तु ह से 2016-1
rqEgh ls izFkekad gsear 2016
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डिजटल सं करण
तु ह से 2016-1
izFkekad
gsear 2016 इ
इस अंक म
स
डा. क वता करण क दो क वताय (9)
अं
इंद ु लेखी क दो क वताय (10)
क
कायनात- नरं जन " नरं जन" (11)
म
भू पंदर ीत क दो क वताएँ (14) पेशावर क रात (क वता) - त ृ ष शमा (16) “पांच इि
य म तुम” - प लवी
वेद (118)
ल मण- रे खा (लघुकथा)- मोहन बेगोवाल (20) च लये शा वत गंगा क खोज कर (ल लत नबंध) (21) गॉड इज़ वन- रै व वण (26) क़ानून के ल बे हाथ -- डॉo वजय शंकर (27) ससकते आब म कस क सदा है / बशीर ब ( (28) दो ग़ज़ल -डॉ याम सु दर द ि त (29) पंजाब का छठा द रया (38) पयावरण संकट.. -सुनीता नारायण (39) सच कह दँ ू ऐ
मन गर तू बुरा न माने / इक़बाल (40) तेजी व
तम
क क वताएँ (41)
मनोरम जी वतं मनु याणाम ् (43)
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ांज ल -1 (अ मत बावा) : वण ओमकार (44) ांज ल -2 (गुरचरण "कौन") : परमजीत चु बर (46)
थाई त भ तुत अंकः समझ और अनभ ु ू त (4) संपादक क कलम से (6) हम मालूम है ज नत क हक़ क़त (सम-सामयक चचा) (30) यि त वशेष- मनोहर याम जोशी (33) हमार फ मी शायर (50) आप क
त-
याएँ ((इस अंक म यह कालम नह ं है )
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izLrqr vad% le> vkSj vuqHkwfr
बा य
ान केवल समझ (understanding) का
तकनीक हो या बौ क हम
कृ त को लट ू ना सखाता है- यह हम मानवता का शोषण
करने क आज़ाद दे ता है- अपने
बा य
ान का आधार है -
ान है- यह हम न ठुर बनाता है - यह
ान के बल पर हम कम
ानवान लोग को लूटते ह-
य वाद त वदशन. इस दशन ने नै तकता
न ठा आ द
मानवी आदश क ग रमा को एक कोने पर उठाकर रख दया है । ता का लक लाभ ह सब कुछ बन गया है - भले ह उसके लए कतनी ह पड़े। लगता है वतमान क
वंचना और न ठुरता
वचारधारा मनु य को पशु बनने जा रह है- िजस पर मयादाओं
और वजनाओं का कोई अंकुश नह ं होता। अनुभू त एक अलग तरह का हम अंतर का
दशन होता है - हम बा य जगत से
करते है- अनुभू त एक अपरो भारतीय दशन कहता है-
ा त
ान है- िजस से
ान क अंतर क बु
से पर
ा
ान है . ान तीन तरह का है .
ान हम भौ तक संसार से जोड़ता है- परो Tumhi se –Hindi Literary Magazine
य न अपनानी
य
(direct sensory perception)
या न (indirect, deductive knowledge or Page 4
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understanding) लगातार बु
ान हमारे मन व बु
"आ म
य न नह ं करते और
ां तय का
ान" है जो हम भाव शि त से
पढ़ते ह तब हम अंतर के ^सा ी* बनते ह- यह
या म सा ी जब
शकार होते ह-
ां तयो
ान हम हा सल होगा-जब हम कोई भाव पूण
सा ी या आ जवर ह शि त है जो
वयं को ऑ ज़व करती है -
मख ु सम या है बाहर से
का घटाटोप और कु वचार-
यता का
ा त व ववा दत
अनै तक या झूठ परपंच भरे वचार चार करना भी
य बनाते ह- हम वचार क जड़ म जाने से कतराते
शकार होने के बजाय और बु
अि त व के अनुभव करने हे तु अपना स पूण अि त व के अनभ ु व करने हे तु हम बा य स चा हए। जब कुछ
यान
या तक क बजाय अपने
भाव पर क त
करना है - अपने
यता क बजाय मौन व अंतमखी स ु
या है जो इस अनुभू त क सह अथ म
नवेदनµ वण ओमकार Tumhi se –Hindi Literary Magazine
यता
ण हम मौन म होते ह तो हमारा अि त व आभा षत हो जाता है।
समभाव एवं आनंद क अनुभू त ह हमार वा त वक व सहज अनुभू त है।
रचना मक
याय
वयं को ऑ ज़व करता है तो धीरे धीरे यह हमार आ मा का
कु वचार है- ये वचार हम ऊपर से स अत स
लेख क वता
ि ट का आभास होता है- हम अपने अंदर या बाहर घ टत
को ह कु वचार क सं ा नह ं द जाती बि क पूर ईमानदार से झूठ का ह- हम
यापत
ा त होता है - िजतनी सू म हमार भाव शि त
सा ी बन जाता है- आज के मानव क वचार- वकृ तयो,
ान
वारा समझी
ान (Extra sensory Intuitive perception of subtle) हमारे अंतर म
होगी उतना ह सू म अपरो
इस
ान ह है - बा य
ववेचना क मांग करता है. ले कन बहुदा हम एक बार बु
बात को दोबारा समझने जानने का अपरो
वारा समझा बा य
ेम
चंतन एक
ाि त है-
मु य प ृ ठ (कला) रै व वण Page 5
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rqEgh ls--Ekkuoh; psruk dk niZ.k izFkekad
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laiknd dh dye ls ---मल ू भत ू
न के हल
कये
बना कोई
उ थान नह ं हो सकता. ऐसा नह ं है च लत धा मक व राजनी तक अथ-तं
यि तगत सामािजक या आ याि मक
क हम रचनाकार का यह ‘आम आदमी* को नह जानता या उस के बारे कोई
यि तगत राय नह रखता या मागदषक के तमाम ल खत अ ल खत माग दशन के बावजूद वह लगातार शोषण
का शकार हुये जा रहा है . ऐसा नह ं है . भारत क सर-जमीं पर पैदा हुया यह श स इतना गया गुज़रा पैदल दमाग़ नह ं है . हमारे जैसे लाख हज़ार माग दशक को माग दशन व ेरणा दे ने वाला यह ‘आम आदमी* कुछ अपनी अं ीव वषमताओं व ववशताओं के जाल म उलझा हुया है. ---भरे -पूरे राजनी तक बाज़ार का वह शकार नह ं उपभो ता है. वह राजनी त
का
राजनी तक इंधन ज़ र है . ले कन सवा सात अरब के इस घनघोर मानव जंगल म
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izFkekad वह भी तो अकेला है . उस के लये वह राजनी त म
स नतापूवक
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न अपने आि त व को बचाये रखने का है .
वयं को पेश
करता है क उसे भी अपनी घर व
दक ु ान का छोटा सा रा य चलाना है. वह भी उतना ह बड़ा राजनी तक पतरे बाज़ है िजतना बड़ा कोई दे श का राजनी त . पर उस के अपने
य पतरे उस क
मान सक दशा को कब दद ु शा म बदल दे ते ह उसे पता ह नह ं चलता.... ---परमा मा से उस का अपना गहरा यि तगत संबंध है . हर महान ् मुि कल म वह उसका मसीहा है. उससे वह वह
शि त
घड़ी
ा त करता है जो कोई भौ तक
उपकण उसे दे नह ं सकता. पर यहां भी वह राजनी त करने से बाज़ नह ं आता. थोड़े से
यि तगत
ब धन
के बाद वह मु त भाव से अ या म क सी डयां ़
चढ़ने को लालायत हो उठता है . पर उसे यि तगत संसार उसके छल बु
यान नह ं रहता
क उसका अपना
व कपट के इंधन बना चल नह ं सकता. पर
उसक भोगी व ृ त उसे अ या मक भोग को भी चख़ लेने का अवसर चूकने से रोकना नह ं चाहती. ---परमा मा से उस का दस ू रा गहरा संबंध डर का है . उस के लये परमा मा अभी भी अबूझ पहे ल बना हुया है. वह समझता है क परमा मा उस का शाषक है िजसने उसके साि वक अपराध
का उसक
यि तगत
मान सक दब ु लताय
का
योरा रखा हुआ है. यह उसका व वाश है . उसक यह दब ु लताय उसे धा मक बाज़ार म ला खड़ा कर दे ती ह यहां वह सज़ा मआ ु फ़ के
लये और शायद
परमा मा क अ त र त अनुकंपा के लये धम-गु ओं] पुजा रय व धा मक
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izFkekad राजनी त
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के ह थे चढ़ता है . यहां उसक
यवहा रक तक - शि त
काम नह ं करती
य क
न
परमा मा का है . उसे जानकार नह ं क ये लोग अपनी सज़ा मआ ु फ़ नह ं करवा सकते उसक
या
करवायगे. ---‘तु ह से* हमारा छोटा सा थम अंक
यास है ऐसे ह अनेक मल ू भत ू
तत ु है. ‘तु ह से* का सा ह य जगत म
अ छ रचनाय क कमी है . ऐसे जवलंत नरं
न
योगा मक
तत ु करना हमारा
ेमी पाठक व लेखक गण का ‘तु ह से* एक साझा
यास के अनु प अपनी चु नंदा रचनाय भेजने का अनरु ोध है.
---हम प त-पि न युगल सा ह य व अ या म के र सया ह ले कन वशु व ान जगत क मे डकल
लाने का. इसका
तर पर है. अभी अ छ
क चु न दा रचनाय ‘तु ह से* म
यास रहे गा. सा ह य पयावरण व अ या म
मंच है. हमारा उन से हमारे
वेष अभी
न को आपके सम
ह द सा ह य से नता त दरू
ेणी से जुड़े ह. सा ह य के साथ अ या म से हमारा ता पय अगर कोई है
तो यह वह अ या म है जो कबीर दाद ु मीरा सर ख़े लोक-आ मा चतेरे महा मानव को आ मसात कये वा म ववेकान द, महा-पं डत राहुल सांकृ यायन]
वा म राम तीथ से होता हुआ] इस इ क सवीं सद
म भी क व कथाकार के मन से बेमुहारा फूट पड़ता है. यह अ या म लोक मन का अ या म है . जब आज क क व डा. क वता करण कहती ह - कब तलक काबा-ओ-काशी जायेगा
या कभी ख़ुद क तरफ़
भी जायेगा तो वह लोक-मन म बसी-रसी अ याि मकता क ह बात नह ं कर रह ं बि क यह क व के नज-मन म
ट हुई अं
ि ट बात करती ह. हमारा दस ू रा उदे य इसी अ याि मकता के वै ा नक
आधार क खोज करना है . ‘तु ह से* - कृ णा Tumhi se –Hindi Literary Magazine
वण Page 8
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संक पना व संसथापन डा-
वण जे- ओमकार
कृ णा
वण
आनरे र संपादन डा-
वण जे- ओमकार
कायकार संपादन एवं कृ णा
काशन
वण
सह&संपादन सु या बपन
वण ीत
व श ट सहयोग भप ु
ीत
डा- मोहन वै ा नक शोध डा- मोहन
Mk- ijethr pwacj lkbdSVfjLV ;w-,l-,कला व टाइ पंग स जा रै व सु या
वण वण
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rqEgh ls--सं
त उदे य
वशु
भौ त ता
अं ीव या बा य वशु
चेतना का
वाह
मन म दे ह म मि त क म न कोई पूवा ह धम या र त का न कोई पूव- नधा रत शा
ान
मन या अ या म का न कोई मागदशन न नतीजा या न कष केवल
न केवल
य न
तब तक जब तक न हो चंचल मन सीमा पार जाने को तैयार जब तक न हो वशु
चेतना का आभास
जब तक न मले अं तम अं - ि ट
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इंद ु लेखी -संवाद
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-मु त
इंद ु लेखी क क वता बनाम फूल क प ती
म ..और ...तुम एक ह जी रहे
फूल क प ती से कट सकता है ह रे का िजगर मद नादाँ पर कलामे-नम नाज़ुक बेअसर’ --इक़बाल
इक़बाल
वारा ल खत ब ल -इ-िज ील के शु
म भत ृ ह र के
नी त शतक से लए एक शलोक का मु त अनव ु ाद मलता है .
समझाया नह ं जा सकता."
या ा कब यातना बनी ...... कदम
भीतर मुड़े
कचल ु अपनी अपनी बचाने को , अब
भावशाल नाज़ुक भाषा से
..........
