Bhartiya mahilayen

Page 1

1

भारतीय महिलाएं एवं आरण्य संस्कृतत तथा

अन्य आलेख.

,

गोवर्धन यादव

अनुक्रम. १. जनकवव बालकवव बैरागीजी २. दादा कैलाशचन्र पंत-एक लाईट िाउस की तरि िै ३. भारत के यव ु ा प्रर्ान मंत्री श्री राजीव गांर्ी ४ एक आइडिया-जो आपकी जजन्दगी बदल दे ५.ववज्ञान और र्मध ६ भारतीय महिलाएं और आरण्य संस्कृतत ७..प्रसंगवश=मदर टे रेसा. ८.नत्ृ य जब मिारास में बदल जाए.

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


2 ९.राजर्मध और राजा के कत्तधव्य १०हिमालय और गंगा ११.कथा सम्राट मश ंु ी प्रेमचंद १२मानव की मल ू प्रवजृ त्त उत्सवर्मी िै १३.प्रथम अंतररक्ष यरू ी गगाररन १४.लोकगीत-एक मीमांसा १५संस्कृत काव्यर्ारा में प्रकृतत की आहदम सव ु ास

********************

जनकवव श्री बालकवव बैरागी. 4..

** आलोचना की परवाि मत करो. संसार मे आलोचकों के स्मारक निीं

बनते. जो तना अपनी कोंपल का स्वागत निीं करता, वि ठूंठ िो जाता िै ** --------बालकवव बैरागी ---------

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


3 एक ऎसा मस्तमौला कवव, जो बिी से बिी बात को, अपनी कववता में सिज और सरल ठं ग से कि जाता िो, जजसे व्यक्त करने में िम अपने आपको असमथध पाते िैं, जजसकी कववता में भारतीय ग्राम्य संस्कृतत की सोंर्ी-सोंर्ी गंर् रची-बसी िो, जो लोगों के जब ु ान पर चढकर बोलती िो, एक ऐसा िाजजर जवाबी कवव, जजसने गली-कूचों से चलते िुए, दे श की सवोच्च संस्था,जजसे िम संसद के नाम से जानते िै ,सफ़र तय ककया िो, जजसे घमंि छू तक निीं गया िो., जो खास िोते िुए भी आम िो, ऎसे जनकवव के ललए अततररक्त पररचय की दरकार निीं िोती. ऎसी िी एक अजीम सजससयत का नाम िै बालकवव बैरागी. दस फ़रवरी सन उन्नीस सौ इकतीस में , मनासा जजले की तिसील के रामपरु में जन्में दादा बालकवव, अपने

बचपन से िी कववता रचते और उसे पूरी तनमयता के साथ गाते थे. ववक्रम

ववश्वववद्यालय से हिन्दी में आपने एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ध की. साहित्य में जजतनी पकि आपकी रिी,राजनीतत में भी आप िमेशा अव्वल िी रिे. वे मध्यप्रदे श सरकार में मंत्री भी रिे . दौरे में जिां भी जाते, अपने साहित्यकार

लमत्रों से लमलते और कफ़र जमकर काव्य-रस की बरसात िोती रिती राजनीतत

में उन्िें जजतनी शोिरत लमली,मंचों पर भी उन्िें उतना िी प्यार और सम्मान प्राप्त िुआ. ककसी शभ ु चचंतक ने

इन्िीं बातों को लेकर उनसे प्रश्न ककया तो उन्िोंने जवाब में किा-“साहित्य

मेरा र्मध िै , और राजनीतत मेरा कमध”. गिनता ललए िुए उनके इन्िीं शब्दों से, उनके व्यजक्तत्व कॊ नापा जा सकता िै . मझ ु े कई बार दादा को मंचॊं पर सन ु ने का मौका लमला िै . उस समय पर िोने वाले कववसम्मेलनॊं की आन-बान-शान अलग िी िोती थी.मंचों पर आलदजे के कववगर् िोते थे. श्रोताओं को साहित्य से भरपूर रचनाएं सन ु ने को लमला करती थी. कवव-सम्मेलन तो अब भी िो रिे िैं,लेककन उनमें केवल चुटकुले िी सन ु ने को लमलते िै . जब तक रचनाओं में साहित्य का पुट निीं िोगा,कोई भी रचना सरस कैसे िो सकती िै ?.ग्राह्य कैसे िो सकती िै ? आपके अब तक चार-पांच काव्य-संग्रि प्रकालशत िो चक ु े िैं,-गौरव गीत, दरस दीवानी,दोदक ु ा, भावी रक्षक दे श के आहद-आहद. “ मैं अपनी गंर् निीं बेचूंगा” काफ़ी लोकवप्रय कववता िै , इस कववता से सिज िी उनके आत्मगौरव को, दे श के प्रतत उनके समपधर् को दे खा-समझा जा सकता िै . दादा ने मंचों पर गीत िी निीं पढे , अवपतु कफ़ल्मों के ललए भी गीत ललखे.” रे शमा और शेरा” का वि गीत ,कोई भल ु ाए कैसे भल ू सकता िै. ” तू चन्दा....मैं चांदनी- तू तरुवर ..मैं शाख रे ...तू बादल ....मैं बबजरु ी...तू पंछी.... मैं पांख रे .......

लताजी की खनकदार आवाज, जयदे व का संगीत और दादा के

बोल. तीनॊं लमलकर एक ऎसा कोलाज रचते िैं,जजसमे श्रोता बंर्ा चला जाता िै . ..गीत सन ु ते िी लगता िै जैसे आपके कानों में ककसी ने लमश्री घोल कर िाल दी िो. इस गीत में लमठास के साथ-साथ, एक तिफ़

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


4 िै ,,,एक ददध

िै . गीत के बोल िी कुछ ऎसे िैं,जो आपको अन्य लोक में ले जाते िैं..वसन्त दे साई की

संगीत-रचना, हदलराज कौर की सरु ीली आवाज मे कफ़ल्म” रानी और लालपरी का गीत “ अम्मी को चम् ु मी....पप्पा को प्यार” वाला गीत िो, अथवा संगीतकार (आशा भॊंसले के सप ु त्र ु ) िे मन्त भॊंसले की संगीत रचना में कफ़ल्म “जाद-ू टोना” का गीत िो, अथवा दो बद ूं पानी, अनकिी, वीर छत्रसाल, अच्छा बुरा के गीत िो, दादा की शब्दरचना आपको मंत्र मग्ु र् कर दे ने में सक्षम िै . सन १९८४ में “अनकिी”कफ़ल्म का गाना---“मझ ु को भी रार्ा बना ले नंदलाल,”सन ु ते िी बनता िै . दादा को जब भी सन ु ा, मंचों पर सन ु ा. कभी ऎसा मौका निीं आया,जब उनसे प्रत्यक्ष मल ु ाकात अथवा बातचीत िुई िो. जल ु ाई 2008 के अंत में मेरा दस ू रा किानी संग्रि “तीस बरस घाटी” वैभव प्रकाशन रायपरु से प्रकालशत िोकर आया. राष्ट्रभाषा प्रचार सलमतत भोपाल में प्रततवषध आयोजजत िोने वाली पावस व्यासयानमाला के तनमंत्रर् पत्र आहद छापे जा चुके थे, और मैं चािता था कक इस पावन अवसर में मेरे संग्रि का ववमोचन िो जाना चाहिए. मैंने अपनी समस्या से माननीय पंतजी को अवगत कराया और अपनी मंशा जाहिर की. दादा पंतजी ने मझ ु से किा कक संग्रि की कम से कम दस प्रततयाँ लेकर आप आ जाना. उसका ववमोचन िो जाएगा. दादा का आश्वासन पाकर मैं प्रसन्न था, लेककन इस बात को लेकर चचंततत भी था कक ववमोचन ककन मिापुरुष के िस्ते ववमोचचत िोगा? तत ृ ीय ववमश सत्र के ववषय-शती स्मतृ त-राष्ट्रीय उजाध के कवव रामर्ारी लसंि “हदनकर” पर अपना वक्तव्य दे ने के ललए मंच पर श्री अतनरुद्ध उमट, िा. श्री कृष्ट्र्चन्र गोस्वामी, श्री बी.बी.कुमार, श्री केशव “प्रथमवीर”, िा.श्रीराम पाररिार, श्री शंभन ु ाथ, श्री अरुर्ेश नीरन और कायधक्रम की अध्यक्षता कर रिे थे िमारे दादा श्री बालकवव बैरागीजी. इसी सत्र में मेरे संग्रि का ववमोचन िोना था. सत्र शरु ु िोने से पिले सारी औपचाररकता पूरी कर ली गई थी.

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


5

(किानी संग्रि “तीस बरस घाटी” को ववमोचचत करते बैरागीजी तथा अन्य सदस्य)

मैं रोमांचचत था. वि दल ध क्षर् नजदीक आता जा रिा था और वि समय भी आया,जब दादा ने ु भ उसे ववमोचचत ककया. मेरे ललए यि प्रथम अवसर था जब मैं दादा से रुबरु िो रिा था. उसके बाद से नजदीककयां बढी और अब कम से कम माि मे एक अथवा दो बार दादा से फ़ोन पर वाताध िो जाती िै . इस कायधक्रम के काफ़ी समय पश्चात मझ ु े नाथद्वारा जाने का अवसर प्राप्त िुआ. नाथद्वारा मे जस्थत साहिजत्यक मंच”साहित्य-मण्िल नाथद्वारा” द्वारा मझ ु े सम्मानीत ककया जाना था. मैं अपने लमत्र मल ु ताई तनवासी श्री ववष्ट्र्ु मंगरुलकर जी के साथ यात्रा कर रिा था. यात्रा का सारा कायधक्रम इटारसी आने के पिले िी गिबिा गया. संयोग यि बना कक मझ ु े भोपाल राबत्र ववश्राम करना पिा. आगे की यात्रा में रतलाम रुकना पिा. कफ़र अगली सब ु ि छः बजे की रे न से आगे की यात्रा करनी पिी. रास्ते में “मनासा” स्टे शन पिा. दादा की याद िो आयी. दरअसल विाँ रुकने का कायधक्रम पिले से िी तय था, लेककन समय साथ निीं दे रिा था. वैसे िी िम एक हदन दे री से चल रिे थे, और िमें अभी आगे सफ़र जल्दी तै करना था. स्टे शन से दादा को फ़ोन लगाया और अपने नाथद्वारा जाने का प्रयोजन बतलाया. मेरा मन्तव्य सन ु ने के बाद उन्िोंने किा-“गोवर्धन भाई, समय लमले तो जरुर आना”. उन्िोंने बिी िी आत्मीयता के साथ मझ ु े अपने गांव आने का तनमंत्रर् हदया था,लेककन चािकर भी िम मनासा रुक निीं सकते थे. मझ ु े ववश्वास िै कक वि समय एक हदन जरुर आएगा,जब िम दादा के गांव में िोंगे. उनके साथ.....अपने साचथयों के साथ. तीन हदनी (22 लसतम्बर से 24 लसतम्बर 2012) नौवां ववश्व हिन्दी सम्मेलन जोिान्सबगध-दक्षक्षर् अफ़्रीका मे शरु ु िोने जा रिा िै . माननीय दादा श्री बैरागीजी, इस ऎततिालसक अवसर पर सम्मानीत िोने जा रिे िैं. दक्षक्षर् अफ़्रीका में गांर्ी के नाम से ववसयात श्री नेलसन मंिल े ा के िस्ते आपको सम्मातनत

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


6 ककया जाएगा. मैं अपने पररवार की ओर से, मध्यप्रदे श राष्ट्रभाषा प्रचार सलमतत जजला इकाई तछन्दवािा के समस्त पदाचर्काररयों-सदस्यों तथा जजले में कायधरत सभी साहिजत्यक संस्थाओं की ओर से आपको कोहटशः बर्ाइयां और शुभकामनाएं दे ता िूँ. अपनी उम्र के अस्सीवें पिाव पर, दादा आज भी उतने िी सक्रीय िैं,जजतने वे पिले रिे िैं.. परमवपता परमेश्वर से प्राथधर्ा िै कक वे दीघाधयु प्राप्त करें और दे श की सेवा के साथ-साथ, साहित्य सज ृ न करते रिें और गीतों के नायाब मोततयों की अनप ु म सौगातें , िमें दे ते रिें . //आमीन//

,

दादा कैलाशचन्र पंत

(एक लाइट िाउस) की तरि िैं

“हिन्दी की रक्षा और सम्मान के ललए, िमें अपनी संस्कृतत पर िावी िोते इजण्िया और

भारत के अन्तर से लिना िोगा. बबना लिॆ िम हिन्दी के ववकास की कल्पना निीं कर सकते.” “भारत के पास वि आन्तररक शजक्त िै कक दतु नया की कोई भी सभ्यता

या संस्कृतत को

नुकसान निीं पिुँचा सकती”

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


7 “हिन्दी को जन-जन की भाषा बनाने के ललए िम यिाँ से शुरुआत करें कक िम

अपनी गाडिय़ों-

अपने घरों के नामपट्ट हिन्दी में ललखवाएँ और अपने िस्ताक्षर हिन्दी में करें ” शिर तछन्दवािा में 1903 में तनलमधत ऎततिालसक भवन” टाउन िाल” के ववशाल सभाग्रि

में म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार सलमतत जजला इकाई तछन्दवािा के सदस्यों, जनसमद ु ाय,, तथा साहित्यकारों को “भम ू ण्िलीकरर् व राष्ट्रभाषा की चन ु ौततयाँ” ववषय पर लब्र् प्रततष्ट्ठ साहित्यकार, लेखक, संपादक,पत्रकार,समाजसेवी, चचन्तक,मनीषी तथा प्रखर वक्ता माननीय श्री कैलाशचन्र पंत(मंत्री-संचालक) ने सम्बोचर्त करते िुए उक्त ववचार व्यक्त ककए. 28 अक्टूबर 2007 तछन्दवािा जजले का वि ऎततिालसक हदन था, जब “दादा” हिन्दी की मशाल थामे भोपाल से चलकर यिाँ आए थे. मंच पर वयोवद्ध ृ गीतकार पंडित रामकुमार शमाध,

िा.वरदमतू तध लमश्र(एस.िी.एम), िा.

कौशलककशोर श्रीवास्तव, िा लक्ष्मीचंद तथा मैं स्वयं उपजस्थत था. सलमतत की ओर से उन्िें शाल ओढाकर,श्रीफ़ल भें ट दे कर,सारस्वत सम्मान दे कर नागररक अलभनन्दन ककया गय़ा. दादा ने कवव लमत्र ओमाप्रकाश”नयन” के काव्य संग्रि “ सच मानो शकुन्तला” का ववमोचन भी ककया. दादा को सन ु ने के ललए जन सैलाब उमि पिा था. भीतर और बािर श्रोताओं की अच्छी-खासी भीि उमि आई थी. बावजूद इसके चारों ओर शाजन्त व्याप्त थी. आज भी मझ ु े उन क्षर्ॊं की याद आती िै तो मैं आत्मववभोर िो जाता िूँ. मेरा अपना मानना िै कक ऎसा सय ु ोग अनायास िी प्राप्त निीं िोता. तनजश्चत िी मैंने पण् ु य अजजधत ककए िोंगे कक आपका आशीवाधद तथा साजन्नध्य मझ ु े प्राप्त िुआ. उस हदन से लेकर आज तक मैं हिन्दी के उन्नयन और संवर्धन के ललए पूरी ईमानदारी, पूरी तनष्ट्ठा तथा लगन से इस दातयत्व को तनभाता आ रिा िूँ. यि कोई गवोजक्त निीं िै और न िी कोई दावा िी कर रिा िूँ .इस सेतब ु ंर् अलभयान में मेरी भलू मका वीर िनम ु ान, नल-नील की सी िै . बस मेरी भलू मका उस छोटी सी चगलिरी के तरि िै जो अपने शरीर को पानी में लभंगोती, रे त पर आकर लेटती और शरीर पर चचपके रे त के कर्ॊं को लाकर समर ु में छोि दे ती िै . “दादा” से मेरा पिला पररचय और जुिाव ककस तरि िुआ,यि एक हदलचस्प वाक्या िै . मेरे एक हितैषी लमत्र श्री प्रमोद उपाध्याय ने मझ ु से

हिन्दी भवन में आयोजजत चौदिवीं पावस व्यासयान

माला (10-12.08.2007) में चलने का आग्रि ककया. पावस व्यासयान माला मिीयसी मिादे वी, िजारीप्रसाद द्वववदी जी तथा िररवंशराय बच्चन जी के जन्म शताब्दी पर केन्रीत थी..लमत्र ने मेरा पररचय दादा से करवाया. पररचय प्राप्त िोने पर उन्िोंने बिी िी संजीदगी से मेरी ओर मख ु ाततब िोकर किा_”मझ ु े आपकी कुछ रचनाएं पढने को लमली थी. अच्छा ललखते िैं आप.” बात को मोि दे ते िुए उन्िोंने मझ ु से पूछा-“

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


8 अभी आप ककस संस्था से जुिॆ िैं? मैंने किा-“कफ़लिाल मैंने कोई संस्था की सदस्यता गि ृ र् निीं की िै . जवाब सन ु कर उन्िोंने किा-“राष्ट्र भाषा प्रचार सलमतत का मस ु य उद्देश्य, हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना िै और यि एक अंतरराष्ट्रीय संस्था िै . यहद आप हिन्दी की सेवा करना चािते िैं तो तछन्दवािा में एक इकाई का गठन करें लोगों को जोिें और जन-जन तक संस्था के मंतव्य को पिुँचाए.” बातों को गंभीरता से सन ु ते िुए मेरी नजरे उनके चेिरे पर केन्रीत थी. हदपहदपाता ओजमय चेिरा, िोठॊं पर तैरती मंद-मंद मस् ु कान, आत्मववश्वास से लबरे ज उनका हृदय आहद दे खकर मैं भीतर िी भीतर गदगद िो उठा था. अनठ ु े व्यजक्तत्व के र्नी, हिन्दी का एक कमधठ लसपािी, हिन्दी भवन का संचालक, वर्ाध सलमतत का मंत्री, ववसयात साहित्यकार, सामाजसेवी, एक आला दजे का संपादक, पत्रकार मझ ु से रुबरु िो रिा था और मझ ु से संस्था से जुिने का आग्रि कर रिा था. मैंने सारी बाते सन ु चुकने के बात वादा ककया कक मैं शीघ्र िी तछन्दवािा में एक इकाई का गठन करुं गा और हिन्दी के प्रचार-प्रसार के ललए अपने आपको समवपधत कर दं ग ू ा.मेिनत रं ग लाई और इस तरि राष्ट्रभाषा प्रचार सलमतत की इकाई का गठन िुआ. सलमतत ने समय-समय पर कई मित्वपूर्ध कायधक्रम ककए. मराठी बिुल क्षेत्र सौंसर में सलमतत कक शाखा खोली गई. इसके बाद तालमया,मल ु ताई,बैतल ू आहद स्थानों पर हिन्दी सेववयों की तलाश करते िुए शाखाओं का प्रसार ककया गया. दादा पंत का जीवन वत्ृ त 26 अपैल 193 को मिू(इन्दौर) म.प्र. में जन्मे श्री पंतजी ने एम.ए.साहित्याचायध तथा ,साहित्यरत्न में दीक्षक्षत िोकर यतू नयन चथयोलाजजकल सेमीनरी इन्दौर(1957-59) मे व्यासयाता, पंचायतराज प्रलशक्षर् केन्र भोपाल(1963-71) के प्राचायध, ववद्या भवन(एस,ई.टी.सी.) उदयपुर में प्रकाशन प्रमख ु , दै तनक इन्दौर समाचार(1972-77) के संवाददाता, सोशललस्ट कांग्रेसमैन,हदल्ली(61-62), दै तनक नवभारत,भोपाल(62),, दै तनक नवप्रभात,भोपाल(62-63),में सि-संपादक,

मालसक “लशक्षा प्रदीप,भोपाल(63-64) साप्ताहिक

जनर्मध,भोपाल(77-98), साप्ताहिक “दरू गामी आब्जवधर,इन्दौर( 2000-01) तथा हिन्दी भवन से प्रकालशत िोने वाली द्वैमालसक पबत्रका अक्षरा,भोपाल (2003 से अनवरत) संपादक का प्रभार सम्िाले िुए िैं. अपनी बेबाक संपादकीय के ललए आपकी ववलशष्ट्ठ पिचान बन चक ु ी िै . आपके व्यजक्तत्व और कृततत्व का समग्र मल् ू याकंन करते िुए, दे श के 18 ववलशष्ट्ठ मंचों द्वारा दादा का

सम्मान ककया जा चुका िै . इसके अलावा .भारत सरकार के प्रतततनचर् के रुप में

आप

कफ़लीपीन्स(76) नेपाल(87) इस्राइल(89) इंिोनेलशया(92), पांचवे ववश्व हिन्दी सम्मेलन में म.प्र.शासन के प्रतततनचर् के रुप में हरतनिाआि एवं टुबेगो(वेस्टैंडिज), लंदन के छटे ववश्वहिन्दी सम्मेलन में म.प्र.शासन

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


9 की ओर से भागीदारी, अन्तरराष्ट्रीय रामायर् सम्मेलन ह्यस् ू टन(य.ू एस.ए) में भागीदारी, सातवें ववश्व हिन्दी सम्मेलन सरू रनाम मे प्रततभाचगता तथा लमस्र, जोिधन,जस्वट्जलैंि, जमधनी,फ़ांस,इटली,नीदरलैंि,लसंगापरु , नेपाल, और थाईलैंि की पयधटन यात्राएं की िै . इतना व्यस्ततम जीवन जीते िुए दादा अब भी अनेको साहिजत्यक मंचॊं और अन्य सेवा संस्थानॊं में अपनी भागीदारी का तनवधिन कर रिे िैं. (प्रकाशन)-कौन ककसका आदमी, पार, शब्द का ववचार-पक्ष,

र्ँर् ु के आर-

शैलेश महटयानी:सज ृ न यात्रा: संपादन, सत्ता,साहित्य और समाज,सांस्कृततक

र्ारा के हिन्दी रचनाकर आहद संग्रि और, साहिजत्यक, सामाजजक और राजनैततक ववषयों पर करीब 800 आलेख ववलभन्न पत्र-पबत्रकाओं में प्रकालशत िो चक ु े िैं हिन्दी भवन के तनमाधर् में आपका अथक योगदान रिा िै . इसके अलावा सलमतत का कायाधलय, वाचनालय, तनवास के ललए दो ववशाल कक्षॊं का तनमाधर् भी दादा ने अपनी दे खरे ख में पूरे करवाए. वे यिीं निीं रुके. इसकेश

बाद साहित्यकार तनवास,जजसमें लब्र्-प्रततष्ट्ठ साहित्यकारों के नाम बारि

सस ु जजजत कमरे ,जजसमे सारी सवु वर्ाएं उप्लब्र् िै , का तनमाधर् कायध करवाया. हिन्दी भवन के साथ िी यि तनमाधर् हिन्दी साहित्य जगत के ललए अभत ू पव ू ध योगदान िै .

हिन्दी भवन में पावस व्यासयानमाला, बसंत व्यासयानमाला एवं शरद व्यासयानमाला के

अन्तगधत हदए गए व्यासयानों के दस्तावेजीकरर् की नयी पिल की और उनका “संवाद और िस्तक्षेप”

एवं मंथन के नाम से प्रकाशन प्रारम्भ ककया. यि साहिजत्यक संस्थाओं के ललए सवधथा नयी परम्परा थी. वे स्वयं प्रकाशक बने एवं यव ु ा सियोचगयों के भी सम्पादन का अवसर हदया.

सन 2011 में अपने जीवन के पचित्तर वषध परू े कर चुके “दादा श्री कैलाशचन्र पंत “ का

अमत ृ मिोत्सव मनाए जाने के ललए हिन्दी भवन सलमतत तथा नगर और नगर के बािर की संस्थाओं ने तनर्धय ललया

तथा उनकी स्मतृ तयों को अक्षुण्य बनाने के ललए एक स्माररका के प्रकाशन का भी तनर्धय

ललया गया. मार्वराव सप्रे स्मतृ त समाचार संग्रिालय एवं शोर् संस्थान की ओर से िा.मंगला अनज ु ा जी ने प्रकाशन, का उत्तरदातयत्व सभाला तथा

िा.सन ु ीता खत्री, िा.सष ु मा ततवारी ,िा, प्रततभा गज ु रध , तथा

िा. लललता बत्रपाठीजी ने संपादक की भलु मका का तनवधि ककया. आप सबने लमलकर इसके प्रकाशन-और साज-सजा के ललए किी मेिनत की और इस तरि 276 पष्ट्ृ ठों का मिान ग्रंथ “दादा की स्मतृ त में प्रकालशत िोकर आया.

रवीन्र भवन के मक् ु ताकाश मंच पर, आयोजजत इस भव्य समारोि में , प्रदे श के मस ु य मंत्री

श्रॊ.लशवराजजी चौिान , गि ु शंकराचायध स्वामी स्वरुपानान्द ृ मंत्री, संस्कृतत मंत्री, खेल मंत्री,, जगतगरु

सरस्वती के तनज सचचत ,मिापौर,सांसद, तथा दे श के कोने-कोने से पर्ारे लब्र्-प्रततष्ट्ठ साहित्यकार, गर्मान्य नागररकों तथा ववशाल जनसमि ू की गरीमामय उपजस्थतत के मध्य दादा का नागररक

अलभनन्दन ककया गया. दे श की कई नामी-चगरामी साहिजत्यक संस्थाओं ने भी दादा को ,स्मतृ त चचन्ि भें ट ककए.

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


10

इस भव्य समारोि में मझ ु े जाने का अवसर प्राप्त िुआ था. एक व्यजक्त के सम्मान के ललए प्रदे श के मखु खया सहित अनेक मंत्री, दे श के कोने-कोने से पर्ारे साहित्यकार,अनेक संस्थाओं के प्रतततनचर् तथा ववशाल जनसमि ू की उपजस्थतत को दे खकर सिज िी उस व्यजक्त की ववराटता का अनम ु ान लगाया जा सकता िै कक वि ककतना जनवप्रय िै . .

चार्क्य ने एक जगि ललखा िै -“वप्रयभाषी का कोई शत्रु निीं िोता. यि वास्तववकता िै . जन-जन

में संवाद शैली में गररमा और मर्ुरता िोनी चाहिए. शब्दों का अजस्तत्व सवाधचर्क प्रबल िोता िै .उनके

अपने संस्कार िोते िैं. शब्द एक उजाध िै . शब्द रह्ह्म भी िै . जजसने शब्द-रह्ह्म की उपासना की िो,जो जन-जन का वप्रय िो,उससे भला ककसकी शत्रुता िो सकती िै .” ,

दादा के पास प्रेमभाव िै , सेवा भाव िै . सेवाभाव से सदा प्रेम िी उपजता िै . यिी कारर् िै कक वे जन-वप्रय िैं. इसीललए उनकी बातें ध्यान से सन ु ी जाती िै . कफ़र वे एक अच्छे नाववक की तरि िै , जो

अपने लोगों को साथ लेकर यात्रा करता िै . उनका मागधदशधन करता िै . वे केवल मागध िी निीं हदखलाते अवपतु एक सच्चे हितैषी की तरि-/एक बिॆ भाई की तरि पूरे समय साथ बने रिते िैं. िे नरी फ़ोिध ने अपने वक्तव्य मे ललखा िै -“ आपका सच्चा लमत्र विी िै ,जो आपके भीतर तछपे

सवधश्रेष्ट्ठ को बािर तनकाले” सच िै , जिां प्रततभा चलती िै ,विी पथ बन जाता िै . और श्रेष्ट्ठी जजस मागध से चलते िैं,लोग उसका अनस ु रर् करते िैं. यिी एकमात्र एक ऎसा कारर् था कक लोग दादा के साथ पिॆ और र्ीरे -र्ीरे कारवां बनता चला गया.

