Tumhise 2

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डिजटल सं करण 20 16 -2 Hindi Literary MarMay 2016 n~forh; vad olar 2016 rqEgh l नव आि त व क तलाश मेहमान स पादक य – डॉo वजय शंकर pfy;s ’kk’or xaxk dh [kkst djsa vfrfjDr laikndh; ब ल शाह का कलाम “इ मो बस कर ओ यार” इद लेखी क क वता कहानी - वण जे. ओमकार अंध व वास ले रहा है ल मी के वाहन क जान हम मालम है ज नत क हक़ क़त (सम-सामयक चचा izLrqr vad% ^ ान क सीमा’ laiknuµ Lo.kZ ts- vksedkj
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page2 "त ह स" का तत अक एक वचारो तेजक वषय " ान क सीमा" (Limitations of knowledge) पर आधा रत है हम ने इसे एक सामािजक मनो व ा नक व दाश नक व लेषण क तरह तत कया है. हम आशा है क तत अक आप को "अलग तरह क अंत ि ट " दान करेगा. यह अंक "आप को" (पाठक को) सम पत है. --त ह स... D;k dgka मेहमान स पादक य – डॉo वजय शंकर (9) कलाम सा ब लह शाह (16) सं कार ने ख म कर द यो यता- ओशो (17) अनभ त -गलाब कोठार (20) क वता इद लेखी (22) कहानी - वण जे. ओमकार (24) मेर सबह क वता (नील हष) (31) ब जीवी और बदर- गरमीत बद (32) समपण परनर कौर (34) आप तलना और पधा क दौड़ म य रहना चाहते ह?(35) जब हम यान करते ह (40) गमशदा त ष शमा (41)
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page3 D;k dgka मेर च नदा क वताएँ -कलवत ेवाल (42) पानी और लहर - परमजीत च बर (43) थाई त भ तत अकः ान क सीमा (5) संपादक क कलम से (7) च लये शा वत गंगा क खोज कर (10) “त ह से” रपो्रताज (23) हम मालम है ज नत क हक़ क़त (सम-सामयक चचा) (37) आप क त- याएँ (44) हमार फ मी शायर (48) पांच इि य ने एक त कया ान. ान ने डेरा जमाया म त म. सम त ने दरवाजे बंद कये चेतना के , ानइि य के . ान बासी हआ तो अनभ त का दरवाज़ा खला. अनभ त ने बासी गले सड़े अनभव को उखाड़ फका. चेतना नयी हई. ान व मत हआ - इसी अंक से

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rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page4
ान क सीमा संक पना व संसथापन डा- वण जे- ओमकार क णा वण आनरेर संपादन डा- वण जे- ओमकार कायकार संपादन एवं काशन क णा वण सह-संपादन स या वण व ष ट सहयोग डा- मोहन भप ीत वै ा नक षोध डा- मोहन कला व टाइ पंग स जा रै व वण स या वण
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jswaran09@gmail.com
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page5 अंधम तमाह ा वसं त ये 'अ व यम उपासते ततो भया ईवा ते तमो या उ व यायां रताः य द आप अ ान क पजा करत ह तो न सदह अधरा ह आप का भ व य ह अगर आप ान क पजा करत ह तो और अ धक स अ धक अधरा आप का भ व य ह.... ईशा उप नष यह ान क पजा या ह? कस आप ान क पजा व च स अ धक स अ धक अधर म वश करत ह? ब लह शाह का कथन है - इ मो बस कर ओ यार! ान या इ म ह बड़ी व त नह द नया म. अ या म म आगे बढ़ने के लए ान पर िज़ंदगी का चेतना का एक छोटा पाट है बड़ा पाट है चेतना क चेतनता से द नया म वचरना. मान ल आप क पर म एक काटा चभ जाता ह। आप छोट काट को बाहर नकालन क लए एक बड़े कांटे का उपयोग करत ह। उस बड़ काट का बाद म आप या करत ह? आप इस दर फक कर, चलते बनते है। बस इतना ह ान का उपयोग है। आप अ ान के छोटे कांटे को बाहर खीचन क लए ान का बड़ काट का उपयोग करत ह फर आप दोन काट को फक कर आगे बढ़ जाते ह ऐसा य ह क कछ समय क बाद अ ान क साथ ान को भी फक दन म ह भलाई है? ब न कहा था य द आप नद पार करन क लए नाव का उपयोग करत ह, ले कन एक बार आप ने नद पार कर ल है, फर आप अपन सर पर नाव नह ढोत ह आप इस पीछ छोड़ दत है। यह हो रहा है द नया म. ान के सं ह - बड़े बड़े थ, बड़ी बड़ी प तक केवल पजा थल का ह सा ह चंद मानव उन ंथ को सर पर उठाए खड़े है और शेष नमन क म ा म ंथ को देख रहे ह आप पढ़ भी ल तो उन पर सवाल नह कर सकते उन के बछाये धारणाओं के जाल को तोड़ नह सकते. अपने ह बछाये जाल म उलझ चक ह हम. सम त ान कसी और चीज़ क और इशारा करता है ल कन हम सफ वा य को सि तओ को र ा लगान म लग ह कस राइटर ने या कहा गीता क क़रान क थ सा हब क लोक को र ा लगान म लग ह सो इस ान क सीमा नधा रत है. जो जान लया गया है - हम उस पजन म लग ह .जो अभी जाना नह गया उस क और देखते तक नह कस अ धक स अ धक ान अ धक स अ धक अधर म मानव को धकल रहा ह? ान के बहत से खतर म से एक है आप का अहम. आप को यह व वास हो जाता है क ान पर यान क त करने से आप को अ धक से अ धक ा त होगा। यह एक ऐसी ि थ त तत अक : ान क सीमा
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page6 है जहां यि त वयं को ‘जानकार’ महसस करने लगता है और एक फला सीने और एक फला हआ अहंकार आप के साथ चार ओर चलता है। कभी कभी ान हम वन होने के लए कहता है जो हम कताब पढ़ कर याद दलाया जाता है। तब हम वन होने का नाटक करते है, तो यह एक नाटक य वन ता है िजसे हम ओढे रहते है जब क भीतर से हम ती अहम से भरे रहते है क हम बहत ान है. हमारा ेम ववेक और बोध से है. होना भी चा हए पवािजत ान से नह . ाचीन समय से ह मानव ान क असीम पपासा लए हए है वह पव अिजत ान क पजा म त ल न नह रहता था. वे मानव चेतना को हरदम नया रखते थे. व उस ान म च रखत थ जो अभी जाना नह गया है. उस ान म नह जो जान लया गया है. पहले से जाना हआ ान तो बंधन है आप का हमारे पवज थम ण के ानवान थे वे ऐसे ानवान थे िजनके बोध का उ गम थल बाहर ससार नह उनका अपना अतस था. वे अंतर-आ मा क गहन खामोशी से बोलते थे. पर उनक एक सम या थी जो आज हम सब क है. स यता (reality) क अवधारणा (concept) इसी ससार म बनी और ससार क लोग क समझ क अन प ह कह या लखी जाने लगी. उसी धारणा क अन प स य को अ भ य त करना उन क , hamari बेबसी है. वे लोग क भाषा क अन प बात करत थ. ले कन हरदम नयी व उ क ट बात करते थे उन क बात को त (या revelation या वेद) कहा जाता था ये तया उन के श अंतस का ान था. दसर ण क वचारवान स य क खोजी नह थ. व कवल पव घो षत ान क अनगामी (followers) थे वे पहले से बछ बसात पर खेलते थे उ ह ने थम ण के वचारवान वारा य त अवधारणा (concept) क कवल बा य अथ को हण कया और ब क इसी व तार को बढ़ावा दया. इन क व तत लेखनी को सम त सा ह य कहा जाने लगा िजन म रामायण , महाभारत या पराण आ जाते है इसस अगल ण क वचारवान न तो इन अथ को भी छोड़ दया और कवल बाहय श द को ह उ साह स अपनाया और इ ह स ांतक प दे दया और उन स ांत को ठोस म तओ, ठोस श द म ढाल दया एव थ म बाध दया तब ब अवधारणाय क ठोसाकार म जकड़ गई. आज भी कभी कभी कोई मौ लक वचारवान पैदा होता है जो तमाम परानी अवधारणा को तोड़ देता है यह सारा ा त कया ान केवल एक परानी मनो म त ह यह चेतना क ती णता को क ठत करता ह. उस अतीत म रहना सखाता ह. उसे उज ड व खा बनाता है. उसे मदब बनाता है. उसे नयी धारणा म च रखने को रोक देता है. नवेदनµ वण ओमकार कला-- सैल बल वंदर ऋ ष बात नह करते, तेज वी लोग बात करते ह और मख बहस करते ह। रामधार संह दनकर

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rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page7
Ekkuoh; psruk dk niZ.k n~forh; vad olar 2016 क क कलम से मा यवर ...मानव स यता के शश काल से ह मानवता दो णय म बट गई. एक ेणी म वे ब मानव ह, जो मन क गहराई म उतरते ह, जो मानव के कये पव काय का अवलोकन करते ह. उसे रा ता दखाते ह दसर ेणी म शेष सभी मानव जो अपने कम और अपनी इ छाय के जाल म उलझे ह, मन से यादा रा त पर उतरते ह. ये मानव कमशील ह- कहा जाता है. इस ब ेणी के मानव भी कमशील ह? हाँ य क उन क कम भ म उन का मन ब व चेतना है, वे क त के महान प ह जो उस के भेद जानने म अपना यादा समय लगाते ह और उस क सौगात का आनंद उठाने म कम. यह क त का क़ज़ है हम पर क उसने मानव को इतना ब ढया मि तषक दया है और वे क त क कोख़ म गहरे उतर कर उस क़ज़ को उतारने म लगे ह. क त के अतस म उतर कर वे इस त य से एकमत होते ह क हम क त से अलग नह . तो या क त ह क त क खोज कर रह है? जब वे गंभीरता से क त के ऐसे गहन स य खोज नकालते है तो शेष लोग उनका अनगमन करते ह, उन से लाभाि वत होते ह ...पर दभा यवश से यह बात अधरा स य है. हमेशा ह ऐसा हो यह ज़ र नह . ये तथाक थत ब मानव शेष समाज से न का शत ा ण है. जीवन को बदल सकने यो य उस का प र ान उन क अं ि ट केवल धल चाटती प तक का ह सा हो कर रह जाती है या उन प तक का िज ह केवल पजात य माना जाता है और पजा के समय ह उन का पठन या गान होता है. उन म संक लत महान स य को लोग अपनी मन ब से दर रखते ह. लोग इस ब जीवी वग के काम से अनजान रहते ह
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page8 हमारे आस-पास ऐसे लोग क कमी नह जो अथ चारे म उलझी अपनी अधर ि ट से साधारण और ब मानव म अं नह कर पाते. आ म- ववेचना से नतांत दर ये लोग व व के येक बड़े धम के "masses" मे कहलाते ह और यह लोग मानव न मत मानव संकट का कारण बनते ह दसर ओर हमारा यह ब मानव भी क लयग- त हो गया है तमस का यह यग उस क ब को भी मत कर रहा है मि तषक का पसीना बहा कर क कमाई को वह अ त- साधारण द नयावी काय म लगा रहा है. उसने अब ऐसी व याय का समथन श कर दया है िजन म न अ याि मक ईमानदार है और न वै ा नक स चाई यो तष, श न पजा इ या द -ये सब मन य का शोषण करने क व याएँ ह जो तमस के इस यग म मानव म और अंधापन ला रह ह तमस के इस यग म अ धक ान ह अ ान का कारण बन रहा है. मानवीय मन कभी भी कपट नह छोड़ पाया. कपट और ान ने मानवीय मन म अब गहरा संयोयन कर लया है मलतः यह कपट है िजसम मानव क च है ान और ानी जन से लोग का व वाश उठ रहा है ान तकनीक हो या अ याि मक अब केवल मानवीय शोषण का तर का है. ... ावीन काल म ह ऋ ष लोग ने “ ान क इस सीमा” को समझ लया था. वेद या न ान का अजन से वेदांत या न ान का अंत तक जाने वाले उन महान मानव ने केवल आ मानभ त को महा तम ान माना है ले कन यह एक ऐसा ान है िजस के संबंध म कभी एकमत नह बन पाया है. जीवन क सम ता का ान, केवल बौ क ान नह बि क प र ान ; ब नह आ मा िजससे भा वत हो, भीतर व बाहय दोनो, पयावरण िजस से अलग नह ह सम आ मानभ त है तत अक से हमारा योयन यह है सचना मरणशि त व तकनीक बौ ता का यह योग मानवीय नसल के लये घातक बन रहा है यह केवल उस म त पधा क भावना को बढ़ावा दे रहा है. इस भावना से रत वे मानवीय संसाधन को बेदद से लटत ह. एक दसर से आगे बढ़ने क यह होड़ हमार पि व व पयावरण को कतना गहरा नकसान पहचा रह है इस का अंदाज़ा लगाना आसान नह हम अपनी ह आगामी नसल को या एक ठठ पि व दे कर जायग? ... "त ह से" वारा ान क सीमा क चेतना को, पि व व पयावरण क चेतना को जनमानस तक पहवान म हम आप के आशीवाद क ज रत है हम पि व पयावरण चेतना व आ मानभ त जनक आप क रचनाय क ज रत है ... "त ह से" के आगामी अंक - ‘परमा मा है या’ , चेतना है या’, ‘ या भला या बरा’ इ या द से सबं धत आप क रचनाय सादर आमं त ह "त ह से" क णा वण
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page9 इसम कोई संदेह नह क व ान, यां क और व वध तकनी क योग ने मानव जीवन को बहत सरल और सगम बना दया है पर इसम भी संदेह नह क आदमी का जीवन काफ कछ यं -त य एवं यं -वत हो गया। शहर जीवन म पयावरण क सम या , वांस लेने के लए व छ वाय का अभाव अ या धक आ यौ गक उ न त का ह प रणाम है। य भी कह सकते ह क उ योग को एक ह थान पर कछ महानगर म ह क त कर देने से आ यौगीकरण को हम लाभ पहचान म सफल तो हए पर कह मानव जीवन को क त से ओत ोत जीवन से वं चत कर हम बहत बड़ी भल कर बैठे ह। महानगर के वा य स ब धी आंकड़े तो यह संकेत करते ह क वहां के अ धकाँश नवासी वांस और दषण ज नत रोग से कतने गंभीर प से त और त ह। जीवन के हर म तकनी क का योग वयं जीवन के लए कतना साथक है , आइये इस पर वचार करते ह। आज से लगभग दो दशक पव बा◌ॅयो-टे नॉलजी वषय क बड़ी धम थी। च क मेरा स ब ध उ च श ा वभाग से ह रहा है और मेरे दाइ व म नवीन महा व यालय का खोला जाना और मा यता के करण का नर ण करना भी स म लत था, अत: मन यह देखा था क इ क वीं शता द के कछ ारि भक वष म बायोटे नॉलजी वषय क मा यता हत बड़ी मा ा म आवेदन आते थे। एक जनन सा था क इस बा◌ॅयोटे नॉलजी से या- या हो जाएगा, टमाटर चार गना बड़ा होगा, और सभी सि जयां भी खब बड़ी बड़ी और भत मा ा म ह गी। क ष उ पादन म एक तरह क ाि त आ जाएगी। उस तकनीक ाि त को तो च लए जाने देते ह पर जो हआ वह यह है क सि जय के साथ औग नक सि जयां अलग और काफ मंहगी बकने लगी। बा◌ॅयोटेक सि जय म वाद आ नह रहा है, उनक पौि टकता भी वचारणीय है, और सच यह है क ऑग नक सि जयां अपने महंगे रेट के कारण साधारण आदमी क पहच से बाहर ह। और तो और अब औग नक घर के भी व ापन आ रहे ह। ऐसे म या हमारे लए यह सोचना आव यक नह हो जाता है क व ान का हर कसी म तकनीक योग हमारे जीवन के लए कतना हतकार है? इस कार का ान हमारे हत म ह या हम पर भार है? यह भी वचारणीय क या ान का ल य केवल धन-अजन है, कसी भी क मत पर, मन य के वा य और जीवन के म य पर भी? ान का वा त वक या है? उसक कह कोई सीमा रेखा है या नह ? डॉo वजय शंकर (;w-,l-,-) तत अक : ान क सीमा मेहमान स पादक य – डॉo वजय शंकर
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page10 वण जे ओमकार
है-साफ़! व छ! नमल!
बचा हैश
स य! मानवीय क ठाय , मानवीय अहम, और मानवीय मन से अ भा वत! जो कती के नयम के अं गतह अतस म उतरा और जैसा आया वैसा बांट दया गया. ( थम करण से..) ( वतीय करण) पव कथा: य थत गंगा ा न से संबो धत है गंगा क यथा ने ा न के दय को झजकोर दया है. गंगा उसे बताती है मन य क तमाम वसंग तय , मसीबत , परेशा नय का कारण उस का ओछा ान है िजसे वह अपनी तर क का याय मान रहा है
अभी तक कछ धारा तो बची
अभी तक कछ ान तो
! शा वत! महा तम