म .. और.. तुम
ीमती इंद ु लेखी हंद सा ह य म एक
था पत ह ता र है .
वे नरमो - नाजुक, सांके तक भाषा क मा हर ह. उन क क वता म सू म भाव क
थे ............
श द के ज म लेते ह
"ह रे के िजगर को फूल क प ती से काटा जा सकता है . ले कन कसी मूरख को सु दर
या ा
भरमार रहती है . वे िज़ंदगी क
गहर से गहर परत इस तरह खोलती जाती ह जैसे एक
समथ धैयवान जो िज़ंदगी जीता भी है और कला पारखी क तरह िज़ंदगी क परख भी करता है . -संपादक
उलट दौडना
दशा
म
जान गए ह संवाद -मु त अब हम
नह ं थोपना चाहते अपने -अपने मील-प थर ,...इंद ु .
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इंद ु लेखी -
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िजंदगी
कतरन -सी यह िजंदगी घूमे लेकर जेब म कभी लगे रे शम -सी कभी
दखे खुरदर -सी ;
हसाब
कर
फुसत म
तो उखड़ी -उखड़ी रहे ; उलझे ह
जंजाल म
तो भी बदहवास ह रहे ; करे बात मुझसे ' अपनी कभी ना ; िजद -िजद कर फर भी मेर जेब म रहे ..................... इंद ु .
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gsear 2016 मु त बाद कोट यग ु बीतते बीतते बल रहे बझ ु रहे सूय के बीच म भी धरु से गया रोशनाया मने सुहावी प ृ वी को गले लगाया ल बी राह का म राह मेरा अि त व हो रहा बह ृ द
कायनात
ले कन एक पक ु ार
मांड क माँ
के िजगर को चीर रह ं शु य म ज मा शु य म पला य य प फ़ैल रहा सूय संग तथा प रौशनी से मुंह मोडे पीठ कये बीज से पौधा पौधे से पेड़ बन गया हूँ कब म रौशनी पऊंगा
- नरं जन " नरं जन"
कब
टा बन िजऊंगा
अनंत काल से म इस के भीतर बीज के प म व यमान था गहन अंधेरे क छाती म अंधेरे म खुद को पाल रहा अंधेर अंग था
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डा. क वता करण क दो क वताय
1pV`Vkuksa ij ikuh tc cjlk gksxk ekVh dk nkeu fdruk rjlk gksxk lkxj Hkj dj Hkh u I;klh jg tkma xkxj ds Hkhrj dksbZ Mj lk gksxk ckny lksp jgk gS vc ds ckfj’k esa tkus fdruh cwnksa dk [kjjpk gksxk dc vk;sxk fnu tc ehBh Khyksa esa jsfxLrkuksa dk u dksbZ pjpk gksxk fdlus lkspk Fkk ;g thus ls igys bruk eq’kfdy thou dk ijpk gksxk डा. क वता करण
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esjs ?kj esa vkx yxkus okys lqu rsjk ?kj Hkh rks esjs ?kj lk gksxk Page 14
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म! हां! म! एक हादसे क तरह इस द ु नया म आई! िजंदगी को
2-
ने कया। आँख खोलते ह दद क सांवल परछाइय ने मझ ु े अपने
dc ryd dkck&vks&dk’kh tk;sxk
कांट भरा सफर।
D;k dHkh [k+qn dh rjQ+ Hkh tk;sxk
िजसे अनचाहे झेलना पडा। मेरा वजद ू म समेट लया और शु
वागत मु कुराहट ने नह ,ं मातम
हो गया चंता से चता तक का
िजंदगी बहुत वा हयात चीज रह है मेरे लए। इसे जीने म कभी सुकून महसूस नह ं हुआ। म त हाइय के कले म कैद थी। आज भी हूं और मेर द ु नया इसी कले क चहारद वार म समटकर रह गई। मेरे खयाल ने, मेरे ज बात ने कभी इन द वार को
ge&lQ+j gksxh usdh ;k cnh lkFk esa iafMr u dkth tk;sxk
तोडने क , इनसे बाहर आने क को शश भी नह ं क ।
bd gn rd bfErgka nsus ds ckn
आँख के रोशनदान म चुप-से झांक गये और मेरे भीतर कसी
lcz dk I;kyk Nyd gh tk;sxk
हां! व त और उ
के साथ कुछ
वाब ज र आते-जाते मेर
दस ू छोड़ गये। ू रे का अनजाना, अनपहचाना-सा वजद
म उन डूबती हुई शाम का आईना रह हूं, िजसम आसमान पर एक सन ु हर सुबह क तरह उगने क ललक है, ले कन अफसोस ! वो शाम कभी उस सब ु ह का नाम अपने होठ पर नह ं ला सक । म उन अंधेर काल रात क अनजान राह क मस ु ा फर हूं, जो सफ गमजदा लोग लए बनी है, िजनका आगाज तो है, पर अंत नह ।ं
व त ने मेरे माथे पर बस एक ह ल ज लखा है - ‘आँस’ू । “औरतनामा से”--- -डॉ. क वता " करण" Visit blog: http://kavitakiran.blogspot.in/
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D;ksa elhgk dh yxk;s gks mEehn gS u ,slk t+[e tks lh tk;sxk x+e u dj ne rksM+rs esjs ftx+j nnZ Nwrs gh rw th tk;sxk bu gjs Hkjs isM+ksa ls ve`r Nhu dj lksprs gks t+gj oks ih tk;sxk
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gsear 2016 (1) एक और म ृ यु ब चे ने पतंग उड़ाई और डोर से कट गई प ी क गदन
आकाश यूँ ह हलता रहा पतंग के बीच
धरती पर गरा प ी िजसे गरते ह उसके अपने पंख ने दे दया कफ़न
दरू से दे खता था एक पटर उस क आँख म रह गया खून से भीगे प ी का
य
उसे दःु ख मल गया अगल प टंग के लए
धरती को दे र तक रहने के लए एक और साथ
ेम को गहरा होने के लए
भू पंदर ीत क दो क वताएँ Tumhi se –Hindi Literary Magazine
एक और म ृ यु
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gsear 2016
(2) अनकह के लए
कह ं
पछ ू ना नह ं चाहता कुछ भी तुमसे पछ ू ने से प ी उड़ जाते ह.
क न जाये
कहना भी नह ं चाहता कहने से
डरता हूँ
क वताय जनम लेना बंद कर दे ती ह
मेरे अंदर से कह ं तु हार छाया गर न पड़े
अपने इस डर को माया जाल समझ फ़क दे ना चाहता हूँ ख़ामोशी पर
लग न जाये चोट कह ं प ी को
ख़ामोशी से घ सले बनते ह अनकह के लए
मेरे सूखे प त क सरसरहट से जो तु हार आवाज़ चलती है
भू पंदर ीत क क वता भू पंदर ीत क क वता बहुत गहरे अथ लए रहती है. वे पंजाबी के क व ह. जैसे शाम के धुंधलके म सभी रं ग एक रं ग से हो जाते ह और गहरा जाते ह. वे क वता को एक जीवन प
त क तरह लेते ह. उन के लए जीन और क वता कहना कोई दो बात नह ं. उन क क वता चाकू
क नोक पर चलती है. वे श द को तीखा कये रखते ह. उ ह बबाद नह ं होने दे त.े उन क क वता जीने के नए आयाम तलाशती है.
तुत ह
भू पंदर ीत क हंद म लखी दो क वताय.
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gsear 2016 पेशावर क रात
(2014 पेशावर
- त ृ ष शमा
कूल आ मण एक आतंकवाद आ मण था जो पा क तान के पेशावर शहर के आम पि लक
2014 दसंबर 16 को तहर क-ए-ता लबान पा क तान से आव
7 आतंकवाद
कमचार पर अ धाधु द गोल बार कर 145 लोग क जान ल . िजन म
यह भावपण ू क वता उस
यादा
ासद क याद दलाती है. त ृ ष शमा एक मे डकल
कूल म
कूल म घस ु गए और वहाँ के व याथ
कूल म पढ़ने वाले ब चे थे. त ृ ष शमा क
टूडट ह. - संपादक.)
न हे न हे कदम क चहलकदमी समट गई, धक् धक् करती धड़कन भी आज दे खो शांत हुई अ मी अ मी कहते हुए जो जुबां थी फसल रह , आज वो तोतल बोल भी कसी कोने म छप सी गई अ बा के कंधो क शान थी वो लूट गई, आपा के यार क गुहार भी आज बेकार हुई आज उन आँख क चमक भी है
सवा हुई,
जब साँसे हवाओं के साए मे फ़ना हुई आज उन माँ बाप क ह ती है मानो मट सी गई, िजनको औलाद है लाश मे तबद ल मल इन क
पर तो फूल भी रोकर मरु झा जाए,
मासम ू सी हं सी भी ये
सवाई के आंसू बहा जाए
या कहर उन खद ु ा के ब द ने ढाया है , जो बेक़सूर ब च को ह मोहरा बनाया है हालात ये कोई नए नह ं है ,
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gsear 2016 आसमां से उतरे या ज़मीं से उपजे नह है इनक जड़ तो हम मे ह कह ं दबी है , जंग मे लपट शाि त या शाि त मे लपट जंग जो बनी है शाि त का पैगाम तो दे ते हम सभी है , पर अपनाएगा कौन इस से अनजान भी हम ह है भगत संह ज मे फर से ऐसा तो सब चाहते है , पर आँगन हो दस ू र का, अपना चराग
य कोई शह द कर
शाि त राई िजतनी है चाहे पर पहाड़ िजतनी ज र है , ई या को गव म तबद ल करने क भी तो कला है गु से को भी मीठे वचन म बयां करने क भी तो कला है , मुि कल के समय साथ नभाने क ये कला है अपनेपन के एहसास को महसूस करने क ये कला है , अँधेर रात म भी रौशनी क
चंगार ढूँढने क ये कला है
डूबते सूरज क धीमी लौ को भी सलामी दे जाने क कला है , हो शु आत जो बदलाव लाने क कुछ भी तो नामुम कन नह ं है , एक एक हाथ बढ़ाए सभी तो सुधार हमीं से संबं धत है , शाि त को हम फर से
ह क ताकत बना दगे
धीमी धीमी लौ को भी इतना रौशन कर दगे, क भाईचारे के एहसास म जंग क ह ती मटा दगे क भाईचारे के एहसास म खु शयाँ हम फैला दगे।
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izFkekad “पांच इि
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य म तुम”
- प लवी
वेद
( वण ) आज सवेरे जब तु हे दे ख रह थी अपलक, प रंद को दाना डालते हुए, छत पर दो गौरै या, तीन कबूतर और चार गलह रय से घरे , उ ह यार से टे र लगाकर बुलाते हुए तुम, अचानक एक गहर और शांत आवाज़ म त द ल हो गए थे और म लगभग यान म न संसार के सारे गंज ू ने लगे मेरे दे ह और मन के
वर मौन हुए और तुम
हांड म एक नाद क तरह काटते रहे
च कर मेर ना भ के इद गद म उस पल म एक यो गनी थी और तुम ओम... ओम...ओम ( वाद)आज दोपहर मौसम क पहल बा रश और बस ... तुमने दे खा मुझे ऐसी तलब भर नगाह से मानो म चाय क एक याल हूँ ओह ...उ तेजना से थरथरायी याल और टूट कर बखर गयी एक गम आगोश म और ठ क उस व त जब तुम ले रहे थे बागान क सबसे कोमल पि तय क चुि कयां म तलबगार हुई एक अनची हे नशे क और तम ु उस
ण बने मेरे लए
अंगूर का महकता बाग़ ढे र से रसीले अंगूर मने कुचले , चखे और डूबकर बनायी द ु नया क सबसे बेहतर न शराब अब आँख बंद कर घूँट घूँट चखती हूँ तु हे . नशा -ए -मुह बत बढ़ता जाता हर बूँद के साथ…
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( पश) पूर ढल चुक शाम के बाद बुझ चुके सूरज क राख जब
उजला मुलायम पंख थे , कसी नवजात क नम हथेल थे तुम
उदासी बनकर जमा हो रह थी चेहरे और नगाह पर तुम बन गए थे
वा त क पहल बूँद थे, बेचैन पपीहे पर बरस रहे थे ....
