March apr may 2015 color

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ऄनिक्रम सम्प़दकीय पंकज ऽिवेदा अलेख जावन मं सफलत़ क़ रहस्य कऽवत़एँ

02 शऽश प़ध़ 03

कऽवत़ ऄंऽतम व़द़ ररश्ते रे शम ख़दा तान कऽवत़एँ

अऱधऩ ऱय सिनात़ स़मंत मोऽनक़ गौड़ नाताश ऽमश्र

04 09 16 17

वाऱ लड़की ऄभा घर मं हा है?

प्रवेश सोना नात़ पोरव़ल

05 16

संजाव ऽनगम

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ऄंजऩ टंडन

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संदाप तोमर ऄचचऩ ठ़कि र ऄचचऩ ठ़कि र

04 06 07

कह़ना

व्यंग्य पौला ग्ऱस पर ड़यरा मंथन लघिकथ़ बंटव़ऱ सिनहरा च़दर सबक

स़क्ष़त्क़र समाक्ष़

चंद्रक़ंत देवत़ले

ऄंजी चौधरा

महंद्र भटऩगर के नवगात सौरभ प़ण्डेय सिनो मिझे भा सौरभ प़ण्डेय

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ऱजी भ़इ ऄजनबा ररक्यश़ व़ल़ हम मं हा था न कोइ ब़त एक ऄनज़न औरत क़ ख़त मं माऱब़इ, बेगम ऄख्तर... Me & My valentine बोल के लब ऩऽजम ऽहकमत सबकि छ के ब़द मेरे ऽप्रय ऄज्ञेय बेल़ की कऽवत़ ऄभा मं जिजद़ हूँ म़ँ मं प़प़ को नहं ज़नता मेरा ड़यरा से ऄजनबा अव़ज़ के ऩम मेरे ऽपत़ सिरेश भट्ट अलोकधन्व़ की नज़र मं ऄगर खिद पर भरोस़ एक कल़क़र होने से लऽतक़ फणाश्वरऩथ रे णि ख़त-खबर

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ऄसाम़ भट्ट ऽवशेष कभा निक्कड़ ऩटक ये सान ज़ऱ फ़फ़ल्मा है अम क़ मौसम शा आज तरु म़ँ ! नय़ ऄहस़स I am not crazy ऽमऽलए श्राम़न श्रामता मैिेया पिष्प़ ऽसत़ऱ देवा समिद्र के ईस प़र वररष्ठ लेऽखक़ सीयचब़ल़ म़ँ आतना ऄच्छा क्ययं होता है? मिरला द़द़ लखनउ की प़ंच ऱतं आमऱन और श़हाद हद ऄनहद के बाच मं गोव़ मतलब म़ररय़—ऽबन्ना Yakshini of Deedarganj पिष्प़

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सल़हक़र संप़दक सिभ़ष चंदर ✽ संप़दक

पंकज ऽिवेदा

✽ सह संप़दक ऄचचऩ चतिवद े ा ✽ पऱमशचक ऽबन्दि भट्ट सौरभ प़ण्डेय मंजल ि ़ ऄरगड़े जिशदे ✽ शोधपि संप़दक डॉ. के तन गोहेल ✽

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

मिखपुष्ठ पररकल्पऩ पंकज ऽिवेदा ✽ व़र्षषक सदस्यत़ : 200/- रुपये 5-वषच : 1000/- रुपये (ड़क खचच सऽहत) ✽ सम्प़दकीय क़य़चलय ऽवश्वग़थ़ C/o. पंकज ऽिवेदा ॎ, गोकि लप़कच सोस़यटा, 80 फीट रोड, सिरेन्द्रनगर 363002 -गिजऱत ✽

vishwagatha@gmail.com ✽ Mo. 09662514007

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च़हत मेऱ स्वभ़व है श़यद...!

सम्प़दकीय

पंकज ऽिवेदा जद्दोजहद मं लग़ हूँ श़यद मं खिद को ढी ंढने की कोऽशश मं ख़ुद से हा ऽबछड़ रह़ हूँ पत़ नहं, क्यय़ करूं मं? क्ययीं च़हत़ हूँ तिम्हं? च़हत मेऱ स्वभ़व है श़यद समपचण मेऱ संस्क़र है वो कै से छी ते मिझसे? तिम अज़़द हो... रहो... मं तो फ़कीर हूँ ऽजसकी कोइ मंऽज़ल नहं फ़फर भा मिझे यह भा पत़ है फ़क यहा ऱह है मेरा ऽजस पर चल़ऩ है मिझे ऱह चलते हुए ऽमलत़ रहत़ हूँ हर फ़कसा को... मगर यह़ं भा ज़न गय़ हूँ फ़क मेऱ सफ़र ऄभा भा ख़त्म नहं हुअ मिझे ऐसे हा चलऩ है कोइ प्य़र की भाख देत़ य़ नफ़रत की मेरा यहा सम़नत़ ने ईलझ़ फ़दय़ है मिझे... और मं च़हत़ भा नहं हूँ ईस मोक्ष को जो मिझसे ऄलग कर दे तिमको ख़ुद मिझसे हा मं खोऩ नहं च़हत़... यहा ददच है जो मिझे हर पल एक नइ मंऽज़ल फ़दख़त़ है... दो कदम अगे बढ़ने को.... ! ~✽ ~ ये कऽवत़ ऽलखा तब मेरा था, ऄब अप सब की भा हो गइ है । ऄसाम़ भट्ट । निक्कड़ ऩटकं से रं गमंच, फ़फल्म और टावा की त़कतवर ऄऽभनेिा है । वो एक लेऽखक़कवऽयिा भा है । बेब़क बोलता है, वैस़ हा ऽलखता है। जिबद़स जाता है । चिनौता ईन्हं स्वाक़र है, वो च़हं ऄऽभनय के क्षेि की हो य़ जिज़दगा की ! एक फ़दन ईसने मिझे कह़; "द़द़, मंने हमेश़ ड़यरे क्यटर से चिनौता पीणच रोल की म़ंग की, मेरे यहा स्व़भ़व के क़रण भगव़न

ने मिझे जिज़दगा क़ रोल भा चिनौता पीणच दे फ़दय़ ।" मं ईन्हं सिन रह़ थ़, समझ रह़ थ़ ईनकी ब़तं मं छापे ददच की अह को । ऽपत़जा सिरेश भट्ट । छ़ि अंदोलन से जे.पा. (जयप्रक़श ऩऱयण) अंदोलन के ऽलए स़ऱ जावन झोक फ़दय़। जब मंने ईनसे पीछ़; "अप आतऩ बेब़क क्ययं ऽलखता हं?" ऄसाम़ क़ जव़ब थ़; "क्ययंफ़क मिझे झीठ और ऽहपोक्रेसा से नफ़रत हं । ऽबलकि ल पसंद नहं । जो लोग ऐसे हं ईनसे बहुत कोफ़्त होता है I वो लोग जो ख़स कर क़यर हं ईनके स़थ रहकर तो मेरा तऽबयत ख़ऱब होने लगता है ।" ईनक़ यह ऽमज़ज ऽपत़ सिरेश भट्ट की ऽवऱसत है । 'फे सबिक' म़ध्यम से मिझे बहुत से दोस्त ऽमले । जह़ँ बिऱइ होता है वहं पर ऄच्छ़इ भा होता है । मेरे स़थ भा यहा हुअ । ऽपछले तान महानं मं बहुत स़रे क़यचक्रम और शऽख्सयत से संपकच हुअ । ऄसाम़ भट्ट ईसामं से एक है । मंने ईनके लेखन को पढ़ते हुए ईनकी म़नऽसकत़ को समझने की कोऽशश की । हम़रा ऽमित़ बढ़ता चला और ईनकी जिज़दगा के कइ ईत़र-चढ़़व मेरे स़मने अएं । एक कल़क़र की जिज़दगा और एक भ़रताय परं पऱ से फ़कसा की पत्ना तो फ़कसा की बेटा के रूप मं मंने ऄसाम़ को देख़ । ईनके दोस्तं से भा कि छ हद्द तक पररचय हुअ और एक फ़दन मिझे लग़ फ़क - ऄसाम़ भट्ट फ़फ़ल्मा दिऽनय़ मं 'सिपरहाट' भले हा न हुइ हो मगर एक सच्चे कल़क़र की अत्म़ ईनमं है । 'ऽवश्व ग़थ़' क़ यह ऄंक ईनके ऩम से ऽवशेष है । अज के दौर की यिव़ पाढा के ऽलए ऄसाम़ भट्ट की कै मेस्रा और स़यकोलोजा समझना जरूरा है । ऄपने से 25 स़ल बड़ा ईम्र के पऽत को चिनऩ, चीँफ़क वो एक बड़ा शऽख्सयत है, कऽव है, हर क्षेि के बड़े लोगं से ईनक़ व़स्त़ है, आसऽलए नहं मगर ऽसफच ईनकी कऽवत़ की च़हत के ऽलए श़दा की । ऐसे मं ऄसाम़ क़ संघषच अज की यिव़ पाढा के ऽलए स़वध़न करने व़ल़ है । मंने ऄसाम़ के संस्क़र, जज़्ब़त, संवेदनशालत़ और ऄऽभनय के द्व़ऱ रं गमंच के प्रऽत समपचण को देख़ । 'ऽवश्व ग़थ़' ने अजतक ऄपने मिखपुष्ठ पर फ़कसा भा व्यऽि को स्थ़न नहं फ़दय़ । ऄसाम़ भट्ट वो पहला शऽख्सयत है । ऽजसे पीणच सम्म़न फ़दय़ ज़त़ है । शिरू मं मंने ऄपना कऽवत़ आसऽलए प्रस्तित की है, जो ऄसाम़ के नज़ररए से देखं तो ईनके ऽवच़रं को भा पिऽि देता है । 'ऽवश्व ग़थ़' ऄपने आस ऄंक के स़थ दो-वषच क़ सफ़र पीणच रह़ है । प्रत्येक ऄंक के ऽलए ऄनऽगनत रचऩएँ ऽमलता है । ऽजतने रचऩक़रं को स्थ़न ऽमलत़ है, ईससे कइ ज्य़द़ म़ि़ मं रचऩक़रं को ऽनऱश भा होऩ पड़त़ है । मगर 'ऽवश्व ग़थ़' के रचऩक़रं क़ धैय-च सहयोग के ऽलए हम ईनके अभ़रा है । नए सदस्य और ऽवज्ञ़पन द़त़ओं के अभ़रा हं । ब़ररश ने दस्तक दे दा है... कऽववर टैगोर क़ गात गिजऱता लोकसऽहत्यकर झवेरचंद मेघ़णा ने ऄनिफ़दत फ़कय़ थ़... लगे हा नहं फ़क यह बंग़ला गात गिजऱता मं सिन रहे हं... - 'मन मोर बना थनग़ट करे .. मन...' ~✽~

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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अलेख

जावन मं सफलत़ क़ रहस्य शऽश प़ध़

जावन के प्रत्येक क्षेि मं प्ऱणा सफलत़ के ईच्चतम ऽशखर पर पहुँचने की ऄऽभल़ष़ रखत़ है और आसके ऽलये वह ऽनरन्तर प्रयत्नशाल भा रहत़ है। अज तक के वल बिऽि तथ़ प्रऽतभ़ को हा जावन की सफलत़ क़ सोप़न समझ़ ज़त़ रह़ है। पढने –ऽलखने मं होऽशय़र बच्चे को देख कर यह म़न ऽलय़ ज़त़ थ़ फ़क यह बच्च़ बड़़ होकर ऄवश्य एक सफल ऄऽधक़रा बनेग़ ऄथव़ ईच्च पद़सान होकर जावन य़पन करे ग़ । फ़कन्ति अज के प्रऽतस्पि़च के यिग मे ऐस़ देख़ गय़ है फ़क यह अवश्यक नहं है फ़क ईच्च बौऽिक स्तर व़ले बच्चे हा अगे ज़कर ऄपने क़यचक्षेि य़ व्यवस़य मं सफल हं। ऄऽपति ऐसे भा ईद़हरण हं फ़क कइ मध्यम बिऽि व़ले लोग भा ऄपने व्यऽित्व के ऄन्य गिणं के क़रण सफलत़ की चरम साम़ को छी लेते हं । व़स्तव मं ऐस़ क्ययं होत़ है ? सफलत़ मं बौऽिक स्तर के महत्व की ध़रण़ को तोड़ने व़ले ह़वचडच ऽवऽश्वद्य़लय से मनोऽवझ़न मं पा. एच्. डा. तथ़ ऽवज्ञ़न संबन्धा ऄनेक लेखं के लेखक डेऽनयल गोलमेन हं । आन्हंने सन् 1915 मं ऄपना पिस्तक ‘आमोशनल आं टैऽलजेन्स -व्ह़इ आट कै न मैटर मोर दैन अइ क्ययि’ मं तथ़ पिन: ‘व्हेयर मेक्यस ए लाडर’ मं यह स्पि फ़कय़ है फ़क जावन मे प्रऽतभ़ एवं बिऽि के महत्व को नक़ऱ नहं ज़ सकत़, फ़कन्ति जावन पथ पर ऄग्रसर होने के ऽलए एवं सफलत़ प्ऱप्त करने के ऽलए प्रऽतभ़ के स़थ-स़थ भ़वऩत्मक बिऽिमत्त़ क़ होऩ अवश्यक है। य़ना कोइ भा प्रऽतभ़व़न व्यऽि ऄगर भ़वऩत्मक स्तर पर भा पररपक्व होग़ तो दोनं गिण सोने पे सिह़ग़ जैसे क़यच करं गे। आस ऽवषय मं एक ब़त ऄत्यन्त महत्वपीणच है फ़क बौऽिक स्तर जन्मज़त तथ़ वंश़निगत हो सकत़ है फ़कन्ति भ़वऩत्मक बिऽिमत्त़ क़ ऽवक़स फ़कय़ ज़ सकत़ है ।

भ़वऩत्मक बिऽिमत्त़ से त़त्पयच यह है फ़क मनिष्य ऄपना ऽनजा भ़वऩओं जैसे क्रोध, ईद्वेग, खिशा, तऩव अफ़द को पहच़न कर ईन्हं आस तरह से संयऽमत एवं ऽनदेऽशत करे फ़क वे ईसकी सफलत़ तथ़ ईद्देश्य पीर्षत मं सह़यक हो सकं । वह ऄपना प्रऽतभ़ तथ़ भ़वऩत्मक योग्यत़ के ऄनिस़र जावन के हर क्षेि मं पररश्रम करते हुए ऄपने व्य़वह़ररक तथ़ व्य़वस़ऽयक जावन मं भा दीसरं की भ़वऩओं को समझ कर समझद़रा से प्रऽतफ़क्रय़ करे । व़स्तव मं ऄपना भ़वऩओं की सहा पहच़न एवं ईनक़ सहा फ़दश़ की ओर ऽनदेशन करऩ हा भ़वऩत्मक बिऽिमत्त़ है। म़नव के मऽस्तष्क क़ सहा ऽवश्लेषण करं तो पत़ चलत़ है फ़क ईसके दो भ़ग हं। ब़यं भ़ग मं तकच बिऽि है तथ़ द़यं भ़ग के द्व़ऱ मनिष्य ऄन्त:करण की अव़ज़ को सिनत़ और परखत़ है। दोनं भ़ग एक दीसरे पर अऽश्रत हं और दोनं क़ स़मंजस्य हा मनिष्य के सफल जावन की पीँजा है। भ़वऩत्मक बिऽिस्तर के ऽवक़स के ऽलये प़ँच मिख्य गिणं क़ ऽवक़स ऄत्य़वश्यक है 1. खिद की पहच़न—जब मनिष्य ऄपना ऽनजा भ़वऩओं को तथ़ ईनके क़रणं को पहच़न कर ईन्हं सहा तरह से ऽनदेऽशत करत़ है तो वे पग –पग पर ईसकी सह़यक बन ज़ता हं । यह अत्मऽवश्लेषण क़ गिण भ़वऩत्मक बिऽिमत्त़ क़ प्रथम सोप़न है। ऐस़ व्यऽि ऄपना योग्यत़ओं एवं कऽमयं क़ सहा मील्य़ंकन करके ऄपने सहयोऽगयं द्व़ऱ समय-समय पर फ़दये गये सिझ़वं क़ स्व़गत करत़ है। ऐसे व्यऽि की परख करने के ऽलये यह देख़ ज़त़ है फ़क वह सिख-दिख, तऩव-खिशा अफ़द पर कै सा प्रऽतफ़क्रय़ करत़ है, अस प़स के पररवेश मे ऄपने अप को फ़कतऩ ढ़लने की ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

चेि़ करत़ है तथ़ ऄपना ऽजम्मेव़ररयं क़ ऽनव़चह फ़कतना कत्तचव्य पऱयणत़ से करत़ है। ऐसे व्यऽि मं ऄदम्य अत्म ऽवश्व़स होत़ है तथ़ वह ऄपने ऽवच़रं को तटस्थत़ के स़थ व्यि करने मं संकोच नहं करत़। 2. अत्म संयम — ऄपना भ़वऩओं पर ऽनयंिण रख कर फ़कसा भा पररऽस्थऽत मं श़न्त रहऩ, नक़ऱत्मक ऽवच़रं को पाछे धके ल कर सक़रत्मक ऽवच़रं के सह़रे क़यचकिशलत़ क़ पररचय देऩ हा अत्मसयंम ऄथव़ अत्म ऽनयंिण है । आस ऽवषय मं यह अवश्यक हो ज़त़ फ़क मनिष्य क्रोध, ईत्तेजऩ, ऄऽनणचय अफ़द दुऽिकोण, ऄऽनष्ठ़, तऩव अफ़द नक़ऱत्मक ऽवच़रं पर ऽवजय प़कर संयम, ऽवश्वसनायत़, क़यचसंलग्नत़ अफ़द सक़ऱत्मक गिणं क़ ऽवक़स करत़ है। ऐस़ व्यऽि क़यच के प्रऽत पीणच समर्षपत रहकर ऄन्तऱत्म़ के अदेशं को समझ कर ऄपना योग्यत़निस़र क़यचप्रण़ला मं बदल़व ल़ने तथ़ नवान प्रयोग करने मं भा संकोच नहं करत़। 3. संवद े नशालत़ — दीसरं की भ़वऩओं को समझऩ और ईनक़ अदर करऩ भ़वऩत्मक बिऽिमत्त़ क़ एक प्रमिख गिण है। मनिष्य जब यह पहच़न लेत़ है फ़क ईसकी व्यऽिगत भ़वऩओं क़ ईसकी क़यचप्रण़ला एवं क़यचक्षेि पर क्यय़ ऄसर पड़त़ है तथ़ वो ऄपने सहयोऽगयं की भ़वऩओं, योग्यत़ओं तथ़ ऽवच़रं क़ अदर करते हुए समझद़रा से एक ऄटी ट संगठन बऩ कर चलत़ है तो हर क्षेि मं ईसे ऽमिं तथ़ सहयोऽगयं क़ सहयोग हा ऽमलेग़। 4. प्रेरण़ शऽि — भगवत् गात़ मं ऽलख़ है "फल की ऽचन्त़ फ़कये ऽबऩ एक़ग्रऽचत्त होकर, तन्मयत़ से क़यच की ओर समर्षपत रहऩ च़ऽहए ।" भ़वऩत्मक बिऽिमत्त़ रखने व़ल़ व्यऽि भा क़यच के प्रऽत पीणत च य

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समर्षपत रहकर पररश्रम, ईद्यम, तथ़ लगन ऄध्य़पक एवं प्रबि​ि तथ़ प्रगऽतशाल से ऄपऩ क़यच करत़ ज़त़ है तथ़ फल की सम़ज की देख रे ख मं पलते हं, ईनकी बिऽि ऽचन्त़ की ओर ध्य़न नहं लग़त़। बौऽिक क़ चहुँमिखा ऽवक़स होत़ है और सफलत़ तथ़ भ़वऩत्मक बिऽिमत्त़ क़ स़मंजस्य हर क्षेि मं ईनके कदम चीमता है। रखने व़ले लोग क़यच को शिरू करने से ‘गोलमेन’ की यह महत्त्वपीणच खोज फ़क घबऱते नहं ऄऽपति ईनमं क़यच करने क़ ‘प्रऽतभ़ के स़थ भ़वऩत्मक ऽवक़स होऩ ऄदम्य ईत्स़ह होत़ है। वे ऄपना लगन एवं अवश्यक है’ भ़रतव़ऽसयं के ऽलए कोइ ईत्स़ह से ऄपने सहयोऽगयं को भा प्रेररत नया ब़त नहं। हम़रे पौऱऽणक ग्रन्थं मं करते रहते हं। भा आऽन्द्रयं पर संयम, मन पर ऽनयंिण, 5. स़म़ऽजक व्यवह़र कि शलत़ - सम़ज सऽहष्णित़, संवेदनशालत़, अत्मश़ऽन्त की ऽवऽभन्न आक़आयं, समिद़यं के स़थ तथ़ अत्मऽवश्लेषण के ऽवषय मं खीब ऽलख़ सौह़दचपीणच संबन्ध स्थ़ऽपत करके कि शलत़ गय़ है। मन की चंचलत़ पर क़बी प़कर से सहयोऽगयं तथ़ ऽमिं को स़थ ले कर ऄपना आऽन्द्रयं को सहा फ़दश़ की और चलने व़ल़ व्यऽि भ़वऩत्मक स्तर पर लग़ऩ हा सहा म़यने मं ‘योग’ और पररपक्व म़ऩ ज़त़ है। ऄपने ईद्देश्य की ‘ध्य़न’ है। ऄत: अज के यिग मं हम ऄपने प्ऱऽप्त की ओर संलग्न ऐस़ व्यऽि दीसरं से ग्रन्थं से प्रेरण़ लेकर आस फ़दश़ की और सहयोग की अश़ रखते हुये स्वयं भा सदैव सहा कदम बढ़़यं तो हर क्षेि मं सफल हो सहयोग के ऽलये तत्पर रहत़ है। ऐसे व्यऽि सकते है । ~✽ ~ क़ प्रभ़वमय व्यऽित्व होत़ है और वह खिले फ़दल से ऽवच़रं क़ अद़न प्रद़न करत़ है। ऐसे प्रभ़वा व्यऽि नये-नये अऱधऩ ऱय प्रयोग करने से भा सकि च़ते नहं हं । वे ऽवश्व मं औद्योऽगकी जगत मं तथ़ सम़ज मं अने व़ले बदल़व के प्रऽत ज़गरूक रहते हं। वो मेरा ब़त को कभा समझ़ ऩ थ़ अज के प्रऽतस्पि़च के यिग मं कि छ ऽवद्य़थी वो अइऩ थ़ मगर दरक़ हुअ स़ बौऽिक योग्यत़ के ऄनिस़र पररश्रम करते हुए पराक्ष़ मं तो ऄच्छे ऄंक प़ते हं फ़कन्ति करुँ क्यय़ ब़त मं खिद ऄपना ज़ुब़ँ से नौकरा के ऽलये स़क्ष़त्क़र के समय य़ फ़कसा फ़क अस मं कब से बैठ़ हुअ थ़ क़यचक्षेि मं सफल नहं हो प़ते हं। अज के औद्यौऽगक घऱने य़ मल्टानेशनल कं पऽनय़ँ वो मेऱ थ़ मगर मिझ से रूठ़ हुअ थ़ स़क्ष़त्क़र के समय अवेदक की के वल ज़ने फ़कस ब़त ने ईसको रोक़ हुअ थ़ शैऽक्षक ऄथव़ बौऽिक योग्यत़ नहं देखतं ऄऽपति अवेदक की व्य़वह़ररक एवं परऽस्तश कर सकीँ ईसको कब हुअ थ़ व्य़वस़ऽयक योग्यत़ भा परखता है । जब ररश्त़ ऄहस़स क़ ज़ने क्ययं हुअ थ़ यह ब़त सत्य है फ़क भ़वऩत्मक बिऽिमत्त़ क़ ऽवक़स फ़कय़ ज़ सकत़ है तो बच्चं को वो मेरे स़मने कभा यी अय़ हा नहं थ़ भ़वऩत्मक रूप से पररपक्व बऩने के ऽलये ऽनग़हं से करं ब़तं मिमफ़कन ऩ हुअ थ़ म़त़ ऽपत़, गिरुजन एवं सम़ज के सहा योगद़न की अवश्यकत़ है। आसके ऽलये घर ईसक़ मेऱ संव़द स़मने कब हो होत़ थ़ क़ स्नेहपीणच व़त़वरण, म़त़-ऽपत़ क़ मेरा ईसक़ हर संव़द पसे दाव़र होत़ थ़ अपस मं प्रेम तथ़ अदरपीणच व्यवह़र, बच्चं ~✽ ~ की भ़वऩओं क़ अदर तथ़ ईन्हं ऄपने दरक़ -चटक़ हुअ, ऽवच़र व्यि करने की छी ट देने की पसे दाव़र- दाव़र के पाछे से। अवश्यकत़ है। जो बच्चे बचपन से हा हँसा परऽस्तश- सज़द़ , झिकऩ फ़कसा के अगे खिशा व़ले घर मं, प्रेरण़ देने व़ले

लघि कथ़

बंटव़ऱ संदाप तोमर

म़ँ की ऄंत्येऽि पर तानो भ़आयं ने तम़म संपऽत्त क़ बंटव़ऱ करने के फै सल़ फ़कय़ त़फ़क फ़कसा ग़लतफ़हमा य़ फस़द की गिंज़इश न रहे...तानो हा बेटं की म़ँ के प्रऽत "ऄटी ट श्रध्द़" ईमड़ पड़ा... बड़े बेटे ने फ़दवंगत म़ँ को संबोऽधत फ़कय़, "म़ँ ती मिझे हमेश़ खचच के ऽलए ऽपत़जा से चिप छि प़ कर रूपये फ़दय़ करता था..ती तो ज़नता है मिझे रुपयं से फ़कतऩ प्य़र है और फ़फर मेरे खचच भा तो...... तेरे बंक के रुपयं पर मेऱ हा तो ऄऽधक़र है ऩ..."

कऽवत़

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

मझले बेटे ने तकच फ़कय़. "म़ँ, ती तो ज़नता है मिझे सोने से फ़कतऩ प्य़र है ..ती सबसे ऽछप ऽछप़ कर मेरे ऽलए ऄंगीठा,चेन बनव़ फ़दय़ करता था तेरे गहनं पर तो मेऱ हा ऄऽधक़र हुअ न ..." ऄब ब़रा सबसे छोटे बेटे की था...ईसने देख़--- ईसकी अँखं के स़मने म़ँ की ऄऽस्थयं क़ कलश रख़ थ़ ...ईसने कलश को ईठ़य़ और बिदबिद़ते हुए ऄपने कमरे की ओर बढ़ गय़..दोनं बड़े भ़आयं के क़नं मं छोटे के शब्द पड़े--" म़ँ, तेरा ऄऽस्थय़ँ मेरे ऽलए तेरे ऽसि़ंतं क़ संबल है ... ये कलश मिझे पल पल मजबीता देत़ रहे... ऐस़ अशाव़चद दाऽजयेग़.... ~✽ ~

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वाऱ

कह़ना

प्रवेश सोना

7-8 वषच की रहा होगा ईसकी ईम्र जब वो ऄपना म़ँ के स़थ क़म पर अता था। वाऱ ऩम सिनते हा क़नं को सिह़ गय़।ऄपने नन्हे ह़थो से ब़ल्टा मं प़ना भर-भर के म़ँ की बऱमद़ धोने मं मदद करता था । धारे -धारे वाऱ की म़ँ ने क़म पर अऩ बंद कर फ़दय़ और वाऱ के नन्हे ह़थं ने क़म की ब़गडोर सम्भ़ल ला ।कइ ब़र पीछ़ की म़ँ क्ययं नहं अता तो बड़ा म़सीऽमयत से वाऱ कहता अंटाजा मं बहुत ऄच्छे से सफ़इ करुँ गा अपके ।म़ँ को और घर भा क़म करने ज़ऩ होत़ है न।मेऱ मन कइ ब़र ब़लश्रम के ऄपऱध से ग्रऽसत होत़ लेफ़कन ऩ ज़ने क्ययं वाऱ को देखने की अदा हो चिकी अँखे रोज सिबह ईसक़ आन्तज़र करता रहता ।ईस नन्हा ब़ऽलक़ ने ऩ ज़ने कोनस़ मोऽहना मन्ि फ़दय़ थ़ मिझे जो मन ईससे कोइ ऄनज़ऩ बंधन ब़ँध बैठ़ थ़ । मौसम बदलते रहे और वषच दर वषच वाऱ मेरे मन मं गहरे तक बसता गइ। जब बिख़र ने 8-10 फ़दन तक पाछ़ नहा छोड़़ तो वाऱ हा था ऽजसने रसोइ मं च़य प़ना क़ क़म भा संभ़ल ऽलय़ थ़।वाऱ समझद़र भा बहुत था कोइ क़म एक ब़र समझ़ने पर अस़ना से समझ ज़ता था ।बच्चं और पऽत को भा थोड़ा ऱहत ऽमल गइ था ऄकस्म़त सर पर अये क़म से । जेसे हा ब़हर क़ गेट खिलने की अव़ज़ अता क़न वाऱ के कदमो की अहट पहच़न ज़ते ,और मन खिश हो ज़त़ ईसे देख कर । सत्यऩऱयण की कथ़ की कल़वता की तरह वाऱ भा फ़दनं फ़दन शरार और ईम्र से बड़ा हो रहा था ।एक फ़दन ईसकी बऽहन ने अकर कह़ की वाऱ 8 फ़दन तक नहा अएगा। 1-2 नहा पीरे 8 फ़दन...!! ऐस़ क्ययं? बऽहन जो खिद एक बच्चे की ब़लक म़ँ था,

मिझे आश़रो मं समझ़य़ फ़क वो कपडे से हो गइ है ।बहुत देर तक फ़दम़ग पर जोर फ़दय़ तब ऄसल ब़त समझ प़इ । प्रकु ऽत ने स्त्रा की श़राररक बऩवट को स्त्रात्व प्रद़न करने के ऽलए बचपन से हा ऐसा पराक्ष़ओ से दो दो ह़थ होऩ ऽसख़ फ़दय़ थ़ ।

एक ब़ऽलक़ के बचपन की स्वभ़ऽवि़ आस तरह की पराक्ष़ओं की जरटलत़ को समझने मं हा ख़त्म होने लगता हे ।पररव़र की बड़ा ऽस्त्रय़ँ जो आन पराक्ष़ओं मं प़रं गत हो चिकी हे, ईनके द्व़ऱ दा गइ ऽहद़यते म़सीम ब़ऽलक़ को समय से पहले बड़़ बऩ देता हे। 8 फ़दन ब़द शमच से झिक़ वाऱ क़ चेहऱ नज़र अय़ ।मेरा अँखे तो ईसे देख ऐसे तुप्त हुइ जेसे लम्बे ऽवरह के ब़द ऽप्रय के दाद़र हुए हो । वाऱ मेरे सव़लो से कतऱता हुइ चिपच़प क़म मं लग गइ । जब वह ज़ने लगा तो मेने प्य़र से ईसे ऄपने प़स ऽबठ़य़,और गमच दीध क़ ऽगल़स ईसे पकड़ फ़दय़ ।जब वो दीध पाने लगा तो मेरे ह़थ ईसके ईलझे ब़लो को सहल़ने लगे ।तब कहा ज़कर वाऱ के चेहरे पर पिऱना सहजत़ अइ । ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

समय ऄपना रफ़्त़र के स़थ वाऱ और मेरे ररश्ते को प्रग़ढ़त़ देत़ रह़ ।होला के रं ग और दाव़ला की थक़ देने व़ला सफ़इ के स़थ तैय़ररय़, सब मं वाऱ क़ ऄहम् ऽहस्स़ होत़ । क़म करते वक़्त ईसक़ गिनगिऩऩ मेरा थक़न को चिटफ़कयं मं दीर कर देत़।ऄच्छ़ लगत़ थ़ मिझे ईसक़ ग़ऩ । दाव़ला की छि रट्टयं मं बच्चं के घर अज़ने पर क़म क़ दब़व थोड़ बड़ ज़त़ ।ऽजसे वाऱ हंस कर कै से हल्क़ कर देता था।वाऱ क़ यह गिण मिझे मोह लेत़ थ़ । देर ऱत तक रसोइ मं क़म करने ब़द सिबह ईठा तो देख़ घड़ा 8 बज़ रहा था। ऄरे अज वाऱ भा लेट हो गइ श़यद । यहा सोच कर गैस पर दीध चढ़़ कर ऄखब़र के पन्नं पलटने लगा ।छि रट्टयं मं बच्चं क़ सबसे जरुरा क़म देर तक सोऩ होत़ हे सो मिझे भा ज्य़द़ ऽचन्त़ नहा हुइ क़म की । 8 से 9 और 9 से 10 बज गए ....ऄरे अज क्यय़ हो गय़ ।त्यौह़र और ईस पर वाऱ क़ ऽबऩ बत़ये छि ट्टा कर लेऩ मिझे थोड़ परे श़न स़ करने लग़ ।जेसे तेसे मेने घर क़ क़म फ़कय़ और दोपहर मं वाऱ को फोन फ़कय़ । यह मोब़आल वाऱ ने ऄपना तनख्व़ से बचत करके ऽलय़ थ़ ।फ़कतऩ पाछे पड़ा था मेरे ,अन्टा मिझे मोब़इल फ़दल़ दो मिझे ग़ने सिनऩ हे ।मेने थोड़ डॉट कर कह़ थ़ पढ़ने क़ तो शौक नहा तिझे ग़ने सिनने क़ तो बड़़ शौक हो गय़ है ।हँस कर कहता कोनस़ मिझे मेम बऩऩ हे पढ़ कर करऩ तो झ़ड़ी पोछ़ हा हे। ह़र कर मेने ईसे मोब़इल फ़दल़ फ़दय़ । कइ ब़र नम्बर ऽमल़ने पर भा जब कोइ जव़ब नहा अय़ तो मन खाझ गय़। पहला ब़र मिझे वाऱ पर गिस्स़ अय़ । त्यौह़र ,बच्चं क़ घर पर अऩ और वाऱ क़ ऽबऩ बत़ये छि ट्टा कर लेऩ मिझे गिस्स़

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करने को प्रेररत कर रहे थे ।ह़ल़ंफ़क बेरटयं ने बऱबरा से रसोइ मं क़म संभ़ल ऽलय़ थ़ पर मेऱ मन व्यऽथत थ़ की बच्चे कि छ फ़दनं को घर अये तो भा ईन्हं क़म करऩ पड़ रह़ थ़ । फ़दल और फ़दम़ग यहा सोच कर परे श़न थ़ की अऽखर ऽबऩ बत़ये वाऱ ने छि ट्टा क्ययीँ की ...वो कभा ऐस़ करता तो नहं है ।कहा वो बाम़र तो नहा हो गइ ,लेफ़कन बाम़र होता तो फोन तो ईठ़ सकता था ।फ़कतने ऽवच़र फ़दम़ग मं और सबमे वाऱ हा था । 4 फ़दन ब़द वाऱ की बऽहन घर अइ और कहने लगा की वाऱ के क़म के पैसे दे दो । मं हैऱन सा ईसे देखने लगा ।पीछ़ वाऱ क़म छोड़ रहा हे क्यय़?जव़ब मं ईसने ह़ं मं गदचन ऽहल़इ । क्ययं पर..? सव़ल करते वक़्त कइ अशंक़ओ से ऽगर गइ था मं ।बऽहन ने आठल़ कर कह़ की ईसकी श़दा हो गइ । क्यय़ !!! मं खिद को संभ़ल नहा प़इ और धम्म से सोफे पर बैठ गइ । वाऱ की श़दा कह़ँ, कै से, कब ??? कहा तिमने ईसे पैसे के ल़लच मं बेच तो नहा फ़दय़ ।मं ऽचल्ल़ सा पड़ा ईस पर । पऽत ने मिझे लगभग ड़ंटते हुए कह़ "रऽश्म ये क्यय़ कह रहा हो, यह ईनक़ ऽनजा म़मल़ है ।" नहं ऐस़ नहा हो सकत़ वाऱ ने कह़ थ़ एक ब़र मिझे फ़क हम़रा ज़त मं श़दा मं पैसे ऽमलते है लड़के की तरफ से ।मेरा बहन को 5000 ऽमले थे पर अन्टा मं श़दा नहं करुँ गा ।मेरा बऽहन को ईसक़ अदमा बहुत म़रत़ हे और क़म के स़रे पैसे भा ले लेत़ हे।वाऱ की बऽहन के स़थ अये ऄधेड़ को देख कर मिझे स़रा ब़ते सहा लगने लगा । कहा वाऱ भा फ़कसा ऐसे हा ऄधेड़ य़ कोइ और ..... नहा मं तिम्हे कोइ पैसे नहं दींगा ।स़थ अय़ ऄधेड़ अदमा ख़ ज़ने व़ला नज़रो से मिझे घीरने लग़ ।मेरे पऽत ने ईन्हं समझ़य़ की वाऱ के पैसे वाऱ को हा ऽमलंगे अप ईसे हा भेज देऩ ।यह सिन कर मन मं एक अस बंध गइ वाऱ से ऽमलने की । बऽहन चला गइ लेफ़कन मिझे सोचने को कइ स़रे सव़ल दे गइ ।मेऱ मन वाऱ

के ब़रे मं सोच सोच कर परे श़न हुव़ ज़ रह़ थ़ ।ख़ऩ पाऩ सब बेस्व़द स़ हो गय़ ।बेरटयं ने यह कह कर मिझे हँस़ने की कोऽशश की म़ँ अपकी एक बेटा क़ ब्य़ह हो गय़ खिश हो ज़ओ पर ये के सा श़दा । मन म़नने को तैय़र हा नहा थ़ । लगभग 6 महाने ब़द ऄच़नक वाऱ घर अइ।ईसकी अँखे असिओं से भरा हुइ था । मं भा ईसे गले लग़ कर सिबक पड़ा । क्यय़ हुअ तिझे, आतना क़ला क्ययीँ हो गइ और ग़ल भा ऽपचक गए हे अँखे भा गड्ढे मं धसा हुइ हे ।क्यय़ ससिऱल मं परे श़ना हे तिझे? जिब़न और अँखं से सव़लोँ की बौझ़र कर दा था मेने ।वाऱ बस एक ब़त बोला, अन्टा जा मिझे क़म पर रख लो प्लाज़ ।ऄंधे को च़ऽहए क्यय़ दो अँख।वाऱ के ज़ने के ब़दमेने कोइ क़म व़ला ब़इ नहं रखा था। मेरा नज़र मं वाऱ की जगह कोइ नहं ले प़ रहा था य़ यि कहु की मं हा फ़कसा को वो जगह नहं देऩ च़हता था । वजह कि छ भा रहा हो पर ऄभा तक घर क़ स़ऱ क़म खिद हा कर रहा था ।वेसे बच्चं के चले ज़ने के ब़द हम दोनं क़ क़म थ़ भा फ़कतऩ । ह़ँ ह़ँ क्ययं नहं पर बत़ तो सहा ब़त क्यय़ है। अन्टा जा मेऱ ससिर मिझसे प़ँव दबव़त़ थ़ और मऩ करने पर स़स मिझे बहुत म़रता था ।पऽत तो नशे मं क्यय़ क्यय़ नहा करत़ थ़ ....मं छोड़ अइ, ऄब नहा ज़ईं गा।ईनके पैसे दे दीग ं ा मं क़म करके पर ससिऱल नहा ज़ईं गा । वाऱ तो बतचन धोने चला गइथा पर मं श़दा के स़त वचन और पऽवि कहे ज़ने व़ले बंधन की माम़ंस़ करने मं जिट गइ ।आस बंधन मं बंधे रहऩ सिखद हे य़ अज़़द होऩ ....।कइ सव़ल ऐसे होते है ऽजनके जव़ब भा सव़ल हा होते हे ।सव़लो के भँवर से वाऱ की अव़ज़ ने हा ब़हर ऽनक़ल़ जो बतचन धोते हुए गिनगिऩ रहा था "जिजदगा हे सफ़र ये सिह़ऩ यह़ँ कल क्यय़ हो फ़कसने ज़ऩ ....!!!

लघिकथ़

सिनहरा च़दर ऄचचऩ ठ़कि र

कड़़के की ठण्ड पड़ रहा। नजम़ बेचैन था। बड़ा मिऱदं के ब़द ईसकी गोद भरा था। ऄभा वो बच्च़ छह म़ह क़ हुअ हा थ़ फ़क आस बेरहम ठण्ड से ऽनमोऽनय़ क़ ऽशक़र हो गय़। हॉऽस्पटल मं बच्च़ ड़क्यटरं की नज़रं मं थ़ तो नजम़ ऄल्ल़ह की रहनिम़ओं मं था । दिअ म़ंग रहा था, मन्नतं म़ंग रहा था फ़क ऄल्ल़ह ईसकी सिन ले और ईसकी गोद भर कर न ईज़ड़े । अऽखर ईसकी दिअ रं ग ल़इ, ईसके शौहर ने ईसे बत़य़ फ़क ईनक़ बच्च़ ऄब खतरं से ब़हर है। दोनं ख़ुशा ख़ुशा ऄपना औल़द को संभ़ले घर ज़ रहे थे। ऱस्ते की एक मज़़र देख ऄच़नक नजम़ बोला ‘सिऽनए क़र यह़ँ रोक दाऽजए, मं यह़ँ सिनहरा च़दर चढ़़ने की मन्नत पीरा करके अता हूँ।’ बच्चे को ऽपत़ की गोद मं देकर नजम़ पसच लेकर ईतर ज़ता है और मज़़र के प़स की दीक़न से ऄच्छा सा सिनहरा च़दर ले लेता है । वो अगे बढ़ हा रहा था फ़क ईसकी नज़र मज़़र के प़स के पेड़ के नाचे दिबकी एक औरत पर ज़ता है जो सदच हव़ओं से बच़ने ऄपना गोद के बच्चे को ऄपना छ़ता से ऽचमट़ए था । ईसको देख नजम़ के ज़ेहन मं एक अंधा सा कंधा और वो एक पल मज़़र को सजद़ कर ऄपने ह़थं की पकड़ा च़दर ईस औरत को ओढ़़ कर क़र की तरफ बढ़ ज़ता है । ~✽ ~

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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मंथन

ड़यरा

ऄंजऩ टंडन गमी के मौसम । सब कहते है गमी क़ प़ऱ चढ़ रह़ है । पर मिझे पत़ नहं चलत़ । दरऄसल मिझे गमी हा नहं लगता, गमी क्यय़ मिझे ज़ड़ं क़ भा कोइ ख़़स एहस़स नहं होत़, तेज़ ब़ररशं से भा गिरेज़ नहं है...!!! बचपन मं म़ँ प्य़ज़ कटव़ता था कटव़ता क्यय़, ....क़टने की प्रेऽक्यटस करव़ता था, जब फ़क ईस सऩतना घर मं फ़कसा को कच्च़ प्य़ज़ ज़्य़द़ पंसद नहं थ़ क़टते देख़ थ़ म़ँ को कइ ब़र.... अँचल के कोनं से अँखं पंछते फ़कतना ब़र कोऽशशं ऄपने द़यरं मं हा हल ढी ँढ लेता है ऩ..... "ऄब क्यय़ हुअ"...द़दा की तेज़ तऱचर अव़ज़ के स़थ अँचल और ओस क़ ऽमल़न ताव्र गऽत से होत़, "कि छ नहं म़त़जा.....वो बच्चं के ऽलये कच्च़ क़टीँ हूँ थोड़़...." मिझे वो ख़रे प्य़ज़ भले हा ऄच्छे ऩ लगे....पर ख़ता ज़रूर था । म़ँ ऄक्यसर जब रौ मं होता तो कहता....... "हमेश़ कोने और क़ँधे ऩ ऽमला करं है बब्बन.... रसोइ मं तो कम से कम मन की कर हा लीँ ।" वो ये कहता तो मं ब़लसिलभ हँसा से ,झट से कहता म़ँ मिझे भा करना है मन की....। ईनकी अँखं मं आक भागा स़ जिचत़ झलक अता । "ऩ बब्बन ऩ, ठ़कि र जा ऩ करं फ़क कभा तेरे मन मं ये ऽवच़र भा अये"....मं समझ नहं प़ता फ़क ख़ुद तो म़ँ, ....रसोइ मं

ऄपने मन की करं हं.....और मिझ पर हा रोक ........पर पत़ नहं क्ययी.ँ ... अठ बरस की ईमर भा ब़त क़ ममच समझता था श़यद....और वो मन क़ क्यय़ थ़? श़यद आतने बरस ब़द ऄब समझ अत़ है...!!! कभा कभा स़बिन क़ झोल और ज़ला व़ल़ झ़म़ दे म़ँ कहता..... "चल मिइ..... फ़दन भर गले पड़े है ये नहं म़ँ क़ ख़्य़ल करं ........ज़ऱ ये ज़फ़रा स़फ कर दे.....घिटन होये है कभा कभा ।" नन्हं ह़थ जल्दा जल्दा चल़ता ....मं ज़फ़रा को ड़ँट लग़ता....."घिटन घिटन दीर ज़..... बब्बन की म़ँ को हव़ लग़..." और म़ँ गमच तवे पर रोटा भील.....मिझे कस के साने से लग़ लेता..... श़यद मेऱ फ़दल सफ़दयं से आत्त़ नहं भाग़ ऽजत्त़ ईनकी पसाने की धोता के अँचल मं भागत़ थ़ । वो गंध अँच भा मेरे नथिनं मं रचा बसा है.... (सँभ़ल रखा है क्ययंफ़क म़ँ ने कह़ थ़ फ़क हमेश़ कोने और क़ँधे ऩ ऽमले हं...) म़ँ, तिम्हं यह़ँ गमी नहं लगता..... ईनके पसाने से भागे ब़लं को मं ऄपना नन्हं ईगँला पर ऽलपट़ कर पीछँता..... बब्बन ये मौसम तो ऽसफ़च ब़हर से हा बदलं हं.... आन से मिझे कोइ फ़र्कच ऩ पड़े । ऄसला मौसम तो मन की महान ब़तं से बदलं है ...... म़ँ फ़कत्त़ समझने लगा था वो कच्चा ईम्र.....जब भरा नंद मं पंख़ बँद हो ज़त़.....भरा सरदा रज़इ ख़ट से ऽनचे ऽगर ज़ता.....नंद नहं खिलता था मेरा.......औरतं के मौसमं मं ढलऩ साख रहा था मं...... आसाऽलये मिझे अज भा गमी नहं लगता ...... 28/5/15

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

लघिकथ़

सबक

ऄचचऩ ठ़कि र

‘चट़क, धड़़म, धिप्प -।’ एक ब़प ऄपने फ़कशोर लड़के को ले थप्पड़, ल़तं म़रे ज़ रह़ थ़ स़थ हा गररय़त़ भा ज़ रह़ थ़ । ‘ले–क्यय़ ऄब करे ग़ ऐस़–तीने क्यय़ समझ़ थ़ – मेरा ऩक के नाचे मनम़ना करे ग़ ती – मं तेऱ ब़प हूँ ब़प – समझ़ – ले ।’ ब़प ने कस कर घिस़ ईसकी पाठ मं जम़य़ । फ़कशोर ऽतलऽमल़त़ रह गय़ । दरव़ज़े की ओट ऽलए अँचल मिंह मं ठीं से म़ँ तड़प ईठा था पर पिरुष के अगे बेबस औरत ऄपना ममत़ क़ भा गल़ घंटने को ल़च़र हो गइ था । ब़प लऽतय़ते हुए चाख़–‘तेरा ये ऽहम्मत – समझत़ क्यय़ है ती – तेऱ ये ह़थ हा तोड़ ड़लीग ँ ़ – आसा ह़थ से रस़ले ऽसगरे ट पात़ है न ती – ले ।’ कसकर लऽतय़ने, जिऽतय़ने के ब़द ब़प ईसे घ़यल पक्षा स़ फशच पर छोड़ कमरे से ब़हर ऽनकल ज़त़ है । ब़प के ऽनकलते म़ँ दौड़ कर बेटे को ऄपने ऄंक मं समेट लेता है । कि छ फ़दन ब़द स्की ल से अते फ़कशोर को ईसक़ ब़प बिल़त़ है । ‘जा -!’ सर झिक़ए वो स़मने अत़ है । ‘ये लो तान रुपय़ – एक ऽसगरे ट ले अ – और जल्दा ।’ कहकर ब़प अऱम कि सी मं पसर ज़त़ है । फ़कशोर रुपय़ जेब मं ड़ल निक्कड़ की दीक़न पर ज़त़ है – ‘ऄंकल – दो ऽसगरे ट देऩ ।’ कहकर जेब से छह ऽसक्के ऽनक़ल कर दे देत़ है । ~✽ ~

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स़क्ष़त्क़र

ऄपने शब्दं को जाऩ साखो.. तिम शब्दं मं जाओ चंद्रक़ंत देवत़ले जा से ऄंजी चौधरा की ब़तचात

