मैं कहता आँखन देखी (देश – परदेश की यात्रा संस्मरण)
गोवर्धनर्धन यादवर्
1 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मैं कहता आँखन देखी (यात्राएं देश-िवर्देश की)
अनुक्रम 1.पातालकोट 2. छत्तीसगढ का खजुराहो-भोरमदेवर्
3.शेरों के बीच एक िदन
4.यात्रा बदरीनाथ धनाम की
5.सत्याग्रह मंडप गांधनी दशर्धन राजघाट
6.स्वर्ामीनारायण अक्षरधनाम
7 बाल संगोष्ठी के बहाने उत्तराखण्ड की यात्रा
8.उत्तरकाशी की यात्रा
9.तालखमरा 10.गोटमार मेला
2 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
11.थाईलैंड में समुद्र मंथन
12.यात्र अमरनाथ धनाम की
13 सािहत्य समागम के साथ श्रीनाथद्वारा के िदव्य दशर्धन
14.मारीशस यानी िमनी भारत की यात्रा
15
पाटर्ध 2
16
पाटर्ध.3
17
पाटर्ध.4
18
पाटर्ध.5
19
पाटर्ध.6
20
पाटर्ध.7
21
समापन िकस्त.
3 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
पिरचय *नाम--गोवर्धनर्धन यादवर् *िपता-. स्वर्.श्री.िभककु लाल यादवर् *जनम स्थान -मुल ताई.(िजला) बैत ुल .म.प. * जनम ितिथ- 17-7-1944 *िशक्षा - स्नातक *तीन दशक पूर्वर्र्ध किवर्ताऒं के माध्यम से सािहत्य-जगत में पवर्ेश *देश की स्तरीय पत्र-पित्रकाओं में रचनाओं का अनवर्रत पकाशन *आकाशवर्ाणी से रचनाओं का पकाशन *करीब पच्चीस कृत ितयों पर समीक्षाएं
कृत ितयाँ पंचकु ला(हिरयाणा)
* महुआ के वर्ृतक्ष ( कहानी संग्रह ) सतलुज पकाशन
*तीस बरस घाटी (कहानी संग्रह,) वर्ैभवर् पकाशन रायपुर(छ,ग.) * अपना-अपना आसमान (कहानी संग्रह) शीघ्र पकाश्य. *एक लघुकथा संग्रह, शीघ्र पकाश्य.
सममान
*म.प.िहनदी सािहत्य सममेलन िछनदवर्ाडा
द्वारा”सारस्वर्त सममान”
*राष्ट्रीय राजभाषापीठ इलाहाबाद द्वारा “भारती
रत्न “
*सािहत्य सिमित मुलताई द्वारा” सारस्वर्त
सममान”
*सृतजन सममान रायपुर(छ.ग.)द्वारा” लघुकथा
गौरवर् सममान”
*सुरिभ सािहत्य संस्कृत ित अकादमी खण्डवर्ा द्वारा
कमल सरोवर्र दुष्यंतकु मार सममान
*अिखल भारतीय बालसािहत्य संगोष्टी भीलवर्ाडा(राज.)
द्वारा”सृतजन सममान”
*बालपहरी अलमोडा(उत्तरांचल)द्वारा सृतजन श्री सममान *सािहित्यक-सांस्कृत ितक कला संगम अकादमी
पिरयावर्ां(पतापगघ्ह)द्वारा “िवर्द्धावर्चस्पित स.
*सािहत्य मंडल श्रीनाथद्वारा(राज.)द्वारा “िहनदी
4 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
भाषा भूर्षण”सममान
*राष्ट्रभाषा पचार सिमित
वर्धनार्ध(महाराष्ट्र)द्वारा”िवर्िशष्ठ िहनदी सेवर्ी सममान
*िशवर् संकल्प सािहत्य पिरषद
नमर्धदापुरम होशंगाबाद द्वारा”कथा िकरीट”सममान “
*तृततीय अंतराष्ट्रीय िहनदी सममेलन
बैंकाक(थाईलैण्ड) में “सृतजन सममान.
*पूर्वर्ोत्तर िहनदी अकादमी िशलांग(मेघालय)
द्वारा”डा.महाराज जैन कृत ष्ण स्मृतित सममान.
* मारीशस यात्रा(23-29 मई 2014) कला एवर्ं
संस्कृत ित मंत्री श्री मुखेश्वर मुखी द्वारा सममानीत
* सािहत्यकार सममान समारोह बैतूर्ल में सृतजन-साक्षी सममान (
जूर्न-२०१४
* िवर्वर्ेकाननद शैक्षिणक, सांस्कृत ितक एवर्ं क्रीडा संस्थान देवर्घर(झारखण्ड) द्वारा
राष्ट्रीय िशखर सममान.
* तुलसी सािहत्य अकादमी भोपाल द्वारा सममानीत-०३-०८-२०१
िवर्शेष उपलिबधनयाँ:-औद्धोिगक नीित और संवर्धनर्धन िवर्भाग के
सरकारी कामकाज में िहनदी के पगामी पयोग
से संबंिधनत िवर्षयों तथा गृतह मंत्रालय,राजभाषा िवर्भाग द्वारा िनधनार्धिरत नीित में सलाह देने के िलए वर्ािणज्य और उद्धोग मंत्रालय,उद्धोग भवर्न नयी िदल्ली में “सदस्य” नामांिकत (2)के नद्रीय िहनदी िनदेशालय( मानवर् संसाधनन िवर्कास मंत्रालय) नयी िदल्ली द्वारा_कहानी संग्रह”महुआ के वर्ृतक्ष” तथा “तीस बरस घाटी” की खरीद की गई.
संप ित
सेवर्ािनवर्ृतत पोस्टमास्टर(एच.एस.जी.1* संयोजक राष्ट्र भाषा पचार सिमित िजला इकाई िछ.
फ़ोन.नमबर—07162-246651 (चिलत) 09424356400
Email= yadav.goverdhan@rediffmail.com (2) goverdhanyadav44@gmail.com
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पातालकोट-धनरती पर एक अजूर्बा गगनचुंबी इमारतें, सडकों पर फ़रार्धटे भरती रं ग-िबरं गी-चमचमाती लकजरी
कारें ,मोटरगािडयां और न जाने िकतने ही कल-कारखाने, पलक झपकते ही आसमान में उड जाने वर्ाले वर्ायुयान, समुद्र की गहराइयों में तैरतीं पनडु िबबयाँ, बडॆ-बडॆ स्टीमर,-जहाज आिद को देख कर आपके मन में तिनक भी कौतुहल नहीं होता. होना भी नहीं चािहए,कयोंिक आप उनहें रोज देख रहे होते हैं,उनमे सफ़र कर रहे होते हैं. यिद आपसे यह कहा जाय िक इस धनरती ने नीचे भी यिद कोई मानवर् बस्ती हो,जहाँ के आिदवर्ासीजन हजारों-हजार साल से अपनी आिदम संस्कृत ित और रीित-िरवर्ाज को लेकर जी रह रहे हों, जहाँ चारों ओर बीहड जंगल हों, जहाँ आवर्ागमन के कोई साधनन न हो, जहाँ िवर्षैले जीवर् जनतु, िहसक पशु खुले रुप में िवर्चरण कर रहे हों, जहाँ दोपहर होने पर ही सूर्रज की िकरणें अनदर झांक पाती हो, जहाँ हमेशा 5 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
धनुंधन सी छाई रहती हो, चरती भैंसॊं को देखने पर ऐसा पतीत है,जैसे कोई काला सा धनबबा चलता-िफ़रता िदखलाई देता है. सच मािनए ऐसी जगह पर मानवर्-बस्ती का होना एक गहरा आश्चर्यर्ध पैदा करता है. जी हाँ, भारत का हृदय कहलाने वर्ाले मध्यपदेश के िछनदवर्ाडा िजले से 78 िकमी. तथा तािमया िवर्कास खंड से महज 23 िकमी.की दूर्री पर िस्थत “पातालकोट” को देखकर ऊपर िलखी सारी बातें देखी जा सकती है. समुद्र ् सतह से 3250 फ़ीट ऊँचाई पर तथा भूर्तल से 1200 से 1500 फ़ीट ग हराई में यह कोट यािन “पातालकोट” िस्थत है.
(पातालकोट
का िवर्हंगम दृतष्य.),
हमारे पुरा आख्यानों में “पातालकोट” का िजक्र बार-बार आया है.”पाताल” कहते ही हमारे मानस-पटल पर ,एक दृतष्य तेजी से उभरता है. लंका नरे श रावर्ण का एक भाई,िजसे अिहरावर्ण के नाम से जाना जाता था, के बारे में पढ चुके हैं िक वर्ह पाताल में रहता था. राम-रावर्ण युद्ध के समय उसने राम और लक्ष्मण को सोता हुआ उठाकर पाताललोक ले गया था,और उनकी बिल चढाना चाहता था,तािक युद्ध हमेशा-हमेशा के िलए समाप्त हो जाए. इस बात का पता जैसे ही वर्ीर हनुमान को लगता है वर्े पाताललोक जा पहुँचते हैं. दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है,और अिहरावर्ण मारा जाता है.उसके मारे जाने पर हनुमान उनहें पुनः युद्धभूर्िम पर ले आते हैं. पाताल अथार्धत अननत गहराई वर्ाला स्थान. वर्ैसे तो हमारे धनरती के नीचे सात तलॊं की कल्पना की गई है-अतल, िवर्तल, सतल, रसातल, तलातल, महातल,तथा महातल के नीचे पाताल.. शबदकोष में कोट के भी कई अथर्ध िमलते हैं=जैसे6 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
दुगर्ध, गढ, पाचीर, रं गमहल और अंग्रेजी ढंग का एक िलबास िजसे हम कोट कहते है. यहाँ कोट का अथर्ध है-चट्टानी दीवर्ारें , दीवर्ारे भी इतनी ऊँची ,की आदमी का दपर्ध चूर्र-चूर्र हो जाए. कोट का एक अथर्ध होता है-कनात. यिद आप पहाडी की तलहटी में खडॆ हैं,तो लगता है जैसे कनातों से िघर गए हैं. कनात की मुंडॆर पर उगे पॆड-पौधने, हवर्ा मे िहचकोले खाती डािलयाँ,,हाथ िहला-िहला कर कहती हैं िक हम िकतने ऊपर है. यह कनात कहीं-कहीं एक हजार दो सौ फ़ीट, कहीं एक हजार सात सौ पचास फ़ीट, तो कहीं खाइयों के अंतःस्थल से तीन हजार सात सौ फ़ीट ऊँची है. उत्तर-पूर्वर्र्ध में बहती नदी की ओर यह कनाट नीची होती चली जाती है. कभी-कभी तो यह गाय के खुर की आकृत ित में िदखाई देती है. पातालकोट का अंतःक्षेत्र िशखरों और वर्ािदयों से आवर्ृतत है. पातालकोट में, पकृत ित के इन उपादानों ने, इसे अिद्वतीय बना िदया है. दिक्षण में पवर्र्धतीय िशखर इतने ऊँचे होते चले गए हैं िक इनकी ऊँचाई उत्तर-पिश्चर्म में फ़ै लकर इसकी सीमा बन जाती है. दूर्सरी ओर घािटयाँ इतनी नीची होती चली गई है िक उसमें झांककर देखना मुिश्कल होता है . यहाँ का अदभुत नजारा देखकर ऐसा पतीत होता है मानो िशखरों और वर्ािदयों के बीच होड सी लग गई हो. कौन िकतने गौरवर् के साथ ऊँचा हो जाता है और कौन िकतनी िवर्नम्रता के साथ झुकता चला जाता है. इस बात के साक्षी हैं यहाँ पर ऊगे पेड-पौधने,जो तलहिटयों के गभर्ध से, िशखरों की फ़ु निगयों तक िबना िकसी भेदभावर् के फ़ै ले हुए हैं. पातालकोट की झुकी हुई चट्टानों से िनरनतर पानी का िरसावर् होता रहता है. यह पानी िरसता हुआ ऊँचें-ऊँचे आम के वर्ृतक्षॊं के माथे पर टपकता है और िफ़र िछतरते हुए बूर्द ं ॊं के रुप में खोह के आँगन में िगरता रहता है . बारहमासी बरसात में भींगकर तन और मन पुलिकत हो उठते है.
आिदवर्ासी पॆड के नीचे सुस्ताता हुआ (पसन्नचिचत आिदवर्ासी जडी-बूर्टी िदखाता हुआ.) 7 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
अपने इष्ट, देवर्ों के देवर् महादेवर्, इनके आराध्य देवर् हैं. इनके अलावर्ा और भी कई देवर् हैं जैसेमढु आदेवर्,हरदुललाला, पनघर, ग्रामदेवर्ी, खेडापित, भैंसासर, चंडीमाई, खेडामाई, घुरलापाट, भीमसेनी, जोगनी, बाघदेवर्ी, मेठोदेवर्ी आिद को पूर्जते हुए अपनी आस्था की लौ जलाए रहते हैं, वर्हीं अपनी आिदम संस्कृत ित, परमपराओं ,रीित-िरवर्ाजों, तीज-त्योहारों मे गहरी आस्था िलए शान से अपना जीवर्न यापन करते हैं. ऐसा नहीं है िक यहां अभावर् नहीं है. अभावर् ही अभावर् है,लेिकन वर्े अपना रोना लेकर िकसी के पास नहीं जाते और न ही िकसी से िशकवर्ा-िशकायत ही करते हैं. िबत्ते भर पेट के गढ्ढे को भरने के िलए वर्नोपज ही इनका मुख्य आधनार होता है. पारं पिरक खेती कर ये कोदो- कु टकी, -बाजरा उगा लेते हैं. महुआ इनका िपय भोजन है .महुआ के सीजन में ये उसे बीनकर सुखाकर रख लेते हैं और इसकी बनी रोटी बडॆ चावर् से खाते हैं . महुआ से बनी शराब इनहें जंगल में िटके रहने का जज्बा बनाए रखती है. यिद िबमार पड गए तो तो भुमका-पिडहार ही इनका डाकटर होता है. यािद कोई बाहरी बाधना है तो गंडा-ताबीज बांधन कर इलाज हो जाता है. शहरी चकाचौंधन से कोसों दूर्र आज भी वर्े सादगी के साथ जीवर्न यापन करते हैं. कमर के इदर्ध-िगदर्ध कपडा लपेटे, िसर पर फ़िडया बांधने, हाथ में कु ल्हाडी अथवर्ा दराती िलए. होठॊ पर मंद-मंद मुस्कान ओढे ये आज भी देखे जा सकते हैं. िवर्कास के नाम पर करोडॊ-अरबॊं का खचार्ध िकया गया, वर्ह रकम कहां से आकर , चली जाती है, इनहें पता नहीं चलता और न ही ये िकसी के पास िशकायत-िशकवर्ा लेकर नहीं जाते. िवर्कास के नाम पर के वर्ल कोट में उतरने के िलए सीिढयां बना दी गयी है,लेिकन आज भी ये इसका उपयोग न करते हुए अपने बने –बनाए रास्तों-पगडंिडयों पर चलते नजर आते हैं. सीिढयों पर चलते हुए आप थोडी दूर्र ही जा पाएंगे,लेिकन ये अपने तरीके से चलते हुए सैकडॊं फ़ीट नीचे उतर जाते हैं. हाट-बाजार के िदन ही ये ऊपर आते हैं और इकाठ्ठा िकया गया वर्नोपज बेचकर, िमट्टी का तेल तथा नमक आिद लेना नहीं भूर्लते. जो चीजें जंगल में पैदा नहीं होती, यही उनकी नयूर्नतम आवर्श्यकता है. एक खोज के अनुसार पातालकोट की तलहटी में करीब 20 गाँवर् सांस लेते थे, लेिकन पाकृत ितक पकोप के चलते वर्तर्धमान समय में अब के वर्ल 12 गाँवर् ही शेष बचे हैं. एक गाँवर् में 4-5 अथवर्ा सात-आठ से ज्यादा घर नहीं होते. िजन बारह गांवर् में ये रहते हैं, उनके नाम इस पकार हैरातेड, िचमटीपुर, गुंजाडोंगरी, सहरा, पचगोल, हरिकछार, सूर्खाभांड, घुरनीमालनी, िझरनपलानी, गैलडु बबा, घटिलग, गुढीछातरी. सभी गांवर् के नाम संस्कृत ित से जुडॆ-बसे हैं. भािरयाओं के शबदकोष में इनके अथर्ध धनरातलीय संरचना, सामािजक पितष्ठा, उत्पादन िवर्िशष्टता इत्यािद को अपनी संपूर्णर्धता में समेटे हुए है. ये आिदवर्ासीजन अपने रहने के िलए िमट्टी तथा घास-फ़ूर् स की झोपिडयां बनाते है. दीवर्ारों पर खिडया तथा गेरू से पतीक िचनह उके रे जाते हैं .हँिसया-कु ल्हाडी तथा लाठी इनके पारं पिरक औजार है. ये िमट्टी के बतर्धनों का ही उपयोग करते हैं. ये अपनी धनरती को माँ का दजार्ध देते हैं. अतः उसके सीने में हल नहीं चलाते.
8 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
बीजों को िछडककर ही फ़सल उगाई जाती है.. वर्नोपज ही उनके जीवर्न का मुख्य आधनार होता है. पातालकोय़ में उतरने के और चढने के िलए कई रास्ते हैं. रातेड-िचमटीपुर और कारे आम के रास्ते ठीक हैं. रातेड का मागर्ध सबसे सरलतम मागर्ध है, जहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है. िफ़र भी संभलकर चलना होता है. जरा-सी भी लापरवर्ाही िकसी बडी दुघर्धटना को आमंित्रत कर सकती है. पातालकोट के दशर्धनीय स्थलों में ,रातेड, कारे आम, िचमटीपुर, दूर्धनी तथा गायनी नदी का उद्गम स्थल और राजाखोह पमुख है. आम के झुरमुट, पयर्धटकॊं का मन मोह लेती है. आम के झुरमुट में शोर मचाता- कलकल के स्वर्र िननािदत कर बहता सुनदर सा झरना, कारे आम का खास आकषर्धण है. रातेड के ऊपरी िहस्से से कारे आम को देखने पर यह ऊँट की कूर् बड सा िदखाई देता है . राजाखोह पातालकोट का सबसे आकषर्धक और दशर्धनीय स्थल है. िवर्शाल कटॊरे मे मािनद ,एक िवर्शाल चट्टान के नीचे 100 फ़ीट लंबी तथा 25 फ़ीट चौडी कोत(गुफ़ा) में कम से कम दो सौ लोग आराम से बैठ सकते हैं. िवर्शाल कोटरनुमा चट्टान, बडॆ-बडॆ गगनचुंबी आम-बरगद के पेडॊं, जंगली लताओं तथा जडी-बूर्िटयों से यह ढंकी हुई है. कल-कल के स्वर्र िननािदत कर बहते झरनें, गायनी नदी का बहता िनमर्धल ,शीतल जल, पिक्षयों की चहचाहट, हरार्ध-बेहडा-आँवर्ला, आचारककई एवर्ं छायादार तथा फ़लदार वर्ृतक्षॊं की सघनता, धनुंधन और हरितमा के बीच धनूर्प-छाँवर् की आँख िमचौनी, राजाखोह की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है. और उसे एक पयर्धटन स्थल िवर्शेष का दजार्ध िदलाता हैं. नागपुर के राजा रघुजी ने ,अँगरे जों की दमनकारी नीितयों से तंग आकर मोचार्ध खोल िदया था, लेिकन िवर्परीत पिरिस्थितयाँ देखकर उनहोंने इस गुफ़ा को अपनी शरण-स्थली बनाया था, तभी से इस खोह का नाम “राजाखोह” पडा. राजाखोह के समीप गायनी नदी अपने पूर्रे वर्ेग के साथ चट्टानों कॊ काटती हुई बहती है. नदी के शीतल तथा िनमर्धल जल में स्नान कर वर् तैरकर सैलानी अपनी थकान भूर्ल जाते हैं . पातालकोट का जलपवर्ाह उत्तर से पूर्वर्र्ध की ओर चलता है. पतालकोट की जीवर्न-रे खा दूर्धनी नदी है, जो रातेड नामक गाँच के दिक्षणी पहाडॊं से िनकलकर घाटी में बहती हुई उत्तर िदशा की ओर पवर्ािहत होती हुई पुनः पूर्वर्र्ध की ओर मुड जाती है. तहसील की सीमा से सटकर कु छ दूर्र तक बहने के बाद, पुनः उत्तर की ओर बहने लगती है और अंत में नरिसहपुर िजले में नमर्धदा नदी में िमल जाती है. पातालकोट का आिदम- सौंदयर्ध जो भी एक बार देख लेता है, वर्ह उसे जीवर्न पयर्यंत नहीं भूर्ल सकता. पातालकोट में रहने वर्ाली जनजाित की मानवर्ीय धनडकनों का अपना एक अदभुत संसार है ,जो उनकी आिदम परं पराओं, संस्कृत ित,रीित-िरवर्ाज, खान-पान, नृतत्य-संगीत, सामानयजनों के िक्रयाकलापॊं से मेल नहीं खाते. आज भी वर्े उसी िनश्छलता,सरलता तथा सादगी में जी रहे हैं.
9 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
यहाँ पाकृत ितक दृतष्यों की भरमार है. यहाँ की िमट्टी में एक जादुई खुशबूर् है, पेड-पौधनों के अपने िनराले अंदाज है, नदी-नालों में िनबार्धधन उमंग है, पशु-पिक्षयों मे िनद्वर्यंद्वता है ,खेत- खिलहानों मे श्रम का संगीत है, चारो तरफ़ सुगंधन ही सुगंधन है, ऐसे मनभावर्न वर्ातावर्रण में दुःख भला कहाँ सालता है?. किठन से किठन पिरिस्थितयाँ भी यहाँ आकर नतमस्तक हो जाती है
सूर्रज के पकाश में नहाता-पुननर्धवर्ा
होता- िखलिखलाता-मुस्कु राता- खुशी से झूर्मता- हवर्ा के संग िहचकोले खाता- जंगली जानवर्रों की गजर्धना में कांपता- कभी अनमना तो कभी झूर्मकर नाचता जंगल, खूर्बसूर्रत पेड-पौधने, रं ग-िबरं गे फ़ूर् लों से लदी-फ़दी डािलयाँ, शीतलता और ,मंद हास िबखेरते, कलकल के गीत सुनाते, आकिषत झरने, नदी का िकसी रुपसी की तरह इठलाकर- बल खाकर, मचलकर चलना देखकर, भला कौन मोिहत नहीं होगा ?. जैसे –जैसे सांझ गहराने लगती है,और अनधनकार अपने पैर फ़ै लाने लगता है, तब अनधनकार में डूर् बे वर्ृतक्ष िकसी राक्षस की तरह नजर आने लगते है और वर्ह अपने जंगलीपन पर उतर आते हैं. िहसक पशु-पक्षी अपनी-अपनी मांद से िनकल पडते हैं, िशकार की तलाश में. सूर्रज की रौशनी में, कभी नीले तो कभी काले कलूर्टे िदखने वर्ाले, अनोखी छटा िबखेरते पहाडॊं की श्रृतख ं ला, िकसी िवर्शालकाय दैत्य से कम िदखलाई नहीं पडते. खूर्बसूर्रत जंगल ,जो अब से ठीक पहले, हमे अपने सममोहन में समेट रहा होता था, अब डरावर्ना िदखलायी देने लगता है. एक अज्ञातभय, मन के िकसी कोने में आकर िसमट जाता है. इस बदलते पिरवर्ेश में पयर्धटक, वर्हाँ रात गुजारने की बजाय ,अपनी-अपनी होटलों में आकर दुबकने लगता है, जबिक जंगल में रहने वर्ाली जनजाित के लोग, बेखौफ़ अपनी झोपिडयों में रात काटते हैं. वर्े अपने जंगल का, जंगली जानवर्रों का साथ छॊडकर नही भागते. जंगल से बाहर िनकलने की वर्ह सपने में भी सोच नहीं बना पाते. “जीना यहाँ-मरना यहाँ” की तजर्ध पर ये जनजाितयां बडॆ सुकूर्न के साथ अलमस्त होकर अपने जंगल से खूर्बसूर्रत िरश्ते की डोर से बंधने रहते हैं. अपनी माटी के पित अननय लगावर्, और उनके अटूर्ट पेम को देखकर एक सूर्िक्ति याद हो आती है.” जननी-जनमभूर्िमश्चर् स्वर्गार्धदिपगिरयसी”= जननी और जनम भूर्िम स्वर्गर्ध से भी महान होती है” को फ़िलताथर्ध और चिरताथर्ध होते हुए यहाँ देखा जा सकता है. यिद इस अथर्ध की गहराइयों तक अगर कोई पहुँच पाया है, तो वर्ह यहाँ का वर्ह आिदवर्ासी है, िजसे हम के वर्ल जंगली कहकर इितश्री कर लेते है. लेिकन सही मायने में वर्ह “:धनरतीपुत्र” है,जो आज भी उपेिक्षत है.
10 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
पातालकोट में लेखक
धनुंधन में िघरा पातालकोत
1. छ्त्तीसगढ का खजुराहो- भोरमदेवर्
11 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मध्यपदेश के उत्तरीय भाग में पन्नचा एवर्ं छतरपुर के मध्य िस्थत “खजुराहो”, १० वर्ीं एवर्ं ११ वर्ीं शताबदी में बने िहनदु मिनदरों के िलए िवर्श्विवर्ख्यात है. मिनदरों के दीवर्ालों पर उत्कीणर्ध मैथुनरत पितमाएँ हमेशा से उत्सुकता के के नद्र में रही हैं. इनहें देखने के िलए लाखों पयर्धटक यहाँ पहुँचते हैं. ठीक इसी तजर्ध पर कवर्धनार्ध(छत्तीसगढ) से लगभग १७ िक.मी.पूर्वर्र्ध की ओर मैकल पवर्र्धत श्रृतंखला पर िस्थत ग्राम छपरी के िनकट चौरागाँवर् नामक गाँवर् में िस्थत है. छत्तीसगढ का खजुराहों कहा जाने वर्ाला “भोरमदेवर्” मिनदर, न के वर्ल छत्तीसगढ अिपतु समकालीन अनय राजवर्ंशों की कला शैली के इितहास में भी अपना महत्वर्पूर्णर्ध स्थान रखता है . भोरमदेवर् के बारे में काफ़ी कु छ मैं सुन चुका था और उसके बारे में पढ भी चुका था, लेिकन कभी इस बात का ख्याल मन में नहीं आया िक समय िनकालकर इसे देख आऊँ.और न ही कभी सोच पाया था िक भिवर्ष्य में कभी वर्हाँ जा भी पाऊँगा. संयोग से मुझे वर्षर्ध २००२ में पमोशन िमला और मैं कवर्धनार्ध पमुख डाकघर में बतौर पोस्टमास्टर (H.S.G.1) के पदस्थ हुआ. मन के कोने-अंतरे में दबी लालसा बलवर्ती हो उठी, इस अनुपम कृत ित को अपनी आँखों से जी भर देखने की. रिवर्वर्ार चुंिक डाकघर बंद रहता है, और इससे अच्छा मौका और दूर्सरा हो नहीं सकता था. मैंने अपने िमत्र श्री लक्ष्मीकांत ठाकु र से फ़ोन पर संपकर्ध साधना और उनहें कवर्धनार्ध आने का िनमंत्रण िदया. वर्े उस समय दुगर्ध के पधनान डाकघर में पोस्टमास्टर के पद पर कायर्धरत थे. इस तरह हमने छत्तरपुर के खजुराहो नाम से िवर्ख्यात” भोरमदेवर्” के दशर्धन का लाभ उठाया. ११वर्ीं शताबदी के अंत में( लगभग १०८९ ई.) िनिमत इस मिनदर मे शैवर्, वर्ैष्णवर् एवर्ं जैन पितमाएँ भारतीय संस्कृत ित एवर्ं कला की उत्कृत ष्टता की पिरचायक है. इन पितमाओं से ऎसा पतीत होता है िक धनािमक वर् सिहष्णु राजाओं ने सभी धनमों के मतावर्लिमबयों को उदार पश्रय िदया था. िकवर्दनती है को गोंड जाित के उपास्य देवर् भोरमदेवर्( जो िक महादेवर् िशवर् का एक नाम है) के नाम पर िनिमत कराए जाने पर इसका नाम “भोरमदेवर्” पड गया और आज भी इसी नाम से पिसध्द है. मिनदर की स्थापत्य कला शैली मालवर्ा की परमार शैली की पितछाया है. छत्तीसगढ के पूर्वर्र्ध-मध्यकाल(राजपूर्त काल) में िनिमत सभी मिनदरों में “भोरमदेवर्” सवर्र्धश्रेष्ठ है. िनमार्धण योजना एवर्ं िवर्षय वर्स्तु में सूर्यर्ध मिनदर कोणाकर्ध एवर्ं खजुराहो के मिनदरों के समान होने से इसे छत्तीसगढ का खजुराहो भी कहा जाता है. इस मिनदर का िनमार्धण, श्री लक्ष्मण देवर् राय द्वारा कराया गया था. इसकी जानकारी वर्तर्धमान मण्ढप में रखी हुई एक दाढी-मूर्ंछ वर्ाले योगी की बैठी हुई मूर्ित, जो ०.८९ से.मी. ऊँची एवर्ं ०.६७ से.मी. चौडी है, पर उत्कीणर्ध लेख से पाप्त
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होती है. इसी पितमा पर उत्कीणर्ध दूर्सरे लेख में, कलचुिरन संवर्त ८४० ितिथ दी हुई है. इससे यह जानकारी पाप्त होती है िक यह मिनदर छठे फ़िण नागवर्ंशी शासक श्री गोपालदेवर् के शासन में िनिमत हुआ था. िकनतु मण्डवर्ा महल से पाप्त िशलालेख में राजा रामचनद्र द्वारा िनमार्धण होना बताया गया है. चूर्िं क यहाँ फ़िणनाग वर्ंश के नागवर्ंशी राजाओं ने लमबे काल तक राज्य िकया, जो कलचुिरयों के अिधनसत्ता को स्वर्ीकार करते थे. लंबी वर्ंशावर्ली में सवर्र्धपथम अिहराज राजा से नागवर्ंश की शुरुआत हुई. िशलालेख से यह स्पष्ट होता है िक अतुर्धकन की अनुपम सुंदरी पुत्री मैिथला का एक नागराज से पेम हुआ था और इनसे उत्पन्नच पुत्र अिहराज से वर्ंश की शुरुआत हुई. पूर्वर्ार्धिभमुखी पस्तर िनिमत यह मिनदर,नागर शैली का सुनदर उदाहरण है. मिनदर में तीन पवर्ेशद्वार हैं- पमुख द्वार पूर्वर्र्ध िदशा की ओर, दूर्सरे का मुख दिक्षण की ओर और तीसरा, उत्तरािभमुखी है. इसमें तीन अधनर्ध-मंडप, उससे लगे अंतराल और अंत में गभर्धगृतह है. अधनर्धमंडप का द्वार शाखों वर् लता-बेलों से अलंकृतत है. द्वार शाखों पर शैवर् द्वारपाल, पिरचािरक,पिरचािरका पदिशत है. मण्डप के तीन िदशाओं के द्वारों के दोनों ओर पाश्वर्ध में एक-एक स्तंभ है, िजनकी यिष्ट अष्ट कोणीय हो गई है. इसकी चौकी उल्ट िवर्किसत कमल के समान है, िजस पर कीचक बने हुए हैं, जो छत का भार थामे हुए हैं. मण्डप में कु ल १६ स्तंभ हैं, जो अलंकरणयुक्ति हैं. मण्डप की छत का िनमार्धण पस्तरों को जमाकर िकया गया है. छत पर शतदल कमल बना हुआ है. मिनदर १५३ मीटर ऊँचे अिधनष्ठान पर िनिमत है. इसकी लमबाई १८१३ और चौडाई १२२० मीटर है. गभर्धगृतह का मुँह पूर्वर्र्ध की ओर है तथा धनरातल १.५० मीटर गहरा है. इसके ठीक बीच में िशवर्िलग पितिष्ठत है. छत के ऊपर शतदल कमल बना हुआ है. गभर्धगृतह में पंचमुखी नाग पितमा, नृतत्य गणपित की अष्ट भुजी पितमा, ध्यानमग्न राजपुरुष की पद्मासन में बैठी हुई पितमा, उपासक दंपित्त पितमा िवर्द्धमान है. मंिदर के किटभाग की बाह्य िभित्तयाँ अलंकरण युक्ति हैं. किटभाग में देवर्ी-देवर्ताओं की पितमाएं उत्कीणर्ध है,िजसमे िवर्ष्णु, िशवर्, चामुण्डा, गणेश आिद की सुनदर पितमाएं उल्लेखनीय है. मिनदर के जंघा पर कोणाकर्ध के सूर्यर्ध मिनदर एवर्ं खजुराहों के मंिदरों की भांित सामािजक एवर्ं गृतहस्थ जीवर्न से संबंिधनत अनेक िमथुन दृतष्य तीन पंिक्तियों में कलात्मक अिभपायों समेत उके रे गए हैं, िजसके माध्यम से समाज के गृतहस्थ जीवर्न को अिभव्यक्ति करने का पयास िकया गया है. िमथुन मुितयों का यहाँ बाहुल्य है. इन पितमाओं में नायक-नाियकाओं, अप्सराओं की पितमाएं अलंकरण के रुप में िनिमत की गई हैं. पदिशत िमथुन मुितयों में कु छ सहज मैथुन िवर्िधनयों का िचत्रण तो हुआ है , कु छ काल्पिनक िवर्िधनयों को भी िदखाने का पयास िकया गया है. पुरुष नतर्धक-नारी नतर्धिकयों से यह आभास होता है िक दसवर्ीं-ग्यारवर्ीं शताबदी मे इस क्षेत्र के स्त्री-पुरुष नृतत्यकला में रुिच रखते थे. मंजीरा, मृतदग ं , ढोल, शहनाई, बांसुरी एवर्ं वर्ीणा आिद वर्ाद्ध-उपकरण मूर्ितयों के द्वारा बजाए जाते हुए पदिशत हुए हैं.मंिदर के पिरसर में संग्रिहत पितमाओं में िवर्िभन्नच योद्धाओं एवर्ं सती स्तंभ पमुख हैं.
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मैथुनरत मुितयों को देखकर ,पयर्धटक काफ़ी रस लेकर, तरह-तरह की बातें करते देखे जा सकते हैं. उनहें सुनते हुए लगता है िक वर्े िबना कु छ सोचे-समझे अपने तकर्ध -कु तकर्ध देने में मश्गुल होते हैं,जबिक भारतीय मनीषा ने कभी भी काम को सवर्ोच्चता नहीं दी है, बिल्क अपनी कलाकृत ित के माध्यम से यह समझाने का पयास िकया है िक “काम” के वर्ल एक बाहरी उद्वेग है, उसके हटते ही आप ईश्वर से अत्यंत ही अपने आपको िनकट पाते हैं. शायद यही कारण है िक ये मिनदर चाहे खजुराहो के हों अथवर्ा भोरमदेवर् का मिनदर, इनके बाहरी बनावर्ट पर इसे आप देख पाते हैं,जबिक भीतरी पतों में इसका िनशान तक देखने को नहीं िमलता. भोरमदेवर् मिनदर के उत्तर की ओर िशवर्मिनदर, दिक्षण में एक िशवर्मिनदर िजसे मण्डवर्ा महल के नाम से जाना जाता है,िस्थत है. पिश्चर्म की ओर छेरकी नामक िशवर्मिनदर है. अगले इतवर्ार को मैंने कवर्धनार्ध के तत्कालीन िवर्धनायक श्री जोगेश्वरराजिसह से भेंट की,जो भूर्तपूर्वर्र्ध कवर्धनार्ध िरयासत के राजा के बेटॆ हैं. यहाँ जाने से पूर्वर्र्ध फ़ोन पर मैंने अपना पिरचय देते हुए उनसे िमलने की इच्छा जािहर की थी. उनकी स्वर्ीकृत ित िमलने के बाद मै उस भव्य राजपसाद के पिरसर में जा पहुँचा,जहाँ उनहोंने आगे बढकर मेरा स्वर्ागत िकया. महल के भीतरी भागों में घुमाया और साथ बैठकर नाश्ता और चाय का भी आननद उठाया. मुलाकात के दौरान उनहोंने कहा था-“ यह पहला मौका है जब कवर्धनार्ध के पोस्टमास्टर मुझसे िमलने आए हैं” जब-जब भी कवर्धनार्ध की बात होती है, तो मुझे वर्हाँ िबताए गए पत्येक क्षण की मधनुर याद ताजा हो उठती है.
कवर्धनार्ध का राजमहल
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- शेरों के बीच एक िदन
बचपन में िबताए गए हर पल मुझे अब भी याद हैं. सोने से पहले मैं माँ से कोई कहानी सुनाने को कहता और वर्े बड़े चावर् से कहानी सुनाने लगती थीं. उसमें कभी राजा-रानी होते, तो कभी जंगल के कोई पशु-पक्षी. शेरों को लेकर न जाने िकतनी ही कहािनयां उनहोंने सुनायी थीं. छु िट्टयों में जब कभी अपने निनहाल(नागपुर) जाना होता, नानी भी एक से बढकर एक कहािनयां सुनाया करती थीं. उनकी भी कहािनयों में वर्ही शेर-भालूर्-चीते होते, राजा-रानी होते तो कभी कोई जादूर्गर आिद-आिद. नानी ने ही बतलाया था िक यहाँ महाराजबाग में शेर तथा अनय जानवर्रों के बाड़े हैं . एक िदन मैंने िजद पकड़ी िक मुझे शेर देखना है. िदन ढलते ही उनहोंने मुझे महाराजबाग िदखाने अपने साथ ले िलया. यह बाग एक िवर्शाल पिरसर में फ़ै ला हुआ है. यहां लोहे के जंगलों में शेर-भालूर्-चीते, बारहिसघे-िहरण, सांभर और भी न जाने िकतने ही पशुपक्षी बंद हैं, िजनहें अपनी आँखों से देखना अपने आप में एक कौतूर्हल का िवर्षय था. एक बार िकसी गमी की छु ट्टी में मैं अपने निनहाल में था. उस समय एक सकर्ध स आया हुआ था िजसका नाम शायद “कमला सकर्ध स” था, मुझे देखने को िमला. लोग कहा करते थे िक वर्ह सकर्ध स एिशया का सबसे बड़ा सकर्ध स था. लोहे के बड़े-बड़े िपजरों में शेरों को िरग मे उतारा जाता था और िरगमास्टर अपने कोड़े और एक लकड़ी की छडी के बल पर उनसे कभी बड़े से स्टूर्ल पर बैठने का इशारा करता तो कभी कु छ और. तरह-तरह के करतब शेरों के मुझे देखने को िमले. उसके बाद तो अनेकों सकर्ध सें मैं देख चुका था. बाद में पता चला िक िकसी िवर्देश यात्रा के दौरान कमला सकर्ध स समुद्र के गभर्ध में समा गया. उसके बाद न जाने िकतनी ही सकर्ध स मैं देख चुका था. शेर-चीते, हाथी, घोड़े, दिरयाई घोड़े आिद सब सकर्ध स की जान होते. बगैर इनके बगैर सकर्ध स की कल्पना तक नहीं की जा सकती. नागपुर में ही एक अजायबघर है, िजसमें मरे हुए जंगली जानवर्रों की खालों में भूर्सा-बुरादा वर्गैरह भर कर, बडी ही शालीन तरीके से उनहें कांच के कमरों में रखा गया है, िजसे देखकर आप वर्नय जीवर्ों के बारे में जानकािरयां पाप्त कर सकते हैं. चूर्ंिक मुझे शुरु से घूर्मने का शौक है, और इस शौक के चलते, मैंने पूर्वर्र्ध से पिश्चर्म, तथा उत्तर से दिक्षण तक की यात्राएं की है. यात्राएं कभी िनजी तौर पर, तो कभी सािहित्यक आयोजनों के चलते हुईं थी. इसी बीच अभ्यारण्य भी देखे, लेिकन उनमें सभी जानवर्र बतौर एक कै दी के हैिसयत से देखने को िमले. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था िक कभी िजनदा शेरों के बीच पूर्रा िदन िबताने को िमलेगा. मेरे सािहित्यक िमत्र श्री जयपकाश”मानस” ने मुझसे फ़ोन पर आग्रहपूर्वर्र्धक कहा िक मैं जल्दी ही अपना पासपोटर्ध बनवर्ा लूर्ं. उनहोंने बात आगे बढाते हुए कहा िक िहनदी के पचार एवर्ं पसार को ध्यान में रखते हुए उनहोंने माह फ़रवर्री 2011 में थाईलैंड में तृततीय अंतरराष्ट्रीय िहनदी सममेलन आयोिजत करने का मन बनाया है और उसमें मुझे चलना है . मैं उनकी बात टाल न सका और दो माह में पासपोटर्ध बन गया. मैं चाहता था िक अपना एक स्थानीय िमत्र भी साथ हो ले तो ज्यादा मजा आएगा. मैंने अपने सािहित्यक िमत्र श्री पभुदयाल श्रीवर्ास्तवर् को अपना मनतव्य कह सुनाया और वर्े उसके िलए तैयार हो गए. इस तरह एक िवर्देश यात्रा का संयोग बना. 1 फ़रवर्री 2011 को 3 बजे, नेताजी सुभाष एअरपोटर्ध कोलकता से िकगिफ़शर के हवर्ाईजहाज आईटी-२१ से हमने थाईलैण्ड के िलए उड़ान भरी. यह मेरी पहली िवर्देश यात्रा थी. हवर्ाईजहाजों को अब तक िसफ़र्ध आसमान में उड़ते देखा था. अब उसमें बैठकर सफ़र कर रहा था. मेरी सीट िखड़की के पास थी. कांच में से बाहर का दृतष्य देखकर मुझे एक अलग ही िकस्म का रोमांच हो आया था. 15 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
डेढ़ घंटे की उड़ान के बाद हम थाईलैंड के “स्वर्णर्धभूर्िम” एअरपोटर्ध पर थे. सनद रहे िक इस एअरपोटर्ध का नाम भारतीय संस्कॄत ित के आधनार पर “ स्वर्णर्धभूर्िम” रखा गया है. हम वर्हां से सीधने “पटाया” के िलए रवर्ाना हुए जहाँ ठहरने के िलए “िमरक्कल स्वर्ीट्स” पहले से ही बुक करवर्ा िलया गया था. 2 फ़रवर्री को को कोरल आईलैंड, िटफ़्फ़नी शो ,3 फ़रवर्री को फ़्लोिटग माके ट, जेमस गैलेरी, सी-बीच का भ्रमण िकया और अगले िदन यािन तारीख 4 को बैंकाक के िलए रवर्ाना हुए,जहाँ होटल फ़ु रामा सीलोम में ठहरने की व्यवर्स्था थी. बैंकाक के पिसद्ध िवर्ष्णु मंिदर में,वर्हाँ के भारतीय िमत्रों के आग्रह पर सािहित्यक कायर्धक्रम का आयोजन संपन्नच हुआ, जबिक यह कायर्धक्रम उसी होटल के भव्य कक्ष में आयोिजत होना तय िकया गया था. इस कायर्धक्रम में अनेक भरतवर्ंिशयों ने उत्साहपूर्वर्र्धक अपनी उपिस्थित दजर्ध करवर्ाई. मंिदर सिमित ने सभी का भावर्भीना स्वर्ागत-सत्कार िकया और सुस्वर्ादु भोजन भी करवर्ाया.