एक रे शमी माल मेर छलछलाई आँख को समेटते , उदासी क राख प छते तुम उस पल एक मुलायम छुअन थे , हं स का एक य) आधी रात नींद खल ु और दे खा तुम टे बल पर झक ु े कोई
सबसे "स ह णु " कहलाया जाना व त का तकाज़ा क ऐसे सुलगते
क वता बुन रहे थे लै प क उस पील रौशनी म तुम बन गए कृ त
दौर म थ गत कर दं ू पो ट करना म टर बीन के शो और ेम के
क एक वराट प टंग सोचते हुए ललाट पर चार गहर सलवट जैसे
ग य प य भेजा बड़ा ग ट फ ल कराता है यार मगर दल मेरा
सूरज से नकलती पहल करण िजसक गन ु गन ु ी गमाहट म गहूं क
बड़ा आलसी और बेज़ार ऊबा हुआ और उकताया हुआ इन पचड़ से
बाल क तरह पकती थी क वता , े मल आँख म दे र से टक एक
कभी कभी उबकाई क हद तक यार दल चल तू ह सह अब के फर
बूँद जो बाद म क वता क कसी पंि त म ह गुम हो गयी थी म म
तेर ह सह दमाग को एक एि प रन खलाई और क बल म दब ु का
लयब साँस म महकती थी वो सुनहर गहू क ब ल म दे खती रह
कर सुला दया और फर इन तमाम बहस से भरे पेज म मने इ तू
अडोल उस अलौ कक च को फर म उस च पर झुक और
सी जगह बनायी एक ेम क वता क बड़ी बड़ी बौ क चचाओं के
(
अपना नाम लख दया एक पीले चु बन से .... म मेर चार इि
य
से चार पहर तु हे महसूसती हूँ और पांचवी ?
बेमानी सी भी एक दरू से सुनाई दे ती च ड़या क बार क आवाज़ सी
(गंध) जब जब सांस लेती हूँ तुम बन जाते हो तु हार ह तुश महक जो फूटती है तु हार दे ह से और समाती है मेर
ह म......
बहस और वमश के इस महा भयंकर दौर म जब चार ओर च लप सी मची दखाई दे ती है , जुबां मेर भी लपलपा कर एक कमे ट फक दे ना चाहती थी दमाग मेरा चाहता था उन बहस का सरताज बन जाना और दस ू र के गले म आरोप क माला डाल
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नगाड़ के बीच मेर म रयल सी ेम क वता न केवल असंगत बि क जानते हुए भी क गुज़रना होगा इ जाम के बोगस रा ते से गलत समय म पैदा होने का भुगतना होगा हजाना "लग जा गले " का दस ू रा अंतरा सुनते हुए म उस कमज़ोर सी क वता का सर सहलाती हूँ मेर क वता पूर ठसक के साथ सर को झटका दे ती है और कहती है " म रहूंगी यह ं , म ं गी यह ं और बचूंगी भी यह ं " ~~~~ प लवी
वेद
संकलन: राजेश पराशर Page 21
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gsear 2016 ल मण- रे खा(लघुकथा)
शाम को दे श के हर शहर क तरह मेरे शहर के बाज़ार म भी बहुत भीड़ होती है I बाज़ार क सड़क के दोन तरफ खड़ी गा यां के बीच रह गई सड़क पर हर कोई तेज़ी से आगे नकलने क को शश करता दखाई दे ता है Iचाहे वो पैदल,टूह लर र शा,साईकल व कार पे सवार हो, आज म भी तेज़ी से हर तरह क भीड़ को चीरता हुआ, बस टॉप क और
बढ़ रहा था,मगर मेरा शर र साथ नह ं दे रहा था I इस लए लोकल बस का इंतजार करना मेरे लए मुि कल हो रहा था I ी- ह लर टॉप आते ह म क गया I वहाँ मेर कालोनी को जाने वाले एक ी- ह लर खड़ा था, वैसे म ी वलर पर बहुत कम ह गया था, मगर आज ......,I
ी- ह लर म अभी दो सवा रयाँ आ के बैठ थी I म भी ी- ह लर म बैठ गया I ी- ह लर के पास ह एक पतले
शर र क लडक खड़ी थी, सवा रयाँ उसे देखते हुए, धीरे धीरे
ी- ह लर म बैठती जा रह थी Iमगर वह लड़क न ह
इस पर और न ह कसी और ी- ह लर पर बैठ रह थी I मेरे मन मे उस के बारे कई तरह के सवाल पैदा हो रहे थे I
और कुछ के जवाब मझ ु े खद ु से ह मल रहे थे I मगर वहाँ खड़ी लड़क के सबंध म अजीब याल उठ रहे थे I िजनको रोकने क को शश करता, मगर सफल न हो पाता I
शायद दस ू र सवा रयाँ भी उस लड़क के बारे मेर तरह ह सोच रह ं ह गी ,इतने म ी- ह लर पूर तरह भर गया I
ाईवर के साथ वाल सीट पर एक आदमी अपने कु ते के ब चे के साथ आ के बैठ गया, मगर वह लड़क पता नह ं
कस सोच म गुम अभी भी वहाँ खड़ी थी I थोड़ी दे र के बाद वह लड़क अचानक ी- ह लर के आगे से होती हुई
ाईवर क सीट पर आ कर बैठ गई I सभी उस क तरफ दे खने लगे I तब उसने ी वलर टाट कया और वे आगे क
तरफ चलने लगा I अब मझ ु े ऐसा लगा जैसे कोई मेर सोच म खीचीं ल मण रे खा के उस पार पहुँच गया हो, और उसका ी- ह लर तेज़ी पकड़ने लगा I
- मोहन बेगोवाल Tumhi se –Hindi Literary Magazine
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gsear 2016 च लये शा वत गंगा क खोज कर
-
दे श म बहती है जो गंगा उसका कहना वह पानी क धारा है या
वण जे. ओमकार
या?
ान क - भई दोन ह तो बह रह ह साथ
साथ] शताि दय से! आज इ क सवीं शताि द म ले कन इस महान ् दे श क दो महान ् धाराय अब शा वत र हत नह ं- धारा म फंसा है
ान या
कस ने कस के बहाव को अव चेतना का] मानवता क बु
का-
य कुछ और है-
नह ं] शु
नह ं] मल
ान म फंस गई है धारा! कौन जान कया-
ान तो था माग दषक मानवीय
खर करता था चेतना को] बु
को-
ान
तो था केवल वाद और वाद थे महा- ान क महा-गंगा क महा धाराय- संवाद के वाहक और ववाद से दरू - अब
अवशेष है केवल! ढे र के ढे र श द
ान त
ान क
ां त है मा !
ान का
ान] व यालय ] महा- व यालय ] व व-
व यालय से बहता हुआ- वाद संवाद को चचाय को गोि ठय को झेलता
हुआ- मानवीय चेतना क
स य क
वशु
है- वह
ान रौशनी
धारा को बांधे बैठा है! मानवता क बु
या त क लट ू है- गंगा
संवाद क लाउड पटे ह
नमल मंदा कनी का रा ता रोके बैठा है- शा वत को
मत कये हुए
नह ं चकाचध है केवल! पतंग क भीड़ है- धन व या कहे - इतने वाद जो इ क े हो गये ह और इतने
पीकर कम पड़ गये ह-
ोताय से- आदमी वह ं
टे ज पट ह या याकार से पंडाल
का हुआ है- आ मा वह ं खड़ी है- अंधेरा
िजतना अंदर है उतना ह बाहर! गंगा क तो मूक वा ण है कौन सुन पायेगा.
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izFkekad लाउड
पीकर से नकले वे सारे वाद पहले गंगा जी का
सीना भेदगे- वे सारे लोक के परो
gsear 2016
अपरो
लोक के
ान के बांटने वाले! वे सारे नी त के
ानवान! वे
ान के नी त ! जो कोई ज़रा सा भी
हो जाता है-बस सब से पहले अपना डालता है-
या याकार! वे
ान क
ान
ान गंगा जी को दे
व तत ृ गंगा म अपना
ान अ पत
अपना तु छ
ान क
महासागर हो! म
ान तुझे अ पत कर रहा हूं--!’अब
ी गंगा
मइया बीच म सांस रोके बीमार सा उ चारण
लये रो
पड़ती है- अभी और कतना डालोगे और कतनी स दय तक- मेरे आर और मेरे पार बसने वाले मेरे‘ब च को ान क नह ं
ान से नकालने क ज़ रत है---!‘
ानी चु प! गंगा उसे ऐसे संबो धत होगी! वह द हत भ!! ---ज मजात गंग ू े सा!!! एक एक श द
टे ज पर घंट
वचन करते हो- श द
कम ह
मेरे वो भी न सुन पाये तो--- अपना हाथ दो और अपना कान भी--!* ानी कं कत य वमूड़-- कुछ कहता नह ं- यं वत बैठ
जाता है गंगा जी के पास ठं डे जल क धारा जो मानव मल से धुंधल हो चुक है उसक दे ह और आ मा दोनो को भगो रह है!
करने नह ं फक डालने के अंदाज़ म कहता हैहे गंगे! --- तम तो ु
जैसे तुम
ी गंगा उवाच-‘ऋ ष मु न लोग ने ...मेरे ब चे! वेद क पुराण क रचना क . मेरे कनार पर ह उ ह ने ऑ ंख खोल ं और यह पर उन क मन क ऑ ंख खल ु ं. उसी हुए मेरे पानी. उसी पानी म घुले क धरती. इसी
जोड़ कर
कहता है
ान से सीची मने दे श
ान से सम ृ हुआ मानव मन. पूरा चै गरदा
वातावरण. पर यह समूचा मत!
ान से सम ृ
ान यह वेद पुराण मल कर
भी मानव मन को न बदल सके. मानव मन वैसा ह बना रहाकपट ! लोभी! मोह-
त! समझ म नह ं आता कपट और
ान
एक साथ कैसे रह लेते ह मानव मन म! शता द दर शता द ,
‘आह! गंगे
या कह दया!
गंगा जी क
बीमार वा ण-‘पास आओ तो कुछ
कहूं- बूढ़ हो गई हूं- इतना साफ़ Tumhi se –Hindi Literary Magazine
या कह रह हो
प ट नह ं बोल सकती
वष दर वष, कपट
ान बढ़ा शा वत
ान कम हुआ. थोथा
ान बढ़ा. आ म- ान कम हुआ. तब उन मूलभूत त व को दे व व दे ने वाले, उन महा-मु नय महा-ऋ षय को लगा- ान से
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gsear 2016
ान से माया आ चयजनक ढं ग से
‘तुम इतना ताम-झाम करते हो! इतनी यातायात, इतनी
ान से माया को और बल मलता है!
संचार यव था! इतनी मोटर गा डयां ़ ! मेरे पा नय पर, मेरे
थूल क रचना करती है माया. सू म को तजती जाती
कनार पर उन अनजान भ त को लाने के लये! ज़रा सोचो
है. िजतनी बड़ी या या माया क , उतना बड़ा माया का पासार!
एक दन म कतने! एक साल म कतने! और कतनी स दय
िजतना बड़ा
तक! मेरे ब चे! केवल मानव मल क बात नह ं कर रह , उसे म
माया का नाश नह ं होगा! पां त हो जाती है!
ा न उतना बड़ा माया का पुजार ! तो उन लोग ने,
वेदांत क रचना क . वेदांत या न वेद का ान से बाहर नकलने क यिु त.
ान का अंत .
ान है केवल बु
क समझ
पर इतना यातायात! इतना ताम-झाम! इतनी लाि टक! इतने
ाकृ त के
दये! इतनी बा तयां! इतने फ़ल-फूल पूजा सम ी! ह त न मत
और अनुभू त है उ चतम. श द तो मायाजाल है .
स य को श द से नह ं भेदा जा सकता. श द के स दय से, वा यचा ुता से उसे कुछ लेना दे ना नह ं.
ढो लंग ू ी. वे तन का मैल फेक या मन का, इसक भी परवाह नह ं!
ाकृ त का वह
दे वी दे व क ठूं तो
तमाय! इन सब से म मानती हूं क ठती हूँ ! म
या बाढ़ लाउं ? कोई पूछता है? फर इतने लोग क
महानतम स य केवल आ मा (Self) क समझ म आता है. दो
इतनी गा डयां ़ ! उन सब के कल-पज ु ा ह, वे सारे कारख़ाने!
आ माय भी जड़ ु तो भीड़ बनती है . केवल एक आ मा! केवल
स दय- सा न क , जत ू क च पल क बड़ी बड़ी फै ट रयां!
एक पार
उन से नकलता रासायणक ज़हर! जो जायेगा मेरे पा नय म
म! केवल एक तार केवल एक रा ता! संवाद से
बनता है पहले वाद फर ववाद.
