शलये जवनव ही थव, पर उसके बवद एक
दक ु वन कव महूरत भी करनव थव । झंडे की सलवमी के शलये असेम्बली में म्बर आने र्वलव थव । सुबह ही उसने शवस्त्री जी को अपने वपतव के दे हवन्त की ख़बर दी थी । उसने कहव सलवमी कव कवम पूरव करके आपके पवस आऊाँगव । तवऊ को पतव
लव कक ड़डप्टी शमतनस्टर भी अपने गवाँर्
आयव हुआ है । यहवाँ से २५-३० मील के िवसले पर ही र्ह गवंर् थव । तवऊ ने उसे भी फ़ोन के द्र्वरव यह जवनकवरी दी । ड़डप्टी शमतनस्टर ने कहव - ‘मैं भी समय पर पहुाँ जवऊाँगव, किर भी कुछ दे र हो सकती है !’
‘नहीं सवहब ! ऐसे कैसे होगव ! यहवाँ तो बडव जुलूस तनकलेगव, ज़जसकव मवगादशान
आपको ही करनव है ’ तवऊ ने जोर दे ते हुए कहव । र्िीर सवहब कुछ कह नहीं पवए । उन्हें पतव थव कक उस इलवके के र्ोटों पर तवऊ कव बडव कब्िव है । आणख़र आने कव र्क़्त तय हो गयव । तवऊ के
ह े रे पर मुस्कवन थी, खेल को
जीतने जैसी। उसने बवहर आकर हवथ जोडते हुए सबको बतवयव - ‘नवयब मंत्री महोदय ख़द ु आकर इस जुलूस कव मवगादशान करें गे और पूरे दस बजे यहवाँ पहुाँ ें गे, तब तक और भी लोग झंडे की सलवमी से फ़वररग़ हो जवएाँगे । इसशलये आख़री सफ़र कव र्क़्त दस बजे रखते हैं ।’ लोगों में खश ु ी की लहर िैल गई । ज़जनकी तवऊ से नहीं बनती थी उनके
ह े रे उतर गए
। एक ने कहव - ‘बवप की मौत पर मंत्री महोदय आ रहे हैं, अरे लगतव है पगलव गयव है ।’ दस ू रे ने कहव - ‘पवगल नहीं है बस सब र्ोटों कव खेल है ।’ तीसरे ने अक्लमंदी ददखवते हुए कहव ‘भवई ! पवटी कव िोर है । आज अगर उसके घर कव कुत्तव भी मरतव तो नवयब मंत्री आते । ये
नेतव होते ही स्र्वथकी है । इसशलए तो र्ो गिे को भी बवप बनव लेते हैं ।’ दो-तीन लोगों ने उन्हें होठों पर उाँ गली रखने की दहदवयत दी यह कहते हुए कक ‘दीर्वरों को भी कवन होते हैं ।’ तवऊ कव उत्सवह बढ़ गयव । दो-तीन लोग लगर्वकर उन्हें घर के सवमने सफ़व ई करने की दहदवयत दी। र्ीड़डयो-कैसेट तनकलर्वने कव बंदोबस्त ककयव । िोटो्रहविर तो पहले ही आ
क ु व थव
। बतवशे और नवररयल कव ऑडार भेज ददयव । सब उसके कवम में हवथ बाँटव रहे थे । अब तवऊ फ़कत सोफ़व पर बैठ कर फ़ोन कर रहे थे । खवदी कव कुतवा-पवजवमव पहन कर तैयवर हो गए ।
उनकव सवरव ध्यवन बवहर थव कक कब मोटर कव हॉना बजतव है और कब पुशलस कव यतू नट आतव है । इस बी
में ज़िलव के एस.पी. तवलक ु के ड़डप्टी कलेक्टर, शहर के पी. आइ के फ़ोन आ
क ु े थे
। पशु लस की जीप पहुाँ ते ही इदा -धगदा खवकी र्दी र्वले बहुत ख़बरदवरी से यहवाँ-र्हवाँ आाँखे किरव रहे थे । ऐसे मौकों र उनमें कवफ़ी िुतकी आ जवती है , ख़वस करके आजकल, जब नेतवओं के पीछे उनके वर्रे विी दल के आदमी हवथ िोकर पडे रहते हैं । अथकी की परू ी तैयवरी हो
क ु ी थी । अन्दर से औरतों के रोने की आर्वि िोर-िोर से आ
रही थी । जहवाँ-जहवाँ कैमरव किर रहव थव उसी तरफ़ लोगों के
ह े रे भी किर रहे थे... कोई अपनी
नवक सवफ़ कर रहव, कोई अपने आाँसू पोंछने के शलये रूमवल कव इस्तेमवल कर रहव, तो कोई अपनव शसर पीटे जव रहव थव, कुछ तो
ीखने-ध ल्लवने में व्यस्त थे ।
नवयब मंत्री और उनके सवथ शहर के कुछ मुख्य आदमी आए, तो बैठे हुए लोगों में हल ल म गई । तवऊ उन्हें ले आने के शलये आाँखों पर रूमवल रखकर आगे बढ़े । नवयब मंत्री ने अपनी बवहें उसके गले में डवलते हुए उसके कवाँिों को थपथपवनव शुरू ककयव । लोगों ने मंत्री को घेर शलयव । कुछ उसके पवाँर् छूने लगे, कुछ हवथ बवंिे खडे रहे , दवदव
उन्हें हवथ पकडकर अथकी की तरफ़ ले गए । सेक्रेटरी ने मंत्री को लवये हुए िूल ददये जो उन्होंने अथकी पर अपाण करके हवथ जोडे । कैमरव किरतव रहव । ‘मंत्री महोदय की जय, मंत्री महोदय की जय ।’ अथकी को कंिव दे ने के शलये बेइंततहव भीड हो गई थी । आणख़र पहले
वर बेटों ने कंिव ददयव ‘रवम नवम सत्य है , र्वहगुरु संग है !’ आदहस्ते-
आदहस्ते कंिे बदलते रहे । अथकी को एक श्रग ं ृ वरी गई िक में रखव गयव । ककतने ही ठे केदवरों ने अपने िकें लवई थीं, कुछ मोटरें , कुछ स्कूटर लवये थे ।
‘बवबव जी अमर रहे ! मंत्री महोदय की जय बवबव जी की जय, रवम नवम संग है , हरी नवम सत्य है , मंत्री महोदय की जय ! बवबव अमर रहे ।’ बतवशे िूल और शसक्के िेंके जवने लगे । तवऊ मंत्री महोदय के सवथ उसकी कवर में जव बैठे । कैमरे कव फ़ोकस अब उस तरफ़ थव । आगे पुलीस की जीप थी, उसके पीछे मंत्री की कवर और उसके पीछे पुलीस, किर अथकी र्वली िक और बडे आदशमयों की मोटरें और स्कूटर...।
जुलूस कवफ़ी बडव थव । पवाँ
शमनट के पश् वत ् नवयब मंत्री की कवर रुकी और उसने तवऊ
से इजवित ली । तवऊ ने उनकव शुकरवनव मवनव और लौटकर अपनी कवर में बैठ गए। उसके ह े रे पर संतोष की रे खवएाँ िवदहर थीं ।
मंत्री की कवर के सवथ ककतनी मोटरों र् स्कूटरों ने रुख़ बदलव । इसके बवर्जूद भी
शमशवन भूशम तक जुलूस में बहुत आदमी थे । अथकी शमशवन भूशम में पहुाँ बवत ीत कव शसलशसलव जवरी थव ।
गई थी । लोगों की
‘बवबव की आत्मव को यह सब दे खकर ककतनी शवंतत शमलती होगी?’ दस ू रे ने कहव - ‘बवबव अच्छव इन्सवन थव, कोई घमंड नहीं थव ।’
तीसरे ने कहव - ‘कल तक भी उन्होने से कैबबन में बैठकर गोशलयवाँ बे ीं ।’ ककसी ने कहव - ‘कभी-कभी बच् ों को मफ़् ु त में ददन बबतवये, उसको ही ग़रीबों की दद्र होगी ।’
ीिें ददयव करते थे । भवई ज़जसने खद ु ग़रीबी में
एक और ने कहव - ‘तवऊ के ददमवग़ में भी अभी कुछ ग़रू ु र बैठव है ।’
‘आदहस्ते बोलो, आदहस्ते बोलो, पहले तो र्ह भी अपनी ग़रीबी के गुण गवयव करतव थव । भवई किर भी और नेतवओं से बहतर है , ककसी को लूटतव तो नहीं है । ग़रीबों की पीडव तो महसूस करतव है । बवदी है ग़रीबों कव ख़वनदवन।’
‘यह तो अच्छव है कक तवऊ पढ़-शलख गए, अच्छे र्कील बने और तरक़्दी कर ली । और ऊपर से सरकवरी पवटी के नेतव ! र्नवा क्यव मुझ जैसे के पवस मंत्री आते ? यव इतनी भीड सवथ होती ?’
अथकी से आग के शोले तनकलने लगे । लोगों ने िीरे -िीरे पीछे हटते हुए र्वपस लौटनव शुरू कर ददयव थव । कुछ एक की तो अन्दर की आग भी बवहर तनकली - ‘अरे भवई ये तो उनकी म वधगरी करनी है ।’
‘पर बवबव की आत्मव भी क्यव यवद करे गी ।’ ककसी ने व्यंग कसव । तवऊ जब घर लौटे तो उसके
ह े रे पर फ़ख्र र्वली जीत थी । इस इलेक्शन में उसे जीतने
की संभवर्नव थी, किर... ऐसे जुलूसों में उसे भी...!
