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बालसािहित्य दो हिंसों का जोडा (तथा अन्य रचनाएँ)


गोवर्धनर्धन यादवर्

दो हिंसों का जोडा (तथा अन्य आलेख) बालसािहित्य. अनुक्रम 1

ओ चंदा रे (किवर्ता)


2.

असली वर्ािरस

3

आसमान में उडती परिरयाँ

4

लोक प्रचिलत लोकोिक्तियाँ

5

एक पररी आसमान से उतरी

6

क्या आपर जानते हिैं ?

7

िवर्श्व की संसदों के नाम

8

खट्टी-मीठ्ठी

9

चार लालची

10

अष्टावर्क्र ने िसखाया सौंदयर्ध शास्त्र से बडा ज्ञान

12

ध्रुवर् हिठ


13

संत रािबया ने युवर्ाओं को बताया सेवर्ा का महित्वर्

14

स्वर्ामी िवर्वर्ेकानन्द की प्रेरणा बनी परंिडत की सलाहि

15

चोरी बुरी बात

16

जीवर्-िवर्ज्ञान के कु छ महित्वर्परूर्णर्ध तथ्य

17

दो हिंसों का जोडा

18

िवर्श्व दूर्र संचार िदवर्स

19

बाल मनोिवर्ज्ञान को समझना एक बडी तपरस्या

20

समय के उपरायोग की महित्ता समझें

21

मानवर् जीवर्न में संस्कारों का महित्त्वर्

22

परयार्धवर्रण चेतना


23

ऎसे थे हिमारे बापरूर्

24

भारत के प्रिसद्ध स्थल

25

भारतीय रे ल्वर्े संबधन ं ी महित्त्वर्परूर्णर्ध तथ्य

26

क्या आपर जानते हिैं?

27

भारत का सबसे बडा,सबसे छॊटा,सबसे ऊँचा,सबसे लंबा

28

बीरबल की चतुराई

29

बुिद्ध कहिां रहिती हिै?

30

हिमारा शरीर

31

मुन्ना एक कहिानी िलखना(किवर्ता)

32

झुके झुके से आते बादल(किवर्ता.)


33

िचिडया गीत सुनाती आयी(किवर्ता,)

34

राजा भोज और चतुर बुिढिया

35

मुखर्धराज

36

िवर्श्व के ध्वर्ज

37

सौरमण्डल के कु छ महित्त्वर्परूर्णर्ध तथ्य

38

वर्ातावर्रण का प्रभावर्

39

िवर्िभन्न देशों के स्वर्तंत्रता िदवर्स.

40

िवर्श्व के िचन्हि और प्रतीक

41

िवर्श्व का सबसे बडा, सबसे ऊंचा, सबसे छॊटा एवर्ं सवर्र्धप्रथम

42.

परसीने की कमाई


43

िवर्श्व के प्रिसद्ध स्थान

44

वर्ृक्ष की सेवर्ा से िमली समृिद्ध

45

श्रम का मूर्ल्य

46

सूर्ई

47

राष्ट्रीय अलंकरण एवर्ं परुरस्कार

48

असली वर्ािरस

49

लालच बुरी बलाय

50

परयार्धवर्रण चेतना

51

दो हिंसों का जोडा

53

सुखी जीवर्न प्रबंधन के अठारहि शाबर मंत्र


54

लोकिप्रय लोकोिक्तियां

55

बूर्झो तो जाने

56

आसमान से उडते परक्षी अपरनी उडान स्वर्यं िनधनार्धिरत करते हिैं.

परिरचय *नाम--गोवर्धनर्धन यादवर् *िपरता-. स्वर्.श्री.िभक्कु लाल यादवर् *जन्म स्थान -मुल ताई.(िजला) बैत ुल .म.प्र. * जन्म ितिथ - 17-7-1944 *िशक्षा - स्नातक *तीन दशक परूर्वर्र्ध किवर्ताऒं के माध्यम से सािहित्य-जगत में प्रवर्ेश *देश की स्तरीय परत्रपरित्रकाओं में रचनाओं का अनवर्रत प्रकाशन


*आकाशवर्ाणी से रचनाओं का प्रकाशन *करीब परच्चीस कृ ितयों परर समीक्षाएं कृ ितयाँ * महुआ के वर्ृक्ष ( कहिानी संग्रहि ) सतलुज प्रकाशन परंचकु ला(हि​िरयाणा) *तीस बरस घाटी (कहिानी संग्रहि,) वर्ैभवर् प्रकाशन रायपरुर(छ,ग.) * अपरनाअपरना आसमान (कहिानी संग्रहि) शीघ्र प्रकाश्य. *एक लघुकथा संग्रहि, शीघ्र प्रकाश्य. सममान*म.प्र.िहिन्दी सािहित्य सममेलन िछन्दवर्ाडा द्वारा”सारस्वर्त सममान” *राष्ट्रीय राजभाषापरीठ इलाहिाबाद द्वारा “भारती रत्न “ *सािहित्य सिमित मुलताई द्वारा” सारस्वर्त सममान” *सृजन सममान रायपरुर(छ.ग.)द्वारा” लघुकथा गौरवर् सममान” *सुरिभ सािहित्य संस्कृ ित अकादमी खण्डवर्ा द्वारा कमल सरोवर्र दुष्यंतकु मार सममान

*अिखल

भारतीय बालसािहित्य संगोष्टी भीलवर्ाडा(राज.) द्वारा”सृजन सममान” *बालप्रहिरी अलमोडा(उत्तरांचल)द्वारा सृजन श्री सममान


*सािहि​ित्यक-सांस्कृ ितक कला संगम अकादमी परिरयावर्ां(प्रतापरगघ्हि)द्वारा “िवर्द्धावर्चस्परित स. *सािहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा(राज.)द्वारा “िहिन्दी भाषा भूर्षण”सममान *राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित वर्धनार्ध(महिाराष्ट्र)द्वारा”िवर्िशष्ठ िहिन्दी सेवर्ी सममान

*िशवर् संकल्पर

सािहित्य परिरषद नमर्धदापरुरम हिोशंगाबाद द्वारा”कथा िकरीट”सममान “ *तृतीय अंतराष्ट्रीय िहिन्दी सममेलन बैंकाक(थाईलैण्ड) में “सृजन सममान. *परूर्वर्ोत्तर िहिन्दी अकादमी िशलांग(मेघालय) द्वारा”डा.महिाराज जैन कृ ष्ण स्मृित सममान.

* मारीशस

यात्रा(23-29 मई 2014) कला एवर्ं संस्कृ ित मंत्री श्री मुखेश्वर मुखी द्वारा सममानीत

* सािहित्यकार सममान

समारोहि बैतल ूर् में सृजन-साक्षी सममान ( जूर्न-२०१४ * िवर्वर्ेकानन्द शैक्षिणक, सांस्कृ ितक एवर्ं क्रीडा संस्थान देवर्घर(झारखण्ड) द्वारा राष्ट्रीय िशखर सममान. * तुलसी सािहित्य अकादमी भोपराल द्वारा सममानीत-०३-०८२०१ िवर्शेष उपरलिबधनयाँ:-औद्धोिगक नीित और संवर्धनर्धन िवर्भाग के सरकारी कामकाज में िहिन्दी के प्रगामी प्रयोग संबंिधनत िवर्षयों तथा गृहि मंत्रालय,राजभाषा िवर्भाग द्वारा िनधनार्धिरत नीित में

से


सलाहि देने के

िलए वर्ािणज्य और उद्धोग

मंत्रालय,उद्धोग भवर्न नयी िदल्ली में “सदस्य” नामांिकत (2)के न्द्रीय िहिन्दी िनदेशालय( मानवर् संसाधनन िवर्कास मंत्रालय) नयी िदल्ली द्वारा_कहिानी संग्रहि”महुआ के वर्ृक्ष” तथा “तीस बरस घाटी” की खरीद की गई. संप्र ित सेवर्ािनवर्ृत परोस्टमास्टर(एच.एस.जी.1* संयोजक राष्ट्र भाषा प्रचार सिमित िजला इकाई िछ. फ़ोन.नमबर—07162246651 (चिलत) 09424356400 Email= yadav.goverdhan@rediffmail.com (2) goverdhanyadav44@gmail.com

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1.

ओ चंदा रे -------------ऒ चंदा रे उरे आओ-उरे आओ


चांदी के कटोरा में दूर्धन-भात खाओ ओ चंदा रे .....(2) ओ चंदा रे सांझ आओ-सकारे आओ अमुआ की डार बैठ बंसरी बजाओ रे ओ चंदा रे ........ ओ चंदा रे ........


2

असली वारिरिस

एक रिारजार अपनी रिारनी के सारथ चौपड खेल रिहार थार. जीत हरि बाररि रिारजार की होती. रिारनी हाररिनार नहीं चारहती थी, शारयद वह िदन उनके जीत के िलए िनधारर्धारिरित नहीं थार. अगलार दारंव फ़ेकते हुए रिारनी ने रिारजार को बतलारयार िक ईश्वरि की असीम कृपार से वे उनके यहारँ पुत -रित्न की प्रारि हप्त होगी. औरि वह मेरिे जैसार ही गौरि वण र्धार कार होगार. रिारजार उस समय िवनोद के मड ू मे थे तो उन्होंने कहार- नहीं नहीं ,वह मेरिे श्यारम रिं ग जैसार ही होगार. इस बारत परि कारफ़ी िववारद हुआ. रिारनी ने इस बारत परि शतर्धार लगारने को कहार,तो रिारजार ने कहार- इसमे शतर्धार लगारए जारने जैसी कोई बारत नहीं है .कोई हाररिे अथवार जीते, संतारन तो हमाररिी ही कहलारएगी. बारत आई गई,हो गई. एक िदन, रिारनी ने एक बारलक को जन्म िदयार. वह श्यारम रिं ग कार थार. इस बाररि भी रिारनी की हाररि हुई थी. लेिकन ि हजद्दी रिारनी हरि हारल मे जीत दजर्धार करिवारनार चारहती थी. उसने दारई से जारननार चारहार िक इस समय रिारजधारनी मे िकसके घरि लडकार हुआ है . दारई ने बतलारय िक एक सुनाररि के यहारँ लडकार हुआ है ,वह गौरि वण र्धार कार है . रिारनी ने दारई को स्वण र्धार मद्र ु ारएं दे ते हुए लडकार बदल दे ने को कहार. दारई ने बडी सफ़ारई से यह कारम करि िदखारयार.


रिारजार को खबरि िभजवारई गई के आपके यहारँ पुत-रित्न की प्रारि हप्त हुई है . रिारजार दौडार आयार. रिारजार को दे खते ही रिारनी ने कहार- इस बाररि मेरिी जीत हुई है . रिारजकुमाररि अपनी मारँ परि गयार है . समय की नजारकत को दे खते हुए रिारजार ने कुछ नहीं कहार औरि वहारं से चले आए. दोनो बच्चे अपने-अपने घरि मे बडॆ होते गए. सुनाररि के घरि पलने वारलार लडकार अपने िमतों के सारथ तलवाररि चलारनार, घुडसवाररिी करिनार, कभी िशकाररि करिने जारनार आिद खेल खेलतार रिहतार. कभी तो वह न्यारयारधीश बनकरि जिटिल- से जिटिल प्रकरिण ॊं को िनपटिारतार थार. जबिक रिारजार के महल मे पलने वारलार िदन भरि तूफ़ारन मचारए रिहतार. कभी वह अपने िमतों के सारथ माररिपीटि करितार, कभी अपने सेवकों को भी पीटि दे तार.गारिलयारँ बकनार तो उसकी आदत मे शम ु ाररि हो गयार थार. रिारजार-रिारनी उसकी हरिकतों से परिे शारन हो उठते. रिारनी के मन मे आतार िक सही-सही बारत वह रिारजार को कह सुनारए,लेिकन एक अज्ञारतभय उसे ऐसार करिने से रिोक दे तार थार. एक बाररि रिारजार ने दे शारटिन परि जारने कार कारयर्धारक्रम बनारयार. जारने से पूवर्धार उन्होंने अपने महारमंती को चाररि हीरिे सौंपते हु ए कहार:- एक हीरिे की कीमत इतनी है िक उसे बेचे जारने परि रिारज्य कार एक वष र्धार कार खचर्धार उठारयार जार सकतार है . ऐसे ये चाररि बेशकीमती है,इन्हे महाररिारनी को यारद से दे दे नार. महारमंती के मन मे खोटि आ गई. उसने उन हीरिों को महाररिारनी को दे ने के बदले , अपने बारगीचे मे एक पेड के नीचे गढ्ढार


खोदकरि िछपार िदयार. रिारजार ने लौटिकरि उन हीरिों के बाररिे मे महारमंती से पछ ू ार, तो उसने सारफ़ झूठ बोल िदयार िक हीरिे महाररिारनी को चाररि गवारहों के सारमने दे िदए गए है.. जब रिारजार ने रिारनी से पछ ू ार तो उसने इस बारत से इनकाररि करिते हुए कहार िक महारमंती ने वे हीरिे मझ ु े िदए ही नहीं है . रिारजार बडॆ ही असमंजस मे थार िक आिखरि हीरिे गए तो हए कहारँ?. वह न तो रिारनी के सारथ कठोरितार से पेश आ सकतार थार औरि न ही महारमंती के सारथ वह यह भी जारनतार थार िक कठोरितार िदखारने से िकतने घारतक पिरिण ारम हो सकते है. उसने मन ही मन िनश्चय िकयार िक पडौसी रिारजार जो उसके िमत है,से िमलकरि कोई काररिगरि हल िनकारलार जारए. अपने लारव-लशकरि के सारथ रिारजार को जारते हुए उस बारलक ने दे खार, जो इस समय न्यारयारधीश की कुसी परि बैठकरि, िकसी प्रकरिण मे दो पक्षॊं की ि हजरिह सुन रिहार थार. उसने रिारजार सारहब के इस तरिह जारने कार अिभप्रारय जारनने के िलए उन्हे बल ु ार भेजार. रिारजार ने अपने मन की साररिी बारते उस बारलक से कह सन ु ारयी. साररिी बारते सुन चुकने के बारद उस बारलक ने परिारमशर्धार दे ते हुए रिारजार से कहार िक इतनी छॊटिी सी बारत को लेकरि अन्य रिारजार को अपने रिारज्य मे होने वारली घटिनारओं की जारनकाररिी नहीं दी जारनी चारिहए. उसने बारत को आगे बढारते हुए कहार िक यिद वे आज्ञार दे तो वह दरिबाररि मे आकरि इसकार फ़ैसलार करि सकतार है .


रिारजार को उस बारलक की बारत पसंद आयी औरि वे अपने रिारज्य मे लौटि गए.

एक

िनधारर्धारिरित

िदन

वह

बारलक रिारजदरिबाररि जार पहुँचार. उसने रिारनी, महारमंती, तथार अन्य चाररि गवारहों को अलग-अल्ग कमरिों मे बैठने को कहार औरि यह कहार िक वे ब ुलारए जारने पस्र बाररिी-बाररिी से दरिबाररि मे पहुँचे.

उसने रिारजार की उपि हस्थित

मे सबसे पहले महारमंती को बुलवारयार औरि सारमने पडॆ कुछ पत्थरिों मे से चाररि पत्थरि चन ु ने को कहार जो िदए गए हीरिों के बरिारबरि हो. महारमंती ने चाररि पत्थरि उठारकरि िदए. िफ़रि उसने एक गवारह को बल ु ारकरि वैसार ही करिने को कहार. उसने चाररि बडॆ-बडॆ पत्थरि जो लगभग एक-एक िकलो के थे,उठारकरि िदए. इस तरिह अलग-अलग गवारहों ने अपने –अपने िहसारब से पत्थरि उठारकरि सौंप िदए. उसने पत्थरिों के चाररि ढे रि टिे बल परि लगार िदए. इतनार हो जारने के बारद उसने महारमंती सिहत उन गवारहों को भी बुलार भेजार. जब साररिे लोग उपि हस्थत हो गए तो उसने महारमंती से कहार िक इन चाररिों गवारहॊं ने हीरिों के बरिारबरि पत्थरिों के ढे रि लगार िदए है . सबने अलग-अलग वजन औरि आकाररि के पत्थरिों को चुनार है . इससे यह स्वयं िसद्ध हो जारतार है िक आपने इनके सारमने हीरिे महाररिारनी सारिहबार को िदए ही नहीं,अन्यथार ये एक ही आकाररि-प्रकाररि के पत्थरिों कार चन ु ारव करिते. महारमंती ने अपनार अपरिारध स्वीकाररि करि िलयार िक उसने साररिे हीरिे महाररिारनीजी को न दे ते हुए अपने बारगीचे मे एक वक्ष ृ के नीचे िछपार िदए है.


अपरिारध स्वीकरि करि चक ु े महारमंती को रिारजार ने कडी सजार सन ु ारते हुए जेल भेज िदयार.

रिारजार ने अत्यन्त प्रसन्न होते हुए

उस बारलक को ढे रि साररिे ईनारम दे ने चारहे तो उसने सारफ़ इनकाररि करिते हुए कहार िक एक न्यारयारधीश कार कारम सच्चार न्यारय दे नार होतार है ,न िक उसके बदले ईनारम पारनार. रिारजार ने अपनी जगह से उठते हुए उस बारलक को अपने गले से लगार िलयार. ऐसार करितार दे ख अब महाररिारनी ने भी अपनार अपरिारध स्वीकाररि करिते हुए साररिी घटिनार कह सुनारयी औरि कहार िक यही वह बारलक है ,ि हजसे उसने दारई को प्रलोभन दे करि उस सुनाररि के बेटिे से बदली करिवार िलयार थार. रिारजार को अपनार असली वारिरिस िमल चक ु ार थार. उसने रिारनी को अपनी गलती स्वीकाररि करि लेने परि यह कहते हुए मारफ़ करि िदयार िक वंश परिम्परिारएं सदार जीिवत रिहती है ,उन्हे िकसी भी कीमत परि िमटिारयार नहीं जार सकतार.

3 आसमान में उडती परिरयां. बच्चों,

आपरने कभी आसमान में उडती हुई परिरयों को देखा हिै?

प्रश्न


सुनते हिी आपर कहि उठें गे िक परिरयां-वर्िरयां नाम की कोई चीज हिोती हिी नहिीं हिै. या िफ़र यहि कहिेंगे िक िकसी सीिरयल में, हिमने उसे आसमान से उतरते देखा हिै. उसके हिाथ में एक जादूर् की छडी हिोती हिै और वर्हि परलक झपरकते हिी कहिानी के हिीरो की मदद करती हिै, अथवर्ा उसके िलए कोई उपरहिार लेकर आती हिै. वर्हि मुस्कु राते हुए प्रकट हिै और िफ़र गायब भी हिो जाती हिै.

यहि

बात सच हिै िक अब तक कोई पररी देखी नहिीं गई हिै. पररी हिोने की कल्परना भर की गई हिै. मेरा अपरना मत हिै िक आकाश में उडती सुन्दर सी िकसी िततली को देखकर, पररी हिोने की कल्परना की गई हिोगी. हिम िजस पररी की बात करने जा रहिे हिैं, वर्हि िकसी खूर्बसूर्रत पररी से कम नहिीं हिै. उस पररी का नाम हिै-रं ग-िबरं गी िततिलयाँ. ये िततिलयां, हिवर्ा में बलखाती-उडती हुई कभी इस डाल परर, तो कभी उस डाल परर, िखले सुवर्ािसत फ़ूर् लों परर जा बैठती हिै और उसका रस परीकर उड जाती हिै.

वर्ातावर्रण में लगातार आ रहिे बदलावर्

तथा कीटनाशक दवर्ाओं के प्रयोग के चलते यहि खूर्बसूर्रत जीवर् दुिनया के परटल से लगभग गायब हिो रहिा हिै. अन्यथा बािरश की परहिली फ़ु वर्ार के साथ, आपर अनेक प्रकार की रं गिबरं गी िततिलयों को, हिवर्ा में तैरती देख सकते थे. खैर न अब वर्े िदन हिै और न िततिलयां. परर जो भी हिै, वर्े गजब की हिैं. हिवर्ा में मटकते इन जीवर्ों के परंखों से तो नजरें हिटाये नहिीं हिटती. बडा गजब का चुंबकीय आकषर्धण हिोता हिै इनके पररों में. प्रकृ ित ने परूर्रे मनोयोग से -,बडॆ सलीके से, धनैयर्धपरूर्वर्र्धक इनके परंखों परर िचत्रकारी की हिै .उनके परंखों परर कहिीं एक-एक आँख बनी हिै, तो कहिीं दो या िफ़र इससे भी ज्यादा.


िततिलयों के पररों परर बनी इन्हिीं आँखों के आधनार परर इनके नाम रखे गए हिैं. के सिरया रं ग की िततली परर बनी, दो बडी-बडी आँखें देखकर उसको नाम दे िदया गया- परीकाक परेंसी, नीली िततली को नाम िदया गया “बलूर् परेंसी,”, िकसी को कामन लाइम, िकसी को टेल्ड या काली िततली को कामन-क्रो आिद-आिद. हिजारों प्रकार की िततिलयां पराई जाती हिै, िजनके नाम रखने में कई पररे शािनयां खडी हिो सकती हिै. िततिलयों का नामकरण शायद हिमने नहिीं िकया. जो भी नाम िमलते हिैं,वर्े सब अंग्रेजी में हिी िमलते हिैं. स्परस्ट हिै िक हिमने कभी भी इस बात को लेकर गंभीरता से नहिीं सोचा. बस िततली देखकर खुश हिोते रहिे, जबिक परिश्चिम के लोगों ने,इन नन्हिे जीवर्ों के प्रित अपरनी िदलचस्परी िदखलायी, उनके जीवर्न-चक्र के बारे में परूर्री जानकािरयां इकठ्ठी की, इनके नाम रखे और इनके संरक्षण के िलए उपराय खोजे और उनके संग्रहिालय तक बना डाले. फ़्लोिरडा मयुिजयम के नाम से िवर्ख्यात एक संग्रहिालय हिै. इसके साथ हिी इंगलैंड सिहित करीब बत्तीस देशों ने इस नन्हिें जीवर्ों के िलए वर्षार्धवर्न आिद बनाए,जहिां यहि जीवर् परलता-बढिता और अंत में मयुिजयम में सुरिक्षत रख िदया जाता हिै. यहिां हिम कु छ िततिलयों के बारे में, उनके जीवर्न चक्र के बारे में संिक्षप्त में जानकारी हिािसल करते चलें.

िततली िजसे हिम अंग्रेजी में बटरफ़्लाई कहिते हिै, कीट वर्गर्ध का सामान्य सा प्राणी हिै. यहि सब जगहि पराया जाता हिै. ठोस आहिार न लेकर यहि फ़ूर् लॊं का रस परीती हिै. इनका िदमाक अन्य कीटॊं से ज्यादा तेज गित से चलता हिै.


कोस्टािरका में तेरहि सौ प्रकार की िततिलयां पराई गई हिै. िवर्श्व में सबसे तेज गित से उडने वर्ाली िततली का नाम”मोनाकर्ध ” हिै, जो एक घंटॆ में सतरहि मील तक उड सकती हिै. सबसे बडी िततली “जायंट वर्डर्धिवर्ग” हिै. इसके परंखों का फ़ै लावर् करीब बारहि इंच हिोता हिै. िततली के शरीर के मुख्य तीन भाग हिोते हिैं. (१) िसर (२) वर्क्ष (३) और तीसरा दो जोडी परंख. इनके छः परैर हिोते हिै. प्रत्येक परैर में तीन जोड हिोते हिै, िसर परर दो जोडी आँख, मुहि ँ में घडी की िस्प्रग की तरहि “प्रोवर्ोिसस” नामक खोखली सूर्ंडनुमा जीभ हिोती हिै. फ़ूर् लों परर बैठकर ये इसी से फ़ूर् लों का रस चूर्सकर परीती हिै. इनका जीवर्न ज्यादा लंबा नहिीं हिोता हिै. यहि एक िलगी प्राणी हिै. नर और मादा अलग-अलग हिोते हिैं. मादा िपरतली परत्तॊं के नीचे अपरने अंडॆ देती हिै. कु छ समय बाद ये लावर्ार्ध ( कै टिपरलर)में बदल जाते हिै. कु छ समय परश्चिात लावर्ार्ध एक खोल के रुपर मे बदल जाता हिै िजसे “प्यूर्मा” कहिा जाता हिै. और अन्त में यहि िततली के रुपर में ढिलकर आसमान में उडने लगती हिैं.


उपरर िदए गए िचत्र के माध्यम से हिम इसके शरीर के िवर्िभन्न अंगों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती हिै. िततिलयां िवर्श्व के सभी भागों में पराई जाती हिै. चाहिे वर्े गमर्ध,ठं डॆ,‌उष्णकिटबंधन,ज्यादा बािरश वर्ाले इलाके हिो,इन्हिें आपर हिर जगहि देख सकते हिै. सारी िततिलयां “लेिपरडॊप्टेरा “(Lepidoptera)नामक वर्गर्ध से हिोती हिै. यहि एक ग्रीक शबद हिै. “लेिपरडोस”(lepidos) का अथर्ध हिै स्कल्स और िपरटेरा(ptera) का मतलब हिै उनके “परंख” यहि बहुत बडा वर्गर्ध हिै और इसमे कई प्रकार की िततिलयां परायी जाती हिै.इनके परन्द्र्दहि हिजार से ज्यादा प्रकार परूर्रे िवर्श्व में पराए जाते हिै. आइये, आज हिम कु छ िवर्शेष िततिलयों के बारे में संिक्षप्त में जानकािरयां हिािसल करते हिैं.


मोनाकर्ध िततली- मोनाकर्ध िततिलयां अलग-अलग रं गो में तथा अनेक आकारों में परायी जाती हिै ,लेिकन संतरे के रं ग तथा काले रं ग की िततिलयां देखने में अत्यन्त हिी सुन्दर हिोती हिैं. मादा िततली के परंख गहिरे रं ग के हिोते हिै, जबिक नर िततली के परंखॊं के बीच धनािरयां देखी जाती हिै. इनके परंखों के आधनार परर हिम नर अथवर्ा मादा िततली की परहिचान कर सकते हिैं. मादा िततली एक परॆड परर सैकडॊं अंडॆ देती हिै. इसकी एक िवर्शेषता यहि भी हिै िक यहि कई िक.मी. तक की यात्रा बडॆ आराम से कर लेती हिै. आस्ट्रेिलया और उत्तरी अमेिरका के समुद्र तटॊं परर यहि बहुतायत से देखने को िमलती हिैं.िततिलयां अपरने परसंद के मौसम के िहिसाब से एक इलाके से दूर्सरे इलाके में स्वर्तः आती-जाती रहिती हिै. यहिां हिम कु छ िवर्शेष िततिलयों के बारे में जानकारी प्राप्त करते चलें.


अमेिरकन नाट बटरफ़्लाई-(aamerical snout butterfly) ( ( libytheana carinenta) ग्रुपर की इस िततली का रं ग काले०भूर्रे रं ग का हिोता हिै,िजस परर सफ़े द,संतरे के रं ग अथवर्ा गहिरे हिरे तथा परीले रं ग की धनािरयां हिोती हिै. यहि उत्तरी तथा दिक्षण अमेिरका में परायी जाती हिै.

गाडर्धन टाइगर िततली-( garden tiger butterfly )( arctia caja) ग्रुपर की िततली हिै यहि. आपरने शेर तो देखा हिी हिै. कु दरत ने इस नन्हिे से जीवर् को भी टायगर की शक्ल में ढिाल िदया हिै. िजस तरहि शेर के शरीर परर परट्टॆ देखे जा सकते हिै. ठीक इसी तरहि इस िततली के परंखों परर सफ़े द-भूर्रे परट्टे पराए जाते हिैं. इन्हिीं परट्टॊं को देखकर इसका नाम टाईगर िततली परडा


नीली

नीली िततली( blue

morpho butterfaly)( marpho Menelaus group).इसके चटक नीले रं ग को देखकर हिी इस िततली को “नीली िततली” का नाम िमला. मादा िततली का रं ग, नर िततली के मुकाबले उताना आकषर्धक नहिीं हिोता. िततली की सुन्दरता देखकर िवर्स्मय हिोता हिै. जब यहि िकसी फ़ूर् ल अतवर्ा डाली परर बैठता हिै तो इसके शरीर परर भूर्रे-नीले रं ग के आकषर्धक छल्ले िदखायी देते हिै.वर्ेनेजुएला तथा ब्रािजल के जंगलों में इसे बहुतायत में देखा जा सकता हिै.

(Julia butterfly) जुिलया िततली(fama Nymphalidae group)

परीले-नारं गी रं ग की इस िततली का

नाम जुिलया रखा गया हिै.इसके परंखों की लंबाई तीन से चार इंच तक हिोते हिैं. इसके परंखों परर गहिरी रे खाएं देखी जा सकती हिै,जो इसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देती हिै.


goliath birdwing butterflyगोिलआथ बडर्धिवर्ग िततली-(Ornithoptera goliath group) क्वीन अिलक्जंडर नामक िततली से थोडी छोटी,मगर सबसे बडी िततली हिोने का रुतबा इस्स िततली को प्राप्त हिै.काले-परीले-तथा हिरे रं ग की इस िततली के परंख 11 इंच तक के हिोते हिै.इसके परंखों परर कु दरत ने बडॆ हिी मनोहिारी ढिंग से रीगों का संयोजन कर,इसे बेहिद हिी खूर्बसूर्रती दी हिै.वर्षार्ध-वर्नों मे इसे देखा जा सकता हिै.

California dogface butterfly-के िलफ़ोिनया डागफ़े स िततली-(ornithoptera goliath group) इसके परंखों परर ध्यान दीिजए. देखकर लगता हिै िक कु दरत ने इस परर कु त्ते की सूर्रत उके री हिै. काले-परीले रं ग की इस िततली के उपररी परंखों परर सफ़े द रं ग से यहि आकृ ित िदखाई देती हिै.इसके परंख 22 से 31mm के हिोते हिैं


( Julia butterfly) जुिलया िततली-(family Nymphalidae group) परीले-नारं गी रं ग की इस िततली के च्चार परंख हिोते हिै जो तीन से चार इं च लंबे हिोते हिै,िजस परर गहिरे नारं गी लकीरें से खींची िदखाई देती हिै.दिक्षणी तथा मध्य अमेिरका में इसे देखा जा सकता हिै . इस् िततली का िसर बडा हिोता हिै.इसे गंदी चीजों से रस प्राप्त करने में मजा आता हिै.

Carner blue butterfly-कानेर िततली ( Lycaeides Melissa samuelis group) -छॊटी नीले रं ग की इस िततली के परंखों के िकनारी परर सफ़े दी देखी जा सकती हिै,.दूर्न नेशनल पराकर्ध सिहित न्यूर्जसी,न्यूर्याकर्ध आिद जगहिों परर इसे देखा जा


सकता हिै. प्रिसद्ध उपरन्यासकार Vladimir Nabokov ने इस िततली को यहि नाम िदया था. जुलाई और अगस्त माहि के मध्य इसे देखा जा सकता हिै.

( Milbert’s tortoiseshell )

िमल्बट्सर्ध टारटाइजशेल िततली”-चार परंखों वर्ाली इस िततली के परंख 1.6-2.5 इं च के हिोते हिैं.उत्तर अमेिरका तथा मैिक्सको में यहि पराई जाती हिै.सडे फ़लों से यहि रस प्राप्त करती हिै.गहिरे भूर्रे रं ग अथवर्ा सुखर्ध ला रं ग के पररों परर काले छल्ले तथा सफ़े द रं ग इसके आकषर्धण को बढिा देते हिैं. यहि िततली Nymphalis milberti group के अन्तरगत आती हिै.


morning cloak butterfly- मािनग क्लाक िततली;--Nymphalis antiopa वर्गर्ध की यहि िततली मेरुन रं ग की हिोती हिै,िजस परर नीले रं ग के छ्ल्ले बने हिोते हिै तथा परीले रं ग की बाडर्धर हिोती हिै. फ़ूर् लॊ के परराग तथा फ़लों का रस परीना इसे िप्रय हिै. यूर्रोपर के कु छ भागों तथा अमेिरका के गमर्ध प्रदेशों में यहि देखी जाती हिै. यहि िततली ( Nymphalis antiopa Linnaeus group) के अन्तरगत आती हिै.

Painted lady butterfly

( pented lady butterfly ) परेंटॆड लेडी बटरफ़्लार्धई :-vanessa cardui वर्गर्ध की इस िततली की खूर्बसूर्रती देखते हिी बनती हिै. गहिरे भूर्रे तथा लाल रं ग के पररों परर


सफ़े द छल्ले इसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देते हिैं. 2-2 .7/8 इं च(5.1-7.3 c.m)के इसके परंख हिोते हिैं. आस्ट्रेिलया तथा अमेिरका के भूर्भागों में यहि पराई जाती हिै. ( Vanessa Cardui group)

( peacock butterfly ) िपरकाक बटरफ़्लाय( Inachisio group) गहिरे मेरुन रं ग के पररों परर चार बडी-बडी आंखें देखी जा सकती हिै., ऊपरर के दो परंखों परर सफ़े द गोले तथा नीचे के दो परंखों परर नीले गोले इसकी सुन्दरता बढिा देते हिैं.


postman butterfly ( Heliconius melpomene group) saturn butterfly( Zeuxidia amethystus group)

Queen alexandra’s butterfly butterfly(Zeuxsidia amethystus group)

Southern dogface


Red admiral butterfly ( Vanessa ataalanta) butterfly( celestrina neglecta)

tiger swallowtail butterfly( Papilio glaucas group) swallowtail butterfly

summer azure

zewbra


Ulysses butterfly( Papilio Ulysses) viceroy butterfly( Limenitis archippus) उपररोक्ति िततिलयों के अलावर्ा परोस्ट्मन िततली,सदनर्ध डागफ़े स िततली,रे ड एडमाइरल िततली, समर एज्योर िततली,टाईगर स्वर्ालोटेल िततली,जेबरा स्वर्ालोटेल िततली,युिलसेस िततली तथा वर्ायसराय िततली के के वर्ल िचत्र िदए जा रहिे हिैं. इन िचत्रों के सहिारे हिम िततिलयों के रं ग. उनकी बनावर्ट आिद की जानकिरयां प्राप्त कर सकते हिै. आपर देखेंगे िक सभी िततिलयों के नाम अंग्रेजी भाषा में हिी रखे गए हिैं. िवर्देश में हिर छोटे-बडॆ कीट के संबंधन में वर्े उससे जुडी हिर बातों परर ध्यान देते हिैं. उनकी दैिनक जीवर्नी परर कडी नजर रखते हिैं और उसके मुतािबक िरकाडर्ध रखते


हिैं.हिम के वर्ल कीट-परतंगों को देखते भर हिैं. न तो हिमें इनकी िचता हिी हिोती हिै और न हिी हिम इनकी जीवर्न-चयार्ध परर हिी ध्यान दे पराते हिैं. अतः अब हिमारा उत्तरदाियत्वर् बनता हिै िक हिम कम से कम इनके प्रित सकारात्मक रुझान रखें और उनके संरक्षण के प्रित जागरुक बनें. प्रकृ ित ने िकतने हिी प्यारे जीवर्-जंतु इस धनरती परर भेजे हिैं. कोई भी जीवर् ऎसा नहिीं हिै,जो मनुष्यता के िवर्रुद्ध हिै, वर्े हिमारे पररम िहितैिष भी हिोते हिैं. बस हिमें अपरना नजिरया बदलने भर की आवर्श्यकता हिै.

4

लोक प्रचिलत परहिेिलयाँ हिरा बदन मन भावर्न हिै, और मुख हिै सुन्दर लाल िमचर्ध चने परर वर्हि पराले, मानुष सा बोल कमाल. ( तोता) सोने की वर्हि चीज हिै,िबके हिाट बाजार एक ,अजूर्बा और हिै, हिाथ हिै उसके चार पराँवर् भी उसाके चार हिै,परर चलने से लाचार (चारपराई


हिरी थी मन भरी थी,लाख मोती जडी थी

राजाजी के बाग में, दुशाला ओढिे खडी थी (भुट्टा)

िबन अन्न परानी सदा चलती

आठो धनाम धनीरे -धनीरे बोलती, तुम बताओ उसका नाम

(

घडी) धनूर्पर लगे सूर्खे नहिीं,छांवर् लगे कु महिलाय वर्हि कौन सी चीज हिै,परवर्न लगे मर जाय

(परसीना.)

छॊटी सी मुिनया, दो हिाथ की परूर्ंछ

जहिां चले मुिनया,वर्हिीं अटके परूर्ंछ सुई-धनागा.)

(


एक पररी आसमान से उतरी

5

एक नन्हिीं सी पररी थी. उसकी इच्छा थी िक वर्हि परृथ्वर्ी की सैर करे और वर्हिाँ बच्चों के साथ खेले. उसने अपरने मन की बात अपरनी पररी माँ को बतलायी. माँ ने उसे स्वर्ीकृ ित देते हुए कहिा िक वर्हि धनरती परर जाने के परूर्वर्र्ध अपरने साथ बच्चों के िलए िखलौने लेते जाए. अपरनी मां के कहिे अनुसार उसने ढिेरों सारे िखलौने अपरनी झोली में भरे और नन्हिें-नन्हिें पररों को फ़रफ़राते हुए धनरती की ओर उड चली.

