गहरी जड़ें : अनवर सुहैल

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गहर

जड़

कथा सं ह

अनवर सुहैल


नीला हाथी

1 क पनी के काम से मुझे बलासपुर जाना था। मेरे फोरमेन खेलावन ने बताया क य द आप बाइ-रोड जा रहे ह तो कटघोरा के पास एक थान है वहां ज़ र जाएं। मेन रोड से एक कलोमीटर पहले बाइ तरफ जो सड़क िनकली है , उस पर बस मु कल से दो कलोमीटर पर एक मज़ार है । वह मज़ार तो मुसलमान का है ले कन वहां एक ह द ू अह र को पीर बाबा क सवार आती है । ये सवार आती है श वार को, इसिलए

येक श वार वहां मेला सा लगता है । अह र पर पीर

बाबा सवार होते ह और लोग क ज ासाओं का जवाब दे ते ह। मने खेलावन फोरमेन से कहा-’’अपने दे ष क यह तो वषेषता है , नेता जात-पात के नाम पर लोग को भड़काते ह और जनता है क दे खो कैसे घुली-िमली है ।’’ खेलावन फोरमेन मेर बात सुन कर खुष हआ ु , बोला-’’साहब, पछली दफा म वहां गया तो

जानते ह बड़ा चम कार हआ। जैसे ह म वहां पहंु चा, अह र पर पीर बाबा क सवार आइ हुइ ु

थी। भीड़ बहत ु थी। मने सोचा क इतनी भीड़ म दषन न हो पाएगा। ले कन तभी पीर बाबा क सवार बोली क दे खो तो कोतमा से कौन आया है ? लोग ने एक-दसरे क तरफ दे खना श ू

कया तब मने बाबा को बताया क बाबा म हंू खेलावन, कोतमा से आया हंू । तब पीर बाबा ने

मुझे अपने पास बुलाया और भभूित मेरे गाल पर मल द । मज़ार के बाहर जो अगरब यां जलती ह उनक राख क भभूित ह बाबा का साद होता है साहब। बताइए, ह न थान क म हमा!’’ मने उसे बताया क स भव हआ ु तो ज़ र वहां जाऊंगा। मुझे वैसे भी मज़ार म बड़

िच है । इसिलए नह ं क मुझे मज़ार म

क वहां आ था, बाज़ार और अंध व वास के नए-नए

ा है , ब क इसिलए

प दे खने को िमलते ह। ये मज़ार न होते

तो न होतीं इलायची दाना, रे वड़ क दकान। ये मज़ार न होते तो चादर , फूल और त बीहु मालाओं का कारोबार न चलता। ये मज़ार न होते तो कैसेट, इ , अगरब य के उ ोग का


या होता? ये मज़ार न होते तो क़ वािलये बेकार हो गए होते? ये मज़ार न होते तो

ालु

इतनी गै़र-ज़ र या ाएं न करते और बस-रे ल म भीड़ न होती। ये मज़ार न होते तो लड़का पैदा करने क इ छाएं दम तोड़ जातीं। ये मज़ार न होते तो जाद-ू टोने जैसे छुपे द ु मन से

आदमी कैसे लड़ता? ये मज़ार न होते तो खदमतगार , िभखा रय , चोर और बटमार को अ डा न िमलता?

“◌ा◌ायद इसीिलए मुझे मज़ारात म िच है । कटघोरा वाली मज़ार के बारे म जानकर लगा क चलो दे खा जाए य क कटघोरा म मेरा बचपन गुज़रा है । इसी बहाने पुरानी याद ताज़ा हो जाएंगी। खेलावन फोरमेन ने मुझे रा ते क बार कयां समझारइं् क कहां तक प क रोड है और कतनी दरू तक क ची सड़क है । मने सभी ववरण डायर म नोट कर िलया।

मेरे अ बू कटघोरा के हायर सेक डर

कूल म पढ़ाते थे। मने वहां िम डल कूल तक क ष ा

पाइ थी। फर अ बू का तबादला खरिसया हो गया। मने रायपुर इं जीिनय रं ग कॉलेज से मेकेिनकल इं जीिनय रं ग क और कोयला खदान म इं जीिनयर बन गया। मोषन पाते-पाते सुप रटे डट इं जीिनयर हो गया हंू ।

कटघोरा म चूं क हम सरकार आवास म रहते थे, इसिलए वहां फर जाना हो नह ं पाया था। अ बू ने रटायरमट के बाद रायपुर म मकान बना िलया सो कटघोरा से उनका भी कोइ िलंक न रहा।

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अपनी कार से म कटघोरा के पास पहंु चा तो खेलावन फोरमैन क बात याद हो आइ। मने

सोचा क पहले कटघोरा बस टड पहंु च कर चाय पी जाए फर आगे क सोची जाएगी। वैसे भी बस- टड ह कटघोरा का दय- थल है । वहां क चहल-पहल से पुरानी याद ताज़ा ह गी।

बचपन म दो त के साथ हम बस- टड आते थे। म बस- टड क कताब क दकान से पराग ु और नंदन जैसी बाल-प काएं खर दा करता था। सरकार आवास भी आगे सड़क के कनारे थे। हमारा वाटर सबसे कनारे था।

अ मी को बागवानी का “◌ा◌ौक था इसिलए वाटर के बगल म और पीछे नाले तक अ बू ने तार से घेरा बनवा दया था। कूल का चपरासी अ मी क बागवानी म मदद कया करता था। अ मी उस छोटे से कचन-गाडन म लहसुन, ह द , पपीता, अम द और केला लगवाया करती थीं। साग, धिनया और पुद ना भी होता। गुलाब, िलली और सेवंती क हआ ु करती थीं।

स दय के दन थे।

या रयां दे खने लायक


कटघोरा बस- टड म काफ भीड़-भाड़ थी। लोग धूप तापते हए ु बस का इं तज़ार कर रहे थे।

कुछ बस आ रह थीं, कुछ जा रह थीं। कोने क चाय गुमट के पास मने कार रोक और एक कड़क चाय कम चीनी क बनाने का आडर दया। पता नह ं य मुझे अ छे होटल म बैठ कर चाय पीने म मज़ा य नह ं आता? मुझे इसी तरह गुम टय म चाय पीना बहत ु अ छा लगता है । दकानदार ने ख़ास तव जो द और त परता से एक कड़क चाय बनाकर पेष क । ु चाय क चु कय के बीच म माहौल का जायज़ा लेने लगा।

बस- टड पहले से काफ भरा-पूरा हो गया है । इतनी दकान पहले कहां थीं? र े क जगह ु ऑटो ने ले ली है । कइ क पिनय के मोबाइल टॉवर दखलाइ पड़ रहे ह। चाय पीकर मने िसगरे ट सुलगाइ और कताब क दकान जा पहंु चा। वहां अब एक लड़का बैठा हआ ु ु था। प काओं पर एक िनगाह डालते हए ु मने पूछा-’’हं स है ?’’

लड़का मोबाइल का इयरफोन कान म ठू ं से कोइ गीत सुन रहा था। मेरा ु ले ली जए।’’ बोला-’’नह ं, बकता नह ं। इं डया-टडे

न सुनकर ज़ोर से

मने दे खा क वहां ‘वय क के िलए’ “◌ा◌ीषक िलए कइ रं ग- बरं गी प काएं द षत थीं। एक तरफ बाबा रामदे व क कताब और हनुमान चालीसा, गीता आ द अ य धािमक कताब थीं। मने िसगरे ट ख म क और कार टाट कर अपने उस वाटर क तरफ कार मोड़ द जहां मेरे बचपन के दन गुज़रे थे। मेन रोड के कनारे हमारा आवास अब ख डहर म त द ल हो चुका था। लगता है क अब सरकार ने नइ जगह कॉलोनी बना ली है । आवास से लगा नाला अब दखलाइ नह ं दे ता। वहां कइ अवैध मकान क पौध उग आइ है । तेजी से फैलते “◌ाहर करण का नमूना दे ख मेरा दल भर आया। मने कार वापस बलासपुर जाने वाली सड़क क तरफ मोड़ द । मुझे मज़ार भी जाना था। ितग डे पर आकर बलासपुर जाने वाली सड़क पर कार दौड़ रह थी। खेलावन फोरमैन ने बताया था क ितग डे से लगभग एक कलोमीटर बाद बाइ तरफ एक सड़क कटती है । उस पर एक कलोमीटर जाना है और वह ं मज़ार है । मने इ मीनान से कार चलाते हए ु मज़ार तक का सफ़र तय कया। दे खा क एक गु बदनुमा इमारत तैयार हो रह है । हरे रं ग का गु बद दरू से दखता है । दन के बारह बज रहे थे।

मज़ार के आस-पास आठ-दस दकान थीं, जनम चादर, फूल और “◌ा◌ीरनी बेची जाती है । मने ु कार एक कनारे खड़ क , जेब से

माल िनकाल कर िसर पर बांध िलया और एक दकान के ु

सामने जा खड़ा हआ। इस बीच कइ दक ु ु ानदार ने मुझे अपनी ओर आवाज़ दे कर बुलाना चाहा।


मने कहा-’’कोइ एक जगह ह जा पाउं गा भाइ!’’ दकानदार एक दबला -पतला वृ ु ु

था, जसने हरे रं ग का कुता और िसर पर हरे रं ग क टोपी

पहन रखी थी।

उसने मुझे सलाम कया और कहा-’’जूते उतार कर अंदर चले जाइए, वज़ू बना ली जए।’’ मने जूते उतारे और अंदर चला गया। वहां एक कोने म नल लगा था और बैठकर वज़ू बनाने क वज़ू बनाकर मने दकानदार से कहा-’’इं यावन ु

यव था थी।

पए क चादर और “◌ा◌ीरनी का जुगाड़ बना

द।’’

दकानदार ने ला टक क डिलया म एक हरे और लाल रं ग क चादर रखी, इ , अगरब ी और ु रे वड़ का पैकेट रखा। डिलया मने बड़

ा से िसर पर उठाइ और मज़ार क तरफ चल पड़ा।

कइ िभखार मेर ओर लपके। उनसे बचते-बुचाते गु बदनुमा मज़ार के अंदर म वेष कर गया। इससे पहले म जस मज़ार “◌ार फ़ म गया तो एक आ या मक “◌ा◌ा◌ंित का अनुभूित पाया था ले कन उस मज़ार म मुझे ऐसा एकदम नह ं लगा क कसी हानी जगह म दा ख़ल हो रहा हंू ।

हरा गु बद िसर पर सजाए वह एक बड़ा सा चौकोर कमरा था। सुनहरे रं ग के बाडर वाला एक खुषनुमा दरवाज़ा, जसके बाहर दोन तरफ लोग बैठे हए ु थे। सुनहरे दरवाज़े पर अरबी म कलमा िलखा हआ ु था।

‘लाइलाहा इ ल लाह, मुह मदरसू ु लु लाह’

मने बडे अदब से दरवाज़े क चौखट का एक हाथ से बोसा िलया और डिलया स भाले मज़ार के अंदर दा खल हआ। ु

मने मन ह मन मज़ार को सलाम कया-’’अ सलामो अलैकुम या अहले कुबूर!’’ फर मने अंदर का जाएज़ा िलया। वहां मने दे खा क हरा चोगा पहने एक आदमी मज़ार क तरफ मुंह कए कुछ बुदबुदा रहा है । उसक पीठ मेर तरफ थी। “◌ा◌ायद वह फ़ाितहा पढ़ रहा था। म हरे चोगे वाले आदमी के सामने जा पहंु चा और बना उसके चेहरे क तरफ दे खे डिलया बढ़ाइ, ता क पहले मज़ार “◌ार फ़ का बोसा ले लूं।

डिलया पकड़ाकर मने हरे चोगे़ वाले आदमी के चेहरे क तरफ दे खा, मुझे “◌ा ल कुछ पहचानी सी लगी। अचानक मेरे ज़ेहन म अपने साथ िम डल तक के पढ़े क लू उफ कलीम मुह मद क त वीर उभर आइ। मने दे खा क हरे चोगे़ वाला आदमी भी मुझे इस नज़र से दे ख रहा है जैसे वह अतीत के


चलिच म कुछ खोज रहा हो। म मु कुराया। हरे चोग़े वाला आदमी का चेहरा मेर मु कान दे ख अचानक भावह न हो गया। उसने चुपचाप डिलया ली। यं वत डिलया म से हर चादर िनकाली और चादर मज़ार पर चढ़ाने लगा। मने भी चादर का एक कोना पकड़ कर चादर-पोषी म ह सा िलया। फर उसने डिलया म से “◌ा◌ीरनी का पैकट िनकाला, एक कोना फाड़ा और मज़ार के कनारे उसे रखा। इ क “◌ा◌ीषी खोल इ को चादर पर छ ंट दया और आंख बंद कर फ़ाितहा पढ़ने लगा। मने भी फ़ाितहा ख◌़् वानी के िलए हाथ उठा िलए।

हरे चोगे़ वाला आदमी अब मुझे अ छ तरह पहचान म आ गया। वह क लू ह था। मने चेहरे पर हाथ फेरते हए ु मज़ार क प र मा क और दान-पेट म एक सौ पए का नोट डाला तो दे खा क हरे चोगे वाला आदमी मुझे दे ख रहा है ।

मने मज़ार क क़दमबोसी क और हरे चोगे वाले के पास पहंु चा।

उसने मोरपंख के झाड़ू मेर पीठ पर फेर और मेरे कान के पास मुंह लाकर बुदबुदाया-’’जाइएगा नह ,ं कुछ बात करनी है ।’’ मने हामी भर और “◌ा◌ीरनी लेकर मज़ार से बाहर िनकल आया। तब तक जाने कहां से कुछ क़ वाल आ गए थे। मै◌े क़ वाल के पास बैठ गया और क़ वाली का लु फ़ उठाने लगा। ‘भर दे झोली मेर या मुह मद लौट कर म न जाउं गा ख़ाली’ म क़ वाली के बोल सुनते हए ु हरे चोगे वाले मुजाबर यानी क लू उफ कलीम मोह मद व द मोह मद सलीम आितषबाज़ क याद म खो गया।

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इतवार का दन था। सुबह के आठ बजे ह गे। तालाब सुनसान ह था। गांव के लोग और पषुओं के आने का अभी समय नह ं हआ ु था।

बारह व ◌ा◌ीय न हा क लू िनडर होकर उकड़ू बैठा खुरपी से िम ट खोद रहा था। वह काम ् के धुन म मगन था। वह ं छपाक् छपाक् मढक पानी और कनारे वाला कोइ खेल खेलने म मषगूल थे, रह अपनी बला से, न हे क लू क त

ा इन छपाक् से भंग होने वाली नह ं है ।

उसने उस िम ट का ठकाना जान िलया है जससे वह कैसे भी आकार बना सकता था। जब क लू न हा सा ब चा था तब वह अपनी अ मी को रसोइ म परे षान कया करता था। वह ज़माना गैस का नह ं था। लकड़ से जलने वाला िम ट का दोमुंहा चू हा जलता और उसक


लाल आंच म खाना पकाती अ मी क आकृ ित क लू को कसी पर सी लगती थी। लकड़ क धीमी आंच म दाल पकती और रो टयां िसंकतीं। क लू दोन तरफ कड़क िसंक रोट खाया करता था। तीन बहन के बाद उसक आमद हुइ थी सो क लू का घर म बड़ा मान था। बहन भी उसे यार कया करती थीं। अ मी आटा गूंधना श

करतीं क क लू उनके पास जा पहंु चता और बोलता-’लोइ से िच ड़या

बना दो न अ मी!’ या क ‘चूहा बना दो न अ मी!’ अ मी ब चे क ज़द को पूरा करती और थोड़े सा आटा लेकर क लू के िलए िच ड़या या चूहा बना दे ती। उसके बाद क लू उस आटे के खलौने से खेलता। कुछ दे र बाद क लू आटे के खलौन को पुन: ल दे क “◌ा ल दे दे ता और अपनी क पना-ष से आम, केला या आदमी का मुंह बनाता। धीरे -धीरे वह हाथी बनाना सीख गया। हाथी बनाकर वह उसे चू हे के अंगार म पकाता और फर याह से रं ग कर दे ता। फर दो त को दखाता’’दे खो दे खो, नीला हाथी!’’ वह जब भी अपने निनहाल जाता तो नानी के घर के पास रहने वाले कु हार के काम को घ ट िनहारा करता था। वह कु हार को िम ट बनाने क तैयार करते दे खता। वाकइ बेदाग मुलायम िचकनी िम ट को घड़ा आ द बनाने के िलए तैयार करना काफ

मसा य काय था।

जब गूंथी हुइ िम ट का ल दा घूमते चाक पर चढ़ता और कु हार के जादइ ु पष से घड़े क

“◌ा ल म, या सुराह म बदलता तो न हा क लू अचंिभत खड़ा दे खता रहता। उसके आ चय का ठकाना न रहता। वह थोड़ा बड़ा हआ ु तो काली मं दर के पास बसे बंगाली कलाकार के पास जाने लगा। वहां

गणेष भगवान, दगा ु मां, काली मां, सर वती, रा स और “◌ोर आ द क मूितयां बनते दे खा करता। कस तरह कलाकार खप चय का ढांचा खड़ा करते ह। फर पुआल और सुतली क सहायता से विभ न आकार बनाते ह क ऐसा आभाष होता जैसे आदमी या जानवर के कंकाल खड़े ह । कंकाल म िम ट का लेप चढ़ता तो बना िसर क मूितयां बन जातीं।

“◌ार र, पु ष “◌ार र और जानवर के बना िसर के ज म। कलाकार के पास मुंह के अलगअलग सांचे हआ ु करते। कसी सांचे म दे वी दगा ु का मुंह बन जाता, कसी सांचे से भगवान

राम क मुखाकृ ित। कसी सांचे से गणेष भगवान का चेहरा बनता और कसी सांचे से रा स के भयानक मुंह। “◌ोर, मोर, चूहा, सांड के मुंह के सांचे भी यथावसर उपयोग कए जाते। क लू के इस मूित ेम ने उसके जीवन म हलचल मचाइ थी। वह बहत ु बाद क बात है ।

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पाठषाला म ह त ष प क पर

ा के समय िम ट के खलौने बना कर जमा करना होता था।

क लू के खलौने सभी खलौन से अलग होते। वह िम ट से सीताफल ऐसा बनाता क असल का

म होता। हां, उसके पास रं ग न होते और वह याह से उसे रं गता। हरा क जगह नीला

सीताफल। ष क उसे ह त ष प म पूरे न बर दया करते। िम ट के केले बनाता तो उसम पसी ह द घोलकर रं ग भरता। फर कहता क ये पके केले ह। क लू कूल म होने वाले गणेषो सव के िलए इस बार वयं गणपित क मूित बनाने के िलए परे षान था। कूल के ितवार मा साब उसे ो सा हत कर रहे थे क इस बार मूित वह बनाए। बारह व ◌ा◌ीय क लू उफ कलीम मोह मद आ मज मोह मद सलीम आितषबाज ने बड़ ् लगन से गणपित ब पा क दो ब े क मूि◌ त बनाइ।

इसीिलए क लू सुबह-सुबह तालाब के कनारे बैठा िम ट इक ठा कर रहा था। वह िम ट कूल ले जाता। वहां

ाउ ड के कनारे ाचाय के ऑ फस के पीछे उसने अपना कायषाला

बनाइ थी। क लू ने सोचा क दो दन के अंदर मूित तैयार करे गा। ितवार मा साब ने क लू क मदद के िलए “◌ा◌ंकर चपरासी के लगाया था। “◌ा◌ंकर ने क लू के िलए ख चयां, पुआल और सुतली क

यव था कर द थी। हां, गणपित ब पा के मुंह के िलए सांचा तो था नह ं।

न हे क लू ने बना सांचे के गणेष भगवान का चेहरा बनाने का िनणय िलया था। “◌ा◌ंकर ने एक कैले डर ला दया था जसम गणपित क मनमोहक मु ा थी। क लू ने बड़ त मयता से मूित िनमाण का काय अंजाम दया। “◌ा◌ंकर के कहने पर क लू ित दन नहा कर आता ता क मूित िनमाण म प व ता बरकरार रहे । उसने खप चय का ढांचा खड़ा कया। फर पुआल और सुतली क सहायता से गणेष जी का आकार बनाया। धीरे -धीरे उसने पुआल पर िम ट चढ़ाइ और बना सांचे क सहायता से गणेष भगवान क ऐसी ितमा बनाइ क दे खने वाले दे खते रह जाएं। ितवार मा साब बोलते-’अ त ितभा है बालक म। मां सर वती का वरदान िमला है इसे। ु दे खो तो कतनी जीव त ितमा बना द है इसने।’

वाकइ हम ब च को बड़ा अजीब लगता क कैसे हमारा एक हमउ

इतनी सफाइ और लगन

से मूित िनमाण के काय को अंजाम दे रहा है । ितवार मा साब ने “◌ा◌ंकर से क लू के िलए रं ग क पु ड़या मंगवा द । मूित सूखी तो क लू ने रं ग का लेप चढ़ाया। ितवार मा साब ने मूित का

ग ं ृ ार-आभूषण आ द मंगा दया, कैले डर को दे ख-दे ख क लू ने

गणेष भगवान क मूित का ऐसा

ग ं ृ ार कया क जो दे खे दं ग रह जाए।

उसने मूित के पास रखने के िलए एक छोटा सा चूहा भी बनाया, गणपित ब पा क सवार मूषक। फर एक त ती पर उसने बड़

टाइल से िलखा-

व तु ड महाकाय सूयको ट सम भा


िन व नं कु मे दे व, सवकायषु सवदा ितवार मा साब ने व ालय म उसी मूित क

थापना क और पूजन कया।

यह बात उड़ते-उड़ते मुसलमान क ब ती म भी पहंु ची।

हम ब च को तो ख़ास मतलब न था, ले कन सुनते ह क क लू के इस मूित िनमाण ने उसके जीवन म कइ त द िलयां लारइं् । क लू के अ बू मोह मद सलीम आितषबाज क जमकर

मज़ मत क गइ। उनसे कहा गया क क लू को म जद लाकर उससे सामू हक प से माफ मंगवाइ जाए और तौबा करवाइ जाए। सलीम आितषबाज बड़े अकड़ू क म के इं सान थे। थे भी पूरे सवा छ: फुट के क़द के आदमी। कहते थे क ह द ु तानी मुसलमान तो ह नह ं, उनके पूवज इराक से आए थे। वह वयं को

इराक कहा करते थे और नगर के मुसलमान को नीची नज़र से दे खते थे। कहते थे क हज़ू ु र

ने कहा है क हक़-हलाल क कमाइ खाओ, म मेहनत करता हंू । आितषबाजी का हनर मुझे मेरे ु पूवज से िमला है , इसिलए इसम लोग को एतराज़ य होता है ? म कोइ याज के पैसे खाता नह ,ं हरामकार करता नह ं फर मुझसे लोग िचढ़ते य ह? बेटे क लू के कारण हुइ इस फजीहत से वह बेहद दखी ु रहने लगे थे।

उ ह ने कह दया था क उ ह चाहे समाज से हटा दया जाए, ले कन ब चे से वह माफ मंगवाने का काम नह ं करगे। क लू के अ बू ने क लू क पटाइ क और उससे कहा क वह भगवान या दे वी-दे वता क मूित बनाना छोड़ दे । क लू मार खाता रहा और मन ह मन ण करता रहा क वह मूित बनाने का “◌ा◌ौक पूरा करता रहे गा। इस मूितकला के हनर के कारण ह तो उसक ु

कूल म इ जत है , “◌ा◌ोहरत है

और इसी से गु जन खुष रहते ह।

मने दे खा था क उस घटना के बाद से क लू उदास रहने लगा था। क लू के प रवार का सु नी मु लम कमेट ने ब ह कार कर दया। अब उ ह कोइ अपने दख ु -सुख म बुलाता न था। इसी दरिमयान क लू के अ बू मृ यु हो गइ। क लू यतीम हो गया। क लू क अ मी ने सु नी मु लम कमेट के सदर, से े टर और अ य पदािधका रय के आगे दखड़ा रोया तब कह ं जाकर कमेट ने िनणय िलया क चूं क मरहम ु ू मोह मद सलीम

आितषबाज कलमागो मुसलमान था, जुमा और इद-बकर द क नमाज़ अदा करता था, म जद के िलए जो भी चंदा मुकरर कया जाता, वह अदा कया करता था, इसिलए उसके कफ़न-दफ़न और जनाजे क नमाज़ म कमेट को “◌ा◌ािमल होना चा हए। और इस तरह मरहम ू आितषबाज मोह मद सलीम क मैयत म लोग इक ठा हए ु और कफ़◌़न-दफ़न हआ। कुरआन-ख◌़् वानी हुइ। दसवां-चह लुम क फ़ातेहा हुइ। ु


गर बी क मार से क लू पढ़ाइ छूट गइ। क लू क अ मी चूं क आितषबाजी के काम म हाथ बंटाती थी,सो उसने क लू से कहा क अ बू का धंधा ज दा रखा जाए। क लू को तो मूितकला से लगाव था। उसने बेमन से आितषबाजी के काम को ज़ार रखा और साथ ह मूितकला के हनर म जी जान से जुट गया। ु हम कभी बलासपुर जाने वाली सड़क क तरफ जाते तो बंगाली मूितकार के यहां क लू को काम करता पाते। फर मेरे अ बू का कटघोरा से थाना तरण हो गया और उस जगह से हमारा स पक खतम हो गया।

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क़ वाल गा रहे थे-

ू ‘ज़माने मे कहां टट हुइ त वीर बनती है

तेरे दरबार म बगड़ हुइ तक़द र बनती है ’

सुनने वाले दस-बीस

पए के नोट क़ वाल क हारमोिनयम पर रखते जाते। क़ वाल हाथ के

इषारे से उ ह आदाब कहता और फर

पए क तरफ दे खते हए ु तान खींचता।

तभी मने दे खा क क लू उफ कलीम हरा चोगे म मज़ार से बाहर आया। उसने मुझे इषारा कया और म उठ कर उसके पीछे हो िलया। हम मज़ार के पीछे क तरफ आए। यहां एक तरफ बड़े से चू हे म लंगर बन रहा था। चू हे क आंच से बचते हम एक कोठर म घुसे।

यहां ज़मीन पर सफेद ग ा बछा था और गाव-त कए कर ने से रखे हए ु थे। क लू बैठ गया और मुझे बैठने का इषारा कया। म उसके नज़द क बैठ गया। मने मु कुराकर उससे पूछा-’’ये कैसा प ले िलया भाइ?’’ क लू के माथे पर िचंता क लक र थीं-’’ या करता। इन कठमु ल को सबक़ िसखाने का इसके अलावा मेरे पास कोइ रा ता नह ं था।’’ ‘‘कैसे?’’ मेर उ सुकता बढ़ने लगी।

‘‘अ बू क मौत के बाद अ मी भी यादा दन ज दा नह ं रह ं। उनक मौत पर फर एक बार कमेट वाल ने नौटं क क । मेरे िगड़िगड़ाने पर वे कफ़न-दफ़न को राज़ी हए। ु ’’ ‘‘तुमने मूित बनाने का काम या तब भी ज़ार रखा?’’

‘‘हां, बंगाली आ ट ट के साथ मने खूब काम कया। बंगाली क बेट से मुझे मुह बत हो गइ। बंगाली उससे मेर “◌ा◌ाद के िलए तैयार हो गया। उसने अपनी बेट के धम बदलने के मामले


म भी सहमित दे द । म कमेट वाल के पास गया क मेरा िनकाह हो जाए, कमेट वाल ने मेर कोइ मदद न क । वे मुझे ‘का फ़र’ कहने लगे।’’ क लू क आंख भर आइ थीं। म चुपचाप उसक जीवन-गाथा सुन रहा था। आंख प छ कर उसने बताया-’’मने अ लाह और रसूल को हा ज़र-ना ज़र मानकर अपना िनकाह खुद कया। मने अपनी बीवी का नाम सायरा रखा। पहले उसका नाम

य े ा था।’’

उसने मुंह पीछे क तरफ करके आवाज़ द -’’सायरा!’’ चंद ल हे बाद सलवार-सूट म एक औरत ने परदे के पीछे से झलक दखलाइ। वह एक सांवले चेहरे और बड़ -बड़ आंख वाली

ी थी।

मने क लू के पसंद क मन ह मन तार फ़ क । क लू ने

ी से कहा-’’मेरे बचपन के दो त ह ये!’’

सायरा ने सलाम कया। मने जवाब दया-’’वा अलैकुम अ सलमाम!’’ क लू ने कहा-’’चाय तो पलाइए इ ह!’’ सायरा चली गइ और क लू ने अपने बयान को अंजाम तक पहंु चाया-’’म “◌ा◌ाद के बाद घूमने िनकल गया। मने कइ मज़ार क सैर क । सभी जगह मने पाया क वहां इ लाम क रौषनी नदारत थी। था िसफ और िसफ अक़ दतमंद क भावनाओं से खेल कर पैसे कमाना। म तो िसफ मूित बनाया करता था। उसे पूजता तो न था। ले कन इन जगह पर मने दे खा क एक तरह से मूितपूजा ह तो हो रह है । तभी मेरे दमाग म ये वचार आया क म भी पाख ड करके दे खता हंू । लौट कर जब कटघोरा आया तो मने नगर के बाहर इस थान पर बैठना श कया। हरा चोगा धारण कर िलया। भंिगय का मुह ला लगा हआ ु है । वहां क औरत मेरे पास

आने लगीं और ब च क नज़र उतरवाने लगीं। म कुछ नह ं करता। बस अगरब ी क राख

उन ब च के गाल पर लगा दे ता। उ ह यक़ न हो जाता और मज़े क बात ये है क ब चे ठ क भी हो जाते। उ ह ं लोग ने चंदा इक ठा करके मेरे िलए एक कोठर बना द । सायरा मेरे पास आकर रहने लगी। फर मने जुमा क एक “◌ा◌ाम घोषणा कर द क मुझे रात ख◌़् वाब म पीर बाबा आए और बताया क ब चा इसी जगह मेर मज़ार बनाओ। मेर बात जंगल म आग क तरह फैली और सु नी कमेट वाल ने आनन-फानन चंदा इक ठा करना श

कर दया।’’

म जहां बैठता था उसी से लगी थी कमेट के सदर क ज़मीन। उ ह ने सोचा क मज़ार बनने से उनक ज़मीन का रे ट बढ़े गा और उनका रोज़गार भी फैलेगा। हआ ु वह । जो कमेट मेर द ु मन थी, उसने मुझे मज़ार का मुजाबर बना दया।’’ मुझे हं सी आ गइ-’’और ये ह द ू अह र वाली बात!’’

क लू मु कुराया-’’बेरोजगार था अह र, मेरे पास आकर बैठता। गांजा पीता। फर कभी कभी


झूमने लगता। मने कहा क इस पर पीर बाबा क सवार आती है । उसका भी रोजगार चल िनकला। इस तरह यहां अब ह द ू और मुसलमान दोन आकर म नत मांगते ह और हमार रोजी-रोट चलती है ।’’

यारह िसत बर के बाद ग ्यारह िसत बर के बाद कर मपुरा म एक ह दन ,एक साथ दो बात ऐसी हरइं ु ् , जससे िचपकू ितवार जैसे लोग को बतकह का मसाला िमल गया।

अ वल तो ये क हनीफ़ ने अपनी खास िमयांकट दाढ़ कटवा ली । दजा कूप अहमद ने जुटा ू दया...जाने उसे या हआ क वह दं तिनपोर छोड़ प का नमाज़ी बन गया और उसने िचकने ु

चेहरे पर बेतरतीब दाढ़ बढ़ानी श कर द ।

दोन ह मुकामी पो ट-आ फस के मुला जम। अहमद, एक गित-◌ा◌ील युवक अनायास ह घनघोर-नमाजी कैसे बना? हनीफ ने दाढ़

य कटवाइ?

सन ्’चौरासी के दं ग के बाद िस ख ने अपने केष य कुतरवाए... अहमद आज इन सवाल से जूझ रहा है ।

अहमद क िच ताओं को कुमार समझ न

पा रहा था। कल तक तो सब ठ क-ठाक था । आज अचानक अहमद को या हो गया? वे दोन ढाबे पर बैठे चाय क

ती ा कर रहे थे।

कुमार उसे समझाना चाह रहा था -’’छोड़ यार अहमद दिनयादार को...बस ‘वेट ए ड वाच’ ु ...जो होगा ठ क ह होगा।’’

‘‘वो बात नह ं है यार...कुछ समझ म नह ं आता क या कया जाए?’’---अहमद उसी तरह तनाव म था , ‘‘ जाने कब तक हम लोग को वतनपर ती का सबूत दे ने के िलए मजबूर कया जाता रहे गा ।’’ कुमार खामोष ह रहा । वे दोनो च तीस-पतीस साल के युवक थे । कर मपुरा से दोन एक साथ पो टआ फस काम पर आते ।


आ फस म अ सर लोग उ ह एक साथ दे ख मजाक करते--’’अख ड भारत क एकता के नमून.े ..’’ अहमद का दमागी संतुलन गड़बड़ाने लगा। ‘‘अब मुझे लगने लगा है क म इस मु क म एक कराएदार के है िसयत से रह रहा हंू , समझे कुमार...एक करायेदार क तरह...!’’

यह तो बात हुइ थी उन दोन के बीच ... फर जाने य अहमद के जीवन म अचानक बदलाव आ गया?

हनीफ़ के बारे म अहमद सोचने लगा। पो ट-आ फस क डाक थैिलय को बस- टड तथा रे वे टे षन पहंु चाने वाले र ा- चालक हनीफ। बा-व

पंचगाना नमाज़ अदा करना और लोग म बेहद खुलूस के साथ पेष आना

उसक पहचान है । पीर-बाबा क मज़ार पर हर जुमेरात वह फाितहा-द द पढ़ने जाता है । अहमद को अ सर धािमक मामलात म वह ◌े सलाह-मष वरा कया करता । यक न मािनए क हनीफ एक सीधा-सादा ,नेक-बख◌़् त ,द नदार या यूं कह क धम-भी

क म का इं सान है । वह खामखां कसी से मसले-मसायल या क राजनीितक उथल-पुथल पर

िछड़ बहस म कभी ह सा नह ं लेता। हां, अपने ववेक के मुता बक आड़े व

बचाव म एक

मषहर ू “◌ोर क पहला िमसरा वह अ सर बुदबुदाया करता ---’उनका जो काम है वह अहले िसयासत जाने...’

हआ के समीकरण ऐसे बदले क कोइ भी अपने को ु ये क यारह िसत बर के बाद दिनया ु िनरपे

सा बत नह ं कर पा रहा था । िसफ दो ह वक प ! अमे रका के आतंक- वरोधी

काय म का समथन या वरोध...बीच का कोइ रा ता नह ं । यह तो एक बात हुइ । ठ क इसी के साथ दो बात गूंजी क दिनया म आतंकवाद को बढ़ावा दे ने वाले लोग इ लामी धमावलंबी ु ह,दसरा यह क इ लाम आतंकवाद धम नह ं। वह िमसाल क ठ डा और गम एक ू साथ...तक क कोइ गुंजाइष नह ं।

बहत म आतंकवाद के बीज बोने ु ज दबाजी म ये बात था पत कर द गइ क सार दिनया ु वाले और संसार को चौदहवीं सद म ले जाने वाले लोग मुसलमान ह ह।

अर बय -अफगािनय क तरह दाढ़ के कारण धोखे म िसख पर भी अमर का म अ याचार हए। ु बड़े मासूम होते ह अमर क !

वे मुसलमान और िसख म भेद नह ं कर पाते। बड़े अमन-पसंद ह वे । आज उ ह कसी ने ललकारा है । अमर कय को संसार म कोइ भी ललकार नह ं सकता। वे बहत ु गु से म ह। इसीिलए उनसे ‘िम ेक’ हो सकती है । ‘िम ेक’ पर हनीफ़ को याद आया...

उद ू म मंटो नाम का एक िसर फरा कथाकार हआ ु है । जसने दं गाइय क मानिसकता पर एक नायाब कहानी िलखी थी। ‘िम ेक हो गया’... जसम दं गाइ धोखे म अपनी ह बरादर के एक


का क़ ल कर दे ते ह। असिलयत जानने पर उनम यह संवेदना फूट --’’ क साला िम ेक

हो गया...’’ हनीफ ने “◌ा◌ायद इसी िलए अपनी दाढ़ कटवा ली हो, क कह ं वह कसी ‘िम ेक’ का षकार न हो जाए । और इस तरह िचपकू ितवार जैसे लोग को बतकह का मसाला िमल गया... िचपकू ितवार है भी गु -चीज़...’ग पोलोजी’ का ोफेसर...

ख◌ूब चुटक लेते ह पो ट-मा टर

ीवा तव साहब भी। ह भी रोम के नीरो। अपनी ह धुन म

मगन...चमच क एक बड़ फौज के मािलक। कर मपुरा इस

े काऐसा पो टआ फस, जसम

सालाना एक-डे ढ़ करोड़ क एन.एस.सी. बेची जाती है । बचत-खाता योगदान म जले क यह सबसे बड़ यूिनट है । इस औ ौिगक-नगर म पछले कइ साल से जमे ह

ीवा तव साहब।

य द कभी उनका कह ं तबादला हआ ु भी तो एड़ -चोट का ज़ोर लगाकर आदे ष

कवा िलये।

ीवा तव साहब अ सर कहा करते ---’कर मपुरा बड़ कामधेनु जगह है ...।’

सुबह-सुबह पो टआ फस म िचपकू ितवार और

ीवा तव साहब क म डली ने अहमद का

मूड-आफ कया। िचपकू ितवार पहले बी.बी.सी. चैनल कहलाया करता था। ले कन यारह िसत बर के बाद वह ‘अल-जज़ीरा’ के नाम से पुकारा जाने लगा। हआ ु ये क सुबह जैसे ह अहमद पो ट-आ फस म घुसा, उसे िचपकू ितवार क आवाज़ सुनाइ ु द । वह भांज रहा था---’’अमे रका म िसख के साथ ग़लत हो रहा है । अमे रकन ससुरे कटवा और िसख म फक नह ं कर पाते ।’’ फर कसी “◌ाडयं भनक से अहमद के क़दम ठठक गए! वह थोड़ दे र ठहर गया , और

क कर उनक बात सुनने लगा।

ीवा तव साहब ने फकरा कसा ---’’चलो जो हआ ु ठ क हआ ु ...अब जाकर इन िमयां लोग को

अपनी ट कर का आदमी भटाया है ।’’

‘‘ हां साहब, अब लड़ ये साले िमयां और इसाइ ... उधर इजराइल म यहद ू भी इन िमयांओं को चांपे हए ु ह। ‘‘

‘‘ वो हनीफवा वाली बात जो तुम बता रहे थे ?’’--- ीवा तव साहब का

न।

अहमद के कान खड़े हए। ु तो हनीफ भाइ वाली बात यहां भी आ पहंु ची ।

--’’ अरे वो हनीफवा... इधर अमे रका ने जैसे ड लेयर कया क लादे न ह उसका असल द ु मन है ,हनीफवा ने त काल अपनी दाढ़ बनवा ली । आज वो मुझे सफाचट िमला तो मने


उसे खूब रगड़ा। उससे पूछा क ‘का हनीफ भाइ, अभी तो पटाखा फूटना चालू हआ ु है ...बस इतने म घबरा गए? हनीफवा कु छो जवाब नह ं दे पाया। ‘‘ भगवान दास तार बाबू क गुट-िनरपे

आवाज सुनाइ द ।

‘‘सन चौरासी के दं ग के बाद िसख ने भी तो अपने केष कतरवा िलए थे। जब भार उथलपुथल हो तब यह तो होता है ।’’ अपने पीछे कुछ आवाज सुन अहमद द तर म दा खल हआ। ु उसे दे ख बतकह बंद हुइ।

अहमद इसी बात से बड़ा परे षान रहता है । जाने य अपनी खुली बहस म लोग उसे

“◌ा◌ािमल नह ं करते। इसी बात से उसे बड़ को त होती। इसका सीधा मतलब यह है क लोग उसे गैर समझते ह। तभी तो उसे दे खकर या तो बात का टा पक बदल दया जाएगा या क गप बंद हो जाएगी। अ सर उसे दे ख िचपकू ितवार इ लामी-तहज़ीब या धमषा

के बारे म उ टे सीधे सवालात

पूछने लगता है । आजकल क

वलंत सम या से उपजे कुछ “◌ा द, जसे मी डया बार-बार उछालता है , उसम

अमर का, अल-कायदा, ओसामा बन लादे न, अफगान, पा क तान, जहाद, तथा इ लामी फंडामटािलज◌़् म से जुडे़ अ य अ फ़ाज़ ह । इ ह ं “◌ा द क दन-रात जुगाली करता है मी डया।

अहमद से िचपकू ितवार अपनी तमाम ज ासाएं “◌ा◌ा त कया करता। अहमद जानता है क उसका इरादा अपनी ज ासा “◌ा◌ा त करना नह ं ब क अहमद को परे षान करना है । कल ह उसने पूछा था -- ‘‘अहमद भाइ ये ज़हाद या होता है ?’’ अहमद उसके सवाल से परे षान हो गया । िचपकू ितवार

न उस समय पूछता जब

ीवा तव साहब उसके

ीवा तव साहब फुसत म रहते ।

न से खूब खुष हआ ु करते ।

इधर अहमद इन सवाल से झुंझला जाता । वह कहता भी क उसने इ लामी धमषा

का गहन अ ययन नह ं कया है । कहां पढ़ाया था

म मी पापा ने उसे मदरसे म । अं ेजी और ह द मा यम से ष ा

हण क उसने । वह तो

पापा क चलती तो उसका खतना भी न हआ ु होता। बड़े अजीबोगर ब थे पापा।

म मी और मामुओं क पहल पर उसका खतना हआ। ु

पापा कतने नाराज हए ु थे । वह नह ं चाहते थे क उनका बेटा पर परागत मजहबी बने। वह

चाहते थे क उनका बेटा इ लाम के बारे म वयं जाने और फर ववेकानुसार फे◌ै◌ेसले करे ।


मु लम प रवेष से अहमद बहत ु कम वा कफ था। पापा सरकार महकमे म ‘ए’ लास

आफ सर थे ...उनका उठना बैठना सभी कुछ गैर के बीच था। धािमक प से वह इद -बकर द भर म स

य रहते थे । कारण क वभागीय आला अफसरान और चहे ते मातहत के िलए

दावत आ द क

यव था करनी पड़ती थी। ‘ े

स’ भी ऐसे क इद-बकर द आ द के साथ वे

अनजाने म मुहरम क भी मुबारकबाद दे दया करते। उ ह ये भी पता न होता क मुहरम एक ग़म का मौका होता है । म मी को पापा क ये आजाद- याली फूट आंख न भाती । म मी उ ह समझाया करतीं। पापा हं स दे त-े --’’आ खर व

म या ख◌़् ◌ा◌ाक मुसलमां ह गे ।’’

वाकइ वे मरने को मर गए क तु इद-बकर द के अलावा कसी तीसर नमाज़ के िलए उ ह समय िमलना था ,न िमला। उस हसाब से अहमद कुछ ठ क था। वह जुमा क नमाज़ अव य अदा कया करता । म मी क टोका-टाक के बाद धीरे -धीरे उसने अपनी ज दगी म यह आदत डाली। िनकाह के बाद कुलसूम क खु षय के िलए अ वल-आ खर रोज़ा भी अब वह रखने लगा था। अहमद के पापा एक आजाद

याल मुसलमान थे । वह अ सर अ लामा इकबाल का एक

मषहर करते ---’’ क़ौम या है क़ौम क इमामत या है । ू “◌ोर दहराया ु इसे या जाने ये दो रक त के इमाम !’’

चूं क म मी एक प के मजहबी घराने से ता लुक रखती थीं, इसिलए पापा क दाल न गल पाती । कहते ह क दादा-जान को पापा के बारे म इ म था क उनका ये बेटा मजहबी नह ं है । इसिलए बहत ु सोच वचार कर वे एक मजहबी घराने से बहू लाए थे, ता क खानदान म

इ लामी पर पराएं जी वत बची रह । अहमद के पापा वक ल थे । वह एक कामयाब वक ल थे । काफ धन कमाया उ ह ने। कहते भी थे क अगर कह ं ज नत है तो वह झूठ के िलए नह ं। इसिलए वहां क ऐ-◌ा◌ो-इ-◌ारत क

या लालच पाल। सारे वक ल संगी-साथी तो वहां

जह नुम म िमल ह जाएंगे। अ छ क पनी रहे गी। इस दलील के साथ वह एक ज़ोरदार ठहाका लगाया करते। एक सड़क हादसे म उनका इं तेकाल हआ ु था। तब अहमद नातक तर क पढ़ाइ कर रहा था । िछ न-िभ न हो गइ थी ज़ दगी...। उस बुरे व

म मामुओं ने म मी और अहमद को

स भाल िलया था । ऐसे वतं

वचार वाले पता का पु था अहमद और उसे िचपकू ितवार वगैरा एक

कठमु ला मुसलमान मान कर सताना चाहते । इसीिलए अ सर अहमद का दमाग खराब रहा करता। वह कुमार से कहा भी करता--’’ कुमार भाइ , म या क ं ? तुमने दे खा ह है क मेर कोइ भी अदा ऐसी नह ं क लोग मुझे एक मुसलमान समझ । तुमम और मुझम कोइ अ तर कर


सकता है ? म न तो दाढ़ ह रखता हंू और न ह दन-रात नमाज़ ह पढ़ा करता हंू । तुमने

दे खा होगा क मने कभी सरकार अथवा ह दओं ु को कोसा नह ं क इस मु क म मुसलमान

के साथ अ याय कया जा रहा है । जब क उ टे मने यह पाया क मुसलमान क बदहाली का कारण उनक अ ष ा और द कयानूसी-पन है । चार पैसे पास आए नह ं क ख़ुद को नवाब

“◌ाहं षाह का वंषज समझने लगगे। ब च के पास कपड़े ह या न ह । कूल से उ ह िनकाल दए जाने क नो टस िमली ह ,इसक कोइ िच ता नह ं। सब ाथिमकताएं दर कनार...घर म बरयानी बननी ह चा हए, वरना इस कमाइ का या मतलब ! तालीम के नाम पर वह मदरसे और काम के नाम पर तमाम हनर वाले काम ! कम उ ु

म ववाह और फर वह ज़ दगी के

मसले। फर भी लोग मुझे अपनी तरह का य नह ं मानते...’’ कुमार अहमद के

न को सुन चुप लगा गया। वह या जवाब दे ता?

