चतुथ अंक
तत : नय त के बवं डर ु अंतक Perils of Destiny / नय त के बवंडर ु ह से
rqEgh ls--- To you नव अि त व क तलाश (Bilingual Literary)
चतुथ अंक
ी म
2017
तत ु अंक: नय त के बवंडर/ Perils of Destiny
ONLINE -DIGITAL EDITION नशुलक (FREE)
Tumhi se (Hindi English Magazine)
Page 1
Editor-Dr. Swaran J. Omcawr स पादक : डॉ
वण जे. ओमकार June July 2017
चतुथ अंक
तु ह से
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
rqEgh ls--- To you
इस अंक म स पादक य (3,4) नय त के बवंडर (6) J. Krishnamurti (9)
Thought and Action (10) THOUGHT AND ACTION (14) Our Motto (17) Buddha Quote (17) च लए शा वत गंगा क खोज कर (18) समपण डा अवतार संह (19) `` दःु ख कैसे आता है ?``
-सुर
मोहन (20)
ान और कम (21) गीता म कमयोग (22) पु तक संसार सुर
मोहन (26)
कम योग क उपमा ववेकान द (27) दो ग़ज़ल (मोहन बेगोवाल ) (28) पानी और लहर ...डॉ. परमजीत चु बर (29) क वता -इंद ु लेखी (29) आप क हमार
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त
फ मी शायर
या (30) (31)
June July 2017
चतुथ अंक
तु ह से
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
rqEgh ls--- To you Friends….
We are making the Tumhi se Magazine bilingual (English and Hindi both) from this issue. May I share here that we rarely introspect. We just love to have concluded truths and ready made answers to our problems. We just follow the thoughts of varied thinkers which are much generalized and rarely suit to our own individuality. Still we try our best to mould our thoughts and behavior accordingly. When we fail we often criticize ourselves for not following properly. But we remain forever shy of putting life and energy to these summed up truths of life. While we discuss a problem we are ever ready to make immediate decisions about persons, situations and circumstances. We no longer care to know when these decisions turn into pre-judgments, prejudices and beliefs. Such decisions once made are generally not revised or reconsidered. We never re-examine our fallacies. The thing is we are not exposed to the charms of a thinking mind; charms of seriously examining a problem; charms of an open heart to heart dialogue or mere charms of a discussion. The discussion that would bring us near the truth; the discussion that enlightens our minds; the discussion that dissolves our prejudices and mal-formed opinion about others; and the discussion that is not mere gossiping or has been started just to kill the time or the discussion that is not aimed at putting forward vain arguments but to find ourselves better through others. Swaran J Omcawr
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चतुथ अंक
तु ह से
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
rqEgh ls--नव अि त व क तलाश
चतुथ अंक
ी म 2017
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------तु ह से....
संपादक य
मा यवर … सू मता क जाँच, उस क तहक कात, एक सफर है वचार का, वचार के ह
वारा. यह मन के गहन अंधेर म उतरने जैसा है .
कोई ऐसा सफर य करता है . वचार के सफर पर चल नकलना, वचार वारा सफर करना, यह कुछ ऐसा है िजस म चुनाव क कोई गुंजाइश ह नह ं. चुनाव यह क चलते रहना है या थक कर, नराश हो कर क जाना है . वचार का सफर तो ग त क ओर अ सर रहता है जो कभी पीछे क ओर लौटता ह नह .ं .. हाँ इतना ज़ र है क इस सफर के दो पहलु बन जाते ह. इस का योजन स पूणतया दो छोर म बंट जाता है . िजस के भावी प रणाम भी अलग अलग हो जाते ह. यादातर चंतक ( वचारक) वयं को एक नरथक गोलाकार पथ पर डाल लेते ह. यहाँ एक ह तरह के वचार अपनी पुनराविृ त करने लगते है वयं को दोहराने लगते है जो चंतक के लए बेहद घुटन व यथा का कारण बनते ह. सह
बार
प रभा षत कये श द को पुनः प रभा षत करने लगते ह. ले कन एक
टृगत मननशील चंतक रे खीय सफर म आगे बढ़ता जाता है . उसमे भी ठहराव क स भावना है अगर वह पहले
ह से मन म ि थर कर लए वचार को आ य दए हुए है . जब तक वचारक बा य मागदशन क बैसाखी थामे है उसे अ
या शत अंत ि ट क
ाि त नह ं हो सकती.
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Perils of Destiny / नय त के बवंडर
यह चंतन जाग कता क उ नत अव था म ह हो सकता है . ऐसी अव था म यि त जाग क ओर शांत दोन अव थाओं म रहता है . यह एक मौत के वंद यु म उतरने जैसा है . मान ल आप एक तलवारबाज़ी के वंदयु म ल त ह. जैसे आप अपने
त वंद
का सामना करते ह आप बेहद सतक हो जाते ह. आप एक ण के लए भी यह सतकता खो द तो आप के टुकड़े टुकड़े हो सकते ह. बड़ी सुगमता से आप इस उपमा को वचार के अंतर व व द से जोड़ सकते ह. अंतर व व द म भी आप एक यो ा के े म म होते ह. ले कन यहाँ व द वचार का है . वरोध म एक वपर त वचार है या वह वचार जो मूल वचार से अलग हो चक ू ा है . ऐसा कर के यह नया वचार पहले वचार को परािजत करने या उसका पूण प से वध करने के लए त पर है . आप तब वचार के व द का यु
थल बन जाते ह. नह ं जानते क आप ने कस वचार को ाथ मकता दे नी है और कस को छोड़ दे ना है . कस
वचार को आप ने अपनी रे खां कत या ा के लए चन ु लेना है और कसे नौका के डेक से बाहर फक दे ना है . यह फैसला आप ने ह करना है . वचार के व द का यु
थल आप ह. आप क चेतना ह आप क नौका है . इसी नौका पर
सवार है यु के लए त पर वचार का हजम ू . आप ने इस नौका को इस चेतना को वचार से संल न तो नह कर लेना इसे अलग अनास त व अस ब रखना है . आप क नौका आप के वचार से अलग है . होता यह है क बहुत सारे चंतक वयं को वचार के साथ बाँध लेते है . वे यु म भागीदार करने लगते ह. इस या उस वचार का साथ दे ने लगते ह. आप क जाग कता क पीड़ा तब वचार के कलेश व हष के साथ दख ु मय या हषमय हो जाती है . आप क नौका आप के वचार से अलग है . फर भी हम अ ात के भंवर म उतरने का खतरा तो मोल लेना ह होगा. यह अं तम फैसला आप के तकशील मन क उपज नह .ं न यह आप क इ छा या अ न छा से नकला है . न अ ल बु म ता ह पल तो आपक हर अकल बु मता,
ान या पाि ड य से मला है आपको.
ान को दरू रख कर आप के पास आया है . यह हर
ात का अंत है . इस पल म आप का
उतरना अक मात है . यह अंत है वीकृ त व अ वीकृ त का. हम जब तकशील मन से ऊपर उठ कर उ चतर वचार रहत मन म वेश करने क बात करते ह तो हम पहले से पढ़े हुए व तत ृ वणन से तुलना नह ं करनी है . कोई ऐसी अव था का वणन कर भी नह ं सकता. इस का कोई भी वणन उसी तकयु त बु
से ह नकलेगा. यह बु
उस क बात हम नाशवान बु
वचार या यादा त या आप के समय सीमा क
परे खा म बंधी है . जो सवका लक है , अन वर है
एवं वचार से कैसे कर सकते ह.