ानी का, भ त का, संवाद
सफ उस से होता है िजसे वह जानना चाहता है -आ मा, सै फ या पार
म. वह अपना मा यम वयं, वयं का गु , खद ु का
पज ु ार . कसी अ य मा यम, गु का पज ु ार का इस कोई र ता नह ं. गंगा कहती रह ं- ा न सन ु ता रहा Tumhi se –Hindi Literary Magazine
ान से
तो या हाल होगा मुझ म बसे मेरे ा णय का? भारत भर म ह नह ं, व व भर म म मरते ा ण क
यास बुझाती हूं! पर म
वयं ा ण क म ृ यु का कारण बनं!ू मझ ु आभा गन को य पाप क भा गन बनाते हो?
गंगा क मक ू वा ण
ानी सन ु ता
रहा. उस के कान म रस नह ं पघला सीसा डल रहा था शायद ! जो दे रहा था उसे असहनीय दद!
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gsear 2016 ानी भावुक हो गया.
गंगा कहती रह ं‘और तु हारे
ानी गण केवल पार
बताते. िजस पार
म का रा ता ह नह ं
म का मि दर सफ आ मा होती है धरती
पर वे बताते ह मि दर वहां नह ं यहां बनेगा! और यहां से उठ कर कस दे शी वदे शी भगवान का घर तोड़ना है. कतने दल को तोड़ना है. सब का हसाब बना रखा है सब यव था कर रखी है. मानव मल का बोझ म ढो लूंगी. पर मानवीय ू रता के इस अथाह मल को वे मेरे पा नय म फक आते है ! वे सब
ानी गण!
इतना बड़ा अहम ् संजोये रखते ह. वाद का कम चार करते ह और ववाद का यादा....! तुम परम आ मा क खोज करते हो? परम आ मा क खोज करने वाल क मदद करते हो? सुनो, सुन सकते हो अगर! परमा मा तु हारे श द के ढे र के नीचे दबा पड़ा है! आ मा तु हारे
ान के नीचे ससक रह है ! वह लाख़ करोड़
भ त क भगदड़! वे सहकते ा ण! तम ु लोग भल ू जाते हो म नह ं भूलती. मानव इतना तु छ है तु हारे मानवता
इतनी
छोट
है
या?
अ भयान क , और कभी तु हारे साधन मा !
तु हारे
लये!
यि तगत
यि तगत अ भमान क
कुछ बोलते न बना. वहां से उठ खड़ा हुआ. उसे डर लगने लगा क वहां बैठा रहा तो मानवीय मल का या शायद
मानवीय मन का कोई ह सा छोड़ दे गा
गंगा जी म घुलने के लये! अभी तक कुछ धारा तो बची हैसाफ़! व छ! नमल! अभी तक कुछ
ान तो बचा है -
शु ! शा वत! महा तम स य! मानवीय कु ठाय , मानवीय अहम ्, और मानवीय मन से अ भा वत! जो
कृती के नयम के अं गत ह अंतस ् म उतरा
और जैसा आया वैसा बांट दया गया. तथ आगत! तथागत!! पर कुछ कहते न बना. वहां से उठ खड़ा हुआ.पहला
वचन
दयाच लये शा वत गंगा क खोज कर...
गंगा अ फुट वा ण म कहती रह ं. Tumhi se –Hindi Literary Magazine
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gsear 2016
च लये शा वतगंगा क खोज कर, महानुभाव! शा वत गंगा
क लयुग म बहती गंगा! वह मानव मल र हत गंगा! केवल
केवल पानी क गंगा नह ं. शु
अपना तेज लये!
शा वत स य क गंगा. अजी...
आप ह र वार के पास, ह र वार इलाहाबाद संगम के पास से हो कर चल दये वा पस अपने घर अपने कारोबार! आइये थोड़ा उ तर दशा म भटक! आइये शा वत गंगा क खोज कर! कहां तक चलगे आप? दे हरादन तक! गंगा ू .... गंगो ी या गौमख ु जी का उ गम ् थान! अजी
कये मत. थोड़ा और उपर चल!
गंगा जी यहां भी शा वत नह ं. यहां भी बरतन डुबाते ह लोग, हाथ भी. थोड़ा और उपर चल! वहां यहां फेद बफ क चादर बछ है! फेद ई सी बफ! या बरखा क हलक फुहार! ज़रा चेहरे पर लगने द! चेहरे पर, दे ह पर, आ मा पर! ज़रा उपर आसमान क ओर दे ख! आसमान से उतरती बरखा को दे ख! वहां से अ वरल
शायद कहगे आप- यह वग से आती गंगा! अरे ...यह तो वह गंगा है िजस का दशन िजस का अहसास म अपने घर क मु डेर पर ...टै रेस पर, आषाढ़ म ... ावण ....भाद म, साल के बहुत सारे दन, म करता हूं! मेरे तो पास थी यह गंगा! यह शु
शा वत गंगा! और म गंगा
....वह प व नद को म लन करने पहुंच जाता था, ह र वार ... काशी.....संगम!!!
( मशः)
“तु ह से” - वण जे. ओमकार
गंगा जी धारा बह रह है ! आसमान से उतरती गंगा! वग से धरती पर आती गंगा! शु शा वत गंगा! ऋग ्-वै दक गंगा! पौरा णक गंगा! स य युग क गंगा!
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gsear 2016 fd ijekRek fdlh ls nksLrh ugha djrk fd og fdlh dks ikl ugha QVdus nsrk fd og vdsyk jguk ilan djrk gS fd mldk ?kj&ckj choh cPps ugha cPps Hkh ugha ml us geha yksxksa dks cPps cuk;k gqvk gS ikik dgrs gSa
xkWM bt+ ou
fd ijekRek dks le>us dk ;g <ax Bhd ugha ijekRek ^,d* ugha ijekRek bDdkbZ gS ou ;qfuV gksy vkWQ+ ;qfuolZ laiw.kZ c`g`e.M ftl esa ge lc jg jgs gSa pkan rkjksa lesr ckr rks vkbZ le> esa ij esjk iz’u ,d vkSj gS
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D;k ijekRek ml ds lkFk ugha
D;k ekuwa eSa D;k le>wa fd ijekRek vkWM gS bZou ugha Tumhi se –Hindi Literary Magazine
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gsear 2016 जो प कार दखा द , वह दे खता है
कानून के ल बे हाथ -- डॉo वजय शंकर
क़ानन े नशील बनाओ, ू को संवद जन जन के बीच चलायमान बनाओ, खद ु कानन ू क ताकत बढ़ाओ.
कानन ू के हाथ बहुत ल बे होते ह
प ी खोलो , व टा इंसान बनाओ l
बचपन से सन ु ते आ रहे ह ,
चलती फरती अदालत बनाओ,
ए ट पु लस के हाथ होते ह ,
हर बात म क़ानन ू मत लगाओ,
फ म म तो यह बताते ह। उसके पैर क बात नह ं होती
क़ानन ू को थोड़ा मानवीय बनाओं l याय नैस गक और कुछ यवहा रक
शायद इस लए क कानन ू
बनाओ।
कह ं चल के नह ं जाता।
फैसले ज द कराओ, ज द याय
अं ेज कानन ू क सीट बना गए यहां बैठो , यह ं बैठे रहो।
दलाओ l
यश कमाओ lनाम कमाओ l
आँख पे प ी और बाँध लो दे वी , मुकदमा जब आएगा सुन लेना मुक़
ा सुन , आँखे मूँद कर।
कानन ू यँू ह कुछ देखता नह ं , फैसला सुनवाई पे करता है . स य रहे , स य क जय हो , इस लये कानून हर भावना संवद े ना से दरू तक जुदा रहता है . सफ दल ल से जुड़ा रहता है
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gsear 2016 (1) तुझ से हुई थी बात
दो ग़ज़ल
डॉ याम सु दर द ि त
दन था नह थी रात पेड़ सी ह क वता है वोह डाल म पात मटट म वोह पलता है करता सोने सी बात जो दःु ख न जाने है सुख न मले सौगात हाथ म द प थामे रोशन हुई है रात (2) य बदलँ ू म अपने ये वाब के मंजर, तु हे परे शानी है तो बदल तू अपना खंजर अपना द तूर तू तलब करके तो दे ख, धरती क कोख भी कभी हुई है बंजर ? तेरा मेरा खन ू बहेगा जब कोई हुआ फसाद, ज़रा खर च नह ं पाएंगे ये मि जद मं दर य ताके य झांके उसका चेहरा, पंख पसार अपने पा अपना अ बर
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gsear 2016
ससकते आब म कस क सदा है / बशीर ब “ ससकते आब म कस क सदा है कोई द रया क तह म रो रहा है ” जैसी पंि तयां सनातन अ या म को कम समझ आती ह- 2010 के ोत और मानवीय बु
ानपीठ पुर कार ा त माननीय बशीर ब क इस रचना म या हमारे त काल न जलदोन का बेदद से उपयोग से उठे दद का यां है या इन म कोई अ य अ य त दद छुपा है
– संपादक ससकते आब म कस क सदा है कोई द रया क तह म रो रहा है सवेरे मेर इन आँख ने दे खा ख़ुदा चरो तरफ़ बखरा हुआ है समेटो और सीने म छुपा लो ये स नाटा बहुत फैला हुआ है पके गहू क ख़ु बू चीखती है बदन अपना सुनेहरा हो चला है हमार शाख़ का नौ-ख़ेज़ प ता हवा के ह ठ अ सर चम ू ता है मुझे उन नील आँख ने बताया तु हारा नाम पानी पर लखा है http://www.kavitakosh.org से साभार
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हम मालम ू है ज नत क हक़ क़त...( सम-सामयक व य पर चचा) (इस
थाई
खच खच
चा रो रहा है . माता पता काम म बजी ह. ब चे
क मांग है -कुछ मीठा जैसे कोई टाफ या चॉकलेट
या कोई कडी या ' चप ू ा ' ह . कुछ भी पर हो मीठा.
अब मै डकल भी यह सच है . ब चा खेलता है , रोता है , हँसता है - उसे भूख तो लगेगी ह . और उसे तो
यादा भूख लगती है . उसे "हाइपो - लायसे मआ" हो
जाता है . उस का शर र व
दमाग मीठा मांगता है .
मीठा एक ि वक एनज सोस है .
अब माता
ट .वी
पता
बजी ह. कई काम ह उ ह -जैसे
सी रयल दे खना, ब तआना,
लड़ना
झगड़ना
इ या द. वो ब चे क इस कुसमय क गई अ ववेकपूण Tumhi se –Hindi Literary Magazine
त भ)
त भ म हम सम स यक व य पर चचा करगे )
केजर वाल क
ब
( थाई
मांग का ि वक सलूशन खोजते ह. वोह उस के हाथ म छुनछुना (पंजाबी म छणकणा) थमा दे ते ह.
डेम
े शन के लए वे उसे चला कर जा न "छन छना"
कर भी दखा दे ते ह – “दे खो बेटा रोओ बजाओ और आनंद लो”.
नह ं. इसे
ब चा बड़े अनमने ढं ग से खलोने को दे खता है . ले
लेता है . अब हाथ म कोई चीज़ थमा ह द गई है तो
लेनी तो पड़ेगी ह . थोड़ा बजा कर भी दे खता है .
अजीब सी आवाज नकलती ह. वह
यू रयस हो जाता
है . फर और बजाता है . थोड़ी दे र के लए मीठा भूल जाता है . पर थोड़ी दे र के लए ह . तभी उसे फर भूख Page 32
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सताती है . वह फर रोता है . "हम मालूम है ज नत
क हक़ क़त .." ब चा कहता है . "ले कन दल बहलाने के लए यह ख़याल अ छा है ..." माता पता कहते ह.
केजर वाल कहते ह-
"अब डाय नो सस कया है तो
इलाज भी बता दो भाई जान."
डॉ टर कहते है . "केजर वाल जी यह मोद नाम का
माता पता कोई नया सलूशन खोजने लगते ह. मीठा
क टाणु बड़ा चंचल है जी. वह तो आप को दे खने क़े
कुछ ऐसी ह ि थ त है द ल रा य क . अगर रा य
केजर वाल: "अब गले म रह कर वोह
उन क अक़ल व पहुँच के बाहर है .
कहा जाये तो. केजर वाल सरकार छुन-छूने खोजने म मा हर है .
द ल
क
जनता मीठा चाहती है . अब
मीठा केजर वाल के बस म नह ं. मीठे के कमरे के बाहर लेि टनट गवनर का ताला है . उस ताले क
चाबी मोद के पास है . केजर वाल परे शान जनता को
छुन-छूने पर छुन-छुना थमाए जाते है . जनता थोड़ी दे र
के लए बजाती है . फर रोती है . उ ह मीठा चा हए.