शसन्िी कहवनी
बबजली कौंध उठी मूल: मवयव रवही
संजय खफ़व होकर ब्रीफ़केस से लै बन्द करने के बवद र्ह हर रोज
की
अनुर्वद: दे र्ी नगरवनी
वबी ढूाँढ़ने की कोशशश करने लगव । सुबह लॉक
वबी संभवल कर ब्रीफ़केस में रखतव थव । मगर सवरे ददन में न
जवने ककतनी बवर र्ह बैग खोलतव, कवग़ि रखतव, तनकवलतव और इसी गडबडी की र्जह से हर शवम उसे
वबी ढूाँढ़नी पडती थी और र्ह मन ही मन बुदबुदवतव - ‘ककतनव उनमें खो गई हो
मवतव, अब तो शमल भी जवओ...।’
उसके हवथ कवग़ि टटोलते करते रहे और र्ह मन ही मन में सो ने लगव - ‘र्ह र्क़्त ककतनव अच्छव थव, जब औरत घर में बैठकर मदा के लौटने कव इन्तिवर करती, आाँखें दर पर बबछवए आने की रवह दे खती। कभी घड़डयवल पर अपनी निर िरे रहती, दस शमनट घर में दे र से पहुाँ ने पर प्यवर से कह उठती - ‘ककतनी दे र कर दी, ऑकफ़स में कवम ज़्यवदव थव क्यव ?’ ‘शमल गई’ उसकी उाँ गशलयों ने कवगिों के ढे र के बी से वबी ढूाँढ तनकवली । लै
खोलकर घर में पवाँर् िरव तो कुकर की सीदटयों ने उसकव स्र्वगत ककयव । नीलू कवम से लौट आई है और घर के कवम में जुट गई है ।
आज कव कल र यही है कक हर सदस्य के पवस अपनी
वबी हो। अगर घर पर कोई है
तो भी उसे समय नहीं कक र्ह दरर्विव खोले और आने र्वले कव हाँ सकर स्र्वगत करे । हवलत यह बनी है कक कौन घर के बवहर है , कौन भीतर, कौन ककस र्क़्त आतव है , ककस र्क़्त जवतव है , कहवाँ जवतव है, कहवाँ से आतव है ककसी को कुछ पतव नहीं रहतव ।
ब्रीफ़केस कैबबतनट पर रखकर र्ह रसोईघर में पवनी पीने गयव।
‘आ गए’- नीलू ने टे बल पर प्लेट, कटोररयवाँ,
म्म
रखते हुए कहव। कफ़्रज से ठं डे पवनी की बोतल तनकवलकर संजय कुसकी पर बैठव । नीलू की ओर दे खते हुए लगव कक र्ह सुबह र्वली सवडी में ही थी, शवयद उसे बदलने कव र्क़्त ही नहीं शमलव होगव । नीलू के सवथ ही खवने में मदद
करने र्वली संगीतव घर में प्रर्ेश करती, जो भवजी कवटकर किर रोदटयवाँ बनवकर रख दे ती और नीलू आते ही रवत की मन वही भवजी कुकर में बनवने रखती । हवाँ, दस ू रे ददन दोपहर के खवने के शलये भी भवजी रवत को ही बनवती। क्योंकक सुबह सवत बजे दोनो पतत-पत्नी घर से रर्वनव हो जवते
हैं। पहले नीलू सुबह पवाँ
बजे उठकर भवजी-रोटी बनवती, तीन दटकफ़न पैक करती, दो बेगवने
पंतछयों के शलये और तीसरव बवबव कव ! ‘अरे नीलू बवबव कहवाँ है ? निर नहीं आ रहे ?’ ‘जवने कहवाँ है !’
‘तुम ककतने बजे घर आई ?’
‘घंटव भर हो गयव है मुझे घर आए ।’ ‘तो किर बवबव गए कहवाँ ?’
‘यह बवत आज की तो नहीं है । रोि तम् ु हवरे आने के दस शमनट पहले आ जवते हैं।’ ‘तन ू े पछ ू व नहीं, कहवाँ जव रहे हैं ?’ ‘नही।’
उसी र्क़्त बवबव घर में दवणख़ल हुए । ‘बवबव बहुत दे र कर दी, कहवाँ गए थे आप ?’
‘दोस्त के पवस’ और बवबव सीिे अपने कमरे में
ले। नीलू ने खवनव टे बल पर रखव तो बवबव भी
हवथ िोकर आए और कुसकी पर बैठ गए। खवनव खवकर नीलू रसोईघर को समेटने में लग गई । घर के कवम के शलये ककतनी भी कवमर्वशलयवाँ रखो, पर अपनव हवथ अपनव होतव है ।
संजय बवबव के सवथ बवहर हॉल में आकर बैठव । रोि की तरह उसने ररमोट हवथ में शलयव, किर न जवने क्यों र्वपस रख ददयव । बवबव ने सर्वली तनगवहों से संजय की ओर दे खव ! ‘बवबव। ’ ‘कहो।‘ ‘आप एक कवम करें गे.... ?’ बवबव
प ु वप बेटे की तरफ़ दे खते रहे ।
‘मैं आपको एक डवयरी दे रहव हूाँ, आप रोि जहवाँ कहीं भी जवएाँ, मेहरबवनी करके उस डवयरी में शलख जवएाँ, और... !’
‘तुम्हवरव ददमवग़ तो ख़रवब नहीं हुआ है ?’ बवबव जोश में आ गए । ‘अब मैं कहीं भी जवऊाँ तो डवयरी में शलखकर जवऊाँ, क्यों ?’ ‘न शसफ़ा डवयरी में शलखें , पर हो सके तो र्हवाँ कव फ़ोन नम्बर भी शलखें ।’ ‘यह लो कर लो बवत। इस उम्र में बैठकर डवयरी शलखूाँ कक कहवाँ जव रहव हूाँ ? ‘और यह भी शलखकर जवइये कक आप कब तक लौटें गे।‘ ‘ये अच्छी बंददश हो गई मेरे शलये। इसकव मतलब यह है कक अब मैं कहीं भी अपनी मरिी से आ-जव नहीं सकतव ? क्यव मैं कोई
ोर हूाँ ?’ ‘बवबव आज आप इतनी दे र से आए। कुछ ददनों से रोि दे र से आ रहे हैं, हमें भी तो पतव होनव वदहये कक आप कहवाँ जवते हैं, ककसके पवस जवते हैं, और कब लौटें गे ?’
‘दोस्त के पवस जवऊाँगव, बवतों में ककतनव र्क़्त लगेगव, कैसे पतव पडे ? और मैं लौटने कव र्क़्त शलखकर जवऊाँ, यवतन दोस्त के पवस बैठूाँ तो यही ध्यवन रहे कक कब लौटनव है ? मुझसे यह सब नहीं होगव ।’
‘पर डवइरी में नोट करने में र्क़्त ही ककतनव लगेगव?’ ‘तुम पवगल तो नहीं हो गए हो। अब मुझपर इतनी पवबंददयवाँ लगवओगे ?’
‘कहवाँ जवतव हूाँ ? ककसके पवस जवतव हूाँ, र्हवाँ कव फ़ोन नम्बर, बैठकर सवरव इततहवस शलख।ूाँ भी खवने के र्क़्त तक तो लौट आतव हूाँ । मैं तम् ु हें और कौन-सी तदलीफ़ दे तव हूाँ ?’
र्ैसे
‘ठीक है , ये सब आपसे नहीं होतव तो एक कवम करें , मेरव कवडा अपने सवथ ले जवएाँ, क्यव यह भी आपसे नहीं होगव ?’ कहते हुए संजय ने उठकर ब्रीफ़केस से एक कवडा तनकवलकर बवबव को ददयव। ‘क्यव मैं पवगल हो गयव हूाँ कक अपने सवथ बेटे कव कवडा शलये किरूं, और अब यह भी तो सन ु ाँू कक यह सब तम ु मझ ु े करने के शलये क्यों कह रहे हो ?’
बवबव को ककसी भी बवत पर रविी न होते दे खकर संजय तैश में आ गयव । र्ैसे भी बवप-
बेटे की रोज की यह ‘त-ू तू, मैं-मैं’ कव तमवशव
लतव रहतव थव। पर आज तो हद हो गई। संजय
ख़द ु पर संयम न रख पवयव और िोर से ध ल्लवकर कहने लगव - ‘आपको अगर कहीं कुछ हो जवए तो कम से कम लवश तो शमलेगी अज़ग्नसंस्कवर करने केशलये !’ ‘क्यव कहव, मेरी लवश? अज़ग्नसंस्कवर!’ बवबव को लगव जैसे िोरदवर बबजली कडककर
गयीं और कवडा हवथ से धगर पडव ।
मक उठी। उसकी आाँखें िटी की िटी रह
शसन्िी कहवनी
ज़जयो और ज़ीने दो
मैंने
-दे व़ी नागराऩी
वय की दस ू री बवर प्यवली भर ली, और उसके खत्म होते ही ग़ली े पर अपने पेट
के बल लेट गई । शसलशसलेर्वर आाँसू थमने कव नवम ही नहीं ले रहे , ककतने तो मैं
वय की
पहली प्यवली के सवथ पी गई थी। इस तन्हवई के आलम में यही सो ती रही कक शवयद सवथ पवनव मेरे दहस्से में न थव यव मैं खद ु को उसके शलये तैयवर ही न कर पवई थी ।
‘ये अपने पवस तनशवनी के तौर पर रख लो कभी यवद की र्वदी से गि ु रो तो इस भवई को िरूर यवद करनव’, छोटे भवई सरु े न के ये शब्द मझ ु े आज भी यवद हैं ।
जब बवबव गि ु र गए तो हम दोनों भवई-बहन अपने-अपने शहरों से हर्वई जहवि से उनके
आणख़री दशान करनव आ पहुाँ ,े पर क्यव हम बवबव को दे ख पवए ? न उन्हें छू पवए? अपने ददा को सहलवते हुए जब हम र्हवाँ पहुाँ े तो दे खने को शमली उनके शरीर की गमा रवख जो शोलों के होम से इक मट्ठ ु ी भर ढे र बनकर रह गई थी । क्यव दे खने की तमन्नव थी और क्यव दे खने को
शमलव । बवबव की उाँ गली से तनकवली ली गई अंगठ ू ी, जो बवद में सरु े न को दी गई, र्ही मोती की
अंगूठी, जुदव होने के पहले सुरेन ने मुझे दी थी। आज उसे दे खकर मुझे भवई की बहुत यवद आई । जवने क्यों लगव कक उडकर भवई के पवस जवऊाँ उसके सीने से लगकर रोऊाँ । बवबव की कोठी की वबबयवाँ भी उसने मुझे दे दी थीं । शससककयवाँ लेकर रोते हुए मुझे अहसवस हुआ कक कोई मेरे पीछे खडव है । ‘अम्मव’, मैंने आर्वज दी।
अम्मव अिेड उम्र की बेर्व थीं, ज़जसकव इस जहवन में अपनव
कोई न थव । कवम की तलवश में एक ददन र्ह मेरी
ौखट पर आई और मैंने उन्हें घर के
अन्दर ले शलयव । आज तक र्ह जी जवन से मेरी णख़दमत करती आ रही हैं, कभी उस के बवहर न जव पवई। इस घर की र्ीरवन
ौखट
वरदीर्वरी में उसने जैसे जवन िाँू क दी, जहवाँ र्ीरवनव