ठ क इसी तरह अहमद िचपकू ितवार के

न का या जवाब दे ता ?

वह ह द ू िमथक ,पुराण कथाओं ,और धम -षा

के बारे म तो आ म व वास के साथ बात

कर सकता था, क तु इ लामी दिनया के बारे म उसक जानकार लगभग िसफ़र थी। ु ‘‘मुझे एक मुसलमान य समझा जाता है , जब क मने कभी भी तुमको

ह द ू वगैरा नह ं

माना । मुझे एक सामा य भारतीय “◌ाहर कब समझा जाएगा?’’ अहमद क आवाज़ म दद था । कल क तो बात है । वे दोन आदतन बस- टड के ढाबे म बैठे चाय क

ती ा म थे। द तर से चुराए चंद फुसत के

पल ...यह तो वह जगह है जहां वे दोन अपने दल क बात कया करते। चाय वाला चाय लेकर आ गया । अहमद क तं ा भंग हुइ ।

अ बकापुर से सुपर आ गइर◌् ् र थी । बस- ट◌ंड म चहल-पहल बढ़ गइ । सुपर से काफ सवा रयां उतरती ह ।

कर मपुर चूं क इलाके का यापा रक के

है अत: यहां सदा चहल-पहल रहती है ।

चाय का घूंट भरते कुमार ने अहमद को टोका।

‘‘तुम इतनी ज द मायूस य हो जाते हो ? या यह अ पसं यक

थ है , जससे मु क

के तमाम अ पसं यक भा वत ह ?’’ ‘‘कैसे बताऊं क बचपन से म कतना ता ड़त होता रहा हंू ।’’--अहमद सोच के सागर म गोते मारने लगा।


‘‘जब म छोटा था तब सहपा ठय ने ज द ह मुझे अहसास करा दया क म उनक तरह एक

ु ’ हंू ! वे अ सर मेर िनकर खींचते और कहते क ‘अबे सामा य ब चा नह ,ं ब क एक ‘कटआ साले, अपना कटा --- दखा न! पूरा उड़ा दे ते ह क कुछ बचता भी है ?’ कूल के पास क म जद से ज़ुहर के अज़ान क आवाज़ गूंजती तो पूर

लास मेर तरफ़ दे खकर हं सती।

जतनी दे र अज़ान क आवाज़ आती रहती म असामा य बना रहता। इितहास का पी रयड उपा याय सर िलया करते। जाने य उ ह मुसलमान से िचढ़ थी क वे मुगल-स ाट का ज़

करते आ ामक हो जाते। उनक आवाज़ म घृणा कूट-कूट कर भर होती। उनके

या यान का यह भाव पड़ता क अंत म पूर

लास के ब चे मुझे उस काल के काले

कारनाम का मुज़ रम मान बैठते।’’ कुमार ने गहरा सांस िलया--’’ छोड़ो यार ... दिनया म जो फेर-बदल चल रहा है उससे लगता है ु क इं सान के बीच खाइ अब बढ़ती ह जाएगी। आज दे खो न, अफ़गािनय के पास रोट कोइ

सम या नह ं। नइ सद म धमाधता, एक बड़ सम या बन कर उभर है ।’’ अहमद बेहद दखी ु हो रहा था।

कुमार ने माहौल नरम बनाने के िलए चुटक ली--’’अहमद, सुपर से आज पूंछ-वाली मैडम नह ं उतर ं। लगता है उ ह मह ने के क-ट भरे तीन दन का च कर तो नह ं ?’’ पूंछ-वाली यानी क पोनी-टे ल वाली आधुिनका... कुमार क इस बात पर अ य दन कतनी ज़ोर का ठहाका उठता था। अहमद क ख नता के िलए या जतन करे कुमार ! चाय कब खतम हो गइ पता ह न चला । ढाबे के बाहर पान गुमट के पास वे कुछ दे र

के । अहमद ने िसगरे ट पी। कुमार ने पान खाया

। अहमद जब तनाव म रहता, तब वह िसगरे ट पीना पसंद करता। उसके िसगरे ट पीने का अंदाज़ भी बड़ा आ ामक हआ ु करता ।

वह मु ठ बांधकर उं गिलय के बीच िसगरे ट फंसा कर ,मु ठ को ह ठ के बीच टाइट सटा लेता । पूर ताकत से मुंह से भरपूर धुंआ खींचता । कुछ पल सांस अंदर रख कर धुंआं अंदर के तमाम गली-कूच म घूमने-भटकने दे ता । फर बड़ िनदयता से ह ठ को बचकाकर जो धुंआ फेफड़े सोख न पाए ह , उसे बाहर िनकाल फकता । कुमार ने उसके िसगरे ट पीने के अंदाज से जान िलया क आज अहमद बहत ु ‘टषन’ म है । वे दोन चुपचाप पो ट-आ फस म आकर अपने-अपने जॉब म य त हो गए।

अहमद को कहां पता था क उसके जीवन म इतनी बड़ त द ली आएगी ।


वह तेरह िसत बर क “◌ा◌ाम थी। अहमद घर पहंु चा...दे खा क कुलसूम ट वी से िचपक हुइ है । कुलसूम पर समाचार सुन रह है ।

आ चय!◌़ घनघोर आ चय !!◌़ ऐसा कैसे हो गया... अहमद सोचा, कुलसूम को समाचार चैनल से कतनी नफ़रत है । वह अ सर अहमद को टोका करती --’’जब आप अखबार पढ़ते ह ह, तब आपको समाचार सुनने क

या ज रत...इससे अ छा क आप कोइ धारावा हक ह दे ख िलया कर। पूरा दन

एक ह खबर को घसीटते ह ये समाचार चैनल... जस तरह एक बार खाने के बाद भस जुगाली करती है । जाने कहां से इनको भी आजकल इतने ढे र सारे ायोजक िमल जा रहे ह । ‘‘ अहमद या बताता। उसे मालूम है क खाते-पीते लोग के िलए आजकल समाचार क

या

अहिमयत है । अहमद जानता है क समकालीन घटनाओं और उथल-पुथल से कटकर नह ं रहा जा सकता । यह सूचना- ा त का दौर है । कर मपुरा के अ य मुसलमान तरह उसे अपना जीवन नह ं गुजारना। वह नए जमाने का एक सजग, चेतना-स प न युवक है । उसे मूढ़ बने नह ं रहना है । इसी िलए वह ह द अखबार पढ़ता है । अिभ य

यां भी कर लेता।

ह द म थोड़ बहत ु सा ह यक

अहमद जानता है क मी डया आजकल नइ से नइ खबर जुटाने म कैसी भी ‘ए सरसाइज’ कर सकता है । चाहे वह डायना क मृ यु से जुड़ा संग हो ,नेपाल के राज प रवार के जघ य ह याका ड का मामला हो , तहलका-ताबूत हो या क मौजूदा अमर क संकट...अचार, तेल, साबुन, जूता-च पल, गहना-जेवर, काम-ष

वधक औषिधय और गभ-िनरोधक आ द के

उ पादक एवम ् वतरक से भरपूर व ापन िमलता है समाचार चैनल को। यह कारण है

समाचार चैनल आजकल अ य चैनल से अिधक मुनाफा कमा रहे ह।

कुलसूम यूज सुनने म इतनी मगन थी क उसे पता ह न चला क अहमद काम से वापस आ गया है । कुलसूम बीबीसी के समाचार बुले टन सुन रह थी।

न पर ओसामा बन लादे न क त वीर

उठाए पा क तानी नौजवान के जुलूस पर पुिलस ताबड़-तोड़ लाठ चला रह है । अमर क ेसीडट बुष और लादे न के चेहरे का िमला जुला कोलाज इस तरह बनाया गया था क ये जो लड़ाइ अफगान क धरती पर लड़ जानी है वह दो आदिमय के बीच क लड़ाइ हो। सनसनीखेज समाचार से भरपूर वह एक बड़ा ह खतरनाक दन था। अहमद कुलसूम क बगल म जा बैठा । कुलसूम घबराइ हुइ थी।

ऐसे ह बाबर -म जद व वंस के समय कुलसूम घबरा गइ थी। आज भी उसका चेहरा याह था । कुलसूम कसी गहन िचंता म डू बी हुइ थी ।


अहमद ने ट वी के ितवार और

न पर नज़र गड़ारइं् । वहां उसे बुष-लादे न क त वीर के साथ िचपकू

ीवा तव साहब के ख लयां उड़ाते चेहरे नज़र आने लगे। उसे महसूस हआ क ु

चार तरफ़ िचपकू ितवार क सरगो षयां और कहकहे गूंज रहे ह। अहमद का दमाग चकराने लगा । जब कुलसूम ने अहमद क दे खा तो वह घबराकर उठ खड़ हुइ ।

उसने त काल अहमद को बाह का सहारा दे कर कुस पर बठाया। फर वह पानी लेने कचन चली गइ। पानी पीकर अहमद को कुछ राहत िमली । उसने कुलसूम से कहा---’’जानती हो ...सन◌्​् चौरासी के दं ग के बाद अपने पुराने मकान के सामने रहने वाले िसख प रवार के तमाम मदोर◌ं ् ने अपने केष कुतरवा िलए थे। ‘‘

कुलसूम क ◌े समझ म कुछ न आया। फर भी उसने पित क हां म हां िमलाइ---’’हां , हां, परमजीते के भाइ और बाप दाढ़ -बाल बन जाने के बाद पहचान ह म न आते थे ?’’ ‘‘बड़ थू-थू मची है कुलसूम चार तरफ...हर आदमी हम लादे न का हमायती समझता है । हम उसक लाख मज़ मत कर कोइ फक नह ं पड़ता। ‘‘ अहमद क आवाज़ हताषा से लबरे ज़ थी। अचानक अहमद ने कुलसूम से कहा--’’ मग़ रब क नमाज़ का व

हो रहा है । मेरा पैजामा-

कुता और टोपी तो िनकाल दो।’’ कुलसूम च क पड़ । आज उसे अपना अहमद डरा-सहमा और कमज़ोर सा नजर आ रहा था। गहर जड़ असग़र भाइ बड़ बेचैनी से जफ़र क

ती ा कर रहे ह।

जफ़र उनका छोटा भाइ है । उ होन सोच रखा है क वह आ जाए तो फर िनणय ले ह िलया जाए, ये रोज़-रोज़ क भयिच ता से छुटकारा तो िमले ! इस मामले को यादा दन टालना अब ठ क नह ं। कल फोन पर जफ़र से बहत ु दे र तक बात तो हुइ थीं।

उसने कहा था क ---’भाइजान आप परे षान न ह , म आ रहा हंू ।’

असगर भाइ ‘हाइपर-टषन’ और ‘डाय बट ज़’ के मर ज़ ठहरे । छोट -छोट बात से परे षान हो जाते ह। मन बहलाने के िलए जफ़र बैठक म आए।


मुनीरा ट वी दे ख रह थी। जब से ‘गोधरा - करण’ चालू हआ ु , घर म इसी तरह ‘आज-तक’ और ‘ टार- लस’ चैनल को बार -बार से चैनल बदल कर घंट से दे खा जा रहा था। फर भी चैन

न पड़ता था तो असगर भाइ रे डयो- ां ज टर पर बीबीसी के समाचार से दे षी मी डया के समाचार का तुलना मक अ ययन करने लगते। तमाम चैनल म नंग-े नृषंस यथाथ को दषक तक पहंु चाने क होड़ सी लगी हुइ थी। मुनीरा के हाथ से असग़र ने रमोट लेकर चैनल बदल दया।

‘ ड कवर -चैनल’ म हरण के झु ड का षकार करते “◌ोर को दखाया जा रहा था। “◌ोर गुराता हआ हरण को दौड़ा रहा था। अपने ाण क र ा करते हरण अंधाधुंध भाग रहे थे। ु

असग़र भाइ सोचने लगे क इसी तरह तो आज डरे -सहम लोग गुजरात म जान बचाने के िलए भाग रहे ह। उ होन फर चैनल बदल दया। िनजी समाचार-चैनल का एक

य कैमरे का सामना कर रहा

था। कांच क बोतल से पे ोल-बम का काम लेते अहमदाबाद क बहसं ु यक लोग और वीरान होती अ पसं यक आबा दयां। भीड़-तं क बबरता को बड़ ढ ठता के साथ ‘सहज- ित

या’’

बताता एक स ा-पु ष। टे ली वज़न पर चलती ढ ठ बहस क रा य पुिलस को और मौका दया जाए या क सेना ‘ ड लाय’ क जाए । स ा-प

और वप

के बीच मृतक-सं या के आंकड़ पर उभरता ितरोध। स ा-प

क दलील

क सन ् चौरासी के क़ लेआम से ये आंकड़ा काफ कम है । उस समय आज के वप ी तब के

म थे और कतनी मासूिमयत से यह दलील द गइ थी -- ‘‘ एक बड़ा पेर िगरने से भूचाल आना वाभा वक है ।’’ इस बार भूचाल तो नह ं आया क तु यूटन क गित के तृतीय िनयम क ध जयां ज़ र उड़ाइ गरइं् । ‘

या के वपर त ित

या...’’

असग़र भाइ को हं सी आ गइ। उ होन दे खा ट वी म वह संवाददाता दखाइ दे रहे थे जो क कुछ दन पूव झुलसा दे ने वाली गम म अफगािन तान क पथर ली गुफाओं, पहाड ◌़ और यु

के मैदान से तािलबािनय को

खदे ड़ कर आए थे, और बमु कल तमाम अपने प रजन के साथ चार-छह दन क छु टयां ह बता पाए ह गे क उ ह पुन: एक नया ‘टा क’ िमल गया। अमे रका का र -रं जत तमाषा, लाष के ढे र, राजनीितक उठापटक, और अपने चैनल के दषक क मानिसकता को ‘कैष’ करने क

यवसाियक द ता उन संवाददाताओं ने ा जो कर ली

थी। असग़र भाइ ने यह वड बना भी दे खा◌ी क कस तरह नेत ृ व वह न अ पसं यक समाज क व वसंक ओसामा बन लादे न के साथ सुहानुभूित बढ़ती जा रह थी।


जब क ‘डब यू ट ओ’ क इमारत िसफ अमर का क बपौती नह ं थी। वह इमारत तो मनु य क मेधा और वकास क दषा का जीव त तीक थी। जस तरह से बािमयान के बु

एक

पुराता वक धरोहर थे। ‘डब यू ट ओ’ क इमारत म काम करने का व न िसफ अमर क ह नह ं ब क तमाम दे ष के नौजवान नाग रक दे खा करते ह। बािमयान करण हो या क यारह िसत बर क घटना, असग़र भाइ जानते ह क ये सब ग़ैर-इ लािमक कृ त ह, जसक दिनया भर के तमाम ु अमनपसंद मुसलमान ने कड़े “◌ा द म िन दा क थी। ले कन फर भी इ लाम के द ु मन को संसार म

म फेलाने का अवसर िमल आया क इ लाम

आतंकवाद का पयाय है ।

असग़र भाइ को बहसं ु यक हं सा का एकतरफा ता डव और “◌ा◌ासन- षासन क चु पी दे ख और भी िनराषा हुइ थी।

ऐसा ह तो हआ ु था उस समय जब इं दरा गांधी का मडर हआ ु था। असग़र तब बीस-इ क स के रहे ह गे।

उस दन वह जबलपुर म एक लॉज म ठहरे थे। एक नौकर के िलए सा ा कार के िसलिसले म उ ह बुलाया गया था। वह लॉज एक िसख का था। उ ह तो ख़बर न थी क दे ष म कुछ भयानक हादसा हआ ु है । वह तो ितयोिगता और सा ा कार से स बंिधत कताब म उलझे हए ु थे।

“◌ा◌ाम के पांच बजे उ ह कमरे म धूम-धड़ाम क आवाज़ सुनाइ द ं। वह कमरे से बाहर आए तो दे खा क लॉज के रसे षन काउ टर को लाठ -डं डे से लैस भीड़ ने घेर रखा था। वे सभी लॉज के िसख मैनेजर करनैल िसंह से बोल रहे थे क वह ज द से ज द लॉज को खाली करवाए, वरना अ जाम ठ क न होगा। मैनेजर करनैल िसंह िघिघया रहा था क टे षन के पास का यह लॉज मु त से परदे िसय क मदद करता आ रहा है । वह बता रहा था क वह िसख ज़ र है क तु खािल तान का समथक नह ं। उसने यह भी बताया क वह एक पुराना कां ेसी है । वह एक ज मेदार ह द ु तानी नाग रक है । उसके पूवज ज़ र पा क तानी थे, ले कन इस बात म उन बेचार का दोष कहां था। वे तो धरती के उस भूभाग म रह रहे थे जो क अख ड भारत का एक अंग था। य द त कालीन आकाओं क राजनीितक भूख िनयं त रहती तो बंटवारा कहां होता ? कतनी तकलीफ सहकर उसके पूवज ह द ु तान आए। कुछ करोलबाग द ली म तथा कुछ

जबलपुर म आ बसे। अपने बखरते वजूद को समेटने का पहाड़- यास कया था उन बुजुगोर◌ं ्


ने। “◌ारणा ◌ा◌ी मद-औरत और ब चे सभी िमलजुल, ितनका-ितनका जोड़कर आ षयाना बना ् रहे थे।

करनैल िसंह रो-रोकर बता रहा था क उसका तो ज म भी इसी जबलपुर क धरती म हआ ु है । भीड़ म से कइ िच लाए--’’मारो साले को...झूट बोल रहा है । ये तो प का आतंकवाद है ।’’ उसक पगड़ उछाल द गइ। उसे काउ टर से बाहर खींच गया। जबलपुर वैसे भी मार-धाड़, लूट-पाट जैसे ‘माषल-आट’ के िलए कु यात है । असग़र क समझ म न आ रहा था क सरदारजी को काहे इस तरह से सताया जा रहा है । तभी वहां एक नारा गूंजा-‘‘ पकड़ो मार साल को इं दरा मैया के ह यार को!’’ असग़र भाइ का माथा ठनका। अथात धानमं ी इं दरा गांधी क ह या हो गइ ! उसे तो फ ज स, केिम

, मैथ के अलावा और कोइ सुध न थी।

यानी क लॉज का नौकर जो क ना ता-चाय दे ने आया था सच कह रहा था। दे र करना उिचत न समझ, लॉज से अपना सामान लेकर वह त काल बाहर िनकल आए। नीचे अिनयं त भीड़ स

य थी।

िसख क दकान के “◌ा◌ीषे तोड़े जा रहे थे। सामान को लूटा जा रहा था। उनक गा ड़य म, ु मकान म आग लगाइ जा रह थी।

असग़र भाइ ने यह भी दे खा क पुिलस के मु ठ भर िसपाह तमाषाइ बने िन

य खड़े थे।

ज दबाजी म एक र ा पकड़कर वह एक मु लम बहल ु इलाके म आ गए। अब वह सुर

त थे।

उसके पास पैसे यादा न थे। उ ह पर

ा म बैठना भी था।

पास क म जद म वह गए तो वहां नमा ज़य क बात सुनकर दं ग रह गए। कुछ लोग पेष-इमाम के हजरे म बीबीसी सुन रहे थे। ु

बात हो रह थीं क पा क तान के सदर को इस ह याका ड क खबर उसी समय िमल गइ, जब क भारत म इस बात का चार कुछ दे र बाद हआ। ु

ये भी चचा थी क फसादात क आंधी “◌ाहर से होती अब गांव-गली-कूच तक पहंु चने जा रह है ।

उन लोग से जब उ ह ने दरया त क तो यह सलाह िमली --’’बरखुरदार! अब पढ़ाइ और इ तेहानात सब भूलकर घर क राह पकड़ लो, य क ये फ़सादात खुदा जाने जब तक चल।


बात उनक समझ म आइ। वह उसी दन घर के िलए चल दउ । रा ते भर उ ह ◌ं◌ंने दे खा क जस लेटफाम पर गाड़ क िसख पर अ याचार के िनषानात साफ नज़र आ रहे थे। उनके अपने नगर म भी हालात कहां ठ क थे। वहां भी िसख के जान-माल को िनषाना बनाया जा रहा था। ट वी और रे डयो से िसफ इं दरा-ह याका ड और खािल तान आंदोलन के आतंकवा दय क ह बात बताइ जा रह थीं। लोग क स वेदनाएं भड़क रह थीं। खबर उठतीं क गु

ारा म िसख ने इं दरा ह याका ड क खबर सुन कर पटाखे फोड़े और

िमठाइयां बांट ं ह। अफ़वाह का बाज़ार गम था। दं गाइय -बलवाइय को डे ढ़-दो दन क खुली छूट दे ने के बाद षासन जागा और फर उसके बाद नगर म क यू लगाया गया। य द वह िधनौनी हरकत कह ं मु लम आतंकवा दय ने क होती तो ? उस दफा िसख को सबक िसखाया गया था। इस बार... जफ़र आ जाएं तो फैसला कर िलया जाएगा। ज◌ौसे ह असग़र भाइ कुछ समथ हए ् ु , उ ह ने अपना मकान मु लम बहल ु इलाक म बनवा िलया था।

जफ़र तो नौकर कर रहा है क तु उसने भी कह रखा है क भाइजान मेरे िलए भी कोइ अ छा सा स ता लॉट दे ख र खएगा। अब अ बा को समझाना है क वे उस भूत-बंगले का मोह याग कर चले आएं इसी इ ाह मपुरा म। इ ाह मपुरा ‘िमनी-पा क तान’ कहलाता है । असग़र भाइ को यह तो पसंद नह ं क कोइ उ ह ‘पा क तानी’ कहे क तु इ ाह मपुरा म आकर उ ह वाकइ सुकून हािसल हआ ु था। यहां अपनी हक ु ू मत है । ग़ैर दब के रहते ह। इ मीनान से

हरे क मज़हबी तीज- योहार का लु फ़ उठाया जाता है । रमज़ान के मह ने म या छटा दखती है यहां। पूरे मह ने उ सव का माहौल रहता है । चांद दखा नह ं क हं गामा श हो जाता है । ‘तरावीह’ क नमाज़ म भीड़ उमड़ पड़ती है । यहां साग-स जी कम खाते ह लोग य क स ते दाम म बड़े का गो त जो आसानी से िमल जाता है । फ़ज़ा म सु हो-षाम अज़ान और द दो-सलात क गूंज उठती रहती है ।


‘षबे-बरात’ के मौके पर थानीय मज़ार “◌ार फ़ म ग़ज़ब क रौनक होती है । मेला, मीनाबाज़र लगता है और क़ वाली के “◌ा◌ानदार मुक़ाबले हआ ु करते ह।

मुहरम के दस दन “◌ाह दाने-कबला के ग़म म डू ब जाता है इ ाह मपुरा ! िसफ िमयांओं क तूती बोलती है यहां। कसक मज़ाल क आंख दखा सके। आंख िनकाल कर हाथ म धर द जाएंगी। एक से एक ‘ ह

-षीटर’ ह यहां।

अरे , खालू का जो तीसरा बेटा है यूसुफ वह तो जाफ़रानी-ज़दा के ड बे म बम बना लेता है । बड़ -बड़ राजनीितक ह तयां भी ह जनका संर ण इलाके के बेरोजगार नौजवान को िमला हआ ु है ।

1

असग़र भाइ को िच ता म डू बा दे ख मुनीरा ने ट वी ऑफ़ कर दया। असग़र भाइ ने उसे घूरा-‘‘ काहे क िच ता करते ह आप...अ लाह ने ज़ दगी द है तो वह पार लगाएगा। आप के इस तरह सोचने से या दं ग-े फ़साद ब द हो जाएंगे ?’’ असग़र भाइ ने कहा--’’ वो बात नह ,ं म तो अ बा के बारे म ह सोचा करता हंू । कतने ज़

वो। छोड़गे नह ं दादा-पुरख क जगह...भले से जान चली जाए।’’ ‘‘ कुछ नह ं होगा उ ह, आप खामखां फ़

कया करते ह। सब ठ क हो जाएगा।’’

‘‘खाक ठ क हो जाएगा। कुछ समझ म नह ं आता क या क ं ? बुढ़ऊ स ठया गए ह और कुछ नह ं । सोचते ह क जो लोग उ हे ◌े सलाम कया करते ह मौका आने पर उ ह◌ं बख◌़् ष दगे। ऐसा हआ ु है कभी। जब तक अ मा थीं तब तक ठ क था अब वहां या रखा है क उसे अगोरे हए ु ह।’’

मुनीरा या बोलती। वह चुप ह रह । असग़र भाइ मृित के सागर म डू ब-उतरा रहे थे। अ मा बताया करती थीं क सन इकह र क लड़ाइ म ऐसा माहौल बना क लगा उजाड़ फकगे लोग। आमने-सामने कहा करते थे क हमारे मुह ले म तो एक ह पा क तानी घर है । चींट क तरह मसल दगे। ‘‘चींट क तरह...हंु ह..’’ असग़र भाइ बुदबुदाए।

कतना घबरा गइ थीं तब वो। चार ब च को सीने से िचपकाए रखा करती थीं।

अ मा घबराती भी य न, अरे इसी िसयासत ने तो उनके एक भाइ क पाट षन के समय जान ले ली थी।


‘‘ जानती हो पछले माह जब म घर गया तो वहां दे खा क हमारे घर क चारद वार पर वा तक का िनषान बनाया गया है । बाबर म जद के बाद उन लोग का मन बढ़ गया है । मने जब अ बा से इस बारे म बात क तो वह ज़ोर से हं से और कहे क ये सब लड़क क

“◌ौतानी है । ऐसी-वैसी कोइ बात नह ।ं अब तु ह ं बताओ क म िच ता य न क ं ?’’ ‘‘अ बा तो हं सते-हं सते ये भी बताए क जब ‘एं े स’ का ह ला मचा था तब चंद कूली ब च ने चाक िम ट को िलफाफे म भरकर

ंसीपल के पास भेज दया था। बड़ा बावेला मचा था।

अ बा हर बात को ‘नामल’ समझते ह।’’ ‘‘अ बा तो वहां के सबसे पुराने वा ष द म से ह। सुबह-षाम अपने ब च को ‘दम-करवाने’ सेठाइन आया करती ह। अबा के साथ कह ं जाओ तो उ ह कतने ग़ैर लोग सलाम-आदाब कया करते ह। उ ह तो सभी जानते-मानते ह।’’ मुनीरा ने अ बा का प

िलया।

‘‘खाक जानते-मानते ह। आज नौजवान तो उ ह जानते भी नह ं और पुराने लोग क आजकल चलती कहां है ? तुम भी अ छा बताती हो। सन ् चौरासी के दं गे म कहां थे पुराने लोग ? सब मन का बहाकावा है । भीड़ के हाथ म जब हक ु ू मत आ जाती है तब कानून गूंगा-बहरा हो जाता है ।’’

मुनीरा को लगा क वह बहस म टक नह ं पाएगी इसिलए उसने वषय-प रवतन करना चाहा-‘‘ छोटू क ‘मै स’ म यूषन लगानी होगी। आप उसे लेकर बैठते नह ं और ‘मै स’ मेरे बस का नह ं।’’ ‘‘ वह सब तुम सोचो। जससे पढ़वाना हो पढ़वाओ। मेरा दमाग ठ क नह ं। जफ़र आ जाए तो अ बा से आर-पार क बात कर ह लेनी है ।’’ तभी फोन क घ ट घनघनाइ। मुनीरा फोन क तरफ झपट । वह फोन घनघनाने पर इसी तरह हड़बड़ा जाती है । फोन जफ़र का था, मुनीरा ने रसीवर असग़र भाइ क तरफ़ बढ़ा दया। असग़र भाइ रसीवर ले िलया-‘‘ वा अलैकुम अ लाम! जफ़र...! कहां से ? यहां म तु हारा इनतेज़ार कर रहा हंू ।’’ ....... ‘‘अ बा पास म ह ह या ? जरा बात तो कराओ।’’ मुनीरा क तरफ मुख़ाितब होकर बोले--’’जफ़र भाइ का फोन है । यहां न आकर वह सीधे अ बा के पास से चला गया है ◌ै◌ं।’’ ‘‘ सलाम वालैकुम अ बा... म आप क एक न सुनूंगा। आप छो ड़ए वह सब और जफ़र को लेकर सीधे मेरे पास चले आइए।’’ पता नह ं उधर से या जवाब िमला क असग़र भाइ ने रसीवर पटक दया । मुनीरा िचड़िचड़ा उठ --


‘‘ इसीिलए कहती हंू क आप से यादा हो षयार तो जफ़र भाइ ह। आप खामखां ‘टषन’ म आ जाते है । डॉ टर ने वैसे भी आपको फालतू क िच ता से मना कया है ।’’ बस इतना सुनना था क असग़र भाइ ह थे से उखड़ गए। ‘‘तु हार इसी सोच पर मेर --- सुलग जाती है । मेरे वािलद तु हारे िलए ‘फालतू क िच ता’ बन गए। अपने अ बा के बारे म िच ता नह ं क ं गा तो या तु हारा भाइ करे गा ?’’ ऐसे मौक पर मुनीरा चुप मार ले तो बात बढ़े । अपने एकमा भाइ के बारे म अपष द वह बदा त नह ं कर पाती है , क तु जाने य मुनीरा ने आज जवाब न दया। असग़र भाइ ने छे ड़ा तो था क तु मुनीरा को चुप पाकर उनका माथा ठनका, इसिलए सुलहकुन आवाज़ म वह बोले-‘‘ लगता है क अ बा नह ं मानगे, वह ं रहगे...!’’

चह लुम सफेद साड़ पर आसमानी बाडर। िसर पर आंचल। चेहरे पर वीरानी सी छाइ। आंख पर ग़म के पनीले बादल... सदाबहार अ मी को इस ग़मज़दा प म दे ख जूह का दल रो पड़ा। अ बू खुद तो सादा कपड़ा पहनते ले कन अ मी के कपड़ के िलए वे खासे ‘चूज़ी’ थे। इसीिलए अ मी क सा ड़यां “◌ा◌ोख़ रं ग क होतीं। उनम लाल-गुलाबी रं ग क डज़ाइन बनी ह तो बेहतर। बाक ह के रं ग का अ बू मज़ाक उड़ाया करते-’’डॉ टर, ोफेसर वाला रं ग घरे लू औरत को कहां फबेगा।’’ अ मी क जन कलाइय म दजन चू ड़यां खनखनाया करतीं वे सूनी हरइं ु ् ।

मु लम म मंगल-सू पहनने का चलन नह ,ं ले कन अ मी हमेषा मंगल-सू पहना करती थीं। काली मोितय और सोने से बने भार -भरकम मंगलसू के बगैर उनका गला कतना खाली लग रहा है । अ मी के लब पर पान क लािलमा नह ,ं कैसे बेरौनक हो रहे ह ह ठ! वह खुद पान खाया करतीं और घर आए लोग क खदमत म पान पेष करती थीं।


अ बू या गए अ मी के पान का “◌ा◌ौक़ भी िछन गया। अ बू या गए अ मी क घर म कोइ क़ मत न रह गइ। अ बू या गए उनका मान-स मान चला गया। अपने कमरे म द वान पर त कए के सहारा लेकर बैठ अ मी, ब च क खुदगजर◌़ ् ◌ी भर बात सुन रह ह।

उनके दा हने कंधे का दद उभर आया है । अ मी ने जब अ बू के इं तेकाल क ख़बर सुनी, बेहोष िगर पड़ थीं। उसी से कंधे पर अंद नी चोट आ गइ है । य द कंध क अ छे से मािलष हो जाए तो कुछ राहत िमले। कंधे को हाथ से टटोलने पर ऐसा लगता है क जोड़ से कंधा उखड़ गया है । कॉलर-बोन कुछ उठ सी गइ है । उ ह ह ड के डॉ टर के पास ले जाना चा हए था। उनका इलाज कराना था। दद कभी इतना अिधक बढ़ जाता है क जान ह िनकलने लगती है । अपने हाथ से वे कंधा सहलाते रहती ह। ले कन इस घर म कसे फुसत है क उनके दख ु -दद दे खे। सभी अपने म मगन ह। उखड़े -उखड़े और य त। घर म घुसते ह सबके माथे पर तनाव क लक र घर बना लेती ह।

अब अपना दद वे कसे बताएं। उनक छोट -छोट ज़द पर अपनी जान योछावर करने वाला तो अ ला को यारा हो गया। अ बू को याद कर वह रोने लगीं। इतनी लाचार, इतनी बेबस वह कभी न थीं। अ मी यह सोचा करतीं क “◌ा◌ौहर के बना बाक का जीवन या ऐसे ह गुज़रे गा? कोइ नह ं उनक सुध लेने वाला। माना क घर म “◌ा◌ोक है , ले कन स लू बेटे क बेगम को तो पता है क सुबह से अब तक उनक तीन-चार चाय चल जाती थी। कैसे दन आए क अभी तक एक भी चाय नसीब नह ं हुइ है । कससे कह, कह ं कोइ उ ट -सीधी बात न कह दे ।

जब दे खो तब स लू बेगम यह ताना दे ती क अ मी यादा रोइ नह ं। कल रात बहू जब मायके म अपनी मां से फोन पर बात कर रह थी तो अ मी ने सुना था’’ऐसी हालत म तो कतनी औरत तो रो-रोके जान तक दे दे ती ह। यहां तो बु ढ़या रोइ ह नह ं।’’ उधर दोन बेटे खामखां क

य तता दखा कर सा बत करते ह क वे कतने परे षान ह।

स लू जब भी घर म घुसता है चेहरा लटका रहता है । उसके ज म से िसगरे ट क बू आती है और मुंह म गुटका दबा रहता है । बाहर वाले कमरे म मौलवी साहब कुरान-षर फ़ क ितलावत कर रहे ह।


हर दन एक पारा (अ याय) ख म होता है । मौलवी साहब जब कुरआन पढ़ लेते ह तो उ ह एक टाइम का खाना खलाना पड़ता है । पूरे चालीस दन ये

म चलेगा।

स लू क बेगम क भुनभुनाहट रसोइ-घर से अ मी के कमरे तक आ रह है -’’पता नह ं ये कहां का जहालत भरा रवाज़ है । हमारे यहां तो ऐसा नह ं होता क घर म बाहर से मौलवी आकर चह लुम तक ितलावत करे । अरे , घर म सभी पढ़े -िलखे ह, ितलावत तो खुद करना चा हए। फालतू म पैसे बरबाद हो रहे ह। उस पर तुरा ये क मौलवी साहब को खाना भी खलाओ। मुगा-मछली नह ं तो कम से कम अ डे तो होना ह चा हए।’’ स लू भी उसक हां म हां िमलाते। उसक बेगम का नखरा दोगुना हो जाता-’’अ मी पड़े -पड़े

या करती रहती ह? उ ह नमाज़

अदा करनी चा हए, कुरआन-पाक क ितलावत करनी चा हए और त बीहात पढ़नी चा हए।’’ अ मी सब सुना करतीं। उनक दोन आंख म मोितया बंद का आपरे षन हआ ु है । मोटे “◌ा◌ीषे के कारण च मा कतना भार है । बना च मे के चीज़ धुंधली दखलाइ दे ती ह। अ मी पुराने दन याद करने लगीं जब वह

ो षए और ए

ायडर का “◌ा◌ौक रखती थीं। इतनी बार क से बार क डज़ाइन काढ़ा

करतीं क दे खने वाला दांत तले उं गली दबा ले। वेटर बुना करती थीं। मुह ले क औरत और लड़ कयां उनसे कढ़ाइ-बुनाइ सीखने आया करती थीं। तब वे कसी से कहतीं क ब टया ज़रा दाल चढ़ा दो। कोइ लड़क सि◌ ज़यां काट दे ती। सब उ ह आंट जी कहा करती थीं। मनोरमा, स रता के बुनाइ वषेषांक वह खर दा करतीं। आज भी उनक एक आलमार उन कताब से भर हुइ है ।

आज ब चे इतने समझदार हो गए क ताना दे ते है क अ मी इतना ट वी य दे खती ह। यादा ट वी दे खना आंख के िलए ठ क नह ं। उनक ज़ दगी क रोषनी को नज़र लग गइ। चार तरफ अंधेरा ह अंधेरा छा गया है । उनके दो बेटे और एक बेट है । सलाम उफ स लू, गुलाम उफ गु लू और बेट जूह । जूह अपने िमयां जा हद के साथ दब ु इ म रहती है । एक-दो दन म वे लोग आने वाले ह।

अ मी को जूह का बेताबी से इं तज़ार था। स लू और गु लू ने मौत-िम ट का सारा इं तेज़ाम कया था। वे नह ं करते तो कौन करता? ऐसे मामलात म ग़ैर दलच पी लेते ह। अरे , ये तो इनका फ़जर◌़ ् था, फर स लू-गु लू एहसान का बोझ काहे लादते ह इस बेवा पर।


उनके सामने आने पर ये नालायक ऐसा ज़ा हर करते ह क जैसे अ बू के बाद सार ज़ मेदार उनके कंधे पर हो। ये न होते तो प ा भी न खड़कता। स लू और उसक बेगम ने घर का बंध अपने हाथ ले िलया है । सारा घर उनके हाथ क कठपुतली बना हआ ु है । कामवाली कम न तो रोकर गइ क आप

लोग का मुंह दे ख कर चली आती हंू । य द आपक बड़ बहू रह गइ तो जान ली जए, इलाके म नौकरानी के िलए तरस जाइएगा।

स लू क बेगम ारा एक से बढ़कर एक तुगलक फ़रमान जार हो रहे ह। अ मी ने सोचा क चलो अ लाह पाक परवर दगार के रहमोकरम से जनाजे का काम तो ठ कठाक ढं ग से िनपट गया। अ छा हआ ु अ बू के दो त वदद ू भाइ आ गए थे।

स लू के अ बू क लाष के िसरहाने बैठकर कतना फूट-फूट कर रोए थे वदद ू भाइ। ‘‘ऐसे कैसे चले गए भाइ....!’’

वदद ू भाइ का रोना-कलपना दे ख पूरा माहौल गमगीन हो गया।

उस दन हच कय , िसस कय और छाती पीट-पीट कर मातम करने का कोइ अंत न था। उ ह ं वदद ू चचा के अहसानात, स लू और गु लू कैसे भुला सकते ह। ये नामुराद ब चे कतने एहसान-फरामोष हो गए ह। अपने वदद ू चचा क भी इज◌़् ज़त अब नह ं करते।

वदद ू चचा ने कहा था क ब च ठ ड रखो, इस तरह हड़बड़ाओ मत। पहले राजी-खुषी ‘चह लुम’ तो िनपट जाने दो।

बरादर और गांव-घर के लोग चह लुम का खाना खाकर वदा हो ल, फर कसी क म के ह सा-बंटवारे का मसला उठाना तुम लोग। अ मी ने उनक बात का समथन कया था। स लू उस समय तो कुछ नह ं बोले, ले कन उनके जाने के बाद अ मी पर बरस पड़े । ‘‘जाने कहां से आ जाते ह फटे म टांग घुसेड़ने वाले।’’ अ मी ने वरोध कया था--’’ऐसे नह ं बोलते बेटा। तु हारे अ बू के दो त ह। इस घर के िलए उनके दल म हमदद है । तुम लोग क पढ़ाइ-िलखाइ म जब कभी तंगी होती थी, वदद ू भाइ ह काम आते थे। उनके हम सब पर एहसानात ह बेटा।’’ स लू कहां मानने वाले। बस, बेवजह बड़बड़ाते रहे ।

ू चुक थीं। वे जूह क बाट जोह रह ह। अ मी सब तरफ से टट


पता नह ं क ये “◌ा◌ाम क सुरमइ अंिधयारा है या अ मी के मन म उदासी के काले-घनेरे बादल। अ मी ने उठकर यूब-लाइट ऑन क । कमरा दिधया रोषनी से नहा गया। ू अ मी बड़बड़ारइं् क बताओ, अब तक कसी ने चाय भी न पूछ । वे बहू से चाय मांगे तो मांग कैसे? बहू को वयं सोचना चा हए क अ मी के चाय का व

िनकल रहा है । थोड़ ह दे र म मग़ रब क अज़ान क आवाज़ आ जाएगी। फर कहां चायपानी? अ मी ने सोचा क खुद कचन जाकर चाय बना ल। वह उठ ं और जैसे ह दरवाज़े तक गइ थीं क बीच वाले कमरे से स लू क आवाज़ सुनाइ द । बहू सलमा कह रह थी-’’बुढ़ऊ तो रहे नह ,ं कौन पढ़े गा अब ये ह द अखबार। फालतू बल भरना पड़े गा। कल जब हॉकर आए तो उसे अख़बार बंद करने को कह दे ना।’’ अ मी के क़दम ठठक गए। दरवाज़े क चौखट थाम वह खड़ हो गरइं् ।

उ ह याद आ रहा था क हॉकर जब अख़बार फक कर जाता तो उसे पहले-पहल अ बू ह पढ़ते। जब तक अ बू सरसर िनगाह से अख़बार के प ने पलट न लेत,े कसी अ य को अख़बार िमल न पाता। स लू अख◌़् ◌ाबार खाली होने का इं तेज़ार कतनी बेस ी से करता था। जैसे कह ं अ बू अखबार म छपी खबर को पढ़कर बासी न कर द।

अ बू रात दस बजे तक उस अख़बार को कइ क त म पढ़ते थे। वह स लू आज कतना बड़ा आदमी हो गया है क उस अखबार के िलए उसके दल म कतनी नफ़रत है । अ मी जानती ह क स लू क बीवी सलमा केवल ह द पढ़ना जानती थी। अं ेजी उसे आती न थी। समधी साहब ने अ छा झांसा दया था क बेट उद-ू अरबी म िनपुण है । सलमा जब से घर आइ, ह द अखबार ज़ र पढ़ती। जुमेरात के दन म हलाओं के िलए अलग से एक प का आती। सलमा उसे स भाल कर रखती थी। आज वह सलमा कह रह थी क अ बू नह ं तो कौन पढ़े गा ये मुआ ह द अखबार। ब द करा दे ने से ह ठ क रहे गा, वरना फालतू बल कौन भरे गा! अ मी सब सुन रह थीं।

“◌ा◌ौहर के क़ क िम ट अभी ढं ग से सूखी भी नह ं है । अरे , उ ह पदा कए चार दन तो हए ु ह। अभी तो तीजा िनपटा है ।


पता नह ं ये नालायक औलाद ‘चह लुम’ कर पाएंगी या नह ... वैसे भी स लू क बेगम तीजा-चालीसवां आ द को ढकोसला कहती है । कहती है क ये तो ह द ु तान और पा क तान के मुसलमान क जहालत क िनषानी है । इ लाम म इन दखाव

या ज़ रत?