लए आप के गले म रहता है ."
चाहता है ." "यह
क आप
खाया है और
है जी वोह." "लो म
या
या
या दे खना
या खाते हो. अभी तक
या
या खाने का इरादा है . बड़ा जासूस
या खाऊंगा. कचेन म तो लेि टनट गवनर
का ताला है ."
"हम मालम ू है ज नत क हक़ क़त .." जनता कहती
"बस जी यह इलाज है . आप खाओ भी और क टाणु
है ..." केजर वाल कहते ह.
आ खर क टाणु का भी तो गला होता है . कुछ उस के
है . "ले कन दल बहलाने के लए यह ख़याल अ छा
अब केजर वाल अलग से परे शान है . जब से द ल म
आये ह. उ ह खांसी हो गई है . हर व त खांसते रहते है . बड़े इलाज करवाये पर खांसी है क जाने का नाम नह ं ले रह . ऐ स म भी हो आये ह. वहां के डॉ टर
से अजीब वातालाप हुई. डॉकटर ने बताया "केजर वाल जी आप क गले म "मोद " नाम का क टाणु है . वोह तंग करता है
आपको." अपने फेवरे ट
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टाइल म
को भी
खलाओ लेि टनट गवनर को भी
खलाओ.
अंदर गया तो साइड म लगा बैठा रहे गा. आप (AAP)
को परे शान नह ं करे गा." घड़े क मछ लयां
मोद घड़े म मछ लयां पालने म मा हर ह. वे गुजरात
के तट य इलाक़े से आते ह. समुदर म म छआर से
नाता रहा हो ऐसा उन क बायो ाफ म नह ं मलता.
वहां चाय का िज़कर है . शायद म छआर
के साथ
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चाय पीते पलाते समय ब तयाते रहे ह . ले कन उन का मछ लयां पालने का तजुबा कमाल का है .
उन के घड़े (जल कु भ) म बड़ी मछ लयां है . बस यदा कदा उ ह घड़े से
नकाल कर ब तया लेते ह. िजस
दन िजस म ल को नकलना है घड़े म झाँक कर
दे खते ह और फट से बाहर
नकाल लेते है . अब
'बादल' नाम क म ल को नकला तो वोह रोने लगी.
"भु खे मर गए तेरे राज ‘च ओ मोद . कोई साडे वल वी त क लया कर."
"यस पापा!" "एवर थंग राइट" "यस पापा." "एनी रायट" "नो पापा." "मुज़ फर नगर ... दादर "
मोद कुछ कहना चाहते ह पर म ल चु प नह ं कर रह . बस रोये जा रह है .
"अब दो दो का कआं नूं लै के कथे जावां म." "पर बादल जी यहाँ तक मेरा
काका है जी."
ान है आप का इक ह
"हा हा हा..." अ क को दब ु ारा घड़े म छोड़ दे ते ह. लालू और नतीश नाम क मछ लयां तो पूर से भर
फसलन
ह. घड़े म होते हुए भी वोह पकड़ म नह ं आती. बार बार हाथ से फसल जाती ह. दरू से चड़ाते
"ओ जी अब नूहं दा भरा वी तां अपणा काका है जी."
हुए चारा खाती रहती ह. और मनोहर लाल ख र, शवराज संह चौहान, दे वे फडणवीस, वसु धरा राजे
मोद चुप कर जाते ह. सोचते ह अब इन क गर बी
आंख मला कर बात कर सक. वोह तो दशा नदश
कहाँ तक ठ क क ँ म.
फर कसी दन वो अ खलेश
नाम क म ल को नकलते है . वो झे प जाती है .
ब तयाती नह ं. मोद पूछते ह- "क वता याद है? चलो दोहराओ.”
सं धया जैसी मछ लयां क
मजाल
या
क उनसे
मांगती ह. मजे से चारा दाना खाती रहती ह.
केजर वाल नाम क म ल तो परा हा (Piranha) है . मुहं म बड़े बड़े दाँतो वाल म ल . मोद जब भी उसे पकड़ने को हाथ बढ़ाते ह. वोह काट खाती है .
"अ क अ क ?" Tumhi se –Hindi Literary Magazine
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जब भी मोद का उस से सामना हुआ अगले दन उन के हाथ म प ी बंधी नज़र आती है .
"अभी कहाँ. अभी भी मुझ म रथ चलाने क
अब ये कुछ मछ लयां ह मोद उ ह घड़े म नह ं रखते.
"बड़ा रथ चला लया. अब तो घोड़े भी भाग गए. अब
पर वोह घड़े म आने के लए लालायत ह. घड़े म चारा
यादा है और मोद उन मछ लयां क दे ख भाल भी
खुद करते ह.
यशवंत स हा, आडवाणी, अ ण शोर , मुरल मनोहर जोशी जैसी मछ लयां तो अब बूढ हो चुक ह. पर वोह
ह क मानती नह ं. मोद उ ह " फश ए वे रयम" रखते ह. लोग बाग़ उ ह दरू से दे ख कर
म
स न होते
ह. यदा कदा वोह ए वे रयम म उछाल कूद मचाती ह.
उन क उछाल कूद दे ख कर लोग और
पर मोद परवाह नह ं करते.
एक दन ‘अडवाणी म ल ’ ने कुछ
कूद मचाई. मोद झगड़ पड़ते ह. "अब अडवाणी जी आप
स न होते ह.
यादा ह उछाल
रटायर हो जाइए
या न दे श के पीछे पड़े हो?"
Tumhi se –Hindi Literary Magazine
ह मत
है ."
यंग लोग का ज़माना है . जो मी डया
मैनेज कर सक.
वटर फेस बुक
“मेरा चेला है एक वोह "बी. जे. पी. के उ थान म रथ का योगदान " के वषय पर पी. एच. डी. कर रहा है .
उस से ब तया लेना और दल ह का कर लेना."
“अब पुरानी चीज़ म पुरात व खोजी ह इंटरे ट लगे. और
या आचार डालँ ूगा म आपका" मोद बुदबुदाते
हुए आगे बढ़ जाते ह.
अब नए वष म दे खना है क मोद नवाज़ शर फ व हा फज सईद को घड़े म डाल पाते ह क नह ं.
("तु ह से" पो ल टकल एना ल ट)
य मेरे
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उ तर आधु नकवाद थे मनोहर शयाम जोशी - कृ ण कुमार यादव बहुआयामी यि त व के धनी मनोहर
याम जोशी के नाम से भला कौन अप र चत
होगा। वह आजीवन लखते रहे , रचते रहे और जीवन को भ न- भ न आयाम से महसूस करते रहे । क सागोई तो उनके वाभाव म ह बसी था। म ृ यु से दन पहले ह
एक सा ा कार के दौरान उ ह ने कहा था-‘‘इस समय हमने जो कुछ भी लखा है , उसम स तोष नह ं है । मरने के पहले स तोष वाला कुछ लखना चाहता हूँ।‘‘उस दौरान वे
‘कपीश जी‘ लखने म य त थे। इस रचना म पूव बनाम पि चम क भड़ंत को उ ह ने पवनपु
हनुमान के मा यम से उकेरा है । हनुमान जी
व न म अ ाहम लंकन जैसी
दाढ़ वाले एक यि त से उनक मुलाकात करवाते ह. व तुतः इस रचना के मा यम से
जोशी जी ने अमे रका एवं भारत क सात पी ढ़य का क सा य त कया है । यह कारण है क लोग उ ह क सागोई का बादशाह कहते थे। पर पर परा क
त व न मानते थे। जोशी जी ताउ
वयं जोशी जी इसे कुमायूँनी
ह द क सा हि यक पर परा के
वपर त सा ह यवाद से बचते रहे । उ ह ने सा ह यवाद के था पत तर क को तोड़ा और अपने हसाब से नए व वता मा लया। म तो
तमान क रचना क । वे वयं कहते थे-‘‘म व वान नह ं हूँ। मेर
प का रता के
तर क है । थोड़ा यह भी सँूघ लया, थोड़ा वह भी सँूघ
ट मी डया का आदमी हूँ।‘‘ यह कारण था क जोशी जी का लेखन
पर पराओं, वमश , व वध
चय एवं वशद अ ययन को लेकर अंततः संवेदनशील
लेखन म बदल जाता है । भ य और आकषक यि त व वाले बहुमुखी
तभा के धनी
मनोहर याम जोशी का ज म 9 अग त 1933 को अजमेर म हुआ था। उनके पता
ी
ेमव लभ जोशी वहाँ राजक य श ा सेवा म अ धकार थे। बचपन से ह वै ा नक बनने
क तम ना रखने वाले जोशी ने लखनऊ व व व यालय से बी.एस.सी. क Tumhi se –Hindi Literary Magazine
ड ी
ा त
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gsear 2016 क एवं ‘कल के वै ा नक‘ उपा ध से नवाजे गए। व ान के व याथ होने के कारण वे चीज को गहराई म उतरकर दे खने के कायल थे। लखनऊ क जमीन तो वैसे भी सा ह य के लए रसायन का काम करती है , सो, लखनऊ लेखक संघ क एक बैठक के दौरान
Tumhi se –Hindi Literary Magazine
Page 37
izFkekad वे अपने
थम सा हि यक गु
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अमत ृ लाल नागर से टकरा गए
और फर यह ं से महज 21 वष क उ ्र म ह मा टर ,
लक
और बेरोजगार का अनुभव बटोरते हुए लेखन को पूर तरह से
जी वका का आधार बना लया। लखनऊ लेखक संघ क बैठक म अमत ृ लाल नागर, भगवती चरण वमा और यशपाल ये तीन सा हि यक द गज नय मत तीन ह
प से आते थे। जोशी जी ने इन
व वान से कुछ न कुछ सीखा- नागर से भाषा और
क सागोई, भगवती बाबू से तुश तो यशपाल जी से नज रया।
जोशी जी लेखक संघ क िजस बैठक म पहल बार गए उसम उनके
वारा कहानी पाठ
ता वत था। फलहाल जब जोशी जी
ने ‘मै डरा मै न‘ नामक अपनी कहानी का पाठ कया, िजसम उ ह ने भावुकता- यं या मक तेवर आजमाए थे, तो उनक सबसे यादा तार फ अमत ृ लाल नागर ने क । नागर जी ने उस कहानी
पाठ के बाद जोशी को गले लगाकर कहा- ‘‘इस नए लेखक क
खोज से मुझे इतनी खुशी हुई है , िजतनी क फैजाबाद म पुरानी अयो या के अवशेष मलने से।‘‘ उ ह ने आर भ म क वताएँ लखीं एवं उसके बाद कहानी व उप यास लेखन म पढ़ाई पूर होने के प चात एक
व ृ त हुए।
कूल म मा टर और त प चात
आकाशवाणी म नौकर क । उसके बाद जोशी जी उस समय क
ति ठत सा हि यक प का ‘ दनमान‘ म सहायक स पादक और फर ‘सा ता हक ह द ु तान‘ के स पादक बने। उस समय ‘सा ता हक ह द ु तान‘ और ‘धमयुग‘ दो ऐसी प काएं थीं जो स पूण दे श क सां कृ तक-सामािजक चेतना क संवाहक थीं।
Tumhi se –Hindi Literary Magazine
एक स पादक के
प म जोशी जी ने सा ह य क हर वधा म
रचना मक ह त ेप कया और युवाओं को आधु नक बोध से
जोड़ते हुए कहानी व क वता के दायरे से परे यं य, या ा-वत ृ ांत, रपोताज, कवर
टोर , सं मरण इ या द क तरफ भी
कया।
वृ त
जोशी जी समय क न ज को पहचानने म मा हर थे। उ ह ने अपने को एक ह
े
तक सी मत नह ं रखा बि क सा ह य के
अलावा, प का रता, ट .वी. धारावा हक और सनेमा मा यम से भी वे गहरे व जीवंत
प से जुड़े रहे । उनका कहना था
क- ‘‘जो वधा मुझे अपने पास बुलायेगी, उसके पास जाना
चाहूँगा। अनामं त ढं ग से वधाओं से मेल- मलाप नह ं क ँ गा।‘‘
इसके चलते जहाँ उनके लेखन म सहज सं ेषणीयता आई वह ं वे
योगधम भी बने रहे । वे एक ऐसे लेखक थे जो अपनी तरह से सोचता और लखता था। उनक
म ृ त भी बहुत अ छ थी। उनके
वारा ल खत सोप ओपेरा ‘हम लोग‘ ह द का और भारत का ऐसा धारावा हक बना जो अपने समय म द ु नया के सबसे
यादा
दे खे जाने वाले धारावा हक म शा मल था। ‘हम लोग‘ क वशेषता भारतीय शहर आकां ाओं-संघष
क
म य और
न न म य वग क
ऐसी कहानी है , जो बेहद सहजता,
शाल नता व संवेदनशीलता के साथ कह गई है । जब ‘हम लोग‘ धारावा हक शु
होता था तो बाहर सड़क और
ग लय म कोई नजर नह ं आता था। उ ह ं दन एक अखबार म Page 38
izFkekad ‘हम लोग टाइम‘ नाम से एक काटून
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का शत हुआ था, िजसम
मं ी जी क सभा म कसी के भी न आने पर वे अपने से े टर को डाँट पलाते ह- ‘‘ कस मूख ने तु ह सभा का यह व त रखने के लए कहा था? जानते नह ं क यह हम लोग टाइम है ।‘‘ ह द
सा ह य के उ तर आधु नक काल म लखे उनके धारावा हक -
बु नयाद, क का जी क हन, मंुगेर लाल के हसीन सपने, जमीन आसमान, गाथा हमराह इ या द ने भारतीय मनोरं जन को एक
नई दशा द एवं दरू दशन के
े
म भी
ाि त लाई। ट .वी.