पाँचवर्ा िदन यािन 5 फ़रवर्री का वर्ह िदन भी आया, जब हम कं चनापुरी होते हुए टाइगर टेमपल जा पहुँचे, जहाँ िजनदा शेरों के साथ घूर्मने का रोमांचकारी आननद उठाना था
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जैसे-जैसे मेरे कदम आगे बढ़ रहे थे, मिस्तष्क में एक नहीं बिल्क अनेक काल्पिनक िचत्र बनते जा रहे थे. मैं सोच रहा था िक अब तक तो मैंने शेरों को काफ़ी दूर्री से देखा था, आज उनहें खुले हुए रुप में और वर्ह भी अपने से काफ़ी नजदीक से देखूर्ंगा तो कै सा लगेगा. कहीं अगर वर्ह आक्रामक हो जाएगा तो कया िस्थित बनेगी? कदम अपनी गित से आगे बढ़ रहे थे और िदमाग अपनी गित से. आिखर वर्ह क्षण आ ही गया, जब हम पवर्ेश-द्वार पर खडे थे. वर्हाँ से सभी को एक-एक पची थमा दी गई िक उसे भरकर जमा करना है. नाम-पता आिद भर देने के बाद उसमें एक लाइन थी, िजसने शरीर में एक अज्ञात भय भर िदया. उसमें िलखा था िक हम अपनी जवर्ाबदारी पर अनदर जा रहे हैं, यिद िकसी जानवर्र के साथ कोई अिपय घटना घट जाए तो हम स्वर्यं जवर्ाबदार होंगे. खैर मैंने यह सोचकर पची भर दी िक आगे जो भी होगा देखा जाएगा. गेट पर एक चुलबुली सी आकषर्धक मैना, जो इधनर-उधनर उछल-कूर् द करती िफ़र अपनी जगह आकर बैठ जाया करती थी, सभी का ध्यान आकिषत िकए हुए थी. अनदर एक सीमेनट की नकली गुफ़ा सरीखी बनी हुई थीं, िजसमें सभी को रुकने को कहा गया. वर्हाँ दजर्धनों िवर्देशी सैलानी भी अपनी बारी का इनतजार करते पाए गए. बाहर का दृतष्य एक दम साफ़ था. एक बड़े भूर्भाग में दजर्धनों शेर आराम फ़रमा रहे थे. उन पर सूर्यर्ध की िकरणें न पड़े, इसे ध्यान में रखते हुए, बड़े-बड़े छाते उन पर तने हुए थे. कु छ समय पश्चर्ात वर्हाँ के एक कमर्धचारी ने हमें बाहर लाइन लगाकर खड़े होने को कहा. अब आगे कया होता है, पायः यह सवर्ाल सभी के माथे को मथ रहा था. तभी दो-तीन बौद्ध-साधनु, िजनके हाथ में चोटी- छोटी लािठयां थी, ने आगे बढकर शेरों को उठाया और आगे बढने लगे. मामूर्ली से बेल्ट अथवर्ा लोहे की चेन में बंधने वर्नराज उनके पीछे हो िलए थे . तभी एक कमर्धचारी ने सभी को पंिक्तिबद्ध होकर उस साधनु के पीछे-पीछे चलने को कहा और यह भी बतलाया िक आप िनिश्चर्तता के साथ शेर की पीठ पर हाथ रखकर चल सकते हैं. यिद कोई उस दृतष्य को कै मरे में कै द करना चाहता है तो साथ चल रहे कमर्धचािरयों के पास अपने कै मरे दे दें, वर्ह आपकी फ़ोटो खींचता चलेगा. उसने यह भी बतलाया िक शेर की पीठ के आधने िहस्से तक ही आप उसे छूर् सकते हैं. लोगों ने अपने-अपने कै मरे कमर्धचािरयों के हवर्ाले कर िदए थे. वर्े शेर के साथ फ़ोटो िखचवर्ाते और िफ़र लाइन से हट जाते. िफ़र दूर्सरा सैलानी आगे बढता, शेर के साथ फ़ोटो िखचवर्ा कर लाइन से हट जाता. इस तरह हर व्यिक्ति जंगल के राजा को छूर् ते हुए उसके साथ अपने को जोडते हुए गवर्र्ध महसूर्स कर रहा था.
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अब मेरी बारी थी. मन के एक कोने में भय तो समाया हुआ ही था. मैं उस जंगल के बादशाह को छूर् ने जा रहा था, िजसका नाम लेते ही तन में कं पकं पी होने लगती है, अगर सामने पड़ जाए तो मुह ँ से चीख िनकल जाती है और िजसकी दहाड़ सुनते ही अच्छे -अच्छे सूर्रमाओं की िघग्गी बंधन जाती है, िफ़र उसे छूर् ना तो दूर्र की बात है. शेर के पुठ्ठे पर हथेली रखते ही मेरी हथेली एक बार कांपी जरुर थी, लेिकन तत्क्षण ही मैं नामर्धल भी हो गया था और अब मैं भयरिहत होकर जंगल के राजाजी के साथ फ़ोटूर् िखचवर्ा रहा था. करीब आधना-पौन िकलोमीटर का यह सफ़र शेरों के साथ गुजरा. उसके बाद जहाँ दो ओर से लाल-िसनदूर्री रं ग में रं गी पहािडयाँ अधनर्धचनद्राकार आकार बनाती है, वर्हां बड़े-बडे छाते तने हुए थे, के नीचे शेरों को आराम की मुद्रा में बैठा िदया गया. पास ही एक िटनशैड था िजसमे पयर्धटकों के बैठने की समुिचत व्यवर्स्था थी. अब बौद्ध मांक ठं ड़े पानी की बोतलों से शेरों के ऊपर बौझार कर रहे थे. मतलब तो आप समझ ही गए होंगे िक वर्े ऐसा कयों कर रहे थे ?.आप जानते ही हैं िक शेर ठं ड़े स्थान में रहना पसंद करते हैं. उनहें तेज धनूर्प नहीं सुहाती. िफ़र वर्ह एक लंबा चक्कर धनूर्प में चलते हुए आया जािहर है िक उसकी त्वर्चा गमार्ध गयी होगी.. दशर्धकदीघार्ध में बैठे हुए हम, एक नहीं-दो नहीं, बिल्क दजर्धनों शेरों को एक साथ बैठा हुआ देख रहे थे. कु छ के गलों में लोहे की चेन बंधनीं थी, जािहर है िक वर्े कभी भी आक्रमक हो सकते थे. कु छ के गलों में कपड़े का बेल्ट बंधना हुआ था, शायद इसिलए िक वर्े कम गुस्सैल होगें. कु छ तो िबना चेन के भी थे, मतलब साफ़ था िक या तो वर्े बूर्ढ़े हो चुके होंगे या िफ़र एकदम शांत स्वर्भावर् के होगें. बौद्ध साधनुओं का इशारा पाते ही उनके सहायक आगे बढे. सभी की नीले रं ग की पोशाकें थी. एक ने आकर कहा िक आप सभी, िजनके पास अपने कै मरे हैं, लाइन बना कर खड़े हो जाएं. इशारा पाते ही लोग पंिक्तिबद्ध होकर खड़े हो गए. सभी को इस बात का इनतजार था िक आगे कया होता है. एक सहायक के साथ एक पयर्धटक हो िलया. कै मरा अब उस सहायक के हाथ में था. वर्ह उस पयर्धटक को शेर के पास ले जाता और िवर्िभन्नच मुद्रा में िबठाते हुए, फ़ोटो खींचता. इस तरह वर्ह बारी-बारी से अनय शेरों के पास पयर्धटक को ले जाता, फ़ोटो खींचता और अनत में पयर्धटक को दशर्धकदीघार्ध तक छोड आता. संभवर्तः टाईगर टेमपल िवर्श्व का एकमात्र ऐसा अभ्यारण्य है जहाँ इनसान िनडर होकर शेरों के बीच रह सकता है . शायद यही वर्जह है िक िवर्श्व के कोने-कोने से पयर्धटक यहाँ पहुँचते हैं. टेमपल का शुद्ध शािबदक अथर्ध मंिदर होता है. जािहर है िक मंिदर में िहसा के िलए कोई जगह नहीं होती. ऐसी मेरी अपनी सोच है. कु छ लोग तो यह भी कहते हुए सुने गए िक शेरों के दांत तोड िदए गए हैं, इसीिलए वर्े आक्रमण नहीं करते. यह बात गले से नहीं उतरती. उतरना भी नहीं चािहए ,कयोंिक शेर के दांत हों, अथवर्ा न हो, लेिकन शेर तो आिखर शेर ही होता है. यिद वर्ह िहसक नहीं होगा तो वर्ह भूर्खों मर जाएगा. वर्ह दाल-रोटी खाकर तो गुजारा नहीं कर सकता. उसे हर हाल में मांस चािहए ही चािहए. बौद्ध साधनु तो उसका जबड़ा खोलकर भी बतलाते हैं. कु छ का यह मानना है िक साधनु वर्शीकरण-मंत्र जानते हैं, इसीिलए वर्ह आक्रमण नहीं करता. मंत्रों में शिक्ति होती है और हो सकता है िक वर्े उन पर इसका पयोग करते होंगें. इस पर मेरी अपनी िनजी राय है िक यिद जंगली जानवर्रों को भी मनुष्यों के बीच रहने िदया जाए तो वर्े भी एक अच्छे िमत्र हो सकते हैं और यही संदश े िजसे भगवर्ान बुद्ध का संदश े ही मान लें,यहाँ उसे फ़िलत होते हम देख सकते हैं. इससे एक संदश े यह भी जाता है िक पयार्धवर्रण को स्वर्स्थ बनाए रखने में िजतना मनुष्य अपना रोल िनभाता है, उतना ही एक जंगली जानवर्र भी. शेर अपनी सीमा में रहकर पयार्धवर्रण को कभी नुकसान नहीं पहुँचाता, िजतना की एक आदमी. अतः उसे चािहए िक वर्ह अपनी सीमा का
18 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
अितक्रमण न करे , तो यह पयार्धवर्रण को शुद्ध बनाने की िदशा में एक कारगर कदम होगा और यिद ऐसा होता है तो इसका स्वर्ागत िकया जाना चािहए.
4,
यात्रा बद्रीनाथ धनाम की
उत्तराखण्ड के गढवर्ाल अंचल में श्री बद्रीनाथ,के दारनाथ,पितत पावर्नी गंगा, यमुना,अलकननदा,भागीरथी,आिद दजर्धनों निदयों का उद्गमस्थल, पंच पयाग, पंचबद्री, पंच के दार,,उत्तरकाशी,गुप्तकाशी आिद अवर्िस्थत हों,ऐसे िवर्लक्षण क्षेत्र उत्तराखंड का गढवर्ाल मंडल सही अथों में याित्रयों का स्वर्गर्ध है . यहाँ पहुंचने से पहले यात्री को हिरद्वार जाना होता है.यहीं से बद्रीनाथ जाने के िलए बसें-टैकसी आिद िमल जाती है. हिरद्वार से यमुनोत्री 246 िक.मी, गंगोत्री 273I िक.मी, के दारनाथ 248 िकमी और बद्रीनाथ 326 िकमी की दूर्री पर अवर्िस्थत है.
19 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मां भगवर्ती गंगा यहाँ पवर्र्धतीय क्षेत्र छोडकर बहती है. नदी के पावर्न तट पर मां गंगा का मिनदर स्थािपत है,जहाँ उनकी पूर्जा-अचर्धना अननय भावर् से की जाती है. मां गंगा की आरती सुबह-शाम को होती है. हजारों की संख्या में भक्तिगण उपिस्थत होकर अपने आप को धननय मानते हैं. इसे हर की पौढी भी कहते है. गंगा के तट पर अनेक साधनु-महात्मा के दशर्धन लाभ भी यात्री को होते हैं. यहाँ अनेक धनमर्धशालाएं-होटलें हैं, जो सस्ती दर पर आसानी से उपलबधन हो जाती हैं. कु छ दूर्री पर गायत्री संस्थान है,िजसकी आधनारिशला आचायर्ध श्रीराम शमार्धजी ने रखी थी. यह स्थान गायत्री पिरवर्ार वर्ालों के िलए िकसी स्वर्गर्ध से कम नहीं है. हजारों की संख्यां में लोग यहां आते हैं,और दशर्धन लाभ कर पुण्य कमाते है. साधनक भी यहां बडी संख्यां में आकर जप-तप करते आपको िमल जाएंगे. यहां िनशुल्क रहने तथा उत्तम भोजन की व्यवर्स्था गायत्री संस्थान ने कर रखी है. संस्थान का अपना औषधनालय हैं,जहां रोगी अपना इलाज कु शल वर्ैद्दों से करवर्ाकर उत्तम स्वर्ास्थ्य पाप्त करते हैं. संस्था का अपना कई एकडॊं में फ़ै ला उद्दान है जहाँ दुलभ र्ध जडी-बूर्िटयों की पैदावर्ार होती है.
आगे की यात्रा के िलए पयर्धटक को ऋषिषके श रात्री िवर्श्राम करना होता है. सुबह गढ्वर्ाल मंडल की बस से बद्रीनाथ के िलए बसें जाती हैं. याित्रयों को चािहए िक वर्े अपनी सीटॆ आरिक्षत करवर्ा लें,अनयथा आगे की यात्रा में किठनाइयां आ सकती हैं. मागर्ध काफ़ी संकरा और टेढा-मेढा –घुमावर्दार है. पहाडॊं की अगमय उँ चाइयों पर जब बस अपनी गित से चलती है तो उसमें बैठा यात्री भय से कांप उठता है. हजारों फ़ीट पर आपकी बस होती है और अलकनदा अपनी तीव्रतम गित से शोर मचाती,पहाडॊं पर से छलांग लगाती,उछलती,कूर् दती आगे बढती है. बस चालक की जरा सी भूर्ल से कभी-कभी भयंकर एकसीडॆंट भी हो जाते हैं. अतः िजतनी सुबह आप अपनी यात्रा जारी कर सकते हैं,कर देना चािहए. ऋषिषके श में गंगा स्नान,िकनारे पर बने भव्य मंिदरों में आप भगवर्ान के दशर्धन भी कर सकते है. गंगाजी का पाट यहां देखते ही बनता है.
(िशवर्जी की िवर्शाल मूर्ित तप करते हुए)
(लक्षमण झूर्ला.)
20 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
अनेक मिनदरों,आश्रमों के अलावर्ा लक्षमण झूर्ला
भी है,जो नदी के दो तटॊं को जोडता है. इस पर से नदी पार करने
पर मन में रोमांच तो होता है साथ ही इसकी कारीगरी को देखकर िवर्स्मय भी होता है . ऋषिषके श से बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान रास्ते में नंदपयाग, कणर्धपयाग, रुद्रपयाग,तथा देवर्पयाग नामक स्थान भी िमलते हैं. इनका अपना ऐितहािसक और पौरािणक महत्वर् है. गंगा अपने उद्गम के बाद 12 धनाराओं में िवर्भक्ति होकर आलग-अल्ग िदशाओं में बहती है. इन स्थानों पर वर्े या तो बहकर िनकलती है या िफ़र यहां दो निद्दयों का संगम होता है. पत्येक स्थान को पास से देखने में समय लगता है, यात्री यहाँ न रुकते हुए सीधने आगे बढ जाता है,कयोंिक उसमे मन में बदरीनाथजी के दशर्धन करने की उत्कं ठा ज्यादा तीव्र होती है इन सभी स्थानों का अपना पौरािणक महत्वर् है. इनहीं स्थानों पर रामायण ,महाभारत की रचनाएं की गयी थी. राजा युिधनिष्ठर अपने भाईयों वर् द्रौपदी के साथ इनहीं स्थानों से होकर गुजरे थे और िहमालय की अगमय चोटी पर जाकर अपने पाणॊं का त्याग िकया था बद्रीनाथ, के दारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के मिनदर के वर्ल छः माह (मई से अकटूर्बर) तक खुले रहते हैं.शेष छः मास तक भ ीषण ठं ड पडने,के कारण बंद रहते है. अकटूर्बर माह में बद्रीिवर्शाल की पूर्जा-अचर्धना करने के उपपरांत घी का िवर्शाल दीप पज्जवर्िलत कर बनद कर िदया जाता है. छः मास बाद जब मिनदर के पट खोले जाते हैं तो वर्हाँ पर ताजे पुष्प और िदव्य दीपक जलता हुआ िमलता है. ऐसी मानयता है िक इस अवर्िधन में नारद मुिन जो िवर्ष्णु के परम भक्ति हैं,यहाँ रहकर अपने आराध्य की पूर्जा-अचर्धना करते हैं. पूर्जा के ताजे पुष्प का िमलना, इस बात का पमाण है िक वर्हाँ पूर्जा-अचर्धना होती रही है. इससे बडा पमाण और कया चािहए. पयर्धटक, सुबह िजतनी जल्दी ऋषिषके श से रवर्ाना हो जाए,उतना ही फ़ायदा उसे होता है. शाम का कु हरा गहरा जाने से पूर्वर्र्ध वर्ह बद्रीनाथ जा पहुँचता है. वर्हां पहुंचकर उसे अपने िलए धनमर्धशालाहोटल भी तो लेना होता है. इस बीच ठं ड भी बढ चुकी होती है.
(मंिदर के पांगण मे लेखक अपनी पित्न के साथ) 21 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
बद्रीनाथ का मिनदर अलकनंदा नदी के उस पार अवर्िस्थत है. पुल पारकर आप मिनदर में दशर्धनों के िलए जा सकते हैं. नदी से इसी पार पर धनमर्धशालाएं,होटले आिद उपलबधन हो जाती हैं. मिनदर के पास ही गरम पानी का कु ण्ड है,िजसमे यात्री नहा सकता है. इस कु ण्ड से जुडी एक कथा है.जब भगवर्ान बद्रीनाथजी इस स्थान पर अवर्िस्थत हो गए तो भगवर्ती लक्ष्मी ने कहा िक आपके भक्ति गण िकतनी किठन यात्रा कर के वर्ल आपके दशर्धनाथर्ध आते है, और उनहें स्नान कर आपकी पूर्जा-अचर्धना करना होता है. लेिकन इस स्थान पर तो बफ़र्ध की परत िबछी रहती है और भीषण ठं ड भी पडती है. यिद उनके नहाने के िलए कोई व्यवर्स्था हो जाती तो िकतना अच्छा रहता. बद्रीनाथजी ने तत्काल मिनदर के समीप अपनी बांसुरी को जमीन पर छु लाया, एक गमर्ध पानी का कु ण्ड वर्हाँ बन गया. सभी यात्री यहाँ बडे अननय भावर् से नहाकर अपने आपको तरोताजा कर,पूर्जा अचर्धना करता है.
बद्रीनाथजी की मुित
शालग्रामिशला की बनी हुई है. यह चतुभुर्धजमुित ,ध्यानमुद्रा में है. एक कथा के अनुसार इस मूर्ित को नारदकुं ड से िनकालकर स्थािपत की गई थी. तब बौद्धमत अपने चरम पर था. इस मुित को भगवर्ान बुद्ध की मुित मानकर पूर्जा होती रही,. जब शंकराचायर्ध इस जगह पर िहनदूर् धनमर्ध के पचाराथर्ध पहुंचे तो ितबबत की ओर भागते हुए बौद्ध इसे नदी में फ़ें क गए. उनहोने इसे वर्हां से िनकालकर पुनः स्थािपत िकया. तीसरी बार इसे रामानुजाचायर्ध ने स्थािपत िकया . पौरािणक मानयता के अनुसार गंगाजी अपने अवर्तरण के बाद 12 धनाराओं में िवर्भक्ति हो जाती है.. अलकननदा के नाम से िवर्ख्यात नदी के तट श्रीिवर्ष्णु को भा गए और वर्े यहां अवर्िस्थत हो गए.. लोक कथा के अनुसार,नीलकण्ठ पवर्र्धत के समीप श्री िवर्ष्णु बालरुप में अवर्तिरत हुए. यह जगह पहले से ही के दारभूर्िम के नाम से िवर्ख्यात थी. श्री िवर्ष्णु,तप करने के िलए कोई उपयुक्ति स्थान की तलाश में थे. अलकननदा के समीप की यह भूर्िम उनहें अच्छी लगी और वर्े यहां तप करने लगे. यह स्थान बद्रीनाथ के नाम से जाना गया. बद्रीनाथ की कथा के अनुसार भगवर्ान िवर्ष्णु योगमुद्रा मे तपस्या कर रहे थे. तब इतना िहमपात हुआ िक सब तरफ़ बफ़र्ध जमने लगी. बफ़र्ध तपस्यारत िवर्ष्णु को भी अपने आगोश में लेने लगी तब माता लक्ष्मी ने बद्री- वर्ृतक्ष बनकर भगवर्ानजी के ऊपर छाया करने लगी और उनहें बफ़र्ध से बचाती हुई स्वर्यं बफ़र्ध में ढंक गयीं. भगवर्ान िवर्ष्णु ने पसन्नच होकर उनहें वर्र िदया िक वर्े भी उनहीं के साथ रहेगी. यह वर्ही स्थान है जहां स्वर्यं लक्ष्मी बदरी( बेर) का वर्ृतक्ष बन कर अवर्तिरत हुईं, बद्रीनाथ के नाम से जगिवर्ख्यात हुआ. मुित के दािहिन ओर कु बेर, उनके साथ में उद्द्वजी तथा उत्सवर्मुित है. उत्सवर्मुित शीतकाल में बफ़र्ध जमने पर जोशीमठ ले जायी जातीहै. उद्दवर्जी के पास ही भगवर्ान की चरणपादुका है. बायीं ओर नर-नारायण की मुित है और इसी के समीप श्रीदेवर्ी और भूर्दवर् े ी िवर्राजमान है.
चरणपादुका को लेकर एक पौरािणक
कथा है िक द्वापर में जब भगवर्ान श्रीकृत ष्ण अपनी लीलाओं को समेट रहे थे, तब उनके अननय भक्ति नारदमुिन ने बडे ही 22 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
अननयभावर् से पाथर्धणा करते हुए पूर्छा था िक भगवर्न ,अब आपसे अगली भॆंट कब, कहां और िकस रुप में होगी?. तो भक्तिवर्त्सल पभु ने मुस्कु राते हुए अपनी चरण पादुका उतारकर नारदजी को देते हुए बतलाया िक अमुक स्थान पर मेरी चरणपादुका को स्थािपत करते हुए पूर्जा-अचर्धना करते रहें, वर्े समय आने पर बद्रीनाथ के नाम से धनरती पर अवर्तिरत होंगे. श्रीिवर्ग्रह के पास रखी चरणपादुका का िमलना और जब मिनदर के कपाट खोले जाते हैं ,तब ताजे िखले हुए सुगंिधनत पुष्पों का िमलना ,इस बात की पुिष्ट करते हैं िक नारद अपने ईष्ट की पूर्जा-अचर्धना आज भी करते हैं. वर्े िकस रुप में वर्हां आते हैं,यह आज तक कोई नही जान पाया है,लेिकन वर्े आते जरुर हैं. बद्रीनाथजी के मिनदर के पृतष्टभुिम पर आपको आकाश से बात करता जो पवर्र्धत िशखर िदखालायी देता है,उसकी ऊँचाई 7.138 मीटर है,िजस पर हमेशा बफ़र्ध जमी रहती है. बफ़र्ध से चमचमाते पवर्र्धत िशखर को देखकर यात्री रोमांिचत हो उठता है.
वर्ैसे तो यहां धनुंधन सी छायी रहती है. यिद आसमान साफ़ रहा तो सूर्यर्ध की िकरणें परावर्ितत होकर रं गिबरं गी छटा िबखेरती है.
अनय स्थानॊं की अपेक्षा यहां
चढौतरी को लेकर िकसी िकस्म की परे शानी नहीं होती और भगवर्ान के दशर्धन लाभ भी बडी आसानी से हो जाते हैं . कु छ पयर्धटक पण्डॊं के चक्कर में न पडते हुए पूर्जा_पाठ करते पाए जाते हैं.जबिक यहां के पण्डॆ, आपसे न तो िजद करते हैं और न ही कोई मोल भावर्. आप अपनी श्रद्धा से जो भी दे दें, स्वर्ीकार कर लेते हैं. अपने जजमान के खाने-पीने-पूर्जा-पाठ के िलए वर्े िवर्शेष ध्यान भी देते है,साथ ही गाईड की भी भुिमका िनभाते है. वर्े आपका नाम-पता आिद अपनी बही मे दजर्ध कर लेते हैं और जब मिनदर के कपाट बंद हो जाते हैं,उस अवर्िधन में वर्े अपने जजमान के यहाँ बद्रीनाथ का पसाद-गंगाजल आिद लेकर पहुँचते हैं और पाप्त धनन से अपना जीवर्नोपाजर्धन करते हैं. हजारों फ़ीट की ऊँचाई पर खडा व्यिक्ति ,जब मिनदर के पांगन से, चारों ओर अपनी नजरें घुमाता है, तो पकृत ित का अदभुत नजारा,
उसे अपने सममोहन में बांधन लेता है. कल्पनातीत दृतष्य देखकर वर्ह रोमांिचत हो उठता है.
नर-नारायण के िवर्ग्रह- बद्रीनाथजी की पूर्जा में मुख्यरुप से वर्नतुलसी की माला, चने की दाल, नारीयल का गोला तथा िमश्री चढाई जाती है,जो उनहें अत्यनत ही िपय है.
बद्रीिवर्शाल के मिनदर से
कु छ दूर्री पर एक और ऊँचा िशखर िदखलायी देता है,िजसे नीलकं ठ के नाम से जाना जाता है. इसकी भव्यता और सुनदरता को देखते हुए इसे “िक्विन आफ़ गढवर्ाल” भी कहा जाता है. माणागांवर् भारत का अिनतम गाँवर् है, कु छ पयर्धटक इस गांवर् तक भी जाते हैं. करीब 8 िकमी दूर्र एक पुल है िजसे भीमपुल भी कहते है ,इस स्थान पर अष्ट वर्सुओं ने तपस्या की थी. लक्ष्मीवर्न भी पास ही है. यहीं से एक रास्ता िजसे “सतोपंथ” के नाम से जाना जाता है. इसी मागर्ध से आगे बढते हुए राजा युिधनिष्ठर ने अपने भाइयों और भायार्ध सािहत अपनी इहलीला समाप्त की थी. सरस्वर्ती नदी को माणागांवर् में देखा जा सकता है. भगवर्ान िवर्ष्णु की जंघा से उत्पन्नच अप्सरा उवर्र्धशी का मिनदर “बामनी” गांवर् में मौजूर्द है.
23 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
आप िकसी लोककथा-पौरािणक कथा और स्थानीयता के आधनार पर बनी दंतकथाओं पर िवर्श्वास करें या न करें ,लेिकन जीवर्न में एक बार इन पिवर्त्र और िदव्य स्थानों के दशर्धनाथर्ध समय िनकाल कर अवर्श्य जाएं. पकृत ित की बेिमसाल सुनदरता, ऊँची-ऊँची पवर्र्धत मालाएँ, सघन वर्न,और चारों ओर छाई हिरयाली आपकॊ अपने सममोहन में बांधन लेगी.
पकृत ित
का यह सममोिहत स्वर्रुप आपमें एक नया जोश, एक नया उत्साह भर देगी. इसी बहाने आप अपने देश, भारत की अिनतम सीमाऒं पर पहुँच कर आत्मगौरवर् से भर उठें गे. शायद इनहीं िवर्चारों से ओतपोत होकर आिदशंकराचायर्ध ने भारत की चारों िदशाऒं में पीठॊं की स्थापना की थी. ऐसा उल्लेख हमें अपने पौरािणक ग्रंथॊं मे पढने को िमल जाता है िक भगवर्ान जब भी मनुष्य रुप में इस धनरती पर अवर्तिरत होना चाहते हैं तो वर्े भारतभूर्िम में ही अवर्तार लेना पसंद करते है .
5
राजघाट)
( सत्याग्रह मंडप,गांधी दर्शनर्शन, राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित, वर्धार्श द्वर्ारा
आयोिजत” अमत ृ महोत्सवर्
िकसी भी तीथसर्शस्थसल अथसवर्ा भारत के िकसी भूभाग की यात्रा पर जाने का जब तक संयोग नहीं बनता, लाख चाहने के बावर्जूदर् भी आदर्मी वर्हाँ नहीं जा पाता. ऎसा मेरा अपना मानना है . इसे संयोग ही कहे िक “राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित,वर्धार्श का “अमत ृ महोत्सवर्”राजघाट के िनकट “सत्याग्रह मंडप,गांधी दर्शनर्शन के िवर्शनाल सभा मंडप मे 16--17 माचर्श 2013 को भव्य आयोजन के साथस संपन्न हुआ. महात्मा गांधी द्वर्ारा स्थसािपत राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित, वर्धार्श ने िहन्दर्ी सेवर्ा के गौरवर्शनाली 75 वर्षर्श पण ू र्श कर िलए थसे. इस उपलक्ष मे संस्थसा द्वर्ारा दर्ो िदर्वर्सीय िवर्मशनर्श को “भारतीय भाषाओं के बीच संवर्ादर्” और िहन्दर्ी के समक्ष उपिस्थसत चन ु ौितयो” पर केन्द्रीत िकया गया थसा. इन दर्ो िदर्वर्सीय सत्र का उद्घाटन भारत के तत्कालीन गह ु ीलकुमार िशनंदर्े ने िदर्न शनिनवर्ार िदर्नांक 16 माचर्श को प्रातः 11 बजे ृ मंत्री माननीय श्री सशन
24 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िकया.तथसा 17 माचर्श को अपरान्ह 3 बजे समापन-सत्र को तत्कालीन लोकसभा मे िवर्पक्ष की नेता माननीया श्रीमती सुषमा स्वर्राज ने संबोिधत िकया.
इस भव्य कायर्शक्रम की पिरकल्पना म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित भोपाल के मंत्रीसंचालक मान.श्री कैलाशनचन्द्र पंतजी ने की थसी. अपनी अस्वर्स्थसा के बावर्जदर् ू वर्े इस कायर्शक्रम की सफ़लता के िलए प्राण पन से समिपर्शत रहते हुए अथसक पिरश्रम करते रहे .श्री अनन्तराम िपात्रपाठी (प्रधानमंत्री), सुश्री मिण माला (िनदर्े शनक, गांधी स्मिृ त दर्शनर्शन सिमित), श्री नारायण कुमार (संयोजक िदर्ल्ली राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित,एवर्ं सिमित के राष्ट्रीय अध्यक्ष मान.न्यायमूितर्श श्री चन्द्रशनेखर धमार्शिधकारीजी ने अपनी गरीमामय उपिस्थसित से इस कायर्शक्रम को भव्यता प्रदर्ान की. उद्घाटन सत= 16 माच,र,2013 : समय 10.00 बजे मान.न्यायमूितर्श चन्द्रशनेखर धमार्शिधकारीजी की अध्यक्षता मे, मुख्य अितिथस मान.श्री सुशनील कुमार िशनंदर्े(तत्कालीन गह ृ मंत्री) की गिरमामय उपिस्थसित मे श्री अंनतराम िपात्रपाठीजी ने स्वर्ागत भाषण िदर्या. श्री कैलाशनचन्द्र पंतजी ने कायर्शक्रम की प्रस्तावर्ना. एवर्ं श्री नारायण कुमार ने इस सत्र का संचालन िकया. प्रथम िविमश र सत- भारतीय भाषाओं का अन्तरसंविाद समय: 12:00 से 2:00 बजे अध्यक्ष: श्री िवर्श्वर्नाथस िपात्रपाठी बीज वर्क्तव्य: डा..िवर्मलेशन कािन्त वर्मार्श वर्क्ता: श्री जािपाबर हुसैन, डा.शनेषारत्नम, सुश्री मिण माला संचालन:- श्रीमती अलका िसन्हा. ( भोजन 2.00 बजे से
3.00 दर्ोपहर)
25 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
ितीद्वितीय िविमश र:-भारतीय भाषाओं पर अंग्रेजी का हस्तक्षेप समय: शनाम 3.: से 5 बजे अध्यक्ष:-श्री टी.एन.चतुवर्ेदर्ी (पूवर्र्श राज्यपाल) बीज वर्क्तव्य:-श्री राहुल दर्े वर् वर्क्ता:-डा. लिलताम्बा,प्रो.हरीशन िपात्रवर्ेदर्ी, श्री शनिशन शनेखर, भारतीय भाषाओं के लेखाकों के बीच सारस्वर्त संवर्ादर् ब्रजेन्द्र िपात्रपाठी,,सुिनता शनमार्श,डा.सुरेशन,सुश्री ऊषाराजे सक्सेना, िवर्नोदर् लव्केशन,हरजेन्द्र शनमार्श,(सिचवर् रे ल्वर्े)श्री पांचाल((UPSC)
चौधरी,डा.पन्नालाल पांचाल,डा.बल्दर्े वर् वर्ंशनी,प्रेमलाल संचालन;-डा. जवर्ाहर कनार्शवर्ट
तत ृ ीय सत:-भारतीय भाषाएं और भूमण्डलीकरण िदर्नांक;-17 माचर्श 2013 समय; 10.30 बजे से 12.00 बजे तक अध्यक्ष:- श्री मदर्नलाल मधु बीज वर्क्तव्य:- ड. िचत्रा मुदर्गल वर्क्ता:-डा. कमलकुमार, डा.कुमदर् ु शनमार्श, डा राजेन्द्र प्रसादर् िमश्रा संचालन:-डा.मीनाक्षी जोशनी चतुथसर्श िवर्मशनर्श:-िहन्दर्ी संस्थसाएं और भावर्ी िदर्शनाएं िदर्नांक:-17 माचर्श 2013, समय से
2.00 बजे तक
12:15
अध्यक्ष:-डा. रत्नाकर पांडॆ, पूवर्र्श
सांसदर्
बीज वर्क्तव्य:- डा. अमरनाथस, ड.
वर्ेदर्प्रताप वर्ैिदर्क,डा.केशनरीलाल वर्मार्श
संचालन:- प्रसन ू लतांत
(भोजन 2.00 - 3.00 तक) समापन सत.—समय 300 से
5 बजे श ाम
मुख्य अितिथस:- श्रीमती सुषमा स्वर्राज, नेता प्रितपक्ष,लोकसभा अध्यक्ष:- न्यायमूितर्श चन्द्रशनेखर धमार्शिधकारी स्वर्ागत भाषण :- श्री कैलाशनचन्द्र पंत वर्क्तव्य:- डा.प्रभाकर श्रोत्रीय आभार:- श्री नारायण कुमार. संचालन:- श्री अिनल
जोशनी
अमत ृ महोत्सवि मे िनम्निलिखित भारतीय भाषाओं के िविद्विानों को सम्मानीत िकया गया
26 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
डा. िवर्श्वर्नाथस प्रसादर् ितवर्ारी (िहन्दर्ी.)
श्री रघवर् ु ीर चौधरी (गज ु राती)
डा. राधा वर्ल्लभ िपात्रपाठी (संस्कृत)
श्री अख्तरुल वर्ासे (उदर्र्श ू)
डा.एच.बालसुब्रमण्यम(तिमल)
श्री ब्रजनाथस बेताब(कश्मीरी)
डा. एस.शनेषारत्नम (तेलुगू)
श्री मोहनिसंह (डोगरी)
श्री एषुमट्टटोर राजराज वर्मार्श (मलयालम) डा.श्री िवर्नोदर् असुदर्ानी( िस्सन्धी)
सुश्री प्रितभानंदर् कुमार( कन्नड)
श्री रमेशन वर्ेलस् ु कर
(कोंकण ी)
श्री रा.ग. जाधवर्(मराठी)
श्री सतीशनकुमार
वर्मार्श (पंजाबी)
सुश्री नवर्नीता राय (उिडया)
श्री रजेन्द्र िमश्र
(उिडया-िहन्दर्ी)
सुश्री अरूप बरूआ(असमी)
श्री रामशनंकर
िद्वर्वर्ेदर्ी (बंगला-िहन्दर्ी) िदर्ल्ली मे रहते हुए हमे शनाम का वर्क्त िमलता. इस समय का हम भरपूर उपयोग करते. पास ही िस्थसत गांधी-समाधी जाते और पज् ु य बापू के चरण ॊं मे अपना शनीशन झक ु ा कर अपना अहोभाग्य समझते. गांधीजी को हम दर्े ख तो नहीं आए थसे,क्योंिक उस समय मेरी उम्र छः साल की थसी,लेिकन बादर् मे उनके सािहत्य को पढकर गांधीजी को थसोडा बहुत समझ पाए. एक ऎसे संत की समाधी के पास कुछ समय तक बैठकर उनकी स्मिृ तयों मे तल्लीन हो जाते. ऎसा करते हुए महान वर्ैज्ञािनक आईंस्टीन ने कभी बापू के बारे मे कहा थसा िक लोग िवर्श्वर्ास नहीं करे गे िक एक हाड-मांस के व्यिक्त ने िपाबना रक्त बहाए दर्े शन को आजादर्ी िदर्ला दर्ी.[ कृपया संशनोिधत करे .) महात्मा गांधी के बारे मे उन्होंने यह भी कहा थसा:I believe that Gandhi’s views were the most enlightened of all the political men of our time. We should strive to do things in his spirit: not to use violence in fighting for our cause, but by nonparticipation in anything you believe is evil.
. गांधी-समाधी
(बाएं से दर्ांए=गोवर्धर्शन यादर्वर्,डी.पी.चौरिसया,नमर्शदर्ाप्रसादर् कोरॊ एवर्ं मंगरुलकर 27 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
बाऎ ं से दर्ाएं=श्री श्रोत्रीयजी,धमार्शिधकारीजी एवर्ं कैलाशनचन्द्र पंतजी
सम्मान िदर्ए जाने का दृष्य
दर्शनर्शक दर्ीघार्श का दृष्य़
(सम्मा. धमार्शिधकारीजी का संबंध मुलताई से है .उनसे भेट करते हुए गोवर्धर्शन यादर्वर्)
(बाएं से दर्ाएं श्री िवर्ष्ण ु मंगरुलकर,नमर्शदर्ा प्रसादर् कोरॊ,
( अपने सािहित्यक िमत्र श्री राष्ट्रिकं करजी केसाथस
डी.पी.चौरिसया, गोवर्धर्शन यादर्वर्,मान.न्यायमूितर्श धमार्शिधकारीजी, डा.श्री.िवर्श्वर्नाथस िपात्रपाठीजी ) राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित,वर्धार्श के यवर् ु ा कमर्शठ साथसी श्री नरे न्द्रकुमार दर्ण्ढारे जी ने इस कायर्शक्रम को सफ़ल बनाने के िलए अथसक पिरश्रम िकया.िनिश्चत रुप से वर्े धन्यवर्ादर् के पात्र है.
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गांधीजी की तस्वर्ीर के समीप काली जैकेट मे खडॆ श्री दर्ण्ढारे जी --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------6
स्वर्ामीनारायण अक्षरधाम 29 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
स्वर्ामीनारायण अक्षरधाम एक नूतन-अिद्वर्तीय संस्कृित-तीथसर्श है . भारतीय कला, प्रज्ञा और िचंतन का बेजोड संगम यहाँ दर्े खा जा सकता है . भारतीय संस्कृित के परु ोधा, स्वर्ामीनारायण संप्रदर्ाय के संस्थसापक श्री घनश्याम पाण्डॆ या सहजानन्दर्जी ( 1781-1830) की पुण्य स्मिृ तयों को समिपर्शत स्वर्ामीनारायण अक्षरधाम के आकषर्शण से प्रभािवर्त होकर जन-सैलाब िखंचा चला आता है ..और स्वर्ामी के दर्शनर्शन कर अपने को अहोभागी मानता है . धमर्श और संस्कृित को समिपर्शत इस महामानवर् ने अपने आपको तप की भट्टी मे तपाया, ज्ञान की लौ को प्रज्जवर्िलत िकया, और संिचत पुण्यों को जनसाधारण के बीच समिपर्शत कर िदर्या. एक िदर्व्य महापुरुष योगीजी महाराज ने आशनीवर्ार्शदर् िदर्या थसा िक यमुना के पावर्न तट पर एक भव्य आध्याित्मक महालय की स्थसापना होगी, िजसकी ख्याित िदर्ग-िदर्गन्त मे होगी. गुण ातीत गरु ु परं परा के पांचवर्े गुरु/ संतिशनरोमण ी/ िदर्व्य व्यिक्तत्वर् के धनी िवर्श्वर्वर्ंदर्नीय प्रमुखस्वर्ामी महाराजजी ने अपने गुरु के
.
