खुली जगह की तलाश... बच्चो के मन मे खेलने की आस बेर्ु ट रिसचु सु: १. आिती सहानी २. अर्साना शेख़ ३. ज्ञान ससिंह यादव ४. हिजीत ससिंह िाजपत ू ५. सय्यद हु मेिा ६. खुशबू शेख़ ७. लवीना डी’ससल्वा ८. नीतू गुप्ता ९. पज ू ा जरुपसत १०. साइनाथ मेदाि ११. सासजदा खातन ू १२. सवनोद कनोसजया यथ ू लीडसु एस चेंजमेकसु र्ेलोसशप (२०१५-२०१६)
अनुक्रमासिका क्रमािंक १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६.
सवषय आभाि प्रस्तावना सासहत्य की समीक्षा सिंशोधन पद्धसत सिंशोधन की जगह सवश्ले षि बदलते हु ए खेलने की प्रसक्रया बच्चो को खेलते समय कसिनाइयााँ लड़सकयों के जीवन में खेल खेलने की जगह को लेकि अपेक्षा सनष्कषु सुझाव ग्रुप प्रसक्रया हमािा सफ़ि ग्रन्थ सच ू ी Appendix
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पष्ठ ृ क्रमािंक २ ३ ५ ९ १२ १६ १७ २४ ३२ ३७ ४० ४२ ४३ ५१ ५७ ५९
आभाि Thank you, gracias, merci, do-jeh यह सब अलग अलग भाषाओिं में धन्यवाद या सर्ि आभाि व्यक्त किने के शब्द है । पििं तु इन सब शब्दों के प्रयोग से हम उनके सकये गए उपकाि नहीं चक ू ा सकते । पि सर्ि भी हम इस सकए गए सिंशोधन का श्रेय औि तहे मन से शुसक्रया उन सभी को किना चाहते है जो हमािे सवषय से जुड़े िहे । पहले तोह हमािे ग्रुप से जुड़े सदस्य जो की अफ़साना, आिती, हिजीत, हु मिै ा, लवीना, खुसब,ू सवनोद, साईनाथ, ज्ञान, सासजदा, नीतू औि पज ू ा है, सजसके सबना यह रिसचु कायु पिू ा नहीं हो पाता था। हम उनका तहे सदल से धन्यवाद किते है। सर्ि हम पुकाि की टीम औि यथ ू र्ेल्लोस का धन्यवाद किते है। यह लोग हमािे मागु दशु क शुभसचिंतक औि इससे भी बढ़कि सच्चे समत्र िहे है। उन्होंने हमािी बहु त सहायता की । Gunvati J. Kapoor Foundation के सिंयोग के सबना यह कायु अधिू ा िह जाता क्योंसक सजस प्रकाि साधन के सबना उत्पादन नहीं हो सकता वैसे ही जी.जे.के.एर् funding के सबना हमािा यह सिंशोधन पिू ा नहीं हो सकता था । इसके साथ ही हम अपने कॉलेज गुरु नानक खालसा महासवद्यालय को तेह सदल से धन्यवाद किते है। क्योंसक यह ही वह सबसे बड़ा मिंच है सजसके कािि हमे यथ ू लीडसु एस चेंज मे कसु नामक इस बेहतिीन सफ़ि के साथ जड़ ु ने का मौका समला । हमािा सबसे बड़ा आभाि हम उन्हें व्यक्त किना चाहते है सजन्होंने हमािे सिंशोधन कायु की नीव स्थासपत की | वे है इिंसदिा नगि औि बिंगाली पिू ा मे िहने वाले िहवासी, बच्चे औि नगि NGO की ट्रस्टी, नयना कािपासलया, सजनके सबना हमािा सिंशोधन नामुमसकन था | औि last but not the least हम हमािे परिवाि का भी धन्यवाद किना चाहते है सजन्होंने इस पिु े साल भि की प्रसक्रया में हमािा साथ सदया |
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प्रस्तावना “खुली जगह की तलाश... बच्चो के मन मे खेलने की आस” यह पढ़कि आपको क्या लगता है; क्या बच्चों की खेलने सक रूसच कम होने के वजह से वे अभी नहीं खेलते है ? या न खेलने का कािि यह है सक खेलने की जगह ही नहीं समल िही ? या सर्ि उनके पास खेलने का समय ही नहीं है? कुछ हद तक यह सब चीज़े सच हो सकती है | मनष्ु य के जीवन मे खेल एक ऐसी चीज़ है, सजससे मजा भी आता है औि वो इिंसान की मानससक, शािीरिक तथा आसत्मक सस्थसत को सनयिंसत्रत िखता है | मनुष्य को जो पाि सशक्षा नहीं ससखा पाती वह खेल का मैदान ससखा दे ता है | जैसे खेल खेलते समय अनुशासन मे िहना, हाि-जीत से समली असर्लता से हमें आगे बढ़ने का आत्मसवशवास समलता है| खेल आलसीपन को भी दूि भगाता है औि उसके वजह से बच्चे चुस्त-दुरुस्त िहते है | वैसे तो कहा जाता है सक “बच्चे है तो खेलेंगे ही” पि क्या हमने कभी उन बच्चो पि गौि सकया है जो खेलना चाहे , सर्ि भी नहीं खेल पाते? यह जानने के सलए हम आपको अपने ही ग्रुप के कुछ सदस्यों के अनभ ु वो से परिसचत किवाना चाहते है; जहािं एक सदस्य को घि के अलावा कहीं खेलने की जगह नहीं थी वहीं दूसिी तिर् एक सदस्य अच्छी-बड़ी जगह मे खेल-कूदकि बड़ी हु ई है; लेसकन अब कई काििों के वजह से वह जगह नहीं िही | ऐसी ही कुछ बातों ने हमे इस सवषय पि सोचने के सलए मजबिू कि सदया | औि हमें यह जानने की उत्सुकता हु ई सक आज के बच्चे कहााँ खेलते है, क्या खेलते है औि कैसे खेलते है? हमािे सिंशोधन के सलए हमने ५ उद्दे श्य तय सकए हैं | 1. हम जानना चाहते है सक खल ु ी जगहों पि सकसका असधकाि है? 2. खुली जगह कम होने के क्या कािि है? 3. खुली जगहो के कम होने से बच्चे कहााँ खेलते है? 4. जगह की कमी के कािि बच्चे कौन-कौन से खेल खेलते है? 5. खुली जगहों को लेकि बच्चों की क्या अपेक्षाए है? इन सब सवषयों को ध्यान में िखते हु ए हम अपने सिंशोधन की जगह तलाश किने के सलए सनकले | पहला सनिु य तो आसान था, हमने थाम सलया सक हम मिंुबई में ही रिसचु किें गे | वैसे तो मिंुबई, यह शहि का नाम सुनते ही हमािे सामने ऊाँची मिंसजलो वाली इमािते, सर्ल्मससटी, अच्छा िहन-सहन, यह दृश्य आता है | इन्ही चीजों के वजह से आज मुिंबई में खुली जगह की कमी एक चचाु का सवषय बनी हु ए है | आज मुिंबई मे ससर्ु ६ प्रसतशत खुली जगह बची हु ई है औि उसकी दे ख-िे ख के सलए भी कायु वाही चल िही है | 3
हमािा सिंशोधन मुिंबई शहि के दो इलाकों मे सकया गया है | यह दोनों इलाके शहि के ऍफ़-नाथु वाडु में आते है | हमािे पहला एरिया इिंसदिानगि है, जो की धािावी के ६० र्ीट िोड के पास बसा हु आ है | ये एक residential एरिया है, सजसमे सबसल्डिं ग्स औि झोपड़पट्टी दोनों होने के कािि हमने यह जानना चाहा सक ऐसी जगह पि बच्चे कहााँ औि कैसे खेलते है | यहााँ की झोपड़पट्टी मे असधकति कुिंसचकोवे जाती के लोग िहते है, इससलए इसे कुिंसचकोवे समाज भी कहा जाता है | इतने पास होते हु ए भी इन जगहों के खेल में हमे अिंति नज़ि आई | जैस की कुिंसचकोवे समाज के लोगों को िोड पि खेलना पड़ता है क्योसक उनके पास औि कोई खेलने की जगह नहीं है; वही पि सबसल्डिं ग्स के बच्चो के पास जगह होते हु ए भी वह floor पि ही खेलते है क्योंसक जो भी जगह खाली है वहािं पि पासकिंग होती है | इन्ही कुछ बातो के कािि हमें इस इलाके के बािे मे औि जानने की उत्सुकता हु ई | हमािा दस ू िा एरिया बिंगालीपिु ा है, जो सक वडाला मे सस्थत है | वहािं ज्यादाति बिंगाली मुसस्लम िहते है | यह बस्ती बॉम्बे पोटु ट्रस्ट (BPT) के ज़मीन पि बसी हु ई है, जो की िे ल्वे के पास पड़ता है | पटिी के सकनािे ही बिंगालीपुिा के घि शुरू होते है | लोगों को दफ्ति जाना हो या बच्चो को स्कूल, उनको पटिी पि से गुजिना ही पड़ता है | बच्चे भी बहु त बाि पटिी पि खेलते पाए जाते हैं | इन जैसे खेलो की प्रसक्रया औि उनके पीछे के कािि हमािे इस सिंशोधन में स्पष्ट सकये जाएाँ गे |
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सासहत्य की समीक्षा मिंुबई शहि अपने आप में ही एक ििं गों से भिा इन्रधनुष है, सजसकी आबादी बढती जा िही है औि साथ में ज़मीन की कीमत भी बढती जा िही है | धीिे धीिे से शहि में जगह की कमी है कम होती जा िही है | आधारिक तौि पि मुिंबई में हि इिंसानों के सलए ससर्ु २ sq. m. से भी कम खुली जगह है (ततके, २०१२) | ऐसा ही कुछ हमािे आस पास के एरिया में भी हो िहा है | औि इस हद तक की बच्चो के पास खेलने तक की जगह नहीं बची है | इसके पीछे की वजह क्या है औि इससे उन बच्चों के जीवन पि क्या असि हो िहा है, यह जानकािी हमें हाससल किनी थी | इस सवषय पि लोगों से बात किने से पहे ल हमने कुछ news articles औि research papers पढ़े | साथ ही में इस सवषय पि काम किनेवाले कुछ लोगों से बात भी की | तब हमे पता चला सक वाकही में मुिंबई में भी खुली जगह कम होती जा िही है | Times of India अकबाि में १९ जनविी २०१२ को प्रकासशत एक आसटु कल, “Shrinking Spaces Leaves Mumbai Gasping” (ततके, २०१२), में कहा गया है सक जब मुिंबई की तुलना इस देश के दुसिे सवकससत शहिो से की जाए तो यह पता चलता है सक मुिंबई में खुली जगह घटती जा िही है औि public playground नामक जगह बची ही नहीं है | इसी मुद्दे पि जब हमने नयना किपासलया, जो की ओपन स्पेस एसक्टसवस्ट है (Co-convenor of CitiSpace), से बात सकया तब उनका कहना था सक “They (open spaces) are encroached upon or used for other purpose” | इससे पता चलता है सक शहि में खुली जगहों पि गैि क़ानन ू ी तिीके से कब्ज़ा किके लोग उसका अन्य चीजों के सलए इस्तमाल कि िहे है | यह बात सकस हद्द तक सही है औि इस सब के सपछे की वजह जानना भी जरुिी लग िहा था | इससलए आगे बढ़ने से पहले हमे ज़रूिी लगा सक हम जाने सक सिकाि ने इन जगहों को सम्भालने के क्या कदम उिाये है | तब हम जाने सक १९९१ से पहले खुली जगहों के दे खभाल BMC की सजम्मेदािी थी, पि १९९१ में DCR (डे वलपमें ट कण्ट्ट्रोल िे गल ु ेशन) द्वािा पता चला सक BMC के पास उतने पैसे नहीं थे की वे खुली जगहों को maintain कि सके | इससलए उन्होंने ओपन स्पेस पासलसी लाग ू की, सजसे लोग caretaker policy
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भी कहते है | इसके अनुसाि जो खुली जगहों को प्राइवेट सिंस्थाए दे ख-िे ख के सलए adopt कि सकती थी | पििं तु दे ख िे ख के साथ साथ उनको उस जगह के १५% ज़मीन पि gym/club बााँधने का असधकाि भी सदया गया था (सप्रओलकि, २०१६) | पििं तु २००७ में आम जनता ने यह मुद्दा उिाया, क्योंसक उनके मुतासबक़ उन प्राइवेट सिंस्थाओिं ने पासलसी का दुरूपयोग किते हु ए अपने बहु त र्ायदे सलए | उन लोगो ने जो प्राइवेट सनमाु ि सकया वह ज़मीन पि, उन पि उन्होंने कई सािी पाबिंदी भी लगाये थे | कई गाडु न में entry fees लगा सदए थे, सजसके कािि कम income श्रेिी के लोगो औि उनके बच्चे को उन जगह पि जाना मुसश्कल हो जाता है | सकसी सकसी जगह पि समय की भी पाबन्दी लगा दी गयी | इन जगह के दुरूपयोग का एक औि उदाहिि है सजसके बािे में बताते हु ए मुिंबई शहि की एक ऐसतहससकाि, शािदा सद्ववेदी, कहती है सक सबल्डसु औि नेताओ की समलीभगत का भी इन खल ु ी जगहों के हडपे जाने मै एक बड़ा योगदान िहा है (ततके, २०१२) | इसके अलावा औि भी कािि होंगे सजनसे खुली जगहे घट िही है; उनको भी जानना हमे जरुिी लगा | लोगों की नाखश ु ी दे खकि सिकाि ने २००७ में ही caretaker policy वापस सलया था (बासलगा, २०१०) | आि साल तक इन जगहों पि कोई सनयम नहीं थी, सर्ि २०१५ में New Open Space Policy लागु की गए थी सजसमे आम नागरिक को ज़्यादा महत्वपि ू ु ता प्रधान की गई है, ना की सकसी डे वलपि को (सप्रओलकि, २०१६)| लेसकन मुिंबई शहि में बहु त कम जगहें होंगी सजसमे खुले मैदान या पाक्सु सदखते है | इसी सवषय पि बात किते हु ए मुिंबई की Architect, Mukta Naik (२०१३) ने कहा सक जब भी शहि का सनयोजन होता है तब पाक्सु को ध्यान में िखकि सकया जाता है, पििं तु आम तौि पि यह पाक्सु ज्यादा किके शहि के सवकससत भागों में ही होते है | इसके कािि मुिंबई शहि में सजन भागों में ज्यादा जनसिंख्या िहती है, जैसे झोपड़पट्टी औि slums, पि यह सुसवधा नहीं होती | इससलए हमे ज़रूिी लगा की मुिंबई शहि की इन्ही भागों में बच्चों के खेल की प्रसक्रया औि खेलने की जगहों पि रिसचु ज़रूिी था | औि ढूाँढने पि हमें एक सिंशोधन समला सजसके अनुसाि गिीब गिीब क्षेत्रो में parks,