इस समय बागीचे में गोलूर्-भोलूर्-

िचटूर् ,नीना,मीना,िबट्टूर् , सीनूर्,तन्नूर्,परूर्वर्ी आिद अपरने अन्य दोस्तों के साथ लुका-िछपरी


का खेल खेल रहिे थे. नन्हिीं पररी दूर्र से इस अदभुत खेल को देख रहिी थी. उसने मन हिी मन तय कर िलया िक वर्हि भी इस खेल को खेलेगी. गोलूर् इस समय आँख परर परट्टी बांधने, अपरने साथी को ढिूर् ंढिने में हिाथ-परैर मार रहिा था ,जो िकसी वर्ृक्षािद के परीछे िछपरे हुए थे. नन्हिी पररी, ठीक उसके सामने जा खडी हुई.

गोलूर् थॊडा

आगे बढिा हिी था िक उसने नन्हिीं पररी को अपरनी परकड में लेते हुए िचल्लाया- “मैंने परकड िलया, मैंने परकड िलया” कहिते हुए अपरने आंखों परर बंधनी परट्टी को हिटा िदया. उसे यहि देखकर आश्चियर्ध हिो रहिा था िक गोलूर्-भॊलूर् आिद न हिोकर, पररों वर्ाली एक लडकी उसके सामने खडी मुस्कु रा रहिी हिै. उसने उस लडकी से परिरचय प्राप्त करना चाहिा. नन्हिीं पररी ने अपरना परिरचय देते हुए बतलाया िक वर्हि आसमान में रहिती हिै और तुम लोगों से दोस्ती करने और खेलने के िलए हिी धनरती परर आयी हिै तथा अपरने साथ उपरहिार भी लेती आयी हिै. गोलूर् ने हिामी भरते हुए कहिा-“” हिां..हिां ... तुमहिें हिम अपरना दोस्त बनाएंगे. उसने आवर्ाज देकर सब िमत्रों को इकठ्ठा िकया और नन्हिीं पररी से परिरिचय करवर्ाया. अपरने बीच एक नया दोस्त पराकर सभी बच्चे बेहिद खुश हुए. सभी बच्चे झूर्म-झूर्मकर हिाथ में हिाथ डाले गाना गाने लगे “ देखो-देखो पररी आयी.ढिेर सारे तोहिफ़े लेकर आयी गुड्डॆ-गुिडयों से भरी रेलगाडी लेकर आयी देखो पररी आयी, पररी आयी.”


नन्हिीं पररी ने सभी को उपरहिार में िखलौने िदए. िफ़र सभी के साथ तरहितरहि के खेल खेले. खेल खेलते परता हिी नहिीं चल पराया िक शाम हिोने को हिै. जैसे हिी नन्हिीं पररी ने अंधनेरे को िघरते देखा तो अपरने िमत्रों से िबदा लेते हुए कहिा िक वर्हि कल िफ़र आएगी. इतना कहिते हुए उसने अपरने परंखों को फ़डफ़डाया और आसमान में उड चली. अब नन्हिीं पररी रोज धनरती परर आती और आपरने िमत्रों के साथ िदन भर खेलती और शाम हिोने के परहिले अपरने घर लौट जाती. एक िदन की बात हिै. जब सब िमत्र लुका-िछपरी का खेल खेल रहिे थे, नन्हिीं पररी इस समय एक वर्ृक्ष के परीछे िछपरी हुई थी ,तभी एक जादूर्गर आया और उसने अपरने जादूर् के बलपरर उसे कै द कर िलया और वर्हिां से चलता बना. यहि बात देर तक िकसी से िछपरी न रहि सकी िक नन्हिीं पररी का अपरहिरण कर िलया गया हिै. काफ़ी खोजने के बाद भी बच्चे अपरनी नन्हिीं िमत्र को खोज न सके तो उन्हिोंने परास के परोिलस-स्टेशन परर जाकर रपरट िलखवर्ाने की सोची. सब बच्चे परास हिी के परोिलस स्टेशन जा परहुंचे. उन्हिोंने अपरनी टूर् टी-फ़ूर् टी जबान में अपरनी व्यथा –कथा कहि सुनाई, लेिकन जब थानेदार ने उसका नाम बतलाने को कहिा, तो सभी ने चुप्परी साधन ली थी, क्योंिक वर्े पररी का असली नाम परूर्छना तो भूर्ल हिी गए थे. वर्े उसे के वर्ल पररी ने नाम से जानते थे, थानेदार ने जब उसका हुिलया जानना चाहिा तो गोलूर् ने बतलाया िक एक नन्हिी सी पररी, पररीलोक से रोज आती हिै और हिमारे साथ खेलती हिै और शाम हिोने से परहिले रवर्ाना हिो जाती हिै. थानेदार को सहिसा िवर्श्वास नहिीं हुआ िक ऎसा भी हिो


सकता हिै. उसने अब बारी-बारी से बच्चो से जानना चाहिा. सभी का जवर्ाब एकसा था. खैर जैसे-तैसे उसने िरपरोटर्ध दजर्ध की और बच्चॊ से कहिा िक वर्हि अपरने आदिमयों को चारों तरफ़ उस पररी की तलाश करने को कहिेगा और जैसे हिी वर्हि उन्हिें िमल जाएगी, सूर्चना दे दी जाएगी. अब आपर सब लोग अपरने-अपरने घर जाओ. बच्चे पररी के अचानक गुम हिो जाने से पररे शान तो थे,लेिकन कर भी क्या सकते थे. उधनर पररी जब अपरने घर नहिीं परहुँची तो उसके माता-िपरता भी पररे शान हिो रहिे थे. उसकी खोज में दोनों धनरती परर आए. इस समय बच्चे घर जाने के िलए उद्दत हुए हिी थे िक वर्े बच्चों के सामने प्रकट हिोकर अपरनी बेटी के बारे में जानना चाहिा िक उनकी बेटी कहिाँ हिै? गोलूर् ने भावर्िवर्व्हिल हिोते हुए बतलाया िक अचानक वर्हि न जाने कहिां गायब हिो गई.हिै. लगता हिै िक िकसी बदमाश ने उसका अपरहिरण कर िलया हिै. काफ़ी खोज-खबर के बाद भी वर्हि हिमें िमल नहिीं रहिी हिै. उसने यहि भी बतलाया िक हिमने उसकी िरपरोटर्ध थाने में भी दजर्ध करवर्ा दी हिै. पररी राजा ने बच्चों से कहिा िक वर्े और ज्यादा पररे शान न हिो. वर्े तत्काल हिी उसे ढिूर् ंढि िनकालेंगे. इतना कहिकर उन्हिोंने अपरनी आँखें बंद करते हुए अपरनी जादुई छडी को चारों तरफ़ घुमाते हुए कु छ मंत्र परढिे. मंत्र के परढिते हिी नन्हिीं पररी और जादुगर सामने खडे थे. जादुगर के हिाथों में हिथकडी परडी हुई थी. उसने अपरनी गलती स्वर्ीकार करते हुए कहिा िक अब वर्हि भिवर्ष्य में बच्चों का अपरहिरण नहिीं करे गा, उसे माफ़ कर िदया जाए. राजा ने उसे सक्ति िहिदायत देते हुए माफ़ कर िदया. जादूर्गर के कबजे से आजाद हिोते हिी नन्हिीं पररी अपरने माता-िपरता के परास दौडी चली आयी और उनसे


िलपरट गई. सभी बच्चे अपरनी दोस्त को परुनः अपरने बीच पराकर खुिशयां मनाने लगे. नन्हिीं पररी अपरने माता-िपरता के साथ आसमान में उड चली.सभी बच्चे हिाथ िहिला-िहिलाकर उसका अिभवर्ादन कर रहिे थे.

6

1/--

क्या आपर जानते हिैं ?

िवर्ददुत ऊजार्ध को यांित्रक ऊजार्ध में िवर्दधनुत मोटर द्वारा परिरवर्ितत

िकया जाता हिै. 2/-

ध्वर्िन ऊजार्ध को िवर्ददुत ऊजार्ध में माइक्रोफ़ोन द्वारा परिरवर्ितत

िकया जाता हिै. 3/-

िवर्दधनुत ऊजार्ध को ध्वर्िन ऊजार्ध में लाउडस्परीकर द्वारा परिरवर्ितत

िकया जाता हिै. 4/-

डेसीबल ध्वर्िन की तीव्रता मापरने का यंत्र हिै.

5/-

परानी के अन्दर ध्वर्िन को िरकािडग हिाइड्रोफ़ोन से की जाती हिै.

6/-

दूर्धन का घनत्वर् लेक्टोमीटर से मापरा जाता हिै.


7/-

मायोिपरया िनकट दृिष्ट का तथा हिाइपररमेट्रोिपरया दूर्र दृिष्ट का

8/-

भारत का प्रथम संचार उपरग्रहि एप्परल था.

9/-

भारत का प्रथम सौर ऊजार्ध गाँवर् जममु तथा कश्मीर राज्य में

दोष हिै.

िस्थत हिै. 10/-

रे िडयो तरं गे आइनोस्फ़ीयर से पररावर्ितत हिोती हिै.

11/-

िरचर स्के ल से भूर्कमपर की तीव्रता मापरी जाती हिै/

12/-

हिाइग्रोमीटर से वर्ायु की आद्रर्धता मापरी जाती हिै.

13/-

पररमाणु बम का आिवर्ष्कार ओटाहिान ने िकया था.

14/-

कमप्यूर्टर का आिवर्ष्कार डा.एलन.एम.तुिरग ने िकया था.

15/-

भूर्कमपर का परता सीस्मोग्राफ़ नामक यंत्र से लगाया जाता हिै.

16/-

शुद्र को भोर का तारा और ईवर्िनग स्टार भी कहिते हिैं.

17/-

फ़ै दम गहिराई नापरने का मात्रक हिै.

18/-

िवर्दधनुत बल्ब का तन्तु टंगस्टन का बना हिोता हिै.

19/-

फ़्यूर्ज का तार लैड और िटन का बना हिोता हिै.

20/-

हिीटर का तार नाइक्रोम का बना हिोता हिै.


21/- प्लास्टर आफ़ परेिरस िजप्सम से बनाया जाता हिै.

7

िवर्श्व की संसदों के नाम 1/-

अफ़गािनस्थान

शोरा

2/िब्रटेन commons and house or lords)

(Shora) परािलयामेंट

(House of

3/-

डेनमाकर्ध

फ़ोल्के िटग

(Folketing)

4/-

जमर्धनी

बुन्ड्सटेग

(Bundstag)

5/-

भारत

संसद

(Parliament)

6/-

इजराइल

नेिसट

( Knesset)

7/-

आयरलैंड

डॆल आयरन

(Dail Eireann)

8/-

ईरान

मजिलस(Majles ))

9/-

जापरान

डाइट

( Diet)

10/-

मंगोिलया

खुरल

(Khural)


11/-

मलेिशया

मजिलस(Majles )

12/-

नावर्े

स्टोिटग

13/-

नीदरलैण्ड

स्टेिटन जनरल ( Staten General)

नेपराल

राष्ट्रीय परंचायत (National

15/-

परोलैण्ड

िसयम

( Scym)

16/-

स्वर्ीडन

िरस्कडाग

( Riksdag)

17/-

स्परेन

कोट्रेस

18/-

ताईवर्ान

यूर्वर्ान

( Yuan)

कांग्रेस

( House of

िस्वर्ट्जरलैण्ड

संघीय सभा

( Federal

हिालैण्ड

स्टेटस जनरल

( Status General)

22/Assembly)

हिंगरी

नेशनल एसेमबली( National

23/Parliament)

आस्ट्रेिलया

फ़े डरल परािलयामेण्ट( Federal

14/Panchayat)

19/- यूर्.एस.ए(अमरीका) Representatives and Senate) 20/Assembly) 21/-

(Storting)

( Cortes)


24/Congress) 25/-

8

अजेन्टाइना

नेशनल कांग्रेस (National

रुस

ड्यूर्मा

(Duema)

खट्टी-िमठ्ठी

एक गांवर् में एक परिरवर्ार रहिता था. उसमें दो बहिने थी. एक का नाम खट्टी और दूर्सरी का नाम िमठ्ठी था. खट्टी को नृत्य करना अच्छा लगता था,जबिक िमठ्ठी को गाना गाना और तरहि-तरहि के वर्ाद्द-यंत्र बजाना. दोनों हिी कक्षा चौथी में परढिती थीं. संग—संग स्कूर् ल जातीं. संग-संग खेलती-कूर् दती. एक छोटी सी बात परर दोनों में झगडा हिो गया. खट्टी ने कहिा िक मैं नयी परेिन्सल मैं लूर्ंगी. िमठ्ठी कहिती मैं लूर्ंगी. दोनों के बीच तूर्-तूर्-मैं-मैं चल रहिी थी, तभी उनके िपरता आ परहुँचे. दोनों के झगडने का कारण जानने के बाद, उन्हिोंने परेिन्सल के दो टु कडॆ करते हुए दोनों के बीच बांट दी. इस तरहि झगडा शांत हुआ. एक बार दोनों ने अपरनी माँ से प्रश्न िकया िक उनका नाम िमठ्ठी और खट्टी क्यों रखा गया..तब माँ ने समझाते हुए कहिा- िमठ्ठी को मीठा खाने का शौक था,जबिक खठ्ठी को तीखा. इसिलए दोनों के नाम खट्टी-िमठ्ठी रख िदए गए.


जैसे-जैसे वर्े बडी हिोती गई, अपरनी-अपरनी कलाओं में परारं गत हिोती चली गई. खट्टी नृत्य करती और िमठ्ठी गाने गाती और संगीत में अनूर्ठी प्रस्तुित देती. देखते हिी देखते वर्े िसतारा आिटस्ट बन गई

खट्टी को इस बात परर

गवर्र्ध हिोता िक उसके मुकाबले कोई नहिीं. एक बार तो उसने अपरनी छोटी बहिन का उपरहिास उडाते हुए कहिा;-“मेरे समान नतर्धकी दुिनया में नहिीं हिै.” अपरनी बहिन की बातें सुनकर िमठ्ठी को बहुत बुरा लगा. उसने समझाते हुए कहिा :-“घमंड करना ठीक नहिीं हिै. नृत्य हिो अथवर्ा गाियकी, ये सब ईश्वर की देन हिोती हिै. अतः हिमें अपरनी कला को, भगवर्ान को समिपरत करते हुए, उन्हिें धनन्यवर्ाद देना चािहिए. िकसी भी बात्त परर घमंड करना अनुिचत हिै. अपरनी बहिन की बातें सुनकर खट्टी को बहुत बुरा लगा. बात यहिाँ तक आगे बढि गई िक वर्े अबोला रहिने लगीं. िमठ्ठी प्रितिदन अपरना िरयाज करती.और बुलावर्ा आने परर वर्हि अपरना कायर्धक्रम देने परहुँच जाती. जबिक खट्टी ने नृत्य का अभ्यास करना तक छोड िदया था. वर्हि िदन भर अपरने कमरे में परडी रहिती. एक िदन ऎसा भी आया िक वर्हि िबमार रहिने लगी. अपरनी बहिन की दुदश र्ध ा देखकर िमठ्ठी को दुख हिोता,लेिकन वर्हि कर भी क्या सकती थी. एक िदन उिचत अवर्सर जानकर, अपरनी बहिन से कहिा-“देखो, तुम एक श्रेष्ट नतर्धकी हिो, और तुमहिें चािहिए िक तुम अपरना अभ्यास शुरु करो. मैं तुमहिारे साथ हूँ. तुमहिारे िलए नया संगीत रचूर्गीं और तुम िफ़र से अपरना खोया हुआ सममान परा सकोगी.”


खट्टी ने क्षमा मांगते हुए अपरनी बहिन से कहिा-“बहिन तुम सच कहि रहिी हिो. मुझे अपरने िकए परर परछतावर्ा हिो रहिा हिै. भिवर्ष्य में ऎसा कभी नहिीं हिोगा.” िमठ्ठी ने अपरनी प्यारी बहिन को गले से लगाते हुए कहिा-“मुझे इस बात परर खुशी हुई िक तुमने अपरनी गलती स्वर्ीकार कर ली हिै.

9 चार लालची.

एक गांवर् में चार भाई रहिते थे. उनके परास सैंकडॊं एकड जमीन, आसमान को छूर् ती कई इमारते, अच्छा खासा बैंक बैलेंस था. बावर्जूर्द इसके सभी लालची थे. वर्े हिर प्रकार का जतन करते िक उन्हिें और भी धनन कहिीं से प्राप्त हिो जाए और वर्े रात-िदन इसी िचता में लगे रहिते थे. एक बार गांवर् में शतचंडी यज्ञ का आयोजन हुआ. उसमें देश के हिर कोने से साधनु-महिात्मा परहुँचे.

चारों भाई िनयिमत रुपर से वर्हिाँ जाते. यज्ञ में

आहुितयाँ डालते और ईश्वर से प्राथर्धना करते िक उनकी इच्छा जल्द परूर्री करें . वर्े जानते थे िक इस आयोजन में परधनारे हुए साधनु-संत की यिद कृ परा हिो गई, तो उनकी


मनोकामना शीघ्र हिी परूर्री हिो सकती हिै.

वर्े बारी-बारी से संतो के परास जाते और उनसे धनन प्राप्त के उपराय परूर्छते. उनका प्रयास रं ग लाया और उन्हिें एक ऎसे साधनु का परता चल हिी गया,जो उनकी मनोकामना परूर्री कर सकते थे. अब उनकी प्रसन्नता देखते हिी बनती थी. अब वर्े िनयिमत रुपर से उस साधनु की सेवर्ा में उपरिस्थत हिोते. उनकी सेवर्ासुश्रुषा करते और उन्हिें प्रसन्न करने की चेष्टा करते. साधनु ने प्रसन्न हिोते हुए उनके परूर्छा िक वर्े क्या चाहिते हिैं. सभी ने अपरना मनोरथ कहि सुनाया. साधनु इस बात को समझ गए थे िक इतना सब कु छ हिोने के बाद भी उनके मन में धनन के प्रित ज्यादा आसक्तिी हिै. उन्हिोंने चेतावर्नी देते हुए बतलाया िक उन्हिें धनन तो िमल जाएगा ,लेिकन ज्यादा लालच करने से अिहित भी हिो सकता हिै. उन्हिोंने साधनु को आश्वासन िदया िक वर्े आपरकी सीख का परालन करें गे.

साधनु

ने बतलाया िक आपर लोग परूर्रब िदशा की ओर जाएं. वर्हिाँ आपरको रास्ते में चार परहिाड िमलेगें. परहिाड में गुफ़ा िमलेगी. उसमें प्रवर्ेश करके खुदाई करना, तुमहिें धनन अवर्श्य िमलेगा. साथ िलया और िनकल परडॆ.

चारों ने रास्ते में खाने-परीने का सामान अपरने चलते-चलते एक

परहिाड िमला. यहिाँ वर्हिाँ भटकने के बाद उन्हिें गुफ़ा िदखलाई दी. गुफ़ा के अन्दर जाने के बाद उन्हिोंने एक स्थान परर खुदाई की. जमीन में तांबा प्राप्त हुआ. सबसे छोटॆ भाई ने कहिा-“बडॆ भैया..मैं इसी में संतुष्ट हूँ.” इतना कहि कर वर्हि वर्हिीं रुक गया. बडॆ ने समझाया िक आगे और भी


कीमती चीजें िमल सकती हिै. यिद तूर् यहिीं रुक जाना चाहिता हिै,तो ठीक हिै. इतना कहिकर तीनॊं भाई आगे बढिे. चलते-चलते दूर्सरा परहिाड िमला और गुफ़ा भी. तीनों ने अन्दर प्रवर्ेश िकया. खुदाई शुरु की. वर्हिाँ चांदी प्राप्त हुई. दूर्सरे भाई ने अपरने बडॆ भाई से कहिा िक वर्हि इसी से संतुष्ट हिै. बडॆ भाई ने कहिा-“जैसी तुमहिारी मजी.हिम और आगे जा रहिे हिै. अब दो भाई आगे बढिे. चलते-चलते िफ़र एक परहिाड िमला और उसमें बनी गुफ़ा भी. दोनो ने अन्दर प्रवर्ेश िकया और खुदाई शुरु की. इस बार संयोग से सोने के ढिेर िमले. तीसरे भाई ने कहिा-“भैया..तांबा और चांदी से तो सोना ठीक रहिेगा. बस हिम आगे नहिीं बढिेगें. अपरने मंझले भाई की बात सुनकर बडा ठहिाका मार कर हिंसा ,िफ़र बोलाठीक हिै छोटे, तुम यहिीं रुको. मैं आगे बढिता हूँ.” छोटे भाई ने समझाया भी िक इतना हिी परयार्धप्त हिै.ज्यादा लोभ अब ठीक नहिीं.” लेिकन बडा मानने से इनकार करते हुए आगे बढि गया. काफ़ी दूर्र जाने के बाद एक परहिाड िमला और गुफ़ा भी. बडॆ भाई ने अन्दर प्रवर्ेश िकया और खुदाई शुरु की. उसे वर्हिां हिीरा-मोती-परन्ना आिद का अमूर्ल्य जखीरा िमला. मन हिी मन प्रसन्न हिोते हुए उसने सोचा िक तीनों भाई भी उसके साथ हिोते तो उन्हिें भी नायाब खजाना हिाथ लगता,लेिकन िजसके भाग्य में जो िलखा-बदा हिोता हिै,िमलता हिै.


बहुत सारा असबाब इकठ्ठा कर जब वर्हि गुफ़ा के मुहिाने परर परहुँचा तो देखता क्या हिै िक गुफ़ा का प्रवर्ेश द्वार बंद हिो चुका हिै. उसने खूर्ब रोयािचल्लाया,लेिकन द्वार नहिीं खुला. तभी अन्दर से एक आवर्ाज गूर्ज ं ी-“ज्यादा लोभ का परिरणाम तो तुमहिें भुगतना हिी परडॆगा. यहि द्वार तभी खुलेगा और जब कोई तुम जैसा बडा लोभी धनन की तलाश में यहिाँ आएगा.

10

अष्टावर्क्र ने िसखाया शारीिरक सौंदयर्ध से बडा हिै ज्ञान

िहिन्दूर् धनमर्धशास्त्रों में अष्टावर्कर्ध का नाम एक दाशर्धिनक और तत्वर्िचतक के रुपर में आदर के साथ िलया गया हिै. कहिते हिैं िक अष्टावर्क्र न के वर्ल बेहिद कु रुपर थे,बिल्क उनका शरीर भी बेढिंगा था. वर्े अष्टावर्क्र इसीिलए कहिे जाते हिैं,क्योंिक उनका शरीर आठ जगहि से वर्क्र अथार्धत टेढिा था. प्रिसद्ध कथा हिै-अष्टावर्क्र राजा जनक के दरबार में परहुंचे. दोनों ओर ऊँचे आसनों परर सभासद,ज्ञानी,परंिडत,राजकमी आिद बैठे थे और सामने राजा जनक का िसहिासन था,िजस परर वर्े िवर्रािजत थे. अष्टावर्क्र को द्वारपराल ने नहिीं रोका. वर्े उस समय िकशोर वर्य के थे. उन्हिोंने ने जैसे हिी राजा जनक की सभा में प्रवर्ेश िकया,उन परर दृिष्ट परडते हिी सभी ने एक-दूर्सरे की ओर देखा और एक जोरदार ठहिाका सभा में गूर्ंज उठा. इस ठहिाके की गूर्ंज देर तक सुनाई दी. सभी अष्टावर्क्र का अजीबॊ-गरीब व्यिक्तित्वर् देखकर हिंस परडॆ थे. यहि देख परहिले तो वर्े कु छ समझ नहिीं पराए, िफ़र उन्हिें हिंसता देख वर्े भी जोर से हिंसने लगे.


इस तरहि उन्हिें हिंसता देख जनक से रहिा न गया तो उन्हिोंने परूर्छा-“सब लोग तो तुमहिें देखकर हिंसे,आिखर तुम क्यों हिंस परडॆ.?” अष्टावर्क्र ने जबाब िदया- मुझे लगा मैं चमर्धकारों की सभा में आ गया हूँ, जहिाँ व्यिक्ति की चमडी देखकर उसका िनणर्धय हिोता हिै”. जनक सिहित परूर्री सभा उनके इस उत्तर से परानी-परानी हिो गयी. अष्टावर्क्र ने जो संदश े िदया और वर्हि यहि िक व्यिक्ति का महित्वर् उसके शरीर से नहिीं,उसके ज्ञान ,व्यिक्तित्वर् और कमर्ध से हिोता हिै.

11

धनिनक ने सेम के बीज

से जाना संपरित्त बढिाने का रहिस्य. िकसी गांवर् में एक धनिनक रहिता था. िदन-रात वर्हि इसी सोच में रहिता िक उसके धनन में वर्ृिद्ध कै से हिो,िकन्तु वर्हि कोई उद्दम नहिीं करना चाहिता था. उसे यहि भी भय लगा रहिता था को लोग उसकी अपरार संपरित्त के िवर्षय में न जान पराए. इस हिेतु वर्हि एक िदन संत रै दास के परास जा परहुंचा और बोला-“महिाराज ! आपर पररम ज्ञानी हिैं. कृ परया मुझे संपरित्त बढिाने का उपराय बताइए.”. संत ने उसे एक सेम का बीज देते हुए कहिा िक इसे अपरने आंगन के िकसी कोने में बो देना. तुमहिारे धनन में वर्ृिद्ध अवर्श्य हिोगी. धनिनक ने प्रसन्न हिोकर उसे बो िदया. दो-तीन माहि में बीज एक बेल के रुपर में फ़ै ल गया और उसमें बहुत सारी सेम लगी,िकन्तु उसके धनन में बढिौतरी नहिीं हुई. िनराश हिोकर वर्हि िफ़र रै दास के परास परहुँचा और कहिने लगा-“ महिाराज बीज तो ऊग आया हिै और उसमें फ़िल्लयां भी खूर्ब लगी हिै,लेिकन मेरे धनन मे वर्ृिद्ध नहिीं हुई.”. तब रै दास ने समझाया-“भाई ! यिद मैं तुमहिें बीज देकर


यहि कहिता िक तुम इसे भूर्नकर खा जाना तो बीज नष्ट हिो जाता और तुमहिारा परेट भी नहिीं भरता. तुमने इसे बोया और ढिेर सारी फ़िल्लयों तुमहिें प्राप्त हिो गयीं,िजनमें असंख्य बीज भरे हुए हिैं. यिद तुम भी अपरने धनन को सेम के बीज की तरहि हिी िकसी उद्दम में लगाओगे तो उसने वर्ृिद्ध हिोगी, अन्यथा वर्हि धनन नष्ट हिो जाएगा”. धनिनक को अपरनी भूर्ल का अहिसास हुआ. सार यहि हिै िक आलस्य अपरार संपरित्त को भी समाप्त कर देता हिै,जबिक परिरश्रम से उसमे कई गुना की वर्ृिद्ध हिोती हिै.

12 बालक ध्रुवर् का हिठ सभी के िलए आदशर्ध बन गया. प्राचीनकाल की बात हिै. राजा उत्तानपराद की दो रािनयां थीं-सुनीित और सुरुिच. दोनों रािनयों से क्रमशः दो परुत्र-ध्रुवर् और उत्तम हुए. राजा उत्तानपराद रानी सुरुिच को अिधनक स्नेहि करते थे,इसीिलए उनके परुत्र उत्तम को िपरता की आत्मीयता अिधनक िमलती थी. एक बार राजा िसहिासन परर बैठे थे और उनकी गोद में उत्तम बैठा हुआ था. तभी बालक ध्रुवर् खेलता हुआ वर्हिां आ परहुंचा और अपरने िपरता की गोद में बैठने की इच्छा व्यक्ति की. परास हिी िवर्माता बैठी हुई थी. उसने उस नन्हिें बालक को यहि कहि कर बैठने से मना कर िदया िक यिद वर्हि राजा की गोड में बैठना चाहिता हिै तुमहिें मेरी कोख से जन्म लेना हिोगा,तभी तुम राजा की गोद में बैठने के अिधनकारी हिो सकते हिो.”बालक रोता हुआ अपरनी माँ के परास परहुँचा और अपरनी िवर्माता के कथन को कहि सुनाया. सुनीित जैसा नाम उसका था वर्े थी भी नीितवर्ान. उन्हिोंने ने बालक को परुचकारते हुए कहिा-“ बेटा ! यिद बैठना हिी चाहिते


हिो तो भगवर्ान की गोद में बैठॊ,जहिां से तुमहिें कोई उतर जाने की कहिने की िहिममत नहिीं कर सकता.” अपरनी मां की बात सुनकर ध्रुवर् जंगल की ओर िनकल गए. वर्े अपरनी भिक्ति से भगवर्ान को प्रसन्न करना चाहिते थे,लेिकन भिक्ति कै से की जाती हिै,वर्े नहिीं जानते थे. तभी नारद मुिन वर्हिाँ आता देख बालक ध्रुवर् ने उनसे भगवर्ान को प्राप्त करने का उपराय परूर्छा. नारदजी ने उसे आसान सा उपराय बताया. ध्रुवर् ने किठन तपरश्चियार्ध की और भगवर्ान िवर्ष्णु ने प्रकट हिोकर वर्र देते हुए कहिा िक वर्हि सब लोकों,ग्रहिों,नक्षत्रों के ऊपरर आधनार बनकर िस्थत रहिेगा..इसीिलए उनका स्थान “ध्रुवर्लोक” कहिलाता हिै.वर्रदान पराकर ध्रुवर् वर्न से लौटकर राजा बने. उन्हिोंने अनेक वर्षॊं तक राज्य िकया और अन्त में ध्रुवर्लोक के स्वर्ामी बने . इस कथा से यहि संदश े प्राप्त हिोता हिै िक राजा यिद तपरस्वर्ी हिोगा तो उसकी नीितयां भी आदशर्ध स्थािपरत करती हिैं. नीितयों के फ़लस्वर्रुपर हिी वर्हिां की प्रजा सुखी और खुशहिाल रहिती हिैं. इसीिलए कहिा गया हिै िक जब तक िकसी बात को लेकर हिठ नहिीं हिोगा,तब तक तपर भी परूर्णर्ध नहिीं हिोता. सार यहि हिै िक अच्छे उदेश्यों के िलए िकया जाने वर्ाला संकल्पर” दृढि संकल्पर” कहिलाता हिै और कायर्ध की आधनी सफ़लता संकल्पर की दृढिता में हिी िछपरी हिोती हिै.

13

संत रािबया ने युवर्ाओं को बताया सेवर्ा का महित्वर्


संत रािबया अलसुबहि कबूर्तारों को दाना िखलाती थी.यहि उसका प्रितिदन का िनयम था. शेष समय वर्े अध्ययन और आध्याित्मक चचार्ध में बीताती थी. एक िदन सुबहि के समय वर्हि कबुतरों को दाना चुगा रहिी थी िक परांच-छहि नौजवर्ान टहिलते हुए उस बगीचे के परास आकर खडॆ हिो गए. संत रािबया उनकी ओर देखकर परहिले तो मुस्कु राई िफ़र जोर से हिंस परडी. युवर्कों को उनकी हिंसी का अथर्ध समझ में नहिीं आया. उनमें से एक ने कारण परूर्छा तो वर्हि बोली_ मैं इसिलए हिंसी िक िजस धनरती परर तुम जैसे सजीले,संदर और बिलष्ट नौजवर्ान हिों,वर्हि धनरती िकतनी भाग्यशाली हिै. मेरी हिंसी वर्ास्तवर् में खुदा के प्रित आभार हिै”. युवर्क यहि सुनकर वर्हिीं खडॆ हिो गए. रािबया िफ़र कबूर्तरों को दाना चुगाने में व्यस्त हिो गई. िफ़र थोडी देर बाद अचानक रो परडीं. उनका रोना देख युवर्क बेचैन हिो गए. उनके द्वारा कारण परूर्छने परर वर्े बोलीं”-परहिले तो मैं यहि देख कर हिंसी थी िक धनरती परर िकतने युवर्ा हिैं,लेिकन अब मैं रोई तो इसिलए िक सारे युवर्ा सेवर्ा की भावर्ना से दूर्र हिैं. यिद युवर्ा अपरनी शिक्ति का उपरयोग सॄजनात्मक कायो के साथ सेवर्ा में करें , तो जगत का कल्याण हिो जाएगा. ऎसा न हिोता देख मेरे आंसूर् िनकल आए.”.युवर्कों ने अपरनी भूर्ल स्वर्ीकारी. रािबया ने उन्हिें प्रेिरत िकया िक यिद उनसे कोई बडी सेवर्ा न हिो सके ,तो वर्े प्यासों को परानी, परिरदो को दाना और मीठी बोली बोलकर हिी सुकूर्न परहुंचाए. वर्स्तुतः युवर्ावर्स्था की उजार्ध को सदकायों मे लगाना आित्मक शांित का वर्ाहिक तो बनाता हिी हिै,समाज को सकारात्मक परिरणाम देकर उसकी उन्नित का मागर्ध भी खोलता हिै.

14


स्वर्ामी िवर्वर्ेकानंद की प्रेरणा बनी एक परंिडत की सलाहि बात उन िदनों की हिै,जब स्वर्ामी िवर्वर्ेकानंद अल्परज्ञात थे. उनका गहिन ज्ञान और परांिडत्य देखकर परोरबंदर के एक परंिडत ने उनसे कहिा-“स्वर्ामीजी ! यहिां भारत में धनमर्ध के बहुत परंिडत हिैं. सभी को अपरने ज्ञान परर गवर्र्ध हिै और कोई िकसी की सुनना नहिीं चाहिता. सभी आपरका उपरहिास करें गे और आपरकी िवर्द्वात्ता का समाज के िहित में कोई उपरयोग नहिीं हिोगा. मेरी मािनए,परहिले आपर िवर्देश जाइए”. स्वर्ामीजी को यहि िवर्चार परसंद आया. वर्हि अमेिरका चले गए. थोडॆ िदन अमेिरका भ्रमण के बाद उनकी जमा परूर्ज ं ी खत्म हिो गई, तब उनके िकसी स्नेहिी ने उन्हिें बोस्टन जाने का िकराया िदया और िवर्श्व धनमर्ध सममेलन के एक सदस्य के नाम परत्र भी िदया. दुभार्धग्यवर्श वर्हि परत्र रास्ते में कहिीं खो गया. ठं ड से िठठु रते स्वर्ामीजी ने िकसी तरहि रात िबताई. िफ़र सुबहि हिोने परर परैदल चलते हुए सोचने लगे िक अब िवर्श्व धनमर्ध सममेलन में प्रवर्ेश कै से िमले ?. चलते-चलते थक गए, तो आलीशान भवर्न के नीचे बैठ गए. उस भवर्न की एक संभ्रात मिहिला बहुत देर तक स्वर्ामीजी को देखते रहिी. वर्ास्तवर् में वर्हि उनके तेजोमय व्यिक्तित्वर् से बहुत प्रभािवर्त हुई. यहि मिहिला श्रीमती एच.डबल्यूर् हिैल थीं,िजनकी परहुंच िवर्श्वधनमर्ध सममेलन के सदस्यों तक थी. उन्हिोंने स्वर्ामीजी को बुलाकर उनसे बात की और इस तरहि स्वर्ामीजी की सममेलन में परहुंचने की राहि आसान हिो गई. इस सममेलन में िदए गए प्रभावर्शाली भाषण ने देश-िवर्देश में स्वर्ामीजी को लोकिप्रय बना िदया. प्रेरणा कहिीं से भी िमल सकती हिै,बशते संकल्पर शिक्ति दृढि हिो मौर प्रयास उिचत िदशा में हिो.


15 चोरिी बरिु ी बारत (

मारलवी लोककथार परि आधारिरित

)

एक गारँव मे मारँ-बेटिे रिहते थे. वे बडे गरिीब थे. मारं एक सेठजी के यहारँ कारम करिती थी. कभी-कभी उसकार बेटिार भी उसके सारथ जार पहुँचतार थार. सबकी नजरिे बचारकरि वह कोई न कोई चीज चरिु ारकरि ले आतार औरि घरि आकरि अपनी मारँ को बतलारतार थार. मारँ को शारयद उन वस्तओ ु ं की जरुरित होती औरि वह उसे दे खकरि बडी प्रसन्न होती. जैसेजैसे वह लडकार बडार होतार गयार, वह अब बडी-बडी चोिरियारं करिने लगार थार. एक बाररि चोरिी करिते समय उसे चौकीदाररि ने दे ख िलयार औरि शोरि मचारते हुए उसके पीछे दौडार. यह दे खकरि उसने उस चौकीदाररि परि चारकू से वाररि करि िदयार. चारकू उस चौकीदाररि के कलेजे मे जार लगार औरि उसकार प्रारण ारन्त हो गयार .शोरि की आवारज परि इकठ्ठार हुए लोगों ने उसे घेरि िलयार औरि उसे पिु लस के हवारले करि िदयार,जहारँ उसे कोटिर्धार मे ले जारयार गयार.

