Tumhi se 3

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तृतीय अंक

तु ह से

मृ यु के बाद चेतना का

ी म -2016

या होगा? या मौत के बाद

या चेतना अ त व म रहती ह या शर र के साथ

ख़तम हो जाती है

rqEgh ls नव आि त व क तलाश

तत ृ ीय अंक

ी म2016

सुषुि (SLEEP STATE)

जाि त (WAKEFUL STATE)

अित जाि त SUPER-CONSCIOUS STATE

तुत अंकः चेतना है

laiknuµ

या?

Lo.kZ ts- vksedkj ड जटल सं करण


तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

rqEgh ls जीवन म चेतना का

ान होना अ त आव यक है. यह ान एक वशेष तरह क साइको-थेरेपी के लए है.

तुत अंक म

हमने चेतना के अलग अलग पहलओ ु ं क चचा क है.. कसी धा मक या अ य ऐसे कारण से इस मह वपण ू वषय क उपे ा कर दे ना समझदार नह .ं "चेतना" हमार

ाकृ तक साइं स का वषय है. वांटम फिज स म इस पर बहुत रसच हुई है.

D;k

dgka तुत अंक: चेतना

या है ?(4)

संपादक क कलम से(6) मनु य का

वै

का शत

काश चेतना है (8)

डॉ परमजीत चुंबर (यू एस ए) क कलम से (10) चेतना क असल

यान थ अव था (12)

जीव क

वकास या ा (14)

चिलये शा त गंगा क खोज कर (लिलत िनबंध) (16) या है चेतना

वारा नद शत "इनर पीस" (20)

म ृ यु के बाद चेतना का

या होगा? (22)

या म ृ य ु के बाद भी कुछ बचता है (26) चेतना को चेतन करना

या है ? (28)

चेतना को चेतन करना -कैसे?(29) चेतना क अव थाएं (30) आ मा क आवाज़(35) मनोवै ा नक

ि ट से चेतना (37) व

थाई

त भ


तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

संक पना व संसथापन डा-

वण जे- ओमकार कृ णा

वण

laf{kIr mns’;

^rqEgh ls*

u dksbZ iwokZxzg /keZ ;k jhfr dk

कायकार संपादन एवं

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काशन

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वण

eu ;k v/;kRe dk

सह-संपादन सु या विश

u dksbZ ekxZn’kZu u urhtk ;k fu"d’kZ

वण

dsoy iz’u

सहयोग

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डा- मोहन

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वै ािनक शोध

papy eu lhek ikj tkus dks rS;kj

डा- परमजीत चुंबर

tc rd u gks

कला व टाइ पंग स जा रै व

वण

पंकज शमा

fo’kq) psruk dk izokg ef"r’d esa

वण जे- ओमकार

कृ णा

va=ho ;k ckg~; eu esa nsg esa

आनरे र संपादन डा-

fo’kq) HkkSfrDrk

fo’kq) psruk dk vkHkkl

"चेतना है

या?"

tc rd u feys vafre va=&n`f"V-^rqEgh ls* e-mail – jswaran09@gmail.com


तृतीय अंक

तु ह से

तुत अंक: चेतना

ी म -2016

या है ?

जब हम इस सवाल पर गहन ववेचना करते ह क- What Is Consciousness? चेतना या है ? तो

हम कसी पु तक, धािमक स ह य या कसी जाने पहचाने दाशिनक या

लेखक क तरफ

ख करने से पहले हम अपने पर केवल अपने शार र मन पर

अपना वचार क त करना होगा. चेतना हमार जागृत अव था है . वेद म शा जस का अथ है -

ान

म चेतना को "िचत ्" कहा गया है .

करना, दे खना, चौकस या सतक होना. जब चेतना

को हम वषयाि त (objectify ) करते ह तो उस के अथ हो जाते ह- वचार करने वाली,

ा, बु

, मन, आ मा, जीवन या

इ या द. ाणी म जीवन के

व प म

पाई जाने वाली चेतना का आभास हम होता है. बहुदा हम कहते ह- मेरा िचत ् अ छा नह .ं मेरा िचत ् नह ं करता या मेरा िचत ् नह ं कह रहा क म यह काम क ँ . हमारा िचत ् हमार अंतर व अव था है . हमारा शर र भले अ छा हो. ले कन अगर मन ठ क नह ं िचत ् अ छा नह ं तो हम बा

संसार से ब ढ़या ताल मेल नह ं बठा पाते.

साधारणतः िचत ् यािन चेतना को मन या आ मा के तु य ह माना जाता है . थोड़े से फ़क़ के

साथ ये एक ह ह. शार र म हम दो ह ह. एक भौितक शार र और एक

सू म चेत ना. जब हमने चेतना (जीव क जागत ृ अव था) को समझ लया तो शेष मन बु आ मा को समझना आसान है . शेष मन, आ मा, बु अलग अव थाएं है . चेतना हमारे अ त व क

इ या द चेतना क ह अलग एक

ाकृितक अव था है चेतना के

बना हमारा भौितक शार र मृत है गितह न है सोया पड़ा है या बगड़ा हुआ है . हमारे शर र को पुनः

अ य त थका हुआ,

सु यव थत करने के िलए चेतना पहले

वयं

सु यव थत होती है . चेतना कई तरह से हमारे भौितक शर र व दमाग से जुड हुई है और उस क

थित से

भा वत होती रहती है .


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तु ह से

ी म -2016

चेतना का सीधा संबंध दमाग के साथ होता ह. तो दमाग म आ खर चेतना आती कहाँ से ह? इस सवाल का जवाब वै ािनक आज भी ढू ँ ढने म असमथ है . यादातर वै ािनको का मानना ह क चेतना दमाग के अ दर होती केिमकल याओं का नतीजा होती ह. तो फर ह? इसका जवाब ह हा.

या छोटे अभी अभी ज मे ब चे चेतन होते

य क छोटे ब चे भी घटनाओं पर

क भूख लगने पर रोना, हँसाने पर हं सना. चेतना

का हमारे

ित

याएं करते ह. जैसे

म त क क

से इतना गहरा स ब ध है क कसी ऐसे केिमकल से जस से दमाग है - हम चेतना क अव था को जागृत चेतना को सुषु चेतना हमारे होना और

भा वत कर सकते ह. जैसे नींद क

भा वत होता ट कया से हम

चेतना म त द ल कर सकते ह.

जाग क

होने क िनशानी है . केवल जाग क (अवेयर)

व जाग क (Self-aware) होने का मतलब अलग अलग होता है . जब

हम केवल जाग क होते ह तो चेतना का

वाह भीतर से बाहर क और होता है . हम

न जानते ह और न जानना चाहते है क हम कोई गु सा

थित

य हो रहे ह

थत म चेतना का टटोल रहे होते है .

य उदास ह इ या द.

वशे ष काम

य कर रहे है

वै जाग कता (Self-aware) क

वाह बाहर से भीतर क और होता है और तब हम

वयं को

व-पडचोल कर रहे होते ह. अपनी अंतरा मा के भीतर झांक रहे होते

ह. व जाग क

होने का मतलब है- कसी को उसक भावनाएं, वशेषताएं और उसके

अ त व के बारे म पता होना और इन सब का मतलब समझने के िलए उसका स म होना.

व जाग क

को सीधी भाषा म समझ

कसी भी पैट स को समझ चेतना सार सृ

तो उसका मतलब होता ह

लेना और उसे अपने साथ होती घटनाओं से जोड़ना.

ेरणादायक और सृ

को चलाने वाली एक

मता है . चेतना के

होने के िलए उसके कारण का होना ज र ह. हमार चेतना हमारे िलए इस दिु नया को अवलोकन करने यो य

भाव पैदा करती ह.

ऐसे कई सवाल ले कर और उन के अथ क तलाश म 'तु ह से..' का नया अंक पाठक के सम िनवेद न:

तुत है .

वण जे. ओमकार

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तु ह से

ी म -2016

"अहं कार, ोध, माद, रोग और आल य- इन पांच कारण से यि त श ा ा त नह ं कर सकता।"- अ ात

rqEgh ls--Ekkuoh; psruk dk niZ.k r`r h; vad

xzh"e 2016

संपादक क कलम से--मा यवर… चेतना है

या? चेतना

ाणी के

ाणी होने क

वशेषता है . वना वह एक िनज व

प थर है, भौ तक त व या के मक स का एक पुंज है. एक ऑटोमेटा (automata) मशीन है .

वह केवल भौितक शर र ह है . चेतना इस भौितक

शर र को जी वत रखती है और जो उसे य वातावरण के वषय म वशेषता

है .

ान कराती है । यह

वेद म शा

गत वषय म तथा अपने इद गद ान श

चेतना क मु य

म चेतना को "िचत ्" कहा गया है . जब चेतना को

हम objectify करते ह तो उस के अथ हो जाते ह- वचार करने वाली, बु

मन आ मा जीवन

इ या द.

ान को वचारश

यह

वशेषता मनु य म ऐसे काम करती है जसके कारण उसे

ा,

(बु ) कहा जाता है । जी वत

ाणी

समझा जाता है । मनु य अपनी कोई भी शार रक उसको यह

या तब तक नह ं कर सकता जब तक क

ान पहले न हो क वह उस

या को कर सकेगा या उसे उस

या से यह लाभ होने वाला है . कोई भी मनु य कसी घातक पदाथ अथवा घटना से बचने के िलए अपने कसी अंग को तब तक नह ं हला सकता, जब तक क उसको यह

ान न हो क कोई घातक पदाथ उसके सामने है और

उससे बचने के िलए वह अपने अंग को काम म ला सकता है ।

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तु ह से

ी म -2016

उदाहरणाथ, हम एक ऐसे मनु य के बारे म सोच सकते ह जो एक जंगल ओर जा रहा है । य द वह चलते-चलते जंगल घुस जाता है तो वह अब और

तक पहुँच जाता है और जंगल म

यादा सतक हो जायेगा. वह हर सरसराहट और

हर सुगध ं हर नज़र आती हरकत के सतक य हार

ित

यादा सचेत हो जायेगा.

तब तक जार रखता है जब तक वह दोबारा सुर

म नह ं चला जाता या जंगल म कोई सुर सतकता चेतना का काम है हमारे िलए.

वह अपना त वातावरण

त जगह नह ं ढू ंढ लेता. बस यह ाणी के जीवन को सुर

त रखना

चेतना का मु य दािय व है . चेतना न केवल बा य खतर से हम सरु

रखती है बि क यह भीतर मस ु ीबत , परे शा नओं, रोग , इंफे श स इ या द से बचाना भी चेतना का ह काम है . मनु य क सभी

याओं पर उपयु

िनयम लागू होता है चाहे , ये

याएँ पहले

कभी हुई ह अथवा भ व य म कभी ह । मनु य केवल चेतना से उ प न के कारण ह कोई काम कर सकता है । तमाम जानकार है जो एक

बु

तुत अंक म चेतना से स भंिधत वह

ानवान या

ान पपासु य

चा हए. हाँ. हम चेतना के अित सू म और अि म जानकार वशेष

ेरणा

को होनी

जस पर केवल

का वच व है दे ने से गुरेज़ कर रहे ह.

हमारा इस अंक का उ े य केवल इस बेिसक वषय म आप क उ सुकता को बढ़ाना है . और हम यह भी चाहगे क आप इस स ब ध म और जानकार

करने के िलए ललायत ह . आप

वयं खोज कर. मन म सवाल पैदा कर और उन पर काम कर. हमारे हर का उ र चेत ना म सं हत है . अगर कसी

का जवाब नह ं िमल रहा हो

तो कुछ दन चेतना को उस पर काम करने द. जवाब अपने आप आप क पकड़ म आ जायेगा. हम आप क

ित

या क अपे ा रहे गी.

- वण ओमकार (संपादक)

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तु ह से

ी म -2016

मनु य का वै का शत काश चेतना है - वण ओमकार

जनक या

य से पूछते ह "जो वयं को उजागर करता है और दस ू र को उजागर

करता है , वह कसका काश है ? या व

य ने कहा: "लोग को इस द ु नया म जो काय करने म मदद दे ता है वह सरू ज

काश का ोत है ।" जनक दोबारा पूछते ह "जब सरू ज डूबता है , और सम त संसार अंधेरे म खो जाता तब कसका काश लोग को काय करने म मदद करता है? तब या व

य कहते ह " तब चांदनी उनक सहायता करती है । सय ू नह ं है , अब चं मा

है । चांदनी क मदद से, लोग काम कर सकते ह।" " अगर चांदनी नह ं है और सरू ज क रोशनी नह ं है ले कन, अब कस क मदद से काय होता है . वह कस का काश है? "तब आग का काश तो है । कोई सरू ज और कोई चाँद नह ं, तब मनु य जल रह आग के काश से अपने काम कर सकते ह। " अगर आग भी वहाँ नह ं है चांदनी नह ं है औ र सरू ज क रोशनी भी नह ं है तब कस का काश मनु य क मदद करता है ? Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

"सरू ज डूब जाता है , चं मा वहाँ नह ं है और जब आग भी जल नह ं रह है जब बाक सब कुछ वफल हो जाता है तब आवाज़ से और वातालाप के वारा लोग काम कर सकते ह।" "ले कन कोई भी आप के आसपास नह ं है और कोई भी आवाज नह ं, तो आप कैसे काय करे गे आप के आसपास कोई नह ं है; कोई आवाज नह ं आ रह है ; बाहर से कसी भी तरह का कोई इशारा भी नह ं है ; आप कुछ भी पता नह ं लगा सकते ह; सब कुछ काला है ; सरू ज चला गया है ; चाँद चला गया है ; आग जल नह ं है - काश तब या है कसका है? " तब यह वयं का काश है ; तब आप अपने आप से, अपने वयं से आतम से चेतना से मागदशन लेते ह. आप अपने वयं के लए एक रोशनी है आप जब तक बाहर के काश ोत पर नभर कर रहे ह और जब तक हम सफ भीड़ म से एक ह ले कन हम वा तव म भीड़ म एक नह ं ह; हम अपने वयं (self) क एक अव था (state) है । ले कन हम अपने वै का, आ म चेतनता का

ान नह ं होता और हम बा य ि थ तय पर नभरता क वजह से आ म

चेतनता के काश से अनजान रहते ह. हम नभरता के माहौल म पल रहे ह, माता- पता पर, अ यापक पर, समाज पर, , पैसे पर, धन पर - हमेशा क तरह, हम कसी न कसी पर नभर ह। जनक और या व

य का यह संवाद बह ृ दआर यक उप नष से लया गया है . इस

संवाद से एक और बात प ट प म उजागर होती है क इस म कह ं भी गॉड, परमा मा, ग ु , पव ू पु य या कम या दे वी दे वता से काश लेने क बात नह ं कह गई है. ले कन

या ऐसा भी हो सकता है क हम बना मा यम के जगत को दे ख सक?