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gardens की सुसवधा औि खल ु ी जगह नहीं होने पि वहािं के बच्चों के खेल कम हो िहे है, सजससे उनके सेहत पि असि पड़ िहा है | ‘Building Evidence to prevent Childhood Obesity and Support Active Communities’, अम्रीका में की गयी एक सिंशोधन, के द्वािा पता चलता सक असवकससत क्षेत्रो में िहने वाले बच्चो को खेलने के सलए उतनी जगह उपलब्ध नहीं हो पाती सजसके कािि वे ज्यादा खेल नहीं पाते | उनके रिसचु में वे इसको मुख्य दज़ाु दे ते है सजसके वजह से बच्चो के शािीरिक औि मानससक सवकास पि असि होता है | वहािं उन्होंने न खेलने औि मोटापा का रिश्ता बताया है (Active Living Research, २०११)| पििं तु मिंुबई में शायद यह इतना उपयक्त ु नहीं होगा क्योंसक शहि के असवकससत भागों में में कार्ी बच्चे कुपोसषत भी है | साथ ही में इस शहि में बच्चे खेलने की जगह न समलने पि वे अपना ही जगह बना लेते है | इससलए पाकुस या गाडु न का न होने या दिू होने पि बच्चे खेलना बिंद नहीं कि दे ते है | वे अपने सलए कोई न कोई पयाु य ढूाँढ ही लेते है | Lorne Platt (२०१२) के आसटु कल ‘Parks are dangerous and the sidewalk is closer: Children’s use of neighbourhood space in Milwaukee, Wisconsin’ मे वे कहती है सक वहािं पि बच्चे दूि कही गाडु न पाकु नहीं जा पाते क्योंसक उनको अपहिि का डि िहता है | उनके अध्ययन में बहु त बच्चो ने बताया सक उन्हें सकसी बड़े के सबना पाकु या गाडु न जाने से सहचसकचाहट होती है | ज़्यादाति बच्चे अपने घि के गसलयों, िोड पि खेलते है औि वे उस जगह से सिंतुष्ट है | हमािे रिसचु का एक उद्दे श्य इससे जड़ ु कि बना, सजसमे हम बच्चों के खेलने से दुिी औि सुिसक्षतता का रिश्ता समझना चाहते थे | हमे यह भी जानना था, सक इन काििों के वजह से जैसे अम्रीका में बच्चे sidewalks पि खेलते थे, वैसे ही मुिंबई शहि में बच्चे कहााँ कहााँ पि अपने खेलने की जगह बना लेते थे | अब तक हमने दे खा कैसे जगह की कमी होने की कािि बच्चों के खेल पि असि होता है | लेसकन इन सब आसटु कल्स में कहीं ने कहीं लड़सकयों की आवाज़ खो गयी है | इससलए हमे यह भी जानना जरूिी लगा सक शहि में बदलाव के वजह से उनकी खेल क्या रूप लेता है | ऐसा ही कुछ हमें Annette Harth (२००४) के लेख से समला, वे कहती है सक टकी में १०-१२ साल के बाद लडसकयों पि पाबिंसदयााँ लगा दी जाती है | मााँ बाप के इस िोक- टोक का पीछे एक कािि है सक वे उस जगह को असुिसक्षत मानते है | वहािं
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की लडसकयााँ उस जगह में आज़ाद महसस ू किती है जब वे अपने उम्र के लडसकयों के साथ खेलती है | िीक उस ही तिह हमे एक दस ू िा आसटु कल जो की पासकस्तान का था समला. ‘Urban Open Spaces for Adolescent Girls: An Assessment for Islamabad and Rawalpindi, Pakistan’ में क़ुतब ु औि अिंजम ु (२०१५) कहती है सक “She may be required to stay close to house out of the public eyes , and her opportunities in life may be constrained than before.” इसमे बताया है सक जैसे जैसे लडसकयााँ बड़ी होती औि उनके शिीि में बदलाव आने लगती है वैसे उनके जीवन में बिंसदशें आनी लगती | इसीसलए एक उम्र के बाद मााँ बाप औि समाज लडसकयों से यह अपेक्षा किता है की वे घि में ही िहे बाहि न जाए | घि पि िखते हु ए वे उनको घिे लु काि में लगा दे ते है | इससे हमें पता चला सक न ससर्ु जगह की कमी बसल्क आज-ू बाज ू का माहौल, सलिंग औि समाज भी लडसकयों के खेल से जड ु ी हु ई है | पििं तु, ये हाल तो बाहि देशों की थी, इससलए हम अपने रिसचु से जानना चाहते है सक क्या मुिंबई में भी यही हाल है? इससलए हमने मुिंबई शहि में बच्चो की खेलने की जगह, उन्हें खेलते वक़्त पिे शासनया औि लडसकयों के खेल का क्या हाल है, यह हमािे मुख्य उद्दे श्य बने |
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सिंशोधन पद्धती बहु त बाि हमािे मन में कुछ सवाल होते है, कुछ चीज़ों को औि किीब से जानने की सजज्ञासा होती है | यही पि रिसचु की शुरुआत होती है | हमािे आस पास के एरिया में हो िहे जगहों के सनजीकिि में हमने बच्चो के सलए घटती खुली जगहों पि रिसचु किना महत्वपि ू ु समझा | हमने दे खा सक खुली जगह के बािे में न्यज़ ू में बहु त चचाु में चल िही थी, इस तिह हमािा टॉसपक आया: “ खल ु ी जगह की तलाश... बच्चो के मन में खेलने की आस ” इस मुद्दे पि हमािे कुछ सवाल थे, जो हमािे रिसचु को मागु दे ने में मददगाि: . हम जानना चाहते थे की खुली जगहों पि सकसका असधकाि है ? . हम जानना चाहते थे की खुली जगह कम होने का क्या कािि है ? . खुली जगह के कम होने से बच्चे कहा खेलते है ? . खुली जगहों को लेकि बच्चो की क्या अपेक्षाए क्या है ? ये उद्दे श्य हमािे रिसचु के शुरुआत में तय सकये हु ए थे | पििं तु रिसचु के दौिान, हम कुछ चीज़ों के जवाब शायद ढूिंढ न पाए, औि सर्ि कुछ नयी चीज़े थी सजनको समझना ज़रूिी लगा | जैसे सक लड़सकयों के जीवन मे खेल, यह हमािे उद्दे श्य मे जबसक शासमल नहीं था, पिन्तु लोगों से बात किते समय यह चीज़ बहु त बाि सुनने में आई | इससलए हमने लड़सकयों के सलए एक अलग theme बनाया है | इन्ही सवालों के जवाब जानने के सलए हमने दो जगह चन ु े एक वडाला औि दस ू िा मासहम | शुरुआत में हमािे यह दो जगहे चुनने के पीछे कािि था सक हमािे ज्यादा ग्रुप मे म्बेसु वडाला औि मासहम में िहते है | वडाला में हमने बिंगासलपुिा बस्ती औि मासहम में इिंसदिा नगि चुना है | दोनों जबसक मुिंबई शहि के एक ही F NORTH वाडु में आता है, पि उनकी सिंिचना एक समान नहीं है | बिंगालीपुिा सक पिू ी बस्ती पटिी के पास बसी हु ई है | इिंसदिा नगि में झोपड़पट्टी औि बड़ी इमाितें आमने सामने है, तो हमे देखना था सक क्या दोनों जगहों में खेल एक समान होता है | वहााँ हम िोज़ जाने लगे ताकी वहािं के लोगों के साथ हमािा अच्छा रिश्ता बने | जान-पहचान होने के बाद हमने सनिु य सलया सक हम उन जगहों के बच्चों औि उनके पेिेंट्स से बात किें गे | अिंत में २९ बच्चें औि २५ पेिेंट्स ने हमािे रिसचु प्रसक्रया में भाग सलया था |
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Total Participants (55)
बंगालिपरु ा
माता-पपता मदििा (१०)
परु ु ष (१)
टोटि= ११
इंदिरानगर
माता-पपता
बच्चे िड़के
मदििा (११)
(६)
िडककया
पुरुष (३)
(७)
टोटि =१४
टोटि=१३
बच्चे िड़के (८) िडककया (९)
टोटि =१७
हमने बच्चों का अध्ययन लेते समय सलिंग में भेदभाव नहीं सकया; लड़के औि लडसकयों को समान िखा है | पििं तु पेिेंट्स के सदनचयाु के वजह से जब भी हम वहााँ पहु िंचे, तो ज़्यादाति माओिं से समले | आगे बढ़ते हु ए हमें यह सनिु य लेना था सक हम कौनसे रिसचु tools का इस्तमाल किें गे | हमािा यह लक्ष्य था की हम गुिात्मक शोध किें , क्योंसक हम सिंशोधन के द्वािा कम होती जगहों को लेकि बच्चो पि हो िहे शािीरिक औि मानससक बदलावों को दशाु ना चाहते थे यह ससर्ु गुिात्मक सहोद से ही मुमसकन थी न की सिंखाय्त्मक सहोद के द्वािा | इसीसलए हमने हमािे रिसचु प्रसक्रया में तीन tool अपनाए, जो थे Interview, Focus Group Discussion (FGD) औि Community Photography | इिंटिव्य ू की इस प्रसक्रया में दो व्यसक्त के बीच में बातचीत होती है | सजसमे एक व्यसक्त प्रश्नकताु की भसू मका सनभाता है औि दूसिा व्यसक्त उन सवालों के उत्ति देता है | हमने पेिेंट्स से इिंटिव्य ू लेना बेहति समझा क्योंसक उस जगह के बािे में सवस्ताि से जानकािी हमे पेिेंट्स से समल सकती थी औि पेिेंट्स अपने बच्चो 10
को औि उनके कसिनाईयों को अच्छे से जानते है | इसीसलए हमने इिंसदिा नगि में १४ पेिेंट्स औि बिंगासलपुिा से ११ पेिेंट्स का इिंटिव्य ू सलया | हमािे रिसचु की दस ू िी प्रसक्रया Focus Group Discussion (FGD) है; इसका मतलब समहू चचाु है | इस प्रसक्रया में ८ से १२ व्यसक्त भाग लेते है; रिसचु से जड़ ु े सवाल उन्हें रिसचु टीम से एक मे म्बि पछ ू ता िहता है | हमें बच्चों के सवचाि जानने थे औि बच्चे शायद अकेले में डि सकते है पि एक दुसिे के सामने आसानी से खुलके बात किते है; इससलए हमने इस प्रसक्रया का इस्तेमाल सकया | इसमें हमने drawing tool का उपयोग सकया सजसमे पहले हमने बच्चों से उनके खेलने की जगह का सचत्र बनाने को कहा, औि सर्ि बाद में उनके सपनो के खेलने की जगह का सचत्र बनाने को कहा | सचत्रों पि आधारित बातचीत से FGD अपना रूप लेते गया | हमने इिंसदिा नगि में दो अलग समहू चचे सकये; सजसमे एक में लड़के (८) औि दुसिे में लड़सकयााँ (९) थी | बिंगासलपिु ा में एक FGD हु आ सजसमे लड़के औि लडसकयों को समलाकि १३ बच्चे थे | हमने बिंगासलपुिा के बच्चो के साथ Community Photography भी सकया | यह एक नया तिीका था, सजससे हमे लगा सक हम बच्चों के नजरिया से उनके खेलने की जगह के बािे में जान सकते थे | इस प्रसक्रया में बच्चो ने खद ु से उनके खेलने की जगह के photo खीचे | कहााँ खेलते है , कौन–कौन से खेल खेलते है औि खेलते समय क्या कसिनाई होती है; इन तीन सवालों को लेकि हमने बच्चो से बातचीत की सजसका जवाब हमे उनके खीचे गए photo से समला | बिंगासलपुिा एरिया में Community Photography में ७ लड़कों ने भाग सलया | इस रिपोटु में कुछ photos ऐसे है जो इस प्रसक्रया से आये है | पिू े रिसचु community में ethics बहु त ज़रूिी माने जाते है | इनसे रिसचु में भाग लेने वालों का सुिक्षा को ध्यान में िखते हु ए पिू ा प्रसक्रया सुसनसित सकया जाता सजससे उन्हें हासन न पहु िंचे | Research Ethics को ध्यान में िखते हु ए हमने इिंटिव्य ू या FGD शुरू किने से पहले पेिेंट्स से समय तथा अनुमती ली | इिंटिव्य ू की शुरुवात में हमने उन्हें सहमसत पत्र सदया सजस में सिंस्था, रिसचु टीम औि हमािे सवषय के बािे में पिू ी जानकािी दी गयी है | उसमे यह भी गाििं टी दी गयी थी सक उनकी पहचान गुप्त िखी जायेगी | इसी के साथ समहू चचाु किते समय बच्चों के माता सपता से इजाज़त ली क्योंसक बच्चे १८ साल से कम उम्र के थे |
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सिंशोधन की जगह १. बिंगालीपुिा
हमने सिंशोधन के सलए दो जगह चुने है; उनमे से एक जगह बिंगासलपुिा है सजसे लोग सकस्मत नगि भी कहते है | बिंगासलपुिा वडाला में पड़ता है जो मुिंबई के F(North) वाडु में आता है | बिंगासलपुिा से दो स्टेशन नजदीक है, एक वडाला िोड औि दस ू िा सकिंग सकुल, जो सक बस्ती से लगभग एक सकलोमीटि के दुिी पि है | बिंगासलपुिा जगह पोट ट्रस्ट के ज़मीन पि बसी हु ई है | वहािं ज्यादा किके बिंगाली मुसस्लम िहते है, औि कुछ महािाष्ट्रेंस औि साउथ इसन्दिंस भी िहते है | पटिी के पास होने के कािि िे लगाड़ी घि के पास से गुज़िती है | यह जगह घिो से भिी हु ई है , सजसके वजह से बच्चों के सलए खेलने की जगह कम है | पहले की बिंगासलपुिा अभी के बिंगासलपुिा से बहु त अलग था | वहािं पहले खुली जगह में बहु त खेती हु आ किती थी | बच्चे वहािं खुशी से बड़ी जगह पि खेलते थे | पििं तू २० साल पहले ज़रूित पड़ने पि िे लवे का सिज बााँधा गया, सजससे जगह कम हो गयी | उसके बाद सवकास के अलग अलग projects में खल ु ी जगह कम होती गयी, औि वहािं आज बच्चों के सलए खेलने के सलए जगह कम ही बची है | आज के सदन में बच्चे पटिी औि घि के पास की गसलयो में खेलते है | इन जगहों पि खेलने की वजह से माता-सपता को सुिक्षा 12
की सचिंता होती है | साथ में इन जगहों पि कचिा र्ै ला हु आ है | सजसकी वजह से उनकी सेहत पि असि पड़ता है | वहािं पि एक छोटी सी जगह है सजसे लोग ‘केसबन’ कहते है | केसबन यह नाम सुनते ही हमें ऐसा लगा सक कोई इलेसक्ट्रक बॉक्स या ऑसर्स से कुछ जड ु ा होगा | पिन्तु हमें जानकािी समली है की यह जगह िे लवे की है औि यहााँ पि पहले िे लवे वाले टूटी पटिी औि लोखिंड का सामान िखते थे | लेसकन अब उन्होंने अपना सािा सामान सशफ्ट कि सदया औि यह जगह का इस्तमाल नहीं होता है | इसी केसबन में बच्चे कई प्रकाि के खेल खेलते है | खेलते समय जब बॉल दिू जाता तो पटिी के सामने होने के कािि डि लगता है |
