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व कायालय
ारा
तुत मािसक ई-प का
अग त 2010
NON PROFIT PUBLICATION
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1 य आ मय
FREE E CIRCULAR
गु
व
बंधु/ ब हन
योितष प का
जय गु दे व
संपादक
िचंतन जोशी संपक गु
व
गु
योितष वभाग
व कायालय
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vxLr 2010
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व
ा
ारा अग त मास से िनयिमत मािसक ई
योितष को आपको अपने जीवन म गितशील होने का सुगम
हो एवं आपको अपने जीवन म सम त
कार के भौितक सुखो क
होकर आपके भीतर आ या मक वकास एवं
संबंिधत
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हो इस उ े य से हम गु
क और से आपको एवं आपके प रवार को गु
व
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ाण- ित त पूण चैत य यु
विध- वधान से विश तेज वी मं ो
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फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
तुित
िचंतन जोशी, फोटो
व कायालय प रवार
िनशु ल भेट कर रह ह।
फोन
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ाचीन भारतीय व ान से
सूय क करणे उस घर म वेश करापाती है । जीस घर के खड़क दरवाजे खुले ह ।
व तक आट
िचंतन जोशी
हमारे मु य सहयोगी व तक.ऎन.जोशी ( व तक सो टे क इ डया िल)
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वशेष लेख ावण मास के थम सोमवार त के लाभ
31 44
द र ता से मु
अनु म गु
ाथना
गुव कम ्
िशव मह व
िशव उपासना का मह व महामृ युंजय मं
महामृ युंजय मं जाप कस समय कर? सव रोगनाशक यं /कवच
िशव कृ पा हे तु उ म ावण मास
भौितकक दरू होते ह ावणमास के सोमवार तसे सोमवार त कथा सा ात
ह िशविलंग
आपक रािश और िशव पूजा ादश योितिलग तो म ्
िशवरा
त से लाभ
गंगा का वग से पृथवी पर आगमन केसे हवा ु ? िशव पूजन से कामना िस
ा- वषणु-महे श म े कोन?
िशविलंग पूजा का मह व या ह? चातुमास त का मह व य िशव को
य ह बेल प ?
सोलह सोमवार तकथा
िशविलंग के विभ न कार व लाभ िशवप चा र
तो म ्
िशव के क याणकार मं
ावण सोमवार त कैसे कर?
3 4 5 6 7 8 9 11 12 13 14 15 16 17 18 20 21 22 23 25 27 31 32 32 33
कम फल ह केवलं
34 35 36 37 40 43 44 48 51 53 54 55 56 57 58 59 60 63 64 65 66 67 68 69 71
गु आ ा पालक िश य उपम यु िशव कामदे व कथा
िशव और सती का ेम
िशव पावती का ववाह गु सेवा
द र ता से मु
दोष त का मह व
सव काय िस
कवच
वेदसार िशव तव महाकाल तवन ािभषेक तो
िशव मानस पूजा िशवा कम ी
ा कम
िलंगा कम
िशवम ह न तो म ् ा कृ त िशव तो
िशव आरती
िशव तांडव तो
िशव तुित (राम च रतमानस) मािसक रािश फल मािसक पंचांग
मािसक त-पव- यौहार वशेष योग
लघु कथाएं शैतान
जीवन म
13 ान क कमाई
19
अपन क चोट
वधाता क े कृ ित
26 30
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गु
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ाथना िचंतन जोशी
गु
ा ु व णुः गु दवो महे रः ।
गु ः सा ात ् परं भावाथ: गु
ा ह, गु
व णु ह, गु
त मै ी गुरवे नमः ॥
ह शंकर ह; गु
ह सा ात ् पर
ह; एसे स ु को नमन ।
यानमूलं गु मू ितः पूजामूलम गु र पदम।् मं मूलं गु रवा यं मो मूलं गु र कृ पा।। भावाथ: गु
क मूित
यान का मूल कारण है , गु
सम त मं
का और गु
क कृ पा मो
ाि
के चरण पूजा का मूल कारण ह, वाणी जगत के
का मूल कारण ह।
अख डम डलाकारं या ं येन चराचरम।् त पदं दिशतं येन त मै ीगुरवे नमः।। वमेव माता च पता वमेव वमेव बंधु वमेव व ा
सखा वमेव।
वणं वमेव वमेव सव मम दे व दे व।।
ानंदं परमसुखदं केवलं
ानमूित
ं ातीतं गगनस शं त वम या दल यम ् । एकं िन यं वमलमचलं सवधीसा
भावातीतं भावाथ:
ा के आनंद प परम ् सुख प,
भुतं
गुणर हतं स ु ं तं नमािम ॥ ानमूित, ं से परे , आकाश जैसे िनलप, और सू म "त वमिस"
इस ईशत व क अनुभूित ह जसका ल य है ; अ तीय, िन य वमल, अचल, भावातीत, और ऐसे स ु को म णाम करता हँू ।
गुणर हत -
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गुव कम् शर रं सु पं तथा वा कल ,ं यश ा िच ं धनं मे तु यम।् मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्१॥ कल ं धनं पु पौ ा दसव, गृ हो बा धवाः सवमेत
जातम।्
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्२॥ षड़ं गा दवेदो मुखे शा
व ा,
क व वा द ग ं सुप ं करोित। मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्३॥ वदे शेषु मा यः वदे शेषु ध यः, सदाचारवृ ेषु म ो न चा यः। मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्४॥ माम डले भूपभूपलबृ दै ः, सदा से वतं य य पादार व दम।् मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्५॥ यशो मे गतं द ु दान तापात ्, जग
तु सव करे य
सादात।्
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्६॥ न भोगे न योगे न वा वा जराजौ, न क तामुखे नैव व ेषु िच म।् मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्७॥
अर ये न वा व य गेहे न काय,
(५) जन महानुभाव के चरण कमल
न दे हे मनो वतते मे वन य।
भूम डल के राजा-महाराजाओं से िन य
मन ेन ल नं गुरोरि प ,े
पू जत रहते ह , कंतु उनका मन य द गु
ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्८॥
के ीचरण के ित आस
गुरोर कं यः पठे पुरायदे ह ,
सदभा य से या लाभ?
यितभूपित
(६) दानवृ
चार च गेह ।
लमे ा छताथं पदं गुरो ॥इित
न हो तो इस
के ताप से जनक क ित
चारो दशा म या हो, अित उदार गु क
सं ,ं
सहज कृ पा
वा ये मनो य य ल नम॥्९॥
से ज ह संसार के सारे
सुख-ए य ह तगत ह , कंतु उनका मन
ीमद आ शंकराचाय वरिचतम ्
गुव कम ् संपूण म॥ ्
य द गु के ीचरण म आस भाव न
भावाथ: (१) य द शर र पवान हो, प ी
रखता हो तो इन सारे एशवय से या लाभ?
भी पसी हो और स क ित चार दशाओं म व त रत हो, सुमे पवत के तु य अपार
ी-सुख और धन भोग से कभी वचिलत
धन हो, कंतु गु के ीचरण म य द मन आस
न होता हो, फर भी गु के ीचरण के ित
न हो तो इन सार उपल धय से
आस
या लाभ?
एवं वजन, आ द ार ध से सव सुलभ हो हो तो इस ार ध-सुख से या लाभ? (३) य द वेद एवं ६ वेदांगा द शा
न
ज ह
कंठ थ ह , जनम सु दर का य िनमाण क ितभा हो, कंतु उनका मन य द गु के ीचरण के ित आस
सदगुण से या लाभ?
न हो तो इन
(४) ज ह वदे श म समान आदर िमलता हो, अपने दे श म जनका िन य जय-
जयकार से वागत कया जाता हो और
(८) जनका मन वन या अपने वशाल भवन म, अपने काय या शर र म तथा अमू य भ डार म आस
नह ं, य द उनका भी मन गु के ीचरण के
न हो तो सदगुण से या लाभ?
न हो, पर गु के
ीचरण म भी वह मन आस
न हो पाये
तो इन सार अनास
य का या लाभ?
(९) जो यित, राजा,
चार एवं गृ ह थ इस
गु अ क का पठन-पाठन करता है और जसका मन गु के वचन म आस
है , वह
पु यशाली शर रधार अपने इ छताथ एवं पद इन दोन को सं ा कर लेता है यह
जसके समान दसरा कोई सदाचार भ ू ित आस
न बन पाया हो तो मन क इस
अटलता से या लाभ?
(२) य द प ी, धन, पु -पौ , कुटु ं ब, गृ ह कंतु गु के ीचरण म य द मन आस
(७) जनका मन भोग, योग, अ , रा य,
िन
त है ।
***
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िशव मह व
िचंतन जोशी धम शा ो म भगवान िशव को जगत पता बताया गया ह। यो क भगवान िशव सव यापी एवं पूण
ह। हं द ू सं कृ ित
म िशव को मनु य के क याण का तीक माना जाता ह। िशव श द के उ चारण या को परम आनंद
यान मा से ह मनु य
दान करता ह। भगवान िशव
भारतीय सं कृ ित को दशन ान के
ारा संजीवनी
दान करने वाले दे व ह। इसी कारण अना द काल से भारतीय धम साधना म िनराकार प म होते हवे ु भी िशविलंग के प म साकार मूित
क पूजा होती ह। दे श- वदे श म भगवान िशव के मं दर
हर छोटे -बडे शहर एवं
क बो म मोजुद ह, जो भगवान महादे व क
यापकता को एवं उनके भ ो
आ था को
क
कट करते ह।
भगवान िशव एक मा
एसे दे व ह जसे
भोले भंडार कहा जाता ह, भगवान िशव थोङ सी पूजा-अचना से ह वह जाते ह। मानव जाित क उ प
स न हो भी भगवान
िशव से मानी जाती ह। अतः भगवान िशव के व प को जानना
येक िशव भ
के िलए परम
आव यक ह। भगवान भोले नाथ ने समु से िनकले हए ु सम
मंथन
वष को अपने कंठ म धारण
कर वह नीलकंठ कहलाये।
योितष संबंिधत वशेष परामश योित व ान, अंक
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f’ko mikluk dk egRo िचंतन जोशी भगवान िशव का सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण तीन पर एक समान अिधकार ह। िशवने अपने म तक पर चं मा को धारण कर शिश शेखर कहलाये ह। चं मा से िशव को वशेष नेह होने के कारण चं सोमवार का अिधपित ह इस िलये िशव का
य वार सोमवार ह।
िशव क पूजा-अचना के िलये सोमवार के दन करने का वशेष मह व ह, इस दन अिभषेक करने से िशवक
त रखने से या िशव िलंग पर वशेष कृ पा
सभी सोमवार िशव को मास के सभी सोमवार को अिभषेक पूरे वष कये गये
ा
होती ह।
य ह, परं तु पूरे
कये गये
ावण
त-पूजा अचना
त के समान फल
दान करने
वाली होती ह। िशव को ावण मास इस िलये अिधक
य ह
यो क
ावण मास म वातावरण म जल त व क अिधकता होती ह एवं चं
जलत व का अिधपती
ह ह। जो िशव के
म तक पर सुशोिभत ह। िशव उपासना के विभ न
प वेद म व णत ह। िशव मं
िशवाय" और महामृ युंजय इ या द मं जाप कई गुना अिधक साधनो क
ाि
भाव शाली िस
ावण मास म वशेष मह व ह,
होते दे खे गये ह। जहा िशव पंचा र मं
हे तु वशेष लाभकार ह, वह ं महामृ युंजय मं
क -द र ता दरू होकर उसे द घायु क अितवृ , अनावृ
के जप का भी
उपासना म पंचा र "नम: िशवाय" या "ॐ नम:
ाि
ावण मास म कय गये मं
मनु य को सम त भौितक सुख
के जप से मनु य के सभी
होती ह। महामृ युज ं य मं ,
एवं महामार आ द से र ा होती ह एवं अ य सभी
कार के मृ यु भय-रोग-
ािभषेक आ द का सामु हक अनु ान करने से कार के उप व क शांित होती ह।
भा य ल मी द बी सुख-शा त-समृ
क
ाि के िलये भा य ल मी द बी :- ज से धन ि , ववाह योग, यापार वृ ,
वशीकरण, कोट कचेर के काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता अनेक परे शािनयो से र ा होित है और घर मे सुख समृ
क बाधा, श ु भय, चोर भय जेसी
क ाि होित है , भा य ल मी द बी मे लघु
ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली-सफ़ेद-लाल गुंजा, इ
माय जाल, पाताल तुमड जेसी अनेक दल ु भ साम ी होती है ।
जाल,
मू य:- 910 से 8200 तक उ ल
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महामृ यु जय मं
िचंतन जोशी महामृ युंजय मं
के विध वधान के साथ म जाप करने से अकाल मृ यु तो टलती ह ह, रोग,
शोक, भय इ या द का नाश होकर य यद जप करने से
को
व थ आरो यता क
ाि होती ह।
नान करते समय शर र पर पानी डालते समय महामृ यु जय मं का वचा स ब धत सम याए दरू होकर
वा
य लाभ होता ह।
य द कसी भी कार के अ र क आशंका हो, तो उसके िनवारण एवं शा त के िलये शा
म स पूण विध- वधान से महामृ युंजय मं के जप करने का
उ लेख कया गया ह। ज से दे वो के दे व महादे व को रोगमु
य
मृ यु पर वजय
स न होकर अपने भ
ाि
का वरदान दे ने वाले
के सम त रोगो का हरण कर य
कर उसे द घायु दान करते ह।
मृ यु पर वजय ा करने के कारण ह इस मं को मृ युंजय कहा जाता है । महामृ यंजय मं क म हमा का वणन िशव पुराण, काशीखंड और महापुराण म कया गया ह। आयुवद के ंथ म भी
मृ युंजय मं का उ लेख है । मृ यु को जीत लेने के कारण ह इस मं को मृ युंजय कहा जाता है । मह व:
मृ यु विन जतो य मात ् त मा मृ युंजय: मृ त: या मृ युंजयित इित मृ युंजय,
अथात : जो मृ यु को जीत ले, उसे ह मृ युंजय कहा जाता ह। मानव शर र म जो भी रोग उ प न होते ह उसके बारे म शा ो म जो उ लेख ह वह इस "शर रं यािधमं दरम ्"
ांड के पंच त व से उ प न शर र म समय के अंतराल पर नाना कार क आिध- यिघ उपािधयां
उ प न होती रहती ह। इस िलए हम अपने शर र को व िन
कार ह।
त समय पर करना पडता ह। य द इन सब को िन
य रखने के िलए आहार- वहार, खान-पान और िनयिमत दनचया त समय अविध पर करते रहने के बाद भी य द कोई रोग या
यािध हो जाए एवं वह रोग इलाज कराने के बाद भी य द ठ क नह ं हो एवं सभी जगा से िनराशा हाथ लगरह हो तो एसे अ र क िनवृ शा िशव ह। एवं य
या शांित के िलए महामृ यु य मं जप का म मृ यु भयको वप योितषशा
को फल
महामृ युंजय मं जप से िशव कृ पा महामृ युंजय का वेदो
या संकट माना गया ह, एवं शा ो के अनुशार वप
के अनुशार दख ु , वप
के कम के अनु प य मं
योग अव य कर।
ा
या मृ य के
या मृ य के िनवारण के दे वता
दाता एवं िनवारण के दे वता शिनदे व ह,
यो क शिन
दान करते ह। शा ो के अनुशार माक डे य ऋ ष का जीवन अ य प था, परं तु
कर उ ह िचरं जीवी होने का वरदान
िन निल खत है-
ा
हवा। ु
ॐ य बकं यजामहे सुग धं पु वधनम।्
उवा किमव ब धना मृ योमु ीय माऽमृ तात्॥ मं
उ चारण वचार :इस मं
उ चारण मे ह मं बीज मं
क सम
म आए श
का अथ िलए हए ु है ।
येक श द का उ चारण
समा हत होती ह। इस मं
प
करना अ यंत आव यक है , य क
म उ ले खत
प
श द
येक श द अपने आप म एक संपूण
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महामृ युंजय मं जाप कस समय कर?
िचंतन जोशी कब महामृ युंजय मं समय के क
का जाप
नान इ या द से िनवृ त होकर
तो दरू होते ह ह साथ म आने वाले क
काभी
वतः ह िनवारण हो जाता ह। महामृ युंजय मं
िनयिमत यथासंभव जाप करने से बहत ु बाधाएँ दरू होती एसा हमने हमारे थितय म महामृ युज ं य मं
ित दन भी कर सकते ह इ से व मान अनुभवो से जाना ह। परं तु य द
के वशेष
के जाप क आव य ा हो तो भी करयाजा सकता ह।
य द घरका कोइ सद य रोग से पी ड़त ह । या उसक सेहत बार बार खराब हो रह ह । भयंकर महामार से लोग मर रहे ह , तो जाप कर अपिन और अपने प रवार क सुर ा हे तु। य द सामु हक य
ारा जाप कया जाये तो अ यािधक लोगो को लाभ होता ह।
राजभय अथा त सरकार से संबंिधत कोइ पीडा या क
ह।
साधक का मन धािमक काय नह ं लग रहा ह । श ु से संबंिधत परे शािन एवं य द सामु हक य
लेश ह ।
ारा जाप कया जाये तो सम
व , दे श, रा य, शहर आ द के हताथ उ े य से
जप कये जासकते ह। इ से अ यािधक लोगो को लाभ होता ह। योितष मारक
हो
ारा
ितकूल (अशुभ) फल
भी ा
हो रह ह । य द ज म, मास, गोचर और दशा, अंतदशा, थूलदशा आ द म हपीड़ा होने क आशंका ह । कुंडाली मेलापक म य द नाड़ दोष, षडा क आ द दोष ह । एक से अिधक अशुभ
ह रोग एवं श ु
थान(ष म भाव) म ह ।
तो महामृ युंजय मं का जप करना परम फलदायी है । महामृ युंजय मं के जप व उपासना के तर के आव यकता के अनु प होते ह। का य उपासना के
प म भी इस मं का जप कया जाता है । जप के िलए अलग-अलग मं
का योग होता है । यहाँ हमने
आपक सु वधा के िलए सं कृ त म जप विध, विभ न यं -मं , जप म सावधािनयाँ, तो आ द उपल ध कराए ह। इस कार आप यहाँ इस अ भुत जप के बारे म व तृ त जानकार
ा कर सकते ह।
महामृ युंजय जप विध - (मूल सं कृ त म) कृ तिन य
यो जपकता वासने पांगमुख उदहमुखो वा उप व य धृ त
दे शकालौ संक य मम वा य मान य अमुक कामनािस यथ
ीमहामृ युंजय मं
कारिय ये। ॥ इित ा य हकसंक पः॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ गुरवे नमः। ॐ गणपतये नमः। ॐ इ दे वतायै नमः। इित न वा यथो
विधना भूतशु ं ाण ित ां च कुयात।्
ा भ म पु
ः । आच य । ाणानाया य।
य अमुक सं याप रिमतं जपमहं क र ये वा
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सव रोगनाशक यं /कवच मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से उिचत उपचार से
यादातर सा य रोगो से तो मु
होजाते ह, या कोइ असा य रोग से पाता। डॉ टर िलये य
िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या
िसत होजाते ह। हजारो लाखो
ा
नह ं हो
थती म लाभा
ाि
के
एक डॉ टर से दसरे डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह। ू
एवं तं
उ लेख अपने
को विभ न रोग से
ताप से रोग शांित हे तु विभ न आयुवर औषधो के अित र
ंथो म कर मानव जीवन को लाभ
बु जीवो के मत से जो य से
पये खच करने पर भी अिधक लाभ
ारा दजाने वाली दवाईया अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस
भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के मं
त होता ह।
जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार यो क सम
संसार काल के अधीन ह। एवं मृ यु िन
और कोई टाल नह ं सकता, ले कन रोग होने क मं
एवं तं
को कम करने का
यास हजारो वष पूव कया था। हण करता ह, एसे य
िसत होने क संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एसे य
त होते दख जाते ह।
इस िलये यं
दान करने का साथक
थती म य
रोग दरू करने का
के कुशल जानकार से यो य मागदशन लेकर य
यं ,
भी भयंकर रोग
त ह जसे वधाता के अलावा यास तो अव य कर सकता ह।
रोगो से मु
पाने का या उसके
भावो
यास भी अव य कर सकता ह।
योितष व ा के कुशल जानकर भी काल पु षक गणना कर अनेक रोगो के अनेको रह य को उजागर कर सकते ह। योितष शा
के मा यम से रोग के मूलको पकडने मे सहयोग िमलता ह, जहा आधुिनक िच क सा शा
अ म होजाता ह वहा
योितष शा
उपायोगी िस
ारा रोग के मूल(जड़) को पकड कर उसका िनदान करना लाभदायक एवं
होता ह।
हर य
म लाल रं गक कोिशकाए पाइ जाती ह, जसका िनयमीत वकास
जब इन कोिशकाओ के
म म प रवतन होता है या वखं डन होता ह तब य
उ प न होते ह। एवं इन कोिशकाओ का संबंध नव ज मांग से दशा-महादशा एवं
हो क गोचर म
थती से
ा
वाकषण बल भाव से य
भावीत कता ह
के मा यम से
ठक उसी
को सकारा मक उजा
वा
य संबंधी वकारो
ा
य
के
होता ह। य
के ज मांग म
भाव को कम करने का काय सरलता पूव क कया जासकता ह। जेसे हर य
पृ वी का गु सकारा मक
के शर र म
तर के से होता रहता ह।
हो के साथ होता ह। ज से रोगो के होने के कारणा
सव रोग िनवारण कवच एवं महामृ युंजय यं हो के अशुभ
म ब
कार कवच एवं यं
होती ह ज से रोग के
थत कमजोर एवं पी डत को
के मा यम से
ांड क उजा एवं ांड
भाव को कम कर रोग मु
क उजा के करने हे तु
सहायता िमलती ह। रोग िनवारण हे तु महामृ युंजय मं महामृ युंजय मं
से प रिचत ह।
एवं यं
का बडा मह व ह। ज से ह द ू सं कृ ित का
ायः हर
य
i
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10
vxLr 2010
कवच के लाभ :
एसा शा ो
वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं
ह वहा िनवास कता हो नाना
था पत होता
कार क आिध- यािध-उपािध
से र ा होती ह।
पूण
ाण
ित त एवं पूण चैत य यु
िनवारण कवच कसी भी उ लोग चाहे
एवं जाित धम के
ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।
ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब हो क
सव रोग
ितकूलता से रोग उतप न होते ह।
कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खानपान क अिनयिमतता और अशु तासे उ प न होते ह। कवच एवं यं योगो को न ा
ारा एसे अनेक कार के खराब
कर, वा
य लाभ और शार रक र ण
करने हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं
सव उपयोगी
होता ह।
आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरे शन और दवासे भी क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो को रोकने हे तु एवं उसके उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं येक य
लाभादािय िस
होता ह।
क जेसे-जेसे आयु बढती ह वैसे-वसै उसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक
कार के वकार पैदा होने लगते ह एसी
थती म भी उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं
फल द होता
ह।
जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न अिधक क दायक
जस य
थती होती ह। उपचार हे तु महामृ युंजय यं
ाण
फल द होता ह।
का ज म प रिध योगमे होता ह उ हे होने वाले मृ यु तु य क
उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं नोट:- पूण
मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये
ित त एवं पूण चैत य यु
एवं होने वाले रोग, िचंता म
शुभ फल द होता ह। सव रोग िनवारण कवच एवं यं
के बारे म अिधक जानकार हे तु हम
से संपक कर।
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/ Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
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vxLr 2010
िशव कृ पा हे तु उ म ावण मास
िचंतन जोशी भारत वष म अना दकाल से विभ न पव मनाये जाते ह, एवं भगवान िशव से संबंधी अनेक मनाए जाते रहे ह। इन उतसवो म
ावण मास का अपना वशेष मह व ह। पौरा णक मा यताओं के अनुशार
मास म चार सोमवार (कभी-कभी पांच सोमवार होते ह) , एक संयोग एकसाथ
त- यौहात
ावण मह ने म होता ह, इसिलए
दोष
त तथा एक िशवरा
ावण का मह ना िशव कृ पा हे तु शी
ावण
शािमल होत ह इन सबका शुभ फल दे ने वाला मानागया
ह। िशवपुराण
के
अनुशार
ावण
माह
म
ादश
योितिलग के दशन करने से सम त तीथ के दशन का पू य एक साथ ह
ा
प
हो जाता ह। पुराण
के अनुशार
ावण माह म
ादश
योितिलग के दशन करने से मनु य क सम त शुभ कामनाएं पूण होती ह एवं उसे संसार के सम त सुख उसे
िशव
कृ पा
से
मो
क
ाि
क हो
ाि
होकर
जाती
ह।
थम सोमवार को- क चे चावल एक मु ठ िशव िलंग
पर चढाया जाता ह। दसरे सोमवार को- सफेद ित ली एक मु ठ िशव िलंग ू पर चढाया जाता ह।
तीसरे सोमवार को- ख़ड़े मूँग एक मु ठ िशव िलंग पर चढाया जाता ह। चौथे सोमवार को- जौ एक मु ठ िशव िलंग पर चढाया जाता ह। य द पाँचवाँ सोमवार आए तो एक मु ठ क चा स ू चढाया जाता ह। िशव क पूजा म ब वप जल क
अिधक मह व रखता है । िशव
धारा से जलािभषेक िशव भ
ारा
ारा वषपान करने के कारण िशव के म तक पर
कया जाता है । िशव भोलेनाथ ने गंगा को िशरोधाय
कया है ।
ावण मास म िशवपुराण, िशवलीलामृ त, िशव कवच, िशव चालीसा, िशव पंचा र मं , िशव पंचा र महामृ युंजय मं
का पाठ एवं जाप करना वशेष लाभ
द होता ह।
ea= fl) nqyZHk lkexzh |ksMs+ dh uky&: 351 fl;kj flaxh&: 370 gRFkk tksM+h&: 370 fcYyh dh uky&: 370 गु
nf{k.kkorhZ ‘ka[k &: 550 eksrh ‘ka[k &: 550
व कायालय संपक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785
bUnz tky&: 251 ek;k tky&: 251
तो ,
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भौितक क दरू होते ह ावण मास के सोमवार त से
िचंतन जोशी ावण मास इस साल 27 जुलाई से 24 अग त के बीच रहे गा। इस दौरान 2 अग त , 9 अग त , 16 अग त , 23 अग त को चार सोमवार ावण मास म पड़ रहे ह। क हं दे शो म 27 जुलाई से ावण मास ारं भ होने से 5 सोमवार होरहे ह। ावण मास के सम त सोमवार के दन के दन
ातःकाल ह
शहद, घी, चीनी,
त करने से पूरे साल भर के सोमवार के
नान इ या द से िनवृ
ाि
ेत चंदन, रोली(कुमकुम), ब व प (बेल प ), भांग, धतूरा आ द स अिभषेक कया जाता ह।
रोजगार
त रखने से िशव कृ पा से अखंड सौभा य
ाि
त कर िशव मं दर म जलािभषेक करने से व ा और बु
हे तु दध ू एवं जल चढाने से रोजगार
यापार एवं नौकर करने वाले वृ
य को सोमवार के दन
होती ह।
ब चो को सोमवार का
य
यद
ाि
क
ाि
क संभावना बढ जाती ह।
ावण मास के सोमवार का
त करने से धन-धा य और ल मी क
नान कर अथवा जल म थोडा गंगा जल िमला कर
नान करने के प यात िशव िलंग पर
जल चढ़ाया जाता ह। आज भी उ र एवं पूव भारत म कांवड़ पर परा का वशेष मह व ह। न द स कावड़ म जल भरकर तीथ आज के भौितकतावा द युग म य
कृ पा
गु
य
को भ व य म अनेक सम याओं से य
ाि
से य
व कायालय
ारा कये गये के
ारा विभ न
कार के यं
सम या के अनुसार बनवा के मं िस जानते या नह कसकते) य
ा
करना ह।
अिधक से अिधक भौितक सुख साधनो को जुटाते हए ु कभी-कभी व प अपने
ितकूल कम के
िसत होते दे खा गया ह।
ितकूल कम के बंधन से मु
ारा संिचत पाप न
ालु गंगाजल अथवा
थल तक कांवड़ लेकर जाते ह। इसका उ े य िशवजीक कृ पा
नैितकता का दामन छोड कर अनैितकता का दामन थाम लेता ह जस के फल
कारण य
होती ह।
होती ह।
त के दन गंगाजल से पव
कराने क समथता भगवान भोले भंडार िशव क
हो जाते ह।
मं िस यं
कोपर(ता
प ), िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे विभ न
पूण ाण ित त एवं चैत य यु
कार क
कये जाते है. जसे साधारण (जो पूजा-पाठ नह
बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष लाभ ा कर सकते है. जस मे िचन यं ो स हत
हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए गये यं भी समा हत है . इसके अलवा आपक आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है. गु
त
होकर, िशव मं दर, दे वालय घरम जाकर िशव िलंग पर जल, दध ू , दह ,
पित क लंबी आयु क कामना हे तु सुहागन क
त समान पु य फल िमलता ह। सोमवार के
व कायालय ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज शु कोपर(ता
प )- 99.99 टच शु िसलवर (चांद )
एवं 22 केरे ट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है. यं के वषय मे अिधक जानकार के िलये हे तु स पक करे
गु
व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785, E-mail Us:- gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
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सोमवार त कथा
कैलाश के उ र म िनषध पवत के िशखर पर वयं
व तक.ऎन.जोशी
भा नामक एक वशाल पुर थी जसम धन वाहन नामक एक
गण वराज रहते थे। समय अनुसार उ हे आठ पु और अंत म एक क या उ प न हई ु जसका नाम गंधव सेना था। वह अ य त
पवती थी और उसे अपने प का बहत ु अिभमान था। वह कहा करती थी क संसार म कोई गंधव या दे वी मेरे प के करोड़वे अंश
के समान भी नह ं है । एक दन एक आकाशचर गण नायक ने उसक बात सुनी तो उसे शाप दे दया 'तुम प के अिभमान' म गंधव
और दे वताओं का अपमान करती हो अत: तु हारे शर र म कोढ़ हो जायेगा। शाप सुन कर क या भयभीत हो गयी और दया क भीख मांगने लगी। उसक बनती सुन कर गणनायक को दया आ गयी और उ ह ने कहा हमालय के वन म गो ृ ं ग नाम के
े मुनी
रहते है । वे तु हारा उपकार करे गे। ऐसा कह कर गणनायक चला गया। गंधव सेना व छोड़ कर अपने पता के पास आई और अपने कु होने के कारण तथा उससे मु
का उपाय बताया। माता पता उसे त
ण लेकर हमालय पवत पर गए और गो ृ ं ग का दशन
करके तुित करने लगे। मुिन के पूछने पर उ ह ने कहा क मेरे बेट को कोढ़ हो गया है कृ पया इसक शांित का कोई उपाय बताएं। मुिन ने कहा क समु
के समीप भगवान सोमनाथ वराजमान है । वहां जाकर सोमवार
त
ारा भगवान
शंकर क आराधना करो। ऐसा करने से पु ी का रोग दरू हो जायेगा। मुिन के वचन सुन कर धनवाहन अपनी पु ी के साथ
भास
े
म जाकर सोमनाथ के दशन कए और पूरे विध वधान के साथ सोमवार
शंकर क आराधना कए उनक भ अपनी भ
से स न होकर शंकर भगवान ने उस क या के रोग को दरू कया और उ हे
भी दान म दया। आज भी लोग िशव जी को
साथ करते है और िशव क कृ पा को
ज करते हए ु भगवान
ा
स न करने के िलए इस
त को पूर िन ा एवं भ
करते है ।
शैतान जब एक शैतान का मन अपने आप से ऊब गया, तो उसने सं यास लेने का िन य कया। तब उसने अपने गुलाम को एक-एक कर बेचना शु 'झूठ', 'ई या', 'िन
साह, ' 'दप'-सब पं
कर दया। 'बुराई',
बांधकर उसके सामने खड़े हो गये। शैतान के भ
आते गए और उ ह पहचान कर एक-एक को खर दते गये। पर अंत म एक बहत ु ह भ ड़ा
और कु प गुलाम खड़ा था, जसे कोई पहचान नह ं पा रहा था। आ य क बात तो यह थी क शैतान ने उसका मू य दसरे सभी गुलाम से बढ़कर था। अ त म साहस करके ू एक खर ददार ने शैतान से पूछा यह महाशय कौन ह? "ओह, यह!" शैतान मु कराया, "यह मेरा सबसे
य और वफादार गुलाम है । बहत ु थोड़े
ह लोग जानते ह क यह मेरा दा हना हाथ ह। म इसके सहारे बड़ आसानी से लोग को अपने िशकंजे म कस लेता हंू ; उ ह एक-दसरे के खून का ू
यास बना दे ता हंू ।
पहचाना अभी भी?" शैतान अ टहास कर उठा, फर बोला, "यह फूट है , फूट!"