उस पिरकल्पना को पथ् ृ वर्ी- तल पर साकार कर िदर्खाया. स्वर्ािमनारायण अक्षरधाम के िनमार्शण और संवर्हन का उत्तरदर्ाियत्वर् बी.ए.पी.एस.स्वर्ािमनारायण
संस्थसा ने परू ी िनष्ठा के साथस िनवर्र्शहन िकया. संयक् ु त राष्ट्र संघ द्वर्ारा मान्यता प्राप्त यह संस्थसा एक अंतराष्ट्रीय सामािजक-आध्याित्मक संस्थसा है , जो िवर्गत एक शनताब्दर्ी से मानवर्-सेवर्ा मे रत है . 3700 सत्संग केन्द्रों, 15,700 सत्संग सभाओं, 850 नवर्युवर्ा सुिशनित क्षत संतो,, 55,000 स्वर्यंसेवर्कों द्वर्ारा सेिवर्त और लाखों अनुयािययों के द्वर्ारा यह संस्थसा िशनक्षा, स्वर्ास्थ्य, पयार्शवर्रण , सामािजक, नैितक, सांस्कृितक आिदर् क्षेत्रों मे अपनी प्रमुख भूिमका िनवर्र्शहन बडी लगन-श्रद्धा और समपर्शण के साथस कर रही है . यमन ु ा के िकनारे लगभग एक सौ एकड जमीन पर उस पिरकल्पना को साकािरत िकया गया है . इस भव्य स्मारक की िडजाइन श्री महे शनभाई दर्े साई तथसा श्री बी.पी.चौधरी ने उकेरी तथसा िसकन्दर्रा (राज) के चालीस गाँवर्ों के लगभग सात हजार कारीगरों ने इसे तराशना-संवर्ारा, उन्हे क्रमसंख्या दर्ी और िफ़र ट्रकों के माध्यम से िनमार्शण -स्थसली पर िभजवर्ाया. अंकोरवर्ाट, अजन्ता, सोमनाथस, कोण ाकर्श के सय ू र्श मिन्दर्र सिहत दर्े शन-िवर्दर्े शन के कई मिन्दर्रों के स्थसापत्य के गहन अध्ययन-मनन और वर्ेदर्, उपिनषदर् तथसा भारतीय िशनल्प की कई पुस्तकों के गहन अध्ययन से प्राप्त जानकािरयों के आधार पर इसका िनमार्शण िकया गया. िवर्शनाल भव्यता िलए इस इमारत को बनने मे जहाँ चालीस साल लग सकते थसे, उसे महज पांच वर्षों मे पूरा कर िदर्खाया. यह िकसी आश्चयर्श से कम प्रतीत नहीं होता. छः नवर्म्बर दर्ो हजार पांच मे इसकी
िवर्िधवर्त
इसकी नींवर् रखी गई थसी जो दर्ो हजार दर्स मे बनकर परू ी हुई. 30 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
घनश्याम पाण्डॆ उफ़र्श स्वर्ामीनारायण उफ़र्श सहजानन्दर् स्वर्ामीजी िहन्दर् ू धमर्श के स्वर्ामीनारायण संप्रदर्ाय के संस्थसापक पुरुष थसे. आपका जन्म 03-04-1781 अथसार्शत चैत्र शनुक्ल 9 िवर्.संवर्त 1837 मे भगवर्ान श्रीराम की जन्मस्थसिल “अयोध्या” के पास िस्थसत ग्राम छिपया मे हुआ थसा. आपके िपताश्री का नाम श्री हिरप्रसादर् तथसा माताश्री का नाम भिक्तदर्े वर्ी थसा. सद्ध प्रसूत बालक घनश्याम के हाथस मे पद, पैर मे बज, तथसा कमल-िचन्ह दर्े खे गए. इन दर्ै वर्ीय अलंकरों से यक् ु त इस बालक ने महज पांच वर्षर्श की आयु मे अक्षर ज्ञान प्राप्त िकया थसा. आठ वर्षर्श की उम्र मे आपका जनेऊ संस्कार िकया गया. आपने कई शनात्रों का गहनता से अध्ययन िकया. ग्यारह वर्षर्श की आयु आते ही आपके माता-िपता का दर्े हावर्सान हो गया. िकसी कारण से आपका अपने बडॆ भाई के साथस िवर्वर्ादर् हो गया. उसी समय आपने अपना घरबार छॊड िदर्या. अगले सात साल तक आप भारत मे भ्रमण करते रहे . लोग उन्हे नीलकण्ठवर्ण ी कहने लगे. उन्होंने अष्टांगयोग श्री गोपाल योगीजी से सीखा. उत्तर मे उत्तुंग िहमालय, दर्ित क्षण मे कांचीपुरम, श्रीरं गपरु , रामेश्वर्र होते हुए पंढरपरु और नािसक होते हुए आप गुजरात आ गए. मांगरूल के समीप “लोज” गाँवर् मे िनवर्ास कर रहे स्वर्ामी मक् ु तानन्दर्जी से पिरचय हुआ, जो स्वर्ामी रामानदर्जी के िशनष्य थसे. वर्े उन्हीं के साथस रहने लगे. स्वर्ामी रामानन्दर्जी ने संप्रदर्ाय की परम्परा के अनुसार नीलकण्ठवर्ण ी को “पीपलाण ा” गाँवर् मे दर्ीक्षा दर्ी और नया नाम िदर्या सहजानन्दर्. एक साल बादर् स्वर्ामीजी ने “जेतपरु ” मे सहजानन्दर्जी को अपने संप्रदर्ाय का “आचायर्श” पदर् दर्े िदर्या. कुछ समय बादर् रामानंदर्जी का दर्े हावर्सान हो गया. उसके बादर् वर्े दर्े शन भर मे घम ू -घम ू कर ईश्वर्र के गण ु ानुवर्ादर् करते और धमर्श का प्रचार-प्रसार करते हुए लोगों को स्वर्ामीनारायण मंत्र का जाप करने की सीख दर्े ते रहे . तन-मन से ईश्वर्र को समिपर्शत सहजानन्दर्जी ने 1830 ई. मे अपनी दर्े ह छोड दर्ी. स्वर्ामीनारायन के नाम से िवर्ख्यात हुए इस महान संत का स्मारक गांधीनगर (गुजरात) मे’अक्षरधाम” स्थसापत्यकला का उत्कृष्टतम नमूना है . इसी तजर्श पर िदर्ल्ली मे यमन ु ा के पावर्न तट पर भव्य स्मारक बनाया गया है ,िजसकी िवर्शनालता, भव्यता दर्े खते ही दर्शनार्शनाथसी को िकसी िदर्व्य लोक मे ले जाते है
31 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िदर्व्य द्वर्ार- दर्सों िदर्शनाओं के प्रतीक है, जो वर्ैिदर्क शनुभकामनाओं को प्रितिपाबंिपाबत
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करते है
भिक्त द्वर्ार- परं परागत भारतीय शनैली का अनोखा प्रवर्ेशन द्वर्ार
मयूर द्वर्ार=स्वर्ागत द्वर्ार मे परस्पर गथस ूं े हुए मयरू तोरण
अक्षरधाम मिन्दर्र=गल ु ाबी पत्थसरों और श्वर्ेत संगमरमर के संयोजन से 234 कलामंिडत स्तम्भ,, 9 कलायुक्त घुमट-मण्डपम, 20 चतुष्कोण ी िशनखर और 20,000 से भी अिधक कलात्मक िशनल्प, इसकी ऊँचाई 141 फ़ीट,चौडाई 316 फ़ीट और लंबाई 356 फ़ीट है
श्रीहिर चरण ारिवर्ंदर्=सोलह मांगिलक िचन्हों से अंिकत श्री हिरचरण ारिवर्ंदर्
32 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मिू तर्श= पंचधातु से िनिमर्शत स्वर्ण र्शमंिडत 11 फ़ीट ऊँची नयनािभराम मूितर्श. कलामंडल. िसंहासनों पर िवर्राजमान क्रमशनः भगवर्ान लक्ष्मीनारायण , श्रीरामजी-सीताजी, श्रीकृष्ण राधाजी, और श्री महादर्े वर्-पावर्र्शती जी की संगमरमर की दर्शनर्शनीय मूितर्शयां
कलात्मक छत
मंडोवर्र= अथसार्शत बाह्य दर्ीवर्ार. कुल लंबाई 611 फ़ीट, ऊँचाई 25 फ़ीट. 4287 पत्थसरों से िनिमर्शत यह मंडोवर्र भारतीय नागिरक शनैली के स्थसापत्यों मे सबसे बडा है .
गजेन्द्र पीठ= अक्षरधाम का यह भव्य महालय 1070 फ़ीट लम्बी गजेन्द्रपीठ पर िस्थसत है , 3000 टन पत्थसरों से िनिमर्शत है .,जो िवर्श्वर् का एक मौिलक एवर्ं अिद्वर्तीय शनैल्पमाल है . 148 हािथसयों की यह कलात्मक गाथसा, प्राण ीसिृ ष्ट के प्रित िवर्नम्र भावर्ांजिल है . भारतीय बोधकथसाओं, लोककथसाओं, पौरािण क आख्यानों इत्यािदर् से 80 दृष्य़ तराशने गए है.
33 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
दर्े खना न भूले---िवर्शनेष= बाहरी दर्ीवर्ारों पर चारों ओर स्थसािपत भारतीय संस्कृित के महान ज्योितधर्शर संतों, भक्तों, आचायों, िवर्भिू तयों के 248 मिू तर्श-िशनल्प, भव्य प्रवर्ेशन मंडपम की अिद्वर्तीय स्तंभ कलाकृित, छत मे सरस्वर्ती, लक्षमी,पावर्र्शती आिदर् दर्े िवर्यों और गोपी-कृष्ण रास के अदत ु िशनल्प, नारायण पीठ मे भगवर्ान स्वर्ािमनारायण के िदर्व्य चिरत्रों के कुल 180 फ़ीट लंबे कलात्मक धातुिशनल्प प्रत्येक हाथसी के साथस बदर्लती कलात्मक हाथसी-मुद्राएं. “ हाथसी और प्रकृित िवर्भाग” मे पंचतंत्र की कथसाओं के प्रकृित की गोदर् मे क्रीडा करते हािथसयों की महमोहक मुद्राएं. “हाथसी और मानवर्” िवर्भाग मे समाज जीवर्न से समरस हािथसयों की कथसाएं. “हाथसी और िदर्व्य तत्त्वर्” िवर्भाग मे धमर्श-परम्पराओं मे हाथसी की गाथसाएं खण्ड-1= सहजानंदर् दर्शनर्शन/प्रेरण ादर्ायक अनभ ु िू त =रोबोिटक्स- एिनमेट्रोिनक्स, ध्वर्िन-प्रकाशन, सराउण्ड डायोरामा आिदर् आधिु नक तकिनकों के माध्यम से श्रद्धा, अिहंसा, करुण ा, शनािन्त, आिद्दि सनातन मूल्यों की अदत ु प्रस्तुित भगवर्ान स्वर्ािमनारायण जी के जीवर्न-प्रसंगों के द्वर्ारा. खण्ड-२=नीलकण्ठ दर्शनर्शन= महाकाव्य सी िफ़ल्म जो बालयोगी नीलकंठ की, िजन्होंने सात वर्षर्श तक नंगे पैर 12,ooo िक.मी. भारत की पदर्यात्रा की. 85 x 65 फ़ीट िचत्रपट सत्य घटना पर आधािरत, खण्ड-३=संस्कृित िवर्हार= दर्स हजार वर्षर्श पुरानी भारतीय संस्कृित की अदत ु झांकी. नौकािवर्हार द्वर्ारा 800 पुतलों एवर्ं कई संशनोधनापूण र्श प्रमाण भूत रचनाएं. िवर्श्वर् की सवर्र्शप्रथसम यिु नवर्िसर्शटी तक्षिशनला, नागाजुन र्श की रसायनशनाला दर्े खकर भारत के भव्य इितहास की झांकी दर्े खी जा सकती है . यज्ञपरु ु ष कुण्ड एवर्ं संगीतमय फ़व्वर्ारे = लाल पत्थसरों से िनिमर्शत
300 x 300 फ़ुट लम्बा प्राचीन कुण्ड
परम्परा का नमन ु ा, कुण्ड के भीतर कमलाकार जलकंु ड मे संगीतमय फ़ुवर्ारा. जल,ज्योित और जीवर्नचक्र का अदत ु संयोजन. 27 फ़ीट ऊँचा बालयोगी नीलकंठ ब्रह्मचरी की प्रितमा नारायण सरोवर्र= मिन्दर्र के तीनो ओर प्राचीन जलतीथसॊं की मिहमापूण र्श परं परा
को समिपर्शत नारायण
सरोवर्र की स्थसापना की गई है . 151 तीथसों और निदर्यों के पिवर्त्र जालिसंचन से यह सरोवर्र परम तीथसर्श बना है . 34 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
अिभषेक मण्डपम= शनुभकामनाओं और प्राथसर्शनाओं के साथस नीलकण्ठ ब्रह्मचारी की मूितर्श पर गंगाजल से िवर्िधपूवर्क र्श अिभषेक. योगी हृदर्य कमल=हरी घास की भव्य कालीन पर एक िवर्शनाल अष्टदर्शन कमल. प्रेमवर्ती आहारगह ृ =अजंता की अदत ु कलासिृ ष्ट के आल्हादर्क वर्ातावर्रण मे शनुद्दि ताजा भोजन, मधरु जलपान की सुिवर्धा. सांस्कृितक उद्दिान=22 एकड मे फ़ैले उपवर्न मे पुष्प-पौधों का कलात्मक अिभयोजन. 8 फ़ुट ऊँचे 65 कांस्यिशनल्प. सूयप्र र्श काशन के सात रं गों के प्रतीकरुप सात अश्वर्ों का अनुपम सूयरर्श थस, सोलह चन्द्र कलाओं के प्रतीकात्मक 16 िहरनो का अदत ु चन्द्ररथस, भारतीय वर्ीररत्न, महान स्त्रीरत्न, प्रितभावर्ंत भारतीय बालरत्न, एवर्ं राष्ट्र के
िनमार्शण मे योगदर्ान दर्े ने वर्ाले महान राष्ट्ररत्नो के अभूतपूवर्र्श कांस्यिशनल्प.
राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित, वर्धार्श का “अमत ृ महोत्सवर्”( 16-17 माचर्श 2013) स्थसान-सत्याग्रह मंडप, राजघाट िदर्ल्ली मे आयोिजत िकया गया थसा. अपने िमत्रो-श्री डी.पी.चौरिसया,श्री 35 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
नमर्शदर्ा प्रसादर् कोरी तथसा श्री िवर्ष्ण ु मंगरुलकरजी के साथस िदर्ल्ली जाना हुआ.(िचत्र- राजघाट मे अपने िमत्रों के साथस) .एक शनाम स्वर्ामीनारायण अक्षरधाम भी जाना हुआ थसा.
बाल सािहत्य संगोष्टी के बहाने उत्तराखण्ड की यात्रा.
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इसी माह की तेरह तारीख को मैं उत्तराखण्ड से वर्ािपस लौटा हूँ. उत्तराखण्ड जाने का कायर्धक्रम अनायास ही नहीं बना था,बिल्क यह पायोिजत था. जाखनदेही(अल्मोडा) के मेरे अपने िमत्र श्री उदय िकरोलाजी,जो एक जानदार त्रैमािसक पित्रका”बाल-पहरी”के संपादक हैं,और वर्षर्ध में एक बार राष्ट्रीय बाल संगोष्ठी का कायर्धक्रम उत्तराखण्ड के िकसी खास स्थान पर आयोिजत करते हैं. ऎसा करने के पीछे उनका मकसद होता है िक ज्यादा से ज्यादा संख्या में बालसािहत्यकार वर्हाँ आएं और अपनी रचनाधनिमता के साथ-साथ पयर्धटन का भी आननद उठाएं. जूर्न २००९ की तेरह-चौदह तारीख को उनहोंने अपना कायर्धक्रम भीमताल(नैनीताल) में रखा और मुझे िनमंत्रण-पत्र भेजने के साथ ही फ़ोन पर भी आग्रह िकया िक मैं वर्हाँ पहूँचु. भीलवर्ाडा(राजस्थान) के मेरे अिभन्नच िमत्र, जो मािसक पित्रका” बालवर्ािटका” के संपादक है, का फ़ोन आया और उनहोंने भी वर्हाँ साथ चलने का आग्रह िकया था. इस तरह मुझे यह सौभाग्य पाप्त हुआ िक मैं नैनादेवर्ी के दशर्धन लाभ उठा सका. इस यात्रा में मेरी धनमर्धपित्न श्रीमती शकु नतला यादवर् भी साथ थीं. सन २००९ के बाद से मैं नीिज कारणॊं से, िकरोलाजी के कायर्धक्रम में नहीं जा पाया था. उनहोंने सन 2010 में मसूर्री, 2011 में जोशीमठ तथा २०१२ में अल्मोडा जैसे पिवर्त्र एवर्ं जगपिसद्ध पयर्धटन-स्थल पर कायर्धक्रम िकए थे. इस वर्षर्ध उनहोंने अपना कायर्धक्रम उत्तरकाशी में रखा. िनमंत्रण-पत्र िभजवर्ाया,साथ ही फ़ोन पर आने का आग्रह भी िकया था. मैंने अपने कु छ िमत्रों को साथ चलने को कहा. दो िमत्र श्री आर.एम.आनदेवर् तथा श्री डी.पी.चौरिसयाजी जाने को उद्दत हुए. कायर्धक्रम की रूपरे खा बनाते समय हमने तय िकया िक यमुनोत्री-गंगोत्री- के दारनाथ तथा बदरीनाथजी की भी यात्रा करें गे. इस तरह िछनदवर्ाडा से िदल्ली के बीच पितिदन चलने वर्ाली पातालकोट एकसपेस से हमने अपनी-अपनी सीटें आरिक्षत करवर्ायी. इस बार मैंने अपने चौदह वर्षीय पोते श्री दुष्यंत को भी साथ ले जाने का मानस बनाया िक वर्ह पयर्धटन के साथसाथ कायर्धक्रम में भाग ले सके . यात्राक्रम में आंिशक पिरवर्तर्धन करते हुए मैंने हिरद्वार-देहरादूर्न तथा मसूर्री को भी जोडा और इस तरह हम िछनदवर्ाडा से दो जूर्न को रवर्ाना हुए. तीन जूर्न को हम सराय रोिहल्ला स्टेशन पर सुबह आठ बजे पहुंचे. वर्हाँ से बस द्वारा हिरद्वार शाम छः बजे पहुंचे. शाम के वर्क्ति ही गंगाजी में स्नान िकया,कयोंिक दूर्सरे िदन सुबह हमें देहरादूर्न के िलए िनकलना था. गंगाजी में इस समय 36 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
बाढ चल रही थी.स्थानीय लोगों ने बतलाया िक ऊपर खूर्ब पानी बरसा है. तयशुदा कायर्धक्रम के अनुसार श्री गगर्धजी भी अपने पिरवर्ार के साथ देहरादूर्न पहुँचने वर्ाले थे.
हम लोग 5 जूर्न को देहरादूर्न से सुबह साढे पांच बजे की बस से
यमुनोत्री के िलए िनकले. यमुनोत्री यहाँ से लगभग 273 िक.मी. की दूर्री पर अवर्िस्थत है. पहाडी इलाके से पाय़ः सभी बसें इसी समय रवर्ाना होती है,कयोंिक एक तो रास्ते का चौडीकरण का काम चल रहा है और दूर्सरा रास्ते में अंधने मोड भी आते रहते है. रास्ता पहाडॊं की ढलान से सटकर चलता है. हजारॊं फ़ु ट गहरी खाईय़ों, घने जंगलों के बीच रें गती हमारी बस धनीरे -धनीरे आगे बढ रही थी. बडकोट से टैकसी लेकर हम लोग दो बजे के करीब जानकीचट्टी पहुँचे. जानकी चट्टी से से यमुनोत्री के िलए एकदम सीधनी खडी चढाई 5 िकमी.की है. हम चाहते तो उसी िदन माँ यमुना के उद्गमस्थल के दशर्धन कर सकते थे. लेिकन बािरश के चलते, हमने उसे अगले िदन के िलए टालना ही उिचत समझा और पास के बने एक मकान को िकराए पर उठाया और राित्र िवर्श्राम िकया. इसी मकान के पास श्री तरपनिसह राणा (मोबाईल नमबर 09411363167-09012863957) की होटल है. शाम की चाय और रात्री का भोजन हमने यहीं िकया. बातों ही बातों में पता चला िक उसके पास चार खच्चर है और वर्ह सात सौ रुपया पित खच्चर के दे सकता है. यिद इससे ज्यादा खच्चर चािहए तो वर्ह हमें उपलबधन करवर्ा देगा. एक तो रात भर बािरश होती रही.ऎसे समय में रास्ता िफ़सलन भरा हो जाता है और िफ़र सीधने खडॆ पहाड पर चढना हम जैसे उम्रदराज लोगों के िलए तो एकदम असंभवर् सा है. श्री राणा ने हमें चार बजे जगा िदया था,लेिकन नस-नस में आलस भरी हुई थी और आँख थी िक खुल नहीं पा रही थी. इसके पीछे मुख्य कारण यह रहा िक हम एक अजनबी जगह पर थे और शाम चार बजे के बाद से कमरें में िबजली नहीं थी. िकसी तरह मोमबत्ती जलाकर कम्ररे को रोशन करते रहे थे. िफ़र कमरा भी हवर्ादार नहीं था. िकसी को भी चैन की नींद नहीं आयी थी. िकसी तरह पांच बजे हम तैयार हो पाए और चाय लेकर िनकल भी नहीं पाए थे िक चार खच्चर तैयार खडॆ थे. तीन खच्चर हम लोगो के िलए थे और एक श्री गगर्धजी के िलए था. भाभीजी के िलए िपठठु की व्यावर्स्था की गई थी. शेष सदस्यों ने पैदल चलकर यात्रा करने का मानस बना िलया था. खच्चर पर बैठना भी िकसी तपस्या से कम नहीं होता. शरीर को उसकी चाल के अनुसार साधन कर रखना होता है और िजनस से लगे हुक को मजबूर्ती से पकड कर रखना होता है. कमर से ऊपर के भाग को सामने की ओर झुकाकर बैठना होता है,कयोंिक खच्चर ऊपर की ओर चढ रहा होता है, ऎसा िकए जाने से सवर्ार को बैठने मे आसानी होती है और संतुलन भी बना रहता है. खच्चर सवर्ार को इस बात का भी ध्यान रखना होता है कोई चट्टान सर के ऊपर तो नहीं आ रही है. जरा सी भी असावर्धनानी, िकसी बडी दुघर्धटमा को अंजाम दे सकती है. अतः यहाँ सावर्धनानी बरतना तथा चौकस रहना अित आवर्श्यक है.
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जैसे-जैसे हम आगे बढते हैं,पकृत ित के पल-पितपल बदलते अदभुत सौंदयर्ध को देखकर मन खुश हो जाता है. चारों तरह आसमान से बातें करती पवर्र्धत श्रेिणयाँ, रं ग-िबरं गे पेड, कहीं पहाडॊं की कोख से फ़ूर् टकर िनकलता झरना, पहाडी गीत सुनाने लगता है. अपने वर्ेग में इठलाती, बलखाती, शोर मचाती, छोटी-बडी चट्टानों से कूर् दती-फ़ांदती यमुना जी का अदभुत रुप देखकर मन, न जाने िकस नयी दुिनयां की ओर उडा चला जाता है. कई घुमावर्दार –तेढे-मेढे रास्तों से गुजरते हुए हम कब यमुनोत्रीजी के करीब पहुँच गए थे, पता ही नहीं चल पाया. एक िनिश्चर्त दूर्री पर सारे खच्चर रोक िदए जाते हैं और अब यित्रयों को पैदल चलते हुए पुल पार करना होता है. रास्ते में जगह-जगह पसाद बेचने वर्ालों की दूर्काने सजी होती है. यात्री पूर्जा की सामग्री लेकर आगे बढता है. देवर्ी के दशर्धनों से पहले नहाना जरुरी होता है. ऊपर गरम पानी का कुं ड है,िजसमें से भाप िनकलते देखा जा सकता है. शरीर के पोर-पोर में जमी ऎंठन और ठं डक पानी में उतरते ही रफ़ु चक्कर हो जाती है. यात्री यहाँ जी भर के अपने शरीर को गरम पानी से गमार्धता है और िफ़र कपडॆ बदलकर माँ के दशर्धनाथर्ध आगे बढ जाता है. यहाँ पुरुषों और मिहलाओं के नहाने की अलग-अलग व्यवर्स्था बना दी गई है. माँ यमुना के दशर्धन कर यात्री कृत ताथर्ध हो उठता है. मिनदर के समीप ही सूर्यर्धकुंड है,िजसमे भक्तिगण चांवर्ल की पोटली डालकर, उसके पक जाने का इनतजार करता है और पके हुए चांवर्ल को पसाद के रूप में ग्रहण करता है.
38 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
यह धनाम समुद्र सतह से 10,800 फ़ीट की ऊँचाई पर िस्थत है. आसपास के सभी पवर्र्धत िशखर िहमाच्छािदत हैं. दुगर्धम चढाई के कारण श्रद्धालु इस उद्गम स्थल को देखने से वर्ंिचत रह जाते है. अतः मिनदर का िनमार्धण ऎसी जगह िकया गया है, जहाँ आम आदमी आराम से पहुँच सकता है. इसी ग्लेिशयर से माँ यमुना िनकलती है और अपने पूर्रे वर्ेग से साथ नीचे उतरती हैं.
गढवर्ाल िहमालय की पिश्चर्म िदशा में उत्तरकाशी िजले में िस्थत
यमुनोत्री चारधनाम यात्रा का पहला पडावर् है. यमुना नदी का स्त्रोत, कािलदी पवर्र्धत पर है. यमुनोत्री का वर्ास्तिवर्क स्त्रोत बफ़र्ध की जमी हुई एक झील और िहमनद चंपासर ग्लेिशयर है. यमुनोत्री मंिदर पिरसर 3235 मी.ऊँचाई पर िस्थत है. मिनदर पागंण में एक िवर्शाल िशला स्तमभ है,िजसे िदव्यिशला के नाम से जाना जाता है. माह मई से अकटूर्बर तक यहां यात्रा की जा सकती है. शीतकाल में यह स्थान पूर्णर्धरुप से िहमाच्छािदत रहता है. मोटरमागर्ध का अंितम िबदु हनुमान चट्टी है. हनुमान चट्टी से मंिदर तक 14 िक.मी.पैदल चलना होता था िकतु अब हलके वर्ाहनों से जानकीचट्टी तक पहुंचा जा सकता है,जहाँ से मिनदर मात्र पांच िक.मी.दूर्र रह जाता है. पाँच िक.मी.तक का यह रास्ता घुमावर्दार एवर्ं सीधनी खडी चढाई वर्ाला है, िजसे खच्चर,िपठठु की सहायता से अथवर्ा पैदल चलते हुए जाया जा सकता है. देवर्ी यमुनाजी के मिनदर का िनमार्धण िटहरी गढवर्ाल के महाराजा पतापशाह द्वारा िकया गया था.यमुना के जल की शुद्धता,एवर्ं पिवर्त्रता के कारण भक्तिजनों के मन में इसके पित अगाधन श्रद्धा और भिक्ति उमड पडती है. पौरािणक मानयता के अनुसार अिसत मुिन की पणर्धकुटी इसी स्थान पर है. देवर्ी यमुना के मिनदर तक की चढाई का मागर्ध सकं रा, दुगर्धम और रोमांिचत कर देने वर्ाला है. मागर्ध के अगल-बगल में िस्थत गगनचुंबी, मनोहारी,बफ़र्ध से ढंकी चोिटयाँ ,घने जंगल की हिरितमा याित्रयों का मन बरबस ही मोह लेती है. यमुनोत्री मिनदर के आसपास के क्षेत्र में अनेक गमर्धजल के सोते हैं. इन सोतों में सबसे पिसद्ध कुं ड “सूर्यर्धकुंड” है,जो अपने उच्चतम तापमान के िलए िवर्ख्यात है. भक्तिगण इस कुं ड में चावर्ल की पोटली,जो पसाद आिद के साथ सहज में ही उपलबधन हो जाती है ,इसी कुं ड के गरम पानी में डालकर पकाते हैं और उसे पसाद के रुप में ग्रहण करते हैं. सूर्यर्धकुंड के समीप ही एक िदव्यिशला है. इसे ज्योितिशला भी कहते हैं. माँ यमुना की पूर्जा से पहले इस िशला की पूर्जा करने का िनयम है. ग्रीष्मकाल के िदन सुहावर्ने और रातें काफ़ी सदर्ध रहती है. यहां का नयुनतम तापमान 5 िडग्री..तथा अिधनकतम 20 िडग्री.तक रहता है. दशर्धनों के बाद यात्री होटलों में चाय-नाश्ते के िलए रुकता है. खच्चर वर्ाले इस इनतजार में रहते हैं िक कब उसका सवर्ार वर्ािपस आता है और वर्ह वर्ािपस हो सके . वर्ापसी की यात्रा ज्यादा खतरनाक हो उठती है,कयोंिक अब खच्चरों को नीचे उतरना होता है. खच्चर वर्ाले पहले से आगाह कर देते हैं िक सवर्ार अपने शरीर को पीछे झुकाकर बैठे और पीछे लगे हुक को कसकर पकड ले.. यिद सवर्ार असावर्धनान रहा तो उसके िसर के बल िगरने के ज्यादा आसार होते हैं, ऊपर चढने वर्ाले खच्चरों का रै ला, पैदल चढाई करने वर्ाले याित्रयों के झुंड और झुकी हुई चट्टानों को भी ध्यान में रखना होता है. कभी-कभी थॊडी सी भूर्ल अथवर्ा असावर्धनानी से जाम लग जाता है.,िजससे यात्रा में घंटॊं बरबाद होते हैं. अतः यहाँ चौकस और सावर्धनान रहना अत्यंत आवर्श्यक होता है.
39 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
आसमान यहाँ हमेशा बादलों से अटा पडा रहता है. कब बािरश हो जाए और कब हवर्ा, तूर्फ़ान का रुख अख्त्यार कर ले,कहा नहीं जा सकता. अतः याित्रयों को चािहए िक वर्ह अपने साथ बरसाती अथवर्ा छाता लेकर जरुर चले. गनीमत थी िक हमारे साथ ऎसा कु छ भी नहीं हुआ और हम दोपहर दो बजे के करीब अपने िठकाने पर वर्ािपस आ गए थे . राणा के अस्थायी होटल में हम आकर बैठे ही थे िक बादलों ने अपने रं ग िदखाने शुरु कर िदए और बूर्ंदा-बांदी होने लगी, तब से लेकर सारी रात, बािरश िरमिझम के तराने गाती रही. िबजली यहां कभी-कभार ही आती है. सांझ ढलते ही काला-कलुटा अंिधनयारा, कु ण्डली मारकर चहुंओर पसर गया था. िदन में बहुत ही खूर्बसूर्रत िदखाई देने वर्ाली बफ़ीली चोिटयाँ अब डराने से लगी थी. हवर्ा भी चल िनकली थी, अपने साथ बफ़ीली ठं डक िलए हुए. यहाँ आने वर्ाले याित्रयों को चािहए िक वर्ह अपने साथ ऊनी कपडॆ लेकर जरुर चलें राणाजी के चुल्हे के आसपास बैठकर हम अपने शरीरों को गरमा रहे थे. भूर्ख भी अब जोरों से लग आयी थी. राणा को हमने टमाटर की खट्टी-मीठी सबजी बनाने को कहा. तवर्े से उतरती गमार्ध-गरम रोिटयां और टमाटर की सबजी खाने में बडा मजा आ रहा था. रात काफ़ी बीत चुकी थी. अब हमें आराम करने की जरुरत थी और सुबह पांच बजे उठना भी था कयोंिक राज्य पिरवर्हन की बस सुबह साढे पांच बजे उत्तरकाशी के िलए रवर्ाना होती है . आगे की यात्रा पूर्रे सात घंटॊं की थी. याित्रयों की संख्या देखकर पहले से िटकीट लेकर अपनी सीटें आरिक्षत करना जरुरी लगा था हमें, तािक आगे की यात्रा आराम से कट सके . “सुबह जल्दी उठना है” के चक्कर में रात बेचैनी में कटी. बािरश अब भी अपने पूर्रे शबाब पर थी. पहाडी इलाकों के चलने वर्ाले बसें सुबह ही रवर्ाना हो जाती है.कयोंिक रास्ता पहाडॊं को काट कर बनाया गया है जो अत्यिधनक ही संकरा होता है और दूर्सरा यह िक रास्ते में अनेक घुमावर्दार मोड भी आते हैं . अतः दोपहर दो बजे के बाद कोई भी बस यहां से रवर्ाना नहीं होती. यिद रवर्ाना भी होती है तो बडकोट पर आकर रुक जाती है. हाँ, टैकसी वर्ाले जरुर िमल जाते हैं ,लेिकन इसमें खतरे है, अतः याित्रयों को चािहए िक वर्ह जल्दबाजी के चक्कर में न पडॆ,तो बेहतर है.. िदनांक 7 जूर्न -दोपहर दो बजे के लगभग हम उत्तरकाशी आ पहुँचे. हमारे रुकने की व्यवर्स्था पंजाब-िसधन धनमर्धशाला में की गई थी. कहने के िलए वर्ह धनमर्धशाला थी, लेिकन िकसी थ्री-स्टार होटल से कम न थी. उस धनमर्धशाला की दीवर्ार, ठीक गंगाजी के तट कॊ छूर् ती हुई थी. कमरे के सामने बेंचे लगा दी गई थी, जहाँ से बैठकार आप गंगाजीके दशर्धन आराम से कर सकते हैं. करीब तीन सौ मीटर नदी का पाट रहा होगा. गंगा मे इस समय बाढ आयी हुई थी,सो उसकी गजर्धना की आवर्ाज सुनकर भय की पतीती होती थी. शाम चार बजे से कायर्धक्रम शुरु होना था. नहा-धनोकर हम कायर्धक्रम में शरीक होने के िलए पहुँचे. कायर्धक्रम मयुिनस्पल के बडॆ हाल में होना था, जो इस जगह से थॊडी दूर्र पर ही अवर्िस्थत था. कु .गरीमा िकरौला, मंजु रावर्त,िजया, खजानिसह एवर्ं देवर्ाशीष ने हमारा स्वर्ागत िकया. हमने अपना पंजीकरण कराया और ठीक साढे चार बजे बाल-काव्य गोष्ठी का दौर शुरु हुआ. इसमे करीब तीस बच्चों ने काव्य-पाठ िकया. डा.श्री. रामिनवर्ास मानवर्जी की अध्यक्षता एवर्ं डा 40 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
श्री हिरशचनद्र बोरकर,श्री गोिवर्नद भारद्वाज,एवर्ं डाकटर श्री भैंरुलालजी गगर्ध की गरीमामय उपिस्थित में इस कायर्धक्रम की शुरुआत हुई,िजसका संचालन स्वर्यं श्री उदय िकरौला ने िकया. “बाल सािहत्य में बाल पित्रकाओं का योगदान” िवर्षय पर डा.गगर्धजी ने अपना उद्बोधनन िदया. दुसरे िदन अथार्धत िदनांक 8 जूर्न को सुबह नौ बजे पहले सत्र में स्वर्ागत संबोधनन के साथ स्लाइड शो(अब तक की यात्रा) के माध्यम से बालपहरी के िवर्िभन्नच कायर्धक्रमों की पस्तुित दी गई. दस बजे-बाल सािहत्य में िवर्ज्ञान लेखन”िवर्षय पर पैनल द्वारा खुली चचार्ध आयोिजत की गई.. शाम चार बजे” बाल िवर्ज्ञान किवर्ता िवर्श्लेशन”. शाम पांच बजे डा. मधनु भारती की अध्यक्षता में तथा डा श्री अशोक गुलशन,श्री मुरलीधनर पाण्डॆय,श्री अिश्वनी पाठक की गरीमामय उपिस्थित में काव्यपाठ का आयोजन हुआ. इस कायर्धक्रम का सफ़ल संचालन श्रीमती मंजु पाण्डॆ तथा डा.दीपा काण्डपाल ने िकया. तीसरे िदन अथार्धत िदनांक नौ जूर्न को सुबह नौ बजे “ बाल सािहत्य पर खुली चचार्ध की. गई. सममान एवर्ं समापन सत्र में डा. राष्ट्रबंधनु जी की अध्यक्षता में नयायिवर्द श्री मुरलीधनर वर्ैष्णवर् ,श्रीमती िवर्मला भंडारी, डा.अमरे नद्रिसह, श्री खजानिसह की उपिस्थित में डा. शेषपालिसह शेष, डा.मधनु भारती, श्री गोिवर्नद भारद्वाज,डा, महावर्ीर रवर्ांल्टा, डा.श्री परशुराम शुकल, डा.िवर्मला भंडारी, डा,मोहममद अरशद खान,, श्री आशीष शुकला, डा.घमंडीलाल अग्रवर्ाल, एवर्ं श्री मनुज चतुवर्ेदी”भारत” का शाल ,श्रीफ़ल एवर्ं ,संस्था का स्मृतित-िचनह देकर सममानीत िकया गया एवर्ं अनय िवर्द्वतजनॊं को स्मृतित-िचनह पदान िकए गए. कायर्धक्रम की समािप्त के बाद हमारे पास कु ल देढ िदन का समय बचा था. हमारा वर्ापसी का िटिकट सराय रोिहल्ल(िदल्ली) से िदनांक 11 जूर्न का था और इस बीच हमें गंगोत्री और के दारनाथ भी जाना था. इतने कम समय में के वर्ल एक स्थान पर ही जाया जा सकता था. अंततः यह तय हुआ िक गंगोत्री की यात्रा की जा सकती है. के दारनाथ की यात्रा संभवर् नहीं लग रही थी. हमारे पास के वर्ल एक उपाय शेष था िक िकसी तरह िटिकट कैं सल होकर आगे की ितिथ की हो जाए, तो के दारनाथ भी जाया जा सकता है. अतः हमने आठ तारीख को कलेकटोरे ट जाकर िटिकट िनरस्त कराने और नया िटिकट तेरह तारीख की जारी करवर्ाने की सोची..सनद रहे िक उत्तरकाशी में रे ललाईन न होने की वर्जह से वर्हां कोई िटिकटघर नहीं है अतः िटिकट जारी नहीं की जा सकती थी. इस समस्या को हल करने के िलए कलेकटोरे ट में अितिरक्ति व्यवर्स्था की गई है. लेिकन उस िदन दूर्सरा शिनवर्ार होने के नाते कायार्धलय बंद था. अतः हमारी योजना पर पानी िफ़र गया. अब के वर्ल एक चारा बचा था िक हमें तत्काल ही गंगोत्री के िलए रवर्ाना हो जाना चािहए. कायर्धक्रम की समािप्त के बाद हमारे सारे िमत्रगण टैकसी लेकर रवर्ाना हो चुके थे. टैकसी के िलए कम से कम दस सीटॊं की आवर्श्यकता होती है. लेिकन हम के वर्ल तीन लोग थे. और हमें कम से कम सात लोगो के साथ की जरुरत थी. संयोग से श्रीमती मंजु पाण्डेजी, के ग्रुप मे उनके अितिरक्ति चार मिहलाएं और थीं,िजनहें गंगोत्री जाना था,का साथ िमल गया और इस तरह हम गंगोत्री के िलए िनकल पडॆ. उत्तरकाशी से गंगोत्री की दूर्री 172 िकमी.है. भटवर्ारी,झाला, लंका और भैरोंघाटी होते हुए गंगोत्री पहुंचा जा सकता है. अमुनन इस रास्ते को पार करने में कम से कम सात घंटे का समय लगता है . यात्रा की शुरुआत से लेकर 41 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
भागीरथी, हमारे साथ चलती रहती है. कभी आँखों से ओझल हो जाती है िफ़र थॊडी देर बाद पकट हो जाती है. पहाडॊं की अनवर्रत श्रृतख ं ला भी हमारे साथ –साथ चलती रहती है. लेिकन आज वर्े उदास हैं. पहाडॊं का अनयतम िमत्र वर्ृतक्ष ही होता है,जो आज िवर्लुप्त होने की कगार पर है. वर्ृतक्षिवर्हीन पहाडॊं पर छाई उदासी को देखकर मन में अपार पीडा होती है भीमकाय जेबीसी मशीनें उनकी छाती को छील रही होती है. जगह-जगह पर पत्थर-िमट्टी.के ढेर आवर्ागमन में बाधना बनने का कारण बनते हैं. पैसा कमाने की होड में लोगो ने सडकों तक अपने मकानों को फ़ै ला रखा है और तो और उन लोगों ने पहाड की ढलान पर से िसमेंट-कांक्रीट के िपल्लर खडॆ करके अपने साम्राज्य खडॆ कर िलए हैं. िवर्कास के नाम पर यिद इसी तरह का दुष्चक्र चलता रहा तो एक िदन हम िवर्नाश को रोके , रोक नहीं पाएंगे. उत्तराखण्ड का सुपिसद्ध तीथर्ध गंगोत्री है,जो गंगाजी का उद्गमस्थल है. यहाँ गंगोत्री में गंगा का नाम भागीरथी है. भागीरथ ने यहाँ रहकर गंगाजी को पसन्नच करने के िलए किठन तप िकया था .इसिलए इस स्थान से बहने वर्ाली गंगाजी का नाम भागीरथी पडा. गंगोत्री धनाम 10,300 फ़ीट की ऊँचाई पर िस्थत है. वर्ास्तवर् में भागीरथी का उद्गम, गंगोत्री से भी तीस िकमी आगे ऊपर की ओर गोमुख में है, जहाँ अत्यनत िवर्स्तृतत िहमनद के नीचे से भागीरथी का जल पवर्ािहत होता है. गोमुख तक पहुंच पाना इतना आसान नहीं है. इसिलए गंगाजी का मिनदर ऎसे स्थान पर बनाया गया है जहां आम आदमी आराम से पहुँच सकता है. यहां का जल अत्यिधनक स्वर्च्छ होता है(फ़ोटॊ८) गंगोत्री में श्रीमती मंजज ु ी पाण्डॆ के पिरिचत गुरुजी पं.श्री िदनेश पसादजी ने डालिमया मंगलम िनके तन”नामक अपना भवर्न बना रखा है,िजसमे उनके िशष्यािद आकर रुकते हैं. उनहोंने राित्र में िवर्श्राम करने के िलए कमरे खोल िदए. यह हमारा सौभाग्य ही था िक हमें यहां रुकने की उत्तम व्यवर्स्था िमल गयी,अनयथा उस िदन की अत्यिधनक भीड के चलते हम इतनी आरामदायक जगह की कल्पना तक नहीं कर सकते थे. यह भवर्न गंगाजी के दूर्सरे छोर पर अवर्िस्थत है,जहां से बैठकर आप मिनदर के दशर्धन कर सकते हैं. राित्र में ही हमने मां गगाजी के दशर्धन िकए. वर्हीं तट पर बने होटल में रुिचकर भोजन का आननद िलया. राित्र में िवर्श्राम िकया और बडी सुबह हम उसी टैकसी से उतरकाशी के िलए रवर्ाना हो गए. उत्तरकाशी से गंगोत्री जाना और वर्हां से वर्ापसी के िलए हमने पहले से एक टैकसी को बुक कर रखा था. उत्तरकाशी आकर रुकना हमें उिचत नहीं लगा, कयोंिक हमारे पास समय की बेहद कमी थी. यिद हम वर्हाँ रुक भी जाते तो िकसी भी कीमत पर सराय रोिहल्ला(िदल्ली) नहीं पहूँच पाते. सराय रोिहल्ला से िछनदवर्ाडा वर्ापसी की ट्रेन िदन के साढे बारह बजे खुलती है. अतः हमारा ऋषिषके श तक पहुँचना बहुत जरुरी था. वर्हाँ से हमें िदल्ली की ओर पस्थान करने वर्ाली बसें िमल सकती थी. मंजज ु ी एवर्ं उनकी िमत्र मण्डली उत्तरकाशी में रुकते हुए यमुनोत्री के दशर्धनाथर्ध जाना चाहती थीं. लेिकन मंजज ु ी की तिबयत अचानक खराब होने लगी और उनहोंने अपना कायर्धक्रम िनरस्त िकया और हमारे साथ ही ऋषिषके श तक चलना उिचत समझा. यहाँ आकर उनहें हल्द्वानी जाने के िलए बसें िमल सकती थीं. अतः हमने
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टैकसी वर्ाले से बात की और वर्ह िकसी तरह तीन हजार पांच सौ रुपयों में ऋषिषके श तक चलने के िलए राजी हो पाया था.