चम क और बहती हवा

परवाई. स दय से लोग गाते रहे ह परवाई के गीत, नग़मे. कतनी बाढ़ आये बादल बरस

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page11 इस ान ने उसे क त से दर कर दया है वह क त को अपना ल य नह ल य का साधन मानता है. पि व पर मानव के अपने वाथमय कई ल य ह. जैसे मन लभावनी णक चकाचध से रत भौ तक ग त िजस के लये वह क त क मह वपण संपदा न दय नाल के समीप अपने लये स य साधन इ या द के बड़े बड़े उ योग लगाता है. उन से नकलता रासायणक ज़हर न दय नाल को द षत करता है और पेय पदाथ वारा वा पस उसी के शर र म वेश कर रहा है. और भी ल य ह मानव के जैसे वह अ याि मक उ थान के नाम पर भौ तक सख व चकाचध भरे पजा थल बनाता है जो उस के तथाक थत ‘परमा मा’ व ‘परमा मा के अवतार ' वण गह व परमा मा के पजा रय के वलास गह बन गये ह. उस का यह तथाक थत ‘परमा मा’ उस क असर ा क भावना से उपजा है उस ने इस ‘परमा मा’ को भी अपने यापार व भौ तक तर क का साधन बना लया है. इस सारे पचड़े म मन य क बड़ी वसंग त यह है क वह अपने इस ‘परमा मा’ से भी उसी तरह भयभीत है िजस तरह अपनी असर ा क भावना से उपजे देवी देव श न, राह, कत आ द से न दयां भी उस के लये इसी तरह भय का तीक ह, उ ह दे वयां मानता है पर उन के द षत जल के रासायणक भाव को उन का कोप मानता है और भौ तक भाव या न बाढ़ इ या द से भयभीत है अपनी भौ तक व मान सक ति ट के लये मानव के जो भी पि व पर ल य ह पर अभी तक क त का स दय और उस क मह वपण संपदाय को अपने व अपने ब च के भ व य के लये बचाना उस का ल य नह बना है इसी ओछे ान से मानव को नकालना और सह व ानो चत अनभ त का सं ण करना अब ‘ ा न’ का ल य है. इस के लये उस ने मानवीय अ धवास म जा कर वचन देने का मन बना लया है तत ंखला उ ह वचन का ल खत पां मा है.... ानी का दसरा वचन-2 देश क भ म पर उतर है गंगा, वग से, बादल के शखर से गंगा का उ गम थल है वग या न जल से भरे बादल जल क नमी ले जाती हवा पव से पि
, घर ढह, जीवन बखरे, प वी जल मगन हो- बरखा ने, पानी ने जल ने कभी परेशान नह कया मानव को परेशान कया तो - बरखा के न आने ने, सख ने, रेत कण के अ बार ने, म थल ने देश क भ म पर उतर है गंगा, वग से, बादल के शखर से. मन क भ म पर उतर है वह गंगा ान क गंगा अनभ त के शखर से पांच इि य ने एक त कया ान ान ने डेरा जमाया म त म सम त ने दरवाजे बंद कये चेतना के ानइि य के ान बासी हआ तो
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page12 अनभ त का दरवाज़ा खला अनभ त ने बासी गले सड़े अनभव को उखाड़ फका चेतना नयी हई ान व मत हआ. बात तब क है जब गंगा केवल बादल म बसी थी. बादल जो सखी म भ म को छोड कर आगे नकल जाते थे उन का यह खेल सख म म बसने वाले समझ न पाते थे दान प न करते थे मं दर म पजा अचना से ले कर पश ब ल, नर ब ल तक क यव था करते थे. अनभ त क गंगा भी मन को ऐसे ह चढाती थी मन के मनन क तो पकड म न आती थी साधना व अ यास से कतराती थी अ यासरत मन को अ यासरत मानव को तो मह न लगाती थी. अ यासरत मन केवल वयं का पजार था अ यासरत मानव केवल अहम का पजार था. वह खोज को अहम से अपनी इ छा से आगे न ले जा पाता था अनभ त क गंगा केवल अनभ त म बसी थी अनभ त क गंगा तो केवल पमानभ त म बसी थी पमानभ त का नयम पमानभ त के ह अधीन था. मन से परे, मनन से भी परे, कह श य म ल न था मन क भ म तो अहम म गत थी इसी मन को खोना अनभ त क थम शत थी अनभ त तो थी समझ से परे- मन व ब क सीमा से परे. अनभ त तो ञैका लक थी- अनभ त तो सवका लक थी समझ मन क पकड़ म थी- अनभ त पकड़ म आती न थी तक दल ल वचार से परे- कछ तो था जो बच जाता था वह अहम त मन क भ म को छोड़ आगे नकल जाता था. ऐसी ह तो थी जल क गंगा वह तो केवल बादल म बसी थी बादल म बसी गंगा सखी म को छोड़ आगे नकल जाती थी मानव कतना पसीना बहाये- पसीने से गंगा तो न बन पाती थी सख म म बसे लोग वग क ओर ताकते रहते थे वग म बसी गंगा क वे दतकथाय बनाते रहते थे- ‘गंगा तो इं रा य क अ सरा है, भैया! वह य न धर ण पे आवेगी. कोई भार उपकम करना होगा तभी सखी धरा कछ दे पावेगी ' तो वे कसी भार उपकम क योजना म खो जाते थे. समय और सीमा म बंधे वे लघ मानव कसी महा मानव क कलपना करते सो जाते थे. जो उन के लये आवारा बादल को मनाने के लये तैयार हो जाये जो उन के लये सहष प वी पर गंगा को लाने के लये तैयार हो जाये
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page13 या कभी य हो जाता क गंगा आती तो थी धरती पर. पर त छट पट नाल म बह कर बेकार हो जाती थी और शेष वष भर जल ह न लोग सखी म को ताकते रहते या उन सख नाल को िजन म अम य गंगा बह जाती थी ऐसे म कसी भा गरथ सर खे महामानव का उस सखी म म गंगा लाने को वचनब व होना आ चय न था. जो केवल वषा ऋत म ह नह साल भर जलह न लोग को जल महया करवा सके गंगा धर ण पर ला सके अब वग म बसी गंगा के- बादल म रची गंगा के अपने ह सपने थे वह धरती पर आना न चाहती थी. उस ने तय कर लया था- य द ाक त के नयम ने ज़ोर डाला भी तो अपने बादल को वह कह देगी पवत ंखलाय पर पानी बरसायेगी पेड के झड पर, या उंची बफ लद चो टय पर. मैदान म यहां मानव ने पेड को काट कर अपमा नत कया ाक त को, उसे उस क उद डता का दंड देगी. बद बद के लये तरसायेगी. धरती पर आने का उस का मोल हमालय से कम न था शव सर खे हमालय ने हामी भर तो गंगा स नतापवक धरती पर आने को तैयार हो गई. बादल को खींच लाई पवतमालाय तक. खब बरखा बन कर बरसी. इतना ज़ोर इतना शोर पर कोई धारा न बनी न कोई छट पट नाला. पर क पर समा गई गंगा-महा हमालय महा शव क महाजटाय म पेड पौध क टह नय म जड म लताओं म. उलझ गई गंगा. वन प त जगत म समा गई पर क पर गंगा सब अहम धल गया पर लहजा नरम न हआबोल शव से-‘ओफ़ हो, कहां से नकल- ओफ़ हो कहां से जाऊं - अरे भाई रा ता दो’
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page14 शव म कराय- ‘इतनी ज द या है गंगे? अभी कछ देर व ाम करो मेर जटाओं म मेरे पेड क पि तय म शाखाओं म लताओं म. ये वन उपवन, ये सह वन ा ण, यासे ह त हार जल के वे यथ त ह न बहने दग. कह और न जाने दग अब आई हो तो थोडी सेवा स ा कर लो इनक बहने का या है -कभी भी बह लेना. ' गंगा नरम पड गई बोल‘ओ शव ! ओ महा हमालय!! तम तो अ त सदर हो यह त हारा ललाट पवत से उंचा अंबर से मला हआ वहां ससि जत चं त हार शोभा बढा रहा है ये त हार उंचे देवदार के व कतने घने ह. कतने पास पास सटे ह. अपनी िजद पर डटे ह. मझ रा ता दो भाई. मेरा वचन हैजब म बह नकल - तो त हार स दय को कम न होने दगी त हार पग से बहती रहगी- वयं को उ चतम न होने दगी तम अपने रौ से सपण जगत म महा ऊजा भर देते हो मेर ऊजा पर य बंधन डाल रहे हो. मेरा चंचल वभाव है तम जानते हो. मझ वयं ह म य संभाल रहे हो? शव और जोर से म काय‘ य तड़प रह हो गंगे. तम तो वयं बखर पड़ी हो. त ह तो वयं को समेटना भी नह आता. बखर ऊजा से तम महा ऊजा क बात करती हो रा ता मल जायेगा त ह-नीचे जाने का या है? कसी भी देव त क झक शाखा को पकडो और बह नकलो. नमन से नमनतर होना बड़ा आसान- उ च से उ चतर होना अ त क ठन ’ ‘प रहास करते हो शव’ , गंगा ट हई‘अंश ह त हारा त हार ह तरह मेरे लये नमन या उ चतम या इन देव त य न खींचा है मझ पाताल से. इ ह ने ह छोडा है मझ आकाश म. उस उ चतम आव था म भी मझ व ाम नह त हार ये त खींच लायग मझ फर बरसगी बरखा बन कर फर बहगी गंगा बन कर पहाड म मैदान म’ शव हंसने लगे‘पर चेता रहा ह गंगे फर न कहनाशव का भार वर:
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page15 त ह हष न होगा बहने म मैदान म यह हमालय ह घर है त हारा वहां पार मैदान म त हार ती ा कर रहा है -हजार टन मानव मल. मानवीय आबा दय से बहता हआ. जल व मल बंधन म मानव अभी भी हसर वष जैसा ह है. जल से मल नकालने के लए मानव अभी तक क त क च ता पर ह नभर है जल व मल अभी भी साथ साथ बहते ह, साथ साथ उपय त होते ह, मानव वारा’ ‘हत!’ गंगा ब ल , ‘कैसी बात करते हो! शव! या मानव ऐसा है या वह क ट से भी नमनतर है द नया भर के क ट वन प त जगत से अपनी इ छा का एक य चन लेते हउसे ले लेते ह और शेष क त का नकसान नह करते' ‘और गंगे,’ शव का वर ‘उस च य त अ त ा न मानव के लए अभी भी जै वक ा ण वनचर प रंदे व क ट ह या जलचर म मीन या घ डयाल जल म रहते हसर स म ा ण नह वे उस का ास बनते ह बाद म वह उन का. पनः कहता ह उस ा न वै ा न मानव के लए भौ तक क त ह सब कछ है रासायण है क त म तो क त क सरदद रासायणक मल जल व पि व म मलाना उस का वभाव है वहां कनार पर न जाने कतने रासायणक गह ह वह सारा रासायणक मल त हार पा नय म घल जाने को तैयार है. त हार स म ा णय को बेवजह म य दंड देने को तैयार है गंगा जी डर ग ‘ या कहते हो शव भाई म प व जल से मल का नाला बन जाउंगी. म तो स न थी वग म बादल म म तो आना न चाहती थी धरती पर आह! अब म कहा जाउं ’ गंगा जी गहन पीडा म उूब गई. ानी के माथे क रखाय खंच ग . उस क वा ण गले म ंध गई. वह आगे कछ बोल न सका.... (इ त वतीय करण) ( मश:) म धम से छटकर सौ दय पर और सौ दय से छटकर धम पर आ जाता ह। होना यह चा हए क धम म सौ दय और सौ दय म धम दखाई पड़े। सौ दय को देखकर प ष वच लत हो जाता है। नार भी होती होगी। फर भी स य यह है क सौ दय आनंद नह , समा ध है।रामधार संह दनकर
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page16
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page17 सं कार ने ख म कर द यो यता- ओशो मानव समाज म हर जगह हर यि त क खलाफ यह अपराध कया गया ह। त ह लगातार स का रत कया गया ह और कहा गया ह क तम अपा हो। य क इन सं कार के कारण मानवता के अ धकांश ह से ने कसी भी साह सक इ छा को दबा दया है । ब च के माता पता उ ह कह रह थ, 'तम अयो य हो।' उनक श क उ ह कह रह थ, 'तम अयो य हो।' उनके धमग उ ह कह रह थे, 'तम अयो य हो।' हर कोई उन पर इस वचार को थोप रहा था क वे अयो य थे। वाभा वक प से उ ह ने इस वचार को वीकार कया। एक बार जब तम अयो यता का वचार वीकार करत हो तो तम वाभा वक प स बद हो जाते हो। त ह नह लगता क त हार पख ह, क सारा आकाश त हारा ह, क त ह सफ अपन पख को खोलना है और सारा आकाश अपने सभी सतार के साथ त हारा ह। सवाल यह नह है कह तम एक दरवाजा खोलना भल गय हो, कोई वार ह ह नह , न कोई द वार ह। यह अयो यता का याल बस एक अवधारणा, एक वचार ह। तम वचार से स मो हत हो गए हो। बहत श स, सभी स क तय , सभी समाज ने स मोहन का उपयोग कया यि तय को न ट करने के लए-उनक वतं ता, उनक अ वतीयता, उनक तभा- य क न हत वाथ को तभाशा लय क ज रत नह है, अ वतीय यि तय क ज रत नह ह, उन लोग क ज रत नह ह जो आजाद स यार करत ह उ ह गलाम क ज रत होती है, और गलाम बनान के मनोव ा नक तर क कवल यह ह क त हार दमाग म डाल दया जाए क तम जरा भी लायक नह हो, क त हार पास जो कछ ह उसक भी तम लायक नह हो, त ह इसस अ धक पान क इ छा नह करना चा हए। त हार पास पहल स जो कछ ह वह त हार यो यता स बहत यादा है। स मोहन नरंतर दोहराव क एक साधारण या है। सफ एक नि चत वचार दोहराए चले जाना ह और यह त हार अदर पठता जाता ह, और यह एक मोट द वार बनती है, अ य। न कोई दरवाजे, न खड़ कयाँ; व तत: कोई द वार ह नह होती। जॉज गरिजएफ न अपन बचपन क स मरण म लखा ह...वह काकेशस, द नया क एक सबसे आ दम भाग म पदा हआ था। वह अभी भी उस ि थ त म ह जस मानवता जब यह शकार के वारा रहती थी, वहा पर अभी खती भी श नह क गई ह। काकशस क लोग को बहत तज शकार ह और जो भी समाज शकार के वारा जीता है उसका खानाबदोश होना वाभा वक है। वे मकान नह बना सकत ह, वे शहर नह बना सकते, य क आप जानवर पर नभर नह कर
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page18 सकत। आज व यहा उपल ध ह, कल वे यहाँ उपल ध नह ह। नि चत प स तम उ ह मारोग, और त हार उपि थ त क वजह से वे भाग जाएँगे, या तो वे मारे जाएँगे या वे भाग जाएँगे। गरिजएफ एक खानाबदोश समाज वारा पाला-पोसा गया था, तो वह लगभग कसी और ह से आया था। वह कछ बात जानता था जो हम भल गए ह। उस याद था क उसक बचपन म खानाबदोश अपने ब च को स मो हत करते थे य क जब वे शकार करने जाते थे तो वे उ ह लगातार साथ नह ल जा सकत। व उ ह कह एक पड़ क नीच एक सर त जगह म छोड़ दत। ल कन या गारट ह क व ब च वह रहग? उ ह स मो हत कया जाना ज र था। तो वे एक छोट रणनी त का योग करते, और उ ह ने इसे स दय से इ तेमाल कया है। बहत श स जब ब चा बहत छोटा होता ह तभी स, वे उसे एक पेड़ के नीचे बठाते। फर वे एक छड़ी से ब चे के चार ओर एक घेरा बनाते और उसे बताते, 'तम इस च से बाहर नह जा सकते, अगर तम इसस बाहर जाओग तो तम मर जाओगे।' अब उन छोट ब च को त हार तरह व वास होता। तम ईसाई य हो?... य क त हार मातापता न त ह बताया। तम हद य हो? तम य जन हो? तम य मसलमान हो?... य क त हार माता पता न त ह बताया। उन ब च का मानना है क अगर वे च के बाहर जाएँगे तो वे मर जाएँगे। वे इस कंडीश नंग के साथ बड़ होत ह। आप उ ह मनान क को शश कर 'बाहर आओ, म त ह एक मठाई दगा।' वे नह आ सकते, य क म य...! यहाँ तक क कभी-कभी अगर व को शश करत ह, उ ह लगता ह मानो एक अ य द वार उ ह रोकती ह, उ ह घर म वापस ध का द दती ह। वह द वार उनक दमाग म ह मौजद ह, वहाँ कोई द वार नह है, वहा कछ नह ह। वह यि त िजसन उ ह घर म डाल दया है जब तक नह आता और घेरा मटा नह देता, ब चे को बाहर नह ले जाता, तब तक ब चा अंदर रहता है। ब चे क उ बढ़ती रहती है, ल कन यह वचार अवचतन म रहता ह। तो एक बढ़ा आदमी भी, अगर उसक पता उस चार ओर एक घरा बना दत ह तो इसस बाहर नह नकल सकता। तो यह न केवल ब चे का सवाल है, बढ़ा आदमी भी अपन अवचतन म अपन बचपन को वहन करता है। यह एक ब चे का सवाल नह है, खानाबदोश क पर समह न नकटवत पेड़ के नीचे अपने ब च को रख दया है, और सभी ब च पर दन वहा बठ ह। अपने माता- पता के वापस आने के समय तक, यह एक ऐसी कडीश नग बन गई ह क कछ भी हो जाए, ब चा च नह छोड़ेगा। बलकल इसी तरह क घर त हार चार ओर त हार समाज वारा तयार कए जा रह ह। बशक व और अ धक प र कत ह। त हार धम कछ भी नह महज एक घरा ह, ल कन बहत प र कत। त हार चच, त हार म दर, त हार प व प तक, ले कन एक स मोहक घर क अलावा कछ भी नह है। एक बात समझन क ह क यि त कई घर वारा घरा हआ ह जो कवल त हार मन म ह। उनका कोई वा त वक अि त व नह है, ल कन व लगभग असल क प म काय करत ह।