इस समाि त म हम अपने सफर क उस उ प त का आभास होता है जो समय सीमा से परे है . यह अ तसू म सफर है िजस का वणन करना मुि कल है . इसे दस ू रा ज म कह दे ना भी अ तशयोि त नह ं होगी.
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Perils of Destiny / नय त के बवंडर
इस अं तम वा त वकता से सामी य केवल अनभ ु व करने क बात है ... वणन करने क नह .ं आप मीठा खाये बना उस का बयान नह ं कर सकते और न ह खाये हुए मीठे का वणन इस तरह से कर सकते ह क दस ू रे को उस मीठे का आभास हो जाये. दोन सूरत म आप को पहले मीठा खाना होगा. यह तो अि त व है हमारा, सदा से मु त, बंधन रहत, श दो क दासता से मु त, वणन क ग़ल ु ामी से आज़ाद. इस बंधन मु त अि त व म चेतना का हर काय शु य से आगे बढ़ता है . यह चेतना उस ाचीन जीण चेतना से अलग हो जाती है जो कु टल धूत तब
ान से भर रहती है . यह उस हमेशा उकसाने क चने को तैयार अहम ् से भी मु त हो जाती है . जो चेतना को अपने
वक प से ऊपर उठने ह नह ं दे ती.यह आप के अि त व क पुनराव ृ त है . यह ज म है फूल का जड ु ी हुई पि तय क
कल से. यह ज म है ततल का उस सु त यूपा से. यह ज म है प ी का िजस के पंखो को अंडे क द वार ने घेर रखा है . यह कोई जीवन समाि त का सफर नह ं बि क नए जीवन क शु आत का सफर है . ले कन यह जीवन के
त
तब ता का
सफर है िजस म आप वक प का चुनाव भी करते हो और उन वक प क िज मेदार उठाने के लए भी वयं को तैयार रखते हो. हम आप क
त
या क अपे ा रहे गी.
वण जे ओमकार
(1)केवल गंग ू े ह बातन ु ो से ई या करते ह| ~ख़ल ल िज ान (2)इ छाओ का संघष कट करता ह क जीवन यवि थत होना चाहता ह| ~ख़ल ल िज ान (3)जबसे मुझे पता चला ह क मखमल के ग े पर सोनेवालो के सपने नंगी ज़मीन पर सोनेवालो के सपनो से मधुर नह होते, तबसे मुझे भु के याय मे ढ़
ा हो गयी ह| ~ख़ल ल िज ान
(4)बफ और तूफान फुलो को तबाह कर सकते ह, ले कन बीज नह मर सकते| ~ख़ल ल िज ान (5)उस जा त क ि थ त कतनी दयनीय ह, जो पर पर वेमन य के कारण कई सं दायो मे बॅट चक ु ह और हर सं दाय वयं को एक जाती मानने लगा ह| ~ख़ल ल िज ान (6) कतना अँधा ह वह यि त जो अपनी जेब से दस ू रे का दल खर दना चाहता ह| ~ख़ल ल िज ान (7)वह उ लू िजसक आँखे केवल रात के अंधेरे मे ह खुलती ह, काश के रह य को कैसे जान सकता ह| ~ख़ल ल िज ान (8)कोई अ भलाषा यहा अपूण नह रहती| ~ख़ल ल िज ान Tumhi se (Hindi English Magazine)
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Perils of Destiny / नय त के बवंडर
या (परु ाने अंक)
( वण जे ओमकार)
(जानकार से अंत ि ट तक) कुछ लोग समझ दौड़ाते ह और कुछ अपनी कांशसनेस या अवेयरनेस. मतलब consciousness को चेतना को वक करने दे ते ह. उन के लए consciousness
वे वयं
खोज करती है . म तो इन दस ु रे लोग म हूँ. म समझ नह ं दौड़ाता. म intellectual कलाबािज़यां नह ं लेता. ले कन फर भी कुछ लोग को लगता है क म समझ म आने वाल बात नह ं करता नह ं भाई /अ पा जान … आप पुनः वचार कर . मेरे साथ सफर म तो consciousness दौड़ती है ..समझ नह ं …
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Perils of Destiny / नय त के बवंडर
हाँ ऐसा हो सकता है के सफर पर चलते हुए हम समझ को साथ वाल सीट पर बठा ल ले कन आगे वाल सीट पर नह ं (बकौल Paramjit Chumber)
अब बकौल Inderjit AhluWalia --म कसी के भी समझ आने वाल या न संपल भाषा म लखता हूँ. तो फर communication gap कहाँ है . शायद वोह लंबी पो ट लखने क वजह से है . मेर पो ट लंबी होती ह. कभी कभी वह 1..2…3…4 सीर ज लेकर कई कई दन चलती ह. लोग का
यान क मती है इस लए
थोड़ा है . वे रा ता छोड़ दे ते ह. र ते म ह गाड़ी से उ तर जाते है ... लंबी पो ट को कौन पढ़े ? last पो ट म "Narinder Bhangu" से बात कर रहा था … वे इंि लश पोएट ह और ब ढ़या लखते ह. हमार बात थी insight या न अंत ि ट के बारे म . वे कहते ह क इनसाइट अपनी अपनी है .. कसी क कसी मेरा सवाल था
े
म कसी क दस ू रे म .…
या insight एक से दस ु रे तक जाती है … या कोई अपनी इनसाइट दस ू रे
म transfer कर सकता है . हम share तो इसी लए करते ह क हमारा आई डया, या information, या अंत ि ट दस ू रे तक पहुंचे... स ा नकला तो है ले कन टाइम लगता है . अगर आप इनसाइट के लए mature नह ं ह तो (यह वा यांश यहाँ ज र है ) ..तो जो आप बाहर से कसी दस ू रे से लेते ह वोह "information" है केवल ..यह information इकठ हो कर mature हो कर knowledge बनती है … knowledge mature हो कर (wisdom) वजडम बनता है तब आप कुछ एक insights के लए अ छे candidate बनते ह . ऐसे तो पूरा जीवन काल गुज़र जायेगा भ या …
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मेरा मनना है क insight के लए इतना wait करना समझदार नह ं . इनसाइट "instantaneous" आती है . पलक झपकने िजतना time लेती है .
अगर आप इनसाइट के लए mature ह … आप का brain इनसाइट लेने के लए खल ु चु का है सजग हो चु का है तब इनसाइट एक मदम त हाथी क तरह आप का मि त क
वार तोड़ कर घुस जाएगी …तब वह एक light डालेगी आप क उस सार
information पर जो आपने पहले उस वषय पर एक त क हुई है . आप को एक वचार thoughts का "rush" या न भीड़ चलने का अनभुव होगा .. . .आप क तमाम पहल जानकार पन ु ः illuminate रौशन हो जाएगी … आप च क कर कहे गे … हाँ यह भी ऐसा है … हाँ यह इस लए है ... एक पलक झपकने क दे र म … पर आप तो "information" और information के च
म पड़े ह . . क कर दे खेगे …
ठहर कर पढ़गे .. हाँ मने information सेव कर ल है … तब आप को पहल इनफामशन से नकलना मिु कल लगेगा याद ह नह ं होती व त आने पर इनफामशन. ऑथर तलाश करते रहते ह उस ने
या कहा था इस के बारे म.
समय नकल जाता है . आप passionate…इमोशनल वचार से जुड़े रहते ह. आप insight के लए
वयं को mature ह नह ं करते.