य क जब हम बना

मा यम से जगत को दे खगे तभी स य दखाई पड़े गा। इसिलए ऋ षय क जो गहनतम खोज है वह यह है क जब तक इं य से हम जगत को जानते ह, तब तक जसे हम जानते ह वह जगत के ऊपर इं य के

ारा आरो पत

वाला भी उसम संयु

ेपण है ; उसी का नाम माया है । जो आपने दे खा है वह

हो गया है । तो एक तो माग है इं य के

य ह नह ं है , दे खने

ार से, जो स य का व तार है उसे

जानने का। इस स य को जानने सै जो शान हमार पकड़ म आता है, ज ह ने इं य के पार भी जगत को दे खा है वे कहते ह, वह शान हमारा इलूजर है , माया है । जब शंकर जैसा य

कहता है यह जगत

माया है , तो आप यह मत समझना क वह यह कहता है क यह जगत नह ं है । यह जगत बलकुल है, ले कन जैसा आपको दखाई पड़ रहा है , वैसा नह ं है । वैसा दखाई पड़ना आपक

है, वह

जगत को माया बनाए दे रह है । जैसा जगत आपको दखाई पड़ रहा है ,वह आपक

या या है ।

इस ---

(ओशो)

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तु ह से

ी म -2016

डॉ परमजीत चंब ु र (यू एस ए) क कलम से ...

(आज कल अपने दो त डॉ वण ओमकार क अं ज े ी पु तक "भीतर क द ु नया क एबीसी" पढ़ रहा हूँ । डॉ टर सा हब ने एक वै ा नक ि टकोण से दशन और अ या म का पडचोल क है. एक दन उन से फ़ोन पर पु तक के बारे वचार- वमश हुआ िजस म

ान और जाग कता के बारे ल बी बात हुई। डॉ टर सा हब

ने कहा क ान का व फोट सभी सम याओं क जड़ है . वे कहते ह क अनव यक

ान को छोड़ना ज़ र है

और चेतना क तरफ जाना चा हए । इस पु तक के आधार पर, मने दै नक जीवन से एक घटना ले कर एक कहानी लखी है । चेतन (जाग कता),

ान (बु

या

ान) और रौशनी (अ या म) को एक पक के प म

योग कया है .. शेष आप जो भी समझ ...)

एक या ा क कहानी ान व चेतन दो दो त ह। दोन क रौशनी नाम क एक साझी दो त है । एक दरू दराज के गांव म रौशनी रहती है । पहल बार दोनो ने रौशनी से मलने का काय म बनाया है । ान के पास एक कार है । ले कन चेतन अ छा चालक है और उस ने कार चलाई। 3-4 घंटे लंबी या ा। (Philosophy) क एक कताब ले लेता है, रा ते म पढ़ने के लए।

ान अपने साथ दशन ान पीछे क सीट पर बैठा है। उस के

पास रौशनी के शहर का एक न शा है । "तीसरे चार घंटे का हाईवे का सफर है . बस नाक क सीध पर चलता जा."

ान या ा के बारे म बता कर

दशन क कताब म गुम हो जाता है . चेतन ब ढ़या ाइ वंग कर रहा है. हर तरफ दे ख कर बच कर. एक बार चेतन को लगा क उस के आगे क गाड़ी वाला कुछ धीमी ग त से चल रहा है. वह स नल दे कर उस गाड़ी को

ॉस करने क को शश करता है. ले कन

पीछे क गाड़ी वाला हॉन दे कर तेज़ ग त से पहले नकलने क को शश करता है. चेतन को खीझ आ जाती है . "द खता नह ं कधर को मंह ु उठा कर चल रहे हो", चेतन मन ह मन उसे गल दे ता है . पछल गाड़ी वाला काफ तेज़ था.

ान का यान भी उखड जाता है.

"यार, गदन घुमा कर लाइंड पॉट तो चेक कर लआ कर. पछल कार बहुत ज द म थी, खैर बचा हो गया."

ान अपना

ान झाड़ रहा है.

"कोई बात नी, तुम अपनी कताब म म त रहो. चेतन और अ धक सचेत हो कर गाड़ी चल रहा है . Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तु ह से

ी म -2016

ान को भूख लगी है और चेतन ने बाथ म जाना है ।

ान अगले एि जट से बाहर आने के लए कहता ह।

ान Mcdonald से कोक और सड वच लेता है। चेतन केवल चाय पीता ह। या ा पर वह अ धक खाता पीता नह .ं खाने और पीने के बाद गाड़ी फर राजमाग पर आ गई है । चेतन अपनी धुन म गाड़ी चला रहा है । अचानक

ान क आँख लग गई है .

ान क आंख खुल जाती है। बाहर दे खता है । और फर

न शा दे खने के बाद घबरा जाता है. "ओ चेतन, हम एि जट पीछे छोड़ आए है." "अब !!!?" चेतन पछ ू ता है । "तम ु गाड़ी बाहर क ओर नकल कर साइड पर लगा लो", ान बताता ह। ान अब सामने क सीट पर न शे को हाथ म पकड़ कर बैठ जाता है. चेतन वाहन पीछे क और मोड़ रहा है . ान उसे बता रहा है ।पीछे वाहन क लंबी कतार है. चेतन सावधानी से गाड़ी बहार नकालता है .अब

ान

चेतन को दाएं बाएं क चेतावनी दे रहा है. छोट संक ण ग लओं से नकल कर काफ दे र बाद वे रौशनी के घर पहुँच जाते है. बाहर काफ अंधेरा है । "यार, यह रौशनी भी कुछ अजीब चीज़ है. कहाँ जंगल म आ कर रहने लगी है",

ान कहता है ।

रौशनी इंतजार कर के थक गई है . "आप लोग इतने लेट कैसे हो गए ?" रौशनी पछ ू रह है . "इस से पछ ू …" ान चेतन क तरफ इशारा करता है. मेर तो चाय भी उबल उबल कर पागल हो गई. "हमारा रा ता खो गया था" चेतन ने सफाई पेश क । "वह कैसे? न शा तो आप के पास था " रौशनी ने है रान हो कर पछ ू ा। चेतन ने

ान क ओर इशारा कया "ये जनाब

जंक फूड खा कर और दशन क

कताब पढ़ते

पढ़ते पछल सीट पर सो गए. मान च

भी इन के पास था।"

"अब, तो एक सबक मल गया न?" रौशनी ने पछ ू ा. "कौन सा ?" दोन है रान हो कर पछ ू ते ह। "आगे से गाड़ी चलते समय इसे आगे क सीट पर बठाया कर और जंक फूड तो बलकुल नह ं दया कर।" रौशनी ने जवाब दया। "तुम ने तो

काश कर दया रौशनी"

ान का कहना है

तीनो हँसते हुए चाय क मेज़ पर बढ़ते ह.

(डॉ परमजीत चुंबर वे ट विज नया म कंसलटट साइके Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

ट ह.... संपादक) Page 11


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तु ह से

चेतना क असल

ी म -2016

यान थ अव था- काय-मु त होना या काय- ल त होना? - वण ओमकार

-----एक सुद ं र कहानी है जो मन क तनावपूण व जो एक

यानषील

म एक ह समय म मौजूद हो सकती ह. यह

महान महाका य महाभारत के रचयता, ऋ ष वेद

यास के पु

थित के अं

को बताती है

ा त काफ

ाचीन है और

षुखदे व और राजा जनक जो

एक महान आ या मक साधक व शासक थे से संबंिधत माना जाता है- यह कहानी कुछ अ य भारतीय

ंथ म भी उपल ध है- इसका एक और आधुिनक सं करण

ाजील के लेखक

पाउलो को हलो क महान कलाकृ ित ‘क िमयागर-Alchemist’ म भी िमलता है- म दोन म से क य वचार

तुत कर रहा हूँ- एक पता आ या मक जीवन म द

जीवन के कुछ गहरे स य जानने के िलए एक बहुत बु

मान

ा के िलए और

के पास अपने युवा

नवो दत बेटे को भेजता है - बहुत संघष के बाद लड़का उस जगह पहुंच जाता है- उसे पता चलता है क वह बु मान य

एक पैलेस या कह एक वशाल हवेली म रह रहा था- जस

समय लड़का वहाँ पहुंचा बु मान आदमी कुछ मेहमान के साथ य त था- उस ने युवा लड़के से

ती ा करने के िलए कहा और कहा क

महल को दे ख ले- कुछ सोचकर बु मान य

ता वत समय का उपयोग करने के िलए लड़का एक और सुझाव दया. लडका अपने साथ एक

तेल से भरा एक द पक ले जाये और िनदश दया क द पक से तेल बाहर नह ं जाना चा हए. लड़के ने उसक बात मानी और महल का दौरा करने के बाद वापस आ गया- बु मान आदमी अब अकेले थे- लड़का कु छ मननशील बात करने के िलए लालायत था ले कन बु महल के बारे म उसका

मान य

भाव जानने के िलए उ सुक था- वह सुंदर अंद नी कलाकृितओं

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तु ह से

ी म -2016

उ ान फूल और पु तकालय म रखी कुछ अ ुत पांडुिल पय के बारे म या वहाँ चहकते प

के बारे म उस का मत जानना चाहता था--- आ द आ द- लड़के के मन म झझक थी और वह मानता है क द पक क देखभाल करने के िलए वह महल को उस बु

से नह ं दे ख पाया

मान आदमी उ र दया- ‘तो फर तु ह जाना चा हए और पूरे महल दोबारा देख ना चा हए-

पूण

प से सभी चीज को एक साथ देखना चा हए और तु हे तेल का भी

याल रखना होगा-

तो लड़के ने एक बार फर से महल को दे ख ा अपने दल के साथ उन सब चीज़ क सराहना क

ज ह ने उस को दल से

पर भी

भा वत कया और साथ ह उसने अपने शर र क गित विधय

यान क त कया और तेल को िगरने नह ं दया. लड़के ने शर र का संतुलन रखने

और मन क शांित बनाए रखने क बेचन ै आशंका के अदभुत सं ेषण म

ान पाया-

----एक अ छ मननशील कताब पढ़ते समय या हमारे जीवन क सुखभर और तनाव थितय का सामना करते समय उपरो

बात

यान म रखने क ज रत है- हमारा जीवन

सुख और तनाव का एक अजब िम ण है- ये दोन

थितयां वचार क

वाभा वक

दौरान अपनी भूिमका िनभाती ह- आउटडोर म और पूर तरह से शांत मन के कताब पढ़ना एक ज दबाजी भरे

वचार को बढ़ावा दे गा- तनाव या

दौरान उ पन हुए वचार एक नह ं हो सकते- ले कन तनाव

गित के बना एक

यानषील

थित के

त मन के रहते मननशील मन

बनाने के िलऐ हम अित जाग क मन क ज रत है ता क तनावपूण मन हमारे वचारशील यान म ह त ेप न करेFrom: ABC of Inner World (Hindi translation by author) ी अर वंद ने कहा है क जब म जागा तब मुझे पता चला क अब तक म सोया ह हुआ

था; और जब मने वा त वक जीवन जाना तब मुझे पता चला क जसे म जीवन समझता था वह तो मृ यु थी। ले कन

वाभा वक है क जसे हम नह ं जानते उसका हम कोई

खयाल भी नह ं हो सकता; और उससे हम कोई तुलना भी नह ं कर सकते।इसे जा त कहते ह तीन अव थाओं से हम प रिचत ह-- व न, सुषुि ,जा त। इन तीन म यह अव था जा त कह जा सकती है । जस दन हम चौथी से प रिचत होते ह उस दन ये तीन अव थाएं िन ा क अव थाएं हो जाती ह; उस दन फर हम दस ू रे ढं ग से कहना पड़ता है -उस दन हम कहना पड़ता है : गहर सुषुि , कम गहर सुषुि , और कम गहर सुषुि । जसे अभी हम जा त कहते ह वह सबसे कम गहर सुषुि

और गहर सुषुि ; और जसे हम सुषुि

व न कहते ह वह

कहते ह वह पूर गहर सुषुि । ये तीन नींद क ह

अव थाएं ह,ले कन अभी इसे हम जा त कहगे।

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है; जसे हम

--- (ओशो)

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

जीव क वकास या ा

जो उ ण छछले सागर के अंदर छोटे से कंपन से लेकर जीव क वकास या ा मानव तक आई, वह वकास शार रक संरचना और मि त क म ह नह ,ं कंतु विृ त, मन तथा भाव के नमाण म भी हुआ। िजस कार का वकास क ट म हुआ वह अ य नह ं दखता। म खी क एक आँख म लगभग एक लाख आँख होती ह। इन दो लाख आँख से वह चार ओर दे ख सकती है । एक क ड़ा अपने से हजार गुना बोझ उठा सकता है । अपनी ऊँचाई-लंबाई से सैकड़ गुना ऊँचा या दरू कूद सकता है । कैसी अंगो क