धारावा हक के साथ-साथ जोशी जी ने कई फ म क पटकथा
भी लखी। इनम हे राम, अ पू राजा,
टाचार और पापा कहते ह
इ या द मुख ह।
वाहा‘ ने ह द उप यास को
वाहा‘ लखा। ‘कु -कु
मा नयत से मु त कया और
उसके जड़ हो चुके फॉम को तोड़कर भाषा को एक नया आयाम दया, जो नहायत साम यक और आधु नक था। इस उप यास ने सा बत कया क कोई तर पर चलती है ।
े ठ रचना एक नह ं, दो नह ं वरन ् कई वयं जोशी जी का मानना था क उ ह ने यह
उप यास अजट ना के लेखक गोरखेज से ेरणा लेकर लखा जो सारे सा हि यक आ दोलन म ह सा लेने के बाद लेखन के म लौटे थे।
े
पूरा नॉवेल पढ़ :
https://www.scribd.com/doc/183213636/Kuru-Kuru-SvahaManoshar-Shyam-Joshi
जोशी जी खास क म के ग भीर और कॉ मक लेखक थे। कॉ मक का मतलब ग भीर अथ म कॉ मक, जो हमारे यहाँ अ सर ल य नह ं कया जाता है । वे सामािजक और पा रवा रक सं थाओं का मजाक उड़ाते ह और प रि थ तय क का णकता को हा ययं य के ज रए ह का करना चाहते ह। यह नह ं, उनक नतांत अपनी वशेषता थी- अपने पां ड य पर ह नह ं अपने समूचे आप पर हँस सकने क साम य। इसी अ त ु ‘लखनऊ मेरा लखनऊ‘ जैसी
उ ह ने अपना पहला उप यास ‘कु -कु
मता के चलते उनक
े ठ आ मकथा मक कृ त सामने
जोशी जी क यह एक अनठ वशेषता थी क वे अपना उप यास ू ड टे ट कराके
लखवाते थे, यानी चलते- फरते हुए भी वे
उप यास लख सकते थे। उनके उप यास म अनु ास का
योग
है और उनके शीषक उनक शैल का संकेत दे ते है । शैल म संि ल टता उनक खूबी है और शीषक म खलंदड़ापना है । जोशी
जी क यह
विृ तयाँ उ ह अपने समकाल न
नमल वमा और
ीलाल शु ला से अलग करती ह। नमल जहाँ एकांत के अँ धयारे
म चले गए वह ं
ीलाल क रचनाओं म यं य और भी वाचाल व
आयी। व तुतः जोशी जी ने िजस दौर म लखना आर भ कया
तीखा होता गया।
वह वसंग त- वडंबना का जमाना था। व पताय समाज के हर
मनोहर याम जोशी आधु नकतावाद एवं उससे भी आगे बढ़कर
े म कुकुरमु ते क तरह जमीन से फूट रह थीं। ऐसे समय म Tumhi se –Hindi Literary Magazine
उ तर-आधु नकतावाद
थे।
उनक
सम
रचनाशीलता
म
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izFkekad ां तध मता है ।
ेस,
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रे डयो, ट .वी.,
वृ त च ,
मनोहर
फ म,
याम जोशी (9 अग त 1933-30माच 2006) का
प से सव े ठ
रचना संसार इतना यापक एवं ज टल था क उस पर कोई एक
लेखन करने वाले जोशी ने आजाद भारत के राजनै तक समाज के
लेबल लगाना स भव नह ं। व त के साथ उ ह ने ट .वी. और
व ापन, यं य, सं ेषण इ या द भूलभुलैया भरे रा त
म
े
म समान
सनेमा के बढ़ते
नरं तर प रवतन होते दे खे तो
दे ने हे तु उनका भी
भूम डल करण एवं सूचना- ां त के कारण समटती द ु नया के
इस
आंत रक वघटन व ला न को भी दे खा। यहाँ तक क पि चम क
संग नह ं रहा िजस पर वारा व व-पु लस
के प म भू मका नभाना हो अथवा वासी भारतीय के अधकचरे
भारत
ेम से लेकर स लकॉन वैल का वणन हो। कभी-कभी
उनक साफगोई एवं यथाथ को उसी कटु
प म परोसने के चलते
उ ह नवाजा पर ‘कसप‘ जैसे संवेदनशील
ेम-आ यान, िजसका
प म उ ह ने मी डया, सा ह य और तकनीक के बीच एक वभाव
कहा था-‘‘व तुतः िजन चीज को लेकर हम नकले थे वह तो इस सद म हुई नह ं। अगल सद म
या होगा हम समझ म नह ं
आता?‘‘
कृ ण कुमार यादव नदे शक डाक सेवाएं अंडमान व नकोबार वीप समूह -पोट लेयर-744101
कई आलोचक ने ‘ स न स म‘ (मू यह नता) जैसे आरोप से भी शुमार ह द के दो-तीन
ोफेशनल लेखक थे और
म छायी रह पर अफसोस व तड़प भी। एक सा ा कार म उ ह ने
दलच प वषय को भी जोशी जी ने स तर-अ सी के दशक म उनक कलम न चल हो- चाहे वह अमे रका
योग कया। वे एक
अनूठा अ तसबंध कायम कया। बेबाक अ त तक उनके
ले वॉय जैसी प काओं म उपल ध हाने वाले से स स ब धी जोरदार ढं ग से छापा। कोई भी ऐसा
भाव को समझा और लोग तक अपना संदेश
े ठ उप यास म होता है , के लेखक पर
यह आरोप लगाना वयं म वराधाभास लगता है ।
बना अनभ ु व कोरा शाि दक
ान अंधा है.
करत करत अ यास के जड़ म त ह हं सुजान। रसर आवत जात ते सल पर पर हं नशान।। — रह म
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gsear 2016 -सु या वण
पंजाब का छठा द रया
य य प पंजाब म अब तीन द रया - सतलुज, यास व रावी ह शेष बचे ह तथा प पंजाब पांच द रयाय का
दे श ह कहलाता है . शेष दो द रया - चनाब तथा जेहलम काषमीर से हो कर पा क तानी पंजाब म बहते ह.
बीच क सरहद न हो तो ह दो तानी व पा क तानी पंजाब म बहुत कुछ साझा है . ऐसे म न उठता है क पंजाब का छठा द रया कौन सा है . कभी पंजाब के खश ु हाल व हरे -भरे खेत दे ख कर कहा जाता था क पंजाब म ‘दध ू व घी का द रया’ बहता है . पर मलावट के इस दौर म इस द रया म भी दष ु ण जोर पर है .
धम व राजनी त’ का द रया तो पंजाब म या पूरे दे श म पूरे उफ़ान पर बह रहा है . अ य द रयाय क तरह इस द रया म भी यदा-कदा बाढ़ आती रहती है .
हां पंजाब म एक और द रया जोर से बह रहा है वह है ‘शराब व ् नशे का द रया’. पंजाब म इस समय शराब का सेवन अपनी चम सीमा पर है . ‘टाइ ज आव इं डया’ क एक रपोट के अनुसार पंजाब म PML या न पंजाब मेड ल कर- दे शी शराब व IMFL (इं डयन मेड फारे न ल कर) व Beer क 29 करोड़ बोतल सेवन हुई ह जब क पंजाब क आबाद 2.75 करोड़
है . पंजाब के ए साइज वभाग क मान तो चालू वष म ट चा 30.70 करोड़ बोतल बेचने का है . हां, इस के इलावा लोग दा या न ठरा भी है िजसका कोई हसाब नह ं. ाब के इलावा दस ू रे नषे व
स का भी कोई हसाब नह ं है .
वारा व- न मत दे शी
गु नानक दे व यू नव स ट के सो षयालोिज वभाग वारा कये गये एक अ ययन के अनुसार 13 वष तक क आयु के ब चे इस यसन म सं ल त ह. अ ययन-कता ी रण व
संह संधु के अनुसार 40% सेवन कता 50 वष से कम ह और 15% 50 से उपर क आयु के ह. इस म
एक बड़ा ह सा महलाय का है . ी रण व
संह संधु आगे कहते ह ‘मुझे यह कहने म झजक नह ं क पंजाब म 75% से यादा युवक न शे
क एक या दस ू र लत के शकार ह. और यह लत बढ़ रह है .इतनी अ धक मा ा म शराब का सेवन लोग क रहा है . ी बी.एस शाह जो दयानंद मै डकल कालेज लु याना के मै डकल सु
जनन
मता पर भी भाव डाल
टडट ह और WHO क सीमन अनै ल स कमे ट के मबर ह
कहते ह क पंजाबी पु ष म पम काउं ट (Sperm count) कम हो रहा है और इस का एक मुख कारण ज़ रत से यादा शराब का सेवन है . ‘तु ह से ’ रपो्रताज
Tumhi se –Hindi Literary Magazine
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gsear 2016
पयावरण संकट के हल के लए बने वैि वक नी त -सुनीता नारायण
आज जलवायु जैसे संवेदनशील मु े पर कोई भी गंभीरता से नह ं सोच रहा है जब क तमाम मु
से कह ं
यादा ज र हमारे लए जलवायु प रवतन का वषय है .
पयावरण के संबंध म
या महज यह कह दे ने भर से हमारे क त य क इ त ी हो जाएगी क यह लोबल वा मग या जलवायु प रवतन का असर है भारत एक वशाल
े फल वाला दे श है , जहां पैदावार अ छ होगी अथवा सूखा पड़ेगा, इसका पूरा दारोमदार गैर भरोसे मंद वषा जल पर नभर करता है । दे श क कृ ष यो य जमीन का 85 तशत ह सा संचाई के लए या तो
य
प से वषा जल पर नभर होता है या भूजल पर। भूजल का
तर
तवष होने वाल बा रश से ह तय होता है .
बगड़ते पयावरण के कारण बरसात क ि थ त हर साल अ नय मत होती जा रह है जब क घरे लू ज रत के साथ ह
संचाई का पानी हम बे हतर मौसमी बा रश से ह
मलता है . पशुओं क परव रश का भी यह सबसे मह वपूण ज रया है । ले कन लंबे समय से भूजल के दोहन से ि थ तयां बे काबू हुई ह. ऐसे म सवाल उठना लाजमी है क
जलवायु प रवतन के कारण वषा म उ प न अ नि चतता से लोग कैसे जझ ू पाएंगे? फर िजस तरह कसान यूबवैल के
प म भूजल का दोहन कया जा रहा है तो इस बात क
पयावरण संर ण एवं इसक जाग कता के लए सरकार संर ण के िज
वारा ग ना गे हूं तथा चावल क फसल क
या गारं ट है क जल तर भयावह ि थ त तक नह ं पहुंच जाएगा?
वारा काफ योजनाओं का
या वयन कया जाता है ले कन इसके अपे ाकृत प रणाम नह ं नकलते . पयावरण
त जब तक लोग यि तगत तौर पर िज मे दार नह ं लगे - तब हालात नह ं सध ु रगे । उदाहरण के तौर पर महारा
करना बेहतर होगा। यहां ^चोर के हाथ म चाबी दे ने" वाल कहावत च रताथ होती
के अहमदनगर िजले के हवारे बाजार गांव का
त इस गांव म सवाए पलायन के लोग उ काया वयन के बाद बदलाव क बयार आई तो यह गांव आज समृ
तीत होती है . 15 साल पहले तक सूखा
पास कोई दस ू रा चारा नह ं था ले कन 90 के दशक म वै ा नक सोच और सरकार योजनाओं के सह दखने लगा है .