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२. इिंसदिा नगि
इिंसदिा नगि मासहम में आता है । बिंगासलपिु ा के जैसे, यह बस्ती भी F(N) वाडु में आती है | इिंसदिा नगि के सामने ही ६० फ़ीट िोड जाता है । इिंसदिा नगि के सबसे नज़दीक मासहम स्टेशन है, जो लगबग एक सकलोमीटि दूि है । वह म्हाडा के ज़मीन पि बसा हु आ है । वहािं ज्यादा मुसस्लम औि कोसचकोवे समाज के लोग िहते है, इससलए इसके एक सहस्सा को कोसचकोवे नगि कहते है औि दुसिे भाग को मुसस्लम नगि | दोनों को जोड़ते हु ए एक गल्ली जाती है, गली के एक तिर् किंु सचकोवे नगि है उसके सामने एक गसनबन सबसल्डिं ग है सजसमे मुसस्लम लोग िहते है औि गली के दूसिी तिर् झोपड़पट्टी है सजसे मुसस्लम नगि कहते है। कोंचकोवे नगि में झोपड़पट्टी जैसे घि है । वहािं छोटे छोटे घि है । वहा लोगो ने घि बढ़ा-बढ़ाकि इससलए गासलया भी छोटी हो गयी है । इिंसदिा नगि के औिते औि पुरुष ज्यादा किके सर्ाई कमु चािी है । घिों के बहाि थोड़ी सी जगह है जहााँ औिते झाड़ू बनाते है । वहााँ के कुछ औिते दस ू िी जगह भी जाकि बतु न औि झाड़ू बेचते है । अभी का इिंसदिा नगि 60 साल पहले के इिंसदिा नगि से बहु त अलग है । पहले वहा खाड़ी थी, पिू ा दल-दल के तिह था । लोग कहते है सक कीचड़ घुटनो तक आता था ।सर्ि लोगों ने जगह घेि सलया; उनके जगह घेिने का भी एक तिीका हु आ किता था सजसमे वह एक जगह पि मुगी िखते औि वह जगह उसकी हो गयी । 14
लोग कहते है की पहले वहािं इतनी खुली जगह थी सक खड़े िहकि सायन सदखता था । पिन्तु हाल ही में यह जगह redevelopment के सलए गयी है । लोगों ने बताया सक वहा जो सबसल्डिं ग है उसके पीछे ग्राउिं ड बनाने वाले थे पि अब वह ग्राउिं ड न बनाकि सबसल्डिं ग बना िहे है । यह जगह छोटा औि सभड भिा है । वह जगह पि गिंदगी है । वहा पि थोड़ी खुली जगह है, पि वहा सब पीने वाले लोग बैिते है, गाड़ी पाकु होते है, इ इसमे बताया है की लडसकयों के जीवन में मुसश्कलें शुरू हो जाती है जैसे जैसे वे बड़ी होती है उनका शािीरिक सवकास होता है इसीसलए मााँ बाप औि समाज लडसकयों से यह अपेक्षा किता है की वे घि में ही िहे बाहि इससलए सबसल्डिं ग के बच्चे भी खेलने के सलए बाहि नहीं आते है । कुछ बच्चे सबसल्डिं ग के बिाम्दें में, िोड पि खेलते है औि गसल्लयों में औि इिंसदिा नगि के गेट के पास भी खेलते है ।
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सवश्ले षि डाटा का सवशलेषि किते समय हम चाि मुख्य सवषयों पि पहु िंचे | इन सवषयों को हमने नीचे थोडा सवस्ताि से उल्लेख सकया है | १. हमािा पहला सवषय “बदलते हु ए खेलने की प्रसक्रया” है, क्योंसक हम जानना चाहते थे की पहे ले औि अभी के खेल में क्या बदलाव आया है| इसके सलए हमने पेिेंट्स औि बच्चो से खेलने की जगह की उपलब्धी, जगह की दुिी औि अनेक प्रकाि के खेल के बािे में मालम ू ात ली | इनकी तुलना किने पि हमको “बदलते हु ए खेलने की प्रसक्रया”के बािे में पता चला | इसके अलावा उनके सलए खेल सकतना महत्त्व िखता है, वह भी जानना चाहा | २. खेल में बदलाव के साथ साथ, बच्चो के खेलने की जगह में भी बदलाव आ िहा है सजसकी वजह से आज बच्चो को कई कसिनाइयों का सामना किना पड़ िहा है | इसीसलए हमािा दूसिा सवषय है “बच्चो को खेलते समय कसिनाईयािं” | इसमे जगह का िखिखाव, जगह का अलग अलग चीजों के सलए इस्तमाल, खतिों से भिी जगह औि खिाब माहोल को लेकि बच्चो को खेलते समय हु ई कसिनाईयों के बािे में हमें मालुम हु आ” | ३. ऊपि के दो सवषय ज्यादा किके लडको के खेल पि आधारित है, लेसकन सवश्ले षि किने के बाद पता चला की लडसकयािं ज्यादा नहीं खेलती | इसके वजहसे हमािा तीसिा सवषय है “लड़सकयों के जीवन में खेल” | इनमे शासमल है उनके खेलने की जगह, उमु , रुकावट औि सुिक्षा; इन सब बातों को इस सवषय में गौि सकया गया है| ४. बच्चो के खेलते समय कसिनाइयों को ध्यान में िखकि हमने बच्चो औि पेिेंट्स से पछ ू ा “आपके सपनो की खेलने की जगह कैसी होनी चासहए?”, तब उन्होंने हमािे सामने अपनी अपेक्षाएाँ िखी | इन सबकी वजह से हमािा चौथा औि असखिी सवषय “खेलने की जगह को लेकि अपेक्षा” है |
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बदलते हु ए खेलने की प्रसक्रया हम ऐसे सनििं ति, बदलते हु ए दौि मे जी िहे है; जैसे आधुसनक युग में बदलता हु आ सनमाु ि, आसमान में उड़ता हु आ सवमान, पटरियों पि चलती िे ल औि बच्चो के बदलते हु ए खेल | यह बदलते हु ए दौि मे बाकी सब चीज़ों के साथ-साथ खेलने की प्रसक्रया में भी बदलाव आ िहा है | खेल के मैदान में पहले की सजिंदगी कुछ अलग हु आ किती थी | ‘पढाई का कम बोझ औि खेलना हि िोज’ कुछ इस तिह की सज़न्दगी बच्चे सबताते थे | वह बच्चों के जीवन मे बहु त महत्त्व िखता था औि इन सदनों में वह कम सा हो िहा है | १. खेल का महत्त्व बचपन, जवानी औि बुढ़ापा, इन्सान इन तीनों अवस्थाओ से गुज़िता है | हमािे रिसचु के participants में से कुछ लोगों का यह मानना है सक खेल एक उम्र तक ज़रूिी है | जैसे इिंसान बड़ा होता है, वैसे ही सज़म्मे दािी बढती है; सर्ि खेलने के सदन वापस नही आते | इसी कािि लोग अपने बचपन के मस्ती औि खेल भिे सदन को याद किके आनिंद प्राप्त किते है | बचपन में खेल के महत्त्व पि हमने पेिेंट्स के साथ जब चचाु की तो सब के जवाब में दो चीज़े सामने आई जो बचपन से जड़ ु ी है; वे है पढाई औि खेल | बहु त लोगों ने जबसक दोनों को महत्वपि ू ु समझा, पि सकसी ने खेल को प्रधानता सदया तो सकसी ने पढाई को | पहले पढाई को इतनी एहसमयत नही दी जाती थी | पि आज हमािा देश प्रगसत की ओि बढ िहा है | सब प्रयत्न किते है सक वे अपने बच्चों को पढा-सलखाकि कुछ बनाए औि आगे बढाए | इसी कािि कुछ पेिेंट्स को लगता है की पढाई ज्यादा ज़रूिी है खेल के मुकाबले | वे यह भी बोलते है की “पहले पढाई सर्ि खेल” | खेल औि पढाई के बीच का रिश्ता समझाते हु ए एक ने कहा सक, “खेलने से सदमाग फ्रेश िहता है औि पढाई भी अच्छी होती है” | यसद बच्चों से कहा जाए पढ़ो-पढ़ो तो उनका भी ध्यान नही िहता पढाई मे , पढाई के सलए active िहना ज़रूिी है, इससलए खेलना चासहए | एक पैिेंट ने ऐसा कहा सक बच्चों को केवल दो घिंटा खेलना चासहए सर्ि पढाई किनी चासहए | इससलए एक ने कहा, “पढाई के टाइम पढाई खेल के टाइम खेल” |
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हमने कुल समलाकि २५ लोगों का इिंटिव्य ू सलया, सजसमे से १९ लोगों ने खेल को बहु त महत्त्व सदया है | उनके सलए खेल बच्चों के जीवन मे ज़रूिी है क्योंकी उससे शारिरिक, मानससक औि आसत्मक सवकास होता है | माता-सपता के अनुसाि खेल औि सेहत के बीच में एक मज़बत ू नाता है | वे बोले सक आज की पीढ़ी में बच्चों को किाटे, कबड्डी औि कुश्ती जैसे खेल खेलने चासहए क्योंकी इससे वो सर्ट औि तिंदरुस्त िहें गे| हमसे एक व्यसक्त ने बताया की “खेलना बहु त ज़रूिी है ‘body progress’ के सलए | सजतना खेलेंगेकूदें गे उतना बदन खुलता है | उस वजह से मे िा एक बच्चा दुबला पतला है, क्योंकी उसे बाहि खेलने नहीं समला |” खेल का महत्व जानकाि हमने अपने रिसचु से उन काििों को ढूाँढने की कोसशश की सजसके वजह से इन सदनों में खेल कम हो िहे है |
२. खेलने की जगह की उपलसब्ध बच्चों के जीवन मे खेल तो महत्व िखता है, लेसकन यह भी जानना ज़रूिी है क्या उतनी खेलने की जगह उपलब्ध है ? मुिंबई जैसे शहि में तो बहु त कम ही ऐसी जगहएिं होगी जो पिू े तिीके से खुली नज़ि आएगी | औि खेल के सलए ख़ास तौि पि खुली जगह आवश्यक है | जब हमे पता चला सक यह खुली जगह कम होती जा िही है, तब हमने यह जानने के कोसशश की, इससे बच्चों के खेल पि क्या असि हो िहा है| इिंसदिा नगि औि बिंगालीपुिा से हमे यह जानकािी समली सक पहले जगह बहु त बड़ी औि खुली हु आ किती थी, लेसकन अब खेलने के सलए उतनी जगह उपलब्ध नहीं है । वैसे ही समय के साथ खेलने की जगह में कार्ी बदलाव आई है | यह बताते हु ए एक पैिेंट ने कहा, "पेहले हम मैदान मे खेलते थे पि अब बच्चे दिवाजे मे खेलते है |" जगह की कमी का मुख्य कािि सवकास औि सनमाु ि है; सजसके वजह से मिंुबई शहि में infrastructure को ज्यादा महत्त्व सदया जा िहा है | सवकास के नाम पि खुली जगहों के अलग अलग इस्तेमाल सकए जाते है सजससे कई लोगो के जीवन प्रभासवत होते है | उदाहिि के सलए बिंगालीपुिा में बना सिज, जो ट्रािंसपोटु के सलए बनाया गया था | आज इस सिज को बने बीस साल हो गए है, पिन्तु यह सिज ने वह जगह सछन ली जहा पि पहले बच्चो खेला किते थे | इसके बािे मे वहााँ पि िहने वाले एक िहवासी ने कहा सक, "सिज आने के बाद सब बिंद हो गया, बच्चे लोग का खेलना बिंद ।" उस ही प्रकाि सवकास के सलए बिंगासलपुिा में अलगअलग चीज़ें आई है, जो की बहु त ज़रूिी है पि सजनकी वजह से बच्चों की खेलने की जगह सशकाि बन गई | इसी से जुडी एक व्यसक्त ने कहा सक "पहले मे िे घि के पास खली जगह था, मतलब मैदान था । अभी उधि बाथरूम बन गया ।" केवल सिज, बाथरूम बनने से खल ु ी जगह कम नहीं हु ई है बसल्क कई औि बातें भी हमािे सामने आई है ।
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इिंसदिा नगि के एक व्यसक्त ने कहा सक "मैदान था... बहु त बड़ा था... औि खेलने का अच्छा था, कैसे भी खेलते थे हम लोग । अभी तो मैदान में ही सबसल्डिंग बन गई औि मैदान ख़त्म कि सदए सबसल्डिं ग बना के ।" बातचीत के दौिान उन्होंने यह भी बताया सक सबसल्डिं ग बनाने के सखलार् जब लोग कोई action लेते है तब काम िोक सदया जाता है, पि थोड़े देि के बाद सर्ि काम चालू कि दे ते है । सबसल्डिं ग है तो पासकिंग की ज़रूित भी बढ़ती है । इिंसदिा नगि में यह भी एक बड़ी रुकावट बनता है | वहािं के एक िहवासी ने बताया सक, "कोई यहााँ नहीं खेलता, यहााँ खेलने की जगह नही है ना | Main बात यहााँ खेलने का जगह िहे गा तो बच्चे खेलेंगे ना | अभी इधि जगह है तो गाड़ी सवडी-खड़ी िहती है |” इस ही प्रकाि से सबसल्डिं ग, सिज, बाथरूम, आसद से जगह की सवकास हो तो िहा है लेसकन उसमे कोई यह नहीं सोच िहा की बच्चो की खेलने की जगह भी बनाई जाये | लेसकन इतना सब होते हु ए वहािं के बच्चों ने हाि नहीं मानी | कोई उनके खेलने के जगह के बािे मैं नहीं सोचता, तो उस वजह से वे खेलना छोड़ते नहीं, बसल्क वे अपने खेलने की जगह तलाश ही लेते है; वो चाहे दिू हो या खतिों से भिा | इिंसदिानगि मे जगह की सही उपलसब्ध ना होने पि बच्चे गली औि िोड पि खेलते है जहािं बहु त गिंदगी पायी जाती है | बहु त बाि बच्चे इिंसदिा नगि के सबसल्डिंग (गसनबन सोसाइटी) के गेट पि जाकि खेलते है, लेसकन वॉचमैन उन्हें भगा दे ते है | बिंगासलपुिा का हाल भी कुछ इस तिह है | लोगों ने बताया सक पहले केसबन का जगह बड़ा हु आ किता था, जैसे लोग आते गए वैसे घि बढ़ते िहे | तो कहीं न कहीं आबादी बड़ने की वजह से भी बच्चों के खेल पि भी असि हो िहा है | उधि एक दूसिी जगह है जहा बच्चे खेलते है, वह है पटिी के पास की जगह | क्योंकी बिंगालीपुिा यह जगह िे लवे के सकनािे बसी है, बच्चों को यही जगह उपलब्ध है खेलने के सलए | कुछ बच्चे पटिी के बीच पैसेज में खेलते है तो कुछ मालगाड़ी के पटिी पि खेलते है | इस पि सदन भि मालगाड़ी दो से तीन बाि आती है, सजसका टाइसमिंग बच्चों को पता है |
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इसी तिह बच्चे पटिी पि, गली मे , िोड पि, चौिाहों पि अपने खेलने की जगह तलाशते िहते है | पता नही आसखि कब तक जगह की उपलसब्ध ना होने पि बच्चे ऐसी जगह पि खेलते िहें गे ?
