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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका
NON PROFIT PUBLICATION
अगस्त- 2014
FREE E CIRCULAR
गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका अगस्त 2014 सॊऩादक
सिॊतन जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग
गुरुत्व कामाारम
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
ई- जन्भ ऩत्रिका अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी के साथ १००+ ऩेज भं प्रस्तुत
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ऩत्रिका प्रस्तुसत
सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी पोटो ग्राफपक्स
सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा हभाये भुख्म सहमोगी
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक सोफ्टे क इस्न्डमा सर)
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फहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/GURUTVA KARYALAY BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
अनुक्रभ नाग ऩॊिभी का धासभाक भहत्व
7
भनोकाभना ऩूसता हे तु त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊि
36
ऩुिदा एकादशी व्रत 07-अगस्त-2014 (गुरुवाय)
9
कृ ष्ण भॊि
37
ऩुिदा (ऩत्रविा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा
12
ऩमूष ा ण भहाऩवा का भहत्व
38
अजा (जमा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा
14
श्री नवकाय भॊि (नभस्काय भहाभॊि)
39
फहन्द ू सॊस्कृ सत भं कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत का भहत्व
15
दे वदशान स्तोिभ ्
40
कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत की ऩौयास्णक कथा
17
41
बायतीम सॊस्कृ सत भं याखी ऩूस्णाभा का भहत्व
बगवान भहावीय की भाता त्रिशरा के अद्भत ु स्वप्न
21
याखी ऩूस्णाभा से जुफड ऩौयास्णक कथाएॊ कृ ष्ण के भुख भं ब्रह्माॊड दशान
23 25
शॊख ध्वसन से योग बगाएॊ !
26
कृ ष्ण स्भयण का आध्मास्त्भक भहत्व श्री कृ ष्ण का नाभकयण सॊस्काय
29 30
॥ श्रीकृ ष्ण िारीसा ॥
31
त्रवप्रऩत्नीकृ त श्रीकृ ष्णस्तोि प्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊि
32 33
ब्रह्मा यसित कृ ष्णस्तोि
34
श्रीकृ ष्णाद्शकभ ्
35
त्रवसबन्न िभत्कायी जैन भॊि
43
जैन धभा के िौफीस तीथंकायं के जीवन का …
47
श्री भॊगराद्शक स्तोि (जैन)
48
अथ नवग्रह शाॊसत स्तोि (जैन)
48
॥ भहावीयाद्शक-स्तोिभ ् ॥
49
॥ भहावीय िारीसा ॥
50
जफ भहावीय ने एक ज्मोसतषी को कहाॊ तुम्हायी… गौतभ केवरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी)
51 52
शीघ्र काभना ऩूसता हे तु इद्श ऩूजन भं कये सही…
56
कहीॊ आऩकी कुॊडरी भं ऋणग्रस्त होने के मोग…
58
स्थामी औय अन्म रेख सॊऩादकीम
4
दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका
87
अगस्त 2014 भाससक ऩॊिाॊग
69
फदन-यात के िौघफडमे
88
अगस्त 2014 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय
74
फदन-यात फक होया
89
अगस्त 2014 -त्रवशेष मोग
87
ग्रह िरन अगस्त -2014
90
हभाये उत्ऩाद सवा कामा ससत्रद्ध कवि
11
नवयत्न जफित श्री मॊि
74
भॊि ससद्ध स्पफटक श्री मॊि
16
75
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि / कवि
वाहन दघ ा ना नाशक भारुसत मॊि/ श्री हनुभान मॊि ु ट
28
त्रवसबन्न दे वताओॊ के मॊि
76
भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश
34
यासश यत्न
78
भॊि ससद्ध दर ा साभग्री/भॊि ससद्ध भारा ु ब
37
भॊि ससद्ध रूद्राऺ
79
त्रवद्या प्रासद्ऱ हे तु सयस्वती कवि औय मॊि
55
जैन धभाके त्रवसशद्श मॊिो की सूिी81
81
भॊि ससद्ध बाग्म रक्ष्भी फडब्फी
60
घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि
82
भॊि ससद्ध ऩायद प्रसतभा
62
अभोघ भहाभृत्मुज ॊ म कवि
83
भॊि ससद्ध गोभसत िक्र
63
सवा योगनाशक मॊि/कवि
91
हभाये त्रवशेष मॊि/ त्रवसबन्न रक्ष्भी मॊि
64
भॊि ससद्ध कवि सूसि
93
सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका
65
YANTRA LIST
94
द्रादश भहा मॊि
66
Gemstone Price List
96
ऩुरुषाकाय शसन मॊि /शसन तैसतसा मॊि
73
सूिना
97
कृ ष्णॊ वन्दे जगत गुरु त्रप्रम आस्त्भम फॊध/ु फफहन जम गुरुदे व यऺाफॊधन अथाात ्प्रेभ का फॊधन। यऺाफॊधन के फदन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती हं । यऺाफॊधन के साथ फह बाई को अऩने सन्स्वाथा प्रेभ से फाॉधती है ।बायतीम सॊस्कृ सत भं आज के बौसतकतावादी सभाज भं बोग औय स्वाथा भं सरद्ऱ त्रवद्व भं बी प्राम् सबी सॊफॊधं भं सन्स्वाथा औय ऩत्रवि होता हं । बायतीम सॊस्कृ सत सभग्र भानव जीवन को भहानता के दशान कयाने वारी सॊस्कृ सत हं । बायतीम सॊस्कृ सत भं स्त्री को केवर भाि बोगदासी न सभझकय उसका ऩूजन कयने वारी भहान सॊस्कृ सत हं ।
सकृ न्भन् कृ ष्णाऩदायत्रवन्दमोसनावेसशतॊ तद्गुणयासग मैरयह। न ते मभॊ ऩाशबृतद्ळ तद्भटान ् स्वप्नेऽत्रऩ ऩश्मस्न्त फह िीणासनष्कृ ता्॥ बावाथा: जो भनुष्म केवर एक फाय श्रीकृ ष्ण के गुणं भं प्रेभ कयने वारे अऩने सित्त को श्रीकृ ष्ण के ियण कभरं भं रगा दे ते हं , वे ऩाऩं से छूट जाते हं , फपय उन्हं ऩाश हाथ भं सरए हुए मभदत ू ं के दशान स्वप्न भं बी नहीॊ हो सकते। श्री कृ ष्णजन्भाद्शभी को बगवान श्री कृ ष्ण के जनभोत्स्व के रुऩ भं भनामा जाता है । बगवान श्रीकृ ष्ण के बगवद गीता भं वस्णात उऩदे श ऩुयातन कार से ही फहन्द ु सॊस्कृ सत भं आदशा यहे हं । जन्भाद्शभी का त्मौहाय ऩुये त्रवद्व भं हषोल्रास एवॊ आस्था से भनामा जाता हं ।
श्रीकृ ष्ण का जन्भ बाद्रऩद भाह की कृ ष्ण ऩऺ की
अद्शभी को भध्मयात्रि को भथुया भं कायागृह भं हुवा। जैसे की इस स्जन सभग्र सॊसाय के ऩारन कताा स्वमॊ अवतरयत हुएॊ थे। अत: इस फदन को कृ ष्ण जन्भाद्शभी के रूऩ भं भनाने की ऩयॊ ऩया सफदमं से िरी आयही हं । श्रीकृ ष्ण जन्भोत्सव के सरए दे श-दसु नमा के त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊफदयं को त्रवशेष तौय ऩय सजामा जाता है । जन्भाद्शभी के फदन व्रती फायह फजे तक व्रत यखते हं । इस फदन भॊफदयं भं बगवान श्री कृ ष्ण की त्रवसबन्न झाॊकीमाॊ सजाई जाती है औय यासरीरा का आमोजन होता है । बगवान श्री कृ ष्ण की फार स्वरुऩ प्रसतभा को त्रवसबन्न शृॊगाय साभग्रीमं से सुसस्ज्जत कय प्रसतभा को ऩारने भं स्थात्रऩत कय कृ ष्ण भध्मयािी को झूरा झुरामा जाता हं । धभाशास्त्रं के जानकायं ने श्रीकृ ष्णजन्भाद्शभीका व्रत सनातन-धभाावरॊत्रफमं के सरए त्रवशेष भहत्व ऩूणा फतामा है । इस फदन उऩवास यखने तथा अन्न का सेवन नहीॊ कयने का त्रवधान धभाशास्त्रं भं वस्णात हं । श्री इस त्रवशेषाॊक भं बगवान श्रीकृ ष्ण की त्रवशेष कृ ऩा प्रासद्ऱ हे तु बगवान श्री कृ ष्ण के सयर भॊि-द्ऴोक-व्रत-ऩूजन इत्माफद सयर उऩामोको दे ने का प्रमास फकमा हं स्जससे साधायण व्मत्रि बी त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकं।
इस अॊक भं प्रकासशत श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेष से सॊफॊसधत जानकायीमं के त्रवषम भं साधक एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं , मफद दशाामे गए भॊि, द्ऴोक, व्रत, ऩूजन त्रवसध इत्मादी के सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, फडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊफटॊ ग भं, प्रकाशन भं कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा फकसी मोग्म ज्मोसतषी, गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोफक त्रवद्रान ज्मोसतषी, गुरुजनो एवॊ साधको के सनजी अनुबव शास्त्र एवॊ ग्रॊथं भं वस्णात भॊि, द्ऴोक, व्रत, ऩूजन त्रवसध,
उऩामं, मॊि, साधना, उऩाम के प्रबावं का वणान कयने भं बेद
होने ऩय सॊफॊसधत ऩूजन त्रवसध इत्माफद भं सबन्नता एवॊ उसके प्रबावं भं सबन्नता सॊबव हं ।
आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो बगवान श्रीकृ ष्ण की कृ ऩा आऩके ऩरयवाय ऩय फनी यहे । बगवान श्रीकृ ष्ण से महीॊ प्राथना हं …
जैन फॊधु/फहनं कओ ऩमूष ा ण भहाऩवा की अनेक-अनेक शुबकाभनाएॊ। गुरुत्व कामाारम की औय से सबी को "सभच्छाभी दक् ु कडभ ्" सिॊतन जोशी गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई-ऩत्रिका भं रेखन हे तु फ्रीराॊस (स्वतॊि) रेखकं का स्वागत हं ...
गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई-ऩत्रिका भं रेखन हे तु फ्रीराॊस (स्वतॊि) रेखकं का स्वागत हं ... गुरुत्व ज्मोसतष भाससक ई-ऩत्रिका भं आऩके द्राया सरखे गमे भॊि, मॊि, तॊि, ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, पंगशुई, टै यं, ये की एवॊ अन्म आध्मास्त्भक ऻान वधाक
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रेख को प्रकासशत कयने हे तु बेज सकते हं । मफद आऩ रेखक नहीॊ हं औय आऩके ऩास इन त्रवषमं से सॊफॊसधत ऻान वधाक रेख, शास्त्र, ग्रॊथ इत्माफद की प्रसत, स्कैन कोऩी मा ई-ऩुस्तक हं तो आऩ उन ऻान वधाक साभग्रीमं को हजायं-राखं ऩाठकं के ऻान वधान, भागादशान के उद्दे श्म से बेज सकते हं ... अऩने रेख के साथ आऩ अऩना नाभ/ऩता/नॊफय दे सकते हं । (*पोटो बी बेज सकते हं ।)
कोई बी रेख इत्माफद बेजने से ऩूवा फ्रीराॊस रेखको से अनुयोध हं की गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कय सनमभ सूसि ई-भेर द्राया प्राद्ऱ कयरे, फपय रेख बेजे
असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं ।
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अगस्त 2014
***** श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सूिना ***** ऩत्रिका भं प्रकासशत श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेख गुरुत्व कामाारम के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं ।
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेखं को नास्स्तक/अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं ।
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक का त्रवषम आध्मात्भ से सॊफॊसधत होने के कायण इसे त्रवसबन्न शास्त्रं से प्रेरयत होकय प्रस्तुत फकमा हं ।
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं ।
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत सबी जानकायीकी प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव की स्जन्भेदायी के फाये भं जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं ।
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं । फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा।
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक भं वस्णात रेख से सॊफॊसधत फकसी बी प्रकाय की आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
इस अॊक भं वस्णात सॊफॊसधत रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशध ॊ ान के आधाय ऩय फदए गमे हं । हभ
फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे, भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी नफहॊ रेते हं । मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी।
क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकूर ऩरयणाभ सॊबव हं ।
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत जानकायी को भाननने से प्राद्ऱ होने वारे राब, राब की हानी मा हानी की स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक की नहीॊ हं ।
हभाये द्राया ऩोस्ट की गई सबी जानकायी एवॊ भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधुगण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा कवि, भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हं ।
असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं । (सबी त्रववादो केसरमे केवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
अगस्त 2014
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नाग ऩॊिभी का धासभाक भहत्व
त्रवजम ठाकुय नाग ऩॊिभी व्रत श्रावण शुक्र ऩॊिभीको फकमा जाता है । रेफकन रोकािाय व सॊस्कृ सत- बेद के कायण नाग ऩॊिभी व्रत को फकसी जगह कृ ष्णऩऺभं बी फकमा जाता है । इसभे ऩयत्रवद्धा मुि ऩॊिभी री जाती है ।
छोटी फहू के कहने ऩय फिी फहू ने सऩा को नहीॊ
भाया औय सऩा एक ओय जाकय फैठ गमा। तफ छोटी फहू ने सऩा से कहा "हभ अबी रौट कय आती हं तुभ महाॊ से
ऩौयास्णक भान्मता के अनुशाय इस फदन नाग-सऩा को
कहीॊ जाना भत" इतना कहकय वह सफके साथ सभट्टी
दध ू से स्त्रान औय ऩूजन कय दध ू त्रऩराने से व्रती को ऩुण्म
रेकय घय िरी गई औय घय के काभकाज भं पॉसकय सऩा
पर की प्रासद्ऱ होती हं । अऩने घय के भुख्म द्राय के दोनं
से जो वादा फकमा था उसे बूर गई।
ओय गोफयके सऩा फनाकय उनका दही, दव ू ाा, कुशा, गन्ध, अऺत, ऩुष्ऩ, भोदक औय भारऩुआ इत्माफदसे ऩूजन कय ब्राह्मणंको बोजन कयाकय एकबुि व्रत कयनेसे घयभं सऩंका बम नहीॊ होता है । का जऩ कयने का त्रवधान हं ।
"ॐ कुरुकुल्मे हुॊ पद स्वाहा।"
ऩौयास्णक कथा के अनुशाय प्रािीन कार भं फकसी नगय के एक सेठजी के सात ऩुि थे। सातं ऩुिं के त्रववाह हो िुके थे। सफसे छोटे ऩुि की ऩत्नी श्रेद्ष िरयि की त्रवदष ु ी
औय सुशीर थी, रेफकन उसका कोई
को साथ रेकय वहाॉ ऩहुॉिी औय सऩा को उस स्थान ऩय
फैठा दे खकय फोरी "सऩा बैमा नभस्काय!" सऩा ने कहा तू
सऩात्रवष दयू कयने हे तु सनम्न सनम्नसरस्खत भॊि
नाग ऩॊिभी की ऩौयास्णक कथा
उसे दस ू ये फदन वह फात माद आई तो सफ फहूओॊ
बैमा कह िुकी है , इससरए तुझे छोि दे ता हूॊ, नहीॊ तो झूठे वादे कयने के कायण तुझे अबी डस रेता। छोटी फहू
फोरी बैमा भुझसे बूर हो गई, उसकी ऺभा भाॉगती हूॊ, तफ सऩा फोरा- अच्छा, तू आज
नाग ऩॊिभी
त्रवशेष
बाई नहीॊ था।
से भेयी फफहन हुई औय भं तेया बाई हुआ। तुझे जो भाॊगना हो, भाॉग रे। वह फोरी- बैमा! भेया कोई नहीॊ है ,
अच्छा हुआ जो तू भेया बाई फन गमा। कुछ फदन व्मतीत होने ऩय वह सऩा भनुष्म का रूऩ धयकय उसके घय आमा औय फोरा फक "भेयी फफहन को फुरा दो, भं उसे रेने आमा हूॉ" सफने कहा फक इसके
एक फदन फिी फहू ने घय रीऩने के सरए ऩीरी
तो कोई बाई नहीॊ था! तो वह फोरा- भं दयू के रयश्ते भं
सबी फहू उस के साथ सभट्टी खोदने के औजाय रेकय
त्रवद्वास फदराने ऩय घय के रोगं ने छोटी को उसके साथ
सभट्टी राने हे तु सबी फहुओॊ को साथ िरने को कहा तो िरी गई औय फकसी स्थान ऩय सभट्टी खोदने रगी, तबी वहाॊ एक सऩा सनकरा, स्जसे फिी फहू खुयऩी से भायने रगी। मह दे खकय छोटी फहू ने फिी फहू को योकते हुए कहा "भत भायो इस सऩा को? मह फेिाया सनयऩयाध है ।"
इसका बाई हूॉ, फिऩन भं ही फाहय िरा गमा था। उसके
बेज फदमा। उसने भागा भं फतामा फक "भं वहीॊ सऩा हूॉ, इससरए तू डयना नहीॊ औय जहाॊ िरने भं कफठनाई हो वहाॊ भेया हाथ ऩकि रेना। उसने कहे अनुसाय ही फकमा
अगस्त 2014
8 औय इस प्रकाय वह उसके घय ऩहुॊि गई। वहाॉ के धनऐद्वमा को दे खकय वह िफकत हो गई।
बैमा ! यानी ने भेया हाय छीन सरमा है , तुभ कुछ ऐसा कयो फक जफ वह हाय उसके गरे भं यहे , तफ तक के सरए सऩा फन जाए औय जफ वह भुझे रौटा दे तफ वह ऩुन्
वह सऩा ऩरयवाय अके साथ आनॊद से यहने रगी।
हीयं औय भस्णमं का हो जाए। सऩा ने ठीक वैसा ही
एक फदन सऩा की भाता ने उससे कहा "भं एक काभ से
फकमा। जैसे ही यानी ने हाय ऩहना, वैसे ही वह सऩा फन
फाहय जा यही हूॉ, तू अऩने बाई को ठॊ डा दध ू त्रऩरा दे ना।
गमा। मह दे खकय यानी िीख ऩिी औय योने रगी।
उसे मह फात ध्मान न यही औय उससे गरसत से गभा दध ू
त्रऩरा फदमा, स्जसभं उसका भुहॉ फुयी तयह जर गमा। मह
मह दे ख कय याजा ने सेठ के ऩास खफय बेजी फक
दे खकय सऩा की भाता फहुत क्रोसधत हुई। ऩयॊ तु सऩा के
छोटी फहू को तुयॊत बेजो। सेठजी डय गए फक याजा न
को अफ उसके घय बेज दे ना िाफहए। तफ सऩा औय उसके
उऩस्स्थत हुए। याजा ने छोटी फहू से ऩूछा "तुने क्मा जाद ू
सभझाने ऩय भाॉ िुऩ हो गई। तफ सऩा ने कहा फक फफहन
त्रऩता ने उसे बेट स्वरुऩ फहुत सा सोना, िाॉदी, जवाहयात, वस्त्र-बूषण आफद दे कय उसके घय ऩहुॉिा फदमा।
साथ रामा ढे य साया धन दे खकय फिी फहू ने ईषाा
से कहा तुम्हायाॊ बाई तो फिा धनवान है , तुझे तो उससे औय बी धन राना िाफहए। सऩा ने मह विन सुना तो
सफ वस्तुएॉ सोने की राकय दे दीॊ। मह दे खकय फिी फहू
जाने क्मा कये गा? वे स्वमॊ छोटी फहू को साथ रेकय फकमा है , भं तुझे दण्ड दॊ ग ू ा।" छोटी फहू फोरी "याजन ! धृद्शता ऺभा कीस्जए" मह हाय ही ऐसा है फक भेये गरे भं
हीयं औय भस्णमं का यहता है औय दस ू ये के गरे भं सऩा फन जाता है । मह सुनकय याजा ने वह सऩा फना हाय उसे
दे कय कहा- अबी ऩहनकय फदखाओ। छोटी फहू ने जैसे ही उसे ऩहना वैसे ही हीयं-भस्णमं का हो गमा।
की रारि फढ़ गई उसने फपय कहा "इन्हं झािने की
मह दे खकय याजा को उसकी फात का त्रवद्वास हो
झािू बी सोने की होनी िाफहए" तफ सऩा ने झाडू बी सोने
गमा औय उसने प्रसन्न होकय उसे बेट भं फहुत सी भुद्राएॊ
की राकय यख दी। सऩा ने अऩने फफहन को हीया-भस्णमं का एक अद्भत ु हाय फदमा था। उसकी प्रशॊसा उस दे श की यानी ने बी सुनी औय वह याजा से फोरी फक "सेठ की छोटी फहू
का हाय महाॉ आना िाफहए।" याजा ने भॊिी को हुक्भ फदमा
बी ऩुयस्काय भं दीॊ। छोटी वह अऩने हाय औय बेट सफहत
घय रौट आई। उसके धन को दे खकय फिी फहू ने ईषाा के कायण उसके ऩसत को ससखामा फक छोटी फहू के ऩास कहीॊ से धन आमा है । मह सुनकय उसके ऩसत ने अऩनी
ऩत्नी को फुराकय कहा सि-सि फताना फक मह "धन तुझे कौन दे ता है ?" तफ वह सऩा को माद कयने रगी।
फक उससे वह हाय रेकय शीघ्र उऩस्स्थत हो भॊिी ने सेठजी
से जाकय कहा फक "भहायानीजी ने छोटी फहू का हाय
तफ उसी सभम सऩा ने प्रकट होकय कहा मफद
भॊगवामा हं , तो वह हाय अऩनी फहू से रेकय भुझे दे दो"।
भेयी धभा फफहन के आियण ऩय सॊदेह प्रकट कये गा तो भं
फदमा।
प्रसन्न हुआ औय उसने सऩा दे वता का फिा सत्काय
सेठजी ने डय के कायण छोटी फहू से हाय भॊगाकय दे
उसे डॊ स रूॉगा। मह सुनकय छोटी फहू का ऩसत फहुत फकमा। भान्मता हं की उसी फदन से नागऩॊिभी का
छोटी फहू को मह फात फहुत फुयी रगी, उसने
अऩने सऩा बाई को माद फकमा औय आने ऩय प्राथाना की-
त्मोहाय भनामा जाता है औय स्स्त्रमाॉ सऩा को बाई भानकय उसकी ऩूजा कयती हं ।
अगस्त 2014
9
ऩुिदा एकादशी व्रत 07-अगस्त-2014 (गुरुवाय)
सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी ऩौयास्णक कारसे ही फहॊ द ू धभा भं एकादशी व्रत का
बाग) को दे ख यहा हं । गुरु के साथ सूमा स्स्थत हं जो
त्रवशेष धासभाक भहत्व यहा है । श्रावण भास के शुक्र ऩऺ
आध्मास्त्भक कामं भं वृत्रद्ध का सॊकेत दे ता हं । सूमा के
की एकादशी को ऩुिदा एकादशी अथवा ऩत्रविा एकादशी
साथ फुध का फुधाफदत्म मोग बी त्रवशेष शुबदाम भाना
बी कहते हं । एकादशी के फदन बगवान त्रवष्णु के फदन
गमा हं । ऩुि कायक ग्रह वक्री केतु के ऩॊिभ बाव ऩय शुब
काभना ऩूसता के सरए व्रत-ऩूजन फकमा जाता है ।
दृद्शी सॊतान प्रासद्ऱ हे तु सहामक यहे गी। फकन्तु भॊगर+शसन
इस वषा ऩुिदा एकादशी 07-अगस्त-2014 गुरुवाय
की मुसत सॊकेत दे यही हं की सॊतान प्रासद्ऱ की इच्छा
के फदन है , गुरुवाय को बगवान त्रवष्णु के ऩूजन हे तु श्रेद्ष
यखने वारे दॊ ऩत्रत्तमं को त्रवशेष सावधानी अवश्म यखनी,
भाना जाता हं औय इस वषा ऩुिदा एकादशी औय गुरुवाय
फकसी बी तयह की राऩयवाही, भनभुटाव इत्माफद से
का सॊमोग एक साथ हो यहा हं , जो त्रवद्रानं के भतानुशाय
त्रवऩरयत ऩरयणाभ सॊबव हं ।
असत उत्तभ हं । ज्मोसतष गणना के अनुशाय
सॊतान प्रासद्ऱ की इच्छा यखने वारे
इस वषा 07-अगस्त-2014 सूमोदम के सभम कका रग्न होगा, रग्नेश नीि िॊद्रभा की ऩॊिभ बाव भं भॊगर के घय भं स्स्थती बी सॊतान प्रासद्ऱ की
दॊ ऩत्रत्तमं
भानी गई हं । उसी के साथ ही इस फदन फकमा गमा धासभाक ऩूजन-व्रत इत्माफद आध्मास्त्भक कामा शुब ग्रहं के
एकादशी
व्रत
का
2014, फुधवाय) की यात्रि से ही शुरु कयं शुद्ध सित्त से ब्रह्मिमा का ऩारन
त्रवशेष
प्रबाव से शीघ्र एवॊ त्रवशेष पर प्रदान कयने
ऩुिदा
सनमभ ऩारन दशभी सतसथ (6 अगस्त
सॊतान प्रासद्ऱ
इच्छा यखने वारो के सरए उत्तभ
को
कयं । गुरुवाय के फदन सुफह जल्दी उठकय सनत्मकभा से
सनवृत्त
होकय
स्वच्छ वस्त्र धायण कय बगवान त्रवष्णु की प्रसतभा के साभने फैठकय व्रत का सॊकल्ऩ कयं । व्रत हे तु उऩवास यखं अन्न ग्रहण
वारा ससद्ध होगा क्मोफक उच्ि का गुरु षद्षेश एवॊ बाग्मेश
नहीॊ कयं , एक मा दो सभम पराहाय कय सकते हं ।
हो कय रग्न गृह भं स्स्थत होकय ऩॊिभ बाव (सॊतान
तत्ऩद्ळमात बगवान त्रवष्णु का ऩूजन ऩूणा त्रवसध-
गृह), सद्ऱभ बाव (जीवन साथी) एवॊ नवभ बाव(बाग्म
त्रवधान से कयं । (मफद स्वमॊ ऩूजन कयने भं असभथा हं
सॊतान गोऩार मॊि उत्तभ सॊतान प्रासद्ऱ हे तु शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से असबभॊत्रित सॊतान गोऩार मॊि का ऩूजन एवॊ अनुद्षान त्रवशेष राबप्रद भाना गमा हं ।
सॊतान प्रासद्ऱ मॊि एवॊ कवि से सॊफॊसधत असधक जानकायी हे तु गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं ।
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अगस्त 2014
10 तो फकसी मोग्म त्रवद्रान ब्राह्मण से बी ऩूजन कयवा सकते
अत् व्रत से केवर ऩुि सॊतान की प्रासद्ऱ हो ऐसा नहीॊ हं
हं ।) बगवान त्रवष्णु को शुद्ध जर से स्नान कयाए। फपय
इस व्रत से उत्तभ सॊतान की प्रासद्ऱ होती हं , िाहे वह
ऩॊिाभृत से स्नान कयाएॊ स्नान के फाद केवर ऩॊिाभृत के
सॊतान ऩुि हो मा कन्मा। आज के आधुसनक मुग भं ऩुि
ियणाभृत को व्रती (व्रत कयने वारा) अऩने औय ऩरयवाय
सॊतान व कन्मा सॊतान भं कोई त्रवशेष पका नहीॊ यहा हं ।
के सबी सदस्मं के अॊगं ऩय सछिके औय उस ियणाभृत
कन्मा मा भफहराएॊ बी ऩुि मा ऩुरुष के सभान ही सफर
को ऩीए। तत ऩद्ळमात ऩुन् शुद्ध जर से स्नान कयाकय
एवॊ शत्रिशारी हं । अत् केवर ऩुि सॊतान की काभना
प्रसतभाक स्वच्छ कऩिे से ऩोछरं। इसके फाद बगवान को
कयना व्मथा हं । अत् केवर उत्तभ सॊतान की काभना से
गॊध, ऩुष्ऩ, धूऩ, दीऩ, नैवेद्य आफद ऩूजन साभग्री अत्रऩत ा
व्रत कये । जानकाय एवॊ त्रवद्रानं के अनुबव के अनुशाय
कयं ।
ऩीछरे कुछ वषो भं उन्हं अऩने अनुशॊधान से मह तथ्म त्रवष्णु सहस्त्रनाभ का जऩ कयं एवॊ ऩुिदा एकादशी
सभरे हं की केवर ऩुि काभना से की गई असधकतय
व्रत की कथा सुनं। यात को बगवान त्रवष्णु की भूसता के
साधानाएॊ, व्रत-उऩवास इत्माफद उऩामं से दॊ ऩत्रत्त को ऩुि
सभीऩ शमन कयं औय दस ू ये फदन अथाात द्रादशी 8-
की जगह उत्तभ कन्म सॊतान की प्रासद्ऱ हुवी हं , औय वह
अगस्त-2014 जुराई, शुक्रवाय के फदन त्रवद्रान ब्राह्मणं को
कन्मा सॊतान ऩुि सॊतान से कई असधक फुत्रद्धभान एवॊ
बोजन कयाकय व सप्रेभ दान-दस्ऺणा इत्माफद दे कय उनका
भाता-त्रऩता का नाभ सभाज भं योशन कयने वारी यही हं ।
आशीवााद प्राद्ऱ कयं । इस प्रकाय ऩत्रविा एकादशी व्रत कयने
सॊबवत इस मुग भं नायीमं की कभ होती जनसॊख्मा के
से मोग्म सॊतान की प्रासद्ऱ होती है ।
कायण इद्वयने बी अऩने सनमभ फदर सरमे हंगे इस सरए
त्रवशेष सूिना: ऩुि प्रासद्ऱ का तात्ऩमा केवर उत्तभ सॊतान की प्रासद्ऱ सभझे। क्मोफक, उऩयोि वस्णात ऩुि प्रासद्ऱ
ऩुि काभना के परस्वरुऩ उत्तभ कन्मा सॊतान की प्रासद्ऱ हो यही होगी।
एकादशी से सॊफॊसधत सबी जानकायी शास्त्रोि वस्णात हं ,
दस्ऺणावसता शॊख आकाय रॊफाई भं
पाईन
सुऩय पाईन
0.5" ईंि
180
230
1" to 1.5" ईंि
280
370
2" to 2.5" ईंि
370
460
3" to 3.5" ईंि
460
550
स्ऩेशर
आकाय रॊफाई भं
पाईन
280 4" to 4.5" ईंि 460 5" to 5.5" ईंि 640 6" to 6.5" ईंि 820 7" to 7.5" ईंि
सुऩय पाईन
स्ऩेशर
730
910
1050
1050
1250
1450
1250
1450
1900
1550
1850
2100
हभाये महाॊ फिे आकाय के फकभती व भहॊ गे शॊख जो आधा रीटय ऩानी औय 1 रीटय ऩानी सभाने की ऺभता वारे होते हं । आऩके अनुरुध ऩय उऩरब्ध कयाएॊ जा सकते हं ।
स्ऩेशर गुणवत्ता वारा दस्ऺणावसता शॊख ऩूयी तयह से सपेद यॊ ग का होता हं ।
सुऩय पाईन गुणवत्ता वारा दस्ऺणावसता शॊख पीके सपेद यॊ ग का होता हं ।
पाईन गुणवत्ता वारा दस्ऺणावसता शॊख दं यॊ ग का होता हं ।
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11
अगस्त 2014
सवा कामा ससत्रद्ध कवि स्जस व्मत्रि को राख प्रमत्न औय ऩरयश्रभ कयने के फादबी उसे भनोवाॊसछत सपरतामे एवॊ
फकमे गमे कामा भं ससत्रद्ध (राब) धायण कयना िाफहमे।
प्राद्ऱ नहीॊ होती, उस व्मत्रि को सवा कामा ससत्रद्ध कवि अवश्म
कवि के प्रभुख राब: सवा कामा ससत्रद्ध कवि के द्राया सुख सभृत्रद्ध औय नव ग्रहं के
नकायात्भक प्रबाव को शाॊत कय धायण कयता व्मत्रि के जीवन से सवा प्रकाय के द:ु ख-दारयद्र का नाश हो कय सुख-सौबाग्म एवॊ उन्नसत प्रासद्ऱ होकय जीवन भे ससब प्रकाय के शुब कामा ससद्ध होते
हं । स्जसे धायण कयने से व्मत्रि मफद व्मवसाम कयता होतो कायोफाय भे वृत्रद्ध होसत हं औय मफद नौकयी कयता होतो उसभे उन्नसत होती हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं सवाजन वशीकयण कवि के सभरे होने की वजह से धायण कताा की फात का दस ू ये व्मत्रिओ ऩय प्रबाव फना यहता हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं अद्श रक्ष्भी कवि के सभरे होने की वजह से व्मत्रि ऩय सदा
भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं । स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)आफद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)- धैमा रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का अशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं तॊि यऺा कवि के सभरे होने की वजह से ताॊत्रिक फाधाए दयू होती हं , साथ ही नकायात्भक शत्रिमो का कोइ कुप्रबाव धायण कताा व्मत्रि ऩय नहीॊ होता। इस कवि के प्रबाव से इषाा-द्रे ष यखने वारे व्मत्रिओ द्राया होने वारे दद्श ु प्रबावो से यऺा होती हं ।
सवा कामा ससत्रद्ध कवि के साथ भं शिु त्रवजम कवि के सभरे होने की वजह से शिु से सॊफॊसधत
सभस्त ऩये शासनओ से स्वत् ही छुटकाया सभर जाता हं । कवि के प्रबाव से शिु धायण कताा व्मत्रि का िाहकय कुछ नही त्रफगाि सकते।
अन्म कवि के फाये भे असधक जानकायी के सरमे कामाारम भं सॊऩका कये : फकसी व्मत्रि त्रवशेष को सवा कामा ससत्रद्ध कवि दे ने नही दे ना का अॊसतभ सनणाम हभाये ऩास सुयस्ऺत हं ।
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अगस्त 2014
12
ऩुिदा (ऩत्रविा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी श्रावण : शुक्र ऩऺ
यहे । एक आश्रभ भं उन्हंने एक अत्मॊत वमोवृद्ध धभा के
एक फाय मुसधत्रद्षय बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हं , हे बगवान! श्रावण शुक्र एकादशी का क्मा नाभ है ? इसभं
ऻाता, फिे तऩस्वी, ऩयभात्भा भं भन रगाए हुए सनयाहाय, स्जतंद्रीम, स्जतात्भा, स्जतक्रोध, सनातन धभा के गूढ़
फकस दे वता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत कयने
तत्वं को जानने वारे, सभस्त शास्त्रं के ऻाता भहात्भा
से क्मा पर सभरता है ?" व्रत कयने की त्रवसध तथा
रोभश भुसन को दे खा, स्जनका कल्ऩ के व्मतीत होने ऩय
इसका भाहात्म्म कृ ऩा कयके कफहए। बगवान श्रीकृ ष्ण
एक योभ सगयता था।
कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ ऩुिदा एकादशी है ।
सफने जाकय ऋत्रष को प्रणाभ फकमा। उन रोगं
अफ आऩ शाॊसतऩूवक ा इस व्रतकी कथा सुसनए। इसके
को दे खकय भुसन ने ऩूछा फक आऩ रोग फकस कायण से
सुनने भाि से ही वाजऩेमी मऻ / अनन्त मऻ का पर
आए हं ? सन:सॊदेह भं आऩ रोगं का फहत करूॉगा। भेया
सभरता है ।
जन्भ केवर दस ू यं के उऩकाय के सरए हुआ है , इसभं
द्राऩय मुग के आयॊ ब भं भफहष्भसत नाभ की एक
नगयी थी, स्जसभं भफहष्भती नाभ का याजा याज्म कयता
सॊदेह भत कयो।
रोभश ऋत्रष के ऐसे विन सुनकय सफ रोग फोरे-
था, रेफकन ऩुिहीन होने के कायण याजा को याज्म
हे भहषे! आऩ हभायी फात जानने भं ब्रह्मा से बी असधक
सुखदामक नहीॊ रगता था। उसका भानना था फक स्जसके
सभथा हं । अत: आऩ हभाये इस सॊदेह को दयू कीस्जए।
सॊतान न हो, उसके सरए मह रोक औय ऩयरोक दोनं ही द:ु खदामक होते हं । ऩुि सुख की प्रासद्ऱ के सरए याजा ने
भफहष्भसत ऩुयी का धभाात्भा याजा भफहष्भती प्रजा का ऩुि के सभान ऩारन कयता है । फपय बी वह ऩुिहीन होने के
अनेक उऩाम फकए ऩयॊ तु याजा को ऩुि की प्रासद्ऱ नहीॊ हुई।
कायण द:ु खी है ।
प्रसतसनसधमं को फुरामा औय कहा- हे प्रजाजनं! भेये
हं । अत: उसके द:ु ख से हभ बी द:ु खी हं । आऩके दशान
वृद्धावस्था
आती
दे खकय
याजा
ने
प्रजा
के
खजाने भं अन्माम से उऩाजान फकमा हुआ धन नहीॊ है । न भंने कबी दे वताओॊ तथा ब्राह्मणं का धन छीना है । फकसी
उन रोगं ने आगे कहा फक हभ रोग उसकी प्रजा
से हभं ऩूणा त्रवद्वास है फक हभाया मह सॊकट अवश्म दयू हो जाएगा क्मंफक भहान ऩुरुषं के दशान भाि से अनेक
दस ू ये की धयोहय बी भंने नहीॊ री, प्रजा को ऩुि के सभान
कद्श दयू हो जाते हं । अफ आऩ कृ ऩा कयके याजा के ऩुि
दॊ ड दे ता यहा। कबी फकसी से घृणा नहीॊ की। सफको
मह वाताा सुनकय ऐसी करुण प्राथाना सुनकय
सभान भाना है । सज्जनं की सदा ऩूजा कयता हूॉ। इस
रोभश ऋत्रष नेि फन्द कयके याजा के ऩूवा जन्भं ऩय
भं अत्मॊत द:ु ख ऩा यहा हूॉ, इसका क्मा कायण है ?