रात के बारह बजे के करीब हम लोग ऋषिषके श के बस-स्टैण्ड पर पहुंचे. बस से उतरते ही मंजज ु ी को हल्द्वानी की ओर जाने वर्ाली बस िमल गई और हमें िदल्ली की ओर पस्थान करने वर्ाली बस. सुबह पांच बजे हम िदल्ली के बसस्थानक पर पहुंचे. अब हमारे पास पयार्धप्त समय था,जब हम अपनी ट्रेन आराम से पकड सकते थे. तेरह तारीख को दस बजे सुबह हम अपने घर पहुँच गए थे. िनिश्चर्त ही यह यात्रा,अपने आप में एक रोमांचक यात्रा थी. ट्रेन से पितध्वर्िनत होती छु क-छु क की आवर्ाज, स्टेशनो पर उतरते और सवर्ार होते नए-नए यात्री के साथ यात्रा करना, उनके सुख-दुख में शािमल होना, कु छ अपनी बताने और कु छ उनसे सुनने की लगन, चाय-और नाश्ते के िलए गुहार लगाते वर्ैडरों की आवर्ाज कानॊं में अब भी गूर्ंज रही थी. ट्रेन से उतरकर बस अतवर्ा टैकसी पकडकर आगे की यात्रा की तैयारी करना, रास्ते में अजनबी पहाडॊं से होती मुलाकातें, िवर्शालकाय पेडॊं से झरती ठं डी-ठं डी हवर्ा के झोंकों में सराबोर होते थे हम लोग .इन सब के चलते न जाने िकतना समय बीत गया, ,इसकी ओर तिनक भी ध्यान नहीं गया. एकदम नयी-िनराली दुिनयां,दुिनयां में तरह-तरह के लोग, अलग-अलग पदेशों से आए हुए लोग,जो सवर्र्धथा अनजाने होते हैं,को देखना-समझना अच्छा लगता था. िफ़र हमारा पिरचय होता है अजनवर्ी शहर से, िजसे हमने इससे पूर्वर्र्ध कभी देखा तक न था. वर्हाँ के मिनदरों से और एकदम अपिरिचत सडकों और गिलयों से, कायर्धक्रम में िमलते अपने िचर-पिरिचत सािहत्यकारों से, इनमें कु छ एकदम नए भी होते थे ,िजनकी रचनाएं हमने कभी िकताबों-पित्रकाओं में पढा था, एक दूर्सरे से पिरिचत होते,िमलते, कक्षा चौथी-पांचवर्ीं में पढते किवर्ता सुनाते बच्चे, इसी क्रम में किवर्ता पढता और वर्ाहवर्ाही बटोरता, स्मृतितिचनह लेता सममािनत होता मेरा अपना प्यारा पोता दुष्यंत, कायर्धक्रम की समािप्त के बाद िफ़र आता एक िबखरावर् का दौर. सब अपने-अपने रास्ते पर चल िनकलते. इन सबके साथ िबताए गए पल रह-रह कर याद आते रहे. याद आती रही हिरद्वार में उफ़नती-तेज बहावर् में बहती पितत पवर्नी गंगाजी,िजसमें हम, सांझ ढले स्नान करने पहुँचे थे. बहते पानी की गित इतनी तेज थी िक पांवर् जमीन पर िटक नहीं पा रहे थे. रौद्ररुप िदखाित, जोरों से गरजतींउफ़नदी गंगा शायद अपना दुखडा सुना रही थी िक उसके साथ, ये दो पैर का आदमी िकतनी तकलीफ़ें दे रहा है उसे, शायद हमारे कान सुन नहीं पा रहे थे या हम सुन पाने की िस्थित में नहीं थे. मन में तब एक ही कल्पना साकार हो रही थी िक इसके उद्गम का स्वर्रुप कै सा होगा िजसे हमने, इससे पहले कभी देखा था और न ही सुना था, िजसे हम िनकट भिवर्ष्य में देखने जाने वर्ाले थे. िफ़र मुलाकात होती है उत्तरकाशी में िस्थत पंजाब-िसधन धनमर्धशाला की भव्य इमारत से सटकर बहती हुई गंगा से. तब जाकर इसका दुख-ददर्ध समझ में आया िक गंगा हिरद्वार में कया कहना चाहती थी. दुखडॆ की कहानी यहाँ आकर रुकती नहीं है,बिल्क उत्तरोत्तर उस ओर बढते हुए देखा और जाना िक िकतना अत्याचार मचा रहा है, तथाकिथत नयी 43 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
टेक्नोलाजी का ज्ञाता आज का आदमी. िवर्कास के नाम पर िवर्नाश की लीला रचता, पहाडॊं की छाती छोलकर सडक का िनमार्धण करता, नदी का रुख मोडता, बारुदी सुरंगे िबछाता आज का आदमी शायद िवर्कास के नाम पर िवर्नाश के बीज बोता आज का आदमी. नदी-पहाडॊं की सुनी-अनसुनी कर भी दें तो उसने अपना साम्राज्य बढाते हुए देवर्ता के मिनदर तक अपने पैर जमा िलए हैं. समझ में नहीं आत्ता िक हम मिनदर के पागंण में हैं या िफ़र सीमेंट -कांक्रीट के घने जंगल में? िकतने सपने- और न जाने िकतनी ही सुकोमल भावर्नाएं लेकर हम वर्हाँ जा पहुँचे थे,जहाँ असीम शांित की जगह, शहरों सी कोलाहल थी, भीड थी और मोटर-गािडयों का जमावर्डा था, बडी-बडी अट्टािलकों में ऎश-ओ-आराम की सुखसुिवर्धनाएं पयर्धटकॊं को लुभाने के िलए जगमगा रही थी. मैं इस बात पर भी गंभीरता से सोचने के िलए िवर्वर्श हो गया िक जब हम घर से चले थे तो मन में एक सोच थी िक हम देवर्ों के देवर् महादेवर् की ससुराल जा रहे हैं , जहाँ जाकर हमें असीम सुख की पतीती होगी, और हमें देखने को िमलेगा मां यमुना और गंगा का अपना मायका, जहाँ वर्े बडॆ दुलार और प्यार के साथ पली-बढीं और पहाडॊं से उतरकर चल पडी मैदानी इलाको की ओर, तािक वर्े जन-जन की पालनहार बन सकें . लेिकन दुभार्धग्य िक उनकी अिस्मता अपने ही घर के आंगन में नोंच-खरोंच कर तार-तार कर दी गई. सोच का यह िसलिसला अभी थमा भी नहीं था िक माह जूर्न की पनद्रह तारीख की सुबह, इतनी क्रूर्र और भयानकरुप से सामने आयी िक गुस्साई गंगा ने रौद्र रुप धनारण कर िलया और काली की तरह अपना िवर्कराल रुप िदखलाते हुए सब कु छ लीलते जा रही है.- उसने सब कु छ मिटया-मेट कर िदया,जो उसके बहावर् में अपने पैर गडाए हुए थे. उसके इस क्रोधन के चलते न जाने िकतने ही िनदोष भक्तिों की भी उसने बिल ले ली. शायद हमारे सबके िलए यह उसकी ओर से एक चेतावर्नी मात्र थी,िक समय रहते संभल जाओ,अनयथा और भी भयंकर पिरणामों के िलए तैयार रहो. अब यह समय, उस आदमीके िलए, सोचने-समझने और िवर्चार करने का िवर्षय है तो िवर्कास के बडॆ-बडॆ सपने देखते हुए मुंगेरीलाल बना घूर्म रहा है.
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यात्रा उत्तरकाशी की.(2)
राणा के अस्थायी होटल में हम आकर बैठे ही थे िक बादलों ने अपने रं ग िदखाने शुरु कर िदए और बूर्ंदा-बांदी होने लगी, तब से लेकर सारी रात, बािरश िरमिझम के तराने गाती रही. िबजली यहां कभी-कभार ही आती है. सांझ ढलते ही काला-कलुटा अंिधनयारा, कु ण्डली मारकर चहुंओर पसर गया था. िदन में बहुत ही खूर्बसूर्रत िदखाई देने वर्ाली बफ़ीली चोिटयाँ अब डराने से लगी थी. हवर्ा भी चल िनकली थी, अपने साथ बफ़ीली ठं डक िलए हुए. यहाँ आने वर्ाले याित्रयों को चािहए िक वर्ह अपने साथ ऊनी कपडॆ लेकर जरुर चलें
44 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
राणाजी के चुल्हे के आसपास बैठकर हम अपने शरीरों को गरमा रहे थे. भूर्ख भी अब जोरों से लग आयी थी. राणा को हमने टमाटर की खट्टी-मीठी सबजी बनाने को कहा. तवर्े से उतरती गमार्ध-गरम रोिटयां और टमाटर की सबजी खाने में बडा मजा आ रहा था. रात काफ़ी बीत चुकी थी. अब हमें आराम करने की जरुरत थी और सुबह पांच बजे उठना भी था कयोंिक राज्य पिरवर्हन की बस सुबह साढे पांच बजे उत्तरकाशी के िलए रवर्ाना होती है . आगे की यात्रा पूर्रे सात घंटॊं की थी. याित्रयों की संख्या देखकर पहले से िटकीट लेकर अपनी सीटें आरिक्षत करना जरुरी लगा था हमें, तािक आगे की यात्रा आराम से कट सके . “सुबह जल्दी उठना है” के चक्कर में रात बेचैनी में कटी. बािरश अब भी अपने पूर्रे शबाब पर थी. पहाडी इलाकों के चलने वर्ाले बसें सुबह ही रवर्ाना हो जाती है.कयोंिक रास्ता पहाडॊं को काट कर बनाया गया है जो अत्यिधनक ही संकरा होता है और दूर्सरा यह िक रास्ते में अनेक घुमावर्दार मोड भी आते हैं . अतः दोपहर दो बजे के बाद कोई भी बस यहां से रवर्ाना नहीं होती. यिद रवर्ाना भी होती है तो बडकोट पर आकर रुक जाती है. हाँ, टैकसी वर्ाले जरुर िमल जाते हैं ,लेिकन इसमें खतरे है, अतः याित्रयों को चािहए िक वर्ह जल्दबाजी के चक्कर में न पडॆ,तो बेहतर है.. िदनांक 7 जूर्न -दोपहर दो बजे के लगभग हम उत्तरकाशी आ पहुँचे. हमारे रुकने की व्यवर्स्था पंजाब-िसधन धनमर्धशाला में की गई थी. कहने के िलए वर्ह धनमर्धशाला थी, लेिकन िकसी थ्री-स्टार होटल से कम न थी. उस धनमर्धशाला की दीवर्ार, ठीक गंगाजी के तट कॊ छूर् ती हुई थी. कमरे के सामने बेंचे लगा दी गई थी, जहाँ से बैठकार आप गंगाजीके दशर्धन आराम से कर सकते हैं. करीब तीन सौ मीटर नदी का पाट रहा होगा. गंगा मे इस समय बाढ आयी हुई थी,सो उसकी गजर्धना की आवर्ाज सुनकर भय की पतीती होती थी. राष्ट्रीय बाल संगोष्ठी का कायर्धक्रम स्थानीय नगरपािलका पिरषद के िवर्शाल सभा कक्ष में रखा गया था. अनेक पदेशों से आए सािहत्यकारों का पंजीकरण िकया गया और ठीक चार बजे कायर्धक्रम की िवर्िधनवर्त शुरुआत हुई. बालपहरी के कु शल संपादक-संस्थापक-और कायर्धक्रम के आयोजक श्री उदय िकरौला ने संस्था की गितिवर्िधनयों तथा भिवर्ष्य की रुपरे खा पर िवर्स्तार से पकाश डाला. तत्पश्चर्ात िवर्िभन्नच पदेशों से आए सािहत्यकारों ने अपना पिरचय िदया. इस औपचिरकता के बाद बच्चों ने मंच संभाला. चयिनत बच्चों ने किवर्ता पाठ िकया. किवर्ताएं सुनकर सहज ही आश्चर्यर्ध होना स्वर्भािवर्क है िक इतनी कम उम्र के बच्चे िकतनी सुनदर-सुगढ रचनाएं िलख रहे हैं. आश्चर्यर्ध तो इस बात पर भी होता है िक उनहीं बच्चों में से कोई कायर्धक्रम की सफ़लतापूर्वर्र्धक अध्याक्षता भी कर रहा है और संचालन भी कर रहा है . इसका सारा श्रेय श्री िकरौलाजी को जाता है िक वर्ह िकस लगन और मेहनत से नयी पीढी को संस्कािरत करने में रात-िदन एक कर रहे हैं. काव्यगोष्ठी के बाद अनेकों पुस्तकों का िवर्िधनवर्त िवर्मोचन िकया गया और पहले सत्र के मुख्य वर्क्तिा के रुप में बालवर्ािटका के संपादक डा.श्री भैंरुलालजी गगर्ध ने “बालसािहत्य में बाल-पित्रकाओं के योगदान” पर सारगिभत वर्क्तिव्य िदया. शिनवर्ार 8 जूर्न को बालसािहत्य में िवर्ज्ञान लेखन, बाल कहानी वर्ाचन, बालकिवर्ता पर बच्चों ने अपनी दक्षता का पिरचय िदया. ताज्जुब होता है िक बच्चे इतनी कम उम्र में िकतनी मािमक और मौिलक कहािनयों को िलख रहे हैं . सायं 5 बजे अिखल भारतीय किवर् सममेलन का शुभारं भ हुआ. मेरे पोते श्री दुष्यंतकु मार यादवर् जो कक्षा नौवर्ीं का छात्र है, ने 45 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
किवर्ता पाठ िकया. उम्रदराज लोगों के बीच इतनी सुगढ और कसी हुई रचना को सुनते हुए पायः सभी सािहत्यकारों ने उसकी मुक्तिकं ठ से पशंसा की. यह मेरे िलए जीवर्न की सबसे बडी उपलिबधन थी िक मैं अपने पोते को सािहत्य में संस्कािरत कर पाया. इस काव्य-गोष्ठी का संचालन श्रीमती मंजु पाण्डेजी ने पूर्रे जोश-खरोश के साथ सफ़लतापूर्वर्र्धक संचालन िकया. रिवर्वर्ार िदनांक 9 जूर्न “बालसािहत्य एवर्ं िशक्षा” पर िवर्द्वान सािहत्यकारों ने अपना उद्बोधनन िदया और अंत में बालसािहत्य के पुरोधना एवर्ं राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राष्ट्रबंधनु ने श्री राजेनद्रिसह रावर्त, श्री दीवर्ानिसह डोिलया, श्रीमती पुषलता जोशी, श्रीमती सािवर्त्री देवर्ी कांडपाल, डा.श्री शेषपालिसह”शेष”, .डा.मधनुभारती, डा.श्री महावर्ीर रवर्ांल्टा, डा.श्री परशुराम शुकल, डा.िवर्मला भंडारी डा,श्री मोहममदखान, श्री आशीष शुकला, श्री घमण्डीलाल अग्रवर्ाल,एवर्ं श्री मनुज चतुवर्ेदी”भारत” को शाल ओढाकार,श्रीफ़ल तथा संस्था का स्मृतित-िचनह देखर सममानीत िकया. िवर्िभन्नच पदेशों से पधनारे सभी िवर्द्वान सािहत्यकारों को संस्था का स्मृतितिचनह देकर सममानीत िकया गया.
46 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
फ़ोटॊ 1 से4 तक)श्री दुष्यंत,श्री यादवर्,श्री चौरिसया,श्री गगर्धजी सममािनत होते हुए *फ़ोटॊग्रुप बालसािहत्यकार
47 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
(श्री यादवर् अपने िवर्चार पकट करते हुए)
(श्री. आर.एम.आनदेवर्-सभा को संबोिधनत करते हुए)
कायर्धक्रम की समािप्त के बाद हमारे पास कु ल देढ िदन का समय बचा था. हमारा वर्ापसी का िटिकट सराय रोिहल्ल(िदल्ली) से िदनांक 11 जूर्न का था और इस बीच हमें गंगोत्री और के दारनाथ भी जाना था. इतने कम समय में के वर्ल एक स्थान पर ही जाया जा सकता था. अंततः यह तय हुआ िक गंगोत्री की यात्रा की जा सकती है. के दारनाथ की यात्रा संभवर् नहीं लग रही थी. हमारे पास के वर्ल एक उपाय शेष था िक िकसी तरह िटिकट कैं सल होकर आगे की ितिथ की हो जाए, तो के दारनाथ भी जाया जा सकता है. अतः हमने आठ तारीख को कलेकटोरे ट जाकर िटिकट िनरस्त कराने और नया िटिकट तेरह तारीख की जारी करवर्ाने की सोची..सनद रहे िक उत्तरकाशी में रे ललाईन न होने की वर्जह से वर्हां कोई िटिकटघर नहीं है अतः िटिकट जारी नहीं की जा सकती थी. इस समस्या को हल करने के िलए कलेकटोरे ट में अितिरक्ति व्यवर्स्था की गई है. लेिकन उस िदन दूर्सरा शिनवर्ार होने के नाते कायार्धलय बंद था. अतः हमारी योजना पर पानी िफ़र गया. अब के वर्ल एक चारा बचा था िक हमें तत्काल ही गंगोत्री के िलए रवर्ाना हो जाना चािहए. कायर्धक्रम की समािप्त के बाद हमारे सारे िमत्रगण टैकसी लेकर रवर्ाना हो चुके थे. टैकसी के िलए कम से कम दस सीटॊं की आवर्श्यकता होती है. लेिकन हम के वर्ल तीन लोग थे. और हमें कम से कम सात लोगो के साथ की जरुरत थी. संयोग से श्रीमती मंजु पाण्डेजी, के ग्रुप मे उनके अितिरक्ति चार मिहलाएं और थीं,िजनहें गंगोत्री जाना था,का साथ िमल गया और इस तरह हम गंगोत्री के िलए िनकल पडॆ. उत्तरकाशी से गंगोत्री की दूर्री 172 िकमी.है. भटवर्ारी,झाला, लंका और भैरोंघाटी होते हुए गंगोत्री पहुंचा जा सकता है. अमुनन इस रास्ते को पार करने में कम से कम सात घंटे का समय लगता है. यात्रा की शुरुआत से लेकर भागीरथी, हमारे साथ चलती रहती है. कभी आँखों से ओझल हो जाती है िफ़र थॊडी देर बाद पकट हो जाती है. पहाडॊं की अनवर्रत श्रृतंखला भी हमारे साथ –साथ चलती रहती है. लेिकन आज वर्े उदास हैं. पहाडॊं का अनयतम िमत्र वर्ृतक्ष ही होता है,जो आज िवर्लुप्त होने की कगार पर है. वर्ृतक्षिवर्हीन पहाडॊं पर छाई उदासी को देखकर 48 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मन में अपार पीडा होती है भीमकाय जेबीसी मशीनें उनकी छाती को छील रही होती है . जगह-जगह पर पत्थर-िमट्टी.के ढेर आवर्ागमन में बाधना बनने का कारण बनते हैं. पैसा कमाने की होड में लोगो ने सडकों तक अपने मकानों को फ़ै ला रखा है और तो और उन लोगों ने पहाड की ढलान पर से िसमेंट-कांक्रीट के िपल्लर खडॆ करके अपने साम्राज्य खडॆ कर िलए हैं. िवर्कास के नाम पर यिद इसी तरह का दुष्चक्र चलता रहा तो एक िदन हम िवर्नाश को रोके , रोक नहीं पाएंगे. उत्तराखण्ड का सुपिसद्ध तीथर्ध गंगोत्री है,जो गंगाजी का उद्गमस्थल है. यहाँ गंगोत्री में गंगा का नाम भागीरथी है. भागीरथ ने यहाँ रहकर गंगाजी को पसन्नच करने के िलए किठन तप िकया था .इसिलए इस स्थान से बहने वर्ाली गंगाजी का नाम भागीरथी पडा. गंगोत्री धनाम 10,300 फ़ीट की ऊँचाई पर िस्थत है. वर्ास्तवर् में भागीरथी का उद्गम, गंगोत्री से भी तीस िकमी आगे ऊपर की ओर गोमुख में है, जहाँ अत्यनत िवर्स्तृतत िहमनद के नीचे से भागीरथी का जल पवर्ािहत होता है. गोमुख तक पहुंच पाना इतना आसान नहीं है. इसिलए गंगाजी का मिनदर ऎसे स्थान पर बनाया गया है जहां आम आदमी आराम से पहुँच सकता है. यहां का जल अत्यिधनक स्वर्च्छ होता है.(फ़ोटॊ-5)
(मां भगवर्ती गंगा के पावर्न मिनदर में दुष्यंत)
(मां गंगाजी का भव्य मिनदर.)
गंगोत्री में श्रीमती मंजज ु ी पाण्डॆ के पिरिचत गुरुजी पं.श्री िदनेश पसादजी ने डालिमया मंगलम िनके तन”नामक अपना आश्रम बना रखा है,िजसमे उनके िशष्यािद आकर रुकते हैं. उनहोंने राित्र में िवर्श्राम करने के िलए कमरे खोल िदए. यह हमारा सौभाग्य ही था िक हमें यहां रुकने की उत्तम व्यवर्स्था िमल गयी, अनयथा उस िदन की अत्यिधनक भीड के चलते हम इतनी आरामदायक जगह की कल्पना तक नहीं कर सकते थे. यह भवर्न गंगाजी के दूर्सरे तट पर अवर्िस्थत है,जहां से बैठकर आप मिनदर के दशर्धन कर सकते हैं.
49 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
राित्र में ही हमने मां गगाजी के दशर्धन िकए. वर्हीं तट पर बने होटल में रुिचकर भोजन का आननद िलया. राित्र में िवर्श्राम िकया और बडी सुबह हम उसी टैकसी से उतरकाशी के िलए रवर्ाना हो गए. उत्तरकाशी से गंगोत्री जाना और वर्हां से वर्ापसी के िलए हमने पहले से एक टैकसी को बुक कर रखा था.
उत्तरकाशी आकर रुकना हमें उिचत नहीं लगा,
कयोंिक हमारे पास समय की बेहद कमी थी. यिद हम वर्हाँ रुक भी जाते तो िकसी भी कीमत पर सराय रोिहल्ला(िदल्ली) नहीं पहूँच पाते. सराय रोिहल्ला से िछनदवर्ाडा वर्ापसी की ट्रेन िदन के साढे बारह बजे खुलती है. अतः हमारा ऋषिषके श तक पहुँचना बहुत जरुरी था. जहाँ से हमें िदल्ली की ओर पस्थान करने वर्ाली बसें िमल सकती थी. मंजज ु ी एवर्ं उनकी िमत्र मण्डली उत्तरकाशी में रुकते हुए यमुनोत्री के दशर्धनाथर्ध जाना चाहती थीं. लेिकन मंजुजी की तिबयत अचानक खराब होने लगी और उनहोंने अपना कायर्धक्रम िनरस्त िकया और हमारे साथ ही ऋषिषके श तक चलना उिचत समझा. यहाँ आकर उनहें हल्द्वानी जाने के िलए बसें िमल सकती थीं. अतः हमने टैकसी वर्ाले से बात की और वर्ह िकसी तरह तीन हजार पांच सौ रुपयों में ऋषिषके श तक चलने के िलए राजी हो
(श्रीमती मंजु पाण्डॆ,(वर्िरष्ठ बालसािहत्यकर) एवर्ं िमत्रों के साथ ग्रुप फ़ोटॊ)
रात के बारह बजे के करीब हम लोग ऋषिषके श के बस-स्टैण्ड पर पहुंचे. बस से उतरते ही मंजज ु ी को हल्द्वानी की ओर जाने वर्ाली बस िमल गई और हमें िदल्ली की ओर पस्थान करने वर्ाली बस. सुबह पांच बजे हम िदल्ली के बस-स्थानक पर पहुंचे. अब हमारे पास पयार्धप्त समय था,जब हम अपनी ट्रेन आराम से पकड सकते थे. तेरह तारीख को दस बजे सुबह हम अपने घर पहुँच गए थे. िनिश्चर्त ही यह यात्रा,अपने आप में एक रोमांचक यात्रा थी. ट्रेन से पितध्वर्िनत होती छु क-छु क की आवर्ाज, स्टेशनो पर उतरते और सवर्ार होते नए-नए यात्री के साथ यात्रा करना, उनके सुख-दुख में शािमल होना, कु छ अपनी बताने और कु छ उनसे सुनने की लगन, चाय-और नाश्ते के िलए गुहार लगाते वर्ैडरों की आवर्ाज कानॊं में अब भी गूर्ंज रही 50 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
थी. ट्रेन से उतरकर बस अतवर्ा टैकसी पकडकर आगे की यात्रा की तैयारी करना, रास्ते में अजनबी पहाडॊं से होती मुलाकातें, िवर्शालकाय पेडॊं से झरती ठं डी-ठं डी हवर्ा के झोंकों में सराबोर होते थे हम लोग .इन सब के चलते न जाने िकतना समय बीत गया, ,इसकी ओर तिनक भी ध्यान नहीं गया. एकदम नयी-िनराली दुिनयां,दुिनयां में तरह-तरह के लोग, अलग-अलग पदेशों से आए हुए लोग,जो सवर्र्धथा अनजाने होते हैं,को देखना-समझना अच्छा लगता था. िफ़र हमारा पिरचय होता है अजनवर्ी शहर से, िजसे हमने इससे पूर्वर्र्ध कभी देखा तक न था. वर्हाँ के मिनदरों से और एकदम अपिरिचत सडकों और गिलयों से, कायर्धक्रम में िमलते अपने िचर-पिरिचत सािहत्यकारों से, इनमें कु छ एकदम नए भी होते थे ,िजनकी रचनाएं हमने कभी िकताबों-पित्रकाओं में पढा था, एक दूर्सरे से पिरिचत होते,िमलते, कक्षा चौथी-पांचवर्ीं में पढते किवर्ता सुनाते बच्चे, इसी क्रम में किवर्ता पढता और वर्ाहवर्ाही बटोरता, स्मृतितिचनह लेता सममािनत होता मेरा अपना प्यारा पोता दुष्यंत, कायर्धक्रम की समािप्त के बाद िफ़र आता एक िबखरावर् का दौर. सब अपने-अपने रास्ते पर चल िनकलते. इन सबके साथ िबताए गए पल रह-रह कर याद आते रहे. याद आती रही हिरद्वार में उफ़नती-तेज बहावर् में बहती पितत पवर्नी गंगाजी,िजसमें हम, सांझ ढले स्नान करने पहुँचे थे. बहते पानी की गित इतनी तेज थी िक पांवर् जमीन पर िटक नहीं पा रहे थे. रौद्ररुप िदखाित, जोरों से गरजतींउफ़नदी गंगा शायद अपना दुखडा सुना रही थी िक उसके साथ, ये दो पैर का आदमी िकतनी तकलीफ़ें दे रहा है उसे, शायद हमारे कान सुन नहीं पा रहे थे या हम सुन पाने की िस्थित में नहीं थे. मन में तब एक ही कल्पना साकार हो रही थी िक इसके उद्गम का स्वर्रुप कै सा होगा िजसे हमने, इससे पहले कभी देखा था और न ही सुना था, िजसे हम िनकट भिवर्ष्य में देखने जाने वर्ाले थे. िफ़र मुलाकात होती है उत्तरकाशी में िस्थत पंजाब-िसधन धनमर्धशाला की भव्य इमारत से सटकर बहती हुई गंगा से. तब जाकर इसका दुख-ददर्ध समझ में आया िक गंगा हिरद्वार में कया कहना चाहती थी. दुखडॆ की कहानी यहाँ आकर रुकती नहीं है,बिल्क उत्तरोत्तर उस ओर बढते हुए देखा और जाना िक िकतना अत्याचार मचा रहा है, तथाकिथत नयी टेक्नोलाजी का ज्ञाता आज का आदमी. िवर्कास के नाम पर िवर्नाश की लीला रचता, पहाडॊं की छाती छोलकर सडक का िनमार्धण करता, नदी का रुख मोडता, बारुदी सुरंगे िबछाता आज का आदमी शायद िवर्कास के नाम पर िवर्नाश के बीज बोता आज का आदमी. नदी-पहाडॊं की सुनी-अनसुनी कर भी दें तो उसने अपना साम्राज्य बढाते हुए देवर्ता के मिनदर तक अपने पैर जमा िलए हैं. समझ में नहीं आत्ता िक हम मिनदर के पागंण में हैं या िफ़र िसमेंट -कांक्रीट के घने जंगल में ? िकतने सपने- और न जाने िकतनी ही सुकोमल भावर्नाएं लेकर हम वर्हाँ जा पहुँचे थे,जहाँ असीम शांित की जगह, शहरों सी कोलाहल थी, भीड थी और मोटर-गािडयों का जमावर्डा था, बडी-बडी अट्टािलकों में ऎश-ओ-आराम की सुखसुिवर्धनाएं पयर्धटकॊं को लुभाने के िलए जगमगा रही थी. मैं इस बात पर भी गंभीरता से सोचने के िलए िवर्वर्श हो गया िक जब हम घर से चले थे तो मन में एक सोच थी िक हम देवर्ों के देवर् महादेवर् की ससुराल जा रहे हैं , जहाँ जाकर हमें असीम सुख की पतीती होगी, और हमें देखने को िमलेगा मां यमुना और गंगा का अपना मायका, जहाँ वर्े बडॆ दुलार और प्यार के 51 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
साथ पली-बढीं और पहाडॊं से उतरकर चल पडी मैदानी इलाको की ओर, तािक वर्े जन-जन की पालनहार बन सकें . लेिकन दुभार्धग्य िक उनकी अिस्मता अपने ही घर के आंगन में नोंच-खरोंच कर तार-तार कर दी गई. सोच का यह िसलिसला अभी थमा भी नहीं था िक माह जूर्न की पनद्रह तारीख की सुबह, इतनी क्रूर्र और भयानकरुप से सामने आयी िक गुस्साई गंगा ने रौद्र रुप धनारण कर िलया और काली की तरह अपना िवर्कराल रुप िदखलाते हुए सब कु छ लीलते जा रही है.- उसने सब कु छ मिटया-मेट कर िदया,जो उसके बहावर् में अपने पैर गडाए हुए थे. उसके इस क्रोधन के चलते न जाने िकतने ही िनदोष भक्तिों की भी उसने बिल ले ली. शायद हमारे सबके िलए यह उसकी ओर से एक चेतावर्नी मात्र थी,िक समय रहते संभल जाओ,अनयथा और भी भयंकर पिरणामों के िलए तैयार रहो. अब यह समय, उस आदमीके िलए, सोचने-समझने और िवर्चार करने का िवर्षय है,जो िवर्कास के बडॆ-बडॆ सपने देखता हुआ मुंगेरीलाल बना घूर्म रहा है.
(एक टनल से गंगाजी का पानी िनकलता हुआ.)
तालखिमरा=
9
जुन्नारदे वि / िवर्ज्ञान भले ही अन्धिवर्श्वर्ास माने लेिकन सत्यता को यहाॅॅ झ ुठलाया नही जा सक्ता ठीक ऐसा ही नजारा
यहाॅॅ मध्य प्रदर्े शन के िछन्दर्वर्ाडा िजले के आिदर्वर्ासी अंचल के ज ुन्नारदर्े वर् तहसील
मुख्यालय से 31 िकलो मीटर दर्रू
ग्राम पंचायत खम ु काल बरे लीपार के बीच िस्थसत तालखमरा के बीचो
बीच एक िवर्शनाल तालाब है िजसके पास मालनमाई का मंिदर्र,िवर्शनाल पीपल,पाखुड के वर्क्ष ृ मे दर्यैत बाबा का वर्ास रहता है । यहाॅॅ प्रित वर्षर्श मेले का आयोजन िकया जाता है । िजसमे दर्रू दर्राज से लाखो भक्त यहाॅॅ पूण र्श श्रद्धा और िवर्श्वर्ास के साथस अपनी मानोकामना लेकर आते है । ऐसी मान्यता है िक िकसी
भूतप्रेत का साया पडने पर या िफिर मिहला को संतान प्रािप्त नही होने या िकसी भी मनोकामना प िू तर्श के 52 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िलये मालन माई के नाम से पिडहार द्धारा मनाया जाता है । मनोकामना प ूण र्श होने यहाॅॅ मुगार्श,बकरा, की बिल चढाई जाती है । वर् िजन पर भूत िपशनाच का साया होने पर उसे इस स्थसान पर लाने पर वर्ह अपने आप ही नाचना िचल्लाना शनुरू कर दर्े ता है । िफिर पिडहार द्वर्ारा प्रेत आत्मा से वर्ातार्शलाप िक जाती है । भूत प्रेत के साये को छोड दर्े ने को कहा जाता है । नही मानने पर उसे िवर्शनेष प्रकार के बने सोंटे से मार पीट
वर् तांिपात्रक िक्रयाऐं की जाती है । िजससे पीिडत के मंह ु से िवर्िभन्न प्रकार की डरावर्नी चीखे िनकलती है ।
पीिडत को वर्क्ष ृ के समीप खडे कर घागे वर् कील से प्रेत आत्मा को खापा जाता है तत्पश्चात पिडहार
द्वर्ारा प्रेत आत्मा द्वर्ारा मांगी वर्स्तू की बिल दर्ी जाती है । हर साल 10 िदर्नो के िलये लगने वर्ाले इस मेले मे घने जंगलों के बीच आती है डरावर्नी आवर्ाजे िजससे पहली बार आने वर्ाले लोग अचरज करते है । आदितीदविािसयों को िमलता है रोजगार सरपंच श्रीमित आशना तुमडाम ने बताया की मेले मे ग्रामीण क्षेत्र की जनता को रोजगार िमल जाता है वर्े
रोज सुबह से दर्े र रािपात्र तक फिुटकर दर्क ु ान लेकर व्यवर्साय कर जीवर्न यापन करते है । वर्हीॅेॅं प्रेत आत्मा से मिु क्त हे तु िवर्शनेष प्रकार का उल्टे पंख वर्ाले मग ु े का अलग महत्वर् है ।जो हजार रूपये से लेकर दर्ो हजार तक मुिश्कल से िमल पाता है ।
10.
गोटमार मेला --------- --------------------------------------------------िचत्र-िवर्िचत्र मेला -गोटमार मेला यह देश िवर्िवर्धनताओं से भरा हुआ देश है. तीन अलग-अलग मौसमों में,आदमी कभी
बािरश में भींगता, तो कभी ठं ड में िठठु रता, तो कभी िचलिचलाती धनूर्प में हलाकान–परे शान हो उठता है, लेिकन हर मौसम में पडते तीज-त्योहारों और परमपराओं में िनमग्न होते हुए वर्ह, उन पलों को बडी आत्मीयता के साथ, अपने आपको जोडते हुए, अपने को डु बो देता है,.िजससे उसे आत्मीय खुशी िमलती है. इस आत्मीक खुशी को हम चाहें तो आननद कह लें या िफ़र परमाननद अथवर्ा ब्रह्मानंद. आदमी की इसी िजजीिवर्षा का ही पिरणाम है िक वर्ह दैिहक-दैिवर्क और भौितक तापों की जलन से अपनी आत्मा को लहुलुहान होने से बचा पाता है. ऐसा नहीं है िक के वर्ल भारत में ही यह सब कु छ होता है, पूर्री दुिनया में इसी तरह की जद्दोजहद चलती रहती है. अभी बािरश का मौसम चल रहा है. बािरश के इस मौसम में भीगते हुए अभी हमने रक्षाबंधनन का पिवर्त्र पवर्र्ध मनाया. तो इसी क्रम में तीज-छट का त्योहार और श्रीकृत ष्ण जनमाष्टमी का पवर्र्ध भी बडी धनूर्मधनाम से मनाया. इसी कडी में िछनदवर्ाडा िजले के पाण्ढु णार्ध तहसील में जाम नदी के तट पर एक अजीबो-गरीब परमपरा में िलपटे हुए गोटमार मेले का आननद भी उठाया. पाण्ढु णार्ध के इस मेले में जमकर पत्थर बरसते हैं. लोग जख्मी होते 53 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
हैं. अंग-भंग होता है और कभी-कभी तो जान से भी हाथ धनोना पडता है.
है न ! अजीबो-गरीब परमपरा. इसे
मात्र कोरी गप्प न मानें, यिद मन न माने इस बात पर िवर्श्वास करने को, तो इस िदन यहाँ आकर अपनी आँखों से इसे होता हुआ देख सकते हैं..
माह
अगस्त की अठारह तारीख को संपन्नच हुआ,यह अजीबॊ-गरीब िवर्श्व पिसद्ध मेला िजसे गोटमार के नाम से जाना जाता है, मनाया गया. पांढुणार्ध मराठीभाषा का क्षेत्र है. गोट का अथर्ध पत्थर होता है. इस िदन यहाँ जमकर
पत्थरबाजी का खेल खेला जाता है.
(नदी के दोनो तरफ़ बडी संख्या में उमडा जनसैलाब) िकवर्दती के अनुसार करीब तीन सौ साल पहले, पांढुणार्ध के एक युवर्क को सांवर्रगांवर् में रहने वर्ाली एक युवर्ती से पेम हो गया. दोनो पक्ष के लोग इस िवर्वर्ाह के पक्ष में नहीं थे. युवर्क जब अपनी पेयसी को सांवर्रगांवर् से लेकर पांढुणार्ध लाने लगा. यहां आने के िलए बीच में जाम नदी पडती है,िजसे पार करते हुए इस पार आया जा सकता है. दोनो बीच नदी में पहुंचे ही थे िक गांवर् वर्ालों ने पथरावर् शुरु कर िदया. सांवर्रगांवर् के लोगो द्वारा पत्थरबाजी के जवर्ाब में पांढुणार्ध वर्ालों ने भी पथरावर् शुरु कर िदया. इस पत्थरबाजी में कइयों को चोटॆं आयीं, कई 54 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िसर फ़ूर् टे, कु छ की जाने भी गई. अंतः वर्ह युवर्क, युवर्ती को लाने में सफ़ल हुआ. भादों मास के कृत ष्ण पक्ष में ,अमावर्स्या को पोले के त्योहार के ठीक दूर्सरे िदन, जाम नदी के मध्य में शमी वर्ृतक्ष के पेड की टहनी गाडी जाती है और उस पर झंडा लगाया जाता है . पांढुणार्ध के लोग इस झंडॆ कॊ लाने का पूर्रा पयास करते हैं और सांवर्रगांवर् के लोग पत्थर बरसा कर उनहें रोकने का पयास करते हैं. इस तरह दोनो तरफ़ से पत्थरों की अनवर्रत बरसात होती है,िजसमे कई युवर्क गंभीर रुप से जख्मी हो जाते है. खूर्न की निदयां बह िनकलती है,लेिकन जांबाज लोग, बगैर जख्मों की परवर्ाह िकए िनरनतर आगे बढते हैं और झंडॆ कॊ लाने का उपक्रम करते हैं. िपछली साल पूर्जा-वर्ंदना के साथ शिनवर्ार यािन 18 अगस्त को िवर्श्वपिसद्ध गॊटमार मेला शुरु हुआ. सुबह से शुरु हुई पत्थरबाजी दोपहर बाद तक चलती रही. लोगों ने एक दूर्सरे पर जमकर पत्थर बरसाए. स्थानीय समाचार-पत्र के अनुसार पांढुणार्ध पक्ष के 175 और सांवर्रगांवर् के 160 लोग घायल हुए. बुरी तरह से जख्मी 33 लोगों को स्थानीय सामुदाियक स्वर्ास्थ्य के नद्र में भती करवर्ाया गया. पांच की िस्थित अत्यनत ही नाजुक हो चली थी,िजनहें तत्काल नागपुर रे फ़र कर िदया गया. इस तरह गोटमार शाम के छः बजे तक चलती रही. कोई िनणर्धय न होता देख,स्थानीय लोगों,अिधनकािरयों एवर्ं जनपितिनिधनयों ने आपसी सहमित बनाकर पत्थरबाजी रुकवर्ाई. तत्पश्चर्ात चंडी माता मंिदर में झंडॆ की पूर्जा-अचर्धना की गई. इस तरह इस िवर्िचत्र िकतु सत्य मेले का समापन हुआ. इस िवर्श्वपिसद्ध गोटमार मेले में व्यवर्स्थाएं बनाने आला पशासिनक अिधनकािरयों ने पांढुणार्ध और सांवर्रगांवर् में व्यवर्स्थाएं संभाल ली थी. उनहोंने गोटमार मेले को रोकने के िलए िवर्िभन्नच आयोजन भी आयोिजत िकए ,बावर्जूर्द इसके वर्े इसे रोक पाने में असफ़ल हुए. इस मेले में 73 एस आई, 95 हेड कांस्टेबल, 454 आरक्षक सिहत 645 पुिलसकमी तैनात कर िदए गए थे,जो मेले की सुरक्षा व्यवर्स्था संभाल रहे थे.इसके अलावर्ा िजला िसवर्नी और नरिसहपुर से भी पुिलस बल बुलाया गया था. इस िचत्र-िवर्िचत्र मेले को साकार रुप में दुिनया को िदखाने के िलए इसका िफ़ल्मांकन भी करवर्ाया गया था. सभी ने इसे हैरत के साथ देखा और सुना.