३. खेलने की जगह की दुिी खेल कई प्रकाि के खेले जाते है औि उन्हें खेलने के सलए छोटी या बड़ी जगह की आवश्यकता होती है । बच्चों को घि के पास जगह उपलब्ध ना होने के किि उन्हें दिू जाना पड़ता है । बड़े बच्चे जगह न समलने पि कही दूि खेलने के सलए चले जाते है । एक पैिेंट ने बताया "जाना िहे गा तो शाहू नगि जाना पड़े गा । इधि जगह नही है… सबलकुल जगह नही है खेलने के सलए"। लेसकन छोटे बच्चों की बात की जाए तो माता-सपता को ज्यादा सचिंता होता है | इसी से जुडी हमे एक पैिेंट ने बताया की " यहााँ से तो सकतनी दिू है गाडु न । हम लोग को भी टेंशन होता है । अभी यहााँ खेले सामने तो हमलोग को भी टेंशन नही ।" पेिेंट्स को लगता है की बच्चो को उनके आाँखों के सामने खेलना चासहए, दूि नही जाना चासहए। इससलए कुछ बच्चे घि के पास ही खल ु ी जगह में खेलने की जगह बना ही लेते है। अगि छोटे बच्चों को गाडु न में खेलने जाना होता तो उन्हें मााँ बाप के साथ में जाना पड़ता है । "अगि उनको मन होता है तो बाहि ले जाना पड़ता है औि अफ़सोस होता है के आसपास नही है (जगह) इतना इतना दूि जाना पड़ता है ।" बहु त लोगों ने बताया की वे अपने बच्चों को हफ्ते में एक सदन, जैसे िसववाि, ही लेकि जा सकते है | उनके बातों में एक नया पहलु भी सदखाते हु ए कहा, “५०० रुपये तक तो खचु हो जाते है, इसीसलए सोचना पड़ता है अगि सशवाजी पाकु भी जाना पड़ता है तो बच्चे आइसक्रीम, सपज़्ज़ा खा लेते है” | इससे खेल खेल में बच्चों का मन तो हल्का हो ही जाता है साथ पेिेंट्स का जेब भी हल्का हो जाता है।
४. बच्चो की सदनचयाु इस स्पधाु भिी दुसनया मै बच्चो पि अलग-अलग प्रकाि से दबाव आ िहे है | बासकयों से आगे बढ़ने के सलए बच्चे अनेक प्रकाि के चीजों से जड़ ु ते जा िहे है, जैसे की स्कूल, ट्युशन औि कही ना कही धमु भी उनके जीवन मै बहु त महत्व िखता है | तो बिंगालीपुिा औि मुसस्लमनगि के बच्चे ट्यश ू न में ज्यादा समय सबताने के साथ साथ वे अिबी भी सीखते है | इससलए बच्चों के व्यस्त सदनचयाु ने हमािे सोच को चुनौती दी, सजससे हमे जगह की कमी के अलावा भी बच्चो के खेल में रुकावटें सदखाई दी | यसद बच्चो का सदनचयाु देखा जाए तो वो सकसी व्यस्क से कम नहीं है, इनके सदन की शुरुवात स्कूल से होती है औि अिंत ट्युशन या अिबी की पढाई पि | इससलए वे खेल को उतना समय नहीं दे पाते है | यसद वे सब काम ख़तम किके खेलना चाहे तब भी मुसश्कल होता है; जैसे की एक participant ने बताया सक, “इधि 20
स्कूल जाती है तो खेलने के सलए टाइम नही समलता है ७ बजे आएगी स्कूल से तो थोडा टाइम खेल ने पि ही अाँधेिा हो जाता है”| तो इसी से स्पष्ट होता है की स्कूल अिबी तुसतओिं इन सब चीजों के वजहसे कही न कही खेल दुलुक्ष्य हो िहा है|
४. सववध प्रकाि के खेल खेलने सक जगह सक आकृसत औि दिू ी के साथ बच्चों के कायु ित सदन भी खेल के प्रसक्रया को बदल िहे है | पि जैसे सक पहले बताया था, समय बदला, जगह बदली, पि बच्चों में वो खेलने की आस अब तक सजिंदा है | यह सोच प्रकट किते हु ए एक मााँ ने बताया, “बच्चे लोग खेलने के सलए सकतना ये (सजद) किता है मगि जगह नहीं है खेलने के सलए |” पहले खेलने का कोई साधन ही नहीं हु आ किता था तो बच्चे ग्रुप बनाकि भी खेल लेते थे | जगह के सहसाब से उनके खेल भी हु आ किते थे, जैसे कुश्ती के सलये सपाट जगह, सक्रकेट औि हॉकी के सलए बड़ी जगह, औि लुका छुपी के सलए र्ै ला-पि बड़ा जगह | लेसकन जैसे जैसे जगह कम होते गइ वैसे वैसे खेल के प्रकाि भी बदलते गए | कई पुिाने खेल है, जैसे ‘इधि की मुगी कहा बसी’ ‘सगल्ली डिं डा’ ‘सनघोचा’, जो आज कोई खेलता ही नहीं | पि जब कई खेल सबलकुल नहीं सदखते सकसी सकसी खेल के रूप को बच्चों ने बदल सदया | बच्चे अब तो छोटी जगहों में ही कुछ पुिाने खेल आज भी खेलते है | खेल वही है लेसकन कुछ प्रसक्रया बदल गई है; जैसे पहले बच्चे सक्रकेट खो–खो, पकड़ा-पकड़ी ऐसे खेल जो खुली जगहों पि खेला किते थे पि आज बच्चे यही खेल गसलयों में ही खेलते है औि जब भी उन्हें समय समलता है तो दिू जाकि मैदान मे खेल लेते है |
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उसके साथ ही जगह न समलने के कािि बच्चो ने खेल में नए साधनों को शासमल कि सलया है | ज्यादाति मााँ-बाप कहते है सक technology का इसमें बहु त बड़ा हाथ है | टेक्नोलॉजी के कािि बहु त से बच्चे बाहि खेलने में रूसच नहीं सदखाते है | फ़ोन औि tab में प्रसतसदन नए खेल आ जाते है औि बच्चे उसी दुसनया मैं मग्न हो जाते है | पहले के ज़माने में ऐसा शायद नहीं हु आ किता था क्योंसक तब टेक्नोलॉजी की ज्यादा उपलसब्ध नहीं थी | पििं तु आज कल हि घि में एक-न-एक प्रकाि का टेक्नोलॉजी समलता है | औि इस टेक्नोलॉजी का बच्चो के हाथ लगने का कािि बहु त बाि मााँ बाप का लाड प्याि भी होता है | इसी से जुड़ी बात हमें कुछ parents से पता चली की बच्चे आजकल ज्यादा ति मोबाइल्स, टैब्स, सवसडयो गमे स्म मै लगे िहते है, जो parents को पसिंद नहीं | उन्होंने साथ यह भी कहा है की “अभी के बच्चे तो पहले के खेल खेलते ही नहीं” |
सनष्कषु शेहिो में ज्यादाति खल ु ी जगह का इस्तेमाल सवकास के सलए सकया जाता है, औि उसमे पाक्सु ,गाडु न औि प्लेग्राउिं ड भी बनते है | पि बहु त बाि ऐसा होता है सक वे सवकससत जगहों में बनायी जाती है औि झोपड़पट्टी में िहने वाले लोग के सलए वह दूि पड़ते है | ससर्ु यह कािि नहीं है, बसल्क स्कूल, ट्यश ू न औि अलग प्रकाि के गसतसवसधयों से जड़ ु े होने के कािि बच्चे िोज़ ज्यादा दिू नहीं जा पाते | इसकी वजह से वे अपने घि के आस पास में उपलब्ध जगहों के सहसाब से खेल खेलते है | इससलए हम सोच सकते है की धीिे धीिे से 22
मैदानी खेल कम होते जा िहे है औि खेल के प्रकाि बदलते जा िहे है | उसका कािि कही न कही वक़्त, जगह की कमी औि टेक्नोलॉजी औि साथ ही शेहिो का सवकास भी है |
खेलने की प्रक्रिया है बदल रही, इसकी वजह क्रदनचयाा और टेक्नोलॉजी है कही न कही| खेलते समय करना पड़ रहा है कक्रिनाईयों का सामना , क्योंकी खेलने के क्रलए उतनी जगह बची ही नहीं|
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बच्चो को खेलते समय कसिनाईयााँ कसिनाई जीवन का सनयम है, औि यही चीज़ प्रकृसत से भी जोड़ी जा सकती है | प्रकृसत का एक उधाहिि है ‘नदी’| नदी हमे शा बहती िहती है औि उसके िास्ते में कई सािे पत्थि कसिनाई बनकि आते है जो उसके बहाव मे बाधा बनने की कोसशश किते है | लेसकन नदी रूकती नहीं, अपना िास्ता ढूिंढ ही लेती है | उसी तिह मनुष्य के जीवन मे भी कई प्रकाि की कसिनाईयााँ आती है जो बचपन से ही शुरू हो जाता है; जैसे पढाई से जड ु ी कसिनाईयााँ, स्वास्थ से जड़ ु ी तो कुछ हमािे सबसे प्यािे औि मजेदाि खेल से जड़ ु ी होती है |
खेलने की जगह पि जिंझ ू ती बच्चो की सेहत हि बच्चे के सदल मे यही इच्छा होती है सक उनके खेलने की जगह अच्छी, बड़ी औि सुन्दि हो | रिसचु किते समय हमे यह पता चला की उनकी यह इच्छा आज भी इच्छा ही िह गई है | कहते है की खेल बच्चो के शािीरिक सवकास से जड़ ु ा हु आ है पििं तु कभी सोचा है की खेलने की जगह िीक न होने पि , बच्चे खेलते समय भी बीमाि पड़ सकते है ? इस मुद्दे पि बात किते समय इिंसदिा नगि औि बिंगालीपुिा के िहवासीयों ने बताया सक सजस जगह पि बच्चे खेलते है, वह उनके खेलने के सलए सबलकुल भी सही नहीं है | बहु त से parents ने बताया की पहले के मुकाबले आज बच्चो के खेलने की जगह कम हो गई है सजसके वजह से आज बच्चे िोड ,पटिी ,गटि, गसलयों मे खेलते है जो एक नई समस्या को पैदा किती है ‘चोट औि सबमािी’ |
१. चोट बच्चो से औि उनके माता सपता से हमे यह स्पष्ट हु आ सक वे जहााँ खेलते है उस जगह पि बहु त सािे किंकड़ होते है | इस वजह से वे कई प्रकाि के games नहीं खेल पाते औि उन्हें हमे शा सगिने का डि लगा िहता है | बच्चे जहा खेलते है वहााँ पि कचिा र्ेका जाता है औि उस कचिे मे कभी कभी कई हासनकािक चीज़े भी होती है, सजससे बच्चो को चोट लग सकती है | इसी सवषय पि इिंसदिा नगि के एक बच्चे ने अपने एरिया के बािे मे बताते हु ए कहा सक, “दारु का बोतल-वोतल तोड़ दे ता है, तो चभ ु जाता है, टााँग पि लग जाता है |” कचिा द्वािा उनको ससर्ु चोट ही नही, बसल्क कभी कभी उसी गिंदगी से उनको सबमािी भी हो जाती है |
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२. गिंदगी औि सबमािी बिंगालीपुिा मे लोगो के घिो के पास कचिा र्ेकने की सुसवधा न होने से वे अपने कचिे को घि के बाहि खुली जगह पि र्ेकते है औि कभी कबाि गीले कचिे को गटि मे र्ेकते है | इसकी वजह से गिंदगी बढती है औि बीमारियााँ र्ै लती है | जब हम इिंसदिा नगि गए तो वहााँ पि भी कई सािे गटि खुले थे, कचिा भी ऐसे ही खल ु े मे र्ेका हु आ था औि उसी जगह पि बच्चे भी खेल िहे थे |
गिंदगी के बािे में वहााँ पि िहने वाली एक मसहला ने कहा, “बच्चे खेलते है की वो गिंदगी मे खेलते है| बच्चे लोग... को सबमािी होती है| मलेरिया होता है, टाइर्ाइड होता है, यह सभी होता है औि ये एरिया मे होता ही िहता है|” सजसके वजह से मााँ-बाप अपने बच्चो को बाहि खेलने के सलए भेजने से डिते है | हमािे सोच की क्षमता ससर्ु यही तक िहती है सक बच्चो को खेलते समय सगिने से चोट लग सकती है या हाथ पैि टूट सकते है पि मौत हो सकती है , इसका अिंदाज़ा सकसी ने भी नहीं लगाया होगा | 25
खतिों से भिी जगह जब हम बच्चो के खेलने की जगह के बािे में सोचते है तो सदमाग में फ़ौिन तस्वीिे आ जाती है सक शायद वो मैदान होगा, या सर्ि गाडु न या पाकु जैसी कोई खुली जगह होगी | जब इिंसदिा नगि औि बिंगाली पिू ा जैसे जगहों पि दे खा तो वह जगह इन सबसे अलग थी; ना ही कोई मैदान, गाडु न, पाकु औि ना ही कोई खुली जगह थी | इिंसदिा नगि िोड पि बसी हु ई बस्ती जहााँ पि मोटि गाडी बहु त ही तेज़ी से चलते है, वही ाँ दस ू िी तिर् बिंगासलपुिा में घिो के पास से ही ट्रेन गुजिती है | यहााँ के बहु त से पेिेंट्स को अपने काम के ससलससले मे बाहि जाना पड़ता है | घि मे कोई नहीं होने के कािि बच्चे खेलते खेलते कभी कभी पटिी या िोड पि चले जाते है, सजसकी वजह से भी उनके साथ हादसे होने का अिंदेशा होता है | यह दोनों अलग अलग जगह होने के साथ यहााँ के हादसे के ज़रिये भी अलग है, लेसकन यहााँ पि होने वाले हादसे एक ही तिह के होते है | जब हमने इिंसदिा नगि के बच्चो औि उनके माता सपता से बातें की तो पता चला सक यहााँ पि आस पास कोई मैदान नहीं है औि गसल्लयााँ छोटी होने की वजह से वहााँ के बच्चे ज़्यादाति िोड पि खेलते है | वहािं पि अपने बच्चो को खेलते हु ए दे खकि उनके माता सपता के सदल में डि िहता है सक, ‘कही मे िे बच्चे को कुछ हो न जाए’ | वहााँ पि िहने वाली एक औित ने एक हादसे के बािे में बताया सजसमे , “एक बच्चा खेल िहा था तो उसका बॉल िोड पि सगि गया तो वो उसको उिाने गया तभी उसका accident हु आ, पिू ा भेजा सनकल गया उसका, पािंच-छह महीने पेहले (हु आ)... बच्चा भी मि गया” | बच्चो को छोटी सी चोट लग जाने पि माता सपता पिे शान हो जाते है तो इतने बड़े हादसे से वह डि जाते है | सजसके वजह से माता सपता अपने बच्चो को ज्यादा िोड पि खेलने से मना किते है| हमािे सिंशोधन की दूसिी जगह बिंगाली पिू ा है | बिंगाली पिू ा िे लवे लाइन के पास बसी हु ई बस्ती है वहािं के लोगो को अपने काम के सलए िोजाना पटिी cross किनी पड़ती है | जगह की कमी की वजह से ज़्यादाति बच्चे पटिी पि या उसके के पास खेलते है | वहााँ पि बातें किने के बाद पता चला सक खेलते समय बच्चो को अलग अलग प्रकाि के खतिों से गुज़िना पड़ता है, जैसे की चोट लगना, ट्रेन से हाथ-पैि कट जाना, आसद | इसी से जुड़ी एक मसहला ने दुसिे के साथ घटी हु ई हादसे के बािे बताया जब एक, “मम्मी पानी भि िही थी तो बच्चा उस तिर् (पटिी पि) चला गया औि ट्रेन के हवा से बच्चा मि गया... जब वो हवा से सगिा ना तो सि पे लग गया तो जगह पे दम तोड़ सदया” | जगह की कमी के वजह से आज बच्चो को अपने सज़न्दगी से हाथ धोना पड़ िहा है |