वारा बनाया है। इस वचार को गरा दो। अि त व

लए आभार होओ... य क यह केवल यो य लोग को बनाता है

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page19 यह कवल एक कडीश नग ह क तम अयो य हो। कोई भी अयो य नह है। अि त व अयो य लोग का उ पादन नह करता ह। अि त व मख नह ह। अगर अि त व इतन सारे अयो य लोग का उ पादन करता है, तो पर िज मवार अि त व क हो जाती ह। तो यह नि चत प से न कष नकाला जा सकता ह क अि त व ब मान नह है, क इसक पीछ कोई ब नह ह, क यह एक मख, भौ तकवाद , आकि मक घटना है और इसम कोई चतना नह ह। यह हमार पर लड़ाई ह, हमारा परा सघष ह, यह सा बत करना क अि त व ब मान ह, क अि त व बेहद सचेत है। यह वह है जो अि त व गौतम ब बनाता है, वह अयो य लोग को नह बना सकता। तम अयो य नह हो। तो कोई वार खोजने का सवाल ह नह है, केवल एक समझ चा हए क अयो यता एक झठ धारणा ह जो तम पर उनक वारा आरो पत क गई ह जो त ह पर जीवन क लए गलाम बनाना चाहत ह। तम इस बस अभी छोड़ सकत हो। अि त व त ह वह सरज दता ह जो गौतम ब को, वह चाँद दता ह जो जरथ को, वह हवा जो महावीर को, वह बा रश जो जीसस को। कोई फक नह पड़ता, कोई भेद-भाव क जानकार नह है। अि त व के लए, गौतम ब , जरथ , लाओ स, बो धधम, कबीर, नानक या तम सब एक ह ह। फक सफ इतना ह क गौतम ब न अयो य होने के वचार को वीकार नह कया है, वह वचार खा रज कर दया। तो अयो यता का वचार छोड़ दो, यह एक वचार है। और इसे छोड़ने के साथ, तम आकाश के नीचे हो। वार का कोई सवाल नह है, सब कछ खला ह, सभी दशाए खल ह। क तम हो, यह पया त ह सा बत करन क लए क अि त व को त हार ज रत ह, वह तमस यार करता ह, त हारा पोषण करता ह, त हारा स मान करता ह। अयो यता के वचार को सामािजक परजीवी
, वह कभी उसे नह बनाता जो बेकार है। वह केवल उ ह लोग को बनाता है िजनक ज रत है। मरा जोर ह क हर स यासी अपना स मान कर और अि त व क त आभार महसस करे क वह समय और थान के इस अवसर पर यहाँ है। साभार : ओशो, बयाड एनलाइटनमट सौज य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन श ा का अथ ह उस पणता क अ भ यि त, जो सब मन य म पहल स ह व यमान ह। - वामी ववेकानंद ( सगारावल मदा लयार को प म, 3 माच 1894)
के

अनभ त

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page20
गलाब कोठार जीवन म एक ह ान जो कम का माग दशक होता ह। दसरा ह अनभव जो क ान का यावहा रक त ब ब है। ान और कम क सि म लत छाप जो मन पर अं कत हो जाती है, यह छाप ह भ व य म ान का थान ल लती ह। उ बढ़न क साथ अनभव का स ह बढ़ जाता ह। य भी कह सकत ह क बढ़ापा अनभव का स हालय ह। इसी लए 'ओ ड इज गो ड' कहा जाता ह। वशष का एक अथ ान क साथ अनभव क बहलता भी ह। बना अनभव क ान का मह व बड़ा नह माना जाता। कम स कम जीवन स जड़ वषय म तो ऎसा ह दखा जाता है। भत श द क भी अनक अथ होत ह। सि ट क थल व प का नमाण करन वाल तžव भत कहलात ह। भत का एक अथ बीता हआ काल प भी ह। पा थव जगत भी भत कहलाता है। भटकन वाल आ माओ म भत- त का ववरण मलता ह। भत क अ भभत, अनभत, आ वभत आ द अनक भद कए जा सकत ह। भत श द ाक य क साथ स ब ध रखता ह। ान का ाक य, पदाथ का ाक य। भत तो कारण ह। अ र सि ट अथवा ाण समह का अंग है। अत: कवल अनभव म आ सकता ह। अनभत होता ह। स ा त क यावहा रक व प स जो प रणाम आत ह, व अनभत होत ह। म त पटल पर अनभव बनकर थाई प- ान प बनते ह। इस दश म योग- योग- यान क यह भ मका ह। म ण-मं -औषध भी अनभ त क आधार पर टक ह। योग क सफलता ह यि त को अ भभत करती ह। जीवन क धरोहर होती ह अनभ त। अनभ त थल स स म क ओर भी होती ह। व भ न वषय क ान और योग क भी होती है। िजस योग को करके देख लया, वह होता ह अनभत तथा उसका जो भाव म त म पहचा, वह ह अनभ त। अनभत का कवल ान तक ह सी मत ह। अनभ त म सवदनाए भी जड़ जाती ह◌। इसम ब क साथ मन का धरातल भी ह। आ म व वास अनभ त स आता ह। ेरणादायी है। प षाथ-धम, अथ, काम, मो क अवधारणा म मल तžव अनभ त ह ह। धम क अनभ त स ह अथ, काम क भाव को समझा जा सकता ह। धम क प रभाषा और भ मका तो अनभ त म ह समझ सकत ह। अथ प रणाम ह, काम पीछे का कारण है। कामना अ य होती है। अथ यमान जगत का अंग है। धम दोन के म य सत ह। सच तो यह ह क धम का काय अथ क मा यम से कामना के पार जाना है। ' लाई ओवर' का काम करता है। कामना वीकारना, नकारना अथवा