ईज्जैन य़ि़ के दौऱन हमं (मं, ऽवजय सप्पऽत्त और नाताश ऽमश्र ) चन्द्रक़न्त देवत़ले जा से मिल़र्क़त करने क़ सौभ़ग्य ऽमल़ । बेहद सरल स्वभ़व क़ व्यऽित्व ऽलए हुए वो हमं लेने ऄपना गला के निक्कड़ तक अए । बेहद अदर भ़व से ऄपने घर के अँगन मं बैठ़य़ । श़लान स्वभ़व और ठहऱ हुअ व्यऽित्व, ऐस़ पहला ब़र देखने को ऽमल़ । स्वभ़व से हंसमिख 76 स़ल की ईम्र मं भा गजब क़ जोश देखते हा बनत़ थ़ । एक स़ऽहऽत्यक चच़च ऽजसके ऄंतगचत बहुत सा ब़तं पर हम लोगं की ब़तचात एक च़य के दौर के स़थ शिरू और च़य खत्म होने के स़थ हा खत्म हो गइ । ईसा चच़च क़ एक ऽहस्स़ अप सभा के स़थ यह़ँ स़ंझ़ कर रहा हूँ ... हम तानं क़ एक जैस़ हा सव़ल थ़ फ़क अज के लेखन मं, लेखक/लेऽखक़ की पररभ़ष़ क्यय़ है ? देवत़ले जा अप खिद हा देखे वक़्त ब़दल रह़ है और वक़्त के मित़ऽबक लेखन मं भा बदल़व अऩ बेहद जरूरा है । ऽजस तरह वक़्त के स़थ स़थ सम़ज बदल रह़ है ईसा को लेकर लेखन मं भा बदव़ल अ रहे हं । ईन्मि​ित़ और सेक्यस को लेकर अज बहुत सा कऽवत़ और कह़ना क़ लेखन, लेखकं द्व़ऱ ऽलखने और पढ़ने को ऽमल रह़ है । कि छ स़ल पहले तक सेक्यस के ऽवषय पर ब़त करऩ भा बिऱ म़ऩ ज़त़ थ़, वहं अज खिले तौर पर आसे ऽलख़ ज़ रह़ है । लेखक य़ लेऽखक़ ऄब आस फकच को ऄपना लेखना से ऽमट़ते ज़ रहे हं, ब़त ओर गंभार तब हो ज़ता है जब एक औरत आस

ऽवषय पर ऽलखता है और ईसे रटप्पणा के तौर पर ग़ऽलय़ँ और बहुत कि छ ऄऩपशऩप सिनने और पढ़ने को ऽमलत़ है । बहुत सा लेऽखक़एँ जो नया है और ऐस़ वैस़ ऄपने खिलेपन (बोल्डनेस) की वजह से ऽलख तो देता है पर ब़द मं खिद हा सबसे बचता फ़फरता हं 'ऄरे भइ ...ऐस़ ऽलखऩ

हा क्ययं फ़क सबसे नज़रे बच़ना पड़े'(ओर एक ज़ोर स़ ठह़क़ लग़ कर वो हँस पड़ते है ) ऐस़ नहं है फ़क पहले के स़ऽहत्यक़र सेक्यस जैसे ऽवषय पर ऽलख नहं रहे थे,पर वो शब्दं क़ चयन आतने ऄच्छे से करते थे फ़क ईसे पढ़ने पर मन मं ऽघन्नत़ नहं,ऄऽपति प्रेम क़ संच़र करते हुए से लगते थे । अज कल शब्दं के चयन पर कोइ ध्य़न नहं दे रह़ आस ऽलए ये ऽवषय पढ़ते वक़्त मन बहुत ऄजाब स़ हो ज़त़ है '' । देवत़ले जा ने ऄपना ब़त को ज़़रा रखते हुए कह़ फ़क ... कै सा ऽवडम्बऩ है फ़क ऄब ऽहन्दा स़ऽहत्य भा ऄलग ऄलग खेमं मं बंट़ हुअ लगने लग़ है । भ़रताय स़ऽहत्यक़र, प्रव़सा स़ऽहत्यक़र य़ स्थ़नाय स़ऽहयत्क़र । पर ये ब़त समझ मं नहं अता फ़क लेखन को ऄलग ऄलग क्षेि मं कै से ब़ँट़ ज़ सकत़ ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

है । ऽजतऩ सबको सिऩ और समझ़,बस ये हा ब़त समझ अइ फ़क भ़वऩएँ सब की एक जैसा है पर ऄनिभव ऄलग ऄलग ऽजस के अध़र पर हर कोइ ऽलखत़ अ रह़ है और ईसा पर अज तक लेखन टाक़ हुअ है । ऄपना ब़त को ज़़रा रखते हुए ईन्हंने ऄपना आस ब़त पर सबसे ज्य़द़ जोर फ़दय़ फ़क...बहुत ब़र मंने एक ब़त को बहुत हा गहऱइ से महसीस फ़कय़ है और वो हा ब़त, मिझे ईस वक़्त ओर भा दिखा कर ज़ता है फ़क जब कोइ लेखक य़ लेऽखक़, फ़कसा को ज़ने ऽबऩ ईस पर फ़कसा भा ब़त को लेकर दोष मढ़ने लगते हं । कोइ ऄच्छ़ ऽलख रह़ है तो आस ब़त से परे श़ना, कोइ श़ंत रह कर क़म करत़ है तो परे श़ना, फ़कसा को भा सम्म़न ऽमले तो बेक़र क़ हो हल्ल़ । ये कै स़ लेखक वगच है जो पढ़़ ऽलख़ होने के ब़द भा फ़कसा की भ़वऩएँ नहं समझत़ । कऽवत़ कह़ना ऽलखने व़ले फ़दल से आतने कठोर कब से और कै से हो ज़ते हं फ़क फ़कसा की भा ईसकी पाठ के पाछे बिऱइ करने से भा गिरेज नहं करते ''फल़ं ने ऐस़ कर फ़दय़, देखो तो फल़ं ने कै स़ ऽलख़ है, ईफ़्फ़ रे ब़ब़!पत़ नहं कै से हँस कर सबको पट़ लेता है य़ य़र! वो ''सर'' को फ़कतऩ मस्क़ म़रत़ है य़ फ़कतऩ मस्क़ म़रता होगा ''अफ़द अफ़द । ऐसा हा फ़कतना ब़ते हं जो अते ज़ते सिनने को ऽमल ज़ता हं । पर मेऱ बस आतऩ हा कहऩ है फ़क ''ऄरे रे ब़ब़ ! फ़कसा की भा पररऽस्थऽत जो ज़ने ऽबऩ, ईस पर फ़कसा भा तरह की कोइ भा रटप्पणा मत करं । रटप्पणा करने व़ले/व़ला की बिऽि पर तब ओर भा हँसा अता है जब वो पीरा तरह से सच से अवगत हुए ऽबऩ सबके अगे फ़कसा दीसरे के सच को स़ंझ़ करने

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की कोऽशश करते हं । ऄरे भ़इ ! सच क़ तो ज़ने दाऽजए, सबके ऽलए ईसके ऽवच़र कै से हं, ये तक ईसे नहं पत़ होते और वो द़व़ करते हं पीरे सच को ईज़गर करने क़ । बिऱइ करने व़ले ये नहं ज़नते फ़क कब फ़कसा की कोइ भा कु ऽत क़लबोध बन ज़ए.... आस ब़त को कोइ नहं ज़नत़ । ऄपना ब़त को ज़़रा रखते हुए ईन्हंने कह़ फ़क 'मिझे अज भव़ना प्रस़द ऽमश्र जा की ये पंऽिय़ँ बरबस यीं हा य़द अ गया ऄनिऱग च़ऽहए कि छ और ज्य़द़ जड़-चेतन की तरफ /ल़ओं कहं से थोड़ा और । ऽनभचयत़ ऄपने प्ऱणं मं | बस ये हा सोचत़ हूँ फ़क क़श बेक़र की ब़तं करने व़लं ने कभा ऄपना सोच क़ रचऩत्मक ईपयोग करने की सोचा होता तो वो लोग अज ऄपने लेखन को ऽशखर पर प़ते । आस पर मंने ईनसे पीछ़ ....''द़द़'' अप ऄभा तक कह़ँ कह़ँ गए हं और फ़कन फ़कन स़हऽयत्क़रं से ऽमलं हं ? तो ईनक जव़ब थ़ फ़क ...... मं ऄपना नौकरा के दौऱन लगभग पीऱ जिहदिस्त़न घीम चिक़ हूँ और ऄभा तक जह़ँ-जह़ँ ज़ऩ हुअ, वह़ँ के जन समीह और ईसको लाड करने व़ले ऄलग ऄलग स़ऽहत्यक़रं से

मेरा मिल़र्क़त हुइ है । हर क्षेि के लोग, ईनकी सोच, वह़ँ के रहन सहन के मित़ऽबक हा ऽमला । मंने आस ब़त को बहुत हा गहऱइ से समझ़ है फ़क फ़कसा की ब़त क़ फ़कसा से त़लमेल हा नहं होत़ । एक बिऽिजावा वगच है, ऽजसकी ऄपना हा दिऽनय़ हं, ऄपने हा लोग हं और एक साऽमत द़यऱ है,जो फ़लती बोलने मं ऽवश्व़स नहं करत़ पर करत़ ऄपने मन की है । तभा तो वो ऄपऩ क़म करते हुए बहुत ऄच्छ़ ऽलख रहे हं, ईन सबक़ स़ऽहत्य मं ऄपऩ एक मिक़म है । ऐस़ मेऱ ऄपऩ खिद क़ ऽनजा ऄनिभव है फ़क जैसे हर धमच के ऄलग ऄलग धमचगरु ि हं, वैसे हा स़ऽहत्य मं भा हर स़ऽहत्यक़र की ऄपना हा पहच़न, ईसकी सोच और ऽवच़रध़ऱ से होता है, जो ईनके लेखन को एक ऄलग हा पहच़न प्रद़न करता है । और ऽनताश ऽमश्र क़ एक अऽखरा सव़ल थ़...''द़द़ क्यय़ कऽवत़/ कह़ना ऽलखने क़ कोइ ईऽचत समय हं ? कइ लोगं से सिऩ है फ़क वो सिबह के वक़्त तरोत़ज़़ होते हं आस ऽलए वो सिबह के वक़्त हा ऽलखते हं ? आस पर एक ब़र फ़फर वो ठह़क़ लग़ कर हँसते हुए हम तानं से कहते है फ़क क्यय़ कऽवत़ ऽलखऩ य़ कह़ना ऽलखऩ फ़कसा स्की ल के चेप्टर जैस़ है फ़क ईसे य़द फ़कय़ और रट़ म़र कर सिबह के वक़्त ऽलख फ़दय़ । ऄरे भ़इ लेखन को वक़्त मं मत ब़ंधो, वो तो खिला हव़ है ईसक़ ऄहस़स करो और ऄपने शब्दं मं ईत़रं । ऄपने शब्दं को जाऩ साखो, तिम शब्दं मं जाओ और शब्द तिम्हं जावन मं श़लानत़ से कै से ऽलख़ और जाय़ ज़त़ है वो ऄपने अप साख़ दंगे । '' हम सबकी च़य के स़थ स़थ ब़तचात भा यहा सम़प्त हो गया और चलते चलते देवत़ले जा ने ऄपना आस पिस्तक को भंट करके हम सबक़ बहुत खीबसीरता से सम्म़न फ़कय़ । आनके ऽलए अभ़र जैसे शब्द भा बहुत छोटे पड़ ज़ते है । ~✽~ ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

कऽवत़

ऄंऽतम व़द़ सिनात़ स़मंत

सिन ओ रूठे रब मिझसे, बिऱ लगत़ है पिक़रऩ मेऱ तिमको..... आसऽलए अज करता हूँ एक ऄंऽतम व़द़ तिमसे.... ऩ.... ऄब नहं ऽलखीँगा कोइ प़ता तिम्हं कोइ ऄरद़स नहं... ऩ.... ऄब कोइ ब़त नहं दीर चला ज़ता हूँ ऄब आस ईद़स पल को यहं छोड़ के ... समेट कर ऄपना परछ़आयं को भा कहं ये फ़फर तिम्हं छी कर तकलाफ़ न दं... ऄसहनाय है घुण़ तिम्ह़रा ईफ्फ !!!!! पर फ़फर क्यय़ मं ऽलख प़उँगा कभा ??? मेरा सोचं क़ द़यऱ तो बस तिम तक थ़ मेरा ईप़सऩ, प्रात, ऽशकवे.......मनिह़र... सबमं श़ऽमल तो तिम थे न... फ़फर ???? कोइ ब़त नहं... चलो ऐस़ करता हूँ आस ऽनगोड़ा कलम से ऄब ऩत़ हा तोड़ लेते हं... यह सेति तोड़कर अज दीर ज़ रहा हूँ तिमसे... लौटऩ मिऽश्कल होग़ श़यद ऄब.. तिम पिक़रोगे नहं और मिझे यीँ अऩ गव़ऱ नहं... ~✽~

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पौला ग्ऱस पर ईछल की द

व्यंग्य

संजाव ऽनगम

हमसे ऽपछला पाफ़ढ़यं के स़ऽहत्यक़र बड़े भ़ग्यव़न थे फ़क ईनके पल्ले स़ऽहत्य क़ हऱ भऱ मैद़न अय़ थ़ ऽजसके क़रण वे ईस हरा भरा भ़व भीऽम की हरा- हरा घ़स पर क्षण भर से लेकर जावन भर तक स़ऽहऽत्यक कि ल़ंचे भर सके थे। ईस लेखकीय दौर क़ जलव़ हा कि छ ऐस़ थ़ फ़क ईस ज़म़ने मं ऽजस फ़कसा को भा ईस मैद़न मं घिसने क़ मौक़ ऽमल़, वह जावन भर वहा ँ लोट लग़त़ रह़ । ईस प्ऱकु ऽतक हरे मैद़न की त़सार "ऱम तिम्ह़ऱ चररत स्वयं हा क़व्य, कोइ कऽव बन ज़ए सहज सम्भ़व्य " जैसा था । जैसे हा कोइ नय़ स़ऽहत्यप्रेमा ईस मैद़न मं पग धरत़ थ़, ईसके मन मं कल्पऩओं के फी ल ऽखलने लगते थे । ईस मैद़न पर ऽजधर नज़र ड़ऽलए ईधर भ़वं, ऄनिभीऽतयं व रसं से जिसऽचत शस्य श्य़मल़ घ़स के उपर स़ऽहत्यकमी ऽततऽलयं की तरह से रं गान छट़एं ऽबखेरते नज़र अते थे। ईस ईन्मि​ि व़त़वरण मं प्रकु ऽत की स्व़भ़ऽवक गोद मं अऱम से बैठ स़ऽहत्यक़र को रचऩ करते देखऩ फ़कतना सिखद ऄनिभीऽत होता होगा। एक ह़थ मं नोटबिक ऽलए, दीसरे ह़थ से पेन मिंह मं फ़दए, अक़श की ओर त़कत़ बैठ़ भ़विक कऽव आं तज़़र कर रह़ है फ़क कब रचऩ सिंदरा धारे धारे ईतर ऽक्षऽतज से अएगा और ईसकी नोटबिक मं सम़ ज़येगा । प्रताक्ष़ के ऐसे हा फ़कसा क्षण मं कऽव ने ऄच़नक पेन मिंह से हट़कर नाचे रख फ़दय़ और ईस ऽनमचल, सिगऽन्धत व रसऽसि घ़स क़ एक ऽतनक़ ईठ़ कर मिंह मं दब़ ऽलय़ । ईस ऽतनके से ऽनचिड़े हुए रस क़ वह ऄसर हुअ फ़क सम्पीणच रचऩ ऄपने अप अँखं के स़मने स़क़र हो गया। स़ऽहत्य के मैद़न मं एक और फी ल ऽखल गय़ । कऽव जा को भा समझ अ गय़

फ़क लेखन क़ गिण न अक़श को त़कने मं है और न हा पेन चब़ने मं, बऽल्क आस रसवंता घ़स के भ़वपीणच रस मं वह प्रभ़व है जो ऽलखने को सहज संभ़व्य बऩत़ है । कऽव जा ने घ़स के कि छ और ऽतनके ईठ़ कर चब़ये और ईनकी लेखना धड़़धड़ रचऩएं ईगलने लगं-कऽवत़, लम्बा कऽवत़, मह़कऽवत़, खंडक़व्य, मह़क़व्य । ऄन्य रचऩक़र भा ईस घ़स को चब़ते गए और कह़ना, ऩटक, ईपन्य़स, जावना से स़ऽहत्य को समुि करते गए । फ़कन्ति आस स़मीऽहक चऱइ क़यचक्रम क़ दिष्पररण़म ये हुअ फ़क ईस स़ऽहऽत्यक झिण्ड मं कि छ कोरे चरै ये भा अ

ऽमले । ईन चरै यं ने ईस मैद़न की ऐसा घनघोर चऱइ फ़क ऽजससे वह हऱ भऱ मैद़न सरक़रा योजऩओं की तरह से सफ़चट हो गय़ । जब हम़रा पाढ़ा क़ कलम भ़ंजने क़ नंबर अय़ तब तक ईस कि दरता मैद़न को एक स्टेऽडयम क़ रूप देकर ईस पर ऽवऽभन्न व़दं, गिटं व मंडऽलयं के रे शं से ऽनर्षमत पौला ग्ऱस ऽबछ़ दा गया था। पौला ग्ऱस य़ऽन फ़क कि दरता हरा घ़स से भा ज्य़द़ हरा घ़स । एक एक कु ऽिम रे श़ ऩप तौल कर व सहेज कर जिसथेरटक अध़र से जोड़़ हुअ. सतह आतना ऽचकना व सप़ट की बैठने को पैर ईठ़ओ तो ईसकी ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

खीबसीरता कि चलने को मन न करे । जीतं से छी भर दो तो मैला हो ज़ए । ऄब ऐसा 'सौफ़फसटाके टेड ग्ऱस" पर बैठ कर कोइ भल़ कै से ऽलख सकत़ है । वह भागा धरता की संधा खिशबि, वह घ़स पर ऽबखरा ओस की बीँद,ं वह ऽतनके ईठ़ कर मिंह मं दब़ऩ और फ़फर कल्पऩ के लोक मं ईड़कर चले ज़ऩ । वह सब आस पौलाग्ऱस मं कह़ँ संभव है । यह तो अज के चररि सा फ़दख़वेब़ज़ है। उपर से ऽचकना पर ऄन्दर से कठोर है। दौड़ता ऽज़न्दगा की रफ़्त़र क़ प्रदशचन है और देखने मं एक सा सतह लगते हुए भा स्वऩमधन्य समाक्षकं व मठ़धाशं की तरह से बाच मं से ईठा है । अधिऽनक व्यवह़रकि शल बिऽिजाऽवयं की तरह से दीर से मिस्कऱ कर बिल़ता है पर प़स ज़ने पर ऄपनेपन की भाना भाना खिशबि नहं देता है । मं कि दरता मैद़न के धोखे मं ऄपना लेखना ईठ़ये आधर चल़ अय़ थ़ । हरा घ़स पर क्षण भर बैठ कर ऽलखने की ईम्माद था पर यह़ँ तो पौलाग्ऱस पर लेखक, कऽव ऽखल़ऽड़यं की तरह से बेसब्रा से आधर ईधर दौड़ते हुए ऽमले, एक दीसरे को छक़ते हुए, ऄपऩ दल बऩते हुए और ऽमल कर दीसरे दलं पर हमल़ करते हुए । आस वैज्ञ़ऽनक घ़स की त़सार हा कि छ ऐसा है । यह हरा भा है और घ़स भा है पर आस घ़स क़ ऽतनक़ ईठ़ कर ईसके रस को चख़ नहं ज़ सकत़ है । ऐसा घ़स पर चलऩ भ़वं की लेखना क़ नहं, सख्त लकड़ा की बना कलम क़ क़म है । श़यद आसाऽलए आस पर भ़गते दौड़ते लेखक ऄपना लेखऽनयं को हॉकी की तरह से त़ने रखते हं । ~✽~

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समाक्ष़

महंद्र जा की कऽवत़ओं मं जावन के प्रऽत ऄसाम ऱग है सौरभ प़ण्डेय

छः दशकं के क़ल-खण्ड मं फ़क्रय़शाल व्यऽि की रचऩधर्षमत़ के संभ़व्य नहं, कि ल प्ऱप्य पर चच़च होना च़ऽहये। आतने लम्बे क़ल-खण्ड मं फ़कसा सफ़क्रय रचऩकमी के शब्द-कमच के प्रभ़व को स़ऽहत्य के स्वरूप मं अये पररवतचनं के स़पेक्ष अँकऩ ऄऽधक ईऽचत होग़। आस क्रम मं श़ऽब्दक हुइ मनोदश़ य़ तदनिरूप मनोभ़वं के अगे, रचऩकमच के शैऽल्पक स्वरूप, कथ्य मं ऽनऽहत भ़वं मं स्थ़ऽयत्व, ऽबम्बं की पहुँच तथ़ प्रभ़व, रचऩकमच क़ ईद्येश्य तथ़ लक्ष्य अफ़द जैसे ऽवन्दि यफ़द चच़च क़ अध़र बनं, तो ऄवश्य हा रचऩकमच के स़पेक्ष रचऩक़र के कइ पहली स्पि हंगे । ऐस़ कोइ प्रय़स वतचम़न के स़ऽहत्य-य़ऽियं के ऽलए भा स़थचक म़गच-आं ऽगत होग़। महेन्द्रभटऩगर की रचऩ-य़ि़ छः दशकं से ऄनवरत है। ईनके स़मने ऽहन्दा पद्य-स़ऽहत्य ने ऽवऽभन्न पररवतचनं को ऽजय़ है । आन छः दशकं मं गाऽत-क़व्य की प्ऱसंऽगकत़ तक पर प्रश्नऽचह्न लगे हं। यह ऄलग ब़त है फ़क ऄनिश़ऽसत गात-रचऩएँ फ़फर भा ईठ खड़ा हुईं। फ़फर भा, कराब तान पाफ़ढ़य़ँ आसा भ्रम मं गिजर गयं फ़क गात य़ गेयत़ पद्य-स़ऽहत्य क़ प्रमिख ऄंग है भा य़ नहं सहा है, पररवतचन श़श्वत है। स़थ हा, यह भा सच है फ़क पररवतचन सद़ मनच़ह़ नहं होत़। वैसे, जो नैसर्षगक है, वहा स्थ़या होत़ है गाऽत-क़व्य मं नवगात क़ प्ऱदिभ़चव एक क्ऱऽन्त क़ प्ऱरम्भ भा है ऽवफ़दत हा है, आस क्ऱऽन्त क़ सीिप़त दो क़व्य-अचरणं के ऽवरोध मं हुअ थ़। एक तो नया कऽवत़ के ऩम पर ऽक्यलि गद्य क़ ऄसह्य ऄऽतक्रमण थ़। तो दीसऱ थ़, गातं मं स्व़निभीऽत के ऩम पर गलदश्रि ऄऽभव्यऽियं से पटा ऽलजऽलजा शुग ं ़ररक रचऩओं क़ ऄऽतरे क, स़थ हा, व़यवाय वणचनं से हुइ ईकत़हट तथ़ प्रकु ऽत से ऽलए

गये ऽबम्बं के म़ध्यम से संकेतं क़ ऽक्यलि से ऽक्यलितर फ़कये ज़ने के ऽलए होत़ हुअ श़ऽब्दक व्य़य़म ! ऄथ़चत, गात जनम़नस य़ लोक-जावन की दुऽि मं यथ़थच के धऱतल से दीर हो गये थे। ये मीलभीत अवश्यकत़ओं, तदनिरूप सोच, क़ प्ऱसंऽगक रुप़यन रह हा नहं गये थे। नवगात आन दोनं क़व्य-अचरणं को स़ध प़ने मं सफल हुइ, यह स्वाक़रने मं कोइ संशय नहं है।

आन मतं के अलोक मं डॉ. महेन्द्र भटऩगर की रचऩ-य़ि़ के माल-पत्थरं को ध्य़न से पढ़ऩ अवश्यक हो ज़त़ है। आस हेति कसौटा पर गात-क़व्य-मनाषा देवेन्द्र शम़च ’आन्द्र’ द्व़ऱ सम्प़फ़दत एवं ऄंजिमन प्रक़शन, आल़ह़ब़द से प्रक़ऽशत, क़व्यसंग्रह ’महेन्द्र भटऩगर के नवगात : दुऽि और सुऽि’ है। सम्प़दक के तौर पर देवेन्द्र शम़च ’आन्द्र’ जा ने महेन्द्रभटऩगर की न ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

के वल रचऩ-य़ि़ एवं ऄभाि को रे ख़ंफ़कत फ़कय़ है, बऽल्क नवगात के क्षेि के ऄन्य दस म़न्य पिरोध़ओं के ऽवच़र भा संकऽलत फ़कये हं । ’आन्द्र’जा के ऄल़व़ कि म़र रवान्द्र, डॉ. ऱमसनेहा ल़ल शम़च ’ य़य़वर’, डॉ. ऽजतेन्द्रऩथ ऽमश्र, मधिकर ऄष्ठ़ऩ, डॉ. श्राऱम पररह़र, डॉ. ओमप्रक़श जिसह, डॉ. ऽवष्णि ऽवऱट, वारे न्द्र अऽस्तक, योगेन्द्र दत्त शम़च तथ़ डॉ. ऽशवकि म़र ऽमश्र ने आन रचऩओं पर स़रगर्षभत ऽववेचऩएँ प्रस्तित की हं। ऽववेचऩएँ कमोबेश ईपयिचि वण्यच ऽवच़रं के स़पेक्ष हा हुइ हं तथ़ महेन्द्रजा की रचऩओं को नवगातं की कसौटा पर परखने क़ स़थचक प्रय़स हुअ है। आन ऽववेचऩओं को यफ़द ध्य़न से देख़ ज़य तो सभा म़न्यवर समवेत स्वर मं यहा कहते हं, फ़क महेन्द्रजा की रचऩओं मं जह़ँ एक ओर यिव़ मन की उज़च, ईमंग, ईल्ल़स और त़ज़गा है, तो दीसरा ओर जावन-पथ पर चलते-ऽगरते-ईठते अमजन की हत़श़, ऄवस़द, ईसकी ऄसमंजस य़ छटपट़हट है। ऽवश्व़सा मन की ललक़र है, तो ऄव्यवह़र के ऽवरुि चेत़वना के ठोस स्वर भा हं। आन रचऩओं मं भऽवष्य के प्रऽत अश़ है, तो वयस्क मन के स्थ़वर हो चिके ऄनिभव, तदनिरूप संतिऽलत सोच भा है। जह़ँ एक ओर सम़ज की घुऽणत ऽवरूपत़ और ऽवद्रीपत़ है, तो समय की क्रीरत़ से ऽवचऽलत मनोदश़ भा है, जह़ँ ऄपररह़यच प्रगऽत के दब़व भा हं। ऐसा फ़कसा लंगड़ा प्रगऽत मं न च़हते हुए भा बहने की ऽववशत़ भा है। परन्ति, यह भा सहा है फ़क अपकी रचऩओं मं श़श्वत अचरणं के प्रऽत गहन अस्थ़ भा है। सवोपरर, सबने आस तथ्य को ऄवश्य स्वाक़ऱ है, फ़क, महेन्द्रजा की कऽवत़ओं मं जावन के प्रऽत ऄसाम ऱग है। रचऩओं मं जावन के प्रऽत यहा ऱग़त्मकत़ अश्वस्त करता है, फ़क

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जावन प्रकु ऽत क़ श्रेष्ठतम वरद़न है। महेन्द्रजा आस वरद़न को हर तरह से स्वाक़र करते हं. कहऩ न होग़, महेन्द्रजा के रचऩकमच मं जावन ऄपने ऽवऽभन्न रूपं मं फ़दखने के ब़वज़ीद ऄपने स्थ़या स्वरूप मं हा ऽवद्यम़न है । छ़य़व़दोत्तर क़ल की रचऩओ मं भा प्रकु ऽत से ऽलये गये ऽबम्बं क़ प्ऱरूप कइ वषं तक पीवचवत हा थ़। यद्यऽप रचऩएँ यथ़थच के धऱतल ईतरने लगा थं। फ़कन्ति, म़नवाय अचरण को रुप़ऽयत करते गातक़र तब भा वन-प्ऱंतर से ऽलये गये ऽबम्बं के म़ध्यम से मनस-रहस्यं के ज़ल बिन रहे थे। यह ऄवश्य है फ़क कऽवयं क़ एक वगच वतचम़न की ऽवसंगऽतयं के ऽवरोध मं अमजन के मन की खंझ को श़ऽब्दक करने के प्रय़स मं रचऩरत थ़। ऄऽभव्यऽि के नये स़धन ढी ँढे ज़ रहे थे। आस क्रम मं यफ़द कह़ ज़य फ़क नवगात ऄपने प्रोटोट़आप रूप मं हा सहा, परन्ति, फ़दखने लग़ थ़, तो ऄऽतशयोऽि न होगा। गात नये ऽबम्बं और ऽशल्प मं ऄपऩया ज़ रहा नवत़ तथ़ क़व्य-चेतऩ मं अया प्रखरत़ क़रण नये कलेवर मं प्रस्तित हो रहे थे। आन नये गातं क़ भा स्थ़या शैऽल्पकत़ गेयत़ हा था। परन्ति कथ्य और आं ऽगतं मं बहुअय़मा पररवतचन के रं ग-ढंग फ़दखने लगे थे। व्यऽिव़चा भ़व लोक और सम़ज की भ़वऩओं को स्वर देने क़ प्रय़स कर रहे थे तथ़ ’मनिष्य’ रचऩओं के के न्द्र मं स्थ़ऽपत हो चिक़ थ़ । महेन्द्रजा आस समीचे क़ल-खण्ड और आन समस्त घटऩओं के स़क्षा हं ! ईनकी प्रस्तिऽतयं के ऽशल्प और कथ्य आस नयेपन से ऄछी ते नहं थे । प्रस्तित क़व्य-संग्रह की भीऽमक़ मं वारे न्द्र अऽस्तक कहते भा हं – ’मनिष्य फ़कतने रूपं मं

सम़ज मं सम़दुत है, ईसक़ ऽहस़बफ़कत़ब है महेन्द्रभटऩगर क़ रचऩ-लोक ! ईनके रचऩकमच क़ एक हा लक्ष्य है अदमा क़ सव़ंग ऽवक़स’। गात के कलेवर मं हो

रह़ यहा व्य़पक ऄंतर अगे चल कर ऽवन्दिवत पररभ़ऽषत हुअ । गात की भ़वभीऽम से ईठ़ यथ़थचव़दा वैच़ररक दुऽिकोण ’नवगात’ के रूप मं स़मने अय़। एक जगह गात तथ़ नवगात के मध्य ऽवध़गत ऄंतर को रे ख़ंफ़कत करते हुए डॉ.

भ़रतेन्दि ऽमश्र ने कह़ है, फ़क, ’गात के

प़रम्पररक ऽवषय प्रणय, अकषचण, मनस्त़प, करुण़, ऽवरह, द़शचऽनकत़ और रहस्यव़द की ऄऽभव्यऽि रहे हं, नवगात मं आनकी अवश्यकत़ नहं है । नवगात मं वैयऽिकत़ क़ एक तरह से ऽवरोध हा है’। त़त्पयच है फ़क नवगात लोकोन्मिख हुअ करते हं। डॉ. भ़रतेन्दि ऽमश्र आसा ऽवन्दि को अगे स्पि भा करते हं - ’यह़ँ लोकोन्मिखत़ से

त़त्पयच लोक-जावन की ऽवसंगऽतयं लोकधिनं तथ़ लोक जावन मं व्य़प्त जनम़नस की संवेदऩ के रूप मं देख़ ज़ऩ च़ऽहये। लोकोन्मिखत़ को व्य़पक जनम़नस की संवेदऩ के रूप मं देख ज़ऩ ऄऽनव़यच है’। यह़ँ यह समझऩ अवश्यक होग़, फ़क ’लोक’ क़ ऽनऽहत़थच के वल ग्ऱमाण पररवेश नहं है । शहरं मं जा रहे व्यऽि के ऽलए ’लोक’ शहरा जावन के समस्त अय़मं से प्रभ़ऽवत हुअ शब्द हा होग़। प्रसन्नत़ है, फ़क आन्हं ऽवन्दिओं के स़पेक्ष क़व्य-संग्रह की रचऩओं क़ अकलन हुअ है । अदरणाय देवेन्द्र शम़च ’ आन्द्र’ स्पि शब्दं मं कहते हं - ’मिझे यह

स्वाक़र करते हुए तऽनक ऽद्वध़ नहं है फ़क महेन्द्र भटऩगर भले सोलहो-अऩ नवगातक़र न हं, फ़कन्ति ईनके आन ऽवच़रणाय गातं मं ’नवगात़त्मकत़’ क़ तत्त्व लब़लब है’।

जैस़ फ़क ईपयिचि व़क्ययं से स्पि हुअ है, महेन्द्रजा क़ तबक़ समय नवगातं के म़ंस -पिण्ड आकार-ग्रहण का समय था। कइ करवटं के ब़द हा नवगात क़ यह अधिऽनक स्वरूप प्रसीत हुअ । य़ना, महेन्द्र भटऩगर की आन रचऩओं मं नवगात के प्रोटोट़आप प्ऱरूप की झ़ंकी ऄवश्य पररलऽक्षत होता है । रचऩओं के ऽशल्पगत लय के सम्बन्ध मं आन्द्रजा पिनः कहते हं - ’

महेन्द्रभटऩगर के प्रऽतप़द्य गातं मं ’छन्दं की बिऩवट’ भले हा न हो, फ़कन्ति वे लय की कसौटा पर खरे ईतरते हं’। ’आन्द्र’ जा क़ ऐस़ कहऩ आन रचऩओं की समाक्ष़ हेति एक नया दुऽि ऄपऩने क़ अह्व़न करत़ है । अऽखर शब्दं मं गेयत़ म़ि लय-संयोग य़ शब्दं की म़ऽिकत़ के क़रण नहं होता। तो क्यय़ महेन्द्रजा गेयत़ -पनर्वहन के पिए मापिकता के अिार्े अन्य ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

प्रभ़वा क़रणं क़ प्रयोग कर रहे थे ? यफ़द ह़ँ, तो ईसकी गंभार पड़त़ल ऄन्य ऽवद्व़नं ने क्ययं नहं की, ऽजनकी आस संग्रह मं भीऽमक़एँ हं ? डॉ. ऱमसनेहाल़ल शम़च ’ य़य़वर’ ने आस संदभच मं एक प्रय़स ऄवश्य फ़कय़ है। परन्ति, समस्त नम्रत़ के स़थ मं ऄवश्य कहूँग़, फ़क वे भा ऄपना दुऽि को व्य़पक नहं कर सके हं। पंऽियं की म़ऽिकत़ मं एकरूपत़ की खोज़ ईन्हंने ऄवश्य करना च़हा है। परन्ति ऽजतना सहजत़ वे पंऽियं मं च़हते हं, महेन्द्रजा ने वैसा सहजत़ को प्रश्रय फ़दय़ नहं है। ब़की ऽवद्व़नं ने महेन्द्रजा की भ़वभीऽम क़ हा खनन फ़कय़ है ? सभा ने संग्रह की रचऩओ की ’भ़वभीऽम’ पर ऄपना-ऄपना भीऽमक़ओं मं बहुत कि छ कह़ है। परन्ति, यह ’बहुत कि छ’ आन ’लयबि’ रचऩओं के ऽलए तबतक ’बहुत कि छ’ नहं हो सकत़, जबतक ’लय’ के क़रकं की पड़त़ल न हो ज़य ! क्ययंफ़क, आन्द्रजा के कहे क़ संकेत यफ़द समझ़ ज़य तो यह ऄवश्य है फ़क ये रचऩएँ श़स्त्राय छन्दं य़ ऄनिछन्दं को थ़म कर स़ऽहत्य की वैतररणा प़र करता नहं फ़दखतं। मं आस ईद्घोषण़ से पीरा तरह सहमत नहं हूँ। वस्तितः प्ऱरम्भ से लेकर अजतक जो भा नवगात ऽलखे गये हं, वे ऄपने ऽबम्बं और कथ्य के क़रण गातं से प्रच्छन्न तो हं हा, ऽशल्प और शब्द-संयोजन के क्रम मं भा वे छन्दं क़ हू-ब-हू ऄनिकरण नहं करते. यह नवगातं क़ दोष नहं, ऄऽपति आनकी ऽवऽशित़ है। छन्दं के ऽवऽभन्न रूपं य़ सिमल े ं य़ टि कड़ं से नवगातं की पंऽियं क़ ऽनवचहन हुअ करत़ है। महेन्द्रजा की रचऩएँ आससे ऄलग नहं हं। यफ़द कोइ ऄंतर है तो आनकी रचऩओं मं पंऽियं क़ एकस्वरूप न होऩ ! क्ययं न हम आन रचऩओं के म़ऽिकत़, य़ वर्षणकत़, के व्यवह़र पर ऄपना दुऽि को ज़ीम-आन करं ! संग्रह की एक रचऩ ’जावन’ की कि छ पंऽियं को देखते हं - जावन हम़ऱ फी ल

हरजिसग़र-स़ / जो ऽखल रह़ है अज, / कल झर ज़यग़ ! / ... / आसऽलए, हर पल ऽवरल / पररपीणच हो रस-रं ग से, / मधि-प्य़र से ! / डोलत़ ऄऽवरल रहे हर ईर / ईमंगं के ईमड़ते ज्व़र से ! स्पि है, फ़क रचऩ की

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पंऽियं मं ऄंतगेयत़ क़ त़र्ककक ऽनवचहन हुअ है. लय-भंगत़ नहं है। पंऽियं को यफ़द शब्द-कलं के म़नकं के ऄनिस़र देखं तो शब्द-संयोजन ’हररगाऽतक़’ छन्द से ’ ऄनिप्ऱऽणत’ है। परन्ति, संग्रह की ऄन्य रचऩओं को परखने के क्रम मं प्रतात होत़ है फ़क महेन्द्रजा आन रचऩओं मं लयत़ के ऽलए श़स्त्राय छन्दं से ’ऄनिप्ऱऽणत’ य़ ’ प्रभ़ऽवत’ होने के स्थ़न पर ईदीच बहरं य़ ईनके ऽज़ह़फ़ (श़स्त्राय पररवतचन) समर्षथत ऄक़चन पर ऽनभचर करते हं. वस्तितः, आस क़व्य-संग्रह मं महेन्द्रजा ने ईदीच के प़ँच बहरं क़ ऽवशेष रूप से प्रयोग फ़कय़ है. वे बहर हं, रजज - 2212 (दाघच दाघच ह्रस्व दाघच), रमल - 2122 (दाघच ह्रस्व दाघच दाघच), मित्क़ररब - 122 (ह्रस्व दाघच दाघच), मित्द़ररक - 212 (दाघच ह्रस्व दाघच), हजज 1222 (ह्रस्व दाघच दाघच दाघच)। यह़ँ एक तथ्य ऄवश्य ज्ञ़तव्य है, फ़क ईदीच बहर के ऽनयम़निस़र एक दाघच य़ गिरु वणच छन्दश़स्त्र के ऽनयमं की तरह व्यंजन के स़थ फ़कसा दाघच म़ऽिक स्वर के संयोग से हा नहं संभव होत़। बऽल्क दो लघि वणच यफ़द एक स़थ ईच्च़ररत हं तो वे भा दाघच वणच के हा म़ने ज़ते हं। जैस,े हम, तिम, वह, फ़दन, कल, पल अफ़द. आतऩ फ़क, ’ कमल’ शब्द मं ’क’ तो ह्रस्व वणच क़ होत़ है, फ़कन्ति ’मल’ दो ह्रस्वं क़ समिच्चय होने के ब़वज़ीद दाघच म़ऩ ज़त़ है। क्ययं फ़क ’ कमल’ शब्द मं ’मल’ क़ ईच्च़रण समवेत होत़ है। महेन्द्रजा भा ईच्च़रण के ऄनिस़र शब्दं के वणं को ऽनयत म़नने के पक्षधर हं। आनकी रचऩओं की पंऽिय़ँ आन्हं बहरं की अवुऽतयं पर शब्दबि हुइ हं। यह ऄवश्य है, फ़क आन बहरं की अवुऽतयं क़ ऽनवचहन दो य़ दो से ऄऽधक पंऽियं के समिच्चय मं होत़ है। ईपयिचि मत के अलोक मं ऄब रचऩ ’ जावन’ को पिनः देखं - जावन हम़

(2212) / ऱ फी ल हर (2212) / जिसग़र-स़ (2212) / जो ऽखल रह़ (2212) / है अज कल (2212) / झर ज़यग़ (2212) । ऄथ़चत आस पंऽि मं रजज के रुक्नों की अवुऽत हुइ है. लेफ़कन दीसरा पंऽि -

आसऽलए हर (2122) पल ऽवरल परर (2122) / पीणच हो रस (2122) / रं ग से मधि

(2122) / प्य़र से (212)। यह अवुऽत बहर रमल की मिह़ऽज़फ़ ऄथ़चत तऽनक पररवर्षतत अवुऽत है. तऽनक पररवर्षतत आसऽलए फ़क अऽखरा अवुऽत (रुक्नो) मं एक दाघच कम है। यह स़ऱ कि छ ईदीच बहर को ज़नने व़ले भला-भ़ँऽत समझते-बीझते हं। अगे देखं - डोलत़ ऄऽव (2122) / रल रहे

हर (2122) / ईर ईमंगं (2122) / के ईमड़ते (2122) / ज्व़र से (212)। ठाक पीवचवती पंऽि की तरह यह भा रमल बहर के पररवर्षतत रूप मं ऽनबि है। चीँफ़क ईदीच की बहरं ग़ज़लं के ऽमसरं (पंऽियं) मं गेयत़ के होने क़ शत प्रऽतशत द़ऽयत्व ऽनवचहन करता हं, आसा क़रण, महेन्द्रजा की रचऩओं मं गेयत़ क़ अपरूप अ ज़ता है। फ़कन्ति, यह भा ईतऩ हा सच है, फ़क अप एक रचऩक़र के तौर पर रचऩओं की सभा पंऽियं मं एक सम़न बहर को ऄपऩने के अग्रहा नहं हं। आतऩ हा नहं, कइ ब़र तो रुक्नों की अवुऽतयं की संख्य़ भा ऄपने ऽहस़ब से रखते हं। आसके ऄल़वे बाच-बाच मं फ़कसा ऄन्य बहर के फ़कसा एक रुक्नो पर ऽनबि शब्द य़ शब्द समिच्चय को रोक (pause) की तरह भा रख लेते हं। रचऩ ’ऄऽभमरण’ को पिनः लं -

कल सिबह से ऱत तक / कि छ कर न प़य़ / कल्पऩ के जिसधि मं / यिग-यिग सहेजा / अस के दापक बह़ने के ऽसव़ / हृदय की ऽभऽत्त पर जाऽवत ऄजन्त़-ऽचि.. रे ख़एँ / बऩने के ऽसव़ ! रचऩ ’ऄऽभरमण’ के आस भ़ग को संभ़ऽवत बहर के ऄनिस़र संयत करं तो - कल सिबह से (2122) / ऱत तक कि छ

(2122) / कर न प़य़ (2122) / कल्पऩ के (2122) / जिसधि मं यिग (2122) / यिग सहेजा (2122) / अस के दा (2122) / पक बह़ने (2122) / के ऽसव़ (212)। ऄथ़चत, रचऩ क़ यह भ़ग बहर रमल के परवर्षतत प्ऱरूप मं ऽनबि है। लेफ़कन आसके अगे की पंऽि एकदम से ऄलग बहर हजज के पररवर्षतत प्ऱरूप मं स़धा गया है - हृदय

की ऽभत् (1222) / ऽत पर जाऽवत (1222) / ऄजन्त़-ऽचत् (1222) / र.. रे ख़एँ (1222) / बऩने के (1222) / ऽसव़ (12). आतऩ नहं, ’फ़कस कदर भरम़य़ / तिम्ह़रे रूप ने’ जैस़ व़क्यय़ंश य़ पंऽि म़ि़-संयोजन के ऽलह़ज से कत्तइ शि​ि ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

नहं है। व़चन के क्रम मं ’भरम़य़’ शब्द को द़ब कर य़ आसपर से स्वर-अघ़त हट़ कर ईच्च़ररत करते हुए पढ़ऩ होत़ है। क्ययंफ़क आसा रचऩ की आसा पंऽि के सम़न ऄन्य पंऽिय़ँ बहर रमल के पररवर्षतत प्ऱरूप मं ऽनबि हं। जैसे, फ़कस कदर मिझको सत़य़ है / तिम्ह़रे रूप ने - फ़कस कदर मिझ

(2122) / को सत़य़ (2122) / है तिम्ह़रे (2122) / रूप ने (212); ऄथ़चत यह पंऽि बहर रमल के पररवर्षतत प्ऱरूप को संति​ि करता है। दीसरा पंऽि, फ़कस कदर यह कस फ़दय़ तन मन / तिम्ह़रे रूप ने - फ़कस कदर यह

(2122) / कस फ़दय़ तन (2122) / मन तिम्ह़रे (2122) / रूप ने (212); यह पंऽि भा बहर रमल के पररवर्षतत प्ऱरूप को संति​ि करता है। अगे, आसा रचऩ ’ऄऽभरमण’ के आस भ़ग को देखं - कल सिबह से ऱत तक / कि छ कर

न प़य़ / भ़वऩ के व्योम मं / ... / भोले कपोतं के ईड़़ने के ऽसव़ ! / ऄभ़वं की धधकता अग से / मन को जिड़़ने के ऽसव़ /

आस भ़ग की पंऽि मं तान तरह की बहरं को संति​ि फ़कय़ गय़ है। एक, बहर रमल क़ पररवर्षतत प्ऱरूप - कल सिबह से

(2122) / ऱत तक कि छ (2122) / कर न प़य़ (2122) / भ़वऩ के (2122) / व्योम मं (212) । आसा भ़ग मं दीसरा बहर रजज क़ पररवर्षतत प्ऱरूप फ़दखता है - भोले कपो (2212) / तं के ईड़़ (2212) / ने के ऽसव़ (2212), जबफ़क बहर हजज के पररवर्षतत प्ऱरूप को भा यहं देखते हं - ऄभ़वं की (1222) / धधकता अ (1222) / ग से मन को (1222) / जिड़़ने के (1222) / ऽसव़ (12) कहने क़ त़त्पयच यह है, महेन्द्रजा ने नवगातं के प्ऱरऽम्भक समय मं हा छन्द से मिऽि क़ जो प्रय़स फ़कय़ थ़। वे भटके नहं। ईन्हंने रचऩओं की पंऽियं मं ऄंतगेयत़ के ऽनवचहन क़ भरसक प्रयत्न फ़कय़ है। यह ऄवश्य है फ़क ईदीच बहरं के प्रयोग ने, संभव है, कइ छन्द श़ऽस्त्रयं को चंक़य़ होग़। तभा देवेन्द्र शम़च ’आन्द्र’ जा को आन रचऩओं की शैऽल्पक दश़, ऽबम्बप्रयोग तथ़ ऄंऽतम प्रभ़व के अध़र पर यह कहने मं किकऽचत संकोच नहं होत़ - ’

ईनमं (महेन्द्रजा की रचऩओं मं) छन्दोमि​ि

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गद्य़त्मकत़ और सप़टबय़ना कहं नहं ऽमलता। मंने आसाऽलए ईन्हं ’नवगात’ न कह कर ’नवगात़त्मक’ कह़ है’। अगे ’आन्द्र’ जा ऄपने कहे को और स्पि करते हं - ’आन गातं को ’नवगात़त्मक’ कहने क़ कहने क़ अशय ईन्हं कमतर म़नने क़ कतइ नहं है. आस शैला मं छ़य़व़द / प्रगऽतव़द के परवती रचऩक़रं ने प्रचीर म़ि़ मं ऽलख़ है ... गात के ऽलए ऽजतऩ छन्द अवश्यक है, ईतना हा लय । लय यफ़द अत्म़ है तो छन्द ईसको ध़रण करने व़ल़ कलेवर है ... छन्दोभंग की ऽस्थऽत तभा अता है जब रचऩक़र क़ लय पर ऄभाि ऄऽधक़र न हो । ऽभन्न-ऽभन्न लय़निबन्धं से हा ऽवऽवध प्रक़र के छन्द जन्म लेते हं. .. वैसे हा ईन लयं से ऽनर्षमत मि​ि-छन्द के रूप भा ऄनेक़नेक हो सकते हं... महेन्द्र भटऩगर को लय क़ पीऱ ज्ञ़न है’।