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उधि िहने वाले लोगो ने बताया सक पटिी के पास िहना मतलब एक डि के साथ िहने के बिाबि है | बच्चो से पता चला सक पटिी पि जब ट्रेन आती है तो हॉनु बजाकि नहीं आती | इससलए उनके माता सपता पटिी के पास खेलने से िोकते है |
खिाब माहौल सहिंदी सासहत्य के अनुसाि जैसे की एक खिबज ू ा को दे खकि दूसिा खिबज ू ा ििं ग बदलता है औि एक गन्दी मछली पिू े तालाब को गन्दा कि देती है, वैसे ही एक खिाब सवचाि पिू े माहोल को खिाब कि दे ता है | हमािे रिसचु के दौिान हमें पता चला की खिाब माहोल कैसे बच्चो के सलए कसिनाई पैदा किती है|
१. गाली गलोच कोई भी व्यसक्त अपने आस पास के माहौल को दे ख कि ही सीखता है | बिंगासलपिु ा औि इिंसदिा नगि के माहौल में भी एक ऐसी चीज़ है, सजससे बहु त पेिेंट्स अपने बच्चों को दूि िखना चाहते है, वह है नशा | एक पेिेंट ने बताया की नशा किने वाले व्यसक्त लोग आपसी बहस या झगड़े के कािि वो एक दुसिे को गाली दे ना शुरू किते है सजसे देखकि बच्चे भी उसी तिह का बुिा बताु व अपने िोज़मिाु की सज़न्दगी मे किते है | वे कहते है सक , “अपने बच्चे बाहि जाकि कुछ गन्दा ससख कि आते है सर्ि घि मे बोलते है, अपने को दुुःख होता है | अपना बच्चा बाहि सीखकि घि मे बोलता है | इसीसलए अपने बच्चे को घि मे ही िखते है|” इनकी वजह से यहााँ के पेिेंट्स बच्चो को लेकि हमे शा सतकु िहते है | उन्हें डि िहता है की वे कही बुिी सिंगत मे र्ाँसकि बुिी चीज़े ना सीखे | इसी कािि माता सपता अपने बच्चो को उस जगह पि खेलने नहीं भेजते औि बच्चो के खेल मे रूकावटे पैदा किती है|
२. नशा औि छे ड़ छाड़ समाज में माना जाता है सक नशा किना बुिा होता है; सजसकी वजह से हि कोई नशा औि 27
नशा किने वाले लोगो से दिू िहना चाहता है | लोग नशा अपनी सिंतुसष्ट के सलए तो कि लेते है पि उसका प्रभाव दुसिो की सज़न्दगी मे भी पड़ता है | हमािे सिंशोधन के दौिान, हमने दे खा सक बहु त बाि बच्चे औि नशा पीने वाले खोजते खोजते वही खल ु ी जगह पि जा पहु ाँचते |
पेिेंट्स को अपने लड़कों को लेकि सर्क्र होती है सक कही मे िा बच्चा गलत िाह पि ना चला जाए | हम एक पासटु ससपेंट से समले सजन्होंने कहा सक, “मैं तो लडको को भी नहीं जाने नहीं देता क्योंसक यहााँ का माहौल ही ऐसा है कही दोस्तों में वह नशे में ना अटक जाए, दुसिो को दे खकि कही खद ु ना शुरू कि दे , चिस... इसीसलए डि लगता है |” बातों बातों में हमे यह भी पता चला की बड़े तो बड़े , आजकल बच्चे भी ससगिे ट के आदी होते जा िहे है | नशा किने वाले लोगो की वजह से हे दूसिों के सदलो में डि बैि िहा, सजसकी वजह से वह लोग अपनी लडसकयों को बाहि भेजने से डिते है | इससे जुडी एक मसहला ने बताया, “लडसकयााँ तो बाहि गली मे भी नहीं खेल सकती, क्योंकी चिसी लोग बैिे िहते औि बीडी सपते िहते है, धुवा उड़ाते है |” लोग अपने बातचीत के ज़रिये यह भी बताये सक नशा किके कभी कभी वह लोग अपना होश खो बैिते है तो वे छे ड़ छाड़ जैसी हिकते किते है | पििं तु छे ड़छाड़ ससर्ु नशा किने वाले नहीं किते, हमािे समाज में बहु त ऐसे नौजवान है
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जो आम तौि पि लड़सकयों को छे ड़ते है | ऐसे ही एक लड़की ने कुछ बातें बताई; “लड़के जब आते है प्लेग्राउिं ड में खेलने के सलए, सक्रकेट वगैिा खेलने के सलए तब कोई छे ड़म-छाडी किता है|” इस तिह बच्चो में भी डि बढ़ िहा है जो उन्हें खेलने से िोक िहा है ऊपि सदए गए उधाहिि से स्पष्ट होता है की कैसे नशा औि औि छे ड़छाड़ से जड़ ु े हु ए लोग बच्चो के खेलने में एक कसिनाई बनती है | छे ड़छाड औि नशा से बनता एक ख़िाब माहौल जो बहु त बच्चों के खेल में एक बड़ी रूकावट बिंती है | पििं तु खिाब माहौल में ससर्ु यह नहीं है, हमाि एक औि पहलू है सजसके वजह मााँ-बाप अपने बच्चों को बाहि खेलने से िोकते है |
३. अपहिि औि िे प जैसे की नशा औि गाली गलोच खिाब माहौल का एक सहस्सा बनते है उसी तिह से अपहिि औि िे प भी जड ु ा है | िे प औि अपहिि की शुरुवात वही से होती है जहा पि इिंसान की बुसद्धमिंता का अिंत होता है; औि इसका सशकाि मासम ू बच्चे बन जाते है | एक सैसनक की मााँ को यह सचिंता सताती है की उसका बेटा जिंग से लौट आएगा की नहीं वैसे ही हाल आजकल के माता सपता का है इसका कािि बच्चो के प्रसत बढता जम ु ु है | पहले तो खेलने की जगहों के कम होने से बच्चे पिे शान है औि दूसिा उनके प्रसत बढते जुमु से उनके मााँ-बाप का चैन खोया हु आ है | एक मााँ ने अपनी पिे शानी को व्यक्त किते हु ए बताया सक, “अगि हम घि का housewife है… अगि बाहि छोड़कि काम किें गे तो कोई लेकि चला जाएगा तो? वह डि के मािे नहीं छोड़ते... बड़े बच्चे हो गए, अभी भी हमलोग को डि िहता है |” घि के काम काजो से र्ुसु त न समलने के कािि बच्चो को बाहि के असुिसक्षत माहौल में भेजने से आजकल की माएाँ कतिाती है क्योंसक उनके बच्चों के साथ अपहिि जैसे खतिनाक हादसे हो सकते है| लेसकन इसके अलावा एक दस ू िा भी डि है | इिंसदिा नगि के िहवासी ने बताया सक पास वाले मुसस्लम नगि में एक छोटी बच्ची का िे प हु आ है | ऐसी घटनाओिं के वजह से एक असुिसक्षत माहौल बनता है, सजसमे parents का डि बच्चो को खेलने से रुकाता है | माहौल तो लोगों से बनती है, औि जहािं एक तिर् पे जगह को नशा जैसे बुिे चीज़ों के सलए इस्तमाल होता है | वैसे ही बहु त अच्छे चीज़ों के सलए भी खुली जगह को बच्चों के खेल के अलावा उपयोग सकया जाता है |
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जगह का अलग अलग चीज़ों के सलए इस्तेमाल जैसे नारियल के झाड़ का इस्तमाल बहु त सी चीज़ों मे सकया जाता है - चटाई, गोनी, छपिा, िस्सी बनाना, सख ू े नारियल से तेल सनकालना, सजावट के सलए इस्तेमाल किना, इत्यासद; उसी तिह बस्ती में खुली जगह का इस्तेमाल भी कई कामो के सलए सकया जाता है | वह जगह सबकी होती है, सर्ि चाहे बुढे, जवान औि बच्चे हो इससलए लोग अपने अपने कामो के सलए खुली जगह का अलग अलग तिीको से इस्तेमाल किते है । लोग उस जगह का इस्तमाल बड़े बड़े र्िंक्शन के सलए किते है तो बच्चे भी उन र्िंक्शन में शासमल होकि उसका मज़ा लेते है । बिंगालीपुिा की िहवासी ने बताया की वे सब लोग एक साथ समलकि सािे त्यौहाि मनाते है, चाहे नविात्री, गिपती सवसजु न , नया साल या सर्ि गितिंत्र सदवस हो | इन सब की वजह से बच्चे वहााँ पि नही खेल पाते, लेसकन यह भी सच है सक इन त्यौहािो मे बच्चे बढ़-चढ़ कि सहस्सा लेते है। सजस तिह त्यौहाि यहााँ पि मनाए जाते, उसी तिह शादी की िस्मो के सलए भी इस जगह का इस्तमाल सकया जाता है; इसमें भी बच्चे सहभाग होते | बच्चे जब इन सब त्योहािों में भाग लेते है तो वो उसमे इतने मग्न हो जाते है औि उनका खेल की समय औि प्रसक्रया त्योहौिों के मानाने में समाप्त होती है | | हमािे रिसचु के समय हमने सुना की जैसे बाकी त्यौहािें मनई जाती, वैसे ही बिंगालीपुिा में भी आिंबेडकि जयिंती १४ अप्रैल २०१६ के सदन मनाई गई | पटिी के सकनािे पि सािा इिंतज़ाम सकया गया था, औि मनाने के सलए बहु त लोग इकठ्ठे हु ए थे | पििं तु उस सदन पटिी के पास इलेक्ट्रीक बॉक्स के wires में आग लगी थी सजसके कािि एक बच्चा जख्मी हो गया | मतलब कभी-कभी इन जगहों में िीख इस्तमाल न होने पि औि भीड़ में सकसी सकसी को नक् ु सान भी हो सकता है | शादी औि त्यौहाि के अलावा भी उस जगह का लोग अपने कामो के सलए भी इस्तमाल किते है | इिंसदिा नगि मे वहा की िहने वाली एक औित ने बताया सक "नहीं है ज़्यादा (जगह) लेसकन झाडू बनाने बैि जाते है।“ वहााँ पि िहने वाले बहु त लोगो का व्यवसाय झाड़ू बनाना है | चिंकी उनमे से ही कार्ी लोग साफ़ सर्ाई किते है, वे उन झाडुओिं के उसमे इस्तमाल किते है | बाकी लोग उसको बेच कि पैसे कमाते है | आम तौि पि ये लोग झाड़ू बनाने के सलए सबसल्डिंग औि घि के आस पास की जगह का इस्तेमाल किते है , जहााँ पि बच्चे भी खेलते है |
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बच्चे तो हमे शा खेलते ही िहते है; ये सब (कायु क्रम) उनके खेल मे बाधा नहीं डाल सकती है | पि सर्ि भी उनके खेल में बाधा आ ही जाती है जैसे की पासकिंग एक सबसे बड़ी बाधा है जो लम्बे समय तक बच्चों के खेलने की जगह को घेि लेती है | इिंसदिा नगि में िहने वाली एक औित ने बताया "यहााँ पि तो गाड़ी लाकि खड़ा कि देते है (सबसल्डिं ग के) सनचे तो पिू ा बाईक या काि सब खड़ा कि देते है तो बच्चे लोग को बहु त पिे शानी होती ह"। जगह का इस्तेमाल इन चीजो में होने की वजह से आज बच्चो को खेलने के सलए ज्यादा जगह ही नहीं बची है| सजसकी वजह से वे लोग अपने खेलने की जगह तलाश किते है | सर्ि वो शायद िोड, गसलयािं ,गटि ,या पटिी हो सकती है|
सनष्कषु खेलने से लोग कहते है की सेहत में सुधाि आता है औि शिीि मज़बत ू होता है | पििं तु इस सिंशोधन से हमने जाना सक इसका उल्टा भी हो सकता है | जगह की जब दे खभाल न होती है, औि वहािं गिंदगी जमा होती तब वह चोट या सबमािी की कािि बन सकती है | पििं तु यह बच्चों के खेल में एकलौता कसिनाई नहीं है, बहु त बाि माहौल भी एक रुकावट बन सकती है | जबसक लोगो को उम्मीद होती है की उनके बच्चो के खेलने की इस जगह पि सुिक्षा महसस ू किे , बहु त बाि उन्ही के समाज के कई सिंसधक व्यसक्त आकि माहौल ख़िाब किते है, सजसके वजह से माता-सपता अपने बच्चों के खेल पि पाबिंदी डालते है | इस तिह हमें पता चला की लोगो के सदलो में अपने बच्चो के खेलने की जगह को लेकि सकतनी सचिंता होती है | खेलते खेलते हो रहे है हादसे , कहा खेल े बच्चे गंदगी से भरे है रास्ते | क्रसर्ा लड़के ही नक्रह लडक्रकयां भी है शाक्रमल यहााँ पर , क्रजनको रोकते है लोग खराब माहोल के नाम पर| 31
लडसकयों के जीवन में खेल कागज़ की कश्टी है, पानी का क्रकनारा है खेलने की मस्ती है, क्रदल ये आवारा है कहा आ गए इस समाज के घेर में लडक्रकयों का खेलना न अब क्रकसी को गवारा है... बचपन यह शब्द सुनकि हमािे होिों पि एक मुस्किाहट आ जाती है क्योंसक यह शब्द सुनते ही हमािे आाँखों के सामने अपने मस्ती भिे पल याद आ जाते है | खेल हि एक बच्चे के जीवन का एक प्यािा लम्हा होता है | पि क्या सही मायने में खेल लड़कों औि लड़सकयों के जीवन में एक समान जगह िखता है ? अक्सि दे खा जाता है सक जैसे जैसे लडसकयााँ बड़ी होने लगती है, उनके घिवाले औि समाज से नई प्रथाएिं औि साथ ही में कई सािी पाबिंसदया लगा दी जाती है सजनका पालन उन्हें किना पड़ता है | लड़सकयों का खेल, एक ऐसी चीज़ है, सजस पि समासजक रूकावटे बहु त जल्द आ जाती है | इससलए हम इस chapter में समझने की कोसशश किें गे सक क्या होती है ये पाबिंसदया औि लड़सकयों पि ये क्यों डाली जाती |
लडसकयों के सलए खेलने की जगह रिसचु किते समय हमने देखा सक आज कल लडसकयों के जीवन में खेल कम होते जा िहे है | लड़सकयों के माता-सपता से बात किते समय इसके पीछे के दो कािि सामने आए | पहला है खेलने की जगह की दुिी औि उसी से जुदा हु आ दुसिा है उनकी सुिक्षा | Parents नही चाहते की उनकी लड़सकया बाहि खेलने जाए क्योंसक वे बाहि के माहोल को असुिसक्षत समझते है | ऐसे ही मुसस्लम नगि में घम ू ते समय हमने दे खा सक बहु त सािी लडसकयााँ एक साथ समलकि “आज तेिे घि औि कल उसके घि", ऐसा किके एक दुसिे के घिों में ही खेलती है | जो माता-सपता अपनी बेसटयों को घि के बाहि खेलने देते है, उनमे से कई ने कहा सक उन्हें घि के सामने की जगह ज्यादा सुिसक्षत लगती है | पछ ू ने पि पता चला की वह जगह उनके नज़िों के सामने है इससलए सुिसक्षत होती है | शायद यही वजह है सक बहु त सािी लडसकयााँ अपने घि के सामने वाले गल्ली में ही खेलती है | जब यह दिू ी बढ़कि, घि औि गल्ली से बाहि जाती है, तो शायद इन्ही काििों के वजह से लडसकयों के माता-सपता ज्यादा सुिसक्षत नहीं महसस ू कितें | हमने अपने रिसचु के द्वािा यह जाना सक घि से थोड़ी दुि, पट्री, सिज, िोड औि केसबन जैसी जगहों पि, बहु त कम ही लड़सकयााँ खेलती है | हाला सक इन जगहों पि जो लडसकयािं सदखती है वे ८ से
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१२ साल के उम्र के होते है | इस उम्र में दे खा जाए तो लड़सकयााँ बाकी सब बच्चो के साथ खेलती है | शायद इस उम्र तक ही लोग मानते है सक लडके औि लड़सकयािं एक साथ खेल सकते है | औि सर्ि एक उम्र के बाद लडसकयों के जीवन में खेल कम हो जाता है |