यह िचत्र-िवर्िचत्र गोटमार मेला पुनः
इस धनरती पर भाद्र पदी 14 अथार्धत िदनांक 24-08-2014 को खेला जाएगा. कोई नहीं जानता िकतने लोग पत्थरों से घायल होंगे िकतने लहुलुहान होगे और िकतने लोग गंभीररुप से घायल होंगे? हालांिक
सरकार की तरफ़
से पूर्रे बनदोबस्त िकए जाएंगे, कई आला अफ़सर यहाँ तैनात िकए जाएंगे. डाकटरों की फ़ौज भी यहाँ डॆरा डले हुए रहेगी. ऎंबुलेस की गािडयां तैयार रहेगी, बडी संख्या में पुिलस बल उपिस्थत होगा, इन सबके रहते हुए यह खतरनाक खेल अबाधन गित से चलता रहेगा.
55 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
इससे पूर्वर्र्ध इस अजीबो-गरीब खेल को रोकने के कडॆ उपाय भी िकए गए, लेिकन असफ़लता ही हाथ लगी. इस बार एक नयी पहल की गई है िक पत्थरों को उपयोग में लाने के बजाए टमाटर से इस खेल को खेला जाए. पहल तो अच्छी िदखाई देती है,लेिकन इसमें िकतनी सफ़लता िमलती है, यह भिवर्ष्य़ के गतर्ध में िछपा है. (िछनदवर्ाडा भास्कर-27-0802014) इस साल गोटमार मेले में पांढुरना के िखलाडी झंडा तोडने में असमथर्ध रहे.खेलस्थल पर असंख्य पत्थरों और सैंकडीं िखलािडयों के बावर्जूर्द पांढुनार्ध पक्ष असफ़ल रहा. रत करीब सवर्ा आठ बजे दोनो पक्षों की सहमित से झंडा मां चंिडका के मिनदर में लाया गया और पूर्जा अचर्धना के बाद मेले का समापन िकया गया. सुबह आठ बजे मेले की शुरुआत हुई.दोपहर एक बजे तक धनीमी गित से चलता रहा. शाम होते-होते घायलो की संख्या सात सौ से अिधनक (पांढुनार्ध से 275 और सांवर्रगांवर् से 230 लोगों के घायल होने की पुिष्ट की है.)
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थसाईलैड मे समद्र ु मंथसन समुद्र मंथसन की कहानी मझ ु े बचपन मे माँ ने कह सन ु ायी थसी. उनके
कहने का ढं ग बडा रोचक होता थसा. जो भी वर्े बतलाती जाती,उसका काल्पिनक िचत्र आँखों के सामने सजीवर् हो उठता थसा. उस कहानी मे एक समुद्र थसा िजसका ओर-छोर िदर्खाई नहीं दर्े ता थसा,मथसानी के रुप मे मन्दर्रांचल पवर्र्शत को उपयोग मे लाया गया थसा और उस पवर्र्शत से वर्ासुकी नाग को नेित िक तरह लपेटकर खींचा गया थसा. मंथसन से चौदर्ह रत्न िनकले थसे िजसे दर्े वर् और दर्ानवर्ों के मध्य बांट िदर्या गया थसा. बादर् मे िकसी िफ़ल्म मे इसे रुपाियत होते हुए दर्े खने को िमला थसा. अपनी उम्र के सढसढवर्े पडावर् पर मुझे तत ृ ीय अंतरराष्ट्रीय िहन्दर्ी सम्मेलन मे एक प्रितिनधी के रुप मे भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ .अपनी यात्रा के अिन्तम पडावर् पर वर्हाँ से लौटते हुए थसाईलैड के हवर्ाई अड्डे पर िजसका नाम संस्कृत मे “सवर् ु ण र्श भिू म” रखा गया है , पर करीब बावर्न फ़ीट लंबी, तथसा पंद्रह फ़ीट ऊँची प्रितमा जो समुद्र मंथसन को लेकर बनाई गई है , दर्े खने को िमली. उसे दर्े खते हुए मुझे आश्चयर्श इस बात पर हो रहा थसा िक समुद्र मंथसन की कहानी जो भारतीय मनीषा को लेकर िलखी गई थसी,िवर्दर्े शनी धरती पर दर्े खने को िमल रही है .इितहास को खंगालने पर ज्ञात हुआ िक कभी भारत की सीमाएं ईरान,अफ़गान,िसंगापुर,मलेिशनया,थसाईलैड िजसे श्यामभूिम के नाम से जाना जाता थसा,तक फ़ैली हुई थसी. िफ़र व्यापार अथसवर्ा नौकरी करने के िलए जो भारतीय यहाँ पहुँचे,उन्होंने अपनी सांस्कृितक पहचान को स्थसायी 56 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
रुप दर्े ने के िलए इस प्रितमा की स्थसापना करवर्ाई.
उस
आदर्मकदर् प्रितमा को दर्े खते हुए मुझे उस किवर्ता की चार लाइने यादर्े हो आयी िजसमे समुद्र मंथसन से प्राप्त हुए उन चौदर्ह रत्नों िक व्याख्या की गई है ,इस प्रकार है . श्री, मिण /,रं भा/,वर्ारुिण /अमीय/, शनंख,/गजराज/धनवर्न्तिर/ धन/ ,धेनु,/शनिशन/,हलाहल,/बाज”/कल्पवर्क्ष ृ समुद्र मंथसन मे सबसे पहले “हलाहल”(जहर) िनकला,िजसे न तो दर्े वर् ग्रहण करना चाहते थसे और न ही दर्ानवर्. असमंजस की िस्थसित दर्े ख, दर्े वर्ों के दर्े वर् महादर्े वर् ने उसे स्वर्ीकार करते हुए अपने कंठ मे धारण कर िलया. जहर के गले मे उतरते ही उनका कंठ नीला पड गया. इस तरह इनका एक नाम “नीलकंठ” पडा. दर्स ू रे क्रम मे ”कामधेनु” गाय िनकली,िजसे ऋषिषयों ने ले िलया. तीसरे क्रम मे “उच्चैश्रैवर्ा” नामक घोडा िनकला,िजसे दर्ानवर्ों के राजा बिल ने रख िलया. चौथसे क्रम पर “ ऎरावर्त” हाथसी िनकला,िजसेइंद्र ने अपने काननवर्न मे भेज िदर्या. पांचवर्े क्रम मे “कौस्तुभमिण ” मिण िनकला,िजसे भगवर्ान िवर्ष्ण ु ने ग्रहण कर िलया. िफ़र छटे क्रम पर कल्पवर्क्ष ृ ´िनकला,िजसे इंद्र ने अपने उद्यान मे रौंप िदर्या. इसके बादर्“रं भा” नामक अप्सरा िनकली,िजसे भी इंद्र ने अपने दर्रबार मे भेज िदर्या. इसके बादर् “लक्ष्मी” का प्रकाट्य हुआ.िजसे भगवर्ान िवर्ष्ण ु ने अपनी भायार्श बना िलया. इसके बादर्” वर्ारुिण ”( शनराब )िनकली,िजसे दर्ानवर्ों ने अपने कब्जे मे कर िलया.इसके बादर् “चन्द्रमा”िजसे दर्े वर्ों के दर्े वर् महदर्े वर् ने अपनी जटा मे धारण कर िलया. िफ़र” पािरजात” नामक एक वर्क्ष ृ िनकला िजसे पुनः इंद्र ने अपने काननवर्न मे लगा िदर्या. इसके बादर् “शनंख” िनकला िजसे िवर्ष्ण ु ने अपने अिधकार मे ले िलया.इसके बादर् “ धन्वर्न्तिर” नामक वर्ैद्ध िनकले,जो दर्े वर्ों के िचिकत्सक बने. सबसे अंत मे” अमत ृ ” िनकला. अमत ृ के िनकलते ही दर्े वर् और दर्ानवर्ों मे संग्राम िछड गया क्योंिक दर्ोनों ही पक्ष इसे पीकर अमर हो जाना चाहते थसे. जब मामला शनांत होता िदर्खायी नहीं िदर्खायी िदर्या तो भगवर्ान िवर्ष्ण ु ने “मोिहनी” का रुप धारण कर, प्राप्त अमत ृ को एक बडे पात्र मे भर कर दर्े वर् और दर्ानवर्ों से कहा िक वर्े पंिक्तबद्ध होकर बैठ जाएं, सभी को बारी-बारी से अमत ृ पान करवर्ाया जाएगा. भगवर्ान िवर्ष्ण ु जानते थसे िक अगर अमत ृ दर्ानवर्ों को िपला िदर्या गया तो वर्े अमर हो जाएंगे और दर्े वर्ों को परे शनान करते रहे गे. अतः चालाकी से उन्होने उस पात्र को दर्ो िहस्सों मे बांट िदर्या. एक मे अमत ू रे ृ और दर्स मे मिदर्रा भर दर्ी गई. जब दर्े वर्ों को अमत ृ िपलाते तो अमत ृ भरा िहस्सा दर्े वर्ों की तरफ़ कर दर्े ते. जब दर्ानवर्ों की बारी आती तो उसे पलट दर्े ते थसे. दर्ानवर् जानते थसे िक िवर्ष्ण ु दर्े वर्ताओं का पक्ष लेकर उनके साथस छलावर्ा करते रहे है. अतः एक दर्ानवर् ने दर्े वर्ता का रुप धारण कर उस पंिक्त मे जा बैठा जहां दर्े वर्गण बैठे हुए थसे. िवर्ष्ण ु ने उसे दर्े वर् समझकर जैसे ही अमत ृ के पात्र को उडेला,पास बैठे सूयर्श और चन्द्रमा ने श्री िवर्ष्ण ु से िशनकायत कर दर्ी. पता लगते ही. िवर्ष्ण ु ने अपने चक्र से उसकी गदर्र्श न उडा दर्ी. तब तक तो काफ़ी दर्े र हो चक ु ी थसी. अमत ु ी थसी. गदर्र्श न कटने के बादर् भी वर्ह दर्ानवर् अमत ृ की कुछ बूंदर्े गले से नीचे उतर चक ृ के प्रभावर् से मर नहीं सका. दर्ो टुकडॊं मे बंटॆ दर्ानवर् का एक िहस्सा राहू और दर्स ू रा केतु कहलाया. िहन्दर् ु 57 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मान्यता के अनुसार राहू और केतु बारी-बारी से सूयर्श और चन्द्रमा को ग्रसते है ,इसी के कारण सूयग्र र्श हण और चन्द्रग्रहण होता है ,को बल िमलता है . पौरािण क मान्यता के अनुसार ऋषिष दर्वर् ु ार्शसा के श्राप से सभी दर्े गगण अपने राजा इंद्र सिहत बलहीन हो गए थसे. उस समय दर्ानवर्ों का राजा बिल हुआ करता थसा. शनक्र ु ाचायर्श दर्ानवर्ों के गरु ु थसे. वर्े जब-तब राजा बिल को इंद्र के िखलाफ़ बरगलाते थसे और वर्े दर्े वर्ों पर आक्रामण कर उनकी संपित्त पर अपना अिधकार जमा लेते थसे. घर से बेघर हुए दर्े वर्ताऒ ं ने अपने राजा इंद्र को अपनी व्यथसा-कथसा कह सुनायी,पर वर्ह तो स्वर्यं िनस्तेज थसा,मदर्दर् नहीं कर पाया. इस तरह सभी दर्े वर्ताओं ने ब्रह्मा को अपना दर्ख ु डा कह सुनाया. ब्रह्मा ने उन्हे श्री िवर्ष्ण ु के पास िभजवर्ाया. िवर्ष्ण ु ने सारी बते सुन चक ु ने के बादर् समुद्र मंथसन की योजना बनाई. वर्े जानते थसे िक दर्ानवर्ों को बलहीन करने के िलए शनिक्त चािहए और वर्ह समुद्रमंथसन के जिरए ही हािसल की जा सकती है . उन्हीं की योजना के अनुसार उन्होंने वर्ासुिक नाग को नेित,मन्दर्राचल पवर्र्शत को मथसानी और स्वर्यं कच्छप बनकर मथसानी का आधार बनने का आश्वर्ासन िदर्या. इस तरह समुद्र मंथसन का अिभयान चलाया गया और वर्हाँ से प्राप्त शनिक्तयों को अपने अिधकार मे लेते हुए उन्होने दर्ानवर्ों को िफ़र एक बार पाताल की ओर लौटने पर मजबूर कर िदर्या थसा. .
थसाईलैड मे बद्ध ु धमर्श अपने िशनखर पर है . सभी बौद्ध मंिदर्रों मे आपको भगवर्ान बद्ध ु की सोने से
पािलशन की गई भव्य प्रितमाएं दर्े खने को िमलती है . इसके साथस ही वर्हाँ िहन्दर् ु धमर्श का भी अच्छा खासा प्रभावर् दर्े खने को िमलता है . वर्हाँ एक से बढकर एक िहन्दर् ु दर्े वर्ी-दर्े वर्ताओं के मंिदर्र है, धमर्श के नाम पर यहाँ झगडा-फ़सादर् कभी नहीं होता और न ही कोई िकसी पर जबरदर्स्ती अपना प्रभावर् ही डालता है . िहन्दर् ु-बौद्ध और मुिस्लम सभी पक्ष के लोग यहाँ बडे ही सौहादर्र्श ता के साथस अपना जीवर्न बसर करते है.
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यात्रा अमरनाथसधाम की
58 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
आपने अब तक अपने जीवर्न मे अनिगनत यात्राएं की होगी,लेिकन िकन्हीं कारण वर्शन आप अमरनाथस की यात्रा नहीं कर पाएं है , तो आपको एक बार बफ़ार्शनी बाबा के दर्शनर्शनों के िलए अवर्श्य जाना चािहए. दर्म िनकाल दर्े ने वर्ाली खडी चढाइयां, आसमान से बाते करती, बफ़र्श की चादर्र मे िलपटी-ढं की पवर्र्शत श्रेिण यां, शनोर मचाते झरने, बफ़र्श की ठं डी आग को अपने मे दर्बाये उद्द्ण्ड हवर्ाएं,जो आपके िजस्म को िठठुरा दर्े ने का माद्दिा रखती है,कभी बािरशन आपका रास्ता रोककर खडी हो जाती है ,तो कहीं िनयित निट अपने पूरे यौवर्न के साथस आपको सम्मोहन मे उलझा कर आपका रास्ता भ्रिमत कर दर्े ती है , वर्हीं असंख्य िशनवर्भक्त बाबा अमरनाथस के जयघोष के साथस,पूरे जोशन एवर्ं उत्साह के साथस आगे बढते िदर्खाई दर्े ते है और आपको अपने साथस भिक्त की चाशननी मे सराबोर करते हुए आगे,िनरन्तर आगे बढते रहने का मंत्र आपके कानों मे फ़ूंक दर्े ते है. कुछ थसोडॆ से लोग जो शनारीिरक रुप से अपने आपको इस यात्रा के िलए अक्षम पाते है,घोडॆ की पीठ पर सवर्ार होकर बाबा का जयघोष करते हुए खुली प्रकृित का आनन्दर् उठाते हुए,अपनी यात्राएं संपन्न करते है. सारी किठनाइयों के बावर्जदर् ू न तो वर्े िहम्मत हारते है और न ही िजनका मनोबल 59 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िडगता है , आपको िनरन्तर आगे बढते रहने के िलए प्रेिरत करते है. रास्ते मे जगह-जगह भंडारे वर्ाले आपका रास्ता, बडी मनुहार के साथस रोकते हुए,हाथस जोडकर िवर्नती करते है िक बाबा की प्रसादर्ी खाकर ही जाईये . भंडारे मे आपको आपके मन पसंदर् चीजे खाने को िमलेगीं.कहीं कडाहे मे केसर डला दर्ध ू औट रहा है , तो कहीं अमरती िसंक रही होती है ,बरफ़ी,पॆडा,बूंदर्ी,कचौिडयां,न जाने िकतने ही व्यंजन आपको खाने कॊ िमलेगे, वर्ो भी िपाबना कोई रकम चक ु ाए. ऐसा नहीं है िक यह नजारा आपकॊ एकाध जगह दर्े खने को िमले ,आप अपनी यात्रा के प्रथसम िपाबन्दर् ु से चलते हुए अिन्तम पडावर् तक, िशनवर्भक्तों की इस िनष्काम सेवर्ा को अपनी आँखों से दर्े ख सकते है . हमारी बस को जब एक भंडारे वर्ाले( अब नाम यादर् नहीं आ रहा है ) ने रोकते हुए हमसे प्रसादर्ी ग्रहण करने हे तु िवर्नती की,तो भला हममे इतनी िहम्मत कहां थसी िक हम उनका अनरु ोध ठुकरा सकते थसे. काफ़ी आितथ्य-सतकार एवर्ं सुसुवर्ादर् ू प्रसादर् ग्रहण कर ही हम आगे बढ पाए थसे. मन की आदर्त बात- बात मे शनंका करने की तो होती है . मेरे मन मे एक शनंका बलवर्ती होने लगी थसी िक ये भंडारे वर्ाले,अगम्य ऊँचाइयों पर जहाँ आदर्मी का पैदर्ल चलना दर्भ ू र हो जाता है ,यात्रा के शनुरुआत से पहले अपने लोगों को साथस लेकर अपने-अपने पंडाल तान दर्े ते है . रसॊई पकाने मे क्या कुछ नहीं लगता, वर्े हर छोटी-बडी सामग्री ले कर इन ऊँचाइयों पर अपने पंडाल डाले यािपात्रयों की राह तकते है और परू ी िनष्ठा और श्रद्धाके साथस सभी की खाितरदर्ारी करते है. वर्े इस यात्रा के दर्ौरान लाखों रुपया खचर्श करते है,भला इन्हे क्या हािसल होता होगा? क्यों ये अपना पिरवर्ार छोडकर, काम-धंधा छोडकर यात्रा की समािप्त तक यहाँ रुकते है? भगवर्न भोले नाथस इन्हे भला क्या दर्े ते होंगे? मन मे उठ रहे प्रश्न का उत्तर जानना मेरे िलए आवर्श्यक थसा. मैने एक भक्त से इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहा तो वर्ह चप्ु पी लगा गया. शनायदर् वर्ह अपने आपको अन्दर्र ही अन्दर्र तौल रहा थसा िक क्या कहे . काफ़ी दर्े र तक चप ु रहने के बादर् उसने हौले से मुँह खोला और बतलाया िक वर्ह एक अत्यन्त ही गरीब पिरवर्ार से है .रोजॊ-रोटी की तलाशन मे िदर्ल्ली आ गया. छोटा-मोटा काम शनुरु िकया. सफ़लता रुठी बैठी रही. समझ मे नहीं आ रहा थसा िक क्या िकया जाए? िकसी िशनवर्-भक्त ने मुझसे कहा-भोले भंडारी से मांगो. वर्ो सभी को मनचाही वर्स्तु प्रदर्ान करते है.बस, उसके प्रित सच्ची लगन और श्रद्धा होनी चािहए.मैने अपने व्यापार को फ़लने-फ़ूलने का वर्रदर्ान मांगा और कहा िक उससे होने वर्ाली आय का एक बडा िहस्सा वर्ह िशनवर्-भक्तों के बीच खचर्श करे गा. बस क्या थसा,दर्े खते-दर्े खते मेरी िकस्मत चमक उठी और मै यहां आने लगा.मेरी कोई संतान नहीं थसी.मैने िशनवर् जी से प्राथसर्शना की और आने वर्ाले साल पर मेरी मनोकामना पूरी हुई.
इतना बतलाते हुए उसके शनरीर मे रोमांच हो आया थसा और उसकी आँखों से अिवर्रल अश्रध ु ारा बह
िनकली थसी. इससे ज्ञात होता है िक यहाँ आने वर्ाले सभी िशनवर् भक्तों को भोलेभंडारी खाली हाथस नहीं लौटाते. शनायदर् यह एक प्रमुख वर्जह है िक यहाँ प्रितवर्षर्श लाखों की संख्या मे िशनवर्भक्त आते है . यह संख्या 60 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िनरन्तर बढती ही जा रही है . दर्स ू रा कारण तो यह भी है िक बफ़र्श का िशनवर्िलंग केवर्ल इन्हीं िदर्नों बनता है और हर कोई इस अदत ु िलंग के दर्शनर्शन कर अपने जीवर्न को कृताथसर्श करना चाहता है . और तीसरी खास वर्जह यह भी है िक लोग अपने नंगी आँखों से प्रकृित का अदत ु सौंदर्यर्श दर्े खना चाहते है . जो िशनवर्भक्त िहम से बने िशनवर्िलंग के दर्शनर्शन कर अपने जीवर्न को धन्य बनाना चाहते है,,उन्हे जम्मु पहुँचना होता है . जम्मु रे लमागर्श-सडकमागर्श तथसा हवर्ाई मागर्श से दर्े शन के हर िहस्से से जुडा हुआ है .
पहलगाम- (जम्मु से पहलगाम २९७ िक.मी ) _
जम्मु से पहला पडावर् पहलगाम है . यात्री टै क्सी द्वर्ारा नगरोटा-दर्ोमल-उधमपुर-कुदर्-पटनीटाप-बटॊट-रामबनबिनहाल-तीथसर-तथसा जवर्ाहर सरु ं ग होते हुए पहलगाम पहुँच है . पहलगाम नन ू वर्न के नाम से भी जाना जाता है . यह एक अतयन्त सुन्दर्र –रमण ीय स्थसान है . जनश्रुित के अनुसार भगवर्ाअन िशनवर् ने माँ पारवर्ती को अमरकथसा का रहस्य सुनाने के िलए एक ऐसे स्थसान का चयन करना चाहते थसे,जहाँ अन्य कोई प्राण ी उसे न सन ु सके. ऐसे स्थसान की तलाशन करते-करते िश्स्सवर् पहलगाम पहुँचे थसे. यह वर्ह स्थसान है ,जहाँ उन्होंने अपने वर्ाहन न्ण्दर्ी का पिरत्याग िकया थसा. इस स्थसान प्राचीन नाम बैलगाम थसा,जो क्षेत्रीय भाषा मे बदर्लकर पहलगाम हो गया. यात्री यहाँ भण्डारे मे भोजन कर रात्री िवर्श्राम करते है
च,ंदनविाडी (-पहलगाम से चन्दर्नवर्ाडी-16 िक.मी.)
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यात्री सुबह चाय-पानी का टै क्सी द्वर्ारा चन्दर्नवर्ाडी पहुँचता है . चन्दर्नवर्ाडी के बारे मे मान्यता है िक भोलेनाथस ने अपने माथसे का चन्दर्न यहां छोडा थसा. यहाँ से कुछ दर्िू र पर प्रकृित द्वर्ारा िनिमर्शत 100 मीटर लंबा पुल है ,जो िलद्दिर नदर्ी के ऊपर बना है . पवर्र्शत श्रंख ृ लाएं यहां अपना रुप-रं ग बदर्लती जाती है .
आगे की यात्रा थसोडी किठन है ,िजसे घोडॆ द्वर्ारा तय की जा सकती है .
श ेषनाग झील (- चन्दर्नवर्ाडी से शनेषनाग-13 िक.मी.)
चन्दर्नवर्ाडी से शनेशननाग के िलए यह रास्ता काफ़ी किठन तथसा सीधी चढाई वर्ाला है . िपस्सु घाटी होते हुए िलद्दिर नदर्ी के िकनारे -िकनारे मनोहर दृष्यों को िनहरते हुए यात्री शनेषनाग पहुँचता है . यह स्थसल झेलम नदर्ी
का उदर्गम स्थसल है ,िजसे शनेषनाग सरोवर्र भी कहते है. पहली झलक मे यूं प्रतीत
होता है िक कोई िवर्शनाल फ़ण ीधर(शनेषनाग) कुण्डली मारे बैठा हो. झील के पाश्वर्र्श मे खडी ब्रह्मा-िवर्ष्ण ुमहे शन नाम की तीम चोिटयां प्रकृित का एक महान चमत्कार ही है .इस झील का पानी नीला है . ऐसी मान्यता है िक भगवर्ान िशनवर् ने अपने गले का शनेषनाग का यहां पिरत्याग िकया थसा. इसी कारण इसका नाम शनेषनाग झील पडा. चारों ओर बफ़र्श से ढं की पहािडयॊं को िनहार कर यात्री धन्य हो जाता है .झील से थसोडा आगे यािपात्रयों को रािपात्र िवर्श्राम करना होता है .यहां जगह-जगह भण्डारे लगे होते है,जहां यात्री अपनी पसंदर् के सुस्वर्ादर् ु भोजन से तप्ृ त हो जाता है .
पंच,तरणी- (चन्दर्नवर्ाडी से शनेषनाग-13 िक.मी.)
62 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
सुबह होते ही यात्री चाय-पानी-नाश्ता कर पंचतरण ी की ओर प्रस्थसान करता है . मागर्श मे महागुनस पवर्र्शत है िजसकी ऊँचाई 14500 फ़ीट है . महागुनस पवर्र्शत अपने आप मे एक आश्चयर्श है . हरे -भूरे,कभी-कभी िसन्दर्रु ी रं ग मे िदर्खाई दर्े ने वर्ाले इस िवर्शनाल पवर्र्शत तथसा उस पर जमी बफ़र्श की परतों से सूरज की िकरण े परावर्ितर्शत होकर लौटती है तो यह िकसी बडॆ हीरे की तरह जगमगाता िद्दिखता है . ऊँचाई पर होने की वर्जह से आक्सीजन की मात्रा मे कमी होने लगती है ,िजससे यात्री को सांस लेने मे किठनाई होती है .एक कदर्म आगे बढाना भी दर्ष्ु वर्ार सा लगाने लगता है . अतः यात्री को चािहए िक वर्ह यहां बैठकर थसोडा सुस्ता ले और अपने आप को सामान्य िस्थसित मे ले आए. कपरू की डली भी उसे पास मे रखनी चािहए. उसे सूंधने मे राहत िमलती है .यहां जोर आजमाइशन करने की जरुरत नहीं है . भगवर्ान भोलेनाथस ने यहां अपने पुत्र श्री गण ेशन को छोड िदर्या थसा.तभी से इसका नाम महागण ेशन जो कालान्तर मे महगुनस हो गया.थसोडा आगे चलने पर पंचतरण ी नामक स्थसान आता है . आइसा कहा जाता है िक जब िशनवर् मां पावर्र्शती को अमरकथसा सुनाअने के िलए यहां से गुजर रहे थसे,तब उन्होंने नटराज का रुप धारण कर नत्ृ य िकया थसा. नत्ृ य करते समय उनकी जटा खुल गई थसी िजसामे से गंगा प्रवर्ािहत होते हुए पांच िदर्शनाओं मे बह िनकली. ऐसी मान्यता है िक भोले ने यहां पंच महाभूतों का यहां पिरत्याग कर िदर्या थसा यात्री यहां रात्री िवर्श्राम करता है तथसा जगह-जगह लगे भण्डारों मे भोजन करता है
पिवित गफ़ ु ा- (पंचतरण ी से पिवर्त्र गुफ़ा
6 िक.मी)
पंचतरण ी से 3 िक.मी सपार्शकार पहाडीयां चढकर 3 िक.मी बरफ़ीली चट्टानॊं पर चलकर यात्री बफ़र्श से अठखेिलयां करता, उत्साह के के साथस आगे बढता है ,क्योिक यहीं से वर्ह िदर्व्य गफ़ ु ा के दर्शनर्शन होने लगते है . गुफ़ा को दर्े खते ही यात्री की अब तक की सारी थसकान काफ़ुर हो जाती है . समुद्र सतह से 12730 फ़ीट की ऊँचाईं पर 60 फ़ीट चौडी,25 फ़ीट लंबी तथसा15 फ़ीट ऊँची गुफ़ा मे यात्री की आँखे प्रकृित द्वर्ारा िनिमर्शत िशनवर्िलंग को िनहारकर धन्य हो उठती है. यहीं िहम से 63 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िनिमर्शत मां पारवर्ती के भी दर्शनर्शन होते है.गफ़ ु ा के ऊपर रामकुण्ड है ,िजसका अमत ु ा मे ृ समान जल गफ़ प्रवर्ेशन करने वर्ाले यािपात्रयों पर बूंदर्-बूंदर् टपकता है . हजारों फ़ीट ऊपर से प्रकृित का अदत ु नजारा दर्े खकर काफ़ी प्रसन्नता का अनुभवर् होता है .गुफ़ा के पास ही है लीपैड भी बना हुआ है ,जहां से आप हे िलकाप्टर को पास से उत्ररता तथसा आसमान मे उडान भरते दर्े ख सकते है.वर्े यात्री िजनके पास समय कम है अथसवर्ा वर्े शनारीिरक रुप से कमजोर है,इस सेवर्ा का लाभ उठा सकते है. आपकी यात्रा के शनरु ु आती िपाबन्दर् ु से लेकर यात्रा के अिन्तम पडावर् तक भारतीय फ़ौज के जवर्ान िदर्न-रात आपकी सुरक्षा मे तल्लीन रहते है. कभी-कभॊ घस ु पैिठये इस यात्रा मे िवर्ध्न उतपन्न करने से बाज नहीं आते.फ़ौज के रहने से आपको िचन्ता करने की तिनक भी आवर्श्यकता नहीं है .
भगवर्ान अमरनाथस के दर्शनर्शन-पज ू ा-पाठ आिदर् के बादर् यात्री अपनी
यात्रा से वर्ािपस लौटने लगता है . यहाँ से एक छोटा रास्ता नीचे उतरने के िलए बालटाल होकर भी जाता है .यिदर् आप इस काफ़ी उतार वर्ाअले रास्ते का चयन करते है तो आपको रास्ते मेलेह-लद्दिाख-कारिगलसोनमगर्श-गल ु मगर्श होते हुए श्रीनगर आया जा सकता है .यहां आकर आप िशनकारे का आनन्दर् उठा सकते है. कश्मीर का यह िपछला िहस्सा सौंदर्यर्श से भरपूर है . प्रकृित नटी का अनुपम नजारा आपको यहां दर्े खने को िमलता है . अमरनाथस की यात्रा यद्दििप किठन अवर्श्य है ,लेिकन मन मे यिदर् उत्साह और उमंग है तो िनःसन्दर्े ह इसमे आपको भरपूर मजा आएगा. यिदर् आपने प्रकृित के इस अदत ु नजारे तो नहीं दर्े खा तो सब बेकार है . अतः एकबार पक्का मन बनाइये और बफ़ार्शनी बाबा के दर्शनर्शनों का लाभ उठाइये. यात्रा करने से पहले हमे क्या-क्या करना चािहए और कौन-कौन सी सावर्धािनयां बरतनी चािहए,उस पर थसोडा ध्यान िदर्ए जाने की जरुरत है . (1)यात्री अपना नाम-पता-टे लीफ़ोन नम्बर-मोबाइल नम्बर आिदर् को अपनी जेब मे अवर्श्य रखे और साथस ही अपने सािथसयों के नाम पते भी रखे,जो जरुरत पडने पर बडा काम आएगा.(2) अपने साथस सख ू े मेवर्े,नमकीन अथसवर्ा भन ू े चने तथसा गड ु अवर्श्य रख ले .(3) सदर्र्श हवर्ा से चेहरे को बचाने के िलए वर्ेसलीन,मफ़लर,ऊनी दर्ास्ताने,बरसाती,मोजे,कोल्ड क्रीम साथस रखे ,क्योिक यहां कभी भी बािरशन अथसवर्ा बफ़र्श पड सकती है .खुला आसमान और खल ु ी धरती के बीच आपको यहां रहना होता है .िफ़र यहां टैटॊं के अलावर्ा कोई शनैड-वर्ैड आपको दर्े खने को भी नही िमलेगे
( 4) यिदर् आप िपट्टु या
घोडॆ वर्ाले को साथस लेते है तो उनका रिजस्ट्रे शनन -काडर्श अपने पास रख ले और यात्रा की वर्ापसी मे लौटा दर्े .(5) रास्ता उबड-खाबड अथसवर्ा िफ़सलन भरा िमलेगा ही, अतः जूते वर्ाटरप्रुफ़ तथसा िग्रप वर्ाले ही पहने.(6) चढाई करते समय थसक जाएं तो बीच-बीच मे आराम करते चले.अपने आपको ज्यादर्ा थसका दर्े ने का प्रयास न करे .(7) आवर्श्यक दर्वर्ाएं अपने पास रखे. हालांिक यहां पर परू ी व्यवर्स्थसा सरकार बना कर चलती है ,िफ़र भी अपने पास दर्वर्ाओं का िकट रख ले .(8)मुझे यह कहने मे तिनक भी संकोशन नही हो रहा है िक हम 64 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
भारितयों मे यहां-वर्हां कचरा फ़ेक दर्े ने की बरु ी आदर्त है .कृपया इससे बचे . अपनी खाली प्लािस्टक की बोतले अथसवर्ा प्लािस्टक की थसैिलयां यहां –वर्हां न फ़ेके. जब गांवर्-शनहर मे ही समुिचत सफ़ाई की व्यवर्स्थसा हम नही बना पाते तो पहाडॊं के दर्ग र्श स्थसान पर कौन सफ़ाई करने की िहम्मत जुटा पाएगा. कई सज्जन ु म लोग बोतल को आधी भरकर
उसे नदर्ी मे बहा दर्े ते है. पता नहीं, अनजाने मे ही हम पयार्शवर्रण का िकतना
नुकसान कर बैठते है.(9) मेिडकल िफ़टनेस का सिटर्श िफ़केट यात्रा से पूवर्र्श अवर्श्य बनवर्ा ले .((10) भारत सरकार ने चप्पे-चप्पे पर सरु क्षा के कडॆ बन्दर्ोबस्त िकए है.इसके अलावर्ा आपकी िनगरानी के िलए हे लीकाप्टर से भी नजर रखी जाती है . अतः सैिनकों के द्वर्ारा िदर्ए गए िनदर्े शनों का कडाई से पालन करे .
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सािहत्य समागम के साथ श्रीनाथद्वारा
के िदव्य दशर्धन मेरा अपना मानना है िक जब तक आपके पुण्योदय नहीं होते, आप िकसी भी तीथर्धस्थल पर नहीं जा सकते. दूर्सरा यह िक जब तक उस तीथर्धक्षेत्र के स्वर्ामी का बुलावर्ा नहीं होता, तब तक आपको उनके िदव्यदशर्धन भी नहीं कर सकते. संभवर् है िक आप मेरे मत से सहम हों अथवर्ा नहीं भी हों, पर मेरा अपना यह िवर्श्वास अिडग है िक बगैर उनकी कृत पा के कु छ भी नहीं हो सकता. मैं इसी िवर्श्वास को िलए चलता हूँ.
65 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िनिश्चर्त रूप से मैं अपने इसी िवर्श्वास के बल पर यह कह सकता हूँ िक मेरे अनदर कु छ पुण्य़ॊं का उदय हुआ और मुझे श्रीनाथजी के दशर्धन पाप्त करने का अहोभाग्य पाप्त हुआ. यह श्रीनाथजी की कृत पा का ही फ़ल था िक मुझे सािहत्य मंडल नाथद्वारा के पधनानमंत्री (स्वर्) श्री भगवर्तीपसादजी देवर्पुरा का आमंत्रण-पत्र पाप्त हुआ . नाथद्वारा में पाटॊत्सवर् ब्रजभाषा समारोह 14-15 फ़रवर्री 2012 को आयोिजत िकया गया था, पत्र में इस बात का उल्लेख था िक वर्े मेरे सािहित्यक अवर्दान को देखते हुए मुझे ”िहनदी भाषा भूर्षण” सममान से सममािनत करने जा रहे हैं. मुझे दोहरी खुशी पाप्त हो रही थी िक मुझे जहाँ श्रीिवर्ग्रह के दशर्धनों का पुण्य-लाभ िमलेगा, वर्हीं मुझे सािहत्य िशरोमिण-श्री भगवर्तीपसादजी देवर्पुरा के हस्ते सममािनत िकया जाएगा. इस खुशखबरी को मैंने अपनी पित्न-पुत्रों और सािहत्यकार िमत्रों को सुनाया और जाने की तैयारी करने लगा. इस अवर्सर का लाभ उठाने के िलए मैंने पित्न को साथ चलने को कहा. वर्े तैयार तो हो गईं लेिकन िकसी कारणवर्श वर्े इस यात्रा से वर्ंिचत रह गईं. इस बीच मैं दो बार श्रीनाथजी के दशर्धन कर चुका हूँ, लेिकन पित्न इस बार भी साथ नहीं थीं. तीसरी बार भीलवर्ाडा में आयोिजत “बालवर्ािटका” के कायर्धक्रम में जाने के िलए यह सोचते हुए हम उद्धत हुए िक लौटते में श्रीनाथजी के दशर्धन जरुर करें गे, लेिकन नहीं जा पाए. सािहत्यमंडल श्रीनाथद्वारा माह फ़रवर्री में मनाए जाने वर्ाले पाटॊत्सवर् ब्रजभाषा समारोह जो 11-12 फ़रवर्री 2015 को मनाया जाना था, का आमंत्रण-पत्र संस्था के पधनानमंत्री श्री श्यामपकाशजी देवर्पुरा, का पाप्त हुआ. िफ़र कु छ ऎसा हुआ िक चाहकर भी हम नहीं जा पाए. उपरोक्ति तथ्यों को देखते हुए आप मेरे मत से जरूर सहमत होंगे िक जब तक उस िसद्ध क्षेत्र के स्वर्ामी की जब तक कृत पा नहीं होगी, आप वर्हाँ पवर्ेश नहीं पा सकते.