बेवा के िलए भी खान-पान, पहनावा और बाहर िनकलने के नाम पर बहत ु सी पाबं दयां ह। इ त क अविध (तीन मािसक धम का अंतराल) तक बेवा को घर से बाहर िनकलने क इजाज़त नह ं है । ख़ानदानी लोग म तो इन रवायत का कड़ाइ से पालन होता है । अ लाह पाक-परवर दगार नासमझ ब च को माफ़ करे , जो बना जाने-बूझे उ टा-सीधा बोलते रहते ह। अ बू का चह लुम तो करना ह होगा। बना ‘चह लुम’ कए उनक

ह को कहां सुकून िमलेगा। उनक

ह भटकती रहे गी।

अ मी क इस समय जो हालत है उसे जूह ब टया के अलावा अ य कोइ नह ं समझ सकता। य द जूह न आइ होती तो स भवत: अ मी को मटल-हॉ पीटल म भरती कराना पड़ता। खुदा का लाख-लाख श

क जूह आ गइ।

जूह ‘पेट-पोछनी’ है । अ मी-अ बू क आ ख़र औलाद। अ मी और जूह दो सहे िलय क तरह रहा करती थीं। जूह अ मी क मरज़ी के बग़ैर कोइ क़दम न उठाती। “◌ा◌ाद के पहले जूह अ मी क खूब खदमत कया करती थी। “◌ा◌ाद के बाद कहां आ पाती है जूह ....इतनी दरू जो चली गइ है । आज भी अगर अ मी का िसर खुजलाता तो वे बड़ ष त से जूह को याद

करती ह। जूह अपनी उं गिलय तेल म िभगो कर बाल क जड़ म मािलष कर दे ती। अ मी का िसर एकदम ह का हो जाता। जूह के आने से अ मी के दल म क़ैद दख ु का वालामुखी फट पड़ा। उसके गले लगकर खूब रोरइं् थीं अ मी।

लगा क जैसे तटबंध को तोड़ हरहराकर बह रहा हो जल। जैसे फट पड़े ह पानी से लदे काले बादल। ऐसी बा रष जसम धुल गइ धरती पर जमी धूल-गद। नहा िलए फौ वारे क तेज़ धार से जंगल के पेड़-पौधे। और प य ने खुद को ह का कया महसूस। अ बू क जुदाइ का सदमा कुछ कम हआ। ु

सलमा बहू इतनी आवाज़ म भुनभुनाती क लोग चाह तो सुन भी ल और चाह तो नज़रअंदाज़ कर द-’’आ गइ हमदद, हम लोग को ज लाद समझती है बु ढ़या।’’ अ मी ने उसक बात पर यान न दया।


जूह के आने के बाद अ मी ने धीरे -धीरे हालात समझने क को षष क । उ ह ने जाना क रोरोकर ज़ दगी तबाह करने से बेहतर है मरहम ू “◌ा◌ौहर को खराजे-अक़ दत के तौर पर पहले

खुद को स भाला जाए और फर कमान अपने हाथ म ली जाए....इसके अलावा कोइ चारा नह !ं ू जूह ने आकर उ ह टटने से बचा िलया।

जूह के िमयां जा हद बेहद संजीदा “◌ाख◌़् स ह।

िसस कय के बीच अ मी, जूह को अ बू क बीमार , उनका हा पीटल म भरती होना, उनक मृ यु और फर उसके बाद के हालात तफ़सील से जा हद और जूह को बता रह थीं। जूह क बेट

ह बड़ प नी है । कसी को नह ं पहचानती। दरू दब ु इ म अकेले रहकर ऐसी हो

गइ है वह। िसफ अपने म मी-पापा भर को पहचानती है । जूह को अ मी के पास मषगूल दे ख जा हद ब ची को इधर-उधर टहलाते रहते ह। सावन के आ खर दन ह। भाद चढ़ने वाला है । बा रष है क कने का नाम नह ं ले रह । ठ क अ मी के मन के हालात जैसा भीगा-भीगा है मौसम। सूरज िनकलता है और न धूप क सकनुमा उ मीद नज़र आती है । माहौल बेहद कच कचा और मुसमुसा हो गया है । उनके मन क हालत इस मौसम से कतनी िमलती-जुलती है ।

ू फ़ज़ा म इतनी मनहिसयत छा गइ है क अ मी को बुखार-बुखार सा लग रहा है । बदन टट ू

रहा है । ऐंठन सी है जोड़-जोड़ म। इधर घर से िनकलना भी बंद है । शगर क मा ा बढ़ने पर ऐसा होता है । दवाइ भी ख म है । कससे कह क दवा ला दो। सभी इधर-उधर चाहे जस मूड म रह, उनके पास आते ह तो माथा चढ़ा कर। जैसे अ बू के बाद सारा बोझ उनके कंधे आ गया हो। अ मी अल सुबह फ़ जर क नमाज़ पढ़ कर कचहर रोड पर टहला करती थीं। इस सड़क पर सुबह मोटर-गा ड़यां नह ं चलतीं। इससे उनका लड- ेषर और शगर िनयं त रहता था। अ बू क मौत, सुनामी लहर बनकर उनके जीवन को तहस-नहस कर गरइं् ।

जूह ने उनका माथे पर हाथ रखा तो हरारत महसूस क । उसने अपने बैग म रखी दवाइय क कट से िनमूसलाइड क एक गोली िनकालकर अ मी को द । बना चीनी क चाय के साथ अ मी ने गोली खाइ। अ मी ने दवा खाकर फर आंख नम क -ं ’’अ लाह तआला मुझे भी उठा लेता तो....अब कौन करे गा मेर दे खभाल जूह !’’ जूह ने अ मी को डांटा-’’आप यादा सोचा न क रए अ मी! अ बू क

ह को तकलीफ़

पहंु चेगी।’’

जूह जानती है क अ बू के बाद इस घर म इतना तनाव य है ? य लोग एक-दसरे से दल ू खोलकर बात नह ं करते। स लू भाइ तो अ छ नौकर म ह। माषाअ लाह ब ढ़या कमाते ह।


नइ अ टो के मािलक ह। ब चे इं लष मी डयम प लक कूल म पढ़ते ह। रायपुर के गांधीनगर म अपना एक लेट क त म िलया है । फर कसिलए ये िचक-िचक। अरे , कतना खच उठा रहे ह क उसक ध स अ मी सह। जूह को ये भी बुरा लगा क उसके “◌ा◌ौहर जा हद क कोइ फ़

नह ं कर रहा है । अरे , घर के

इकलौते दामाद ह। अ बू रहते तो ख़दमत म कोइ कसर न छोड़ते। जा हद अपने दो त के बीच बड़ “◌ा◌ान से अपने ससुर साहब क बड़ाइ बतलाते नह ं थकते क उनके ससुर साहब अपने दामाद क इतनी खदमत करते ह क “◌ाम आने लगती है । दामाद के आगे-पीछे डोलते रहगे अ बू। दामाद बाबू को कोइ तकलीफ़ न हो। कोइ असु वधा न हो। आज जा हद ने उनक कमी ज़ र महसूस क होगी, जब दोपहर के खाने म दाल-चावल और आलू क भु जया खाए ह गे। वरना गो त, मछली या अ डे के बगैर खाना परोसा ह नह ं जाता था। अ बू खु़द थैला लेकर मीट-मछली लेने जाते थे। अब कसे िच ता है उनक ? यह हालात रहे तो आइं दा अपना खच करके इस घर म कौन आएगा! स लू भाइ क बीवी ह तो कसी से सीधे मुंह बात नह ं करतीं। सुबह ह जूह ने पूछा था क भाभी दपहर म या बनेगा? ु

तब भाभी ने िचढ़कर जवाब दया था-’’ बरयानी का जुगाड़ नह ,ं जो होगा वो पकेगा।’’ वाकइ, ये तो हद है । जूह ने तड़ाक से जवाब दे मारा था-’’ बरयानी क नह ं मुह बत क भूखी है ।’’ पता नह ं स लू भाइ को नमक-िमच लगाकर जैसा न कान भर ह भाभी। जब क जब भी जूह इं डया आइ, इन सभी के िलए कुछ न कुछ िग ट ज़ र लेकर आइ है । सट, साबुन,

म, मेकअप का सामान, चाकलेट, सूखे मेवे आ द अ य छोट -मोट चीज़।

वापस लौटते हए ु कोइ नह ं पूछता क जूह को भी तो कुछ िग ट चा हए। मु बइ से वह कइ तरह के अचार खर दकर ले जाती।

जा हद बेहद यारे इं सान ह। इं डया के हरे क र तेदार के िलए कुछ न कुछ ज़ र खर द लाएंगे। जूह ने दे खा क अ मी के कमरे म भाभी बहत ु कम आती ह। हाल-चाल पूछना तो दरू, कोइ िलहाज नह ं अ मी का इस घर म। बस, दो रोट लाकर सामने रख द । कोइ खाए न खाए, कोइ जए या मरे अपनी बला से। जूह के आने के बाद भाभी ने अ मी के कमरे म आना छोड़ दया है । ले कन कमरे के सामने से गुज़रते हए ु भाभी क नज़र कमरे मु ◌ायना करती ह। कभी जूह को लगता क भाभी आड़ लेकर कमरे के अंदर क बात तो नह ं सुनतीं। जाने य इं सान ऐसा हो जाता है । ये सब स लू भाइ क कमी है । अ बू के जाने के बाद घर मनहिसयत और वीरानी का डे रा है । ू


जूह अ मी के दख ु -दद सुनती और थोड़ा भी फुसत पाती तो त बीहात पढ़ती। उसे एक लाख

बार पहला कलमा ‘लाइलाह इ ल लाह, मुह मदरु रसूल लाह’ पढ़ना है । कम से कम एक बार कुरआन-पाक ख म करनी है ।

अ बू के चह लुम के दन इ ह बख◌़् षवाना है क इसका इसाले-सवाब अ बू क

ह तक

पहंु चे।

जब तक जूह न आइ थी अ मी अपने कमरे म त हा बैठे-बैठे चुपचाप रोया करतीं और सोचतीं क वे कतनी अकेली हो गइ ह। जस खूंटे के बल पर उचका करती थीं, अब उस खूंटे का आसरा भी नह ं। अगर आज बहू-बेटे क िनगाह बदली है तो उसम कसी का कुसूर नह ं ब क ये तो उनक बदनसीबी है । वे अ लाह से ब च क सलामती क दआ ु करतीं।

कभी सोचतीं क असल गुनहगार तो वे वयं ह, तभी तो अ लाह ने उ ह बेवा होने क सज़ा द है । एक औरत क ज़ दगी म इससे बड़ा अज़ाब और या हो सकता है ?

स लू क बेगम ने तो पता बड़ -बू ढ़य क तरह ऐलान कर दया क अ मी अब इ त (तीन मािसक धम क अविध) के समय तक कह ं आ-जा नह ं सकतीं। उ ह घर क चारद वार म ह रहना है ।

उ ह लगा क स लू-गु लू क भी यह मंषा है क वे इ त क अविध तक घर क चारद वार म क़ैद रह। जूह के मामू और मुमानी ने भी अ मी को यह हदायत द थी क इ त का एहतराम ज़ र है । अ बू बीमार होने से पूव बक से तीस हज़ार

पए िनकाल कर लाए थे। गु लू के िलए रे ड -मेड

कपड़ क एक दकान डाली जा रह है । कारपटर के िलए वे ु

पए िनकाले गए थे।

पए अपनी

आलमार के अंदर एक ीफकेस म वह रखा करते थे। जसम ज़ र काग़ज़ात भी रहते। अ पताल ले जाते समय उ ह ने उस ीफकेस क चाभी अ मी के हाथ म द थी। स लू भाइ ने उनसे दवा वगैरा के िलए पांच हजार

पए मांगे थे। अ मी ने स लू को ीफकेस क चाभी

दे द थी। फर उसके बाद वह चाभी उ ह िमली नह ं। अ बू क मौत के बाद तीजा के दन तो अ मी को होष आया। जब अ मी ने अ बू क आलमार खोली तो उसम ीफकेस नह ं थी। अ मी ने स लू से पूछा तो वह नाराज़ हो गया।


‘‘आप मुझपे “◌ाक करती ह। या म चोर हंू । खुद को होष नह ं था, चार तरफ पैसे का खेला चला। मुझे या हसाब दे ना पड़े गा? कहां से हो रहा है इतना ताम-झाम। अब तक म अपने तीस हज़ार भी फूंक चुका हंू । उसक फ़

है कसी को?’’

स लू क बीवी भी लड़ने आ गइ थी। अ मी जूह को सब बात बता रह थीं। बताया-’’अ छा हआ ु तेरे अ बू चले गए। वरना ऐसे नालायक के रहते उनक अ पताल म

दे ख-भाल कहां हो पाती? मुझसे तो कुछ हो न पाता, दिनयाभर क बीमार जो ढो रह हंू म।’’ ु स लू और गु लू पार -पार अ पताल आते-जाते थे। स लू क बेगम बन-ठन के िसफ एक बार अ पताल आइ थी। डॉ टर परमार अ छे आदमी ह। जब अ मी ने उनसे पूछा था क न स भल रहे ह तो बता द, उ ह कह ं बाहर ले दखा दया जाएगा। तब डॉ टर परमार ने कहा था-’’ ेनका

ो स का

लीकेटे ड केस है । पहले टे बलाइज़ हो जाएं फर कुछ कहा जा सकता है । इस हालत म

इ ह कहां ले जाएंगी आप?’’ आइसीयू म कसी को भी जाने क इजाज़त न थी। अ मी को भी नह ं। हां, स लू चाहता तो जुगाड़ बना लेता था। ले कन वह हा पीटल म रहता कतनी दे र था। गु लू और अ मी तो आइसीयू के सामने लगी कुिसय पर बैठे रहते। वहां हमेषा दजन भर लोग रहते, ले कन उस गैलर म डरावना सा स नाटा छाया रहता। यूट -नस बड़ कड़क थीं। अ मी के आंसू थमते नह ं थे, तब अ बू के दो त वदद ू भाइ ने

डॉ टर परमार से ाथना क थी-’’कम से कम इ ह एक बार अंदर जाकर मर ज़ को दे खने क परमीषन द जए डा साब?’’ डॉ टर परमार नस को बुलवाया और पांच िमनट के िलए अंदर जाने क इजाज़त द । नंगे पांव वे िस टर के पीछे -पीछे कांच के दरवाज़े खोल आइसीयू पहंु चे। अंदर भी कांच के

पाट षन से कमरे जैसे बने हए ु थे। उनम कइ ब तर लगे थे। एक आया एक मर ज़ को ेडदध ू खला रह थी। सभी मर ज़ ज दगी और मौत के दर यान लड़ जा रह जंग से

बारइं् ओर चौथे बेड पर अ बू थे। उनक आंख बंद थीं। मुंह से अजीब आवाज़ आ रह थीं। बारइं् कलाइ पर लाइन लगा था। नाक म पाइप डाली हुइ थी। उनक आंख खुलीं।

अ मी और वदद ू भाइ ने इषारे से सलाम कया।

अ बू ने िसर क ह क जुं बष दे कर सलाम का जवाब दया।

थे।


उनके चेहरे पर दद क रे खाओं का जाल बछा था। उनक तकलीफ़ दे ख अ मी का कंठ भर आया। आंचल के प लू से उ ह ने अपनी लाइ रोक । अ बू ने कुछ कहना चाहा था। उनके मुंह से खर...खर जैसी कुछ अथह न आवाज़ िनकलीं। िस टर क आवाज़ गूंजी-’’चिलए, टाइम हो गया।’’ वदद ू भाइ तो अ बू को सलाम करके वापस हो िलए क तु अ मी डट रह ं। िस टर से कहा’’षायद यासे ह।’’

िस टर भड़क उठ -’’यहां पेषट का पूरा केयर होता है । आप अब बाहर जाएं।’’ अ मी ने जैसे सुना नह ं। उ ह ने िस टर को घूर कर दे खा। िस टर ने कहा-’’आपके रहने से इं फे न का खतरा है । इसीिलए कसी को यहां आने का परमीषन नह ं है ।’’ अ मी ने दे खा क अ बू क आंख म इस क़ैद से आज़ाद होने क चाहत है । उ ह ने अ बू के पैर सहलाए और भार मन से वापस हरइं ु ् । उसके बाद फर अ बू से कहां मुलाकात हो पाइ थी। आइसीयू के बाहर घड़ म व

कम लोग दे खते ह। सभी एक-एक पल को एक युग क तरह

गुज़रते महसूस करते ह। न जाने कसके

यजन के बारे म कैसी खबर अंदर से आ जाए। एक

बात तय थी क बहत ु कम लोग अंदर से ठ क होकर िनकलते ह।

जनके केस आगे इलाज के िलए ‘ रफर’ हए ु या ज ह अब आइसीयू के जगह जनरल वाड क

ज़ रत है या जो जंग हार गए, उनके ज म ह बाहर िनकल पाते ह। अ बू पूरे साठ घ टे आइसीयू म जी वत रहे ।

अ छा हआ ु इससे यादा वह नह ं जए, वरना उनक दे ख-भाल कौन करता। अरे , इन गै़र-

ज़ मेदार ब च के भरोसे रहते तो डू ब जाते। हां, अ मी को भी अ बू के बेड के बगल म ज़ र

भत कराना पड़ सकता था। वदद ू भाइ ने जूह को राज़ क बात बताइ थी। जब अ बू आइसीयू म थे, स लू ने रात घर म बीवी-ब च के संग बताइ थीं।

अ बू क बीमार क ख़बर सुन जब वदद ू भाइ सुबह दस बजे घर आए थे तो बा कनी म स लू को लुंगी-बिनयान म ष करते पाया था--’’बताओ ब टया, जसके अ बू आइसीयू म मौत से जंग लड़ रहे ह , उसका बेटा दस बजे इ मीनान से घर क बा कनी म खड़े -खड़े ष करता रहे गा?’’ जूह

या जवाब दे ती। उसे स लू भाइ से ऐसी उ मीद न थी। अ बू ने जीवन-भर ब च को

कोइ तकलीफ़ न द । उनसे कभी ख़दमत न करवाइ थी। इसीिलए “◌ा◌ायद उ ह ने मलकुलमौत (यमदत ू ) से दरख◌़् वा त क होगी क आकर उ ह उठा ले जाएं।


उस समय अ मी का हमदद कोइ न था, जो उनके पास कोइ आकर बैठता। उ ह सां वना दे ता। अ बू क मौत के बाद स लू ह अ मी के पास आते और हर बार यहां इतना खच हआ ु वहां इतना। आपने जो तीस हज़ार कहते क वह वयं अपने दस हज़ार

पए-पैसे क बात करते।

पए दए थे, वह ख म हो गए। स लू

पए अब तक लगा चुके ह। उनके पास भी अब पैसे नह ं

ह। अभी तो सारा काम बचा है । अ मी के एकाउं ट के पचास हज़ार

पए पर स लू क नज़र है ।

तभी तो बेटा-बहू आपस म िसर जोड़कर गुंताड़ा िभड़ाते रहते और पैस का रोना रोते। बहू ने तो यहां तक कह दया था क अ मी अपने भाइय से य नह ं कुछ मांगतीं। आ ख़र कस दन काम आएंगे वे। स लू क बेगम ने तो यहां तक कहा क अ मी के माइके वाले र तेदार गै़र क तरह िम ट म “◌ार क हए ु और मस फ़यात का बहाना बनाकर फूट िलए। बड़े अ छे र तेदार ह सब।

जूह आने वाली है , तो उससे भी मदद मांगी जाए। जूह जब भी इं डया आती है कतना बटोर कर ले तो जाती है । िसफ स लू क ज मेदार नह ं है ये। बस, ऐसी ज़हर भर बात सुनकर अ मी का बीपी बढ़ जाता और डाय ब टक तो वह थीं ह ं। हाथ-पैर सु न हो जाते और लाचार होकर ब तर पकड़ लेतीं।

अ मी को अपने छोटे भाइ पर भी गु सा आया जसने बहू के सामने अपने मरहम ू जीजा क

रइसी का क़सीदा पढ़ते हए ु कहा था क उनका चह लुम थोड़ा धूम-धाम से मनाया जाए। “◌ाहर के लोग याद कर क चह लुम कसी ऐरे -गैरे का नह ं। मरहम ू को अ लाह ने भरपूर दौलत से नवाज़ा था।

यह बात स लू के च चा यानी उनके दे वर भी कह गए थे क चह लुम म छ ीसग ढ़याटाइल म काम नह ं होगा क मेहमान को एक बोट खला कर टरका दया।

“◌ा◌ानदार बरयानी बननी चा हए। भाइजान-मरहम ू को बरयानी बहत ु पसंद थी। साथ म रायता और मूंग का हलवा हो तो या कहने।

अ बू ज़ाएकेदार मुगिलया खाना पसंद करते थे। सि◌ ज़यां चाहे जान डाल कर बनाओ उ ह पसंद न आतीं। हां, गो त के साथ आलू, लौक या बरब ट आ द उ ह पसंद आती थी। क मा-मटर वे “◌ा◌ौक से खाते। कुछ न हो तो फर दध ू म खूब सार चीनी डालकर रो टयां खाते और आमलेट बनने पर उसे पराठे म लपेटकर एग-रोल

जैसा बना लेते और फर दांत से काट-काट कर इ मीनान से ट वी दे खते हए ु खा िलया करते।


अ बू िसंचाइ वभाग म इं जीिनयर हआ ु करते थे। लोग कहते ह क वे बड़े इमानदार इं सान थे। ठे केदार का काम ऐसे ह कर दया करते थे।

अ बू को रटायर हए ु मा तीन साल हए ु थे। िसंचाइ वभाग म अ बू क

मृित सुर

त थी।

इसिलए अ बू के जनाज़े म उनके ‘कलीग’ बड़ तादाद म “◌ार क हए ु थे। चह लुम म उ ह य द याद कया गया तो उनके िलए “◌ा◌ाकाहार

यव था अलग से करनी

होगी। स लू चह लुम के िलए काड छपवाना चाहते ह। उसे कू रयर के ज़ रए लोग तक पहंु चाया जाएगा।

बस, मसला पइय का था। स लू जब भी घर आते अ मी को

पय क ज़ रत का एहसास दलाकर टषन म डाल दे ते।

कभी कहते टट वाले को एडवांस दे ना होगा। यतीमखाने के ब च और मौल वय को बुलाया जाए तो सं या सौ तक पहंु च जाएगी। उसके बाद र तेदार और प रिचत आ द िमला कर तकर बन चार सौ आंकड़ा बनेगा। पड़ोस क ह जन बूबू के चह लुम म तो हजार लोग ने खाना खाया था। इतने आदिमय का खाना होगा तो कैटरर बुलवाना होगा। नान-वेज के िलए हफ़ ज़ और वेज के िलए जोषी। ले कन मसला फर उ ह ं पय के इद-िगद आकर अटक जाता। सबसे बड़ा

पइया...

सुबह मद ना-म जद के पेष-इमाम क़ादर साहब घर आए। स लू उस समय घर पर न थे। बहू ह उनसे बात कर रह थीं। अ मी क़ादर साहब से पदा न करती थीं। वह भी बैठक म चली आरइं् । दे खा क बहू ने बुरा सा मुंह बनाया और वहां से हट गइ है ।

क़ादर साहब अ मी को समझा रहे थे क चह लुम तो आप है िसयत के मुता बक क रए ह , ले कन सबसे बड़ा सवाब तो उनके नाम से म जद या मदरसा म कोइ बड़ा काम करवा दे ने म है । म जद और मदरसा म पानी क बड़ सम या है । आप चाह तो मरहम ू के नाम पर इतनी रक़म ख◌़् ◌ौरात कर क वहां एक बो रं ग करवा द जाए।

अ मी को अ छा लगा ये सुनकर क ता-क़यामत उस बो रं ग के पानी से जाने कतने नमाज़ी वज़ू करगे। कतने यतीम और यासे उस पानी से अपनी यास बुझाएंगे।


उ ह ने जनाब क़ादर साहब को आ व त कया क वे इस बारे म अपने सभी ब च से म वरा करगी। अ बू एक तर क पसंद इं सान थे। दिनया के तमाम मसल पर वह ग़ौरो- फ़ ु

कया करते थे।

मु लम समाज क आपसी फ़रकेबाज़ी के वह ख़लाफ़ थे। उनक समझ म नह ं आता क सह कौन है ? षया ह या अपने को खांट सु नी कहने वाले ह या दे वबंद मुसलमान ज ह सु नी लोग वहाबी के नाम से पुकारते ह। मज़ार-खानकाह के दरवेष ह या क़ वाल-गवैये। अ बू सभी क इज◌़् ज़त कया करते थे।

अ बू तबीयत से खै़रात-ज़कात अदा करते थे। अ मी जानती थीं क उनके मरहम ू “◌ा◌ौहर पंचगाना नमाज़ी भले न ह मगर रमज़ान माह के पूरे रोज़े रखते। जुमा क नमाज़ कभी वह दे वबं दय क म जद म अदा करते और कभी बरे ल वय क म जद म। यह उनका सबसे बड़ ग़लती थी। अ बू के इं तेकाल के बाद उनको गु ल दे ने का मसला हो या जनाजे क नमाज़ पढ़ाने का, ऐसे मामल पर यह जनाब क़ादर साहब ने स लू और गु लू को नाको चने चबवाए थे। अ मी ने जब पेष इमाम क़ादर क ख◌़् वा हष ब च को बताइ क म जद म बो रं ग करवाने के िलए हम अ बू के नाम से खै़रात करना चा हए, तो स लू और गु लू भड़क उठे -’’जनाजे़ क

नमाज़ पढ़ाने के िलए कतने नखरे कए थे िमयां कादर ने। जैसे अ बू मुसलमान न ह ब क कोइ का फ़र ह । पैसे उगाहने ह तो उन लोग को सु नी-वहाबी नह ं सूझता! धम के ठे केदार, चो टे साले!’’ चूं क स लू और गु लू त लीगी-जमात म आते-जाते थे। दे वबं दय क म जद से तआ लुकात रखते थे, इसिलए बरे लवी मौलाना क़ादर ख़फा होते ह । वह तो सु नी-कमेट म “◌ा◌ािमल, अ बू के दो त ने दखलअंदाजी क , तब जाकर मौलाना क़ादर कफ़न-दफ़न म षरकत के िलए राज़ी हए। ु

इसी बात पर अ मी ने स लू को समझाया क या हआ ु , िमजाज़ ख़राब य करते हो?

तब स लू बोले-’’िमजाज़ काहे न खराब हो। आप अपने खाते से पैसे िनकालगी नह ं। हम अ बू के कसी भी खाते से पैसा िनकाल नह ं सकते। पैसे आएं तो आएं कहां से। अब तक मेरा बैलस भी खच हो चुका है । बक-मैनेजर साला पहले कहता था क ‘डे थ-स ट फकेट’ के साथ अ लीकेषन जमा होने पर काम बन जाएगा। आज इतने दन क भाग-दौड़ के बाद जब डे थस ट फकेट लेकर मैनेजर के पास गए तो उसने ढे र सारे काग़ज थमा दए। कहता है क इ ह भरकर ले आएं फर आगे का ‘ ोसेस’ बताया जाएगा।’’ अ मी ने बात को ह केपन से िलया-’’ फर या है , काग़ज़ात भर-भुराकर जमा करवा दो।’’


तब तक स लू क बेगम भी कमरे म आ गइ। उसे दे ख स लू क भव तन गरइं् ।

बोले-’’वक ल करना होगा। हम सभी भाइ-ब हन को कोट म जाकर हलफ़नामा तैयार कराना होगा क अ बू के बक खाते म जमा पैसे क आप हक़दार ह और सेहत ख़राब होने क वजह से आप मुझे ‘नािमनेट’ कर दगी। उस हलफ़नामे म बाक के तमाम दावेदार को भी द तख़त करने ह गे क आपके इस फैसले से उ ह कोइ ‘ऑ जे न’ नह ं है । तब कह जाकर अ बू के पैसे हाथ आएंगे। इस काम म ह त लग सकते ह। तब तक काम चले इसके िलए मने अपने बक से लोन लेने क सोची है ।’’ अ मी एकबारगी सोच म पड़ गरइं् ।

स लू ने कागज़ात अ मी के सामने रखे क कुछ द तख़त आपको करने ह। अ मी का माथा ठनका। ब टया जूह और दामाद जा हद से सलाह-म वरा कए वह कसी तरह के काग़ज़ पर अपने द तख़त नह ं करना चाहती थीं। स लू नाराज़ न हो इसिलए उ ह ने उससे काग़ज़ात ले िलए और कहा-’’कल-परस तक जूह जा हद भी आ जाएंग,े फर म काग़ज़ात पर द तख़त कर दं ग ू ी।’’

इतना सुनना था क दरवाज़े क ओट िलए खड़ स लू क बेगम गु से से भड़क उठ और अपने “◌ा◌ौहर को भला-बुरा कहने लगी-’’यह िसला आपको, घर-घर क रट लगाए रहते थे। मेर अ मी, मेरे अ बू के बना खाना हज़म न होता था। आपक इस घर म कतनी इज◌़् ज◌़् ◌ात है , पता चल गया मुझे। अब इस घर म एक िमनट भी नह ं रहना जहां हमार नीयत पर “◌ाक कया जाए। आप बोलते य नह ं कुछ....? बुत य बने हए ु ह...?’’ स लू चुपचाप अ मी के पास खसक िलए थे।

तब तक मग़ रब क अज़ान क आवाज़ आइ और अ मी वज़ू बनाने गुसलखाने चली गरइं् ।

कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद करके जूह , जा हद और अ मी उन अदालती काग़ज़ को समझ रहे थे। अ मी अपनी बेवा जेठानी के भोलेपन का ह

जानती थीं। जो जेठ के इं तकाल के बाद बेट के

बहकावे म आकर बना जाने-बूझे जहां-तहां द तख़त करती रह ं और एक दन सड़क पर आ गइ थीं। जेठ क सार दौलत ब च ने अपने नाम करा लीं और उ ह ए ड़यां रगड़-रगड़ कर मरने के िलए बेसहारा छोड़ दया था।


स लू और गु लू पर उ ह थोड़ा भी भरोसा नह ं रह गया था। ये सह था क दोन दौड़-धूप कर रहे थे, ले कन मरहम ू बाप के िलए उ ह इतनी तकलीफ़ तो उठानी ह थी। वे अपनी बेवाग़मज़दा मां पर कोइ एहसान तो कर नह ं रहे थे।

कतने खुदगज हो गए ह ब चे! भूल गए वे वो समय जब उनक छोट -छोट ख◌़् वा हष को

पूरा करने के िलए मरहम ू अ बू कतनी तकलीफ़ उठाया करते थे। ख़ैर, तब तक जा हद कागज़ात को यान से पढ़ चुके थे।

जा हद ने बताया-’’अ मी, अ बू के खाते क रक़म पाने के िलए क़ानूनी काग़ज़ है । स लू भाइ, गु लू और जूह को इसम द तखत करने ह गे क वे अ बू क चल-अचल दौलत के वा रस ह। ले कन बक म फंसे पैसे पर अपना हक़ छोड़ रहे ह। अ मी आप इन पैस क मािलक ह गी।’’ अ मी ने सोचा क इसम तो कोइ बुराइ नह ं। फर बक के एक काग़ज़ को पढ़ते हए ु जा हद ने बताया क इसम एक चालबाज़ी िछपी है ।

अ मी के बक के खाते म ‘नािमनी’ क जगह िसफ स लू भाइजान का नाम िलखा है , यानी य द आपको कह ं कुछ हो गया तो आपके बाद स लू भाइजान ह इस खाते के एकमा हक़दार रहगे। जा हद खामोष हए। ु

अ मी और जूह ने एक-दसरे क तरफ सवािलया िनगाह से दे खा। ू उ ह स लू क बदनीयती पर तरस आया।

अ मी ने एकबारगी सोचा क रोज़ क किचर- किचर से या फ़ायदा। ज ह दौलत यार है वे दौलत कमाएं। इसीिलए उ ह ने जूह से कहा-’’ला बेटा, पेन दे । कहां-कहां द तख़त करने ह, बता!’’ ले कन जूह इस फैसले को कहां मानने वाली थी। उसने सोचा क इस क ठन समय म उनक कौन मदद कर सकता है । और उसे अपनी सहे ली क पना षवहरे याद आइ। क पना षवहरे , जो वकालत करने के बाद थानीय कोट म वक ल है । जूह ने अ मी से कहा क क पना षवहरे से म वरा करने के बाद ह कोइ ‘ डसीज़न’ िलया जाएगा। जूह ने जा हद को साथ िलया और क पना षवहरे के घर चली गइ। अ बू के इं तेकाल क ख़बर सुनकर क पना षवहरे ने दख ु ज़ा हर कया। जूह क आंख भर आइ थीं।

दख ु -भरे माहौल म जूह ने स लू भाइ और भाभी के यवहार के बारे म व तार से क पना को बताया। फर उसे बक वाले कागज़ात दखलाए।

क पना ने कहा क वह कल अ मी को लेकर कोट आए। एक घ टे म सारा काम िनपट जाएगा।


जा हद ने बताया क अ मी तो इ त के पी रयड म घर से बाहर नह ं िनकलगी। तब जूह और क पना सोच म डू ब गरइं् ।

बहरहाल, बात तय ये हुइ क इस काम म अब स लू भाइ के एहसान उठाने क कोइ ज़ रत नह ं।

एडवोकेट क पना षवहरे ने कहा-’’चह लुम के िलए तो अभी एक मह ना बाक है , भगवान चाहे गा तो तब तक सब ठ क हो जाएगा।’’ क पना षवहरे से िमलकर जूह -जा हद को राहत िमली थी। अब उ ह आगे क रणनीित बनानी थी....

उस रात जूह अ मी के पास ह सोइ। रात भर दोन अ बू को याद कर रोती रह ं और इस नए मसले के हल के िलए रा ते तलाषती रह ं। ‘इ त’ क अविध म अ मी के बाहर न िनकलने क हदायत मामुओं क भी थी और चाचाओं क भी। बना घर से िनकले, अ मी को इसपे-उसपे आि त होना था। उसम इतनी ज◌़् यादा

ग़लतफ़हमी पैदा हो रह थी क कुछ समझ म न आ रहा था। दोन परे षान थीं क ऐसे हालात म कौन सी राह िनकाली जाए? घर म पैसे क क लत होनी श हो चुक थी। बक वाला मसला जतनी ज द सुलझे, उतना अ छा था। इसी कषमकष म उ ह कब नींद ने अपने आगोष म ले िलया, वे जान न सक ं। सुबह जब जूह क नींद खुली तो उसने अ मी को कमरे म न पाया। सोचा क बाथ म गइ ह गी। ले कन जब वहां से भी कोइ आहट न िमली तो वह उठ बैठ । दे खा द वाल घड़ म छ: बज चुके ह। त त पर जािनमाज बछा है । इसका मतलब अ मी ने फ

क नमाज़ पढ़ ली है ।

जूह खड़क के पास आइ। पद हटाए तो दे खा क अ मी मंथर गित से टहल कर आ रह ह। अ मी के चेहरे पर ताज़गी थी। रतजगे क जगह उ मीद से भरपूर एक सु ह का आग़ाज़ था वहां। ऐसा लग रहा था क अ मी ने तमाम मसल का हल खोज िनकाला हो। अ मी ने जूह को दे खा तो खुष हरइं ु ् और कहा क बेटा, ज द तैयार हो जाओ। इ त- व त क बात को गोली मारो। अ लाह भूल-चूक माफ़ करे गा।

फ जर क अज़ान से पहले अल सुबह तु हारे अ बू ख◌़् वाब म आए थे और कह रहे थे क जो भी काम करो, अपने बूते करो। और मेर नींद खुल गइ थी। अब, हम खु़द राह िनकालनी होगी।


जूह के बदन म फुत आ गइ। उसने जा हद को जगाया और सार बात बताइ। जा हद खुष हए। ु

फर सुबह दस बजे का मंज़र स लू भाइ, उनक बेगम और गु लू के िलए अजीबो-गर ब था।

उन सभी ने दे खा क घर के बाहर ऑटो घुरघुरा रहा है । अ मी और जूह घर से िनकल कर ऑटो क तरफ जा रह ह। आ म व वास से भर जूह के हाथ म एक फाइल है । अ मी और जूह ऑटो पर सवार हो रह ह। लोग दे ख रहे थे और ऑटो धुंआ उड़ाते गली म ग़ायब हो

दहषतगद

पहले ट वी पर उसक त वीर दखलाइ गरइं् , फर समाचार-प

ने उसके बारे म लानत-

मलामत क ◌ंतो “◌ाहर का माथा ठनका।

‘‘अरे भइया, ग़ज़ब हो गया! इसा िमयां का बेटा मुसआ ु ससुरा आतंकवाद िनकल गया।’’ नगर के सबसे पुराने धुिनया इसा िमयां का बेटा मूसा उफ मुसुआ और आतंकवाद ! ‘‘इ ससुरे िमयवां स बे आतंकबाद होवत ह!’’ बसनाथ िमसरा ने तो बाकायदा पूर मु लम क़ौम को ह आतंकवाद िस

कर दया।

नगर से िनकलने वाले अख़बार ‘ “◌ा◌ूल’ के मुखपृ का “◌ा◌ीषक था ‘नगर म पनपता आतंकवाद’। स पादक

लोकचंद ने मूसा के बहाने अपने ‘ वषेष संवाददाता’ के माफत नगर,

दे ष और फर अमे रका का भु व वीकार कर रह समूची दिनया म फैले आतंकवाद का ु तुरंत-फुरं त जायज़ा िलया था।

अख़बार ‘ “◌ा◌ूल’ का आ ह था क दे ष भर म फैले मदरस क बार क से जांच कराइ जाए। ‘ ज़हाद’ का ज़हर इ ह ं मदरस से धािमक- ष ा क आड़ लेकर द जा रह है । इ ह अ पसं यक कह-कह कर बहसं ु यक के साथ इस दे ष म सौतेला यवहार कया जा रहा है । ये लोग हमार राजनीितक पा टय को लेकमेल करते ह।

कुछ राजनीितक दल वाथवष इन तथाकिथक अ पसं यक के मन म बहसं ु यक का डर बैठा कर उनके वोट खींच लेते ह।

मूसा क ख़बर सुन-गुनकर म भी काफ़ अचंिभत था। मूसा को म य

गत तौर पर जानता था।


जानता भी य न, मूसा मेरा सहपाठ था और लंगो टया भी। ऐसा दो त, जसे खुषी-खुषी कोइ अपना हमराज़ बना ले। ऐसा मीत, जससे हम अपना कुछ नह ं िछपाते। जससे अपने दल क कहके हम तनाव-मु एक उ

हो जाते ह।

के बाद इं सान इस तरह के र ते खो बैठता है ।

आगे जाकर मानवीय-स बंध, यवसाियक, औ ोिगक, राजनीितक या कूटनीितक स बंध के नाम से पुकारे जाते ह। तब हरे क स बंध के पीछे बनते- बगड़ते समीकरण, हत-अ हत, लाभहािन आ द पैमाने अहम रोल अदा करते ह। मुसुआ उफर◌़ ् मूसा एक मुसलमान युवक था।

बचपन म म मुसलमान के बारे म यह जानता था क ये अछूत होते ह। इनका ‘खतना’ कया जाता है । औरं गजे़ब जैसे मुगल बादषाह के अ याचार से घबराकर या फर लालचवष बहते ु रे ह द ू मुसलमान बन गए।

इितहास के ष क उपा याय सर एक सनातनी अधेड़ थे। वे मुगल-काल का इितहास पढ़ाते समय इतना उ े िलत हो जाते क मुगल क सार ग़ तय का

य े क ा म उप थत इने-

िगने मुसलमान लड़क पर डाल दे ते थे। इितहास का पी रयड लंच- ेक के बाद होता। इधर उपा याय सर क ा म वेष करते उधर कूल के समीप अकबर....’’ उपा याय सर छा

थत मद ना-म जद से दपहर क नमाज़ क अज़ान गूंजती।-’’अ लाहो ु को बताते’-’’ब च सुना तुमने म जद के मु ले क बांग! इस दे ष के

मुसलमान अभी तक मुगल बादषाह अकबर क बड़ाइ करना नह ं छोड़े ह। इन लोग के मुंह से अपने छ पित षवाजी या महाराणा ताप क बड़ाइ तुम कभी नह ं सुने होगे। ये लोग आज भी अकबर-बाबर क बड़ाइ गाते ह।’’ जब तक अज़ान होती रहती, उपा याय सर बुरा सा मुह ं बनाए रहते और लास ठहाके से भर जाती। म ऐसे समय उन तीन सहपा ठय को दे खा करता, जनका अपराध िसफ इतना रहता क वे मुसलमान घर म पैदा हए ु ह।

वे एक गुट बनाकर अलग-थलग रहा करते थे। उस समूह को क ा के दबंग लड़क ने नाम दया था-’केजी- ुप’ ु - ुप’। ‘केजी’ यानी क ‘कटआ मूसा उस

ुप म “◌ा◌ािमल नह ं था, “◌ा◌ायद इसीिलए मुझे

य था।

वह क ा के बहसं ु यक लड़क के साथ रहा करता था और उ ह ं क तरह उस को ‘केजी’ कहा करता था।

ुप के लड़क


मूसा के पास ग़ज़ब का ‘सस ऑफ़

ूमर’ था। जस तरह एक पंजाबी बड बेतक लुफ़ के साथ

अपने ह ऊपर चुटकुले और फ तयां सुना िलया करते ह और बंदास हं स लेते ह, कुछ ऐसी ह फ़तरत का मािलक था मूसा। मूसा के अलावा दसरे मुसलमान लड़के जब पेषाब करते तो िछप कर करते। ू

जब क मूसा हमारे साथ टॉयलेट जाया करता। “◌ारारती तो वह था ह । ज़ रत पड़ने पर सबके सामने ह पट क ज़प खोलकर मूतने लगता। जन दन हम कोस क कताब म माथा खपाते थे, मूसा नइ-नइ “◌ौतािनयां इजाद करने म लीन रहा करता। मूसा क इ ह कार तािनय के कारण क ा के तमाम ब चे उसे ‘मु◌ुसआ’ कहकर पुकारते। ‘मुसुआ’ यानी क चालाक चूहा। ऐसा चूहा जो कुतरने को सारा घर कुतर जाए और कसी को कान -कान ख़बर न हो। “◌ारारत म बड़े -बड़ के कान कुतरता था मुसुआ। क ा- ष ◌़् ◌ाक थे िम ा सर।

उनके दो काम वह बना उनक आ ा के कर दया करता था। अ वल तो कूल के पीछे क झा ड़य म घुसकर बेषरम क हर टहिनयां तोड़ लाना और दजा ू िम ा सर के िलए खैनी का इं तज़ाम करना।

मुझे तो ऐसा लगता है क मुसुआ बड़ कम उ

से ह खैनी वगैरा का “◌ा◌ौक फ़रमाया करता

था। खैनी तो खैनी, लोग ने उसे चपरासी रामजी ारा फक गइ अधजली बी ड़यां सुलगाकर पीते भी दे खा था। तब कूल को पाठषाला कहा जाता था। इन पाठषालाओं म कूल-यूनीफाम, लास-वक, होमवक, यूिनट-टे ट जैसे बेहू दा च चले कहां थे? बस, ितमाह , छमाह या सालाना पर

ा हआ ु करती थीं उस समय।

जसम अ छे -अ छे फ नेखां ब चे फेल हो जाया करते थे।

अिभभावकगण ष क को लाइसस दे दे ते थे क वे ब च को सुधारने के िलए चाह तो पीटपीट कर अधमरा कर द। मार के डर से भूत भी भागते ह, हम तो फर ब चे ह ठहरे । ितमाह छमाह पर

ा म फेल होने और पट- पट कर बेइज◌़् ज◌़् ◌ात होने के बाद हम अक◌़ ् लआ

जाती और थक-हार कर हम िनणय लेना ह पड़ता क अब पढ़ने और रटने के अलावा कोइ वक प नह ं बचा। नतीजतन सालाना पर

ा म हम स मानजनक न बर से पास हो जाया

करते थे। तब अिभभावक को अपने ब च से न बे-िन नानबे ितषत अंक क आषा न होती थी। मुसुआ का दमाग तेज़ था।


साल भर वह ितकड़म करता ले कन पर

ा समीप आने पर इतना ज़ र पढ़ लेता क गांधी-

डवीज़न से पास हो जाता। य द वह पढ़ने म यान दे ता तो िन संदेह अ छे न बर लाता।

1

मुसुआ आतंकवाद बन गया। ये एक ऐसा समाचार था जसने मेरे दमाग के जोड़-जोड़ हलाकर रख दए थे। इतना िमलनसार, हर दल-अजीज़, सामा जक लड़का मूसा कसी आतंकवाद संगठन के िलए काम य करने लगा? वह मेरे घर आया करता था। एक घटना ऐसी घट क उसके बाद उसने मेरे घर चाय-ना ता करना छोड़ दया था। हआ ु ये क मेर मां एक

ढ़वाद , पार प रक धािमक वृ

क म हला थीं। वह क़तइ नह ं

चाहती थीं क कोइ वधम या क अछूत-चमार के संग उनके ब चे दो ती कर। उनके साथ उठे -बैठ। उ ह अपने घर बुलाएं या उनके घर म जाएं। पताजी के द तर सहयोिगय के िलए घर म अलग से कुछ बतन थे। ये कप- लेट, िगलास और त त रयां अलग रखी जाती थीं। उ ह मां न तो छूती थीं, न मांजती-धोती थीं। जूठे बतन गंधाते पड़े रहते जब तब क नौकरानी आकर उ ह न उठाती।

एक बार मुसुआ मेरे घर आया तो मेरे बुलाने पर अंदर चला आया। मां ने चने क घुघनी बनाइ हुइ थी। घुघनी मुझे बहत ु पसंद थी।

मुझे मुसुआ के साथ त काल खेल के मैदान जाना था। इसिलए मने कहा क ना ता करके चलते ह। मां ने मुझसे मुसुआ क ज़ात पूछ । मने बताया क िमंया ब चा है मुसुआ। मां का दमाग खराब हो गया। या करतीं, लड़के का दो त ह ठहरा। उ ह ने मूसा के िलए चीनी िम ट क त तर म घुघनी िभजवाइ और मेरे िलए ट ल के लेट म। मूसा के िलए चीनी िम ट के कप म चाय थी और मेरे िलए ट ल के कप म। मूसा के िलए कांच के तिनक तड़के िगलास म पानी दया और मुझे ट ल के िगलास म। मूसा क पैनी िनगाह इस िभ नता को भांप गरइं् ।


उसने बहाना कया क उसका पेट ठ क नह ं है । वह कुछ भी न लेगा। फर जब हम घर से बाहर िनकल रहे थे तो सामने गली म खड़क के नीचे के घूरे पर कु

के

सामने घुघनी क त तर फक गइ। कु े आपस म लड़ते हए ु घुघनी खाने के िलए झपट पड़े । मूसा ने बहत ु बुरा महसूस कया था।

उसने मुझसे साफ कह दया क य द वह कसी आपात दषा म मेरे घर आता भी है तो कुछ खाएगा या पएगा नह ं। य द मेर बहत ु ह इ छा हो कुछ उसे खलाया जाए तो होटल म या नह ं िमलता है ।

वैसे म जब भी मुसुआ के घर जाता तो उसक अ मी के हाथ बनी फरनी, सेवरइं् , हलुआ आ द बड़े यार से खाया करता था। मूसा मुझे बहत ु मानता था।

मेरे िलए वह जान दया करता था। वह आतंकवाद कैसे बन गया, मेर समझ म नह ं आ रहा था। वह एक हं समुख इं सान था, एकदम ज दा दल। कभी दखी ु भी होता तो िसफ इसी बात पर क लोग उसे अपने जैसा एक आम इं सान या

“◌ाहर

लगते ह।

वीकार नह ं करते? उसे दे खकर लोग य ह द-ू मुसलमान जैसी बात करने

मूसा यानी मुसुआ पढ़ाइ का द ु मन था, ले कन नगर-मुह ले क सां कृ ितक-धािमक गित विधय म बढ़-चढ़कर ह सा िलया करता था।

सर वती-पूजा, दगा ु -पूजा, गणेष-पूजा, तुलसी-जयंती, होिलका-दहन हो या फर दषहरा म रावण-दहन के काय म।

मुह ले के ब च ने एक सं था बनाइ थी-’’बाल- लब’’ बाल- लब का सबसे स कम से कम पैसे और र

य सद य हआ ु करता था मूसा।

क चीज़ से वह ऐसी मंच-स जा करता क हमारे छोटे से गणेष

भगवान ऐसे दखते य अपने न हे से चूहे पर सवार होकर वह हमालय क चो टय के बीच से रा ता बनाते हए ु चले आ रहे ह ।

इ और लकड़ के बुरादे से वह हमालय का अ त ु सीन बना दया करता था।

दषहरे म रावण के पुतले भी उसी के दमाग से बनाए जाते।

एक बार रावण को हम लोग ने “◌ा◌ोले के ग बर-िसंग जैसा बना दया था। मुह ले के जोषी भइया जो क एक बड़े अखबार के संवाददाता थे, उ ह ने हमारे ग बर-िसंग जैसे रावण के बारे म उस समय समाचार का षत कराया था।


जोषी भइया आरएसएस के स

य कायकता थे।

मुसुआ क सां कृ ितक काय म म भागीदार के कारण जोषी भइया उसे पसंद करते। मुसुआ भी उनका बहत ु स मान कया करता था।

दे खते-दे खते वह जोषी भइया का मुर द बन गया था। एक दन उसने बताया क म भी राम-मं दर ागण म लगने वाली आरएसएस क “◌ा◌ाखा म आया क ं । वहां जोषी भइया कइ मनोरं जक खेल खलाते ह। मेरा घर आय-समाजी था और मेरे बड़े भइया जो क जोषी भइया के सहपाठ थे, वह वामपंथी वचारधारा के थे। कामरे ड द प और जोषी भइया म अ सर घंट बहस हआ ु करतीं।

जोषी भइया मेरे भाइ कामरे ड द प को ‘दगाबाज़ क युिन ट’ कहा करते। जन लोग ने भारत-चीन यु

के समय दे ष के साथ धोखा कया था। म भी जोषी भइया के इस कथन का

समथक था क क यूिन ट दे ष ोह होते ह। ‘‘बस ‘ऐितहािसक-भूल’ कया करते ह कामरे ड लोग। कोइ सम या आइ नह ं क लगगे चीनी और

सी कताब के प ने पलटने क ऐसी दषा म लेिनन ने या कहा था, माओ ने या

कहा, तािलन ने या कया और फर गबाचोव ने तो इ ह डु बो ह दया!’’ जोषी भइया दे ष- ेम और ह द-ू जागरण के प धर थ। मूसा उनसे बहत भा वत था। वह ु

उनके भाव म आकर तुकबं दयां भी करने लगा था। जसम दे ष- ेम क भावना रहती और क मीर क र ा के िलए खून बहाने क बात हआ ु करती थीं। जब वह पा क तािनय को भून

कर क चा चबा जाने वाली क वता पढ़ता तो जोषी भइया गद-गद हो जाते और उठकर मुसुआ को गले लगा लेते थे। मूसा ने इन तुकबं दय के कारण वयं को क व मान िलया था और मूसा भारती के नाम से संघ क प काओं म उसक क वताएं छपा करती थीं। आरएसएस क “◌ा◌ाखा म मूसा को रा भ

नाग रक का दरजा िमला हआ ु था।

“◌ा◌ाखा म दे ष के तमाम मुसलमान युवक से इसी तरह क रा भ

क आषा क जाती थी।

घम-िनरपे ता का वरोध करते हए ु मुसलमान से ये आषा क जाती क वे सभी संघ के साथ

“जुड़कर रा वाद हो जाएं और मु य-धारा म “◌ा◌ािमल हो जाएं।

ले कन मूसा अिधक दन तक जोषी भइया के स मोहन म फंसा नह ं रह पाया। ये म डल-कम डल क राजनीित के दन थे। पूरे दे ष म अजीब माहौल बन गया था। गर बी, भूख, बेकार , अपराध,

ाचार आ द वलंत मु े रा

अब लोग को िसफ मं दर चा हए था या फर म जद...