मेरा अपना मानना िै कक भौततक उपलजब्र्यां प्राप्त करने और आध्याजत्मक उपलजब्र्यां प्राप्त

करने के अलग-अलग मागध िैं. आध्याजत्मक उजाध प्राप्त करने के ललए अपने आपको तपाना पिता िै .

स्वयं प्रकालशत िोना िोता िै ,तब किीं जाकर आप दस ू रों का पथ-प्रदशधन कर सकते िैं.वेदों में ऋवषयों ने आव्िान ककया िै कक –“िम तनरन्तर श्रेष्ट्ठता की ओर अग्रसर िोते रिें . प्रकाश को ग्रिर् करें और

प्रकाशवन िो जाएं” दादा ने अपने आपको तपाया िै और स्वयं प्रकालशत्र िुए िै , और िमारा सबका पथ आलोककत कर रिे िैं. सच माने में दादा एक ववराट लाइट िाउस की तरि िैं कवव हदनकर की जयन्ती पर, दक्षक्षर् अफ़्रीका के जोिान्सबगध मे 9 वां ववश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन ककया जा रिा िै .

२२ लसतम्बर से २४ लसतम्बर तक चलने वाले इस तीन हदनी

सम्मेलन में , भारत सहित दतु नया के अनेक दे शों के हिन्दी प्रेमी उत्साि पूवक ध शालमल िोगे.

इस अवसर पर हिन्दी भवन के संचालक, वर्ाध सलमतत के मंत्री श्री कैलाशचन्र पंतजी के

समग्र अवदानों के दे खते िुए उन्िें

ववश्व मंच पर सम्मातनत ककया जाएगा.

मैं अपने पररवार के सदस्यों सहित,सलमतत के सभी पदाचर्काररयों, कायधकताधओं एवं अन्यान्य लमत्रों की ओर से माननीय श्री कैलाशचन्र पंतजी को शुभकामनाएँ तथा बर्ाइयां प्रेवषत करता

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


11 िूँ. ईश्वर से िमारी प्राथधर्ा िै कक आप दीघाधयु िों और इसी तनमयता के साथ हिन्दी को उस मक ु ाम तक ले जाने जाएं,जजसकी वि अचर्कारी िै और साथ िी िमारा मागधदशधन करते रिें //आमीन// कवव हदनकरजी की जयंती पर 22 लसतम्बर 2012 की जोिानसबगध( दक्षक्षर्

अफ़्रीका में 9वां

हिन्दी ववश्व सम्मेलन बाईस लसतम्बर से चौबीस जस्सतम्बर २०१२(तीन हदन) का आयोजन ककया गया िै . इसमें दादा श्री कैलाशचन्र पंत जी का सम्मान ककया जाएगा. दादा के साथ िी मध्यप्रदे श के सयात लब्र् सांसद सम्मानीय श्री बाल कवव बैरागी जी का भी सम्मान जव्चश्व हिन्दी सम्मेलन में ककया जाएगा. यि सममान दक्षक्षर् अफ़ीका में गांर्ी के नाम से ववसयात ष्री नेल्सन मंिल े ा जी के िस्ते प्रदत्त ककया जाएगा.

३…भारत के युवा प्रर्ानमंत्री श्री राजीव गांर्ी भारत में समय-समय पर अनेक नेताओं ने जन्म ललया. उन्िोंने दे श में सामाजजक और राजनीततक क्रांतत का संचार ककया और दे श को गल ु ामी की जंजीरों से आजादी हदलाई तथा आजाद भारत को आत्मतनभधर बनाने के ललए कई मह्त्वपर् ू ध कदम उठाए तथा ववदे शों के साथ मैत्रीपर् ू ध संबंर् कायम ककए. ऐसे िी कुछ नेताओं मे राजीवगांर्ी का नाम अग्रर्ीय िै . वे यव ु ापीढी के मिान नेता थे,जजन्िोंने अल्पकाल में िी ववश्वसयातत अजजधत की. वे इस पद पर पिुँचने वाले ववश्व के सबसे कम उम्र के व्यजक्त थे. राजीव गांर्ी का जन्म 20 अगस्त 1944 को मब ुं ई के हिन्दज ु ा अस्पताल में िुआ था. वे श्रीमती इंहदरा गांर्ी और कफ़रोजगांर्ी की जयेष्ट्ट संतान थे. भारत के प्रथम प्रर्ानमंत्री पंडित जवािरलाल नेिरु उनके नाना थे. उनका बचपन अन्ना आनधशाल्ट नामक एक िेतनस गवनेस और अपने नानाजी की गोद में बीता. राजीव गांर्ी की प्रारजम्भक लशक्षा दन ू स्कूल में िुई. बचपन से िी उनमें सािस और आत्मववश्वास कूट-कूटकर भरा था. पढने-ललखने में उनकी चगनती अच्छे ववध्याथीयों में िोती थी. मैरीक पास कर लेने के पश्चात उच्च लशक्षा प्राप्त करने के ललए उन्िोंने लंदन के इम्पीररयल कालेज मे प्रवेश ललया और विीं हरतनटी कालेज से मेकेतनकल इंजजतनयर की डिग्री प्राप्त की. छात्र के रुप में लंदन प्रवास के दौरान वे खाली समय में नौकरी करते

और साथ िी छात्रों के साथ सार्ारर् मकान में रिते थे. एक ववलशष्ट्ट पररवार से संबंचर्त िोने के

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


12 बावजूद वे बेिद स्शालीन और नम्र स्वभाव के थे. घमण्ि उन्िें छू निीं पाया था. सन 1960 में वि 16 वषध के थे कक उनके वपता श्री कफ़रोज गांर्ी का तनर्न िो गया. उसके मात्र चार साल बाद 27 मई 1964 को उनके नाना पंडित जवािरला नेिरु भी स्वगध लसर्ार गए. 25फ़रवरी 1968 को राजीव गांर्ी की शादी एक इटाललयन यव ु ती सोतनया मेनो से िुई,जो कक एक मध्यम श्रेर्ी के पररवार से सम्बजन्र्त िै . उनकी दो संताने िैं रािुल और वप्रयंका. अपनी परम्परा से िटकर उन्िोंने ववमान चालन का प्रलशक्षर् ललया और “इंडियन एअरलाइअन्स” के कुशल पायलट बने. वे लगभग सोलि वषध तक इसी पद पर रिे . 23जून 1980 में अपने छोटे भाई संजय गांर्ी की ववमान दघ ध ना में िुई ु ट आकजस्मक मत्ृ यु के पश्चात वे अपनी माता का िाथ बटाने राजनीतत में कूद पिॆ. सन 1981 में उन्िोंने अमेठी से उपचुनाव लिा और कुछ िी समय बाद वे अखखल भारतीय कांग्रेस कमेटी (इ) के मिासचचव बने. चेिरे पर मोिक मस् ु कान तथा गजब का आत्मववश्वास राजीव गांर्ी के व्यजक्तत्व की खास पिचान थी. 31अक्टूबर 1984 को अपनी माता श्रीमती गांर्ी की नश ृ ंस ित्या के पश्चात राजीव गांर्ी 1 नवम्बर 1984 को मात्र 40 बरस की आयु में ववश्व के सबसे बिॆ लोकतांबत्रक दे श के प्रर्ान मंत्री बने. इस पद पर आसीन िोने वाले वे ववश्व के सबसे कम उम्र के व्यजक्त थे. हदसम्बर 1984 को िुए आम चुनावों के कांग्रेस(इ) इनकी अगव ु ाई में भारी बिुमत से ववजयी िुई तथा आठवीं लोकसभा में उसे 542 सीटॊं में से 415 सीटॊं पर बिुमत िालसल िुआ. इतना प्रचंि बिुमत उनके नाना पंडित जवािरलाल नेिरु को भी निीं लमला था. राजीव गांर्ी आत्मववश्वास से भरपूर थे और संघषध क्षमता उनमें कूट-कूट कर भरी थी. उन्िोंने न केवल अपनी माता के अर्ूरे कामों को पूरा ककया बजल्क अपनी मेिनत, लगन, दरू दृजष्ट्ट और दृढ इच्छाशजक्त के बल पर राजनीतत को नये आयाम प्रदान ककए. इस प्रबल आत्म-ववश्वास के फ़लस्वरुप सन 1985 में पंजाब और असम समझौते िुए. इस प्रकार दे श की समस्याओं के समार्ान के ललए राजीव गांर्ी जजतने आतुर थे, पिौसी दे शों मे चल रिे आन्दोलनों से उतने व्यचथत. उन्िोंने श्रीलंका में शांतत स्थावपत करने के ललए विाँ के तत्कालीन राष्ट्रपतत श्री जे. आर. जयवर्धने के साथ भारत-ष्रीलंका समझौता ककया. सन 1988 को मालद्वीप के राष्ट्रपतत ष्री अब्दल ु गयम ु का तसता पलटने की कोलशश को नाकाम ककया,जो उनकी शीघ्र तनर्धय क्षमता को दशाधता िै . राजीव गांर्ी की दरू दलशधता, स्पष्ट्टवाहदता तथा अनठ ू ी नीततयों के कारर् भारत,

ववश्व में एक नयी शजक्त

के रुप में उभर कर सामने आया. उन्िोंने एक तरफ़ अपने पुराने दोस्त सोववयत संघ के साथ ररश्ते प्रगाढ ककए तो दस ू री ओर अमेररका और बरह्टे न के साथ सम्बन्र् सर् ु ारे . उन्िोंने संयक् ु त राष्ट्र संघ मे योगदान हदया और ववश्व को शांतत और भाईचारे का संदेश हदया. उन्िोंने एक तरफ़ पाककस्तान के साथ अपने सम्बन्र् मजबत ू ककए तो दस ू री तरफ़ चीन की यात्रा कर उसके साथ नए सम्बन्र्ों की शरु ु वात िुई भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


13 सन1989 को िुए आमचुनावों में राजीव गांर्ी अपनी सरकार निीं बना पाए. कफ़र भी उनकी पाटी लोकसभा में सबसे बिी पाटी के रुप में उभर कर आई. ववपक्ष में बैठ कर भी उन्िोंने सरकार को रचनात्मक सियोग हदया. खािी यद्ध ु के दौरान एक उन्िोंने शांतत स्थापना के ललए सोववयत संघ और ईरान की यात्रा की, तो दस ू री तरफ़ अमेररकी सैतनक ववमानों को ईंर्न दे ने के ललए सरकार की आलोचना की. अप्रैल 1991 को राष्ट्रपतत ने लोकसभा भंग की और मात्र दो सालों में दसवीं लोकसभा के ललए आम चुनावों की घोषर्ा िुई. वे बिी लगन और पररश्रम से अपनी पाटी को जजताने की कोलशश में जट ु गए,लेककन शायद तनयतत को कुछ और िी मंजूर था. अभी चुनाओं का लसफ़ध पिला चरर् िी पूरा िुआ था कक काल के क्रूर िाथों ने उनको िमसे छीन ललया. 21मई 1991 को राबत्र लगभग 10 बजे राजीव गांर्ी मरास से लगभग 45 ककलोमीटर दरू पेरुम्बदरु नामक स्थान पर एक चुनावी सभा को सम्बोचर्त करने जा रिे थे, एक महिला ने जो अपने साथ ववस्फ़ोटक पदाथध ले गई थी, माला पिनाने के बिाने उनकी ित्या कर दी. उस समय उनकी उम्र मात्र 47 वषध की थी. उनकी ित्या की खबर सन ु कर पूरा ववश्व स्तब्र् रि गया. दे श-ववदे श से संवेदना –संदेश प्राप्त िोने लगे. िालांकक राजीव गांर्ी को भारत की सेवा करने के ललए बिुत कम समय लमला,लेककन इसके बावजूद उन्िोंने भारत को जो ववश्व सयातत हदलाई वि सरािनीय िै . उनके अंततम संस्कार में भाग लेने आए लगभग 64 दे शों के प्रतततनचर् इस बात का प्रमार् िै कक अपने प्रर्ानमंबत्रत्व काल के मात्र पांच वषों में िी उन्िोंने जो नाम कमाया वि अतुलनीय िै . 6 जुलाई 1991 को भारत सरकार ने इस मिान नेता को मरर्ॊपरान्त “भारत रत्न” से अलंकृत ककया. आज राजीव गांर्ी िमारे बीच निीं िै लेककन उनकी याद िमेशा िमारा मागधदशधन करती रिे गी.

एक आइडिया:- जो आपकी जजन्दगी बदल दे अगर यि किा जाए कक आदमी ववचारों का पुललन्दा िै , तो इस बात से इन्कार निीं ककया

जा सकता. कभी-कभी एक साथ कई-कई ववचार साथ चलते रिते िै . उसे रोक सकना आदमी के वश में निीं िै . जब कोई ववचार या सोच,athaaattअथवा कल्पना ववस्फ़ोटक बन जाए तो क्राजन्तकारी पररर्ाम

दे खने को लमल सकते िै . एक उदािरर् िमारे सामने िै मिात्मा गांर्ीजी का. िम जैसे सार्ारर् इन्सान िी थे वे ,लेककन उनके अन्दर जब एक ववचार का ववस्फ़ोट िुआ तो उसने उनकी हदशा िी बदलकर रख दी. वे

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


14 एक बररस्टर की िै लसयत से साउथ अफ़्रीका,अपने मव ु जक्कल का केस लिने के ललए गये िुए थे. उनके पास रे ल्वे का प्रथम श्रेर्ी का हटककट था, एक अंग्रेज अफ़सर उस कम्पाट्धमेन्ट में आया और उसने एक भारतीय को उस कोच में सफ़र करते दे खा और आगबबुला िो उठा. उसने गांर्ीजी का सामान बािर फ़ेंक हदया और उन्िे उतरवा हदया. गांर्ीजी ने इस बात का ववरोर् ककया .फ़लस्ररुप उनके अन्दर एक ववचार ने जन्म ललया और उन्िोंने अंग्रेजो के खखलाफ़

मोचाध खोल हदया. पररर्ाम आप सब जानते िैं. ईस्ट इंडिया कंपनी

का सरू ज, जो कभी अस्त निीं िोगा, ऎसा माना जाता था ,अस्त िुआ. एक दस ू रा उदािरर् िमारे सामने िै . आईजक न्यट ु न बागीचे में बैठा िुआ था, तभी एक सेव नीचे टपक पिा. एक ववचार का ववस्फ़ोट िुआ और वि यि सोचने पर मजबूर िुआ कक वि नीचे क्यों चगरा ? वि तो ऊपर आसमान में भी जा सकता था. एक जुनन ू की िद पार करते िुए आखखर उसने एक ऎसा लसद्धांत खोज तनकाला और उन्िोंने दतु नया

को गरु ु त्वाकशधर् और गतत के तनयम हदए. प्रकाश संबंर्ी लसद्धांत खोजे और पिली परावततधत दरू बीन बनाई.

केल्कुलस की उनकी खोज ववज्ञान के ललए बिुत मित्वपूर्ध साबबत िुई. ऎसे एक निीं अनेको उदािरर् हदए जा सकते िै ,जो यि लसद्ध करते िै कक आदमी ने अपने भीतर की शजक्त को जगाया और नई इबारत ललखी. यि बात अलग िै कक िर ककसी को एक जैसी जस्थततयाँ निीं लमलती. ककसी को दतु नया ने पिले हदन लायक िी निीं माना और ककसी को िर बार िताश ककया. कुछ िी ऎसे थे जजन्िें सनकी या नाकाम िोने के ललए बने बताया गया.

एक गरीब ककसान पररवार में जन्में फ़ोिध को बचपन से िी मशीने बनाने का जुनन ू था.

अपने जीवन के सोलिवें बरस मे इन्िोंने स्टीम इंजजन और घडियां सर् ु ारने का काम ककया .बाद मे कई व्यवसाय ककए लेककन उन्िें सफ़लता निीं लमली. सिसा फ़ोिध के मन में एक ववचार आया कक क्यों न एक

ऎसी कार का तनमाधर् ककया जाए जजसका उत्पादन और उपयोग बिे पैमाने पर िो और वि आम आदमी

के पिुँच मे भी िो. उन्िोंने आठ लसलेन्िर वाला एक इंजन बनाया. वे लगातार इस प्रयोग में जुटे रिे .अंततः वे इसमे सफ़ल िो सके. आज उनकी बनाई कारों पर दतु नया चलती िै . सैम जाँन्सन के वपता ककताबें बेच कर घर चलाते थे. बचपन में बीमारी की वजि से इनका चेिरा ववकृत िो गया और एक आंख खराब िो गई. लेककन पढने के र्ुन के पक्के सैम

१९-२०

बरस की उम्र मे आँक्सफ़ोिध पढने गए, लेककन पैसों की तंगी की वजि से बबना डिग्री ललए वापस लौट आए. सन १७३६ मे एक स्कूल खोला, लेककन निी चल पाया. वे लंदन आ गए और पत्रकाररता करने लगे. दस ू रों के नाम से ककताबें ललखीं. यश-प्रततष्ट्ठा तो

लमली लेककन पैसा निीं. लगातार आठ साल तक किी मेिनत

के बाद उन्िोंने अंग्रेजी भाषा की डिक्शनरी तैयार की और दे खते िी दे खते प्रलसवद्ध पर जा पिुँचे. १० वीं शताब्दी के प्रसयात आलोचक,लेखक,पत्रकार और कवव के रुप मे वे जाने जाते िै . अंग्रेजी भाषा उनके शब्दकोश के ललए सदै व ऋर्ी रिे गी.

कक्रस्टोफ़र कोलंबस की जुनन ू भारत को खोजने की थी. इस ववचार को सन ु ने के बाद से वे कई

बार िं सी के पात्र बने .लेककन र्ुन के र्नी कोलंबस का मानना था कक यहद पथ् ृ वी गोल िै तो वे उसे खोज तनकालेंगे. उस समय उनकी उम्र मिज सतरि साल की थी. उन्िोंने जी तोि मेिनत की,लेककन सफ़लता

अभी कोसॊं दरू थी. उन्िोंने स्पेन की मिारानी से जिाज मांगे. जिाज तो लमल गए पर सनकी समझे जाने

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


15 वाले कोलंबस को ककसी ने साथ निीं हदया. अंततः उन्िोने ८८ कैहदयों को साथ ललया और यात्रा पर तनकल गए. भारत तो वे खोज निीं पाए लेककन अमेररका को खोज तनकाला.

कालध माकधस का भी जीवन संघष में बीता. वपता ने व्यावसातयक हित सार्ने के ललए यिूदी र्मध छोिकर ईसाई र्मध अपना ललया. इसका व्यापक प्रभाव उन पर पिा और र्मध के नाम पर चचढ पैदा िो गई. उग्र ववचार और क्राजन्तकारी गततववचर्यों के चलते उन्िे जमधनी कफ़र बेजल्जयम और फ़ांस से

तनवाधलसत ककया गया. पैसों की तंगी तो थी िी. उसी समय उनके पत्र ु का दे िावसान िुआ तो कफ़न तक के पैसे उनके पास निीं थे. इन तमाम परे शातनयों के चलते उन्िोंने दास केवपटल ललखा ,जजसने दतु नया की तस्वीर िी बदलकर रख दी. पिला साम्यवाद का पाठ उन्िोंने दतु नया को पढाया.

ं टन की शुरुआत एक सैतनक के रुप में िुई. सैन्य प्रमख जाजध वालशग ु के पद तक पिुँचे जाजध की प्रेरर्ा और नेतत्ृ व की वजि से सार्निीन सेना ने अंग्रेजी सेना पर जीत दजध कर लोकवप्रय िुए. जब उनका चुनाव राष्ट्रपतत पद के ललए िुआ तो पिॊसी अमीर से ६०० िाँलर का कजध लेना पिा. िकलािट के बावजूद चचचधल बरह्टे न के प्रर्ानमंत्री बने. राजनीतत के अलावा साहित्य,इततिास और सैन्य अलभयानों पर

ललखी ककताबॊं की वजि से उन्िें साहित्य का नोबेल पुरस्कार लमला .ककंगस्टीफ़न को लसंड्रल े ा की तजध पर एक अलौककक शजक्तयों वाली एक लिकी की किानी ललखने का ववचार आया. कुछ ललखने के बाद ववचार आया कक यि लोकवप्रय निीं िोगा तो उन्िोंने उसे रद्दी की टोकरी के िवाले कर हदया लेककन पजत्न के

प्रोत्सािन ने उन्िोंने उसे पूरा ककया.: “कैरी” नाम से प्रकालशत यि उपन्यास १९७३ मे प्रकालशत िुआ और उन्िें चार सौ िाँलर लमले. उस उपन्यास के पैपरबैक संस्करर् की ररकािध तोि बबक्री िुई और सफ़लता की

उं चाइयों तक जा पिुँचे. वे पिले लेखक थे जजनकी तीन पस् ु तकें एक साथ न्यय ू ाकध टाइम्स की बेस्टसेलर ललस्ट में थी. पांच उपन्यास ललख चुके जाँजध बनािध शाँ ने असफ़लता से तनराश िोकर नाटक ललखे और अंततः सफ़लता का स्वाद चखा. इसी तरि ग्रािम बेल, बाँस्टन यतू नवलसधटी मे बचर्रों की भाषा लसखाते थे. लसखाते-लसखाते उन्िें एक लिकी से प्रेम िो गया. वि कानॊं से बिरी थी. वे कोई ऎसा यन्त्र बनाना चािते थे जजसकी मदद से उनकी प्रेलमका सन ु सके. और उन्िोने टे लीफ़ोन का अववष्ट्कार कर िाला. कभी लकि​िारे

बने तो कभी सवेयर ,तो कभी छोटे से गांव के पोस्ट्मास्टर रिे अरह्ािम ललंकन अमेररका के सबसे लोकवप्रय राष्ट्रपतत िुए. बबिला समि ू के संस्थापक श्री घनश्याम दास बबिला की लशक्षा मिज पांचवी तक िी िुई थी. लेककन उनके मन में एक सफ़ल उद्धॊगपतत बनने का जजबा था. उन हदनों अंग्रेज जट ू का व्यापार करते थे .उन्िोंने बबिलाजी को ॠर् दे ने से मना कर हदया. मशीने भी दग ू नी कीमत मे खरीदनी पिी ,लेककन

उन्िोंने िार निीं मानी और संघरषॊं से लिते िुए मंजजल की ओर बढते रिे . १९८३ में अपनी मत्ृ यु के समय बबिला समि ू की २०० कंपतनयों और २,५०० करोि की संपजत्त के माललक थे. माननीय अब्दल ु कलाम आजाद को कौन निी जानता. गरीब मछुआरे के बेटे अब्दल ु कलाम

ने बचपन में अखबार बेच.े आचथधक तंगी के बीच उनकी पढाई िुई. अपनी कल्पनाशीलता के कारर् िी उन्िोंने भारत की प्रोद्दोचगकी के क्षेत्र में अनेक सफ़लताएं िालसल की और वे भारत के राष्ट्रपतत भी bbबने.

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


16 आज वे लमसाइल पुरुष के नाम से जाने जाते िै . र्ीरुभाई अंबानी, लक्षमी लमत्तल, नारायर्मतू तध सहित कई

नामी चगरामी व्यजक्त िुए जजन्िोने अपनी सफ़लता के झंिे गािे. प्रमख ु ता से यिाँ अलमताभ बच्चन को याद करना प्रासंचगक िोगा. सदी के मिानायक के रुप मे ववसयात अलमतजी ने भी कम पापि निीं बेले. अलभनेता बने अलमतजी ने अपनी कंपनी ए.बी.सी.एल का गठन ककया और करोिॊं

के कजधदार िो गये.

लेककन उन्िोंने कभी िौसला निीं िारा और आज प्रलसवद्ध की बल ु हं दयों पर खिे िुए िै . अपने जमाने के प्रलसद्ध कवव श्री िरवंशराय बच्चन जी से उन्िोंने ववरासत में संघरष करने और कभी न िार मानने का जो

गरु ु मंत्र हदया था, उसके बल पर चलते िुए उन्िोंने यि कमाल कर हदखाया िै . श्री िररवंशराय बच्चन की एक कववता यिाँ उल्लेखखत िै जो िारे िुए मन को संयम तथा किे पररश्रम का पाठ पढाती िै .. वे ललखते िैं

हिम्मत करने वालों की िार निीं िोती//लिरों से िरकर नैय्या पार निीं िोती//नन्िीं चींटी जब दाना लेकर चलती िै //चढती दीवारों पर सौ बार कफ़सलती िै //मन का ववश्वास रगो में सािस भरता िै //चढकर

चगरना, चगरकर चढना न अखरता िै //आखखर उसकी मेिनत बेकार निीं िोती// कोलशश करने वालों की िार निीं िोती//िुबककयां लसंर्ु में गोताखोर लगाता िै // जा-जाकर खाली िाथ लौट आता िै //लमलते न सिज िी मोती पानी में //बढता दन ू ा उत्साि इसी िै रानी में //असफ़लता एक चन ु ौती िै ,स्वीकार करो//क्या कमी रि गयी,

दे खो और सर् ु ार करो// जब तक न सफ़ल िो, नींद चैन की त्यागो तुम//संघष करो, मैदान छॊिकर मत भागो तुम// कुछ ककये बबना िी जय-जयकार निीं िोती// हिम्मत करने वालों की िार निीं िोती//

बच्चॊं...इस लेख में कुछ ऎसे लोगों की चचाध की गई िै जजन्िोनें किी मेिनत के बल पर सफ़लताऎ ं

अजजधत िी थी .िमें भी इन्िीं रािों पर चलना िोगा. याद रखें..जीवन संघरषमय िै . कभी सफ़लता तो कभी असफ़लता िमें लमलती िै . सफ़ल िो जाओ तो अलभमान मत करो ,बजल्क अपने साथी को भी आगे बढने

के ललए उत्प्रेररत करो. असफ़ल िो जाओ तो पीछे मि ु कर दे खो और खोजो कक वे क्या कारर् थे कक मैं

असफ़ल क्यों िुआ. गलततयों में सर् ु ार करो और उसी गतत और उत्साि से पथ-तनमाधर् में लग जाओ. तुम दे खोगे कक सफ़लता तम् ु िारा कभी से इंतजार कर रिी थी. दतु नयां में आज जजतनी ववलालसता की सामग्री पिी लमलती िै , यि जान लो कक किीं ये तम् ु िारे पांव की बेडियां न बन जाये. कफ़सलन बिुत िै . िोलशयारी से कदम बढाये जाने की जरुरत आज जयादा िै .कोसध की ककताबे तुम्िें परीक्षा में पास जरुर करवा दे गीं,

लेककन केवल चार अक्षर पढ लेने मात्र से जीवन निीं चलता .जिाँ से भी िमें अच्छी-अच्छी बातें पढने को लमले,उन्िें भी आत्मसात

करते चलो. कोई भी ऎसा काम मत करो, जजससे तम् ु िारे अलभभावकॊं का सर

शमध से झुक जाए. और अंत में एक जरुरी बात. और वि यि कक खद ु के ललए तो िर कोई जीता िै , लेककन औरों के ललए भी जीना सीखॊ.