म insight क तलाश म रहता हूँ भ या … information क नह ं
आप का चाहने वाला वण जे. ओमकार
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Perils of Destiny by: Swaran J. Omcawr एक ह शर र म कई यि त व हो सकते ह. कोई एक जो अपनी चु नंदा फ़ैसलाकुन वक प से बंधा हुआ हो और कोई दस ू रा जो फैसलाकुन सफर क और अ सर है . कोई हो सकता है लगातार भूत काल म रह रहा हो और य थत कारण से आहत भाव को सहला रहा हो िजसका मनमौजी सफर कसी एक ै क पर रहा ह न हो कभी. और कोई अगला िजस के पास ै क तो हो ले कन सफर म बढ़ने क उ चत मनःशि त क कमी हो. हम ढे र सरे यि त व का म ण ह तो ह. हम ऐसा संदेह नह ं है क हमार िज़ दगी क शु आत कब हुई, ले कन हम न चत तौर पर नह ं कह सकते क हमारे िज़ दगी के सफर क शु आत कब हुई होगी. यादा से यादा हम
ान है क हमार िज़ दगी व भ न कम एवं
तकम कारण एवं
प रणाम का उ े क (plethora) मा है . हम अपने इद गद लोग के साथ च ड़या छ के क गेम ह तो खेल रहे है . हमारे कम दस ू र ओर जा कर
तकम बन रहे ह और
तकम उ टा और यादा कम को ज म दे रहे ह.
ले कन करम हमारे अपने भीतर ज म कैसे लेता है . या वह मन क उपज है या ि थ तय क . मन ि थ तय का
तरोध करता है और नए
कम को ज म दे ता है . हम अपने मन को समझ तो हमार िज़ दगी क बहुतात कम - तकम से भर पड़ी है . कम का बीज तो हालात म ह है . हम हालात के बस म रहते ह. या हम अपनी ि थ तयां वयं चन ु ते है जो हमारे भीतर के कम क ज मदाता ह. या कोई ऐसा कम होगा जो सभी
तकम का ज मदाता होगा.
या हमार िज़ दगी म ऐसा कोई ब द ु रहा होगा िजस पर हम अपनी अंगुल टका कर कह--हाँ यह सफर यह ं से शु हुआ है . इसी थान से और इसी घटना या दघ ु टना के साथ.
मूलतः कम के बीज मन से तो नह ं उपजते. मन तो वाभा वक प से नकमण व आलसी है . मन केवल
तवाद करता है वह
भी अहम ् कहे तो. कुछ ि थ तयां हम चुन लेते ह और कुछ अलग जो ह वे दस ू रे चुन लेते ह. उ ह ि थतय से उपजे कम के बीज मन क उवर भू म म उपजते ह. अगर यान से दे ख तो एक अकेला कम पुरे वातावरण म फ़ैल जाने को और कई
तकम को
ज म दे ने को तैयार है . एक बार नह ं बार बार वह मेरे पास लौटता है और हरे क खलाडी जो इस कम से पास से या दरू से जड़ ु ा हुआ है कम
तकम का अपना ह सा चुन लेता है .
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य द म अपने अतीत म जाऊं और अपने कम के उन बीज क तलाश क ँ िजनके अंतह न
तकम म ढो रहा हूँ तो म दे खता हूँ
क ये बीज केवल एक जीवन काल का ह सा नह ं. पी ढ़यां क पी ढ़यां इन बीज को उपजने म लगी रह ह. इस जीवन काल म ह मेरे साथ कई घटनाये या दघ ु टनाएं हो चुक ह िजन के अंतह न
तकम मेरे साथ साथ चल रहे ह. हो सकता है कोई आतताई
रहे ह मेरे जीवन म िज ह ने अंतह न क ट दए. म उन को वह कह नह ं सका जो सदा मन म दोहराता रहा- "तुमने मेर त
या पर गौर नह ं कया. अब म तु हे बताऊंगा लोगो - इंतज़ार करो, तूने मुझे तबाह कया अब मेरा वार भुगतो".
ऐसे ह कम- तकम के बीज हरे क क िज़ दगी का ह सा ह. ये पता पु ख से चल कर आने वाल कई पी ढ़य म रा ता बना लेते ह. हर बार इन से नया पौधा ज मा लेता है जो पहले से बड़ा होता है . हर बार इस से उपजे बीज यादा होते ह जो इद गद फैले लोग
वारा चुन लए जाते ह. हर बार कोई पतामह या पता या कोई पु
नय त वार दए कम समय का प चाताप
करता है क वह अपने आततायी सताने वाल को अ छा सबक नह ं दे सका. नतीजतन वह अपने को कई ज म क या ा म उलझा हुआ पाता है . (तक क
ि ट से हम इसे पीढ़ दर पीढ़ का सफर कहना चा हए, बना तक के हम इसे ज म का सफर कहते ह)
अपने जीवन काल म एक पता अपनी औलाद को बहुतेरे मान सक नदश दे ता रहता है , इस के साथ ऐसे यवहार करो, उस के साथ ऐसा. हमेशा ये नदश चेतन प से ह नह ं दए जाते, ये अचेतन ह होते ह और औलाद मानती रहती है इनको. करते करते ये वंश दर वंश क मान सकता म घुसे रहते ह और एक "पारवा रक अहम ्" का ह सा बन जाते ह. यह अहम ् तो पीढ़ दर पीढ़ सफर करता है . म यहाँ अपने पता के प म ह हूँ. पता गया तो नह ं कह .ं यह अहम ् एक पा रवा रक पेड़ है िजस क अंतह न औलाद पता पु ख के पुराने कम भुगत रह ह. हमारे कम का यह पेड़ इस पूरे
मा ड सा बड़ा है . इन कम के प रणाम का दायरा इन के कारण से बड़ा है . कारण क तलाश
कोई नह ं करता. य करे गा कोई जब तक वह प रणाम के माया तं से संमो हत है . या यह है हमार नजी िज़ दगी. या हम नतांत यक न है क हम कुछ एक लोग को अपनी यो यता का प रचय दे ने के लए पीढ़ दर पीढ़ सफर म उलझे ह. या हम उन लोग क पहचान भी नह ं रह िज ह ने हम इस ज म ज म के अंतह न कम म उलझा के छोड़ दया. या मेरे ज म के अंतह न सफर का मूल कारण यह है . य द है तो म तो गम ु हो चक ू ा हूँ. मेरे आतताई िज ह ने मुझे क ट भरे सफर पर छोड़ दया और अब वे कहाँ है . मुझे नह ं मालूम. म तो अपने जीवन के सफर का मंत य भी खो चूका. म तो सफर के बीच बीच खो गया. मेरे जैसे और भी कई.. म तो सफर म खो गया ले कन यह ईगो यह अहम ् जो ज म से सफर म साथ साथ चल रहा है वह तो जानता है . एक तर के से म हमेशा अवसर क तलाश म रहता हूँ. ि थ तयां बना लेता हूँ. लोग क तलाश म रहता हूँ जो मेर ईगो क मेरे इस अहम ् के ज म पुराने बदले क आग को शांत कर सक. Tumhi se (Hindi English Magazine)
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म इस कम म गहरे डूबे
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मा ड के समंदर म खो चक ू ा हूँ. मेर चेतना क कंपास पुराणी हो चक ु है , खराब हो गई है . थोड़ा सा
काम जो कर रह है वह मेरे नजद क मंतव के काम आ रहा है . कैसे व त क शाक से नबटूं जो मेर नौका को डुबो दे ने के लए समंदर से नकल आई ह. कैसे पुराणी जर ज़र हो चुक नौका के छ
को बंद क ँ जो नौका को कभी भी डुबो सकते ह.