े ठता, कतनी काय मता! फर कृ त ने एक और योग कया क क टवंश, उनका समूह एक

वचा लत इकाई क भाँ त काय करे। सामू हकता म शायद सिृ ट का परमो े य परू ा हो। क ट के अंदर रची हुई एक मूल अंत: विृ त है, िजसके वशीभूत हो वे काय करते ह। इसके कारण लाख जीव एक साथ, शायद बना भाव के (?) रह सके। क टवंश क बि तयाँ बनीं। उनका सामू हक जीवन सव व बन गया और क ट क वशेषता छोड़ वैयि तक गुण का ास हुआ। इससे मूल जै वक ेरणा समा त हो गई। क ट आज भी हमारे बीच व यमान ह। पर पचास करोड़ वष से इनका वकास क गया। र ढ़धार जतुओं म मछल , उभयचर, सर सप, प ी एवं तनपायी ह। पहले चार अंडज ह, पर तनपायी पंडज ह। थम तीन साधारणतया एक ह बार म हजार अंडे दे ते ह, एक अटल, अंधी, अचेतन विृ त के वश होकर। पर माँ जानती नह ं क अंडे कहाँ दए ह और कभी-कभी वह अपने ह अंडे खा जाती है । लगभग सात करोड़ वष पूव कृ त ने जो नया योग कया क संघषमय संसार म शायद शि तशाल जीव अ धक टकेगा, इस लए वशालकाय दाँत-नख तथा िजरहब तरयु त दानवासरु बनाए। वे भी न ट हो गए। तब चराचर सिृ ट म एक नया आयाम खुला।

ां तकार प रवतन करने वाला एक अ वतीय तत ्व उत ्पन ्न हुआ।

प ी और स ्तनपायी म एक नए भाव का नमाण हुआ। प ी घ सला बनाते ह। अंड को सेते समय उनक र ा करते

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तृतीय अंक

तु ह से

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ह। बच ्चा पैदा होने पर कतना असहाय होता है । और मनुष ्य का बच ्चा तो सबसे बड़े कालखंड के लए नबल रहता है । मां-बाप उसे खाना दे ते ह, जीना सखाते ह। कतनी चंता करके बच ्चे का पालते ह। प ी ने दाना छोड़ तनका उठाया-घ सला बनाने के लए। घूमना छोड़ अंडा सेया, स ्वयं न खाकर बच ्चे को दया, यह समझकर क बच ्चा वह स ्वयं है । यह बच ्चे से अ भन ्नता का भाव स ्नेह, ममता और उससे ज नत अपूव त ्याग सखाता है । स ्नेह, इससे अनेक गुण उत ्पन ्न होते ह। श ा क

थम कड़ी इसी से जुड़ती है। पालतू तोता , मैना मनुष ्य क वाणी

क नकल करना तभी सीखते ह जब वे उससे ेम करने लगते ह। पालतू कुत ्ता भी घर के बच ्च को अपने गोल का समझता है । ‘जन ्म से स ्वतं ’ (born free) ऐसी शेरनी क पालनकता मनुष ्य के

त स ्नेह क कहानी है ।

शशक ु (सँस ू : dolphin) के वारा मनुष ्य को सागर से कनारे फककर उसक जान बचाने क अनेक कथाय ह। ऐसा है स ्तनपायी जीव का नैस गक स ्नेह, जो सागर को लाट गया। शायद इसे दे खकर ह जलपर (mermaid) क कहा नयाँ ह। कैसे मनुष ्य के साथ खेलतीं, संगीत सुनती ह। माँ क ममता से कुटुंब बना। स ्नेह करने से सुख होता है , इससे सामािजकता आई। गोल या दल बना। यह समाज- नमाण क

या है । केवल सुर ा के लए समाज नह ं बनता,

सामािजकता के भाव के कारण समाज जुड़े। ये मछ लयाँ, उभयचर तथा सर सूप अनुभव से सीखते ह। उनक कम-अ धक स ्म ृ त भी रहती है । ऊपर तौर पर उनके अनुभव ाणी तक ह सी मत रहते ह और उनक मत ृ ्यु पर खो जाते ह। पर प ी एवं स ्तनपायी अपने अनुभव कुछ सीमा तक अगल पीढ़ को दे जाते ह। ये पीढ़ -दर-पीढ़ सं चत होते रहते ह। इनके साथ भाव संलगन ् हो जाते ह। इस वकास- म के पीछे कोई योजन है क् या ? कृ त का कौन सा गूढ़ महो ेश ्य इसके पीछे है ? यहाँ दो मत ह। हमने बनाड शॉ (Bernard Shaw) का नाटक ‘पुन: मेथुसला क ओर’ (Back to Methuselah) और उसक भू मका पढ़ होगी। कैसे एक जीवन शि त (élan vital) वकास- म को आगे बढ़ाती है । एक पुरातत ्व

ए रक वान दा नकन क पुस ्तक ‘दे वताओं के रथ’ (Erich von Daniken: Chariots of he Gods?

Unsolved Mysteries of the Past) का श ्न है, क् या अंत र

के कसी दस ू रे ह के बु जीव या दे वताओं ने इस

वकास-धारा को दशा द ? इस पुस ्तक म महाभारत क कंु ती क कथा का उल ्लेख है, जब उसने दे वताओं का आ वान कर तेजस ्वी पु मांगे। िजस कार बच ्चे के अंग- त ्यंग उसके माता- पता तथा उनके पी ढय पुराने पूवज पर नभर करते ह उसी कार वह उनके मनोभाव से भा वत संभावनाओं (potentialities) को लेकर पैदा होता है । कमवाद का आधार यह है क हमारा आचरण आने वाले वंशानुवंश को भा वत करता है । अत ्यंत ाचीन काल म भारतीय दशन म कमवाद के आधार पर िजस सो ेश ्य वकास क बात कह गई,उसके बारे म जीव व ान अभी द ु वधा म है । आज के वै ा नक वकास को आकि मक एवं नष ् योजन समझते ह, मान यह संयोगवश चल रहा हो। जैसे कोई एक अंध ेरणा अललटप ्पू हर दशा म दौड़ती हो और अवरोध आने पर उधर जाना बंद कर नई अनजानी जगह से कसी दस ू र दशा मे फूट नकलती हो। Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

--गजानन येरावर (https://adhyatmikh.blogspot.in/ से साभार) Page 15


तृतीय अंक

तु ह से

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च लये शा वत गंगा क खोज कर (धारावा हक चंतन)

पूव कथा: यिथत गंगा क

गंगा

ािन से संबोिधत है . हमारा का य नायक " ानी" गंगा से संवाद रत है .

यथा ने

ािन के

दय को झजकोर दया है . गंगा उसे बताती है मनु य क

तमाम वसंगितय , मुसीबत , परे शािनय अपनी तर क का इस

ान ने उसे

का कारण उस का ओछा

याय मान रहा है . कृ ित से दरू कर दया है . वह

साधन मानता है . इसी ओछे

कृ ित को अपना ल य नह ं ल य का

ान से मानव को िनकालना और सह व

अनुभिू त का सं े ण करना अब

हज़ार वष पुराणी मानव सं कृित के पतन उ थान ानी ने गंगा के साथ हुए अपने वातालाप को वचन आप पाठक के सम गंगा

ानी का तीसरा

ानोिचत

ािन का ल य है .

गंगा ने उसे अपने पास बठा िलया है . दोन मानव मल से धुंधले

(३)

ान है जसे वह

पानी के पास बैठ

क कथा यथा कह रहे ह.

अपने

वचन म संजो िलया है . वे

तुत ह....

वचन:

ु ध है . सब कुछ उलट पुलट हो गया. वह कभी नह ं चाहती थी के मानव के

गित रथ के ऊपर सवार हो. वह

कृ ित क चहे ती. वह

वग क दे वी. वह बादल म

बसने वाली. वह हवाओं म उड़ने वाली कैसे धरती क एक अधम िनवासी बन गई. मानव रथ ने उसे बंधक बन िलया. अपनी मज़ से उस का रा ता िनधा रत कर िलया. मानव चाहे वह बहे . मानव चाहे वह बांध म बांध जाये. उस के पानी ..

ाण

जीवन दान न द ब क उनका जीवन छ न ल. यूं मानव को वह अपनी संतान Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

को ह Page 16


तृतीय अंक

समझती रह . उस क

तु ह से

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गित से वचिलत नह ं हुई कभी. ले कन यह

के नशे म चूर वह अपनी जननी

या? अपनी

गित

को भी भूल गया. जननी से धोखा करने लगा. गंगा

को मरण होता है वह समय जब भारत के पौरा णक राजवंश म सबसे

स इ व ् ाकु कुल थी।

इस कुल क अ ाईसवीं पीढ़ म राजा ह रश ्चं हुए, िजन ्ह ने सत ्य क र ा के लए सब कुछ दे दया। इसी कुल क छत ्तीसवीं पीढ़ म सगर नामक राजा हुए। ‘गर’ ( वष ) के साथ पैदा होने के कारण वह ‘सगर’ कहलाए। सगर च वत स ाट बने। अपने गु दे व औव क आ ा मानकर उन ्ह ने तालजंघ, यवन, शक, हैडय और बबर जा त के लोग का वध न कर उन ्ह व प बना दया। कुछ के सर मँड़ ु वा दए, कुछ क मँछ ू या दाढ़ रखवा द । कुछ को खुले बाल वाला रखा तो कुछ का आधा सर मँड़ ु वा दया। कसी को वस ् ओढ़ने क अनम ु त द , पहनने क नह ं और कुछ को केवल लँ गोट पहनने को कहा। संसार के अनेक दे श म इस कार के ाचीन काल म रवाज थे। इनक झलक कह -ं कह ं आज भी दखती है। भारतीय पौरा णक इ तहास क सबसे महत ्वपूण कथा गंगावतरण, िजसके वारा भारत क धरती प व हुई, इन राजा सगर से संबं धत है । गंगा-यमन ु ा संगम, याग। उनके राज ्य म एक बार बारह वष तक अकाल पड़ा। भयंकर सख ू ा और गरमी के कारण हाहाकार मच गया। तब राजा सगर से य राजा सगर ने सौव य

करने को कहा गया एक उ ेश ्य से एकजुट होना ह य

है ।

का घोड़ा छोड़ा। वह एक स ्थान पर एकाएक लप ु ्त हो गया। जब हताश हो

लोग राजा के पास आए तो उसने उसी स ्थान के पास खोदने क आ ा द । जाजन ने वहाँ खोदना ारं भ कया। पर न कह ं अश ्व मला, न जल नकला। खोदते हुए वे पूव दशा म क पल मु न के आ म म पहुँचे। क पल म ु न सांख ्य दशन के णेता और भगवान ् के अंशावतार माने गए ह। ऐसा उनके दशन का माहात ्म ्य है । उन ्ह ं के आ म म क पला गाय कामधेनु थी, जो मनचाह व त ु वह य

दान कर सकती थी। वह ं पर

का अश ्व बँधा दखा। तब लोग बना सोचे-समझे क कसने बाँधा, क पल मु न को ‘चोर’

आ द श द से संबो धत कर तरस ्कृत करने लगे। म ु न क समा ध भंग हो गई और लोग उनक ि ट से भस ्म हो गए। राजा सगर क आ ा से उनका पौ अंशुमान घोड़ा ढूँढ़ने नकला और खोजते हुए दे श के कनारे चलकर क पल मु न के आ म म साठ हजार जाजन क भस ्म के पास घोड़े को दे खा। अंशुमान Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

क स ्तु त से क पल म ु न ने वह य -पशु उसे दे दया, िजससे सगर के य

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क शेष

या पण ू

हुई। क पल मु न ने कहा, ‘ वग क गंगा यहाँ आएगी तब भस ्म हुए साठ हजार लोग तरगे।‘ तब अंशुमान ने स ्वग क गंगा को भरतभू म म लाने क कामना से घोर तपस ्या क । उनका और उनके पु

दल प का संपण ू जीवन इसम लग गया, पर सफलता न मल । तब दल प के पु

भगीरथ ने यह बीड़ा उठाया। यह हमालय पवत (कैलास) शव का नवास है, और मानो शव का फैला जटाजूट उसक पवते णयाँ ह।

वष ्टप ( आधु नक तब ्बत) को उस समय स ्वग, अपवग आ द नाम से पुकारते

थे। उनके बीच है मानसरोवर झील, िजसक या ा महाभारत काल म पांडव ने सशर र स ्वगारोहण के लए क । इस झील से त ्य

तीन न दयाँ नकलती ह। हम ्पु पूव क ओर बहती है, संधु उत ्तर-

पि चम और सतलज ु (शत )ु द

ण-पि चम क ओर। यह स ्वग का जल उत ्तराखंड क प ्यासी

धरती को दे ना अ भयं ण (इंजी नयर ) का अभत ू पूव कमाल होना था। इसके लए पूव क अलकनंद ा क घाट अपयाप ्त थी। यह साह सक काय अंशम ु ान के पौ भगीरथ के समय म पण ू हुआ, जब हमालय के गभ से होता हुआ मानसरोवर का जल गोमख ु से फूट नकला। गंगो ी के पात वारा भागीरथी एक गहरे ख ड म बहती है , िजसके दोन ओर सीधी द वार सर खी च ान खड़ी ह। गंगा का वेग शव सर खे हमालय और पेड़ पौध वन प त क जटाजूट ने सँभाला। गंगा उसम खो गई, उसका वाह कम हो गया। जब वहाँ से समतल भू म पर नकल तो भगीरथ आगे-आगे चले। गंगा उनके दखाए माग से उनके पीछे चल ं। आज भी गंगा को याग तक दे खो तो उसके तट पर कई बड़े कगार न मलगे। मानो यह मनष ु ्य न मत है । ऐसा उसका माग यम क पु ी यमन ु ा क नील, गहरे कगार के बीच बहती धारा से वैषम ्य उपि थत करता है । याग म यमन ु ा से मलकर गंगा क धारा अंत म गंगासागर ( महोद ध) म मल गई। राजा सगर का स ्वप ्न साकार हुआ। उनके वारा खुदवाया गया ‘सागर’ भर गया और उत ्तर भारत म पन ु : खश ु हाल आई। आज का भारत गंगा क दे न है ।