खाना देखकर कैसा लगा, सघकर या भाव जाग, छकर, चखकर अलग-अलग त याएं घ टत

होन लगगी। आप अपन मन क आवाज को भी सन सकग। मन कहगा क आज बगन नह

खान और आप बगन वाल कटोर को वत: ह नकाल कर

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page21 दबा देना, इन तीन प म अपना अलग-अलग भाव दखाती ह। धम य त और धम म त क आधार पर छ: कार क हो जात ह। सत, रज, तम क भाव म अठारह प हो गए। शर र, मन, ब और आ मा क प रपर य म ह प षाथ को दखना चा हए। प ष आ मा को कहत ह। अत: सि ट म एक ह प ष माना गया ह। शष सारा यापार क त का ह ह। अथ शर र के लए, कामना मन म, धम ब / ान प और मो को आ म तžव माना है। मो का अथ ह कामना क पार नकल जाना। मन म कोई कामना न रह। सभी कामनाए पण हो जाए। ऎस यि त आ तकाम हो जात ह। यह जीवन क सबस बड़ी अनभ त भी ह। यक अनभ त का आकलन करके , जीवन म उसक भ मका तय क जाती है। इस कार एक-एक करके येक अनभ त स भावी काय क त मन को सकि पत कया जाता ह। प र कार क अ यास क श आत कामना को समझकर क जाती ह। कब मन म कस कार क कामना पदा होती ह, कस वचार उठत ह और य । इस य का उ तर ढढ़ पाना ह ल य होता ह। बहत क ठन काय ह। यि त क कई कमजो रया भी बाधक बनती ह। अ ान, राग- वेष, यसन-वासनाएं आ द के अपने-अपन भाव होत ह। भाव और अभाव के भाव भी वभावत: बन रहत ह। कसी यि त या व त क रहन क मन पर भ न या होती ह और उसक अनपि थ त क भ न। मन पर होन वाल सार या प दन प होती ह। ाण को रत करक काय प म प रणत करती ह। इसम भाव और अभाव मल भ मका नभात ह। अभाव स ह मन म इ छा उठती ह। यह भी कह सकत ह क इ छा कसी अभाव क ह अनभ त ह। इस अभाव का जीवन पर या भाव पड़गा। प त का भाव, इ छा नकार देने का या भाव होगा और इ छा को दबा दन का या प रणाम आएगा। इन शA◌ो◌ं के उ तर के बना कम अनभत नह होगा। प रणाम भी प रल त नह ह ग। सामन खान क थाल म अनक यजन रख ह। उनको बना वचार भी खाया जा सकता ह और वचार करक भी खा सकत ह। वचार करत ह प दन अपना
काय श कर दग।
बाहर रख दग। दखा आपन, शर र क भाषा म ब और शर र दोनो क सदश। अब खाना श क िजए। हई कछ अनभ त? य द आपक दमाग म कई वषय चल रह ह, य द आप म त या भावी याकलाप म य त ह, तब तो आप वतमान म जी ह नह रह। आपको कस अनभ त होगी क कौनसी चीज ( यंजन) आपक मां-प नी-बहन ने बनाई। कौनसे यजन रसोइए न तयार कए अथवा इनम बाजार स लाया हआ या- या है। इसके लए आपका
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page22 वतमान म रहना (जीना) अ नवाय ह। वतमान म जीना ह पजा ह, साधना ह और अनभ त का जनक ह। तब आप अ यास क सहार स म शर र क तरग क भी आग कारण शर र क प दन का भी अनभव कर सकग। आपको समझ म आन लगगा क बनान वाल न खान वाल को या संदेश दया है। तब खाना बनान वाला और खान वाला एक ह धरातल पर होत ह। स कार का, वशेषकर वातावरण ज नत सं कार का, पा तरण इसी तरह कया जाता है। य द सलाह द जाए तो कोई नह मानगा। म भी अनभ त करान का स म मा यम ह। बना अनभ त क पा तरण संभव नह ह। या तो यि त वय अनभ त कर अथवा परो प स प रवार का सद य/ ग अनभत कराव। आपक अनभ त ह आपक तप या ह। आप कसी को अनभ त माग स पा त रत कर सकत ह, तो आप ग / स त ह।

त समह

बहे लया, मर शकर, फा सया, भ टयारा, पठामी, ह क प क , क वकारा, कलंदर, वागर , पारद , दमोरा, भील, मडा, लोडी, बाव रया, लंबादास, नाथ सपेरा, गलगलवास, करबी, गारो। राज थान म पकड़ गए थ: नीमच से 15 पारद

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page23
जाद-टोने के लए अंग क उपयो गता (अंध व वास) का खा मयाजा प ी उ ल को चकाना पड़ रहा ह। इसक स या म लगातार घट रह ह। यह खलासा द ल म वाइ ड लाइफ ेड पर नजर रखने वाल सं था ‘ फक इं डया’ क एक रपोट स हआ ह। रपोट क मता बक आ दवासी समदाय क लोग खान और जाद-टोने के लए उ ल का शकार करत ह। म य दश, महारा और आं देश के नवासी पारद आ दवासी इस पकड़कर दशभर म बचन का काम कर रह ह। उ तर-पि चमी म य दश क नीमच िजल म रह रह 100 पारद प रवार उ लओ क अग स बनी कई कार क व तए दशभर म बच रह ह। इ ह सब वजह स उ लओ क स या दशभर म तजी स घट रह ह। भारतीय उपमहा वीप म उ लओ क 32 जा तया पाई जाती ह। इनम स 30 जा तया भारत म मलती ह। ले कन शकार क कारण इन जा तय म स यादातर सकट त और ल त ाय जा तय म शा मल हो चक ह। अवध शकार म ल
अंध व वास ले रहा है ल मी के वाहन क जान
या वण
कोटा म लगन वाल दशहर मल म गए थ। उनक पास 20 मत उ ल और 35 उ लओ क अग मल िज ह व कोटा बचन ल गए थ। बाद म इस मल म राज थान प लस न द बश द थी। इस दौरान कछ पारद पकड़े भी गए थे। य ह सबस बड़ बाजार: 1. उ तर देश/म य देश 2. पि चम बंगाल/आं देश 3. द ल 4. गजरात 5. राज थान/ बहार। उ लओ क य पाच जा तया ह नशान पर: 1. रॉक ईगल आउल 2. ाउन फश आउल 3. ड क ईगल आउल 4. कॉलड क स आउल 5. मॉट ड वड आउल यहां से सबसे अ धक पकड़ जात ह उ ल- 1. उ तर देश 2. म य देश/आं देश 3. छ तीसगढ़/झारखंड 4. राज थान 5.
नव भारत
‘त ह से
गजरात/उ तराखंड
टाइ स से साभार
’ रपो्रताज

उस क चमक ल पीठ खल रौ नी म और द ि तमान हो उठती थी. तभी उसे एक शकार दखा.

वह एक बड़ा मडक था. उस न

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page24 डा. वण जे. ओमकार अ त घम कड अपन रा त पर था. वह वन दश म घम रहा था. या थी उस क खोज, भोजन था या कछ और, कोई या कह सकता है? वह जब भ म और कभी सख़ प त पर सरकता था तो उस क आहट से डर कर प र दे शोर मचा देते थे कभी प त के वीच से नकलता था तो
भदक दात म फस चका था. अगल दो चार पल म वह उस क पट म था. वह वन म ऐस ह ठाठ स घमता रहा. तभी वह एक ग ढ क पास स गजरा तो उस फकारन क आवाज़ सनाई द आवाज़ ग ढे के भीतर से आ रह थी कतहल-वश वह ग ढे कनारे के पास गया और उस ने भीतर झांका. अगल ह पल वह अपनी आख झपकन लगा. उसे अपनी आंख पर यक न न आया. यह देख कर नह क भीतर उस जैसा एक और ा ण मौजद था और वह भी उसी क तरह फकार लगा रहा था बि क यह देख कर क वह ा ण अपनी पछ को अपन मह म डाल हए था और उस जोर जोर स चीथ रहा था. वह पछ बना न कहानी इस बार कहानी त भ म मन य के ानोपजन पर एक हसन (satire) तत है
फकारा छोड़ा. मडक वह का वह क गया. उस ने अपने फण को व
ट र त
मडक क सर पर घमाया और अगल ह पल वह उस क
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page25 रह सका, ‘अरे यह या, तम या कर रह हो वहा?’ ‘ओ तम! लग रहा है क जंगल से आये हो. तभी तो श टाचार क कमी है. तम बतायो तम यहां या कर रहे हो? भागो यहां से मर ग ढ पर शायद त हार नज़र ह ’ ‘मझ नह चा हय त हारा ग ढा. म तो यह जानन क लय बताब ह क तम ग ढ म या कर रहे हो. बाहर य नह घम रह, भोजन के लये? म य क भोजन क तालाश यहां मेरे पास या त भोजन है काफ मडक ह और सब पजर म. मझ मडक पालन का ढग आ गया ह. य य प म उ ह यहा नह पालता. मर जस बहत सार ह जो यह काम करत ह. व मर भोजन क आप त करत ह.’ ‘अ त! और यह सब पि व पर हो रहा ह! मझ तो अपनी आख पर यक न नह हो रहा पर तम अपनी पछ य मह म डाल हए हो?’ ‘यह मरा अपना ग त आन द ह. म कसी बाहर क ा ण को अपना भद य बताउ? ‘शायद इसी लय त ह मझ बताना चा हय म बाहर का ह और त हार अपन भाईचार का नह तम ब झजक मझस बात कर सकते हो. मझ जानन क ती इ छा भी तो ह, म !’ कछ दर और इसरार करन क बाद पछ कतरा चचा क लय तयार हो गया. ‘तम ठ क कहत हो! मन भी बड़ समय स अपना मन नह खोला तम शायद सह यि त हो िजसस म अपन दल क बात कर सकता ह.’ ‘हां, हां म ! यथ श टाचार से वयं को अलग करो. मझ बताओ तम अपनी पछ य चीथ रह हो?’ ‘खजल ! मझ बस खजल होती ह, मेरे भाई! और मझ इस खजान म आन द मलता ह.’ ‘देखो म , मज़ाक छोड़ो. मर उ सकता न बढ़ाओ.’ ‘ठ क ह तो कह रहा ह और मझ हमशा इस या से आन द नह मलता”, “ कभी कभी पीड़ा भी मलती है’, गहर सास ल कर पछ कतरा बोला. ‘पीड़ा! वह भला कस लये?’ घ म कड़ क लय यह अब नई उ सकता का व य था. ‘जब म अपन दात गहर गडा दता ह ’ दोन हंस पड़े ‘देखो म , फर मज़ाक कर रहे हो. मझ बतायो तम ऐसी या म स ल त ह य होत हो जो बाद म पीड़ा का कारण बनती ह.’ ‘पछ चीथना असल म हमार पशतनी परपरा ह यह मझ सोच- वचार म सहायता करती ह म चतक ह और चतन मनन करता ह.’ पछ कतरा अब प टवा दता पर उतर आया था. उसे लगा क अब वह बात को यादा नह खींच पायेगा. ‘लोग मर चीथन स मर सोच या का अदाज़ा लगा सकत ह आन दायक चतन म म अपनी पछ को धीर धीर काटता ह. जब गहरा चतन करता ह या जब म कसी सम या क समाधान पर काम कर रहा होता ह तब मर वचार मि त क म उ पात मचा दत ह. तब म अपनी पछ को जोर जोर स काटता ह मझ पता ह क यह अ छा नह लगता पर म लाचार ह मर भाई!’ ‘पर सोच वचार तो लगपग येक ा ण करता है. म भी तो सोच वचार करता ह पर म अपनी

या करत हो?’ ‘ज टलता..! हम अपनी रचनाय को यादा से यादा ज टल बनात ह. जो िजतना यादा ज टल लखता हे उतना