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


17

…..ववज्ञान और र्मध

संसार में घहटत िोने वाली घटनाओं को तथा प्रकृतत के रिस्यों को मानव सम्पूर्ध रुप से निीं जान पाते िैं. वे अपने रोजमराध के अनभ ु व के आर्ार पर कुछ सीखता िै कक अनेक ऎसी घटनाएं िैं, जजस पर उसका अपना वश निीं िै . स्वभावतः उसमें ऎसी र्ारर्ा पनपी कक कोई एक शजक्त ऎसी भी िै जो हदखाई निीं दे ती, परन्तु वि ककसी भी मनष्ट्ु य से किीं अचर्क बलशाली-शजक्तशाली िै . यि वि अलौककक शजक्त िै जजसे भय हदखाकर अथवा िरा-र्मका कर अथवा ककसी अन्य तरीके से वश में निीं ककया जा सकता. इस शजक्त को वश में लाने का एकमात्र उपाय िै कक उसके सन्मख ु सर झुकाकर पज ू ा-अचधना या आरार्ना की जाए. इस अलौककक शजक्त से संबंचर्त ववश्वासों और कक्रयाओं को र्मध किते िैं. धर्म की परिभाषा “ र्मध ककसी न ककसी प्रकार की अततमानवीय( superhuman) या अलौककक( supernatural) या समाजोपरर( supersocial) शजक्त पर ववश्वास िै, जजसका आर्ार भय, श्रद्धा, भजक्त, और पववत्रता की र्ारर्ा िै और जजसकी अलभव्यजक्त प्राथधना, पूजा या आरार्ना िै .” उपरोक्त पररभाषा आहदम और आर्ुतनक दोनों िी प्रकार के समाजों में पाए जाने वाले र्मों की एक सामान्य व्यासया िै . प्रत्येक र्मध का आर्ार ककसी सप ु र-पावर पर ववश्वास िै और यि शजक्त मानव-शजक्त से अवश्य िी श्रेष्ट्ठ िै . एक बात ध्यान रखने योग्य भी िै कक केवल ववश्वास से िी र्मध सम्पर् ू ध निीं िै . इस ववश्वास का एक भावनात्मक आर्ार भी िोता िै . उस शजक्त के प्रतत श्रद्धा-भजक्त या प्रेम-भाव भी र्मध का एक आवश्यक अंग िोता िै . अलग-अलग समाज में अलग-अलग तरि की र्ालमधक सामचग्रयां, पूजा-आरार्ना ,र्ालमधक प्रतीक तथा ववचर्याँ िै . मानव शास्त्र के प्रवतधक एिविध टायलर ने र्मध की सबसे ववस्तत ृ तथा कम से कम शब्दों से व्यासयातयत की िै .

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


18 “ र्मध आध्याजत्मक शजक्त पर ववश्वास िै .” सर जेम्स फ़्रेजर के अनस ु ार-“ र्मध से मैं मनष्ट्ु य से श्रेष्ट्ठ उन शजक्तयों की संतजु ष्ट्ट या आरार्न समझता िूँ, जजनके संबंर् में यि ववश्वास ककया जाता िै कक वे प्रकृतत और मानव-जीवन को मागध हदखलाती िै और तनयंबत्रत करती िै .” मनोवैज्ञातनक पक्ष पर अचर्क बल दे ते िुए” व्िातनगशीम” के अनस ु ार “प्रत्येक मनोवजृ त्त, जो कक इस ववश्वास पर या इस ववश्वास से संबंचर्त िै कक अलौककक शजक्तयों का अजस्तत्व िै और उनसे संबंर् स्थावपत करना संभव व मित्वपूर्ध िै , र्मध किलाती िै .” “ श्री मैललनोवस्की “र्मध के समाजशास्त्रीय तथा मनोवैज्ञातनक” दोनों िी पिलओ ु ं को एक-सा मित्वपर् ू ध मानते िैं. उनके अनस ु ार” र्मध कक्रया का एक तरीका िै और साथ िी एक व्यवस्था भी”.

सम्प्रदाय़-

ककसी एक समि ू द्वारा ककसी ववलशष्ट्ठ शजक्त को अपना

इष्ट्ट-आराध्य मानकर पूजे जाने की परम्परा ववकलसत िुई-सम्प्रदाय किलाए गए-जैसे रार्ावल्लभ संप्रदाय आहद

संस्कृतत---ककसी दे श या राष्ट्र का प्रार् संस्कृतत िोती िै . अंग्रेजी

शब्द “ कल्चर” का अनव ु ाद संस्कृतत ककया जाता िै . परन्तु संस्कृतत शब्द संस्कृत भाषा का िै . अतः संस्कृत व्याकरर् के अनस ध ”कृ” र्ातु से भष ु ार िी इसका अथध भी िोना चाहिए. सम-उपसगधपूवक ू र् अथध में “सट ध “जत्कन” प्रत्यय िोने से “संस्कृतत” शब्द लसद्ध िोता िै . इस तरि लौककक, पारलौककक, ु ” आगमपूवक मन, बवु द्ध तथा अिं काराहद की भष ू र्भत ू सम्यक चेष्ट्टाएं एवं िलचलें िी “संस्कृतत” िै . (२) “संस्कृतत” जीवन जीने की एक पद्दतत का नाम िै . संस्कृतत और सभ्यता दो अलग-अलग चीजें िै . सभ्यता वेशभष ू ा, रिन, सिन, खान-पान आहद पक्षों तक िी सीलमत िै . (३) “सम” की आवजृ त्त करके “सम्यक संस्कार” को िी संस्कृतत किा जाता िै .

(४) सम्यक कृतत िी संस्कृतत िै . (५) वेद एवं वेदानस ु ारी आषध र्मधग्रन्थॊं के अनक ु ू ल लौककक-पारलौककक

अभ्यद ु य एवं तनःश्रेयसोपयोगी व्यापार िी मस ु य संस्कृतत िै और विी संस्कृतत वैहदक संस्कृतत अथवा भारतीय संस्कृतत िै . (६) कुछ ववद्वानों के मतानस ु ार- ककसी राष्ट्र के ककसी असार्ारर् बिप्पन के गवध को िी संस्कृतत किना चाहिए. पिम्पिा:जीवन जीने की शैली का नाम “परम्परा” िै .

समाज में ककस तरि शांतत बनी रि सके, छोटॆ -बिॆ, बुजुगों का आपस में कैसा व्यविार िो. अलग-अलग र्मों और सम्प्रदाय के लोगों के बीच

में ककस तरि सौिादध प्रेम बना रिे , इन सबकी लशक्षा

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


19 या तो वेदों-पुरार्ॊं, र्ालमधक ग्रंथॊं के द्वारा पढने-सीखने को लमलती िै , जजसका पालन करते रिने से अमन व चैन कायम बना रिता िै . एक बच्चा अपने अलभभावक को अपने वपता के चरर् स्पषध करते िुए दे खता िै .उसको ऐसा करता दे ख बालक भी उसका अनस ु रर् करता िै . किने का तात्पयध यि िै कक जैसा िम ककसी को करते दे खते िैं, उसका अक्षरतः अनस ु रर् करने लगते िैं. कफ़र यि पीढी-दर पीढी क्रम चलता रिता िै , यिी िै िमारी परम्पराएं. परम्पराओं के खजण्ित िोने पर पूरे समाज में , पूरे दे श में अव्यवस्था फ़ैलती िै . इसी को ध्यान में रखकर समाजशाजस्त्रयों ने कुछ तनयम प्रततपाहदत ककए और इस तरि सामाजजक ढांचा बना रिा. ककसी िद तक संस्कृतत का दोस्त बना रिा जा सकता िै , बशते कक वि उसकी खखलाफ़त या सीमा का उल्लंघन निीं करता िै . यि बात ध्यान में रखा जाना आवश्यक िोगा कक भारतीय संस्कृतत अनाहदकाल से प्रकृतत की आरार्क रिी िै , जजसके मल ू घटक िै -प्रकृतत-पुरुष और पशु-पक्षी,क्योंकक ये तीनों िी सजृ ष्ट्ट के मत ध प िैं. िमारा परम्परागत ववश्वास िै कक जब तक इन तीनों में परस्पर सौिादध सन्तुलन ू रु एवं भावनात्मक सि-संबंर् िै , तभी तक यि सजृ ष्ट्ट िै और उसका तनरन्तर ववकास संभव िै. मनष्ट्ु य एवं प्रकृतत और वन्य-जीवों के सांमजस्य के फ़लस्वरुप भारतीय संस्कृतत की समस्त सजृ ष्ट्ट में अलग िी छवव दृजष्ट्टगोचर िोती िै . जब प्रकृतत के इन तीनॊं तत्वों में परस्पर संतुलन का अभाव िोता िै तो प्रलय, मत्ृ य,ु अकाल और ववनाश लीला का ताण्िव नत्ृ य िोना स्वाभाववक िै . आज के भौततकवादी इन्सान में तत्काल लाभ की प्राजप्त की इच्छा शजक्त एवं आने वाली पीढी की खश ु िाली की परवाि ककए बगैर पशज ु गत और उनके प्राकृततक सन्तुलन से केवल छे िछाि िी निीं की िै , बजल्क उसकी प्रजाततयों तक को समाप्त कर िाला िै . उदािरर्ाथध- िमने नहदयों को माँ का दजाध हदया. उसकी पूजा-अचधना की. लोकगीतों में उसकी महिमा का बखान ककया. आज क्या जस्थतत िै ? सारी की सारी नहदयाँ प्रदवु षत िैं. इसके कारर्ॊं पर जाएं तो इन पर बनने वाले बांर्ों ने इनका बिाव रोक हदया. उसमें रिने वाले जीवों का िमने तेजी से सफ़ाया कर िाला. इसके आसपास के जंगलॊं को साफ़ कर िाला और बेरिमी से जंगलों मे रि रिे वन्य जीवों को मार िाला. इन सब बातों के मल ू में किीं न किीं लालच तछपी िुई िै .जजसमे छोटे -बिॆ आववष्ट्कारों का सिारा ललया गया. िमनें प्लाजस्टक का इजाद ककया कक सामान ले जाने –लाने मे उपयोगी लसद्ध िोगा. यि बात ककसी से तछपी निीं िै कक आज र्रती की परू ी सति प्लाजस्टकमय िो गई िै . कारर् सभी जानते िैं-पररर्ाम सभी को मालम ु िै . क्या िमने इसकी रोक पर कोई कारगर कारध वाई की? ववकास के नाम पर बिॆ-बिॆ कलकारखाने खिॆ ककए. उनकी चचमतनयों से तनकलने वाली जिरीले गैस-र्आ ु ँ क्या प्रदष ु र् निीं फ़ैला रिा िै ?

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


20 यि बात सच िै कक वैज्ञातनक खोज से मानव जातत का ववकास िोता िै ,लेककन जब िम अतत कर दे ते िैं तो विी खोज िमारी जनलेवा बन जाती िै .

िमारे ऋवष-मतु न

जंगल में रिा करते थे. वे कंद-मल ू खाते थे. खेती करके अन्न भी उपजाते थे, तथा यज्ञाहद कमध में लीन रिते थे. उन्िोंने शब्द-परम्परा को मंत्रों में ढाला और वे वक्त पिने पर उन अमोघ मंत्रों द्वारा कभी आग तो कभी पानी तक बरसाते थे. ऎसे प्रयोग यदा-कदा िी िोते थे,क्योंकक कब क्या और किाँ ककया जाता था, उसका ज्ञान –ववज्ञान इतना उन्नत ककस्म का था. वे मंत्रों के बल पर सद ु रू ग्रिों तक आ-जा सकते थे. पथ् ृ वी के तनकट कौन-कौन से ग्रि ववद्यमान िैं, उन्िें पता था. उन्िें यि भी पता था कक ककस ग्रि का स्वामी कौन िै . उसका मानव जीवन पर क्या प्रभाव पिता िै . उन आपदाओं को दरू कैसे ककया जाता िै , इन सबका उल्लेख िमारे वेद-शास्त्रों मे भरा पिा िै और आज िम उनको प्रयोग में लाते भी िैं. वे गायभैंस भी पालते थे. उनके दर् ू से नाना-प्रकार के पकवान बनाना भी जानते थे. गाय के मत्र ु तथा गोबर की खाद का प्रयोग भी वे जानते थे. वे यि भी जानते थे कक गाय मानव-समाज के ललए ककतनी उपयोगी िै . इसीललए गायों को माँ का दजाध उस समय से प्राप्त िै . वे घोर जंगल में रिते थे,लेककन उन्िोंने कभी ककसी हिंसक पशु को बेरिमी से मारा िो, ऎसा पढने में निीं आता. वे पॆि-पौर्ों को, उन्िें औषर्ीय

उपभोग

के बारे में बाररक से बाररक जानकाररयां उपलब्र् थी. वे जयोततष ववज्ञान में तनस्नात थे. नाना प्रकार के रोगों का शमन वे पेि-पौर्ों की जि, छाल अथवा अकध से तनदान कर हदया करते थे. याद हदलाने की बात निीं िै . राम-रावर् के बीच िुए यद्ध ु में लक्ष्मर् बेिोशी (कोमा) में चले जाते िैं. वैद्य सश ु ेन “संजीवनी-बूटी” की तासीर जानते थे. उन्िोंने वि बूटी हिमालय से िनम ु ान से बुलाकर उनकी बेिोशी दरू की थी. एक ग्रि से दस ू रे ग्रि तक वे आना-जाना सिज में िी कर लेते थे.

िम कि सकते िैं कक ववज्ञान और संस्कृतत

दो ववपरीत ध्रव ु िैं? ववज्ञान और संस्कृतत आपस में इतने लमले िुए थे कक उन्िें कभी अलग करके दे खा निीं गया. गाय क्यों पज ू यनीय मानी गई? क्या यि वैज्ञातनक खोज निीं िै ? वे क्यों गाय के मत्र ु और गोबर का उपयोग अनाज उगाने मे करते थे? क्या वि वैज्ञातनक खोज निीं िै ? वववाि आहद में ककस कन्या से पाखर्ग्रिर् िोना िै , ककससे निीं िोना िै , क्या यि वैज्ञातनक खोज निीं िै ? ऎसे अनेक तत्व व कारक रिे िैं जो ववज्ञान और संस्कृतत को आपस में जोिते िी निीं िै बजल्क यूं किें उसे पववबत्रकरर् की सीमा

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


21 तक भी ले जाते िैं.

दो लकडियों के परस्पर संघषध से आग पैदा की

जाती िै . यि एक उदािरर् िुआ. दस ू रा यि कक जीवन यापन करने के ललए अन्न चहिए. वि किाँ से आएगा? जमीन से अन्न उपजाना, यि भी एक वैज्ञातनक खोज िी िै . यिाँ अनेक उदािरर् हदए जा सकते िैं लेककन, जब दो शजक्तयों की िी बात िो रिी िै , तो इतना किना िी पयाधप्त िोगा कक अन्न उपजाना तथा अन्न को भोजन करने लायक बनाने के ललए आग का उपयोग, यि ववज्ञान की सबसे बिी खोज रिी िै . शायद इन दो शजक्तयों का अनस ं ान न ककया गया ु र्

िोता तो िम आज जो ववज्ञान का भव्यतम रुप

दे ख रिे िैं, वि शायद िी संभव िो पाता.

भारतीय महिलाएँ एवं आरण्य संस्कृतत पॆट की आग बुझाने के ललए अनाज चाहिए, अनाज को खाने योग्य बनाने के ललए उसे कूटनाछानना पिता िै और कफ़र रोहटयां बनाने के ललए आटा तैयार करना िोता िै . इतना सब िोने के बाद, उसे पकाने के ललए ईंर्न चाहिए और ईंर्न जंगलॊं से प्राप्त करना िोता िै . इस तरि पेट में र्र्क रिी आग को शांत ककया जा सकता िै . बात यिाँ निीं रुकती. जब पेट भर चक ु ा िोता िै तो कफ़र आदमी के सामने तरि-तरि के जरुरतें

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


22 उठ खिी िोने लगती िैं. अब उसे रिने के ललए एक छत चाहिए ,जजसमें लकडियाँ लगती िै . लकडियाँ जंगल से प्राप्त िोती िै . कफ़र उसे बैठेने-सोने अथवा अपना सामान रखने के ललए पलंग-कुलसधयाँ और अलमाररयाँ चाहिए, इनके बनाने के ललए लकडियाँ चाहिए. लकडियाँ केवल जंगल से िी प्राप्त िोती िै . रत ु गतत से भागने के ललए वािन चाहिए. गाडियां बनाने के ककए कारखाने चाहिए और कारखाने को खिा करने के ललए सैकिॊं एकि जगि चाहिए. अब गाडियों कक पेरोल चाहिए. उसने र्रती के गभध में कुएं खोद िाले .कारखाने चलाने के ललए बबजली चाहिए. और बबजली के उत्पादन के ललए कोयला और पानी. अब वि र्रती पर कुदाल चलाता िै और र्रती के गभध में तछपी संपदा का दोिन करने लगता िै . कारखाना सैकिॊं की तादात में गाडियों का उत्पाद करता िै . अब गाडियों को दौिने के जगि चाहिए. सिकों का जाल बबछाया जाने लगता िै और दे खते िी दे खते कई पिाडियां जमीदोज िो जाती िै ., जंगल साफ़ िो जाते िैं

बजस्तयां उजाि दी जाती िै , आज जस्थतत यि बन पिी िै कक आम आदमी को सिक पर चलने

को जगि निीं बची. अब आसमान छूती इमारतें बनने लगी िैं

इनके तनमाधर् में एक बिा भभ ू ाग लगता िै . कल-

कारखानों और अन्य बबजली के उपकरर्ॊं को चलाने के ललए बबजली चाहिए नयी बसािट को.पीने को पानी चाहिए. इन सबकी आपतू तध के ललए जगि-जगि बांर् बनाए जाने लगे. सैकिॊ एकि जमीन बांर् में चली गई. बांर् के कारर् आसपास की जगि दलदली िो जाती िै , जजसमें कुछ भी उगाया निीं जा सकता. आदमी की भख ू यिां भी निीं रुकती िै . अब हिमालय जैसा संवेदनशील इलाका भी ववकास के नाम पर बलल चढाने को तैयार ककया जा रिा िै . करीब दो सौ योजनाएं बन चक ु ी िै और करीब छः सौ फ़ाईलों में दस्तखत के इन्तजार में पिी िै . बिॆ-बिॆ बांर् बनाए जा रिे िैं और नहदयों का वास्तववक बिाव बदला जा रिा िै . उत्तराखण्ि में आयी भीषर् त्रासदी,और भी अन्य त्रासहदयाँ, आदमी की ववकासगाथा की किानी कि रिी िै . आने वाले समय में सब कुछ ववकास के नाम पर चढ चुका िोगा. जब पेि निीं िोंगे तो काबधनिाइआक्साईि

और अन्य जिरीले गैसों का जमाविा िो जाएगा? फ़ेफ़िॊं में घस ु ने वाली जिरीली

िवा का दरवाजा कौन बंद करे गा? बादलों से बरसने के ललए ककसके भरोसे मनि ु ार करोगे ?भारत के पुरुषॊं ने भले िी इस आवाज को अनसन ु ा कर हदया िो, लेककन भारतीय महिलाओं ने इसके ममध को-सत्य को पिचाना िै . इततिास को ककसी कटघरे में खिा करने की आवश्यक्ता निीं िै . वतधमान भी इसका साक्षी िै . महिलाएँ आज भी वक्ष ृ ों की पूजा कर रिी िैं. वटवक्ष ृ के सात चक्कर लगाती िै और उसे भाई मानकर उसके तनों में मौली बांर्ती िैं और अपने पररवार के ललए और बच्चों के ललए मंगलकामनाओं और सख ु समवृ द्ध के ललए प्राथधनाएँ करती िै . तुलसी के पौर्े में रोज सब ु ि निा-र्ोकर लोटा भर जल चढाती िैं. और

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


23 रोज शाम को उसके पौर्े के नीचे दीप बारना निीं भल ू ती िै . तुलसी के वक्ष ृ में वि वंदा और श्रीकृष्ट्र् को पाती िैं. उनका वववाि रचाती िै . पीपल के वक्ष ृ में जल चढाना –उसके चक्कर लगाना और दीपक रखना निीं भल की िाल पर झल ू तीं. अमआ ु ु ा बांर्कर कजरी गाती और अपने भाई से सरु क्षा और नेि मांगती िै . अनेकों कष्ट्ट सिकर बच्चों का पालन-पोषर् करना, कष्ट्ट सिना, उसकी मयाधदा िै . और संवेदनशीलता उसका मौललक गर् ु . यहद र्ोके से कोई एक छोटा सा कीिा/मकोिा उसके पैरों तले आ जाए, तो वि असिज िो उठती िै और यि कष्ट्ट, उसे अन्दर तक हिलाकार रख दे ता िै . जो ममता की साक्षात मरू त िो, जजसके हृदय में दया-ममता-वात्सल्य का सागर लिलिाता रिता िो, वि भला क्योंकर जीववत वक्ष ृ को काटने की सोचेगी ?. उद्दोगपततयों को कागज के ,तनमाधर् के ललए मोटे ,घने वक्ष ृ चाहिए, लम्बे सफ़ेद और ववदे शी नस्ल के यजू क्लजप्टस चाहिए और अन्य उद्दोगों के ललए उम्दा ककस्म के पेि चाहिए., तब वे लाचार-िै रानपरे शान,- गरीब तबके को स्त्री-परु ु षॊं को जयादा मजदरू ी के एवज में घेरते िैं और वक्ष ृ काटने जैसा जघन्य अपरार् करने के ललए मजबूर करते िै . मजबूरी का जब मजदरू ी के साथ संयोग िोता िै तो गाज पेिॊं पर चगरना लाजमी िै . इनकी लमली-भगत का नतीजा िै कक ककतने िी वक्ष ृ रात के अन्र्ेरे में बलल चढ जाते िैं. इस प्रवजृ त्त के चलते न जाने ककतने िी चगरोि पैदा िो गए िैं,जजनका एक िी मकसद िोता िै –पॆि काटना और पैसा बनाना. अब तो ये चगरोि अपने साथ र्ारदार िचथयार के साथ वपस्तौल जैसे िचथयार भी रखने लगे िैं. वन ववभाग के अचर्कारी और गस्ती दल,सरकारी कानन ू में बंर्े रिने के कारर्, इनका कुछ भी बबगाि निीं सकते. केवल खानापतू तध िोती रिती िै . यहद कोई पकिा भी गया, तो उसको किी सजा हदए जाने का प्रावर्ान निीं िै . उसकी चगरफ़तार िोते िी जमानतदार तैयार खिा रिता िै . इस तरि वनमाकफ़या अपना साम्राजय फ़ैलाता रिता िै . दे खते िी दे खते न जाने ककतने पिािॊं को अब तक नंगा ककया जा चुका िै . आश्चयध तो तब िोता िै कक इस काम में महिलाएं भी बिॆ पैमाने में जि ु चुकी िैं,जो वक्ष ृ पूजन को अपना र्मध मानती आयी िैं. यि उनकी अपनी मजबूरी िै ,क्योंकक पतत शराबी िै -जुआरी िै बेरोजगार िै -कामचोर िै , बच्चों की लाईन लगी िै , उनके पॆट में भख ू कोिराम मचा रिी िै , अब उस ममतामयी माँ की मजबूरी िो जाती िै और माकफ़यों से जा जुिती िैं. एक पहलू औि भी है तस्वीर का दस ू रा एक पिलू और भी िै और वि िै त्याग, बललदान और उत्सगध का. परु ु ष का पौरुष जिाँ चुक जाता िै , विीं नारी “रर्चंिी” बनकर खिी िो जाती िै .इततिास के पष्ट्ृ ठ, ऎसे दृष्ट्टान्तो से भरे पिे िैं. नारी के कुबाधनी के सामने प्रुरुष नतमस्तक िोकर खिा रि जाता िै . जिाँ नारी अपने लशशु को अपने जीवन का अकध वपलाकर उसे पालती-पोसती िै , अगर जरुरत पिॆ तो अपने बच्चे को दीवार में चुनवाने में भी पीछे निीं िटतीं. पन्ना र्ाई के उस बललदानी उत्सगध को कैसे भल ु ाया जा सकता िै .? जब

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


24 मदध कफ़रं चगयों की चमचाचगरी में अल्मस्त िो,अथवा आततातययों के मांद में जा दब ु का िो, तो एक नारी झांसी की रानी के रुप में उसकी सत्ता को चन ु ौततयाँ दे ती िुई ललकारती िैं.और इन आततातययों के ववरुद्ध शस्त्र उठा लेती िै . पयाधवरर् की रक्षा को महिलाओं ने र्ालमधक अनष्ट्ु ठान की तरि माना िै और अनेकानेक उदािरर् प्रस्तुत ककए िैं. “चचपको” आन्दोलन आखखर क्या िै ?. उसने पूंजींवादी व्यवस्था, शासनतंत्र और समाज के तथाकचथत टे केदारों के सामने जो आदशध प्रस्तत ु ककया िै ,वि अपने आपमें अनठ ू ा िै . जब कोई पेि काटने आता िै , तो वे उनसे जा चचपकती िै , और उन्िें ललकाराते िुए किती िैं कक पेि के साथ िम भी कट जाएंगी,लेककन इन्िें कटने निीं दें गी. लाल खन ू की यि कुबाधनी दे श के लाखों-करोिॊं पेिॊं की रक्षाथध खिी िुई. यि एक अहिंसक ववरोर् था और इन अहिंसा के सामने उन दद ु ा​ांतों को नतमस्तक िोना पिा. ऎसी नाररयों का नाम बिी श्रद्धा के साथ ललए जाते िैं. वे िैं करमा, गौरा, अमत ृ ादे वी, दामी और चीमा आहद-आहद. पेिॊं के खाततर अपना बाललदान दे कर ये अमर िो गई और समच ू ी मानवता को संदेश दे गई कक जब पेि िी निीं बचेगा, तो जीवन भी निीं बचेगा. इस अमर संदेश की गज ूं आज भी सन ु ाई पिती िै . ववश्नोई समाज ने पयाधवरर् के रक्षा का एक इततिास िी रच िाला िै . पुरुष-स्त्री, बालक-बाललकाएं पेिॊं से जा चचपके और उनके साथ अपना जीवन भी िोम करते रिे थे . ववश्व में ऎसे उदािरर् बबरले िी लमलते िैं. जोर्पुर का ततलसर्ी गाँव आज भी अपनी गवािी दे ने को तैयार िै कक यिाँ प्रकृतत की रक्षा में ववश्नोई समाज ने अपने प्रार्ॊं की आिूततयाँ दी थी. श्रीमती खींवनी खोखर और नेतू नीर्ा का बललदान अकारर् निीं जा सकता. शताजब्दयां इन्िें और इनके बललदान को सादर नमन करती रिें गी. बात संवत 1787 की िै . जोर्पुर के मिाराजा के भव्य मिल के तनमाधर् के ललए चूना पकाने के ललए लकडियाँ चाहिए थी. सब जानते थे कक केजिली का वनांचल वक्ष ृ ॊं से भरा-परू ा िै . विाँ के लोग पेिॊं को अपने जीवन का अलभन्न अंग मानते िै . ये पेि उनके सख ु -दख ु में सगे-संबंचर्यों की तरि और अकाल पिने पर बिुत िी उपयोगी लसद्ध िोते रिे िैं. लोग इस बात से भी भली-भांतत पररचचत थे कक वे पेिॊं कॊ ककसी भी कीमत पर कटने निीं दें गे. मिाराजा ने काररन्दों की एक बिी फ़ौज भेजी, जो कुल्िाडियों से लैस थी. उन्िें दलबल के साथ आता दे ख ग्रामीर्ॊं ने अनन ु य-ववनय आहद ककए, िाथ जोिॆ और किा की ये पेि िमारे राजस्थान के कल्पवक्ष ृ िैं. ये पेि र्रती के वरदान स्वरुप िैं. आप चािें िमारे प्रार् लेलें लेककन िम पेिॊं को काटने निीं दें गे. इस अहिंसात्मक टॊली की अगआ ु यी अमत ृ ा दे वी ने की. थीं.

