Salima

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सलीमा

अनवर सुहैल


सलीमा

ह द िं ी उपन्यास

अनवर सह ु ैल सिंस्करण : २०१४

आवरण : के रव ींद्र

सर्ा​ाधिकार सरु क्षित : लेखकािीन प्रकाशक :

सिंकेत प्रकाशन

टाइप ४/३ आफिसर कालोनी

पो बिजरु ी जजला अनप ु परु म प्र ४८४४४०

९९०७९७८१०८’, ७५८७३९०१८३

sanketpatrika@gmail.com ( ई-िक ु सिंस्करण )


फिर वही रफ़्तार बेढींग --आटा-चक्की के मोटर ि ु त शोर करता ै । लगता ै उसकी बियररिंग खराि ो गई ै । मोटर और चक्की के िीच तेजी से घम ू ते िेल्ट से उठता ‘खटपपट खटपपट’ का शोर सलीमा का कुछ न ीिं बिगाड़ पाता।

सलीमा को इस शोर की आदत पड़ चक ु ी आदत ऐसे

ी न ीिं पड़ती।

ै।

इिंसान के पास जि सपु र्िाओिं की सम्भार्नाएिं ख़त्म ो जाती ैं, जि िे तर हदनों की आमद से र् नाउम्मीद ो जाता ै ति उसे दुःु ख झेलते-झेलते दुःु ख स ने की आदत पड़

ी जाती

ै।

सलीमा ने अपने जीर्न की रा और इस तर

में तमाम तकलीफ़ उठाए।

उसे परे शाननयों से दो-चार

ोने में िड़ा मजा आने लगा।

इसीललए सलीमा ने आटा-चक्की के िेसरु े ‘खटपपट खटपपट’ को एक ताल का रूप दे हदया और मन

ी मन उस ताल पर एक गीत िना ललया

‘खटपपट खटपपट--- खटपपट खटपपट----

ै ----

सलीमा खटती, हदन-भर खटती कभी न थकती,

कभी न थकती’

इसी लय में डूिती-उतराती सलीमा अपने तन-मन की जरूरतों से िेख़िर र ने लगी। आटा-चक्की के साथ कि र्क्त गज ु र जाता, सलीमा जान न पाती। अल्ला ने उसे इस काम में इतनी िरकत दी फक ोता और न कभी काम---

जजसे गे ूिं म ीन पपसर्ाना पपसर्ा ले---

ो र्

चक्की के ललए न कभी गे ूिं ख़त्म

म ीन पपसर्ाए और जजसे मोटा चाह ए र्

मोटा

सलीमा अपने ग्रा कों की फ़रमाईश हदल लगाकर परू ा करती ताफक मु ल्ले के लोग उसी की चक्की से गे ूिं पपसर्ाने आएिं। सलमा ने चक्की के िाईं ओर रखी गे ूिं की थैललयों पर ननगा डाली। एक लाईन से रक्खी लभन्न-लभन्न आकार की सोल -सत्र थैललयािं।


कुछ प्लाजस्टक की िोररयािं, कुछ कनस्तर और कुछ गे ूिं भरे िोरे --आखखरी र्ाली थैली के पीछे एक मोटा सा चू ा झािंक र ा था। सलीमा ने चू े को घड़ ु की दी।

चू ा ठ रा ढीठ, सलीमा को टुकुर-टुकुर ताकने लगा, जैसे उसका जन्मलसद्ि अधिकार ो।

ति सलीमा ने आटा ठूिंसने र्ाला लकड़ी का मग ु दर चू े की तरफ़ िेंक मारा। चू ा सरपट भाग गया।

आटा-चक्की में चू े आएिं भी क्यों न!

चक्की बिठाने को बिठा ली थी सलीमा, लेफकन आज तक उसके पास इतने पैसे न जुट सके फक र्

अिंदरूनी दीर्ारों और िशा पर प्लास्तर करर्ा सके।

दीर्ारों पर ईंट की जड़ ु ाई सीमें ट की जग और कनखजरू ों के ललए तो जैसे स्र्गा सलीमा जि खखन्न

लमट्टी से की ु ई ै । चू े , खटमल, दीमक ों ऐसे घर---

ोती तो िोल उठती--‘‘दललद्दर

ैं स्साले सि----.!’’

आटा-चक्की में गे ूिं के अलार्ा अन्य चीजें भी पपसने आती चू ों के पास स्र्ाद िदलने के ि ु त पर्कल्प र ते ैं।

ैं।

चू े चा ें तो गे ूिं पर ाथ साि करें , चने पर या मकई के दानों पर। इसीललए सलीमा लोगों की थैललयों पर लाया गया गे ूिं या अन्य सामान तत्काल पीस हदया करती। र् न ीिं चा ती थी फक चू ों की िदमालशयों का खालमयाजा उसे या उसके ग्रा कों को भग ु तना पड़े।

मजस्जद के आस-पास िसे इस मु ल्ले की एकमात्र आटा-चक्की

ै सलीमा की।

सलीमा के पास, यहद हदन भर और काम न आए तो भी तीन-चार घण्टे का काम ाथ में र ता

ै।

लेफकन इस बिजली कटौती का क्या फकया जाए? जैसे िार िजा न ीिं फक बिजली गुल ो जाया करती

दप ु र िार

ै।

से तीन िजे तक बिजली कटौती र ती

ै।

अि तीन िजे के िाद बिजली आएगी, ति िाकी का काम ननपटाया जाएगा।

ये सोचकर सलीमा ने चक्की के िीडर को थोड़ा और खोल हदया ताफक सप ू ड़े पर िच


र ा माल जल्द पाटों के िीच आकर पपस जाए। ऐसे

ी कई पाटों के िीच पपस र ी

ै सलीमा की जजन्दगी----.


‘मैं तन्हा था, मैं तन्हा हीं ---’’ खटपपट खटपपट----खटपपट खटपपट---आटा-चक्की के चलने से ऐसी

ी आर्ाज उठती

ै।

ै , सलीमा मगन र ती

ै।

ये आर्ाजें सलीमा के मन को ि लाए रखती जि तक चक्की चलती

ैं।

ऐसे समय उसे दीन-दनु नया की फिक्र न ीिं र ती। र्

अपने दख ु ों को भल ू जाती

ै।

अि सलीमा अकारण खुश भी तो न ीिं

ोती। सख ु -दख ु के िेर से र्

इसीललए सलीमा र्क्त-िेर्क्त रोती-लससकती न ीिं।

आजाद

ै।

अपनी चालीस साल की उम्र में उसने जीर्न के ऊिड़-खािड़ रास्तों पर िेरोक-टोक दौड़ने की सलाह यत पैदा कर ली

ै।

र् जानती ै फक इस सिंसार में , र आदमी अपना ‘सलीि’ खुद ढोने के ललए अलभशप्त ै।

िाकी के ररश्ते-नाते सि सिंयोग मात्र ये म ज एक इत्तेफ़ाक

ै फक कोई फकसी की मािं

सिंयोगर्श कोई फकसी का भाई

ै , कोई िह न---

दनु नया में जो कुछ भी हदखलाई दे ता क्या जि

ैं---

मने चा ा था, फक

ै , कोई फकसी का िाप।

ै , सि सिंयोग

म इस सिंसार में आएिं---

ी तो

ै।

म अपनी मजऱ्ी​ी से आए न ीिं, ति इस दनु नया से लशकर्ा कैसा?

सलमा को लता मिंगेशकर का गाया एक गीत ि ु त भाता ‘दनु नया में जो आए ैं तो जीना ी पड़ेगा जीर्न ै अगर ज र

तो पीना

ै:

ी पड़ेगा’

सलीमा बिना फकसी धगला-लशकर्ा के अपनी ि नािंीे और िढ ू े अब्िू की अलभभार्क ै ।

र् चा ती फक सोने के घण्टों के अलार्ा र् सारा हदन खटती र े । इतना खटे फक थक कर चरू

ो जाए।


ताफक रात एक भरपरू नीिंद की मालफकन िने।

एक ऐसी नीिंद, जजसमें फकसी तर के ख़्र्ाि न ों। अच्छे या िरु े कैसे भी ख़्र्ाि दे खना न ीिं चा ती सलीमा। सलमा जानती

ै फक भरपेट लोगों को

ी ख़्र्ाि िन ु ने और चन ु ने का

क़

ै।

जजनके ह स्से में र हदन किंु आ खोद कर पानी पीने का अलभशाप ो उनके ललए अच्छा ख़्र्ाि क्या अ लमयत रखता ‘मैं

तन् ा

था,

मैं

ै।

तन् ा

तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या?’

ूिं

सलमा ने िड़ी िेददी से अपने सपनों का गला घोंटा व्

चा ती

ै फक इसी तर

ननरिं तर खटती र े ।

ै।

लेफकन इस बिजली की कटौती का क्या फकया जाए? इस िार तो सरकार इसी र्ादे के कारण िनी थी फक सत्ता पाते

र नगर-गािंर् को बिजली की भरपरू खेप दी जाएगी।

ी अपने र्ादे भल ू जाते

प ले की तर

ैं ये नेता-परे ता।

बिजली की कटौती जारी

दप ु र के ठीक िार

ै।

िजे लाईट चली जाती

आदमी चा े तो घड़ी लमला ले।

ै।

ु आ भी र् ी, िार िजे न ीिं फक बिजली चली गई। अभी चक्की के सप ू े में आिा माल अनपपसा ी र गया था। ज्जन िीिी के घर का आटा था।

अि तीन िजे के िाद जि लाईट आएगी, तभी काम

ो पाएगा।

ज्जन िीिी की नौकरानी आती ोगी। क र ी थी फक सलीमा िीिी िड़ी ‘मरजेंसी’ ै ,

झट् से पीस दे ना।

ज्जन िीिी िड़ा घड़ ु कती

काम अिरू ा जानकर र्

ैं।

जरूर चार िात सन ु ाएगी तो सन ु ाती र े ।

सलीमा पार्र- ाउस की मालफकन तो न ीिं,, और न कोई जजन्न-परी उसके िस में फक बिना बिजली के आटा पीस दे ।

जजसे सलीमा की चक्की में गे ूिं पपसर्ाना ो पपसर्ाए र्रना ज ािं जाना सलीमा ने सोचा फक अि थोड़ा घर के अिंदर की भी सि ु ली जाए।

ो जाए।


ि नों ने कुछ फकया भी ै।

ै या लसिा लड़ाई-झगड़ा, िनार्-लसिंगार में हदन गुजार हदया

उसने दक ु ान के िा र िैठे अब्िू पर ननगा

अब्िू िप े का आनिंद ले र े थे। ू की सिंीक

डाली।


कौन सा दिल है जिसमें िाग़ नही​ीं ये अब्िू का िप ू -टाईम र्

ै।

िड़े इत्मीनान से आिंगन की िप ू में , िाईिर की कुसी पर िैठे ु ए उनकी पीठ पर कुनकुनी िप ू का सिंीेक को सलीमा ने म सस ू फकया। अब्िू के पतले-दि ु ले िदन पर अम्मी के

ैं।

ाथों िन ु ा िीलसयों साल परु ाना स्र्ेटर

सलीमा की अम्मी को स्र्ेटर िन ु ने का शौक था।

ै।

र साल गरमी के आगाज में जि

िेरी लगाकर ऊन िेचने र्ाले अपने घरों को लौटना चा ते थे, ति र्े औने-पौने पौन्ड

पर ऊन िेच हदया करते थे। सलीमा की अम्मी ऐसे समय का इिंतजार करती थीिं और ढे र सारा ऊन खरीद ललया करती थीिं।

अब्िू के िदन पर पड़ा ढीला-ढाला स्र्ेटर जजस समय िन ु ा गया था, ति र् िैंगनी रिं ग का ु आ करता था। समय की मार खा-खाकर उस स्र्ेटर की रिं गत अि िस ू र-मटमैला ो चक ु ा ै।

सलीमा ने अब्िू के ललए िुटपाथ र्ालों से एक जैकेट खरीदा ै , लेफकन अब्िू उसे न ीिं प नते। उन् ें जाने क्यों ये िटा-उिड़ा स्र्ेटर

ी उन् ें भाता

अब्िू ित ु िने से िप ू की सेंक का आनिंद ले र े ठिं ड में अब्िू की तिीयत नरम-गरम र ा करती अब्िू ठिं ड के हदनों में रोजाना न ीिं न ाते।

ैं।

ै।

ै।

जुम्मा की नमाज भले र् अदा न करते ों, लेफकन जुम्मा के जुम्मा जरूर न ाते ैं। र्ैसे भी मस ु लमान जम ु ा के जम ु ा न ाने के ललए िदनाम ठ रे । सलीमा

ै फक जजद करके उनकी िननयान और लिंग ु ी िो हदया करती

अब्िू का मन करे तो र्

म ीनो कपड़े न िदलें।

ै।

अब्िू की मैल से चीकट ु ई िननयान िोते सलीमा धचड़धचड़ा जाती-‘‘धचल्लर पड़ गए कपड़ों में अब्ि,ू तुम न ाओ न न ाओ, एक-दो हदन के िीच लिंग ु ी-गिंजी तो िल ु र्ा ललया करो।’’

अब्िू िं स दे ते और िड़ी मु ब्ित से उसे नन ारने लगते।

जाड़े के मौसम में अब्िू दप ु र में खाना खाने से प ले ाथ-मिंु लमजाज से िोया करते।


इसके ललए सलीमा सुि

आिंगन की िप ू में एक िाल्टी पानी रख हदया करती।

िार -एक िजे तक िाल्टी का पानी िप ू की सेंक पाकर कुनकुना-गमा अब्िू उसी पानी से

ाथ-मिंु

ो जाता।

िोते।

सलीमा का मन अब्िू के प्रनत ममता से लिरे ज र ता ै । अब्िू भी कभी-कभार क ते फक सलीमा तू तो मेरी अम्मा जैसी ै । र्ाकई जैसे मािं अपने िेटे का ख़याल रखती ैं उसी तर

सलीमा, अब्िू की छोटी-िड़ी जरूरतों का परू ा खयाल रखती

सलीमा की ख़ानतर-तर्ज्जो के आदी

ो चक ु े

ैं।

सलीमा ने दे खा और सोचा फक फकतने कमजोर फकसी से कुछ न ीिं क ते।

चक्की के िा र जि कुसी लगाकर िैठते ख़ामोशी से ताकते र ते

ैं।

ो गए

ै । अब्िू भी

ैं अब्ि।ू

ैं तो िस सड़क पर आते-जाते लोगों को

उन् ें न कोई सलाम करता और न र्ो फकसी को सलाम करते। िेगानी नजरों से गम ु सम ु ताकते र ते ैं, जैसे र्ो कोई मकान ों, दीर्ार ों, पेड़ ों या कोई बिजली का खम्भा--नगर के जजस इलाके में सलीमा का घर ै।

ै , उसे इब्रा ीमपरु ा के नाम से जाना जाता

इब्रा ीमपरु ा यानी ‘लमनी पाफकस्तान’।

ये तो सलीमा ने िाद में जाना फक ह न्दस् ु तान में ज ािं-ज ािं मस ु लमानों की आिादी ज़्यादा

ै उस जग

को ‘लमनी-पाफकस्तान’ का नाम दे हदया जाता

ै।

मख् ु य-नगर में िड़े िाजार ैं, दीगर म कमों के दफ्तर ैं, लसनेमा-घर ैं, पेट्रोल-टिं फकयािं ैं, मिंहदर

ैं----राजनीनतक दलों के काया​ालय

ैं, गािंिी, ने रू, अटल-चैक

मख् ु य-नगर ज ािं सामद ु ानयक भर्न

ै , सब्जी-मिंडडयािं

मख् ु य-नगर ज ािं भीड़

ैं, खरीददार

दश रा-मैदान

ै , सरकारी-ननजी पर्द्यालय ै , दक ु ानदार

ैं।

ैं, कई मैररज- ाील

ैं।

ैं,

ैं र्ो ि ु सिंख्यक ह न्द ू आिादी ै । मख् ु य-नगर की चकाचक सीमा ज ािं ख़त्म ोती ै र् ािं र मौसम में गिंिाता-िजिजाता

नाला ै । नाले पर सिंकरी पलु लया ै और पलु लया के पार कररए तो इब्रा ीमपरु ा की िस्ती शरू ु

ोती

ै । इब्रा ीमपरु ा यानी ‘लमनी पाफकस्तान’।

सलीमा की आटा-चक्की एक तर

से नाले के िाद का प ला मकान

ै।


उसकी चक्की के सामने जो सड़क ननकलती नाले के फकनारे बिकते दक ु ानें

ै र्

राम-मिंहदर से आती

ैं मग ु े-मधु गायािं। तीन स्थाई दक ु ानें

ैं मछली की। कुछ ठे ले

मीट-मछली की िदिू से आगाज

ैं जजनमें अण्डे बिकते ोता

ये सड़क जाकर िड़ी मजस्जद तक जाती िड़ी मजस्जद के पीछे तालाि

ैं।

ै।

ैं िकरे के गोश्त की। दो

ै इब्रा ीमपरु ा का।

ै।

ै।

उस तालाि के पीछे मस ु लमानों की एक नई आिादी िस गई

ै।

ये मस ु लमान िाद में इस नगर में आए और अमम ू न टायर, डेंहटिंग-पें हटिंग, प्लम्िर,

दजी, किाड़ आहद छोटे -मोटे ि​िंिे र्ाले मस ु लमान ैं। उत्तर-प्रदे श, झारखण्ड और बि ार से आकर िसे इन मस ु लमानों ने अपने ललए नई मजस्जद तामीर कर ली नाम रखा

ै ‘मदीना-मजस्जद’ और अपने मु ल्ले का नाम रख हदया

रसल ू परु ा की सीमा ज ािं समाप्त का इलाका।

ोती ै र् ािं से शरू ु

ोता ै ईदगा

ै जजसका

ै रसल ू परु ा।

और कबब्रस्तान

प ले उस इलाके में शाम ढले जाने में डर लगता था, लेफकन अि तो ऐसा लगता ै फक लोग कबब्रस्तान के मद ु ों को भगा कर र् ािं भी मकान िना लेंगे। सलीमा की चक्की के पास

ी िब्िन कस्साि की दक ु ान ै । ज ािं सि ु

सात िजे से

रात आठ िजे तक िकरे का गोश्त लमल जाता ै । िब्िन कस्साि के िगल में उसके छोटे भाई झब्िन की और सल् ु तान भाई की िाीयलर मग ु ी और अण्डे की दक ु ान ै । भरत कुमी और कुिा​ान अली की मछली की गम ु हटयािं भी उसी लाईन में सलीमा को याद

ै।

ै फक उसकी ह न्द ू स े ललयािं इब्रा ीमपरु ा आने से डरती थीिं। उन् ें

लगता था फक मािंसा ारी मस ु लमान लोग आदमख़ोर भी ु आ करते ैं। सिंस्कृत पढाने र्ाले उपाध्याय सर तो क्लास-रूम में सरे आम क ा करते थे फक ये मस ु ल्ले िड़े गन्दे

ोते

ैं। सप्ता

में एक िार न ाते

इनके घरों में अण्डा, मछली, मािंस पकता इनके मु ल्ले में िड़ी गिंदगी

ोती

ै।

इन मस ु ल्लों के घरों में िकरे -िकररयािं ि​िंिी

ै।

ैं।

ोती ैं जो चैिीस घण्टे लमलमयाती र ती

ैं। में गनी करती और मत ू ती र ती ैं। मग ु े-मधु गायों की तो पछ ू ो ी मत। इन सिके िीच


ये मस ु लमान अपने हदन-रात गुजारते इनके हदल में तननक भी दया न ीिं

ैं।

ोती।

ये जजस जानर्र को िड़ी शान और प्यार से पालते

ैं, फिर उसी जानर्र की गदा न

काटते ैं। गदा न काटते ैं तो र्ो भी िड़े इत्मीनान से जानर्र के गले पर चक्कू-चापड़ नघसते

ैं।

राम-राम, फकतने ननदायी

ोते

ैं ये मस ु ल्ले---

मस ु लमानों के समाज में औरतों की कोई इज़्जत न ीिं। औरतें अक्सर िीमार र ा करती

ैं।

र साल िच्चे पैदा करना मस ु लमानों का मज ि

ै।

इसीललए मस ु लमानों के मु ल्ले में िच्चों की िड़ी तादाद

ोती

ै।

न जाने क्यों मस ु लमान ज्यादा िच्चे पैदा करते ैं। निंग-े अिनिंगे गिंदे िच्चे गली-मु ल्ले में नछतराए र ते

ैं।

िच्चों और औरतों के िदन में कपड़ा ो न ो, लेफकन इन मस ु लमानों की रसोईयों में मािंस जरूर पकना चाह ए।

द तो ये ै फक जि इन मस ु ल्लों ने अपने ललए पाफकस्तान मािंग

का े जग

घेरने के ललए रूक गए!

प ले फकतनी कम आिादी थी इन मस ु ल्लों की य ािं।

नसि​िंदी का पर्रोि इन् ोंने फकया, क्योंफक इनके आका इन् ें िताते

ी ललया फिर य ािं

ैं फक आिादी

िढाकर अल्पसिंख्यक से ि ु सिंख्यक कैसे िना जाता ै ? सलीमा को उसकी ह न्द ू स े ललयािं इन् ीिं सि कारणों से धचढाया करतीिं।

उसकी पक्की स े ली मीरा ने एक हदन सलीमा से पछ ू ा था फक तुम लोगों में लड़कों को मस ु लमान िनाने के ललए खतना फकया जाता ै लेफकन लड़फकयों को कैसे मस ु लमान िनाते

ैं?

सलीमा क्या िताती।

लड़फकयािंीे का तो कोई मज ि न ीिं ोती, उनका कोई प्रान्त न ीिं

ोता, कोई जात न ीिं

ोती, कोई प चान न ीिं

ोता----.लड़फकयािं तो अपने-आप में एक मज ि

सलीमा क ािं समझा पाती इतना सि।

ैं।


इसीललए उसने मीरा से िात करना ि​िंद कर हदया।

क्या फ़ायदा ऐसी लड़फकयों से दोस्ती करके। जि उन् ें उसका मजाक

ी उड़ाना

ै।

स्कूल में भी तो जि दे खो ति पज ू ा-पाठ ोता र ता ै , क्या रखा ै इस पज ू ा-पाठ में । क्या पत्थर के दे र्ी-दे र्ता या तस्र्ीरों को पज ू ने से इनका भला

ोगा? र्

तो उनकी

रकतों पर कभी ऐतराज न ीिं करती ै । और ऐसा न ीिं ै फक सलीमा पज ू ा में शालमल

न ीिं

ोती थी। उसे सरस्र्ती र्िंदना याद

ै । गायत्री-मिंत्र याद

ै । र्

जानती

ै फक

चरणामत ृ कैसे ललया जाता ै , आरती के िाद दीपक की लौ की सेंक कैसे ली जाती ै , प्रसाद कैसे दाह ने जानती

ाथ के नीचे िािंई

ै । उसे दे खकर कोई न ीिं क

थेली रखकर ग्र ण फकया जाता सकता फक र्

फिर उसके मज ि का ये लोग क्यों मजाक उड़ाते

ै । र्

एक मस ु लमान लड़की

ैं, सलीमा समझ न पाती।

सि

ै।

सलीमा जानती ै फक लोग मस ु लमानों से चा े फकतनी नफ़रत करें , लेफकन गा े -िगा े उन् ें अब्िू की शरण में आना अब्िू के

ाथ में जाद ू जो

ै।

ी पड़ता

ै।

िड़ा ु नर हदया ै अल्ला -पाक ने उनके ाथों में । अपनी जर्ानी के हदनों में प लर्ान ु आ करते थे अब्ि।ू उनका नाम था म मद ू जो फक बिगड़कर िन गया था ‘मम्द ू प लर्ान’।

अजम्िकापरु के नामी प लर्ान िन्ने लमयािं की शाधगदी की थी उन् ोंने। िन्ने लमयािं

ड्डी और नस के अच्छे जानकार थे। अब्िू ने प लर्ानी से ज़्यादा िन्ने लमयािं से ड्डी

और नस की डाीक्टरी जान ली थी।

ड्डडयों के जोड़-जोड़ की जानकारी उन् ें

ै।

जजस्म की तमाम नसों को अपने इशारे पर नचा सकते

ैं र्ो।

नगर के परु ाने लोग अभी भी उनके पास ड्डडयािं बिठाने या फिर रा भटकी नसों को सीिी रा

पर लाने के ललए आया करते

ऐसे तमाम जरूरतमिंद लोगों को अब्िू सि ु

ैं।

चा े मरीज फकतना भी िड़ा आदमी क्यों न ये क कर लौटा दे ते-‘‘सि ु

िल ु ाया करते।

ो, कुसमय इलाज न ीिं करते।

आओ---नसों की स ी जानकारी सि ु

ी लमलती

ै ।’’

सलीमा की नीिंद सि िजजर की अजान की आर्ाज से न खल ु ु पाई तो फिर अब्िू के


मरीजों की आमद से खुलती अलस्सि ु

ै।

लोग चक्की र्ाले कमरे से लगे िा री कमरे की सािंकल िजाते

‘‘प लर्ान‘च्चा!’’

या फिर ‘मम्द ू प लर्ान

ैं।

ैं क्या?’’

अब्िू बिस्तर से उठते न ीिं।

बिस्तर पर लेटे ु ए सलीमा को आर्ाज दे ते ैं-‘‘दे ख तो िेटा, कौन आया ै ?’’ अब्िू की एक आर्ाज पर सलीमा झटके से बिस्तर छोड़ती ै । चे रे पर दोनों थेललयािं

फिराकर अिंदाज से िाल दरु स्त करती ै । फिर जल्दी से कपड़े की सलर्टें ठीक करती, दप ु ट्टा गले पर डालते ु ए चक्की के मेन-गेट पर लगे ताले को खोलने चली जाती ै । िा र खड़े लोगों के चे रे पर ददा की लकीरें दे ख र् उन् ें अिंदर आने का इशारा करती। चक्की का अिंिेरा गललयारा पार कर आिंगन के िाद रसोई से लगा कमरा अब्िू का ै । अब्िू की चारपाई के िगल में एक स्टूल रखा मरीज उस पर िैठ कर अपना दख ु िताता।

ै।

‘‘ि ु त ददा कर र ा ै ये र्ाला पैर, इसे जमीन पर रखिंू तो जैसे जान ननकल जाती ै ।’’ मरीज जमीन पर पैर जमा कर खड़ा ोने की कोलशश करता और उसके मिंु से करा ननकल जाती।

अब्िू बिस्तर पर पड़े टुकुर-टुकुर उस मरीज को नन ारते, कुछ न ीिं क ते। फिर लल ाफ़

टा कर उठ िैठते।

तफकए के नीचे से िीड़ी का कट्टा और माधचस ननकालते। एक िीड़ी सल ु गाते और फिर मरीज को स्टूल पर िैठने का इशारा करते।

इत्मीनान से िीड़ी ि​िंू क कर चारपाई से उठते और जमीन पर उकड़ू िैठ कर मरीज की एडडयों को इिर-उिर घम ु ाते। मरीज ददा से करा ने लगता। अब्िू के पतले-पतले ाथ उसके घट ु ने के पीछे जाकर जाने क्या करति करते फक मरीज एक ग री आ भर कर चप ु

ो जाता।

अब्िू र्ापस अपनी चारपाई पर िैठ जाते और मरीज से क ते फक एक-दो िार पैर झटको। र्

ऐसा

ी करता।


आश्चया! मरीज के चे रे पर छाई ददा की लकीरें अि न ीिं दीखतीिं।

मरीज अब्िू को िड़े आदर से दे खता तो अब्िू क ते फक नस चढ गई थी। गरम पानी में नमक डाल कर पैरों को दो-तीन िार िो लेना। मरीज इलाज से सिंतष्ु ट

ोकर अपनी जेि टटोलता।

अब्िू की िीस मात्र दस रूपए

ै । चा े उन् ें उस

जाएिं या फिर एक पल---

ड्डी को बिठाने में एक घण्टे लग

अब्िू पैसा अपने ाथ से न ीिं छूते। तफकया उठाकर इशारे से क ते फक तफकए के नीचे पैसा रख दो।

मरीज तफकए के नीचे रूपए डाल कर िड़ी श्रद्िा से उन् ें दे खता। आज के जमाने में इतना सस्ता इलाज!

कस्िे मेीेीिं अि तो कई लोग ैं जो इस ु नर के जानकार ैं, लेफकन मम्द ू प लर्ान की िात ी और ै । भल ू े-भटके एक-दो मरीज

दारू का खचा ननकल आता

र हदन अब्िू को लमल ै।

ी जाते ैं, जजससे उनकी शाम की

सलमा के ख़ानदान की मु ल्ले में कोई क़द्रो-क़ीमत न ीिं

ै । इसका कारण सलीमा

जानती ै । जैसे फक अब्िू की पपयक्कड़ी, अम्मी और मौलाना के फकस्से, सलीमा का नघनौना अतीत---

र्ैसे इस जमाने में दि ू का िल ु ा कोई न ीिं।

रे क चादर दागदार ै आजकल, लेफकन िन-दौलत का पदा​ा िदनालमयों को ढिं क लेता

ै और गरीिों की िदनालमयािं जिंगल की आग िन कर िैल जाती

सलीमा जानती कौन सा हदल

ै फक इस

माम में सभी निंगे

ै जजसमें दाग न ीिं!

िस, जमाने का दस्तूर य ी

ैं----

ै फक जो पकड़ाए र् ी चोर----

ैं।


अपन दहम्मत है फक हम फिर भ जिए िाते हैं क्या

ै फक अपने िन ु की पक्की सलीमा फकसी की परर्ा

उसने अपनी इस छोटी सी जजन्दगी में िड़े अनभ ु र् िटोरे उसने कम उम्र में

ी सिंसार की कई ऐसी

ैं।

क़ीक़तें जान लीिं थीिं फक जजनके ललए एक

इिंसान को कई-कई जन्म लेना पड़े। ये सच

न ीिं करती।

ै फक लोगों के मन में झािंकने की कला खुदा ने मदा की अपेिा औरत को

ज्यादा दी

ै।

ये भी सच ै फक गरीि औरत, अमीर औरत से प ले अच्छे -िरु े , स ी-गलत आहद में िका कर लेती

ै।

सलीमा एक तो लड़की

ै दज ू े गरीि ै और नछुः-नछुः मस ु लमान भी

ै!

इसका मतलि इस तथाकधथत सभ्य समाज में उसे प्रताड़ना, यातना और अपमान तो झेलना

ोगा। इस नत री मार से उसे कोई न ीिं िचा सकता।

सलीमा जजस समाज में र ती ै र् ािं फकसी स्त्री ने लसमोन द िआ ु र का नाम भी न ीिं सन ु ा ै । ीा तस्लीमा नसरीन, सनी-ललयोन, प्रभा खेतान आहद के िारे में र्े कुछ न ीिं

जानती ैं, लेफकन स्त्री-यौननकता, स्त्री-स्र्तिंत्रता और परू ु ष मानलसकता की िातें अपने ह साि से र्े अच्छी तर

जानने लगती

ैं।

इन् ीिं जस्त्रयों के िीच र कर सलीमा भी जानने लगी

ै फक लड़के और लड़फकयों की

जजन्दगी मिंी,े उनके फितरत में , उनके मस् ु तकबिल में िड़ा िका

ोता

ै । लड़कों को

मारा समाज एक र्रदान के रूप में दे खता ै और लड़फकयों की पैदाईश को अलभशाप

या दिं श के रूप में झेला जाता

ै।

लड़फकयािं िचपन से दब्ि,ू शमीली, डरपोक, र्ाचाल, िनार्टी और कमजोर सी ोती ैं

जिफक इसके िरअक्स लड़के दि​िंग, बि​िंदास, ननडर, उद्दण्ड, शानतर और जजस्मानी तौर पर मजित ू

ोते

ैं।

िचपन से ये करो, ये न करो सन ु ते-सन ु ते, लड़फकयों में आत्मपर्श्र्ास की कमी आ


जाती करते

सकते

ै जिफक स्र्च्छिं द लड़के जजद मिंीे आकर

ैं। िड़े-िड़े ररस्क लेने लग जाते ैं।

र तर

के काम करने का प्रयास

ैं। अकेले क ीिं भी, फकसी भी समय आ-जा

लेफकन जाने कैसे सलीमा ने जान ललया था फक लड़कों की श्रेष्ठता के पीछे कोई

आसमानी-र्ज न ीिं ै , क्योंफक जन्म से ी लड़कों को लड़फकयों की तुलना में ज़्यादा प्यार-दल ु ार, पोषण, लशिा, उधचत दे ख-भाल, स ू ललयतें और आजादी लमलती ै । लड़के परू े पररर्ार की आिंख का तारा ोते ैं और लड़फकयािं आिंख का कीचड़ या फकरफकरी!

इसीललए तो लड़कों में आत्मपर्श्र्ास कूट-कूट कर भरा र ता िचपन में भकुआए से भोंद ू हदखने र्ाले लड़के िड़े

ै।

ोकर फकतनी जल्द पररर्ार और

समाज पर राज करना सीख जाते ैं। जिफक पररर्ार की जजम्मेदाररयािं उठाती र्ाचाल लड़फकयािं िड़ी

ोकर कािंच के सामान की तर

ो जाती

ैं, जजन् ें िड़ी

ोलशयारी से

इस्तेमाल न फकया तो टूट जाने का अन्दे शा िना र ता ै । डरी-डरी, खामोश, सकुचाई लड़फकयों से सिंसार अटा पड़ा ै । ि ु त कम लड़फकयािं ैं जो परू ु ष-प्रिान समाज में अपने अजस्तत्र् की लड़ाई स्र्यिं लड़ती ैं।

सलीमा के िस एक िात समझ न आती फक ऐसी कौन सी चीज ै इज़्जत जजसे खोने का डर लड़फकयों में आजन्म िना र ता ै और लड़कों के साथ इज़्जत जैसी कोई शता या िाध्यता न ीिं र ती।

भले से सिंपर्िान और सिंसद जस्त्रयािंीे को अकूत अधिकार दे दे लेफकन जस्त्रयािं परू ु षों के मािात

ी उन सपु र्िाओिं का लाभ उठा पाती

ैं।

सलीमा ने अपने अनभ ु र्ों से जान ललया था फक ये सिंसार एक प्रयोगशाला इिंसान गजल्तयािं कर-करके सीखता

ै , क्योंफक जीना एक कला

ै , ज ािं

ै और पर्ज्ञान भी।

सलीमा अच्छी तर जानती ै फक अच्छे -अच्छे तुराम ख़ाी​ीिं, भख ू और गरीिी के आगे मात खा जाते

ैं।

अच्छे -अच्छे पर्र्ेकर्ान, समथा और योग्य हदग्गज समय की ठोकरें खा-खाकर िल ू -िस ू ररत

ो जाते

ैं।


फकस्मत के मारे ऐसे लोग नैनतक-अनैनतक, राम- लाल, पाप-पण् ु य और स्र्गा-नका के चक्कर में न ीिं ि​िंसते।

र्े अपना अजस्तत्र् िचाए रखने के ललए कुछ भी कर गज ु रने का जज़्िा रखते

ैं।

उनके काया को तथाकधथत सभ्य समाज चा े अपराि की सिंज्ञा दे या पाप की, उन् ें िका न ीिं पड़ता।

ऐसा मस ु ीितजदा इिंसान ये न ीिं सोचता फक उसके ह स्से में आई रोटी, राम की कमाई ै या

लाल की।

ऐसा इिंसान ये न ीिं सोचता फक र् अच्छा या िरु ा जो भी कर र ा ै उसे कोई दे खे या न दे खे, अल्ला दे ख र ा

ै ---

अल्ला दे ख के भी तत्काल क्या करे गा----र्ो तो जो भी करे गा, इिंसान की मौत के िाद ी।

इस पथ् ृ र्ी पर अधिकािंश लोगों का जीर्न इतना कहठन ै फक उन् ें जजीन्दगी पास न ीिं िल ु ाती और मौत दत्ु कारती र ती

ै।

ऐसे लोग मरने से न ीिं डरते, स्र्गा की लालच न ीिं करते और ठें गे पर रखते र्े जानते

फकसी तर

ैं।

ैं फक ये जन ू फकसी तर

मद ु ा​ा दफ़न

के नरक को

गज ु र जाए----..

जीर्न का एक-एक हदन काटा जाए----

र्े ये भी जानते र्े जानते

र तर

ैं फक ‘फिर क्या

ोगा, फकसको पता

अभी जजन्दगी का ले लो मजा----’’

ैं फक मरने के तत्काल िाद स्र्गा-नका का ननणाय न ीिं ोने के िाद क़ब्र में क़यामत आने तक पड़ा र ता

ै।

ोता।

कुरान-शरीफ़ में अल्ला ने क ा ै फक मने एक िररश्ता जरत इस्रािील को मक ु रा र फकया ै , जजसके

ाथ में सरू यानी शिंख ै ।

सरू ललए खड़े र ें । जि अल्ला

जरत इस्रािील की ड्यट ू ी ै फक

तआला उन् ें क े गा फक सरू ि​िंू क दो, और

इस्रािील सरू ि​िंू केंगे और सारी कायनात में कयामत आ जाएगी। सरू ज िरती के क़रीि आ जाएगा।

समद्र ु का पानी भाप िन कर उड़ जाएगा।

ाथ में

जरत


प ाड िल ू िन कर उडने लगें गे।

जि सि कुछ ख़त्म ो जाएगा, ति अल्ला तआला एक ि ु त पर्शाल मैदान में जजसे श्र का मैदान क ते ैं, सारे मद ु ों को इकट्ठा ोने का ु क्म दे गा। र् ािं फ़ररश्ते लोगों के पाप-पण् े ग िं े। ु य का ह साि करे ी​ी तभी अल्ला दोजख़ी

र्ैसे भी

ै।

तआला का ु क्म

ोगा फक िलािं शख़्स जन्नत का

क़दार

ै या ननरा

ाफिज, मौलाना अपनी तकरीरों में जजस दोजख़ यानी नरक का जजक्र करते

ैं, र्ो फकतना भी यातना दे ने र्ाला ो, इस सिंसार की भट्टी में तपते उनके जीर्न से

तो कम

ी भयार्

ोगा।

अभार्, ननिानता, भख ु मरी से जूझता उनका जीर्न फकसी नरक से कम तो न ीिं---गमा तर्े पर पानी की ि​िंद ू डालो तो छन्न से गायि गरीि का जीर्न उस गमा तर्े की तर से भाप िन कर उड़ जाती

ैं।

इन् ीिं घनघोर अभार्ों से दो-चार उसे र्

ो जाती

ै जजसमें सपु र्िाओिं की ि​िंद ू ें पड़ती ैं तो छन्न

ोती सलीमा कि सयानी

ालात ने सयाना कर हदया था।

अभी दस साल की

ो गई, र्

जान न पाई।

ी थी फक उसकी अम्मी घर छोड़कर चली गई।

अब्िू उस सदमे को झेल न पाए और नीम-पागल यहद दारू का स ारा न

ै।

ो गए।

ोता तो कि के मर-बिला गए

ोते अब्ि।ू

सलीमा अपने अम्मी-अब्िू की प ली सिंतान थी यानी घर िड़ी लड़की।

सलीमा के िाद दो िेहटयािं और इस सिंसार में आई, सरु ै या और रूकैया। प लौटी यहद िेटी

ो तो ग ृ स्र्ालमनी को अगले प्रसर् और अगले िच्चे को दे खभाल

के ललए आीटोमेहटकली एक आया लमल जाती ै । िड़ी िेटी जल्द ी इतनी समझदार ो जाती

ै।

ै फक अपने से छोटे भाई-िह नों का मािं की तर

ध्यान रखना सीख जाती

सलीमा ने अपने बिखरे पररर्ार को समेटने का अद्भत ु प्रयास फकया। अम्मी की त्रासदी के िाद से र्

एक कछुए की तर

िन गई।

उसने अपनी खाल को इतना कड़ा कर ललया फक कैसा भी प्र ार िेकार

ो जाए।


सलीमा िा री दनु नया के छल-प्रपिंच से अन्जान तो थी, लेफकन असार्िान न ीिं। इस परू ु ष-प्रिान समाज में स्त्री एक चज ू े की तर नन् े -मन् ु ने, भोले-भाले चज ू े----.

ी​ीे तो

ै।

जजन् ें मौका पाकर कुत्ते, बिल्ली या कव्र्े झपट्टा मार कर चट कर जाते

ैं।

ीिंइतने िड़े ज ान में , एक भोली-भाली लड़की से फकशोरी और फिर यर् ु ती िनने का सिर, जोखखम भरे रास्तों पर अपने दम चलकर तय फकया था सलीमा ने।

ताशा, ननराशा और मायस ू ी जैसे शब्दों से जल्द ननजात पाकर उसने आशा, उत्सा

और उमिंगों के सरु से अपने जीर्न को।

फिर जमाने की ठोकरों से उसने जान ललया फक औरत को अल्ला ने मदों की तुलना में एक अनतररक्त कुदरती औजार हदया जजस्म का

धथयार।

औरत के ललए एक ऐसा कमजोरी भी।

ािं, औरत को इस

ये ऐसा अस्त्र

धथयार

ै।

ै जजस्म जो उसकी ताक़त भी

ै और उसकी

धथयार के इस्तेमाल का सिक़ य ी समाज दे ता

ै।

ै जजसके जररए औरत अपनी तमाम जरूरतें परू ी कर सकती

चा े तो दौलत का अिंिार लगा सकती

ै।

ै ---

और जजसके पास दौलत न ीिं उसके ललए कैसा घर, कैसा दर, कैसा समाज, कैसा र्तन---

एक िार दौलत पास आ जाए, फिर सिंसार में और कोई मजु श्कल न ीिं! िस्स--------.एक ै।

ी मजु श्कल ै फक ये

धथयार िाजार में िड़ी जल्दी भोथरा

फिर उसकी मारक-िमता िीरे -िीरे खत्म सच ै, दे

ोती जाती

ै।

ो जाता

से िनोपाजान के ललए ि ु त ी सीलमत समय र ता ै औरत के पास----..


सिना है मुझे--अब्िू की

ालत दे ख-दे ख सलीमा दख ु ी

जैसे अि

ो गए

ो जाती।

ैं अब्ि,ू इतने कमजोर प ले न थे।

एक जमाने में अब्िू प लर्ानी भी फकया करते थे।

अि तो र्े िस आटा-चक्की के िा र कुसी पर िैठे िीड़ी ि​िंू कते र ते ग राते

ी दारू पीने के चक्कर में भट्टी की तरि चले जाते

य ी उनका शगल

ै।

जि से अम्मी ने अब्िू का दामन छोड़ा अब्िू की ये

ालत

ैं और शाम

ैं।

ो गई

ै।

सलीमा से छोटी सरु ै या तो न ीिं, लेफकन छुटकी रूकैया एकदम अम्मी पर गई र्ैसे

ी साि रिं गत, पानीदार चे रा, कटीली-कजरारी आिंखें, भरे -भरे गाल!

ै।

अब्िू जि भी रूकैया को दे खते, ख़ामोश र ते। रूकैया उनके जजगर का टुकड़ा ै । उसे

ि ु त प्यार करते। फिर उनकी आिंखें भर आया करतीिं। र्े अम्मी की याद में खो जाते। खोएिं भी क्यों न! अम्मी थीिं

ी रूई के िा े जैसी नमा-मल ु ायम-सिेद और फकसी शा जादी जैसी

नफ़ासत-नजाकत से लिरे ज। कोई सोच भी न ीिं सकता था फक आटा-चक्की में काम करने र्ाले एक मामल ू ी व्यजक्त के घर इतना क़ीमती खजाना

ोगा।

सलीमा एक हदन अब्िू के कमरे में सिाई कर र ी थी तो एक परु ानी कापी में उसने कुछ तस्र्ीरें नछपी दे खीिं। पािंच तस्र्ीरें थीिं। फकसी मीना-िाजार में लगता

ै तस्र्ीरें खखिंचर्ाई गई थीिं।

एक तस्र्ीर में कश्मीर की र्ाहदयों के िैक-ग्राउण्ड में खीिंची गई अब्िू और अम्मी की तस्र्ीर। अब्िू कुछ लजाए-शरमाए हदख र े थे जिफक अम्मी बि​िंदास मस् ु कुराते ु ए कैमरे को दे ख र ी थीिं। फकतनी खूिसरू त थीिं अम्मी।

िाकी की तस्र्ीरें अम्मी की थीिं, जजसमें मम् ु िई की इमारतों के पदे के सामने अम्मी

कई मद्र ु ा में तस्र्ीरें खखिंचर्ाई ु ई थीिं। अम्मी फकसी ीरोईन की तर नजर आ र ी थीिं।


रिं गीन तस्र्ीरों में एक िात गौर करने र्ाली ये भी थी फक अम्मी ने लसिंदरू लगाया था और लाल रिं ग की िड़ी सी बिन्दी उनके चे रे को और भी आकषाक िना र ी थी। सलीमा ने सोचा फक अम्मी िेशक फ़रीदा जलाल जैसी हदखती जलाल न ीिं िजल्क जर्ानी र्ाली फ़रीदा जलाल जैसी----.

ैं। अि की फ़रीदा

अम्मी के गाल पर फ़रीदा जलाल के गाल जैसे डडम्पल िनते। उनकी आिंखें कुदरती कजरारी थीिं।

िदनसीि अब्िू के पास लसर्ाए गरीिी और फ़ाकाक़शी के और कोई दौलत न थी। य ी गरीिी उनके सख ु -चैन की दश्ु मन िनी। अब्िू र्

ाजी जी की आटा चक्की में मल ु ाजजम ु आ करते थे। िड़ी जजम्मेदारी के साथ काम फकया करते।

आटा-चक्की की ररपेयर खद ु

ी कर ललया करते।

थोड़ा ि ु त पढे -ललखे थे सो ग्रा कों के गे ूिं आहद तौल कर पची और रजजस्टर में नाप-तौल दजा कर हदया करते। ाजीजी को उनसे िड़ा आराम था। र्ैसे चक्की में और भी कई कारीगर थे, लेफकन अब्िू

ाजीजी के सिसे ज्यादा पर्श्र्ासपात्र थे।

ाजीजी की चक्की में लसिा गे ूिं ी न ीिं पपसता था, र् ािं तेल पेरने की मशीन भी थी। िान से चार्ल ननकालने की मशीन और मसाला पीसने की चक्की भी थी। अब्िू चक्की में लगने र्ाले भारी गोलाकार पत्थरों की टिं काई का काम भी फकया करते थे।

उनके पास छोटी-छोटी कई तर य ी कारण था फक

की िारदार छे ननयािं और

थोडडयािं थीिं।

ाजीजी अब्िू को ि ु त मानते। ईद-िकरीद के मौक़े पर िख़्शीश ितौर सलीमा के सारे पररर्ार के ललए कपड़े ाजीजी

के घर से आतेीे। िच्चों को अलग से लसर्ैंयािं खाने को लमलतीिं और अलग से ईदी भी। छोटे -छोटे सपने दे खते, छोटी-छोटी खुलशयों के साथ उनकी जजन्दगी के हदन ठीक-ठाक गुजर र े थे।

फिर भी अम्मी का हदल उस घर में न ीिं लगता था।

तीन-तीन िेहटयािं जनने के िाद भी अब्िू उनसे िेइिंते ा प्यार करते थे। दादी-अम्मी पोते का आस ललए अल्ला

को प्यारी

ो गईं।


अब्िू

र र्क्त अम्मी का ख्याल रखते।

उन् ें फकसी फकस्म की तकलीि न अि र्

चा े कपड़े िोना

ो इसका परू ा ध्यान रखतेीे।

ो, या िा र से पानी लाना या फिर िच्चों के पोतड़े िोना।

अब्िू अम्मी को परू ा आराम दे ते और घर के अधिकािंश काम खद ु करतेी।े

जि सलीमा पािंच-छ िरस की ो गई तो उसने भी अब्िू के काम में कर हदया।

ी ननपटा हदया

ाथ ि​िंटाना शरू ु

सलीमा को िरु ा लगता फक अम्मी के र ते अब्िू जि-ति अब्िू नाश्ते की रोहटयािं खुद ी िना-खाकर काम पर चले जाते।

र्

ना क अम्मी को आर्ाज लगाकर न जगाते।

इसीललए अम्मी िे द आलसी और आराम-पसिंद थीिं। ऐसा लगता फक फिल्म पाकीजा के एक सीन की तर से य ी क

अब्िू बिस्तर पर पसरी अम्मी

उठें गे--‘‘अपने पािंर् जमीन पर मत रखखए----मैले

ो जाएिंगे!’’