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तृतीय अंक

पव ू ज

तु ह से

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वारा लाई गई यह नद पावन है । इसे ‘गंगा मैया’ कहकर पक ु ारा जाता है । इसके जल को

बहुत दन तक रखने के बाद भी उसम क ड़े नह ं पड़ते । संभवतया हमालय के गभ, जहाँ से होकर गंगा का जल आता है , क रे डयो-ध मता के कारण ऐसा होता है । ाचीन काल म, इसक धारा अप व न हो, इसका बड़ा ध ्यान रखा जाता था। बढ़ती जनसंख ्या और अनास ्था के कारण इसम कमी आई होगी। पर गंगा क धारा भारतीय संस ्कृ त क

तीक

बनी।

श द आद इं य

थूल वषय न होने पर भी जा त अव था क शेष रह गई वासना के कारण मन

ारा श द आ द वासनामय वषय को

हण करता है, उस अव था को

व न अव था

कहते ह। '' कभी-कभी बहुत है रानी होती है । कहते तो ह हम क जगत अब एक बड़ा गांव भर हो गया है । माशल मै लुहान कहता है : ए

लोबल

वलेज; यह सार जमीन एक बडा गांव हो गई है ।

ले कन यह बात बहुत गहर नह ं मालूम पड़ती। हम कर ब मालूम पड़ते ह,

य क या ा के

साधन बढ़ गए ह, ले कन फर भी चेतना अभी भी बहुत कर ब एक- दूसरे के मालूम नह ं पड़ती। इस उपिनषद ने हजार साल पहले यह

व न क

या या क है , और प

म अभी इन पचास

साल म इस या या को पूरा नह ं कर पा रहा है, अभी टटोल रहा है । है रानी होती है यह बात जान कर क मनु य क स यताएं खोज लेती ह क ह ं बात को, तो भी वे बात

थािनक और

लोकल रह जाती ह—सार मनु य-चेतना तक नह ं फैल पातीं। यह उपिनषद हजार

साल पहले कहता है

ग , आंख बंद ह, फर भी

क हम उसे

व न कहते ह--इं यां बंद हो

य दे खे जा सकते ह। सो गए, कान िशिथल पड़ गए, बाहर क

विन सुनाई नह ं पड़ती, फर भी भीतर

विनयां सुनी जा सकती ह। हाथ िनढाल पड़े ह मुद क

तरह, हाथ कुछ भी नह ं छूते, भीतर अब भी

पश जाना जा सकता है ।

तो ऋ ष कहता है . 'जा त म जो वासनाएं अपूण रह ग , पूर नह ं हो पा , जा त म जो अधूरा छूट गया, तो

व न उसे पूरा कर लेता है ।'

व न जो है वह जा त क पूित है--स लीमट।

व न और जा त म एक फक हुआ. जा त म व तु बाहर होती है ,

म व तु बाहर नह ं होती,ले कन

प भीतर होता है । तो

व न शु

प भीतर होता है ,

व न

आकार है, कोई व तु नह ं है

वहां। (ओशो)

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तृतीय अंक

तु ह से

या है चेतना

आज जब अपने

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वारा नद शत "इनर पीस" ? -

म म बैठा था तो मेरे एक

वण ओमकार

टूडट ने कमरे म आने क आ ा ल और मेरे

पास आ कर अ भवादन कया. वह पछले सेशन म हम से पढ़ चूका था और अगले वष (समे टर) क पढाई कर रहा था. जब मने उस के आने का

योजन पूछा तो उस ने कहा-

"म आप से इनर पीस के बारे कुछ पछ ू ना चाहता हूँ". मने उसे चेयर पर बैठने का इशारा कया. उस ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा"म आप का फेसबक ु

ड भी हूँ और आप के आ टकल पढता रहता हूँ"

मने हँसते हुए मै ी भाव से उसे आराम से बैठने को कहा और अपना काम करते करते जो म उस के आने से पहले कर रहा था - उस से पछ ू ा. "पहले तुम बताओ तुम इनर पीस के बारे

या जानते हो. तु हारा अपना तज़ुबा

या कहता

है ." मुझ े लगा क वह अनायास नह ं मेरे पास आया. उसे ज़ र दलच पी है इस टॉ पक म. "जैसे सर, जब हम इनर पीस म ह तो हम म दस ू र के feelings

यादा होती ह. और हम म

ोध

त यार क empathy क

वेष इ या द भी काम रहता है".

मने उसे पछ ू ा के उस ने कोई राइटर वगैरा पढ़े है ? मझ ु े इस के बारे उस का जवाब नेगे टव ह

मला.

हाँ उस ने एक बात ज़ र शेयर क के उस ने " कसी के मकल" का अपने उ और उसने बहुत

भाव दे खाहै

यादा इनर पीस को और एक आनंद दायक अव था को ए जॉय कयाहै .

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तृतीय अंक

तु ह से

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उस का यह भी कहना था के उसे पता है के के मकल का

भाव अ थाई है और वह एक

थाई इनर पीस क बात करने आया है. हमार बात एक ल बी ड कशन म त द ल हो गई. सं

त म मने उसे बताया क-

"एक रए शन टाइम होता है जो हर एक श श म अलग अलग होता है. कसी बात को respond करने म हम कतना समय लेते ह साइकोलॉजी म उसे " रए शन टाइम" कहा जाता है. जब हम कसी बात (टॉक) को respond करते ह तो रए शन टाइम और होता है और जब हम कसी ए शन को respond करते ह तो और. बात चीत करते समय हम अपने "नु सान फायदे " का लगातार जायजा लेते रहते हऔर उसी मत ु ा बक सच झठ ू से बात करते रहते ह, .और रए शन टाइम कम सुबह के समय जब हम रए शन टाइम कम

यादा होता जाता है

े श होते है तो हम

यादा

ए टवट से respond करते है और

यादा हो सकताहै . ले कन शाम आने तक हमार

रए शन

ट रयोटाइप

घसी पट होती जाती है. और हो सकता है हम बात को ज द समा त करने क इरादे से रए शन टाइम भी कम कर द. फर मने उसे एक उदाहरण द

क मान ल िजए हमार बात चीत कसी " क ं " पर (over

some drink) हो रह हो तो हमारा रए शन टाइम अलग होगा. हमार बात और

ए टव हो

जाएगी. धीरे धीरे हमारे बीच सोचने क कम से कम दरू हो जाएगी और अजनबीपन अपनेपन म त द ल हो जायेगा. यह सब इस लए होगा के हम धीरे धीरे अपनी "ईगो" और थं कं ग जायगे और अपनी आ मा कांशसनेस या चेतना के

ेन को पीछे छोड़ते

यादा पास हो जायगे. हमारे

ट रयोटाइप

झूठ कम होते जायगे और स य के और पास हो जायगे. ऐसे ह एक "संत" क ि थ त होती है. जो सह मायने म संत हो. वह अपने थं कं ग ईगो से कम काम लेता है . उस क हर र पांस

ेन व

पॉ टे नयस (सहज भाव से) होती है . वह एक

े यू डस भावना से रये ट नह ं करता. वह सहज भाव से रे प ड करता है. उस क बात म स चाई कायम रहती है चाहे उसे कोई नु सान ह

य न हो रहा हो.

ऐसा इस लए होता है के अपनी बात चीत व रे प सेस से वह अपनी अंतरा मा से रए शन दे ता है . और यह उस क इनर पीस क

नशानी है .

यह वह ि थ त है हम िजस क भाल म है . हमारे पास है ले कन हम अपनी घसी पट रे प सेस से उसे corrupt कर चक ु े ह.

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तु ह से

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म ृ यु के बाद चेतना का या होगा?

या मौत के बाद या चेतना अि त व म रहती ह या शर र के साथ ख़तम हो जाती है म ृ य ु के बाद या बचता है ?- मरने वाले मनु य का इ सान के

ान बीज प म ि थत हो जाता है .

ान क यह बीज प "गठ करता ु ल " कहाँ है यहाँ से इ सान पुनः वंय का पुनसजन ृ

है . ऐसे शन को कई तरह से हल करने क को शश क जा सकती है .. इ सान के अि त व के तीन चार नाम है , मन, आ मा, सोल, अहम ्, Psyche nous इ या द. शा

कहते है - इ सान के भीतर कई तह (लेयस) ह िजनम इ सान क गठ ु ल छपी हुई है :

भौ तक शर र (अ नमय कोष) मान सक शर र (मनोमय कोष) नवस लेयर ( ाणमय कोष) नॉलेज बॉडी -शर र ( ानमय कोष) अं तम (लगपग) लेयर िजस के भीतर है ि प रचअ ु ल बॉडी (आनंदमय कोष) भौ तक शर र या थूल शर र को सभी दे ख सकते ह. शेष तह दखाई नह ं दे ती पर ये इतनी प ट ज़ा हर नम ु ायां व सा ात ् ह क थोड़ी सी से फ ऑ जरवेशन से आप इन क पहचान कर सकते ह. अब मान सक लेयर आप क

वा हश , मस ु ीबत , परे शा नय , रोज़ के

या कलाप का हजूम है

आप आसानी से अपने मन को ऑ जव कर सकते है .. Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

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नवस बॉडी आप म शर र पंदन, ससशंस, लहर, झनझनाहट, इ या द के संकेत से पहचानी जाती है . जब भी आप इमोशनल होते है तो उन इमोशंस का पंदन आप क नवस बॉडी या ाणमय कोष पर होता है . केवल इ सान ने अपने अंदर एक अलग बॉडी तैयार क हुई है शेष जीव ने नह ं वह है नॉलेज बॉडी या

ानमय कोष. अब भीतर क या ा पर नकले है तो आप इधर उधर से लए

ानसे भा वत होते रहते है . आप शद अथ

वारा कसी व त ु को जानते है . अब आ मा गर कोई व तु (ऑ जे ट ) है तो आप

का नॉलेज उसे सीधे जानने क बजाये श द अथ व समझ वारा जानने क को शश करता है इस लए इ सान के लए इस नॉलेज लेयर को तोड़ कर आगे जाना बहुत ह क ठन है इस टे ज पर आ कर उस का सारा यान

ान क और चला जाता है और वह उस अं तम लेयर के

पास नह ं जा सकता अब येह सार लेयस जगह बदलती रहती है . जैसा कोई आदमी है जैसा उस ने अपनी लाइफ को डायरे शन दे रखी है वैसी लेयर उस के उ पर नीचे होती रहती है कोई अपने मन से आगे नह ं जा सकता और कोई अपने वेद, वेदा त भगव गीता आ द

थ शा

ान से .....

ान श द अनेक बार आया है , यह

दो अथ म यु त हुआ है सामा य प म च लत

ान श द का

ान िजसका अथ है कसी को या कुछ अ ात

है , जो जानकार , त य, ववरण, अनभ ु व या श ा के मा यम अथवा कौशल से शा मल करते ह, के साथ एक सप ु रचय है . दस ू रा

ान श द का योग महाबु

अथवा परमबु

के लए हुआ है . दस ू रे श द म इसे पूणता

(perfection) कहा जाता है . सरल प से समझने के लए इसे absolute knowledge+wisdom +intelligence कह सकते है . यह आ मत व है , हमार अि मता है . अब कुछ

न ह-

य द चेतना ह सव प र है तो अचेतन या है ? कृ त तो पूण है और चेतना आधा ह सा है , दस ू रा चेतना के लए शर र आव यक है तभी वह महसस ू होगी. वा तव म यह प रणाम है . िजतनी

या शि त का

याशि त उतना चेतना का व तार और भाव. भगवदगीता म इसे

वकृ त माना है अथात जो कृ त से उ प न होती है . यहाँ कृ त का अथ nature नह ं है . इसका अथ है ई वर का nature, इसे Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

या शि त कहना उ चत है. इस कार प ट है क Page 23


तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

या शि त अपने मल तर पर चेतना है , कृ त है और कसी भी शर र म वकृ त प म फैल ू अनभ ु त ू होती है . इसे ाणी क जीवन

याओं को चलानेवाला त व कहा जासकता है । व ान के

अनस ु ार चेतना वह अनभ ु ू त है जो मि त क म पहुँचनेवाले अ भगामी आवेग (impulse) से उ प न होती है । एक मनु य नद क ओर जा रहा है । य द वह चलते-चलते नद तक पहुँच जाता है और नद म घस ु जाता है तो वह डूबकर मर जाएगा। उसक चेतना म फेला

ान उसे बताता है उसके सामने नद है

और वह जमीन परतो चल सकता है परं तु पानी पर नह ं चल सकता। मनु य क सभी

याओं पर

उपय ु त नयम लागू होता है .पर तु हम यह मान लेते ह क उसक चेतना ने उसे नद म जाने से रोका जब क वा त वकता यह है क वहअपरो

प से

ान वारा जो चेतना का कारण है और

चेतना के मा यम से वा हत हो रहा है के वारारोका गया. वा तव म चेतना या शि त म भी

ान के फुरण से उ प न

या शि त है . चँ ू क

ान है . इस कारण ह चेतना को माननेवाले

अब इसे अ वैत के मा यम से समझ चेतना म दो त व ह

ान सव है इस लए इस मत हुए बैठे ह.