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


25

अमत ृ ादे वी

पेि से चचपकी अमत ृ ादे वी

वे सामने आयीं और एक पेि से जा चचपकी और गजधना करते िुए किा-“चलाओ अपनी कुल्िािी....मैं भले िी कट जाऊँ लेककन इन्िें कटने निीं दं ग ू ी.” उसकी आवाज सन ु ी-अनसन ु ी कर दी गई और एक काररन्दे ने आगे बढकर उसके ऊपर कुल्िािी का तनमधम प्रिार करना शरु ु कर हदया. अपनी माँ को मत ृ पाकर इनकी तीन बेहटयाँ वक्ष ृ से आकर ललपट गईं. काररन्दे ने तनमधम प्रिार करने में दे र निीं लगाई. कुल्िािी के वार उनके शरीर पर पिते जा रिे थे और उनके मख ु से केवल एक िी बोल फ़ूट रिे थे:-“लसर साठे सट्टे रुं ख रिे तो भी सस्तो जार्”. इनके बललदान ने ग्रामीर्ॊं के मन में एक अभत ू पव ू ध जोश और उत्साि को बढा हदया था. इसके बाद बारी-बारी से ग्रामीर् पेिॊं से जा चचपकता और काररन्दे उन्िें अपनी कुल्िािी का तनशाना बनाते जाता. इस तरि 363 व्यजक्तयों ने िँसते-िँसते अपने प्रार्ॊं का उत्सगध कर हदया. िम जब इततिास की बात कर िी रिे िैं तो और थोिा पीछे की ओर चलते िैं. और उस पौराखर्क यग ु की यात्रा करते िैं ,जब प्रकृतत और मनष्ट्ु य के जीवन के बीच कैसे संबंर् थे. मत्स्यपुरार् में वक्ष ृ लगाने कक ववचर् बतलायी गई िै . “पादाना​ां विधधां सत ू //यथािद विस्तिाद िद//विधधना केन कतमव्यां पादपोद्दापनां बुधै//ये चे लोका​ाः स्र्त ृ ास्तेषा​ां ताननदानीां िदस्ि नाः ऋवषयों ने सत ू जी से पछ ू ा;- ’अब आप िमें ववस्तार के साथ वक्ष ृ लगाने की यथाथध ववचर् बतलाइये. ववद्वानों को ककस ववचर् से वक्ष ृ लगाने चाहिए तथा वक्ष ृ ारोपर् करने वालों के ललए जजन लोकों की प्राजप्त बतलायी गयी िै , उन्िें भी आप इस समय िम लोगों को बतलाइए”. सत ू जी ने वक्ष ृ लगाए जाने के की ववचर् के बारे में ववस्तार से वर्धर् ककया िै . वतधमान समय में शायद िी इस ववचर् से कोई वक्ष ृ लगा पाता िै. वक्ष ृ लगाने वाले अततववलशष्ट्ठ व्यजक्त के ललए, पिले िी इसकी व्यवस्था करा दी जाती िै . उनके आने का इन्तजार ककया जाता िै और उसके आते िी उसे फ़ूलमालाओं से लाद हदया जाता िै और वक्ष ृ लगाते समय उन मिाशय की फ़ोटॊ उतारकर अखबार में प्रकालशत करा दी जाती िै . उसके बाद उस वक्ष ृ की जिॊं में , पानी िालने शायद िी कोई जा पाता िै .

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


26 नतीजन वक्ष ू जाता िै . कोलशश तो यि िोनी चाहिए कक वक्ष ृ सख ृ पले-बढे , और लोगो को शीतल छाया और फ़ल दे सके. यहद ऎसा िोता तो अब तक उस क्षेत्र ववशेष में िररयाला का साम्राजय छाया िोता और न जाने ककतने फ़ायदे विां के रिवालसयों को लमलते. खैर. सत ू जी ने वक्ष ृ लगाए जाने पर ककस-ककस चीज की प्राजप्त िोती िै बतलाया िै . “अनेन विधधना यस्तु कुयामद िक्ष ु े ृ ोत्सिां/ सिामन कार्ानिाप्नोनत फ़लां चानन्तत्यर्श्ु नत यश्चैकर्वप िाजेन्तर िक्ष ु त्रयर् ृ ां सांस्थापयेन्तनिाः/सोSवप स्िर्गे िसेद िाजन यािददन्तरायत भत म ार् ू ान भव्या​ांश्च र्नज ु ा​ांस्ताियेदरर् ु सम्म्र्तान/पिर्ा​ां ससविर्ाप्नोनत पुनिािम्ृ त्तदल ु भ य इदां श्रण ृ ुयाम्न्तनत्यां श्राियेद िावप र्ानिाः/सोSवप सम्पूम्जतो दे िैब्रर्हर्मलोके र्हीपते(16-17-18-19) अथाधत:- जो ववद्वान उपयक् ुध त ववचर् से वक्ष ू ध ृ ारोपर् का उत्सव करता िै , उसकी सारी कामनाएँ पर् िोती िै . राजेन्र ! जो मनष्ट्ु य इस प्रकार एक भी वक्ष ृ की स्थापना करता िै , वि जब तक तीस इन्र समाप्त िो जाते िैं ,तब तक स्वगध में तनवास करता िै . वि जजतने वक्ष ृ ों का रोपर् करता िै , अपने पिले और पीछॆ की उतनी िी पीहढयों का उद्धार कर दे ता िै तथा उसे पुनरावजृ त्त से रहित परम लसवद्ध प्राप्त िोती िै . जो मनष्ट्ु य प्रततहदन इस प्रसंग को सन ु ता या सन ु ाता िै , वि भी दे वताओं द्वारा सम्मातनत और रह्ह्मलोक में प्रततजष्ट्ठत िोता िै .”(मत्स्यपुरार्-उनसठवाँ अध्याय) मत्स्यपुरार् में वक्ष ृ ों का वर्धर् बार-बार लमलता िै . इसके अलावा पद्मपरु ार्, भववष्ट्यपुरार्, स्कन्दाहदपरु ार्ॊं में इसकी ववस्तार से ववचर्यां बतलायी गईं िै . “य़स्य भसू र्ाः प्रर्ाSन्ततरिक्षर्त ु ोदिर्/ददव्यां यश्च बूधामनां तस्र्ै ज्येष्ठाय ब्रहर्णॆ नर्ाः(अथिमिेद (१०/७/३२) अथाधत “भलू म जजसकी पादस्थानीय़ और अन्तररक्ष उदर के समान िै तथा द्दुलोक जजसका मस्तक िै , उन सबसे बिॆ रह्ह्म को नमस्कार िै.” यिाँ परमरह्ह्म परमेश्वर को नमस्कार कर, प्रकृतत के अनस ु ार चलने का तनदे श हदया गया िै . वेदों के अनस ु ार प्रकृतत एवं परु ु ष का सम्बन्र् एक दस ू रे पर आर्ाररत िै . ऋग्वेद में प्रकृतत का मनोिारी चचत्रर् िुआ िै . विाँ प्राकृततक जीवन को िी सख ु -शांतत का आर्ार माना गया िै . ककस ऋतु में कैसा रिन-सिन िो, क्या खान-पान िो, क्या सावर्ातनयाँ िों- इन सबका सम्यक वर्धर् िै . ऋग्वेद (७/१०३/७) में वषाध ऋतु को उत्सव मानकर शस्य-श्यामला प्रकृतत के साथ, अपनी िाहदध क प्रसन्नता अलभव्यक्त की गयी िै . वेदों के अनस ु ार पयाधवरर् को अनेक वगों में बांटा जा सकता िै .-यथा- वाय-ु ,जल,-ध्वतन,खाद्य और लमट्टी, वनस्पतत, वनसंपदा, पशु-पक्षी-संरक्षर् आहद. स्वस्थ और सख ु ी जीवन के ललए पयाधवरर्की रक्षा में वायु की स्वछता का प्रथम स्थान िै . बबना प्रार्वायु के एक क्षर् भी जीना संभव

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


27 निीं िै . ईश्वर ने प्राखर्जगत के ललए संपूर्ध पथ्ृ वी के चारों ओर वायु का सागर फ़ैला रखा िै. िमारे शरीर में रक्त-वाहितनयों में बिता िुआ खून, बािर की तरफ़ दवाब िालता िै , यहद इसे संतुललत निीं ककया गया तो शरीर की र्मतनयां फ़ट जाएगीं और िमारा जीवन नष्ट्ट िो जाएगा. वायु का सागर इससे िमारी रक्षा करता िै . पॆि-पौर्े आक्सीजन दे कर क्लोरोकफ़ल की उपजस्थतत में , इसमें से काबधनिाईआक्साइि अपने ललए रख लेते िैं और िमें आक्सीजन दे ते िैं. इस प्रकार पेि-पौर्े वायु की शुवद्ध द्वारा िमारी प्रार्-रक्षा करते िैं. वायु की शुवद्ध के ललए यजुवेद में स्पष्ट्ट ककया िै . “तनन ू पादसिु ो विश्ि​िेदा दे िो दे िेषु दे िाः/पथो अनक्तु र्ध्िा घत ृ ेन”

(२७/१२)

“द्िाविर्ौ िातौ िात ससन्तधोिा पिािताः/दक्षां ते अन्तय आ िायु पिान्तयो िातु यरपाः (ऋग्वेद-१०/१३७/२) यददौ िात ते र्गह ृ स्य ननधधदहमताः/ततो नो दे दह जीिसे (ऋग्वेद-१०/१८६/३) ृ ेSर्त िमारे पूवज ध ों को यि ज्ञान था कक िवा कई प्रकार के गैसों का लमश्रर् िै , उनके अलग-अलग गर् ु एवं अवगर् ु िैं, इसमें प्रार्वायु भी िै , जो िमारे जीवन के ललए आवश्यक िै . शुद्ध ताजी िवा अमल् ू य औषर्ी िै और वि िमारी आयु को बढाती िै . वेदों में यि भी किा गया िै कक तीखी ध्वतन से बचें , आपस में वाताध करते समय र्ीमा एवं मर्ुर बोलें. र्ा भ्राता भ्रातिां द्विक्षन्तर्ा स्िसािर्त े ३/३०/३). ु स्िसा/सम्यश्च सव्रता भत्ू िा िाचां िदत भरया(अथवधवद म्जव्हाया अग्र र्धु र्े म्जव्हार्ल ू े र्धूलकर्/र्र्ेदह क्रतािसो र्र् धचत्तर्प ु ायसस(अथवेवेद१/३४/२) अथाधत;- मेरी जीभ से मर्ुर शब्द तनकलें. भगवान का भजन-पूजन-कीतधन करते समय मल ू में मर्ुरता िो. मर्ुरता मेरे कमध में तनश्चय रिे . मेरे चचत्त में मर्ुरता बनी रिे ..इसी तरि खाद्य-प्रदष ू र् से बचाव के उपाय एवं. लमट्टी(पथ् ू र् की रोकथाम के उपाय भी बतलाए गए िैं. ृ वी) एवं वनस्पततयों में प्रदष यस्यार्न्तनां व्रीदहयिौ यस्या इर्ा​ाः पांच कृष्टयाः/भम् े -१२/१/४२) ू यै पजमन्तयपल्यै नोर्ोSत्तु िषमर्ेदसे.(अथवधवद अथाधत;- भोजन और स्वास्थय दे ने वाली सभी वनस्पततयाँ इस भलू म पर उत्पन्न िोती िै . पजृ थ्व सभी वनस्पततयों की माता और मेघ वपता िैं,क्योंकक वषाध के रुप में पानी बिाकर यि पथ् ृ वी में गभाधर्ान करता िै .

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


28 आप ककसी भी ग्रंथ को उठाकर दे ख लीजजए,सभी में प्रकृतत का यशोगान लमलेगा और यि भी लमलेगा कक आपके और उसके बीच कैसे संबंर् िोंने चाहिए और ककस तरि से िमें उसॆ स्वस्थ और स्वच्छ बनाए रखना िै . शायद िम भल ू ते जा रिे िैं कक पयाधवरर् चेतना िमारी संस्कृतत का एक अटूट हिस्सा रिा िै . िमने िमेशा से िी उसे मातभ ु ार-और जीवन दे ने वाली माता के रुप ृ ाव से दे खा िै . प्यार-दल में . जो मां अपने बच्चे को, अपने जीवन का अकध तनकालकर वपलाती िो, उसे उस दर् ू की कीमत जानना चाहिए. यहद िम उसके साथ दव्ु यधविार करें गे, उसका अपमान करें गे अथवा उसकी उपेक्षा करें गे, तो तनजश्चत िी उसके मन में िमारे प्रतत ममत्व का भाव स्वतः िी ततरोहित िोता जाएगा. काफ़ी गलततयाँ करने के बावजूद ,माँ कभी भी अपने बच्चों पर कुवपत निीं िोती. लेककन जब अतत िो जाए –मयाधदा टूट जाए तो कफ़र उसके क्रोर् को झेलना कहठन िो जाता िै . अपनी मयाधदा की रक्षा के ललए कफ़र उसे अपने बच्चों की बलल लेने में भी, कोई खझझक निीं िोती.

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


29

७…..मदर टे रेसा जयन्ती पर ववशेष दयार्र्ता-करुणा-त्यार्ग औि सेिा की बेजोड प्रनतर्नू तम समय-समय पर संसार में कई मिान ववभतू तयों ने जन्म लेकर मानवता के कल्यार् मात्र के कायों के प्रतत अपना जीवन समवपधत ककया िै . मानवता के प्रतत प्रेम-दया-करुर्ा-त्याग की भावना इन मिानववभतू तयों में सवधतनष्ट्ठ रिी िै . इन्िीं में एक नाम शालमल िै मदर टे रेसा का. मदर टे रेसा का संपूर्ध जीवन उपेक्षक्षतों,तनराचश्रतों,व असिायों के कल्यार् कायध के प्रतत समवपधत रिा. २७ अगस्त १९१० को यग ु ोस्लाववया के स्कोप्जे नामक छोटे से नगर में एक मध्यमवगीय पररवार में उनका जन्म िुआ. इस नन्िीं सी बाललका का नाम “एग्नेस गोन्िा बोजाहिय “रखा गया. माता-वपता की र्लमधक प्रवतृ त का नन्िीं बाललका एग्नेस पर बिुत प्रभाव पिा. बचपन से िी नसध बनकर सेवा-सश्र ु ुषा करने की ललक एजग्नस के अन्तःस्थल मे गिरी पैठ गई और अठारि वषध की उम्र मे एग्नेस ने नन का चोला पिन ललया. ६ जनवरी १९२९ को अग्नेस भारत पिुँची. २ वषध प्राथधर्ा,चचंतन व अध्ययन में बबताने के पश्चात उन्िोंने टे रेसा का नाम र्ारर् ककया. सन १९३१ में कलकत्ता ( अब कोलकता) में टोरे न्टो कान्वें ट िाईस्कूल में भग ू ोल की अध्यावपका के रुप में उन्िोंने नया लमशनरी जीवन शुरु ककया. बाद में वे उसी स्कूल की प्राचायाध बनीं. अपनी यात्रा के दौरान गरीबों-असिायों की दद ु ध शा दे खकर रववत िो उठी और उन्िोंने अपनी अन्तरात्मा की आवाज पार अपना जीवन तनर्धनों-दललतों व पीहढत मानवता की सेवा में लगाने का तनश्च्चय ककया. उन्िोंने कोलकाता के तत्कालीन आकधबबषप परे रा व पोप से कान्वें ट छोिने की अनम ु तत ली और पटना आ गईं. पटना मे उन्िोंने “अमेररकन मेडिकल लसस्टसध “से नलसांग पाठ्यक्रम ककया. नसध के तीन वषध के प्रलशक्षर् को उन्िोंने मात्र तीन माि में िी प्राप्त कर ललया था. सवधप्रथम इन्िोंने कोलकाता की तेलजला और मोतीझील नामक दो गंदी बजस्तयों मे अपना सेवा कायध प्रारं भ ककया. श्री माइकल गोम्स की सिायता से उन्िोंने २१ लसतम्बर १९४८ को मोती झील क्षेत्र में

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


30 स्यालदाि रे ल्वे स्टे शन के समीप गरीब बच्चों के ललए पिला स्कूल खोला. बाद में एक मजन्दर के समीप जस्थत र्मधशाला में

इन्िें जगि लमल गई,जजसे उन्िोंने “ तनमधल हृदय” नाम हदया तथा वद्ध ृ व असाध्य

रोचगयों की चचककत्सा की. इसके पश्चात उन्िोंने पररत्यक्त व अनाथ बच्चों ,के ललए “ तनमधल लशशु भवन” की शुरुआत की. सन ् १९५१ मे आपाने रोचगयों के पुनवाधस के ललए कुष्ट्ठ तनवारर् केन्र की स्थापना की और एक चललत औषर्ालय की भी शरु ु आत की. उनके समपधर् के भाव को दे खकर पजश्चम बंगाल की सरकार ने आसनसोल के समीप ३४ एकि जमीन प्रदान की,जिां उन्िोंने “शांतत नगर” की स्थापना की. यिां उन्िोंने कुष्ट्ठ रोचगयों को समाज मे यथोचचत स्थान हदलाने के ललए प्रलशक्षक्षत भी ककया. कफ़र जरुरतमंद महिलाओं के ललए “ प्रेमद्धाम” की भी स्थापना की. यिां काम करके महिलाएं आत्मसम्मान तो पाती िी थी,साथ िी अपनी जीववका के ललए र्नोपाजधन भी करती थीं.

इनका

सेवा कायध एक जगि िी सीलमत निीं रिा वरन भारत के अनेक नगरों के साथ-साथ ववदे शों में भी सेवा गततववचर्यों का ववस्तार िोता रिा.

सन

१९५० में आपने “लमशनरीज आफ़ चेररटीस” ,नामक संस्था का गठन ककया .इस संगठन में िजारों की संसया में पुरुष व महिलाकमी भी सेवारत िैं. मदर ने सदै व बच्चों को ईश्वर की दे न माना. वे गभधपात के ससत खखलाफ़ थीं उनका किना था कक :-“ईश्वर ने िर बच्चे को मिान कायों के ललए लसरजा िै ,प्यार दे ने और पाने के ललए वि ईश्वर का िी स्वरुप िोता िै ”.

सन

१९४८ में उन्िोंने भारत की नागररकता ग्रिर् की थी. आचार –ववचार-सोच में वे सच्ची भारतीय रिीं. एक बार,एक व्यजक्त ने उनकी नागररकता को लेकर प्रश्न ककया तो बजाय नाराज िोने के अथवा क्रुद्ध िोने के उन्िोंने मस् ु कुराते िुए उस व्यजक्त को जबाब हदया:-“मैं मन से भारतीय िूँ और संयोग से आप भी भारतीय़ िैं”. आपको समय-समय पर सम्मातनत ककया गया. भारत का सवोच्च सम्मान” भारत रत्न” से आपको सम्मातनत ककया गया,जजसमें नोबेल शांतत परु स्कार भी शालमल िै . पांच लसतम्बर सन १९९७ को आपका स्वगधवास िो गया. एक पववत्र आत्मा का ईश्वर में ववलय िो गया. मदर ने अपने उद्बोर्न में किा था:-“दतु नयां में गरीबी,ददध और उपेक्षा िर किीं ववद्धमान िै ,चािे अमेररका िो या बांग्लादे श,आस्रे ललया िो या कक भारत,जरुरतमंदों की िर जगि असंसय तादात िै . िमारी लिाई भौततक-गरीबी के खखलाफ़ निीं िै . िमारी जंग तो उपेक्षक्षत एवं ततरस्कार से उत्पन्न िोने वाली आध्याजत्मक गरीबी के खखलाफ़ िै . इस गरीबी से तनजात पाने के ललए भौततक व्यवस्थाएं पयाधप्त निीं िै . केवल त्याग और प्रेम के शस्त्र से इस गरीबी पर ववजय प्राप्त की जा सकती िै . आवश्यकता से अचर्क र्न एकत्र िो जाने पर उसे गरीब को दान स्वरुप दे दे ना कोई बिी बात निीं िै . खून-पसीना बिाकर

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


31 कमाए र्न में से सख ु -सवु वर्ा में कटौती कर ककसी को सिारा दे ना, उसकी पीिा व संघषध में शरीक िोना िै . ईश्वर को ऐसे दान वप्रय िै ”. मदर टे रेसा आज िमारे बीच निीं िै ,लेककन उनके उदगार िमारे बीच िै . मदर की इस पावन जयन्ती पर िम संकल्प लें कक िम सभी लमलकर गरीबी-लाचारी का िटकर मक ु ाबला करें गे और इस र्रती से उसे सदा-सदा के ललए समाप्त कर दें गे. मदर के सम्मान में िाक ववभाग ने’प्रथम हदवस आवरर्” जारी कर उन्िें सम्मान हदया था.

८…. नत्ृ य, जब मिारास में बदल जाये . प्रत्येक पवध एवं त्योिार िमारी जीवन-यात्रा के ललए कुछ न कुछ प्रकृतत प्रेम का संदेश लेकर आता

िै ..भारत में मेलों और उत्सवों का उदय भी इसी का क्रमबद्ध रुप था और ये मेले और उत्सव प्रकृतत की गोद में ,नदी के ककनारे या खेती से प्राप्त लाभ की उमंग के रुप में उदय िुए और सामहू िक रुप से इकठ्ठे िोकर, मनोरं जन के सार्न तथा सामाजजक मेल-लमलाप के माध्यम भी बने. त्योिारॊं

की श्रख ृ ंला में एक ऎसा िी मनभावन त्योिार िै दीपावली. इस त्योिार को पूरे दे श मे बिी िी श्रद्ध ृ ा एवं उल्ल्िास के साथ मनाया जाता िै .दीपावली से दो हदन पूवध से िी र्नतेरस, नरक चौदस, दीपावली,अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजन मनाए जाने की परं परा िै. दीपावली पूजन के ठीक दस ू रे िी हदन अिीरों की टोली अपनी पारम्पररक वेषभष ू ा में नत्ृ य करते दे खे जा सकते िै .ढोलक की थाप पर एवं बांसरु ी की तान पर, आप इन्िें

मस्ती में नाचते-गाते दे खते िैं. यि सब क्यों िोता िै , और क्यों ककया जा रिा िै,,इसे जानने के ललए िमें थोिा इततिास में जाना िोगा.

काततधक मास के शुक्ल

पक्ष की प्रततपदा को अन्नकूट मिोत्सव मनाया जाता िै . इस हदन गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट उत्सव मनाया जाता िै . इससे भगवान ववष्ट्र्ु की प्रसन्नता प्राप्त िोती िै.

" काततधकस्य लसते पक्षे अन्नकूटं समाचरे त ! गोवर्धनोत्सवं चैव श्रीववष्ट्र्ःु

प्रीयतालमतत.!!

इस हदन प्रातःकाल घर के द्वार दे श में गौ के गोबर का गोवर्धन बनाकर तथा उसे लशखरयक् ु त

बनाकर वक्ष ु त और पष्ट्ु पों से सजाया जाता िै ..इसके बाद गन्र् पष्ट्ु पाहद से गोवर्धन भगवान ृ -शाखाहद से संयक्

का ववचर्पव ध पज ू क ू न ककया जाता िै .तथा यथा सामथ्यध भोग लगाया जाता िै . मजन्दरों में ववववर् प्रकार के पकवान, लमठाइयां नमकीन और अनेक प्रकार की सजब्जयाँ, मेवे फ़ल आहद भगवान के समक्ष सजाए जाते िैं तथा अन्नकूट का भॊग लगाकर आरती िोती िै कफ़र भक्तों में प्रसाद ववतरर् ककया जाता िै .काशी,

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


32 मथुरा,वंद मजन्दरों में लड्िुऒ ं तथा पकवानों के ु ृ ावन,गोकुल,बरसाना, नाथद्वारा आहद भारत के प्रमख पिाि(कूट) बनाए जाते िै,

द्वापर में वज ू ा िोती थी. श्रीकृष्ट्र्जी ने गोप-ग्वालों को समझाया ृ में अन्नकूट के हदन इन्र की पज

कक गाएं और गोवर्धन प्रत्यक्ष दे वता िैं. अतः इनकी पूजा िोनी चाहिये,क्योंकक इन्र तो यिाँ कभी हदखायी

निीं दे ते और न िी आप लोगों के द्वारा बनाये गये पकवान िी ग्रिर् करते िै . भगवान की प्रेरर्ा से वज ृ वालसयों ने गोवर्धन पवधत का पूजन ककया और स्वयं गोवर्धन का रुप र्ारर्कर पकवानों को ग्रिर् ककया. जब इन्र को

इस बात का पता चला तो वे अत्यन्त िी क्रोचर्त िुए और प्रलयकाल के सदृश मस ु लार्ार वजृ ष्ट्ट कराने लगे. यि दे ख श्रीकृष्ट्र्जी ने गोवर्धन पवधत को अपनी अँगल ु ी पर र्ारर् ककया ,उसके

नीचे सब वज ृ वासी,ग्वालबाल, गायें-बछिे आहद आ गये. लगातार सात हदन तक वषाध िोती रिी ,लेककन वे

कुछ निीं बबगाि पाये. इन्र को इससे बिी ग्लातन िुई. तब रह्ह्माजी ने इन्र को श्रीकृष्ट्र् के पररह्म्ि परमात्मा िोने की बात बतलायी, तो लजजजत िो इन्र ने वज ृ आकर क्षमा मांगी.वज ृ वालसयों ने लमलकर

मांगललक गीत गाये और जमकर नत्ृ य ककया. अिीरों के नत्ृ य करने के पीछे यि भी एक कारर् िो सकता िै .

श्रीकृष्ट्र्जी का जन्म ऎसे समय में िुआ था,जब र्रती कंस के अत्याचार से कांप रिी थी. जन्म के साथ िी एक-एक असरु ों कॊ मारना,वन में गौवें चराने जाना,दर्ी-माखन के बेचे जाने का ववरोर् कर, मटककयों का फ़ोिना, माखन चुराकर खाना ,ग्वालबालाओं के साथ नत्ृ य करना ,काललयादि से काललया नाग

को विाँ से मार भगाना आहद-आहद घटनाओं पर यहद िम ववचार करें तो भगवान श्रीकृष्ट्र्जी की पयाधवरर्

के प्रतत सजगता एवं उनके रक्षर् एवं संवर्धन की दृजष्ट्ट को समझा जा सकता िै . आज ववकास के नाम

पर प्रकृतत का ववनाश िोते िुए िम दे ख रिे िैं और भयावि परे शातनयों के दौर से गज ु र भी रिे िैं. अगर िमारा यि क्रम जारी रिा तो दहु दध न आने में वक्त निीं लगेगा. अिीरॊं के नत्ृ य के पीछे , इस प्रकृतत- प्रेम की भावना को समझा जाना चाहिए.