बसतव थव र्हवाँ बहवरों की तविगी ले आई । सुन्दर िूलों को लवकर गुलदवन सजवतीं, भवरी भरकम पदे उतवरकर जवलीदवर पदे
ढ़व दे तीं, जहवाँ से बवहर की पवरदशकी सुन्दरतव भी अन्दर झवाँकने
लगती । कभी बवलों में तेल डवलकर अपनी उाँ गशलयों से मज़स्तष्क को सहलवती, कभी अपनी गोद में सर रखकर बवलों को सहलवती और यही अहसवस मुझे मेरव ब पन लौटव दे तव । व्यंजन बनवकर णखलवने में भी उसकव जर्वब न थव। पवाँ
ददन तो कवम पर जवने की आपविवपी में कुछ
कर न पवती थी, पर शतनर्वर, रवर्र्वर को ख़ब ू पकवती और गमा-गमा पकर्वन सवमने रखकर खवने कव आ्रहह इतने प्यवर से करती कक नकवर न पवती । कभी दवल-पकर्वन, तो कभी बेसन की
भवजी, कभी जर्वरी की रोटी, ऊपर से मक्खन िरव हुआ, तो कभी शीरव-पटवटव-पूरी ! र्ो ख़वसकर उस ददन बनवती ज़जस ददन उमेश आने र्वलव होतव । उसे हर एक की पसंद-नवपसंद कव ख्यवल रहतव थव । ‘कहो उमकी, मैं यहीं तुम्हवरे पीछे खडी हूाँ । दे ख रही हूाँ कक तुम्हवरी एक गमा कप वय बनवकर लवती हूाँ ।’
वय ठं डी हो गई। उठो, मैं
‘अच्छव, पर एक नहीं दो बनव लवओ, मेरे और अपने शलये भी।’
अम्मव रसोई की तरि मड ु ी और मैं अपने ही कहे पर है रवन होती रही, सदव एकवन्त में
अपनी तन्हवइयों को ओढ़कर बैठी रहती हूाँ, गम ु सम ु ! आज तक कभी अपने आप को ककसी के सवथ बवाँटने की कोशशश नहीं की, पर आज...? बीते ददनों की यवदें मेरी सो ों कव दहस्सव बन क ु ी हैं, और उनके सवथ जीनव मेरी कफ़तरत । पर बीते कुछ ददनों से एक घट ु न कव अहसवस मेरे
मन को मथतव रहव । उमेश ने मेरव बहुत समय अपने नवम कर शलयव थव । इसमें कोई शद नहीं कक उसमें मेरी भी वहत शवशमल रही । ऑकफ़स के कवम के बवद लौटकर घर आते ही मैं
शवम के सवत बजने कव इन्तिवर करती । हर शवम र्ह इसी समय मुझे लेने आतव, कभी कवर में तो कभी मोटर बवईक पर और हम दोनों घंटों तक हर्वओं की लय-तवल पर कभी समन्दर के
ककनवरे , कभी रे स्टोरें ट में कॉफ़ी पीते । मुझे लगने लगव कक उमेश मेरे सवथ ख़श ु है , बहुत खश ु और र्ह भी मुझे भवने लगव थव । आज भी उसकव मुस्कुरवतव हसीन ह े रव मेरी आाँखों के आगे
बबन बुलवये आ जवतव है । वर्श्र्वस कहूाँ यव अंिवर्श्र्वस पर उन ददनों मुझे कभी यह िरूरत ही
नहीं महसूस हुई कक मैं उसके बवरे में कुछ ज़्यवदव जवनाँ।ू र्ो कहतव रहतव थव - ‘उमकी तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, शवयद तुम मेरे शलये ही इस ऑकफ़स में आई हो, मैं तुम्हवरव बॉस ही नहीं तुम्हवरव दोस्त भी बनकर रहनव
वहतव हूाँ, उसी दवयरे में ज़जसकी नींर् पर हमने दोस्ती की
शुरुआत की ।’ इस प्रकवर की गुफ़्तगू की ओर मैं ज़्यवदव ध्यवन न दे ते हुए, उसके सवथ की ख़म ु वरी में खो जवयव करती थी।
उमेश की शज़ख़्सयत कव यह पहलू मुझे मुतवशसर ककयव करतव थव कक उसने कभी भी मेरे
सवथ कोई बदसलूकी नहीं की । मेरे कवम को सरवहते हुए मेरी दहम्मत अफ़िवई की । शवमें सवथ गुिवरते हुए जो हसीन यवदें बीते पलों की िरोहर आज मेरी अपनी है । किर भी जवने क्यों आज मेरे ददल में उमेश के शलये कोई भवर् नहीं उभरतव । उससे नफ़रत कर पवऊाँ यह तो मुमककन ही नहीं । र्ह अच्छव सवफ़ ददल और अच्छी नीयत रखने र्वलव इन्सवन है , ज़जसने आिवदी कव सही
अथा समझव । ‘ज़जयो और जीने दो’ उसके तनजी कदरदवर की पह वन रही और शवयद इसी कवरण मुझे पहले-पहल उसकी निदीकी भवई। उसके सवथ प्रेम कव नवतव जोडव जो अरसे तक दवयम
रहव, पर आज यह भी मेरव फ़ैसलव है कक मैं उसके सवथ की मोहतवज कम और एकवंत की शवइक बनी हुई हूाँ । सवलों तक सवथ रहव पर सुवर्िव के आिवर पर कोई भी ककसी की रुकवर्ट नहीं बनव और न ही ककसी ने वहव कक कोई बंिन उन्हें बवाँिे !
‘‘तुम बवत कव ग़लत मतलब तनकवल रही हो उमकी ! मुझे दवयरे में दैद करने की कोशशश कर रही हो । मैं खद ु आिवदी कव कवयल हूाँ, तुम्हें मैंने पहले भी कहव थव कक हम कभी भी एक दस ू रे की रुकवर्ट नहीं बनेंगे ।’’ एक ददन मैंने उसके सवमने शवदी कव प्रस्तवर् रखव और र्ह तुरंत ‘हवाँ’ न कर सकव।
कवरण जवनने की कोशशश में मैंने क्यव उिेड ददयव पतव नहीं ? पर उमेश की नवरविगी ने हम दोनों को सर्वलों-जर्वबों की कतवर में लवकर खडव कर ददयव । ‘उमकी हम अच्छे दोस्त हैं, और मैं र्वदव करतव हूाँ कक हमेशव ही तम् ु हवरव दोस्त रहूाँगव, इससे ज्यवदव मैं तम ु से कुछ नहीं कह सकतव ।’ यह स
है कक उमेश की मेरे सवथ इस शसलशसले में कभी कोई भी बवत हुई न थी । फ़मा में मल ु वज़िम जैसव और बवहर एक अच्छे दोस्त जैसव व्यर्हवर रहव । र्ह उस ददन से मेरव खैरख़्र्वह रहव, ज़जस ददन मेरव इन्टरव्यू लेकर मझ ु े अपनी सेक्रेटरी की जगह दी । इसे मैं उसकी ख़वशसयत कहूाँ यव सद्गण ु कक र्ह ऑकिस में सबको इज़्ित दे तव और अपने मल ु वज़िमों से इज़्ित और र्फ़वदवरी की उम्मीद भी रखतव । र्ह मुझसे बहुत ख़श ु थव पर इन लक्ष्मण रे खवओं में मैं भी शवशमल थी । ऑकफ़स में र्ह ज़जतनव सोबर और सीररयस रहतव थव, बवहर मेरे सवथ
उतनव ही ख़श ु , बच् ों की तरह मुस्कुरवतव, णखलणखलवतव, गुनगुनवतव हुआ, कभी-कभी मेरे िोर दे ने पर र्ह यह ग़िल गवतव.... ‘सीने में सुलगते हैं अरमवाँ आाँखों में उदवसी छवई है ।’ और उस दौरवन उसकी उदवस आाँखों में नमी तैर आती ।
o दरर्विे पर आहट के सवथ आर्वि आई ‘उठो
वय लवई हूाँ, गमा-गमा पी लो’ कमरे की
बत्ती जलवते हुए अम्मव ने कहव । शवम ढलकर रवत होनव वह रही थी, सवढ़े पवं बजे ऑकिस से आकर गुमगुम-सी खोई रही, अब सवढ़े सवत बजे थे । दो घंटे समय कैसे सो ते हुए गुिर गयव पतव ही न
लव।
‘तुम भी मेरे पवस ही बैठ जवओ
वय लेकर।’
र्ह िमीन पर र्हीं बैठ गई ।
वय की
स् ु की
भरते हुए सो ती रही कक यह तन्हवई भी ककतनी नीरस है जो इन्सवन को यवदों की गहरी र्वदी की अंिेरी गुफ़वओं में ले जवती है । अगर घर में अम्मव न होती तो न जवने और ककतने घंटे इन्हीं सो ों में खोई रहती।
‘अम्मव तुम शवम को इसी तरह मेरे सवथ
वय वपयव करो ।’
‘उमकी, आज उमेश तुझे लेने नहीं आयव?’ घड़डयवल की ओर दे खते हुए अम्मव ने पूछव। ‘नहीं, अब र्ह कभी नहीं आएगव ।’ मैंने भीगी-सी आर्वि में कहव ‘क्यों उमकी क्यव हुआ है ?’ अम्मव ने अपनवइत से अपनव हवथ मेरे घुटनों पर रखते हुए किर सर्वल ककयव।
‘‘यही तो मुझे नहीं मवलूम और न मैं जवननव से मैं ऑकफ़स कव कवम छोड दाँ ग ू ी। सवथ
वहती हूाँ। आज २८ तवरीख़ है , परसों तीस तवरीख़ किर हम यहवाँ नहीं रहें गे, बवबव की कोठी में लेंगे, तम ु मेरे
लोगी न अम्मव ?’’ ऐसव कहते हुए मेरव गलव भर आयव। मैंने अपनी रुलवई को वर्रवम दे ने के शलये वय की प्यवली को होठों तक लवई। पर दख ु ने कुछ यूाँ घेरव कक न वय पी सकी, न आाँसू । प्यवली र्वपस रखते हुए अम्मव कव हवथ अपने हवथ में लेकर म ू ते हुए कहव‘‘अम्मव तू मुझे अकेली छोडकर न जवनव, अब मेरव यहवाँ कोई नहीं है , बवबव भी ले गये, भवई.. !’’ कहकर मैं बच् ों की तरह रोने लगी और उन आाँसओ ु ं के अक्स में मैंने उमेश को किर-किर कहते सन ु व, ‘‘पर मैं तम ु से शवदी नहीं कर सकतव, उमकी मझ ु से बवर-बवर उसकव कवरण न पछ ू ो। हम दोस्त हैं, दोस्त रहें गे, प्लीि समझने की कोशशश करो ।’’
‘‘क्यव समझाँ ू ? तम ु कुछ कहो तो समझाँ ू । अभी तो मझ ु े यही समझ में आ रहव है जैसे मैं
तम् ु हवरे शलये शसफ़ा एक सविन हूाँ शवम कव र्क़्त गि ु वरने कव । ज़जसके सवथ तम ु दो- तीन घंटे मन बहलवते रहते हो...।’’ ‘‘यह गलत है उमकी, न मेरी नीयत में कुछ है, न तुम्हवरी... बस हमवरी समझ अब मेल नहीं खवती।’’ ऐसव कहकर उमेश ने अपनव सर दोनों हवथों के बी
जैसे नो नव
वहव ।
‘पर मुझमें क्यव कमी है कक...?’