अम्मी िच्चों को और अपने शौ र को फकसी नौकर-चाकर की तर

माना करतीिं।

पानी-पानी धचल्लाती पड़ी र ती लेफकन खुद उठकर एक धगलास पानी न ीिं पी पाती थीिं। ािं, इसका मतलि ये न ीिं फक र्

गू-मत ू में लसड़ाई र ती

सजे-सिंर्रे र्ो घर की चैखट के िा र क़दम न रखा करतीिं।

ों, अरे न ीिं िजल्क बिना

सिंर्रने में उन् ें घण्टों लग जाएिं तो लगें , र्े िड़े इत्मीनान से सजती-सिंर्रतीिं थीिं। नीिंद खल ु ने के साथ अम्मी लसर ाने रखे छोटे से आईने में अपना चे रा दे खतीिं। अपनी फकचडडयाई आिंखें साि करतीिं।

जल्दी-जल्दी उलझे िालों को किंघी से दरु स्त करतीिं।

फिर ननत्य-कमा से िुसात पाकर आिंगन र्ाले िड़े आईने के सामने आकर, अपने लम्िे िालों पर किंघी करतीिं और चे रे पर सस्ता पाउडर लगातीिं। आिंखों में सरु मा डालतीिं।

सलीमा पर अम्मी मेशा गुस्सा फकया करतीिं फक सलीमा उनकी ललपपजस्टक को िरिाद कर दे ती थी।

र्ैसे भी लड़फकयािं िचपन से िनार्-श्रिंग ृ ार के प्रनत अधिक लगार् रखती फिर जि सरु ै या थोड़ी जानकार ु ई तो र्

ैं।

भी ललपपजस्टक-पाउडर की दश्ु मन िनने


लगी।

फिर घर में रूकैया नामक खखलौना आया तो दोनों िड़ी ि नें लमलकर रूकैया का श्रिंग ृ ार

फकया करतीिं। इस चक्कर में अम्मी का स्नो-पाउडर, क्रीम, ललपपजस्टक, सरु मा िरिाद ोता और एर्ज में तीनों ि न अम्मी से पपटती भी थीिं।

घर में आमदनी के सािन तो जैस-े तैसे थे, फिर अम्मी के पास नई-नई साडडयािं क ािं से जग ु ाड़ कर लेती थीिं, ये न अब्िू ने कभी जानना चा ा और न सलीमा जान पाई।

अम्मी को लसलाई-कढाई भी करती थीिं और अपनी िजच्चयों के ललए परु ानी साडडयों से फ्राीक, सलर्ार-सट ू और दप ु ट्टे लसल हदया करती थीिं।

इसीललए सलीमा, रूकैया और सरु ै या तीनों िह नें अम्मी की चापलस ू ी फकया करतीिं। अम्मी की खखदमत दौड़-दौड़कर फकया करतीिं।

लेफकन अम्मी के हदलो-हदमाग में तो एक अलग खखचड़ी पक र ी थी----.

जजसके िारे में न अब्िू जानते थे, न तीनों ि नें और न आस-पास का समाज----.


ततररया चररत्तर सलीमा के जे न मिंीे ल्की सी याद ै उस नामरु ाद मौलाना क़ादरी की, जजसने अम्मी को अपने र्ाग्जाल में ि​िंसाया था।

मौलाना क़ादरी पैंतीस साल का आकषाक शख़्स था।

गोरा-धचट्टा, दरलमयाना क़द। चे रे पर कम मिंछ ू और ज्यादा दाढी। िाल काले-घने और गरदन तक झल ू ते ु ए। लसर पर गोल टोपी खपकाए र ता। कुता​ा-पैजामा, मस ु लमानी जैकेट और किंिे पर शतरिं जी स्कािा----ये िात

ै फक इस

पोशाक के जररए मौलाना क़ादरी आसानी से प चान में आ जाता था। कभी-कभी मौलाना लसर पर सिेद टोपी पर

री पगड़ी भी लपेट ललया करता था।

मौलाना क़ादरी की आर्ाज िड़ी मिरु थी।

र्ो अक्सर मजस्जद से अजान हदया करता तो सन ु ते र

जाते। उसका तलफ़्फ़ुज

परिेक्ट था। मौलाना क़ादरी की आमद के िाद मु ल्ले में आए हदन मीलाद की

म फिलें सजने लगी थीिं। मौलाना जजस तरीके से पैगम्िर जरत मु म्मद की जीर्नी और उनकी लशिाओिं के िारे में मीलाद फकया करते और फिल्मी गानों की तजा पर नात-ख़्र्ानी करते उससे उसकी ख्यानत आस-पास की मस ु लमान िजस्तयों में भी लगी थीिं।

ोने

मजे की िात ै फक मौलाना क़ादरी से प ले मु ल्ले में ऐसे ि ु रिंगी-प्रनतभार्ान मौलाना न ीिं थे।

मु ल्ले की जामा-मजस्जद में िज ु ग ु ा ाफिज थे जजन् ें सभी मस ु लमान िड़ी श्रद्िा से िड़े ाफिज्जी क ा करते थे।

िड़े

ाफिज्जी एक पर े जगार, इल्मो-दीन के जानकार और गुपचप ु इिादत में यक़ीन

िड़े

ाफिज्जी अपनी तकरीरों में सभी मस ु लमानों को पािंच र्क़्त नमाज पढने की

रखते थे। क ते ैं फक र् त ज्जुद-गुजार (रात िार िजे के िाद ब्रम् ा-मु ू ता से पर् ू ा पढी जाने र्ाली नमाजें) भी थे। सला

हदया करते। रोजा, जक़ात आहद फ़रायज परू ा करने का ु क्म दे ते। क ते फक


नमाज की पाि​िंदी इिंसान को सारी िरु ाईयों से रोकती ै । नमाज दीन का अ म सत ु ून

यानी स्तम्भ ोता ै । इन् ीिं पिंच-र्क्ता नमाजों के स्तम्भ पर इस्लाम की इमारत खड़ी ै । नमाज की पाि​िंदी न करके यहद मस ु लमान अन्य दस ू री इिादतें करे तो उसका

उद्िार न ीिं

ोता। अल्ला -तआला और उसके पैगम्िर को नमाज सिसे अजीज

ै।

लेफकन मौलाना क़ादरी के आने के िाद मस ु लमानों की जजन्दगी में नमाज की जग

मीलाद की म फिलें रौनक ोने लगीिं। लोग अपने घरों में और मजस्जदों में मीलाद की म फिलें सजाने लगे। दे र रात तक मीलाद और दरूदो-सलात नमाज के र्क्त मजस्जदों से नमाजी गायि

ोने लगे।

ोता और सि ु

की

इन मीलादों के जररए मौलाना क़ादरी अच्छी आमदनी करने लगा।

इसके अलार्ा मौलाना झाड़-ि​िंू क भी फकया करता। अलशिा, गरीिी और असपु र्िाओिं से

जझ ू ते ननम्न-मध्यम र्गीय मस ु लमान औरतों और िजच्चयों पर जजन्न और खब्िीस के साए आने लगे। मौलाना के झाड़-ि​िंू क से जाह ल औरतें और िजच्चयािं ठीक लगीिं।

लाइलाज िीमाररयों को शैतानी

ोने

रकत िता कर मौलाना लम्िी रकम एिंीेठता और

क ता फक शैतान या जजन्न ि ु त तगड़ा ै , इसके ललए मझ ु े धचल्ला करना ोगा। यानी चालीस हदनों तक सािना करनी ोगी ति जाकर जजन्न से पीछा छूटे गा। लोग उसकी िातों में आ जाते और मौलाना के ललए नजराना जुटाने के ललए जी तोड़ मे नत करते।

मौलाना क़ादरी के पैर कस्िे में जि से पड़े, मु ल्ले के मस ु लमान दो गुट में ि​िंट गए। मौलाना क़ादरी, िात-िे-िात जामा मजस्जद के िड़े

करता और उन् ें नीचा हदखाने की कोलशशें करता। र्

चा ता था फक मजस्जद में िड़े

ाफिज्जी की गजल्तयािं ननकाला

ाफिज्जी िज ा ार की इज़्जत कम ु ग ु र्

र्ो उनके नमाज पढाने के तरीके की ननिंदा फकया करता। िड़े और नतलार्त की ख़ालमयािं धगनाया करता।

ो जाए।

ाफिज्जी के तलफ्िुज

र्ो चा ता था फक िस्ती के लोगों में उसके इल्मो- ु नर की िाक जम जाए तो फिर पौ िार ---

िड़े ाफिज्जी गण्डा-तार्ीज, झाड़-ि​िंू क आहद से जाह ल मस ु लीमानों को िरगलाया न ीिं करते थे। र्े क ते थे फक िीमार पड़ने पर अल्ला से र म की दआ ु मािंगो। कसरत से


नमाज पढो। कुरआन शरीि की नतलार्त करो।

यहद फिर भी िीमारी ठीक न ो तो कस्िे के डाीक्टर के पास ले जाओ। इन्शाअल्ला लशफ़ा लमलेगी--िड़े

ाफिज्जी अक्सर अपनी तकरीरों में क ते फक अल्ला

को पाने के ललए कोई

आसान नस् ु खा न ीिं ै । इसके ललए जजतनी इिादत की जाए कम ै । इिंसान को ज्यादा से ज्यादा समय अल्ला

की गुणगान करना चाह ए और िरु ाईयों से िचना चाह ए।

पािंच-छ सौ मस ु लीमानों की ऐसी िस्ती का इकलौता िमागुरू िनने का ख़्र्ाि मौलाना क़ादरी को सताया करता था।

मजस्जद के रख-रखार् और इमाम-मअ ु जज्जन की तनख़्र्ा

र्गैरा के ललए िस्ती के

मस ु लमान चिंदा हदया करते थे। िड़े ाफिज्जी की दे ख-भाल में मजस्जद के स न में एक मदरसा भी चलाया जाता था जजससे िच्चों की दीनी-तालीम लमल जाती थी।

इसका मतलि ये था फक यहद मौजद ू ा िड़े ाफिज्जी को उखाड़ िेंका जाए तो मौलाना क़ादरी के हदन फिरते दे र न लगे। इसीललए मौलाना क़ादरी, िड़े

ाफिज्जी के खखलाफ़ अर्ाम को भड़काया करता और

अपना उल्लू सीिा फकया करता था।

कम पढे -ललखे, िमा-भीरू, आस्थार्ान आदलमयों और जाह ल औरतों को मौलाना क़ादरी उकसाया करता फक नमाज-रोजा से कुछ न ीिं पाने के ललए फकसी भी तर िरकत टपके।

ालसल

ोता। दोनो ज ान में ननजात

अपने घरों में मीलाद-शरीि की म फिल सजाओ तो

मीलाद-शरीि के आयोजन का मतलि था फक कम से कम चार-पािंच सौ रूपए की

चपत। मीलाद-शरीि के खात्मे पर िािंटी जाने र्ाली लशरनी (प्रसाद) लाओ। इत्र-िुलेल, अगरित्ती की व्यर्स्था करो। माईक-िाजा लगर्ाओ। कव्र्ाललयों के कैसेट िजाओ।

मीलाद के िाद खाने की दार्त न दो तो लोग न ीिं जुटते। खाली लमलाद सन ु ने क्यों आएिं लोग। सो तीस-चालीस आदलमयों के ललए गोश्त-पल ु ार्-जदा​ा का ि​िंदोिस्त?

मीलाद-शरीि पढने का नजराना कम से कम एक सौ एक रूपए मौलाना क़ादरी के ललए---

मैलाना क़ादरी की आर्ाज िड़ी हदलकश थी।


र्

ों।

जि नात-शरीफ़ पढते तो लगता जैसे मु म्मद रिी बिना सिंगीत के गीत गा र े

उनके अधिकािंश नातों की तजा परु ाने फिल्मी गानों की पैरोडी टाईप ु आ करती थाी​ी​ीिंसलीमा जानती ै र्े गाने जजन की िन ु पर मौलाना क़ादरी नात तैयार करते थे।

जैस,े ‘गुजरा ु आ जमाना, आता न ीिं दि ु ारा, ाफिज खुदा तुम् ारा’, ‘सौ साल प ले मझ ु े तुमसे प्यार था, आज भी ै और कल भी र े गा’, या ‘मु ब्ित की झठ ू ी क ानी पे रोए’ आहद गानों की तजऱ् पर नात तैयार की जाती थीिं, जो सन ु ने में िड़ी मिरु लगतीिं।

इसीललए गरीिी-िेकारी और अलशिा से जूझते िस्ती के मस ु लमानों में उनके नानतया कलाम लोकपप्रय

ोने लगे थे।

अम्मी अक्सर मौलाना क़ादरी के नानतया कलाम को गन ु गन ु ाया करतीिं। मौलाना क़ादरी अब्िू से लमलने एक िार सलीमा के घर आए। अब्िू तो काम पर गए थे। सलीमा ति छोटी थी।

सलीमा ने घर का दरर्ाजा खोला और मौलाना क़ादरी की फितरती आिंखें दे ख उसने उसे ये क

कर टरकाना चा ा था फक अब्िू काम पर गए

अम्मी उस र्क़्त न ा र ी थीिं।

जाने कैसे अम्मी ने जान ललया फक मौलाना आया

ैं। घर में कोई न ीिं

ै।

ै।

उनकी आर्ाज आई-‘‘सलीमा, मौलाना सा ि को टपररया में बिठाओ!’’ ति आिंगन और सड़क के िीच में ज ािं आज चक्की

ै , र् ािं पर टट्टर से घेर कर

खपरै ल की छप्पर र्ाली एक िैठकी िनाई गई थी। अब्िू उसे टपररया क ा करते थे। उसमें एक चारपाई डली र ती थी।

अब्िू को िकररयािं और मधु गायािं पालने का शौक़ था। रात में िकररयािं उसी जग िािंिी जाती थीिं और मधु गायों को िड़ी-िड़ी टोकररयों में ढािंप कर रखा जाता था।

मौलाना क़दरी टपररया में बिछी चारपाई पर आ िैठे। नन् ी सलीमा ने गौर फकया फक उनकी ननगा ें उसे घरू कर र ी ठीक न ीिं लगीिं।

ैं। जाने क्यों सलीमा को मौलाना क़ादरी की ननगा ें


गलमायों के हदन थे। सुि के दो िज र े

के दस-ग्यार

िजे

ोंगे, लेफकन लगता ऐसे था जैसे दप ु र

ों। गमी िे द थी। मौलाना क़ादरी किंिे पर डाली गई रे -सिेद चैखाने

र्ाले गमछे से पिंखा करने लगे। उनकी ननगा ें िार-िार झोंपड़ी के अिंदर का जायजा लेती हदखलाई पड़ र ी थीिं।

अम्मी उस समय आिंगन के कोने में िोरे से घेर कर िनाए गए गस ु लखाने में न ा र ी थीिं।

अम्मी की एक ि ु त ी गिंदी आदत थी, जजससे सलीमा को काफ़ी धचढ ु आ करती थी। ोता ये था फक अम्मी जि भी गुसलखाने से न ाकर िा र ननकला करतीिं, उनके गीले जजस्म पर लसिा ल िं गा और ब्लाउज ु आ करता था। सीने पर र् गीला गमछा डाल कर गुसलखाने से झोंपड़ी की तरि लगभग भागते ु ए घस ु ा करती थीिं। इतने कम समय में भी उनकी नारी-दे की भरपरू नम ु ाईश ो जाया करती थी। उस हदन भी ऐसा

ी ु आ। अम्मी को जिफक मालम ू था फक िा र टपररया में मौलाना क़ादरी आकर िैठे ु ए ैं। फिर भी र्े गुसलखाने से अपने उघड़े जजस्म को स े जते भागती ु ई झोंपड़ी के अिंदर घस ु ीिं, लेफकन मौलाना क़ादरी की ननगा ों को दे र तक सलीमा ने उस रास्ते का पीछा करते पाया।

कपड़े प न कर, अपने गीले िालों पर गमछा लपेटे अम्मी जि िा र आईं तो िला की ख़ूिसरू त लग र ी थीिं। गमी की लशद्दत से मौलाना िेचन ै थे।

अम्मी ने मौलाना क़ादरी की खखदमत के ललए या सलीमा को र् ािं से टरकाने के ललए सलीमा को नीिंिू का शिात िना लाने को क ा। सरु ै या और रूकैया िा र खेलने गई थीिं। सलीमा शिात िनाने चली गई।

इस िीच पता न ीिं अम्मी और मौलाना क़ादरी में क्या-क्या िातें मौलाना क़ादरी फिर अक्सर उनके घर आने लगा।

ोती र ी थीिं।

अब्िू सि काम पर ननकलते तो फिर दे र रात घर र्ापस आते। अगर काम का दिार् ु ज़्यादा र ा तो फिर परू ी रात घर न आते।

मौलाना क़ादरी आते तो जाने क्यों नन् ीिं सलीमा को ि ु त िरु ा लगता था।


लगता भी क्यों न! र् िच्ची थी तो क्या अच्छाई-िरु ाई की कुदरती समझ तो र उम्र में इिंसान को

ोती

ै।

मौलाना क़ादरी ने एक हदन उसे िड़े प्यार से अपने पास िल ु ाया था। र्

शमा​ाते-शमा​ाते उनके पास गई।

मौलाना ने उसे अपनी गोद पर बिठाया और उसके गाल को चम ू ा।

सलीमा ने झट से अपने गाल साि फकए। मौलाना ने उसके गाल पर थक ू लगा हदया था। सलीमा को इस तर प्यार करने र्ाले इिंसान क़तई पसिंद न थे। र् तत्काल उनकी गोद से उछलकर भाग गई थी।

सलीमा की अम्मी कि मौलाना की दीर्ानी िन गईं उन् ें पता न चला---

सलीमा को र्ो हदन आज भी याद ै जि उसने अपनी अम्मी और मौलाना क़ादरी को अन्दर र्ाले कमरे में अब्िू के बिस्तर पर गत्ु थम-गत्ु था दे खा। अम्मी नीचे दिी ु ई थीिं। मौलाना अम्मी पर सर्ार थे।

अम्मी के गले से दिी-दिी ऊ--- आिं--- की आर्ाजें ननकल र ी थीिं। र्ो माजरा दे ख सलीमा डर गई। र्

शिे-िरात का दस ू रा हदन था।

उसकी समझ में जि कुछ न आया तो र् दौड़ी-दौड़ी ाजी सा ि की चक्की जा प ुिं ची। र् ािं अब्िू तेल पेरने र्ाली मशीन से सरसों का तेल ननकाल र े थे। सलीमा को आया दे ख उन् ोंने मशीन का जस्र्च आीि फकया और सलीमा को अपने पास िल ु ाया। सलीमा की सािंसें िूली ु ई थीिं। उसने िुसिुसाते ु ए अब्िू को घर का आिंखों दे खा अब्िू भागे-भागे सलीमा के साथ घर आए।

ाल क

सन ु ाया।

दे खा फक सरु ै या और नन् ीिं रूकैया आिंगन में एक चारपाई पर सोई ु ई ैं और झोंपड़ी का दरर्ाजा लभड़का ु आ ै । अब्िू ने दिे पािंर् दरर्ाजा खोला तो भीतर का

ाल दे ख दिं ग र

गए।

अम्मी को काटो तो खन ू न ीिं और मौलाना क़ादरी झटपट कपड़े उल्टे -सीिे प न भाग गया।


अब्िू क ें तो क ें फकससे।

उन् ें जिरदस्त सदमा प ुिं चा। र्े फिर कई हदनों चक्की न ीिं गए। अम्मी और अब्िू में िोल-चाल ि​िंद

ो गई।

उिर एक हदन सलीमा िा र खेल र ी थी फक उसे मौलाना क़ादरी हदखलाई हदए।

सलीमा ने दे खा फक अम्मी घर के िा र टपररया तक आई ैं। फिर मौलाना क़ादरी और अम्मी में जाने क्या िातें

ु ईं र् जान न पाई। उसने सोचा था फक र् अब्िू को इस मल ु ाक़ात के की िन ु में भल ू गई। सलीमा को याद

िारे में िताएगी, लेफकन र् खेल

ै फक उस रात अम्मी ने िड़े शौक़ से खाना िनाया था।

घर में सजब्जयािं न ीिं थीिं।

ािं, आलू की रसेदार सब्जी में अम्मी ने आमलेट के टुकड़े तैरा हदए थे। आमलेट जि

शोरिे में तर ो जाता ै तो ि ु त अच्छा लगता ै । अपनी दोनों ि नों के साथ सलीमा ने ि ु त चटख़ारे लेकर उस सब्जी खाई थी। सि ु

उसे अब्िू ने सलीमा को जगाकर अम्मी के िारे में पछ ू ा।

सलीमा उनीिंदी क्या िताती?

उसने सोचा फक अम्मी शायद ट लने गई ों, कुछ दे र में आ जाएिंगी। सरू ज आसमान पर चढता गया लेफकन अम्मी न आईं। सरु ै या और रूकैया अम्मी-अम्मी की रट लगाकर

खि ू रो र ी थीिं। सलीमा ने अब्िू के क ने पर मु ल्ले में आस-पास अम्मी को खोज दे खा। कुछ पता न चला।

दप ु र में जु र की अजान के र्क़्त अब्िू घर आए। उनके क़दम लड़खड़ा र े थे। उन् ोंने पी रखी थी।

सलीमा उन् ें दे ख कर रो पड़ी।

उसे अम्मी की याद सता र ी थी। अम्मी जाने क ािं चली गई

ैं।

अब्िू लड़खड़ाती जि ु ान से अपनी िीर्ी को गाली िक र े थे, साथ-साथ मौलाना क़ादरी


की दइया-मइया एक फकए ु ए थे। घर में तीन प्यारी िेहटयािं और एक मे नत-कश शौ र को छोड़ कर अपने आलशक मौलाना क़ादरी के साथ क ीिं भाग गई थीिं।

ति जाकर नन् ीिं सलीमा को समझ में आया फक आखखर चक्कर क्या

ै?

उसने अब्िू को िताया भी फक अब्ि,ू कल दप ु र के समय मौलाना क़ादरी अम्मी से लमलने आए थे।

अब्िू ने उसे घरू कर दे खा था, फिर र् पसर गए थे।

ननढाल

ोकर टपररया पर पड़ी चारपाई पर

सलीमा उस हदन अचानक एक जजम्मेदार औरत में तब्दील र्

ो गई थी।

लकड़ी का चल् ू ा सल ु गाकर काली चाय िनाना जानती थी।

उसने सरु ै या और रूकैया को चप ु र ने का इशारा फकया और रसोई में जा घस ु ी थी। िड़ा अजीि लगा था बिना अम्मी के रसोई-घर--चल् ू ा अम्मी रात

ी साफ़ करके गई थीिं।

उसने एक कोने में रखा आटे का कनस्तर टटोला।

उसमें आिा कनस्तर आटा था।

फिर उसने चल् ू े के पास रखे कई डडब्िों को खोलकर दे खा। फकसी में शक्कर, फकसी में चायपत्ती, फकसी में नमक और फकसी में गरम मसाला था।

उसने आटा माड़ने र्ाली थाली लेकर प ले अिंदाज से आटा गिंथ ू ललया। फिर लकड़ी सल ु गाने लगी फक अब्िू आ गए। र्

माथा पकड़ कर र् ीिं सलीमा के पास पीढे पर िैठ गए।

आग सल ु ग जाने पर सलीमा ने तर्ा चढाकर उसे गमा सरु ै या और रूकैया ति तक उसके पास आ चक ु ी थीिं

ोने हदया।

रूकैया तो अब्िू की गोद में दि ु क गई, लेफकन सरु ै या अपने नन् े -नन् े की लोई िनाने लगी।

ाथों से आटे

सलीमा ने िेलन-चैकी पर रोटी जो िेलनी शरू ु कीिं तो पतली-मोटी, टे ढी-मेढी रोहटयािं िटािट िनने लगीिं।

प ली रोटी उसने शक्कर के साथ रूकैया को खाने को दी।

अब्िू ने रोटी के अिंदर शक्कर भरकर उसका ‘रोल’ िना हदया।


रूकैया मरभक् ु खों की तर दािंत से काट-काट कर गपागप रोटी खाने लगी तो अब्िू की​ीे आिंखों में आिंसू आ गए।

उन् ोंने जान ललया फक उनकी िड़ी बिहटया सलीमा ‘ ु लशयार’ ो गई ै और र् अपनी ि नों की दे खभाल कर लेगी।


िो दिखता है , वही बबकता है ---सलीमा ने कमलसनी में ये एक ऐसी कला

ी अपने जजस्म को एक उत्पाद िनाने की कला सीख ली थी।

ै जो फकसी पर्श्र्पर्द्यालय की डडग्री की मु ताज न ीिं

ै।

कुदरतन लड़फकयों ि ु त जल्द अपने जजस्म के प्रोडक्ट-र्ैल्यू को जानने लग जाती ैं। र्ैसे तो लड़फकयािंीे को उत्पाद में िदलने की महु म या षडयिंत्र सारी दनु नया में चली ु ई ै। र्ो चा े िैशन के माध्यम से ो, चा े जजस्म-ट्रे फिफकिंग से ो, चा े लसनेमा, िार, ोटलों के माध्यम से

ो।

नए-परु ाने श रों में कोठे और जजस्म की मिंडडयों के ललए फकतनी ललक र ती

आम-श ररयों के मन में । नगर-र्िु और दे र्दालसयों के ि ाने भी लड़फकयों को एक उत्पाद में िदलने के ललए प्रथा तो सहदयों परु ानी

ैं, जि दरू रयािं कम

ी। आज के दौर में जि

पर्श्र्-ग्राम के नागररक

ो गए

ो गई

जरूरतों को परू ा करती

ैं और पोना-िाजार एक म ा-िाजार िन चक ु ा

ैं, जि सच ू ना-क्रािंनत का

म ापर्स्िोट ो चक ु ा ै ति य ी लड़फकयािं काील-गला के रूप में समाज की अर्ािंनछत ै।

एिटीर्ी के रै म्प्स में चैिीस घण्टे कैट-र्ाीक करने र्ाली कमलसन लड़फकयािंीे को सिने

दे खा ै । ये लड़फकयािं फकसी आसमान से टपकी तो ैं न ीिं। ये कमलसन ू र-पररयािं िेशक फकसी मािं-िाप की औलाद ैं। फकसी िमा-जानत-समद ु ाय पर्शेष की ैं, फकसी न फकसी दे श की नागररकता भी रखती ैं। फिर ऐसा कैसे ोता ै फक जजस्म की नम ु ाईश करती इन लड़फकयों को सारी दनु नया में जिदा स्त लोकपप्रयता दी जा र ी

ै।

अमेररकन पोना-स्टार सनी-ललयोन को टीर्ी और भारतीय लसनेमा ने फकतना सम्मान हदया

ै । जिफक मोिाईल-स्माटा िोन के इस जमाने में िच्चा-िच्चा सनी-ललयोन के

करतिों के िारे में जानता ै।

ै । उसे कपड़ों में तो लसिा भारतीय लसनेमा में दे खा गया

य ी कारण ै फक सम्पण ू ा गोरे पन का दार्ा करने र्ाली क्रीम भारतीय िाजारों में टनों में बिकती

ैं।


िैशन-िाजार और उत्पाद के अिंतसाि​िंिों की उपज

ैं ‘सिंद ु री-प्रनतयोधगताएिं’।

आजकल तो स्कूल-सिंद ु री, काीलेज-सिंद ु री, ग्राम-सिंीुदरी, त सील-सिंद ु री, नगर-सिंद ु री,

जजला-सिंद ु री, प्रदे श-सिंद ु री, मेट्रो-सिंद ु री और पर्श्र्-सिंद ु री की प्रनतयोधगताएिं जन-स्र्ीकाया ैं। एडर्ािंस्ड मािं-िाप अपनी िेहटयों को प्रोत्साह त करते ैं फक र्े सिंद ु र हदखें, जस्लम र ें

और सौंदया-प्रनतयोधगताओिं में भाग लें।

ािं, परु ातनपिंथी मािं-िाप भले से न चा ें फक

उनके घरों की लड़फकयािं ऐसे कायाक्रमों कािं ह स्सा िनें। यहद ऐसा ु आ तो लड़फकयों की टािंगें तोड़ दी जाएिंगी। दस ू रे की लड़फकयािं कुछ भी करें , उन् ें दे खने-भोगने में तो आनिंद ी आनिंद

ै।

मजे की एक िात और ये भी ै फक र्स्तु चा े परू ु ष-उत्पाद ो, उसके पर्ज्ञापन में एक या कई अिानग्न लड़फकयािं जरूर नजर आएिंगी। र्ाक़ई----जो हदखता

ै , र् ी बिकता

ै।

कोई यकीन करे या न करे , लेफकन ये सच

ै फक नन् ी सलीमा जि किा आठ की

छात्रा थी, तभी उसने स्त्री-जजस्म के पोशीदा राज जान ललए थे। ये भी कोई उम्र

ोती

ै , ऐसे राज जानने की?

लेफकन क्या करें इस समाज का, ज ािं लोग लड़की को घरू -घरू कर जर्ान िना दे ते ैं। ऐसा न ीिं फक सलीमा ि ु त सिंद ु र थी। ऐसा न ीिं फक सलीमा की काया खि ू सरू त और दे िस र्ो एक लड़की थी। लसिा लड़की----. और लड़की

ोना

गदराई ु ई थी।

ी तो उसका दोष था।

लड़की और र्ो भी ननिान पररर्ार की---

गरीिी की मार खाई सख ू ी सी काया, पतले-दि ु ले

ाथ-पैर, किंकाल-नम ु ा चे रे पर

चिंधु ियाई आिंखें और पपचके गाल से िा र को ननकले डेढ दािंत---

इतने िेरौनक, कुरूप, िदरिं ग जजस्म की मालफकन सलीमा फकसी भी कोण से आकषाक


न ीिं थी। लेफकन फिर भी लोलप ु समाज ने सलीमा की कुरूपता में भी छुपी चमक खोज ली। दे

के भौनतक, रासायननक और जैपर्क स्र्रूप की जानकारी का पाठ पढाने र्ाले परू ु ष

र्

म ाशय गिंगाराम सर

को सलीमा भला कैसे भल ू सकती

ी तो थे।

ै।

उनका एक पैर कुछ छोटा था, जजस के कारण उनकी चाल में थोड़ी लचक थी। इसीललए िच्चे और िड़े पीठ पीछे उन् ें ‘तैमरू लिंग’ क ा करते थे। र्ैसे मश ू र ै ये क ार्त की ऐिंचा-ताना, लल ू ा-लिंगड़ा आदमी ऐिी का ढीला भी।

ोता ै और लिंगोट

गिंगाराम सर के लसर पर खूि घने िाल थे, ऐसा लगता जैसे पर्ग लगाए ु ए ों। खलनायक में सिंजय दत्त जजस तर पीछे की तरि िढे िाल रखा था, कुछ र्ैसा ी े यर-स्टाईल था गिंगाराम सर का।

उनकी आिंखें फकचड़याई र तीिं। र्

गखणत पढाते थे।

पता न ीिं क्यों लड़फकयों को गखणत पर्षय ि ु त डराता ै ----सलीमा भी गखणत से डरती थी और अक्सर गखणत में शन् ू य पाती थी----र्ैसे शन् ू य गखणत में सिसे म त्र्पण ू ा अिंक ोता

ै लेफकन सलीमा के ललए तो एक अलभशाप था शन् ू य----

इस शन् ू य से पीछा छुड़ाने के ललए सलीमा ने एक हदन गिंगाराम सर की िात मान ी ली----.


ि ब्यटी एण्ड ि ब स्ट सलीमा को स्कूल का मा ौल अच्छा न लगता और ख़ासकर गिंगाराम सर तो एकदम भी न ीिं ।

गिंगाराम सर नगर के खाते-पीते घरों िच्चों की तरि ज्यादा ध्यान हदया करते। गरीि िच्चों का मजाक उड़ाया करते थे।

सलीमा गरीि थी, पढाई में कमजोर थी और मस ु लमान भी थी यानी तीनों दग ु ण ुा ों से भरपरू थी सलीमा।

किा में सिसे पीछे र्ाली सीट पर िैठने र्ाली सलीमा।

अक्सर गिंगाराम सर पपछली िेंच के िच्चों को खड़ा कर कहठन-कहठन प्रश्न पछ ू ा करते और जाह र

ै फक ऐसे कहठन प्रश्नों के जर्ाि न लमल पाता।

नतीजतन गिंगाराम सर छड़ी मार-मार कर उनके सलीमा अक्सर उनसे पपटती थी।

कभी-कभी गिंगाराम सर छड़ी से न मार कर

ाथ लाल कर दे ते थे।

ाथों से उसे मारते।

िाद में उसने जाना फक गिंगाराम सर पीटने के ि ाने उसकी पीठ, किंिे और िािं था

ललया करते

ैं। अिंदाज लगाते

फिर उसे लगता फक र्

ो सकता

फकसी से कुछ न क ती।

ै य

ैं फक फकतनी जान उसका र् म

ो।

ै सलीमा में ----

की

सलीमा के िगल में िैठती थी मम ु ताज िानो।

मम ु ताज के अब्िू आीटो-चालक थे। उनकी अपनी आीटो थी। मम ु ताज की आधथाक दशा सलीमा से िे तर थी। उसके कपड़े ठीक-ठाक र ते और र् मारती, मजु स्लम सलीमा स्ने

ोने के कारण र्

की भख ू ी थी।

थोड़ा स्टाईल भी

सलीमा के साथ िैठा करती थी।

मम ु ताज िानो थी तो खाते-पीते घर की, लेफकन उसके हदमाग में गोिर भरा था। ािं, सलीमा की तुलना में र्

िाल करीने से काढे

ु ए र ते।

साि-सथ ु रे कपड़े प न कर आया करती थी।


उसके िदन पर मैल न

ोता और न

ी गाल पर मच्छर काटने के ननशानात!

सलीमा ठ री अपने लाचार-िेजार अब्िू की बिहटया। अम्मी ोता!

ोतीिं तो क्या उसके िाल यिंू लहटयाए र ते, दािंत मैले र ते और चे रा िेनरू

जि दे खो ति सलीमा अपने रूखे िालों को खिर-खिर खजआ ु ते र ती। लड़फकयािं उससे दरू र तीिं फक क ीिं उनके लसर में भी जूएिं न पड़ जाएिं।

एक हदन जि गिंगाराम सर ने गखणत के लाभ- ानन र्ाले पाठ का एक सर्ाल उससे पछ ू ा तो र्

आदतन कुछ िता न पाई।

गिंगाराम सर ने छड़ी से मार-मार कर उसकी

थेली लाल कर दी।

सलीमा को उस मार के ददा से कोई तकलीफ़ न ु ई, लेफकन घर में पढने के ललए थोड़ा भी र्क्त न ननकाल पाने की मजिरू ी से उसे दख ु ु आ। र् रोने लगी। फिर उसे अपनी अम्मी की याद आई। र्

ोतीिं तो शायद ऐसे िरु े हदन न दे खने ोते। अम्मी उसका तननक भी ख़्याल रखतीिं

ति

ो सकता

तो क्या र् र्

ऐसी मैली-कुचैली हदखती।

ै फक किा के िच्चे और लशिक उससे नफ़रत न करते।

भी घर में पढती तो रोजाना की इस मार-डािंट से िची तो र ा करती।

और र्

ह चफकयािं ले-लेकर रोने लगी।

िगल में िैठी मम ु ताज न ीिं जानती थी फक इस ालत में सलीमा को कैसे चप ु कराया जाए।

सलीमा टे सए ु ि ाती र ीिं तो गिंगाराम सर धचिंनतत ु ए। र् पास आए और प्यार से उसके िालों पर ाथ िेरते ु ए क ा--‘‘छुट्टी ोने पर तुम स्टाि-रूम में आकर मझ ु से लमलना।’’ गिंगाराम सर ने जो उसके लसर पर मम ु ताज ने उसके

ाथ को अपने

ाथ िेरा उससे उसे कुछ सािंत्र्ना लमली।

ाथ में लेकर स लाया।

सलीमा की सि ु फकयािं कम ु ईं। छुट्टी ोने पर िस्ता समेट सलीमा किा से िा र ननकली। उसके हदमाग में गिंगाराम


सर की िात घम ू र ी थी फक तुम स्टाि-रूम में आकर मझ ु से लमलो। सलमा के क़दम स्र्तुः स्टाि-रूम की तरि उठे ।

े डमास्टर सा ि के आफिस के िा र चपरासन िैठी स्र्ेटर िन ु र ी थी।

आफिस के िगल में लाईब्रेरी थी फिर उसके िाद स्टाि-रूम। सलीमा ने परदे की खझररा यों से कमरे के अिंदर ताका। गिंगाराम सर िैठे ु ए थे। जैसे र् सलीमा का इिंतजार कर र े सलीमा परदा

टाकर खड़ी

ो गई।

ों।

गिंगाराम सर ने उसे अिंदर िल ु ाया और जि र् झक ु ी र ीिं।

उनके पास प ुिं ची तो उसकी ननगा ें

गिंगाराम सर ने उससे क ा-‘‘मेरी तरि दे खो, मैं तम् ु ें मारता इसललए न ीिं फक मैं

तम् ु ारा दश्ु मन ूिं । मझ ु े मेशा य ी लगता ै फक तम् ु ें पढना-ललखना चाह ए। लेफकन मैं तुम् ारी मजिरू ी समझता ूिं । तुम धचन्ता न करो। मैं तुम् ारे िाप को जानता ूिं । बिचारा गरीि मजदरू ै । चक्की में काम कर फकसी तर िच्चों का लालन-पालन करता ै । तुम् ारे िाप से िात करूिंगा फक र्

तुम् ें मेरे घर पढने भेज हदया करें । मैं तुम् ें

अलग से पढा हदया करूिंगा। ऐसा पढा दिं ग ू ा फक एक दम ‘िस्र्ट-क्लास’ पास जाओगी।’’

सलीमा धचत्र-ललखखत सी उनकी िात सन ु ती र ी।

फिर उन् ें नमस्कार कर कमरे से िा र ननकल आई।

गिंगाराम सर ने उससे क ा फक रपर्र्ार के हदन अपने घर का काम-काज ननपटा कर सलीमा उनके घर आ जाया करे ।

दप ु र में अपने आराम करने के समय पर र्

उसे एक-डेढ घण्टे पढा हदया करें गे।

सलीमा ने घर आकर अब्िू को स्कूल की िात िताई। अिंिे को क्या चाह ए, दो आिंख!

अब्िू गिंगाराम सर को जानते थे। उन् ोनें सोचा शायद इस तर

बिहटया पढ-ललख जाए----

उन् ोंने सलीमा को इजाजत दे दी।


रपर्र्ार का हदन।

गिंगाराम सर के घर सलीमा को पढने जाना था। जल्दी-जल्दी उसने घर के काम-काज ननपटाए।

उसके िाद उसने सोचा फक अच्छे से साि-सथ ु रा

ो लेना चाह ए।

इसललए सलीमा न ाने के ललए आिंगन के कोने में िने गुसलखाने में चली गई।

टाट-िोरे के टुकड़े, चटाई, िािंस की खपजच्चयािं आहद से जोड़-तोड़ कर िनाया गया बिना छत का गुसलखाना।

जजसके अिंदर पत्थर की एक िड़ी पिंचकोना चीप बिछी ु ई थी। इतना िड़ा पत्थर का टुकड़ा फक एक आदमी आसानी से िैठ कर न ा सके और कपड़े भी िो-िीिंच ले। चीप के पास

ी, एक कोने पर आिा कटा ड्रम का टुकड़ा रखा था।

उस ड्रम में सि सलीमा या फिर रूकैया िा र चािंपाकल से पानी लाकर भर हदया ु -सि ु करती थीिं।

उसी से घर का ननस्तार चलता।

उसके िाद यहद उसमें पानी घटता तो तत्काल िा र से पानी लाना पड़ता था। गस ु लखाना के साथ र्

नघरी ु ई पदे दार जग पेशाि-घर का भी काम करती थी। मस ु लमानोीेीिं में पेशाि करने के िाद पानी इस्तेमाल करना जरूरी ोता ै , र्रना जजस्म में नापाकी िनी र ती

ै । इसललए ड्रम में पानी

अम्मी ने िेहटयों को पाक-साि र ना सीखाया था। अम्मी क ा करती थीिं फक फकस

मेशा उपलब्ि र ता।

मेशा ‘इजस्तिंजे’ से र ा करो, जाने अल्ला -पाक कि और

ालत में इिंसान की रू

कब्ज कर ले!

ािं, म ीने के उन ख़ास हदनों को छोड़कर जि फकसी औरत को नापाक र ना ी पड़ता

ै , िाफक हदन जजस्म को पाक-साि रखा जाए।

अम्मी िताया करती थीिं फक इस नामरु ाद घर में उनकी शादी से प ले गस ु ल ु खाना जैसी


चीजन ीिं थी। िड़े जाह ल थे सि ससरु ाल र्ाले।

अम्मी िताया करतीिं फक तेरे अब्िू और दादा िा र खल ु े में न ाया करते थे।

औरतों को न ाना ोता तो चारपाईयों की ओट िनाकर अस्थाई गस ु लखाना िना ललया जाता था।

िड़ा अजीि लगता था उन् ें ।

अम्मी ने जि दे खा फक ये लोग न ीिं िदलेंगे, ति उन् ोंने स्र्यिं टूटी-िूटी चीजें जोड़-जाड़ कर आिंगन के कोने को गुसल ु खाने की शक्ल दी थी। अम्मी

मेशा अपनी ससरु ाल को कोसा करतीिं।

अपने भाईयों और भौजाईयों की लापरर्ाह यों का रोना रोतीिं, जजन् ोंने उनकी शादी इन किंगालों में करके अपने लसर से िला टाली थी। कभी र्

अपनी फकस्मत को िूटा ु आ ितातीिं। अल्ला -तआला ने उनकी तकदीर इतनी िरु ी क्यों ललखी, इस सर्ाल का जर्ाि अम्मी मेशा परर्रहदगार से पछ ू ा करतीिं।

सलीमा की अम्मी िताया करती थीिं फक उनके मािं-िाप अच्छे खाते-पीते लोग थे। सन ़् 47 में पर्भाजन के समय उनके मािं-िाप िािंग्लादे श चले गए। अम्मी ति िच्ची थीिं और िड़े मामू के पास

ी र ती थीिं।

िड़े मामू कलकत्ता की जूट-लमल में लमस्त्री का काम करते थे। अच्छी आमदनी थी

उनकी। खखहदरपरु की सीमा पर उन् ोंने एक कट्ठा जमीन खरीद कर र् ािं मकान भी िना ललया था।

अम्मी ितातीिं फक उनके िड़े भाई ि ु त र महदल इिंसान थे लेफकन भाभी जैसे कड़र्ा-करै ला। ऐसी ज र िझ ु ी िात क तीिं फक िस कलेजा जल जाता। फिर भी हदन ठीक

ी गज ु र र े थे।

तभी िड़े मामू को टीिी के कारण मौत चले गए।

ो गई और उनके घर के

ालात िदतर

ोते

मम ु ानी के अत्याचार िढने लगे तो अम्मी के छोटे भाई उन् ें अपने साथ बिलासपरु लेते आए। र्

बिलासपरु में रे ल्र्े इिंजजन चालक के पद पर कायारत थे।


उन् ोंने जैसे-तैसे अम्मी की शादी इब्रा ीमपरु ा में तय कर दी। ति अम्मी मात्र तेर िच्ची

या चैद

िरस की थीिं।

ी तो थीिं, जि उनपर जजम्मेदाररयों का िोझ आन पड़ा था।

अम्मी को अपने परू े माईके र्ालों से और अपने ससरु ाल र्ालों की गरीिी और ज ालत से सख़्त धचढ थी।

इसीललए अम्मी जि तक इस घर में र ीिं िेगाना िन कर र ीिं।

उन् ें घर की फकसी भी चीज से भार्नात्मक लगार् न था। य ािं तक फक अपनी िजच्चयों से भी न ीिं।

और एक हदन ऐसा भी आया फक घर के सभी सदस्यों को अचजम्भत छोड़ कर अम्मी जाने क ािं चली गईं।

अम्मी तो अम्मी आखखर अम्मी थीिं----उनकी गैर-मौजद ू गी में सलीमा उन् ें याद कर आिंखें नम कर ललया करती।

अम्मी के जमाने में गुसलखाने मिंीे रखा ये ड्रम ि ु त रूतिे र्ाला ु आ करता था। घरे ल-ू इस्तेमाल के ललए अब्िू जैस-े तैसे िा र से पानी लाकर उस ड्रम में भरा करते थे, ति क ीिं जाकर उन् ें

ाजी जी की चक्की में ड्यट ू ी िजाने का ु क्म ु आ करता था। अब्िू अम्मी से डरते ि ु त थे। सहदा यों में िप ू की फकरनें गुसलखाने के ड्रम पर सीिे पड़ा करतीिं। य ी फकरनें गीजर का काम करतीिं।

सलीमा और सरु ै या चािंपाकल से पानी लाकर उस ड्रम में डाल दे ती जो दप ु र ोते- ोते कुनकुना-गमा

ो जाता।

सलीमा ने पानी छूकर दे खा----पानी अि उतना ठण्डा न ीिं था----फक िदन पर पड़े तो लस रन

ो।

सलीमा न ाने के ललए लसिा समीज प ने पत्थर की चीप पर िैठ गई और उसने सिसे प ले अपने पैरों की सिाई करने लगी।

एडडयािंीे पर मैल की मोटी परत जम कर सख्त बिना पत्थर से रगड़े मैल न छूटता।

ो चक ु ी थी।

उसने मैल छुड़ाने र्ाले पत्थर के टुकड़े से एडडयों का मैल ननकाला।


सािन ु के नाम पर कपड़ा िोने र्ाला सािन ु था र् ािं।

नाररयल का िच ू था जजससे िदन का मैल रगड़ कर कर साि फकया जाता था। सलीमा ने कपड़े िोने र्ाले सािन ु को लसर पर मला।

लसर से इतना मैल ननकला फक परू ा गस ु लखाना काला र्

ो गया।

चा ती थी फक सारे िदन की रगड़-रगड़ कर सिाई करे , लेफकन गुसलखाना बिना

छत का था। उनके गुसलखाने से

ाजी रिी की छत हदखलाई दे ती थी।

का नौकर ईद ू अक्सर छत पर आकर गुसलखाने की टो

ललया करता।

ाजी सा ि

सलीमा ने ए नतयातन ाजी रिी सा ि की छत पर ननगा डाली और अपने िदन को खुद से छुपाते ु ए अच्छी तर परू े िदन पर सािन ु मल ललया। फिर नाररयल के िच ू पर सािन ु मल कर झाग िनाया और ाथ-कु नी के मैल िो डाले।

जि र् न ा कर िुसात पाई, तो गमी के कारण कुछ ी दे र िाद िालों को छोड़ िदन का पानी सख ू गया। कपड़े िोने के सािन ु के कारण जजस्म की चमड़ी खुश्क थी।

ऐसा लगने लगा जैसे चमड़ी में खखिंचार् आ र ा िदन खुजलाने लगा। जि उसने

ाथ खज ु लाया तो

ो गई

ो।

ाथ की चमड़ी पर सिेद लकीरें खखिंच आईं।

उसने तत्काल रसोई घर जाकर सरसों का तेल थेललयों पर लेकर परू े िदन पर लगाया, ति जाकर उसे रा त लमली।

फिर उसने अम्मी की पेटी खोलकर ईद र्ाला सलर्ार-सट ू ननकाला। में दी रिं ग का र्

सट ू सलीमा पर खूि ि​िता था।

रूकैया और सरु ै या उसे सजते ु ए बिटुर-बिटुर ताक र ी थीिं। उसने सरु ै या को समझाया फक र् एक-डेढ घण्टे में आ जाएगी। र्

ट्यश ू न पढने जा र ी

ै।

उसके पीछे र्े दोनों शैतानी न करें । लड़ाई-झगड़ा न करें ।

रसोई की दे गची में चार्ल-दाल िचा ु आ

ै । भख ू लगे तो र् ी भकोस लें।


क ीिं िा र खेलने न जाएिं और न

ी फकसी को घर में घस ु ने दें गी।

इतना समझा, फकताि-कापी लेकर सलीमा गिंगाराम सर के घर की तरि ननकल पड़ी।

ऽ िस-स्टैंड के पीछे नदी की तरि जाने र्ाले रास्ते में सेठ फकरोड़ीमल के नौकरों का आर्ास और गाय-भैंस र्ाली खटाल थी।

नदी के फकनारे की जमीन, जो फक ननजश्चत ै फक सरकारी

ोगी। उस जमीन पर

सेठ फकरोड़ीमल ने अर्ैि क़ब्जा जमा कर लगभग िीस मकानों का एक िाड़ा िनाया ु आ था। दो-दो कमरे के पिंजक्तिद्ि मकान।

पानी के ललए किंु आ और किंु आ के इदा -धगदा औरतों और मदों के न ाने के ललए अलग-अलग गुसलखाने।

टट्टी के ललए उस िाड़े में कोई व्यर्स्था न थी। इसीललए फकरोड़ीमल के फकराएदार स्त्री-परू ु ष सि ु -सि ु

ाथ में लोटा या प्लाजस्टक की िोतल या डब्िा ललए नाले की

तरि ननकल जाते। िच्चे सड़क फकनारे कचराघर के पीछे या नाली के फकनारे लाईन लगा कर िैठ जाते। आस-पास सअ ु र और कुत्ते घम ू ते र ते।