66 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
( फ़ोटो क्रमांक (१ तथा २) सममािनत होते हुए लेखक(३) मंच का संचालन करते (स्वर्) भगवर्तीपसादजी देवर्पुरा( बतौर स्मृतितयों के िलए एकमात्रा िचत्र.),(४-५-६-७) हल्दीघाटी (८) श्री िशवर्मृतदल ु जी के साथ(९) राजस्थान सािहत्य अकादमी 67 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
उदयपुर के पिरसर में अकादमी के पबनधन समपादक डा.पमोद भट्टजी एवर्ं अनय िमत्रों के साथ) (१०) उदयपुर राजमहल(११) िपछोरा झील(१२)उदयपुर के सािहित्यक िमत्र श्री जगदीश ितवर्ारी तथा नवर्कृत ित संस्था के अध्यक्ष (१३) (िमत्र श्री िवर्ष्णु व्यास) (१४) डा.गगार्धजी के साथ िचत्तौडगढ में) (१५) िवर्जयस्तंभ पिरसर में तैनात सुरक्षाकमी अपने सािहित्यक िमत्र श्री िवर्ष्णु मंगरुलकर से मैंने इस बाबत चचार्ध की. हम सभी स्नेहवर्श उनहें भाऊ के नाम से पुकारते हैं. जैसा िक उनका स्वर्भावर् है िक पहले तो वर्े नानुकुर करते हैं िफ़र सहमित दे देते हैं. हमने कायर्धक्रम की रूपरे खा तय की और भीलवर्ाडा के मेरे सािहत्यकार िमत्र एवर्ं बालवर्ािटका के संपादक डा.श्री भैंरुलाल गगर्धजी को अपने कायर्धक्रम से अवर्गत कराया. डा.साहब ने मुझे बतलाया िक वर्े श्री श्री िवर्ष्णु कु मार व्यास के मकान के उद्घाटन समारोह में सपिरवर्ार गंगरार आ रहे हैं. चुिं क गंगरार भीलवर्ाडा-िचत्तौडगढ मागर्ध में िस्थत है और यह स्थान िचत्तौडगढ के करीब है. अतः उनहोंने हमें िचत्तौडगढ रुकने के सलाह दी. सुबह के करीब सात अथवर्ा साढे सात बजे के करीब हमारी ट्रेन िचत्तौडगढ पर आकर रुकती है. स्टेशन पर हमनें मुह ँ -हाथ धनोया और बाहर िनकलकर एक गुमठी पर चाय के घूर्ँट भर ही रहे थे िक डा.साहब अपने बडॆ सुपुत्र वर्ेदांत पभाकर के साथ अपनी गाडी में आ पहुँचे. गमर्धजोशी के साथ उनहोंने हमारा स्वर्ागत िकया. िचत्तौडगढ आना और वर्हाँ के पख्यात सािहत्यकार श्री िशवर् मृतदल ु , डा. रमेश मयंक, राधनेश्याम मेवर्ाडी, पिण्डत नंदिकशोर िनझर्धर आिद से न िमलना, न तो डा.साहब को गंवर्ारा था, न हमें. हम सीधने श्री िशवर् मृतदल ु जी के यहाँ पहुँचे. इन िदनो वर्े अस्वर्स्थ चल रहे थे. कारण यह था िक वर्े अपने घर के बाहर खडॆ हुए थे िक िकसी तेजरफ़्तार मोटरसाईकल सवर्ार ने उनहें टक्कर मार दी थी. िसर में गहरी चोट लगी थी. ईश्वर की कृत पा और सही वर्क्ति पर सही इलाज से वर्े ठीक तो हो गए थे, लेिकन िसर पर अब भी.पट्टी चढी हुई थी. मृतदल ु जी ने हम सभी का उठकर आत्मीय स्वर्ागत िकया और औपचािरक चचार्धओं के साथ-साथ चाय-पानी का दौर भी चलता रहा. मृतदल ु जी का अनुरोधन था िक हम भोजन करने के उपरानत ही कहीं जा सकते हैं. हम उनका अनुरोधन न ठु करा सके . समय की कोई कमी हमारे पास नहीं थी. अतः यह िवर्चार बना िक रसोई तैयार होने तक हम िचत्तौडगढ का भ्रमण कर आते हैं. िचत्तौडगढ िकले का भ्रमण करने के पश्चर्ात हम सबने िमलकर सुस्वर्ादु भोजन का आननद उठाया. तत्पश्चर्ात हम गंगवर्ार के िलए िनकले. गंगवर्ार में िमत्र िवर्ष्णुजी से भेंट हुई. यहाँ दो िवर्ष्णुओं के बीच मुलाकात हो रही थी. हमने उनके नवर्िनिमत भवर्न का अवर्लोकन िकया. सभी के साथ बैठकर भोजन का आननद उठाया. शाम के लगभग पांच बज रहे थे. पूर्रा गगर्ध पिरवर्ार और हम अब भीलवर्ाडा की ओर पस्थान कर रहे थे. भीलवर्ाडा से ही हमें श्रीनाथद्वारा जाने के िलए बस िमलनी थी. पूर्वर्र्ध
68 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िनधनार्धिरत कायर्धक्रम के अनुसार डा.साहब भी हमारे साथ ही वर्हाँ चलने वर्ाले थे, लेिकन िकसी आवर्श्यक कायर्ध के चलते वर्े साथ न दे सके . भीलवर्ाडा पहुँचते ही हमें श्रीनाथद्वारा जाने वर्ाली बस सुगमता से िमल गई और अब हम उस ओर बढ चले थे. श्रीनाथद्वारा िस्थत “बालािसनोर सदन”, बी िवर्ग सबजी मण्डी में अवर्िस्थत है, जहाँ भारत के अनय स्थानों से पहुँचने वर्ाले सािहत्यकारों के ठहरने की उत्तम व्यवर्स्था की गई थी. िदनांक १४ फ़रवर्री २०१२=श्रीनाथजी के बडॆ मुिखया एवर्ं सािहत्य-मण्डल श्रीनाथद्वारा के माननीय अध्यक्ष श्री नरहिर ठाकु रजी, अनय गणमानय नागिरकों और पबुद्धवर्गर्ध की गिरमामय उपिस्थित में कायर्धक्रम की शुरुआत हुई. दो िदवर्सीय चलने वर्ाले इस सािहित्यक कायर्धक्रम में पहले िदन “समस्या पूर्ित” कायर्धक्रम आयोिजत हुआ. नौ बजे सुबह से शुरु होने वर्ाले इस पथम सत्र में सवर्ैये के अनतरगत “हलमूर्सल धनारी” तथा किवर्त्त में “महाडॊ भ्रष्टाचार को” िवर्षय पर श्री जमनालालजी शमार्ध”जमनेश”, िगरीशजी “िवर्द्रोही”, दुगार्धशंकर यादवर् “मधनु” ने इस िवर्षय पर िवर्स्तार से अपने िवर्चार पस्तुत िकए. िद्वतीय सत्र में श्रीनाथद्वारा के स्कु लों में अध्ययनरत िवर्द्यािथयों को सवर्ोच्च अंक पाप्त करने पर “िवर्द्याथी रत्न” सममान से सममािनत िकया जाता है. इसे एक शानदार और और जानदार परमपरा का िनवर्र्धहन होना कहा जा सकता है. इस तरह सममािनत होने वर्ाले बच्चे न के वर्ल पोत्सािहत होते हैं बिल्क जीवर्न में उच्चपादान पर अपने आपको पितिष्ठत कर पाते हैं.तथा देश और समाज के िलए कु छ कर जाने की भावर्ना से ओतपोत भी होते हैं. इस सत्र की िजतनी भी तारीफ़ की जाए, कम ही पतीत होती है. तृततीय सत्र में “ब्रज भाषा उपिनषद” के अनतरगत ब्रज भाषा पर आधनािरत अनेकों िवर्षय पर पिरचचार्ध होती है. जैसे भिक्तिकाल में ब्रजभाषा, रीित कालीन ब्रजभाषा सािहत्य आिद चतुथर्ध सत्र में “ब्रजभाषा िवर्भूर्षण” सममान से िवर्द्वत सािहत्यकारों का सममान िकया गया. पंचम सत्र में “िहनदीभाषा भूर्षण सममान” से सािहत्यकारों का सममान िकया गया िजसमें मैं भी शािमल था. सत्र का संचालन बडॆ मनोयोग से करते हुए ब्रजभाषा के नामचीन सािहत्यकार श्री िवर्ठ्ठल पािरख ने श्री नाथूर्लाल महावर्रजी द्वारा रिचत सवर्ैये पढते हुए सािहत्यकार का पिरचय देते हुए चलते हैं. मुझे सममािनत करते हुए उनहोंने िनम्नलिलिखत सवर्ैया पढा, वर्ह कु छ इस तरह से है गोवर्धनर्धन यादवर्. कथाकार हैं, श्रेष्ठ श्री िलखें बाल सािहत्य सफ़ल समीक्षक सृतजनरत, 69 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मगनमना श्री िनत्य, “सृतजन श्री” से सममािनत पुरस्कार सममान, मान वर्र िवर्भवर् िवर्भूर्िषत गोवर्धनर्धन श्रीमंत वर्ाणी का गुणाकार हैं िहनदी सेवर्ी श्रेष्ठ, (त्रैमािसक “हरिसगार”पृतष्ठ २६
कु शल किवर् कथाकार हैं.
षष्ठम सत्र में “िशक्षा सािहत्य मनीषी सममान” तथा सप्तम सत्र में “ब्रजभाषा किवर् सममेलन” का आयोजन िकया गया. ब्रजभाषा में िनिहत सौंदयर्धबोधन की किवर्ताओं को सुनने और सराहना करने का मेरे िलए यह पथम अवर्सर था. एक िदन में लगातार सात सत्र चलते रहने के बावर्जूर्द न तो उनमें कहीं उबाऊपन था और न ही घुटन महसूर्स हो रही थी. ऎसा होना िनिश्चर्त ही आश्चर्यर्ध का िवर्षय है. मैं बैठे-बैठे सोच रहा था- यिद िकसी रथ में एक साथ सात घोडॆ जोड िदए जाएं, तो उनहें साधनते हुए सीधने मागर्ध में चला पाना िकतनी जोिखम भरा काम है . इसमे दुघर्धट्ना की अनेकानेक संभावर्नाएं बन सकती है. यिद आप इसे चला पाए तो इसका सारा श्रेय उस साहसी सारथी को िदया जाना चािहए. सात-सात कायर्धक्रम को अंजाम देने का एवर्ं कु शल संचालन का सारा श्रेय संस्था के पधनानमंत्री श्री भगवर्तीपसादजी देवर्पुरा को िदया जाना चािहए .लीक से हटकर उनहें चलना कतई पसंद नहीं आता था. िजसके िलए वर्े तुरनत अपनी पितिक्रया जािहर कर देते थे. कठोर िनणर्धय ही िकसी काम को सही अनजाम दे सकता है. फ़ाल्गुन कृत ष्ण ८ सं.२०६८ बुधनवर्ार, १५ फ़रवर्री २०१२ का िदन कायर्धक्रम के समापन का िदन था. इस िदन भी दो सत्र आयोिजत िकए गए थे. पथम सत्र की शुरुआत पातः ८ बजे होती है, पथम सत्र में “अष्टछाप, काल कवर्िलत पित्रका, सािहत्यकार, पुस्तकालय एवर्ं पकाशन कक्ष” , िजसमें संस्था की गितिवर्िधनयों का अवर्लोकन कराना होता है. इसी सत्र में “पुरजन सममान” भी होता है. जो व्यिक्ति िकसी कारणवर्श िपछली साल उपिस्थत नहीं हो पाए थे, के आगमन पर सममािनत िकए जाने की परमपरा िवर्किसत की गई है. िद्वतीय सत्र में “समपादक िशरोमिण” सममान “ से उन समपादकॊ कॊ सममािनत िकया जाता है, िजनका कायर्ध उल्लेखनीय होता है. यह संस्था अपने स्थापना वर्षर्ध १९३७ से अनेक सािहित्यक कायर्धक्रमों का सफ़लतापूर्कर्ध आयोजन करती आ रही है. करीब साठ हजार पुस्तकों का िवर्शाल पुस्तकालय आप यहाँ देख सकते हैं. संस्था द्वारा संचािलत ३०० छात्राओं का माध्यिमक िवर्द्यालय, देश की तमाम पत्र-पित्रकाओं के साथ बालसािहत्य भी यहाँ सहजता से उपलबधन हैं. फ़ाल्गुन सप्तमी को “पाटोत्सवर् ब्रजभाषा समारोह एवर्ं १४ िसतमबर को “िहनदी लाओ-देश बचाओ” कायर्धक्रम यहाँ समपािदत होते हैं. देश की 70 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
अनेकानेक बडी संस्थाओं से समबद्ध इस संस्था में िवर्िभन्नच संस्थाओं द्वारा पदत्त ११-११ हजार रुपयों के छः पुरस्कार सिहत अिभननदन कायर्धक्रम भी यहाँ पितवर्षर्ध होते हैं. श्रीनाथजी का मिनदर यहाँ से कु छ ही दूर्री पर अवर्िस्थत है. सुबह नौ बजे से शाम तक चलने वर्ाले इस दो िदवर्सीय व्यस्तम कायर्धक्रम के पश्चर्ात हम सीधने श्रीनाथजी के िदव्य दशर्धनों के िलए िनकल पडते . रास्ते में पडने वर्ाली दूर्कानों में श्रीजी की भव्य तस्वर्ीरें , रं ग-िबरं गे फ़ूर् लों में गुंथी मालाओं का िवर्क्रय करती अनेकानेक दूर्काने, श्रीजी के महापसाद िवर्के ताओं की दूर्कानों आिद को पार करते हुए तंग गिलयों से गुजरते हुए मिनदर तक जाना होता है. श्रीजी राजस्थान तथा गुजरात के लोगों के इष्ट देवर्ता हैं. अलग-अलग जगहों से वर्हाँ इकठ्ठा हुए भक्तिगणॊं की टॊली झुमती-नाचती-गाती और वर्ाद्ययंत्रों से पूर्रे वर्ातावर्रण को मदमस्त करती हुई श्रीजी की देवर्ढी पर जमा हो कर इस बात का इनतजार करती है िक कब पट खुलेंगे और हम जी भर कर उस नटवर्र- नागर के िदव्य दशर्धन कर सकें गे. जैसे ही पट खुलता है,हजारों-हजार भक्तिगण पूर्री श्रद्धा और उल्लहास के साथ अनदर पवर्ेश करता है और उनके दशर्धन कर अपने को अहोभागी मानता है . कायर्धक्रम की समािप्त पर हमनें “हल्दीघाटी” का भमण िकया. यह वर्ह स्थली है जहाँ मेवर्ाड के वर्ीर िशरोमणी महाराणा पताप और अकबर के बीच युद्ध हुआ था. उनकी याद को अक्षुण्य बनाने के िलए यहाँ मेवर्ाड के िकले की अनुकृतित बनाई गई है, िजसमें महाराणा के वर्शंजों तक की पूर्री जानकारी उपलबधन है. यहाँ डाकयूर्मेंटरी िफ़ल्म भी िदखायी जाती है,जो उन किठन िदनों की पृतष्ठभुिम पर आधनािरत है. दूर्सरे िदन हम झीलों की नगरी उदयपुर जा पहुँचे. िमत्र जगदीश ितवर्ारी, “नवर्कृत ित” संस्था के अध्यक्ष माननीय श्री इकबाल हुसैन “इकबाल” ने न िसफ़र्ध हमारा स्वर्ागत िकया बिल्क राजस्थान सािहत्य अकादमी भी साथ ले गए, तथा अकादमी के पबंधन संपादक डा. पमोद भट्टजी से पिरचय करवर्ाया और शाम को एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन करते हुए हमारा सममान भी िकया. िमत्र द्वय की िमलनसािरता, सािहत्य के पित गहरी आस्था.और अनुराग आज भी स्मृतितपटल पर ज्यों की त्यों अंिकत है. मन तो यहीं रम गया है श्रीचरणॊं में. ऎसे सुरमय माहौल और वर्ातावर्रण को छॊडकर भला कौन लौटकर आना चाहेगा.? लेिकन लौटना ही पडता है. भारी मन िलए हम लौट पडते हैं, इस आशा और िवर्श्वास के साथ िक कब कृत पािनधनान अपनी दया का पात्र हमें बनाते हैं और अपने िदव्य-दशर्धनॊं के िलए अपनी कृत पा बरसाते हैं.? 14
मारीशनस माने िमनी भारत की यात्रा (भाग -1)
71 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
(मारीशनस मे गोवर्धर्शन यादर्वर् – बाएँ से दर्स ू रे ) मेरे अपने जीवर्न मे यह दर्स ू रा अवर्सर है जब मझ ु े भारत से बाहर मारीशनस जाने का सुअवर्सर प्राप्त हुआ. पहली बार मै थसाईलैण्ड की यात्रा पर सन 2011 मे गया थसा. थसाईलैण्ड की यात्रा पर जाने का अवर्सर अनायास ही प्राप्त नहीं हुआ थसा, बिल्क सायास प्राप्त हुआ थसा इस यात्रा के बारे मे बडा िदर्लचस्प वर्ाक्या है . एक िदर्न मुझे रायपुर (छ.ग.) के मेरे िमत्र श्री जयप्रकाशन मानसजी का फ़ोन
आया. फ़ोन पर उन्होंने मझ ु से बैकाक-यात्रा पर चलने का आग्रह िकया और साथस ही उन्होंने मेल के जिरए उस कायर्शक्रम की रुपरे खा भी उपलब्ध करवर्ा दर्ी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर िहन्दर्ी और िहन्दर्ी-
संस्कृित को प्रितिष्ठत करने के िलए बहुआयामी सािहित्यक-सांस्कृितक संस्थसा “सज ृ न-सम्मान एवर्ं सािहित्यक वर्ेवर्-पिपात्रका “सज ृ नगाथसा डाट काम”रायपुर का यह सात िदर्वर्सीय अनूठा प्रयास थसा. इस
सािहित्यक यात्रा मे दर्े शन के चयिनत/अिधकािरक िवर्द्वर्ान, अध्यापक, लेखक, भाषािवर्दर्, शनोधाथसी, संपादर्क, पत्रकार, संगीतकार, बिु द्धजीवर्ी एवर्ं िहन्दर्ी सेवर्ा संस्थसाओं के सदर्स्य, िहन्दर्ी प्रचारक, ब्लागसर्श,तथसा
टे क्नोक्रेट भाग ले रहे थसे. मन मे इच्छा बलवर्ती हो उठी िक मझ ु े इसमे जाना चािहए लेिकन उस
वर्क्त तक मेरा पासपोटर्श नहीं बना थसा सो चाहते हुए भी मै इस यात्रा मे शनािमल नहीं हो सका. उन्होने आग्रह करते हुए मझ ु से कहा िक आने वर्ाले समय मे मुझे अन्य दर्े शन की यात्रा के िलए तैयार रहना है और अपना पासपोटर्श भी समय रहते बनवर्ा लेना है .
शनुरु से ही मेरी प्रकृित घुम्मकड िकस्म की रही है . डाक िवर्भाग मे कायर्शरत रहने से चार वर्षर्श मे
िमलने वर्ाली एल.टी.सी का मैने तीन बार फ़ायदर्ा उठाया. पहली बार मैने सपिरवर्ार संपूण र्श दर्ित क्षत-भारत की यात्रा की. दर्स ू री बात जम्मु-कश्मीर और तीसरी बात गोवर्ा की यात्रा की. उसके बादर् यह स्कीम
सरकार द्वर्ारा बंदर् करा दर्ी गई. सेवर्ा िनवर्िृ त्त के बादर् मैने मध्यप्रदर्े शन राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित,िहन्दर्ी 72 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
भवर्न भोपाल की सदर्यता ग्रहण की. लेखन कमर्श अपनी गित से चल ही रहा थसा. बच्चॊं के िलए भी मै िलखने लगा. इस बीच मेरी मुलाकात सािहित्यक एवर्ं सांस्कृितक संस्कार की मािसकी “बालवर्ािटका” के संपादर्क डा. श्री भैरुँलाल गगर्शजी से हुई और इस तरह मै उनकी संस्थसा से जुड गया. यह क्रम अभी रुका नहीं थसा. दर्स ू री कडी मे मै बालसािहत्य शनोध एवर्ं संवर्धर्शन सािमित के संचालक श्री उदर्य
िकरोलाजी, अलमोडा(उत्तराखण्ड) से जड ु ा और इस तरह कई संस्थसाओं से जड ु ता चला गया और इनमे होने वर्ाले कायर्शक्रमों मे बराबर जाता रहा और सम्मानीत भी होता रहा. नए-नए प्रदर्े शनों मे जाना और ख्याितलब्ध सािहत्यकारॊ से िमलने मे मुझे अत्यिधक आनन्दर् प्राप्त होता है . इस तरह प्रायः सभी
प्रदर्े शनों के बहुतेरे िमत्रों की टोली जुडती चली गई. परमिपता परमेश्वर्र की िवर्शनेष कृपा मुझ पर सदर्ा बनी रही और यह उन्हीं का आशनीवर्ार्शदर् है िक मझ ु े दर्े शन और दर्े शन के बाहर जाने के सअ ु वर्सर प्राप्त होते रहे .
जैसा की मैने स्वर्ीकार िकया भी है िक मझ ु े यात्रा करने मे काफ़ी आनन्दर् प्राप्त होता है . सो मैने
िछन्दर्वर्ाडा िस्थसत “वर्सुन्धरा ट्रै वर्ल” के संचालक श्री बकुल पंड्याजी से संपकर्श िकया और अपना पासपोटर्श तैयार करने के िलए आवर्श्यक दर्स्तावर्ेज जुटाना शनुरु कर िदर्ए. माननीय वर्रदर्मूितर्श िमश्रजी उस समय एस.डी.एम के पदर् पर कायर्शरत थसे. आपने दर्ो बार मध्यप्रदर्े शन राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित,िजला इकाई
िछन्दर्वर्ाडा द्वर्ारा आयोिजत प्रितभा प्रोत्साहन प्रितयोिगताओं मे मुख्य अितिथस के तौर पर सिमित को अपना हािदर्र्शक सहयोग िदर्या और समय-समय पर वर्े मागर्शदर्शनर्शक के रुप मे अपनी भागीदर्ारी का
िनवर्र्शहन करते रहे है. मैने उनसे अपना तत्काल -पासपोटर्श बनवर्ाने के िलए िनधार्शिरत प्रपत्र मे हस्ताक्षर
करने के िलए िनवर्ेदर्न िकया. उन्होंने िपाबना समय गवर्ांए उस पर अपने हस्ताक्षर कर िदर्ए.. लेिकन इस बीच पित्न की तबीयत िपाबगड जाने और उस पर लगने वर्ाले खचों को दर्े खते हुए मैने इस प्रिक्रया को रोकते हुए श्री बकुलजी से कहा िक वर्े सामान्य तरीके से इसे बनने दर्े . लगभग तीन माह बादर् पासपोटर्श मेरे हाथस मे थसा और मै अब दर्े शन से बाहर जाने के िलए अिधकृत थसा.
श्री मानसजी से मेरा संपकर्श बराबर बना हुआ थसा. संयोग से वर्े वर्षर्श 2011 मे सात िदर्वर्सीय ( 1 से 7 फ़रवर्री) कायर्शक्रम तय कर चुके थसे,िजसकी सूचना उन्होंने ईमेल के जिरए तथसा फ़ोन पर दर्े दर्ी थसी. इस
तरह यह पहला मौका थसा जब मै भारत के बाहर िकसी अजनवर्ी धरती पर अपना कदर्म रख रहा थसा. सारे कायर्शक्रम अपने िनधार्शिरत समय के अनस ु ार सान्नदर् संपन्न होते रहे . एक लंबा अरसा बीत गया है ,लेिकन वर्े सारी यादर्े अब भी मन-मिस्तस्क पर जस की तस अंिकत है.
इस आयोजन के बादर् आपकी संस्थसा ने ताशनकंदर्, संयक् ु त अरब अमीरात, कंबोिडया-िवर्यतनाम आिदर्
दर्े शनों की यात्राएं की और िहन्दर्ी के प्रचार-प्रसार और उन्नयन के िलए अनूठे कायर्शक्रम िकए. हालांिक
मै इन दर्े शनों की यात्रा भले ही नहीं कर पाया लेिकन मेरे दर्ो अिभन्न िमत्र श्री आर.एम.आनदर्े वर्जी और डी.पी.चौरिसयाजी ने बराबर इसमे भाग लेकर िजले की शनान बढाई है .
आधारिशनला के संपादर्क-िमत्र श्री दर्ीवर्ाकर भट्टजी थसाईलैण्ड यात्रा मे मेरे सहयात्री रहे है. आपने भी िहन्दर्ी के उन्नयन और संवर्धर्शन मे अनेकों दर्े शनॊं की यात्राएँ की है, मझ ु से लगातार साथस चलने का
73 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
आग्रह करते रहे है और समय-समय पर फ़ोन से ईमेल के जिरए कायर्शक्रम की रुपरे खा भेजते रहे
है,लेिकन यात्रा मे लगने वर्ाली बडी रािशन का जुटाना एक सेवर्ािनवर्त्ृ त कमर्शचारी के िलए असंभवर् सा
प्रतीत होता रहा. इस बीच “अभ्युदर्य बहुउद्दिेशनीय संस्थसा, वर्धार्श िजसके संरक्षाक श्री वर्ैद्ध्यनाथस अय्यरजी तथसा संस्थसा के महासिचवर्-संयोजक श्री नरे न्द्र दर्न्ढारे जी का पत्र प्राप्त हुआ. श्री दर्न्ढारे जी वर्तर्शमान समय मे राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित,वर्धार्श मे कायर्शरत है और समय-समय पर आपसे वर्धार्श मे होने वर्ाले
कायर्शक्रमों मे तथसा िहन्दर्ी भवर्न भोपाल मे भे ट होती रही है , ने दर्रू भाष पर मुझसे चलने बाबदर् अनुरोध िकया. प्रथसम आग्रह मे ही मैने उनसे स्पष्ट संकेत दर्े िदर्ए थसे िक खचर्श की अिधकता को दर्े खते हुए मेरा जाना संभवर् नहीं है . श्री दर्ण्ढारे जी के फ़ोन लगातार आते रहे . एक िदर्न मैने उस पत्र की एक फ़ोटॊ-प्रित िहन्दर्ी भवर्न
भोपाल भेजते हुए संस्थसा के मंत्री-संचालक मान.श्री कैलाशनचन्द्र पंतजी से िनवर्ेदर्न िकया िक हम अपने स्तर पर िहन्दर्ी के प्रचार-प्रसार मे कायर्श तो कर ही रहे है लेिकन हम इतने सक्षम नहीं है िक मारीशनस जैसे सुदर्रू दर्े शन की यात्रा कर सके. िनवर्ेदर्न मे यह भी मैने जोडा िक यिदर् िहन्दर्ी भवर्न इसमे हमे कुछ आिथसर्शक सहायता प्रदर्ान करती है , तो बाकी की रकम का हम इंतजाम कर लेगे. इस समय मारीशनस यात्रा के िलए िछयत्तर हजार रुपयों का खचर्श बतलाया गया थसा.
िहन्दर्ी भवर्न भोपाल का एक पत्र आया, िजसमे प्रदर्े शन के सभी संयोजकों से यह पूछा गया िक क्या वर्े
पासपोटर्श धारक है? इसका जवर्ाब मैने िलख भेजा और अपने सािथसयों के नाम िलख भेजे ,िजनके पास अपने पासपोटर्श उपलब्ध थसे. माह माचर्श की इक्कीस तारीख को मुझे भोपाल मे आयोिजत िमिटंग मे
जाना थसा .िमिटंग मे मैने अन्य प्रस्तावर्ों के साथस इस प्रस्तावर् को भी रखा, जो बादर् मे इस आशनय के साथस स्वर्ीकृत हुआ िक वर्तर्शमान मे िहन्दर्ी भवर्न ट्रूस्ट प्रदर्े शन के पाँच संयोजकों को पच्चीस-पच्चीस हजार रुपया बतौर अनदर् ु ान दर्े गी. इतनी बडी रकम अनुदर्ान मे स्वर्ीकृत हो जाने के बादर् मैने मारीशनस
जाने का मानस बनाया और श्री गोपाल दर्ण्ढारे जी के खाते मे तीस हजार रुपया जमा करवर्ा िदर्ए, जो बतौर रिजस्ट्रे शनन के िदर्ए जाने थसे. शनेष रकम तीस जनवर्री 2014 तक जमा करना थसा. मै यहाँ स्पष्ट बतला दर्ँ ू िक यिदर् िहन्दर्ी भवर्न टृस्ट मझ ु े यह रािशन स्वर्ीकृत नहीं करता तो शनायदर् ही मै वर्हाँ जा
पाता. मै आभारी हूँ मान.श्री पंतजी का और िहन्दर्ी भवर्न टृस्ट का,िजनके िवर्शनेष सहयोग से मै यह यात्रा कर पाया. श्री दर्ण्ढारे जी ने अपने पिरपत्र मे स्पष्ट कर िदर्या थसा िक सभी व्यिक्तयों को मुंबई तक अपने स्वर्यं के खचर्श पर आना-जाना होगा. समय पयार्शप्त थसा, सो मैने दर्रु ं तॊ से अपनी जाने और आने की सीट
आरित क्षत करवर्ाली थसी. ज्ञात हो िक दर्रु ं तॊ नानस्टाप ट्रे न है , जो नागपुर से छत्रपित िशनवर्ाजी टिमर्शनल
तक प्रितिदर्न रािपात्र के आठ बजे रवर्ाना होती है और मुंबई से नागपुर के िलए रािपात्र आठ बजे खुलती है .
74 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
संस्थसा सिचवर् श्री नमर्शदर्ा प्रसादर् कोरीजी ने मेरी तैयारी को दर्े खते हु ए अपना मानस बनाया िक वर्े भी इस यात्रा मे शनािमल हो सकते है . इस समय तक आपके पास अपना कोई पासपोटर्श नहीं थसा. पुनः हम श्री बकुल पण्ड्याजी के पास थसे और आवर्श्यक दर्स्तावर्ेक्जों के साथस पासपोटर्श बनाने के िलए आन
लाइन आवर्ेदर्न प्रस्तत ु कर रहे थसे. पासपोटर्श कायार्शलय भोपाल मे श्री कोरीजी के माह मई की िकसी तारीख को उपिस्थसत होना थसा, जो हमारे अपने समय सािरण ी से मेल नहीं खाता थसा.. सो उन्होंने
एस.डी.एम से संपकर्श साधने की कोिशनशन की. यह समय लोकसभा के चुवर्ान का समय थसा और ऎसे समय मे िकसी शनासकीय अिधकारी से िमल पाना संभवर् भी नहीं थसा. संयोग से मैने इन्टरनेट के
जिरए िनयमों की जानकारी प्राप्त की िक िकसी मेजर अथसवर्ा कायार्शलय प्रम ुख के हस्ताक्षर से तत्काल पासपोटर्श बनवर्ाया जा सकता है . संयोग िक श्री कोरीजी के दर्ामादर् मेजर के पदर् पर कायर्शरत है, सो
उन्होंने तत्काल आवर्श्यक दर्स्तावर्ेज हस्ताक्षिरत कर भेज िदर्ए और बैक मैनेजर ने भी हस्ताक्षर कर
िदर्ए, आन लाइन आवर्ेदर्न भेज िदर्या गया. पासपोटर्श कायार्शलय ने कोरीजी को आवर्ेदर्न की ितिथस से दर्ो
िदर्न बादर् उपिस्थसत होने एवर्ं आवर्श्यक दर्स्तावर्ेज लाने का िनदर्े शन िदर्या. कोरीजी वर्हाँ उपिस्थसत हुए और वर्े घर भी नहीं पहुँच पाए थसे िक पासपोटर्श अिधकारी ने पासपोटर्श बनाकर रिजस्ट्री डाक से भेजने बाबदर् मैसेज उनके मोबाईल पर दर्े दर्ी. इस तरह श्री कोरीजी इस अिभयान मे मेरे सहयात्री बने.
इस रोमांचक यात्रा को संपन्न कराने का िजम्मा मिहन्द्रा ट्रे वर्ल, मुंबई ने िलया थसा. नागपुर मे इस
ट्रे वर्ल की एक शनाखा काम कर रही है . यात्रा सच ु ारुरुप से संपन्न हो, इस आशना और िवर्श्वर्ास के साथस
नागपरु के श्री स्वर्पिनल वर्ाल्केजी एवर्ं सश्र ु ी नीतिू संह भी इस यात्रा के सहभागी बने. मारीशनस के हवर्ाई जहाज की फ़्लाइट एम.के.747,प्रस्थसान ितिथस 23-05-2014 की सुबह 0645 तथसा वर्ापसी 29-05-2014 फ़्लाइट एम.के.748 रात के 2120 बजे की थसी, िटकटे भेज दर्ी गईं. ज्ञात हो िक मारीशनस समय और
भारतीय समय मे एक घंटा बत्तीस िमनट का फ़कर्श रहता है . यिदर् भारत मे िदर्न के आठ बजे है तो मारीशनस मे सुबह के 06.28 बज रहे होते है.
15: मारीशनस माने िमिन भारत की यात्रा.( िकस्त-२) दर्रु न्तो िहचकौले खाती हुई अपनी िनधार्शिरत गित से भागी जा रही थसी. नींदर् दर्े र रात तक आँखों से आँखिमचौनी खेलती रही और िफ़र चुपके से, न जाने कब, आकर समा गई, पता ही नहीं चल पाया.
मेरा और कोरीजी के कोच अलग-अलग थसे क्योंिक उन्होंने अपनी बथसर्श का आरक्षण िकसी अन्य ितिथस मे िकया थसा. बडी सुबह आकर उन्होंने ने मझ ु े जगाया और कहा िक हम मुंबई के करीब पहुँच चुके है. कुछ समय बादर् हम छत्रपित िशनवर्ाजी टिमर्शनल स्टे शनन पर जा पहुँचे. दर्रु न्तो ( नानस्टाप)नागपुर से रवर्ाना होकर सीधे मुंबई सीएसटी पहुँचती है .
यहाँ उतरने के बादर् श्री कोरी िटिकटघर पहुँचे. वर्हाँ से उन्होंने दर्ादर्र का िटिकट िलया और अब हम उस ओर बढने लगे .दर्ादर्र स्टे शनन पर पहुँचने के बादर् हमे बडी बेसब्री से श्री संतोष पिरहार का 75 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
इंतजार थसा,जो िकसी अन्य ट्रे न से बुरहानपुर से आ रहे थसे. कुछ इन्तजारी के बादर् उनसे भे ट हुई. हमने सबने चाय पी और दर्ादर्र मे एक कमरा बुक करवर्ाया. नहाने के बादर् कोरीजी और मै
“एिलफ़ैण्टा केवर्” दर्े खने के िलए िनकल पडॆ. पिरहारजी ने इसमे अपनी असहमित जताते हुए सूचना दर्ी िक वर्े हमारे साथस नहीं जा पाएंगे,क्योंिक पूरी रात वर्े ढं ग से सो नहीं पाए थसे. दर्ादर्र स्टे शनन से हम पुनः सी.एस.टी. पर थसे. कभी यह इमारत िवर्क्टोिरया टिमर्शनल के नाम से जानी जाती थसी. बादर् मे सन 1996 मे इसका नाम बदर्लकर सीएसटी याने छत्रपित िशनवर्ाजी टिमर्शनल कर िदर्या गया. सन 1887 मे िपाब्रिटशन वर्ास्तक ु ार फ़्रेडिरक िवर्िलयम स्टे वर्न्स मे इस भव्य इमारत का िनमार्शण करवर्ाया थसा.
वर्हाँ से बाहर िनकलते ही हमे राज्य पिरवर्हन की बस िमल
गयी जो गेट-वर्े-आफ़-इिण्डया जा रही थसी. गेट-वर्े-आफ़-इिण्डया यहाँ से करीब 2.5 िकमी की दर्रू ी पर है .
अरब सागर के तट पर इस भव्य इमारत का िनमार्शण जाजर्श पंचम तथसा िक्वर्न मेरी के प्रथसम आगमन
माचर्श 1911 की यादर् मे बनाया गया थसा. इसकी िनमार्शण सन 1914 मे शनुरु हुआ और यह सन 1919 मे बनकर तैयार हो गयी. यहाँ से करीब दर्स िकमी की दर्रू ी पर “एिलफ़ैण्टा केवर्” िस्थसत है , बोट की सहायता से जाया जा सकता है .
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पांचवर्ी से आठवर्ीं शनताब्दर्ी के मध्य पहाड को छे नी-हतौडी
अथसवर्ा अन्य उपकरण ॊं की सहायता से इसे अनाम व्यिक्तयों ने बनाया, इसे दर्े खकर सहज ही अंदर्ाजा हो जाता है िक इसका िनमार्शण कतार्श िनिश्चत ही भ-ू गमर्श वर्ैज्ञािनक रहा होगा, िजसने पहाड के मध्य
एक ठोस चट्टान को ढूँढ िनकाला और अपनी कला को प्रदर्िशनर्शत कर सका. यहाँ िहन्दर् ू धमर्श से संबंिद्धत
अनेक िशनवर् मूितर्शयों को िवर्िभन्न मुद्राओं मे दर्े खा जा सकता है . इन्हे धारापुरी ची लेण ी के नाम से भी
जाना जाता है ..यह कभी कोकण ीं मौयर्श की द्वर्ीप राजधानी हुआ करती थसी. बादर् मे आक्रमण कािरयों ने इन शनानदर्ार मुितर्शयों को बडी बेरहमी से तॊड-फ़ोड डाला. अपने समय मे ये मुितर्शयाँ िकतनी सन् ु दर्र और वर्ैभवर्शनाली रही होंगी,इसका अंदर्ाजा सहज ही लगाया जा सकता है .
शनाम ढलने से पहले हम लौट आए थसे. रािपात्र का खाना खाकर हम टै क्सी द्वर्ारा छत्रपित िशनवर्ाजी अंतरराष्ट्रीय हवर्ाई अड्डा जा रहे थसे.
िवर्श्वर् का अडतािलसवर्ाँ एवर्ं ,ग्यारह हजार साठ हे क्टे यर मे फ़ैले इस िवर्शनाल इंटरनेशननल एअरपोटर्श का पुराना नाम इंटरनेशननल एअरपोटर्श थसा, िजसे बदर्लकर छत्रपित िशनवर्ाजी अंतरराष्ट्रीय हवर्ाई अड्डा कर िदर्या गया. अपनी भव्यता और सुन्दर्रता के िलए यह एअरपोटर्श िवर्श्वर् का तीसरा एअरपोटर्श है . इसकी आधारिशनला सन 2006 मे रखी गई थसी, 2013 मे बनकर तैयार हुआ .िकसी नाचते हुए मोर की आकृित मे बना यह हवर्ाई-अड्डा सहज ही मे आपका ध्यान आकिषर्शत कर लेता है .
मध्य रािपात्र तक अलग-अलग प्रदर्े शनों से आने वर्ाले लोग यहाँ पहुँच चुके थसे. िवर्मान मे सवर्ार होने के
पहले काफ़ी कुछ िकया जाना होता है . मसलन आपके सामान का वर्जन, यािपात्रयों के सीट का िनधार्शरण 77 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
आिदर् िनपटाते-िनपटाते काफ़ी समय लग जाता है . अब सारे यात्री अंदर्र लाउं ज मे बैठकर उस घडी के अन्तजार मे रहते है,जब उन्हे िवर्मान मे सवर्ार होना होता है . सुबह के पांच बजने वर्ाले होते है. रािपात्र
का गहन अन्धकार अब िपघलने लगता है और बाहर का िदर्लचस्प नजारा िदर्खाई दर्े ने लगता है . इस ओर से उस छोर तक कई िवर्मान पंिक्तबद्ध खडॆ िदर्खाई दर्े ने लगते है . वर्ह समय भी शनीघ्र आ पहुँचा जब हम िवर्मान मे सवर्ार होने जा रहे थसे. मारीशनस के िवर्मान क्रमांक MK-748 मे मझ ु े 15-G वर्ाली
सीट िमली.ठीक मेरी बगल मे श्री कोरीजी की सीट थसी, जहाँ लगी िखडकी से बाहर का नजारा दर्े खा जा सकता थसा. कोरीजी
िक यह पहली िवर्मान यात्रा थसी. अतः वर्े काफ़ी प्रफ़ुिल्लत नजर आ रहे थसे. तभी पायलट की आवर्ाज गंज ू ती है और सभी से कहा जाता है िक वर्े अपनी-अपनी सीट-बेल्ट बांध ले. वर्ह समय भी आ
पहुँचा,जब िवर्मान चलते हुए अपने रन-वर्े की ओर बढ रहा थसा. अपने स्थसान पर पहुँचने के बादर् उसके सारे इंिजन अपनी पूरी रफ़्तार के साथस चलायमान होते है..थसॊडी दर्े र तक रनवर्े पर दर्ौडते रहने के बादर् िवर्मान आकाशन मे उड रहा थसा. शनुरु-शनुरु मे नीचे के दृष्य िदर्खलाई पडते है,बादर् मे केवर्ल और केवर्ल
नीला आकाशन नजर आता है . िखडकी से िवर्मान का डैना (पंख) भर िदर्खाई दर्े ता है . हवर्ाईजहाज करीब पच्चीस हजार फ़ीट की उँ चाई पर उड रहा थसा. नीचे तैरते काले-कलसीले बादर्लॊं की परत िदर्खलाई
दर्े ती और िदर्खलाई दर्े ती दर्रू -दर्रू तक फ़ैली दर्ो नीली पिट्टयाँ के बीच बनती एक गहरी नीली पट्टी जो समुद्र और आकाशन के बीच के िमलन के प्रगाढ संबंध को दर्शनार्शती है .
इस बीच एअर होस्टे ज सभी यािपात्रयों को बारी-बारी से भोजन, पानी की बोतल आिदर् सवर्र्श करती है.
जैसे-जैसे रािपात्र का पहर आगे बढता है , कुछ हल्की सी ठं ड भी लगने लगती है . सभी यािपात्रयों की सीट पर हल्का कंबल होता है , िजसका वर्ह इस्तेमाल कर सकता है . हवर्ा के झोंको पर तैरता िवर्मान छः घंटॆ की लम्बी उडान के बादर् मरीशनस एअर-पोटर्श पर उतरता है . मारीशनस समय के अनुसार िदर्न के ग्यारह बज रहे होते है. िवर्मान से बाहर आने पर यािपात्रयों को एअरपोटर्श की सारी औपचिरकता प रू ी
करनी होती है ,जो काफ़ी लंबे समय तक चलती रहती है . यात्री अब एअरपोटर्श के लंबे रास्ते को पार
78 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
करता हुआ बाहर आता है . अब उसे अपने सामान की िचंता सताती है . चक्र के आकार मे घुमते बेल्ट पर यात्री का सामान जा पहुँचता है . बाहर एक यात्री बस हमारे इन्तजार मे खडी थसी. बस मे सवर्ार होकर अब हम अपने िनधार्शिरत होटल
कालोडाईन सूर मेर की ओर रवर्ाना होते है, जो यहाँ से 73.1 िकमी की दर्रू ी पर है . िदर्न के करीब तीन बज रहे थसे और सभी को जमकर भूख लग आयी थसी.
रास्ते मे पडने वर्ाले “डेल्ही ताज” होटल मे हमने स्वर्ािदर्ष्ट भोजन का आनन्दर् िलया. मोका और
मारीशनस की राजधानी पोटर्श -लुई से गुजरती हुई हमारी बस कालोडाईन सूर मेर होटल के प्रांगण मे आकर रुक जाती है . इस यात्रा मे करीब दर्े ढ घंटे का समय लग जाता है . सभी यािपात्रयों के अपने-अपने कमरे िनधार्शिरत कर िदर्ए गए थसे.
होटल डेल्ही ताज के सामने श्री संतोष पािरहार,शनरदर् जैन और यादर्वर् (२)कोलाडाईन सूर मेर होटल शनरीर मे आलस और थसकान के लक्षण स्पष्ट दर्े खे जा सकते थसे. प्रायोजक ने पहले से ही तय कर
रखा थसा िक इस िदर्न केवर्ल आराम िकया जाना है ..अतः(23-05-2014) को सभी ने िवर्श्राम िकया.
मारीशनस मे गन्ने की खेती बडॆ पैमाने पर होती है . चारों तरफ़ छाई हिरयाली दर्े खकर मन प्रसन्नता से झूम उठता है . आय का मुख्य स्त्रोत यही है .
16: मारीश स माने िमिन भारत की याता - (िकस्त-३) 79 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
( होटल कालोडाईन सूर मेर (calodyne Sure Mer) मे प्रवर्ेशन करते ही तबीयत खुशन हो जाती है . चारों तरफ़ ऊँचे-ऊँचे पॆड, सघन हिरयाली,,और इन सब के बीच चौरासी सूट्स, हर सूट के सामने
बागीचा,और इन सबके मध्य मे एक तरण ताल. पास ही लहराता-बलखाता समद्र ु , िनरन्तर बहती
शनीतल हवर्ा के झोंके आपके शनरीर िलपट-िलपट जाते है. सारे कमरे एसीयुक्त. प्रत्येक सूट मे तीन शनयन-कक्ष, एक हाल, हाल से लगा िकचन. पाँच लोगों का पिरवर्ार एक सूट मे रुक सकता है .
रात को को सभी ने लजीज खाने का आनन्दर् उठाया और अपने -अपने कमरों मे समा गए. सोने से
पहले सभी को सूिचत कर िदर्या गया थसा िक सुबह सभी आठ बजे के पहले तैयार होकर चाय-नाश्ता करने के बादर् “आक्स सफ़्सर्श”(Aux Cerfs) माने एक टापू पर जाने वर्ाले है.
हम इस टापू पर जाने से पहले मारीशनस के बारे मे संित क्षप्त जानकािरयाँ लेते चले तो अच्छा होगा .