लडसकयों की खेलने की उम्र हमको बिंगालीपुिा औि इिंसदिा नगि में ८ से लेकि २० साल तक के लड़के खेलते हु ए सदखाई सदए; पि अगि हम लडसकयों की बात किे तो ज़्यादाति ८ से १२ साल तक की लडसकयााँ ही खेलती हु ई नज़ि आती है | इस तकु के समथु न में इिंसदिा नगि में िहने वाली एक लड़की ने बताया सक “में तो ११–१२ साल तक ही खेली थी” | उसके जैसे बहु त सािी लड़सकयों को ज्यादा उम्र तक खेलने नहीं समलता है सजसके कािि बहु त कम उम्र में ही वे अपना पिू ा बचपन खो दे ती है | इससलए हमािे रिसचु का अगला उद्दे श्य बना यह समझने की सक समाज ने लड़सकयों के जीवन में यह बाधाएिं क्यों लायी है | जब लडसकया १२ साल की हो जाती है, तो उनके शिीि में बदलाव आने लगते है | इसका एक कािि है की उनकी महावािी (menstrual cycle) शुरू होती है | आम-ज़ब ु ान में इस उम्र में कहते है सक ‘लड़की बड़ी हो गयी’ | लड़सकयों की उम्र बढ़ने पि लोग बोलते है सक, “उम्र हो गयी ना... लड़की सोलह-सतिह की हो जाती है... तो मसहना उसको आता है, तो मााँ-बाप खद ु ही नहीं भेजते” | लडसकयािं जब बड़ी हो जाती है तो एक औि वजह होती है सजसके वजह से वे बाहि नहीं जाती | एक पैिेंट ने बताया, “अपना घि का काम नहीं होता है सर्ि बाहि घम ू ना भी अच्छा नहीं लगता” | एक पुरुष प्रधान समाज में घि का काम ससर्ु लड़सकयों को सौंप सदया जाता है क्योंसक मानते है सक यह ससर्ु उनका कतु व्य है | इसका एक दूसिा कािि हो सकता है सक उम्र हो जाने पि एक औि तैयािी भी शुरू हो जाती है, वो है शादी की | बहु त घिों में इस उम्र में लड़सकयों को घि का काम ससखाया जाता है क्योंसक वे जब शादी-ब्याह किके सकसी औि के घि में जाती है तो िसोई का औि सर्ाई की सज़म्मे दािी उन पि आ जाती है | इन्हीं वजहों से लडसकयों के खेल पि उम्र बढ़ने से अनेक पाबिंसदयािं आ जाती है | बातचीत के दौिान एक १३ साल की लडकी ने बताया सक इन सब रुकावटों के बावजद ु उसके अिंदि खेलने की इच्छा अभी तक सजिंदा है | “मे िी मम्मी बाहि भी नहीं जाने दे ती है, खेलने भी नहीं दे ती है | यह लोग (उसकी सहे सलयािं) आते है तो भी नहीं जाने दे ती, में ज़बिदस्ती जाके खेलती हू ाँ” | अपनी भावना प्रकट किते हु ए उसने कहा सक उसके घि के गल्ली में औि घि के आस पास बुिे लड़के िहते है इसीसलए उसकी मम्मी मना किती है | इससलए बढती हु ई उम्र के साथ जगह का माहौल भी एक कािि बन जाता है, जो सक लडसकयों को बाहि खेलने से िोकता है | एक औि लड़की ने कहा इिंसदिा नगि के बािे में, “वहााँ के boys लोग खिाब है ना इसीसलए (बाहि खेलने) नहीं छोड़ते है|” इससे पता चलता है सक लड़सकयों को खेल में इतनी रूसच है पिन्तु समाज के कुछ लोगों के कािि वे खेल नहीं सकती |
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जब हमने उनसे पुछा आपको डि नहीं लगता उन लडको से तो एक लड़की का कहना था, “तो डि क्यों लगेगा, जब वो लोग कुछ किें गे तो हमलोग भी कुछ कि सकते है” | इसका मतलब है सक समाज की बातों ने अभी तक इस लड़की को उतना नहीं डिाया है सक वो उसके वजह से अपने खेल को छोड़ने के सलए तैयाि हो जाये लेसकन आजकल के माहौल के कािि कुछ माता सपता नही चाहते की उनकी बेसटयााँ लडको के साथ खेले | पििं तु यह माहौल अभी का है, पहले लड़कों औि लड़सकयों के दोस्ती के बािे में एक पैिेंट ने कहा की “ पहले के ज़माने में लड़के-लड़सकयााँ साथ में खेलते, तब कोई प्रॉब्लम नही था पि अब के ज़माने में ... पहले तो लड़के सगे भाई से भी ज्यादा थे | लड़सकयााँ उनको िासखयााँ बााँधती थी |” जब उन्होंने ये कहा सक “तब कोई प्रॉब्लम नही था पि अब के जमाने में ...”, उनके अधुिेपन में यह बात थी सक सकस तिह से आज लड़के-लडसकयों के बीच रिश्ते बदल िहे है सजसके वजह से माता सपता अपनी लड़सकयों को लडको के साथ दोस्ती किने से या उनके साथ खेलने से िोकते है | यह सोच लड़सकयों के खेल में रुकावट बन िही है |
लडसकयों के खेल जैसे पहले बताया गया था सक असधकति लड़के औि लड़सकयााँ एक साथ न खेलते हु ए अलग अलग खेलते है, वैसे ही उनके खेल के रूप भी अलग होते है| एक तिर् लड़के सक्रकेट, र्ुटबॉल, आसद, खेल खेलते है, तो दूसिी तिर् लडसकया लिंगड़ी, खो-खो, skipping, आसद खेल खेलती है | ये बात हमे उनके साथ किते समय पता चला लडको औि लड़सकयों के खेल में अिंति हमािे समाज में ससदयों से चलते आया है; वही अिंति हमें इिंसदिा नगि औि बिंगाली पिू ा में भी सदखाई सदया| हमािे इस रिसचु प्रसक्रया द्वािा हमें कुछ लडसकयों ने बताया की वे कािोम-बोडु , सखलोने, चाि सचटिी, लुपा-छुपी, खो खो, पकड़ा पकड़ी, यहााँ की मुगी कहा बसी, बर्ु पानी, लिंगड़ी,िस्सीउड्डी यह सब गे म्स खेलती हैं |
मैदानों के खेल आम तौि पि हाि-जीत औि शोि शिाबा से सम्बिंसधत है | क्योंसक यह बताु व लड़सकयों से अपेसक्षत नहीं है, तो यह एक औि कािि होता है सजसके वजह से लड़सकयों को ऐसे खेल में बढावा नहीं सदया जाता है | साथ ही में सक्रकेट, र्ूटबॉल, हॉकी जैसे खेल मैदान में खेले जाते है क्योंसक इन खेलों के सलए बड़ी जगह चासहए होती है | यह जगहें आम तौि पि घि से दिू ही समलती है | औि चाँसू क एक परु ु ष प्रधान समाज में बाहि जाने की आज़ादी खास कि लड़कों को समलती है, इससलए वे इन सब खेलों में सहस्सा ले पाते है | लड़सकयों को घि के अन्दि या उसके पास छोटी ही जगह खेलने के सलए समलती है | इससलए उनके खेल भी उस जगह तक ही सीसमत िहते है, जैसे लिंगड़ी, खो-खो, आसद | लडसकयों के साथ समहू चचाु (FGD) किते समय हमे पता चला की ज्यादाति लडसकयााँ सस्कसप्पिंग किती है, जो उन्होंने अपने drawing के जरिये भी बताया है |
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लडसकयों के खेल में रूकावट हमे हमािे बचपन से ही ससखाया जाता है सक हमें कैसे औि सकन लोगो के साथ िहना है, सकसके साथ बात किना है, यहााँ तक सक सकसके साथ खेलना है | एक पुरुषप्रधान समाज में ज्यादाति असधकाि पुरुषों को सदए जातें है; औि औितों को दुय्यम दजाु सदया जाता है | इससे हमािे सदमाग में कुछ सवाल आते है - क्या लडसकयााँ समाज के दशाु ए हु ए कदम पि ही चलती िहेंगी ? क्या उसे अपने इच्छा पि ू ु किने का असधकाि नहीं ? औि क्यों आज लडके औि लड़सकयों के बीच खेल को लेकि भी भेदभाव सकया जाता है? स्त्रीयों के साथ भेदभाव पढाई, घि के काम, शादी तक ही सीसमत नहीं है, बल्की उनके खेलने में भी भेदभाव होता है | भेदभाव की बात किे तो सबसे पहले हमािे सदमाग में लैंसगक भेदभाव होता है | यह हमािे भाितीय सिंस्कृसत में बहु त ज्यादा सदखाई देता है | हमें लडसकयों ने बताया की उनके बहु त सािे दोस्त है जो की लड़के है पि वो उनके साथ नहीं खेल पाते क्योंसक उनके माता सपता कहते है की “ लडको के साथ खेलना मना है ... मत खेलो” | इस सोच को दोहिाते हु ए एक मााँ ने कहा सक आज कल के बच्चो की नीयत सही नहीं है, इसीसलए वे अपनी बसच्चयों को लड़कों के साथ खेलने के सलए मना किते है | अपने कायु को आगे बढ़ाते हु ए हमने कुछ औि मााँ-बाप से बातें की तो हमें एक औि बड़ा कािि पता चला की वे अपनी लडसकयों को क्यों बाहि नहीं भेजते | उनके कहने के अनुसाि मोहल्ले में कुछ ऐसे लोग भी िहते है जो उनकी लडसकयों के सलए खतिा पैदा कि सकते है | वे लोग नशा किते है औि आती जाती लडसकयों को छे ड़ते है | इससलए माता-सपता अपने लड़सकयों को घि के अन्दि ही िखते है, बाहि जाने नहीं दे ते | अगि कोई लड़की आकि बाहि खेले भी तो आज ू बाज ू वाले सचल्लाने लगते है, सजससे माता-सपता प्रभासवत होकि वे अपने लड़सकयों को बाहि जाने से िोकते है | यही बात हमे स्पष्ट हु ई जब हमने लडसकयों से बातचीत की, ‘कभी कबाि हमािे माता सपता तो सहमसत दे ते है लेसकन हमािे समाज की सोच हमािी इच्छाओ से बड़ी हो जाती है |’ समाज के बिंधन को समझाते हु ए एक participant ने बताया सक जब वो १५ साल की थी वो अपने घि के सामने गली में िस्सी-उडी खेल िही थी, तब वहााँ पि िहनेवाली एक नानी ने उसे कहा, “इतनी बड़ी हो कि बच्चे जैसी हिकत कि िही है | औि सचल्ला कि कहा की ‘छोकिों को जवानी सदखा िही है’ औि सर्ि गिंदी गिंदी गाली दे ने लगी |” इस अनुभव द्वािा हमें यह स्पष्ट होता है की समाज लडसकयों के खेल में ना ससर्ु बाधाए डाल िहा है बल्की उनके साथ बुिा बताु व भी कि िहा है | हमे हमािे सिंशोधन से पता चला की लडसकयों पि लैंसगक भेदभाव का माध्यम कभी धमु औि जात भी बनते है | जैसे सक मुसस्लम नगि में मुसलमान धमु के लोग िहतें हैं, वहािं की लड़सकयािं घि के बाहि नहीं खेलती क्योंकी उन्हें बाहि खेलना मना हैं | वही ाँ पि कुिंसचकोवे समाज की एक मसहला िसहवासी ने बताया सक “ऐसा है ना हमािे जात में लड़सकयों को ज्यादा खेलने नहीं दे ते | लड़सकयािं बाहि जायेंगी, 35
लड़के लोग दे खेंगे तो अच्छा नहीं है |” इन सभी व्यसक्तगत अनुभवों से हमे यह लगता है की पुरुष प्रधानता समाज में साथ ही साथ धमु में भी सदखाई दे ता है |
सनष्कषु इस सिंशोधन में हमे पता चला सक मुख्य तौि पि इस सुिक्षा के मुद्दे से भी ज्यादाति मााँ बाप अपनी लडसकयों को खेलने के सलए भेजने पि सझझकते है | लोग कहते है लडसकयााँ घि की लक्ष्मी होती है, वे इस लक्ष्मी को खोना नहीं चाहते | हि कोई मााँ-बाप चाहता है सक उनकी लाडली एक सखलसखलाता हु आ, सुखमय बचपन व्यतीत किे पििं तु माहौल के बदलने के कािि जो बाधा उनके सामने आ िही है वह है सुिक्षा की | तो क्या केवल लड़सकयों को घि के अन्दि िखना ही इस बात का समाधान है ? इस सिु क्षा के सवषय पि जो बहु त ही आम चीज़ हमें हि एक मााँ बाप से जानने समली वे थी लडसकयों को लड़कों के साथ खेलने पि इनकाि | ज्यादाति लोगो का लडसकयों को लडको के साथ ना खेलने भेजने का कािि जासतवादक था | सुिक्षा का महत्त्व दौिाहते हु ए कई लोगो का यह भी कहना है की अगि उनके सलए गाडु न हो तो उसमें सेक्युरिटी गाडु भी होना ज़रूिी है, तासक वहा पि खेल िही लडसकयों के साथ छे ड़छाड़ ना हो | इस प्रकाि हमे यह पता चला की सुिक्षा सकतनी एहसमयत िखती है जब माता सपता अपने लड़सकयों के खेल के बािे में सोचते है |
सक्रदयों से क्रमल रहा लड़कों को प्रथम स्थान, आक्रखर कब क्रमलेगा लड़क्रकयों को यह सम्मान ? समाज के भेदभाव मे ये कै सा अभाव हुआ, लड़कों का खेलना खेल यहााँ और लडक्रकयों का खेलना क्रखलवाड़ हुआ |
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खेलने की जगह को लेकि अपेक्षा उनके सपनों का गाडु न है कुछ इस तिह, कोई पिंछी खुली हवा में सािंस लेता है सजस तिह। वहााँ भेदभाव का न कोई सनशान हो , लड़के लडसकयााँ खेले सिंग औि बस खुला आसमान हो।
हो सािी जरूितों की चीज़ें वहााँ पि, पीने का पानी, दुकानें औि शौच घि। मनोििं जन के सलए भी हो साधन, हो र्व्वािे औि सस्वसमिंगपल ू सजससे ले वो आनिंद। उम्मीद है उन्हें एक सुिक्षा की , आधुसनक युग मे िक्षा की ।
चाहते है वो ऐसा माहौल जो हो महर्ूज़ , जहााँ कोने कोने पि हो CCTV का use | अगि हो सके तो कि दो एक wish पिू ी , वॉचमैन हो गाडु न मे औि खतिा बनाए िखे दुिी । टाइम औि एिं ट्री र्ीस का ना हो सकसी भी गाडु न मे मेंशन , बच्चे खेल सके वहााँ without टेंशन। 37
उम्मीद है उन्हें उस सर्ाई से, क्योंसक खेल िहे गन्दगी में वे बड़ी कसिनाई से। चाहते है वे, कचिे का सडब्बा वही आस पास हो, औि खेलने की जगह पि पथिो के बदले घास हो।
यसद कभी खेलते वक्त चोट लग जाए, तोह तुििंत प्राथसमक उपचाि (first aid box) समल पाये। माता सपता की उम्मीद है दस ू िी तिर् ये, की भले ही घास ना हो बस बच्चों को खल ु ा मैदान समले।
गुज़ारिश है उनकी उन मैदानों से, सजस पि आज इमाितें बन गयी है, पासकिंग ने ले ली जगह औि खेलने की जगह कम हो गयी है।
अपेक्षा है उनकी सिकाि से भी, वे कि सकते है बहु त कुछ, पि किते कुछ नही | सब ने उम्मीदें तो बहु त की है, उनकी एक उम्मीद हम से भी है,
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हााँ याद है , जब कहा था उस मासम ू बच्चे ने , एक भिी उदासी से, “पटिी पि खेलते खेलते बहु त बाि, मे िे दोस्त बन गए हादसे का सशकाि। क्या उन्हें वापस ला सकते है आप, क्योंसक बहु त मन है खेलने का उनके साथ|”