ये नाली गिंगाराम सर के मकान के सामने से गज ु रने र्ाली नदी पर जाकर खतम ोती थी।

गिंगाराम सर का मकान नदी के छोर पर था। नदी नगर की पर्भाजन-रे खा

ै।

क ते ैं फक नहदयों के फकनारे

ी दनु नया की सभ्यताएिं पर्कलसत ु ई ैं। आखखर ों भी

नदी के इस तरि एक िड़कता ु आ जीता-जागता नगर और नदी की दस ू री तरि खेत-खलल ान और ननजान से गािंर्।


क्यों न! अि इसी नदी को

ी ले लो। िस-स्टैंड िना तो नदी के तट पर फक याबत्रयों,

दै ननक-फक्रया से फ़ाररग भी

ो ललए, कपड़े साि कर ललए और न ा ललए।

िस-चालकों, कण्डक्टरों आहद को ननस्तार के ललए क ीिं भटकना न पड़े। नदी के फकनारे परू ा नगर

ी नदी के साथ-साथ िल खाते ु ए पर्स्तार पाया नदी के इदा -धगदा िड़ािड़ मकान िन र े ैं। जो भी इस नगर में एक िार आया य ीिं का

ोकर र

ै।

गया।

इसी कारण मारर्ाडडयािंी,े जैननयों, लसक्खों, इसाईयों और मस ु लमानों के कई-कई पज ू ा-स्थल य ािं िन गए। मिंहदर तो अनधगनत

ोंगे।

जि सारे भगर्ानों के ललए अपने अलग-अलग, कई-कई मिंहदर िन गए तो उसके िाद नगरर्ालसयों ने लशरडी र्ाले साईं िािा का मिंहदर िनाना शरू ु कर हदया

ै।

एक और भगर्ान डेरा सच्चा सौदा र्ाले राम-र ीम िािा। जाने कैसे उनके भी ढे र सारे

भक्त इस नगर में ैं और नगर के िा र िैररयर के उस पार चार एकड़ में एक आश्रम िन र ा

ै जजसके िा र िोडा लगा

ै --‘‘डेरा सच्चा सौदा’’।

मस ु लमानों में िमा और व्यर्साय के घाल-मेल को समझने र्ालों ने भी नगर के िा री इलाके में एक मजार का तसव्र्रु कर ललया।

प ले ज ािं घोड़े और खच्चर र्ाले आिाद थे उनकी सीमा पर अि र् ािं पर एक पक्की मजार ै । आस-पास चादर-िूल-शीरनी र्ालों की दक ु ानें खुल गई ैं। दो-तीन गुमहटयों में चाय-नाश्ता की दक ु ानें

ैं।

र साल र् ािं उसा का मेला भरता

ै।

नागपरु , िनारस जैसी जग ों से क़व्र्ाल िल ु ाए जाते

ैं। ढे रों चादरें चढती

राम-लीला, यज्ञ, रास-लीला जैसे आयोजन िड़े िम ू -िाम से फकए जाते

ैं।

ैं।

सेठ फकरोड़ीमल के िाड़ा और गिंगाराम सर के मकान के िीच की खाली जग पर एक भव्य लशर्-मिंहदर का ननमा​ाण-काया चल र ा

ै।

नदी के इस इलाके में सलीमा ि ु त कम आई थी। जि पानी की फकल्लत ोती थी ति सलीमा अपनी अम्मी के साथ इस नदी पर कपड़े िोने और न ाने आया करती थी। नदी आगे जाकर मड़ ु गई ै । ज ािं पर नदी मड़ ु ती


ै , नदी की िार मिंद

ोती

ै उस जग

को ‘द रा’ क ा जाता

ै।

सलीमा ने ‘द रा’ का अथा ऐसी जग से ललया ज ािं पानी कुछ ग रा ो। र्ाकई ‘द रा’ पर पानी प्रचरु मात्रा में साल भर र ता ‘द रा’ के फकनारे ग्रेनाइहटक चट्टानें उन चट्टानों पर लोग कपड़े िोते

ैं।

ै।

ैं।

सलीमा को इस ‘द रे ’ पर न ाना ि ु त अच्छा लगता था। ािं, गलमायों में जि र्े न ा-िो कर घर र्ापस आतीिं तो िप ू लसर चढ आती थी और परू ा िदन पसीना-पसीना ोकर दि ु ारा न ाने की मािंग करता था।

सलीमा जजस समय गिंगाराम सर के मकान प ुिं ची, आसमान की ऊिंचाईयों पर सरू ज दमक र ा था। मकान के दरर्ाजे पर नेमप्लेट लगी थी। ललखा था-‘‘गिंगाराम, व्याख्याता’’

सलीमा थोड़ी दे र रूकी र ी, क्योंफक घर का दरर्ाजा अिखुला था। उसने अिंदर झािंका।

प ला कमरा िैठकी की तर का था, जजसमें चार प्लाजस्टक की कुलसायािं और एक तख्त था।

तख्त पर सलीके से गद्दा-तफकया बिछा था।

थोड़ा और अिंदर तक ध्यान से दे खने पर उसने पाया फक अिंदर र्ाले कमरे में गिंगाराम

सर कच्छा-िननयान प ने िैठे ैं। केरालसन तेल र्ाले प्रेशर-स्टोर् के जलने की आर्ाज आ र ी

ै।

सलमा ने खझझकते ु ए सािंकल िजाई। गिंगाराम सर ‘ ािंजी’ की आर्ाज ननकालते िा र आ गए। उनके

ाथ पर आटा धचपका था।

शायद आटा गिंथ ू ने की तैयारी कर र े सलीमा को सर की ये

ो या फिर रोटी िना र े

ो।

ालत दे ख िं सी आई लेफकन सिंकोंच के कारण र्

िं सी न ीिं।


गिंगाराम सर ने उसे अिंदर आने को क ा। ‘‘ ें

ें

िनाईं।

ें , का करूिं, िच्चे

ैं न ीिं, सो खद ु ै रोटी पका र ा था।’’ गिंगाराम सर ने िातें

सलीमा से र ा न गया।

उसने क ा फक सलीमा के र ते सर रोटी िनाएिं र् कैसे िदा​ाश्त करे गी। इसललए आप दस ू रे काम ननपटा लें ति तक सलीमा रोटी िना दे गी। गिंगाराम सर ने क ा फक ये तो रोजाना का काम ै । न ीिं करता इसललए जैसा भी कच्चा-पक्का िनता अिंदर के कमरे में एक तरि फकचन थी।

ोटल का खाना िदन को ‘सट ू ’

ै , िना लेते

ैं।

र्ाकई गिंगाराम सर आटा गिंथ ू ने की तैयारी में थे। तभी तो स्टील की परात में आटा पड़ा था और जग में पानी।

सलीमा िैठ गई और आटा गिंथ ू ने लगी।

गिंगाराम सर उसके पास िैठ गए और सलीमा को आटा गिंथ ू ते दे खते र े । सलीमा ने आटा गिंथ ू ने के िाद आटे की छोटी-छोटी लोईयािं िनाईं।

गिंगाराम सर उन लोईयों को िेलने लगे तो सलीमा ने उनसे िेलन-चैकी छीन ली और क ा फक आप िैठ कर रोटी सेंक दें । सलीमा रोटी िेलने लगी।

गिंगाराम सर तर्े पर रोटी सेंकने लगे।

सलीमा को सिंकोच तो ो र ा था, लेफकन किा में िरु ी तर पीटने र्ाले गिंगाराम सर की इस दयनीय

ालत से र्

घर में फकतने सीिे-सादे दस-िार फिर र्

द्रपर्त

ो गई थी।

ैं गिंगाराम सर, सलीमा को य

रोहटयािं िनाईं उसने।

अिंदर आिंगन में आकर

उसने सोचा फक र्क्त तो ऐसे

अच्छा लग र ा था।

ाथ िोने लगी।

ी गुजर गया।

पता न ीिं कि सर पढाएिंगे और फिर उसे र्ापस घर भी तो लौटना

ै।

सलीमा ाथ िोकर िैठकी में आ गई और जमीन पर चटाई बिछाकर फकताि खोल कर पढने लगी।


गिंगाराम सर भी र् ािं चले आए। उनके

ाथ में दो थाललयािं थीिं।

एक खद ु के ललए और दज ू ी थाली सलीमा के ललए। सलीमा ने िताया फक र्

तो खाना खाकर आ र ी

गिंगाराम सर ने क ा-‘‘का ु आ, जो खा कर आई दे खो---!’’

ै।

ो। अरे , इ ािं का भी तो चख कर

सलीमा को भख ू तो लग आई थी, लेफकन सिंकोच के कारण र् ननणाय न ीिं ले पा र ी थी, फक खाना खाए या न खाए।

दे खा फक उसकी थाली में दो रोहटयािं

ैं।

उसने एक रोटी उठाकर गिंगाराम सर की थाली में डाल दी और सकुचाते ु ए रोटी के छोटे -छोटे कौर िनाने लगी। सर भी उसके पास चटाई पर िैठ कर रोटी खाने लगे।

एक रोटी के तीन कौर िनाकर चपर-चपर की आर्ाज के साथ गिंगाराम सर खाना खाने लगे। सलीमा को चप-चप की आर्ाज से धचढ ि नों को तो र्

उसने फकसी तर

ै।

टोक दे ती थी, लेफकन सर को कैसे मना करे ।

रोहटयािं किंठ के नीचे उतारी और चप ु -चाप िैठी र ी।

गिंगाराम सर ने लगभग आठ रोहटयािं खाई ोंगी फिर एक लोटा पानी पीकर उन् ोंने िड़ी तेज डकार ली।

सर ने थाली में

ाथ िोया और सलीमा से भी क ा फक र्

सलीमा की अम्मी ने य ी सि तो लसखाया था फक जजसमें आपने खाना खाया

ो।

थाली में

ाथ िो ले।

ाथ उस थाली में कभी न िोइए,

सलीमा उठते ु ए सर की जूठी थाली उठाने लगी तो सर ने उसका ाथ पकड़ ललया और क ा-‘‘अरे , ये का कर र ी ो। िाई आएगी तो ितान िोएगी।’’ सलीमा ने थाली उठाकर

ाथ में ले ली और आिंगन में आ गई।

एक तरि ितान-कपड़े िोने के ललए जग

िनी थी।

उसने जूठी थाललयािं र् ीिं रख दीिं और थोड़े से पानी से खाना खाकर गिंगाराम सर की तोंद उभर आई थी।

ाथ िो ललए।


र्े चटाई पर िैठ कर एक डब्िे से तम्िाख-ू चन ू ा-सप ु ारी का गुटखा िनाने लगे। सलीमा भी उनके पास िैठ गई और फकताि खोलने लगी।

खैनी खाकर गिंगाराम सर थक ू ने के ललए िा र ननकले और फिर र्ापस आकर तखत पर पसर गए।

फिर उन् ोंने सलीमा को तखत के पास र्ाली कुसी पर िैठने का इशारा फकया। सलीमा चटाई पर

ी िैठी र ी तो सर िुती से उठे और सलीमा को उठा अपने पास

तखत पर बिठा ललया। सलीमा अचकचा गई।

जो टीचर स्कूल में इतना सख्त ो फक पीट-पीट कर ाथ लाल कर दे , र् घर में इतना मु ब्िती

ोगा, सलीमा को यकीन न ु आ।

ऽ मछली आसानी से न ीिं ि​िंसती, िजल्क पानी में ि​िंसी डाल, िड़े िैया से नदी-तट पर िैठा जाता

ै।

जरूरी न ीिं फक

र िार चारे की लालच में मछली ि​िंस

मछली का लशकार करने र्ाले िड़े आशार्ादी ार न ीिं मानते।

ये जानते

ैं फक फकस्मत ठीक

ोते

ैं।

ी जाए।

ोगी तो मछली जाएगी क ािं, ि​िंसेगी जरूर!

न ीिं ि​िंसी तो िरु ा क्या मानना, टाईम तो पास ु आ। सलीमा ने उस हदन जान ललया फक गिंगाराम सर उसे एक मछली समझ र े सु ानभ ु नू त और स योग के रूप में उसके सामने लभ ु ार्ना चारा डाल र े के अिंदर कािंटा

ै ये सलीमा जानती

लेफकन क्या करे सलीमा, र्

ै।

ैं।

ैं। उस चारे

एक नन् ी मछली जो ठ री।

जल में र कर अठखेललयािं करना तो सभी मछललयािं सीख जाती ैं, लेफकन जाल में ि​िंसे ु ए, पानी से िा र आकर तड़पने की कला मछललयािं तभी सीखती अिंनतम समय आता ै ।

ैं, जि उनका


ये सलीमा जैसी मछललयों की बिडम्िना

ोती ै जो र्े पानी को छोड़, गमा-तपती रे त

पर जीने का ु नर सीखना चा ती ैं। गिंगाराम सर ने उसे उस हदन जो प ला सिक लसखाया र् गखणत पर्षय का तो क़तई न था। र्

जैसा भी अनभ ु र् था, िा री दनु नया से सलीमा का प्रथम-सािात्कार था।

सलीमा ने उस अनभ ु र् से दनु नया को समझने का प्रयास फकया था। पता न ीिं उसके हदल में

ू क सी उठी और खूि रोने की इच्छा ु ई।

र्

रोने लगी।

र्

उसे चप ु कराने का भगीरथ प्रयास कर र े थे।

गिंगाराम सर एक अिोि िालक िन कर उसके आिंसिंू पोंछने लगे। ति सलीमा ने जाना फक आदमी की जात उतनी डरार्नी न ीिं ोती, जजतना उसे समझा जाता

ै।

इतनी ताकत, इतने अ िं कार, इतनी िमता रखने र्ाला आदमी फकतना िेर्कूफ़ और डरपोक

अपनी दे

ोता

ै!

की दौलत और रूप के जाद ू से अनजान औरतें

ी मदा जात से डरती

ैं।

र्रना मदा तो ऐसे पालतू िन जाएिं फक उनके गले में पट्टा डाल कर उन् ें औरतें आराम से ट लाती फिरें । उनके एक इशारे पर ु क्म िजाने को तैयार खड़े र ें । सलीमा रोए जा र ी थी और गिंगाराम सर रूप िदल-िदलकर उसे चप ु कराने का प्रयास कर र े थे। र्

उसे प्रलोभन भी दे र े थे।

सलीमा फिर भी चप ु न ु ई तो र् ननकाले।

उठे और आलमारी खोलकर उसमें से कुछ रूपए

फिर उन् ोंने पचास रूपए के दो नोट सलीमा के सलीमा ने रूपए नीचे िेंक हदए।

ाथ में रखे फक र्

रोए न ीिं।

गिंगाराम सर रूपए उठाकर उसके ाथ में पन ु ुः पकड़ाते ु ए िोले-‘‘इसे रख लो। अपना समझकर दे र ा ूिं । इिंकार न करो। अि तुम से मेरा ररश्ता भी तो िदल गया ै । तुम् ें कोई भी दख ु

ो, तकलीफ़

ो। कैसी भी जरूरत

ो, मझ ु े याद कर लेना।’’

सलीमा जानती थी फक उसके जीर्न में रूपए की क्या क़ीमत

ै?


सलीमा उस हदन ये भी जान गई फक आठ-दस घण्टे की

ाड़-तोड़ मे नत के िाद भी

अब्िू को ाजीजी इतनी पगार न ीिं दे ते जजतनी सलीमा ने गिंगाराम सर के ाथों कमाए थे। अब्िू को चालीस रूपए रोज की दर से र्ेतन लमलती ै । जजस हदन काम पर न जाएिं उस हदन नागा मान ललया जाता ै । यहद कोई गलती ो जाए तो र्ेतन से कटौती की जाती

ै।

और इस मामल ू ी सी ‘एक्सरसाईज’ के ललए गिंगाराम सर ने उसे क्या भग ु तान फकया-‘‘एक सौ रूपए!’’ िाप रे िाप!

सलमा ने जजन्दगी के अभार् को दरू करने का ‘शाटा कट’ जान ललया था---


जिसने की शरम--सलीमा ने पाया फक गिंगाराम सर के व्यर् ार में कठोरता की जग कोमलता ने ले ली ै।

गिंगाराम सर उसकी तरफ़ अनतररक्त ध्यान दे ने लगे उसकी पसिंद-नापसिंद को तर्ज्जो दे ने लगे दे खते र ते

ैं फक सलीमा परे शान तो न ीिं।

किा में पढाते समय, आिंखों मठ ु भेड़

ैं।

ी आिंखों उसका

ैं।

ाल-चाल लेते।

ो जाने पर उसे रोक कर ‘सख ु म-दख ु म’ जरूर कर ललया करते।

सलीमा के अिंदर पैठी खझझक अि िीरे -िीरे ख़त्म

ोती जा र ी थी।

खझझक जो एक सािन-पर् ीन, ननिान, दि ा और मजिरू व्यजक्त के अजस्तत्र् पर ु ल जिरन लादा गया

एक आभी ू ूषण

ोती

ै।

खझझक जो व्यजक्त को कभी फकसी से नजरें लमलाने या उठाने से रोकती खझझक जो आदमी को ऊिंची आर्ाज में िोलने न ी दे ती। खझझक जो िड़े लोगों के िरािर िैठना जम ु ा मानती

ै।

ै।

खझझक जो अच्छे कपड़े प नकर घर से ननकलने न ीिं दे ती----खझझक से ग्रलसत व्यजक्त िटे -परु ाने कपड़ों में खुद को स्र्ाभापर्क पाता

ै।

खझझक जो िेशमा ोकर फकसी से कुछ भी मािंगने न ीिं दे ती, जिफक मािंगना एक कला ै ---सरकारें तक र्ल्र्ड-िैंक से मािंगती ैं, अमरीका से मािंगती

रखती

ैं फक र्े अपने दे श में ‘इन्र्ेस्ट’ करें ---ये भी एक तर

ैं---प्रर्ालसयों से अपेिा का मािंगना

ै।

इस खझझक रूपी आभष ू ण को प नकर अधिकािंश लोग ताउम्र कुनमन ु ाते-सकुचाते र ते ैं।

सरकारें जानती ैं फक इसे िारण करने र्ालों की जमात को आसानी से र्ोट में िदला जा सकता

ै।

इन् ें ‘मैनेज’ करना आसान ये लोग प्रायुः स्र्प्नजीर्ी

ोता

ोते

ै।

ैं और आसानी से र्ाग्जाल में ि​िंस जाते

ैं।


ऐसे लोगों का समू

सरकारें जानती

ै जजसे ‘र्ोट-िैंक’ के नाम से जाना जाता

ैं फक ये जो आिाहदयािं

कमजोररयों से कभी उिरती न ीिं

ैं---

ैं---ये जो खझझकती र ती

ै।

ैं---- ये अपनी

ये लोग सहदयों आस लगाए िैठे र सकते ैं फक कोई न कोई जरूर आएगा और पी ू ूर्ा जन्मों के इस खझझक रूपी अलभशाप से उन् ें मक् ु त कराएगा। इसी खझझक को कुछ लोग कछुए के खोल की तर इस खोल से फिर र्े िा र ननकलना न ीिं चा ते।

ओढ लेते

ैं।

इन् ीिं लोगों को गािंिीर्ादी ‘पिंजक्त का आखखरी आदमी’ क ते थे----

इन् ीिं लोगों के ललए दीनदयाल उपाध्याय ने ‘अिंत्योदय’ का नारा हदया था--य ी र्ो समद ु ाय ग्रलसत र ता

य ी र्ो लोग

ै।

ै जो कुपोषण, अलशिा, िीमारी, िेरोजगारी जैसी समस्याओिं से

ैं जजनके उत्थान के ललए सरकारें योजनाएिं िनाती

ैं---

ये लोग न र ें तो सरकारें करोड़ों रूपयों की े रा-िेरी न कर पाएिं----

खझझकने की िीमारी से उिरने र्ाले चिंद लोगों का अद्भत ु कायािंतरण

ोता

ै।

सरकारी योजनाओिं और मजिरू ों की िौज के िीच जो दलाल र्गा पैदा ोता ै , उसकी सिसे ननचली कड़ी

ोते

ैं ये लोग।

तभी तो िड़े अिसरों, नेताओिं, उद्योगपनतयों के अलार्ा िािओ ु िं, चपरालसयों के य ािं भी

अकूत दौलत लमल जाती ै , क्योंफक ये छोटे लोग िन कमाने के ललए खझझकते न ीिं। ये र्ो

ोते

ैं, जो जान जाते

ैं-- ‘‘जजसने की शरम, उसके िाटे करम!’’

ये न खझझकने र्ाले लोग ी िेशरम लोग ैं जजनके योगदान से सरकारी स्कूल ि​िंद ोने के कगार में

ैं और आए हदन कुकुरमत्त ु ों की तर

स्कूल-काीलेज खुलते जा र े

ैं।

इन नर्-दौलनतयों के कारण लसनेमा ाील की जग

इन नर्-कुिेरों के कारण डडपाटा मेंटल-स्टोर की जग शाीपपिंग-माील खुलते जा र े

ैं।

एक से िढकर एक ननजी मल्टीप्लेक्सों ने ले ली

इन नर्-िनपशओ ु िं के उद्भर् से डडस्पें सररयों की जग पिंच-लसतारा

एक से िढकर एक

ाीस्पीटलों की श्रिंख ृ ला दे श में पर्कलसत

ै।

मिं गे नलसिंग- ोम और ो र ी

ै।


इन िेशरम भ्रष्टाचाररयों के

ाथों में मोिाईल, ब्रीिकेस में लेपटाीप, जेि में डाीलर,

र्ैलेट में फकसी िािा की िोटो के साथ तीन-चार क्रेडडट-काडा ये ब्राण्डेड कपड़े प नते

ैं।

घडडयािं, टाई, परफ्यम ू , जत ू ,े मोजे----सि ब्राण्डेड प नते य ािं तक फक इनकी चड्डडयािं भी ब्राण्डेड एक तिका ऐसा

ोती

ैं।

ोते

ैं।

ैं।

ै फक जजसके घर में हदनभर खुदाई की जाए ति भी एक सौ रूपए

का नोट िरामद न

ो पाए और दस ू रा तिका ऐसा ै जजसे करोड़ों खचा करने के िाद

भी ह साि रखने की जरूरत न ीिं पड़ती---सलीमा क्या करती?

जमाने के चलन ने उसे मजिरू फकया और उसने खझझक का दामन छोड़कर िे याई की उिं गली थाम ली----


इश्क-कम ना सलीमा जानने लगी थी फक इस आपािापी के दौर में इश्के-मजाजी, इश्के- क़ीक़ी जैसी चीजे न ीिं चलतीिं। इश्क़ की जग

लोगों ने एक नया शब्द ईजाद फकया

ये दोस्ती कई तरीके से चलती ररलेशनलशप’ ीेीिं तब्दील अि

ै और एक हदन ऐसा भी आता

ो जाती

ै।

ै फक ‘ललर्-इन

र्ो जमाना न ीिं र ा फक आलशक गाता फिरे -तुझे चािंद के ि ाने दे खिंी-ू ---.तू छत

पर आ जा गोररए---’

अि तो सीिे क ना ै फक-‘‘टन

टनाटन टन टन टारा----चलती ै क्या नौ से िार ..’’

ये इश्क-पर्श्क के चक्कर तो िीते जमाने की िातें ति

ै ‘दोस्ती’।

ोता ये था फक ि​िंदा जजन्दगी के कई मा

खचा कर दे ता था। फिर शरू ु

ोता था लसललसला-‘िलम दे खा-दे खी

ैं।

लसिा अपने माशक ू की झलक पाने में ो जाए..’ का।

आलशक य ी समझता र ता ै फक माशक ू ा ने जो नए कपड़े प ने को ररझाने के ललए प ने

ैं।

ैं र्ो सि आलशक

आलशक को य ी गलतफ़ मी ोती र ती ै फक चािंदनी की शीतलता का कारण माशी ू ूक का छत पर ट लना

ै।

आिंिी-ति ू के हदल में प्यार की तड़प पैदा ू ान का कारण माशी ू क पतझड़ की आमद यानी आलशक से जद ु ाई की रूत आई िागों में िूल खखले

ै।

ैं यानी माशक ू के हदल में उमिंगें जगी

ोना

ै।

ैं----

आसमान में लसतारे खझललमलाने लगे यानी माशक ू के दप ु ट्टे पर प्यार के गीत ललखे जा र े

ैं।

ऐसे समय में आलशक िेइिंते ा सपने दे खने लगता

ै।

कभी िाररश में भीगती आती माशी ू क ू ा को अपनी छतरी में जग ू ी नीिंद खुल जाती

ै।

दे ते र्क्त उसकी


कभी माशक ू ा से काीलेज की सीढी चढते में मल ु ाकात के दौरान अचानक उसके भाई की आमद से

ड़िड़ाकर नीिंद खल ु जाती

उस जमाने में एक तरिा इश्क

ै।

ी अधिकतर

ोता था।

आलशक को अचानक एक हदन पता चलता था फक माशक ू ा के घर में रिं गाई पत ु ाई चल र ी

ै । माशी ू ूका की िरात आने र्ाली

माशी ू ा डोली चढकर पर्दा ू क

ोने र्ाली

ै।

ै।

आलशक ननराश ै ---उदास ै --- ताश ै और मजे की िात ै फक डोली में िैठी माशक ू ा को मालम ू

ी न ीिं

ै फक कोई ि​िंदा उससे गुपचप ु इश्क भी करता

ै।

और एक हदन ऐसा भी आता ै जि आलशक आर्ारागदी करते ु ए एक हदन एक िच्चे की मािं अपनी माशी ू ा से टकराता ै तो माशक ू क ू ा मस् ु कुराकर अपने िच्चे से क ती ै --‘‘बिट्टू, नमस्ते करो, ये तम् ु ारे मामा

इस तर

ैं---!’’

से गािंर्-कस्िों के इश्क की क ानी चकनाचरू

अि इश्क न इश्के- क़ीक़ी र ै।

ो जाती थी।

गया ै न इश्के-मजाजी---अि इश्क कमीना

एडर्ान्स्ड लोग अि इश्क को िद्तमीज-इश्क भी क ने लगे

ोने लगा

ैं।

अि लैला-मजन,ू रोलमयो-जूललयट, शीरीिं-फ़र ाद, सस्सी-पन् ु नू जैसे इश्क न ीिं हदखलाई हदया करते।

इश्क ऐसा भी क्या फक तो इश्क न ीिं

ीरो-ह रोईन का लमलन न

ो---लसिा दुःु ख

ोना चाह ए---आखखर ‘एन्ज्र्ाीय’ भी तो कोई चीज

ये क्या फक ‘खाया पपया कुछ न ीिं---धगलास तोड़ने के दो रूपए---’’

ी दुःु ख का नाम ोती

ै।

अि ि​िंदे कुछ भी इन्र्ेस्ट करने से प ले ररटना की त क़ीकात कर ललया करते यहद ररटना अच्छा न ीिं तो फिर कुत्ता काटा

ै जो िन्दा इन्र्ेस्ट करे ---

शद् ु ि दे सी शब्द आज का आलशक अपनी भार्नओिं को इस तर चनू तया

ैं।

ियान करे गा--‘‘ म

ै का..अिंय----का ए ी खानतर प्रेम फकए थे फक कउनो और एन्जाीए

करे ----टपकईये न दें गे ससरु े को!’

अि लोगों ने जान ललया ै फक नायक से ज्यादा सख ु मय जीर्न खलनायकों का ोता ै।


लोगों ने जान ललया लोगों ने जान ललया

ै फक त्याग से ज्यादा आनिंद भोग में ै फक लोक सिंर्ारना प्रमख ु

सपु र्िाओिं से र्िंधचत र ना मख ा ा ू त स्र्गा-नरक का खेल जि

ै , परलोक की धचन्ता में लोक की

ै।

ोगा ति उस ह साि से गेम खेल ललया जाएगा! अभी

आई लक्ष्मी को ठुकराना तो मख ा ा ू त जजस तर

ै।

से सिंसार चल र ा

ै।

ै , उससे तो लगता

ननन्नानिे प्रनतशत आिादी को नरक भेजना

ोगा।

ाथ

ै फक भगर्ान को दनु नया की

और जि इतने सारे लोग नरक में र ें गे तो फिर सभी लोग दण्ड पाया करें गे। र् ािं कम से कम रैंक या ओ दे का झमेला तो न ीिं

ोगा। सभी िरािर धगने जाएिंगे।

ऊिंचे लोगों को भी तो ननचले तिके के लोगों के साथ नरक में जून भग ु तना भगर्ान के घर कम से कम इस तर न ीिं तो अिसर लसिा

का भेदभार् न ीिं

ोगा।

स्तािर रूपी धचडडया बिठाने का पाते

ोगा।

ैं फिफ्टी परसेंट और

आिंख में चश्मा चढाए..घण्टों मगजमारी करके िाईल तैयार करने र्ाले िािओ ु िं को फकतना लमलता

ै ---य ी आिा या एक परसेंट

ी न----

सलीमा के जे न में जन्नत और ज न्नम ु की अलग-अलग छपर्यािं

ैं।

अब्िू से उसने जाना फक अच्छे कमा करने र्ाले, नमाज पढने र्ाले, रोजा रखने र्ाले, जकात अदा करने र्ाले सच्चे लोग जन्नत में जाएिंगे---ये लोग यहद परू ु ष ैं तो इनकी खखदमत के ललए एक से िढकर एक ू रें लमलेंगी----. ये ू रें कौन ैं--क ीिं िरती में अच्छे कमा करने र्ाली जस्त्रयािं

ी तो ू र न ीिं िन जाएिंगी? यहद य ी ू र िनेंगी तो फिर उन ़्’ ें इन दाढी-टोपी र्ाले मरदों की खखदमत करनी ोंगी? इसका मतलि ये जन्नत तो मरदों के ललए िनी ै --तो नेक जस्त्रयों को जन्नत में क्या लमलेगा----? इसका जर्ाि सलीमा को न ीिं लमल पाता था---

अब्िू सलीमा की जजज्ञासा को िं सकर टाल दे ते फक र् ािं दि ू की नहदयािं ि ती

ैं----

सलीमा सोचा करती फक चलो जन्नत में अब्िी ू ू को बिना दघ ू की चाय पीनी न ीिं पडेगी---


लेफकन अब्िू तो पािंच र्क्त की नमाज भी न ीिं पढते---फिर उन् ें अल्ला-तआला जन्नत का ईनाम दें गे?

फिर सलीमा के तका आपस में गिंथ ु कर उलझ जाते---सलीमा उन् ें सल ु झा न ीिं पाती---उसके िी ू ूते की िात भी न ीिं ू ी

ै ये----


दिन ब दिन बढ़त गईं---गिंगाराम सर जैसे अध्यापकों की सिंगत में र कर सलीमा एक चतरु -चालाक लड़की में िदलती जा र ी थी।

गिंगाराम सर उसे दे ख कर में दी ‘‘हदन ि हदन

िढती

सन की गाई गजल गुनगुनाते-गईं,

उस ु स्न की रानाईयािं प ले गुल, फिर गुलिदन, फिर गुल-िदामािं ो गए.’’

सलीमा ने फ़ारसी के रानाईयािं का मतलि समझा ो या न समझा ो लेफकन उसे लगने लगा था फक उसकी दे

में लन ु ाई आने लगी

ै ीै।

सलीमा सोचा करती फक खझझक या शरम से उिरने र्ाले व्यजक्त को लसिा और लसिा ‘ढीठ’ क ना पया​ाप्त

ोना चाह ए।

सलीमा भी अि ढीठ िन चक ु ी थी।

उसके अिंदर स ज रूप से चालाफकयािं, चालिाजजयािं और चतुराई ने डेरा िना ललया।

र्ो जजतनी सरलता से झठ ू िोल लेती थी उतनी सिाई से सच न ीिं िोल पाती थी। इसीललए अि उसे िेर्कूि िनाना आसान न ीिं था।

सलीमा जानती थी फक उसने जीर्न की पाठशाला से ये जो नया सिक सीखा ै ये कोई अच्छा सिक न ीिं ै , लेफकन उस जैसी पिंख ीन लड़की के ललए उिार के पिंख ी स ी! लेफकन

र काल में ,

र दे श में , औरत के ललए स ज-प्राप्य पाठ य ी तो

चा े फकतनी आचार-सिंह ताएिं िना दी जाए--चा े फकतने नए और कड़े कानन ू पास

ोता ै ----

ो जाएिं---

चा े फकतने सि ु ारर्ादी आिंदोलन चलाए जाएिं----. स्त्री-जीर्न से जुड़े दे

के प्रश्न का उत्तर कभी न ीिं लमल पाएगा----

इसी दे की भाषा के अनर् ु ाद का पाठ र यग ु में अलग-अलग रूपों में फकया जाता र ा ै।

इसी िात की गर्ा की तर्ायफ़ें---

ैं र्ैशाली की नगरर्िए ु िं---दे र्ालयों की दे र्दालसयािं---अर्ि-िनारस


इसी िात की तस्दीक करती नानयकाएिं----लसने जगत की सभी जानते

ैं िैशन-शोज की माी​ीडल्स, पोना िाजार की

ीरोइनें----

ैं फक ि ु त कहठन ै डगर पनघट की----. यहद स्त्री स्र्ेच्छा से शधु चता का सौदा करने को तैयार न ो तो उसे मनाने के जारों थकण्डे समाज अपनाता

ै।

इसीललए सलीमा ने रणनीनत के त त दे का कायाक्रम

को एक

ी िना ललया।

धथयार की तर

इस्तेमाल करने

और र्ाकई दनु नया उसके क़दमों तले आने लगी। उसने जो दनु नयादारी की नई डडग्री यनू नर्लसाटी में पढाया न ीिं जाता ये ऐसी पढाई

ै।

ालसल की, उसे दनु नया के फकसी मल् ु क की

ै , जजसके लसलेिस का ननिा​ारण कुदरत स्र्यिं करती

ै।

जजसे पढाने, समझने या फिर व्याख्या करने के ललए फकसी प्रोिेसर, फकसी पस् ु तकालय की जरूरत न ीिं

ोती।

दनु नया के कोने-कोने में फकशोररयािं चा े घर के अिंदर या घर से िा र, इस पर्द्या में पारिं गत

ोने लगती

ैं।

इसीललए उन् ें सार्िान र ना पड़ता ै ---िा र र्ालों के अलार्ा खास अपनों से भी---ऐसा

ै ये समाज जो फक स्त्री को यर् ु ा

जाललम

ोते

ोने का अर्सर

ी न ीिं दे ता और कुछ ऐसे

ैं जो गोद में खेलती िजच्चयों को भी न ीिं िख़्शते----

इन मरदों का तका ोता ै फक चाकूीू तरिज ू े पर धगरे या तरिज ू ा चाकू पर---नक ु सान तरिी ू े का ू ज

ोना ै ---य ािं उनका मिंतव्य ै फक चाकू माने शजक्तशाली परू ु ष और

तरिी ू ा माने भोग्या स्त्री--ू ज

इन जस्त्रयों के चलते सारी दनु नया में एक िड़ा उपभोक्ता िाजार िन गया यहद ऐसा न कौन

ो तो िैशन-टीर्ी के शो ि​िंद

ै ----

ो जाते----ये कमलसन फकशोररयािं आखखर

ैं? क्या ये फकशोररयािं िैशन टीर्ी र्ालों के स्टूडडयो में सीिे आसमान से

अर्तररत

ोती

ैं?

क्या ये फकशोररयािं फकसी की औलाद न ीिं

ोतीिं?

क्या इनके भाई न ीिं ोते, जजनके गस् ु से और कच्चा चिा जाने का डर उन् ें न ीिं र ता?


क्या इनके इस तर र ने से फकसी खाप, समाज या जजरगे की इज़्ज ़्ीात पर िब्िा न ीिं लगता?

िैशन शो के रै म्प पर कम से कम कपड़ों में हदन-रात कैट-र्ाक करने र्ाली ये फकशोररयािं कौन

ैं?

सलीमा जानने लगी थी फक जो हदखता ै र् ी बिकता ै ----और समय र ते समय का लाभ सभी उठाते

ैं।

एक िार पैसे आ भर जाएिं इिंसान के पास, फिर कोई इिंक्र्ारी न ीिं करता फक पैसे क ािं से आए---!

इसी पैसे के जोर से समाज में आदमी की इज़्जत

ै , रसख ू

ै।

र्ो चा े मौलर्ी ों, या िािा पजण्डत ों या पादरी, सभी पैसे र्ालों को मक् ु त कण्ठ से दआ ु एिं दे ते

ैं।

पैसे र्ालों की सलामती के ललए अनष्ु ठान करते उनकी ग्र -दशा ठीक करने के ललए िेचन ै र ते ‘द

ैं।

ैं।

िं इज दै ट के भईया---सिसे िड़ा रूपइया---’’ ोल धथग

ये पैसा न

ोता तो फिर इतनी मारा-मारी न

ोती।

इिंसान की जजन्दगी में पैसे के म त्र् को सलीमा ने जान ललया था। सलीमा के घर के पलती-पढती र े ।

ालात ऐसे न थे फक र्

ज्यादा हदन तक दस ू रो के र म पर

आगे पढाई कहठन भी थी और खचीली भी।

जिफक उसकी छोटी ि नें सरु ै या और रूकैया भी अि िड़ी किाओिं में आ गई थीिं। सलीमा सोचती थी फक ये जिफक गिंगाराम सर

ी पढ-ललख लें तो अच्छा

मेशा उसे समझाया करते फक यहद सलीमा चा े तो र्

आसानी से िीए-एम्मे करा दें गे। लेफकन

र काम का एक दाम

सलीमा चा ती थी फक अि र् िनने में लगाए। ये जजस्म

ै।

ोता

ै।

उसे

अपने काम का दाम पढाई में न लगाकर स्र्ार्लिंिी

मेशा जर्ान तो र े गा न ीिं---


जि ये जजस्म ढलने लगेगा ति फिर क्या

ोगा?

जजस्म के खेल से पैसे िनाने का काम ज्यादा हदन चलेगा न ीिं--कुछ और व्यर्स्था सोचनी अपने पैरों पर खड़ा

ोगी---

ोना पड़ेगा---

आधथाक आजादी र े गी तो सि कुछ ठीक सलीमा जजस रा मम ु फकन न ीिं---

पर चल पड़ी

लेफकन सलीमा चा ती

ो जाएगा।

ै उसमें जाह र

ै फक उसकी खुद की शादी

ै फक अपनी ि नों की डोली अपने दम इस घर से रर्ाना

करे गी।

दोनों ि नें सरु ै या और रूकैया

ैं भी एकदम सन् ु दर----दोनों ि नें अम्मी पर गई

ैं---पता न ीिं क्यों सलीमा अब्िी ू ू पर गई और सन् ु दर न ीिं ो सकता

ै फक अल्ला

की इसमें भी कुछ मसले त

ो----

ो पाई---

सकीना आपा ने सरु ै या को अपने लड़के यस ू ि ु के ललए पसिंद कर रखा सकीना आपा िेर्ा

ैं।

लसलाई-कढाई करके िाल-िच्चे पालती

ैं।

उनका लड़का यस ू ि ु नदी उस पार शमा​ा-आीटो गैरेज में काम करता यस ू ि ु सन् ु दर अभी चैद

ै।

साल का

नमाजी तो न ीिं

ै यस ू ि ु ।

ै लेफकन जम ु ा की नमाज िाजमात अदा करता

िस उसमें एक ऐि

ोना

ै।

ै।

ै।

ै फक गैरेज के सिंगी-साधथयों की सिंगत में गिंजेड़ी िन गया

सकीना आपा सोचती र ती

ैं फक शादी के िाद शायद यस ू ि ु सि ु र जाए।

सलीमा की अम्मी को खाला िोलती थीिं सकीना आपा।

ै।

पतली-दि ु ली तीखे नैन-नक्श की सकीना आपा का शौ र याकूि भाईजान जीप-लमस्त्री थे।

नगर के सिसे िड़ी गैरेज शमा​ा आीटो में काम करते थे। याकूि भाईजान िे द मश ू र आीटो-इलेजक्ट्रलशयन थे। शमा​ा आीटो का माललक भाईजान को ि ु त मानता था।


य ी कारण था फक याकूि भाईजान शरािनोशी करने लगे थे।

एक रात र् अपने माललक के साथ िैठे शराि पी र े थे फक पर्िायक जी के गरु गे का िोन आया। पर्िायक जी की कार में शाटा -सफकाट ु आ और सदे र् नसारी के जिंगल में ि​िंद ो गई ै । पर्िायक जी दस ू री गाड़ी मिंगर्ाकर चले गए करर्ाएिं।

कार का ड्राइर्र कार के साथ जिंगल

ी में

ैं, आदे श ु आ ै फक शमा​ाजी उसे ठीक

ै।

शमा​ाजी ने याकूीूि भाईजान से पछ ू ा था--‘‘जा सकते ैं भाईजान---चार पैग तो ले चक ु े ो..!’’

याकूि भाईजान में मदा​ानगी की कमी तो थी न ीिं।

उन् ोंने िटाक से क ा-‘‘आप का सोचते ैं फक दारू मको चढे गी---दारू की मािं की----., आप मोटर-साईकल दीजजए, अभी जाकर पर्िायक की कार ले आता ूिं ।’’ शमा​ाजी ने क ा फक एक चेला रख लो। याकूि भाईजान िोले--‘‘छोडडए चेला-र्ेला, िार पर्िायकजी का ड्राइर्र लमल

फकलोमीटर दरू तो

ै नसारी। र् ािं

ी जाएगा। दोनों लमलकर कार स्टाटा करके आ जाएिंगे।

पक्का काम गैरेज आके कर दिं ग ू ा---।’’

याकूि भाईजान ने जरूरी टूल्स मोटर-साईफकल की डडक्की में रखे और फकक मारकर ननकल गए।

उस समय रात के दस िजे थे।

पर्िायकजी की कार का एक केबिल जल कर खाक

ो गया था।

याकूि ने उसे िायपास फकया और आिे घण्टे की कारीगरी करके कार स्टाटा कर ली। आगे-पीछे की लाईटें भी जल गईं।

उन् ोंने ड्राइर्र से क ा-‘‘चल यार, तू आगे-आगे और मैं पीछे -पीछे ----सीिे गैरेज चले

चलते ैं। र् ािं कार खड़ी कर दे ना, और मैं तुझे घर छोड़कर अपने घर चले जाऊिंगा।’’ कुछ दरू आगे-पीछे दोनों गाडडयािं चलती र ीिं---

कार के चालक ने एक लसयार की आिंखें चमकती दे खीिं, जो सड़क फकनारे खड़ा था--कार आगे ननकल गई लेफकन नशे की झोंक में याकूि भाईजान ने सड़क पार करते


लसयार को न ीिं दे खा और उनकी मोटर-साइफकल लसयार से टकरा गई।

मोटर-साइफकल ल रा कर सड़क फकनारे आई और सागौन के पेड़ से टकरा कर पलट गई।

याकूि भाईजान सर के िल सड़क पर िेंका गए। उनका लसर िट गया----र्ो िे ोश

ो गए।

जि कार चालक ने दे खा फक मोटर-साईफकल की े ड-लाईट न ीिं हदख र ी ै तो उसने कार की रफ्तार कम कर दी। उसे लगा फक

ो सकता

सदे र् नसारी में जजग-जैग मोड़

ै भाईजान पेशाि करने के ललए रूके

ैं। लसिंगल लेन

जि कोई आ ट न ीिं लमली तो कार को र्ापस मोड़ हदया उसने। कुछ दरू लौटने पर जो नजारा उसने दे खा तो उसके एक लमनी ट्रक आकर रूका था।

ों।

ै।

ोश उड़ गए।

जब्िार आलर् ू ाले की लमनी ट्रक थी र्ो।

ट्रक की े डलाईट और कार की रौशनी खून से लथपथ िे ोश याकूीूीूि भाईजान पर पड़ र ी थी।

जिंगल का अिंिेरा ख़ौफ़नाक

ो गया था।

कार-चालक ने जब्िार आलर् ू ाले को परू ी िात िताई।

उन लोगों ने लमल कर याकूि भाईजान को लमनी ट्रक पर लादा और िा-रफ्तार ास्पीटल आ प ुिं च।े र् ािं शमा​ा-आीटो के शमा​ाजी भी लमल गए। डाीक्टरों ने एक्सीडेंट के नाम पर

ाथ लगाने से प ले पलु लस को सच ू ना दी।

याकूि भाईजान के लसर से कािी खून ि

चक ु ा था।

जजस्म में और क ीिं चोट के ननशान न ीिं थे।

सकीना आपा को खिर लमली तो र्ो अड़ोलसयों-पड़ोलसयों को ललए आ प ुिं ची। पलु लस आई और डाीक्टरों ने याकूि को भती कर ललया। सि ु

िजजर की अजान के साथ याकूि भाईजान इस दनु नया से कूच कर गए।

सकीना आपा िेर्ा

ो गईं।

शमा​ाजी ने याकूि भाईजान के िेटे यी ू ूसि ु को अपने गैरेज में काम पर रख ललया।


यस ू ि ु कभी-कभार सलीमा के घर भी आता-जाता र्

सलीमा को आपा क ता

ै।

ै।

सरु ै या और रूकैया के ललए चाीकलेट-समोसे लाता र ता

ै।


एक नई राह---अिंततोगत्र्ा गिंगाराम सर के जग ु ाड़ से सलीमा ने दसर्ीिं पास कर ललया। अि इसके आगे पढने का पर्चार उसे त्यागना पड़ा। अब्िू का जीर्न के प्रनत मो

कम

ोता जा र ा था।

िस, अलस्सि यहद एक-दोीे लोग ड्डडयािं या नस बिठाने आए तो ठीक र्रना उनके ु पास और कोई काम न ीिं था।

अब्िू उस सख ो गए, जो कभी भी चरमरा कर टूट सकती थी। ू ी ु ई ट नी की तर जि कभी कुछ ठीक लगता अब्िू फकसी तर ाजीजी की चक्की प ुिं च जाते और र् ािं थोड़ा-ि ु त काम कर दे ते। अब्िू को दस-पािंच रूपए लमल जाते लेफकन साथ-साथ ाजीजी की खझड़फकयािं भी लमल जाया करतीिं--‘‘जि जी न ीिं चलता ति क्यों प लर्ान!’’

अब्िू टुकुर-टुकुर अपने दाता का मिंु

राम की पगार लेने आ जाते

ो मम्द ू

ताकने लगते।

ाजीजी इतने पर न ीिं रूकते--‘‘इससे अच्छा मजस्जद कमेटी की तरफ़ से यतीम,

मजिरू , पर्िर्ा आहद को ि​िंटने र्ाले फितरा-सदका के पैसों के ललए दरख़्र्ास्त लगा दो प लर्ान!’’

अब्िू को कोई िात िरु ी न लगती।

ाथ आए पैसे को अ नतयात से कमीज की जेि में रखकर

ननकल जाते।

अब्िू को जमाने से कोई लशकायत न ीिं

ाजीजी को सलाम करते

ै।

िेददा जमाने ने जैसा चा ा उन् ें नचाया, लनतयाया, गररयाया। यहद र्

िरु ा मानते तो अम्मी उन् ें छोड़ कर दस ू रा मदा क्यों िनातीिं क्यों?

अब्िू जैसे सीिे-सािे इिंसान को छोड़कर जाती क्यों?

सलीमा और उसकी ि नों के ख़राि हदन आते क्यािंी? े


इस िीच गिंगाराम सर ने सलीमा से आगे पढाई जारी रखने को क ा। सलीमा ने अपनी मजिरू ी िताई।

पररर्ार चलाने के ललए ठोस आधथाक आिार क्या

ो, इस िारे में उसने गिंगाराम सर

से कुछ करने को क ा, ताफक जजस्म का धथयार भोथरा ो जाने के िाद भी आजीपर्का के ललए र्ैकजल्पक रा

तैयार र े ।

गिंगाराम सर ने उसे आश्र्स्त फकया फक र्

कोई रास्ता जरूर ननकालेंगे।

एक हदन सर ने सलीमा की समस्या का समािान खोज ललया। सलीमा अपने घर में आटा-चक्की लगा ले।

माना फक ये मामल ू ी िजट का काम न ीिं ै लेफकन ऐसा ोना नामम ु फकन भी तो न ीिं ै।

उसके अब्िू आटा-चक्की चलाने का अनभ ु र् तो सलीमा की उम्र ज्यादा न ीिं

ै लेफकन

ी।

ालात ने उसे सयाना िना

फिर सलीमा जि काम सीख जाएगी तो अब्िू को मदद

ी हदया

ो जाया करे गी।

सलीमा के पररर्ार को इज़्जत की दो रोटी इसी काम से लमल सकती एक चक्की बिठाने में फकतना खचा आता रूपए

ी तो।’’

सलीमा की आिंखें िैल गईं-‘‘पच्चास-साठ

ोगा। य ी कोई पचास-साठ

ज्जा----र..!’’