या शि त + ान. अतः चेतना मल ू

नह ं है . य क मल ू एक है . और जब तक जीव सिृ ट है तभी तक चेतना का अि त व है . अब

ान के वषय म च तन करते ह. इसक अं तम ि थ त पण ू और वशु है . यहाँ भी

उपि थतहोता है . यद

ान पूण है तो अ ान या है . अ ान भी

ान ह है .

अ ान है और शा त और पण प से ि थ त ू ाव था म मल ू

ान का बीज प म ि थत हो जाना ान है .

यह सत ् है य क यह सदा रहता है , यह असत भी है अथात यह संसार के प म कट होता है और न टहोता भा सत होता है . इसके

फुरण से

या शि त ज म लेती है जो चेतना का मल ू है .

य ु के बाद या बचता है जब एक आदमी दख ु -सख ु से भरा हुआ मोह

त और खेदजनक अथवा सख ु मय ि थ तय म

मरता है तो या बचता है? उस मरने वाले मनु य का कमि ानेि

ान बीज प म ि थत हो जाता है.

याँ अपना काय ब द कर दे ती ह, उनका य मि थत हो जाता है ।

ानेि

ान, िजसके वारा वह संचा लत होती ह,

याँ अपना

ान छोड़ दे ती ह और वह

वासनाओं एंव कृ त स हत पंचभत ू म ि थत हो जाता है । पंच भत ू भी

ान वषय

ान छोड़ दे ते ह, वह ग ध

म ि थत हो जाता है । ग ध, रस म ि थतहो जाती है । रस, भा म ि थत हो जाती है । भा, पश Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

म ि थत हो जाती है । पश, श द म ि थत हो जाताहै । श द मन म, मन बु

म, बु

अहं कार म,

ि थत हो जाती है । अहं कार अपरा ( गण ु ा मक) कृ त मि थत हो जाता है । मन मन, बु अहं कार, अपरा ( गण ु ा मक) कृ त क संचा लत

ान+

याशि त है . ान+

,

याशि त क

याशि त स ु वा था म चल जाती है और वह जीव कृ त- ान स ु त म के साथि थत हो जाती है । अब केवल

ान रह जाता है और

ान,

ान (पूण वशु

ान-अ य त ) म ि थत

होजाता है । पुनः

ान (अ य त) से ह

ान (जीव-

ान +म) अपनी कृ त और कम के साथ नवीन शर र

म बीज पसे ि थत होकर शर र धारण करता है तथा पूव ज म क

कृ त और कमानस ु ार

कमफल भोगता है और यह म चलता रहता है । यह स य है क बीज का नाश नह ं होता है । जीव अपनी कृ त के अनस ु ार कृ त कासंयोग कर शर र का नमाण करता है । पर तु आ म ि थत योगी पु ष जब दे ह याग करते ह तो उनके संक प वक प समा त हो जाते ह, उनक वषय वासनाएं समा त हो जाती ह। उनका म समा त हो जाता है . उनका शु हो जाता है। वह ानेि

ान पण ू और

य से लेकर आ मा तक परम शु अव था के कारण आ म प म

जब ि थत होता है तो परम शु होता है , उसम वषय वासनाय, कम ब धन नह ं होते। वह कृ त ब धन से मु त हो जाता है। समा धअव था म केवल पण ू एवं शु

ान म, िजसम कोई हलचल

नह ं, तरं ग नह ं, ि थत रहता है अथवा कसीसंक प के साथ बीज प म रहता है . इसे अ धक सरल प म समझ. जीवन,

ान और

या शि त का खेल है .

ान चार अव थाओं

म रहता है .जा त, व नवत, सस ु िु त वत और चौथी मल ू अव था म, िजसे श द म बताया नह ं जा सकता. जी वत ाणी म

ान और

या शि त दोन क ि थ त है . य द कसी ाणी म

शि त क मा 100% मान ल जाय तो 90% होने पर 10% होने पर 95% य होने पर

य और 0% होने 100 %

या शि त क मा 5%

य हो जाती है, जो म ृ य ु कहलाती है .

ान यथावत रहता है केवल उसको सा रत करने वाल ऊजा,

हो जाती है . अब जैसा शि त

य तथा

या शि त के या शि त समा त

ान वैसा अगला जीवन. अपनेअनक ु ू ल प रि थ त मलने पुनः

ान का संयोग करती है और वह

या

या

ान िजसे जीव कहा है नएजीवन का, नए शर र का

सज ृ न करता है . जे कृ णमत ू लखते ह, मेर चेतना ह सार मानवजा त क चेतना है . म समझता हूँ यहाँ चेतना के थानपर आ मा अथवा

ान श द उपय ु त होता. य क चेतना मल ू न होकर प रणाम है .

य य प अ त म मल ू और प रणाम दोन एक ह हो जाते ह. Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

या म ृ य ु के बाद भी कुछ बचता है ? जे कृष ्णमू त

या मृ यु के बाद भी कुछ बचता है? जब एक आदमी दख ु से भरा हुआ, मोह

त और खेदजनक ि थ तय म

मरता है तो या बचता है? या असल

न यह नह ं है क - या मौत के बाद, कुछ बचता है? जब आपका कोई कर बी मर जाता है तो,

आप कतना सयापा करते ह? या आपने इस पर कभी गौर कया? सब आपके साथ रोते ह। जब अपने भारत दे श म कोई मर जाता है तो िजतना शोक संताप कया जाता है , ऐसा सार द ु नयां म कह ं नह ं होता। आइये इसे गहराई म जाने। सबसे पहले तो या आप दे ख सकते ह, या आप हक कतन महसूस कर सकते ह क आपक चेतना ह सार मानवता क चेतना है ? या आप ऐसा महसस ू कर सकते ह? या यह आपके लए एक त य क तरह है ? या यह आपके लए यह उसी तरह त य है, जैसे क कोई आप आपके हाथ म सुई चभ ु ोए और आप उसका दद महसूस कर? या यह इसी तरह वा त वक है? मानव मि त क का वकास समय म हुआ है, और यह करोड़ वष के वकास का प रणाम है । यह मि त क एक वशेष ढांचे म ब हो सकता है य द कोई यि त द ु नयां के कसी वशेष भाग म, एक सं कृ त और प रवेश म रह रहा हो, तो भी यह एक सामा य आम मानव चेतनायु त मि त क ह होता है । इस बारे म आप पूणतः आ व त रह। यह आपका यि तगत मि त क नह ं होता, यह सामा य चेतना होती है । मि त क को पैतक प से या वरासत म बहुत सार ृ

याएं मल होती ह, और यह दमाग अपने जी स (गुणसू )

स हत - िजनम कुछ पैतक ृ होते ह कुछ समय म वक सत, इसम मानवीय चेतना सामा य घटक होती है । इस तरह यह मा आपका ह मि त क नह ं होता, यह स पण ू मानवीय चेतना भी होता है । वचार यह कह सकता है क, यह मेरा दमाग है। वचार यह कह सकता है क, म एक यि त हूं। यह हमारा ढांचाब , सांचाब , या ब होना है । यह बंधन है । या आप सार मानवीय चेतना से हटकर एक यि त ह? इसे जरा गहराई म जाकर दे ख। आपका एक अलग नाम हो सकता है, एक प हो सकता है , एक अलग चेहरा हो सकता है , आप नाटे -ल बे या गोरे -काले इ या द हो सकते ह। या इससे ह आप एक सार मानवीय चेतना से अलग Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

यि त हो जाते ह? या य द आप कसी वशेष कार के समह ू या समद ु ाय या दे श के ह तो इससे आप अलग हो जाते ह या एक अलग यि त बन जाते ह? एक यि त वह होता है जो खं डत नह ं है , जब तक आप सब खं डत ह, तक एक यि त नह ं हो सकते। यह एक त य है । जब तक यह त य आपके खून म नह ं बहने लगता आप एक यि त नह ं हो सकते। भले ह आप अपने बारे म यह खयाल रखते ह क आप एक यि त ह, तो भी यह महज आपका वचार ह होगा। वचार ह सार मानवजा त म आम चीज है , जो अनभ ु व,

ान, म ृ त पर आधा रत होती है और दमाग म

टोर हुई रहती है । मि त क या दमाग सार संवेदन का के

होता है, जो सार मानवजा त म आम है । यह

सब तकसंगत है । तो जब आप कहते ह क, मेरे साथ या होगा, जब म मर जाऊंगा? तो इसम ह आपक है , इस ”म“ म, जो क मरने वाला है। म या है? आपका नाम, आप कैसे दखते ह, आपक श ा-द कैसी है,

ान, कै रयर, पा रवा रक पंरपरा और धा मक सं कृ त, व वास, अंध व वास, लोभ, मह वकां ा,

वह सार धोखाध डयां ़ जो आप कर रहे ह, आपके आदश - यह सब ह तो आपका ”म“ है । यह सब ह आपक यि तपरक चेतना है । यह चेतना सार मनु यता म समान है य क वह भी तो लोभी, ई याल,ु भयभीत, जो सुर ा चाहती है, जो अंध व वासी है, जो एक तरह के ई वर म भरोसा करती है आप अ य तरह के, इनम से कुछ क यु न ट है , कुछ समाजवाद , कुछ पज ूं ीवाद । यह सब उसी का एक ह सा ह। इन सबम यह एक सामा य घटक है क आप ह सार शेष मानवता ह। आप सहमत होते ह, आप कहते ह क ठ क है यह तो परू तरह सह है , ले कन तो भी आप एक यि त, एक यि त व क तरह बताव करते ह। यह वह बात है जो बहुत ह भ ी है , बहुत ह पाखंडपूण है । तो अब, वह या है जो मर जाता है ? य द मेर चेतना ह सार मानवजा त क चेतना है, यह बदल जाती है , जो क म सोचता हूं क ”म“ हूं तो मेरे मरने पर या होगा? मेर दे ह का मृ युसं कार कर दया जायेगा या हो सकता है यह अचानक ह कसी दघ ु टनावश न ट हो जाये, तो या होगा? यह आम चेतना चल जायेगी। मुझे नह ं मालम ू क आप इसे महसस ू कर पा रहे ह या नह ं ! जब सच को इस तरह दे ख लया जाता है तो म ृ यु का बहुत ह तु छ अथ रह जाता है । तब म ृ यु का भय नह ं रहता। म ृ यु का भय तब तक ह रहता है जब तक क हम खुद को मानवता से अलग यि त या यि त व मानते ह, जो क परंप रा है ... िजस परपंरा म हमारे दमाग को एक क यूटर क तरह ो ा ड कया जाता है यह फ ड कया जाता है क म एक अलग यि त हूं, म एक अलग यि त हूं, म वशेष तरह के ई वर को मानता हूं, म यह मानता हूं म वह मानता हूं आ द आ द।इस सब म आप एक त य और भूल रहे ह वह है ेम। ेम म ृ यु को नह ं जानता। क णा मृ यु को नह ं जानती। तो वह यि त िजसे ेम का कुछ पता नह ,ं जो ेम नह ं करता, िजसम क णा नह ं है वह म ृ यु से भयभीत होता है । तो आप कहगे क ”म ेम कैसे क ं ? मुझम क णा कैसे आये? जैसे क ये सब बाजार से खर दा जा सकता हो। ले कन य द आप दे ख, अगर आप महसूस कर सक क ेम ह ऐसी चीज है िजसक म ृ यु नह ं है , यह असल बु

व है , जाग ृ त है। यह कसी भी

ान, श द क जग ु ाल या बौ क अलंकरण से

परे क चीज है । Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

चेतना को चेतन करना या है? - वण ओमकार

चेतना हमार जागृत अव था है. यूँ चेतना को ऑ जेि टफाई करना हमार सब से बड़ी गलती है िजसे हम स दय से करते आ रहे है . इस बात को कुछ इस तरह समझ. जब म चेतना को ऑ जेि टफाई करता हूँ या ऐसे बयान करने के लए दरू हो कर दे ख ता हूँ तो या म कहता हूँ क चेतना यह है या वह है . तो पहले मुझ े यह

ान होना चा हए क म

ऐसा कर नह ं सकता. जब म चेतना से परे चेतना को दे खूंगा तो चेतना तो मेरे साथ ह उस दरु पर भी आ गई. या म बना चेतना के चेतना को दे ख सकता हूँ. या चेतना दो जगह हो सकती है . चेतना को चेतन करने के लए दस ू र चेतना, फर उस को चेतन करने के लए एक और चेतना, फर उसको फर उसको अड़ इि फ नटम- एक अंतह न

या. या ऐसा हो सकता है. फलॉसफर कहते ह क नह .ं फलॉसफ

म इसे "रयले'स रे े स" (Ryle's regress) कहा जाता है . सा (Sartre) कहते ह - चेतना का होना और उसे जानना दोन एक ह समय पर घ टत होने वाल

याएं है . जब हम सौदे य

(deliberately) जान बुझ कर चेतना के वषय म सोचते ह उसे बयान करते ह उसे ऑ जेि टफाई करते है तो यह चेतना का ह एक कम है . हम और चेतना कोई अलग अलग थोड़े ह. यह जान लेना चा हए. चेतना का होना और चेतना का जानना एक ह बात है. चेतना के वषय म हर संत हर फलॉ फर ने बात क है . या ये बात हम DUALITY या वैत म नह ं ले जातीं? हम ने चेतना के साथ इसी तरह परमा मा को भी DUAL ( वैत) कया हुआ है . हम यह समझने लग ह परमा मा भी चेतना क तरह कोई दरू क व तु या ाणी या शि त है और िजस के पास हम जाना है . यह स दय का सब से बड़ा मज़ाक है जो हमारे साथ हुआ है . अगर नाम पर ह जाएँ तो "परमा मा" का अथ हुआ - परम+ आ मा . या न परम म. सो म सप ु ी रयर म हूँ. तो फर इ फ रयर म या हुआ. सफ इतना क यह इ फ रयर म "अनजान है क वह सप ु ी रयर म है." Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

चेतना को चेतन करना -कैसे?