जानकय कहने रगे फक मह याजा ऩूवा जन्भ भं एक
ऩारता यहा। भं अऩयासधमं को ऩुि तथा फाॉधवं की तयह
होने का उऩाम फतराएॉ।
प्रकाय धभामुि याज्म कयते हुए बी भेये ऩुि नहीॊ है । सो
त्रविाय कयने रगे औय याजा के ऩूवा जन्भ का वृत्ताॊत
याजा भफहष्भती की इस फात को त्रविायने के सरए
सनधान वैश्म था। सनधान होने के कायण इसने कई फुये
भॊिी तथा प्रजा के प्रसतसनसध वन को गए। वहाॉ फिे -फिे
कभा फकए। मह एक गाॉव से दस ू ये गाॉव व्माऩाय कयने
ऋत्रष-भुसनमं के दशान फकए। याजा की उत्तभ काभना की ऩूसता के सरए फकसी श्रेद्ष तऩस्वी भुसन को खोजते-फपयते
जामा कयता था। ज्मेद्ष भास के शुक्र ऩऺ की एकादशी
के फदन वह दो फदन से बूखा-प्मासा था भध्माह्न के
अगस्त 2014
13 सभम, एक जराशम ऩय जर ऩीने गमा। उसी स्थान ऩय
इसके ऩद्ळात द्रादशी के फदन इसके ऩुण्म का पर याजा
एक तत्कार की प्रसूता हुई प्मासी गौ जर ऩी यही थी।
को सभर गमा। उस ऩुण्म के प्रबाव से यानी ने गबा
ऩीते हुए हटा फदमा औय स्वमॊ जर ऩीने रगा, इसीसरए
अत्मन्त तेजस्वी ऩुियत्न ऩैदा हुआ ।
याजा ने उस प्मासी गाम को जराशम से जर
याजा को मह द:ु ख सहना ऩिा। एकादशी के फदन बूखा
धायण फकमा औय नौ भहीने के ऩश्िात ् ही उसके एक इससरए हे याजन! इस श्रावण शुक्र एकादशी का
यहने से वह याजा हुआ औय प्मासी गौ को जर ऩीते हुए
नाभ ऩुिदा ऩिा। अत: सॊतान सुख की इच्छा यखने वारे
हटाने के कायण ऩुि त्रवमोग का द:ु ख सहना ऩि यहा है ।
भनुष्म को िाफहए के वे त्रवसधऩूवक ा श्रावण भास के शुक्र
ऐसा सुनकय सफ रोग कहने रगे फक हे ऋत्रष! शास्त्रं भं
ऩऺ की एकादशी का व्रत कयं । इसके भाहात्म्म को सुनने
ऩाऩं का प्रामस्द्ळत बी सरखा है । अत: स्जस प्रकाय याजा
से भनुष्म सफ ऩाऩं से भुि हो जाता है औय इस रोक
का मह ऩाऩ नद्श हो जाए, आऩ ऐसा उऩाम फताइए।
भं सॊतान सुख बोगकय ऩयरोक भं स्वगा को प्राद्ऱ होता है ।
रोभश भुसन कहने रगे फक श्रावण शुक्र ऩऺ की
कथा का उद्दे श्म : ऩाऩ कयते सभम हभ मह नहीॊ सोिते
एकादशी को स्जसे ऩुिदा एकादशी बी कहते हं , तुभ सफ
फक हभ क्मा कय यहे है , रेफकन शास्िं से त्रवफदत होता है
रोग व्रत कयो औय यात्रि को जागयण कयो तो इससे याजा
फक हभाये द्राया फकमा गमे गमे छोटे मा फडे ऩाऩ से हभं
का मह ऩूवा जन्भ का ऩाऩ नद्श हो जाएगा, साथ ही याजा
कष्ट बोगना ऩिता है , अत् हभं ऩाऩ से फिना िाफहए।
नष्ट हो जामंगे। "रोभश ऋत्रष के ऐसे विन सुनकय
का पर दस ू ये जन्भ भं बी बोगना ऩि सकता हं । इस
को ऩुि की अवश्म प्रासद्ऱ होगी। याजा के सभस्त द्ु ख भॊत्रिमं सफहत सायी प्रजा नगय को वाऩस रौट आई औय
क्मंफक ऩाऩ के कायण ऩीछरे जन्भ भं फकमा गमा कभा सरए हभं िाफहए फक सत्मव्रत का ऩारन कय ईश्वयभं ऩूणा
जफ श्रावण शुक्र एकादशी आई तो ऋत्रष की आऻानुसाय
आस्था एवॊ सनष्ठा यखे औय मह फात सदै व ध्मान यखे
सफने ऩुिदा एकादशी का व्रत औय जागयण फकमा।
फक फकसी की बी आत्भा को गल्ती से बी कद्श ना हो।
नवयत्न जफित श्री मॊि शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न जफित श्री मॊि कहराता हं । सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉकेट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं । नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं । गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे
सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं । इस प्रकाय के नवयत्न जफित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं ।
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अगस्त 2014
14
अजा (जमा) एकादशी व्रत की ऩौयास्णक कथा
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी बाद्रऩद भास कृ ष्णऩऺ की एकादशी
सायी द:ु खबयी कहानी कह सुनाई। मह फात सुनकय
एक फाय मुसधत्रद्षय बगवान श्रीकृ ष्ण से ऩूछते हं , हे
गौतभ ऋत्रष कहने रगे फक याजन तुम्हाये बाग्म से आज
बगवान! बाद्रऩद कृ ष्ण एकादशी का क्मा नाभ है ? इसभं
से सात फदन फाद बाद्रऩद कृ ष्ण ऩऺ की अजा नाभ की
फकस दे वता की ऩूजा की जाती है औय इसका व्रत कयने
एकादशी आएगी, तुभ त्रवसधऩूवक ा व्रत कयो तथा यात्रि को
से क्मा पर सभरता है ? " व्रत कयने की त्रवसध तथा
जागयण कयो।
इसका भाहात्म्म कृ ऩा कयके कफहए। बगवान श्रीकृ ष्ण
गौतभ ऋत्रष ने कहा फक इस व्रत के ऩुण्म प्रबाव
कहने रगे फक इस एकादशी का नाभ अजा एकादशी है ।
से तुम्हाये सभस्त ऩाऩ नद्श हो जाएॉगे। इस प्रकाय याजा
अफ आऩ शाॊसतऩूवक ा इस व्रतकी कथा सुसनए। अजा
से कहकय गौतभ ऋत्रष उसी सभम अॊतध्माान हो गए।
एकादशी व्रत सभस्त प्रकाय के ऩाऩं का नाश कयने वारी
याजा ने उनके कथनानुसाय एकादशी आने ऩय त्रवसधऩूवक ा
हं । जो भनुष्म इस फदन बगवान ऋत्रषकेश की ऩूजा कयता
व्रत व जागयण फकमा। उस व्रत के प्रबाव से याजा के
है उसको वैकुॊठ की प्रासद्ऱ अवश्म होती है । अफ आऩ
सभस्त ऩाऩ नद्श हो गए। स्वगा से फाजे-नगािे फजने रगे
इसकी कथा सुसनए।
औय ऩुष्ऩं की वषाा होने रगी। उसने अऩने साभने ब्रह्मा,
प्रािीनकार
भं
आमोध्मा
नगयी
भं
हरयशिॊद्र
त्रवष्णु, भहादे वजी तथा इन्द्र आफद दे वताओॊ को खिा ऩामा
नाभक एक िक्रवतॉ याजा याज्म कयता था। हरयशिॊद्र
। उसने अऩने भृतक ऩुि को जीत्रवत औय अऩनी स्त्री को
अत्मन्त वीय, प्रताऩी तथा सत्मवादी था। एक फाय
वस्त्र तथा आबूषणं से मुि दे खा। वास्तव भं एक ऋत्रष
दै वमोग से उसने अऩना याज्म स्वप्न भं फकसी ऋत्रष को
ने याजा की ऩयीऺा रेने के सरए मह सफ कौतुक फकमा
दान कय फदमा औय ऩरयस्स्थसतवश के वशीबूत होकय
था । फकन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रबाव से साया
अऩना साया याज्म व धन त्माग फदमा, साथ ही अऩनी
षडमॊि सभाप्त हो गमा औय व्रत के प्रबाव से याजा को
स्त्री, ऩुि तथा स्वमॊ को बी फेि फदमा।
ऩुन: याज्म सभर गमा। अॊत भं वह अऩने ऩरयवाय सफहत
उसने उस िाण्डार के महाॊ भृतकं के वस्त्र रेने
स्वगा को गमा।
का काभ फकमा । भगय फकसी प्रकाय से सत्म से त्रविसरत
हे याजन! मह सफ अजा एकादशी के प्रबाव से ही
नहीॊ हुआ। जफ इसी प्रकाय उसे कई वषा फीत गमे तो उसे
हुआ। अत: जो भनुष्म मत्न के साथ त्रवसधऩूवक ा इस व्रत
होने का उऩाम खोजने रगा । कई फाय याजा सिॊता भं
नद्श होकय अॊत भं वे स्वगारोक को प्राद्ऱ होते हं । इस
अऩने इस कभा ऩय फिा द्ु ख हुआ औय वह इससे भुक्त
को कयते हुए यात्रि जागयण कयते हं , उनके सभस्त ऩाऩ
डू फकय अऩने भन भं त्रविाय कयने रगता फक भं कहाॉ
एकादशी की कथा के श्रवणभाि से अद्वभेध मऻ का पर
जाऊॉ, क्मा करूॉ, स्जससे भेया उद्धाय हो।
प्राद्ऱ होता है ।
इस प्रकाय याजा को कई वषा फीत गए। एक फदन
कथा का उद्दे श्म : हभं को ईश्वय के प्रसत ऩूणा आस्था एवॊ
याजा इसी सिॊता भं फैठा हुआ था फक फहाॉ गौतभ ऋत्रष
सनष्ठा यखनी िाफहए । त्रवऩरयत ऩरयस्स्थसतमं भं बी हभं
आ गए। याजा ने उन्हं दे खकय प्रणाभ फकमा औय अऩनी
सत्म का भागा नहीॊ छोिना िाफहए।
अगस्त 2014
15
फहन्द ू सॊस्कृ सत भं कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत का भहत्व
सिॊतन जोशी श्री कृ ष्णजन्भाद्शभी को बगवान श्री कृ ष्ण के जनभोत्स्व के रुऩ भं भनामा जाता है । बगवान श्रीकृ ष्ण के बगवद गीता भं वस्णात उऩदे श ऩुयातन कार से ही फहन्द ु सॊस्कृ सत भं आदशा यहे हं । जन्भाद्शभी का त्मौहाय ऩुये त्रवद्व भं हषोल्रास एवॊ आस्था से भनामा जाता हं ।
फतामा है । इस फदन उऩवास यखने तथा अन्न का सेवन नहीॊ कयने का त्रवधान धभाशास्त्रं भं वस्णात हं ।
गौतभीतॊिभं मह उल्रेख है -
उऩवास: प्रकताव्मोन बोिव्मॊकदािन।
श्रीकृ ष्ण का जन्भ बाद्रऩद भाह की कृ ष्ण ऩऺ
कृ ष्णजन्भफदनेमस्तुबुड्क्िेसतुनयाधभ:।
की अद्शभी को भध्मयात्रि को भथुया भं कायागृह
सनवसेन्नयकेघोये मावदाबूतसम्प्रवभ ्॥
भं हुवा। जैसे की इस स्जन सभग्र सॊसाय के
अथाात: अभीय-गयीफ सबी रोग मथाशत्रि-
ऩारन कताा स्वमॊ अवतरयत हुएॊ थे। अत:
मथासॊबव उऩिायं से मोगेद्वय कृ ष्ण का
इस फदन को कृ ष्ण जन्भाद्शभी के रूऩ भं
जन्भोत्सव भनाएॊ। जफ तक उत्सव सम्ऩन्न
भनाने की ऩयॊ ऩया सफदमं से िरी आयही
न हो जाए तफ तक बोजन त्रफल्कुर न
हं ।
कयं ।
श्रीकृ ष्ण जन्भोत्सव के सरए दे शतौय
ऩय
सजामा
जाता
है ।
फदन बगवान श्रीकृ ष्ण की प्रसतभा का
बगवान श्री कृ ष्ण की
धभाग्रॊथं
होता है । बगवान श्री कृ ष्ण की
साभग्रीमं
से
सुसस्ज्जत
कय
जन्भाद्शभी
को
प्रसतभा को ऩारने भं स्थात्रऩत कय कृ ष्ण भध्मयािी को झूरा झुरामा जाता हं । धभाशास्त्रं के जानकायं ने श्रीकृ ष्णजन्भाद्शभीका व्रत सनातन-धभाावरॊत्रफमं के सरए त्रवशेष भहत्व ऩूणा
से
ऩूजन
सनातन धभा भं यहा हं ।
है औय यासरीरा का आमोजन
शृॊगाय
त्रवसध-त्रवधान
इत्माफद कयने का त्रवशेष भहत्व
त्रवसबन्न झाॊकीमाॊ सजाई जाती
त्रवसबन्न
फदन
इसी सरए जन्भाद्शभी के
इस फदन भॊफदयं भं
प्रसतभा
के
यहना ऩडता है ।
फजे तक व्रत यखते हं ।
स्वरुऩ
कृ ष्णाद्शभी
है । उसे प्ररम होने तक घोय नयक भं
जन्भाद्शभी के फदन व्रती फायह
फार
वैष्णव
बोजन कयता है , वह सनद्ळम ही नयाधभ
दसु नमा के त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊफदयं को त्रवशेष
जो
भं त्रवधान
भं
की
यात्रि
जागयण
का
बी
फतामा
गमा है । त्रवद्रानं का भत हं की कृ ष्णाद्शभी की यात भं बगवान श्रीकृ ष्ण के नाभ का सॊकीतान इत्माफद कयने से बि को श्रीकृ ष्ण की त्रवशेष कृ ऩा प्रासद्ऱ होती हं । धभाग्रॊथं भं जन्भाद्शभी के व्रत भं ऩूये फदन उऩवास यखने का सनमभ है , ऩयॊ तु इसभं असभथा रोग पराहाय कय सकते हं ।
अगस्त 2014
16
बत्रवष्मऩुयाण भं उल्रेख हं
त्रवसबन्न धभाशास्त्रं भं उल्रेख हं , फक जो उत्तभ
स्जस याद्स मा प्रदे श भं मह व्रत-उत्सव त्रवसधत्रवधान से भनामा जाता है , वहाॊ ऩय प्राकृ सतक प्रकोऩ मा भहाभायी इत्माफद नहीॊ होती। भेघ ऩमााद्ऱ वषाा कयते हं तथा पसर खूफ होती है । जनता सुख-सभृत्रद्ध प्राद्ऱ कयती है । इस व्रत के अनुद्षान से सबी व्रतीमं को ऩयभ श्रेम की प्रासद्ऱ होती है । व्रत कताा बगवत्कृ ऩा का बागी फनकय इस रोक भं सफ सुख बोगता है औय अन्त भं वैकुॊठ जाता है । कृ ष्णाद्शभी का व्रत कयने वारे के सबी प्रकाय क्रेश दयू हो जाते हं । उसका दख ु -दरयद्रता से उद्धाय होता है ।
स्कन्द ऩुयाण भं उल्रेख हं फक जो बी व्मत्रि इस
व्रत के भहत्व को जानकय बी कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत को नहीॊ कयता, वह भनुष्म जॊगर भं सऩा औय व्माघ्र होता है । बत्रवष्म ऩुयाण उल्रेख हं , फक कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत को जो भनुष्म नहीॊ कयता, वह क्रूय याऺस होता है । केवर अद्शभी सतसथ भं ही उऩवास कयना कहा गमा है । मफद वही सतसथ योफहणी नऺि से मुि हो तो उसे 'जमॊती' नाभ से सॊफोसधत की जाएगी।
भनुष्म है । वे सनस्द्ळत रूऩ से जन्भाद्शभी व्रत को इस रोक भं कयते हं । उनके ऩास सदै व स्स्थय रक्ष्भी होती है । इस व्रत के कयने के प्रबाव से उनके सभस्त कामा ससद्ध होते हं । मफद
आधी
यात
के
सभम
योफहणी
भं
जफ
कृ ष्णाद्शभी हो तो उसभं कृ ष्ण का अिान औय ऩूजन कयने से तीन जन्भं के ऩाऩं का नाश होता है । भहत्रषा बृगु ने कहा है - जन्भाद्शभी, योफहणी औय सशवयात्रि मे ऩूवात्रवद्धा ही कयनी िाफहए तथा सतसथ एवॊ नऺि के अन्त भं ऩायणा कयं । इसभं केवर योफहणी उऩवास ही ससद्ध है ।
शास्त्रकायं नं श्रीकृ ष्ण-जन्भाद्शभी की यात्रि को
भोहयात्रि कहा है । इस यात भं बगवान श्रीकृ ष्ण का ध्मान, नाभ अथवा भॊि जऩते हुए जागयण कयने से सॊसाय की
भोह-भामा से आसत्रि दयू होती है । जन्भाद्शभी के व्रत को
व्रतयाज कहाॊ गमा है । क्मोफक, इस व्रत को ऩूणा त्रवसधत्रवधान से कयने से भनुष्म को अनेक व्रतं से प्राद्ऱ होने वारे भहान ऩुण्म का पर केवर इस व्रत के कयने से प्राद्ऱ हो जाता हं ।
भॊि ससद्ध स्पफटक श्री मॊि "श्री मॊि" सफसे भहत्वऩूणा एवॊ शत्रिशारी मॊि है । "श्री मॊि" को मॊि याज कहा जाता है क्मोफक मह अत्मन्त शुब फ़रदमी मॊि है । जो न केवर
दस ॊ सात्रफत होता है । ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा ू ये मन्िो से असधक से असधक राब दे ने भे सभथा है एवॊ सॊसाय के हय व्मत्रि के सरए पामदे भद िैतन्म मुि "श्री मॊि" स्जस व्मत्रि के घय भे होता है उसके सरमे "श्री मॊि" अत्मन्त फ़रदामी ससद्ध होता है उसके दशान भाि से अन-सगनत राब
एवॊ सुख की प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भे सभाई अफद्रतीम एवॊ अद्रश्म शत्रि भनुष्म की सभस्त शुब इच्छाओॊ को ऩूया कयने भे सभथा होसत है ।
स्जस्से उसका जीवन से हताशा औय सनयाशा दयू होकय वह भनुष्म असफ़रता से सफ़रता फक औय सनयन्तय गसत कयने रगता है एवॊ उसे जीवन
भे सभस्त बौसतक सुखो फक प्रासद्ऱ होसत है । "श्री मॊि" भनुष्म जीवन भं उत्ऩन्न होने वारी सभस्मा-फाधा एवॊ नकायात्भक उजाा को दयू कय सकायत्भक उजाा का सनभााण कयने भे सभथा है । "श्री मॊि" की स्थाऩन से घय मा व्माऩाय के स्थान ऩय स्थात्रऩत कयने से वास्तु दोष म वास्तु से सम्फस्न्धत ऩये शासन भे न्मुनता आसत है व सुख-सभृत्रद्ध, शाॊसत एवॊ ऐद्वमा फक प्रसद्ऱ होती है ।
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अगस्त 2014
17
कृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत की ऩौयास्णक कथा
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, सॊदीऩ शभाा एक फाय इॊ द्र ने नायद जी से कहा "हे भुसनमं भं
अफ आऩ मह फताएॊ फक दे वकी का आठवाॊ ऩुि फकस भास
सवाश्रद्ष े , सबी शास्त्रं के ऻाता, हे दे व, व्रतं भं उत्तभ उस
भं फकस फदन भेया वध कये गा।" ज्मोसतषी फोरे
व्रत को फताएॉ, स्जस व्रत के कयने से भनुष्मं को भुत्रि,
भहायाज! भाघ भास की शुक्र ऩऺ की सतसथ को सोरह
राब प्राद्ऱ हो तथा उस व्रत से प्रास्णमं को बोग व भोऺ
कराओॊ से ऩूणा श्रीकृ ष्ण से आऩका मुद्ध होगा। उसी मुद्ध
दोनो की प्रासद्ऱ हो जाए।"
भं वे आऩका वध कयं गे। इससरए हे भहायाज! आऩ अऩनी
दे वयाज इॊ द्र के विनं को सुनकय नायद जी ने कहा "िेता मुग के अॊत भं औय द्राऩय मुग के प्रायॊ ब सभम भं धृस्णत कभा को कयने वारा कॊस नाभ का
"हे
यऺा मत्नऩूवक ा कयं ।" ने
एक अत्मॊत ऩाऩी दै त्म हुआ। उस दद्श ु व
इतना फताने के ऩद्ळात नायद जी इॊ द्र
से
कहा
"ज्मोसतषी
द्राया
फताए गए सभम ऩय ही कॊस की
दयु ािायी कॊस की दे वकी नाभ की एक
भृत्मु कृ ष्ण के हाथ सन्सॊदेह
सुॊदय व सुशीर फहन थी। उस दे वकी
होगी।" तफ इॊ द्र ने कहा "हे
के गबा से उत्ऩन्न आठवाॉ ऩुि कॊस
भुसन! उस दयु ािायी कॊस की
का वध कये गा।" नायद
फातं
फताइए फक कृ ष्ण का जन्भ
सुनकय इॊ द्र ने कहा हे प्रबो
कैसे होगा तथा कॊस की भृत्मु
"उस दयु ािायी कॊस की कथा
कृ ष्ण द्राया फकस प्रकाय होगी।"
का
जी
कथा का वणान कीस्जए, औय
त्रवस्तायऩूवक ा
की
वणान
कीस्जए। क्मा दे वकी के गबा से उत्ऩन्न आठवाॉ ऩुि अऩने भाभा कॊस की हत्मा कये गा! मह सॊबव है ।" इॊ द्र की सन्दे ह बयी फातं
इॊ द्र की फातं को सुनकय नायदजी ने ऩुन् कहना प्रायॊ ब फकमा "उस
दयु ािायी
कॊस
ने
अऩने
एक
द्रायऩार से कहा भेयी इस प्राणं से त्रप्रम फहन दे वकी की ऩूणा सुयऺा कयना।" द्रायऩार ने
को सुनकय नायदजी ने कहा हे अफदसत ऩुि इॊ द्र! एक
कहा "ऐसा ही होगा भहायाज।" कॊस के जाने के ऩद्ळात
सभम की फात है । उस दद्श ु कॊस ने एक ज्मोसतषी से ऩूछा
उसकी छोटी फहन दे वकी द्ु स्खत होते हुए जर रेने के
ज्मोसतषी फोरे "हे दानवं भं श्रेद्ष कॊस! "वसुदेव की ऩत्नी
एक वृऺ के नीिे फैठकय दे वकी योने रगी। उसी सभम
दे वकी है औय आऩकी फहन बी है । उसी के गबा से
एक सुॊदय स्त्री, स्जसका नाभ मशोदा था, उसने आकय
उत्ऩन्न उसका आठवाॊ ऩुि जो फक शिुओॊ को ऩयास्जत
दे वकी से त्रप्रम वाणी भं कहा "हे दे वी! इस प्रकाय तुभ
कय इस सॊसाय भं "कृ ष्ण" के नाभ से त्रवख्मात होगा,
क्मं त्रवराऩ कय यही हो। अऩने योने का कायण भुझसे
वही एक सभम सूमोदम कार भं आऩका वध कये गा।"
फताओ।" तफ दख ु ी दे वकी ने मशोदा से कहा "हे फहन!
"भेयी भृत्मु फकस प्रकाय औय फकसके द्राया होगी।"
ज्मोसतषी की फातं को सुनकय कॊस ने कहा "हे दै वज,
फहाने घिा रेकय ताराफ ऩय गई। उस ताराफ के फकनाये
नीि कभं भं आसि दयु ािायी भेया ज्मेद्ष भ्राता कॊस है ।
अगस्त 2014
18 उस दद्श ु भ्राता ने भेये कई ऩुिं का वध कय फदमा। इस
का त्माग कयं औय भेये इस ऩुि को गोकुर भं रे जाएॉ,
सभम भेये गबा भं आठवाॉ ऩुि है । वह इसका बी वध कय
वहाॉ इस ऩुि को नॊद गोऩ की धभाऩत्नी मशोदा को दे दं ।
डारेगा, क्मंफक भेये ज्मेद्ष भ्राता को मह बम है फक भेये
उस सभम मभुनाजी ऩूणरू ा ऩ से फाढ़ग्रस्त थीॊ, फकन्तु जफ
अद्शभ ऩुि से उसकी भृत्मु अवश्म होगी।"
वसुदेवजी फारक कृ ष्ण को सूऩ भं रेकय मभुनाजी को
दे वकी की फातं सुनकय मशोदा ने कहा "हे फहन! त्रवराऩ भत कयो। भं बी गबावती हूॉ। मफद
भुझे कन्मा हुई तो तुभ अऩने ऩुि के
फदरे उस कन्मा को रे रेना। इस प्रकाय तुम्हाया ऩुि कॊस के हाथं भाया नहीॊ जाएगा।" कॊस
ने
वाऩस
आकय
अऩने
द्रायऩार से ऩूछा "दे वकी कहाॉ है ? इस सभम वह फदखाई नहीॊ दे यही है ।"
तफ
नम्रवाणी
द्रायऩार भं
कहा
ने
कॊस
"हे
भहायाज!
ऩाय कयने के सरए उतये उसी ऺण फारक के ियणं का स्ऩशा होते ही मभुनाजी अऩने ऩूवा स्स्थय रूऩ भं आ गईं। फकसी प्रकाय वसुदेवजी गोकुर ऩहुॉिे औय नॊद के घय भं प्रवेश कय उन्हंने अऩना ऩुि तत्कार उन्हं दे फदमा औय उसके फदरे भं उनकी कन्मा रे री। वे तत्कार वहाॊ से वाऩस आकय कॊस के फॊदी गृह भं ऩहुॉि गए।
से
प्रात्कार
जफ
सबी
याऺस
ऩहये दाय सनद्रा से जागे तो कॊस ने
आऩकी फहन जर रेने ताराफ ऩय गई
द्रायऩार से ऩूछा फक अफ दे वकी के
हुई हं ।" मह सुनते ही कॊस क्रोसधत हो
गबा से क्मा हुआ? इस फात का
ऩय जाने को कहा जहाॊ वह गई हुई है ।
ने भहायाज की आऻा को भानते हुए
उठा औय उसने द्रायऩार को उसी स्थान
ऩता रगाकय भुझे फताओ। द्रायऩारं
द्रायऩार की दृत्रद्श ताराफ के ऩास दे वकी ऩय
कायागाय भं जाकय दे खा तो वहाॉ दे वकी
ऩिी। तफ उसने कहा फक "आऩ फकस कायण से
की गोद भं एक कन्मा थी। स्जसे दे खकय
महाॉ आई हं ।" उसकी फातं सुनकय दे वकी ने कहा फक
द्रायऩारं ने कॊस को सूसित फकमा, फकन्तु कॊस
"भेये घय भं जर नहीॊ था, भं जर रेने जराशम ऩय आई
को तो उस कन्मा से बम होने रगा। अत् वह स्वमॊ
हूॉ।" इसके ऩद्ळात दे वकी अऩने घय की ओय िरी गई।
कायागाय भं गमा औय उसने दे वकी की गोद से कन्मा को
कॊस ने ऩुन् द्रायऩार से कहा फक इस घय भं भेयी
झऩट सरमा औय उसे एक ऩत्थय की िट्टान ऩय ऩटक
फहन की तुभ ऩूणत ा ् यऺा कयो। अफ कॊस को इतना बम
फदमा फकन्तु वह कन्मा त्रवष्णु की भामा से आकाश की
रगने रगा फक घय के बीतय दयवाजं भं त्रवशार तारे फॊद
ओय िरी गई औय अॊतरयऺ भं जाकय त्रवद्युत के रूऩ भं
कयवा फदए जैसे कोई कायागाय हो औय दयवाज़े के फाहय
ऩरयस्णत हो गई।
दै त्मं औय याऺसं को ऩहये दायी के सरए सनमुि कय
बगवान त्रवष्णु ने आकाशवाणी कय कॊस से कहा
फदमा। कॊस हय प्रकाय से अऩने प्राणं को फिाने के प्रमास
फक "हे दद्श ु ! तुझे भायने वारा गोकुर भं नॊद के घय भं
कय यहा था। तफ सबी प्रकाय के शुब भुहूता भं श्री कृ ष्ण
उत्ऩन्न हो िुका है औय उसी से तेयी भृत्मु सुसनस्द्ळत है ।
का जन्भ हुआ औय श्रीकृ ष्ण के प्रबाव से ही उसी ऺण
भेया नाभ तो वैष्णवी है , भं सॊसाय के कताा बगवान
वारे ऩहये दाय याऺस सबी भूस्च्छा त हो गए। दे वकी ने उसी
स्वगा की ओय िरी गई। उस आकाशवाणी को सुनकय
फन्दीगृह के दयवाज़े स्वमॊ खुर गए। द्राय ऩय ऩहया दे ने
ऺण अऩने ऩसत वसुदेव से कहा "हे स्वाभी! आऩ सनद्रा
त्रवष्णु की भामा से उत्ऩन्न हुई हूॉ।" इतना कहकय वह कॊस क्रोसधत हो उठा। उसने नॊद के घय भं ऩूतना, केशी
अगस्त 2014
19 नाभक दै त्म, काल्माख्म इत्माफद फरवान याऺसं की
'हे भुसनमं भं श्रेद्ष नायद! मभुना नदी भं कूदने के फाद
भृत्मु के आघात से कॊस अत्मसधक बमबीत हो गमा।
उस फाररूऩी कृ ष्ण ने ऩातार भं जाकय क्मा फकमा? मह
उसने द्रायऩारं को आऻा दी फक नॊद को तत्कार भेये
सॊऩूणा वृत्ताॊत बी फताएॉ।' नायद ने कहा- 'हे इॊ द्र! ऩातार
सभऺ उऩस्स्थत कयो। द्रायऩार नॊद को रेकय जफ
भं उस फारक से नागयाज की ऩत्नी ने कहा फक तुभ महाॉ
उऩस्स्थत हुए तफ कॊस ने नॊद से कहा फक मफद तुम्हं
क्मा कय यहे हो, कहाॉ से आए हो औय महाॉ आने का क्मा
अऩने प्राणं को फिाना है तो ऩारयजात के ऩुष्ऩ रे राओ। मफद तुभ नहीॊ रा ऩाए तो तुम्हाया वध सनस्द्ळत है ।
प्रमोजन है ?' नागऩत्नी फोरीॊ- 'हे कृ ष्ण! क्मा तूने द्यूतक्रीिा की
कॊस की फातं को सुनकय नॊद ने 'ऐसा ही होगा'
है , स्जसभं अऩना सभस्त धन हाय गमा है । मफद मह फात
कहा औय अऩने घय की ओय िरे गए। घय आकय उन्हंने
ठीक है तो कॊकि, भुकुट औय भस्णमं का हाय रेकय
सॊऩूणा वृत्ताॊत अऩनी ऩत्नी मशोदा को सुनामा, स्जसे
अऩने घय भं िरे जाओ क्मंफक इस सभम भेये स्वाभी
श्रीकृ ष्ण बी सुन यहे थे। एक फदन श्रीकृ ष्ण अऩने सभिं
शमन कय यहे हं । मफद वे उठ गए तो वे तुम्हाया बऺण
अिानक स्वमॊ ने ही गंद को मभुना भं पंक फदमा। मभुना
कान्ते! भं फकस प्रमोजन से महाॉ आमा हूॉ, वह वृत्ताॊत भं
के साथ मभुना नदी के फकनाये गंद खेर यहे थे औय भं गंद पंकने का भुख्म उद्दे श्म मही था फक वे फकसी प्रकाय ऩारयजात ऩुष्ऩं को रे आएॉ। अत् वे कदम्फ के वृऺ ऩय िढ़कय मभुना भं कूद ऩिे । कृ ष्ण के मभुना भं कूदने का सभािाय 'श्रीधय' नाभक गोऩार ने मशोदा को सुनामा। मह सुनकय मशोदा बागती हुई मभुना नदी के फकनाये आ ऩहुॉिीॊ औय उसने
मभुना नदी की प्राथाना कयते हुए कहा- 'हे मभुना! मफद
कय जाएॉगे। नागऩत्नी की फातं सुनकय कृ ष्ण ने कहा हे
तुम्हं फताता हूॉ। सभझ रो भं कासरम नाग के भस्तक को कॊस के साथ द्यूत भं हाय िुका हूॊ औय वही रेने भं
महाॉ आमा हूॉ। फारक कृ ष्ण की इस फात को सुनकय नागऩत्नी अत्मॊत क्रोसधत हो उठीॊ औय अऩने सोए हुए ऩसत को उठाते हुए उसने कहा हे स्वाभी! आऩके घय मह शिु आमा है । अत् आऩ इसका हनन कीस्जए।
अऩनी स्वासभनी की फातं को सुनकय कासरमा
भं फारक को दे खग ूॉ ी तो बाद्रऩद भास की योफहणी मुि
नाग सनन्द्रावस्था से जाग ऩिा औय फारक कृ ष्ण से मुद्ध
अद्शभी का व्रत अवश्म करूॊगी, क्मोफक हज़ायं अद्वभेध
कयने रगा। इस मुद्ध भं कृ ष्ण को भूच्छाा आ गई, उसी
मऻ, सहस्रों याजसूम मऻ, दान तीथा औय व्रत कयने से
भूछाा को दयू कयने के सरए उन्हंने गरुि का स्भयण
जो पर प्राद्ऱ होता है , वह सफ कृ ष्णाद्शभी के व्रत को कयने से प्राद्ऱ हो जाता है ।
फकमा। स्भयण होते ही गरुि वहाॉ आ गए। श्रीकृ ष्ण अफ
गरुि ऩय िढ़कय कासरमा नाग से मुद्ध कयने रगे औय
मह फात नायद ऋत्रष ने इॊ द्र से कही। इॊ द्र ने कहा-
उन्हंने कासरम नाग को मुद्ध भं ऩयास्जत कय फदमा।
धन वृत्रद्ध फडब्फी धन वृत्रद्ध फडब्फी को अऩनी अरभायी, कैश फोक्स, ऩूजा स्थान भं यखने से धन वृत्रद्ध होती हं स्जसभं कारी हल्दी, रार- ऩीरा-सपेद रक्ष्भी कायक हकीक (अकीक), रक्ष्भी कायक स्पफटक यत्न, 3 ऩीरी कौडी, 3 सपेद कौडी, गोभती िक्र, सपेद गुॊजा, यि गुॊजा, कारी गुॊजा, इॊ द्र जार, भामा जार, इत्मादी दर ा वस्तुओॊ को शुब भहुता भं तेजस्वी ु ब भॊि द्राया असबभॊत्रित फकम जाता हं ।
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अगस्त 2014
20 अफ कसरमा नाग ने बरीबाॊसत जान सरमा था फक
भं श्रीकृ ष्ण औय फरदे व ने असॊख्म दै त्मं का वध फकमा।
भं स्जनसे मुद्ध कय यहा हूॉ, वे बगवान त्रवष्णु के अवताय
फरयाभजी ने अऩने आमुध शस्त्र हर से औय कृ ष्ण ने
श्रीकृ ष्ण ही हं । अत् उन्हंने कृ ष्ण के ियणं भं साद्शाॊग
सुदशान िक्र से भाघ भास की शुक्र ऩऺ की सद्ऱभी को
प्रणाभ फकमा औय ऩारयजात से उत्ऩन्न फहुत से ऩुष्ऩं को
त्रवशार दै त्मं के सभूह का सवानाश फकमा। जफ अन्त भं
को हुए तफ कासरमा नाग की ऩत्नी ने कहा हे स्वाभी! भं
दद्श ु , अधभॉ, दयु ािायी अफ भं इस भहामुद्ध स्थर ऩय
भुकुट भं यखकय कृ ष्ण को बंट फकमा। जफ कृ ष्ण िरने
कृ ष्ण को नहीॊ जान ऩाई। हे जनादा न भॊि यफहत, फक्रमा यफहत, बत्रिबाव यफहत भेयी यऺा कीस्जए। हे प्रबु! भेये स्वाभी भुझे वाऩस दे दं ।' तफ श्रीकृ ष्ण ने कहा- 'हे सत्रऩाणी! दै त्मं भं जो सफसे फरवान है , उस कॊस के साभने भं तेये ऩसत को रे जाकय छोि दॉ ग ू ा इससरए तुभ अऩने घय को िरी जाओ। अफ श्रीकृ ष्ण कासरमा नाग के पन ऩय नृत्म कयते हुए मभुना के ऊऩय आ गए। फपय
कासरमा
की
पुॊकाय
से
केवर दयु ािायी कॊस ही फि गमा तो कृ ष्ण ने कहा- हे
तुझसे मुद्ध कय तथा तेया वध कय इस सॊसाय को तुझसे
भुि कयाऊॉगा। मह कहते हुए श्रीकृ ष्ण ने उसके केशं को
ऩकि सरमा औय कॊस को घुभाकय ऩृथ्वी ऩय ऩटक फदमा, स्जससे वह भृत्मु को प्राद्ऱ हुआ। कॊस के भयने ऩय दे वताओॊ ने शॊखघोष व ऩुष्ऩवृत्रद्श की। वहाॊ उऩस्स्थत
सभुदाम श्रीकृ ष्ण की जम-जमकाय कय यहा था। कॊस की भृत्मु ऩय नॊद, दे वकी, वसुदेव, मशोदा औय इस सॊसाय के
तीनं
रोक
सबी प्रास्णमं ने हषा ऩवा भनामा।
कम्ऩामभान हो गए। अफ कृ ष्ण कॊस की भथुया नगयी को
इस कथा को सुनने के ऩद्ळात इॊ द्र ने नायदजी से
िर फदए। वहाॊ कभरऩुष्ऩं को दे खकय मभुना के भध्म
कहा हे ऋत्रष इस कृ ष्ण जन्भाद्शभी का ऩूणा त्रवधान फताएॊ
जराशम भं वह कासरमा सऩा बी िरा गमा।
एवॊ इसके कयने से क्मा ऩुण्म प्राद्ऱ होता है , इसके कयने
इधय कॊस बी त्रवस्स्भत हो गमा तथा कृ ष्ण
की क्मा त्रवसध है ?