मेरी बवत को कवटते हुए उमेश ने मेरव ह े रव अपने हवथों में शलयव और आाँखों में आाँखे डवलते हुए कहव - ‘‘उमकी किर कभी यह लफ़्ज इस्तेमवल न करनव, कमी तुममें नहीं मुझमें है , बस !’’ इतनव कहकर र्ह बच् ों की तरह रोने लगव ।
मैं है रवन और परे शवन उसे दे खती रही, उसके मवसूम
ह े रे को ज़जसको उसके ही आाँसुओं
ने अभी अभी िोयव थव, ककसी गहरे घवत से हल्दी की तरह िदा हुआ ह े रव। दस ू रे ददन ऑकफ़स में उसने मुझसे और मैंने उससे आाँखें रु वईं, बबनव ज़्यवदव बवत ीत के
ददन गुिरव और शवम को घर आई । उमेश के बहुत समझवने के बवर्जूद उसके सवथ बवहर घूमने सैर करने न जव सकी । ददल को कोई तो ोट पहुाँ ी है , कहीं तो दरवर आई है जो ददल जुडने कव नवम ही नहीं लेतव।
‘सर में थोडव गमा तेल डवलती हूाँ रवहत शमलेगी। ’ कहते हुए अम्मव एक तसरी में गरम तेल ले आई । मेरव सर अपने घुटनों पर रखते हुए अपनी उाँ गशलयों के पोरों से मेरे खल ु े बवलों में तेल डवलती रही किर कवफ़ी र्क़्त कंघी से मेरे बवलों को सहलवती रही। मुझे बहुत आरवम शमलव । शवयद तेल कव असर थव यव अम्मव के सवमीप्य कव थव जो मुझे रवहत दे तव रहव ।
मुझे अपनी नौकरी र् उस अिरू े प्यवर को खोने कव ज़्यवदव अफ़सोस न थव ज़जतनव अपने
आप को उस गहरे आघवत से ब वने पर संतोष थव । बवबव के बवरह ददन के बवद जब सुरेन र्वपस जव रहव थव तो कोठी की
वबबयवाँ मुझे दे ते हुए बोलव - ‘उमकी ज़िन्दगी में छोटे -बडे हवदसे दरपेश आएाँगे । कभी तम् ु हें िरूरत पडे तो बवबव की यह कोठी आकर बसवनव, मझ ु े ख़श ु ी होगी ।’
वबी लेते मुझे बहुत है रवनी इस बवत पर हुई कक छोटव होते हुए भी र्ह बडी गहरी बवत कह पवयव । भवर्ष्य के गभा से इन्सवन को क्यव हवशसल होतव है यह आज जवननव मुज़श्कल है । हवथों में र्ही
वबबयों कव छल्लव, सवमने बंिव हुआ सवमवन और नी े टै क्सी लेने गई हुई अम्मव । ‘ज़जयो और जीने दो’ ककतनव सही कहव थव उमेश ने। उसने र्वदई मुझे जीने ददयव पर
शवयद मैं ऐसव न कर पवई। औरत की कफ़तरत ही शवयद ऐसी है : र्ह पूणत ा व
वहती है । ज़जसे
अपनव समझती है उसे बंटव हुआ नहीं दे ख सकती, वहे र्ह प्यवर ही क्यों न हो । उसे पूणरू ा प में पवने के शलये र्ह जीनव तो क्यव मरने तक को तैयवर हो जवती है । मगर एक अपण ू ,ा अिरू ी
ज़िन्दगी को गि ु वरनव ‘जीनव’ तो नहीं ! ‘जीने दो’ तो बहुत दरू की बवत है कौन ककसको जीने दे यह एक अनसल ु झी गत्ु थी है । मैं किर सो
के जवल में उलझ गई। इन्सवन ककतनव मतलबी होतव है , अपनी सवु र्िव से
अिरों कव जवल बन ु कर एक आिवद ज़िंदगी को दैद बख़्शतव है । ‘उमकी
लो, नी े टै क्सी खडी है ।’ सवमवन के पीछे -पीछे मैं भी उसी रवह पर
ली जहवाँ बवबव की
कोठी, उनकव आाँगन मेरी बबखरी जर्वनी को आगोश में लेने के शलये आतुर थव ।
शसन्िी कहवनी
जेल की डायरी मूल: र्ीनव शशरं गी
सुबह-सुबह
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
वय कव प्यवलव अभी लबों तक लवयव ही थव कक मेरी निर अख़बवर में छपी
एक ख़बर पर अटक गई ।
‘जेल में निरबन्द दवततल औरत की आत्महत्यव।’ आज की दौमी अख़बवर में यह ख़बर सुखकी से छपी हुई थी । मेरी सो पररंदों की तरह परर्वि करते मविी के पन्ने पलटने लगी। यह कोई सददयों परु वनी बवत नहीं थी, दौमी अख़बवर
में छपी सनसनी ख़बर के सवथ दो तस्र्ीरें भी प्रकवशशत हुईं थी । एक तरफ़ दो लवशों की तस्र्ीर थी तो दस ू री तरफ़ दवततल औरत की। दे र्ी के रूप में वंडवल, ज़जसने अपनी मवसम ू बेटी और पतत कव बेददी से दत्ल ककयव, ज़जसने अपने ज़जगर के टुकडे को भी नहीं बख़्शव। औरत नहीं डवयन ही थी जो नन्हे मवसम ू बच् ी को खव गई ।
र्ह पढ़ी-शलखी परु कशशश शज़ख़्सयत की मवशलकन थी । कोटा में उसे दे खने के शलए
लोगों के हुजूम इकट्ठे हो जवते थे । वर्शभन्न अख़बवरों में उसकी ज़िन्दगी के अलग-अलग पहलुओं पर कोई न कोई ख़बर छपती रहती थी । इस केस के फ़ैसले कव न शसफ़ा मुझ,े पर और बहुत सवरे लोगों को बे न ै ी से इन्तिवर थव । जब इन्सवफ़ की तरविू में शोख़ हसीनव की खौफ़नवक ददल दहलवने र्वली करतूतों को कवयार्वई द्र्वरव तोलव गयव तो इन्सवफ़ की तरविू कव पलडव सरकवरी र्कीलों और गर्वहों के बयवनों से गुनहगवर औरत के मविी पर अंककत उसकी
दवबबशलयत और गुणों की तुलनव में भवरी सवबबत हुआ। अदवलत ने उस नविनीन को ददल दहलवने र्वली मौत की कडी सिव सुनवई । इन्सवफ़ कव मिबूत हवथ उस तक पहुाँ ,े उसके पहले उसने दवनून के
ह े रे पर िोरदवर
तमव व मवरव । अपनव अन्त लवकर उसने अदवलत के इन्सवफ़ को शशकस्त दी । आत्महत्यव कर ली उसने !! उसे दत्ल के इलिवम में जब घर से धगरफ़्तवर ककयव गयव थव, तो उसने ओर से लगवए इल्िवम को खश ु ी से दबूल ककयव थव । उसके ऊपर
पुशलस की
ल रही कवरा र्वई कव हवल
और दलीलें सुनकर बदन शसहर उठतव थव । एक रवत जब उसकव जीर्नसवथी नींद के आगोश में
सोयव थव, तब इस खब ू सूरत नवधगन ने उस पर हथौडे से र्वर करके, न शसफ़ा उसे बदसूरत बनवयव पर र्वर पर र्वर करके उसके ददमवग़ कव भेजव ही तनकवल ददयव और किर अपनी मवसूम बेटी कव गलव घोंटकर उसे हमेशव के शलये गहरी नींद में सुलव ददयव । ममतव के झूले में लोरी दे कर
सुलवने की बजवय कवल के फ़ौलवदी बवहों में िकेल ददयव । ज़जसने भी दे खव, सुनव उसे कुछ यूाँ शसहरन हुई जैसे बबजली के तवर ने छू शलयव हो । उसने अदवलत के सवमने अपने जम ु ा को गर्ा के सवथ दबूल ककयव,
ह े रे पर मलवल की
जगह ऐसी मुस्कवन थी जैसे फ़तह पवई हो । सिव सुनने के बवद उसने अपनी नविुक ख़ब ू सूरत बवहें िैलवकर मिबूत लोहे की िंजीरों कव स्र्वगत ककयव ।
आस-पवस रहने र्वलों के मुतवबबद, उसकव पतत एक शवनदवर नौजर्वन थव, नशीली तनगवहों
र्वलव, ददवर्र, गठीलव, शमलनसवर और हमददा इन्सवन थव । जहवाँ से गि ु रतव थव, र्हवाँ पर मवयस ू ज़िन्दगी पर बहवर छव जवती थी । मरु झवए
ह े रों पर जर्वनी कव रं ग िवदहर हो जवतव। परर्वने
शम ्अ पर कफ़दव होकर अपनी जवन तनसवर करते हैं, पर इसके मवमले में गंगव उलटी बहती थी।
आलीशवन बंगलव, ऐश-इशरत कव हर सवमवन उसे उपलब्ि हुआ। िन की दे र्ी लक्ष्मी जैसे उस पर मेहरबवन थी । ऐेसे शहिवदे तल ु य जर्वन के कत्ल पर हर ककसी के ददल से घट ु ी हुई ीख़ तनकल रही थी । लबों पर एक आह थी... कौन-सव रवि थव, जो दवततल औरत नहीं सन ु वनव वह रही? कई सर्वल उठे पर उन सर्वलों कव एक भी मुनवशसब जर्वब ककसी को नहीं शमलव।
दवततल औरत के दबूल ककए हुए जुमा के कवरण कोटा की कवयार्वही भी जल्द पूरी हो गई । लोगों और अख़बवरों के शलये यह दत्ल रहस्यमय बनव रहव । उस औरत की न तो कोई ननन्द थी,
न ही सवस, न ससुर । संयुक्त पररर्वर के झंझट से आिवद, अकेली ही ऐशो-आरवम की
ज़िन्दगी बसर कर रही थी । र्ह अब तक एक ही बवत पर अडी रही, ‘ख़न ू मैंने ककयव है ।’
जेल में निरबन्द दवततल औरत के आपघवत की ख़बर के सवथ यह भी जवनकवरी शमली
कक लवश के सवथ एक डवइरी भी शमली है , जो उसने जेल के अधिकवरी को कहकर मंगवर्वई थी । डवइरी के पन्ने जब पलटे गये तो उन पन्नों पर कुछ लफ़्ज और जुमले दजा थे!
खब ू सूरत..., प्यवर की गरमवइश..., र्वदव..., र्फ़व..., मक्कवर उस रवत तुमने मेरी बहुत तवरीफ़ की.. मैं आकवश में आिवद पंछी की तरह उड रही थी जब तुमने कहव मैं परी लग रही हूाँ ।
जन्नत की हूर..., फ़वसले घटने लगे..., सवंसों की गरमी..., जज़्बवत कव सैलवब..., प्यवर के सवगर में तहलकव..., तुमने कहव ख़द ु को अपाण कर दो? आज क्यों ? मैंने तो हर पल..., हर घडी तुम्हवरे नवम कर दी है ....!
यवदगवर लम्हव..., र्ह रवत दयवमत की रवत बनी..., मैं..., र्ह और... एक और ज़जस्म...,
दस ू रव मदा ..., तुम्हवरव दोस्त..., तुमने तनहवई को सवथी बनवयव... और मैंने... ! मेरव र्जूद दहल गयव । सुहवनी
वज़न्दनी रवत..., ज़जसने उस रवत
के ्रहहण को तनगल गई... मेरे शलये
वज़न्दनी को गुनवह की
वदर ओढ़व दी... हर्स
वज़न्दनी रवत..., अंिेरी रवत बनी..., नई सुबह की नई
ककरण मेरे शलये तबवही की सुबह..., मैंने अपनी ज़िन्दगी कव मवतम मनवयव । तुमने कहव तुम मेरे हो... तम ु ... मेरे ददल की िडकन हो...!