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page26 पछ नह काटता तम ऐसा कौन सा चतन करते हो?’ ‘अपन चतन स म वचार पदा करता ह. य वचार मझ ान दत ह. ान मझ बढ़न म, वकास करन म, उ न त करन म सहायता करता ह, हां मेर समझ को भी बढ़ाता है. कई बार म यादा काम कर ल तो ढर वचार एक त कर लता ह ’ ‘ फर तम उनका या करते हो?’ ‘म उ ह प तक म का शत करता ह. यह मेर बेहतर न मनो चत ड़ा है और मेर उपजी वका भी ’ ‘वाह! मझ स नता हई यह जानकार ा त करक. त हार जस और भी ह ग जो यह काम करत ह.’ ‘हां, बहत सार कोई समय था जब एक इंट उखाड़ो तो नीचे दो मलते थे अब तो इंट उखाड़ने क ज़ रत नह . इट पर बठ दो मल जायग. य सभी ा ण लख़क कहलात ह, लेख़क, फला फर, चंतक, अ या मवेता....’ ‘तो तम लोग अपनी पहचान बनाय रखन क लय
ह वह बड़ा लेखक है. कई बार तो हमार वचार हम वय समझ म नह आत. य ग णत शा क पहल जस होत ह ’ ‘तो तम उनका अथ कस नकालत हो?’ ‘अथ क कसे परवाह है. हा हम म ह एक और णी क लखक ह िज ह हम आलोचक कहत ह. व शष लखको क बार म बड़ी बड़ी प तक लखत ह, झान गोि ठया एव चचाय करत ह वे सरचना को समझन क लय वरचना का सहारा लत ह....’ ‘संरचना हो या वरचना, है तो दोनो वचार ह .... वचार िज़ंदगी तो नह . िज़ंदगी तो वचार के बाहर ह या वचार क बाद ह जसा तम कहत हो और य द वरचना उसस भी ज टल हई तो ’ घम कड़ अपनी ठठ जागल श कता स बोला. ‘ह .. ह .. ह ..,’ पछ कतरा हसा,‘यह तो हमारा आ लाद है यारे, हमारा परम य सख ह, हमारा दशन है! इस परम य काय म सलगन एक नह लाख ह हमारा अलग एक श णक समदाय है. यह हमार उपजी वका है. हा हम सब लोग अपनी पछ चीथत ह. पछ चीथना हमार त ठा का तीक है.’ ‘ब ढ़या! तो तम एक ानवान ा ण हो चलो त हार ान क बात करत ह ’ ‘शौक से!’ पछ कतरा नमरता स बोला. ‘त हारा बहतर न आनदायक चतन या ह?’ ‘मेरे बेहतर न चीथने यो य मेरा अ भ ाय है वचारन यो य व य ह सम त जीवन का दशन.. सम याय जस क दख व सख, भला बरा ह या, शा वत चरकाल न स दय, ज म म य के पार या, मरत अमरत परमा मा; इस के इलावा सम याऐं जैसे उ वाद, वाद, आतंक...’ ‘ठ क है ठ क है तो या ह त हारा न कष!’ ‘ कस क बार म?’
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page27 ‘इन म स कसी क बार जैसे भला बरा ह या?’ ‘यह म कछक श द म नह बता सकता. तमन जानना ह तो प तकालय चल जाओ. यहां से पांच ग ढे छोड़ कर छठा. यहा तक मरा अपना न ह म इस क बार नि चत प स कछ कह नह सकता ’ ‘तम इस महान काय म कब स कायरत हो?’ ‘कई पी ढ़य से.’ ‘कई पी ढ़य से? और अभी भी नि चत नह ! अभी भी अधर म ह हाथ पांव चला रहे हो!’ ‘पर हमन बड़ आकड़ इक कर रख ह. बड़ी वचाराधीन साम ी जमा क है! हम इ ह ज द संक लत कर लगे. पर सम या यह ह क आकड़ यक वष बढ़ जात ह. असल म हमार यहा अ या क व शोधकता का चलन है अब शोध बढ़ रह है तो शोधकता बढ़ेगे शोधकता बढ़ग तो अ या क भी बढ़ग. सो हमन इस क लय बड़ बड़ व व व यालय बना रख ह. यह एक बड़ा यवसाय है, मेरे भाई! सभी अ या क व शोधकता मल कर बड़ बड़ शोधप लखत ह, प तक भी! फर वे वयं के बीच बड़े बड़े पद एवं उपा धयां बाटत ह और ान क महा न ध को प रत त करत ह. अब हमार शोध स प तकालय इतन भर चक ह क हम न ान को स ह करने क एक नई व ध खोज नकाल है... वह ह क यटर और ...... ’ ‘बस म समझ गया! तम व आकड़ अपनी कबर म ह सक लत करोग पर मझ यह बताओ क तम ऐसा ान ए ह य करत हो िजसक सशोधन क , पनःअवलोकन क ज रत पड़ती ह.’ ‘लो! इसी से तो ान बढ़ता है.’ पछ कतरा बड़ आ म वशवास स बोला. ‘पर पर ान का कोई अंत तो होगा! कोई अं तम बात! अं तम अं ि ट! और उस के बाद जीना श करो! एक पर यग म त हार कतन ानी और मसीहा मलत ह त ह उन स ति ट नह मलती. त ह तो हर वष म हर नय दन म नया मसीहा चा हय जो त हार हर या त या का मागदशन करे!’ अ त घम कड हसत हए बोला ‘हां, हां..अं ि ट! हम म भी बहत लोग अ ि ट स प रपण लखत ह पर वह सब ान क बहतात म खो जाता ह.’ ‘तम स य क खोज तो कर लत हो पर स य का म य नह जानत! हां बताओ, त ह नह लगता क ऐस ान क पगडडी का अनकरण करना, िजसका जीवन
एवं उजा क बबाद है.’ ‘लगता तो है कई बार हां पर ऐसा है क हम ानवान लोग अपनी यो यताय क बार म बहत हठ होत ह. हम दसर को सनत नह कवल अपन अहम को बचाय रख कर ो सा हत करत ह बस. सनना हमार आदत नह . जब सभी कह रहे ह और सनता कोई न हो तो कवल शोर इक ा होता है, समझ से नदारद केवल भार भरकम उ पाद पैदा होता है कोई था हम ह से हमह का भाई व बध िजसन कहा था क हम अपन प तकालय यक दस वष क बाद जला दन चा हय और नय सर स खोज करनी चा हय...’ ‘यह भी त हार सम या का समाधान नह त हार प तकालय फर इसस भी बड़ ह ग ’ ‘तो हम या कर?’
म यादा उपयोग नह बशक समय
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page28 ‘स य तो य होता है, साफ़ एवं प ट वह हमार सहज ान म, हमार यवहा रक ब म लपट कर हमारे पास आता है.बौ क ज टलता स तम अ भ यि त का स दय न ट कर देते हो.’ ‘पर हम अपन समाज क सम याय का या कर. समदाय का या कर जो उनक समाधान क लये हमार ओर टकटक लगाये बैठा है ’ ‘उसका कारण भी त हार ब ह ह. तम यह मान कर बठ हो क तम समदाय क यक सम या, ाक त क हर आपदा का समाधान अपनी बौ ता वारा कर सकत हो. अगर समाधन नह मल रहा तो यह त हार ब क कमी ह न क यह जीवन क अ न चतता कोई पहल ह तम सोचत हो क बौ ता वारा तम सम या क मल तक पहच जाओग. जब क तम सम या क साथ जड़ी दस और सम याय को नकाल लत हो. त हार बौ ता त हार सम याय का हल नह कर सकती ’ अ त घम कड़ न एक टक जवाब दया ‘पर एक बड़ी सम या क छोट टकड़ को नज़र अदाज़ करना बाद म एक बड़ी सम या को ज म नह देगा या.’ ‘म इसस इनकार नह करता म तो कहता ह क सम या वहा नह यहा तम उस दख रह हो सम या कह और है. वह ह त हारा मन, त हार इ छा!’ ‘एक ईमानदार इ छा जो सम या का समाधान खोजने के लये त पर है कैसे सम या का कारण हो सकती है?’ ‘वह इस लय क ईमानदार इ छा कहती ह क वह वय नह बि क दसर लोग समाज क अ यव था क कारण ह, सधरन क भी ज़ रत उस नह दसर को ह. वह मान चक ह क बौ ता क बल पर वह अपनी क मय को या तो जीत सकती ह या छपा सकती ह तम आकड़ समदाय को बदलन क लय इ करत हो वय को नह . ’ ‘म समझा नह ... ’ ‘यह मन है मर भाई जो सम या का मल ह अपने तमाम छल कपट स हत, अपनी दबी व तय का अपनी ग त इ छाय का दास!’ ‘मतलब..?’ ‘मतलब बना महनत कय दसर क महनत क बल वत पर अपन लय वलासता क उपकण हा सल करना इस ह तम ब मता, ब क कमाई कहत हो.’ पछ कतरा चीख़ पड़ा, ‘यह यवसायक बौ ता एक दन म तो नह मल जाती! इस के लये वष के वष रात को जगना पड़ता है. अगर तम सफ़ल होत हो और द नया त ह उ क ट मानती ह तो इस म बरा या है? और मन न भी व दबी व तया और ग त इ छाए एक दन म नह पदा कर ल . वे उस क साथ पी ड़य स ह और तम मझ बताओ इ छाओ को मारना अ छा ह या?’ ‘जीवन क उ लास को मनाना बरा नह और न ह इ छाओ क प त करना! म तो उन क फलाव क व ह. म तो उन क छल वारा और लक छप कर क प त क व ह. म तो बइ तहा पिज क व ह जो तम भ व य क लए जमा करत हो दखो म अपन पास कछ नह रखता फर भी म स न ह.’

लग हो. बना वचार के ान कैसे हो सकता है?’

‘कोई बड़ा वरोधाभास नह ह इस म तम को शश स नह बि क सहज

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page29 ‘हमारा स य समाज इन आ दम तौर-तर क़ से नह चलेगा हमारे लोग भ व य के लए जमा नह करग तो एक दसर को लट खायग. हम दो एक नह बहत सार ह.’ ‘............’, अ त घम कड कछ समय क लए क गया. उस लगा शायद उस मख बनाया जा रहा है वह आग कछ कह न सका ‘ठ क है! शायद तम थक गए हो. ान चचा को यह छोड़ कर चलो पट पजा करत ह. मढक तैयार है.’ दोन न मढक खाये घम कड को पजर म बद मढक खाना अ छा नह लगा पहल बार उस ने मढक क आख म डर को दखा. उस अब समझ म आया क य य लोग दख व सख, नै त ता अनै त ता, भला या बरा, पाप व प य क जाल म उलझ रहत ह. फर कई दन दोन ने लगपग जीवन के हर पहल पर चचा क एक समय ऐसा आया क अ त घम कड को लगा क वह चचा बीच म छोड़ कर चल पड़ और पछ कतर को उसक हाल पर छोड़ दे. उसका वचारवान म तक क मामल म कह भी कम नह था. फर एक दन आया जब घम कड जान को तयार था उसे वशवास हो गया था क उसका ानवान म केवल सरल करण एवं सप टता के लए अपनी बौ ता का याग नह करेगा. ग ढ म धस उस पछ टकन वाल महान ष द श पी को वह छोड़ कर चलन क लए तयार होत हए घम कड न कहा‘असल म ब का फलाव नह ब क स मता त हार सम या का हल है. इससे भी यादा त ह कहन स अ धक समझना, समझन स अ धक महसस करना, महसस करन स भी अ धक चेतन होना चा हए ‘और इससे भी यादा?’ पछ कतर न फर दलचि प. ‘त ह अपन चतन होन क त भी चतन होना चा हए.’ ‘अरे वाह! तम तो ऐसी बात कर रह हो जो हम न कई बार अपनी लखनी म दोहराई ह ’ ‘त हार बहदाकार सा ह य म स य ब क पास तो होता ह पर चतना स, िज़ दगी स दर रहता है. त ह वचार एव ान क एक नय रा त क खोज करनी ह.’ ‘वह या है?’ ‘वह ह वचार श य चतनता, धारणा श य मन, वचार श य ान!’ ‘ फर वरोधाभासी बात करन
भाव स इस रा त पर चल सकते हो. यह ान श य ान, अपनी खामोशी म स बोलन क या है....’ ‘.......’ ‘पव काल म ववक व बोध क महा मी, महा म न ऐसा ह करत रह ह. वे थम ण के ानवान थे वे ऐसे ानवान थे िजनके बोध का उ गम थल बाहर संसार नह उनका अपना अतस था. व बा यमखी नह अ मखी ानवता थ. वे अंतरमन क गहन खामोशी स बोलत थ. पर उनक एक सम या थी जो आज हम सब क है. भाषा एवं स यता क अवधारणा इसी संसार म बनी और ससार क लोग क समझ क अन प ह कह या लखी जान लगी उसी धारणा के
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page30 अन प स य को अ भ य त करना उन क बबसी थी व लोग क भाषा क अन प बात करते थे. लोग क भाषा स ह उ ह न क त क महान रह य को वचार बध कया उ ह लोग न क त क महानतम स य का नाम परमा मा या न परम आ मा रखा या न ‘परम हम.’ वे कहना चाहत थ क हमी वह स य ह दसर ण क वचारवान स य क खोजी नह कवल स यता के अनगामी थ. वे पहले से बछ बसात पर ह खेलते रहे. उ ह ने थम ण के वचारवान वारा य त अवधारणा क कवल ससार अथ को हण कया और ब क इसी व तार को बढ़ावा दया इससे अगल ण के वचारवान ने तो इन अथ को भी छोड़ दया और कवल बाहय श द को ह उ साह स अपनाया और इ ह स ातक प द दया. तब खामोशी क तरलता समा त हो गई और ब अवधारणाय क ठोसाकार म जकड़ गई. आज भी कभी कभी कोई मौ लक वचारवान पदा होता ह जो तमाम परानी अवधारणा को तोड़ दता ह पर दभा यवष नई धारणा को पनपने से नह रोक पाता. या स प म यह त हार ान क कहानी ह िजसक हमने अब तक बात क है.’ ‘पर हम या कर क ‘ ान क ठता’ क बहकाव म न आय और ान श य अतस क खामोषी क तरलता के साथ कैसे एकाकार ह ’ ‘तम अपन अदर वचार का वचार न बनन द. त ह कोई एक श द द दता ह- जैसे ‘चेतना’ और तम एक पल म उस क इरद गरद हजार तान बान क साथ उन तमाम अवधारण को इ ा कर लत हो जो आज तक त हार जानकार म ह. चतना का यह ान ह त ह वासि वक चतना को समझने नह देता. तम श द को, वा यांश को, कसी महान स य को बना वचार क अपन अदर घस जान दो उसे अपना काम करने दो स य जानने से पहले स य जानने वाले को जान जो तम वय हो.’ ‘यह सब मझ मर सम याय को समझन एव हल करन म कस साहायता करगा.’ ‘दखो तम फर वचार के वचार के पीछे भाग रहे हो त ह व ति थ त बदलन स पहल व ति थ त क बदलन का ान ा त करन क ज द ह ता क तम गलत सह का नणय कर सको.’ ‘शायद तम ठ क कहत हो कोई और अं तम बात?’ ‘एक ह वचार को दो बार न सोचो न लखो. वचार के गोलाकार वत स ब को आज़ाद करो और अपन मह को पछ स!’ अ त घम कड हसा और हसता हआ आग बढ़ गया और फर पीछ मड़ कर बोला, ‘ग ढ बाहर नकलो और अपन अदर क घम कड को मरन न दो!’ कह कर अ त घम कड जगल म गायब हो गया. लेखक के नोटसः अ त घम कड- चेतना या न यमन कांसयसनैस जो ात या न नालेज का पीछा कये बगर नई संभावनाय क ओर बढ़ती रहती है
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page31 पछ कतरा- मन या न यमन माइंड जो ात या न नालेज को अपनी अम य संप त और ब को अपना ह थयार मानता है अगर मन ने भतकाल म कह चोट खाई है तो वह हम अपने ान के आधार पर दोबारा वहां जाने को रोकेगा जब क चेतना के लये यह कोई अनवाय नह व चेतना के लये भी उसी तरह काम करती है पर वह उस के पांव म ब डया नह डालती. पछ मह म डालने का अथ - वताकार सोच (circular thinking) म ान वान लोग क च है िजस के तहत वे पव-प रभा षत ान को बार बार प रभा षत करते है अभी यमन कांसयसनैस मन व ब वारा जकड़ी हई है अगर यमन कांसयसनैस ने अपने अगले पड़ाव ‘एज आ◌ॅफ कांसयसनैस’ क ओर अ सर होना है तो हम ‘ ान क ठता’ या न ाइमेसी आ◌ॅफ नालेज को छोड़ना होगा (Translated from English by author)

शहर म आ गए ह, उनका या कया जाए ?