प्रसन्नसित्त होकय गोकुर रौट आए। उनके गोकुर आने
नायदजी
ने
कहा
हे
इॊ द्र!
बाद्रऩद
भास
की
ऩय उनकी भाता मशोदा ने त्रवसबन्न प्रकाय के उत्सव
कृ ष्णजन्भाद्शभी को इस व्रत को कयना िाफहए। उस फदन
फकए। अफ इॊ द्र ने नायदजी से ऩूछा हे भहाभुने! सॊसाय के
ब्रह्मिमा आफद सनमभं का ऩारन कयते हुए श्रीकृ ष्ण का
प्राणी फारक श्रीकृ ष्ण के आने ऩय अत्मसधक आनॊफदत हुए।
स्थाऩन कयना िाफहए। सवाप्रथभ श्रीकृ ष्ण की भूसता स्वणा करश के ऊऩय स्थात्रऩत कय िॊदन, धूऩ, ऩुष्ऩ, कभरऩुष्ऩ
फपय बगवान श्रीकृ ष्ण ने कॊस के भहाफरशारी
बाई िाणूय िाणूय से भल्रमुद्ध की घोषणा की। िाणूय से
आफद से श्रीकृ ष्ण प्रसतभा को वस्त्र इत्माफद से सुसस्ज्जत कय त्रवसधऩूवक ा ऩूजन-अिान कयना िाफहए।
भल्रमुद्ध के दौयान श्रीकृ ष्ण ने अऩने ऩैयं को िाणूय के गरे भं पॉसाकय उसका वध कय फदमा। िाणूय की भृत्मु
उऩवास की ऩूवा यात्रि को हल्का बोजन कयं औय ब्रह्मिमा का ऩारन कयना िाफहए।
के ऩद्ळात उनका भल्रमुद्ध केशी के साथ हुआ। इस मुद्ध
अद्श रक्ष्भी कवि अद्श रक्ष्भी कवि को धायण कयने से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना यहता हं । स्जस्से भाॊ Asht Vinayak Kawac h, As htavi nayak Kavach, Ashta Vi nayak
रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)-गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का स्वत् अशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।
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अगस्त 2014
21
बायतीम सॊस्कृ सत भं याखी ऩूस्णाभा का भहत्व
सिॊतन जोशी यऺाफॊधन-
फॊधन।
हजायो वषा ऩूवा हभाये ऩूवज ा ो नं बायतीम सॊस्कृ सत
यऺाफॊधन के फदन फहन बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधती हं ।
भं यऺाफॊधन का उत्सव शामद इस सरमे शासभर फकमा
यऺाफॊधन के साथ फह बाई को अऩने सन्स्वाथा प्रेभ से
क्मोफक यऺाफॊधन के तौहाय को दृत्रद्श ऩरयवतान के उद्दे श्म
फाॉधती है ।
से फनामा गमा हो?
बायतीम
यऺाफॊधन
सॊस्कृ सत
भं
अथाात ् प्रेभ
आज
के
का
बौसतकतावादी
फहन द्राया याखी हाथ ऩय फॊधते ही बाई की दृत्रद्श
सभाज भं बोग औय स्वाथा भं सरद्ऱ त्रवद्व भं बी प्राम्
फदर जाए। याखी फाॉधने वारी फहन की ओय वह त्रवकृ त
सबी सॊफॊधं भं सन्स्वाथा औय ऩत्रवि होता हं ।
दृत्रद्श न दे खे, एवॊ अऩनी फहन का यऺण बी वह स्वमॊ
बायतीम सॊस्कृ सत सभग्र भानव जीवन को भहानता
कये । स्जस्से फहन सभाज भं सनबाम होकय घूभ सके।
स्त्री को केवर भाि बोगदासी न सभझकय उसका ऩूजन
उिाकय नीि वृत्रत्त वारे रोगो को दॊ ड दे कय सफक ससखा
के दशान कयाने वारी सॊस्कृ सत हं । बायतीम सॊस्कृ सत भं
त्रवकृ त दृत्रद्श एवॊ भानससकता वारे रोग उसका भजाक
कयने वारी भहान सॊस्कृ सत हं ।
सके हं ।
फकन्तु आजका ऩढा सरखा आधुसनक
व्मत्रि
बाई को याखी फाॉधने से ऩहरे फहन
अऩने
उसके
भस्स्तष्क
ऩय
सतरक
आऩको सुधया हुवा भानने
कयती हं । उस सभम फहन बाई
ऩाद्ळात्म
के भस्स्तष्क की ऩूजा नहीॊ
सॊस्कृ सत का अॊधा अनुकयण
अत्रऩतु बाई के शुद्ध त्रविाय
कयके, स्त्री
औय फुत्रद्ध को सनभार कयने हे तु
वारे
तथा
को
सभानता
फदराने वारी खोखरी बाषा
फकमा जाता हं , सतरक रगाने से
फोरने वारं को ऩेहर बायत की
ऩायॊ ऩरयक
सॊस्कृ सत
को
दृत्रद्श ऩरयवतान की अद्भत प्रफक्रमा ु
ऩूणा
सभाई हुई होती हं ।
सभझ रेना िाफह की ऩाद्ळात्म सॊस्कृ सत से तो केवर सभानता फदराई हो ऩयॊ तु बायतीम सॊस्कृ सत ने तो स्त्री का ऩूजन फकमा हं ।
एसे फह नहीॊ कहाजाता हं ।
'मि नामास्तु ऩूज्मन्ते यभन्ते ति दे वता्।
बावाथा: जहाॉ स्त्री ऩूजी जाती है , उसका सम्भान होता है , वहाॉ दे व यभते हं - वहाॉ दे वं का सनवास होता है ।' ऐसा बगवान भनु का विन है । बायतीम सॊस्कृ सत स्त्री की ओय बोग की दृत्रद्श से न दे खकय ऩत्रवि दृत्रद्श से, भाॉ की बावना से दे खने का आदे श दे ने वारी सवा श्रेद्ष बायतीम सॊस्कृ सत ही हं ।
बाई के हाथ ऩय याखी फाॉधकय फहन उससे केवर अऩना यऺण ही नहीॊ िाहती, अऩने साथ-साथ सभस्त स्त्री जासत के यऺण की काभना यखती हं , इस के साथ फहॊ अऩना बाई फाह्य शिुओॊ औय अॊतत्रवाकायं ऩय त्रवजम प्राद्ऱ कये औय सबी सॊकटो से उससे सुयस्ऺत यहे , मह बावना बी उसभं सछऩी होती हं । वेदं भं उल्रेख है फक दे व औय असुय सॊग्राभ भं दे वं की त्रवजम प्रासद्ऱ फक काभना के सनसभत्त दे त्रव इॊ द्राणी ने फहम्भत हाये हुए इॊ द्र के हाथ भं फहम्भत फॊधाने हे तु याखी फाॉधी
थी। एवॊ दे वताओॊ की त्रवजम से यऺाफॊधन का त्मोहाय शुरू हुआ। असबभन्मु की यऺा के सनसभत्त कुॊताभाता ने उसे याखी फाॉधी थी।
अगस्त 2014
22 इसी सॊफॊध भं एक औय फकॊवदॊ ती प्रससद्ध है फक
यऺाफॊधन ऩवा ऩुयोफहतं द्राया फकमा जाने वारा
दे वताओॊ औय असुयं के मुद्ध भं दे वताओॊ की त्रवजम को रेकय
आशीवााद कभा बी भाना जाता है । मे ब्राह्मणं द्राया
कुछ सॊदेह होने रगा। तफ दे वयाज इॊ द्र ने इस मुद्ध भं प्रभुखता से बाग सरमा था। दे वयाज इॊ द्र की ऩत्नी इॊ द्राणी श्रावण ऩूस्णाभा के फदन गुरु फृहस्ऩसत के ऩास गई थी तफ उन्हंने त्रवजम के
मजभान के दाफहने हाथ भं फाॉधा जाता है । यऺाफॊधन का एक भॊि बी है , जो ऩॊफडत यऺा-सूि
सरए यऺाफॊधन फाॉधने का सुझाव फदमा था। जफ दे वयाज इॊ द्र
फाॉधते सभम ऩढ़ते हं :
याऺसं से मुद्ध कयने िरे तफ उनकी ऩत्नी इॊ द्राणी ने इॊ द्र के
मेन फद्धो फरी याजा दानवेन्द्रो भहाफर्।
हाथ भं यऺाफॊधन फाॉधा था, स्जससे इॊ द्र त्रवजमी हुए थे।
अनेक ऩुयाणं भं श्रावणी ऩूस्णाभा को ऩुयोफहतं द्राया
फकमा जाने वारा आशीवााद कभा बी भाना जाता है । मे ब्राह्मणं द्राया मजभान के दाफहने हाथ भं फाॉधा जाता है । ऩुयाणं भं ऐसी बी भान्मता है फक भहत्रषा दव ु ाासा ने
ग्रहं के प्रकोऩ से फिने हे तु यऺाफॊधन की व्मवस्था दी थी।
भहाबायत मुग भं बगवान श्रीकृ ष्ण ने बी ऋत्रषमं को ऩूज्म भानकय उनसे यऺा-सूि फॉधवाने को आवश्मक भाना था ताफक ऋत्रषमं के तऩ फर से बिं की यऺा की जा सके। ऐसतहाससक कायणं से भध्ममुगीन बायत भं यऺाफॊधन का ऩवा भनामा जाता था। शामद हभरावयं की वजह से भफहराओॊ के शीर की यऺा हे तु इस ऩवा की भहत्ता भं इजापा हुआ हो। तबी भफहराएॉ सगे बाइमं मा भुॉहफोरे बाइमं को
तेन त्वाॊ प्रसतफध्नासभ यऺे भािर भािर्॥ बत्रवष्मोत्तय ऩुयाण भं याजा फसर (श्रीयाभिरयत भानस के फासर
नहीॊ) स्जस यऺाफॊधन भं फाॉधे गए थे, उसकी कथा अक्सय
उद्धत ृ की जाती है । फसर के सॊफॊध भं त्रवष्णु के ऩाॉिवं अवताय (ऩहरा अवताय भानवं भं याभ थे) वाभन की कथा है फक फसर से सॊकल्ऩ रेकय उन्हंने तीन कदभं भं तीनं रोकं भं
सफकुछ नाऩ सरमा था। वस्तुत् दो ही कदभं भं वाभन रूऩी त्रवष्णु ने सफकुछ नाऩ सरमा था औय फपय तीसये कदभ,जो फसर के ससय ऩय यखा था, उससे उसे ऩातार रोक ऩहुॉिा फदमा
था। रगता है यऺाफॊधन की ऩयॊ ऩया तफ से फकसी न फकसी रूऩ भं त्रवद्यभान थी।
यऺासूि फाॉधने रगीॊ। मह एक धभा-फॊधन था।
***
असरी 1 भुखी से 14 भुखी रुद्राऺ गुरुत्व कामाारम भं सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ असरी 1 भुखी से 14 भुखी तक के रुद्राऺ उऩरब्ध हं । ज्मोसतष कामा से जुडे़ फॊधु/फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न, उऩयत्न मॊि, रुद्राऺ व अन्म दर ा साभग्रीमाॊ एवॊ अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं । रुद्राऺ के त्रवषम भं ु ब असधक जानकायी के सरए कामाारम भं सॊऩका कयं ।
GURUTVA KARYALAY 91+ 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Website: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com |
अगस्त 2014
23
याखी ऩूस्णाभा से जुफड ऩौयास्णक कथाएॊ
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी बगवान ने वाभन अवताय रेकय ब्राह्मण का वेष धायण कय सरमा औय याजा फसर से सबऺा भाॊगने ऩहुॉि गए। बगवान त्रवष्णुने फसर से तीन ऩग बूसभ सबऺा भं भाॊग री।
फसर के गुरु शुक्रदे वजी ने ब्राह्मण रुऩ धायण फकए हुए
श्री त्रवष्णु को ऩहिान सरमा औय फसर को इस फाये भं सावधान कय फदमा फकॊतु फसर अऩने विन से न फपये औय तीन ऩग बूसभ दान कय दी।
अफ वाभन रूऩ भं बगवान त्रवष्णु ने एक ऩग भं स्वगा औय दस ू ये ऩग भं ऩृथ्वी को नाऩ सरमा। तीसया ऩैय कहाॉ यखं?
फसर के साभने सॊकट उत्ऩन्न हो गमा। मफद वह अऩना विन नहीॊ सनबाता तो अधभा होता। आस्खयकाय उसने अऩना ससय बगवान के आगे कय फदमा औय कहा तीसया ऩग आऩ भेये ससय ऩय यख दीस्जए। वाभन बगवान ने वैसा ही फकमा। ऩैय यखते ही वह यसातर रोक भं ऩहुॉि गमा।
जफ फारी यसातर भं िरा गमा तफ फसर ने अऩनी
बत्रि के फर से बगवान को यात-फदन अऩने साभने यहने का विन रे सरमा औय बगवान त्रवष्णु को उनका द्रायऩार फनना ऩिा। बगवान के यसातर सनवास से ऩये शान फक मफद स्वाभी यसातर भं द्रायऩार फन कय सनवास कयं गे तो फैकुॊठ रोक का क्मा होगा? इस सभस्मा के सभाधान के सरए रक्ष्भी जी को
वाभनावताय कथा
नायद जी ने एक उऩाम सुझामा। रक्ष्भी जी ने याजा फसर के
ऩोयास्णक कथा के अनुशाय एकफाय सौ मऻ ऩूणा कय
ऩास जाकय उसे यऺाफन्धन फाॊधकय अऩना बाई फनामा औय
इच्छा प्रफर हो गई तो इन्द्र का ससॊहासन डोरने रगा। इन्द्र
आमीॊ। उस फदन श्रावण भास की ऩूस्णाभा सतसथ थी मथा यऺा-
आफद दे वताओॊ ने बगवान त्रवष्णु से यऺा की प्राथाना की।
फॊधन भनामा जाने रगा।
रेने ऩय दानवो के याजा फसर के भन भं स्वगा प्रासद्ऱ की
उऩहाय स्वरुऩ अऩने ऩसत बगवान त्रवष्णु को अऩने साथ रे
सयस्वती कवि एवॊ मॊि उत्तभ सशऺा एवॊ त्रवद्या प्रासद्ऱ के सरमे वॊसत ऩॊिभी ऩय दर ा तेजस्वी भॊि शत्रि द्राया ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म ु ब
मुि सयस्वती कवि औय सयस्वती मॊि के प्रमोग से सयरता एवॊ सहजता से भाॊ सयस्वती की कृ ऩा प्राद्ऱ कयं ।
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अगस्त 2014
24
बत्रवष्म ऩुयाण की कथा बत्रवष्म ऩुयाण की एक कथा के अनुसाय एक फाय दे वता औय दानवं भं फायह वषं तक मुद्ध हुआ ऩयन्तु दे वता त्रवजमी नहीॊ हुए। इॊ द्र हाय के बम से द:ु खी होकय दे वगुरु
फृहस्ऩसत के ऩास त्रवभशा हे तु गए। गुरु फृहस्ऩसत के सुझाव ऩय इॊ द्र की ऩत्नी भहायानी शिी ने श्रावण शुक्र ऩूस्णाभा के फदन त्रवसध-त्रवधान
से
व्रत
कयके
यऺासूि तैमाय
फकए
औय स्वास्स्तवािन के साथ ब्राह्मण की उऩस्स्थसत भं इॊ द्राणी ने वह सूि इॊ द्र की दाफहनी कराई भं फाॊधा स्जसके परस्वरुऩ इन्द्र सफहत सभस्त दे वताओॊ की दानवं ऩय त्रवजम हुई।
यऺा त्रवधान के सभम सनम्न स्जस भॊि का उच्िायण फकमा गमा था उस भॊि का आज बी त्रवसधवत ऩारन फकमा जाता है :
"मेन फद्धोफरी याजा दानवेन्द्रो भहाफर: ।
तेन त्वाभसबफध्नासभ यऺे भा िर भा िर ।।" इस भॊि का बावाथा है फक दानवं के भहाफरी याजा फसर स्जससे फाॊधे गए थे, उसी से तुम्हं फाॊधता हूॉ। हे यऺे! (यऺासूि) तुभ िरामभान न हो, िरामभान न हो।
मह यऺा त्रवधान श्रवण भास की ऩूस्णाभा को प्रात् कार सॊऩन्न
फकमा गमा मथा यऺा-फॊधन अस्स्तत्व भं
आमा औय श्रवण भास की ऩूस्णाभा को भनामा जाने रगा।
भहाबायत सॊफॊधी कथा
भहाबायत भं ही यऺाफॊधन से सॊफॊसधत कृ ष्ण औय द्रौऩदी का एक औय वृत्ताॊत सभरता है । जफ कृ ष्ण ने सुदशान िक्र से सशशुऩार का वध फकमा तफ उनकी तजानी भं िोट आ गई। द्रौऩदी ने उस सभम अऩनी सािी पािकय उनकी उॉ गरी ऩय
भहाबायत कार भं द्रौऩदी द्राया श्री कृ ष्ण को तथा कुन्ती द्राया असबभन्मु को याखी फाॊधने के वृत्ताॊत सभरते हं ।
ऩट्टी फाॉध दी। मह श्रावण भास की ऩूस्णाभा का फदन था। श्रीकृ ष्ण ने फाद भं द्रौऩदी के िीय-हयण के सभम उनकी राज फिाकय बाई का धभा सनबामा था।।
वास्तु दोष सनवायक मॊि बवन छोटा होमा फडा मफद बवन भं फकसी कायण से सनभााण भं वास्तु दोष रगयहा हो, तो शास्त्रं भं
उसके सनवायण हे तु वास्तु दे वता को प्रसन्न एवॊ सन्तुद्श कयने के सरए अनेक उऩाम का उल्रेख सभरता
हं । उन्हीॊ उऩामो भं से एक हं वास्तु मॊि फक स्थाऩना स्जसे घय-दक ु ान-ओफपस-पैक्टयी भं स्थात्रऩत कयने से सॊफॊसधत सभस्त ऩये शानीओॊ का शभन होकय वास्तु दोष का सनवायण होजाता हं एवॊ बवन भं सुख सभृत्रद्ध का आगभन होता हं ।
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अगस्त 2014
25
कृ ष्ण के भुख भं ब्रह्माॊड दशान
सिॊतन जोशी एक फाय फरयाभ सफहत ग्वार फार खेर यहं थे खेरते-खेरते मशोदा के ऩास ऩहुॉिे औय मशोदाजी से कहा भाॉ! कृ ष्ण ने आज सभट्टी खाई हं । मशोदा ने कृ ष्ण के
हाथं को ऩकि सरमा औय धभकाने रगी फक तुभने सभट्टी क्मं खाई! मशोदा को मह बम था फक कहीॊ सभट्टी खाने से कृ ष्ण कोई योग न रग जाए। भाॉ फक डाॊट से कृ ष्ण तो इतने बमबीत हो गए थे फक वे भाॉ की ओय आॉख बी नहीॊ उठा ऩा यहे थे। तफ मशोदा ने कहा तूने एकान्त भं सभट्टी क्मं खाई! सभट्टी खाते हुए तुजे फरयाभ सफहत औय बी
ग्वार ने दे खा हं । कृ ष्ण ने कहा- सभट्टी भंने नहीॊ खाई हं । मे सबी रोग झुठ फोर यहे हं । मफद आऩको रगता हं भंने सभट्टी खाई हं , तो स्वमॊ भेया भुख दे ख रे। भाॉ ने कहा मफद
ऐसा है तो तू अऩना भुख खोर। रीरा कयने के सरए फार कृ ष्ण ने अऩना भुख भाॉ के सभऺ खोर फदमा। मशोदा ने जफ भुख के अॊदय दे खते फह उसभं सॊऩूणा त्रवद्व फदखाई ऩिने रगा। अॊतरयऺ, फदशाएॉ, द्रीऩ, ऩवात, सभुद्र, ऩृथ्वी,वामु, त्रवद्युत, ताया सफहत स्वगारोक, जर, अस्ग्न, वामु, आकाश इत्माफद
त्रवसिि सॊऩूणा त्रवद्व एक ही कार भं फदख ऩिा। इतना ही नहीॊ,
मशोदा ने उनके भुख भं ब्रज के साथ स्वमॊ अऩने आऩको बी दे खा। इन फातं से मशोदा को तयह-तयह के तका-त्रवतका होने रगे। क्मा भं स्वप्न दे ख यही हूॉ! मा दे वताओॊ की कोई
भामा हं मा भेयी फुत्रद्ध ही व्माभोह हं मा इस भेये कृ ष्ण का ही कोई स्वाबात्रवक प्रबावऩूणा िभत्काय हं । अन्त भं उन्हंने
मही दृढ़ सनद्ळम फकमा फक अवश्म ही इसी का िभत्काय है औय सनद्ळम ही ईद्वय इसके रूऩ भं अवतरयत हुएॊ हं । तफ उन्हंने कृ ष्ण की स्तुसत की उस शत्रि स्वरुऩ ऩयब्रह्म को भं नभस्काय कयती हूॉ। कृ ष्ण ने जफ दे खा फक भाता मशोदा ने
भेया तत्व ऩूणत ा ् सभझ सरमा हं तफ उन्हंने तुयॊत ऩुि स्नेहभमी अऩनी शत्रि रूऩ भामा त्रफखेय दी स्जससे मशोदा ऺण भं ही सफकुछ बूर गई। उन्हंने कृ ष्ण को उठाकय अऩनी गोद भं उठा सरमा।
बाग्म रक्ष्भी फदब्फी सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ के सरमे बाग्म रक्ष्भी फदब्फी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग,
व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा किेयी के कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक फाधा, शिु बम, िोय बम जेसी अनेक ऩये शासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध फक प्रासद्ऱ
होसत है , बाग्म रक्ष्भी फदब्फी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), त्रफस्ल्र नार, कारी हल्दी
शॊख, कारी-सफ़ेद-रार गुज ॊ ा, इन्द्र जार, भाम जार, ऩातार तुभडी जेसी अनेक दर ा साभग्री ु ब होती है ।
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अगस्त 2014
26
शॊख ध्वसन से योग बगाएॊ !
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, फदऩक.ऐस.जोशी आज वैऻासनक अनुसॊधान से मह सात्रफत हो गमा
त्रवद्रानं ने शॊख ध्वसन भं सभग्र ब्रह्माॊड को सनफहत
हं की सनमसभत शॊखनाद कयने से उसके सकायात्भक
भाना है । उनका भानना हं फक, अस्खर ब्रह्माॊड के सॊस्ऺद्ऱ
प्रबाव से वातावयण भं व्माद्ऱ हासनकायक सूक्ष्भ जीवाणुओॊ
रूऩ को प्रकट कयने वारी मफद कोई शत्रि हं तो वह शॊख
का नाश होता हं ।
ध्वसन है ।
जनकायं का भानना हं की शॊखनाद के दौयान
ऩौयास्णक कार भं शॊखनाद के भाध्मभ से मुद्धायॊ ब
वामुभॊडर भं कुछ त्रवशेष प्रकाय की तयॊ गे उत्ऩन्न होती हं ,
की
जो ब्रह्माॊड की कुछ अन्म तयॊ गं के साथ सभरकय अल्ऩ
आध्मास्त्भक कामं भं बी शॊख ध्वसन अऩना त्रवशेष
ऺणं भं ही सभग्र ब्रह्माॊड की ऩरयक्रभा कय रेती हं । उनका
भहत्व यखती हं ।
एक तयॊ ग को जफ दस ू यी अनुकूर तयॊ गं प्राद्ऱ होती हं तफ
का अत्मसधक उऩमोग हुवा था। मुद्ध के सभम के प्रभुख
दे ने वारी, योग, शोक आफद से यऺा कयने वारी, उसकी
फकमा गमा है -
भानना हं की ब्रह्माण्ड की ऩरयक्रभा कयते हुवे जफ फकसी
दोनं तयॊ गं के सभनवम से भनुष्म को आत्भ फर-प्रेयणा
घोषणा
हं । जानकायं का भानना हं की तयॊ गे इतनी शूक्ष्भ होती हं की उसका प्रबाव हभं सयरता से द्रद्शी गोिय नहीॊ हो ऩाता! शॊखनाद के सनयॊ तय प्रमोग से ही इन तयॊ गं के प्रबावं को सभझा जा सकता हं । त्रवसबन्न शोध से मह ससद्ध हो िुका हं की वाद्यं व ध्वसनमं का छोटे -फिे सबी जीवं ऩय फहोत ही गहया प्रबाव ऩिता हं । उसी प्रकाय शॊख ध्वसन के प्रबाव एवॊ भहत्वता को आजका आधुसनक त्रवऻान बी भान िुका हं । हभाये त्रवद्रान ऋत्रष-भुसनमं ने अऩने मोगफर एवॊ अनुसॊधानो का सूक्ष्भ अध्ममन कय के हजायं वषा ऩूवा ही प्रकृ सत भं सछऩे गृढ़ यहस्मं को जान सरमा था, औय प्रकृ सत के गृढ़ यहस्मं के ऻान को हभाये ऋत्रष-भुसनमं ने त्रवसबन्न ग्रॊथं औय शास्त्रं के रुऩ सहे ज कय भं प्रदान फकमा हं । शॊख ध्वसन एवॊ शॊख के त्रवसबन्न राब की शोध का श्रेम बी हभाये ऋत्रष-भुसनमं को ही जाता हं ।
उत्साहवधान
फकमा
जाता
था।
शास्त्रं भं उल्रेख हं की भहाबायत के मुद्ध भं शॊख
भहायसथमं के ऩास जो शॊख थे, उनका उल्रेख इस प्रकाय
ऩाॊिजन्मॊ रृषीकेशो दे वदत्तॊ धनञ्जम।
भनोकाभनाएॊ ऩूणा कयने वारी तयॊ गे उठने रगती हं , औय भनुष्म अऩने कामा उद्दे श्म भं शीघ्र सपरता प्राद्ऱ कय रेता
औय
ऩौण्रॊ दध्भौ भहाशॊखॊ बीभकभाा वृकोदय॥
अनन्तत्रवजमभ ् याजा कुन्तीऩुिो मुसधत्रद्षय। नकुर सहदे वद्ळ सुघोषभस्णऩुष्ऩकौ॥
काश्मद्ळ ऩयभेष्वास सशखण्डी ि भहायथ।
धृद्शद्युम्नो त्रवयाटद्ळ सात्मफकद्ळाऩयास्जता्॥ द्रऩ ु दो द्रौऩदे माद्ळ सवाश ऩृसथवीऩते।
सौबद्रद्ळ भहाफाहु् शॊखान्दध्भु् ऩृथक्ऩृथक् ॥ अथाात ्: श्रीकृ ष्ण बगवान ने ऩाॊिजन्म नाभक, अजुन ा ने दे वदत्त औय बीभसेन ने ऩंर शॊख फजामा। कुॊती ऩुि याजा
मुसधत्रद्षय ने अनन्तत्रवजम शॊख, नकुर ने सुघोष एवॊ सहदे व ने भस्णऩुष्ऩक नाभक शॊख का नाद फकमा। इसके अरावा
काशीयाज,
सशखॊडी,
धृद्शद्युम्न,
याजा
त्रवयाट,
सात्मफक, याजा द्रऩ ु द, द्रौऩदी के ऩाॉिं ऩुिं औय असबभन्मु आफद सबी ने अरग-अरग शॊखं का नाद फकमा।
अगस्त 2014
27
आफद जीवं से फिाने के सरए प्रसत भॊगरवाय को शॊखनाद कयना राबप्रद भाना हं । शॊखं का जर फनाने हे तु शॊख भं 12 से 24 घॊटे जर बयकय यखा जाता हं । त्रवसबन्न ग्रॊथं एवॊ शास्त्रं भं उल्रेख सभरते हं की शॊख ध्वसन के प्रबाव से भनुष्म ही नहीॊ वयन ऩशुऩस्ऺमं को बी सम्भोफहत फकमा जा सकता हं । तॊि शास्त्रं भं उल्रेख हं की दोष यफहत शॊखनाद की ध्वसन तयॊ ग भनुष्म की कुॊडसरनी एवॊ रुद्रिक्र ऩय भाना जाता हं की मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध बूसभ भं अद्भत ु शौमा औय शत्रि के प्रदशान का आधाय शॊखनाद ही
प्रबाव डारती हं व शयीय की सुषुद्ऱ शत्रि जाग्रत होने रगती हं ।
हं । मही कायण हं की ऩुयातन कार भं मोद्धाओॊ द्राया मुद्ध
शास्त्रकायं ने शॊख ध्वसन के अद्भत ु प्रबावं का वणा
भं शॊखनाद प्रमोग फकमा जाता था। बगवान श्रीकृ ष्ण का
कयते हुवे फतामा हं की शॊखनाद के प्रबाव से फसधयता
ऩाॊिजन्म नाभक शॊख तो एकदभ अद्भत ु औय अफद्रतीम
दयू होना सॊबव हं ।
होने के कायण हीॊ भहाबायत भं त्रवजम का प्रतीक फन
शॊखजर के सनमसभत सेवन से भूकता औय हकराऩन दयू हो सकता हं ।
गमा। रृदम को झॊकृत कयने, ऩुन् कॊत्रऩत कयने व आनस्न्दत कयने भं शॊख ध्वसन का प्रबाव अद्भत ु यहा हं । आज बी जफ फकसी धासभाक कामा मा भाॊगसरक कामा के दौयान जफ शॊखनाद होता हं तो वहाॊ ऩय उऩस्स्थत रोगं का तन-भन आनस्न्दत हो जाता हं ।
मफद गबावसत स्त्री शॊखजर का सनमसभत सेवन कयं तो होने वारी सॊतान स्वस्थ एवॊ सुॊदय होती हं । सनमसभत शॊख ध्वसन का श्रवण कयने से रृदम अवयोध, रृदम धात (फदर का दौया) नहीॊ होता। शॊख पूॉकने से व्मत्रि के पेपिे शत्रिशारी होते हं ,
शॊखनाद के त्रवसबन्न प्रबावं का उल्रेख हभं अनेक शास्त्र
क्मंफक शॊख पूॉकने ऩय ऩहरे हवा पेपिं भं जभा
एवॊ ग्रॊथं भं सभरता है ।
होती हं , फपय उसे भुॉह बयकय शॊख भं पूॉकते हं । इस
कुछ कृ त्रषकामा से जुिे रोगं नं अऩने खेतं भं
फक्रमा से आॉत, द्वास नरी पेपिे एक साथ काभ कयते हं ।
शॊखनाद द्राया अऩनी पसर के उत्ऩादन भं वृत्रद्ध कयके
शॊखनाद सनयॊ तय कयने ऩय दभा, खाॉसी, मकृ त आफद
शॊख ध्वसन के भाध्मभ से सपरता प्राद्ऱ की हं । त्रवद्रानं का अनुबव हं की पसरं को ऩानी दे ते सभम शुब भुहूता भं 108 शॊखोदक (108 शॊखं का जर) सभरा कय पसर भं दे ने से पसर के उत्ऩादन भं वृत्रद्ध होती हं , अनाज के बॊडाय गृह भं कीिं -भकोिे
योग जि से नद्श हो जाते हं । शॊखजर के सनमसभत सेवन से शीत त्रऩत्त, द्वेत प्रदय, यि की अल्ऩता आफद योग दयू हो जाते हं ।
***
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श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि फकसी बी व्मत्रि का जीवन तफ आसान फन जाता हं जफ उसके िायं औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश भं हं। जफ कोई व्मत्रि का आकषाण दस ु यो के उऩय एक िुम्फकीम प्रबाव डारता हं , तफ
रोग उसकी सहामता एवॊ
सेवा हे तु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना असधक कद्श व ऩये शानी से सॊऩन्न हो जाते हं । आज के बौसतकता वाफद मुग भं हय व्मत्रि के सरमे दस ॊ कत्व को कामभ ू यो को अऩनी औय खीिने हे तु एक प्रबावशासर िुफ
यखना असत आवश्मक हो जाता हं । आऩका आकषाण औय व्मत्रित्व आऩके िायो ओय से रोगं को आकत्रषात कये इस सरमे सयर उऩाम हं , श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि। क्मोफक बगवान श्री कृ ष्ण एक अरौफकव एवॊ फदवम िुॊफकीम व्मत्रित्व के धनी थे। इसी कायण से श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन एवॊ दशान से आकषाक व्मत्रित्व प्राद्ऱ होता हं । श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के साथ व्मत्रिको दृढ़ इच्छा शत्रि एवॊ उजाा प्राद्ऱ होती हं , स्जस्से व्मत्रि हभेशा एक बीड भं हभेशा आकषाण का कंद्र यहता हं । मफद फकसी व्मत्रि को अऩनी प्रसतबा व आत्भत्रवद्वास के स्तय भं वृत्रद्ध, अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफि भं रयश्तो भं सुधाय कयने की ईच्छा होती हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ सात्रफत हो सकता हं । श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ
श्रीकृ ष्ण फीसा कवि श्रीकृ ष्ण
फीसा
कवि
को
केवर
त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण फकमा जाता हं । कवि को त्रवद्रान कभाकाॊडी
ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि
अॊको से व्मत्रि को अद्द्द्भत ु आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हं जो व्मत्रि को
त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान
मुि कयके सनभााण फकमा जाता हं ।
सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भं अग्रस्णम फनाने भं सहामक ससद्ध होती हं ।
श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं । श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊिाय कयता हं , जो एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं !
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं ।
त्रवद्रानो के भतानुसाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग कंफद्रत कयने से व्मत्रि फक िेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्ि स्तय को प्राद्ऱहोती हं ।
द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता हं । कवि को गरे भं धायण कयने से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता हं । गरे भं धायण कयने से कवि हभेशा रृदम के ऩास यहता हं स्जस्से व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं । भूरम भाि: 1900 >>Order Now
जो ऩुरुषं औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना िाहते हं औय उन्हं अऩनी औय आकत्रषात कयना िाहते हं । उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं ।
ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं ।
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अगस्त 2014
29
कृ ष्ण स्भयण का आध्मास्त्भक भहत्व
सिॊतन जोशी शय्मासनाटनाराप्रीडास्नानाफदकभासु।
श्री शुकदे वजी याजा ऩयीस्ऺत ् से कहते हं -
सकृ न्भन् कृ ष्णाऩदायत्रवन्दमोसनावेसशतॊ तद्गुणयासग मैरयह। न ते मभॊ ऩाशबृतद्ळ तद्भटान ् स्वप्नेऽत्रऩ ऩश्मस्न्त फह िीणासनष्कृ ता्॥
बावाथा: जो भनुष्म केवर एक फाय श्रीकृ ष्ण के गुणं भं प्रेभ कयने वारे अऩने सित्त को श्रीकृ ष्ण के ियण कभरं
भं रगा दे ते हं , वे ऩाऩं से छूट जाते हं , फपय उन्हं ऩाश हाथ भं सरए हुए मभदत ू ं के दशान स्वप्न भं बी नहीॊ हो सकते।
न त्रवद्ु सन्तभात्भानॊ वृष्णम् कृ ष्णिेतस्॥
बावाथा: श्रीकृ ष्ण को अऩना सवास्व सभझने वारे बि श्रीकृ ष्ण भं इतने तन्भम यहते थे फक सोते, फैठते, घूभते, फपयते, फातिीत कयते, खेरते, स्नान कयते औय बोजन आफद कयते सभम उन्हं अऩनी सुसध ही नहीॊ यहती थी। वैयेण मॊ नृऩतम् सशशुऩारऩौण्रशाल्वादमो गसतत्रवरासत्रवरोकनाद्यै्। ध्मामन्त आकृ तसधम् शमनासनादौ
अत्रवस्भृसत् कृ ष्णऩदायत्रवन्दमो्
स्ऺणोत्मबद्रस्ण शभॊ तनोसत ि। सत्वस्म शुत्रद्धॊ ऩयभात्भबत्रिॊ
ऻानॊ ि त्रवऻानत्रवयागमुिभ॥्
बावाथा: श्रीकृ ष्ण के ियण कभरं का स्भयण सदा फना यहे तो उसी से ऩाऩं का नाश, कल्माण की प्रासद्ऱ, अन्त् कयण की शुत्रद्ध, ऩयभात्भा की बत्रि औय वैयाग्ममुि ऻानत्रवऻान की प्रासद्ऱ अऩने आऩ ही हो जाती हं ।
तत्साम्मभाऩुयनुयिसधमाॊ ऩुन् फकभ॥्
बावाथा: जफ सशशुऩार, शाल्व औय ऩौण्रक आफद याजा वैयबाव से ही खाते, ऩीते, सोते, उठते, फैठते हय वि श्री हरय की िार, उनकी सितवन आफद का सिन्तन कयने के कायण भुि हो गए, तो फपय स्जनका सित्त श्री कृ ष्ण भं अनन्म बाव से रग यहा है , उन त्रवयि बिं के भुि होने भं तो सॊदेह ही क्मा हं ? एन् ऩूवक ा ृ तॊ मत्तद्राजान् कृ ष्णवैरयण्। जहुस्त्वन्ते तदात्भान् कीट् ऩेशस्कृ तो मथा॥
ऩुॊसाॊ कसरकृ तान्दोषान्द्रव्मदे शात्भसॊबवान।्
बावाथा: श्रीकृ ष्ण से द्रे ष कयने वारे सभस्त नयऩसतगण
बावाथा:बगवान ऩुरुषोत्तभ श्रीकृ ष्ण जफ सित्त भं त्रवयाजते
ऩाऩं को नद्श कय वैसे ही बगवद्रऩ ू हो जाते हं , जैसे
सवाान्हरयत सित्तस्थो बगवान्ऩुरुषोत्तभ्॥
हं , तफ उनके प्रबाव से कसरमुग के साये ऩाऩ औय द्रव्म, दे श तथा आत्भा के दोष नद्श हो जाते हं ।
अन्त भं श्री बगवान के स्भयण के प्रबाव से ऩूवा सॊसित ऩेशस्कृ त के ध्मान से कीिा तद्रऩ ू हो जाता है , अतएव श्रीकृ ष्ण का स्भयण सदा कयते यहना िाफहए।
त्रववाह सॊफॊसधत सभस्मा क्मा आऩके रडके-रडकी फक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनके वैवाफहक जीवन भं खुसशमाॊ कभ होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं । एसी स्स्थती होने ऩय अऩने रडके-रडकी फक कुॊडरी का अध्ममन
अवश्म कयवारे औय उनके वैवाफहक सुख को कभ कयने वारे दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं ।
अगस्त 2014
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श्री कृ ष्ण का नाभकयण सॊस्काय
सिॊतन जोशी वसुदेवजी की प्राथाना ऩय मदओ ु ॊ के ऩुयोफहत
गगाािामाजी ने वसुदेव से कहा योफहणी का मह
भहातऩस्वी गगाािामाजी ब्रज नगयी ऩहुॉिे। उन्हं दे खकय
ऩुि गुणं से अऩने रोगं के भन को प्रसन्न कये गा।
नॊदफाफा अत्मसधक प्रसन्न हुए। उन्हंने हाथ जोिकय
अत् इसका नाभ याभ होगा। इसी नाभ से मह ऩुकाया
प्रणाभ फकमा औय उन्हं त्रवष्णु तुल्म भानकय उनकी
जाएगा। इसभं फर की असधकता असधक होगी। इससरए
त्रवसधवत ऩूजा की। इसके ऩद्ळात नॊदजी ने उनसे कहा
इसे रोग फर बी कहं गे। मदव ु ॊसशमं की आऩसी पूट
आऩ कृ प्मा भेये इन दोनं फच्िं का नाभकयण सॊस्काय कय दीस्जए। इस ऩय गगाािामाजी ने कहा फक ऐसा कयने भं कुछ अििनं हं । भं मदव ु ॊसशमं का ऩुयोफहत हूॉ, मफद भं
सभटाकय उनभं एकता को मह स्थात्रऩत कये गा, अत् रोग इसे सॊकषाण बी कहं गे। अत् इसका नाभ फरयाभ होगा। अफ उन्हंने मशोदा औय नॊद को रक्ष्म कयके
तुम्हाये इन ऩुिं का नाभकयण सॊस्काय कय दॉ ू तो रोग
कहा- मह तुम्हाया ऩुि प्रत्मेक मुग भं अवताय ग्रहण
ऩहरे से फह ऩाऩभम फुत्रद्ध वारा हं । वह सवादा सनयथाक
ऩीरा होता है । ऩूवा के प्रत्मेक मुगं भं शयीय धायण
इन्हं दे वकी का ही ऩुि भानने रगंगे, क्मंफक कॊस तो
कयता यहता हं । कबी इसका वणा द्वेत, कबी रार, कबी
फातं ही सोिता है । दस ू यी ओय तुम्हायी व वसुदेव की
कयते हुए इसके तीन वणा हो िुके हं । इस फाय
अफ भुख्म फात मह हं फक दे वकी की आठवीॊ
तुम्हाया मह ऩुि ऩहरे वसुदेव के महाॉ जन्भा हं , अत्
भैिी है ।
सॊतान रिकी नहीॊ हो सकती क्मंफक मोगभामा ने कॊस
कृ ष्णवणा का हुआ है , अत् इसका नाभ कृ ष्ण होगा। श्रीभान वासुदेव नाभ से त्रवद्रान रोग ऩुकायं गे।
से मही कहा था अये ऩाऩी भुझे भायने से क्मा पामदा
तुम्हाये ऩुि के नाभ औय रूऩ तो सगनती के ऩये
है ? वह सदै व मही सोिता है फक कहीॊ न कहीॊ भुझे
हं , उनभं से गुण औय कभा अनुरूऩ कुछ को भं जानता
भायने वारा अवश्म उत्ऩन्न हो िुका हं । मफद भं
हूॉ। दस ू ये रोग मह नहीॊ जान सकते। मह तुम्हाये गोऩ
नाभकयण सॊस्काय कयवा दॉ ग ू ा तो भुझे ऩूणा आशा हं फक वह भेये फच्िं को भाय डारेगा औय हभ रोगं का अत्मसधक असनद्श कये गा।
गौ एवॊ गोकुर को आनॊफदत कयता हुआ तुम्हाया कल्माण कये गा। इसके द्राया तुभ बायी त्रवऩत्रत्तमं से बी भुि यहोगे।
नॊदजी ने गगाािामाजी से कहा मफद ऐसी फात है
इस ऩृथ्वी ऩय जो बगवान भानकय इसकी बत्रि
तो फकसी एकान्त स्थान भं िरकय त्रवसध ऩूवक ा इनके
कयं गे उन्हं शिु बी ऩयास्जत नहीॊ कय सकंगे। स्जस
फद्रजासत सॊस्काय कयवा दीस्जए। इस त्रवषम भं भेये अऩने
तयह त्रवष्णु के बजने वारं को असुय नहीॊ ऩयास्जत कय
आदभी बी न जान सकंगे। नॊद की इन फातं को
सकते। मह तुम्हाया ऩुि संदमा, कीसता, प्रबाव आफद भं
सुनकय गगाािामा ने एकान्त भं सछऩकय फच्िे का
त्रवष्णु के सदृश होगा। अत् इसका ऩारन-ऩोषण ऩूणा
नाभकयण कयवा फदमा। नाभकयण कयना तो उन्हं अबीद्श
सावधानी से कयना। इस प्रकाय कृ ष्ण के त्रवषम भं
ही था, इसीसरए वे आए थे।
आदे श दे कय गगाािामा अऩने आश्रभ को िरे गए।
अगस्त 2014
31
॥ श्रीकृ ष्ण िारीसा ॥ दोहा फॊशी
शोसबत
कय
अरुणअधयजनु
भधुय,
नीर
त्रफम्फपर,
ऩूणा
इन्द्र,
अयत्रवन्द
जम
भनभोहन
भदन
भुख, छत्रव,
जरद
तन
श्माभ।
नमनकभरअसबयाभ॥ ऩीताम्फय
शुब
कृ ष्णिन्द्र
साज।
भहायाज॥
जम मदन ु ॊदन जम जगवॊदन। जम वसुदेव दे वकी नन्दन॥ जम मशुदा सुत नन्द दर ु ाये । जम प्रबु बिन के दृग ताये ॥ जम नट-नागय, नाग नथइमा॥ कृ ष्ण कन्हइमा धेनु ियइमा॥ ऩुसन नख ऩय प्रबु सगरयवय धायो। आओ दीनन कद्श सनवायो॥ वॊशी भधुय अधय धरय टे यौ। होवे ऩूणा त्रवनम मह भेयौ॥ आओ हरय ऩुसन भाखन िाखो। आज राज बायत की याखो॥ गोर कऩोर, सिफुक अरुणाये । भृद ु भुस्कान भोफहनी डाये ॥ यास्जत यास्जव नमन त्रवशारा। भोय भुकुट वैजन्तीभारा॥ कुॊडर श्रवण, ऩीत ऩट आछे । कफट फकॊफकणी काछनी काछे ॥ नीर जरज सुन्दयतनु सोहे । छत्रफरस्ख, सुयनय भुसनभन भोहे ॥ भस्तक सतरक, अरक घुॉघयारे। आओ कृ ष्ण फाॊसुयी वारे॥ करय ऩम ऩान, ऩूतनफह तायमो। अका फका कागासुय भायमो॥ ् ् भधुवन जरतअसगन जफज्वारा। बैशीतररखतफहॊ नॊदरारा॥ सुयऩसत जफ ब्रज िढ़्मो रयसाई। भूसय धाय वारय वषााई॥ रगत रगत व्रज िहन फहामो। गोवधान नख धारय फिामो॥ रस्ख मसुदा भनभ्रभ असधकाई। भुखभॊह िौदह बुवन फदखाई॥ दद्श ु कॊस असत उधभ भिामो। कोफट कभर जफ पूर भॊगामो॥ नासथ कासरमफहॊ तफ तुभ रीन्हं । ियण सिह्न दै सनबाम कीन्हं ॥ करय गोत्रऩन सॊग यास त्रवरासा। सफकी ऩूयण कयी असबराषा॥
केसतक भहा असुय सॊहायमो। कॊसफह केस ऩकफि दै भायमो॥ ् ् भात-त्रऩता की फस्न्द छुिाई। उग्रसेन कहॉ याज फदराई॥ भफह से भृतक छहं सुत रामो। भातु दे वकी शोक सभटामो॥ बौभासुय भुय दै त्म सॊहायी। रामे षट दश सहसकुभायी॥ दै बीभफहॊ तृण िीय सहाया। जयाससॊधु याऺस कहॉ भाया॥ असुय फकासुय आफदक भायमो। बिन के तफ कद्श सनवायमो॥ ् ् दीन सुदाभा के द्ु ख टायमो। तॊदर ् ु तीन भूॊठ भुख डायमो॥ ् प्रेभ के साग त्रवदयु घय भाॉगे। दम ु ोधन के भेवा त्मागे॥
रखी प्रेभ की भफहभा बायी। ऐसे श्माभ दीन फहतकायी॥ बायत के ऩायथ यथ हाॉके। सरमे िक्र कय नफहॊ फर थाके॥ सनज गीता के ऻान सुनाए। बिन रृदम सुधा वषााए॥ भीया थी ऐसी भतवारी। त्रवष ऩी गई फजाकय तारी॥ याना बेजा साॉऩ त्रऩटायी। शारीग्राभ फने फनवायी॥ सनजभामा तुभ त्रवसधफहॊ फदखामो। उय ते सॊशम सकर सभटामो॥ तफ शत सनन्दा करय तत्कारा। जीवन भुि बमो सशशुऩारा॥ जफफहॊ द्रौऩदी टे य रगाई। दीनानाथ राज अफ जाई॥ तुयतफह वसन फने नॊदरारा। फढ़े िीय बै अरय भुॉह कारा॥ अस अनाथ के नाथ कन्हइमा। डू फत बॊवय फिावइ नइमा॥ 'सुन्दयदास' आस उय धायी। दमा दृत्रद्श कीजै फनवायी॥ नाथ सकर भभ कुभसत सनवायो। ऺभहु फेसग अऩयाध हभायो॥ खोरो ऩट अफ दशानदीजै। फोरो कृ ष्ण कन्हइमा की जै॥ दोहा मह िारीसा कृ ष्ण का, ऩाठ कयै उय धारय। अद्श ससत्रद्ध नवसनसध पर, रहै ऩदायथ िारय॥
रक्ष्भी मॊि श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि)
भहारक्ष्भमै फीज मॊि
वैबव रक्ष्भी मॊि
श्री मॊि (भॊि यफहत)
भहारक्ष्भी फीसा मॊि
कनक धाया मॊि
श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत)
रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि
श्री श्री मॊि (रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री
श्री मॊि (फीसा मॊि)
रक्ष्भी दाता फीसा मॊि
भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि)
श्री मॊि श्री सूि मॊि
रक्ष्भी फीसा मॊि
अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩृद्षीम)
रक्ष्भी गणेश मॊि
ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
मॊि के त्रवषम भं असधक हे तु सॊऩका कयं ।
>> Order Now
32
त्रवप्रऩत्नीकृ त श्रीकृ ष्णस्तोि त्रवप्रऩत्न्म ऊिु् त्वॊ
ब्रह्म
सनगुण ा द्ळ
ऩयभॊ
धाभ
सनयाकाय्
साकाय्
सास्ऺरूऩद्ळ प्रकृ सत्
ऩुरुषस्त्वॊ
मस्म
ि
कायणॊ मे त्रववये
भहात्रवयाण्भहात्रवष्णुस्तॊ
तस्म
िाऽत्रऩ
तेजस्वी
वेदेऽसनवािनीमस्त्वॊ फीजॊ
सवाशत्रिनाॊ
सवाशिीद्वय्
सवा् स्वमॊज्मोसत्
अहो
त्रवषम
सयस्वती
जडीबूता
ऩावाती इसत अबमॊ
॥३॥
त्रवद्वभीद्वय्।
त्रवबो
ऻानी
॥४॥
ि
तत्ऩय्।
स्तोतुसभहे द्वय्
॥५॥
भहे शद्ळ
॥६॥
सवाशक्त्माश्रम्
सदा।
सवाानन्द्
सनातन्
कभरा ऩेतुद्ळ प्रददौ
नेस्न्द्रमी
मतस्तोिे ्
याधा ता ताभ्म्
॥७॥
सवात्रवग्रहवानत्रऩ।
जानासस शेषो
ि।
सवाशत्रिस्वरूऩक्
आकायहीनस्त्वॊ
सवेस्न्द्रमाणाॊ जडीबूतो
जनको
॥२॥
स्भृता्।
ऩॊितन्भािभेव
त्वॊ
त्वभनीह्
ऩयभ ्
िाऽस्खरॊ
कस्त्वाॊ
भहदाफदसृत्रद्शसूिॊ
तमो्
दे वास्त्रम्
ऻानॊ
॥१॥
सनयाकृ सत्।
ब्रह्म-त्रवष्णु-भहे द्वया्
ि
तेजस्त्वॊ
ि ि
सवाफीजा
रोम्नाॊ
स्वमभ ्
ऩयभात्भा
त्रवषमे
त्वदॊ शा्
सनयहॊ कृसत्।
सगुण्
सनसराद्ऱ्
सृत्रद्शस्स्थत्मॊत ते
सनयीहो
धभो
।८॥
मस्न्नरूऩणे।
त्रवसध्
सात्रविी
बवान ् स्वमभ ्
दे वसूयत्रऩ।
॥९॥ ॥११॥
त्रवप्रऩत्न्मस्तच्ियणाम्फुजे। प्रसन्नवदनेऺण्
॥१२॥
त्रवप्रऩत्नीकृ तॊ स्तोिॊ ऩूजाकारे ि म् ऩठे त।् स गसतॊ त्रवप्रऩत्नीनाॊ रबते
नाऽि
सॊशम्
॥१३॥
॥ इसत श्रीब्रह्मवैवते त्रवप्रऩत्नीकृ तॊ कृ ष्णस्तोिॊ सभाद्ऱभ॥्
इस श्रीकृ ष्णस्तोि का सनमसभत ऩाठ कयने से बगवानश्रीकृ ष्ण अऩने बि ऩय सन्सन्दे ह ् प्रसन्न होते है । मह स्तोि व्मत्रि अबम को प्रदान कयने वारा हं ।
अगस्त 2014
अगस्त 2014
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प्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊि
सिॊतन जोशी भॊि:-
"ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ प्राण वल्रबाम सौ् सौबाग्मदाम
श्रीकृ ष्णाम स्वाहा।"
त्रवसनमोग्- ॐ अस्म श्रीप्राणेद्वय श्रीकृ ष्ण भॊन्िस्म बगवान ् श्रीवेदव्मास ऋत्रष्,
गामिी छॊ द्-, श्रीकृ ष्ण-ऩयभात्भा दे वता, क्रीॊ फीजॊ, श्रीॊ शत्रि्, ऐॊ कीरकॊ, ॐ व्माऩक्, भभ सभस्त-क्रेश-ऩरयहाथं, ितुवग ा -ा प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्धमथं ि जऩे त्रवसनमोग्। ऋष्माफद न्मास्- श्रीवेदव्मास ऋषमे नभ् सशयसस, गामिी छॊ दसे नभ् भुखे, श्रीकृ ष्ण ऩयभात्भा दे वतामै नभ् रृफद, क्रीॊ फीजाम नभ् गुह्ये, श्रीॊ शिमे नभ् नाबौ, ऐॊ कीरकाम नभ्
ऩादमो, ॐ व्माऩकाम नभ् सवााङ्गे, भभ सभस्त क्रेश ऩरयहाथं, ितुवग ा ा प्राद्ऱमे, सौबाग्म वृद्धमथं ि जऩे त्रवसनमोगाम नभ् अॊजरौ। कय-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ अॊगुद्षाभ्माॊ नभ् प्राणवल्रबाम तजानीभ्माॊ स्वाहा, सौ् भध्मभाभ्माॊ वषट्, सौबाग्मदाम
अनासभकाभ्माॊ हुॊ श्रीकृ ष्णाम कसनत्रद्षकाभ्माॊ वौषट्, स्वाहा कयतरकयऩृद्षाभ्माॊ पट्।
अॊग-न्मास्- ॐ ऐॊ श्रीॊ क्रीॊ रृदमाम नभ्, प्राण वल्रबाम सशयसे स्वाहा, सौ् सशखामै वषट्, सौबाग्मदाम सशखामै कविाम हुॊ, श्रीकृ ष्णाम नेि-िमाम वौषट्, स्वाहा अस्त्राम पट्। ध्मान्-
"कृ ष्णॊ
जगन्भऩहन-रुऩ-वणं,
रज्जाऽऽकुसरताॊ भधूक-भारा-मुत-कृ ष्ण-दे हॊ,
त्रवरोक्म
त्रवरोक्म स्भयाढ्माभ ्।
िासरॊग्म
हरयॊ
स्भयन्तीभ ्।।"
बावाथा: सॊसाय को भुग्ध कयने वारे बगवान ् कृ ष्ण के रुऩ-यॊ ग को दे खकय प्रेभ ऩूणा होकय गोत्रऩमाॉ रज्जाऩूवक ा व्माकुर होती
हं औय भन-ही-भन हरय को स्भयण कयती हुई बगवान ् कृ ष्ण
की भधूक-ऩुष्ऩं की भारा से त्रवबुत्रषत दे ह का आसरॊगन कयती हं । इस भॊि का त्रवसध-त्रवधान से १,००,००० जाऩ कयने का त्रवधान हं ।
क्मा आऩके फच्िे कुसॊगती के सशकाय हं ? क्मा आऩके फच्िे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं ? क्मा आऩके फच्िे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं ? घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्िे को कुसॊगती से छुडाने हे तु फच्िे के नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसधत्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । >> Ask Now मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवाना िाहते हं , तो सॊऩका इस कय सकते हं ।
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अगस्त 2014
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ब्रह्मा यसित कृ ष्णस्तोि न कभाऺेिभेवेद ब्रह्मरोकोऽमभीस्प्सत्।
ब्रह्मोवाि :
यऺ यऺ हये भाॊ ि सनभग्नॊ काभसागये ।
तथाऽत्रऩ न स्ऩृहा काभे त्वद्भत्रिव्मवधामके ॥७॥
दष्ु कीसताजरऩूणे ि दष्ु ऩाये फहुसॊकटे ॥१॥
हे नाथ करुणाससन्धो दीनफन्धो कृ ऩाॊ कुरु।
बत्रित्रवस्भृसतफीजे ि त्रवऩत्सोऩानदस् ु तये ।
त्वॊ भहे श भहाऻाता द्ु स्वप्नॊ भाॊ न दशाम ॥८॥
अतीव सनभारऻानिऺु्-प्रच्छन्नकायणे ॥२॥
इत्मुक्त्वा जगताॊ धाता त्रवययाभ सनातन्।
जन्भोसभा-सॊगसफहते मोत्रषन्नक्राघसॊकुरे।
ध्मामॊ ध्मामॊ भत्ऩदाब्जॊ शद्वतसस्भाय भासभसत ॥९॥ ्
यसतस्रोोत्सभामुिे गम्बीये घोय एव ि ॥३॥
ब्रह्मणा ि कृ तॊ स्तोिॊ बत्रिमुिद्ळ म् ऩठे त।्
प्रथभासृतरूऩे ि ऩरयणाभत्रवषारमे।
स िैवाकभात्रवषमे न सनभग्नो बवेद् ध्रुवभ ् ॥१०॥
मभारमप्रवेशाम भुत्रिद्रायासतत्रवस्तृतौ ॥४॥
भभ भामाॊ त्रवसनस्जात्म स ऻानॊ रबते ध्रुवभ।्
फुद्ध्मा तयण्मा त्रवऻानैरुद्धयास्भानत् स्वमभ।् स्वमॊ ि त्व कणाधाय् प्रसीद भधुसूदन ॥५॥ भफद्रधा् कसतसिन्नाथ सनमोज्मा बवकभास्ण।
इह रोके बत्रिमुिो भद्भिप्रवयो बवेत ् ॥११॥ ॥ इसत श्रीब्रह्मदे वकृ तॊ कृ ष्णस्तोिॊ सम्ऩूणभ ा ॥्
***
सस्न्त त्रवद्वेश त्रवधमो हे त्रवद्वेद्वय भाधव ॥६॥
भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के कायक ग्रह फुध के असधऩसत दे वता हं । ऩन्ना गणेश फुध के सकायात्भक प्रबाव को फठाता हं एवॊ
वास्तु उऩाम हे तु सवाश्रद्ष े
नकायात्भक प्रबाव को कभ कयता हं ।. ऩन्न गणेश के प्रबाव से व्माऩाय औय धन भं वृत्रद्ध भं वृत्रद्ध होती हं । फच्िो फक ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं ऩन्ना गणेश इस के प्रबाव से फच्िे फक फुत्रद्ध कूशाग्र होकय उसके आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती हं । भानससक अशाॊसत को कभ कयने भं भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत हयी त्रवफकयण शाॊती प्रदान कयती हं , व्मत्रि के शायीय के तॊि को सनमॊत्रित कयती हं । स्जगय, पेपिे , जीब, भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्माफद योग भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय भयगज के फने होते हं ।
Rs.550 से Rs.8200 तक >> Order Now
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अगस्त 2014
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श्रीकृ ष्णाद्शकभ ् ऩावात्मुवाि-
भुयरीवादनाधायी
कैराससशखये
यम्मे
गौयी
ऩृच्छसत
ब्रह्माण्डास्खरनाथस्त्वॊ त्वभेव सनत्मॊ
ऩूज्मसेरौकै
ऩठसस
दे वेश
आद्ळमासभदभत्मन्तॊ तत्प्राणेश
सृत्रद्शसॊहायकायक्॥१॥ कस्म
सॊशमॊ
श्री
कृ तऩुण्मासस
यहस्मासतयहस्मॊ
भभ
शॊकय।
ब्रह्मणाऽभ्मसथातो
दे वो
उवाि-
तमासाद्धा
सछस्न्ध
शॊकय॥३॥
स्त्रीस्वबावान्भहादे त्रव गोऩनीमॊ दत्ते इदॊ
ऩावासत
ि
मत्ऩृच्छसस
ि
गोऩनीमॊ
ससत्रद्धहासन् यहस्मॊ
ऩयभॊ
धनयत्नौघभास्णक्मॊ ददासत तत्तेऽहॊ
मोऽसौ
स्भयणादे व सॊप्रवक्ष्मासभ
सनयॊ जनो
सॊसायसागयोत्तायकायणाम श्रीयॊ गाफदकरूऩेण ततो
सनद्ळमॊ
सनयॊ जनो
रोका
सदा िैरोक्मॊ
भहाभूढा
नासधगच्छस्न्त
वृदावनत्रवहायाम
सनयाकायो
गोऩमेत।्
भहाभोऺप्रदामकभ॥७॥ ् दे वस्द्ळत्स्वरूऩी
त्रप्रमे।
जनादा न्॥८॥ नृणाभ।्
व्माप्म
सतद्षसत॥९॥
त्रवष्णुबत्रित्रववस्जाता्।
ऩुननाायामणो बिानाॊ
गोऩारॊ
वि्कृ त्वा
गौयतेजो
गजाफदकभ।्
श्रृणुष्वावफहता
जातोऽवन्माॊ
ऩरयऩृच्छसस।
ऩुरुषाथाप्रदामकभ॥६॥ ्
तुयॊगॊ
प्रामासितो
सॊसायसायसवास्वॊ
प्रमत्नत्॥५॥
स्मात्तस्भाद्यत्नेन
द्राभ्माॊ
प्राणवल्रबे। वयानने॥४॥
ऩुनस्त्वॊ
गोऩनीमॊ
श्रीकृ ष्णिन्द्रो
भाता
भहे द्वय्॥२॥
हरय्॥१०॥
प्रीसतकाभद्।
रूऩभुद्रहन॥११॥ ्
स
ऩूणरू ा ऩकरामुत्॥१२॥
बगवान्नन्दगोऩवयोद्यत्। मशोदानन्ददासमनी॥१३॥
नाथो
दे वक्माॊ
भुकुन्दोऽत्रऩ
दे वयै त्रऩ
ततो
वेद्यॊ
ध्मामते
मस्तु वात्रऩ
स
ि
एतैदोषैत्रवासरप्मे
जातो
सनातनभ॥१६॥ ्
श्माभतैज्
सभिामेत।्
बवेत्ऩातकी
सशवे॥१७॥
स्वणास्तेमी
ि
भहादे त्रव
दव ु ााससो
भुनेभोहे
ऩृद्शवती
सनयॊ जनात्सभुत्ऩन्नॊ
करौ
शठाम
तत्
नायदत्
जानस्न्त
ऩॊिभ्।
तेजोबेदान्भहे द्वरय।१८॥ याधाभाधवरूऩकभ।्
तस्भाफददॊ
ततो
भहीतरे॥१५॥
भहदज् ु ज्वरभ।्
तस्भाज्ज्मोसतयबूद्द्द्रे धा
श्रीकृ ष्णेन
सुयेद्वरय॥१४॥
भुयरीवेदये सिका।
सिन्तमासभ
त्रफना
ब्रह्महासुयाऩी
तत्
वसुदेवत्।
श्माभरॊ
एतज्ज्मोसतयहॊ जऩेद्रा
प्रीसतभावहन।्
सभुन्भील्म
धरयणीरूत्रऩणी
भहादे व
धन्मासस
अॊशाॊशेभ्म्
ब्राह्मत्रवष्णुसयु ाफदसब्।
स्तोिॊ
जामते
भहाप्राऻ
शॊकयभ।्
याधामै
गोऩारेनव ै कासताक्माॊ
याधा
भमाऽधीतॊ
सवा
दे वसे श
ब्रह्महत्माभवाप्नोसत
यासभण्डरे।
सन्दे हॊ
प्रोिॊ
कृ ऩणामाथ
बात्रषतभ॥१९॥ ्
याधामै
त्रवयरा
बेदभात्भन्॥२०॥ नायदाम
गोऩनीमॊ
दास्म्बकाम
तस्भाद्यत्नेन
जगन्भसम। ि॥२१॥
वैष्णवास्तथा।
प्रमत्नत्॥२२॥ सुयेद्वरय।
गोऩमेत॥२३॥ ्
, ( ) ( ) भॊि ससद्ध मॊि गुरुत्व कामाारम द्राया त्रवसबन्न प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि ससरवय िाॊदी ओय गोल्ड सोने भे त्रवसबन्न प्रकाय की सभस्मा के अनुसाय फनवा के भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ िैतन्म मुि फकमे जाते है . स्जसे साधायण (जो ऩूजा-ऩाठ नही जानते मा नही कसकते) व्मत्रि त्रफना फकसी ऩूजा अिाना-त्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते है . स्जस भे प्रसिन मॊिो सफहत हभाये वषो के अनुसॊधान द्राया फनाए गमे मॊि बी सभाफहत है . इसके अरवा आऩकी आवश्मकता अनुशाय मॊि फनवाए जाते है . गुरुत्व कामाारम द्राया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊफडत एवॊ २२ गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 टि शुद्ध ससरवय (िाॊदी) एवॊ 22 केये ट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है . मॊि के त्रवषम भे असधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कये गुरुत्व कामाारम
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36
भनोकाभना ऩूसता हे तु त्रवसबन्न कृ ष्ण भॊि
सिॊतन जोशी भूर भॊि :
तेईस अऺय भॊि:
कृॊ कृ ष्णाम नभ्
ॐ श्रीॊ ह्रीॊ क्रीॊ श्रीकृ ष्णाम गोत्रवॊदाम
मह बगवान कृ ष्ण का भूरभॊि हं । इस भूर भॊि के
गोऩीजन वल्रबाम श्रीॊ श्रीॊ श्री
सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि को जीवन भं सबी
मह तेईस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि फक
फाधाओॊ एवॊ कद्शं से भुत्रि सभरती हं एवॊ सुख फक प्रासद्ऱ
सबी फाधाएॉ स्वत् सभाद्ऱ हो जाती हं ।
होती हं ।
अट्ठाईस अऺय भॊि:
ॐ नभो बगवते नन्दऩुिाम
सद्ऱदशाऺय भॊि:
ॐ श्रीॊ नभ् श्रीकृ ष्णाम ऩरयऩूणत ा भाम स्वाहा
आनन्दवऩुषे गोऩीजनवल्रबाम स्वाहा
मह बगवान कृ ष्ण का सत्तया अऺय का हं । इस भूर भॊि
मह अट्ठाईस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि
के सनमसभत जाऩ कयने से
को सभस्त असबद्श वस्तुओॊ फक प्रासद्ऱ होती हं ।
व्मत्रि को भॊि ससद्ध हो जाने
के ऩद्ळमात उसे जीवन भं सफकुछ प्राद्ऱ होता हं ।
उन्तीस अऺय भॊि:
रीरादॊ ड गोऩीजनसॊसिदोदा ण्ड
सद्ऱाऺय भॊि:
गोवल्रबाम स्वाहा
फाररूऩ भेघश्माभ बगवन त्रवष्णो स्वाहा।
इस सात अऺयं वारे भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से
मह उन्तीस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से स्स्थय
जीवन भं सबी ससत्रद्धमाॊ प्राद्ऱ होती हं ।
रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती है ।
अद्शाऺय भॊि:
फत्तीस अऺय भॊि:
गोकुर नाथाम नभ्
नन्दऩुिाम श्माभराॊगाम फारवऩुषे
इस आठ अऺयं वारे भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से
कृ ष्णाम गोत्रवन्दाम गोऩीजनवल्रबाम स्वाहा।
व्मत्रि फक सबी इच्छाएॉ एवॊ असबराषाए ऩूणा होती हं ।
मह फत्तीस अऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से व्मत्रि फक
दशाऺय भॊि:
सभस्त भनोकाभनाएॉ ऩूणा होती हं ।
क्रीॊ ग्रं क्रीॊ श्माभराॊगाम नभ् इस दशाऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से सॊऩूणा ससत्रद्धमं की प्रासद्ऱ होती हं । द्रादशाऺय भॊि:
ॐ नभो बगवते श्रीगोत्रवन्दाम
तंतीस अऺय भॊि:
ॐ कृ ष्ण कृ ष्ण भहाकृ ष्ण सवाऻ त्वॊ प्रसीद भे। यभायभण त्रवद्येश त्रवद्याभाशु प्रमच्छ भे॥ मह तंतीस अऺय के सनमसभत जाऩ कयने से सभस्त प्रकाय की त्रवद्याएॊ सन्सॊदेह प्राद्ऱ होती हं ।
इस कृ ष्ण द्रादशाऺय भॊि के सनमसभत जाऩ कयने से इद्श
मह श्रीकृ ष्ण के तीव्र प्रबावशारी भॊि हं । इन भॊिं के
ससद्धी की प्रासद्ऱ होती हं ।
सनमसभत जाऩ से व्मत्रि के जीवन भं सुख, सभृत्रद्ध एवॊ सौबाग्म की प्रासद्ऱ होती हं ।
अगस्त 2014
37
कृ ष्ण भॊि
क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्।
बगवान श्री कृ ष्ण से सॊफध ॊ ी भॊि तो शास्त्रं भं बये ऩडे हं । रेफकन जन साधायण भं कुछ खास भॊिं का ही प्रिरन औय अत्मासधक भहत्व हं ।
ॐ कृ ष्णाम वासुदेवाम हयमे ऩयभात्भने।
प्रणत् क्रेशनाशाम गोत्रवॊदाम नभो नभ्॥
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि के जीवन भं फकसी बी प्रकाय के सॊकट नहीॊ आते।
ॐ नभ् बगवते वासुदेवाम कृ ष्णाम
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ
कऩडे
ऩहन
कय
108 फाय
जाऩ
कयने
से
आकस्स्भक सॊकट से भुत्रि सभरसत हं ।
हये कृ ष्ण हये कृ ष्ण, कृ ष्ण-कृ ष्ण हये हये । हये याभ हये याभ, याभ-याभ हये हये ।
इस भॊि को सनमसभत स्नान इत्माफद से सनवृत होकय स्वच्छ कऩडे ऩहन कय 108 फाय जाऩ कयने से व्मत्रि को जीवन भे सभस्त बौसतक सुखो एवॊ भोऺ प्रासद्ऱ होती हं ।
भॊि ससद्ध दर ा साभग्री ु ब
भॊि ससद्ध भारा
हत्था जोडी- Rs- 550, 730, 1450, 1900, 2800
स्पफटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250
ससमाय ससॊगी- Rs- 730, 1250, 1450, 2800
सपेद िॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640
त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450
यि (रार) िॊदन - Rs- 100, 190, 280
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,
भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above
दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 280, 550, 750, 1250,
त्रवधुत भारा - Rs- 100, 190
भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900
ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460
भामा जार- Rs- 251, 551, 751
कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280
इन्द्र जार- Rs- 251, 551, 751, 1050
हल्दी भारा - Rs- 150, 280
धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ Rs-550)
तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751
नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above
ऩीरी कौफिमाॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181
नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730
हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181
हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 190 280, 460, 730
रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111
भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above
नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-111
ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above
कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450,
वैजमॊती भारा Rs- 100,190
गोभती िक्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101, 151, 201,
रुद्राऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450
गोभती िक्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से 1100
भूल्म भं अॊतय छोटे से फिे आकाय के कायण हं ।
(असत दर ा फिे आकाय भं 5 ग्राभ से 41 ग्राभ भं उऩरब्ध) ु ब
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अगस्त 2014
ऩमूष ा ण का भहत्व
सिॊतन जोशी
जैन धभा के अनुमामी ऩमूष ा ण ऩवा को जीव की आत्भ शुत्रद्ध का भागा फताते हं ।
जैन भुसनजनो के अनुसाय
ऩमूष ा ण ऩवा इद्श आयाधना औय ऺभा का ऩवा बी हं । ऩमूष ा ण को भुख्मत: भनुष्म के ऩुनसनभााण का द्योतक भानाजाता हं । ऩमूष ा ण भं भनुष्म अऩने सबतय की त्रवकृ सतमं का त्माग कयता हं । ऩमूष ा ण के फदनं भं श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ब्रह्मिमा का ऩारन, यात्रि बोज त्माग, ससित्त का त्माग यखते हं । व्रतउऩवास, साभसमक-प्रसतक्रभण, प्रविन-श्रवण आफद के भाध्मभ से इन फदनं असघक से असघक सभम धभा ध्मान भं व्मतीत फकमा जाता हं । ऩमूष ा ण के फदन
श्रावक-श्रात्रवकाएॊ उऩवास यखते हं औय स्वमॊ के ऩाऩं की आरोिना कयते हुए बत्रवष्म भं उनसे
फिने की प्रसतऻा कयते हं । इसके साथ ही वे िौयासी राख मोसनमं भं त्रवियण कय यहे , सभस्त जीवं से ऺभा भाॉगते हुए मह सूसित कयते हं फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है । श्रावक-श्रात्रवकाएॊ ऩयोऺ रूऩ से वे मह सॊकल्ऩ कयते हं फक वे प्रकृ सत भं कोई हस्तऺेऩ नहीॊ कयं गे। भन, विन औय कामा से जानते मा अजानते वे फकसी बी फहॊ सा की गसतत्रवसध भं बाग न तो स्वमॊ रंगे, न दस ू यं को रेने को कहं गे औय न रेने वारं का अनुभोदन कयं गे। मह आद्वासन दे ने के सरए फक उनका फकसी से कोई फैय नहीॊ है , वे मह बी घोत्रषत कयते हं फक उन्हंने त्रवद्व के सभस्त जीवं को ऺभा कय फदमा है औय उन जीवं को ऺभा भाॉगने वारे से डयने की जरूयत नहीॊ है । ऺभा दे ने से भनुष्म अन्म सभस्त जीवं को अबमदान दे ते हं औय उनकी यऺा कयने का सॊकल्ऩ रेते हं । तफ व्मत्रि सॊमभ औय त्रववेक का अनुसयण कयं गे, आस्त्भक शाॊसत अनुबव कयं गे औय सबी जीवं औय ऩदाथं के प्रसत भैिी बाव यखंगे। आत्भा तबी शुद्ध यह सकती है जफ वह अऩने सेफाहय हस्तऺेऩ न कये औय फाहयी तत्व से त्रविसरत न हो। ऺभा-बाव जैन धभा का भूरभॊि है । जैन धभा भं द्वेताम्फय भूसताऩूजक ऩयम्ऩया भं आठ फदनं तक "कल्ऩसूि" ऩढ़ा व सुना जाता हं । जफफक जैन धभा भं स्थानकवासी ऩयम्ऩया भं आठ फदनं तक "अन्तकदृशा सूि" का वािन फकमा जाता हं ।
अगस्त 2014
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श्री नवकाय भॊि (नभस्काय भहाभॊि)
सिॊतन जोशी भं अरयहॊ त बगवॊतं को नभन कयता हूॊ। भं ससद्ध बगवॊतं को नभन कयता हूॊ।
भं आिामा बगवॊतं को नभन कयता हूॊ।
भं उऩाध्माम बगवॊतं को नभन कयता हूॊ।
भं रोक भं यहे हुए सबी साधु बगवॊतं को नभन कयता हूॊ।
इन ऩाॊिं को फकमा हुआ नभस्काय सबी ऩाऩं को नद्श कयता हं । एवॊ सबी भॊगरं भं बी प्रथभ (श्रेद्ष) भॊगर हं । जैन भुसनमं के भत से नवकाय भहाभॊि जैन धभा का ससद्ध एवॊ अत्मॊत प्रबावशारी भॊि हं । इस भॊि भं सभस्त रयत्रद्धमाॉ औय ससत्रद्धमाॉ त्रवद्यभान हं । हय जैन धभा नवकाय भॊि सभस्त जैन धभाावरॊत्रफमो का भुख्म भॊि है ।
के अनुमामी नवकाय भॊि का जऩ कयता हं । नवकाय भहाभॊि अथवा नभस्काय भहाभॊि भं स्जस
नभो अरयहॊ ताणॊ
ऩयभेद्षी बगवन्तं की आयाधना की जाती है उन बगवन्तं
नभो ससद्धाणॊ
भं तऩ, त्माग, सॊमभ, वैयाग्म इत्माफद सास्त्वक गुण होते
नभो आमरयमाणॊ
उऩाध्माम औय साधु, इन ऩाॉि बगवॊतं को ऩयभ इद्श भाना
हं । नवकाय भॊि के भाध्मभ से अरयहॊ त, ससद्ध, आिामा,
नभो उवज्झामाणॊ
हं । इससरमे इनको नभन कयने की त्रवसध को नवकाय
नभो रोएसव्वसाहूणॊ
हय भॊि अऩने आऩ भं यहस्म सरमे होता है , ऩयॊ तु नवकाय
भहाभॊि अथवा नभस्काय भहाभॊि कहा जाता है । वैसे तो भहाभॊि तो ऩयभ यहस्मभम हं ।
एसो ऩॊि नभुक्कायो सव्व ऩावप्ऩणासणो भॊगराणॊ ि सव्वेससॊ ऩढभॊ हवई भॊगरॊ अथा:
नवकाय भहाभॊि के असत फदव्म प्रताऩ से साधक के सभस्त द्ु ख सुख भं फदर जाता हं ।
जैन त्रवद्रानो के भत से नवकाय भॊि के स्भयण,
सिन्तन, भनन औय उच्िायण से ही भनुष्म के जन्भजन्भाॊतयं के ऩाऩं से भुि हो कय उसे शाद्वत सुख प्राद्ऱ होता हं ।
नवकाय भॊि जऩ के राब
अगस्त 2014
40 जफ कोई व्मत्रि श्रद्धा ऩूणा बाव से नवकाय भॊि का केवर एक अऺय उच्ियण कयता हं , तो उसके 7 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩो का नाश होता हं ।
जफ कोई व्मत्रि "नभो अरयहॊ ताणॊ" का उच्ियण कयत्ता हं , तो उसके 50 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं ।
जफ कोई व्मत्रि ऩूया नवकाय भॊि जऩता हं , तो उसके 500 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं ।
मफद कोई व्मत्रि प्रात् कार उठकय 8 नवकाय भॊि जऩता हं , तो उसके 4000 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं ।
सॊऩूणा नवकाय भॊि की 1 भारा सगनने से 54000 सागयोऩभ स्जतने ऩाऩ नद्श होते हं ।
(सागयोऩभ अथाात ् स्जसे सगनने भं कफठनाई हो इतने अयफं वषा।)
गबावती स्स्त्रमं के सरए इस भॊि का जाऩ कयना फच्िे के सरमे असत उत्तभ हं ।
जन्भ के सभम मफद फारक के कान भं मह भॊि सुनामा जामे तो उसे जीवन भं सुख-सभृत्रद्ध प्राद्ऱ होती हं ।
मफद फकसी जीव को भृत्मु के सभम नवकाय भॊि सुनामा जामे तो उसे सदगसत प्राद्ऱ होती हं ।
नवकाय भॊि की भफहभा अनॊत व अऩाय हं इसी सरमे नवकाय भॊि को शत्रिदामक, त्रवध्नत्रवनाशक, अत्मॊत प्रबावशारी व िभत्कायी हं ।
दे वदशान स्तोिभ ् दशानॊ दे वदे वस्म, दशानॊ ऩाऩनाशनभ ्।
अन्मथा शयणॊ नास्स्त, त्वभेव शयणॊ भभ।
दशानॊ स्वगासोऩानॊ, दशानॊ भोऺसाधनभ ्।1।
तस्भात्कारुण्म-बावेन, यऺ यऺ स्जनेद्वय।8।
दशानेन स्जनेन्द्राणाॊ, साधूनाॊ वॊदनेन ि।
न फह िाता न फह िाता, न फह िाता जगत्िमे।
न सियॊ सतद्षते ऩाऩॊ, सछद्रहस्ते मथोदकभ ्।2।
वीतयागात्ऩयो दे वो, न बूतो न बत्रवष्मसत ।9।
वीतयागभुखॊ द्रष्ट्वा, ऩद्मयागसभप्रबॊ। जन्भ-जन्भकृ तॊ ऩाऩॊ दशानेन त्रवनश्मसत।3।
स्जनेबत्रा ि् स्जनेबत्रा ि् स्जनेबत्रा ि् फदने फदने। सदा भेऽस्तु, सदा भेऽस्तु, सदा भेऽस्तु बवे बवे।10।
दशानॊ स्जनसूमस् ा म, सॊसाय-ध्वान्त-नाशनॊ।
स्जनधभा - त्रवसनभुि ा ो, भा बवेच्िक्रवत्मात्रऩ।
फोधनॊ सित्त-ऩद्मस्म, सभस्ताथा-प्रकाशनभ ्।4।
स्माच्िेटोऽत्रऩ दरयद्रोऽत्रऩ स्जनधभाानुवाससत्।11।
दशानॊ स्जनिॊद्रस्म, सद्धभााभत ृ -वषाणभ ्।
जन्भ-दाह-त्रवनाशाम, वद्धा नॊ सुख-वारयधे्।5।
जन्भ-जन्भकृ तॊ ऩाऩॊ, जन्भ-कोफटभुऩास्जातभ ्।
जन्भ-म्रत्मु-जया-योगॊ, हन्मते स्जन-दशानात ्।12।
जीवाफद तत्त्व प्रसतऩादकाम, सम्मक्त्व-भुख्माद्श-गुणाणावाम।
अद्याबवत्सपरता नमनद्रमस्म,
प्रशाॊत-रुऩाम फदगम्फयाम, दे वासधदे वाम नभो स्जनाम ।6।
दे व ! त्वदीम ियणाम्फुज वीऺणेन।
सिदानन्दै क-रुऩाम, स्जनाम ऩयभात्भने।
अद्य त्रिरोक-सतरकॊ ! प्रसतबासते भे,
ऩयभात्भ-प्रकाशाम, सनत्मॊ ससद्धात्भने नभ्।7।
सॊसाय-वारयसधयमॊ िुरुक-प्रभाणभ ्।13।
41
अगस्त 2014
बगवान भहावीय की भाता त्रिशरा के 16 अद्भत ु स्वप्न
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी जैन धभा के 24वे तीथंकय बगवान भहावीय के
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
जन्भ से ऩूवा आषाढ़ शुक्र षद्षी के फदन उनकी भाता
हुवे कहाॊ वह ऩुि सॊसाय का कल्माण कयने वारा
त्रिशरा नगय भं हो यही अद्द्बुत घटना के फाये भं सोि यही थीॊ। भाता त्रिशरा उसी फाये भं सोितेसोिते गहयी नीॊद भं सो गई। उसी यात्रि के अॊसतभ प्रहय भं भाता त्रिशरा ने सोरह शुब एवॊ भॊगरकायी स्वप्न दे खे। नीॊद से जागने ऩय यानी त्रिशरा ने भहायाज ससद्धाथा से अऩने सोहर स्वप्न के त्रवषम भं ििाा की औय उसका पर जानने की इच्छा प्रकट की। तफ भहायाजा ससद्धाथा ने भहायानी त्रिशरा द्राया
दे खे गए सऩनं की त्रवस्तृत जानकायी ज्मोसतष त्रवद्रानोकं दी, तफ त्रवद्रानं ने कहाॊ भहायाज भहायानी ने स्वप्न भं भॊगरभम प्रसतको के दशान फकए हं । त्रवद्रानं ने यानी से कहा फक वह एक-एक कय अऩने साये स्वप्न फताएॊ, स्जससे उसी प्रकाय उसका पर फताते गए। तफ भहायानी त्रिशरा ने अऩने साये स्वप्न उन्हं एक-एक कय त्रवस्ताय से सुनाएॊ जो इस प्रकाय हं .. 1. यानी को ऩहरे स्वप्न भं एक असत त्रवशार सपेद यॊ ग का हाथी फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ उनके घय एक अद्भुत ऩुि यत्न उत्ऩन्न होगा।
2. यानी को दस ू ये स्वप्न भं एक सपेद यॊ ग का वृषब फदखाई फदमा था।
होगा। 3.
यानी को तीसये स्वप्न भं सपेद यॊ ग औय रार फारं वारा ससॊह फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि ससॊह के सभान फरशारी होगा। 4. यानी को िौथे स्वप्न भं कभर आसन ऩय त्रवयाजभान रक्ष्भी का असबषेक कयते हुए दो हाथी फदखाई फदमे थे।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ दे वरोक से दे वगण आकय उस ऩुि का असबषेक कयं गे। 5. यानी को ऩाॊिवं स्वप्न भं दो सुगॊसधत ऩुष्ऩभाराएॊ फदखाई दी थी।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि धभा प्रिायक होगा औय जन-जन के सरए कल्माणकायी होगा।
6. यानी को छठे स्वप्न भं ऩूणा िॊद्रभा फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ उसके जन्भ से तीनं रोक आनॊफदत हंगे औय वह िॊद्रभा के सभान शीतर व सौम्म होगा।
42
अगस्त 2014
7.
12.
यानी को सातवं स्वप्न भं उदम होता सूमा फदखाई
यानी को फायहवं स्वप्न भं हीये -भोती औय यत्नजस़्डत
फदमा था।
स्वणा ससॊहासन फदखाई फदमा था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि सूमा के सभान तेजमुि ियौ औय
हुवे कहाॊ ऩुि याज्म का स्वाभी औय प्रजा का
8.
13.
यानी को आठवं स्वप्न भं कभर ऩिं से ढॊ के हुए दो
यानी को तेयहवं स्वप्न भं दे व त्रवभान फदखाई फदमा
स्वणा करश फदखाई फदमे थे।
था।
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
हुवे कहाॊ वह ऩुि अनेक सनसधमं का स्वाभी होगा।
हुवे कहाॊ इस जन्भ से ऩूवा वह ऩुि स्वगा का दे वता
ऻान का प्रकाश पैराने वारा होगा।
9. यानी को नौवं स्वप्न भं सयोवय भं क्रीिा कयती दो
फहतसिॊतक होगा।
होगा।
भछसरमाॊ फदखाई दी थी।
14. यानी को िौदहवं स्वप्न भं ऩृथ्वी को बेद कय
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
सनकरता नागं के याजा नागेन्द्र का त्रवभान फदखाई
हुवे कहाॊ वह ऩुि भहाआनॊद का दाता, दख ु ीका
फदमा था।
दख ु हताा होगा।
10. यानी को दसवं स्वप्न भं कभरं से बया सयोवय
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते हुवे कहाॊ वह ऩुि जन्भ से ही त्रिकारदशॉ होगा।
फदखाई फदमा था।
15. यानी को ऩन्द्रहवं स्वप्न भं यत्नं का ढे य फदखाई फदमा
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
था।
हुवे कहाॊ वह ऩुि शुब रऺणं से मुि एवॊ कभराकाय
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
11. यानी को ग्मायहवं स्वप्न भं रहयं उछारता सभुद्र
16. यानी को सोरहवं स्वप्न भं धुआॊयफहत अस्ग्न फदखाई
फदखाई फदमा था। ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न
दी थी।
का पर फताते हुवे कहाॊ ऩुि बूत-बत्रवष्म-वताभान का
ज्मोसतष शास्त्र के त्रवद्रानं ने स्वप्न का पर फताते
ससॊहासन त्रवयाजभान होगा।
ऻाता होगा।
हुवे कहाॊ वह ऩुि अनॊत गुणं से सॊऩन्न होगा।
हुवे कहाॊ वह ऩुि साॊसारयक कभं का अॊत कयके भोऺ (सनवााण) को प्राद्ऱ होगा।
अगस्त 2014
43
त्रवसबन्न िभत्कायी जैन भॊि
सिॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी िाय अऺयं का भॊि :1. अयहन्त 2. अ सस साहू ऩॊिाऺयी भॊि :अ सस आ उ सा षद्शाऺयी भॊि :1. अयहन्त ससद्ध 2. अयहन्त सस सा 3. ॐ नभ् ससद्धे भ्म 4. नभोहा स्त्सद्धे भ्म् सद्ऱाऺयी भॊि:ॐ श्रीॊ ह्रीॊ अहं नभ्। अद्शाऺयी भॊि:एका अऺय का भॊि :ॐ (ओभ ्)
ॐ शब्द की ध्वसन ऩाॊिो ऩयभेद्षी नाभं के ऩहरे अऺय को सभराने ऩय फनती हं । जैन भुसनमं के भत से अयहन्त का ऩहरा अऺय 'अ' जो अशयीयी अथाात ससद्ध का 'अ' हं । ओभ शब्द भं आिामा का 'आ', उऩाध्माम का 'उ', तथा भुसन अथाात साधु जनो का 'भ ्', इस प्रकाय सबी शब्दो को जोडने ॐ फनता हं ।
दो अऺयं का भॊि :1. ससद्ध 2. ॐ ह्रीॊ
ॐ नभो अरयहॊ ताणॊ। सोरह अऺयं का भॊि :अयहॊ त ससद्ध आइरयमा उवज्झामा साहू 35 अऺयं का भॊि :णभो अरयहॊ ताणॊ, णभो ससद्धाणॊ, णभो आइरयमाणॊ । णभो उवज्झामाणॊ, णभो
रोए सव्वसाहूणॊ
।।
रघु शास्न्त भॊि:ॐ ह्रीभ ् अहा भ ् अससआउसा सवाशास्न्तभ ् कुरु कुरु स्वाहा । भनोयथ ससत्रद्धदामक भॊि :ॐ ह्रीभ ् श्रीभ ् अहा भ ् नभ् ।
अगस्त 2014
44 योगनाशक भॊि :ॐ ऐभ ् ह्रीभ ् श्रीभ ् कसरकुण्डदण्डस्वासभने नभ् आयोग्मऩयभेद्वमाभ ् कुरु कुरु स्वाहा ।
(योग शाॊसत हे तु उि भन्ि को श्रीऩाद्वानाथ जी की प्रसतभा के सम्भुख शुद्धता व ् सनमभ से 108 फाय जऩ कयना असत राबदामक होता हं ।)
योग सनवायक भॊि :ॐ ह्रीॊ सकर-योगहयाम श्री सन्भसत दे वाम नभ् । योग सनवायक नवकाय भॊि :ॐ नभो आभोसफह ऩत्ताणॊ ॐ नभो खेरोसफह ऩत्ताणॊ ॐ नभो जेरोसफह ऩत्ताणॊ ॐ नभो सव्वोसफह ऩत्ताणॊ स्वाहा। (उि भॊि की प्रसतफदन एक भारा जऩ कयने से सवा प्रकाय के योगो की शाॊसत होती हं । योगी व्मत्रि के कद्श भे न्मूनता आती हं ।) भॊगरदामक भॊि :-
सवाससत्रद्धदामक भॊि :ॐ ह्रीॊ क्रीॊ श्री अहं श्री वृषबनाथ तीथंकयाम नभ् । (उि भन्ि के प्रसतफदन 108 फाय जऩ से साधक को
ॐ ह्रीभ ् वये सुवये अससआउसा नभ् स्वाहा ।
सभस्त कामं भं ससत्रद्ध प्राद्ऱ होती हं ।)
शुद्ध बावऩूवक ा जऩने से असधक राबप्रद होता हं ।)
भनोवाॊसछत कामाससत्रद्ध भॊि:-
ऐद्वमादामक भॊि :-
साहूणॊ भभ ऋत्रद्ध वृत्रद्ध सभीफहतॊ कुरु कुरु स्वाहा।
(उि भन्ि को एकान्त भं प्रसतफदन 108 फाय धूऩ के साथ,
ॐ ह्रीभ ् अससआउसा नभ् स्वाहा ।
(उि भन्ि को सूमोदम के सभम ऩूवा फदशा भं भुख कयके प्रसतफदन 108 फाय जऩ कयने से शीघ्र राबप्राद्ऱ होता हं ।) कल्माणकायी भॊि:ॐ अससआ उसा नभ्। (उि भॊि को ऩूवाासबभुख फेठ कय 1,25,000 जऩ कयने से शीघ्र परदामी होता हं व शाॊसत प्राद्ऱ होती हं । साधक के बम, करेश, द्ु ख दारयद्र दयू होते हं ।
ॐ ह्रीॊ नभो अरयहॊ ताणॊ ससध्धाणॊ सूयीणॊ उवजझामाणॊ (उि भॊि को प्रात् कार भूॊगे की भारा से धुऩ दे कय 3200
जऩ कयने से सवा काभनाएॊ ऩूणा होती हं ।)
सवाकाभना ऩूयण अहं भॊि:ॐ ह्रीॊ अहं नभ्। (उि भॊि को फकसी शुब फदन मा भूहूता ऩय ऩूवाासबभुख
फेठ कय मथाशत्रि जऩ कयं । 12,500 जऩ ऩूणा होने ऩय भॊि ससद्ध होता हं । साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होने रगती हं ।)
अगस्त 2014
45 सवाकाभना ऩूयण भॊि:-
सवाग्रह शास्न्त भॊि :-
ॐ ह्रीॊ श्रीॊ अहा अससआ उसा नभ्।
ॐ ह्राॊ ह्रीॊ ह्रूॊ ह्रं ह्र् अससआउसा सवा-शास्न्तॊ कुरु कुरु
(उि भन्ि की प्रसतफदन 1 भारा जऩ कयने से कल्ऩवृऺ के सभान सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं ।
स्वाहा ।
(उि भन्ि को सूमोदम के सभम जऩ कयने से शीघ्र शुब परो की प्रासद्ऱ होती हं ।)
सवा सॊऩत्रत्तदामक त्रिबुवन स्वाभीनी त्रवद्या भॊि:ॐ ह्रीॊ श्रीॊ ह्रीॊ क्रीॊ अससआ उसा िुरु िुरु हुरु हुरु कुरु कुरु भुरु भुरु इस्च्छमॊइ भे कुरु कुरु स्वाहा।
(फकसी ऩत्रवि स्थान ऩय साधक अऩने सम्भुख ऩाद्वानाथ बगवान की भूसता/पोटो स्थात्रऩत कयके धूऩ-दीऩ कये । िभेरी के 24,000 पूर रेकय, हय एक पूर ऩय एक भॊि का जऩ कयते हुवे पूर को बगवान को अऩाण कयते जामे। जऩ ऩूये होने ऩय भॊि ससद्ध हो जाता हं । फपय उि भॊि की प्रसतफदन एक भारा जऩ कये । जऩ से साधक को धन, वैबव, सॊतसत, सॊऩत्रत्त, ऩारयवायीक सुख इत्माफद की प्रासद्ऱ होती हं । त्रववाद त्रवजम भॊि:ॐ हॊ स ॐ ह्रीॊ अहं ऐॊ श्रीॊ अससआ उसा नभ्। (मफद फकसी से अनावश्मक वाद-त्रववाद हो जामे तो उसभे जीत हे तु उि भॊि को 21 फाय जऩने के ऩद्ळमात वादत्रववाद कयने ऩय जीत होती हं ।) करेश नाशक भॊि:ॐ अहं आससआ उसा नभ्। (उि भन्ि के सवाराख जऩ कयने से िभत्कायी ऩरयणाभ प्राद्ऱ होते हं ।) भनोवाॊसछत कामाससत्रद्ध भॊि:ॐ ह्राॊ ह्रीॊ ह्रूॊ ह्रं ह्र् अससआ उसा स्वाहा।
(उि भन्ि के सवाराख जऩ ऩूणा होने के ऩद्ळमात प्रसतफदन एक भारा जऩ कयने से भनोयथ ऩूणा होते हं ।)
शास्न्तकायक भॊि :1. ॐ ह्रीॊ ऩयभशास्न्त त्रवधामक श्री शास्न्तनाथाम नभ् । 2. ॐ ह्रीॊ श्री अनॊतानॊत ऩयभससद्धे भ्मो नभ् । घॊटाकणा भॊि :ॐ ह्रीॊ घॊटाकणो भहावीय, सवाव्मासध-त्रवनाशक् । त्रवस्पोटकबमॊ
प्राद्ऱे,
मि त्वॊ सतद्षसे दे व, योगास्ति प्रणश्मस्न्त,
यऺ
यऺ
भहाफर् ।1।
सरस्खतोऽऺय-ऩॊत्रिसब् । वात-त्रऩत्त-कपोद्भवा् ।2।
ति याजबमॊ नास्स्त, मस्न्त कणे जऩात्ऺमभ ् ।
शाफकनी बूत वेतारा, याऺसा् प्रबवस्न्त न ।3। नाकारे
भयणॊ
अस्ग्निौयबमॊ
तस्म, नास्स्त,
न ि सऩेण दॊ श्मते । ॐ
श्रीॊ
घॊटाकणा !
नभोस्तु ते ! ॐ नय वीय ! ठ् ठ् ठ् स्वाहा ।। (घॊटाकणा भहावीय का उि भॊि कसरमु भं तत्कार प्रबाव दे ने भं सभथा एवॊ िभत्कायी हं इस भन्ि का सनमसभत 21 फाय जऩ कयने से याज-बम, िोय-बम, अस्ग्न औय सऩा - बम, सफ प्रकाय की बूत-प्रेत-फाधा दयू होतं हं साधक
की सवा त्रवऩत्रत्त का स्वत् ही सनवायण होने रगता हं । ) सवायऺा भॊि :नवकाय भॊि के साथ अॊत भं ॐ ह्रीॊ ह्रूॊ पट् जोडकय जऩ कयने से मह भॊि सवा से आनॊददामक हं औय साधन की सबी उऩद्रवो से यऺा होती हं । रक्ष्भी प्रासद्ऱ एवॊ भनोकाभनाऩूणा कयने का भॊि :ॐ ह्रीॊ श्रीॊ क्रीॊ ऐॊ अहं श्री अ सस आ उ सा नभ् । (उि
भॊि को प्रात्कार 108 फाय जऩ ने से धन प्रासद्ऱ
होती हं ।)
अगस्त 2014
46 रक्ष्भी प्रासद्ऱ भॊि :-
भॊि ससद्ध दर ा साभग्री ु ब
ॐ ह्रीॊ ह्रं अहं नभो अरयहॊ ताणॊ ह्रीॊ नभ्। (फकसी शुब फदन मा भूहूता ऩय जऩ शुरु कयं । आसन,
भारा, वस्त्र ऩीरे यखे। 1,25,000 जऩ कयने से रक्ष्भी प्रसन्न होती हं । फपय मथा शत्रि योज 1 भारा जऩ कयं ।) नवग्रह शास्न्त हे तु भॊि :सूमा के सरए : ॐ णभो ससद्धाणॊ ।
(10 हजाय)
िन्द्र के सरए: ॐ णभो अरयहॊ ताण ।
(10 हजाय)
भॊगर के सरए: ॐ णभो ससद्धाणॊ ।
(10 हजाय)
फुध के सरए: ॐ णभो उवज्झामाण ।
(10 हजाय)
हत्था जोडी- Rs- 550, 730, 1450, 1900, 2800 ससमाय ससॊगी- Rs- 730, 1250, 1450, 2800 त्रफल्री नार- Rs- 370, 550, 730, 1250, 1450 कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 280, 550, 750, 1250, भोसत शॊख- Rs- 550, 750, 1250, 1900 भामा जार- Rs- 251, 551, 751
(गुरु) वृहस्ऩसत के सरए : ॐ णभो आइरयमाणॊ। (10 हजाय)
इन्द्र जार- Rs- 251, 551, 751, 1050
शुक्र के सरए: ॐ णभो अरयहॊ ताणॊ ।
(10 हजाय)
धनवृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251(कारी हल्दी के साथ
शसन के सरए: ॐ णभो रोए सव्व साहूणॊ ।
(10 हजाय)
Rs-550)
केतु के सरए : ॐ णभो ससद्धाणॊ ।
(10 हजाय)
याहू के सरए ससद्धाणॊ,
: ॐ णभो अरयहॊ ताणॊ,
ॐ णभो
ॐ णभो आइरयमाणॊ, ॐ णभो उवज्झामाण ॐ
णभो रोए सव्व साहूणॊ,
(10 हजाय)
भहाभृत्मुॊजम भन्ि :ॐ ह्राॊ णभो अरयहॊ ताणॊ । ॐ ह्रीॊ णभो ससद्धाणॊ, ॐ ह्रूॊ णभो आइरयमाणॊ, ॐ णभो
रोए
सनवायम
ह्रं
णभो
सव्वसाहूणॊ,
सनवायम
उवज्झामाणॊ,
ॐ
ह्र्
भभ सवा -ग्रहारयद्शान ्
अऩभृत्मुॊ
घातम
घातम
सवाशास्न्तॊ कुरु कुरु स्वाहा । (उि भन्ि को त्रवसध-त्रवधान से धूऩ-दीऩ जराकय ऩूणा सनद्षा
ऩूवक ा
इस
भॊि
का
स्वमॊ
जाऩ
कय
सकते
हं मा अन्म द्राया कयवा सकते हं । मफद अन्म व्मत्रि जाऩ कये तो 'भभ' के स्थान ऩय उस व्मत्रि का नाभ जोि रं स्जसके सरए जाऩ फकमा जायहा है । ) उि भॊि का सवा राख जाऩ कयने से ग्रह-फाधा दयू हो जाती है ।
जाऩ के अनॊतय दशाॊश आहुसत दे कय हवन कयना
िाफहए।
घोडे की नार- Rs.351, 551, 751 ऩीरी कौफिमाॊ: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 हकीक: 11 नॊग-Rs-111, 21 नॊग Rs-181 रघु श्रीपर: 1 नॊग-Rs-111, 11 नॊग-Rs-1111 नाग केशय: 11 ग्राभ, Rs-111 कारी हल्दी:- 370, 550, 750, 1250, 1450, गोभती िक्र Small & Medium 11 नॊग-75, 101, 151, 201, गोभती िक्र Very Rare Big Size : 1 नॊग- 51 से 1100 (असत दर ा फिे आकाय भं 5 ग्राभ से 41 ग्राभ भं ु ब उऩरब्ध)
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अगस्त 2014
47
जैन धभा के िौफीस तीथंकायं के जीवन का सॊस्ऺद्ऱ त्रववयण क्र
तीथंकाय
जन्भ
जन्भ
भाता
त्रऩता
वैयाग्म
प्रसतक
स्थान
नऺि
का नाभ
का नाभ
वृऺ
सिह्न
१
ऋषबदे वजी
अमोध्मा
उत्तयाषाढ़ा
भरूदे वी
नासबयाजा
वट वृऺ
फैर
२
अस्जतनाथजी
अमोध्मा
योफहणी
त्रवजमा
स्जतशिु
सऩाऩणा वृऺ
हाथी
३
सम्बवनाथजी
श्रावस्ती
ऩूवााषाढ़ा
सेना
स्जतायी
शार वृऺ
घोिा
४
असबनन्दनजी
अमोध्मा
ऩुनवासु
ससद्धाथाा
सॊवय
दे वदाय वृऺ
फन्दय
५
सुभसतनाथजी
अमोध्मा
भद्या
सुभॊगरा
भेधप्रम
त्रप्रमॊगु वृऺ
िकवा
६
ऩद्मप्रबुजी
कौशाम्फीऩुयी सििा
सुसीभा
धयण
त्रप्रमॊगु वृऺ
कभर
७
सुऩाद्वानाथजी
काशीनगयी
त्रवशाखा
ऩृथ्वी
सुप्रसतद्ष
सशयीष वृऺ
सासथमा
८
िन्द्रप्रबुजी
िॊद्रऩुयी
अनुयाधा
रक्ष्भण
भहासेन
नाग वृऺ
िन्द्रभा
९
ऩुष्ऩदन्तजी
काकन्दी
भूर
याभा
सुग्रीव
सार वृऺ
भगय
१०
शीतरनाथजी
बफद्रकाऩुयी
ऩूवााषाढ़ा
सुनन्दा
दृढ़यथ
प्रऺ वृऺ
कल्ऩवृऺ
११
श्रेमान्सनाथजी
ससॊहऩुयी
वण
त्रवष्णु
त्रवष्णुयाज
तंदक ु ा वृऺ
गंडा
१२
वासुऩुज्मजी
िम्ऩाऩुयी
शतसबषा
जऩा
वासुऩुज्म
ऩाटरा वृऺ
बंसा
१३
त्रवभरनाथजी
कास्म्ऩल्म
उत्तयाबाद्रऩद
शभी
कृ तवभाा
जम्फू वृऺ
शूकय
१४
अनन्तनाथजी
त्रवनीता
ये वती
सूवश ा मा
ससॊहसेन
ऩीऩर वृऺ
सेही
१५
धभानाथजी
यत्नऩुयी
ऩुष्म
सुव्रता
बानुयाजा
दसधऩणा वृऺ
वज्रदण्ड
१६
शाॊसतनाथजी
हस्स्तनाऩुय
बयणी
ऐयाणी
त्रवद्वसेन
नन्द वृऺ
फहयण
१७
कुन्थुनाथजी
हस्स्तनाऩुय
कृ त्रत्तका
श्रीदे वी
सूमा
सतरक वृऺ
फकया
१८
अयहनाथजी
हस्स्तनाऩुय
योफहणी
सभमा
सुदशान
आम्र वृऺ
भछरी
१९
भस्ल्रनाथजी
सभसथरा
अस्द्वनी
यस्ऺता
कुम्ऩ
कुम्ऩअशोक वृऺ
करश
२०
भुसनसुव्रतनाथजी
कुशाक्रनगय
श्रवण
ऩद्मावती
सुसभि
िम्ऩक वृऺ
कछुवा
२१
नसभनाथजी
सभसथरा
अस्द्वनी
वप्रा
त्रवजम
वकुर वृऺ
नीरकभर
२२
नेसभनाथजी
शोरयऩुय
सििा
सशवा
सभुद्रत्रवजम
भेषश्रृग ॊ वृऺ
शॊख
२३
ऩार्श्रवानाथजी
वायाणसी
त्रवशाखा
वाभादे वी
अद्वसेन
घव वृऺ
सऩा
२४
भहावीयजी
कुॊडरऩुय
उत्तयापाल्गुनी
त्रिशारा
ससद्धाथा
सार वृऺ
ससॊह
(त्रप्रमकारयणी)
अगस्त 2014
48
श्री भॊगराद्शक स्तोि (जैन) अहा न्तो बगवत इन्द्रभफहता्, ससद्धाद्ळ ससद्धीद्वया,
ज्मोसतव्मान्तय-बावनाभयग्रहे भेयौ कुराद्रौ स्स्थता्,
आिामाा् स्जनशासनोन्नसतकया्, ऩूज्मा उऩाध्मामका्।
जम्फूशाल्भसर-िैत्म-शस्खषु तथा वऺाय-रुप्माफद्रषु।
श्रीससद्धान्तसुऩाठका्, भुसनवया यत्निमायाधका्,
इक्ष्वाकाय-सगयौ ि कुण्डराफद द्रीऩे ि नन्दीद्वये ,
ऩञ्िैते ऩयभेत्रद्षन् प्रसतफदनॊ, कुवान्तु न् भॊगरभ ्॥1॥
शैरे मे भनुजोत्तये स्जन-ग्रहा् कुवान्तु न् भॊगरभ ्॥6॥
बास्वत्ऩादनखेन्दव् प्रविनाम्बोधीन्दव् स्थासमन्।
िम्ऩामाॊ वसुऩूज्मसुस्ज्जनऩते् सम्भेदशैरेऽहा ताभ ्।
श्रीभन्नम्र - सुयासुयेन्द्र - भुकुट - प्रद्योत - यत्नप्रबामे सवे स्जन-ससद्ध-सूमन ा ुगतास्ते ऩाठका् साधव्
कैराशे वृषबस्म सनव्रासतभही वीयस्म ऩावाऩुये,
शेषाणाभत्रऩ िोजामन्तसशखये नेभीद्वयस्माहा त्,
स्तुत्मा मोगीजनैद्ळ ऩञ्िगुयव् कुवान्तु न् भॊगरभ ्॥2॥
सनवााणावनम् प्रससद्धत्रवबवा् कुवान्तु न् भॊगरभ ्॥7॥
भुत्रि श्रीनगयासधनाथ - स्जनऩत्मुिोऽऩवगाप्रद्।
मो जात् ऩरयसनष्क्रभेण त्रवबवो म् केवरऻानबाक् ।
धभा सूत्रिसुधा ि िैत्मभस्खरॊ, िैत्मारमॊ श्रमारमॊ,
म् कैवल्मऩुय-प्रवेश-भफहभा सम्ऩफदत् स्वसगासब्
प्रोिॊ ि त्रित्रवधॊ ितुत्रवाधभभी, कुवान्तु न् भॊगरभ ्॥3॥
कल्माणासन ि तासन ऩॊि सततॊ कुवान्तु न् भॊगरभ ्॥8॥
श्रीभन्तो बयतेद्वय-प्रबृतमो मे िफक्रणो द्रादश।
सम्ऩद्येत यसामनॊ त्रवषभत्रऩ प्रीसतॊ त्रवधत्ते रयऩु्।
मे त्रवष्णु-प्रसतत्रवष्णु-राॊगरधया् सद्ऱोत्तयात्रवॊशसत्,
दे वा् मास्न्त वशॊ प्रसन्नभनस् फकॊ वा फहु ब्रूभहे ,
सम्मग्दशान-फोध-व्रत्तभभरॊ, यत्निमॊ ऩावनॊ,
नाबेमाफदस्जना् प्रशस्त-वदना् ख्माताद्ळतुत्रवंशसत्,
िैकाल्मे प्रसथतास्स्त्रषत्रद्श-ऩुरुषा् कुवान्तु न् भॊगरभ ्॥4॥ मे सवौषध-ऋद्धम् सुतऩसो वृत्रद्धॊ गता् ऩञ्ि मे,
मे िाद्शाॉग-भहासनसभत्तकुशरा् मेऽद्शात्रवधाद्ळायणा्।
मो गबाावतयोत्सवो बगवताॊ जन्भासबषेकोत्सवो,
सऩो हायरता बवत्मससरता सत्ऩुष्ऩदाभामते,
धभाादेव नबोऽत्रऩ वषासत नगै् कुवान्तु न् भॊगरभ ्॥9॥ इत्थॊ श्रीस्जन-भॊगराद्शकसभदॊ सौबाग्म-सम्ऩत्कयभ ्, कल्माणेषु भहोत्सवेषु सुसधमस्तीथंकयाणाभुष्।
ऩञ्िऻानधयास्त्रमोऽत्रऩ फसरनो मे फुत्रद्धऋत्रद्धद्वया्,
मे श्ररण्वस्न्त ऩठस्न्त तैद्ळ सुजनै् धभााथ-ा काभात्रवन्ता्,
सद्ऱैते सकरासिाता भुसनवया् कुवान्तु न् भॊगरभ ्॥5॥
रक्ष्भीयाश्रमते व्मऩाम-यफहता सनवााण-रक्ष्भीयत्रऩ ॥10॥
अथ नवग्रह शाॊसत स्तोि (जैन) जगद्गरु ु ॊ नभस्कृ त्मॊ, श्रुत्वा सद्गरु ु -बात्रषतभ ् ।
नेसभनाथो बवेद्राहो् केतु: श्रीभस्ल्रऩाद्वामो् ।।६।।
स्जनेन्द्रा: खेिया ऻेमा्, ऩूजनीमा त्रवसध् क्रभात ् ।
तदा सॊऩज ू मेद् धीभान,् खेियान सह तान ् सतनान ् ।।७।।
ऩद्मप्रबस्म भातंड-द्ळन्द्रद्ळन्द्रप्रबस्म ि ।
याहुकेतु भेयवाग्रे मा, स्जनऩूजात्रवधामक्॥८॥
ग्रहशास्न्तॊ प्रवच्मासभ, रोकोनाॊ सुखहे तवे ।।१।।
जन्भरग्नॊ ि यासशॊ ि, मफद ऩीिमस्न्त खेिया् ।
ऩुष्ऩै त्रवारेऩनै धूऩ ा ,ै नैवेद्यैस्तुत्रद्श हे तवे ।।२।।
आफदत्म सोभ भॊगर, फुध गुरु शुक्रे शसन:।
वासुऩज् ू मस्म बूऩि ु ो, फुधद्ळाद्शस्जनेसशनाभ ्।।३।।
स्जनान ् नभोग्नस्त्म फह, ग्रहाणाॊ तुत्रद्शहे तवे।
त्रवभरानन्त धभेश,् शास्न्त् कुन्थ्वयह् नसभ।
वधाभानस्जनेन्द्राणाॊ, ऩादऩद्मभ ् फुधो नभेत ् ।।४।। ऋषबास्जतसुऩाद्वाा-सासबनन्दनशीतरौ । सुभसत् सॊबवस्वाभी, श्रेमाॊसष े ु फृहस्ऩसत् ।।५।। सुत्रवधे् कसथत् शुक्रे, सुव्रतद्ळ शनैद्ळये ।
नभस्कायशतॊ बक्त्मा, जऩेदद्शोत्तयॊ शतभ ् ।।९।। बद्रफाहुगरु ु वााग्भी ऩॊिभ् श्रुतकेवरी ।
त्रवद्याप्रसाद:, ऩूण,ं ग्रहशास्न्त-त्रवसध-कृ ता ।।१०।। म् ऩठे त ् प्रातरुत्थाम, शुसिबूत्ा वा सभाफहत्। त्रवऩत्रत्ततो बवेच्छाॊसत ऺेभॊ तस्म ऩदे ऩदे ॥११॥
अगस्त 2014
49
॥ भहावीयाद्शक-स्तोिभ ् ॥ सशखरयणी छॊ द
त्रवसििात्भाप्मेको नृऩसत-वय-ससद्धाथा-तनम:।
मदीमे िैतन्मे भुकुय इव बावास्द्ळदसित:
अजन्भात्रऩ श्रीभान ्? त्रवगत-बव-यागोद्भत ु -गसत?