*** क़व्य-संग्रह : महेन्द्रभटऩगर के नवगात दुऽि और सुऽि सम्प़दन - देवेन्द्र शम़च ’आन्द्र’ कलेवर - पेपरबैक मील्य - रु. 130/ प्रक़शक - ऄंजिमन प्रक़शन, 942, अयच कन्य़ चौऱह़, मिट्ठागंज, आल़ह़ब़द

anjumanprakashan@gmail.com सौजन्य : ऄऽभव्यऽि ऽवश्वम, लखनउ. *** -- सौरभ प़ण्डेय, एम-II/ ए-17, ए.डा.ए. कॉलोना, नैना, आल़ह़ब़द - 211008 संपकच - 9919889911 इ-मेल - saurabh312@gmail.com

समाक्ष़

सिनो मिझे भा - जगदाश पंकज सौरभ प़ण्डेय सक़ऱत्मक एवं स्पि वैच़ररकत़ ऽनस्संदेह पररष्कु त ऄनिभवं की सम़निप़ता हुअ करता है. आसा क्रम मं कहं तो फ़कसा व्यऽि की सोद्येश्य त़र्कककत़ ईसकी कि ल ऄर्षजत समझ की नंव पर खड़ा ईस सिदढ़ु दाव़र की तरह हुअ करता है, ऽजसके सह़रे हा ईसकी समस्त भ़वदश़ क़ अच्छ़दन तऩ होत़ है। यहा ब़त फ़कसा ऽवध़ ऽवशेष की रचऩओं के संदभच मं कहा ज़य, तो जावन-य़ि़ के दौऱन ऄर्षजत ऽवऽवध एवं ऽवशद ऄनिभव तथ़ अवश्यक ऄध्ययन के मेल से प्रस्तित हुइ त़र्ककक श़ऽब्दकत़ ऽवस्मयक़रा पररण़म फ़दय़ करता है। ऐस़ कहने के मेरे प़स ठोस क़रण हं। त़त्पयच आसऽलए भा स्पि है, फ़क, मेरे ह़थं मं जगदाश पंकज जा क़ क़व्य-संग्रह ’सिनो मिझे भा’ है, जो कऽव क़ पहल़ क़व्यसंग्रह है। परन्ति सऽम्मऽलत नवगातं के तथ्य, कथ्य, ऽवन्य़स एवं आनकी संप्रेषणायत़ मं प्रथम प्रय़स के ऽहस़ब से ऄपेऽक्षत ऄनगढ़पन कहं नहं फ़दखत़। आस हेति मं जगदाश पंकज जा के गहन ऄध्ययन से ऄऽधक ईनके रचऩक़र के द़ऽयत्वबोध को ऄऽधक महता एवं प्रभ़वा म़नत़ हूँ. रचऩक़रं क़ द़ऽयत्व न के वल ऄपना रचऩओं के क़व्यगत ऽनख़र और ईनकी संप्रेषणायत़ के प्रऽत होऩ च़ऽहये, बऽल्क वे आस तथ्य के प्रऽत भा ऽनद्वंद्व हं फ़क अमजन हा ईनके कहे क़ लक्ष्य है। वहा ईनकी क़व्य-प्रस्तिऽतयं क़ प़ठक-श्रोत़ है। नवगातक़र जगदाश पंकज जा के कथ्य मं अमजन की सोच आतना स़न्द्र है, फ़क सिहृद प़ठक संग्रह मं संकऽलत नवगातं से ऽनपेक्ष रह हा नहं सकत़। जगदाश पंकज जा के रचऩक़र क़ स्वयं को सिनने के ऽलए प़ठकं को प्रेररत करऩ ईनके नैसर्षगक गिण की तरह स़मने अत़ है, ऽजसमं कत़च क़ ऄहं तो है हा नहं, रचऩक़रं द्व़ऱ ऄक्यसर ठ़न ऽलय़ गय़ भ़विक हठ भा नहं है। यफ़द कि छ है, तो ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

अत्माय फ़कन्ति प्रखर ऽनवेदन की ईच्च अवुऽत है। आन नवगातं मं अक्रोश, ऽवफलत़, ऄवस़द, हत़श़, ईद़सा अफ़द के स्वर हं भा, तो क़रण कोइ वैयऽिक ऽवफलत़ नहं है। बऽल्क, क़रण व्यवस्थ़ और प्रश़सन की क्रीर ऄसंवेदनशालत़ है, ऽजसके क़रण एक अमजन ऄभ़वं मं ऽपसत़ हुअ भा प्रऽतफ़दन लड़ने-ऽभड़ने को ब़ध्य है। आसा क़रण जगदाश पंकज जा के नवगातं मं व़यवाय भ़वोद्ग़र नहं ऽमलंगे। प्रणय-ऽनवेदन की ओट मं ऽलजऽलजा भ़विकत़ को नवगातं ने यं भा कभा प्रश्रय नहं फ़दय़। संग्रह की प्रस्तिऽतयं के म़ध्यम से कइ ताखे प्रश्न ईभरे हं। ये के वल दैऽनक जावन की ऽवसंगऽतयं के गभच से जन्मे प्रश्न नहं हं, बऽल्क पाफ़ढ़यं से शोऽषत-पाऽड़त की सतत सजग हो रहा चेतऩ से जन्मे प्रश्न हं। सम़ज और व्यवस्थ़ क़ दोहऱ म़नदण्ड आस वगच को सद़ से व्यऽथत, और ऽवऽस्मत भा, करत़ रह़ है। कह रह़ हूँ चाखकर /

वह टास जो ऄब तक / सिना मंने / ऽनरं तर चेतऩ की / ऄनसिने फ़फर भा रहे हं / शब्द ऽजनसे / व्यि होता वेदऩएँ / य़तऩ की / ... / कब सिनोगे / क्यय़ ऽमल़उँ क्रोध को / ऄपने रुदन मं ? आसा क्रम मं आन पंऽियं को देखऩ समाचान होग़ - कब तलक ऽनरपेक्षत़ के ऩम पर / हर गहन प्रऽतव़द से बचते रहोगे / ज़ रह़ बढ़त़ घऩ भ़ष़-प्रदीषण / ऄब ऄसहमऽत को भल़ कै से कहोगे ? / तोड़ कर जिचतन की कसौटा / दाऽजये ऄनिभीऽत को स्वर-चेतऩ। ठाक दीसरा ओर आस क़व्य-संग्रह के हव़ले से यह भा स्पि फ़दखत़ है, फ़क ताखे प्रश्न ईछ़ल कर ऄपना ईपऽस्थऽत जत़ऩ कऽव क़ हेति नहं है। य़, ईसके अग्नेय शब्दं मं व्यवस्थ़व़फ़दयं और श़सक सम़ज के ऽवरुि ऄधार, ऽनरं किश य़ स्वच्छं द अक्रोश भर नहं है। बऽल्क, कऽव सम़ध़न के ऽलए भा ईतऩ हा अग्रहा है। ऄपने वैच़ररक

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सीिं के अध़र पर वह स़थचक आश़रे करत़ है। स़थ हा, ईसके अक्रोश मं दऽलतशोऽषत सम़ज की ऽनरुप़य ऽनर्षलप्तत़ के प्रऽत ऽवरोध भा है। जगदाश पंकज जा सबको स़थ बटोर कर एक सिर मं कहते फ़दखते हं - चाख कर उँचे स्वरं मं / कह

रह़ हूँ / क्यय़ मेरा अव़ज़ / तिम तक अ रहा है ?.. य़ फ़फर, है समय, ऄब भा ऽवच़रं / ऽक्षऽतज के ऽवस्त़र को / ऄब समय के स़थ बदलं / हम पिऱतन भंऽगम़ ! तो स़थ हा, यह भा फ़क - मेरे ऄपने तथ़कऽथत वे / ऄग्रज-ऄनिज / सभा दोषा हं / ऽजनके स्नेह और अदर ने / ये ऄऽभल़ष़एँ पोषा हं / ... / मौऽलकत़ क़ दंभ जा रहे / के वल ऄनिकुऽतय़ँ करने मं / ऽजसको हम ऄपऩ कहते, वो / पिरखं से स़य़स ऽलय़ है ! जगदाश पंकज जा के प़स ऽवकऽसत सीचऩ -तंि का सहज उि​िब्ध अर्िम्ब माि नहं है, बऽल्क प्रत्यक्ष ऄनिभवं से समुि ईनक़ ऽचत्त ऄऽधक प्रभ़वा है। तभा गहन ऄनिभीऽतय़ँ श़ऽब्दक होकर पाफ़ढ़यं की सिषिप्त़वस्थ़ को ईद्वेऽलत करने की क्षमत़ रखता हं। जगदाश पंकज जा सड़ा-गला ऄसक्षम व्यवस्थ़ को ल़नत हा नहं भेजते, आस व्यवस्थ़ पर अमजन को प्रऽतऽष्ठत भा करते हं। यहा तो स़ऽहत्य क़ सद़ से लक्ष्य भा रह़ है - यह दौड़ रोक, ठहरो / ऄब तो

ईसे बच़ओ / बीढ़ा कह़वतं मं / जो अदमा बच़ है ! आन्हं संदभं मं अमजन की ऽनरुप़य ऽस्थऽत को स़पेक्ष करता आन पंऽिय़ँ को देखं - फ़फर नये ऩरे ईछ़ले

ज़यंगे / फ़फर छल़व़ हव़ मं लहऱयेग़ / अदमा को के न्द्र मं ल़कर, नय़ / फ़फर कोइ षडयंि ऄब गहऱयेग़ / फ़फर ऄनगचल ब़तचातं से ऽनकल / कोण ऄपना दुऽि के टकऱयंगे ।

अमजन को हर ह़लत मं खड़़ होने को ईत्प्रेररत करऩ और प़ररऽस्थक जड़त़ के ऽवरोध मं अमजन को जीझने क़ दम देऩ, अव़ज़ ईठ़ने के ऽलए संकल्प हेति तैय़र करऩ, स़म़ऽजक ऽवसंगऽतयं की तमस के ऽवरुि अमजन को झकझोर प़ने क़ स़हस भरऩ नवगातं की सैि़ंऽतक और वैध़ऽनक ऽवशेषत़ है. आसके स़थ हा, भ़व़ऽभव्यऽियं मं गाऽत तत्त्व को बऩये

की स्वाक़यचत़ को नया कऽवत़ओं के सम़ऩन्तर बड़़ कर देते हं - न ऄब ईन्म़द

की / संदभच कोइ भंट चढ़ ज़ये / चलो, हर ओर ऄब सौह़द्रच की / फसलं ईग़ने की / ... / कभा संस़धनं के / क्रीर दोहन ने सत़य़ है / ईज़डा बऽस्तयं को / देश की ईन्नऽत बत़य़ है / ... / ऽजसे तिम अम कहते हो / कभा वह ख़स भा होग़ / आसा ऽवश्व़स से ईठ कर / चलं दिऽनय़ सज़ने को !

रखने के ऽलए व़त़वरण को बच़ये रखऩ नवगातं क़ द़ऽयत्व भा है। जगदाश पंकज जा आन दोनं ऽवन्दिओं को सम्यक स़धऩ के स़थ थ़मे फ़दखते हं। आस स़धऩ मं प्रदशचनऽप्रयत़ क़ ईथल़पन नहं है, न हा अमजन को स्थीलतः ति​ि करने के क्रम मं दऽलत-व्यऽथत-पाऽड़त जावन के प्रऽत ध्य़ऩकषचण हेति ऄऩवश्यक चाख-पिक़र है। यफ़द है, तो संयत एवं सचेत प्रऽतक़र, ऽजसे यं शब्दबि फ़कय़ गय़ है - फ़कसा के

च़हने पर / कि छ करूँ स्वाक़र मं कै से / आसा से मौन हूँ / यह मौन है / आन्क़र की चिप्पा / ... / हज़़रं वषच के आऽतह़स को / जब पाठ पर ल़दे / घुण़ के बोझ से / दबता रहा है चेतऩ मेरा / कहो, तब गवच से / कै से कहूँ यह धमच है मेऱ / ऽलखा जब धमचग्रथ ं ं मं / नहं है वेदऩ मेरा / .. / हव़ की हर फ़दश़ के स़थ / मं कै से बहूँ, बोलो / आसा से मौन हूँ / यह मौन है / प्रऽतक़र की चिप्पा ! कऽव के मौन प्रऽतक़र क़ ऄथच ईसकी ऽववशत़ कत्तइ नहं है, वस्तितः यह व्यवस्थ़जन्य ढंग के ऽवरुि ईसकी ऽनस्पुह क्रोध है - आन फ़दनं फ़कतऩ करठन है / हंठ

क़ ऽहलऩ / और चौऱहे-सड़क पर / मि​ि हो ऽमलऩ / ... / च़हते हं वे / फ़क हम हर ब़त मं ऩटक करं ! नवगात ऄपने व्यवह़र मं अमजन की समस्य़ओं को हा ईज़गर नहं करते, समस्य़ओं के सम़ध़न के प्रऽत भरोस़ भा फ़दल़ते हं। यहा वे ऽवन्दि हं, जो नवगातं ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

नवगात क़ वैध़ऽनक प्ऱरूप ऄवश्य हा स़म़ऽजक तौर पर स्वप्न मं जाता मनोदश़ओं के मोहभंग क़ क़व्य-पऱवतचन है। आसा क़रण, गाऽत-क़व्य को नवगात ने नये अय़म फ़दये हं। आनमं सरस यथ़थचबोध की ऄऽभव्यऽि प्रमिख है। जगदाश पंकज जा के नवगात आस पक्ष को संपि ि करते मिखर ईद़हरण की तरह स़मने अये हं। ग़ँवं मं ऄसम़न प्रगऽत क़ पररण़म स़म़ऽजक टी ट हा हो सकता है। आस टी ट के क़रण शहर झिऽग्गयं-बऽस्तयं के जम़वड़े होते चले गये हं - सड़क फ़कऩरे / बैठ नाम की छ़य़ मं / कच्चा कै रा बेच रहा है ऱमकला.. । ऐसे मं ग़ँव के ऽवस्थ़ऽपतं के ऽलए डरने क़ एक और महता क़रण भा बऩ है। देऽखये -

अज भीखे पेट हा / सोऩ पड़ेग़ / शहर मं दंग़ हुअ है / ... / एक नत्थी दीसऱ य़मान है / अँख दोनो की / मगर ग़मग़ान है / ऽबन मजीरा / ददच को ढोऩ पड़ेग़ / शहर मं दंग़ हुअ है ! आन ह़ल़त मं ईपजे भय और

ऄसह्य वेदऩ को भि​िभोगा हा समझ सकत़ है। कऽव की संवेदऩ यथ़थच की ऄऽभव्यऽि हेति सचेत है। यह क़व्य-संग्रह नवगात ऽवध़ के स्वाक़यच स्वरूप क़ पक्षधर है। लगभग स़ठ वषं मं नवगात कइ दश़एँ एवं असन बदलत़ हुअ ऄपने होने के वतचम़न स्वरूप मं सहज हुअ है, जह़ँ ऽशल्पगत ऽक्यलित़ क़ अतंक नहं है; ऄऽभव्यंजऩओं मं ऄन्यथ़ कल़ब़जा नहं है; संप्रेषण को सटाक करने के क्रम मं श़ऽब्दक व्य़य़म नहं है ! तभा तो संग्रह के नवगातं मं गेयत़ से फ़कसा प्रक़र क़ समझौत़ नहं हुअ है। भ़ष़ ऄवश्य देसजशब्द समर्षथत न हो कर तत्सम-शब्द समर्षथत है। यह बहुसंख्य नवगातक़रं की ध़ऱ से जगदाश पंकज जा को ऄवश्य

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तऽनक ऄलग ऽबठ़ता है। लेफ़कन यह भा सहा है फ़क जगदाश पंकज जा की भ़ष़ मं खड़ा बोला क़ ककच श स्वर भा नहं है। शब्दं के चयन मं ऄपऩय़ गय़ सिगढ़पन समिऽचत अरोह-ऄवरोह को स़ध सकने मं, कहऩ न होग़, सक्षम रह़ है. आस क़रण पंऽियं मं शब्दं की म़ऽिकत़ ईभर कर स़मने अया है जो लयत़ को प्रवहम़न स्वरूप देता है। फ़कसा कऽव क़ पहल़ क़व्य-संग्रह कइ ऄपेक्ष़ओं क़ भ़र वहन करत़ हुअ अत़ है. सहा भा है। फ़कन्ति प्रस्तित क़व्य-संग्रह क़ प्रक़शन ऽहन्दा पद्य-स़ऽहत्य के ऽलए ऄत्यंत अश्वऽस्तक़रा है. आस ऽहस़ब से जगदाश पंकज जा ऄपने प्रथम प्रय़स मं हा स्वयं के प्रऽत प़ठकं की ऄपेक्ष़ओं को घनाभीत कर चिके हं। नवगात ऽवध़ के पररवेश मं प्रस्तित क़व्य-संग्रह पिऽष्पत प़दप की तरह ऄपना ईपऽस्थऽत बऩ सक़ है, यह कहने मं मिझे कहं ऄऽतशयोऽि नहं फ़दखता। वस्तितः क़व्य-संग्रह ’सिनो मिझे भा’ ऽजस ईद्येश्य के स़थ प्रस्तित हुअ है, ईस ईद्येश्य मं सफल है। क़व्य-संग्रह को गातमनाषा अदरणाय श्रा देवेन्द्र शम़च ’आन्द्र’ क़ अशाव़चद तो प्ऱप्त हुअ हा है, ऄन्य दो भीऽमक़ओं मं श्रा योगेन्द्र दत्त शम़च तथ़ श्रा पंकज पररमल के मंतव्य भा सऽम्मऽलत हुए हं। *** क़व्य-संग्रह : सिनो मिझे भा कऽव : जगदाश पंकज पत़ : सोम सदन, 5/41, ऱजेन्द्र नगर, सेक्यटर - 2, स़ऽहब़ब़द, ग़़ऽज़य़ब़द - 201005. संपकच संख्य़ : 8860446774 इ-मेल – jpjend@yahoo.co.in संस्करण : पेपरबैक मील्य : रु. 120/ प्रक़शन : ऽनऽहत़थच प्रक़शन, स़ऽहब़ब़द, ग़़ऽज़य़ब़द (ईप्र) *** -- सौरभ िाण्डेय एम-2/ए-17, ए.डा.ए. कॉलोना, नैना, आल़ह़ब़द -211008 संपकच संख्य़ – 9919889911 इ-मेल : saurabh312@gmail.com

लघि कह़ना

लड़की ऄभा घर मं हा है? नात़ पोरव़ल दुश्य एक : लड़की घर मं है ऄभा। फ़कत़बं खिला पड़ा हं स़मने। बहुत देर से दाव़र त़क रहा ईसकी अँखं मं मिझे ऄनऽगन चौऱहे ऄनऽगन मोड फ़दख़इ देते हं। फ़कस ओर ज़ए कै से ज़ए ? ऄच़नक से लड़की की बिदबिद़हट सिऩइ देता है : अज कोजिचग के ऽलए दीसरे ऱस्ते से ज़उँगा। कि छ फ़कलोमाटर ज्य़द़ हा तो स़आफ़कल खाचना होगा मिझे। लपलप़ता नजरं से घीरते, ईसकी ओर बढते अते ईन ब़आक सव़र लड़कं के चेहरे य़द कर ईसकी अँखं मं दहशत के भंवर ईठते फ़दख़इ देते हं। लड़की ईनसे दीर भ़गने के ऽलए ऄपना पीरा त़कत से स़आफ़कल मं पैडल म़रने लगता है, पर घबऱहट मं स़आफ़कल है फ़क बढता हा नहा। लडके और नज़दाक और नज़दाक अने लगते हं ईसके , बदन क़ समीच़ खीन ऄब लड़की के चेहरे पर जमऩ शिरू हो चिक़ थ़। क्यय़ करे , क्यय़ करे ! कोइ है ? लड़की चाखता ह़ंफता पसाऩ-पसाऩ हो ईठता है। जा, लड़की ऄभा घर मं हा है ? दुश्य दो : लड़की संयत है ऄब और गिनगिऩते हुए ऽखड़की के प़र देखने लगता है, पर ये क्यय़, कं धे से पदे क़ कोऩ लगते हा लड़की चाख ईठता है! ह़ँ, ऐसे हा तो कल क्यल़स मं फ़फऽजक्यस के सर ने मेरे कं धे पर ऄपऩ ह़थ रख ऽलय़ थ़ और लेक्यचर देते रहे थे, कइ ब़र ईनक़ ह़थ हट़ने की कोऽशश की भा था ईसने, फ़फ़र सर ऽपछला साट पर बैठा त़न्य़ के कं धे पर ह़थ रख खड़े हो गए थे। ओफ्फ! फ़कतऩ भय़वह थ़ वह स्पशच, जो ऄभा भा ईसके कं धे पर ऽगरऽगट की तरह ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

ऽचपक़ हुअ थ़ जस क़ तस ईसके बदन के ईस ऽहस्से को खिरोचत़ छालत़ ! निकीले पंजं की वो चिभन ! ऄब कल भा क्यय़ फ़फ़र ऐसे हा सर...? सोच-सोच घबऱता घुण़ से ईफनता ईस स्पशच को ऄभा भा ब़रब़र झटक रहा था लड़की! ~✽~ कऽवत़

ररश्ते रे शम ख़दा मोऽनक़ गौड़

fj'rs js'ke Fks eghu eqyk;e pj[kh ij lyhds ls fyiVs [kq'kh nsrs] jax Hkjrs VwVrh pjf[k;ksa usa rksM+ fn;k Hkze my> x;s rarq iM+ x;h ?kqGxkaBs] fQly&fQly tkrs gSa Nksj --gj ckj dsUnz fcUnq vkSj rarq dh ryk'k esa --O;FkZ gks jgh ÅtkZ --xkaB ds LFkku ij m/kM+rs js'kk nj js'kk fj'rs [kknh gksrs rks \ 'kk;n LFkk;h vkSj lqy>s jgrs de ls de utj rks vk tkrh xkaBs exj fj'rs rks js'ke Fks] my> x;s xqPNexqPN ~✽~

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नाताश ऽमश्र की कऽवत़एँ मं नहं ज़ प़त़ हूं म़ं के प़स मं नहं ज़ प़त़ हूं ऄपना म़ं के प़स जब भा फ़कसा ऱस्ते पर प़ंव रखत़ हूं गिजऱत पहुंच ज़त़ हूं य़ फ़फर ऄयोध्य़ हर ब़र लगत़ थ़ फ़क मं फ़कसा गलत ऱस्ते पर अ गय़ हूं लेफ़कन जब दीसरे के स़थ ज़त़ हूं गिजऱत य़ बऩरस पहुंच ज़त़ हूं दिऽनय़ मं कोइ ऐस़ ऱस्त़ ऄब श़यद नहं है ऽजस पर चलते हुए मं ऄपने घर पहुंच सकीं क्ययंफ़क ऄब स़रे ऱस्ते ईन्हं के घर की ओर ज़ते है। मं यह़ं से देख रह़ हूं य़ तो पिरा दिऽनय़ गिजऱत हो रहा है य़ फ़फर ऄयोध्य़ य़ फ़फर क़शा मं सपनं मं भा नहं देख प़त़ हूं ऄपने घर क़ ऱस्त़ क्यय़ ऄब दिऽनय़ ऐसे हा लोग रहंगे जो के वल ऄपने घर के ऽलए ऱस्ते बऩएगं। मं यह़ं से देखत़ हूं ऄब स़रा हव़एं गिजऱत मं बहता है ऄब स़रा धीप बऩरस मं ऽखलता है स़ऱ वसंत फ़दल्ला मं​ं​ं चमकत़ है स़रा बरस़त ऄब मथिऱ मं होता है। मं नहं ज़ प़त़ हूं ऄपने घर जह़ं से मं देख सकीं फ़क मं जिजद़ हूं य़ मेरे सपने।।

औरत ऄभा जाऽवत है

वह औरत ऽजसे ऄभा- ऄभा रक ने कि चल फ़दय़ है लोगं के ऽलए वह मर चिकी है लेफ़कन कहं न कहं सड़क पर जो औरत मरा है वह ऄभा जाऽवत है। जाने और मरने के बाच औरत छोड़ चिकी है देह से ऄपना अत्म़ लेफ़कन ऄभा भा फी लं के बाच ईसकी ईपऽस्थऽत बरकऱर है ऄपना ऄंधरी ा आच्छ़ओं के बाच अज भा औरत को मं हंसते हुए प़त़ हूं

कऽवत़

मरा हुइ औरत की ईपऽस्थऽत ईसके बच्चं के बाच ठाक ईसा तरह से है ऽजस तरह फी लं के बाच रं ग की ईपऽस्थता रहता है। शहर मं खबर फै ल गइ फ़क श्य़मनगर की वह औरत मर गइ जो फी लं को प़ना देता था लेफ़कन जब मं फी लं के बाच ज़त़ हूं तो मरा हुइ औरत फी लं के रं गं के बाच हंसता हुइ फ़दख़इ देता है। कइ ब़र लोगं क़ मरऩ मरऩ हा नहं होत़ है।। ईस औरत की ईपऽस्थऽत दजच की ज़एगा चील्हं के बाच ऄऩजं के बाच ऽजसकं ईसने एक नय़ अक़र फ़दय़ है। मं देख रह़ हूं मरा हुइ औरत की ईपऽस्थऽत धीपं के बाच।।

ऽजन्द़ सपने भा प़ए ज़ते हं गौर से देखो ! जरूरा नहं हं फ़क हर मऱ हुअ अदमा मऱ हा हो कइ ब़र मरे हुए अदमा के प़स ऽजन्द़ सपने भा प़ए ज़ते हं आसऽलए मं मरे हुए हरे क अदमा को बहुत गौर से देखत़ हूँ और पहच़नने की कोऽशश करत़ हूँ ईसके सपनो क़ रं ग क्ययोकिक सपनो के रं ग मं छि प़ रहत़ हं देश क़ आऽतह़स । गौर से देखो जरूरा नहं हं फ़क सभा अदमा मरते हा हो कइ ब़र मरे हुए अदमा की अँखे बचा रहता हं जह़ँ से हमं ऽमल सकत़ हं कल के ऽलए कोइ बेहतर ऱस्त़ ॥ ~✽~ संपकच : 39, ज़वऱ कं प़ईं ड एमव़य ऄस्पत़ल के स़मने, आं दौर मप्र। सचल यंि क्रम़ंक- 8889151029

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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रं गमंच की स़ऽधक़ और कल़धमी ऄसाम़ भट्ट को समर्षपत

एक ब़र फ़फर जन्म और मुत्यि की तैय़रा, आस ऩटक को करते हुए हर ब़र मरता हूँ और हर ब़र ऄपने हा गभच से दिब़ऱ जन्म लेता हूँ ... ऄसाम़ भट्ट ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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कभा निक्कड़ ऩटक करता थं ये एक्यरेस, ऄब बॉलाविड मं अएंगा नज़र नव़द़ । कलसच चैनल पर प्रस़ररत ‘बैरा ऽपय़’ की ‘बड़ा ठकि ऱइन’ को साररयल के दशचक बखीबा ज़नते हं, पर ईस रोल को ऽनभ़ने व़ला कल़क़र कह़ँ की हं यह ईनके मिहल्ले के लोग भा नहं ज़नते। टावा स्क्रीन पर फ़दखनेव़ला ‘बड़ा ठकि ऱइन’ कोइ और नहं, वहा क्ऱंऽत भट्ट हं जो ढ़इ दशक पहले नव़द़ की सड़कं पर ‘शोभ़ दा रं ग’ संस्थ़ के बैनर तले शऽशभीषण ऽसन्ह़ के ऽनदेशन मं औरत ऩमक निक्कड़ ऩटक क़ प्रदशचन फ़कय़ करता थं। नव़द़ की रहने व़ला यह कल़क़र ऄपने ईपऩम क्ऱंऽत भट्ट के ऩम से पहच़ना ज़ता था, लेफ़कन ऄब वह ऄसला ऩम ऄसाम़ भट्ट से ज़ना ज़ता हं। ऄब वे मशहूर फ़फल्म ऽनम़चत़ मधिर भंड़रकर की फ़फल्म ‘कै लंडर गलच’ मं एक्यरेस की म़ं के फ़करद़र मं स़मने अ रहा हं। यह फ़फल्म आसा स़ल ररलाज होना है। आसके ऄल़व़ वह मेघऩ गिलज़र की फ़फल्म मं भा क़म कर रहा हं। शिरुअता दौर मं पिक़ररत़ भा की, सोच़ न थ़ ऄऽभनय करं गा ऄसाम़ क़ कहऩ है फ़क ईन्हं ऄऽभनय से लग़व जरूर थ़, पर आसे कै ररयर के तौर पर ऄपऩने क़ आऱद़ कतइ नहं थ़। पटऩ मं पढ़़इ पीरा कर पिक़ररत़ मं सफ़क्रय थं। तभा परवेज ऄख्तर के ऽनदेशन मं रि कल्य़ण मं भीऽमक़ ऽमला, ऽजसने जावन क़ रुख मोड़ फ़दय़। कइ मंचं पर ऩटकं क़ ऽहस्स़ बनं। 14 स़ल पहले एनएसडा फ़दल्ला से ऄऽभनय की ऽशक्ष़ प्ऱप्त की I पिणे मं भा फ़फल्म ऄऽभनय क़ कोसच भा फ़कय़। ऽपछले स़ल 26 जनवरा को ऽजस लघि फ़फल्म ऄंधऽवश्व़स (ब्ल़आं ड फे थ) के ऽनदेशक महेश बा प़रटल को कऩचटक सरक़र ने सम्म़ऽनत फ़कय़, ईसमं ऄसाम़ ने भा ऄऽभनय फ़कय़ थ़ । ‘ऄंज़न औरत क़ खत’ ऩटक मं ऄसाम़

क़ फ़करद़र ऽबलकि ल ऄलग है। ऄसाम़ जा कहता हं फ़क फ़दल्ला मं जब कभा आस ऩटक क़ मंचन हुअ तब लेखक ऱजेन्द्र य़दव (ऄब नहं रहे) देख़ करते थे। यहा नहं, लोगं को भा कहने से नहा चीकते थे फ़क आसके ऽबऩ ऩटक की चच़च पीरा नहं होता। ऄसाम़ ने टावा साररयल से ऄपना मजबीत पहच़न बऩइ है। ऽपत़ सिरेश भट्ट ज़ने म़ने सम़जसेवा थे। ऄऽभनय य़ि़ ऩटक- एक ऄंज़न औरत क़ खत, द्रौपदा, शहर के ऩम, माऱ ऩचा, ऩऽजम ऽहकमत की कऽवत़एं, ऄलेक्यजंडर पिऽस्कन की प्रेम कऽवत़एं जैसे 100 से ज्य़द़ ऩटक, साररयल—अत्मज़, ऄखण्ड, मोहे रं ग दे, बैरा ऽपय़, ररश्तं से बड़ा प्रथ़, तिम देऩ स़थ मेऱ जैसे दजचनं साररयल। लघि फ़फल्म- ऽबरटय़ (सेव गलच च़आल्ड), डोमेऽस्टक व़यलंस, ये ब्ल़आं ड फे थ, स्पॉट ब्वॉय, ड़यरे क्यटसच लव, ओह लॉडच, पोस्टर ब्वॉय और ब़ंग्ल़ क़ एकल़ समेत कइ लघि फ़फल्मं । फ़फल्म- ऄमेररकन ऽडल़आट (आं ऽग्लश), महोत्सव और ऽहन्दा फ़फल्म स्ऱआकर, ऱहत क़जमा क़ देख भ़इ देख, ऄलंक़ररत़ की टर्निनग-30 और बैडलक । ~✽~

ख़ुशा के अंसी जब मंने ऄऽभनय को ऄपऩ कै ररऄर चिऩ तब म़ँ ने कह़ थ़ - “पीरे ख़़नद़न की ऩक कट़ दा '….अज ईसा म़ँ ने फ़ोन पर अशाव़चद देते हुए कह़ - शो ऄच्छ़ करऩ, भगव़न् क़ ऩम लेकर… अज मं एकल ऄऽभनय की प्रस्तिऽत देने ज़ रहा हूँ...”एक ऄनज़न औरत क़ ख़त" … भ़रत भवन भोप़ल मं... श़म स़त बजे । - असीमा ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

"बहुत ख़ला ख़ला है मन म़थे पर एक जिबदा सज़ लीं !"

आतने स़लं मं कहं कि छ नहं बदल़.. 1993-94 मं जब मं नवभ़रत ट़आम्स, पटऩ के ऽलए 'ऽवश्व मऽहल़ फ़दवस' पर ऽलख रहा था । तब मंने कि छ मजदीर तबके जैसे घरं मं क़म करने व़ला, खेतं मं क़म करने व़ला, सड़कं पर क़म करने व़ला श्रमजावा मऽहल़ओं से पीछ़ थ़ - अपके ऽलए मऽहल़ओं की अज़़दा के क्यय़ म़यने हं? ऽवश्व मऽहल़ फ़दवस क़ क्यय़ ऄथच है? मेरे उपर हँसते हुए कह़ थ़ - "हम क्यय़ ज़ने. हमं तो बस क़म करऩ है, नहं तो चील्ह़ नहं जलेग़ । " - असीमा ~✽~

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ऄसाम़ के पन्ने

ये सान ज़ऱ फ़फ़ल्मा है

तान महाने से ऽजस तरह से मेरे मक़न ढी ढने क़ ऄऽभय़न चल रह़ है फ़क ईस पर एक पीरा की पीरा फ़फल्म बन सकता है। लाज़ के मित़ऽबक मेऱ ऄग्रामंट फ़दसम्बर मं हा खत्म हो चिक़ है। बस च़र स़ल से मक़न म़ऽलक के स़थ एक प़ररव़ररक सम्बन्ध स़ हो गय़ है तो नय़ मक़न ऽमलने तक मोहलत ऽमला है। ईनक़ कहऩ है फ़क तान स़ल से ज्य़द़ फ़कऱयेद़र फ़कसा एक मक़न मं नहं रह सकत़ (जबफ़क ऐस़ कोइ र्क़नीन नहं है) तिम्ह़ऱ च़र स़ल हो गय़। खैर 31 म़इ तक अखरा त़राख़ था। मल़ड से ऄँधेरा तक मंने फ़कतने मक़न देख ड़ले। कहं मं लोगं को पसंद नहं, कहं लोग मिझे पसंद नहं। उपर से मक़न म़ऽलकं और एजंटं के बेवकी फी भरे सव़ल… “पऽत कह़ँ हं? बच्चे फ़कतने हं? कह़ँ हं? क्यय़ करते

हं?’ मंने भा खाझ कर कह फ़दय़ – सब मर गये. घर दोगे फ़क नहं? अप क्यय़ करते हो? ऄब फ़फल्म और टावा व़लं को च़हे अप ‘NSD’ य़ ‘FTII’ से हं, आन लोगं को घर देने से कतऱते हं। वैसे तो यह़ँ एजंटं की आतना मोनोपोला चलता है की अप IAS हं य़ प़र्षलय़मंट के सदस्य, खीन के अंसी रुल़ देते हं मेरे मक़न म़ऽलक नये फ़कऱयेद़रं को मेऱ कमऱ फ़दख़ऩ शिरू कर चिके और ब़र ब़र ईनक़ सव़ल फ़क कब ख़ला कर रहे हो? अऽजज़ अ गया हूँ । जबफ़क मेरे एडव़ंस के पैसे ईनके प़स पड़े हं मं कहं लेकर भ़गने व़ला नहं. . . खैर कल तान कमरे देखे। एक जगह श़म को जब एकदम ब़त तय हो गया वो भा मेरा ‘बड़ा जिबदा’ के ज़दी से । ईन्हंने समझ़ मं बंग़ला हूँ मंने भा कोइ सफ़इ नहं दा। वैसे भा मिझे बंग़ला अता है । बंगल़ फ़फल्म भा की है। क़म को लेकर भा झीठ बोलऩ पड़़ फ़क मं फ़फल्म नहं करता मं ऽलखता हूँ । ऄच्छ़ अपके फॅ ऽमला मं कौन कौन हं? कोइ ऽमलने नहं अयेग़ … यह सब चल हा रह़ थ़ फ़क तभा मेरे एक कश्मारा ऱयटर और ड़यरे क्यटर ऽमि क़ फोन अय़ ऽजन्हं मंने कि छ ऽस्क्रप्ट मेल फ़कय़ थ़, ऽसफच यह बत़ने के ऽलए फ़क वो मेल ऽमल गय़ । मेरे मिंह से ऽनकल गय़ “ऄ सल़म व़लेकिम्म ।’ ऄब तो हो गय़. ईनक़ दीसऱ आं टरव्यी शिरू हो गय़ । ‘अप मिसलम़न हो?’ हम मिसलम़न को घर नहं देते । ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

ऄरे मं मिसलम़न नहं हूँ, अपक़ ऩम क्यय़ है? ऄसाम़ ऄरे मं तो समझ़ थ़ ‘साम़’, ऄसाम़ तो मिऽस्लम ऩम हं ऄरे फ़कसने कह़, मेऱ पीऱ ऩम है ऄसाम़ भट्ट और भट्ट ऽहन्दी होते हं । ब्ऱह्मण होते हं । नहं नहं … मिझे सोचने दो एक ब़र फ़फर मक़न म़ऽलक से पीछऩ पड़ेग़ । ओह ! ब़त बनते बनते रह गया मन हुअ ईनक़ टावा ईठ़ कर पटक दी.ं क्यय़ तम़श़ लग़ रख़ है कमबख्तं जिहदिस्त़नप़फ़कस्त़न को ब़ँट कर जा नहं भऱ । ऄब तो बख्श दो। सब अदम हव्व़ के बच्चे हं तो ऽहन्दी मिसलम़न कह़ँ से हो गए । मं दरग़ह भा ज़ता हूँ और गिरूद्व़रे भा । मंफ़दर भा । जब सबक़ म़ऽलक एक है तो धमच के ऩम क़ झगड़़ क्यय़ है? फ़फर निसरत स़हेब य़द अये ‘तिम एक गोरखधंध़ हो ? स़ऱ बव़ल खिद़ के होने न होने क़ है... दरऄसल सचमिच तिम एक गोरखधंध़ हो… तभा मेरे फ़दम़ग की बत्ता जला – देऽखये मं, ऽहन्दी हूँ, मिझे ग़यिा मन्ि, मह़मुत्यिंजय मन्ि अत़ है. हनिम़न च़लास़ भा अत़ है । मेरे शरार पर प़ंच टैटी है ऽजसमं से तान तो मन्ि हा खिदे है । ऄब और क्यय़ प्रम़ण दीं । ऄहमदिल्ल़ह ! अऽखर ‘मन्ि शऽि’ की वजह से मिझे मक़न ऽमल गय़ । तिरंत चेक दे फ़दय़ और जल्दा हा यह ख़ऩबदोश ऄपने नये रठक़ने मं होगा । ~✽~

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अम क़ मौसम और ऩना क़ घर मिम्बइ मं अम क़ मौसम अ गय़ I श़य़द पीरे भ़रत मं अम क़ मौसम अ गय़ है I लेफ़कन अम यह़ँ आतने मंहगे हं की पीछो मत I एक अम की कीमत 200 रुपए I कीमत देख कर हा फ़दल भर ज़त़ है, य़ फ़फर खराद भा लो तो ख़ने क़ मन कम और ड़यजिनग टेबल पर सज़ के रखने क़ फ़दल ज्य़द़ करत़ है I ऐसे मं ऩना के घर के अमं की य़द अता है I मेऱ बचपन ऩना घर मं ज़्य़द़ बात़ I संथ़लपरगऩ के लक्ष्मापिर मं थ़ मेऱ नऽनह़ल जो की अज कल झ़रखंड मं अत़ है I तब ऽबलकि ल अफ़दव़ऽसयं के बाच मं ऽघऱ हुअ ग़ँव थ़ I च़रं तरफ़ हररय़ला हा हररय़ला....प्रकु ऽत की खीबसीरता देखते हा बनता था I गठाले गबरू जव़न, स़हसा मदच और ग़ंव की संधा ऽमटटा सा महकता औरतं, आतना सिंदर फ़क एक ब़र ऽवश्व सिंदररय़ं भा शरम़ ज़एँ I खिद्द़र और स़हसा औरतं... पापल की उँचा-उँचा फि नऽगयं तक पंहुच ज़ता थं I पापल के पत्ते तोडता थं I कि छ ज़नवरं को ऽखल़ने के ऽलये और श़यद कि छ पत्तं को ईब़लकर शऱब भा बऩता थं. ईन्हं पत्तं से ऄपने ब़लं को भा सज़ लेता थं I प्य़र मं स़हस और जीनन ी ऐस़ की ऄपने प्रेमा को कं धे पे ईठ़के चल दं I ओह! ब़त चला था अम की I ह़ँ नऽनह़ल मं अम क़ बहुत बड़़ बगाच़ थ़ I ऩऩ जा ज़मंद़र थे I डेढ़ सौ बाघ़ ज़मान पर ऽसफच अम के हा बगाचे लगे हुए थे.... दीर- दीर तक बस अम हा अम के पेड़ फ़दख़इ देते थे…. फ़क ऄक्यसर ईसमं खो ज़ने क़ डर होत़ I दसहरा, म़लद़, कलकऽतय़, लंगड़़, ऽमठि य़, खट्ट़-माठ़, ऱजभोग, सिगव़ और ऩ ज़ने क्यय़-क्यय़ ऩम थे I

ऄक्यसर गर्षमयं मं जो की अम क़ मौसम होत़ है हम सब ऩना के घर अ ज़ते थे I म़सा जा भा ऄपने बच्चं के स़थ अ ज़ता थं I ईनके तान बच्चे थे I बड़े म़म़ जा के तब 6-7 बच्चे थे (ऄब नहं रहे, ईन्मं से कइ की ऄसमय मौत हो गइ), बाच व़ले म़म़जा के तान बच्चे, और छोटे व़ले म़म़ जा के भा दो बच्चे I और हम च़र भ़इ-बहन (तान बहन और एक भ़इ, जो फ़क बहुत हा दि​ि थ़ I ऩऩ जा ने ईसक़ ऩम कडव़ रख़ थ़ (भंस के बच्चे को कहते हं, ऩऩ जा की एक अदत था वो सभा बच्चं क़ ऩम ज़नवरं के ऩम पे रखते थे I) सभा भ़इ-बहन ऽमलकर दजचनं हो ज़य़ करते थे I ऱम की व़नर सेऩ की तरह... सबके सब एक से बढ़कर एक बदम़श.... कौन कम है य़ कौन ज्य़द़ कहऩ मिऽश्कल.... बहुत सा बदम़ऽशय़ं करते I ऐसे हम फ़कसा के स़थ नहं थे लेफ़कन बदम़शा मं हम़ऱ प्रोटोक़ल एक हो ज़त़ I सब, जैसे हम स़थ-स़थ हंI जो हमसे बड़े होते वो हमपे ऄपऩ हुकि म चल़ते और हम ऄपने से छोटे पर ऄपऩ हुकि म जत़ते I सब ऄपने - ऄपने ओहदे के ऽहस़ब से ऄपऩ फ़करद़र ऽनभ़ते I कभा खेतं मं भ़ग ज़ते तो कभा पोखर मं मछला पकड़ते, कभा किँ ए पर जो प़ना व़ला मशान लगा होता, ईसमं नह़ते.....और आस डर से फ़क घर ज़ने पर ऽपट़इ होगा... वहा ँ धीप मं बैठकर कपड़े सिख़ते और जब कपड़े सीख ज़ते तब घर अते......हमं गंद़ देखकर कभा ड़ंट पड़ता तो कभा , फ़क हम भीखे हंगे जल्दाजल्दा ख़ऩ ऽमल ज़त़ I म़ँए आतना स़रा थं I हमं बचपन मं पत़ हा नहं थ़ फ़क ऄसल व़ला सगा म़ँ (biological mother) कौन है I सब म़मा, म़सा ऽमलकर सभा बच्चं क़ क़म करतं तो मिझे क्यय़ पत़ कौन फ़कसकी म़ँ है I ह़ँ, जब ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

पहला ब़र होश मं म़र पड़ा तो पत़ लग़ फ़क ये ऄसला व़ला (सगा म़ँ) है I ऄपना म़ँ म़रता, और ब़की सब म़मा-म़सा ऽमलकर ल़ड़ करता थं I .... आस तरह थोड़़ पत़ चल़ फ़क ऄसला म़ँ कौन है... फ़फर भा कोइ ज्य़द़ फकच नहं पड़त़ थ़ I हम ऄपऩ क़म बड़े हर्क से फ़कसा से भा (म़मा-म़सा) करव़ लेते थे आसऽलए ऄसल व़ला म़ँ की ऩ कमा महसीस होता ऩ हा ईनकी ज़रूरत I रहो तिम म़ँ ! हमं क्यय़ लेऩ-देऩ I गर्षमयं मं सब बच्चं को ऽखल़ -ऽपल़कर सिल़ फ़दय़ ज़त़ थ़.... कोइ ब़हर नहं ऽनकलेग़ सख्त प़बंदा होता था I लेफ़कन हम भा कह़ँ म़नने व़ले थे..... हम तो शैत़नं के शैत़न थे जैसे हा घर के सभा लोग सो ज़ते हम पाछे के दरव़ज़े से एक -एक करके बाहर भाग जाते.... और आम के बगाचे मं पंहुच कर बंदरं जैसे ईत्प़त मच़ते I पेड़ पर चढ़ ज़ते और हमं पत़ होत़ थ़ फ़क कौन स़ अम माठ़ है I जब अम कच्चे होते तो हम घर से नमक चिऱकर ल़ते थे I और कच्चे अमं को नमक के स़थ ख़ते I कइ ब़र तो हम़रे मिंह मं छ़ले भा हो ज़ते थे लेफ़कन परव़ह फ़कसको था... अम ख़ऩ है, तो बस, ख़ऩ है I जब पकड़े ज़ते तो बड़े म़म़जा की बड़ा म़र पड़ता था लेफ़कन तब भा बाच मं ऩना जा ढ़ल बनकर अ खड़ा हो ज़तं और कहतं - "बच्चे हं, ऄरे ! ये बदम़शा नहं करं गे तो क्यय़ ती करे ग़?" ऩना जा य़ना ऩऩजा की म़ँ और मेरा म़ँ की द़दा I मेरा ऩना को तो मंने देख़ हा नहं I वो तो मेरा म़ँ की श़दा के कि छ हा फ़दनं ब़द मर गइ थं.... ऩना जा की घर मं हुकी मत चलता था I मज़ल है फ़क ईनकी मज़ी के ऽबऩ एक पत्त़ भा ऽहल ज़ए...... एक ब़र जो कह फ़दय़ सो कह फ़दय़...... जो कह़, वहा

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होग़....ऩना जा क़ पीऱ ग़ंव अदर करत़ थ़ I ऩऩजा भा वहा करते जो ऩनाजा (परऩना) कहता थं... कइ ब़र तो ईन्हंने हम बच्चं के स़मने हम़रे ऩऩजा पर ह़थ भा ईठ़ फ़दय़ थ़ I और ऩऩजा चिपच़प साधे बच्चे की तरह दरव़ज़े पे चले ज़ते (अजकल के म़ँ - ब़प ज़ऱ ऄपने जव़न बच्चे पे ह़थ ईठ़के फ़दख़ये तो?) सबसे ज्य़द़ मज़़ तब अत़ जब अम पक ज़ते.... फ़फर तो ऩऩ जा खिद हम सब बच्चं को और घर के नौकर और मजदीरं को लेकर बगाचे मं ज़ते I हमं पके हुए अमं की खिशबी बहुत भ़ता था... ऐसे भ़गते ईन खिशबी की तरफ़ जैसे जंगल मं ऽहरन भ़गत़ है....पके हुए अम ऄपने अप पेड़ं से टपक के ऽगरते... ईनके टप़क से ऽगरने की अव़ज़ सिनकर साधे ईस तरफ़ भ़गते ऽजस तरफ़ से अव़ज़ अता... सब एक स़थ दौड़ लग़ते I कौन सबसे पहले अम लीटत़ है I अम ख़ऩ ऩऩजा ने हा ऽसख़य़... पके हुए अमं को बड़ा - बड़ा ब़लरटयं मं भर कर कि एँ मं डि बो फ़दय़ ज़त़ फ़फर कि छ देर ब़द ईसे ब़हर ऽनक़ल कर ईसके उपर व़ले ऽहस्से को मिंह से क़टकर ईसमं से २4 बींद रस ऽनक़ल ऽलये ज़ते I ऩऩजा कहते आससे अम की गमी ऽनकल ज़ता है और पेट के ऽलये ऄच्छ़ रहत़ है I अमं के मौसम मं तो कि एँ मं ब़ल्टा के ब़ल्टा अम भरे हा रहते I और जैसे हा घर पर कोइ अत़ , अम ईनके स्व़गत के ऽलये तैय़र रहत़...... ऱत मं, ख़ने के समय, बड़े बड़े पऱत मं अम रख फ़दय़ ज़ते.... हर -एक बच्च़ कम से कम 10 से 20 अम ख़ ज़त़ थ़ I मै ख़ता कम था और ऽगऱता ज्य़द़.... अज भा मेरा वो अदत नहं गइ... अज भा ख़ते हुए मेरे कपड़े गंदे हो हा ज़ते हं... ह़ँ, पहले ब़त यह था फ़क ह़थ - मिंह धिल़कर म़मा नए फ्रॉक पहऩ देता थं I मेरे फ्रॉक पे हमेश़ बहुत सिंदर सिंदर फी लं की कढ़़इ होता था I मेरा म़ँ और बाच व़ला म़मा को कढ़़इ क़ बहुत शौक थ़... मिझे बचपन के वो फ्रॉक अज भा य़द हं ... कि छ फ़दनं पऽहले मंने म़ँ से कह "म़ँ, मेरे ऽलये फ़फर से वैसे हा कढ़़इ व़ल़