एक ब जीवी क राय थी क बदर को समझा बझा कर वा पस जगल म भज दया जाए। दसर

ब जीवी का कहना था क बदर को यह बताया जाए क शहर म रहना उनक लए

सा बत हो सकता ह। शहर बीमा

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page32 ब जीवी और बदर गरमीत बद ब जी वय क बैठक चल रह थी और उस बठक म एक स बढ़कर एक ब जीवी बठ थ। कोई अ वल दज़ का ब जीवी तो कोई परले दज़ का ब जीवी । अपन चहर मोहर, भाव-भं गमाओं और बैठने के टाईल से सभी वाकई ब जीवी लग रह थ। कछ हाला क पग-शग लगाकर आए थ ल कन उनक ब जीवी होन पर कतई शक़ नह था। गठबधन सरकार क तरह व अपना मान सक व शार रक सतलन बनाए हए थे। कह से भी गर नह रह थ। कछ पान चबा रह थ तो कछ सगार पीत हए लगातार धए क छ ल उड़ा रह थ। इसस सा बत हो रहा था क व वाकई ब जीवी ह। इस बठक म कोई य ह मह उठाकर नह चल आए ह। खैर ! ब जी वय क सामन सम याओ क फ़ह र त रखी गई िजस उ ह सलझाना था। पहल सम या यह थी क जगल स नकलकर जो बदर
ख़तरनाक
रय का घर बनत जा रह ह। दषण बढ़ रहा ह। सय त प रवार टटन स ब च घर म अकल हो रह ह। लोग फ़ा ट फड खाकर डाय ब टज और मोटाप का शकार हो रह ह। इसस बदर क भावी पी ढय़ पर भी बरा असर पड़ सकता है। जब बंदर को शहर करण क ख़तर बताय जायग तो नि चत प स व अपनी औलाद क सर ा और उस बगाडऩ स बचान क लए वा पस जगल म चल जायग। एक ब जीवी क राय थी क जगल म सरकार क ओर स फल और खा य पदाथ नय मत प स भजवाय जाय ता क बंदर का दाल-फ क़ा चलता रह और उ ह शहर आन क मजबर न रह। ल कन इस वचार पर कछ

क भी गारट नह ह क व नसबंद के लए

सहमत हो जायग । बात को लपकत हए एक और ब जीवी न कहा - ' डट वर , सबसे

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page33 ब जीवी सहमत नह थ। उनका कहना था क सरकार ग़र ब आदमी को तो स ती दर पर य चीज़ महया करवा नह पा रह ह, बदर को म त म कस महया करवायगी? एक ब जीवी क यह च ता भी थी क िजस तरह सरकार स लाई म बड़ लवल पर गोलमाल व अ नय मतताए होती ह, वस ह बदर को फल और खा य पदाथ क स लाई म भी यह कछ हो सकता ह। ट लोग सरकार त म कहा-कहा नह ह ? एक अ य ब जीवी न बात को आग बढ़ात हए कहा क ' सरकार स लाई म गोलमाल व अ नय मतता तो बाद क बाद ह, पहले तो बंदर के लए जंगल म फल और खा य पदाथ भजन क लए ठक क आबटन म ह नताओ क ख़ब सफ़ा रश चलगी। हर ल डर चाहेगा क ठेका उसके आदमी को मले। वप भी हो-ह ला मचाकर आरोप लगायगा क ठक क आबटन म क़ायद-क़ानन क धि जया उड़ी ह। हो सकता ह क वप इस म पर वधानसभा कारवाह ठ प कर द या फर मह पर काल प या बाधकर सदन क बाहर बैठ जाए। वप अपने कायकताओं को च का जाम करने के लए भी कह सकता है। च का जाम के दौरान कोई रोगी अ पताल न पहच पान स अ लाह को यारा भी हो सकता ह। मी डया क एक साथ चार टॉ पक लग सकत ह बंदर, वप , च का जाम और रोगी क मौत। हो सकता ह कछ अख़बार इस पर एडीटो रयल भी लख डाल । अगर यह मसला सरकार नपटा भी दती ह तो भी या गारट होगी क बदर को जो फल और खा य पदाथ जगल म भज जायग, उनक वा लट सह होगी। हो सकता ह क बदर घ टया सरकार स लाई पर अपना रोष जतात हए इनक सवन स मना कर द और ग स म फर शहर क तरफ नकल आय ? एक अ य ब जीवी ने कहा क सम या का हल तभी हो सकता है, जब बदर क नसबद कर द जाए । ल कन दसर ब जीवी न उसक बात काटत हए कहा क पहल तो इस बात क कोई गारट नह ह क बदर सरकार क हाथ आयग भी क नह। और अगर आ भी गए तो इस बात
पहले हम बदर को प रवार नयोजन क फ़ायद बतायग। उ ह यह भी बतायग क प रवार नयोजन स जनस या क ोल म रहती ह और जनस या क ोल म रहन स ि थ त क ोल म रहती ह और जब ि थ त क ोल म होती ह तो सरकार वकास क लए योजनाए बनाती ह और जब वकास क लए योजनाए बनती ह तो उसम पसा इ वा व होता ह और जब कसी चीज म पसा इ वा व होता ह तो उसम टांका लगाने का मौक़ा मलता है। टांका लोकतं का ब नयाद म ह। नसबद म भी टाका ह लगाया जाता
एक अ य ब जीवी न यह कह कर बीच म टोक दया - ' बदर न अगर आपक बात सनन स मना कर दया तो.....? बदर यह कहकर भी नसबद करवान स मना कर सकत ह क इ डया क अ पताल म आपरशन करत समय डा टर कई बार कची, कपड़ा और दसर औजार मर ज़ क शर र म ह छोड़कर टाक लगा दत ह और जब इंसान क है थ के साथ ऐसी लापरवाह हो सकती है तो फर बदर तो बदर ठहर। उनक साथ आपरशन क म डा टर कछ भी कर सकत ह । यह भी हो सकता है क डा टर आपरशन क म मोबाइल पर कसी नस स ब तयान म मशगल हो जाए क बदर क चीरफाड़ करन क बाद उ ह टाक लगाना ह भल जाए । ऐसी ि थ त से बचने के लए बंदर वदश म उ ह नसबद क लए भज जान क माग भी कर सकत ह और सरकार अगर उनक यह
है........।
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page34 माग अ वीकार कर दती ह तो बदर नसबद स ह मना कर सकत ह। बदर अगर अड़ जाए तो सरकार उनका बगाड़ भी या सकती है? सरकार सफ़ ग़र ब आदमी को ह आख दखा सकती ह । इस पर एक और ब जीवी तश म आत हए बोल-- बदर क एसी क तसी। उ ह पता नह सरकार क पास बहत बड़ी पॉवर होती ह। सरकार अगर कमचा रय को दर-दराज इलाक़ म फक सकती ह, अपने राजनै तक वरो धय पर झठ कस बनाकर उ ह अदर ठस सकती ह, तो बंदर कस खेत क मल ह ? कई अ य ब जी वय न हा स हा मलाई। अ त म यह न कष नकला क बदर का मसला एक बठक म नह सलझ सकता लहाज़ा चचा अगल बठक क लए टाल द जाए। इसक साथ ह बठक म िजन दसर सम याओ पर ब जी वय न चचा करनी थी, उसे भी अगल बैठक के लए टाल दया गया। अगल बठक क तार ख अभी मकरर नह हई ह य क ब जीवी बजी हो गए ह। -गरमीत बद
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page35 आप तलना और पधा क दौड़ म य रहना चाहते ह? - जे. क णम त जब आपक तलना कसी दसर स क जाती ह आपक पढ़ाई क बार म, आपक खलकद क बार म अथवा आपक प या चहर क बार म-तब आप य ता, घबराहट और अ नि चतता क भाव स भर जात ह। इस लए यह नतात आव यक ह क हमार व यालय म तलना का यह एहसास, यह अक या णी दना और सबस बड़ा तो पर ा का भत समा त कया जाए। आप तब बहतर अ ययन कर पात ह जब वत ता रहती ह, जब स नता रहती है, जब कछ दलच पी बनी रहती ह। आप सब जानत ह क जब आप कोई खल खल रह होत ह, जब आप कोई ना य काय म कर रह होत ह, जब आप चहलकदमी के लए बाहर
ह, जब आप कसी नद को नहार रह होत ह, जब आप स न चत रहत ह, खब व थ रहत ह तब आप कह अ धक सरलता स सीख लत ह। परत जब तलना का, ेणी का, पर ा का भय सामने खड़ा हो, तब आप न उतना अ छा सीख पात ह, न उतना अ छा अ ययन कर पात ह। कभी-कभी यह न भी सामने आता ह क बना पधा कए या इस त पध समाज म रहा जा सकता है? इस न को दख तो हम यह मानकर चलत ह क हम इसी त पध समाज म रहना ह और इस लए हम त पधा म बन रहन का वक प चनत ह। यह वजह ह क यह आधार वा य बन गया ह। जब तक आप कहत रहग क मझ इसी पध समाज म रहना है, तब तक आप पध ह बन रहग। यह समाज सफलता का पजक ह और य द आप सफल बनना चाहत ह तो वाभा वक ह क आपको पध रहना होगा। परत सम या कवल पधा स कह अ धक गभीर ह। पधा करने क इ छा के पीछे या है?
जात
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page36 यक व यालय म हम पध होना ह सखाया जाता है, है न? अंक देकर, कसी मंद बालक क कसी कशा बालक स तलना करक, लगातार इस ओर इशारा करके क एक नधन बालक भी जनरल मोटस का अ य या सव च अ धकार बन सकता है, या इसी तरह क उदाहरण तत कए जात ह। हम पधा पर इतना बल य दत ह? इसक साथकता या है? पधा म एक बात तो नि चत ह और वह यह क इसम अनशासन ज र ह, है न? आपको वयं पर नयं ण रखना होता है, आपको अनकरण करना होता ह, अनदश का पालन करना होता ह, आपको और सब लोग जैसा होना होता है- बस और बेहतर। इस कार आप सफल होन क लए वय को अनशा सत करत ह। कपया इस सम झए। जब भी पधा को ो सा हत कया जाता है तब याकलाप के एक वशेष ढर के अनसार मन को अनशा सत करन क एक या भी साथ-साथ चलती है। या कसी लड़के या कसी लड़क को नयं त करन क लए अपनाए जा रह तर क म से ह यह एक तर का नह है? य द आप कछ बनना चाहत ह तो आपको नय ण, अनशासन और पधा यह सब तो करना ह होता ह। इसी म हम पल-बढ़ ह और यह हम अपन ब च को वरासत म द रह ह। और फर भी हम ब च को खोजबीन करने क , अ वेषण करने क , वतं ता देने क बात करत ह ? पधा यि त के वा त वक व प को ढांप देती है। य द आप वयं को समझना चाहत ह तो या आप कसी अ य स पधा करग? इस य द खए क या आप कसी च को अ य च क साथ तलना करक समझ सकत ह, या उस आप कवल तभी समझ सकत ह जब आपका मन बना कसी तलना क उसी च को यानपवक दख रहा हो? वय समझना सपण जीवन- या को समझना ह और आ म प रचय स बढ़कर कछ भी नह ह और पधा स म त मन ह वय स प र चत हो सकता ह। ऐसा मन िजसे कसी तरह के बदलाव से कोई सरोकार नह रह जाता, उसे भय नह होता और इस लए वह पर तरह म त होता हतब वह अपने को . कसी अ य प म बदलन, कसी अ य ढर सा साच म ढालन क को शश नह करता, ना ह वह कसी अनभव क तलाश म रहता ह, ना ह कसी चीज क बार म कहता'सनता या कसी तरह क माग रखता हतो ऐसा मन पर ... वह ह शांत ...तरह म त होता ह,ि थर अचल होता हैऔर तब .., कदा चत वह अि त व म आता ह जो अनाम ह.. जे क णम त

पर चटाक हो गया और दो-एक म छर

ढेर हो गए.!!