- वण ओमकार

How to be conscious of consciousness?

(चेतना क शु

व अशु

झलक)

चेतना को उस क चेतन अव था म दे खना एक ग भीर का

या है . यह अपनी आ मा

व दशन है ....

साधारणतः हम ऐसा नह ं करते जब तक हम कहा न जाये. कभी माँ बाप या ट चर कहते ह जब हमने कोई गलती क हो, "खुद क तरफ दे ख तुमने

या कया है?" तब हम अंत र व पडचोल

करते ह और बेहद शम महसस ू करते ह. तब हम चेतना क तरफ ह दे ख रहे होते ह. यह एक बेहद साधारण कम है जो हम अ सर करते ह जब भी हमने कोई गलती क हो या फर कोई बेहद अ छा काम कया हो और

स नता महसस ू कर रहे ह .

तब हम चेतना को चेतना क अव था म दे ख रहे होते है . ले कन ऊपर ल खत यह सा

इसे "अशु

अनभ ु वा

या

बेहद साधारण है जो हर मनु य करता है या कर सकता है.

झलक" (Impure reflection) कहते ह. या कांत (Emmanuel Kant) इसे

त मान सक बोध (Empirical apperception) कहते ह. अशु

को उस क अव थाओं म दे खते है , जैसे

झलक म हम चेतना

स नता, उदासी, शम, नराशा कंु ठा इ या द क अव था

अब चेतना क शु

झलक (Pure Reflection) या है?

चेतना को उस क

ाकृ तक अव था म दे खना जब वह द ु नयावी अ ाकृ तक अव थाओं

( स नता, उदासी, शम) से वकृत न हुई हो. चेतना क मूल, अ म नमल, न कलंक अव था म दे खना ह "शु Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

त, असल , खा लस,

झलक" है . कांत (Emmanuel Kant) इसे गूढ़, Page 29


तृतीय अंक

तु ह से

द ु ह, दब ु ध, अतीं य, ह.

अनुभवातीत या भावातीतबोध (Transcendental apperception) कहते

या ऐसा हो सकता है .

ग भीर

ी म -2016

या मानव के बस म है यह शु

झलक पाना. जी हाँ. यूँ यह बेहद

या है . ले कन हम कर सकते ह. और हो सकता है ऐसा करते भी रहे ह .

इस अव था क झलक दो तरह से हो सकती है "समाधी अव था म" जब हम मन को इतना शांत कर लेते ह क मन चेतना म अपनी अ ाकृ तक अव थाओं ( स नता, उदासी, शम) म "सा ी भाव से" सा ी, याय

या

शहादत, सा य दे ना

त नह ं करता.

वयं को करम रहत मूक दशक बन लेने जैसा है .

म सा ी ने "जम ु " को कया नह ं होता दे खा होता है. जब हम

बनते ह तो उसी तरह हम करम रहत हो जाते ह. हम

वयं के सा ी

वयं को उ च नज़र से दे खते ह. तब

हम करम के लए अनुभवह ण हो जाते ह. हम करम कर भी रहे होते ह ले कन इ या द अनुभव नह ं करते. अनुभव करने वाले को

हम

शंसा

शंसा दःु ख शम

वै से अलग हो जाते ह. जैसे अगर कसी

काम

दःु ख शम इ या द से अलग हो कर कर तो वह काम करते समय हम सा ी

भाव अपना लेते ह और प के

प म ओर कम के समय हम चेतना क शु

झलक दे ख रहे होते

ह. उस काम को हम आस त नह ं अनास त भाव से करते ह. भीतर है चैत य का वास, बाहर है वराट का व तार। इस वराट से संबं धत होने के दो उपाय ह। यह जो बाहर फैला हुआ है और यह जो भीतर नवास कर रहा है, इन दोन के मलन क दो या ाएं ह। एक या ा है परो , इनडायरे ट; वह या ा होती है इं य के वार से। एक या ा है

य , डायरे ट, इ मिजएट, मा यमह न; वह या ा होती है अतीं य

अव था से। य द बाहर जो जगत है उसे जानना है तो दो वार ह, एक वार है क म शर र का उपयोग क ं और उसे जानूं और एक उपाय है क म सम त मा यम छोड़ दं ू और उसे जानूं। साधारणत: बाहर काश है तो हम आंख के बना नह ं जान सकते ह; और बाहर व न है तो कान के बना नह ं जान सकते ह; और बाहर रं ग ह तो इं य का उपयोग करना पड़े--इं य से हम जानते ह क बाहर या है, इं यां हमारे ान के मा यम ह। वभावत: इं य से मला हुआ यह शान वैसा ह है, जैसे कह ं कोई घटना घटे और कोई मुझे आकर खबर दे --म सीधा वहां मौजद ू नह ं हूं कोई बीच म खबर लाने वाला संदेशवाहक है। नि चत ह खबर मझ ु े वैसी ह नह ं मलेगी जैसी घट है, य क संदेशवाहक क या या भी सि म लत हो जाएगी। जब मेर आंख मुझे खबर दे ती है क व ृ पर फूल खला है--बहुत सुंदर, बहुत यारा; यह खबर मुझे मलती है, यह व ृ के फूल के संबंध म तो है ह , यह आंख के झान के संबंध म भी है, आंख ने अपनी या या भी जोड़ द है । और व ृ पर जो फूल खला है , उसम जो रं ग दखाई पड़ रहे ह, वे व ृ के फूल म तो ह ह , उन रंग के संबंध म आंख ने भी बहुत कुछ जोड़ दया है जो व ृ के फूल पर नह ं है । (ओशो)

Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

चेतना क अव थाएं

दे खना, सनु ना, अनभु व करना, वचार करना, नणय करना आ द सभी काय चेतनाशि

त के

कारण होते ह. चेतना के अभाव म यह जड़ शर र कुछ भी नह ं कर सकता. यह चेतनशि त तीन अव थाओं म रहती है -जा त, व नाव था व सष ु ुि त. जा त अव था म चेतनाशि त संसार का अनभ ु व करती है . वण आ द

ान यां एवं श द आ द वषय के वारा जो वशेष अनभ ु व होता

है , उसे जा त अव था कहते ह. इस जा त अव था म मनु य को अपने शर र का अ भमान रहता है क म शर र हूं, तो यह आ मा ह व व कहलाती है अथात ् यह इस थल ू जगत से अ य कसी त व का वीकार नह ं करती. व नाव था म केवल मन स

य रह कर व भ न वषय का अनभ ु व मा करता है . उसम

या

का अभाव रहता है. जा त अव था म जो दे खा, सन ु ा जाता है , उसक स ू म वासना से न ाकाल म जो जगत ( यवहार) दखाई दे ता है , वह

व नाव था है . इस अव था म सू म शर र का अ भमान होने से

आ मा ‘तेजस’ कहा जाता है . म कुछ नह ं जानता, सख ु से न ा का अनभ ु व कर रहा हूं, यह सष ु ुि त अव था है . इस समय कारण शर र का अ भमान करने से आ मा ‘ ा ’ कहा जाता है . जा त अव था म ान इं य के मा यम से होता है . व नाव था म यह म मन भी स ु त हो जाता है , िजससे इसम सांसा रक -आ द शंकराचाय

ान मन से होता है , जब क सष ु ु ताव था

ान का अभाव हो जाता है .


तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

आ मा क सात अव थाएं ज म और म ृ य ु के बीच और फर म ृ यु से ज म के बीच तीन अव थाएं ऐसी ह जो अनवरत और नरं तर चलती रहती ह। वह तीन अव थाएं ह : जागत ु िु त। ृ , व न और सष यह

म इस कार चलता है - जागा हुआ यि त जब पलंग पर सोता है तो पहले वि नक

अव था म चला जाता है फर जब नींद गहर होती है तो वह सष ु िु त अव था म होता है । इसी के उ टे

म म वह सवेरा होने पर पुन: जागत ृ हो जाता है । यि त एक ह समय म उ त तीन

अव था म भी रहता है । कुछ लोग जागते हुए भी व न दे ख लेते ह अथात वे गहर क पना म चले जाते ह। जो यि त उ त तीन अव था से बाहर नकलकर खुद का अि त व कायम कर लेता है वह मो के, मिु त के और ई वर के स चे माग पर है । उ त तीन अव था से

मश: बाहर नकला जाता

है। इसके लए नरं तर यान करते हुए सा ी भाव म रहना पड़ता है तब हा सल होती है : तरु य अव था, तुर यातीत अव था, भगवत चेतना और ा मी चेतना। 1. जागत ृ अव था म ह पढ़ रहे हो? ठ क-ठ क ृ अव था : अभी यह आलेख पढ़ रहे हो तो जागत वतमान म रहना ह चेतना क जागत ृ अव था है ले कन अ धकतर लोग ठ क-ठ क वतमान म भी नह ं रहते। जागते हुए क पना और वचार म खोए रहना ह तो व न क अव था है । जब हम भ व य क कोई योजना बना रहे होते ह, तो वतमान म नह ं रहकर क पना-लोक म चले जाते ह। क पना का यह लोक यथाथ नह ं एक कार का व न-लोक होता है । जब हम अतीत क कसी याद म खो जाते ह, तो हम म ृ त-लोक म चले जाते ह। यह भी एक-दस ू रे कार का व नलोक ह है । अ धकतर लोग व न लोक म जीकर ह मर जाते ह, वे वतमान म अपने जीवन का सफ 10 तशत ह जी पाते ह, तो ठ क-ठ क वतमान म रहना ह चेतना क जागत ृ अव था है । 2. व न अव था : जागृ त और न ा के बीच क अव था को व न अव था कहते ह। न ा म डूब जाना अथात सष ु ुि त अव था कहलाती है । व न म यि त थोड़ा जागा और थोड़ा सोया रहता है । इसम अ प ट अनुभव और भाव का घालमेल रहता है इस लए यि त कब कैसे व न दे ख ले कोई भरोसा नह ं। यह ऐसा है क भीड़भरे इलाके से सार

े फक लाइट और पु लस को हटाकर

ट लाइट बंद कर

दे ना। ऐसे म यि त को झाड़ का हलना भी भत ू के होने को दशाएगा या र सी का हलना सांप के Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

पीछे लगने जैसा होगा। हमारे व न दनभर के हमारे जीवन, वचार, भाव और सख ु -दख ु पर आधा रत होते ह। यह कसी भी तरह का संसार रच सकते ह। 3.सष ु ुि त अव था : गहर नींद को सष ु ुि त कहते ह। इस अव था म पांच कम यां स हत चेतना (हम वयं) व ाम करते ह। पांच वचा। पांच कमि नि

ान यां और पांच

ान यां- च ,ु ो , रसना, ाण और

यां- वाक् , ह त, पैर, उप थ और पाय।ु सष ु ुि त क अव था चेतना क

य अव था है। यह अव था सख ु -दःु ख के अनभ ु व से म ु त होती है । इस अव था म कसी

कार के क ट या कसी कार क पीड़ा का अनभ ु व नह ं होता। इस अव था म न तो है , न

या होती

या क संभावना। म ृ यु काल म अ धकतर लोग इससे और गहर अव था म चले जाते ह।

4. तुर य अव था : चेतना क चौथी अव था को तुर य चेतना कहते ह। यह अव था यि त के यास से ा त होती है । चेतना क इस अव था का न तो कोई गण ु है , न ह कोई प। यह नगण ु है , नराकार है । इसम न जागृ त है , न व न और न सष ु ुि त। यह न वचार और अतीत व भ व य क क पना से परे पण ू जागृ त है । इस अव था म योगी सष ु िु त जैसी नि

य अव था म

रहता है ले कन साथ ह साथ वह अ त जागत ृ अव था म होता है . यह उस साफ और शांत जल क तरह है िजसका तल दखाई दे ता है । तुर य का अथ होता है चौथी। इसके बारे म कुछ कहने क सु वधा के लए इसे सं या से संबो धत करते ह। यह पारदश कांच या सनेमा के सफेद पद क तरह है िजसके ऊपर कुछ भी ोजे ट नह ं हो रहा। जागत ु ुि त आ द चेतनाएं तुर य के पद पर ह घ टत होती ह और जैसी घ टत होती ह, ृ , व न, सष तरु य चेतना उ ह हू-ब-हू हमारे अनभ ु व को

े पत कर दे ती है । यह आधार-चेतना है । यह ं से

शु होती है आ याि मक या ा, य क तुर य के इस पार संसार के दःु ख तो उस पार मो

का

आनंद होता है । बस, छलांग लगाने क ज रत है । 5.तरु यातीत अव था : तरु य अव था के पार पहला कदम तरु यातीत अनभ ु व का। यह अव था तुर य का अनभ ु व थाई हो जाने के बाद आती है । चेतना क इसी अव था को ा त यि त को योगी या योग थ कहा जाता है । इस अव था म अ धि ठत यि त नरं तर कम करते हुए भी थकता नह ं। इस अव था म काम और आराम एक ह बंद ु पर मल जाते ह। इस अव था को ा त कर लया, तो हो गए जीवन रहते जीवन-म ु त। इस अव था म यि त को थल ू शर र या इं य क आव यकता नह ं रहती। वह इनके बगैर भी सबकुछ कर सकता है । चेतना क तुर यातीत अव था को ह सहज-समा ध भी कहते ह। Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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6. भगवत चेतना : तरु यातीत क अव था म रहते-रहते भगवत चेतना क अव था बना कसी साधना के ा त हो जाती है । इसके बाद का वकास सहज, वाभा वक और न