य , नह ं
व तक
के
i
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14 सा ात
vxLr 2010
ह िशविलंग
िचंतन जोशी िशवपुराणम िशविलंग म हमा इस
कार क गई है-
िल गमथ ह पु षंिशवंगमयती यद:। िशव-श भावाथ: िशव-श इस
यो
िच
यमेलनंिल गमु यते॥
के िच का स मिलत
कार िलंग म सृ
व प ह िशविलंग ह।
के जनक क अचना होती है ।
िलंग परमपु ष सदा िशवका बोधक ह। इस
व दत होता है
क िलंग का
य क इसी से सृ
थान ह।
थम अथ
क उ प
दसरा भावाथ: यह ू
हई ु ह।
र भाव मूलत:एक ह
वाले परम िलंग
है , अ यथा नह ं।
व प ह। सृ
होते ह, तभी सृ
िलंगपुराण िशविलंग म हमा इस मूले
ाचीन
सवदे वा मको भावाथ: भगवान िशव और
के ह पयायवाची श द ह।
: सव दे वा: िशवा मका:। सव दे व म वराजमान होने से
ाय: सभी सभी शा
िशविलंग के पूजन का उ लेख िमलता ह। ह दू शा
एवं पु राण म म जहां भी
िशव उपासनाका वणन कया गया ह, वहां िशविलंग क म हमा का गुण-गान अव य िमलता ह।
क दपुराणम िशविलंग म हमा इस
आकाशं िल गिम याहु:पृ वी त यपी ठका। आलय: सवदे वानांलयना ल गमु यते॥ भावाथ: आकाश िलंग है और पृ वी उसक पी ठका ह। इस िलंग म सम त दे वताओं का वास ह। स पूण सृ इसीिलए इसे िलंग कहते ह।
का इसम लय ह,
पा श
क उ प
से
होती
भुवने र:।
णवा य:सदािशव:॥
तयो:स पूजना न यंदेवी दे व पू जतो॥ भावाथ: िशव िलंगके मूल म शंकर ह।
णव (ॐ)
िशविलंग णव का
ा, म य म व णु तथा शीष म
व प होने से सदािशवमहादे व कहलाते ह।
प होने से सा ात ्
उसक वेद महादे वी होने से िलगांचनके पूजा
वत:स प न
दे वमयऔर िशव-श
हो
गया ह। कार क गई है-
कृित
िल गवेद महादे वी िल गसा ा महे र:।
यापक रह ह। संसार के
थ ऋ वेद म िलंग उपासना का उ लेख िमलता ह।
के बीज को दे ने
कार क गई है-
ा तथा म ये व णु ोप रमहादे व:
सबसे
का िलंग योिन भाव और
प भगवान िशव जब अपनी
आधार-आधेय क भाँित संयु
िशविलंगक पूजा-अचना अना दकालसे व
कट करने वाला हआ ु ,
ा णय का परम कारण और िनवास-
तीसरा भावाथ: िशव- श
अ नार
कार यह
भगवान िशव
जाती
का संयु
है।
ह है। िलंग महे र और ारा िशव-िश
िलंगपुराण
म
दोन क
िशव
व प होने का उ लेख
ारा िशविलंग म हमा इस
को
कया
कार क गई है-
लोकं िल गा मकं ा वािल गेयोऽचयते ह माम ् । न मेत मा भावाथ: जो भ
यतर: योवा व ते विचत ् ॥
संसार के मूल कारण महाचैत यिलंग क अचना
करता ह और लोक को िलंगा मकजानकर िलंग-पूजा म त पर रहता ह, मुझे उससे अिधक
य अ य कोई मनु य नह ं ह।
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15
vxLr 2010
आपक रािश और िशव पूजा
िचंतन जोशी िशव पुराण म उ लेख ह क महािशवरा
क उ प य
हई ु थी, िशववरा
को अनंत फल क
योितष शा
के दन िशविलंग
के दन िशव पूजन, त और उपवास से
ाि होती ह।
के अनुसार
य
अपनी रािश के अनुसा
भगवान िशव क आराधना और पूजन कर वशेष लाभ ा कर सकते ह । जसे अपनी ज म रािश या नाम रािश पता हो वह
िन न साम ी से िशविलंग पर अिभषेक कर तो वशेष लाभ होते दे खा गया ह।
O
य
ा
लाल चंदन, लाल कनेर के फूल सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल/ दध ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से
वशेष लाभ
िमलता ह।
वृ षभ
:
जल
या
दह
के
साथ
म
श कर(िम ी),
ेत आक फूल सब िमला
कर या कसी भी एक व तु को जल या दह के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।
िमथुन: गंगा जल या दध ू के साथ म दब ू , जौ, बेल प
िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह। कक : दध ू या जल के साथ म शु
घी,
सब साथ
सफेद ितल, सफेद
चंदन, सफेद आक सब िमला कर या कसी भी एक व तु को दध ू या जल के होता ह।
S
साथ िमला कर अिभषेक करने से
िसंह: जल या दध ू के साथ म शु
वशेष लाभ
ा
घी, गुड़, शहद (मधु, महु,
मध) लाल चंदन सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल या दध ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ
T
क या :
ेत आक फूल, सुगंिधत इ
सब िमला कर या कसी भी एक व तु को जल या दह के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।
V
वृ
क : जल या दध ू के
साथ म घी, गुड़, शहद (मधु, महु,
व तु को जल/ दध ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से लाभ िमलता ह।
W
धनु :
जल या दध ू के
वशेष
साथ म ह द , केसर, चावल, घी,
गंगा जल या दध के ू
एक व तु को जल/ दध ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ
ा
X
मकर :
चंदन,
िमला कर या कसी भी एक व तु को गंगा जल या दध ू के
R
अ त(चांवल), सफेद ितल, सफेद चंदन,
के साथ म श कर(िम ी),
शहद, पीले फुल, पीली सरस , नागकेसर सब िमला कर या कसी भी
अ त(चांवल), सफेद ितल, सफेद चंदन,
Q
तुला : गंगा जल या दह
मध) लाल चंदन, लाल रं ग के फूल सब िमला कर या कसी भी एक
मेष : जल या दध ू के साथ म गुड़, शहद (मधु, महु, मध)
P
U
ा
होता ह।
साथ म दब ू , जौ, बेल प
सब िमला कर या कसी भी एक व तु को गंगा जल या दध ू साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ िमलता ह।
के
होता ह।
गंगा जल या दह के साथ म काले ितल, सफेद
श कर(िम ी), अ त(चांवल),सब िमला कर
एक व तु को अिभषेक गंगा जल या दह अिभषेक करने से वशेष लाभ
Y
ा
होता ह।
या कसी भी
के साथ िमला कर
कुंभ : गंगा जल या दह के साथ म काले ितल, सफेद चंदन,
श कर(िम ी), अ त(चांवल),सब िमला कर
या कसी भी एक व तु
को अिभषेक गंगा जल या दह के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ
Z
ा
होता ह।
मीन : जल या दध ू के
साथ म ह द , केसर, चावल, घी,
शहद, पीले फुल, पीली सरस , नागकेसर सब िमला कर या कसी भी
एक व तु को जल/ दध ू के साथ िमला कर अिभषेक करने से वशेष लाभ
ा
होता ह।
महािशव रा भी
य
एवं
ावण मास मे सोमवार के दन कोइ
जसे अपनी रािश पता नह ं ह वह
य
चाहे तो पंचामृ त से िशविलंग का अिभषेक कर सकते ह ।
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vxLr 2010
ादश योितिलग तो म ् सौरा दे शे वशदे ऽितर ये योितमयं च भ
कलावतंसम।्
दानाय कृ पावतीण तं सोमनाथं शरणं प े॥१॥
ीशैलशृ ंगे वबुधाितसंगे तुला तुंगेऽ प मुदा वस तम।्
तमजु नं म लकपूव मेकं नमािम संसारसमु सेतुम॥्२॥ अव तकायां व हतावतारं मु
दानाय च स जनानाम।्
अकालमृ यो: प रर णाथ व दे महाकालमहासुरेशम॥्३॥ कावे रकानमदयो: प व े समागमे स जनतारणाय। सदै व मा धातृ पुरे वस तम कारमीशं िशवमेकमीडे ॥४॥ पूव रे
विलकािनधाने सदा वस तं िग रजासमेतम।्
सुरासुरारािधतपादप ं ीवै नाथं तमहं नमािम॥५॥
या ये सदं गे नगरे ितऽर ये वभू षतांगम ् व वधै स
मु
महा पा
भोगै:।
दमीशमेकं ीनागनाथं शरणं प े॥६॥
च तटे रम तं स पू यमानं सततं मुनी
ै ः।
सुरासुरैय महोरगा :ै केदारमीशं िशवमेकमीडे ॥७॥ स ा शीष वमले वस तं गोदावर तीरप व दे शे। य शनात् पातकमाशु नाशं याित तं य बकमीशमीडे ॥८॥ सुता पण जलरािशयोगे िनब य सेतुं विशखैरसं यै:। ीरामच
े ण सम पतं तं रामे रा यं िनयतं नमािम॥९॥
यं डा कनीशा किनकासमाजे िनषे यमाणं पिशताशनै । सदै व भीमा दपद िस ं तं शंकरं भ
हतं नमािम॥१०॥
सान दमान दवने वस तमान दक दं हतपापवृ दम।्
वाराणसीनाथमनाथनाथं ी व नाथं शरणं प े॥११॥
इलापुरे र य वशालकेऽ मन ् समु लस तं च जग रे यम।् व दे महोदारतरं वभावं घृ णे रा यं शरणं प े॥१२॥ योितमय ादशिलंगकानां िशवा मनां ो िमदं तो ं प ठ वा मनुजोऽितभ जो य उसे सा ात
ा पूव क इस ादश
ादश
मेण।
या फलं तदालो य िनजं भजे च॥ योितिलग तो
का पाठ करता ह,
योितिलग के दशन करने के समान ह लाभ
ा
होता ह।
i
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17
िशवरा महा िशवरा
भगवान शंकर का सबसे प व
करने का महा त माना जाता ह। महािशव रा बदल जाती ह। सम त जीव के ईशान सं हता म िशवरा
vxLr 2010
त से लाभ दन माना जाता ह। िशवरा
त से मनु य के सभी पाप का नाश हो जाता ह। उ क
ित उसके िभतर दया, क णा इ या द स
के बारे मे उ लेख इस
ा
वृ
भावो का आगमन होता है ।
तम ् नाम सवपाम ् णाशनम।्
आचा डाल मनु याणम ् भु मु
हं सक
कार कया गया है -
िशवरा भावाथ:- िशव रा
पर अपनी आ मा को िनमल
मु
दायकं॥
नाम वाला त सम त पाप का शमन करने वाला ह। इस दन
होती ह।
त कर ने से द ु
मनु य को भी भ
योितष शा चतुदशी ितिथ के वैसे तो िशवरा
वामी िशवजी ह।
योितष शा
म चतुदशी ितिथ को परम शुभ फलदायी मना गया ह।
हर मह ने चतुदशी ितिथ को होती ह। परं तु फा गुन कृ ण प
गया ह। योितषी शा
के अनुसार व
को उजा
क चतुदशी को महािशवरा
कहा
दान करने वाले सूय इस समय तक उ रायण म आ होते ह, और
ऋतु प रवतन का यह समय अ यंत शुभ कहा माना जाता ह। िशव का अथ ह है क याण करना, एवं िशवजी सबका क याण करने वाले दे वो के भी दे व महादे व ह। अत: महा िशवरा इ छत सुख क
ाि
ीण अव था के कारण बलह न होकर चं मा सृ
का सीधा संबंध मनु य के मन से बताया गया ह।
हो जाता ह, ज से भौितक संताप मनु य को विभ न धम
कार के क
कर य
योितष िस
वतः
को सरलता से ीण थ अव था म
को ऊजा( काश) दे ने म असमथ हो जाते ह। त से जब चं
कमजोर होतो मन थोडा कमजोर
ाणी को घेर लेते ह, और वषाद, मा सक चंच ता-अ थरता एवं असंतुलन से का सामना करना पड़ता ह।
ंथोमे चं मा को िशव के म तक पर सुशोिभत बताय गया ह।
होने से चं दे व क कृ पा योितषी िशवरा
ा
होती ह। योितषीय िस ं त के अनुसार चतुदशी ितिथ तक चं मा अपनी
पहंु च जा ा ह। अपनी चं
के दन िशव कृ पा
ा
हो जाती ह। महािशवरा
के दन िशव आराधना कर सम त क
को िशव क अ यंत से मु
ज से भगवान िशव क कृ पा य ितिथ बताई गई ह।
ा
यादातर
पाने क सलाह दे ते ह।
izk.k&izfrf”Br laiw.kZ Jh ;a= Jh ;a= vius vkiesa vR;ar Js”B gSA vkfFkZd mUufr ,oa HkkSfrd lq[k laink ds fy;s rks bllsa mŸke ;a= dksbZ ughaA Jh ;a= esa Lor% dbZ flf);ksa dk okl gksrk gSA Jh ;a= ds n’kZu ls vusd O;fDr esa ldkjkRed fopkj /kkjk vkrh gSA मू य:- 910 से 8200 तक उ ल
i
Xkq:Ro T;ksfr”k
18
vxLr 2010
गंगा का वग से पृ थवी पर आगमन केसे हवा ु ?
िचंतन जोशी युिध र ने लोमश ऋ ष से पूछा, "हे मुिनवर! राजा भगीरथ गंगा को कस पर ले आये? कृ पया इस
कार पृ वी
संग को भी सुनाय।" लोमश ऋ ष ने कहा, "धमराज!
इ वाकु वंश म सगर नामक एक बहत ु ह
तापी राजा हवे ु । उनके वैदभ और
शै या नामक दो रािनयाँ थीं। राजा सगर ने कैलाश पवत पर दोन रािनय के साथ जाकर शंकर भगवान क घोर तप या क । उनक तप या से होकर भगवान शंकर ने उनसे कहा क हे राजन ्! तुमने पु
ाि
स न
क कामना
से मेर आराधना क है । अतएव म वरदान दे ता हँू क तु हार एक रानी के साठ हजार पु
ह गे क तु दसर रानी से तु हारा वंश चलाने वाला एक ह ू
संतान होगी। इतना कहकर शंकर भगवान पूनः अ त यान हो गये।
"समय बीतने पर शै या ने असमंज नामक एक अ य त पु
पवान
को ज म दया और वैदभ के गभ से एक तु बी उ प न हई जसे फोड़ने ु
पर साठ हजार पु नामक पु
िनकले। कालच
बीतता गया और असमंज का अंशुमान
उ प न हआ। असमंज अ य त द ु ु
कृ ित का था इसिलये राजा सगर
ने उसे अपने दे श से बाहर कर दया। फर एक बार राजा सगर ने अ मेघ य करने क द
ा ली। अ मेघ य
पीछे राजा सगर के साठ हजार पु साथ चलने लगे। सगर के इस अ मेघ य
का
यामकण घोड़ा छोड़ दया गया और उसके पीछे -
अपनी वशाल सेना के
से भयभीत होकर दे वराज इ
ने अवसर पाकर उस घोड़े को चुरा िलया
और उसे ले जाकर क पल मुिन के आ म म बाँध दया। उस समय क पल मुिन
यान म लीन थे अतः उ ह इस
बात का पता नह ं चला क इ
ने घोड़े को पृ वी के हरे क
ने घोड़े बाँध दया ह। इधर सगर के साठ हजार पु
पर ढँू ढा क तु उसका पता नह ं लग पाया। वे घोड़े को खोजते हये ु पृ वी को खोद कर
थान
पाताल लोक तक पहँु च गये
जहाँ अपने आ म म क पल मुिन तप या कर रहे थे और वह ं पर वह घोड़ा बँधा हआ था। सगर के पु ु
ने यह समझ
ु कर क घोड़े को क पल मुिन ह चुरा लाये ह, क पल मुिन को कटवचन सुनाना आर भ कर दया। अपने िनरादर से कु पत होकर क पल मुिन ने राजा सगर के साठ हजार पु जब सगर को नारद मुिन के पौ
को अपने
ारा अपने साठ हजार पु
ोधा न से भ म कर दया। के भ म हो जाने का समाचार िमला तो वे अपने
अंशुमान को बुलाकर बोले क बेटा! तु हारे साठ हजार दादाओं को मेरे कारण क पल मुिन क
हो जाना पड़ा। अब तुम क पल मुिन के आ म म जाकर उनसे
ोधा न म भ म
मा ाथना करके उस घोड़े को ले आओ। अंशुमान
अपने दादाओं के बनाये हये ु रा ते से चलकर क पल मुिन के आ म म जा पहँु चे। वहाँ पहँु च कर उ ह ने अपनी एवं मृ दु
यवहार से क पल मुिन को
स न कर िलया। क पल मुिन ने
अंशुमान बोले क मुने! कृ पा कर के हमारा अ
ाथना
स न होकर उ ह वर माँगने के िलये कहा।
लौटा द और हमारे दादाओं के उ ारका कोई उपाय बताय। क पल मुिन
ने घोड़ा लौटाते हये ु कहा क व स! जब तु हारे दादाओंका उ ार केवल गंगा के जल से तपण करने पर ह हसकता है ।
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Xkq:Ro T;ksfr”k "अंशुमान ने य
का अ
19 लाकर सगर का अ मेघ य
अंशुमान को रा य स प कर गंगा को इस
कार तप या करते-करते उनका
vxLr 2010 पूण करा दया। य
पूण होने पर राजा सगर
वग से पृ वी पर लाने के उ े य से तप या करने के िलये उ राखंड चले गये वगवास हो गया। अंशुमान के पु
अंशुमान भी दलीप को रा य स प कर गंगा को
का नाम दलीप था। दलीप के बड़े होने पर
वग से पृ वी पर लाने के उ े य से तप या करने के िलये उ राखंड
चले गये क तु वे भी गंगा को वग से पृ वी पर लाने म सफल नह ं हो सके। दलीप के पु
का नाम भगीरथ था।
भगीरथ के बड़े होने पर दलीप ने भी अपने पूव ज का अनुगमन कया क तु गंगा को लाने म उ ह भी असफलता ह हाथ आई। "अ ततः भगीरथ क तप या से गंगा
स न हु
और उनसे वरदान माँगने के िलया कहा। भगीरथ ने हाथ
जोड़कर कहा क माता! मेरे साठ हजार पुरख के उ ार हे तु आप पृ वी पर अवत रत होने क कृ पा कर। इस पर गंगा ने कहा व स! म तु हार बात मानकर पृ वी पर अव य आउँ गी, क तु मेरे वेग को शंकर भगवान के अित र कोई सहन नह ं कर सकता। इसिलये तुम पहले शंकर भगवान को क घोर तप या क और उनक तप या से िलये खड़े हो गये। गंगा जी
और
स न करो। यह सुन कर भगीरथ ने शंकर भगवान
स न होकर िशव जी हमालय के िशखर पर गंगा के वेग को रोकने के
वग से सीधे िशव जी क जटाओं पर जा िगर ं। इसके बाद भगीरथ गंगा जी को अपने
पीछे -पीछे अपने पूव ज के अ थय तक ले आये जससे उनका उ ार हो गया। भगीरथ के पूव ज का उ ार करके गंगा जी सागर म जा िगर ं और अग
य मुिन
ारा सोखे हये ु समु
जीवन म
म फर से जल भर गया।"
ान क कमाई
एक संत महा मा थे। उनका एक युवा िश य था। उस िश य को अपने
ान और व ता पर बड़ा घमंड था।
महा मा उसके इस घमंड को दरू करना चाहते थे। इसिलए एक दन सवेरे ह वह उसे साथ लेकर या ा पर िनकले। धूप चढ़ते दे ख दोन एक खेत म पहंु चे। वहां एक कसान
या रयां बना कर सींच रहा था। गु -िश य
काफ दे र तक वहां खड़े रहे , क तु कसान ने आंख उठाकर उनक ओर दे खा तक नह ं। वह लगन से अपने काम म म नता से अपने काम म लगा रहा। सं या होते होते गु -िश य एक नगर म पहंु चे। वहां उ ह ने दे खा क एक लुहार लोहा पीट रहा ह। पसीने से उसक सार दे ह तर-बतर हो रह थी। गु -िश य काफ दे र वहां खड़े रहे , ले कन लुहार को गदन ऊपर उठाने क भी फुरसत नह ं थी। गु -िश य फर और आगे बढ़े और सं या से रा ी होने के समय वे एक सराय म पहंु चे। वे थकान से चूर हो गये। वहां तीन मुसा फर और बैठे थे। वे भी पूर तरह थके हए दखाई पड़ते थे। गु ु
ने िश य से कहा, "तुमने
दे खा, कुछ पाने के िलए कतना दे ना पडता ह। कसान अपना तन-मन लुटाता ह, तब कह ं खेत म अ न फलता ह। लुहार शर र क उजा दे ता ह तब धातु िस पोथे-पर-पोथे रट डाले, ले कन कतना ान क
होती ह। या ी अपने को चुकाकर मं जल पाता ह। तुमने
ान पा िलया?