सभॊ बास्न्त ध्रौव्म व्मम-जसन-रसन्तोऽन्तयफहता:। जगत्साऺी भागा-प्रकटन ऩयो बानुरयव मो भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भं॥1॥
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥5॥ मदीमा वाग्गॊगा त्रवत्रवध-नम-कल्रोर-त्रवभरा फृहज्ऻानाभ्बोसबजागसत जनताॊ मा स्नऩमसत।
अताम्रॊ मच्िऺु: कभर-मुगरॊ स्ऩन्द-यफहतॊ
इदानीभप्मेषा फुध-जन-भयारै ऩरयसिता
जनान्कोऩाऩामॊ प्रकटमसत वाभ्मन्तयभत्रऩ।
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥6॥
स्पुटॊ भूसतामस् ा म प्रशसभतभमी वासतत्रवभरा भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥2॥
असनवाायोद्रे कस्स्त्रबुवन-जमी काभ-सुबट: कुभायावस्थामाभत्रऩ सनज-फराद्येन त्रवस्जत:
नभन्नाकंद्रारी-भुकुट-भस्ण-बा जार जफटरॊ
स्पुयस्न्नत्मानन्द-प्रशभ-ऩद-याज्माम स स्जन:
रसत्ऩादाम्बोज-द्रमसभह मदीमॊ तनुबत ृ ाभ ्?।
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥7॥
बवज्ज्वारा-शान्त्मै प्रबवसत जरॊ वा स्भृतभत्रऩ भहावीय स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥3॥ मदच्िाा-बावेन प्रभुफदत-भना ददा यु इह
भहाभोहातक-प्रशभन-ऩयाकस्स्भक-सबषक? सनयाऩेऺो फॊधु त्रवाफदत-भफहभा भॊगरकय:। शयण्म: साधूनाॊ बव-बमबृताभुत्तभगुणो
ऺणादासीत्स्वगॉ गुण-गण-सभृद्ध: सुख-सनसध:। रबन्ते सद्भिा: सशव-सुख-सभाजॊ फकभुतदा भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥4॥
भहावीय-स्वाभी नमन-ऩथ-गाभी बवतु भे॥8॥ भहावीयाद्शकॊ स्तोिॊ बक्त्मा बागेन्द ु ना कतभ।
म: मठे च्रणुमाच्िात्रऩ स मासत ऩयभाॊ गसतभ॥9॥
कनत्स्वणााबासोऽप्मऩगत-तनुऻाान-सनवहो
भॊि ससद्ध भूॊगा गणेश:
भूॊगा गणेश को त्रवध्नेद्वय औय ससत्रद्ध त्रवनामक के रूऩ भं जाना जाता हं । इस के ऩूजन से
जीवन भं सुख सौबाग्म भं वृत्रद्ध होती हं ।यि सॊिाय को सॊतुसरत कयता हं । भस्स्तष्क को तीव्रता प्रदान कय व्मत्रि को ितुय फनाता हं । फाय-फाय होने वारे गबाऩात से फिाव होता हं । भूॊगा गणेश से फुखाय, नऩुॊसकता , सस्न्नऩात औय िेिक जेसे योग भं राब प्राद्ऱ होता हं ।
भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि: भॊगर
भूल्म Rs: 550 से Rs: 8200 तक >> Order Now मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता
हं , इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं ।
त्रववाह आफद भं भॊगरी
जातकं के कल्माण के सरए भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की कभी, गबाऩात से फिाव, फुखाय, िेिक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि के दद्श ा नाओॊ, हभरा, िोयी इत्मादी से फिाव होता हं । ु प्रबा, बूत-प्रेत बम, वाहन दघ ु ट
भूल्म भाि Rs- 730
अगस्त 2014
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॥ भहावीय िारीसा ॥ दोहा ससद्ध सभूह नभं सदा, अरु सुभरूॊ अयहन्त । सनय आकुर सनवांच्छ हो, गए रोक के अॊत ॥ भॊगरभम भॊगर कयन, वधाभान भहावीय । तुभ सिॊतत सिॊता सभटे , हयो सकर बव ऩीय ॥
भहाभत्त गज भद को झायै ,
सगयी सुभेय फकमो असबषेखा ।
बगै तुयत जफ तुझे ऩुकायै ।
काभाफदक तृष्णा सॊसायी,
पाय डाढ़ ससॊहाफदक आवै,
तज तुभ बए फार ब्रह्मिायी ।
ताको हे प्रबु तुही बगावै ।
असथय जान जग असनत त्रफसायी,
होकय प्रफर अस्ग्न जो जायै ,
फारऩने प्रबु दीऺा धायी ।
तुभ प्रताऩ शीतरता धायै ।
शाॊत बाव धय कभा त्रवनाशे,
शस्त्र धाय अरय मुद्ध रिन्ता,
तुयतफह केवर ऻान प्रकाशे ।
तुभ प्रसाद हो त्रवजम तुयन्ता ।
जि-िेतन िम जग के साये ,
ऩवन प्रिण्ड िरै झकझोया, प्र
हस्त ये खवत ्? सभ तू सनहाये ।
बु तुभ हयौ होम बम िोया ।
रोक-अरोक द्रव्म षट जाना,
झाय खण्ड सगरय अटवी भाॊहीॊ,
द्रादशाॊग का यहस्म फखाना ।
जम भहावीय दमा के सागय,
तुभ त्रफनशयण तहाॊ कोउ नाॊहीॊ ।
ऩशु मऻं का सभटा करेशा,
शाॊत छत्रव भूयत असत प्मायी,
भूसरधाय होम तिकावै ।
अनेकाॊत अऩरयग्रह द्राया,
होम अऩुि दरयद्र सॊताना,
सवाप्रास्ण सभबाव प्रिाया ।
सुसभयत होत कुफेय सभाना ।
ऩॊिभ कार त्रवषै स्जनयाई,
फॊदीगृह भं फॉधी जॊजीया,
िाॊदनऩुय प्रबुता प्रगटाई ।
कठ सुई असन भं सकर शयीया ।
ऺण भं तोऩसन फाफढ-हटाई,
याजदण्ड करय शूर धयावै,
बिन के तुभ सदा सहाई ।
ताफह ससॊहासन तुही त्रफठावै ।
भूयख नय नफहॊ अऺय ऻाता,
न्मामाधीश याजदयफायी,
सुभयत ऩॊफडत होम त्रवख्माता ।
िौऩाई जम श्री सन्भसत ऻान उजागय । वेष फदगम्फय के तुभ धायी । कोफट बानु से असत छत्रफ छाजे, दे खत सतसभय ऩाऩ सफ बाजे । भहाफरी अरय कभा त्रवदाये , जोधा भोह सुबट से भाये । काभ क्रोध तस्ज छोिी भामा, ऺण भं भान कषाम बगामा। यागी नहीॊ नहीॊ तू द्रे षी, वीतयाग तू फहत उऩदे शी । प्रबु तुभ नाभ जगत भं साॊिा, सुभयत बागत बूत त्रऩशािा । याऺस मऺ डाफकनी बागे, तुभ सिॊतत बम कोई न रागे । भहा शूर को जो तन धाये , होवे योग असाध्म सनवाये । व्मार कयार होम पणधायी, त्रवष को उगर क्रोध कय बायी । भहाकार सभ कयै डसन्ता, सनत्रवाष कयो आऩ बगवन्ता ।
वज्रऩात करय घन गयजावै,
त्रवजम कये होम कृ ऩा तुम्हायी । जहय हराहर दद्श ु त्रऩमन्ता,
अभृत सभ प्रबु कयो तुयन्ता । िढ़े जहय, जीवाफद डसन्ता, सनत्रवाष ऺण भं आऩ कयन्ता । एक सहस वसु तुभये नाभा, जन्भ सरमो कुण्डरऩुय धाभा । ससद्धायथ नृऩ सुत कहराए, त्रिशरा भात उदय प्रगटाए । तुभ जनभत बमो रोक अशोका, अनहद शब्दबमो सतहुॉरोका ।
इन्द्र ने नेि सहस्रो करय दे खा,
दमा धभा दे कय उऩदे शा ।
सोयठा कये ऩाठ िारीस फदन सनत िारीसफहॊ फाय । खेवै धूऩ सुगन्ध ऩढ़, श्री भहावीय अगाय ॥ जनभ दरयद्री होम अरु स्जसके नफहॊ सन्तान । नाभ वॊश जग भं िरे होम कुफेय सभान ॥
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अगस्त 2014
जफ भहावीय ने एक ज्मोसतषी को कहाॊ तुम्हायी त्रवद्या सच्िी है ?
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी .
बगवान भहावीय के सभम भं ऩुष्म नाभ का एक
ऩुष्म ज्मोसतषी ने भहावीय से ऩूछा "मे ऩदसिह्न तो आऩके
फिा सुप्रससद्ध ज्मोसतषी था। उसका ज्मोसतष ऻान इतना
भारूभ होते हं ?"
सटीक यहता था फक ऩुष्मको अऩने ज्मोसतष ऻान ऩय ऩूया
भहावीय फोरे: "हाॉ।"
त्रवद्वास था। दयू दे श से रोग उससे ज्मोसतष त्रवद्या के
ऩुष्म कहने रगे "भुझे अऩने ज्मोसतष ऩय बयोसा हं ।
ऩुष्म ज्मोसतषी जो कह दे ते, वस्तुत् सच्िा ऩि
रगता है फक आऩ िक्रवतॉ सम्राट हो। रेफकन आऩको
जाता। ज्मोसतषी त्रवद्या भं वहॊ इतने तेज थे की रोगं के
फेहार दे खकय दमा आती है फक आऩ सबऺुक हो। भेयी
ऩदसिह्न की ये खाएॉ दे खकय बी वह रोगं की स्स्थसत फता
त्रवद्या आज झूठी कैसे ऩिी ?"
सकते थे। ऐसे फफढ़मा कुशाग्र ज्मोसतषी थे।
भहावीय भुस्कयाकय फोरे् "तुम्हायी त्रवद्या झूठी नहीॊ है ,
त्रवषम भं ऩूछने आते थे।
उन फदनं भं वधाभान (बगवान भहावीय) घय फदन
आज तक भेया ज्मोसतष झूठा नहीॊ ऩिा। ऩदसिह्नं से
सच्िी है ।
भं तो भ्रभब कयते औय जैसे सॊध्मा होती, अॊधेया होते ही
एक फात फताओॊ िक्रवतॉ को क्मा होता है ?"
एकान्त खोजकय फैठ जाते। थोिी दे य आयाभ कय रेते
ऩुष्म फोरे: "उसके ऩास ध्वजा होती है , कोष होता है ,
फपय फैठकय िुऩिाऩ, ध्मान भं स्स्थय हो जाते।
उसके ऩास सैन्म होता है । आऩ तो फेहार हो"
ऩुष्म ज्मोसतषी ने दे खा की ये त ऩय फकसी के
भहावीय फपय भुस्कयाकय फोरे् "धभा की ध्वजा भेये ऩास
ऩदसिह्न हं । ऩदसिह्नं को ध्मान से ऩयखा ओय ज्मोसतष
है । कऩिे की ध्वजा ही सच्िी ध्वजा नहीॊ है । सच्िी
त्रवद्या से जाना की मे तो िक्रवतॉ के ऩदसिह्न हं । िक्रवतॉ
ध्वजा तो धभा की ध्वजा है । भेये ऩास सदत्रविायरूऩी
मदी महाॉ से गुजये है तो उनके साथ भं भॊिी होने िाफहए,
सैन्म है जो कुत्रविायं को भाय बगाता है । ऺभा भेयी यानी
िाफहए। ऩदसिह्न िक्रवतॉ के औय साथ भं कोई औय
ऻान का प्रकाश भेया िक्र है ।
ससिव होने िाफहए, अॊगयक्ष्क होने िाफहए, ससऩाही होने ऩदसिह्न नहीॊ मह सम्बव नहीॊ हो सकता।
ऩयॊ तु ऩुष्म ज्मोसतषी ऩहूॊिा हुवा ज्मोसतष था
उसको अऩनी ज्मोसतष त्रवद्या ऩय ऩूया बयोसा था। उसकी
नीॊद हयाभ हो गमी। िाॉदनी यात थी इस सरमे जहाॉ तक िर सका ऩदसिह्न दे खता हुआ िरा, फपय कहीॊ रुक कय
आयाभ कय सरमे। फपय सुफह-सुफह जल्दी िरना िारू फकमा। उसेतो खोजना था, ऩदसिह्न कहाॉ जा यहे हं । दे खा फक त्रफना कोई साधन के, एक व्मत्रि शाॊत बाव भं फैठा हुआ है । ऩदसिह्न वहीॊ ऩूये होते हं । उसके इदा सगदा दे खा, िेहये ऩय दे खता यहा। इतने भं भहावीय की आॉख खुरी। अफतक
ज्मोसतषी
सिन्ता
भं
डू फता
जा
यहा
था।
है । िक्रवतॉ के आगे िक्र होता है तो सभता भेया िक्र है , ज्मोसतषी ! क्मा मह जरूयी है फक फाहय का िक्र ही
िक्रवतॉ के ऩास हो ? फाहय की ही ध्वजा हो ? धभा की बी
ध्वजा हो सकती है । धभा का बी कोष हो सकता है । ध्मान औय ऩुण्मं का बी कोई खजाना होता है ।
याजा वह स्जसके ऩास बूसभ हो, सत्ता हो। सुफह जो सोिे
तो शाभ को ऩरयणाभ आ जाम। ऻानयाज्म भं भेयी सनद्षा है । जो बी भेये भागा भं प्रवेश कयता है , सुफह को ही िरे
तो शाभ को शाॊसत का एहसास हो जाता है , थोिा फहुत ऩरयणाभ आ जाता है । मह भेयी ऻान की बूसभ है ।" जो
ज्मोसतषी हाया हुआ सनयाश होकय जा यहा था वह सन्तुद्श होकय, सभाधान ऩाकय प्रणाभ कयता हुआ फोरा् "हाॉ भहायाज ! इस यहस्म का भुझे आज ऩता िरा। भेयी त्रवद्या बी सच्िी औय आऩका भागा बी सच्िा है ।"
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गौतभ केवरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी)
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी हो वह ऩाय ऩिे गा। जभीन से तुभको राब होगा।
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की असबराषा है , वह ऩूणा होगी। धासभाक कामा सम्ऩन्न
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113: आऩका अबीद्श प्रद्ल अच्छा है । तुम्हाये फदर को
आभदनी से खिा असधक होता है । तीथं की मािा कयने होगा। आयाभ सभरेगा। सुख-िैन प्राद्ऱ कयोगे। जो कामा भन भं
उऩय दशााएॊ गमे अॊक शकुनावरी प्रद्लावरी से उत्तय प्राद्ऱ कयने से ऩूवा शुद्ध एवॊ ऩत्रवि होकय अऩने इद्श
सोिा है , उसभं त्रवजम प्राद्ऱ कयोगे। त्रप्रमजनं का सभराऩ होगा। सिन्ता के फदन सनकर िुके हं तथा अफ अच्छे
दे व का स्भयण कयते हुवे उऩय दशााएॊ गमे अॊक कोद्शको भं
फदन आए हं । धभा के प्रबाव से सुखी हुए हो तथा आगे
यखं। स्जस कोद्शक ऩय आऩने अॊगुरी अथवा शराका यखी
कामा कयते हो ऩयन्तु अऩने कामा भं सुस्ती यखते हो।
से फकसी एक कोद्शक ऩय अऩनी अॊगुरी अथवा शराका हं उस कोद्शक भं अॊफकत सॊख्मा के अनुसाय आऩके अबीद्श प्रद्ल का हर नीिे क्रभश् अॊको भं फदमा गमा हं । 111: आऩने जो प्रद्ल त्रविाया है वह सपर होगा। तुम्हाये खयाफ फदनं का नाश होकय अच्छे फदन आए हं । भन की काभनाएॉ ऩूणा हंगी। त्रवत्रवध प्रकाय की सिॊताएॉ भन भं
बी सुख प्राद्ऱ कयोगे। कद्श सहन कयते हुए बी दस ू ये का फुत्रद्ध तेज है , त्रफगिे कामा को बी सुधाय रेते हो। बत्रवष्म भं राब सभरेगा। 121: आऩका त्रविाया हुआ प्रद्ल राबदामक है । फहुत
फदनं तक द्ु ख सहन कयने से सनयाश हो गए हो, फुये फदन सनकर गए हं औय अफ शुब फदन आए हं । भन की
यहती हं , वे अफ थोिे फदनं भं नाश हो जाएॉगी। एक सभि
इच्छाएॉ परीबूत हंगी। स्जतनी रक्ष्भी गॊवाई है उससे बी
ऩाऩकभा से त्रवघ्न आता है । आभदनी से खिा असधक
सिन्ता सभट जामेगी, उसभं एक व्मत्रि त्रवघ्न उऩस्स्थत
के धोखे को बोग यहे हो। धभा कामा की इच्छा है , ऩयन्तु यहता है । कोई कामा ससद्ध होने को आता है , तो शिु उसभं त्रवघ्न डार दे ते हं । दान-ऩुण्म कयो। स्जससे भन की असबराषा ऩूणा होगी। त्रवयोधी िाहे फकतनी कोसशश कयं , ऩयन्तु
तुम्हायी
धायणा
अवश्म
परीबूत
होगी।
112: आऩका अबीद्श प्रद्ल राबदामक है । धन की प्रासद्ऱ होगी। बाग्मोदम के फदन अफ नजदीक आ गए हं । स्जस कामा को हाथ भं रोगे, उसभं जम प्राद्ऱ कयोगे। त्रप्रमजन का सभराऩ होगा। धभा के कामा कयते यहो, स्जससे ऩुण्म की प्रासद्ऱ होगी तथा सुख बी सभरेगा। भन सिस्न्तत यहता है । बाइमं से जुदाई होगी। भकान फनाने का इयादा कयते
असधक प्राद्ऱ कयोगे। स्जस काभ की सिन्ता कयते हो वह कयने आमेगा, फकन्तु अन्त भं तुभको सपरता प्राद्ऱ होगी। बाइमं तथा सम्फस्न्धमं का सनबाव कयते हो, स्जससे तुम्हायी कीसता फढ़ी है । फदर के उदाय हो, जहाॉ जाते हो वहाॉ सुख सभरता है । 122: आऩने जो काभ त्रविाया है , उसभं सपरता नहीॊ सभर ऩाएगी। आऩने आज तक फहुतं का बरा फकमा है ।
अशुब कभा के उदम से त्रवघ्न उऩस्स्थत होते हं । जहाॉ तक फन सके वहाॉ तक धभा कयो। अऩने इद्शदे व की मथाशत्रि आयाधना तथा भन्ि का जऩ कयो, स्जससे तकरीप दयू होगी।
अगस्त 2014
53 123: आऩके अबीद्श कामा भं सपरता अवश्म सभरेगी।
जभीन खयीदने का तुम्हाया इयादा सपर होगा। तुभको
इतने ऩाऩकभा के थे तथा आऩने भहान सॊकट उठामे हं ।
जभीन से राब है । बाग्मफर से कामा ससद्ध हंगे।
अफ शुब फदन आए हं । फहुतं का बरा फकमा, फकन्तु
213: द्ु ख के फदन अफ दयू हो गए हं । सुख के फदन
हुआ ऩैसा घय भं न यखो। तीथं की मािा कयो, स्जस
तो बी सुख की प्रासद्ऱ न हुई, फकन्तु अफ सुख बोगने के
उन्होनं उऩकाय न भाना। धभा के सनसभत्त का सनकारा स्थान ऩय द्ु खी हुए हो, उस स्थान का त्माग कयो, दस ू ये
स्थान भं जाकय यहो। ऩयदे श भं राब होगा। तुम्हाया फदर सिन्ता भं डू फा यहता है । अफ शुब कभा का उदम हुआ है । त्रविाये
हुए कामा भं सपरता एवॊ धन प्राद्ऱ होगा।
131: जो फात आऩने सोिी है वह अवश्म ससद्ध होगी, स्जसका नुकसान हुआ है वह दयू होकय बत्रवष्म भं राब
होगा। धन सभरेगा। तुम्हाये हाथ से धभा के कामा हंगे। स्जस भनुष्म से भुराकात िाहते हो वह होगी। सिन्ता के फदन अफ गए हं । धातु, धन, सम्ऩत्रत्त औय कुटु म्फ की वृत्रद्ध होगी। 132: आज तक तुम्हाये फिे -फिे दश्ु भन हुए अफ उनका
जोय नहीॊ िरेगा। भन भं त्रविाये हुए कामं भं सपरता प्राद्ऱ कयोगे। इज्जत भं वृत्रद्ध होगी। तुम्हाये हाथं से धभा
के कामा हंगे, भन वाॊसछत सुख की प्रासद्ऱ होगी। बाइमं का सभराऩ होगा। दान-ऩुण्म के प्रबाव से सुखी हंगे। 133: इतने फदन सॊकट यहा। सिॊसतत कामा अच्छी तयह से ऩाय न ऩिा, अफ अच्छे फदनं की शुरुआत हुई है , जो कामा त्रविाया है वह परीबूत होगा, फकसी बी प्रकाय का त्रवघ्न नहीॊ आमेगा। इद्शदे व के प्रबाव से रक्ष्भी प्राद्ऱ होगी, त्रप्रमजन से अिानक राब होगा। 211: तुभने भन भं स्जस कामा का त्रविाय फकमा है , वह सपर नहीॊ होगा। इसके ससवाम कोई दस ू या काभ कयो। तीथं की मािा कयो, स्जससे ऩुण्म का राब हो। दश्ु भन रोग तुभको फाधाएॉ डारते हं ।
212: त्रविाया हुआ कामा होगा। प्रेसभका से राब होगा।
कुटु म्फ की वृत्रद्ध होगी। फहुत भुद्दत से त्रविाया हुआ कामा होगा। दश्ु भन तुम्हाये त्रवरुद्ध कोसशश कयं गे, फकन्तु तुम्हाये
सद्भाग्म के आगे उनका जोय नहीॊ िरेगा। तीथं की मािा कयने की इच्छा है वह हो सकेगी। भकान फनाने का तथा
शुरु हुए हं । फहुत फदनं से कद्श उठा यहे हो, ऩयदे श गए फदन प्राद्ऱ हुए हं । आफरु फढ़े गी, सॊतान का सुख होगा। इतने फदनं सभिं तथा कुटु म्फी जनं की तयप से द्ु ख
सहन फकमा। जहाॉ तक फना दस ू यं का बरा फकमा, ऩयन्तु
उन रोगं ने गुण नहीॊ भाना। शिु रोग ऩग-ऩग ऩय तैमाय यहते हं , फकन्तु उनका जोय नहीॊ िरता क्मंफक तुम्हाया बाग्म फरवान ् है । ऩास भं धन थोिा है , फकन्तु
इज्जत अच्छी है , इससरमे स्जतना प्राद्ऱ कयने का त्रविाय कयोगे उतना प्राद्ऱ कय सकोगे। सभि रोगं से जैसा िाफहए वैसा सुख नहीॊ है । इज्जत आफरु के सरमे खिा फहुत कयते हो। तुम्हाया धभा सुधया हुआ है , इससरए धभा ऩय श्रद्धा यखो।
221: इतने फदन गए वे अच्छे गए, जो जो कामा फकए वे बी ऩाय ऩि गए, फकन्तु अफ जो कामा फदर भं त्रविाया है वह ऩाऩ कभा के उदम से ऩूणा नहीॊ होगा। सभि रोग बी शिु हो जाएॉगे। कुटु म्फ भं अनफन यहे गी, बाई जुदा हंगे। जो काभ फदर भं त्रविाया है , उसका त्माग कयना ही श्रेद्ष है । धभा ऩय श्रद्धा यखो, इद्शदे व की सेवा कयो, दान-ऩुण्म के प्रबाव से सुख सभरेगा। 222: जो काभ भन भं त्रविाया है , उसको छोिकय दस ू या काभ कयो। मफद इस त्रविाये हुए कामा को कयोगे तो सॊकट उत्ऩन्न होगा, नुकसान होगा, शिु रोग त्रवघ्न उऩस्स्थत कयं गे। इद्शदे व की सेवा कयो, तीथं ऩय जाओ, स्जससे दस ू ये
कामा बी सुधयं गे। फदर भं त्रवत्रवध प्रकाय की
सिन्ताओॊ ने वास फकमा है , वह त्रविाये हुए कामा को छोि दे ने से दयू होगी।
223: मह सवार अच्छा है , सुख के फदन नजदीक आए हं । व्माऩाय से धन प्राद्ऱ होगा, ऐशो-आयाभ प्राद्ऱ कयोगे। ऩत्नी का सुख प्राद्ऱ कयोगे तथा सॊतान की वृत्रद्धहोगी, जो कामा कयोगे उसभं राब प्राद्ऱ कयोगे। ईभानदायी से काभ
54 कयते हो तो अन्त भं बरा ही होगा। धभा के प्रबाव से सुखी हंगे, इससरमे धभा को बूरना भत, धभा के कामं भं सुस्ती यखना ठीक नहीॊ। 231: स्जस कामा के सरए भन भं त्रविाय फकमा है , वह
अगस्त 2014
धभा ऩय श्रद्धा यखो स्जससे सॊकट दयू हं। अऩने हाथ से रक्ष्भी प्राद्ऱ कयोगे।
312: जो कामा त्रविाया है उसे छोिकय कोई दस ू या काभ
कयो अन्मथा शिु रोग त्रवघ्न डारंगे, दौरत की खयाफी
कामा तीन भास भं होगा। अऩनी स्त्री की तयप से राब
होगी, घय के भनुष्मं तथा ऩशुओॊ ऩय सॊकट आएगा,
होगा। आज तक कुटु म्फीजनं की तयप से सुख नही
इससरए त्रविाये हुए कामा को छोि दे ना ही उसित है । धभा
सभरा, फकन्तु बत्रवष्म भं सभरेगा। सॊतानं की वृत्रद्ध होगी।
के प्रबाव से सफ कामा सपर होते हं । सनयासश्रतं को
ससुयार के खिा की सिन्ता है , सो सभट जाएगी। आफरु
आश्रम दो तथा दे वासधदे व का स्भयण कयो स्जससे सुखी
के सरए आभदनी से खिा असधक कयना ऩिता है । तीथं
हंगे।
की मािा कयने का इयादा है , फकन्तु त्रवघ्न आता है ।
313: मह प्रद्ल अच्छा है । धन तथा स्त्री से सहमोग एवॊ
बत्रवष्म भं धभा कामा कय सकोगे। रृदम भं स्जस कामा की
सुख सभरेगा। सॊतान से सुख सभरेगा। सॊतान होगी,
सिन्ता है , वह धभा के प्रबाव से दयू हो जाएगी, इससरए
त्रप्रमजन का सभराऩ होगा। अभुक भुद्दत की धायी हुई
232: जो काभ त्रविाया है , उसे छोिकय कोई दस ू या काभ
गुरु तथा धभा की सेवा कयो। दश्ु भन रोग सताते हं ,
धभा ऩय श्रद्धा यखो, स्जससे सपरता प्राद्ऱ कय सकोगे।
कयो। त्रविाये हुए कामा को कयने भं राब नहीॊ है , मफद कयोगे तो तुभको तुम्हाया स्थान छोिकय दस ू ये स्थान ऩय
धायणा सपर होगी। सिन्ता के फदन अफ दयू हुए हं । दे व फकन्तु अफ तुम्हाया प्रायब्ध फरवान ् फना है स्जससे इन
रोगं का जोय नहीॊ िरेगा। जभीन से राब होगा। कीसता
जाना ऩिे गा, कुटु म्फीजनं का त्रवमोग होगा। इससरए
के सरए खिा असधक कयना ऩिता है । सभिं से राब
उसित है फक इस कामा को छोि दो। धभा भं होसशमाय
होगा।
यहना तथा अऩनी शत्रि के अनुसाय दान-ऩुण्म कयना
321: जभीन, भकान अथवा फाग-फगीिे से राब होगा।
स्जससे सुख हो।
धन प्राद्ऱ कयोगे, स्नेही जन से सभराऩ होगा। फकसी बी
233: थोिे फदनं भं धन सभरेगा। जो काभ त्रविाया है ,
भनुष्म के साथ सभिता होगी औय उसके द्राया धनाफद की
वह ऩूणा होगा। त्रप्रमजनं से सभराऩ होगा। जभीन, जागीय
प्रासद्ऱ होगी। ऩुण्म के उदम से इच्छाएॉ ऩयीऩूणा होगी। धभा
अथवा भकान से राब होगा। आफरु फढ़े गी। धभा कामं भं
का आयाधन कयो। दश्ु भन रोग ऩग-ऩग ऩय तैमाय यहं गे,
खिा कयो। उसके प्रताऩ से सुख-िैन यहे गा। याज्मऩऺ से
फकन्तु सन्भुख होने से उनका जोय नहीॊ िरेगा। अऩनी
राब होगा। भन की धायणा ऩूणा होगी। स्त्री की तयप से
शत्रि के अनुसाय खिा कयो। भकान फनाने के भनोयथ
सुख है । एक सभम अकस्भात ् राब सभरेगा।
परीबूत हंगे। धन ऩैदा कयते हो, फकन्तु खिा असधक
311: मह सवार फहुत ही गयभ है । स्जस कामा का
होने से इकट्ठा नहीॊ होता है , त्रऩता से धन थोिा सभरेगा।
त्रविाय फकमा है , वह ऩूणा होगा। भुकदभा जीत जाओगे,
स्त्री की तयप से राब होगा। वृद्धावस्था भं धभा के कामा
व्माऩाय योजगाय भं राब होगा। कीसता फढ़े गी, याज्म की
फन सकते हं ।
तयप से राब होगा। धभा के प्रबाव से सुख सभरा है तथा
322: जो कामा आऩने भन भं त्रविाया है , उसभे शिु रोग
बत्रवष्म भं बी सभरेगा। दस ू यं के कामा ऩरयश्रभ से ऩूया
त्रवघ्न डारंगे, ऩरयणाभ अच्छा नहीॊ। याज्म की तयप से
कयते हो, फकन्तु अशुब कभा उफदत होने से अऩने कभा भं
नायाजगी होगी मफद सुखी होना िाहते हो, तो त्रविाया
उदासीन यहते हो, त्रवदे श मािा होगी औय वहाॉ राब होगा।
हुआ कामा छोिकय दस ू या कामा कयो, तुम्हाये सहमोगी
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55 फदर गए हं , उनका त्रवद्वास भत कयना। बजन-ऩूजन,
332: फुये फदन गए अफ अच्छे फदन आए हं । जभीन तथा
व्रत-सनमभ भं ध्मान दो।
धन-दौरत भं जो हासन हुई है , वह सभट जाएगी तथा
323: स्जस कामा का भन भं त्रविाय फकमा है , उसभं राब होगा, इच्छा ऩूणा होगी, स्नेही का सभराऩ होगा, जो जो सिन्ताएॉ उऩस्स्थत हुई हं , वे सफ दयू हंगी। धभा के कामा
बत्रवष्म भं राब होगा। ऩयभेद्वय का ध्मान कयो। रृदम
शुद्ध है , स्जससे भन की सिन्ता जल्दी दयू होगी। ऩयदे श
भं यहे भनुष्म की सिन्ता है सो उसका सभराऩ होगा। धभा
फन सकंगे। फहुत फदनं से ऩयदे श भं द्ु ख प्राद्ऱ फकमा है ,
के प्रबाव से सुखी हंगे।
फकन्तु अफ द्ु ख के फदन गए। तीथामािा होगी। अफ दे श
333: इतने फदन सनधान अवस्था भं व्मतीत फकए, फकन्तु
भं जाकय आनन्द प्राद्ऱ कयोगे। धभा के कामं भं रक्ष्म
अफ धन प्राद्ऱ होगा तथा भन की धायणा परीबूत होगी।
यखो, स्जससे सफ सुख प्राद्ऱ कयोगे।
जीवनसाथी से सुख प्राद्ऱ होगा, तीन भफहने फाद अच्छे
331: तुम्हाये
भन की सिन्ता सभटे गी। फीभायी की
फदन आएॉगे। इद्शदे व की आयाधना कयो। आभदनी से खिा
परयमाद दयू होगी। भन की धायणा ऩूणा होगी। थोिे फदनं
असधक है , धन इकट्ठा फकमा नहीॊ, सभि की तयप से
कभा भं ऩैसा खिा कयो, स्जससे ऩरयणाभ भं पामदा होगा।
फकन्तु साभने आकय फोर नहीॊ सकते। जभीन से राब
भं ही धन की प्रासद्ऱ होगी। स्नेही का सभराऩ होगा। धभाअच्छे फदन आए हं , ऩाऩकभा से इतने फदन द्ु ख प्राद्ऱ फकमा
है ,
ऩयन्तु
अफ
वे
फीत
गए
हं ।
धोखा सभरा है , दश्ु भन रोग ऩीछे से सनन्दा कयते हं , होगा। ऩयभेद्वय का जऩ कयो ।
त्रवद्या प्रासद्ऱ हे तु सयस्वती कवि औय मॊि आज के आधुसनक मुग भं सशऺा प्रासद्ऱ जीवन की भहत्वऩूणा आवश्मकताओॊ भं से
एक
है । फहन्द ू धभा भं
त्रवद्या की
असधद्षािी दे वी सयस्वती को भाना जाता हं । इस सरए दे वी सयस्वती की ऩूजा-अिाना से कृ ऩा प्राद्ऱ कयने से फुत्रद्ध कुशाग्र एवॊ तीव्र होती है । आज के सुत्रवकससत सभाज भं िायं ओय फदरते ऩरयवेश एवॊ आधुसनकता की दौड भं नमे -नमे खोज एवॊ सॊशोधन के आधायो ऩय फच्िो के फौसधक स्तय ऩय अच्छे त्रवकास हे तु त्रवसबन्न ऩयीऺा, प्रसतमोसगता एवॊ प्रसतस्ऩधााएॊ होती यहती हं , स्जस भं फच्िे का फुत्रद्धभान होना असत आवश्मक हो जाता हं । अन्मथा फच्िा ऩयीऺा, प्रसतमोसगता एवॊ प्रसतस्ऩधाा भं ऩीछड जाता हं , स्जससे आजके ऩढे सरखे आधुसनक फुत्रद्ध से सुसॊऩन्न रोग फच्िे को भूखा अथवा फुत्रद्धहीन मा अल्ऩफुत्रद्ध सभझते हं । एसे फच्िो को हीन बावना से दे खने रोगो को हभने दे खा हं , आऩने बी कई सैकडो फाय अवश्म दे खा होगा? ऐसे फच्िो की फुत्रद्ध को कुशाग्र एवॊ तीव्र हो, फच्िो की फौत्रद्धक ऺभता औय स्भयण शत्रि का त्रवकास हो इस सरए सयस्वती कवि अत्मॊत राबदामक हो सकता हं । सयस्वती कवि को
दे वी सयस्वती के ऩयॊ भ दर ा तेजस्वी ू ब
भॊिो द्राया ऩूणा भॊिससद्ध औय ऩूणा िैतन्ममुि फकमा जाता हं । स्जस्से जो फच्िे भॊि जऩ अथवा ऩूजा-अिाना नहीॊ कय सकते वह त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सके औय जो फच्िे ऩूजा-अिाना कयते हं , उन्हं दे वी सयस्वती की कृ ऩा शीघ्र प्राद्ऱ हो इस सरमे सयस्वती कवि अत्मॊत राबदामक होता हं ।
सयस्वती कवि औय मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु
सॊऩका कयं ।
सयस्वती कवि : भूल्म: 550 औय 460 सयस्वती मॊि :भूल्म : 370 से 1450 तक GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
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इद्श ऩूजन भं कये सही भारा का प्रमोग