पर मेरे ददल की िडकन में एक और ददल की िडकन समव गई है , पल पल मेरे शलये अिवब बन गयव है । तुमने है र्वन जीर् आत्मव को संसवर की रोशनी दे खने दी, मैं तुम दोनो को सवंसों में सजवऊाँगी ।
मेरे शलये हर लम्हव अिवब बन गयव, मेरे खन ू से एक और खन ू कव शमलन..., संभोग...,
एक और ज़जस्म कव र्जूद अिवब सहने के शलये... । ज़िन्दगी...
र्क़्त के सवथ... दौड की होड में लगी है ... उम्र के इस कुरुिेत्र में ... ककयव... ककससे तम ु ने... !
आज एक और भयवनक रवत थी । मेरे आाँखों के सवमने मविी की उस दयवमत र्वली रवत
को ज़िन्दव कर ददयव, जब मैंने तम ु को ककसी अजनबी शख़्स से बवत करते सन ु व।
अजनबी और तम ु ... कल की रवत तम् ु हवरे शलये रं गीन रवत होगी । तम ु ने मझ ु े प्यवर की
िंजीरों में कैद िरूर ककयव थव... पर मेरे िमीर की आर्वि ज़िन्दव थी... तुमने मेरे शलये ज़जस दयवमत र्वली रवत को दवर्त दी थी, उसी की स्यवह
वदर में मैंने तुमको लपेटने कव फ़ैसलव
ककयव । फ़ैसलव आसवन न थव, पर अपनी रूह के सौदे के सवमने तुम्हवरे प्यवर कव पलडव हलकव ही रहव... । तुम्हवरी िन-दौलत के रवि की मुझे जवनकवरी न थी..., आज उस रवि को रवि ही रखनव
वहती हूाँ..., मैंने अपनी रूह को तुम्हवरी जंिीरों से आिवद करके रवहत पवनी नहीं
मैंने जब तुम्हें ख़्र्वबों की दतु नयव में सोयव हुआ दे खव.... मैंने में हमेशव... हमेशव...!
वही...,
वहव कक तुम उन ख्र्वबों की दतु नयव
ठहवकों की गाँज ू ...
तुम्हवरे शलये लक्ष्मी की झन्कवर और रं गीन रवत...
ठहवकों की गाँज ू ... लक्ष्मी की झन्कवर के शब्द प्रततध्र्तनत होकर गाँज ू ने लगे...
र्ह रवत गुिवरनी मेरे शलये मुज़श्कल हो गई... मेरे शलये पल-पल सदी बन गयव... । कल
की रं गीन रवत के दीपक की बवती सरकवने से पहले मैंने र्ो बवती सरकवने की कोशशश की..., तुम्हवरव
मक्कवर
ह े रव बेनदवब हो ह े रव..।
क ु व थव..., तुम्हवरी अमीरी कव रवि..., पुरकशशश शज़ख़्सयत के पीछे
मैंने तेरे ज़जस्म के वपंजरे से तेरी रूह को आिवद कर ददयव । मैं बहुत रोई..., तेरे शलये नहीं, पर उस मवसूम रूह को आिवद करते र्क़्त..., जो मुझे र्क़्त-र्क़्त पर उस दयवमत र्वली गुनवह की कवली रवत कव अहसवस करवती थी..., मविी की र्ह रवत और आज की रवत की तवरीख़ एक ही है ...।
संसवर के इस कुरुिेत्र के ज्र्वर में आज मैंने ज़िन्दगी को शशकस्त दी है ।
उसके
ह े रे पर तविगी और सक ु ू न थव ।
शसन्िी कहवनी
सच् व पवककस्तवनी मूल: हरी पंकज
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
र्ीिव ख़त्म हो रही थी, ककसी भी हवलत में तीन ददनों के भीतर लैगोस पहुाँ नव थव। इसशलये ककसी भी एअरलवइन में सीट हवशसल करने की कोशशश कर रहव थव। आणख़र कीतनयव ऐअरर्ेि में सीट शमली । पहले तो माँह ु कव िवयकव कुछ बबगडव, पर जब फ्लवईट रूट दे खव -
मुंबई, करव ी, नैरोबी, दआ ु लव, कनू, लैगोस... तो आाँखे करव ी पर ठहर गईं । र्ैसे तो मुझे सफ़र में रुक-रुक कर जवनव दतई पसंद नहीं, बोररंग और परे शवनी कव बवइस लगतव है । पर करव ी... बदन में सरसरवहट होने लगी । तन-मन शसमटकर बवरह सवल के बच् े कव हो गयव। छलवंग लगवकर उछलने लगव और हाँस पडव। करव ी और मेरव ब पन, दोनों एक दस ू रे से जड ु े हैं और किर करव ी जवने कव मौदव शमल रहव है और र्ही ब पन कव आलम...। यवदों की कुछ झलककयवाँ...
छुदट्टयों के ददनों में सब ु ह के छः बजे, नंगे पवंर्, तवरी, अब्दल ु , ईसर और दवदर के सवथ
सरवई क्र्वटर स्कूल से
क्कर लगवकर, कोनों से सटकर तनकलते थे। बवतों और ठहवकों के सवथ-
सवथ हमवरव एक ही कवम थव, खजूर के लम्बे झवडों से खजूर, मौसम अनुसवर िल, बेर, कैररयवाँ, जवमुन और सब टोडनव, रे लर्े, ्रहवउं ड तक पहुाँ कर शवह को सलवम करके, भरी हुई झोशलयों के सवथ लौटनव। प्रेअर रोड पर र्ो सेऊ कव मकवन, बवजू में झूनी पुरवनी गली और गशलयों के उस तरफ़
आऊट् रवम रोड... इस तरि बन्दर
रोड... ।
ईसर सुबह आाँख खल ु ते ही पहले वपतव के पवाँर् छूतव, वपतव भज़क्त शसखवतव थव, दौलत ने
मुझे सवइककल
लवनी शसखवई, तो ककशन दलर्वनी ने आिवदी के सं्रहवम में मुझको स्कूल बन्द
करर्वने शसखवए थे। सोढ़व की मशहूर दक ु वन जो बवशेमल की थी, र्हीं ‘संसवर समव वर’ में से ‘टवरिन’ और हून्दरवज दवस की ‘जुगन’ू कॉलम नवमक अख़बवर पढ़नव सीख गयव थव ।
और र्ो दवदर... मकरवनी ? बस जब खजूर यव मेर्व तोडते हुए पकडे जवते, तो र्ह आगे बढ़कर दहशत भरे स्र्र में कहते - ‘अरे ओ, कदे रो दवदव कव नवम सुनव है ? मैं उसकव ही बेटव हूाँ दवदर..!’ और हम मवर से ब
जवते थे ।
वर्क्टोररयव घोडे-गवडी के वपछली तरफ़ दश्ु मन दे खकर ध ल्लव उठतव - ‘गवडीर्वले... पीछे
लवनेर्वले की निर ब वकर
ढ़ जवते थे तो कोई
वबुक...’ बस किर तो बदन पर नीले तनशवन
पड जवते थे। और अब्दल ु उस
ग ु लख़ोर को पकडकर मवरतव थव... होली के ददन हम पवाँ ों के
सवथ और बच् े भी जुड जवते । सफ़ेद पोशवक र्वलों को, रं ग लगवने कव डर दे कर, होलकव मवतव और गवय के घवस के बहवने पैसे ऐंठते । मजवल जो कोई ब
पवए ।
आशूरों के ददन तवबूतों की सकास पहुाँ ने के पहले ही, बवशेमल की होटल के आगे, लकडी के तख़्तों पर शरबत, ने- वर्ल तैयवर रखते। तवबूतों के नी े तीन क्कर लगवकर, दआ ु मवाँगकर, शरबत और
ने- वर्ल बवाँटनव शुरू कर दे ते थे ।
धगली-डंडव, बबलौर, शसगरे ट के खवली पवकेट, मवध स, सीपें , इमली के बीज, हमवरी पाँज ू ी थी ।
ख़ैर छोडो इन बवतों को । करव ी और बेटे ब पन पर दस पन्ने तो क्यव, दस हिवर पन्ने
शलखाँ,ू तो भी ददल नहीं भरतव! हमवरे जहवि ने करव ी के ऊपर एक परू व
क्कर मवरव। मेरी आाँखें
परू ी तरह खल ु ी हुई थी, पर समझ में कुछ नहीं आयव। कल्पनव की, अंदविव लगवयव, िरूर सदर होगी, बन्दर रोड, बन्सा गवडान, हवईकोटा , नेटी- ट े ी, कयवमवडी, मनहोरो होगव, कवफ़ी दरू से ‘मेरी र्ेिर टॉर्र’ के घड़डयवल की एक झलक शमली, र्ो भी एक पल के शलये ! जहवि दस ू रव
क्कर लगवने के पहले ही आकर रन ्-र्े पर उतरव । लवऊड-स्पीकर पर मिरु
िनवनी आर्वि सुनवई दी ‘अभी हम करव ी के डगा रोड हर्वई अड्डे पर उतरे हैं। इस र्क़्त यहवाँ
रवत के बवरह बजकर पैंतीस शमनट हुए हैं । ज़जनको करव ी उतरनव है , र्ो उतर सकते हैं । हमवरे सवथ सफ़र करने के शलये िन्यर्वद... !’ और किर मदवानी आर्वि में ... ‘मैं कैप्टन अली नूर हूाँ, एक अहम सू नव आप सभी के
शलये, कृपयव ध्यवन से सुनें । जहवि यहवाँ एक घंटव रुकेगव, ज़जनको आगे सफ़र करनव है , र्े कृपयव अपनी कुशसायों पर बैठे रहें । यहवाँ मवशाल-लॉ िवरी
है , और दवनून भी बहुत सख़्त है । ककसी को भी जहवि से नी े उतरने की इजवित नहीं है । उम्मीद है आप हमें पूरव सहकवर दें गे।’
हवथ कव सवमवन लेकर यवत्री दरर्विे की तरफ़ बढ़ने लगे। मैं भी उठव पर बबनव सवमवन के
अपनी जन्मभूशम पर पहुाँ ने पर ददल की िडकन अजीब ढं ग से बढ़ गई। मवाँ की गोद से बबछडव बेटव, किर मवाँ की गोद पहुाँ व। भीतर की हल ल और खश ु ी को समेटते हुए, लम्बी सवंस से उनपर दवबू पवने की कोशशश करते हुए और सभी उतरने र्वले यवबत्रयों के पीछे लतव हुआ,
दरर्विे तक आयव । नी े उतरने र्वली सीडी के दोनों तरफ़ छः सवहसी िौजी, तीन इस तरफ़, तीन उस तरफ़ खडे थे । छः मशशन गन्स ! उतरने र्वलों की आणख़र में मैं थव । एक िौजी ने हवथ के इशवरे से पूछव - ‘सवमवन?’
मैंने भी हवथ के इशवरे से कहव - ‘कुछ भी नहीं’ ‘करव ी ?’