या रय को सींचो। जीवन क आंच म
मं जल पाओ।
ान कसी का सगा नह ं ह।
ान के
ान तो कमाई ह। कमाकर उसे पाया जाता ह। कम से
ान क धातु िस
ान को जो कमाता ह,
करो। माग म अपने को चुकाकर
ान उसी के पास जाता ह।
ान क
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20
vxLr 2010
िशव पूजन से कामना िस
िचंतन जोशी िशविलंग पर गंगा जल से अिभषेक करने से भौितक सुख
ा
होता ह एवं मनु य को मो
क
ाि
होती ह।
िशव पुराण के अनुशार िशविलंग पर अ न, फूल एवं विभ न व तुओं से जलािभषेक कर मनु य के सम त
कार के
क ोका िनवारण कया जासकता ह। िन न साधना िशव ल मी पु
ाि
ाि
ितमा(मूित) के सम
लाभ
हे तु भगवान िशव को ब वप , कमल, शतप
ा
होते ह।
एवं शंखपु प अपण करने से लाभ
हे तु भगवान िशव को धतुरे के फूल अपण करने से शुभ फल क
भौितक सुख एवं मो ा
करने से शी
ाि
हे तु
ाि
ा
होता ह।
होती ह।
वेत आक, अपमाग एवं सफेद कमल के फूल भगवान िशव को चढाने से लाभ
होता ह।
वाहन सुख क
ाि
हे तु चमेली के फूल भगवान िशव को चढाने से शी
उ म वाहन
ाि
के योग बनते ह।
ववाह सुख म आने वाली बाधाओं को दरू करने हे तु बेला के फूल भगवान िशव को चढाने से उ म प ी क ाि
होती
होती
ह
एवं
क या
के
जूह के फूल भगवान िशव को चढाने से य सुख स प
क
ाि
िशविलंग पर अिभषेक हे तु वंश वृ
फूल
चढाने
से
उ म
पित
क
ाि
होती
ह।
को अ न का अभाव नह ं होता ह।
हे तु भगवान िशव को हार िसंगार के फूल चढाने से लाभ
ा
होता ह।
योग
हे तु िशविलंग पर घी का अिभषेक शुभ फलदायी होता ह।
भौितक सुख साधनो म वृ रोग िनवृ
हे तु िशविलंग पर सुगंिधत
हे तु महामृ युंजय मं
रोजगार वृ
य से अिभषेक करने से शी
जप करते हवे ु शहद (मधु) से अिभषेक करने से रोग का नाश होता ह।
हे तु गंगाजल एवं शहद (मधु) से अिभषेक करने से लाभ
वण मास म कये गये पूजन एवं अिभषेक से भगवान िशव क कृ पा ल मी क भी कृ पा
ा
उनम बढोतर होती ह।
ाि
ा
होता ह।
के साथ-साथ माता पवती, गणेश और मां
होती ह।
या आप कसी सम या से आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं
त ह? जाप इ या द करने का समय नह ं
ह? अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म सफलता ा
कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को
कायालत
ारा हमारा उ े य शा ो
विभ न कार के य
विध- वधान से विश
ा
करने का माग
तेज वी मं ो ारा िस
ा
हो सके इस िलये गु ाण- ित त पूण चैत य यु
- कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
गु
व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA, Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785, E-mail Us:- gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
व
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21
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ा- वषणु-महे श म े कोन?
राकेश पंडा वेद शा
के अनुशार मह ष भृ गु
ाजी के मानस पु थे। उनक प ी का नाम
याित था जो द
क पु ी थी। मह ष भृ गु स
ऋ षमंडल के एक ऋ ष ह। सावन और भा पद म वे भगवान सूय के रथ पर सवार रहते ह। एक बार क बात ह, सर वती नद के तट पर सभी ऋ ष-मुिन एक त होकर इस वषय पर चचा कर रहे थे क कोई िन कष न िनकलता दे ख ऋ ष-मुिनय ने तीनो दे व क पर इस काय के िलए िनयु ह उनक
ा लेने का िनणय कया और
कया गया। मह ष भृ गु सव थम अपने पता
तुित क । यह दे ख
ाजी
ोिधत हो गए।
लगे। ले कन फर यह सोचकर क ये उनके पु ह,
ा- वषणु-महे श म सबसे बड़े और
े कौन है ? इसका
ाजी के मानस पु मह ष भृ गु को
ाजी के पास गए, मह ष भृ गु ने न तो णाम कया और न
ोध क अिधकता से उनका मुख लाल हो गया। आँख म अंगारे दहकने
ाजी ने दय म उठे
ोध के आवेग को अपनी ववेक-बु
से दबा दया।
वहाँ से मह ष भृ गु कैलाश पवत पर गए। दे वािधदे व भगवान महादे व ने दे खा क भृ गु आ रहे ह तो वे स न होकर अपने
आसन से उठे और उनका आिलंगन करने के िलए भुजाएँ फैला द ।ं कंतु उनक पर
ा लेने के िलए भृ गु मुिन उनका आिलंगन
अ वीकार करते हए ु बोले-“महादे व! आप सदा वेद और धम क मयादा का उ लंघन करते ह। द ु दे ते ह, उनसे सृ
पर भयंकर संकट आ जाता है । इसिलए म आपका आिलंगन कदा प नह ं क ँ गा।”
उनक बात सुनकर भगवान िशव
ोध से ितलिमला उठे । उ ह ने जैसे ह
बहत ु अनुरोध- वनय कर कसी कार से उनका
शूल उठा कर उ ह मारना चाहा, वैसे ह भगवती सती ने
ोध शांत कया।
इसके बाद भृ गु मुिन वैकु ठ लोक गए। उस समय भगवान भृ गु ने जाते ह उनके व
और पा पय को आप जो वरदान
ी व णु दे वी ल मी क गोद म िसर रखकर लेटे थे।
पर एक तेज लात मार । भ -व सल भगवान व णु शी
ह अपने आसन से उठ खड़े हए ु और उ ह
णाम करके उनके चरण सहलाते हए ु बोले-“भगवन! आपके पैर पर चोट तो नह ं लगी? कृ पया इस आसन पर व ाम क जए।
भगवन! मुझे आपके शुभ आगमन का
ान न था। इसिलए म आपका वागत नह ं कर सका। आपके चरण का पश तीथ को
प व करने वाला ह। आपके चरण के पश से आज म ध य हो गया।” भगवान व णु का यह स ेम- यवहार दे खकर मह ष भृ गु क आँख से आँसू बहने लगे। उसके बाद वे ऋ ष-मुिनय के पास लौट आए और
ा, वषणु और महे श के यहाँ के सभी अनुभव
व तार से कह बताया। उनके अनुभव सुनकर सभी ऋ ष-मुिन बड़े है रान हए ु और उनके सभी संदेह दरू हो गए। तभी से वे भगवान
व णु को सव े मानकर उनक पूजा-अचना करने लगे। ऋ ष-मुिनय ने मनु य के भीतर उठने वाले संदेह को िमटाने के िलए ऐसी लीला हजारो वष पूव ह रची थी।
uojRu tfM+r Jh ;a= ‘kkL= opu ds vuqlkj ‘kq) lo.kZ ;k jtr esa fufeZr Jh ;a= ds pkjksa vkSj ;fn uojRu tM+ok us ij ;g uojRu tfM+r Jh ;a= dgykrk gSaA lHkh jRuks dks mlds fufÜpr LFkku ij tM+ dj ykWdsV ds :i esa /kkj.k djus ls O;fDr dks vuar ,’o;Z ,oa y{eh dh izkfIr gksrh gSaA O;fDr dks ,lk vkHkkl gksrk gSa tSls y{eh mlds lkFk gSaA uoxzg dks Jh ;a= ds lkFk yxkus ls xzgksa dh v’kqHk n’kk dk /kkj.k djus okys O;fDr ij izHkko ugha gksrk gSaA xys esa gksus ds dkj.k ;a= ifo= jgrk gSa ,oa Luku djrs le; bl ;a= ij Li’kZ dj tks ty fcanq ‘kjhj dks yxrs gSa] og xaxk ty ds leku ifo= gksrk gSaA bl fy;s bls lcls rstLoh ,oa Qynkf; dgtkrk gSaA tSls ve`r ls mÙke dksbZ vkS”kf/k ugha] mlh izdkj y{eh izkfIr ds fy;s Jh ;a= ls mÙke dksbZ ;a= lalkj esa ugha gSa ,lk ‘kkL=ksDr opu gSaA bl izdkj ds uojRu tfM+r Jh ;a= xq:Ro dk;kZy; }kjk ‘kqHk eqgwrZ esa izk.k izfrf”Br djds cukok, tkrs gSaA
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22
vxLr 2010
िशविलंग पूजा का मह व या ह?
िचंतन जोशी िशवमहा पुराण के सृ खंड अ याय १२
ोक ८२ से ८६ म
हर गृ ह थ मनु य को अपने स गु से विधवत द
ा जी के पु संतकुमार जी वेद यास जी को उपदे श दे ते हए ु कहते ह,
ा लेकर पंचदे व (गणेश, सूय, व णु, दगा ु , िशव) क
ितमाओं का िन य
पूजन करना चा हए। य क िशव ह सबके मूल ह, इस िलये मूल (िशव) को सींचने से सभी दे वता तृ प हो जाते ह पर तु सभी दे वताओं को स न करने पर भी िशव स न नह ं होते। यह रह य केवल और केवल स गु
क शरण म रहने वाले य
ह जान
सकते ह। सृ
के पालनकता भगवान व णु ने एक बार सृ
के रचियता
ा के साथ िनगु ण, िनराकार िशव से ाथना क , भु आप
कैसे स न होते ह। भगवान िशव बोले मुझे स न करने के िलए िशविलंग का पूजन करो। जब कसी कार का संकट या द:ु ख हो तो िशविलंग का पूजन करने से सम त द:ु ख का नाश हो जाता है ।(िशवमहापुराण सृ खंड )
जब दे व ष नारद ने भगवान िशविलंग का पूजन, िशवभ एक बार सृ
रचियता
ी व णु को शाप दया और बाद म प ाताप कया तब व णु ने नारदजी को प ाताप के िलए
का स कार, िन य िशवशत नाम का जाप आ द उपाय सुझाये।(िशवमहापुराण सृ खंड )
ाजी सभी दे वताओं को लेकर
ीर सागर म ी व णु के पास परम त व जानने के िलए पहोच गये।
ी व णु ने सभी को िशविलंग क पूजा करने का सुझाव दया और व कमा को बुलाकर दे वताओं के अनुसार अलग-अलग य पदाथ के िशविलंग बनाकर दे ने का आदे श दे कर सभी को विधवत पूजा से अवगत करवाया। (िशवमहापुराण सृ खंड )
ा जी ने दे व ष नारद को िशविलंग क पूजा क म हमा का उपदे श दे ते हवे ु कहा। इसी उपदे श से जो ंथ क रचना हई ु वो िशव
महापुराण ह। माता पावती के अ य त आ ह से, जनक याण के िलए िनगु ण, िनराकार िशव ने सौ करोड़ िशवमहापुराण क रचना क। जो चार वेद और अ य सभी पुराण
िशवमहापुराण क तुलना म नह ं आ सकते। भगवान िशव
क आ ा पाकर व णु के अवतार वेद यास जी ने िशवमहापुराण को २४६७२
ोक म सं
कया ह।
जब पा ड़व वनवास म थे , तब कपट से दय ऋ ष को भेजकर तथा मूक नामक ु धन पा ड़व को दवासा ु रा स को भेजकर क दे ता था। तब पा ड़व ने और उससे छुटकारा पाने का माग पूछा। तब
ी कृ ण से दय ु धन के द ु यवहार से अवगत कराया
ी कृ ण ने पा ड़व को भगवान िशव क पूजा करने के
िलए सलाह द और कहा मने वयंने अपने सभी मनोरथ को ा करने के िलए भगवान िशव क पूजा क ह और आज भी कर रहा हंु । आप लोग भी करो। वेद यासजी ने भी पा ड़व को भगवान िशव क पूजा का उपदे श दया। हमालय से लेकर पा ड़व व पर िशविलंग क
के हर कोने म जहां भी गये उन सभी
थापना कर पूजा अचना करने का वणन शा
थानो
म िमलता ह।
िशव महापुराण सृ खंड अ याय ११
ोक १२ से १५ म िशव पूजा से ा होने वाले सुख का वणन इस कार ह:
द र ता, रोग क , श ु पीड़ा एवं चार
कार के पाप तभी तक क दे ता है , जब तक भगवान
िशव क पूजा नह ं क जाती। महादे व का पूजन कर लेने पर सभी कार के द:ु खोका शमन हो जाता ह।
सभी कार के सुख ा हो जाते ह एवं इससे सभी मनोकामनाएं िस हो जाती ह।(िशवमहापुराण सृ खंड अ याय- ११
ोक१२ से १५
ोक म
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vxLr 2010
चातुमास त का मह व
िचंतन जोशी ह द ू धम ंथ के अनुसार, आषाढ मास म शु लप
एकादशी क रा
से भगवान
क
व णु इस दन से लेकर अगले
चार मास के िलए योगिन ा म लीन हो जाते ह, एवं काितक मास म शु लप
क एकादशी के दन योगिन ा से जगते ह।
इसिलये चार इन मह न को चातुमास कहाजाता ह। चातुमास का ह द ू धम म वशेष आ या मक मह व माना जाता ह। अषाढ मास म शु ल प
क
ादशी अथवा पू णमा
अथवा जब सूय का िमथुन रािश से कक रािश म तब से चातुमास के समाि
वेश होता ह
त का आरं भ होता ह। चातुमास के
काितक मास म शु ल प
क
त क
ादशी को होती ह। साधु सं यासी अषाढ मास क पू णमा से चातुमास मानते ह।
सनातन धम के अनुयायी के मत से भगवान व णु सव यापी ह. एवं स पूण श
ांडा भगवान व णु क
से ह संचािलत होता ह। इस िलये सनातन धम के लोग अपने सभी मांगिलक काय का शुभारं भ भगवान व णु
को सा ी मानकर करते ह। शा ो म िलखा गया है क वषाऋतु के चार मास म ल मी जी भगवान व णु क सेवा करती ह। इस
अविध म य द कुछ िनयम का पालन करते हवे ु अपनी मनोकामना पूित हे तु चातुमास म
त करने वाले साधक को
त करने से वशेष लाभ
ित दन सूय दय के समय
नान इ या द से िनवृ
ा
होता ह।
होकर भगवान
व णु क आराधना करनी चा हये। चातुमास के
त का "हे
कर मेरे
ारं भ करने से पूव िन न संक प करना चा हये।
भु, मने यह
त को िन व न समा
मृ यु हो जाये तो आपक कृ पा
त का संक प आपको सा करने का साम य मुजे यह पूण
प से समा
त के दौरन भगवान व णु क वंदना इस
कार कर।
मानकर उप थित म िलया ह। आप मेरे उपर कृ पा रख दान कर। य द
त को
हण करने के उपरांत बीच म मेर
हो जाये।
शांताकारं भुजगशयनंप नाभंसुरेशं।
व ाधारं गगनस शंमेघवणशुभा गम॥ ्
ल मीका तंकमलनयनंयोिगिभ यानग यं। व दे व णुंभवभयहरं सवलोकैकनाथम॥्
भावाथ:- जनक आकृ ित अितशय शांत ह, जो शेषनाग क श यापर शयन कर रहे ह, जनक नािभ म कमल है, जो सब दे वताओं
ारा पू य ह, जो संपूण व
के आधार ह, जो आकाश के स
वण ह, जनके सभी अंग अ यंत सुंदर ह, जो योिगय
ारा
यान करके
य सव ा
या
ह, नीले मेघ के समान जनका
कये जाते ह, जो सब लोक के
जो ज म-मरण प भय को दरू करने वाले ह, ऐसे ल मीपित,कमलनयन,भगवान व णु को म
वामी ह,
णाम करता हंू ।
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24
कंदपुराण के अनुशार चातुमास का विध- वधान और माहा
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य इस
कार व तार से
व णत ह। चातुमास म शा ीय विभ न िनयम का पालन कर पु य लाभ
ा
होते ह।
चातुमास म केवल शाकाहार भोजन
त करने से अ यािधक
जो
य
जो
य
चातुमास म
जो
य
भगवान व णु के शयनकाल म बना मांगे अ न का सेवन करता ह,
स प न होता ह।
ित दन रा ी चं
भोजन करता ह, उसे सुख समृ उसे भाई-बंधुओं का पूण सुख
उदय के बाद
एवं ए य क
ा
हण करता ह, वह धन धा य से
ाि
दन म मा
एकबार
होती ह।
होता ह।
वा थय लाभ एवं िनरोगी रे हने के िलये चातुमास म व णुसू
के मं
करके िन य हवन म चावल और ितल क आहितयां दे ने से लाभ ु
ा
को
वाहा
होता ह।
चातुमास के चार मह न म धम ं थ के िनयिमत
वा याय से
चातुमास के चार मह न म य
यागता ह वह व तु उसे अ य
ह।
म पुनः
ा
हो जाती ह।
जस व तु को
पु य फल िमलता प
चातुमास का सद उपयोग आ म उ नित के िलए कया जाता ह। चातुमास के िनयम मनु य के िभतर याग और संयम क भावना उ प न करने के िलए बने ह।
चातुमास म कस पदाथ का त करने वाले य
को...
ावण मास म हर स जी का
याग कर याग करना चा हये।
भा पद मास म दह का याग करना चा हये। आ
न मास म दध ू का याग करना चा हये।
काितक मास म दाल का का याग करना चा हये।
त कता को शै या शयन, मांस, मधु आ द का सेवन याग करना चा हये।
याग कये गय पदाथ का फल िन न जो य
गुड़ का
जो य
घी का
जो य जो य जो य जो य
तेल का
कार ह।
याग करता ह, उसक वाणी म मधुरता आित ह।
याग करता ह, उसके सम त श ुओं का नाश होता ह।
याग करता ह, उसके सौ दय म वृ
हर स जी का याग करता ह, उसक बु
होती ह।
बल होती ह एवं पु
दध ू एवं दह का याग करता ह, उसके वंश म वृ नमक का
लाभ
ा
होता ह।
होकर उसे मृ यु उपरांत गौलोक म
याग करता ह, उसक सम त मनोकामना पूण होकर उसके सभी काय म िन
थान
ा
होता ह।
त सफलता
ा
होती ह।
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25 य िशव को
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य ह बेल प ?