यास हो जाता

है। इस अव था म यि त से कुछ भी छुपा नह ं रहता और वह संपण ू जगत को भगवान क स ता मानने लगता है। यह एक महान स योगी क अव था है । 7. ा मी चेतना : भगवत चेतना के बाद यि त म ा मी चेतना का उदय होता है अथात कमल का पण प से खल जाना। भ त और भगवान का भेद मट जाना। अहम ् ू त वम स अथात म ह

म हूं और यह संपूण जगत ह मझ ु े

माि म और

म नजर आता है ।

इस अव था को ह योग म समा ध क अव था कहा गया है । जीते-जी मो । http://hindi.webdunia.com/ से साभार

चेतना व शु य अगर आप

मांड क हर एक भौ तक चीज़ को ले, आप को उनके भीतर आ खर म ” कुछ

भी नह ं (NOTHINGNESS) ” ह मलेगा। ले कन What is Nothing? NOTHING पूर तरह से खाल जगह, पूण प से ठं डा, मौन और अंधकार है । NOTHING अनंत और अ वनाशी है । यह हलता नह ं ह और उसक ज रत भी नह ं ह। यह पहले से ह हर जगह पर है ।

मांड म

हमारे वयं के शर र स हत अ धक से अ धक 99.99% खाल पन है। सभी भौ तक चीज़े जो परमाणओ ु ं से बनी ह यादातर खाल जगह ह। अगर परमाणु के यिु लयस का आकर एक कंचे िजतना होता तो उसका इले

ोन धल ु के कण िजतना होता

और आधा माईल दरू से यिु लयस का च कर काट रहा होता। अगर आप परमाणु के यिू लयस और इले

ोन को छोड़ के अपने शर र क सार खाल जगह को मटा दे , तो 7

अरब िजतने मानव शर र एक चीनी के दाने िजतनी जगह म फट हो जायगे।

मा ड क

हर भौ तक चीज म इतनी खाल जगह होती ह।

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हम मालूम है ज नत क हक़ क़त...

हा य- यं य

आ मा क आवाज़ डॉ. ेम जनमेजय

आजकल आ मा क आवाज़ क जैसे सेल लगी हुई है। िजसे दे खो वो ह आ मा क आवाज़ सुनाने को उधार खाए बैठा है । आप न भी सुनना चाह, तो जैसे े डट काड, बैक के उधारक ता, मोबाईल कंप नय के व े ता अपनी कोयल-से मधरु वर म आपको अपनी आवाज़ सुनाने को उधार खाए बैठे होते ह वैसे ह आ मा क आवाज़ का धंधा चल रहा है । कोई भी धा मक चैनल खोल ल िजए, वयं अपनी आ मा को सुला चुके

ानीजन आपक आ मा को जगाने म लगे रहते ह। आपक आ मा को

जगाने म उनका या लाभ, यारे िजसक आ मा मर गई हो वो धरम-करम कहाँ करता है , धरमकरम तो जगी आ मा वाला करता है और धरम-करम होता तभी तो धा मक- यवसाय फलेगा और फूलेगा। इसी लए जैसे इस दे श म

टाचार के सरकार दफतर म व यमान ् होने से वातावरण

जीवंत और कमशील रहता है वैसे ह आ मा के शर र म जगे रहने से ’धम’ जीवंत और कमशील रहता है । म संजय क तरह दे ख रहा हूँ (अब आप ये मत पू छएगा क तम ु संजय हो तो इस रा कौन है , वरना लोग को आप ह धत ृ रा

म धत ृ रा

नज़र आएँग)े कुछ र रया र रया कर भीख माँगते वर

च ला रहे ह, “अ लाह के नाम पर, मौला के नाम पर, हे कोई ोता, हे कोई ोती जो मेर आ मा क आवाज़ सुन ले। सुन लो भैया बहुत छोट -सी आवाज़ है , एक म न

का सवाल है बाबा।”

मने उनसे पूछा, “ या, आपको सुनाई दे ता है ? ” उ ह ने मुझे घूरा जैसे अमे रका ने इराक को घूरा हो और कहा, “मुझे बहरा समझा है , हमसे मजाक करता है? तेरा दमाग ठ क है , वरना ढूँढूँ तेरे यहाँ भी ह थयार। हमसे मजाक करना बहुत महँगा पड़ता है , यारे ! कभी न करना मजाक, हमसे और कसी पु लस वाले से। समझ गए न यारे जी” और म यारा बढ़ती हुई महँगाई के बावजद ू महँगे मजाक से नह ं डरा और पूछ बैठा, “~आपको आ मा क आवाज़ सुनाई दे ती है?” वे बोले, “पागल है या, म कोई नेता हूँ जो आलत-ू फालतू आवाज सुनता रहूँ।” सच आजकल आ मा क आवाज आलत-ू फालतू ह हो गई है। कुछ के यहाँ आ मा क आवाज़ पालतू हो गई है , जब चाहा भ कवा दया।

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कबीर के समय म माया ठ गनी थी, आजकल आ मा ठ गनी है । माया के मायाजाल को तो आप जान सकते ह, आ मा के आ मजाल को दे वता नह ं जान सके आप या चीज़ ह। सुना गया है क आजकल आ मा क ठग व या को दे खकर बनारस के ठग ने अपनी दक ू ान के शटर बंद कर लए ह। सुना गया है क वदे श ी सं थागत नवेशक ऐसी आ माओं को ऊँची त खवाह पर भरती कर रहे ह। जैसे हम कपड़े बदलते ह, आजकल जैसे हम अपनी आ थाएँ बदलते ह वैसे ह आ मा शर र बदलती है – कभी शासक दल का नेता होती है , कभी वरोधी दल क और कभी कसी बाहुबल के शर र क । सुअवसर दे ख उनक आ मा फुँकारने लगी। मने कहा, “आप इस तरह य फुँकार रहे ह, दे शसेवक?” वे बोले, “हमार आ मा पर बोझ बढ़ गया है । इतने एम.पी. के साथ एले शन जीते, मं ी-सं ी बनने क तो बात दरू कौनो कमेट तक म नह ं रखा। हमने दे श सेवा के लए लाख

पया खच कया है । अब

हम आ मा क आवाज़ नह ं सुनगे और सुनाएँगे तो खाएँगे या? लोग तो चुनाव के बाद दध ू -मलाई खाएँ और हम महाराणा ताप बने घास क रो टयाँ? बहुत ना इ साफ़ है। माना हम महाराणा ताप के वंश ज के ह पर हम चुनाव लड़ना होता है । हम जनता के

त न ध ह। हम तो अपनी आ मा क

आवाज़ सुनाकर रहगे ◌ै ये।” मने पूछा, “ कसी ने आपक आ मा क आवाज़ सुनी?” वे बोले, “पगला गए ह या? कोई सुन लेता तो मं ालय म न बैठे होते। यहाँ लोग ससुरे तीन एम.पी. लेकर दो-दो मं ालय ह थयाए बैठे ह और हम तीस लेकर घास क भीख माँग रहे ह। हमने आपसे कह दया न क दस ू रे तो दे शसेवा के नाम पर दध ू -मलाई खाएँ और हम पहले घास क रो टयाँ खाएँ, नह ं चलेगा।” “आपको कसी ने भीख भी न द तो?” “तो उ चत अवसर का इंतज़ार करगे। आ मा क आवाज़ कभी मरती नह ं है । कभी न कभी तो सुननी पड़ती है भैया, वरना जातं कैसे चलेगा सरकार कैसे चलेगी?” “तो अभी या करगे, आ मा क आवाज़ का?” “अभी सुला दगे।” आ मा क आवाज़ कतनी सु वधाजनक हो गई है , जब चाहा जगा दया जब चाहा सुला दया जैसे घर क बूढ़ अ मा, जब चाहा मात-ृ सेवा के नाम पर, दो त को दखाने के लए ा ग म म बठा लया और जब चाहा कोने म पटक दया। पाँच साल म एक बार आधा बार आ मा क आवाज़ सुन लेना ह तो जातं है , दो तो।

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मनोवै ा नक ि ट से चेतना

मनो व ान क

ि ट से चेतना मानव म उपि थत वह त व है िजसके कारण उसे सभी कार क

अनभ ं न ु ू तयाँ होती ह। चेतना के कारण ह हम दे खते, सन ु ते, समझते और अनेक वषय पर चत करते ह। इसी के कारण हम सख ु -द:ु ख क अनभ ु ू त भी होती है और हम इसी के कारण अनेक कार के न चय करते तथा अनेक पदाथ क मानव चेतना क तीन वशेषताएँ ह। वह

ाि त के लए चे टा करते ह।

ाना मक, भावा मक और

या मक होती है । भारतीय

दाश नक ने इसे सि चदानंद प कहा है । आधु नक मनोवै ा नक के वचार से उ त नरोप ा क पुि ट होती है । चेतना वह त व है िजसम

ान क , भाव क और यि त, अथात ्

क अनभ ु ू त है । जब हम कसी पदाथ को जानते ह, तो उसके व प का त

य अथवा अ य भाव पैदा होता है और उसके

याशीलता

ान हम होता है , उसके

त इ छा पैदा होती है , िजसके कारण या

तो हम उसे अपने समीप लाते अथवा उसे अपने से दरू हटाते ह। चेतना को दशन म वयं काश त व माना गया है । मनो व ान अभी तक चेतना के व प म आगे नह ं बढ़ सका है । चेतना ह सभी पदाथ को, जड़ चेतन, शर र मन, नज व जी वत, मि त क नाय ु आ द को बनाती है , उनका व प न पत करती है। फर चेतना को इनके वारा समझाने क चे टा करना अ वचार है । मेगडूगल महाशय के कथनानस ु ार िजस कार Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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भौ तक व ान क अपनी ह सोचने क व धयाँ और वशेष कार के द त ह उसी कार चेतना के वषय म चंतन करने क अपनी ह व धयाँ और द त ह। अतएव चेतना के वषय म भौ तक व ान क व धय से न तो सोचा जा सकता है और न उसके द त इसके काम म आ सकते ह। फर भौ तक व ान वयं अपनी उन अं तम इकाइय के व प के वषय म नि चत मत का शत नह ं कर पाया है जो उस व ान के आधार ह। पदाथ, शि त, ग त आ द के वषय म अभी तक कामचलाऊ जानकार हो सक है । अभी तक उनके व प के वषय म अं तम नणय नह ं हुआ है । अतएव चेतना के वषय म अं तम नणय क आशा कर लेना यिु तसंगत नह ं है । चेतना को अचेतन त व के वारा समझाना, अथात ् उसम काय-कारण संबंध जोड़ना सवथा अ ववेकपूण है । चेतना को िजन मनोवै ा नक ने जड़ पदाथ क चे टा क है अथात ् िज ह ने इसे शार रक

याओं के प रणाम के प म समझाने क

याओं, नायओ ु ं के पंदन आ द का प रणाम माना

है , उ ह ने चेतना क उपि थ त को ह समा त कर दया है । उ ह ने चेतना क उपि थ त को ह समा त कर दया है। पैवलाफ और वाटसन महोदय के चंतन का यह प रणाम हुआ है। उनके कथनानस ु ार मन अथवा चेतना के वषय म मनो व ान म सोचना ह यथ है । मनो व ान का वषय मनु य का

यमान यवहार ह होना चा हए।

चेतना के शर र म संबंध के वषय म मनोवै ा नक के व भ न मत ह। कुछ के अनस ु ार मनु य के बह ृ त ् मि त क म होनेवाल

याओं, अथात ् कुछ ना ड़य के पंदन का प रणाम ह चेतना है ।

यह अपने म वतं कोई त व नह ं है । दस ू र के अनस ु ार चेतना वयं त व है और उसका शर र से आपसी संबंध है , अथात ् चेतना म होनेवाल चेतना क

याएँ शर र को भा वत करती ह। कभी-कभी

याओं से शर र भा वत नह ं होता और कभी शर र क

याओं से चेतना भा वत

नह ं होती। एक मत के अनस ु ार शर र चेतना के काय करने का यं मा ह, िजसे वह कभी उपयोग म लाती है और कभी नह ं लाती। परं तु य द यं

बगड़ जाए, अथवा टूट जाए, तो चेतना अपने

काम के लए अपंग हो जाती है । कुछ गंभीर मनोवै ा नक वचारक

वारा व ान क वतमान

ग त क अव था म उपयु त मत ह सव तम माना गया है ।

https://hi.wikipedia.org/wiki/ से साभार

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तु ह से

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A letter to a friend...

"तु ह से" नव अ त व क तलाश

नव चेतना का दपण

मा यवर .............................................................. ... य न हम कुछ ऐसी बात िमल बांट जन का संबध ं हम सब से है . ...मानव स यता के िशशु काल से ह मानवता दो

े णय म बट गई. एक

ेणी म वे

बु

मानव ह,

ी और पु ष दोनो ह ,जो मन क गहराई म उतरते ह, जो मानवता को रा ता दखाते

ह. दस ू र

ेणी म शेष सभी मानव जो अपने कम और अपनी इ छाय के जाल म उलझे ह, मन

से

यादा सड़क पर उतरते ह. हम केवल इन दो

ेणी के मानव भी कमशील कृित के महान ् पु

ह जो उस के भेद जानने म अपना

ब ़ढया म त क दया है और वे या

कृ ित ह

थम

कृ ित का क़ज़

यादा समय लगाते ह और उस क है हम पर क उसने मानव को इतना

कृित क कोख़ म गहरे उतर कर उस कजऱ ् को उतारने म लगे

कृित के अंतस ् म उतर कर वे इस त य से एकमत

नह .ं तो

य न कर. इस

ह और उन का कम उन के म त क पटल पर होता है और वे

सौगात का आनंद उठाने म कम. यह ह.