त
संचाई के मामले म कह ं न कह ं सरकार क गलत नी तयां िज मेदार ह और रा य सरकार ने न दय पर बांध , नहर वगैरह बनाकर सतह के पानी का
रखा है और आज भी लोग संचाई के लए सबसे लगभग तीन चौथाइ ह से क
यादा भज ू ल का ह दोहन करते ह. कसी क
र
यि तगत जमीन का भज ू ल उसी क
संचाई भूजल से क जाती है । एक सव ण के अनुसार दे श म लगभग 1.9 करोड़
नी त पर पुन वचार करके सोचना चा हए क
य उसके
संचाई के लए
बंधन से केवल 35-40
तशत भूभाग क
जब हमने वषा जल संचयन के पारंप रक तर क को छोड़कर नई तकनीक अपना ल ं तो उनक कोई वैकि पक यव था
ोत ह. सरकार को अपनी इस
ाउं ड वाटर से 65-70
य नह ं क गई ?
आ
बंधन अपने पास
मि कयत माना जाता है . आज भी
यूबवे ल कुएं जैसे भूजल के
संचाई हो पाती है जब क
के
तशत भूभाग क .
जलवायु प रवतन और लोबल वा मग के खतर से नपटने के लए जब तक कोई वैि वक नी त नह ं तैयार क जाती तब तक इस सम या से नपटना नामुम कन होगा. कहने को तो पछले 17 साल से बड़ी-बड़ी सं धयां होती ह और वादे कए जाते ह ले कन रहती सब बेनतीजा ह ह। अमे रका ] जापान] कनाडा तथा वक सत दे श यह कहकर प ला झाड़ ले ते ह क वे तब तक कुछ नह ं करगे जब तक चीन, भारत, उपाय नह ं करते .
(सु ी नारायण सटर फॉर साइं स एंड इ वायर मट क
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नदे शक ह - संपादक )
धु
ाजील तथा द
ण अ
यूजीलड जैसे कई
का जैसे वकासशील दे श
दष ू ण नयं ण के
न Page 42
izFkekad सच कह दँ ू ऐ
gsear 2016
मन गर तू बुरा न माने / -इक़बाल सच कह दँ ू ऐ
मन गर तू बुरा न माने
तेरे सनम कद के बुत हो गये पुराने
अपन से बैर रखना तू ने बुत से सीखा
ज ग-ओ-जदल सखाया वाइज़ को भी ख़ुदा ने त ग आके आ ख़र म ने दै र-ओ-हरम को छोड़ा वाइज़ का वाज़ छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने
प थर क मूरत म समझा है तू ख़ुदा है
ख़ाक-ए-वतन का मझ ु को हर ज़रा दे वता है आ ग़ैरत के पद इक बार फर उठा द
बछड़ को फर मला द न श-ए-दईु मटा द
सूनी पड़ी हुई है मु त से दल क ब ती
आ इक नया शवाला इस दे स म बना द द ु नया के तीरथ से ऊँचा हो अपना तीरथ
दामान-ए-आ माँ से इस का कलस मला द हर सुबह मल के गाय म तर वो मीठे मीठे सारे पुजा रय को मै पीत क पला द
श ती भी शा ती भी भ त के गीत म है धरती के बा सय क मु ती ीत म है
-इक़बाल http://www.kavitakosh.org/ से साभार
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Page 43
izFkekad तेजी व
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तम क क वताय
(1) ब ची
(2) एक दन म आ खर
एक दन
एक दन म आ खर कतनी बार लगना है
उस के ह से का लाव य मने उसे दया
यह अं तम
ण है
कतनी बार तु हार ऑ ंख चूमते हुए बहुत धुआंसी थी धुप उस दन क
कई जनम क ध जाते ह.
और मुझ पर एक मोर पंखी ओढ़नी
घास के दो हरे सांप मेरे
वपन म लगातार रहते ह
ये कौन ह अ सु मेरे ब चे उसे लेने क जगह वह नह ं खड़ी थी. डठौना लगाये वह संतरे के छलक को देख रह थी
मेरे झोले क जेब से मड ुं ी नकाल वे
या मांगते ह
यह कौन ह मेर माँ, जो इस समय मझ ु े
लाव यह न टकटक म उस का एक दन
दे ह क कामना करते हुए
प ृ वी पर मेरे मन म भर था
दःु ख
म े कर रहा है
य आ रहा है बार बार हमारे पास
म इतना बोल कह ं गए ह
(3) मेर दे ह पर
उसे बताये बना उस के सगे कह ं गए ह
मेर दे ह पर
य रह हूँ
तु हार दे ह से म यह ं हूँ और आज के दन
झर रह ह
स दय के बना रह सकती हूँ.
पसीने के बद ूँ
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izFkekad
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आने वाले ग़र ब दन के लए
(2)
नमक बन रहा है
म ह िजयग ूँ ा अभाव
“तेजी गरोवर”
तु हारे साथ, तु हारे साथ रह कर
(1) हाँ, म तु हारा ब चा हूँ
यह स य था या सद ंु रता
जो ब चा मेरे भीतर है
िजसे खो दया है मने
उसे
जीवन नकल गया है
कट कर दो. एक एक कर के खोल दो मेर सार पि तयां
ेम मलने के साथ
हाथ से तुम नद को जाती हो, म तु हारे पीछे पीछे आता हूँ,
घुम
मेरे नंगे पाँव बंध जाते ह काँट से. तम ु चुन लेती हो इ ह भीगे चु बनो से.
ढूंढता जो भीतर था. चला गया बस चला गया.
अभी अभी कट गहूँ के
बस चला गया. उसे जाना था. श द श द जोड़ता
खे खेत म म घूमता हूँ तु हारे पीछे ,
ड़ी था
ेम मेरा. यहाँ वहां भटकता.
यँू ह िजयग ँू ा अभाव
यहाँ वहां छटक बा लओं को बीनने म तु हार मदद करते हुए.
जो मझ ु े मल गया था या यह तु हार ऑ ंख ह माँ? बार बार
-“
य आंसू उमड़ रहे ह इन म?
य भींच रह हो तम ु मझ ु े अपनी छा तओं से? लल के सफ़ेद
फूल म लाया हूँ तु हारे लए, म पक ु ार रहा हूँ तु ह, तुम खोलती नह ं
वार.
हाँ म तु हारा ब चा हूँ. और तम ु लौट रह हो सुखी जवार का ग र अपने सर पर उठाए मेर रात बीतती ह तु हार
म े मलने के साथ
तम”
(तेजी गरोवर हंद सा ह य जगत क एक देश म अपने प त
ति ठत ह ता र ह. वे म य
तम के साथ सा ह य साधना के साथ साथ कई बाल
क याण काय म और कई अ य सामािजक काय म जुडी ह..) - संपादक
वचा के भीनी सग ु ंध म.
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gsear 2016 जीवन कतना मनोरम है .
मनोरम जी वतं मनु याणाम ् भगवान ् बु
के
जब त ण थे- जब उनक त ण
ा काम
ोध मोह
त नर तर ख गह त थी तो उ ह ने उ वेला म श य को
पावक-द त उपदे श दया था.“ भ ुओ आँख जल रह ह यह सारा यमान जगत ् जल रहा है दे वलोक जल रहा है यह ज मा तर
वाह जल रहा है . भ ुओ यह कौन-सी सवभ ी आग है . यह
कौन-सी यह
वाहामयी लपट है . यह आग
प क लपटे ह.”
यह
क
ा
खर और अनभ ु व-
होती गयी और अि तम काल म उ ह ने अनभ ु व कया क यमान जगत ् यह
पमय जगत ् यह भवस रता एकदम
तर कार क व तु नह ं. यह जगत ् सु दर है
य क हम अवसर
दे ता है महाक णा क अ भ यि त के लए . य द यह
यमान
पमय जगत ् न रहे तो हमार महाक णा कसके उ ार के लए
स
य होगी.
वयं-केि
त अपना नजी नवाण पाकर हमारा धम
शा त हो जाएगा उसक उदारभू म महाक णा एक स भावना मा
रहे गी वा त वकता नह ं. महाक णा को स भावना से वा त वकता के तर तक लाने का मा यम है यह दःु खपी डत
अतः यह
यमान जीव-जगत ्.
पमय रसमय ग धमय श दमय जगत ् क ज म-मरण-
स रता कम सु दर नह ं । लगता है यह बोध पाकर ह बु के ज बू वीप के
बार वैशाल से
के मन
त एक वशेष मोह पैदा हुआ था. उ ह ने अि तम
याण करते हुए कहा था- आन द अब हम फर
वैशाल को नह ं दे ख पाएँगे ! यह नह ं कुछ दे र मौन के बाद उ ह ने कहा था च ...यम ् ज बू वीपम ् । मनोरम जी वतं मनु याणाम ् ।।”
यह ज बू वीप
या ह
हुई
ा बोल रह है मनोरम जी वतं मनु याणाम ् !”
बौ
थ म बु
दो वशेष
क पक
को िजन उपा धय से अ भ ष त कया है उनम
प से आक षत करती ह. वे ह महाधीवर और महा भषज ्.
व व दख ु ी है सिृ ट बीमार है सभी कामना के
वर से पी ड़त ह
अतः भगवान ् का अवतरण भषज ् या वै य प म हुआ है. दस ू र ओर बु महाधीवर ह और आवागमन भवस रता म ज म-मरण क
नद म कामना के मीन को
ा के जाल म फँसाते ह और म
य-
आखेट करते ह. ये कामना के जलचर इस नद के जल को अपावन
पर तु जैसे-जैसे समय बीतता गया बु सम ृ
प क है . भ ुओं सावधान
याणवेला से कुछ दन पव ू बु
च -वच
म लन और अशु
अख ड म
कर रहे ह. अतः बु
एक धीवर ह जो नर तर
य-आखेट कर रहे ह. अ यथा ये मीन
जल बना डालगे बो ध वकार
त रहा बु
व
ावा र को ग दा
ीण-दब ु ल रहा तो बु
और के उ ार के लए महा भषज ् बनकर कौन-सी क णा बाँटने म
समथ हो सकगे- अतः उनके महा भष तव क साथकता के लए यह
धीवर
प एक अ नवाय आव यकता है . बु
ह तो उनक महाक णा का कम े
नद के श ु नह ं नद
होगी. नद जल तो मल ू तः
पावन है. उसे अपावन कये हुए ह सभी काम या मार के व वध चेहरे िज ह काम ोध लोभी आ द नाम से पक ु ारते ह । इस कार
दे खते ह क महाधीवर और महा भषज ् पर पर-परू क ह. ‘बु - दय
एक अ त दय म न हत है बो धच और ु भाव- यय है. बु बोधत क ना भ है महाक णा. काला तर म ‘बो ध का वरण
शंकराचाय ने कया और ‘महाक णा का वै णव ने. नमल- स न
भवस रता का वरण मनु य जीवन का वरण ‘ च मय
पमय सिृ ट
का वरण ह बो धस व के ज मा तर-ल ला क ना भ है . महायान इसी अनभ ु व क स तान है.
कुबेर नाथ राय
रं ग- बरं ग है ! और मनु य का
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gsear 2016 ांज ल ांज ल -1 (अ मत बावा) : वण ओमकार अ मत बावा आज द ु नयां म नह ं. ले कन उस के यि त व का फैलाव इतना था क वह न होते हुए भी अपने अि त व का अहसास दलाता रहता है. वह यार का यार, शखर का भावुक व संवेदनशील, रहम दल और बेहद हंसमुख इंसान था. अपनी प नी " यो त बावा" के साथ उस ने "खूह बो दा है " नाटक लखा, नदशत कया और अपार सफलता हा सल क . उस क एक क वता "एक पल" पाठक के साथ साझा करते हुए मझ ु े स नता हो रह है वह उस क याद दल को कचोट भी रह है “एक पल” अ मत बावा वोह शाम के धुंधलके सारे के सारे
मेरे ह
चँू क शाम का कोई साया नह ं, चँू क मेरा मुझ म कुछ नह ं वोह तार क जगमग वोह बादल का तर नुम सब मेरा है. चँू क म रात हूँ, Tumhi se –Hindi Literary Magazine
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gsear 2016 चँू क म खुद से ह
छपता हूँ.