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी साधाना भे भॊि जऩ के सरमे भारा का त्रवशेष भहत्व होता है । त्रवसबन्न प्रकाय के कामा की ससत्रद्ध हे तु भारा का िमन अऩने कामा उद्दे श्म के अनुशाय कयने से साधक को अऩने कामा की ससत्रद्ध जल्द प्राद्ऱ होती हं , क्मोकी भारा का िमन स्जस इद्श की साधना कयनी हो, उस दे वता से सॊफॊसधत ऩदाथा से सनसभात भारा का प्रमोग अत्मासधक प्रबाव शारी भाना गमा हं । दे वी- दे वता फक त्रवषेश कृ ऩा प्रासद्ऱ के सरए उऩमुि भारा का िमन कयना िाफहएरार िॊदन- (यि िॊदन भारा) गणेश, ऩुत्रद्श कभा, दग ू ाा, भॊगर ग्रह फक शाॊसत के सरए उत्तभ है ।
द्वेत िॊदन- (सपेद िॊदन भारा) - रक्ष्भी एवॊ शुक्र ग्रह फक प्रसन्नता हे तु। तुरसी- त्रवष्णु, याभ व कृ ष्ण फक ऩूजा अिाना हे त॥ भूॊग- रक्ष्भी, गणेश, हनुभान, भॊगर ग्रह फक शाॊसत के सरए उत्तभ है । भोती- रक्ष्भी, िॊद्रदे व फक प्रसन्नता हे तु। कभर गटटा- रक्ष्भी फक प्रसन्नता हे तु। हल्दी - फगराभुखी एवॊ फृहस्ऩसत (गुरु) फक प्रसन्नता हे तु। कारी हल्दी- दब ु ााग्म नाश, भाॊ कारी फक प्रसन्नता हे तु। स्पफटक - रक्ष्भी, सयस्वती, बैयवी की आयाधना के सरए
रुद्राऺ एवॊ स्पफटक की भारा सबी दे वी- दे ता की ऩूजा उऩासना भं प्रमोग फकमाजा सकता हं । त्रवद्रानो ने भतानुशाय रुद्राऺ की भारा सवाश्रद्ष े होती हं । रुद्राऺ की भारा से भन्ि जाऩ कयने से नवग्रहं के प्रबाव बी स्वत् शाॊत होने रगते हं औय भनुष्म के अनॊत कोटी ऩातको का शभन होता हं ।
ग्रह शास्न्त हे तु भारा िमन: 1) सूमा के सरए भास्णक्म की भारा, गायनेट, भारा रुद्राऺ, त्रफल्व की रकिी से फनी की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं । 2) िन्द्र
के सरए भोती, शॊख, सीऩ की भारा का प्रमोग
कयना राबप्रद होता हं । 3) भॊगर के सरए भूॊगे मा रार िॊदन की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं । 4) फुध के सरए ऩन्ना मा कुशाभूर की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं । 5) फृहस्ऩसत के सरए हल्दी की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं । 6) शुक्र के सरए स्पफटक की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं ।
श्रेद्ष होती है ।
7) शसन के सरए कारे हकीक मा वैजमन्ती की भारा का
रुद्राऺ - सशव, हनुभान फक प्रसन्नता हे तु।
8) याहु के सरए गोभेद मा िन्द की भारा का प्रमोग
िाॉदी - रक्ष्भी, िॊद्रदे व फक प्रसन्नता हे तु। नवयत्न - नवग्रहो फक शाॊसत हे तु। सुवणा- रक्ष्भी फक प्रसन्नता हे तु। अकीक - (हकीक) फक भारा का प्रमोग उसके यॊ गो के अनुरुऩ फकमा जाता हं ।
प्रमोग कयना राबप्रद होता हं । कयना राबप्रद होता हं ।
9) केतु के सरए हसुसनमा मा राजवता की भारा का प्रमोग कयना राबप्रद होता हं ।
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57 त्रवसबन्न काभना ऩूसता हे तु भारा का िमन भारा से भन्ि जऩ कयने का भूर उद्दे श्म होता हं , फक भारा हाथ भं यहने से ध्मान कभ बटकता हं औय भन की एकाग्रता फढ़ती हं ।
काभना की ऩूसता के सरए िाॊदी की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
धन, ऎद्वमा प्रासद्ऱ, ऩयीवाय सुख सभृत्रद्ध एवॊ शाॊती प्रासद्ऱ के सरए स्पफटक की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
सभस्त बोगं की प्रासद्ऱ के सरए यि (रार) िन्दन की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
याजससक प्रमोजन तथा आऩदा से भुत्रि के सरए िाॉदी की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
वशीकयण के सरए भोती की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
आकषाण के सरए त्रवधुत भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
सॊतान प्रासद्ऱ के सरए ऩुि जीवा की से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
असबिाय कभा के सरए कभर गट्टे की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
ऩाऩ-नाश व दोष-भुत्रि के सरए कुश-भूर की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
त्रवघ्नहयण के सरए हल्दी की भारा से भॊि जाऩ कयना िाफहए।
शिु त्रवनाश के सरए कभर गट्टे की भारा धायण कयने से राब होता हं ।
नजय हयण हे तु हरयद्र की भारा, नजय होने से फिाव के सरए व्माघ्र नख की भारा एवॊ शिु त्रवनाश के सरए कभर
गट्टे की भारा धायण फकमा जाता है । इस तयह हय भारा अऩना अरग-अरग प्रबाव होता है ।
ऩद्म ऩुयाण भं उल्रेख है , फक तुरसी फक भारा गरे भं धायण कयके बोजन कयने से अद्वभेघ मऻ के सभान पर सभरता हं ।
तुरसी फक भारा गरे भं धायण कयके स्नान कयने से सभस्त तीथो के स्नान का पर सभरता हं ।
तुरसी फक भारा गरे भं हो तो साधक को भोऺ की प्रासद्ऱ होती हं ।
तुरसी की भारा से जऩ कयने से भन एकाग्रसित्त होता हं औय योगं से बी सुयऺा होती है ।
स्पफटक की भारा शास्न्त कभा औय ऻान प्रासद्ऱ; भाॉ सयस्वती व बैयवी की आयाधना के सरए श्रेद्ष होती है ।
भॊि ससद्ध भारा स्पफटक भारा- Rs- 190, 280, 460, 730, DC 1050, 1250 सपेद िॊदन भारा - Rs- 280, 460, 640 यि (रार) िॊदन - Rs- 100, 190, 280 भोती भारा- Rs- 280, 460, 730, 1250, 1450 & Above त्रवधुत भारा - Rs- 100, 190 ऩुि जीवा भारा - Rs- 280, 460 कभर गट्टे की भारा - Rs- 210, 280 हल्दी भारा - Rs- 150, 280 तुरसी भारा - Rs- 100, 190, 280, 370 नवयत्न भारा- Rs- 1050, 1900, 2800, 3700 & Above नवयॊ गी हकीक भारा Rs- 190 280, 460, 730 हकीक भारा (सात यॊ ग) Rs- 190 280, 460, 730 भूॊगे की भारा Rs- 190, 280, Real -1050, 1900 & Above ऩायद भारा Rs- 730, 1050, 1900, 2800 & Above वैजमॊती भारा Rs- 100,190 रुद्राऺ भारा: 100, 190, 280, 460, 730, 1050, 1450 भूल्म भं अॊतय छोटे से फिे आकाय के कायण हं ।
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कहीॊ आऩकी कुॊडरी भं ऋणग्रस्त होने के मोग तो नहीॊ ?
सिॊतन जोशी ऋण मा कजा ऎसे शब्द हं स्जसको सुनने भाि से व्मत्रि को उदास, स्खन्न मा अवसाद भहसूस होता हं ।
कबी-कबी ऎसा होना असधक कफठन हो जाता हं औय व्मत्रि कजा के दरदर भं ढस जाता हं ।
क्मोफक कजा के फोझ भं दफा हुवा व्मत्रि सदै व भानससक सिॊता औय ऩये शानी भहसूस कयता हं । व्मत्रि हभेशा
कजा एक एसा जार हं , स्जसभे व्मत्रि मफद एक फाय पस गमा तो पसता ही िरा जाता हं ।
सोिता यहता हं की सभम ऩय कजा ना िुका ऩाने ऩय
ज्मोसतष शास्त्र के ग्रॊथो भं त्रवसबन्न प्रकाय के
सभाज भं उसका भान-सम्भान व प्रसतद्षा सभट्टी भं सभर
याजमोग, धनमोग आफद त्रवशेष मोगो का उल्रेख सभरता
जामेगी, रोक नीॊदा हो जामेगी औय वह सोिता हं की
हं । फकसी जन्भ कुॊडरी भं त्रवशेष प्रकाय के याजमोग,
उसे कजा के त्रऩॊड से भुत्रि कफ सभरेगी? वह कजा भुि
धनमोग आफद होने के उऩयाॊत बी व्मत्रि अऩने जीवन भं
कफ होगा? व्मत्रि को ना फदन भं िैन सभरता हं औय न
आसथाक सभस्मा से िस्त यहता हं । इस का एक प्रभुख
ही यात भं शकून सभरता हं । व्मत्रि के यातो की सनॊद
कायण हं जातक कई फाय कजा मा ऋण के फोझ के तरे
हयाभ हो जाती हं ।
दफ जाता हं औय कजा उसका ऩीछा नहीॊ छोडता। भूर तो
आज सभाज भं व्मत्रि बौसतकता के दौड भं अॊधा
भूर व्मत्रि को कजा िुकाने के सरमे कजा रेना ऩडता हं ।
हो गमा हं । असभय हो मा गरयव हय व्मत्रि व्मत्रि फदन
स्जसके परस्वरुऩ कजा फदन-प्रसतफदन कभने के फजाम
यात एक कयके फकसी ना फकसी प्रकाय से असधक से
फढता ही जाता हं औय व्मत्रि अऩने जीवन का असधकतभ
असधक भािा भं धन एकत्रित कयना िाहता हं । असभय
फहसा केवर कजा िुकाते िुकाते व्मसतत कय दे ता हं ।
औय असभय फनना िाहता हं औय गयीव असभय फनना
याजमोग, धनमोग आफद शुब मोग होने ऩय बी ऎसा क्मं
िाहता हं । क्मोफक एसा बी नहीॊ हं की कजा ससपा गयीफ
होता हं ? क्मो जातक कजा के दरदर भं पसता िरा
को मा भध्मभ वगॉ रोगो को रेना ऩिता हं फडे से फडे
जाता हं ?
असभयं को बी कजा रेना ऩि जाता हं । व्मत्रि सोिता हं अभुक राख, कयोड सभर जामे तफ आयभ करुॊ गा तफ भं िैन की नीॊद रूॊगा। उस िैन की नीॊद ऩाने के सरमे ऩहरे कजा रेता हं मह सोि कय अभुक धन यासश कजा रेता हं की कुछ भहीने सार भं कजा री धन यासश को दौगुना, िौगुना मा सौगुना कय के कुछ धन यासश जभा हो जाने ऩय मा भेया उद्दे श्म ऩूणा हो जाने ऩय भं कजा रौटा दॊ ग ु ा। रेफकन वास्तत्रवक जीवन भं
सायावरी, जातकाबयण, स्कॊद आफद ज्मोसतष के प्रभुख ग्रॊथो के अनुशाय व्मत्रि की जन्भ कुॊडरी भं िाहे फकतने बी याजमोग, धनमोग आफद शुबमोग भौजुद हो रेफकन मफद कुॊडरी भं ग्रहो की स्स्थसत मफद अशुब हो तो जातक को कजा के फोझ से राद दे ती हं । जफ अशुब ग्रहो की भहादशा मा अॊतयदशा होती हं तफ कजा भं औय फढोतयी होती हं ।
सूम:ा
मफद जन्भ कुॊडरी भं तुरा यासश के 10 अॊश का सूमा रग्न भं स्स्थत हो।
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59
मफद जन्भ कुॊडरी भं तुरा का सूमा नवाॊश बी तुरा
यासश का हो।
होता हं ।
मफद जन्भ कुॊडरी भं भेष सूमा भेष यासश का हो, नवाॊश भं तुरा यासश का हो कय 3,6,8,11,12 वं बावं
फुध:
को छोड कय अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।
उि ग्रह स्स्थती से जातक सूमा के कायण ऋणग्रस्त
भीन यासश का हो कय 3,6,11 वं बावं को छोड कय
ितुथा बाव भं स्स्थत हो।
अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।
मफद जन्भ कुॊडरी भं िॊद्र के कायण केभद्रभ ु मोग
मफद जन्भ कुॊडरी भं िॊद्र वृषब यासश का हो औय बावं को छोड कय अन्म फकसी बाव भं स्स्थत हं।
मफद जन्भ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं िॊद्र वृस्द्ळक
उि ग्रह स्स्थती से जातक ऋणग्रस्त होता हं ।
उि ग्रह स्स्थती से जातक िॊद्र
गुरु:
मफद जन्भ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं भॊगर कका
मफद जन्भ कुॊडरी भं भकय यासश का भॊगर नवाॊश भं कका यासश का हो।
मफद जन्भ कुॊडरी भं नीि एवॊ वक्री होकय केन्द्र स्थान मा त्रिकोण भं स्स्थत हं।
गुरु नीि का हो, वक्री हो औय केन्द्र मा त्रिकोण भं स्स्थत हो।
यासश का हो।
मफद जन्भ कुॊडरी भं कका यासश का गुरु नवाॊश भं नीि का हो।
भॊगर रग्न भं स्स्थत हो।
मफद जन्भ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं गुरु भकय यासश का हो।
भॊगर: मफद जन्भ कुॊडरी भं कका यासश के 28 अॊश का
मफद जन्भ कुॊडरी भं भकय यासश के 5 अॊश का गुरु नवभ बाव भं स्स्थत हो।
के कायण ऋणग्रस्त
होता हं ।
उि ग्रह स्स्थती से जातक फुध के कायण ऋणग्रस्त होता हं ।
यासश का हो।
मफद जन्भ कुॊडरी भं भीन फुध वक्री होकय धन स्थान भं स्स्थत हं।
नवाॊश भं वृस्द्ळक यासश का हो कय 3,6,8,11,12 वं
मफद जन्भ कुॊडरी भं कन्मा यासश का फुध नवाॊश भं
मफद जन्भ कुॊडरी भं वृस्द्ळक यासश के 3 अॊश का िॊद्र
फनयहा हो।
मफद जन्भ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं फुध भीन यासश का हो।
िॊद्र:
मफद जन्भ कुॊडरी भं भीन यासश के 15 अॊश का फुध सद्ऱभ बाव भं स्स्थत हो।
होता हं ।
उि ग्रह स्स्थती से जातक भॊगर के कायण ऋणग्रस्त
उि ग्रह स्स्थती से जातक गुरु के कायण ऋणग्रस्त होता हं ।
शुक्र:
मफद जन्भ कुॊडरी भं कन्मा यासश के 27 अॊश का शुक्र ऩॊिभ बाव भं स्स्थत हो।
अगस्त 2014
60
मफद जन्भ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं शुक्र कन्मा
यासश का हो कय 3,6,11 वं बावं को छोड कय अन्म
बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह केन्द्र स्थान भं
फकसी बाव भं स्स्थत हं।
स्स्थत हो तो जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता हं ।
मफद जन्भ कुॊडरी भं भीन यासश का शुक्र नवाॊश भं
बाव भं स्स्थत हो औय ऩाऩ ग्रह तीसये बाव भं स्स्थत
मफद जन्भ कुॊडरी भं नीि का शुक्र केन्द्र मा त्रिकोण
हो द्रादश बाव का स्वाभी दस ू ये बाव भं हो तो जातक
भं वक्री हो।
कजा के िक्कय भं िारू यहता हं ।
उि ग्रह स्स्थती से जातक शुक्र के कायण ऋणग्रस्त
मफद जन्भ कुॊडरी भं भेष यासश के 20
मफद जन्भ कुॊडरी भं तुरा यासश का शसन नवाॊश भं
फनी यहती हं ।
उि ग्रह स्स्थती से जातक शसन के कायण ऋणग्रस्त होता हं ।
दशा के अनुशाय ऋणग्रस्त होने के मोग
मफद रग्न से छठे बाव भं सूमा औय िॊद्र स्स्थत हो उस ऩय शसन की ऩूणा द्रत्रद्श हो तो सूमा एवॊ िॊद्र की भहादशा-अॊतयदशा भं कजा रेना ऩडता हं ।
मफद जन्भ कुॊडरी भं भेष यासश भं िॊद्र औय भॊगर स्स्थत हो उस ऩय शसन की ऩूणा द्रत्रद्श हो तो िॊद्र व भॊगर की भहादशा-अॊतयदशा भं कजा रेना ऩडता हं ।
मफद जन्भ कुॊडरी भं शसन केन्द्र स्थान भं स्स्थत हो, िॊद्र रग्न भं औय गुरु द्रादश बाव भं स्स्थत हो, तो जातक हभेशा कजा के दरदर भं पसा यहता हं । .
मफद 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं ऩाऩकतायी मोग भं फन जामे तो बी कजा फनता हं ।
भेष यासश का हो।
मफद जन्भ कुॊडरी भं रग्न से 22वाॊ द्रे ष्कोण होने ऩय बी धन घोतक बानो भं हो तो कजा होने की स्स्थते
मफद जन्भ कुॊडरी भं भेष यासश का शसन केन्द्र मा त्रिकोण भं वक्री हो।
मफद जातक भं ये का नाभ का मोग हो तो बी बी जातक ऩय कजा फना यहता हं ।
मफद जन्भ कुॊडरी भं एवॊ नवाॊश दोनो भं शसन भेष यासश का हो।
गुसरका के 2, 5, 9, 11, 12 बाव भं स्स्थत होने से बी जातक कजा के िक्कय भं पसा यहता हं ।
अॊश का शसन
फद्रसतम बाव भं स्स्थत हो।
मफद िॊद्र शसन के नवाॊश भं मा शसन से मुि हो कय रग्नेश से द्रद्श हो तो कजा फना यहता हं ।
शसन:
मफद जन्भ कुॊडरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश
कन्मा यासश का हो।
होता हं ।
मफद जन्भ कुॊडरी भं नवभ बाव का स्वाभी द्रादश
मफद रग्न भं कन्मा का शुक्र, ऩॊिभ बाव भं भकय का गुरु, एकादश बाव भं कका का भॊगर औय तृतीम बाव भं वृस्द्ळक का िॊद्र हो तो व्मत्रि हभेशा कजा के फोझ से रदा यहता हं ।
उऩय दशाामी गई दशा भं जातक न िाहते हुए बी ऋणग्रस्त हो जाता हं । कजा के फोझ से भुत्रि
ऩाने हे तु शास्त्रं भं त्रवसबन्न मॊि, भॊि, तॊि के
अनेक उऩाम फतामे गमे हं स्जसे कयने ऩय व्मत्रि
को शीघ्रता से ऋण के फोझ से छुटकाया सभर सके।
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61
अगस्त 2014
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Website: www.gurutvakaryalay.com | www.gurutvajyotish.com Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
अगस्त 2014
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भॊि ससद्ध ऩायद प्रसतभा ऩायद श्री मॊि
21 Gram से 5.250 Kg तक
ऩायद रक्ष्भी गणेश
100 Gram
ऩायद रक्ष्भी नायामण
ऩायद रक्ष्भी नायामण
121 Gram
100 Gram
उऩरब्ध ऩायद सशवसरॊग
ऩायद सशवसरॊग+नॊफद
21 Gram से 5.250 Kg तक
101 Gram से 5.250 Kg
उऩरब्ध
तक उऩरब्ध
ऩायद दग ु ाा
82 Gram ऩायद हनुभान 2
100 Gram
ऩायद सशवजी
ऩायद कारी
75 Gram
37 Gram
ऩायद दग ु ाा
ऩायद सयस्वती
ऩायद सयस्वती
100 Gram
50 Gram
225 Gram
ऩायद हनुभान 3
125 Gram
ऩायद हनुभान 1
100 Gram
ऩायद कुफेय
100 Gram
हभायं महाॊ सबी प्रकाय की भॊि ससद्ध ऩायद प्रसतभाएॊ, सशवसरॊग, त्रऩयासभड, भारा एवॊ गुफटका शुद्ध ऩायद भं उऩरब्ध हं । त्रफना भॊि ससद्ध की हुई ऩायद प्रसतभाएॊ थोक व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं ।
ज्मोसतष, यत्न व्मवसाम, ऩूजा-ऩाठ इत्माफद ऺेि से जुडे़ फॊध/ु फहन के सरमे हभायं त्रवशेष मॊि, कवि, यत्न, रुद्राऺ व अन्म दर ु ब साभग्रीमं ऩय त्रवशेष सुत्रफधाएॊ उऩरब्ध हं । असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।
अगस्त 2014
63
भॊि ससद्ध गोभसत िक्र
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हभाये त्रवशेष मॊि व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि: हभाये अनुबवं के अनुसाय मह मॊि व्माऩाय वृत्रद्ध एवॊ ऩरयवाय भं सुख सभृत्रद्ध हे तु त्रवशेष प्रबावशारी हं ।
बूसभराब मॊि: बूसभ, बवन, खेती से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुिे रोगं के सरए बूसभराब मॊि त्रवशेष राबकायी ससद्ध हुवा हं ।
तॊि यऺा मॊि: फकसी शिु द्राया फकमे गमे भॊि-तॊि आफद के प्रबाव को दयू कयने एवॊ बूत, प्रेत नज़य आफद फुयी शत्रिमं से यऺा हे तु त्रवशेष प्रबावशारी हं ।
आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि: अऩने नाभ के अनुसाय ही भनुष्म को आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ हे तु परप्रद हं इस मॊि के ऩूजन से साधक को अप्रत्मासशत धन राब प्राद्ऱ होता हं । िाहे वह धन राब व्मवसाम से हो, नौकयी से हो, धन-सॊऩत्रत्त इत्माफद फकसी बी भाध्मभ से मह राब प्राद्ऱ हो सकता हं । हभाये वषं के अनुसॊधान एवॊ अनुबवं से हभने आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि से शेमय ट्रे फडॊ ग, सोने-िाॊदी के व्माऩाय इत्माफद सॊफॊसधत ऺेि से जुडे रोगो को त्रवशेष रुऩ से आकस्स्भक धन राब प्राद्ऱ होते दे खा हं । आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि से त्रवसबन्न स्रोोत से धनराब बी सभर सकता हं ।
ऩदौन्नसत मॊि: ऩदौन्नसत मॊि नौकयी ऩैसा रोगो के सरए राबप्रद हं । स्जन रोगं को अत्मासधक ऩरयश्रभ एवॊ श्रेद्ष कामा कयने ऩय बी नौकयी भं उन्नसत अथाात प्रभोशन नहीॊ सभर यहा हो उनके सरए मह त्रवशेष राबप्रद हो सकता हं ।
यत्नेद्वयी मॊि: यत्नेद्वयी मॊि हीये -जवाहयात, यत्न ऩत्थय, सोना-िाॊदी, ज्वैरयी से सॊफॊसधत व्मवसाम से जुडे रोगं के सरए असधक प्रबावी हं । शेय फाजाय भं सोने-िाॊदी जैसी फहुभूल्म धातुओॊ भं सनवेश कयने वारे रोगं के सरए बी त्रवशेष राबदाम हं ।
बूसभ प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग खेती, व्मवसाम मा सनवास स्थान हे तु उत्तभ बूसभ आफद प्राद्ऱ कयना िाहते हं , रेफकन उस
कामा भं कोई ना कोई अििन मा फाधा-त्रवघ्न आते यहते हो स्जस कायण कामा ऩूणा नहीॊ हो यहा हो, तो उनके सरए बूसभ प्रासद्ऱ मॊि उत्तभ परप्रद हो सकता हं ।
गृह प्रासद्ऱ मॊि: जो रोग स्वमॊ का घय, दक ु ान, ओफपस, पैक्टयी आफद के सरए बवन प्राद्ऱ कयना िाहते हं । मथाथा प्रमासो के उऩयाॊत बी उनकी असबराषा ऩूणा नहीॊ हो ऩायही हो उनके सरए गृह प्रासद्ऱ मॊि त्रवशेष उऩमोगी ससद्ध हो सकता हं ।
कैरास धन यऺा मॊि: कैरास धन यऺा मॊि धन वृत्रद्ध एवॊ सुख सभृत्रद्ध हे तु त्रवशेष परदाम हं । आसथाक राब एवॊ सुख सभृत्रद्ध हे तु 19 दर ा रक्ष्भी मॊि ु ब
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त्रवसबन्न रक्ष्भी मॊि
श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि)
भहारक्ष्भमै फीज मॊि
कनक धाया मॊि
श्री मॊि (भॊि यफहत)
भहारक्ष्भी फीसा मॊि
वैबव रक्ष्भी मॊि
श्री मॊि (सॊऩूणा भॊि सफहत)
रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि
श्री श्री मॊि
श्री मॊि (फीसा मॊि)
रक्ष्भी दाता फीसा मॊि
अॊकात्भक फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि
रक्ष्भी फीसा मॊि
ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩृद्षीम)
रक्ष्भी गणेश मॊि
धनदा मॊि
(भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)
(रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि )
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सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका इस भुफद्रका भं भूॊगे को शुब भुहूता भं त्रिधातु (सुवणा+यजत+ताॊफ)ं भं जिवा कय उसे शास्त्रोि त्रवसधत्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया सवाससत्रद्धदामक फनाने हे तु प्राण-प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि फकमा जाता हं । इस भुफद्रका को फकसी बी वगा के व्मत्रि हाथ की फकसी बी उॊ गरी भं धायण कय सकते हं ।
महॊ भुफद्रका कबी फकसी बी स्स्थती भं अऩत्रवि नहीॊ होती। इस सरए कबी भुफद्रका को उतायने की आवश्मिा नहीॊ हं । इसे धायण कयने से व्मत्रि की सभस्माओॊ का सभाधान होने रगता हं । धायणकताा
को जीवन भं सपरता प्रासद्ऱ एवॊ उन्नसत के नमे भागा प्रसस्त होते यहते हं औय जीवन भं सबी प्रकाय की ससत्रद्धमाॊ बी शीध्र प्राद्ऱ होती हं ।
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(नोट: इस भुफद्रका को धायण कयने से भॊगर ग्रह का कोई फुया प्रबाव साधक ऩय नहीॊ होता हं ।)
सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयं ।
ऩसत-ऩत्नी भं करह सनवायण हे तु मफद ऩरयवायं भं सुख-सुत्रवधा के सभस्त साधान होते हुए बी छोटी-छोटी फातो भं ऩसत-ऩत्नी के त्रफि भे करह होता यहता हं ,
तो घय के स्जतने सदस्म हो उन सफके नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं त्रफना फकसी ऩूजा, त्रवसधत्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मफद आऩ भॊि ससद्ध ऩसत वशीकयण मा ऩत्नी वशीकयण एवॊ गृह करह नाशक फडब्फी फनवाना िाहते हं , तो सॊऩका आऩ कय सकते हं ।
100 से असधक जैन मॊि हभाये महाॊ जैन धभा के सबी प्रभुख, दर ा एवॊ शीघ्र प्रबावशारी मॊि ताम्र ऩि, ु ब ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे उऩरब्ध हं ।
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के मॊि कोऩय ताम्र ऩि, ससरवय (िाॊदी) ओय गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है । इसके
अरावा आऩकी आवश्मकता अनुसाय आऩके द्राया प्राद्ऱ (सिि, मॊि, फिज़ाईन) के अनुरुऩ मॊि बी फनवाए
जाते है . गुरुत्व कामाारम द्राया उऩरब्ध कयामे गमे सबी मॊि अखॊफडत एवॊ 22 गेज शुद्ध कोऩय(ताम्र ऩि)- 99.99 टि शुद्ध ससरवय (िाॊदी) एवॊ 22 केये ट गोल्ड (सोने) भे फनवाए जाते है । मॊि के त्रवषम भे असधक जानकायी के सरमे हे तु सम्ऩका कयं ।
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अगस्त 2014
द्रादश भहा मॊि मॊि को असत प्रासिन एवॊ दर ा मॊिो के सॊकरन से हभाये वषो के अनुसॊधान ु ब द्राया फनामा गमा हं ।
ऩयभ दर ा वशीकयण मॊि, ु ब
सहस्त्राऺी रक्ष्भी आफद्ध मॊि
भनोवाॊसछत कामा ससत्रद्ध मॊि
ऩूणा ऩौरुष प्रासद्ऱ काभदे व मॊि
बाग्मोदम मॊि
याज्म फाधा सनवृत्रत्त मॊि गृहस्थ सुख मॊि
शीघ्र त्रववाह सॊऩन्न गौयी अनॊग मॊि
आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ मॊि योग सनवृत्रत्त मॊि
साधना ससत्रद्ध मॊि शिु दभन मॊि
उऩयोि सबी मॊिो को द्रादश भहा मॊि के रुऩ भं शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध ऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत एवॊ िैतन्म मुि फकमे जाते हं । स्जसे स्थाऩीत कय त्रफना फकसी ऩूजा अिानात्रवसध त्रवधान त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं ।
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क्मा आऩके फच्िे कुसॊगती के सशकाय हं ? क्मा आऩके फच्िे आऩका कहना नहीॊ भान यहे हं ? क्मा आऩके फच्िे घय भं अशाॊसत ऩैदा कय यहे हं ? घय ऩरयवाय भं शाॊसत एवॊ फच्िे को कुसॊगती से छुडाने हे तु फच्िे के नाभ से गुरुत्व कामाारत द्राया शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से भॊि ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवारे एवॊ उसे अऩने घय भं स्थात्रऩत कय अल्ऩ ऩूजा, त्रवसध-त्रवधान से आऩ त्रवशेष राब प्राद्ऱ कय सकते हं । मफद आऩ तो आऩ भॊि ससद्ध वशीकयण कवि एवॊ एस.एन.फडब्फी फनवाना िाहते हं , तो सॊऩका इस कय सकते हं ।
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अगस्त 2014 भाससक ऩॊिाॊग फद
वाय
1
शुक्र
2
शसन
3
यत्रव
4
सोभ
5
भॊगर
6
फुध
7
गुरु
8
शुक्र
9
शसन
10 यत्रव 11 सोभ 12 भॊगर 13 फुध 14 गुरु 15 शुक्र
भाह
श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण श्रावण बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद
ऩऺ शुक्र शुक्र शुक्र शुक्र शुक्र शुक्र शुक्र शुक्र
सतसथ
ऩॊिभी षद्षी सद्ऱभी अद्शभी नवभी दशभी एकादशी द्रादशी-
सभासद्ऱ
नऺि
सभासद्ऱ
मोग
सभासद्ऱ
कयण
सभासद्ऱ
िॊद्र
यासश
सभासद्ऱ
15:47:02 उत्तयापाल्गुनी 05:46:06 सशव
09:30:09 फारव
15:47:02 कन्मा
-
17:17:36 हस्त
08:05:25 ससद्ध
09:51:21 तैसतर
17:17:36 कन्मा
21:03:00
18:09:43 सििा
09:50:58 साध्म
09:45:21 गय
05:49:06 तुरा
-
18:17:47 स्वाती
10:54:21 शुब
09:05:36 त्रवत्रद्श
06:20:36 तुरा
29:11:00
17:36:10 त्रवशाखा
11:09:55 शुक्र
07:47:25 फारव