‘नहीं लैगोस। ’
दो ख़तरनवक मशशन गन्स मेरी छवती को तनशवनव बनवए हुई थीं । मैंने दोनों हवथ ऊपर करते हुए हं सकर दहन्दस् ु तवनी िुबवन में कहव - ‘यवर, ये मेरे ब पन शहर है , यहीं तो मैं बडव हुआ हूाँ ।’ एक आदमी ने उदा ू में कहव - ‘मेहरबवनी करके अपनी जगह पर जवकर बैठो ।’ उसकी
आर्वि में सभ्यतव और नमकी दे ख, मेरे मन कव हौसलव बढ़व और मैंने कहव - ‘यवर आप लोगों कव क्यव जवतव है ? जहवि यहवाँ एक घंटव रुकेगव । र्ो सवमने लवऊंज है , कैंटीन से एक धगलवस पवनी पीकर आऊाँगव, और क्यव ?’ ‘पवनी आपको इस जहवि पर भी शमल सकतव है ।’ मैंने इज़ल्तजव भरे स्र्र में कहव - ‘पर उस कैंटीन कव पवनी शसन्िु नदी कव जल होगव। मेरी मवाँ की छवती कव दि ू ...!’
अ वनक उदा ू आर्वि से सभ्यतव और नमकी ग़वयब हो गई और मशीन गन्स कव तनवर् भी
बढ़ गयव - र्वपस अपनी जगह पर... ‘अच्छव भवई अच्छव, नवरवि होने की क्यव बवत है !
लव
जवऊाँगव ।’ और कुछ पल सो ते हुए समझौते के स्र्र में कहव - ‘पवनी न सही, प्यवसव ही लव जवऊाँगव, कैंटीन दरू है ... ब पन में जवने ककतनी बवर इस ड्रग रोड पर खवली मवध स की ड़डज़ब्बयवाँ हवशसल करने आयव थव । शसफ़ा एक मेहरबवनी कीज़जये, मुझे इस जहवि की सीडी से नी े उतरकर इस िमीन को छूने दीज़जये !’ ‘मतलब ?’
‘इस िमीन की शमट्टी की मैं पैदवइश हूाँ, इस शमट्टी कव ततलक अपने मवथे पर लगवऊाँगव और मुट्ठी भर शमट्टी अपनी जेब में डवलाँ ग ू व ।’
र्े तुरन्त ही समझ गए कोई तडीपवर शसन्िी-दहन्द ू र्वपस लौटव है । उनकी आाँखे आग
उगलने लगी। अब दो नहीं,
वर गन्स कव रुख बेददी से मेरी ओर हुआ । एक िौजी के इशवरे पर एअर-होस्टे स मुझे बवाँह से खीं कर मेरी सीट तक लवई और कहने लगी - ‘बन्दक ू के सवथ बहस करते हो ?’
मैं हतवश होकर अपनी सी
पर बैठव, मन में उमडती हुई भवर्नवओं को शससककयों में बदलते दे खव और आाँसओ ु ं को रोकने के शलये रूमवल इस्तेमवल ककयव । वर् वर और र्ेदनव को बस में करते हुए कुछ पलों के शलये आाँखें माँद ू ली। जब आाँखें खोली तो मेरी सीट के कुछ ही आगे एक शख़्स जहवि की
कुशसायों की सफ़वई कर रहव थव। मैंने आदहस्तव से पछ ू व - ‘ओए यवर, तम ु तो नयन-नक्श से मझ ु े शसन्िी लगते हो।’
उसने
ौंककर पहले इिर-उिर दे खव और पवस में खडे अफ्रीकन नी्रहो को दे खते ही िुसिुसवती
हुई आर्वि में कहव - ‘ऐं सरतवज, हूाँ तो शसन्िी, पर यहवाँ शसन्िी बवत करने से मेरी नौकरी ली जवएगी । मेहरबवनी करके बबलकुल िीमे बोशलये, यहवाँ शसन्िी बवत करनव मनव है और मैं ग़रीब बच् ों र्वलव हूाँ, मवशलक !’
कुशसायों की सफ़वई के बहवने र्ह मेरे पवस आ गयव - ‘पर भवई, यह तो शसंि है ! ये करव ी, ये
ड्रग रोड, क्यव कर ददयव है हमवरी शसंिडी को ? नी े उतरने ही नहीं दे त!े ’
उसने शशकवयती अंदवि में कहव - ‘हमने क्यव कर ददयव है शसन्ि को ? आप में से ककतने कवयर
मदा शसन्ि से दहन्द भवग गए और हम बवदी शसनधियों शसंधियों को गदा में छोड गए ।’ ‘दीन-िरम की जुनन ू ी कशमकश में हमें जवनव पडव थव !’
‘आप न जवते तो आपकी दौलत यूाँ महवजनों को तो न शमलती !’ ‘पर र्ो तो आपके दीन-िमा के भवई हैं !’
‘ख़ुदव जवने ककस ख़तव की सिव दे कर यह दहर ढवयव हमपर । हमवरव ही बरु व र्क़्त थव जो पवककस्तवन के शलये हवमी भरी । जवने कैसव हवककम है जो सवंस लेनव दभ ू र हो गयव है ।’ दो पल रुककर कहव - ‘मैं तो
अनपढ़ गर्वर हूाँ, पर शसन्ि के घर-घर में यही बवत होती है कक दीन-भवई तो दीन-भवई है , पर हमजब ु वाँ ही हम-शहरी होते हैं और र्ही अपने प्यवरे भी होते हैं । सवरे दहन्दस् ु तवन-पवककस्तवन को आिवदी शमली, पर शसन्ि अभी भी गल ु वम है ख़ववर्ंद ।’
बवत करते हुए र्ह जहवि के आगे और पीछे र्वले दरर्वजों पर भी निर िर रहव थव। उसके अहसवसों में डर घल ु व हुआ दे खकर मैं अपनी कुसकी छोडकर उसके दरीब इस तरह टहलने लगव कक र्ह अपनव कवम भी करतव रहव और हमवरी गफ़् ु तगू में भी कोई बविव न पडी । ‘और आपकव र्ो सईद बवबव जो थव ?’
‘र्ो बब वरव पीर होकर भी रवहें तकतव रहव, आणखर गि ु र गयव !’
मैंने पछ ू व ‘उस पीर पवगवरी के जो पोइलग थे ? उस शेख़ अयवि की दलम में तो तवदत थी ।’
‘मवशलक, इतनी बवतें तो वर्स्तवर से मैं नहीं जवनतव, बवदी यह जवनतव हूाँ कक, अयवि ने जीते जी जब कुछ कहव तो उसे तो कदहये।’
प ु करवयव गयव ।’ और किर इिर-उिर दे खकर कहव - ‘मझ ु े एक बवर गस् ु से में ‘जवट’
‘नहीं बवबव, मस ु लमवन कुल्हवड़डयों से मेरे टुकडे-टुकडे कर दें गे ।’
‘अब उस जन ु न ू से भी तोबव कर ली गई है । ये नए हवककम हमें पवककस्तवनी तो क्यव, पर सच् व
मस ु लमवन होने तक को दबल ू नहीं करते । मवशलक, एक हदीदत बयवाँ करू? मेरे र्वशलद अब आाँखों से दे ख नहीं पवते। एक ददन ककसी अनजवन आर्वि ने कहव - ‘अरे जवट...’ तो वपतवजी ने उन्हें गले से
लगवते कहव - ‘व्यवपवरी, कब दहन्दस् ु तवन से लौटकर र्वपस आए ? मैं जवट, तम ु व्यवपवरी’, ‘व्यवपवरी और
जवट’ लफ़्जों में ककतनव प्यवर भरव हुआ है , दरर्ेशों की इस िरती के बेटे हम शसन्िी प्यवर से नव ते गवते हैं । हम िौजी तो है नहीं, किर बंदक ू ों से क्यव...।‘ अ वनक दो मशशन-गन र्वलों को आते दे खकर र्ह तनवर् में आ गयव और गस् ु से भरी ऊाँ ी
आर्वि में मझ ु े कहने लगव - ‘व्यवपवरी, क्यों ददमवग़ खवते हो ? एक बवर कहव न, जहवि से
नी े उतरने की सख़्त मनवही है ।’ मशीन गन र्वलों में से एक ने कहव - ‘शवबवस, तम ु जैसे ही, सच् े पवककस्तवनी हैं।’
शसन्िी कहवनी
बवरूद मूल: हरी मोटर्वणी
अनुर्वद: दे र्ी नवगरवनी
अहमदवबवद में एक अदबी सेशमनवर के दौरवन मेरी उससे मुलवदवत हुई थी जो आगे लकर दोस्ती में बदल गई। उसे शसन्िी सवदहत्य पढ़ने कव बडव शौक थव, र्ह काँू ज कव लवइफ़
मेम्बर बन गयव। (हरी मोटर्वनी ‘काँू ज’ शसंिी बत्रमवही मैगिीन के सम्पवदक रहे ) सवदहत्य के सवथ संगीत में भी अच्छी रुध
ज़जसे सुनते ही उसे नशव
रही। ठुमरी उसकी मनपसंद रवधगनी थी,
ढ़ जवतव थव - गदा न झूमने लगती और हवथ सुर, लय, तवल पर
थपकी दे ते रहते थे । कवरोबवर बैककंग कव थव । ब्यवज पर पैसे लेने और दे ने के शसलशसले में र्ह अकसर मुम्बई आयव-जवयव करतव थव । जब भी मुम्बई आतव मुझे फ़ोन करतव, होटल में बुलवतव । गुजरवत में शरवब पर पवबंदी थी, मुंबई में ददल खोलकर पीतव और वपलवतव थव । एक ददन अहमदवबवद से फ़ोन ककयव- ‘है लो कवकव ! मेरव एक कवम करोगे?’
उसने मेरव शलखव हुआ शसंि कव सफ़रनवमव पढ़व थव । र्हवाँ सब मुझे कवकव कहकर बुलवते थे, तो यह भी ‘कवकव’ कहकर संबोधित करतव । ‘हवाँ बतवओ, क्यव कवम है ?’ ‘मेरी बवत ध्यवन से सुतनए, सुन रहे हैं न ?’
‘हवाँ, सुन रहव हूाँ’ मैंने कहव । ‘मुंबई में एक नई ठुमरी गवतयकव आई है , बहुत अच्छव गवती है , मैं उसे सुननव लगवएाँ कक र्ह कहवाँ पर गवती है ?’
वहतव हूाँ। पतव
‘नवम तो बतवओ ?’ ‘नवम
म्पव बवई है ।’
‘ म्पव बवई ।’ मैंने अिब िवदहर करते हुए कहव - ‘किर तो र्ह िरूर ककसी कोठे होगी ! तम ु कोठे पर जवओगे ?’
पर गवती
‘कवकव, यह कौन-सी बडी बवत है । मैं तो उसे सन ु ने कहीं भी जव सकतव हूाँ ।’ ‘अच्छव, मैं पतव लगवऊाँगव ।’ दस ू रे ददन उसकव फ़ोन किर आयव । मैंने
म्पव बवई कव पतव लगवयव थव । र्ह ऑपेरव
हवउस के दरीब एक कोठे पर मज ु रव करती है , यह जवनकवरी मैंने उसे दी ।
मैंने कुछ णझझकते हुए कहव - ‘मुझ जैसे सफ़ेदपोश के शलये कोठे पर होगव, तुम अकेले ही ले जवनव !’