फर या था बाक के म छर ने शोर

मचाना श कर दया क म अस ह ण

हो

ब जी वय ने अखबार व मी डया पर

म तपते तक के साथ बड़े-बड़े लेख

लखना श कर दए.

उनका कहना था क म छर देह पर

तो थे ले कन खन चस रहे थे ये

स हआ है.

अगर चस भी रहे थे तो भी ये गलत तो हो सकता है, ले कन 'देह ोह' क ेणी म

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page37
त भ हम
क हक़ क़त... ( सम-सामयक व
पर चचा)
छर व अस
घर म बैठा
, मेरे इद गद कई म छर बावेला मचा रहे थे तभी कछ म छर ने आकर मेरा खन चसना श कर दया। वाभा वक त या म मेरा हाथ उठा और बाज पर स का
म छर
थाई
मालम है ज नत
ह णता म
था
जमाये बैठे
ंगा ह इसम अस ह णता क या बात है वो कहने लगे खन चसना उनक आज़ाद है यह आजाद उ ह जनम से मल है यह उनका ज म स अ धकार है. "आज़ाद " श द सनत ह कई ब जीवी म छर उनके प म उतर आये और बहस करने लगे.!! इसके बाद नारेबाजी श हो गई., "िजतने म छर मारोगे हर घर से म छर नकलेगा".
गया ह.!! मन कहा तम खन चसोग तो म मा
मौज़द
कहाँ
नह आता, य क ये "ब चे" ह और बहत ह ग तशील रहे ह., कसी क भी देह पर बैठ जाना इनका 'अ धकार' रहा

'

है. आप क देह पर बैठ कर वे आप को

चेत न करने आए थे देश मि कल दौर

से गज़र रहा है. आप उ ह खन दो वे

आप को आज़ाद दग.

मन कहा –“म अपना खन नह चसन

दगा बस.”

तो कहने लगे ये आप का "ए स म

देह ेम" है. यह एक देह केवल आप क

ह धरोहर नह है यह देह देश क

तम क रपंथी हो, डबेट से भाग रहे हो."

मन कहा त हारा उदारवाद त ह मेरा

खन चसन क इज़ाज़त नह दे सकता

इस पर उनका तक़ था क भले ह यह

गलत हो ले कन फर भी थोड़ा खन

चसन से त हार मौत तो नह हो जाती,

ले कन तमन मासम म छर क

िज़ दगी छ न ल और वे आप का खन

थोड़े चस रहे थे. वे तो आप से देश क

आज़ाद के लए थोडा र तदान करने

क गज़ा रश करने आए थे. आप ने उ ह

"फेयर ायल" का मौका भी नह दया

और झटका दया.

इतने म ह कछ राजनेता भी आ गए

और वो उन म छर को अपने बगीचे क

बहार' का बेटा बताने लगे.!!

हालात से हैरान और परेशान होकर मन

कहा क ले कन ऐसे ह म छर को खन

चसन देने से मले रया हो

का आरोप भी मढ़ दया.!!!

मेरे ख़लाफ़ मेरे कान म घसकर सारे

म छर भ नाने लगे,

"हम लेके रहग आज़ाद ".!!!

"लेके रहग आज़ाद ".!!!

म बहस और ववाद म पड़कर परेशान

हो रहा था. उससे यादा िजतना क

खन चस जाने पर हआ था

म छर चले गए. म कछ सी रयस हो

गया.

आचाय चाण य वारा कह एक बात

याद आती है क “जब समाज के अ त

व वान लोग नाराज होने लग तब

स नता पवक यह समझ लेना चा हए

क, राजा क यव था बहत ब ढ़या ढंग

से काय कर रह है।” तो या चाण य

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TUMHISE–HindiLiteraryMagazine
अमानत है.
जाता है, तरत न सह बाद म बीमार और कमज़ोर होकर मौत हो जाती है इस पर वो कहने लगे क त हार पास तक़ नह ह इस लए तम भ व य क क पनाओं के आधार पर अपने 'फासीवाद ' फैसले को ठ क ठहरा रहे हो.. मन कहा ये साइं ट फक त य है क म छर के काटने से मले रया होता है., मझ इससे पहले अतीत म भी ये झेलना पड़ा है.!! पर मेरा तक उ ह समझ म नह आया!! त य के जवाब म वो कहने लगे क म इ तहास म जी रहा ह और म छर समाज के त अपनी घणा का बहाना बना रहा ह , जब क मझ वतमान म जीना चा हए. इतने हगाम के बाद उ ह ने मेरे पर माहौल बगाड़ने

ऐसी रा य वयव था क बात ह करते रहे ह जो ब व बौ क लोग के

हो. जो सफ डंडे से ह कं

या चाण य सह थे अगर हाँ तो या

भारत कभी भी स ह ण नह था.

आ खर आप कब थे स ह ण?

परशराम के य संहार के समय,बौ

के क लेआम के व त या महाभारत य

के दौरान लंका म आग लगाते हए या

खांडव वन जलाते हय, कछ याद पड़ता है?

आ खर बार कब थे आप स ह ण?

या तब थे आप स ह ण जब मा ने

बनाये थे वण रच डाल थी ऊँच नीच

भर सि ट या तब, जब वषमता के

जनक ने लखी थी वषैल मन म त िजसने औरत को सफ भोगने क व त

बना दया था, श से छ न लए गए थे

तमाम अ धकार रह गए थे उनके

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ोल
तकल
होती हो.
पास महज़ कत य सेवा करना ह उनका
य बन
था और अछत
लटका द गई थी गले म हं डया और पीठ पर झाड़ नकल सकते थे वे सफ भर दपहर ता क उनक छाया भी ना पड़े तम पर इ सान को अछत बनाकर उसक छाया तक से परहेज़ ! या ये नह थी अस ह णता ? ऊपर वाला भी हँसता होगा हम ये देख कर क मि दर को तोड़कर, मि जद बनाल तो या हआ! तम मि जद को तोड़कर अब, मि दर बनालो! ऊपर बैठा हआ वो हंस रहा होगा… . मेरे ह घर को तोड़ तोड कर, कब तक बनाओगे, मैने तो वहाँ रहना, कबका छोड़ दया है। मै तो रहता ह, मानव के दय म जाओ अब दय को भी बाँट दो धम के नाम पर? व व का सबसे बड़ा लोकतं है हमारा देश हमे गव भी है पर या यहाँ स पण लोकतं है...? इंसान अपने कम से पहचाना जाएगा अ छे बर क परख कहाँ वो याद रख पाएगा म ी से सोना, सम से मोती तो नकाल लाएगा पर भीतर के सच को या कभी बाहर लाएगा श द खतरनाक व त ह। सवा धक खतरे क बात तो यह है क वे हमसे यह क पना करा लत ह क हम बात को समझत ह जब क वा तव म हम नह समझत। - च वत राजगोपालाचाय
जीवनो
गया
धकेल दये गए थे गाँव के द खन टोल म,
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page40 जब हम यान करते ह तो यान हमारे भीतर उतरता है - जे क णम त 'जब हम यान करते ह तो अपने भीतर को समझने के यास पर होते ह। वहां त य नह होते बि क अनभव ह होते ह। वहां खोज नह बस एक शां त होती है।' यान, न त ध और सनसान माग पर इस तरह उतरता है जैसे पहा ड़य पर सौ य वषा। यह इसी तरह सहज और ाक तक प से आता है जैसे रात। वहां कसी तरह का यास या के करण या व ेप वकषण पर कसी भी तरह का नयं ण नह होता। वहां पर कोई भी आ ा या नकल नह होती। ना कसी तरह का नकार होता है ना वीकार। ना ह यान म म त क नरंतरता होती है। मि त क अपने प रवेश के त जाग क रहता है पर बना कसी त या के शांत रहता है, बना कसी दखलंदाजी के , वह जागता तो है पर त याह न होता है। वहां नतांत शां त त धता होती है पर श द वचार के साथ धधल पड़ जाते ह। वहां अनठ और नराल ऊजा होती है, उसे कोई भी नाम द, वह जो भी हो उसका मह व नह है, वह गहनतापवक स य होती है बना कसी ल य और उ य के। वचार और भाव या अहसास उसको जानने समझने के साधन नह हो सकते। वह कसी भी चीज से पणतया अस ब है और अपने ह असीम व तार और अन तता म अकेल ह रहती है। उस अंधेरे माग पर चलना, वहां पर असंभवता का आनंद होता है ना क उपलि ध का। वहां पहच, सफलता और ऐसी ह अ या य बचकानी मांग और त याओं का अभाव होता है। होता है तो बस असंभव असंभवता असंभा य का अकेलापन। जो भी संभव है वह यां क है और असंभव क प रक पना क जा सके तो को शश करने पर उसे उपल ध कए जा सकने के कारण वह भी यां क हो जाएगा। उस आन द का कोई कारण या कारक नह होता। वह बस सहजत: होती है, कसी अनभव क तरह नह बस अ पत कसी त य क तरह। कसी के वीकारने या नकारने के लए नह , उस पर वातालाप या वाद ववाद या चीर फाड़- व लेषण कए जाएं इसके लए भी नह ं। वह कोई चीज नह क उसे खोजा जाए, उस तक पहचन का कोई माग नह ं। सब कछ उस एक के लए मरता है, वहां म य और संहार ेम है। या आपने भी कभी देखा हैकह बाहर, गंदे मैले कचल कपड़े पहने एक मजदर कसान को जो सांझ ढले अपनी म रयल ह डय का ढांचा रह गई गाय के साथ घर लौटता है।
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page41 अपने बल से बलह न को तो चप करा पाएगा पर कहाँ फर वो द नया से यार का ल ज़ सन पाएगा अपनी दौलत शोहरत से गर ब का घर तो उजाड़ पाएगा पर कौन सी दकान से अपनी ख शया खर द पाएगा ऐ ब दे त कब तक य ह चलता जाएगा? चाल तेर म म है, चल नह रग रहा है त संग तेरे सारे है पर अकेला कह खो गया है त जलता तपता त रात को भागने के सपने देखता है पर फर भी चलती िज़ दगी म सो गया है त बता ब दे त कब तक य ह चलता जाएगा ? साँस का क़ज़ एक दन तझ, अकेले को चकाना है कम का मोल एक दन, खद ह को भगताना है जब अकेले का ह रा ता एक दन शमशान तक जाना है मो का वहम सीने म ले कर तो य य ह गमशदा बन दन गने जाएगा ? ऐ ब दे त कब तक य ह चलता जाएगा? - त ष शमा

पतन क ओर उ मख

क नया उ थान हो

नया इंसान हो

(2) मेर क पर उगा नीला फल

म देखता ह ये

और साथ ह देखता ह

(1) म य....

नैरा य

सकन.......

न तेज

सबका वराम

एक महा नवाण

एक नींद

छपी हई समय क

अपण गभ म

अ वक सत ण.....

एक समट हई

रात के अँधेरे म

मेर काल बदरंग

वभ स अंतस म

जो अ सर ची कार करती है, एक रोज़

अचानक ह सना मन

नःश द खल खलाहट

मासम सी

अपन व भर

यह म य थी

मेर चौखट पर

लए स पण अँधेरा

एक श य

एक नई श आत के लए

त हार गोद म खेलती

ढेर सी पयाँ

म चमता ह त ह

न दय म बह कर

काश तम इस तरह

समट ना होती

काश तम भी होती कोई

मासम से मालन

और हर सबह मझ

चन लेती

मेर शाख से......

काले कौए इस तरह से

फैले ह

जैसे, आसमां काला हो

फज़ाय काल ह

हवा म भी का लख है,

म पछता ह?

ये या संदेश लाये ह, इस से पहले वो कछ कह,

मेरे त वर पर

लख गए ह, म काल का एक

कल ह, कभी इसका शकार ह,कभी ये मेरा.....

TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page42

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और म..... तैयार था
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page43
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page44 (डॉ) वजय शंकर (;w-,l-,-) डॉ० वण ओमकार जी, नव वष मंगलमय हो। "त ह से" के कई पेज मन देखे ह, वशेषतः स पादक य। पर कछ पा रवा रक य ताओं के चलते लख नह पाया , हाँ इस बीच नाना अव य बन गया। वदेश म य तताओं का व प थोड़ा भ न होता है पर आप जैसे म के लए तो हर हाल म समय है और आगे भी रहेगा। मल वषय पर आते ह, आप लखते अ छा हो, सोच कर लखते हो। साम यक वषय पर लखते ह, आपने, स पादक य म, जो एक आम आदमी का च अं कत कया है वह हर देश के साधारण आदमी जैसा ह सामा य यि त है पर वह कछ असामा य प रि थतय म फंसा हआ आदमी है जो सफ हमारे देश म ह हो सकती ह। शायद हमार सबसे बड़ी सम या यह है क हम सांसा रक ान के ऊपर अपना ान लाद देते ह ,और वयं को अ य-आध नक बताते हए अपनी स क त के त व को उपे त करते रहते ह। उदाहरण के लए हमार स ह णता और सा दा यकता क व व क अपनी अनठ ह प रभाषाय और समझ है, अतः प रणाम भी वैसे ह ह। हमने जनतं अपनाया है, पर हमारे अ धनायक म य - यगीन वंशवाद - साम तवाद पर परा के ह पोषक ह, वे यह मानने को तैयार ह नह ह जनतं म जन भी कछ होता है, वे उसे अभी भी वैसे ह लेते ह जैसे वदेशी शासक लेते थे। द नया म आम आदमी के सार द नया म छोटे छोटे, सामा य से सपने होते ह और वह उ ह के पण त ह से का आगामी अंक: चेतना या है

Sir i have read tumhe se today . Ur concept on knowledge and understanding is very nyc . And also there are some very nyc contributions

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page45 होने म अपनी खशी ढढता है। पर हमारे कणधार नह मह या कराते बि क हर आदमी को बताते ह क तम मं ी, म यम ी बनने रखते हो। तम बहत का बल हो , जैसे भी हो , वैसे ह रहो , सबकछ त ह उसी हाल म मलेगा। संदेह नह क ऐसे म वह पाता या है यह तो वह जाने वह उनका आ त अव य बन जाता है। अब सो चये , कतना आसान है , इस तरह के सपने दखाना , न श ा क ज रत , कल क । कतना क ठन है सारे देश को कल देना, अपने पैर पर खड़े साम य देना , और कतना आसान है इस तरह के सपने दखा कर अपनी स ता जमाये रखना। इसके लए उ ह या करना पड़ता है, कछ नह ं। एक कल खोलने म तो बहत कछ करना पड़ता है , उससे भी कतने लोग खश होग, इससे तो सारा देश खश, सपने म खो जाता है और ऊपर बहत ऊपर पहचन के नै तक - अनै तक, धा मक, जाद - टोने, र वत, ाइम आ द आ द को कौन से तर के नह अपनाने लगता है, पाता या है ? हम इसे जनतं कहते ह, यह है हमार जनतं क प रभाषा। जनतं का ऐ तहा सक व प का अभी - अभी times now पर कनाटक स ब धी वी डयो भी आपने देखा होगा। म य - यगीन लगा क नह ? इं लड म एक कॉ टेबल से अभ ढंग से बात करने मा से एक जन त न ध का राजनै तक जीवन समा त हो गया। वैसे यह जनतं हम अं ेज ह दे गए , उसे अपने रंग - प म हमने खद ढाल लया है। हम कछ भी देदो , हम उसका ऐसा प बना दग क दंग रह जाओगे। टै स आप हर चीज़ का दो, तकल फ आप झेलो , सफाई आप खद कर , य , टै स के पैसे या हए, इतने सफाई कम ह, फर भी इतनी ग दगी, वाभा वक है उसी अनपात म डा टर बढ़ग, दवाइयाँ बकगी, सब भा य ह, यव था का कह कोई दोष नह है। वा त वकता यह है क जनता के लए काम करो तो य नह होगा , जनता के नाम पर अपने लए करोगे तो अपने लए होगा। सम याएं ह, समाधान भी ह , बस सह दशा नह है। य क लाभ इसी दशा है। आगे इस पर वचार करना चाह। एक नवेदन है , स तीन कार होते ह, स, ष, श। स को द त स कहते ह, ष मल द स कहते ह और श ताल य तीन के योग म यान अपे त है, टाय प ट को इं गत करग। शासन श द है। च लए लखते रहग ......... आपको इस साथक यास पर ढेर बधाइयां। सादर। वजय शंकर (डॉ) शभकमण संह, Govt. MedicalCollege, Amritsar

from trishi sharma dr mohan ji indu lekhi. It is a wonderful litrary nowdays. But at same time i think to retain orignal essence of literature it is best served as orignal. Also i await in next part more english literature and your more and more writtings in magazine attempt.Comprehension of hindi text had always been mine problem which i think is true for more students PART2

, Govt. MedicalCollege, Amritsar recieving comments upon Sir issue was published with lots of work was required. Afterall responses lead to further course of thinking...Rest layout and immense efforts of yours were really appreciable efforts. But response to writing may not be acheived. As you thought of

Inderjit

Tum hi say ka pihla ank peda bahut hi jaanverdak or poems lajabab hats off to you

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page46
HIGHLY अवेटेड -शभकमण संह डॉ परमजीत च बर साइके ट य इस ए गड एफट डॉ. वण ओमकार – माय congratulations एंड गड वशेस डॉ मोहन बेगोवाल मे डकल कॉलेज अमतसर इद लेखी क क वता बनाम फल क प ती सदर अथ देती, इस समय क सचाई को पकड़ती, कमाल क रचना के लए बधाई
ष शमा
AhluWalia
(मेर अपनी त या) डॉ० वणओमकार मेरेदो त क दरया दल Dard-e- dil direct from Facebook यह मनेपहले भी कईबार महस ू स कयाहै लेकनइस बार तोक ु छ यादाह होगया. पहलेसेह म जानता था क मेरे दो त बड़ेदयादलह वेमेर पो सके से लआईडयाको समझते है. और उस पर मेरे कहनेम ु ताबक तह दल सेअमल करतेहै. जैसेअगर म कहताह ू ँ क यादा ान जमा नह ंकरना चाहए और यहहमारा नरंक ु श ानह है जोहमेलाइफ म सीधद े नेक बज iयेहम ान व ानवान लोग क ग ु लामी (िजसेहम गलतीसे ा कहतेह)करनेको ेरतकरताहै. तोइसतरहक पो ट कोपढ़नेक बजाये वेसीधा अमल म लाना पसंद करतेह. यानऐसीपो ट कोवे पढ़तेह नहं. अगर म अपनी धन म लगा रह और दो त क इस दया दल को न समझ और यह सोच क कछ क ठन लखा गया होगा जो दो त न यादा मान सक मेहनत करने क बजाये उसे "देख के अण डठ" कर दया होगा. इस क एवज म म
rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page47 अगर अपनी मान सक फैक ट ज को फर स पर जोरशोर स काम म ला कर " हंद या पंजाबी" भाषा म ासलशन कर क, क ठन श द को चन चन कर वहा आसान व आम बोल चाल क भाषा क श द भ तो अगर फर दबारा दो त वह दया दल दखाए तो म सर धनन क इलावा और कछ नह कर सकता हा यादा स यादा नै पो ट लख सकता ह. "त ह स" को मन एक मगज़ीन का प दना चाहा. को शश क क दो त को इनवॉ व क . हम सजन का कछ बहतर अथ समझ और गहर अतर म या पत अपनी सजनाि म ता को बाहर नकाल सए दो त स साझा कर तो यहा भी दो त ने वह दरया दल दखाई. उ ह ने नए वष के बधाई स देश के साथ "त ह स" मैगज़ीन क "कवर फोटो" को केवल एक अ छा "बधाई स देश" मान कर फट से like कया और अगले स देश क तरफ ख कया. मन और ढ ठताई बरती और हर एक दसर दन "त ह स" को नए नए angle से शेयर कया तो दो त ने अपनी "सप र चत दरया दल को और आग ल कर एक बार फर ऐसी पो ट को ब ढ़या तर के से " रजे ट" कया. और कछ इक न "गड" "congratulations " और इ तयाद दल लभावन सदश स "जले पर पानी छटका" िजस क लए म उन का तह दल स आभार ह." अभी तक इस "द नया क आठवी न वन दसवी हरानी" से अब तक उभर नह पा रहा ह क २४ म स २० घट फसबक पर वराजमान मर दो त न ऐसा दया दल का पाठ कहाँ से सीखा. और उस स भी यादा िजन दो त को मन "त ह स" म लखक तौर पर शा मल कया उ ह ने भी अपने इस दो त क नई को शश को तहे दल से रजे ट कर दया. म मनाता ह क फसबक पर पो ट क भरमार ह. और एक आम इंसान के पास इतना समय नह क वह हर पो ट को पढ़ सके या उस पर कोई ताव पेश कर सके . पर फर भी मन म अ त र त ढ ठताई ल कर सोचता ह क म अभी भी दो त के "ब ढ़या मन- मि त क" क त य लख नह पा रहा ह और मझ और को शश करनी चा हए. डॉ० वण ओमकार हट जाओ, जब तक लोग यह पछत ह क हटता य है। उस समय तक मत को, जब लोग कहना श कर द क हटता य नह है? रामधार संह दनकर

गाना / Title: सीन म जलन आख

म तफ़ान सा य ह - siine me.n

jalan aa.Nkho.n me.n tuufaan

saa kyo.N hai

च पट / Film: Gaman

संगीतकार / Music

Director: Jaidev

गीतकार / Lyricist: Shahryar

गायक / Singer(s): सरश वाडकर(Suresh Wadkar)

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016 TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page48 हमार फ मी शायर ( थाई त भ)
शहरयार सीन म जलन आख म तफ़ान सा य ह इस शहर म हर श स परशान सा य ह दल ह तो धड़कन का बहाना कोई ढढ प थर क तरह बे हस-ओ-बजान सा य ह त हाई क ये कौन सी मि ज़ल है रफ़ क़ो ता-ह -ए-नज़र एक बयाबान सा य ह हम ने तो कोई बात नकाल नह ग़म क वो ज़द-ए-पशमान पशमान सा य ह या कोई नई बात नज़र आती ह हम म आईना हम दख क हरान सा य ह आज के स शायर प तक "शहरयार : " म जानमान लखककमले वर लखते " :ह ह द तानी अदब म शहरयार वो नाम ह िजसन छठ दशक क श आत म शायर क साथ उद अदब क द नया म अपना सफ़र श कया। यह दौर वह था जब उद शायर म दो धाराए बह रह थी और दोन के अपने अलगअलग रा तेअलग मंिज़ल थीं। ए-और अलगक शायर वह थी जो पर परा को नकार कर बगावत को सबकछ मानत हए नएपन पर ज़ोर द रह थी और दसर अनभ त, शैल और जद दयत क अ भ यि त के बना पर नया होने का दावा कर रह थी और साथ ह अपनी पर परा को भी सहेजे थी शहरयार ने अपनी शायर के ! लए इस दसर धारा कसाथ एक नए नखर और ब कल अलग अ दाज़ को चना—और यह अ दाज़ नतीजा था और उनक गहर समाजी तजब का, िजसक तहत उ ह ने यह तय कर लया था क बना व तपरक व ा नक सोच क द नया

म कोई कारगर रचना मक सपना नह-

देखा जा सकता। उसके बाद वे अपनी

तनहाइय और वीरा नय के साथसाथ -

द नया क खशहाल और अमन का

!सपना परा करन म लग रह

कवर अख़लाक मोह मद खा उफ

शहरयार का ज म ६ जन १९३६ को

आंवला, िजला बरल म हआ। वस

क़द

TUMHISE–HindiLiteraryMagazine Page49

rqEgh ls& n~forh; vad olar 2016
मी रहने वाले वह चौढ़ेरा ब नेशर फ़, िजला बलदशहर क ह। वा लद प लस अफसर थे और जगहज-गह तबादल पर रहते थे इस लए आरि भक पढ़ाई हरदोई म पर करन क बाद इ ह १९४८ म अल गढ़ भेज दया गया। वह कदकाठस मज़बत और सजील थ। अ छ खलाड़ी और एथल ट भी थे और वा लद क़दम क यह इ छा
ह के
अफसर बन जाए। ले कन तम◌ाम को शश क बावजद ऐसा हो न सका। आग चलकर सन १९६१ म उ ह न अल गढ़ मि लम व व व यालय स उद म एम कया। व याथ जीवन .ए. मअ ला क स टर -उद-ए-म ह अजमन और‘अल गढ़ मैगज़ीन’ के स पादक बना दए गए और तभी से इनके इराद न पकना श कर दया। अपन इलाक क सांझी तहजीब ने इनके लए मज़हब का प अि तयार कर लयाउद और ! ह द भाषा के बीच द वार बनावट नज़र म ह शहरयार १९६६आन लगी। सन व व व यालय क उद वभाग म व ता म ह १९६५जब क सन नय त हए इनका पहला का य सं ह‘इ मेआज़म-’ का शत हो चका था १९८३इसके बाद ! म वह ोफ़सर हो १९८७म र डर और -म इसका दसर का य १९६९सन !गए सं ह‘सातवाँ दर’ छपा। फर ‘ ह के मौसम’ १९७८ म, फर १९८५ म ‘ याल का दर ब द है’ का शत हआ और इस सा ह य अकादमी अवाड से नवाज़ा गया म १९९५इसके बाद !‘नीद क करच’ का शत हआ। सल सला अब भी ज़ार ह और शहरयार बद तर श’र कह रह ह। और अब तो इनका समचा का य लखन नागर ल प म भी आ गया ह और ह द भाषी लोग न भी भरपर वागत कया। आप क त या हमारे
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Editor- Dr. Swaran J. Omcawr Executive- Editor- Krishna Eswarn

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अं तम प ना ा त प तक अमत (उप यास) काशक : अयन काशन , नई द ल जसबीर कालरवी का यह उप यास िजसके बारे म यात सा ह यकार मह प संह लखते है- य द यह उप यास के चौखटे म मानना हो तो अनेक वचारो तेजक सि तय से भरा हआ है यह उन रचनाओं म नह है िज हे एक ह सांस म पढ़ा जा सकता है यह रचना हर दसर कदम पर आप को रोक लेती है और कहती है - ठहरो आगे बढ़ने से पहले इस उ दलवन को पचाओ जो इस ने त हार अंदर उ प न कया है. हंद म चंतन परक रचनाओं का औप या सक प जैने और अ ेय जी क रचनाओं म मलता है. मझ जसबीर उन से भी दो कदम आगे लगे है. ये लेखक अपनी क तय म कथा स को कसी सीमा तक पकडे रहते ह जसबीर ने इन थल स क भी चंता नह क है
नव आि त व क तलाश
March- June 2016

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