कोटिर्धार

ने हत्यार के जम ु र्धार मे उसे फ़ारंसी की सजार सन ु ार दी. जब उसे फ़ारंसी दी जारनी थी तो उससे पछ ू ार गयार िक उसकी अि हन्तम इच्छार क्यार है ?. तब उस युवक ने कहार िक वह अपनी मारँ से िमलनार चारहतार है .


रिोती-िगडिगडारती मारँ ने उसे जैसे ही अपने गले से लगारयार ,उसने पूरिी तारकत के सारथ उसके दोनो कारन उखारड िदए औरि कहने लगार िक मारँ अब रिोने से क्यार फ़ारयदार. जब मै चोरिी करिके वस्तए ु ं लारतार थार औरि तुझे िदखारतार थार तो तु बडी प्रसन्न होती थी..यिद पहली चोरिी के समय ही तु मझ ु े डारंटिती-माररिती

औरि िहदारयत दे ती तो आज

तेरिार लडकार न तो चोरि कहलारतार औरि न ही वह हत्याररिार बनतार. बच्चॊं,यह एक कहारनी मारत है . चोरिी करिनार यार औरि भी ऎसार कारम ि हजसे घण ृ ार से दे खार जारतार है

यिद कोई तुम्हे िसखारये तो

उससे पल्लार झारड लेनार. यारद रिखनार,,यिद एक बाररि आदत ,गलत कारम करिने की पड जारए तो उससे छुटिकाररिार पारनार कभी भी आसारन नहीं होतार.

16

जीवर् िवर्ज्ञान के कु छ महित्वर्परूर्णर्ध तथ्य -------------------------------------------------------------

िवर्श्व का सबसे बडा फ़ूर् ल =िलली (रै परलेिसया आरनाल्डी) के फ़ूर् ल दुिनया मे सबसे बडे फ़ूर् ल माने जाते हिैं. ये रं ग-िबरं गे फ़ूर् ल नारं गी-भूर्रे रं ग के और सफ़े द रं ग के हिोते हिैं. इनका व्यास लगभग 91 सेमी. और वर्जन लगभग 7 िकलो का हिोता हिै.ये दिक्षण-परूर्वर्र्ध एिशया के जंगलों मे पराये जाते हिैं. िवर्श्व का सबसे अिधनक फ़ै ला हुआ फ़ूर् लदार परौधना = “चीनी िवर्स्टैिरया” िवर्श्व का सबसे बडा फ़ूर् लदार परौधना हिै. इस परौधने को सन 1892 में िसएरा मांद्रे


कै िलफ़ोिनया (अमेरीका) में लगाया गया था. इसने एक एकड भूर्िम को घेर िलया हिै और इसका वर्जन लगभग 228 टन हिै, इसकी शाखाएँ 152 मीटर लमबी हिै. इसके फ़ूर् लने की अवर्िधन प्रत्येक वर्षर्ध पराँच सप्ताहि की हिोती हिै और वर्हि लगभग 15 लाख फ़ूर् लों से लद जाता हिै. िवर्श्व का सबसे छोटा फ़ूर् ल = “वर्ुिल्फ़या परंक्टाटा” नामक एक ऎसा फ़ूर् लदार परौधना हिोता हिै िजसे हिम बहिते परानी के “डक्वीड” भी कहि सकते हिैं. इसके परल्लवर् िसफ़र्ध 0.7 िममी लमबे हिोते हिैं िवर्श्व का सबसे बडा िवर्शाल वर्ृक्ष = के िलफ़ोिनया का “जनरल शरमैन” नामक वर्ृक्ष िवर्श्व का सबसे िवर्शाल वर्ृक्ष हिै. 85 मीटर ऊँचा यहि वर्ृक्ष कै िलफ़ोिनया के िसकु आ नेशनल पराकर्ध में हिै. इसका वर्जन 2030 टन हिै. िवर्श्व का सबसे बडा नेश नल पराकर्ध = कनाडा का ”बफ़े लो नेशनल पराकर्ध ” अल्बटार्ध में हिै. इसका िनमार्धण 1922 में हुआ था और िजसका क्षेत्रफ़ल 45,480 वर्गर्ध िकमी हिै. िवर्श्व का सबसे बडा िचिडयाघर =िवर्यना आिस्ट्रया का “शोन्ब्रन” िचिडयाघर सबसे परुराना ज्ञात िचिडयाघर हिै., िजसे सन 1752 में रोमन सम्राट फ़्रांत्स(1) ने मािरया थेरेसा के िलए बनवर्ाया था. वर्तर्धमान में िवर्श्व का िनजी िकस्म का सबसे बडा िचिडयाघर “जुलािजकल सोसायटी आफ़ लन्दन का हिै, िजसे सन 1826 में िनिमत िकया गया था.


िवर्श्व की सबसे बडी मछली =िवर्श्व की सबसे बडी मछली समुद्री “व्हिेल शाकर्ध ” हिै. यहि अटलांिटक,प्रशान्त और िहिन्द महिासागर के गमर्ध क्षेत्र में परायी जाती हिै.इसकी लमबाई लगभग 18.5 और वर्जन 43 टन हिोताहिै. सबसे छॊटी समुद्र ी मछली= िहिन्द महिासागर के चागोस द्वीपर की “ड्वर्ाफ़र्ध गोबी” मछली हिै. इसकी औसत लमबाई 8.9 िममी हिै. सबसे िवर्षैल ी मछली =इन्डॊ-परैसेिफ़क के उष्णकिटबंधनीय जल में पराई जाने वर्ाली मछली “स्टोनिफ़श” सबसे जहिरीली मछली हिै.. इसमें िवर्शेषकर “िसनेंसेजा हिािरडा” मछली की िवर्ष ग्रंिथयाँ दूर्सरी सभी िवर्षैली मछिलयों से बडी हिोती हिै .उपरयुर्धक्ति जाित की मछिलयों के िफ़न्स के काटॊं को छूर् लेने मात्र से हिी मृत्यु हिो जाती हिै., सबसे बडा अण्डा= शुतूर्रमुगर्ध का अण्डा सबसे बडा हिोता हिै. एक अण्डॆ की औसत लमबाई 15 से 20 सेमी, व्यास 10 से 15 सेमी एवर्ं वर्जन 1.65 से 1.78 िकग्रा. हिोता हिै. सबसे छोटा अण्डा= परिक्षयों में सबसे छॊटा अण्डा जमैका की “वर्रवर्ेन हि​िमग बडर्ध” का हिोता हिै, िजसका आकार 10 िममी से भी कम हिोता हिै और भार लगभग 0.370 ग्राम हिोता हिै. सबसे दीघर्धक ाय िछपरकली= इण्डॊनेिशया के कोमोडॊ, िरत्जा और फ़्लोरस द्वीपरों में पराया जाने वर्ाला ड्रैगन जैसा रें गने वर्ाला जीवर् िछपरकली जाित के जीवर्ों में सबसे दीघर्धकाय हिै. वर्यस्क नर की औसत लमबाई 2.43 मीटर हिोती हिै.


सबसे भारी कीट= िवर्श्व का सबसे भारी कीट “गोिलयथ गुबरै ले” हिै, िजसका भार लगभग 70 ग्राम से 100 ग्राम के बीच हिोता हिै. सबसे तेज आवर्ाज करने वर्ाला कीट=” सेकेिडडी कीट” सबसे तेज आवर्ाज परैदा कराने वर्ाला कीट माना जाता हिै,िजसके कं परन करने वर्ाले अंगो से 7,400 आवर्ृित्त, प्रित िमनट की आवर्ाज िनकलती हिै,जो आधने िकलोमीटर दूर्र से सुनी जा सकती हिै. सबसे प्राचीन जीिवर्त परेड =दिक्षण-परिश्चिम कै िलफ़ोिनया में पराया जाने वर्ाला “िकग क्लोन” सबसे प्राचीन जीिवर्त परेडॊ में िगना जाता हिै. यहि परेड 11,700 वर्षर्ध परुराना हिै. सबसे तेज गित से उडने वर्ाला परक्षी = “फ़ाल्को परेरेिग्रनस” नामक बाज परक्षी लगभग 370-380 िकमी प्रित घण्टॆ की गित से उडता हिै. सबसे भारी सपरर्ध= “ अनकोंदा”अजगर और धनारीदार अजगर की लमबाई समान हिोती हिै,िकन्तु अनकोंदा का भार धनारीदार अजगर के भार से दो गुना हिोता हिै.

17

दो हं सों कार जोडार.


रिारमदयारल एक धनी िकसारन थार,लेिकन वह बहुत ही आलसी थार. वह न तो अपने खेत दे खने जारतार औरि न ही अपने पशध ु न की खोजखबरि रिखतार थार. उसने अपनार साररिार कारम नौकरिों के भरिोसे छोड रिखार थार. धीरिे -धीरिे घरि की साररिी व्यवस्थार चौपटि होने लगी ,लेिकन उसने उस ओरि कभी ध्यारन ही नही िदयार. उसे खारने-पीने कार भी बेहद शौक थार. अतः वह अपने िलए लजीज व्यंजन बनवारतार. डटि करि खारतार औरि सोतार पडार रिहतार. घरि से िनकलनार भी उसने लगभग बंद करि िदयार थार .एक िदन ऐसार भी आयार िक वह िबमाररि रिहने लगार. उसने अपनार इलारज गारँव के प्रिसद्ध वैद्धहकीमॊं से करिवारयार,लेिकन स्वारस्थ्य मे कोई सध ु ाररि नहीं हुआ. उसे तो अब ऐसार भी लगने लगार थार िक अब वह शारयद ही बच पारएगार. इस बारत की खबरि गारँव के एक बुजुगर्धार को लगी तो वे उसे दे खने जार पहुँचे. कारफ़ी दे रि यहारँ-वहारँ की बारतचीत होती रिही. बारतों ही बारतों मे उस बज ु ग ु र्धार ने उसकी दै िनक िदनचयारर्धार की साररिी जारनकारिरियारँ इकठ्ठी करि ली औरि सलारह दे ने की सोची. वे जारनते थे िक रिारमप्रसारद शारयद ही उनकी बारतों परि सहजतार से अमल करिे गार. अतः उन्होने िबमाररिी कार इलारज मनोिवज्ञारिनक ढं ग से करिने की ठारनी. उन्होंने कहार िक यिद वह जल्दी ही ठीक होनार चारहतार है तो उसे एक कारम करिनार होगार. कारम कोई किठन नहीं है ,यिद तम ु उसे करि सके तो अच्छे होने मे ज्यारदार समय नहीं लगेगार. बुजुगर्धार की बारत


सुनकरि उसे कुछ िदलारसार सी हुई. उसने अधीरि होकरि उसकार उपारय जारननार चारहार. बज ु ग ु र्धार ने िकसी औरि परि रिहस्य उजारगरि न करिने की सलारह दे ते हुए कहार;- सय ू ोदय के पूवर्धार, मारनसरिोवरि मे रिहने वारले दो हं सों कार जोडार उडते हुए तुम्हाररिे खेत मे उतरितार है . वह थॊडी दे रि आम के पेड परि बैठकरि सुस्तारतार है औरि िफ़रि उड जारतार है. वे रिोज आएं ऐसार जरुरिी नहीं है ,लेिकन आते अवश्य है. जैसार िक तम ु जारनते ही हो िक हं स मोती खारते है. तम ु एक पारत मे वहारँ मोती भरि करि रिख दो. यिद हं सों ने तुम्हाररिे मोती खार िलए तो समझो, तुम्हाररिी साररिी िबमाररिी जारती रिहे गी औरि तुम पहले की तरिह भले -चंगे हो जारओगे. उपारय सरिल थार औरि उसके पारस कारफ़ी बडी मारतार मे मोितयों कार जखीरिार भी थार .उसने सहमत होते हुए कहार िक वह कारम कल सब ु ह से ही करिनार शरु ु करि दे गार. रिारमप्रसारद भोरि होने के पहले ही जारग गयार. उसने अपने जेब मे कुछ मोती डारले औरि बडार सार पारत लेकरि खेत जार पहुँचार. आम के पेड के नीचे पारत को रिखते हुए उसने उसे मोितयों से भरि िदयार. औरि छुपकरि हं सों कार इंतजाररि करिने लगार. सय ू र्धार आसमारन मे चमचमारने लगार थार,लेिकन हं सों कार कहीं अतार-पतार न थार. वह यह सोच करि घरि वारपस लौटि आयार िक आज नहीं तो कल अवश्य ही वे आएगे . दस ू रिे िदन िफ़रि वह सूयोदय से पहले खेत जार पहुँचार. जेब से मोती िनकारल करि उसने उस पारत मे डारले औरि छुपकरि हं सों कार इंतजाररि


करिने लगार. इस बाररि भी िनरिारशार ही हारथ लगी.यह क्रम लगारताररि कई िदनों तक चलतार रिहार. एक िदन, जब वह खेत पहुँचार औरि पारत मे मोती डारलने लगार तो उसकी आँखे आश्चयर्धार से फ़टिी रिह गई िक पारत मे मोती क्म मारतार मे शेष रिह गए है. उसे यह सोच करि प्रसन्न्तार होने लगी थी िक वह हं सॊं को तो दे ख नहीं पारयार,लेिकन उन्होंने कुछ मोती अवश्य ही चग ु िलए है. रिारमप्रसारद की अब िदनचयारर्धार बन गई थी िक वह रिोज सबेरिे उठने लगार थार. नौकरिों के बीच इस बारत को फ़ैलने मे दे रि नही लगी िक वह रिोज सब ु ह अपने खेतों परि पहुँचने लगार है . इसकार व्यारपक असरि पडार औरि अब वे ईमारनदाररिी से अपनार कारम करिने लगे थे. फ़सल भी खूब लहरिार रिही थी औरि पशु भी अब दध ू ज्यारदार दे ने लगे थे. यह सब दे ख करि उसे आश्चयर्धार होतार. एक सुबह ,जब वह हं सों के िलए मोती लेकरि जार रिहार थार िक रिारस्ते मे वही बुजुगर्धार व्यि हक्त आते िदखे. .रिारमप्रसारद ने हारथ जोडकरि उनकार अिभवारदन िकयार. बारत चल िनकली. उस बुजुगर्धार ने उससे पूछार िक क्यार वह हं सों को दे खने मे सफ़ल हो पारयार है अथवार नहीं ?. तो प्रत्युत्तरि मे उसने कहार िक वह अब अब तक हं सों को दे खने मे सफ़लतार तो हारिसल नहीं करि पारयार है ,परि उसे इस बारत कार संतोष अवश्य है िक उसके द्वाररिार िदए गए मोितयों को हं स चग ु जरुरि रिहे है. औरि उसकार स्वारस्थ्य िदनों िदन सध ु रि रिहार है . यह उनकी कृपार कार ही


पिरिण ारम है िक अब खेतों मे फ़सल खूब लहरिार रिही है औरि उसके पशु भी अब पहले से ज्यारदार दध ू दे रिहे है. रिारमप्रसारद की बारते सन ु करि वह बज ु ग ु र्धार व्यि हक्त ठहारकार लगार करि हं सने लगार. उसे इस तरिह हं सतार दे ख उसने आश्चयर्धार मे भरिते हुए, हं सने कार काररिण जारननार चारहार . उन्होंने कहार:-बेटिार, हं सों के आने की बारत िबल्कुल ही बेबुिनयारद है . वे न तो पहले कभी वहारँ आए थे औरि न ही भिवष्य मे कभी आएंगे. मैने हं सों के आने की बारत कहकरि तम ु मे एक आत्मिवश्वारस जगारने कार कारम िकयार थार .तम ु उन हं सों की खोज मे प्रितिदन उठकरि अपने खेत जारने लगे. इस तरिह तम ु प्रकृित के संपकर्धार मे आए. यह वह समय होतार है जब प्रारण वारयु प्रचुरि मारतार मे बहती है . इस तरिह तुम जारने-अनजारने मे उसकार सेवन करिने लगे. िदन भरि खारटि परि पडार रिहने वारलार व्यि हक्त, जब दो मील प्रितिदन पैदल चलने लगे तो उसके स्वारस्थ्य मे पिरिवतर्धारन अपने आप आने लगतार है . इतनार कहकरि उस बज ु ुगर्धार व्यि हक्त ने अपनी जेब से उन साररिे मोितयों को िनकारलकरि उसे लौटिारते हुए कहार िक वे उसके पहुँचने से पहले कुछ मोती िनकारल िलयार करितार थार.ि हजससे उसके िवश्वारस को बल िमले. रिारमप्रसारद को अच्छी तरिह समझ मे आ गयार िक पिरिश्रम ही वह सफ़ेद हं स है , ि हजनके पंख हमेशार उजले होते है. जो श्रम करितार है वह समारज मे सम्पि हत्त औरि सम्मारन पारतार है . उसने मन ही मन यह प्रण करि िलयार थार िक अब भिवष्य मे वह कभी भी पिरिश्रम से मँह ु नहीं चरिु ारएगार


18 िवश्व दरिू संचाररि िदवस(०) प्रितवष र्धार

मई मारह मे

िवश्व दरिू संचाररि िदवस परिू े िवश्व मे जश्न

की तरिह मनारयार जारतार है , औरि इस िदन तरिह-तरिह के कारयर्धारक्र्म आयोि हजत िकए जारएगे . इस संचाररि िदवस को मनारए जारने के पीछे तकर्धार यह है िक हम भल ू े -िबसरिे िदनों को यारद करिते हुए यह गवर्धार महसूस करि सकते है िक आज से हजाररिों सारल पहले आदमी ि हजस धरिारतल परि असहारय अवस्थार मे खडार थार, आज उससे कहीं आगे िनकल आयार है , औरि अपनार जीवन बडी सग ु मतार से जी रिहार है . यह बारत अलग है िक जनसंख्यार की विृ द्ध के काररिण आज भी अनेक समस्यारएं औरि चन ु ौितयारं है, ि हजन्हे दरिू करिने कार प्रयारस िकयार जार रिहार है , आपको आश्चयर्धार होगार िक ग्याररिवीं शतारि हब्द तक आदमी के पारस वे सारधन नहीं थे िक वह अपनार संदेश दरिू -दरिारज मे बैठे अपने िमत, अथवार िरिश्तेदाररि को भेज सके. कभी-कभी तो दस-बीस मील दरिू रिह रिहे िकसी पिरि​िचत अथवार िरिश्तेदाररि को खबरि भेजनी होती थी तो बारजाररि-हारठ मे िमलने वारले व्यि हक्त को अपनार िलिखत अथवार मौिखक संदेश दे तार थार औरि वह व्यि हक्त उस संदेशे को अथवार पत को संबंिधत व्यि हक्त तक


पहुँचार दे तार थार. यह सब करिते हुए समय की कारफ़ी बरिबारदी होती थी औरि उसे यह यकीन नहीं हो पारतार थार िक उस व्यि हक्त ने उसकार संदेशार दे ही िदयार होगार. आज

हरि एक व्यि हक्त की जेब मे मोबारइल पडार है .

वह जब चारहे तब अपनार संदेश िवश्व के िकसी भी कोने मे रिह रिहे अपने िमत/िरिश्तेदाररि को पलक झपकते ही बारत करि सकतार है .उस समय तक िकसी ने भी न तो डारकघरि की कल्पनार की थी औरि न ही टिे लीफ़ोन जैसी व्यवस्थार की. इस िवश्व दरिू संचाररि िदवस के बहारने आइये, हम उन पुरिारने िदनों की यारद तारजार करिते चले . इितहारस को खंगारलने परि ज्ञारत होतार है िक सन 1226 मे जलारलुिद्दन िखलजी के शारसन कारल मे उसने बडी संख्यार मे घोडे पारले थे ,ि हजनकी सहारयतार से वह अपने पत एक स्थारन से दस ू रिे स्थारन तक पहुँचारतार थार. एक घोडार िनि हश्चत दरिू ी तक जारतार थार. वहारँ दस ु सवाररि आगे जारने ू रिार घड के िलए तैयाररि रिहतार थार.इस तरिह पत एक स्थारन से दस ू रिे स्थारन तक ले जारयार जारतार थार. ि हजयारउद्दीन बरिनी नारमक लेखक ने इसकार उल्लेख िकयार है . सन 1325 मे मोहम्मद िखलजी जो िदल्ली कार शारसक थार, ने इस व्यवस्थार मे कुछ सध ु ाररि करिते हुए उसने डारक वारहक कार बंदोबस्त िकयार थार.शेरि शारह सूरिी ने अपने शारसन कारल मे इसमे व्यारपक सुधाररि िकए औरि सोनाररिगारंव( ढारकार के पारस)से िसंख्ध तक,लगभारग २००० मील की सडक कार िनमारर्धारण करिवारयार औरि घोडॊ औरि पैदल पत-वारहक की व्यवस्थार की. हरि शारसक ने अपने –अपने समय मे इसमे पिरिवतर्धारन िकए,लेिकन


यह व्यवस्थार केवल रिारजघरिारनों तक ही सीिनत थी. आम जनतार की इसमे कहीं भी भारगीदाररिी नहीं थी. ईस्टि इंिडयार कम्पनी के आगमन के सारथ ही डारकघरिों कार िनमारर्धारण संभव हो पारयार थार, िफ़रि भी उसमे टिे लीग्रारफ़ अथवार टिे लीफ़ोन की व्यवस्थार नहीं थी औरि न ही तब तक इसकी खोज ही हो पारयी थी. आज सब कुछ बदल गयार है .हमने मोबारइल को स्वीच आन िकयार, कुछ नम्बरिों की बटिन को दबारयार औरि पलक झपकते ही हमाररिार संपकर्धार इि हच्छत व्यि हक्त से हो गयार. इसी तरिह टिे लीफ़ोन कार रिीिसवरि उठारयार औरि चंद नम्बरि डारयल िकए औरि हमाररिार संपकर्धार स्थारिपत हो गयार. टिी,वी.के मारध्यम से हम आज िवश्व की हरि छोटिी-छॊटिी चीजों को दे ख- सन ु सकते है. आज उसने हरि घरि मे अपनी पैठ बनार ली है . बगैरि टिी.वी के हम एक पल भी नहीं रिह सकते. इसके बारद कंप्युटिरि कार युग आयार औरि आज उसने आम आदमी की िदशार-दशार ही बदलकरि रिख दी है . कोई भी िवष य ऐसार नहीं है ि हजसे हम उसमे खोज नहीं सकते. आज कोई भी कारम ऐसार बारकी नहीं रिह गयार है ि हजसे कंप्यटि ु रि के मारध्यम से संचारिलत न िकयार जार रिहार हो. दिु नयार की इस चकारचौंध मे हम खो से गए है. हम नहीं जारनते िक इसकार वारस्तिवक स्वरुप कभी कैसार रिहार होगार. हम यह भी जारनने की कोिशश नहीं करिते िक इतनी साररिी वस्तुएं जो आज हमाररिे सारमने िबखरिी पडी है औरि ि हजसके मारध्यम से हम, आज जो व्यविथत जीवन जी रिहे है,इनके आिवष्काररिक कौन थे?.


संयोग से मारह मई की 17 ताररिीख को िवश्व संचाररि िदवस पड रिहार है ,ि हजसे पूरिार िवश्व जश्न के तौरि परि मनारएगार. इसी बहारने हम उन आिवष्काररिकों की यारद करिते चले ि हजन्होंने , अपने किठन पिरिश्रम से आदमी के जीवन मे आमूल-चल ू पिरिवतर्धारन लारने मे अपनार योगदारन िदयार थार. एक जमारनार वह भी थार जब आदमी, सद ु रिू बैठे अपने िकसी व्यि हक्त को खबरि भेजनार चारहतार थार तो उसे िमलने मे मिहनो लग जारते थे. िकसी मेले-ठे ले मे अथवार बारजाररि-हारटि के समय वह अपनार संदेशार अपने खारस पिरि​िचत व्यि हक्त को दे तार थार औरि उस व्यि हक्त के मारद्ध्यम से उसकार संदेशार उस व्यि हक्त तक जार पारतार थार. आदमी शुरु से ही खोजी प्रवि हृ त्त कार रिहार है ,उसने इस बारत को गंभीरितार से िलयार औरि िनरिन्तरि खोज करितार रिहार िक उसकी खबरि एक से दस ू रिे तक कम से कम समय मे पहुँच सके. लगारताररि खोजे जाररिी रिही औरि एक िदन ऐसार भी आयार िक वह अपनी खबरि चंद सेकेड मे दिु नयारं के िकसी भी कोने मे भेज सकतार है औरि उसकार प्रत्युत्तरि भी पार सकतार है . इसी खोज कार पिरिण ारम टिे लीफ़ोन औरि टिे लीग्रारफ़ी है ,ि हजसने आदमी िक दशार ही बदल दी. आइये, हम उन महारन आिवष्काररिकॊ के बाररिे मे संिप्क्षप्त मे जारनकाररिीयारं प्रारप्त करिते चले.


एलेक्जंडरि

ग्रारहम

बेल(

मारचर्धार

1847—

2 अगस्त 1922) टे लीफ़ोन के आविविष्कारक 3 मारचर्धार

1847 कॊ अमेिरिकार मे एलेक्जंडरि ग्रारहम बेल नारम के बारलक ने

जन्म िलयार,.ि हजसके िपतार कार नारम एलेक्जॆडं रि मेलिवले बेल औरि मारतार कार नारम इिलजार ग्रेस थार.. एलेक्जंडरि बचपन से मेधारवी, औरि िवलक्षण प्रितभार के धनी थे. इनकी मारं बहरिी थी. संयोग से जब इनकी शारदी मारबेल िवले बेल से हुई तो वह भी बहरिी ही थी. अपने मन की बारत जब इनसे कहनार होतार तो उन्हे कारफ़ी िदक्कतों कार सारमनार करिनार पडतार थार. शारयद यह वही काररिण थार िक वे आगे चलकरि टिे लीफ़ोन कार आिवष्काररि करि पारए.


एिडनबगर्धार युिनविसर्धारटिी औरि युिनविसर्धारटिी कारलेज लंदन से अपनी पढारई

पूरिी

करि

वे

बोस्टिन

युिनविसर्धारटिी

मे

आिवष्काररिक,

वैज्ञारिनक,इंि हजिनयरि,प्रोफ़ेसरि रिहे . वे बिधरिों के िशक्षक थे. बचपन से ही इन्हे ध्विन िवज्ञारन मे गहन रुिच थी. 23 सारल की उम्र मे

उन्होंने

पहलार प्यारनो बनारयार थार. वे स्पीच टिे क्नोलारजी िवष य के िशक्षक रिहे थे , अतः ऐसार यंत बनारने मे सफ़ल हुए जो न केवल म्यूि हजक्ल नोट्स

भेजने मे सक्षम थार बि हल्क आिटिर्धार कुलेटि स्पीच भी दे १


.

सकतार थार. यह सबसे पुरिारनार मारड्ल थार. श्री एलेक्झंडरि ग्रारहम बेल न िसफ़र्धार टिे लीफ़ोन के आिवष्काररिक थे,बि हल्क उन्होण े मेटिल िडटिे क्टिरि की भी खोज की थी. बारद मे वे डारयिबिटिक हो गए औरि 2 अगस्त को उनकार िनधन हो गयार,


(टिे लीफ़ोन के मारडल १ से ८ तक जो समय औरि आवश्यक्तार के आधाररि परि बदलते रिहे ).

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सेमअ ु ल एफ़.बीमोसर्धार (27 अप्रैल 1791-2 अप्रैल 1872

ताररि

के

मारध्यम से संदेश भेजने वारलार यंत टिे लीग्रारफ़ िसस्टिम के आिवष्काररिक

सेमअ ु ल िफ़नाले ब्रीज मोसर्स का जीविन परिरचय सेमअ ु ल िफ़नारले ब्रीज मोसर्धार कार जन्म अमेिरिकार के चारल्सर्धार टिारउन( मेसारचुसेट्स) को २ अप्रैल १७९१ मे हुआ थार, ि हजन्होने एकल-ताररि टिे लीग्रारफ़ी प्रण ारली एवं मोसर्धार कोड कार िनमारर्धारण िकयार थार. वे भग ू ोल- वेत्तार औरि पारदरिी जेिविडयार मोसर्धार की पहली संतारन थे. जन्म से वैज्ञारिनक नहीं थे. वे एक कुशल िचतकाररि थे. िफ़िलप अकारदमी एण्डोवरि-येले से उन्होने सन १८१० मे आटिर्धार मे उपारिध प्रारप्त की थी. सन १८११ से १८१५ तक इंलण् ै ड मे रिहते हुए रिारयल अकारदमी मे पे िटिग करिते


रिहे . वहारँ वे दस सारल तक रिहे औरि पोट्रे टि बनारते रिहे

१८३२ को वे

अमेिरिकार लौटि आए औरि न्यूयारकर्धार युिनविसर्धारटिी मे प्रोफ़ेसरि के पद परि कारयर्धार करिते रिहे .

सन 1825

की बारत है . न्यूयारकर्धार शहरि के वारिशंगटिन मे वे अपनी कलार कार प्रदशर्धारन करि रिहे थे. एक घड ु सवाररि ने उनके िपतार कार पत लेकरि लारयार ,ि हजसमे उनकी पि हत्न के िनधन हो जारने की खबरि थी. पि हत्न की असमय मौत की खबरि पारकरि उन्हे अपाररि दख ु हुआ औरि उन्होंने िचतकाररिी से मोह भंग होने लगार. वे एक ऐसे सारधन की खोज मे जुटि गए जो लंबी दरिू ी तक तेजी से समारचाररि को पहुँचारयार सकतार थार. तब तक ऐसी कोई प्रण ारली िवकिसत नहीं हो पारयी थी िक दरिू -दरिारज तक द्रत ु गित से समारचाररि भेजार जार सके. सन 1832 मे अपनी सारमिु द्रक यारतार के दौरिारन उनकी मल ु ारकारत बोस्टिन के एक व्यि हक्त से हुई,ि हजसकार नारम, चारल्सर्धार थारमस जैक्सन थार जो िवद्धुत चम् ु बकत्व कार ज्ञारतार थार. जैक्सन के िवद्धुत चंब ु क के िसद्धारंत को आधाररि बनारते हुए मोसर्धार ने ,एकल-ताररि टिे लीग्रारफ़ी की अवधाररिण ार कार िवकारस िकयार. इस प्रयोग मे आवश्यक सध ु ाररि के बारद सन 1844 को पहलार टिे लीग्रारिफ़क संदेश उन्होने सफ़लतार प व र्धार भेजार. इस तरिह मोसर्धार ू क की खोज ने दिु नयार मे तहलकार मचार िदयार. बारद मे इसे सरिकाररि ने पेटिेन्टि करि सरिकाररिी पोस्टि आिफ़स के मारध्यम से जनतार के िलए खोल िदद्यार. इस तरिह समारचाररि मोसर्धार के कोड के रुप मे एक स्थारन से द स ू रिे स्थारन परि पलक झपकते ही पहुँच जारयार करिते थे.


भाररितीय टिे लीकम्युिनकेशन के इितहारस मे 1851 की ितिथ यारदगाररि के रुप मे रिहे गी ,जब कलकत्तार( अब कोलकारतार) औरि डारयमन्ड हारबर्धाररि के बीच, जो करिीब 30 मील के लगभग है , पहली ताररि लारईन िबछारयी गई थी. इस समय तक पूरिे दे श मे डारक िवभारग कार बडार नेटिवकर्धार कारयर्धार करि रिहार थार. ि हजलार मुख्यारलय मे प्रधारन डारकघरि एवं उसकी तहसीलों मे अनेक छॊटिॆ -बडॆ डारकघरि, िफ़रि उस डारकघरि से सटिे सभी गारवों को जोड िदयार गयार. इस व्यवस्थार के मारध्यम से डारक िवतरिण कार कारयर्धार िबनार िकसी बारधार के संचारिलत होतार रिहार. ताररि प्रण ारली को अिधक िवस्तारिरित करिने के िलए प्रदे श की रिारजधारिनयों मे केन्द्रीय ताररिघरि(सी.टिी.ऒ) की स्थारपनार की गई औरि दे श मे कारयर्धारकरि रिहे सभी डारकघरिों को ताररि लारइनों से जोड िदयार गयार,जहारँ से करिोडॊं की संख्यार मे ताररि के मारध्यम से संदेशे भेजे जारने लगे . इस तरिह से पोस्टि एण्ड टिे लीग्रारफ़ िडपारटिर्धार मेन्टि की स्थारपनार हु ई,जो बरिसों तक द्रत ु गित से संदेश कार आदारन-प्रदारन करितार रिहार. सन १८२२ मे चारल्सर्धार बारब्बैग को कंप्युटिरि को” फ़ारथेरि ओफ़ कंप्युटिरि के नारम से जारनार जारतार है . िद्वतीय महारयद्ध ु के समय मे जमर्धारनी के इंजीिनयरि कोनरिारड जुसे ने मारडनर्धार कंप्युटिरि कार िनमारर्धारण िकयार. कंप्युटिरि के आने के बारद समूचे िवश्व कार नक्शार ही बदल गयार. के बदलने के सारथ ही पुरिारनी टिे क्नोलारजी कार अन्त हो गयार औरि उनकी

जगह कंप्य ुटिरि

एवं अन्य यन्तों ने ले ली है . िकसी समय समच ु ी दिु नयार मे मोसर्धार की


सहारयतार से कारयर्धार संपारिदत होतार,अब इितहारस की वस्तु बन करि रिह गयार है . पुरिारनी पद्दित की जगह अब कंप्युटिरि ने ले ली है . आज कोई भी ऐसार कारम बारकी नही रिहार है ,ि हजसे कंप्युटिरि न करि िदखारतार हो. भाररित आज िवश्व कार दस ू रिे नम्बरि कार दे श है जहारँ मोबारइल धाररिकों की संख्यार वष र्धार जनवरिी २०१२ तक 903 करिोड थी. इब्न्टिनेटि धाररिकों की संख्यार १२१ करिोड,कुल टिे लीफ़ोन ९०० करिोड,तथार लैण्डलारइन टिे लीफ़ोन की संख्यार 33.19 करिोड थी, भाररित आज िवश्व कार दस ू रिे नम्बरि कार दे श है जहारँ मोबारइल धाररिकों की संख्यार वष र्धार जनवरिी २०१२ तक 903 करिोड इन्टिनेटि धाररिकों की संख्यार १२१ करिोड,कुल टिे लीफ़ोन ९०० करिोड,तथार लैण्डलारइन टिे लीफ़ोन की संख्यार 33.19 करिोड थी, भाररित आज िवश्व कार दस ू रिे नम्बरि कार दे श है जहारँ मोबारइल धाररिकों की संख्यार वष र्धार जनवरिी २०१२ तक 903 करिोड थी. इब्न्टिनेटि धाररिकों की संख्यार १२१ करिोड,कुल टिे लीफ़ोन ९०० करिोड,तथार लैण्डलारइन टिे लीफ़ोन की संख्यार 33.19 करिोड थी, यह आंकडॆ अक्टिूबरि २०११ तक के है ( िवस्ताररि मे जारने के वेव –सारइड परि आंकडे दे खे जार सकते है. मोबाइल सेट आम लोगों की जरुरत बन गई. आज सवर्र्ध-साधनारं व्यिक्ति की जेब में िदखलाई देने लगा. टेलीफ़ोन अब शो-परीस की वर्स्तु बनने लगे. समय के बदलने के साथ हिी परुरानी टेक्नोलाजी का अन्त हिो गया और उनकी जगहि कं प्युटर एवर्ं अन्य यन्त्रों ने ले ली हिै . िकसी समय समुची दुिनया में


मोसर्ध की सहिायता से कायर्ध संपरािदत हिोता,अब इितहिास की वर्स्तु बन कर रहि गया हिै.

आसमान को छूर् ते टावर्र.

आज कोई भी ऐसा काम बाकी नहिी रहिा हिै ,िजसे कं प्युटर न कर िदखाता हिो.

सन 2000 में डाक िवर्भाग से दूर्रसंचार िवर्भाग को अलग कर िकया गया और यहि एक स्वर्तंत्र िनगम के रुपर में काम करने लगा. सन 2002-03 तक करीब 36 करोड लोगो ने इसका उपरयोग िकया. बाद में मोबाइल फ़ोन अिस्तत्वर् में आए. उस समय तक करीब ४६ लाख मोबाइल के उपरभोक्तिा बन चुके थे . इनसे करीब 27,ooo करोड रुपरयों की शुद्ध राजस्वर् प्राप्त हुई थी. ये आकडॆ यहिीं आकर रुक नहिीं


जाते,इसमें िनरन्तर वर्ृिद्ध हिोती रहिी हिै . दूर्र संचार िवर्भाग के अलग हिो जाने के बावर्जूर्द भी डाक िवर्भाग अपरनी सेवर्ाएं” अहि​िनशं” की भावर्ना से अपरने दाियत्वर्ों का िनवर्र्धहिन बखूर्बी कर रहिा हिै. जनवर्री २०१२ के आंकडॊं के मुतािबक भारत िवर्श्व का दूर्सरा बडा देश हिै, जहिां मोबाइल फ़ोन धनारकों की संख्या 903 करोड थी, इन्टनेट कनेक्शन धनारकों की संख्या 121 करोड ( िदसमबर 11 तक) तथा लैण्डलाइन फ़ोन धनारको की संख्या 33.19 करोड हिै.( यहि संख्या सेलफ़ोन के आने के बाद से िनरन्तर घटी हिै.) इस संख्या में तेजी से इजाफ़ा हिो रहिा हिै. संभवर् हिै.अब इनकी संख्या भी बढि चुकी हिोगी. अिधनक जानकारी लेने के िलए इन्टरनेट का प्रयोग कर ली जा सकती हिै.