इस सब के बीच न केवल सफर म सफर का मंत य भी खो चूका हूँ. सफर का योजन ह सफर के योजन क तलाश करना रह गया है . जैसे जीवन का ल य, जीवन का ल य या है इसी क तलाश है मा . कौन बताएगा मेरे सफर का ै क. कौन डालेगा मुझे सह पथ पर दब ु ारा. मेरा सफर तो वचार का सफर रह गया है जो एक वचार से शु हो कर दस ू रे वचार तक समा त हो जाता है . या म एक वचार से दस ू रे तक, एक इ छा से दस ू र तक क या ा ह कर रहा हूँ केवल? बुनयाद तौर पर म अपने सफर का योजन तभी तलाश कर सकता हूँ य द म अपने पूव न चत वक प या पूव नधा रत ल य से पूर तरह अलग हो जाऊं. म नय त से छुटकारा तभी पा सकता हूँ य द म पहले से नधा रत कये ल य (goals) को छोड़ दँ .ू ये अंतह न ल य तो कभी पुरे ह गे ह नह .ं जीवन अपनी सड़क पर वभाजन लए बैठा रहे गा जब तक जीवन को दस ू रे छोर से दे खता रहूँगा. वह कई वक प लए बैठा है . कई बार पर पर वरोधी वक प या पुराने वक प से उपजा कयो नया वक प. ये वक प समा त नह ं ह गे. ON THE NEARER END, NEARER TO YOUR HEART, IT ALWAYS WAS ONE SINGLE TRACK JOURNEY, INNOCENTLY SO. ले कन इस छोर पर, यहाँ म खड़ा हूँ. जो मेरे दल के नज़द क है इस छोर से सफर का तो एक ह वक प है . इस का ै क तो केवल एक है . FREE WILL EXISTS NOT AS ONE FORMING THE CHOICE BUT AS A STATE OF ONE FORMING THE CHOICE. FREEDOM IS NOT SOMETHING THAT FREES YOU FROM THE DETERMINED CHOICES. FREEDOM IS A STATE OF BEING FREE. वतं इ छा केवल वक प बना लेने म नह ं ब लक वक प बनाने वाले क अव था है . वतं ता वह नह ं जो वक प से आज़ाद करती है , ब लक वतं ता वतं होने क अव था है . WHY TO BE WITH ONE WITH DETERMINED GOALS OF JOURNEY? WHY NOT BE WITH ONE WHO IS NOT JOURNEYING WHILE IN JOURNEY. कस के साथ हो या ी. वह िजस के पूव नि चत वक प ह या उस के साथ जो सफर म साथ होते हुए भी कभी सफर म नह ं ता. YES THERE IS ONE WITHIN, BUT NONETHELESS UNIDENTIFIABLE AND ILLUSORY. WHO IS THAT ONE WHO IS NOT JOURNEYING WHILE IN JOURNEY? हाँ, है कोई जो भीतर है , ले कन पहचान के बना और अवा त वक. वह ह है जो सफर म साथ होते हुए भी सफर नह ं करता.
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तु ह से
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
I say again that I have no disciples. Every one of you is a disciple of Truth if you understand the Truth and do not follow individuals….Truth does not give hope; it gives understanding…. There is no understanding in the worship of personality…. I still maintain that all ceremonies are unnecessary for spiritual growth… if you want to seek the truth you must go out, far away from limitations of the human mind and heart and there discover it- and that Truth is within yourself. Is it not much simpler to make Life itself the goal than to have mediators, gurus, who must inevitably step down the Truth and hence betray it? … I say that liberation can be attained at any stage of evolution by a man who understands. To wander in stages, as you do is unessential….Do not quote me afterwards as an authority. I refuse to be your crutch. I am not going to be brought into a cage for your worship. When you bring the fresh air of the mountain and hold it in a small room, the freshness of that disappears and there is stagnation… I maintain that truth is a pathless land, and you cannot approach it by any path whatsoever, by any religion, by any sect. that is my point of view and I adhere to it absolutely and unconditionally … If you first understands that, then you will see how impossible is it to organize a belief. A belief is purely an individual matter and you cannot and must not organize it. If you do, it becomes dead, crystallized; it becomes a creed, a sect, a religion to be imposed upon others. That is what everyone throughout the world is attempting to do. Truth is narrowed down and made a play thing for those who are weak, for those who are only momentarily discontented. Truth cannot be brought down; rather individual must make an attempt to ascend it. I do not want to belong to any organization of a spiritual kind. If an organization be created, it becomes a crutch, a weakness, a bondage, and must cripple the individual and prevent him from growing; from establishing his uniqueness, which lies in the discovery for himself of that absolute, unconditioned Truth.
-J. KRISHNAMURTI [1928] [as he answers the queries of the reporters when he decided to dissolve ‘The Order of the Star’ a spiritual organization started in his name; when asked whether it is true that he does not want disciples; why he telsl us that there is no God; and whether he claims to be the vessel that contains the Truth etc.]
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तु ह से
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
THOUGHT AND ACTION (Swaran J Omcawr)
The world is split in "action" and "thought". So are we the men. We find among us "men of action" and also we find "men of thought". One cannot deny that thought produces action. There cannot be a "thoughtless" action howsoever transitory the thought may be. It may be a passing thought, not fully mature or just an idea before the action is performed. Action may proceed immediately or it may be late but thought always precedes action. Thought plans action. Thought also premeditate over repercussions. Thought and action are so bound with each other, so closely knitted that they can't be separated. But observe closely this so called pair has actually made a wide chiasm in the world. World is split in action and thought- half of world is oriented towards action and another half oriented towards thought. And there seems to exist a separate world of action and of thought. To explain it in lighter sense a 'man of action' acts over thought and a 'man of thought' sits over the thought. Man of action is quick and may seem reactionary and impulsive. But he is so much involved in action that he carries action immediately. He is so action bound that he won't stay with mere thought of action for longer time. He becomes restless without work. He has blue print of his actions ready for next few days or next few weeks or even for few months and few years. But while he performs a particular action he is not busy with thoughts for other actions. Why so, because he is not "man of thought". In its opposite stance, the "man of thought" is highly "verbose" inside with little activity seen in the outer. He plans for actions so thoroughly and keep revising the plans that the action he thinks would happen in future rarely happens. His plans never leave the
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June July 2017
चतुथ अंक
तु ह से
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
thoughts, never become action. Plans are written and many a times over-written in the thoughts. Every one of us takes up action as a choice or as challenge and makes it as unconscious goal. This is unconscious involvement in action that a thoughtful person rebels for. He sees people running from pillar to post for senseless activities. With his own continuity in scrutiny of action he develops distaste for it. He wants to evaluate every action first before he proceeds for action. Most of time his analysis says -no, don't proceed. So he becomes a man of no action in life. Can we control our activities in a manner that action fails to happen. Can we stop ourselves performing an action? In a dining hall full of mouth salivating dishes, for how long can one stop filling his plate? Yes, this can happen when we are severely reprimanded for that. Unless we take it certain that this food is not for our consumption. But what to conclude when no such forewarning is there? When all warnings comes from within. World of action it seems, is regulated by "thoughtfulness" and "thoughtlessness" of men. Thoughtful men create a "world of effort" and its imbursement in the form of result or reward. Thoughtless men produce chaos and bedlam for their own mental pleasure. Their action is not rhythmic and orderly. They suffer for their "senseless actions" but the mental delight they get by "upsetting" others is more enjoyable than their own misery. An action oriented man is derived for action by some "sense of duty". He is also derived for action by the sense of "excellence and reward" after accomplishment. All these outcomes of action denote a "thoughtful man" in him. He is thoughtful so he does not perform "senseless action". What actually is the senseless action for a man? Is it guided by impulse which a man himself does not know. An unconscious act. Is it something which does not produce a reward or also does not create a praise or "excellence" in him either from self or from others?