( ऊपर से दर्े खने पर ऎसा िदर्खाई दर्े ता है ) ( मारीशनस का नक्शना) गण राज्य अफ़्रीकी महाद्वर्ीप के तट के दर्ित क्षण -पूवर्र्श मे लगभग 900 िकलोमीटर की दर्रू ी पर िहंदर्महासागर मे और मेडागास्कर के पवर् ू र्श मे िस्थसत एक द्वर्ीपीय दर्े शन है . मारीशनस द्वर्ीप के अितिरक्त इस गण राज्य मे सेट ब्रैडन,राडीगाज और अगालेगा द्वर्ीप भी शनािमल है . दर्ित क्षण -पिश्चम मे 200 िकमी पर िस्थसत फ़ांसीसी रीयिू नयन द्वर्ीप और 570 िकमी उत्तर-पवर् ू र्श मे िस्थसत राडीगज
80 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
द्वर्ीप के साथस मारीशनस मस्कारे ने द्वर्ीप समह ू का िहस्सा है . मारीशनस की िमिश्रत संस्कृित है .,िजसका कारण पहले इसका फ़्रांस के अिधन होना तथसा बादर् मे िपाब्रिटशन स्वर्ािमत्वर् मे आना है . पत र्श ाली नािवर्क पहले पहल यहाँ 1507 मे आए. बसे और छोड कर ु ग चले गए. 1598 मे हाले ड के तीन पोत जो मसाला द्विीप की यात्रा पर िनकले थसे, एक चक्रवर्ात मे फ़ंसकर यहाँ पहुँच.े उन्होंने इस द्वर्ीप का नाम नासाओं के यवर् ु रात “मािरस” के नाम पर इस द्वर्ीप का नाम “मारीशनस “रखा सन 1668 मे डच लोगो ने स्थसायी बिस्तयाँ बसाई.और िफ़र कुछ समय के अन्तराल मे इस द्वर्ीप को छॊड िदर्या. फ़ांस िजसका पहले से ही इसके पडौस “आइल बोरबोन” द्वर्ीप पर िनयंत्रण थसा, ने 1715 मे िफ़र से मारीशनस पर कब्जा कर िलया. इस तरह यह द्वर्ीप एक समद्ध ृ अथसर्शव्यवर्स्थसा के रुप मे िवर्किसत हुआ जो चीनी उत्पादर् पर आधािरत थसी. मािरशनस ने 1968 मे स्वर्तंत्रता प्राप्त की और सन 1992 मे एक गण तंत्र बना .मारीशनस एक संसदर्ीय लोकतंत्र है ,िजसकी संरचना िपाब्रटे न की संसदर्ीय प्रण ाली पर आधािरत है . यहाँ िस्थसर लोकतंत्र है . चन ु ावर् पांच साल मे िनयिमत और स्वर्तंत्र होते है यह नौ िजलों मे िवर्भािजत है . सन 1834 मे भारत से 70 यािपात्रयों का जत्थसा यहाँ िगिमर्शिटया मजदर्रू के रुप मे पहुँचा. 1834-1930 तक यहाँ चार लाख पचास हजार भारतीय मूल के लोग पहुँच,े िजसमे 52 प्रितशनत िहन्दर् ू,15 प्रितशनत मस ु लमान तथसा 25 प्रितशनत ईसाई तथसा अन्य जाित के लोग आए. सन 1886 तक इन भारतीय़ॊं का लोकतांिपात्रक चन ु ावर् मे भाग लेना वर्िजर्शत थसा. बादर् मे सन 1901 मे महात्मा गांधीजी का यहाँ आगमन होता है . वर्े नौशनेरा जहाज पर सपिरवर्ार यहाँ कुछ िदर्न रुके थसे. उसके बादर् से भारतीयों का राजनीित मे प्रवर्ेशन हुआ और इस तरह 1948 मे 25 मे से 19 भारतीय िनवर्ार्शिचत हुए. यहाँ िक अिधकािरक भाषा अंग्रेजी है . िमिडया की भाषा फ़ांसीसी है .लेिकन स्थसानीय़ बोली “क्रेयोल”(CREOLE) मे जनसाधारण लोग बात करते है. चंिू क यहाँ के लोग मल ू रुप से भारतीय है,अतः वर्े आपस मे िहन्दर्ी ही बोलते है . सारे लोगो के नाम भी भारतीय पद्दिित से रखे जाते है. यहाँ पर प्रिसद्ध “गंगा तालाब” और अनेक मंिदर्र, मिस्जदर्,पगोडा आिदर् दर्े खे जा सकते है. प्रख्यात लेखक श्री िगिरराज जी ने िगरिमिटया मजदर्रू ों पर एक उपन्यास िलखा िजसका नाम “पहला िगरिमिटया” है ,िजसमे भारतीय मल ू के लोगों पर िलखा गया प्रिसद्ध उपन्यास है . इस उपन्यास के
कुछ अंशन पढने के बादर् मन मे एक िजज्ञासा जागती है और मै इस मौके के तलाशन मे बना
रहा िक दर्े र-सबेर ही सही, मै इस द्वर्ीप की यात्रा जरुर करुँ गा. “
“आक्स सफ़्सर्श”(Aux Cerfs)
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यह िवर्श्वर् का सबसे सुदर्रतम द्वर्ीप है िजसे “धरती पर स्वर्गर्श” के नाम से जाना जाता है . मारीशनस के पवर् ू ी तट पर यह द्वर्ीप “flacq िजले मे िस्थसत करीब 100 हे क्टयर मे फ़ैला हुआ है . “पन्ने” के सदृष्य िदर्खाई दर्े ने वर्ाले इस द्वर्ीप के िछछले रे तीले िकनारे , स्वर्च्छ-िनमर्शल जल, िजसमे गहराई तक दर्े खा जा सकता है , िकनारों पर मग ूं े के सदृष्य चमकीले पत्थसर, कहीं कहीं एकदर्म काले पत्थसरों के बीच लहलहाते सागर का रुप दर्े खते ही बन पडता है . इसके तट पर अनेक रे स्टारे ट दर्े खे जा सकते है. यहाँ 18 गोल्फ़ कोसर्श के मैदर्ान है . अनेक दर्े शनों के लोग यहाँ सैर करने के िलए आते है. यहाँ पानी मे खेले जाने वर्ाले अनेकों गेम खेले जाते है. यह द्वर्ीप समद्र ु -तट से यह करीब 4-5 िकमी की दर्रू ी पर है . यहाँ पहुँचने के िलए आपको बॊट का सहारा लेना पडता है . रास्ते मे िछटॆ -छोटे िनजर्शन द्वर्ीप, घने जंग्लो से आच्छािदर्त िदर्खलाई दर्े ते है. आश्चयर्श तो उस समय होता है जब हम लंबे सैर-सपाटे के बादर् समद्र ु तट पर पहुँचे तो िछन्दर्वर्ाडा के ख्याितलब्ध वर्कील श्री िसरपुरकरजी से हमारी भेट हो जाती
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है . वर्े भी अपने पािरवर्िरक-िमत्रों के साथस यहाँ आए हुए थसे. और एक िवर्शनाल वर्क्ष ृ की सघन छाँह तले, एक िवर्शनाल िशनलाखण्ड पर बैठे बितया रहे थसे. एक अजनबी टापू पर जब अपने िकसी स्थसानीय व्यिक्त को दर्े खते है तो प्रसन्नता का पारावर्ार बढ जाता है . ( िचत्र क्रमांक 4 मे वर्े हमारे बीच उपिस्थसत है)
यहाँ पर घूमते-िवर्चरते शनाम के चार कब बज गए,पता ही नहीं चला.इस अदत ु द्वर्ीप आकर बहुत अच्छा लगा. हमारे साथस हमारी गाइड सश्र ु ी श्वर्ेताजी भी थसीं,जो इस द्वर्ीप के बारे मे िवर्स्तार से
बताती चलती थसीं. अब हमे इन्तजार थसा िकसी बोट का, िजस पर सवर्ार होकर पन ु ः हमे अपने गंतव्य की ओर जाना थसा. यहाँ आकर जाना िक द्वर्ीप कैसे होते है. कक्षा 9 वर्ीं अथसवर्ा 10 वर्ीं मे हमारे कोसर्श मे “ट्रे जसर्श आईलैण्ड”कोसर्श मे थसा,िजसके रोमांचक कारनामे पढने को िमले थसे. यहाँ कोई खजाना तो
नहीं थसा,लेिकन एक द्वर्ीप की कल्पना,जो उस समय मन-मिस्तस्क पर अंिकत हुई थसी, यहाँ आकर दर्े खने को िमला.
17..मारीशनस माने िमिन भारत की यात्रा- (िकस्त-४) िदर्न तीसरा-रिवर्वर्ार-25 मई-201 सुबह के आठ बज चक ु े है. हाटे ल कालोडाईन सूर मेर के प्रांगण मे तीन बसे लगाई जा चुकी है. गाईड सश्र ु ी श्वर्ेताजी सभी को बस मे बैठ जाने का आग्रह करती है. बारी-बारी से लोग आते जाते है और
अपनी-अपनी सीट पर बैठ जाते है. एक बस मे श्वर्ेताजी, दर्स ू री मे सुश्री नीतिू संह, और तीसरी मे श्री
स्वर्पिनल बतौर गाईड के सवर्ार हो जाते है. दर्रू -दर्रू तक फ़ैले गन्ने के खेतों के बीच मे से बसे, अपने गन्तव्य माने मारीशनस की राजधानी लोटर्श -लुइस की तरह बढने लगती है . बेहतरीन सडके,भव्य आलीशनान इमारतों,के बीच से गुजरती हुई हमारी बस िनरन्तर आगे बढती है .
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(राजधानी पोटर्श लुइस का िवर्हं गम दृष्य)
· उत्तर-पूवर्र्श मे िस्थसत “पोटर्श लुइस” मारीशनस की राजधानी है . यह आिथसर्शक, सांस्कृितक तथसा राजनीित
का प्रमुख केन्द्र है . यहाँ का प्रशनासन मुिनिसपल काउं िसल के द्वर्ारा संचािलत होता है . उस समय के तत्कालीन गवर्नर्शर बट्रें ड फ़्रैकोइस माहे िदर् ला बोडोनाइस( Bertrand Francois Mahe de la
Bourdonnais) ने तत्कालीन शनासक लुइस XV की स्मिृ त मे सन 1735 मे इस शनहर की आधारिशनला रखी थसी .एक आंकडॆ के मुतािपाबक यहाँ की जनसंख्या 148001 है . Place d’ Arms मुख्य सडक के दर्ोनो ओर पाम वर्क्ष ृ दर्े खे जा सकते है . यह सडक काफ़ी सकरी है .अतः यहाँ काफ़ी भीड दर्े खी जा सकती है . यहाँ के मुख्य बंदर्रगाह के िकनारे तमाम सरकारी कायार्शलय, · Ministry of Tertiary Education, Science, Research and Technology · Ministry of Education, Culture and Human Resources · Human Resource, Knowledge and Arts Development Fund · Human Resource Development Council · Mauritius Qualifications Authority,
दर्त ू ावर्ास तथसा फ़्रेच कालोिनयाँ है .. चुंिक सारे सरकारी दर्फ़्तर यहाँ पर है , अतः िदर्न मे आने के िलए सेट्रल माकेट या कैम्प िदर् मासर्श(champ de Mars)के पास िस्थसत रे सकोसर्श से आना होता है . रािपात्र मे यह सवर्र्शसाधारण के खल ु ा रहता है . सिचवर्ालय हो अन्य सरकारी इमारत हो, उसके प्रांगण मे आप
आराम से घूम-िफ़र सकते है. न कोई रोकटोक करने वर्ाला होता है और न ही कोई मशनीनगन वर्ाला
यहाँ िदर्खाई दर्े ता है .सब लोग शनांित के साथस यहाँ से आना-जाना करते है. सडके हों या िफ़र समूचा
शनहर कचरा-कूडे के ढे र आपको िदर्खाई तक नहीं दर्े ते. समूचे शनहर मे वर्ाहनों की गित धीमी रहती है . एक खास बात यह िक इस राजधानी की सडकों मे चाहे भीड रहे अथसवर्ा नहीं रहे हानर्श बजाने पर
सक्त मनाही है . सब लोग शनांित के साथस िपाबना िकसी प्रकार की हुज्जत िकए आराम से अपने वर्ाहन चलाते हुए आगे बढ जाते है. दर्स ू री आश्चयर्श की बात यह िक यहाँ न तो चौराहे पर कोई प िु लस कमी
िदर्खाई दर्े ता है और न ही सडक के िकनारे . मारीशनस की आिधकािरक भाषा अंग्रेजी है , इसिलए सरकार का सारा प्रशनासिनक कामकाज अंग्रेजी मे होता है . िशनक्षा प्रण ाली मे अंग्रेजी के साथस फ़्रांसीसी का भी
इस्तेमाल िकया जाता है . फ़्रांसीसी भाषा हांलािक मीिडया की मुख भाषा है चाहे प्रसारण हो या मुद्रण इसके अलावर्ा व्यापार और उद्धोग जगत के माममॊं मे भी मुख्यतः फ़्रांसीसी ही प्रयोग मे आती है .
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सबसे व्यापक रुप मे दर्े शन मे मारीिशनयन “क्रेयोल” भाषा बोली जाती है . िहन्दर्ी भी एक बडॆ वर्गर्श द्वर्ारा
बोली वर् समझी जाती है . मारीशनस मे िवर्िभन्न धमों के लोग रहते है, िजनमे िहन्दर्ॊ धमर्श 52%, ईसाई धमर्श 27% और इस्लाम 14.4. एक बडी संख्या नािस्तक लोगो की भी है .
Caudan waterfront= िवर्शनाल समद्र ु के तट पर िस्थसत यह भीड-भाड वर्ाला इलाका है . यहाँ तरह-तरह की दर्क ू ाने, कैिसनो, िसनेमाघर,रे स्टारे ट, कैशन-एक्सचैज करने के िलए अनेक दर्क ु ाने दर्े खी जा सकती है.
मुख्य सडक पर एक दर्क ु ान “abbey royal finance ltd के डायरे क्टर श्री एस.नागवर्ाह से मेरी मुलाकात होती है . िक्लन-शनेवर्, मुस्कुराती आँखे दर्े खकर मुझे लगा िक इनकी दर्क ु ान से मारीशनस के छोटे नोट
तथसा कुछ िचल्लर िमल सकती है . यह मात्र एक अंदर्ाज थसा. मैने उनसे नमस्कार करते हुए पूछा िक क्या वर्े िहन्दर्ी जानते है? उन्होंने तपाक से हाथस िमलाया और अपना पिरचय दर्े ते हुए कहा िक उनके
पवर् र्श िहन्दर्स् ू ज ु थसानी ही थसे, उनकी आत्मीयता दर्े खकर मझ ु े बडी प्रसन्न्ता हुई. मेरे िलए यह पहला अवर्सर थसा िक मै वर्हाँ के िकसी स्थसानीय व्यिक्तसे बात बात कर रहा थसा. उन्होंने न िसफ़र्श हमे अन्दर्र बुलाया, बिल्क ऊपर बने छज्जे पर भी ले गए. दर्क ु ान छॊटी श्रीनागवर्ाहजी के साथस होने की वर्जह से ऊपर भी जगह कम थसी,लेिकन उस जगह मे अलमािरयाँ भी रखी थसीं,िजनमे िहन्दर्ी की कई िकताबे
भरी पडी थसी. एक छोटे से टे बल पर कंप्युटर भी रखा हुआ थसा. बैठ चुकने के बादर् उन्होंने पानी िपलाया और चचार्श का दर्ौर चल पडा. कंप्यट ु र खोलकर मैने rachanakar.org “रचनाकार” मे प्रकािशनत मेरी कहािनयाँ, आलेख और किवर्ताएँ िदर्खलाया. यह सब दर्े खकर उन्हे अत्यंत प्रसन्न्ता हुई.
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पोटर्श लुईस के कुछ िचत्र( १ से ९ ) संकरे रास्ते मे िस्थसत एक होटल मे ( अब नाम यादर् नहीं) हमने खाना खाया,( िचत्र-१) िजसके प्रवर्ेशनद्वर्ार पर छतिरयाँ तनी हुई थसी. सडक के बाएं तरफ़ संगीतकारों की एक टोली अपने मे मगन, वर्ाद्धयंत्रों पर सरगम छे ड रही थसे.(िचत्र-२) अपने चेहरे पर रं गिपाबरं गी आकृित और कपडॊं पर भी आकृित
काढे यह अनाम व्यिक ने मेरे लाख प्रयास करने के बावर्जूदर् अपनी तस्वर्ीर नहीं उतारने दर्ी. जब भी
मै उसकी ओर अपना कैमरा करता, वर्ह मुस्कुराते हुए अपना चेहरा दर्स ू री ओर मोड लेता थसा. जब वर्ह पास से गज ु र रहा थसा, तब भी उसने वर्ही हरकते की. जब वर्ह थसोडा आगे बढा तो मैने उसकी यह तस्वर्ीर अपने कैमरे मे कैदर् कर िलया (मारीशनस के यशनस्वर्ी लेखक श्री रामदर्े वर् धरु ं धरजी ने बतलाया िक इनको “कृओल”कहते है इन लोगो को अफ़्रीका से मजदर्रू ी करवर्ाने के िलए यहाँ की तत्कालीन
सरकार ने लाया थसा,लेिकन ये कामचोर िनकले.(िचत्र-३) पास ही मे मारीशनस के यशनस्वर्ी प्रधानमंत्री
स्वर्.श्री िशनवर्सागर रामगुलाम की आदर्मकदर् प्रितमा स्थसािपत की गई है .(िचत्र-४) बंदर्रगाह पर अनेक
छोटे -छोटे जहाज लंगर डाले हुए थसे. हमने इन्हे अपने कैमरे मे कैदर् िकया ( िचत्र-५) . पास ही मे बंदर्रगाह पर िस्थसत वर्ह जगह है , िजसे “अप्रवर्ासी घाट” के नाम से जाना जाता है ,जहाँ कभी भारतीयों को ठे के पर अथसवर्ा बंदर्ी बनाकर खेती करवर्ाने के िलए लाया जाता थसा. ये िगरिमिटया मजदर्रू
कहलाए. जहाज से उतारकर उन्हे (िचत्र-६) इस रास्ते से अन्दर्र लाया जाता थसा. (िचत्र -७) यहाँ पर
अंग्रेज रहा करते थसे,तथसा उनके घोडॆ को रखने के िलए एक अस्तबल भी बना हुआ है . प्रत्येक मजदर्रू ों को एक नम्बर अलाट िकया जाता,थसा और उस नम्बर को दर्ीवर्ार पर िलख िदर्या जाता थसा( िचत्र-८). बादर् की कायर्शवर्ाही मे उस नम्बर के आधार पर उसकी फ़ाइल बनाई जाती थसी,िजसमे उसका नाम,
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स्थसान का नाम, पिरवर्ार के लोगों के नाम आिदर् दर्जर्श िकए जाते थसे.( इन तमाम दर्स्तावर्ेजॊं को
मारीशनस के संग्रहालय मे सुरित क्षत रखा गया है .).यह वर्ह स्थसान है जहाँ मजदर्रू ों को रखा जाता थसा(िचत्र-९)
इस स्थसान को दर्े ख लेने के पश्चात अब हम म्युिजयम की ओर प्रस्थसान करते है. हमारे साथस होती है डा.श्रीमती अलका धनपतजी, जो महात्मा गांधी संस्थसान मे िहन्दर्ी की वर्िरष्ठ प्राध्यािपका है. वर्े उस संस्थसान का कोना-कोना िदर्खलाती है. इस म्युिजयम मे उन तमाम चीजों को बडॆ जतन के साथस
सरु ित क्षत रखा गया है,िजन्हे मजदर्रू अपने साथस यहाँ लाए थसे. कांच के बने अलग-अलग प्रकोष्ठों मे खाना पकाने के बतर्शन, कपडॆ-लत्ते, कुछ मुखौटे , श्रम करते मजदर्रू की झांकी, गैती-फ़ावर्डा, गीता-
रामायण , सुखसागर कुछ वर्ाद्ध-यंत्र,आिदर् करीने से सजाकर रखे है. कुछ प्रकोष्ठॊं मे उनके रहन-सहन
को दर्शनार्शया गया है , और कुछ मे उनके किठन पिरश्रम की झांकी प्रस्तत ु की गई है . इन्हे ग्राउण्ड-फ़्लोर पर कडी मेहनत के साथस व्यवर्िस्थसत रखा गया है . इन साब चीझॊं को दर्े खकर लगता है क
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. िक िकतनी कडी मेहनत करते हुए उन्होंने अपने िदर्न बेबसी और लाचारी मे गुजारे थसे. अफ़्रीका मूल के भी मजदर्रू यहाँ लाए गए थसे,लेिकन वर्े उतनी कडी मेहनत नहीं कर पाए. भारतीय मजदर्रू जो यहाँ आकर “िगरिमिटया” कहलाए, उन्होंने मारीशनस को स्वर्गर्श की तरह बना िदर्या है .
सीिढयाँ चढते हुए हम अब ऊपर के कक्ष की ओर बढते है.जहाँ प्राचीन ग्रंथस,लेख आिदर् को बडॆ मनोयोग से संभालकर रखा गया है . ऊँचे कदर्-काठी के श्री दर्े वर् काहुलेसुरजी ( Dev Cahoolessur ) जो इस कक्ष के प्रमुख है, मुस्कुराते हुए हम सब का स्वर्ागत करते है . वर्े एक-एक चीज पर गहराई से प्रकाशन डालते हुए हमे इितहास के उस काल-खण्ड की ओर ले जाते है, जब भारतीय मजदर्रू एक सौ अस्सी साल पहले गुलाम अथसवर्ा बंधआ मजदर्रू के रुप मे यहाँ लाए गए थसे, अपने साथस गीता, ु
रामायण ,सख ु सागर भी लाए थसे और कठोर श्रम करने के बादर्, मन को तसल्ली दर्े ने के िलए इनका
पाठ करते और वर्ाद्दियंत्रों को प्रयोग मे लाते थसे. उन तमाम ग्रंथसॊं को एक बडॆ कांच के पेटीनम ु ा कक्ष
(िचत्र-६) मे सम्भाल कर रखा गया है . दर्स ू रे कक्ष मे मजदर्रू ों के माईग्रेशनन सिटर्श िफ़केट, रिजस्टर आिदर् रखे गए है और कांच के एक कमरानुमा कक्ष मे उस समय का सारा लेखा-जोखा (िचत्र-४) सुरित क्षत रखा गया है , िजसमे हर व्यिक्त की बािरक से बािरक जानकािरयाँ उपलब्ध है.
हाटॆ ल कालोडाइन सूर मेर के मािलक हों, मैनेजर हों, या िफ़र वर्हाँ काम कर रहे अन्य शनाखा-प्रशनाखा के कमर्शचारी हों, जब आप उनसे मुखाितब होते है तो उनके चेहरे पर एक प्रसन्नता का स्थसायी भावर् स्पष्ट िद्दिखाई दर्े ता है . आप जो भी उनसे पछ ू ना-अथसवर्ा जानना चाहे , वर्े बडी ही िवर्नम्रता के साथस
आपके साथस वर्ातार्शलाप करते है और आपकी समस्याओं को तत्काल दर्रू करने का उपक्रम करते है. और जब आप उनके अतीत के बारे मे जानना चाहते है तो बडी ही आत्मीयता के साथस बतलाते है िक
उनके पवर् र्श भारतीय थसे, जो िपाबहार मे रहा करते थसे. इस समय उनके गवर्ोिक्त के साथस ही उनके मन ू ज मे िवर्स्थसापन की जो पीडा रही है , स्पष्ट ही पिरलित क्षत होती है .इसी प्रकार जब आप सुसिज्जत मेस
मे पहुँचते है, वर्हाँ का भी कमर्शचारी आपसे मुस्कुराते हुए आपका स्वर्ागत कराता है और खाना खाने के पश्चात आपसे यह पछ ू ना नहीं भूलता िक आपको आज का खाना पसंदर् आया अथसवर्ा कोई कमी रह गयी. हर व्यिक्त िक िवर्नम्रता-शनालीनता और व्यवर्हार कुशनलता िजसमे कहीं भी बनावर्टीपन िदर्खाई नहीं दर्े ता, दर्े खकर, आप यह महसूस ही नहीं कर पाते िक आप अपने दर्े शन से बाहर रह रहे है.
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18- मारीशनस माने िमिन भारत की यात्रा (िकस्त-5) िदर्नांक 26 मई 2014 सुबह के वर्ही आठ बज रहे है. होटे ल कालोडाइन सूर मेर के प्रांगण मे तीन बसे लगाई जा चुकी है. आज हमे टामािरन्ड वर्ाटर-फ़ाल ( tamarind waterfall ), ट्राउ आक्स सफ़्सर्श( Trou aux cerfs)
ज्वर्ालामुखी, चामरे ल कलडर्श अथसर्श( chamarel coloured earch) तथसा गंगा तालाब दर्े खने के िलए जाना है . हमारी बस गन्ने के खेतों के बीच से गुजरती हुई,उस ओर बढ चली थसी.
टामिरन्ड विाटरफ़ाल (Tamarind waterfalls) चारॊं ओर ऊँचे-ऊँचे पहाडॊं की श्रूखला, सघन वर्न और चारों तरफ़ हिरयाली की िपाबछी चादर्र, शनांत वर्ातावर्रण मे बहुरं गे पित क्षयों के कलरवर् को सुनकर आप प्रसन्न्ता से भर उठते है . शनीतल हवर्ा के झोंके आपके बदर्न से िलपट-िलपट जाते है. इस सुरमयी
वर्ातावर्रण मे पहुँचकर ऎसा लगता है िक आप िकसी पिरलोक मे आ पहुँचे है. मारीशनस के दर्ित क्षण पिश्चम मे िस्थसत “हे निरटॊ” गाँवर् ( Henrietto) के पास िस्थसत यह जलप्रपात काफ़ी ऊँचाइयों से नीचे
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िगरता है .काफ़ी बडी संख्या मे पयर्शटक यहाँ पहुँचते है. जी भर इस प्रपात को िनहारने के बादर् हमारी बस ट्राउ आक्स सफ़्सर्श (Trou Aux Cerfs) की ओर बढती है .
Trou aux cerfs (ट्राउ आक्स सफ़्सर्श ज्वर्ालामुखी) यहाँ पहुँचने के बादर् आप अपने आपको खुली वर्ािदर्यों मे पाते है. चारॊं तरफ़ ऊँचे-ऊँचे पहाड, सघन वर्क्ष ृ ों से आच्छािदर्त, नीले आकाशन की आगोशन मे समाई अपिरिमत खामोशनी, शनीतल हवर्ा के झोंके जो
आपके शनरीर से िलपट-िलपट जाते है. मन प्रसन्नता से भर उठता है . करीब दर्ो हजार फ़ीट गहराई मे झांकने मे एक बडा का गढ्ढा िदर्खलाई पडता है , कहते है यहीं पर कभी ज्वर्ालामख ु ी धधका थसा. एक बडा सा घेरा िदर्खलाई दर्े ता है . बताते है िक यह 80 मीटर गहरा और 300-350 फ़ीट चौडा है . काफ़ी िदर्नों तक धधकते रहने के बादर् यह ज्वर्ालामुखी शनांत हो गया. भूगभर्श शनािस्त्रयों का कहना है िक
भिवर्ष्य मे िफ़र सक्रीय हो सकता है . इस अदत ु नजारे को दर्े खने के बादर् हम उस ओर बढते है जहाँ
एक और ज्वर्ालामख ु ी भडका थसा और उसमे से िनकलने वर्ाला लावर्ा ठं डा होकर एक बहुत बडॆ भूभाग मे फ़ैला हुआ है , िजसके सात रं ग अलग िदर्खलाई पडते है.
चामरे ल कलडर्श अथसर्श (chamarel colourd earth) =Riviere िजले िस्थसत इस अजूबे का नाम चाल्सर्श
अिटंिनयो िदर् छाजेल िदर् चामरे ल ( Charles Antoine de chazal de Charmaarel )के नाम पर रखा गया है . बताते है िक यहाँ कभी ज्वर्ालामख ु ी धधका थसा, जो अब शनांत हो चक ु ा है , से लावर्ा बह कर
चारों तरफ़ फ़ैल गया ,जो अब ठॊस चट्टान के रुप मे सात अलग-अलग रं गों मे इसकी परते दर्े खी जा 90 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
सकती है . दर्िु नया का यह एकमात्र स्थसान है , जहाँ िमट्टी के सात रं ग स्पष्ट दर्े खे जा सकते है. पास ही मे एक िवर्शनाल बागीचा है ,िजसमे रं ग-िपाबरं गे फ़ूल िखलते है , जो एक अनूठा वर्ातावर्रण िनिमर्शत करता है . इस बगीचे मे दर्ो कछुए दर्े खे जा सकते है . उनके आकार-प्रकार को दर्े खकर अंदर्ाजा लगाया जा
सकता है िक उनकी उम्र लगभग पचास साल की हो सकती है . दर्िु नया का अजूबा होने के कारण यहाँ िवर्िभन्न दर्े खों के पयर्शटक इसकी छटा दर्े खने आते है.
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िचत्र बाएं से दर्ांए= गंगा तालाब=(१) गंगातालाब पािरसर मे िमत्रों के साथस(२) गंगातालाब का िवर्हं गम
दृष्य(३)108 फ़ीट ऊँची िशनवर् प्रितमा (४)िशनवर्ालय(५) मंिदर्र पिरसर मे भगवर्ान सूयर्श की प्रितमा (६) मंिदर्र पिरसर मे राधा-कृष्ण (७) भारत के बाहर िवर्श्वर् का तेरहवर्ाँ ज्योितिलर्लिंग (८) ज्योितिलर्लिंग होने संबंिधत िशनलालेख
गंगा तालाब समुद्र सतह से लगभग 1900 फ़ीट की उँ चाई पर िस्थसत गंगा तालाब सावर्ान्ने (Savanne) िजले मे िट्रओलेट( Triolet) गाँवर् मे िस्थसत है . इस तालाब को कभी “परी तालाब” के नाम से जाना जाता थसा, िजसे बदर्लकर “गंगा- तालाब” कर िदर्या गया. इसके पीछे एक िदर्लचस्प वर्ाक्या है . सन 1897 की
महािशनवर्रािपात्र के पावर्न-पवर्र्श पर झम्मनिगिर गोसाग्ने पाल मोहनप्रसादर् ने एक सपना दर्े खा िक िक
“जानव्ही” का अवर्तरण इस तालाब मे हो गया है . उन्होंने अपने सपने के बारे मे यहाँ के पंिडत िगिर गोसांई के बतलाया. इसके ठीक पश्चात िशनवर्रािपात्र के पावर्न पवर्र्श पर (1898) परीतालाब का नाम
बदर्लकर “गंगा-तालाब” कर िदर्या गया. कहते है िक इस तालाब की अपिरिमत गहराई है , िजसे अब तक कोई नाप नहीं पाया.है .
गंगातालाब की ओर जाने से पूवर्र्श एक बागीचे मे 33 मीटर अथसार्शत 108 फ़ीट की िशनवर्-प्रितमा स्थसािपत की गई है . बडौदर्रा(गुजरात-भारत) के सूरसागर झील मे 108 फ़ीट ऊँची िशनवर्प्रितमा सन 2007 मे
स्थसािपत की गई थसी, उसी के तजर्श पर यहाँ भी 108 फ़ीट ऊँची िशनवर्-प्रितमा की स्थसापना की कल्पना
को साकार िकया गया है . इसी िशनवर् प्रितमा के समीप ही एक माँ दर्ग ु ार्श भवर्ानी की एक सौ आठ फ़ीट उँ ची मुितर्श बनाई जा रही है . संभवर् है िक वर्ह आने वर्ाले साल तक बन कर तैयार हो जाएगी.
गंगातालाब के िकनारे एक भव्य मंिदर्र की स्थसापना की गई है ,िजसमे िवर्रािजत िशनवर्िलंग की िगनती भारत से बाहर तेरहवर्ाँ ज्योितिलर्लिंग माना गया है . एक पट्ट पर इस आशनाय का उल्लेख िकया गया है .मंिदर्र के प्रागण मे शनेषनाग मंिदर्र,श्री िवर्ष्ण ु-लक्षमी मंिदर्र, राधा-कृष्ण मंिदर्र,सूयदर् र्श े वर् की िवर्शनाल
प्रितमा( रथस पर आरुढ प्रितमा, िजसमे सात घोडॆ जुते हुए है), श्री साईं प्रितमा, श्री हनुमानजी की मुितर्श. स्थसािपत है . इस मंिदर्र के आहते से लगकर गंगातालाब है , जो इस मंिदर्र की शनोभा मे चार चाँदर् लगाता है . तालाब का पानी िनमर्शल-साफ़ दर्े खा जा सकता है .
मारीशनस मे तीन सौ सनातन मिन्दर्र है. हर त्योहार यहाँ बडी धूमधाम से मनाया जाता है . िशनवर्रािपात्र के पावर्न पवर्र्श पर तो भारत के अनेक लोग मारीशनस पहुँचते है और तेरहवर्े ज्योितिलर्लिंग की पज ू ा०अचर्शना कर अपने को धन्य मानते है. रामायण यहाँ बहुत लोकिप्रय है . केवर्ल िहन्दर्ी ही नहीं
लगभग सभी भारतीय भाषाओं मे स्नातकोत्तर स्तर तक की िशनक्षा उपलब्ध है . अब तक लगभग
पचास हजार िवर्ध्याथसी िहन्दर्ी और तीन हजार िवर्ध्याथसी संस्कृ त की पढाई कर चुके है. सन 1834 मे लगभग 70 िहन्दर्ओ ु ं का एक जत्थसा ठे के पर मजदर्रू ी करने के िलए मारीशनस पहुँचा थसा. 1930 मे
भारतीयों का अंितम जत्थसा यहाँ पहुँचा. 1834-1930 के मध्य चार लाख पचास हजार मारतीय मूल के लोग मारीशनस पहुँचे, िजनमे से एक लाख सत्तर हजार वर्ापस भारत लौट गए. जो यहाँ रच-बस गए थसे,उनके पास केवर्ल तन पर कपडॆ और मन-मिस्तष्क मे भारतीय संस्कृित एवर्ं ज्ञान का भण्डार थसा,
92 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
उन्होंने अपनी इस िवर्रासत का फ़ैलावर् िकया,और इस तरह हम दर्े खते है िक मारीशनस की धरती पर बसने वर्ाला हर आदर्मी अपने आपको भारतवर्ंशनी कहलाने से पीछे नहीं रहता. हालांिक मारीशनस की
आिधकािरक भाषा अंग्रेजी है , इसिलए यहां का सारा प्रशनासिनक कामकाज अंग्रेजी मे होता है . िशनक्षा
प्रण ाली मे अंग्रेजी के साथस फ़्रांसीसी का भी इस्तेमाल िकया जाता है . फ़्रांसीसी भाषा हालांिक मीिडया
की मख् ु य भाषा है , चाहे वर्ह प्रसारण की हो या मद्र ु ण की इसके अलावर्ा व्यापार और उद्धोग के मामलों मे भी मुख्यतः फ़्रांसीसी ही प्रयोग मे आती है .सबसे व्यापक रुप मे दर्े शन मे मारीिशनयन “क्रेयोल” भाषा बोली जाती है . जब कोई िहन्दर्स् ु थसानी यहाँ के िनवर्ािसयों से िहन्दर्ी मे बात करता है तो वर्े फ़रार्शटे से िहन्दर्ी मे आपसे बोलते-बितयाते है. प्रायः सभी के नाम भारतीय परम्परा के अनुसार रखे जाते है. शनायदर् यही कारण है भारत से बडी मात्रा मे लोग मारीशनस पहुँचते है.
प्रकृित के अदत ु नजारों और भारतीयों की यशन-गाथसा को दर्े ख- सुनकर हम अत्यंत प्रफ़ुिल्लत मन से वर्ािपस लौटते है,िफ़र अगले पडावर् की ओर अग्रिसत होने के िलए
19, मारीशनस माने िमिन भारत की यात्रा-(िकस्त-6) िदर्नांक 27 मई 2014 िदर्न मंगलवर्ार 26 मई 2014 मे हमने टामािरन्ड जलप्रपात(Tamarind waterfall), -ट्राऊ आक्स सफ़्सर्श(Trou aux cerfs)तथसा चामरे ल कलडर्श अथसर्श(chamarel coloured earth) का भ्रमण िकया थसा, िजसके मोहक सम्मोहन से अभी हम उभर भी नहीं पाए थसे िक रािपात्र के लगभग आठ बजे श्री राजनारायण गट्ट ु ीजी ( कला एवर्ं सांस्कृितक मंत्रालय मे सलाहकार), श्रीमती अलका धनपतजी (वर्िरष्ठ प्राध्यापक महा.गांधी संस्थसान) का आगमन होता है . राष्ट्रपित भवर्न के सूत्रों से प्राप्त जानकारी दर्े ते हुए आपने बतलाया िक मारीशनस के राष्ट्रपित महामिहम मान.श्री कैलाशन प्रयागजी ने मुलाकात के िलए दर्ोपहर एक बजे का समय िनधार्शिरत िकया है . िनिश्चत ही यह खबर पाकर हम प्रफ़ुिल्लत थसे और अपने आपको गौरवर्ािन्वर्त महसूस कर रहे थसे िक हमे दर्े शन के प्रथसम परु ु ष से मल ु ाकात करने का सअ ु वर्सर प्राप्त होने जा रहा है . .कायर्शक्रम की रुपरे खा बनाई जाने लगी. इसमे यह तय िकया गया िक हम सब ु ह शनीघ्र तैयार होकर पहले महात्मा गांधी संस्थसान (मोका) जाएंगे और संस्थसा की िनदर्े शनक डा श्रीमती व्ही.डी.कंु जलजी से तथसा वर्हाँ कायर्शरत सभी प्राध्यापकों से मुलाकात करे गे. इस कायर्शक्रम की रुपरे खा श्रीमती अलका धनपतजी ने पहले से बना रखी थसी. सुबह आठ बजे हम सबने चाय और नाश्ते का लुफ़्त उठाया. होटे ल के प्रांगण मे बसे
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लगाई जा चक ु ी थसी. हम ठीक नौ बजे मोका के िलए प्रस्थसान करते है. हरी-
भरी वर्ािदर्यों के
बीच से सरपट दर्ौडती हमारी बस महात्मा गांधी संस्थसान के प्रागंण मे प्रवर्ेशन करती है . महात्मा गांधी संस्थसान की आधारिशनला भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंिदर्रा गांधीजी तथसा मारीशनस के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री िशनवर्सागर रामगुलामजी ने 3 जन ू 1970 मे रखी थसी. .इसी के साथस ही िवर्श्वर् किवर् श्री रवर्ीन्द्रनाथस टै गोर संस्थसान की भी स्थसापना की गई थसी िजसमे भारतीय कला, संस्कृित, संगीत,नत्ृ यकला आिदर् का समावर्ेशन िकया गया थसा. इस संस्थसा मे सभी भारतीय भाषाओं के पाठ्यक्रम शनुरु िकए गए है,जो हम सभी के िलए गौरवर् का िवर्षय है . कुछ चिु नंदर्ा िमत्रों को साथस लेकर श्रीमती अलका धनपतजी ने संस्थसा की िनदर्े शनक डा.श्रीमती कंु जलजी से मल ु ाकात करवर्ाई.