19 बारल-मनोिवज्ञारन को समझनार भी एक बडी तपस्यार है .-

बचपन मे लडनार-झगडनार-उधम मचारनार चलतार ही रिहतार है . मझ ु े अपने बचपन की हरि छोटिी-बडी घटिनारएं यारद है . बचपन की भल ू -भुलैयार आज भी चमत्कृत करिती है .यिद आज के बच्चे से उसके बचपन को लेकरि बत करिे तो वह उसे कैदखारनार ही बतलारएगार. आज के बच्चों को लगतार है के कब बचपनार खत्म हो औरि वे बडे बन जारएं. बच्चे ऐसार क्यों सोचते है? कभी आपने इस


िवष य की गंभीरितार से िवचाररि नहीं िकयार होगार. जारनते है, ऐसार क्यों होतार है ? हम बचपन परि अनुशारसन लारदते जार रिहे है. बारत-बारत मे कहते है, तुम्हे ये करिनार चारिहए..वह करिनार चारिहए.ये नहीं करिनार चारिहए. इस टिोकारटिॊकी मे बचपनार मरिु झार जारतार है . बच्चे आिखरि चारहते क्यार है,? यह कोई नहीं पूछतार. दरिअसल बच्चों के बारल-मन को समझनार एक िवज्ञारन है औरि दस ू रिी भारष ार मे कहार जारए तो यह िकसी तपस्यार से कम नहीं है . श्रीरिारम बचपन मे गम ु सम ु रिहते थे. गंभीरि तो वे थे ही. रिारजार दशरिथ को लगने लगार िक रिारम रिारजकुमाररि है औरि उनके भीतरि बारलपन मे ही वैरिारग्य भारव जारग आयार है , यह ठीक नहीं है . दशरिथ ने बारल रिारम को गुरु विशष्ठजी के पारस भेजार. उन्होंने

बारल

मनोिवज्ञारन को समझते हुए ज्ञारन िदयार. उसे योग – िविशष्ठ नारम से जारनार जारतार है . श्रीकृष्ण जी ने जब इंद्र की पूजार कार िवरिोध िकयार, तब सभी ने उसे बारलहठ समझार, लेिकन मारँ यशोदार ने उसकार मनोवैज्ञारिनक िवश्लेष ण िकयार औरि वे श्रीकृष ण के पक्ष मे जार खडी हुई. वे जारनती थीं िक बच्चों कार मनोबल कभी-कभी सत्य के अत्यिधक िनकटि पहुँच जारतार है . बचपन ईसार मसीह कार हो, यार मोहम्मद


कार, यार धव ु कार,इनके पारलक यह समझ गए थे िक जीवन हमेशार िवरिोधारभारस से ही उजारगरि होतार है . जैसे बच्चे को ब्लैकबोडर्धार परि सफ़ेद चारक से िलखकरि पढारयार जारतार है , ये पूरिे जीवन कार प्रतीक है . कारलार है तो सफ़ेद िदखेगार ही. ऐसे ही आत्मार प्रकटि होगी. शन् ु य से ही संगीत आएगार. अंधेरिे से ही प्रकारश कार आनार होतार है . ि हजतनी घनी अंधेरिी रिारत होगी, सुबह उतनी ही उजली होगी. इस तरिह बचपन से ही पूरिी ि हजन्दगी की तैयाररिी िनकल करि आएगी 20 समय के सदप ु योग की मह्त्तार समझे-समय की बबारर्धारदी कार अथर्धार है , अपने जीवन कॊ बरिबारद करिनार. जीवन के जो क्षण मनुष्य यों ही आलस्य अथवार उन्मारद मे खो दे तार है ,वे िफ़रि वारिपस लौटिकरि कभी नहीं आते. जीवन के प्यारले से क्षण ॊं की ि हजतनी बुंदे िगरि जारती है , प्यारलार उतनार ही खारली हो जारतार है . प्यारले की यह िरिक्ततार िफ़रि िकसी भी प्रकाररि से भरिी नहीं जार सकती. मनष्ु य जीवन के ि हजतने क्षण ॊं कॊ बरिबारद करि दे तार है , उतने क्षण ॊं मे वह ि हजतनार कारम करि सकतार थार, उसकी कभी सकतार.

वह िकसी भी प्रकाररि से भरिपारई नहीं करि


जीवन कार हरि क्षण एक उज्जवल भिवष्य की संभारवनार लेकरि आतार है

. हरि घडी एक महारन मॊड

कार समय हो सकती है . मनुष्य यह िनश्चय पूवक र्धार नहीं कह सकतार िक ि हजस समय, ि हजस क्षण औरि ि हजस पल को वह यों ही व्यथर्धार खो रिहार है ,वही समय उसके भारग्योदय कार समय हो सकतार है ! क्यार पतार ि हजस क्षण को हम व्यथर्धार समझकरि बरिबारद करि रिहे है, वही समय हमाररिे िलए अपनी झोली मे सुंदरि सौभारग्य की सफ़लतार लारयार हो. समय की चक ू पश्चारतारप की हूक बन जारती है . जीवन मे कुछ करिने की इच्छार रिखने वारलॊं को चारिहए िक वे अपने िकसी भी ऎसे कतर्धारव्य को भल ू करि भी कल परि न टिारले ..जॊ आज िकयार जारनार चारिहए, आज

ही करि

ले . आज के कारम के िलए आज कार ही िदन िनि हश्चत है औरि कल के कारम के िलए कल कार िदन िनधारर्धारिरित है . अतः समय के सदप ु योग की महत्तार को गंभीरितार से समझे.

21

मारनव जीवन मे संस्काररिों कार महत्व. -िहन्द ू संस्कृित बहुत ही िवलक्षण है .

इसके सभी िसध्दारतं पण र्धार ः वैज्ञारिनक है औरि सभी ू त िसध्दारतॊं कार एकमारत उद्देश्य है - मनुष्य कार कल्यारण करिनार. मारनव कार कल्यारण सग ु मतार एवं शीघतार से कैसे


हो, इसके िलए ि हजतनार गंभीरि िवचाररि औरि िचन्तन भाररितीय संस्कृित मे िकयार गयार है उतनार अन्य िकसी धमर्धार यार संप्रदारय मे नहीं, जन्म से मत्ृ यु पयर्धारन्त मारनव ि हजन-ि हजन वस्तुओं से संपकर्धार मे आतार है औरि जो-जो िक्रयारएँ करितार है , उन सबकॊ हमाररिे दे वतल् ु य मनीिष यों ने बडे ही पिरिश्रम औरि बडे ही वैज्ञारिनक ढं ग से सुिनयोि हजत, मयारर्धारिदत एवं सस ु ंस्कृत िकयार है , तारिक सभी मनुष्य परिम श्रेय की प्रारि हप्त करि सके. मारनव जीवन मे संस्करिों कार बडार महत्व है . संस्काररि संपन्न संतारन ही गह ृ स्थारश्रम की सफ़लतार औरि समि हृ ध्द कार रिहस्य है . प्रत्येक गह ृ स्थ अथारर्धारत मारतारिपतार कार परिम कतर्धारव्य बनतार है िक वे अपने बारलकों को नौितक बनारये औरि कुसंस्काररिों से बचारकरि बचपन से ही उनमे अच्छे आदशर्धार तथार संस्काररिों कार ही बीजाररिोपण करिे . घरि संस्काररिों की जन्मस्थिल है . अतः संस्कारिरित करिने कार कारयर्धार हमे अपने घरि से प्राररिम्भ करिनार होगार. संस्काररिों कार प्रवारह बडॊं से छॊटिॊं की ओरि होतार है . बच्चे उपदे श से नहीं ,अनुसरिण से सीखते है. बारलक की प्रथम गुरु मारतार अपने बारलक मे आदरि,स्नेह एवं अनुशारसन-जैसे गण ु ॊं कार िसंचन अनारयारस ही करि दे ती है पिरिवाररिरुपी पारठशारलार मे बच्चार अच्छे औरि बुरिे कार अन्तरि समझारने कार प्रयारस करितार है . जब इस पारठशारलार के अध्यारपक अथारर्धारत मारतार-िपतार, दारदार-दारदी संस्काररिी होंगे, तभी


बच्चों के िलए आदशर्धार उपि हस्थत करि सकते है . आजकल मारतार-िपतार दोनों ही व्यस्ततार के काररिण बच्चों मे धैयप र्धार ूरिक सस ु ंस्काररिों के िसंचन जैसार महत्वपूण र्धार कारयर्धार उपेिप्क्षत हो रिहार है . आज अथर्धार की प्रधारनतार बढ रिही है . कदारिचत मारतार-िपतार भौितक सुख-सारधन उपलब्ध करिारकरि बच्चों को सख ु ी औरि खश ु रिखने की पिरिकल्प्नार करिने लगे है. इस भ्रारंितमल ू क तथ्य को जारननार होगार. अच्छार संस्काररिरुपी धन ही बच्चों के पारस छोडने कार मारनस बनारनार होगार एवं इसके िलए मारतार- िपतार स्वय़ं को योग्य एवं सुसंस्कृत बनारवे . उनकी िववेकवती बुि हध्द को जारग्रत करि आध्यारत्म-पथ परि आरुढ होनार होगार. आनुवारंिशकतार औरि मारँ के अितिरिक्त संस्काररि कार तीसरिार स्तोत बारलक कार वह प्रारकृितक तथार सारमारि हजक पिरिवेश है , ि हजसमे वह जन्म लेतार है , पलतार है औरि बढतार है . प्रारकृितक पिरिवेश उसके आहाररि-व्यवहाररि, शरिीरि के रिं ग-रुप कार िनण ारर्धारयक होतार है , आदते बनारतार है . .सारमारि हजत पिरिवेश के अन्तगर्धारत पिरिवाररि ,मह ु ल्लार,गारंव औरि िवध्द्यारलय के सारथी, सहपारठी, िमत, पडौसी तथार अध्यारपकगण आते है. बारलक समारज मे जैसे आचरिण औरि स्वभारव की संगित मे आतार है , वैसे ही संस्काररि उसके मन परि बध्दमूल हो जारते है प्रत्येक समारज की संगित की एक जीवन-पध्दित होती है , ि हजसके पीछे उस समारज की परिम्परिार औरि इितहारस होते है. यह समारज रिीित-िरिवारज बनारतार है , सारंस्कृितक प्रिशक्षण दे तार है

, स्थारयीभारव जगारतार है , अन्तश्चेतनार तथार पारप-

पुण्य की अवधाररिण ार की रिचनार करितार है . उसी क्रम मे भाररितवष र्धार मे सोलह संस्काररिों की परिम्परिार है जो मनुष्य औरि मनुष्य के बीच, मनुष्य औरि प्रकृित के बीच सम्बन्धसत ू बन ु ते है . प्रत्येक धमर्धार-संस्कृित मे िववारह


आिद के िवधारन के पीछे धारिमर्धारक आस्थार जुडी हुई होती है . पिवत भारवों औरि आस्थार कार सत र्धार ों के प्रित कृतज्ञतार औरि पूज्यभारव से ू अपने पूवज प्रेिरित होतार है . यह सूत सारमारि हजक आचरिण कार िनयमन करितार है .

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परयार्सविरण चेतना

बच्चों;- हम धरिती को अपनी मारँ कहकरि तो संबोिधत करिते है,लेिकन उसके गभर्धार से पैदार होने वारले पेडॊं को अपनार भारई कहकरि नहीं बल ु ारते औरि न ही उनके कारटिे जारने परि अपनार िवरिोध ही दजर्धार करिते है. आज बडी संख्यार मे पेडॊं को कारटिार जार रिहार है ,ि हजससे पयारर्धारवरिण परि संकटि आ खडार हुआ है . आप यह भली-भारंित जारनते ही है के पेड कारबर्धारन्डारइआक्सारइड गैस ,जो एक तरिह से िवष ही है ,को पीकरि हमाररिे िलए आक्सीजन बनारते है. यह सब कुछ जारनते -बझ ू ते हुए भी आज भौितक िवकारस के नारम परि बडी संख्यार मे पेडॊं को कारटिार जार रिहार है . जंगल अब नारम मारत को बचे है. वनों परि आिश्रत रिहने वारले पशु अब गारवों औरि शहरिों की ओरि पलारयन करिने लगे है ,ि हजसे मारनव के िलए खतरिार बत्तार करि उन्हे बेरिहमी से माररिार जार रिहार है . अब तो भू-मारिफ़यार अवैद्द तरिीकॊं से धरिती परि उगे पहारडॊं को खोदकरि उसे मिटियारमेटि िकए दे रिहे है. एक समय ऐसार भी आ सकतार है जब आप अपने ड्रारइंगरुम मे


जंगलों से सजे िचतों को दे खकरि,अपने बच्चॊं को बतलारओगे िक जंगल इस तरिह के हुआ करिते थे आज पारनी को लेकरि एक नयार संकटि हमाररिे िसरि परि खडार होकरि नत्ृ य करि रिहार है . आज दे श की लगभग साररिी निदयारं प्रदिु ष त है. पीने योग्य पारनी नहीं बचार है . यिद हम समय रिहते

सचेत नहीं हुए तो

इसके भयंकरि पिरिण ारम भगतने के िलए हमे तैयाररि रिहनार होगार. वुक्ष नहीं होंगे तो पारनी नहीं होगार औरि पारनी नहीं होगार तो हमाररिार-आपकार जीिवत रिहनार असंभव होगार. यह बारत ध्यारन मे रिखार जारनार आवश्यक है . पारनी को लेकरि तीसरिे िवश्वयुद्ध तक होने की भिवष्य वारण ी की गई है ,ि हजसे आज के संदभर्धार से जोडकरि दे खार जारनार चारिहए. भाररितीय संस्कृित अनारिदकारल से हे ही प्रकृित की आरिारधक रिही है . ि हजसले मूलभूत घटिक है-प्रकृित,पुरुष औरि पशु-पक्षी,ये तीनों सि हृ ष्टि के ही मूतरु र्धार प है. हमाररिार परिम्परिारगत िवश्वारस रिहार है के जब तक इन तीनॊं मे परिस्परि सौहारदर्धार , सन्तल ं है ,तभी तक ु न एवं भारवनारत्मक सह-संबध सि हृ ष्टि है औरि उसकार िनरिन्तरि िवकारस संभव है . जब इन तीनों तत्वों के बीच परिस्परि सन्तुलन कार अभारव दि हॄ ष्टिगोचरि होने लगेगार तो प्रलय,मत्ृ यु,अकारल औरि िवनारश लीलार कार तारण्डव नत्ृ य होनार स्वारभारिवक है . पेडॊं की कमी होने परि वारयुमंदल मे गैसों कार सन्तल ु न िबगडेगार ि हजससे प्रदष ू ण मे विृ द्ध होगी.लेिकन भौितकवारदी संस्कृित मे वक्ष ृ लगारने औरि उनकी रिक्षार करिने की सच्ची भारवनार हम मे बची नहीं है .एक


तरिफ़ वक्ष ू रिी तरिफ़ वक्ष ु गित से ृ ॊं के रिक्षारथर्धार शब्द िबछ रिहे है तो दस ृ द्रत कारटिे जार रिहे है..शब्दों औरि कारयों मे बीच की खारई इतनी चौडी है िक दे खकरि िवस्मय होतार है . मनुष कार स्वारथर्धार िकस हद तक जार पहुँचार है यह आप लोगों को बतलारने की आवश्यकतार नहीं है ि हजसे आप प्रत्यक्ष दे ख-सन ु रिहे है. वक्ष ृ ॊं को बचारने के िलए असंख्य स्ती-पुरुष ॊं ने अपनी कुबारर्धारिनयार दी है . उनकी कुबारर्धारनी के िकस्से इितहारस के पन्नों परि आज भी दजर्धार है . िवश्नोई समारज ने पेडॊं को प्रारण ॊं की तरिह मारनकरि उसकी रिक्षार की औरि वनॊं को बचारने के िलए अपने प्रारण ॊं को होम करि िदयार.जोधपुरि रिारज्य कार ितलारसण ी गारँव आज भी गवारही दे ने को तैयाररि है िक वहारं प्रकृित की रिक्षार मे प्रारण ॊं की आहुित दी गई थी. श्रीमती खींवण ी खोखरि औरि नेतू िनण ार कार बिलदारन अकाररिण नहीं कहार जार सकतार. वे सदै व प्रेरिण ार पंज बनार रिहे गार. शतारि हब्दयारँ नमन करिती रिहे गी ऐसे बिलदारन की. माररिवारड के खेजडली गारंव कार इितहारस एक दीप्त पष्ृ ठ बन चक ु ार है . इस बिलदारनी अिभयारन मे सवोपिरि नारम आतार है ,अमत ृ ार दे वी कार. वे प्रतीक है मिहलारओं के अपूवर्धार बिलदारन की, पयारर्धारवरिण के प्रित प्रेम की औरि धरिती मारतार के प्रित अटिूटि अनरिु ारग औरि आस्थार की. 262 वष र्धार परिु ारनी घटिनार आज भी लोगो के लहू मे गमी कार संचाररि करिती है . पेडॊं की रिक्षार के िलए इतने व्यि हक्त शहीद हो जारएं,ऐसार दृष्टिारन्त खोजने परि भी नहीं िमलेगार.


पयारर्धारवरिण चेतनार भाररितीय संस्कृित कार अटिूटि िहस्सार रिहार है . हमने सदार से ही उसे मारतभ ृ ारव से दे खार है -बहुत ही प्याररि से अपने बच्चे को स्तनपारन करिारने वारली मारँ के रूप मे . जो मारँ अपने रिक्त से बच्चे िक रिचनार करिे औरि दध ू से पारलन-पोष ण करिे , वह रिक्त औरि दध ू दोनो की कीमत जारनती है ,लेिकन बच्चार यिद दध ु ारनार शरु ु ू कार बदलार जहरि से चक करि दे औरि मारँ को ही रिक्त-रिं ि हजत करिने परि उताररु हो जारए तो मारत ृिशशु भारव स्वतः ही ितरिोिहत हो जारतार है . जननी प्रारयः कुिपत नहीं हुआ करिती,लेिकन जब मयारर्धारदार टिूटि जारए तो उसके कोप को झेलनार किठन हो जारतार है . मयारर्धारदार की रिक्षार के िलए वह अपने बच्चों की बिल दे ने मे उसे कोई िझझक नहीं होती. आज व्यि हक्तगत लारभ कमारने के िलए पयारर्धारवरिण संबंधी िनयमो एवं कारनन ू ॊं को बलारय तारक मे रिखकरि प्रकृित के सारथ िखलवारड िकयार जार रिहार है ,उसे तत्कारल ही रिोकार जारनार चारिहए. केवल कारनून बनार दे ने से अपरिारिधक प्रविृ त रिोके नहीं रुक सकती. अतः सारमारि हजक चेतनार को जगारए जारने की आज महित आवश्यकतार है .

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ऎसे थे हिमारे बापरूर् (प्रसंगवर्श) बापरूर् का एक गुण यहि भी था िक वर्े छोटी-छोटी चीजों को समभालकर रखते थे. उनकी कोिशश हिोती थी िक कोई भी चीज बेकार न जाने पराए. यहिाँ तक िक उनके परास िजतनी भी िचिठ्ठयाँ आती थीं, उसके कागज के सादे भाग को काटकर वर्े अपरने परास रख िलया करते थे. बाद में वर्े इस कोरे भाग परर िलखा करते थे. एक बार एक अंग्रेज बापरूर् के परास एक िचठ्ठी लेकर आया. परत्र में शुरु से लेकर आिखर तक गािलयां हिी गािलयां हिी िलखी हुई थीं. बापरूर् ने यहि परत्र परढिकर एक ओर रख िदया. लेिकन उसमें लगे हुए िपरन को िनकालकर अपरनी िडिबया में रख िलया. यहि देखकर उस अंग्रज े ने बापरूर् से परूर्छा:- “क्या आपरने यहि परत्र परढि िलया?”

बापरूर् ने मुस्कु राते हुए कहिा:-“ हिाँ, मैंने परढि िलया. तुमहिारे परत्र में जो मतलब की चीज थी, वर्हि मैंने ले ली हिै. बाकी तो इसमे कु छ हिै हिी नहिीं”. यहि


कहिते हुए बापरूर् ने वर्हि परत्र अंग्रेज को लौटा िदया.

ऎसे व्यिक्ति थे

बापरूर्. सादा जीवर्न उच्च िवर्चार उनका ध्येय था. वर्े एक-एक परैसे का उपरयोग बहुत सोच-समझकार करते थे. वर्े इतनी सादगी से रहिते थे िक िवर्देिशयों को उन्हिें देखकर यहि िवर्श्वास हिी नहिीं हिोता था िक यहि वर्हिी गांधनी हिोगा, िजसके नाम परर सारा देश परागल हिै -------------------------------------------------------------------------इसी तरहि कीएक छोटी-सी, िकन्तु बडी बात सन 1940 की हिै. बापरूर् को वर्धनार्ध से बमबई( अब मुंबई) जाना था. स्टेशन परर परता लगा िक रे लगाडी डॆढि घंटॆ लेट हिै. इसिलए वर्े उतने समय के िलए जमनालाल बजाज के बंगले परर आ गए. वर्धनार्ध शहिर में जमनालाल बजाज का बंगला था. यहिां वर्े लोगों से बात करते रहिे. बाद में वर्े िचठ्ठी िलखने बैठे. उसके िलए उन्हिोंने जमनालाल जी से परोस्ट काडर्ध मांगे. जमनालाल ने उन्हिें परांच परोस्टकाडर्ध िदए. बापरूर् ने उसमें से तीन परोस्टकाडर्ध िलखे, और बाकी के दोनों वर्ािपरस कर िदए. समय परर बापरूर् स्टेशन परहुँचे, और रे लगाडी में अपरनी जगहि परर बैठते हिी उन्हिोंने आभा गांधनी से अपरनी छोटी थैली मांगी. उस थैली में से उन्हिोंने तीन परोस्ट्काडर्ध िनकालते हुए कहिा:-

“ जमनालाल ! अपरने

िदए हुए परोस्टकाडर्ध वर्ािपरस लो”. यहि देखकर जमनाला जी ने हिंसते –हिंसते कहिा:-“ आपरकी तो बात हिी अजीब हिै बापरूर् ! वर्ैसे तो आपर हिमसे लाखों रुपरए मांग लेते हिैं. और आज तीन परोस्ट्काडर्ध वर्ािपरस दे रहिे हिैं”.

“ िहिसाब तो

िहिसाब हिै, जमनालाल ! मैं तुमसे जो लाखों रुपरए लेता हूँ, वर्हि दान के रुपर में लेता


हूँ, और वर्हि आपर अपरनी मजी से देते हिैं. लेिकन मैंने जो ये तीन परोस्टकाडर्ध िलए हिैं, वर्हि जरुरत परडने परर िलए थे. और वर्ािपरस देने की भावर्ना से िलए थे. ये तो आपरको लेने हिी परडॆंगे. िहिसाब साफ़ हिोना चािहिए”.

बापरूर् के बहुत आग्रहि करने के

कारण आिखर जमनालालजी को वर्े परोस्टकाडर्ध संकोच में लेने परडॆ.

बापरूर्

का मानना था िक छोटी-छोटी बातों से आदमी का चिरत्र बनता हिै. आदमी को कभी भी उन छोटी बातों की उपरेक्षा नहिीं करनी चािहिए. -------------------------------------------------------------------------------------------भोर का समय था,. बापरूर् हिाथ-मुहि ँ धनो रहिे थे. उसने परास परं. जवर्ाहिरलाल नेहिरु खडॆ थे. दोनों में जमकर बातें हिो रहिी थीं. बापरूर् के हिाथ-मुँहि धनोने के िलए हिमेशा की तरहि हिी एक लोटा परानी रखा हुआ था. उस िदन बापरूर् परं. नेहिरु के साथ बात करने में कु छ इतने खो गए िक बात करते -करते लोटॆ का परानी खत्म हिो गया. लेिकन बापरूर् के हिाथ-मुँहि धनोने का काम परूर्रा नहिीं हुआ. इसके कारण गांधनी जी को लोटॆ में दुबारा परानी लेना परडा. बापरूर् ने अपरने हिाथमुँहि धनोने का काम परूर्रा िकया, और बातें भी करते रहिे. लेिकन वर्े बातें करते-करते अचानक गमभीर हिो गए. और थोडी हिी देर में चुपर हिो गए, अब दोनों के बीच बात का तार टूर् ट गया था. जवर्ाहिरलाल जी को समझ में नहिीं आया िक आिखर अचानक ऎसी क्या बात हुई िक बापरूर् इतने गमभीर हिो उठे . परं. जवर्ाहिरलाल को लगा िक बातचीत के दौरान उनसे कोई बडी गलती हिो गई हिै. इसिलए उन्हिोंने बापरूर् से परूर्छा:- “ बापरूर् ! अचानक आिखर क्या हुआ िक आपर एकदम चुपर हिो गए ?”.


अपरनी गदर्धन उठाते हुए बापरूर् ने जबाब िदया:- “ मैं तुमसे बातें कर रहिा था. बातों-बातों में मुझे ध्यान हिी नहिीं रहिा. इसिलए असावर्धनानीवर्श मुहि ँ -हिाथ धनोने में ज्यादा परानी खचर्ध हिो गया. तुमने देखा हिै िक मुझे यहि काम परूर्रा करने के िलए दुबारा परानी लेना परडा”. ऎसे थे हिमारे परूर्ज्य बापरूर्. ----------------------------------------------------------------------------------------------

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भाररित के प्रिसद्ध स्थल

अजन्तार-एलोरिार की गुफ़ारएँ व कैलारश मि हन्दरि औरिं गारबारद (महाररिारस्ट्र)

अमरिनारथ की गुफ़ारएँ कश्मीरि

बीबी कार मकबरिार औरिं गारबारद

ब्लैक पेगोडार/सूयर्धार मि हन्दरि कोण ारकर्धार (उिडसार)

वंद ृ ारवन गारडर्धारन मैसरिू (कनारर्धारटिक)

बल ु न्द दरिवारजार फ़तेहपुरि िसकरिी

चाररि मीनाररि है दरिारबारद

िदलवारडार मि हन्दरि मारउन्टि आबू


एकीफ़ै टिार की गुफ़ारएँ(ितमूितर्धार)/हैिगग गारडर्धारन/मलारबाररि िहल्स/

िप्रंस आफ़ बेल्स

म्यूि हजयम/टिवरि आफ़ सारयलेन्स/गेटिवे आफ़ इि हन्डयार मम् ु बई

गोल्डन टिे ि हम्पल(स्वण र्धार

मि हन्दरि)

अमत ृ सरि गोल गम् ु बज बीजारपुरि

हवारमहल/ आमएरि कार

िकलार

जयपुरि जलमहल उदयपुरि

तारजमहल/लारल िकलार/

िसकन्दरिार

आगरिार

जगन्नारथ मि हन्दरि परिु ी(उडीसार)

जय स्तम्भ,कीितर्धार स्तम्भ िचतौडगढ

खजुरिारहो छतरिपुरि(म.प्र.)

िलंगरिारज मि हन्दरि भुवनेश्वरि

महारकारल कार मि हन्दरि उज्जैन(म.प्र.)

मीनारक्षी मि हन्दरि मदरिु ारई

पद्मनारभ मि हन्दरि


ितवेन्द्रम(ितरुअनन्तपुरि)

सारँची कार

स्तूप

सारँची(म.प्र.) ितरुपित मि हन्दरि आन्ध प्रदे श

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भारतीय रे ल्वर्े संबधन ं ी महित्वर्परूर्णर्ध तथ्य १/-

भारत में प्रथम रे ल

16 अप्रैल 1853 को बुमबई एवर्ं थाणे के मध्य चलाई गई,िजसने करीब 34 िकली की दुरी तय की थी. २/-

भारत में िद्वतीय रे ल 1854 में हिावर्डा

से हुगली के मध्य चलाई गई

३/-

भारतीय रेल

का एिशया में प्रथम एवर्ं िवर्श्व में दूर्सरा स्थान हिै. ४/-

भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण 1950 में हुआ .

५/-

भारतीय रे ल्वर्े बोडर्ध की स्थापरना माचर्ध 1905 में की गई थी.

६/-

1 नवर्मबर 1950 को िचतरं जन लोकोमोिटवर् वर्क्सर्ध का िचतरं जन

में डा.राजेन्द्रप्रसाद द्वारा -

िवर्िधनवर्त उद्घाटन िकया गया.


७/-

14 अगस्त, 1956 को परेरामबूर्र में इन्टीग्रल कोच फ़ै क्टरी की

स्थापरना की गई ८/-

2 अक्टूर् बर 1953 को रे ल्वर्े की शताबदी प्रदशर्धनी का उद्घाटन नई

िदल्ली और कलकत्ता में ९/-

हुआ

इस संस्थान के अंतगर्धत लगभग 58 भापर इं िजन, 4.596 डीजल

इं िजन, 2785 िवर्ददुत

इं िजन, 35,650 यात्री िडबबे, तथा

253,186 माल वर्ैगन कायर्ध में लगे हुए थे. १०.

प्रथम भूर्िमगत रेल मेट्रो 24 अक्टूर् बर 1984 को कलकता मे

एसप्लेनेड से टॊलीगंज

8. िकमी और दमदम से 2 िकलो

बेलगािचवर्ा स्टेशन के मध्य गई. ११.

प्रथम िबजली से चलने वर्ाली गाडी “ डेकन क्वीन” थी, जो मुमबई

एवर्ं परुणॆ के मध्य

चली.

१२.

प्रथम कमप्यूर्तर िरजवर्ेशन परद्धती नई िदल्ली में लागूर् की गई.

१३

भारत की सबसे तेज चलने वर्ाली गाडी “शताबदी एक्सप्रेस” हिै,

जो नई िदल्ली से भोपराल

के मध्य चलती हिै ,िजसकी

अिधनकतम गित 140 िकमी/घण्टा हिै. इसके अितिरक्ति 12 अन्य शताबदी एक्सप्रेस गािडयां भी चल रहिी हिैं. १४/-

मीटर गेज परर चलने वर्ाली


भारत की प्रथम सुपरर गाडी िपरक िसटी एक्सप्रेस हिै, जो िदल्ली

तथा

जयपरुर के बीच चलती हिै. १६/-

भारत के यात्री िडबबे तथा मालवर्ाहिक िडबबों का िनमार्धण

इन्टीग्रल कोच फ़ै क्टरी,

परेरामबूर्र(मद्रास) एवर्ं रे ल कोच

फ़ै क्टरी, कपरूर्रथला में हिोता हिै. १७/-

इन्टीग्रल कोच फ़ै क्टरी िस्वर्ट्जरलैण्ड के माडल परर आधनािरत हिै.

१८/-

भारत में िवर्ददुत इं जन का िनमार्धण िचत्तरं जन लोकोमोिटवर् वर्क्सर्ध

वर्ाराणसी में हिोता हिै. १९/-

भापर के इं िजन का िनमार्धण िचतरं जन में हिोता था. 1971 में भापर

इं िजन का िनमार्धण बन्द २०/-

कर िदया गया.

भारतीय रे ल्वर्े का व्हिील और एक्सल बनाने का कारखाना

बंगलौर में हिै. २१/-

सबसे लमबी सुरंग मध्य रे ल के अन्तगर्धत “मंकीिहिल” वर्

“खण्डाला” के मध्य हिै, यहि सुरंग २२/-

भारत का सबसे लमबा प्लेटफ़ामर्ध खडगपरुर (पर.बंगाल) में हिै, यहि

लगभग 2733 फ़ु ट २३/-

करीब 2100 मीटर लमबी हिै.

लमबा हिै.

सबसे बडा याडर्ध मुगलसराय (उ.प्र.) में हिै.


२४/-

भारतीय रे ल्वर्े के तीन गेज हिैं (अ) बडी लाइन=1.675 मीट ( ब)

मीटर गेज(1 मीटर) (स) २५/-

छॊटी लाइन (0.762 मीटर)

भारतीय रेल लगभग 62,809 िकमी मागर्ध परर चलती हिै तथा

लगभग 6,896 स्टेशनों से

26

हिोकर गुजरती हिै.

क्या आपर जानते हिै ? (कृ िष संबंधनी) १/-

भारत की मुख्य खाद्द फ़सल चावर्ल हिै. २/-

भारत में सोयाबीन का

सवर्ार्धिधनक उत्परादन मध्यप्रदेश में हिोता हिै.

३/-

गन्ने के उत्परादन में भारत का िवर्श्व में प्रथम स्थान हिै. ४/-

भारत में गेँहूँ का सवर्ार्धिधनक उत्परादन

उत्तरप्रदेश में हिोता हिै.

५/-

भारत में

चावर्ल का सवर्ार्धिधनक उत्परादन करने वर्ाला राज्य परं.बंगाल हिै. ६/-

मोटे अनाजों का सवर्ार्धिधनक उत्परादन महिाराष्ट्र में हिोता हिै. ७/-

दालों का सवर्ार्धिधनक उत्परादन मध्यप्रदेश

में हिोता हिै.

८/-

चाय के

उत्परादन में भारत का िवर्श्व में प्रथम स्थान हिै. ९/-

भारत में रबड की प्रित हिेक्टेयर उत्परादकता 1.265


िकग्रा. हिै.जो िवर्श्व में सवर्ार्धिधनक हिै

१०/-

भारत में रबड का 75% रबड

का उत्परादन (सवर्ार्धिधनक) के रल में हिोता हिै.

११/-

भारत िवर्श्व का सबसे बडा दूर्धन उत्परादक राष्ट्र हिै. १२/-

कपरास उत्परादन के मामले में भारत

िवर्श्व के चौथे स्थान परर हिै और परैदावर्ार क्षेत्र की दृिष्ट

से भारत

िवर्श्व में प्रथम स्थान परर हिै. १३/-

देश में कपरास का उत्परादन महिाराष्ट्र में सबसे अिधनक हिोता हिै. १४/-

उत्परादन वर् सवर्ार्धिधनक खपरत भारत में हिोती हिै.

िवर्श्व में चीनी का सवर्ार्धिधनक १५/-

तमबाकूर् उत्परादन में भारत िवर्श्व का तीसरा सबसे बडा राष्ट्र हिै

27 भाररित मे सबसे बडार—सबसे छॊटिार—सबसे ऊँचार तथार सबसे लम्बार सबसे ऊँचार पवर्धारत

के-2 (8611 मीटिरि)

सबसे लम्बी नदी

गंगार नदी (2510 िकमी)


सबसे ऊँचार झरिनार

जोग यार गरिसोप्पार (290

मीटिरि) सबसे बडी झील सबसे बडार रिारज्य

बल ू रि झील(कश्मीरि) (क्षेतफ़ल के अनुसाररि) रिारजस्थारन

(3,42,239 वगर्धार िकमी) सबसे बडार रिारज्य(जनसंख्यार के अनुसाररि) उत्तरिप्रदे श सबसे अिधक आबारदीवारलार नगरि

*मुंबई 12,655,220

(2014 के अनुसाररि)*

सबसे घनी आबारदी वारलार रिारज्य

*प.बंगारल (904

व्यि हक्त प्रितवगर्धार िकमी=2001 के अनस ु ाररि) सबसे लम्बार पुल

महारत्मार गारंधी सेतु (गंगार-

पटिनार-5,575 िकमी) सबसे ऊँचार दरिवारजार

बुलन्द दरिवारजार,फ़तेहपुरि

सीकरिी(आगरिार)54 M सबसे लम्बी सुरिंग कश्मीरि 1.1/2 िकमी)

जवारहरि सुरिंग( जम्मु-


सबसे बडार अजारयबघरि

कोलकारतार

सबसे बडार िचिडयारघरि

जूलोजीकल गारडारर्धारन्स,

कोलकारतार सबसे लम्बी सडक सबसे बडार डेल्टिार

ग्रारंड ट्रं क रिोड(2400 िकमी) सुन्दरि वन (12,872

वगर्धार िकमी) सबसे ऊँची मीनाररि

गोल गम् ु बज बीजारपुरि

सबसे बडी मि हस्जद

जारमार मारि हस्जद, िदल्ली

सबसे बडार रिे ल्वे पल ु

सोन नदी कार पुल (िबहाररि)

सबसे ऊँचार बारँध

भारखडार बारँध

(सतलज नदी परि) सबसे लम्बी ट्र्रेन(िवद्धुत)

रिारजधारनी

एक्सप्रेस(िदल्ली से कोलकारतार) सबसे बडार लीवरि पल ु सबसे बडी कृितम झील

हवडार िब्रज, (कोलकारतार) गोिवन्द सारगरि,

भारखरिार सबसे अिधक वष ारर्धार कार स्थारन

मारिसनरिारम( मेघारलय)


सबसे अिधक वनों कार रिारज्य

िमजोरिम( 75.5%

वनारच्छारिदत) सबसे बडार रिे िगस्थारन सबसे ऊँची मूितर्धार

थाररि (रिारजस्थारन) ऋष भ दे व

(खरिगोन.म.प्र.)84 मीटिरि सबसे बडार गुफ़ार मि हन्दरि

कैलारश मि हन्दरि,

एलोरिार सबसे बड काररिीडोरि

रिारमेश्वरि मि हन्दरि (12.1

सबसे बडार पशुओं कार मेलार

सोनपुरि मेलार (िबहाररि)

मीटिरि)

28 बीरिबल की चतुरिारई एक बाररि बारदशारह अकबरि यद्ध ु के िलए गए. यद्ध ु तो जीत िलयार लेिकन अंगठ ू े मे चोटि लगने से नारखून उखड गयार. अकबरि ने नारमी-िगरिारमी वैद्धों को बुलारयार,िकन्तु नारखून िफ़रि से लारने मे असफ़ल रिहे . बारदशारह कार गुस्सार सारतवे आसमारन परि पहुंच गयार. उन्होंने सभी वैद्धों से कहार िक दस िदनों


मे नारखून आ जारनार चारिहए, अन्यथार काररिारवारस की कठोरि सजार सहनी पडॆगी. जब वैद्धों को सजार से मि हु क्त कार कोई उपारय नहीं सझ ू ार तो उन्होंने बीरिबल को अपनी समस्यार बतारई. बीरिबल ने सभी को आश्वस्त िकयार औरि अगले िदन अकबरि से कहार “ हुजूरि ! इन वैद्धों कार कहनार है हम बारदशारह सलारमत कार नारखून लार तो सकते है ,िकन्तु इसके िलए जो औष िधयारं जरुरिी है , वे हमे उपलब्ध करिवार दी जारए. इन लोगों ने मझ ु े एक नख् ु शार िलखवारयार है . अब आप यार तो उस नस् ु खे के अनस ु ाररि औष िधयों की व्यवस्थार करिवारएं यार इन्हे छोड दे . बारदशारह ने बीरिबल की बारत मारन ली औरि नख् ु शार पछ ू ार. बीरिबल ने नुख्शार बतारयार- “गूलरि के फ़ूल औरि मछली के पेशारब से नारखून आ सकतार है .” बारदशारह परिे शारनी मे पड गए,क्योंिक गल ू रि परि तो फ़ूल होतार ही नहीं औरि मछली कार पेशारब लारनार सवर्धारथार असंभव है . आिखरि वारयदे के मत ु ारिबक उन्हे सभी वैद्धों को मक् ु त करिनार पडार. बीरिबल के प्रित सभी वैद्धों ने आभाररि व्यक्त िकयार. वस्तत ु ः अचारनक आए संकटि से िनपटिने के िलए तत्कारल िक्रयारशील होनार जरुरिी है . इसे प्रत्युत्पन्नमित कहते है,ि हजसे थोडॆ ज्ञारन, कुछ अनुभव औरि तिनक चतुरिारई से अि हजर्धारत िकयार जार सकतार है . 29

बुि हध्द कहारँ रिहती है ?