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चतुथ अंक
तु ह से
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Is an act of violent destruction of life and assets a senseless action? Is a rebel or radical a senseless performer? He too is motivated by some sense of self praise or praise from few of his alike. Is a sense of praise, a sense of self gratification too? Then how does a 'violent man' becomes a senseless performer. He is performing actions by some "self motivation" though others may dislike it but he knows some others may love it and would shower praise. So a violent performer is too guided by thought. But not a single person could be regarded as 'non violent' and 'friendly' long as he saves himself from external violations to his peace by an 'impulsive' rebuke. He may kill a fly or man no matters. What to say of a shrewd immoral performer who does all actions for his extreme self love and self satisfaction. His sense of pleasure seeking may become unbound yet he too is performer with mediation of thought. A thought, thus could be called as 'primary guide' for action. So we must seek origin of thought to seek liberation from action specially actions which create extreme degree of bondage? A thought may push someone to act or may otherwise stop him to act, in both cases the action happens in the mind first. This action is production of thought. A thought is behind all 'action reaction' sequence which overstretches an action to lifelong activity to accomplish a 'single important act ' to its end point. Very rarely an end point is not reached in the life time of individual so he hands over his unaccomplished activities to his 'progeny'. So if we loathe humans for their extreme 'enthusiasm for action' not knowing they are creating a lifelong bondage for action-reaction sequence in their life, we also love the action as long as it is satisfying and rewarding. We loathe it when it creates bondage. But we can't observe the vicious circle of reward and action which is at the center of bondage of action. The actions performed by men are bound to produce some result or reward for them. Result or outcome of an action is physical and seen as change in the immediate change in our environment. But reward is psychological and linked to the performer. Tumhi se (Hindi English Magazine)
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चतुथ अंक
तु ह से
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One cannot deny the result. The result may be congenial or maybe not.
But psychological reward for action in the form of praise or criticism is at the center of bondage. This is the praise which motivates most of our actions. This is the criticism which creates new ground for modification of past actions. (Swaran J. Omcawr)
….OUR MOTTO
For there is a sphere, Brethren!
Pure physicality
where there isneither earth nor water
Pure movement of awareness
light nor air
within the body, within the brain within the neurons.
neither infinity of space nor infinity of consciousness
no influence, religious or dogmatic
nor nothingness
psychological or spiritual
nor perception
no preformed opinion of these
nor absence of perception
no guidance, no conclusion
neither this world intense questioning
nor that world
intense effort without will
both sun and moon
intense need to find
I call this- neither coming nor going
till one is very near to
neither motion nor rest
to cross the borders
neither death nor birth It is without stability without procession without a footing
till one is very near to the pure intelligence within
that is the end of sorrow
till one is very near to have
"Buddha"
an INSIGHT !!! Tumhi se (Hindi English Magazine)
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चतुथ अंक
तु ह से
च लये शा वत गंगा क खोज कर (चतुथ का ड) -
पुनराविृ त: य थत
गंगा
गंगा क
ा न के
यथा ने
मुसीबत , परे शा नय इस
ान ने उसे
वे सभी यहां
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वण जे. ओमकार
ा न से संबो धत है . दय को झजकोर दया है . गंगा उसे बताती है मनु य क तमाम वसंग तय ,
का कारण उस का ओछा
कृ त से दरू कर दया है . वह
ान है िजसे वह अपनी तर क का
याय मान रहा है .
कृ त को अपना ल य नह ं ल य का साधन मानता है .
ान गह ृ इस दे श म ह तो ह यहां अरा य दे व
वण संहासन पर वराजमान होते ह
ान माया के जाल से मुि त के लए छटपटा रहा है
यहाँ माया से आ वभाव हमारा बाहर
दखावा ह तो है
और कतने दःु ख और शम क बात है क सामायक दौर म अ या मक जगत ह ऐसे बाहर
दे रहा है
ानी का चौथा दे श क भू म
पर जैसे उतर है गंगा
दखावे को मह व
वचन (४)
वग से बादल के शखर से
मन क भू म पर उतर है गंगा अनुभू त के शखर से मन क भू म के रह य भी कम रह यमय नह .ं मन क भू म म
सदै व से. साधारण से साधारण मन म फुटत होने क
नह ं उवर है
ान के कम के, रचनाि म ता के बीज
बल स भावना रहती है .
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चतुथ अंक
तु ह से
शु आती मन बड़ी तेज़ी से कम व
और बीज को फॉर और मन क भू म
ान के बीज को
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हण करता है . वे बीज
ान व कम से भर जाती है वह और कम को
आने से रोक दे ती है . मन क भू म ऐसे ह
उ
से म , म
से उ
ान को मन म
के वत ृ मे चलने के लये
आशा थी एक करन के
सुषुि त से जा त के वत ृ मे चलने के लये बा य है
बखरने क
सथूल के य द नयम ह- तो सू म के अपने सथूल म सू म का आि त व है इस का
म
माण भी तो यह मन ह है
मन जो ‘म’है . मन जो मनन है . मन िजस का आि त व उस का ज म वधन व वनाश
थूल से बंधा है
थूल के साथ न चत है
जैसे सथल ू को चलाने हे तु हाथ पांव ह सू म को चलाने हे तु कम से पहले कम का वचार कम का
ाण ह
ान है .
वो चु बन
सच से भी बोहत आगे
इन सब से अलग आ मा जो न सथूल न सू म
समरपण म ल न
ानमय
इन सब का सा ी, फर भी सब से अलग चत या न जानना िजस का आन द िजस क आव था वह आ द से अ त तक स य
वभाव
जब हम हम हम न थे ना तुम तुम थे
फर भी अना द व अ न य है .
ना म म था
जगत म व यमान ले कन जगत से अलग ऐसे आ मा क अनुभू त उस का
वो आग़ोश
ह ठ पर
वपनमय उस क आव थाय ह.
ाण न अ नमय न
बेपरदा
जो ठहर गया था
ाणमय, मनोमय, व ानमय व आन दमय उस के आवण
य न
परदा धीरे धीरे
ये मेरा सच है
ान उस का अि तम छोर है .
जो न इ
जैसे उठता हो
करता यार को
मन का मनन व वचारो प त उस का अ म छोर, बु व उस का म य भाग
जा त, सुषुि त व
चाँद समटा था लपटा एक बादल म
बा य है . मन क भू म ऐसे ह जा त से सुषुि त,
अ नमय,
समपण
यादा बीज को जनम दे ते रहते ह. फर जैसे जैसे
डा अवतार संह
ान ह तो है सम त
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ान का
ोत
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वह चत से चेतना, चेतना से व , वह व
तु ह से
से व या, और व या से
वेद
ान बनने का सा ी है .
ऐसे
ान से ओत ोत मनु य बन जाये जब व वान व वान से
ान
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`` दःु ख कैसे आता है ?``
ा न से महा ा न तो वह आ मा को लगपग भूल ह जाता है वह आ मा का मनन करता है केवल, दशन नह ं बा य
ान क और अ सर मन सोचता है -
आ मा क अनुभू त होगी जब होगी मन का मनन बना रहे ा न क महा ा न क उपा ध मल जाये एक बार यह बहुत है . अब आ मा का दशन तो न य अ न य है यह दशन एक पल का नह ं एक बार का नह ं
तो सन ु ो, म ो !