श्रीकृष्ट्र् व्याविाररक दाशधतनक थे. जन्म की पिली रात से जीवन की अंततम घिी तक, वे पर् ू ध

पररपक्व बने रिे . ववशेषताओं के रत्नाकर, श्रीकृष्ट्र् के जीवन के, जजस भी पक्ष को िम छुएं,वि मखर् की तरि चमकदार िी हदखता िै. आज का समय la?k’kZ का यग ु िै la?k’kZ को सामान्य रुप से ववपरीत काल, प्रततकूल जस्थततयां ,परे शातनयों तथा, संकट का दस ू रा रुप माना जा सकता िै. श्रीकृष्ट्र् ने la?k’kZ को इनसे तनकालकर,

एक ऎसी जीवन शैली का रुप हदया, जो वतधमान के ललए सबक का ववषय िै .

बचपन में लीलाओ का वैचचत्र्य, जवानी में द्वारकार्ीश का पराक्रम, प्रौढावस्था में योगेश्वर का चचन्तन तथा वद्ध ृ ावस्था में श्रीकृष्ट्र् के वववादास्पद तनर्धय,अचर्क नए-नए ववचार दे ने वाले रिे . इस अद्भत ु समार्ानकारी व्यजक्तत्व को, सदै व प्रश्नॊं के घेरे मे खिा ककया गया .दो सवाल आज भी िमें उलझनॊं मे िालने के ललए पयाधप्त िै कक उन्िोने बचपन में मिारास और बाद की आयु मे मिाभारत क्यों कराया

?.क्या कभी आपने इस ववषय पर गंभीरता से ववचार ककया िै ? मेरा अपनी अल्पबवु द्ध के अनस ु ार मेरा अपना मत िै कक बचपन में बालकॊं का हृदय स्वच्छ-साफ़ और सरल िोता िै . यहद वे लमलकर नत्ृ य करते

िै तो उसमे कृबत्रमता किीं निीं िोती,.क्योकक वे जो कुछ भी सोचते और करते िैं उसमें हृदय प्रमख ु िोता

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


33 िै . उसमे बुजध्र् का किीं भी योगदान निीं रिता. अतः उनके द्वारा ककया गया िर कायध, भले िी वि नत्ृ य िी क्यों न िो, उसमे बनावटीपन निीं िोता .उनके नत्ृ य में वे कोमल भाव सदै व उपजस्थत रिते िै. यिाँ

cqf) का प्रयोग निीं के बराबर िै .बच्चा जब जवान िोने लगता िै तो उसकी बाल- सल ु भ िरकतॊं मे अन्तर आने लगता िै . वि िर कायध हदल से न करते िुए बुजध्र् से करने लगता िै और उसमे कृबत्रमता आने लगती िै .कफ़र बाललीलाओं में मर्रु ता का चरम जो िोता िै . अतः श्रीकृष्ट्र्जी ने बचपन में मिारास लीलाएं कीं. उनके नाचने के साथ केवल बज ृ िी निी नाचा बजल्क ववश्व भी उनके साथ नत्ृ य करने लगा था. यव ु ावस्था में प्रवेश करते िी बवु द्ध अपना काम करने लगती िै . उसमें इतनी समझ ववकलसत िो जाती िै

कक वि अच्छे और बुरे मे फ़कध मिसस ु करने लगता िै . पाप क्या िै और पुण्य क्या िै ,इसे समझने लगता

िै .कुल लमलाकर यि किा जा सकता िै कक उसकी बुवद्ध, तनर्धय करने की क्षमता ववकलसत िो चुकी िोती िै ..उन्िोने दे खा कक कौरव, पाण्िवों के साथ सिी न्याय निीं कर रिे िैं ,तब उन्िोंने इसका फ़ैसला यद्ध ु के जररये करने

का ववकल्प खोज तनकाला. ऎसा भी निीं था कक परू ी प्रजा को उन्िोने यद्ध ु मे झोंक हदया.

यद्ध ु से पिले वे स्वयं शांततदत ू बनकर गये और सभी पिलओ ु ं पर ववस्तार से अपनी बात रखी. मैं समझता िूँ कक बढती उम्र मे नत्ृ य निीं, बजल्क मिाभारत िी िो सकता िै .यि बात िमें ध्यान मे रखना िोगा. इसी मिाभारत. के नेतत्ृ व के कारर् िम उन्िें एक ववलशष्ट्ट स्थान पर खिा पाते िै. लमत्रों,बात स्पष्ट्ट िै कक जब

नत्ृ य अपने चरम पर जा पिुँचता िै तो वि मिारास मे तब्दील िो जाता िै. आज की ततचथ में िमें नत्ृ य को उस चरम तक पिुँचाना िै , जो मिारास मे बदल जाए. केवल िम िी निीं नाचें , बजल्क िमारे साथ समच ू ा ववश्व नाचने लगे और नाचने लगे जि-चेतन भी. इस बात पर भी िमें गंभीरता से सोचना िोगा. जमन ु ा के तट पर बैठ कर

बासरुं ी बजाना, गाय चरना, भोली-भाली गोवपयों के साथ नाचना ,बिे-

बिे सरु माओं को र्ूल चटाते कृष्ट्र् को समझ पाना यहद कहठन निीं िै , तो सरल भी निीं िै . आज अपने आपको श्रीकृष्ट्र् के वंशज िोने का दावा करने वाले सभी यदव ु ंलशयों को इस बात पर गिनता से अध्ययन

करना िोगा, कक क्या वे उस हदव्यता का एक अंश भी अपने जीवन में उतार पाने में किाँ तक सफ़ल िो पाए िैं ? िम थोिा यिाँ उन्िें समझते चलें. ग्यानक्रांतत के उदघोषक के रुप में वे गीताकार िैं. उनके ग्यान की इस प्रखर और प्रबल र्ारा का लोिा सारा संसार मानता िै. नैततकक्रांतत ,भावनात्मक नवतनमाधर् के ललए वे भजक्तरस के संचारक िैं. उनकी भक्तवत्सल, लोकहित के ललए समवपधत भाव को कोई नकार निीं सकता. सामाजजक क्राजन्त-नायक के रुप में , वे वज ृ में गोरस सत्याग्रि से लेकर, मिाभारत तक का संचालन ककया.

इन सबके पीछे उनके दष्ट्ु प्रवजृ त्त-उन्मल ू न और सत्प्रवजृ त्त-संवर्धन का ,यग ु र्मध की स्थापना का, सदृ ु ढ संकल्प

कायध करता हदखाई दे ता िै. सामाजजक कायधक्रमॊं के रुप में उन्िोंने अनेक अलभयान चलाए ,उन्िें यिाँ आज समझने की जयादा जरुरत िै. श्रीकृष्ट्र्जी के अग्रज बलराम िलर्र किलाए तथा वे स्वयं गोपाल किलाए.

इस संबोद्धन

के पीछे उनकी ववशेष मंशा झलकती िै. भारत कृवषप्रर्ान दे श िै. यिाँ की उपजाऊ भलु म में अन्न,फ़ल से लेकर औषचर्यों,वनस्पततयों की अटूट संपदा उपजती िै

इसी संपदा को ववकलसत कराने की सार्ना का

नाम कृवष और उक्त सार्ना मे तनष्ट्ठापूवक ध लगे रिने वाले सार्क का नाम कृषक.िै . कृषक याने िलर्र.

गोपाल के बगैर िलर्र और िलर्र के बगैर गोपाल की कल्पना कैसे की जा सकती िै ?आज स्थूल

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


34 पयाधवरर् एवं सक्ष् ू म मानवीय संवेदना, दोनो के संरक्षर् एवं ववकास के ललए गोपालवजृ त्त आवश्यक िो गयी

िै . िम आज गोपाल के गढ ू अथध को भल ू गये िै तथा पिले दर् ू व्यापार और कफ़र मांस व्यापार से सम्पन्न बनने के क्रूर प्रयास करने लगे.

इस भ्रम में िम पशुर्न के प्रतत तो क्रूर बने िी, पयाधवरर् और मानवीय

संवेदनॊं के िनन में भी िमें संकोच निीं रि गया िै .

गोरस आंदोलन:-भगवान श्रीकृष्ट्र् ने र्न के लोभ मे गोरस बेचे जाने के ववरुद्ध, वज ृ में

सबसे पिले सत्याग्रि छे िा था. र्न के लोभ में बछिॊं और बालकों को गोरस से वंचचत करके उसे राक्षसों

को उपलब्र् कराने का किा ववरोर् ककया था. र्टकी फ़ोड उसी आन्दोलन का एक अंग था. गॊपज ू न जैसी

भावभरी पररपाहटयाँ उन्िोनें चलायीं थीं. आज की पररजस्थततयों में, िमें उसी तथ्य को समझना तथा समझाना िोगा .किर आज दे श में, ऊजाध की बिी समस्या िै . पशुर्न से प्राप्त गोबर से उपयोगी बायोगैस तथा कीमती खाद का भली- भांतत उपयोग में लेने का क्रम बना ललया जाय, तो उससे पयाधवरर् बबगिने

के स्थान पर, पयाधवरर्-संवर्धन का लाभ उठाया जा सकता िै . गोबर, गोमत्र ू में खरपतवार को जैव खाद मे बदलने की अद्भत ु े खरपतवार को उपयोगी उवधरक के रुप मे बदल ु क्षमता िोती िै. वि अपने से १० गन सकता िै . गाय के दर् ू , दिी ,घत ू , चमध और िड्डियों तक में औषर्ीय गर् ु पाये ृ से लेकर गोबर, गोमत्र जाते िै. यहद िम इनका मित्व समझ लें तो दे श के पयाधवरर्, आचथधक-स्वावलम्बन, आरोग्य,कृवष ववकास तथा मानवीय संवेदनाओं के संरक्षर्-संवर्धन की हदशा में मित्वपर् ू ध उपलजब्र्याँ प्राप्त कर सकते िैं.

िमने आपने दीपावली के समय टी.वी पर दे खा िै कक करोिों मन खोया ,जो नकली दर् ू से

बनाया गया था,अचर्काररयों ने जमीन मे दफ़न ककया और िजारों लीटर नकली दर् ू , नाललयों में बिाया गया. कभी सोचा िै आपने कक िम केवल र्न कमाने की लालच मे ककतना आगे बढ गये िै कक िमे अपने

िी दे शवालशयों की जान की परवाि निी िै .? पशुर्न की जस्थतत भी आज ककसी से तछपी निीं िै . आज सबसे जयादा जबाबदारी उस समाज की िै जो अपने आपको गोपालक- अथवा अिीर किलाने पर गवध मिसस ू

करता िै .और गवध मिसस ू करता िै कक वि श्रीकृष्ट्र् का वंशज िै , एक श्वेत काजन्त लाने मे उसे आगे आना िोगा.

अपने मन की पीिा मैं यिाँ उजागर करना चािूँगा कक वतधमान समय में जो नतधक दल अपनी पारम्पररक वेषभष ू ा मे गली-गली घम ू ता िै ,वि मझ ु े प्रीततकर निीं लगता.लोगों के मन में अब वि सम्मान निीं रि गया िै जो पिले कभी दे खने को लमलता था .अतः स्थानीय सलमतत को चाहिए कक वि नत्ृ यमंिललयों के बीच स्पर्ाध का आयोजन करवाये और परु स्कार में उन्िें नगद रालश के अलावा भें ट मे सख ु सागर-गीता या अन्य ग्रंथ जो श्रीकृष्ट्र् की लीलाओं को ववस्तार से बतलाता िो, हदया जाना चाहिए.

इस हदशा में िमने एक प्रयोग यिाँ तछन्दवािा में ककया. छट के हदन मढई मेले मे जजले

के आसपास की नत्ृ य मंिललयों को आमंबत्रत ककया. उनके बीच स्पर्ाध करवाई गई और उन्िें पुरस्कृत ककया. िालांकक ऎसे आयोजन पूवध में भी िोते रिे िै .लेककन इस साल िमने इस

जजले के प्रसयात जनलोकवप्रय

सांसद एवं शिरी ववकास मंत्री माननीय श्री कमलनाथजी को आमंबत्रत ककया. उन्िोने इस मढई मेले में, लसफ़ध लशरकत िी निीं की बजल्क अिीरॊं के पारम्पररक पोषाक को भी पिना और घोषर्ा की कक आने वाले

समय में इसे और भी भव्य रुप मे मनाने और शरीक िोने का आश्वासन भी हदया. श्रीकष्ट्र् मंहदर तनमाधर् में वे काफ़ी समय पूव,ध पाँच लाख की रालश भी प्रदत्त कर चुके िैं. एक ववशाल मंहदर की आर्ारलशला रखी

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


35 जा चुकी िै जजसके तनमाधर् में वे अपना पूरा सियोग दे ने के ललए भी तत्पर िै ,इसकी उन्िोने घोषर्ा वे कर चक ु े िैं.

भगवत गीता का घर- घर में पाठ िो,लोगों में नैततकता का प्रकाश फ़ैले, लोग सदाचारी

बनें,और श्रीकृष्ट्र् के अनय ु ायी बनें ,इस ववचार र्ारा को जन-जन तक पिुँचाने के ललए यिाँ गीता प्रततष्ट्टान्न नामक संस्था का गठन ककया गया. श्रीयत ु केशवप्रसाद ततवारी,पव ू ध जजला एवं सत्र न्यायार्ीश ने इस पन ु ीत

कायध के ललए अध्यक्ष का पदभार ग्रिर् ककया और ववगत पाँच साल से यि संस्था तनयलमत रुप से प्रतत रवववार ,हदन के नौ बजे से गीता पाठ करवाती िै . इसमें बिी संसया में लोग इकठ्ठे िोते िैं और अपने

जीवन कॊ र्न्य बनाते िैं. जल्दी िी यिाँ गीता मजन्दर का तनमाधर् भी िोने जा रिा िै . श्री काबराजी ने मजन्दर तनमाधर् में भलू म दान में दी िै .इसी तरि अन्य जजलों तथा गाँवो में इसका ववस्तार ककया जाना, मैं आवश्यक समझता िूँ.

मंहदर तो बनते रिे गे ,लेककन िमे अपने मन में एक ऎसे मजन्दर को भी आकार दे ना िोगा, जजसमें िमारे जगदीश्वर आकर ववराजें. जब मन में ईश्वर का वास िो जाता िै ,तो भय दरू भाग खिा िोता िै . अतः िम ऎसा कायध निीं करे जजससे िम खुद िी अपनी नजरों में चगर जाएं .दे र सबेर कृष्ट्र् आप में

उतरे ग,े लेककन इसके ललए िमारे मंहदर का िर कोना पववत्र एवं सव ु ालसत िोना जरूरी िै .वि िमे हदखाई

भी पिेगें, बशते िमारी दृजष्ट्ट, उस अजुन ध की तरि िोनी चाहिए. यि दृजष्ट्ट अजन ुध को तब लमली थी जब उसने उन पर भरोसा ककया. जजस हदन िमें उन पर इतना भरोसा िो जाएगा, सच मातनए िमें यि किने

की जरुरत िी निीं पिेगी कक"बडी दे ि भई नन्तदलाला". तब नंदलाल िमारे साथ िोगे, िर पल, िर संकट में .

९….- राजर्मध और राजा के कतधव्य मिवषध वेद व्यास रचचत मिाभारत के शाजन्त-पवध में मिात्मा भीष्ट्मजी ने राजा युचर्जष्ट्ठर को राज-र्मध और राजा के कतधव्यों आहद के बारे में ववस्तार से समझाया था. इस आलेख में उसे सादर प्रस्तुत ककया जा

रिा िै . पाँच िजार वषध पूवध प्रचललत राजर्मध और राजा के कतधव्यों की व्यासया, आज के संदभध में ककतनी कारगर और उपयोगी लसद्ध िो सकती िै , इस पर पाठक स्वयं ववचार करे और उसकी मीमांसा करे . --------------------------------------------------------------राजर्मध और राजा के कतधव्य

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


36 मिाभारत यद्ध ु समाप्त िो चुका था. भीष्ट्म वपतामि बार्ॊं की शैय्या पर पिॆ िुए उत्तरायर् की प्रतीक्षा कर रिे थे. सय ू ध के उत्तरायर् िोने पर वे दे ि त्यागने वाले थे. एक हदन भगवान श्री कृष्ट्र् ने उनसे लमलने का तनश्चय ककया और र्मधराज, भीम, अजन ुध , नकुल आहद मस ु य वीरों को लेकर कुरुक्षेत्र में जा पिुँचे. इस समय भीष्ट्म ध्यानावजस्थत िोकर भगवान श्री कृष्ट्र् की स्तुतत कर रिे थे. सभी लोगों को तनकट आया िुआ दे खकर वे गदगद िो उठे . इसी समय श्रीकृष्ट्र् भीष्ट्म से मर्रु वार्ी में बोले- िे

भीष्ट्मजी ! आपको शर-शय्या पर पिॆ-पिॆ मिान कष्ट्ट िो रिा िोगा. कफ़र भी आपकी तरि मत्ृ यु को इस

तरि वश में करने वाला मैंने तीनों लोकों में आज तक निीं दे खा. ये र्मधराज ! अपने कुटुम्ब के नाश िो जाने से मिान दख ु ी िो रिे िैं. अब आप जैसे भी िो इनके दख ु दरू करें . आप र्हान िाजनीनतज्ञ हैं. कृपा किके आप इन्तहें िाज-धर्म की अच्छी तिह सर्झा दें .

श्री कृष्ट्र् की बात सन ु कर भीष्ट्म ने उनकी स्ततु त करते िुए किा-“िे मर्ुसद ू न...िे मार्व..आप तो स्वयं र्मध के सभी ममों को समझने वाले िैं. कफ़र आप मझ ु से क्यों पछ ू रिे िैं ?. मैं तो आपका लशष्ट्य िूँ. अच्छा िो कक आप स्वयं र्मधराज को इसके बारे में समझायें. इस समय मेरे शरीर में अत्यन्त दाि और पीिा िै . मझ ु में बोलने के शजक्त भी निीं रि गयी िै , कफ़र मैं र्मोपदे श ककस प्रकार दे सकूँगा” श्री कृष्ट्र्जी भीष्ट्मजी के कथन को सन ु कर बोले-“ िे भीष्ट्मजी ! संसार में जजतने भी सत-असत पदाथध िैं,

वे मझ ु से िी उत्पन्न िैं. अतः मैं तो यश से पररपर् ू ध िूँ िी. ककन्तु मैं आप जैसे भक्तों का यश बढाने िे तु आपके िी मख ु से यचु र्जष्ट्ठर को उपदे श करना चािता िूं., जजससे संसार में आपका सम्मान और भी बढे .

आपके मख ु से तनकला िुआ िर वाक्य वेद-वाक्य िोगा. आप दोष से मक् ु त और ज्ञानी िैं. अतएव आप िी र्मधराज को उपदे श दे ने की कृपा करें . इसके ललए मैं आपको वरदान दे ता िूँ कक अब से आपको कोई पीिा दाि या व्यथा न रि जाएगी और आपकी स्मरर्-शजक्त भी पिले से भी करोि गन ु ी तेज िो जाएगी. दस ू रे हदन श्रीकृष्ट्र् पुनः पाण्िवों के साथ रथ पर आरूढ िोकर भीष्ट्मजी के पास जा पिुँचे. विाँ उन्िोंने दे खा कक ऋवष-मण्िली पिले से िी ववराजमान िै . र्मधराज यचु र्ष्ट्ठर ने वपतामि सहित सभी ऋवष-मतु नयों

को प्रर्ाम ककया और भीष्ट्म से बोले-“ हे वपतार्ह ! आप र्झ ु े िाजधर्म के बािे र्ें विस्ताि से बतलाने की कृपा किें .”

भीष्ट्मजी ने किा”-“ िे र्मधराज ! मैं भगवान श्रीकृष्ट्र् एवं सभी ऋवष-मतु नयों को प्रर्ाम कर तुमसे राजर्मध

किता िूँ, उसे सतु नये. िे कुरुराज ! राजा ऎसा िोना चाहिए जो प्रजा को प्रसन्न रख सके. राजा को सदै व परु ु षाथी िोना चाहिए. उसे दै व के भरोसे िोकर कभी परु ु षाथध का त्याग निीं करना चाहिए. िे वत्स ! कायध

में असफ़लता िोने पर राजा को खखन्न निीं िोना चाहिए. उसे सत्यवादी िोना चाहिए. राजा का स्वभाव न कोमल िो न कठोर िो, क्योंकक कोमल स्वभाव वाले राजा की आज्ञा कोई निीं मानता और कठोर स्वभाव

वाले राजा से प्रजा बिुत दःु ख उठाती िै . रह्ाह्मर्ॊं को प्रार्दण्ि निीं दे ना चाहिए, उसे दे श-तनकाले का दण्ि पयाधप्त िै ..अजग्न जल से, क्षबत्रय रह्ाह्मर् से तथा लोिा पत्थर से नष्ट्ट िो जाता िै . ये सारे िी अपने उत्पन्न कताध से संघषध करने पर नष्ट्ट िो जाते िैं. जैसे जल अजग्न को नष्ट्ट कर दे ता िै, पत्थर से लोिा कंु द पि जाता िै . लेककन यहद रह्ािमर् यद्ध ु के ललए ललकारता िो तब उसके वर् से पाप निीं लगता. भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


37 राजा को न कभी अपने र्मध का त्याग करना चाहिये और न िी उसे अपराचर्यों को दण्ि दे ने में संकोच करना चाहिए, क्योंकक इस तरि से सेवक मँि ु चढे िो जाते िै और राजकाज में अवरोर् उत्पन्न करने

लगते िैं. िे राजन ! िर राजा को पररश्रमी एवं उद्दोगी िोना चाहिए. जजस प्रकार बबल में रिने वाले चूिों को सपध तनगल लेता िै , उसी प्रकार दस ू रे राजाओं से लिाई न करने वाले राजा तथा घर न छॊड़ने वाले रह्ाह्मर् को पथ् ृ वी तनगल जाती िै .

“राजा के सात अंग िोते िैं- (१) राजय (२) मंत्री, (३) लमत्र (४) कोष,(५) दे श (६) ककला और ७ वां सेना. राजा को इनकी रक्षा और सदप ु योग करना चाहिए. राजा के समस्त र्मों का सार उसका प्रजा-पालन

करना चाहिए. राजा को राजय प्रबन्र् को सच ु ारु रुप से चलाने के ललए गप्ु तचर रखना चाहिए , जो राजा

को दे श के समाचारों से अवगत कराता रिे . राजा को चाहिए कक वि अन्य दे श के राजाओं के साथ सजन्र्

करके उन दे शों में अपना राजदत ू रखे. प्रजा को बबना कष्ट्ट हदये, कर इस प्रकार वसल ू ना चाहिए जैसे गाय को बबना कष्ट्ट हदये उससे दर् ू ले ललया जाता िै . सेवकों को कभी गट ु बन्दी में न पड़ने दे ना चाहिए. राजा का कतधव्य िै कक वि तनरन्तर अपने कोष को बढ़ता रिे . साथ िी तनबधल शत्रु को भी कम न समझे. जैसे थॊिी सी आग जंगल को जला दे ती िै , उसी प्रकार छॊटा सा शत्रु भी ववनाश कर सकता िै .”

भीष्ट्मजी के वचनॊं को सन ु कर सभी उपजस्थत ऋवषयों ने उनकी प्रशंसा की. कफ़र संध्या िोने के कारर् सभी लोग वावपस िजस्तनापरु लौट आए.

दस ू रे हदन पाण्िव तथा श्रीकृष्ट्र्जी तनत्य कमध से तनवत्ृ त िोकर कफ़र कुरुक्षेत्र में भीष्ट्मजी के तनकट जा

पिुँचे और प्रर्ाम करने के बाद उनसे पूछा-“ हे वपतार्ह ! कृपा किके बताएां कक िाजा शब्द की उत्पम्त्त कहा​ाँ से हुई?

उन्िोंने किा-“िे र्मधराज ! सत्ययग ु में राजा नाम की कोई चीज िी निीं थी. क्योंकक उस समय न कोई

दण्ि था और न िी कोई अपरार् करने वाला िी था. उसके बाद लोग मोि के वशीभत ू िोने लगे. मोि से काम की उत्पजत्त िुई और काम से राग पैदा िुआ.और राग से सभी प्रमादी िो गए और अपने-अपने कतधव्यों को भल ू गए. कमध भल ू ने से र्मध का ह्रास िोने लगा. तब रह्ह्माजी ने एक लाख अध्यायों का

नीतत शास्त्र बनाया. वि ग्रन्थ त्रत्रिणम के नाम से प्रलसद्ध िुआ. िे र्मधराज ! इन शास्त्रों में साम-दाम-दन्ि, भेद तथा उपेक्षा इन पाँचों का पूर्ध वर्धन िै .” र्मधराज यचु र्ष्ट्ठर ने पूछा-“चािों िणम, चािों आश्रर् तथा िाजाओां के कौन-कौन से धर्म श्रेष्ठ र्ाने र्गए हैं.” ने किा-“िे र्मधराज ! र्मध की महिमा िी अपरम्पार िै . उसे ध्यान से सन ु ो. सच बोलना, क्रोचर्त न िोना,

र्न को बाँटकर उसका प्रयोग करना, क्षमा करना, अपनी स्त्री से सन्तान उत्पन्न करना, शौच करना, ककसी से बैर न रखना. ये सभी वगों के ललए समान िै . रह्ाह्मर्ॊं का र्मध िै , इजन्रय दमन, स्वाध्याय करना.

क्षबत्रयों का र्मध िै दान दे ना तथा ककसी से कुछ माँगना निीं, यज्ञ करना तथा कराना निीं. वेदाहद का

अध्ययन करना, लट ु े रों को दण्ि दे ना तथा प्रजा का पालन करना. वैश्यों का र्मध िै, दान, अध्ययन, यज्ञ

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


38 करना व पववत्र उपायों से र्न कमाना, खेती कराना और पशुओं का पालन करना. शूर का र्मध िै इन चारों की सेवा करना.”

यचु र्जष्ट्ठर ने कफ़र पूछा- “हे वपतार्ह ! िाष्र का क्या कतमव्य है ?” भीष्ट्मजी ने उत्तर हदया- िे र्मधराज ! राजा का राजयालभषेक करना राष्ट्र का कतधव्य िै . बबना राजा के प्रजा नष्ट्ट िो जाती िै . राजय में उपरव िोने लगता िै तथा चोरी एवं हिंसा की घटना बढ़ने लगती िै . बबना राजा के सबल तनबधल को खाने लगता िै .”

यचु र्ष्ट्ठर ने पूछा-“हे वपतार्ह ! कृपा किके बतायें कक िाजा के क्या कतमव्य हैं उसे अपने दे श की िक्षा कैसे किनी चादहए?”

भीष्ट्मजी ने किा- “ िे र्मधराज ! राजा को पिले अपने मन को जीत कर शत्रओ ु ं पर ववजय प्राप्त करनी

चाहिए. उसे राजय के प्रमख ु स्थानों पर सेना का प्रबन्र् करना चाहिए. साम-दाम-दण्ि, भेद से र्न प्राप्त

करना चाहिए तथा प्रजा की आय का छटवाँ भाग, कर के रुप में प्राप्त करना चाहिए. राजा का कतधव्य िै कक वि अपनी प्रजा को पुत्र की भाँतत माने तथा लमत्रों और मंबत्रयों की सलाि से काम करे . जो राजा दण्ि-नीतत का पूरा-पूरा प्रयोग करता िै , उसके राजय में सत्ययग ु आ जाता िै .

“ िे यचु र्जष्ट्ठर ! राजा के छत्तीस गर् ु िैं. जो इनका पालन करता िै , विी स्वगध का अचर्कारी िोता िै . यचु र्जष्ट्ठर ने किा – हे वपतार्ह ! शासन त्रबना सर्त्र औि र्न्तत्री की सहायता से नहीां चल सकता. कृपया बताएां कक उसके सर्त्र औि र्न्तत्री कैसे होने चादहए ?”