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सनष्कषु पहले खेलते थे बच्चे खुली जगह में , ये सुनकि लगा सक, कोई पिंछी उड िहा है खुली हवा में । जब सुना सक अब खेलने की जगह नहीं, तो लगा वे उड़ते पिंछी सपिंजिे में कैद हो गए कही। रिसचु किने से पहले हम यह समझते थे सक सपिंजिे में कैद हु आ पिंछी अथाु त बच्चे ज्यादा नहीं खेल पा िहे है । पिंछी का जब की लोहे का सपिंजिा होता है, पि बच्चों का सपिंजिा कहीं ने कहीं बना है, मााँ बाप के डि औि प्याि से । वे अपने बच्चों के भसवष्य के बािे में सोचते है औि उनको पढा –सलखा कि कुछ बनाना चाहते । पििं तु पढाई औि ट्यश ू न जब पहले आता है तो खेलने के सलए बच्चो को ज्यादा समय नहीं समल पाता है | यसद उन्हें थोडा समय समल भी जाता है तो वे आस पास खेलने की जगह न उपलब्ध होने पि गसलयों में खेलते है | कहा जाता है सक खेल से बच्चों का मानससक औि शारििीक सवकास होता है। लेसकन आज कल इसका उल्टा ही हो िहा है सक 'आज खेलने की जगह ही हादसे का कािि बन गई है '। ज्यादाति दे खा गया है सक जहााँ बच्चे खेलते है वहािं पि खल ु े गटि औि गन्दगी नहीं तो तेज़ गासड़यािं होती है | इन सब के वजह से वे अक्सि हादसे के या सर्ि बीमािीयों के सशकाि बन जाते है। बाहि के ख़िाब माहौल को दे खते हु ए माता-सपता अपने डि के वजह से बच्चों के सामने सुिक्षा नाम का सपिंजिा भी बना दे ते है, खासकि के लड़सकयों के सामने । माहौल में हो िहे लड़सकयों के प्रसत जुमु, जैसे िे प, अपहिि औि छे ड़छाड़, को होते हु ए दे खकि माता सपता डि से अपनी लड़सकयों को बाहि नहीं भेजते सजसके कािि ज्यादाति लड़सकयााँ घि पि ही खेलती है। साथ ही में जब लड़सकयााँ बड़ी होती है तो समाज औि परिवाि उनके बाहि खेलने पि पाबिंदी लगा देते है । माता सपता के मन में यह डि केवल लड़सकयों के सलए ही नहीं होता बसल्क लड़को के सलए भी होता है, सक कही उनका लड़का आसपास में हो िहे गाली गलोच या नशे के चक्कि में ना पड़ जाए । खेलने की जगह पि इन सब कसिनाईयों का सामना किने के बावजदू बच्चे वहााँ पि खेलते है । जगह में कुछ कुछ कसिनाईयािं वहािं को लोग भी पैदा किते, जैसे की गिंदगी सजसके वजह से चोट भी औि उनका सेहत भी सबगढ़ सकती है | इससलए खेलते समय बच्चे अपेक्षा िखते है सक उनकी जगह पि सुिक्षा औि सर्ाई हो | औि यह केवल सिकाि के सहयोग से मुमसकन नही हो पाएगा बसल्क इसमें समाज के सहयोग की भी जरूित होगी | यसद सिकाि ने कचिे के सडब्बे की सुसवधा दे भी दी, वहािं पि िहने वाले कई लोगो को अपने आदत बदलने होंगे है सजससे वे कचिा को इधि उधि न र्ेंकें | इससलए ज़रूिी है की
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सिकाि अपनी सज़म्मे दािी उिाके सडब्बे दें औि समाज के लोग, नागरिक होने के नाते, अपनी सज़म्मेदािी सनभाये औि जगह को साफ़ िखें | यही समाज की दस ू िी भी सजम्मे दािी होती है सक वे बच्चो के सलए खेलने की जगह को ध्यान में िखकि ही खुली जगह को खुली छोड़े | आज कल लोगों के ख्वाइशें बढती नज़ि आ िही | इस के कािि उनके घिों की दीवािें बाहि आने लगी है | साथ ही में कुछ नए चीज़, जैसे गासड़यािं औि बाइक, बाहि की खल ु ी जगह को पासकिंग के समय घेि लेते है | लोगों की यह सज़म्मेदािी बनती की वे अपने चीज़ों से सविं जसनक जगहों न भिें | इससे शायद बच्चों को खेलने के सलए ज्यादा जगह समलेगी | लेसकन सिकाि की भी कुछ सज़म्मे दािी बनती है | लोगों ने अपने शहि के सवकास के सलए उन्हें चुना है | शहि के सवकास का एक भाग होता है पाक्सु , गाडु न औि मैदान लगाना तासक सब लोग खुली जगहों का र्ायदा उिा सके | पििं तु आज के सदन सवकास के नाम पि खल ु ी जगह का इस्तेमाल बड़ी-बड़ी इमािते बनाने के सलए की जा िही है, सजसके कािि बच्चो को खेलने के सलए उतनी जगह नहीं समल पा िही है | जब सिकाि सवकास के सलए खुली जगह का सनयोजन किती है तो ये भी ज़रूिी होता है की वे सभी स्तिों के लोगों को शासमल किे चाहे वो बच्चे, जवान या बढ़ ू े हो, क्योंसक यह उनकी जरूितों से जड ु ा है | दुसनयाभि में बहु त से लोगो ने ऐसी कोसशशें की है | लौइस चावला ने ‘Growing Up In an Urbanising World’ में बताया की उन्होंने ८ असवकससत क्षेत्रो को चुना सजनमे बेंगलुरु का सत्यनगि भी शासमल था | वहािं पि बच्चो के साथ समलकि local design औि policy पि चचाु की (चावला, २००४)| वैसे ही कैिकस, वेनेज़एु ला में ‘बारिओ पसब्लक स्पेस प्रोजेक्ट’ ने बच्चों के साथ समलकि उनके जगहों का सवकास प्लान भी बनवाया है (सबस्वास, २०१३) | इस तिह बच्चो को अपने खेलने की जगह का design औि policy बनाने में शासमल किना चासहए तासक वह जगह उनके खेल के सलया ज्यादा उपयुक्त बने | आज बच्चे सपिंजिे में कैद एक पिंछी की तिह है सजनके पास खेलने के सलए उतनी जगह नही | अगि इनको इस सपिंजिे से छुडवाना है तो यह सिकाि औि समाज के सहयोग से ही हो सकता है | तभी ही बच्चे आज़ाद पिंसछयों की तिह सपिंजिे के बाहि आकि खल ु े मैदान में खेल सकेंगे |
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सुझाव इस इमाितों भिी शहि में खुली जगहों का होना बहु त ज़रूिी है तासक लोग सााँस ले सके, चल-सर्ि सके, ख़ास तौि पे बच्चे खेल-कूद सके | यह जगह सबके सलए महत्वपि ू ु है इससलए जब शहि का सनयोजन होता है तो सिकाि को उस खल ु ी जगह का ध्यान िखना चासहए | हमे लगता है सक शहि में खुलीं जगह सावु जसनक होनी चासहए क्योंसक इन जगहों का इस्तेमाल बच्चो के खेल-कूद, बड़े बुज़ग ु ु के बैिने के सलए औि लोगों को इकठ्ठा आने के सलए होना चासहए | जैसे की खुली जगह पि सबका असधकाि है तो उस जगह के सनयोजन में भी उनका सहभाग होना चासहए | इन खुली जगहों को लोगों के साथ साथ बच्चो को ध्यान में िख कि स्थासपत सकये जाने चासहए | इससलए गाडु न , पाकु बनाते समय सिकाि को लोगों औि बच्चो से िाय लेना चासहए; उनको भी इसमें भासगदाि बनाना चासहए, तासक वे अपने ज़रूिते को बताते हु ए खुली जगह की सनयोजन में भाग ले सके | इस के साथ ही समाज को भी सुिसक्षत माहौल बनाने में सहयोग दे ना चासहए, तासक माता सपता अपने बच्चों, कास कि के लडसकयों, को भेज सके | लडसकयााँ भी खद ु को उस जगह पि सुिसक्षत महसस ू किते हु ए खेल सके औि वे अपने बचपन को खुल कि जी सके | लड़सकयों की सिु क्षा के साथ साथ जनता को यह भी ध्यान में िखना होगा की वे इन खल ु ी जगहों का इस्तेमाल ससर्ु अपने सनजी सुसवधाओिं के सलए न किे , जैसे घि बनाना, पासकिंग किना औि ना ही उस जगह पि कूड़ा-कचिा र्ेंके | साथ ही उन्हें कोई भी चीजों का इस्तमाल उन जगहों पि नहीं किना चासहए सजससे लोगों को हासन पहु िंचे, जैसे धुम्रपान, मद्यपान | इस तिह लोगों के सलए उतनी ही ज़रूिी है खुली जगहों का दे खभाल किना सजतना है सिकाि को, क्योंसक अिंत में तुम उस चीज़ पि अपना असधकाि बोल सकते हो जब तुमने उसके तिर् पिू े हद्द तक अपनी सज़म्मे दािी सनभायी |
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ग्रुप प्रसक्रया हमािा ग्रुप प्रोसेस हमािे सलए एक सर्ल्म की तिह है सजसमे action, drama, comedy aur dostana-love भी है | सर्ल्म की शुरुवात G. N. Khalsa College से होती है; यथ ू लीडसु एस चेंज मेकसु के बािे में हमें हमािे कॉलेज के छात्रों से पता चला | जैसे सकसी भी सफ़ि पि जाने के सलए हमे साधनो की आवशकता होती है, वैसे ही गुनवती जे कपिू र्ाउिं डेशन हमािे सलए एक साधन बना | इस सफ़ि की सटकेट तब कटी जब हम सभी को एक इिंटिव्य ू से गुज़िना था | कई बच्चो की सटकेट कन्र्मु हु ई यािंनी वे सब सेलेक्ट हो गए औि कई लोग वेसटिंग सलस्ट में थे | बहु त लोगों को इस बात की सनिाशा थी की उनके कई दोस्त सेलेक्ट नहीं हो पाए | औि जो सेलेक्ट हु ए उने इस बात की सचिंता थी की वे अपने मााँ बाप को कैसे मनाये | इिंटिव्य ू से पहे ले बहु त से र्ेलोस घबिाये हु ए थे की आगे क्या होगा ? हमािे सफ़ि का पहला कदम ओरिएिं टेशन से शुरू हु आ | हमने वहा पि एक एसक्टसवटी की मन ू पि जाना था सबना सकसी का हाथ छोड़े हमने इस एसक्टसवटी से ग्रुप बौंसडिं ग कैसे किते है यह सीखा | ‘सोला का सोला तम्बोला’ इस एसक्टसवटी से हमने नए लोगो को आसानी से जानने का मौका समला | औि हमािे इस ओरिएिं टेशन में हमािे सफ़ि को आगे लेजाने वाले ग्रुप भी समल गए सजसके साथ पिू ा साल हमें काम किना था |
Orientation से लौट के हमािी meeting हमािे सिंचालक के साथ हु ई | हमािे सिंचालक हमें अपनी खद ु की सज़न्दगी को दशाु ते हु ए आत्माकथन सलखने को कहा; जब हम अपनी खट्टी मीिी यादों को सलख िहे थे तो सकसी के आाँखों में आिंसू आ गए, तो सकसी के होिों पि मुस्किाहट आ गयी ये प्रसक्रया हमािे सदल को छू गयी| 43
एक दुसिे को थोडा समझने औि पहचानने के बाद हमने अपना टॉसपक ससलेक्ट किना शुरू सकया इसके सलए हमने लोगो से बात सकये हमािे एरिया में औि प्रॉब्लम जाने, जो ज़्यादाति पानी, गटि, सबजली औि जगह कम होना | आखिी मुद्दा हम सब को बहु त महत्वपि ू ु लगा क्योंसक हम उस सस्थसत से गज़ ु िे है औि इसी तिह हम अपने टॉसपक तक पिंहुच गए ‘खुली जगह की तलाश बच्चों के मन में खेलने की आस’ औि हमे हमािे ग्रुप का नाम भी समल गया “तलाश” | इस ही दौिान हमािे ग्रुप में कुछ नए मे म्बि भी जड़ ु े पहले तो हमें उनसे थोड़ी तकलीर् क्योंसक जो पहले के ग्रुप मे म्बेसु एक दुसिे को जानते थे औि जो अभी नए आये थे उन्हें हम नहीं जानते थे पिन्तु वक़्त के साथ हम एक दुसिे में घुल समल गए औि हम सब तलाश नामक गाड़ी में चढ़ गए जो उस गाड़ी में सफ़ि कि िहे थे वो कुछ इस तिह थे |
१. Aarti – गुमशुदा
२. Afsana – कनर्ूजन की दुकान
३. Gyan – समस्टि इिंसडया
४. Sainath – लापता गिंज
५. Humaira – सहटलि
६. Harjeet – खलनायक
७. Laveena – लासर्िंग बुद्धा
८. Pooja – रिमाइिंडि
९. Neetu – लेट लतीफ़
१०. Sajida – जिंसपिंग जैक
११. Khushbu – खट्टी समट्ठी
१२. Vinod – नौटिंकी
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हमािे सफ़ल्मी ससतािों का सफ़ि शुरू हु आ… हमािी गाड़ी का पहला स्टॉप र्ील्ड सवसज़ट पि आ कि रुकी औि हमने अपना एरिया चन ु ना शुरू कि सदया | र्ील्ड सवसज़ट के दौिान हम अलग-अलग एरिया में गए जैसे वडाला ट्रक टसमु नस, अन्टोप सहल औि दोस्ती एकड़ | लेसकन हम ये जगह चुन नहीं पाए क्योंसक जगह बहु त दिू थे सजसकी वजह से हमािे आसथु क सस्थसत में भी समस्या हो िही थी इस कािि हमने अपने घि के पास वाले एरिया को चुना, वे थे ‘इिंसदिा नगि’ औि ‘बिंगाली पुिा’|
हमािा अगला स्टेशन था ‘वकुशॉप’ इस स्टेशन में हमने हमािे सिंशोधन के कायु में आने वाली टूल्स का उपयोग सीखा जैसे इिंटिव्य,ू र्ोटोग्रार्ी, मैसपिंग, FGD औि Literature review, आसद | इन वोक्शोप्स में कई वोक्शोप्स ऐसे ही हु ए जो हम सभी र्ेलोस के सलए यादगाि िहे , जैसे की एक वकुशॉप था धमु पि जहा हमें ‘धमु ’ नामक एक मवू ी सदखाई गयी थी | यह वकुशॉप हु ब्नाथ पािंडे द्वािा सिंचासलत सकया गया था, सजससे हमें यह सीख समली की इिंसान का सबसे बड़ा धमु इिंसासनयत ही होता है |
दूसिा एक वकुशॉप था ‘जाती’ को लेकि जो सक अिंज ू उप्पल ने सिंचासलत सकया था | इस वकुशॉप में आिक्षि के मुद्दे पि चचाु की गयी, सजसमें यह सवाल पछ ू ा गया था की “क्या पढाई में आिक्षि एक दूजे से कोम्प्रोमाइसेस है” तो इसके साथ साथ हमािी सोच में भी कही न कही बदलाव हु आ
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अगला अध्याय था गि ु वती जे कपिू के सदस्यों से मेल समलाप औि उनसे इस सफ़ि से जड़ ु े िहने का अनुभव जानना | उनके साथ हमािी मीसटिंग उनके विली के कायाु लय में हु ई | वहा हमािा बहु त ही प्रेम से स्वागत हु आ उनकी किायी हु ई कई एसक्टसवटीज में जो सभी को बहु त पसिंद आई, वे थी “Story Making” | इस एसक्टसवटी के द्वािा सभी र्ेलोस ने अलग-अलग ढिं ग से अपनी जीवन गाथा को दसषु त सकया इस प्रसक्रया द्वािा हमने यह दे खा की पहले से लेकि अब तक हमािे अन्दि सकतना बदलाव हु आ है|