रिारजार भोज अपनी न्यारयिप्रयतार के िलए जारने जारते थे. एक िदन, एक बारलक रिारजमहल जार पहुँचार. वह रिारजार से प्रत्यक्ष िमलनार चारहतार थार. द्वाररिपारल ने उस लडके को द्वाररि परि रुकने को कहार औरि अंदरि जार करि उस बारलक के आने की खबरि अपने रिारजार को बतलारई .रिारजारजी ने उसे आदरि सिहत रिारजदरिबाररि मे लारने की आज्ञार दी. एक दस-बाररिह सारल कार बारलक अपने रिारजार के सारमने खडार थार. रिारजार ने मुस्कुरिारते हुए उस बारलक से पूछार :-बेटिार, रिारज दरिबाररि मे तम् ु हाररिार स्वारगत है . बोलो िकस प्रयोजन से तम ु हमसे िमलनार चारहते हो. तुम जो भी मारंगोगे, तुम्हे जरुरि िमलेगी. बारलक ने िनडरितार से कहार:महाररिारज, मै आपसे कुछ भी मारंगने नहीं आयार हूँ. मै तो केवल ि हजज्ञारशारवश आपसे एक प्रश्न कार उत्तरि जारनने आयार हूँ. मैने सन ु ार है िक आपके रिारजदरिबाररि मे बडे-बडे िवद्वारन आश्रय पारते है, तो मैने सोचार िक उसकार उत्तरि मुझे यहारँ िमल जारएगार. बस, मै इसी अिभलारष ार से यहारँ चलार आयार थार. रिारजार ने उसे प्रोत्सारिहत करिते हुए कहार:-“ हारँ.. हारँ क्यों नहीं. तम ु प्रश्न पूछॊ, तुम्हे उसकार उत्तरि अवश्य िमलेगार.” बारलक ने हारथ जोडकरि कहार:- महाररिारज, कृपयार


यह बतलारने कार कष्टि करिे िक बुि हध्द कहारँ रिहती है ?.क्यार वह िदल मे रिहती है ? िदमारग मे रिहती है ? यार िफ़रि पूरिे शरिीरि मे रिहती है ?” प्रश्न िबलकुल सीधार-सारदार थार, लेिकन उसे सुनते ही रिारजार के मारथे परि बल पड गए, औरि सभार मे िवद्यमारन सभी िवद्वारन गहरिे सोच मे पड गये. िकसी को भी इस प्रश्न कार उत्तरि खोजे नहीं िमल रिहार थार. रिारजार ने एक सरिसरिी िनगारह से पूरिे दरिबाररि को दे खार .साररिे सभारसद अपनी गदर्धार न लटिकारए बैठे थे. इससे स्पष्टि थार िक िकसी को भी इस प्रश्न कार उत्तरि मारलम ू नही है . .

रिारजार ने अपने दरिबारन को बुलारकरि कहार- “ इस

बारलक को िफ़लहारल अितिथ-गहृ मे आदरि के सारथ ठहरिारयार जारए. कल सब ु ह इसकार उत्तरि दे िदयार जारएगार”. बारलक को अितिथ-गह ृ मे िभजवारने के बारद उन्होंने सभी िवद्वारन दरिबारिरियों से कल सुबह तक उस प्रश्न कार उत्तरि खोज िनकारलकरि लारने की आज्ञार दी. महारमंती ने रिारत मे चप ु के से अिथिथ-गहृ मे जारकरि उस बारलक से उसकार उत्तरि जारननार चारहार. बारलक ने कहार-“ इस प्रश्न कार उत्तरि जारनने के िलए आप मझ ु े एक हजाररि स्वण र्धार मुद्रारएं दे तो मै इस प्रश्न कार उत्तरि


बतलार सकतार हूँ. महारमंती ने एक हजाररि स्वण र्धार मुद्रारएं दे करि प्रश्न कार उत्तरि जारन िलयार. दस ू रिे िदन रिारजदरिबाररि मे उस बारलक को बुलवारयार गयार औरि महारमंती से कहार गयार िक वे उस प्रश्न कार उत्तरि दे . महारमंती ने जवारब दे ते हुए कहार-“ महाररिारज, बुि हध्द न तो िदल मे रिहती है औरि न िदमारग मे औरि न ही पूरिे शरिीरि मे . वह तो श्रेष्टि पुरुष ॊं मे रिहती है . बारलक ने प्रसन्नतार पूवक र्धार उसे स्वीकाररि करि िलयार औरि उसने तत्कारल ही दस ू रिार प्रश्न दारग िदयार.” महाररिारज, महारमंती ठीक कहते है लेिकन मै यह जारननार चारहतार हूँ िक वह खारती क्यार है ?. मारमुली से लगने वारले इस प्रश्न को सन ु करि, सभी के चेहरिे दे खने लारयक थे .महाररिारज से यह बारत िछपी न रिह सकी थी. उन्होंने एक िदन कार समय मारंगार औरि उस बारलक से अितिथ-गहृ मे रुकने को कहार.

रिारत मे

महारमंती अितिथगहृ मे जार पहुँचे औरि उसकार उत्तरि जारननार चारहार. बारलक ने कहार-“ यिद आप इस प्रश्न कार उत्तरि जारननार चारहते है तो इसके बदले मझ ु े दो हजाररि


स्वण र्धार मुद्रारएं दे नार होगार”. स्वण र्धार मुद्रारएं दे करि उन्होंने इस प्रश्न कार उत्तरि जारन िलयार औरि लौटि आए. दस ू रिे िदन िफ़रि उन्होंने महारमंती को इसकार जवारब दे ने को कहार. महारमंती ने उसकार जबारब िदयार िक “ महाररिारज -बुि हध्द गम खारती है . प्रश्न कार सटिीक उत्तरि पारकरि महाररिारज बहुत प्रसन्न हुए .वे अपने महारमंती को धन्यवारद दे नार ही चारहते थे िक बारलक ने तीसरिार प्रश्न पूछ डारलार.- ”महाररिारज महारमंतीजी कार उत्तरि ठीक है लेिकन कृपयार वे ये बतलारएं िक वह करिती क्यार है ?” इस िविचत प्रश्न को सुनकरि सभारगहृ मे िफ़रि सन्नारटिार सार छार गयार. बारत की नजारकत को दे खते हुए महाररिारज ने सभी सभारसदॊं से इस प्रश्न कार उत्तरि खोज लारने की आज्ञार दी औरि दरिबाररि समारप्त करिने की घोष ण ार की. िदन ढलते ही प्रधारनमंती िफ़रि अितिथगहृ मे जार पहुँचे औरि उस बारलक से प्रश्न कार उत्तरि जारननार चारहार. बारलक ने कहार ;-“ मंतीजी यिद आप इस उत्तरि के िलए मुझे सहस्त मुद्रारएं भी दे गे तो मै इसकार उत्तरि कदारिप नही बतलारउं गार. मै इसकार उत्तरि कल दरिबाररि मे ही दं ग ू ार.” महारमंती ने कारफ़ी िमन्नते की ,लेिकन वह बारलक अपनी ि हजद परि अडार रिहार. आिखरिकाररि महारमंती


िखन्न होकरि लौटि आए.

दस ू रिे िदन महाररिारज

ने उस लडके को रिारजदरिबाररि मे लारए जारने की आज्ञार दी. लडके को रिारजदरिबाररि मे लारयार गयार औरि रिारजार ने सभी सभारसदॊं को जबारब दे ने को कहार, लेिकन उस प्रश्न कार उत्तरि िकसी ने भी नहीं िदयार. सभी अपनी गदर्धार न नीचे िकए बैठे रिहे . महाररिारज समझ गए िक यह बारलक सारधाररिण बुि हध्द कार बारलक नहीं है . वे उस ् प्रश्न कार उत्तरि जारनते थे, लेिकन अनजारन बने रिहनार ही श्रेयस्करि लगार थार उन्हे .वे जारनते थे िक बारलक इस प्रश्न के सारथ कोई गहरिार रिारज मन मे छुपारए हुए है जो वह प्रश्न के मारध्यम से दे नार चारहतार है आिखरिकाररि महाररिारज ने स्वय़ं पहल करिते हुए उस बारलक से उत्तरि बतलारने की गुजारिरिश की. बारलक ने कहार िक वह एक शतर्धार परि इस प्रश्न कार उत्तरि दे सकतार है . जब उसकी शतर्धार मारन ली गई तो उसने अत्यन्त ही िवनम्रतार से कहार:- “महाररिारज, इसकार उत्तरि तो िसफ़र्धार िसंहारसन परि बैठ करि ही िदयार जार सकतार है . कृपयार मुझे रिारजिसंहारसन परि बैठने की अनुमित प्रदारन करिे औरि वे सभी अिधकाररि िदए जारएं,जो रिारजार के पारस होते है.”


िसंहारसन परि बैठने के पश्चारत भी उस बारलक ने कोई जवारब नहीं िदयार औरि ठहारकार माररि करि हं सतार रिहार.. बारलक ने हं सते हुए इसकार अथर्धार बतलार िदयार थार, लेिकन अब भी कोई समझ नहीं पार रिहार थार. अधीरि होकरि महारमंती ने उस प्रश्न कार जबारब जारननार चारहार तो उसने कहार:- मतीं जी, अभी तक आप उस प्रश्न कार उत्तरि नहीं जारन पारये.? चिलए मै ही इसकार उत्तरि िदए दे तार हूँ. उसने सेनारपित को आज्ञार दी िक महाररिारज औरि महारमंती को बंदी बनार िलयार जारए औरि इन्हे जेल मे डारल िदयार जारए. आज्ञार पारकरि सेनारपित ने दोनों को बंदी बनार िलयार. जैसे ही दोनो के काररिारवारस मे ले जारने के सेनारपित बढार ही थार िक उसने पहल करिते हुए रिोक करि कहार िक दोनो को बंधनमुक्त करि िदयार जारए. तत्कारल ही सेनारपित ने उनके हारथ मे पडी बेिडयों को खोल िदयार. उसने महाररिारज औरि महारमंती से पूछार :- क्यार अभी भी, उस प्रश्न कार बतलारयार जारनार जरुरिी है ? महारमंती को अब भी कुछ भी समझ नहीं आ रिहार थार, लेिकन महाररिारज समझ गए औरि उन्होने आगे बढकरि उस बारलक को गले से लगार िलयार औरि शारबारशी दे ते हुए उस बारलक से उसकार औरि उसके िपतार कार नारम


जारननार चारहार औरि यह भी पूछार के वह कहारँ कार रिहने वारलार है ?. बारलक ने मस् ु कुरिारते हुए जबारब िदयार:- महाररिारज, पहले तो आप अपने िसंहारसन परि िवरिारजे. इसकार उत्तरि मै आपको तभी दँ ग ू ार. महाररिारज के िसंहारसन परि बैठ चुकने के बारद उसने कहार:- महाररिारज, मै आपके ही रिारज्य मे रिहतार हूँ . रिहार नारम कार, तो नारम मे क्यार रिखार है ? क्यार अच्छार सार नारम रिख लेने मारत से कोई व्यि हक्त िवद्वारन हो जारतार है ?.यिद ऎसार हुआ होतार तो इस दे श मे कोई भी मुखर्धार नहीं रिह पारतार. बुिद्ध ही सवोपरिी है , जो आदमी को अच्छार औरि बुरिार इंसारन बनारती है . बुि हध्द ही उसे िवष ेश दजारर्धार िदलारती है . शि हक्त संपन्न बनारती है . शि हक्त संपन्न बनने के बारद वह दब ु ि हुर्धार ध्द कार प्रयोग करि सकतार है औरि सदबि हु ध्द कार भी. रिारजार बनते ही मै क्यार करि सकतार थार, इस बारत को तो आपने प्रत्यक्ष दे ख ही िलयार है . गद्दी परि बैठते ही मैने आपको औरि महारमंती को बंदी बनार िलयार .ि हजस समय मैने, आप दोनो को बंदी बनारने कार हुक्म िदयार वह समय दब ु ि हुर्धार ध्द कार समय थार औरि जैसे ही मैने आप दोनो को बंधनमुक्त करि िदयार, वह सदबुि हध्द कार समय थार.. मै तीन िदन से आपके आश्रय मे रिह रिहार हूँ. मेरिी फ़टिी


कमीज औरि पतलून दे ख करि भी आप समझ नहीं पारए िक मै िकस तरिह अपने पिरिवाररि के सारथ गज ु रि-बसरि करि रिहार हूँ. मै आपको यही बतलारने के िलए

इस दरिबाररि मे

आयार थार. आप जैसे शि हक्तशारली औरि प्रतारपी महाररिारज के रिहते हुए हम गरिीब िकस तरिह अपनार जीवन बसरि करि रिहे है? शारयद अब बतलारने की जरुरित नहीं रिह गई है . रिारजार उस गरिीब बारलक की व्यथार-कथार समझ गयार थार औरि यह भी समझ गयार थार िक अरिबों-खरिबों की िवत्तीय सहारयतार िदए जारने के बारद भी गरिीबॊं की हारलत जस की तस क्यों है . गरिीब औरि गरिीब क्यों होतार जार रिहार है औरि अमीरि, औरि ज्यारदार अमीरि. उन्होंने मन ही मन फ़ैसलार करि िलयार थार िक वे शीघ ही रिारज्य मे जनलोकपारल िबल लारएंगे.औरि जनलोकपारल के दारयरिे मे खुद को, मंितयों को, सभी सारंसदों को तथार रिारज्य के सभी छोटिे -बडे अिधकारिरियों औरि कमर्धारचारिरियों को रिखेगे औरि उनकी जबारबदे ही भी तय करिे गे.

30 बच्चों,

हिमारा शरीर


हमारा शरीर, ठीक एक भग ू ोल की तरह होता है . आवइये उसके बारे मे कुछ जानकिरयां लेते चले 1/-मनुष्य कार सारमारन्य तारपमारन 370 सी.सेटिीग्रेड होतार है . 2/-वह एक िमनटि मे 16 बाररि सारंस लेतार है . 3/-उसके जन्म के समय 270 हिड्डयारं होती है . युवारवस्थार मे 206, वद्ध ृ ारवस्थार मे मारत 200 ही

रिह जारती है. 4/-

25 से 35 वष र्धार तक शाररिीिरिक, मारनिसक िवकारस कार स्वण र्धार युग होतार है . 5/-उसकार िदमारग 21 वष र्धार तक बढतार जारतार है तथार 55 वष र्धार से कारम होने लगतार है .

6/-औसत

जीवन मे वह लगभग 1500 मन अनारज तथार 1900 गैलन तरिल पदारथर्धार खार डारलतार है .

7/-उसकार जबडार 279 िकलोग्रारम से अिधक बल

सहन करि सकतार है .

8/-उसके िसरि के

बारलों की संख्यार 7 लारख 934 हजाररि 252 होती है . 9/-एक स्वस्थ मनुष्य की आंखे 16 िकलोमीटिरि तक आसारनी से दे ख सकतार है .

10/-जन्म के समय शरिीरि

की कुल लंबारई करिीब एक चौथारई िहस्सार केवल िसरि कार होतार है .लेिकन िकशोरिारवस्थार के आते-आते कम होकरि करिीब आठवारं िहस्सार रिह जारतार है .

11/-मारनव शरिीरि के अन्दरि ब्लड

वेसल्स करिीब सारठ हजाररि मील लंबी होती है .


12/-उसकार हृदय एक िदन मे करिीब 2000 गैलन रिक्त इन वेसल्स मे प्रवारिहत करितार है .

13/-स्मारल इंटिेस्टिारइन

इंसारन की औसत लंबारई से करिीब चाररि गुण ार ज्यारदार लंबी होती है . इसकी लंबारई 18 से 23 फ़ीटि तक होती है . मड ु ी रिहने के काररिण शरिीरि के अंदरि रिह पारती है .

14/-आमतौरि परि रिीढ की हड्डी

की बनारवटि सीधी होती है . यिद इसमे दारंए व बारंए ओरि झक ु ारव

जारतार है तो उसे स्कोिलयोिसस कहते है.इसमे एक प्रकाररि की कूबड उभरिनार शरु ु हो जारती है ,

जो बारद मे मनुष्॓ य कॊ कूबडा कहलारने

योग्य बनार दे ती है .

15/-मनुष्य

अपने पूरिे जीवनकारल मे मि हस्तष्क के 12 प्रितशत िहस्से कार इस्तेमारन करि पारतार

है .

16/-िकडनी मे िलि हक्वड औरि वेस्टि को िफ़ल्टिरि करिके बारहरि िनकारलने के िलए लगभग दस लारख नेफ़्रारन होते है. 17/- हमाररिी कुल केलोरिी कार पारंचवार िहस्सार िदमारग ले लेतार है . 18/-मनुष्य के शरिीरि मे 527 मारंसपेिशयारं होती है ,ि हजसमे से 83 मि हस्तष्क मे होती है. 19/-मनुष्य के शरिीरि से एक िमनटि मे आधार पौंड गैस बारहरि िनकलती है .

20/ मनुष्य की मत्ृ यु के

उपरिारंत आंखे 6 घंटिॆ 32 िमनटि तक ि हजन्दार रिहती है. तथार शरिीरि के नारखन ु औरि बारल बढते रिहते है.


31 मुन्ना एक कहिानी िलखना मुन्न ा एक कहिानी िलखना उसमें अपरनी सारी नादानी िलखना मन में िहिममत, साहिस भर दे कु छ बातें मदार्धन ी िलखना .....(मुन्न ा एक कहिानी िलखना) कभी हिं स ाई, कभी रुलाई कभी लडाई, कभी िपरटाई

अपरनी सारी बदमाशी िलखना ( मुन्न ा एक कहिानी िलखना) बात-बात में लडती दादी आँख ें खूर्ब िदखाती नानी


माँ-बापरूर् भी लड जाते अपरनी सारी बचकानी बातें िलखना (मुन्न ा.........) िलखना, संत ों की वर्ाणी िलखना वर्ीर िशवर्ा, भगत, तात्या िलखना नेहि रु, गांधन ी, शास्त्री िलखना कहिानी में इनकी कु बार्धन ी िलखना (मुन्न ा......) छोटी-छॊटी बात संवर् ारे िजन्दगी गाँठ िगरहि में बांधन े रखना परचपरन में बचपरन याद आए िदल से िनकली बातें इं सानी िलखना (मुन्ना .................)

32

झुके-झुके से आते बादल झुके-झुके से आते बादल सागर का जल भर लाते बादल. बरस-बरस जल बरसाते बादल िफ़र खाली-खाली हिो जाते बादल .


खाली हिोकर िकतना सुख पराते बात परते की बतला जाते बादल. धनरती, अंबर, चातक, मोर, परपरीहिा सबकी प्यास बुझाते बादल. झुके-झुके से आते बादल सागर का जल भर लाते बादल. 33

िचिडया गीत सुनाती आयी िचिडया गीत सुनाती आयी हुआ सबेरा जागो भाई नया-नया सूर्रज ऊगा हिै िसदूर्री संतरा सा लगता हिै. नयी रोशनी,

नया उजाला जग को िकरणॊं से भर डाला रं ग-िबरं गे फ़ूर् ल िखले हिैं डाली-डाली हिै हिषार्धयी


गुनगुन करता भौंरा काला, गीत सुनाता हिै

मतवर्ाला मंद-मंद बहि रहिी परुरवर्ाई तन-मन को

हिषार्धने वर्ाली क्यों न हिम भी मस्ती में डॊंले जब हिो सारा जग मतवर्ाला

34

राजा भोज और चतुर

बुिढिया.

रात गहिरा गई थी और राजा भोज तथा किवर् माघ जंगल में भटक रहिे थे. उन्हिें जंगल से बाहिर िनकलने का मागर्ध सूर्झ नहिीं रहिा था. काफ़ी यहिाँ-वर्हिाँ भटकने के बाद उन्हिें एक स्थान परर दीपरक का प्रकाश िदखाई िदया. दोनों रोशनी को देखते हुए आगे बढिे. परास परहुँचकर देखा िक वर्हिाँ एक झोपरडी हिै. उसमें एक बुिढिया बैठी हुई हिै. राजा भॊज और माघ किवर् ने उसे प्रणाम िकया और राजा ने परूर्छ िक यहि रास्ता कहिाँ जाता हिै. बुिढिया ने कहिा-“ यहि रास्ता कहिीं नहिीं जाता. मैं कई सालों से इसे


यहिीं देख रहिी हूँ. हिाँ, इस परर चलने वर्ाले आते हिैं और चले जाते हिैं.,लेिकन यहि बतलाओ िक तुम लोग कौन हिो.? राजा ने अपरना नाम न बतलाते हुए कहिा-“ हिम परिथक हिैं.” राजा की बात सुनते हिी बुिढिया जोरों से हिंसने लगी. और बोली-“ तुम झूर्ठ बोल रहिे हिो. परिथक तो के वर्ल दो हिैं. एक सूर्रज और दूर्सरा चन्द्रमा. सच सच बताओ की तुम कौन हिो?

बुिढिया की बातें सुनकर राजा

भोज चकरा गए. बुिढिया ने सचमुच में उलझन वर्ाली बात कहिी थी. काफ़ी सोचने िवर्चारने के बाद राजा ने कहिा-“हिम मेहिमान हिैं. मेहिमान समझकर हिमें रास्ता बता दो. बुिढिया बोली-“लेिकन मैं तुमहिें मेहिमान कै से मान लूर्ँ.? मेहिमान तो दो हिी हिोते हिैं. एक धनन और दूर्सरा यौवर्न. इसमें से तुम कौन हिॊ?. बुिढिया के तकर्ध सुनकर राजा िनरुत्तर हिो गया. राजा ने बात बढिाते हुए कहिा-“ हिे माता, हिम राजा हिैं. अब तो रास्ता बतला दो.” बुिढिया िफ़र हिंसी और बोली-“ राजा दो हिी हिैं- एक इं द्र और दूर्सरा यमराज.क्या तुम दोनों वर्हिी हिो?. राजा ने कहिा-“ हिम वर्े राजा नहिीं हिै. परर हिाँ सामथ्यर्धवर्न अवर्श्य हिैं. कहिा-

बुिढिया ने

“तुम वर्हि भी नहिीं हिो. सामथ्यर्धवर्न के वर्ल दो हिी हिैं. एक तो परृथ्वर्ी हिै और

दूर्सरी स्त्री.” राजा ने कहिा-“ देवर्ी..हिम तो साध्य हिैं.अब कृ परया रास्ता बतला दें”


“साधनु भी दो हिी हिैं. एक शिन और दूर्सरा संतोष. इनमें से तुम कौन हिो?.” समस्या गंभीर हिोते जा रहिी थी. िवर्द्वान किवर् माघ और राजा के सामने इस तरहि के तकर्ध करने वर्ाला व्यिक्ति इससे परहिले कभी नहिीं आया था. मजेदार बात तो यहि थी िक बुिढिया बहुत हिी संिक्षप्त में, तकर्ध संगतअथर्धपरूर्णर्ध और काफ़ी गंभीर बात कहि रहिी थी. राजा भॊज बोले-“ माँ, हिम तो पररदेशी हिैं. अब कृ परया रास्ता बतला दो.” बुिढिया बोली-“ िफ़र वर्हिी बात. पररदेशी भॊ दो हिी हिोते हिैं. एक जीवर् और दूर्सरा परेड का परत्ता. तुम तो इसमें से कोई भी नहिीं हिो.” किवर् माघ से रहिा नहिीं गया. वर्े िवर्नम्रतापरूर्वर्र्धक हिाथ जोड कर बोले-“ मां हिम गरीब हिैं. अब तो रास्ता बतला दो.” “गरीब भी दो दोते हिैं. एक बकरी का बच्चा और दूर्सरा लडकी.अब बोलो, मैं तुमहिें गरीब कै से मान लूर्ं?.” “अच्छा, यहि तो मानोगी िक हिम मूर्खर्ध नहिीं हिै. हिम चतुर व्यिक्ति हिैं.”राजा भॊज ने कहिा.

“ चतुर भी दो हिोते हिैं.

एक अन्न और दूर्सरा परानी. तुम कै से चतुर हिो गए?.” राजा भोज और माघ किवर् बुिढिया के तकर्ध करने की िस्तिथ में नहिीं थे.अपरनी हिार मानते हुए राजा ने कहिा-“ हिम हिारे हुए हिैं.” इस

बात को

सुनकर बुिढिया ने कहिा_” हिारे हुए भी दो हिोते हिैं. एक कजर्धदार और दूर्सरा बेटी का


बापर.” बुिढिया के तकर्ध के आगे अब दोनो में से िकसी को भी िहिममत नहिीं परड रहिी थी. अचानक वर्े मौन हिो गए.और बुिढिया की ओर कातर दृिष्ट से देखने लगे. यहि देखकर बुिढिया ने कहिा-“ आपर दोनों को मैं देखते हिी परहिचान गई थी. िफ़र इशारा करते हुए कहिा- आपर राजा भोज हिैं और आपर माघ परंिडत. राजन इस रास्ते से सीधने चले जाएं. प्रातःकाल आपर दोनों अपरनी नगरी में सुरिक्षत परहुँच जाएंगे.. राजा भोज और माघ परंिडत ने बुिढिया को प्रणाम िकया और आगे बढि गए. अगले िदन सुबहि वर्े अपरनी धनारा नगरी परहुंच गए.

35

मूखरिर्धार ारज.

बारदशारह अकबरि बीरिबल को बहुत मारनते थे. रिारजार बीरिबल बडॆ बुिद्धमारन थे औरि अपनी िवनोदपूण र्धार बारतों से बारदशारह को प्रसन्न रिखते थे. अकबरि औरि बीरिबल के िकस्से आपने पढे भी होगे . उन्हीं िकस्सो मे एक िकस्सार यह भी है जो मनोरिं जक होने के सारथ-सारथ िशक्षारप्रद भी है .

एक बाररि बारदशारह

अपने रिारजमहल मे गये. बारदशारह की सबसे प्याररिी बेगम उस समय अपनी िकसी िप्रय सहे ली से बारते करि रिही थीं. बारदशारह अचारनक उस कक्ष मे आ पहुँचे. बारदशारह को आयार दे ख बेगम उठ खडी हुई औरि हँ सते


हुए बोली-“ आइये मख ू रिर्धार ारज.” बारदशारह को यह सुनकरि बहुत बुरिार लगार. बारदशारह जारनते थे िक बेगम बिु द्धमारन है औरि वे िबनार काररिण के ऎसी बारत नहीं कह सकती. थोडी दे रि रुककरि बारद्शारह अपने कमरिे मे चले आए. बारदशारह उदारस बैठे हुए थे. ठीक उसी समय बीरिबल उनके पारस आये. बीरिबल को दे खते ही बारदशारह ने कहार:- “ आइये मख ू रिर्धार ारज.” बारदशारह की बारत सन ु करि बीरिबल ने हँ सते हुए कहार;-“जी मख ू रिर्धार ारज जी”. बीरिबल की बारत सुनकरि बारदशारह को गुस्सार आयार औरि उन्होंने आँखे चढारते हुए कहार:- बीरिबल तम् ु हाररिी इतनी िहम्मत िक तम ु अपने बारदशारह को मूखर्धार कह रिहे हो”. बीरिबल ने अपने अंदारज मे उसी तरिह मस् ु कुरिारते हुए उत्तरि िदयार:-“ जहारँपनारह, मनुष्य पारँच प्रकाररि से मूखर्धार कहलारतार है . पहलार-“यिद दो व्यि हक्त अकेले मे बारते करि रिहे हों औरि वहारँ कोई िबनार बल ु ारये यार िबनार सच ू नार िदये आ खडार हो तो उसे मख ू र्धार कहार जारतार है .”. दस ू रिार-“ दो व्यि हक्त बारत्चीत करि रिहे हों औरि उसारमे तीसरिार व्यि हक्त बीच मे पडकरि उनकी बारत पूरिी हुए िबनार बोलने लगतार है तो उसे भी मूखर्धार कहार जारयेगार”. तीसरिार:-“ कोई अपने से कुछ कह रिहार हो,उसकी बारत पूरिी सन ु े िबनार बीच मे बोलने लगे तो उसे भी मख ू र्धार मारनार जारयेग”.. चौथार:- “जो िबनार अपरिारध औरि िबनार दोष के दस ू रिों को गारली दे औरि दोष लगारये,वह भी मूखर्धार है . औरि पारँचवारं:-“इसी प्रकाररि कोई मख ू र्धार के पारस जारये औरि


उनकार संग करिे तो वह भी मख ू र्धार ही कहलारतार है ”. बीरिबल कार प्रत्युत्तरि सुनकरि बारदशारह बहुत ही प्रसन्न हुये. अब उनकी समझ मे आ गयार थार िक बेगम ने उन्हे मख ू रिर्धार ारज कह करि क्यों बुलारयार थार. बच्चॊं;- इन छोटिी-छोटिी बारतों को सदै व ही स्मरिण मे रिखो िक जारने-अनजारने मे आपसे कोई ऎसी भल ू न हो जारये िक सारमने वारलार आपको मख ू रिर्धार ारज कहकरि बल ु ारये.

36 िवर्श्व के ध्वर्ज भारत= इसमें तीन रं गों की ,के शिरया,श्वेत, और हिरी, समान चौडाई की तीन आडी परिट्टयाँ हिैं. श्वेत रं ग के मध्य में नीले रं ग से अशोक चक्र बना हिै, िजसमें 24 तीिलयाँ हिैं. इसे ितरं गा के नाम से परुकारते हिैं. िब्रटे न = इसे “यूर्िनयन जैक” के नाम से परुकाराते हिैं, इसमें अनेकों क्रास बने हुए हिैं. एक ओर लाल और सफ़े द रं ग के क्रास

हिै, जो समस्त ध्वर्ज को खडी और आडी

रे खाओं में िवर्भािजत करते हिैं अमरीका= इसे “स्टासर्ध एण्ड स्ट्राइप्स” के नाम से परुकारते हिैं. इसमें 13 धनािरयाँ हिैं और 50 स्टासर्ध बने हिैं.


रुसी गणराज्य=इसकी परृष्ठभूर्िम लाल रं ग की हिै, िजसके ऊपररी भाग में परोल की ओर पराँच नुकीले स्टासर्ध

बने हिैं और मध्य में हि​िसया और हिथौडे

का िनशान बना हिै. परािकस्तान=इसकी परृष्ठभूर्िम गहिरे हिरे रं ग की हिै िजस परर सफ़े द एक परडी रे खा बनी हिै और बीच में सफ़े द

रं ग से वर्क्राकार चन्द्रमा का िचन्हि बना हिै और

पराँच नुकीले तारे बने हिैं चीन= इसके ऊपररी भाग में एक बडा सा तारा और चार छॊटे तारे बने हिैं और िनचले भाग में परिहिया बना हिै. इन दोनो िचन्हिों को चावर्ल और गेहूँ की बालें दोनो ओर घेरे हुए हिै. इसमें एक स्वर्गीय शांित का द्वार प्रदिशत िकया गया हिै. फ़्रांस = यहि तीन रं ग का बना हिै, नीला, सफ़े द और लाल. यहि िवर्भाजन खडॆ रूपर में हिै. नीला रं ग परोल की ओर से शुरु हिोता हिै. जापरान= इसकी परृष्ठभूर्िम सफ़े द हिै, िजस परर लाल रं ग से उदय हिोते हुए सूर्यर्ध का प्रतीक बना हिै. टकी= इसकी परृष्ठभूर्िम लाल हिै िजस परर सफ़े द रं ग से वर्क्राकार चन्द्रमा और एक तारे का िचन्हि प्रदिशत हिै. बांग् ला दे श = इसकी परृष्ठभूर्िम हिरी हिै िजस परर लाल रं ग से उदय हिोते हुए सूर्यर्ध का प्रतीक बना हिै. परोलैण् ड= नीचे लाल एवर्ं ऊपरर सफ़े द रं ग की समान चौडाई की दो आडी परिट्टयाँ हिै.


आयरलैण् ड-यहि तीन रं ग का बना हिै-हिरा, सफ़े द, और लाल. यहि िवर्भाजन खडॆ रूपर में हिै, हिरा रं ग परोल की

ओर से प्रारमभ हिोता हिै.

िस्वर्ट्जरलैण् ड=इसकी परृष्ठभूर्िम लाल हिै, मध्य में सफ़े द रं ग का प्लस िनशान बना हिै. नाइजीिरया= दोनो तरफ़ हिरी वर् बीच में सफ़े द परट्टी, समान चौडाई का िवर्भाजन खडॆ रुपर में हिै. परेरु = दोनों तरफ़ लाल वर् बीच में सफ़े द परट्टी, समान चौडाई का िवर्भाजन खडॆ रूपर में हिै.

37

सौरिमण्डल;कुछ महत्वपूण र्धार तथ्य

सबसे बडार ग्रह बह ृ स्पित( Jupiter)

ग्रह

सबसे छॊटिार यम( Pluto)

पथ् ृ वी कार उपग्रह चन्द्रमार( Moon)

सय ू र्धार


से सबसे िनकटि ग्रह

बुध (Mercury) सय ू र्धार के सबसे दरिू ि हस्थत ग्रह

प्लटि ू ी (Pluto) पथ् ृ वी से सबसे िनकटि ग्रह

शक्र ु . (Venus)

सबसे अिधक चमकीलार ग्रह शक्र ु (Venus) सबसे अिधक चमकीलार ताररिार

सारइरिस(Dog star) सबसे अिधक उपग्रहों वारलार

ग्रह

शिन (Saturn) सबसे अिधक ठण्डार ग्रह

प्लूटिॊ रिारित मे लारल

( Pluto) िदखारई दे ने वारलार ग्रह मंगल ( Mars) सबसे अिधक भाररिी ग्रह ब्रहस्पित (Jupiter)

सौरि

मण्डल कार सबसे बडार उपग्रह गिनमेडॆ (Ganymede) सौरि मण्डल कार सबसे छॊटिार उपग्रह मोस (Deimos)

नीलार ग्रह पथ् ृ वी ( Earth) लारल ग्रह

मंगल भोरि कार ताररिार

(Mars) शुक्र ( Venus)

डी


सारंझ कार ताररिार

शुक्र दसवारं ग्रह

( Venus) काररिलार.

वारतारवरिण कार प्रभारव.