लनव ठीक न
र्ह ठहवकव मवरकर हाँस पडव, मैं
प ु रहव ! हाँ सते हुए उसने कहव - ‘कवकव आप भूल रहे हैं कक आप लेखक हैं , और लेखक कभी बूढ़व नहीं होतव। आपने ख़द ु एक बवर दहन्दी के लेखक जैनेन्द्र कुमवर कव ककस्सव सुनवयव थव ज़जसमें उसने कहव थव कक – ‘शरीर बूढ़व हुआ है तो क्यव, ददल तो जर्वन है ! कवकव ददल से आप भी जर्वन है ’ और उसने फ़ोन रख ददयव । शतनर्वर की रवत को हम दोनों
म्पवबवई के कोठे पर गए ।
हल-पहल शुरू हो गई थी ।
हम दोनों एक तरफ़ अपने स्थवन पर बैठ गए । र्वदई में कमवल की ठुमरी गवई। गवते-गवते जो
हरकतें सरु से तरं गे बनकर तनकल रही थीं, उससे बदन में शसहरन-सी होने लगी। ककतने प्रशंसक थे जो उस पर नोटों कव सदकव उतवर रहे थे।
मेरव अहमदवबवदी दोस्त शवंतध त ् बैठव रवधगनी कव आनंद लेतव हुआ झम ू रहव थव । रवत के दस बजे कुछ लोग ले गए, कुछ जवने की तैयवरी में थे, पर हम बैठे रहे । सर्व ग्यवरह बजे म्पवबवई ने हमवरे सवमने आकर सलवम ककयव । हम समझ गए कक र्ह इजवित
वहती है और
सवथ में बख़्शीस की तलबगवर भी है । मेरे दोस्त ने ब्रीफ़केस खोलव, एक शलफ़वफ़व
म्पवबवई की
ओर बढ़वयव जो लेते हुए म्पवबवई ने किर झुककर सलवम ककयव और पलट कर ल दी। हम दोनों भी नी े आए पर मैंने दे खव मेरे दोस्त पर रवधगनी के सुरों कव कव ख़म ु वर छवयव हुआ थव। उसके बवद आदतन यही होतव रहव । र्ह जब भी मुंबई आतव, शवम तक तमवम कवम पूरे करतव और रवत को कोठे पर पहुाँ
जवतव । रवत को ग्यवरह और बवरह के बी
आनंद समेटकर र्ह लौटतव । मुझे घर छोडतव और खद ु होटल
लव जवतव ।
कव शलयव हुआ
दो-ढवई महीने न र्ह आयव, न उसकव फ़ोन। जवने कहवाँ गवयब हो गयव ? मैं भी अपने
कवमों में व्यस्त थव । एक ददन अ वनक आ पहुाँ व, और हम दोनों कोठे पहुाँ े । मेरे दोस्त को दे खकर म्पवबवई की आाँखें ऐसे मक उठीं जैसे सूरज तनकलने पर हर तरफ़ रोशनी छव गई हो। मेरे दोस्त के
ह े रे पर भी ऐसी ही आभव िैलने लगी, जैसे सुबह की तविी सबव के लगने से
मुरझवयव िूल णखल उठतव है ।
रवत को जब इजवित लेनी
वही तो
प ं वबवई ने मुस्करवते पूछव - ‘तबीयत नवसवि है क्यव
?’ ये सर्वल मेरे दोस्त से ककयव गयव और उसने जर्वब दे ते हुए कहव - ‘यूरोप गयव थव।’ ‘आप यूरोप गए थे ?’ उसको शवयद वर्श्र्वस ही नहीं हो रहव थव। ‘बबितनस दिप थी ।’
‘िवदहर है , र्हवाँ आपको हमवरी यवद कहवाँ आई होगी?’ कहते हुए र्ह निवकत के सवथ सवमने आकर बैठी । मेरे दोस्त ने जेब से पसा तनकवलव, मगर उसमें से नोट नहीं, एक फ़ोटो तनकवलव । मैं है रवनी के सवथ उस तस्र्ीर को दे खने लगव, र्ह रं गीन तस्र्ीर फ़ोटो
म्पबवई की थी ।
म्पवबवई को ददखवते हुए कहव - ‘आप हर र्क़्त हमें यवद हैं और पसा में महफ़ूि हैं ।’ यह कहते हुए उसके होठों पर मस् ु कवन रक़्स करने लगी । म्पवबवई यह दे खकर एक तरफ़
तो है रवन हुई पर दस ू री ओर उसे गर्ा महसूस हुआ। अ वनक र्ह उठी, अन्दर गई और एक शलफ़वफ़व लेकर लौटी । शलफ़वफ़े में ददयव हुआ क े मेरे दोस्त की ओर बढ़वयव । र्ह भी है रवन हो गयव और कह उठव - ‘यह तो मेरव ददयव हुआ मुझे दे दो, तो मैं तुम्हें कैश दाँ ।ू ’
क े है । अभी तक कैश नहीं करर्वयव है ? यह
म्पवबवई
क े र्वलव हवथ पीछे लेते हुए मुस्करवकर कह उठी -‘आप मेरी तस्र्ीर अपनी पसा में रख सकते हैं तो क्यव मैं आपकव ददयव हुआ क े अपने पवस संभवल कर नहीं रख सकती ?’
मेरव दोस्त लव-जर्वब हो गयव । शवयद मन में खश ु भी थव । किर
दे खते हुए कहव - ‘फ़ोटो महि फ़ोटो है यवदगवर को शलये, पर यह शमलेंगे !’ म्पवबवई कव
म्पवबवई की तरफ़
क े है ज़जससे तम् ु हें पैसे
ह े रव उतर गयव, उदवस स्र्र में बोली - ‘यह स
है कक हम पैसों के शलये
नव ते-गवते हैं, लेककन हमवरव ददल भी
वहतव है कक हम आपकी दी हुई सौगवतें संभवल कर रखें , जैसे आपने मेरी फ़ोटो रखी है ।’ इतनव कहकर र्ह बबनव जर्वब सुने अन्दर ली गई । हम दोनों भी नी े आए। पर दोस्त के ददल पर उसके पवस महिूि रहने कव फ़ख्र थव,
म्पवबवई के कथन कव बोझ थव, यव उस
क े कव
मैं कह नहीं सकतव !!
ककतने मौसम बदले, गमकी आई, सदी आई, बहवर आई, पतझड आकर लौट गई पर मेरव
दोस्त मुम्बई नहीं आयव । इस बी
मैं हवंग-कवंग कव सफ़र करके लौट आयव, ज़जसकी ररपोटा
मैग़जीन में छपी। उसकव एक पर व इस ररमवका के सवथ लौट आयव कक ‘आदमी मौजूद नहीं।’
मैं है रवन थव कक आणख़र र्ह गयव कहवाँ ? एक सवल से ज़्यवदव बीत गयव । अ वनक र्ह एक ददन आकर िमकव। तवजमहल होटल से फ़ोन ककयव । िौरन आओ।
फ़ोन नम्बर और रूम नम्बर भी
बतवयव । मैं एक घंटे में उसके पवस पहुाँ व। र्ह इन्तिवर कर रहव थव । पहले होटल में अच्छव नवश्तव ककयव, जूस वपयव और किर हवल-अहर्वल ददयव।
यूरोप की अगली दिप में र्ह कुछ नई जवन-पह वन बनवकर आयव थव । इस बवर जब र्ह
गयव तो उन्होंने उसे अमरीकन आमकी के शलये एक कॉन्िै क्ट लेकर ददयव । अमरीकव अिग़तनस्तवन के दहशतगवरों पर हर्वई हमले कर रहव थव, और उन्हें ज़जन
ीिों की िरूरत थीं
र्ह मेरव यह दोस्त उन्हें सप्लवई करतव रहव। उस कॉन्िै क्ट में उसने लवखों डॉलर कमवए । जंग बन्द हुई तो कॉन्िै क्ट भी पूरव हुआ। र्ह भवरत लौट आयव । पैसव बडव बलर्वन है । पहले र्ह मुम्बई आतव तो सस्ते होटल में ठहरतव, अब उस के
पवस डॉलर है , र्ह तवजमहल में आकर ठहरव है । होटल ने एअरकंडीशन कवर कव भी इन्तिवम ककयव हुआ थव । मेरे दोस्त कव पहनवर्व भी बहुत दीमती थव । उस रवत र्ह मुझे कवर में म्पवबवई के कोठे पर ले गयव। लेककन पंछी उड गयव थव,
वपंजरव खवली थव । दोस्त को गहरव सदमव पहुाँ व खवली-खवली तनगवहों से र्ह मेरी तरफ़ दे खने
लगव ऐसे जैसे समुद्र की बी
के शलये प्रयवस कर रहव हो ।
भंर्र में उसकी नौकव टूट गई हो और र्ह उससे ब कर तनकलने
मैंने उसे ददलदवरी दे ते हुए कहव – ‘मैं पतव लगवतव हूाँ कक र्ह कहवाँ गई है । र्ह भी आाँखों में उम्मीद शलये मुझे दे खतव रहव और मुझे लगव कक सोने कव वपंजरव भी अमूल्य है अगर उसमें से जीतव जवगतव पररन्दव उड जवए। मैंने थोडे पैसे ख़ ा करके
म्पवबवई कव पतव लगर्वयव। हमवरी
तलवश की मंज़िल एक ऐसे मोहल्ले में थी जहवाँ कोई भी भलव आदमी जवने से कतरवतव ! र्ह र्ैश्यव-गवह थव, रे ड लवइट एररयव ! कवर को रोड पर पवका करके हम दोनों
म्पवबवई को ढूाँढ़ते-ढूाँढते एक संकरी गली में
दवणख़ल हुए । मैं उस रवस्ते से कई बवर गि ु रव हूाँ । मेरे सवथी लक्ष्मण की प्रेस में जवने के शलये घर के पवस से बस नं. ६५ और ६९ से सफ़र के बवद इसी रवस्ते से जवनव पडतव थव। मेर दोस्त मवयस ू होतव रहव । कहवाँ अमरीकव कव ऐशो आरवम और कहवाँ मम् ु बई की यह
गंदी गली - रे ड लवइट एररयव ! हम
म्पवबवई की खोली पर पहुाँ े जहवाँ र्ह दरर्विे के पवस रखी कुसकी पर बैठी थी ।
गहरे मेक-अप के बवर्जूद र्ह कोई खवस सुंदर नहीं लग रही थी । हमें दे खकर उठ खडी हुई और मुस्करवई । मेरे दोस्त की हवलत सूखे पत्ते की तरह-तनजकीर् !
कक एक ददन आप मुझे खोज लें गे ।’ हम दोनों अब भी
म्पव ने ही कहव - ‘मुझे ख़वततरी थी
प ु थे । म्पव ने इशवरे से कहव - ‘आओ, अन्दर आओ ।’ र्ह ख़द ु
थोडव भीतर होकर खडी रही । हम जैसे-तैसे अन्दर दवणख़ल हुए । मैंने दे खव कक और खोशलयों में बैठी, खडी, मोहन कल्पनव (एक हस्तविर शसंिी लेखक कव नवम) की निर में , आिे घंटे की प्रेतवत्मवएाँ हमको दे खकर मुस्करवने लगीं । हमें मवलदवर रईस समझकर शवयद र्ो ‘कैसे ढूाँढ़ शलयव ?’