कि छ बऩ दो ऩ I" म़ँ बोला- "कह़ँ बेट़ ! तब की ब़त और था, तब ल़लटेन की रौशना मं भा ऱत-ऱत भर जग कर कढ़़इ-ऽसल़इ करता था I ऄब कह़ँ I ऄब तो रौड की दीऽधय़ रोश़ना मं भा अखं क़म नहं करतं...." मिझे य़द है जब प़प़ आमरजंसा मं जेल चले गए और जेल से अने के ब़द हम सब भ़इ-बहन को छोड़ कर देशसेव़ करने ऽनकल पड़े तो म़ँ ने हम च़रं भ़इ बहन को ऽसल़इ - कढ़़इ करके हा बड़़ फ़कय़ I ऩऩ जा मदद करऩ च़हते तो म़ँ क़ अत्मसम्म़न अड़े अत़ I वो कहतं - "नहं, ब़बी जा! म़ँ है नहं, भ़ऽभय़ँ हं, पऱया हं फ़कसा फ़दन पलट के ईल़हऩ दे फ़दय़ तो? " अम क़ मौसम खत्म होने को होत़ तो ऩऩ जा कहते - "जा भरकर अम ख़ लो, ऄब ऄगले स़ल हा अम ऽमलेग़" I पर अम से आस तरह मन भर चिक़ होत़ फ़क अम के ऩम से हा पेट भर ज़त़ I क़श फ़क अज भा ऐस़ होत़... सिऩ है अम सभा फलं क़ ऱज़ है I ऄमारगराब सब अम ख़ते हं I दिअ करता हूँ फ़क सबको अम नसाब हो I - ऄसाम़

शा आज तरु

(तरं ऽगना श्रा)

आसको कोइ समझ़ओ फ़क आसकी ऩना मेरा म़ँ है I तरु को यह यकीन हा नहं होत़ फ़क ईसकी ऩना मेरा म़ँ हो सकता है I ईसे लगत़ है ऩना (मेरा म़ँ) ऽसफच ईसकी ऩना है I ऩना ऽसफच ऩना होता है I कि छ और कै से हो सकता है.... मं समझ़ कर ह़र गया फ़क ईसकी ऩना मेरा म़ँ है जैसे ईसकी मम्मा (गिड्डा / प्रऽतभ़ भट्ट) ईसकी है. जब घर भा ज़ऩ होत़ है तो ऩ वो मिझे म़ँ की गोद मं सर रखने देता हं ऩ I म़ँ से कोइ ब़त I म़ँ की गोद मं सर रखते हा ईसकी रट शिरू हो ज़ता है- "हटो, मेरा ऩना है I" अज मेरा म़ँ ईसके प़स (सहरस़) गया है I म़ँ के वह़ं पंहुचने पर फ़ोन फ़कय़ और तरु से कह़ - ऩना से ब़त कऱओ I ईसने साध़ मऩ कर फ़दय़ - "नहं I" फ़फर से मंने वहा ऽवनता की. तरु तिम्ह़रा ऩना मेरा म़ँ है न प्लाज़ ब़त कऱओ I "नहं I" ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

जब म़ँ के प़स ऄपने घर (नव़द़) मं होता हूँ तब तो वो ब़त नहं करने देता ऄब तो ऩना पीरा तरह आसकी 'कस्टडा' मं हं I कर लो क्यय़ कर लोगे I (तरु हम़रे च़र भ़इबहन मं एकलौता औल़द है I हम च़रो भ़इ बहन की ज़न I ऩना की तो बस ...she is the only hope for my mother)

तेरे म़सीम सव़लं से 2/5 की मेरा पड़ोस मं रहने व़ला च़ंदना तान फ़दन के ऽलए ग़ँव गइ था I अते हा मेरे घर अया I ईसकी वजह से मं ऄपऩ दरव़ज़़ खिल़ हा रखता हूँ I वो अता है I चाजं से खेलता है, छे ड़छ़ड़ करता है... ईसे सब पत़ है फ़क कह़ँ क्यय़ है? खिद मोब़इल पे ग़ऩ लग़ लेता है और ऩचता है I अज वो मेरे ह़थं को देखकर हैऱन और पीछ रहा है – "मेरा मेहद ं ा कह़ँ गइ? ईसके ज़ने से पहले ह़थं मं मेहद ं ा रचता था I मेरा म़सीम दोस्त ! कै से बत़उँ जिज़दगा मेरा कि छ भा स्थ़या नहं है I Nothing is permanent.- Buddha

म़ँ.. ! नय़ ऄहस़स च़ँदना (पड़ोस की ढ़़इ स़ल की बच्चा) सिबह सिबह बिल़ता है मिझे 'म़ँ'.. चंक ज़ता हूँ I पीछ़ -क्यय़? फ़फर से बोलो-म़ँ ज़ोर देकर कहता हैI ऄपना छोटा सा म़सीम उँगला मेरा तरफ फ़दख़ कर आश़ऱ करता है और फ़फर कहता है 'म़ँ' और ऄपना शैत़ऽनय़ँ फ़दख़ता पाठ फे र कर चल देता है जबफ़क मं अज कल 'ऄसाम़' बोलऩ साख़ रहा था I जब भा पीछता च़ँदना, 'ऄसाम़' कह़ँ है वो ऄपने साने पर ह़थ रख कर ऄपना ओर आश़ऱ करता और बत़ता फ़क 'ऄसाम़' मं ईसकी उँगला पकड़ कर कहता नहं - ती च़ँदना हं और ईसकी ईन उँगला को खिद की तरफ आश़ऱ करव़ता हुइ कहता- मं 'ऄसाम़' अज की ख़ुशा ऄलौफ़कक है फ़क यह म़सीम ऽजसे मंने कभा नहं ऽसख़य़ I और क्ययं ऽसख़उं म़ँ कहल़ऩ जब ऄपने नसाब मं म़ँ होऩ नहं ऽलख़ I - ऄसाम़

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मेरा म़ँ-बहन तरु से (मेरा बाच व़ला बहन गिड्डा की 4 स़ल की बेटा) से जब मिझे म़ँ कहलव़ता हं तो मिझे स़फ़ नज़र अत़ है फ़क ईन्हंने मिझपर तरस ख़कर ईस म़सीम बच्चा से म़ँ कहऩ ऽसख़य़ I तरु मिझे म़ँ और ऄपना सगा म़ँ को ''ऽमम्मा' बिल़ता है..... - ऄसाम़

I am not crazy to do anything at any cost प़गल नहं हूँI हमको म़लीम है जन्नत की हकीकत.... लोग कहते हं ऽलखो ऽलखो ऽलखो... तिम ऄच्छ़ ऽलखता हो, फ़कतऩ भा ऄच्छ़ ऽलख लीँ ..सामन द बोईअ और एना बेसंट बनने से तो रहाI मह़न ऄऽभनेऽियं की फे हररस्त भा बहुत लम्बा हैI न म़र्षलन मिनरो बन ज़ईं गा न माऩ कि म़रा I यह न समझं फ़क ऽनऱश़व़दा ब़तं कर रहा हूँI दिऽनय़ मं जो पहले से मह़नतम फ़फ़ल्मं बना हं वो स़रा की स़रा क्यय़ सबने देखा है? और जो फ़कत़बं ल़आब्रेरा मं धील और दामक च़ट रहा है वो ऄभा स़रा नहं पढ़ा गया हं I मंने ऄभा तक पीऱ गोकी, चेखव, मंटो नहं पढ़़ और ऩ हा सत्यजात रे , और आस्म़ल मचंट, बगचमन ै य़ अन्ज्सट़आन की स़रा फ़फल्मं देखने क़ मौक़ ऽमल प़य़ है.. न ऄपने ऽप्रय मार, ग़़ऽलब और कबार को पीऱ पढ़ प़या हूँ I मरने से पहले यह क़म पीऱ करऩ है I और क़म ऽसफच आसऽलए करऩ च़हता हूँ फ़क ऽडऽग्नटा से सरव़आव् कर सकीं . कोइ बंच म़कच बऩने की मिझे ज़रूरत नहं .... - ऄसाम़

ऽमऽलए श्राम़न श्रामता ऽमतव़ से (ऽशमल़)

ऄब अप पीछंगे मेरे कौन हं? मनमोहन जिसह 'ऽमतव़' मेऱ—'बीढ़़ ब़ब़' मेऱ 'ऽबब्ब़' है I ररट़यर प़यलट I आसकी फ़दन ऱत एक हा बेचैना है फ़क कै से लोगं की मदद करे , ऱह चलतं की मदद करऩ, डरऩ नहं ह़ल़ंफ़क कइ ब़र मिसाबत मं भा फं स चिके हं I मेरा ब़त होता है फ़ोन पर , कहता हूँ—थक गया I वो कहत़ है कं कड़-पत्थर पर खिले पैरं चलेगा तो थके गा हा I अ झिरमिटं (ऽशमल़) मं अ ज़ I वो कहत़ हैतेरा ना हार नहं वेख्य़, पत्थरं के शहर (मिम्बइ) मं फ़दल ढ़ुढ़ता है I ती ऽशव बट़लवा की कऽवत़ ... वो कि ड़ा जो गिम हो गया था और लगत़ थ़ ऄब कहं नहं हो सकता I मिझे तो ती वहा लगता है I बीढ़़ ब़ब़ 'रऽस्कन ब़ंड' की फ़कत़ब पढ़त़ है 'सिजेन'स सेवन हसबंडस एंड ऄदर कह़ऽनय़ं' वो मिझे ऽशमल़ से फ़ोन पर कहत़ है, गेट रे डा कजिमग तो फ़कडनेप यी I मं कहता—'ती ऽबन बत़ये मिझे ले चल कहं.. ' ऽशमल़ से अकर फ़दल्ला पटपड़गंज मिझे ऽपक करत़ है और भग़ कर मसीरा ले चल़ I ऱस्ते भर ब़ररश, तेज़ हव़एं ...ऄँधरे ़... तिम्हं डर नहं लगत़.. हँसत़ है- 'वो क्यय़ होत़ है I मौत तो फ्ल़इ करते वक़्त कइ ब़र मेरा गोद मं अकर बैठा मंने ईसक़ म़थ़ पिचक़र ब़य कर फ़दय़ I' भागते भ़गते रऽस्कन बंड के घर पंहुचा I ईनके के यर टेकर कहते हं यह तो ईनके सोने क़ वक़्त है वो तो सो गए I नहं ऽमल सकते I कल अआये I वो फ़कत़ब एक नोट के स़थ वहा ँ छोड़ अत़ है, फ़कत़ब पर औटोग्ऱफ लेने के ऽलये I व़पस एयरफ़ोसच के गेस्ट हॉईस मं रुकते हंI और ऱत भर कि न कि न करत़ है फ़क अज रऽस्कन ब़ंड से नहं ऽमल सक़... सिबह होगा I सो ज़ओ I ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

नहं ऄसाम (मिझे ऄसाम हा बिल़त़ है) ती नहं समझेगा बच्चे की तरह ऽज़द्दा और ऽनश्छल है मेऱ बीढ़़ ब़ब़ आसाऽलए 'ऽबब्ब़' बिल़ता हूँ I जब फ़ोन पर कभा ड़ंटता हूँ कहत़ है ऄच्छ़ लगत़ है फ़क ती ड़ंटता है वरऩ तो लोग मेरा द़ढ़ा और सफे दा क़ ऽलह़ज़ करके कि छ कहते भा नहं I मं कहता हूँ—ती पहले क्ययीँ नहं ऽमल़ I बल्ले अँटा (बलजात कौर) कहता है– ऄभा ले ज़.. आन्हं भा ज़ऱ ज़न लं फ़क 1960-70 मं फ़दल्ला ख़न म़र्ककट मं रहते थे I दोनं स़लं से डेट कर रहे थे I य़ना ऽमलते थे I अंटा भ़रताय नुत्य कल़ कं द्र मं ड़ंस साखता था, रोज़ ऽम. ऽमतव़ ईन्हं लेने अते लेफ़कन न कि छ कह रहे थे न श़दा के ऽलए प्रोपोज I एक फ़दन ऑटा ने गिस्से मं अकर कह़ ब़ऱत लेकर भा मं हा अउं ? तब दोनं ने श़दा की. . ऄब सर्कदयं मं चंडागढ़ और गमी मं, ऽमतव़ क़टेज ऽशमल़ मं रहते हं दोनं I दोनं के प्य़र ... नज़र न लगे.. अंटा ऄलगे जन्म मं ऽमतव़ मेऱ पक्क़...आनकी एक हा बेटा ईर्षमत़ (मात़) क़ बेट़ ऄमन ऄमेररक़ 'ओट़व़' मं रहत़ है I कल फ़ोन पर ईसने कि छ सिऩय़ I वैसे तो बहुत शऱरता है—चऽलए एक नमीऩ देख लाऽजये ..कहत़ है– एक फ़दन कि छ लडफ़कय़ँ स्की ल ज़ रहा थं मंने ऽलफ्ट दे दा I ऄगले फ़दन फ़फर ऽमलं I मंने पीछ़ ऽलफ्ट च़ऽहए (यह ईसकी अदत है पीछ पीछ कर मदद करत़ है) लडफ़कय़ं -नहा ऄंकल, अप ऽलफ्ट देते हो तो हम़रा पाररयड ऽमस हो ज़ता है I वो कहत़ है लो जा I 'ऄब मंने आस ईम्र मं क्यय़ फ़कय़' ह़ ह़ ह़ह़ह (मतलब पह़ड़ं मं वो ड्ऱआव बहुत हा

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सम्ह़ल कर करत़ है I और लड़फ़कय़ं क्यल़स के ऽलए लेट हो गयं) ईसक़ त़ज़़ शेर "जो ब़त बनता है फ़फर संवरता है फ़कत एक एहस़स से तो क्ययीँ करूँ रुसव़ ईसे मं ब़त करके अपसे" पीछंगे अप कै से ऽमले ? हम सड़क पर ऽमले थे I मं ऽशमल़ घीमने (2003 य़ 2005) गया था और वो टहल रह़ थ़ श़म के धिंधलके मं, झिरमिटं से वैसे हा ऄच़नक मेरे स़मने फ़दख़ जैस-े ब़ब़ फराद, बिल्ले श़ह, खिसरो, खलाल ऽज़ब्ऱन ..जब तक फ़दल्ला था ऄपऩ बथचडे ऽशमल़ कस्तीरब़ ग़ँधा ऄऩथ़लय मं बऽच्चयं के स़थ मऩने पंहुच ज़ता था I मेऱ जन्मफ़दन अ रह़ है I ऽमस कर रहा हूँ I बीढ़े ब़ब़ (ऽबब्ब़) ने प्रोऽमस फ़कय़ है फ़क वो ईस फ़दन ऄऩथ़लय ज़येग़ और ईन बऽच्चयं से मेरा फ़ोन पर ब़त कऱयेग़ I Love you like think. be blessed. long life with good health. Cheers. With love yours Asim ~✽~

मैिय े ा पिष्प़ के म़Sस़हेब और कत्थइ ज़मिना स़ड़ा

कहते हं फ़कसा भा आं स़न को बहुत ऄच्छा तरह ज़नऩ और समझऩ हो तो ईसके स़थ य़ि़ कीऽजए। एक ब़र पंचमढ़ा (म.प्र.) से संगात ऩटक ऄक़दमा क़ ऩट्ड क़यचश़ल़ लेकर व़पस लौट रहा था। भोप़ल एक्यसप्रेस से फ़दल्ला अ रहा था (तब मं फ़दल्ला मं रहता था) । झ़ंसा स्टेशन पर प़ना लेने ईतरा तो फ़कसा ने मिझे पिक़ऱ – ऄसाम़ ऻ​ऻ​ऻ। मं चंक कर आधर-ईधर देखने लगा फ़क यह़ं मिझे कौन पिक़र सकत़ है? ऄच़नक मैिेया जा ऄपना प्य़रा से मिस्क़न मं फ़दख गईं। वो रेन की ऽखड़की से ह़थ ऽहल़कर मिझे पिक़र रहा थं। मं लपक कर ईनकी तरफ भ़गा। अप, यह़ं? कै से? वो बोलं – ऄरे , यह़ं मेऱ घर है। मं झ़ंसा की हा तो हूं। ऄरे ह़ं – ह़ं ... पढ़ चिकी हूं ‘कस्तिरा किं डल बसे’ य़ना मैिेया जा की जावना ऽजसमं फ़क ब़द मं दीरदशचन के ऽलए बनने व़ले एक ध़ऱव़ऽहक मं मिझे ईनकी ख़स सहेला की भीऽमक़ करने क़ भा मौक़ ऽमल़ और ‘आदन्न्मम्म’ मं भा ‘कि सिम़ भ़भा’ के ऽलए ‘सॉन्ग एंड ड्ऱम़ ऽडवाजन’ फ़दल्ला के बने सॉन्ग एंड ल़आट के शो मं मंने ऄपना अव़ज दा। मैिेया पिष्प़ जा की मं आसऽलए बहुत आज्जत करता हूं फ़क वो मेरा नजर मं बेब़क और दबंग लेऽखक़ हं। ईन्हंने लगभग ऄपना ईम्र के अधा पड़़व मं ऽलखऩ शिरू फ़कय़ और जब ऽलख़ तो ब़की समक़लान लेऽखक़ओ पर पेपरवेट की तरह भ़रा पड़ं। प्य़र आसऽलए करता हूं फ़क ईन्हंने मिझे हमेश़ न के वल ऄपना बऱबरा क़ दज़च फ़दय़ बऽल्क हमेश़ एक सहेला की तरह ब़त की। यहा वजह है फ़क मं मैिेया जा से कभा भा फोन ईठ़कर ब़त कर लेता हूं और वो ईसा ऄपनेपन और प्य़र भरे ऄंद़ज मं कहता हं फ़क बहुत फ़दनं ब़द फोन फ़कय़। मं य़द हा कर रहा था। मं कहता हूं, देऽखए फ़दल को फ़दल से ऱह होता है। अपने य़द फ़कय़ और मंने फोन कर ऽलय़.... वो ऽखलऽखल़कर हंस पड़ता हं। जब ईनके डब्बे के प़स अइ तो सबसे पहले ईन्हंने पीछ़ तिम फ़कस डब्बे मं हो? मंने कह़ – ठाक अपके बगल व़ल़ डब्ब़। वो बोलं – अ ज़ओ, अ ज़ओ मेरे प़स। हम टाटा से ब़त कर लंगे। यह़ं मिझे सब ज़नत़ है। मं झपक कर बगल के डब्बे से ऄपऩ ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

स़म़न ईठ़कर ले अता हूं। रेन मं बैठते हा हम शिरू हो गए दो स्की ला लड़फ़कयं की तरह और जैसे पीऱ डब्ब़ चिप हो कर हमं हा सिने ज़ रह़ थ़। टाटा ने भा कि छ नहं पीछ़ फ़क अप ऄपने कम्प़टचमंट से यह़ं कै से अ गईं? एक हल्की सा मिस्क़न देकर मिझे देखते हुए चल़ गय़। मंने भा बदले मं मिस्कि ऱ फ़दय़। मंने कह़ – झ़ंसा की हं तभा अप आतना ‘झ़ंसा की ऱना’ की तरह ऽलखता हं। ‘ह़ं’ और यह़ं चोरा और लीटप़ट करने व़ले भा होते हं... और खिद हा हंस पड़ं। क्यय़ मतलब? ऄरे तिमने ‘ऄल्म़ कबीतरा’ नहं पढ़़ है। मंने ऽलख़ है न, चोरा, बटम़रा, ऱहजना आनक़ पेश़ है और यह आसे ऄपऩ धमच म़नते हं। ऄच्छ़, ह़ं पढ़़ है। श़यद सबसे पहले वहा फ़कत़ब पढ़ा है अपकी। तो सोच लो फ़क मं कह़ं से हूं। फ़फर तो अप मिझे डऱ रहा हं और लोगं को भा अपसे डरऩ च़ऽहए। ह़ं, ऽबलकि ल। लोग मिझसे डरते हं। मेरे ज्य़द़ ऽलखने से डरते हं, मेरे बोलने से डरते हं। सबसे ज्य़द़ तो ऱजेन्द्र य़दव जा हा मिझसे डरते हं...और फ़फर हंसने लगं। और कि छ बत़आए ऄपने ब़रे मं फ़क ऄच़नक रेन चलने को हुइ और हडबड़ कर बोला वो ऽजतऩ हंस के आस तरह से ब़तं करता मं ईतना हा सहज होता ज़ रहा था और मिझे ईनसे ब़त करके मज़ अ रह़ थ़। फ़कतना ईन्मि​ि और बच्चा जैसा हं...। ‘ऄरे , आससे पहले फ़क मं भील ज़उं देखो मं तिम्हे फ़कसा से ऽमलव़ दीं।’ मंने अश्चयच से पीछ़ – कौन? ईन्हंने ब़हर उंगला ऽनक़ल कर आश़ऱ फ़कय़ फ़क वो जो हं यंग स़ वो मेऱ भताज़ है और वो देखो म़ऻस़हेब के ब़रे मं तो पढ़़ हा है न तिमने । ह़ं, ह़ं। मं चहक कर बोला। सब मिझसे पीछते हं कौन हं म़ऻस़हेब? वो देखो लो, तिम्ह़रा फ़कस्मत ऄच्छा है फ़क तिम ईनको देख रहा हो वरऩ यह ऄवसर तो फ़कसा को नहं ऽमल़। कौन हं.. मेरे फ़दल की धड़कन और बेचेना ऐसे बढ़ा जैसे मं ऄपने प्रेमा की पहला झलक देखने व़ला हूँ।

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कौन कौन जल्दा बत़आये न ...। वो बोला – वो जो थोड़े बिजिगच से फ़दख रहे हं धोता कि रत़ मं वहा हं ‘मंद़ के म़Sस़हेब’ मं ऄव़क होकर देख रहा था। मैिेया जा की अंखं मं चमक था और एक अखं के एक कोर मं शमच जबफ़क वो जो ब़हर खड़े थे वो श़ंत, सहज जैसे चेहरे पर कोइ भ़व न हो। स़म़न्य कद क़ठा क़ स़म़न्य स़ आं स़न जो ईस वि मह़न प्रेमा स़ लग रह़ थ़। रेन साटा बज़ रहा था और वो क़तर नजरं से कभा रेन को और कभा अंखं छि प़ कर मैिेया जा को देख रहे थे। पीरा तरह अंखं भा नहं ऽमल़ रहे थे। ईस वि ऐसे ईनक़ मन कर रह़ होग़ फ़क रेन से कहं फ़क कि छ देर और रुक ज़... थोड़ा देर...। अंखं की बेचैना थोड़ा कम हो लेने दे... य़ रेन मं घिस कर रेन की चेन खाच लं लेफ़कन कि छ न कर प़ने व़ला ऄसफलत़ और कशमकश ईनके चेहरे से स़फ झलक रहा था। मं ईनकी क़तरत़ भ़ंप रहा था और ईनके ऽलए ईस वख्त कि छ न कर प़ने की झटपट़हट मिझे भा हो रहा था। कै से थ़ वह भ़व जो मेरे मन, फ़दम़ग मं, अंखं मं हमेश़ के ऽलए दजच हो गय़। ऄब तक मंने प्रेऽमक़ओं के ब़रे मं पढ़़ य़ सिऩ थ़ फ़क वो ऄपने ज़ते हुए प्रेमा को न रोक प़ने की ऽववशत़ और क़तरत़ से कै से ऽवह्वल होता हं। पहला ब़र स्त्रा की जगह एक पिरुष प्रेमा को आस रूप मं देखऩ संस़र के सबसे सिन्दरतम भ़वं मं से एक थ़ जो श़यद कभा भिल़ए नहं भील प़उंगा। ग़ड़ा खिल ज़ता है और वो आं स़न वैसे क़ वैसे बित बऩ खड़़ रह ज़त़ है। श़यद ह़थ भा नहं ऽहल़ प़ए। ग़ड़ा अगे बढ़ता गइ और वो बित बऩ वहं खड़़-खड़़ मेरा नजरं से ओझल हो गय़। मिझे वो ग़ऩ य़द अय़ – ‘ऽनग़ह दीर तलक ज़कर लौट अएगा....’ ...अह ! ईसके ब़द कि छ नहं। एक लम्बा स़ंस ला मंने और मैिेया जा तरफ देख़ वो मिस्कि ऱ रहं था। कै स़ लगत़ है अपको? बहुत ऄच्छ़ लगत़ है ऄसाम़ फ़क दिऽनय़ मं कहं एक आं स़न है जो सच्चे फ़दल से और पीरे फ़दल से अपको प्य़र करत़ है। कहं

कोइ है जो अपकी एक अव़ज पर दौड़़ अएग़। मेरे ऽलए तो प्रेमा वहा है जो तिम्ह़रा एक अव़ज पर दौड़़ चल़ अए। जब ऐस़ प्रेमा ऽमल ज़त़ है तो एक औरत को खिशा से ज्य़द़ त़कत ऽमलता हं। प्य़र की त़कत... दिऽनय़ से लड़ने की त़कत ...। क्यय़ आन्हं की वजह से अपने ऽलखऩ साख़? नहं ऽसफच आनकी वजह से ऽलखऩ साख़ यहा क़रण तो नहं है। कइ क़रण होते हं लेखक बनने मं। ईसक़ जावन, सम़ज, ईसक़ संघषच... लेफ़कन ह़ं. कहं न कहं आसक़ जव़ब ह़ं भा हं फ़क म़ऻस़हेब भा एक वजह हं और बहुत बड़ा वजह हं। औरत होते हुए भा मंने प्य़र करऩ साख़ तो ऄपने म़ऻस़हेब से... जब मेरे ईपन्य़स की मंद़ (मन्द़फ़कना) कहता है फ़क ‘तिम्ह़ऱ इम़न तिम्ह़रे स़थ हम़ऱ हम़रे स़थ’। कहं न कहं यह मंने म़ऻस़हेब से हा साख़। ह़ं, मैिेया जा ! बिल्लेश़ह ने भा कह़ हैओंफ़दय़ं ओ ज़ने। स़णीं ऄपना तोड़ ऽनभ़वण दे।’ रेन मं एक ख़मोशा सा छ़इ था और हम मैिेया जा को ऐसे सिन रहे थे जैसे मं कोइ प़क कलम़ सिन रहा हूं। ईनकी हर एक ब़त न ज़ने क्ययीं ईस फ़दन बहुत खिबसीरत लग रहा था। मिझे लग रह़ थ़ यह ब़तं चलता रहे। रेन चलता रहे। सफर कभा खत्म हा न हो...। फ़फल्म ‘ब़ज़र’ मं एक संव़द हं – ‘खिद़ करे यह सफर कभा खत्म न हो’ मैिेया जा बहुत हा खीबसीरत सा कत्थइ ज़मिना रं ग की म़हेश्वरा स़ड़ा पहना हुइ थं। मंने कह़—अप आस स़ड़ा मं बहुत सिंदर लग रहा हं। ऄरे बहुत पिऱना है। फ़फर भा अप पर बहुत ऄच्छा लग रहा है। वो हंसकर बोलं – चलो ठाक है, फ़दल्ला चलकर तिम्हं दे दीग ं ा। नहं, नहं मेऱ वो मतलब नहं थ़। ऄरे , कोइ ब़त नहं। मं पहनी,ं तिम पहनो एक हा ब़त है। मिझे भा तिम बहुत ऄच्छा लगता हो। पहले फ़दन से मं तिम्हं पसंद करता हूं। जब मंने ऱष्ट्राय ऩट्ड ऽवद्य़लय ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

मं तिम्ह़ऱ एक ऩटक देख़ थ़, तिम दिबला पतला सा बहुत प्य़रा और सिंदर फ़दखा था। ब़तं-ब़तं मं हम कब फ़दल्ला पंहुच गए पत़ हा नहं चल़। बहुत कि छ कसक की तरह समेटे हुए हम ऽवद़ हुए। एक लंबे ऄंतऱल के ब़द हम फ़फर ऽमले। झ़ंसा के प़स एक ग़ंव मं मं ईनके हा ईपन्य़स ‘कस्तिरा किं डल बसे’ की शीटिटग कर रहा था। मिझे ऄच़नक देख वह खिश होकर बोलं— ऄरे ऄसाम़ तिम यह़ं? व़ह, मिझे तो पत़ हा नहं थ़। क्यय़ कर रहा हो? मं अपके बचपन की सहेला क़ फ़करद़र कर रहा हूं। ऄरे व़ह!!! यह तो कम़ल हो गय़। ज़नता हो तिम ऽबलकि ल मेरा ईसा सहेला की तरह फ़दखता भा हो। वो भा माऩ कि म़रा की तरह फ़दखता था तिम भा। पत़ है जब तिम्हं पहला ब़र देख़ थ़ तो मंने मन मं सोच़ थ़ यह लड़की माऩ कि म़रा जैसा फ़दखता है। ह़ं, बस ऄब ज़ने भा दाऽजए। अप बत़आए कै सा हं? बहुत ऄच्छा हूं, खिश हूं। और म़ऻस़हेब । वो भा ठाक हं । ब़त होता है । ह़ं । ऄरे ऄसाम़! ऄब तिमसे क्यय़ बत़उं मं आस ईम्र मं ऄपने प्रेम पि छि प़ता फ़फरता हूं । और ईन्हंने शरम़ कर ऄपऩ सर झिक़ ऽलय़। मं ईस समय मैिेया पिष्प़ को देख रहा था य़ फ़कसा सोलह स़ल की पहले प्रेम मं पड़ा फ़कसा प्रेऽमक़ को। वि के ईस लम्हे मं मं सचमिच मैिेया जा की वहा बचपन व़ला सहेला बन गइ था। उपर व़ले क़ फ़दल हा फ़दल शिफ़क्रय़ कर रहा था जिजदगा मं यह हसान लम्ह़ ऄत़ करने के ऽलए। श़म तक मैिेया जा सेट पर हा रहं। व़पस ज़ने लगं तो ईन्हंने मिझे एक पैकेट पकड़़य़। क्यय़ है आसमं? रख लो, तिम्ह़रे ऽलए है । मंने पैकेट खोल़ तो ईसमं वहा कत्थइ ज़मिना स़ड़ा था, जो ईन्हंने रेन मं पहन रखा था। - ऄसाम़ ~✽~

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ऽसफच कथक के ऽलए धरता पर अइ था

ऽसत़ऱ देवा

स़ल 1998 की ब़त है। भ़रत की अज़दा क़ ‘स्वणच जयंता’ वषच पीरे देश मं मऩय़ ज़ रह़ थ़। तब मं ऱष्ट्राय ऩट्ड ऽवद्य़लय मं ऽद्वताय वषच की छ़ि़ था। संगात ऩटक ऄक़दमा की तरफ से भव्य पैम़ने पर फ़दल्ला मं स़ंस्कु ऽतक क़यचक्रम क़ अयोजन फ़कय़ गय़ थ़। ऄपना ऄपना ऽवध़ के प़रं गत प्रथम चोटा के कल़क़रं ने ऽहस्स़ ऽलय़ थ़। आनमं के लिचरण मह़प़ि से लेकर ऽबरजी मह़ऱज तक श़ऽमल हुए। आस क़यचक्रम क़ अयोजन फ़दल्ला के ऄलग -अिग सभागार मं कमानी, सीरी फोर्व, यीऽनवर्षसटा कै म्पस, एयरफोसच ऑऽडटोररयम अफ़द मं हुए थे। आसके ऽलए कइ संस्थ़ओं से वॉलंरटयसच ऽनयि​ि फ़कए गए थे। वे देश के हरे क ऽहस्से से अये कल़क़रं को स्कॉट करते थे। ऱष्ट्राय ऩट्ड ऽवद्य़लय से मं भा ईनके ऽलए क़म कर रहा था। मिझे क़यचक्रम मं ऽशरकत करने व़ले कल़क़रं के स़थ-स़थ रहऩ होत़ थ़। ईनकी देखभ़ल और जरूरतं क़ ख्य़ल रखऩ होत़ थ़। यह मेरे ऽलए ऽजतऩ हा ईत्स़ह की ब़त था ईतना हा गवच की। ऽजन कल़क़रं को ऄब से पहले मंने ऽसफच दीरदशचन य़ ऄखब़रं मं देख़/ पढ़़ थ़, ईनसे रुबरु होने और ईन्हं कराब से ज़नने क़ मौक़ ऽमल रह़ थ़। ईस फ़दन ‘कम़ना’ मं ऽसत़ऱ देवा क़ क़यचक्रम थ़। ‘ऽसत़ऱ देवा’ य़ना ‘कथक स़म्ऱज्ञा’। बऩरस घऱने की ऽसत़ऱ देवा क़ ऩम सिनते हा कि छ होत़ है। ऽजनक़

ऩम कथक आऽतह़स मं एक जिबद़स और खिदमिख्त़र नतचकी के रूप मं शिम़र है। स़म़न्य कद-क़ठा की मऽहल़ ऽजसने भ़रताय कथक को वो अय़म फ़दल़य़ फ़क ईसकी पहच़न ऽवदेशं तक बना। बचपन से हा ऽसत़ऱ देवा के ब़रे मं बहुत कि छ पढ़/सिन रख़ थ़। एक डर थ़ मेरे ऄंदर फ़क ऽजनक़ मतचव़ आतऩ बड़़ है ईनक़ स़मऩ कै से करूंगा। यह भा सिऩ थ़ फ़क बहुत तिनकऽमज़ज हं। ब़त-ब़त पर गिस्स़ करता हं। ईसमं सबसे भय़नक जो ईनके ब़रे मं पढ़़ थ़ वो थ़ ‘सअद़त हसन मंटो’ क़ ‘माऩ ब़ज़र। आसमं मंटो ने जिहदा ऽसनेम़ की बड़ा हऽस्तयं से लेकर ऽसत़ऱजा ब़रे मं भा बड़ा बेब़की से ऽलख़ है। वैसे भा मंटो ऄपने बेब़की के ऽलए हा ज़ने ज़ते हं। ईन्हंने ऽसत़ऱजा के ब़रे मं ऽलख़ थ़ फ़क वह कि ख्य़त और अदमखोर औरत हं। खैर, श़म को ऽसत़ऱजा अईं, ऄपने स़जिजदं के स़थ। स़ध़रण-सा हंडलीम की स़ड़ा पहने। फ़कसा भा अम भ़रताय ऩरा की तरह फ़दखने व़ला ऽसत़ऱजा को देखने के ब़द मेऱ डर क़फी र हो गय़। अते हा ‘ग्रान रूम’ गइ। प़न ख़ने की शौकीन पहले च़ंदा की प़न ऽडब्बा ऽनक़ल कर प़न ऄपने मिंह मं ड़ल़ और मिझसे कह़ – ‘बंग़ला म़र्ककट मं प़न बहुत ऄच्छ़ ऽमलत़ है। तऽनक फ़कसा को भेज के मंगव़ दो।’ मंने तिरंत ईनके हुक्यम की त़माल की और एक अदमा को भेज कर ईनके ऽलए प़न मंगव़य़। मंने थोड़ा देर मं गौर फ़कय़ फ़क ऽसत़ऱ जा को चलने-फ़फरने मं तकलाफ हो रहा है। मंने पीछ़ तो ईन्हंने बत़य़ फ़क कि छ फ़दनं पहले ईनक़ एक्यसाडंट हुअ थ़ ऽजसमं प़ंव मं फ्रैक्यचर हुअ थ़। डॉक्यटर के ऄनिस़र ईन्हं पीरा तरह अऱम करऩ च़ऽहए। नुत्य तो ऽबलकि ल भा नहं करऩ च़ऽहए। मंने पीछ़- फ़फर अप नुत्य कै से करं गा? ‘ऄरे ! क्ययीं नहं ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

करूंगा। नुत्य के ऽलए धरता पर अइ हूं। म़ऽलक ने मिझे धरता पर भेज़ और कह़ ज़ओ ऩचो। नुत्य हा मेऱ सबकि छ है। मेऱ जावन है। मेऱ इश्वर है।’ ईनक़ जव़ब सिनकर मं हंस पड़ा। वह भा बच्चा की तरह मेरे स़थ हंसने लगा। धारे धारे मं ईनके स़थ सहज होने लगा। मं ईन्हं गौर से एकटक ऽनह़र रहा था। नुत्य के ऽलए तैय़रा शिरू हो चिकी था। ईनक़ पररध़न पहनऩ, श्रुंग़र करऩ और सबसे ईम्द़ थ़ ईनक़ प़ंव मं घिंघरू ब़ंधऩ। सब कि छ आतऩ क़व्य़त्मक और संगातमय थ़ फ़क मं ईनमं कहं खो गइ था। एक्यसाडंट की वजह से वह जमान पर बैठ नहं प़ रहा था। कि सी पर बैठकर हा ईन्हंने घिंघरू ब़ंधते देखऩ कल़ की और सभा ऽवध़ओं क़ एक ऄलग ईद़त्म को देखने जैस़ थ़। जैसे-जैसे वो तैय़र हो रहा थं वैसे-वैसे वो खीबसीरत होता चला ज़ रहा था। ऄऽत सिंदर, नवयौवऩ, षोडशा लग रहा था। झमझम करता जब मंच पर अइ तो कम़ना हॉल त़ऽलयं की गड़गड़़हट से गींज ईठ़। दशचकं ने खड़े होकर ईनक़ स्व़गत फ़कय़। ईस श़म ईनके स़थ तबले पर पंऽडत फ़कशन मह़ऱजजा संगत कर रहे थे। दोनं बचपन से एक-दीसरे को ज़नते थे। आसऽलए बच्चं की तरह ती-ती, मंमं और तकऱर भा चल रहा था। नुत्य के बाच– बाच मं वो बचपन की ब़तं भा बत़तं – ‘क्ययीं फ़कशन भैआय़, हमको बचपन मं अप जलेबा नहं देते न। ऄब देऽखए मं कै से नुत्य मं अपको पछ़ड़ देता हूं... और दोनं एक स़थ बच्चे की तरह ऽखलऽखल़कर हंस पड़ते। पंऽडत फ़कशन मह़ऱज जा मंच पर खीब जंच रहे थे। दीध से गोरे , ल़ल-ल़ल ग़ल और म़थे पर ल़ल सिखच गोल टाक़ जैसे बफीला पह़ड़ं के पाछे से सीरज ऽनकल रह़ हो। क़फी ऱत तक ऽसत़ऱजा ऩचता रहं। एक परन, एक दीकड़़, एक

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बोल, एक कहरव़, एक द़दऱ, एक बंफ़दश करते-करते ऱत के दस बज गए। फ़दल्ला मं दस बजे के ब़द दशचकं को ब़हर रूकने मं जऱ मिऽश्कल होने लगता है। क़फी दीर-दीर से अए दशचक हॉल से ईठने लगे पर ऽसत़ऱजा ऽजनके पैर की ह़लत ठाक नहं था। लंगड़़ता हुइ मंच पर अइ था। ईसके ब़वजीद ऽहरना की तरह कि ल़ंचे म़र रहा था। दशचकं को लगभग ललक़रता हुइ बोलं – ‘क्यय़ ब़त है भइ, ऄभा तो ऱत जव़न भा नहं हुइ और अप लोग महफ़फल से ईठकर ज़ने लगे। ऄभा शब़ब पर पंहुचऩ तो ब़की है। ऐसा क्यय़ जल्दा है? क्यय़ हो गय़ फ़दल्ला व़लं को? पीछो हम़रे फ़कशन भैआय़ से फ़दल्ला के कल़ के कद्रद़न ऱतऱत भर बैठकर हमं देखते और सिनते थे। क़ऄऻ फ़कशन भैआय़! ठाक कह रहे हं हम!’ हंसते हुए फ़कशन मह़ऱज जा ‘ह़ं’ मं सर ऽहल़ देते हं। पर ऽजन्हं ईठके ज़ऩ थ़ वो गए लेफ़कन ब़की दशचक ऄपना-ऄपना जगह पर व़पस पिन: बैठ गए। ऽसत़ऱजा यह कहते हुए फ़क ‘यह हुइ ऩ ब़त’ ईसा ईत्स़ह और ईमंग के स़थ ऩचने लगं। जैसे-जैसे ऱत बढ़ता ज़ रहा था वो जैसे और भा जव़न होता ज़ रहा था। ईज़च और स्फी र्षत ईनके ऄंग-ऄंग से जैसे झलक रहा था। अऽखरक़र तकराबन 12 बजे क़यचक्रम सम़प्त हुअ। वह व़पस ग्रान रूम मं अईं। मं ईपह़र और फी लं क़ गिलदस्त़ ईठ़ए ईनके पाछे-पाछे ...। पहले ईन्हंने ऄपने घिंघरू ईत़रे और ब़द मं गहने फ़फर कपड़े बदले। मं ईन्हं ऄभा तक ऽजज्ञ़स़ से देख रहा था। ईन्हंने मिस्कि ऱते हुए पीछ़ – ‘क्ययीं मज़ अय़? कै स़ ऩच फ़कय़?’ क़फी देर से ईनसे एक सव़ल जो मिझे ऄकि ल़ रह़ थ़ पीछने क़ मन कर रह़ थ़ लेफ़कन डर भा लग रह़ थ़ फ़क कहं बिऱ ऩ म़न ज़एं। ईनके प्य़र और स्नेह से ऽहम्मत करके पीछ हा बैठा –‘मंटो ने अपके ब़रे मं ज़ने क्यय़-क्यय़ ऽलख़ है। ऽलख़ है फ़क अप अदमखोर हं (मंटो के ऄनिस़र ऽसत़ऱजा बहुत हा फ़दलफं क और मदचखोर (बहुत स़रे पिरुषं से दैऽहक संबंध थे।) हं।

क्यय़ यह सच है? सव़ल तो कर बैठा पर ऄंदर से घबऱ गइ फ़क पत़ नहं ऄब ईनकी क्यय़ प्रऽतफ़क्रय़ होगा। कहं अज की श़म न खऱब हो ज़ए? पर मंने देख़ वो वैसे हा सहज बना रहं। जैसे फ़क ऩ मंने कि छ पीछ़ ऩ ईन्हंने कि छ सिऩ। एक वक्यफ़ के ब़द ऄपना ख़स ऄद़ मं आठल़ता हुइ गवच से बोला – “कौन मंटो? मं नहं ज़नता फ़कसा मंटो-बंटो को। ऄरे , मं तो ऽसफच आतऩ ज़नता हूं फ़क यह ऽसत़ऱ (खिद की तरफ आश़ऱ करके ) ब़रह स़ल की ईम्र से पैर मं घिंघरू ब़ंधकर ऩच रहा है और मरते दम तक ऩचता रहेगा।” एक ऄलौफ़कक अत्म स्व़ऽभम़न से ईनक़ चेहऱ फ़कसा मश़ल की लौ की तरह लपलप़ रह़ थ़ और मं एकटक ऽनह़रते रह गइ। ( ऄसाम़ भट्ट - लेऽखक़ मशहूर रं गकमी हं । ये ईनकी ऽनजा य़दं हं। )

तिमने प्य़र करने की भील की. नहं ! नहं ! ऄब और मत रोऩ, मत बिल़ऩ ईसे ऄपने प्य़र क़ व़स्त़ देकर 'जो नहं ज़नते वफ़ क्यय़ है' तिम ईद़स होकर खिद को मत देऩ दंड दाव़रं से गले लगकर रोते हुए ऄपने अंसी ज़य़ मत करऩ.... तिम जैसा पत़ नहं फ़कतना हं आस वक़्त भा जो मेरा आन पंऽियं को पढ़ रहा हो और रो रहा हो मं ज़नता हूँ , ऄच्छा तरह ज़नता हूँ फ़कतना ठगा सा रह ज़ता है म़सीम प्रेऽमक़एँ जब टी टत़ है ईनक़ प्य़र फ़कसा प्य़रे ऽखलौने स़ टी ट ज़ने दो ! तिम मत टी टऩ, हरऽगज़ नहं यहा तो वो च़हते हं फ़क तिम क़ट लो ऄपना कल़इ की नसं कऽवत़ और ख़कर नंद की गोऽलय़ खत्म कर लो ऄपने अपको तिम्ह़रा कमजोरा वो ज़नते हं आसाऽलए तो तिम्हे कमजोर बऩते हं ऄसाम़ सबसे ऩज़ुक पल मं वो तिम पर व़र करते हं ऄभा ऄभा जो गय़ है तोड़ देते हं तिम्हं, ऄंदर/ब़हर से ऄपऩ ह़थ तिम्ह़रे ह़थ से खंच कर... ईस वक़्त जब तिम्हे ईनकी सबसे ज्य़द़ तिम्हे रोत़ हुअ , ऽबलकि ल ऄके ल़ छोड़कर ज़रूरत होता है ज़नत़ थ़... जा नहं प़ओगा ऄके ला ! नहं रह प़ओगा दिऽनय़ के आस ऽवश़ल भील कर सब कि छ और ऽखलो फी लं की की तरह भाड़ भरे समिन्द्र मं पहले से ज्य़द़ सिंदर सजो तिम रोता हुइ ब़र ब़र यहा पीछता हो ऩज़ ओ ऄद़ से आतऱओ कह़ँ गलता हुइ ? क्यय़ भील की तिमने... महको/चहको/ऩचो/ग़ओ कि छ भा नहं ! ईल्ल़स मऩओ, ऄपने होने क़ ज़ने व़ले कभा वजह नहं बत़य़ करते. ऽजन्हं ज़ऩ होत़ है वो फ़कसा भा बह़ने ऄपने सिंदर होने क़... हंसो, खीब हंसो और खिश रहो से ज़ते हं. तिम्ह़रे दिश्मन सबसे ज्य़द़ तिम्ह़रा ख़ुशा से जैसे ज़ऩ हा हो ईनकी ऽनयऽत अतंफ़कत होते हं बस आतऩ ज़न लो ऄके ला नहं हो तिम तिमने कोइ गलता नहं की और भा कइ हं तिम जैसा गलता था तो ऽसफच आतना फ़क जो समिद्र के ईस प़र ढी ंढ रहा हं ऄपऩ तिमने प्य़र करने की भील की. प्ऱचान प्य़र नहं ! नहं ! स़त प़लो की ऩव पर दीर मल्ल़हं के जैसे ज़ऩ हा हो ईनकी ऽनयऽत स़थ बस आतऩ ज़न लो अज ऱत कोइ ग़ रह़ है .... तिमने कोइ गलता नहं की - असीमा गलता था तो ऽसफच आतना फ़क

समिद्र के ईस प़र

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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वररष्ठ लेऽखक़ सीयचब़ल़

वररष्ठ लेऽखक़ सीयचब़ल़ जा क़ कल 'जावऽन्त' की ओर से सम्म़न फ़कय़ गय़ I लेऽखक़ सचमिच एक सम्म़ननाय व्यऽित्व हं I ईनकी कि छ कह़ऽनय़ं फ़दल्ला मं पढ़ा थं I बहुत हा सिलझा और स़फ-सिथरा कह़ऽनय़ं ऽलखता हं I कल ईनकी कह़ऽनय़ं और व्यऽित्व पर चच़च हो रहा था, चर्च़्च के दौऱन एक नया ब़त स़मने अइ य़ यीँ कहं की मंने नया ब़त साखा I एक फ़क श़क़ह़रा लेखन और म़ंस़हरा लेखन (bold writing)..... अश्चयच यह सिन कर मिझे ज्य़द़ हुअ फ़क वो यह कहता हं फ़क अज क़ चलन है 'bold writing' I ज़ऱ ऄजाब लग़ मिझे I क्यय़ वो आस्मत चिगत़इ, क़ 'ऽलह़फ' भील गयं, ऩऽसऱ शम़च क़ 'संगस़र', और मुदल ि ़ गगच क़ 'कठगिल़ब' भील गयं I ऐसे कइ ऄनऽगनत ईद़हरण हं I और यह सभा अज की लेऽखक़एं नहं हं.... दीसरा ब़त फ़क प्रेम कभा मिखर नहं होत़ I प्रेम से मिखर तो कि छ होत़ हा नहं... सिफ़फ़य़ऩ आश्क तो आश्क की जो ऽमस़ल

पेश करत़ है वो तो आश्क मं कं जरा बन कर ऩचने तक की ब़त करत़ है I दीसरा ओर माऱ ब़इ को हा ले लाऽजये, वो खिल कर ग़ता हं I-ऐ रा मं तो प्रेम दाव़ना.....' मै तो स़ंवरे के रं ग ऱचा...., मै तो दशचन की प्य़सा ...' मेरा एक सहेला डॉ ग़यिा वा. प़रटल कहता हं - 'माऱ सचमिच दाव़ना था ', कु ष्ण को कोइ मतलब नहं और वो ग़ता फ़फर रहा है , मै तो स़ंवरे के रं ग ऱचा... वगैरह ..." मेऱ कहने क़ मतलब ऽसफच यह है फ़क मं प्रेम के डंक़ पाटने य़ बोल्ड लेखन की ऽखल़फत नहं कर रहा ... बऽल्क ऐसा रटप्पऽणय़ँ मिझे ज़ऱ ऄटपटा लगं की ...'.यह अज की त़ज़़ ईपज है I खिद मं , फी हड़त़ के ऽखल़फ हूँ I पर क्यय़ करं 'मंटो' और 'ऱजेन्द्र य़दव' जैसे लेखकं को तो ख़़ररज भा नहं फ़कय़ ज़ सकत़... 'ऄच्छा' और 'बिरा' चाजं (यह दो शब्द) हमेश़ से थं और रहंगा I खिद एक ऄऽभनेिा होते हुए मिझे ऽपछले फ़दनं ऽजतना भा फ़फल्मं ऽमलं ईनमं से, मै कहूँ फ़क ऄगर ईनके ऩम भा य़द नहं ऽसव़य सिजोय घोष ऽनदेऽशत और ऽवद्य़ ब़लन की 'कह़ना' और श्रादेवा की 'आं ऽग्लश ऽवऽन्ग्लश' को छोड़ कर... ह़ल़ंफ़क ऽवद्य़ ब़लन को 'डटी ऽपक्यचर' के ऽलए ज्य़द़ लोकऽप्रयत़ ऽमला...फ़फर वहा कहूँगा फ़क एक फ़मीचल़ फ़फल्म था डटी ऽपक्यचर ... लेफ़कन 'कह़ना' मिझे हमेश़ य़द रहेगा और एक ऄऽभनेिा होने के ऩते मिझे कि छ करने की गिंज़आश 'कह़ना' मं फ़दखता है Iसच कहूँ तो ग़लत नहं होग़, ऄगर मिझे 'कह़ना' जैसा फ़फल्म करने को ऽमले तो बहुत ख़ुशा होगा I  ऄसाम़ ~✽~

म़ँ आतना ऄच्छा क्ययं होता है?

