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English-Hindustani translation by Khushi Jain
ENGLISH
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Emily Dickinson
I cannot live with You – It would be Life – And Life is over there – Behind the Shelf
The Sexton keeps the Key to – Putting up Our Life – His Porcelain – Like a Cup –
Discarded of the Housewife – Quaint – or Broke – A newer Sevres pleases – Old Ones crack –
I could not die – with You – For One must wait To shut the Other's Gaze down – You – could not –
And I – could I stand by And see You – freeze – Without my Right of Frost – Death's privilege?
Nor could I rise – with You – Because Your Face Would put out Jesus' – That New Grace
Glow plain – and foreign On my homesick Eye – Except that You than He Poem 640 is beguilingly simple which makes it challenging to translate. I have tried to recreate the effect of Dickinson’s cesuras by playing with syntax
Shone closer by –
They'd judge Us – How – For You – served Heaven – You know, Or sought to – I could not –
Because You saturated Sight – And I had no more Eyes For sordid excellence As Paradise
And were You lost, I would be – Though My Name Rang loudest On the Heavenly fame –
And were You – saved – And I – condemned to be Where You were not – That self – were Hell to Me –
So We must meet apart – You there – I – here – With just the Door ajar That Oceans are – and Prayer – And that White Sustenance – Despair –
and leaving many of the lines open-ended. Since Hindustani demands it, unfortunately, I have had to gender the poet-persona's interlocutor.
मैं तुम्हारे साथ रह नहीं सकती वह ज़िन्दगी होगी ... और ज़िंदगी तो वहाँ है उस दराज़ में
जिसकी चाबी कब्र कीं के पास है दिखावा ... हमारी ज़िंदगी का जैसे चीनी का कप
ग्रहणी का फैंका हुआ अजीब - टूटा पड़ा नये से खुशियाँ हैं बीते हुओं में दरारें पड़ जाती हैं मैं तुम्हारे साथ मर नहीं सकती क्योंकि मोहब्बत में फ़र्ज़-ए-इंतज़ार है महबूबा की पलकों के पर्दे सरकाने का पर तुम ... तुम बेसब्र थी और क्या मैं खड़ी-खड़ी देख पाती, तुम्हारी जमती रूह को अपने बर्फीले हक के बगैर वह इख़्तियार-ए-मौत? ना ही मैं उठ सकती हूँ, तुम्हारे साथ क्योंकि तुम्हारे चेहरे के आफ़ताब परवरदिगार को फीका कर देंगे वह जगमग है कोरा-कोरा, अजनबी सा मेरी तरसती आँखों पे पर वह नहीं, तुम दमकती हो यह सब आँखें चुभती हैं क्योंकि तुम्हें जन्नत की चाहत थी या चाहत की कोशिश पर मेरी आरज़ूएँ नाकाम रहीं क्योंकि मेरी नज़रों में बस तुम थी मेरी आँखें तुमसे लबालब रहीं और इस नापाक फ़िरदौस की ख्वाहिश की कोई जगह ना बची और अगर तुम खो जाओ तो मैं ... मेरा पता आसमान में गूँजती ग़ज़लों को भी नहीं मिलेगा और अगर तुम्हें जन्नत मिल जाए और मुझे सज़ा-ए-दूरी तो वही मेरा जहन्नुम है तो हमें यूँही मिलना होगा तुम उधर, मैं ... इधर पलकों से खुले दरवाज़ों और समन्दरों के फ़ासलों की तरह धुँधली दुआओं के बीच यह कफ़ूर सी रोज़गारी और तन्हाई के साथ