िचंतन जोशी या ह बेल प अथवा ब व-प ? ब व-प एक पेड़ क प यां ह, जस के हर प े लगभग तीन-तीन के समूह म िमलते ह। कुछ प यां चार या पांच के समूह क भी होती ह। क तु चार या पांच के समूह वाली प यां बड़ दलभ होती ह। बेल के पेड को ब व भी कहते ह। ु पेड़ का वशेष धािमक मह व ह। शा ो होता ह एवं भ
को िशवलोक क
ब व के
मा यता ह क बेल के पेड़ को पानी या गंगाजल से सींचने से सम त तीथ का फल ा
ाि होती ह। बेल क प य म औषिध गुण भी होते ह। जसके उिचत औषधीय योग से कई
रोग दरू हो जाते ह। भारितय सं कृ ित म बेल के वृ धािमक ऐसी मा यता ह क ब व-वृ
का धािमक मह व ह, यो क ब व का वृ
भगवान िशव का ह
प है ।
के मूल अथात उसक जड़ म िशव िलंग व पी भगवान िशव का वास होता ह। इसी कारण
से ब व के मूल म भगवान िशव का पूजन कया जाता ह। पूजन म इसक मूल यानी जड़ को सींचा जाता ह। धम ंथ म भी इसका उ लेख िमलता हब वमूले महादे वं िलंग पणम ययम।् य: पूजयित पु या मा स िशवं ा नुया ॥
ब वमूले जलैय तु मूधानमिभ ष चित। स सवतीथ नात : या स एव भु व पावन:॥ (िशवपुराण( भावाथ : ब व के मूल म िलंग पी अ वनाशी महादे व का पूजन जो पु या मा य
करता है , उसका क याण होता है । जो य
िशवजी के ऊपर ब वमूल म जल चढ़ाता है उसे सब तीथ म नान का फल िमल जाता है । ब व प तोड़ने का मं ब व-प को सोच-समझ कर ह तोड़ना चा हए। बेल के प े तोड़ने से पहले िन न मं का उ चरण करना चा हएअमृ तो व ीवृ महादे व यःसदा। गृ ािम तव प ा ण िशवपूजाथमादरात॥् -(आचारे द)ु भावाथ :अमृ त से उ प न स दय व ऐ यपूण वृ
महादे व को हमेशा
य है । भगवान िशव क पूजा के िलए हे वृ
म तु हारे प
तोड़ता हंू । कब न तोड़ ब व क प यां? वशेष दन या वशेष पव के अवसर पर ब व के पेड़ से प यां तोड़ना िनषेध ह। शा
के अनुसार बेल क प यां इन दन म नह ं तोड़ना चा हए-
बेल क प यां सोमवार के दन नह ं तोड़ना चा हए। बेल क प यां चतुथ , अ मी, नवमी, चतुदशी और अमाव या क ितिथय को नह ं तोड़ना चा हए। बेल क प यां सं ांित के दन नह ं तोड़ना चा हए। अमा र ासु सं ा ब वप ं न च िछ
ा छ
याम
यािम दवासरे । ु
ा चे नरकं जेत ॥) िलंगपुराण
भावाथ: अमाव या, सं ा त के समय, चतुथ , अ मी, नवमी और चतुदशी ितिथय तथा सोमवार के दन ब व-प तोड़ना व जत है ।
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चढ़ाया गया प भी पूनः चढ़ा सकते ह? शा
म वशेष दन पर ब व-प तोडकर चढ़ाने से मना कया गया ह तो यह भी कहा गया है क इन दन म चढ़ाया गया
ब व-प धोकर पुन :चढ़ा सकते ह। अ पता य प ब वािन
ा या प पुन :पुन:।
शंकरायापणीयािन न नवािन य द िचत॥्) क दपुराण( और (आचारे द)ु भावाथ: अगर भगवान िशव को अ पत करने के िलए नूतन ब व-प न हो तो चढ़ाए गए प
को बार-बार धोकर चढ़ा सकते ह।
बेल प चढाने का मं भगवान शंकर को व वप अ पत करने से मनु य क सवकाय व मनोकामना िस होती ह।
ावण म व व प अ पत करने का
वशेष मह व शा ो म बताया गया ह। व व प अ पत करते समय इस मं का उ चारण करना चा हए: दलं
गुणाकारं
ने ं च
धायुतम।्
ज मपापसंहार, व वप िशवापणम ् भावाथ: तीन गुण, तीन ने ,
शूल धारण करने वाले और तीन ज म के पाप को संहार करने वाले हे िशवजी आपको
दल ब व
प अ पत करता हंू ।
िशव को ब व-प चढ़ाने से ल मी क
ाि होती है ।
अपन क चोट एक सुनार था। उसक दकान से लगकर एक लुहार क दकान थी। सुनार जब काम करता, उसक दकान से ु ु ु
बहत से कानो के पद फाड़ दे ने वाली ु ु ह धीमी आवाज होती, पर जब लुहार काम करतातो उसक दकान आवाज सुनाई पड़ती। एक दन सोने का एक कण िछटक कर लुहार क दकान म आ िगरा। वहां उसक भट ु लोहे के एक कण के साथ हई। ु सोने के कण ने लोहे के कण से कहा, "भाई, हम दोन का द:ु ख एक समान ह। हम दोन को एक ह तरह आग म तपाया जाता ह और समान म यह सब यातना चुपचाप सहन करता हंू, पर तुम इतना िच ला
प से हथौड़े क चोट सहनी पड़ती ह।
य रह हो? तु हारा कहना एक दम सह
ह, ले कन तुम पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा तु हारा सगा भाई नह ं ह, पर वह मेरा सगा भाई ह।" लोहे के कण ने द:ु ख भरे
वर म उ र दया। फर कुछ
दगई चोट क पीड़ा अिधक अस
हो जाती ह।
ककर बोला, पराये क अपे ा अपन के
ारा
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सोलह सोमवार तकथा
मृ यु लोक म ववाह करने क इ छा करके एक बार
व तक.ऎन.जोशी
ी भगवान िशवजी माता पावती के साथ पधारे वहाँ वे
मण करते-करते वदभ दे शांतगत अमरावती नाम क अतीव रमणीक नगर म पहँु चे । अमरावती नगर अमरपुर के
स श सब
कार के सुख से प रपूण थी । उसम वहां के महाराज का बनाया हआ अित रमणीक िशवजी का म दर ु
बना था । उसम भगवान शंकर भगवती पावती के साथ िनवास करने लगे । एक समय माता पावती
ाणपित को
स न दे ख के मनो वनोद करने क
इ छा से बोली – हे माहाराज, आज तो हम आप दोन चौसर खेल । िशवजी ने ाण या क बात को मान िलया और चौसर खेलने लगे । उसी समय इस थान पर म दर के पुजार ने
ाहमण से
ा ण म दर मे पूजा करने को आया । माताजी
कया क पुजार जी बताओ क इस बाजी म दोन म
कसक जीत होगी ।
ाहमण बना वचारे ह शी
क जीत होगी । थोड़ दे र म बाजी समा हई ु । अब तो पावती जी
बोल उठा क महादे वजी
हो गई और पावती जी क
वजय
ा ण को झूठ बोलने के अपराध के कारण ाप दे ने
को उघत हई ु । तब महादे व जी ने पावती जी को बहत ु समझाया पर तु उ ह ने के
ा ण को कोढ़ होने का
ाप दे दया । कुछ समय बाद पावती जी
ापवश पुजार के शर र म कोढ़ पैदा हो गया । इस
कार से दखी रहने लगा । इस तरह के क ु
कार पुजार अनेक
भोगते हए दन हो ु जब बहत ु
गये तो दे वलोक क अ सराएं िशवजी क पूजा करने उसी म दर मे पधार और पुजार के क
को दे खकर बड़े दया
भाव से उससे रोगी होने का कारण पूछने लगी – पुजार ने िनःसंकोच सब बाते उनसे कह द । वे अ सराय बोली – हे पुजार । अब तुम अिधक दखी मत होना । भगवान िशवजी तु हारे क ु
को दरू कर दगे । तुम सब बात म
पूछने लगा । अ सराय बोली क जस दन सोमवार हो उस दन भ
के साथ त कर ।
सोमवार का
तभ
भाव से करो । तब पुजार अ सराओं से हाथ जोड़कर वन
े
षोडश
भाव से षोडश सोमवार त क व छ व
विध
पहन आधा सेर
गेहूँ का आटा ले । उसके तीन अंगा बनाये और घी, गुड़, द प, नैवेघ, पुंगीफल, बेलप , जनेऊ का जोड़ा, च दन, अ त, पु पा द के
ारा
दोष काल म भगवान शंकर का विध से पूजन करे त प ात अंगाऔ ं म से एक िशवजी को अपण
कर बाक दो को िशवजी का सोलह सोमवार
साद समझकर उप थत जन म बांट द । और आप भी
त कर । त प ात ् स हव सोमवार के दन पाव सेर प व
गेहूं के आटे क बाट बनाय । तद अनुसार
घी और गुड़ िमलाकर चूरमा बनाव । और िशवजी का भोग लगाकर उप थत भ
म बांटे पीछे आप सकुटंु ब
तो भगवान िशवजी क कृ पा से उसके मनोरथ पूण हो जाते है । ऐसा कहकर अ सराय ने यथा विध षोड़श सोमवार
त कया तथा भगवान िशवजी क कृ पा से रोग मु
दन बाद जब फर िशवजी और पावती उस म दर म पधारे , तब रोग-मु होकर
होने का कारण पूछा तो ाहमण से
त क
ाहमण ने सोलह सोमवार
विध पूछकर
साद पाव । इस विध से साद ल
वग को चली गयी ।
होकर आन द से रहने लगा । कुछ
ाहमण को िनरोग दे खकर पावती ने
ाहमण से
त कथा कह सुनाई । तब तो पावती जी अित
त करने को तैयार हई ु ।
ाहमण
स न
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त करने के बाद उनक मनोकामना पूण हई ु तथा उनके
हये ु पु
वामी काितकेय
वयं माता के आ ाकार पु
ठे
हए ु पर तु
काितकेय जी को अपने वचार प रवतन का रह य जानने क
इ छा हई ु और माता से बोले – हे माताजी आपने ऐसा कौन
सा उपाय कया जससे मेरा मन आपक ओर आक षत हआ ु । तब पावती जी ने वह षोड़श सोमवार
त कथा उनको
सुनाई । वामी काितकजी बोले क ं गा
य क मेरा
यिम
क इस
त को म भी
ाहमण दखी दल से परदे श चला ु
गया है । हम उससे िमलने क बहत ु इ छा है । काितकेयजी ने
भी इस
त को कया और उनका
य िम
िमल गया । िम
ने
इस आक मक िमलन का भेद काितकेयजी से पूछा तो वे बोले – हे िम । हमने तु हारे िमलने क इ छा करके सोलह सोमवार का क बड़ इ छा हई ु । काितकेयजी से
त क
विध पूछ और यथा विध
कायवश वदे श गया तो वहाँ के राजा क लड़क का म सब
त कया था । अब तो
वयंवर था । राजा ने
कार ऋंडा रत हिथनी माला डालेगी म उसी के साथ
ाहमण भी
त कया ।
ाहमण के गले म डाल द । राजा क
ाहमण के साथ कर दया और
यार पु ी का ववाह कर दं ग ू ा । िशवजी क कृ पा से
ित ा के अनुसार बड़ धूमधाम से क या का ववाह उस
ाहमण को बहत ु -सा धन और स मान दे कर संतु
कौन-सा भार पु य कया जसके ाण ये । मने अपने िम व पवान ल मी क
क कामना करके
काितकेयजी के कथनानुसार सोलह सोमवार का ाि
हई ु ।
इस
कया । हे
ाणनाथ आपने ऐसा
त कया था जसके
ाहमण बोला भाव से मुझे
त करने लगी । िशवजी क दया से उसके गभ से एक अित सु दर सुशील धमा मा व ान पु को पाकर अित
समझदार हआ तो एक दन अपने माता से ु
तेरे गभ से उ प न हआ । माता ने पु ु
स हत पु
ाहमण सु दर राजक या
त क म हमा को सुनकर राजक या को बड़ा आ य हआ और वह भी पु ु
करने लगे ।
जब पु
कया ।
भाव से हिथनी ने सब राजकुमार को छोड़कर आपको वरण कया ।
उ प न हआ । माता- पता दोन उस दे व पु ु
पु
भाव से जब वह कसी
ण कया था क जस राजकुमार के गले
पाकर सुख से जीवन यतीत करने लगा । एक दन राजक या ने अपने पित से
तुम जैसी
त के
को भी अपने ववाह
वयंवर दे खने क इ छा से राजसभा म एक ओर बैठ गया । िनयत समय पर हिथनी आई और उसने
जयमाला उस
– हे
ाहमण िम
के स मुख
कट कया । पु
का
स न हए ु । और उनका लालन-पालन भली
कया क मां तूने कौन-सा तप कया है जो मेरे जैसा
बल मनोरथ जान के अपने कये हए ु सोलह सोमवार
ने ऐसे सरल
कार से
त को विध
त को सब तरह के मनोरथ पूण करने वाला सुना तो वह भी
त को रा यािधकार पाने क इ छा से हर सोमवार को यथा विध
त करने लगा । उसी समय एक दे श के वृ
राजा के दत ने आकर उसको एक राजक या के िलये वरण कया । राजा ने अपनी पु ी का ववाह ऐसे सवगुण ू स प न
ाहमण युवक के साथ करके बड़ा सुख
ा
कया ।
i वृ
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राजा के दवंगत हो जाने पर यह
नह ं था । रा य का अिधकार होकर भी वह सोमवार आया तो व
पु
ने अपनी
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ाहमण बालक ग ाहमण पु
पर बठाया गया, य क दवंगत भूप के कोई पु
अपने सोलह सोमवार के
त को कराता रहा । जब स हवां
यतमा से सब पूजन साम ी लेकर िशवालय म चलने के िलये कहा । पर तु
यतमा ने उसक आ ा क परवाह नह ं क । दास-दािसय
ारा सब सामि यं िशवालय पहँु चवा द और
गई । जब राजा ने िशवजी का पूजन कया, तब एक आकाशवाणी राजा के
वयं नह ं
ित हई ु । राजा ने सुना क हे राजा ।
अपनी इस रानी को महल से िनकाल दे नह ं तो तेरा सवनाश कर दे गी । वाणी को सुनकर राजा के आ य का ठकाना नह ं रहा और त काल ह मं णागृ ह म आकर अपने सभासद को बुलाकर पूछने लगा क हे मं य । मुझे आज िशवजी क वाणी हई ु है क राजा तू अपनी इस रानी को िनकाल दे नह ं तो तेरा सवनाश कर दे गी । मं ी आ द सब बड़े व मय और दःख म डू ब गये ु
य क जस क या के साथ रा य िमला है । राजा उसी को िनकालने का जाल
रचता है , यह कैसे हो सकेगा । अंत म राजा ने उसे अपने यहां से िनकाल दया । रानी दःखी ु हई ु नगर के बाहर चली गई । बना पद ाण, फटे व
दय भा य को कोसती
पहने, भूख से दखी धीरे -धीरे चलकर एक नगर म पहँु ची । वहाँ ु
एक बु ढ़या सूत कातकर बेचने को जाती थी । रानी क क ण दशा दे ख बोली चल तू मेरा सूत बकवा दे । म वृ
हँू,
भाव नह ं जानती हँू । ऐसी बात बु ढ़या क सुत रानी ने बु ढ़या के सर से सूत क गठर उतार अपने सर पर रखी । थोड़ दे र बाद आंधी आई और बु ढ़या का सूत पोटली के स हत उड़ गया । बेचार बु ढ़या पछताती रह गई और रानी को अपने साथ से दरू रहने को कह दया । अब रानी एक तेली के घर गई, तो तेली के सब मटके िशवजी के कारण चटक गये । ऐसी दशा दे ख तेली ने रानी को अपने घर से िनकाल दया । इस
कोप के
कार रानी अ यंत दख ु पाती
हई ु स रता के तट पर गई तो स रता का सम त जल सूख गया । त प ात ् रानी एक वन म गई, वहां जाकर सरोवर म सीढ़ से उतर पानी पीने को गई । उसके हाथ से जल
पश होते ह सरोवर का नीलकमल के स
य जल असं य
क ड़ोमय गंदा हो गया । रानी ने भा य पर दोषारोपण करते हए ु उस जल को पान करके पेड़ क शीतल छाया म व ाम करना चाहा ।
वह रानी जस पेड़ के नीचे जाती उस पेड़ के प े त काल ह िगरते चले गये । वन, सरोवर के जल क ऐसी दशा दे खकर गऊ चराते आदे शानुसार
वाल ने अपने गुंसाई जी से जो उस जंगल म
थत मं दर म पुजार थे कह । गुंसाई जी के
वाले रानी को पकड़कर गुंसाई के पास ले गये । रानी क मुख कांित और शर र शोभा दे ख गुंसाई जान
गए । यह अव य ह कोई विध क गित क मार कोई कुलीन अबला है । ऐसा सोच पुजार जी ने रानी के क पु ी म तुमको पु ी के समान रखूंगा । तुम मरे आ म म ह रहो । म तुम को कसी
कार का क
ित कहा नह ं होने
दं ग और आ म म रहने लगी । ू ा। गुंसाई के ऐसे वचन सुन रानी को धीरज हआ ु
आ म म रानी जो भोजन बनाती उसम क ड़े पड़ जाते, जल भरकर लाती उसम क ड़े पड़ जाते । अब तो गुंसाई
जी भी दःखी हए ु ु और रानी से बोले क हे बेट । तेरे पर कौन से दे वता का कोप है , जससे तेर ऐसी दशा है । पुजार क बात सुन रानी ने शवजी क पूजा करने न जाने क कथा सुनाई तो पुजार िशवजी महाराज क अनेक तुित करते हए ु रानी के भाव से अपने क
से मु
ित बोले क पु ी तुम सब मनोरथ के पूण करने वाले सोलह सोमवार हो सकोगी । गुंसाई क बात सुनकर रानी ने सोलह सोमवार
कया और स हव सोमवार को पूजन के
भाव से राजा के
कार से
त को करो । उसके
त को विधपूव क स प न
दय म वचार उ प न हआ क रानी को गए बहत ु ु समय
यतीत हो गया । न जाने कहां-कहां भटकती होगी, ढंू ढना चा हये ।
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यह सोच रानी को तलाश करने चार
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दशाओं म दत ू भेजे । वे तलाश करते हए ु पुजार के आ म म रानी को
पाकर पुजार से रानी को मांगने लगे, पर तु पुजार ने उनसे मना कर दया तो दत ू चुपचाप लौटे और आकर महाराज के स मुख रानी का पता बतलाने लगे । रानी का पता पाकर राजा
वयं पुजार के आ म म गये और पुजार से
ाथना करने लगे क महाराज । जो दे वी आपके आ म म रहती है वह मेर प ी ह । िशवजी के कोप से मने इसको याग दया था । अब इस पर से िशवजी का साथ चलने क आ ा दे द जये ।
कोप शांत हो गया है । इसिलये म इसे िलवाने आया हँू । आप इसेमेरे
गुंसाई जी ने राजा के वचन को स य समझकर रानी को राजा के साथ जाने क आ ा दे द । गुंसाई क आ ा पाकर रानी
स न होकर राजा के महल म आई । नगर म अनेक
कार के बाजे बजने लगे । नगर िनवािसय
ने नगर के दरवाजे पर तोरण ब दनवार से व वध- विध से नगर सजाया । घर-घर म मंगल गान होने लगे । पं ड़त ने व वध वेद मं म
का उ चारण करके अपनी राजरानी का आवाहन कया । इस
वेश कया । महाराज ने अनेक
कार से
याचक को धन-धा य दया । नगर म । इस
कार से राजा िशवजी क कृ पा का पा
सोमवार
ाहमण को दाना द दे कर संतु
कार रानी ने पुनः अपनी राजधानी
कया ।
थान- थान पर सदा त खुलवाये । जहाँ भूख को खाने को िमलता था हो राजधानी म रानी के साथ अनेक तरह के सुख का भोग भोग करते
त करने लगे । विधवत ् िशव पूजन करते हए ु , लोक के अनेकानेक सुख को भोगने के प ात िशवपुर को
पधारे ऐसे ह जो मनु य मनसा वाचा कमणा
ारा भ
स हत सोमवार का
इस लोक म सम त सुख क को भोगकर अ त म िशवपुर को
ा
त पूजन इ या द विधवत ् करता है वह
होता है । यह
त सब मनोरथ को पूण करने वाला
है ।
वधाता क
े
कृ ित
जब क पृ वी पर मनु य का ज म नह ं हआ था, उस समय क बात ह। आ खर वधाता ने च ु
मा क मु कान,
गुलाब क सुग ध और अमृ त क माधुर को एक साथ िमलाया और िम ट के घरौद म भर दया। सब घर दे लगे चहकने और महकने। दे वदत ू ने वधाता क इस नई अनोखी रचना को दे खा तो आ य से च कत रह गये। उ ह ने ा से पूछा, "यह
या ह?" वधाता ने बताया, "इसका नाम ह जीवन। यह मेर सव े कृ ित ह।" वधाता क बात
पूर भी नह ं हो पाई थी क एक दे वदत ू बीच ह म बोला पड़ा, " मा क जये क आने इसे िम ट का तन
कोई धातु
य
भु! ले कन यह समझ म नह ं आया
दया? िम ट तो तु छ-से-तु छ ह, जड़ से भी जड़ ह। िम ट न लेकर आपने
य नह ं ली? सोना नह ं तो लोहा ह ले लेते।" वधाता के होठ पर एक मोहक मु कान खेल उठ । बोले,
"व स! यह तो जीवन का रह य ह। िम ट के शर र म मने संसार का सारा सुख-स दय, सारा वैभव, उड़े ल दया ह। जड़ म आन द का चैत य फूंक दया ह। इसका जैसा चाहो, उपयोग कर लो। शर र को मह ा दे ने वाला िम ट क जड़ता भोगेगा; जो इससे ऊपर उठे गा, उसे आन द के परत-परत-परत िमलगे। ले कन ये सब िम ट के घर दे क तरह
णक ह। इसिलए जीवन का
येक
ण मू यवान ् ह। जो जतना सोयेगा, उतना ह खोयेगा। तुम
िम ट के ह अवगुण को दे खते हो, गुण को नह ं। िम ट म ह अकुंर फूटते ह। मने शर र का कम े बनाया ह, उसम कम के अंकुर जमगे। इस भांित मने मनु य को खेती उसके अपने ह हाथ म दे द ह। बोयेगा, वैसा ह फल काटे गा।"
वह जैसा बीज
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31
vxLr 2010
िशविलंग के विभ न
कार व लाभ
व तक.ऎन.जोशी
"ग धिलंग" दो भाग क तुर , चार भाग च दन और तीन भाग कुंकम से बनाया जाता ह। िम ी(िचनी) से बने िशव िलंग क पूजा से रोगो का नाश होकर सभी
कार से सुख द होती ह।
स ढ, िमच, पीपल के चूण म नमक िमलाकर बने िशविलंग क पूजा से वशीकरण और अिभचार कम के िलये कया जाता ह। फूल से बने िशव िलंग क पूजा से भूिम-भवन क
ाि
होती ह।
ज , गेहुं , चावल तीनो का एक समान भाग म िम ण कर आटे के बने िशविलंग क पूजा से प रवार म सुख समृ एवं संतान का लाभ होकर रोग से र ा होती ह।
कसी भी फल को िशविलंग के समान रखकर उसक पूजा करने से फलवा टका म अिधक उ म फल होता ह। य
क भ म से बने िशव िलंग क पूजा से अभी िस यां ा होती ह।
य द बाँस के अंकुर को िशविलंग के समान काटकर पूजा करने से वंश वृ
होती है ।
दह को कपडे म बांधकर िनचोड़ दे ने के प ात उससे जो िशविलंग बनता ह उसका पूजन करने से सम त सुख एवं धन क ाि होती ह। गुड़ से बने िशविलंग म अ न िचपकाकर िशविलंग बनाकर पूजा करने से कृ ष उ पादन म वृ आंवले से बने िशविलंग का
ािभषेक करने से मु
ा
होती ह।
होती ह।
कपूर से बने िशविलंग का पूजन करने से आ या मक उ नती
दत एवं मु
दत होता ह।
य द दवा ु को िशविलंग के आकार म गूंथकर उसक पूजा करने से अकाल-मृ यु का भय दरू हो जाता ह। फ टक के िशविलंग का पूजन करने से य
मोती के बने िशविलंग का पूजन
क सभी अभी
ी के सौभा य म वृ
कामनाओं को पूण करने म समथ ह।
करता ह।
वण िनिमत िशविलंग का पूजन करने से सम त सुख-समृ
क वृ
होती ह।
चांद के बने िशविलंग का पूजन करने से धन-धा य बढ़ाता ह। पीपल क लकड से बना िशविलंग द र ता का िनवारण करता ह। लहसुिनया से बना िशविलंग श ुओं का नाश कर वजय दत होता ह।
ावण मास के इस वष
ावण मास के
सोमवार
त के फल म न
थन सोमवार को काय िस ो के
भाव से वशेष वृ
से मनु य को अपने काय म सफलता करने से उ म फल क थन सोमवार को (ऋण)मु
हे तु
ाि
ा
ाि
त के लाभ
योग बनरहा ह, जस कारण इस दन होती ह। अतः इस
ावण के
त करने से
थन सोमवार को
करने हे तु एवं अपनी विभ न सम याओं से छुटकारा
ा
ावण
त करने
करने हे तु
त
होती ह।
त करने से होने वाले लाभ: य
होती ह।, नई नौकर
थम सोमवार
को
थर ल मी क
ाि
होती ह।, काय यवसाय म वृ
क संभावनाए बढजाती ह एवं पदौ नती ( मोशन)
त करने से भी लाभ
ा
होता ह। भूिम-भवन-वाहन सुख क
ाि
क संभावनाए बढती ह।, कज होती ह, या वृ
होती ह।
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32 िशवप चा र
नागे
हाराय
vxLr 2010 तो म ्
लोचनाय भ मा गरागाय महे राय। िन याय शु ाय दग बराय त मै न काराय नम: िशवाय॥१॥
म दा कनीसिललच दनचिचताय न द
र मथनाथ महे राय। म दारपु पबहपु ु पसुपू जताय। त मै म काराय नम: िशवाय॥२॥
िशवाय गौर वदना जवृ द सूयाय द ा वरनाशकाय। ीनीलक ठाय वृ ष वजाय त मै िश काराय नम: िशवाय ॥३॥ विस कु भो वगौतमाय मुनी य
दे वािचतशेखराय। च
ाकवै ानरलोचनाय त मै व काराय नम: िशवाय ॥४॥
व पाय जटाधराय पनाकह ताय सनातनाय। द याय दे वाय दग बराय त मै य काराय नम: िशवाय॥५॥ प चा रिमदं पु यं य: पठे छवस नधौ। िशवलोकमवा नोित िशवेन सह मोदते॥६॥
अथ :- जनके क ठ म साँप का हार है , जनके तीन ने ह, भ म ह जनका अ गराज (अनुलेपन) है , दशाएँ ह जनका व
ह
(अथात ् जो न न ह) उन शु अ वनाशी महे र न कार व प िशव को नम कार है ॥1॥ ग गाजल और च दन से जनक अचना हई ु है , म दार-पु प तथा अ या य कुसुम से जनक सु दर पूजा हई ु है , उन न द के अिधपित
मथगण के वामी महे र म
कार व प िशव को नम कार है ॥2॥ जो क याण व प ह, पावती जी के मुखकमल को वकिसत ( स न) करने के िलए जो सूय व प ह, जो द
के य
का नाश करने वाले ह, जनक
नम कार है ॥3॥ विस , अग च
य और गौतम आ द
वजा म बैल का िच है , उन शोभाशाली नीलक ठ िश कार व प िशव को े मुिनय ने तथा इ
आ द दे वताओं ने जनके म तक क पूजा क है ,
मा, सूय और अ न जनके ने ह, उन व कार व प िशव को नम कार है ॥4॥ ज ह ने य
प धारण कया है , जो जटाधार ह,
जनके हाथ म पनाक है , जो द य सनातन पु ष ह, उन दग बर दे व य कार व प िशव को नम कार है ॥5॥ जो िशव के समीप इस प व प चा र का पाठ करता है , वह िशवलोक को ा करता और वहां िशवजी के साथ आन दत होता है ॥6॥
िशव के क याणकार मं भगवान िशव क शी मा यम से य
कृ पा
ाि
एवं ती
कामना िस
अपनी सम त मनोकामनाओं क पूित कर य
अपने जीवन म सुख समृ
एवं शांित सरलता से
भगवान िशव के मं ो के जाप हे तु
ा
एवं उ र-पूव म मुख कर जाप करने से शी
ा
िस
ा
होती ह।
ं ठः।
4. ऊ व भू फ । ं मं औ ं अं।
6. नमो नीलक ठाय। 7. ॐ
ं
नमः िशवाय।
8. ॐ नमो भगवते द
योग। इस मं ो के
दन- ित दन सफलता क और अ
त होकर
क माला उ म होती ह। जाप हे तु पूव या उ र दशा का चुनाव कर,
2. ॐ नमः िशवाय।
5. इं
के अनुभूत
कर सकते ह।
1. नमः िशवाय। 3.
हे तु तेज वी मं
णामू ये म ं मेधा य छ वाहा।
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33 ावण सोमवार
vxLr 2010 त कैसे कर?