म्पव के नसीब पर रश्क कर रही थीं ।
म्पव ने पलंग पर बबछी
नहीं कहव ।
वदर की सलर्टें ठीक करते हुए पूछव। हमने कुछ
‘ठहरो एक कुसकी पडोस की खोली से ले आती हूाँ ।’ ‘नहीं हम यहवाँ ठीक है ।’ मेरे दोस्त ने जैसे-तैसे माँह ु खोलव । ‘पुरवनी कोठी पर जवकर ख़बर लगी होगी।’
‘हवाँ ! ककसी तरह आपकव पतव लगवयव।’ मैंने उसे बतवयव । ‘बैदठए तो मैं आपको बतवऊाँ कक मैं यहवाँ कैसे पहुाँ ी? ’ हमवरे मन की भवर्नव भी यही थी कक पतव तो लगे कक र्ह ककन हवलवत में यहवाँ पहुाँ ी है । उसने ख़द ु ही अपने बवरे में बतवयव ।
‘ज़िन्दगी बडी बेरहम है । ’
म्पव ने हमें पलंग पर बबठवयव और ख़द ु हमवरे सवमने कुसकी पर बैठ
गई। मैंने सो व यह ‘ज़िन्दगी’ लफ्ि भी अजीब है । कभी बेरहम, तो कभी मेहरबवन! कभी कडर्ी जैसे िहर तो कभी शहद जैसी मीठी ।
म्पव की बवतों से यही सच् वई सवमने आई ।
र्ह कहती रही: ‘गवती बजवती रही, आप जैसे दद्रदवन आए गए, ज़िन्दगी से कोई शशकवयत न रही ।
एक ददन नगर सेर्क आयव, मेरे सवथ रवत गुिवरने की ख़्र्वदहश िवदहर की । मैंने उससे
कहव ‘मैं र्ेश्यव नहीं, गवतयकव हूाँ।’ उसने हाँसते हुए कहव - ‘एक ही बवत है ।’
मैंने कहव ‘एक बवत नहीं है , तम ु ज़जस्मफ़रोश हो, मैं रवग गवकर बख़्शीश लेती हूाँ !’ नवरवि होकर तेर्र बदलकर बोलव - ‘रविी खश ु ी नहीं मवनोगी तो िबरदस्ती करूाँगव !’ इतनव कहकर र्ह
प ु हो गई, हमवरे ददलों में कहीं बवरूद सल ु गने लगव।
‘एक रवत कोठी पर रे ड करर्वकर, िबरदस्ती मझ ु े अपने बंगले पर उठर्वकर ले गयव। मैंने उसे
बहुत समझवयव, उसके सवमने बहुत धगडधगडवई कक मैं एक कलवकवर हूाँ, गवती हूाँ, आरविनव करती हूाँ’, पर र्ह क्रूरतव से हाँसने लगव जैसे मेरी णखल्ली उडव रहव हो । उसी रवत, र्हशी दररंदे ने मुझे र्ेश्यव बनवकर छोडव।
जैसे बवरूद िटव, बडव िमवकव हुआ, हमवरव ददल भी जैसे पुिवा-पुिवा होकर बबखरव। जब िमवकव हुआ, िआ ु ाँ छटव तब हमने सुनव म्पवबवई कह रही थी - ‘उस ददन के बवद मैं ठुमरी गवतयकव नहीं रही, ज़जस्मिरोश रं डी हो गई हूाँ !’
उस ददन के पश् वत ् मैंने अपने अहमदवबवदी दोस्त को किर कभी नहीं दे खव ।
लेखक परर य:नामः
दे र्ी नवगरवनी, जन्मः ११ मई, १९४१, करव ी,(तब भवरत),
नवम; हरी लवलर्वनी ,
वपतव कव नवम: ककशशन ंद लवलर्वनी,
पतत कव नवम: भोजरवज नवगरवनी, मवाँ कव सिक्ाः स्नवतक, मातभ ृ ाषाः शसंिी, सम्प्रततः
शशक्षिकव, न्यू जसकी.यू.एस.ए(अब ररटवयडा), भवषवज्ञवन: दहन्दी, शसन्िी, उदा ,ू मरवठी, अाँ्रहेजी, तेलुगू रकासित कृततयवाँ:
1. ग़म में भ़ीग़ी खि ु ़ी- दहंदी ग़िल-सं्रहह (२००४) 2. चराग़े -ददल - दहंदी ग़िल-सं्रहह( (२००७)
3. उडुर-र्खखअरा- शसंिी-भजनवर्ली ( (२००७)
4. आस की िम ्अ- शसंिी गिल-सं्रहह,(२००८)
5. ददल से ददल तक- दहंदी ग़िल-सं्रहह( (२००८), 6. ससंध ज़ी आाँऊ ञाई आहयााँ-शसंिी-कवव्य सं्रहह (२००९) 7. द जनी - अं्रहेजी कवव्य-सं्रहह (२००९) 8. लौ ददे -ददल की- दहंदी ग़िल-सं्रहह (२०१०) 9. भजन-मदहमा- दहन्दी-भजन (२०१२ ) 10. ग़िल -शसन्िी ग़िल-सं्रहह (२०१२)
11. और मैं बड़ी हो गय़ी- (शसन्िी से दहन्दी में अनर् ु वद-कहवनी सं्रहह(2012), 12. बाररि की दआ ु - (दहन्दी से शसंिी में अनुर्वद-कहवनी सं्रहह (2012)
13. माई-बार् और कहातनयााँ (शसंिी से दहन्दी अनदु दत-कहवतनयवं (प्रेस में .. )
14. अर्ऩी धरत़ी और कहातनया’ (शसंिी में अनूददत कहवनी सं्रहह (प्रेस में -) रसारण: पत्र-पबत्रकवओं में गीत, गिल, कहवतनयों कव प्रकवशन, कवर्-सम्मेलन, मश ु वयरों में भवग
लेने के शसर्व नेट पर भी अशभरुध .इसके अततररक्त कई कहवतनयवाँ, गिलें, गीत आदद रवष्िीय र् अंतरवष्िीय पबत्रकवओं में छपती रहती है . य.ू एस.ए. से डव॰ अंजनव साँधिर द्र्वरव साँपवददत "प्रर्वशसनी के बोल" एर्ं केनेडव से प्रकवशशत त्रैमवशसक पबत्रकव "दहन्दी
ेतनव" , वर्श्र्व, तवथव य.ू के
की पर् ु वाई में प्रकवशशत. और अनेक संपवददत संकलनों में र नवएाँ संकशलत॥आकवशर्वणी मब ु ई से दहंदी र् शसंिी कवव्य र् ग़िल कव पवठ समय समय पर होतव रहतव है . भवरत तथव य.ू एस की
वर्शभन्न सवदहज़त्यक संस्थवओं से जुडी हैं । राष्ट्रीय एवं अंतरापष्ट्रीय संस्थाओं ( NJ, NY, Oslo)
द्वारा तनमंबत्रत एवं सम्प्मातनत। कवया: शसंिी भवषव की कहवतनयवाँ कव अनर् ु वद दहन्दी में, और अन्य भवषवओं की र नवओं कव शसन्िी में अनर् ु वद।
राष्ट्रीय ससंध़ी भाषा ववकास र्ररषद की ओर से र्षा २००९ में परु ु स्कवर समवरोह, ददल्ली में सन्मवतनत
भारत़ीय-नावेज़ीय सूचना एवं सांस्कृततक फोरम (Indo-Norwegian Informaion and Cultural िोरम) के मं
पर स्थवनीय मेयर थूर स्तवइन वर्ंगेर और भवरतीय दत ू वर्वस के सध र् बी के श्रीरवम जी, एर्ं इस
संस्थव के अध्यि सरु े श ंद्र
न्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' जी के हवथों दहंदी सवदहत्य सेर्व के शलए ओस्लो में
सन्मवतनत (मई १७, २०११) सिवाऩी एवं सबरस मंच की ओर से गोष्टी में , सन्मवन (९ अकटूबर २०११)
ससंधु सादहत्य धारा एवं lion’s club की ओर से ससंध़ी सेवा के सलए सन्मवतनत.( Dec 3, 2011) ‘तुलस़ी सन्मान” तुलसी सवदहत्य अकवदे मी के आयोज़जत सम्मेलन में (17 ददसम्प्बर,2011)
महाराष्ट्र राज्य दहन्दी सादहत्य अकादम़ी , SIES दहन्दी ववभाग, एवं कथा यू॰ के London के संयुक्त तत्वधन में आयोज़जत दो-ददवस़ीय अंतराष्ट्रीय र्ररसंवाद में भाग़ीदारी र्र “रवास़ी दहन्दी सेव़ी सन्मान” स्मारक से सम्प्मातनत व
(27-28-फरवरी 2012)
कलम तो मवत्र इक जररयव है , अपने अाँदर की भवर्नवओं को मन की गहरवइयों से सतह पर लवने कव. इसे मैं रब की दे न मवनती हूाँ, शवयद इसशलये जब हमवरे पवस कोई नहीं होतव है तो यह सहवरव शलखने कव एक सवथी बनकर रहनुमवाँ बन जवतव है . शलखने कव प्रयवस शुरुर्वती दौर मेरी मवत्रभवषव शसंिी में हुआ। दो ग़िल सं्रहह शसंिी में आए, कई आलेख, और समीिवएं शलखीं, किर कदम खुद-ब खुद रवष्िभवषव की ओर मुड गए, शवयद वर्दे श (न्यू जसकी) में रहते हुए सवदहत्य की िवरव दहन्दी में प्रर्वदहत हुई और दे श की जडों से जुडी यवदें कवव्य-रूप में कलम के प्रयवसों से कवगि पर उतरने लगी। प्रर्वस में दहन्दी अकवदे मी द्र्वरव कई सं्रहह तनकले ज़जनमें शवशमल रही। प्रर्वसी पररर्ेश पर आिवररत लेख , कहवतनयवाँ, और समीिवत्मक आलेख शलखनव एक प्रर्तकी बन गयी। ग़िल वर्िव मेरी वप्रय सहे ली है , बस एक शेर में अपने मनोभवर् को अशभव्यक्त करने कव सविन और मवध्यम। शशक्षिकव होने कव सही मतलब अब समझ पव रही हूाँ, शसखवते हुए सीखने की संभवर्नव कव खल ु व आकवश सवमने होतव है , ज़िंदगी हर ददन एक नयव बवब मेरे सवमने खोलती है , अन वहे ज़जसे पढ़नव और जीनव होतव है , यही ज़िंदगी है , एक हदीदत, एक ख्र्वब!! यह ज़िंदग़ी लग़ी है , हक़ीक़त, कभ़ी तो ख्वाब वह सामने मेरे खुली, जैसे कोई ककताब दे र्ी नवगरवनी संर्कप: 9-D Corner View Society, 15/33 Road, Bandra, Mumbai 4000५0, 480W, Surf Street, Elmhurst, IL 60126 dnangrani@gmail.com, URL://charagedil.wordpress.com https://sindhacademy.wordpress.com
वहे -