म़ँ आतना ऄच्छा क्ययं होता है... म़ँ लगत़र फोन पर कहता है ऽबह़र मं ठण्ड बहुत पड़ रहा है । धीप कम हा ऽनकलता है । ईम्र हो गया न, ऄब और ठण्ड लगता है । मेरे प़स 'पश्माऩ की एक शॉल था जो मिझे कभा सम्म़न मं ऽमल़ थ़, मिम्बइ मं ठण्ड नहं पड़ता । वो म़ँ को कि ररयर कर फ़दय़ फ़क ईन्हं ख़ुशा होगा । सिबह सिबह ईनक़ फोन अत़ है और कहता है - स़मने होता तो तिम्हे बहुत म़रता. क्ययं आतऩ महंग़ शॉल भेज़? क्ययं आतने पैसे बरब़द करता हो? मं समझ़ता हूँ - कोइ पैसे बरब़द नहं फ़कये, ख़रादे नहं हं मिझे सम्म़न मं ऽमल़ थ़, वहा तिम्हं भेज़ है । वो कहता है- 'फ़फर भा तिम्हं ऄपने प़स रखऩ च़ऽहए । मं बीढा, कह़ँ ज़ईं गा आतऩ महंग़ श़ल ओढ कर ।' मंने कह़, मिम्बइ मं सदी नहं पड़ता. म़ँ कहता है - "ऄच्छ़ फ़फर ठाक है, अज हा मं एक श़दा मं यह ओढ़ कर ज़ईं गा और लोगं को बत़उँगा - मेरा बेटा ने भेज़ है, मिम्बइ से" ~✽~

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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मिरला द़द़ 13 ऄगस्त को सिबह सिबह बऩरस के ऽलए फ्ल़आट मं बैठते समय य़द अय़ फ़क मं कभा बऩरस नहं गया I बऩरस ईतऩ हा देख़ है ऽजतऩ पटऩ से फ़दल्ला रेन गिज़रता है पिऱने-प्ऱचान पिल के उपर से I जब मं फ़दल्ला ऱष्ट्राय ऩट्ड ऽवद्य़लय मं पढ़़ करता था तो पटऩ और फ़दल्ला अऩ -जाना अक्सर होता था I लेफ़कन कभा बऩरस ईतरऩ नहं हो प़य़ I तभा सोच ऽलय़ फ़क आस ब़र क़शा ऽवश्वऩथ के दशचन करऩ हा है I फ्ल़आट मं थोड़ा ठण्ड लग रहा था, एयर होस्टेस से ब्लेक कॉफ़ी म़ंगा तो ईसने कॉफ़ी के स़थ- स़थ ब्लंकेट भा फ़दय़ I बऩरस ईतरते हा ऱके श भ़इ क़ फोन अय़ फ़क अप अ गयं? ब़हर मिरला (ड्ऱआवर) खड़़ है I मंने ऽहम्मत करके पीछ़ फ़क ऱके श भ़इ, मंने 'क़शा ऽवश्वऩथ' के दशचन नहं फ़कये हं क्यय़ मं एक ब़र वह़ँ चला ज़उँ (संकोच यह थ़ फ़क वो क्यय़ सोचंगे फ़क अया हं शो करने और घीमऩ च़हता है, लेफ़कन ईन्हंने तिरंत आज़ज़त दे दा I) स़म़न लेकर जैसे हा ब़हर ऽनकला 'मिरला द़द़' खड़े थे I ईन्हंने लपक कर मेऱ स़म़न मेरे ह़थ से ले ऽलय़ I ऱके श भ़इ ईन्हं तब तक फ़ोन पर मंफ़दर ले ज़ने को कह चिके थे I हम सबसे पहले मंफ़दर गए I मिरला द़द़ ने समझ़य़ फ़क यह गेट न. एक है, अप आससे ज़ओ और ठाक आसा से साधे ब़हर ऽनकलोगेI मं यहं ऽमलीग ँ ़I ऄंदर गला मं गया तो आतना भाड़ था फ़क मं घबऱ गया वैसे भा मिझे भाड़ और शोर से बहुत परे श़ना है I भाड़ के बाच से ऽनकलता ऽबलकि ल गेट के प़स पंहुच गया I वह़ं पिऽलस खड़ा था, ड़ँटते हुए कह़— ल़आन मं अयो I मंने कह़—मं बहुत दीर से अया हूँ I और जल्दा से दशचन करके दीर ज़ऩ है I -कह़ँ से अ रहा हो?

गय़ से I - कह़ँ ज़ऩ है? ऽमज़चपिर I - वह़ं क्यय़ है I ससिऱल I (मिझे लग़ आस वि थोड़़ झीठ बोलऩ ज़रूरा है ऄगर भगव़न के दशचन करऩ है तो, वैसे आसमं झीठ भा नहं है I मं गय़ की हूँ और मेऱ ससिऱल ऽमज़़चपिर हा है I) ईसने मिझे सबसे अगे मंफ़दर मं ज़ने फ़दय़ I व़पस दशचन करके लौटा तो वह़ं जह़ँ, मिरला द़द़ ने छोड़़ थ़, वे नहं थे I डर गया, बऩरस मं बहुत ठग और लिटेरे होते हं I कहं मेऱ स़म़न लेकर भ़ग तो नहं गय़ I मेरे प़स कि छ भा नहं थ़, ऩ पसच ऩ, मोब़आल I सब ग़ड़ा मं हा छोड़ फ़दय़ थ़ I उपर से अजकल मिझे फ़कसा क़ न य़द नहं रहत़ I दो घंट़ आधर-ईधर भटकता रहा I डर भा लग रह़ थ़ क्ययंफ़क मं कभा बचपन मं भा नहं खोया I कि छ समझ मं नहं अ रह़ थ़, भटकता हुइ गंग़ घ़ट पर पंहुच गया I व़पस ईसा जगह अया क्ययंफ़क मिझे य़द अय़ फ़क ड्ऱइवर ने कह़ थ़—"जिचत़ मत करऩ. मं तिम्हे ढी ंढ लीग ँ ़ I" क़फी थक गया था I एक बंच देखकर बैठ गया I पिऽलस ने कह़– यह़ँ ऩ बैठ सकते हो, ऩ खड़़ हो सकते हो? ज़ओ I भीख और प्य़स से मं लगभग मरने व़ला था I ऄब क्यय़ करूंगा I फ़फर सोच़ घर चला ज़ईं गा I वैसे भा 'गय़-मोगलसऱय' की रेन मं कोइ रटकट तो लेत़ नहं I मिझे हत़श देखकर दो अदमा अये I और पीछ़—क्यय़ हुअ ? मंने लगभग रुअंसा होकर कह़—हमs भिल़ गेलाs .(I'm lost) दोनं मेऱ चेहऱ देख रहे थे पीछ़—फ़कसके स़थ अया हो ? ड्ऱआवर के स़थ! लो ईसको फ़ोन करो, मोब़आल फ़दय़ I ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

मंने कह़- मिझे न. नहं म़लीम वो बोले—डरो मत I मं यह़ँ सब ड्ऱइवर को पहच़नत़ हूँ I ऐसे करो तिम, आधर से ईस तरफ एक ऱस्त़ ऽनकल़ है, ईसको भा एक न. गेट कहते हं I वह़ं ज़कर देखो, ऄगर वह़ं नहं ऽमल़ तो यहं अ ज़ऩ I मं यहं हूँ I देखते हं क्यय़ करऩ है I वह़ं गया तो मिरला द़द़ ऄपने व़दे के मित़ऽबक ठाक वहा ँ खड़े थे I ईन्हंने सबसे पहले ऱके श भ़इ से फ़ोन पर ब़त करने के ऽलए कह़ क्ययंफ़क वो परे श़न थे और डर के म़रे फ़क वो क्यय़ सोचंगे मं फ़कतना बेवकी फ हूँ, मंने कह़ अप हा करो I मिरला द़द़ बोले, मैडम जा डरने की क्यय़ ब़त है, मंने कह़ ऩ अपको मं खोज लीँग़ I अप खोये नहं थे I ऄसल मं बऩरस अकर कोइ गंग़ के घ़ट पर ऩ ज़ये तो बऩरस अऩ पीऱ नहं होत़ है I आसऽलए गंग़ मैय़ ने अपको घ़ट पर बिल़य़ I अप ईस घ़ट पर गयं जह़ँ दस हज़़र योऽगयं ने ऽमल कर यज्ञ फ़कय़, आसऽलए ईसे 'द्श़मेश्य घ़ट' कहते हं I फ़फर बोले अप पहला ब़र बऩरस अये हो ऩ मैडम जा, ह़ँ, मं पहला ब़र अया हूँ I ह़ल़ँफ़क मेरे घर के लोग हर स़ल अते हं I श़दा-व्य़ह की श़जिपग यहं करते हं I वह़ं से ऱमनगर फ़कल़ ले गए और लस्सा ऽपल़या फ़क बऩरस की मशहूर लस्सा यहं ऽमलता है I लस्सा बहुत ऄच्छा था लेफ़कन ईसने यह ऄसर फ़कय़ फ़क पहले हा कोल्ड थ़ ऄब ट़ंऽसल्स बढ़ने से बिख़र अ गय़ I खैर ऱत 10 बजे जिसगरौला पंहुचे I तिरंत ऱके श भ़इ ऽमलने अ गये I मेरे रहने और अऱम मं कोइ कसर न रह ज़ये, तसल्ला करके चले गए I थोड़ा देर मं फ़फर कऽवत़

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और सोनसा के स़थ अये I सोनसा को तब देख़ थ़ जब मं फ़दल्ला मं रहता था I छोटा सा (गड़तर मं) अज स़त स़ल की हो गया I प्य़रा सा और ईसके आतने सव़ल होते हं फ़क सचमिच ऄपने म़सीम सव़लं से हैऱन कर देता है I 14 ऄगस्त की श़म के शो की भव्य तैय़रा देखकर मं हैऱन था I जगह जगह पोस्टर और बैनर लगे थे I लेफ़कन मेरा तऽबयत की बंड बजा था I लेफ़कन ऱके श भ़इ क़ जोश देखकर मं ईत्त्स़ऽहत था I ईन्हंने आतने प्रोफे शनल तराके से तैय़रा की था फ़क मं हैऱन था I मेरे शो क़ फोल्डर दशचकं के ऽलए तैय़र फ़कय़ गय़ थ़, जो शो से पहले दशचकं की साट के स़मने रखे थे I हॉल खच़खच भऱ हुअ थ़ I शो शिरू होने से पऽहले 'दाद़रगंज की यऽक्षणा' क़ प़ठ करके मेऱ ईत्स़ह और भा बढ़़ फ़दय़ I वरऩ मं तो ईस फ़दन गया था I शो के ब़द दशचकं क़ खड़े होकर त़ऽलय़ँ बज़ईं I कल़क़रं को आसक़ नश़ होत़ है I ईनके ऽलए आससे बड़ा कोइ ख़ुशा नहं I फी लं से स्व़गत, ऄंगवस्त्रम (श़ल) से स्व़गत I फ़ोटोग्ऱफ-ऑटोग्ऱफ (आसके ब़द तो बस मौत की हा दिअ होता है फ़क आसके ब़द मौत अये तो क्यय़ कहऩ) ऄगला सिबह (15 ऄगस्त को) वैसे हा बऩरस के ऽलए ऽनकल पड़े I मिरला द़द़ बेहद खिश थे क्ययंफ़क ईन्हं लग़ थ़ फ़क मं NTPC की स्ट़फ हूँ लेफ़कन ऩटक करता हूँ य़ ऩटक करने अया हूँ आसक़ ऄंद़ज़़ नहं थ़ ईन्हं I ऩटक देखकर गदगद थे I बोले मैडम जा ऱत तो बहुत मज़़ अय़ I सबलोग खिश थे I फ़फर कह़- अते समय तो अप ऱस्ते मं सो गए थे कि छ नहं देख प़ए, ऄब देऽखएग़ अपको क्यय़ क्यय़ फ़दख़त़ हूँ I और जब हम वह़ं से चले तो मज़़ हा अ गय़ I रस्ते, पह़ड़, झरने, लेक ऐस़ लग रह़ थ़ जैसे जन्नत I ओह ! द़द़ ने पीछ़ फ़क मेरा फ्ल़आट फ़कतने बजे है I मंने बत़य़ 'तान बजे' I बोले 2 बजे एऄरपोटच पंहुच़ऩ मेऱ क़म है, बस अप एन्जॉय करो I और जगह जगह ग़डा रोक कर ऐसे घिम़ते-फ़दख़ते अये फ़क

मिझे फ़फल्म 'ग़आड' क़ 'ऱजी ग़आड' य़द अ गय़ I ईन्हंने बत़य़ फ़क 1974 से ग़ड़ा चल़ रह़ हूँ I भ़रत के हर एक शहर क़ एक एक नक्यश़ मेरे फ़दम़ग मं छप़ है I झरऩ फ़दख़य़ जह़ँ लोग ऽपकऽनक मऩने अते हं, वैष्णो देवा मंफ़दर के दशचन कऱए, चंद़-लोररक पत्थर फ़दख़य़, जगह-जगह घीमते-फ़फरते और रुकते हुए अने पर भा हम बऩरस डेढ़ बजे पंहुच गए I बऩरस के मशहूर सत्ती-मोकना की दिक़न पर ले गए जह़ँ सत्ती-चोख़ जमकर ख़य़ I ईस के ब़द मशहूर बऩरसा प़न की दिक़न पर ले गए प़न ऽखल़य़ भा और पैक भा कऱ फ़दय़ फ़क मिम्बइ मं ख़ऩ I मिरला द़द़ के प़स एक से एक ऄद्भित कह़ऽनय़ँ थं I यह भा बत़य़ फ़क आस पह़ड़, जंगल मं कोयले की ख़न है लेफ़कन समझो फ़क सोऩ है I जह़ँ ह़थ लग़यो सोऩ हा सोऩ है I बस आससे यह़ँ के ऽनव़सा को कोयले के धिएं और यह़ँ की ऽमटटा से बहुत निकस़न होत़ है I ऄक्यसर कोयले की ख़न मं फं स कर मजदीरं की ज़न चला ज़ता है और प्रबंधन मिअवज़े के ऩम पर च़र पैसे मुतकं के पररव़रं को देकर ख़मोश बैठ ज़त़ है I गराब लोगं को ईनक़ हर्क नहं ऽमल प़त़ I स़ल मं च़र से प़ंच मजदीरं की ज़न कोयल़ खद़न के ऄंदर फं सने से चला ज़ता है I ईन्हंने कह़- ऄगला ब़र अओगा तो तिम्हे स़रऩथ, प़रसऩथ और ईड़ास़ ले ज़उंग़ I तिम्ह़रे घर(गय़) भा ले ज़उंग़ I तान फ़दन की पहच़न मं कोइ ऐसे कै से ऄपऩ लग सकत़ है I एऄरपोटच छोड़़ तो समझ मं नहं अ रह़ थ़ फ़क ईन्हं क्यय़ दीं I हम़रे यह़ँ ऄपने से बड़े को पैसे देऩ बदतमाजा समझा ज़ता है I मंने वहा ँ शॉल दे फ़दय़ ऽजससे मिझे ऱत सम्मऽनत फ़कय़ गय़ थ़ I ईनकी अँखे भंगा था बोले- "मिम्बइ अउंग़ तो ऽमलीग ँ ़ I" ऐसे लोग और ऐसा य़ि़एं जिजदगा की अगे की य़ि़ओं के ऽलए रसद क़ क़म करता हं I ( यह लेख 'कऽवत़ ऱके श' और 'ऱके श ऽबह़रा' भ़इ को समर्षपत) - ऄसाम़ ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

लखनउ की प़ंच ऱतं

आन फ़दनं 'लखनउ की प़ंच ऱतं' पढ़ रहा हूँ I यह फ़कत़ब ऄला सरद़र ज़फ़रा ने ऄपने ह़थं से कि छ (ईदीच नहं अता; अता है ईदीच जिव़ं अते-अते') ऽलखकर मिझे फ़दय़ थ़. ईस फ़कत़ब के कि छ ऄंश "अज तिमने मिझे नंग़ देख़ है तो तिम्हं मिझसे मिहब्बत हो गइ, लेफ़कन आस मिहब्बत से तिम च़वल नहं खराद सकोगे ... च़वल दो रूपये सेर है, दो रुपये सेर....! तिम समझते होगे फ़क ये मेऱ ख़नद़ना पेश़ है. नहं मं फ़कस़न की बेटा हूँ I धरता की तरह प़क." - चेहरू म़ंझा

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आमऱन और श़हाद शेक्यसपायर ने कह़ है - ऩम मं क्यय़ रख़ है I पर ऩम मं बहुत कि छ रख़ है I जैसे फ़क मेऱ ऩम 'ऄसाम़ भट्ट' ब़त 2002 य़ 2003 की है I कश्मार मं ईदीच चैनेलके ऽलए ऩऽसऱ शम़च की कह़ना 'फ़दल़अऱ' की शीटिटग कर रहा था I व़दे के मित़ऽबर्क तान फ़दनं मं मेरा शीटिटग ख़त्म होऩ था लेफ़कन फ़कन्हं वजहं से मेऱ क़म ख़त्म नहं हो प़य़ और दीसरे फ़दन मिझे हर ह़ल मं फ़दल्ला पंहुचऩ थ़ और वह़ं से बदलपिर मं कऽवत़ चौधरा की फ़फल्म 'ऽबजिक़' की शीटिटग पर मेऱ होऩ ज़रूरा थ़ I मंने ऽनदेशक से गिज़़ररश की फ़क अपको ऽजतने फ़दन मंने फ़दये थे ईससे दो फ़दन ज्य़द़ हो चिके हं और ऄब फ़कसा भा तरह कल मिझे फ़दल्ला मं मौजीद होऩ हा पड़ेग़ I खैर, फ़कसा तरह ऽनदेशक म़ने और ईन्हंने फ़फल्म क़ मेऱ अखरा व़ल़ सान ख़त्म फ़कय़ I श़म हो चिकी था I मंने जल्दा जल्दा ऄपऩ स़म़न ईठ़य़, फ़दल्ला की बस के ऽलए ऽनकल पड़ा I सभा मिझे समझ़ रहे थे फ़क अप ऱत मं नहं ज़ प़यंगा I क्ययंफ़क श़म के ब़द कश्मार से अने व़ला 'टनल' की वजह से बसं बंद हो ज़ता हं I. 'कश्मारा' जो वह़ँ के थे ईन्हंने भा समझ़य़ फ़क ऽज़द्द मत करो कल सिबह चला ज़ऩ वैसे भा बस नहं ऽमलेगा I वो हर्क के स़थ मिझे रोक रहे थे क्ययंफ़क तान फ़दनं मं मं ईनके स़थ पीरा तरह घिल ऽमल गया था I आसकी वजह थ़ मेऱ ऩमI ऄसाम़ भट्ट I मेरे ऩम से लोगं को पत़ नहं लगत़ फ़क मं ऽहन्दी हूँ य़ मिऽस्लम और उपर से "भट्ट' I भट्ट, कश्मारा होते हं I मंने भा ईनकी मिहब्बत के अगे ईनके भरम को बऩये रखऩ हा ल़ऽज़मा समझ़ I वैसे भा 'ऄश्वथ भट्ट' ऱष्ट्राय ऩट्ड ऽवद्य़लय मं मिझसे एक स़ल जीऽनयर थ़ I ईसकी कोइ

बहन नहं था ईसने मिझे ऄपना बहन बऩय़ हुअ थ़ I ईसके मम्मा -प़प़ बड़े हा प्य़रे और साधे स़दे आं स़न हं I कश्मारा पंऽडतं को जब कश्मार से भ़गऩ पड़़ थ़ तब वे ऄपऩ सब कि छ छोड़कर फ़दल्ला अ गए थे I आसऽलए आस हक से भा मिझे ईनक़ यह र्कज़च चिक़ऩ हा थ़ I और आस वजह से लोगं ने मिझे कश्मारा म़नकर बहुत मिहब्बत दा I ऄक्यसर शीटिटग के अस-प़स व़ले मिझे ऄपने घर ख़ने पर बिल़ ले ज़ते I ख़स कश्मारा ऄंद़ज़ मं मेरा ख़़ऽतरद़रा करते I कहव़ (कश्मारा ख़स पेय) ऽपल़ते I जब मेरा शीटिटग नहं होता मिझे घिम़ने ले ज़ते I मिझे ऽशक़रे पर भा घिम़य़ I ऽशक़रे पर घिम़ने के , ऽशक़रे व़ले ने मिझसे पैसे भा नहं ऽलए I कश्मारा ज़ेवर-पोश़क (फ़फरन) खरादव़य़ I के सर फ़दलव़य़ I अने लगा तो 'कहव़' तोहफे मं फ़दय़ I ख़ने मं भा मेहम़न नव़ज़ा मं कोइ कसर ब़की नहं रखा I गोश्त़ब़, कवरग़ह, यखना, रोगन जोश, कऽलय़, स़मन और च़म ऩ ज़ने फ़कतने लज़ाज ख़ने क़ लित्फ़ ईठ़य़ I वो तान फ़दन मं व़कइ 'जन्नत' मं था और यहा वजह है फ़क अज मंने ऄपने घर क़ ऩम 'जन्नत' रख ऽलय़ है I श़म के ईस धिध ं लके मं जब मं 'ह़इवे “' पर अकर खड़ा हो गया तो सचमिच फ़दल्ला ज़ने व़ला स़रा बसं बंद हो चिकी थं I धारे धारे ऄँधेऱ भा बढ़त़ ज़ रह़ थ़ I भातर से दो डर थे - फ़क ऄगर मं कऽवत़ चौधरा की शीट पर नहं पंहुचा तो? और दीसऱ फ़क ऄगर लौट कर व़पस गया तो शीटिटग व़ले मेरे यीऽनट के लोग मिझ पर हँसंगे फ़क गया तो था शेरना बनकर व़पस लौटकर अ गया ऽबल्ला बनकर I खैर! ऽजतना प्ऱआवेट ग़ऽड़य़ँ अ ज़ रहा थं ईनसे ऽलफ्ट म़ँगऩ शिरू कर फ़दय़ I कोइ भा ग़डा नहं रूकी I सरच सरच करता ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

खिश्बी जैसे लोग

मेरे स़मने से गिजर ज़तं I मं ज़ऱ ज़ऱ डरने लगा था फ़क तभा एक ग़ड़ा (म़रुता 800) कि छ दीर ज़कर व़पस मेरा तरफ अया I ईसमं दो लड़के बैठे थे I मिझे गौर से देखकर पीछ़ फ़क क्यय़ ब़त है? मंने कह़ - फ़दल्ला ज़ऩ है I ईन्हंने कह़ - आस वक़्त ? मंने कह़ - ह़ँ, बहुत ज़रूरा है I ईन्हंने कह़ - अपको पत़ है, अप कह़ँ हं? अपको कश्मार के ह़ल़त नहं म़लीम ? उपर से अप ख़तीन हं? क्यय़ ऩम है? कि छ हो गय़ तो? मंने कह़ - 'मौत क़ एक फ़दन मिऄय्यन है....' ऄगर यहं मौत अऩ है तो 'जन्नत' मं मरने से बेहतर क्यय़ होग़? दोनं लडके एक स़थ हंस पड़े I ऩम सिनकर कह़ -ऄच्छ़ तो अप कश्मारा हं I वरऩ मं सोचीं कोइ ब़हर व़ल़ तो ऐसा गलता नहं कर सकत़ I दोनं ने ब़आज्जत मिझे ग़ड़ा मं बैठ़य़ I ऱस्ते भर मिझसे फ़दलचस्प ब़तं करते अये I ईस फ़दन मिझे 'ऄश्व्थ' की बहन होने क़ सचमिच फ़यद़ हुअ I और ऄश्व्थ की मम्मा से ऽजन्हं मं भा मम्मा हा बिल़ता हूँ, ईनसे सिना ऄनऽगनत कश्मारा ब़तं और ईनकी य़दं बहुत क़म अया I जम्मी तक मिझे ग़ड़ा मं छोड़़ I जम्मी पंहुच कर पऽहले मिझे भगव़न के ढ़बे पर ऱजम़ -चार्ि पखिाया I और फ़फर फ़दल्ला की बस मं बैठ़य़ I बस के रटफ़कट भा ईन्हंने हा कऱए और रटफ़कट मिझे फ़दय़ I एक क़गज़ के टि कड़े पर बस क़ न. भा ऽलख कर मिझे फ़दय़ I कं डक्यटर को ऽहद़यत दा फ़क मिझे ख्य़ल से फ़दल्ला कश्मारा गेट ईत़र दे I ड्ऱइवर की ठाक पाछे व़ला साट पर बैठ़य़ I एक बोतल प़ना ल़कर फ़दय़ और कह़ फ़क फ़दल्ला पहुँच कर मिझे फ़ोन करं तब मोब़आल नहं थ़ I

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मंने कह़ - अपक़ ऩम? मंने पीछ़ हा नहं I जोर से हँसे, कह़- ऄरे ! अप से ब़तं मं पत़ हा नहं चल़ I मं आमऱन और यह श़ऽहद I हम दोनं बचपन के दोस्त हं I हमं जम्मी मं क़म है I कि छ स़म़न लेकर व़पस लौट ज़यंगे I नहं तो हम अपको फ़दल्ला छोड़कर अते I नहं आसकी कोइ ज़रूरत नहं I पहले हा अपने मेरे ऽलए बहुत कि छ फ़कय़ I कै से शिफ़क्रय़ करूँ? वे बोले- बहन हो हम़रा I शिफ़क्रय़ कै स़?. बस हमं य़द रखऩ और कभा फ़दल्ला अउं तो मिझसे ज़रूर ऽमलऩ I ऄपऩ ख्य़ल रखऩ I ऄल्ल़ह ह़फ़फज़ !. आतने फ़दनं ब़द भा ईन दोनं की य़द अता है तो लगत़ है दिऽनय़ की भाड़ मं कहं ऄपऩ भ़इ गिम है I क्ययंफ़क एक अध ब़र हा फ़ोन पर ब़त हो सकी. ईसके ब़द मेरा ख़ऩबदोश जिजदगा कह़ँ कह़ँ से गिजरते हुए मिम्बइ अ गया I हम भले हा ऄब एक दीसरे से ऽमलं तो श़यद पहच़न ऩ प़यं लेफ़कन 'श़ऽहद' और 'आमऱन' तिम दोनं जह़ँ भा हो, मेरे फ़दल मं क़ंगड़ा की गिनगिना अंच की तरह अज भा य़द बनकर सल़मत हो I - ऄसाम़ ~✽~

हद ऄनहद के बाच मं...

फ़दल्ला से फोन पर कोइ कहत़ है? मं समझ सकत़ हूँ अपकी ह़लत I कि छ ख़य़-पाय़ होग़ नहं I दो फ़दन से लग़त़र ऄपनं की मौत झेल रहा हं (15 ऄप्रैल को ऄवध ऩऱयण मिदगल और 16 को मेरा दोस्त मररय़ I) कि छ ख़य़ ? ह़ँ, मैगा और कॉफ़ी ऐसे कै से चलेग़ I अप फ़दल्ला अ ज़आये कि छ फ़दन ऄच्छ़ ! फ़दल्ला अईं गा तो आं फ़दऱपिरम ज़ने देग़ ? देऽखये ऐस़ है, वैश़ला और आं फ़दऱपिरम के बाच मं एक पिऽलय़ है I पिऽलय़ के आस प़र वैश़ला ईस प़र आं फ़दऱपिरम और ऄगर अपने वो हद प़र की तो मिझसे बिऱ कोइ नहं होग़... ती मिझे हद मं रखेग़ तो मं 'ऄनहद' कै से होउंगा ? नहं रख प़उंग़ अपको हद मं .... रखऩ भा नहं च़हत़ ... ऄसाम़ ऄगर हद मं रहे तो फ़फर वो 'ऄसाम़' हो हा नहं सकता I फ़फर तो वो कोइ भा स़ध़रण अम लड़की होकर रह ज़येगा.. और मं तो आसऽलए अपकी आज्जत करत़ हूँ फ़क अप 'ऄसाम़' हं I 0000 (ऄब लोग 'आं फ़दऱपिरम' क़ ऱज़ खोलने के चक्कर मं न पड़ं, कोइ भा हो सकत़ है I मं भा ऄसाम़ हूँ, ऐसे हा बकव़स करता रहता हूँ I just enjoy.) ~✽~

"ऱत भर अव़ऱ श़खं पर ओस कि छ यीं ऽगरा फ़क भोर गाला था" - असीमा ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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खिश्बी जैसे लोग

गोव़ मतलब म़ररय़-ऽबन्ना क़नं मं तिम्ह़रा अव़ज़ अ रहा है I

Asmi, come no, come to me...

पर तिम चला गया I ऄब कह़ँ अईँ तिमसे ऽमलने?? तिम मेरे एक ब़र कहने पर फ़क रे मो फऩचऽडस मिझे ऄच्छ़ लगत़ और तिम क़र ड्ऱआव करते हुए मिझे गोव़ से सोलम 'रे मो' के ग़ँव ऽमलव़ने ले ज़ता हो. जब मं फ़दल्ला व़पस लौट अता हूँ और गोव़ मं रे मो मेरा य़द और मिल़क़त मं जो ग़ऩ परफ़मच करत़ हं वो तिमने मिझे फ़ोन पर सिऩय़-

गोव़ मतलब मररय़/ऽवन्ना दोस्ता ! मतलब मररय़ प्य़र ! मतलब मररय़ मररय़ ! मतलब जिजदगा अज जैसे मेरा ऽज़न्दगा से गोव़ शब्द खत्म हो गय़ I स़रा ऱत ज़गा हूँ तेरे ऽलए प्ऱथचऩ करते हुए, तिम्हं य़द करते हुए I फे सबिक भा गव़ह है फ़क बेचेना मं फ़कतने पोस्ट कर ड़लं I बहुत ठगा सा हूँ I ऄसह़य .. कै से ज़ सकता हो तिम ऄके ले मिझे, गात़श्रा को वरुण को ऄपना प्य़रा ऽवयोल़ को छोड़ कर .. तिम कहता था I -

"I love you baby, love you sweetheart, My door is open for you 24 hrs. come no Goa. come to me.'

sweetheart I'm so happy for you. Remo dedicated song for you, He said - 'this song for that lovely lady who came to see me all the way from Delhi to Goa.; Can you hear it...

क्यय़ कहूँ ? क्यय़ करूँ? कि छ समझ मं नहं अ रह़ मंने एक कह़ना ऽलखा था ऽजस पर फ़फल्म बऩना था हम तान सहेऽलयं की कह़ना है I तिम गात़श्रा और मं - 'तान औरतं;... ती कह़ँ चला गया I तिम जो मिझे मिझसे ज्य़द़ प्य़र करता था मेरा ख़ुशा और गम मं तिम मिझसे ज्य़द़ प्रभ़ऽवत होता था I तिम्हं हमेश़ मिझ पर मिझसे ज्य़द़ यकीन और भरोस़ थ़ I

please call me. say na One last time - 'Asmi, I love you baby, I'm proud of you. come no Asmi, come to me. ~✽~

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

प़गल, अव़ऱ लड़की नशे मं होगा न मं प़गल हूँ, न नशे मं .... ह़ँ अव़ऱ कह सकते हं... क्ययंफ़क यह शराफ लड़फ़कयं क़ क़म नहं है फ़क आतना ऱत (ऱत के लगभग 1 से 3 के बाच) गये बेखौफ खिला सड़क पर घिमे... पर क्यय़ कीऽजये ? यह ऄजाव 'ऩइट जिसड्रोम' है मिझे फ़क जब शहर और सड़क कि छ कि छ मेरा तरह अधा सोया और अधा ज़गा ... कि छ कि छ खोया सा रहता है तब शहर मिझे और ऄऽधक खिबसिरत लगत़ है और ईठ ईठ कर भ़गता हूँ अधा ऱत को सड़कं पर I जबफ़क खतरे से ख़ला नहं I क्ययंफ़क हम़ऱ सभ्य सम़ज ऄभा आस क़ऽबल नहं हो प़य़ है फ़क एक ऄके ला लड़की के आस प़गलपन को बद़चश्त कर सके I मेरा सहेऽलय़ं डरता हं ...कहता है... कोइ ईठ़ ले ज़येग़ ... मत कर प़गलपन... मेऱ एक दोस्त फोन पर कहत़ है - ''रे प हो ज़येग़.... ज़ओ घर ज़ओ....' मं कहता हूँ - हुंम्म. आससे ज्य़द़ क्यय़ होग़? ज़बो ऩ , ज़वो ऩ घोरो..... घोर जेते च़इ ऩ..... आन सिनस़न सड़कं पर खिल कर स़ँस लेऩ फ़कतऩ ऄच्छ़ लगत़ है... ऽबऩ फ़कसा डर के .... मेरे मोब़आल पर ''के ना जा' सेक्यसोफोन बज रह़ है... एलंन .... ऑटो व़ल़ अत़ है. रुकत़ है ... पीछत़ है .. ज़ऩ कह़ँ हं .... मं कहता हूँ.... पत़ नहं.... सरच से ल़ईड म्यिऽज़क बज़ता ग़ऽड़य़ँ मेरे नजदाक अते अते धामं हो ज़ता है ... ईन्हं लगत़ है श़यद मिझे ऽलफ्ट च़ऽहए.... और मं ईन्हं कोइ तवज्जो फ़दये वगैर बेख्य़ला ... बेपरव़हा मं ऄनदेख़ कर गिज़रता हूँ... वो हँसते हं.... प़गल, अव़ऱ लड़की ... नशे मं होगा.... एक मिठ्टा ऱत ,,, थोड़ स़ च़ँद ऄपना हथेला मं और त़ज़़ हव़ साने मं भर कर लौटा हूँ.... तकीये पर के लंडिल़ स्प्रे कर फ़दय़ है ..... श़यद ऄब नंद अ ज़ये .... शब्ब़ खैर !!!!! ~✽~

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‘Yakshini Of Deedarganj’, a Poem by Asima Bhatt dedicated to Cancer Patients Your voluptuous and beautiful bosoms resemble those Of Yakshini’s of Deedarganj. I rest my head on them and find solace. They give me the power to surmount life and solution for every dilemma. Whenever I sleep on your bosoms it feels as if a kid is back where he belongs, on his mother’s lap! You stretch out your arms to me, like you’ll save me from every weather storm, knowing I can trounce any tide with the helm of your arms. Myriad nights when I felt routed, Weary and feeble I have always turned to your bosoms. To cry my heart out, but you never let me cry, ever. I don’t know how you anticipated my fears, implausibly whipped away my tears. I play with your bosoms just like a kid who plays With his most beloved toys. Your voluptuous bosoms are the blend of hauteur and ecstasy which are flying high, like a victory flag on the peaks of The Himalayas. Whenever I returned miserable or empty handed you have always hugged me tight, your bosoms pressed hard against me. Saying, “Don’t worry baby, I am here for you.” How swiftly you turn into a mother from a lover, sometimes even like a sister, who grew up together, Like friends. “Oh my love you are the most lovable lady on this earth!” You should be topping the list of, The world’s greatest lover. I feel I am nothing in front of you. I can’t give you enough, whereas I have gained so much from you, Now I want to take birth from you,

I want to come out exploring all the nature inside you, It’s the only possible way to repay you, My Love. 2. I am staring in the mirror blankly at myself "You are the statue of Yakshini of Deedarganj”, These word are echoing like a sweet melody in my ears where are these words now? My one phone call "The doctor said – I have breast cancer, possibilities are they will cut off my breasts.” Not hearing anything from your end made me think If the phone lines are dead. I am standing numbed today, Waiting for you to hug me tight against your bosom and say "Don’t worry baby, nothing will happen to you.” Rather I am screamingly asking you,

पिष्प़ 'पिष्प़' जो की मेरे ऽबजिल्डग के दीसरे घरं मं ख़ऩ बऩता है I मं क़मव़ला नहं रखता क्ययंफ़क मिझे ऄपऩ क़म करऩ ऄच्छ़ लगत़ है I ददच के म़रे द़ऽहऩ ह़थ ऽबलकि ल नहं ऽहल़य़ ज़ रह़ I पिष्प़ सिबह मेरे घर अइ I मेरे ब़ल बऩये I मिझे मेरा पसंद क़ ब्लैक कॉफ़ी ऽबऩ शक्कर ऽपलय़. मिझे कपडे पहऩये और ड़क्यटर के प़स लेके गया Iक्यय़ कहं- I'm just

humbly grateful for both of them. ~✽~

ऱजी भ़इ

दोस्तं ! कल श़म 4 बजे मं कहं ऽगर गया I मिझसे ईठ़ नहं ज़ रह़ थ़ I अस प़स कोइ नहं थ़ I फ़कसा तरह खिद को सम्ह़ल कर ईठा और कि छ दीर चलकर सडक की तरफ बढ़ा I दीर दीर तक कोइ ररक्यश़ नहं फ़दख़ तो मं सड़क पर हा बैठ गया I ऄसह़य और घबऱया हुइ I तभा ऱजी भ़इ 'ररक्यश़व़ल़' अये मिझे ररक्यशे मं ऽबठ़य़ और डॉक्यटर के यह़ँ ले गए डोक्यटर की ऽक्यलऽनक बंद होने से द़व़ दीक़न पर ले गए I दिक़नव़ले ने चोट की दव़ दा I ऱजी भ़इ ने मिझे घर छोड़़ और मिझसे पैसे भा नहं ऽलए I और ज़ने के ब़द फोन पे कह़- "ख़ने की जिचत़ मत करऩ मं ख़ऩ लेकर अ रह़ हूँ I" मऩ करने पर बोले- "मं हरय़ण़ क़ पंऽडत हूँ और एक पंऽडत के ढ़वे से ख़ऩ ख़त़ हूँ I तिम्हं कहं ऐसा-वैसा जगह से ख़ऩ नहं ऽखल़उंग़ I" और ऱत दस बजे ढेर स़ऱ ख़ऩ लेकर अये I पैसे देने लगा तो कह़- "ती मेरा बहन है I दादा है लेफ़कन मं हररय़णे क़ हूँ आसऽलए ती बोल रह़ हूँ I" ~✽~

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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"हम मं हा था न कोइ ब़त, य़द न तिमको अ सके ऄजनबा ररक्यश़ व़ल़ तिमने हमं भील़ फ़दय़ हम न तिम्हं भील़ सके " खिश्बी जैसे लोग

ह़फ़फज़ ज़लंधरा

ऄच़नक जब वो बोल़ ; 'मैडम जा म़फ़ करऩ, अप दीसऱ ररक्यश़ देख लो, मिझे आस वि आसे (सडक पर एक लड़क़ जो मोटर स़यफ़कल से जख्मा होकर पड़़ थ़) ईसे हस्पत़ल ले ज़ऩ है I' मं डरते हुये कहता हूँ, ऄरे द़द़, मंने तो पहले हा कह़ थ़ मिझे ऱस्त़ नहं पत़ I ऄँधेरा वेस्ट मं रहता हूँ I मिम्बइ के इस्ट क़ ज्य़द़ ऄत़ पत़ नहं I यह पेपर बोक्यस, मह़क़ला के भ्स कह़ँ है? वो कहत़ है अप कोइ और ररक्यश़ व़ल़ से पीछ लो I पैसे बेशक कम दे दो I 100 बने हं 70 दे दो I ऄच्छ़ ठाक है कह कर मं ऄधमने मन से ररक्यश़ से ईतरता हूँ. वो खीन से सने ईस लड़के को ऄपने बच्चे की तरह ईठ़ कर ररक्यशे मं लेट़त़ है और कहत़ है - 'यह भा तो फ़कसा क़ बेट़ है I ' मंने ईस वक़्त ईसक़ ऩम भा नहं पीछ़. ब़त चात से आतऩ बत़ सकता हूँ फ़क वो ऽमऽथल़ ऽबह़र क़ थ़ क्ययंफ़क ररक्यश़ मं बैठते हा जब ईससे कि छ ब़त की तो ईसकी बोला सिनते हा पीछ़ थ़ - अप ऽबह़र से हं ? वो बोल़ - ह़ँ, 15 - स़ल से बम्बइ मं हूँ, स़ल मं एक ब़र घर ज़त़ हूँ I 'ऄपने भा मैऽथल छा sssss (R u also

Maithil)?'