हर पल का हर बार का है . पर
ा न मन का अलग है
वभाव और जो
वभाव
ा न का है
क दःु ख
जो उसका मन है वह है मनन (Thinking) का पुजार उस के लए तो एक बार आ मा का दशन हो जाये वह
मा ध से हो या ताडी से, म दरा से
म
शि त से हो या म
स
बेआवाज आता है
से. बस थोड़ा सा कपाट खुल जाये.
क दःु ख नंगे पांव आता है
फर तो बस मन का मनन बना रहे, क पना शि त अमर रहे. सब वणन, सब ववण, कुछ इधर के कुछ उधर के कुछ जोड के कुछ
तोड के
दःु ख ऐसे आता है
बात तो बन ह जायेगी
क दःु ख
आ मा क परम आ मा के चाहने वाल क क भीड तो मल ह जायेगी
आपके जूते पहन कर
अंध
चला जाता है ....!
ालुय क भ त क . कह ं द ु नयां म तो जाना नह ं
चम कार दखाने.
वह तो मंच पर पहर भर श द
क पना से ह तो समां बांधना है
का चम कार दखाना है
ेम का
ान से
-सुर मोहन
… ( वण जे ओमकार) Tumhi se (Hindi English Magazine)
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तु ह से
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ान और कम ान-माग म जीवन के हर पहलू क जानकार तक वारा कौन, कब, कैसे, कहां आ द मा यम से बु कम म ह
वारा नधा रत कर ा त क जाती है । बना कम के
तो ऐसे
ान का कोइ औ च य नह ं।
ान क साथकता है । उदाहरणाथ य द कोइ यि त गाड़ी क
जानकार तो रखता हो पर तु समय आने पर वह य द अपने इस
न के
ेक के बारे म परू
ान के अनुसार ेक नह ं लगाता
ान को यथ ह समझा जाएगा। अपने कत य को पहचान कर उसे अपने पूरे साम य, ेम
और सेवा भाव से नभाने को कम-माग कहा जाता है । कम-माग म
ान का पूणत: अभाव नह ं
होता। कौन सा कम करना चा हए और कौन सा कम नह ं करना चा हए, कौन सा कम कब और कैसे करना चा हए आ द
न का नदान केवल मा
ान से ह कया जा सकता है ।
येक कम क
ान एक मूलभूत आव यकता है । उदाहरण के तौर पर कपड़ा बनाना जुलाहे का कम है और यह कतइ नह ं सोचा जा सकता क यह कम जुलाहा बना
ान के कर सकता है ।
ान क अ धकता
अथवा प रप वता का सीधा स ब ध कम क गुणव ता से है । कम माग म कम क है । और
धानता होती
ान Secondary होता है । जैसे कम-माग म
ान का पण ू त: अभाव नह ं होता उसी तरह
ान-माग म कम का पूणत: अभाव नह ं होता। दोन
ान और कम भाव को उ प न करने वाले
होते ह और ये भावनाओं (सुख, दख ु आ द) के संसार को पैदा करते ह। ग त के लए
ान, कम व
भाव (भावनाओं के संसार को उपासना का ड के नाम से भी पुकारा जाता है ।) म सांमज य होना नता त आव यक है । गीता के चलण के प चात तीन श द- ानयोग, कमयोग व भि तयोग बहुत सुने व पढ़े जाते ह।
ानयोग
ान-माग व कमयोग कम-माग का पयाय है । भि तयोग का
अथ इस प म कया जाता है क यह वह अव था है जहां ववेक का कोइ काम नह ं पर तु ऐसा अथ यथाथ से बरगलाने वाला है । भि त से अ भ ाय ेम और समपण को लेना चा हए। उ चत है क इस श द को भाव का ड व उपासना का पयाय माना जाए।)
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गीता म कमयोग गीता म कमयोग ोत-
थ - “गीता या कमयोग रह य”
"गीता या कमयोग रह य” नामक
थ म बाल गंगाधर तलक ने गीता का
मूलम त य कमयोग ह बतलाया है। जो क न काम कम ह है। न काम से ता पय – ‘कामना से र हत या वयु त’ न काम कम के स ब ध म गीता का व लेषण न न मा यताओं पर आधा रत है – कामना से वशीभत ू कम करने पर फलांका ा या फल क इ छा होती है जो क उनके सुखादःु ख प रणाम से बाँधती है। और यह आगे भी पन ु ः उसी-उसी कार के सुख-दःु ख प रणाम को ा त करने क इ छा या संक प को उ प न करती है। अथात ् वैसे-वैसे ह कम म लगाकर रखती है। इ ह ह सं कार कहा गया है। ये सं कार तब तक भावी होते ह, जब तक या तो फल को भोग करने क
मता ह समा त हो जाये (अथात ् म ृ यु
या अ मता क ि थ त म) या फल के भोग से इ छा ह समा त हो जाये (तब अ तोग वा कम को करने क इ छा ह समा त हो जायेगी और इस कार का य कम ह नह ं ह गे तो फल से भी नह ं बँधेगे)। उपरो त ववेचन से प ट है क फल के प रणाम से आसि त समा त होना उनम भोग क इ छा समा त होना ह सख ु -दःु ख के प रणाम या कम के ब धन से छूटना है। इसीप र े य म गीता अपने व लेषण से न काम कम या अनास त कम क अवधारणा को
तुत करती है।
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गीता म कम क स व तार चचा क गयी है। एवं कम क ग त गहन बतलायी गयी है – “गहना कमणो ग त”। कृ ण कहते ह – कम को भी जानना चा हये, अकम को भी जानना चा हये, वकम को भी जानना चा हये। इस कार गीता म कम के िजन कार क चचा आयी है, वे ह – कम, अकम, वकम आस त एवं अनास त कम न काम कम न य, नै मि तक एवं का य कम न काम कम या अनास त कम न काम कम या अनास त कम – न काम कम व तत ु ः यह बताता है क कस कार कम कया जाय क उससे फल से अथात ् कम के ब धन से न बँधे। इसके लये ह गीता म
स
लोक जो क बारं बार उ ले खत कया जाता है –
कम येवा धकार ते मा फलेषु कदाचन। मा कमफलहे तभ ु ू मास गोS
वकम ण।।
अथात ्, “तु हारा कम करने म ह अ धकार है, उसके फल म नह ं है, तम ु कमफले के कारण भी मत बनो तथा कम को न करने (क भावना के साथ) साथ भी मत हो ”। गीता का उपरो त लोक कमयोग के स ा त का आधारभत ू लोक है तथा व भ न त वमीमांसीय आधार( स ा त) को भी अपने आप म समा हत करता है
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1. गुण का स ा त – गीता के अनस ु ार सम त कृ त सत ् रजस ् तथा तमस ् इन तीन गुण क न पि त है। इस लये कृ त को अनु प मानव दे ह भी
गु मक है। इसम सतोगण ु से
अनभ ु ू त तथा ऐसे ह काय करने क गुण ह। इसी कार
गुणा मक भी कहा गया है। इसी के सुख आन द दायक
ेरणा होती है। तथा इन फल से बाँधने वाले भी ये
या परक, काय को करने क
य क रजोगुण का वभाव ह
ान व ृ
विृ त रजो गण ु के कारण होती है
या है। इनसे सुख-दःु ख क म
त अनभ ु ू त होती है।