‘‘और क्या!’’ र्

बिचारी इसके अलार्ा और क्या क ती।

घर में तो ज र खाने को भी पैसे ऐसे में पचास

ों तो कोई िात

जार रूपए एक ख़्र्ाि

ी तो

ै।

ो।

सलीमा ने काले जमीन पर लाल िूीूलों र्ाला सट ू प न रक्खा था। लाल िूल जैसे सलीमा के चे रे की तर

ै।

ै , सलीमा ने जानना चा ा था।

गिंगाराम सर ने िताया-‘‘अरे , फकतना खचा आता

मरु झा गए

लेफकन गिंगाराम सर फकसी िात से घिराते न ीिं। धचिंनतत सलीमा उनकी आगोश में आ गई।

ों----

ै।

जार


सर उसकी जुल्फ़ों से खेलते ु ए िताने लगे फक रूपए फकस पेड़ से तोड़ कर लाए जाएिंगे। इतने ज्यादा रूपए जजस पेड़ से लमलें र् पेड़ िैंक के अलार्ा और क ािं ोगा? गिंगाराम सर की िैंक मैनेजर पर्श्र्कमा​ा सा ि से अच्छी नजदीकी मैनेजर गिंगाराम सर के गािंर् जजला-जर्ारी

आखखर फकस हदन काम आएिंगे ऐसे सम्ि​िंि! िस, सलीमा को ननणाय लेना

ैं।

ै।

ै।

घर आकर सलीमा ने अपने अब्िू से िात की। अब्िू सलीमा की कपोल-कल्पना पर

िं स हदए।

पछ ू ा-‘‘क ािं से आएिंगे इतने रूपए? तेरे अब्िू जजन्दगी भर मजूरी करें गे ति भी इतने रूपए इकट्ठे न

ो पाएिंगे।’’

सलीमा ने उन् ें िताया फक िैंक में जग ु ाड़

ै , ‘लोन’ लमल जाएगा।

एक िार पैसे आ जाएिं फिर िीरे -िीरे कजऱ् पटा हदया जाएगा।

अब्िू ने अपर्श्र्ास से उसकी तरि दे खा फिर क ा-‘‘जो तुझे ठीक लगे कर---मेरे िस का न ीिं फक मैं क ीिं भाग-दौड़ करके कजऱ्ीा मािंगिं।ू ’’

दस ू ने हदन सलीमा ने गिंगाराम सर को िताया फक र् िैंक से लोन के ललए प्रयास करें । गिंगाराम सर ने सलीमा को अपने घर िल ु र्ाया। सलीमा उनकी िा ों में थी।

गिंगाराम सर ने अपने िदन की गमी से सलीमा के िदन की चा ी।

रारत की था

लेनी

इसी प्रयास में र्

ननढाल ु ए। सलीमा का मन जस्थर न था।

उसे तो पच्चास ज्जार रूपए की गड्डडयािं हदख र ी थीिं----जजसे र् धगन न ीिं पा र ी ै।

सरु ै या और रूकैया भी पगलाई ु ई उन रूपयों को एक-एक कर धगन र ी ैं और धगनती भी ू ूलती जा र ी ैं। गिंगाराम सर ने उसके कान में क ा फक िैंक से लोन इतना आसान न ीिं

ै।

ािं, यहद सलीमा ऐतराज न करे और िैंक मैनेजर पर्श्र्कमा​ा सा ि के घर जाकर एक


िार लमल आए तो िात िन जाएगी।

साथ ी एक राज की िात ये भी िताई--‘‘पर्श्र्कमा​ा सा ि ि​िंगले में अकेले ैं आजकल। उनके ससरु सा ि की

ालत ठीक न ीिं

सलीमा ने आिंखें तरे र कर सर को दे खा।

ै सो भाभी माईके गई ु ई

ैं।’’

सर ने उसे जोर से भीिंचा।

सलीमा के हदमाग को चार सौ चालीस र्ोल्ट का झटका लगा। जाने-अन्जाने ये फकस रा

पर र्

चल ननकली

ै।

फिर उसने सोचा फक भख ू और अभार् से जूझने से तो अच्छा जजस्म की ताक़त का अिंदाजा लगा ललया जाए। र्

जानती

ै फक राज की िात राज

ै फक एक िार फिर

ी र े गी।

गिंगाराम सर, िैंक मैनेजर और सलीमा का बत्रकोण। लेन-दे न का एक अजि पर्ननमय

ै ये---!

दनु नया लसिा ऊपरी चमक-दमक ी दे खती ै , नीिंर् के अिंदर की कुरूपता से फकसी का कोई सरोकार न ीिं

ोता।

ि ु त सोच-समझकर सलीमा ने गिंगाराम सर से क ा फक र्ो तैयार

ै----


बात तनकलेग तो िर तलक िाएग --जाने क्या ु आ फक फिर सलीमा की गिंगाराम सर से मल ु ाकात न ो पाई। जि से उसने सर से िैंक मैनेजर के घर जाने की िात स्र्ीकार की थी, र् डरी-स मी र ने लगी थी।

कुछ

एक अन्जाना भय उसे आशिंफकत फकए र ता। उसे लगता फक क ीिं ये राज खुला तो क्या लेफकन उसे मालम ू

ोगा?

ोना चाह ए था फक दीर्ार के भी कान

ोते

ैं।

गिंगाराम सर भी उसे डराया करते फक गलती से भी इस अजीि सम्ि​िंि की चचा​ा फकसी अपने से भी न ीिं करना, र्रना----िात ननकलेगी तो फिर दरू तलक जाएगी----! र्

थी।

जजतना इस दलदल से ननकलने का प्रयत्न करती, उतना

ी ि​िंसती चली जा र ी

इस दोमिंु े जीर्न से उसका हदन तो ठीक गुजर जाता लेफकन रात में उसे दुःु स्र्प्न परे शान फकया करते।

कभी उसे ऐसा म सी ू ू स

ोता फक र्

ै।

फकसी अनजान जग

पर चलती चली जा र ी

आगे एक ग रे गड्ढे के पास जाकर र् सम्भल न ीिं पाती और गड्ढे में धगरती चली जाती

लगता

ै । उसकी सािंस िूल जाती

ै , अिंतडडयािं एिंीेठने लगती

ै और जचककर उसकी नीिंद खल ु जाती

कभी ख़्र्ाि हदखता फक र् अचानक लगता

ै फक र्

ै।

ैं, लसर चक्कर खाने

आसमान में फकसी धचडडया की तर

उड़ र ी

ै फक

पिंख िड़िड़ाकर उड़ते र ने की कला भल ू गई ै । उसका

िदन िड़ी तेजी से िरती की तरि धगर र ा ै और ताड़ के पेड़ की सिसे ऊिंची शाख़ पर र् लटक गई ै । उसका कण्ठ प्यास से सख ू ा ै, िदन थरथरा र ा ै और हदमाग एकदम खाली

ो गया

ै।

ये सारी प्रफक्रया इतनी जल्दी

ोती

ै फक

ड़िड़ाकर उसकी नीिंद खुल जाती

कभी उसे ख़्र्ाि हदखता फक तेज िाररश में र्

एक उचाट मैदान में

ै।

ै , जजसका कोई


ओर-छोर न ीिं ै । तभी उसे अम्मी हदखलाई दे ती ैं जो खुद एक सतरिं गी छतरी ओढे ैं और उनके

ाथ में एक छोटी छतरी और ै---जजसे र्े सलीमा के ललए ला र ी

ैं।

िाररश ै फक िढती जा र ी ै, सलीमा अम्मी की तरि दौड़ती ै फक छतरी लेकर ओढ ले और जैसे

ी अम्मी के पास प ुिं चती ै , अम्मी की जग कादरी मौलाना हदखलाई दे ते ैं। सलीमा ािंिते- ािंिते उल्टे कदमों भागने लगती ै ---ज ािं गिंगाराम सर हदखलाई दे ते ैं---र् जैसे ी सर के पास प ुिं चती ै , सर एक रािस में िदल जाते ैं और खून से भीगे दािंत ननकाले उनका ाथ इतना लम्िा ोता चला जाता ै फक सलीमा िचकर भागने न पाए और इसी उ ापो

में उसकी नीिंद खुल जाती----.

इन् ी शिंका-आशिंकाओिं के िीच एक हदन जि र्

गिंगाराम सर के घर गई तो सर ने

िताया फक इतर्ार को पर्श्र्कमा​ा सा ि ने उसे अपने घर िल ु ाया

ै।

र् ीिं आगे की रणनीनत तय ोगी और गिंगाराम सर इतने आश्र्स्त ैं फक सलीमा को िैंक से आटा-चक्की डालने का कजा जरूर लमल जाएगा।


सौिा ि ड ल र्

सि ु

इतर्ार का हदन था।

से आसमान पर काले िादल छाए ु ए थे। िड़ा ी मन ू स मौसम था। सहदा यों की िाररश र्ैसे भी कष्टदायी

ोती

ै।

सलीमा के पास अच्छी शाील न थी। ठण्ड कािी थी।

ठण्ड से िचने के ललए सलीमा ने सट ू के ऊपर एक पल ु ोर्र डाल ललया था। ये पल ु ोर्र अम्मी का था। सलीमा उसे कभी न प नती लेफकन आज उसे िैंक-मैनेजर के घर जाना जो था----

पैरों पर सस्ती चप्पल थी।

चप्पल का क्या, ये चा े सस्ती ो या म िं गी---इसे तो लोगों के घरों के िा र ी उतर जाना

ै।

िैंक के पीछे अग्रर्ालों के मु ल्ले में पर्श्र्कमा​ा सा ि फकराए के ि​िंगले में र ते पर्श्र्कमा​ा सा ि का आलीशान ि​िंगला दे खकर र् दो मिंजजला मकान।

सामने पोचा पर एक कार खड़ी थी।

लम्िा-चैड़ा लाीन, जजस पर तर -तर

दिं ग र

गई।

ैं।

के िूल-पौिे।

डरते-खझझकते उसने काील-िेल दिाई तो एक टकले से मोटे आदमी ने दरर्ाजा खोला।

गिंगाराम सर ने पर्श्र्कमा​ा सा ि का जो ु ललया ितलाया था, उसी के अनस ु ार सलीमा ने जान ललया फक ये जनाि िैंक मैनेजर पर्श्र्कमा​ा सा ि ी ैं। उसने झट अपना नाम ितलाया-‘‘जी, मेरा नाम सलीमा

ै , मझ ु े गिंगाराम सर ने---’’

पर्श्र्कमा​ा सा ि के टकले मख ु ड़े पर चमक कौंि आई--‘‘ओ , सलीमा---’’ और उन् ोंने अिंदर आने का इशारा फकया। र्

उनके पीछे चलती ु ई ड्राइिंग-रूम लािंघते सीिे शयन-कि में जा प ुिं ची। खूिसरू त कमरा, िड़ा सा पलिंग, एक तरि िड़ा सा श्रिंग ृ ार-टे बिल, एक िड़ी सी


आलमारी, आलमारी के िाजू में काउच।

पर्श्र्कमा​ा सा ि की आिंखें दे खकर ऐसा लगता जैसे धचकने-नछले अण्डे पर काले िटन जैसी छोटी-छोटी आिंखें टािंक दी गई

ों।

पर्श्र्कमा​ा सा ि कमीज-पैजामा प ने थे।

स्र्यिं पलिंग पर िैठते ु ए उन् ोंने सलीमा को सोिे पर िैठने का इशारा फकया। सकुचाते-सकुचाते सोिे पर िैठ गई। पर्श्र्कमा​ा सा ि ने उससे पछ ू ा फक कुछ खाएगी र् ? सलीमा क्या क ती।

पर्श्र्कमा​ा सा ि उठकर िा र ननकले और लौटे तो

ाथ में एक प्लेट थी।

प्लेट पर काजू की कतली, रसमलाई और नमकीन के साथ था एक धगलास पानी। सलीमा ने चे रे पर उभर आई पसीने की नन् ी-नन् ी ि​िंद ू ों को दप ु ट्टे से पोंछा। जिफक र्

ठिं ड का म ीना था।

पर्श्र्कमा​ा सा ि स्र्यिं कमरे के उस कोने की तरि िढे जजिर लकड़ी और कािंच का

एक खूिसरू त शो-केस था। उस शो-केस के ग्लास-डोर को िड़े इत्मीनान के साथ खोला उन् ोंने।

र् ािं कािंच की लभन्न-लभन्न आकार की सिंद ु र सी िोतलें थीिं। नीचे के ह स्से में कई आकार के धगलास थे।

पतली कमर र्ाला धगलास ननकालकर पर्श्र्कमा​ा सा ि ने एक िोतल ननकाली। सलीमा ने जान ललया फक उस िोतल में यक़ीनन शराि

ोगी।

िोतल का ढक्कन िड़ी नफ़ासत से खोल कर पर्श्र्कमा​ा सा ि ने धगलास में ि​िंद ू -ि​िंद ू कर इत्मीनान से शराि टपकाई। फिर र्

ट लते ु ए िा र ननकले। लौटे तो ाथ में ि​िा के टुकड़ों से भरा एक कटोरा था।

धचमटे की स ायता से ि​िा के टुकड़े धगलास में डालकर पर्श्र्कमा​ा सा ि उसके पास आकर सोिे पर िैठ गए। सलीमा सकुचाने लगी।

पर्श्र्कमा​ा सा ि ने उससे लमठाईयािं खाने को क ा और खद ु शराि की चजु स्कयािं लेने


लगे।

उन् ोंने सलीमा से पछ ू ा फक क्या र्

भी ये ज र लेना पसिंद करे गी।

सलीमा शमा​ा गई और उसने इिंकार में लसर ह लाया। पर्श्र्कमा​ा सा ि िोले-‘‘ ािं, इस्लाम में शराि फिर र्

ठठाकर िं स पड़े।

राम

ै,

ै न!’’

उन् ें दे खकर लगता था फक र्े िड़े इत्मीनान से उस समय को ‘इिंज्र्ाए’ करना चा ते ों।

और उस दप ु र पर्श्र्कमा​ा सा ि के सामने, सलीमा ने खुद को फकसी ‘जाम’ की तर पेश फकया था---


सलीमा िैस कोई नही​ीं--मटरिल्ली से मटर के दाने ननकाल र ी थी सलीमा।

आल-ू मटर की रसेदार सब्जी िनाने की सोच र ी थी र् ।

मन न ीिं लग र ा था उसका फक अचानक मटर की िल्ली से एक धगजधगजाता कीड़ा ननकला और उसकी उिं गललयों में दि गया।

रा

पच्च ़् से कीड़े के अिंदर भरा पानी उसकी उिं गललयों में आ लगा। सलीमा का जी लभन्ना उठा। उसे उिकाई सी आई।

सब्जी के नछलके र्ाला सप ू र् ीिं िेंक र् सरु ै या-रूकैया की तरि लपकी जो फक आपस में एक-दस ू रे के िाल खीिंच कर लड़ाई कर र ी थीिं।

सलीमा ने दोनों के कान खीिंचे और एक-एक चपत उनके गाल पर जमा दी। दोनों िह न रोने लगीिं।

उनके रोने से सलीमा का गुस्सा भड़क उठा। र्

दोनों ि नों की तािड़तोड़ िन ु ाई करने लगी-‘‘चोप्प--- अि जो मिंु

आर्ाज ननकली तो मझ ु से िरु ा कोई न

ोगा---काम की काज की, दश्ु मन अनाज

की----जि दे खो ति झगड़ती र ें गी स्साली---सलीमा धचन्ता तुम लोगों को कमीननयों---!’’ सरु ै या तो फकसी तर

चप ु

से एक भी

ै न खटने के ललए---का े की

ो गई लेफकन रूकैया ज्यादा दल ु ारी थी सलीमा की। आपी

ने जो पपटाई की थी उसे िदा​ाश्त न ीिं सि ु क र ी थी।

ो र ा था। मार खाकर र्

ह चफकयािं ले-लेकर

सलीमा की ममता जाग उठी।

रूकैया को सीने से लगा ललया और फिर जाने उसे क्या ु आ फक र् भी रोने लगी। कम उम्र से ी सलीमा के कमजोर किंिों पर भारी जजम्मेदारी आन पड़ी थी। सलीमा ने जान ललया था फक अम्मी के घर छोड़ कर जाने के िाद, अब्िू और छोटी ि नों की दे खभाल उसे

ी करनी

ै।


अब्िू तो प ले भी घर के फकसी काम में दख़ल न ीिं रखते थे। अम्मी के जाने के िाद तो जैसे अब्िू एकदम सिंज्ञाशन् ू य

ो गए।

काम पर चले गए तो ठीक और न ीिं गए तो भी कोई िात न ीिं।

िस, हदन भर िीड़ी के कश खीिंचना और चप ु चाप ‘रफ़्तारे -दनु नया’ दे ख कर दिं ग र ना उनकी ननयनत िन गई थी।

ोते

िैंक मैनेजर पर्श्र्कमा​ा सा ि ने र्ादा ननभाया और सलीमा की आटा-चक्की चालू गई थी।

सलीमा ने आटा-चक्की में हदल लगा ललया था।

सलीमा के व्यर् ार से गे ूिं पपसाने र्ाले ग्रा क भी आने लगे थे। जजन्दगी की गाड़ी को पटरी में लाने के ललए सलीमा कहटिद्ि थी। लोग क ें , क ते र ें ----.सलीमा ने फकसी की परर्ा गिंगाराम सर और

न ीिं की और अपने सिंरिकों

पर्श्र्कमा​ा सा ि के सिंग उनका और अपना हदल ि लाना उसकी

रूटीन का अिंग िन गया था।

उसे कोई मतलि न ीिं था फक उसकी फकतनी िदनामी कस्िे में र्

ो र ी

िदनामी दे खे या अपनी ग ृ स्थी की नािंर् को डूीूिने से उिारे ----.

ै।

आखखर, उसके अभार्ग्रस्त िेरिंग-जीर्न में खुलशयों के रिं ग तो उन् ीिं सिंरिकों के कारण हदखलाई दे र े

ैं, र्रना क ािं सर उठाकर जी पाता उनका पररर्ार----

सलीमा अपनी जजन्दगी से नाराज थी और खुश भी थी।

िस उसके पास एक ी ख़्र्ाि था फक अब्िू की दआ ु ओिं का साया बिन मािं के िच्चों पर िना र े और छोटी ि नें पढ-ललख लें।

आफिसों, स्कूलों और अन्य जग ों पर र् दे खती तो उसे िड़ी खुशी

ोती।

फकसी लड़की या मह ला को काम करते

सलीमा चा ती थी फक र् तो पढ न ीिं पाई फकन्तु उसकी ि नें पढ-ललखकर अच्छी सी नौकरी पा जाएिं। अपने पैरों पर खड़ी ये सि लशिा से

ी सम्भर्

ो सकता

ो जाएिं। उनके जीर्न में खुदमख् ु तारी आ जाए। ै।

और आज के दौर में लशिा के ललए पैसा फकतना म त्र्पण ू ा

ै।

सलीमा जानती थी फक जजस तर की उनकी पाररर्ाररक पष्ृ ठभलू म र ी ै , उस आिार


पर इन लड़फकयों के ललए ढिं ग का ररश्ता लमलना सम्भर् न

ो पाएगा।

ािं, आजकल पढी-ललखी कामकाजी लड़फकयािं अपनी पसिंद के जीर्न-साथी खद ु

तलाश लेती

प्रेररत करती।

ैं। य ी एक आशा थी फक सलीमा अपनी दोनों ि नों को पढने के ललए

सरु ै या को आईने के सामने ज्यादा समय लगाने पर िड़ी िटकार लगाती।

क ती फक आईने से नाता तोड़ कमीनी और फकतािों से ररश्ता जोड़ ले----कुछ िनना ै तो खूि पढ! एक हदन अपनी आपी की िात याद करके पछताना न पड़े तुझ।े

उसने सरु ै या को आगा

कर रखा था फक सकीना आपा के िेटे यी ू ूसि ु से ज्यादा

ह लना-लमलना न ीिं र्रना भपर्ष्य चैपट

ो जाएगा।

उन लोगों के पास लसर्ाए गरीिी और अभार् के सकीना आपा की लसलाई-कढाई से

ी घर चल र ा

ी क्या? ै।

यस ू ि ु तो लसिा उड़ाऊ-खाऊ ै । अगर उसके अिंदर जजम्मेदारी का अ सास

ोता तो

सकीना आपा को यिंी​ी ू ू रात-रात भर जाग कर लसलाई मशीन चलाना न पड़ता। समझता न ीिं

ै।

िस, चार पैसे क्या लमलने लगे फक मिं गे कपड़े, मोिाईल और पान-लसगरे ट के उड़ा हदए।

ये न ीिं फक सकीना आपा के

ाथ में पैसे दे ने लगे।

बिचारी को सई ु में िागा डालकर तुरपाई करते-करते चश्मा लग गया क ती

ैं फक लसलाई मशीन का पैडल मारते-मारते पैर में सज ू न आ जाती

सलीमा ने क ा भी था फक ब्लड-प्रेशर चेक करा लें।

पर्श्र्कमा​ा साीा ि को भी पैर में सज ू न आने की िीमारी उन् ोंने िताया था फक ब्लड-प्रेशर िढने से ऐसा लेफकन सकीना आपा को िुरसत क ािं--हदन भर िैल की खटती र ती

ैं र् !

ोता

ै।

यस ू ि ु कभी मिं गी चाकलेट लेकर सरु ै या से लमलने आता लेकर।

ै।

लड़फकयािं

ोती

ैं चटोरी।

ै।

ै।

ै और कभी चाट-समोसे


उन् ें क्या पता फक मछललयों को ि​िंसाने के ललए चारा डाला जा र ा

ै।

सरु ै या की अिंग्रेजी की राइहटिंग फकतनी सिंद ु र ै । ऐसा ललखती ै फक लगे छपा ु आ पढ र े ों। लेफकन अच्छी ललखार्ट से क्या ु आ, उसकी ग्रामर तो चैपट तो ननरी गोिर ै सरु ै या।

ै । साइिंस और मैथ में

रूकैया प्रनतभार्ान ै फकन्तु र्ो अभी छोटी ै । प ली किा मेीेी​ी े ेी​ी े ी े ी े ेी​ी े ी े ी े ेीे पढ र ी

ै । स्कूल से आकर प ले िड़ी लगन से

सलीमा िड़ी लशद्दत से चा ती पढें -ललखें ।

ोमर्का ननपटाती

ै।

ैं फक उसकी ि नें लापरर्ा ी न करें , हदल लगाकर

अपनी ि नों के यन ू ीिामा सलीमा खुद िोती और अच्छी तर स्कूीूल के अन्य िच्चे उनकी गरीिी का मजाक न उड़ाएिं।

प्रेस फकया करती फक

अमीर आदमी िटे कपड़े प ने तो इसे उसका िड़प्पन या म ानता क ा जाता ै । गरीि आदमी के िटे कपड़े उसकी दररद्रता लसद्ि करते ैं। उसे अपने िटे कपड़ों के कारण दत ु कार लमलती

ै, उनका मजाक उड़ाया जाता

ै।

इसीललए सलीमा चा ती थी फक उसकी ि नें जो यन ू ीिामा प नें र् ताफक उनका कोई मजाक न उड़ाए----

ि नों की पढाई के ललए सलीमा अच्छी खासी रकम र्

साि-सथ ु री

खचा कर र ी

ै।

ऐसे में साली लोग सीररयसली न पढें तो सलीमा को गुस्सा क्यों न आए? इसीललए चपत लगा दे ती अम्मी यहद

ो,

ै सलीमा और उन् ें रोता दे ख खद ु रोने लग जाती

ोतीिं तो उसे ये ज मत न उठानी पड़ती।

ै।

सलीमा अम्मी की ननष्ठुरता को याद कर रोती र ी िड़ी दे र तक---ऽ

सलीमा रसोई में आल-ू मटर की रसेदार सब्जी िनाते ु ए सोच र ी थी फक शिे-िरात भी आ गया ै । कल शिे-िरात

ै जजसे स्थानीय मस ु लमान सि ु रात भी क ते

ैं।

शिे-िरात में मस ु लमान अपने मद ु ा​ा परु खों, अजीजों को याद करते

ैं। उनकी रू

को


िख़्शर्ाने के ललए फ़ानत ा पढते ैं। शाम से सि िजर तक फकसी समय कबब्रस्तान ु जाकर अपने ररश्तेदारों की कब्रों पर िानत ा पढते

ैं। कब्रों पर िूीूीूल चढाते

ैं।

अगरित्ती जलाते ैं। इस रात मजस्जदों में रतजगे ोते ैं। रात भर जागकर इिादत की जाती

ै । मजस्जदों को रौशन फकया जाता

अपने लोगों से लमलने आती

ैं।

मस ु लमानों के तीज-त्यो ार धगनती के

ोते

ै । क ते

ैं फक इस मक ु द्दस रात में रू ें

ैं।

ईद की आमद से प ले रमजान और रमजान से िीस हदन प ले शिे-िरात! अम्मी थी तो िात

ी और थी।

शिे-िरात के अर्सर पर अम्मी चने की दाल से लजीज सज ू ी की मीठी कतललयािं िना करती थीिं।

लर्ा िनाती थीिं।

रात के खाने में दोस्ती-रोटी, पल ु ार् और गोश्त भी िनता था।

जि शीरनी का सारा सामान तैयार ो जाता था ति मगररि की नमाज के िाद मजस्जद से मौलर्ी सा ि िल ु र्ाए जाते थे।

एक थाली में फ़ानत ा के ललए सभी तैयार पकर्ान थोड़ा-थोड़ा रखा जाता। एक साि धगलास में पानी भी रखा जाता। फिर मौलर्ी सा ि फ़ानत ा पढते। ग्यार

रूपए का धचरागा उन् ें हदया जाता था।

फकतना मजा आता था शिे-िरात के मौक़े पर।

परू े मु ल्ले में लोग एक-दस ू रे के घरों में फ़ानत ा की शीरनी प ुिं चाया करते थे। सलीमा की अम्मी चने के दाल का लर्ा िड़ा लजीज पकाती थीिं।

मु ल्ले में िािंटने के ललए अम्मी एक िड़े से थाल में कागज की पडु डया में शीरनी सजा हदया करती थीिं।

फिर उस पर एक थाल-पोश से उसे ढिं क हदया जाता था।

अम्मी ने िड़ी खूीूिसी ू ूरती से क्रोलशए से जालीदार िूलोंर्ाला थाल-पोश िनाया ु आ था। सरु ै या को साथ लेकर सलीमा मु ल्ले के कई घरों में शीरनी प ुिं चाया करती थी। अमीर मस ु लीमान घरों से ढे र सारी शीरनी आया करती थी।


इतनी कतललयािं इकट्ठी कतललयों का जग ु ाड़

ो जातीिं फक रमजान के शरू ु आती हदनों के ललए भी घर में

ो जाता।

क ते ैं फक प ले रोजे के अफ़्तार में यहद शिे-िरात की शीरनी ो तो अफ़जल ोता ै।

शिे-िरात के िीस हदनों के िाद रमजान चालू

ो जाता

ै।

उसे याद ो आया फक नदी के फकनारे र ने र्ाली चच्ची के घर शीरनी प ुिं चाने के ललए एक िार र् सरु ै या के साथ गई। सरु ै या ति चार-पािंच साल की र ी

ोगी और रूकैया का इस सिंसार में आगमन न ीिं

ु आ था। अम्मी ने प्लेट में शीरनी सजा कर क्रोलशए के थाल-पोश से ढिं क कर उन् ें हदया फक झट से चच्ची के घर शीरनी प ुिं चा कर लौट आएिं। मगररि के िाद अिंिेरा तो ो ी जाता ै । जैसे

ी मु ल्ले की सीमा खतम ु ई और नदी की तरि जाने र्ाली गली में प ुिं ची, सलीमा को डर लगने लगा। गली के फकनारे एक इमली का पेड था जजस पर चड़ ै ु ल र ती

ै ऐसी िात लोग फकया करते थे।

उस पेड़ की झलक क्या हदखी सलीमा के पैर थम गए। उसने सरु ै या का

ाथ थामा और उल्टे पैर घर र्ापस आ गई।

उन् ें डर था फक शीरनी न प ुिं चाने के कारण मार-डािंट लमल सकती जाए? जि कुछ समझ में न आया तो सोचा फक सिी ू नष्ट करना ू ूीत सकता

ै।

सित ू यानी शीरनी।

ै ---क्या फकया

ी िे तर उपाय

ये सोचकर घर के िा र िैठ, दोनों ि नों ने परू ी शीरनी गटक ली और मिंु

पोंछ कर


अम्मी के पास जा प ुिं ची। िड़ी मस् ु तैदी से खाली प्लेट लौटाते ु ए सलीमा ने अम्मी से क ा-‘‘जल्दी से सकीना आपा के ललए भी शीरनी दीजजए---फकत्ती रात ो गई ै ---कल न प ुिं चा दें अम्मी---?’’ अम्मी ने िजच्चयों को गौर से दे खा और कुछ सोच कर िोलीिं फक िाकी घरों में अि सि ु

शीरनी प ुिं चाई जाएगी। सलीमा और सरु ै या की जान में जान आई। शिे-िरात के दस ू रे हदन अल्ला

र्ाले लोग रोजा रखते और िाकी लोग शीरनी एक

दी ू ूसरें के घरों में प ुिं चाया करते। इस ि ाने घर में लभन्न आकार-प्रकार की कतललयािं और कई तर जाते। अम्मी कतललयों को एक कनस्तर में रखतीिं।

के

लर्े जमा

चू ों और िच्चों से िचाने के ललए एक छोटा सा ताला लगातीिं---जजस ताले को सलीमा िाल-पपन की स ायता से खोल ललया करती थी। सलीमा को लमठाई पसिंद

ै।

क ते

ैं फक लड़फकयों के लमठाई पसिंद न ीिं

में र्

एक लड़के की तर

ोती।

लेफकन सलीमा जानती ै फक अल्ला ने गलती से उसे लड़की िनाया र्रना इस समाज तो जी र ी

ै।

इस लमठाई चोरी की आदत के कारण सलीमा अक्सर मार खाया करती।

अम्मी क्या घर से भागीिं तीज-त्यो ार की रौनक से घर म रूम मु ल्ले से आने र्ाली शीरनी की तादाद घटती गई। फिर िीरे -िीरे लोगों ने उनके घर का एक तर

से सामाजजक िह ष्कार

प ले बिलकीस खाला के घर से शीरनी आया करती थी, फिर र् अि कि शिे-िरात आकर गज ु र जाता र्े जान न पातीिं थीिं। सलीमा को भी िुसात क ािं थी फक र्

ो गया। ी कर हदया।

भी ि​िंद

ो गई।

तीज-त्यो ारों के मो -जाल में ि​िंसती।


उसके पास आजीपर्का का सिंकट मिंु यहद चक्की न

ोती तो र्

िाए खड़ा था।

लोग सड़क पर आ गए

ोते।

पपछले कई सालों से शिे-िरात के अर्सर पर घर में फ़ानत ा न ीिं पढर्ाया गया था। फ़ानत ा के ललए शीरनी िनाना सलीमा जानती न थी, फिर फकस चीज पर फ़ानत ा-दरूद पढर्ाया जाता।

इस साल सलीमा का मन िेताि था फक र् पढर्ाए---

भी शिे-िरात के मौके पर फ़ानत ा

घर के परु खों की भटकती रू ों के सक ु ू न के ललए घर में अल्ला का कलाम पढा जाए--समाज ने उन् ें िायकाीट फकया उसने क्या गलती की

ै अल्ला -रसी ू ूल ने तो न ीिं।

ै , एडडयािं नघसकर मरने के ललए मजिरू पररर्ार को उसने

सम्भाल ललया तो क्या ये कोई गन ु ा

ै?

छोटी ि नें सरु ै या और रूकैया को तालीम हदलाना, कमजोर अब्िू की दे ख-भाल करना क्या कोई जुमा ै ?

सलीमा अपने आप को गुन गार मानती तो ै लेफकन फिर खुद से तका करके खुद को िेगुना

मनर्ा लेती

ै।

भाड़ में जाए दनु नया----सलीमा ने ठान ललया फक अि र् भी शिे-िरात का पर्ा मनाया करे गी और इस ि ाने घर में जो मन ू ीूलसयत और एकरसता का आलम छुटकारा लमलेगा।

ै उससे

सलीमा को गल ु ाि के खश्ु िी ू ू र्ाली अगरित्ती की खश्ु िू सिंघ ु ाई दे ने लगी--अम्मी को गल ु ाि के खश्ु िी ू ू र्ाली अगरित्ती पसिंद थी।

फ़ानत ा-दरूद के हदन घर के कोनों-अिंतरों में गल ु ाि की भीनी खश्ु िी ू ू म का करती थी। अम्मी और अगरित्ती की खुश्िू को याद कर सलीमा रोने लगी। ि नें समझ न ीिं पाई फक सलीमा क्यों रो र ी

कुछ दे र िाद स ज

ै।

ो कर उसने सोचा फक चने के दाल का

लर्ा िनाया जाए।


घर में चने की दाल

ी।

ािं, सज ू ी, शक्कर, डालडा, छु ारा, फकशलमश और इलाईची की कमी

गोश्त तो अब्िू जाकर ला दें गे।

ै।

कुल डेढ-दो सौ रूपए का मसला था। पैसे तो उसके पास थे

ी।

िस, जरूरत थी बिलकीस खाला या सकीना आपा की मदद की।

र्ैसे अम्मी के घर छोड़ कर जाने के िाद बिलकीस खाला ने इस घर में क़दम रखना ि​िंद कर हदया था।

अम्मी के फकस्से थमे न ीिं फक सलीमा के िदचलनी के फकस्सों ने सारे इब्रा ीमपरु र्ालसयों के मन में नफ़रत के गुिार भर हदए थे। सकीना आपा की तिीयत ठीक न ीिं थी। उनका िदन नापाक था।

सलीमा क्या करती, मन मारकर उसने सरु ै या को बिलकीस खाला के घर भेजने का ननणाय ललया। यहद र्

मदद को तैयार

ो जाएिं तो घण्टे भर में सारा सामान मिंगर्ा ललया जाएगा।

चने की दाल को साफ़ करके पानी में एक हदन के ललए िुलाना भी पड़ता

ै।

उसने सरु ै या से क ा फक जाकर बिलकीस खाला को सलाम कर आए और उनसे पछ ू े

फक क्या र्े कल आकर चने का लर्ा और सज ू ी की कतली िनाने में उनकी मदद कर दें गी।

सलीमा ने ये भी क ा फक यहद घर में खालू ों तो फिर ज्यादा िात न करे गी, िजल्क कुछ दे र िाद दि ु ारा जाकर पछ ू आएगी।

बिलकीस खाला के घर से सरु ै या लौटकर तुरिंत र्

रो र ी थी।

ी आ गई।

‘‘का ु आ रे !’’ सलीमा ने पछ ू ा। सि ु कते ु ए सरु ै या ने िताया फक बिलकीस खाला चाय िना र ी थीिं। उन् ोंने उसे दे ख कर िरु ा सा मिंु िनाया था। फिर जि सरु ै या ने उन् ें सलाम फकया तो उसे जर्ाि भी न लमला। खाला ऐसा व्यर् ार कर र ी थीिं फक उन् ोंने उसे दे खा

ी न

ो। र्

अपने


काम में मशगूल र े आईं।

सरु ै या जि उनके पास प ुिं ची और दि ु ारा सलाम अजा फकया तो बिलकीस खाला के माथे पर त्योररयािं चढ आईं थीिं।

उन् ोंने सरु ै या से आने का कारण पछ ू े िगैर ी उसे ड़का हदया-‘‘िदचलन लोगों का इस घर से क्या लेना-दे ना? अि दि ु ारा मेरे दरर्ाजे कदम न रखखयो समझे!’’ ‘‘ म लोग का ऐसे कि तक गज ु ारा ले-लेकर पछ ू ा।

सलीमा क्या जर्ाि दे ती।

उसने मन िना ललया था फक चा े जो पकर्ान र्

स्र्यिं तैयार करे गी---

सलीमा जजद्दी

ोगा आपी!’’ सरु ै या ने सलीमा से ह चफकयािं

ो जाए, इस साल शिे-िरात के ललए घर में

ी----उसने मन में ठान ललया तो फिर जजद परू ी

ोनी

ी थी।

उसने सरु ै या को साथ ललया और फकराना दक ु ान जाकर आर्श्यक सामान की खरीददारी करने लगी।

गुलाि के खुश्िू र्ाली अगरित्ती का पैकेट ललया और केर्ड़े की एक छोटी शीशी भी खरीदी। अम्मी

लर्ा और कतली िना कर उस पर केर्ड़े के पानी का नछड़कार् करती थीिं।

तभी तो एक अलग तर

की खुश्िी ू ू उनके

लर्े से उठा करती थी।

सलीमा ने अपनी स्मनृ त की परतों को उिेड़ने का प्रयास फकया और अम्मी की स्टाईल याद करने लगी फक शिे-िरात की तैयारी र्ो कैसे और क ािं से शरू ु करती थीिं।

सलीमा याद करने लगी फक अम्मी कैसे िनाया करती थीिं चने की दाल का लर्ा और सज ू ी की कतललयािं!

उसकी याददाश्त में आने लगे र्ो एक-एक पल, अम्मी के साथ गुजारे लम् ात---


सलीमा सज ू ी का सािारण लर्ा िनाना जानती थी, लेफकन सज ू ी की कतललयािं िनाने के ललए चाशनी का अनभ ु र् उसे न था। अम्मी के

ाथों िनी सज ू ी की कतललयािं िड़ी कुरकुरी ु आ करती थीिं। अम्मी से मु ल्ले की औरतें शिे-िरात के आस-पास चने की दाल का लर्ा िनाने का गुर सीखने आया करती थीिं।

अम्मी फ़ानत ा के एक हदन प ले चने को चन ु -िीनकर साि फकया करतीिं और फिर उसे पानी में िूीूल जाने को छोड़ हदया करती थीिं। दस ू री सि ु

िजजर की अजान के र्क्त अम्मी उठकर िड़े तड़के घर की साि-सिाई

में जुट जातीिं।

उस समय घर में लमट्टी का चल् ू ा ु आ करता था। आजकल दो या चार िनार र्ाले गैस के चल् ू े ोते ैं। अम्मी ने खद ु अपने ाथों से एक

तीन िनार र्ाला चल् ू ा िनाया था। िीच में लकड़ी सल ु गती और उसकी आिंच दो मु ानों से ननकलती। िीच में रोटी िनती, िाएिं में सब्जी और दािंए चल् ू ूि गरम ू े पर दी ू ी जाता। लकडडयािं िझ ु जाने के िाद भी चल् ू े की सेंक से रसोई गमा र ता।

िच्चों की ड़िड़ी से चल् ू े के ठी े टूट जाते तो अम्मी धचकनी लमट्टी जुगाड़ कर चल् ू े की मरम्मत कर लेती थीिं।

गािंर् से दी ू ूिर्ाललयािं जो आतीिं तो उनसे अम्मी छू ी लमट्टी और काली लमट्टी मिंगर्ा कर रखती थीिं। छूीू ी लमट्टी से सिेद लेप तैयार

ोता और काली लमट्टी से काला

लेप। घर में दो टूीूटे ितान थे, एक में छूीू ी लमट्टी िुलाई जाती और दी ू ूसरे में काली लमट्टी।

काली लमट्टी से िाडार िनता और फिर सिेद छूीू ी से िीच की जग लीपी जाती थी। सलीमा के उठने से प ले र्

रसोई को छू ी और काली लमट्टी से लीप चक ु ी

उसके िाद अम्मी न ा-िोकर साि-पाक

ो जातीिं और फिर नमाज पढती थीिं।

ोतीिं।

सलीमा और उसकी ि नें जि उठतीिं तो दे खतीिं फक चल् ू ा सल ु गा ु आ ै और उस पर चने की िूली ु ई दाल को दि ू के साथ िड़े से ितान पर उिाला जा र ा ै । जि दाल उिलकर गल जाती ति उसे ठण्डा

ोने छोड़ हदया जाता था।

उसके िाद अम्मी नाश्ता आहद के ललए धचिंनतत

ोतीिं।


नाश्ता-पानी के िाद अम्मी चने की दाल को पत्थर के लसल पर पीसतीिं। दाल की एकदम म ीन पपसाई

ोती।

सलीमा चा ती फक उनकी मदद करे तो उससे जो दाल पपसती र् दरदरी ननकल जाती थी। अम्मी को दि ु ारा मे नत करनी पड़ती थी।

इसललए अम्मी अपने दम दाल पीसा करती थीिं।

दाल जि पपस जाती ति अम्मी सलीमा को साथ लेकर आिंगन के कोने में िैठ जातीिं और छु ारा, नाररयल की गरी के छोटे -छोटे टुकड़े िनाने लगतीिं। मेर्ा के नाम पर अम्मी छु ारा और नाररयल की गरी

ी डाला करती थीिं।

छोटी इलायची के नछलके ननकाल कर उसके काले-काले दानों को शक्कर के साथ लमला कर पीसने का जजम्मा सलीमा का

ोता।

लर्े और कतललयों में इलाइची की सग ु िंि

करती थीिं।

ी अम्मी के

ाथ की खस ु लू सयत जाह र

सलीमा को िस ये याद न ीिं ै फक चने के दाल के लर्े में अम्मी खोर्ा कि लमलाया

करती थीिं और सज ू ी की कतललयािं िनाने के ललए फकतने तार की चाशनी िनाई जाए फक कतललयािं ललजललजी या एकदम सख्त न

ोने पाएिं।

इसके ललए ज्यादा सोच-पर्चार न ीिं करना चाह ए।

जि पपसे ु ए चने की दाल को घी में भिंज ू ा जाए तभी खोर्ा को कद्दक ू स करके डाल हदया जाएगा। खोर्ा तो कच्चा खाने में जि अच्छा लगता ै तो चने की दाल के साथ भन ू ने के िाद तो लजीज लगेगा

ी।

ज ािं तक सज ू ी के रर्े से कतललयािं िनाने की िात घर में सज ू ी ािं, आटा

ै।

ै न ीिं।

आटा की कतली िनाकर प्रयोग कर ललया जाए।

ै तो उसमें कलाकारी चाह ए।

यहद सिलता लमल जाएगी तो सज ू ी की कतललयािं तैयार ऽ

सोने से प ले सलीमा ने चना-दाल को पानी में िुला हदया।

ी जाएिंगी।


रात में

ी उसने सरु ै या और रूकैया को काम हदया फक छु ारा और नाररयल के टुकड़े

कर डालें।

छोटी इलायची के दाने भी रात सि ु

ी में ननकाल ललए।

सलीमा जि उठी तो अम्मी के तेर्र ललए ु ए। िजजर की अजान से उसकी नीिंद खुली।

उसने उठकर र्जू िनाया और िजजर की नमाज अदा की। उसके िाद उसने सरु ै या को डािंट कर उठाया।

कमीनी सोते र्क्त कपड़ों का तननक भी ख्याल न ीिं रखती। िदन लसकोड़कर सोना जाने कि सीखेंगी ये लड़फकयािं। बि​िंदास सोती

ैं कमीननयािं----

सलीमा ने उसके िे ू देपन के ललए जमकर िटकार लगाई। जल्दी से न ा-िोकर रसोई में आने को क ा और अम्मी की भी ू ूलमका में आ गई। अब्िू ने अभी बिस्तर छोड़ा न था। रात र्

ि ु त खािंस र े थे।ीिं सलीमा ने उन् ें रात में कफ़-सीरप पपलाया था, ति जाकर उन् े नीिंद आई थी। ति तक सरु ै या और रूकैया भी रसोई में आ गईं। सलीमा ने कढाई में डालडा डाल कर उसे गमा

ोने हदया।

फिर उसमें एक पार् के क़रीि सज ू ी डाल कर िीमी आिंच में भन ू ने लगी।

सज ू ी का रिं ग जि लाल-भरू ा ु आ ति उसने उसे उतार हदया। फिर सलीमा ने एक ितान में चीनी डाली और थोड़ा सा पानी डाल कर उसे गमा करने लगी।

आिंच में चीनी खद-िद, खद-िद करते घल ु ने लगी।

सलीमा ने अम्मी के मिंु से सन ु रखा था एक तार की चाशनी, दो तार की चाशनी और तीन तार की चाशनी।

चीनी जि घल ु गई तो उसने अम्मी की स्टाईल में ितान में चम्मच डाल कर िीरे से चम्मच को उठाया।

चीनी का घोल चम्मच के कोर से टपकने लगा।


ति सलीमा को ध्यान आया फक इसी िार के खत्म ोते ी जि ि​िंद ू में चाशनी टपकती ै ति उससे जो तार सा िनता ै उससे ी चाशनी के मोटे पन का अिंदाजा लगाया जाता ै।

चम्मच से टपकती आखखरी ि​िंद ू से एक तार के िरािर म ीन रे खा िनी। इसका मतलि

ै फक अभी चाशनी एक तार की िनी

उसने थोड़ा दे र इिंतजार फकया।

ै।

फिर जि चम्मच डाल कर एक ि​िंद ू की था लेनी चा ी तो तकरीिन तीन तार का रस उस ि​िंीूद से िना।

सलीमा ने जान ललया फक अि भन ु ी ु ई सी ू ूजी में इस चाशनी को एक-समान लमला हदया जाए। थोड़ा मे नत लगी और सी ू ूजी अच्छी तर

से चाशनी के सिंग लमल गया।

अि उस लमश्रण को उसने एक थाली में िैला हदया। लमश्रण िीरे -िीरे सख्त

ोने लगा।

उसने चाकू से उसके ि​िीनम ु ा टुकड़े कर हदए।

ठिं डा ोने पर उसने दे खा फक कािी सख्त ो गए थे टुकड़े। इसका मतलि सलीमा सज ू ी की कतललयािं िना सकती

ै।

सलीमा कािी खुश ु ई। और खुश ु ईं सरु ै या, रूकैया---ोती भी क्यों न!

जि बिलकीस खाला ने कतली िनाने में मदद करने से इिंकार कर हदया था ति फकतनी दख ु ी ु ई थी सरु ै या--अि नम्िर आया चने के दाल का

लर्ा िनाने का।

सरु ै या को उसने दाल पीसने का काम हदया।

दाल पपस गई तो उसे भी डालडा में भन ू ललया। परू े ीे घर में लमष्ठान्न की खुश्िू भर गई थी। अब्िू भी उठकर रसोई में आ गए। सलीमा ने चने के

लर्े में जि पपसी इलायची डाली तो रसोई गमकने लगी।


सरु ै या ने क ा---‘‘ ु रे----सलीमा आपी जजन्दािाद---!’’ सलीमा ने अब्िू को चाय पीने को दी और क ा फक आिा फकलो गोश्त ले आएिं। आज सलीमा दोस्ती रोटी भी िनाएगी, फिर अब्िू से

ी िानत ा पढर्ाएगी।

सरु ै या सोच र ी थी फक सलीमा आपी जो मन में ठान लेती ै , परू ा करके ी दम लेती ै।

य ी तो र्

िात

ै जजसने सलीमा को टूटने से िचाया ु आ ै ! सलीमा ने अब्िू से उस शीरनी पर शिे-िरात की फ़ानत ा पढर्ाई थी---

गुलाि के िूलों र्ाली अगरित्ती की खुश्िू से परू ा घर उस रात मुअत्तर र ा!