( बाएं से दर्ांए=गोवर्धर्शन यादर्वर्,संतोष पिरहार,श्री अय्यरजी,,डा.गंधारे जी ,श्रीमती कंु जल(िनदर्े शनक),बुंदर्ेलेजी.कोरीजीएवर्ं श्री मफ़तलालजी ) इस मुलाकत के दर्ौरान मैने अपना कहानी संग्रह “महुआ के वर्क्ष ृ ”, तथसा ,तीस बरस घाटी, श्री कैलाशन पंतजी ( मंत्री-संचालक िहन्दर्ी भवर्न भोपाल)की िकताब संस्कार,संस्कृित और समाज, श्रीयत ु कॄष्ण कुमार यादर्वर्जी( 94 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िनदर्े शनक “डाक” इलाहाबादर्) की पस् ु तके सोलह आने सोलह लोग, अिभलाषा(काव्य संग्रह) जंगल मे िक्रकेट तथसा श्रीमती आकांक्षा यादर्वर् की चांदर् पर पानी (दर्ोनो बालगीत) इस िनवर्ेदर्न के साथस दर्ी िक वर्े कृपया इन िकताबों को अपने संस्थसान के वर्ाचनालय मे स्थसान दर्े गी..श्री संतोष पिरहारजी ने भी अपना उपन्यास “रं गरे जवर्ा” की एक प्रित दर्ी. उन्होंने आश्वर्ासन िदर्या िक सारी िकताबे वर्ाचनालय मे रखी जाएगी जो मारीशनस के लोगो को आपसे जोडॆ रखने के िलए “सेतु” का कायर्श करे गीं
एक बडॆ हाल मे मोका के सभी प्राध्यापकगण ॊं से हमारी मुलाकात करवर्ाई गई. एक के बादर् एक प्राध्यापक सामने आता और अपना पिरचय दर्े ता .सभी के मन मे एक अजीब सा उत्साह थसा. उत्साह इस बात को लेकर िक उनके पूवर्ज र्श भारत से ही यहाँ आए थसे. इसी क्रम मे भ्रमण -दर्ल का एक-एक व्यिक्त सामने आता और अपना पिरचय दर्े ता. अपना पिरचय दर्े ते, हुए अन्त मे मैने राष्ट्र भाषा प्रचार सिमित, िहन्दर्ी भवर्न भोपाल के मंत्री-संचालक श्री कैलाशनचन्द्र पंतजी तथसा वर्धार्श सिमित से इस यात्रा के संयोजक श्री नरे न्द्र डंढारे जी के प्रित आभार व्यक्त िकया और कहा िक आपके अथसक प्रयासों से यह यात्रा संभवर् हो पाई है . मै आभारी हूँ डा. अलका धनपत का, िजन्होंने इस मुलाकात के कायर्शक्रम की रुपरे खा बनायीं. मुझे अत्यिधक प्रसन्नता इस बात को लेकर भी हो रही है िक मै अपने िहन्दर्स् ु थसानी भाईयो और बहनो से िमल रहा हूँ, जो िहन्दर्ी के उन्नयन और प्रचार-प्रसार मे अपना योगदर्ान दर्े रहे है. आप लोगो की िमलनसािरता, सहृदर्यता, सहजता और सरलता दर्े खकर मुझे यह कभी महसूस नहीं हुआ िक मै भारत से बाहर मारीशनस मे रह रहा हूँ”
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कायर्शक्रम के समापन के पश्चात वर्हाँ स्वर्ल्पाहार तथसा चाय की व्यवर्स्थसा की गई थसी. सभी ने साथस िमलकर
(१) राष्ट्रपित भवर्न के मख् ु य कक्ष मे िशनष्ठमंडल (२) कक्ष मे बाएं से दर्ाएं श्री िवर्कास काले,संतोष पिरहार,गोवर्धर्शन यादर्वर्,प्राचायर्श पडॊडॆजी आिदर्
(३) श्री शनरदर् जैन (दर्ायीं ओर)
चाय और नाश्ते का आनन्दर् िलया. समय अपने पंख फ़ैलाए द्रत ु गित से उडा चला जा रहा थसा. िदर्न के साढे बारह कैसे बज गए, पता ही नहीं चल पाया. अब हमे राष्ट्रपित भवर्न की ओर रवर्ाना होना थसा. वर्हाँ पहुँचने के बादर् हमसे कहा गया िक अन्दर्र जाने से पहले अपने-अपने मोबाईल तथसा कैमरे बाहर रख दर्े . ऎसा करने के बादर् हमने एक आलीशनान-सुसिज्जत हाल मे प्रवर्ेशन िकया. दर्ोनो ओर करीने से कुिसर्शयाँ लगी हुई थसीं. सभी के मन मे अपार प्रसन्न्ता के साथस उत्सुकता भी थसी िक उनकी मुलाकात मारीशनस के राष्ट्रपित महामिहम श्री कैलाशन प्रयागजी से होने जा रही है . माननीय महोदर्य के आने से पवर् ू र्श हाल मे उपिस्थसत प्रख्यात सािहत्यकार एवर्ं राष्ट्रपितजी के सलाह्कार श्री राज हीरामनजी िदर्शना िनदर्े शन दर्े रहे थसे. आपके अलावर्ा हाल मे पुिलस के दर्ो उच्च अिधकारी तथसा एक गनमैन उपिस्थसत थसा. मुझे ही नहीं, प्रायः सभी के मन मे यह प्रश्न जरुर तैर रहा होगा िक काशन वर्े भारत के राष्ट्रपितजी से िमलने जाते तो वर्हाँ का नजारा कुछ और ही होता. बडॆ-बडॆ आला-अफ़सर, संगीनो से लैस पुिलस के अिधकारी वर्हाँ तैनात होते और बारी-बारी से सभी की गहन तलाशनी ली जाती. तब कहीं जाकर वर्े हाल मे प्रवर्ेशन कर पाते. लेिकन यहाँ का नजारा कुछ और ही थसा. प्रवर्ेशन-द्वर्ार पर न तो िकसी की तलाशनी ली गई और न ही उन्हे संदर्ेह भरी दृिष्ट से दर्े खा गया. बस इतना जरुर कहा गया िक वर्े अपने कैमरे और मोबाईल एक टे बुल पर रख दर्े , और हाल मे शनांित के साथस बैठ जाएँ. सभी की िनगाहे उस िवर्शनाल दर्रवर्ाजे पर िटकी हुईं थसीं, जहाँ से माननीय महोदर्यजी का आगमन होना थसा. ठीक एक बजे वर्ह दर्रवर्ाजा खुलता है . महामिहम उससे िनकलकर अपने िनधार्शिरत स्थसान की ओर बढते है.आपके आगमन के साथस ही हाल मे उपिस्थसत सभी अिभवर्ादर्न की मद्र ु ा मे हाथस जोडकर खडॆ हो जाते है. वर्े मुस्कुराते हुए आगे बढ जाते है और सभी का अिभवर्ादर्न कर अपनी कुसी पर िवर्रािजत हो जाते है. उनका सौम्य व्यिक्तत्वर् और चेहरे पर छाई प्रसन्नता का उद्वर्ेग दर्े खकर मन गदर्गदर् हो उठता है . 96 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
श्री राज हीरामनजी, महामिहमजी को संबोिधत करते हुए, हम लोगो के आगमन और प्रयोजन के बारे मे बतलाते है. और अत्यंत ही िवर्नम्रता के साथस िनवर्ेिदर्त करते हुए कहते है िक भारतीय िशनष्ट मंडल आपका स्वर्ागत करना चाहता है . आपकी स्वर्ीकृित पाकर अभ्युदर्य बहुउद्दिेशनीय संस्थसा, वर्धार्श के अध्यक्ष श्री वर्ैध्यनाथस अय्यरजी महामिहम को शनाळ ओढाकर श्रीफ़ल भेट मे दर्े ते है. उसके बादर् संस्थसा के महासिचवर्-संयोजक श्री नरे न्द्र दर्ण्ढारे जी महामिहम को पुष्प-माला पहनाकर अिभनन्दर्न करते है. इसी क्रम मे श्री संतोष पिरहारजी अपनी एक कृित महामिहम को समिपर्शत करते है
इस अिभनन्दर्न समारोह के पश्चात श्री हीरामनजी महामिहमजी से िनवर्ेदर्न करते हुए अनुनय करते है िक वर्े िशनष्ठमंडल को संबोिधत करे . महामिहमजी ने िशनष्ट मंडल का स्वर्ागत करते हुए भोजपरु ी मे अपना संित क्षप्त उदर्बोधन दर्े ते हुए िहन्दर्ी के उन्नयन और प्रचार-प्रसार के िलए िनरन्तर प्रयास करते रहने के िलए आग्रह िकया. आपके ओजस्वर्ी उद्बोधन के पश्चात श्री हीरामनजी ने आपसे अनरु ोध करते हुए कहा िक िशनष्टमंडल आपके साथस फ़ोटोग्रुप लेना चाहता है . आपने िकतनी सहजता के साथस स्वर्ीकृित प्रदर्ान कर की, यह बात हमारे सबके मन को प्रफ़ुिल्लत कर गई.
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महामिहम राष्ट्रपितजी के साथस िशनष्ठ मंडल
आज मंगलवर्ार है . िनिश्चत ही आज का िदर्न हम सबके िलए मंगलकारी िसद्ध हुआ िक हमारी मुलाकात मारीशनस के राष्ट्रपित महामिहम श्री कैलाशन प्रयागजी के साथस हुई. इससे पूवर्र्श हमारी मुलाकात उन िहन्दर्ी सेिवर्यों से हुई जो महात्मा गांधी संस्थसान से जड ु कर गौरवर्गाथसा िलख रहे है.
राष्ट्रपित भवर्न के प्रांगण के दृष्य=श्री नमर्शदर्ाप्रसादर् कोरी के साथस यादर्वर्
20- मारीशनस माने िमिन भारत की यात्रा.(िकस्त-७) िदर्नांक 28 मई 2014
98 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मारीशनस यात्रा पर आए हुए 120 घंटॆ,= 7200 िमनट,= 432000 सेकंड कैसे बीत गए पता ही नहीं चल पाया. हर िदर्न एक नया िदर्न और एक नयी रात होती. आँखों मे मीठे हसीन सपने पल रहे होते. रोज
प्रकृित के िनत-नूतन श्रॄंगार को खुली आँखों से दर्े ख प्रफ़ुिल्लत हो उठता. मन मे कई िवर्चार अंगडाइयाँ लेने लगते. साथस यात्रा कर रहे लोग,पहले तो अजनवर्ी से िमले, िफ़र इतने घुलिमल गए, मानो बरसों
की पहचान रही हो. यह बात अलग है िक यात्रा की समािप्त के बादर् लोग एक दर्स ू रे को िकतना यादर्
रख पाते है, िकतना नहीं. लेिकन कुल िमलाकर एक परू ा पिरवर्ार सा बन चुका थसा. लोग अपनी सुनाते, दर्स ू रों की सुनते और इस तरह िदर्न पर िदर्न कैसे पंख लगाकर उडते चले गए, पता ही नहीं चल पाया.
आज यात्रा का यह छटवर्ां िदर्न है . यह खास िदर्न थसा हम सबके िलए. आज का िदर्न भाषण ॊं का िदर्न थसा, किवर्ता पाठ करने का िदर्न थसा. सब अपनी-अपनी तैयारी के साथस आए थसे. सभी ने कुछ न कुछ िलख रखा थसा सुनाने के िलए. इसके साथस ही एक खास बात यह भी जुड गई थसी िक मारीशनस के नामी/िगरामी सािहत्यकरों से मुलाकात जो होने जा रही थसी. यात्रा संयोजक श्री नरे न्द्र दर्ं ढारे जी ने
काफ़ी समय पवर् ू र्श उन्हे ईमेल/पत्र/फ़ोन द्वर्ारा इस कायर्शक्रम मे शनरीक होने के िलए आमंत्रण दर्े रखा थसा. श्रीमती अलका धनपतजी ( वर्िरष्ठ प्राध्यािपका ),श्री रामदर्े वर् धुरंधरजी (ख्याितलब्ध सिहत्यकार), श्री राज हीरामनजी ( वर्संत -तथसा िरमिझम पिपात्रका के वर्िरष्ठ सहा. संपादर्क तथसा पत्रकार),तथसा श्री
राजनारायण जी गुट्टी (कला एवर्ं संस्कृित मंत्रालय मे सलाहकार) से जब-तब मुलाकाते हो जाया करती थसी. वर्े अपनी उपिस्थसित से कायर्शक्रम की रुपरे खा बनाते और उसमे अथसक सहयोग प्रदर्ान करते.
िदर्न का ग्यारह बज रहा है . अब हमे इन्तजार थसा अितिथसयों के आगमन का. एक के बादर् एक आते रहे . नरे न्द्र भाई उनका भावर्-भीना स्वर्ागत करते. िफ़र अन्य लोगों से िमलते-
बितयाते और अपने िनधार्शिरत स्थसान पर जा बैठते. ठीक ग्यारह बजे कायर्शक्रम. श्री वर्ैधनाथस अय्यर की
अध्यक्षता मे एवर्ं श्री राज हीरामनजी के मख् ु य आितथ्य मे शनरु ु हुआ. डा.श्रीमती वर्ंदर्ना दर्ीित क्षत ने मंच का कुशनलतापूवर्क र्श संचालन िकया. वर्े बारी-बारी से वर्क्ताओं को बुलाती, वर्े अपना वर्क्तव्य दर्े ते है. चुंिक वर्क्ताओं की सूची काफ़ी लंबी थसी और दर्ोपहर के दर्ो बजने वर्ाले थसे, भोजन का भी समय हो चला थसा. अतः श्री हीरामनजी के उदोधन के पश्चात इस सत्र का समापन करना पडा.
श्री हीरामनजी ने अपने वर्क्तव्य मे िहन्दर्ी की महत्ता को रे खांिकत करते हुए कहा;-“ वर्े िहन्दर्ी मे बोलते है,िहन्दर्ी मे अपना सािहत्य रचते है ,िहन्दर्ी का सम्मान करते है और िहन्दर्ी से ही सम्मानीत 99 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
होते है. िहन्दर्ी उनकी शनान है , संस्कृित का आधार है , हमारी पहचान है . महात्मा गांधी पर बोलते हुए उन्होंने कहा िक बापू हमारे दर्े शन मे केवर्ल एक बार सन 1901 मे कुछ िदर्न के िलए आए थसे. उनके
आगमन के साथस ही हमारी सोच मे व्यापक पिरवर्तर्शन आया. हमने अपना स्वर्रुप पहचाना. हमने गांधी को अपने हृदर्य मे स्थसान िदर्या, जबिक वर्े भारत से थसे, उन्हे वर्हाँ केवर्ल सरकारी नोट मे स्थसान िदर्या
गया.” अपनी घनीभत ू होती पीडाओं को शनब्दर्ों का जामा पहनाते हुए उन्होंने एक लंबा वर्क्तव्य िदर्या. श्री नरे न्द्र दर्ण्ढारे जी ने िवर्षयों का चयन बडी सूझ-बूझ से िकया थसा, वर्े इस प्रकार थसे.....
(१) िवर्दर्े शन मे भारत (२) िहन्दर्ी के िवर्कास मे िवर्दर्े शनी/प्रवर्ासी लेखकों की भूिमका (३) वर्ैश्वर्ीकरण की
िहन्दर्ी प्रसार मे भूिमका (४) मोरीशनस मे िहन्दर्ी िशनक्षा मे युवर्ाओं का योगदर्ान (५) युवर्ा पीढी मे िहन्दर्ी बोध (६) जनभाषा और िहन्दर्ी (सहोदर्र संबंध)
भोजन के पश्चात दर्स ू रे सत्र का आगाज हुआ. मारीशनस के कला एवर्ं संस्कृित मंत्री मान.श्री मख ु ेश्वर्र चन ु ीजी के िवर्िशनष्ठ आितथ्य ,श्री डा.श्रीमती व्ही. डी.कंु जल( िनदर्े शनक महात्मा गांधी संस्थसान, मारीशनस. के मुख्य आितथ्य एवर्ं श्रीवर्ैध्यनाथस अय्यर की अद्ध्यक्षता मे कायर्शक्रम का शनभ ु ारं भ हुआ. श्रीमती काले एवर्ं.डा.सुश्री भैरवर्ी काले ने भारतीय परम्परा का िनवर्र्शहन करते हुए स्वर्ागत गीत गाया.
मंच पर बांए से दर्ांए (१) श्रीराजनारायण गुट्टी( कला एवर्ं संस्कृित मंत्रालय मे सलाहकार (२) डा.श्रीमती व्ही.डी.कंु जल (िनदर्े शनक, महा.गांधी संस्थसान) (३) श्री गंगाधरिसंह सक ु लाल “गल ु शनन”(िडपटी सेक्रेटरी
जनरल,िवर्श्वर् िहन्दर्ी सिचवर्ालय. (४) मान.श्री मख ु ेश्वर्र मख ु ीजी( कला एवर्ं संस्कृित मंत्री) (५)श्री वर्ैध्यनाथस अय्यर ( अध्यक्ष अभ्युदर्य संस्थसा, वर्धार्श (५) श्री नरे न्द्र दर्ण्ढारे ( महासिचवर्-संयोजक,वर्धार्श)
कुछ प्रितभागी अपना वर्क्तव्य दर्े ने मे शनेष रह गए थसे, उन्होंने अपने आलेखों का वर्ाचन िकया. इस
क्रम मे म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित के संयोजक श्री गोवर्धर्शन यादर्वर् ने अपना आलेख “िहन्दर्ी-दर्े शन से 100 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
परदर्े शन तक”, संस्थसा सिचवर् श्री नमर्शदर्ा प्रसादर् कोरी, बुरहानपुर के श्री संतोष पिरहार, खण्डवर्ा के श्री शनरदर्चन्द्र जैन ने अपने-अपने आलेखों का वर्ाचन िकया.
यादर्वर् अपने आलेख का वर्ाचन करते हुए(२)श्री कोरी वर्ाचन करते हुए (३) श्री मफ़तलाल पटे ल वर्ाचन करते ह ----------------------------------------------------------------------------------------------------
101 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
सभागार के कुछ दृष्य िचत्र क्रमांक (३) तीन मे श्री मफ़तलालजी पटे ल( एम.ए.पीएचडी, संपादर्क “अचला”पिपात्रका इस यात्रा मे
सहभागी रहे . यहाँ यह बात िवर्शनेष उल्लेखनीय थसी िक आपकी पत्नी श्रीमती आनन्दर्ी बेन ग ुजरात के मुख्य मंत्री पदर् की शनपथस ले रही थसी,जब िक वर्े हमारे साथस थसे. वर्े अहमदर्ाबादर् से अपनी भांिजयों को लेकर बीस मई को ही रवर्ाना हो चक ु े थसे, तब वर्े यह नहीं जानते थसे िक उनकी पत्नी मख् ु य मंत्री बनायी जाने वर्ाली है.
मंचासीन सभी िवर्द्वर्तजनों के संभाषण के पश्चात िवर्िशनष्ठ अितिथस मान.श्री मख ु ेश्वर्र मख ु ी (कला एवर्ं संस्कृित मंत्री-मारीशनस) के हस्ते सभी िवर्द्वर्तजनो/पत्रकारो/सािहत्यकारों/बुद्धीजीिवर्यों का सम्मानीत िकया गया.
सम्मानीत होने वर्ालों के नाम इस प्रकार है:- श्री अतल ु पाठक(सुरत)/ डा. वर्न्दर्ना दर्ीित क्षत (नागपुर),/ डा. अनन्तकुमार नाथस(तेजपूर-आसाम)/डा. मफ़तलाल पटे ल(अहमदर्ाबादर्)/डा. उषा श्रीवर्ास्तवर्( बंगलूरु)/ डा.पी.सी.कोिकला (चैन्नई)/डा. मधुलता व्यास (नागपुर)/डा. वर्ामन गंधारे ( अमरावर्ती)/ डा. शनंकर बुंदर्ेले(अमरावर्ती)/ गोवर्धर्शन यादर्वर् (िछन्दर्वर्ाडा)/ शनरदर्चन्द्र जैन (खंडवर्ा)/श्रीमती सुजाता
सुलेकर(गोवर्ा.)/श्रीमती वर्ासंथसी अय्यर(नागपुर)/संतोष पिरहार(बुरहानपुर)/पाण्डुरं ग भालशनंकर( वर्धार्श)/नमर्शदर्ाप्रसादर्कोरी(िछन्दर्वर्ाडा)/िवर्कास काले (वर्धार्श)/सश्र ु ी हीना शनाह(अहमदर्ाबादर्)
(२)अभ्युदर्य बहुउद्दिेशनीय संस्थसा, वर्धार्श द्वर्ारा मारीशनस के सािहत्यकारों का सम्मान िकया गया . उनके नाम इस प्रकार है
102 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मान.श्री मुखेश्वर्र चुनीजी( कला एवर्ं संस्कृित मंत्री मारीशनस) (२) श्री राजनारायण गित( अध्यक्ष िहन्दर्ी
िस्पिकं ग युिनयन,) (३) डा.अलका धनपत ( महा.गांधी संस्थसान) (४) श्री धनपत राज हीरामन (महा.गांधी संस्थसान) (५) श्री प्रल्हादर् रामशनरण (पोट्लुई र्श ) (६) श्री रामदर्े वर् धुरंधर(पोटर्श लुई) (७) श्री इन्द्रदर्े वर् भोला
(पोटर्श लुई) (८) डा.श्रीमती व्ही.डी.कंु जल( िनदर्े शनक महा.गांधी संस्थसान) (९) श्री धनराज शनंभु (पोटर्श लुई) (१०) डा श्रीमती.िवर्नोदर्बाला अरुण ( पोटर्श लई र्श े वर् िसबोरत(पोटर्श लई ु ),(११) श्री सय ू दर् ु ) (१२) डा.श्रीमती रे शनमी रामधोनी( पोटर्श लुई) (१३) डा.हे मराज सुन्दर्र (पोटर्श लुई) एवर्ं श्रीमती उषा बासगीत(पोटर्श लुई)
कायर्शक्रम के समापन के बादर् गोवर्धर्शन यादर्वर् की अध्यक्षता मे श्री संतोष पिरहार ने काव्य-मंच का संचालन िकया,जो दर्े र रात तक चलता रहा. किवर्-गोष्ठी के समापन पर श्री नमर्शदर्ा प्रसादर् कोरी ने सभी उपिस्थसत िवर्द्वर्तजनॊं के प्रित आभार व्यक्त िकया.
दर्स ू रे सत्र की शनरु ु आत के समय डा. अलका धनपतजी, आकाशनवर्ाण ी मारीशनस के कायर्शक्रम अिधकारी
को साथस लेकर आयीं. उन्होंने मझ ु े सभाग्रह से बुलाकर इस बात की सूचना दर्ी िक आपका साक्षात्कार 103 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
िरकाडर्श िकया जाना है . मेरे अलावर्ा िरकािडर्लिंग श्री दर्ण्ढारे जी, एवर्ं संतोष पिरहार िक की जानी थसी,लेिकन पिरहार का नाम उसी क्षण मंच पर आलेख वर्ाचन के िलए पुकारा गया. शनायदर् इसी वर्जह से उनका
साक्षात्कार िरकाडर्श नहीं हो सका. पास ही के एक हाल का चुनावर् िकया गया,जहाँ शनोरगुल िपाबल्कुल भी न थसा. मेरे साक्षात्कार के बादर् उन्होंने मुझे बधाइयां दर्े ते हुए कहा िक आपका साक्षात्कार बहुत ही जानदर्ार रहा है और इसका प्रसारण 7 जन ू 2014 को होगा. चंिु क हमे 29 मई को मारीशनस से रवर्ाना
हो जाना थसा. अतःमैने उनसे िनवर्ेदर्न िकया थसा िक यिदर् कायर्शक्रम अिधकारी इसकी िरकािडर्लिंग की एक प्रित मुझे भेज दर्े गे, तो उत्तम रहे गा.जैसा की उन्होंने बतलाया भी थसा िक इसे आप अपने कंप्युटर
पर भी सुन सकते है,लेिकन मेरी इसमे इतनी दर्क्षता नहीं थसी िक उसे सुन सकंू आप सभी जानते ही है िक सरकारी िनयमों के अधीन ऎसा िकया जाना संभवर् नहीं है . बादर् मे ईमेल के जिरए डा. धनपत
ने मझ ु े उसके प्रसािरत हो जाने बाबदर् सूचना प्रेिषत की. मैने उन्हे हृदर्य से धन्यवर्ादर् दर्े ते हुए आभार माना िक उन्होंने कम समय मे मेरे िलए इतना पिरश्रम िकया. ( ईमेल की प्रित संलन्ग है ) -------------------------------------------------------------------------------------------------------Translate message Turn off for: Hindi नमस्कार जी आपका कायर्शक्रम टे लीकास्ट हो चुका है .भेजना मुिश्कल है . अलका 21-----------मारीश स
माने िमिन भारत की याता ( समापन िकश्त)
29 मई 2014 मन की िस्थसित बडी िवर्िचत्र होती है . वर्ह कब प्रफ़ुिल्लत होकर िततली बन कर आसमान मे जा उडेगा
और कब उदर्ासी का चादर्र ओढकर गम ु सम ु सा रहने लगेगा,कोई नहीं जान पाता. समझ मे नहीं आता िक अक्सर ऎसा क्यों होता है हम सबके साथस ? इस पर यिदर् गंभीरता से िवर्चार करे तो काफ़ी हदर्
तक समझ मे आने लगता है . यह िस्थसित मेरे िलए ही नहीं बन पडी थसी,बिल्क हम सबके साथस कुछ ऎसा ही हो रहा थसा. मैने अपने िमत्र से इसका कारण जानना चाहा तो िसफ़र्श इतना कहा िक आज मन कुछ उदर्ास-उदर्ास सा है ..बस. ऎसा क्यों है , मै समझ नहीं पा रहा हूँ.
दर्रअसल इस उदर्ासी का मुख्य कारण यह थसा िक हम िवर्गत छः िदर्नों से मारीशनस मे रहते हुए मौज-मस्ती कर रहे थसे. सुबह जल्दर्ी उठ जाते. सारे िनत्य िक्रया-कलाप से िनजादर् पाकर नाश्ते के
टे बल पर जा पहुँचते. और नाश्ते के बादर् कै िटन मे बनी “रामप्यारी” का घँट ू हलक के नीचे उतारते और बीच-बीच मे बितयाते जाते. चाय तो आिखर चाय ही होती है ,लेिकन “रामप्यारी चाय” का अपना स्वर्ादर् है और पीने पर िमलने वर्ाला आनन्दर् ही कुछ और है . चाय हलक के नीचे उतर भी नहीं पाती
है िक श्वर्ेताजी( गाइड) की आवर्ाज गूंजने लगती है . वर्े सभी से िनवर्ेदर्न करती है िक जल्दर्ी से बस मे
जाकर बैठ जाइए. आज हमे फ़लां-फ़लां स्थसान पर जाना है , और हम सब शनीघ्रता से वर्हाँ से रवर्ाना हो
जाते. और िफ़र पहुँच जाते िकसी सुरम्य वर्ािदर्यों की गोदर् मे . आज इन सब पर िवर्राम लगने वर्ाला है . 104 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
आज दर्ोपहर बादर् हमे होटे ल कालोडाईन सूर मेर को अलिवर्दर्ा कह दर्े ना है . अलिवर्दर्ा कह दर्े ना है
इिम्तयाज को, मनोज को, िवर्नय को,नीलेशन को, आनन्दर् को और राजेन्द्र को, जो बडॆ मनुहार से नाश्ता करवर्ाते और रामप्यारी िपलवर्ाते. अलिवर्दर्ा कहना होगा श्वर्ेताजी को,जो हमारे साथस िवर्गत छः िदर्नों से बनी रहती थसीं. जब वर्े िकसी दर्स ू री बस मे जा बैठती तो लोग उनसे मनुहार करते िक वर्े कृपया
हमारी बस मे आकर बैठे. श्वर्ेताजी एक है और हर व्यिक्त चाहता है िक वर्े उनकी बस मे बैठे. कैसे
संभवर् है िक एक व्यिक्त हर जगह कैसे उपिस्थसत रह सकता है . इतने कम िदर्नों मे इतना अनुराग.! अब आप ही बतलाएं िक कैसे हम अपने मँह ु से उन्हे अलिवर्दर्ा कहे गे
((बाएं से दर्ाएं=श्वर्ेतािसंह,स्वर्पािनल तथसा नीतिू संह,) शनायदर् अब समझ मे आया होगा आपको िक मन की िस्थसित आज क्यों डांवर्ाडॊल है ? इतने कम
समय मे वर्े हमारे अपने से हो गए थसे. उनका िशनष्ठाचार के साथस िमलना, बितयाना, उनका सेवर्ाभावर् दर्े खकर मन से सहजरुप से उन्हे पिरवर्ार का एक सदर्स्य बना िलया थसा. आज उन सबसे दर्रू चले जाना है . यह तो सभी जानते थसे िक िवर्जा की अवर्िध समाप्त हो जाने के बादर्, उन्हे जाना ही
होगा,लेिकन कम समय मे िकसी को अपना बना लेना या बन जाना,िकतना सहज होता है और जब
िपाबछुडने की बात आती है तो स्वर्ाभािवर्क है िक मन उदर्ासी मे िघरने लगता है . यह भी उतना ही सच है िक एक लंबे अंतराल के बादर् अपना पिरवर्ार यादर् आने लगता थसा. यादर् आने लगते थसे अपने
पिरजन, भाई-बहन,पित्न, बच्चे, नाती-पोते. वर्े भी तो हमारी यादर् कर रहे होते है. आिखर उनके पास भी तो लौटना होगा हमे . सारे िक्रयाकलापों के िलए पहले से समय का िनधार्शरण कर िलया गया थसा िक
कब और िकतने बजे हमे होटल छोडना है , दर्ोपहर का खाना कहाँ खाना है और िकतने बजे हमे सर
िशनवर्सागर रामगुलाम एअर-पोटर्श पर पहुँच जाना है . कब हमारा िवर्मान ऊडान भरे गा और कब हमे छत्रपित िशनवर्ाजी अन्तराष्ट्रीय हवर्ाई अड्डॆ पर पहुँचना है . मुंबई के िकस स्टे शनन से हमारी ट्रे न रवर्ाना होगी.आिदर्-आिदर् मै इस यात्रा का समापन इस प्रकार करने के पक्ष मे िपाबल्कुल भी नहीं थसा,बिल्क यह कहे िपाबल्कुल भी नहीं हूँ. क्योंिक मैने सोच रखा थसा िक मै आपको इस अध्याय के बंदर् कर दर्े ने से पहले उन स्थसान
पर ले जाना चाहूँगा जहाँ जाकर मैने अदत ु िू त प्राप्त की थसी. इन जगहों का उल्लेख ु आनन्दर् की अनभ पहले भी िकया जा सकता थसा,लेिकन आलेख के साथस वर्हाँ के छायािचत्रों को लगा दर्े ने से आलेख ज्यादर्ा िवर्स्तार लेने लगा थसा. अतः मै इस िनण र्शय पर पहुँचा िक इनका उल्लेख बादर् मे भी िकया जा सकता है . यिदर् इसका उल्लेख अभी नहीं हुआ तो िफ़र बादर् मे होना संभवर् भी नहीं लग रहा थसा.
105 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
------------------------------------------------------------------------------------------------------फ़ोटर्श आफ़ एडलेट
Fort Adelaide Of Citadel ( फ़ोटर्श एडेलेड आफ़ िसटाडेल) --सन 1814 मे नेपोिलयन की हार के बादर् फ़्रांस और िपाब्रिटशन सरकारों के बीच हुई संिध के अनस ु ार सीमा का िनधार्शरण िकया गया और उस समय के तत्कािलन िपाब्रिटशन गवर्नर्शर सर िवर्िलयम एम.िनकोले ने इंगलैण्ड के राजा िवर्िलयम IV की
पित्न “एडेलेड” के नाम पर मारीशनस मे िस्थसत पवर्र्शत िजसे (Pitite Moutagne) के नाम से जाना जाता है ,बनाया गया.,िजसे बादर् मे मारीशनस को सौंप िदर्या गया थसा. इसकी आधारिशनला 1830 मे रखी गई थसी, जो दर्स वर्षों मे बनकर तैयार हुआ. इस िकले के िनमार्शण मे भारतीय़ वर्ास्तक ु ारो के अलावर्ा कई मजदर्रू काम पर लगाए गए थसे. यह िकला समद्र ु सतह से 240 फ़ीट की उँ चाई पर िस्थसत है . कहा जाता है िक इस िकले से बंदर्रगाह तक जाने के िलए सुरंग बनाई गई थसी, तािक िकले
106 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
मे रसदर् तथसा हिथसयारों की आपूितर्श बनायी जा सके. इस िकले की बुजर्श पर जाकर आप शनहर का िवर्हं गम दृष्य दर्े ख सकते है .
Belle Mare beach (बेले मरे बीच)
107 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
Belle Mare beach (बेले मारे बीच) ----मारीशनस के दर्ित क्षण मे िस्थसत यह समुद्री तट अपने मे
नीलापन िलए हुए दर्रू -दर्रू तक फ़ैला हुआ है . इसके तट पर वर्क्ष ृ ॊं का फ़ैलावर् आप दर्े ख सकते है. िकसी ने मझ र्श ों के नाम पर या िफ़र िकसी बच्चे के ु े बतलाया िक इसके तटॊं पर मारीशनसवर्ासी अपने पवर् ू ज जन्म िदर्न पर, या िफ़र शनादर्ी की वर्षर्शगांठ पर वर्क्ष ृ ारोपण करते है. यह परम्परा काफ़ी समय से चली
आ रही है , हवर्ा के झोंकों पर नाचते वर्क्ष ृ ॊ को दर्े खकर तथसा यहाँ छाई हिरयाली आपका मन मोह लेती
है . सफ़ेदर् रे त दर्रू -दर्रू तक फ़ैली नजर आती है . अकसर यहाँ भीड कम नजर आती है , लेिकन छुिट्टयों के िदर्न बडी संख्या मे लोग यहाँ पहुँचते है. बोट की सवर्ारी करते है और बेलून के जिरए ( Parasailing ) आकाशन मे जा उडते है.
यिदर् आप आकाशन मे उडना ही चाहते है, तो आपको उडने के पंख िकराए पर िमल जाएंगे. जैसे ही
आप इस बीच मे प्रवर्ेशन करते है, एक काउण्टर बना हुआ है . यहाँ दर्ो प्रकार की व्यवर्स्थसा की गई है . पहला बैलन ू के माध्यम से हवर्ा मे सैर करने के िलए आपको नौ सौ रुपया (मारीिशनयन रुपया) का िटिकट कटवर्ाना होता है . आप दर्ो लोग एक साथस उडना चाहते है तो इसके िलए आपको पन्द्रह सौ
रुपयों का िटिकट लेना होता है . दर्स ू रा- आप समुद्र मे उतरकर कोरल, मछिलयाँ या अन्य समुद्री जीवर् दर्े खना चाहते है तो आपको बारह सौ रुपयों का िटिकट खरीदर्ना होता है .और आप यिदर् समुद्री-जीवर्ों के साथस फ़ोटॊ िखंचवर्ाना चाहते है तो आपको दर्ो हजार रुपया (मारीिशनयन) चुकाना होता है
108 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
प्रायोजक सी.डी. बनाकर दर्े ते है,िजसे आप बादर् मे भी दर्े ख सकते है.
श्री कोरी समद्र ु की गहराइयों मे उतरने के बादर्
दर्ायीं ओर श्री पडौडेजी
109 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
( श्री नमर्शदर्ा प्रसादर् कोरी बैलून के सहारे आकाशन मे उडते हुए)
इस रोमांचक यात्रा मे यिदर् वर्धार्श िनवर्ासी श्री के.बी.पडौडेजी की चचार्श न की जाए, तो शनायदर् बात अधरु ी रहे गी. वर्े प्राचायर्श होकर सेवर्ामुक्त हुए है. एकदर्म स्वर्स्थस है,लेिकन उन्हे पैरों के तकलीफ़ है, अतः छडी के सहारे चलना होता है उनकी उम्र लगभग 72-75 के करीब है ,लेिकन उनका जोशन दर्े खने लायक होता थसा. जब कोई उन्हे सहारा दर्े ने के िलए हाथस बढाता तो मुस्कुरा कर कहते- भैया कब तक साथस दर्ोगे मेरा,? और वर्े आगे बढ जाते. बैलून के सहारे आकाशन मे उडने की िजदर्, तो कभी समुद्र की
गहाइयों मे उतरने की िजदर् करते. कहते क्या मै बढ ू ा हो गया हूँ,? मै क्यों नहीं उतर सकता समद्र ु मे और क्यों नहीं उड सकता बैलून ( PARASAILING) के साथस? शनायदर् वर्े यह नहीं जानते थसे िक उम्र के इस पडावर् पर मनचाहा करना उनके िलए उिचत नहीं होगा. काफ़ी समझाने-बझ ु ाने के बादर् आिखर वर्े मान जाते है. उन्होंने तो अपनी िटिकट भी कटवर्ा ली थसी. बादर् मे उन्हे रकम वर्ािपस दर्े दर्ी गई.
(28 th जून) -शनाम को खाना खाने के साथस ही हमे सूिचत कर िदर्या गया थसा िक कल सुबह दर्स बजे हमे होटल छॊड दर्े ना है . बसे हमारा इन्तजार कर रहीं थसीं. अब हम उस होटल “ताज होटल” की तरफ़ बढ रहे थसे, जहाँ हमने पहली बार खाना खाया थसा. खाना खा चुकने के बादर् हमारे पास काफ़ी समय
बच रहा थसा. उसका हमने भरपूर फ़ायदर् उठाया. हमारी बस अब BLUE BAY MARINE की तरफ़ रवर्ाना हो रही थसी.
Glass Water Boat trip in Blue Bay Marine Park यह समुद्री पाकर्श Mehebourg के समीप दर्ित क्षण -पूवर्र्श मे POINTE JEROME के करीब 353 मीटर मे
फ़ैला हुआ है . सुन्दर्र और आकषर्शक समुद्र के तट दर्े खते ही बनते है. दर्रू -दर्रू तक सफ़ेदर् रे त की चादर्र िपाबछी हुई है . इस मल ु ायम रे त की चादर्र पर से चलते हुए आप बोट तक पहुँचते है. चार-पांच बोट
हमने ले ली थसी. इन बोटॊं के तले काँच के बने हुए थसे. बोट जब समद्र ु की सतह पर आगे बढती है तो नािवर्क उसे उन स्थसानों पर रोकते हुए धीरे -धीरे आगे बढता है , जहाँ से आप समुद्र तल मे समाए कोरल और िकस्म-िकस्म की वर्नस्पितयों को दर्े खकर दर्ं ग रह जाते है. इन वर्नस्पितयों के बीच रं गिपाबरं गी मछिलयों, तथसा कछुओं को तैरता हुआ दर्े खा जा सकता है. बोट एक स्थसान से चलकर दर्स ू रे स्थसान पर आकर थसम सी जाती है . हर बार नजारा कुछ और होता है . इससे पहले हमने-आपने कई समद्र ु दर्े खे होंगे लेिकन कभी उसके गभर्श मे
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िछपे अनमोल खजाने को नहीं दर्े ख पाए होंगे , इन्हे दर्े ख कर आश्चयर्श होना स्वर्ाभािवर्क है .
(बोट के तल मे लगे कांच से आप समुद्र के गभर्श मे िछपी िवर्िभन्न वर्नस्पितयाँ-कोरल दर्े ख सकते है) समुद्र के इस रोमांचक तट पर सैर करते हुए कब पाँच बज गए, पता ही नहीं चल पाया. अब हम सर िशनवर्सागर रामगुलाम अंतरराष्ट्रीय हवर्ाई अड्डॆ की तरफ़ बढ चले थसे. सुश्री श्वर्ेताजी अब भी हमारे
साथस ही चल रही थसी. एअरपोटर्श पहुँचने के बादर् वर्े सब से िमल रही थसीं, वर्े सभी से िफ़र कभी आने का िनमंत्रण दर्े ती है ,लेिकन उनकी आँखों से अिवर्रल आँसू बह रहे होते है. उनकी रुलाई दर्े खकर सभी के मन भारी हो चले थसे. मात्र एक सप्ताह की मुलाकात,थसी हमारी उनसे लेिकन कब वर्ह अपनत्वर् मे ढल जाती है , आपको पता ही नहीं चल पाता. शनायदर् यही कारण थसा िक उनकी आँखे भर आयी थसी.
.अपना सामान तल ु वर्ाने तथसा अन्य औपचािरकताओं को पूरा करने मे लगभग दर्ो घंटे से अिधक
समय लग जाता है . सारी प्रिक्रया पूरी होने के बादर् हमे प्रतीक्षालय मे बैठना होता है . रात के ग्यारह
बजे हमारी फ़्लाइट है . समय धीरे -धीरे रे गते रहता है . रौशननी मे जगमगाता हुआ हवर्ाई अड्डा, सभी का मन मोह लेता है . तरह-तरह की सजी हुई दर्क ु ाने पयर्शटक को अपने सम्मोहन मे बांध लेती है,लेिकन 111 | मैं कहता आँखन देखी – यात्रा संस्मरण : गोवर्धनर्धन यादवर्
दर्ाम इतना अिधक होता है ,िक आप चाहकर भी वर्स्तओ ु ं को खरीदर् नहीं पाते. इसके पीछे केवर्ल एक
तकर्श यह होता है िक िजतनी भी चीजे आप वर्हाँ दर्े ख रहे होते है सारी की सारी चीजे भारत से िनयार्शत की गई होती है. अतः यात्री खरीदर् करने मे तिनक भी िदर्लचस्पी नहीं िदर्खलाता.
रािपात्र के ग्यारह बजने वर्ाले है. सारे लोग अब िवर्मान पर सवर्ार होने के िलए चल पडते है. अपनी
िनधार्शिरत सीट पर आकर बैठ जाते है. ठीक ग्यारह बजे हमारा िवर्मान रन-वर्े पर दर्ौडने लगता है और पल भर मे आकाशन से बाते करने लगता है . पूरे छः घंटे की उडान के बादर् वर्ह छत्रपित िशनवर्ाजी अंतरराष्ट्रीय हवर्ाई अड्डॆ पर जा उतरता है . इस तरह इस यात्रा का समापन होता है .
इस अदत ु और रोमांचकारी यात्रा को संपन्न करवर्ाने के िलए मै पुनः आभार प्रकट करता हूँ
राष्ट्रभाषा प्रचार सिमित भोपाल के मंत्री-संचालक मान.श्री कैलाशनचन्द्र पंतजी के प्रित, िजन्होंने न
िसफ़र्श हमे आिथसर्शक संबल प्रदर्ान करवर्ाया बिल्क हमारा हौसला बढाया और िहन्दर्ी के उन्नयन और
प्रचार-प्रसार के एक शनुभ-अवर्सर प्रदर्ान करवर्ाया. मै आभारी हूँ श्री नरे न्द्र दर्ण्ढारे जी के प्रित,िजन्होंने इस यात्रा के कायर्शक्रम की कसी हुई रुपरे खा बनाई, उन्होंने न िसफ़र्श अपने िजले को जोडा बिल्क अन्य प्रांतो के लोगो को भी अपने साथस जोडा और इस तरह एक सफ़ल आयोजन वर्े दर्े शन के बाहर कर सके. मै आभारी हूँ मारीशनस (मोका) की डा. श्रीमती अलका धनपतजी का, िजन्होने आकाशनवर्ाण ी
मारीशनस के िलए मेरा साक्षात्कार िलया. मै आभारी हूँ प्रख्यात सािहत्यकार श्री राज हीरामनजी का िजन्होंने महामिहम राष्ट्रपितजी से भे ट करवर्ाने मे अहम भूिमका का िनवर्र्शहन िकया. तथसा अपना
साक्षात्कर िरकाडर्श करवर्ाने मे आपने सहज ही अनुमित प्रदर्ान की. मै आभारी हूँ मान.श्री रामदर्े वर् धुंरधरजी का (िजनकॊ मै पढ रहा थसा) साथस ही उन तमाम सािहत्यकारों का िजनका पिरचय मंच के
द्वर्ारा मझ ु े प्राप्त हुआ. मै आभारी हूँ श्री स्वर्पिनल तथसा नीतिू संह का जो हमारे साथस छाया की तरह बने रहे . िनःसंदर्ेह जब मै यहाँ से रवर्ाना हुआ थसा,उस समय तक मेरे हाथस रीते थसे,लेिकन वर्हाँ से लौटा तो मै मालदर्ार हो चक ु ा थसा. मझ ु े न िसफ़र्श अपिरिमत संतोष की प्रािप्त हुई है बिल्क उन तमाम लोगों से
िमलकर एक पिरवर्ािरक इकाई का सदर्स्य बन जाने का भी गौरवर् प्राप्त हु आ है . उन तमाम लोगो की स्मिृ तयाँ सदर्ा मेरा पथस आलोिकत करते रहे गी,ऎसा मेरा िवर्श्वर्ास है . -
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