र य-पटल से ग़ायब हो चुके थे।


मूसा अयो या म राम ज मभूिम मं दर बनने के प

म था ले कन बाबर म जद ढहाकर

नह ं। पूरा उ र-भारत म ‘क़सम राम क खाएंगे, मं दर वह ं बनाएंग!े ’ ‘ब चा-ब चा राम का, ज मभूिम के काम का!’ और ‘जय ीराम!’ जैसे गगन-भेद नारे गूंज रहे थे। ऐसे ह छ: दस बर बानबे के दन बाबर -म जद ढहा द गइ। जातं का मु खया दखी ु मु ा म टे सुए बहाता रहा-’’मेरे साथ धोखा हआ ु ! मुझे रा य-सरकार

ने अंधेरे म रखा!’’

बाबर -म जद या ढह , मूसा उदास रहने लगा था। दे ष एक बार फर दं ग के चपेट म आ गया। मु बइ म दाउद के गुग ने धमाका कया। मुझे याद है क सात द

बर बानबे के दन, मूसा मुझे साथ लेकर जोषी भइया के आवास पर

ले गया। जोषी भइया “◌ा◌ा त मु ा म बैठे थे। उनके चेहरे पर काम पूरा होने का संतोष था और थी एक अंतह न लड़ाइ के एक छोटे से पड़ाव के आगे क रणनीित तय करती उ ेजना... जोषी भइया के सामने हम काफ दे र चुपचाप बैठे रहे । मुसुआ के चेहरे पर आ ोषज य ितलिमलाहट दे ख जोषी भइया ने चु पी तोड़ -’’मेरे पास प क ख़बर है क संघ के लोग को, यहां तक क बड़े लीडर को भी इस बात क जानकार नह ं थी क ढांचा िगरा दया जाएगा।’’ मूसा खामोष बुत बना बैठा रहा। फर वह उठ खड़ा हआ। ु

मुझसे कहा-’’चलो!’’

हम ल खी क चाय गुमट म आ बैठे। बस- टड म ल खी क चाय-गुमट थी। ल खी हमारा सहपाठ था, ले कन बाप के असमय मर जाने के बाद वह अपनी पढ़ाइ ज़ार न रख पाया और पैतक ृ -दकान स भालने लगा। ु ल खी चाय बना रहा था।

मूसा उसे चाय बनाते बुत बना ताक रहा था। उसके बाद मूसा म अजब प रवतन हआ। ु हम उस समय बीए पूव के छा थे।

अब मूसा मेरे बड़े भाइ कामरे ड द प क बैठक अटड करने लगा था। द प भाइ से वह दे ष-दिनया क राजनीित और अ य मु ु

जब वह मेरे साथ टहलता तो कइ तरह के

पर घ ट बितयाता रहता।

न से जूझता रहता-’’यार भाइ...!’’


‘यार भाइ!’ मूसा का त कया-कलाम था। ‘‘माना क वे लोग फासीवाद ह, व वंसक ह। वे अपनी मनमानी कर िलया करते ह। ऐसे खतरनाक समय म हमारे ये वामपंथी कामरे ड भाइ कोइ ‘ए न’ न करके िसफ बयानबाजी करते ह। ये कामरे ड ‘ ास- ट लेवल’ पर पी ड़त क मदद न कर िसफ वरोध- दषन का कौन सा तर का अ तयार करते ह, मेर कुछ समझ म नह ं आता। कसी घटना के बारे म अपनी राय कट करने से पूव ये कामरे ड एक-दो दन तक बंद कमरे म गहन-मं णा करते ह। फर जब

थित िनयं ण से बाहर हो जाती है , तब उनका बयान आता है क ये एक दभा ु यपूण

बात है और पाट इसक िनंदा करती है । ऐसे म तुम इन लोग से या उ मीद करोगे? इस दे ष के मुसलमान आ खर जाएं तो जाएं कहां?’’ म उसे समझाता क तुम नाहक अपना दमाग खराब कए रहते हो। ये सब स ा के गिलयार क राजनीित है । सार दिनया दे खते-दे खते अमर का क गुलाम हुइ जा रह है और हमारा दे ष अभी भी वह ु ह द-ू मु लम सम या से दो-चार है ।

ले कन मूसा मेर बात से सहमत न होता। वह चीख पड़ता-’’यार भाइ! तेरे साथ ये ा लम नह ं है क तुझे खुद को दे ष-भ

िस

करने

को कोइ नह ं कहता। हम मुसलमान को इस दे ष म हमेषा से “◌ाक क िनगाह से दे खा जाता है । हम पा क तान-पर त समझा जाता है । हमसे हमेषा दे ष-भ नह ं समझोगे हमार

का सबूत मांगा जाता है । तुम

यथा!’’

ज द ह मूसा का कामरे ड द प से और भारतीय वामपंथी राजनीित से मोहभंग हो गया।

2

हम दोन ने साथ-साथ बीए कया। उसका अंक- ितषत काफ कम था। बस यूं समझो क गांधी- डवीज़न से पास हआ ु था। मूसा

काफ आ मक त हो गया था और उसने अपनी पढ़ाइ को वराम दे कर अपने अ बू क दकान ु स भालने का िनणय िलया था।

मेरे पता ने मुझे जबलपुर पीएससी क कोिचंग करने के िलए भेज दया और फर म कै रयर के िलए यूं द वाना बना क मुझे द न-दिनया का होष न रहा। ु

इस बीच जब भी म घर आता तो घूमते-टहलते इसा-िमंया क रजाइ-ग े क दकान पर आकर ु बैठता।

हमारे गृह-नगर म उन दन तहसील से जला बनाने क राजनीित गमाइ हुइ थी।


िनत-नइ आषंकाओं, अफ़वाह , बदलते राजनीितक समीकरण से भरपूर था प रवेष! आसपास क कोयला खदान के कारण ये एक यवसाियक क बा है । धन-धा य से प रपू◌ूण। वतमान आव यकताओं क नवीनतम व तुएं यहां बाज़ार म उपल ध ह। इसी तरह दे ष के मुख वचारधाराओं का ितिनिध व करने वाली तमाम राजनीितक पा टय क “◌ा◌ाखाएं इस नगर म ह। गांधी-नेह , इं दरा-राजीव, सोिनया-राहल ु वाली कां ेस का यहां वच व है । पुराने वक ल और कुछ बु जी वय म लो हयावाद के वायरस नज़र आते ह।

असंतु कां ेसी गुट राकांपा म जाता दखता है । दिलत और मु लम क छोट जाितय के बीच कांषी-मायावती ा ड बसपा, उ र- दे ष से इधर आ बसे यादव और पटे ल के बीच मुलायम वाली सपा, बहसं ु यक नौजवान म बाला साहे ब वाली षवसेना, क टयार वाली

बजरं ग-दल, िसंघल वाली व हप और बिनया-बामन के बीच अडवाणी-अटल क बीजेपी जैसी पा टय का अ त व साफ दखलाइ दे ता है । पहले-पहल इस नगर म एक ह मं दर था, दे वी-मां का मं दर। फर जब यहां मारवाड़ आकर बसे तब नगर के म य म भ य ‘राम-मं दर’ बना, जसके ांगण म सुबह-षाम “◌ा◌ाखाएं लगने लगीं। पहले यहां एक छोटे कमरे म म जद बनी, फर दे खते-दे खते इस नगर म तीन म जद, दो इदगाह, एक क

तान, एक मज़ार बन गइ।

आज नगर म तीन चच, दो गु

ारे , सैकड़ मं दर, दो िसनेमा-हॉल, पांच पे ोल-प प, आठ-दस

निसग-होम, दजन दवा क दकान ह। ु

पहले जहां िसफ एक जनपद पाठषाला थी, अब उसी नगर म कइ सरकार मा यम क कइ िनजी ष ा-दकान , अंजुमन कूल, िमषनर ु

कूल, अं ेजी

कूल और दो सर वती ष ा-

मं दर के कूल खचाखच चल रहे ह।

आिथक उ नित के साथ धम, आ था, वचार, आदष, स वेदना और ष ा का यवसायीकरण कस तेजी से होता है , इसक

िमसाल यहां दे खी जा सकती है ।

3

मुसुआ अ सर अपने रजाइ-ग े वाली दकान म िमल जाता। ु मुसुआ ने कइ जगह नौकर के यास कए। चयन-पर

ाओं म वह पास न हो पाता। नौकर न लगे तो झट लोग कह दे ते ह क भइया

बरादर वाद, दे षवाद, जाितवाद हो या क टट म पैसा...नौकर पाना सबके बूते क बात नह ं। इसा िमंया कहते ह क ‘मीम’ को नौकर कहां? मु क म मु◌ूसलमान से भेद-भाव कया जाता है । तभी तो अपना मु◌ुसुआ बेकार है ।


मुसुआ अपने अ बा क बात हं स कर टाल जाता। कहता क नौकर से कह ं अ छा है क अपने अ बा क दकान म मािलक बन कर बैठा जाए। ु

फर मु◌ुसुआ दकान स भालते-स भालते प का कारोबार आदमी बन गया था। ु

छठे -छमाहे म नगर आता और मुसुआ म हो रह त द िलयां दे खा करता।

पहले वह नमाज़ िनयम से न पढ़ता था। कभी-कभी तो जुमा क नमाज़ भी उससे छूट जाती थी। ले कन इधर पांच टाइम नमाज़ पाबंद से अदा करने लगा था। एक बार आया तो मने दे खा क ग

पर मुसुआ क जगह बना मूंछ के ल बी काली दाढ़

वाला कोइ युवक बैठा हआ ु है । जसके िसर पर दप ु ली टोपी खपक हुइ है । म उससे पूछता क भाइ यहां तो इसा िमयां क दकान हआ ु ु करती थी।

ले कन उस दाढ़ दार युवक ने जब मुझे दे ख मु कुराकर बैठने का इषारा कया तो मने पहचाना क ये तो अपना मूसा है । िसर पर गोल दप ु ली टोपी, घुटन तक ल बी कमीज़ और टे हनुओं

के ऊपर उठा पैजामा उसक पहचान बन गए। एकदम तािलबानी दखने लगा था साला।

वह अब मुझसे बात करता तो अचानक आ ामक हो जाता। मुझे ह द ू बहसं ु यक बरादर का नुमाइ दा मानकर मुझपर जुबानी हमले कया करता। कहता-’’बाबर म जद िगराने के बाद नगर के दकानदार और ु

ाहक क मानिसकता म फांक

दखलाइ दे ने लगी है । ऐसे समय म समझदार-सयाने जाने य चुप ह? अब ह द ू ाहक

मुसलमान दकान से सामान खर दने म परहे ज़ करता है । तु ह मालूम क पहले गो त क ु

दकान िसफ मुसलमान क थीं। ले कन अब उन लोग ने हमार दकान से गो त खर दना बंद ु ु कर दया है । समझे यार भाइ! गली के दसर तरफ उनके आदिमय ने ‘झटके’ वाली गो त क ू दकान खोल ली ह।’’ ु

मने उसे समझाया क ऐसा इसिलए नह ं है क मुसलमान को सताना है । नगर क आबाद बढ़ गइ है । गो त क दकान कम थीं, इसिलए ु रहगी तो नाग रक को सु वधा होती है ।’’

मूसा अपनी बात पर अड़ा रहा-’’मुसलमान

ाहक को द कत होती थी। यादा दकान ु

ाहक को झक मार कर ह दओं जाना ु क दकान ु

पड़ता है । य क यार भाइ! सोना-चांद , िमठाइयां, कराना, कपड़ा, दवाइ और िमठाइय क

दकान तो िसफ उनके ह पास है । हमारे पास या है ? बस, यह दज , धुिनया, पटर, कारपटर, ु कसाइ, मोटर-गाड़ मर मत क दकान। जनम हाड़-तोड़ मेहनत के अलावा आमदनी कतनी ु कम होती है ।’’

मुझे लगा क मूसा का जैसे कोइ ‘ ेन-वाष’ हआ ु है ।

‘‘तुम िस के का एक ह पहलू य दे खते हो मूसा। या दे ष के तमाम ह दओं ु को सरकार ने नौकर दे रखी है ? या भूख, बीमार , बेकार से ह द ू परे षान नह ं है ?’’


वह मेर सुनता कहां है , बस अपनी ह पेले रहता है -’’भूख, गर बी, बीमार से य द मुसलमान मरते तो मुझे फ़

न होती, ले कन इन दं ग मे षासन-षासन ारा सुिनयो जत तर के से

मुसलमान को टारगेट बनाकर तबाह करने पर तु हार

या राय है ?’’

म बताता क मुसलमान क ददषा का कारण अ ष ा, िनधनता और “◌ा◌ाह-खच क आदत। ु य द एक मुसलमान पचास

पए ित दन भी कमाता है तो चाहता है क उसक रसोइ म

गो त या अंडा ज़ र बने। वह अपनी रसोइ क तुलना नवाब -षहं षाह के बावच खाने से करता है । भले ह उसके ब चे नंग-धड़ं ग बना कपड़े -ल े के घूमे। उनके ब चे कताब, कूल-फ स और यूनीफाम के अभाव म पढ़-िलख नह ं पाते ह और कम उ के “◌ा◌ािगद बन जाते ह। लड़ कयां कम उ

म ह िम

य , द जय , पटर

म याह दए जाने के कारण र ा पता, ट वी

और अ य असा य रोग पी ड़त हो जाती ह। हार -बीमार क दषा म मे डकल जांच न कराकर िमंया भाइ झाड़-फूंक, गंडा-तावीज़, म नत-मनौितय के च कर म बबाद हो जाता है । मेरे तक को सुनकर मुसुआ और ितलिमला जाता और मुझे घोर द

णपंथी करार दे ता।

म दो-चार दन के िलए घर आता था सो मुसुआ से यादा माथाप ची न कर, उसक हां म हां िमलाकर िनकल लेता था। गोधरा-का ड के बाद से तो वह व

होने क हद तक आ ामक हो गया था।

सुनने म आया क उसके एक खालू, जो क गुजरात क एक बेकर म काम करते थे, ‘ ित

या’ के नाम पर उ ह ज दा जला दया गया था।

म उसके पास अफ़सोस कट करने गया था, य क पछले माह इसा िमंया क मौत क ख़बर थानीय समाचार प म दे खी थी। इसा िमंया एक गुणवान, िमलनसार और वतनपर त इं सान थे। उसने जब गोधरा के बाद के गुजरात म जो हं सा हुइ उसके िलए दे ष के तमाम ह दओं ु को ज मेदार ठहराया तो मुझसे रहा न गया।

मने अपना प

रखा तो वह द ु यवहार क सीमा पार करने लगा।

मुझे या पता था क उसके अ दर पनपने वाला ये असंतोष एक दन वालामुखी बन जाएगा।

4

फर जब म अपने गृह-नगर आया तो आदतन मूसा क दकान क तरफ चला गया। ु

वहां पता चला क मूसा अपने अ बा इसा िमंया क दकान का सारा सामान एक दस ु ू रे धुिनया को बेचकर नगर छोड़कर कह ं चला गया है ।


मने अपने बड़े भाइ कामरे ड द प से जब उसके बारे म पूछा तो उ ह ने बताया क गुजरातका ड के बाद मूसा बदल गया था। उसके अंदर तक-ष

और धैय थोड़ भी “◌ोष नह ं बचा था।

एक दन वह घर आकर कामरे ड द प से भी झगड़ पड़ा था क कैसे व वास क ं क आप भी दं गाइय के साथ नह ं थे? या गुजरात म धम-िनरपे , गैर-सा

दाियक आदमी एक भी नह ं

बचा? कहां गए आपके कैडर के लोग जो गुजरात म फुल-टाइमर ह और जो चाहते तो या थित को थोड़ा भी स भाल नह ं पाते? उसके बाद म मूसा उफ मुसुआ को भूल ह गया था क अचानक एक दन मूसा मी डया क ख़बर बन गया! मेरे सामने पड़ा था ‘ “◌ा◌ूल’ अख़बार का मुखपृ । क हर- टोर के साथ मोह मद मूसा उफ मुसुआ क त वीर। मुझे लगा क साथ ह कह ं स पादक का ख डन न छपा हो क अख़बार म जो त वीर छपी है , वह ग़लत छप गइ है । ले कन मेर सोच सच न हो सक । वह त वीर मेरे बाल-सखा मुसुआ क ह थी। या बीत रह होगी उसके मरहम ू अ बा इसा िमंया क

ह पर।

मीलाद-षर फ़ क मह फ़ल क “◌ा◌ान हआ ु करते थे इसा िमंया।

इसा िमंया पैग़ बर हज़रत मुह मद क “◌ा◌ान म ‘नाितया-कलाम’ बहत ु मीठ आवाज़ और तर नुम के साथ पेष करते क सुनने वाल का दल बाग़-बाग़ हो जाता था। ‘‘बतहा के जाने वाले मेरा सलाम ले जा दरबारे -मु तफ़ा म मेरा पयाम ले जा’’ हां, जब वह भावनाओं म बहकर सुर क समंदर म गोते लगा रहे होते तो उनका चेहरा ज़ र कुछ वकृ त सा हो जाता था। कां सी ज़माने मे वतं ता- दवस समारोड म वजय- त भ चौक पर झ डा-रोहण का काय म होता था। वजय- त भ चौक म, कूल के ब चे, भात-फेर के बाद आ जाते और नगर के गणमा य नाग रक क उप थित म वहां झ डारोहण क काय म स प न होता। जाने कब से उस काय म म इसा िमंया के दे ष-भ इसा िमंया का

पूण गीत ज़ र रखा जाता।

य गीत था-’’वतर क राह म वतन के नौजवां “◌ाह द हो।!’’

जब इसा िमंया क दद से लबरे ज़ आवाज़ फ़जां म गूंजती तो सुनने वाले दे ष- ेम क भावना से तड़प उठते‘‘पहाड़ तक भी कांपने लगे तेरे जुनून से तू इं क़लाब ज़ दाबाद िलख दे अपने खून से चमन के वा ते चमन के बागबां ““◌ाह द हो


वतन क राह म वतन के नौजवां “◌ाह द हो।’’ इसा िमंया इस अवसर पर अपनी बेतरतीब खचड़ दाढ़ को तराष कर आया करते। बना मूंछ और िमंया-कट दाढ़ म इसा िमंया का चेहरा बड़ा मज़ा कया नज़र आता। हम तब ब चे ह तो थे। गीत के “◌ा द को अिभनय के साथ अथ का जामा पहनाने का यास करते इसा िमंया का चेहरा वकृ त हआ ु नह ं क हम अकारण पेट पकड़कर हं सने लगते थे।

कभी-कभी मुसुआ का मूड ठ क दखता तो भोला, इसा िमंया के चेहरे क नक़ल करते हए ु िभखा रय के से अंदाज़ म हाथ फैलाकर एक गीत गाया करता‘‘औलाद वाल फूलो-फलो भूखे ग़र ब क ये ह दआ ु है ...!’’

पूर क ा उस समय हं स पड़ती। ऐसे समय मुसुआ, भोला को मां-ब हन क गािलयां बकता उसे दौड़ा-दौड़ाकर पीटा करता। फर जब सरकार बदलीं। गांधी टोपी क जगह भगवा गमछे हवा म लहराए तब इसा िमंया से ‘व दे -मातरम’ गायन क फ़रमाइष क गइ। इसा िमंया ‘वंदे-मातरम’ गा तो लेते थे, ले कन उनका ह द उ चारण उतना द ु

त न था। सो

उनक जगह कषन भैयाजी ने ले ली जो क रामलीला म भजन गाते थे।

ऐसे दे ष-भ , गंगा-जमुनी सं कृ ित के वाहक इसा िमंया का नूरे-नज़र, लख◌़् त-े जगर, मूसा एक दहषतगद कैसे बना...

ये एक रसच का वषय है ।

5

मेरे सामने

“◌ा◌ूल अख़बार है , जसम मूसा आतंकवाद क त वीर है ।

घनी काली दाढ़ के बीच उसका चेहरा तािलबािनय क याद दला रहा है । मेरा लंगो टया यार मूसा एक दहषतगद कैसे बना, म या कभी जान पाऊंगा?

फ़रकापर ती


गु लू भाइ कचन के बाहर पछवाड़े आंगन म जाकर बीड़ फूंक रहे थे। अपनी बांस-ब ली क तरह सूखी बदरं ग पंडिलय को खबर-खबर खजुआते चंद ू हरवाह ने पूछा-’’का दे र है अ ब?’’

गु लू भाइ ने गहरा सांस भरकर बताया-’’और तो सब तैयार है , बस हक ु ु म हो तो पू ड़यां तल कर गरमा-गरम परोस द जाएं।’’ समय काफ हो गया है । सूरज अब ढलान पर जाना चाहता है । दो के ऊपर बज रहे ह गे। बाप रे बाप! पता नह ं या खचड़ पक रह है । जो इन लोग के बीच रज़ामंद के आसार नज़र नह ं आते। सुबह सात बजे से इं तेज़ार करते-करते यारह बजे बोलेरो गाड़ से वे लोग पहंु चे।

सवा सौ कलोमीटर दरू व ामपुर से सफ़र तय करके आए ह भाइ लोग, सो थकावट तो होगी ह । बराह म’चा के घर तक दप ु हया गा ड़यां ह आ पाती ह। सड़क से हटकर पीपल के पेड़ के नीचे चौरस जगह है , उसके आगे संकर गली है , सो बोलेरो को उन लोग ने पीपल क छांह तले खड़ा कर दया था। पैदल आए थे सब दरवाज़े तक। आगे-आगे तीन द ढ़यल आए, जनम एक बुजुग और दो अधेड़ थे। सूरत-ष ल से दे हाती मुसलमान। बुजुग तो ठ क क तु अधेड़ दोन “◌ा ल से खुराफ़ाती नज़र आए। उनके पीछे दो अधेड़ बना दाढ़ वाले, फर तीन नौजवान और फर सबसे पीछे दो बुकवािलयां। यानी कुल दस लोग। बुजुग लड़के के दादा ह। एक अधेड़ लड़के का बाप और दसरा चाचा। ू

बना दाढ़ वाले दोन अधेड़ लड़के के मामा ह।

तीन नौजवान म दो लड़के छोटे भाइ और तीसरा लड़के का ह द ू दो त, र व। यह नाम था उसका।

गु लू भाइ को उसी के िलए आलू का चोखा तैयार करने का आदे ष िमला था। बुकवािलय म एक लड़के क मां और दजी ू खाला है ।

यानी ट म इस तर क थी क कसी तरह के िनणय के िलए उ ह कह ं से राय-मष वरा का बहाना बनाने क ज़ रत नह ं थी।

1

मद का इ तेकबाल बराह म’चा और इरफ़ान मा साब ने तथा औरत का च ची ने कया। बराह म’चा क सेहत अ सर खराब ह रहती है , सो वह मेहमान से अलैक-सलैक करके अपने हजरे म जा घुसे। वैसे भी उ ह दिनयादार से कम ह वा ता रहता है । हां, गु लू भाइ ने सोचा ु ु ज़ र क ऐसे अवसर पर नात- हत को याद करना चा हए। हो सकता है क र तेदार मे एक


लड़क दसरे ज़ात के लड़के के साथ भाग गइ है , सो च ची न चाहती ह क कोइ ह ल-हु जत ू हो। समाज मे खेल बगाड़कर मज़ा लेने वाल क कमी कहां है ?

मेहमान क सं या दे ख गु लू भाइ ने चैन क सांस ली थी। अनुमान के अनुसार ह लोग आए थे। वैसे बराह म’चा और च ची ने ख़ाितर-तव जो के िलए कोइ क़सर न रख छोड़ थी। इरफ़ान मा साब भी कइ दन से दौड़-धूप कर रहे थे। ो ाम के मुता बक मेहमान को आंगन मे गुलाब क बिगया के पास ले जाया गया, जहां पानी क टं क और से टक-टक वाला बाथ म है । ताज़ादम होने के बाद मेहमान को बड़े कमरे म लाकर बठाया गया। औरत का सारा इं तेज़ाम अंदर ह था। ना ते क

लेट पहले ह तैयार कर ली गइ थी। थाल म सजाकर सभी को ना ता और ठं डा पेष

कया गया। एक छोट त तर म पान क िगलौ रयां, त बाखू-ज़दा, स फ-सुपार , ल ग-इलाइची और िसगरे ट का पैकेट रखा हआ ु था।

ू पड़े । मेहमान “◌ा◌ायद भूखे थे, सो ना ता िमलते ह वे टट गु लू भाइ जनाना-मदाना दोन मुह ल म दख़ल रखते ह। च ची को पुकारते गु लू भाइ जनानखाने म जा घुसे। च ची ने उ ह बुलवाया था। गु लू भाइ को दे ख बुकवािलय ने चेहरे पर नकाब डालना चाहा तो च ची उन लोग से बोलीं‘‘अपना खानसामा है गु लू भाइ, इरफ़ान के अ बा के दो त का लड़का।’’ गु लू भाइ ने उन औरत को सलाम कया और वह ं दर पर बैठ गए। लड़के क मां ने सलमा ब टया को पहले ह दे ख िलया था, क तु उनक ब हन यानी लड़के क खाला पहली बार यहां आइ थीं। औरत क तरफ से लगभग बात फ़ाइनल थी। दे खए, मद या िनणय लेते ह। वैसे वे लोग तो सगाइ क तैयार के साथ आए ह। च ची मेहमान औरत क ख◌़् ि◌◌ादमत म बछ हुइ थीं।

अनुमान ये कया गया था क पहले सगाइ क र म हो जाए, उसके बाद साथ िमलकर दावत का लु फ़ उठाया जाए। च ची ने गु लू भाइ से पूछा-’’तु हार त तैयार पूर हो चुक है न?’’ गु लू भाइ ने इ मीनान से िसर हलाया और उनका ज़ेहन रसोइ के तैयारषुदा खाने क तरफ चला गया।


ु , अंडा-कर , दालचा, पुलाव, ख़ सी का “◌ा◌ोरबेदार गो त, ट कया कबाब, मछली के तले टकड़े पूड़ , रायता, पापड़, सलाद और अचार। इतनी भरपूर तैयार के िलए ह बराह म’चा और च ची ने गु लू भाइ को याद कया था। गु लू भाइ यानी गुलाम रसूल खानसामा के हाथ म जाद ू है । ऐसा खाना तैयार करते क लोग ‘सुभान ला’ ‘माषेअ ला’ कहते नह ं थकते।

2

जब दोपहर के डे ढ़ बजे तो गु लू भाइ िचंितत हो उठे । खाने का कह ं कोइ ज़

ह नह ं कर रहा था। उ ह ने बीड़ सुलगाइ और फूंक मारते हए ु

सोचने लगे क सगाइ-षाद का मामला ज़रा पेचीदा होता है । स बंध बनाने से पूव दोन प एक-दसरे के बारे म अ छ तरह पड़ताल करते ह। भले ह “◌ा◌ाद के बाद या िनकाह के दौरान ू दोन पा टय म सर-फुटौवल य न हो जाए!

अब सलमा ब टया काफ पढ़ -िलखी है । बीएससी पास है । अगर वह कसी दसरे घर म पैदा ू

हुइ होती तो ज़ र वहां आगे पढ़ाइ ज़ार रखती और कसी अ छे जगह स वस कर रह होती। च ची क ज़द के कारण तो सलमा आगे न पढ़ पाइ। इरफ़ान मा साब ने भी अपने तरइं् काफ को षष क ं। च ची के आगे उनक भी दाल न गली।

अपने समाज म लड़ कय क पढ़ाइ पर लोग कहां यान दे ते ह। अरे , सलमा ब टया क सहे ली है न वो दांत वाले डॉ टर क बेट , सुना है क बलासपुर म जाकर आगे क पढ़ाइ पढ़ रह थी, आजकल तहसीलदार बन गइ है । चंद ू हरवाह के पेट म चूहे नाचने लगे। उसने खिसयाकर गु लू भाइ से कहा-’’ह म खाना िमल जाए तो कह ं िछप-िछपाकर खा ल। अब भूख बदा त नह ं होती।’’ तभी इरफ़ान मा साब आ गए। नाटे क़द के अ यापक इरफ़ान मा साब काफ़

यवहा रक युवक ह। मौजूदा दौर के मुता बक

एकदम चालू पुजा, ले कन उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ रह थीं। गु लू भाइ ने उनक तरफ़ सवािलया िनगाह डाली। इरफ़ान मा साब ने गु लू भाइ से पूछा-’’वो अपने डॉ टर क़ादर का घर कहां है ?’’

गु लू भाइ अचकचाए क डॉ टर क़ादर के घर के बारे म इरफ़ान मा साब काहे सवाल पूछ रहे ह, पूछा-’’सब ख़ै रयत तो है न?’’ इरफ़ान मा साब बेहद हड़बड़ाए हए ु थे-’’अरे गु लू भाइ, जब हम लड़का दे खने गए थे तो वहां इस तरह क कोइ बात न थी और यहां आकर ये लोग सु नी-वहाबी का राग अलाप रहे ह।

अपने सु नी जमात क म जद के सदर डॉ टर क़ादर को ये लोग जानते ह। सो त द क के िलए उ ह बुलाना चाहता हंू । आगे अ लाह क मजर◌़ ् ◌ी।’’


गु लू भाइ का माथा ठनका। दाढ़ दार और बेदाढ़ दार मेहमान के रं ग- प दे ख उ ह “◌ाक हआ ु था क ये लोग इतने सरल नह ं ह, जतने क दखलाइ पड़ते ह।

गु लू भाइ ने इरफ़ान मा साब को डॉ टर क़ादर के घर का पता बताया। फर पूछा-’’तब खाना कब तक होगा?’’ इरफ़ान मा साब ने माकूल जवाब न दया-’’छान-बीन म मुतमइन होने के बाद ह वे लोग खाना खाएंगे। दे खो या होता है ? अभी तो मसला अटका हआ ु है ।’’ इरफ़ान मा साब झटके से बाहर िनकल गए।

गु लू भाइ ने चंद ू हरवाह को एक थाली म खाना िनकाल कर दया और अंदर आंगन म जा

पहंु चे। दे खा, बड़े कमरे म खुसुर-पुसुर हो रह है । अंदर जनानखाने म औरत मुंह बनाए बैठ ह और च ची के चेहरे पर हवाइयां उड़ रह ह।

च ची आंचल सर पर रखे उसक तरफ आरइं् । गु लू भाइ ने उनक तरफ दे खा।

च ची के चेहरे पर गु से का भाव आया और आंख तरल हो गरइं् । च ची ने गु लू भाइ को पीछे रसोइ क तरफ चलने को कहा।

एकांत म उ ह ने गु लू भाइ से कहा-’’दे खा, जइसन अ ला-रसूल क मरजी हो। वसरामपुर म तो अइसन कउनो बात नह ं उठे रह स। प हले खबर कर दए रहते क ये लीला करगे तो इनको घर म काहे घुसने दे ते। अरे पढ़ -िलखी लड़क , नमाज़-रोज़ा क पाबंद लड़क है सलमा। दानदहे ज भी कम नह ं दे रहे , फर इ नवा मसला कहां आ गवा क हम लोग वहाबी ह। का हो गु लू भाइ, हम लोग वहाबी लगते ह।;; गु लू भाइ सु नी-वहाबी मसले क पेचीदगी जानते थे, सो वह या जवाब दे ते। जब तक बरे लवी मौलानाओं के पैमाना पर खरा न उतरे कोइ मुसलमान खुद को सु नी कह ह नह ं सकता। च ची कहे जा रह थीं’-’’आज कोतमा बाजार है , मुह ले के लोग तो दकान लगाए जा चुके ु

होइह। बची ह गी घर क मेहर एं। अइसन करा क गु लू भाइ, तिन धुिनयन के हयां जाके दे खा तो सह क इसमाइल भाइ िमल जाएं। उ ह संग लेते चले अइहा। बता दहा क इरफ़ान के अ बा के घर सु नी-वहाबी वाले मसला उल झस है । च ची आपको तसद क खाितर बुलवाइन ह।’’ घर म सुबह से खुषी का माहौल था, जो अब तनाव और आषंका के भंवर म डू ब-उतरा रहा है । गु लू भाइ जानते ह क बराह म’चा का प रवार वहाबी नह ं है । जहां तक दे वबंद होने का आरोप है तो इस आरोप म कोइ दम नह ं। इतना फ़ाितहा-द द तो बरे लवी लोग भी अपने घर म नह ं करते ह गे।


बराह म’चा के घर म यारहवी-षर फ़ के मौके़ पर मह फ़ले-मीलाद के साथ आम-दावत का इं तेज़ाम हर साल कया जाता है । च ची चांद क हर यारहवीं तार ख़ को बड़े पीर साहब के नाम से फ़ाितहा पढ़वाती ह। च चा भी बरे लवी अक़ दे वाल क म जद म नमाज़ अदा करने जाते ह। हां, दादाजान ज़ र दे वबंद लोग क म जद म नमाज़ पढ़ते थे, ले कन दे वबंद भी तो मुसलमान ह। उ ह खामखां वहाबी कहकर पुकारते ह, अपने को खांट सु नी कहने वाले मुसलमान। गु लू भाइ ग भीरता से सोच रहे थे क इन बरे लवी मौलानाओं को कसने अिधकार दे दया क वे जसे चाह वहाबी-दे वबंद घो षत करके उसका हु का-पानी बंद कर द।

गु लू भाइ रसोइ छोड़कर आंगन म आए।

दे खा दोन नौजवान मेहमान द वार से सटे , गुटके का पाउच अपने खुले मुंह म डाल उड़े ल रहे ह। अंदर बैठक म बुज़ुग क भुनुर-भुनुर क आवाज़ से असंतोष का बोध हो रहा है । तभी इरफ़ान मा साब अपने साथ डॉ टर क़ादर को ले आए। छोटे से क़ बे म कहां एमबीबीएस वाले ओ र जनल डॉ टर िमल। यहां तो बीएएमएस, यूनानी, आयुव दक और

“◌ाितया इलाज वाले चांदसी नीम-हक म का बोलबाला है । उनक समाज म अ छ पकड़ है । लोग क आिथक

थित ठ क होने के कारण थानीय राजनीित एवम ् धािमक सं थाओं म

इन लोग का दख़ल है ।

डॉ टर क़ादर कलक ा से ड ी िलए इस छोटे से क़ बे म अपनी आजी वका चला रहे ह। खपरै ल क छत और िम ट क द वाल वाली एक कोठर म उनका लीिनक है । ‘जनतालीिनक’। कोठर के बाहर हरे रं ग का पदा लटकता रहता है । सा य-असा य तमाम रोग का इलाज डॉ टर क़ादर करते ह। ज़ रत पड़ने पर झाड़-फूंक भी कर िलया करते ह। यानी रोग और रोगी जससे मान जाए, हर स भव यास करते ह। डॉ टर क़ादर गढ़वा-पलामू के रहने वाले ह। खांट सु नी मुसलमान। अपने को सु नयत का आइना बताते ह। बेहद तराषी हुइ खसखसी दाढ़ , बीच म मांग, महद के कारण ललछ हे बाल और ल बी नाक वाला गंदमी ु चेहरा। डॉ टर क़ादर

थानीय मद ना-म जद के से े टर ह।

जहां मदरसा-क़ाद रया चलाया जाता है ।

इस नगर म एक मदरसा पहले से है , ले कन बरे लवी अक़ दे वाल के आने के बाद पुराने मदरसे को वहा बय का मदरसा घो षत कर दया। इन मदरस म यतीम ब चे द नी तालीम हािसल करते ह। जुमा क नमाज़ अदा करने आए नमा ज़य से यादा से यादा इमदाद क अपील मौलाना करते ह। इस न वर संसार मे दान क गइ छोट सी रा ष के बदले ज नत म खूबसूरत महल का लोभन होता है । ग़र ब मुसलमान पेट काटकर इस दान-य

म बढ़ चढ़कर ह सा लेते ह।


3

डॉ टर क़ादर के आने से च ची को कुछ सुकून िमला। गु लू भाइ ने डॉ टर क़ादर को सलाम कया और धुिनया टोला के िलए िनकल पड़े । साइ कल म हवा कम थी, फर भी मौक़े क नज़ाक़त दे ख गु लू भाइ ने हवा क परवाह न क । ज द ह वह धुिनया टोला जा पहंु चे। इसमाइल भाइ घर पर नह ं थे। उनक रजाइ ग े क दकान चौक पर है । ु

मरता या न करता, गु लू भाइ साइ कल को बेरहमी से घसीटते हए ु चौक पहंु चे। इसमाइल भाइ दकान पर ह िमल गए। ु

चौखाने वाली तहमद और आसमानी कमीज़ पर टोपी खपकाए बकरा-दाढ़ के इं सान इसमाइल भाइ दकान क त त पर वराजमान थे। ु

गु लू भाइ ने उ हे सलाम कर बराह म’चा के घर के हालात से आगाह कया। इसमाइल भाइ त काल उठ खड़े हए ु -’’िमयां गु लू, इस क़ बे म कौन सु नी है कौन वहाबी, ये बताना ज़रा

मु कल है । इरफ़ान के अ बा का पता नह ं ले कन हां, ये सच है क इरफ़ान मा साब ज़ र सु नय म उठते-बैठते ह।’’ गु लू भाइ ज द -ज द क़दम बढ़ाने लगे। ले कन इसमाइल भाइ उतना तेज़ नह ं चल पा रहे थे। उ ह ने राह चलते एक क़ सा छे ड़ दया- ‘‘जानते हो गु लू भाइ, इसी मसले पर मेरे बड़े भाइ ने अपनी बीवी को तलाक दे दया था। साले वहाबी हम धोखे म डालकर उसका िनकाह कए थे। ये दे वबंद बड़े “◌ा◌ाितर और बदअक़ दा होते ह। इनके नमाज़, रोज़ा और त बीहात के कारण कोइ भी आसानी से इनके जाल म फंस सकता है । इनके दल म मेरे मौला व आक़ा, सरकारे दो आलम रसूल लाह स ल लाहो अलैहे वस लम के िलए कोइ मुह बत नह ं होती। ये पैग़ बरे -इ लाम को अपना बड़ा भाइ मानते ह और हमार -तु हार तरह का एक इं सान समझते ह।’’ गु लू भाइ से न रहा गया-’’ले कन भाइजान, द द-षर फ़ तो ये लोग भी पढ़ते ह। मीलाद वगैरा भी करवाते ह। अजमेर-षर फ़ जाते ह। फर उन पर लानत-मलामत य कया जाता है ?’’ इसमाइल भाइ भड़क उठे -’’धोखा दे ते ह ये लोग....मेरे हजू ु र रसूल पाक के द ु मन ह ये दे वबंद ,

समझे। इनके साथ निमयत के साथ पेष न आया जाए और रोट -बेट के र ते से यक़ नन बचा जाए। इनके यहां का खाना हराम। इनके साथ उठना-बैठना हराम। ये अगर सलाम कर तो जवाब न दो। इसीिलए आजकल बना सह त द क के र तेदार नह ं करना चा हए।’’ इसमाइल भाइ के मन म जाने कतना ग़लाज़त भरा था दे वबं दय के ख़लाफ़।

ु गु लू भाइ ने सोचा क गै़र समझते ह क इन कटअन म कतनी एकता होती है , और यहां मुसलमान षया-सु नी, सु नी-वहाबी, दे वबंद -बरे लवी, अषराफ़-पसमांदा, “◌ोख़-सैयद-मुगल


पठान आ द कतने फ़रके़ म बंटे हए से बेइंतेहा नफ़रत करते ह और ु ह। ये लोग एक दसरे ू मौक़ा पाएं तो जान के द ु मन भी बन जाते ह।

गु लू भइ◌ा को अपने ससुर के जीवन म गुज़रा हादसा याद हो आया....