नयेइsss, हमर घर गय़ भेल (No, I m from Gaya. ) ऄभा आस वक़्त ईस ररक्यशे व़ले को गले लग़कर कहने क़ मन करत़ है I Love you ऄच्छे-सच्चे ऽहन्दिस्त़ना दोस्त I जिहदिस्त़न तिम जैसे सच्चे और इम़नद़र लोगं के दम पर हा सल़मत हैI सल़म करता हूँ ..... I ~✽~

मेरे पऽत हँसते हुए मिझसे फोन पे कहते हं 'हममं हा था न कोइ ब़त ....' मं कहता हूँ, ह़ँ सिऩ है जगजात और ऽचि़ जिसह ने ग़य़ है. वे बत़ऩ शिरू करते हं पीरे जोश से जगजात के ब़रे I मं कहता हूँ ह़ँ-ह़ँ सब ज़नता हूँ 'डेट' (गिडग़ँव, फ़दल्ला के एक खीबसीरत रे स्टोरं ट मं) कर चिकी हूँ और ऽलख़ भा ईनके ब़रे मं... ऄच्छ़ तिम ऽमला था ? मं कभा ऽमल़ नहं पर बड़े गजल ग़यक थे हम़रे जिहदिस्त़न के ... ह़ँ ऽमल चिकी और और सचमिच बहुत हा खीबसीरत आं स़न थे I ईनकी एक ग़ज़ल जो मिझे बेहद पसंद था "मढ़व़ दो च़हे सोने च़ँदा मं अइऩ झीठ बोलत़ हा नहं' मंने ईनसे पीछ़ थ़ फ़कस एलबम मं है? ईस वक़्त ईन्हं य़द नहं थ़ ईन्हंने मिम्बइ व़पस अने के ब़द मिझे फ़ोन करके बत़य़ फ़क 'ऄसाम़ मं जगजात जिसह बोल रह़ हूँ , तिमने पीछ़ थ़ न वो ग़ज़ल 'ऽमऱज' एलबम मं है I' ईनकी यह ब़त अज तक नहं भीला क्ययंफ़क मं पीछ कर भील गया था पर ईन्हं य़द रह़ ... अलोक को अशचयच होत़ है और कहते ऄच्छ़ ? ह़ँ.. मं फ़कसा ऐरे -गैरे को थोड़े न 'डेट' करता हूँ I लम्बा फे हररश्त है I ऱजेन्द्र य़दव से, रे मो फऩंऽडस, आमरोज़, शऽश कपीर तक और सबके ब़रे मं ऽलख़ भा I अलोक कहते हं- "ऄच्छा ब़त हं I सबको एक जगह फ़कत़ब की शक्यल दो" हूँ ! एऽडय़ बिऱ नहं हं. मंने तो सब ऽलख रख़ है I ऄगर कोइ कॉम्प़आल करऩ च़हं तो अगे अये I स्व़गत है I क्ययंफ़क ऄब तो मिझसे कि छ होग़-बोग़ नहं.. बहुत थक गया हूँ I दरऄसल मं ऄब कि छ करऩ हा नहं च़हता. मोहलत की ऽज़न्दगा है मंरे प़स.... बस थोड़ दिऽनय़ देखऩ च़हता हूँ ख़स कर ऄपऩ भ़रत..... और प़फ़कस्त़न और बंगल़देश ज़ऩ च़हता हूँ मेरे हा एक भ़रत क़ तान टि कड़़ है I ~✽~

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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ऄनज़न औरत क़ ख़त" करते हुए वहा सिख ऽमलत़ है..., जो एक म़ँ को ऄपना ममत़ के अँचल मं, ऽशशि को तुप्त कर के ऽमलत़ है I ~✽~

एक ऄनज़न औरत क़ ख़त सिबह सिबह मसीरा से एक ऽमि क़ फोन अय़, कह रहे थे फ़क—"तिम्ह़रे ऩटकं की तस्वारं देखत़ रहत़ हूँ, ऄभा ह़ल मं भा कि छ ऽपक्यचर देखे तिम कहं शो करने गया था I बहुत ऄच्छ़ लगत़ है फ़क कि छ हा तिम जैसे लोग बचे हं जो ऩटक करते हंI" ऄच्छा ब़त तो है लेफ़कन हम जैसे लोग भा श़यद आसऽलए ऩटक करते हं ऽजनके प़स फ़फल्म य़ टावा मं क़म नहं हं I वैसे मिझे "एक ऄनज़न औरत क़ ख़त" करते हुए वहा सिख ऽमलत़ है,

Like a Mother feeding her child. ~✽~

'मं माऱ ब़इ, बेग़म ऄख्तर, आस्मत चिगतइ, और ऄमुत़ प्रातम की बेटा हूँ....' कल पंकज ऽिवेदा जा ने बहुत हा ऄच्छ़ मेऱ टेलाफोऽनक आं टरव्यी फ़कय़ I ईनक़ अखरा सव़ल थ़ फ़क—"अप आतऩ बेब़क क्ययं ऽलखता हं ? क्ययंफ़क मिझे झीठ और ऽहपोक्रेसा से नफ़रत हं I ऽबलकि ल पसंद नहंI जो लोग ऐसे हं ईनसे बहुत कोफ़्त होता है I वो लोग जो ख़स कर क़यर हं ईनके स़थ रहकर तो मेरा तऽबयत ख़ऱब होने लगता है I ऄगर अप सच्चे और इम़नद़र हं तो फ़फर डर फ़कस चाज़ क़ I 'पद़च नहं जब कोइ खिद़ से बन्दं से पद़च करऩ क्यय़...?' सच बोलकर देऽखये बड़ा खीबसीरत चाज़ है और बड़ा त़कत ऽमलता है I मं माऱ ब़इ, बेग़म ऄख्तर, आस्मत चिगतइ, और ऄमुत़ प्रातम की बेटा हूँ I मिझे जाऩ मत ऽसख़ओ I लोगं को तो औरतं के खिल कर स़ँस लेने पर भा गिरेज़ हं .. प्लाज़ लेट मा ब्राद I

Me & my Valentine व़ह अऽसम़ व़ह ! सच तो यह है फ़क मिझे फ़दलेरा पसंद है और तिम्ह़रा देलेरा को सल़म करत़ हूँ । म़ँ ( आस्मत चिगत़इ) के ब़रे मं स़अदत हसन मंटी ने ऽलख़ फ़क- "जब मंने आस्मत से श़दा क़ प्रस्त़व रख़ तो ऽलह़फ जैसा कह़ना ऽलखने व़ला औरत क़ भा चेहऱ शरम से ल़ल हो गय़ । यह मंटी की नज़र था । मेऱ नजररय़ ऄलग है । औरत क़ शमचऩ फ़फतरत के तहत है । पर सच क़ स़मऩ करऩ और बेब़की से सच्च़इ को कह देऩ ईसकी सल़ऽहयतं को दश़चत़ है ।मं सल़म करत़ हूँ अऽसम़ और ईनके हौसले को जो मेरा ऽज़न्दगा मं ऽमला पहला मऽहल़ हं जो बेब़क़ऩ गिफ्तगी करता हं । - मेहद ं ी ऄब्ब़स ररज़वा ~✽~

(Jaya Baa, 90 yrs old)

तिम्हं प़ने के ज़ुनीन मं... "तिम्हं प़ने के ज़ुनन ी मं मंने ख़ुद को फ़ऩ कर ऽलय़"- एक ऄनज़न औरत क़ ख़त । सिबह सिबह मसीरा से एक ऽमि क़ फोन अय़, कह रहे थे फ़क - "तिम्ह़रे ऩटकं की तस्वारं देखत़ रहत़ हूँ, ऄभा ह़ल मं भा कि छ ऽपक्यचर देखे तिम कहं शो करने गया थं I बहुत ऄच्छ़ लगत़ है फ़क तिम जैसे कि छ हा लोग बचे हं जो ऩट्ड कल़ को जाऽवत रखे हं" I ऄच्छा ब़त तो है, लेफ़कन हम जैसे लोग भा श़यद तभा ऄऽभनय की आस ऽवध़ मं भ़ग लेते हं जब हम़रे प़स फ़फल्म य़ टावा मं क़म नहं होत़ I वैसे मिझे "एक ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

No Flowers, No Leapistic, No Perfume, No Ring. She served me KadhiChawal, Gajar ka halwa with lots of love n blessing... ~✽~

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"बोल के लब अज़़द है तेरे...." फ़कसा भा ऽशक्षक के ऽलए सबसे ख़ुशा की ब़त तब होता है जब ईसक़ स्टी डंट कहे फ़क वो अप जैस़ बनऩ च़हता है I कि छ फ़दन पहले मेरा एक स्टीडंट (ख़ुशा, यह ऩम मंने हा फ़दय़) एजिक्यटग साखने अया था I मं ईसे जो कि छ पढ़़ता य़ साख़ता वह ररएक्यट नहं करता I मिझे लगत़ फ़क कहं मेरे साख़ने, बत़ने मं हा कोइ कमा है I फ़फर मंने ईससे कह़ फ़क रोज़ वह कि छ ऽलख कर ल़य़ करे I क्ययंफ़क मं म़नता हूँ फ़क एक्यटर को ऄपना फीजिलग्स एक्यसप्रेस करऩ अऩ च़ऽहए I वह रोज़ कि छ ऽलख के ल़ने लगा ऽजसे पढने से लग़ फ़क ईसके पररव़र मं कि छ प्रोब्लम है I मंने बहुत पीछ़ और ज़नने की कोऽशश की तो ऽसफच ईसने यहा बत़य़ फ़क वह घर ज़ने से डरता है और ईसे ऄपने भ़इ और प़प़ से डर लगत़ है I एक फ़दन ईसे मेऽडटेशन कऱ कर गहरा नंद मं ले गया. और जब ईससे ब़त की तो पत़ लग़ फ़क जबसे ईसने होश सम्ह़ल़ है ईसके भ़इ-प़प़ ईसक़ श़राररक शोषण करते हं I वह दऽहसर (मिम्बइ) के एक छोटे से चौल मं रहता हं I जह़ँ स़ड़ा क़ पद़च बऩ कर घर को दो ऽहस्सं मं ब़ंट़ गय़ है I पीछने पर की म़ँ कि छ नहं कहता ? तो बोला फ़क ईसके प़प़-भ़इ म़ँ को बहुत म़रते हं I म़ँ बहुत बाम़र रहता है और बहुत कमज़ोर है. मेऱ भ़इ मेरे कपड़े ब्लेड से फ़ड़ ड़लत़ है I रोने य़ ऽचल्ल़ने पर मेरे मिंह पर मरत़ है I मेरे मिंह से खीन अने लगत़ है I मिझे ऄपने अपसे ऽघन अता है I लगत़ है रेन मं ज़कर कट ज़उ I मंने ईसे कह़ – चलो, ऄभा पिऽलस स्टेशन I वह रोने लगा – ‘ नहं, मं नहं ज़ सकता I वो लोग मेरा म़ँ को और मरं गे I मं म़ँ को फ़कसा तरह क़ निकस़न नहं पंहुच़ सकता I ऐसे हा वह बाम़र रहता है I हमं घर से ऽनक़ल दंगे I फ़फर मं कै से बद़चश्त कर सकता हूँ फ़क मेरा स्टीडंट ऐसे ह़ल मं

हो I वह बस रोये ज़ रहा था I मंने ईसे समझ़य़ फ़क मं ईसके स़थ हूँ और कि छ होग़ तो वो मेरे स़थ रह सकता है I लेफ़कन वह आतऩ घबऱ गया था फ़क ईसे डर थ़ फ़क मिझे भा क्ययं बत़य़ I मंने ईससे कह़ ऄगर मेरा स्टी डंट हो तो मेऱ कह़ म़नऩ पड़ेग़ I अज घर ज़ओ और म़ँ, प़प़, भ़इ सबको एक स़थ बिल़कर बैठ़ओ और कहो फ़क ऄब तक जो भा हुअ तिमने बद़चश्त फ़कय़ I ऄब तिम कि छ भा नहं सहोगा I ऄब ऄगर फ़कसा ने ईसे छि अ य़ बीरा नजर से देख़ तो वो पिऽलस के प़स ज़येगा I ऄगले फ़दन जब मेरा ख़ुशा मेरे घर अया तो ईसक़ चेहऱ ख़ुशा से और अत्म ऽवशव़स से चमक रह़ थ़ I ईसने बत़य़ फ़क – पत़ नहं मिझमे क़ला की तरह कह़ँ से ऽहम्मत अ गया फ़क घर ज़कर वैसे हा फ़कय़ जैसे अपने करने के ऽलए कह़ I भ़इ तो तिरंत घर से भ़ग गय़ और ईसने ऩइट ड्यीटा ले ला I और ऽपत़ पैर पर ऽगर कर रोने लगे फ़क ‘तिम स़क्ष़त् देवा जैसा लग रहा हो, मिझे म़फ़ कर दो I’ ऄब मेरा ख़ुशा खिश भा है और क़म भा कर रहा है I और जब भा कि छ होत़ है मिझे फोन करता है फ़क मं अपसे ऽमलने अऩ च़हता हूँ I दरऄसल जो लोग गलत होते हं वो पहले हा डरे होते हं ईनके मन के ऄंदर चोर होत़ है. और जैसे हा कोइ ईनके स़मने ऽहम्मत फ़दख़त़ है तो वो डर ज़ते हं I बस ईनके स़मने एक ब़र ऽहम्मत करके अव़ज़ ईठ़ने भर की देरा होता है I आसऽलए मेरा प्य़रा दोस्त/ बहन ! मं हमेश़ तिम सबके स़थ हूँ I चिप मत रहो, ज़ुल्म मत सहो I ऄपना अव़ज़ ईठ़ओ.... जो गलता तिम्ह़रा हं हा नहं, ईसे चिपच़प मत सहो I बोल के लब अज़द हं तेरे….. खिश रहो I

कऽवत़ मिझे पसंद अइ ऩऽज़म ऽहकमत

ऽप्रये! ऽनक़लो वहा पोश़क ऽजसमं तिम्हं पहले पहल देख़ थ़ सिन्दरतम सजो बसंत वुक्षं की तरह ईठ़यो ऄपऩ गोऱ चौड़़ ईन्नत म़थ़ चीमने ल़यक लग़ओ ऄपने ब़लं मं वहा ल़ल क़नेशन क़ फी ल ऽजसे मंने भेज़ थ़ जेल से ऄपने ख़त मं...... अज टी टा हुइ ईद़स हरऽगज़ नहं अज लगऩ च़ऽहए ऩऽजम ऽहकमत की बाबा को सिंदर आस्त़म्बिल के ब़गा झंडे की तरह ... ~✽~

~✽~

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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सब कि छ के ब़द सब ठाक है ! अज वो ऽचट्ठा बहुत य़द अ रहा है I ऽजसे हममे से सबने कभा न कभा पढ़ा होगा I जब 'आमेल' और 'व्ह़टस ऄप' नहं थ़ I ऽसफच ड़फ़कय़ क़क़ हुअ करते थे I ऽचट्ठा लेकर अते थे घर के फ़कसा मेहम़न की तरह, ऽजन्हं म़ँ गिड और प़ना देता था I वो खत I जो घर मं कम़ने व़ल़ एक हा बन्द़ होत़ थ़ और ऄपने पररव़र क़ पेट भरने के ऽलए ग़ंव छोड़ कर शहर चल़ ज़त़ थ़ I मज़मीन कि छ यीँ होत़ थ़ *** भगजोगना के ब़पी ऱम ऱम भगव़न भोले की कु प़ से घर मं सब ऱजा ख़ुसा है I ब़की ह़ल है फ़क 'गिऽलय़' अपकी छोटकी बहन के ससिऱल व़ले ने कहलव़य़ है फ़क प़ंच मन ध़न हो तो ऄगहंन मं गौऩ करव़ लं I बडकी मंआय़ (च़चा स़स) ऄंगऩ मं ऽगर गया था कमर की हड्डा टी ट गया है I ड़क्यटर कहते हं फ़क शहर ले ज़ऩ होग़ I गौरा गआय़ को बछड़ ऽबय़य़ है लेफ़कन ईसको ढी ध नहं ईतर रह़ I ऱत फ़दन रे ररररय़ता रहता है वैद जा कहते हं ईसको ठाक से ऽखल़औ-ऽपल़ओ I कोयऽलय़, (छोटकी बच्चा) को कि कि र ख़ंसा हो गय़ है I दो महाऩ हो गय़, ख़यं ख़यं करता रहता है I घर मं घा होत़ तो तना कलेज़ पर रगड़ देते I चिलभ़ (मझल़ लड़कव़) को स्की ल से ऽनक़ल फ़दय़ है I तान महाने से स्की ल क़ पैस़ ब़की हो गय़ थ़ I ब़बी जा क़ घिटऩ मं बहुत ददच रहत़ है ठाक से ईठ बैठ नहं प़ते. म़ँ कहता है I अजकल ईसको अँख से ठाक से नहं दाखत़ है I ऄंध़र ऄंध़र लगत़ है बाच व़ल़ कोठरा है ऽजसमे हमसब बच्च़ लोग को लेकर सोते हं I चीने लग़ है I स़वन-भ़दो मं तो और प़ना पड़ेग़ I कै से भा करके कोठररय़ को छरव़ऩ पड़ेग़ I हम ठाक हं.... घर कब अइयेग़? अपको

देखे क़ बड़ा मन करत़ है I बड़ा फ़दन हो गय़ है देखे I ऽपछल़ स़ल होला पर घर अये थे तभा के देखे हं I ऄपऩ ऽधय़न रऽखयेग़ I शहर मं कोइ अपको देखने व़ल़ नहं है I ठाक से ख़इये -पाऽजएग़ I ब़की सब भोले ब़ब़ के अशाव़चद से ठाक हा है I ऽलख़ कम ज्य़द़ समऽझएग़ I जल्दा अआयेग़ अपकी, सिरसऽतय़ ~✽~

मेरे ऽप्रय 'ऄज्ञेय'

ठाक है दोस्त, मंने लहर चिना तिमने पगडंडा तिम ऄपना ऱह पर सिख से तो हो ? ज़नते तो हो की कह़ँ हो * 'ऄज्ञेय'

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

कऽवत़ मिझे पसंद अइ बेल़ की कऽवत़ पन्द्रह लड़के य़ ज्य़द़ य़ पन्द्रह से कि छ कम मिझसे डरे डरे स्वर मं कहते चलो ऽसनेम़ चलं य़ कल़ संग्ऱहलय 'वक़्त नहं है' - मं कहता पन्द्रह लड़के , मिझे भंट फ़कये बफीले फी ल कह़ फ़क—कभा रह न सकं गे प्य़र फ़कये ऽबऩ देखींगा—मंने कह़ पन्द्रह लड़के सिकीन क़ जावन ऽबत़ रहे हं ईन्हंने बड़े बड़े क़म कर ड़ले बफीले फी ल भंट करने से ऽनऱश होने और ख़त ऽलखने तक लड़फ़कय़ँ ईन्हं प्य़र करता है मिझसे ज्य़द़ खीबसीरत य़ फ़क कि छ मिझसे कम भा पन्द्रह लड़के अज़़दा के जश्न मं सल़म कहते हं, ऽमलने पर ईनके सल़म मं जब हम ऽमलते हं होता है अज़़दा रठक़ने की नंद और वक़्त पर ख़ऩ अखरा लड़के ! तिम बेक़र हा मिझ तक अते हो तिम्ह़रे बफीले फी ल मं प़ना के ऽगल़स मं रखीग ं ा च़ँदा के से बिलबले ईनके हठाले डंठलं को ढँक लंगे लेफ़कन देखऩ ! तिम भा मिझे प्य़र करने से ब़ज़ अओगे और खिद पर म़ऽलक़ऩ जत़ते हुए उँचे लहजे मं मिझसे ब़त करोगे जैसे फ़क तिमने मिझ पर भा म़ऽलक़ऩ क़यम कर ऽलय़ हो और मं सड़कं से होकर गिजर ज़उंगा नाचे की ओर ..... ~✽~

(बेल़ अख्म़दिर्षलऩ -रुसा कवऽयिा)

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"ऄभा मं ऽज़न्द़ हूँ... " रोने लगा तो कह़ थ़ — "ऄभा मं ऽज़न्द़ हूँ I" - ऄसाम़ (11 June 2015) ~✽~

म़ँ

गय़ से श़ंऽडल्य भैय़ (प्रभ़त कि म़र श़ंऽडल्य) ने फोन पर बत़य़ फ़क -ड़. ईष़ लक्ष्मा (मेरे ऽपत़ की मिंहबोला बहन पर सगा से बढ़ कर) नहं रहा I सिनकर जड़ हूँ I पत़ नहं क्ययं ऐस़ लगत़ है फ़क ऄब ऽसफच ऄपनं की मुत्यि की खबर अना शेष है I और हम एक अंसी थमते नहं फ़क फ़कसा दीसरे ऄपने की खोने की सीचऩ के ग़म मं डी ब ज़ते हं I 'डॉ. ईष़ दा' ने श़दा नहं की था और आसऽलए वो मिझे गोद लेऩ च़हता था I प़प़ तो आसके ऽलए तैय़र भा थे लेफ़कन म़ँ ने लड़ झगड़ कर असम़न सर पर ईठ़ ऽलय़ थ़ I लेफ़कन मं यद़-कद़ ईनके प़स ज़कर रहता था I बहुत य़द अ रहा है अज I ईनकी एक ब़त वो कभा भा तान रोटा नहं ख़ने देता थं I कहता था—तान रोटा दिश्मन को देते हं I कम से कम च़र ख़यो. मं कहता मेरा तो दो हा रोटा खिऱक है, तान हा ज्य़द़ हो ज़ता है और अप उपर से एक और ड़ल देता हं I ड़ंटता था—दो से कै से पेट भरे ग़ I जम के ख़यो और खेलो I कभा कभा जिजदगा मं ऄपनं के ऐसे ड़ंट और दिल़र फ़कतने म़यने रखते हं I अखरा ब़र प़प़ के श्ऱि पर मिल़क़त हुइ था जब ईन्हं देखते साने से लग कर

कऽवत़

म़ँ ! जाने दो ऩ म़ँ मिझे ऄपना मजी से क्ययीँ ले अता हो ख़नद़न क़, सम़ज क़, ररव़ज़ क़ हव़ल़ ब़र-ब़र तिम्हे क्ययीँ लगत़ है मै कि छ नहं ज़नता... मंने सिना है तिम्हरा ख़़मोशा के एक एक शब्द ऱतं मं ज़गकर सबसे छि पकर तिम्ह़ऱ रोऩ सीऩ है, मंने नंद मं तिम्ह़रे सिनस़न चेहरे पे ऄनऽगनत भ़व देखे हं मंने... तिमने ऄपने मन मं जो ददच की गठरा ब़ँध रखा है ऽजसकी बोझ से दिखत़ है तिम्ह़ऱ साऩ तिम्ह़रे मन की परत पर जो जम़ है सफ़दयं के ऄत्य़च़र, सब ज़नता हूँ तिम्ह़ऱ ददच, तिम्ह़रे ऱज़....एक़न्त के , ऄपम़न के सब ज़नता हूँ मै... फ़फर ती कै से कहता है फ़क—"ती कि छ नहं ज़नता है." तो म़ँ श़य़द तिम भील ज़ता हो -कक तुम माँ हो! -तुमसे माँ-बेर्ी का ररश्ता है! जो गभव का ररश्त़ है... तिम्ह़रे ऄंदर नौ महाने रहा हूँ....ला है तिम्ह़रे भातर पीरे नौ महानं स़ँसे.... तिम्ह़रा एक-एक धड़कन को ईतने कराब से सिऩ है, जब तिम्ह़रे ईतने कराब कोइ नहं थ़....मेरे ऽपत़ भा नहं...... सब ज़नता हूँ ! ह़ँ! कभा कह़ नहं..... तिम्हे यह सब बत़ कर रुल़ऩ नहं च़हता फ़क मै तिम्ह़रे ब़रे मै सब ज़नता ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

हूँ... जैसे फ़क तिम मेरे ब़रे मं सब ज़नता हो... हम ऱज़द़र है एक-दिसरे के .....एक सहेला की तरह तिम्हे जो लगत़ है ऄल्ल्हडपन की हद तक ज़कर मेऱ जाऩ जो कि छ-कि छ तिम्हे मेरा बेशरमा लगता है .... नहं म़ँ ! ती तो ऐस़ मत सोच . तिम्ह़रा एक एक चिप्पा क़ मिंहतोड जव़ब है.... मेऱ खिल कर जाऩ क़श ती समझ प़ता तिम्ह़रे हा सलाब हं मेरे कं धे पर जो ऄब मै ढो रहा हूँ ... लड़की होऩ और औरत होऩ कोइ गिऩह नहं है, जो हमं ब़र-ब़र य़द फ़दल़य़ ज़त़ है फ़कसा अतंकव़दा की तरह फ़क "ति लडकी है" "औरत है....." ह़ं! हूँ लड़की.....औरत.... तो क्यय़???? तो क्यय़ हमं जाने क़ हक नहं.....ख़नद़न और स़ंस्क़रं की दिह़इ..... ब़र—ब़र कोड़े की तरह क्ययीँ बरस़इ ज़ता है हम़रे उपर... मेरे हंसने पर प़बंदा... मेरे खिलकर स़ँस लेने पर भा प़बंदा.... नश्तर की तरह खिदे हं एक एक ज़ख्म मेरे साने पर I आस सब क़ प्रऽतशोध एक हा है सबकी तरफ़ से, स़रा म़ओं की तरफ़ से I स़रा बेरटयं की तरफ़ से फ़क ऽजन्दगा मं I हम वैसे हा ऽजएं, जैसे हर एक आन्स़न को ऽजन्दगा जाने क़ हक है. साऩ खोलकर I खिलकर स़ँस लेऩ च़हता हूँ I सडा-गला ररव़जं की कब्र पर नुत्य करऩ च़हता हूँ ... और ह़ँ, एक ब़त और म़ँ ज़ोर से ऽचल्ल़ऩ च़हता हूँ और तिमसे कहऩ च़हता हूँ - "म़ँ तिमसे बहुत प्य़र करता हूँ I" - असीमा ~✽~

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मं प़प़ को नहं ज़नता (कक्ष़ दीसरा य़ तासरा)

ऽशक्षक – तिम्ह़ऱ ऩम क्यय़ है ? बच्चा – क्ऱंऽत भट्ट ऽशक्षक—प़प़ क़ ऩम? बच्चा - सिरेश भट्ट ऽशक्षक – क्यय़ करते हं ? बच्चा – नहं ज़नता । पीऱ क्यल़स हंसत़ है । बच्चा कि छ समझ नहं प़ता । टि क टि क सबक़ मिंह देखता । घर अकर म़ँ से पीछता है. ‘प़प़ क्यय़ करते हं?’ ‘ म़ँ – ‘मं क्यय़ ज़नी? ज़कर ऄपने ब़प से पीछो ।’ यह बच्चा है क्ऱंऽत । य़ना मं। और मिझे पत़ नहं, मेरे प़प़ क्यय़ करते हं। क्ययींफ़क ऩ वो और बच्चं के प़प़ की तरह हम़रे स़थ हमेश़ घर पर रहते हं, ऩ ईन्हं 10 से 5 ऑफ़फस ज़ते य़ अते देख़। वो तो ऄच़नक ऱत को घर अ ज़ते। सोकर ईठता तो देखता भैय़ (मं भैय़ हा बिल़ता था, बिअ और च़च़ जा, जो ईन्हं बिल़ते थे, वहा मंने भा साख़ थ़) घर पर हं। खिश हो ज़ता। भैय़– अप कब अये? वो कहते - ‘हूँम्म.. अ गए।’ मं पीछता– ‘अप कह़ँ चले गए थे?’ वो कहते– “क्ययीँ, अप ज़नक़र क्यय़ करोगे? अइ.स.अइ. के एजंन्ट हं अप? मिझे कि छ समझ मं नहं अत़। यह कह़ँ से अते हं, कह़ँ चले ज़ते हं और क्यय़ करते हं। धारे धारे बड़ा हुइ तो यह समझ मं अय़ की श़यद कोइ नेत़–वेत़ हं। कभा भ़षण

देते हं। और जेल ज़ते हं। मं ईनके क्रऽन्तक़रा दोस्तं के स़थ जेल मं ईनसे ऽमलने ज़ता। मिझसे बस एक व़क्यय पीछते –कै सा हो क्ऱंऽत बेट़? और ऄपने स़ऽथयं से तब तक गमचजोशा से ब़तं करते जब तक पिऽलस क़ पहरे द़र अकर नहं कहत़ फ़क– ‘मिल़क़त क़ वक़्त ख़त्म हुअ।’ देखते देखते मं बड़ा हो गइ। ऽबह़र के म़हौल मं ऐसे हा पला जैसे की कोइ ऽबऩ ब़प की बेटा पलता है। हर वक़्त ईनकी कमा महसीस करते हुए। म़ँ ने ऄके ले हम च़र भ़इ-बहनं को प़ल़ पोस़ और बड़़ फ़कय़। आस वजह से वो क़फी ऽचड़ऽचड़ा और खाझा सा रहता थं। ज़ऽहर थ़, ईनके ऽलए यह सब अस़न नहं थ़। ईनक़ ऄके ल़पन और प़ररव़ररक तऩव ईन्हं ऽवचऽलत कर देत़ थ़। वो क़फी ब़र हम भ़इ –बहनं को ऽबऩ ब़त के पाट देता थं। और खिद भा सर पाट-पाट कर रोने लगता। कइ ब़र हम ऽसफच भर पेट म़र ख़कर भीखे पेट सोते थे। ऽबऩ ब़त के म़र ख़ऩ आस ब़त ने मिझे क़फी ‘ढाठ’ बऩ फ़दय़ थ़ क्ययंफ़क मं बड़ा था आसऽलए मेरा ऽपट़इ ज्य़द़ होता था– ‘ती सबसे बड़ा है, ती हा बहा होकर ऐसे करे गा तो छोटे सब तो यहा साखंगे।’ अज तक बड़ा होने क़ तंज झेलता हूँ और खिद को कोसता हूँ फ़क—‘बड़ा हूँ तो अऽखर आसमे मेऱ क्यय़ कसीर है? यह ब़तं य़ ऽशक़यत क़फी ब़र भैय़ से करने क़ मन हुअ लेफ़कन एक तो वे वैसे हा कम ऽमलते थे उपर से बहुत कम ब़तं करते थे। य़ एक– दो व़क्ययं मं ‘कट टी कट’ जव़ब देते थे जो कभा समझ मं अत़ और कभा नहं अत़... जैसे ईन्हं खिद के ब़रे मं सव़ल पीछ़ ज़ऩ पसंद नहं थ़, वैसे हा ऩ वो फ़कसा के ब़रे मं ज्य़द़ ब़तं करते ऩ सिनऩ पसंद करते। कोइ ऄगर ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

ज्य़द़ बोलत़ तो कहते– अपको क्यय़ परे शना है? मिझे कभा फ़कसा ने बत़य़ थ़ फ़क पटऩ मं जब मं ऄके ला ‘वर्ककग ऽवमंस ह़स्टल’ मं रह रहा था। ‘ऄरऽवन्द मऽहल़ क़लेज’ मं पढ़ता था, ‘अज’ ऄखव़र मं क़म भा करता था और ऩटक भा करता था। ऩटक की वजह से क़फी ऱत तक ररहसचल होता था। पटऩ मं ख़स कर अज भा छोटे शहरं मं यह परम्पऱ है ऩट्डकमी लऽड़फ़कयं को रत मं घर तक पंहुच़ अते हं। मिझे भा लड़के हॉस्टल तक छोड़ ज़ते। फ़कसा ने मेरा आन गऽतऽवऽधयं को देखते हुए भैय़ को बत़य़ – ‘क्ऱंऽत क़ कइ लोगं से ररश्त़ है, देर ऱत बहुत से लड़कं के स़थ घिमता है, यह सहा नहं है। अपको समझ़ऩ च़ऽहए।’ भैय़ ने जव़ब फ़दय़ – ‘ज़इये ज़कर अप ऄपऩ क़म देऽखये। मं अपसे ज्य़द़ क्ऱंऽत को जनत़ हूँ।’ यह ब़त मिझे फ़कसा और से पत़ चला था। मेरे ईपर ईनक़ ऄटी ट ऽवश्व़श ज़नकर मं ख़ुशा और अत्मऽवश्व़स से लब़लब हो ईठा जो अज तक मिझमं क़यम है। वो कभा कभा मिझे दो–च़र पंऽि ऽलखकर पोस्टक़डच भेज़ करते। ईनकी ईन दो पंऽियं मं ‘गात़’ और ‘मह़भ़रत’ क़ स़र जैस़ होत़, ऽजन्हं मंने अज भा सम्ह़ल कर रख़ है। एक बहुरुऽपय़ य़ ऄबीझ पहेला से लगने व़ले मेरे ऽपत़ हमेश़ मेरे ऽलए एक बच्चे की द़दा ऩना की रहस्यमया कह़ऽनयं की तरह लगते...बड़ा होने के ब़द भा ऩ मिझे कभा फ़कसा प़टी य़ ऱजनाता के ब़रे मं बत़य़ य़ फ़कसा प्रक़र क़ दव़ब हा ड़ल़. ईनके ख़दा के झोले मं हमेश़ ‘कोऽिस्ट प़टी क़ मेनेफेस्टो’ और ‘ऽलबरे शन’ पिऽस्तक़ होता. ईन्हंने मिझे कभा वो पढने नहं फ़दय़. आसक़ यह मतलब नहं थ़ फ़क मिझे आन सबसे दीर

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रखऩ च़हते थे बऽल्क वो म़नते थे फ़क हर फै सले और ऽवच़र पर व्यऽि क़ खिद क़ स्वतंि ऄऽधक़र होऩ च़ऽहए। एक ब़र ऱस्राय ऩट्ड ऽवद्द़लय मं जब ऽमलने अये तो मंने ऐसे हा फ़कसा ब़त पर कह़–‘देश की ऄजाब दश़ है ऩ ज़ने कह़ँ ज़येग़?’ ईन्हंने कह़– ‘ज्य़द़ घबऱने की ब़त नहं है । देश ‘टमोआल’ के दौर से गिजर रह़ है, आसा से नइ क्ऱंऽत होगा । ज्य़द़तर वो फ़दल्ला मं हा मिझे ऽमल प़ए। च़हे मेरे ऱ.न.ऽव. मं पढने के दौऱन य़ फ़फर जब वो बाम़र हुए ह़ल़ँफ़क तब तिरंत फ़दल्ला से मिम्बइ अया था जब ईनकी बाम़रा क़ फ़कसा तरह पत़ चल़। बम्बइ ल़कर ऄपने स़थ रखने की ऽस्थऽत नहं था मेरा, आसऽलए मंने ‘ओल्ड एज होम मं रखव़य़। फ़दल्ला मं कि छ फ़दनं मंने बतौर ‘क़ंसलर’ एक ओल्ड एज होम मं क़म फ़कय़ थ़। ज़नता था जो श़ंऽत और शिकीन बिढ़़पे मं लोगं को घर पर नहं ऽमलत़ वो यह़ँ ऽमलत़ हं। कम से कम ऄके ल़पन नहं महसीस होत़। ह़ल़ँफ़क जबसे बाम़र थे और भा कम ब़तं करने लगे थे। मं घंटं ईनके प़स बैठता और वो श़यद एक–दो व़क्यय मिझसे पीछते। ईनक़ मौन मिझे स़लत़ थ़। ज़नता था ब़हर से जो शख्स एकदम श़ंत फ़दख रह़ हं ह़ल़ँफ़क ईनके ऄंदर बहुत बड़़ तीफ़न चल रह़ है। लेफ़कन वो कि छ बोलते हा नहं तो मं समझता कै से? एक ब़र मंने – ईनसे कह़ अप यह़ँ रहते हुए एक फ़कत़ब ऽलऽखए। वह बस हल्क़ स़ हंस फ़दए। दरऄसल ईनकी ऱजनैऽतक य़ि़ और संघषच क़ मिझे ऽबलकि ल भा ऄंद़ज़़ नहं थ़। ह़ँ । थोड़़ बहुत सिऩ थ़ की जे.पा. अन्दोलन मं सफ़क्रय थे तो मिझे ईनकी बाम़रा के लगभग 4 स़ल ब़द लग़ फ़क मिझे ईनके ब़रे मं लोगं को बत़ऩ च़ऽहए और मंने बस ऐसे हा एक फ़दन फे सबिक पर कि छ ऽलख ड़ल़ । पहला प्रऽतफ़क्रय़ यह था फ़क - ‘सिरेश भट्ट जिजद़ हं?’ ईसके ब़द मिझे कि छ लोगं ने संपकच फ़कय़। ईनके ब़रे मं पीछ़ और ज़नऩ च़ह़। फ़फर कइ ऄखव़रं मं कि छ खबरे छपं। एक फ़दन ऄच़नक ल़ली य़दव जा के पा.ए. क़ फोन अय़ फ़क ल़ली जा अपसे ब़त करं गे,

फोन पर रऽहये। ल़ली जा ने बड़े ऄपनेपन और ऄऽधक़र के स़थ ब़त फ़कय़। बऽल्क ड़ंटते हुए कह़ फ़क - ‘आतने फ़दनं मं मिझे बत़य़ क्ययं नहं? ऄभा मिझे ओल्ड ऐज होम क़ पत़ और फोन नंबर दो। मं खिद ज़कर ऽमलीग ँ ़।’ पर वो ईनसे ऽमलने कभा नहं गये । ऽपछले स़ल 4 नवम्बर को ईनक़ ऽनधन हो गय़ । ह़ंल़फ़क ईनके ऩ रहने की खबर मेरे ऽलए ऐसे हा था जैसे दिऽनय़ खत्म हो गइ होगा हो। बम्बइ एयरपोटच से फ़दल्ला ज़ते हुए मिझे लग़ फ़क मिझे कि छ लोगं को खबर कर देऩ च़ऽहए। मंने ऽसफच ऽवऩयक ऽवजेत़ जा (पटऩ) को मैसेज फ़कय़ ईसके ब़द तो फोन क़ त़ँत़ लग गय़। यह़ँ तक की एयरपोटच पर सिरक्ष़ ज़ँच के समय भा लोगं के पटऩ, फ़दल्ला से फोन अने लगे। कोइ टावा चैनल से फोन कर रह़ है तो कोइ ऄख़ब़र के दफ्तर से। मेरे ऽलए ईस वक़्त ब़त करऩ अस़न नहं थ़ लेफ़कन ऽजतऩ भा फोन अत़ गय़ और जो सीचऩ वो मिझसे च़हते थे मंने ईन्हं फ़दय़। ऽनगम बोध घ़ट, फ़दल्ला पर द़ह संस्क़र के ब़द ईनकी ऄऽस्थय़ँ लेकर ऽबह़र गइ। वह़ं जो तेरह फ़दनं क़ क़यचक्रम होत़ है। हुअ। ईस दौऱन पटऩ से ऽनकलने व़ले ऄखव़रं मं ऽजस तरह लग़त़र खबरे छपता रहं मं चंक गइ। ऄरे यह क्यय़ ? जो शख्स 5 स़ल गिमऩम रह़। ओल्ड ऐज मं कोइ ईन्हं झ़ँकने नहं अय़। ईनकी मौत के ब़द आतऩ हंग़म़.... सब क़यचक्रम हो ज़ने के ब़द स़रे ऄख़ब़रं क़ बंडल समेत कर वैसे हा स़थ ले अइ जैसे बेटा ऽवद़इ मं ऄपने स़थ ऽमले म़यके के ईपह़र ल़ता है। बम्बइ पंहुचकर जब आऽत्मऩन से ऄख़ब़र पढऩ शिरू फ़कय़ तो जैसे झटक़ स़ लग़ यह थ़ मेऱ ब़प? मंने सबको जोडकर एक फ़कत़ब तैय़र करऩ च़ह़ । ऄजाब शख्स के ब़रे मं दिऽनय़ को पत़ लगऩ च़ऽहए।आसा ऽसलऽसले मं वररष्ठ पिक़र नवंद ि कि म़र, श्राक़ंत, शऽश भीषण जा, सिध़ ऄरोऱ, अऽबद सिरता, ऄरऽवन्द श़ंऽडल्य और कि छ लोगं से ब़तं हुइ ईन लोगं ने सल़ह दा फ़क ईन लोगं से भा ब़त कीऽजये य़ ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

ऽलखव़इये ऽजनसे भट्ट जा क़ सम्पकच थ़। और यह बहुत ज़रूरा थ़ क्ययींफ़क मं तो ऄपने ‘प़प़’ को पीरे तौर पर नहं ज़नता था। नया खोज शिरू हुइ ईन लोगं को ढी ढने की ऽजनसे मेरे प़प़ क़ सम्पकच थ़ य़ जो मेरे प़प़ को ज़नते थे। आस खोज मं सबसे पहल़ सिखद अश्चयच यह थ़ फ़क सबक़ ऄमील्य योगद़न ऽमल़। सबकी रचऩएँ अने लगा । सबने मेरा हौसल़ अफज़इ की। एक को फोन करने पर दीसऱ खिद बत़ देत़ फ़क ऄगले से ब़त करो। और एक लम्बा ऽलस्ट तैय़र होता चला गइ। ऄब जब लेखं को पढ़ता चला ज़ रहा हूँ तो जैसे हर फ़दन एक नए शख्स को ज़न रहा हूँ। हर फ़दन एक नय़ पन्ऩ खिलत़ है और लगत़ है ऄच्छ़ यह भा थ़। दीसऱ लेख पढ़ता हूँ तो लगत़ है वो यह भा थ़। फ़फर लगत़ है की ऄब मं श़यद ईन्हं ज़न गइ हूँ और ऄगल़ कोइ नय़ लेख अकर मिझे फ़फर चंक़ देत़ है फ़क ऄरे यह पहली भा थ़ । हैरत होता है मिझे फ़क ऽजस आं स़न को पीरा दिऽनय़ मं आस तरह ज़नने व़ले और प्य़र करने व़ले लोग थे ईनके ब़रे मं ईन्हंने कभा ऩ मिझे कि छ कह़ । ऩ पीछ़ ऩ बत़य़ । कम से कम फ़दल्ला मं 5 स़ल वो लग़त़र बाम़र रहे और फ़दल्ला शहर मं ईनक़ आतऩ रठक़ऩ थ़. बा.पा. हॉईस से लेकर ऩ ज़ने और फ़कतने - फ़कतने लोग... ऄब जब मेरे मिंह से ईनकी मौत की खबर सिनकर चंक ज़ते हं, ईनके ब़रे मं कभा मिझसे कि छ नहं कह़ । अऽखर क्ययं ? क्ययीँ वो आस कदर चिप थे। मौन....एकदम मौन । कइ ब़र ज़नऩ च़ह़ लेफ़कन वो कि छ बोलते हा नहं। जैसे भातर हा भातर कोइ गहऱ दिःख-सदम़ खोखल़ कर रह़ थ़ ईन्हं । ओल्ड ऐज होम व़ले भा बत़ते हं फ़क वो फ़कसा से ज्य़द़ कोइ ब़त नहं करते । 75 की ईम्र तक जेपा अन्दोलन से लेकर लोऽहय़, सम़जव़दा, कम्यिऽनस्ट प़टी सबके मंच पर वो ऽबऩ स्व़थच क़म करते रहे। ऽवच़रध़ऱ और ‘व़द’ से उपर थ़ ईनके ऽलए अम जनत़ की समस्य़। फ़फर वो फ़कसा भा ज़ऽत, धमच य़ सम्प्रद़य क़

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और ऄब यह सब मिझे दीसरं से पत़ चल प़ रह़ है । एक के ब़द एक नया ज़नक़ररय़ं, फ़कस्से मिझे हैरत मं ड़ल देते हं । ईनके दिऽनय़ से चले ज़ने के ब़द ईन्हं ज़नने क़ यह ऽसलऽसल़ मेरे ऽलए ऄनोख़ है । एक नइ खोज... कभा कभा लगत़ है फ़क पीऱ ज़न गइ । पर मं ऄब भा ऄपने प़प़ को कह़ँ ज़नता हूँ । क्यय़ मं कभा भा ज़न प़उँगा फ़क क्यय़ रज थ़ ईनके मौन के पाछे । क्यय़ कोइ भा ज़न प़येग़ फ़क सिरेश भट्ट जैस़ ‘जिसह’ की तरह ढह़ड़ने व़ल़ आं स़न अऽखर क्ययीँ मौत से पहले मौन हो गय़। जैसे कोइ संत सम़ऽध मं चल़ ज़त़ है। कम से कम मिझे ईनक़ मौन बहुत स़लत़ है। फ़कतने फ़कतने ऄनऽगनत सव़ल हं, ईन्हं लेकर मेरे मन मं जो मिझे परे श़न करत़ है । अऽखर क्यय़ चल रह़ थ़ ईनके मन मं ... नहं ! मं नहं ज़नता ऄपने प़प़ को .... - ऄसाम़ भट्ट

मेरा ड़यरा से ... हद है ! पहले तो औरतं के हलक मं ह़थ ड़लते हं और फ़फर वो कि छ बोलता है तो कहते हं - "औरत बहुत बोलता है !" ~✽~ ऄगर मं मर गइ ... लोग आतऩ तो जरूर कहंगे- "सल्ला बिरा था पर सिंदर था ।" ~✽~ 8 October 2012 कि छ महाने से जो शहर (नव़द़) घनघोर ऄंधक़र मं डी ब़ थ़, वहा ऄच़नक झक़झक ऽबजला से जगमग़ ईठ़ ....क्ययींफ़क अज नाताश कि म़र (मिख्यमंिा)ऄपने चिऩवा दौरे पर हं...... म़ँ कह रहा था– अज कह़ँ से प़वर अ गय़ । आतने फ़दनं से प़वर लोड नहं ले रह़ थ़..... ! ~✽~ 5 October 2012 प़प़ की तऽबयत फ़दन पर फ़दन ख़ऱब होता ज़ रहा है । पहले तो थोड़ा बहुत ब़त भा कर लेते थे । ऄब मिझसे ब़त भा नहं कर प़ते । जैसे भा हं एक त़कत ऽमलता है फ़क - 'He is there'. सिरेश भट्ट मेरे ऽपत़ नहं मेरा 'strength' और 'confidence' क़ ऩम है । ~✽~

ऄजनबा अव़ज़ के ऩम, जो अदत बनता ज़ रहा है.... दीर समन्दर मं एक भटक़ हुअ ऩऽवक बिल़त़ है मिझे ब़र ब़र जैसे तल़श रह़ हो स़ऽहल वैसे हा पिक़रत़ हं मिझे जैसे मेऱ ऩम, मिझे पिक़र रह़ हो ऄसाम़ ! ऄसाम़ !! ऄसाम़ !!!! ऄजनबा पर पहच़ना सा अव़ज़ क़नं मं सिऩइ देता है दीर र र र र र र र र र र से क़नं मं होता हुइ मन को छी ज़ता है. ओ ऄजनबा ! भटके हुए ऱहा क्यय़ च़ऽहए तिम्हं , बत़ओ ऩ ! तिम्ह़रे ऄंदर समिन्द्र स़ सीऩपन और ख़लापन महसीस करता हूँ जबफ़क भरे हुए हो दिऽनय़ के न ज़ने फ़कतने स़रे शोर से गरजता अव़ज़ तीफ़न के ब़द य़ पहले ऄजाब सा ख़़मोशा सा महसीस होता है जो मिझे डऱते नहं अव़ज़ भरोसेमंद हं, बेहद दोस्त़ऩ ऄपऩपन और प्य़र से भऱ हुअ ब़र ब़र एक हा अव़ज़ मं सिनऩ ब़र ब़र ऄपऩ ऩम ऄच्छ़ लगत़ है... ऄसाम़! ऄसाम़ !! ऄसाम़ !!! बत़ओ ऩ, क्यय़ च़ऽहए तिम्हं क्ययीँ बिल़ते हो ब़र ब़र मिझे मेरे ऩम से ईघडे हुये स्वेटर की उन की तरह ईलझ़ हुअ तिम्ह़ऱ मन फ़कतना परतं से ऽघऱ हुअ है फ़कतना ग़ंठे ब़ंध रखा है तिमने ऄपने भातर, खोल दो हर ग़ंठ हर ऽगरहं, कह दो, जो तिम्ह़रे मन मं है जो ब़हर अऩ च़हत़ है य़ जो मिझसे सिनऩ च़हते हो खिलकर कह दो ... कहो न एक ब़र, क्ययीँ हो आतने ख़ला और ऄके ले ज़ोर से हँसकर ट़लते हो मेऱ सव़ल और मिझा से पीछते हो फ़क - "तिम्हं कि छ हुअ? तिम्ह़रे सव़ल मिझे बेचन ै करते हं ।

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

तिम्ह़ऱ ख़लापन महसीस कर सकता हूँ। ऄजनबा अव़ज़ ऄब ज़ऱ भा ऄजनबा नहं लगता मिझे बचपन से सिने फ़कशोर कि म़र के ग़ने पर जैसे कोइ मनचल़ स़यफ़कल पर साटा बज़त़, गिनगिऩ रह़ हो "यह श़म मस्त़ना, मदहोश फ़कये ज़ये" तिम्ह़रा अव़ज़ बस्तर के बाहड़ जंगल से अता हुइ महसीस होता है जैसे कोइ म़दल बज़त़ ग़ रह़ हो सबसे ईद़स ऱग जैसे तिम ढी ंढ रहे हो फ़कसा म़सीम तमन्ऩ को अओं! अकर देखो मेरे प़स यह़ँ फ़कतना म़सीम ति़एं ऽमलेगा ऽजस पर वक़्त और दिऽनय़ ने ईंट, चीऩ पत्थर और ग़ऱ लाप फ़दय़ है अऽखर जो बेचैना, डर, जिचत़ तिम्हं है... ईससे मं कबकी ईबर चिकी हूँ... ऽजसे तिम तल़श रहे हो एक भरोसे के स़थ फ़कसा क़ स़थ मेरे ह़थ कबसे तिम्ह़रा तरफ बढे हुए म़आकल एंजल े ो की पंटिटग की बढे हुए ह़थ की तरह तिम्ह़रा उँगऽलयं को छी लेने के ऽलए अव़ज़ जो ऄजनबा नहं है मेरे ऽलये 'फोन से ऽतरता हुइ ऄलग पहच़न है ...' ऩम, पहच़न, ररश्ते से परे देख़ नहं पर देख़ स़ ज़ऩ नहं पर ज़ऩ स़ ऄजनबा अव़ज़ जो अदत बनता ज़ रहा है । पिक़रो ऩ फ़फर से... एक ब़र फ़फर से ब़र ब़र पिक़रो .... पिक़रते रहो जावन भर ऄसाम़ ! ऄसाम़ !! ऄसाम़ !!!

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मेरे ऽपत़, सिरेश भट्ट कोइ अम आं स़न नहं ! सिरेश भट्टकोइ अम आं स़न नहं हं । छ़ि अंदोलन से लेकर जे.पा. अंदोलन तक सफ़क्रय रहने व़ले आं स़न ने स़ऱ जावन सम़ज के ऽलए झंक फ़दय़। ऽसनेम़ हॊल और करोड़ो की ज़यद़द के म़ऽलक ऽजनक़ ईंट क़ भट्ट़ और ऄनऽगनत संपऽत था, सब को छोड़ने के स़थ ऄपना ऄपना पत्ना और च़र छोटे छोटे बच्चं को भा छोड़ फ़दय़। और सम़ज सेव़ मं सच्चे फ़दल और पीरा इम़नद़रा से जिट गए। कभा ऄपना सिख सिऽवध़ क़ खय़ल नहं फ़कय़। स़लं जेल मं गिज़़ऱ.. ल़ली य़दव से लेकर नाऽतश कि म़र और ज़जच फऩंऽडस तक ईन्हं गिरुदेव से संबोऽधत करते थे... स़रे कॊमरे ड के वह अइऽडयल थे...अज वह आं स़न कह़ं है ? क्यय़ फ़कसा भा नेत़ओं को य़ अम जनत़ को ऽजनके ऽलए लग़त़र वो लड़े और फकीरो की तरह जावन जाय़...कभा सत्त़ क़ लोभ नहं फ़कय़.. वो कहते थेहम सरक़र बऩते हं, सरक़र मं श़ऽमल नहं होते.. बहुत कम लोग आस ब़त पर यकीन करं गे फ़क सिरेश भट्ट क़ कोइ बंक एक़ईं ट कभा नहं रह़। जेब मं एक रुपय़ भा रहत़ थ़ तो वो लोगो की मदद करने के ऽलए तत्पर रहते थे। और लोगो को वो रुपय़ दे देते थे। कभा ईन्हंने ऄपने बच्चो की परव़ह नहं की। हमेश़ कह़ करते थे—स़रे जिहदिस्त़न क़ बच्च़ मेरे बच्चे जैस़ है। ऽजस फ़दन स़रे जिहदिस्त़ना बच्चे क़ पेट भऱ होग़ ईस फ़दन मिझे श़ंऽत ऽमलेगा। ल़ल सल़म क़ झंड़ ईठ़य़ पीऱ जाव, ऄपने अप को और ऄपने स्व़स्थ्य को आगनोर फ़कय़। ऄपने प्रऽत हमेश़ हा ल़परव़ह रहे और घिमक्कड़ा करते हुए

जाए...अज वो आनस़न फ़दल्ला के ओल्ड एज होम मं क गिमऩम जिजदगा जा रह़ है। छह स़ल पहले ईनक़ ब्रेन हेमरे ज हुअ थ़ तब से वे ऄस्वस्थ हं। ऄब दिऽनय़ के स़मने एक सव़ल है...एसे लोगो क़ क्यय़ यहा हश्र होऩ च़ऽहए जो दिऽनय़ के ऽलए जाए, अद दिऽनय़ ईन्हं से बेखबर है.... *

मेरा कऽवत़... - ऽपत़

श़म क़फी हो चिकी है पर ऄंधेऱ नहं हुअ है ऄभा हम़रे शहर मं तो आस वि ऱत क़ स़ म़हौल होत़ है। छोटे शहरं मं श़म जल्दा ऽघर अता है बड़े शहरं के बऽनस्बत लोग घरं मं जल्दा लौट अते हं जैसे पंछा ऄपने घंसलं मं। यह क्यय़ है/ जो मं ऽलख रहा हूं। श़म य़ ऱत के ब़रे मं जबफ़क पढऩे बैठा था ऩऽजम ऽहकमत को फ़क ऄच़नक य़द अए मिझे मेरे ऽपत़। अज वषं ब़द कि छ समय/ ईनक़ स़थ ऽमल़ ऄक्यसर हम हमने बड़े हो ज़ते हं फ़क ऽपत़ कहं दीर छी ट ज़ते हं। ऽपत़ के मेरे स़थ होने से हा वह क्षण मह़न हो ज़त़ है। य़द अत़ है मिझे मेऱ बचपन मैऽक्यसम गोकी के मेऱ बचपन की तरह य़द अते हं मेरे ऽपत़ और ईनके स़थ जाये हुए लम्हं। ह़ल़ंफ़क ईनक़ स़थ ईतऩ हा ऽमल़ ऽजतऩ फ़क सपने मं ऽमलते हं कभा कभ़र खीबसीरत पल। ईन्हं ज्य़द़तर मंने जेल मं हा देख़ ऄन्य क्ऱंऽतक़ररयं की तरह मेरे ऽपत़ ने भा मिझसे सल़खं के ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

Mission complete Dear friends. Happy to inform you all, that the book, I was writhing a book on my father Suresh Bhatt, is complete.