वोह झरन क कल कल वोह प थर का संगीत सब मेरा है. चँू क म कनारा हूँ, चँू क म तबीयत से ह तनहा हूँ. वोह रा त क रवानी वोह मुसा फर क भटकन सब मेर है चँू क म मंिज़ल हूँ, चँू क मेरा कोई सफर नह ं. वोह मेर आज क बेचैनी, वोह मेरे अगले पल क सोच सब मेर है चँू क म महज एक
ण हूँ,
चँू क मेरा कोई अगला पल नह ं
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gsear 2016 ांज ल -2 (गुरचरण "कौन") : परमजीत चु बर “अब हम कौन हो गए” बात 3 साल पुरानी है और क सा 30 साल पुराना है। 30 साल पहले वह गुरचरण
अरोड़ा था। फामसी का छा
अमत ृ सर मे डकल कॉलेज म । मेर उस से पहचान डॉ
वण वारा हुई। उस के बाद वा तव म वह कनाडा के लए चला गया। कई साल उस
से संपक नह ं हो पाया। अब, 3 साल पहले। डॉ वण वा तव म अब डॉ
वण ओंकार
बन गया था। गुरचरण ने उस से मेरा फोन लया। उस ने मुझे फोन कया था। बात
कुछ इसी तरह क ... "नम ते !! परमजीत या हाल है? "नम ते !! आप कौन ?" म
सहज पूछा। वह हंसा, "ठ क है , अब हम कौन हो गए ", और उसके बाद उ ह ने बताया क वह अपनी प नी, दो बे टय , प जा क दक ु ान के साथ वकूवर म है .. ले कन उस दन से उस ने अपना नाम रखा गुरचरण "कौन"। लखने का क ड़ा उस म अभी भी
था। हंद म अ धकांश लखता था । फेसबुक पर मुझे भेजता था। अ या मवाद क बात करता था । कभी कभी उपभावुक हो जाता. डॉ ओंकार क पु तक "भीतर क
द ु नया क एबीसी" पर उस ने बहुत लंबे चौड़ी बहस क थी. आ खर एक दन उसक
प नी से फ़ोन पर एक अनहोनी खबर डॉ ओमकार को मल । सतंबर 2015 क एक सुबह को 03:00 बजे उस ने र तचाप क बहुत सार गो लयाँ खा ल ं। सुबह छह बजे तक, वह हमेशा के लए इस द ु नया से चला गया। अपनी प नी और दो बे टय को
छोड़कर। उस क प नी के अनुसार, उस दन वह पूर तरह से सामा य था. ले कन म
हमेशा उस के कह ं गहरे अंदर हो रह हल चल को महसस ू करता रहता था। मनोरोग वशेष
क तरह पर उस ने वह राज़ कभी नह ं खोला। मझ ु े लगता रहा वह कुछ छुपा
रहा है क लग रहा है। उस क कई रचनाओं म से एक
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ांज ल के प म
तत ु है।
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gsear 2016
हज़ारो लोग मलते ह मलगे अब भी द ु नयां म, कोई वैसा तेरे जैसा कहाँ से लाईऐ फर " कौन " बहुत ह गे कहगे हम रहगे िज़ दगी भर साथ, बताओ तो कहे गा जाईऐ मर जाईऐ फर कौन बलाओं म रह है उ
भर ये िज़ दगी अपनी,
मौत जैसी बला से तो भला घबराईऐ फर कौन तु हारे साथ गुज़र है जहाँ जैसे भी गुज़र है, कहाँ कैसे ये गुज़र है य पछताईऐ फर कौन चले आते ह मह ु ं लटकाए वा पस सब थके हारे , ना हो मुम कन जहां से वापसी वां जाईऐ फर कौन चलो अ छा हुआ के हम ने उनके नाम क रख ल , वरना उनके दरवाज़े पे कैसे जाईऐ फर " कौन "
गुरचरण (बाएं) और डॉ वण क एक पुरानी त वीर
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gsear 2016 आप क
त
या हमारे लये अमु य है
हमारा यह यास आप के सहयोग के बना अधूरा है. आप का एक मा सहयोग आप क
त
या है.
आप अपने पयावरण के वषय के बारे म या सोचते ह. आप त काल न धा मक राजनी तक व अ याि मक अथ-तं के बारे या राय रखते है. पयावरण एवं मानवीय चेतना के बारे म आप अपना यि तगत अनुभव पाठक से बांट सकते ह. इस से संबं धत आप अपनी रचना हम भेज सकते ह. आप फेस बक ु या इ-मेल या से भी अपनी
त
या य त कर सकते ह.
आप हम बताय क हमारे यास म या अधूरा है अभी संपरक सू -
आप क
त
या
इ-मेल- abcinnerworld@gmail.com Facebook https://www.facebook.com/groups/1641827909407252/
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gsear 2016 ‘तु ह से’ का आगामी अंक- ‘ ान क सीमा’ या
ान -तकनीक हो या अ याि मक केवल मानवीय शोषण का पयाय बन रहा है ?
या हम मानवीय बु
को केवल त य सं हालय मान कर चल रहे ह?
या हमारे व व- व यालय एवं दस ू रे श ा संसथान भी मानवीय बु
कर चल रहे ह? या
ान मानवीय मन को बदलने म स म है या
रहता है?
द ु नया मे लगातार
रहे ह.
या यह त य
ान व ृ
होने के बावजूद ईछा,
को केवल त य सं हालय मान
ान हो या न हो हमारा मन अपने ढं ग से चलता वेष आ ोष, अपराध भी उसी रफ़तार से बढ़ते जा
ान क सीमा क ओर इशारा नह ं करता?
या
ान
त पधा क भावना को बढ़ा रहा है?
या
त पधा क भावना मानवी संसाधन के अ त उपयोग और पयावरण अधोग त का कारण नह ं
या
त पधा (competition) जीवन म असरु ा क भावना को ज म दे रह है िजस के चलते
बन रह ?
मनु य धम के बाहय ् कमकांडीय या तकनीक बौ
प को जोर-शोर से अपना रहा है?
ता पिृ व क एक वमीय (Linear, One-dimensional) उ न त का कारण नह ं
बन रह िजस म मानव भौ तक सुख के बावजद ू अशां त म जी रहा है? या हमारे अ या मवेता भी हम तोता रटन कमकांड म उलझा रहे ह? ान क सीमा के उस पार
या है?
व ले ण-र हत झान व सहज झान (Intuitive Knowledge) ऐसे अनेक
या है ?
न ‘तु ह से’का आगामी अंक ले कर आ रहा है . इस आ य क आप क रचनाय आप
हम म य फ़रवर तक भेज सकते ह. संपरक सू -
इ-मेल- abcinnerworld@gmail.com
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हमार फ मी शायर
( थाई
गीत को सुनना और गीत को पढ़ना दो अलग अलग
त भ)
याऐं ह.सुनते समय श द व न का प ले कर
सीधे दल म उतर जाते ह. पढ़ते समय दमाग़ व समझ के साथ मन आ मा म वेश करते ह. मेरा आशय आज दस ू रा है . दमाग़ व समझ के साथ जुड़ने का है . यह गीत भारत भूषण वारा 1962 म न मत फ म 'नई उ क नई फ़सल' का है . इस गीत म भाव मेर generation के लोग के लए ह पर म यह गीत अपने young friends क नज़र कर रहा हूँ, उन को सम पत कर रहा हूँ. िज़ दगी क ज ो जहद म आप लोग को पता भी नह ं चलेगा क कब और कहाँ सपने ताबीर बने से पहले ह इधर उधर बखर गए. आप िज़ दगी क दौड़ म केवल सफलता क खोज म रह गए. और सफलता के अथ आप के लए केवल यवसायी सफलता ह बन कर रह गए. कई बार कुछ लोग क साथ ऐसा भी हुआ क आपके क
सपन क फसल का ेय कोई दस ू रा ले गया. आप इस गीत को प ढ़ए, दोबारा सु नए भी और हो सके तो फ म भी दे ख लेना. जो सरोकार (कंस स) 1962 के दन म युवा पीढ़ के साथ थे वे आज भी उतने ह जीवंत ह. फ मः नई उ
क नई फ़सल
संगीतकार / Music Director: Roshan गीतकार / Lyricist:Gopal Das Neeraj गायक / Singer: Mohammad Rafi
Gopal Das “Neeraj”
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gsear 2016 व न झड़े फूल से मीत चुभे शल ू से,
लुट गए ंगार सभी बाग़ के बबूल से और हम खड़े खड़े बहार दे खते रहे , कारवां गुज़र गया ग़ब ु ार दे खते रहे नींद भी खुल न थी क हाय धूप ढल गई, पाउं जब तलक उठे क िजदगी फसल गई ़ पात पात झड़ गये क शाख शाख जल गई, चाह तो नकल सक न पर उ
नकल गई
गीत अ क बन गये छं द हो दफ़न गये, साथ के सभी दये धुयां धुयां पहन गये और हम झक ु े झक ु े मोड़ पर के के, उ
के चढ़ाव का उतार दे खते रहे . कारवां गुज़र गया... या शबाब था क फूल फूल यार कर उठा, या कमाल था क दे ख आइना सहर उठा
इस तरफ़ ज़मीं और आसमां उधर उठा, थाम कर िजग़र उठा क जो मला नज़र उठा एक दन मग़र यहां ऐसी कुछ हवा चल , Tumhi se –Hindi Literary Magazine
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लुट गई कल कल घुट गई गल गल और हम लट ु े लट ु े व त से पटे पटे सांस क शराब का ख़ुमार दे खते रहे . कारवां गुज़र गया... हाथ थे मले क ज़ु फ़ चांद क संवर दं ,ू ह ठ थे ख़ुले क हर बहार को पुकार दं ू दद था दया गया क हर दख ु ी को यार दं ,ू और सांस यूं क वग भू म पे उतार दं ू हो सका न कुछ मग़र शाम बन गई सहर, वोह उठ लहर क ढह गये कले बखर बखर ़ और हम डरे डरे नीर नयन म भरे ओड़ कर क़फ़न पड़े मज़ार दे खते रहे . कारवां गज़ ु र गया...
तु त : वण जे. ओमकार
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अं तम प ना
ा त पु तक ‘अं ीव हम ड का क ख ग’(ABC of Inner World) म डा. वण जे. ओ कार दो चरम सीमाओं से आ याि मकता को मु त करने के लए संघषरत ह -पहला है कठोर बु वाद ... और दस ू रा स चाई के केवल न कष क पूजा
त हमारा लगाव.
अपने अ वतीय प ट ि टकोण के साथ वे पाठक के मन म वचार क एक ख ंृ ला बनाने का यास करते ह. साधारण व अप रप व वचार से ार भ करके वे अ धक से अ धक ज टल वचार क ओर बढते ह और अहसास के व फोट के अि तम शखर तक पाठक को ले जाने का यास करते ह.
येक पाठक म ऐसा अहसास का व फोट पैदा हो यह नभर करता है क
पाठक इन वचार को कैसे लेता है श द को बु
वारा समझता है या इस
यास के लए उस म कोई यि तपरक
जाग कता का आ वभाव होता है! पाठक के मन म रचना मक अंत ि ट बनाने के लए
तुत ग य म आ याि मकता के वषय म समकाल न बहाव पर
प र छे द संक लत ह. साथ ह साथ यह यास है क अनाव यक प से अवां छत जानकार से पाठक को उबाय नह ं बि क यि तपरक जाग कता के शखर तक ले जाने के लए उस के मन क अगुआई कर. अपने ग य म अ सर वे इस ‘ यथ बेतुक ग त से अ सर
मांड’ क अनथक बौ क समझ को छोड़ थोड़ी दे र के लए आ मीय अनुभू त का बोध करने
का आ हान करते ह! अनथक बौ क समझ के सं थागत नमाण के यास म हम जीवन के बेहतर न साल बरबाद करते ह. वे ऐसे बौ क मन क चरणब समाि त क बात करते ह. वे चप ु चाप सब समझ से परे अहसास क गहराई म वेश करने क बात करते ह! ‘डा. वण जे. ओ कार’ (ज. 1960), भारतीय मल ू के लेखक और मानव शर र व ान म नातको तर ह. वे एक मे डकल कालेज म एसो सएट ोफेसर है. वे वयं श
त, आ म नद शत आ याि मक उ साह ह और आम तौर पर अपने या यान
म सम ता और पयावरण चेतना को सि हत करते ह. उपरो त पु तक न न ल खत ऑनलाइन बुक टोस से ा त क जा सकती है . Amazon Flipkart
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