ावण सोमवार के व ानो के अनुसार
त म भगवान िशव और माता पावती क पूजा-अचना करने का वधान ह। ावण सोमवार का
ावण सोमवार के दव
त-पूजन- विध इस
त करने वाले य
बार सा वक भोजन करना चा हए। सोमवार
वजय ठाकुर
कार ह।
को सूय दय के समय से
त
ारं भ कर लेना चा हये एवं दन म एक
त के दन िशव पावित क पूजा अचना के उपरांत
त क समाि
से पूव
त क कथा सुनने का वधान ह।
ावण सोमवार को
मुहू त म उठ कर।
पूरे घर क साफ-सफाई कर
नान इ या द से िनवृ
हो कर।
पूरे घर म गंगा जल िछड़क। घर म पूजा
थान पर भगवान िशव क मूित या िच
पूजन क सार तैयार होने के बाद िन न मं 'मम
था पत कर।
से संक प ल-
ेम थैय वजयारो यै यािभवृ यथ सोम तं क र ये'
इसके प ात िन न मं
से
यान कर-
' याये न यंमहे शं रजतिग रिनभं चा चं ावतंसं र ाक पो प ासीनं समंता
तुतममरगणै या कृ
यान के प ात 'ॐ नमः िशवाय' मं पूजन करना चा हये। पूजन के प ात
ावण सोमवार
वलांग परशुम ृ गवराभीितह तं स नम।्
ं वसानं व ा ं व वं ं िन खलभयहरं पंचव से िशवजी का तथा 'ॐ नमः िशवायै' मं
ं
ने म॥्
से पावतीजी का षोडशो उपचार से
त कथा सुन।
त प ात आरती कर साद बाटदे । इसक प यात ह भोजन या फलाहार ावण सोमवार सोमवार य
हण करना चा हये ।
त का फल
त उपरो
विध से करने पर भगवान िशव तथा माता पावती क कृ पा बनी रहती ह।
का जीवन सुख समृ
एवं ए य यु
होकर य
के सम त संकटो नाश हो जाते ह।
izk.k&izfrf”Br O;kikj o`f) ;a= gekjs o”kksZ ds vuqHkoks }kjk rS;kj O;kikj o`f} ;a= dks ?kj] nqdku ,oa vksfQl esa LFkkfir djus ls O;kikj esa vkus okyh ck/kkvksa ,oa ijs’kkuhvksa ls j{kk gksrh gSa ,oa fnu&izfrfnu mUufr gksrh gSaA मू य:- 910 से 8200 तक उ ल
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34
vxLr 2010
कम फल ह केवलं
एक पं डत व चोर
ित दन िशव मं दर जाते। एक दन चोर को मं दर के
के पैर म लोहे क क ल चुभ गई। तभी भगवान िशव
ार पर सोने क अश फयां िमलीं और पं डत
कट हए ु और दोन को उनके कम का मह व बताते हए ु
समझाया।
िशव मं दर म िन य एक व ान पं डत और एक चोर आते थे। पं डत अ यंत भ दध ू चढ़ाकर पूजा-अचना करता था। वह ं बैठकर िशव मं यान कर िशव भ
व तक.ऎन.जोशी
एवं िशव तो
भाव से िशविलंग पर फल-फूल और
का पाठ करता और घंट
ा से िशव का
म डू बा रहता।
उसी िशव मं दर म एक चोर भी
ित दन आता था। चोर िशव मं दर म आते ह िशविलंग पर डं डे मारना शु
कर
दे ताथा और अपने भा य को कोसता हआ भगवान िशव को अपश द कहताथा। चोर अपने दरू भा य का सारा दोष वह ु भगवान िशव पर मढ़ता और उ ह अ यायी एवं प पाती ठहराताथा।
एक दन मं दर म पं डत और चोर एक साथ-साथ ह आए और अपनी
ित दन क
या दोहराई। मं दर म उनके
ारा कया जाने वाला काम भी दोन का एक साथ ह ख म हआ और दोन का एक साथ ह बाहर आना हआ। उसे ु ु ण चोर को
ार के बाहर िनकते ह सोने क अश फय से भर थैली िमली और
म लोहे क क ल से गहरा घाव हो गया। अश फयां िमलने से चोरको तो अ यंत घाव होने के कारण पं डत बड़ा दखी हआ और रोने लगा। ु ु उस व
भगवान िशव वहां
ार के बाहर िनकते ह पं डत के पैर
स नता हई ु ले कन पैर म गहरा
कट हए ु और पं डत से बोले पं डतजी! आपके भा य म आज के दन आपको फांसी लगनी
िलखी थी कंतु मेर पूजा करके अपने स कम से फांसी को आपने केवल एक गहरे घाव म बदल दया ह। क तुं इस चोर भा य म आज के दन राजा बनकर राजिसंहासन पर बैठना िलखा था ले कन इसके कम ने इसे आज केवल वणमु ा का ह अिधकार बनाया। आप जाओ और अपना कम करो। अथात: य
अपने भा य का िनमाण
उ म भा य को
ा
वयं ह करता ह। य द य
अ छे कम करता ह तो शुभ फल के मा यम से
करता ह। य द द ु कम करता ह तो अशुभ फल के मा यम से दभा ु य को
ा
करता ह।
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गु आ ा पालक िश य उपम यु
मह ष आयोदधौ य िस
दरू-दरू तक अपनी व ा,
व तक.ऎन.जोशी
ान, तप या और उदारता के गुणो के कारण फेिल हई ु थी।
मह ष का यवहार उपर से अपने िश य के ित अ यंत कठोर था, ले कन अंदर से अपने िश य के िलये असीम नेह रखते थे। मह ष अपने िश य को अ यंत े मह ष के े
एवं सुयो य बनाना चाहते थे, इस िलए उनके ित कठोर यवहार रखते थे।
िश य म से एक था उपम यु। गु दे व ने उसे गाये चराने का काय सोप रखा था।
एक दन गु दे व ने पूछा बेटा उपम यु तुम आजकल भोजन या करते हो? उपम यु बोला- गु दे व म िभ ा मांगकर अपना काम चलाता हंू । मह ष ने कहा व स
चार को इस कार िभ ा ार
ा अ न नह ं खाना चा हए। िभ ा म तुमह जो कुछ िमले, वह गु को दे ना चा हए। उसम से य द गु कुछ द तो उसे हण करना चा हए। उपम यु ने मह ष क बात मानकर िभ ा का अ न गु दे व को दे ना शु
कर दया। ले कन मह ष उसम से कुछ भी
उपम यु को न दे ते। तब उसने अपनी भूख शांत करने के िलए दबारा िभ ा मांगनी आरं भ कर द । गु दे व ने इस पर भी आप ु
जताई इससे गृ ह थ पर अिधक भार पड़े गा और दसरे ू िभ ा मांगने वाल को भी संकोच होगा। थोड़े दन बाद मह ष ने फर पूछा, तो उपम यु ने बताया क म गाय का दध ू पी लेता हंू । तब मह ष ने तक दया क गाय तो मेर ह और मुझसे बना पूछे वह दध ू तुमह नह ं पीना चा हए। तब उपम यु ने बछड़ के मुख से िगरने वाले फेन से अपनी भूख िमटाना शु बंद करवा दया। तब उपम यु उपवास करने लगा। एक दन भूख के अस
कया कंतु मह ष ने वह भी
होने पर उसने आक के प े खा िलए, जसके वष से
वह अंधा होकर जल र हत कुंए म िगर गया। मह ष ने उपम यु को जब ऐसी अव था म पाया, तो ऋ वेद के मं ारा
ापूव क मरण करने पर वे कट हए ु और उसक ने
के बना खाना उपम यु ने वीकार नह ं कया। इस गु भ
से अ
नी कुमार क
तुित करने को कहा। उपम यु
योित लौटाते हए ु उसे एक पूआ खाने को दया, जसे गु क आ ा
से स न होकर अ
नीकुमार ने उपम यु को सम त व ाएं बना
पढ़े आ जाने का आशीष दया। गु ा
क आ ाओं का यथावत ् पालन करने वाले िश य को सम त
कार के
ान एवं व ा गु
के आशीवाद से ह
होजाती ह।
या आप जानते ह? महाभारत क रचना इसी गु व
के सु िस आष ंथ
पू णमा के दन पूण हई ु थी। सू का लेखन काय गु
दे वलोक म दे वताओं ने वेद यासजी का पूजन गु
पू णमा के आरं भ कया गया था।
पू णमा के दन कया था। इस िलये इस दन वेद
पूजन कया जाता ह एवं इस पू णमा को यासपू णमा भी कहा जाता ह। व ानो के मत मे गु
पू णमा के दन गु
का पूजन कर नेसे वषभर के पव मनाने के समान फल
ा
यास का होता ह।
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vxLr 2010
िशव कामदे व कथा
राजे
ताप
सतीजी के दे ह याग के प ात जब िशव जी तप या म लीन हो गये थे उस समय तारक नाम का एक असुर हआ। जसने ु
अपने भुजबल, ताप और तेज से सम त लोक और लोकपाल पर वजय ा कर िलया जसके फल
व प सभी दे वता सुख और
स प
ा जी ने उस सभी दे वता को
से वंिचत हो गये। सभी कार से िनराश दे वतागण
ा जी के पास सहायता के िलये पहँु चे।
बताया, इस दै य क मृ यु केवल िशव जी के वीय से उ प न पु के हाथ ह हो सकती ह। ले कन सती के दे ह याग के बाद िशव जी वर
हो कर तप या म लीन हो गये ह। सती जी ने हमाचल के घर पावती जी के प म पुनः ज म ले िलया ह। अतः िशव जी
का पावती से ववाह करने के िलये उनक तप या को भंग करना आव यक ह। आप लोग कामदे व को िशव जी के पास भेज कर उनक तप या भंग करवाओ फर उसके बाद हम उ ह पावती जी से ववाह के िलये राजी करवा लगे। ा जी के आदे श अनुसार दे वताओं ने कामदे व से िशव जी क तप या भंग करने का अनुरोध कया। इस पर कामदे व ने कहा,
िशव जी
क तप या भंग
कर के मेरा कुशल नह ं होगा तथा प म आप लोग का काय िस
क ँ गा।
इतना कहकर कामदे व पु प के धनुष से सुस जत होकर वस ता द अपने सहयोगी को अपने साथ लेकर िशवजी के तप या करने वाले
थान पर पहँु च गये। वहाँ पर पहँु च कर कामदे व ने अपना ऐसा भाव दखाया क वेद क सार मयादा धर
रह गई। कामदे व के इस
भाव से भयभीत होकर
चय, संयम, िनयम, धीरज, धम,
गुण कहलाते ह, भाग कर िछप गये। स पूण जगत ् म
ी-पु ष एवं
कृ ित का सम
क धर
ान, व ान, वैरा य आ द जो ववेक के ाणी समुह सब अपनी-अपनी मयादा
छोड़कर काम के वश म हो गये। आकाश, जल और पृ वी पर वचरण करने वाले सम त पशु-प ी सब कुछ भुला कर केवल काम के वश हो गये। हजारो साल से तप या कर िस , वर , महामुिन और महायोगी बनी व ान भी काम के वश म होकर योग संयम को याग एसी
ी सुख पाने म म न हो गये। तो मनु य क बात ह
या हो सकती ह?
थती होने के प यात भी कामदे व के इस कौतुक का िशव जी पर कुछ भी भाव नह ं पड़ा। इससे कामदे व भी
भयभीत हो गये क तु अपने काय को पूण कये बना वापस लौटने म उ ह संकोच हो रहा था । इसिलये उ ह ने त काल अपने सहायक ऋतुराज वस त को कट कर कया। वृ
पु प से सुशोिभत हो गये, वन-उपवन, बावली-तालाब आ द हरे भेरे होकर
परम सुहाने हो गये, शीतल एवं मंद-मंद सुग धत पवन चलने लगा, सरोवर कमल पु प से प रपू रत हो गये, पु प पर
मर
बीन-बीना ने लगे । राजहं स, कोयल और तोते रसीली बोली बोलने लगे, अ सराएँ नृ य एवं गान करने लगीं। इस पर भी जब तप यारत िशव जी का कुछ भी भाव न पड़ा तो
ोिधत कामदे व ने आ वृ
क डाल पर चढ़कर अपने पाँच
ू गई जससे उ ह अ य त ती ण पु प बाण को छोड़ दया जो क िशव जी के दय म जाकर लगे। उनक समािध टट आ वृ
क डाल पर कामदे व को दे ख कर िशवजी
कामदे व भ म हो गये।
ोिधत हो कर उ ह ने अपना तीसरा ने खोल दया और दे खते ह दे खते
कामदे व क प ी रित अपने पित क ऎसी दशा सुनते ह िशवजी
ोध
दन करते हए ु िशवजी के पास पहंु च गई। उसके पित वलाप से
याग कर बोले, हे रित! वलाप मत कर जब पृ वी के भार को उतारने के िलये यदवं ु श म ी कृ ण अवतार होगा
तब तेरा पित उनके पु ( सव
ोभ हआ। ु
ु न) के प म उ प न होगा और तुझे पुनः ा होगा। तब तक वह बना शर र के ह इस संसार म
या होता रहे गा। अंगह न हो जाने के कारण कामदे व को अनंग कहते ह। इसके बाद
ा जी स हत सम त दे वताओं ने
िशव जी के पास आकर उनसे पावती जी से ववाह कर लेने के िलये ाथना क जसे उ ह ने वीकार कर िलया।
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vxLr 2010
िशव और सती का
े म।
द
जापित क कई पु यां थी। सभी पु यां गुणवती थीं। फर भी द
थे उनके घर म एक ऐसी पु ी का ज म हो, जो सव श
के मन म संतोष नह ं था। वे चाहते
-संप न हो एवं सव वजियनी हो। जसके कारण द
ऐसी ह पु ी के िलए तप करने लगे। तप करते-करते अिधक दन बीत गए, तो भगवती आ ा ने तु हारे तप से वय पु ी
व तक ऎन जोशी
स न हंू । तुम कस कारण वश तप कर रहे ह ? द
प म द
कट होकर कहा, 'म
न तप करने का कारण बताय तो मां बोली म
प म तु हारे यहां ज म धारण क ं गी। मेरा नाम होगा सती। म सती के
लीलाओं का व तार क ं गी। फलतः भगवती आ ा ने सती
एक
प म ज म लेकर अपनी
के यहां ज म िलया। सती द
क सभी पु य
म सबसे अलौ कक थीं। सतीने बा य अव था म ह कई ऐसे अलौ कक आ य चिलत करने वाले काय कर दखाए थे, ज ह दे खकर
वयं द
को भी व मयता होती रहती थी। जब सती ववाह यो य होगई, तो द
क िचंता होने लगी। उ ह ने आ ाआद श
ा जी से इस वषय म परामश कया।
को उनके िलए वर
ा जी ने कहा, सती आ ा का अवतार ह।
और िशव आ द पु ष ह। अतः सती के ववाह के िलए िशव ह यो य और उिचत वर ह। द
ने
ा
जी क बात मानकर सती का ववाह भगवान िशव के साथ कर दया। सती कैलाश म जाकर भगवान िशव के साथ रहने लगीं। भगवान िशव के द
के दामाद थे, कंतु एक ऐसी घटना घट त होगई जसके कारण द
भगवान िशव के
ित बैर और वरोध भाव पैदा हो गया।
संपूण घटना इस
कार ह
एक बार दे वलोक म सभा म एक
के
दय म
ा ने धम के िन पण के िलए एक सभा का आयोजन कया था। सभी बड़े -बड़े दे वता
होगये थे। भगवान िशव भी इस सभा म बैठे थे। सभा म डल म द
का आगमन हआ। द ु
के
आगमन पर सभी दे वता उठकर खड़े हो गए, पर भगवान िशव खड़े नह ं हए। उ ह ने द ु
को
णाम भी नह ं कया। फलतः द
ने अपमान का अनुभव
कया। केवल यह नह ं, उनके
दय म भगवान िशव के
ित ई या क
आग जल
उठ । वे उनसे बदला लेने के िलए समय और अवसर क
ती ा करने लगे। एक बार सती और िशव कैलाश पवत पर बैठे हए ु
पर पर वातालाप कर रहे थे। उसी समय आकाश माग से कई वमान कनखल क ओर जाते हए दखाई पड़े । ु
सती ने उन वमान को दखकर भगवान िशव से पूछा,
' भो, ये सभी वमान कसके है और कहां जा रहे ह? भगवान शकंर ने उ र दया आपके पता ने बहोत बडे य ह। सम त दे वता और दे वांगनाएं इन वमान म बैठकर उसी य
का आयोजन कया
म स मिलत होने के िलए जा रहे ह।'
i भगवान
Xkq:Ro T;ksfr”k
इस पर सती ने दसरा ू शंकर
ने
उ र
38 कया
दया,
vxLr 2010
या मेरे पता ने आपको य
आपके
पता
सती मन ह मन सोचने लगीं फर बोलीं य
मुझसे
बैर
म स मिलत होने के िलए नह ं बुलाया?
रखते
है,
फर
वे
मुझे
य
बुलाने
लगे?
के इस अवसर पर अव य मेर सभी बहन आएंगी। उनसे िमले हए ु बहत ु
दन हो गए। य द आपक अनुमित हो, तो म भी अपने पता के घर जाना चाहती हंू । य
म स मिलत हो लूंगी और
बहन से भी िमलने का सुअवसर िमलेगा। भगवान िशव ने उ र दया, इस समय वहां जाना उिचत नह ं होगा। आपके पता मुझसे जलते ह हो सकता ह वे आपका भी अपमान कर। बना बुलाए कसी के घर जाना उिचत नह ं होता ह। इस पर सती ने
कया एसा
यु? ं भगवान िशव ने उ र दया
ववा हता लड़क को बना बुलाए पता के घर नह
ू जाता ह। जाना चा हए, य क ववाह हो जाने पर लड़क अपने पित क हो जाती ह। पता के घर से उसका संबंध टट ले कन सती पीहर जाने के िलए हठ करती रह ं। अपनी बात बार-बात दोहराती रह ं। उनक इ छा दे खकर भगवान िशव ने पीहर जाने क अनुमित दे द । उनके साथ अपना एक गण भी साथ म भेज दया उस गण का नाम वीरभ सती वीरभ
के साथ अपने पता के घर ग ।
घर म सतीसे कसी ने भी
ेमपूव क वातालाप नह ं कया। द
कराने आई हो? अपनी बहन को तो दे खो वे कस तु हारे शर र पर मा पहना ह
था।
बाघंबर ह। तु हारा पित
या सकता ह। द
ने उ ह दे खकर कहा तुम
या यहां मेरा अपमान
कार भांित-भांित के अलंकार और सुंदर व
से सुस जत ह।
मशानवासी और भूत का नायक ह। वह तु ह बाघंबर छोड़कर और
के कथन से सती के
दय म प ाताप का सागर उमड़ पड़ा। वे सोचने लगीं उ ह ने यहां
आकर अ छा नह ं कया। भगवान ठ क ह कह रहे थे, बना बुलाए पता के घर भी नह ं जाना चा हए। पर अब
या
हो सकता ह? अब तो आ ह गई हंू । पता के कटु और अपमानजनक श द सुनकर भी सती मौन रह ं। वे उस य मंडल म ग
जहां सभी दे वता और
ॠ ष-मुिन बैठे थे तथा य कु ड म धू-धू करती जलती हई डाली जा रह थीं। सती ने य मंडप म ु अ न म आहितयां ु सभी दे वताओं के तो भाग दे ख,े कंतु भगवान िशव का भाग नह ं दे खा। वे भगवान िशव का भाग न दे खकर अपने पता से बोलीं पतृ े ! य नह ं रखा? द
म तो सबके भाग दखाई पड़ रहे ह कंतु कैलाशपित का भाग नह ं ह। आपने उनका भाग
ने गव से उ र दया म तु हारे पित िशव को दे वता नह ं समझता। वह तो भूत का
वाला और ह डय क माला धारण करने वाला ह। वह दे वताओं क पं सती के ने
य
वामी, न न रहने
म बैठने यो य नह ं ह। उसे कौन भाग दे गा?
लाल हो उठे । उनक भ हे कु टल हो ग । उनका मुखमंडल
लय के सूय क भांित तेजो
हो उठा।
उ ह ने पीड़ा से ितलिमलाते हए ु कहा ओह! म इन श द को कैसे सुन रह ं हंू मुझे िध कार ह। दे वताओ तु ह भी िध कार ह! तुम भी उन कैलाशपित के िलए इन श द को कैसे सुन रहे हो जो मंगल के म संपूण सृ
को न
करने क श
रखते ह। वे मेरे
तीक ह और जो
वामी ह। नार के िलए उसका पित ह
ण मा
वग होता ह। जो नार
अपने पित के िलए अपमान जनक श द को सुनती ह उसे नरक म जाना पड़ता ह। पृ वी सुनो, आकाश सुनो और दे वताओं, तुम भी सुनो! मेरे पता ने मेरे सती अपने कथन को समा
करती हई ु य
वामी का अपमान कया ह। म अब एक
ण भी जी वत रहना नह ं चाहती।
के कु ड म कूद पड़ । जलती हई के साथ उनका शर र भी जलने ु आहितय ु
लगा। य मंडप म खलबली पैदा हो गई, हाहाकार मच गया। दे वता उठकर खड़े हो गए। वीरभ उ ल-उछलकर य ने दे खते ह दे खते द
ोध से कांप उटे । वे
का व वंस करने लगे। य मंडप म भगदड़ मच गई। दे वता और ॠ ष-मुिन भाग खड़े हए। वीरभ ु का म तक काटकर फक दया। समाचार भगवान िशव के कान म भी पड़ा। वे
चंड आंधी क
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भांित कनखल जा पहंु चे। सती के जले हए ु शर र को दे खकर भगवान िशव ने अपने आपको भूल गए। सती के उनक भ को
ेम और
ने शंकर के मन को याकुल कर दया। उन शंकर के मन
याकुल कर दया ज ह ने काम पर भी वजय
जो सार सृ
को न
करने क
ा
क थी और
मता रखते थे। वे सती के
ेम म
खो गए, बेसुध हो गए। भगवान िशव ने उ मत क भांित सती के जले हए ु शर र को
कंधे पर रख िलया। वे सभी दशाओं म सती के इस अलौ कक जल का
ेम को दे खकर पृ वी
वाह ठहर गया और
याकुल हो उठ , सृ
मण करने लगे। िशव और
के
क ग
क गई, हवा
दे वताओं क
क गई,
सांस।े सृ
ाणी पुकारने लगे— पा हमाम! पा हमाम!
भयानक संकट उप थत दे खकर सृ
के पालक भगवान व णु आगे
बढ़े । वे भगवान िशव क बेसुधी म अपने च
से सती के एक-एक
अंग को काट-काट कर िगराने लगे। धरती पर इ यावन
थान म
सती के अंग कट-कटकर िगरे । जब सती के सारे अंग कट कर िगर गए, तो भगवान िशव पुनः अपने आप म आए। जब वे अपने आप म आए, तो पुनः सृ
के सारे काय चलने लगे।
धरती पर जन इ यावन िगरे थे, वे ह उन
थान आज श
थान म सती के अंग कट-कटकर के पीठ थान माने जाते ह। आज भी
थान म सती का पूजन होता ह, उपासना होती ह। ध य था िशव
और सती का
ेम। िशव और सती के
ेम ने उ ह अमर और वंदनीय बना दया ह।
पित-प ी म कलह िनवारण हे तु य द प रवार म सुख सु वधा के सम त साधान होते हए ु भी छोट -छोट बातो म पित-प ी के बच मे कलह होता रहता ह, तो घर के जतने सद य हो उन सबके नाम से गु से मं
िस
ाण- ित त पूण चैत य यु
व कायालत
ारा शा ो
विध- वधान
वशीकरण कवच एवं गृ ह कलह नाशक ड बी बनवाले एवं उसे
अपने घर म बना कसी पूजा, विध- वधान से आप वशेष लाभ
ा
कर सकते ह। य द आप मं
िस
पित वशीकरण या प ी वशीकरण एवं गृ ह कलह नाशक ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक इस कर सकते ह।
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
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िशव पावती का ववाह
िचंतन जोशी सती के वयोग म शंकरजी क दयनीय दशा हो गई। िशव हर पल सती का ह
यान करते रहते और उ ह ं क चचा म
य त रहते। उधर सती ने भी शर र का याग करते समय संक प कया था क म राजा हमालय के यहाँ ज म लेकर शंकरजी क अ ािगनी बनूँगी। जगत जननी जगद बा का संक प यथ होने से तो रहा। वे उिचत समय पर राजा हमालय क प ी मेनका के गभ म व होकर उनक कोख म से कट हु । पवतराज क पु ी होने के कारण मां जगद बा इस ज म म पावती कहला । जब पावती
बड़ होकर सयानी हु तो उनके माता- पता को यो य वर तलाश करने क िचंता सताने लगी।
एक दन अचानक दे व ष नारद राजा हमालय के महल म आ पहँु चे और पावती को दे ख कहने लगे क इसका ववाह
शंकरजी के साथ होना चा हए और वे ह सभी
से इसके यो य ह। पावती के माता- पता को नारद ने जब यह बताया क
पावती सा ात जगद बा के पम इस ज म म आपके यहा कट हइं ु ह। उनके आनंद ठकाना न रहा।
एक दन अचानक भगवान शंकर सती के वयोग म घूमते-घूमते हमालय दे श म जा पहँु चे और पास ह क गंगावतरण
म तप या करने लगे। जब हमालय को इसक जानकार िमली तो वे पावती को लेकर िशवजी के पास गए। राजा ने िशवजी से वन तापूव क अपनी पु ी पावती को सेवा म हण करने क
ाथना क । िशवजी ने पहले तो आनाकानी क , कंतु पावती क भ
दे खकर वे उनका आ ह नह ं टाल पाये। िशवजी से अनुमित िमलने के बाद तो पावती ित दन अपनी स खय को साथ ले िशवक सेवा करने लगीं। पावती इस बात का सदा यान रखती थीं क िशवजी को कसी भी
कार का क
चरणोदक
न हो। पावती
ित दन िशव के चरण धोकर
हण करतीं और षोडशोपचार से पूजा करतीं। इसी तरह
पावती को भगवान शंकर क सेवा करते द घ समय यतीत हो गया। क तु पावती जैसी सुंदर बाला से इस कार एकांत म सेवा लाभ लेते रहने पर भी भगवान शंकर के मन म कभी वकार नह ं उतप न हआ। ु
िशव हमेशा अपनी समािध म ह िन ल रहते। उधर दे वताओं
को तारक नाम का असुर बड़ा ास दे ने लगा था।
ा जी ने उस सभी
दे वता को बताया, इस दै य क मृ यु केवल िशव जी के वीय से उ प न पु के हाथ ह हो सकती ह। सभी दे वता िशव-पावती का ववाह कराने का यास करने लगे। दे वताओं ने िशव को पावती के ित अनुर
करने
के िलए कामदे व को उनके पास भेजा, क तु पु पायुध का पु पबाण भी शंकर के मन को व ु ध न कर सका। उलटा कामदे व िशवक ोधा न से भ म हो गए। इसके बाद शंकर भी वहाँ अिधक नह ं रहना चाहते थे इस िलये िशव कैलास क ओर चल दए। पावती को शंकर क सेवा से वंिचत होने का बड़ा दःख ु हआ ु , कंतु उ ह ने िनराश न होकर अब क बार तप ारा शंकर को संतु करने क मन म ठानी।
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उनक माता ने उ ह सुकुमार एवं तप के अयो य समझकर बहत ु मना कया, क तु पावती पर इसका कोई असर नह ं
हआ। पावती अपने संक प से वे तिनक भी वचिलत नह ं हु । माता पवती भी घर से िनकल उसी िशखर पर तप या करने लगीं, ु जहाँ िशवजी ने तप या क थी।
िशखर पर तप या म पवतीने पहले वष फलाहार से जीवन यतीत कया, दसरे ू वष वे वृ
के प े खाकर रहने लगीं और फर तो उ ह ने पण
का भी याग कर दया। इस कार पावती ने तीन हजार वष तक तप या क । पावती क कठोर तप या को दे ख ऋ ष-मुिन भी दं ग रह गए। अंत म भगवान भोले का आसन हला। उ ह ने पावती क पर
ा के िलए पहले स षय को
ु श धारण कर पावती क पर वयं वटवे
भेजा और पीछे
ा के िनिम
थान कया। जब िशवने सब कार से जाँच-परखकर दे ख िलया क पावती क उनम अ वचल िन ा ह, तब तो वे अपने को अिधक दे र तक न िछपा सके। वे तुरंत अपने असली
प म पावती के सामने कट हो गए और उ ह
पा ण हण का वरदान दे कर अंतधान हो गए। पावती अपने तप को पूण होते दे ख घर लौट आ और अपने माता- पता से सारा वृ ांत कह सुनाया। अपनी दलार पु ी क कठोर ु
तप या को फलीभूत होता दे खकर माता- पता के आनंद का ठकाना नह ं रहा। उधर शंकरजी ने स षय को ववाह का लेकर हमालय के पास भेजा और इस कार ववाह क शुभ ितिथ िन स षय
ारा ववाह क ितिथ िन
ताव
त होगई।
त कर दए जाने के बाद भगवान ् शंकरजी ने नारदजी ारा सारे दे वताओं को ववाह म
स मिलत होने के िलए आदरपूव क िनमं त कया और अपने गण को बारात क तैयार करने का आदे श दया।
िशवजी के इस आदे श से अ यंत स न होकर गणे र शंखकण, केकरा , वकृ त, वशाख, वकृ तानन, द ु दभ ु , कपाल,
कुंडक, काकपादोदर, मधु पंग, नंद ,
मथ, वीरभ
आ द गण
के अ य
अपने-अपने गण
े पाल, भैरव आ द गणराज भी को ट-को ट गण के साथ िनकल पड़े । ये सभी तीन ने
और गले म नीले िच ह थे। सभी ने
ा
को साथ लेकर चल पड़े ।
वाले थे। सबके म तक पर चं मा
के आभूषण पहन रखे थे। सभी के शर र पर उ म भ म लगी हई ु थी।
इन गण के साथ शंकरजी के भूत , ेत , पशाच क सेना भी आकर स मिलत हो गई। इनम डाकनी, शा कनी, यातुधान, वेताल,
रा स आ द भी शािमल थे। इन सभी के प-रं ग, आकार- कार, चे ाएँ, वेश-
भूषा, हाव-भाव आ द सभी कुछ अ यंत विच थे। वे सबके सब अपनी तरं ग म म त होकर नाचते-गाते और मौज उड़ाते हए ु शंकरजी के चार ओर एक त हो गए। चंड दे वी बड़
स नता के साथ उ सव मनाती हई ु भगवान
दे व क बहन बनकर वहाँ आ पहँु चीं। उ ह ने सप के
आभूषण पहन रखे थे। वे ेत पर बैठकर अपने म तक पर सोने का कलश धारण कए हए ु थीं। धीरे -धीरे वहाँ सारे दे वता भी एक हो गए। उस दे वमंडली के बीच म भगवान
ाजी भी उनके पास म मूितमान ्वेद , शा
उप थत थे।
ी व णु ग ड़ पर वराजमान थे। पतामह
, पुराण , आगम , सनकाद महािस , जापितय , पु
तथा कई प रजन के साथ
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दे वराज इं भी कई आभूषण पहन अपने ऐरावत गज पर बैठ वहाँ पहँु चे थे। सभी मुख ऋ ष भी वहाँ आ गए थे। तु बु ,
नारद, हाहा और हह ू ूआद
े गंधव तथा क नर भी िशवजी क बारात क शोभा बढ़ाने के िलए वहाँ पहँु च गए थे। इनके साथ ह
सभी जग माताएँ, दे वक याएँ, दे वयाँ तथा प व दे वांगनाएँ भी वहाँ आ गई थीं। इन सभी के वहाँ िमलने के बाद भगवान शंकरजी अपने फु टक जैसे उ विच बारात के
वल, सुंदर वृ षभ पर सवार हए। ु द ू हे के वेश म िशवजी क शोभा िनराली ह छटक रह थी। इस द य और
थान के समय डम ओं क डम-डम, शंख के गंभीर नाद, ऋ षय -मह षय के मं ो चार, य
, क नर ,
ग धव के सरस गायन और दे वांगनाओं के मनमोहक नृ य और मंगल गीत क गूँज से तीन लोक प र या हो उठे । उधर हमालय ने ववाह के िलए बड़ धूम-धाम से तैया रयाँ क ं और शुभ ल न म िशवजी क बारात हमालय के ार पर आ लगी। पहले तो िशवजी का वकट
प तथा उनक भूत- ेत क सेना को दे खकर मैना बहत ु डर ग और उ ह अपनी क या का
पा ण हण कराने म आनाकानी करने लगीं। पीछे से जब उ ह ने शंकरजी का करोड़ कामदे व को लजाने वाला सोलह वष क
अव था का परम लाव यमय प दे खा तो वे दे ह गेह क सुिध भूल ग और शंकर पर अपनी क या के साथ ह साथ अपनी आ मा को भी योछावर कर दया। िशव गौर का ववाह आनंद पूव क संप न हआ। हमाचल ने क यादान दया। व णु भगवान तथा ु अ या य दे व और दे व-रम णय ने नाना कार के उपहार भट कए।
ाजी ने वेदो
र ित से ववाह करवाया। सब लोग अिमत
उ साह से भरे अपने-अपने थान को लौट गए।
ी यं " ी यं " सबसे मह वपूण एवं श
शाली यं है । " ी यं " को यं राज कहा जाता है यो क यह
अ य त शुभ फ़लदयी यं है । जो न केवल दसरे ू य एवं संसार के हर य " ी यं " जस य
के िलए फायदे मंद सा बत होता है । पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु
के घर मे होता है उसके िलये " ी यं " अ य त फ़लदायी िस होता है उसके
दशन मा से अन-िगनत लाभ एवं सुख क श
ो से अिधक से अिधक लाभ दे ने मे समथ है
ाि होित है । " ी यं " मे समाई अ ितय एवं अ
य
मनु य क सम त शुभ इ छाओं को पूरा करने मे समथ होित है । ज से उसका जीवन से
हताशा और िनराशा दरू होकर वह मनु य असफ़लता से सफ़लता क और िनर तर गित करने लगता है एवं उसे जीवन मे सम त भौितक सुखो क ाि होित है । " ी यं " मनु य जीवन म
उ प न होने वाली सम या-बाधा एवं नकारा मक उजा को दरू कर सकार मक उजा का िनमाण करने मे समथ है । " ी यं " क
थापन से घर या यापार के थान पर था पत करने से वा तु दोष
य वा तु से स ब धत परे शािन मे युनता आित है व सुख-समृ , शांित एवं ऐ य क ि होती है । गु
व कायालय
मे " ी यं " १२ ाम से ७५ ाम तक क साइज मे उ ल ध है
मू य:- ित
ाम 8.20 से 28.00
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गु सेवा
गंगा नद के कनारे िनयिमत थी,
वामी जी का आ म था!