लोगों का काम है कहना--सरु ै या के िारे में सलीमा का आकलन गलत ननकला। सलीमा ने म सी ू ूस फकया फक सरु ै या के

ार्-भार् िदल र े

यस ू ि ु जि आता तो सरु ै या उसके मोिाईल पर गेम खेलती। सलीमा के पास एक मोिाईल था लेफकन र्

ैं।

लसिा िोन करने और एसएमएस करने

के काम का था। उसमें ज्यादा सपु र्िा न ीिं थी।

मेमोरी काडा न था सो गाना-पपक्चर की गिंज ु ाईश न थी। पर्श्र्कमा​ा सा ि ने उसे मोिाईल धगफ्ट फकया था।

यस ू ि ु के मोिाईल में चार जीिी का मेमोरी काडा ै ।

जाने फकतने गाने नए-परु ाने उसकी मोिाईल में सरु क्षित कुछ गानों का र्ीडडयो भी था उसमें ।

ै।

सरु ै या यी ू ूीूसि ु के आते ी उससे मोिाईल मािंग लेती और पागलों की तर गाने सन ु ा करती। कभी गेम खेला करती। कभी र्ीडडयो दे खा करती। कभी यी ू ूसि ु से नए-नए

गाने सन ू ि ु ने की िरमाईश फकया करती। यी ू स ु भी उसकी िरमाईश के मत ु ाबिक गाने डाल कर लाता।

सलीमा को सरु ै या की ये आदत एकदम न भाती। यी े ी े ेी​ी े ी े ी े ेीे जाने के िाद र् ू ूसि ु केीेी​ी

सरु ै या को उल्टी-सीिी सन ु ाया करती।

सरु ै या उसकी नसी तों को एक कान से सन ु कर दी ू ूसरे कान से ननकाल दे ती। इस कारण सी ु ुरैया पढाई-ललखाई में कमजोर जिफक रूकैया छुटपन से

ोती गई।

ी सलीमा आपा की नकल करने की कोलशश करती।

हदन-भर िड़े मनोयोग से स्लेट पर चाक से जाने क्या-क्या गोदा करती। सलीमा िुरसत के लम् ात में उसे पढाई करने के ललए उकसाया करती।

रूकैया के ललए उसने स्लेट-पें लसल खरीद दी थी। नन् ी रूकैया हदन-भर उस स्लेट पर क-कमल और ख-खरगोश ललख कर लमटाया करती। कभी र् आड़ी-नतरछी लकीरों के जररए कई तर

के आकार गढती और सलीमा को हदखला कर शािाशी पाती।


जजन्दगी की गाड़ी पटरी पर लगी दौड़ने ति सलीमा ने अपनी छोटी ि न रूकैया को स्कूल में डाल हदया।

मिंझली सरु ै या की पढाई-ललखाई में कोई रूधच न थी।

िनना-सिंर्रना और यी ू ूसि ु से हदलजोई करना सरु ै या को पसिंद था। उसके ललए सलीमा धचिंनतत र ा करती थी।

एक हदन गिंगाराम सर ने सलीमा को सला दी फक सरु ै या को क्यों न ीिं ब्यट ू ी-पाीलार

र्ाला काम लसखर्ा हदया जाए। इस ि ाने र् काम सीखते-सीखते, थोड़ा-मोड़ा घर-खचा भी ननकाल ललया करे गी।

जि अच्छी तर काम सीख जाएगी तो उसके ललए ब्यट ू ी-पाीलार खोल हदया जाएगा। आजकल तो

र मज ि और जानत की औरतें ब्यट ू ी-पाी​ीलार जाती

लसिा आई-ब्रो िनाने के सौ-पचास लमल जाते आहद में तो अच्छी कमाई

ैं। िेलशयल,

ैं।

े यर-स्टाईललिंग, मसाज

ै , िस ग्रा क की पसिंद का ख्याल रखा जाए----.

सलीमा को गिंगाराम सर का आईडडया पसिंद आया।

सलीमा जि भी गिंगाराम सर से लमलने जाती तो उनकी खूि खखदमत करती। एक-दो साल के िाद र्ो ररटायर फिर अपने गािंर् चले जाएिंगे। ज ािं उनकी जमीन

उनकी पत्नी सनकी िरु -दे ाती

ैं----

ै , खेती ैं---

खि ू व्रत-पी ू ूजा फकया करती

ो जाएिंगे।

ै , पत्नी

ै।

ैं---

गिंगाराम सर िताते ैं फक हदन में पचासों िार ाथ िोती ै ससरु ी और उसके िाद भी उसे यकीन न ीिं

ाथ साि ु ए ैं। ितान को कई-कई िार साि करने के िाद भी परसने के प ले एक-दो िार और िोएगी। बिस्तर पर चादर जाने कैसा रोग

ोता फक उसके

र रात िदलेगी---

ै उसे?

इसीललए गिंगाराम सर ने अपनी िीर्ी को गािंर् में

ी िने र ने हदया।


गिंगाराम सर की सला

पर सलीमा ने सरु ै या को ब्यट ू ी-पाी​ीलार जाने हदया।

इब्रा ीमपरु ा के मस ु लमान र्ैसे भी मम्द ू प लर्ान के पररर्ार से ख़फ़ा र ा करते थे, उस पर ये करे ले के साथ नीम र्ाली लमसाल भी

ो गई।

सरु ै या का ब्यट ू ी-पाीलार जने लगी। ब्यट ू ी-पाीलार नगर में एक

ी था लेफकन उसके िारे में लोगों के ख़्याल अच्छे न थे।

इस्लाम में लोगों के हदखाने के ललए िनना-सिंर्रना मना

ै।

परदा-प्रथा ै , िरु का न भी प ना जाए लेफकन िा र ननकलने पर औरतों को लसर और िदन एक चादर या दप ु ट्टे से ढिं कना चाह ए। औरतों के ललए भौं के िाल नच ु र्ाना मकरूर

ै।

आए हदन मौलाना अपनी तकरीरों में भौं नी ु ुचर्ाने र्ाली औरतों-लड़फकयों को ज न्नम ु की यातनाओिं-अजािों की याद हदलाकर डराया करते।

औरतें मानें ति न----आजकल तो ाजजयों के घर की पदा​ानशीन ि ू -िेहटयािं ब्यट ू ी-पालार की सेर्ाएिं ललया करतीिं ैं। औरतों के मोिाइल में और फकसी का नम्िर लमल जाएगा।

भौं ज ािं एक िार नच ु र्ाई गई तो फिर उसे

ो न

र मा सेट कराना जरूरी ोता ै , र्रना

गौर से दे खने पर चे रा अजीि हदखने लगता एक िार िाल सेट करर्ा लो तो फिर

र मा

ो, ब्यट ू ी-पालार का नम्िर जरूर

ै।

उसे सेट कराना पड़ता

खास मौकों पर ब्लीधचिंग, िेलशयल आहद न करर्ाया जाए तो कै शादी-ब्या

ै।

और तीज-त्यो ार के अर्सर पर मस ु लमान औरतों को ब्यी ू ूटी-पाीलार में

ि-कसरत दे खा जा सकता

ै।

ब्यट ू ी-पाीलार जाएिं भी क्यों न औरतों।

एक तरि आप मना करते ैं उन् ें और दस ू री तरि टीर्ी के उदा ू चैनलों में हदखने र्ाली मस ु ललम औरतें फकतना मेकअप करके आती ैं। दप ु ट्टे को इतने ह साि से लपेटा जाता ै फक चे रा परू ा नजर आए।


ये मस ु ललम लड़फकयािं और औरतें मेकअप के कारण ी खी ू ूीूिसी ू रू त हदखा करती ैं।

उनके चे रे इन मौलानाओिं को परु नी ू ूर हदखते ैं और य ी मेकअप यहद गािंर्-खेड़े की मस ु ललम लड़फकयािं कर लें तो सलीमा लोगों की परर्ा

ाय-तौिा मचा दे ते

न ीिं करती।

ैं।

र् जानती ै फक आज के दौर में बिना ु नर के जजन्दा र ना मजु श्कल ै । औरतों को पढ-ललख कर कोई काम तलाश लेना चाह ए या फिर ब्यट ू ीलशयन, िी ू ूहटक आहद काम सीख कर ननयलमत आय का जग ु ाड़ िना लेना चाह ए। आखखर कि तक औरत पैसे के ललए मदा का मिंु सलीमा जानती

ताकेगी?

ै फक कुछ तो लोग क ें गे, लोगों का काम ै क ना!

गिंगाराम सर ने सलीमा को अपनी िा ों के घेरे में लेते ु ए अगली पिंजक्त परू ी की‘‘छोड़ो िेकार की िातों को क ीिं िीत न जाए रै ना---!’’


ज़माना ख़राब है ---आटा-चक्की की आर्ाज कुछ िढ सी गई

ै।

सलीमा ने मेकेननक गिूर भाई को िल ु र्ाया था, आए न ीिं। अब्िू की तिीयत ठीक न ीिं लगता

ै , इसललए उसने गिूर भाई को िल ु र्ाया था।

ै फक चक्की का पट्टा कुछ ढीला

ो गया

ै।

सलीमा ढीले पट्टे को ‘टाईट’ कर लेती ै लेफकन लगता ै फक ‘टें शन-स्क्रू’, खराि गया

ै जो स्कू़्र टाईट करने पर भी पट्टा ढीला

आटा-चक्की के िढे

ी र े आता

ै।

ु ए शोर से सलीमा का हदमाग खराि ोने लगा। उसने अब्िी ू ू के औजार का थैला उठाया और सरु ै या को मदद करने के ललए आर्ाज लगाई।

सरु ै या ने तीसरी गु ार पर जर्ाि हदया--सलीमा को गुस्सा आ गया। र्

ै।

तार्-तार् में अिंदर गई तो दे खा फक सरु ै या आईने के सामने खड़ी िाल सिंर्ार र ी

सलीमा को गस् ु सा आ गया।

सरु ै या की पीठ पर एक िौल जमा हदया।

सरु ै या कुछ न िोली लेफकन उसने सलीमा को तेज ननगा ों से घी ू ूर कर दे खा और ढीठता के साथ अपने िालों को सिंर्ारती र ी।

सरु ै या की उन ननगा ों में डर न ीिं था िजल्क िगार्त की फकरणें थीिं--उन ननगा ों में

या न ीिं थी िजल्क िदतमीजी के शो’ले थे..

उन ननगा ों में प्रायजश्चत न ीिं था िजल्क िदले की भार्ना थी--सलीमा डर गई।

ये र्ो सरु ै या न ीिं

ै जजसे उसने इतने जतन से पाला-पोसा और िड़ा फकया

ै।

ये र्ो सरु ै या न ीिं ै जो हदन-रात उसके पीछे -पीछे आपी-आपी क ती घी ू ूमा करती ै । ये र्ो सरु ै या न ीिं ै जो सलीमा को अपनी मािं से िढकर प्यार करती ै ीैी​ी ै ी ै ैी​ी ै ी ै ैी​ी ै ।ै क्या ु आ सरु ै या को---?


ब्यट ू ी-पाी​ीलार जाकर अभी उसने सारा ु नर भी तो न ीिं सीखा ै । प ले ढिं ग से काम तो सीख ले सरु ै या---इतनी अकड़ इस धचरै या को क ािं से आ गई? सलीमा के

ोश उड़ गए थे।

चक्की को ठीक करना र्

भल ू गई।

िीस घरों से आए गे ूिं को ननपटाना र् भी ू ूल गई। सलीमा न ीिं चा ती थी फक उसने अपनी जजन्दगी के ललए जो रास्ते चन ु े उस पर उसकी ि नें चलें लेफकन र्

क्या करे ?

फकतनी अजीि िात

ै फक य ी सरु ै या जि घर में

सरु ै या के ऐेसे रिं ग-ढिं ग ने उसके िच्ची जैसा व्यर् ार करती

ोश उड़ा हदए।

ै।

ोती

ै तो एकदम छोटी-नादान

तननक भी आभास न ीिं ोता फक उसे अपने जजस्म और मन में भौनतक और रासायननक पररर्तानों की कोई जानकारी भी

ै?

ोने र्ाले भौगोललक,

ब्यट ू ी-पालार जाकर अपनी मालफकन के सिंगत में अि उसमें कुछ ढीठता के लिण नजर आने लगे र्

ैं।

सलीमा से भी मिंु

लड़ाने की कोलशश करने लगी

ै।

सलीमा ने सपने में भी न ीिं सोचा था फक सरु ै या उससे दर् ा र् ार करे गी---ु य जमाने की ऊिंच-नीच से िेपरर्ा , किंु र्ारी-दे उतनी भोली

ै , जजतनी नजर आती

ै।

की कच्ची खुश्िू से तर सरु ै या क्या र्ाक़ई

सलीमा ने जो भी अपने अनभ ु र्ों से सीखा-जाना था उसके अनस ु ार उसे खद ु पर भी

पक्का भरोसा न ीिं ोता था। र् जि खद ु पर शक कर सकती थी ति सरु ै या के प्रनत उसके मन में सिंदे

के िीज क्यों न अिंकुररत

अब्िू ठ रे र्ीतरागी, त्यागी।

उन् ें मतलि न ीिं फक जर्ान

ोते।

ोती िजच्चयों के ललए उनकी क्या जजम्मेदाररयािं

ैं?

यहद समय र ते िजच्चयों शादी न ु ई तो फिर इसका समाज पर क्या असर पड़ेगा? सलीमा ने िचपन ी में फकशोरार्स्था और जर्ानी के दीदार कर ललए ैं। अि र् र्ैसे भी अिेड़ हदखती ै । उसका तो ब्या उसे शादी भी करनी ै । उसे न तो

ोने से र ा। सलीमा सोच भी न ीिं सकती फक

ल्दी लगेगी, न में दी। न उसके ललए दल् ु न का


जोड़ा

ी आएगा।

सलीमा अच्छी तर

जानती

उसकी डोली उठे गी और न र्

ै फक सोल -लसिंगार उसके नसीि में न ीिं। िािल ु को याद कर रो पाएगी।

ािं, एक िात की गारण्टी ै फक चार भाई जरूर उसे एक ऐसी डोली में उठाएिंगे जजसका

रास्ता कबब्रस्तान के अिंिेरों में जाकर खत्म

ोता

ै।

क ीिं उसी के जैसा नसीि तो उसकी ि नों ने न ीिं पाया अम्मी की

ै।

रकत के कारण परू ी बिरादरी और समाज में उनकी िड़ी थ-ू थू

अब्िू सलीमा को खटते दे खते और चप ु चाप िीड़ी के कश खीिंचा करते। अब्िू का कोई यार-दोस्त न था, लसर्ाए उस ु नर के, जजसकी र्ज लोग ड्डडयािं बिठाने आते थे। सलीमा जानती सलीमा

ी तो

फकतना अच्छा

ै फक अब्िू दारू न पपएिं तो जजएिं भी न ीिं।

ै जो अब्िू के दख ु -ददा िखि ू ी जानती-िझ ू ती ै फक अन्य ‘दरूआ’ लोगों की तर

लोटते, न फकसी को मारते-गररयाते।

ै।

से नगर-गािंर् के

ै।

अब्िू दारू पीकर सड़क पर न ीिं

िस, चप ु चाप ठे के जाकर दे सी दारू की एक पाउच ले आएिंगे और रात का खाना खाने से प ले उसे

लक के नीचे उतार लेंगे।

यहद फकसी कारण

ड्डडयािं या नस बिठर्ाने र्ाले मरीज न ीिं आते तो अब्िू को

दस-िीस रूपए सलीमा दे दे ती

अब्िू लसिा नाम के मस ु लमान जि रमजान का पपर्त्र मा

ै।

ैं।

आता अब्िी ू ू में अजीि तब्दीली आती।

र्ो रमजान का िड़ा ए तराम करते और चािंद हदखने के िाद दारू छोड़ दे ते थे। जि ईद का चािंद हदखता उसके िाद ईद की नमाज अदा कर र् ले आते।

ठे के पर जाकर दारू

अब्िी ू ू रोजा न ीिं रखते, लेफकन हदन के समय क ीिं िा र खाना-पीना या फक िीड़ी न ीिं ि​िंू का करते

ैं। रमजान के म ीने में उनकी िीड़ी का खचा जरूर िढ जाता

मजस्जद के पास घर

ै।

ोने के िार्जूद अब्िू कभी भी नमाज पढने न ीिं जाते।

र् लसिा ईद, िकरीद के हदन ईदगा जाकर नमाज अदा करते ैं और फकसी की मौत


पर जनाजे की नमाज मे शालमल जरूर

ोते

ैं।

अब्िू पर सलीमा को ि ु त दया आती ै । परू ा इब्रा ीमपरु ा जानता ै फक अपने समय में अब्िू एक मजित ू इिंसान ु आ करते थे। ादसात की आिंिी में ि​िंसकर तो िड़े-िड़े पेड़ िरासाई ो जाते ैं। फिर खराि समय के आगे अब्िू की क्या औक़ात!

सरु ै या की घरू ती ननगा ों से खौफ़जदा सलीमा ने अपने कमरे जाकर अब्िू के ललए सलीमा आटा-चक्की के पट्टे के ज्र्ाइिंट पर दो-तीन चाली ू ू की तो खटर-पटर की आर्ाज कम

ो गई।

थौड़ा मारा और जि चक्की

िुती से उसने िीस घरों के गे ूिं पीस ललए। उसका चे रा और दप ु ट्टे से ि​िंिा लसर आटे की गदा से अट-पट चक ु ा था। उसने चक्की का मेन-जस्र्च आीि फकया और आटे की गदा उड़ाने लगी। घर के अिंदर से िीिंगामश्ु ती की आर्ाजें आ र ी थीिं।

सलीमा ने सोचा फक इन दोनों ि नों सरु ै या और रूकैया में कि जजम्मेदारी का अ सास जागेगा? कि ति ये दोनों लाड़ की लल्लो िनी र ें गी? अि िजच्चयािं तो र

न ीिं गई

ैं दोनों।

अि तो उनमें गिंभीरता आ जानी चाह ए ताफक जजन्दगी की असललयत को जानने-समझने लगें ।

कि तक ये दोनों छोररयािं अपनी िड़ी ि न की उिं गललयािं थामे चलेंगी? सलीमा ये न ीिं चा ती थी फक जजस तर चखा

ै , र्ैसा नसीि छोटी ि नों का

ो।

खद ु उसने जजन्दगी की तजल्खयों का स्र्ाद

र् अपनी ि नों को इस िेददा -िेमरु व्र्त जमाने की कड़र्ी क़ीक़तों से िचाना चा ती थी।

यहद जेठ की तपती दप ु र में घर से िा र ननकलने का कोई काम आ पड़े तो सलीमा ि ु िा चा ती फक अपनी ि नों को धचलधचलाती िप ू में िा र भेजने से अच्छा र् खद ु चली जाए।

सलीमा अक्सर सरु ै या और रूकैया को समझाया करती फक कच्ची-कोमल कललयों को कुचलने- मसलने के ललए सिंसार में एक से एक ि ु रूपपए िैठे

ैं।


ये ि ु रूपपए मदा , रूप िदल-िदल कर उनके सामने आते उपक्रम करते ैं। इन मदों से खद ु को िचाना

ी असली लड़ाई

ै।

लेफकन सरु ै या और रूकैया क ािं समझने र्ाली। दोनों का जजस्म

ैं और नोचने-खसोटने का

ै फक गदराता जा र ा और लड़कपना

ै फक छूटता न ीिं।

दोनों ि नों के लड़ने-लभड़ने की आर्ाजें िा र तक आ र ी थीिं। लगता

ै फक घर के अिंदर सरु ै या और रूकैया के िीच घमासान नछड़ा

ै।

अिंदर जाने से प ले सलीमा ने गल्ले के पास िैठ कर समें इकट्ठा ु ए पैसे ननकालकर धगने। पैसों के मामले में सलीमा फकसी पर भरोसा न ीिं करती। परू े उन्चास रूपए थे। एक कम पच्चास!

यानी आज के आिे हदन की कमाई ठीक

ै।

शाम तक डेढ-दो सौ रूपए की आमदनी इस चक्की से

ो जाती

ै।

कभी-कभी तीन-चार क़्िं जीर्टल गे ूिं पीसने का आडार आ जाता ै तो फिर रात जागकर र् चक्की चलाती ै । अि सलीमा ने आिंगन से उठती ि नों की खखलखखला ट की आर्ाज सन ु ी।

कभी ऐसा लड़ेंगी चड़ ै ें फक लगे खून पी जाएिंगी एक-दज ु ल ू े का और कभी दोनों में इतना प्रेम फक नजर न लगे उनकी जोड़ी पर। जजतना रोती

ैं दोनों, उतना

फिजल ू के ठ ाके।

िं सती भी

ैं।

लोग अचानक दे खें तो य ी समझें फक फकसी जजन्न-चड़ ै का साया ु ल सलीमा अपनी ि नों के िरअक्स एकदम उलट ि ु त ु आ तो मस् ु कुरा दे गी। खखलखखलाकर िं से तो उसे मद् ु दत

ो गई

ै । र्

ो उन पर।

अक्सर सिंजीदा र ती

ै।

ोगी।

सलीमा अपने कपड़े पर छाई ु ई आटे की सिेद िल ू झाडने लगी। अिंदर रसोई जाने के ललए एक अिंिेरा गललयारा ै । गललयारे के दाह ने एक कमरा ै । ये कमरा उन तीनों ि नों का कमरा ै । गललयारा और रसोई के िीच छोटा सा खल ु ा


ु आ आिंगन ै । आिंगन में एक तरि जि अम्मी र ा करती थीिं तो छोटा सा िगीचा ु आ करता था। अि र् ािं एक अमरूद का पेड़ ै । जजस पर साल में दो िार अमरूद

िलता

ै।

रसोई की दीर्ार पर एक आईना फिट फकया ु आ था। इसे अम्मी ने ी फिट करर्ाया था, ताफक अब्िू को यहद दाढी-मिंछ ू ठीक करना ो तो उस आईने के सामने खड़े

ोकर िना सकें। अिंदर कमरे में इतना अिंिेरा र ता ै फक

र् ािं बिना रोशनी फकए आईने में अपना अक्स दे ख पाना मजु श्कल सलीमा की

ालत दे ख सरु ै या और रूकैया फिर िं सने लगीिं।

सलीमा ने आईने में स्र्यिं को दे खा और र्

ै।

खुद मस् ु कुरा उठी।

उसके चे रे पर आटे की िल ू छाई ु ई ै । ओढनी से लसर ढिं का था र्रना िालों में आटे की िल ू छाने से िाल रूखे ो जाते ैं। यहद गोल शीशे र्ाला चश्मा र् जैसी हदखलाई पड़े।

लगा ले तो चािंद पर चरखा चलाती िढ ू ी दादी अम्मा

उसने दप ु ट्टे से अपना चे रा साि फकया। िालों पर

ाथ िेरकर सिंर्ारा।

उसके लसर पर काले िालों की तादाद घट गई

ै , ज़्यादातर िाल सिेद

ो चक ु े

सरु ै या अक्सर सलीमा को टोकती फक आपी, आप िाल काले क्यों न ीिं करातीिं? कभी क ती फक िोलो तो िाल काले कर दिं ।ू लमन्टों में िाल काले तम ु अभी से िहु ढया क्यों हदखना चा ती

ों?

ैं।

ो जाएिंगे।

ज्जन ि​ि ू ू की बिहटया साजदा तो तम् ु ारे साथ की ै । दे खो अभी भी फकतनी जर्ान

हदखती

ै जिफक दो िच्चों की मािं िन चक ु ी

सलीमा क्या जर्ाि दे ती।

ै।

उसने आईने में अपने चे रे को गौर से दे खा।

पपचके ु ए गाल। गदान और माथे पर झरु रा यािं। आगे के दो दािंत टूटे ु ए। चोंचदार नाक सख ू े चे रे पर कुछ और ज्यादा उभरी ु ई हदखती।

आिंखें कभी िड़ी ु आ करती ािंीग े ी, अि तो ऐसा लगता ै फक चे रे पर दो ग रे काले गड्ढे ों।


फिगर भी ऐसा फक जैसे टीिी की मरीज

ो।

िदन पर क ीिं भी मािंसलता और उतार-चढार् न ीिं। चपटा सपाट सीना, लम्िे पतले

ाथ, लकड़ी की ट ननयों जैसी टािंगें।

जजस्म पर मािंस का नामो-ननशान न ीिं। सलीमा जानती

ै फक र्

कभी सिंद ु र न ीिं ु आ करती थी। ािं, सािंर्ली रिं गत, दि ु ला-पतला जजस्म, लम्िा चे रे र्ाली सलीमा फकशोरार्स्था में जरूर आकषाक हदखती ोगी। र्ैसे भी लोग क ते

ैं फक जर्ानी में तो गदह या भी सिंद ु र हदखती

ै।

फकतनी जल्दी उसका जीर्न-रस चक ु गया।

कािंनत ीन सलीमा---कुरूप सलीमा----रूखी-सख ू ी सलीमा। सलीमा उस नदी की तर

लमट्टी के लोंदों ने ले ली सलीमा की दे

ो गई थी जजसका पानी सख ू गया

ो।

एक ठूिंठ की तर

ै।

अि तो उसके चे रे पर कारोिारी रूखापन जड़ें जमा चक ु ा

ो और रे त की जग

ै।

सलीमा फकसी अिंिेरी कोठरी में फकसी चोर-बिस्तर पर बिछ तो सकती िम ू -िाम से फकसी के ललए सजना उसके नसीि में न ीिं। अच्छा

ी तो

ै , लेफकन

ै।

सलीमा चा ती भी न ीिं फक उसका कुछ िने, ािं उसके मन में ै फक फकसी तर सरु ै या का जुगाड़ लग जाए। सरु ै या का घर िस जाए।

अम्मी र ती तो र् ी इिर-उिर आती-जातीिं। दे खती-सन ु तीिं। अब्िू को तो घर से कुछ लेना-दे ना न ीिं।

उन् ें ये भी पता न ीिं र ता फक उन् ोंने नाश्ता फकया न ीिं।

िस, चैिीस घण्टे गुम-सम ु र ा करते

ैं।

सलीमा यहद उनका ख़्याल न रखे तो जाने क्या

ो?

ै या न ीिं। खाना खाया

सलीमा अब्िू के साथ-साथ सरु ै या और रूकैया का भी ख्याल तो रखती

ै!

ै या


जिसके आगे राह नही​ीं---

सोल -सत्र

की

िड़ी अजीि काया

ै सरु ै या।

ै इसकी---

कभी दे खो तो िच्ची, कभी दे खो तो यर् ु ती---

भरे -परू े िदन र्ाली सरु ै या यहद साड़ी प नती तो एकदम औरत दीखती। यहद सलर्ार-सट ू प नती तो स्कूीूल-गला नजर आती।

ािं, एक िात जरूर ै फक ई सरु ै या ससरु ी मेशा िनी-ठनी र ा करती और सलीमा की

डािंट खाके और महु टयार िनी र ती।

सरु ै या के नक्शे-क़दम पर छुटकी रूकैया भी चलने की कोलशश कर र ी थी। पढना-ललखना एकदम न ीिं और हदन-भर िनना-सिंर्रना।

सलीमा को भी य ी लगता फक सरु ै या के रिं ग-ढिं ग ठीक न ीिं

सरु ै या अपना अधिकािंश समय आईने के सामने गुजारा करती

ैं।

ै।

प ले ऐसा न ीिं था, लेफकन आजकल सलीमा ने एक नई िात नोट की

ै।

उनकी आटा-चक्की के सामने से गुजरने र्ाले लड़के, अक्सर चु ल करते गज ु रते

ैं।

िात-िेिात ठ ाके लगाते ैं। कनखखयों से चक्की और छत की तरि दे खकर आ ें भरते ैं।

जैसे सरु ै या की एक झलक पाने के ललए िेताि

ों---

उिर यी ू ूीूसि ु भी सलीमा के घर अि ज्यादा आने-जाने लगा था। एक हदन सलीमा ने सरु ै या के

ाथ में एक नया मोिाईल सेट दे खा। िड़ी सी

स्क्रीन र्ाला मोिाईल। जजसके स्क्रीन पर उिं गली का स्पशा ोते ी जाने क्या-क्या ोने लगता ै । आजकल के िच्चे िड़ी आसानी से मोिाईल चला लेते डर लगता

ै ऐसे मोिाईल छूीूने में भी, क ीिं खराि

ो गया तो?

ैं। सलीमा को िड़ा

सरु ै या अक्सर क ती ै फक सलीमा का मोिाईल यहद गुम भी गया तो पाने र्ाला


घण्टे -भर िाद पछ े ेसे पत्थर की जग ू ते-पाछते आकर मोिाईल र्ापस दे जाएगा----र्ैी​ी फकसी को िेंक मारना सरु ै या के

ो तो सलीमा का मोिाइल ‘िेस्ट-आीप्शन’

ै ---

ाथों यी ू ूसि ु का कीमती मोिाईल दे ख सलीमा का माथा ठनका।

सरु ै या िड़ी िे याई से िं स- िं स कर फकसी से िातें कर र ी थी। सलीमा को गुस्सा आया। उसने िढकर सरु ै या के

ाथ से मोिाईल छीनना चा ा।

सरु ै या ने सलीमा को घरू कर दे खा, जैसे ननगा ों-ननगा ों में उसे खा जाएगी। सलीमा ने गुस्से में सरु ै या के गाल पर एक थप्पड़ िजा हदया। सरु ै या रोने लगी।

रूकैया फकताि-कापी छोड़ स मी ु ई आ खड़ी ु ई। तभी मजस्जद से मगररि की अजान की आर्ाज गी िं ी---‘‘अल्ला ो अकिर---अल्ला ो ू ूीज अकिर---’’

सलीमा ने सर पर दप ु ट्टा डाला और सलीमा की ह चफकयािं ि​िंद

ो गईं। क ते

ैं फक अजान की आर्ाज सन ु ो तो लसिा और लसिा अल्ला को याद करो। अम्मी िताया

करती थीिं फक अजान के र्क़्त ख़ामोश र ा जाए और अजान सन ु कर अल्ला से र म और मगफिरत की दआ ु मािंगी जाए।

अजान खत्म ु ई तो सलीमा ने पछ ू ा-‘‘क ािं से आया ये मोिाईल---?’’ सरु ै या िद ु िद ु ाई-‘‘यस ू ि ु ने अपना परु ाना मोिाईल मझ ु े धगफ्ट फकया ै । उसके के पास ढे र सारे मोिाइल ैं सलीमा---यी ू ूसि ु ने अपने ललए थ्री-जी मोिाईल खरीद ललया ै ।’’ ‘‘ठीक ै ---मान ललया फक उसने मोिाईल तझ ु े हदया ै ---इसकी इिंक्र्ारी िाद में , प ले ये िता फक ये लसम तझ ु े क ािं से लमला कमीनी---?’’

सरु ै या दप ु ट्टे के कोर से आिंसू पोंछते ु ए िोली--‘‘लसम तो यस ू ि ु का ै ---िोलता ै फक उसके पास ऐसी कई लसम ैं---जाने क ािं से पाता ै इतनी लसम----!’’ सलीमा ने उसे घरू कर दे खा और चे रे पर सच्चाई तलाशने लगी--‘‘जानती ै फकतना

मिं गा लमलता ै ऐसा मोिाईल---फिर र्ो तुझे का े धगफ्ट करे गा रे ---का चक्कर ै तम ु दोनों के िीच---?’

एक साथ कई सर्ाल---

सलीमा कैसे समझाए भोली-भाली ि न सरु ै या को फक कोई ‘अइसई’ फकसी को


धगफ्ट न ीिं दे ता। ये धगफ्ट न ीिं िजल्क चारा ै ---जैसे मछली या धचडडया को िािंसने के ललए चारा डाला जाता भिंर्रे

ै । सरु ै या र्ैसे भी खि ू सरू त

यी ू ूसि ु जैसे जारों लड़के उसकी दे

ै।

पर मर सकते ैं---लेफकन ये रूप के लोभी

ोते ैं---िूल का रस चस ू कर उड़ जाने र्ाले भिंर्रे ----सरु ै या समझती का े न ीिं।

अरे ---इन सिके ललए उमर पड़ी

ै ----प ले कुछ िन तो लो----

इन मदों को तो िस उपयोग करना आता सलीमा ने सरु ै या के

ै , ननभाना न ीिं आता----

ाथ से मोिाईल झटक ललया और क ा फक र्

यस ू ि ु के

घर जाकर मोिाईल र्ापस कर आएगी और सरु ै या को ऐसा ु नर लसखाएगी फक र् खुद अपनी एक नम्िर की कमाई से ऐसे कई मोिाईल खरीदे गी---पता न ीिं क ािं से लाता

ै ये यस ू ि ु र्ा इत्ते सारे मोिाईल----

का मोिाईल पेड़ पर िलते

जरूर क ीिं से चोरी का माल

ैं जो तोड़ लाता

ै र्ो---

ाथ आ गया ै उसके, र्रना इतने मिं गे मोिाईल सेट

खरीदने की कुव्र्त उसमें क ािं?

सकीना आपा बिचारी कमनजरी के साथ लसलाई-मशीन की सई ु में िागा फकतनी

दे र में डाल पाती ै । एक ब्लाउज की लसलाई लमलती ै तीस रूपए और एक ल िं गे की लसलाई िीस रूपए। सलर्ार-सट ू अच्छा लसलती

ैं र्

लेफकन जि से नगर में िट ू ीक

का जाल बिछा और रे डीमेड कपड़े लमलने लगे, सलर्ार-सट ू लसलाने लोग कम ी आते

ैं। िस, आठ-दस परु ाने लोग ैं जो सकीना आपा से सलर्ार-सी ू ूीूट लसलर्ाया करती ैं।

इतने कम पैसे में ग ृ स्थी चलाती

मोिाईल-जीन्स में पैसे ि​िंू कता ै ----ये न ीिं ाथ ि​िंटाए।

ैं सकीना आपा और यी ू ूसि ु र्ा कमीना

ोता फक अपनी अम्मी का घर चलाने में


रात ईशा िाद सलीमा यी ू ूसि ु के घर गई।

सकीना आपा लसलाई मशीन चला र ी थीिं।

सलीमा ने सकीना आपा को सलाम फकया और पी ू ूछा--‘‘यस ू ि ु क ािं सकीना आपा ने अिंदर कमरे की तरि इशारा फकया।

ै आपा?’’

सलीमा यी ू ूसि ू ी ु के कमरे में जा प ुिं ची। कमरा दे ख सलीमा चैंक गई---अरे ये क्या---कमरे का नजारा तो एकदम िदला-िदला सा

ै । प ले यस ू ि ु के कमरे की दीर्ारें पर चस्पािं ु आ करते थे पाफकस्तानी-ह न्दस् ु तानी फक्रकेटरों की तस्र्ीरें ---शा रूख-सलमान की तस्र्ीरें ----और

केटरीना कैि के चे रे के कई क्लोज-अप्स.। आज उन दीर्ारों पर धचपकी ैं ओसामा बिन लादे न की तस्र्ीरें ---मक्का-मदीना की तस्र्ीरें ---और एक तरि लसिा

िािरी-मजस्जद के मलिे की तस्र्ीर---जजस पर उदा ू में इिारत ललखी ै --‘‘यौमे श ादत िािरी मजस्जद: छुः हदसम्िर’’। सलीमा अर्ाक़् र

गई।

यस ू ि ु में य कैसा पररर्तान---अच्छा लमस्त्री ै, कमाता-खाता ै , क्या ु आ फक घर में ध्यान न ीिं दे ता लेफकन अपना खचा तो ननकाल ी लेता ै । आजकल के नौजर्ानों के खचा भी तो अजि ैं। ब्रािंडड े कपड़े, मोिाईल, िाईक, परफ्यम् ू स---सैलन ू में भी तो फकतनी उिारी

ो जाती

ै नौजर्ानों की। कभी हदल फकया तो लम्िी जुीुल्िें

रख लीिं---कभी दाढी िढा ली..कभी िाल कुतरर्ा कर छोटे करर्ा ललए---कभी क्लीन शेव्ड और कभी िे़्रिंच-कट दाढी---तो इस तर

सैलन ू के नाई आजकल नौजर्ानों से

अच्छे पैसे िना ले र े ैं। फिर इस लसरफिरे को अचानक ये क्या ो गया ै । अचानक इतना िालमाक और कट्टर पर्चारिारा का समथाक---

सलीमा ने यी ू ूसि ु के बिछार्न को गौर से दे खा। जमीन पर चटाई में एक गुदड़ी

पर चादर डली थी। र्

फकतािें बिखरी पड़ी थीिं।

यी ू ूसि ु का बिस्तर था। िगल में एक टीन की पेटी पर कई

यी ू ूसि ु लिंग ु ी और टी-शटा प ने लेटा ु आ एक फकताि पढ र ा था। सलीमा ने फकताि का टाईटल दे खा--‘‘गाजी-ए-आजम जरत ओसामा बिन


लादे न’’

यानी िमायोद्िा लादे न----सलीमा का माथा ठनका फक दनु नया में इस्लाम को

लड़ाकू और ि​िार रूप में िदनाम करने र्ाला लादे न गाजी या िमायोद्िा कैसे

गया---? सकता

अमरीका के र्ल्र्ड-ट्रे ड सेंटर को नेस्तनािद ू करने र्ाला इिंसान गाजी कैसे ै?

िालमयान में आराम से खड़े शािंनत के दत ू िद् ु ि की मनू ता को ध्र्स्त करने र्ाला इिंसान गाजी कैसे

ो सकता

ै?

सलीमा को मस ु लमानों को ये कड़ा रूप पसिंद न ीिं। जि स्कूल में टीचर

मग ु लकाल पढाते तो मनू ता-भिंजक, मिंहदर-तोड़क मस ु लमान शासकों का ऐसा नघनौना रूप

प्रस्तत ु करते फक ह न्द ू िच्चे मस ु लमान िच्चों से घण ृ ा करने लगते। ह न्द ू औरतों के

जौ र का सारा दोष सलीमा को यिंू म सस ोता फक किा में उपजस्थत मस ू ु लमान िच्चों पर

ै।

ो सकता

ै ऐसा न

ो---लेफकन लशिकों की लशिण-पद्िनत में प्रलशिण

की कमी के कारण मुसलमान िच्चे स मे र ते। खुदा-खुदा करके जि ये चैप्टर खत्म ोते---तभी चैन की सािंस ली जाती।

सलीमा ने म सी ू ूीूस फकया फक खखलिंदड़ा यस ू ि ु इस ज रीली मानलसकता का

लशकार ो गया ै । ऐसा कैसे ु आ----तभी उसे याद ो आया मौलाना सलीम। क ीिं ये उस झारखण्डी मौलाना सलीमा की सिंगत का असर तो न ीिं। अम्मी उस कमीने मौलाना के चक्कर में क्या घर से भागीिं सलीमा को इस कारण तमाम मौलानाओिं से धचढ

ो गई। जाने क्यों उसे लगता फक ऐसे कमीनों का कत्ल करदे , जो िमा-मज ि

की आड़ लेकर गरीि लोगों के पर्श्र्ास से खेलते

ैं।

यस ू ि ु ने एक हदन िताया फक झारखण्ड से एक मौलाना सा ि आए

मस ु लमानों की िे तरी के ललए एक मदरसा चलाते पर्चारिारा का प्रचार करते

ैं साथ

ैं। र्े घम ू -घम ू कर अपनी

ी जो खुशी से हदया जाए ले लेते

उनका मदरसा और यतीम-खाना चल र ा

ै । क ते

ैं जो

ैं। इसी तर

ैं फक मौलाना सलीम फकसी

‘अ ले- दीस’ पर्चारिारा को मानता ै । सलीमा ने तो दे र्ि​िंदी, िरे लर्ी, सन् ु नी-र् ािी,

लशया, िो रा, अ मदी जैसी पर्चारिाराओिं के नाम सन ु े थे, लेफकन यस ू ि ु के साथ एक


हदन सलीमा के घर पिारे मौलाना सलीम के मिंु से उसने ‘अ ले- दीस’ सन ु ा। सलीमा ने मौलाना को चाय पपलाई और एक सौ रूपए उनके मदरसा के ललए चिंदे के रूप में दी।

मौलाना सा ि और यस ू ि ु जि चले गए तो सरु ै या ने िताया--‘‘ये जो मौलाना

ै न इसकी ननगा

में खोट

ै । कैसे घरू र ा था मझ ु े----!’’

सलीमा ने उसे डािंटा--‘‘इसीललए मैं तुझे क

कूद---लेफकन ये यस ू ि ु र्ा क्या आता

र ी थी फक ज्यादा सामने मत

ै तू ज्यादा िुदकने लगती

ै ---!’’

सरु ै या की आिंखें िैलती जा र ी थीिं--‘‘सलीमा---यस ू ि ु इस मौलाना के चक्कर में

उलझता जा र ा ै । कल मैंने क ा फक मौलाना का साथ छोड़ दे ---तो यस ू ि ु नाराज ो गया।’’

--‘‘तेरे को क्या मतलि---यस ू ि ु जो चा े करे कमीनी..तू अपना काम कर---।’’

सलीमा ने अपने सर पर दप ु ट्टा लपेटते ु ए क ा था---अभी उसे दो िोरा गे ूिं पीसना िचा था---कल्लू सेठ का आदमी रात आकर माल ले जाएगा।

सलीमा को कट्टरपिंथ पसिंद न ीिं साथ ी उसे ि ु सिंख्यकों का अल्पसिंख्यकों के प्रनत नतरस्कार र्ाला व्यर् ार भी पसिंद न ीिं ै । इसी िात पर उसकी गिंगाराम सर से ि स ो जाती। अिंतरिं ग िणों से उिरकर जि र्े ररलेक्स िैठे ोते तो ह न्द-ू मस ु लमान पर्षय पर उलझ जाते। जि तक लमलन का खुमार चढा र ता ति तक दे के आगे ख़ामोशी और अनभ ु ी ू ूनत की भाषा से काम चलता। जैसे

ी आिंच

की आिंच

ठण्डाती----ललिंग-भेद, जात-पात, रिं ग-नस्ल जैसी दनु नयार्ी धचन्ताएिं आ घेरतीिं। सलीमा िदल जाती एक मस ु लमान औरत में । जजसका दरजा इस र् ृ द भारतीय समाज में

अछूत सा ै । इसी तर ज्र्ार थमता तो गिंगाराम सर एक ह न्द ू परू ु ष के रूप में िदल

जाते, जजन् ें िमा की जय और अिमा के नाश का मिंत्र लमला ु आ ै । सलीमा ने कई िार गिंगाराम सर, पर्श्र्कमा​ा सा ि आहद से चचा​ा के दौरान अपने पर्चार रखना चा ा ै फक इतनी िड़ी दनु नया को चलाने के ललए कई िमों की जरूरत ै ---कई पज ू ा- पद्िनतयों की जरूरत ै ----लसिा एक ी तर के लोग ो जाएिं तो सिंसार

की पर्पर्िता खत्म

ो जाएगी----ईश्र्र के कई चे रे -मो रों की जरूरत

दनु नया के सारे िमों का सम्मान फकया जाना चाह ए।

ै । इसललए


पर्श्र्कमा​ा सा ि ज्यादा समझदार

ैं सो र्

क ते फक अरे भाई सारे िमों के

सम्मान के साथ-साथ नाजस्तकों को भी सम्मान करना चाह ए। ईश्र्र को न मानना भी एक तर का यकीन ै । इसी तर का पक्का यकीन आजस्तकों को भी ोना चाह ए। इसी को तो आस्था क ते

ैं।

सलीमा अपने अनभ ु र्ों से ये िात मानती

ै फक ईश्र्रीय फकतािें आम-आदमी

को अच्छे -िरु े का सिक दे ने के ललए जरूरी ैं। पाप-पण् ु य, सजा-ईनाम, स्र्गा-नरक की अर्िारणाएिं इस पर्शाल मानर्-समद ु ाय के सिंचालन के ललए िे द जरूरी

ैं। लेफकन

कोई ये क े फक इन िमों के अजस्तत्र् से, इन फकतािों के र्जद ू से सिंसार में पाप-दरु ाचार कम

ो जाएिंगे---

ये िमा​ाचायों की भल ै । यहद ऐसा ोता तो फिर नरक का ननमा​ाण क्यों ोता? ू अपने जातीय-सामद ु ानयक खोल से िा र ननकल कर ी सलीमा ने जाना फक ये

दनु नया अजीिो-गरीि

ै । पर्पर्िता और पर्लभन्नताओिं का एक अद्भत ु कोलाज---!

पर्श्र्कमा​ा सा ि िताते फक िताओ कैसी िनार्ट ै दनु नया फक क ीिं ि​िा ी ि​िा

ै ---क ीिं रे त ी रे त ै ---क ीिं जिंगल तो क ीिं िी ड़---क ीिं मैदान का पर्स्तार ै तो क ीिं

प ाड़ ी प ाड़---। इसीललए र जग अलग शारीररक िन ु ार्ट के लोग लमलते ैं। जजसे नस्ल क ा जाता

कपड़े-लत्ते डडजाइन

ै।

जलर्ायु और भौगोललक पररजस्थनतयों के अनस ु ार

ोते

ैं।

र जग

ी उनके

लोगों का रिं ग-रूप, र न-स न, रीनत-ररर्ाज,

आचार-व्यर् ार अलग-अलग ोंगे ी---फिर कैसे फकसी एक मज ि या िमा से दनु नया की सारी आिादी को

पर्श्र्कमा​ा सा ि

ािंक हदये जाएिंगेी!े ’’

ािंका जा सकता

िं सते---‘‘चनू तया

ै।

ैं का इत्ते सारे लोग----जो एक

ी डण्डे से

सलीमा ऐसे ी पर्पर्िता में एकता का पाठ पढ र ी थी। र् समझने लगी थी

फक अि कोई ये क े फक भईया मिंड ू मड़ ु ाकर लम्िी सी चोटी रखने से

ी पपर्त्र ह न्द ू

क लाओगे या मिंछ ू मुड़ाकर दाढी िढा लसर पर टोपी खपकाकर पाकीजा

मस ु लमान----अजीि िात ै ये---उसे िं सी आ जाती। ये जरूरी न ीिं फक कपड़े प न लेने से आदमी में आदमीयत आ जाती ै और ननिान-ननर्ास्त्र लोग असभ्य या ि​िार

ैं। तथाकधथत सभ्य समाज अपनी अजीिो-गरीि कुजण्ठत मानलसकता से उपजी

ोते


जीर्नचया​ा को आिनु नक, र्ैज्ञाननक जीर्न-पद्िनत ननरूपपत करता

ै । फकसी

कूीूप-मण्डूप की तर का जीर्न जीने र्ाले खद ु को पर्श्र्-नागररक क ते ैं तो फकतना ास्यास्पद लगता

ै।

यस ू ि ु जैसे यर् ु ाओिं की चेतना इसीललए सीलमत दायरे में सिंकुधचत

ो जाती ै ।

ये न ीिं जान पाते फक एक लमधश्रत समाज में अपनी आइडेंहटटी अपनी पर्लशष्टता

जाह र करते ु ए जीर्न- यापन करना फकतना कहठन ोता ै । पक्का ै फक ि ु सिंख्यक लोगों की आर्ाज में अल्पसिंख्यकों की आर्ाज उतनी न ीिं उभरे गी---लेफकन जरूरी न ीिं फक सरु के कायाक्रम में अनार्श्यक शोर मचाकर भीड़ इकट्ठी की जाए या लोगों का ध्यान आकपषात करने के ललए िमाके फकए जाएिं---सलीमा यस ू ि ु को दे ख र ी थी।

यस ू ि ु के चे रे पर तनार् के लिण थे। उसने सलीमा को सलाम फकया।

सलीमा ने सलाम का जर्ाि हदया और यस ू ि ु से फकताि मािंगी, जजसे र्

र ा था।

पढ

यी ू ूसि ु ने फकताि सलीमा की तरि िढाई और सलीमा को मोढे पर िैठने का

इशारा फकया---

मी ु ुखपष्ृ ठ पर दो ि​िंदी ू ूकों के क्रास के साथ कुख्यात आतिंकर्ादी लादे न की

तस्र्ीर छपी थी।

सलीमा मोढे पर िैठ गई और फकताि के पन्ने पलटने लगी।

य ू हदयािंी,े इसाईयों, अमरीफकयों के खखलाि ज र उगलती भाषा में पर्श्र् में इस्लाम के प्रचार-प्रसार के ललए प्रयास करती िातें ललखी थीिं उस फकताि में । लादे न को िमायोद्िा के रूप में सम्माननत, स्थापपत करने का अलभप्राय पष्ृ ठ-दर-पष्ृ ठ दजा था। पाठकों से अपील थी फक अखखल-पर्श्र् में इस्लाम की स्थापना

ी मस ु लमान

केीे जीर्न का लक्ष्य ोना चाह ए। मज ि के ललए मर लमटने र्ालों को श ीद का दजा​ा अल्ला

दे ता ै और श ीद के पाप-पण् ु य का ह साि-फकताि न ीिं

ोना ै । श ीद सीिे

स्र्गा जाता ै । स्र्गा यानी जन्नत---जन्नत ज ािं ू रें ैं---और कभी न खत्म ोने र्ाला आनिंद ै ----


यस ू ि ु ने सलीमा से पछ ू ा--‘‘और भी कई फकतािें

ैं मेरे पास---दे खेंगी---?’’

सलीमा ने यी ू ूसि ु के लसर ाने ननगा डाली---र् ािं और भी कई फकतािें थीिं---कुछ

ह न्दी में कुछ उदा ू में । गया

सलीमा खामोशी से यी ू ूसि ु का चे रा दे खती र ी। क्या यस ू ि ु का चे रा िदल ै ? चे रा भर िदला

ै या यी ू ूसि ु का र्जी ू ूद

ी िदल गया

ै ? क ािं

ै र्ो

खखलिंदड़ा, लापरर्ा , दिं तननपोर सा यस ू ि ु ----र् जजस यस ू ि ु को दे ख र ी थी, उस चे रे

पर अचानक काली िेतरतीि दाढी उगने लगी----लसर पर एक पगड़ी सी ि​िंि गई---अरे

ये क्या यस ू ि ु का चे रा तो जैसे ओसामा बिन लादे न के चे रे में तब्दील ो गया था। सलीमा घिरा गई और सरु ै या से छीना मोिाईल सेट यस ू ि ु को र्ापस करने

लगी--‘‘क ािं से लाता ै इत्ते सारे मोिाईल फक िािंटता फिरता ै रे ----इस मए ु मोिाईल

के कारण सरु ै या आजकल पढती ै न ललखती ै , िस सारा हदन इसी से धचपकी र ती ै ---!’’

‘‘तो का ु आ आपा----खेलने दो न उसे मोिाईल से---!’’ यस ू ि ु मस् ु कुराया। ‘‘ ािं, अइसई खेलते र े गी तो िरिाद न ो जाएगी---?’’