3८

एक तोतार बेचने वारलार थार. उसने दो तोते पकडे औरि उन्हे दो अलग-अलग िपंजरिों मे बन्द करि िदयार .उसने पहले वारले िपंजरिे मे बन्द तोते कार मूल्य पारंच सौ रुपयार औरि दस ू रिे िपंजरिे मे बंद तोते कार मल् ू य मारत पारंच रुपयार रिखार. एक खरिीददाररि ने आश्चयर्धारचिकत होकरि उस तोते बेचने वारले से पूछार:- भारई, जब दोनो तोते एक समारन िदखारई दे ते है


तो इनके मूल्य मे जमीन औरि आसमारन सार फ़कर्धार क्यों है ?. तोतार बेचने वारले ने उस आदमी से कहार:- यह तो खरिीदने के बारद ही पतार चल सकेगार िक इनके मूल्य मे फ़कर्धार क्यों है . बारत को आगे बढारते हुए उसने कहार:- आप इन्हे मूल्य दे करि खरिीद ले औरि स्वयं इनकार िनरिीक्षण करि ले . मै सुबह आपके यहारँ आऊँगार. जो तोतार आपको पसंद आएगार उसे रिखकरि दस ु े वारिपस करि दे नार”. ू रिार मझ तोते वारले की बारत सुनकरि उस खरिीददाररि ने तोतों कार मूल्य चुकारकरि उन्हे अपने घरि ले आयार. सुबह हुई औरि उसने एक तोते को बोलते हुए सुनार. वह रिारम-रिारम भज रिहार थार. कभी रिारमारयण की सन् ु दरि-सुन्दरि चौपारइयारं बोलतार औरि घरि के सभी लोगों कार अिभवारदन करितार थार. दस ू रिार तोतार अभी सो रिहार थार. जब वह सोकरि उठार तो कहने लगार:-आइये-आइये मेहरिबारन, कदरिदारन, आपको कौनसार मारल पसंद है . यहारँ एक से बढकरि सन् ु दरि लडिकयारं है, उन्हे दे खकरि खुश हो जारओगे. कभी वह भद्दी-भद्दी गारिलयारं भी बकने लगतार थार, अब उस खरिीददाररि को उन तोतों के मल् ू य मे अन्तरि क्यों है , समझ मे आ गयार थार. अगली सुबह तोतार बेचने वारलार उस खरिीददाररि के यहारँ जार पहुँ चार औरि उसने कहार:- भारई सारहब, अब आपको दोनो तोतों कार फ़कर्धार तो मारलुम पड गयार होगार?.


उस खरिीददाररि ने कहार:- फ़कर्धार तो मझ ु े मारलुम पड गयार है लेिकन यह बतलारओ िक इन दोनो तोतों कार िवपरिीत स्वभारव के क्यों है ?. तोतार बेचने वारले ने कहार:-भारई सारहब, एक तोतार महारत्मारजी के आश्रम मे पलार है . वहारँ सतत रिारमारयण कार पारठ होतार रिहतार थार. संतमहारत्मार वहारँ आयार-जारयार करिते थे. अतः इस तोते ने वही सब कुछ सीखार जो उसने अपने कारनों से सन ु ार थार. जबिक दस ू रिार तोतार वेश्यार के कोठे परि पलार. उसने वहारँ जो भी सन ु ार,वह बोलतार है . तोतार बेचने वारले की बारत सुनकरि उस खरिीददाररि ने कहार:- अब मै समझार. इन्सारन तो इन्सारन ,जारनवरि परि भी संगित कार व्यारपक असरि पडतार है . सभी इन्सारन औरि जारनवरि दे खने मे एक से िदखारयी तो दे ते है,लेिकन संगित कार उन परि असरि पडतार है . बच्चॊं, इस कहनी को पढ्करि आप समझ ही गए होंगे िक वारतारवरिण कार िकतनार व्यारपक असरि हमाररिे जीवन परि पडतार है . िकसी ने सच ही कहार है िक यिद हम अच्छे लोगों के संपकर्धार मे रिहे गे तो अच्छी-अच्छी बारते सीखेगे औरि बरिु े लोगों की संगत मे रिहे गे तो बुरिी बारते सीख जारएंगे. यिद एक बाररि बुरिी आदते पड गई, तो समझो पूरिार जीवन ही नरिकतुल्य हो गयार है . अतः ध्यारन रिखे िक हमेशार सन्तमहारत्मारओं औरि िवद्वारनॊं के बीच उठे -बैठे औरि उनके िवचाररि को ध्यारनपव र्धार सन ू क ु े औरि अपने जीवन मे उताररिने कार भरिसक प्रयारस करिे औरि हारमेशार अच्छार सारिहत्य पढे . आप दे खेगे िक आपकार जीवन एक मीठी-मोहक सुगन्ध से भरि चुकार है .


39 िविभन्न दे शों के स्वतंततार िदवस. सुडारन

1 जनवरिी

इण्डॊनेिशयार

17

4 जनवरिी

मलेिशयार

31

अगस्त म्यारंमाररि अगस्त िमश्र

25 मारचर्धार

िवयतनारम

2 िसतम्बरि सेनेगल

4 अप्रैल

ि हस्वटिरिलैण्ड

6

2 मई

मैि हक्सको

16

िसतम्बरि इजरिारयल िसतम्बरि अफ़गारिनस्तारन

27 मई

नारइजीिरियार

1 अक्टिूबरि सोमारिलयार नवम्बरि

1 जल ु ारई

अंगोलार

26


अि हल्जिरियार

3 जुलारई

मंगोिलयार

26

4 जुलारई

िफ़नलैण्ड

6

4 जुलारई

तंजारिनयार

9

26 जल ु ारई/24 िदसंबरि

पारिकस्तारन

14

16 िदसंबरि

भाररित

15

द.कोिरियार

15

नवम्बरि िफ़लीपीन्स िदसम्बरि अमरिीकार िदसम्बरि लीिबयार अगस्त केन्यार अगस्त

अगस्त.

40

िवर्श्व के िचन्हि तथा

प्रतीक िचन्हि या प्रतीक लाल ित्रकोण

अथर्ध परिरवर्ार िनयोजन


लाल रे ड क्रास

डाल्टरी सहिायता

लाल प्रकाश

खतरे या यातायात रोकने का

िचन्हि हिरा प्रकाश ओिलवर्( जैतूर्न) की शाखा

यातायात को जाने का संकेत शांित का प्रतीक

सफ़े द कबूर्तर या फ़ाख्ता

शांित का प्रतीक

बाँहि परर काली परट्टी

(१) िवर्रोधन का संकेत(२) दुःख

का प्रतीक काला झण्डा

िवर्रोधन का प्रदशर्धन

लाल झण्डा

(१)खतरे का िचन्हि (२) क्रािन्त

का प्रतीक परीला झण्डा

संक्रामक रोग से परीिडतों को

ले जाने वर्ाला वर्ाहिन एक दूर्सरे को काटती दो हि​िड्डयां और ऊपरर एक खोपरडी

िबजली का खतरा

झुका हुआ झण्डा

राष्ट्रीय शोक का संकेत

कमल का फ़ूर् ल

प्रतीक

सभ्यता और संस्कृ ित का


चक्र

प्रगित का प्रतीक

आँखों परर परट्टी बंधनी तथा हिाथ में जराजूर् िलए स्त्री

41

न्याय का प्रतीक

िवर्श्व का सबसे बडा सबसे ऊँचा, सबसे छॊटा एवर्ं सवर्र्धप्रथम सबसे बडा महिाद्वीपर

एिशया (

क्षेत्रफ़ल=4,40,30,000 वर्गर्ध िकमी) सबसे छॊटा महिाद्वीपर

आस्ट्रेिलया (

क्षेत्रफ़ल=76,86,880 वर्गर्धिकमी) सबसे बडा महिासागर

प्रशांत महिासागर

(16,53,84,000 वर्गर्ध िकमी ) सबसे बडा प्रायद्वीपर

अरब प्रायद्वीपर (32,50,000

वर्गर्धिकमी.) सबसे बडी लमबी नदी (लमबाई में )

िवर्श्व की सबसे बडी नदी

अफ़्रीका की नील नदी(6,690 िकमी) सबसे छॊटा देश (क्षेत्रफ़ल में)

वर्ेिटकन िसटी (44 हिेक्टेयर )


सबसे बडा देश (क्षेत्रफ़ल में )

रुस (1,70,75,400

वर्गर्धिकमी.) सबसे िवर्शाल परठार

ितबबत (4,875 मीटर औसत

ऊँचाई) ९ 2,00,000 वर्गर्धिकमी

क्षेत्र

सबसे ऊँचा परठार

परामीर

सबसे बडा रे िगस्थान

सहिारा (अफ़्रीका-84,00,000

वर्गर्धिकमी) सबसे बडा द्वीपर

ग्रीनलैण्ड

(21,75,000

वर्गर्धिकमी.) सबसे बडा अंतस्थलीय सागर

भूर्मध्य सागर (15,60,730

वर्गर्धिकमी) सबसे उँ ची परवर्र्धत चोटी

एवर्रे स्ट (8,848 मीटर)

सबसे उँ ची परह्गाडॊं की श्रेणी

िहिमालय परवर्र्धत श्रेणी

सबसे ठ्ण्डा प्रदेश

बखोयांनस्क (रुस)

सबसे उँ चा झरना

एंिजल (वर्ेनेजल ु ा)

979 मीटर)


सबसे बडा टापरुओं का समुदाय

इं डोनेिशया ( 3000 से अिधनक

सबसे बडी ताजे परानी की झील

सुपरीिरयर झील (अमेिरका-

टापरु)

82,350 वर्गर्धिकमी) सबसे बडी खारे परानी की झील

के िस्परयन सागर ( 3,71,800

वर्गर्धिकमी) सबसे अिधनक जनसंख्या का देश

चीन

सबसे अिधनक जनसंख्या का नगर

टोिकयो

सबसे बडा रे ल्वर्े परुल

हुए.परी.लोंग िब्रज लुिशयाना

(यूर्,एस.ए) सबसे उँ चा नगर

वर्ेन चुआन (चीन) 5100 मीटर

सबसे ऊचा डेल्टा

सुन्दर वर्न (भारत)

सबसे बडा गुमबज

एस्ट्रो डीम टेक्सास

(यूर्.एस.ए.) सबसे बडी दीवर्ार

चीन की दीवर्ार

(3,460 िकमी) सबसे अिधनक िनवर्ार्धचन संख्या का देश

भारत


सबसे बडा महिाकाव्य

महिाभारत

सबसे बडा रे ल्वर्े स्टेशन

ग्रांड सेन्ट्रल टमीनल,(न्यूर्याकर्ध

सबसे बड प्लेटफ़ामर्ध

खडगपरुर, (वर्ेस्ट बंगाल)

िसटी)

सबसे बडा िदन (उत्तरी गोलाधनर्ध में)

21 जूर्न

सबसे छॊटा िदन (उत्तरी गोलाधनर्ध में)

22 िदसमबर


42

पसीने की कमारई एक नगरि

मे एक गरिीब ब्रारह्मण रिहतार थार. उदरि-पोष ण के िलए वह बस्ती से िभक्षार मारंग लारतार औरि शेष समय ईश्वरि के भजन-पूजन मे लगार रिहतार. जरुरित से ज्यारदार वह कभी नहीं मारंगतार थार. वहारँ कार रिारजार बडार ही नेक औरि ईश्वरि भक्त थार. सारधु-संत अथवार ब्रारहमण ॊं को वह अपने द्वाररि से कभी खारली हारथ नहीं जारने दे तार थार. दरिू -दरिू से वे आते,मँह ु मारंगार दारन पारकरि वे रिारजार को आशीष दे ते हुए चले जारते. एक िदन ब्रारह्मण की पि हत्न ने अपने पित से कहार िक वह भी रिारजार के पारस जारए औरि मनमारनार धन ले आए. ब्रारह्मण ने अपनी पि हत्न को समझारते हुए कहार-“ भारग्यवारन ! ईश्वरि की द्दयार हम परि है . वे हमे भरिपेटि भोजन उपलब्ध करिवार ही दे ते है,िफ़रि धन की लारलसार क्यों ?”.परिन्तु वह अड गई औरि कहने लगी-“ मै शारस्त-पुरिारण ॊं की बारते सन ु नार नहीं चारहती. तम ु तो िद्दन भरि मारलार फ़ेरिते रिहते हो. तम् ु हे न सही हमे तो धन की आवश्यकतार है . बच्चे बडॆ हो गए है. वे भी अऔरिों की तरिह ठठ-बारटि से रिहनार चारहते है. तम ु आज ही रिारजार के पारस जारओ. वह बहुत ही सज्जन व्यि हक्त है. जारओगे तो वे तुम्हे खारली हारथ वारपस नहीं आने दे गे.”.


लारचाररि ब्रारह्मण रिारजार के यहारँ पहुँचार. संयोग से रिारजार रिारजकारज के ि हस्सलिसले मे बारहरि गए हुए थे. रिारजार के सैिनकों ने उसे अितिथ-गह ृ मे ठहरिार िदयार. तीन िदन बारद प्रतीक्षार के बारद रिारजार से भे टि हो सकी. रिारजार ने उसकार अच्छी तरिह सत्काररि िकयार. अपने आसन परि िबठारयार औरि हारथ जोडकरि कहार-“ब्रारह्मण दे वतार, आपको हमाररिी प्रतीक्षार मे अकाररिण कष्टि झेलनार पडार. कृपयार आप अपनार मंतव्य कह सन ु ारये िक आपकार आगमन िकसिलए हुआ है . मै आपकी मनोकारमनार पूरिी करिने की कोिशश अवश्य करुँ गार”.

ब्रारह्मण ने कहार-“रिारजन---“यिद आप मेरिी

इच्छारनुसाररि दारन दे नार ही चारहते है तो मै कुछ कहूँ”. रिारजार ने िनवेदन िकयार-“हार!-हारँ किहए, आप मझ ु से क्यार चारहते है”. ब्रारह्मण ने बडॆ ही िवनीत भारव से कहार-“रिारजन ! मै औरि कुछ नहीं चारहतार. आप अपने पसीने की कमारई मे से मझ ु े चाररि पैसे दारन दीि हजए.रिारजार की बारत सुनकरि रिारजार सन्न रिह गयार. वह सोचने लगार-“ मेरिे खजारने मे तो अकूत धन-संपदार है , लेिकन मेहनत की कमारई कार तो एक भी धेलार नहीं है . कारफ़ी सोच-िवचाररि के बारद रिारजार ने ब्रारह्मण से कहार-“ एक िद्दन औरि ठहरि जारएं. मै कल आपकी मंशार पूरिी करि दं ग ू ार रिारजार अपने कक्ष मे आयार औरि रिारजसी वेष भष ू ार उताररिकरि फ़टिे पुरिारने कपडॆ पिहनारने लगार. रिारनी ने जब रिारजार कॊ ऐसार करिते दे खार तो पछ ू ार िक वे क्यार करिने जार रिहे है?. रिारजार ने रिारनी को साररिी घटिनार कह सुनारई. रिारजार की बारते सुनने के बारद उसने भी अपने वस्त बदल डारले औरि रिारजार के सारथ जारने को उद्धत हो गई.


इस तरिह वेष बदलकरि रिारजार औरि रिारनी मजदरिू ी की तलारश मे शहरि मे िनकारले. वे गली-गली घूमकरि आवारज लगारते-“ िकसी को मजदरिू चारिहए......मजदरिू ”.एक लोहाररि ने उनकी आवारज सुनी. पारस बल ु ारयार औरि कहार-“दे खो...सबसे पहले तुम्हे भारतार चलारनार पडॆगार. जब लोहार लारल हो जारए तो घन चलारनार पडॆगार. िफ़रि रिारनी की ओरि दे खकरि कहार-“तम् ु हे कुएँ से पारनी भरि करि लारनार होगार औरि पारण ी भरिने के बारद भट्टी मे कोयलार डारलते रिहनार होगार. इसके बदले मे तुम दोनों को दो-दो पैसे मजदरिू ी के िमलेगे

रिारजार –रिारनॊलोहाररि के बतलारए कारमों को करिने

लगे. रिारजार भारतार चलारते-चलारते तक ु जारतार.उसके हारथों मे ददर्धार होने लगार थार. लोहाररि उसके हारथ रुकतार दे ख नाररिारज हो जारतार औरि ढं ग से कारम करिने की तारकीद दे तार. रिारनी कुँए से पारनी भरि-भरिकरि लारने लगी. उसने कभी अपने जीवन मे कंु ए से पारनी नहीं भरिार थार. दो चाररि घडार पारनी खींचने मे उसके हारथों मे फ़फ़ोले पडने लगे. रिारजार कार भी यही हारल थार. उसने भी अपने जीवन मे केवल हुक्म दे नार भरि ही सीखार थार. घन चलारते-चलारते उसके हारथॊं मे फ़फ़ोले हो आए थे. जैसे-तैसे कारम िनपटिार. लोहाररि ने दोनो के हारथ मे दो-दो पैसे रिख िदए.अपनी मजदरिू ी की पशली कमारई दे खकरि दोनो को अपाररि प्रसन्नतार हुई औरि वे रिारजमहल लौटि आए. अगली सब ु ह ब्रह्मण को बल ु ारकरि उन्होंने चाररि पइसे दे िदए, ि हजसे उसने बडी प्रसन्नतार के सारथ गहृ ण िकयार औरि आशीवारर्धारद दे तार हुआ अपने घरि की ओरि चल पडार.ब्रारह्मण ी ने अपने पित को आतार दे खार तो प्रसन्नतार से अपनार आँचल फ़ैलार िदयार. ब्रारह्मण ने अपनी गारंठ मे बंधे पैसे िनकारलकरि उसमे डारल िदए.वह बडी आशार लेकरि आयीद थी,लेिकन


चाररि पैसे दे खकरि क्रोध मे अरिर्धार -बरिर्धार बकने लगी. गुस्से मे उसने उन पैसों को दरिू फ़ेक िदयार औरि बोली-“ तम ु दिरिद्र ही बने रिहोगे ि हजन्दगी भरि. रिारजार के यहारँ जारकरि भी तुमसे कुछ मारंगार नहीं गयार. समुद्र के िकनाररिे जारकरि भी तुम प्यारसे लौटि आए. औरि भी न जारने क्यार-क्यार बकती रिही. ब्रारह्मण ने पैसे उठारए औरि उन्हे तुलसी चौरिार परि रिख िदयार औरि सोचार ब्रारह्मण ी कार गुस्सार शारंत हो जारएगार अथवार जब उसे जरुरित पडॆगी उठार लेगी. परिन्तु पैसे वहीं पडॆ रिहे औरि फ़ूल-बेल आिद के िगरिने से दब गए. दोनो ही उस बारत को भूल से गए थे. कुछ िदनों बारद वहारं चाररि पौधे उगे. कुछ ही िदनों मे वे पेड बन गए. पेड की शारख परि िचिडयारं चहचहारती.िफ़रि फ़ूल िखलनए लगे. एक-एक पेड परि टिोकिरियों फ़ूल िखलस्ते. सूखने परि उसमे से मोती झरिते. ब्रारह्म्ण औरि ब्रारह्मण ी ने कभी मोती नहीं दे खे थे. वे उसे सारधाररिण बीज समझ रिहे थे. ब्रारह्मण ी रिोज आंगन झारडती औरि फ़ेक कोने मे डारल िदयार करिती थी. इस प्रकाररि कई मारह बीत गए. घरि मोितयों से भरि गयार,लेिकन द्दोनों ही इस बारत से अनजारन थे िक वे सच्चे मोती थे, ि हजनकी कीमत लारखों मे हो सकती है .


एक िदन, एक सब्जी बेचने वारली उधरि से गज ु रिी. ब्रारह्मण ी को सब्जी खरिीदई तो थी,लेिकन पैसे उसके पारस नहीं थे.उसने सब्जी वारली को बुलारयार औरि कहार िक इन बीजों के बदले यिद तुम सब्जी दे नार चारहो तो दे सकती हो. सब्जी वारली समझ गई िक यह घारटिे कार सौदार नहीं है . वह रिोज सब्जी के बदले सप ू ार भरि मोती ले जारती. इस लेन-दे न मे दोनो ही खुश थे.

रिारजमहल मे कई हं सो के झोडॆ थे. रिारजार कार िनयम थार

िक वह हं सो को मोती चग ु ारते, उसके बारद ही भोजन करिते थे. एक िदन ऐसार भी आयार जब मोितयों कार भंडाररि चक ु गयार. इस काररिण रिारजहं सो को दारनार नहीं िमलार औरि रिारज पिरिवाररि भूखार रिहने लगार.

साररिे नगरि

मे यह बारत फ़ैल गई. यह समारचाररि उन दोनो ने भी सन ु ार औरि िवचाररि िकयार िक रिारजार बडार दारनी है , शारयद उसने दारन मे सब-कुछ दारन मे दे िदयार है औरि अब उसके यहारं खारअने-पीने को कुछ भी नहीं बचार. ऐसी हारलत मे हमे उसकी मदद करिनी चारहै ए. ब्रारह्मण ने एक टिॊकरिी बीज भरिे औरि रिजार के पारस पहुंचार. रिारजार ने उसकार आदरि-सत्काररि करिते हुए पछ ू ार-“ किहए महाररिारज ! मै आपकी क्यार सेवार करि सकतार हूँ”. ब्रारह्मण ने कहार-“रिारजार सारहब ! मैने सुनार है िक आपके घरि मे कई िदनों से रिसोई नहीं पकी है . मै जारनतार हूँ िक आपने सब दारन मे दे िदयार होगार. मझ ु गरिीब ब्रारह्मण के पारस अनारज तो नहीं है ,लेिकन ये एक प्रकाररि के फ़ूलों के बीज है. इसके बदारले आपको भी तरिकाररिी-भारजी िमल जारएगी”.


ब्रारह्मण ने पोटिली खोलकरि रिारजार के सन्मुख रिख दी. रिारजार की आँखे फ़टिी की फ़टिी रिह गई.” अरिे ! ये तो मोती है . इतने साररिे मोती इसके पारस कहारं से आए”.रिारजार मन ही मन सोचने लगार थार. रिारजार ने एक मुठ्ठी भरि दारने उठारए औरि रिारजहं स के सारमने फ़ेक िदए.रिारजहं स तरिु न्त चग ु ने लगे. रिारजार को अब पक्कार यकीन हो गयार थार िक ये सच्चे मोती है .एक-एक मोती सैकडॊं रुपयों की कीमत कार होतार है . अब रिारजार ने ब्रारह्मण से पूछार-“महाररिारह ! तुम्हाररिे पारस इतने मोती कहारँ से आए?. सच-सच बतारएं.’

ब्रारह्मण ने कहार-“

रिारजन....हमाररिे घरि मे फ़ुलों के चाररि पेड है.,उन्हीं मे से ये रिोज झडते है. यिद आपको भरिोसार न हो तो आप घरि चलकरि दे ख सकते है”. ब्रारह्मण की बारत सुनकरि रिारजार को बडार आश्चयर्धार हुआ. अपने मशारमंती व मंितयों को लेकरि रिारजार ब्रारह्मण के घरि गयार. सब लोगों ने दे खार िक चाररि पेड लगे हुए है ि हजनारके सख ू े हुए फ़ूलों से मोती झरिते है. पछ ू तारछ करिने मारलम ु हुआ िक रिारजार ने ब्रारह्मण को जो चाररि पैसे अपने पसीने की कमारई के िदए थे,उन्हीं से इन चाररि मोती के पेडॊं की उत्पि हत्त हुई है . पेडॊंकी जडॊं मे एक-एक पैसार िचपकार हुआ िमलार. ब्रारह्मण औरि ब्रारह्मण ी को आज पतार चलार िक उनके पारस करिोडॊं की जारयजारद है जो कूडॆ मे पडी है ,ि हजसे वह सारअधाररिण सार फ़ूल समझ रिहे थे,उसकार एक-एक दारनार सैकडॊं कार है .


ब्रारह्मण ने सोचार यह सब द्धन मेरिे िकस कारम कार?. मुझे तो केवल एक सेरि आटिार भरि चारिहए. ऐसार सोचकरि उसने साररिे मोती रिारजार को धमर्धारकारयर्धार के िलए दे िदए. रिारजार की आँखे खुल गई. उसे आज मारलुम पडार िक पिरिश्रम से अि हजर्धारत की गई धन की क्यार कीमत होती है . उस िदन से रिारजार ने प्रण िकयार िक वह अब एक पैसार भी रिारजकोष से अपने िलए खचर्धार नहीं करिे गार,बि हल्क मेहनत करिके कमारएगार. ब्रारहण के द्वाररिार िदए गए द्रव्य औरि रिारजकोष मे जमार पूंजी से रिारजार ने जनतार के फ़ारयदे के िलए अनेकों कारयर्धार शुरु करिवारये. ि हजस तरिह रिारजार औरि ब्रारह्मण ने धमर्धार कार पारलन िकयार, भगवारन करिे वैसार हम सब करिे .

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िवश्व के प्रिसद्ध स्थारन

अल अक्सार,बेिलर्लिंग वारल,बंिकघम पैलेस जेरुसलम

10 डारउिनंग स्ट्रीटि लंदन

ग्रारंड केन्यन


अिरिजोनार(यूएस.ए)

झुकी हुई मीनाररि पीसार,इटिली

मरिडॆक पैलेस जकारतारर्धार

पोसर्धारलीन टिारवरि नारनिकं ग

रिे ड स्क्वारयरि, क्रेमिलन मारस्को

ब्रेडन वगर्धार गेटि, ब्रारउन हारउस बिलर्धारन

कोलोिसयम

रिोम कारबार मक्कार

लोवरि, इफ़ेल टिारवरि पेिरिस

िपरिारिमड िमस्र ब्रारडवे स्ट्रीटि, स्टिे चू आफ़ िलबटिी, एंपारयरि स्टिे टि िबि हल्डंग

न्यूयारकर्धार

व्हारइटि हारउस, पैटिारगन वारिशंगटिन डी.सी

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वर्ृक्ष की सेवर्ा से िमली समृिद्ध


िकसी गाँवर् में एक िनधनर्धन िवर्धनवर्ा और उसका परुत्र जगत रहिते थे. उनके घर के परास एक परीपरल का परेड था. एक िदन उसने अपरने परुत्र को परीपरल का महित्वर् बतलाते हुए कहिा िक इस परेड से हिमें शुद्ध वर्ायु, लकिडयाँ आिद प्राप्त हिोती रहिती हिै. यिद तुम िनयिमत रुपर से इसकी जडॊं में परानी डाला करोगे तो परेड हिराभरा रहिेगा और हिमारी मदद करता रहिेगा. एक बार वर्हि िबमार परड गया. िबस्तर से उठ- बैठने की िहिममत उसमें िबल्कु ल भी नहिीं बची थी. परर िनयम के अनुसार उसे परॆड की जड में परानी डालना था. उसने िकसी तरहि अपरनी िबखरी हुई िहिममत को बटॊरा और परानी की बाल्टी भर कर घर से िनकल गया. परॆड की जडॊं में परानी डालते समय उसे आवर्ाज सुनाई दी. “ मैं तुमहिारी सेवर्ा से बहुत प्रसन्न हुआ हूँ. तुम कोई मन चाहिा वर्रदान मुझसे प्राप्त कर सकते हिो” यहि आवर्ाज उस परेड परर रहिने वर्ाले देवर्ता की थी. जगत ने हिाथ जोडकर प्रणाम करते हुए कहिा-“ हिे वर्ृक्ष देवर्ता, हिमारे िलए आपरका आशीवर्ार्धद हिी परयार्धप्त हिै. आपर िबना कु छ मांगे, हिमें शुद्ध वर्ायु, छाया और लकडी देते हिैं.इससे बढिकर और क्या चािहिए” आवारज िफ़रि गज ूं ी-“ मै तुम्हे कुछ दे नार चारहतार हूँ. बोलो तुम्हाररिी क्यार इच्छार है ?”.जगत ने कहिा;-“यिद आपर देना हिी चाहिते हिैं तो मुझे आपरके नीचे िगरे परत्तों को ले जाने की अनुमित प्रदान करें ” परीपरल ने इसकी अनुमित दे दी. उसने परेड के नीचे िगरे परत्तों को बटॊरा और अपरने घर के िपरछवर्ाडॆ एक कोने में डाल िदया. सुबहि माँ-बेटे सोकर उठे . उन्हिोंने देखा िक सारे परत्ते सोने की तरहि चमचमा रहिे थे. माँ ने अधनीरता से एक परता उठाया और सुनार को िदखलाने


ले गई. सुनार चालाक और लालची था. उसने सारा राज जान लेने के बाद कहिा िक यहि सोने का नहिीं,बिल्क परीतल का परत्ता हिै. यिद तुम चाहिो तो सारे परत्ते बेचकर मुझसे अनाज ले जाओ. मां ने सोचा िक एक गरीब के िलए तो अनाज हिी भगवर्ान हिोता हिै. उसने राजी-खुशी सारे परत्ते बटॊर कर सुनार दो दे िदए और बोरा भर गेहूँ ले आयी. सुनार मन हिी मन प्रसन्न हिो रहिा था िक वर्हि बैठे-ठाले करोडपरित हिो गया हिै. उसने सारे परत्तों को एक बडी ितजोरी में बंद कर िदया. अगले िदन उसने ितजोरी खोली. परत्तों की जगहि उसमें जहिरीले िबच्छूर् भरे हुए थे. अब िबच्छु ओं की फ़ौज उसे काटने दौडी. अपरनी जान बचाने के िलए वर्हि भागता रहिा,लेिकन िबच्छु ओं ने उसका परीछा नहिीं छॊडा. आिखर भागते-भागते वर्हि जगत के घर जा परहुँचा और अपरनी गलती स्वर्ीकार करते हुए माफ़ी मांगते हुए कहिा िक िकसी तरहि उन िबच्छु ओं से बचा ले. जगत ने कहिा िक तुम जाकर उस परीपरल के परॆड से माफ़ी मांगो, वर्े हिी तुमहिें माफ़ कर सकते हिै. सुनाररि भारगार-भारगार पॆड के पारस पहुँचार. िबच्छु अब भी उसकार पीछार करि रिहे थे. वहारँ पहुँचकरि उसने मारफ़ी मारंगी. दे खते ही दे खते साररिे िबच्छु पेड की खोल में समा गएउसकी माँ ने उसे नेक सलाहि देते हुये कहिा िक मन में कभी भी लोभ को परनपरने मत देना. साधनारण जीवर्न जीना और कडी मेहिनत के बल परर अपरना जीवर्न यापरन करना. जनकल्याण के िलए उतने हिी परत्ते लाना, िजतना जरुरी लगे. अब वर्ाहि एक िनिश्चित मात्रा में परत्ते लाता. दूर्सरे िदन वर्े सोने के बन जाते. उन्हिें बेचकर उसने काफ़ी धनन इकठ्ठा कर िलया था. इन परैसों में से उसने अपरने िलए एक साधनारण सा मकान बनाया. चुंिक गरीबी के कारण वर्हि


स्कु ल नहिीं जा पराया था, इसका मलाल उसके मन में अब भी था. उसने गाँवर् के बच्चों के िलए एक पराठशाला खुलवर्ा िदया, तािक गरीबों के बच्चे वर्हिाँ परढि सकें . उसने एक बडा सा कुँ आ भी खुदवर्ा िदया था. अब लोगों को परानी लेने के िलए दूर्र नहिीं जाना परडता था. बडॆ-बूर्ढिे उसे आशीष देते और लोग उसकी तारीफ़ करते नहिीं अघाते. वर्हि के वर्ल मुस्कु राकर रहि जाता और कहिता िक आपर लोगों की सेवर्ा करना तो उसका धनमर्ध हिै.

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श्रम का मूर्ल्य

एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण रहिता था. उदर-परोषण के िलए वर्हि बस्ती से िभक्षा मांग लाता और शेष समय ईश्वर के भजन-परूर्जन में लगा रहिता. जरुरत से ज्यादा वर्हि कभी नहिीं मांगता था. वर्हिाँ का राजा बडा हिी नेक और ईश्वर भक्ति था. साधनु-संत अथवर्ा ब्राहिमणॊं को वर्हि अपरने द्वार से कभी खाली हिाथ नहिीं जाने देता था. दूर्र-दूर्र से वर्े आते,मुहि ँ मांगा दान पराकर वर्े राजा को आशीष देते हुए चले जाते.

एक िदन ब्राह्मण की परित्न ने अपरने परित से कहिा िक वर्हि

भी राजा के परास जाए और मनमाना धनन ले आए. ब्राह्मण ने अपरनी परित्न को समझाते हुए कहिा-“ भाग्यवर्ान ! ईश्वर की दया हिम परर हिै. वर्े हिमें भरपरेट भोजन उपरलबधन करवर्ा हिी देते हिैं, िफ़र धनन की लालसा क्यों ?”.पररन्तु वर्हि अड गई और कहिने लगी-“ मैं शास्त्र-परुराणॊं की बाते सुनना नहिीं चाहिती. तुम तो िदन भर माला फ़े रते रहिते हिो. तुमहिें न सहिी, हिमें तो धनन की


आवर्श्यकता हिै. बच्चे बडॆ हिो गए हिैं. वर्े भी औरों की तरहि ठठ-बाट से रहिना चाहिते हिैं. तुम आज हिी राजा के परास जाओ. वर्हि बहुत हिी सज्जन व्यिक्ति हिैं. जाओगे तो वर्े तुमहिें खाली हिाथ वर्ापरस नहिीं आने देंगे.”. लाचार ब्राह्मण राजा के यहिाँ परहुँचा. संयोग से राजा राजकाज के िसलिसले में बाहिर गए हुए थे. राजा के सैिनकों ने उसे अितिथ-गृहि में ठहिरा िदया. तीन िदन बाद प्रतीक्षा के बाद राजा से भेंट हिो सकी.

राजा ने

उसका अच्छी तरहि सत्कार िकया. अपरने आसन परर िबठाया और हिाथ जोडकर कहिा-“ब्राह्मण देवर्ता, आपरको हिमारी प्रतीक्षा में अकारण कष्ट झेलना परडा. कृ परया आपर अपरना मंतव्य कहि सुनायें िक आपरका आगमन िकसिलए हुआ हिै? मैं आपरकी मनोकामना परूर्री करने की कोिशश अवर्श्य करुँ गा”. ब्राह्मण ने कहिा-“राजन---“यिद आपर मेरी इच्छानुसार दान देना हिी चाहिते हिैं तो मैं कु छ कहूँ”.

राजा ने िनवर्ेदन िकया-“हिाँ-हिाँ किहिए, आपर मुझसे क्या चाहिते हिैं”.


ब्रारह्मण ने बडॆ ही िवनीत भारव से कहार-“रिारजन ! मै औरि कुछ नहीं चारहतार. आप अपने पसीने की कमारई मे से मुझे चाररि पैसे दारन दीि हजए.रिारजार की बारत सुनकरि रिारजार सन्न रिह गयार. वह सोचने लगार-“ मेरिे खजारने मे तो अकूत धन-संपदार है , लेिकन मेहनत की कमारई कार तो एक भी धेलार नहीं है . कारफ़ी सोच-िवचाररि के बारद रिारजार ने ब्रारह्मण से कहार-“ महाररिारह ! एक िदन औरि ठहरि जारएं. मै कल आपकी मंशार पूरिी करि दं ग ू ार”. रिारजार अपने कक्ष मे आयार औरि रिारजसी वेष भष ू ार उताररिकरि फ़टिे पुरिारने कपडॆ पिहनने लगार. रिारनी ने जब रिारजार कॊ ऐसार करिते दे खार तो पछ ू ार िक वे क्यार करिने जार रिहे है?. रिारजार ने रिारनी को साररिी घटिनार कह सुनारई. रिारजार की बारते सुनने के बारद उसने भी अपने वस्त बदल डारले औरि रिारजार के सारथ जारने को उद्धत हो गई.


इस तरिह वेष बदलकरि रिारजार औरि रिारनी मजदरिू ी की तलारश मे शहरि मे िनकारले. वे गली-गली घूमकरि आवारज लगारते-“ िकसी को मजदरिू चारिहए......मजदरिू ”. एक लोहाररि ने उनकी आवारज सन ु ी. पारस बुलारयार औरि कहार-“दे खो...सबसे पहले तुम्हे भारतार चलारनार पडॆगार. जब लोहार लारल हो जारए तो घन चलारनार पडॆगार. िफ़रि रिारनी की ओरि दे खकरि कहार-“तम् ु हे कुएँ से पारनी भरि करि लारनार होगार औरि पारनी भरिने के बारद भट्टी मे कोयलार डारलते रिहनार होगार. इसके बदले मे तुम दोनों को दो-दो पैसे मजदरिू ी के िमलेगे”.