1

पांच बरस पूव गु लू भाइ क सास मर थीं। सास-मरहमा बीवी थीं ले कन अ लाह उ ह करवट-करवट ज नत ू उनके ससुर क दसर ू

बख◌़् षे, क वह बहत ु मुह बती थीं। वे मु लम नह ं थीं, ब क आ दवासी थीं। िनकाह के बाद से उ ह ने इ लाम क मोट -मोट बात पर पूर

ा से अमल कया और ज मना मुसलमान

से उनका अक़ दा कह ं अ छा था। ससुर साहब स र साल के थे। दर याना क़द-काठ , सामा य वा

य, मेहनती बदन उ

के

कारण कमर थोड़ा झुक हुइ, ले कन आवाज़ म पुरानी खनक बरकरार। वह एक कसान थे। आंगन के बीच लाष रखी थी।

एक कोने म अगरब ी और लोहबान जल रहा था, जसके धुंए और खु बू से माहौल गमगीन और रह यमय सा बन गया था। आसपास ग़मज़दा पड़ोसी बैठे बेआवाज़ बात कर रहे थे। एक कोने म औरत बैठ कर चने के दान पर कलमा-तैयबा, द द “◌ार फ़ वग़ैरह पढ़ रह थीं। कुछ औरत कलाम-पाक का पाठ कर रह थीं। साले साहब िम ट के इं तेज़ाम म मषगूल थे। तभी नगर क जामा-म जद से वहां के मु खया जनाब मजीद भाइ आए। उनके साथ चंद मद और कुछ बुकवािलयां थीं। जनाब मजीद भाइ का समाज म बड़ा रसूख था। नगर म उनक कपड़े क दो दकान और एक ु दकान हाडवेयर क थी। ु

जनाब मजीद भाइ अपनी छोट सी दाढ़ पर हाथ फेरते हए ु ससुर साहब के पास आए और उ ह सलाम कया।

फर उ ह ने फ़रमाया-’’अ लाह ने अपनी चीज़ वापस ले ली। इमान क हालत म मरहमा ू को

अ लाह ने अपने पास बुलाया ये कतनी अ छ बात है । उसक मज के आगे इं सान कुछ नह ं कर सकता। कुरान-मजीद म अ लाह तआला फ़रमाता है -’कु लू नफ़िसन ज़ायकतुल मौत’ यानी क हर इं सान को मौत का वाद चखना है । सबका यह ह

होना है । अ लाह आपको

ग़म सहने और स करने क तौफ़ क़ अता करे , आमीन!’’ ससुर साहब चुप ह रहे । वैसे जनाब मजीद भाइ ससुर साहब के लंगो टया यार थे। हां, उ

के साथ इं सान म त द िलयां

होती ह। कोइ पूर तरह दिनयादार हो जाता है और कोइ द नदार और कइ दोन नांव म ु


सफलतापूवक पांव जमाकर अपनी ज़ दगी गुज़ार दे ते ह। जनाब मजीद भाइ ऐसे ह कारोबार और द नदार आदमी थे। उ ह ं क संगत म आकर ससुर साहब दे वबंद लोग क त लीग-जमात के साथ उठते-बैठते थे। पहले-पहल नगर म एक ह म जद थी। जसके इमाम दे वबंद से तालीमया ता हआ ु करते थे। इमाम साहब एक परहे ज़गार आदमी थे। लोग को अ लाह क इबादत के िलए तैयार करते थे और अंध व वास से दरू रहने क नसीहत कया करते थे।

कुछ अरसे बाद नगर म बरे लवी फ़रके के मुसलमान ने क़दम रखा। उनम हक म िसराज और घड़ साज़ क़ा दर मुख थे। उन लोग ने ये चार करना श

कया क दे वबंद इमाम के पीछे

नमाज़ पढ़ना जायज़ नह ,ं य क वह इमाम सु नी नह ं ब क वहाबी है । वहाबी लोग का फ़र से भी बदतर होते ह। दे वबं दय के साथ मेल-जोल, खान-पान और र तेदार से इमान जाता रहता है । इस पैग◌़् ◌ा◌ाम का असर कुछ मुसलमान पर पड़ा। उन लोग ने पुरानी म जद के समानांतर एक नइ म जद तैयार करने का अहद कया।

पहले वे हक म िसराज के घर नमाज़ पढ़ते। फर उनक तादाद बढ़ने लगी। आपस म चंदा करके उन लोग ने दसर म जद बनाइ। वहां साल म एक बार इद-मीलाद ु नबी के मौके पर ू जलसे का आयोजन होता। बाहर से बरे लवी अक़ दे के मौलाना और “◌ा◌ायर बुलवाए जाते। गैर से भी जलसे के िलए चंदा मांगा जाता। कुछ साल बाद कसी ने कसी मज़ार से एक रइं् ट लाकर तालाब के कनारे वीराने म एक दरगाह बना द ।

पहले तो नगर-वािसय ने उधर यान न दया, ले कन धीरे -धीरे मज़ार के आस-पास का इलाक़ा आबाद होने लगा। हर जुमेरात को वहां झाड़-फूंक, फ़ाितहा-द द, भूत- ेत- ज न आ द से मु

के काय म

बाक़ायदा होने लगे। साल म एक बार वहां उस होने लगा। जहां बाहर से क़ वाल बुलाए जाने लगे। नगर म अधकचरे लोग के बीच आ था और अ या म का वह एक क बन गया।

2

इस नगर क एक वड बना और भी है । गु लू भाइ के चचेरे भाइ बरकत िमयां कसाइ थे। ह द-ू मुसलमान और सु नी-वहाबी करण म उनका धंधा चौपट हआ ु था।


हआ संगठन ने रामलला रइं् ट ु ये क जब क म म डल-कम डल का ज़ोर था। ह दवाद ू पूजन या ाएं िनकालनी श

क थीं। बाबर -म जद को ‘ ववादा पद-ढांचा’ का नाम मी डया ने

दे दया था। दे ष के मुसलमानो क समझ म न आ रहा था क ये सब या हो रहा है ? य क वैसे भी जो ज दा म जद थीं वे सभी नमा ज़य के नाम पर आंसू बहा रह थीं। फर एक ववादा पद म जद के िलए कुछ लोग य जी-जान से आंदोलन छे ड़ रहे ह? इसी बीच नगर के मांसाहार ह दओं ु ने बैठक कर के ये िनणय िलया क हम य द मांसभ ण करते ह ह तो हमार अपनी अलग दकान होनी चा हए। मुसलमान कसाइय का ु

ब ह कार कया जाए। सोमा लोहार ने ‘झटका’ वाले मांस क एक दकान डाल ली। इससे ु बरकत िमयां कसाइ क ब

भा वत हुइ।

रह -सह कसर नगर के खांट सु नय ने पूर कर द । बरकत िमयां कसाइ दे वबंद ख◌़् यालात के थे।

बरे लवी सु नी मौलानाओं ने फ़तवा दे दया क बरकत िमयां क दकान से सु नी भाइ गो त न ु खर द। कारण क बकरत िमयां बदअक़ दा ह। उनके ारा ‘ ज़बह’ कया गया बकरा सु नय के िलए हराम है । जब तक कसी सु नी कसाइ क दकान न खुल जाए, तब तक सु नी भाइ ये एहतराम ज़ र ु

कर क गो त खर दने से पहले बकरा खुद या फर कसी सु नी मौलाना से ‘ ज़बह’ करवाएं। फर ऐसा ह हआ। ु

बरे लवी अक़ दे के लोग उस आदे ष के बाद बरकत िमयां क दकान पर आते तो दिनया भर क ु ु

जरह करते और फर खुद या क कसी मौलाना के हाथ बकरा ‘ ज़बह’ करवाकर उसका गो त

खर दते। ज द ह बरकत िमयां क दकान के बगल म “◌ा◌ौकत भाइ ने अपनी दकान डाल ली। ु ु ये खांट -सु नय क गो त-दकान हो गइ। ु

कुल िमला कर इस झगड़े म बरकत िमयां कसाइ क आमदनी घट कर बहत ु कम हो गइ। फर तंग आकर उ ह ने आस-पास के गांव-क़ ब के सा ा हक हाट-बाजार म घूम-घूम कर आलूयाज, लहसुन-अदरक आ द सूखी सि◌ ज़य क दकान लगानी श ु

कर द ।

3

िनकाह के पहले गु लू भाइ क मरहमा ू सास का नाम जमुना बाइ था। िनकाह के समय उ ह कलमा पढ़वाया गया था और नया नाम रखा गया था-जैबु नसा।

ससुर साहब का दसरा िनकाह पुरानी म जद के इमाम साहब ने पढ़वाया था। त लीग-जमात ू के लोग ने उनके इस क़दम का वागत कया था।


हक म िसराज और घड़ साज़ क़ा दर ससुर साहब के घर आकर पुरानी म जद के मुसलमान के खलाफ़ उनके मन म ज़हर घोला करते थे। इसम वे सफल भी हए। ु

नतीजतन ससुर साहब ने पुरानी म जद म नमाज़ पढ़ना बंद कर दया। ले कन त लीगी-जमात के लोग म उनका उठना-बैठना बद तूर ज़ार रहा। यदा-कदा आिथक सहयोग वह दोने◌ा◌ं अक़ दे म करते रहे । एक दन हक म िसराज ने उ ह घेरा क आपका िनकाह हआ ु ह नह ं है । आपको िनकाह दबारा ु पढ़वाना होगा। इसके िलए हक म िसराज ने आला हज़रत अहमद रज़ा ख़ां साहब के पैग़ाम का सारांष सुनाया-’’दे वबंद लोग का फ़र से बदतर होते ह, इसीिलए उनसे िनकाह का खु़ बा या जनाज़े क नमाज़ न पढ़वाइ जाए।’’ सुनकर ससुर साहब सकते म आ गए। उनका िनकाह तो दे वबंद मौलाना ने पढ़वाया था। खचड़ दाढ़ खुजलाते हए ु ससुर साहब ने सफाइ द -’’अब तो िनकाह हए ु काफ दन हो गए।

मसला दे खकर बताएं क कोइ राह िनकल आए।’’

हक म िसराज ने ससुर साहब को समझाया-’’ आपका िनकाह हआ ु ह कहां, इस तरह क

ज़ दगी तो हराम है । आपको िनकाह दबारा पढ़वाना ह होगा, तब जाकर िनजात िमलेगी।’’ ु

ससुर साहब ने उनके दबाव म आकर बरे लवी मौलाना क उप थित म दस ू रा िनकाह पढ़वाया था।

गु लू भाइ ने महसूस कया क जनाब मजीद भाइ क मौजूदगी से हक म िसराज ख़फ़ा थे। उ हे ◌ा◌ंने गमगीन ससुर को मसला-मसायल का हवाला दया-’’जब वहाबी, दे वबं दय से जनाजे क नमाज़ पढ़वाना हराम व गुनाह है । उन बदद न के िलए इसालो-सवाब क दआ ु

करना या उनके िलए बि◌ख◌़् षष क दआ ु करना कु ऱ है । फर उ ह अपने आसपास फटकने दे ना भी तो गुनाह का सबब बनेगा।’’

घड़ साज़ क़ा दर ने भी हक म िसराज के सुर म सुर िमलाया-’’दे खए, आला-हज़रत ने फ़रमाया है क दे वबंद लोग मुसलमान हरिगज़ नह ं ह। उनके नफ़रत करना और उनसे दरू रहना ज़ र है । उनसे दो ती हराम है । इसिलए चचा, आप पुरानी बात को भूलकर सोिचए क आप कस तरफ़ ह। जनाज़े क नमाज़ अगर दे वबं दय से पढ़वाना है तो फर मान ली जए क आपक बीवी क

ह को िनजात न िमलेगी।’’

ससुर साहब समझ गए। उ ह ने रोते हए ु जनाब मजीद भाइ से बात क -’’मजीद भाइ, कहा-सुनी अ लाह और उसका रसूल माफ़ करे । आप मेहरबानी करके अब यहां कसी काम म दलच पी न ल। जनाजे़ क

नमाज़ हक म िसराज भाइ पढ़वाएंगे। आप दरू ह रह तो अ छा। या क ं , जब मने पुरानी

म जद के इमाम से अपना िनकाह पढ़वाया था तो इन लोग ने कहा था क िनकाह हआ ु ह


नह ं। तब बीवी ज दा थी, सो िनकाह दबारा पढ़वाकर तस ली कर ली। अब तो वह मर गइ, ु जनाज़े क नमाज़ दबारा पढ़वाने के िलए वह कहां आएगी, म तो कह ं का न रहंू गा मजीद ु भाइ!’’

गु लू भाइ ने जो सम या उस दन ससुर साहब के घर दे खी, आज यहां सगाइ के ऐन व

पर

वह सम या आ खड़ हुइ थी।

4

इ माइल भाइ को साथ िलए जब गु लू भाइ दा ख़ल हए ु तो वहां तनाव का माहौल था। त त पर त कया लगाए मद ना-म जद के इमाम बैठे थे। सामने कुिसय क दो पं

यां थीं। कूलर

और सीिलंग फैन पूर ताकत से चल रहा था। एक तरफ मेहमान बैठे थे और दसर तरफ घर ू के लोग। त त के एक-एक कोने पर इरफान मा साब और बराह म’चा िसर झुकाए बैठे थे। दसर तरफ कुिसय पर डॉ टर क़ादर , सु नी जमात के से े टर मु तफ़ा बैठे थे। ू दो कुिसयां खाली थीं।

एक पर इसमाइल भाइ बैठ गए। गु लू भाइ बाहर आंगन म आए तो च ची ने इषारे से पूछा क कुछ बात बनी? च ची गु लू भाइ को लेकर पीछे रसोइ तरफ गरइं् और कहा-’’उधर से आइ औरत अ छ ह। उन लोग ने लड़ कयो पसंद कर डाली है । घर तो पसंदै है । हम लोग का बात- योहार उ ह

ठ क लगे है । ले कन औरत क बात, इ मरदन के कहां सुनाइ पड़त है । दे खा तो, आगे का होत है ? वैसे इ तो तय है क मरद न हं ए मानगे। आगे अ ला-रसूल क मरज़ी!’’ गु लू भाइ ने च ची को ढाढ़स बंधाइ और हॉल के अंदर चले आए। इसमाइल भाइ के बगल म एक खाली कुस पर बैठ गए। मद ना म जद के इमाम ज ह लोग पीर-साहब के नाम से पुकारते ह, गु

ग भीर वाणी म

फ़रमा रहे थे-’’इस क़ बे म चूं क सु नयत क हवा चलने से पहले वहा बय ने अपनी जड़ जमा ली थीं, इसिलए अवाम गुमराह का षकार हो गया था।’’ इतना कह कर उ ह ने मजमे पर असरदार िनगाह डाली। पीर-साहब के िसर पर हर पगड़ थी। काली “◌ोरवानी और सफेद दाढ़ म उनका य

व बड़ा रह मय लग रहा था।

वे बोल रहे थे-’’मेर जानकार है क इरफ़ान मा साब का घर सु नी जमात से त ◌ा लुक रखता है और इं सान के दल क बात तो अ लाह ह बेहतर जानता है ।’’


इरफ़ान मा साब का हौसला बढ़ा-’’हो गइ तस ली आप लोग को। पीर साहब के हाथ हमारे घर म यारहवीं-षर फ़ के मौक़े पर मीलाद-फ़ाितहा होता है । क़ बे के यादातर मुसलमान डे ग का तब क पाते ह। हम खांट सु नी ह भाइ।’’ ले कन मेहमान ने कुछ न कहा। उनक आंख और चेहरे ◌ा◌ं पर “◌ाक के बादल साफ़ दखलाइ पड़ रहे थे। इरफ़ान मा साब ने इसमाइल भाइ को उ मीद से िनहारा और मेहमान से उनका प रचय कराया। इसमाइल भाइ ने खंखारकर गला साफ कया-’’म कसी को धोखे म नह ं रखना चाहता। आला हज़रत का भी यह फ़रमान है क जो “◌ाख◌़् स अ लाह और रसूल क “◌ा◌ान म गु ताख़ी करे

तो अवाम को चा हए क उस गु ताख़ से दो ती न करे अगरचे वह गु ताख़ आपका बाप, भाइ, पीर या उ ताद ह

य न हो! म जानता हंू क इरफ़ान मा साब खांट सु नी ह। इरफ़ान

मा साब के अ बा माना क सु नी जमात से जुड़े ह ले कन उनके तआ लुकात आज भी वहा बय से ह। आगे जैसा आप लोग वा जब समझ।’’

मेहमान म से एक भुनभुनाया-’’हम यहां इरफ़ान मा साब क ब हन से नह ं ब क इबराह म भाइ क बेट से र ता करने आए ह।’’ उनका ये भी तक वज़नदार था। बराह म’चा अब वहां कैसे बैठे रह सकते थे। वह उठ खड़े हए। ु उनका चेहरा आवेष से तमतमा गया था।

लग रहा था क वह कुछ अनगल बकना चाह रहे ह , ले कन मह फ़ल के आदाब को यान म रखकर वह चुपचाप बाहर िनकल गए। इरफ़ान मा साब मायूसी से अपने आ खर हमराह डॉ टर क़ादर क तरफ़ मुतव जो हए। ु डॉ टर क़ादर ने कुस पर पहलू बदल और डॉ टर

तबे के साथ कहा-’’म इस क़ बे म

गु ज ता दस साल से हंू और यह जानता हंू क इरफ़ान मा साब के घर का तआ लुक सु नी जमात से है । हर साल इनके घर यारहवीं-षर फ़ के मौके पर पूरे जोषो-ख़रोष के साथ मीलाद और दे ग होता है ।’’ इतना कहकर डॉ टर

के।

मेहमान के चेहर पर थोड़ा भी निमयत नज़र न आ रह थी। दाढ़ दार बुजुग, जो लड़के का बाप था, उसने कहा-’’आप लोग क बात सुनकर इतनी तो तस ली हुइ क इस घर म हम लोग ने जो कुछ खाया वह मक ह (बेकार) नह ं हआ। हां, ु

र ते क बाबत हम वसरामपुर जाकर अपने लोग म मष वरा करने के बाद ख़बर करगे।’’

इरफ़ान मा साब क आंख नम हो आरइं् ।


कहां वे लोग आए थे सगाइ क र म अदा करने और कहां तोहमत का बोझ लाद कर िनकल भागना चाहते ह। उ ह ने ं धे गले से पीर साहब क तरफ़ मुख़ाितब होकर कहा-’’अब अ लाह-रसूल क मजर◌़ ् ◌ी के आगे कसका बस चलता है । मेर इ तजा है क आप सब हाथ धो ल ता क द तरख◌़् वान बछाया जाए!’’

अचानक गु लू भाइ को गु सा आ गया। बराह म’चा और च ची क इतनी बड़ बेइज◌़् ज़ती उनसे बदा त न हुइ।

गु लू भाइ चीख़ने लगे-’’म एक अदना सा इं सान हंू । आप लोग के सामने मेर औक़ात या? फ़क़त एक अदना सा खानसामा। ले कन बराह म’चा के मुझपर और इस क़ बे के तमाम

मुसलमान पर बड़े एहसानात ह। इरफ़ान मा साब मेरे छोटे भाइ क तरह ह। सलमा बहन को मने गोद म खलाया है । उस पर भी मेरा हक़ बनता है और इस बना पर म कहता हंू क अब आप लोग बराए मेहरबानी यहां का खाना खाकर अपना इमान ख़राब न कर। हां, सलमा

कुंआर भले रह जाए ले कन आप जैसे बे दमाग़ कठमु लाओं के घर हम अपनी बहन याहगे ह नह ं।’’ सार मह फ़ल को जैसे सांप सूंघ गया।

पुरानी र सी

सुलेमान के हाथ मे एक मामूली सी पटसन क र सी है । ऐंठ हुइ गंद सी चीकट-बदरं ग

र सी, जसम जगह-जगह सख◌़् त सी गाठ ह। अं ेजी के ‘वाय’ आकार क र सी, जससे पालतू मवेषी को बांधा जाता है ।

बकर द म कुबानी के िलए लाए गए बकरे “◌ो के गले म बंधी थी ये र सी। सुलम े ान ने “यामा के मेहनती हाथ क उं गिलयां याद क .ं .. ऐसी ह तो हआ ु करती थीं, कठोर सी, गंठ ली,

मज़बूत िगरफ◌़ ् त वाली उं गिलयां! साथ ह याद क ““यामा क वह बात-’घाटा सहना तो हम गर ब-गुरबन क क मत है साहे ब!’ यानी “यामा के गंवइ-अथषा एक प

के अनुसार, इं सानी र ते म िमठास बचाए रखने के िलए कसी

को घाटा उठाना पड़ता है । सुलेमान और “यामा के बीच उपजे स बंध क नींव क


पहली रइं् ट पर “यामा का नाम दज है । उस नींव पर बनने वाली इमारत फर पूर बन नह ं पाइ।

आज सुलेमान त हा बैठे अतीत क गिलय म भटकते ह तो उ ह “यामा क बात सह लग रह थी। वाकइ घाटे सहे “यामा ने और हर बार फ़ायदे म सुलेमान ह रहे । छ ीसगढ़ के सरगु जहा आ दवासी अपने युवा नर-पषुओं क गरदन पर मं ब करते ह, ता क उनके पषु बुर नज़र और बुर आ माओं क कु

र सी बांधा

से बचे रह सक। पषु-धन के

ित दलार का तीक ह ये र सयां। जानवर बक जाता है तो सुपुदगी से पूव वे उस जानवर ु

के गले म बंधी अपनी मं ब

र सी खोलकर अपने पास रख िलया करते ह। ये र सी दसरे ू

तैयार हो रहे पषु के गले म बांधी जाती है । “यामा ने भूलवष अपने बकरे “◌ो व

उसके साथ मं ब

को वदा करते

र सी भी सुलेमान को स प द थी। उसी र सी के िलए सुबह

बैकु ठपुर से नुसरत आपी का फोन आया था। उ ह ने ताइद क थी क उस र सी को फका न जाए। उसे स भालकर रख िलया जाए। वह तो अ छा था क कसाइ छु टन िमयां ने र सी फक न थी। छत पर जहां बकरे को बांधा गया था, वह ं हर प य के ढे र के पास वह र सी िमल गइ। सो त काल सुलेमान ने फोन पर नुसरत आपी को ख़बर कर द क आपी, र सी िमल गइ है । अब उसे पहली फुसत पर कसी के हाथ आप के पास िभजवा दं ग ू ा। नुसरत आपी ने फर याद दलाया-

‘‘दे खना सुलेमान, वह र सी गुमने न पाए। “यामा बचार बहत ु परे षान है ।’’

“यामा परे षान हो भी य न? ““◌ो “यामा का सबसे यारा बकरा था। भूरे रं ग का व थ एक साल क उ

बकरा। बकर द म कुबानी के िलए कम से कम एक साल का बकरा जबह कया

जाना चा हए। “यामा बकरा नह ं बेचना चाहती थी। इसिलए “यामा ने तक गढ़ा था क “◌ो को एक साल होने म अभी आठ दन बाक है । सुलेमान के साथ र जब भाइ थे। हक़-नाहक़, हराम-हलाल आ द द नी मसायल के वह अ छे जानकार थे। इ लामी समाज म इन बात पर बड़ तव जो द जाती है । चूं क सुलेमान िसफ नाम के मुसलमान थे, इसिलए वे बार कय से अ जान थे। र जब भाइ ने कताब का हवाला दे ते हए ु बताया क जानवर एक साल का न हो

फर भी य द उसक बढ़त और सेहत एक साल के जानवर जैसी हो तो ऐसे जानवर क कु़बानी

जायज़ है । तो, “◌ो

क अ छ सेहत, कद-काठ आ द उसके एक साल क उ

अ छा काट थी। “यामा “◌ो लौटा चुक है । “◌ो

को कतइ बेचती नह ,ं उसने बताया भी था क कइ

उसक जान है । “◌ो

वाली कमी का ाहक को वह

चला गया तो उसका घर वीरान हो जाएगा, ले कन

सुलेमान को वह मना करे भी तो करे कैसे? सुलेमान, जो उसके भरपूर दन म एक वसंत क तरह िमला था। सुलम े ान, जसे पहली नज़र दे खने के बाद उसके मन क बिगया म िमलन के फूल खल उठे थे। सुलम े ान, जससे उसने तब कहा था-’’हमारे समाज म माना जाता है क


जस पर मन आ जाए, उसे पा लेने म कोइ बुराइ नह ं। हम आ दवासी आप लोग क तरह यार पाने के िलए तड़पते नह ं रहते।’’ कषोरवय सुलम े ान, जो अब तक ेम और दे ह-सुख से वंिचत था, उसक तो जैसे मन चाह मुराद पूर हो गइ हो। “यामा से पहली मुलाकात तब हुइ थी जब सुलम े ान ने जवानी क

दहलीज म क़दम रखा था। ‘अंगड़ाइ’ और ‘इं लोक’ जैसी मादक- कताब कोस के कताब के बीच जगह पा रह थीं। ‘जे स हे डली चेज़’ के जासूसी उप यास और ‘लेड चेटल ज़ लवर’ के ह द अनुवाद के आगे मुंषी ेमचंद फ के लगते। अमृता ीतम क ‘रसीद टकट’ और ‘मंटो क कहािनयां’ टाइम-पास का साधन थीं। घ सा और गु लू जैसे नालायाक लड़क क संगत म मज़ा आता था, य क उनके पास अजीबो-गर ब यौन-अनुभव और रं गीन क स का चटख़ारे दार ख़ज़ाना था। माल पटाने और च कर चलाने के हजार आजमाए हए ु ‘ योर-षॉट’ नु खे थे उनके पास। सुलेमान पढ़ने म तेज़ तो था क तु वभाव से डरपोक। घ सा और

गु लू उसे दे ख ताना मारते क पढ़ाकू लड़के कताब म दन-रात आंख फोड़ा करते ह। सुलेमान ज़ह न था। सो वह मुह ले क लड़ कय , द दय , आ टय और यहां तक ष

काओं तक से

मन ह मन इ क लड़ाया करता था। हक कत म उसक कोइ गल- े ड न थी। अपनी सीमाएं जानते हए ु भी सुलेमान इस

े म हाथ-पांव मारने से बाज़ न आया करते। ऐसे ह कसी रोज़

नुसरत आपी के सरकार आवास म काम करने वाली, सीमट-रे त ढोती मज़दरू “यामा से सुलेमान क आंख चार हुइ थीं।

इस तरह आंख लड़ाने का उसके पास और भी कइ ज़ोरदार तजुबा था, ले कन उस दन जो आंख लड़ , वह सुलेमान के जीवन का अ व मरणीय ह सा बन गइ। उस दन पहली बार कोइ आंख चार होने के तुरंत बाद ित

या म मु कुराइ थी। झाट से सुलम े ान को घ सा और गु लू

के ेत का फामूला याद हो आया-’’हं सी सो फंसी।’ फर सुलम े ान कसी न कसी बहाने “यामा के आस-पास मंडराता रहा। मन ह मन कइ तरह के डॉयलाग तैयार करता, उनक एड टं ग करता, फर कइ-कइ बार वर बदल कर उसे दहराता ु

क तु “यामा के पास पहंु चकर उसके मन म बैठा संकोच का भूत उसक वाणी मूक कर दे ता।

तगाड़ सर पर ढोए आते-जाते “यामा फुसफुसाइ तो जैसे उसे चार सौ चालीस बो ट का करट लगा-’’आज यहां

कना है न?’’

सुलेमान को उसी दन वापस लौटना था। नुसरत आपी के घर वह

कता न था। सुबह आता

और “◌ा◌ाम तक वापस लौट जाया करता था। “यामा के सवाल के जवाब म उसने ‘हां’ के हसाब से िसर हला दया था। “यामा ने चुपके से बताया क वह बंगले के पीछे पुराने गैरेज म रहती है ।


सुलेमान ने जब नुसरत आपी के एक दन और

क जाने क बात नह ं टाली तो आपी बहत ु

खुष हरइं े ान के नौषे भाइ आ फिसयल काम से बाहर गए हए ु ् , य क सुलम ु थे। आपी घर म अकेली थीं।

नुसरत आपी ने बैठक म उसके सोने क

य व था क थी।

रात म सोने से पहले सुलेमान घर से बाहर िनकला। पीछे नौकर के आवास से कसी औरत के हं सने क आवाज़ सुनाइ द । वह च क पड़ा। दे खा क आंगन म मुनगे के पेड़ के नीचे चू हे म आग जलाए “यामा बैठ है । िसत बर माह के श आती दन थे। बेहद खु़षगवार मौसम। मुनगे क डािलय के पीछे से झांकता हआ ु उ सुक चांद। चांद क सफेद करण के साथ बंगले के

बाहर लगे मरकर लै प क पीली रोषनी का इं जाल। सुलम े ान को “यामा का तांबइ चेहरा एक अनोखे नूर से रौषन नज़र आया। उसे घ सा और गु लू क बात याद हो आइ क ‘अबे साले, जवानी म तो गद हया भी सुंदर नज़र आती है ।’ ले कन नह ं, “यामा के पास वाकइ कु़दरतीखू़बसूरती है । वातावरण के स मोहन से घायल सुलेमान “यामा के पास पहंु चा। उस समया उसके मन म, नुसरत आपी का

याल न था, न नौषे-भाइ का डर। िम ट के चू हे पर तवा

चढ़ा था। “यामा का चेहरा पसीने से तर था, जस पर चू हे क लाल आंच का ताप जज◌़् ब था। अपने पास सुलम े ान को दे ख “यामा मु कुराइ‘‘रोट बना लू? ं ’’ सुलेमान हं सा, डर कम हआ ु -

‘‘आपी को पता चल गया तो?’’ सुलेमान वह ं उसके पास ज़मीन पर उकड़ू ं बैठ गया‘‘लाओ, खलाओ।’’

“यामा को या मालूम क “◌ाम ला साहे बज़ादा ऐसी हरकत कर बैठेगा। वह घबराइ‘‘नह ं, कसी ने दे ख िलया तो नौकर चली जाएगी।’’ सुलेमान हं सा‘‘बस, हवा िनकल गइ।’’ फर एक ल बी चु पी। चारद वार के बाहर झा ड़य से टटहर क आवाज़ गूंजी। सुलेमान ने

“यामा से उसका नाम पूछा तो “यामा ने उसे घूरकर दे खा‘‘नाम म का धरा है ?’’ फर चू हे क रौषनी म अपना दा हना हाथ उसने आगे बढ़ाया। उसक कलाइ म गोदने से फूल-प य के बीच िलखा था-’ यामा’। सांवली सूरत, तीखे नैन, पतले-पतले प टे हए ु ह ठ, घुंघराले-काले बाल और सांचे म ढली

मदे वी “यामा। “यामा ने पूछा तो सुलम े ान ने बताया क आपी क तरफ से वह िन चंत रहे ।


वे ट वी दे ख रह ह। रोट बनाकर “यामा ने फुसत पाइ। चू हे से बची लकड़ िनकालकर बुझाने लगी। सुलम े ान ने “यामा से इजाज़त ली और अपने कमरे म वापस लौट आया। उसका मन अब कहां लगता! वह ब तर पर अनमना सा लेट गया। आपी ट वी पर सास-बहू वाले सी रयल का आनंद ले रह थीं। नौषे-भाइ बीड ओ ह। अ सर दौरे

पर रहते ह। उस दन भी वह घर पर न थे। नुसरत आपी के दोन ब चे यानी सुलम े ान के भांजे रायपुर के एक बो डग कूल म थे। नुसरत आपी नौकर-चाकर के साथ सरकार आवास म अ सर अकेले दन बताया करतीं। रात जब आपी के ख़राटे गूंजने लगे, तब सुलेमान उठा। द वाल-घड़ पर उस समय बारह बज रहे थे। सुलेमान चुपके से मु य- ार खोलकर सीधे पीछे गैरेज क तरफ पहंु चा। गैरेज से लगे कमरे के अंदर से जलती ढबर क पीली मटमैली रोषनी दरवाज़े क झ रय से बाहर झांक रह थी। िनडर सुलम े ान ने दरवाज़े पर द तक द । अंदर आहट हुइ और दरवाज़े के पास “यामा क आवाज़ आइ‘‘कौन?’’ सुलेमान ने फुसफुसाया-’’म।’’ दरवाज़ा खुला, “यामा लाउज़ और लहं गे पर थी। उसने ज द से सुलम े ान को कमरे के अंदर कर िलया। ‘‘हे भगवान, कसी ने दे खा तो नह ं?’’ ‘‘मुझे कुछ नह ं मालूम, समझ लो मेर मित मार गइ है ।’’ कमरे म ज़मीन एक तरफ गुदड़ बछ हुइ थी। एक तरफ िगर ती का द गर सामान और पानी का मटका रखा था। “यामा ने गुदड़ पर उसे बठाया। सुलेमान ने उसे अपने पास बैठने का

इषारा कया। “यामा झझकते हए े ान ने डरते-डरते उसका हाथ पकड़ा। ु पास आ बैठ । सुलम

बाप रे बाप, उस मेहनती हाथ क उं गिलयां कतनी सख◌़् त थीं। हथेिलय पर गाठ थीं। बेहद सख◌़् त खुरदरा ु हाथ। जैसे क कसी पेड़ क छाल हो।

“यामा ने उस रात कुदरत के कइ गोपन-रह य पर से पदा उठाया था। वो एक ऐसी रात थी जसम सुलेमान अपनी सुध-बुध खो चुका था। वो एक ऐसी रात थी जसक ‘सु ह कभी न हो’ ऐसा वे चाहते थे। वो एक ऐसी रात थी जसे फर सार उ

दोहराया

न जा सका। वो एक ऐसी रात थी जब दो यासी ह एकाकार हुइ थीं। बस, उस रात क याद उनक ज़ दगी का सरमाया थी। “यामा के पूण समपण क क मत उसने अदा करनी चाह ,

क तु गर ब “यामा नाराज़ हो गइ। उसने तक दया क ये र ता अकेले का तो नह ं। दोन ने इन अनमोल ल हात को साथ-साथ जया है , फर कोइ एक इसका

य े य ले? “यामा

लालची नह ं थी, जब क नइ-नवेली द ु हन मुंह- दखाइ म पित को अ छा चूना लगा दे ती है । यह अदा तो “यामा को कुछ ख़ास बनाती है ।


सैयद घराने क खूबसूरत, छरहर युवती सुरैया से सुलेमान का िनकाह हआ ु , ले कन उसके

साथ सुलेमान का तजुबा बहत ु कुछ मषीनी सा रहा। जैसे बन फोरन क दाल, बन छ क क स जी। र ते म

हानी छ क के िलए सुलेमान अ सर “यामा के समपण क याद कया करता।

वह आ दवासी युवती उसके कैषौय का खूबसूरत ‘इनकाउ टर’ थी। जवानी क दहलीज़ म क़दम रखते युवक क यौन- ज ासा का सुलभ-समाधान थी “यामा। सुलेमान अपने प रवेष क म हलाओं से “यामा क तुलना करता तो पाता क वजनाओं से मु था उसका।

बंदास, बेपरवाह, सहज, वतं , व थ,

आधुिनकाएं तनाव-मु

कतना वतं अ त व

म-आधा रत, िन चंत जीवन।

और ाकृ ितक सुंदरता के िलए स दय वषेष ाओं से ऐसी ह जीवन-

प ित के िलए सलाह िलया करती ह। यहां तो नुसरत आपी मेकअप करने के बाद नकाब पहन लगी, तब अ मी का आदे ष होगा-’’बेटा सुलम े ान, नुसरत के साथ अ पताल चले जाओ, अकेले कैसे जाएगी वो!’’ या -’’बेटा, जरा नुसरत के साथ यूिनविसट तो चले जाओ।’’ या -’’बेटा सुलेमान, नुसरत आपी को जाकर वदा कराकर घर ले आओ।’’

सुलेमान नौकर के िसलिसले म जबलपुर, म डला, “◌ाहडोल आ द जगह म दस-बारह बरस बताकर जब वापस लौटे तो एक दन नुसरत आपी के घर उ ह बड़ ष त से “यामा क याद आइ। इषार म पूछा उ ह ने क पहले सव स- वाटस म कतने नौकर-चाकर रहा करते थे। कइ वफादार नौकर को याद कर नुसरत आपी ने बताया क सबसे यादा मुंहलगी नौकरानी

“यामा अब भी उनके घर म आती है । यहां से पं ह-बीस कलोमीटर दरू एक गांव म वह रहती है । आजकल वह बक रयां पालती है । बलासपुर, र वा से मवे षय के यापार इधर आते ह और बक रयां खर द कर ले जाते ह। सुलेमान ह द ु तानी समाज म वकिसत एक यवहा रक मु लम ह। धम का स ह णु व प उ ह पसंद है । धािमक लोग म मौजूद अ ड़यल

उनका मानना है क हर आ थावान य

े ता-बोध के वह षकार नह ं ह।

जो कसी न कसी बहाने इ वर का नाम लेता है ,

वह सह माग है । वह चाहे अ लाह का नाम लेता हो, भगवान का या फर यीषु मसीह का। कसी क

ा का मज़ाक उड़ाना या फर उन पर “◌ाक करना उ ह नापसंद था। हां, वह

अ मी-अ बू के जीवनकाल म ज़ र कुछ बंधन म रहे । फर घर से बाहर नौकर म ऐसा य त हए ु क धम और कमका ड उनके िलए औपचा रकता मा बन कर रह गया था। वे इद के दन दो त को घर बुलाकर सेवरइं् या खलाते। उनके मांसाहार दो त के िलए बेगम सुरैया कबाब, ट कया और पुलाव-पराठे बनाया करतीं। बकर द पर उ ह ने कभी कु़बानी नह ं करवाइ थी◌े।

उ ह अजीब लगता था क योहार के दन बकरे क कुबानी क जाए। हज़रत इबराह म अलै ह सलाम के ज़माने से चली आ रह र म को अब तीक- प म मनाने का कोइ दसरा ू


तर का बन जाना चा हए था। वैसे उनके मांसाहार दो त उ ह कुबानी कराने के िलए े रत कया करते, क तु “◌ा◌ाकाहार दो त क तादाद यादा थी। इसिलए इद क तरह बकर द भी उनके घर सेवइय का पव रहता। हर साहबे-िनसाब (साम यवान) बािलग पर कुबानी करने का हु म है । ये सु नते-इबराह म है । वैक पक प म कुबानी क अनुमािनत लागत-रा ष वे “◌ाहर के एक यतीमखाने म भेज दया करते। यतीमखाने म उनके नाम से बकरे क कुबानी होती।

वहां अनाथ ब चे और परजीवी मौलवी, उस कुबानी के गो त का ज़ायका साल भर याद रखते।

“यामा से िमलने का अवसर पाने के िलए उ ह ने इस बार क बकर द म वयं कुबानी करने का फैसला िलया। कुबानी के िलए बकरा लेने वे “यामा के गांव जाना चाहते थे। नुसरत आपी “◌ा◌ौहर के मातहत र जब भाइ को उनके साथ “यामा के गांव भेजना चाहती थीं, य क र जब भाइ थानीय थे साथ ह मज़हबी मामल के जानकार....

दोपहर का खाना खाकर वे लोग कूटर से िनकले। सुलेमान कूटर चला रहे थे। र जब भाइ रा ता बताते जाते। होली अभी-अभी बीती थी। माहौल म फागुन क म ती बरकरार थी। पलाष के लाल-लाल फूल जंगल का

◌ ं ृगार बने थे। आसपास कह ं बा रष हुइ थी “◌ा◌ायद, तभी हवा

म नमी थी। आसमान पर आवारा काले बादल धमा-चौकड़ कर रहे थे। रा ते म दस-पं ह घर वाले छोटे -छोटे गांव आते। र जब भाइ कसी गांव का नाम भालूगडार बताते तो कसी का महआ ु टोला। कसी का परसा टोला तो कसी गांव का नाम आमाखेरवा। छोटे -छोटे खेत धान क अगली रोपाइ लगने तक के िलए खाली पड़े थे। ये एक-फसली इलाका है । धान कटाइ के बाद

ामवासी या तो ठे केदार के पास काम खोजने चले जाते या आसपास क खदान म खप

जाते या फर महआ ु बीना करते। यहां िसंचाइ का साधन ‘ फर पानी दे मौला’ क गुहार भर है । अ छ बा रष के बाद ह ‘िच ड़य को धानी’ और ‘ब च को गु़ड़धानी’ िमल पाता है ।

सुलेमान का पन कहां रम पा रहा था गंवइ-दे हात क पगडं डय म। वे तो बस अपनी “यामा के द दार को बेचैन थे। र जब भाइ ने कहा-’’स भल कर जनाब, आगे एक बड़ नाली है , उसके पार जो गांव दख रहा है , वह ं रहती है बकर वाली यामा..!’’ कूटर के ह डल को मज़बूती से थाम िलया सुलेमान ने। समृ

कसान के घर को पार कर

उनका कूटर गांव के बाहर िनकलने लगा तो उनसे रहा नह ं गया-’’गांव तो अब ख़ म हो गया, र जब भाइ?’’ जवाब िमला-’’इ मीनान रख जनाब....बस आ ह गए सम झए।’’ बेषरम क झा ड़य से िघर एक जजर सी झ पड़ के आगे कूटर क । गांव का आ खर घर था वह। आगे पथर ली च टान वाली जमीन के बाद एक छोट सी पहाड़ थी। तद,ू महआ ु और


आम के इ के-द ु के पेड़ दे हात क िनषानी बतौर मौजूद थे।◌ं र जब भाइ कूटर टड पर

खड़ा कर दरू पहाड़ के प चम तरफ दे खने लगे। वहां ढलान पर एक औरत ढे र सार बक रय को हं काले ला रह थी।

ितज पर सूय के अंितम झलक के िनषानात मौजूद थे। र जब भाइ ने सुलेमान से कहा-’’अ छे समय पर आए ह, बकरा दे खने या तो सुबह आए आदमी या फर “◌ा◌ाम के समय। दन म बक रयां चरने चली जाती ह। और हां, आप थोड़ा कूटर के पीछे चले जाएं। “यामा का एक बकरा बड़ा लड़ाकू है ।’’ सुलेमान कूटर के पीछे सचेत होकर जधर र जब भाइ क िनगाह थी◌े◌ं, उधर दे खने लगे। ट ले के नीचे खेत के कनारे - कनारे बनी पगडं ड पर, एक दबली -पतली अधेड़ सी म हला छड़ ु

से बक रय को हं कालते अब पास आ रह थी। र जब भाइ ने उस म हला को ह “यामा कहा है , या वह म हला उनक “यामा ह है ? उसका वह िचरयुवा स दय या समय के हाथ मार खा गया? उसके प के सुलेमान द वाने हआ ु करते थे। “यामा का स दय कोइ ‘षहनाज़ यूट माका’ उधार का लेपन थोड़इ था। उ ह अपनी आंख पर व वास न हआ। ु

बक रय के रे वड़ क अगुआइ एक बड़ा सा मज़बूत बकरा कर रहा था। तो यह है मरख ना बकरा। सुलेमान कूटर के पीछे स भले रहे । बकरा ज़बरद त था। बछड़े के आकार का होगा। सींग तनी हरइं ु ् नुक ली। ठु ढ पर र जब भाइ जैसी दाढ़ । बकरा सीधे अंदर चला गया। उसके पीछे हाफ-पट पहने एक सूखा-म रयल सा आदमी नज़र आया। र जब भाइ ने बताया क ये आदमी “यामा का पित रामपरसाद है । सुलेमान ने ह डय क ढांचा बनी उस

फर ढे र सार बक रय के पीछे म हला कर ब आइ। ी को पहचाना नह ं।

र जब भाइ ने इषारा कया क यह “यामा है । बक रयां हं कालती

ी नज़द क आइ और सुलेमान को ची हने क को षष करने लगी।

चालीसा ह लगा था सुलम े ान को, ले कन उनके िसर पर अब बहत ु कम बाल बचे ह। जो बचे

भी ह उनम अिधकांष सफेद हो चुके ह। चेहरे पर मासूिमयत क जगह खुराहट आ बैठ है । हां, अपनी बड़ -बड़ बितयाती आंख पर उ ह अब भी भरोसा था। दोन आंख टनाटन छह बाइ छह ह। च मा क ज़ रत नह ं पड़ अब तब, जब क काम िलखा-पढ़ का वाला रहा है । “यामा के चेहरे पर सुलम े ान वह चंचल आ दवासी

मबाला खोजने लगे, जसने उनके जीवन म रास-रं ग

के अ याय जोड़े थे। ले कन ये या, “यामा के चेहरे क सूखी चम ड़य पर झु रय ने बसेरा बना िलया है । उसका “◌ार र ह डय का ढांचा ह तो है । हां, ह ठ पर जब िनगाह पड़ ं तब वे जान गए क ये “यामा ह है । वैसे ह पलटे हए ह ठ। ““यामा को ह ठ का चूमा ु पतले-दबले ु जाना कतइ पसंद नह ं था। गुदगुदाने लगती वह या िचकौट काटती‘‘ये या “◌ाहर आदमी वाली हरकत करते ह?’’


वे िचढ़ाया करते-’’गंवइया लोग कैसी हरकत करते ह?’’