एक ब़त अज शेयर करऩ च़हता हूँ । जब मंने जऩचऽलज्म छोड़कर नॅशनल स्की ल ऑफ़ ड्ऱम़ NSD मं एडऽमशन ऽलय़ थ़, मेरे ऽपत़ ने जैस़ फ़क कभा ईन्हंने मिझे फ़कसा क़म से नहं रोक़ । He said only one thing - "ऽलखऩ मत छोड़ऩ ।" ईनकी आस ब़त ने अज मिझे वो वि त़कत दा जब ईनको खोने के ब़द स़रा ईम्मंद खो चिकी था । ये फ़कत़ब अपकी है, सब की है । हर ईस आं स़न की है जो इम़नद़र है और फ़कसा न फ़कसा हक्क की लड़़इ के ऽलए अव़ज़ ईठ़ रहे हं । ईस प़र से हा फ़कय़ प्य़र। ईनसे ऽमलते हुए पहले य़द अता है जेल फ़फर ईसके पाछे लोहे की दाव़र ईसके पाछे से ऽपत़ क़ मिस्कि ऱत़ हुअ चेहऱ। वे फ़दन-जब मं बच्चा था ईनके पाछे-पाछे / लगभग दौड़ता। जब मं थक ज़ता थ़म लेता था ऽपत़ की ईं गऽलय़ं ईनके व्यऽित्व मं मं ढला ईनसे मंने चलऩ साख़ चाते हा तरह तेज च़ल अज वे मेरे स़थ चल रहे हं, स़ठ प़र कर चिके मेरे ऽपत़ कइ ब़र मिझसे पाछे छी ट ज़ते हं। क्यय़ यह वहा ऽपत़ है मेऱ... स़हसा फि तील़। सोचते हुए मं एकदम रूक ज़ता हूं क्यय़ मेरे ऽपत़ बीढ़े हो रहे है? अऽखर ऽपत़ बीढ़े क्ययं हो ज़ते हं? ऽपत़। तिम्हं बीढ़़ नहं होऩ च़ऽहए त़फ़क दिऽनय़ भर की स़रा बेरटय़ं ऄपने ऽपत़ के स़थ/ दौडऩ़ साख सके दिऽनय़ भर मं... ~✽~

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अलोकधन्व़ की नज़र मं मं रं डा था अलोक धन्व़ : एक क़मलोलिप यह़ं हम क्ऱंऽत भट्ट की अत्मकथ़ के ईन ऄंश को प्रक़ऽशत कर रहे हं ऽजनमं क्ऱंऽत (ऄसाम़) भट्ट ने अलोक धन्व़ के ऄसला चररि क़ ऽचिण फ़कय़ है । अलोकधन्व़ की नज़र मं मं रं डा था

जनव़दा कऽव अलोक धन्व़ ने क्ऱंऽत भट्ट ईफ़च ऄसाम़ भट्ट से प्रेम ऽवव़ह फ़कय़ थ़। ऄसाम़ के ऽपत़ सिरेश भट्ट स़म्यव़दा ऽवच़रध़ऱ के क्ऱंऽतक़रा थं । जय प्रक़श ऩऱयण के संपण ी च क्ऱंऽत अंदोलन से जिडे सिरेश भट्ट ऽबह़र के नव़द़ ऽजले के धना पररव़र के थं परन्ति फ़दल के फ़कसा कोने मं ऄत्य़च़र के ऽवरुि संघषच की भ़वऩ ने आन्हं क्ऱंऽतक़रा बऩ फ़दय़ । ल़ली-नाताश, सिरेश भट्ट को गिरु कह़ करते थे । ज़जच फ़ऩचऽडस जैस़ सम़जव़दा नेत़ भा सिरेश भट्ट क़ बहुत सम्म़न करते थे । अज सिरेश भट्ट फ़दल्ला के एक ओल्ड एज होम मं ऽबम़र ऄवस्थ़ मं मौत क़ आं तज़र कर रहे हं । सिरेश भट्ट की पि​िा क्ऱंऽत भट्ट ने ऄपने से दिगन ि े ईम्र के अलोक धन्व़ से ऽवव़ह फ़कय़ । अलोक धन्व़ कहने को तो सम़जव़दा ऽवच़रध़ऱ के होने क़ फ़दख़व़ करते थं लेफ़कन व़स्तव मं पिरुष प्रध़न सम़ज के एक ऐसे व्यऽि रहे ऽजन्होने प्रेम ऽसफ़च शरार की च़ह के ऽलये फ़कय़ थ़। ऄसाम़ भट्ट रं गमंचकी कल़क़र हं । प्य़र भा य़तऩ देत़ है , जिजदगा को नकच बऩ देत़ है लेफ़कन ऽजवन की च़ह एक झटके मं सबकि छ तोडकर , ररश्तो को जल़कर ऽनकलने भा नहा देता । ऄसाम़ ने ददच को ऽजवन बऩ ड़ल़, पिरा ऽशद्दत के स़थ चलता रहं ऄंग़रं पर, अज भा चल रहा हं। श़यद आस जह़ं मं सबको सबकि छ नहा ऽमलत़ ।

अज दोपहर मं मिझे एक फोन अय़। ईधर से एक पररऽचत और वररष्ठ सज्जन थे, ऽजन्हंने ख़सा ऩऱजगा से कहऩ शिरू फ़कय़ फ़क ऄसाम़ जैसा औरत से यह सब ऽलखव़ कर 'तिमलोग' ठाक नहं कर रहे हो। अलोक अत्महत्य़ कर लेग़, ऄगर ईसे ऄऽधक प्रत़ऽऺडत फ़कय़ गय़ । कइ दशकं से पटऩ मं जनव़द और ऄऽभव्यऽि की अज़़दा की लड़ऺइ लड़ने क़ द़व़ करनेव़ल़ वह शख्स अज मिझसे कह रह़ थ़ फ़क ऄसाम़ को कि छ भा ऽलखने क़ ऄऽधक़र नहं है और न फ़दय़ ज़ सकत़ है क्ययंफ़क बकौलईनके 'ऄसाम़ के कइ लोगं से संबंध रहे हं।' मं हतप्रभ थ़। ईन्हंने कह़ फ़क नंदाग्ऱम हत्य़क़ंड के समय ईसकी जिनद़ करनेव़ले बय़न पर अलोकधन्व़ ने चींफ़क हस्त़क्षर करने से मऩ कर फ़दय़ थ़, आसऽलए ईससे बदल़ लेने के ऽलए तिमलोग ईसे बरब़द कर रहे हो, ऄसाम़ के ज़ररये। वे बके ज़ रहे थेऄसाम़ की कोइ औक़त नहं है । ईसे दिऽनय़ ऽसफ़च अलोकधन्व़ की पत्ना के रूप मं ज़नता है । ईसके कोइ स्वतंि पहच़न, व्यऽित्व नहं है। ईस औरत को आतऩ मत चढ़ऺओ तिम लोग। मं नहं ज़नत़ फ़क जनव़द क्यय़ होत़ है, ऄगर वह एक औरत के ब़रे मं आस तरह के शब्द आस्तेम़ल करने की आज़ज़त देत़ है और ईन्हंने ऽजस ऄभद्र भ़ष़ क़ प्रयोग ब़रब़र फ़कय़, वह ऽनह़यत शमचऩक था, आसऽलए भा फ़क हम ईन्हं एक गंभार अदमा समझते थे। हम अलोकधन्व़ को बेहद प्य़र करते थे, एक कऽव के रूप मं । अज भा ईनकी कऽवत़एं हमं ऄपने समय मं सबसे प्य़रा हं-आसके ब़वजीद ऄसाम़ के सव़ल और ईनक़ ददच हमं ऄसाम़ के स़थ खड़ऺ करत़ है । ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

ऄब मेरे प़स कोइ ऱस्त़ नहं बच़ थ़। श़ऽहद़ जा के प़स ऄक्यसर ज़ता था। वहं मिझे जऱ तसल्लाऽमलता था। कइ ब़र ईन्हंने मेरे पऽत से ब़त की, ईन्हं समझ़ने की कोऽशश की पर सब बेक़र । जह़ं तक एक कऽव और ईनकी कऽवत़ से प्रेम क़ संबंध है तो वह मिझे अज भा है। मं ईनकी ब़तं और कऽवत़ की मिराद था। वे ब़तं करते हुए मिझे बहुत ऄच्छे लगते। ऐस़ लगत़ है- 'आि मं डी बे बोल हं ईनके , ब़त करे तो खिशबी अये।' मेरे द्वंद्व और ददच क़ एक बड़़ क़रण यह भा थ़ फ़क जो आनस़न घर से ब़हर ऄपना आतना सिंदर, श़लान, संभ्ऱंत, इम़नद़र, नफ़सतपसंद छऽव प्रस्तित करत़ है वहा घर मं ऽसफच मेरे ऽलए आतऩ ऄम़नवाय क्ययं हो ज़त़ है? ब़त-ब़त पर त़ने, ड़ंट! कइ ब़र आस कदर जाऩ दीभर कर देते फ़क मं खिद दाव़र से ऄपऩ ऽसर पाट लेता। ऄपने अपको कि देता। एक ब़र य़द है, मिझे अफ़फस ज़ने के ऽलए देर हो रहा था। ईनके ऽलए पाने क़ प़ना ईब़लऩ थ़ । यह रोज क़ ऽसलऽसल़ थ़। लगभग अधे घंटे प़ना ईब़लऩ, जब तक पताला के तले मं सफे दा न जम ज़ये। मं जल्दा मं था, आसऽलए ज्य़द़ देर प़ना ईब़लऩ संभव नहं थ़ फ़क तभा वे ऄपना तिनकऽमज़जा के स़थ बहस लेकर बैठ गये -'तिम्ह़ऱ ऑफ़फस कोइ प़र्षलय़मंट नहं है जो समय पर ज़ऩ जरूरा है । पहले प़ना घड़ा देख कर अध़ घंट़ ईब़लो।' -अपको क्यय़ लगत़ है, ऽडऽसप्लान ऽसफच प़र्षलय़मंट मं होऩ च़ऽहए और ब़की कहं नहं? आसा ब़त पर ईन्हं गिस्स़ अ गय़ और ईन्हंने ऽचल्ल़ऩ शिरू कर फ़दय़ । मंने गिस्से मं पीऱ ईबलत़ हुअ गरग प़ना क़ पताल़ ऄपने उपर ईं ड़ेल ऽलय़, लेफ़कन ईन पर कोइ ऄसर न हुअ । आस तरह की

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ऄनऽगनत घटऩएं हं, जह़ं मं ऄपने अप को हा य़तऩ देता रहा । अऽखरक़र मंने ऄपने ऽपत़ जा (मेरे ऽपत़ म़क्यसचव़दा कम्यीऽनस्ट प़टी के मंबर हं । पीऱ जावन ईन्हंने सम़ज सेव़ मं ऽबत़य़) से ब़त की। ईन्हंने कह़-भील ज़ओ ईसे और ऄपने पैरं पर खड़़ होऩ साखो । मंने एक बच्चे की तरह ऽगड़ऽगड़़ते हुए ऄपने पऽत से तल़क म़ंग़- सर ऄब अपके स़थ मेऱ दम घिटत़ है । मि​ि कर दाऽजये मिझे । हम अपसा समझ से तल़क ले लेते हं । ईनके ऽलए मेऱ यह कहऩ ऄसहृय थ़. ईन्हंने ऄपने म़त़-ऽपत़ की दिह़इ दाऄपने बीढ़े म़त़-ऽपत़ को आस ईम्र मं मं कोइ सदम़ नहं पहुंच़ सकत़ । मेरे भ़आयं के बच्चं की श़दा नहं होगा। लोग क्यय़ कहंगे? मेरा क्यय़ आज्जत रह ज़येगा? मं ने आस ईम्र मं श़दा की. तिम पीरा दिऽनय़ मं मेरा पगड़ा ईछ़लऩ च़हता हो? ऄब तो ईनके म़त़-ऽपत़ को गिजरे भा बहुत समय हो गय़ लेफ़कन वे अज तक तल़क को ट़लते अ रहे हं। मिझे कि छ भा समझ मं नहं अ रह़ थ़। मं ऽजस आनस़न को ज़नता था, वह तो एक कम्यीऽनस्ट थ़, लेफ़कन यह़ं मं एक रूफ़ढ़व़दा स़मंता पऽत को देख रहा था-स़हब, बाबा और गिल़म के एक ऐय्य़श और घमंडा पऽत की तरह, मं एकदम से सब कि छ ह़र गया था। मेऱ तो जैसे सब कि छ खत्म हो गय़। वो कऽव भा नहं रह़, ऽजसे मं प्य़र करता था। मेरे ऽलए वह दिऽनय़ के बेहतरान कऽव थे, ऽजसकी कऽवत़ मं मिझे झंक़र सिऩया देता था। अज मेरा हा जिजदगा की झंक़र खो गया । मं कि छभा नहं बन प़या। न पत्ना, न म़ं। क्यय़ था मं? ऄऽस्तत्व क़ सव़ल खड़़ हो गय़ मेरे स़मने । दोब़ऱ ईन्हं ड़क्यटर दोस्त के प़स गया । श़ऽहद़ जा ने मेरा जिजदगा बदल दा । ईन्हंने समझ़य़-तिम पढ़ा-ऽलखा हो, सिंदर हो, यंग हो तिम्ह़रे स़मने तिम्ह़रा पीरा जिजदगा पड़ा है । गो एहेड ऽलव योर ल़दफ, ऽगव च़ंस टि योरसेल्फ डंट शट द डोर फॉर लव, कोइ अत़ है तो अने दो। ईन फ़दनं मं आप्ट़ मं, रिकल्य़ण कर रहा

था। ईसमं ऄंब़ और आं द्ऱणा दोनं चररि मं करता था। लोगं नेमेरे ऄऽभनय को बहुत पसंद फ़कय़। एक हा ऩटक मं दो ऄलग-ऄलग चररि जो एक दम कं ऱस्ट थे, करऩ मेरे ऽलए एक चिनौता था। वहं से ऱष्ट्राय ऩटक ऽवद्य़लय अने क़ ऱस्त़ सीझ़, ह़ल़ंफ़क यह बहुत मिऽश्कल थ़। मेरे पऽत आसक़ ऽजतऩ ऽवरोध कर सकते थे, ईन्हंने फ़कय़। ईनकी मरज़ा के ऽखल़फ घर से भ़ग कर मं ऱष्ट्राय ऩट्ड ऽवद्य़लय की पराक्ष़ के ऽलए गया । ऄंतत: मेऱ ऩम़ंकन ऩट्ड ऽवद्य़लय मं हो गय़ । ऄब मेरे पऽत को मिझे खोने क़ डर और सत़ने लग़ और वे भा मेरे पाछे-पाछे फ़दल्ला अ गये । वह़ं भा मं खिल कर स़ंस नहं ले प़ रहा था। हर पल जैसे मं फ़कसा की पहरे द़रा मं हूं। मेरे क्यल़समेट आसक़ बहुत मज़क ईड़़ते थे। ज़ऽहर है हम़रे बाच ईम्र क़ ऄंतऱल भा सबके ऽलए ईत्सिकत़ क़ ऽवषय थ़। वे तरह-तरह की ब़तं करते. ऄब मेरे पऽत क़ व्यवह़र और भा बदल गय़ थ़। लग़त़र मिझे खो देने की जिचत़ ईन्हं लगा रहता, आस वजह से वे और भा ऄऽधक ऄस़म़न्य और ऄम़नवाय व्यवह़र करने लगे। यह़ं तक फ़क मं फ़कसा भा सहप़ठा य़ ऽशक्षक से ब़त करता,ईन्हं लगत़, मं ईससे प्रेम करता हूं। मंने हमेश़ ईन्हं समझ़ने की कोऽशश की फ़क वे बेक़र की आन ब़तं को छोड़ कर ऽलखने-पढ़ने मं ऄपऩ ध्य़न लग़यं। ऽलखने के ऽलए ईन्हं सिंदर-सिंदर नोट बिक, हंड मेड पेपर और कलम ल़ कर देता। बड़े-बड़े लेखकं-ऽवद्व़नं के व़क्यय ऽलख-ऽलख कर देता त़फ़क वे खिद ऽलखने के ऽलए प्रेररत हं । ग़ऽलब की मज़र और ऽनज़मिद्दान औऽलय़ की दरग़ह पर ले ज़ता । खीबसीरत फी ल ईपह़र मं देता, पर मेरा फ़कसा ब़त क़ ईन पर कोइ ऄसर नहं होत़. मिझे समझ मं नहं अ रह़ थ़ अऽखर आन्हंने ऽलखऩबंद क्ययं कर फ़दय़ है और मं फ़दन पर फ़दन ऽचड़ऽचड़ा होता ज़ रहा था । मेऱ भा ऄपना पढ़़इ से मन ईचट रह़ थ़। मंने ऄपने पऽत मं कइ ब़र भगोडाऺ और क़यर प्रवुऽत्त देखा। मिझे य़द है श़दा के तान वषच ब़द मं ससिऱल गया था, वह़ं ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

सब लोग मिझसे यह ज़नने की कोऽशश कर रहे थे फ़क मिझे ऄब तक बच्च़ क्ययं नहं हुअ । कि छ फ़दन पहले हा मेरा ऄब़शचनव़ला घटऩ हुइ था। मं रो पड़ा। मेरे प़स कोइ जव़ब नहं थ़। मंने ऽसफच आतऩ कह़, मं ब़ंझ नहं हूं, लेफ़कन मेरे पऽत ने आसक़ कोइ जव़ब नहं फ़दय़ बऽल्क ईन्हं ऄपने पौरुष पर संकट ईठत़ देख मिझ पर गिस्स़ अय़, जबफ़क सेक्यस हम़रे बाच कोइ समस्य़ नहं था। ऽजस अदमा ने मिझसे म़ं बनने क़ गवच छान ऽलय़ वह मिझ पर यह अरोप भा लग़त़ है फ़क मंने एनएसडा मं एडऽमशन के ऽलए ईससे श़दा की और कै ररयर बऩने के ऽलए बच्च़ पैद़ नहं फ़कय़। मेरा श़दा 1993 मं हुइ और च़र स़ल श़दा बच़ने की स़रा जद्दोजहद के ब़द मं एनएसडा मं 1997 मं अया। क्यय़ एनएसडा मं एडऽमशन के ऽलए अलोकधन्व़ से श़दा करऩ जरूरा थ़। श़दा के च़र स़ल ब़द ईन्हंने मेऱ एडऽमशन क्ययं कऱय़ । ऄगर श़दा करऩ एडऽमशन की शतच था तो श़दा के स़ल हा एडऽमशन हो ज़ऩ च़ऽहए थ़। मेऱ गभचप़त 1995 मं हुअ। ईस समय न मं एनएसडा मं था और न कै ररयर के ब़रे मं मंने सोच़ थ़. जबफ़क दिऽनय़ की हर औरत की तरह एक पत्ना और म़ं बनने क़सपऩ हा मेरा पहला प्ऱथऽमकत़ था। जह़ं तक अलोक क़ सव़ल है, वह ऽपत़ आसऽलए नहं बनऩ च़हते थे क्ययंफ़क वह कोइ भा ऽजम्मेद़रा नहं ईठ़ऩ च़हते थे। हद तो ईन्हंने तब कर दा, जब ऱष्ट्राय ऩट्ड ऽवद्य़लय के ऽद्वताय वषच मं मिझे एजिक्यटग और ड़यरे क्यशन मं से फ़कसा एक को चिनऩ थ़। मं एजिक्यटगमं स्पेशल़आजेशन करऩ च़हता था। ईन्हंने आसक़ कड़़ ऽवरोध फ़कय़। ईनक़ दब़व थ़ फ़क मं ड़यरे क्यशन लीं । हम़रा आस ब़त पर बहुत बहस हुइ। ईन्हंने आतऩ दब़व बऩय़ फ़क म़नऽसक तऩव के क़रण मं ऽडप्रेशन मं चला गया । ब़द मं ऄनिऱध़ कपीर ने समझ़य़-तिम बेहतरान ऄऽभनेिा हो। यी मस्ट टेक एजिक्यटग. मंने एजिक्यटग ला। मेरे पऽत क़ ऽवरोध बरकऱर रह़। ईन्हंने ऄनिऱध़ कपीर पर भा अरोप लग़य़ फ़क

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वह फे ऽमऽनस्ट है। तिम्हं बहक़ रहा है। वह तो मिझे ऄब समझ मं अ रह़ है फ़क वह अऽखर फ़कस ब़त पर आतने ऩखिश थे। दरऄसल मिझे ऄऽभनय ऄलग-ऄलग लड़कं के स़थ करऩ पड़त़। ऄलग-ऄलग ऩटकं मं ऄलग-ऄलग चररि और प्रेम के दुष्य करूंगा। ईनकी किं ठ़ यह़ं था। एक तरह की ऄसिरक्ष़ की भ़वऩ ईनमं घर कर गया था। क़श फ़क वे समझ प़ते फ़क मेरे मन मं प्रेमा के रूप मं ईनके ऄल़व़ कोइ दीसऱ नहं थ़। मं ईन्हं बहुत प्य़र करता था। दिऽनय़ की तम़म खीबसीरत चाजं मं मं ईन्हं देखता था। मेऱ सबसे बड़़ सपऩ थ़ वे कऽवत़ ऽलखे और मं ऄऽभनय करूं। दिऽनय़ देखे फ़क एक कऽव और ऄऽभनेिा क़ स़थ कै स़ होत़ है। एक छत के नाचे कऽवत़ और ऄऽभनय पनपे। मं ईनकी कऽवत़ओं को हद से ज्य़द़ प्य़र करता था। अज भा ईनकी पंऽिय़ं मिझे जब़ना य़द हं। मं ईनकी कऽवत़ओं की दाव़ना था। कइ ब़र मं ईन्हं कोपरऽनकस म़गच पर बने पिऽश्कन की प्रऽतम़ के प़स ले ज़ता। ईनकी तिलऩ पिऽश्कन से करता त़फ़क ईनक़ अत्मऽवश्व़स बढ़े । आस बाच ईन्हं गले मं कं सर की ऽशक़यत हुइ। एक बच्चे की तरह ईन्हंने ऄपऩ धारज खो फ़दय़ और जाने की ईम्मादं भा। ईन्हं डर थ़ फ़क ऄब वे नहं बचंगे। पऽत ऐसे दौर से गिजर रह़ हो तो एक पत्ना पर क्यय़ बातता है, आसक़ ऄंद़ज़ कोइ भा पत्ना लग़ सकता है। एक बच्चे की तरह ईन्हं समझ़ता रहा-कि छ नहं होग़। फस्टच स्टेज है। ड़क्यटर छोट़-स़ अपरे शन करके ऽनक़ल दंगे। ईसा शहर मं ऄके ले मंने ऄपने पऽत के कं सर क़ ऑपरे शन कऱय़, जह़ं वे मिझे ऽबल्कि ल ऄके ला और बेसह़ऱ छोड़ कर गये। वे ऄक्यसर जब लड़ते तो मिझे कहते- तिम मिझे समझता क्यय़ हो? मंने आसा फ़दल्ला मं शमशेर और रघिवार सह़य के स़थ कऽवत़एं पढ़ा हं। मेरे ऩम पर हॉल ठस़ठस भऱ रहत़ थ़ और लोग खड़े होकर मेरा कऽवत़ सिनने के ऽलए बेचैन रहते। अज ईसा शहर मं लोग ईसकी पत्ना की कीमत लग़ रहे थे। दाव़र क्यय़ ऽगरा मेरे खस्त़ मक़न की, लोगं ने ईसे अम

ऱस्त़ बऩ फ़दय़। ऽबह़र मं एक कह़वत है फ़क जर, जमान और जोरू को संभ़ल कर न रख़ ज़ये तो गैर ईस पर कब्ज़ कर लेते हं। ऄब हर अदमा की ऽनग़ह मिझ पर ईठने लगा। मेरे पऽत ऽजस वि मिझे छोड़ कर गये, ईस वि मिझे ईनकी सबसे ज्य़द़ जरूरत था। मंने एनएसडा से प्रऽशक्षण तो प्ऱप्त कर ऽलय़ थ़ पर रे पटचरा मं क़म नहं ऽमल प़य़। ऄब अगे क्यय़ करऩ है, पत़ नहं थ़। एकदम शीन्य नज़र अ रह़ थ़। ईनके ज़ने के स़थ हा एक दीसरे फ़कस्म क़ संघषच शिरू हो गय़। सबसे ऄजब ब़त तो यह था फ़क जैसे हा लोगं को पत़ चलत़ मं ऄके ला रहता हूं, ईनके चेहरे क़ रं ग ऽखल ज़त़। मं ऽबऩ फ़कसा पर अरोप लग़ये यह कहऩ च़हता हूं फ़क मिझे ह़ऽसल करने की कोऽशश ऐसे शख्स ने भा की ऽजसकी खिद कोइ औक़त नहं था य़ फ़फर वैसे लोग थे ऽजनके ऄपने हंसते-खेलते पररव़र थे. प्य़रे -प्य़रे और मेरा ईम्र के बच्चे थे. वो ऄपना और बच्चं के ऽलए दिऽनय़ मं सबसे ऄच्छे और इम़नद़र पऽत और बेस्ट प़प़ थे और सम़ज मं ईनकी प्रऽतष्ठ़ था। खैर ऄब मिझे आन ब़तं पर हंसा अता है। जिजदगा को आतने कराब से देख़ फ़क ऄब फ़कसा से कोइ ऽशक़यत नहं। लोग मिझसे ऄजाव-ऄजाब सव़ल पीछते, तिम ऄके ला कै से रहता हो, तिम्ह़ऱ सैक्यसमेट कौन है। अज जो ब़तं मं आतना सहजत़ से ऽलख रहा हूं ईस समय ऐस़ लगत़ जैसे कोइ गरम सास़ मेरे क़न मं ईं ड़ेल रह़ है। जब लोगं को पत़ चल़ फ़क हम़रे बाच दऱर है तो ईन्हंने भा मेऱ भरपीर आस्तेम़ल करने की कोऽशश की। मेरे पऽत की फ़कत़ब की रॉयल्टा मेरे ऩम से है और मिझे अज तक एक पैस़ नहं ऽमल़ है। ऽपछले स़लं मं मंने भा ईनसे कि छ नहं म़ंग़ लेफ़कन ऄभा ह़ल हा मं मेरा छोटा बहन की श़दा के ऽलए मिझे रुपये की जरूरत था तो मंने ऄपऩ ऄऽधक़र म़नते हुए रॉयल्टा की म़ंग की। ईन्हंने (प्रक़शक ने) मिझे बदले मं पि भेज़ फ़क वह रॉयल्टा क़ पैस़ कऽव को दे चिके हं। जव़ब मं मंने पिऽलख़ फ़क ऽजसके ऩम रॉयल्टा होता है पैसे भा ईसे ऽमलने च़ऽहए तो ईन्हंने मिझे ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

बदऩम करने की कोऽशश की। ईन प्रक़शक के ऽमि, जो मेरे ऄऽभनय के प्रशंसक रहे हं, फोन करके मिझे खचड़ा और बदम़श औरत जैसे ऽवशेषणं से नव़जते हं और कहते हं फ़क वह जिजद़ है तो तिम्ह़ऱ हक कै से हो गय़ ईसकी फ़कत़ब पर? मंने जव़ब फ़दय़ फ़क मं फ़कसा की रखैल नहं हूं, संघषच करता हूं तो गिज़ऱ होत़ है। मं ऄपने हक क़ पैस़ म़ंग रहा हूं। एक औरत जब ऄपने हक की अव़ज ईठ़ता है तो ईसके ऽवरुि फ़कतना तरह की स़ऽजश होता है। वह अदमा जो पीरा दिऽनय़ मं डंक़ पाटत़ है फ़क वह मिझे बेहद प्य़र करत़ है, वह मेरे ऽबऩ जा नहं सकत़, वह मेरे ऽवयोग मं मनोरोगा हो गय़,ईससे मं पीछता हूं, क्यय़ ईसने पऽत के रूप मं ऄपना ऽजम्मेद़रा ऽनभ़या? क्यय़ ईसने मिझे स़म़ऽजक और भ़व़ऩत्मक सिरक्ष़ दा? क्यय़ ईसने अर्षथक सिरक्ष़ दा? सभा ज़नते हं मं ऽपछले छह स़ल से ऄपना ऄऽस्मत़ और ऄऽस्तत्व के ऽलए संघषच कर रहा हूं। ऽपछले छह स़ल से ऽनत़ंत ऄके ला एक ऽवधव़ की तरह जा रहा हूं। क्यय़ वे मेरा तम़म ऱतं व़पस लौट़ सकते हं? भय़नक ऄपम़न के दौर से गिजरे फ़दनं क़ ख़ऽमय़ज़ कौन भरे ग़? ऽजसके ऽलए मंने ऄपने जावन की तम़म बेशकीमता ऱतं रोकर ऽबत़यं, वह मेरे ऽलए क्यय़ एक ब़र मेरा ईम्र के बऱबर अ कर सोच सकत़ है? मं ऄपना ईम्र की स़म़न्य लड़की की तरह क भा नहं जा प़या। कभा पऽत के स़थ कहं घीमने नहं गया, ऽपक्यचर य़ प़टी मं नहं गया। फ़कतना तकलाफ होता है जब एक स्त्रा ऄपने तम़म सपने को म़र कर जाता है। छह स़ल से मं ऄके ला एक हा घर मं रह रहा हूं, यह मेरे चररि क़ सबसे बड़़ सबीत है। मेरे मक़न म़ऽलक मिझे बेटा की तरह म़नते हं। मेरे घर न पिरुष है, न पिरुष की परछ़ईं । पर जब मं एक ब़र ऄच़नक पटऩ गया तो ऄपने बेडरूम मं मंने दीसरा औरत के कपड़े देखे। आतऩ सब देखने के ब़द क्यय़ कर सकता था मं? और क्यय़ ऱस्त़ थ़ मेरे प़स? फ़दन-पर-फ़दन मं ऄस़म़न्य होता ज़ रहा था। न फ़कसा से ऽमलने क़ मन होत़ न ब़त करने क़ ।

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कोइ हंसत़ तो लगत़ फ़क मेरे उपर हंस रह़ है। कभा मं देर ऱत तक फ़दल्ला की सिनस़न सड़कं पर ऄके ला भटक़ करता। घर अने की मेरे प़स कोइ वजह नहं था। न फ़कसा को मेरे अने क़ आं तज़र, न कहं ज़ने की परव़ह । ऐस़ लगत़ थ़, य़ तो अत्महत्य़ कर लीं य़ फ़कसा कोठे पर ज़ कर बैठ ज़उं। लेफ़कन नहं, ऄन्य दीसरे भले घर की बेरटयं की तरह मेरे म़ं-ब़प ने भा मिझे ऄच्छे संस्क़र फ़दये थे, ऽजसने मिझे ऐस़ कि छ करने से बच़य़। ऄपना बाऽवयं पर खिलअ े म चररिहानत़ क़ अरोप लग़नेव़ले मदच बड़ा अस़ना से यह भील ज़ते हं फ़क वे खिद फ़कतना औरतं के स़थ अव़रगा कर चिके हं. नहं, फ़कसा मदच मं स्वाक़र करने की ऽहम्मत नहं होता। देश क़ ऄत्यंत प्रऽतऽष्ठत कऽव, ऽजसके शब्दं मं मं एक रं डा हूं, ईसकी अऽखर क्यय़ मजबीरा है मिझे ह़ऽसल करने की? क्ययं नहं वह मिझे ऄपना जिजदगा से ऽनक़ल ब़हर करत़? मंने तल़क के पेपर बनव़ये। कमलेश जैन (प्रऽतरठत ऄऽधवि़) गव़ह हं। मंने ऄपने भरण-पोषण के ऽलए कि छ भा नहं म़ंग़। तब भा वह मिझे तल़क नहं दे रह़, बऽल्क मिझे ह़ऽसल करने के ऽलए संघषच कर रह़ है। ऄपने ऽमिं मंगलेश डबऱल और ईदयप्रक़श तक से पैरवा करव़ रह़ है, क्ययं? आन सबके अग्रह और अलोक के म़फी म़ंगने पर मंने ईन्हं एक मौक़ फ़दय़ भा थ़, लेफ़कन एक सेकंड नहं लग़, ईन्हं ऄपने पिऱने खोल से ब़हर अने मं। एक़ंत क़ पहल़ मौक़ ऽमलते हा पीछ़-तिम्ह़रे फ़कतने श़राररक संबंध है? मं हैऱन! ऄगर मेरे ब़रे मं यह ध़रण़ है तो मिझे प़ने के ऽलए आतना मशक्कत क्ययं की? अलोक जब मिझे ह़ऽसल करने मं हर तरह से ऩक़मय़ब हो गये तो ईन्हंने मिझसे कह़-तिम रं डा हो, तिम्ह़रा कोइ औक़त नहं, ऽबह़रा कहं की। दो कौड़ा की लड़की। श़दा से पहले तिम्हं ज़नत़ कौन थ़। मेरा वजह से अज लोग तिम्हं ज़नते हं, तिम जो कि छ भा हो, मेरा वजह से हो। मेरे अत्मसम्म़न को ऐसा चोट पहुंचा फ़क तंग अ कर मंने ऄपने ऽपत़ क़ बचपन मं

फ़दय़ हुअ ऩम क्ऱंऽत बदल ऽलय़,जबफ़क मं क्ऱंऽत भट्ट के ऩम से ऄऽभनय के जगत मं ऄपना पहच़न बऩ चिकी था । मिझे ऄपने ऽपत़ क़ आतने प्य़र से फ़दय़ हुअ ऩम बदलने मं बहुत तकलाफ हुइ था। ऄभा ह़ल मं जब मं ऄपने ऽपत़ से ऽमला तो ईनसे म़फी म़ंगते हुए कह़, म़फ कीऽजए। मिझे मजबीरावश ऄपऩ ऩम बदलऩ पड़़ । ईन्हंने जव़ब फ़दय़कोइ ब़त नहं। ठाक हा फ़कय़ । क्ऱंऽत ऄसाम है । क्ऱंऽत कभा ह़रता नहं। क्ऱंऽत कभा रुकता नहं। ररवोल्यीशन आज ऄनऽलऽमटेड । मं ऽबऩ फ़कसा ऽशक़यत और ऽशकन के अज कहऩ च़हता हूं- ह़ं, ददच हुअ थ़। ऄपने पऽत के मिह से रं डा क़ ऽखत़ब प़ कर बहुत ददच हुअ थ़ तब जब ईस आनस़न ने मिझ पर आतऩ ऽघनौऩ अरोप लग़य़। वह आं स़न ऽजसक़ मंने स़रा दिऽनय़ के स़मने ह़थ थ़म़। वह आनस़न ऽजसके बच्चे को मंने गभच मं ध़रण फ़कय़। जो खिद मेरा गोद मं म़सीम बच्चे की तरह पड़़ रहत़ थ़। ईसने अज पीरा दिऽनय़ के स़मने मेरा आज्जत को त़र-त़र कर फ़दय़। मं अज तक आस ब़त को नहं समझ प़या फ़क जब दो आनस़न आतने कराब होते हं, वह़ं ऐसा ब़तं अ कै से ज़ता हं। ऐसा ठोस किं ठ़ और भयंकर आगो । बहुत ददच और लंबा य़तऩ से गिजरा आस बाच. ऽनत़ंत ऄके ला कोइ नहं थ़। बंद कमरे मं खिद से ब़तं करता था। उंचे वॉल्यीम मं टावा चल़ कर जब रोता था तो फ़कसा क़ कं ध़ नहं थ़। बाम़र पड़ा रहता था, कोइ देखनेव़ल़ नहं, दव़ ल़ कर देनेव़ल़ नहं। पर अज सब कि छ स़म़न्य लग रह़ है । जब कोइ घ़व पक ज़त़ है तो ददच देत़ हा है और ईसक़ फी ट कर बह ज़ऩ ऄच्छ़ हा है, च़हे ददच ऽजतऩ भा हो। घ़व के पकने और बहने क़ यहा ऽसलऽसल़ है । मेऱ घ़व भा पक कर बह गय़। ददच हुअ। बेशिम़र ददच हुअ, लेफ़कन ऄब जख्म भर गय़ है। ददच भा ऄपना मिऱद पीरा कर चिक़ । मं ऄपने ऄऽभनय मं ऄपना क़ऽबऽलयत की पराक्ष़ छह स़ल से दशचकं को दे रहा हूं और शिक्रगिज़र हूं वे मिझे प्य़र करते हं। ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

ऄब मेरा ऄपना एक जमान है, एक पहच़न है । जब मं ऱम गोप़ल बज़ज के स़थ गोकी क़ ऩटक तलघर कर रहा था तो बज़ज जा ने मिझसे कह़ थ़-बहुत स़लं के ब़द ऩट्ड ऽवद्य़लय मं सिरेख़ साकरा और ईत्तऱ व़वकर की रं ज की एक्यरेस अया। ऽसफ़च ऄपने क़म की वजह से एनएसडा मं मिझे स़रे क्यल़समेट और साऽनयर, जीऽनयर क़ प्य़र ऽमल़। मेरा क़म के प्रऽत ऽशद्दत और लगन की वजह से हमेश़ चैलंजिजग रोल ऽमले । च़हे ब्रेख्त क़ ऩटक गिड विमन ऑफ शेत्जिअन हो य़ आब्सन के व़आल्ड डक मं ऽमसेज सॉवा य़ चेखव के थ्रा ऽसस्टसच की छोटा बहन य़ ऽवक्रमोवंशाय मं ईवचशा की भीऽमक़। एनएसडा के ब़द स़रव़आव करने के ऽलए मं सोलो करता हूं । एक ब़र जे.एन. कौशल स़हब ने कह़ थ़-10 ल़आन बोलने मं एक्यटरं के पसाने छी टते हं। सोलो के ऽलए तो बहुत म़द्द़ च़ऽहए । तिम एक बेऽमस़ल क़म कर रहा हो । मेरे प्य़र मं प़गल य़ मनोरोगा होने क़ किढढोऱ पाटनेव़ल़ दरऄसल आस ब़त से ज्य़द़ दिखा है फ़क ऽजसे वह दो कौड़ा की लड़की कहत़ थ़, वह ह़र कर, टी ट कर व़पस ईसके प़स नहं अया। ईन्हं आस ब़त क़ बहुत बेसब्रा से आं तज़र थ़ फ़क एक-न-एक फ़दन मं ईनके प़स लौट अउंगा। आसऽलए ईन्हंने मिझे अज तक तल़क नहं फ़दय़। ईनके पिरुष ऄहं को संतिऽि ऽमलता है फ़क मं अज भा ईनकी पत्ना हूं । श़दा क़ मतलब होत़ है, एक दीसरे मं ऽवश्व़स, एक दीसरे के दिख-सिख मं स़थ ऽनभ़ऩ । लेफ़कन अलोक न मेरे दिख के स़थ है, न सिख मं। छह स़ल से उपर होने को अये। मिझे एक ऽशक़यत ऄपने ससिऱल व़लं से भा है। कभा ईन्हंने भा यह नहं ज़नऩ च़ह़ फ़क अऽखर समस्य़ कह़ं है। कभा फ़कसा ने मिझसे नहं पीछ़ फ़क अऽखर ब़त क्यय़ है। एक ऄच्छ़ पररव़र तल़क के ब़द भा ररश्त़ रखत़ है, मेऱ तो तल़क भा नहं हुअ। ऄब भा मं ईस पररव़र की बहू हूं । क़नीना और स़म़ऽजक तौर पर मेरे स़रे ऄऽधक़र होते हुए भा मंने ईन

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लोगं से कि छ भा नहं ऽलय़ । तब भा वे लोग मिझे हा दोष देते हं । यह सब ऽलख कर मेऱ कतइ यह आऱद़ नहं फ़क लोग मिझसे सह़निभीऽत फ़दख़यं, मिझ पर दय़ करं । मं बस यह च़हता हूं फ़क लोगं को दीसऱ पक्ष भा म़लीम हो । अज तक मं चिप रहा तो लोगं ने मेरे ब़रे मं खीब ऄफव़हं ईड़़यं। मं सिकीन से ऄपऩ क़म करऩ च़हता हूं और लोग मेरा व्यऽिगत जिजदगा की बऽखय़ ईधेड़ऩ शिरू कर देते हं। जावन की हर छोटा-छोटा खिशा के ऽलए मं तरसता रहा। लोग कहते हं, मंने ईनक़ आस्तेम़ल फ़कय़ पर मं कहता हूं, एक कम ईम्र लड़की को भोगने की जो ल़लस़ (य़ ऽलप्स़) होता है, क्यय़ ईन्हंने मेऱ आस्तेम़ल नहं फ़कय़? ऽजस लड़की को श़दा करके ल़ये, ईसे पहले हा फ़दन से एक ऄवैध संबंध ढोने पर मजबीर फ़कय़ गय़ । मं ज़नता हूं, आस तरह के विव्य फ़कसा मदच को ऄच्छे नहं लगंगे पर मं यह कहऩ च़हता हूं फ़क दिऽनय़ के हर मदच को ऄपना म़ं, बहन, बेटा को छोड़ कर दिऽनय़ की स़रा औरतं रं डा क्ययं नजर अता हं? मदच ईसे फ़कसा भा तरह से ह़ऽसल करऩ च़हत़ है। अऽखर यह पिरुषव़दा सम़ज है। मदो मं एक बेहद क्रीर फ़कस्म क़ भ़इच़ऱ है। क़श, यह स़मंजस्य हम औरतं मं भा होत़। यह़ं तो सबसे पहले एक औरत हा दीसरा औरत क़ घर तोड़ता है और टी टने पर सबसे पहले घर की औरतं हा ईस

औरत को दोष देऩ शिरू कर देता हं। मेरा कइ सहेऽलयं ने कह़-ऄरे य़र, समझौत़ करके रह लेऩ थ़, हम लोग भा तो रह रहे हं । वे यह नहं ज़नतं फ़क समझौत़ करके रहने की मंने फ़कसा भा औरत से ज्य़द़ कोऽशश की, अऽखरक़र मं थक गया। श़यद और समय तक रहता तो खिदखिशा कर लेता। मिझसे कइ श़दाशिद़ औरतं आस ब़त के ऽलए डरता हं फ़क कहं मं ईनके पऽत को फं स़ न लीं, वे मिझे दीसरा श़दा की नेक सल़ह देता हं। ऄपऩ भल़-बिऱ मं भा समझता हूं पर क्यय़ त़ड़ से ऽगरे , खजीर मं ऄंटके व़ला ऽस्थऽत मिझे म़न्य होगा? श़दा करके घर बस़ने और बच़ने की मंने हर संभव कोऽशश की और न बच़ प़ने की ऄसफलत़ ने मिझे भातर तक तोड़ फ़दय़। एक पऱजय क़ बोध अज भा है। अज हर कदम फीं क-फीं क कर रखता हूं, जैसे कोइ दीध क़ जल़ छ़छ भा फीं क-फीं क कर पात़ है । फ़फर भा मं फ़दल से शिक्रगिज़र हूं ऄपने पऽत की, ईन्हंने जो भा मेरे स़थ फ़कय़। ऄगर ईन्हंने यह सब न फ़कय़ होत़ तो अज मं ऄसाम़ भट्ट नहं होता । ~✽~

ब़ब़ ऩग़जिन च

"ब़ब़, मं सिरेश भट्ट की बेटा 'क्ऱंऽत' हूँ। जो अपके गोद मं खेला था..... ।" ब़ब़- "ऄरे , तिम आतना बड़ा हो गया।" (आस तस्वार क़ कोइ मोल नहं, अज ऄच़नक मेरा एलबम मं यह तस्वार फ़दख गया) ब़ब़ ऩग़जिचन BMW या Mercedes मं नहं चलते थे लेफ़कन BMW और Mercedes मं चलने व़ले ब़ब़ को पढ़ते हं । ~✽~ ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

अलोकधन्व़ की बय़ना, अलोकधन्व़ की जिब़ना देर ऱत को अलोकधन्व़ क़ फ़ोन अत़ है। ऽबऩ फ़कसा भीऽमक़ के बोले मं ‘सोसल ऽमऽडय़’ को तो ईस तरह ज़नत़ -बानता नहं हूँ। यह़ँ के लड़के (वध़च मह़ऽवद्य़ल) के यहा सब मिझे तिम्ह़रे वॉल पर तिम्ह़रे ब़रे मं कि छ कि छ फ़दख़ते रहते हं । अज मं तिमसे कहऩ च़हत़ हूँ फ़क तिम मिझसे बड़ा आं स़न भा हो, ऄऽभनेिा भा और मिझसे बफ़ढ़य़ ऽलखता भा हो । ‘ऄभा ऄभा मंने तिम्ह़रे ट़आम ल़आन वॉल पर एक कऽवत़ पढ़ा – “नंद नहं अ रहा है .... कौन है जो मेरे ऽलये आतना ऱत गये ज़ग रह़ है!” अह ! क्यय़ गहऱया है । ‘नंद नहं अ रहा है, यह तो कोइ भा ऽलख लेग़ लेफ़कन जो दीसरा पंऽि है वह तिम हा ऽलख सकता था फ़क ‘कौन है जो आतना ऱत गये मेरे ऽलए ज़ग रह़ है.’ तिम्हं पत़ है, जब मोऽमन ने ऽलख़ थ़ “तिम मेरे प़स होते हो/गोय़ जब कोइ दीसऱ नहं होत़”.. तब ‘ग़़ऽलब’ ने ‘मोऽमन’ से कह़ थ़ – ‘मेरा पीरा दाव़न एक तरफ और तिम्ह़ऱ यह शे’र एक तरफ. मेरा पीरा दाव़न रख लो और ऄपऩ एक शे’र दे दो’ । वैसे हा मं तिमसे कहऩ च़हत़ हूँ फ़क मेरा पीरा कऽवत़ एक तरफ और तिम्ह़रा यह दो पंऽि एक तरफ । मिझे ऄपना यह दो पंऽि ईध़र दे दो मेरा दोस्त। (08-10-2012 / ऱत-1.52 मा.) ऄसाम़ भट्ट ~✽~

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ऄगर खिद पर भरोस़ और ऽहम्मत है तो ईड़ ज़.. दिऽनय़ं को फ़दख़ने के ऽलए ररश्ते ढोऩ पसंद नहं: ऄसाम़ मिझे लगत़ है ऄभा भा मं सफर मं हूं.. प़प़ के क्ऱंऽतक़रा होने क़ मिझपे क़फी ऄसर रह़ वो कहते थे फ़क कि छ ऐस़ करो जो दीसरं के ऽलए ऽमश़ल हो तो कि छ थ़

ऄसाम़ भट्ट ईफच क्ऱंऽत भट्ट नेशनल स्की ल ऑफ ड्ऱम़ की पीवच छ़ि़ हं और टा.वा. और ड्ऱम़ मं एक ज़ऩ पहच़ऩ ऩम है, ररश्तं से बडा प्रथ़, बैरा ऽपय़ जैसे कइ टावा शो मं ऄऽभनय करने के स़थ-स़थ वो लम्बे समय से ड्ऱम़ मं क्षेि सफ़क्रय हं और पटऩ के कइ ऄखब़रं मं पिक़ररत़ क़ ऄनिभव भा रखता है। ये ऽबह़र के एक छोटे शहर नव़द़ से हं। आनके ऽपत़ सिरेश भट्ट स़म्यव़दा ऽवच़रध़ऱ के क्ऱंऽतक़रा थे। ऄसाम़ ऄपने से दोगिने ईम्र के जनकऽव अलोक धन्व़ से श़दा की पर ऽपछले ब़रह स़लं से ये ऄपने पऽत से ऄलग रह रहा हं। ह़ल मं हा ये ऄपने और अलोक धन्व़ के ररश्तं को दिऽनय़ं के स़मने रख ख़से चचे मं रहं। वतचम़न पररवेश मं मऽहल़ओं से जिड़े मिद्दे और आनके व्यऽिगत जावन से जिड़े कि छ सव़ल के स़थ ऄसाम़ भट्ट से मेरा ब़तचात हुइ ऽजसमं कइ नए पहलि स़मने अए.. नव़द़ मं ऽशक्ष़, पटऩ मं पिक़ररत़, फ़दल्ला मं ड्ऱम़ स्की ल और ऄब मिम्बइ मं मिक़म ये सब कै से हुअ? दरऄसल ऄपने अप की खोज है मिझे और

फ़क मिझे कि छ बनऩ है पर क्यय़ बनऩ है ये भा नहं तय थ़.. मैनै सोच़ नहं थ़ फ़क मं जनचऽलस्ट बनीग ं ा फ़क एक्यरेस बनींगा कि छ तय नहं थ़। मै चलते चला हूं और यह़ं तक अया हूं। मं यहा च़हता हूं य़ कि छ और च़हता हूं जिजदगा से, ये मिझे पत़ नहं है, मिझे लगत़ है फ़क मं य़ि़ मं हूं। मैनं जिजदगा की ऄच्छा बिरा घटऩओं से साख़ आसऽलए मिझे फ़कसा भा घटऩ से कोआ ऽशक़यत भा नहं है। खिद को ऄब तक फ़कतऩ ज़न प़यं? मिझे लगत़ है मं नहं ज़न प़या हूं, ऄभा भा मिझे लगत़ है मं बच्चा हूं ऄभा भा मिझे नहं पत़ फ़क मिझे ल़इफ से क्यय़ च़ऽहए पर सबकि छ सिंदर लग रह़ है, मज़ अ रह़ है, बहूत जगह घीमा, बहूत ऄच्छे -ऄच्छे लोगं से ऽमला, बहूत खिबसीत लग रह़ है बस ऄपना जिजदगा को नॉबेल की तरह फ़दलचस्पा से देखता हूं फ़क ऄगले पन्ने पर क्यय़ होग़ और बहूत बेसब्रा से मिझे ऄपने ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

फ़द एंड क़ आं तज़र है। जब अप खिद को नहं ज़न प़या तो दिऽनय़ं व़लं अपको कै से ज़न प़एंग।े मिझे लगत़ है फ़क कोइ एक बंद़ मिझे अ के बत़ दे फ़क मं क्यय़ हूं तो मं ईनक़ प़ंव छी लींगा। छोटे शहर से फ़फल्म आं ड्स्टस्राज के सफर मं फ़कन फ़कन चिनौऽतयं क़ स़मऩ करऩ पड़़?