भीष्ट्मजी ने किा;- िे र्मधराज ! लमत्र चार प्रकार के िोते िैं---सिाथध, यजमान, सिज, तथा कृबत्रम. इसके

अततररक्त र्माधत्मा लमत्र भी िोता िै . ऎसा लमत्र ककसी का पक्ष न लेकर केवल र्मध का पक्ष लेता िै . उक्त चार लमत्रों में पिले के दो लमत्र श्रेष्ट्ठ िोते िैं और अन्त के लमत्र उत्तम निीं िोते. लेककन कायध सार्न अपने सभी लमत्रों से करना चाहिए. बुवद्धमान राजाओं को ककसी लमत्र पर परू ा-पूरा भरोसा निीं करना

चाहिए. ऎसा करने वालों की अकाल मत्ृ यु िो जाती िै . िे यचु र्जष्ट्ठर ! कुटुजम्बयों से सदा सावर्ान रिना चाहिए. एक कुटुम्बी दस ू रे कुटूम्बी की उन्नतत सिन निीं कर सकता. लेककन कुटुजम्बयों की अविे लना कभी निीं करनी चाहिए. क्योंकक दस ू रों के दबाने पर कुटुम्बी िी सिायता करता िै .”

“ िे राजन ! जो मन्त्री खजाने की चोरी करता िो और राजय के गप्ु त भेदों को खोलता िो, ऎसे मजन्त्रयों को निीं रखना चाहिए. कोष के स्वामी की सदा रक्षा करते रिना चाहिए, क्योंकक र्न के लोभ से लोग मरवा भी सकते िैं. मन्त्री के पद पर शीलवान, सत्यवादी, सदाचारी तथा दयालु व्यजक्त को िी रखना चाहिए.”

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


39 “शत्रु से लमत्रता करने वाले को शत्रु िी समझना चाहिए. उसे गप्ु त भेद कभी निी बताना चाहिए. सदाचारी एवं ववचारशील व्यजक्त िी गप्ु त सलाि सन ु ने के अचर्कारी िैं. “

यचु र्जष्ट्ठर ने पूछा’-“ हे वपतार्ह ! िाष्र की िक्षा तथा उसका प्रबन्तध ककस प्रकाि किना चादहए?” भीष्ट्मजी ने समझाया;-“ र्मधराज ! राजा को चाहिए कक वि एक ग्राम का एक-एक अचर्कारी अलग-अलग रखे. एक ग्राम वाले अचर्कारी का कत्तधव्य िोगा कक वि अपने ग्राम की सब सच ू नाएँ दस ग्रामों के

अचर्कारी के पास भेजे. उसी प्रकार दस ग्राम वाला सौ अचर्कारी के पास उक्त सच ू ना को भेज दे . कफ़र सिस्त्र ग्रामों वाला अचर्कारी उसकी सच ू ना राजा के पास दे गा. इस प्रकार राजा को िर सच ू ना लमलती

रिे गी. ग्रामों की पैदावार ग्रामों के अचर्काररयों के पास िी रिनी चाहिए. वे वेतन के रूप मे तनयत उपज

का प्रयोग कर सकते िैं. िर नीचे का अचर्कारी अपने ऊपर वाले अचर्कारी को कर दे ता रिे . सौ गाँव के माललक को उसके खचध के ललए एक ग्राम की आमदनी दे नी चाहिए. सित्र ग्रामों वाले अचर्कारी के पास यद्ध ु सम्बन्र्ी सामग्री रिनी चाहिए तथा उनके पास राजा का एक पदाचर्कारी रखना चाहिए. बिॆ-बिॆ

नगरों के प्रबन्र् के ललए एक-एक अध्यक्ष रखना चाहिए. प्रत्येक नगराध्यक्ष के पास सेना तथा गप्ु तचर िों.”

यचु र्जष्ट्ठर ने कफ़र प्रश्न ककया;- “ हे वपतार्ह ! यदद कोई िाजा चढाई कि दे तो उसके साथ ककस प्रकाि यि ु किना चादहए ?“

भीष्ट्मजी ने किा;-“ िे कुरु नन्दन ! बबना कवच वाले से यद्ध ु निीं करना चाहिए. जब कोई कवच र्ारर्

कर अस्त्र-शत्र सम्िाले सामने आये, तो राजा को तुरन्त उसके साथ यद्ध ु के ललए प्रस्तत ु िो जाना चाहिए.

एक वीर के साथ एक िी वीर का यद्ध ु िोना चाहिए. राजा र्मध-यद्ध ु में र्मध का आचरर् करे एवं कपट यद्ध ु

में कपट का. संकट में पिॆ िुए शत्रु पर अथवा अस्त्र त्यागे िुए योद्धा पर तथा रथ से नीचे उतरने वाले या शरर् में आने पर कभी कोई चोट न करे . लशववर मे आने वाले की भली-भाँतत चचककत्सा करा कर उसे घर लभजवा दे ना चाहिए.

१०….

हिमालय और गंगा.

सय ू ोदय के िोते िी उसकी ककरर्ें र्रती पर एक नया ववतान सा तान दे ती िै कललयां खखलकर

.

और मर्ुप अपनी ,िैं कमल खखल उठते ,पुष्ट्प में पररखर्त िो जाती िैराग छे िने लगते िैंमंद िवा -मंद . ऎसे हदव्य समय में गि ृ स्थ बबस्तर से उठ बैठता िै और तनत्यकक्रयाकमध से

.के झोंके बिने लगते िैं

वि चािे ककसी नदी में निा िोता िै अथवा अपने स्नानघर में .तनजात पाकर निाने को उद्दत िोता िै

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


40 र पिते िी उसके मख ु पानी से भरा लोटा लसर प, से यि श्लोक उच्चाररत िोने लगता िै . “गंगाश्च यमन ु ा गोदावरी........... निाते समय एक अद्भत ु आनन्द की प्रतीतत उसे िोने लगती िै और उसे लगता िै लोटे में

भरे जल में मां गंगामें समा गया िै औ यमन ु ा और सरस्वती का जल उसके लोटे ,र वि उसमें स्नान कर रिा िै गंगा कफ़र

.इससे आप समझ सकते िैं कक इस दे श के वासी नहदयों को ककतना मित्व दे ते िैं .

वि तो साक्षात भोले शंकार की जटाओं से तनकलकर इस र्रा पर अवतररत िोती

.सार्ारर् नदी निीं िै

उसके पावन तट पर श्रद्धालु ,बिती िुई तनकाली िै जजस स्थान से-जजस ,हिमालय से तनकलकर गंगा .िै और समवेत स्वरों में गाने लगते िैं .उसकी आरती उतारते िैं

जय र्गांर्गा र्ैया र्ा​ां जय सिु सिी र्ैया। भिबारिधध उिारिणी अनतदह सदृ ु ढ़ नैया।। हिी पद पदर् प्रसत ू ा विर्ल िारिधािा। ब्रम्हदे ि भार्गीिथी शुधच पुण्यर्गािा। आहदगरु ु शंकराचायधजी मां गंगा की स्ततु त करते िुए किते िैं

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


41 दॆ विर्ग र्गॆ त्रत्रभि ु नतारिाण तिलति र्गॆ । !भर्गिनत !सिु ॆ श्िरि ! श किर्ौसलविहारिाण विर्लॆ र्र् र्नतिास्ता​ां ति पदकर्लॆ ॥ 1 ॥

[िे दे वी आप ! भगवती गंगे ! सरु े श्वरी !तीनो लोको को तारने वाली िोआप शुद्ध तरं गो से यक् ु त मेरा मन सदै व आपके चरर् कमलो

...

! िे माँ ...मिादे व शंकर के मस्तक पर वविार करने वाली िो ...िो

...पर आचश्रत िै

िॊर्गां शॊकां तापां पापां हि र्ॆ भर्गिनत कुर्नतकलापर् ् । त्रत्रभि ु नसािॆ िसध ु ाहािॆ त्िर्सस र्गनतर्मर् खलु सांसािॆ ॥ 9 ॥ [ िे भगवती मेरे समस्त रोग !, शोक, ताप, पाप और कुमतत को िर लोआप बत्रभव ु न का सार िो और ... ...इस समस्त संसार में मझ ु े केवल आपका िी आश्रय िै ! िे दे वी ...का िार िो (पथ् ु ा ृ वी) वसर् सख ु दे िजी िाजा पिीक्षक्षतजी को कथा सन ु ाते हुए र्ा​ां र्गांर्गाजी की र्दहर्ा का बखान किते हुए कहते

हैं

धातु: कर्ण्डलज ु लां तदूकक्रर्स्य, पादािनेजनपवित्रतया निे न्तर ।

स्िधमन्तयभन्त ू नभसस सा पतती ननर्ाम्ष्टम , लोकत्रयां भर्गितो विशदे ि कीनतम: ।।

“ राजन ् ! वि रह्ह्माजी के कमण्िलक ु ा जल, बत्रववक्रम (वामन) भगवान ् के चरर्ों को र्ोने से

पववत्रतम िोकर गंगा रूप में पररर्त िो गया। वे िी (भगवती) गंगा भगवान ् की र्वल कीततध के समान आकाश से (भगीरथी द्वारा) पथ् ृ वी पर आकर अब तक तीनों लोकों को पववत्र कर रिी िै । ( श्रीर्द्भा0 8।4।21)

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


42

िहती थीां.]

र्गांर्गाितिण की कथा को पढने पि ज्ञात होता है कक र्गांर्गा धिती पि आने से पहले स्िर्गम र्ें

एक पौराखर्क कथा के अनस ध रघक ु ार भगवान श्री रामचंर के पूवज ु ु ल के चक्रवती राजा भगीरथ ने

यिां एक पववत्र लशलाखंि पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंि तपस्या की थी। इस पववत्र लशलाखंि के

तनकट िी 18 वी शताब्दी में इस मंहदर का तनमाधर् ककया गया। ऐसी मान्यता िै कक दे वी भागीरथी ने इसी स्थान पर र्रती का स्पशध ककया।

एक अन्य कथा के अनस ु ार पांिवो ने भी मिाभारत के यद्ध ु में मारे गये अपने पररजनो की

आजत्मक शांतत के तनलमत इसी स्थान पर आकर एक मिान दे व यज्ञ का अनष्ट्ु ठान ककया था।

लशवललंग के रूप में एक नैसचगधक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न िै । यि दृश्य अत्यचर्क

मनोिार एवं आकषधक िै । इसके दे खने से दै वी शजक्त की प्रत्यक्ष अनभ ु तू त िोती िै । पौराखर्क आसयानो के अनस ु ार, भगवान लशव इस स्थान पर अपनी जटाओ को िैला कर बैठ गए और उन्िोने गंगा माता को

अपनी घघ ुं राली जटाओ में लपेट हदया। शीतकाल के आरं भ में जब गंगा का स्तर कािी अचर्क नीचे चला जाता िै तब उस अवसर पर िी उक्त पववत्र लशवललंग के दशधन िोते िै ।

आप यि भी भली-भांतत जानते िी िै कक भगवान शंकर हिमालय पवधत पर वास करते िैं. और

हिमालय की पत्र ु ी का नाम पावधती था. पवधतराज हिमालय की पत्र ु ी िोने के नाते उनका नाम पावधती पिा. पावधतीजी ने किी तपस्या कर भगवान शंकर को अपने पतत के रुप में पाना चािा और इस तरि लशव और पारवतीजी का वववाि िुआ.

बाबा तुलसीदास जी ने बालकाण्ि में मां पावधती के जन्म को लेकर ललखा िै “सती मरत िरर सन बरु मांगाजनम लशव पद अनरु ागा-जनम. तेहि कारन हिमचगरर गि ृ जाईं/६४दोिा )जनमी पारवती तनु पाई.३( बाबा तुलसीदासजी ने यिां हिमाचल का मित्व प्रततपाहदत करते िुए उसे ककतना सम्मान हदया िै , पढकर जाना जा सकता िै कक वि कोई सार्ारर् पवधत निीं िै बजल्क मां भगवती का वपता िै और , भगवान लशव शंकर का श्वसरु भगवद्गीता में स्वयं श्री कृष्ट्र्जी अपने मख ु ाववंद से अजन ुध को अपने ऎश्वयध के बारे में बतलाते िुए

किा िै “रुरार्ां शंकरश्चाजस्म वेत्तेशो यक्षरक्ष्साम वसन ू ां पावकश्चाजस्म मेरुः लशखररर्ामिम (२३श्लोक) ”यक्षों तथा राक्षसों में सम्पजत्त का दे वता ,मैं समस्त रुरों में लशव िूँ-अथाधतकुबेर” िूँवसओ ु ं में

,

”अजग्न िूँ और समस्त पवधतों में मेरु” िूँ हिमालय की एक चोटी का नाम ).सम ु ेरु िै (. भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


43 “मिषीनां भग ृ रु िं चगरामस्म्येकमक्षरम* यज्ञानां जपयज्ञोsजस्म स्थावरार्ां हिमालयः (२५-श्लोक) -;अथाधतमैं मिवषधयों में भग ृ ु िूँ समस्त यज्ञों में पववत्र नाम का ,वार्ी में हदव्य ओंकार िूँ, “ तथा समस्त अंचलों में (जप)कीतधनहिमालय” िूँ. “पवनः पवतामजस्म रामः शस्त्रभत ृ ामिम (३१-श्लोक) झषार्ां मकरश्चजस्म श्रोतसामजस्म जान्ह्वी -; अथाधतसमस्त पववत्र करने वालों में मैं वायु िूँमछललयों में मगर तथा ,शस्त्रर्ाररयों में राम , “ नहदयों में गंगा” िूँ बाबा तल ु सीदासजी ने बालकाण्ि में गरु ु ववश्वामज त्र के मख ु ारववंद से श्री राम को गंगा के अवतरर् की बात बतलाते िुए ललखा िै “चले राम लतछमन मतु न संगागए जिाँ जग पावतन गंगा * गाचर्सन ू ु सब कथा सन ु ाई(१/२१२-चौपाई)”जेहि प्रकार सरु सरर महि आई * बबबबर् दान महिदे वजन्ि पाए *तब प्रभु ररवषन्ि समेत निाए िरवष चले मतु न बंद ृ सिाया(३/२१२ )अरायाबेचग बेदेि नगर तन * श्रीराम और लक्ष्मर् मतु नवर ववश्वालमत्र के साथ आगे चले और विाँ जा पिुँचे जिाँ जगत का .विाँ पिुँचते िी गाचर्नन्दन ववश्वालमत्र ने गंगाजी की पववत्र कथा सन ु ाई .कल्यार् करने वाली गंगा िै जजस भांतत वि पथ् ृ वी पर आई थींभांतत -रह्ाह्मर्ॊं ने भांतत .न ककयातब प्रभु ने ऋवषयों के सहित स्ना . कफ़र मतु न .के दान पाए भक्तों के साथ िवषधत िो चले और शीघ्र िी वे जनकपुर के समीप पिुँच गए. वनगमन के समय

प्रभु श्रीराम अपनी प्रजा के लोगो को नींद में सोता छॊि गंगाजी के तट पर

सीत्ताजी के सहित आते िैं.थे उनके साथ सचचव सम ं . ु त “सीता सचचव सहित दोउ भाई सग ंृ बेरपुर पिुँचे जाई * कीन्ि दं िवत िरषु ववशेषी * उतरे राम दे वसरर दे खी सब कुख करनी िरतन सब मल ू ा *लखन सचचवं लसय ककए प्रर्ामा रामु ववलोक्कहिं गंग तरं गा * कहि कहि कोहटन कथा प्रसंगा बर् ु नदी महिमा अचर्काईबब * सच्वहिं अनज ु हिं प्रयहि सन ु ाई

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


44 मजजन कीन्य पंथ श्रम गयऊ सचु च जलु वपअत महु दत मन भयऊ * /८६चौपाई ) तेहि श्रम यि लौककक ब्यविारु * सलु मरत जाहिं लमटै श्रम भारु१.२.३. लक्ष्मर्गंगाजी

.रामजी ने सबके साथ सख ु पाया .मंत्री और सीताजी ने गंगाजी को प्रर्ाम ककया ,

-करोिॊं कथा .गलों की जि िै तथा सब सख ु ों के दे ने वाली और सब दख ु ों को िरने वाली िै मं-आनन्द लक्ष्मर् औ ,उन्िोंने मंत्री .प्रसंगो को किकर श्रीराम गंगाजी की लिरों को दे खने लगेर सीताजी को भी श्रीगंगाजी कक मिा महिमा सन ु ाईपववत्र जल सबने स्नान ककया जजससे मागध का श्रम दरू िो गया और . जजसका स्मरर् मात्र से भारी श्रम लमट जाता िै .पीते िी मन महु दत िो गया गंगाजी

.गंगाजी के उस पार जाने के ललए उन्िोंने मल्लाि को बुलाया और उस पार उतर गए

क े प्रतत आपार श्रद्धा और ववश्वास से भरी सीता ने मां गंगाजी को प्रर्ाम करते िुए किा ! िे मातामनोरथ पूर्ध कीजजए जजससे कक मैं स्वामी और दे वर के साथ सकुशलपूवक ध लौट कर आपकी पूजा

मेरा

सीताजी की प्रेमरस में सनी ववनती सन ु ते िी गंगाजी के पववत्र जल में से श्रे .करुँ ष्ट्ठ वार्ी िुई“ _; िे रामजी की वप्रये सीते

,दे खते िी लोग आपके ? आपका प्रभाव संसार में ककसे ववहदत निीं िै ,सन ु ो !

आपने मझ ु े जो बिी ववनती .सब लसवद्धयां िाथ जोिॆ िुए आपकी सेवा करती िै .लोकपाल िो जाते िैं ”,! तो भी दे वव .सो वि कृपा करके मझ ु को बिाई दी िै .सन ु ाई िै मैं अपनी वार्ी सफ़ल िो के ललए आपको आशीष दं ग ू ीआपकी

.में लौटॊगी आप अपने प्रार्नाथ और दे वर के सहित कुशलता से अयोध्या .

(”.सारी मनोकामनाएं सफ़ल िोंगी और संसार में आपका शभ ु यश छा जाएगाअयोध्याकांि चौपाई १०२( बाबा ने यि .यमन ु ा के संगम पर आते िैं-प्रभु श्रीराम गंगा ा ं का बिा िी मनोिारी चचत्रर् ककया िै .

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


45

कलम के प्रततबद्ध लसपािी मश ुं ी प्रेमचन्द

(31-07-1880—08-10-1936)

जजस प्रकार सोना भट्टी में तपकर तनखार पाता िै , ठीक उसी तरि दख ु ों की भट्टी में तपकर एक साहित्यकार कालजयी रचनाएं ललख पाता िै . कलम के लसपािी मश ुं ी प्रेमचन्द के जीवन-वत्ृ त को पढकर यि बात लसद्ध िोती िै . बचपन में जजसके लसर पर से माँ का साया उठ चुका िो, मात्र चौदि साल की उम्र में जजसके वपता ने भी साथ छॊि हदया िो, जजसके नाजुक कंर्ों पर सौतेली मां एवं उसके दो बच्चों का भार िाल हदया गया िो, जजसकी शादी एक बदसरू त और जब ु ान की किवी स्त्री से करा दी गई िो, एक ऎसा व्यजक्त जजसका परू ा जीवन दख ु ों और संघषों से भरा रिा िो, उसने साहित्य की झोली अमल् ू य रत्नों से भर दी. उपन्याससम्राट की उपाचर् से ववभवू षत प्रेमचन्द का जीवन खुद एक जीता-जागता उपन्यास था, जजसमें जजन्दगी के अंतद्धवन्दों के बीच एक कृशकाय व्यजक्त कभी मजबत ू ी से खिा नजर आता तो अगले िी पल टूटता सा हदखाई दे ता िै . लशक्षा पाने के ललए उन्िें काफ़ी संघषों का सामना करना पिा. एक मौलवी की दे ख-रे ख में उनकी प्रारं लभक लशक्षा मदरसे में िुई,जिाँ उन्िोंने उदध ू सीखी. बनारस में नौवीं कक्षा के ववद्दाथी रिते िुए उनके वपता की मत्ृ य िो गई, जजससे उनका आचथधक संबल टूट गया. लेककन आगे पढने की ललक के चलते वे कुप्पी के सामने बैठकर पढते और इस तरि वे बी.ए. तक की लशक्षा ग्रिर् कर पाए. मैहरक की परीक्षा उत्तीर्ध करके जीववकोपाजधन की खाततर उन्िोंने स्कूल मास्टर की नौकरी जवाइन की और बी.ए. पास करने के बाद डिप्टी इंस्पेक्टर आफ़ स्कूल्स िुए. 1901 में उन्िोंने पिला उपन्यास ललखना शुरु ककया. बंगाल के प्रलसद्ध उपन्यासकार शरतचन्र सेन ने उन्िें “उपन्यास साम्राट” किकर संबोचर्त ककया. सन 1907 में अपनी पिली किानी “दतु नया का सबसे अनमोल रतन” ललखी. इनका पिला किानी सन 1918 में हिन्दी में पिला उपन्यास“सेवासदन” ललखा. उदध ू में वे नवाब राय के नाम से ललखते थे पर 1910 में अपनी

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


46 किानी “सोज-ए-वतन” की जब्ती के बाद उन्िोंने आचायध िजारीप्रसाद द्वववेदीजी की प्रेरर्ा से “प्रेमचंद”नाम से ललखना आरं भ ककया. “सोज-ए-वतन” की जब्ती के बाद उन्िोंने ललखा;-“मैं ववरोिी िूँ, जग में ववरि कराने आया िूँ / क्रांतत-क्रांतत का सरल सन ु िरा राग सन ु ाने आया िूँ”. सन 1921 के आसपास का वि समय था जब मिात्मा गांर्ीजी के नेतत्ृ व में असियोग आंदोलन अपने चरम पर था. मिात्मा गांर्ी के आव्िान पर तमाम लोग सरकारी नौकररयों से त्याग-पत्र दे कर उनके साथ िो ललए थे. 12फ़रवरी 1921 को गोरखपुर में चौरी-चौरा काण्ि घहटत िुआ जजसमें आंदोलनकाररयों ने उत्तेजजत िोकर 21 पुललस वालों सहित समच ू े थाने को जला हदया. इस कदाचरर् की तनंदा करते िुए गांर्ीजी ने अपना आंदोलन वावपस ले लेने की घोषर्ा कर दी. चौरी-चौरा काण्ि के ठीक चार हदन बाद अथाधत 16 फ़रवरी 1921 में आपने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे हदया और अपना सारा ध्यान साहित्य रचना पर केन्रीत कर हदया. आपने लगभग तीन सौ किातनयां ललखी. जजसमें प्रमख ु ये किातनयां िैं आभष ू र्, अजग्न समाचर्, अमत ृ , आत्माराम, चोरी, दरोगा सािब, दे वी, ढाई सेर गेिूँ, डिग्री के रुपये, दो रह्ाह्मर्, दो बैलों की कथा, दर् ू का दाम, फ़ौजदार, चगल्ली िंिा, गि ु मंत्र, िार की जीत, जेल, ृ नीतत, गरु जल ु स ू , जम ु ाधना, खद ु ाई, मिातीथध, मनष्ट्ु य का परम र्मध, मयाधदा की वेदी, मजु क्त मागध, नैराश्य, तनमंत्रर्, पशु से मनष्ट्ु य, प्रायजश्चत, प्रेम पुखर्धमा, रामलीला, समर यात्रा, सती, सत्यागि ृ , सवा सेर गेिूँ, सेवा मागध, सि ु ाग की सािी, सज ु ान भगत, स्वात्यरक्षा, ठाकुर का कंु आ, बत्रया चररत्र, उर्ार की घिी, वज्रपात, ववमाता, िाजी अकबर, सौतेली मां, इबारत, रोशनी, भािॆ का टट्टू, तनजात, मजदरू , अदीब की इजजत, नमक का दरोगा, दतु नया का सबसे अनमोल, बिॆ भाई सािब, बेटी का दान, सौत, सजजनता का दण्ि, पंच परमेश्वर, ईश्वरीय न्याय, दग ु ाध का मजन्दर, उपदे श, बललदान, पत्र ु प्रेम, इन किातनयों के लगभग 24 संग्रि प्रकालशत िो चुके िैं जजसमें प्रमख ु िैं-बिॆ भाई सािब, मंत्र, दो बैलों की जोिी, पूस की रात, आहद प्रमख ु िैं-मानसरोवर (आठ भाग), ग्राम जीवन की किातनयाँ, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसन ू , प्रेम चतुथी, प्रेम गंगा, सप्त सम ु न, सप्त सरोज, अजग्न-समाचर्, नवतनचर्, मनमोदक, कुत्ते की किानी, समर यात्रा, अजग्न-समार्ी.आहद हिन्दी में प्रेमचंद ने अपना पिला उपन्यास “सेवा सदन” ललखा विीं उनका अजन्तम उपन्यास “मंगलसत्र ू ” था, जजसे वे परू ा निीं कर पाए. अन्य उपन्यासों में गोदान, गबन, तनमधला, सेवा सदन ,रं गभलू म, प्रेमाश्रय, वरदान, प्रततज्ञा, कमधभलू म, अिं कार इत्याहद प्रमख ु िैं. उपन्यास के अलावा आपने कबधला, संग्राम, प्रेम की वेदी, रुठी रानी आहद नाटक भी ललखे. उन्िोंने अपने लेखन के साथ-साथ टाल्स्टाय की किातनयाँ,

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


47 गाल्सवदी के तीन नाटकों तथा रतननाथ सरशाि के उदध ू उपन्यास “फ़सान-ए-आजाद का हिन्दी में अनव ु ाद ककया था. प्रेमचंद ने किानी और उपन्यास की एक ऎसी परं परा का ववकास ककया, जजसने एक परू ी शती के साहित्य का मागधदशधन ककया और साहित्य में एक यथाथधवादी परं परा की नींव िाली. आपका लेखन,हिन्दी साहित्य की एक ऎसी ववरासत िै ,जजसके बबना हिन्दी के ववकास का अध्ययन अर्ूरा िी रिे गा. वे एक संवेदेनशील लेखक, एक संवेदनशील नागररक और कुशल वक्ता तथा प्रततबद्ध संपादक थे. प्रेमचंद का साहित्य और उनका सामाजजक ववमशध आज भी प्रासंचगक िै . वे आज भी अपनी रचनाओं के माध्यम से िमारे समाज के बीच उपजस्थत िैं. वे अपनी रचनाओं के माध्यम से गिरी नींद में सोये िुए वगों को जगाने का उपक्रम करते हदखाई दे ते िैं. आज िम जजन-जजन भी समस्याओं से पीहढत नजर आ रिे िैं, आपने अपनी रचनाओं के माध्यम से काफ़ी पिले िी रे खांककत कर हदया था. कफ़र चािे वि जाततवाद का मसला िो, अथवा आत्मित्या करता ककसान िो, चािे वि नारी की पीिा िो, या कफ़र समाज में व्याप्त कुरीततयों की बात िो. उन्िोंने अपनी किातनयों /उपन्यासों के माध्यम से सचेत कर हदया था. इन तमाम तरि की बरु ाइयों के मौजूद िोने के पीछे मस ु य कारर् तो यि रिा कक राजनैततक सत्तालोलप ु ता के समांतर सामाजजक, र्ालमधक व सांस्कृततक आंदोलनों की हदशाएं नेतत्ृ वकताधओं को केन्र बनाकर लिी गईं जो कालान्तर में मल ू भावनाओं के ववपरीत आंदोलन गट ु ॊं में तब्दील िो गए. तनःसन्दे ि आज कफ़र िमारे समाज को प्रेमचंद जैसा रचनाकार चाहिए जो जनता की संवद े नाओं को कलम और कमध से पन ु जाधग्रत कर सके और उसकी सामाजजक जस्थतत को नयी चेतना से भर दे .