“यामा ठने का अिभनय करती-’’हट गंवार कह ं के!’’ सुख के अंतरं ग ण म अनौपचा रक हो जाती थी “यामा। र जब भाइ ने मरख ने बकरे से आधे साइज़ के एक बकरे क ओर इषारा कर बताया क यह है वो बकरा जसे “यामा अभी बेचना नह ं चाहती है । “यामा के वतमान ने उ ह अंदर तक हला कर रख दया। सुलम े ान क तबीयत नम हो चली थी। वे भूल गए थे क यहां कस उ े ष“् य से

आए ह? ““यामा का रामपरसाद खीस िनपोरते पास आया-’’गर ब का महल दे ख रहे ह साहब?’’ र जब भाइ के साथ सुलेमान आंगन के बीच बछ चारपाइ के पास आ गए। अब इ का-द ु का काले बादल क जगह आसमान पर काले बादल पूर तरह छा गए थे। इधर आजकल मौसम ऐसे ह

प दखा रहा है । सूरज ढं ग से अपना कमाल दखा नह ं पाता है क बादल अपने काले

क बल से उसे ढं क लेते ह। र जब भाइ िचता करने लगे-’’रै न-कोट भी नह ं साथ लाए ह हम!’’ सुलेमान ने अनुमान लगाया-’’ यादा नह ं बरसगे ये बादल, हवा तेज़ है , उड़ा कर ले जाएगी।’’ झ पड़ के बाहर परछ थी, जस पर मरख ना बकरा बांधा गया था। बहत ु तगड़ा बकरा था।

उसके ज म से अजीब गंध फूट रह थी। ऐसी गंध तो रे वे टे षन पर लावा रस घूमने वाले बुढ़े सांडनुमा बकरे क दे ह से फूटती है क उ ट हो जाए। मरख ना बकरा िमिमया रहा था।

“यामा क झ पड़ म केवल एक ह कमरा है । उसी कमरे म “यामा एक-एक कर बक रय को घुसाने लगी। झ पड़ के सामने आंगन क दसर तरफ एक छोट सी परछ थी, जसके नीचे ू चू हा था। दससर तरफ एक च टान क िसल रखी थी, जसपर एक नकट डे गची मे पानी ू और कुछ जूठे बतन रखे थे।

रामपरसाद ने चारपाइ बछा, उसे गमछे से झाड़कर सुलेमान को बैठने का इषारा कया। सुलेमान झोलंगी सी चारपाइ पर बैठे तो ठ क पंजाबी ढाबे क तरह का कुछ आराम िमला। बादल आसमान पर अपना असर दखाने लगे। ह क बूंदा-बांद चालू हुइ।

रामपरसाद और र ज◌ाब भाइ के बीच कुछ बात हरइं भाइ ने कहा-’’आप ् ् ु ् फर र ज◌ाब आराम से बैठ, हम एक और जगह से आते ह, सुना है वहां भी अ छा माल है ।’’

सुलेमान यह तो चाहते थे क “यामा के साथ एकांत के कुछ पल िमल। रामपरसाद, “यामा को चाय बनाकर रखने का आदे ष दे कर चला गया।

“यामा बक रय को लहा-प टयाकर, पुचकार-दलार कर ठ हे से बांध रह थी। उन लोग के जाते ु ह बा रष होने लगी।

“यामा ने कहा-’’परछ पर चले आइए, भीग जाएंगे।’’


सुलेमान ने सोचा क जवाब दे क अपनी “यामा को इस हालत म दे ख वह अंदर तक भीं◌ंगे हए ु ह। ले कन पानी तेज़ हआ ु , तब सुलेमान को परछ म िसर छुपाने जाना पड़ा। मरख ना बकरा उ ह ताका हआ ु था जैस, सींग मारने के िलए लपका।

“यामा िच लाइ तो बकरा “◌ा◌ा त हआ ु -’’नया आदमी दे ख ऐसे ह गु साता है बदमाष!’’ सुलेमान ने बात का िसरा पकड़ा-’’तो अब म नया आदमी हो गया “यामा...?’’ ‘‘अगर पुराने आदमी ह तो इ े दन बाद याद कया, वो भी मतलब पड़ने पर!’’

“यामा का गु सा वा जब था। झ पड़ के अंदर पानी के छ ंट से बचते हुए सुलेमान ने बगड़े हालात को स भालना चाहा-’’ये तुमने अपना या हाल बना रखा है “यामा?’’ ‘‘हर चीज़ का अ त होता है साहे ब, जवानी का भी अंत होना ह था। अब जनके दन ह वे मज़ा ल, हमारे दन तो ख़ म हए। ु ’’

इतनी तीखी बात तो नह ं करती थी “यामा। ज़माने क ठोकर ने त ख़ बनाया है “◌ा◌ायद उसे।

“यामा बक रय को पानी से बचाने का उप म करती बड़बड़ाती जाती‘‘हम गर ब-मजदरू को ये दन दे खना होता है साहब, जवानी म

प के द वान क कमी नह ं

होती। बुढ़ापा ढोने के िलए सह साथी नह ं िमलता।’’ बा रष क बौछार परछ पर आने लगी तो गब

छटपटाने लगा।

सुलेमान झ पड़ के अंदर जा घुसे। बारह बाइ दस का एक अंधेरा कमरा। जसम जगह-जगह पानी टपक रहा था। बक रयां चूते हए ु पानी से बचने के िलए िमिमया रह थीं। कमरे के एक कोने म गृह थी का सामान बखरा

हआ ु था। “यामा मवे षय को बा रष क बौछार से बचाने के िलए फट -पुरानी बो रय से बचानेढं कने का उ म करने लगी। घर आए मेहमान सुलम े ान को उिचत आित य न दे पाने से वह ल जत भी थी। उ ह ने “यामा को सलाह द क खपरै ल छाने के पहले छ पर पर पोलीथीन क “◌ा◌ीट

य नह ं बछवा दया था? उससे कम से कम पानी तो घर के अंदर नह ं चुएगा।

“यामा या जवाब दे ती। उसके चेहरे पर िचपक हुइ थी घनघोर अभाव से उपजी एक इं ची मु कान। सुलम े ान ने महसूस कया क ये कह ं

ांस क रानी क तरह क मासूम सलाह तो

नह ं थी क य द रोट न िमल रह हो तो बेर् ड य नह ं खाती भूखी जनता? सुलेमान दल से

चाहने लगे क वह “यामा के कुछ काम आ सक। ले कन हमेषा क तरह उ ह लगा क वे “यामा के दरवाज़े िभखार या

ाहक बनकर आए ह। कभी णय-याचना, कभी दे ह-सुख और आज

बकरे के िलए, जसे वह बेचना नह ं चाहती है ।

“यामा को उ ह ने अ सर पए दे ने चाहे क तु वािभमानी “यामा ने िनधनता के बावजूद पए लेने से इं कार कर दया। साड़ या गहने भट करने क इ छा तो सुलम े ान के मन म हआ ु

करती थी, ले कन जाने कस कारण वे यह भी कर न पाए।

उ ह “यामा के उलाहने याद आए-’’घाटा सहना तो हम गर ब क क मत है साहब!’’


झमाझम बरसते आसमान का पानी टॉक हआ ु लगता था, जो बा रष म म होने लगी।

काले आसमान पर सुरमइ रोषनी क गुंजाइष झांकने लगी थी। सुलम े ान ने गहरा सांस भर कर कहा-’’इस साल बा रष ने बहत ु सताया।’’

मौसम के बारे म ऐसे चालू कमट अजन बय के बीच बातचीत श

करने का एक बहाना होता

है । तो या “यामा अब अजनबी हो गइ, जो सुलेमान इस तरह के चालू हथक डे अपनाकर बातचीत क गाड़ आगे बढ़ाना चाहते थे। सुलेमान के भावुक मन और सांसा रक दमाग के बीच एक जंग चल रह थी। तभी “यामा ने अपने दलरवे बकरे को पुचकारा-’’षे ु

बेटा, जादा भींग गए का?’’

“◌ो छ ंकने लगा।

कतनी िनद ष खाल और व थ दे ह है “◌ो सुलेमान इसी “◌ो

क।

को खर दने आए थे।

‘‘मेरा “◌ो तो मेर जान है ।’’

“यामा ने बकरे को यार से सहलाया। ‘‘म इसे घर से जाने नह ं दं ग ू ी। गब

के िलए “◌ाहर से िमंया सेठ लोग दौड़ रहे ह। रामपरसाद

कहता है बेच दो, ले कन म अपने गब

को नह ं बेचूंगी। “◌ो

तो अभी ब चा है । साल छह

मह ना रह ले घर म तब सोचा जाएगा।’’ सुलेमान या कहते? जस

ी ने उनक खुषी के िलए अपना तन-मन यूं ह स प दया हो, वह एक बकरा दे ने म

इतना आनाकानी य कर रह है ? ये बात उनक बु

म घुस नह ं रह थी।

बोले-’’दे खो, र जब भाइ कह ं और गए ह बकरा दे खने। वो तो नुसरत आपी ने कहा था क

“यामा के घर साल भर का एक बकरा िमल जाएगा। मने सोचा क बकरा तो लेना ह है तो य ने तुमसे खर द लूं। क मत जो तुम कहा। और यहां आने का एक और कारण तुमसे िमलना भी था। तुम हो सकता है क मुझे भूल गइ हो ले कन तु हारे साथ गुजारे समय को म कभी भूल न पाया हंू ।’’

उनक आवाज़ म दद था। उ ह लगा क “यामा के छुहारे से सूखे मुंह पर तंज़ भर मु कान आइ है । वे अपनी ह धुन म थे-’’तुम तो ठ क-ठाक थीं “यामा, फर तु हार ये हालत?’’ ‘‘मत पूिछए साहब, हम मजदरू क ज दगी कैसे गुज़रती है । कहां-कहां नह ं भटक म?’’ मवे षय को पानी-बूंद से बचाती “यामा अपनी रामकहानी सुनाने लगी।

‘‘हां, एक ठे केदार अपने साथ अमरकंटक क खदान म ले गया। अ छा आदमी था वह। एक ए सीडट म मारा गया। सुख मेरे नसीब म अिधक न था। म वहां से िसंगरौली चली गइ। वहां


कोिलयर म नइ-नइ कालोिनयां बन रह थीं। बहत ु काम था। कुछ साल वहां गुजारे । फर वहां इस भड़ु वे रामपरसाद से प रचय हआ। ये बहत ु ु अ छा आदमी है , इसे ट बी हो गइ थी।

इसिलए हम इस गांव म आ गए। “◌ाहर जाती हंू तो आपक द द मेमसाब से िमल लेती हंू । कभी-कभार वह दो-चार क मदद भी कर दया करती ह। वह ं आपके बारे म कुछ जानकार िमल जाती है । उसी दन द द मेमसाब ने बताया क आप इस इलाके म आ गए ह।’’ बा रष

क जान “यामा एक झाड़ू लेकर झोपड़ के अंदर जमा पानी को बुहार कर सुखाने लगी।

सुलेमान घर से बाहर िनकल आए और आंगन म खाट बछा कर बैठ गए।

“यामा कोने पर पड़ भीगी लक ड़यां लेकर चू हे के पास आइ। चू हा सुलगा तो अ यूिमिनयम क एक नकट हं डया म चाय का पानी चढ़ाकर झ पड़ के अंदर से चीनी वगैरा लाने चली गइ। सुलेमान या करते? वे सोच रहे थे क वािभमानी “यामा क वे कस तरह मदद कर। बकरा खर दने के बहाने वे उसे मुंह-मांगी क मत दे ना चाहते थे, ले कन ये पागल अपना “◌ो

बकरा बेचने को तैयार नह ं।

बना दघ ू क चाय खौलते-खौलते र जब भाइ और रामपरसाद भी लौट आए थे।

र जब भाइ ने बताया क संजोग ठ क नह ं है । कसी से मुलाकात नह ं हुइ। अब इस “◌ो

को

खर दना होगा, ले कन द कत यह है क “यामा इसे बेचने को तैयार नह ं है । रामपरसाद को तो र जब भाइ ने

पए का लोभ दे कर पटा िलया था, ले कन रामपरसदवा “यामा से डरता

बहत ु है । कह रहा था क साहब से कहना क वे खुद “यामा से बात कर। “◌ा◌ायद “यामा मान जाए।

सुलेमान ने र जब भाइ को कुहिनय से ठे ल कर चुप-मारने का इषारा कया। चाय तैयार हुइ। लाल-लाल रं गत क गम चाय। मौसम म अब ठं डक घुल रह थी। इसिलए चाय क तलब वाभा वक थी। सुलेमान को ट ल के िगलास म ढे र सार चाय िमली थी। इसका मतलब “यामा भूली न थी क सुलम े ान चाय पीते ह तो ‘पा टयाला पैग’ बराबर! गम चाय के कारण िगलास गम था, इसिलए सुलेमान ने जेब से पकड़ा। “यामा डे गची म चाय लेकर गब

माल िनकालकर िगलास

और “◌ो के पास जा बैठ ।

ू कटोरे म दोन को पार -पार से वह चाय दे ने लगी। गब अ यूिमिनयम के टटे

और “◌ो

को

इस तरह चाय पीते दे ख र जब भाइ हं सने लगे। सुलेमान ने सोचा क मवे षय को कतना यार करती है “यामा! इसी तरह “यामा उ ह भी तो ू कर चाहती थी। टट


रामपरसाद ने बताया क बड़े तुनकिमजाज ह ये बकरे । धरती पर फका अनाज या प यां ये नह ं खाते। जब तक हाथ पर रखकर यार से इ ह न खलाया जाए, ये भूखे मर जाना पसंद करते ह। चाय ख म हुइ तो सुलम े ान ने आस से “यामा क तरफ दे खा।

इस िनगाह म वह याचना भर हुइ थी, जो जवानी क पहली मुलाकात म सुलेमान क आंख म “यामा ने दे खी थी। “यामा या करती!

र ज◌ाब भाइ ने रामपरसाद को इषारा कया। ्

रामपरसाद “यामा को लेकर झ पड़ के अंदर चला गया। बाहर आया तो र जब भाइ को कनारे ले गया। र जब भाइ फर सुलम े ान के पास आए और कहा-’’चिलए, बा रष थम गइ है , िनकल िलया जाए।’’ सुलेमान उसके साथ बाहर आए। कूटर टाट क ।

“यामा और रामपरसाद वदा करने बाहर िनकल आए। सुलेमान ने “यामा को एक नज़र जी भर कर ताका। दे खा “यामा के चेहरे पर वह संतु के भाव ह, जैसे पूण समपण क दषा म उसके चेहरे पर आते थे। रामपरसाद ने हाथ जोड़कर णाम कया। “यामा बुत बनी खड़ रह । सुलेमान ने भार मन से कूटर आगे बढ़ाया। मोड़ पर पहंु चकर उ ह ने घूमकर दे खा, “यामा वैसी ह खड़ हुइ थी। आगे जाकर उ ह ने कूटर रोक और कहा-’’र ज◌ाब भाइ, इ तंजा (लघुषंका) कर ली ् जाए!’’

एक ग ढे म पानी था। वह ं बैठकर इ तंजा कया गया। फर चलती कूटर म र ज◌ाब भाइ ने बताया-’’बकरा बेचने के िलए “यामा तो एकदम तैयार ्

नह ं थी। ले कन अिधक पैसे क लालच म रामपरसाद तैयार हो गया। चौदह-पं ह कलो से

र ी भर गो त कम नह ं है “◌ो म। उस हसाब से दो हज़ार का माल है । मने पं ह सौ म बात प क क है ।’’ सुलेमान जानते थे क कु़बानी के समय बकरे क क मत बढ़ जाती है । सो उ ह ने कहा-’’एकदो सौ

पए चा हए तो और बढ़ा द जए र जब भाइ, ले कन कल कसी हालत म बकरा घर

पहंु च जाना चा हए।’’

र जब भाइ ने कहा-’’वो आपको रामपरसाद को दा -गांजा के िलए सौ पए अलग से दे ने ह गे, ब स!’’ र जब भाइ एक आंख दबाकर हं से, क तु सुलेमान ने उसका साथ नह ं दे पाए। सुलेमान के हाथ म एक र सी है । मं ब

र सी।


सुलेमान सोच रहे ह क वयं “यामा के गांव चले जाएं और उसे र सी वापस लौटा द।

“यामा को आज तक कुछ नह ं दे पाए, ले कन इस मामूली सी र सी पी इस अमू य भट को या वह अ वीकार करे गी?

नसीबन

“◌ाहडोल जाने वाली बस आज लेट है । नसीबन बस- टड के या ी- ती ालय म बैठ बस का इं तेज़ार कर रह थी। उसका चार

व ◌ा◌ीय बेटा बार-बार मूंगफली खाने क ज़द कर रहा था। सुबह थोड़ा बासी टंू गा है , भुखा ् गया होगा अब तक!

ले कन या कया जाए ?नसीबन उसे डांटने लगी। वह जानती है क बस का यह आलम रहा तो “◌ाहडोल पहंु चते-पहंु चते “◌ा◌ाम हो जाएगी।

मुसुआ सुबह उठा तो “◌ाहडोल जाने क उमंग म झटपट तैयार हो गया। हां, इतनी सुबह उसे पैखाना कहां से उतरता।रात नाना के घर दावत हुइ तो जम कर ‘गो त-पुलाव’ खाया गया था। फर ट वी पर ‘िनकाह’ प चर दखाइ जाने लगी, तो सभी बैठ गए। पा क तानी अिभने ी

सलमा आग़ा का इसम ज़बरद त रोल था। नसीबन को ‘िनकाह’ का वो गाना कभी नह ं भूलता जसे सलमा आग़ा ने न कयाती आवाज़ म गाया था...’’ दल के अरमां आंसुओं म बह गए’ कतनी दलकष आवाज़ है सलमा आग़ा क ... उसी गाने के कारण नसीबन ‘िनकाह’खासकर दे खना चाहती थी। अ बा को प चर म कोइ दलच पी नह ं । वह इषा(रात क आ खर नमाज़) क नमाज़ अदा करने म जद गए तो फर काफ रात गए वापस आए।अ मा ने कह भी दया था क चूं क आज गो त-पुलाव का काय म है ,इसिलए मग़ रब( सूया त पर पढ़ जाने वाली नमाज़) बाद खाना िमलने का सवाल ह नह ं।


इ मीनान के साथ इषा के बाद खाना िमलेगा। नसीबन के दो बार िनकाह हए ु क तु उसने इससे पहले कभी ‘िनकाह’ प चर दे खी न थी। नसीबन ने ‘तलाक’ का दद झेला था। नसीबन िसस कयां ले-लेकर प चर दे खती रह ।

बीच-बीच म आने वाले व ापन थोड़ा व न ज़ र डालते, ले कन इससे नसीबन को कोइ फक न पड़ता। नसीबन क अ मा ने समझाया क उस मरदद ू पर न रो बेट , उसके ज म पर तो क ड़े पड़गे। ए ड़यां रगड़-रगड़ कर मरे गा जु मन समझे !उसने मेर फूल सी बेट को बहत ु तकलीफ द है ।खुदा उसे कभी माफ़ न करे गा।

नसीबन को फ म म तब जाकर सुकून िमला जब क द ू हे -िमयां काज़ी के पास जाकर रोते िगड़िगड़ाते ह। तलाक के बाद सलमा आग़ा से दबारा िनकाह कैसे हो सकता है इसके िलए ु मसला जानना चाहते ह।

काज़ी साहब समझाते ह--’’ इसीिलए कहा गया है क बना सोचे समझे तलाक ल ज़ न बोला जाए । क़ुरआन-षर फ़ म तलाक क मज़ मत क गइ है ।’’ तब तक अ बा भी आ गए थे । वे मसला-मसायल म दलच पी रखते ह, इसिलए वह भी बैठ कर फ म दे खने लगे। इसी सब म काफ रात गुज़र गइ। उसे सुबह पहली बस से जाना भी था। अ मा ने कहा क रात बहत ु हो गइ है , इसिलए अब

नसीबन चाहे तो दसर बस से “◌ाहडोल चली जाए। दसर बस आठ बजे सुबह जाती है ।ले कन ू ू नसीबन ने कहा क वह पहली बस से ह जाएगी। वरना “◌ाहडोल पहंु चने म बहत ु दे र हो

जाएगी। इधर पंचायत का चुनाव होने वाला है और दसरे मन गढ़ से “◌ाहडोल के बीच सड़क ू

क हालत बहत यादा ख ता हो चुक है । एक सौ तीस कलोमीटर के सफर म पूरे आठ से नौ ु घ टे लग जाते ह। सड़क पर बड़े -बड़े ग ढे इतने क बस का प टा-कमानी जवाब दे जाता।

पूर ‘बॉड ’ झनझना जाती। कइ बस कबाड़ा हो गइ ह। वह तो सवा रयां िमल जाती ह , वरना बस-मािलक बस खड़ रखते । इस

ट म बस चलाना एक घाटे का सौदा है ।

इसीिलए नसीबन चाहती थी क दन रहते वह घर छोड़ दे । मुसुआ क ज़द से परे षान होकर वह टड पर भुनी-मूंगफली के ठे ले पर गइ और पचास मूंगफली खर द । मूंगफली वाले ने अढ़ाइ ‘‘एक छं टाक मूंगफली के अढ़ाइ

ाम

पए मांगे।

पए?’’ वह चीखी।

‘‘िच लाती काहे ह, पूरे मन गढ़ म यह दाम है । लेना हो तो ली जए ?’’ ठे ले वाला बगड़ कर भूत हो गया। ‘‘दो

पया दं ग ू ी, लेना हो तो लो वरना सामान वापस...’’ कहने को तो कह दया उसने क तु

मुसुआ क जद के आगे हार मानकर वह बोली ---’’ अ छा ऐसा कर क मुझे दो पये क मूंगफली ह दे दो। थोड़ा कम कर लो और या?’’


मूंगफली पाकर मुसुआ झूम उठा। वह अपनी तुतली आवाज म गाना गाने लगा । ‘‘कहो न याल है ...’’ नसीबन वा स य रस से ओत- ोत हो उठ । ममता उसक आंख से छलकने लगी।वह मुसुआ को मूंगफली के दाने छ ल-छ ल कर दे ने लगी ।नसीबन मुसुआ को जान से भी यादा चाहती है । अपने सीिमत साधन के बीच वह मुसुआ क हर ज़द पूरा करने का यास करती। वह हमेषा गा़◌ैस-पाक के माफत अ लाह पाक परवर दगार का श

या अदा कया करती।

मुसुआ के अ बा भी मुसुआ को बहत यार करते। आ खर अधेड़ाव था म बाप बनने का एक ु अलग ह सुख है । मुसुआ के अ बा का यान या आया क वह बेचैन हो उठ । नसीबन का दसरा पित गुलज़ार खान, फोरमैन...उ ू

पचपन वष...ढे र सी पै क और य

गत

स पित के वामी... क तु आल-औलाद क खुषी से मह म ! जब तक पहली प ी जी वत रह ,दसर “◌ा◌ाद का ख◌़् याल भी मन म न लाया।गुलज़ार खान क पहली बीवी को मले रया ू

हआ ु था।मले रया कब टाइफाइड म बदला और कब उसे पीिलया भी हो गया कुछ पता न चला। इस इलाके म अभी र -जांच अ छ सु वधा न थी। गुलज़ार खान ने अपनी बीवी को बचाने का हर स भव यास कया क तु उसे बचा न पाया। चूं क गुलज़ार खान बेऔलाद थे अत: घरवाल के दबाव ने उसका दसरा िनकाह नसीबन से ू कराया। गुलज़ार खान ने भी अपनी तरफ से यह कहा क कसी कुंवार लड़क का जीवन

तबाह न कया जाए। नसीबन क ख◌़् ◌ा◌ाला ने ये र ता लगाया था। उसने ह उन लोग को

राज़ी कया।गुलज़ार खान कोयला खदान म मैकेिनकल फोरमैन थे। इज◌़् ज़तदार नौकर , बीटाइप वाटर, बनी-बनाइ गृह थी।घर म

ज़, ट वी,वा षंग मषीन, कूटर सब कुछ था। कमी

थी तो िसफ औलाद क । वह कमी उसने दरू कर द । नसीबन बांझ न थी।

वह कससे बताती क उसक नम-उवरा कोख क धरती पर बीज पड़ा ह न था। बस- टड के पूरब म बने “◌ोड पर बैठे अनांउसर क आवाज़ लाउड पीकर पर गूंजी। --’’षहडोल जाने वाले या ी

यान द...मन गढ़ से बजुर , कोतमा, अनुपपुर,अमलाइ , बुढ़ार से होकर

“◌ाहडोल जाने वाली बस आने वाली है । आप लोग अपने सीट न बर और टकट काउं टर पर बैठे एजट से ले ल।’’ नसीबन क तं ा भंग हुइ। उसने मुसुआ से चाहा क वह चुपचाप सामान के पास बैठे तो टकट खर द ले आए। मुसुआ नह ं माना। नसीबन झुंझला कर उसे धीरे से चपत लगाइ।

मुसुआ रोने लगा । मुसुआ एकदम प ना है । मां-बाप के अ यिधक दलार ु - यार से वह ज़


भी हो गया है ।नसीबन उसका रोना बरदा त नह ं कर सकती। नसीबन ने गोद म उसे उठाया और दसरे हाथ से ला टक क डोलची उठा ली । ु टकट लेकर वह पुन:

ती ालय म आ गइ। वह जहां बैठ थी वहां एक म हला बैठ थी। वह

गोरे रं गत क एक जवान म हला थी। मांग पर िसंदरू क जगह सफेद चमक ली सी एक लक र...’अफसन’ क लक र। यानी यह म हला भी मुसलमान ह है ।

उसके साथ तीन ब चे थे । दो बे टयां और एक बेटा। छोट बेट अभी गोद म है । वह मां का दध ू पीने को बेचैन है । म हला ने सलवार सूट पहन रखी है । सफर म सलवार सूट म ब चे को

दध ू पलाने म द कत होती है । ब ची क चीख-पुकार से तंग आकर म हला ने उसे दो चपत जमा द । ब ची और ज़ोर-ज़ र से रोने लगी।

मुसुआ को मूंगफली खाते दे ख , उस म हला का चार व ◌ा◌ीय बेटा भी कुछ खाने क ्

ज़द

करने लगा। म हला ने लाचार होकर पहले तो गोद क ब टया का मुंह ज़बरद ती दप ु टे के अंदर करके चु त कुत का दामन इस तरह से समेटना चाहा क बदन भी न उघड़े और ब ची दध ू भी पी ले।

इस को षष म उसक दध ू -भर गोर छाितय क एक झलक नसीबन ने पाइ। नसीबन मु कुरा

उठ । उस म हला ने छाती म ब ची का मुंह ठू ं स कर बेटे क तरफ घूर कर दे खा। बेटा बद तूर मूंगफली खाने क ज़द मचाए हए ु था।

नसीबन से अब चुप न रहा गया। उसने मुसुआ से कहा क वह मूंगफली के चार दाने उस रोते ब चे को भी दे दे । मुसुआ मान गया। म हला ने कृ त ता

कट क ।दोन म हलाएं मु कुरा

उठ ं। कुछ मामले म मुसुआ बाप पर गया है । गुलज़ार भी इसी

कृ ित के ह। भले ह भूखे रह जाएं

ले कन मेहमान क ख◌़् ि◌◌ादमत म कोइ कमी न करगे।बड़े द रया दल ह गुलज़ार ...इद िमलने उसे मैके आना पड़ गया, वरना वह िमयां एक दन भी अकेला छोड़ती नह ं। इतनी

जंदगी गुजरने के बाद तो वह िमयां-वाली हुइ है । पहला िमयां तो बस नाम का िमयां था।

नसीबन को मुंह म कुछ कड़वा कसैला सा महसूस हआ। पहले “◌ा◌ौहर जु मन का तस वुर ु उसे भयभीत कर दे ता । जाने या- या चाहता था जु मन अपनी बीवी से।

वह चाहता था क उसक नामद क बात कसी भी तरह से समाज म न आने पाए। वह चाहता था क चाहे जैसे भी हो नसीबन उसके िलए औलाद क लाइन लगा दे । वह चाहता था क नसीबन उसक अंधी मां और नकारा दे वर क ख◌़् ि◌◌ादमत म राइ-र ी क कमी न करे । ठ क उसी तरह जु मन क मां अपनी बांझ बहू को रात- दन ताने मारा करती।

बेटे से झूट षकायत करती क बहू ने ढं ग से खाना दया न पानी... दन भर बस मुझसे लड़ती

रहती है ।बांझ-िनपूती रांड़ सब ऐसी ह होती ह। मेरे बेटे पर ‘टोना हन’ ने जाने कैसा टोना कर दया है

क यह कसी क सुनता ह नह ं।


दे वर अलग अपना राग अलापता।वह एक सेठ का ड पर चलाता था। रे त-िग ट आ द क

ु इ म वह ड पर लगा था। रे त-िग ट क लो डं ग-अनलो डं ग म गांव क रे जाएं और मज़दरू ढला लगा करते ह। उसका चाल-चलन भी ठ क न था। दे वर के कइ रे जाओं से स बंध थे। वह पूरे

समाज म बदनाम हो चुका था। इसीिलए कोइ अपनी बेट उसे दे ने को तैयार न होता। एक जगह बात चल रह थी । लड़क वाले इस िलए झुककर आए थे क उनक बेट म कइ दोष थे। लड़क भगी और काली -कलूट थी। बदसूरत कह तो कोइ हज़ नह ं। उसी समय ऐसा हआ क ु रे जाओं क ब ती म मार-पीट और “◌ाराब पीकर हड़दं ु ग मचाने के अपराध म दे वर को जेल हो गइ। लड़क वाल ने खुदा का श

अदा कया क समय रहते उनक आंख खुल गरइं् । उनक

बेट बरबाद होने से बच गइ। या हआ क बेट बदसूरत है कंतु बद करदार तो नह ं। ु

दे वर अ सर भौजाइ को छे ड़ता--’’भइया से कुछ न हो पाएगा भौजी। एक बार इस बंदे को आजमा कर दे खो तो...षितया लड़का होगा। जाने कतनी जगह मने आजमाया है । एक मौका खदमत का हम भी तो दे कर दे खो।’’ वह ब तमीजी से हं सता। एक बेहद अ लील हं सी... जसम िनगाह से कपड़े उतारने क ताकत हो। नसीबन अपना दख ु कससे कहती ? उसका मन करता क वह आगे बढ़कर दे वर का मुंह अपने तेज़ नाखून से नोच ले! या क अपनी बदनसीबी पर दहाड़ मार-मार कर रोए।

समाज दे वर-भौजाइ के बीच मज़ाक को बुरा नह ं समझता। जु मन से कहे तो उसक मार खाए। सास ठहर अंधी-बहर , पु -मोह से उसम भला-बुरा समझने का जज◌़् बा भी ख◌़् ◌ा म

हो गया था। वह कसी भी तरह उस घर म ब चे क कलकार सुनना चाहती थी। इस मामले म वह हक-नाहक, भला-बुरा, नैितक-अनैितक कुछ भी न मानती थी। बस पानी पी पीकर वह बहू को कोसती और बेटे को उकसाती क वह एक और िनकाह कर ले। वरना इस वंष का या होगा ?

अनांउसर ने पुन: हांक लगाइ--’’षहडोल जाने वाली बस अब आने ह वाली है । आप लोग अपने टकट और सीट न बर ले ल।’’ नसीबन क तं ा भंग हुइ।

उसने मुसुआ के हाथ से मूंगफली का पूड़ा छ न कर डोलची म रख िलया। वह

ती ालय से

बाहर िनकल आइ। उसने दे खा क वह म हला भी उठ गइ है । “◌ा◌ायद उसे भी यह बस पकड़नी हो। दरू कह ं बस क घुरघुराहट सुनाइ द ।

एजट और अनांउसर सजग हए। दे खते ह दे खते बस आ गइ। नसीबन को खड़क के पास ु वाली म हला-सीट का न बर िमला था। नसीबन बस के सफर म खड़क के पास क सीट


चाहती है । उसे हमेषा ताजा हवा चा हए। बस म सवा रयां बीड़ -िसगरे ट का सेवन करती ह तो उस गंध से उसे िमतली आने लगती है । जाड़े मे भी सफर के दौरान वह खड़क खुला रखना चाहती । य द अ य लोग वरोध करते तो वह खड़क बंद करती । थोड़ा सा फांक वह फर भी बचा लेती। ताज़ा हवा का पष िमलते रहे बस! अभी वह बस म बैठ ह थी क उसक बगल म वह म हला आकर बैठ गइ। अपने तीन ब च के साथ। उसे कोइ आदमी बैठाने आया था।वह आदमी जाने लगा तो म हला ने ब च से कहा-’’ मामू को सलाम करो!’’ नसीबन ने जाना क ये भी अपने मैके आइ लगती है । “◌ा◌ायद इद िमलने आइ हो। ख़ैर उसे या ? वह म हला बगल सीट म आ गइ । नसीबन ने मु कुराकर प रचय क पेषकष क । वह भी जवाबन मु कुराइ। उसका बेटा अभी भी रो रहा था। लड़ कयां बेचार चुप थीं।नसीबन ने सोचा क लड़ कयां अमूमन चुप ह रहती ह। अगर ये कह क बेजुबान होती ह , तो इसम कोइ आ चय नह ं। यह बेजुबानी उ ह ज़ु म सहने और िससकने के िलए

े रत करती है । नसीबन भी तो इसी चु पी क

षकार थी। य द

वह जुबान वाली होती तो ज़ र जु मन के आरोप का वरोध करती। कतना सहा था उसने ! बु ढ़या अंधर सास तक एक

ी होते हए ु भी उसे पाप के िलए मजबूर

करती । माना क जु मन सीधे कुछ न कहता क तु अ

प से उसका इषारा यह होता

क उसे औलाद चा हए । कसी भी क मत पर उसे औलाद चा हए थी। बाक बात सास प कर दे ती । कहती --’’रं ड ! सती-सा व ी बनती है । अपने दे वर पर इ जाम लगाती है । अरे घर क बात सड़क पर लाती है ।तू जा तो सह , दे खना जु मन को कैसे औलाद वाला बनाती हंू ।’’

नसीबन लड़ती--’’ आपके बेटे से कुछ भी न हो पाएगा , वह ब चा पैदा करने लायक तो

या

कसी औरत के ह लायक नह ं। वह भर जवानी म अपने ठं डे- ब तर और मुदा रात क बात कैसे कहती। ‘‘रांड...दोष तेरे म है । अरे , औरत चाहे तो प थर भी पघल जाए। हर साल बकर और कुितया क तरह गािभन होती रहे ।ये कह न क तेर कोख म ताकत ह नह ं।’’ ‘‘नह ं अ मा! ताली एक हाथ से नह ं बजती...तू मान क तेरा बेटा कसी काम का नह ं िसवाए रोज़ा-नमाज़, रोजी-रोट के। मीठा बोलता है और मु कुराता रहता है , इससे ये न सम झयो क वह बड़ा मद है ।’’ वह कैसे कहे क हं जड़ा है जु मन एकदम हं जड़ा! सास रोने-धोने लगती--’’ पता नह ं कस घड़ मने तुझे पसंद कया। कमीनी थी ननद साली, मेर द ु मन, वह तेरा र ता लाइ थी। उसने तो तुझे हमारे गले मढ़कर हमसे बदला ले ह

िलया...अब हम ज दगी भर यह ढोल बजाना होगा। ले कन नह ,ं म पोता खलाए बना


म ं गी नह ं। मने हज़रत जी से बात क है । उ होन कह दया है क औलाद के िलए दसरा या ू तीसरा

या चौथा िनकाह भी जायज़ है ।मने तो लड़क भी दे ख ली है । बस, ये जो

का गुलाम

जु मनवा एक बार ‘हां’ भर बोल दे । दसरे दन ह िनकाह करवा दं ।ू ‘‘ ू

वह भी िचढ़ जाती--’’ तब ऐसा है क गािभन बहू लाना। एक-दो माह का पेट वाली हो। मैके से औलाद ले आइ तो ठ क, वरना उसे भी मेर तरह सौतन बरदा त करना होगा।’’ सास भी कहां कम थी ।उसने भी दिनया दे खी थी। बु ढ़या ने कहा ह ु

--’’औलाद के िलए कुछ न कुछ गंवाना तो होगा ह ।ऐसे रोने-धोने से कोइ फ़ायदा नह ं। तू बांझ है समझी! अब तो जु मन के िलए घर म एक नइ बहू ले आना है बस!’’ वह

या कहती िसवाए इसके क सौतन के साथ वह नह ं जी पाएगी, और यह भी क वह

आ मह या भी नह ं करे गी! वह पूरे समाज को चीख◌़् ◌ा-चीख़ कर बताएगी क जु मन नपुंसक है । उससे औलाद

या रइं् टा-प थर भी पैदा होना मु कल है । वह उसे छोड़ दसरा ू

िनकाह या करे गा। इसी बात पर वह जु मन से वयं स बंध- व छे द कर लेगी।

आख◌़् ि◌◌ार हआ भी वह ...एक दन पता चला क जु मन अब दसरा िनकाह करने वाला है । ु ू

इ लाम म पहली बीवी रहते हए िनकाह करने पर ितबंध नह ं । वह जु मन को इसके ु दसरा ू िलए मजबूर नह ं कर सकती थी ।

उसने सोच िलया क इस दरवाजे़ अब उसे नह ं झांकना...और वह अपनी ख◌़् ◌ा◌ाला

के घर चली गइ। वहां से खाला और खालू दोन ने जु मन पर दबाव डालना चाहा क तु

जु मन अपनी मां के फ़रमान के आगे बेबस िनकला। कहते ह क अंधी सास ने दस ू र बहू लाने म कतनी चालाक क । वह जान-बूझकर ऐसी लड़क ले आइ जसके पेट म डे ढ़ माह का गभ था। हां, तहक कात से ये भी जान िलया था क उस लड़क के पेट म कसी ग़ैर का नह ं ब क अपने ह जीजा का नु फ़ा था। यह तो सास नसीबन से चाहती थी। ले कन... हआ ु नह ं वैसा कुछ, जैसा नसीबन चाहती थी या क सास-पित-दे वर क इ छा थी। नसीबन ज़द पर अड़ रह समाधान नह ं।

क दोष आदमी म है । इसिलए दसर “◌ा◌ाद इस सम या का ू

सास ने हज़रत जी क चौखट म अपनी परे षािनयां रखीं। िचरागा म अ छ रकम चढ़ाइ।हज़रत जी पर इसका अ छा असर पड़ा। उ ह ने सास से पूछा-’’तो आप उससे पीछा छुड़ाना चाहती ह?’’ ‘‘जी हां, हज़रत जी! मुझ रांड-अंधी को पोते का मुह ं दे खना है । उससे कुछ होगा नह ं। मने जु मन के िलए एक लड़क दे खी है । र तेदार के लोग ह। खांट सु नी ह वे लोग...ये नसीबन तो वहाबी घर से है हज़रत जी! ‘‘ हज़रत जी के कान खड़े हए ु -’’ या कहा , दे वबंद घर से है आपक पहली बहू?’’


‘‘जी हां, हज़रत जी..!’’ ‘‘बस फर

या है । तलाक दे दो उस ‘मुना फ़क’ को। ये दे वबंद लोग ‘का फ़र ’ से भी बदतर

होते ह। इन से ‘सलाम-मुसाफ़ा’ , खाना-पीना, और र तेदार वगैरा क मुमािनयत है । आपने िनकाह से पहले इसक त द क नह ं क थी या? आज ये दन न दे खना पड़ता। अ छा हआ ु

,अ लाह तआला ने उस ‘मुना फ़क’ से आपके घर म औलाद न द । आपको िसफ इसी बना पर तलाक िमल सकती है क आपक बहू बद-अक़ दा है ।’’

कहा भी गया है क एक बार का फ़र का एतबार कर लो क तु दे वबंद या वहाबी पर कतइ भरोसा न करो। इन लोग को अ लाह के यारे रसूल पर इमान नह ं। ये बद-अक़ दा लोग न बय के नबी, हज़ू ु रे-अकरम स ल ल लाहो अलैहे वस लम को अपनी तरह का एक इं सान समझते ह।

ये उन पर द द नह ं भेजते, ज़ दा विलय और बुज़ुग क करामात पर यक न नह ं रखते। ये लोग बरे िल वय को ‘ ब ती’ समझते ह। जब क ये का फ़र से भी बदतर ह। इनके साए से भी बचना चा हए। और दे वबंद होने क बना पर जु मन ने उसे तलाक दया था। बस टाट हुइ। बगल वाली म हला कुछ सहज हुइ। नसीबन ने उसके ब च को यार कया।

नसीबन ने उनसे उनका नाम पूछा। ब च ने तुतलाकर अपने नाम बताए जसे बस क घुरघराहट म वह सुन न पाइ। फर उसने उनसे पूछा--’’कहां जाना है ?’’ जवाब ब च क मां ने दया--’’षहडोल..’’ फर बात को आगे बढ़ाने क गज से उसने पूछा --’’और आप कहां जा रह ह?’’ ‘‘षहडोल।’’ ‘‘दे खए कब तक पहंु चाती है बस... टड से ह लेट हो गइ है । आगे जाने या हो?’’ ‘ठ क कह रह ह आप , य द यह हाल रहा तो रात तक “◌ाहडोल पहंु च पाएंगे!’’

‘‘अब जो हो...और कोइ साधन नह ं। रा ता भी इतना खराब है क बस चाहे भी तेज भागना तो भाग नह ं सकती।अब तो सड़क पर बड़े -बड़े ग ढे बन गए ह ।’’

‘‘पीछे सीट िमले तो म सफर ह न क ं ...आगे ठ क है । धचका उतना पता नह ं चलता।’’ इस वातालाप के बाद एक चु पी...क ड टर आया। टकट के पैसे बढ़ाए। क ड टर ने दो इं च के कमज़ोर से काग़ज़◌़ का एक टकट दया। इधर क िनजी बस म इसी तरह क टकट िमलती ह। वह भी कभी दया कभी गोल!


खड़क पूर खुली थी। बगल वाली ने टोका--’’छोटक को बुखार है । जरा खड़क तो बंद कर ली जए...’’ नसीबन ने मुर वत म खड़क बंद क

क तु थोड़ा फांक छोड़ दया ता क उसे श

हवा

िमलती रहे । --’’ या हआ ु उसे ?’’

--’’कुछ नह ं, कल इसके मामू ने इसे आइस

म खला द थी। रात म ह का सा बुखार हो

आया। म तो डर रह हंू क इसके अ बा को या बताउं गी...वह मुझे बहत ु डाटगे। ‘‘

--’’तो या आपने जान-बूझकर बुखार से कहा है क मेरे ब चे क दे ह पर आकर बैठे।’’ --’’वह बात नह ं । उ ह औलाद से बहत यार है । वह तो अ छा है क सास नह ं रह वरना वह ु अंधी तो बहत ु ग रयाती!’’

--’’अंधी सास !’’ नसीबन का माथा ठनका। उसे अपने पहले “◌ा◌ौहर जु मन क मां क याद हो आइ। --’’हां आपा, ‘‘ जाने य उस म हला ने उससे बहनापा जोड़ िलया। नसीबन को उस म हला म◌े दलच पी हुइ।

उसने उससे पूछा--’’षहडोल म आपक ससुराल है ?’’ --’’हां।’’ मुख◌़् तसर सा जवाब।

--’’कहां पर घर है ?’’ नसीबन य

थी।

--’’इतवार मुह ला म ।’’ म हला ने सहज भाव से उ र दया। इतवार मुह ला , यानी इतवार मुह ला म तो उसक पहली ससुराल थी। उसने त काल अगला

न दागा

--’ या नाम है आपके “◌ा◌ौहर का ?’’ नसीबन ने अपनी आंख जवाब सुनने से पूव बंद कर लीं। उस म हला ने अपने “◌ा◌ौहर का नाम बताने म संकोच कया।उसने अपनी ब ची से कहा --’’ ब टया अ बू का नाम चची को बता दो!’’ ब टया ने अटकते हए ु कहा--’’जु मन...’’

नसीबन क आंख बंद थीं।

एक बम सा फटा उसके कान के पास! ‘जु मन’ काष! उसने अपने कान भी बंद कर िलए होते। पी

ह जाम उफर◌़ ् हज़रत जी

एक सुबह फ

क नमाज से पूव हज़रत जी क लाष पैखाने म गू-मूत से लसड़ाइ पड़ िमली।


लाष दे ख कर ऐसा लगता था, जैसे मरने से पूव पैखाने से िनकलने के िलए उ होन काफ संघष कया हो। इस को षष म वह कइ बार िगरे ह गे और फर उठने का उप म कया होगा। उनके कपड़े , हाथ-पैर ह ा क समूचा बदन गंदगी से सराबोर था। हमेषा इ -फुलेल से डू बा रहने वाला बदन इतना वीभ स दख रहा था क उबकाइ आ जाए। हज़रत जी के आलीषान कमरे म पैखाना अटै च था। िचकने- चमकदार टाइ स और मोजेक का कमाल...जो क हज़रत जी के स दय- ेम को द षत करता था। च सठ व ◌ा◌ीय हज़रत जी को आज जस हालत म ‘मलकुल-मौत’ ने अपनी आगोष म िलया ् था, उसे दे ख कोइ कैसे यक न करे क यह कसी प व

क लाष है ।

सैयद “◌ा◌ाह बाबा क दरगाह के द दषक, िनमाता और सु ीमो हज़रत जी का इतना दखद ु अंत !