रिारजार –रिारनॊ लोहाररि के बतलारए कारमों को

करिने लगे. रिारजार भारतार चलारते-चलारते थक जारतार. उसके हारथों मे ददर्धार होने लगार थार. लोहाररि उसके हारथ रुकतार दे ख नाररिारज हो जारतार औरि ढं ग से कारम करिने की तारकीद दे तार. रिारनी कुँए से पारनी भरि-भरिकरि लारने लगी. उसने कभी अपने जीवन मे कंु ए से पारनी नहीं भरिार थार. दो चाररि घडार पारनी खींचने मे उसके हारथों मे फ़फ़ोले पडने लगे. रिारजार कार भी यही हारल थार. उसने भी अपने जीवन मे केवल हुक्म दे नार भरि ही सीखार थार. घन चलारते-चलारते उसके हारथॊं मे फ़फ़ोले हो आए थे. जैसे-तैसे कारम िनपटिार. लोहाररि ने दोनो के हारथ मे दो-दो पैसे रिख िदए. अपनी मजदरिू ी की पहली कमारई दे खकरि दोनो को अपाररि प्रसन्नतार हुई औरि वे रिारजमहल लौटि आए. अगली सुबह ब्रह्मण को बुलारकरि उन्होंने चाररि पैसे दे िदए, ि हजसे उसने बडी प्रसन्नतार के सारथ ग्रहण िकयार औरि आशीवारर्धारद दे तार हुआ अपने घरि की ओरि चल पडार. ब्रारह्मण ी ने अपने पित को आतार दे खार तो प्रसन्नतार से अपनार आँचल फ़ैलार िदयार. ब्रारह्मण ने अपनी गारंठ मे बंधे पैसे िनकारलकरि उसमे डारल िदए. वह बडी आशार लेकरि आयी थी,लेिकन


चाररि पैसे दे खकरि क्रोध मे अरिर्धार -बरिर्धार बकने लगी. गुस्से मे उसने उन पैसों को दरिू फ़ेक िदयार औरि बोली-“ तम ु दिरिद्र ही बने रिहोगे ि हजन्दगी भरि. रिारजार के यहारँ जारकरि भी तुमसे कुछ मारंगार नहीं गयार. समुद्र के िकनाररिे जारकरि भी तुम प्यारसे लौटि आए. औरि भी न जारने क्यार-क्यार बकती रिही. ब्रारह्मण ने पैसे उठारए औरि उन्हे तुलसी चौरिार परि रिख िदयार औरि सोचार ब्रारह्मण ी कार गुस्सार शारंत हो जारएगार अथवार जब उसे जरुरित पडॆगी तो उठार लेगी. परिन्तु पैसे वहीं पडॆ रिहे औरि फ़ूल-बेल आिद के िगरिने से दब गए. दोनो ही उस बारत को भल ू से गए थे. कुछ िदनों बारद वहारं चाररि पौधे उगे. कुछ ही िदनों मे वे पेड बन गए. पेड की शारख परि िचिडयारं चहचहारती. िफ़रि फ़ूल िखलने लगे. एक-एक पेड परि टिोकिरियों फ़ूल िखलते. सख ू ने परि उसमे से मोती झरिते. ब्रारह्म्ण औरि ब्रारह्मण ी ने कभी मोती नहीं दे खे थे. वे उसे सारधाररिण बीज समझ रिहे थे. ब्रारह्मण ी रिोज आंगन झारडती औरि एक कोने मे डारल िदयार करिती थी. इस प्रकाररि कई मारह बीत गए. घरि मोितयों से भरि गयार,लेिकन दोनों ही इस बारत से अनजारन थे िक वे सच्चे मोती थे, ि हजनकी कीमत लारखों मे हो सकती है . एक िदन, एक सब्जी बेचने वारली उधरि से गज ु रिी. ब्रारह्मण ी को सब्जी खरिीदनी तो थी, लेिकन पैसे उसके पारस नहीं थे. उसने सब्जी वारली को बल ु ारयार औरि कहार िक इन बीजों के बदले यिद तम ु सब्जी दे नार चारहो तो दे सकती हो. सब्जी वारली समझ गई िक यह घारटिे कार सौदार नहीं है . वह रिोज सब्जी के बदले सूपार भरि मोती ले जारती. इस लेन-दे न मे दोनो ही खश ु थे.


रिारजमहल मे कई हं सो के झोडॆ थे. रिारजार कार िनयम थार िक वह हं सो को मोती चग ु ारते, उसके बारद ही भोजन करिते थे. एक िदन ऐसार भी आयार जब मोितयों कार भंडाररि चुक गयार. इस काररिण रिारजहं सो को दारनार नहीं िमलार औरि रिारज पिरिवाररि भूखार रिहने लगार. साररिे नगरि मे यह बारत फ़ैल गई. यह समारचाररि उन दोनो ने भी सुनार औरि िवचाररि िकयार िक रिारजार बडार दारनी है , शारयद उसने दारन मे सब-कुछ दारन मे दे िदयार है औरि अब उसके यहारं खारने-पीने को कुछ भी नहीं बचार. ऐसी हारलत मे हमे उसकी मदद करिनी चारिहए. ब्रारह्मण ने एक टिॊकरिी बीज भरिे औरि रिारजार के पारस पहुँचार. रिारजार ने उसकार आदरि-सत्काररि करिते हुए पछ ू ार-“ किहए महाररिारज ! मै आपकी क्यार सेवार करि सकतार हूँ”. ब्रारह्मण ने कहार-“रिारजार सारहब ! मैने सुनार है िक आपके घरि मे कई िदनों से रिसोई नहीं पकी है . मै जारनतार हूँ िक आपने सब दारन मे दे िदयार होगार. मझ ु गरिीब ब्रारह्मण के पारस अनारज तो नहीं है ,लेिकन ये एक प्रकाररि के फ़ूलों के बीज है. इसके बदारले आपको भी तरिकाररिी-भारजी िमल जारएगी”.

ब्रारह्मण ने पोटिली खोलकरि रिारजार

के सन्मुख रिख दी. रिारजार की आँखे फ़टिी की फ़टिी रिह गई.” अरिे ! ये तो सच्चे मोती है . इतने साररिे मोती इसके पारस कहारं से आए”. रिारजार मन ही मन सोचने लगार थार.


रिारजार ने एक मुठ्ठी दारने उठारए औरि रिारजहं स के सारमने फ़ेक िदए. रिारजहं स तुरिन्त चग ु ने लगे. रिारजार को अब पक्कार यकीन हो गयार थार िक ये सच्चे मोती है . एक-एक मोती सैकडॊं रुपयों की कीमत कार होतार है .


अब रिारजार ने ब्रारह्मण से पूछार-“महाररिारह ! तुम्हाररिे पारस इतने मोती कहारँ से आए?. सच-सच बतारएं.’

ब्रारह्मण ने कहार-“

रिारजन....हमाररिे घरि मे फ़ूलों के चाररि पेड है.,उन्हीं मे से ये रिोज झरिते है. यिद आपको भरिोसार न हो तो आप चलकरि दे ख सकते है”. ब्रारह्मण की बारत सन ु करि रिारजार को बडार आश्चयर्धार हुआ. अपने महारमंती व मंितयों को लेकरि रिारजार ब्रारह्मण के घरि गयार. सब लोगों ने दे खार िक चाररि पेड लगे हुए है ि हजनके सूखे हुए फ़ूलों से मोती झरि रिहे थे. पूछतारछ करिने परि मारलुम हुआ िक रिारजार ने ब्रारह्मण को जो चाररि पैसे अपने पसीने की कमारई के िदए थे, उन्हीं से इन चाररि पेडॊं की उत्पि हत्त हुई है . पेडॊं की जडॊं मे एक- एक पैसार िचपकार हुआ िमलार.

ब्रारह्मण औरि ब्रारह्मण ी को आज

पतार चलार िक उनके पारस करिोडॊं की जारयजारद है , जो कूडॆ मे पडी है , ि हजसे वह सारधाररिण सार फ़ूल समझ रिहे थे, उसकार एक-एक दारनार सैकडॊं कार है .

ब्रारह्मण ने सोचार यह सब धन

मेरिे िकस कारम कार?. मझ ु े तो उदरि पोष ण के िलए केवल एक सेरि आटिार चारिहए. ऐसार सोचकरि उसने साररिे मोती रिारजार को धमर्धारकारयर्धार के िलए दे िदए.

रिारजार की आँखे खुल गई. उसे आज

मारलुम पडार िक पिरिश्रम से अि हजर्धारत की गई धन की क्यार कीमत होती है . उस िदन से रिारजार ने प्रण िकयार िक वह अब एक पैसार भी रिारजकोष से अपने िलए खचर्धार नहीं करिे गार,बि हल्क मेहनत करिके कमारएगार. ब्रारहण के द्वाररिार िदए गए द्रव्य औरि रिारजकोष मे जमार पूंजी से रिारजार ने जनतार के


फ़ारयदे के िलए अनेकों कारयर्धार शुरु करिवारये. ि हजस तरिह रिारजार औरि ब्रारह्मण ने धमर्धार कार पारलन िकयार, भगवारन करिे वैसार हम सब करिे .

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सूर्ई.

हिजारों वर्षर्ध परुरानी बात हिै. िहिमालय की तराई में एक राज्य था. वर्हिां का राजा बहुत हिी बलवर्ान और शिक्तिशाली था. वर्हि अपरनी प्रजा से परुत्रवर्त प्यार करता था तथा न्यायपरूर्वर्र्धक अपरनी प्रजा का परालन करता था. न्याय का शासन रहिने से उसके राज्य में न तो अकाल परडता था और न हिी बाढि आती थी. राजा के भय से चोर-डाकूर् उसकी सीमा मे घुसने से भी भय खाते थे. धनन-धनान्य से भरपरूर्र हिोने के बावर्जूर्द राजा ददुखी था. उसकी कोई संतान नहिीं थी. वर्हि सारी ओर से िनराश हिो चुका था और अब वर्हि िकसी कु लीन परिरवर्ार से िकसी बच्चे को गोद लेने की सोच हिी रहिा था,तभी उसे शुभ समाचार िमला िक रानी गभर्धवर्ती हिै. यहि समाचार जानकार वर्हि बहुत प्रसन्न हुआ. परूर्रे राज्य में परूर्रे सप्ताहि तक दीपरावर्ली का सा उत्सवर् मनाया गया तथा िमठाइयां बाटीं गई. एक शुभ घडी में रानी ने एक परुत्री को जन्म िदद्या. राजा ने उस कन्या का नाम ज्योित रखा,क्योंिक ज्योित स्वर्रुपर उस बािलका के आ जाने से उसके मन में भरा ितिमर रुपरी नैराश्य का भावर् सदा-सदा के िलए दूर्र हिो गया था.


राजा बहुत खुश था और अब वर्हि बहुत बडा भोज देना चाहिता था. उसने अपरने िमत्रों ,परडौसी राज्य के राजाओं को आमंत्रण भेजा, िकन्तु अपरने राज्य से लगे जंगल में रहिने वर्ाली चुडल ै को आमंित्रत नहिीं िकया. महिामंत्री ने उसे याद भी िदलाया िक उस चुडैल को भोज में अवर्श्य बुलाएं, परर राजा नहिीं माना.. चारों ओर चहिल-परहिल मची हुई थी. सारी प्रजा, राजा के िमत्र, अिधनकारी,मंत्री और सैिनक अपरनी अनोखी सज-धनज के साथ वर्हिां उपरिस्थत थे. राजा भोज आरं भ करने की आज्ञा देने हिी वर्ाला था िक तेज आंिधनयां चलने लगी. लोग अपरनी जान बचाने को यहिां-वर्हिां भागने लगे. तभी जंगल में रहिने वर्ाली वर्हि चुडल ै राजा के सामने आकर खडी हिो गई. वर्हि क्रोधन में भरी हुई थी. चुडैल ने चीखकर कहिा-“ हिे राजा, तूर्ने मेरा अपरमान िकया हिै,अब दंड भोगने को तैयार हिो जा. इसका फ़ल तुझे भोगना हिी परडॆगा. राजकु मारी जब सोलहि साल की हिोगी तभी उसे एक सूर्ई चुभ जाएगी और वर्हि मर जाएगी.”. इतना कहिकर चुडैल गायब हिो गई. चुडल ै की बात सुनकर राजा को बहुत दुख हुआ. िफ़र अपरने आपरको समझाइस देते हुए िनणर्धय िलया िक राजकु मारी को वर्हि सूर्ई चुभने हिी नहिीं देगा. उसने राजाज्ञा प्रसािरत कर दी िक राजकु मारी को िसलाई-िपररोने के काम से दूर्र रखा जाए, यहिाँ तक िक िजस महिल में राजकु मारी रहिती हिै, उसमें सूर्ई ले जाने की अनुमित नहिीं हिोगी. इस प्रकार राजा ने मृत्यु का भय भुला िदया. राजकु मारी िदन-ब –िदन बडी हिोने लगी.

राजकु मारी अपरनी सहिेिलयों के साथ अपरने

महिल के बाग में खेल रहिी थी िक उसका परालतु खरगोश आकर उसकी गोद में िगर


गया. राजकु मारी ने देखा िक उसका प्यारा खरगोश परीडा से कराहि रहिा हिै और अपरनी भोली आँख उठाकर बार-बार राजकु मारी के चेहिरे की ओर देख रहिा हिै, जैसे कहि रहिा हिो िक मुझे परीडा से बचा लो. राजकु मारी का मन ममता से भर आया और उसकी आँखें गीली हिो आयी. अपरने प्यारे खरगोश को उठाए-उठाए वर्हि महिल के भीतर आयी और अपरने परलंग परर बैठ गई. उसके परीछे-परीछे उसकी सारी सिखयां भी भीतर आ गई. उन्हिोंने ज्योित को चारों ओर से घेर िलया था. राजकु मारी ने तेज रोशनी में उसके शरीर का पररीक्षण िकया और देखा िक उसकी अगली टांग और छाती के बीच के स्थान परर कोई चीज चुभी हुई हिै. राजकु मारी ने उसे परकडा और बाहिर िनकाल िदया. सूर्ई के शरीर िनकलते हिी हिजारॊं प्रेत उसके चारों ओर नाचने लगे. भीषण कोलाहिल हिोने लगा और वर्हि सूर्ई राजकु मारी के अंगूर्ठे में धनंस गई. सूर्ई के धनंसते हिी राजकु मारी बेहिोश जमीन परर लुढिक गई.

िजस िकसी को भी समाचार िमला,वर्हि

उस कमरे में राजकु मारी को देखने परहुँचा. कमरे में जाने वर्ाले सभी व्यिक्ति बेहिोश हिोकर िगर परडॆ. उस िदन राजकु मारी का सोलहिवर्ां जन्मिदन था उसी राज्य के परडौस में एक दूर्सरे राजा का राज्य था. उसका राजकु मार िशकार खेलता-खेलता भूर्ल से ज्योित के राज्य की सीमा में चला आया. िशकार के परीछे भागते हुए उसे परता हिी नहिीं चल पराया िक वर्हि कहिाँ जा रहिा हिै? बस हिाथ में धननुष-बाण िलए वर्हि िशकार के परीछे दौड रहिा


था.

सहिसा उसका घोडा खडा हिो गया और अपरने अगले दोनों परांवर् ऊपरर

उठाकर जोर-जोर से िहिनिहिनाने लगा. राजकु मार ने देखा सामने चुडैल खडी थी. चुडल ै के भयंकर रुपर को देखकर राजकु मार ने परूर्छा-“तुम कौन हिो और क्या चाहिती हिो?.

चुडल ै ने बतलाया िक इस जंगल में उसका राज हिै. यहिाँ जो भी आता हिै, वर्हि उसे खा जाती हिै. सुन्दर राजकु मार को देख कर चुडल ै बोली-“ तुम, बहुत सुन्दर हिो, इसीिलए मैं तुमहिें नहिीं खाऊँगी. मैं तो तुमसे िवर्वर्ाहि करुँ गी”. “यिद मैं तुमसे िवर्वर्ाहि न करुं तो ?”..राजकु मार ने हिंसकर परूर्छा. “तो मैं तुमहिें राजकु मारी ज्योित की तरहि सुला दूर्ग ँ ी” चुडैल ने क्रूर्र हिंसी हिंसकर कहिा. राजकु मार की उत्सुकता जागी. उसने परूर्छा-“कौन ज्योित”?. “मेरे परीछे-परीछे आओ” चुडैल ने कहिा. चुडल ै ने उसे जंगल से बाहिर लायी और एक महिल में ले गई.

राजकु मार ने

देखा. सामने बहुत भव्य लेिकन परुराना महिल खडा था. लगता था िक वर्षों से वर्हिाँ कोई नहिीं रहि रहिा हिै और उसकी सफ़ाई तक नहिीं हुई हि


चुडल ै उस महिल में घुसी और राजकु मार अपरने घोडॆ को बाहिर छोडकर उसके परीछे-परीछे भीतर चलता गया. वर्हि एक बडॆ कमरे में जाकर रुक गई. राजकु मार ने देखा, बहुत सारे लोग फ़शर्ध परर सोए परडॆ हिैं और परलंग परर अत्यंत सुन्दर राजकु मारी िनद्रा में िनमग्न हिै. राजकु मार उस राजकु मारी को देखता हिी रहि गया. उसने इतनी सुन्दर राजकु मारी आज तक नहिीं देखी थी. “यहि हिै राजकु मारी ज्योित” चुडल ै ने कहिा.”इसे मैंने इस प्रकार सुलाया हिै और इसे सोए हुए दो सौ बरस से ज्यादा हिो चुके हिैं. यिद तुमने मेरे साथ िवर्वर्ाहि नहिीं िकया तो तुमहिें भी राजकु मारी की तरहि सुला दूर्ग ं ी”. चुडल ै की धनमकी भरी बातें सुनकर राजकु मार िचितत हिो गया. वर्हि समझ गया िक चुडैल सच कहि रहिी हिै. यिद उसका कहिना नहिीं माना तो वर्हि भी राजकु मारी की तरहि सो जाएगा. उसने अब कूर् टनीित से चुडैल को खत्म करने की योजना बनाई. “ठीक हिै....मैं तुमसे िवर्वर्ाहि करने को तैयार हूँ, लेिकन तुमहिें इस बात का प्रमाण देना हिोगा िक तुमने हिी राजकु मारी की यहि दुदश र्ध ा की हिै. परहिले राजकु मारी को जगाकर िदखाओ”. “इसमे क्या मुिश्कल हिै.....लो अभी उसे जगा देती हूँ” कहिती हुई चुडल ै राजकु मारी के परास आयी और उसके हिथेली में चुभी सूर्ई को खींचकर बाहिर कर िदया. सूर्ई के िनकलते हिी राजकु मारी ने आँखें खोल दी और जमुहिाते हुए उठ बैठी,मानो सोकर उठी हिो.


राजकु मार इसी क्षण की प्रतीक्षा में था. उसने िबना समय गवर्ाएं अपरनी तलवर्ार िनकाली और उस चुडैल की गदर्धन धनड से अलग कर दी. चुडल ै के मरते हिी एक भयंकर शोर हुआ. िफ़र धनीरे -धनीरे शांित चहुँओर फ़ै लने लगी. राजकु मारी के उठते हिी बाकी के सारे लोग भी एक-एक कर उठ बैठे. राजा भी उठ बैठा. राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसी क्षण राजकु मारी का िवर्वर्ाहि राजकु मार से कर िदया.

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राष्ट्रीय अलंकरण एविं

परुरस्कार बच्चों, अखबार अथवर्ा न्यूर्ज चैनल परर आपरको यहि परढिने/सुनने को िमलता हिोगा िक अमुक महिानुभावर् को भारत सरकार “भारत-रत्न” सममान से सममािनत करने जा रहिी हिै. इस खबर को परढिकर आपरके िजज्ञासु मन में यहि सवर्ाल भी उठता हिोगा िक आिखर यहि कौन सा सममान हिै और यहि िकसे िदया जाता हिै. आइये, हिम भारत रत्न सममान के साथ हिी उन सममानों के बारे में संिक्षप्त में जानकारी लेते चलें.


भारत रत्न सममान भारत के प्रथम राष्ट्रपरित श्री राजेन्द्र प्रसाद द्वारा घोिषत “भारत रत्न सममान” तांबे के बने परीपरल के परत्ते पररप्लेिटिनम का चमकता सूर्यर्ध िचन्हि हिोता हिै िजसके नीचे चांदी में िलखा हिोता हिै “भारत रत्न”.यहि भारत का सचोच्च सममान हिै. यहि उसी व्यिक्ति को िदया जाता हिै िजसकी सामािजक सेवर्ाएँ सवर्र्धमान्य एवर्ं उच्च स्तर की हिों अथवर्ा िजन्हिोंने कला, सािहित्य,एवर्ं िवर्ज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान िकया हिो. इस सवर्ोच्च समान की शुरुआत 2 जनवर्री सन 1954 को की गयी थी. सवर्र्ध प्रथम सी.राजगोपरालाचरीजी, डा. राधनाकृ ष्णनजी एवर्ं सी.वर्ी.रमनजी को इस सममान से सममािनत िकया गया था. 26 जनवर्री को भारत के राष्ट्रपरित द्वारा इसे प्रदत्त िकया जाता हिै.


परद्म िवर्भूर्षण

परद्म िवर्भूर्ष ण सममान भारत सरकार द्वारा िदया जाने वर्ाला दूर्सरा उच्च नागिरक सममान हिै, यहि उन व्यिक्तियों को िदया जाता हिै िजन्हिोंने िकसी क्षेत्र में कोई अिद्वतीय सेवर्ा की हिो.सरकारी कमर्धचािरयों को भी इस अलंकरण से सममािनत िकया जा सकता हिै. इस सममान की स्थापरना भी 2 जनवर्री 1954 में की गई थी.


परद्म भूर्षण सममान

परद्म भूर्ष ण सममान भारत सरकार द्वारा िदया जाने वर्ाला तीसरा सवर्ोच्च सममान हिै, यहि सममान िकसी भी क्षेत्र में की गई उच्चकोिट की िवर्िशष्ठ सेवर्ा के िलए प्रदान िकया जाता अहिै. इसमें सरकारी कमर्धचारी भी शािमल हिै.

परद्मश्री सममान

परद्म श्री या परद्मश्री, भारत सरकार द्वारा आम तौर परर िसफ र्ध भारतीय नागिरकों को िदया जाने वर्ाला सममान हिै जो जीवर्न के िवर्िभन्न क्षेत्रों जैसे िक, कला, िशक्षा, उद्योग, सािहित्य,िवर्ज्ञान, खेल, िचिकत्सा, समाज सेवर्ा और


सावर्र्धजिनक जीवर्न आिद में उनके िवर्िशष्ट योगदान को मान्यता प्रदान करने के िलए िदया जाता हिै। भारत के नागिरक परुरस्कारों के परदानुक्रम में यहि चौथा परुरस्कार हिै इससे परहिले क्रमश:भारत रत्न, परद्म िवर्भूर्षण और परद्म भूर्षण का स्थान हिै। इसके अग्रभाग परर, "परद्म" और "श्री" शबद देवर्नागरी िलिपर में अंिकत रहिते हिैं। इन राष्ट्रीय अंलकारों के अलावर्ा भारत सरकार द्वारा अनेकों परुरस्कारों को स्थापरना की गई हिै- जैसे भटनागर परुरस्कार, वर्ाचस्परित परुरस्कार,बोरलाग परुरस्कार,जमनालाल बजाज परुरस्कार,द्रोणाचायर्ध परुरस्कार,मूर्ितदेवर्ी परुरस्कार तानसेन सममान, कािलदास सममान, लता मंगेशकर परुरस्कार,एकबाल परुरस्कार, राजीवर्गांधनी सद्भावर्ना परुरस्कार,भारतीय भाषा परिरषद परुरस्कार, संगीत नाटक आकादमी परुरस्कार, भारतीय ज्ञानपरीठ परुरस्कार संगीत नाटक अकादमी परुरस्कार,राष्ट्रीय िफ़ल्म परुरस्कार, इन परुरस्कारों की सूर्ची काफ़ी लंबी हिै, िजन परर िफ़र कभी चचार्ध की जा सकती हिै.

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असली वारिरिस

एक रिारजार अपनी रिारनी के सारथ चौपड खेल रिहार थार. जीत हरि बाररि रिारजार की होती. रिारनी हाररिनार नहीं चारहती थी, शारयद वह िदन उनके जीत के िलए िनधारर्धारिरित नहीं थार. अगलार दारंव फ़ेकते हुए रिारनी ने रिारजार को बतलारयार िक ईश्वरि की असीम कृपार से वे उनके यहारँ पुत -रित्न की प्रारि हप्त होगी. औरि वह मेरिे जैसार ही गौरि वण र्धार कार होगार. रिारजार उस


समय िवनोद के मूड मे थे तो उन्होंने कहार- नहीं नहीं ,वह मेरिे श्यारम रिं ग जैसार ही होगार. इस बारत परि कारफ़ी िववारद हुआ. रिारनी ने इस बारत परि शतर्धार लगारने को कहार,तो रिारजार ने कहार- इसमे शतर्धार लगारए जारने जैसी कोई बारत नहीं है .कोई हाररिे अथवार जीते, संतारन तो हमाररिी ही कहलारएगी. बारत आई गई,हो गई. एक िदन, रिारनी ने एक बारलक को जन्म िदयार. वह श्यारम रिं ग कार थार. इस बाररि भी रिारनी की हाररि हुई थी.लेिकन ि हजद्दी रिारनी हरि हारल मे जीत दजर्धार करिवारनार चारहती थी. उसने दारई से जारननार चारहार िक इस समय रिारजधारनी मे िकसके घरि लडकार हुआ है .दारई ने बतलारय िक एक सुनाररि के यहारँ लडकार हुआ है ,वह गौरि वण र्धार कार है .रिारनी ने दारई को स्वण र्धार मद्र ु ारएं दे ते हुए लडकार बदल दे ने को कहार. दारई ने बडी सफ़ारई से यह कारम करि िदखारयार. रिारजार को खबरि िभजवारई गई के आपके यहारँ पुत-रित्न की प्रारि हप्त हुई है . रिारजार दौडार आयार. रिारजार को दे खते ही रिारनी ने कहार- इस बाररि मेरिी जीत हुई है .रिारजकुमाररि अपनी मारँ परि गयार है . समय की नजारकत को दे खते हुए रिारजार ने कुछ नहीं कहार औरि वहारं से चले आए. दोनो बच्चे अपने-अपने घरि मे बडॆ होते गए. सन ु ाररि के घरि पलने वारलार लडकार अपने िमतों के सारथ तलवाररि चलारनार,घुडसवाररिी करिनार,कभी िशकाररि करिने जारनार आिद खेल खेलतार रिहतार. कभी तो वह न्यारयारधीश बनकरि जिटिल-जिटिल प्रकरिण ॊं को िनपटिारतार थार. जबिक रिारजार के महल मे पलने वारलार िदन भरि तफ़ ू ारन मचारए रिहतार. कभी वह अपने


िमतों के सारथ माररिपीटि करितार, कभी अपने सेवकों को भी पीटि दे तार.गारिलयारँ बकनार तो उसकी आदत मे शम ु ाररि हो गयार थार. रिारजार-रिारनी उसकी हरिकतों से परिे शारन हो उठते. रिारनी के मन मे आतार िक सही-सही बारत वह रिारजार को कह सुनारए,लेिकन एक अज्ञारतभय उसे ऐसार करिने से रिोक दे तार थार. एक बाररि रिारजार ने दे शारटिन परि जारने कार कारयर्धारक्रम बनारयार. जारने से पव ू र्धार उन्होंने अपने महारमंती को चाररि

हीरिे सौंपते हु ए कहार:- एक

हीरिे की कीमत इतनी है िक उसे बेचे जारने परि रिारज्य कार एक वष र्धार कार खचर्धार उठारयार जार सकतार है . ऐसे ये चाररि बेशकीमती है,इन्हे महाररिारनी को यारद से दे दे नार. महारमंती के मन मे खोटि आ गई. उसने उन हीरिों को महाररिारनी को दे ने के बदले , अपने बारगीचे मे एक पेड के नीचे गढ्ढार खोदकरि िछपार िदयार. रिारजार ने लौटिकरि उन हीरिों के बाररिे मे महारमंती से पछ ू ार, तो उसने सारफ़ झठ ू बोल िदयार िक हीरिे महाररिारनी को चाररि गवारहों के सारमने दे िदए गए है.. जब रिारजार ने रिारनी से पछ ू ार तो उसने इस बारत से इनकाररि करिते हुए कहार िक महारमंती ने वे हीरिे मुझे िदए ही नहीं है . रिारजार बडॆ ही असमंजस मे थार िक आिखरि हीरिे गए तो हए कहारँ?. वह न तो रिारनी के सारथ कठोरितार से पेश आ सकतार थार औरि न ही महारमंती के सारथ वह यह भी जारनतार थार िक कठोरितार िद्दखारने से िकतने घारतक पिरिण ारम हो सकते है. उसने मन ही मन िनश्चय िकयार


िक पडौसी रिारजार जो उसके िमत है,से िमलकरि कोई काररिगरि हल िनकारलार जारए. अपने लारव-लशकरि के सारथ रिारजार को जारते हुए उस बारलक ने दे खार, जो इस समय न्यारयारधीश की कुसी परि बैठकरि, िकसी प्रकरिण मे दो पक्षॊं की ि हजरिह सन ु रिहार थार. उसने रिारजार सारहब के इस तरिह जारने कार अिभप्रारय जारनने के िलए उन्हे बल ु ार भेजार. रिारजार ने अपने मन की साररिी बारते उस बारलक से कह सन ु ारयी. साररिी बारते सुन चुकने के बारद उस बारलक ने परिारमशर्धार दे ते हुए रिारजार से कहार िक इतनी छॊटिी सी बारत को लेकरि अन्य रिारजार को अपने रिारज्य मे होने वारली घटिनारओं की जारनकाररिी नहीं दी जारनी चारिहए.उसने बारत को आगे बढारते हुए कहार िक यिद वे आज्ञार दे तो वह दरिबरि मे आकरि इसकार फ़ैसलार करि सकतार है . रिारजार को उस बारलक की बारत पसंद आयी औरि वे अपने रिारज्य मे लौटि गए.

एक

िनधारर्धारिरित

िदन

वह

बारलक रिारजदरिबाररि जार पहुँचार. उसने रिारनी, महारमंती, तथार अन्य चाररि गवारहों को अलग-अल्ग कमरिों मे बैठने को कहार औरि यह कहार िक वे ब ुलारए जारने पस्र बाररिी-बाररिी से दरिबाररि मे पहुँचे. उसने रिारजार की उपि हस्थित मे सबसे पहले महारमंती को बुलवारयार औरि सारमने पडॆ कुछ पत्थरिों मे से चाररि पत्थरि चुनने को कहार जो िदए गए हीरिों के बरिारबरि हो. महारमंती ने चाररि पत्थरि उठारकरि िदए. िफ़रि उसने एक गवारह को बुलारकरि वैसार ही करिने को कहार. उसने चाररि बडॆ-बडॆ पत्थरि जो लगभग एक-एक िकलो के थे,उठारकरि िदए. इस तरिह


अलग-अलग गवारहों ने अपने –अपने िहसारब से पत्थरि उठारकरि सौंप िदए. उसने पत्थरिों के चाररि ढे रि टिे बल परि लगार िदए. इतनार हो जारने के बारद उसने महारमंती सिहत उन गवारहों को भी बुलार भेजार. जब साररिे लोग उपि हस्थत हो गए तो उसने महारमंती से कहार िक इन चाररिों गवारहॊं ने हीरिों के बरिारबरि पत्थरिों के ढे रि लगार िदए है.सबने अलग-अलग वजन औरि आकाररि के पत्थरिों को चन ु ार है . इससे यह स्वयं िसद्ध हो जारतार है िक आपने इनके सारमने हीरिे महाररिारनी सारिहबार को िदए ही नहीं ,अन्यथार ये एक ही आकाररि-प्रकाररि के पत्थरिों कार चुनारव करिते. महारमंती ने अपनार अपरिारध स्वीकाररि करि िलयार िक उसने साररिे हीरिे महाररिारनीजी को न दे ते हुए अपने बारगीचे मे एक वक्ष ृ के नीचे िछपार िदए है. अपरिारध स्वीकरि करि चक ु े महारमंती को रिारजार ने कडी सजार सन ु ारते हुए जेल भेज िदयार.

रिारजार ने अत्यन्त प्रसन्न होते हुए

उस बारलक को ढे रि साररिे ईनारम दे ने चारहे तो उसने सारफ़ इनकाररि करिते हुए कहार िक एक न्यारयारधीश कार कारम सच्चार न्यारय दे नार होतार है ,न िक उसके बदले ईनारम पारनार. रिारजार ने अपनी जगह से उठते हुए उस बारलक को अपने गले से लगार िलयार. ऐसार करितार दे ख अब महाररिारनी ने भी अपनार अपरिारध स्वीकाररि करिते हुए साररिी घटिनार कह सन ु ारयी औरि कहार िक यही वह बारलक है ,ि हजसे उसने दारई को प्रलोभन दे करि उस सुनाररि के बेटिे से बदली करिवार िलयार थार.


रिारजार को अपनार असली वारिरिस िमल चक ु ार थार. उसने रिारनी को अपनी गलती स्वीकाररि करि लेने परि यह कहते हुए मारफ़ करि िदयार िक वंश परिम्परिारएं सदार जीिवत रिहती है,उन्हे िकसी भी कीमत परि िमटिारयार नहीं जार सकतार.

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लालच बुरी बलाय1.

( बुंदल े ी लोककथा परर

आधनािरत) एक गाँवर् में दो िमत्र रहिते थे. दोनो हिी बेरोजगार थे. एक िदन उन्हिोंने सोचा िक िकसी अन्य शहिर में जाकर कोई रोजगार के अवर्सर तलाशना चािहिए. दोनो चल परडॆ.. रास्ते में एक नदी परडी. दोनो ने स्नान िकया और खाना खाने के िलए बैठे. खाना शुरु हिो ,इससे परहिले एक ने दूर्सरे से कहिा िक यिद वर्हि अपरनी दोनो आँखे फ़ोड ले तो बदले में उसे अपरने िहिस्से से एक रोटी ज्यादा देगा. दूर्सरे ने परहिले कहिा िक यिद वर्हि अपरनी दोनो आँखें फ़ोड ले तो बदले में उसे परूर्रा खाना हिी दे देगा.

1


एक िमत्र ने अपरनी आँखे फ़ोड ली. दूर्सरे ने उसे अपरना खाना दे िदया और उसे बीच रास्ते में हिी छोडकर पररदेश चला गया. अंधना यहिाँ वर्हिाँ भटकता रहिा. िफ़र जंगली जानवर्रों की डर से वर्हि एक परीपरल के परेड परर जा चढिा. रात के समय उस परेड के नीचे एक शेर, एक दानवर् और एक भालूर् इकठ्ठे हिोकर बातें करने लगे. दानवर् ने अपरने दोनों िमत्रो को एक रहिस्यमय बात सुनाई िक यिद कोई अंधना आदमी इस परीपरल के परत्ते को तोडकर अपरनी आँखों को लगाए तो उसकी देखने की शिक्ति वर्ापरस आ जाएगी. अब शेर की बारी थी. उसने कहिा िक मेरी गुफ़ा में बहुत सारा धनन हिै,यिद कोई लेना चाहिे तो ले सकता हिै. भालूर् की बारी आयी तो उसने कहिा, मेरी गुफ़ा में हिीरे -जवर्ाहिरात भरे परडे हिै,यिद कोई ले जाना चाहिे तो ले जा सकता हिै. परॆड परर बैठे अंधने ने उन तीनॊं की बातें सुन ली थी. अब उसे िदन िनकलने का इं तजार था. िदन िनकलते हिी उसने परेड परर बैठे-बैठे हिी परेड का एक परत्ता तोडा और अपरनी आँखॊं से लगाया. आश्चियर्ध उसकी देखने की शिक्ति लौट आयी थी. परॆड से उतरकर उसने शेर की गुफ़ा में प्रवर्ेश िकया और बहुत सारा धनन बटॊरा और िफ़र भालूर् की गुफ़ा में घुस कर बहुत सारे


हिीरे -जवर्ाहिरात ले कर घर आ गया. अब वर्हि उस गाँवर् का सबसे धननी आदमी था. दूर्सरा िमत्र जो उसे छोडकर चला गया था, िनराश हिोकर गाँवर् लौटा . उसने देखा िक उसका िमत्र सहिी सलामत हिै और धननी आदमी भी बन गया हिै. उसने जाकर अपरने िमत्र से माफ़ी मांगी और उससे धननी हिोने का राज जानना चाहिा. उसने जो कु छ भी उसके साथ घटा था, अपरने िमत्र से कहि सुनाया.

दूर्सरे ने सोचा िक वर्हि भी अपरनी आँखें फ़ोडकर उस परेड परर जा चढिेगा और ढिेर सारा धनन लेकर लौटेगा. उसने अपरनी दोनो आँखें फ़ोड ली और अपरने िमत्र से कहिा िक उसे उस परॆड तक छोड आए. परेड के परास परहुँच कर वर्हि उस परीपरल के परेड परर जा चढिा. और रात हिोने का इन्तजार करने लगा.