१२

मानव की मल ू प्रवजृ त्त उत्सवर्मी िै

मानव की मल ू प्रवजृ त्त िी उत्सवर्मी िै वि अपने ,पाषार्यग ु की बात करें .समि ू में आखेट के ललए तनकलता था और ककसी पशु को अपना लशकार बनाने के बाद उसके इदध-गाता-झम कर नाचता-चगदध झूमक्रमशः वि सभ्य िोता

.चचत्र भी उकेरता था फ़ुसधद के समय में वि कन्दराओं में इसके .खुशी मनाता था

उसने जाना कक छि .उसकी उत्सवर्लमधता परवान चढने लगी .गयाऋतए ु ं िोती िैउसमे शरद ऋतु के . पथ् ृ वी के ,वषाध ऋतु में जैसे िी पिली बौझार पिती िै .आगमन के ठीक पिले वषाध का अवसान िो रिा िै मोर के .ती पर सब तरफ़ िररयाली का गलीचा बबछ जाता िै र्र .अंग में नवजीवन लिलिा उठता िै -अंग

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


48 ..पी...आ..पवपिा पी .पावों में चथरकन आ जाती िै आ गाने लग जाता िै नहदयां तरुर्ाई से भर उठती . खेतों में लिलाती फ़सलें और

.बरसते पानी की रसर्ार में भींगते िुए उसने िल चलाते िुए गीत गाए ..िै

फ़ूलता दे ख वि प्रसन्नता से भर उठता िै और कटाई के -के रुप में फ़लता अपने श्रमसा्ल्य को अनाज बाद पूरा पररवार ढोलक की थाप पर नाच उठता िै इस तरि उसने अपने आप को ईश्वर की लीलाओं दस कोस पर पानी और

.नए आयाम हदए-त्योिारों को जोिते िुए अपनी उत्सवर्लमधता को नए-से

.

पवों

अंचल -लोक .बावजद ू भारतीय समाज ने सांस्कृततकता को ववलशष्ट्ट स्थान हदलाया बीस कोस पर वार्ी के में िी संस्कृतत की असली ववरासत सरु क्षक्षत िै यद्दवप अर्ुतनकता ने काफ़ी िद तक सांस्कृततकता को . िरी प्र-ग्रामीर् समद ु ाय संस्कृतत के सजक ,इसके बाद भी िमारे लोक क्षेत्रों से जुिॆ लोग ,प्रभाववत ककया िै चािे .अंचल में आसानी से दृजष्ट्टगत िोता िै -संस्कृतत का यि कायध लोक .के रुप में छत्तीसगढ िोसभी

नजर आते िैंवि

,कोई भी राजय िो,बुंदेलखंि आहद कोई भी िो,पूवा​ांचल,कंु माय,ू या कफ़र बत्रपुरा,असम िो,

.जा रिे िैं जगिों पर सांस्कृततक ववलशष्ट्टता को संरक्षक्षत करने के प्रयास ककए गाथाओं य-लोक,शौयध गाथाओं.बुंदेलखण्ि क्षेत्र िमेशा से िी लोक के प्रतत सचेत रिा िै ा कफ़र लोकसाथ -उत्सवों के साथ,त्योिारों-पवों .दे वताओं के सिारे उसने अपनी संस्कृतत को जीववत रखा िै ऎसा संस्कार िै जिाँ अनेक प्रकार

यि एक .वैवाहिक कायधक्रमों का उत्साि भी यिां दे खने को लमलता िै

लिकी की बात पक्की-लिका .के रस्मों के साथ सम्पन्न ककया जाता िै िो जाने के बाद लगन ु ललखाई , ,पांव पखराई ,द्वारचार ,बारात तनकासी, चीकट ,तेलपूजन ,दे वपूजन ,मंिपाच्छादन ,मगरमाटी ,ततलक अनेकानेक रस्मों के यि संस्कार परू ा .आहद-आहद,,ईमँि ु हदखा ,,बबदाई ,कन्यादान ,भांवर ,कंु वर कलेवा .िोता िै इन रस्मों को संपन्न करते समय घर की मिज लाएं बन्ना-इनकी स्वर .बन्नी के गीत गाती िैंिम यिाँ पर कुछ रस्मों पर गाए जाने वाले गीतों पर

.लिरी सन ु कर सभी लोग आनजन्दत िो उठते िैं

-यथा .चचाध करते चलें लगन ु ललखाई जा चुकी िै मगरमाटी भी लाई जा चुकी िै और लिकी जजसे अब बन्नी के रुप में जाना

.

िल्द ,जाता िै ी चढाई जा रिी िै पिौस की महिलाएँ सामहु िक रुप से -इस अवसर पर घर तथा पास . -यथा .जजसके बोल सीर्े हृदय को वपघला दे ने वाले िोते िैं.बन्नी कॊ आर्ार बनाकर गीत गाती िैं बाबल ु उिन चचरै यातम ु ने कािे पोसे , वो तो उि चली दे सबबदे स-

अम्मा की कोयल उि चली

हदिरी बबरानी बा (२) बुल बबहटया बबरानी बबहटया की इक जनमी पाती रे

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


49 मोरे बाबुल बबहटया बबरानी

वर्ु के यिाँ लगन ु पूजा के बाद लगन ु के साथ .जजसका ववचर्वत पूजन ककया जाता िै ,ललखाई िोती िै पिौस के-मि ु ल्ले ,कफ़र घर के कुछ सदस्य जजसमें वर्ू का भाई .के रुप में कुछ रुपये भी रखे जाते िैं नेग कुछ यव ु ातुकों के साथ लगन ु वर के घर पिुंचाई जाती िै ब लगन ु के विां पिुंच जाने के बाद उसको . पक्ष -यि िोता िै कक वर इसके करने के पीछे उद्देश्य .ककसी पंडित से पज ू ा करवाने के बाद पढा जाता िै को इस बात की जानकारी से अवगत करवाना िोता िै कक फ़ला हदन आपको बारात लेकर आना िोगा . लगन ु के आने पर जस्त्रयां इस गीत को गाती िैं लगन ु आने पर

अरे ...लगन ु आई अरे ,रघन ु नदन फ़ूले ना समाये लगन ु आई मोरे अंगना

रस बरसत िै ,रं ग बरसत िै

की लगन ु चढत िै मोरे बन्ना

कानों में कुण्िल पिनो राजा बनिॆ गले मतु तयन की माल बबरसत िै मोरे बन्ना कीलगन ु चढत िै

.आज मोरे रामजू की लगन ु चढत िै वर पक्ष के यिाँ भी वे सारी रस्में संपन्न िोती िै इर्र वर पक्ष में

.जो वर्ु के यिाँ की जा रिी िोती िै ,

.चे खांब के पास बबठाया जाता िै और कफ़र तेल चढावे की रस्म शरु ु की जाती िै बन्ना को मण्ढे के नी महिलाएं सामहु िक रुपसे गाती िैं-यथा . तेल मायना आज मोरे बन्नाको तेल चढत िै (बन्नी) तो तेल चढत िै फ़ुलेल चढत िै

चढ गओ तेल फ़ूल की पाँखुररया

जीजी चढावे तेल बन्ना की बािुललया, भौजी चढावे फ़ूल की पाँखरु रया

तेलन लाई तेलमालन लाई पाँखुररया , चढ गओ तेल फ़ुलेल चंपो तेरी द

(२) ोई कललया

कौन बाई तेल चढावेकौन राय की बेन्दलु लया,

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


50 बाई तेल चढाये(बिन का नाम) राय की बेन्दलु लया (भाई का नाम) वववाि के अवसर पर गौरीन पूजन के पश्चात वपतरों को एवं प्रकृतत प्रदत्त भौततक गर्ेश के आव्िा-

इस अ .वस्तुओं का भी आव्िान ककया जाता िै वसर पर बन्ना या बन्नी की माता एवं चाची चककी पर गेिूँ पीसती जाती िै एवं एकसाथ िी बन्ना या बन्नी नाम के साथ .एक वपतरों का नाम लेती जाती िै -

इस अवसर पर कुटुंब के सभी सदस्य .तनमंत्रर् स्वरुप फ़ेंकते जाते िैं िी चक्की पर चांवल के दाने इस अवसर पर .उपजस्थत रिते िैंगाए जाने वाला गीतयथा“काज करो कजमन करोआज को नेवतो पाइयो , (वपतर का नाम”बाबा नेवततयो (

(जाता िै एक व्यजक्त के नाम का उच्चारर् करते िुए इसे दोिराया-एक ) आज को नेवतॊ पाइयो आँर्ी सबको नेवतने के बाद-िवा ,भोंगा-लठ्ठा ,पानी-बदरा ,पानी-वपतरों को नेवतने के बाद आग) बन्ना के िाथों से गोबर के द्वारा चक्की का मँि ु बंद कर हदया जाता िै ताकक मंगल कायध में .कोई ववनन न आने पावे इस के बाद बारात तनकासी िोती िै ररश्ते-सभी आमंबत्रत सदस्यों .दारों तथा पररवार और कुटुंब के

सन्मातनत सदस्यों को साथ लेकर बारात घर से तनकलती िै .इस बीच कई प्रकार की रस्में िोती िै . माँ अपने बेटॆ की नजर उतारती िै अपना दर् ू

.नाररयल की चगरर तथा गि ु से मँि ु मीठा कराती िै .

दी के बादवपलाकर बेटे से वचन लेना निीं भल ू ती कक शाउसकी अच्छे से दे खरे ख करे गाइस अवसर पर .

-यथा.महिलाएं गीत गाती िैं

(दल् ु िा की तनकासी पर गाए जाने वाला गीत) “मझोलमझोल चलो जइयो रे िजारी दल् ु िा तुने को के भरोसे घर छोिॆ रे िजारी दल् ु िा

मैंने मइया के भरोसे घर छोिॊ रे िजारी बन्ना तेरी मैया को नइया पततयारो रे िजारी दल् ु िा

तू तो ताला लगाये कुँजी ले जैयो रे िजारी दल् ु िा” कुसम ु रं ग फ़ीको पि गओ रे ,बना के आँगन गें दा फ़ूल (२) बन्ना पापा(जीजा,भैया ,फ़ूफ़ा-मामा-चाचा-दादा) सजे बरातसजन घर खलबल मच गई रे , सजन घर खलबल मच गई रे

बन्ना के आगे तबल तनशाननाचे रे छम-पतुररया छम , पतुररया छमछम नाचे रे -

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


51 रुपइया खनखन बाजे रे शोभा सजी सीस चांदनी बनके ,ऎसो सजीलो मेरो बन्ना रे (३) कोई तो नजर उतारोऎसो सजीलो मेरो बन्ना रे ,

सीस बन्ना के सेिरासोिे कलगी पे जाऊँ बललिारी रे , हदल मे कब से था अरमानबन्ना मेरा दल् ू िा बने ,

चन्दन के मण्िवा रुच रुच के लाओ रे बन्ना मेरा.....

वर्ु के यिाँ बारात पिुँच चुकी िै समचर्यों की भें ट िोती -सजन .बारात की अगवानी की जाती िै . .इस अवसर भी गीत गाए जाते िैं.िै ठािॆ जनक जी के द्वार िो -ठािॆ रामचन्र दल् ु िा बने

मंगल साज सजे अंगना में

कम्मर में सोिे कटार िो.....रामचन्र... मतु तयन चौक सन ु यना पूरे

......रामचन्र.......मन में िरष अपार िो बंदी बबरुदावली उच्चारे .....रामचन्र

.......िो रिी जय जयकार

चन्दन पीढा ववराजो राजा बनिॆ पिरो नौ लख िार िो

...रामचन्र.....

महिलाएँ गारी गाती िैं इस अवसर पर सि ु ानो लागे अंगना,आए मोरे सजना सजना के लाने मैंने पुडिया पकाई (समर्ी)आवे री खावे सजना

...आए मोरे सजना...पीछे री खावे बलमा

पाँव पखराई के समय का गीत

तीरथ बिॆ िैं प्रयाग,बबच गंगा बबच जमना लेत कुमारन दान ,बबच बबच बैठे बाबुल उनके -दै यो रुपरुपैयातछनररया को खनकत जाये ,

तछनररया को खोवा खाये ,दै यो उजरी सी गैया चढाव चढाई के अवसर पर गीत “लसया सक ु ु मारी को चढ रौव चढाविरे मंिप के नीचे , बेटी मैके की बेंदी उतार र्रो

िरे मंिप के नीचे ,ससरु े की बेंदी को कर लेव लसंगार

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


52 ,रओ चढाव लसया सक ु ु मारी को चढ िरे मंिप के नीचे”

चढाव के बाद भावरें पिती िै जेवनार के अवसर पर गाए जाने वाला गारी

.इसके बाद जेवनार िोता िै .

.समर्न को ताना मारा जाता िै -इसमे समर्ी .गीत “बन में बघनी बबयानीसुनो भौंरा रे , सन ु ो भौंरा रे ,ओको दर् ू दि ु ा लई

रे सुनो भौंरा,समर्ी नेवत बुला लई ओकी खीर बना लईसुनो भौंरा रे ,

”ले ले दोना नाचे,पातर चाटे ,उनने आतर चाटे

जेवनार के बाद दल् ु िा०दल् ु िन को लेिकोर के ललए लेकर जाते िैंइस अवसर पर महिलाएं समर्ी को .बताशे बंटवाने का ररवाज िै -ताना मारते िुए गाती िैं क्योंकक समर्ी की ओर से पान “पानो की बबडिया कलेजे में लग गई

.

मेरे हियरे में लग गई ,कलेजे में लग गई िललया में तेरी समर्न पान भी नइया

तो समर्ी को जजयरा हठकाने में नइया

बबदाई के अवसर पर गाए जाने वाला गीत

इस समय बबहटया को आशीष हदया जाता िै “जाओ ललल तुम फ़ललयो फ़ुललयो सदा सि ु ागन रै यो मोरे लाल सास ससरु की सेवा कररओ पतत आज्ञा में रहियो”.

( .विाँ पर भी अनेकानेक रस्में करवाई जाती िै ,बबदाई के बाद बेटी का अपने ससरु ाल आना ) लोकगीतों की मित्ता लोकजीवन में िमेशा बनी रिी िै वववाि संस्कार में गाए जाने वाले गीतों में एक लोकगी .प्रकार का संदेश भी सम्प्रेवषत िोते िैंतों द्वारा वववाि संस्कार की गरीमा बढ जाती िै लोकगीतों

. .

ऎसा .पोवषत और संरक्षक्षत िोती रिे गी,ववरासत पल्लववत ,लोक परं परा ,के मध्यम से िमारी लोक संस्कृतत .ववश्वास िै

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


53

१३…..

प्रथम अन्तररक्ष यात्री यरू ी गागररन

ववश्व का प्रथम अन्तररक्ष यात्री रूस का यरू ी गागररन नामक व्यजक्त था. 12 अप्रैल सन 1961 को गागररन ने “वोस्तोक-1” नामक राकेट में सवार िोकर उिान भरी. उसने लगभग 108 लमनट में पथ् ृ वी की एक पररक्रमा की. इसके बाद 5 मई 1961 को अमेररका तनवासी शेपिध नामक व्यजक्त ने अन्तररक्ष पर पिुँचने में सफ़लता प्राप्त की. शेपिध ने जजस अन्तररक्ष यान मे यात्रा की थी, उसका नाम फ़्रीिम-7 था. वे लगभग 15 लमनट तक अन्तररक्ष में रिे . अन्तररक्ष जगत में सबसे मित्वपर् ू ध सफ़लता 21 जल ु ाई 1969 को लमली, जब अमेररका के नील आमधस्रांग और एिववन अजल्ड्रन नामक व्यजक्त चाँद पर पिुँचे. इस यात्रा के ललए इन याबत्रयों को ववशेष रुप से प्रलशक्षक्षत ककया गया. उनके ललए खास तरि के कपिॆ तैयार

करवाए गए. साँस लेने के ललए उन्िें

गैस की थैललयां दी गई. 16 जुलाई 1969 को अमेररका के ्लोररिा नामक नगर से शाम को ठीक 7 बजकर 2 लमनट पर अपोलो-11 नामक यान ने तीन सािसी याबत्रयों नील ए. आमधस्रांग, एिववन ई.एजल्ड्रन और माइकेल कौललन्स को लेकर उिान भरी. यि यान बिुत रत ु गामी था. चार हदन लगातार उिान भरने के बाद आमधस्रांग की यि आवाज” िमारा यान चाँद पर उतर गया िै ” आते िी सम्पूर्ध ववश्व में इस समाचार से आश्चयध और प्रसन्नता की लिर दौि गई. इसके आगे का समाचार जानने के ललए दतु नया का िर व्यजक्त उत्सक ु िो गया. 21 जल ु ाई को प्रातः 8 बजकर 26 लमनट पार यान का दरवाजा खोलकर नील आमधस्रांग ने चन्रमा की सति पर पाँव रखा. तत्पश्चात उसके 20 लमनट बाद दस ू रा साथी एिववन यान से बािर आया. तीसरा साथी माइकल यान के आदे श-कक्ष में बैठकर चन्रमा की पररक्रमा करता रिा.

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


54 इन दोनों याबत्रयों को चन्रमा के र्रातल पर चलने-कफ़रने में काफ़ी कहठनाई िुई. सभी प्रततकूल पररजस्थततयों का दृढतापूवक ध मक ु ाबला करते िुए उन्िोंने विाँ पर दो घंटॆ बबताए. इन याबत्रयों ने चाँद की सति पर अमेररका और राष्ट्रसंघ के दे शों के झंिॆ गािॆ.

आप लोगों को जानकर यि िषध िोगा कक उनमें

भारत का ततरं गा झंिा भी था. उन्िोंने विाँ अमेररका के राष्ट्रपतत के संदेश की स्टील की तसती भी लगाई जो इस प्रकार थी.: “´इस स्थान पर जुलाई 1969 ई. में पथ् ृ वी ग्रि के मनष्ट्ु यों ने पिले-पिल अपना पैर रखा. िम समस्त मानव जातत के ललए शांतत चािते िैं” इन याबत्रयों ने विाँ के अनेक चचत्र ललए. चन्रमा के र्रातल से रे त, पत्थर और लमट्टी के नमन ू े अपने साथ लाए. अन्तररक्ष की इस यात्रा क्रम में भारत को पिली सफ़लता 3 अप्रैल 1984 को लमली, जब स्क्वाड्रन लीिर राकेश शमाध, दो रूसी अन्तररक्ष याबत्रयों, कनधल यरू ी माललशेव और स्रे कोलाव के साथ अन्तररक्ष पिुँचे. यि यात्रा उन्िोंने “ सोयज ू टी 11 “नामक अन्तररक्ष यान से पूरी की. यि हदन भारतीय इततिास

में स्वर्ाधक्षरों में अंककत करने योग्य िै .

स्क्वाड्रन लीिर राकेश शमाधजी.

तत्कालीन प्रर्ानमंत्री श्रीमती इंहदरा गांर्ीजी ने जब राकेश शमाध से पूछा कक ऊपर से अन्तररक्ष से भारत कैसा हदखता िै . तो उन्िोंने गवध से अपना सीना चौिा करते िुए किा:-“ सारे जिाँ से अच्छा हिन्दस् ु थान िमारा”. भारत सरकार ने उन्िें “अशोक चक्र” से सम्मातनत ककया था. चन्रलोक पर मानव की यात्रा बीसवीं शताब्दी में ववज्ञान का सबसे बिा चमत्कार िै .

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


55

१४

लोकर्गीत

-एक मीमांसा

लोकगीत वस्तुतः एक शब्द िै ,लेककन अपने में दो भावों को समेटे िुए िै , लोक और गीत. दोनो एक दस ू रे में संजश्लष्ट्ट....एक दस ू रे में संपरू क. लोकगीत पर चचाध करने से पिले िम लोक और गीत पर भी संक्षक्षप्त में चचाध करते चलें, तो उत्तम िोगा.

लोक शब्द संस्कृत के “लोकर्ने” र्ातु में ‘घञ ्’ प्रत्यय लगाकर बना िै , जजसका अथध िै -दे खने

वाला. सार्ारर् जन के अथध में इस शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर िुआ िै . िा. िजारीप्रसाद द्वववेदीजी ने “लोक” शब्द का अथध जनपद या ग्राम से न लेकर नगरों व गांव में फ़ैली उस समच ं कृत समझे जाने वाले लोगों की ू ी जनता से ललया िै पररष्ट्कृत रुचचसंपन्न तथा सस ु स् अपेक्षा अचर्क सरल और अकृबत्रम जीवन की अभ्यस्त िोती िै .

िा. वासद ु े वशरर् अग्रवाल के शब्दों में “लोक िमारे जीवन का मिासमर ु िै , जजसमें भत ू , भववष्ट्य

और वतधमान संचचत िै . आवाधचीन मानव के ललए लोक सवोच्च प्रजापतत िै .

उपरोक्त कथन के अनस ु ार लोक ववश्वव्यापी िै . इसे छॊटा करके निी दे खा जा सकता. तभी तो

िमारे यिाँ लोकरं ग, लोकजीवन, लोकप्रसंग, लोकसंस्कृतत,, लोककला, लोककथा, लोकगाथा, लोकगीत,

लोकर्ारर्ा, लोकसाहित्य, लोकतत्व, लोकसाहित्य, लोकजागरर्, लोकरा,,लोकराग, लोकमल् ू य, लोकचचत्र, लोकावस्था, लोककथाएं, लोकचचत्त, लोकनाटक,लोकसमद ु ाय,आहद ववस्तार लेते िुए हदखाई दे ता िै .

िॉ० कंु जबबिारी दास ने लोकगीतों की पररभाषा दे ते िुए किा िै, ‘‘लोकसंगीत उन लोगों के जीवन

की अनायास प्रवािात्मक अलभव्यजक्त िै , जो सस ं कृत तथा सस ु स् ु भ्य प्रभावों से बािर कम या अचर्क

आहदम अवस्था में तनवास करते िैं। यि साहित्य प्रायः मौखखक िोता िै और परम्परागत रूप से चला आ रिा िै ।’’

“यग ॆ लोकगीत ववर्ा को लेकर किते िैं— ु तेवर” पबत्रका के संपादक श्री कमलनयन पांिय

“लोकगीत” मानवीय वजृ त्तयों का अक्षय भंिार िै . लोक संस्कृतत का अमरकोष िै . चरर्बद्ध मानव-ववकास

का सजग साक्षी िै . सामहू िकता का सिज गान िै . करुर्ा का लिलिाता मिासागर िै . मानवीय-संवेगों का दस्तावेज िै . इततिासवेत्ता मानव-ववकास की किानी के ककसी कोने को दजध करने से चक ू सकता िै , पर “लोक” की पारखी नजर से कुछ भी निीं चूकता. इसीललए मेरा मानना िै कक परम्परा की पिताल का

सबसे बिा र्रातल िमारे “लोकगीत” िैं, जजसमें िर कालखण्ि, िर भख ू ण्ि के मानव-समद ु ाय की सांस-

सांस टांकी गई िै . रे शा-रे शा उपजस्थत िै . मन के कोने-अंतरे के भाव-प्रभाव दजध िैं. सचेत इततिासवेत्ताओं का मानना िै कक इततिास का यथाथध लेखन लसफ़ध गजेहटयरों और ररयासतों के दस्तावेजों को आर्ार मानकर निीं ललखा जा सकता. यथाथध इततिास के ललए िमें लोक-सज ृ न की ववववर् ववर्ाओं को भी आर्ार बनाना पिॆगा.

उपरोक्त ववद्वानों के मतों के आर्ार पर किा जा सकता िै “लोकगीत” लोक के गीत िैं,जजन्िें

कोई एक व्यजक्त निीं बजल्क परू ा लोक समाज अपनाता िै . सामान्यतः लोक र्ें प्रचसलत, लोक द्िािा िधचत एिां लोक के सलए सलखे र्गए र्गीतों कॊ “लोकर्गीत” कहा जा सकता है . लोकगीतों का रचनाकार

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


56 अपने व्यजक्तत्व को लोक को समवपधत कर दे ता िै . इनमें शास्त्रीय तनयमों की ववशेष परवाि न करके

सामान्य लोकव्यविार के उपयोग में लाने के ललए मानव अपने आनन्द की तरं ग में जो छन्दोबद्ध वार्ी सिज उद्भत ू करता िै , विी “लोकर्गीत” िै . लोकगीत को तीन अलग-अलग श्रेखर्यों में ववभक्त ककया जा सकता िै - लोक में प्रचललत गीत(२) लोक-रचचत गीत-(३) लोक-ववषयक गीत. यिाँ यि बात स्मरर् में जरुर रखी जानी चाहिए कक लोकगीत भारत की सभी भाषाओं मे ललखे गए िै . जजन्िें आज भी गाया जाता िै . इनमे से कई लोकगीत या तो ववस्मत ृ कर हदए गए, या कफ़र इस बदलते पररवेश में जजन्िें गाना, शान के ववरुद्ध माना जाने लगा िै

और उन्िें ततरस्कृत ककया जा रिा िै जबकक इस अनमोल खजाने को संरक्षक्षत करने की जरुरत िै .. इन्िीं बातों को लेकर दे वन् े र सत्याथी ने उन्नीस बरस की अवस्था में कालेज की पढाई को अर्बीच में छॊिा

और घर से तनकल पिॆ.. इस घम् ु मकि ववद्वान ने गांवों की र्ल ू भरी पगिंडियों पर भटकते िुए, र्रती के भीतर से फ़ूटे ककस्म-ककस्म के रं गों और भाव-भलू मयों के लोकगीतों को दे खा,मिसस ू ककया और उन्िें

अपनी कापी में उतार ललया. जब भी उन्िें कोई अच्छा सा लोकगीत सन ु ने को लमलता,लेककन उसका अथध समझ में निीं आता, या कफ़र भाषा की कहठनाई मिसस ू करते तो पूछ-पूछ कर उसका अथध भी ललख

ललया करते थे. इस तरि उन्िोंने काल-कवललत िोते लोकगीतों का संरक्षर् ककया. जब भी लोकगीतों की बात िोगी, इस मिामना को ववस्मत ृ निीं ककया जा सकता, क्योंकक वे पिले व्यजक्त थे, जजन्िोंने लोकगीतों के संरक्षर् के ललए पिला कदम बढाया था.