पहले उस दरगाह “◌ार फ़ म िसफ एक ह मज़ार थी। सैयद “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार। अब वहां दो मज़ार ह। एक तो सैयद “◌ा◌ाह बाबा और दजी ू जनाब हज़रत जी क ।

हज़रत जी यानी क सैयद “◌ा◌ाह बाबा के मज़ार क क पना को साकार करने वाली

“◌ा सयत यानी क पी ह जाम क ... हज़रत जी क पी

ह जाम से पीर बनने क कथा बड़ दलच प है ।

आज जहां सैयद “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार है , पहले वहां एक सूखे से पीपल के दरख◌़् त के अलावा कुछ भी न था।

पहले हज़रत जी भी तो हज़रत जी न थे। गांधी चौक पर उनक एक हजामत क गुमट थी। पी ह जाम क गुमट । वह खानदानी नाऊ थे। उनके पूवज ख़लीफ़ा कहलाते थे। खतना करने वाले खलीफा... हज़रत जी ने पु तैनी ध धा छोड़ कर हजामत वाला ध धा पकड़ा। उनक तीन बी वय से उ प न दजन भर औलाद म से दो बेटे अब इसी ध धे म ह। कहते ह क पी ह ज◌ा◌ाम यानी क हज़रत जी बचपन से बहत ् ु खुराफ़ाती वभाव के थे। बािलग़ हए ु तो फ़तरतन थानीय म जद के सदर बनने का

वाब दे खने लगे।


तब नगर म एक ह म जद थी। वहां “◌ोख़, सैयद और नव ना य यापा रय का बोलबाला था। उ ह ं लोग के बीच से सदर-से े टर चुने जाते। वहां हज़रत जी क कहां चलती। इसीिलए उ होने जुलाह , कसाइय , धुिनय और अ य पछड़े मुसलमान को संग ठत करना चाहा। जामा-म जद के बड़े इमाम साहब दे वबंद थे और उनक दे ख-रे ख म कसी तरह का बवाल न था। छोटे -बड़े सब उनक नूरानी “◌ा सयत का अदबो-एहतराम करते थे। वहां हज़रत जी को सफलता न िमली। तब हज़रत जी ने जामा-म जद के तमाम नमा ज़य के खलाफ़ फतवा दलवाने का जुगाड़ कया क जामा- म जद वहा बय क म जद है । वहां न बय के सरदार हज़ू ु र अकरम स ल

ल लाहो अलैहे वस लम पर द दो-सलाम नह ं पढ़ा जाता है । ये दे वबंद वहाबी लोग विलय

और औिलयाओं को नह ं मानते। बुजुग क मज़ार “◌ार फ का मज़ाक उड़ाते ह। बद-द न होते ह ये दे वबंद -वहाबी, इनसे तो का फ़र भले। इन वहा बय के पीछे नमाज़ पढ़ना हराम है । इन दे वबं दय म से कोइ अगर सलाम कर तो जवाब न दो। इनसे रोट -बेट का स बंध न बनाओ। हज़रत जी के इस द ु चार को बरे ली से आए एक मौलाना ने “◌ाह भी द । प रणामत: कुछ लोग उनके िमजाज़ के िमल ह गए।

हज़रत जी को पुरानी म जद म अपना हक़ न िमलने का अंदेषा था, इसिलए वह अपने घर के एक कमरे म ब-जमाअत नमाज़ अदा करने लगे। उनके कुछ “◌ा◌ािगद बन गए। हज़रत जी के चेहरे पर नूरानी दाढ़ आ गइ। काले-सफेद बाल पर महद लगाइ, तो एक नया प बन गया। सर पर हर पगड़ बांधी और गले म काले, नीले, लाल, पीले, हरे , सफेद प थर क मालाएं डालने पर वह अब घो षत बाबा बन गए। मोटवानी एक फोटो ाफर था। उसका ध धा बड़ा म दा चलता था। उसके िलए हज़रत जी ने दआएं क ं। ु

उनक दआओं क बदौलत मोटवानी का टू डयो चमक उठा। ु

अब ये हज़रत जी क दआओं का नतीजा हो या नगरपािलका वाल क मेहरबानी! उसके ु टू डयो के सामने से गुजरने वाली गली का नगरपािलका वाल ने उ ार कर उसे हाइ

और कचहर जाने वाली सड़क से जोड़ दया था। मोटवानी क आय बढ़ गइ। अब मोटवानी के पास एक जापानी फोटोकापी क मषीन भी आ गइ। उसने तीन-चार मुला जम रख िलए।

कूल


वह हज़रत जी का मुर द बन गया। हज़रत जी क तीसर “◌ा◌ाद कराने म उसका अहम रोल था। मोटवानी के

चार के कारण हज़रत जी के झाड़-फूंक और दआ ु -तावीज़ का कारोबार चमक

उठा। ध धा मंदा हो तो तेज हो जाएगा। लड़का न हो रहा हो तो तावीज़ से लड़क क लाइन

लग जाएगी। “◌ा◌ौहर “◌ाराबी हो या क इधर-उधर मुंह मारता हो तो उसे सह रा ते पर लाने के िलए हज़रत जी से दआएं करवा लो। कोट-कचहर का च कर हो तो मुकदमे का फैसला ु आपके प

म होगा।

लोग ने उ ह ज दा वली घो षत कर दया था। एक सुबह हज़रत जी ने फ

क नमाज़ के व

कया। उ ह ने

मुर द के सामने अपने एक ख◌़् वाब का ज़

वाब म दे खा था क बाइ-पास चौराहे के पास क

तान से सट जमीन पर जो पीपल

का दर त है उसके पास एक बुजुगाने-द न सैयद “◌ा◌ाह बाबा क क -मुबारक है । मरहम ू हज़रत सैयद “◌ा◌ाह बाबा ने खुद

वाब म आकर उ ह उस जगह क िनषानदे ह क

है ।

मोटवानी को खबर लगी। वह भागा-भागा हज़रत जी के पास आया। हज़रत जी ने उससे भी यह बात बताइ। मोटवानी हज़रत जी को अपनी मा ित म बठाकर बाइ-पास चौराहे ले गया। वहां वाकइ क

तान के कोने पर एक सूखा पीपल का दर त था।

दर त एक ह रजन ष क चंद ू भाइ क जमीन पर था। चंद ू भाइ ने जब मोटवानी से हज़रत जी के

वाब के बारे म सुना तो उसने त काल जमीन का

ु वह टकड़ा सैयद “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार के नाम करने का आ वासन दया।

उसने “◌ात बस इतनी रखी क उस ज़मीन पर जो भी काम कया जाए उसक जानकार चंद ू भाइ को भी ज़ र द जाए।

इसम भला कसी को या आप

हो सकती थी ?

ु हज़रत जी, मोटवानी और चंद ू भाइ यह तीन उस जमीन के टकड़े के यासी बने।

हज़रत जी के मु लम मुर द ने एतराज़ कया। इ लामी काम म गैर को इतनी मुखता दे ना ठ क नह ं। सबसे पहले बाकायदा एक कमेट बनाइ जाए। हज़रत जी उसके

मुख यासी रह

और फर सैयद “◌ा◌ाह बाबा के दरगाह क तामीर का काम हाथ म िलया जाए। इन वरोध द षत करने वाल म सुलेमान दज और अजीज कुरै षी मुख थे। हज़रत जी ने उ ह अपने कमेट न बनने द ।

ुप म “◌ा◌ािमल तो कर िलया क तु औपचा रक तौर पर कोइ


इसीिलए हज़रत जी क मृ यु के बाद मु कल पेष आनी श हरइं ु ् । मोटवानी ने साफ-साफ एलान कर दया क हज़रत जी का जो हु म होगा उसक तामील क जाएगी।

सुलेमान द ज और अजीज कुरै षी मन मसोस कर रह गए। मुसलमान क

जयारतगाह पर

गैर-मु लम क इस तरह क दखल-अ दाजी नाका बले-बदा त थी। क तु कया भी या जा सकता था ? मोटवानी और चंद ू भाइ क वजह से ह उस नए तीथ पर भीड़ बढ़ने लगी।

श -षु

म जो मुसलमान इस गठबंधन को घृणा क िनगाह से दे खते थे, वे भी धीरे -धीरे

पघलने लगे। हर जुमेरात को चढ़ावा आने लगा। ज़ायर न क सं या म धीरे -धीरे आषातीत वृ

होने लगी।

वहां पर अब ज़ोरदार सालाना उस का आयोजन होने लगा। बनारस और पटना से क़ वाल बुलाए जाने लगे। आस-पास गुम टयां और अ य ज़ रत के सामान क दकान सजने लगीं। ु मोटवानी ने नगर के िस

पटर मु ताक से सैयद “◌ा◌ाह बाबा क एक त वीर बनवाइ।

पटर मु ताक अ वल न बर का पय कड था। उसने हज़रत जी से

वाब वाले बुजुग सैयद

“◌ा◌ाह बाबा का ख़ाका पूछा। उनके बयान और अपनी क पना के ज़ोर से उसने कइ त वीर बनारइं् ।

एक त वीर को हज़रत जी ने वीकृ ित दे द । वह एक सफेद दाढ़ और बड़ -बड़ आंख वाले खूबसूरत बुजुग क त वीर थी। मोटवानी ने अपनी अक◌़ ् ल का इ तेमाल कर उस त वीर के साथ पीपल के सूखे दर त और दरगाह “◌ार फ के फोटो का एक बेहतर न कोलाज सेट करवा कर उसे कइ आकार म

ंट

करवाया। उसने उन त वीर को मज़ार “◌ार फ के बाहर लगने वाली फूल-षीरनी क दकान म भी ु ालुओं के िलए रखवाया।

मोटवानी का बेटा हो षयार था। बारहवीं क ा म तीसर बार फेल होने के बाद वह धंधे म लग गया था। उसने उस के अवसर पर आयो जत क वाली के काय म क रका डग करवाइ और कटनी जाकर चंद कैसेट तैयार करवा िलए। उन कैसे स म स◌ै् ◌ायद “◌ा◌ाह बाबा के दरगाह क “◌ा◌ान-ओ-अज़मत क बेहतर न क वािलयां कैद थीं। उन कैसे स क डमांड बढ़ तो फर उसका भी एक िसलिसलेवार धंधा बन गया। इससे सैयद “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार का भरपूर चार हआ ु ,

क तु कसे पता था क इतनी बड़

धािमक ह ती जनाब हज़रत जी का इतना वीभ स अंत होगा ! हज़रत जी क लाष पर अब म खयां भी िभनिभनाने लगी थीं।


सैयद “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार के

मुख क ददषा पर उनक दजन भर औलाद और तीन ु

बी वयां दहाड़े मार-मार कर रो रह थीं।

हज़रत जी का यह कमरा बड़ा आलीषान था, जसके दो ख ड थे। एक तरफ़ “◌ा◌ानदार डबल-बेड पलंग, बड़ सी आलमार , आदमक़द आइने वाली एक

ग ं ृ ार

टे बल, कोने म आलता और उससे लगा हआ एक “◌ा◌ो-केस, जसपर रखा था एक रं गीन ु

टे ली वज़न। दसरे ख ड म हज़रत जी क इबादतगाह थी। ख़ूबसूरत कालीन जैसा जािनमाज ू

(नमाज़ अदा करने के िलए बछाया जाने वाला कपड़ा), कताब क आलमार जसम अरबीउद ू क कताबे रखी हुइ थीं,

उस अफ़रा-तफ़र का माहौल म कसी क समझ म कुछ न आ रहा था क अब

या करना

होगा? मरहम को ू हज़रत जी क तीसर बीवी कुलसूम और उनके बड़े बेटे है दर ने रोते-रोते एक दसरे ू

दे खा, तो जैसे उ ह लगा क इस तरह रो-रोकर समय बरबाद करने से बेहतर है क कुछ ठोस फैसले कए जाएं। बाक लोग को रोता-कलपता छोड़ वे दसरे कमरे म आ गए। ू यह कुलसूम बीवी का कमरा था।

हज़रत जी क सबसे यार बीवी का कमरा...हज़रत जी ने वयं इस कमरे के रख-रखाव और सजावट म

िच ली थी। हज़रत जी क स दयानुभिू त का अ तीय नमूना !

ह के गुलाबी रं ग क द वार और उसी रं ग क तमाम चीज़। कोने पर “◌ा◌ाह पलंग। मोटे ग े । मखमली चादर और मुलायम गाव-त कये। कुलसूम बीवी पलंग पर बैठ गरइं् ।

है दर उनके सामने क़ालीन पर रखे मोढ़े पर बैठ गया। हज़रत जी क पहली बीवी का पु है दर, कुलसूम बीवी को यान से दे खने लगा। कुलसूम मा तीस बरस क कसे बदन वाली युवती थी। हज़रत जी से ववाह के पूव उसका नाम कुसुम था। कुसुम से कुलसूम बनने क भी एक कहानी है । मोटवानी के फैलाए जाल म कुसुम का तेली बाप फंस गया। कुसुम के बाप िगरधार गु ा क नगर म एक उजाड़ और बेरौनक सी सेठ िगरधार गु ा जब वयं दकान पर बैठता तो एक भी ु

दकान स भालतीं, तब कह ं जाकर ‘बोहनी-ब टा’ हो पाता। ु

कराने क दकान थी। ु

ाहक न आता। जब उसक बे टयां

कहने वाले कहते क िगरधार गु ा क दकान म हर साइज़ का माल िमलता है । ु पांच बे टयां, पांच साइज़...


िगरधार गु ा ने एक अदद बेटे क खोज म गु ाइन के साथ कइ योग कए। पांच बे टय के बाद उसे बीवी क खराब हो चुक ब चेदानी का आपरे षन करवाना पड़ा। बेटा एक भी न हआ। ु कुसुम मंझली बेट थी।

उससे बड़ एक बहन हाथ पीले न हो पाने के दख ु म आ मह या क थी। वभाव से चंचल कुसुम असमय मरना नह ं चाहती थी।

उसे ज दगी से यार था।

मोटवानी का टू डयो उसक दकान के सामने था। ु

लड़के वाल को दखाने के िलए वहां से उसके कइ फोटो खंचवाए गए थे।

मोटवानी खाली समय म अपने टू डयो से बैठा-बैठा कुसुम को लाइन मारा करता था। इस उ मीद से क “◌ा◌ायद कभी तो वह पघले, और कुसुम कौन सा प थर थी क न पघलती। मोटवानी ने कुसुम क सैकड़ त वीर विभ न मोहक मु ाओं म उतार ं। लड़के वाले कुसुम को पसंद कर भी लेते क तु दहे ज क मांग के आगे िगरधार गु ा घुटने टे क दे ते। एक दन मोटवानी ने िगरधार गु ा को बे टय के सुयो य वर के िलए सैयद “◌ा◌ाह बाबा क दरगाह पर जाकर म नत मांगने क सलाह द । फर तो िगरधार गु ा के प रवार का दरगाह-षर फ जाकर मुराद मांगने का िसलिसला ह बन गया। हज़रत जी तब अधेड़ थे। उनक दबंग काया पर आ या मकता का रं ग बेजोड़ था। जब से वह दरगाह “◌ार फ के सव-सवा बने उ ह अ छ िग़ज़ा भी िमलने लगी। गाल गुलाबी और आंख नषीली सी लगने लगी थी। दरगाह “◌ार फ म आने वाली म हलाएं उनके भ य य

व के

स मोहन का षकार होने लगी थीं। हज़रत जी क दो बी वयां थीं क तु अब उनम वह बात न थी। कुसुम हज़रत जी के जादइ ु य

व के जाल म कब कै़द हुइ उसे पता ह न चला।

मोटवानी से उसका च कर चल ह रहा था।

हज◌़् ◌ारत जी भी चाहते थे क कुसुम उनक अंकषायनी बने। और कुसुम ने वयं एक दन उ ह वह बहु ती

त अवसर उपल ध करा दया।

एक जुमेरात के दन जब वह मां के साथ मज़ार “◌ार फ पर नजराने-अक़ दत पेष करने आइ तब उसने हज़रत जी को अकेले म पाकर उनसे दरया त कया। हज़रत जी के हाथ म मोरपंख का झाड़ू था और वह उससे सैयद “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार क सफाइ म लीन थे।


उनके पास जाकर कुसुम ने कहा--’’ म आ मह या करना नह ं चाहती हज़रत जी..!’’ हज़रत जी ने आंखे झपकारइं् यानी क िच ड़या वयं जाल म आइ है ।

--’’ वग य द द क आ मा मुझे अपने पास बुलाती है और मुझे लगता है क म भी गले म दप ु टा बांध कर छत से झूल जाऊं। म या क ं बाबा...मुझे राह दखाइए ?’’

हज़रत जी ने कहा क तुम सैयद “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार क खदमतगार बन जाओ और यहां आने वाली खवातीन-ज़ायर न (

ालु म हलाओं) क खदमत करो।

कुसुम तैयार हो गइ। नगर म इसका वरोध हआ। ु

हं द ु ववाद संगठन ने जब एक ह द ू लड़क का यह अध: पतन दे खा तो वे हाफ पट और

धोितय से बाहर हए। ु

कुसुम ने कसी भी तरह मज़ार “◌ार फ से बाहर िनकलना वीकार न कया, तब हज़रत जी ने थित को स भाला। उ होने कुसुम से िनकाह क पेषकष क । इस तरह कुसुम उनक तीसर बीवी बनी। उसका नाम िनकाह के बाद कुलसूम हो गया। हज़रत जी का बड़ा बेटा है दर कुसुम के साथ ाइमर

कूल म पढ़ चुका था।

उसने बाप का थोड़ा वरोध कया क तु कुसुम से कुलसूम बनी कुसुम ने ज द ह उसे यह एहसाह करा दया क वह उसक छोट मां नह ं रहे गी ब क वह तो उसक कुसुम ह रहे गी। कुलसूम के मोटवानी से रागा मक स बंध पहले ह से थे। अब उसक सूची म दो और लोग

“◌ा◌ािमल हो गए। हज़रत जी और उनका बड़ा बेटा है दर... दरगाह कमेट के लोग सब जानते थे क तु हज़रत जी के आगे कसी क न चलती। हज़रत जी क असमय मृ यु से उ प न इस संकट म है दर जानता था क कुलसूम बीवी कोइ न कोइ आसान राह ज़ र िनकाल लेगी। कुलसूम बीवी के पलंग के बगल ितपाइ पर फोन रखा था। यह फोन ख◌़् ◌ा◌ास कुलसूम बीवी के िलए लगाया गया था। उससे िसफ वह बात कया करतीं।

घर म जो दसरा फोन था उसे अ य सद य इ तेमाल करते थे। ू

है दर फोन क तरफ दे ख रहा था जसका मतलब कुलसूम बीवी समझ गरइं् । कुलसूम बीवी ने त काल मोटवानी का न बर िमलाया।

कुलसूम बीवी क ग़म और है रत म डू बी आंख म है दर ने जाने

या पा िलया था क वह भूल

गया क उसके वािलद साहब इं तेकाल फ़रमा चुके ह। उनक मल-मू से िलपट लाष पैखाने म पड़ हुइ है । घर म तमाम लोग का रोना-कलपना चल रहा है । उसक अपनी मां और मंझली


मां का रोते-रोते बुरा हाल हो चुका है । अपने दजन भर भाइ-ब हन के साथ आज वह भी अनाथ हो गया है । वह सब भूल चुका हो जैसे ! है दर, कुलसूम बीवी के मोहपाष म बंधा हआ ु था।

वह कुलसूम बीवी को छोट मां कभी नह ं कहता था। कहता भी कैसे ?

“◌ा◌ायद उधर से मोटवानी क आवाज़ सुनाइ द हो तभी तो कुलसूम बीवी क आंख चमक ं। कुलसूम बीवी ने

आंसी आवाज़ म बताया--’’ हज◌़् ◌ारत जी नह ं रहे मोटवानी जी! आप तुरंत

चले आइए। हो सके तो चंद ू भाइ को भी लेते आइए। मेर तो कुछ समझ म नह ं आ रहा है क या क ं ?’’

उधर से कुछ कहा गया। कुलसूम ने कहा--’’ आप दौड़े चले आइए, और अपनी आंख से सब दे खए। म कुछ भी बता नह ं पाउं गी। मेरा दमाग काम नह ं कर रहा है मोटवानी जी।’’ और वह फोन पर ह रोने लगीं। कुलसूम बीवी ने फोन रख दया। है दर उठ कर पलंग पर कुलसूम बीवी क बगल म बैठ गया। कुलसूम बीवी ने रोते-रोते अपना िसर है दर के कंधे पर रख दया। है दर उनका बाल सहलाकर सां वना दे ने लगा। है दर को तिनक भी रोना नह ं आ रहा था। वह सोच रहा था क य द मोटवानी से पहले सैयद “◌ा◌ाह बाबा क दरगाह कमेट से जुड़े सुलेमान दज और अजीज कुरै षी को हज़रत जी के नापाक क हालत म मौत क भनक लग गइ तो ग़ज़ब हो जाएगा। हज़रत जी जैसे पाये के बुजग ु का िनधन और वह भी नापाक हालत और गलाज़त वाली जगह म? वह कुलसूम के कान म भुनभुनाया--’’स भािलये अपने आप को। चल कर बुढ़ऊ को पैखाने से बाहर िनकाल उ ह पाक-साफ करने का जुगाड़ कया जाए।’’ वे दोन उठ कर फर उसी कमरे म पहंु चे।

है दर ने अपने दो छोटे भाइय से कहा क वे बगीचे से ला टक वाली ल बी पाइप िनकाल ले आएं । उसी पाइप से हज़रत जी क लाष धोइ जाएगी। हजामत क दकान म बैठने वाले दोन भाइ पारइप ु ् लेकर आ गए। पाइप त काल बछाया गया।

तब तक मोटवानी और चंद ू भाइ भी आ गए।


हज़रत जी क ददषा दे ख मोटवानी ने ु

माल नाक पर लगा िलया और है दर से कहा क ज द

से लाष को धो प छ कर हज़रत जी के हजरे म िलटा दया जाए। ु पाइप से पानी का तेज ेषर दे कर लाष को धोया जाने लगा।

मोटवानी ने कुलसूम बीवी को इषारा कया और वे दोन कुलसूम बीवी के कमरे म चले गए। वहां जो भी बाते हुइ ह पता नह ं ले कन बाहर िनकल कर मोटवानी ज़ार-ज़ार रोने लगा।

रोते-रोते वह िसफ यह दहराता क हज़रत जी ने कल “◌ा◌ाम को ह अपने अंत यान होने का ु संकेत दे दया था। उ होन बताया था क वे आने वाले कसी भी व

पदा फरमा सकते ह।

हज़रत जी ने ये भी कहा था क उ ह सैयद “◌ा◌ाह बाबा क क के बगल म दफनाया जाए। है दर, मोटवानी क इस बेिसर-पैर क बात सुन च का तो कुलसूम बीबी ने झट इषारा कर दया क वह चुप रहे और दे खता जाए। जो होगा सब ठ क ह होगा। है दर क दे ख-रे ख म हज़रज जी क लाष धुल-पुंछ कर उनके हजरे म ले आइ गइ। ु अगरब ी और लोभान के धुंए के बीच लाष को कफ़न पहना दया गया। सुलेमान दज और अजीज कुरै षी ने हज़रत जी को फ

क नमाज़ म न पाया तो वे दोन सीधे

हज़रत जी क ख़ै रयत जानने हजरे क तरफ आए। ु

वहां उ होने दे खा क हज़रत जी क लाष रखी हुइ है और रोना-धोना मचा हआ ु है । मोटवानी, है दर और कुलसूम बीबी क ितकड़ दे ख उन दोन का माथा ठनका।

यानी क गै़र को खबर दे द गइ क तु िम लत को कुछ भी पता नह ं। ज़ र इसम कोइ चाल है । उ ह दे ख मोटवानी और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। --’’हाय हज़रत जी हम अनाथ कर गए...म आप क आ खर

वा हष ज़ र पूर क ं गा। सैयद

“◌ा◌ाह बाबा क क के बगल म आप को दफनाया ह जाएगा।’ सुलेमान दज और अजीज कुरै षी हज़रत जी क पहली बीबी यानी क है दर क मां से िमले। उन लोग ने रोते-रोते पूर घटना का योरा उ ह दया। यह भी बताया क पैखाने म हज़रत जी क मौत हुइ थी।

क सा सुन सुलम े ान दज दहाड़े --’’ इतनी बड़ बात हो गइ और हम खबर ह नह ं द गरइं् ।’’

‘‘हद हो गइ! या जनाजे क नमाज़ भी उन का फ़र से पढ़वाएंगे आप लोग ?’’ अजीज कुरै षी इसी तरह ज़हर उगला करते ह।

चंद ू भाइ से रहा न गया तो उसने कहा--’’अगर इतना ह आप लोग हज़रत जी के कर बी थे तो हज़रत जी ने पदा होने से पहले आप लोग को य नह ं वसीयत क ?’’ ितलिमला गए दोन , ले कन या करते ? बाजी पलट चुक थी। अब एक ह मसला बचा था क मोटवानी क वसीयत वाली बात को झूठा सा बत कया जाए।


वे दोन अड़ गए क ऐसा हो नह ं सकता । हज़रत जी को सैयद “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार “◌ार फ के पास दफनाना जायज़ नह ं । इससे सैयद “◌ा◌ाह बाबा के दरगाह क बेहु रमती होगी। ऐसे तो उनके बाद जतने भी ग नषीन ह गे उ ह भी दरगाह “◌ार फ के अ द नी ह से म दफनाना पड़े गा। मोटवानी रोए जा रहा था। उसक यह गुहार थी क मरहम ू हज़रत जी ने जो वसीयत क थी अगर उसका पालन न कया गया तो उनक

ह को चैन न िमलेगा।

मोटवानी क बात का कुलसूम बीबी और है दर समथन कर रहे थे। हज़रत जी के पदा फरमाने क खबर जंगल म आग क तरह चार तरफ फैल गइ। बड़ सं या म

ालु आने लगे।

हज़रत जी क लाष फूलमाला से ढं कने लगी।

मोटवानी ने अपना टू डयो बंद करवाकर तमाम चेल को वी डयो ाफ आ द यव था म लगा दया। कुलसूम बीबी, मोटवानी और चंद ू भाइ क ग़मगीन छ व के साथ हज़रत जी क लाष और ालुओं क अक दतमंद का

य कैमरे म कैद होने लगा।

हज़रत जी क मृ यु के इस नगद करण अिभयान को दे ख सुलम े ान दज , अजीज कुरै षी और तमाम मुसलमान भाइ ितलिमला रहे थे। वो कहां से फतवा लाते क साधारण इं सान को ज़बरद ती पहंु चा हआ ु सा बत करना गुनाह है । वे कैसे िस

करते क मोटवानी के

वाब क बात मनगढ़ं त ह। अगर मोटवानी का

मनगढ़ं त है तो फर हज़रत जी ने जस

वाब का ज

वाब

करके सैयद “◌ा◌ाह बाबा क दरगाह

का ोपेग डा कया था, वह या था ? बेषक, यह तो सच है क हज़रत जी को सैयद “◌ा◌ाह बाबा ने

वाब म अपना द दार कराया

था ले कन मोटवानी को हज़रत जी ने मरने से पूव वसीयत क थी यह बात कसी के गले न उतर रह थी। माहौल अब ऐसा बनता जा रहा था क मोटवानी क बात को झुठलाने से उ ह ं ल ग पर वहाबी होने का फतवा जार कया जा सकता था। वहाबी यानी मज़ार और दरगाह पर

ा न रखने वाले मुसलमान, वहाबी यानी क पैग बर

और औिलया अ लाह पर द दो-सलाम न भेजने वाले मुसलमान, वहाबी यानी क बरादर से बाहर कर दए जाने का डर... सुलेमान दज और अजीज कुरै षी बड ◌े कषमकष म फंस चुके थे । उ हे लगने लगा अब मोटवानी क वसीयत वाली

योर का समथन करने म ह भलाइ है

वरना वहाबी होने का फतवा उ ह झेलना पड़ सकता है ।


और इस तरह सैयद “◌ा◌ाह बाबा क दरगाह “◌ार फ म दो-द क बन गरइं् । कुंजड़-कसाइ ‘‘कुंजड़-कसाइय को तमीज़ कहां....तमीज़ का ठे का तो तु हारे सैयद ने जो ले र खा है ?’ मुह मद लतीफ़ कुरै षी उफ एम एल कुरै षी बहत ु कम बोला करते। कभी बोलते भी तो कफ़न फाड़कर बोलते। ऐसे क सामने वाला खून के घूंट पीकर रह जाए।

जुलेख◌़् ◌ा◌ा ने घूर कर उ ह दे खा। हर कड़वी बात उगलने से पहले उसके “◌ा◌ौहर लतीफ

साहब का चेहरा तन जाता है । क या आनंद का कोइ भाव नज़र नह ं आता। आंख फैल जाती ह और जुलेख़ा अपने िलए ढाल तलाषने लग जाती है । वह जान जाती क िमयां क जली-कट बात के तीर छूटने वाले ह। मुह मद लतीफ़ कुरै षी साहब का चेहरा अब “◌ा◌ा◌ंत था। इसका सीधा मतलब ये था क तीर चलाकर, ित ं द को घायल करके वह मुतमइन हो गए ह। जुलेख़ा बीवी िचढ़ गरइं् --’’सैयद को काहे बीच म घसीट रहे ह, हमारे यहां ज़ात- बरादर पर यक़ न नह ं कया जाता।’’

लतीफ़ कुरै षी ने अगला तीर िनषाने पर फका--’’जब जात-पात पर यक़ न नह ं तो तु हारे अ बू-अ मी अपने इकलौते बेटे के िलए बहू खोजने के िलए अपनी बरादर म बहार य

भागे फर रहे ह? या इधर क लड़ कयां बेषऊर होती ह या इधर क लड़ कय का ह ड -खूनतहज़ीब बदल गया है ?’’ जुलेख़ा सफाइ दे ने लगी--’’वो बहार से बहू काहे लाएंगे, जब पता ह है आपको, तो काहे ताना

मारते ह। अरे .....म मा, न ना और च चा लोग का दबाव भी तो है क बहू बहार से ले जाना है ।’’

‘‘वाह भइ वाह, खूब कह । लड़का याहना है तो म मा, च चा का दबाव पड़ रहा है , “◌ा◌ाद ख़ानदान म करनी है । अगर लड़क क “◌ा◌ाद िनपटानी हो तो नौकर वाला लड़का खोजो। ज़ात चाहे जुलहा हो या कुंजड़-कसाइ। जो हो सब चलेगा। वाह भइ वाह.....मान गए सैयद का लोहा!’’ जुलेख़ा िन:ष

हो गइ।

ी-सुलभ

उसके पास चुर मा ा म है , जसे ‘अ -ु षा ‘ भी

कहा जाता है । मद इन आंसुओं से घबरा जाते ह। लतीफ़ कुरै षी भी अपवाद न थे। जुलेख़ा के इस

से वह घबराए। सोचा हार कुछ यादा ह सख◌़् त हआ ु लगता है । मामला रफ़ा-

दफ़ा करने के िलहाज से उ ह ने कुछ सू वा य बुदबुदाए--’’बात तु ह ं छे ड़ती हो और हार कर रोने लग जाती हो। तु ह यह या कहने क ज़ रत थी क इधर एमपी-छ ीसगढ़ क


लड़ कयां, बेच-खाने वाली होती ह। कंगाल बना दे ती ह। तु हारा भाइ कंगाल हो जाएगा। माना क तु हारे निनहाल-द दहाल का दबाव है , जसके तहत तुम लोग को यह “◌ा◌ाद अपने ह खानदान म करनी पड़ रह है । बड़ मामूली बात ठहर । चलो चाय बना लाओ ज द से..!’’ जुलेखा ने आंसू पीकर हिथयार डाल दए--’’हर मां-बाप के मन म ख◌़् वा हष रहती है क उनक लड़क जहां जाए, राज करे । इसके िलए कैसा भी समझौता हो करना ह पड़ता है ।’’ ‘‘समझौता!’’ लतीफ एक-एक लफ◌़ ् ज़ चबा कर बोले। बात पुन: तन गइ।

‘‘वह तो......वह तो म कह रहा हंू क समझौता करना पड़ता है । और जानती हो, समझौता

मजबूर म कया जाता है । जब इं सान अपनी कु़ वत-ताक़त से मजबूर होता है तो समझौता करता है । जैस.े ...!’’ जुलेख़ा समझ गइ। कड़ु आहट क आग अभी और भड़केगी। ‘‘हमारा र ता भी इसी नामुराद ‘समझौते’ क नींव पर टका है । एक तरफ बक म स वस करता कमाऊ कुंजड़-कसाइ बरादर का दामाद, दसर तरफ ख़ानदान और ह ड -खू़न-नाक का ू सवाल। मामला लड़क का था, पराए धन का था इसिलए कमाऊ दामाद के िलए तु हारे घर वाल ने खानदान के नाम क कुबानी दे ह द ।’’ जुलेख़ा रो पड़ और कचन क तरफ चली गइ। मुह मद लतीफ़ कुरै षी साहब बत क आराम कुस पर िनढाल पसर गए। उ ह दे ख कर ऐसा लग रहा था, जैसे जंग जीत कर आए ह और थकावट दरू कर रहे ह । सैयद वंषीय प ी जुलेख़ा को दख ु पहंु चा कर इसी तरह का ‘ रले स’ अनुभव कया करते ह वो। इकलौते साले साहब क “◌ा◌ाद क ख़बर पाकर इतना ‘ ामा’ खेलना उ ह मुनािसब लगा था।

जुलेख़ा के छोटे भाइ जावेद के िलए उनके अपने र तेदार ने भी मंसूबे बांधे थे। इकलौता लड़का, लाख क ज़मीन-जायदाद। जावेद के िलए लतीफ़ के चाचा ने यास कया था। लतीफ़ के चाचा, “◌ाहडोल म सब-इं पे टरह तथा वह ं गांव म काफ जगह-जमीन बना चुके ह। एक लड़क और एक लड़का। कुल दो संतान। चाचा चाहते थे क लड़क क “◌ा◌ाद यथास भव अ छ जगह कर। लड़क भी उनक गुणी ठहर । बी एस सी तक तालीम। नेक सीरत, भली सूरत, फने-ख़ानादार , सौमो-सलात क पाबंद, ल बी, छरहर , पाक़ ज़ा और यूट षयन का कोस क हुइ लड़क के िलए चाचा ने कइ च कर जुलख़ े ा के अ बू सैयद अ दल ु स ार के घर

काट चुके थे। हर बार यह जवाब िमलता क लड़के का अभी “◌ा◌ाद का कोइ इरादा नह ं है ।


एक बार मुह मद लतीफ़ कुरै षी साहब, जब अपनी ससुराल म थे तब अपने कान से उ ह ने सुना था--’’ये साले कुंजड़-कसाइ या समझ बैठे ह हम? लड़क

या द , इज◌़् ज़द भी दे द

या?’’ ऊंगली पकड़ाइ तो लगे पहंु चा पकड़ने। भला इन दिल र क लड़क हमार बहू बनेगी?

हद हो गइ भइ।’’

ये बात जुलेख़ा के मामा कह रहे थे। लतीफ़ साहब उस व

बेड म म लेटे थे। लोग ने समझा

क सो गए ह वो, इसिलए ऊंची आवाज़ म बहस कर रहे थे। जुलेख़ा के अ बू ने मामा को डांट कर चुप कराया था। लतीफ़ अपमान का घूंट पीकर रह गए। तभी तो उस बात का बदला वह उस ख़ानदान क बेट , यानी उनक प ी जुलेख़ा से लेना चाह रहे थे। ले-दे कर आज तवा गरमाया तो कर बैठे हार! जुलेख़ा को दख ु पहंु चाकर, भारतीय इ लामी समाज म या ऊंच-नीच क बुराइ पर कुठाराघात करने का उनका यह यास

कतना ओछा, कतना “◌ामनाक था, इससे या मतलब? उनका उ े य था क जैसे उनका दल दखा का दख ु , वैसे ह कसी और का दखे ु । दसरे ू ु उनके अपने दख ु के िलए मलहम बन

गया था।

जुलेख़ा क िसस कयां कचन के पद को चीरकर बाहर िनकल रह थीं। बेटा-बेट “◌ा◌ॉ पंग के िलए सुपर-माकट गए हए ु थे। घर म “◌ा◌ा त बखर हुइ थी। इसी “◌ा◌ा त को भंग करती िसस कयां लतीफ़ साहब के थके ज म के िलए लोर बनी जा रह थीं।

मुह मद लतीफ़ कुरै षी साहब को यूं महसूस हो रहा था, जैसे सैयद , “◌ोख़ क तमाम गदन अकड़ू जाितयां रो रह ह , प चाताप कर रह ह । अरे ! उ ह भी कषोर वय तक कह ं पता चल पाया था क वे कसाइय के ख़ानदान से ता लुक रखते ह। वे तो बस इतना जानते थे क ‘एक ह सफ़ म खड़े महमूदो-अयाज़’ वाला दिनया का ु एकमा मज़हब है इ लाम। एक नइ सामा जक यव था है इ लाम। जहां ऊंच-नीच, गोराकाला,

ी-पु ष, छोटा-बड़ा, जात-पात का कोइ झमेला नह ं है । कहां महमूद जैसा बादषाहे -

वक◌़ ् त, और कहां अयाज़ जैसा मामूली िसपाह , क तु नमाज़ के समय एक ह सफ़ म खड़ा कया तो िसफ इ लाम ह ने दोन को।

उनके ख़ानदान म कोइ भी कसाइय का ध धा नह ं करता। सभी सरकार मुलाज़मत म ह। सरगुजा के अलावा बाहर र तेदार से लतीफ़ के वािलद साहब ने कोइ स बंध नह ं रखा था। लतीफ़ के वािलद का एक ह

येय था, तालीम हािसल करो। कसी भी तरह इ म हािसल करो।

सो लतीफ़ इ म हािसल करते-करते बक म अिधकार बन गए। उनके वािलद साहब भी सरकार मुला ज़म थे, रटायरमट के बाद भी वे अपने ख़ानदानी र तेदार से कटे ह रहे ।


लतीफ़, लास के अ य कुरै षी लड़क से कोइ स बंध नह ं बना पाए थे। ये कुरै षी लड़के पछली बच म बैठने वाले ब चे थे, जनके दकान से गो त खर दने कभी-कभी वह भी जाया करते ु थे। लगभग सभी कुरै षी सहपाठ िम डल कूल क पढ़ाइ के बाद आगे न पढ़ पाए।

तब उ ह कहां पता था क कुरै षी एक जाितसूचक पुछ ला है , जो उनके नाम के साथ उनक सामा जक है िसयत को ज़ा हर करता है । वे तो वाज़-मीलाद वगैरा म बैठते तो यह सुनते क पैग बर साहब का ता लुक अरब के कुरै ष क़बीले से था। उनका बालमन यह ग णत लगाया करता था क वह कुरै षी खानदान के लोग काला तर म जब ह द ु तान आए ह गे तो उ ह

कुरै षी कहा जाता होगा। ठ क उसी तरह जैसे पड़ोस के ह द ू घर क बहओं ु को उनके नाम से नह ं ब क उनके गृहनगर के नाम से स बोिधत कया जाता है । जैसे क बलासपुर हन, रायपुर हन, सरगुज हन, कोतमावाली, पे डरावाली, कटन हन आ द। कुछ बड़े यवसाियक मु लम घरान के लोग नाम के साथ इराक “◌ा द जोड़ते, जसका अथ लतीफ़ ने यह लगाया क हो न हो इन मुसलमान का स बंध इराक के मुसलमान से ह कुछ मुसलमान ख़ान, अ सार , छ पा, रज़ा इ या द उपनाम से अपना नाम सजाया करत बचपन म अपने नाम के साथ लगे कुरै षी उपनाम को सुनकर वह स न हआ ु करते। उ ह अ छा लगता क उनका नाम भी उनके ज म क तरह पूण है । कह ं कोइ ऐब नह ं। कतना अधूरा लगता

य द उनका नाम िसफ मुह मद लतीफ़ होता। जैसे बना दम ु का कु ा, जैसे बना टांग का आदमी, जैसे बना सूंड का हाथी।

बचपन म जब भी कोइ उनसे उनका नाम पूछता तो वह इतराकर बताया करते-’’जी मेरा नाम मुह मद लतीफ़ कुरै षी है ।’’ यह कुरै षी लफ◌़ जब उनक बक ् ज़ का पुछ ला उनके ववाह का सबसे बड़ा “◌ा ु सा बत हआ। ु म नौकर लगी तो कसाइ-िचकवा घरान से धड़ाधड़ र ते आने लगे। अ छे पैसे वाले, “◌ा◌ानषौकत वाले, हज कर आए कुरै षी ख़ानदान से र ते ह र ते। लतीफ के अ बू उन लोग म अपना लड़का दे ना नह ं चाहते थे य क तमाम धन-लोलुप, धना य कुरै षी लोग, सं कार, ष ा के मामले म “◌ा◌ू य थे। पैसे से मा ित आ सकती है सलीका नह ं। इस बीच “◌ाहडोल के एक उजाड़ सैयद वंषीय मु लम प रवार से लतीफ़ साहब के िलए पैगाम आया। उजाड़ इन अथ म क यूपी- बहार से आकर म य दे ष के इस बघेलख ड म आ बसे जुलेख़ा के पता कसी ज़माने म अ छे खाते-पीते ठे केदार हआ ु करते थे। आज़ाद से पूव और

उसके बाद क एक-दो पंचव ◌ा◌ीय योजनाओं तक जुलख़ े ा के पता और दादा वगैरा क जंगल ् क ठे केदार हआ ु करती थी। जंगल मे ◌ंपेड़ काटने क

ित पधा चलती। सरकार मुला जम

और ठे केदार मजदरू म होड़ मची रहती। कौन कतने पेड़ काट िगराता है । क लक ड़यां

अंतरा यीय मगिलंग के ज रए इधर-उधर क जातीं। खूब चटक थी उन दन । उसी कमाइ से “◌ाहडोल के दय-स◌ाि◌ल पर पहली तीन मं जली इमारत खड़ हुइ जसका नामकरण हआ ् ु


था ‘सैयदाना’। ये इमारत जुलेख◌़् ◌ा◌ा के दादा क थी। आज तो कइ गगनचु बी इमारत ह क तु उस ज़माने म जुलेखा का पैतक ृ मकान िस

हआ ु करता था। आस-पास के लोग उस

इमारत ‘सैयदाना’ का इ तेमाल अपने घर के पते के साथ कया करते थे। ादे षक तर क राजनीित म भी स

थानीय और

यता थी इस भवन क । फर यहां मारवाड़ आए,

िस ख आए, ित पधा बढ़ । मुनाफ़ा कइ हाथ म बंटा। जुलेख़ा के खानदान वाल क मोनोपोली समा हुइ। कुकुरमु

क तरह नगर म भ य इमारत तनने लगीं।

जुलेख़ा के अ बू यानी सैयद अ दल ु स ार या यूं कह क हाजी सैयद अ दल ु स ार साहब क गित का

ाफ़ अचानक भरभराकर नीचे िगरने लगा। जंगलात के ठे केदार म मा फया आ

गया। धन-बल और बाहबल दोन क ज़ोर-आज़माइष हरइं ु ु ् । हाजी साहब लकवा चाचाओं और चचेरे भाइय म दादा क स प

त हए। ु

को लेकर ववाद हए। ु झूठ “◌ा◌ान को बरकरार

रखने म हाजी अ दल हुइ। बोलते तो वर ु स ार साहब का जमा धन खच होने लगा। दे ह दबल ु लड़खड़ा जाता। यापार क नइ तकनीक आ जाने से, पुरानी यापा रक प ित वाले यवसाइय का अमूमन जो ह

होता है , वह हाजी साहब का हआ। ु

डू बती क ती म अब जुलेख़ा थी, उसक एक छोट ब हन थी और एक कषोरवय भाइ। बड़ बहन का ववाह हआ ु तो सैयद म ह ले कन पाट मालदार न थी। दामाद थोक कपड़े का यवसायी था और वधुर था। जुलेख़ा क बड़ बहन वहां काफ खुष थी। जुलेख़ा जब

राजनीितषा

म एम.ए. कर चुक तो पता हाजी साहब िच तत हए। ु खानदान म यादा

पढ़ -िलखी लड़क क उतनी डमा ड न थी। लड़के यादातर यवसायी थे। जुलेखा को याहना िनहायत ज़ र था, य क छोट लड़क कम न भी तैयार हुइ जा रह थी। तैयार या वह तो जुलेखा से भी यादा भरे बदन क थी। दो साल का अंतर मा था उनक उ लड़ कय का बोझ हाजी साहब क लकवा

म। दो-दो जवान

त दे ह बदा त नह ं कर पा रह थी।

उनके एक िम हआ ु करते थे अगरवाल साहब। जो क फॉरे ट वभाग के मुला जम थे। हाजी साहब के याह-सफेद के राज़दार! उ ह ं अगरवाल साहब ने सुदरू सरगुजा म एक बेहतर न

र ता सुझाया। हाजी साहब उन पर बगड़े । ज़मीन पर थूकते हए ु कहा--’’लानत है आप पर,

अगरवाल साहे ब कुंजड़-कसाइय को लड़क थोड़े ह दं ग ू ा। घास खा कर जी लूंगा। ले कन खुदा ऐसा दन दखाने से पहले उठा ले तो बेहतर.....’’ कुछ

ककर कहा था उ ह ने--’’अरे भाइ, सैयद म या लड़क क महामार हो गइ है ?’’