हमािे सवषय के बािे में औि असधक जानने के सलए हमने “ कािपासलया” से बातचीत की जो की “Nagar NGO” से जड ु ी है औि इसी सवषय पि काम कि िही है | इनके मुतासबक “खुली जगह बहु त ज़रूिी है क्यों की वहा पि की जाने वाली एसक्टसवटीज से बच्चो की हेल्थ भी अच्छे होती है औि फ्रेश भी िहते है औि OPEN SPACE सब के सलए होनी चासहए औि वे इतनी भी दिू नहीं होनी चासहए की रिक्शा या बस से जाना पड़े | औि उनका ये भी कहना था की OPEN SPACE हमेशा क्लीन िहना चासहए औि OPEN SPACE क्लीन िहने के सकले उन्होंने खुद कदम उिाया है उदाहिि ओवल मैदान उन्होंने क्लीन किवाया है |
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सजस तिह ये सफ़ि सुनहिा था उसी तिह ये कसिनाईयों से भी भिा था पि इन कसिनाईयों का सामना हमें हमािे “Field Visit” के दौिान किना पड़ा | वहा के लड़कों का हमािे ग्रुप की लड़सकयों के तिर् सजस तिह दे खे, कमें ट पास सकये औि गाना गाये, तो हमें uncomfortable लगा पिन्तु उसके साथ ही हमें पता चला की सजस तिह हमािे साथ यह व्यवहाि कि िहे है तो हम सोच ही सकते है की वहााँ पि िहने वाली लड़सकयों के साथ क्या होता होगा| इससलए हमने लड़सकयों के साथ अलग F.G.D सलए क्योंसक हम उनके बािे में जान सके इस र्ील्ड सवसज़ट के दौिान हमें अच्छे लोग भी समले जो हमािे सलए सहायक थे जैसे हमें समय दे ना औि हमसे बात किना, सजस जगह हमें जाना है उस जगह के बािे में बताना, आसद| उनके वजह से हमािे सिंशोधन में आसानी हु ई| हमने हमािे सिंशोधन में र्ोटोग्रार्ी टूल का उपयोग सकया था | इस प्रसक्रया में हमको कुछ तकलीर्ों का सामना किना पड़ा जैसे जगह न समल पाने के कािि हमे कड़ी धुप में खड़े िहना पड़ा, साथ ही साथ वहा पि ट्रेन का आना जाना ट्रेन की आवाज़ से हमको बच्चो की बाते समझ में नहीं आ िही थी | इन सभी पिे शासनयों के बावजदू बच्चो ने इस प्रसक्रया में बढ़ चढ़ कि सहस्सा सलया क्यों की यह प्रसकया बच्चो के साथ साथ हमािे सलये भी कुछ अलग थी औि मज़ेदाि थी | अब हम अपने स्टेशन के अहम पड़ाव पि पहु ाँचने वाले थे जो था data analysis | यह हमािे सिंशोधन का मुख्य पड़ाव है; सजस तिह गन्ने का िस सनकालने के सलए उसे सनचोड़ना पड़ता है उसी तिह हमािे सवषयों से समली जानकािी को छाटना पड़ा | यह समय हमािे सलए बहु त ही मुसश्कल भिा था क्याँ ू की हमें उसमे कार्ी समय दे ना पडा, सजसके वजह से हमें घि जाने में दे िी हो जाती है सजसके कािि पेिेंट्स भी सचल्लाते है | पिू ा रिपोटु सलखने के बाद हमें ऐसा लगा की हमने समाज की ओि एक कदम बढाया|
अब हम कुछ recap में जाते है औि हमािे दोस्तों के action, drama, comedy, दोस्ताना लव औि खट्टी मीिी यादों के बािे में जानेंगे –
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Action:- हमािे सर्ल्म की शुरुवात बहु त सािे action से से हु ई | छोटी-छोटी चीजों को लेकि बहस होते थे | ग्रुप कामों को लेकि उससे पहले भी बहु त सािी ऐसी छोटी छोटी Fight सब की हो चुकी है | औि सर्ि active listening का जब वकुशॉप था औि उस सदन बहु त बड़ी Fight हु ई थी | उस ही जगह पि पन ू म, जो की workshop ले िही थी, ने हमें यह सीख सक दी जो भी सदल में है वो बोल दो औि सच बोलो | इस वजह से हमािे झगडे कम हो गए इससलये हमने यह तय सकया जो जैसा है उसको हम वैसे ही स्वीकाि किें गे जो झगडे होते थे उन झगड़ों को नज़िअिंदाज़ किते हु ए हम आगे बढें गे औि उस वकुशॉप के बाद सब अच्छा हु आ | तो सजस तिह आप ने हमािे सर्ल्म में action दे खा अब उसी तिह drama का भी मज़ा लीसजये|
Drama:- अगि हम हमािे ग्रपु की बात किे तो हमािे ग्रपु में सभी ड्रामे-बाज़ है | हमें ऐसा लगता है की हमें सकसी नोटिंकी में होना चासहए था वो रिमाइिंडि का काम दे ख कि सि दुखना शुरू हो जाना, सबना बात के लापता गिंज का जोि जोि से हसना औि उसकी हसी पि जिंसपिंग जैक ताली बजा कि हसना औि वो नोटिंकी का सभी डायिे क्टि की नक़ल किना | Comedy:- सजस तिह कसपल शमाु कॉमेडी कि कि के लोगों को हसाता है | उसी तिह हमािे ग्रुप का मे म्बि, सजसे हम नौटिंकी कहते है, वो भी Comedy कि के हमें खबू हसाता है | हमािे डायिे क्टि औि समत्रों को लगता है की हम सब मस्ती किते है, पिन्तु ऐसा कुछ भी नहीं था हम मस्ती के साथ साथ काम भी मज़े से किते थे| जो हमािी सहटलि दीदी थी वे भी कार्ी मस्ती किती थी इनका कहना है की मैने अपने गुस्से पि भी काबू सकया अपने दोस्तों की मजाक मस्ती से | हमािे सफ़ि में एक औि कॉमेडी का सकस्सा ट्रेन में हु आ | हमािे वकुशॉप्स तक पहु ाँचने के सलए हम सभी लोग ट्रेन से यात्रा किते थे; एक समय की बात है ट्रेन में सर्ि किते समय जो हमािे ग्रुप की मे म्बि है गुमशुदा वो मछली की टोकिी में सगि गयी थी| आप ने हमािे सर्ल्म में एक्शन दे खा, ड्रामा दे खा, कॉमे डी दे खी अब बािी है हमािे दोस्ताना-love की सजस तिह मलाई के सबना लस्सी अधिू ी है उसी तिह प्याि के सबना सर्ल्म अधिू ी है|
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हमािे ग्रुप में लोगों के सलए dostana-प्याि :- हमािे तलाश ग्रुप के जो मे म्बेसु है वो एक र्ॅसमली के जैसी है | हम सब का एक साथ वकुशॉप जाना औि साथ में ही घि आना, ट्रेन में सेल्र्ी सनकलना औि लोगो का हमािी ओि दे खकि हसना | वकुशॉप के समय हमािी सहटलि दीदी, खट्टी मीिी औि उसके साथ साथ रिमाइिंडि औि लासर्िंग बुद्धा का वकुशॉप के समय घडी की तिर् दे खकि लिंच टाइम का इिंतज़ाि किना | वो हमािी लेट लतीफ़ का हि बात पि “ayyii” बोलना | जब कोई एक समत्र दुखी होता था या उसकी आाँखों में आिंसू आते थे तो उसके प्रसत हम सभी सर्क्र औि प्याि सदखाते थे | हमािे सर्ि की खट्टी-मीिी यादे अगि खट्टी-मीिी यादों की बात किे तो उसमे से मीिी यादें है हमािा सेल्र् असेसमें ट हु आ था तब हमािी र्ै सससलटेटि मानसी ने हमािी समस्या सुनी औि हमें positive ही िखा औि हमको observe किते समय उन्होंने हमािी कसमया औि खुसबया दोनों बताई | औि सर्ि इिंटिव्य ू लेते समय जो हमािे प्रसतसनसध थे हमने उनकी बाते बहु त अच्छे से सुनी इसके कािि हम सब के अन्दि सहनशीलता (patience) आयी | ग्रुप के साथ काम किना, ग्रािंट बािंटना आसद काम हमने सकया| इस सफ़ि से हमने यह सीखा है की कोई भी सवाल या जवाब व्यथु नहीं होता | हमको हि सकसी से कुछ न कुछ सीखने समलता है औि सबको एक समान समझना चासहए यह बाते हमने caste वकुशॉप्स से सीखा| ये थी हमािे सफ़ि की कुछ मीिी यादें अब हम चलते है खट्टी यादों की ओि जो की कुछ इस तिह है; वकुशॉप की लम्बी लम्बी PPT, मीसटिंग का दो बजे की जगह पािंच बजे तक ख़तम होना औि साथ ही साथ ग्रपु की मे म्बि का ना होना औि देि से आना | पिन्तु समय की कमी की वजह से हमें ग्रुप सवभासजत किना पड़ा सजसके कािि ग्रुप्स के कुछ मे म्बि दुखी हु ए औि वो जगह थी “इिंसदिा नगि” औि “बिंगासलपुिा”. हमािी सर्ल्म में डायिे क्टि भी है औि ये हमािे र्ै सससलटेि | वैसे हमािे सर्ल्म की किता धिता Manasi हैं पि हमको Rohan aur Sunil ने भी बहु त मदद की है | Rohan सजसके एक्साम्पेल होते है कमाल औि वोह कि दे ते है धमाल | Sunil जो हमािे सिंशोधन में एक motivation है; उनकी knowledge लाजवाब है हमािे हि 49
doubt का जवाब है Sunil | Manasi हमािी इस पिू ी यात्रा हमािे साथ िही है हमने उनसे बोहत कुछ ससखा है; औि जो एक्स्ट्रा ससखा है वह है positivity | रुको रुको अभी सर्ल्म ख़तम नहीं हु ई… हमािे सर्ल्म में प्रोडूसि डायिे क्टि है Gunvati J. Kapoor Foundation, Khalsa College औि PUKAR सजन्होंने हमें हि रूप में सहायता की है | औि इस तिह हमािी सर्ल्म औि जनी कम्प्लीट होती है with a happy ending...
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हमािा सफ़ि Nitu Gupta
Lavina D’Silva
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Aarti Sahani
Harjeet Singh Rajput:-
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Sajida:-
Sainath .S. Medar:-
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Sayyed Humaira:-
Vinod Kanojiya:-
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Pooja Jarupti:-
Khushbu Shaikh:-
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Afsana Shaikh:-
Gyaan Singh Yadav:-
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Appendix १ – बच्चों के सलए अनुमसत पत्र
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Appendix २ – माता-सपता के सलए अनुमसत पत्र
शीषु क: खुली जगह की तलाश, बच्चो के मन में खेलने की आस | नमस्काि हम १२ सवद्याथीयों का ग्रुप है, जो यूथ लीडसु एस चेंज मेकसु फ़ेलोसशप के सदस्य है | यह फ़ेलोसशप गुिवती जे कपूि मेसडकल रिसलर् चैरिटेबल र्ाउिं डेशन, पुकाि औि गुरु नानक खालसा कॉलेज की तिर् से है | हमने यह सवषय चुना है क्योंकी आज मुिंबई शहि मे केवल ६% ओपन स्पेसेस बचे हु ए है | इसी कािि अक्सि बच्चे सड़कों, िे लवे लाइन्स औि गसलयों में खेलते हु ए पाए जाते है | हम चाहते है सक इस टॉसपक से जुड़े आप अपने सोच-सवचाि हमािे साथ बािंटे | इससलए हम आपसे सवनती किते है की आप ४५-६० समनट दे, सजसमे हम आपसे हमािे रिसचु से जुडे कुछ सवाल किना चाहें गे | इस इिंटिव्यू की प्रसक्रया में आप अगि सकसी सवाल का जवाब नहीं दे ना चाहते हो तो आप हमे िोक सकते है | हम आपको सवश्वास सदलाते है की जो भी जानकािी आप से समलेगी वो केवल रिसचु के सलए ही इस्तेमाल होगी औि आपका नाम औि पहचान गोपनीय िखा जाएगा| इसमे आप के द्वािा बताए गए कोई भी वाक्यों में हम बदलाव नहीं किें गे | आपसे हम अनुमसत लेना चाहेंगे इन चीजों के सलए रिकॉर्डिंग
फोटोग्राफी
सहभागी का नाम :
__________________________
र्िनाांक :
__________________________
जगह :
__________________________ हस्ताक्षि/अांगूठा
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Appendix ३ – माता-सपता के सलए प्रश्नावली 1. आप यहााँ सकतने सालो से िह िहे है ? 2. आप के सकतने बच्चे है ? 3. उनके नाम क्या है? 4. उनका उम्र क्या है अभी? 5. आप के बच्चे कहा पि खेलने जाते है ? 6. वह जगह सकसकी है? 7. क्या वह जगह बच्चो के खेलने के सलए कार्ी है ? 8. क्या उनको कभी वहािं खेलने में कुछ तकलीर् हु ई है? 9. आपके सहसाब से क्या वोह जगह सुिसक्षत है ? 10. ज्यादा ति वहा सकतनी उम्र के बच्चे खेलने जाते है ? 11. इससे पहले बच्चे कहा खेलते थे ? 12. अच्छा? जब आप बच्चे थे तब आप कहा खेलने जाता थे ... 13. क्या पहले के खेलने की प्रसक्रया आज से कुछ अलग है ? 14. अगि हााँ तो कैसे?क्याँ ू ? 15. क्या आपके बच्चो ने कभी भी आप से अपने खेलने की जगह को लेकि कोई कोई अपेक्षाए बताई है? 16. बच्चो के खेलने की जगहों को लेकि आप की क्या अपेक्षाए है ? 17. आपके सहसाब से खेल बच्चो के जीवन में क्या महत्त्व िखता है ? 18. इस सवषय से जुडी औि कोई जानकािी बता सकते हो ?
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आह ! कचिों से बचते हु ए पत्थिों से लग गई िोकि, पलके उिाई तो दे खा बच्चे खेल िहे है ऐसी जगह पि | कुछ सवाल मन में आया औि सर्ि मैंने कदम बढ़ाया, अचानक सकसी ने हाथ पकड़कि सकया पीछे , “ऐसे कैसे जा िही है, सदख नही िहा ट्रेन आ िही है |” मे िा ही सदमाग उस वक्त सर्ि गया था, जब एक बच्चे ने पटिी से बॉल उिाया था | सर्ि खुद को सम्भालते हु ए आगे कदम सकया , दिंग िह गयी मै, जब एक बच्चे ने सामने खड़ी इमाित की ओि इशािा सकया| “काश ये सबसल्डिं ग इस पटिी पि सगि जाये, सर्ि ये पटिी हो बिंद औि हम जी भि के खेल पाए | बातचीत तो केवल लडको से ही हो िही थी, आगे बढ़ी तो मुसश्कल से सदखी एक लडकी, जो अकेले ही खेल िही थी | पुछा जब तो वो बोली,”लडको के साथ खेलने मााँ किती है मना , नही खेलती ज्यादा अब क्योंसक अब बड़ी हो गई हू ाँ ना... औि यहााँ िे प हु आ है जब से, मै बाहि नही खे लती तब से |” बच्चे कब तक खेलेंगे ऐसे? एक सवाल उिा ख़ास, इसका जवाब है बच्चो, लोगो या सिकाि के पास?
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