‘‘का आपा----आजकल के लड़के-लड़फकयािं तो मोिाईल के जररए दे श-दनु नया से

जुड़ र े

ैं---और एक आप

ैं फक िच्ची की खुलशयािं छीन र ी

ैं---!’’

सलीमा उसकी िात पर ध्यान हदए िगैर फिर फकताि के पन्ने पलटने लगी।

फकताि में अलकायदा और ओसामा बिन लादे न के िारे में िड़ी जोरदार िातें ललखी थीिं।

इसाईयािंी,े य ू हदयों और ह न्दओ ु िं के खखलाफ़ ज र उगलते अध्याय थे। दाउद इिरा ीम की िड़ाई थी उसमें । िािरी-मजस्जद की श ादत के फकस्से थे---गज ु रात के मजु स्लम नरसिं ार के चचे

थे---मम् ै की श ादत ु िई के दिं गों पर एक-पिीय तस्र्ीर थी---सद्दाम ु सन थी---इजराईल और अमरीका की साठ-गािंठ के फकस्से थे---भाषा ऐसी फक र पढने र्ाले का मन िदल जाए।

सलीमा घिरा गई--‘‘आतिंकर्ादी िनेगा क्या रे ---?’’ यस ू ि ु

िं सने लगा--‘‘इस जजन्दगी का मक़सद क्या

ै आपा----कमाना, खाना,

िड् ु ढा ोकर मर जाना---य ी न---आखखर एक हदन मरना ी ै तो फिर क्यों न श ादत


का जाम चख कर मरा जाए---!’’

सलीमा की आिंखें िटी की िटी र गईं---‘‘कौन ि काता ै तम् ु ें यस ू ि ु ---- मारे

इिरा ीपरु ा में तो अइसा न ीिं था----तम् ु ें क्या

ो गया

ै ---क ीिं ये उस झारखण्डी

मौलाना की कारस्तानी तो न ीिं----अरे यस ू ि ु ----तम ु सकीना आपा के दुःु ख क्यों िढा र े

ो। बिचारी िेर्ा औरत रात-हदन तुम् ारी तरिीयत के ललए परे शान र ती

तुम---?’’

यी ू ूसि ु मस् ु कुराता र ा। जैसे सलीमा की िातें म त्र् ीन सलीमा ने गौर फकया फक उसके चे रे पर

ों।

ल्की सी दाढी उग आई

इसका मतलि िैशनेिल ु यी ू ूसि ु पक्का लमयािं िनता जा र ा

ै।

ैं और

ै।

यी ू ूसि ु अपने मोिाईल में कुछ खोज र ा था और फिर उसकी मोिाईल से एक

गजादार तकरीर की आर्ाज आने लगी--‘‘खर्ातीनो

जरात----अमेररकी पपट्ठू सरकारें सारी दनु नया से इस्लाम का

नामोननशान लमटाने के ललए खफु िया तौर पर करोड़ों डालर ि​िंू क र ी

ैं। य ू दी गुण्डे चन ु -चन ु कर इस्लाम को नेस्तनािद ू करने पर तुले ैं। ऐसे नापाक इरादों र्ाली सरकारों

के खखलाफ़ मारी जिंग दनु नया के कोने-कोने से ताकयामत जारी र े गी और एक हदन सारी दनु नया से काफिरों का सिाया करके इस्लामी ु कूमतें कायम की जाएिंगी----’’ एक नारा गिंज ू ता ै --‘‘नाराए तकिीर---अल्ला ो अकिर---’’ सलीमा घिरा जाती

ै और यी ू ूसि ु से क ती

तकरीर----का े दनु नया में जो अमन-चैन

ै --‘‘ि​िंद कर भाई अपनी ये

ै उसे िरिाद करने पर तल ु े

लोग---इतनी िड़ी दनु नया में लसिा मस ु लमान

ो तम ु

ी मस ु लमान िसेंगे क्या---ऐसा ख़्र्ाि

क्यों दे खते ो यस ू ि ु ---लमल-जल ु कर र ना सीखो---मैं तो उतनी पढी-ललखी न ीिं लेफकन

इतना जरूर जानती ूिं फक ु जूर पैगम्िर सा ि ने भी य ू दी और इसाई लोगों के साथ लमलजुलकर र ने की नसी तें दी थीिं----िड़े ाफिज्जी की तकरीर याद न ीिं ै जि उन् ोंने क ा था फक कुरआन पाक में भी अल्ला-ताला क ता ै ---‘लकुम दीनकुम र्लेया

दीन’ यानी तुम् ें तुम् ारा दीन, उनको उनका दीन---फिर का े का लिड़ा---अरे ज्यादा शौक चरा​ाया ै तो पक्के नमाजी िन जाओ, त ज्जुद की नमाज पढो---- लाल रोजी कमाओ और मािं-िाप की खखदमत करो।’’


यी ू ूसि ु कुछ न ीिं िोला। खामोश िैठा र ा।

सलीमा उसे मोिाईल लौटा कर अपने घर र्ापस चली आई। उसने सकीना आपा से भी इस िारे में कुछ न ीिं िताया।

दी ू ूसरे हदन दप ु र के र्क्त सलीमा फिर सकीना आपा के घर गई।

सकीना आपा आराम कर र ी थीिं। यस ू ि ु घर में न ीिं था।

सलीमा ने यी ू ूसि ु के िारे में पछ ू ा तो सकीना आपा ने माथे पर ाथ िरे धचन्ता

प्रकट की--‘‘क्या करूिं सलीमा बिहटया----कुछ समझ में न ीिं आता फक क्या क ूिं ---बिन िाप का िेटा ै ---डरती ूिं फक उल्टा-सीिा डािंट हदया तो क ीिं----?’’ सलीमा ने उनके घी ु ने पर ु ट

ाथ रखा और खामोश र ी।

सकीना आपा ने आसमानी सलर्ार-सट ू प न रखा था। सिेद दप ु ट्टे से लसर और

िदन ढािंप रखा था---सकीना आपा की य ी पोशाक ै ---अक्सर र् इन् ीिं कपड़ों में दे खी जाती

ैं---।

सकीना आपा अपने सिेद िालों पर में दी लगाती ैं और उनका चे रा जि र्ो जर्ान ोंगी तो जरूर र् ीदा र मान लमलता

ोगा----

उनकी आिंखें िोलती ु ई सी ैं, जजन पर अि मोटे फ्रेम का चश्मा ै । सलीमा को ख़ामोश दे ख सकीना आपा की आिंखों में आिंसी ू ू आ गए---दप ु ट्टे के

कोर से आिंसी ू ू पोंछते उन् ोंने िताया--‘‘आजकल गुमसम ु और तन् ाई-पसन्द

ो गया

ै यस ू ि ु ---र्ो जो गािंिी चैक पर अण्डे-र्ाला यादर् ै न---काला-काला सा जजन्न जैसा

यादर्..र् ी आजकल रात-बिरात आता जाता ै और तुम तो जानती

ो फक झारखण्ड

से जो मौलाना सा ि आते ैं तो सलीम िड़ा खश ु र ता ै उन हदनों---मौलाना की िड़ी


खखदमत करता ै ---अपने कमरे में ठ राता ै । पता क्यों मझ ु े मौलाना का आना न ीिं अखरता लेफकन उस कमीने काफिर अण्डेर्ाले यादर् का आना ि ु त िरु ा लगता ै । तम ु उस अण्डेर्ाले को जानती ोगी---?’ सलीमा ने ‘ ािं’ में गदान ह लाई।

एक िार उस अण्डे र्ाले ने सरु ै या को एक दजान अण्डे का दाम लेकर उतने

पैसे में िार

की जग

पन्द्र

अण्डे हदए थे। यानी तीन अण्डे मफ् ु त में ।

सरु ै या अपनी इस पर्जय से खुश थी फक उसके सौंदया और अदाओिं से प्रभापर्त

ोकर अण्डे र्ाले ने तीन अण्डे ज्यादा हदए

ैं।

सलीमा को जानकारी ु ई तो उसने सरु ै या को जमकर डािंट लगाई थी फक ज्यादा अण्डे क्यों ललए..? जरूर इसमें अण्डे र्ाले यादर् की कुछ चाल ोगी। सलीमा उसी र्क्त चैक पर गई और एक्स्ट्रा अण्डों का दाम यादर् के मिंु में दे

मारा था।

सलीमा जानती

ै फक समाज लड़फकयों पर फकस तर

यहद लड़की गरीि

ो, अनाथ

ो या मजिी ू ूीरू

डोरे डालता

ै।

ो तो फिर क्या क ने---

अण्डे र्ाला यादर् के िारे में िताते ैं फक र् झारखण्ड में रािंची का र ने र्ाला

ै और उसकी शजख्सयत िड़ी सिंहदग्ि ु आ करती ै । अक्सर कई-कई हदन र् अण्डे का ठे ला न ीिं लगाता और क ीिं गायि ो जाता ै । पछ ू ने पर क ता

ै फक दे श चला गया था---अरे जि कमाने-खाने आए

िार-िार दे श जाने के ललए फकराया-भाड़ा क ािं से जट ु पाता जरूर उसका सम्ि​िंि चोर-लट ु े रों के धगरो

चल र ा

ै।

से

ोगा---

ो तो

ोगा तभी तो उसका खचा​ा-पानी

सकीना आपा ने िताया--‘‘र्ो यादर् अण्डे-र्ाला रात-बिरात यस ू ि ु से लमलने

आता ै । उसी के जररए यस ू ि ु को मोिाईल िोन के नए-नए डडब्िे लमलते ैं----अल्ला जाने का चक्कर

ै बिहटया---मेरा तो हदल घिराता र ता

ै आजकल---!’’

सलीमा ने सकीना आपा के चे रे पर भय के िादल मण्डराते दे खे। ‘‘रात में उसके कमरे से िोन पर िात करने की आर्ाजें आती

ैं---मैं डािंटती

ू िं तो फिर र् िुसरु िुसरु िनतयाने लगता ै ----अल्ला जाने फकससे िनतयाता र ता ू ी​ी


ै --- मझ ु े तो उसके लक्छन ठीक न ीिं दीखते बिहटया---तुम् ीिं कुछ समझाओ न

उसे----!’’

सलीमा ने सकीना आपा को आश्र्स्त फकया फक यी ू ूसि ु उसे मानता

अपने तईं र्

उसे समझाने का प्रयास करे गी।

लेफकन उसे क ािं मौका लमल पाया----और अचानक र्

ै और

ो गया जजसकी कल्पना

भी फकसी ने न ीिं की थी। इिरा ीमपरु ा यानी लमनी-पाफकस्तान सखु खायों में आ गया।


सिना है मुझे---सरु ै या जि पढाई-ललखाई में कमजोर ननकली तो सलीमा ने उसे सरदाररन

परमजीत कौर की ‘र्ीनस ब्यट ू ी-पाीलार’ में काम सीखने लगा हदया था। नगर में ‘र्ीनस ब्यट ू ी-पाीलार’ के िारे में लोग अच्छी राय न ीिं रखते। कई तर

की अफ़र्ा ें उड़ाई जाती

ैं।

‘र्ीनस ब्यट ू ी-पाीलार’ की मालफकन परमजीत कौर प ले पिंजािी-टोले में र ती

थी। उसका आदमी खाड़ी दे श में नौकरी करता ै । र् कुछ कमा कर लाता

ै िीर्ी के सप ु द ु ा कर दे ता

परमजीत कौर के िाल-िच्चे न ीिं र्

ैं।

एक लम्िे-तगड़े िदन की मालफकन

ै।

साल में एक िार आता ै , जो

ै और हदखने में िला की खि ू सरू त

ै।

परमजीत कौर की िढ ू ी सास उसी के साथ र ती ै । सास अक्सर खाट पर पड़ी

करा ती र ती थी। उस घर में उन दो औरतों के अलार्ा और कोीेई न ीिं र ता

ै।

परमजीत कौर अकेली िैठी क्या करती। अपनी जजन्दगी में व्यस्तता लाने के

ललए उसने अमत ू ीलशयन का कोसा फकया और इिरा ीमपरु ा र्ापस आकर ृ सर र कर ब्यट उसने ब्यट ू ी-पालार खोल ललया। नाम रक्खा---‘र्ीनस ब्यट ू ी पालार’।

श्र्ेत-श्याम टीर्ी पर्दा ु आ और जैसे ी रिं गीन टीर्ी आया---लोग जानने लगे फक एिंकरों, अलभनेबत्रयों के कपड़ों का रिं ग कौन सा ै ---ज्र्ेलरी फकस डडजाईन की ै ---मैधचिंग के सभी आइटम िड़ािड़ बिकने लगे।

दल् ु नों का श्रिंग ृ ार अि ररश्तेदार औरतें न ीिं करतीिं----ब्राइडल-मेकअप समाज की

जरूरत िन गया।

य ी कारण था ब्यट ू ी-पालार नगर की जरूरत िन गया।

परमजीत कौर आिनु नक पर्चार की मैच्योर मह ला ै---दे खते-दे खते उसने ब्यट ू ी

पालार में कई कारी​ीेगर लड़फकयािं रख लीिं। लड़फकयािंीे के ललए िड़ा सरु क्षित कारोिार

ै ये।

सारी दनु नया की औरतों और लड़फकयों में सन् ु दर हदखने की चा

मौजूद र ती

ै।


जमाना भी ये ऐसा आ गया

ै फक कोई िढ ू ा हदखना न ीिं चा ता

ै।

मेकअप की मोटी परत में झरु रा यों की नछपाने की कला परमजीत कौर ने सीखी इसीललए

ै।

नए-नए ‘ े यर-स्टाईल’, ‘िेलसयल’, ‘ब्लीधचिंग’, ‘थे ़्रडडिंग’ ‘र्ेजक्सिंग’

आहद के ललए मजिरू न औरतों को ब्यट ू ी-पालार की पना

में आना

परमजीत कौर की र्ीनस-ब्यट ू ी पालार में अच्छी सपु र्िाएिं मौजद ू

ैं।

ी पड़ता

ै।

अिर्ा ें भी उड़ा करतीिं फक पिंजािी-टोला के इस ब्यट ू ी-पालार में रात-अिरात

अजनिी मदा आते

ैं।

र्ैसे य परमजीत कौर का ननजी जीर्न ै , इसमें दखल दे ने का अधिकार फकसी

को न ीिं लेफकन समाज के िरु िं िर कणािारों को तो मसला चाह ए।

िात जि ि ु त िढी ति पिंजाबियों ने आपस में िात करके परमजीत कौर को समझाना चा ा फक र् अपनी आदतें सि ु ारे या पिंजािी-टोले डेरा-डिंडा समेट ले। परमजीत कौर के पास पैसे की कमी तो थी न ीिं।

उसने जजद में आकर पिंजािी-टोले र्ाला मकान िेच हदया और िस्ती के दी ू ूसरे

छोर पर एक आलीशान मकान िना ललया। अि र्

फकसी भी समाज के अगुर्ाओिं की टोका-टाकी से आजाद थी।

य ािं ीिंअभी नई िसा ट

ै । य ािं के ज्यादातर लोग िा री

आसपास की कोयला-खदानों से ररटायर

ैं।

ोने के िाद सस्ती जमीन खरीदकर

मकान-दक ु ान िना िसते चले गए लोग। अि कबब्रस्तान के पास का भत ु ा इलाका फकतना गल ु जार िन गया

ै।

एक समय इिर से गज ु रने में डर लगा करता था।

सरु ै या ने ि ु त जल्द काम सीख ललया। क ते भी ैं फक ये मस ु ल्ले ससरु े ु नर का काम िड़ी जल्दी और िड़ी म ारत से सीख जाते ैं। सरु ै या अपनी सलाह यत से ब्यी ू ूटी-पालार में पापल ु र ो गई। उसका

आधथाक आिार सदृ ु ढ ु आ। अपने छोटे -मोटे खचों के ललए अि उसे सलीमा के मािंगना न ीिं पड़ र ा था। रूकैया और सलीमा के ललए उसने कपड़े और पसा खरीद हदए थे। सरु ै या के पास अि अच्छे कपड़े ैं---अच्छी जूत-े चप्पल ैं---ब्राण्डेड नकली ग ने

ैं----टच-स्क्रीन र्ाला मोिाईल ै । जजसमें इण्टरनेट की सपु र्िा ै । रूकैया भी मोिाईल


पर नेट चलाना सीख गई ै । रूकैया ने सरु ै या के ललए चोटी िािंिने की कला के कई

डडजाइन डाउनलोड करके ‘सेर्’ कर हदए। ये कला तो परमजीत कौर को भी न ीिं आती थी। लोग सरु ै या से डडजाइनदार चोटी करर्ाने भी ब्यट ू ी-पालार आने लगे। सरु ै या के कारण ‘र्ीनस ब्यट ू ी पालार’ का कािी नाम

ो गया।

अपने पैरों पर खड़ी सरु ै या आजकल स्टाईल मारने लगी

ै ---ऐसा घरों में कैद

मु ल्ले की अपर्र्ाह त लड़फकयािं दिी जुिान क ा करतीिं---सरु ै या क ािं सन ु ती ऐसे दफकयानी ू ूस पर्चारों पर ध्यान दे ती----. ू ी

सरु ै या जि दे खो ति ब्यट ू ी-पालार की मालफकन पिंजािन परमजीत कौर की

तारीफ़ के पल ु िािंिे र ती। सरु ै या अपनी मालफकन के चम् ु िकीय व्यजक्तत्र् से िे द प्रभापर्त थी।

सरु ै या उसी ब्यट ू ी-पालार में काम सीखती और अपना जेि-खचा ननकाल लेती थी।

परमजीत कौर की पारखी नजर सरु ै या जैसी जरूरतमिंद लड़फकयों की मजिरू रयािं

िड़ी आसानी से जान जाती क ते भी

ैं।

ैं फक मजु स्लम लड़फकयािंीे में गजि का ु स्न सरु ै या र्ीनस ब्यट ू ी-पालार की जान थी।

ोता

ै।

अपने काम में माह र। प्लफकिंग, थे ़्रडडिंग इतनी सिाई से करती फक

उसी से अपनी भौं नुचर्ाना चा तीिं। िेलसयल करते समय उसके

र ग्रा क

ाथों में जादईु कोमलता आ जाती और उसकी

च े ती ग्रा क औरतें तो िेलसयल कराते-कराते नीिंद के आगोश में चली जातीिं।

सरु ै या दस िजे हदन में पालार आती और एक िजे खाना खाने चली जाती। फिर

चार िजे के आसपास आती तो फिर रात आठ िजे तक पालार में र ती। शादी-ब्या या फिर तीज-त्यो ार का मौसम ो तो सरु ै या को परमजीत कौर अपने घर में

ी रोक


लेती।

सरु ै या पर तो जैसे परमजीत कौर ने जाद ू सा कर हदया था।

सलीमा उसे मना करती फक पिंजािन के घर रात मिंीे न रूका कर। र्

ठीक

औरत न ीिं ै । लेफकन सरु ै या के साथ तो कभी भी कुछ भी गलत न ीिं ु आ था। फिर र् कैसे सलीमा की िात पर यक़ीन कर लेती। और सलीमा कौन स ी

ै?

सारा नगर तो उसके िारे में तर -तर जाए।

की िातें िनाता र ता

ै।

सलीमा का नाम तो नगर के कई ऐरे -गैरे लोगों से जुड़ा ै फक िताते शमा आ आटा-चक्की के लोन र्ाली िात तो जैसे सभी जानते ैं फक सलीमा ने लोन पाने

के ललए कैसे थकण्डे अपनाए थे। र् ी सलीमा जि सरु ै या को नैनतकता का पाठ पढाती तो सरु ै या को गस् ु सा आ जाता।

सरु ै या जानने लगी थी फक दे की उम्र ननजश्चत ै , एक उम्र के िाद दे के ग्रा क बिदक जाते

ैं। सरु ै या िीरे -िीरे परमजीत कौर के मो जाल में ि​िंसती चली गई थी।

सरु ै या ऐसी रा

पर चल ननकली थी जजसके आगे रा

न ीिं

ोती----


आतींक के तार--इब्रा ीमपरु ा में एकहदन िड़ी खलिली मची। मु ल्ले को पलु लस ने घेर ललया।

इब्रा ीमपरु ा एक िौजी छार्नी में िदल गया।

पलु ललसया िट ू ों की ठक-ठक से इब्रा ीमपरु ा की गललयािं गिंज ू ने लगीिं। सकीना आपा के मकान को पलु लस ने घेर ललया

ै ---

सकीना आपा के मकान की जजार कच्ची दीर्ारें और खपरै ल, पलु ललसया िी ू ूटों की िमक से

थरथरा उठीिं।

सकीना आपा के आिंगन से सटी

ाजी जब्िार की कोठी।

ाजी सा ि के छत पर मस् ु तैदी से पलु लस र्ाले डट गए।

लोग समझें इससे पर् ू ा कुछ पलु लस र्ाले यस ू ि ु को कव् र करते ु ए िा र ननकले। यस ू ि ु के साथ अण्डे र्ाला कररया यादर् भी था। उन सिके पीछे थी रोती बिलखती िेर्ा सकीना आपा-----‘‘का फकया

यी ू ूसि ू ूी​ी ु र्ा को..!’’

ै मेरे िचर्ा ने---अनाथ िच्चा

ै सा े ि..क ािं ललए जा र े ैं

पलु लस र्ालों ने यी ू ूसि ु को ि​िंद गाड़ी में बिठाया और चले गए। तत्काल घेराि​िंदी करने आए पलु लसर्ाले भी चले गए। सकीना आपा का रो-रो के िरु ा इब्रा ीमपरु ा की इस

ाल----

लचल से नगर के पत्रकार, नेता और तमाशिीन सकीना

आपा के मकान के इदा -धगदा जमा

ो गए।

ऐसा नगर ै इिरा ीमपरु ा फक य ािं आजतक सट्टा ु आ, जआ ु ु आ, दे -व्यापार ु आ, गािंजा-दारू ु आ, जूतम-पैजार ु आ, लट्ठ चले, िलात्कार ु ए---लेफकन आतिंकर्ाद से सम्ि​िंधित कोई खिर कभी न ीिं िनी। पत्रकार

ै रान फक उनके जैसे कूप-मण्डूीूक िद् ु धिजीपर्यों को कैसे भनक न ीिं


लगी फक नगर में इजण्डयन मज ु ाह दीन का कनेक्शन

ै ।ीिं

ये अण्डे िेचने र्ाला कररया गरीि सा आदमी र्ास्तर् में आतिंकर्ाहदयों के

नेटर्का का एक अ म ह स्सा ै । इतने िड़े नेटर्का को िरने के ललए स ी कोलशश की शरू ु आत इिरा ीमपरु ा से ु ई---पत्रकार इस िात से प्रसन्न ैं। इस जिरदस्त स्कूप से इिरा ीमपरु ा में अि ओिी र्ेन और िड़े पत्रकार अर्श्य आएिंगे---ऐसी उम्मीद थी। सलीमा ने सन ु ा ति र्

भी भागी-भागी सकीना आपा के घर जा प ुिं ची। दे खा फक सकीना आपा को न दप ु ट्टे का ोश ै न कपड़े का----िस द ाड़े

मार-मार रोए जा र ी

ैं। तमाशिीन सकीना आपा को घेरे खड़े

सलीमा आगे िढी और सकीना आपा के कपड़े ठीक फकए। सलीमा ने सन ु ा फक

िेटा यस ू ि ु एक द शतगदा मज ु ाह दीन से

ै ---अल्ला

ैं।

ाजी जब्िार सा ि भीड़ को समझा र े ै ----पलु लस का क ना

जाने सच क्या

ै ---!’’

ैं--‘‘इस िेर्ा का

ै फक इसका सम्ि​िंि इजण्डयन

गिूर चच्चा का े चप ु र ते----उन् ोंने क ा--‘‘िताइये---फकतनी शरम की िात ै

फक इिरा ीमपरु ा में ऐसी िात---! यस ू ि ु र्ा कैसे आतिंकर्ादी िन गया---अल्ला ताला र म करे ---!’’

पत्रकार लोग मजमे की िोटो खीिंच र े लोगों से यस ू ि ु के िारे में जानना चा

ैं।

र े

ैं।

कोई क्या िताता? आजकल यर् ु ाओिं की दनु नया

ी अलग

ै । उनकी धचन्ताएिं

अलग ैं। उनके दख ु -ददा अलग ैं। उनके ख्र्ाि अलग ैं। उनके सोचने और सिंसार को दे खने का नजररया अलग

ै । ऐसे में कोई क्या िताए?


याि न िाए, ब ते दिनों की--याद ै सलीमा को र् हदन, जि घर उजड़ने और ि​िा​ाद ोने की कगार पर था।

अचानक एक हदन अम्मी िाल-िच्चों से भरा-परू ा घर छोड़ कर चली गई थीिं। अब्िू को ऐसा सदमा लगा फक र्

काम-िाम छोड़कर दारू के ठे के पर जा िैठे थे।

सारी जमा पिंज ू ी दारू-भट्टी पर उड़ाने की जैसे क़सम खाई थी उन् ोंने। अपने अस ाय िाल-िच्चों से उन् ें कोई मतलि न था। जजन्दगी का ह साि-फकताि गड़िड़ा गया था----

ऐसे कहठन समय में झठ ू ी मददी जताने र्ाले लोगों का घर में तािंता लगा र ता

था। जाने क ािं-क ािं से लोग आ-आकर सलीमा और अब्िू का हदमाग खाते। झठ ू ी तसल्ली ि​िंिाते। सब्र करने को क ते।

िातों-िातों में लोगों ने अम्मी की िेर्फ़ाई के िारे में सलीमा के सामने कई

र स्यों पर से परदा

टाना चा ा था। सलीमा ति िच्ची

ी तो थी। तेर -चैद

साल

की उम्र कोई जजम्मेदारी उठाने की उम्र ोती ै । ये तो अच्छा ै फक सलीमा लड़की थी। लड़फकयािं िचपन से ी समझदार ोती ैं। जिफक इस कच्ची उम्र में तो लड़के रात में बिस्तर पर

ी मत ू डालते

ैं।

सलीमा लोगों की िातों पर कान न िरती थी।

र् जानती थी फक उसकी अम्मी एक िे द ख़ूिसरू त औरत थी और उसकी इस

घर में िच्चे जनने, खाना िनाने, घर साि करने और घर की चैकीदारी करने के

अलार्ा कोई काम न था। उनकी कोई अपनी जजन्दगी न थी। अब्िू हदन-रात ाजीजी की चक्की में खटते या फिर दारू-िीड़ी में गका

ो जाया करते थे।

उनके पास अम्मी की खुलशयों के ललए एकदम समय न था।

जद्दन खाला जो फक मु ल्ले में ‘िीिीसी’ के नाम से प्रलसद्ि थी, ने तो सलीमा

का हदमाग

ी खराि कर डाला था।

सलीमा ने ति उन् ें खूि खरी-खोटी सन ु ाई थी। उसने साफ़-साफ़ क

हदया था-‘‘िड़ी िनती

ै आप दस ू रे के छे द दे खने र्ाली!

आपकी िेटी जमीला का े ससरु ाल न ीिं जाती। लमिंया से न ीिं िनती या फिर जब्िार


कसाई के लौंडे के साथ

ी उसका मन लगता

ै । सारा नगर जानता

ै फक आपकी

सा िजादी जब्िार कसाई के लौंडे के साथ सरे आम लसनेमा दे खने जाती ै । र्

लौंडा

हदन-रात आपके घर में घस ु ा क्या करता र ता ै ? िताईए? िड़ी आई ैं मेरी अम्मी में गलनतयािं ढूिंढने---!’’ स ी भी तो था।

जमीला अम्मी से लमलने आती थी तो सलीमा उसे िूटी आिंख न सु ाती थी।

िैले ु ए ोंठ, लमचलमची आिंखें, उठे ु ई नाक लेफकन भारी छानतयािं और खूि भारी कूल् े । जमीला साड़ी-ब्लाउज प ना करती थी। ब्लाउज र् ऐसे प नती फक उसकी

छानतयािं िा र छलकने को उतार्ली नजर आतीिं। साड़ी कूल् े से कसकर िािंिती फक जि र्

चलती तो लोग उसकी चाल को दे खते र जमीला को मालम ू था फक यहद र्

कर डालती।

जाते।

खि ू सरू त

ोती तो जाने क़यामत

ी िरपा

जमीला आती तो अम्मी उसके साथ खूि िं सी-मजाक करतीिं।

कभी-कभी अम्मी जमीला के साथ लसनेमा दे खने भी जाती थीिं।

जमीला िािंझ थी और इसी ललए कोख की कोठरी के डर से आजाद थी।

सलीमा की खरी-खोटी िातें सन ु कर जद्दन खाला जो उल्टे क़दम र्ापस ु ईं तो फिर दि ु ारा सलीमा के दरर्ाजे पर न ीिं िटकीिं। सलीमा ने इसी तर

लोगों का मिंु

ि​िंद फकया था।

सलीमा अकेले में अपनी को याद करके खि ू रोती थी।

अम्मी को उसने माफ़ कर हदया था और इसके अलार्ा र्

कर

ी क्या सकती थी?

िस, उसने अपनी ि नों को पता ी न चलने हदया फक उनकी मािं उन् ें छोड़ कर

जा चक ु ी ैं, फक िच्चों की परर्ररश के ललए मािं का ोना नन ायत जरूरी ोता ै , फक दनु नया र्ाले िातें िनाते ैं और अक्सर दख ु ती रग को छे ड़ कर फकसी को नतललमलाता दे ख आनिंहदत

ोते

ैं।

आपद्-िमा में

राम- लाल,

सलीमा डटकर खड़ी ु ई--र्ैसे भी क ा गया ै फक नीिंद न जाने टूटी खाट और भख ू न जाने जूठा भात---क़-ना क़, भला-िरु ा की तमीज इिंसान खो िैठता

ै।


सलीमा ने खुद को बिगाड़ा लेफकन अपने पररर्ार को टूटने-बिखरने से िचा ललया था।


जिससे डरते थे वही बात हो गई! सलमा को

मेशा य ी लगता फक उसकी जि ु ान काली

ै।

उसकी मजऱ्ी​ी जो भी चा े सोच ले, लेफकन यहद य ी सोची ु ई िात यहद उसकी जुिान पर आ जाए तो र् िात सच ोकर र ती ै । इसीललए सरु ै या और रूकैया उसकी

ऐसी फकसी घोषणा पर तत्काल आपपत्त दजा कराती ैं फक आपी, ऐसा न िोलो, तुम् ारा क ा सच

ो जाता

ै!

सलमा ने एक िार मजाक में सरु ै या के मन में ब्यट ू ी-पालार की मालफकन

परमजीत कौर के प्रनत अगाि-श्रद्िा दे खकर क हदया था फक यहद सरु ै या की य ी दशा र ी तो दे खना फकसी हदन सरु ै या घर-िार भल ू कर लसिा ब्यट ू ी-पालार की जाएगी।

ोकर र

और ु आ भी र्ैसा ी जैसा सलीमा के मन में आशिंका थी! एक हदन सरु ै या काम पर ब्यट ू ी-पालार जो गई तो घर लौटकर न आई। सलमा और रूकैया उसका इिंतजार करते र

गए।

र्ैसे कभी-कभी सरु ै या ब्यट ू ी-पालार से दे र रात लौटती। ऐसा तभी

ोता जि शादी-ब्या

या फिर तीज-त्यो ार का मौसम

ोता।

ािं, ब्यट ू ी-पालार से कोई न कोई आकर ये ख़िर जरूर कर जाता फक सरु ै या िेिी

आज दे र से घर लौटे गी।

अब्िू अपने कमरे में खा-पीकर आराम कर र े थे। उन् ें दनु नया की क्या

धचिंता..लड़फकयािं फकस ाल में ैं फक मर-बिला गई..उन् ें क्या खिर---उन् ें लसिा अपनी खिर र ती ै फक र्

कोई भलू मका शेष न ीिं

अभी जजन्दा ैं और इस दनु नया के रिं गमिंच में अि उनके ललए ै।

जि रात के नौ िज गए तो सलीमा से र ा न गया। सरु ै या जि काम कर र ीिं

ोती तो उसका मोिाईल जस्र्च-आीि र ता।


परमजीत कौर की सख्त ह दायत थी फक ग्रा क आ जाएिं तो मोिाईल ि​िंद कर हदया जाए। ऐसा न ीिं फक साइलेंस या र्ाइब्रेट मोड पर मोिाइल रखा जाए। मालफकन की सोच थी फक यहद िोन से लसग्नल लमला फक कोई काील ै या मेसेज व्यजक्त का ध्यान भिंग

ोगा। जजससे

जाए---!’’

ो सकता

ै तो िेशक

ै ग्रिंीा कों को कोई तकलीि

सलीमा ने र्ीनस-ब्यट ू ी पालार की मालफकन परमजीत कौर से सीिे िात की।

परमजीत कौर ने सरू ै या के िारे में अनलभज्ञता प्रकट करते ु ए जानकारी दी फक सरु ै या तो अपने टाईम पर पालार से चल दी थी। आज तो काम भी ज्यादा न ीिं था। सलीमा ने िताया फक सरु ै या घर न ीिं प ुिं ची ै ! परमजीत कौर की आर्ाज में धचिंता की झलक लमली-‘‘क्या र् घर न ीिं प ुिं ची?’’ सलीमा कुछ क ती इससे प ले िोन ‘डडस्कनेक्ट’ ो गया। सलीमा के

ोश उड़ गए।

इसका मतलि परमजीत कौर मैम के पास कुछ जानकारी ै , र्रना र् ऐसे िोन

न ीिं काटती। र्ैसे भी उसके िारे में मश ू र था फक रात र् कभी अकेले न ीिं गुजारती ै और उसके पास ढे र सारे मदों की सच ू ी ै । उनमें व्यापारी, अधिकारी, िािू और

काीलेज के लड़के भी शालमल ैं। ािं, उसके पास अच्छे -अच्छे कारीगर ो गए ैं और कई तर

की मेक-अप करने र्ाली मशीनें उसने लगर्ाई

ैं।

इसी ललए नगर की मह लाओिं में र्ीनस-ब्यट ू ी पालार का िड़ा ‘क्रेज’

ै।

फकतने जतन से सलीमा ने जीर्न की गाड़ी को एक ठीक-ठाक सड़क पर गनत दे ने का प्रयास फकया था। अभी र् िर्ाल खड़ा कर हदया।

चैन का सािंस लेने भी न पाई थी फक सरु ै या ने एक नया

इिर कई हदनों से सलीमा की छठी इिंद्री क सरु ै या के रिं ग-ढिं ग ठीक नजर न ीिं आ र े

र ी थी फक दे ख सलीमा, ध्यान दे , तेरी

ैं। क ीिं ये लड़की

ाथ से फिसल न जाए।

एक हदन सलीमा ने सुरैया के बिस्तर में गद्दे के नीचे एक धचकने कागज र्ाली पबत्रका दे खी थी। र्

एक पर्दे शी पबत्रका थी, जजसमें पर्दे शी माीडलों की नग्न तस्र्ीरें और

उत्तेजक मद्र ु ाएिं र ती ऐसा न ीिं

ैं।

ै फक सलीमा ऐसी फकतािों से अनलभज्ञ

ो। उसने ऐसी कई फकतािें


िैंक-मैनेजर पर्श्र्कमा​ा सा ि के घर दे खी थीिं। पर्श्र्कमा​ा सा ि ने उसे ब्ल-ू फिल्में भी हदखाई थीिं।

लेफकन सरु ै या के पास ऐसी फकताि दे ख सलीमा का हदमाग सन्न माथे पर पसीना चु चु ा आया था। दिा दी थी।

ो गया था। उसके

ड़िड़ी में उसने फकताि फिर से बिस्तर के नीचे

सलमा ने सरु ै या से कुछ न ीिं क ा था।

र् जानती थी फक फकशोरार्स्था और जर्ानी के सिंनघस्थल की उम्र र एक के मन में स्र्ाभापर्क रूप से प्रकृनत के गोपन-र स्य जानने की जजज्ञासा

ोती

ै । ति ऐसे

यर् ु क-यर् ु नतयािं गुप-चप ु तरीके से उस ज्ञान का ममा पाने के ललए िे द लालानयत र ते िं ीै। ऐसे में यहद सरु ै या लसिा फकताि के जररए ये जानकारी प्राप्त कर र ी ै तो उसमें

कोई नक ु सान न ीिं। ािं, प्रश्न ये पैदा ोता ै फक ये फकतािें उसे लमल क ािं से र ी ैं?

क ीिं ड़िड़ी में सरु ै या खद ु को फकसी मस ु ीित में न डाल दे ? क्या करें , इस घर में कोई फिक्र करने र्ाला न ीिं फक इन जर्ान ोते िच्चों का क्या

ोगा? सलीमा के साथ की

लड़फकयािं तो अि िाल-िच्चेदार ो चक ु ी ैं। मु ल्ले में सरु ै या की अधिकािंश स े ललयािंीे की शादी

ो गई ै , जजनकी न ीिं ु ई ै र्े दे खा-हदखाई की प्रफक्रया से गुजर र ी सरु ै या का क्या ोगा? फिर रूकैया भी तो दना-दन ़् िड़ी ोती जा र ी ै । आगे-पीछे म ीने से

ोती

ैं।

ैं तीनों िह नें!

र म ीने क ािं से आएिं सत ू ी कपड़े जजन् ें र्े इस्तेमाल करें । इसीललए सलीमा ने सख़्त

ह दायतें दे रखी थीिं फक गिंदे कपड़े अच्छी तर

िोकर सख ु ा ललए जाएिं और फिर उन् ें

सम्भालकर रख हदया जाए, ताफक अगले म ीने काम आ सकें। सरु ै या तो उसकी िात मान लेती

ै लेफकन रूकैया गिंदे कपड़े िोती न ीिं। र्

उन् ें गस ु लखाने के पीछे िेंक

दे ती ै । सलीमा इसी िात से रूकैया से नाराज र ती ै । र े भी क्यों न! क ािं से जुगाड़ करे सलीमा?

सरु ै या जि से ब्यट ू ी-पालार जाकर कमाने लगी ै, उन ख़ास हदनों के ललए उसके पसा में ‘नेपफकन्स’ र ती

ैं। एक िार रूकैया ने नेपफकन दे ख कर पछ ू ा था फक आपा, ये

सामान भी मेक-अप करने में लगता सरु ै या और सलीमा ति फकतना

ै?

िं सी थीिं।


र्ाकई िद् ु िू ै रूकैया, जिफक अि उसे भी ‘ब्रा’ की जरूरत पता न ीिं अब्िू के कान में जिंई ु क्यों न ीिं रें गती? जिंईं ु क्या अि तो अब्िू के कान में िका न पड़े।

ै।

ाथी भी घस ु ने का िलात ़् प्रयत्न करे तो अब्िू को

ये िात तय ै फक अि सरु ै या का पर्र्ा करना जरूरी ो गया ै । लेफकन अब्िू की घर के प्रनत

जजस घर की मालफकन िच्चों को छोड़कर भाग चक ु ी ो, जजस घर की िड़ी िेटी अपने जजस्म के ऐर्ज पररर्ार का पेट पाल र ी सिंज्ञा ीन

ो चक ु ा

ो, जजस घर का मखु खया दारू पी-पीकर

ो, ऐसे घर की लड़फकयािं डोली िैठने के ललए क्यों तरसती न र

जाएिं? य ी तो ितक ी करते

ैं मु ल्ले के लोग!

रमजान के हदनों में जि चिंदा मािंगने र्ाले मौलानाओिं की िाढ सी आई र ती ै , ति एक िज ु ग ु ा से दीखते मौलाना से सलीमा ने क ा था फक उसकी ि नों के ललए अच्छा सा ररश्ता तजर्ीज करें । िज ु ग ु ा ने इक्यार्न रूपए की रसीद काटते ु ए भरोसा हदया था-‘‘इिंशाअल्ला , जल्द कोई न कोई रास्ता अल्ला -पाक ननकालेंगे!’’ सलीमा के मन में उम्मीद ि​िंिी थी।

फिर झारखण्ड की फकसी मजस्जद के ललए चिंदा लेने आए एक नौजर्ान मौलाना ने जि रूकैया को दे ख कर लार सी टपकाई थी, ति सलीमा ने रूकैया से क ा था फक इन मौलानाओिं के सामने र् यहद ननकलना जरूरी

ननकला न करे । िड़े नछनार

ोते

ैं ये।

ो तो लसर और सीना ओढनी से ढािंक पर िा र ननकले।

फकतनी िार उससे क ा फक ढिं ग के कपड़े प ना करे । फकसी के सामने कैसे खड़े ु आ करे , कैसे िैठा करे । रूकैया एकदम अल् ड़-गिंर्ार सी र ती ै । िैठेगी तो टािंगें िैलाकर---

सरु ै या और रूकैया की

रकतें दे ख सलीमा माथा पीट लेती

ै।

लड़फकयों के स्कूल में सलीमा ने अपनी दोनों ि नों को पढाया ताफक स्कूल में तो र्े सरु क्षित र

सकें।

उस स्कूल में चपरासी और क्लकों के अलार्ा तमाम स्टाीि औरतें

ैं।

काश, उसकी मािं ोतीिं और उसके ललए भी इतनी ी धचन्ता की ोतीिं तो आज सलीमा


की जजन्दगी फकतनी खुशगर्ार

ोती?

बिन मािं की िच्ची सलीमा ने कम उम्र में

ी जान ललया था फक खदा ु ने औरतों को

एक कुदरती सेंसर हदया ु आ ै , जजसके जररए र्े अन ोनी को भािंप ललया करती ैं। औरतें आसानी से अनम ु ान लगा लेती ैं फक कि पररजस्थनतयािं प्रनतकूल ोने र्ाली ैं।

खदा ु ने इतनी अनतररक्त िमता औरतों को क्यों दी ै ? इसललए तो न ीिं फक औरतें मािं

िनने जैसा कहठन काम कर सजृ ष्ट चलाए रखने के ललए खुदा की मदद फकया करती ैं।

सलीमा अपनी ि नों को जीर्न की िारीफकयािं इसी तर फिर भी सरु ै या गलती करती जा र ी

ै ---

लड़फकयािं चा ें तो अपनी दृढ इच्छा-शजक्त के में खद ु को िचाए रख सकती शायद ठीक

ी क ा गया

समझाया करती

ै , लेफकन

धथयार से मदों की ललजललजी दनु नया

ैं लेफकन फकतने हदन?

ै फक िकरे की अम्मा कि तक ख़ैर मनाएगी----

सरु ै या से बिना कुछ क े -सन ु े सलीमा ने उसके गद्दे के नीचे से फकताि ननकाल कर जला दी थी।

सरु ै या जान गई

ोगी, क्योंफक उसके िाद र्ैसी फकताि फिर उस घर में न ीिं आई,

लेफकन सरु ै या खुद जाने क ािं चली गई? ऐसे

ी एक समय सरु ै या ने अजमेर में उसे परे शान फकया था।


मन कुन्तो मौला----. एक-टक घरू ते, लार टपकाते, घात लगाकर झपट पड़ते मदों की दनु नया में खद ु को

सम्भाल रखने का पाठ सलीमा ने अपनी दोनों िह नों सरु ै या और रूकैया को जजतना रटाया-पढाया सि िेकार

ो गया।

जि र्े लोग अजमेर-शरीफ़ गए, ति एक ख़ाहदम ने सरु ै या पर डोरे डाले और सरु ै या उस िजरिट्टू पर लट्टू य

ो गई थी।

सलीमा के जजन्दगी की प ली यात्रा थी---

इससे प ले र्

इतनी दरू सफ़र पर न ीिं गई थी।

आस-पास चालीस-पचास फकलोमीटर दरू ी की यात्राएिं कोई माइने न ीिं रखतीिं। एक िार ताजजया दे खने र्

उमररया गई थी।

सकीना आपा अपने साथ उसे लेकर गई थीिं। दो हदन में आना-जाना और घम ू ना

ो गया था।

ािं, सरु ै या जरूर अपनी मालफकन परमजीत कौर के साथ बिलासपरु और जिलपरु का

सिर तय कर चक ु ी थी।

सलीमा के गरीि-नर्ाज की दरगा की ल र दौड़ पड़ी थी।

की जजयारत का ननणाय सन ु घर में उमिंग-उत्सा

ह न्दस् ु तान के गरीि मस ु लमान अजमेीेर-यात्रा को ज के िरािर का दरजा दे ते ैं। र्ैसे

ी गरीि पररर्ेश से आए मौलाना- ाफिज भी समझा दे ते ैं फक लमयािं, सात िार ख्र्ाजा

गरीि-नर्ाज की जजयारत एक जिफक ज---

ज के िरािर

ज इस्लाम के पािंच िरायज में से एक

क्या फकया जा सकता

ोती

ै।

ै । इस्लाम का िनु नयादी स्तम्भ

ै इन गरीि मौलानाओिं का..

ै फकसी मौलाना में दम जो गािंर्-कस्िे की मजस्जद में नमाज पढाकर

ललए पैसे जोड़ पाए---?

ज-यात्रा के

ै ीै फकसी गािंर्-कस्िे के गरीि मस ु लमान की औैकात जो हद ाड़ी कमाकर ज-यात्रा का

सपना भी दे ख सकेीे?


ि ु त मजु श्कल ै ज-यात्रा और इसीललए ख्र्ाजा गरीि नर्ाज की जजयारत करने जाने र्ाले को आम लोग ज यात्रा जैसी तरजी दे ते ैं क्योंफक इन गरीिों के ललए

इिरा ीमपरु ा से अजमेर की यात्रा भी िरती के एक छोर से दस ू रे छोर की यात्रा िरािर ै ीै।

सलीमा अपनी ि नों के साथ प ली िार अजमेर जा र ी थी। उन सभी के मन में उल्लास ता था लेफकन एक आशिंका भी थी फक उस अनजान जग कैसे गज ु ारे जाएिंगे? अल्ला जाने क्या

ोगा?

िस, एक य ी जज़्िा था फक--‘‘र् ी अजमेीरे जाते अि ख़्र्ाजा गरीि नर्ाज ने िल ु ाया

में तीन-चार हदन

िं ीै जजसे ख्र्ाजा िल ु ाते

ै तो र् ी पार लगाएिंगे।

ैं---’’

और य ी पार लगाने र्ाले ख़्र्ाजा के प्रनत आस्था, खािंटी मल ू तत्र्र्ाहदयों को नागर्ार गज ु रती

ै और र्े ऐसी भार्ना को लशका क ने लगते

ैं---

जिफक उन लोगों ने कभी न ीिं समझाने का प्रयास फकया फक लशका और ईमान के िीच फकतना कम िासला

ै ---

सि ू ी पीर-िकीरों पर आस्था रखने र्ाले मुसलमान लशका और ईमान के पचड़े में न ीिं ि​िंसते।

र्े जानते ैं फक प्रनतहदन

जारों लोग जो इन दरगा ों पर आते ैं क्या सभी लसरफिरे

ैं? एक से िढकर एक खानदान के पढे -ललखे, िनाढ्य लोग से लेकर चीथड़ा लपेटे

खाकनशीन लोग---सभी ख़्र्ाजा की दरगा

में एक से दीखते

ैं---अपनी उम्मीदों,

आरजओिं ू , ख्र्ािों को परू ा करने के ललए रोते-धगड़धगड़ाते लोीेग क्या इस्लाम के जानकार न ीिं ै ी​ी ै ,िं फिर ये सि क्यों श्रद्िा से नत ़् ैं ख्र्ाजा की

स्ती के आगे..?

मस ु लमान तो मस ु लमान, ह न्द ू और लसक्ख भी ख्र्ाजा के दरगा में प्रनतहदन जारों

की सिंख्या में आते ैं----कैसा चमत्कार ै ये---मल ू तत्र्र्ादी िताएिं---क्या ये सारे लोग लसरफिरे और जाह ल

ैं---

ऐसे ी कई प्रश्न ैं जजनका जर्ाि खोजना मुजश्कल ोता ै और फिजा में गिंज ू ने लगता ै ीै

--‘‘मन कुीुन्तो मौला----फ़

ाजा अली उन मौला!’’

इस ‘मन कुन्तोीे मौला---’ केीे ऐेीेीने त ालसक पररप्रेक्ष्य में

ी लशया मज ि और


मकिरे -मजार-ख़ानका ों का राज छुपा ै । जरत अली जो फक पैगम्िर रसल ू के दामाद थे, उनके िारे मिंीे

जरत मु म्मद रसल ू ल्ला

ने स्र्यिं फ़रमाया था जि र्

अपने

आखखरी ज से लौटतेीे र्क्त मैदाने-गदीर में अपने जानशीन का ऐलान इन अल्फ़ाज में कर हदया था--‘‘मन कुीुन्तो मौला----फ़

ाजा अली उन मौला!’’

यानी मैं जजसका मौला ूिं , अली उसके मौला ैं यानी सरपरस्त, र िर और ाफकम ैं। जरत अली और रसल ू की िेटी िानतमा के र्सीले से पीरों की तस्दीक लमलती ै । इसी र्सीले से

जरत मई ु नद् ु दीन धचश्ती भी

ैं----.