ातःकाल
नान से
ज द उठकर अपने काय से िनवृ उनके
गंगा- नान कर रहे थे, तभी
दनचया
ारं भ होती थी। उनके सभी िश य भी होते और गु
नान- यान से लेकर अ यापन क
सभी काय िश यगण ह करते थे।
वामी जी क
व तक ऎन जोशी
क सेवा म लग जातेथे।
क सफाई व आ म के छोटे -बडे
एक सुबह
वामी जी एक संत के साथ
वामीजी ने अपने िश य को गंगाजी म खड़े -
खड़े ह आवाज लगाकर अपने पास बुलाया। िश य दौड़ा-दौड़ा चला आया। वामीजी
ने
उससे
कहा
:
"बेटा
मुझे
गंगाजल
पीना
ह"
िश य चंचलता से आ म के भीतर से लोटा लेकर आया और उसे बालू से मांजकर चमका कर, गंगाजी म उतरकर पुनः लोटा धोकर गंगाजल भरकर गु जी को थमा दया। वामी जी ने अंजिल भरकर लोटे से जल पया। इसके बाद िश य खाली लोटा लेकर वापस लौट गया। यह सब दे खकर साथ नहा रहे संत ने है रान होते हए ु पूछा। " वामी जी जब आपको गंगाजल हांथ से ह पीना था तो िश य से यथ प र म यह ं से जल लेकर पी लेते। इस पर द जाती ह क य के पूण िश ा ा
य करवाया? आप
वामी जी बोले : यह तो उस िश य को सेवा दे ने का बहाना मा
का अंत:करण शु
था। सेवा इसीिलए
हो जाये और वह व ा का स चा अिधकार बन सके, य क बना गु
सेवा
नह ं क जा सकती।
या आपके ब चे कुसंगती के िशकार ह?
या आपके ब चे आपका कहना नह ं मान रहे ह?
या आपके ब चे घर म अशांित पैदा कर रहे ह?
घर प रवार म शांित एवं ब चे को कुसंगती से छुडाने हे तु ब चे के नाम से गु ाण- ित त पूण चैत य यु
वधान से आप वशेष लाभ
य द आप तो आप मं
िस
ा
व कायालत
ारा शा ो
वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाले एवं उसे अपने घर म कर सकते ह।
विध- वधान से मं
िस
था पत कर अ प पूजा, विध-
वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक इस कर सकते ह।
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द र ता से मु
िचंतन जोशी अहो दःखमहो दःखमहो दःखं ु ु ु द र ता (द र ता य व
का सब से बडा दःख ु ह)
के हर दे श, समाज और सं कृ ित म कई तरह क मा यताए चिलत होती ह, जो य
कर जाती ह। इस वषय म जबतक यो य मागदशन या
के अंतर मन म ल बे समय तक घर
ान ा नह ं हो जाता तबतक य
अपनी सम याओं से छुटकारा नह ं
ा कर पाता। एसी ह मा यता धन अभाव म भारतीय समाजम अ यािधक चिलत ह वह ह, भा य म जो िलखा ह वह ं होगा!, नसीब म जो होगा वह ं होता ह!,
भगवान क इ छा के आगे कस क चलती ह!, भगवान ने दःख ु िलखा ह तो या करे !,
हमारे तो अमुख ह ह खरब चल रहे ह, हमारा तो नसीब ह खराब ह.............. इ या द एसे अनेको श द से हर य अ छ तरह वाक फ ह। सवशू या द र ता । (अथात: जब द र ता आती ह तब मानव का सव व चला जाता ह।) इन श दो से तो एसा ितत होता ह मानो य
इन श दो का योग करके अपने द र होने का गौरव य
मानो जेसे द र ता उसके िलये कसी जंग म जीते हवे ु मेडल जेसी ह ! एसे ह
कर रहा ह !
म पैदा करने वाली धारणाओं के चलते य
का
आज यह हाल ह। एवं इसी कारण वह धन उ से दन ित दन दरू होता चलाजाता ह। इस िलये कुछ लोगो के पास म जीवन के सभी सुख साधन उ ल ध होते ह तो कोइ भीख मांग रहा होता ह। य केवल य दर
आज द र ह, िनधन ह तो वह उसके िनजी कम का फल मा ह। आपक द र ता कसी ह के कारण नह ं ह तो के कम का फल दान करने हे तु वधाताके सहयोगी ह। य
अपनी गलतीयां अपने नसीब और भगवान पर लाद दे ते ह। एसा य
के बल से धनवान नह ं बनना चाहता। इस कारण य य
अपनी गलतीयां सुधार कर अपने कम
वयं ह अपने भा य को कोस रहा ह।
अपने जीवन म द र ता को पीछे छोड आगे बढने के उपाय खोजने बजाय एसे श दो का योग कर अपने आस-पास
म नकारा मक उजा (ओरा) िनिमत करलेता ह। जसके फल व प नकार मक उजा उसे जीवन म अथक पर म करने के बावजूद भी उसे उिचत सफलता दलाने हे तु असमथ रहती है । य द य
के मन म ह द र ता का नकारा मक भाव घर कर गया ह तो
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उसके जीवनम धन-समृ
केसे आयेगी? केसे वह य
सफल हो पायेग? हाल क हर य
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जीवन के सम त भौितक सुख समृ
एवं ऎ य को ा करने म
धन ाि हे तु मेहनत करने क इ छा नह ं रखता, ले कन उसक खूब गती हो, वह जीवन म
खूब आगे बढे , ढे र सारा धन कमाये एसे दवा व न वह खूब दे खता ह, उसे व न लोक म वचरण करना तो रास आता ह, ले कन य उ प
अपने उन सपनो को पूण करने का साथक यास नह ं करता। ते वलीय ते द र ाणां मनोरथाः । (अथात:द र मानव क इ छाएँ मन म उठती ह और मनम ह वलीन हो जाती ह
अथवा पूर नह ं हो पाती) य द आप एसे य
को एसा कह क आप भी धनवान हो सकते ह, तो वह िनराशावाले भाव से हा य तरं ग बखेरते हवे ु
आप से कहे गा या भाई आप मेरा मजाक उडारहे ह । म यो मु कल से अपने और अपने प रवार के िलये द व
क रोट जुटा
पारहा हंु , और आप धनवान होने क बात करते ह। यवहार कता से दे खे तो उसक बात भी गलत नह ं ह, सामा य या अित सामा य य
जो मु कल से अपनी ज रतो को पूरा करा ह। वह य
होने क सोच केसे सकता है ? अपनी हालत को मु कल से
टकाके रखने का यास कर रहा हो वहा अपनी गित क उसे सुझ केसे सकती ह? ले कन इस यवहार क बात को वह ं तक सीमीत रखकर अपने मु े पर वापस आते ह। सामा य य
जब अपने धनवान होने के व न दे खता ह तो उसे लगता ह वह गलत च कर म पड जायेगा, इस िलये
यादातर मामलो म य
वचार को य
अपने धनवान होने का वचार यह ं पर रोक दे ता ह। य ह सबसे बड भूल हो जाती ह, धनवान होने क
को रोकना नह ं चा हये। उन वचार को अपने अंतर मन म वेश करने द, उन वचार को समय के साथ साथ ढ
बनाए। वतमान क ितकूल पर
थती को यानम रखने के साथ ह भ व य म समृ
ा
करने के वचार भी अपने अंदर
तरं गीत करते रह। हमारे ॠषी-मुनी ने हजारो वष पूव अपने तपोबल से
ात कर िलया था क मनु य क श
यां अपार और अनंत ह। जीसे
आज का आधुिनक व ान भी मान चुका ह क एक य
अपनी वा तवीक श
का मा ३(तीन) ितशत इ तेमाल करता ह।
िथक इसी कार आपके भीतर भी परमा मा क अपार श
यां मौजुद ह बस उन श
ओं को उजागर करने क ज रत मा ह, आप
अपने अंदर उठनेवाली इन तरं गो के कारण आपके आस-पास का वातावतण सकारा मक उजा से भर जायेगा एवं यह उजा आपके अंतर मन क गहराई तक वेश कर गई तो इन श
यो से आपको आ म बल क ाि होगी जो आपको इस और अ
माग वतः ह खूलने लगेगा। फर आपक मं झल आपसे दरू नह ं रह जायेगी। य
त होने का
य द एक बार चाहले तो वह अपनी
थती म
प रवतन लासकता ह बस ज रत ह एक ढ संक प क।
उ मे ना त दा र यम ् । (अथात:उ म करने से द र ता क नह ं रह जाती ।) हर िनधन या द र
य
को य ह सोच रखनी चा हये क मुझे धनवान बनना ह।
य द इस बात पर भी य द आपको हसी आजाये तो समज लेना क यह आपके वचार क िनधनता ह। यह वह ं मानिसकता ह। जो सद य से हमारे दे श के अनेक य क हे समृ
के अंदर घर कर गई ह। इसका ता पय कुछ एसा ितत होता ह क मानो य
कह रहा ह
आप मेरे पास आये ये मेर इ छा ह पर आप मेरे पास आयेगी इस बात पर मुझे व ास नह ं। मुझे संदेह ह, क म
आपको पासकता हंु ! सायद आप मेरे जेसे िनधन य
के िलये नह ं ह।
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यो क आप यहा अपनी िनधनता का कारणा भी ढंू ढ लेता ह, इस िलये आप िनधन ह। अभी तक मेने समृ
पाने के
सभी यास कये जो िन फल रहे , और आप मेरे से दरू ह रह ह। इस िलये मुझे व ास नह ं ह, और मेने तुजे पाने के इ छाभी यागद ह। यो क तुझे पानेका जतना चाहे यास करलूं पत आप िमलोगे उसक मुझे आशा नह ं ह। जस य
के भीतर एसे वचार आते हो वह केसे धनवान हो सकता ह! ल मी ाि हे तु मं जाप साधना इ या द करले
पर मनम य द अल मी के वचार घर कर जाये फर य
द र रह जाये इसम कोन सी नयी बात ह।
द र ः पु षः लोके शवव लोकिन दतः । (अथात: दिनया म द र मानव मुद क तरह िनंदनीय िगना जाता है ।) ु द र ता-गर बी-द नता ह नता एक अिभशाप ह। गर ब या िनधन य ितर कार करते ह, अपमािनत करते ह एवं िनधन य द र ता के वचार जब य
को सब लोग ओिछ नजरोसे दे खते ह, उसका सब
हमेशा समाज क अवहे लना का िशकार होता ह।
के अंदर घरकर जाते ह तो वह समाज के डर से अपने जीवन को दःख ु दद एवं अभावो के सहारे
ह खचता चलाजाता ह उसे अभाव म जीवन जीने क आदत पड जाती ह। िनधनता का भार उसे भीतर से झंझोरकर रख दे ता ह जसके फल व प य
के ववेक वचार इ या द का दमन होजाता ह।, जस कारण य
प र म हन व आलसी बनजाता ह।
उसक सोचने समझने और मन को सकार मक उजा से तरं गीत करने वाले भाव संकूिचत होते चले जाते ह। अब यह वचार अंदर जाने वाले नह ं ह एसे ह वचार उसे हमेशा क िलये द र ,गर ब, द न, अभागा, कायर और दसर क दया पर जीवन जीनेवाल ू बनादे ता ह। कोइ उसे पसंद नाह ं करता! य
िचंता ह आग म जलता रहता ह। परे शानीया उसका पीछा नह ं छोडती।
ल बे समय तक द र ता का बोझ ढोणे वाला य
समय से पहले वृ होजाता ह, वह तु छ, ह न, कंगाल, रोग से पी डत आस
होकर समय बतने के साथ मंदबु अ का बनजाता ह। य
वयं ह अपना घातक श ु बन जाता ह। उसका जीवन अंधकारमय
ितत होता ह। य
मेहनत मेहनत करता ह, मजदरू करता ह। उसक मेहनत का उसे पूरा मू य भी नह ं िमलता!, वह मांग भी नह ं
सकता। उसका चार और से शोषण होता ह, लोग उसक मजबूर का फायदा उठाते ह।
सामा य सामान उठाने वाले मजदरू जो फटे कपडोम होते ह उसे उसक मजदरू का 15-20 पये दे ने के िलये आनाकानी कर उसे 510
पये दे नेवाले लोग हमने बहोत दे खे ह वह ं लोग बड होटल म सूट-बूटा टाई बांधे वेटरको उसके बीना मंगे अपना तबा और
अपने धनवान होने का दखा करने के िलये उसे 50-100 पये ट प म दे ने से नह ं हच कचात एसे लोग भी बहोत दे खे ह हमने और आपने। यहा गहराई से सोचने वाली एक बात ह यहा य
वह ं ह िसफ उसके आस-पासका माहोल बदल जाता ह, और इस माहोल
के बदलने से उसके वतन म बदलाव आजाता ह। इसाका कारण ह मजदरू का वयं का धन नह ं ा करने क अपनी अ मता, द र ता का वचार करना एवं उसका द र
दखना इन दोनो कारणो से धनवान मजदरू को दबाता ह।
यह कहावत हो आपने सुिनह होगी "जो दखता ह वह ं बकता ह" इसी कारण से वेटर अपनी उ म सेवा एवं रौबदार कपडो के दम के साथ उसक आसपासका महौल जो क आिलशान एवं शानदार होता ह। इस कारण से उ ह टप के तौरपर बना मांगे पये िमलजाते ह।
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कुपा दानात ् च भवेत ् द र ो दा र य दोषेण करोित पापम ् । पाप भावात ् नरकं याित पुनद र ः पुनरे व पापी ॥ अथात: कुपा को दान दे ने से द र
बनता है । दा र य दोष से पाप होता है । पाप के भाव से नरक म जाता है ; फर से द र
और
फर से पाप होता है ।
हमने बहोत सारे एसे लोग भी दे खे ह जो हर म हने हजारो लाखो सामने रोते
पये कमाते ह फर भी अ य लोगो के
फरते ह, मेरे पास धन नह ं ह, घर म खाने के पैसे नह ं ह, मेर तो हालत बहोत खरब चल रह ं
ह............ इ या द ढे रो वा य सुने ह।
या िमलता ह? धन होते हवे ु भी रोने से। एसे रोने से कोई दे कर नह ं जाने वाल आपको धन। हां इ से, उधर
मांगने वाले मांगने क ह मत नह ं करगे। ले कन बनामांगे ह
यो रोना?
एसे लोगो के पास भ व य म वा तव म धन नह ं रह जाता। यातो उनका धन-संपदा उनक संताने न दे ती ह, घर म कसी ना कसी
कर
कार का रोग लगारहता ह जसके कारण उनका संिचत कया हवा ु धन भी डॉ टरो के
च कार काट काट कर ख म होजाता ह और उपर से कज कर लेते ह, कोइना कोइ ववादो म उनका धन फसा रहता ह चाहे वह कसी को सूद म दया हो या कह ं पूंजी िनवेश म नु शान ह होते हवे ु लोगो को हमने
वयं दे खा ह।
य द आप यह काय कर रह ह तो अपनी आंखे खोल द और अपने िनधन होने का रोना छोडदे । हमारे दे श म आज भी लाखो करोडो लोग अपने भा य को दोष दे नेवाले भरे पडे ह। द र ता का मु य कारण ह य
का आलसी होना।
आलस कबहँु न क जए, आलस अ र सम जािन। आलस से व ा घटे , सुख-स प
क हािन॥
इस िलये आप चाह जस कसी भी कारण से िनधन हो, तो आप िनराश मत होईये आल य एवं नकारा म वचार को यागकर अपने यासो को सफल बनाने हे तु यास रत हो जाए। य द आपको अपने काय म सफल होने का मग ा नह ं हो रहा ह। तो आप आ या मक मा यम से सहायता ा करने का यास कर। िनधनता-द र ता िनवारण हे तु गु
व कायालय ारा संचािलत लोग www.gurutvakaryalay.blogspot.com पर मं
एवं उपाय उपल ध ह। >> आने वाले अ टू बर/नव बर अंक म म द र ता िनवारण हे तु अनेको जानकार एवं उपाय उपल ध कराने हे तु हम यास रत ह।
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दोष त का मह व
िचंतन जोशी रखना, लोहा, ितल, काली उड़द, शकरकंद, मूली,
कंबल,
जूता और कोयला आ द दान करने से शिन का भी शांत हो जाता ह,
ज से
य
द र ता, घर क अशांित, नौकर या आ द का
कोप
के रोग,
यािध,
यापार म परे शानी
वतः िनवारण हो जाएगा। भौम
दोष
त एवं शिन
िशवजी, हनुमानजी, भैरव
दोष
क पूजा-अचना करना भी
लाभ द होता ह। गु वार के दन पडने वाला वशेष कर पु
त के दन दोष
त
कामना हे तु या संतान के शुभ हे तु रखना
उ म होता ह। संतानह न दं प य के िलए इस
त पर
घरम िम ान या फल इ या द गाय को खलाने से शी शुभ फलक
ाि
होित ह। संतान क कामना हे तु
16
दोष
त करने का वधान ह, एवं संतान बाधा म शिन
दोष
त सबसे उ म मनागया ह। दोष
त के
दन पित-प ी दोनो
ातः
नान इ या द िन य कम से िनवृ त होकर िशव, पावती दोष कृ ण प
क
त हर मह ने म दो बार शु ल प
और गणेशजी क एक साथम आराधना कर कसी भी
और
िशव मं दर म जाकर िशविलंग पर जल िभषेक, पीपल
ादशी के दन होता ह। य द इन ितिथय को
सोमवार होतो उसे सोम
दोष
के मूल म जल चढ़ाकर सारे
त कहते ह, य द मंगल
वधान ह।
वार होतो उसे भौम दोष त कहते ह और शिनवार होतो उसे शिन
दोष
त
त कहते ह।
मंगलवार एवं शिनवार के
वशेष कर सोमवार,
दोष
त
अ यािधक
भावकार माने गये ह। साधारण तौर पर हमारे यहा पर ा शी एवं योदशी क ितिथ को दोष ितिथ कहते ह। इस दन
त रखने का वधान ह। दोष
बताया गया ह क य द
य
कार का
म
दःख ु ,
संकट,
कार के क
लेश
पा रवा रक कलह, करना चा हये।
आिथक
दोष
परे शािन,
त पर उपवास
व न बाधाएं, रोजगार के साथ
सांसा रक जीवन से परे शािनया ख म नह ं हो रह ह, तो उस
य
के िलए
ित माह म पड़ने वाले
दोष
त
त इ या द पू य काय करना शुभ
फल द होता ह।
को सभी तरह के जप,
तप और िनयम संयम के बाद भी य द उसके गृ ह थ जीवन
य द नाना
संतानह नता या संतान के ज म के बाद भी
पर जप, दान,
त का मह व कुछ इस
दन िनजल रहने का
योितष
क
से जो
कारण पी डत हो उसे वष भर कसी भी वार को पडता हो उसे
दोष दोष
य त
चं मा के पर
चहे
त अव य
वह
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GURUTVA KARYALAY NAME OF GEM STONE
Emerald (iUuk) Yellow Sapphire (iq[kjkt) Blue Sapphire (uhye) White Sapphire (lQsn iq[kjkt) Bangkok Black Blue(cSadkd uhye) Ruby (ekf.kd) Ruby Berma (cekZ ekf.kd) Speenal (uje ekf.kd ykyMh) Pearl (eksrh) Red Coral (4 jrh rd) (yky ewaxk) Red Coral (4 jrh ls mij) (yky ewaxk) White Coral (lQsn ewaxk) Cat’s Eye (yglqfu;k) Cat’s Eye Orissa (mfM+lk yglqfu;k) Gomed (xksesn) Gomed CLN (flyksuh xksesn ) Zarakan (tjdu) Aquamarine (cs:t) Lolite (uhyh) Turquoise (fQjkstk) Golden Topaz (lqugyk) Real Topaz (mfM+lk iq[kjkt@Vksikt) Blue Topaz (uhyk Vksikt) White Topaz (lQsn Vksikt) Amethyst (dVsyk) Opal (miy) Garnet (xkjusV) Tourmaline (rqeZyhu) Star Ruby (lw;ZdkUr e.kh) Black Star (dkyk LVkj) Green Onyx (vksusDl) Real Onyx (vksusDl) Lapis (yktoZr) Moon Stone (panzdkUr e.kh) Rock Crystal (LQfVd) Kidney Stone (nkuk fQjaxh) Tiger Eye (Vkbxj LVksu) Jade (ejxp) Sun Stone (luflrkjk) Diamond (ghjk) (.05 to .20 Cent )
GENERAL
MEDIUM FINE
100.00 370.00 370.00 370.00 80.00 55.00 2800.00 300.00 30.00 55.00 90.00 15.00 18.00 210.00 15.00 300.00 150.00 190.00 50.00 15.00 15.00 60.00 60.00 50.00 15.00 30.00 30.00 120.00 45.00 10.00 09.00 60.00 15.00 12.00 09.00 09.00 03.00 12.00 12.00 50.00
500.00 900.00 900.00 900.00 150.00 190.00 3700.00 600.00 60.00 75.00 120.00 24.00 27.00 410.00 27.00 410.00 230.00 280.00 120.00 20.00 20.00 90.00 90.00 90.00 20.00 45.00 45.00 140.00 75.00 20.00 12.00 90.00 25.00 21.00 12.00 11.00 05.00 19.00 19.00 100.00
(Per Cent )
(Per Cent )
FINE
SUPER FINE
1200.00 1900.00 1500.00 2800.00 1500.00 2800.00 1500.00 2400.00 200.00 500.00 370.00 730.00 4500.00 10000.00 1200.00 2100.00 90.00 120.00 90.00 120.00 140.00 180.00 33.00 42.00 60.00 90.00 640.00 1800.00 60.00 90.00 640.00 1800.00 330.00 410.00 370.00 550.00 230.00 390.00 30.00 45.00 30.00 45.00 120.00 280.00 120.00 280.00 120.00 240.00 30.00 45.00 90.00 120.00 90.00 120.00 190.00 300.00 90.00 120.00 30.00 40.00 15.00 19.00 120.00 190.00 30.00 45.00 30.00 45.00 15.00 30.00 15.00 19.00 10.00 15.00 23.00 27.00 23.00 27.00 200.00 370.00 (PerCent )
SPECIAL
2800.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 1000.00 & above 1900.00 & above 21000.00 & above 3200.00 & above 280.00 & above 180.00 & above 280.00 & above 51.00 & above 120.00 & above 2800.00 & above 120.00 & above 2800.00 & above 550.00 & above 730.00 & above 500.00 & above 55.00 & above 55.00 & above 460.00 & above 460.00 & above 410.00& above 55.00 & above 190.00 & above 190.00 & above 730.00 & above 190.00 & above 50.00 & above 25.00 & above 280.00 & above 55.00 & above 100.00 & above 45.00 & above 21.00 & above 21.00 & above 45.00 & above 45.00 & above 460.00 & above
(Per Cent)
(Per Cent )
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus *** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
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मं िस कवच
मं िस कवच को वशेष योजन म उपयोग के िलए और शी भाव शाली बनाने के िलए तेज वी मं ो ारा . शुभ महत ू म शुभ दन को तैयार कये जाते है अलग अलग कवच तैयार करने केिलए अलग अलग तरह के . मं ो का योग कया जाता है .