े णय क ह बात

होते ह क हम

कृ ित क खोज कर रह है? जब वे गंभीरता से

वयं

कृित से अलग

कृ ित के ऐसे गहन

स य खोज िनकालते है तो शेष लोग उनका अनुगमन करते ह, उन से लाभा वत होते ह. ...पर दभ ु ा यवष से यह बात अधूरा स य है . हमेषा ह ऐसा हो यह ज़ र नह .ं ये तथाकिथत बु

मानव शेष समाज से िन का षत

उन क अं

ा ण है . जीवन को बदल सकने यो य उन का प र ान

केवल धूल चाटती पु तक का ह सा हो कर रह जाती है. या उन पु तक का

ज ह केवल पूजातु य माना जाता है और पूजा के समय ह उन का गान होता है . उन म संकिलत महान ् स य को लोग अपनी मन बु

से दरू रखते ह. लोग इस बु जीवी वग के काम

से अनजान रहते ह. हमारे आस-पास ऐसे लोग क कमी नह ं जो अथ चारे म उलझी अपनी अधूर

से साधारण और

लोग व व के

बु

मानव म अं

नह ं कर पाते. आ म- ववेचना से िनतांत दरू ये

येक बड़े धम के masses कहलाते ह और यह लोग मानव िनिमत मानव संकट

का कारण बनते ह. ...दस ू र ओर हमारा यह बु

को भी

बु

मानव भी किलयुग-

त हो गया है . तमस ् का यह युग उस क

िमत कर रहा है. म त क का पसीना बहा कर क कमाई को वह अित- साधारण

दिु नयावी काय म लगा रहा है . उसने अब ऐसी व ाय का समथन शु

कर दया है जन म न

अ या मक ईमानदार है और न वै ािनक स चाई. जो तमस ् के इस युग म मानव म और Tumhi se (To you..) Hindi Magazine

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तृतीय अंक

तु ह से

अंधापन ला रह ह. तमस ् के इस युग म अिधक

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ान ह अ ान का कारण बन रहा है .

मानवीय मन कभी भी कपट नह ं छोड़ पाया. कपट और संयोयन कर िलया है .

ान और

ान ने मानवीय मन म अब गहरा

ानी जन से लोग का व ाश उठ रहा है .

ान तकनीक हो

या अ या मक अब केवल मानवीय शोषण का तर का बन रहा है . ... ाचीन यािन

काल म ह ऋ ष लोग ने

ान क सीमा को समझ िलया था. वेद यािन

ान से वेदांत

ान का अंत तक जाने वाले उन महान ् मानव ने केवल आ मानभूित को महा तम

माना है . ले कन यह एक ऐसा क सम ता का जससे

ान

ान है जस के संबध ं म कभी एकमत नह ं बन पाया है . जीवन

ान, केवल बौ क

ान नह ं ब क प र ान (metacognition), बु

भा वत हो, भीतर व बाहय ् दोनो, पयावरण जस से अलग नह ं ह सम

आ मानभूित है .

..."तु ह से" से हमारा

योयन यह है . सूचना (Information)

शु क

योग मानवीय नसल के िलये घातक बन रहा है . यह केवल उस म

बुौ

ा का यह

ित पधा क भावना को बढ़ावा दे रहा है . इस भावना से

मरणश

नह ं आ मा

(memory) व

रसह न

े रत वे मानवीय संसाधन को बेदद से

लूटते ह. एक दस ू रे से आगे बढ़ने क यह होड़ हमार पृ व व पयावरण को कतना गहरा नुकसान पहुंचा रह है इस का अंदाज़ा लगाना आसान नह ं. हम अपनी ह आगामी नसल को

या

एक ठू ं ठ पृ व दे कर जायगे ? ..."तु ह से"

ारा

ान क सीमा को, चेतना को, पृ व व पयावरण क चेतना को जन-मानस ् तक

पहुंवाने म हम आप के आशीवाद क ज रत है . हम पृ व पयावरण चेतना व आ मानभूित जनक आप क रचनाय क ज रत है . ..."तु ह से" का अभी केवल ड जटल अपे

काशन हो रहा है . आगामी मह नो म " ट ं वशन"

त है .

....सा ह य के साथ अ या म से हमारा ता पय अगर कोई है तो यह वह अ या म है जो कबीर दाद ु मीरा सर ख़े लोक-आ मा िचतेरे महा मानव को आ मसात कये पं डत राहुल सांकृ यायन

वािम ववेकान द, महा-

वािम राम तीथ से होता हुआ इस इ क सवीं सद म भी क व कथाकार

के मन से बेमुहारा फूट पड़ता है . ...‘तुम’ के आगामी अंक - ‘ ान क सीमा’, ‘ ान और अनुभूित’ ‘परमा मा है ‘ या भला

या’, चेतना है

या’,

या बुरा’ ; इ या द से सबंिधत आप क रचनाय सादर आमं त ह तु ह से का

थमांक यहाँ पढ़ https://www.scribd.com/embeds/297771144/content?start_page=1&view_mode=scroll&show_ recommendations=true

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तृतीय अंक

तु ह से

ी म -2016

आप क आप क

ित

ित

या

या हमारे िलये अमु य है

हमारा यह यास आप के सहयोग के बना अधूरा है . आप का एक मा सहयोग "आप क

ित

या" है .

आप अपने पयावरण के वषय के बारे म या सोचते ह.

आप क

ित

या

आप त कालीन धािमक राजनीितक व अ या मक अथ-तं के बारे या राय रखते है . पयावरण एवं मानवीय चेतना के बारे म आप अपना य

गत अनुभव पाठक से बांट सकते ह.

इस से संबंिधत आप अपनी रचना हम भेज सकते ह. आप फेस बुक या इ-मेल या से भी अपनी ित

या य

कर सकते ह.

आप हम बताय क हमारे यास म या अधूरा है अभी संपरक सू इ-मेल- abcinnerworld@gmail.com Facebook https://www.facebook.com/swaranj.omcawr

‘तु ह से’ का आगामी अंक- ‘परमा मा है या?’ परमा मा के बारे म मानव स यता के आर भ काल से ह मानव क उ सक ु ता रह है . परमा मा के अनेक नाम ह. जैसे गॉड, ई वर अ लाह, यहोवा, अबूझ पहे ल

म इ या द. ले कन परमा मा है या? परमा मा अभी तक मानव के लए

य बन हुआ है. परमा मा के स ब ध म अलग अलग पहलओ ु ं से ल गई जानकार एवं वचार

चचा.... आगामी अंक म (तु ह से का वषा ऋतू अंक ... अग त सत बर म जार )

हमार शायर

( थाई

त भ)


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तु ह से

ी म -2016

गज़ल शायर क मक़बूिलयत का सबूत भी है और सबब भी। कुछ शायर ऐसे होते ह, जो अपनी कसी खास गज़ल के कारण अमर हो जाते ह, फर वह गज़ल उनक परछाई बन जाती है और वो उस गज़ल क । ऐसा ह ं कुछ मु ा यहाँ भी है । "मन आँगन म शहर बसा है ", "चलो उन मंज़र के साथ चलते ह", "उसे कहना कभी िमलने चला आए", "तुम ह ं अ छे थे", "पहले पहल तो

वाब का दम भरने लगती ह", "इस बार दल ने तुझसे ना

िमलने क ठानी है ", "तुम ने सच बोलने क जुरत क ", "ये लोग अब ़जस से इनकार करना चाहते ह", "ये और बात क खुद को बहुत तबाह कया", "कह ं तुम अपनी क मत का िलखा त द ल कर लेत"े - ये सार कुछ गज़ल ह, जो उनके नाम पर दज ह, ले कन जस गज़ल ने उ ह अश तक पहुँचाया वो थी- "म

याल हूँ कसी और का, मुझे सोचता

कोई और है ।" आप है रत म पड़ गए ना, पहले पहल म भी हैरत म पड़ गया था

यो क

इ ह ं अ फ़ाज़ से सजा एक न म "तू यार है कसी और क , तुझे चाहता कोई और है", हमारे यहाँ गूज ँ ा करता है । दन म दस बार

या क जएगा....हमार नकल करने क आदत गई नह ं है ।

य न हम पा क तान को भला-बुरा कह,ले कन गाने चुराने के िलए उसी

क ओर हाथ पसारकर खड़े हो जाते ह। हाँ तो जहाँ तक इस गज़ल क बात है, इसे न िसफ़ "मु नी बेग़म" ने गाया है , ब क कई सारे फ़नकार ने इस पर अपना गला साफ़ कया है , यहाँ तक क उ ताद नुसरत फ़तेह अली खान साहब क भी आवाज़ इस गज़ल को नसीब हुई है । ली जए इतनी बात हो गई,ले कन अब तक हमने उस शायर क िशना त नह ं क । तो भाईयो, जनाब "सलीम कौसर" साहब ह ं वो खुश क मत शायर है । इससे पहले क हम गज़ल का लु फ़ उठाय, य न इन साहब का ह ं िलखा एक शेर दे ख िलया जाए: म ख़याल हूँ कसी और का मुझे सोचता कोई और है सर-ए-आईना मेरा अ स है पस-ए-आइना कोई और है (सर-ए-आईना = आईने के सामने), (अ स =

ित ब ब, परछाई), (पस-ए-आइना = आईने

के पीछे ) म कसी के द त-ए-तलब म हूँ तो कसी के हफ़-ए-दआ म हूँ ु म नसीब हूँ कसी और का मुझे माँगता कोई और है

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तु ह से

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(द त-ए-तलब = इ छा हाथ क ), (हफ़-ए-दआ = दआ केअ र) ु ु अजब ऐतबार-ओ-बेऐतबार के दिमयाँ है ज़ दगी म क़र ब हूँ कसी और के मुझे जानता कोई और है (ऐतबार-ओ-बेऐतबार = व ास और अ व ास), (दिमयाँ = बीच म) तेर रोशनी मेर ख़ ो-ख़ाल से मु तिलफ़ तो नह ं मगर तू क़र ब आ तुझे दे ख लूँ तू वह है या कोई और है (ख़ ो-ख़ाल = शार रक स दय), (मु तिलफ़ = अलग-अलग, िभ न) तुझे द ु मन क ख़बर न थी मुझे दो त का पता नह ं तेर दा ताँ कोई और थी मेरा वाक़या कोई और है [(दा ताँ = वृतांत, कथा, वणन), (वाक़या = घटना, वृतांत, समाचार)] वह मु सफ़ क

रवायत वह फ़ैसल क इबारत

मेरा जुम तो कोई और था पर मेर सज़ा कोई और है (मु सफ़ = इ साफ या

याय करने वाला), (इबारत = लेख, मजमून)

कभी लौट आय तो न पूछना िसफ़ दे खना बड़े ग़ौर से ज ह रा ते म ख़बर हुई क ये रा ता कोई और है जो मेर

रयाज़त-ए-नीमशब को “सलीम” सुबह न िमल सक

तो फर इस के माने तो ये हुए के यहाँ ख़ुदा कोई और है ( रयाज़त-ए-नीमशब = आधी रात तक कया प र म, क )

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तु ह से

ी म -2016

अंितम प ना

पु तक ‘अं ीव हम ड का क ख ग’(ABC of Inner World) म डा. वण जे. ओ कार दो चरम सीमाओं से आ या मकता को मु

करने के िलए संघषरत ह -पहला है कठोर बु

दस ू रा स चाई के केवल िन कष क पूजा अपने अ तीय वचार क एक

वाद ... और

ित हमारा लगाव.

कोण के साथ वे पाठक के मन म

ंख ृ ला बनाने का यास करते ह. साधारण व

अप रप व वचार से ार भ करके वे अिधक से अिधक ज टल वचार क ओर बढते ह और अहसास के व फोट के अ तम िशखर तक पाठक को ले जाने का यास करते ह. येक पाठक म ऐसा अहसास का व फोट पैदा हो यह िनभर करता है क पाठक इन वचार को कैसे लेता है श द को बु

ारा समझता है या इस यास के िलए उस म कोई य

परक जाग कता का

आ वभाव होता है ! पाठक के मन म रचना मक अंत

बनाने के िलए

तुत ग

समकालीन बहाव पर प र छे द संकिलत ह. साथ ह साथ यह

म आ या मकता के वषय म यास है क अनाव यक

प से

अवांिछत जानकार से पाठक को उबाय नह ं ब क य

परक जाग कता के िशखर तक ले जाने के िलए उस के मन क अगुआ ई कर. अपने ग

म अ सर वे इस ‘ यथ बेतुक गित से अ सर

ांड’ क अनथक बौ

क समझ को छोड़ थोड़ दे र

के िलए आ मीय अनुभूित का बोध करने का आ हान करते ह! अनथक बौ

क समझ के सं थागत

िनमाण के यास म हम जीवन के बेहतर न साल बरबाद करते ह. वे ऐसे बौ

क मन क चरणब

समाि क बात करते ह. वे चुपचाप सब समझ से परे अहसास क गहराई म वेश करने क बात करते ह! ‘डा.

वण जे. ओ कार’ (ज. 1960), भारतीय मूल के लेखक और मानव शर र व ान म

नातको र ह. वे एक मे डकल कालेज म एसोिसएट ोफेसर है . वे वयं िश

त, आ म िनदिशत

आ या मक उ साह ह और आम तौर पर अपने या यान म सम ता और पयावरण चेतना को स हत करते ह. उपरो

पु तक िन न िल खत ऑनलाइन बुक टोस से ा क जा सकती है .

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