इस कार क अनभ ु ू त को कराने वाले तथा इनको उ पा दत करने वाले कम म लगाने वाला रजो गुण है। अ ान, आल य जड़ता अ धकार आ द को उ प न करने वाला तमोगण ु कहा गया है। इससे दःु ख क उ पि त एवं अनभ ु ू त होती है। इस कार सम त दःु खो पादक कम या ऐसे कम जो आर भ म सुखद तथा प रमाण म दःु खानभ ु व उ प न कराने वाले तमोगण ु ह ह – या ऐसे कम/ फल तमोगण ु से े रत कहे गये ह। इस कार सम त फल के उ पादककता गुण ह ह। अहंकार से वमू ढ़त होने पर वयं के कता होने का बोध होता है। ऐसी गीता क मा यता है। 2. अनास त तथा न
ग ै ु यता - उपरो त व लेषण से तीन ह गण ु के व प के
वषय म यह कहा जा सकता है क सुख एवं दःु ख को उ प न करना तो इन गुण वभाव ह है, और मानव दे ह भी कृ त के इन तीन गण ु के संयोजन से ह न मत है, तब ऐसे म वयं को सख ु -दःु ख का उ पादन कता समझना भल ू ह है। ये सख ु -दःु ख प रणाम या फल ह, िजनका कारण कृ त है। अतः इनम आस त होना (आस त-आ सकना गुण क जगह) ठ क नह ं है। (मा कमफल हे तभ ु ू – कमफल का कारण मत बनो)। इसी स दभ म गीता म न Tumhi se (Hindi English Magazine)
ग ै ु य होने को भी कहा गया है। ( न Page 24
ग ै ु यो भवाजन) ु June July 2017
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पन ु ः या कम करना ब द कर दया जाय ? गीता ऐसा भी नह कहती। य क गीता क
प ट मा यता है क कम कृ त ज य तथा कृ त के गण ु से े रत ह। अतः जब
तक कृ त का भाव, पु ष पर रहे गा ( कृ त से पु ष अपने आप को अलग नह समेझग े ा) तब तक गण ु के अनस ु ार कम चलते रहगे। उनको टालना संभव नह ं है। ( इसी प र े य म गीता म कहा गया है - मा सङंगोs तुकम ण – अकम के साथ भी मत हो)। क तु जब ऐसा ववेक (अ तर को जान सकने क बु , वभेदन कर सकने क मता) उ प न हो जाये या बोध हो जाये क सम त कम कृ त ज य ह, तब कम से आसि त वंयमेव समा त हो जायेगी। ऐसी ि थ त म कम, का य कम नह ं ह गे। तब वे अनास त कम ह गे। यह आ म बोध क भी ि थ त होगी य क आ म व प जो क कृ त के भाव से पथ ृ क है का बोध ह ववेक या कैव य है, मो है। इसे ह कम योग कहा गया है। [1] कृतैः
यमाणा न गुणैः कमा ण सवशः। अह कार वमूढा मा कताह म त
म यते।। - गीता 3 / 27 त व व तु महाबाहो गण ु कम वभागयोः। गण ु ा गण ु ेषु वत त इ त म वा न स जते।। गीता 3 / 28 [2] केवल – अकेला, कृ त से अलग, आ म या न वंय, अ य सभी वकार से र हत । [3] “मु यते सव दःु खैबधनैय मो ः” – जहाँ(जब) सभी दःु ख एवं बंधन छूट जाये, वह मो
है।
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पु तक संसार सुर मोहन फलसफा आज तक का एक कशोर बा लका सोफ क नगाह म / `या नशा सवभूतानां त यां जाग त संयमी। य यां जा
त भूता न सा नशा प यतो मुनेः॥
मतलब आपक हंद म : `सम त ा णय के लए आ म ान रा
के समान है , उसम संयमी
जागता है और दन म िजस दे ह अ यास कारण सम त ाणी जागते है , आ मभाव म रहने वाले मु न के लए वो रा
है ! `मतलब आपक अं ेजी म :
`What`s the night for all beings is the time of waking for the disciplined soul ; and what is the time of waking for all beings is night for the sage who sees ( darkness of the soul ). ` अब सार-सं ेप उ लूक जैसे इस खाकसार वारा : क रात म आप संयमी ह अथवा असंयमी, रात का ये अ ध ठाता दे वता आपको इक नज़र से दे खता है ! ठ क जी ? अब आगे : दे खना इसी तरह से बनता है : हमारा आपका ! / आ म ान क प रभाषा सभी भाषाओं म एक सी है , क खुद म ह डुबक लगाना जैसे िजन ढूँढा तन पाईया गहरे पानी पै ठ माका ग ल , ले कन हम तो उथले म रहते ह जी , या क वताई उड़ान -शुड़ान , वैसे िजस तरह इन ा णय का दे खना बनता है उसे ला तनी भाषा म Idea कहते ह . आपके ये वो वचार नह ं क आह यो इक आइ डया या या आइ डया मारा है , यार , वगैरह वगैरह.... मारते र हये ऐसे वैसे आइ डया , कौन रोकता है ... ले कन अफलातून आपको रोकेगा क आइ डया तो वह होता है जी क चंतन मनन करते हुए दे खना क `Video ` ... ये भी इक ीक ल ज है . ले खका क मान तो व डओ ल ज सं कृत के ` व या` ल ज़ से आया , वैसे आप मानगे नह ं तो दे ख कताब के उ रत 127व पेज पर एक अंश . व डओ का शाि दक अथ भी ीक म , `म दे खता हूँ , म समझता हूँ` है .. बाद म यह व डओ अथवा व या ल ज vision , wisdom , wise के अथ म सामा य हुआ ीक और रोमन वा सय म ..आपका व डओ जो है सो है , उस से उ ह तब मतलब या था ?... तो जी उ लू स
य दे खना भी आ म ान है , एक तरह से क एकटक क कौतूहल , िज ासा आ द इ या द .... ( कताब है Sophie`s World )
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कम योग क उपमा
Perils of Destiny / नय त के बवंडर ववेकान द
कम योग क उपमा ववेकान द द पक से दे ते ह। िजस कार द पक का जलना एवं या उसके वारा काश का कम होना उसम तेल, बाती तथा म ी के व श ट आकार - इन सभी के व श ट सामू हक भू मका के वारा संभव होता है । उसी कार सम त गुण क सामू हक भू मका से कम उ प न होते ह। फल क सिृ ट भी गुण का कम है न क आ म का । इसी का है , इसे ह आ म वतः ह
ान व तुतः कम के रह य का
ान
ान भी कहा गया है । ता पय यह भी है क सं कार वशात ् उ तम-अनु तम कम म
विृ त होती है , तथा सं कार के शमन होने पर वंय ह कम से नविृ त भी हो जाती है ,
ऐसा जानना ववेक
ान भी कहा गया है । ऐसे
ान होने पर ह अनास त भाव से कम होने लगते
ह, इन अनास त कम को ह न काम कम कहा गया है । इस न काम कम के वारा पन ु ः कम के प रणाम उ प न नह ं होते। यह आ म
ान क ि थ त कह गयी है । इससे ह संयोग करने वाला
माग “कमयोग” कहा गया है । ( य क यह कम के वा त वक व प से योग करता है ।)
जे. कृ णमू त जे. कृ णमू त दाश नक और लेखक के प म जाने जाते ह. पर वो इससे भी कुछ खास थे. दरअसल उ ह एक मौ लक इंसान के तौर पर दे खा जाना चा हए य क उ ह अपनी वशेषताओं का कभी अ भमान नह ं रहा. यहां तक क उ ह ने कसी को भी श य नह ं बनाया. लोग ने उ ह मसीहा माना था. उ ह ने अपनी इस छ व को सरे से खा रज कर दया. और उ ह क म रखकर बनाया गया एक संगठन भी भंग कर दया. आज कल के पाखंडी गु ओं के सामने वो इस मामले म एक चुनौती ह समझे जाएं गे. कृ णमू त ने स य को एक मागर हत भू म बताया और ये भी कहा क कसी भी औपचा रक धम, सं दाय और दशन के मा यम से इस तक नह ं पहुंचा जा सकता है .