इसीललए तमाम मजारात में अक्सर एक िन ु गिंज ू ती र ती ै --‘‘मन कुन्तो मौला---’’ इस्लाम के आखखरी पैगम्िर के िाद चार खलीिा ु ए। जरत अली चैथे खलीिा ैं लेीेफकन लशया लोग पैगम्िर के िाद इमामत का खखताि जरत अली को दे ते ैं। फिर पैगम्िर के नर्ासे श ीदाने किाला कव्र्ाल गा र े थे---

जरत इमाम

सन और ु सन ै को।

‘‘ ु ई कि असी शादी, जरत ए आदम से ता’ ईसा के दल् ु न फ़ानतमा जो र, अली अल-मरु तजा दल् ू ा

जो र्ो बिन्ते-पयम्िर थी, तो ये मोलद ु ए क’आि थे निी के घर की थी िेटी, खुदा के घर का था िेटा अली मौला, मौला, अली मौला मन कुन्तो मौला---!’’.

इिरा ीमपरु ा में सिंयोग से मस ु लमानों की कई र्ेरायटी गट ु

ैं। सन् ु नी मस ु लमानों केीे दो

ै दस ैं। एक दे र्ि​िंदी गट ु ू रा िरे लर्ी गट ु । िरे लर्ी लोग अपने कोीे खािंटी सन् ु नी

जमात िताते ैं और दे र्ि​िंहदयों को र् ािी क ते ैं। दे र्ि​िंदी लोग नगर में प ले-प ल आए थे सो उनकी तादाद ज्यादा ै , लेफकन िरे लपर्यों के आ जाने से दे र्ि​िंदी जमात

में र्द् ृ धि ोीेनी कम ु ई। िरे लर्ी लोग िड़ेीेीे जोीेशोीे-खरोश से ईद-मीलादन्ु निी का जश्न मनाया करतेीे ै ीैी।िं एक-दस ू रे के घरों में मीलाद और िानत ा-ख़्र्ानी केीे ि ाने इकट्ठा खराि

ोतेीे

ोीेता

ै ी​ी ै िं। दे र्ि​िंदी मजार में जाने से मना करते

ै । इिंसान मनू तापज ू ा करने लगता

ैं फक र् ािं जाकर ईमान

ै ीै। दे र्ि​िंदी मस ु लमान पािंच र्क्त

नमाज केीे पाि​िंद ोते ैं। सिंगीत, कव्र्ाली आहद कोीे गन ै िं। तिलीग की ु ा मानते ै ी​ी


जमात चलाते ैं। इनकेीेीे य ािं शादी-ब्या में िाजा-गाजा, नाच-गाना न ीिं ोता। िड़े सादगी पसिंद

ोते

ैं। अक्सर हदन में शाहदयािं करर्ाते

ैं और शाम

ोीेतेी-े ोतेीे

बिदाई। दे ीेर्ि​िंदी लोीेग मु रा म में ताजजया र्गैरा को भी न ीिं मानते और उसकी मजम्मत करतेीे

ैं।

ठीक इन सिके उलट िरे लर्ी लोग नाच-गाना, िाजा-गाजा और नात-कव्र्ाली के शौकीन

ोीेते

ैं। ताजजया, ढोल-ताशा, भीड़-भड़क्का, उसा, कव्र्ाली, नात-मश ु ायरा,

मीलाद आहद के जररए अपनी सजु न्नयत को जमाने में जाह र करते इिरा ीमपरु ा में लशया लोग तादाद में कम

ैं।

ैं। ये लोग नगर मिंीे अपनी शाजन्तपप्रय

उपजस्थनत के ललए जाने जाते ैं। इनका अलग जमातखाना ै और कबब्रस्तान ै । लशया लोग मु रा म कोीे िड़ेीे सोजो- गम के साथ मातम करतेीे ु ए मनाते ैं। सलीमा के अब्िू तो दे र्ि​िंदी ैं। नमाज पढें या न पढें ----उनका झक ु ार् दे र्ि​िंहदयों की तरि ै । जिफक सलीमा की अम्मी का मायका िरे लर्ी ै । इस तर

सेीे सलीमा की

अम्मी िरे लर्ी उसल ू ों को मानती थीिं। य ी कारण ै फक सलीमा के घर अक्सर मीलाद,

िानत ा ु आ करती थी। सलीमा की अम्मी िड़े पीर सा ि के नाम से ग्यार र्ीिं शरीि के म ीने में घर में मीलाद जरूर करर्ाया करती थीिं। मीलाद के िाद तमाम सामयीन को गोश्त-पल ु ार् भी खखलाया जाता था।


वही अिमेर िाते हैं जिसे ख्वाज़ा बल ु ाते हैं--सलीमा की आधथाक-जस्थनत जि दृढ ु ई तो उसने सोचा फक क्यों न सपररर्ार ख्र्ाजा गरीि नर्ाज केीे दरगा की जजयारत कर ली जाए। र् ािं जाकर पररर्ार की खश ु ाली की दआ ु की जाएगी। अब्िू की से त और िह नों के अच्छे भपर्ष्य के ललए मन्नतें मािंगी जाएिंगी।

फिर इन्शाअल्ला

इिरा ीमपरु ा लौटकर मीलाद और लिंगर-ख़्र्ानी की जाएगी।

अल्ला का फ़ज्ल और गरीि-नर्ाज का करम र ा फक सलीमा के मन की मरु ाद परू ी ोने जा र ी थी।

अजमेर में खचा के ललए सलीमा ने िह नों से छुपाकर दो

जार रूपए अनतररक्त रख

ललए थे। ये रूपए उसे गिंगाराम सर ने हदए थे फक र्क़्त-जरूरत काम आएगा--पर्श्र्कमा​ा सा ि ने पािंच सौ रूपए हदए थे िड़ी दे ग में डालने के ललए---

सरु ै या की मालफकन परमजीत कौर ने भी सौ रूपए दान-पेटी में डालने के ललए हदए थे। सलीमा ने सोचा फक ह न्द ू बिचारे

मारे पीर-िकीरों का फकतना सम्मान करते ै और

ये मस ु लमान ससरु े ीे न अपनों को मानते

ैं हदल से और न परायों को।

िस, िैठे-ठाले, खाली-पीली ह न्दओ ु िं को गररयाते र ते ैं। उन् ें काफिर क ते ैं। भले

से खुद नमाज न पढें , कुरआन की नतलार्त न करें , रोजा-रमजान का ए तराम न करें ,

सद ू खोरी करें , जजनाकारी करें और मस ु लमानों की िद ाली के ललए काफिरों का गररयाते र िं ीे।

इिरा ीमपरु ा से िस द्र्ारा र्े लोग अनी ू ूपपरु जिंक्शन रे ल्र्े स्टे शन प ुिं च।े प्लेटिामा पर एक मजु स्लम पररर्ार हदखा, सलीमा ने उन् ीिं लोगों के पास सामान

रक्खा। िात-चीत से मालम ू ु आ फक र्े लोग भी अजमेर शरीि जा र े ैं। मह ला िरु का प ने थी लेीेफकन मिंु ढिं का न था। र्े लोग पर्श्रामपरु कोयला खदान से आए थे। उन लोगों का साथ अजमेर तक र ा। चिंफू क र्े लोग

मेशा अजमेर जजयारत

के ललए आते थे और पैसे र्ाले लोग थे सो उनके ठ रने की व्यर्स्था एडर्ािंस िक ु थी।

मह ला ने िताया था फक दरगा में सैकड़ों लोीेग चैिीस घण्टे र े आते ैं---र्े ख्र्ाजा


के मे मान िन जाते ैं---उनके र नेी-े खाने की व्यर्स्था ख्र्ाजा गरीिनर्ाज खुद करते

ैं---इसललए सलीमा लोग फकसी प्रकार की धचन्ता न करें । गरीि-नर्ाज अपने जायरीन

की खद ु दे ख-भाल करते सलीमा ने दरगा

ैं। य ी अकीदा

ै ीै।

प ुिं चकर म सस ू फकया फक र्ाकई य ािं िेस ारा कोई न ीिं ै । ख्र्ाजा के नाम की िरकत से अजमेर नगरी में कोई व्यजक्त भख ू ा न ीिं सोता ोगा। भीड़-भाड़ से भरे ननजाम-गेट से अिंदर ोते समय उन लोगों के मन में जो घिरा ट थी,

िड़ी दे ग के पास पसरे सैकड़ों लोगािंीे को दे ख उम्मीद ि​िंिी फक य ािं उनका गज ु र-िसर ो जाएगा।

पैसे तो सलीमा के पास थे लेफकन इतने भी न थे फक फकसी

ोटल या लाज में ठ रें ।

अरे , एक-दो हदन ी तो गज ु ारना ै य ािं---फिर लौट आना ै इिरा ीमपरु ा औैर क्या? दरगा -शरीफ़ में िड़ी दे ग और र्जखाने के िीच लम्िा-चैड़ा दालान ू

ै।

उसी दालान में सैकड़ों जायरीन के िीच उन लोगों ने भी अपनी चादर डाल दी। सिर की थकार्ट तो थी

ी। जैसे

रूकैया भी उनके िगल में लेट गई।

ी सलीमा ने चादर बिछाई, अब्िू पसर गए।

सलीमा और सरु ै या िैठे-िैठे मा ौल का जायजा लेने लगीिं। उन् ें यकीन

ी न ीिं

ो र ा था फक इिरा ीमपरु ा की तीन िह नें अपने कमजोर िाप

के साथ अजमेर प िं ीच ु गई ैं। सलीमा ने सरु ै या के चे रे को गौर से दे खा---सरु ै या ने सलीमा को दे खा और दोनों खखलखखलाकर िं स पड़ीिं। एक पर्जयी खखलखखला ट----मोचा​ा ित

कर लेने र्ाला अ सास---

सलीमा ने थैले से नमकीन का पैकेट ननकाल कर खोला और सरु ै या की तरि िढाया। सरु ै या ने थोड़ा नमकीन रूकैया की तरि िढाया। रूकैया भी उठ िैठी। तीनों ि नें ख्र्ाजा गरीि-नर्ाज की दरगा

आकर ऐसे खुश थीिं जैसे उनकी मरु ाद परू ी ु ई ो--सलीमा ने अपनी आटा-चक्की से ु ई आमदनी से पैसे िचाकर गरीि-नर्ाज की जजयारत का अ द फकया था जो फक उनकी मे रिानी से परू ा ु आ चा ता था। र् चा ती थी फक ख़्र्ाजा गरीि- नर्ाज की दरगा में िूल-चादर चढाने र्े लोग

न ा-िोकर, पाक-साि ोकर जाएिंगे। ख्र्ाजा से अपनी िह नों के उज्जर्ल भपर्ष्य के ललए उसे दआ ु एिं मािंगनी ैं। अब्िू की से त के ललए मन्नत मािंगनी ै । ख्र्ाजा

ी तो


सन ु ने र्ाले

चा े अमीर

ैं, मन्नतें परू ी करने र्ाले

ैं।

ो या गरीि, सभी उनके दर पर लभखारी िन कर आते

िज ु ग ु ों के दर पर जजयारत करने से प ले िदन की पाकी जरूरी इिर सरु ै या अभी-अभी म ीने से िुरसत पाई उसे भी न ाना जरूरी

ोती

ै।

ैं।

ै । पता न ीिं य ािं न ाने-िोने का क्या इिंतेजाम

इन् ीिं सि सर्ालों से सलीमा को िेचन ै ी

अब्िू और रूकैया को छोड़ सलीमा और आस-पास का जायजा लेना चाह ए।

ोने लगी।

सुरैया दरगा

ै। ै?

के िा र आ गए। सोचा फक

िा र जगमग, भीड़ और च ल-प ल इतनी थी फक क्या क ने?

सरु ै या ने दप ु ट्टे को इस तर लसर और चे रे पर लपेटा था फक िैशनेीेिल भी था और परदा भी था। उसका गोरा-धचट्टा चे रा फकसी

सलीमा को सरु ै या की खि ू सी ू ूरती पर नाज था।

ीरोइन की तर

दमक र ा था।

तभी सलीमा ने गौीैर फकया एक यर् ु क उन् ें िड़े गौर से घरू र ा उसकी पोशाक खाहदमों की थी।

ै।

सलीमा ने दि ु ारा उसकी ननगा ों की रें ज पकड़ी। र् तो सरु ै या को एकटक दे ख र ा था। सरु ै या इस िात से िेख़िर श्रिंग ु ान में सजे सामान दे ख र ी थी। ृ ार-पटार की दक सलीमा ने उस यर् ु क से ननगा

टाई और एक िज ु ग ु ा से आदमी से पछ ू ा-‘‘चच्चा, क्या

इिर आस-पास ठ रने की कोई सस्ती जग

भी

ै ?’’

िज ु ग ु ा ने िताया फक मजार के पर् ू ी गेट के पास सस्ती जग उन् ें उस िज ु ग ु ा से िात करते दे ख र्

लमल जाएगी।

खि ू सरू त यर् ु क आगे िढ आया।

उसने िज ु ग ु ा को परे कर सलीमा से िड़ी नफ़ासत से िात की-‘‘मैं आपकी कोई खखदमत

कर सकता ूिं ?’’ सलीमा ने इतनी अच्छी जुिान र्ाली िातचीत उन फिल्मों में सन ु ी थी जि डाीयलाीग उदा ू में ललखे जाते थे। र्

पछ ू जरूर सलीमा से र ा था लेफकन उसकी ननगा ें सरु ै या पर हटकी थीिं।

सलीमा ने दे खा फक अि सरु ै या भी उस यर् ु क को दे ख र ी खाहदम दरगा

ै।

की र्ेशभष ू ा में था---इसललए उस पर शक करना ठीक न ीिं था।


ख़ाहदम ने िताया फक उसके पर् ा ख़्र्ाजा गरीि नर्ाज की खखदमत फकया करते थे। ू ज ति से कई पीहढयािं गज ु र गईं मक़सद र्

ै।

ैं। खखदमत का काम अिंजाम दे ना

ी उन लोगों का

उन लोगों को अपने ु जरे में मफ् ु त में ठ रा सकता ै । परदे स मे सलीमा ि​िंू क-ि​िंू क कर क़दम रखना चा र ी थी। सलीमा ने क ा फक अपने अब्िू से पछ ू कर िताएगी। खाहदम यर् ु क आदाि कर चला गया। लेफकन सलीमा को आभाष

ोता र ा फक उसकी ननगा ें उनका पीछा कर र ी

दरगा -िाजार में खासी च ल-प ल थी।

इन खानका ों-दरगा ों के आस-पास कई व्यर्सानयक गनतपर्धियािं इस दे श में आस्था की कई मजण्डयािं

ोती

ैं----तमाम िमों के आस्था के कई

ैं।

ै ी​ी ै िं।

केन्द्र---करोीेड़ों-अरिों का व्यापार----ख्र्ाजा गरीि-नर्ाज के कारण अजमेर शरीि में भी आस्था के व्यर्साय से लाखों लोगों की आजीपर्का चल र ी

ै।

सि ू ीमत मे धचजश्तया सम्प्रदाय का िड़ा म त्र् ै । ह न्दस् ु तान में धचजश्तया सम्प्रदाय

िला-िूला और आज दनु नया भर से ख़्र्ाजा के दीर्ाने िड़ी तादाद में जजयारत के ललए आते

ैं। सत्ता-प्रमख ु , उद्योगपनत और नौकरशा

य ािं चादर चढा कर ख़्र्ाजा

गरीि-नर्ाज को अपना खखराजे-अक़ीदत पेश करने से न ीिं चक ू ते। ख्र्ाजा के दर पर चादर चढाने आया करतेीे

ैं।

ीरो- ीरोइनें भी

अजमेर शरीि में दाता ै तो लसि​िं ख़्र्ाजा गरीि-नर्ाज और िाकी सभी उनके दर के लभखारी।

सलीमा चा े ीे जजतनी िदसरू त

ो लेीेफकन सरु ै या और रूकैया ि ु त खूिसरू त अजमेर में सरु ै या और रूकैया ने दप ु ट्टे से लसर ढािंके रखा।

ैं।


सरु ै या ने इस अदा से लसर ढािंका फक खुला चे रा फकसी चािंद का टुकड़ा नजर आता। र्ाकई इस तरीके से दप ु ट्टा लपेटने से उसका ु स्न और ननखर आया था। अजमेर के इस सिर के दौरान जाने क्यों सलीमा को ये म सस ोता र ा फक र् ू

अपने साथ लड़फकयािं न ीिं िजल्क कािंच का क़ीमती सामान लेकर चल र ी ो। थोड़ी सी असार्िानी से कािंच टूटने का ख़तरा िना र ता लड़फकयािं

ैं भी चल ु िल ु ी।

कभी एक दस ू रे को धचकौहटयािं कभी अिंतािरी खेलने लगें गी।

ै।

ी काटने लगें गी।

इस िीच मिंग ू िली या चना-चिेना र्ाला जो भी गुजरा न ीिं फक िड़े नदीदे पन से उसे ताकने लगें गी। जाने कि सीखेंगी ये चड़ ै ें! ु ल

सलीमा इसीललए परे शान थी फक इन नामरु ादों के साथ क ािं ठ रा जाए, क ािं न ाया-िोया जाए। ये ऐसे सर्ाल थे जजनसे सलीमा इब्रा ीमपरु ा से अब्िू को दीन-दनु नया से कोई मतलि न था।

ी परे शान थी।

ऐसे कहठन समय में उस ख़ाहदम यर् ु क का प्रस्तार् उसे डूिते को नतनके का स ारा लगा।

सलीमा और सी ु ुरैया दरगा

िाजार का जायजा लेकर लौट र ी थीिं फक फिर खाहदम

नमी ू ूदार ु आ। सलीमा ने खाहदम से क ा फक र् दोनों िह निंी​ी े े ख़ाहदम के पीछे -पीछे चल दीिं। र्े लोग दरगा

प ले अड्डा तो हदखलाए।

के पर् ू ी दरर्ाजे से िा र ननकले। सिंकरी-सिंकरी गललयािं, गरीि-गरु िा,

िकीर मदा -औरतिंी,े आज-ू िाजू रोजमरा​ा के जरूरत की छोटी-छोटी दक ु ानें। गोीेश्त की

दक ु ानें, खाने की दक ु ानिंी,े चाय की दक ु ानें। शीरनी-लमठाई की दक ु ानें। श्रिंग ु ानें। ृ ार की दक दक ु ानें

ी दक ु ानें।

खाहदम उन् ें गली केीे अिंदर एक और सिंकरी गली में ले गया। इस गली के दोनों तरि भी तीन-चार मिंजजला इमारतें थीिं। र इमारत फकसी न फकसी ख़ाहदम की लमजल्कयत थी।

सन ु ा गया ै फक य ािं के ख़ाहदम ख़्र्ाजा ीगरीि नर्ाज की दआ ु ओिं से अच्छे मालदार ैं।


दे श के कोने-कोने से ीख़्र्ाजा के दीर्ाने य ािं आते क़याम करते

ैं और इन ख़ाहदमों के घरों में

ैं।

जजयारत आहद से िुसात पाकर र्ापसी में ये लोग ख़ाहदमों को अच्छी रक़म ितौर नजराना पेश करते ऐसी

ैं। इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती

ै।

ी कई सिंकरी गललयािं पारकर दोनों ि नें एक तीन-मिंजजली इमारत के सामने

प ुिं चीिं। ख़ाहदम यर् ु क ने िताया फक य ी उसका ननर्ास य ािं कई लोग प ले से ठ रे

ु ए ैं। उसा के मौक़े पर अजमेर मे ठ रने की जग चिंफू क ये ‘आीि-सीजन’

ै।

मजु श्कल से लमल पाती

ै इसललए र् ािं कई कमरे ख़ाली पड़े थे।

ै।

खाहदम ने िताया फक र्े लोग चा ें तो तीसरी मिंजजल का एक कमरा ले सकती अिंिा क्या चा े दो आिंखें। दरगा

के चारों तरफ़ क ीिं भी एक इिंच की जग

भी ख़ाली न थी।

आस्थार्ान लोग और सामानों की दग ु नी कीमत लगाए दक ु ानदारों से अटी-पटी अजमेर की गललया----.. इन गललयािंीे में व्याप्त

ैं।

ैं आस्था केीे दशानाथी और अिंिपर्श्र्ास की दक ु ानें----

अपने दख ु ों और नाउम्मीहदयों के िीच डूिते-उिरते असिंख्य-असिंख्य जन!

मजारों, मठों और तीथा-स्थलों पर इन् ीिं भार्नाओिं का व्यापार फकया जाता य ी भार्ना इन स्थानों की आजीपर्का का सािन िनती

ैं।

ै।

सलीमा ने सोचा फक इन खाहदमों, दक ु ानदारों कोीे न चक्की चलानी पड़ती ै , न दे िेचना

ोता

ै , न मजदरू ी करनी पड़ती

ै । ये लोग ख़्र्ाजा ीगरीि-नर्ाज का शक्र ु

मनाया करते ैं फक जजनके सदके और तुिैल से इनकी कई पीहढयों को रोजी-रोटी के ललए क ीिं भटकना न ीिं पड़ा और आने र्ाले यग ु ों तक रोजी कमाने की फिक्र से ख़्र्ाजा ने आजाद कर हदया

ै।

ख़ाहदम केीे साथ सलीमा लोग इमारत में दाखखल ु ीुए। सामने िैठकी थी, ज ािं एक िज ु ुगा िैठे ु ए थे। मोटे से िज ु ग ु -ा ---सिेद कपड़े पर काला

कोट---र्ैसा ी कोट जैसा खाहदम ने प न रक्खा था। सिेद दाढी में उनका चे रा िड़ा


नरू ानी लग र ा था।

उनके सामने दो लोग

ाथ िािंिे िैठे ु ए थे। सलीमा और सरु ै या ने अपने लसर पर दप ा ार को आदाि फकया और ु ट्टा ठीक कर िज ु ग ु र् ख़ाहदम के पीछे -पीछे दाह नी ओर सीहढयों की तरि चली गईं। सीढी

ल्के अिंिेरे में थी।

तीसरी मिंजजल आई तो सीहढयािं छोड़ एक दालान में आ गए। दालान के दोनों तरि कमरे ीे थे।

कुछ कमरों में रौशनी थी, एक कमरा अिंिेरा था।

अिंिेरे कमरे का ताला खोल कर खाहदम अिंदर गया और िल्ि जलाकर उन् ें अिंदर आने का इशारा फकया।

दोनों िह न उस कमरे के अिंदर दाखखल ु ईं। िार िाई िार का िड़ा सा कमरा था, जजस पर एक दरी बिछी ु ई थी। कमरे के िीच में एक पिंखा लटका ु आ था। कमरे में िड़ी-िड़ी दो खखड़फकयािं थीिं। कमरे के पीछे तरि एक दरर्ाजा था।

दरर्ाजे के पास एक नतपाई पर घड़ा और एक धगलास रखा था। दरर्ाजे को खाहदम ने खोला और िताया-‘‘गुसलखाना---’’

फिर ख़ाहदम ने क ा फक आप लोगों को एक ताला खरीदकर लाना हदल चा े जि तक य ािं र ें । सि ख़्र्ाजा का करम

ोगा।

ै।

सलीमा ने खखड़की के पट खोले तो नीचे की दक ु ान से एक मश ू र क़व्र्ाली के िोल गिंज ू उठे ‘ये तो ख़्र्ाजा का करम मेरे ख़्र्ाजा का

करम

ै !’’

सलीमा ने सरु ै या की तरि दे खा जो फक ख़ाहदम से नजरें लड़ा र ी थी। सलीमा ने इसका िरु ा न ीिं माना। अरे , ये तो उम्र लड़फकयािं ऐसे

ी ऐसी

ै।

ी तो दनु नयादारी के गरु सीखती

ै और या इस्तेमाल

ो जाती

ैं या


फिर अनभ ु र् की आिंच में तपकर खुदमख् ु तार िनती

ै ी​ी ै िं।

सलीमा ने ख़ाहदम का शफु क्रया अदा फकया और ये भी क हदया फक मारे पास फकराया अदा करने के ललए पैसे न ीिं

ैं।

ख़ाहदम मस् ु कुरा हदया और िोला फक ख़्र्ाजा से बिदा लेकर जि जाएिं तो जो भी िन

पड़े नजराना दे दें । ये जो जलर्ा य ािं हदखलाई दे र ा ै सि ख़्र्ाजा का ी तो करम ै , र्रना दे श-पर्दे श से लाखों लोग य ािं क्यों आते?

अब्िू इमारत में आकर खुश ु ए और दरी पर लेट गए। सलीमा और सरु ै या िा र जाकर ोटल से िड़े के गोश्त की बिरयानी ले आईं। फकतना सस्ता और लजीज खाना।

सलीमा को लगने लगा फक इस तर तो र्े लोग कई हदन ख्र्ाजा के मे मान र सकते ै ी​ी ै िं।

‘बिजस्मल्ला ’ पढकर खाना खाया गया और अब्िू को कमरे में छोड़कर तीनों िह न दरगा

शरीि चली गईं। र् ािं क़व्र्ाली का समािं ि​िंिा ु आ था। नाल-ढोलक, ारमोननयम और िेंजो के सिे ु ए सरु -ताल के िीच एक से िढकर एक क़व्र्ाललयों का लत्ु फ़ रात दस िजे तक चलता र ा।

दे र रात तक दरगा -शरीफ़ की रौनक़ का मजा र्े ले ी र ी थीिं फक ख़ाहदम यर् ु क प्रकट ु ानति फकया और उसकी ननगा ें सरु ै या पर हटकी थीिं-‘‘अि ु आ। उसने सलीमा को मख चलना न ीिं ै क्या? रात काफ़ी ो गई ै । िजजर की अजान पर फिर य ािं ाजजरी दीजजए आप लोग।’’

िड़े अनमने ढिं ग से उठी थी सलीमा।

उसका मन न ीिं कर र ा था फक र् ािं से क ीिं जाए।

जि र्े लोग उठे तो पन ु ुः भख ू का ए सास ु आ। रूकैया तो भख ू स न कर ी न ीिं सकती। भक् ु खड़ ठ री। उसने सलीमा से िुसिुसा कर क ा- ‘‘आपा भख ू !’’ सलीमा ने ख़ाहदम से क ा फक

म लोग खाना खाकर आते

ख़ाहदम क ािं पीछा छोड़ने र्ाला था।

उसने क ा फक र्े लोग घर प िं ीुचें। खाना र्

लेकर आ र ा

ैं। ै।


इिर र्े लोग क़याम-गा उसके

प ुिं चीिं उिर पीछे से खाहदम भी आ िमका। ाथ में पोलीथीन का एक पैकेट था।

उसने िताया-‘‘शानदार बिरयानी

ै । इतने से आप लोगों का काम चल जाएगा?’’

सलीमा उस समय गस ु लखाने में थी। सरु ै या ने मस् ु कुराकर क ा-‘‘ ािं, कािी

ै ।’’

रूकैया ने दे खा था फक खाहदम ने सरु ै या के

ाथ में पोलीथीन के अलार्ा एक कागज

का टुकड़ा भी पकड़ाया था। रूकैया सरु ै या की परम-ह तैषी ठ री। उसने ये िात कर ली।

उस कागज को सरु ै या ने तत्काल अपनी मट् ु ठी में छुपा ललया था।

जम

सलीमा जि गुसलखाने से लौटी तो उसने अब्िू को आर्ाज दे कर जगाया और फिर र्े सभी एक साथ बिरयानी पर टूट पड़े। र्ाक़ई बिरयानी िड़ी लजीज िनी थी।


ख़्वाज़ा की िीवान ----.. पेट में जि बिरयानी प ुिं ची ति उन् ें कुछ रा त लमली। अब्िू तो बिरयानी खाकर पसर गए थे, और लेटे-लेटे िीड़ी के कश खीिंचने लगे। सरु ै या और रूकैया बिरयानी में आई ‘नल्ली’ के अिंदर से गूदा ननकालने का भगीरथ-प्रयास कर र ी थीिं। घर

ोता तो लोढे से ‘नल्ली’ िोड़कर गूदा ननकाल ललया

जाता। रूकैया ने सरु ै या से गूदा ननकालने के ललए मदद ली। सरु ै या िशा पर ‘नल्ली’ पटक-पटक कर गूदा िा र ननकाली और गपाक़् से परू ा गूदा खुद दे खती र

गई, और िरु ा सा मिंु

िना कर सरु ै या से नाराज

सलीमा ने उसे मनाने के ललए क ा फक चलो चल कर दरगा अभी से क्या सोना? रूकैया तैयार

ी खा ली। रूकैया

ो गई।

ो गई।

की रौनक़ दे खी जाए,

सलीमा ने सरु ै या से भी पछ ू ा तो सरु ै या ने इिंकार कर हदया। र्ाजजि भी था। सरु ै या िदन से नापाक जो थी।

सलीमा अब्िू के साथ सरु ै या को कमरे में छोड़कर दरगा जाने के ललए सीढी से उतरने लगी।

िा र उसने ख़ाहदम को दे खा जो फक एक पान की गुमटी में खड़ा था। ख़ाहदम ने सलीमा और रूकैया को दे ख मस् ु कुराया। सलमा उसकी अ सानमिंद थी। र्

भी अदि के लल ाज से मस् ु कुरा दी।

सलमा न ीिं जानती थी फक सरु ै या और ख़ाहदम के िीच क्या खखचड़ी पक र ी ै । र् जानती भी तो क्या कर सकती थी। सरु ै या को खद ु समझदार सलीमा कोई माली तो

ोना चाह ए। आखखर,

ै न ीिं फक िलदार पेड़ों की रखर्ाली में परे शान र े ।

रूकैया सि कुछ जानती थी इसललए र् सलीमा रूकैया को ललए-हदए दरगा

नजरें नीची फकए र ी।

की तरि िढती चली गई।

पर् ू ी गेट से उनके आगे केरल के मस ु लीमान सिेद कमीज, लिंग ु ी और लसर पर सािा

लपेटे दाखखल ो र े थे। दोनों ि नें उनके पीछे -पीछे मजार की तरि क़दम िढाती गईं।

जैस-े जैसे सलीमा, मजार के नजदीक प ुिं च र ी थी, ारमोननयम, ढोलक और क़व्र्ालों


की आर्ाज से उसके

हदल में िेचन ै ी पैदा

ो र ी थी।

र् ािं िड़ी सिंख्या में लोग िैठकर क़व्र्ाली का आनिंद उठा र े थे।

एक िज ु ग ु ा क़व्र्ाल थे जजनके साथ जर्ान स योगी िड़ी सिंजीदगी से उम्दा कलाम पेश कर र े थे। ढोलक-नाल और

ारमोननयम की आर्ाज से परू ा मा ौल लोगों के सोए

हदलों में सि ू ीमत के ललए श्रद्िा पैदा कर र ा था। िज ु ुगा क़व्र्ाल एक मश ू र क़व्र्ाली को गा र े थे‘‘मैं तो दीर्ानी ख़्र्ाजा की दीर्ानी!’’

सि ू ीमत में भक्त स्र्यिं को स्त्री के रूप में दे खता एक स्त्री जजस तर

ै और अपने पीर को परू ु श!

अलभसार के ललए मनु ार करती ै ठीक उसी तर

पीर का प्यार पाने के ललए कोलशशें करते

ैं।

दरर्ेश अपने

उिर सरु ै या और ख़ाहदम के िीच कैसी खखचड़ी पक र ी थी, सलीमा उससे अिंजान थी। क़व्र्ाली के िोल, ारमोननयम-िैंजो के सरु और ढोलक की थाप ने ऐसा समािं िािंिा फक सलीमा की आिंखें भीिंग गईं। र्

कि रोने लगी जान न पाई। र्

रो र ी थी। क़व्र्ाल अपनी िन ु में मगन गाए जा र े थे--‘‘हदर्ानी-हदर्ानी,

हदर्ानी-हदर्ानी,

ह चफकयािं ले-लेकर

हदर्ानी-हदर्ानी, हदर्ानी-हदर्ानी,

दीर्ानी, ख़्र्ाजा की दीर्ानी, हदर्ानी मैं तो दीर्ानी, ख़्र्ाजा की दीर्ानी

सरु ै या की समझ में न आया फक ये अचानक सलीमा आपा को

ो क्या गया ै? र्

रो क्यों र ी ैं? सलीमा को उसने इस तर रोते ु ए कभी दे खा न था, सो रूकैया घिरा गई। उसने आस-पास नजर दौड़ाई।

क़व्र्ाली का असर तमाम जायरीन के चे रों पर पढा जा सकता था। तभी एक औरत जाने क ािं से नमद ू ार ु ई। र् पचास साल की भरपरू औरत थी। उसके खखचड़ी िाल बिखरे

ु ए थे। चे रा भरा-भरा लेफकन एक अजीि सा दीर्ानापन। चैड़ा माथा, लम्िी नाक---क ीिं से भी न लगता फक फकसी गरीि खानदान से ोगी लेफकन उसने गिंदा सा सलर्ार-सट ू प न ु ई थी। प ले तो र्

क़व्र्ाल और मजार के


िीच खड़ी ो कर गुम्िद को टकटकी िािंिे दे खती र ी। फिर उसने दप ु ट्टा अपने लसर पर इस तर

डाला फक उसका मिंु भी ढिं क गया। अि र् राजस्थानी औरतों की तर

चक्कर काट-काट कर ढोलक की थाप पर नाचने लगी।

क़व्र्ालों की आर्ाज और तेज ु ई, नाल-ढोलक द्रत ु में िजने लगे। रू ाननयत से भरपरू था र् पल----

जायरीन क़व्र्ालों के आगे नजराने के तौर पर िकािक रूपए डालने लगे।

सलीमा रोते ु ए सोचने लगी फक इस जजन्दगी में इतने सक ु ू न से र् प ले कभी न ीिं रोई थी। रोने में भी एक लज़्जत ै जजसका अ सास उसे ु आ। र् मगन थी। उसने सोचा फक इतना िूट-िूट कर र्

ति भी न ीिं रोई थी जि अम्मी घर छोड़कर

भाग गई थीिं या जि गिंगाराम सर ने उसे नादान िच्ची से एक सयानी औरत में तब्दील फकया था।

क़व्र्ाली थी फक ख़त्म

ोने का नाम न ीिं ले र ी थी।

इस िीच मजार के अिंदर के धचजश्तया धचराग िझ ु ाने का र्क़्त आ गया।

ख़ाहदम लोग मजार के अिंदरूनी ह स्सों की सिाई खुद अपने ाथों से करते ैं। र्े िड़ी अक़ीदत और नलमायत से मजार के िशा की सिाई करते ैं। फिर धचराग िझ ु ाकर िा र आते

ैं। उसके िाद मजार का मख् ु य-द्र्ार ि​िंद फकया जाता

अक़ीदतमिंद लोग पिंजक्तिद्ि मजार की तरि मिंु िीच में इतनी जग

थी फक ख़ाहदम आ-जा सकें।

तमाम ख़ाहदम र् ािं उस रस्म में

ाजजर र ते

करके

ै।

ाथ िािंिे खड़े र ते

ैं।

ैं।

सलीमा के साथ खड़ी िक ु ा​ानशीिं खातन ू िड़ी आललम थी। सलीमा ने ख्र्ाजा गरीि नर्ाज

के िारे में उससे जानना चा ा तो उसने िुसिुसाते ु ए ख़्र्ाजा गरीि नर्ाज के आखखरी सिर की दास्तान सुनाई। क ते

ैं फक अपने दे ार्सान के पर् ू ा ख़्र्ाजा गरीि नर्ाज को मालम ू

ये उनका आखखरी साल

ो गया था फक

ै । आपने अपने मरु ीदों को जरूरी ह दायतें और र्सीयतें

फ़रमाईं। जजन लोगों को खखलाफ़त दे नी थी उन लोगों को खखलाफ़त से सरफ़राज

फ़रमाया। ु जरू सा ि एक रोज अजमेर की जामा-मजस्जद में तशरीफ़ फ़रमा थे। मरु ीद और अक़ीदतमिंद अ िाि ाजजरे -खखदमत थे। आप मौत के फ़ररश्तों के िारे में िातें कर


र े थे फक शेख़ अली सन्जरी से मख़ ु ाति ु ए और उनसे ख़्र्ाजा कुतुिद् ु दीन िजख्तयार काकी की खखलाफ़त का फ़रमान ललखर्ाया। कुति ु सा ि ाजजरे खखदमत थे। आपने फ़रमाया-‘‘ये नेमतें मेरे िज ु ग ु ों से लसललसला-ि-लसललसला फ़क़ीर तक प ुिं ची ैं, अि मेरा आखखरी र्क़्त आ प ुिं चा ै । ये अमानतें तम् ु ारे र्ाले करता ूिं , इस अमानत का

क़ र ालत में अदा करते र ना ताफक क़यामत के हदन तुझे अपने िज ु ग ु ों के सामने

शलमान्दा न

ोना पड़े।’’

फिर अपने िड़े सा िजादे

जरत ख़्र्ाजा फ़खरूद्दीन को नसी त फ़रमाई-‘‘दनु नया की

सभी चीजें लमटने र्ाली और फ़ना ोने र्ाली ैं। र र्क़्त ख़ुदा की पना मािंगते र ना ओर फकसी चीज पर भरोसा न रखना, तकलीफ़ और मस ु ीित के समय सब्र और ह म्मत का दामन न छोड़ना।’’

633 ह जरी में पािंच और छुः रजि की दलमायानी रात को

मेशा की तर

ईशा की

नमाज के िाद आप अपने ु जरे में गए और अिंदर से दरर्ाजा ि​िंद करके यादे खदा ु में लग गए। रात भर दरू ोने से प ले ु द शरीफ़ और जजक्र की आर्ाज आती र ी। सि ु य

आर्ाज आनी ि​िंद

ो गई। सरू ज ननकलने के िाद भी दरर्ाजा न ीिं खुला तो

ख़ाहदमों ने दस्तके दीिं, उस पर भी कोई जर्ाि न ीिं लमला तो परे शानी िढ गई। आखखरकार मजिरू

ोकर दरर्ाजा तोड़कर अिंदर गए तो दे खा फक आपकी रू े -मि ु ारक

परर्ाज कर चक ु ी थी।

जजस ु जरे पर आपका दे ार्सान ु आ था उसी ु जरे में आपको दफ़न कर हदया गया। उसी र्क़्त से आपका आस्ताना ह न्दस् ु तान का रू ानी-मरक़ज िना ु आ ै । र साल एक रजि से छुः रजि तक आपका उसा िड़ी श्रद्िा से मनाया जाता ै ।

सलीमा और रूकैया भी मजार के मख् ु य-द्र्ार के सामने लगी लाईन में शालमल ो गईं। सलीमा रूकैया के कान में िुसिुसाई-‘‘दे खें, अि क्या

ोता

ै ।’’

सलीमा को उस मा ौल में ि ु त मजा आ र ा था। उसे इसललए भी अच्छा लग र ा था फक ख़्र्ाजा के दरिार में जजतने भी लोग हदखते ैं, चा े र्ो अमीर ािंीे या गरीि, सभी लभखारी जैसे हदखते ैं। सिके चे रों पर िेचारगी का आलम हदखलाई दे ता ै । सभी की

र्ीरान आिंखों में उम्मीद की फकरनें िूटती हदखती ैं। फकसी अन ोनी, फकसी चमत्कार की आशा से लोग आिंखें झपकाते भी न ीिं। ऐसा लगता ै फक जैसे उनकी जजन्दगी के


तमाम दख ु ख़त्म ो गए ों। उनकी तमाम धचन्ताएिं फकसी ग रे किंु ए में िेंकी जा चक ु ी ों। उनके सारे ददा

र्ा में उड़ गए

ों।

र्ाकई, ये ख़्र्ाजा गरीि-नर्ाज का करम

ी तो

ै।

मजार के अिंदर ख़ाहदम लोग खद ु अपने ाथ से सिाई का काम कर र े थे। इस िीच क़व्र्ालों की की आर्ाज में जोश भर आया था। र्े फ़ारसी का एक ि​िंद गा र े थे जजसका मतलि था फक दनु नया में सिंतो के श िं शा धचराग को सारे सिंसार में रौशन करते ख़्र्ाजा-ख़्र्ाजगािं मई ु नुद्दीन

ैं ख़्र्ाजा मई ु नद् ु दीन, आध्यात्म के

ैं ख़्र्ाजा गरीि-नर्ाज।

अशरफ़े औललया-ए-रूए जमीिं आफ़तािे सप रे कौनों-मकािं िादशा े शरीरे मल् ु के यकीिं

इला ी ता िर् ु द खश ु ीद ओ मा ी धचरागे धचजश्तयािं रा रोशनाई

(या इला ी जि तक चािंद-सरू ज क़ायम

ै, धचजश्तयों के धचराग को रौशन रख!)

सलीमा िक ु ा​ानशीन ख़ातून का साथ पकड़े ु ए थी। र् थी।

कािी जानकार हदखलाई दे ती

सलीमा ने दे खा फक लोग बिना आर्ाज लाईन िनाकर खड़े मजार के अिंदर रक़त को गौर से दे ख र े

ैं।

तभी मजार के अिंदर से एक ख़ाहदम िा र ननकला। र्

ोने र्ाली

एक िढ ू ा और लम्िे क़द का

ख़ाहदम था। उसने लाल, री, पीली और सन ु री रिं गत र्ाली टोपी प न रखी थी। उसके ाथ में मोरपिंख से िना मरु छल था। खाहदम मरु छल की पिंछ ू से लाईन में खड़े लोगों

की पीठ और लसर पर प्र ार कर र ा था। लोग ाथ जोड़े, लसर झक ु ाए उस मरु छल की

मार को िड़ी श्रद्िा से झेल र े थे। जि सलीमा का निंिर आया तो र् भी झक ु गई। मरु छल की मठ ू उसकी पीठ पर पड़ी तो िड़ी तेज लेफकन सलीमा को ऐसा लगा फक उसकी रीढ की

ड्डी में जमाने का समाया ददा जाद ू की तर

गायि

चा ती थी फक ख़ाहदम उस मरु छल से उसकी पीठ पर प्र ार करता सोचा फक लाईन में खड़े

र शख़्स की य ी मनोदशा

ो गया ै । र्

ी र े । सलीमा ने

ोगी। उसके िाद पीली रिं ग की


ख़ाललस मोम की लम्िी-लम्िी मोमिपत्तयािं ललए एक और िज ु ुगा ख़ाहदम ननकले।

िज ु ग ु ा उन िझ ु ी मोमिपत्तयों को लाईन में लगे सभी जायरीन के लसर से छुआ र े थे।

आदमी लोग अपने लसर पर प नी टोपी या रूमाल टा कर उस मोमित्ती का स्पशा ले

र े थे। औरतें लसर से आिंचल या दप ु ट्टा टा कर मोमित्ती को लसर पर छूने दे र ी थीिं। फिर एक-एक कर सभी ख़ाहदम मजार के अिंदर से िा र ननकल आए। उसके िाद मख् ु य ख़ाहदम ने मजार का सन ु री रिं गत र्ाला मख् ु य-द्र्ार पर ताला जड़ हदया। एक मोटी रस्सी के स ारे कई तालों की चालभयािं ि​िंिी ु ई थीिं। उन चालभयों को अि श्रद्िालु चम ू ना चा ते थे। जजसके ललए ख़ाहदम रूपए लेकर चम ू ने दे ते थे।

सलीमा को ये रस्म ठीक न लगी। उसने सामने दीर्ार पर टिं गी घड़ी दे खी। रात के

तकरीिन साढे दस िज र े थे। उसे थकार्ट के साथ नीिंद का अ सास ु आ। उसने रूकैया को दे खा जो फक लाईन से िा र ोकर खड़ी जम् ाई ले र ी ै ।

सलीमा ने सोचा फक अि अगले हदन ढिं ग से परू ा मजा ललया जाएगा। आज िस इतना ी। र्

िक ु ा​ानशीिं ख़ातून को सलाम करके लाईन से िा र ननकल आई। रूकैया को

लेकर सलीमा जल्द से जल्द क़यामगा

प ुिं च जाना चा ती थी। अभी भी दरगा के िा र लभखारी मिंडरा र े थे। सलीमा ने सोचा फक लभखारी भी य ािं लशफ्ट ड्यट ू ी करते जैसे

ैं शायद! र्रना आिी रात को लभखारी!

ी सलीमा और रूकैया कमरे में प ुिं चे तो कमरा ि​िंद लमला। रूकैया ने दरर्ाजा खटखटाया। अिंदर से आ ट न पाकर सलीमा की तरि दे खी। सलीमा िोली-‘‘सो गई ोगी स्साली!’’

फिर सलीमा ने दरर्ाजा खटखटाया।

दरर्ाजा न खुला तो सलीमा ने दरर्ाजे पर

दरर्ाजा खुल गया और र्े दोनों अिंदर प ुिं चीिं। अिंदर का ाल दे ख सलीमा के ोश उड़ गए।

ल्का िक्का मारा।

कमरे के अिंदर अब्िू दरी पर चादर ओढे ग री नीिंद मिंीे थे। सरु ै या का क ीिं अता-पता न था।

रूकैया ने िाथरूम का दरर्ाजा खोल कर दे ख आई फकन्तु सरु ै या का सरु ाग न लमला। सलीमा ने अब्िू को खझिंझोड़कर जगाया।


उनीिंदे से उठे अब्िू जैसे सपना दे ख र े

ों-‘‘का ु आ?’’ सलीमा ने प्रश्न दागा-‘‘सरु ै या क ािं गई? क्या र्ो िता कर गई

ै ?’’

अब्िू ने हदमाग पर जोर दे कर याद फकया और िोले-‘‘र्ो खहदमर्ा आया था, उसी के साथ ये िोल कर गई

ै फक दरगा

जा र ी

ै ।’’

सलीमा का माथा ठनका। नापाक-िदन तो सरु ै या दरगा जाने से र ी। जरूर कोई दस ू रा चक्कर

ै।

सलीमा को परे शान दे ख रूकैया ने कुछ िताना चा ा-‘‘आपा---!’’ ‘‘का िात

ै ?’’-सलीमा ु ड़क दी उसको। रूकैया कुछ न िोली। सलीमा ने क ा-‘‘चल फिर से दरगा

चलते

ैं।’’

फिर सलीमा ने अब्िू से क ा-‘‘जागते रह एगा,

म लोग तरु िं त आ र े

ैं।’’

सलीमा दरर्ाजा ि​िंद कर र ी थी तभी रूकैया िुसिुसाई-‘‘आपा, एक िात िताऊिं!’’ सलीमा धचढकर िोली-‘‘िता न।’’

ति रूकैया ने िताया फक फकस तर दे ते समय उसके

खाहदम ने बिरयानी का पैकेट सरु ै या के

ाथों में

ाथ में एक कागज का पज ु ा​ा भी थमाया था। जजसे िड़ी सिाई से

सरु ै या ने छुपा ललया था।

सलीमा का माथा ठनका। िोली-‘‘जर्ानी चढी

ै स्साली को, सम्भाले न ीिं सिंभलती तो मैं क्या करूिं। इतना

समझाया कुछ असर न ीिं ु आ।’’ अभी र्े िातें कर ी र े थे फक सीढी पर आ ट ु ई और साथ खखलखखला ट भी सन ु ाई दी। दे खा फक सरु ै या आगे-आगे सीहढयािं चढ र ी

ी सरु ै या की

ै और उसके पीछे खाहदम

ै।

सलीमा और रूकैया को दे ख सरु ै या थोड़ा हठठकी फिर सामान्य िनने की कोलशश करती ु ई िोली-‘‘आपा, दरगा में तुम लोग क ािं पर थे? फकतना खोजा पर लमले न ीिं।’’ सलीमा कुछ न िोली और मिंु िनाए कमरे के अिंदर चली गईं। रूकैया भी उसके पीछे

ो ली।

खाहदम उल्टे पैर लौट तो जरूर गया था, लेफकन उसने सरु ै या का पीछा न ीिं छोड़ा था।


दस फ़जजर की अजान के साथ सलीमा की नीिंद खुली और र् एक झटके ू रे हदन सि ु

से उठ िैठी। अजान तो इब्रा ीमपरु ा में भी ोती थी लेफकन दरगा की अजान और र् ािं के मा ौल ने अचानक उसे मज िी िना हदया था। सलीमा के मन में आया फक जल्द से जल्द र्जू िनाकर दरगा जग

चली जाए। र् ािं औरतों की नमाज के ललए अलग से

ै । सैकड़ों औरतें हदन-भर या तो र् ािं नमाज अदा करतीिं या कुरान-मजीद की

नतलार्त करते या फिर तस्िी

पढते लमल

ी जाती

ैं।

उसने एक

ी झटके से बिस्तर छोड़ हदया।

रात दरगा

पर लमली पदा​ानशीिं ख़ातून ने क ा भी था फक फ़जजर के समय दरगा

जाने क ािं से िदन में इतनी चस् ु ती आ गई थी, र्

समझ न ीिं पा र ी थी।

में

ि ु त अच्छा लगता ै । कोई शोर-शरािा न ीिं, कोई भागम-भाग न ीिं, लसिा इिादत का रिं ग सि भरपरू नजर ु आता

ै।

आज उसे दरगा

पर चादर भी चढाना

ै।

चलकर उसका भी अिंदाजा कर ललया जाएगा।

फिर तारागढ प ाड़ी पर चढने का कायाक्रम भी तो िनाना सलीमा की खटर-पटर से सरु ै या की नीिंद खल ु ी।

ै।

सरु ै या ने आिंखें मलते ु ए पछ ू ा-‘‘अब्भी से का े जाग गई आपा?’’ सलीमा को सरु ै या पर दल ु ार ो आया-‘‘तू भी उठ और न ा-िो कर पाक-साि आज दस िजे तक नाश्ता-पानी करके दें गे। मैं दरगा

म भी गरीि-नर्ाज की दरगा

जा र ी ूिं नमाज पढने। प ले तू इत्मीनान से तैयार रूकैया के साथ अब्िू को भी जगा दे ना।’’ सरु ै या को ह दायत दे कर सलीमा ने दप ु ट्टा लसर पर डाल दरगा

ो ले।

पे चादर चढा ो जाना फिर

चली गई।


मकान से िा र आई तो दे खा फक एक िच्चा अपनी मािं की गोद में चढने की जजद कर र ा

ै । उसने औरत को प चाना। य

र्े लोग भी उसी मकान में ठ रे र्

र् ी परदानशीन औरत थी।

ु ए थे। परदानशीन औरत चा ती थी फक िच्चा पैदल चले।

साथ में जो मदा था र् टोपी लगाए ड़िड़ाया ु आ था-‘‘इसीललए क र ा था फक तुम लोग ना क न उठो, सोए र ो। अि इस नालायक के चलते क ीिं मेरी नमाज कजा न ो जाए।’’

सलीमा को उस िच्चे पर दया आई। उसने िच्चे पच ु कारते ु ए उन लोगों से क ा-‘‘का े इसे रूला र े ैं?’’