य चुने मं िस कवच?
उपयोग म आसान कोई ितब ध नह ं कोई वशेष िनित-िनयम नह ं कोई बुरा भाव नह ं
कवच के बारे म अिधक जानकार हे तु
कवच सूिच सव काय िस
कवच - 3700-/
ऋण मु
कवच – 730/-
वरोध नाशक कवचा- 550-/
सवजन वशीकरण कवच - 1050-/*
नव ह शांित कवच – 730/-
वशीकरण कवच – 460/-* )2-3 य
अ ल मी कवच – 1050/-
तं र ा कवच – 730/-
प ी वशीकरण कवच – 460/-*
आक मक धन ाि कवच – 910/-
श ु वजय कवच – 640/-*
नज़र र ा कवच – 460/-
भूिम लाभ कवच – 910/-
पद उ नित कवच – 640/-
संतान ाि कवच – 910/-
धन ाि कवच – 640/-
काय िस
कवच – 910/-
ववाह बाधा िनवारण कवच – 640/-
काम दे व कवच – 820/-
म त क पृ
जगत मोहन कवच -730/-*
कामना पूित कवच – 550/-
पे - यापर वृ
*कवच मा
कवच – 730/-
वधक कवच – 640/-
व न बाधा िनवारण कवच – 550/-
यापर वृ
के िलए(
कवच- 370-/
पित वशीकरण कवच – 370/-* दभा ु य नाशक कवच – 370/-
सर वती कवक – 370/-) क ा+ 10 के िलए( सर वती कवक -280/-) क ा 10 तक के िलए( वशीकरण कवच – 280/-* ) 1 य
शुभ काय या उ े य के िलये (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
के िलए(
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सव काय िस जस
य
म िस
को लाख (लाभ)
कवच के
य
कवच
और प र म करने के बादभी उसे मनोवांिछत सफलताये एवं कये गये काय
ा नह ं होती, उस य
मुख लाभ: सव काय िस
शांत कर धारण करता य उ नित ाि
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को सव काय िस
कवच के
कवच अव य धारण करना चा हये।
ारा सुख समृ
और नव
के जीवन से सव कार के द:ु ख-दा र
होकर जीवन मे सिभ
कार के शुभ काय िस
यवसाय करता होतो कारोबार मे वृ
ह के नकारा मक भाव को
का नाश हो कर सुख-सौभा य एवं
होते ह। जसे धारण करने से य
यद
होित ह और य द नौकर करता होतो उसमे उ नित होती ह।
सव काय िस
कवच के साथ म सवजन वशीकरण कवच के िमले होने क वजह से धारण करता
सव काय िस
कवच के साथ म अ ल मी कवच के िमले होने क वजह से य
क बात का दसरे ू
य
ओ पर
भाव बना रहता ह।
सदा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता ह। ज से मां ल मी के अ
पर मां महा प (१)-आ द
ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी सव काय िस
कवच के साथ म तं
होती ह, साथ ह नकार मन श कवच के
होता ह।
यो का कोइ कु भाव धारण कता ओ
ारा होने वाले द ु
य
पर नह ं होता। इस
भावो से र ाहोती ह।
कवच के साथ म श ु वजय कवच के िमले होने क वजह से श ु से संबंिधत
सम त परे शािनओ से य
ा
र ा कवच के िमले होने क वजह से तां क बाधाए दरू
भाव से इषा- े ष रखने वाले य
सव काय िस
पो का अशीवाद
ु वतः ह छटकारा िमल जाता ह। कवच के
का चाहकर कुछ नह
भाव से श ु धारण कता
बगड सकते।
अ य कवच के बारे मे अिधक जानकार के िलये कायालय म संपक करे : कसी य
वशेष को सव काय िस
कवच दे ने नह दे ना का अंितम िनणय हमारे पास सुर
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/ Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
त ह।
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वेदसार िशव तवः पशूनां पितं पापनाशं परे शं गजे जटाजूटम ये
य कृ
फुर ा गवा रं महादे वमेकं
ं वसानं वरे यम। मरािम
मरा रम॥१॥
महे शं सुरेशं सुराराितनाशं वभुं व नाथं वभू य गभूषम।् व पा िम
कव
ने ं सदान दमीडे
िगर शं गणेशं गले नीलवण गवे
भुं प चव
म॥्२॥
ािध ढं गुणातीत पम।्
भवं भा वरं भ मना भू षता गं भवानीकल ं भजे प चव
म॥्३॥
िशवाका त शंभो शशा काधमौले महे शान शूिल जटाजूटधा रन।् वमेको जग
यापको व
पः
सीद
सीद
भो पूण प॥४॥
परा मानमेकं जग जमा ं िनर हं िनराकारम कारवे म।्
यतो जायते पा यते येन व ं तमीशं भजे लीयते य
व म॥्५॥
न भूिमन चापो न व न वायु- न चाकाशमा ते न त
ा न िन ा।
न गृ मो न शीतं न दे शो न वेषो न य या त मूित
मूित तमीड॥६॥
अजं शा तं कारणं कारणानां िशवं केवलं भासकं भासकानाम।् तुर यं तमःपारमा
तह नं
प े परं पावनं
ै तह नम॥७॥
नम ते नम ते वभो व मूत नम ते नम ते िचदान दमूत। नम ते नम ते तपोयोगग य नम ते नम ते
ु ित ानगम॥ ् ८॥
भो शूलपाणे वभो व नाथ महादे व शंभो महे श िशवाका त शा त
मरारे पुरारे
नेत।्
वद यो वरे यो न मा यो न ग यः॥९॥
शंभो महे श क णामय शूलपाणे गौर पते पशुपते पशुपाशनािशन।्
काशीपते क णया जगदे तदे क-
वंहंिस पािस वदधािस महे रोऽिस॥१०॥
व ो जग वित दे व भव
व येव ित ित जग मृ ड व नाथ।
मरारे
व येव ग छित लयं जगदे तद श िल गा मके हर चराचर व
पन॥११॥
यह आ दगु
तुित ह।
ी शंकराचाय
ारा रिचत वेद व णत िशव क
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54 महाकाल
vxLr 2010 तवन
असंभवं संभव-क ु मुघतं, च ड-झंझावृ ितरोधस म। युग य िनमाणकृ ते समुघतं, परं महाकालममुं नमा यहम॥ यदा धरायामशांितः वृ ा, तदा च त यां शांितं विधतुम। विनिमतं शांितकुंजा य-तीथकं, परं महाकालममुं नमा यहम॥ अनाघन तं परमं मह यसं, वभोः व पं प रचायय मुहु ः।
यगगानु पं च पंथं यदशयत्, परं महाकालममुं नामा यह॥ उपे
ता य
महा दकाः
याः, वलु
ाय खलु सा
यमा हकम।
समु तं ृ येन जग ताय वै, परं महाकालममुं नामा यहम॥ ितर कृ तं व मडतम युपे
तं, आरो यवहं यजन चा रतुंम।
कलौ कृ तं यो रिचतुं समघतः, परं महाकालममुं नामा यहम॥ तपः कृ तं येन जग समु
ताय, वभी षकाया
जग नु र
तुम।
वला य य भ व य-घोषणा, परं महाकालममुं नामा यहम॥
मृ दु दारं दयं नु य य यत ्, तथैव ती णं गहनं च िच तनम। ऋषे
र ं परमं प व कं, परं महाकालममुं नामा यहम॥
जनेष दे व ववृ ितं विधतु,ं वय धराया च वधातुम यम। युग य िनमाणकृ ता च योजना, परं महाकालममुं नामा यहम॥ यः पठे च त ये चा प, महाकाल- व पकम। लभेत परमां ीित, महाकाल कृ पा शा॥ ॥इित महाकाल तवन संपूण ॥
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ािभषेक तो
ॐ सवदे वता यो नम : ॐ नमो भवाय शवाय
ाय वरदाय च । पशूनाम ् पतये िन यमु ाय च कप दने ॥१॥
महादे वाय भीमाय य बकाय च शा तये । ईशानाय मख नाय नमोऽ
व धकघाितने ॥२॥
कुमारगुरवे तु यम ् नील ीवाय वेधसे । पना कने हव याय स याय वभवे सदा ॥३॥ वलो हताय धू ाय याधायानपरा जते । िन यनीिलशख डाय शूिलने द यच ुषे ॥४॥ ह
े गो
े
ने ाय याधाय वसुरेतसे । अिच
वृ ष वजाय मु डाय जटने
याया बकाभ सवदे व तुताय च ॥५॥
चा रणे । त यमानाय िसलले
याया जताय च ॥६॥
व ा मने व सृ जे व मावृ य ित ते । नमो नम ते से याय भूतानां भवे सदा ॥७॥ व
ाय सवाय शंकराय िशवाय च । नमोऽ तु वाच पतये जानां पतये नम: ॥८॥
नमो व
य पतये महतां पतये नम: ।
नम: सहि शरसे सह भुजमृ यवे । सह ने पादाय नमोऽसं येयकमणे॥९॥ नमो हर यवणाय हर यकवचाय च । भ ानु क पने िन यं िस यतां नो वर: भो ॥१०॥ एवं तु वा महादे वं वासुदेव: सहाजुन: । सादयामास भवं तदा ॥ इित
ोपल धये ॥११॥
ािभषेक तो म ् संपूण ॥
योग: तांबेके लोटे म शु ध पानी या गंगाजल, गाय का क चा दध ू , सफेद या काले ितल इन सबको लोटे म
िमलाकर िशविलंग उपर दध ू क धारा चालु रखकर उपरो
लघु
ािभषेक तो का पाठ यारा बार
धा पूव क
ु करने से जीवन म आयी हई िमलता ह और सुख शांित एवं ु और आनेवाली सम त कार के क ो से छटकारा समृ
क
ाि होती है । इसम लेस मा सदे ह नह ं ह।
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िशव मानस पूजा र ैः क पतमासनं हमजलैः नानार
नानं च द या बरं
वभू षतं मृ गमदामोदा कतं च दनम।्
जातीच पक ब वप रिचतं पु पं च धूपं तथा द पं दे व दयािनधे पशुपते
क पतं गृ ताम॥ ् १॥
सौवण नवर ख डरिचते पा े घृ तं पायसं भ यं प च वधं पयोदिधयुतं र भाफलं पानकम ् ।
शाकानामयुतं जलं
िचकरं कपूरख डो
मनसा मया वरिचतं भ
या
भो
वलं ता बूलं
वीकु ॥२॥
छ ं चामरयोयु गं यजनकं चादशकं िनमलम ्
वीणाभे रमृ द गकाहलकला गीतं च नृ यं तथा। सा ा गं
णितः
तुितबहु वधा
ेत सम तं मया
स क पेन सम पतं तव वभो पूजां गृ हाण आ मा
वं िग रजा मितः सहचराः
भो॥३॥
ाणाः शर रं गृ हं
पूजा ते वषयोपभोगरचना िन ा समािध थितः। स चारः पदयोः य
द
ण विधः
तो ा ण सवािगरो
कम करोिम त द खलं श भो तवाराधनम॥्४॥ करचरण कृ तं वा कायजं कमजं वा वणनयनजं वा मानसंवापराधम।्
व हतम व हतं वा सवमेत जय जय क णा धे ॥ इित आ द गु
शंकराचाय
म व
ीमहादे वश भो॥५॥
ीम छ कराचाय वरिचता िशवमानसपूजा संपूण॥ ारा रिचत िशव मानस पूजा िशव जी क अ त ू
तुित है ।
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िशवा कम त मै नम: परमकारणकारणाय, द ो नागे
हारकृ तकु डलभूषणाय, ीम
े
वल
व णुवरदाय नम: िशवाय ॥ १ ॥
स नशिशप नगभूषणाय, शैले
कैलासम दरमहे
जावदनचु बतलोचनाय ।
िनकेतनाय, लोक याितहरणाय नम: िशवाय ॥ २ ॥
प ावदातम णकु डलगोवृ षाय, कृ णाग भ मानुष
विलत प गललोचनाय ।
चुरच दनचिचताय ।
वकचो पलम लकाय, नीला जक ठस शाय नम: िशवाय ॥ ३ ॥
ल ब स प गल जटा मुकुटो कटाय, दं ाकराल वकटो कटभैरवाय । या ा जना बरधराय मनोहराय, द
लोकनाथनिमताय नम: िशवाय ॥ ४ ॥
जापितमहाखनाशनाय,
ं महा पुरदानवघातनाय ।
ो जतो वग ो टिनकृ ं तनाय, योगाय योगनिमताय नम: िशवाय ॥ ५॥ संसारसृ घटनाप रवतनाय, र : पशाचगणिस समाकुलाय । िस ोरग हगणे
िनषे वताय, शादलचमवसनाय नम: िशवाय ॥ ६ ॥ ू
भ मा गरागकृ त पमनोहराय, सौ यावदातवनमाि तमाि ताय । गौर कटा नयनाधिनर
णाय, गो ीरधारधवलाय नम: िशवाय ॥ ७ ॥
आ द य सोम व णािनलसे वताय, य ा नहो वरधूमिनकेतनाय । ऋ सामवेदमुिनिभ:
तुितसंयुताय, गोपाय गोपनिमताय नम: िशवाय ॥ ८ ॥ ॥इित
ी िशवा कम संपूण॥
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ी
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ा कम
नमामीशमीशान िनवाण पं। वभुं यापकं
वेद व पं।
िनजं िनगुणं िन वक पं िनर हं । िचदाकाशमाकाशवासं भजेडहं ॥१॥ िनराकारम कारमूलं तुर यं। िगरा यान गोतीतमीशं िगर शं। करालं महाकाल कालं कृ पालं। गुणागार संसारपारं नतोडहं ॥२॥ तुषारा
संकाश गौरं ग भीरं । मनोभूत को ट
फुर मौिल क लोिलनी चा चल कु डलं
कृ ं
ी शर रं ।
गंगा। लस ालबाले द ु क ठे भुजंगा॥३॥
ू सुने ं वशालं।
स नाननं नीलक ठं दयालं।
मृ गाधीशचमा बरं मु डमालं। च डं
भा
यं शंकरं सवनाथं भजािम॥४॥
ग भं परे शं। अख डं अजं भानुको ट काशम।्
य: शूल िनमूलनं शूलपा णं। भजेडहं भवानीपितं भावग यं॥५॥ कलातीत क याण क पांतकार । सदास जनान ददाता पुरार । िचदान द संदोह मोहापहार । न याव
सीद
सीद
भो म मथार ॥६॥
उमानाथ पादार वंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न ताव सुखं शा त स तापनाशं।
सीद
भो सवभूतािधवासं॥७॥
न जानािम योगं जपं नैव पूजां। नतोडहं सदा सवदा श भु तु यं। जराज म द:ु खौघ तात यमानं। ा किमदं
भो पा ह आप
ो ं
व ेण हरतोषये।
ये पठ त नरा भ या तेषां श भु: ॥इित
ी
मामीश शंभो॥८॥
ा कम संपूण॥
सीदित॥९॥
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िलंगा कम मुरा रसुरािचत िलगं िनमलभा षतशोिभत िलंग।
ज मजदःख ु वनाशक िलंग त
णमािम सदािशव िलंगं॥१॥
दे वमुिन वरािचत िलंग,ं कामदहं क णाकर िलंगं।
रावणदप वनाशन िलंगं त
णमािम सदािशव िलंगं॥२॥
सवसुगं धसुले पत िलंग,ं बु
िस सुरासुरव दत िलंग,ं त
ववधनकारण िलंगं।
णमािम सदािशव िलंगं॥३॥
कनकमहाम णभू षत िलंग,ं फ णपितवे तशोिभत िलंगं।
द सुय
वनाशन िलंग,ं त
णमािम सदािशव िलंगं॥४॥
कुंकुमचंदनले पत िलंग,ं पं कजहारसुशोिभत िलंगं।
सं चतपाप वनािशन िलंग,ं त
णमािम सदािशव िलंगं॥५॥
दे वगणािचतसे वत िलंग, भवैभ
दनकरको ट भाकर िलंग,ं त
िभरे वच िलंगं।
णमािम सदािशव िलंगं॥६॥
अ दलोप रवे त िलंग,ं सवसमु वकारण िलंगं।
अ द र वनािशत िलंग,ं त
णमािम सदािशव िलंगं॥७॥
सुरगु सुरवरपू जत िलंग,ं सुरवनपु पसदािचत िलंगं।
परा परं परमा मक िलंग,ं तत णमािम सदािशव िलंगं॥८॥ ॥इित
ी िलंगा कमसंपूण ॥
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िशवम ह न तो म ् म ह नः पारं ते परम वदषो ु य स शी तुित
ाद ना म प तदवस ना
विय िगरः ।
अतीतः पंथानं तव च म हमा वा मनसयो रत
यावृ यायं च कतमिभध े ु ितर प ।
अथावा यः सवः वमितप रणामिध गृ णन् ममा येषः तो े हर िनरपवादः प रकरः ॥१॥
स क य तोत यः कित वधगुणः क य वषयः पदे ववाचीने पतित न मनः क य न वचः ॥२॥ मधु फ ता वाचः परमममृ तं िनिमतवत तव
कं वा ग प सुरगुरो व मयपदम ् ।
मम वेतां वाणीं गुणकथनपु येन भवतः पुनामी यथ मन ् पुरमथनबु तवै य य
यविसता ॥३॥
जगददयर ा लयकृ त यी व तु य तं ितसृ षु गुणिभ नासु तनुषु । ु
अभ यानाम मन ् वरद रमणीयामरमणीं वहं तुं यो ोशीं वदधत इहै के जडिधयः ॥४॥ किमहः कंकायः स खलु कमुपाय
भुवनं कमाधारो धाता सृ जित कमुपादान इित च ।
अतकय य व यनवसरदःु थो हतिधयः कुतक डयंकां
मुखरयित मोहाय जगतः ॥५॥
अज मानो लोकाः कमवयवंवतोड प जगता मिध ातारं कं भव विधरनाद य भवित । अनीशो वा कुयाद भुवनजनने कः प रकरो यतो मंदा यी सां यं योगः पशुपितमतं वै णविमित िभ ने
वां
यमरवर संशेरत इमे ॥६॥
थाने परिमदमदः प यिमित च ।
चीनां वैिच या दजुकु टलनानापथजुषां नृ णामेको ग य
वमिस पयसामणव इव ॥७॥
महो ः ख वांगं परशुर जनं भ म फ णनः कपालं चेतीय व वरद तं ोपकरणम ् ।
सुरा तां तामृ ं दधित तु भव व ु ंक
सव सकलमपर
ू ण हतां न ह वा मारामं वषयमृ गतृ णा मयित ॥८॥
व
ुविमदं परो ो या ो ये जगित गदित य त वषये ।
सम तेड येत म पुरमथन तै व मत इव तुवं ज े िम वां न खलु ननु धृ ा मुखरता ॥९॥
ततो भ
तवै य य ा दप ु र व रं िचह ररधः प र छे तुं याता वनलमनल कंधवपुषः । ा भरगु गृ ण
अय ादापा िशरःप
यां िग रश यत ् वयं त थे ता यां तव कमनुव ृ
ने फलित ॥१०॥
भुवनमवैर यितकरं दशा यो य ाहू नभृ न रणकंडु परवशान ् ।
े णी रिचतचरणांभो हबलेः
थराया
व
े
पुरहर व फू जतिमदम ् ॥११॥
अमु य व सेवा समिधगतसारं भुजवनं बला कैलासेड प वदिधवसतौ व मयतः । अल यापाताले ड यलसचिलतांगु िशरिस ित ा
व या सी
ुवमुपिचतो मु ित खलः ॥१२॥
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यद ं सु ा णो वरद परमो चैर प सती मध
े बाणः प रजन वधेय
न त च ं त मं व रविसत र व चरणयो न क या यु न यै भवित िशरस अका ड
ा ड यच कतदे वासुरकृ पा वधेय यासी
स क माषः क ठे तव न कु ते न ि यमहो वकारोड प
भुवनः । व यवनितः ॥१३॥
नय वषं सं तवतः ।
ा यो भुवनभयभंग यसिननः ॥१४॥
अिस ाथा नैव कविचद प सदे वासुरनरे िनवत ते िन यं जगित जियनो य य विशखाः । स प य नीश वािमतरस रसाधारणमभूत ् मरः मत या मा न ह विशषु प यः प रभवः ॥१५॥ मह पादाधाता मुहु द वय जग
जित सहसा संशयपदं पदं व णो ा य ुजप रघ
यं या यिनभृ तजटाता डततटा जग
ण हगणम ् ।
ायै वं नटिस ननु वामैव वभुता ॥१६॥
यापी तारागणगु णतफेनो म िचः वाहो वारां यः पृ षतलघुद ः िशरिस ते । पाकारं जलिधवलयं तेन कृ तिम यनेनैवो नेयं धृतम हम द यं तव वपुः ॥१७॥
रथः
ोणी य ता शतधृ ितरगे
दध ो ते कोडयं
ो धनुरथो रथाडगे च
पुरतृ णमाड बर विधर् वधेयैः
ाक रथचरणपा णः शर इित ।
ड यो न खलु परत
ाः भुिधयः ॥१८॥
ह र ते साह ं कमलबिलमाधाय पदयो य दकोने त मन ् िनजमुदहर ने कमलम ् ।
गतो भक यु े कः प रणितमसौ च वपुषा याणां र ायै तौ सु े जा अत
वां स
वमिस फलयोगे
े य
याद ो द ः तु ंष
व ः
तुमतां व कम
तुषु फलदान ितभुवं ु तौ
ां ब
पुरहर जागित जगताम ् ॥१९॥
व तं फलित पु षाराधनमृ ते । वा दटप रकरः कमसु जनः ॥२०॥
तुपितरधीश तनुभ ृ ता मृ षीणामा व यं शरणद सद याः सुरगणाः । तुफल वधान यसिननो ुवं कतु ः
ा वधुरमिभचाराय ह मखाः ॥२१॥
जानाथं नाथ सभमिभकं वां द ु हतरं गतं रो ह तां ू ररमियषुम ृ य य वपुषा ।
धनु पाणेयातं दवम प सप ाकृ तंममुं स तं तेड ा प यजित न मृ ग याधरभसः ॥२२॥ वलाव याशंसाधृ तधनुषम ाय तृ णवत् पुरः लु ं द वा पुरमथन पु पायुधम प । यद
ैणं दे वी यमिनरत दे हाधघटना दवैित वाम ा बत वरद मु धा युवतयः ॥२३॥
मशाने वा
डा महर पशाचाः सहचरा
ताभ मालेपः तग प नृ करोट प रकरः ।
अमंग यं शीलं तव भवतु नामैवम खलं तथाड प मतृ णां वरद परमं मंगलमिस ॥२४॥
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य च े स वधमवधाया म तः
यदालो या ादं द इव िनम वमक
वं सोम
यामृ तमये द
वमिस पवन
वं हतवह ु
य ोमाणः मदसिललो संिगतदशः । यंत त वं वमाप
प र छ नामेवं वियप रणता ब तु िगरं न व यीं ित ो वृ ी
अमु म
येकं
वं योम वमु धर णरा मा विमित च । त
वं वयिमह तु य वं न भविस ॥२६॥ िभरिभदध ीण वकृ ितः ।
धानमणुिभः सम तं य तं वां शरणद गृ णा योिमित पदम ् ॥२७॥
ः पशुपितरथो ः सहमहां तथां भीमशाना वित यदिभधाना किमदम ् । वतरित दे व
नमो ने द ाय नमोव ष ाय
म प यिमन त कल भवान ् ॥२५॥
भुवनमथो ीन पसुरा नकारा ैव ण
तुर यं ते धाम विनिभरव भवः शव
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ु ितर प
याया मै धा ने
यदवद व ाय च नमो नमः
ण हतनम योड म भवते ॥२८॥
ो द ाय मरहर म ह ाय च नमः ।
नयन य व ा च नमो नमः सव मै ते त ददिमितशवाय च नमः ॥२९॥
बहलरजसे व ो प ौ भवाय नमो नमः बलतमसे त संहारे हराय नमो नमः । जनसुखकृ ते स वो
ौ मृ डाय नमो नमः महिस पदे िन ैगु ये िशवाय नमो नमः ॥३०॥
कृ शप रणित चेतः लेशव यं व चेदं व च तव गुणसीमो लंिधनी श इित च कतमम द कृ य मां भ
ः।
राधा वरद चरणयो ते वा य-पु पोपहारम ् ॥३१॥
अिसतिग रसमं यात ् क जलं िसंधुपा े सुरत वरशाखा ले खनी प मु व ।
िलखित य द गृ ह वा शारदा सवकालं तद प तव गुणाना मीश पारं न याित ॥३२॥ असुरसुरमुनी
ै रिचत ये दमौले िथतगुणम ह नो िनगु ण ये र य । ु
सकलगणव र ः पु पद तािभधानो िचरमलधुव ृ ैः तो मेत चकार ॥३३॥ अहरहरनव ं धूज टे ः तो मेतत ् पठित परमभ
स भवित िशवलोके
द
तु य तथाड
या शु िच ः पुमा यः ।
चुरतरधनायुः पु वा क ितमां ॥३४॥
महे शा नापरो दे वो म ह नो नापरा तुितः । अघोरा नापरो मं ो ना त त वं गुरोः परम ्
ा दानं तप तीथ
ानं यागा दकाः
याः । म ह न तवपाठ य कलां नाह त षोडशीम ् ॥३५॥
कुसुमदशननामा सवग धवराजः िशशुशिशधरमौलेदव दे व य दासः । स खलु िनजम ह नो