अगरवाल साहब बात स हालने लगे--’’म ये कब कह रहा हंू क आप अपनी लड़क क “◌ा◌ाद वह ं क रए। हां, थोड़ा ठ डे दमाग से सोिचए। म उन लोग को अ छ तरह जानता हंू । पढ़ािलखा, सं का रत घराना है । लड़का बक म अिधकार है । कल को आला-अफ़सर बनेगा। महानगर म रहे गा।’’


अगरवाल साहब टे प- रकाडर क तरह ववरण उगलने लगे। उ ह हाजी साहब नामक इमारत क जजर द वार, छत और हलती नींव का हाल मालूम था। वह अ छ तरह जानते थे क ववाह यो य बे टय के ववाह क िच ता म हाजी साहब अिन ा के रोगी भी हए ु जा रहे ह।

एका त य एवं आिथक मार ने उ ह इस समय वृ कर दया था। उनका इलाज चल रहा था। एलोपैथी, होिमयोपैथी, झाड़-फूंक, ग डा-तावीज़, पीर-फ़क र और हज- ज़यारत जैसे नु खे आजमाए जा चुके थे। मज अपनी जगह और मर ज़ अपनी जगह। घट रहा था तो िसफ जमा कया धन और बढ़ रह थीं िच ताएं। एक दो रोज़ के बाद अगरवालसाहब क बात पर हाजी साहब गौरो- फ़

करने लगे। हाजी

साहब क चंद “◌ातेर◌ं ् थीं, जो र सी के जल जाने के बाद बची ऐंठन क तरह थीं। डन “◌ात मे अ वल तो यह क “◌ा◌ाद के िनमं ण-प

म वर-वधु प

का उपनाम िलखाह

न जाए। न तो हाजी सैयद अ दल ु स ार अपने नाम के आगे सैयद लगाएं और न ह लड़◌़के वाले अपना ‘कुरै षी’ टाइ टल ज़माने के आगे ज़ा हर कर। “◌ा◌ाद ‘षरइ’ रवाज़ से हो। कोइ

ताम-झाम, बै ड-बाजा नह । दस-बारह बराती आएं। दन म ववाह हो, दोपहर म खाना और

“◌ा◌ाम होते तक ख़सती। एक और ख़ास “◌ात यह थी क िनकाह के अवसर पर कतना ह लोग पूछ, कसी से भी कुरै षी होने क बात न बताइ जाए। लतीफ़ और उसके पता को ये तमाम “◌ात अपमानजनक लगीं ले कन आला दज के खानदान क तालीमयाफ◌़ ् ता नेक-सीरत लड़क के िलए उन लोग ने अंतत: ये अपमान-जनक समझौता वीकार कर िलया। अगरवाल साहब के बहनोइ सरगुजा म थे और लतीफ के पता से उनका

घिन संबंध था। उनका भी दबाव उ ह मजबूर कर रहा था। हआ ु वह जो जुलेखा के वािलद साहब क पस द था। लड़के वाले, लड़क वाल क तरह याहने आए। इस तरह सैयद क लड़क , कुंजड़-कसाइय के घर याह गइ।

एक दन जुलेख़ा के एक र तेदार बक म कसी काम से आए। लतीफ़ साहब को पहचाना उ ह ने। के बन के बाहर उनके नाम क तख◌़् ती पर साफ-साफ िलखा था-’’एम. एल. कुरै षी,

“◌ा◌ाखा बंधक’’

लतीफ़ साहब ने आग तुक र तेदार को बैठने का इषारा कया। घ ट मार कर चपरासी को चाय लाने का हु म दया।

आगंतुम िन संदेह धनी मानी य

थे तथा फायनस के िसलिसले म बक आए थे।

लतीफ़ साहब ने सवािलया नज़र से उ ह दे खा। वे हड़बड़ाए। गला खंखारकर पूछा--’’आप हाजी सैयद अ दल ु स ार साहब के दामाद हए ु न?’’ ‘‘हां, क हए।’’ लतीफ साहब का माथा ठनका। सैयद “◌ा द के अित र

ज़ोर दए जाने को भली-भांित समझ रहे थे वह।


‘‘हां, म उनका र तेदार हंू । पहले गुजरात म सेटल था, आजकर इधर ह क मत आजमाना चाह रहा हंू । आपको िनकाह के व

दे खा था। नेम- लेट दे ख कर घबराया, क तु आपके बड़े

बाबू ितवार ने बताया क आपक “◌ा◌ाद “◌ाहडोल के हाजी साहब के यहां हुइ तो मुतमइन हआ। ’’ आग तुक सफाइ दे रहा था। ु

फर दांत िनपोरते हए ु आग तुक ने कहा--’’आप तो अपने ह हए ु !’’

आग तुक के वर म आदर, आ मीयता और नाटक यता का समावेष था। मुह मद लतीफ़ कुरै षी साहब का सारा वजूद

इ क तरह जलने लगा। पलक झपकते ह राख

का ढे र बन जाते क इससे पूव वयं को स भाला और आगंतुक का काम आसान कर दया। एम. एल. लतीफ़ साहब को अ छ तरह पता था क मुह मद लतीफ कुरै षी के बदन को दफ़नाया है क तु तो जा सकता उनके नाम के साथ लगे ‘कुरै षी’ को वह क़तइ नह ं दफ़ना सकते ह।

फ ◌ो ् भाइ

चार तरफ एक ह चचा। फ ◌ो कलमा पढ़कर इ लाम म ् भाइ का फ़र हो गए। उ ह दबारा ु दा ख़ल होना होगा।

फ ◌ो ् भाइ जात के सारइं् थे। सारइं् यानी फ़क र बरादर ।

मुहरम क रं ग- बरं गी ता जया और फ ◌ो का पयाय थे। उ ह ने उम रया, ् भाइ एक दसरे ू

चं दया, जबलपुर क दे खा-दे खी इस नगर म भी ता जया क श आत क । पहला ता जया अनाकषक, बेडौल बना ले कन इसी के साथ श

हुइ थी, मु लम समुदाय म एक सै ा तक

लड़ाइ। मुसलमान के दो गुट थे। एक वयं को दे वबंद कहता और असल सु नी मुसलमान बतलाता था। दसरा तबका बरे लवी कहलाता। ये भी वयं को असल सु नी मुसलमान कहते ू तथा दे वबंद लोग को ‘वहाबी’ कहा करते थे। दे वबंद लोग का स बंध इ लाम के मूल-

त वदषन, पैग बर क जीवन प ित का अनुकरण तथा त लीग़ जमात ारा धम- चार से था। ये लोग इ लाम क मूल अवधारणाओं म र ी भर भी फेरबदल नह ं चाहते थे।


दसर तरफ बरे लवी लोग हए ू ु , जहां इ लामी दषन क एक नइ या या क गइ। जसम अ लाह को पाने के िलए ‘िसलिसले’ का फलसफा आया। यानी औिलया-पीर के माफत

पैग बर तक पहंु चना और उसके बाद अ लाह तक पहंु चना। इसका भाव सूफ मत के प म नज़र आया। कमका ड बढ़े । मज़ार-खानकाह क नातादाद वृ आ था बढ़ ।

हरइं ु ् । चम कार पर लोग क

फ ◌ो ् भाइ बचपन से जुमा क नमाज़ और इद-बकर द क नमाज़ ह पढ़ा करते थे। कुछ

समझदार हए ु तो एक नमाज़ म और इज़ाफ़ा कर िलया, वो थी ‘जनाजे क नमाज़’। ये सभी

नमाजे वे दे वबंद पेष इमाम के पीछे पढ़ा करते थे। चंदा, सदका, ज़कात वगैरा भी दे वबं दय क म जद म दया करते थे। जब ता जया बना कर उसका दषन कर चुके तब दे वबंद म जद क कमेट के सदर साहब का फ़तवा उन तक पहंु चा---’’इ लाम म बुतपर ती हराम है । ता जया बुत-पर ती का एक

प है ।’’

फ ◌ो ् भाइ के क़र बी दो त अहबाब जबबार तांगेवाला, “◌ार फ़ भाइ गैराज वाले, क

तान

का चौक दार सु तान आ द ने इस फ़तवे का वरोध कय--’’ये सब वहा बय क बात ह। बहार, यूपी और पूरे ह द ु तान म ता जया िनकलता है , मातम-मिसया होता है । ये तो द न-

मजहब का काम है फ ◌ो ् भाइ!’’

“◌ार फ भाइ ने नारा दया--’’इ लाम ज़ दा होता है हर इक कबला के बाद!’’

ु सु तान ने टकड़ा जोड़ा--’’ये दे वबंद सब यज़ीद के र तेदार होते ह और हमारे नबी के नवास के ह यारे ह।’’ फ ◌ो ् भाइ को राहत िमली। फ ◌ो ् भाइ अनपढ़ थे।

इ लामी इितहास क उनक उतनी ह जानकार थी, जतनी मौलवी-वाइज़ बताया करते। मुहरम के बारे म इतना ह जानते थे क एक खलनायक यज़ीद था। समथ द ु “◌ा◌ासक।

उसने हज़रत इमाम हसन और हसै ु न समेत िगनती के इमानवाल को यास-भूख से तड़पातड़पा कर तलवार के घाट उतारा था। यह अंितम यु

कबला के मैदान म हआ। ददनाक ु

हादसा। उसी कबला क याद म, नगर के बाहर बै रयर के पास बड़ा सा तालाब है , उसे कबला का नाम दे दया गया है । उसी तालाब म दसवीं मुहरम को ता जया िसराइ जाती है । फ ◌ो ् भाइ के सहय िगय म षया मुसलमान, टाच मेकेिनक “◌ा बीर भाइ और बलदे व

पनवाड़ भी थे। इन सभी का योगदान िमलता और ता जया िनमाण का काम हष लास से स प न होता। फ ◌ो ् भाइ गांजा पीने के “◌ा◌ौक न थे। उनक िम -म डली भी यह “◌ा◌ौक कया करती क तु मुहरम के दस दन वे लोग गांजा से परहे ज़ करते। पुरानी ता जया क

लकड़ का ढांचा साल भर सुर

त रखा जाता। मुहरम से पूव उस ढांचे को रपेयर कर, उस पर

कागज़ क नइ परत चढ़ाइ जाती। सलमा-िसतारे , कांच और रं ग बरं गी चमकदार प नय से ता जया जब बन कर तैयार होता तो लोग ‘वाह!’ कर उठते।


इस ट म को दे खकर ऐसा तीत होता जेसे मुहरम के दस दन के िलए ह ये लोग धरती पर आए ह । सारा नगर ढोल-ताषे क आवाज़ से गूंज ता। ‘‘त कड़ त कड़, त कड़ त कड़, िध मक त कड़, िध मक त कड़!’’ ब चे-बूढ़े आ जुटते। ताषा-ढोल बजाने क होड़ लग जाती। ताषे चार-पांच और एक ढोल। भार भरकम ढोल। अमूमन तेल- ीस के म को आधा काट कर उसके दोन तरफ चमड़ा मढ़ कर ढोल बनाया जाता। इसे मज़बूत जवान युवक गरदन पर टांग लेते । फर छाती और पेट पर टके ढोल को ‘मारतुल’ से मार-मार कर बजाया करते। ढम.....ढम। ताषे िमटट के बने होते। इ ह जमीन पर बैठकर या खड़े -खड़े गरदन से लटकाकर लकड़ क पतली खप चय से बजाया जाता। ‘‘त कड़ त कड़।’’ मुहरम के दन म ढोल-ताषा क आवाज़ सुन फ ◌ो ् भाइ को जबलपुर, उम रया म बीता

अपना बचपन याद आ जाता। जब उनक दाद मां ढोल-ताषे क गूंज का “◌ा◌ा दक जामा पहनाया करतीं --’’संयक स कर....संयक स कर...दध ू मिल ा........दध ू मिल ा। त कड़-त कड़, त कड-त कड,◌़ िध मक त कड़..िध मक त कड़।’’

मुहरम क ख़ास “◌ा◌ीरनी दध ू -मलीदा ◌ुआ करती है । रोट को चूरा करके उसम “◌ा कर िमला कर मलीदा बनाया जाता। यह भी एक ऐसी पर परा थी, जसका हवाला इ लामी इितहास-

कमका ड म कह ं नह ं िमलता। चावल और चने क दाल का खचड़ा भी बनता। नगर के बड़े बड़े सेठ-महाजन और समथ मु लम

ालु एक एक मन अनाज का खचड़ा बनवा कर

ता जया के साथ घूमते मजमे म बंटवाया करते। जगह-जगह “◌ाबत बांट जाती। आस-पास क कोयला खदान म बसे मु लम-गैरमु लम लोग नगर म ता जया-दषन को आते। लाठ भांजने वाल और तलवार बाजी के मा हर लोग को अपनी कला के सावजिनक दषन का अवसर िमलता। बेपदा औरत -लड़ कय का रे ला इस ता जया के आगे-पीछे रहता। गैर मु लम भी ता जया का आदर करते। कइ मारवाड़ औरत म नत क ता जया बनवाया करतीं। अपने घर के आगे रे वड़ क फाितहा करवा कर साद

हण करतीं। काले कपड़े म सजे फ ◌ो ् भाइ,

“◌ा◌ीरनी को अपने हाथ म लेते। कुछ बुदबुदाते। उस पर फूंक मार कर “◌ा◌ीरनी का थोड़ा

ह सा ता जया के नीचे बांधी गइ चादर म डालते जाते। हजार बार फाितहा पढ़ना पड़ता उ ह। ता जया पांच-दस क़दम बाद

क जाता। लोग “◌ा◌ीरनी लेकर ठे लते-ठालते उन तक पहंु चने

का उप म कया करते। औरत और ब चे ता जया के नीचे से पार होकर अपने आप को ध य करते। मुहरम के ह रो हआ ् भारइं् । ु करते थे फ ◌ो

अंधेरा िघरने के पहले फ ◌ो ् भाइ पर सवार आने का ल ण दखने लगता। उनका िसर अपने आप हलने लगता। ता जया के सामने मातम करने वाले लड़के ताव म आते। फ ◌ो ् भाइ का पैर कांपने लगता। ज म लहराने लगता। “◌ा बीर, ज बार, जमालू, “◌ार फ, बलदे व इ या द समझ जाते। मिसया गाने वाल को अपना “◌ा◌ानदार कलाम पढ़ने का हु म दया जाता।


ढोल-ताष पर अनुभवी हाथ आ वराजते। माहौल सद हो जाता जब फ ◌ो ् भाइ क पागलपन से लबरे ज़ आवाज गूंजती--’’नाराए तक़बीर!’’

लोग जोष के साथ जवाब दे त-े -’’अ लाहो अकबर!’’ उसके बाद श

होता खूंखार मातम। फ ◌ो ् भाइ उं गिलय के बीच ‘ लेड’ फंसा लेते। मिसया-

ख◌़् वानी के साथ मातम श होता। ‘‘या ली मौ ला’’ ‘‘है दर मौला’’ ठस नारे के साथ बायां-दायां हाथ छाती पर जोर-जोर से बजने लगता एक र

के साथ।

‘‘याली मौला, है दर मौला’’ छाती पर हथेिलय क मार बढ़ती जाती। फ ◌ो ् भाइ रोते-कलपते मातम करते। ‘‘या हु सैन...या हु सैन!’’

ढोल-ताषा मातिमय का हौसला बढ़ाता। त कड़-त कड़, त कड-त कड,◌़ िध मक त कड़..िध मक त कड़।’’ कइ और लोग मातम करने कूद पड़ते। नगर का चौराहा मातम क गूंज से गमगीन हो जाता। मातम का दल दहलाने वाला दौर परवाज़ चढ़ता। फ ◌ो ् भाइ हाल क हालत म चीखते-’’या हसन’’ और छाती पर हाथ मारते। अ य मातमी जवाब दे त-े -’’या हु सैन!’’ और दसरा हाथ ू

छाती पर मारते। धीरे -धीरे ‘या हसन’ ‘या हसै ु न’ क लय बढ़ती जाती और कुछ दे र बाद छाती पर हाथ मारने क हु सै’।

या ती हो जाती और लोग को सुनाइ दे ता --’’ह सा-हु सै’ ‘ह सा-

फ ◌ो ् भाइ पागल से हो जाते। उनक आवाज़ फट जाती। उनक छाती लहलु ू हान हो जाती।

कइ छाितयां खून से लाल हो जातीं। ता जया के संग चलने वाली सैकड़ औरत-लड़ कयां दहाड़ मार-मार कर रोने लगतीं। वे भी मातम करतीं सारा माहौल गमगीन हो जाता। फ ◌ो ् भाइ क

आवाज़ अ त कर बैठ जाती। वे मातम करते कुछ भी कहना चाहते तो एक अजीब सी आवाज़ के साथ हवा बाहर िनकलती। मुहरम के बाद चालीसवां तक उनक आवाज़ बेसुर रहती।

फ ◌ो ् भाइ का फर हो गए। एक ह चचा चार तरफ।

उ ह कलमा पढ़कर मुसलमान होना होगा और दबारा िनकाह पढ़ाना होगा। ु


फ ◌ो ् भाइ पेषे से र ा-साइ कल िम ी थे। चार-पांच साइ कल और एक र ा कराए पर

चलता। नगरपािलका भवन के सामने एक गुमट पर उनक दकान सजती। चेला-चपाट न ु रखते। पं चर बनाने से लेकर रपेयर का काम वयं करते। काम के व

पैजामा ऊपर ख स

कर उठा िलया करते। सुबह सात बजे घर से िनकलते। झाड़ू िनकाल कर पहले दकान का ु

कचड़ा बुहारते फर कराए पर चलने वाली साइ कल िनकाल कर एक तरफ लाइन से खड़ा करते। सब साइ कल क हवा चेक करते। साइ कल टनाटन रहे तो कराएदार टके रहते ह। सुबह से ह कराएदार क आमद श हो जाती। आठ आना ित घ टा के हसाब से साइ कल कराए पर जाती। इन साइ कल से ह वह ित दन तीस-पतीस

पया कमा लेते। कुछ कमाइ

र ा के कराए से आ जाती। साइ कल रपेयर से भी कुछ िमल ह जाता था। गुमट के अंदर लोहे क एक बा ट , पं चर चेक करने के िलए एक तसला, लकड़ का एक बड़ा ब सा जसम औजार भरा होता और कइ ताख पर छोटे -बड़े ड बे जनम नट-बो ट से लेकर छोटे -मोटे पेयर होते। हवा भरने के दो प प और च का सीधा करने का एक षकंजा। सामने द वार पर दो-तीन त वीर मढ़ हुइ लगी होतीं। एक त वीर अजमेर “◌ार फ क , दसर बाबा ू

ताजु न क , और तीसर त वीर म एक ऐसी आकृ ित क थी जसका ज म घोड़े का है और मुंह एक खूबसूरत औरत का। उसी के बगल म कुरान-षर फ क आयत वाली एक त वीर। फ ◌ो ् भाइ सुबह-षाम इन त वीर के पास अगरब ी अव य जलाया करते।

ु ु गुमट के बाहर रे ल-लाइन का एक टकड़ा पड़ा रहता। इसी टकड़े पर रखकर वह रपेयर के िलए हथौड़ा चलाते। व वकमा पूजा के दन वह दकान खोलते और व वकमा पूजा सिमित क ु ु तरफ से दया गया ना रयल बगल के पनवाड़ बलदे व से इसी लोहे के टकड़े पर फोड़वाया

करते। व वकमा पूजा के दन वह कोइ काम न करते। “◌ा◌ाम को बीवी हमीदा के साथ सैरसपाटा करते। बीवी हमीदा उनक स ची “◌ार के-हयात थीं। वह भी बीवी हमीदा के प के “◌ा◌ौहर थे। फ ◌ो ् भाइ का वा त वक नाम फ़तह मुह मद था, जसे वह अब तक भूल चुके थे। उ ह अ लाह ने

औलाद का सुख नह ं दया था। “◌ा◌ाद के पं ह सोलह साल बाद जब औलाद न हुइ तो फ ◌ो ् भाइ पीर -मुर द , जड़ -बूट , वै -हक मी और टोना-टोटका सब करवा दे खे। आज तक उनको

औलाद नसीब न हुइ । अब तो खैर से उ मीद करना बेकार था ले कन आ थावान फ ◌ो ् भाइ कभी नाउ मीद न हए। ु बीवी हमीदा को भी वे ढाढ़स बंधाया करते।

फ ◌ो ् भाइ मह फल-पसंद आदमी थे। समाज के िनचले तबके म उनक अ छ रसूख थी।

कोट कचहर म जमानत दया करते और इस तरह बेकस-मजलूम क मदद करते। िसनेमािथयेटर के “◌ा◌ौक न भी थे। अिधकतर सेक ड-षो िसनेमा जाते। साथ म होतीं बीवी हमीदा।


साइ कल पर पीछे बैठ जातीं। दबली -पतली काया, सलवार-कुता और दप ु ु टा पहनतीं। िन संतान बीवी हमीदा दे खने सुनने म ठ क-ठाक थीं। उ

का असर उन तक नह ं आया था।

“◌ार फ भाइ ह या ज बार! फ ◌ो ् भाइ को जब बीवी हमीदा के साथ सैर-सपाटे पर पाते तो टोकते ज़ र’--’’लैला मजनूं क जोड़ कहां चली?’’

हमीदा बीवी भी चुप न रहतीं-’’दे खने वाल का कलेजा य फट रहा है ? अपनी जो को सात पद म काहे छुपाए रखते ह। घूिमए न आप लोग भी अपनी हर ू के संग, कौन मना करता है !’’ जमालू भाइ अपनी दो मन क बीवी को याद कर आह भरते--’’फ ◌ो ् भाइ जैसी क़ मत हम बदनसीब को कहां!’’

हमीदा बीवी जवानी म बहत ु सुंदर थीं। पास ह के गांव म एक नाइ खानदान म पैदा हुइ थीं। नाइ लोग को ‘छ ीसा’ भी कहा जाता है । ‘छ ीसा’ माने छ ीस कला के मा हर लोग। जाने

कौन सी कला काम आइ क फ ्◌ो भाइ आज तक फितंगे क तरह अपनी बीवी पर मरते ह।

फ ◌ो ् भाइ क ज दगी ठ क-ठाक चल रह थी। न उनके ख◌़् वाब बड़े थे, न पांव..........चादर क नाप उ ह अ छ तरह मालूम थी।

बदर -बरखा, पूस का जाड़ा। जाड़े क सद रात। फ ◌ो ् भाइ लुंगी-बिनयान म घर से बाहर

िनकले। नाली के कनारे पेषाब करने को बैठे। उ ह ठ ड लग गइ। ठ ड तो “◌ा◌ाम ह से लग रह थी। बीती “◌ा◌ाम उ ह ने बलसपु रहा बह (अम द) खाकर खूब पानी पया था। पेषाब करके वह उठे तो “◌ार र कांप रहा था। कमज़ोर सी लग रह थी। वापस आकर वह पुन: सो गए। सुबह उनका बदन जलते तवे सा तप रहा था। ठ ड से ज म कांप रहा था। बीवी हमीदा घबरा गइ। तीन रज़ाइयां उनके ऊपर डाल द ं। कोइ फ़क न पड़ा। फ ◌ो ् भाइ का बदन कांपे जा रहा था। दांत बज रहे थे। वह कुछ बोल नह ं पा रहे थे। हमीदा बीवी क समझ म नह ं आ रहा था क या कर, या न कर। फ ◌ो ् भाइ के मुंह से गम सांस िनकल रह थी। लगा वह कुछ कहना चाह रहे ह । हमीदा बीवी अपना कान उनके मुंह के क़र ब ले गरइं् । ले कन ये या....

फ ◌ो ् भाइ का िनचला जबड़ा बारइं् तरफ लटक गया था। हमीदा बीवी चीख़ पड़ ं। बेबस फ ◌ो ् भाइ क आंख से आंसू झर रहे थे। वे ठ ड से अब भी कांप रहे थे।

हमीदा बीवी उ ह उसी हालत म छोड़ बाहर आरइं् । जाड़े क सुबह कुहरा छाया हआ ु था। वे

पड़ोसी बलदे व पनवाड़ और “◌ार फ भाइ के पास गरइं् । दोन त काल दौड़े चले आए। फ ◌ो ् भाइ क हालत दे ख बलदे व साइ कल उठा साहनी डॉ टर को इ ला करने चला गया।

डॉ टर साहनी नगर के पुराने ाइवेट डॉ टर है । मर ज़ क हालत सुन चले आए। कुछ इं जे न द । दवा िलखी। फर कहा क मर ज़ को भरती करना होगा। बेहतर होगा क इ ह पास के कॉलर के हॉ पीटल म भत करवाया जाए। वहां बेहतर इं तेज़ाम है । इन पर लकवा का अटै क


है । दवा से ठ क भी हो सकते ह। ढलाइ न क जाए। कॉलर हॉ पीटल के डॉ टर को वे फोन कर दगे। दवा-इं जे न के बाद फ ◌ो ् भाइ क कंपकंपी कुछ कम हुइ। इं जे न का भाव था या थकावट, फ ◌ो ् भाइ को नींद आ गइ। “◌ार फ भाइ ऑटो- र ा बुला लाए। हमीदा बीवी रोते-रोते बेहाल हुइ जा रह थीं। बलदे व क घरवाली आ गइ थी और उ ह सां वना दे रह थी। उनके पास तीनेक हज़ार

पए थे। “◌ार फ भाइ और बलदे व पनवाड़ ने धैय रखने को कहा।

पए-पैसे क

िच ता नह ं करने को कहा। हमीदा बीवी िसफ रो रह थीं। इसके बाद चला महं गी दवाओं का ल बा इलाज। फ ◌ो ् भाइ इस बीच िभलाइ के डॉ टर को

दखा आए। इससे फायदा हआ। जबड़ा जो एक तरफ लटक गया थ, उसम जान आइ। बोलनेु

खाने म उ ह अब भी परे षानी होती थी। स◌ाि◌◌ानीय म जद के हा फ़ज ने तावीज़ दया था। ् फ ◌ो ् भाइ क बांह पर तावीज़ बंधा रहता। अं ेजी दवा भी चालू थी।

हमीदा बीवी ने ताजु न बावा के मज़ार म ‘चादर चढ़ाने’ क म नत मानी। ख◌़् वाजा ग़र ब

नवाज़ को भी चादर चढ़ानेक मनौती मानी। थानीय “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार पर जाकर माथा टे क आइ थीं। मुजावर बताषा बाबा को घर बुलाकर फ ◌ो ् भाइ पर दम भी करवा दया था।

पता नह ं ये अंग◌्रजी दवाओं का असर था या गंडा-तावीज का भाव......... फ ◌ो ् भाइ का जबड़ा अपनी जगह म आने लगा था।

फ ◌ो खोलकर बैठने भी लगे थे। इस बीमार म उनके कइ हज़ार खतम हो चुके ् भाइ दकान ु थे। बीमार ठ क न हुइ थी। कोइ कहता द ली चले जाओ, कोइ सलाह दे ता म ास। फ ◌ो ् भाइ सबक सुनते, मन क करते।

उ ह तो सबसे यादा िच ता मुहरम क सताती। य द रोग यूं ह बना रहा तो ता जया कैसे उठे गा। या ग़र ब-नवाज़, या मुष कल-कुषा! फ ◌ो क ठोकर ने उ ह तैयार कया था। इ म ् भाइ पढ़े -िलखे न थे। हां लढ़े ज़ र थे। दिनया ु और मज़हब के बारे म जसनेजो बताया, मान लेते। कसी दसरे मज़हब क बुराइ क़तइ न ू करते।

बलदे व पनवाड़ उनका पड़ोसी, कुछ न कुछ नइ सूचनाएं दया करता। आजकल बाजार म कटनी के पास कसी चम कार जगह का बहत चार हो रहा था। कहते ह, वहां वयं बजरं ग ु

बली कट हए ु ह। असा य रोग जैसे लकवा, ट बी, कसर, बवासीर, मधुमेह सब ठ क हो जाते ह।

बलदे व अपनी छोट बहन को लेकर वहां गया था। लौटकर आया तो फ ◌ो ् भाइ को हाल-चाल

बताने लगा।--’’बजरं गबली क म हमा अपर पार है फ ◌ो ् भाइ। लछमन जी को मूछा लगी थी ू थी। तो मृत संजीवनी बूट लेकर बजरं गबली ने दया था। तब जाकर लछमनजी क मूछा टट कटनी के बजरं गबली का साद कसी संजीवनी बूट से कम नह ं। वहां साद म चढ़ाया गया


ना रयल संत-महा मा अपने हाथ से रोगी को दे ते ह। इसम भभूत भी िमला होता है । जतना भी साद िमले, उसके चार ह से बनाने पड़ते ह। चार दन क चार खूराक। कैसा भी मज़ हो। स...ब ठ क हो जाता है । हजार लोग डे ली वहां पहंु च रहे ह। द ली, ब बइ, कलक ा और भी जाने कहां-कहां से बेचारे , क मत के मारे वहां आते ह। कसी को कसर है , कसी को लकवा, कसी को ट बी है तो कसी को “◌ा कर क बीमार । फ ◌ो ् भाइ ने उसे टोका--’तु हार बहन अब कैसी है ?’’

बलदे व पनवाड़ ने बताया-’’उसके साथ तो चम कार ह हआ। हम लोग तो िनराष थे। ले कन ु

साद का पहला खूराक खाते ह उसके कमज़ोर हाथ म ताक़त आ गइ। पूजा क डिलया उसी

हाथ म उठाए वह वापस लौट । टांग म भी कोइ नइ “◌ा

को वह महसूस कर रह है । आज

दसरा खूराक खाइ है । बजरं गबली क म हमा अपार! या बताएं फ ◌ो ् भाइ, हम वहां मंगल के ू दन पहंु चे तो भीड़ दे खकर हौसला प त हो गया था। सोचा क न बर “◌ा◌ायद अब बुधवार

को ह आएगा, क तु बजरं गबली क कृ पा ऐसी हुइ क उसी दन साद िमल गया।’’ फ ◌ो ् भाइ आजकल बोलते कम और सुनते अिधक थे। जबड़े क “◌ा

ह नता के कारण उ ह

तकलीफ होती थी। बलदे व तो अपनी बहन को लेकर दिनया घूम चुका था। फ ◌ो ् भाइ के साथ ु ख◌़् वाजा ग़र ब नवाज़ क मज़ार मे ◌ंजाकर म नत भी मान आया था। सुनवाइ हुइ तो

बजरं गबली के पास! “◌ा◌ायद ख◌़् वाज़ा ग़र ब नवाज़ खुद फ ◌ो ् भाइ को इसी बहाने कोइ रा ता दखा रहे ह । आ थावान, फ ◌ो ् भाइ के िलए ये नया वचार आषाजनक लगा। पूछ बैठे--’’यार बलदे व भाइ, हमारे वा ते भी परसाद मंगवा दो न!’’

बलदे व ‘नह ’ं क मु ा म िसर हलाने लगा--’’नह ं हो सकता फ ◌ो ् भाइ! वहां का साद बिनया क दकान म बकने वाला ह द -जीरा नह ं क गए, पु ड़या बनवाइ, पैसे दए और चल दए। ु वहां तो साथी पूरे दे ष से

ालु आते ह। अमीर-गर ब सभी, नाना कार के रोग पाले हए ु लोग।

सभी को हनुमान जी के सामने आरती म खड़ा होना पड़ता है । “◌ा◌ीष झुका कर साद करना पड़ता है । जसे मज हो, वह जाना ह होगा।’’

हण

साद पाए। और कोइ दसरा तर का नह ं है । वहां आपको ू

फ ◌ो ् भाइ सारा दन मथते रहे खुद को। एक मुसलमान का मं दर म जाकर पूजा म

“◌ा◌ािमल होना, फर साद पाना, उसे खाना...िछ: िछ:! नह ं हो सकता। वह मर भले जाएं, ऐसा गुनाह कभी न करगे। फर वचार आता क उनके ह द ू भाइ तो ता जया हो या “◌ा◌ाह बाबा क मज़ार या अजमेर “◌ार फ क या ा....सभी जगह बे हचक “◌ा◌ािमल होते ह और पूर अक़ दत रखते ह। उ ह जनसंिघय का भाषण याद हो आया। उस दन चौक म जनसंघी नेता भाषण दे रहे थे--‘‘ ह द ु तान म मुसलमान कह ं बाहर से नह ं आए ह, ब क मुग़ल के “◌ा◌ासनकाल म इनके


पूवज ने अंधाधुंध धम प रवतन कया था। इसी कार आज इसाइ िमषन रयां स

य ह।

मुसलमान हमारे छोटे भाइ ह।’’ उस दन फ ◌ो ् भाइ को गु सा हो आया था क य द हम छोटे भाइ हए ु तो ह द ू सब बड़े

भाइ। यानी हम ह दओं ु से हमेषा दब के रहना होगा य क हम तो उनके छोटे भाइ जो हए। ु लगता है हमायू -अकबर ं का ज़माना भूल गए ह सब। ले कन बाद म जब उनका ु

ोध “◌ा◌ा◌ंत

हआ ु तो उ ह वा त वक लगी थी जनसंिघय क बात। ह द ु तानी मुसलमान म उ च कुल

वंष पर परा का आिधप य था, जब क छोट जाितय के मुसलमान जो अमूमन रं ग- प, कदकाठ म दिलत ह द ू भाइ क तरह द खते, अषराफ

ारा हकारत क िनगाह से दे खे जाते।

वयं फ ◌ो ् भाइ को सारइं् कहकर लोग उनका मखौल उड़ाया क करते ह। उनक प ी हमीदा

बीवी को ‘छ ीसा’ करकर िचढ़ाया ह जाता है ।

उ ह बस यह लग रहा था क अ लाह तआला खुद उ ह रा ता दखा रहे ह । उनके दलोदमाग म एक ह बात रह-रहकर उभर रह थी, क बलदे व के साथ जाकर एक बार बजरं ग बली को भी आजमा िलया जाए। बचपन म तो वे गणेष पूजा, दगा ु पूजा, काली पूजा का साद बड़े “◌ा◌ौक से खाया करते थे। रामलीलाएं भी बहत ु दे खा करते थे। आरती क थाल के िलए

तब वे जेब म पांच-दस पैसा खुदरा ज र रखा करते। आरती क थाल लेकर पुजार आता तो द पक क लौ क आंच से हथेली तर करके िसर पर फेर लेते। पैसा थाल पर छोड़ दया करते। उनके अिधकांष दो त ह द ू थे। भले ह बचपन म झगड़ा-लड़ाइ होने पर वह दो त अ य ु ’ और ‘पा क तानी’ क गाली दया करते ह , क तु बचपन का गािलय के अलावा ‘कटआ झगड़ा होता क ी दे र के िलए था। बस यह इ ी से दे र के िलए ह तो...! इ लाम के एके वरवाद क क टर द

ा से वह वंिचत रहे । इ लाम म चम कार क

मुखता

नह ,ं वे नह ं जानते थे। अ लाह के यारे रसूल इस दिनया म आए और बना कसी जाद ू या ु

चम कार दखाए इ लाम के संदेष को जन-जन तक पहंु चाया। वे तो यह जानते थे क जस

तरह मज़ार ख़ानकाह म मन क मु◌ुराद पूर हो जाती ह, उसी तरह से चम का रक स◌ाि◌ल ् म भी ऐसी “◌ा

यां होती ह, जनसे इं सान के दख ् ु -दद दरू हो जाते ह, भले ह वे स◌ाि◌ल

अ य धमावल बय के ह । अकसर अपने दो त के बीच वे कहा करते---’’धम अलग ह तो या पहंु चना तो सबको एक ह जगह है ।’’ फ ◌ो ् भाइ बहत ु भोले-भाले मुसलमान थे। “◌ा◌ायद

इसीिलए इं सािनयत पर आ था- व वास उनके क़ायम था।

घर आए तो बीवी हमीदा उनक िच ता का कारण जान परे षान हो उठ ं। अपनी सीिमत सूझबूझ के तहत उ ह ने भी फ ◌ो ् भाइ को यह सलाह द क एक बार गुपचुप आजमा आने म हज ह

या है । सैयदािनयां भी तो योित षय , तां क क गुपचुप मदद िलया करती ह।


फ ◌ो ् भाइ और बीवी हमीदा ने बलदे व भाइ को घर बुलवा िलया। िसफ तीन लोग ह इस बात के जानकार थे। फ ◌ो ् भाइ इलाज के िलए कटनी के पास

थत बजरं गबली के चम का रक

स◌ाि◌ल जा रहे ह। कटनी छ: घ टे का रा ता है । सुबह “◌ाटल से िनकले और बारह बजे तक ् कटनी पहंु च गए। कसी का कानो कान खबर भी न हो और साद भी पा िलया जाए। ले कन होनी को कुछ और ह मंजूर था।

चार तरफ एक ह चचा। फ ◌ो कलमा पढ़ कर इ लाम म ् भाइ का फर हए। ु उ ह दबारा ु दा खल होना होगा। फ ◌ो ् भाइ ने बजरं गबली का साद

हण कया था। अं ेजी दवाएं भी

चल रह थीं। उनका जबड़ा नामल हआ ् भाइ अपनी ठ क होती हालत से ु जा रहा था। फ ◌ो खुष थे ले कन नगर म उठ रह चचा से भयभीत भी थे।

“◌ा◌ाम “◌ार फ भाइ ने फ ◌ो ् भाइ से जानना चाह क नगर म आजकल जो चचा चल रह है या वह वाकइ सच है ?

फ ◌ो ् भाइ सहम गए। जससे डरते थे वह बात हो गइ। हमीदा बीवी के कान म भी म जदमुह ला से उठने वाली आवाज़ सुनाइ दे ने लगी थीं। इसका अथ ये हआ क उनका कटनी ु

जाकर बजरं गबली क पूजा-अराधना और साद- हण क खबर यहां पहंु च चुक है । खुदा जाने, या होगा? या परवर दगार.................या गौस-पाक!◌्

गुमट बंद कर घर लौटना चाह रहे थे क बरे लवी म जद क अंजुमन कमेट का का रं दा स जीफ़रोष क लू िमयां आ पहंु चा। उ ह रोककर उसने फुसफुसाते हए ् भाइ, ु कहा--’’फ ◌ो

कल बाद नमाज़ जुहर आप मदरसा आइएगा। वहां कमेट आपसे कुछ सवाल-जवाब करे गी।’’ फ ◌ो ् भाइ उस समय भ चक-अवाक रह गए। दल क धड़कन बढ़ गरइं् । कान सांय-सांय करने लगा। जस जबड़े के इलाज के िलए वे कटनी गए थे, वह जबड़ा पुन: अष

हो लटक सा

गया। क लू िमयां पुन: फुसफुसाए--’’का हो, बात सह है क आप ह दअन के भगवान क पूजा-पाठ ु कए रहौ?’’

फ ◌ो ् भाइ उस नामाकूल से कुछ न बोले। उ ह कुछ भी समझ न आ रहा था क या कर, या न कर। बचपन म गलती पकड़े जाने पर अ छा इलाज हआ ु करता था। मार पड़ने पर

जोर-जोर से रोने लगो तो मार कम पड़ती थी। ले कन इस गलती के िलए अ लाह-रसूल क बारगाह म दोषी, गुनहगार होने के अलावा कमेट और बरादर म भी अपमािनत होने का भय उ ह “◌ामसार कये जा रहा था। िसफ याद आ रह थीं हमीदा बीवी। वे बेहोष होने से पूव हमीदा बीवी के पास पहंु चना चाह रहे थे। हमीदा बीवी, उनका इ क, उनक “◌ार के-हयात, उनक मरहम ू अ मा का अवतार, उनके जीवन का आधार!


दरसा का सभागार। बड़ा सा हाल। खराब मौसम के कारण अंदर बजली जला द गइ थी। पूरे हाल म दर बछ थी। मु य ार के ठ क सामने वाली द वार पर बीच -बीच ‘म का-मद ना’ क एक बड़ त वीर लगी थी। उसी त वीर के नीचे सफेद कपड़े , काली टोपी म कुछ सफेद दाढ़ दार बुजुग बैठे थे। उनके सामने लकड़ क एक छोट सी टे बल थी जस पर कागजात रखे थे। फ ्◌ो भाइ अपने साथ “◌ार फ भाइ को भी ले आए थे। “◌ार फ भाइ सदर जनाब म नान िस क से गु तगू कर रहे थे।

फ ◌ो ् भाइ ने हाल म उप थत मजमे पर उड़ती सी िनगाह डाली। तमाम लोग प रिचत थे। सभी के चेहरे पर एक

न-िच ह लटक रहा था।

मंच पर बैठे थे जनाब सैयद मु तफा रज़ा साहब। उनके दा हनी जािनब थे से े टर जनाब

“◌ोख़ स ार खां साहब और पेष-इमाम जनाब मुह मद “◌ा◌ा हद क़ादर तथा सदर साहब के बाइ जािनब बैठे थे क़ म पांव लटकाए बुजुग हक म म जू ल हक़ साहब। ये ह लोग ह जो आज फ ◌ो ् भाइ क गु ताखी का फेसला करगे।

फ ◌ो ् भाइ ने अपने कमजोर दल के बा-र तार चलते रहने के िलए सार कायनात के मािलक अ लाह तआला को याद कया। फर रसूले-खुदा को याद कया। फर भी घबराहट जार रह तब गौस-पाक, फर गर ब-नवाज सभी को याद कया। घबराहट कम हुइ तो मुक मा के िलए मुंिसफ के सामने जा बैठे। दर एकदम ठ ड थी। हॉल क अंद नी फजा सद थी।

से े टर जनाब स ार साहब जनक कपड़े क बड़ दकान इस नगर म ह, क आवाज़ गूंजी ु और सभा “◌ा◌ा◌ंत हुइ।

--’’ बरादराने इ लाम, अ सलाम व अलैकुम!’’ सलाम का जवाब सुने बगैर उ ह ने बात जार रखी। --’’फतह मुह मद व द ब ने सारइं् पर इ ज़ाम है क ये अपने इलाज के िलए का फर के दे वताओं क पूजा-पाठ कए और वहां से पूर अक दत के साथ जो चढ़ाया गया साद

िमला, उसे खाया और उस दे वता-बुत के आगे िसर झुकाया। या फतह मुह मद व द ब ने सारइं् पर लगाए गए इ जाम सह ह? जवाब खुद फतह मुह मद द।’’

फ ◌ो ् भाइ को काटो तो खून नह ं। या कहते। गलती तो हो ह गइ थी। उ ह ने कतना बड़ा गुंनाह कया था, उसका उ ह अ दाजा न था। फ ◌ो ् भाइ खड़े हए। ु कुछ समझ म न आ रहा

था क या सफाइ द कुछ बोलना चाहा तो तनाव के अितरे क म चेहरा वकृ त हआ ु , जबड़ा पुन:


लटक गया। क ठ अव

हो गया। बस फ ◌ो ् भाइ को इतना याद है क उ ह ने िसर हलाकर

तमाम इ जामात को मंजूर दे द थी।

से े टर साहब चुप रहे । बहस क गुंजाइष ख म हो गइ थी। जुम कुबूल िलया गया था। उप थत जन-समूह बड़ नफ़रत से फ ◌ो ् भाइ को ताक रहा था और इषारा कर बात बना रहा था। हॉल का माहौल एकबारगी गम हो गया। फ ◌ो ् भाइ के प

म कोइ बोलने वाला न था।

फ ◌ो ् भाइ इस तरह बीच सभा म खड़े थे जैसे उन पर क़ ल या ज़ना का इ ज़ाम लगा हो।

दख ु हो या खुषी का मौका.............भीड़ का च र एक तरह का होता है । ऐसा नह ं है क इस मह फल म फ ◌ो ् भाइ ह एक गुनहगार ह । रोजमरा क ज रत म फंसा हरे क “◌ाख◌़् स कसी न कसी गुनाह म मु तला है , बस फक इतना है क षक यानी कु

का गुनाह सबसे

बड़ा गुनाह होता है अथात गुनाहे -कबीरा। ऐसा गुनाह करने वाला का फर हो जाता है और गुनाह से तौबा करने के बाद दबारा इ लाम कुबूल करता है । यह तो सभी जानते ह क इ लाम ु म बुतपर ती क मनाह है और बुतपर त का फर होता ह। फ ◌ो ् भाइ ने यक नन बुतपर ती क थी ले कन इस मह फल म ऐसे कतने लोग है जो जाद-ू टोना, भूत- ेत आ द म फंस जाने पर का फर के तौर-तर क से झड़वाते-फु◌ुकवाते नह ं। मन म बसा भूत- ेत जब अपने

आिमल के काबू म नह ं आ पाता तब गैर के दरवाजे पर चोर िछपे जाकर झड़वाया तो सभी करते ह। मह फल म बैठा कोइ भी “◌ाख◌़् स ये नह ं सोच पा रहा था क आ खर वे कौन से

हालात ह जनसे घबराकर ‘एक अ लाह’ को सबसे बड़ा मानने वाले लोग अपने इमान-यक न से डग जाते ह। मजार-खानकाह म म नत-मुराद मांगने, रोन-िगड़िगड़ाने वाले जा हल मुसलमान कब कधर का

ख करगे कौन जानता है ।

से े टर स ार खां साहब जानते थे और न जनाब म नान िस क साहब, जो यंग मु लम कमेट के आितष बयान सदर थे। तभी बुजुग जनाब हक म म जू ल हक़ साहब लरज़ते हए ु उठ खड़े हए। ु मह फल म खामोषी छा गइ।

बुजुगवार से खंखारकर बोलना श

कया--’’ बरादराने इ लाम, गौरो- फ़

नतीज़े पर पहंु ची है क फतह मुह मद व द ब ने सारइं् से कु◌ु

के बाद कमेट इस

हआ ु है । कुरआन और हद स

क रोषनी म ये गुनाहे -कबीरा है । कमेट क राय है क फतह मुह मद व द ब ने सारइं् ,

इ लाम म दबारा दा खल ह । कल इ षाअ लाह, बाद नमाज जुमा, जामा म जद म फतह ु मुह मद हा जर होकर कलमा पढ़। दसर अहम बात ये है क कु ू

ू करने वाले का िनकाह टट

जाता है , इसिलए उसे दबारा िनकाह भी पढ़वाना होगा। अ सलाम व अलैकुम।’’ ु हक म साहब बैठ गए। मह फल ख म हुइ।


फ ◌ो ् भाइ के कमज़ोर बेसुध ज म को “◌ार फ भाइ जगाना चाह रहे थे।


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