बहूत चीनौऽतय़ं अया, ऽबऩ चिनौऽतयं के कोइ यह़ं तक कै से अत़, लेफ़कन मेरा सबसे बड़ा चिनौता नव़द़ से पटऩ तक की था। ये मेरे ऽलए मिऽश्कल कदम थ़ फ़क मिझे नव़द़ से ब़हर ऽनकल कर कि छ करऩ है पर अया था मं क़म करने और लोगं ने ऄफव़ह ईड़़ फ़दय़ फ़क सरे श भट्ट की बेटा लड़क़ के स़थ भ़ग गया। फ़फर ईसके ब़द चाजं ईतना मिऽश्कल नहं था। ब़द मं मं अलोक धन्व़ की एक कऽवत़ पढ़ा “ भ़गा हुइ लड़फ़कय़ं” ईसमं एक ल़इन है-

ऄगर एक लड़की भ़गता है तो यह हमेश़ जरूरा नहं, फ़क कोइ लड़क़ भा भ़ग़ होग़. कइ दीसरे जावन प्रसंग हं, ऽजनके

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फ़फल्म और ऩटकं मे मऽहल़ओं की क्यय़ ऽस्थऽत है? फ़फल्मं की ऄपेक्ष़ ऩटकं मं मऽहल़ओं की ऽस्थऽत बेहतर है, ऩटकं मं मऽहल़ओं की दमद़र भीऽमक़ होता है पर ऽपल्मं मं कि छ हं ड़यरे क्यटर है ऽजनकी फ़फल्मं मऽहल़प्रध़न होता है जैसे कह़ना, डटी ऽपक्यचर अया और क़फी चची मं भा रहं, तो ये स़लं मं अया आससे पिवच प्रक़श झ़ की मुत्यिदंड अया था। ऽहन्दा ऽसनेम़ मं औरतं डमा हं। फ़फल्म और टेऽलवाजन मं मऽहल़ओं के वस्तिकरण के ऽलए फ़कसे ऽज़म्मेद़र म़नता हं?

हमेश़ से म़के ट मं वहा बेच़ गय़ है ऽजसके खरादद़र रहे हं, जबतक जो चाज खरादा ज़एगा वो बनता रहेगा। और ऄक्यसर एक्यरेस पे ये आल्ज़म लग ज़त़ है फ़क बहूत बोल्ड है बहूत एक्यसपोज करता है पर दरऄसल वो समझद़र ऩऽयक़एं हं जो ये समझ चिकी हं फ़क आस धंधे मे रटके रहऩ है तो ये करऩ है तभा गिज़ऱ है। जो नहं करता वो बहूत जल्द पदे से ब़हर भा चला ज़ता है, तब्बी आसक़ त़ज़ ईद़हरण है जो ऄभा ह़ऽशये पर है। ऑऽडयंस की हा म़ंग है फ़क मश़ल़, वॉयलंस और सेक्यस च़ऽहए तो चाजं तो वहा बऩया ज़एंगा ऽजसकी म़ंग है। मदच ऄपना बावायं मं वहा देखऩ च़हते हं एकदम टापटॉप ,स्क्रीन पर एक एक्यरेस ऄगर सिंदर फ़दख रहा तो ईसके पाछे ईसक़ कोइ ह़थ नहं है ईसकी सिंदरत़ के पाछे मेकऄप मैन

कइ लोगं क़ ह़थ है। तो एक औरत घर क़ स़ऱ क़म करते हुए ईतना सिंदर कै से फ़दख सकता है। द़ऽमना गंग-रे प के अंदोलन को अप फ़कस रूप मं देखता हं?

ये अंदोलन बहूत सहा थ़ और ये बहूत पहले हा शिरू हो ज़ऩ च़ऽहए थ़। क्ययंफ़क रे प की संख्य़ फ़दन-ब-फ़दन आसकी संख्य़ बढता हा ज़ रहा है। और ईससे भा बिऱ होत़ है फ़क रे प की सिनव़या मं जो देर होता है। द़ऽमना म़मले मं हा देख ऽलय़ ज़य फ़क स़रा दिऽनय़ं को पत़ है फ़क द़ऽमना क़ न ऽसफच रे प हुअ बऽल्क वो मर चिकी है है फ़फर भा के श मं ईसके प्रम़ण पेश फ़कए ज़ रहे हं। कोइ आं स़न संसेरटव होके ऽसफच प़ंच ऽमनट के ऽलए सोचे फ़क ईस लड़की के स़थ क्यय़ हुअ होग़ वो प़गल हो ज़एग़। और देश क़ क़नीन अज भा प्रम़ण ढ़ींढ रह़ है आससे बीऱ क्यय़ हो सकत़ है। ब़ल़त्क़ररयं के ऽलए क्यय़ सज़ होना च़ऽहए? ईनकी बस एक हा सज़ है फ़क ईनके प्ऱआवेट प़टच क़ट फ़दये ज़ने च़ऽहए ईसके ब़द जिजद़ छोड़ दं। फ़ंसा ईनके ऽलए कि छ नहं है। एक पऽत-पत्ना के स़थ बैड-सेक्यस हो ज़त़ है वो औरत भा जिजदगा मं नॉमचल नहं रह ज़ता है और कइ तरह की म़नऽसक पाड़़ से गिजरता है। ऐसे मं फ़ंसा कि छ नहं है, वो मर ज़एग़ और मि​ि हो ज़एग़। ईसे तो पल-पल य़द रहऩ च़ऽहए फ़क ईसनं क्यय़ फ़कय़ है और ईसकी ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

क्यय़ सज़ है। क्यय़ वजह है फ़क आतने बड़े अंदोलन के ब़द भा ब़ल़त्क़र की घटऩओं मं कमा नहं अया। ह़ं ईसके ब़द तो ऐसा घटऩएं और बढता गया, एक तरफ आस घटऩ को लेके पीऱ देश अक्रोऽशत और अन्दोऽलत थ़, लोग घरो से ऽनकल अए वहं दीसरा तरफ टा.वा. और ऄखब़रं मं गंग-रे प और रे प की घटऩएं अते रहा। आसक़ मतलब है फ़क रे ऽपस्ट क़नीन और पिऽतस को ये बत़ रहे थे फ़क तिमलोग कि छ भा करो हम तो जंगल के शेर हं, जो जा अएग़ करं गे। कि छ हद तक ये भा सहा है फ़क रे प की घटऩएं पहले भा होता था पर लोग बदऩमा के डर से अव़ज नहं ईठ़ते थे और म़मल़ स़मने नहं अ प़त़ थ़ पर आस धटऩ के ब़द लोगं की म़नऽसकत़ बदला है ईसक़ ऄसर फ़दख रह़ है। दिष्कमच जब घर व़लं के द्व़ऱ फ़कय़ ज़त़ है तो ऐसे ज्य़द़तर म़मले ऄपनं के द्व़ऱ हा दब़ फ़दए ज़ते हं ऐसे मं पाड़ात़ को कै से न्य़य ऽमल प़एग़? ह़ं, अजकल तो ऐसे चौक़नं व़ले म़मले भा स़मने अ रहे हं फ़क ऽपत़ ने बेटा क़ ब़ल़त्क़र फ़कय़, पड़ोऽसयं और संबंऽधयं के द्व़ऱ रे प की घटऩएं तो अम हो गया हं। जो फ़क बहूत गलत है और ऐसे मं लड़फ़कयं को सेक्यस की ऽशक्ष़ देना च़ऽहए क्ययं फ़क कइ म़मलं मं बऽच्चयं के स़थ दिष्कमच होत़ है और ईसे कि छ पत़ भा नहं चलत़ फ़क ईसके स़थ क्यय़ हो रह़ है, आवेन तसलाम़ नसरान ने भा ये ऽलख़ है फ़क ईसक़ पहल़ रे प जो हुअ ईसके म़म़ ने हा फ़कय़ थ़, ईसको पत़ हा नहं थ़ फ़क ईसक़ रे प हो रह़ है। हम़रे म़ं-ब़प एक ईमर के ब़द कहते हं फ़क लड़को के स़थ मत रहो, ईसके स़थ मत खेलो पर वजह नहं बत़ते। आसऽलए सेक्यस की ऽशक्ष़ और ज़गरूकत़ बहूत जरूरा है। पिरूष-प्रध़न सम़ज मं कै से बदल़व ल़य़ ज़ सकत़ है? और ख़स कर मऽहल़एं को आसके ऽलए क्यय़ करऩ च़ऽहए? मिझे लगत़ है फ़क मऽहल़एं ऽसफच आसपे ब़त करता हं और करता कि छ नहं। मऽहल़एं खिद आसके ऽलए ऽजम्मेद़र हं।

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होग़। अज से स़ठ स़ल पहले ‘सामोन द बोईव़र’ फीमेल फ्रीडम और आक्कवऽलटा की ब़त कर चिकी है, फ़फर पोस्ट-मॉऽड्रज्म और फे मऽनस्ट अन्दोलन अय़, आतना स़रा चाजं हो गया हं और जब औरत के सेल्फ ररस्पेक्यट की ब़त अता है तो ईसकी ऽशक्ष़, जाने की जो कल़ साखा है ईससे ऄपना शतं पर चलने मं ऽहम्मत और त़कत च़ऽहए, पर ऄफसोस होत़ है फ़क बहूत सा पढ़ा-ऽलखा औरतं मं भा नहं फ़दखत़ है और कहं न कहं ऄपने शस्त्र ड़ल देता है फ़क चलो चलत़ है। सफ़दयं से ऐस़ होत़ अ रह़ है, मं कोइ ऄके ला थोड़ा ऐसा हूं और ऄगर ईसमं से कोइ एक औरत पहल भा करता है तो ईससे कराबा और ज़न पहच़न व़ले और सहेऽलय़ं तक ये सल़ह दे ज़ता है फ़क तिम थोड़़ झिक ज़ता, र्कॉम्परम़आज कर लेता, तिम जो कर रहा हो वो गलत है। तो आस तरह के ऽवरोध और त़ने से ईसक़ कंफ़फडंट डगमग़ ज़त़ है। अप ऄमुत़-आमरोज से ख़सा प्रभ़ऽवत लगता हं? बहूत, और मं ऽमला हूं ईन दोनं से, ये मेऱ सौभ़ग्य है फ़क हौज ख़स मं मिझे दोनं से ऽमला। पहले तो आमरोज मऩ फ़कए और बोले फ़क तिम्ह़रे फ़दल मं ऄमुत़ क़ जो तसब्बीर है वहा रहनं दो पर मेरे ऽजद के अगे वो ह़र गये और मं गया से ऽमलने, ऄमुत़ बहूत बाम़र था और ऄपऩ य़दद़श्त लगभग खो चिकी था। फ़फर आमरोज ने मिझसे कह़ फ़क मं आसाऽलए मऩ कर रह़ थ़, मैने कह़ फ़क ऄच्छ़ हुअ फ़क मैने ईन्हे देख़ क्ययंफ़क ईनकी ऱआटिटग भा देखा और ईन्हे भा देख रहा हूं जो फ़क एक नये सच के रूप मं मेरे स़मने अय़, वो ऄमुत़ प्रातम ऽजनकी लेखना के ऽहन्दीस्त़न मं ल़खं लोग दाव़ने थे और जो कभा क़फी खीबसीरत हुअ करता था, मैने ईन्हे एक ऄधमरा गठरा की देख़। वो ऄमुत़ भा सच था ये ऄमुत़ भा सच था। ईस घटऩ के ब़रह-तेरह स़ल ब़द मं जब आमरोज से ऽमला तो पीछ़ फ़क अपको य़द है फ़क ऄमुत़ जा को ऽमलने अपके घर अया था तो वो बोले ह़ं-ह़ं य़द है, ऄमुत़ से जिड़ा कोइ भा ब़त मं नहं

भीलत़। ऐस़ जव़ब तो आमरोज जैस़ प्रेमा हा दे सकत़ है। लव और ऄरं ज मैरेज मं अप फ़कसे बेहतर म़नतं हं, और क्ययं? च़हे वो लव मैरेज हो य़ ऄरं ज, देयर आज नो ग़रं टा नो क्यलेम, ये त़श की पत्तं की तरह है ऄगर ऄच्छे पत्ते अ गये तो अपके नसाब, नहं अए तो अपके नसाब.. लड़फ़कयं के ऽलए घर व़लं के मजी के ऽखल़फ श़दा करने के फै सले को अप फ़कस रूप मं देखतं हं? एवराजिथग आज फे यर आन लव एण्ड वॉर, ऄगर खिद पर भरोस़ और ऽहम्मत है तो ईड़ ज़, ब़की तो डेऽस्टना की ब़त है फ़क पीरे जावन अप खिश रहोगे फ़क नहं, लेफ़कन मल़ल नहं रहऩ च़ऽहए फ़क ऽजसको हमने च़ह़ प़ न सके , क़श फ़क हम ऐस़ करते य़ ऽहम्मत जिटा लेते तो अज ईसकी बावा होते। घरे लि जिहस़ की ऽशक़र मऽहल़ के प़स क्यय़ प़स क्यय़ ऽवकल्प है? आं ऽडपंडंट होऩ हा आसक़ बेहतर ऽवकल्प है, यहा ईनक़ फ्रीडम है। आस तरह की जिहस़ नन वर्किकग मऽहल़ के स़थ ज्य़द़ होत़ है, वर्किकग के स़थ कम होत़ है क्ययंफ़क ईसक़ पऽत सोचत़ है फ़क आसपे ह़थ ईठ़ईं ग़ तो ये छोड़ के ज़ सकता है और कइ के स मं छोड़ के चला भा ज़ता है। तो मेल आगो आस ब़त को एक्यसेप्ट नहं करत़ फ़क ईसकी पत्ना ईसे छोड़ के चला ज़ए, भले पऽत पत्ना को छोड़ दे। एक मऽहल़ के ऽलए श़दा जैसे ररश्ते को तोड़ऩ फ़कतऩ मिऽश्कल कदम होत़ है? बहूत मिऽश्कल होत़ है। हम़रे सम़ज मं जो सबसे बड़ा गलत ध़रण़ है फ़क लड़फ़कयं को ऐसा नसाहत दा ज़ता है फ़क वो पैद़ हा श़दा के ऽलए हुइ है, तो सबकि छ लड़फ़कय़ं ऄपने श़दा से जोड़ कर देखता है। ऽजस घर मं पैद़ हुइ ईस घर के ब़रे मं न सोच कर ईस घर के ब़रे मं सोचता है जह़ं ईसकी श़दा होगा। आस तरह की मनोवैज्ञ़ऽनक ऽशक्षण जह़ं दा गया है वैसे सम़ज मं श़दा तोड़ऩ बड़़ मिऽश्कल कदम है। और जो तंग अ के तोड़ भा देता है, वो बहूत हद तक फ़कसा न फ़कसा ऄपऱध बोध मं मरता रहता है फ़क ऐस़ हो गय़, वैस़ ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

हो गय़। वो बहूत हद तक ऽगल्टा मं जाता है। मं ऄपना ब़त बत़ई तो मिझे कोइ ऽगल्टा नहं है क्ययंफ़क मिझे ईस समय प्य़र थ़ मिझे लग़ श़दा करना च़ऽहए मैनं फ़कय़, मैने ऄब देख़ फ़क वो प्य़र ऩम की चाज नहं है, जो हम़रे ऽवव़ह की पहला शतच था प्रेम, वहा नहं है तो ईस ररश्ते को ढोते रहने क़ मेरे ऽलए कोइ मतलब नहं थ़, मं तब भा खिश था अज भा खिश हूं। श़दा क़ फै सल़ भा मेऱ हा थ़ और ऄलग होने क़ भा। मं तब भा सहा था अज भा सहा हूं। मिझे फ़कसा ब़त क़ मल़ल नहं है। दीऽनय़ं को फ़दख़ने के ऽलए फ़कसा ऐसे ररशते को ढ़ोऩ पसंद नहं थ़ ऽजस ररश्ते मं हम़रे ररश्ते की बिऽनय़द प्रेम हं नहं थ़। तो क्यय़ आसे एक तरफ़ प्य़र कह़ ज़ सकत़ है? पत़ नहं ये एक तरफ़ थ़ फ़क क्यय़ थ़, क्ययंफ़क मिझसे तो ज्य़द़ तो मेरे पऽत डंक़ पाटते हं फ़क वो मिझे प्य़र करते हं, मं तो आतना डंक़ भा नहं पाटता। वे तो पीरा दीऽनय़ं मं डंक़ पाटते हं फ़क वो मिझे बहूत प्य़र करते हं तो श़यद करते हंगे। ये ऄलग ब़त है फ़क वो करते है और मिझे महसीस नहं होत़ लेफ़कन मिझे लगत़ है फ़क प्य़र वडचस् (शब्दं) मं नहं, एक्यशन मं होत़ है। फ़कसा को ऽसफच अआलवयी कहऩ प्य़र नहं है। अपको जब फ़कसा से प्य़र होत़ है तो अप बहूत खीबसीरत हो ज़ते हो, अप ईसको खिश देखऩ च़हते हं, फ्रीडम देऩ च़हते हो, ईसकी हर छोटाबड़ा ब़तं क़ ख्य़ल रखते हो। मंने भा श़दा के ब़द ऄपऩ हर धमच ऽनभ़य़ पर मिझे ऽलख के बत़ने की जरूरत नहं फ़क मं फ़कसा को फ़कतऩ प्य़र करता हूं। ऄपने पऽत से ऄलग होने के ब़द अपकी जिजदगा मं फ़कस तरह के बदल़व अये? मं बहूत खिश हूं, मं सच मं खिश हूं, ये मं अपको य़ खिद को बहल़ने के ऽलए नहं कह रहा हूं मं कतइ झिठ नहं बोलता। फ्रीडम से जा रहा हूं। मिझे दीऽनय़ं को जो ज़नने और समझने क़ मौक़ ऽमल़ है वो पटऩ के एक छोटे से फ्लैट मं नहं ऽमलत़। कश्मार से कन्य़कि म़रा तक घिमा, बहूत ऄच्छे-ऄच्छे लोगं से ऽमला। मिझे

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पढ़ऩ-ऽलखऩ, संगात सिनऩ ऄच्छ़ लगत़ है, धिमऩ ऄच्छ़ लगत़ है। मं ज्य़द़तर समय आसा मं व्यतात करता हूं। ऐस़ नहं है फ़क अपके फ्रीडम के अगे अलोक धन्व़ अपकी जिजदगा मं कहं गिम होते चले गये? थे तभा तो ये फै सल़ लेऩ पड़़ न नहं होते तो क्ययं लेता। एक गररम़पीणच ल़आफ नहं था मेरा और मेरा पहला शतच है मेरे ऽलए मेऱ सेल्फ-ररस्पेक्यट, ईसके अगे मं कोइ फ़फल्मं भा नहं लेता हूं, मिझे बड़े-बड़े ऑपर गलत ढंग से अते हं तो मै मऩ कर देता हूं और कहता हूं फ़क अगे से कॉल मत करऩ। मिझे कै टराऩ बनने के ऱस्ते भा पत़ है लेफ़कन मिझे नहं ज़ऩ है ईनके ऱस्ते से। ऄपने ददच को जह़ं से ब़ंट कर अपक़ ददच फ़कतऩ कम हुअ? बहूत हुअ, ऄब ददच हा नहं है। वो एक प्रोसेस थ़ जैसे कोइ घ़व के पकने के ब़द ईसक़ फटऩ हा ईसक़ आल़ज होत़ है, वो फटनं मं ददच तो होग़ न.. वो घ़व क़ फटऩ मेरे ऄच्छे के ऽलए थ़ जो फट भा गय़ और भर भा गय़। ऄब ददच नहं है। अलोक धन्व़ को अज भा बहूत ररस्पेक्यट करता हूं, ईनकी कऽवत़ओं से अज भा प्य़र हो ज़त़ है, जब ईन्होने ऄभा ऽलख़ फ़क- तिम मेरा जिजदगा मं ऐसे हा अ ज़ओ जैसे फ़क तिम कभा गया हा नहं था। पर मं कह्ता हूँ - "जब पीरे ऄम़वस की ऱत, तिम्हे प़गलं की तरह ढी ंढता फ़फर रहा था ईस ऱत तिम कह़ँ थे च़ँद... तो क्यय़ अपके ऽबखरे हुए ररश्तं मं कोइ ईम्माद ब़की है? नहं, नहं, ऽबल्कि ल नहं।, आसकी दिअ मत करऩ। जब एक फ़दन पहले की जिजदगा को व़पस नहं ल़या ज़ सकता फ़फर तो हम ब़रह स़ल से ऄलग जा रहे है। ऄपना ब़त दीऽनय़ं के स़मने रखनं के ब़द लोगं की कै सा प्रऽतफ़क्रय़ अया? बहूत अय़, ऄच्छ़ भा बीऱ भा.. फ़कसा ने कह़ फ़क मं ऽसम्पैथा गेन करऩ च़हता हूं, फ़कसा ने कह़ फ़क मै झिठ बोल रहा हूं, फ़कसा ने कह़ फ़क एक तरफ़ बय़न है। ऽजसको जो समझऩ है समझे मिझे तो ऄपऩ पक्ष हा रखऩ थ़ क्ययं फ़क एक पऽत

ने कह फ़दय़ फ़क ती रं डा है तो पीरा दीऽनय़ं ने म़न ऽलय़ फ़क रं डा हूं और लोग मिझे ईसा नजररए से देखते थे। मिझसे यह़ं तक पीछ़ गय़ फ़दल्ला मं फ़क मेऱ रे ट क्यय़ है? मं एक ऱत क़ फ़कतऩ लेता हूं? तो मिझे लग़ फ़क मिझे ऄपऩ पक्ष रखऩ रखऩ च़ऽहए मंने रख़, मिझे फ़कसा से हमददी और सह़निभीऽत की ईम्माद नहं था। अपकी भ़वा योजऩएं? नहं मेरा कोइ प्ल़जिनग नहं है, ऽजस ऱह ले ज़एग़ ईपर व़ल़ ईस ऱह ज़ईं गा। ह़ं क़म करऩ और एजिक्यटग करऩ ऄच्छ़ लगत़ है, ऄच्छे रोल के ऽलए बेसब्र हूं। और थोड़़ बहूत जो लोग मिझसे ईम्माद करते हं फ़क मं ऄच्छ़ ऽलख लेता हूं तो श़यद एक़ध फ़कत़ब मं ऽलख ड़लीं। अपके ऽपत़ सिरेश भट्ट ऄपना पीरा जिजदगा सम़ज के ऽलए जाये पर ईनकी बेटा क्ऱंऽत भट्ट खिद के ऽलए जा रहा है। मं ऄपने ऽलए जाता हूं, ब़बी जा की ररस्पेक्यट करता हूं पर ईनके जैस़ नहं होऩ च़हता। सम़ज के ऽलए जा कर ईनको क्यय़ ऽमल़। मं ईनको कं ध़ देने से लेकर मं मिख़ऽगना तक दा। वे जिजद़ थे, फ़दल्ला मं थे, लोगं को ये भा पत़ नहं थ़। फ़फर क्यय़ ऽमल़ ईन्हे सम़ज के ऽलए जा के ? ह़ं मै ऄपनं ऽलए जाता हूं अआ डंट म़आं ड। क्ययं ऽजयीं दीसरं के ऽलए? क्यय़ मेरे स्रगल मं कोइ मेरे स़थ है, क्यय़ मेरे स़थ कोइ रोने अय़? बऽल्क ऄनऽगनत लोगं ने आसक़ फ़यद़ ईठ़ऩ च़ह़ फ़क मं एक ऄके ला औरत हूं। ऄगर मं आस ब़रे मं बोलीं य़ ऽलखीं तो न ज़ने फ़कतने घर टी टंगे। अज की लड़फ़कयं के ऽलए संदश े ?

पढे ऽलखं और खिद को पहच़ने. आसके ऽलए मं सबको सजेस्ट करूंगा फ़क वो चेखो क़ द ब्ऱइड (दिल्हन) पढे।

एक कल़क़र होने से ...

मंच पर परफोमच करऩ अग से खेलने से कम नहं होत़ मंच पे वोहा ऄऽभव्यि होत़ है जो हम जाते है, ऽस्क्रप्ट मं ऽलखा ल़इनं के बाच मं रहे ररि स्थ़नं मं ईन ररि स्थ़नं मं हा जिज़दगा छि पा होता है मंच पर मंचन करऩ कोइ खेल नहं मंच पर ऽस्क्रप्ट के द़यरे मं बंधऩ बंधकर भा मि​ि ईड़़न भरऩ और आसा बाच मं ऄपना जिज़दगा कि छ चमकते पलं को मोऽतयं की तरह मंच पर ऽबखेरते हुए चमक़ऩ

बहूत-बहूत धन्यव़द ऄसाम़ जा, अपकी ये कऽवत़ मिझे बहूत पसंद है:

एक कल़क़र होने से ' रं डा ' क़ ऩम ऽमलऩ और ऄलग-थलग होऩ मतलब ऄपने हा मन-ह्रदय-शरार पर ऄपने हा ह़थं से करवत चल़ऩ...

शिफ़क्रय़ वेद, अपके बेहतर भऽवष्य की बहूत-बहूत शिभक़मऩएं।

~✽~

तिम एक भटके हुए ऱहा हो और मं आक ऱह ऽजस पर से कोइ गिजऱ हा नहं...

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

- असीमा भट्ट

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ख़त

लऽतक़ फणाश्वरऩथ रे णि

एक पिऱऩ ख़त खोल़ ऄनज़ने मं .... अज ऄच़नक फ़फर से यह ख़त फ़दख गय़ । यह ख़त है जिहदा के मह़न लेखक 'फनाश्वरऩथ रे ण'ि की पत्ना 'लऽतक़ रे णि जा' क़ । 'रे णि समग्र' एक तरफ और यह 'ख़त' एक तरफ । आसे पढ़े ज़रूर । ऄब वो आस दिऽनय़ मं नहं हं । यह ईनक़ अखरा ख़त है ।

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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ख़त-ख़बर श्रा ऽशवचंद ओझ़ ओऽसय़ं स्मुऽत सम्म़न सम़रोह एवं दो फ़दवसाय ऱष्ट्राय स़ऽहत्यक़र सम्मलेन ऽिसिगंऽध स़ऽहत्य, कल़ एवं संस्कु ऽत संस्थ़न प़ला ऱजस्थ़न के तत्व़वध़न मं अयोऽजत श्रा ऽशवचंद ओझ़ ओऽसय़ं स्मुऽत सम्म़न सम़रोह एवं दो फ़दवसाय ऱष्ट्राय स़ऽहत्यक़र सम्मलेन क़ 7 मइ को ऽपण्डव़ड़ ऽजल़ ऽसरोहा मं भव्य अग़ज हुअ । क़यचक्रम स़ऽहत्यक़र अश़ प़ण्डेय ओझ़ ने ऄपने ऽपत़श्रा ऽशव चंद ओझ़ ओऽसय़ँ की स्मुऽत मं ईनके जन्म फ़दवस अठ मइ के ईपलक्ष्य मं करव़य़ । आसकी पीवच संध्य़ पर फ़दऩंक स़त मइ ऄपऱह्न सव़ च़र बजे हुवे ईद्घ़टन सि के मिख्य ऄऽतऽथ थे वररष्ठ स़ऽहत्यक़र एवं ऱजस्थ़न ईच्चतर न्य़ऽयक सेव़ से सेव़ ऽनवुत मिरलाधर वैष्णव स़हब जोधपिर ने ऄध्यक्षत़ की ज़नेम़ने गातक़र डॉ बिऽिऩथ ऽमश्र जा( देहऱदीन )ने, क़यचक्रम के ऄऽत ऽवऽशि ऄऽतऽथ दिऽनय़ आन फ़दनं के प्रध़न संप़दक, स़ऽहत्यक़र डॉ सिधार सक्यसेऩ स़हब भोप़ल से, ऽवऽशि ऄऽतऽथ स़ऽहत्यक़र सिरेख़ शम़च हररय़ण़ व 'ऽवश्वग़थ़' के संप़दक व लेखक – पंकज ऽिवेदा जा सिरेन्द्र नगर गिजऱत से, व प्रक़श कोठ़रा जा जलग़ंव। आस सि क़ श़नद़र संच़लन फ़कय़ भालव़ड़़ ऱजस्थ़न से पध़रे ज़ने-म़ने कऽव स़ऽहत्यक़र प्रह्ल़द प़ररक स़हब ने। क़यचक्रम क़ दीसऱ सि स़ंय 6 बजे प्ऱरम्भ हुअ अश़ प़ण्डेय ओझ़ अश़ के क़व्य संग्रह “वक़्त की श़ख से " क़ ऽवमोचन एवं ईस पर चच़च था । सि के मिख्य ऄऽतऽथ थे डॉ बिऽिऩथ ऽमश्र थे व ऄध्यक्षत़ की वररष्ठ ब़ल स़ऽहत्यक़र डॉ गोऽवन्द शम़च संगररय़ ने वररष्ठ स़ऽहत्यक़र डॉ ऽवमल़ भंड़रा सलीम्बर, वररष्ठ स़ऽहत्यक़र एवं ऱजस्थ़ना व जिहदा के सम़न रूप से लेखन करने व़ले डॉ रऽव पिरोऽहत बाक़नेर ऱष्ट्राय सह़ऱ डेहला के जनर्षलस्ट संजय जिसह जा वररष्ठ पिक़र, जय प्रक़श दाव़न फ़दल्ला क़यचक्रम के ऽवऽशि ऄऽतऽथ थे, स़ऽहत्यक़र मोऽनक़ गौड़ बाक़नेर व स़ऽहत्यक़र फ़दनेश म़ला ईड़ास़ ने पिस्तक पर ऄपने पि प्रस्तित फ़कये । मंच़सान सभा ऄऽतऽथयं ने पिस्तक व ईसकी रचऩओं पर ऄपने ऽवच़र प्रस्तित फ़कये । आसा सि मं वररष्ठ स़ऽहत्यक़र व नवगात के सशि हस्त़क्षर बिऽिऩथ ऽमश्र जा क़ स़ऽहत्य मं ईनके समग्र योगद़न के ऽलए संस्थ़न द्व़ऱ ऄऽभनंदन फ़कय़ गय़, मंच संच़लन फ़कय़ ब़ंसव़ड़ ऱजस्थ़न के ज़ने-म़ने कऽव स़ऽहत्यक़र कऽव डॉ सताश अच़यच ने। ऱत 9 बजे क़व्य-गोष्ठा व मिश़यरे क़ अग़ज़ हुअ बोम्बे से पध़रे फ़फल्म गातक़र व ज़ने-म़ने श़यर देवमऽण प़ण्डेय स़हब के मिख्य अऽतथ्य मं, सिपररऽचत कऽव फ़दनेश जिसदल जोधपिर ने क़व्य गोष्ठा की ऄध्यक्षत़ की, ऽवऽशि ऄऽतऽथ थे परटय़ल़ पंज़ब से स़गर सीद स़हब,कऽव प्रहल़द प़राक भालव़ड़, कऽव डॉ सताश अच़यच ब़ंसव़ड़,सोम प्रस़द स़ऽहल ऽशवगंज, कऽव ऽववेक प़राक झींझनी, ऄब्दिल समद ऱहा सोजत व समा शम्स व़रसा अबीरोड से पध़रे ज़ने-म़ने कऽवयं व श़यरं

ने एक से बढ़कर एक प्रस्तिता देकर ऱत दो बजे तक श्रोत़ओं को ब़ंधे रख़ क़यचक्रम मं नवगातक़रं मं देश-ऽवदेश मं सिपररऽचत हस्त़क्षर डॉ बिऽिऩथ ऽमश्र जा के गातं ने आतना ऽमठ़स घोला की श्रोत़ मंिमिग्ध हो ईठे डॉ ऱम ऄके ल़ पाप़ड़ ने ऄपने ऄद्भित संच़लन से सबक़ मन मोह ऽलय़। क़यचक्रम के दीसरे फ़दन अठ मइ को सिबह 9 बजे पहले सि समक़लान कऽवत़ मं स्त्रा ऽवमशच ऽवषय पर चच़च हुइ क़यचक्रम की मिख्य ऄऽतऽथ जेल ऄधाक्षक व लेऽखक़ प्रात़ भ़गचव था, ऽवऽशि ऄऽतऽथ थे कह़नाक़र म़धव ऩगद़, स़ऽहत्यक़र डॉ ऽवमल़ भंड़रा सलीम्बर, मोहन ल़ल सिख़ऽडय़ ऽवश्व ऽवध़लय के जिहदा ऽवभ़ग के एसोऽसयेट प्रोफे सर डॉ नवान नंदव़ऩ ईदयपिर व क़यचक्रम की ऄध्यक्षत़ की भोप़ल से पध़रे वररष्ठ स़ऽहत्यक़र व दिऽनय़ं आन फ़दनं के प्रध़न संप़दक डॉ सिधार सक्यसेऩ स़हब ने । मंच संच़लन फ़कय़ कऽव व ज़ने-म़ने मंच संच़लक प्रहल़द प़राक जा ने की क़यचक्रम क़ दीसऱ सि समक़लान कह़ना मं अंचऽलकत़ क़ प्रभ़व ऽवषय पर चच़च क़यचक्रम के मिख्य ऄऽतऽथ थे 'ऽवश्वग़थ़' के संप़दक व जिहदा गिजरता मं सम़न रूप से ऽलखने व़ले लेखक पंकज ऽिवेदा क़यचक्रम की ऄध्यक्षत़ की जिहदा व ऱजस्थ़ना के -म़ने कह़नाक़र फ़दनेश पंच़ल ऄबिरोड़ से डॉ फ़दनेश च़रण ईदयपिर से राऩ मेऩररय़ ने सि मं ऽवऽशि ऄऽतऽथ व प्रमिख वि़ के तौर पर ऄपना ब़त रखा ।क़यचक्रम क़ संच़लन फ़कय़ ज़नाम़ना मंच संच़ऽलक़ कऽवयिा शकिं तल़ सरूपररय़ ने ।क़यचक्रम के छ्टे व ऄंऽतम सि सम्म़न सम़रोह मं आस ब़र क़ श्रा ऽशवचंद ओझ़ स़ऽहत्य ऽशरोमऽण पिरस्क़र डॉ नन्द भरद्व़ज जा को ईनके समग्र लेखन व स़ऽहत्य सेव़ओं के ऽलए प्रद़न फ़कय़ गय़ । कल़ क्षेि क़ कल़ ऽशरोमऽण सम्म़न ऄब तक दस से ऄऽधक देशं मं व जिहदिस्त़न भर मं ऄपने कथक नुत्य की प्रस्तिता दे चिकी ग्व़ऽलयर की नुत्य़ंगऩ डॉ समाक्ष़ शम़च को प्रद़न फ़कय़ गय़ । सिधार सक्यसेऩ जा भोप़ल को ईनके समग्र लेखन, सम्प़दन व स़ऽहत्य सेव़ओं हेति देवमऽण प़ण्डेय जा बोम्बे को ईनके फ़फल्मं व ध़ऱव़ऽहकं मं गात लेखन व समग्र स़ऽहत्य सेव़ओं के ऽलए, फ़दनेश म़ला जा ईड़ास़ को ईनके द्व़ऱ फ़कये गए समग्र ऄनिव़द के ऽलए, सिरेख़ शम़च गिडग़ँव हररय़ण़ को ईनके समग्र स़ऽहत्य लेखन पंकज ऽिवेदा जा सिरेन्द्रनगर गिजऱत को जिहदा व गिजऱता मं सम़न रूप से लेखन व संप़दन, स़गर सीद जा परटय़ल़ पंज़ब ईनके समग्र स़ऽहत्य लेखन के ऽलए, मोऽनक़ गौड़जा बाक़नेर ऱजस्थ़न को ईनके समग्र स़ऽहत्य लेखन सऽहत स़त वररष्ठ स़ऽहत्यक़रं को ऽिसिगंऽध स़ऽहत्य रत्न सम्म़न प्रद़न फ़कय़ गय़ । क़यचक्रम के मिख्य ऄऽतऽथ थे डॉ बिऽिऩथ ऽमश्र व ऄध्यक्षत़ की वररष्ठ स़ऽहत्यक़र मिरलाधर वैष्णव ने। क़यचक्रम क़ संच़लन फ़कय़ कऽव ऽववेक प़राक ने ।ऄंत मं संस्थ़ ऄध्यक्ष अश़ प़ण्डेय ओझ़ ने सभा पध़रे हुवे स़ऽहत्यक़रं व ऄऽतऽथयं क़ अभ़र व्यि फ़कय़ ।

ऽवश्व ग़थ़ : ऄप्रैल-मइ-जीन -2015

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ख़त-ख़बर 'ऽवश्वग़थ़' के तत्त्व़ध़न मं 'एक ऄनज़न औरत क़ ख़त' क़ मंचन सिरंद्रनगर (गिजऱत) मं 21 जीन 2015 को हुअ ।

'ऽवश्वग़थ़' ऽहन्दा स़ऽहत्य की ऄंतरऱष्ट्राय पऽिक़ के तत्त्व़ध़न मं गिजऱत के सिरंद्रनगर शहर मं सिप्रऽसि रं गमंच की स़ऽधक़ और कल़धमी ऄसाम़ भट्ट के एकल ऩट्ड- (Solo Performance) 'एक ऄनज़न औरत क़ ख़त' - श़नद़र मंचन हुअ । आस क़यचक्रम के अयोजन मं डॉ. ऄऽश्वन गढ़वा, श्रा भ़रत जोबनपि​ि़ और श्रा पिऽनत ऱवल क़ पीणच सहयोग रह़ । आस क़यचक्रम अयोजन क़ श्रेय ईन्हं को फ़दय़ ज़त़ है । सिरंद्रनगर मं मंचन से पहले ऄसाम़ भट्ट ने ऄपने फ़दल की भ़वऩओं को फे सबिक पर आन शब्दं मं ऄऽभव्यि की था ।

'A letter from an unknown woman' (Original Film Poster) by Asima Bhatt तऩव, जिचत़ और घबऱहट... कल पीरा मं ऱत सो नहं सकी । यह स़वचभौऽमक घटऩ है। ऄऽभनेत़ मंच पर ज़ने से पहले यहा ऄनिभव करत़ है। लेफ़कन दिभ़चग्य से यह कह़ना मेरा कह़ना से लगभग ऽमलताझीलता है। मं दो गभचप़त फ़कय़ थ़। आसकी तरह प्रसव पाड़़ खेलने से जह़ं शिरू -"कल ऱत मेऱ बच्च़ मर गय़। तिम ईसे देखते तो जरुर प्य़र करते । He was like you. Same eyes, same smile....just like you." - ऄसाम़ भट्ट 'एक ऄनज़न औरत क़ ख़त' एक जमचन कथ़क़र स्टाफन ज्वंग्ज़ की लम्बा कह़ना पर अध़ररत है । ईसके ब़द आस पर कईं फ़फ़ल्मं बना। आस फ़फल्म को बेस्ट फ़फल्म क़ पिरस्क़र भा ऽमल़। कथ़स़र कि छ आस प्रक़र से है ।

एक लेखक स्टाफन ब्ऱंड जब ऽवय़ऩ छि रट्टय़ँ बात़ जब घर लौटत़ है, जावन के 41 वसंत पीरे कर चीक़ थ़ । स्टाफन ब्ऱंड जब घर लौट़ तो एक प़सचल मं वो खतं क़ पिजिलद़ प़त़ है । ये ख़त ईसे ईसकी फ़कसा मऽहल़ प्रशसंक ने भेजे होगे वो यहा सोच कर ईन्हं पड़ऩ शिरू करत़ है। ईसे ख़त एक मऽहल़ ऽलस़ ब्रॅड्स्टले ने ऽलख़ होत़ है, जो कभा ईसके घर के समाप ऄपना ऽवधव़ म़ँ के स़थ रहता होता है। वह खत मं स्वाक़र करता है फ़क ईसे एक सिसंस्कु त ऄमार लेखक से प्य़र हो गय़ थ़। ऽजस के स़थ ईसने चन्द प्रेम के क्षण ऽबत़ये थे, ईन सिन्दर ऽस्मुऽतयं को वो भील नहं प़ता ऽजस फ़दन ईसे पत़ चलत़ है वो गभचवता है वो ऽनश्चय करता है फ़क वह ईसे एक सिसंस्कु त संत़न बऩएगा, पर एक मह़म़रा के क़रण ईसकी नौकरा छी ट ज़ता है और ईसक़ बेट़ आस बाम़रा क़ ऽशक़र हो ज़त़ है, वह ऽलखता है फ़क ईसके बेटे के ब़ल भा लेखक जैसे घिंघऱले है। ऄन्त मं वो ऽलखता है - "कोइ म़ँ ऄपने बच्चे के मुत शरार के स़मने झीठ नहं बोलता है, क्ययींफ़क ये लेखक से ईत्पन्न हुइ संत़न और ईसके प्रेम क़ एक म़ि स़क्षा थ़"। लेखक खत पीऱ पढ़त़ है … ईसके ऄंदर ईस ऄनज़ने चेहरे के ऽलए प्रेम ईमड़त़ है, वो छटपट़त़ है मगर कि छ य़द नहं कर प़त़। आस मंचन से पहले हम़रे सहयोगा श्रा पिऽनत ऱवल की दो फ़कत़बं क़ लोक़पचण क़यचक्रम क़ अयोजन भा हुअ । गिजऱत स़ऽहत्य ऄक़दमा के पीवच मह़म़ि और स़ऽहत्यक़र श्रा हषचद ऽिवेदा के स़थ ऽमलकर सभा मह़निभ़वं ने दोनं फ़कत़बं क़ लोक़पचण फ़कय़ । ऽजसमं ईनकी गिजऱता-ऄंगरे जा कऽवत़ओं क़ संग्रह—Hu to Ajwala ne Vanchu (मं तो ईज़स को पढी ं) और उनके ही गिजऱता लघि ऽनबंधो क़ संग्रह है, ऽजसमं ईन्हं ने बहुत हा कोमल और म़र्षमक ऽनबंधं को सम़ऽवि करके अज की भगदड़ भरा जिज़दगा मं सिकीन की स़ँस भर दा है-Mhori rahela Palash (ऽखलते हुए पल़श) आस क़यचक्रम मं स्थ़नाय ऽवध़यक श्रामता वष़चबेन दोशा, वढव़ण नगरप़ऽलक़ ऄध्यक्ष नारुबेन पटेल, सिरंद्रनगर नगरप़ऽलक़ ब़ंधक़म सऽमऽत के चेरमेन, न्ह़ऩल़ल स़ऽहत्य सभ़ के संयोजक और कऽव श्रा वारे न्द्र अच़यच, कथ़क़र श्रा सिमंत ऱवल, श्रा ऽगराश भट्ट और ऽशक्ष़ऽवद् डॉ. मोताभ़इ पटेल ईपऽस्थत थे। 21, June 2015 को सा. यि. श़ह मेऽडकल हॉल, वढव़ण मं 450 से ऄऽधक दशचकं ने आस मंचन को Pin dropped silence गंभारत़ और धैयच से देख़ । 'एक ऄनज़न औरत क़ ख़त' के मंचन के ब़द सभ़ग़र मं ईपऽस्थत सभा सिऽधजन दशचकं ने ऄपने ऄपने स्थ़न पर खड़े होकर त़ऽलयं की गडगड़़हट और अँखं मं नमं के स़थ ऄसाम़ भट्ट की ऄऽभनय कल़-क्षमत़-समपचण के प्रऽत सम्म़न फ़दय़ । ~✽~

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ऽवश्व ग़थ़

ऽवश्वग़थ़

व़र्षषक सदस्यत़

प्रक़शन संदभच ज़नक़रा द पेपर रऽजस्रेशन ऑफ़ न्यीज़ पेपर सेन्रल रूल्स–1867 के तहत ऽवश्व ग़थ़ (ऽतम़हा) की म़ऽहता सम़च़र पि क़ ऩम सम़च़र पि की भ़ष़ प्रक़शन की ऄवऽध R.N.I. Number पऽिक़ की कीमत प्रक़शक क़ ऩम ऱष्ट्रायत़ पत़

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मिद्रक संप़दक क़ ऩम ऱष्ट्रायत़ पत़

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मिद्रण स्थ़न

प्रक़शन क़ स्थ़न

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ऽवश्व ग़थ़ ऽहन्दा ऽतम़हा GUJHIN/2013/61884 Rs. 50/पंकजभ़इ ऄमुतल़ल ऽिवेदा भ़रताय गोकि ल प़कच सोस़यटा, 80 फ़फट रोड, सिरेन्द्रनगर –363002 पंकजभ़इ ऄमुतल़ल ऽिवेदा पंकजभ़इ ऄमुतल़ल ऽिवेदा भ़रताय गोकि ल प़कच सोस़यटा, 80 फ़फट रोड, सिरेन्द्रनगर –363002 ऽनऽधरे श जिप्रटरा मेऽडकर कोम्प्लेक्यस, एवन ऑटो गेरेज के प़स, सिरंद्रनगर -गिजऱत गोकि ल प़कच सोस़यटा, 80 फ़फट रोड, सिरेन्द्रनगर –363002

(िैम़ऽसक मिफ़द्रत पऽिक़)

व़र्षषक सदस्यत़ : 220/- रुपये 5-वषच : 1000/- रुपये ( ड़क खचच सऽहत) ✽

'नव्य़ पब्लऱकेशन' के ऩम के ऄक़ईं ट मं हा ऽडम़ंड ड्ऱफ्ट य़ साधे ऑनल़इन भा जम़ कर सकते हं Online payment : ICICI BANK BRANCH :

Code - :

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SURENDRANAGAR—Gujarat CUSTOMER ID : 528924887 A/c. NO. 045305500131 Internet Banking Corporate ID : 528924887 ✽

नव्य़ पऽब्लके शन C/o. पंकज ऽिवेदा गोकि लप़कच सोस़यटा, 80 फीट रोड, सिरंद्रनगर– 363 002 गिजऱत

Mobile : 09662514007 ✽

vishwagatha@gmail.com ✽

क्यय़ अप ऄपना व्य़वस़ऽयक ऽवज्ञ़पन आस स़ऽहऽत्यक

'ऽवश्व ग़थ़' मं सभा स़ऽहत्यक़रं क़ स्व़गत है। अप ऄपना मौऽलक रचऩएँ हा भेज,ं स़थ मं ऄपऩ ऽचि और पररचय भा। रचऩएँ भेजने से पहले पीवच ऄंकं क़ ऄवलोकन जरूर करं । /प्रक़ऽशत रचऩओं के ऽवच़रं क़ पीणच ईत्तरद़ऽयत्व लेखक पर होग़। / ऽवव़फ़दत य़ ऄन्य स़मग्रा चयन ऄऽधक़र संप़दक क़ होग़। / प्रक़ऽशत रचऩओं पर कोइ प़ररश्रऽमक भिगत़न नहं होग़। / पऽिक़ मं प्रक़ऽशत स़मग्रा रचऩक़रं के ऽनजा ऽवच़र हं। संप़दक मंडल-प्रक़शक क़ ईनसे सहमत होऩ ऄऽनव़यच नहं है।

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