शेर,दानवर् और भालूर् रात में उस परेड के नीचे इकठ्ठे हुए और बातें करने लगे.सबने अपरनी-अपरनी वर्हिी बातें दुहिराई. अंधने बने उस आदमी ने उनके द्वारा बताए गए गुप्त रास्ते के बारे में सारी जानकािरयां ले ली थी और अब उसे रात बीतने का इन्तजार था


िदन िनकलते हिी वर्हि उस परेड से नीचे उतरा और बतलाए गए रास्ते से आगे बढिा. जैसे हिी वर्हि शेर की गुफ़ा में प्रवर्ेश करने लगा, तीनों ने उस परर हिमला बोल िदया और उसे खा डाला. बच्चॊं:- लोभ करने से िकतने घातक परिरणाम िमलते हिैं. यहि इस कहिानी से

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समझा जा सकता हिै

पयारर्धारवरिण चेतनार

बच्चों;- हम धरिती को अपनी मारँ कहकरि तो संबोिधत करिते है,लेिकन उसके गभर्धार से पैदार होने वारले पेडॊं को अपनार भारई कहकरि नहीं बुलारते औरि न ही उनके कारटिे जारने परि अपनार िवरिोध ही दजर्धार करिते है. आज बडी संख्यार मे पेडॊं को कारटिार जार रिहार है ,ि हजससे पयारर्धारवरिण परि संकटि आ खडार हुआ है . आप यह भली-भारंित जारनते ही है के पेड कारबर्धारन्डारइआक्सारइड गैस ,जो एक तरिह से िवष ही है ,को पीकरि हमाररिे िलए आक्सीजन बनारते है. यह सब कुछ जारनते


-बूझते हुए भी आज भौितक िवकारस के नारम परि बडी संख्यार मे पेडॊं को कारटिार जार रिहार है . जंगल अब नारम मारत को बचे है. वनों परि आिश्रत रिहने वारले पशु अब गारवों औरि शहरिों की ओरि पलारयन करिने लगे है ,ि हजसे मारनव के िलए खतरिार बत्तार करि उन्हे बेरिहमी से माररिार जार रिहार है . अब तो भ-ू मारिफ़यार अवैद्द तरिीकॊं से धरिती परि उगे पहारडॊं को खोदकरि उसे मिटियारमेटि िकए दे रिहे है. एक समय ऐसार भी आ सकतार है जब आप अपने ड्रारइंगरुम मे जंगलों से सजे िचतों को दे खकरि,अपने बच्चॊं को बतलारओगे िक जंगल इस तरिह के हुआ करिते थे आज पारनी को लेकरि एक नयार संकटि हमाररिे िसरि परि खडार होकरि नत्ृ य करि रिहार है . आज दे श की लगभग साररिी निदयारं प्रदिु ष त है. पीने योग्य पारनी नहीं बचार है . यिद हम समय रिहते

सचेत नहीं हुए तो

इसके भयंकरि पिरिण ारम भगतने के िलए हमे तैयाररि रिहनार होगार. वक्ष ु नहीं होंगे तो पारनी नहीं होगार औरि पारनी नहीं होगार तो हमाररिार-आपकार जीिवत रिहनार असंभव होगार. यह बारत ध्यारन मे रिखार जारनार आवश्यक है . पारनी को लेकरि तीसरिे िवश्वयुद्ध तक होने की भिवष्य वारण ी की गई है ,ि हजसे आज के संदभर्धार से जोडकरि दे खार जारनार चारिहए. भाररितीय संस्कृित अनारिदकारल से हे ही प्रकृित की आरिारधक रिही है . ि हजसले मूलभूत घटिक है-प्रकृित,पुरुष औरि पशु-पक्षी,ये तीनों सि हृ ष्टि के ही मत र्धार प है. हमाररिार परिम्परिारगत िवश्वारस रिहार है के जब तक इन तीनॊं ू रु मे परिस्परि सौहारदर्धार , सन्तुलन एवं भारवनारत्मक सह-संबध ं है ,तभी तक सि हृ ष्टि है औरि उसकार िनरिन्तरि िवकारस संभव है . जब इन तीनों तत्वों के


बीच परिस्परि सन्तुलन कार अभारव दि हॄ ष्टिगोचरि होने लगेगार तो प्रलय,मत्ृ यु,अकारल औरि िवनारश लीलार कार तारण्डव नत्ृ य होनार स्वारभारिवक है . पेडॊं की कमी होने परि वारयुमंदल मे गैसों कार सन्तल ु न िबगडेगार ि हजससे प्रदष ू ण मे विृ द्ध होगी.लेिकन भौितकवारदी संस्कृित मे वक्ष ृ लगारने औरि उनकी रिक्षार करिने की सच्ची भारवनार हम मे बची नहीं है .एक तरिफ़ वक्ष ू रिी तरिफ़ वक्ष ु गित से ृ ॊं के रिक्षारथर्धार शब्द िबछ रिहे है तो दस ृ द्रत कारटिे जार रिहे है..शब्दों औरि कारयों मे बीच की खारई इतनी चौडी है िक दे खकरि िवस्मय होतार है . मनुष कार स्वारथर्धार िकस हद तक जार पहुँचार है यह आप लोगों को बतलारने की आवश्यकतार नहीं है ि हजसे आप प्रत्यक्ष दे ख-सुन रिहे है. वक्ष ृ ॊं को बचारने के िलए असंख्य स्ती-पुरुष ॊं ने अपनी कुबारर्धारिनयार दी है . उनकी कुबारर्धारनी के िकस्से इितहारस के पन्नों परि आज भी दजर्धार है . िवश्नोई समारज ने पेडॊं को प्रारण ॊं की तरिह मारनकरि उसकी रिक्षार की औरि वनॊं को बचारने के िलए अपने प्रारण ॊं को होम करि िदयार.जोधपरिु रिारज्य कार ितलारसण ी गारँव आज भी गवारही दे ने को तैयाररि है िक वहारं प्रकृित की रिक्षार मे प्रारण ॊं की आहुित दी गई थी. श्रीमती खींवण ी खोखरि औरि नेतू िनण ार कार बिलदारन अकाररिण नहीं कहार जार सकतार. वे सदै व प्रेरिण ार पंज बनार रिहे गार. शतारि हब्दयारँ नमन करिती रिहे गी ऐसे बिलदारन की.


माररिवारड के खेजडली गारंव कार इितहारस एक दीप्त पष्ृ ठ बन चक ु ार है . इस बिलदारनी अिभयारन मे सवोपिरि नारम आतार है ,अमत ृ ार दे वी कार. वे प्रतीक है मिहलारओं के अपूवर्धार बिलदारन की, पयारर्धारवरिण के प्रित प्रेम की औरि धरिती मारतार के प्रित अटिूटि अनुरिारग औरि आस्थार की. 262 वष र्धार पुरिारनी घटिनार आज भी लोगो के लहू मे गमी कार संचाररि करिती है . पेडॊं की रिक्षार के िलए इतने व्यि हक्त शहीद हो जारएं,ऐसार दृष्टिारन्त खोजने परि भी नहीं िमलेगार. पयारर्धारवरिण चेतनार भाररितीय संस्कृित कार अटिूटि िहस्सार रिहार है . हमने सदार से ही उसे मारतभ ृ ारव से दे खार है -बहुत ही प्याररि से अपने बच्चे को स्तनपारन करिारने वारली मारँ के रूप मे . जो मारँ अपने रिक्त से बच्चे िक रिचनार करिे औरि दध ू से पारलन-पोष ण करिे , वह रिक्त औरि दध ू दोनो की कीमत जारनती है ,लेिकन बच्चार यिद दध ु ारनार शरु ु ू कार बदलार जहरि से चक करि दे औरि मारँ को ही रिक्त-रिं ि हजत करिने परि उताररु हो जारए तो मारत ृिशशु भारव स्वतः ही ितरिोिहत हो जारतार है . जननी प्रारयः कुिपत नहीं हुआ करिती,लेिकन जब मयारर्धारदार टिूटि जारए तो उसके कोप को झेलनार किठन हो जारतार है . मयारर्धारदार की रिक्षार के िलए वह अपने बच्चों की बिल दे ने मे उसे कोई िझझक नहीं होती. आज व्यि हक्तगत लारभ कमारने के िलए पयारर्धारवरिण संबंधी िनयमो एवं कारनन ू ॊं को बलारय तारक मे रिखकरि प्रकृित के सारथ िखलवारड िकयार जार रिहार है ,उसे तत्कारल ही रिोकार जारनार चारिहए. केवल कारनून बनार दे ने से


अपरिारिधक प्रविृ त रिोके नहीं रुक सकती. अतः सारमारि हजक चेतनार को जगारए जारने की आज महित आवश्यकतार है .

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दो हं सों कार जोडार.

रिारमदयारल एक धनी िकसारन थार,लेिकन वह बहुत ही आलसी थार. वह न तो अपने खेत दे खने जारतार औरि न ही अपने पशध ु न की खोजखबरि रिखतार थार. उसने अपनार साररिार कारम नौकरिों के भरिोसे छोड रिखार थार. धीरिे -धीरिे घरि की साररिी व्यवस्थार चौपटि होने लगी ,लेिकन उसने उस ओरि कभी ध्यारन ही नही िदयार. उसे खारने-पीने कार भी बेहद शौक थार. अतः वह अपने िलए लजीज व्यंजन बनवारतार. डटि करि खारतार औरि सोतार पडार रिहतार. घरि से िनकलनार भी उसने लगभग बंद करि िदयार थार .एक िदन ऐसार भी आयार िक वह िबमाररि रिहने लगार. उसने अपनार इलारज गारँव के प्रिसद्ध वैद्ध-हकीमॊं से करिवारयार,लेिकन स्वारस्थ्य मे कोई सध ु ाररि नहीं हुआ. उसे तो अब ऐसार भी लगने लगार थार िक अब वह शारयद ही बच पारएगार. इस बारत की खबरि गारँव के एक बुजुगर्धार को लगी तो वे उसे दे खने जार पहुँचे. कारफ़ी दे रि यहारँ-वहारँ की बारतचीत होती रिही. बारतों ही बारतों मे उस बुजुगर्धार ने उसकी दै िनक िदनचयारर्धार की साररिी जारनकारिरियारँ इकठ्ठी करि ली औरि सलारह दे ने की सोची. वे जारनते थे िक


रिारमप्रसारद शारयद ही उनकी बारतों परि सहजतार से अमल करिे गार. अतः उन्होने िबमाररिी कार इलारज मनोिवज्ञारिनक ढं ग से करिने की ठारनी उन्होंने कहार िक यिद वह जल्दी ही ठीक होनार चारहतार है तो उसे एक कारम करिनार होगार. कारम कोई किठन नहीं है ,यिद तम ु उसे करि सके तो अच्छे होने मे ज्यारदार समय नहीं लगेगार. बज ु ग ु र्धार की बारत सुनकरि उसे कुछ िदलारसार सी हुई. उसने अधीरि होकरि उसकार उपारय जारननार चारहार. बज ु ग ु र्धार ने िकसी औरि परि रिहस्य उजारगरि न करिने की सलारह दे ते हुए कहार;- सय ू ोदय के पूवर्धार, मारनसरिोवरि मे रिहने वारले दो हं सों कार जोडार उडते हुए तुम्हाररिे खेत मे उतरितार है . वह थॊडी दे रि आम के पेड परि बैठकरि सस् ु तारतार है औरि िफ़रि उड जारतार है. वे रिोज आएं ऐसार जरुरिी नहीं है ,लेिकन आते अवश्य है. जैसार िक तम ु जारनते ही हो िक हं स मोती खारते है. तम ु एक पारत मे वहारँ मोती भरि करि रिख दो. यिद हं सों ने तुम्हाररिे मोती खार िलए तो समझो, तुम्हाररिी साररिी िबमाररिी जारती रिहे गी औरि तुम पहले की तरिह भले -चंगे हो जारओगे. उपारय सरिल थार औरि उसके पारस कारफ़ी बडी मारतार मे मोितयों कार जखीरिार भी थार .उसने सहमत होते हुए कहार िक वह कारम कल सब ु ह से ही करिनार शुरु करि दे गार. रिारमप्रसारद भोरि होने के पहले ही जारग गयार. उसने अपने जेब मे कुछ मोती डारले औरि बडार सार पारत लेकरि खेत जार पहुँचार. आम के पेड के नीचे पारत को रिखते हुए उसने उसे मोितयों से भरि िदयार. औरि


छुपकरि हं सों कार इंतजाररि करिने लगार. सूयर्धार आसमारन मे चमचमारने लगार थार,लेिकन हं सों कार कहीं अतार-पतार न थार. वह यह सोच करि घरि वारपस लौटि आयार िक आज नहीं तो कल अवश्य ही वे आएगे . दस ू रिे िदन िफ़रि वह सूयोदय से पहले खेत जार पहुँचार. जेब से मोती िनकारल करि उसने उस पारत मे डारले औरि छुपकरि हं सों कार इंतजाररि करिने लगार. इस बाररि भी िनरिारशार ही हारथ लगी.यह क्रम लगारताररि कई िदनों तक चलतार रिहार. एक िदन, जब वह खेत पहुँचार औरि पारत मे मोती डारलने लगार तो उसकी आँखे आश्चयर्धार से फ़टिी रिह गई िक पारत मे मोती क्म मारतार मे शेष रिह गए है. उसे यह सोच करि प्रसन्न्तार होने लगी थी िक वह हं सॊं को तो दे ख नहीं पारयार,लेिकन उन्होंने कुछ मोती अवश्य ही चग ु िलए है. रिारमप्रसारद की अब िदनचयारर्धार बन गई थी िक वह रिोज सबेरिे उठने लगार थार. नौकरिों के बीच इस बारत को फ़ैलने मे दे रि नही लगी िक वह रिोज सब ु ह अपने खेतों परि पहुँचने लगार है . इसकार व्यारपक असरि पडार औरि अब वे ईमारनदाररिी से अपनार कारम करिने लगे थे. फ़सल भी खूब लहरिार रिही थी औरि पशु भी अब दध ू ज्यारदार दे ने लगे थे. यह सब दे ख करि उसे आश्चयर्धार होतार. एक सब ु ह ,जब वह हं सों के िलए मोती लेकरि जार रिहार थार िक रिारस्ते मे वही बुजुगर्धार व्यि हक्त आते िदखे. .रिारमप्रसारद ने हारथ जोडकरि उनकार अिभवारदन िकयार. बारत चल िनकली. उस बुजुगर्धार ने उससे पूछार िक


क्यार वह हं सों को दे खने मे सफ़ल हो पारयार है अथवार नहीं ?. तो प्रत्युत्तरि मे उसने कहार िक वह अब अब तक हं सों को दे खने मे सफ़लतार तो हारिसल नहीं करि पारयार है ,परि उसे इस बारत कार संतोष अवश्य है िक उसके द्वाररिार िदए गए मोितयों को हं स चग ु जरुरि रिहे है. औरि उसकार स्वारस्थ्य िदनों िदन सध ु रि रिहार है . यह उनकी कृपार कार ही पिरिण ारम है िक अब खेतों मे फ़सल खूब लहरिार रिही है औरि उसके पशु भी अब पहले से ज्यारदार दध ू दे रिहे है. रिारमप्रसारद की बारते सन ु करि वह बज ु ग ु र्धार व्यि हक्त ठहारकार लगार करि हं सने लगार. उसे इस तरिह हं सतार दे ख उसने आश्चयर्धार मे भरिते हुए, हं सने कार काररिण जारननार चारहार . उन्होंने कहार:-बेटिार, हं सों के आने की बारत िबल्कुल ही बेबुिनयारद है . वे न तो पहले कभी वहारँ आए थे औरि न ही भिवष्य मे कभी आएंगे. मैने हं सों के आने की बारत कहकरि तम ु मे एक आत्मिवश्वारस जगारने कार कारम िकयार थार .तम ु उन हं सों की खोज मे प्रितिदन उठकरि अपने खेत जारने लगे. इस तरिह तम ु प्रकृित के संपकर्धार मे आए. यह वह समय होतार है जब प्रारण वारयु प्रचुरि मारतार मे बहती है . इस तरिह तम ु जारने-अनजारने मे उसकार सेवन करिने लगे. िदन भरि खारटि परि पडार रिहने वारलार व्यि हक्त, जब दो मील प्रितिदन पैदल चलने लगे तो उसके स्वारस्थ्य मे पिरिवतर्धारन अपने आप आने लगतार है . इतनार कहकरि उस बज ु ुगर्धार व्यि हक्त ने अपनी जेब से उन साररिे मोितयों को िनकारलकरि उसे लौटिारते हुए कहार िक वे उसके पहुँचने से पहले कुछ मोती िनकारल िलयार करितार थार.ि हजससे उसके िवश्वारस को बल िमले.


रिारमप्रसारद को अच्छी तरिह समझ मे आ गयार िक पिरिश्रम ही वह सफ़ेद हं स है , ि हजनके पंख हमेशार उजले होते है. जो श्रम करितार है वह समारज मे सम्पि हत्त औरि सम्मारन पारतार है . उसने मन ही मन यह प्रण करि िलयार थार िक अब भिवष्य मे वह कभी भी पिरिश्रम से मँह ु नहीं चरिु ारएगार.

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लोक

प्रचिलत परहे िलयाँ

हिरा बदन मन भावर्न हिै, और मुख हिै सुन्दर लाल िमचर्ध चने परर वर्हि पराले, मानुष सा बोल कमाल. ( तोता) सोने की वर्हि चीज हिै,िबके हिाट बाजार एक ,अजूर्बा और हिै, हिाथ हिै उसके चार पराँवर् भी उसाके चार हिै,परर चलने से लाचार (चारपराई


हिरी थी मन भरी थी,लाख मोती जडी थी

राजाजी के बाग में, दुशाला ओढिे खडी थी (भुट्टा)

िबन अन्न परानी सदा चलती

आठो धनाम धनीरे -धनीरे बोलती, तुम बताओ उसका नाम

(

घडी) धनूर्पर लगे सूर्खे नहिीं,छांवर् लगे कु महिलाय वर्हि कौन सी चीज हिै,परवर्न लगे मर जाय

(परसीना.)

छॊटी सी मुिनया, दो हिाथ की परूर्छ ं जहिां चले मुिनया,वर्हिीं अटके परूर्छ ं

( सुई-धनागा.)

नवयुवकॊं के िलए)

53


सुखी जीवन प्रबन्धन के िलए अठाररिह शारबरि मंत. क्यार आप हरि कदम परि दिु नयार को जीतनार चारहते है ? क्यार आप हमेशार सुखी

औरि प्रसन्न रिहनार चारहते

है ? क्यार आप चारहते है िक लोग आपकार सम्मारन करिे ? यिद यह बारत िकसी युवक से पूछार जारए तो िनःसंदेह वह हारँ ही कहे गार. लेिकन इसके िलए आपको कुछ त्यारग-तपस्यार करिनार होगार. कुछ गण ु -सत ू सारधने होगे. आप दे खेगे िक वे साररिी शि हक्तयारँ आपमे

समारिहत होती जारएंगी औरि

आप न िसफ़र्धार स्वयं सख ु ी-प्रसन्न रिहे गे,बि हल्क अपने पारस-पडौस के लोगों के िलए भी एक आदशर्धार

के पारत सारिबत होगे औरि उन्हे भी प्रसन्न एवं

सुखी रिख सकेगे . बच्चॊं- जीवन कभी भी एक सरिल रिे खार की तरिह नहीं होतार. कभी वह समतल-सपारटि तो कभी उबड-खारबड भी होतार है . यिद आप आज सुखी है तो कल आप दख ु ी भी हो सकते है .तरिह-तरिह तरिीके की पिरि​ि हस्थितयारँ िनिमर्धारत होती रिहती है . बस यह आप परि िनभर्धाररि है िक आप उन्हे िकस ढं ग से लेते है औरि िकस तरिीके उन परि िवजय प्रारप्त करिते है. सुखी जीवन जीने के िलए आपकॊ अपनी सोच मे पिरिवतर्धारन लारनार होगार, अपनार नजिरियार बदलनार होगार ,एक सलीकार, एक तरिीकार तथार एक तरिकीब लारने की आवश्यकतार होगी मतलब स्वयं को मैनेज करिने की यहारँ आवश्यकतार होगी. तो आइये सख ु ी औरि सम्पन्न जीवन जीने के कुछ सत ु ,जो यहारँ िदए जार रिहे है उन्हे अपने

जीवन


मे उताररिे . आप दे खेगे िक आप मे वह उजारर्धार , वह शि हक्त समारिहत होती चली जार रिही है . सुखी

सम्पन्न

जीवन जीने के अठाररिह सत ू ीय महारमंत. ------------------------------------------------------------------1/- सोचनार:- सोच दो तरिह की होती है . एक सोच नकाररिारत्मक उजारर्धार वारली है जो हरि समय आपमे िनरिारशार कार भारव भरिती रिहती है . िनरिारशार कार भारव मन मे आते ही आप अपने आप को शि हक्तहीन समझने लगते है. िकसी कारम को करिने मे उत्सारह नहीं बनार रिहतार.कभी कभी िनरिारशार इस तरिह घेरिती है िक आपको संसाररि ही असाररि सार नजरि आने लगतार है औरि ऎसे समय मे

आप कोई गलत कदम भी

उठार सकते है .अतः अपने ऊपरि िनरिारशार को हारवी न होने दे . फ़ौरिन अपनी सोच को बदलने के िलए प्रयारस करिे औरि उससे फ़ौरिन छुटिकाररिार पारने कार उपारय खोजे.इसके िलए आप िकसी अच्छी िकतारब को हारथ मे लीि हजए औरि उसमे खो जारइये.अथवार कोई ऎसार उपारय खोि हजए ि हजससे आपकार मड ू उस िवचाररि से आपकॊ दरिू ले जारए. दस ु उजारर्धार ि हजसे ू रिी प्रमख हम सकाररिारत्मक उजारर्धार

कह सकते है ,को अपने जीवन मे उताररिे . यह उजारर्धार

आपको प्रसन्न तो रिखेगी ही सारथ ही नई-नई सोच से भी भरि दे गी. आप ि हजस भी कारम को हारथ मे लेगे, उसमे आपको सफ़लतारएँ प्रारप्त होती जारएगी.


२/-

पूछनार:- आपको यिद िकसी कारयर्धार की जारनकाररिी नहीं है तो

िनःसंकोच आप उसकी जारनकारिरियारँ प्रारप्त करिे , तारिक आप अपने कारम को संपूण त र्धार ार के सारथ करि सके. ३/- करिनार:- िनष्कारम भारवनार से िकयार गयार कारम आपको सफ़लतार ही नहीं िदलारतार बि हल्क सुख के भारव से भी लबरिे ज करि जारतार है . ४/- सध ु ाररिनार:- हरि व्यि हक्त अपारने आपमे संपूण र्धार रुप से सही नहीं होतार. अतः अपनी किमयों को पहचारने . उसे सध ु ाररिे . यह कृत्य आपको आत्मसंतुि हष्टि की रिारह परि ले जारतार है . ५- श्रेष्ठतार:- श्रेष्ठतार के भारव को लेकरि चलारने कार लक्ष्य बनारये. आप शीघ ही वह मंि हजल पार जारयेगे ि हजसकी आपको तलारश थी.६:-

सख ु

औरि

तलारश:- केवल अपने िलए ही सुख की लारलसार आपको अनेकों तनारवों को जन्म दे दे ती है . वही कारयर्धार करिे ि हजसमे आप समारज कार -दे श कार भलार करि सकते है. दस ू रिों को सुखी दे खकरि आप स्वयं भी अपने को सुखी महसूस करिे गे. ७:- प्रारथिमकतार तय करिे :-जब तक आप अपनार लक्ष्य नहीं बनारते , तब तक सफ़लतार अि हजर्धारत नहीं हो सकती .यहारँ यह कहारवत चिरितारथर्धार होती है ,” एक सारधे सब सधे,सब सारधे सब जारये ”.हमेशार लक्ष्य अथवार प्रथिमकतारओं को लेकरि चले. ८:- बदलारव लारये;_ अक्सरि गडबडी यहीं से शुरु होती है िक हम दिु नयार को बदलने के सपने पारलने लगते है . बेहतरि तो यह होगार िक हम अपने


आपमे पिरिवतर्धारन लारये, बदलारव लारये. आप दे खेगे िक आपके अपने बदलते ही ,लोगों मे यथारशीघ बदलारव आनार शरु ु हो जारतार है . ९- रिचनारत्मकतार औरि नयारपन:- कुछ ऎसार रिचनारत्मक कारयर्धार करिे जो सबसे हटिकरि हो औरि अनूठार हो. सरिल तरिीकों से औरि अलग ढं ग से कारयर्धार करिते रिहने से आपकार व्यि हक्तत्व प्रभारवकाररिी तथार असरिदारयक होने लगेगार. १०:-अनुशारसन:-सबसे पहले तो आप अपने आप परि अनश ु ारसन करिनार सीखे. पतार लगारये िक खुद मे क्यार-क्यार किमयारं है. कौन-कौन सी आदते खरिारब श्रेण ी मे आती है. उन्हे सध ु ाररिने कार प्रयारस करिे . धीरिे -धीरिे अभ्यारस करिने से बहुत साररिी बुरिारइयारं स्वयं दरिू होने लगती है . आपकार व्यि हक्तत्व िनखरिने लगतार है . आपकी वारण ी मे असारधाररिण ओज आने लगतार है , औरि आप दे खेगे िक ि हजस भी व्यि हक्त को आप उपदे श दे नार चारहते है, उस परि आपकार प्रभारव पडतार है औरि वह आपकार अन ुसरिण करिने लगतार है . ११:- सन ु नार औरि संवारद_ हम जरुरित से ज्यारदार ही बोलते है,ि हजसकार नकाररिारत्मक प्रभारव सुनने वारले परि पडतार है . अपनी न सुनारते हुए पहले सारमने वारले की पूरिी बारत सुने. जब वह अपनी पूरिी बारत सुनार चुके ,तब जारकरि अपनार मंतव्य दे . ऎसार करिने से आपके बीच संवारद कारयम होगार,जो असरिकाररिी होने के सारथ-सारथ प्रभारवी भी होगार.


१२:- सीखनार:- सीखने के कई तरिीके है ,ि हजसमे से मुख्य है सुननार, आत्ममंथन करिनार, अच्छार सारिहत्य पढनार औरि अच्छे लोगों को दे ख सुनकरि कुछ सीखनार. यारद रिखे- सन ु ने से ज्ञारन कभी व्यथर्धार नहीं जारतार. यह कतई जरुरिी नहीं है िक आपने जो कुछ भी सुनार, वह सब सत्य हो अथवार सत्य से नजदीक हो. उस सन ु ते हुए को गण ु नार अथारर्धारत आत्ममंथन करिते रिहने से िवकाररि उत्पन्न नहीं होते तथार आप अच्छे औरि बुरिे कारमॊं मे िवभेद करि सकते है . िकतारबे पढने से ज्ञारन मे श्रीविृ द्ध होती है . िवध्धार अजर्धारन से िवनय,धन तथार धमर्धार िक प्रारि हप्त होती है .,जो सुख कार काररिण बनतार है . ऎसे व्यि हक्त

ि हजसने अपने जीवन मे सद -िवचाररिों को उताररिार है ,

ि हजन्होने सद-सारिहत्य कार गहन अध्ययन –मनन िकयार है , उनसे भी कुछ सीखे औरि अपने जीवन मे उताररिे . १३-क्षमार करिनार:- भल ू िकससे नहीं होती. प्रारयः सभी लोग भल ू करिते ही रिहते है. अतः आपकार अपनार फ़जर्धार बनतार है िक उसे क्षमार करि दे . आपने से भी कोई भल ू हुई है तो क्षमार यारचनार सिहत अपनी भल ू गलती स्वीकाररिे . आप दे खेगे िक आपसे ज्यारदार सुखी औरि कोई हो ही नहीं सकतार. १४. प्रोत्सारहन दे नार:- खुद अपने आपको तथार अपने लोगों को प्रोत्सारहन दे नार न भल ू े . प्रोत्सारिहत रिहने से एवं प्रोत्सारिहत करिते रिहने से लक्ष्य जल्दी हारिसल िकयार जार सकतार है .


१५. दे नार:- अपनों को मदद दे ने से कभी पीछे नहीं हटिे . ि हजन्दगी मे लेन-दे न चलतार ही रिहतार है . दो औरि लो औरि िफ़रि दो- यह आपको ज्यारदार सुख दे गार. १६- सफ़लतार औरि संतुि हष्टि:- सफ़लतार आकि हस्मत है . छॊटिी-छॊटिी चीजे शारनदाररि ढं ग से करिते रिहे . संति हु ष्टि अपने आप आएगी. १७. ग्रारहकीकरिण :- जीवन खुद एक व्यारपाररि की तरिह है . यहारँ लेनार-दे नार, खोनार-पारनार सतत चलते ही रिहतार है . लेिकन आपकार अपनार लक्ष्य स्पष्टि होनार चारिहए. जीवन मे सख ु कम औरि दख ु ज्यारदार है . जो कम है लोग उसे ही लेनार चारहते है. यारद रिखे-सुख बारंटिने से सख कम नहीं होतार ु ,बि हल्क बढतार ही रिहतार है . यिद आप ऎसार करि सके तो आपसे बढकरि सुखी औरि कोई हो ही नहीं सकतार. १८- लोग:- जब आप िकसी अच्छे कारयर्धार िक शरु ु आत करिते है तो ,आलोचनारएं भी जरुरि होगी. इसकी परिवारह न करिे . यारद रिखे-जब भी आप िकसी कारम को करिते है,तब अकेले होते है. धीरिे -धीरिे लोगों की भीड भी आपके पीछे हो लेती है . महारत्मार गारंधी कार उदारहरिण हमाररिे सारमने है . जब वे भाररित की आजारदी कार सपनार लेकरि चले थे तो सवर्धारथार अकेले थे . िफ़रि पूरिार दे श ही उनके सारथ हो िलयार थार. अंत मे - महारन

िवचाररिक तथार सारिहत्यकाररि जमी टिे लरि ने

कहार थार:_ कमर्धार कार बीज बोओ औरि स्वभारव की फ़सल कारटिॊ. स्वभारव की बीज बोओ औरि चिरित की फ़सल कारटिॊ. चिरित कार बीज बोओ औरि भारग्य की फ़सल कारटिॊ.


हमाररिे वेद-पुरिारण भी यही कहते है- “ सवे भवन्तु सुिखनः, सवे सन्तु िनरिारमयार सवे

भद्रारिण

पश्यन्त,ु मार

कि हश्चद

दख ु ारत.” ु मारप्नय

.

54

लोकिप्रय लोकोिक्तियाँ

१/-आए हिो बखत परे, बैठो जी तखत परे अथर्ध- दुखी आदमी को सांत्वर्ना देना

२/- आषाढि का चूर्का िकसान, डाल से चूर्का बन्दर

अथर्ध- समय का महित्वर् ३/- अल्लाहि की गाय, खुदा रखवर्ाला अथर्ध- दूर्सरों परर आिश्रत रहिना. ४/-आए धननी का जाय धननी का, दो परूर्सर से काम अथर्ध-अपरनी-अपरनी परेलना. ५/- आधनी

को छोड सैगी को धनावर्े, आधनी िमले न परूर्री परावर्े. अथर्ध-लोभ का फ़ल खराब हिोता हिै.


६/-अंधने के आगे रोना, अपरने दीदा खोना.

अथर्ध- िनदर्धयी

के आगे अपरनी करुण कथा कहिना व्यथर्ध हिै. ७/-आगी लागी तोरी परोथी में, ध्यान धनरओ मेरी रोटी में अथर्ध- अज्ञानी आदमी के सामने ज्ञान की बातें कहिना व्यथर्ध हिै.

८/-

अपरना बछडा परराई गाय का दूर्धन परीए तो क्या बुरा हिै. अथर्ध- अनायास प्राप्त हिोने वर्ाले लाभ को मना मत करो. ९/- अवर्सर चूर्के डोमनी, गाए राग मल्हिार अथर्ध- अवर्सर बीत जाने परर उत्तम गुणॊं का प्रदशर्धन करना व्यथर्ध हिै. १०/-अंधना मुगार्ध, चक्की के आसपरास थर्ध- एक हिी स्थान परर बने रहिना. ११/- अस्सी का काम, चौरासी का खचर्ध. अथर्ध- आमदनी से अिधनक खचर्ध. १२/-आठ हिाथ की ककडी, नौ मन का बीज अथर्ध-िकसी बात को बढिा-चढिा कर बतलाना. १३/-अफ़ीम मांगे मीठा, गांजा मांगे घी,दारु मांगे जूर्ता, परी सके तो परी. अथर्ध-० शराब खोरी वर्ालों को नसीहित


१४/- अपरना माल खोटा तो पररखैया का क्या दोष

अथर्ध-

जब अपरने माल में दोष हिो तो बुरा कहिने वर्ाले की बुराई क्यों की जाए. १५/-अंधने को अंधनेरे में दूर्र की सूर्झी अथर्ध-मुखर्ध व्यिक्ति द्वारा बुिद्धमानी की बात करना.

55 बूर्झो तो जाने. १/- आठ काठ का िपरजरा, िबना िसरे की डोर लगी नाचने बीनणी, िदखै ओर न छोर( चरखा,) २/-औघर घाट घडा नहिीं डूर् बे, हिाथी खडा नहिाय परीपरल परॆड फ़ु नग तक डूर् बे, िचिडया प्यासी जाए.( ओंस) ३/अगल-बगल घास फ़ूर् स, बीच में तबेला िदन भर तो भीड-भाड,रात मे अके ला( कुं आ) ४/- आधना परास


कु महिार के , आधना सबके परास सारा भी िमल जाएगा, जा जंगल के परास ( खरगोश) ५/- अत्थर परर परत्थर, परत्थर परर जंजाल खाओ, शुभ में फ़ोड दो, करो न कोई सवर्ाल (नािरयल) ६/- अन्त कटॆ तो बनता कौआ, प्रथम कटॆ तो हिाथी

मध्य कटॆ तो

काम बने, मैं हूँ सबका साथी (कागज) ७/- अण्डा धनरे , सेवर्े नहिीं,परंखा नहिीं समाये मां बापर को अंग िछपराके ,हिोत परराई जात( इल्ली)

८/-

आठ बजो परेड जमॊ, बारहि बजे हि​िरयाल दो बजे फ़ल फ़ूर् ल में, चार बजे झर जाये( बाजार) ९/-इंच भर हूँ, परर मूर्छ बडी, िबन मारे िचल्लाता हूँ

रात

में िनकलूर्ं, िदन में सोऊं, स्वर्र तीखा िबखराता हूँ( झींगुर) १०/- ईट हिै परर मकान नहिीं, इक्के हिैं,कोचवर्ान नहिीं िबना तिमली िछतरे परान, राजा रानी ना दरबान( ताश)


56 आसमान में उडते परक्षी अपरनी उडान-गित का स्वर्यं िनधनार्धरण करते हिैं बच्चों, आसमान में उडते परक्षी अपरनी उडान की गित को स्वर्यं िनधनार्धिरत करते हिैं. कहिां कब, िकतनी गित से उडान भरना हिै, कहिां उसमें कमी लाना हिै और िकस गित से, िकस िदशा में मुड जाना हिै आिद-आिद का ध्यान रखते हिैं. वर्ैसे भी आसमान में कोई गितरोधन तो हिोता नहिीं हिै और न हिी कोई उसकी सीमा. असीिमत हिोता हिै


आकाश. इस असीिमत आकाश में उन्हिें कब क्या करना हिै और क्या नहिीं करना हिै, इसकी जानकारी उन्हिें प्रकृ ित के वर्रदान स्वर्रुपर िमली हुई हिोती हिै. एक उदाहिरण से इसे समझा जा सकता हिै. मान लीिजए कोई कार अपरनी िनधनार्धिरत गित परचास िकमी प्रित घंटा की रफ़्तार से दौड रहिी हिै, जब वर्हि कार िकसी परक्षी से परन्द्रहि मीटर दूर्र रहि जाती हिै, तो वर्हि फ़ु ती से उडान भरता हिै. यिद वर्हिी कार 110 िकमी की रफ़्तार से दौड रहिी हिो तो वर्हि 75 मीटर दूर्र रहिते हिी उडान भर लेता हिै. इससे स्परष्ट हिै िक परक्षी आती हुई कार की गित का नहिीं बिल्क उस सडक परर िनधनार्धिरत गित सीमा के अनुसार व्यवर्हिार करता हिै. आिखत यहि कै से हिोता हिै? शोधनकतार्धओं के अनुसार परक्षी इन कारॊं को िशकारी समझता हिैं जो द्रुतगित से उनके तरफ़ बढि रहिा हिोता हिै जो उनके िलए खतरनाक भी िसद्ध हिो सकता हिै. शोधनकतार्धओं ने यहि भी देखा िक मौसम का असर भी इस बात परर परडता हिै िक परक्षी कार के िकतने परास आने परर उड जाएंगे.?. आम तौर परर वर्संत के मौसम में वर्े कार को ज्यादा नजदीक आने देते हिैं जबिक शरद ऋतु में वर्े ज्यादा सावर्धनािनयां बरतते हिैं. इसके परीछे दो प्रमुख कारण हिो सकते हिैं. परहिला तो यहि िक वर्संत ऋतु में परक्षी वर्ैसे हिी फ़ु तीला हिोता हिै और कार के परास आने तक बैठकर इं तजार कर सकता हिै. दूर्सरा यहि िक वर्संत में सडकों परर बैठे ज्यादतर परक्षी जो अभी िशशु हिैं और हिाल में हिी उडना सीख रहिे हिोते हिैं, सडक के िनयमों से परिरिचत हिो रहिे हिोते हिैं. जो भी हिो, समय के अनुसार वर्े अपरना व्यवर्हिार परिरिस्थितयों के अनुसार ढिालने में सक्षम हिोते हिैं.


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