औरत ने उसकी तरि दे खा और िोली-‘‘दरगा में पाक-साि र ना राम कर हदया ै इसने। थोड़ा भी पैदल न ीिं चलता। क ीिं मत ू -मात हदया तो सि चैपट सलीमा ने उस िच्चे को गोद पर उठा ललया-‘‘चललए मझ ु े भी दरगा फकतना प्यारा िच्चा

ै ये, ना क रूला र े

गोद में िच्चा आकर चप ु

ैं इसे आप लोग।’’

ो जाएगा।’’

ी चलना

ै।

ो गया लेफकन सलीमा ने म सस ू फकया फक िच्चा र्जनी

ै । तभी तो औरत उसे ढोना न ीिं चा ती

र्े लोग साथ-साथ दरगा

ै।

प ुिं च।े र् ािं मदा शा ज ानी मजस्जद की तरि चला गया। सलीमा और र्

औरत मजार के

सामने बिछे जाननमाज के एक कोने पर िच्चे को बिठा कर नमाज की नीयत िािंिने लगीिं।

नमाज अदा कर सलीमा ने िा र से

ी ख़्र्ाजा मोईनद् ु दीन धचश्ती र मतल् ु ला अलै

की मजार को िड़ी अक़ीदत से सलाम फकया और सोचा फक दरगा जायजा ललया जाए।

के आस-पास का

मजार के पीछे

ोते ु ए र् िड़े ौज तक प ुिं ची। र् ािं िड़ी अिरा-तिरी का आलम था।

लम्िे-चौड़े दालान पर सोए ु ए लोगों को िशा की िल ु ाई करने र्ाले खुद्दाम लोग ल्ला कर-करके भगा र े थे। सैकड़ों गरीि जायरीनों के ललए र् ािं रात गज ु ारने का आसरा र ता

ै।


यहद उन लोगों को ख़ाहदम र्ाली व्यर्स्था न लमली ोती तो उनका भी य ी श्र ोता। ट लती सलीमा िड़ी दे ग के पास प ुिं ची। अकिर िादशा ने प्रण फकया था फक धचत्तौड़गढ की पर्जय के िाद सीिे अजमेर शरीफ़ ाजजर ोकर एक िड़ी दे ग पेश करे गा। इस दे ग में सौ मन चार्ल पक सकता िल ु िंद दरर्ाजा के िाईं तरि छोटी दे ग जजसमें अस्सी मन चार्ल पक सकता

ै।

ै जजसे नरू ू द्दीन ज ािंगीर ने पेश फकया था,

ै।

िल ु िंद दरर्ाजे से सलीमा िा र ननकली तो एक आलीशान मजस्जद हदखाई दी। जजसे अकिरी मजस्जद क ते िादशा

दरगा

ैं। श जादा सलीम के जन्म के छुः मा

की जजयारत के ललए अजमेर आया तो उसने मजस्जद के ननमा​ाण का

ु क्म हदया था। फिर एक िड़ा सा दरर्ाजा आया, जजसे कललमा दरर्ाजा क ते नक्कारखाना

िाद जि अकिर

ै।

ैं। इसके ऊपर

कललमा दरर्ाजा से िा र आने पर दरगा का सिसे िड़ा दरर्ाजा ननजाम गेट लमला। इसे नर्ाि

ै दरािाद ने िनर्ाया था।

ननजाम गेट से दरगा की तरि सलीमा ने दे खा फक र् नौजर्ान खाहदम चला आ र ा ै।

क ीिं रास्ता िदलने का मौका न ीिं था और ख़ाहदम से आमना-सामना सलीमा ने उसे सलाम फकया।

खाहदम ने पछ ू ा-‘‘आज तो चादर चढाना सलीमा ने

ािं में लसर ह लाया।

ी गया।

ै न?’’

-‘‘ठीक ै , जर्ाल यानी िार िजे से प ले चादर चढा लें तो िे तर ै , र्रना फिर जु र की नमाज के िाद

ी चादर चढाना ठीक र े गा।’’

सलीमा कुछ न िोलकर लसर ह लाती र ी। खाहदम आगे िढ गया।

सलीमा ननजाम गेट के िा र ननकल आई और लभखाररयों से दामन िचाती एक चाय र्ाले के पास जा प ुिं ची। चायर्ाले ने सर्ाललया ननगा ों से उसे घरू ा। सलीमा ने एक चाय का इशारा फकया। चायर्ाले ने प्लाजस्टक के कप में एक चाय उसे दी।


सलीमा को सि ु

उठते के साथ चाय की आदत

ै।

चाय पीकर उसके जी में जी आया, ति उसे सरु ै या और रूकैया की याद आई और र् तेज क़दमों से डेरे की तरि लौट आई।

िजट के मत ु ाबिक उन लोगों को अजमेर में तीन हदन क़याम करना था, लेफकन नौजर्ान ख़ाहदम के कारण र्े लोग लगभग पािंच हदन र् ािं ठ रे ।

खाहदम ने उन लोगों को एक हदन तारागढ की प ाड़ी के दशान कराए। ढाई हदन का

झोंपड़ा दे खा। तारागढ की प ाड़ी पर उस चट्टान को भी दे खा जजसे ु जरू गरीि-नर्ाज ने अपनी उिं गली से रोका था---र् एक पर्शालकाय चट्टान था। एक हदन अना-सागर झील की सैर ु ई। झील पर नौका-पर् ार फकया गया। झील के िीच में एक टापू ै ज ािं पपकननक-स्पाीट ै । र् ािं भी गए र्े लोग। खाहदम के इसरार पर र्े अकिर िादशा अि उन् ें लौटना था।

का फकला भी दे ख आए।

सरु ै या और खाहदम की दोस्ती परू े जोर पर थी।

उसने सरु ै या के साथ-साथ रूकैया के ललए भी राजस्थानी घाघरा-चन ु री और चप्पलें

खरीद कर भें ट की थीिं। अब्िू को उसने एक लिंग ु ी और टोपी हदया। सलीमा ने अपने ललए कुछ भी खरीदने से सख्ती से मना कर हदया था। र् न ीिं चा ती थी फक सरु ै या को िढार्ा दे ।

जि र्े लोग िस-स्टें ड आए ताफक अजमेर से आगरा के ललए िस पकड़ी जाए तो खाहदम भी उन् ें छोड़ने आया था।

सरु ै या और खाहदम िस छूटने तक नीचे खड़े जाने क्या-क्या िनतयाते र े थे। सलीमा ने अल्ला-अल्ला करके र्े हदन काटे ।

र् चा ती थी फक कैसे िस छूटे और उस खाहदम और सरु ै या के िीच पनपते सम्ि​िंिों


का पटािेप

ो।


उड़ गई पपींिरे की मैना----. उस समय रात के नौ िजे थे।

सलीमा ने रूकैया से क ा फक जल्दी से चाय िनाए।

सलीमा का माथा दख ु र ा था। लग र ा था फक ददा के कारण नसें िट जाएिंगी।

र् सोच र ी थी फक यहद अि भी सरु ै या घर आ जाए तो र् उसे माि कर दे गी और कुछ न िोलेगी, लेफकन सरु ै या का क ीिं अता-पता न ीिं था।

सलीमा चा र ी थी फक धचिंता ी धचिंता में और ज्यादा दे र न की जाए। रात के नौ ी

िजे ैं। ज्यादा रात ु ई न ीिं ै । अभी तो सड़कों पर आमद-रफ़्त ै । दे र करें गी तो फिर सन ु सान में उन् ें ननकलने में हदक्कत ोगी। र्ीनस-ब्यट ू ी पालार इब्रा ीमपरु ा के दस ू रे छोर पर

ै।

जोड़ा तालाि के पार, टाकीज के पीछे र्ाली अिंिेरी गली से जाने पर ब्यट ू ी-पालार नजदीक

रात में र्

ै।

रास्ता उतना चालू न ीिं र ता

ै।

उिर बिलसपरु र ा नौकराननयािं, पल्लेदार और भड़भिंज ू े र ते ैं। र् ािं एक दारू-भट्टी भी ै । सन ु ते

ैं फक जजस्म-िरोशी भी

ोती

ै।

यहद मेन रोड से ननकला जाएगा तो लगभग पौन घण्टे चलना सलीमा ने सोचा फक चैक पर जाकर ररक्शा कर ललया जाए।

ोगा।

चाय को जल्दी-जल्दी गट ु क कर सलीमा ने रूकैया को ओढनी से लसर ढिं कने को क ा और

र्े लोग चैक की तरि ननकल पड़े।

सलीमा िे द घिराई ु ई थी। यहद परमजीत कौर के घर भी सरु ै या न लमली ति..? सलीमा ने काली ओढनी से अच्छी तर र्े लोग चैक पर आईं।

र् ािं पान की गुमहटयािं खुली ु ई थीिं।

लसर और िदन ढिं क ललया।


एक कोने पर ररक्शेर्ाले सर्ाररयों की रा उन् ें दे ख एक ररक्शा उसकी तरि िढा। सलीमा ने दे खा फक र्

तके ु ए थे।

एक जर्ान ररक्शार्ाला था।

सलीमा ने उससे कोई िात न की और एक अिेड़ ररक्शार्ाले को इशारा से पास िल ु ाया। उस ररक्शे पर सर्ार सदर िाजार से

ोकर र्े लोग र्ीनस ब्यट ू ी पालार की तरि चल हदए।

ोकर ररक्शा गुजरा।

दक ु ानें ि​िंद ो र ी थीिं, ािं पान की गुमहटयों पर नौजर्ान लड़कों ने अड्डे िना ललए थे।

सलीमा और रूकैया ने म सस ू फकया फक उन शो दों की ननगा ें उनका पीछा कर र ी ैं।

िाजार ख़त्म ु आ फिर र्े लोग रे ल्र्े-क्रालसिंग र्ाले िाटक पर प ुिं चीिं। िाटक ि​िंद था।

िाटक के दोनों तरि किाडडयों के घर और मोटर-साईफकल की गैरेज एक पान की गुमटी पर सटोररयों की भीड़ थी।

ैं।

ररक्शार्ाला पान की गुमटी पर जाकर िीड़ी सल ु गाने लगा। सलीमा को एक-एक लमनट भारी लग र ा था।

तभी स्टे शन की तरि से रे लगाड़ी की सीटी की आर्ाज गिंज ू ी। रात की आखखरी गाड़ी गुजरने र्ाली थी।

खट् खट् करती रे ल गुजरी ति िाटक खुला और ररक्शेर्ाला िीड़ी का आखखरी कश खीिंच कर ररक्शे की तरि लपका।

िाटक पार कर र्े लोग अिंिेरी सड़क पर आ गए।

जाने क्यों रे ल्र्े-िाटक के एक तरि तो रोशननयों के कुमकुम जगमगाते ैं और िाटक के दस ू री तरि अिंिेरे का साम्राज्य र ता

ै।

अि ररक्शा मख् ु य सड़क छोड़, नाला-पल ु पार कर एक पतली गली में जा घस ु ा। इस गली के आखखर में खन्ना-नलसिंग सलीमा खन्ना नलसिंग अच्छी तर

जानती

ोम

ै।

ोम यानी फक प्रसनू त और गभापात के कारखाना के िारे में

ै । माना फक उसका साबिका इस नलसिंग- ोम से न ीिं पड़ा था,

लेफकन उसकी जानकारी में कई ऐसी िदनाम और शरीफ़ लड़फकयों के नाम ैं, जजन् ोंने


इस नलसिंग- ोम की सेर्ाएिं लेकर अपने पाप से छुटकारा पाया था। खन्ना नलसिंग

ोम के िाद दो घर छोड़कर र्ीनस ब्यट ू ी पालार

ररक्शा ब्यट ू ी-पालार के िा र रूक गया।

सलीमा ने ररक्शेर्ाले से क ा-‘‘भइया, पािंच लमनट रूकना, ररक्शेर्ाला खटपहटया न ीिं था, बिना

ै।

में तरु िं त लौटना भी

ील- ु ज्ज्त के मान गया। सलीमा और रूकैया ररक्शे से उतरकर ब्यट ू ी-पालार की चैखट पर आ खड़ी ु ईं। मेन-शटर ि​िंद था, िगल से एक दरर्ाजा था।

ै ।’’

सलीमा ने दरर्ाजे पर लगी काील-िेल का िटन दिाया। पता न चला फक घिंटी िजी या न ीिं,

ािं ऊपर िाल्कनी से एक आर्ाज आई-‘‘कौन?’’

सलीमा सड़क पर आई और ऊपर की ओर लसर उठाया। दे खा फक र् ािं नाईटी प ने परमजीत कौर मैडम खड़ी

ैं।

सलीमा ने उन् ें नमस्ते की और पछ ू ा-‘‘सरु ै या अभी तक घर न ीिं लौटी?’’

परमजीत कौर ने आश्चया प्रकट फकया-‘‘क्या----आज तो र् शाम छुः िजे ी घर चली गई थी।’’

सलीमा का हदल िक कर गया-‘‘ति, घर तो न ीिं प ुिं ची र्ो---?’’ परमजीत कौर मैडम िोलीिं-‘‘मझ ु े क्या मालम ू , इतनी लड़फकयािं य ािं काम करती ैं। मैं सिका ह साि तो रखती न ीिं।’’

फिर कुछ सोच कर परमजीत कौर ने पछ ू ा--‘‘उसे िोन करके पछ ू लो----!’’ सलीमा क्या जर्ाि दे ती----सरु ै या का िोन जस्र्च-आीि िताता

ै।

‘‘इसका मतलि----!’’ सलीमा ने माथा पकड़ ललया और ब्यट ू ी-पालार के दरर्ाजे पर िैठ गई।

परमजीत कौर मैडम अिंदर जा चक ु ी थी।

रूकैया ने सलीमा को ढाढस ि​िंिाना चा ा---लेफकन उसकी रूलाई िूट पड़ी। सलीमा अि रूकैया को चप ु कराने लगी और र्े लोग ररक्शे पर िैठ गए। र्े लोग धचजन्तत मद्र ु ा में घर लौट आए।

सलीमा अपने कमरे प िं ीुची तो उसे म सस ू ु आ फक उसका िदन कािंप र ा र् ननढाल बिस्तर पर धगर पड़ी।

ै।


उसे किंपकिंपी सी म सस ू

ो र ी थी।

रूकैया से क ा उसने तो रूकैया ने कम्िल से उसका िदन ढािंप हदया। किंपकिंपी थी फक रूकने का नाम न ीिं ले र ी थी। िदन ठिं डा

ो गया था। नब़्जज िीमी चल र ी थी।

सलीमा को तगड़ा सदमा लगा था। र्

दो हदन बिस्तर पकड़े र ी।

अब्िू को तो मतलि

ी न था फक घर में तीनों िेहटयािं

ैं या न ीिं।

ैं तो कैसे जी र ी ैं, क्या कर र ी ैं और क्या ऐसे ी इन् ें जजन्दगी गज ु ारनी ोगी?

उिर सरु ै या जो गई तो फिर र्ापस लौटकर न आई। सलीमा और रूकैया उसका इिंतेजार करती र ीिं--सकीना आपा अपने गम में थीिं।

उनके िेटे यस ू ि ु को पलु लस पकड़ कर ले गई थी और छोड़ने का नाम न ीिं ले र ी थी। सकीना आपा अपने दम एसपी, कलेक्टर से भी लमल आईं----चिंफू क यस ू ि ु पर जो िाराएिं लगीिं थीिं उस बिना पर उसे रर ा करने में तमाम मजु श्कलें थीिं।

सकीना आपा ने नगर के रसख ू दार ह न्द-ू मस ु लमानों के दरर्ाजे पर भी दरख्र्ास्त लगाई।

फकसी के कान में जिंू न ीिं रें ग र ी थी।

न सरु ै या का कुछ पता चल र ा था और न यस ू ि ु के रर ाई के आसार हदखलाई पड़ र े थे।

सलीमा सोचा करती फक इत्ती िड़ी दनु नया में इत्ती छोटी सरु ै या नामक गौरईया को खोज पाना क्या आसान काम

ै?


काले कोस का सफ़र--यस ू ि ु को आतिंकर्ादी समझ कर पलु लस पकड़ ले गई थी।

सलीमा ने सोचा न ीिं था फक इिरा ीमपरु ा के लमयािं लोगों को न्याय हदलाने के ललए ह न्द-ू ि ु ल आिादी इस तर से एकजुट ोगी। सलीमा को अपनी सोच की िुद्रता पर दख ु ु आ। उसने सोचा था फक एक गरीि मस ु लमान पर्िर्ा के िेटे का आतिंकर्ाहदयों से सम्ि​िंि एक ऐसी खिर ोगी जजससे

ह न्दओ ु िं की इस सोच को िल लमलेगा फक मस ु लमान पर्कास-पर्रोिी ोते ैं, मस ु लमान पाफकस्तान-परस्त

ोते

ैं और मस ु लमान आतिंकर्ादी सिंस्थाओिं से लमले

ोते

स्थानीय अखिारों के सम्र्ाददाताओिं ने गजि की तत्परता हदखलाई।

ैं----

स्थानीय र् प्रादे लशक समाचार-पत्रों और न्यज ू चैनलों में यी ू ूसि ु के आतिंकर्ादी ोने की िात पर पलु लस-कारर्ाई की ननन्दा की गई। पर्िायक और सािंसद को पत्र ललखे गए। रै ललयािं ननकाली गईं।

स्तिेप की मािंग की गई।

कारण साि था, इिरा ीमपरु ा के धगने-चन ु े मस ु लमान िाकी छोटे -मोटे काम-िन्िे में

कारोिारी

ैं।

ैं या फिर जरायमपेशा, किाड़ का िन्िा, सट्टे िाजी,

मटका, दे सी-शराि के खरीद-फ़रोख़्त, लौंडडयािाजी, चोरी-उचक्कई, चक्कूिाजी-छुरे िाजी के ललए िदनाम

ैं अधिकािंश मजु स्लम----

इन िुरसनतया मस ु लमानों की सेर्ाओिं का उपयोग लसनेमा- ाील में ोता ै , केबिल-डडश व्यापारी के काररन्दे अमी ू ूमन इिरा ीमपरु ा के मजु स्लम यर् ु क लाईन बिछाते

ैं, लाईन में टेन रखते

ैं और मालसक फकराया र्सल ू ते

अकड़ने की ज मत की न ीिं फक कनेक्शन कट--अमम ू न इन मस ु लमानों को अच्छी ननगा

से न ीिं दे खते लोग----

स्थानीय

ैं---जो

ैं---फकसी ने

लेफकन यस ू ि ु के ि ाने स्थानीय स्तर पर जमकर पर्रोि-प्रदशान ु आ। इसी तारतम्य में नगरपाललका के पस् ु तकालय भर्न में एक आपात िैठक आ ू ीूत ु ई। इसमें नगर के स्र्नामिन्य लोगों ने भाग ललया।


पर्षय था यस ू ि ु की रर ाई----

सलीमा भी उस सभा में उपजस्थत थी।

नगर के लब्ि-प्रनतजष्ठत व्यापारी लक्खी सेठ की अध्यिता में िैठक

ो र ी थी।

ाजी सत्तार, मो म्मद मन्नान, गोस्र्ामी के साथ लक्खी सेठ मिंच पर पर्राजमान थे।

पीछे सिेद कपड़े पर नीली स्या ी से ललखा था---‘रर ाई-मिंच’---

ाजी सत्तार का व्यजक्तत्र् सिेद कुता​ा-पायजामा, सिेद टोपी और सिेद दाढी में कािी

आकषाक लग र ा था।

ाजी सत्तार ने सर्ाप्रथम माईक पकड़ा और सभा को सम्िोधित फकया।

उन् ोंने क ा फक यस ू ि ु स्थानीय पलु लस की आपराधिक साजजश का लशकार पलु ललसया कारा र्ाई से एक िं सता-खेलता पररर्ार तिा

ै । इस

ो गया ै । यस ू ि ु की पर्िर्ा

मािं ने राज्य-सरकार में गु ार लगाने के िार्जद ू उसे लसिा आश्र्ासन

ी लमला। य ािं

तक फक यस ू ि ु की धगरफ्तारी पर उठने र्ाले सर्ालों की जािंच के ललए सरकार ने कोई जर्ाि न ीिं हदया, जजससे साबित

ोता

ै फक आतिंकर्ाद के नाम पर कैद िेगुना

मस ु लमान यर् ु क की रर ाई का र्ादा लसिा िोखा था।

इिरा ीमपरु ा में आयोजजत इस सम्मेलन में र्ामपिंथी पर्चारों के परु ोिा मो म्मद

मन्नान ने क ा फक यस ू ि ु पर आरोप ै फक उनके घर अिंतरा​ाष्टीय आतिंकर्ादी आया था। जजसका न तो कोई प्रमाण ै और न ी कोई गर्ा । आज तक पलु लस य भी न ीिं

िता पाई ै फक यस ू ि ु पर कौन से आरोप लगे ैं। इससे साबित ोता ै फक आतिंकर्ाद के नाम पर लसिा िेगन ु ा मस ु लमानों को ि​िंसाने और असली आतिंफकयों को खल ु ी छूट दे ने की नीनतगत लसद्िािंत पर सरकारें काम कर र ी

ैं।

र्ररष्ठ पत्रकार अिंकुर गोस्र्ामी ने क ा फक यस ू ि ु जैसे ननदोष मस ु लमानों को

आतिंकर्ाद के झठ िं ओ ू े आरोपों में ि​िंसा कर सरकारें ह द ु िं और मस ु लमानों में दरू ी पैदा

करके अपनी गिंगा-जमन ु ी सिंस्कृनत की िनु नयाद को कमजार करना चा ती ै । लेफकन

रर ाई-मिंच दस ू रे सिंगठनों के साथ लमलकर सरकारों के इस नापाक साजजश को नाकाम करने का प्रयास करे गी। उन् ोंने क ा फक ह न्दस् ु तान की इस िरती के इनत ास से में सिक सीखना

ोगा जि अिंग्रेजी ु कूमत के खखलाि य ािं फक ह द िं ओ ु िं और मस ु लमानों ने लमलकर आजादी की लड़ाई लड़ी थी। आज फिर से में ऐसी ी त रीक चला कर


साम्प्रदानयक और काीपोरे ट परस्त खुफिया एजेंलसयािंीे और सरकारों से मोचा​ा लेते ु ए अपने दे श की पर्रासत की रिा करनी ोगी। अिंजम ु न कमेटी के नेता सैयद अब्दल् ु ला ने क ा फक सरकार अपने को मस ु लमानों का ह मायती िताती

ै लेफकन मस ु लमानों के र्ोट से सरकार िना लेने के िार्जद ू

मस ु लमानों की जस्थनत दयनीय िनी ु ई ै । उन् ािंीेने क ा फक मस ु लमानों को आतिंकर्ाद के नाम पर ि​िंसाने की राजनीनत मस ु लमानों की नई पीढी के मनोिल को तोड़कर उन् ें दोयम दजे का नागररक िनाने की करना

ोगा।

ै जजसके खखलाि अर्ाम को सिंघषा

र्ररष्ठ रिं गकमी दाद ू जायसर्ाल ने क ा फक साम्प्रदानयक साजजशों के खखलाि सािंस्कृनतक

स्तिेप भी करना

में

ोगा। आज मीडडया से लेकर लसनेमा तक के माध्यम

से मस ु लमानों की छपर् बिगाड़ने की कोलशश की जा र ी ै । जजसके खखलाि लमली-जल ु ी सािंस्कृनतक परम्पराओिं को आगे िढाना

ोगा।

इिरा ीमपरु ा की मजु स्लम एकता पारटी के अध्यि मई ु न कुरै शी ने क ा फक राज्य सरकार ने आतिंकर्ाद के ि ाने मस ु लमानों को टारगेट िनाया समझ गया

ै और आगामी चन ु ार् में र्

ै , जजसे मस ु लमान

इसका िदला भी लेगा।

पया​ार्रणर्ादी आलम भाई ने क ा फक आजादी के िाद से मस ु लमानों की सिंख्या उच्च सरकारी नौकररयों में लगातार एक साजजश के त त कम फकया गया ै । ननिानता और असपु र्िाओिं के कारण मजु स्लम नौजर्ान आजीपर्का का सिंकट झेल र े

ैं और

िेिनु नयाद शक के आिार पर मजु स्लम नौजर्ानों को जेल में डाला जा र ा ै । इसललए इन साजजशों

के खखलाि नीनतगत स्तर पर सिंघषा करना

ोगा।

पर्श्र्पर्द्यालय के छात्रनेता सन ु ील जोशी ने क ा फक आईिी की साम्प्रदानयक ननगा ें

सिसे ज्यादा पढे -ललखे मजु स्लम यर् ु कों पर ैं। क्योंफक मस ु लमानों की य पीढी अपने

अधिकारों के प्रनत ज्यादा जागरूक ै । ऐसे में जरूरत ै फक इस सिंघषा में य पीढी खुद सामने आए।

सभा के आखखर में लक्खी सेठ ने अध्यिीय भाषण हदया।

उन् ोंने क ा फक इसमें कोई शक न ीिं फक इिरा ीमपरु ा एक मजु स्लम ि ु ल आिादी र्ाला नगर ै । इसमें भी कोई शक न ीिं फक इिरा ीपरु ा के मस ु लमान अमन-पसिंद


ैं----तमाम मस ु ीितों और तकलीिों के िार्जूद

मारे मस ु लमान भाई मख् ु य-िारा को

मानते ैं। दे श की तरक्की के ललए किंिे से किंिा लमलाकर काम करने में यकीन रखते ैं। य

र्ाकई खेद का पर्षय ै फक पलु लस पर्भाग ने बिना छान-िीन, खोज-खिर के

लसिा शक के आिार पर मजु स्लम यर् ु क यस ू ि ु को धगरफ्तार करके ले गई ै । म इस धगरफ्तारी की भत्र्सना करते

ैं, ननन्दा करते

ैं और एसपी, कलमश्नर, कलेक्टर और

राज्य सरकार से प्राथाना करते ैं फक यस ो तो उसे पेश फकया ू ि ु के खखलाि कोई सित ू जाए या फक उसे िाइज़्जत रर ा फकया जाए अन्यथा इिरा ीमपरु ा के ननर्ासी पर्रोि

प्रदशान के उग्र तरीकों को अपनाने के ललए िाध्य ो जाएिंगे---जजसकी सारी जजम्मेदारी शासन-प्रशासन की

ोगी।

सभा में सलीमा के साथ यस ू ि ु की अम्मी भी थीिं----.


साबत ु बचा न कोई--दे खते-दे खते एक हदन ऐसा भी आया, जि इत्ती िड़ी दनु नया चप ु के से पर्श्र्ग्राम िन गई।

जि पोस्टमैन की जग कूररयर के ि​िंदे और टे लीग्राम की जग एसएमएस आने लगे। जि नािाललग िच्चे चमकती सीडी और मेमोरी काडा की नन् ी धचप्स के जररए यौन-पर्द्या के गोपनीय मिंत्र र्ीभत्स तरीके से

सीखने लगे।

जि आीन-लाईन शापपिंग से जस्लम फिगर िनाने र्ाले, गिंजापन दरू करने र्ाले, अिंग्रेजी

लसखाने र्ाले, सेक्सी-लक ु र्ाले अत्यिंत जरूरी उत्पाद जनता के हदलो-हदमाग में पया​ाप्त जग

िनाने लगे।

जि औरतें म ीने के उन ख़ास हदनों में परु ाने कपड़े की जग इस्तेमाल करने लगीिं और नर्जात लशशु ‘ ग्गीज’---!

‘सेनेटरी-नेपफकन’

जि यौन-व्यर् ार में नैनतकता और मया​ादा की िात पर जोर दे ने की जग स र्ास में सार्िानी की तरकीिें िताने लगीिं।

सरकारें ,

जि समाचार चैनल िलात्कार की खिरें हदखा टीआपी िढाने लगे।

जि जेलों, पर्श्र्पर्द्यालय कैम्पसों में और रे ड-लाईट एररया में ‘किंडोम’ आसानी से उपलब्ि

ोने लगे।

जि अमीर िनने की चा त रखने र्ाली कमलसन िालाओिं ने जान ललया फक ‘जो हदखता ै , र् ी बिकता

ै !’ और दे -प्रदशान एक कला

ै न फक अश्लीलता।

जि मीडडया ने अपनी तमाम ताक़त, भख ू , गरीिी, िेकारी, दललतों-अल्पसिंख्यकों पर अत्याचार जैसी ख़िरों से

टाकर ननत नए स्कूप तलाश करने लगी।

जि फक्रकेट खखलाडडयों के चयन में दे श के सिसे िड़े रिं गमिंच का क़ीमती समय ि​िा​ाद ोने लगा और उिर गरीि फकसान आत्म त्या करते र े ।

जि प्राईम-टाईम के तमाम िारार्ाह कों से आम-आदमी एकदम गायि ोता गया और उनकी जग अमीरजाहदयों और िनपशओ ु िं के अर्ैि सम्ि​िंि, सत्ता के षडयिंत्रों ने ले ली।

ति उस छोटे से नगर इब्रा ीमपरु ा ने भी समझ ललया फक र् अि एक पर्कलसत लसटी


िनने जा र ा

ै।

अि नगर में तीन-तीन पेट्रोल-टिं फकया, दो लसनेमा-घर और मोटर-साईफकल, टीर्ी, फफ्रज आहद के कई शो-रूम खल ु गए।

गली-गली मेीेीिं र्ीसीडी प्लेयर और नीली-कैसेट की गम ु हटयािं डल गईं।

दत ु ल्ला मकानों में इिंटरनेट के जररए ‘एडल्ट-साईट’ दे ख-दे ख कर लोग अपना सामान्य ज्ञान िढाने लगे और आपस में लमलने पर क ने लगे फक र्ाीर्, नेट न ोता तो एक इिंपाटें ट नाीलेज से

म र्िंधचत र

जाते भाई! दे ीख े ा तुमने, माीम और ग्रेजन्नयािं भी

फकतनी सेक्सी ोती ैं। म तो सोचते थे फक एक उम्र के िाद सि कुछ खत्म ो जाता ै।

‘‘अम्मेजजिंग या---र! टोटे ली अनबिलीर्ेिल एनल-सेक्स की डीर्ीडीज!’’

ै सि! दे खा तुमने लेजस्ियन, गे और

ऐसे समय में जो नौयर् ु क कुछ न िेच सके र्

हदन-भर में मोिाईल के ललए

‘टाीप-अप’, सट्टे की पट्हटयािं, िीयर और ठरा​ा, गािंजा और ब्राउन-शग ु र की पडु डया आहद िेच-िेचकर रूपए िनाने लगे।

िुसात में नौयर् ु क लड़फकयों को छे ड़ना, रे ल्र्े-स्टे शन जाकर छोटी-मोटी चोरी-नछनैती अिंजाम दे ने जैसे पाटा -टाईम काम करने लगे।

र्ैसे सलीमा ने एक िात की और नोहटस ली फक अि जो जमाना आया ै उसमें कई लड़फकयािं खुद की नछड़ने के ललए तत्पर र ती ैं। इस काम में मोिाईल ने उनकी कािी

मदद की। इन तेज-तरा​ार लड़फकयों ने िाकायदा जजस्म-िरोशी के नए िाजार तैयार कर ललए

ैं।

इिरा ीमपरु ा में प ले ज ािं दो िैंक ु आ करते थे लेफकन िाजारर्ाद की आिंिी से नगर में कई और िैंक खुल गए थे। कई एटीएम मशीनें लग गई थीिं। सलीमा ने जजस िैंक से आटा-चक्की के ललए लोन ललया था उस िैंक की औकात िढी और नतीजतन ब्रािंच-मैनेजर पद के ललए फकसी सीननयर अधिकारी की जग

िनी।

एक हदन जि सलीमा िैंक गई तो उसने दे खा फक िैंक-मैनेजर के कमरे के िा र लगे नाम-पट्ट पर आर. के. पर्श्र्कमा​ा दजा ै ।

उसे लगा फक क ीिं ये र् ी पर्श्र्कमा​ा सा ि तो न ीिं जजन् ोंने उसकी जजन्दगी की लोकल


गाड़ी को एक्सप्रेस में िदल हदया था। सलीमा का जी िक-िक कर उठा।

उसने रस्तोगी िािू से सम्पका सािा।

िैंक का िड़ा िािू रस्तोगी खश ु -लमजाज आदमी था। र्

सलीमा के इनत ास से पररधचत था।

सलीमा ने रस्तोगी िािू से ब्रािंच-मैनेजर के कमरे की तरि इशारा कर पछ ू ा-‘‘क्या ये अपने पर्श्र्कमा​ा सा ि

ैं?’’

रस्तोगी ने आिंख मारकर क ा-‘‘ ािं, दो हदन प ले ी सा ि ने य ािं का चाजा सम्भाला ै ।’’

सलीमा से र ा न गया।

उसके क़दम सीिे मैनेजर के कमरे की तरि िढ गए।

िैंक के अिंदर काफ़ी िेर-िदल ु ई थी। प ले सि-कुछ परु ाने तौर-तरीके का ु आ करता था। प ले लकड़ी के पाटीशन या

पािंच-इिंची दीर्ारों के अलग-अलग कम्पाटा मेंट िनाए गए थे। ब्रािंच-मैनेजर का कमरा भी

परम्परागत ु आ करता था। लेफकन जि से कम्प्यट ू राईजेशन ु आ ति क्लकोीेीिं की सिंख्या घटी और िैंक का अिंदरूनी मा ौल िदल गया। अि िैंक ने श री तजा पर एक िड़े

ाील को लकड़ी और कािंच के छोटे -छोटे , खूिसरू त कम्पाटा मेंट में िदल डाला ै ।

एयरकण्डीशन लग जाने से िैंक के अिंदर िड़ा सक ु ू न लमलता ब्रािंच-मैनेजर का कमरा भी दे खने लायक िना

ै।

ै।

चार िुट की ऊिंचाई तक कमरे में प्लाई लगा ै और उसके ऊपर छत तक कािंच लगा ु आ ै । दरर्ाजा न थी।

ल्के मैरून रिं ग का अल्प-पारदशी था, जजस पदा​ा लगाने की जरूरत

सलीमा ने प्लाई के ऊपर लगे कािंच से कमरे के अिंदर का जायजा ललया। टकले लसर र्ाला जो व्यजक्त मख् ु य कुसी पर पर्राजमान था र् सा ि

ी था।

सलीमा भार्ार्ेश में कािंच का दरर्ाजा गई।

ननस्सिंदे

पर्श्र्कमा​ा

ल्के से पश ु करके सीिे कमरे के अिंदर चली


पर्श्र्कमा​ा सा ि के सामने ढे र सारे कागजात पड़े थे।

र् एक कागज पर कलम रखे थे और उनकी नजरें गड़ाए कम्प्यट ू र के स्क्रीन पर थीिं। स्क्रीन की रौशनी से उनके लसर पर पड़ र ी थी जजससे उनकी चािंद चमक र ी थी। सलीमा को

िं सी आ गई।

सलीमा टे बिल के सामने रखी कुसी पर िैठ गई और िीरे से उन् ें ‘आदाि’ क ा।

पर्श्र्कमा​ा सा ि ने लसर उठाया और उसे सामने िैठा दे ख आश्चया-चफकत ु ए। थोड़ा मस् ु कुराए और तत्काल उन् ोंने घण्टी िजाई और सलीमा के ललए चाय लाने को चपरासी से क ा।

सलीमा खुश ु ई फक चलो सा ि उसे भल ू े न ीिं ैं। क्या ु आ फक अि उसके जजस्म में प ले जैसी कोई कसक-चमक न ीिं र ी लेफकन हदल तो अि भी उसका उतना ी कोमल और जर्ान ै । उसके अिंदर अि भी एक चा त तो िरकरार ी ै फक कोई उससे प्यार करे , उससे सु ानभ ु नू त रखे और उसका ख्याल रखे।

पर्श्र्कमा​ा सा ि ने सामने रखे तमाम कागजात एक तरि सलीमा की तरि मख ु ानति ु ए। र् उसे गौर से दे ख र े थे।

टा हदया और परू ी तर

सलीमा को अपने र्जूद पर तरस आ र ा था। ‘‘क्या

ाल िना रखा

सलीमा क्या क ती।

ै सलीमा तुमने?’’--य ी तो क ा था पर्श्र्कमा​ा सा ि ने।

सरु ै या घर से क्या भागी, सलीमा की जजन्दगी में र्ीरानी जर्ान सरु ै या की

रक़त के िाद सलीमा जैसे टूट

सलीमा जर्ाि में मस् ु कुराना चा रे खाएिं ऐसी नजर आईं जैसे र्

ी र्ीरानी आ गई।

ी गई थी।

र ी थी, लेफकन उसके रूखे चे रे पर मस् ु कान की

रोना चा

र ी

ो।

सलीमा पर्श्र्कमा​ा सा ि से क ना चा र ी थी फक फकतना अच्छा लगा फक आप मझ ु े भल ू े न ीिं र्

ैं।

न पाई।

िस चप ु चाप उन् ें मिंत्रमग्ु ि नन ारती र ी। ति तक चाय आ गई।


पर्श्र्कमा​ा सा ि ने चाय का कप चपरासी से लेकर सलीमा की तरि िढाया।

सलीमा िन्य ु ई। चाय फकसी तर पीकर उसने उठते ु ए क ा-‘‘अल्ला की मे रिानी, जो आप मझ ु े भल ू े न ीिं ैं।’’ पर्श्र्कमा​ा सा ि िं स हदए और िोले-‘‘कैसा चल र ा

ै ?’’

सलीमा ने क ा-‘‘आप की दआ ै , सि ठीक-ठाक ै । आपने मदद न की ोती तो जाने ु क्या

ोता!’’

‘पपताजी कैसे

ैं----और तुम् ारी ि नें ठीक

ैं न---?’’

सलीमा क्या जर्ाि दे ती---चाय पीते ु ए उसने िताया सिंिेप में सरु ै या की िारे में पर्श्र्कमा​ा सा ि को िताया।

रकत के

र्े सोच में पड़ गए। कुछ सोच कर क ा फक पलु लस में ररपोटा दजा कराई थी---?

सलीमा ने ितलाया फक पलु लस-थाने गई थी ज ािं पलु लस र्ालों ने ये क कर ररपोटा

ललखने से इिंकार कर हदया फक लौंडडया अपने फकसी यार के साथ भागी ोगी और लौट

के आना ोगा तो आ जाएगी र्रना इतनी िड़ी दनु नया में जाने फकतनी सरु ै याएिं यिंू ी घर से भागती र ती

ैं----पलु लस फकतनों को ढूिंढे----

पर्श्र्कमा​ा सा ि क्या जर्ाि दे ते---

उन् ोंने सलीमा से क ा-‘‘शाम को लमलते ैं----घर आओ तो इत्मीनान से िातें करें गे।’’ सलीमा मस् ु कुराई-‘‘ठीक

ै ।’’


मेरे िख ु की िवा करे कोई---सलीमा शाम सात िजे पर्श्र्कमा​ा सा ि के ि​िंगले प ुिं ची। र् अकेले ी थे। सलीमा को दे ख खखल उठे ।

सलीमा उनके ड्राइिंग-रूम आकर सोिे पर आराम से िैठ गई। पर्श्र्कमा​ा सा ि ने नौकर को आर्ाज दी। र्

एक िढ ू ा आदमी था, उससे पर्श्र्कमा​ा सा ि ने क ा-‘‘खाना तैयार

नौकर िोला-‘‘जी सर!’’

ो गया?’’

‘‘अच्छा अि जल्दी से दो काफ़ी िनाओ और छुट्टी करो।’’

नौकर सलीमा को घरू कर दे खता ु आ फकचन चला गया। सलीमा ने टी-टे बिल पड़ा अख़िार उठा ललया और सरसरी नजरों से खिरें पढने लगी। अखिार में एक प्रलसद्ि सिंत के जीर्न पर सनसनीखेज जानकाररयािं थीिं। फकस तर

तथाकधथत सिंत अपने मो -पाश में किंु र्ारी लड़फकयों को िािंसता था फिर

उनका शील- रण करता था। उसके आश्रम में एक ऐसा तिंत्र पर्कलसत था जो िड़े

गोपनीय तरीके से इस काया का अिंजाम दे ता था। किंु र्ारी लड़फकयों को प्रलोभन या प्रताड़ना के द्र्ारा मिंु

ि​िंद रखने की िमकी दी जाती थी।

सलीमा को अपना िचपन और अपने साथ ु आ यौन-उत्पीड़न आया, साथ ी याद आए गिंगाराम सर---लेफकन र्े तो िड़े मु ब्िती थे, उन् ें अपरािी कैसे क े सलीमा? और उसे सरु ै या की याद

अखिार के अिर िड़े-िड़े

ो आई।

ोकर काली चादर में िदल गए।

सलीमा ने अखिार को टे बिल पर रख हदया और कमरे का जायजा लेने लगी।

पर्श्र्कमा​ा सा ि का घर सस ु जज्जत था जो उनकी सरू ु धच को प्रदलशात करता था। तभी नौकर कािी ले आया।

पर्श्र्कमा​ा सा ि गाउन प ने सामने आ िैठेीे और एक लसगरे ट सल ु गा ली।


सलीमा के मन में लसगरे ट पीने की इच्छा ु ई। नौकर ने काफ़ी की ट्रे टे बिल पर रख कर पर्श्र्कमा​ा सा ि से छुट्टी कर ली।

सलीमा ने कािी लसप करते ु ए टे बिल पर रखे लसगरे ट के पैकेट को उठा ललया। सलीमा ने एक लसगरे ट ननकाल कर ोंठ से लगाई तो पर्श्र्कमा​ा सा ि ने मस् ु कुराकर लाईटर आीन फकया।

सलीमा ने लसगरे ट का ग रा कश अिंदर खीिंचा। अब्िू की िीडडयािं र्

यदा-कदा पी ललया करती थी।

लसगरे ट का ि​िंआ उतना कसैला न ीिं था और िीड़ी जैसा िदिू भी न ीिं कर र ा था। ु उसे मजा आने लगा।

काफ़ी पीकर र्े लोग िेड-रूम में आ गए।

पर्श्र्कमा​ा सा ि ने उसे अपने डिल-िेड पर डिल तफकया के स ारे पर हटकाया और पलिंग के पैताने रखी िड़ी सी टीर्ी के पास जाकर खड़े ु ए। िोले-‘‘कुछ मजेदार चीज दे खना ै ?’’ सलीमा ने

ािं में लसर ह लाया।

पर्श्र्कमा​ा सा ि ने डीर्ीडी पर एक ब्ल-ू फिल्म चलाई।

दो अिंग्रेज लड़फकयािं और एक ब्शी आदमी के िीच जजस्मानी खेल की फिल्म थी र् । पर्श्र्कमा​ा सा ि उसके पास आकर िैठ गए।

सलीमा फिल्म में मगन थी और पर्श्र्कमा​ा सा ि उसके जजस्म के उतार-चढार् में । पर्श्र्कमा​ा सा ि उठे और दो धगलासों में जाम िना कर ले आए।

फिर र् फकचन की तरि गए और लौटे तो उनके ाथ में एक तश्तरी थी जजसमें भन ु ा काजू और पपस्ता था।

सलीमा ने एक काजू मिंु

पर्श्र्कमा​ा सा ि ने उसके

में डाल ललया।

ाथ में जाम का एक धगलास पकड़ाया।

फिर दोनों ने ‘चीयसा’ िोल कर जाम टकराए।

सलीमा ने जाम का घिंट ू भरा और कड़र्ा लगा तो काजू के दो-तीन टुकड़े मिंु के र्ाले फकए।

पर्श्र्कमा​ा सा ि तरिं ग में आकर िोले-‘‘अभी तक तम ु ने जजतनी पपक्चर दे खी सि


पर्दे शी ु आ करती थीिं। अि अपने दे श में भी ब्लू फिल्म िनने लगी ै । मेरे पास एक ‘दे सी पपक्चर’ ै , खाललस ह न्दस् ु तानी, हदखाऊिं!’’ सलीमा इिंकार क ािं करती। र्

तो इसी िात पर िन्य

ो जाया करती फक पर्श्र्कमा​ा सा ि उससे पछ ू लेते

अि टीर्ी के स्क्रीन पर दस ू री पपक्चर आने लगी।

ैं।

इसमें हदखलाई जाने र्ाली लड़फकयािं दक्षिण-भारत की लग र ी थीिं। काली-कलट ू ी, भारी जजस्म र्ाली लड़फकयािं। आदमी भी ऐसे जैसे गिंदे रािस।

ािं, ह न्दस् ु तानी लड़फकयािं अिंग्रेजों जैसी बि​िंदास न ीिं थीिं।

उनकी

रकतों में उतना खुलापन न ीिं था, जजससे सलीमा को मजा आने लगा।

कि जाम खाली ु आ और कि पर्श्र्कमा​ा सा ि ने दस ू रा पैग िनाया, र् जान न पाई। सलीमा की ननगा ें टीर्ी स्क्रीन पर जीम थीिं। दक्षिण-भारतीय लड़फकयों र्ाला ‘खेला’ खत्म ु आ और स्क्रीन पर हदखने लगा फकसी िड़े ोटल का िाथरूम--िाथरूम में एक लड़की घस ु र ी

ै।

एक भरपरू जर्ान लड़की, जजसने लमनी-स्कटा प न रखा कैमरे से लड़की के पीछे की तरि

ै।

उसकी खि ू सरू त पीठ नमद ू ार

ै।

लड़की प ले टाीप उतारती

ै।

ोती

पर्श्र्कमा​ा सा ि सलीमा की पीठ पर सलीमा के िदन पर सरु सरु ा ट

ोती

ै।

ाथ रखकर दिार् िनाते

ै।

ैं।

फिर लड़की झक ु ती ै और उसकी लमनी-स्कटा में कैद जजस्म कैमरे के िोकस में आता ै।

लड़की िीरे -िीरे स्कटा उतारती अि र्

लसिा पैंटी प ने

ै।

ै।

फिर लड़की अचानक कैमरे की तरि घम ू ती

ै।

सलीमा को लड़की का चे रा जाना-प चाना लगता ै और र् अचानक चीख पड़ी-‘‘अरे


ये तो अपनी सरु ै या

ै !’’

सलीमा की चीख सन ु कर पर्श्र्कमा​ा सा ि घिरा गए।

सलीमा ने आिंखें ि​िंद कर लीिं और अिनिंगा जजस्म ललए िेडरूम से िा र ननकल आई। पर्श्र्कमा​ा सा ि के

ाथ से धगलास छूट गया और र्

दे खा सलीमा सोिे पर लस्त सी पड़ी उसकी सािंसें िौंकनी की तर

चल र ी

ै।

भी सलीमा के पीछे भागे।

ैं, जैसे मीलों दौड़कर आई

सलीमा पर्श्र्कमा​ा सा ि के किंिे पर लसर रख जार-जार रोने लगी। पर्श्र्कमा​ा सा ि समझना चा

र े थे फक माजरा क्या

ो।

ै?

और सलीमा उन् ें कैसे समझाती फक अभी स्क्रीन पर जजस लड़की के जजस्म का लत्ु ि र्े लोग उठा र े थे र्

और कोई न ीिं िजल्क सलीमा की मिंझली ि न सरु ै या ै ----..


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