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दो ग़ज़ल (मोहन बेगोवाल )
(1)
(२)
दल म उठ है चाह ये कह रोकना पड़ा।
बना क गीत ये राग के नाम करते ह।
बीते सफ़र क बात बता टालना पड़ा।
भुला चक ु े हो लो हमकलाम करते ह।
कुछ अब तेरा दया मेरे हाथ म कह रहे ,
नह ं बना है हमारा तो कोई यहाँ अब तक,
कैसे कहूँ अब मेरा मुझे बेचना पड़ा।
या कह हम सभी को सलाम करते ह।
आए रखी उमीद ये कैसी उमीद थी,
दखा सक यह क िजंदगी ज़माने से,
बस उमर भर उमीद म हम जागना पड़ा।
कहाँ कभी तेरे दल म कयाम करते ह।
कहते रहे हवा को हमार कभी बनो,
ये फैसला मेरा बनता अगर कभी तेरा,
आँधी बनी जब छोड़ हम भागना पड़ा ।
इसी तरह यँू ह मंिजल तमाम करते ह ।
जब उसे उदास होने से कुछ मला नह ,
वो रं ग खास बताया िजसे कभी हम ने,
तब दल को नई उमीद तरफ लोटना पड़ा । बना रहे न हमारा ये आम करते ह ।
Tumhi se (Hindi English Magazine)
Page 28
June July 2017
चतुथ अंक
तु ह से
पानी और लहर ...
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
क वता
डॉ. परमजीत चु बर
-इंद ु लेखी
मेरे दो त, खूब कहा तूने क इंसान पानी क तरहा है , और धम लहर क तरह . नह ं दखती तुझे लहर बनने म कोई खामी , म मानता हूँ मेरे दो त क खूबसूरत लगती ह लहर लहर जो बनती ह कुदरती लहर अलग रं ग क
दरो-द वार पे टं गे
लहर अलग लंग क
गूंगे सवाल....
लहर अलग न श लए
ज़मीन से उठते
लहर अलग अ स लए
सुगबुगाते जवाब.....
पर ,ये हमने खुद बनाई ह मेरे यार ,
मुठ म बंधा मन
अलग धम क लहर, जात पात क लहर
आँख के पानी म घल ु े.....
जो अ सर बन जाती ह सुनामी
गु तगू ज़ार है
तहस -नहस कर दे ती ह सब -कुछ,,
र ते सन ु रहे ह ...!
इंसा नयत तो शा त पानी क तरह ह सफ िजंदगी दे ने के लए .. तो ..पानी ह बना रह ..मेरे दो त लहर नह ं
(इंद ु लेखी)
िजंदगी बन कहर नह ं .... Tumhi se (Hindi English Magazine)
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June July 2017
चतुथ अंक
आप क
तु ह से
त
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
या आप क
त
या हमारे लये अमु य है
हमारा यह यास आप के सहयोग के बना अधूरा है. आप का एक मा सहयोग आप क
त
या है.
आप अपने पयावरण के वषय के बारे म या सोचते ह. आप त काल न धा मक राजनी तक व अ याि मक अथतं के बारे या राय रखते है . पयावरण एवं मानवीय चेतना के बारे म आप अपना
आप क
त
या
यि तगत अनभ ु व पाठक से बांट सकते ह. इस से संबं धत आप अपनी रचना हम भेज सकते ह. आप फेस बुक या इ-मेल या से भी अपनी
त
या
य त कर सकते ह. आप हम बताय क हमारे यास म या अधूरा है अभी संपरक सू इ-मेल- abcinnerworld@gmail.com
Facebook https://www.facebook.com/swaranj.omcawr
It is no measure of health to be well adjusted to a profoundly sick society. -J. Krishnamurti
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June July 2017
चतुथ अंक
तु ह से
हमार फ मी शायर ( थाई
गीत को सुनना और गीत को पढ़ना दो अलग अलग
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
त भ)
याऐं ह. सुनते समय श द व न का प ले कर सीधे दल म उतर जाते
ह. पढ़ते समय दमाग़ व समझ के साथ मन आ मा म वेश करते ह. मेरा आशय गीत को पढ़ने का है . दमाग़ व समझ के साथ जुड़ने का है . कसी भी गीत को लोक य होने के लए िजन बात क ज़ रत होती है , वे सब - ज़बान क सहजता, िज दगी म
रचा-बसा होना,
दल को छू सकने वाल संवेदना का होना, बि दश क चु ती, कहने क लया मकता—ये कुछ त व ह जो
उ रणीयता (Examplification) और लोक यता (Popularity) का रसायन माने जाते ह। बोलचाल क सुगम-सरल भाषा गीत क लोक यता का सबसे बड़ा आधार है . गीत क भाषा उ ह ं श द से बनती है जो श द हमार िज़ दगी म घुल- मल जाते ह।
चलते चलते कह ं कोई मल गया था मेर बात टलते टलते, मेर बात टलते टलते
च पट / Film: Pakeezah संगीतकार / Music Director: Ghulam Mohammad
यह ूँ कोई मल गया था, यूँह कोई मल गया था
गीतकार / Lyricist: Kaifi Azmi गायका / Singer: लता मंगेशकर-(Lata Mangeshkar) चलते चलते, चलते चलते यह ूँ कोई मल गया था, यूँह कोई मल गया था सरे राह चलते चलते, सरे राह चलते चलते वह ं थमके रह गई है , वह ं थमके रह गई है मेर रात ढलते ढलते, मेर रात ढलते ढलते
सरे राह चलते चलते, सर\-ए\-राह चलते चलते ... शब\-ए\-इंतज़ार आ खर, शब\-ए\-इंतज़ार आ खर कभी होगी मु तसर भी, कभी होगी मु तसर भी ये चराग़ ये चराग़ बुझ रहे ह, ये चराग़ बुझ रहे ह मेरे साथ जलते जलते, मेरे साथ जलते जलते
जो कह गई है मुझसे, जो कह गई है मुझसे वो ज़माना कह रहा है , वो ज़माना कह रहा है के फ़साना के फ़साना बन गई है , के फ़साना बन गई है
ये चराग़ बुझ रहे ह, ये चराग़ बुझ रहे ह \- (३) मेरे साथ जलते जलते, मेरे साथ जलते जलते यूँह कोई मल गया था, यूँह कोई मल गया थासर\-ए\-राह चलते चलते, सर\-ए\-राह चलते चलते ...
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June July 2017
तु ह अंसे तम प ना
चतुथ अंक
Perils of Destiny / नय त के बवंडर
संक पना व संसथापन डा-
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वण जे- ओमकार कृ णा
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आनरे र संपादन डा-
वण जे- ओमकार
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कायकार संपादन एवं
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काशन कृ णा
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वण
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सह-संपादन सु या
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व श ट सहयोग डा- मोहन वै ा नक शोध डा- परमजीत चुंबर कला व टाइ पंग स जा रै व
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पंकज शमा
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तुत अंक: नय त के बवंडर / Perils of Destiny
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वारा स पा दत Tumhi se (Hindi English Magazine)वण जे. ओमकार Page 32
June July 2017