कजरी, सोिर, चैती संस्कारगीत, पवधगीत,ऋतुगीत, आहद लोकगीतों की प्रलसद्ध शैललयाँ मानी गई

िै . इनके अलावा सांस्काि र्गीत= (बालक-बाललका के जन्मोत्सव, मण् ु िन,जनेऊ, वववाि आहद अवसरों पर

गाए जाने वाले गीत)र्गाथार्गीत- (ववलभन्न क्षेत्रों में प्रचललत ववववर् लोकगाथाओं पर आर्ाररत गीत. इसमें आल्िा, ठोला, भरथरी, नरसी भगत, घन्नैया को शालमल ककया जा सकता िै )

पिमतीत=(राजय के ववशेष पवों एवं त्योिारों पर गाए जाने वाले गीत) को भी शालमल ककया जा सकता िै .ऋतुर्गीत=(कजरी, बारिमासा, चैता,हिंिोला आहद)

.कजरी= िमारे यिाँ वषाध ऋतु का अपना ववलशष्ट्ट स्थान िै . आषाढ से लेकर भादों तक प्रकृतत के लिराते िररत अंचल की छटा एक ओर िमें मंत्रमग्ु र् कर दे ती िै , विीं दस ू री ओर िमारे अंतमधन में एक संगीतमय गद ु गद ु ी पैदा कर एक सख ु द व्यथा को भी उत्पन्न करती िै और यिी सख ु द

पीिा जन्म दे ती िै संगीत को. वषाध की ररमखझम फ़ुिारों के साथ कजरी के बोल सवधत्र गँज ू उठते

िैं माटी की सोंर्ी सग ं के साथ. झूले पर पेंगें मारती यौवनाएं िो या घर की गि ु र् ृ तनयां िर ककसी के अंतमधन से कजरी के बोल फ़ूट पिते

िैं. बूढा िो या कफ़र जवान िर कोई कजरी की लय अमें

खोकर रि जाता िै .िोंठ चथरक उठते िै और बोल स्वतः फ़ूट पिते िैं- कइसे खेले जयबू सािन र्ें कजरिया, बदरिया नघिी आईस सजनी”

वतधमान हिन्दीभाषी क्षेत्र प्राचीन भारत का “मध्य दे श” िै इस क्षेत्र में बोली जाने वाली बोललयों

को भाषा वैज्ञातनकों ने चार भागों में ववभक्त ककया िै .”पजश्चमी हिन्दी” जजसके अंतरगत खिी

बोली,रह्ज,कन्नौजी, राजस्थानी तथा बुंदेलखिी भाषाएं आती िै . अवर्ी, बघेली, तथा छत्तीसगढी मध्य की भाषाएं िैं और इसके पव ू ध में बबिारी भाषा समद ु ाय की भोजपरु ी, मैचथली,तथा मगिी िै . उत्तर में

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


57 कुमाऊँनी,भाषा िै जो नैनीताल, अल्मोिा,टे िरी-गढवाल, वपथौरागढ,चमौली,तथा उत्तर काशी में बोली जाती िै . बोललयों में भी अनेक उपबोललयां िैं,जजनमें लोकगीत गाए जाते िैं.

लोकगीत चािे जिाँ के िों वे प्राचीन परम्पराओं, रीततररवाजों एवं र्ालमधक तथा सामाजजक जीवन

को अपने में समेटे िुए िैं.इनमें भाषा अथवा बोली की अनेकताएं भले िी िों पर भावों की एकता एवं उसे व्यक्त करने तथा पात्रों का चयन लर्गभर्ग एक जैसा ही होता है . डोर्गिी लोकर्गीत= चन्न म्िािा चढे या ते बैररया दे ओिले बैर पटाओ म्िािा चन्न मि ु ा बोले

लमलना जरुर मेरी जान ( मेरा चांद बेर के दरासत की ओट में चढा िै . दरसत कटवा दो

ताकक मेरा चांद मि ुं से बोल सके.मेरी जान लमलना तो जरुर िै ) पांजाबी लोकर्गीत=तनक्की तनक्की बँद ू ी तनजक्कयाँ मीं वे वरें वे वीरा नहदयाँ ककनारे घोिी घारु चरे वे वीरा दादी सि ु ागर् बूिे ढोल र्रे

वे वीरा भआ सि ू ु ागर् सोिर्ें नाऊ र्रे (दल् ू िे का घोिी पर सवार िोकर वववाि रचाने जाते

समय गाया जाता िै )

कश्र्ीि=आव बिार वलो बल ु बल ु ो/सोन वलो बरवों शादी/राव कठकोश ग्रोअज पान छलो/जरा

छलनय वन्दककय दादी/बुजू न्येजन्र बुतन छासल ु ो(वसंतकालीन पवध पर गाए जाने वाला लोकगीत)

(२) पोशपोजाये वेल िे वोत/कमधपम्पोश सोन लबबमन्ज आवा/स्वगधच पूजाये वेल िै वोत( वषाधगीत)

ब्रज लोकर्गीत= भतइया आयौ आंगन में बैठॊ हदल खोल/िुिर लायो अशरफ़ी लायौ रुपया लायौ भौत/सास िमारी यों उठ बोली दे खौ थैलीखोल/ खोटे तौ नाय ओिो रे नकली तो नाय...(आंगन में )िरवा लायो तनकलस लायो, चूिी लायौ मोल/जजठनी िमारी यों उठ बोली, दे खो डिब्बा खोल/नकली तो नांय िो रे ,पाललश तो नांय(आंगन में )

भीलों का भािथ=ए गािु सोरीन ऊपो रयो (२)/गािु सोरीन ऊपो रयो िो....रा....झी/गरु ु भें मा रे पांिवन साआआर नोखें(२)/ए सारनो पळ ू ो रे नोखवा लागा िो....रा...झी

हरियाणा=नाच-नाच मेरा दामर् पाट्या/ िे री ताई तूं के और लसमा दे गी/मैं तेरे घर नाचर् आई

र्िाठी(िार् जन्तर् का प्रसांर्ग)=सात सलमंराचं पानी/दसरथाच्या रांजनी/रामराय झाले तान्िे /कौसल्या बाळं ततनी (२) सीता स्ियांबि का प्रसांर्ग=लशवाच र्नष्ट्ु य/सीतेनं केलं घोिं/रावर्ं आळा पढ ु ं /दे वाला पिलं कोि/रावनानं कोर्ंि/उचललं घाई घाई/रामाची सीता नार/याळा लमळायची नािी.

ननर्ाडी लोकर्गीत =संजा बाई, संजा बाई सांझ िुई/जाओ संझा ! थारा घर जा/थारी माय मारे गी, कूटे गी, चांद गयो गज ु रात/ हिरर्ी उगेगी,िुबेगी, िथनी का बिा-बिा दांत/थारी बईर् िरे गी, कांपगी, कुतरा भक ु ि गली म S/ थारी माय दचदे गी, पटकेगी.(२) राखो राखो रे पार्ी, बोलो असी वार्ी/जे कामS लमसरी घल ु ी,वार्ी लमसरी वाली

बुदेली लोकर्गीत= चगरी पे िॊरी िार मोरी गइ ुं याँ/ िार नोरी गइ ु यां िराव मोरी गइ ु यां/चगरी पे िोरी त्रबहिं

नीकी लागै/सोनन के घिेलना िोय मोरी गइ ु यां.(प्रसव बाद कुएं पर पानी भरने जाते समय गाए जाने वाला गीत)

सर्धथला (नागपूजा के समय) =पुरैतनक पत्ता, खझललमल लत्ता/नागदि नागदि पसरल पुरतन/जल उतपन

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


58 मेल पांचो बहिन/पांचों बहिन पांचों कुमारर/छोट दे वी ववषिरर बि उतफ़ालल

छत्तीसर्गढी लोकर्गीत=दे खो फ़ुलगे चंदैनी गोंदा फ़ुलगे/एखर रुप रं ग िा जजव मां,लमसरी सािी घरु गे/एक

फ़ूल मय तुमला दे थंव/बबा ददा औ भाई/नानक ु बाबू नोनी दल ु ौररन/बहिनी अउ मोर दाई/ ति ुं र दरस ला पाके, िमर सबके भाग िा खुलगे.(२) लउिी के चक लउिी भइया, लउिी म बांर्े फ़ुँदरवा/िम तो जाथंन गोवर्धन खंद ु ाय बर,माता-वपता के दल ु रवा.

बस्ति का लोकर्गीत=दे वी गंगा, दे वी गंगा, लिर तुरंगा/ िमरों भोजली रानी के आठॊ अंग िै (अिो दे वी गंगा) पानी बबन बबजली, पवन बबन बारी/ सेवा बबन भोजली के िरषे िो रानी.

भोजपुिी=रातत अँचर्यररया, बाटी सतू न मोर सेजररया/मोरे हदलवा में उठे ला तूफ़ान/बोलैले लसयार कुचकुचवा बिरवाँ/ रे उवाँ चचल्लात बाटॆ ं तालके ककरनवाँ (२)र्ीरे बिा मोरी िे माता टँ वलसया/लेइकै मोरी अँखखयन के आँस/ू जइसे मोरी माता फ़ुलवन के बिवावा/वैसे मोरे हदल के जलतनया लमटावा.

िाजस्थान के लोकर्गीत=गाम गाम खेजिी नै गामेगाम गोगो/घोट पीवो अंतर छाल कालो िर्े नी बोगो. खेजिी=शमी वक्ष ुं वाला. ृ / घोट=पीसकर/कालो-सपध/िर्े=िसता िै /बोगो=दो ओर मि

(२)समरुं माता शारदा, गवरी पुत्र गर्ेश/मखर्र्र फ़खर्र्र गरलर्र पन्नगनाथ मिे श/करुं प्राथधना प्रेम थी,

सफ़ल करो मझ ु काज....(३) जय जयकार करई जोि/ऊभी मैहदनी ओळाओळ/करे पररकम्मा दे वे र्ोक/चढे नालेर,लगावे भोग...(३) गौर ऎ गर्गौर माता, खोल ऎ ककवािी/बािर ठािी, थारी,पज ू न वारी..

र्ेिाती(राज)=बन्ना िै बन्नी को बिो चाव/चल हदयो लसखर दप ु िरी में /बन्ना जूता लायो सईं साज/ मोजा लायो दप ु िरी में /बन्ना िै , बन्नी को बिॊ चाव

कन्तनौज=सलु मर सरसत ु ी जगदम्बा को,औ गनपतत के चरन मनाई/र्रती माता तम ु को ध्यावों, कीरती,

सबसे बिी तुम्िार/कीरतत ध्यावों उन वीरन की, पलटै प्रबल काल की चाल/र्ारैं लौंटें तरवारतन की,उनके झुकैं न ऊँचे भाल/अरर पन्नग पर पन्नगारर जस, तूटैं परे पराये काज/ पानी राखैं जनमभलू म का, राखैं जनम भलू म की लाज

डोर्गिी= नूं पुच्छदी ऎ सस्सू कोला/बािर सपाई कीया रौिन्दे न/भंगा पुट्टे सथुरा पान्दे /सक ूं सट्ट ु ी सैई रौिन्दे

न (बिू सास से पछ ू ती िै मां, बािार लसपािी कैसे रिते िैं. सास किती िै , भांग के पौर्े उखािकार बबस्तर बबछाते िैं और तनश्वास लेकार सो जाते िैं.) आददिासी चकर्ा सर्द ु ाय का र्गीत=छोरा छोरी बील िावा जोर/िादो पान खखलक िील िावो(नदी-नाले और ताल-तलाइये भर जाने से जैसे मछललयां खश ु ी से नाच उठती िै .मेरी सजनी ! वैसे िी तेरे िाथों से पान खा कर मेरा हदल नाचने लगता िै .)

ओडिया लोकगीत=रं ज िे इचच कक सज करुच मो माआमाने/रुष बलसचच कक बोर् करुच मो माआमाने/कातनपर्तरे बांचर् रखखल मो माआमाने/एबे सबु स्स्स्पेि पासोरर दे य मो माआमाने(आज तो कोई

उत्सव निीं िै कक तुम मेरा लसंगाकधर रिी िो, न मैं रूठी िूँ कक तुम मझ ु े मना रिी िो. मझ ु े आंचल में तछपाकार रखती थी, अब सारा प्यार भल ू गई िो.( वर आने से पिले कन्या स्नान करते समय मां से कि रिी िै .)

अरुणाचल=(नत्ृ य करते समय गाए जाने वाला लोकगीत)=पचच दोव से अने दने दोि/दग ु ो दोि से अने दने दोि/पचच साव से अने दने दोि/दग ु ो दोि अने र्ने दोि

असम (मजदरू का गीत) कोट मारा जेमन तेमन/पाता तोला टान/िाय यदरु ाम/फ़ाकक हदया आतनलल

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


59 आसाम/चािे ब बले काम काम/बाबू बैले र्ररे आन/चादाधर बले ललबे वपठे र चाम/रे तनठुर श्याम/फ़ांकक हदया आतनलल आसाम

त्रबलासपुि=(छ.ग.) जइसन जेकर दाई ददा, तेकर तइसन लइका/जयसन जेकर घर कुररया, तइसन जेकर घर कुररया,/तयसन तेकर फ़इरका (कोिबा)=जेकर जसन दाई ददा, तेकर तसन लइका/जेकर जसन घर दव ु ार, तेकर तसन फ़इरका.(िायर्गढ)=जेकर जैसेन घर दव ु ार, तेकर तैसन फ़इरका/ जेकर जैसन दाई-ददा, तेकर तैसन लइका.

१५…

संस्कृत काव्य र्ारा में प्रकृतत की आहदम सव ु ास.

संस्कृत साहित्य में ,ववषेशकर उसकी काव्य परम्परा मे वेदव्यास, वाजल्मकक, भवभतू त, भारवव,

श्रीिष, बार्भट्ट,कालीदास आहद मिाकववयों ने प्रकृतत की जो रसमयी झांकक प्रस्तुत की िै,वि अनप ु मअतुलनीय तथा अलौककक िै . उसकी पोर-पोर में कुदरत की आहदम सव ु ास िै-मर्ुर संस्पशध िै और

अमत ृ पायी जीवन दृजष्ट्ट िै .प्रकृतत में इसका लाललत्य पूरी तनखार के साथ तनखरा और आज यि ववश्व

का अनमोल खजाना बन चक ु ा िै . सच माना जाय तो प्रकृतत,संस्कृत काव्य की आत्मा िै--चेतना िै और

उसकी जीवन शजक्त िै . काव्यर्ारा की इस अलौककक चेतना के पीछे जजस शजक्त का िाथ िै ,उसका नाम िी प्रकृतत िै.

पथ् ृ वी से लेकर आकाश तक तथा सजृ ष्ट्ट के पांचों तत्व तनमधल और पववत्र रिें , वे जीव-जगत के

ललए हितकर बने रिें , इसी हदव्य संदेश की गज ूं िमें पढने-सन ु ने को लमलती िै .

मिाभारत में िमें अनेक स्थलों पर प्राकृततक सौंदयध की अनप ु म छटा दे खाने को लमलती िै.

मिाभारत के आरण्यक पवध ३९/.१९ की एक बानगी दे खखए.

र्नोहि अनोपेता स्तम्स्र्न्तन नतिथोजुन म ाः "

पण् ु य शीतर्लजला​ाः पश्यन्तप्रीत र्नाभित

कलकल के स्वर तननाहदत कर बिती नहदयाँ, नहदयों में बिता शीतल स्वच्छ जल, जल

में तैरते-अलौककक आनन्द मे िूबे िं स, नदी के पावन पट पर अठखेललयां करते सारस, क्रौंच,कोककला,

मयरू , मस्ती में िोलते मदमस्त गें ि,े वराि, िाथी, िवा से िोि लेते मग ृ , आकाश कॊ छूती पवधत श्रेखर्यां, सघन वन,वक्ष ृ ों की िाललयों पर र्माचौकिी मचाते शाखामग ृ ,चचंचचंयाते रं ग-बबरं गे पंछी, जलाशयों में परू े

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


60 तनखार के साथ खखले कमल-दल, कमल के अप्रततम सौंदयध पर मंिराते आसक्त भौंरॊं के समि ू , तततललयों का फ़ुदकना आहद को पढकर आहदकवव के काव्य कौशल को दे खा जा सकता िै. तो पश्य र्ानौ विविधन्तच शैल प्रस्थान्तिनाननच नदीश्च विविध िम्या जग्र्तुाः सह सीतभा साि सा​ांश्चक्रिाका​ांश्च नदी पसु लन चारिणाः सिा​ांसस च सपद्मानन यत ु ानी जलजै खर्गैाः

यथ ू बांधाश्च पष ृ ता​ां र्िोन्तर्त्ताम्न्तिषा​ाण नाः र्दहषा​ांश्च ि​िाहां श्च र्गजा​ांश्च रर् ु िैरिणाः

(रामायर्- अरण्यकांि सगध ११(२-४)

राम अपने बनवास के समय एक स्थान से दस ू रे स्थान पर जाते िैं, तो मागध मे अनेक पवधत

प्रदे श, घने जंगल, रम्य नहदयाँ, और उनके ककनारों पर रमर् करते िुए सारस और चक्रवाक जैसे पक्षी, खखले -खखले कमलदल वाले जलाशय और अपने-अपने जलचर, मस्ती मे िोलते हिरर्ॊं के झुण्ि, मदमस्त

गैंि,े भैंसे, वराि, िाथी, न सरु क्षा की चचन्ता, न ककसी को ककसी का भय, वाजल्मकी ने रामायर् में जगिजगि प्रकृतत के मर्ुररम संसार का वर्धर् ककया िै .

भवभतू त के काव्य में प्राकृततक सौंदयध दे खते िी बनता िै . लताएं जजन पर तरि-तरि के खखले िुए पष्ट्ु प सव ु ास फ़ैला रिे िैं .शीतल और स्वच्छ जल की तनझधररयां बि रिी िै. भवभतू त ने एक िी श्लोक में जल, पवन, वनस्पतत एवं पक्षक्षयों का सद ुं र वर्धर् प्रस्तत ु ककया िै.

माघ के काव्य में तीन ववलशष्ट्ठ गर् ु िै . उसमें उपमाएं िैं.अथध गांभीयध िै और सौंदयध सजृ ष्ट्ट भी.

किा जाए तो वे उपमाओं के राजा िैं. ववशेष बात यि िै कक उन्िोंने अचर्कांश उपमाएं प्रकृतत के खजाने से िी ली िै .

लशशप ु ाल वर् में अनेक ऎसे स्थल िैं जजनमें प्राकृततक सौंदयध और स्वच्छ पयाधवरर् का उल्लेख

लमलता िै . " काली रात के बाद भॊला प्रकाश आ रिा िै .उसके गोरे -गोरे िाथ-पांव ऎसे लगते िैं मानो

अरुर् कमल िों. भौंरे ऎसे िैं जैसे प्रभात के नीलकमल नेत्रों के कजजल की रे खाएं िों. सांध्य पक्षक्षयों के कलरव में मस्त िुई यि भोली बाललका( प्रभात) रात के पीछे -पीछे चलकर आ रिी िै( लशशप ु ाल वर् ६;२८)

मिाकवव भारवव के ग्रंथ " ककराताजन ुध ीय " में अनेक उपमाएं, शंग ृ ार प्रर्ान व सौंदयधपरक रुपक िै .

वन में प्रवाहित नव पवन कदम्ब के पष्ट्ु पों की रे र्ु द्वारा आकाश को लाल कर रिा िै. उर्र पथ् ृ वी,

कन्दली के फ़ूलों के स्पषध से सग ु जन्र्त िो रिी िै . ये दोनो दृष्ट्य अलभलाषी पुरुषॊं के मन को का-मतनयो

के प्रतत आकक्त करने वाले िैं. नवीन वनवायु अपने आप िी शद्ध ु वायु की ओर संकेत कराने वाला शब्द िै . उर्र र्रती सग ु चं र्त िै , मन चंचल िो रिा िै .(९)

(९) निकदम्ब जोरुाणताम्बैि िधध पिु म्न्ति सशलान्ति सर्ग ु म्न्तधसभाः र्ानसस

िार्ग ितार्नु िाधर्गता निनिा िनिायु सभिादे धे !!

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


61

वन में प्रवाहित नव पवन कदम्ब के पष्ट्ु पों की रे र्ु द्वारा आकाश को लाल कर रिा िै. उर्र

पथ् ु जन्र्त िो रिी िै . ये दोनों दृष्ट्य अलभलाषी पुरुषॊं के मन को ृ वी कन्दली के फ़ूलों के स्पशध से सग कामतनयों के प्रतत आसक्त करने वाले िैं.

प्रकृतत के लािले कवव कुमारदास द्वारा रचचत" जानकी िरर् "प्राकृततक सौंदयध एवं

उपमाओं के भण्िार से भरा िुआ िै. अतीत की तनष्ट्कलंक एवं पववत्र प्राकृततक , प्रायः सभी जगि बबखरी पिी िै . कई स्थानॊं पर मालमधक मानवीकरर् भी िै . कुदरत की मादक गोद में ववचरर्

करते राजा दशरथ की मनःजस्थतत का वर्धर् करते

िुए कवव ललखता िै " राजा ने नदी के उस तट पर ववश्राम ककया, जिाँ मंद पवन बेंत की लताओं को चंचल कर रिा था. सख ं जैसा सग ु द पवन गंर्ी की दक ु ान की सग ु र् ु चं र्त था. वि सारस के नाद को

आकजरषत करने वाला था. नीलकमलॊं के पराग को उिा-उिाकर उसने राजा के शरीर कॊ पीला कर हदया". यि पढकर लगता िै कक िम ककसी चचत्र-संसार की सलोनी घटना को प्रत्यक्ष दे ख रिे िैं.

श्रीिर्ष ने अपनी कृतत " नैषचर्य़" में प्रकृतत के सलोने रुप का वर्धर् ककया िै . इस दृष्ट्य को

उन्िोंने राजा नल की आँखों के माध्यम से दे खा था. नल ने भय और उत्सक ु ता से दे खा. क्या दे खता िै

कक जल में सग ं फ़ैलाने वाला पवन जजस लता को चूम-चूम कर आनन्द लेता िै,विी लता ( जॊ मकरन्द ु र् के कर्ॊं से यक् ु त िै.)

आज अपनी िी कललयों में मस् ु कुरा रिी िै. एक चचत्र और दे खखए--

"फ़लानन पष्ु पानन च पल्ल्िे किे क्योनतपातोद र्गत िातिेवपते"

वक्ष ृ ों ने अपने िाथों में पुष्ट्प और फ़ल लेकर राजा का स्वागत ककया. ऊपर की ओर

पक्षक्षयों की फ़ि-फ़िािट से िवा में िोने वाले कम्पन से शाखाएं हिल रिी थीं. पढकर ऎसा लगता िै कक वक्ष ृ ों ने अपने इन्िी िाथों (शाखाओं) में पष्ट्ु प और फ़ल लेकर राजा का स्वागत ककया िो.

वार्भट्ट ने अपनी कृतत" कादम्बरी" में अगस्त्य मतु न के आश्रम के पास, पम्पा सरोवर

का वर्धर् करते िुए ललखा िै" सरोवर में कई प्रकार के पष्ट्ु प िैं. जैसे- कुसम ु ,कुवलय और कलिार. कमल इतने प्रमहु दत िै कक उसमे मर्ु की बूंदे टपक रिी िै . और इस तरि कमल-पत्रों पर चन्र की आकृततयां बन रिी िै . सफ़ेद कमलों पर काले भवरों का मंिराना अंर्कार का आभास दे ता िै. सारस मस्त िैं. मस्ती में कलरव कर रिे िैं. उर्र कमल रस का पान करके तप्ृ त िुई कलिं स भी मस्ती का स्वारालाप कर रिी िै . जलचरों के इर्र से उर्र िोलने से तरं गे उत्पन्न िो रिी िै. मानो मालाएं िों. िवा के साथ नत्ृ य करती िुई तरं गे वषाध ऋतु का सा दृष्ट्य उत्पन्न कर रिी िै. सद ुं र लवंग लता की शीतलता ललए िुए कोमल और मद ृ ु मलय पवन चलता िै. मस्त भौंरों और कोयल वंद ु ततयां अपने प्रेलमयों के साथ मस्त िोकर नत्ृ य ृ ो के कलरव से कंु ज- कुटीर तननाहदत िै. यव करती िैं. स्वयं िरर ववचरर् करते िैं.-ऎसी वसन्त ऋत,ु ववरिखर्यों को दःु ख दे ने वाली िै . िै .

वसंत ऋतु का ऎसा सजीव चचत्रर् जो मस्ती से लेकर, संताप की एक साथ यात्रा करवाता

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


62 काललदास ने कवव और नाटककर दोनों रूपों में अद्भत ु प्रततष्ट्ठा प्राप्त की. उन्िोंने प्रकृतत

के अद्भत ु ्र ने भारतीय वाि;गमय को अलौककक काव्य ु रुपों का चचत्रर् ककया िै. सरस्वती के इस वरद-पत्र रत्नों एवं हदव्य कृततयों से भरकर उसकी श्रीववृ द्ध की िै .

रघव ु ंश के सोलिवें सगध में प्राकृततक छटा का जो श्लोक िै उसका भावाथध यि िै कक वनों में

चमेली खखल गई िै जजसकी सग ु न्र् चारों ओर फ़ैल रिी िै. भौंरे एक-एक फ़ूल पर बैठकर मानों फ़ूलों की चगनती कर रिे िैं.". वसन्त का चचत्रर् करते िुए एक कवव ने सजीव एवं बबम्बात्मक वर्धर् ककया िै -" लताएं पष्ट्ु पों से यक् ु त िैं, जल में कमल खखले िैं, कामतनयां आसजक्त से भरी िै , पवन सग ु जन्र्त िै, संध्याएं मनोरम एवं हदवस रम्य िै, वसन्त में सब कुछ अच्छा लगता िै".

शकुन्तला के बबदाई के समय के चचत्र को दे खखए-" िे वन दे वताओं से भरे तपोवन के वक्ष ृ ों !

आज शकुन्तला अपने पतत के घर जा रिी िै. तम ु उसे बबदाई दो. शकुन्तला पिले तम् ु िें वपलाए बबना खद ु पानी निीं पीती थी, आभष ू र्ों और शंग ु िारे कोमल पत्तों को िाथ निीं ृ ार की इच्छा िोते िुए भी तम् लगाती थी, तुम्िारी फ़ूली कललयों को दे खकर खुद भी खुशी से फ़ूल जाती थी, आज विी शकुन्तला अपने पततगि ृ जा रिी िै. तुम उसे बबदाई दो".

संस्कृत काव्यर्ारा में फ़ूलों की आहदम सव ु ास का अनमोल खजाना ,अपने पूरे लाललत्य के साथ

समाया िुआ िै . प्रकृतत के इन ववलभन्न आयामों की रचना करने का उद्देश्य िी पयाधवरर् संरक्षर् रिा िै . आज जस्थततयां एकदम ववपरीत िै. जंगलों का सफ़ाया तेजी से िो रिा िै. ववकास के नाम पर पिािॊं का भी अजस्तत्व दांव पर लग चुका िै. प्रकृतत िमारे ललए सदै व पुजयनीय रिी िै . भारतीय मल् ु य प्रकृतत के

पोषर् और दोिन करने का िै, न कक शोषर् करने का. वनों ने सदा से िी संस्कृतत की रक्षा की िै . परू े पौराखर्क और ऎततिालसक तथ्य इस बात के साक्षी िैं कक जब तक िमनें वन को अपने जीवन का एक अंग माना, तब तक िमें कभी पश्चाताप निीं करना पिा. आज वनों की अंर्ार्ुंर् कटाई से पयाधवरर्

संतुलन गिबिा गया िै . ववलभन्न ववभाग तथा संस्थाएं इस प्रयास में लगी तो िैं लेककन उनमें समन्वय की कमी हदखलाई पिती िै. काफ़ी प्रचार-प्रसार के बाद भी इजच्छत पररर्ाम निीं लमल पा रिे िैं. यहद

िम पयाधवरर् को जन-जन से जोिना चाह्ते िैं तो आवश्कता इस बात की िै कक िमें इसे पाठ्यक्रम में उचचत स्थान दे ना चाहिए.

..

भारतीय महिलाएँ तथा अन्य आलेख – गोवर्धन यादव | रचनाकार.ऑगध http://rachanakar.org की प्रस्ततु त.


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.