एवा य रोषात ् तवनिमदमकाष
द य द यं म ह नः ॥३६॥
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सुरवरमुिनपू यं वगमो ैकहे तुं पठित य द मनु यः ांजिलना यचेताः । जित िशवसमीपं क नरै ः तूयमानः तवनिमदममोघं पु पद त णीतम ् ॥३७॥ आसमा िमदं तो ं पु यं गंधवभा षतम ् । अनौप यं मनोहा रिशवमी रवणनम ् ।
इ येषा वाडमयी पूजा ीम छं करपादयोः । अ पता तेन दे वेशः ीयतां मे सदािशवः ॥३८॥ तव त वं न जानािम क शोडिस महे र । या सोडिस महादे व ता शाय नमो नमः । एककालं
कालं वा
कालं यः पठे नरः । सवपाप विनमु ः िशवलोके मह यते ॥३९॥
ी पु पदं तमुखपंकजिनगतेन तो ण क बहरे ण हर येण । कंठ थतेन प ठतेन समा हतेन सु ी णतो भवित भूतपितमहे शः ॥४०॥ जो मनु य िशवजी क अित य इस
तुित का पाठ करता ह उस पर िशवजी क अव य कृ पा होती ह।
***************
ा कृ त िशव तो नम ते भगवान
भा करािमत तेजसे।
नमो भवाय दे वाय रसाया बुमया मन॥१॥ शवाय
ित पाय नंद सुरभये नमः।
ईशाय वसवे सु यं नमः पशमया मने॥२॥ पशूनां पतये चैव पावकायािततेजसे।
भीमाय योम पाय श द मा ाय ते नमः॥३॥ उ ायो ा व पाय यजमाना मने नमः।
महािशवाय सोमाय नम ॥इित ी
वमृ त मूत ये॥४॥
ाकृ त िशव तो संपूण ॥
***************
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िशव आरती जय िशव ओंकारा, ॐ जय िशव ओंकारा। ा, व णु, सदािशव, अ ागी धारा॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हं सासन ग ड़ासन वृ षवाहन साजे॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… दो भुज चार चतुभु ज दसभुज अित सोहे । गुण
प िनरखते
भुवन जन मोहे ॥ ॐ जय िशव ओंकारा………
अ माला वनमाला मु डमाला धार । पुरार कंसार कर माला धार ॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… ेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे। सनका दक ग णा दक भूता दक संगे॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… कर के म य कमंडलु च
शूलधार ।
सुखकार दखहार जगपालन कार ॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… ु ा व णु सदािशव जानत अ ववेका। णवा र म शोिभत ये तीन एका॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… ल मी व सा व ी पावती संगा। पावती अ ागी, िशवलहर गंगा॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… पवत सोह पावती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भ मी म वासा॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… जटा म गंग बहत है , गल मु डन माला। शेष नाग िलपटावत, ओढ़त मृ गछाला॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… काशी म वराजे व नाथ, नंद
चार ।
िनत उठ दशन पावत, म हमा अित भार ॥ ॐ जय िशव ओंकारा……… गुण वामी जी क आरित जो कोइ नर गावे। कहत िशवानंद
वामी सुख संपित पावे॥ ॐ जय िशव ओंकारा………
i
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िशव तांडव तो जटाटवीग ल जल वाहपा वत थले गलेऽवल डम डम डम डम
यल बतां भुजंगतुंगमािलकाम।्
ननादव डमवयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः िशवः िशवम ॥१॥
जटा कटा हसं म म निलंपिनझर । वलोलवी िचव लर वराजमानमूध िन । धग ग ग
वल ललाट प टपावके कशोरचं शेखरे रितः ित णं ममं ॥२॥
धरा धर नं दनी वलास बंधुवंधुर- फुर गंत संतित मोद मानमानसे । कृ पाकटा
धारणी िन
दधराप द कविच ग बरे मनो वनोदमेतु व तुिन ॥३॥ ु
जटा भुजं ग पंगल फुर फणाम ण भा- कदं बकुंकुम व िल
द वधूमुखे ।
मदांध िसंधु र फुर वगु र यमेदरेु मनो वनोद तं ु बंभतु भूतभत र ॥४॥ सह लोचन भृ य शेषलेखशेखर- सून धूिलधोरणी वधूसरांि पीठभूः । भुजंगराज मालया िनब जाटजूटकः ि ये िचराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥५॥ ललाट च वर वल नंजय फु रगभा- िनपीतपंचसायकं िनम निलंपनायम ् ।
सुधा मयुख लेखया वराजमानशेखरं महा कपािल संपदे िशरोजयालम तू नः ॥६॥ कराल भाल प टकाधग ग ग
वल- नंजया धर कृ त चंडपंचसायके ।
धराधर नं दनी कुचा िच प क- क पनैकिश पिन नवीन मेघ मंडली िन
लोचने मितमम ॥७॥
दधर फुर- कुहु िनशीिथनीतमः बंधबंधुकंधरः । ु
िनिल पिनझ र धर तनोतु कृ
िसंधुरः कलािनधानबंधुरः ि यं जगं रंु धरः ॥८॥
फु ल नील पंकज पंचकािलम छटा- वडं ब कंठकंध रा िच बंधकंधरम ्
मर छदं पुर छं द भव छदं मख छदं गज छदांधक छदं तमंतक छदं भजे ॥९॥ अगवसवमंगला कलाकद बमंजर - रस वाह माधुर वजृ ंभणा मधु तम ् ।
मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥ जय वद
व म म जं ु गम फुर- ग ग
िनगम कराल भाल ह यवा -
िधिम िम िम न मृ दंगतुंगमंगल- विन म वितत च ड ता डवः िशवः ॥११॥ ष िच त पयोभु जंग मौ तृ णार वंदच ुषोः जामह महे
कम जो- ग र र लो योः सु
प प योः ।
योः समं वतय मनः कदा सदािशवं भजे ॥१२॥
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66
vxLr 2010
कदा िनिलंपिनझर िनकुजकोटरे वसन ् वमु दमितः सदा िशरः थमंजिलं वहन ् । ु
वमु लोललोचनो ललामभालल नकः िशवेित मं मु चरन ् कदा सुखी भवा यहम ् ॥१३॥ िनिल प नाथनागर कद ब मौलम लका- िनगु फिनभ र म धू णकामनोहरः । तनोतु नो मनोमुदं वनो दनींमहिनशं प र य परं पदं तदं गज वषां चयः ॥१४॥ च ड वाडवानल भाशुभ चारणी महा िस वमु
वाम लोचनो ववाहकािलक विनः िशवेित म इमं ह िन यमेव मु मु मो म तवं पठ
हरे गुरौ सुभ
भूषगो जग जयाय जायताम ् ॥१५॥
मरन ् ुव नरो वशु मेित संततम ् ।
माशु याित नांयथा गितं वमोहनं ह दे हना तु शंकर य िचंतनम ॥१६॥
पूजाऽवसानसमये दशव त य
कािमनी जनावहत ू ज पना ।
गीतं यः श भूपूजनिमदं पठित दोषे ।
थरां रथगज तुरंगयु ां ल मी सदै व सुमुखीं ददाित श भुः ॥१७॥
******* िशव
तुित (राम च रतमानस)
नमािमशमीशान िनवाण पम।्
वभुं यापकम ्
वेद व पम।॥ ् १॥
िनजं िनगुणम ् िन क पं िनर हम।्
िचदाकाशमाकाशवासं भजेहम॥्२॥ िनराकारम कारमूलम ् तुर यम।्
िगरा
ान गोतीतमीशम ् िगर शम॥्३॥
करालं महाकाल कालं कृ पालम।्
गुणागार संसारपारम ् नतोहम॥्४॥ तुषारा
संकाश गौरम ् गंभीरम।्
मनोभूत को ट भा ी शर रम॥्५॥
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67
vxLr 2010
मािसक रािश फल
िचंतन जोशी मेष:समय थोडा
ितकूल ह अतः एहितयात वत एवं संयम तुला : अपने िनजी अनुभव से काय कर। प रवार िम ो से
बनाये रखने म समझदार ह। धन हानी के योग बन रह संबंध म सुधार होगा एवं लाभ ह। आपको अपनी इ छा से व
काय करने पड सकते से अिधक लाभ
ह। श ु सरकार से परे शानी संभव ह। वृ ष: प र म के उपरांत सफलता
ा
होने म क ठनाई
तनाव उ प न होने के योग ह। आय से वा
य के
े
यय अिधक
म लापरवाह ं गंिभर सम या
पैदा कर सकती ह। िमथुन:
कर सकते ह। अनैितक काय से दरू
वृ
क : मन
श न रह गा। पीछले कुछ समय से जो
परे शािनया दरू होगी। आक मक धन लाभ होगा। नौक र यवसाय म
गती होगी। भूिम-भवन संबंिधक काय म
लाभ होने के योग बन रह ह।
वा
य उ म रहे गा। दसरो ू
क ज मेदार लेनेसे बचे।
बना वजह से मानिसक तनाव बना रहे गा।
संबंिधओ से वाद- ववाद करने से बचे।
यथ के कामो म
उलझे रहगे। लेन-दे न म सावधानी वत धन संबंिधत परे शानी हो सकती ह। सामा जक काय ज से आप क
होगा। थोडे से प र म
रह। िनवेश करने से नु शान होगा।
अनुभग करगे। संबंिध एवं िम ो क और से पा रवा रक रहे गा। अपने
ा
ा
ित ा म वृ
म
िच रहे गी
होगी।
धनु : समय उ म ह। घर प रवार से सहयोग वदे श से लाभा
ा
ा
होगा।
होने योग बन रहे ह । नौकर
यापार
म सुधार होगा। श ु परा त ह गे।
वा
य से संबंिधत
परे शानी हो सकती ह सावधानी बत।
कक : समय के साथ चलने म व ास रख, अिधक प र म मकर : मानिसक परे शानी बनी रहे गी। काय म के बाद थोडा लाभ
ा
ज दबाजी अिधक नु शान
होगा। कोई भी नये काम म रहे गी। अिधक या ा संभव ह। अिधकार वग से लाभ दान करे गी। अपने आप कर होगा। धन संबंिधत मामलो म सामा य लाभ
काबू रखे अ यथा पा रवा रक
लेष बढने क संभावना ह।
बल योग ह। ले कन अपने खच पर िनयं ण रखने
क अिधक आव यकता रहे गी। से बचे।
वा
क या : समय
ितकूल ह।
वयं के
ोध-गु से को
िनयं त करने क कोिशस नाकाम होगी। धन संबंिधत मामलो म भी समय अनुकूल नह ं अतः खच पर काबू रखे। िनवेश करने से बचे। पा रवा रक सम याए घेरे रहे गी।
थती सामा य रहे गी।
वशेष लाभ
ा
होगा। काय
यथ म दसरो से उलझने मामले मे समय सामा य ह ू
य उ म रहे गा खान-पान पर संयम बत।
ा
ा
होने के
योग ह। पा रवा रक सम याए बनी रहे गी।
िसंह : धन लाभ होगा, यापर, नौकर से उ नित एवं लाभ कुंभ : के
य तता
उ म रहे गा। बकाया धन
ा
यवसाय और नौकर े वा
म
म
गती होगी। धन के
य भी पूव क अपे ा
होने के योग ह।
मीन : अ यािधक प र म बना रहे गा।
यथ क
मानिसक परे शानी बनी रहे गी। प र म
क अपे ा लाभ
कम
ा
होगा।
होगे। कंतु 15
िचंता,
जस कारण िनराशावाद भाव उ प न अग त के बाद म
थती म सुधार होगा।
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68
vxLr 2010
अग त -२०१० मािसक पंचांग द
माह
प
ितिथ
समाि
न
समाि
योग
समाि
करण
समाि
चं
समाि
रािश
1
ावण कृ ण ष ी
20:36:41 रे वित
26:01:03 धृ ित
28:11:22 गर
2
ावण कृ ण स मी
22:01:37 अ
27:55:03 शूल
28:11:56
3
ावण कृ ण अ मी
22:47:11 भरणी
29:10:37 गंड
27:42:30 बालव
10:28:26 मेष
4
ावण कृ ण नवमी
22:49:37 कृ ितका
29:42:07 वृ
26:37:26 तैितल
10:53:22 मेष
5
ावण कृ ण दशमी
22:05:11 रो ह ण
29:27:41
ुव
24:54:52 व णज
10:33:19 वृष
6
ावण कृ ण एकादशी
20:35:45 मृगिशरा
28:29:11
याघात
22:35:45 बव
09:25:26 वृष
7
ावण कृ ण
ादशी
18:23:11 आ ा
26:50:22 हषण
19:41:56 कौलव
07:34:26 िमथुन
8
ावण कृ ण
योदशी
15:34:04 पुनवसु
24:36:52 व
16:18:07 व णज
15:34:04 िमथुन 19:12:00
9
ावण कृ ण चतुदशी
12:15:52 पु य
21:58:04 िस
12:29:56 शकुिन
12:15:52 कक
08:26:45 नाग
08:38:56 कक
नी
10
ावण कृ ण अमाव या 08:38:56 आ ेषा
11
ावण शु ल
12
ितपदा-
19:04:15
यितपात
व ी
07:44:11 मीन
26:01:00
09:23:11 मेष
11:23:00
17:04:00
19:04:00
25:06:40 मघा
16:06:40 प र ह
24:02:55 बालव
14:58:14 िसंह
ावण शु ल तृतीया
21:31:36 पूवाफा गुनी
13:15:40 िशव
20:00:40 तैितल
11:16:36 िसंह
13
ावण शु ल चतुथ
18:18:05 उ राफा गुनी 10:42:28 िस
16:16:13 व णज
07:52:47 क या
14
ावण शु ल पंचमी
15:36:27 ह त
08:37:23 सा य
12:56:08 बालव
15:36:27 क या
15
ावण शु ल ष ी
13:30:26 िच ा
07:07:00 शुभ
10:05:07 तैितल
13:30:26 तुला
16
ावण शु ल स मी
12:09:25
वाती
06:16:55 शु ल
07:49:44 व णज
12:09:25 तुला
17
ावण शु ल अ मी
11:31:31
वशाखा
06:12:46
06:10:54 बव
11:31:31 वृ
क
18
ावण शु ल नवमी
11:39:33 अनुराधा
06:51:45 वैध ृ ित
28:35:48 कौलव
11:39:33 वृ
क
19
ावण शु ल दशमी
12:26:58 जे ा
08:12:54
28:33:32 गर
12:26:58 वृ
क 08:13:00
20
ावण शु ल एकादशी
13:49:04 मूल
10:07:49
तीया
वषकुंभ ीित
28:54:41
व ी
13:49:04 धनु
18:35:00
19:46:00
24:10:00
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69
vxLr 2010
ावण
शु ल
ादशी
15:40:13
पूवाषाढ़
12:29:54
आयु मान
29:31:46
बालव
15:40:13
धनु
ावण
शु ल
योदशी
17:48:14
उ राषाढ़
15:11:40
सौभा य
30:21:03
तैितल
17:48:14
मकर
ावण
शु ल चतुदशी
20:08:27
वण
18:04:42
सौभा य
06:20:38
गर
06:57:12
मकर
ावण
शु ल पू णमा
22:35:13
धिन ा
21:03:20
सोभन
07:16:28
व ी
09:21:09
मकर 07:33:00
भा पद
कृ ण
ितपदा
25:01:59
शतिभषा
24:02:55
अितगंड
08:15:06
बालव
11:48:51
कुंभ
भा पद
कृ ण
तीया
27:24:04
पूवाभा पद
26:58:45
सुकमा
09:12:49
तैितल
14:13:45
कुंभ
भा पद
कृ ण तृतीया
29:36:46
उ राभा पद
29:45:12
धृ ित
10:03:57
वा णज
16:32:04
मीन
भा पद
कृ ण चतुथ
31:34:27
रे वित
32:17:35
शूल
10:48:31
बव
18:37:16
मीन
भा पद
कृ ण पंचमी
07:34:02
रे वित
08:17:09
गंड
11:19:58
बालव
07:34:02
मीन
भा पद
कृ ण ष ी
09:10:09
अ
10:27:58
वृ
11:34:32
तैितल
09:10:09
मेष
भा पद
कृ ण स मी
10:18:10
भरणी
11:25:40
व णज
10:18:10
मेष
नी
12:10:40
ुव
अग त -२०१० मािसक द
माह
प
ितिथ
त-पव- यौहार
समाि
मुख योहार
1
ावण
कृ ण
ष ी
20:36:41
2
ावण
कृ ण
स मी
22:01:37
3
ावण
कृ ण
अ मी
22:47:11
मंगला गौर
4
ावण
कृ ण
नवमी
22:49:37
दशाफल त
5
ावण
कृ ण
दशमी
22:05:11
6
ावण
कृ ण
एकादशी
20:35:45
कािमका एकादशी, कामदा त,
7
ावण
कृ ण
ादशी
18:23:11
शिन
8
ावण
कृ ण
योदशी
15:34:04
िशव चतुदशी
9
ावण
कृ ण
चतुदशी
12:15:52
ावण सोमवार, ा
10
ावण
कृ ण
अमाव या
08:38:56
मंगला गौर पूजन
ावण सोमवार
दोष
त
ारं भ, शीतला स मी,
त, काला मी त
त पु - ाि हे तु उ म त, मािसक िशवरा अमाव या, सोमवती अमावस त, नानदान, ह रयाली अमाव या,
19:08:00
20:15:00
08:17:00
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70
vxLr 2010
11
ावण
शु ल
एकम- तीया 25:06:40
िसंधारा, चं दशन
12
ावण
शु ल
तृतीया
21:31:36
ह रयाली तीज, मधु वा तीज, वणगौर
ावण
शु ल
चतुथ
18:18:05
13
वरद वनायक चतुथ
14
ावण
शु ल
पंचमी
15:36:27
नागपंचमी, त क-पूजन
15
ावण
शु ल
ष ी
13:30:26
रांधण छठ (गु),
16
ावण
शु ल
स मी
12:09:25
17
ावण
शु ल
अ मी
11:31:31
मंगला गौर
18
ावण
शु ल
नवमी
11:39:33
नकुल नवमी, सौर मास भा पद
19
ावण
शु ल
दशमी
12:26:58
20
ावण
शु ल
एकादशी
13:49:04
पु दा एकादशी त, वरदल मी त,
21
ावण
शु ल
ादशी
15:40:13
शिन
22
ावण
शु ल
योदशी
17:48:14
सूय-महापूजा,
23
ावण
शु ल
चतुदशी
20:08:27
24
ावण
शु ल
पू णमा
25
भा पद
कृ ण
एकम
26
भा पद
कृ ण
27
भा पद
28
रा.09:01)
22:35:13
त,
त, दवागणपित चतुथ , महाल मी-पूजा (चं ू
ावण सोमवार, शीतला स मी,
दोष
त, दगा मी त, अ नपूणा मी त ु ारं भ
त पु - ाि हे तु उ म
ावण सोमवार, ओणम (के), सौर शर ऋतु ारं भ र ाबंधन, मंगला गौर
त, राखी पू णमा, नारयली पू णमा, नान-दान-
त हे तु उ म
25:01:59
कजिलयां (म. ),
तीया
27:24:04
अशू य शयन
कृ ण
तृतीया
29:36:46
कजली तीज
भा पद
कृ ण
चतुथ
31:34:27
संक ी गणेश चतुथ
29
भा पद
कृ ण
पंचमी
07:34:02
र ापंचमी, गोगा पंचमी,
30
भा पद
कृ ण
ष ी
09:10:09
हलष ी
31
भा पद
कृ ण
स मी
10:18:10
त, बृह पित पूजा, त, कजर तीज, गोपूजा तृतीया, त, वनायक चतुथ
08:20)
त, रांधण छठ (गु), शीतला त
त, बहला ु चतुथ , (चं ो रा
i
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71
vxLr 2010
अग त २०१० वशेष योग काय िस दनांक
योग योग अविध रा
2
अमृ त योग
02:01 से सूय दय तक
ात:काल 05:09 से रातभर
4
12.35 से रा
रा
10
सूय दय से सं या 07:03 तक
22
सूय दय से दोपहर 03:10 तक
29
ात:काल 08:17 से रातभर
योग अविध ात:काल 05:45 से सूय दय तक
28
9
09:57 तक
दोपहर12:11 से रातभर
31
दनांक
पु कर योग दनांक
योग अविध
21
दोपहर 12:28 से 01:38 तक
31
दोपहत 12:10 से रातभ
योग फल : काय िस
योग मे कये गये शुभ काय मे िन
अमृ त योग म कये गये काय म शुभ फल क
त सफलता ाि
ा
होती ह, एसा शा ो
वचन ह।
होती ह। एसा शा ो
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ तीन गुना होता ह। एसा शा ो
वचन ह।
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72
vxLr 2010
सूचना प का म कािशत सभी लेख प का के अिधकार के साथ ह आर
त ह।
लेख कािशत होना का मतलब यह कतई नह ं क कायालय या संपादक भी इन वचारो से सहमत ह । ना तक/ अ व ासु य प का म
मा पठन साम ी समझ सकते ह।
कािशत कसी भी नाम, थान या घटना का उ लेख यहां कसी भी य
वशेष या कसी भी थान या
घटना से कोई संबंध नह ं है .
कािशत लेख
योितष, अंक
योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक
ान पर आधा रत होने के कारण
य द कसी के लेख, कसी भी नाम, थान या घटना का कसी के वा त वक जीवन से मेल होता ह तो यह मा एक संयोग ह।
कािशत सभी लेख भारितय आ या मक शा स यता अथवा
अ य लेखको
ामा णकता पर कसी भी ारा
से
े रत होकर िलये जाते ह। इस कारण इन वषयो क
कार क ज मेदार कायालय या संपादक क नह ं ह।
दान कये गये लेख/ योग क
ामा णकता एवं
भाव क ज मेदार कायालय या संपादक
क नह ं ह। और नाह ं लेखका के पते ठकाने के बारे म जानकार दे ने हे तु कायालय या संपादक कसी भी कार से बा य नह ं ह।
योितष, अंक
योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक
व ास होना आव यक ह। कसी भी य का अंितम िनणय पाठक
वशेष को कसी भी
ान पर आधा रत लेखो म पाठक का अपना कार से इन वषयो म व ास करने ना करने
वयं का होगा।
ारा कसी भी
कार क आप ी
वीकाय नह ं होगी।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी लेख हमारे वष के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर िलखे होते ह। हम कसी भी य वशेष ारा योग कये जाने वाले मं - यं या अ य योग या उपायोक ज मेदार न हं लेते ह। यह ज मेदार मं -यं या अ य योग या उपायोको करने वाले य मानदं ड , सामा जक , कानूनी िनयम के खलाफ कोई
य
क वयं क होगी। यो क इन वषयो म नैितक
य द नीजी
वाथ पूित हे तु
योग कता ह अथवा
योग के करने मे ु ट होने पर ितकूल प रणाम संभव ह। हमारे ारा पो ट कये गये सभी मं -यं या उपाय हमने सैकडोबार वयं पर एवं अ य हमारे बंधुगण पर योग कये ह ज से हमे हर योग या मं -यं या उपायो ारा िन पाठक
क मांग पर एक ह लेखका पूनः
काशन से लाभ
ा
त सफलता ा हई ु ह।
काशन करने का अिधकार रखता ह। पाठक को एक लेख के पूनः
हो सकता ह।
अिधक जानकार हे तु आप कायालय म संपक कर सकते ह। (सभी ववादो केिलये केवल भुवने र यायालय ह मा य होगा।)
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FREE E CIRCULAR योितष प का अग त-2010
संपादक
िचंतन जोशी संपक गु
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योितष वभाग
व कायालय
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July 2010