06:03:21 वृस्द्ळक
-
16:04:51 अनुयाधा
10:37:40 ब्रह्म
05:49:51 गय
16:04:51 वृस्द्ळक
-
13:48:32 जेद्षा
09:17:36 वैधसृ त
23:59:47 त्रवत्रद्श
13:48:32 वृस्द्ळक
09:17:00
10:51:54 भूर
07:15:21 त्रवषकुॊब
20:18:09 फारव
10:51:54 धनु
-
25:45:54 प्रीसत
16:14:02 तैसतर
07:24:20 धनु
09:59:00
23:39:54 श्रवण
22:39:54 आमुष्भान
11:56:46 त्रवत्रद्श
13:38:57 भकय
-
19:45:08 धसनद्षा
19:34:49 सौबाग्म
07:35:46 फारव
09:41:23 भकय
09:06:00
16:02:34 शतसबषा
16:42:52 असतगॊड
23:18:30 तैसतर
05:52:15 कुॊब
-
12:44:21 ऩूवााबाद्रऩद
14:14:21 सुकभाा
19:39:40 त्रवत्रद्श
12:44:21 कुॊब
08:49:00
09:58:58 उत्तयाबाद्रऩद
12:19:35 धृसत
16:29:54 फारव
09:58:58 भीन
-
07:52:57 ये वसत
11:05:08 शूर
13:54:49 तैसतर
07:52:57 भीन
11:06:00
िमोदशी शुक्र
िमोदशी - 07:24:20 उत्तयाषाढ़ ितुदाशी
शुक्र कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण
ऩूस्णाभा एकभ फद्रतीमा तृतीमा ितुथॉ ऩॊिभी
अगस्त 2014
70
16 शसन 17 यत्रव 18 सोभ 19 भॊगर 20 फुध 21 गुरु 22 शुक्र 23 शसन 24 यत्रव 25 सोभ 26 भॊगर 27 फुध 28 गुरु 29 शुक्र 30 शसन 31 यत्रव
बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद बाद्रऩद
कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण कृ ष्ण शुक्र शुक्र शुक्र शुक्र शुक्र शुक्र
षद्षी सद्ऱभी अद्शभी नवभी दशभी एकादशी द्रादशी िमोदशी ितुदाशी अभावस्मा एकभ फद्रतीमा तृतीमा ितुथॉ ऩॊिभी षद्षी
06:30:59 अस्द्वनी
10:35:41 गॊड
11:55:22 वस्णज
06:30:59 भेष
-
05:56:50 बयणी
10:53:05 वृत्रद्ध
10:33:24 फव
05:56:50 भेष
17:04:00
06:06:45 कृ सतका
11:53:38 ध्रुव
09:47:04 कौरव
06:06:45 वृष
-
06:57:55 योफहस्ण
13:31:40 व्माघात
09:32:36 गय
06:57:55 वृष
26:33:00
08:24:42 भृगसशया
15:42:30 हषाण
09:43:27 त्रवत्रद्श
08:24:42 सभथुन
-
10:16:47 आद्रा
18:15:51 वज्र
10:14:55 फारव
10:16:47 सभथुन
-
12:27:38 ऩुनवासु
21:04:11 ससत्रद्ध
10:59:30 तैसतर
12:27:38 सभथुन
14:21:00
14:49:43 ऩुष्म
24:01:54 व्मसतऩात
11:52:32 वस्णज
14:49:43 कका
-
17:16:29 आद्ऴेषा
27:02:25 वरयमान
12:51:10 शकुसन
17:16:29 कका
27:02:00
19:43:15 भघा
30:00:08 ऩरयग्रह
13:48:53 ितुष्ऩाद
06:30:08 ससॊह
-
22:04:24 भघा
06:00:39 सशव
14:43:46 फकस्तुघ्न 08:54:05 ससॊह
-
24:16:10 ऩूवाापाल्गुनी
08:50:51 ससद्ध
15:32:06 फारव
11:11:28 ससॊह
15:32:00
26:10:07 उत्तयापाल्गुनी 11:30:44 साध्म
16:08:14 तैसतर
13:15:44 कन्मा
-
27:42:30 हस्त
13:50:56 शुब
16:31:15 वस्णज
15:00:19 कन्मा
26:53:00
28:46:45 सििा
15:47:41 शुक्र
16:32:41 फव
16:19:34 तुरा
-
29:15:23 स्वाती
17:12:34 ब्रह्म
16:08:49 कौरव
17:06:00 तुरा
-
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अगस्त 2014 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय फद
वाय
भाह
ऩऺ
सतसथ
सभासद्ऱ
1
शुक्र
श्रावण
शुक्र
ऩॊिभी
15:47:02
2
शसन
श्रावण
शुक्र
षद्षी
17:17:36
3
यत्रव
श्रावण
शुक्र
सद्ऱभी
18:09:43
4
सोभ
श्रावण
शुक्र
अद्शभी
18:17:47
5
भॊगर
श्रावण
शुक्र
नवभी
17:36:10
6
फुध
श्रावण
शुक्र
दशभी
16:04:51
7
गुरु
श्रावण
शुक्र
एकादशी
13:48:32
8
शुक्र
श्रावण
शुक्र
9
शसन
श्रावण
शुक्र
द्रादशीिमोदशी िमोदशी ितुदाशी
10:51:54
प्रभुख व्रत-त्मोहाय नागऩॊिभी, तऺक ऩूजन, श्रीहनुभद्द्ध्वजायोहण, जाग्रतगौयी ऩूजा (ओडीसा), वयदरक्ष्भी व्रत, स्कन्दषद्षी व्रत, श्रीकस्ल्क अवताय षद्षी, गोस्वाभी तुरसीदास जमन्ती, भोऺ सद्ऱभी, बानु-सद्ऱभी ऩवा (सूमग्र ा हण सभान परदामी), शीतरा सद्ऱभी (गुजयात), श्रावण सोभवाय व्रत, श्रीदग ु ााद्शभी व्रत, श्रीअन्नऩूणााद्शभी व्रत बौभव्रत, भॊगरागौयी ऩूजन, नकुर नवभी, वैधसृ त भहाऩात प्रात: 8.37 से यात्रि 8.03 फजे तक, ऩुिदा एकादशी, ऩत्रविा एकादशी व्रत, ऩत्रविा ग्मायस (ऩुत्रद्शभागा), दाभोदय द्रादशी प्रदोष व्रत, ऩत्रविा द्रादशी, श्रीधय द्रादशी, श्रावण द्रादशी, श्माभफाफा द्रादशी, वयद्द्रक्ष्भीव्रत,
07:24:20 आखेटक िमोदशी, सशव-ऩत्रविायोऩण, सशव ितुदाशी, अद्वत्थभारुसत-ऩूजन यऺाफन्धन, फदन 1.37 के ऩद्ळमात(बद्रा के उऩयान्त) याखी फाॉधना
10
यत्रव
श्रावण
शुक्र
ऩूस्णाभा
23:39:54
शुबपरदामक, स्नान-दान-व्रत हे तु उत्तभ श्रावणी ऩूस्णाभा, ऋग्वेदी-मजुवद े ी श्रावणी, गामिी जमन्ती, हमग्रीव जमन्ती, सॊस्कृ त फदवस, रव-कुश जमन्ती, फरबद्रऩूजन (ओडीसा), श्रीसत्मनायामण ऩूजा-कथा
11
सोभ
बाद्रऩद
कृ ष्ण
एकभ
19:45:08 बाद्रऩद भं िातुभाास भं दही सनषेध, अशून्मशमन व्रत, गामिी ऩुयद्ळयण प्रायम्ब,
12
भॊगर
बाद्रऩद
कृ ष्ण
फद्रतीमा
16:02:34 कज्जरी (कजयी) तीज का जागयण कज्जरी (कजयी) तीज, सातुडी तीज, फूढी तीज, सॊकद्शी श्रीगणेशितुथॉ व्रत
13
फुध
बाद्रऩद
कृ ष्ण
तृतीमा
12:44:21
(िॊद्रोदम.या.8:40), फहुरा ितुथॉ (भ.प्र), त्रवनामक ितुथॉ व्रत (सभसथराॊिर), गो-ऩूजन, त्रवशाराऺी दशान (काशी)
14
गुरु
बाद्रऩद
कृ ष्ण
ितुथॉ
09:58:58
15
शुक्र
बाद्रऩद
कृ ष्ण
ऩॊिभी
07:52:57
16
शसन
बाद्रऩद
कृ ष्ण
षद्षी
06:30:59
स्वतन्िता फदवस, यऺाऩॊिभी, कोफकरा ऩॊिभी (जैन), नागऩॊिभी (गुजयात), िन्द्रषद्षी व्रत,
भहत्रषा अयत्रवन्द जमन्ती, गोगा ऩॊिभी
ररही छठ, हरषद्षी व्रत. िन्दन षद्षी , शीतरा सद्ऱभी (ओडीसा), वैधसृ त भहाऩात फदन 3.03 से यात्रि 10.36 फजे तक
72
अगस्त 2014
श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत (स्भाता), भोहयात्रि, आद्याकारी जमन्ती, दव ू ााद्शभी व्रत,
17
यत्रव
बाद्रऩद
कृ ष्ण
सद्ऱभी
05:56:50
काराद्शभी व्रत, सॊत ऻानेद्वय जमन्ती, ससॊह सॊक्रास्न्त प्रात: 6.14 फजे, स्नानदान का ऩुण्मकार सूमोदम से फदन 12.38 फजे तक, ससॊहाफद नववषाायम्ब (केयर) श्रीकृ ष्ण जन्भाद्शभी व्रत (वैष्णव), गोकुराद्शभी (ब्रज), दही-हाण्डी (भुम्फई),
18
सोभ
बाद्रऩद
कृ ष्ण
अद्शभी
06:06:45
19
भॊगर
बाद्रऩद
कृ ष्ण
नवभी
06:57:55 नन्दोत्सव (ब्रज), श्रीकृ ष्ण योफहणी व्रत, गोगा नवभी
20
फुध
बाद्रऩद
कृ ष्ण
दशभी
08:24:42 -
21
गुरु
बाद्रऩद
कृ ष्ण
एकादशी
10:16:47
योफहणी व्रत,
अजा एकादशी व्रत, जमा एकादशी व्रत, फृहस्ऩसत-ऩूजन गोवत्स द्रादशी व्रत, गौ-फछडा फायस, प्रदोष व्रत, जैन ऩमुष ा ण ऩवा प्रायम्ब
22
शुक्र
बाद्रऩद
कृ ष्ण
द्रादशी
12:27:38 (ितुथॉ ऩऺ), कसरमुगाफद (अद्र्धयात्रिकारीन िमोदशी), ऩुष्म नऺि (यात्रि 09:04:11 से) भाससक सशवयात्रि व्रत, अघोय ितुदाशी, सशव ितुदाशी, द्वेताॊफय जैन ऩमुष ा ण ऩवा
23
शसन
बाद्रऩद
कृ ष्ण
िमोदशी
14:49:43 प्रायॊ ब, सूमा सामन कन्मा यासश भं प्रात: 10.17 फजे, सौय शयद् ऋतु प्रायम्ब, ऩुष्म नऺि (यात्रि 12:01:54 तक)
24
यत्रव
बाद्रऩद
कृ ष्ण
ितुदाशी
17:16:29
त्रऩठोयी अभावस, स्नान-दान-श्राद्ध हे तु उत्तभ सोभवती बाद्रऩदी अभावस्मा, सोभवायी व्रत,
25
सोभ
बाद्रऩद
कृ ष्ण
अभावस्मा
19:43:15
कुशग्रहणी अभावस, रोहागार-स्नान, भहाकार की शाही सवायी (उज्जसमनी), भौन व्रतायम्ब, कल्ऩसूि वािन (जैन), रस्ब्धत्रवधान व्रत 5 फदन (फद.जै.)
26
भॊगर
बाद्रऩद
शुक्र
एकभ
22:04:24 निव्रत ऩूणा, रुद्रव्रत, भहावीय जन्भोत्सव एवॊ भहावीय जन्भवािन (जैन)
27
फुध
बाद्रऩद
शुक्र
फद्रतीमा
24:16:10
28
गुरु
बाद्रऩद
शुक्र
तृतीमा
26:10:07
नवीन िन्द्र-दशान, भदय टे येसा जमॊती, तैराधाय तऩ प्रा. (जैन) हरयतासरका तीज, फडी तीज व्रत, गौयी तीज (ओडीसा), केवडा तीज, वायाहावताय जमन्ती, त्रिरोक तीज (फदग.जैन), साभवेदी श्रावणी ससत्रद्धत्रवनामक (वयदत्रवनामक) ितुथॉ व्रत, श्रीगणेशोत्सव प्रायम्ब (िॊद्र अस्त या.8:46), िॊद्रदशान सनषेध, िौथ िॊद्र, ऩत्थय िौथ, ढे रा िौथ, िौठ िन्द्र
29
शुक्र
बाद्रऩद
शुक्र
ितुथॉ
27:42:30 (सभसथराॊिर), सौबाग्म ितुथॉ व्रत (ऩ.फॊ), सयस्वती ऩूजा (ओडीसा), जैन सॊवत्सयी (ितुथॉ ऩऺ), वैधसृ त भहाऩात दे य यात 12.38 से आगाभी प्रात: 7.08 फजे तक ऋत्रष ऩॊिभी व्रत, सद्ऱत्रषा ऩूजन, गगा जमन्ती, अॊसगया ऋत्रष जमन्ती, यऺाऩॊिभी
30
शसन
बाद्रऩद
शुक्र
ऩॊिभी
28:46:45
(ऩ.फॊ), गुरु ऩॊिभी (ओडीसा), वायाह ऩॊिभी, आकाश ऩॊिभी, ऺभावाणी ऩवा (जैन), जैन सॊवत्सयी (ऩॊिभी ऩऺ), फदगॊफय जैन ऩमुष ा ण ऩवा प्रायॊ ब, दशरऺण व्रत 10 फदन एवॊ ऩुष्ऩाॊजसर व्रत 5 फदन (फद.जै.)
31
यत्रव
बाद्रऩद
शुक्र
षद्षी
29:15:23
सूमष ा द्षी व्रत, रोराका छठ, िॊऩा षद्षी, भन्थनषद्षी (ऩ.फॊ), रसरता षद्षी, फरदे व छठ (ब्रज), स्कन्दषद्षी व्रत, िॊदनषद्षी (जैन)
अगस्त 2014
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सॊऩूणा प्राणप्रसतत्रद्षत 22 गेज शुद्ध स्टीर भं सनसभात अखॊफडत
ऩुरुषाकाय शसन मॊि
ऩुरुषाकाय शसन मॊि (स्टीर भं) को तीव्र प्रबावशारी फनाने हे तु शसन की कायक धातु शुद्ध स्टीर(रोहे ) भं फनामा गमा हं । स्जस के प्रबाव से साधक को तत्कार राब प्राद्ऱ होता हं । मफद जन्भ कॊु डरी भं
शसन प्रसतकूर होने ऩय व्मत्रि को अनेक कामं भं असपरता प्राद्ऱ होती है , कबी व्मवसाम भं घटा, नौकयी भं ऩये शानी, वाहन दघ ा ना, गृह क्रेश आफद ऩये शानीमाॊ फढ़ती जाती है ऐसी स्स्थसतमं भं ु ट
प्राणप्रसतत्रद्षत ग्रह ऩीिा सनवायक शसन मॊि की अऩने को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थाऩना कयने से अनेक राब सभरते हं । मफद शसन की ढै ़मा मा साढ़े साती का सभम हो तो इसे अवश्म ऩूजना िाफहए। शसनमॊि के ऩूजन भाि से व्मत्रि को भृत्मु, कजा, कोटा केश, जोडो का ददा , फात योग तथा रम्फे सभम
के सबी प्रकाय के योग से ऩये शान व्मत्रि के सरमे शसन मॊि असधक राबकायी होगा। नौकयी ऩेशा आफद
के रोगं को ऩदौन्नसत बी शसन द्राया ही सभरती है अत् मह मॊि असत उऩमोगी मॊि है स्जसके द्राया शीघ्र ही राब ऩामा जा सकता है ।
भूल्म: 1050 से 8200 >> Order Now
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अगस्त 2014
नवयत्न जफित श्री मॊि
शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न जफित श्री मॊि कहराता हं । सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉकेट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं । नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायणकयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं ।
गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे
तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं । इस प्रकाय के नवयत्न जफित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं । Rs: 2350, 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 तक
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अगस्त 2014
भॊि ससद्ध वाहन दघ ा ना नाशक भारुसत मॊि ु ट
ऩौयास्णक ग्रॊथो भं उल्रेख हं की भहाबायत के मुद्ध के सभम अजुन ा के यथ के अग्रबाग ऩय भारुसत ध्वज एवॊ
भारुसत मन्ि रगा हुआ था। इसी मॊि के प्रबाव के कायण सॊऩूणा मुद्ध के दौयान हज़ायं-राखं प्रकाय के आग्नेम अस्त्र-
शस्त्रं का प्रहाय होने के फाद बी अजुन ा का यथ जया बी ऺसतग्रस्त नहीॊ हुआ। बगवान श्री कृ ष्ण भारुसत मॊि के इस अद्भत ा नाग्रस्त कैसे हो ु यहस्म को जानते थे फक स्जस यथ मा वाहन की यऺा स्वमॊ श्री भारुसत नॊदन कयते हं, वह दघ ु ट सकता हं । वह यथ मा वाहन तो वामुवेग से, सनफाासधत रुऩ से अऩने रक्ष्म ऩय त्रवजम ऩतका रहयाता हुआ ऩहुॊिेगा। इसी सरमे श्री कृ ष्ण नं अजुन ा के यथ ऩय श्री भारुसत मॊि को अॊफकत कयवामा था।
स्जन रोगं के स्कूटय, काय, फस, ट्रक इत्माफद वाहन फाय-फाय दघ ा ना ग्रस्त हो यहे हो!, अनावश्मक वाहन को ु ट
नुऺान हो यहा हं! उन्हं हानी एवॊ दघ ा ना से यऺा के उद्दे श्म से अऩने वाहन ऩय भॊि ससद्ध श्री भारुसत मॊि अवश्म ु ट
रगाना िाफहए। जो रोग ट्रान्स्ऩोफटं ग (ऩरयवहन) के व्मवसाम से जुडे हं उनको श्रीभारुसत मॊि को अऩने वाहन भं अवश्म स्थात्रऩत कयना िाफहए, क्मोफक, इसी व्मवसाम से जुडे सैकडं रोगं का अनुबव यहा हं की श्री भारुसत मॊि को स्थात्रऩत कयने से उनके वाहन असधक फदन तक अनावश्मक खिो से एवॊ दघ ा नाओॊ से सुयस्ऺत यहे हं । हभाया स्वमॊका एवॊ अन्म ु ट त्रवद्रानो का अनुबव यहा हं , की स्जन रोगं ने श्री भारुसत मॊि अऩने वाहन ऩय रगामा हं , उन रोगं के वाहन फडी से
फडी दघ ा नाओॊ से सुयस्ऺत यहते हं । उनके वाहनो को कोई त्रवशेष नुक्शान इत्माफद नहीॊ होता हं औय नाहीॊ अनावश्मक ु ट रुऩ से उसभं खयाफी आसत हं ।
वास्तु प्रमोग भं भारुसत मॊि: मह भारुसत नॊदन श्री हनुभान जी का मॊि है । मफद कोई जभीन त्रफक नहीॊ यही हो, मा उस ऩय कोई वाद-त्रववाद हो, तो इच्छा के अनुरूऩ वहॉ जभीन उसित भूल्म ऩय त्रफक जामे इस सरमे इस भारुसत मॊि का प्रमोग फकमा जा सकता हं । इस भारुसत मॊि के प्रमोग से जभीन शीघ्र त्रफक जाएगी मा त्रववादभुि हो जाएगी। इस सरमे मह मॊि दोहयी शत्रि से मुि है ।
भारुसत मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं । भूल्म Rs- 255 से 10900 तक
श्री हनुभान मॊि
शास्त्रं भं उल्रेख हं की श्री हनुभान जी को बगवान सूमद ा े व ने ब्रह्मा जी के आदे श ऩय हनुभान
जी को अऩने तेज का सौवाॉ बाग प्रदान कयते हुए आशीवााद प्रदान फकमा था, फक भं हनुभान को सबी शास्त्र का ऩूणा
ऻान दॉ ग ू ा। स्जससे मह तीनोरोक भं सवा श्रेद्ष विा हंगे तथा शास्त्र त्रवद्या भं इन्हं भहायत हाससर होगी औय इनके सभन फरशारी औय कोई नहीॊ होगा। जानकायो ने भतानुसाय हनुभान मॊि की आयाधना से ऩुरुषं की त्रवसबन्न फीभारयमं
दयू होती हं , इस मॊि भं अद्भत ु शत्रि सभाफहत होने के कायण व्मत्रि की स्वप्न दोष, धातु योग, यि दोष, वीमा दोष, भूछाा,
नऩुॊसकता इत्माफद अनेक प्रकाय के दोषो को दयू कयने भं अत्मन्त राबकायी हं । अथाात मह मॊि ऩौरुष को ऩुद्श कयता हं । श्री हनुभान मॊि व्मत्रि को सॊकट, वाद-त्रववाद, बूत-प्रेत, द्यूत फक्रमा, त्रवषबम, िोय बम, याज्म बम, भायण, सम्भोहन स्तॊबन इत्माफद से सॊकटो से यऺा कयता हं औय ससत्रद्ध प्रदान कयने भं सऺभ हं । श्री हनुभान मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी के सरमे गुरुत्व कामाारम भं सॊऩका कयं । भूल्म Rs- 730 से 10900 तक
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA), Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, >> Order Now
अगस्त 2014
76
त्रवसबन्न दे वताओॊ के मॊि गणेश मॊि
भहाभृत्मुज ॊ म मॊि
याभ यऺा मॊि याज
गणेश मॊि (सॊऩण ू ा फीज भॊि सफहत)
भहाभृत्मुज ॊ म कवि मॊि
याभ मॊि
गणेश ससद्ध मॊि
भहाभृत्मुज ॊ म ऩूजन मॊि
द्रादशाऺय त्रवष्णु भॊि ऩूजन मॊि
एकाऺय गणऩसत मॊि
भहाभृत्मुॊजम मुि सशव खप्ऩय भाहा सशव मॊि
त्रवष्णु फीसा मॊि
हरयद्रा गणेश मॊि
सशव ऩॊिाऺयी मॊि
गरुड ऩूजन मॊि
कुफेय मॊि
सशव मॊि
सिॊताभणी मॊि याज
श्री द्रादशाऺयी रुद्र ऩूजन मॊि
अफद्रतीम सवाकाम्म ससत्रद्ध सशव मॊि
सिॊताभणी मॊि
दत्तािम मॊि
नृससॊह ऩूजन मॊि
स्वणााकषाणा बैयव मॊि
दत्त मॊि
ऩॊिदे व मॊि
हनुभान ऩूजन मॊि
आऩदद्ध ु ायण फटु क बैयव मॊि
सॊतान गोऩार मॊि
हनुभान मॊि
फटु क मॊि
श्री कृ ष्ण अद्शाऺयी भॊि ऩूजन मॊि
सॊकट भोिन मॊि
व्मॊकटे श मॊि
कृ ष्ण फीसा मॊि
वीय साधन ऩूजन मॊि
कातावीमााजन ुा ऩूजन मॊि
सवा काभ प्रद बैयव मॊि
दस्ऺणाभूसता ध्मानभ ् मॊि
भनोकाभना ऩूसता एवॊ कद्श सनवायण हे तु त्रवशेष मॊि व्माऩाय वृत्रद्ध कायक मॊि
अभृत तत्व सॊजीवनी कामा कल्ऩ मॊि
िम ताऩंसे भुत्रि दाता फीसा मॊि
व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि
त्रवजमयाज ऩॊिदशी मॊि
भधुभेह सनवायक मॊि
व्माऩाय वधाक मॊि
त्रवद्यामश त्रवबूसत याज सम्भान प्रद ससद्ध फीसा मॊि
ज्वय सनवायण मॊि
व्माऩायोन्नसत कायी ससद्ध मॊि
सम्भान दामक मॊि
योग कद्श दरयद्रता नाशक मॊि
बाग्म वधाक मॊि
सुख शाॊसत दामक मॊि
योग सनवायक मॊि
स्वस्स्तक मॊि
फारा मॊि
तनाव भुि फीसा मॊि
सवा कामा फीसा मॊि
फारा यऺा मॊि
त्रवद्युत भानस मॊि
कामा ससत्रद्ध मॊि
गबा स्तम्बन मॊि
गृह करह नाशक मॊि
सुख सभृत्रद्ध मॊि
ऩुि प्रासद्ऱ मॊि
करेश हयण फत्रत्तसा मॊि
सवा रयत्रद्ध ससत्रद्ध प्रद मॊि
प्रसूता बम नाशक मॊि
वशीकयण मॊि
सवा सुख दामक ऩंसफठमा मॊि
प्रसव-कद्शनाशक ऩॊिदशी मॊि
भोफहसन वशीकयण मॊि
ऋत्रद्ध ससत्रद्ध दाता मॊि
शाॊसत गोऩार मॊि
कणा त्रऩशािनी वशीकयण मॊि
सवा ससत्रद्ध मॊि
त्रिशूर फीशा मॊि
वाताारी स्तम्बन मॊि
साफय ससत्रद्ध मॊि
ऩॊिदशी मॊि (फीसा मॊि मुि िायं प्रकायके)
वास्तु मॊि
शाफयी मॊि
फेकायी सनवायण मॊि
श्री भत्स्म मॊि
ससद्धाश्रभ मॊि
षोडशी मॊि
ज्मोसतष तॊि ऻान त्रवऻान प्रद ससद्ध फीसा मॊि
अडसफठमा मॊि
वाहन दघ ा ना नाशक मॊि ु ट
ब्रह्माण्ड साफय ससत्रद्ध मॊि
अस्सीमा मॊि
बूतादी व्मासधहयण मॊि
कुण्डसरनी ससत्रद्ध मॊि
ऋत्रद्ध कायक मॊि
कद्श सनवायक ससत्रद्ध फीसा मॊि
क्रास्न्त औय श्रीवधाक िंतीसा मॊि
भन वाॊसछत कन्मा प्रासद्ऱ मॊि
बम नाशक मॊि
श्री ऺेभ कल्माणी ससत्रद्ध भहा मॊि
त्रववाहकय मॊि
स्वप्न बम सनवायक मॊि
प्रेत-फाधा नाशक मॊि
अगस्त 2014
77 ऻान दाता भहा मॊि
रग्न त्रवघ्न सनवायक मॊि
कुदृत्रद्श नाशक मॊि
कामा कल्ऩ मॊि
रग्न मोग मॊि
श्री शिु ऩयाबव मॊि
दीधाामु अभृत तत्व सॊजीवनी मॊि
दरयद्रता त्रवनाशक मॊि
शिु दभनाणाव ऩूजन मॊि
भॊि ससद्ध त्रवशेष दै वी मॊि सूसि आद्य शत्रि दग ु ाा फीसा मॊि (अॊफाजी फीसा मॊि)
सयस्वती मॊि
भहान शत्रि दग ु ाा मॊि (अॊफाजी मॊि)
सद्ऱसती भहामॊि(सॊऩण ू ा फीज भॊि सफहत)
नव दग ु ाा मॊि
कारी मॊि
नवाणा मॊि (िाभुड ॊ ा मॊि)
श्भशान कारी ऩूजन मॊि
नवाणा फीसा मॊि
दस्ऺण कारी ऩूजन मॊि
िाभुड ॊ ा फीसा मॊि ( नवग्रह मुि)
सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध मॊि
त्रिशूर फीसा मॊि
खोफडमाय मॊि
फगरा भुखी मॊि
खोफडमाय फीसा मॊि
फगरा भुखी ऩूजन मॊि
अन्नऩूणाा ऩूजा मॊि
याज याजेद्वयी वाॊछा कल्ऩरता मॊि
एकाॊऺी श्रीपर मॊि
भॊि ससद्ध त्रवशेष रक्ष्भी मॊि सूसि श्री मॊि (रक्ष्भी मॊि)
भहारक्ष्भमै फीज मॊि
श्री मॊि (भॊि यफहत)
भहारक्ष्भी फीसा मॊि
श्री मॊि (सॊऩण ू ा भॊि सफहत)
रक्ष्भी दामक ससद्ध फीसा मॊि
श्री मॊि (फीसा मॊि)
रक्ष्भी दाता फीसा मॊि
श्री मॊि श्री सूि मॊि
रक्ष्भी गणेश मॊि
श्री मॊि (कुभा ऩृद्षीम)
ज्मेद्षा रक्ष्भी भॊि ऩूजन मॊि
रक्ष्भी फीसा मॊि
कनक धाया मॊि
श्री श्री मॊि (श्रीश्री रसरता भहात्रिऩुय सुन्दमै श्री भहारक्ष्भमं श्री भहामॊि)
वैबव रक्ष्भी मॊि (भहान ससत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि)
अॊकात्भक फीसा मॊि ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस (Gold Plated) साईज 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”
ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस (Silver Plated)
भूल्म 460 820 1650 2350 3600 6400 10800
साईज 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”
भूल्म 370 640 1090 1650 2800 5100 8200
ताम्र ऩि ऩय (Copper)
साईज 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”
मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।
भूल्म 255 460 730 1090 1900 3250 6400
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अगस्त 2014
78
यासश यत्न भेष यासश:
भूग ॊ ा
वृषब यासश:
हीया
Red Coral
Diamond (Special)
(Special) 5.25" Rs. 1050 6.25" Rs. 1250 7.25" Rs. 1450 8.25" Rs. 1800 9.25" Rs. 2100 10.25" Rs. 2800
10 cent 20 cent 30 cent 40 cent 50 cent
Rs. 4100 Rs. 8200 Rs. 12500 Rs. 18500 Rs. 23500
सभथुन यासश:
कका यासश:
ससॊह यासश:
कन्मा यासश:
Green Emerald
Naturel Pearl (Special)
Ruby (Old Berma) (Special)
Green Emerald
ऩन्ना
(Special) 5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 8.25" Rs. 19000 9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 28000
भोती
5.25" 6.25" 7.25" 8.25" 9.25" 10.25"
Rs. 910 Rs. 1250 Rs. 1450 Rs. 1900 Rs. 2300 Rs. 2800
भाणेक
2.25" 3.25" 4.25" 5.25" 6.25"
Rs. Rs. Rs. Rs. Rs.
12500 15500 28000 46000 82000
ऩन्ना
(Special) 5.25" Rs. 9100 6.25" Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 8.25" Rs. 19000 9.25" Rs. 23000 10.25" Rs. 28000
** All Weight In Rati
All Diamond are Full White Colour.
** All Weight In Rati
** All Weight In Rati
** All Weight In Rati
** All Weight In Rati
तुरा यासश:
वृस्द्ळक यासश:
धनु यासश:
कॊु ब यासश:
भीन यासश:
हीया
भूग ॊ ा
ऩुखयाज
भकय यासश:
नीरभ
नीरभ
Diamond (Special)
Red Coral
Y.Sapphire
B.Sapphire
B.Sapphire
Y.Sapphire
(Special)
(Special)
(Special)
(Special)
(Special)
10 cent 20 cent 30 cent 40 cent 50 cent
Rs. 4100 Rs. 8200 Rs. 12500 Rs. 18500 Rs. 23500
All Diamond are Full White Colour.
5.25" Rs. 1050 6.25" Rs. 1250 7.25" Rs. 1450 8.25" Rs. 1800 9.25" Rs. 2100 10.25" Rs. 2800 ** All Weight In Rati
ऩुखयाज
5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000
5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000
5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000
5.25" Rs. 30000 6.25" Rs. 37000 7.25" Rs. 55000 8.25" Rs. 73000 9.25" Rs. 91000 10.25" Rs.108000
** All Weight In Rati
** All Weight In Rati
** All Weight In Rati
** All Weight In Rati
* उऩमोि वजन औय भूल्म से असधक औय कभ वजन औय भूल्म के यत्न एवॊ उऩयत्न बी हभाये महा व्माऩायी भूल्म ऩय उप्रब्ध हं ।
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अगस्त 2014
79
भॊि ससद्ध रूद्राऺ Rudraksh List एकभुखी रूद्राऺ (नेऩार)
Rate In Indian Rupee
Rudraksh List
730 to 3700 नौ भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
Rate In Indian Rupee 1900 to 4600
दो भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
55 to 280 दस भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
2350 to 5500
तीन भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
55 to 280 ग्मायह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
2800 to 5500
िाय भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
55 to 190 फायह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
3700 to 7300
ऩॊि भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
55 to 370 तेयह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
5500 to 14500
छह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
55 to 190 िौदह भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
सात भुखी रूद्राऺ (नेऩार) आठ भुखी रूद्राऺ (नेऩार)
460 to 730 गौयीशॊकय रूद्राऺ (नेऩार) 1900 to 460 गणेश रुद्राऺ (नेऩार)
21000 to 41500 3700 to 14500 730 to 1450
* भूल्म भं अॊतय रुद्राऺ के आकाय औय गुणवत्ता के अनुसाय अरग-अरग होते हं । उऩयोि भूल्म छोटे से फिे आकाय के अनुरुऩ दशाामे गमे हं । कबी-कबी सॊबात्रवत हं की छोटे आकाय के उत्तभ गुणवत्ता वारे रुद्राऺ असधक भूल्म भं प्राद्ऱ हो सकते हं । त्रवशेष सूिना: फाजाय की स्स्थसत के अनुसाय, रूद्राऺ भूल्म, फदन-फ-फदन फदरते यहते है , स्जस कायण हभायी भूल्म सूिी भं बी
फाजाय की स्स्थसत के अनुसाय ऩरयवतान होते यहते हं , कृ प्मा रुद्राऺ के सरए अऩना बुगतान बेजने से
ऩहरे रुद्राऺ के नमी भूल्म सूिी हे तु हभ से सॊऩका कयं ।
रुद्राऺ के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।
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भॊि ससद्ध दर ा साभग्री ु ब हत्था जोडी- Rs- 550
घोडे की नार- Rs.351
भामा जार- Rs- 251
त्रफल्री नार- Rs- 370
भोसत शॊख-Rs- 550 से 1450
धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
ससमाय ससॊगी- Rs- 730
दस्ऺणावतॉ शॊख-Rs-550-2100 इन्द्र जार- Rs- 251
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अगस्त 2014
80
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि फकसी बी व्मत्रि का जीवन तफ आसान फन जाता हं जफ उसके िायं औय का भाहोर उसके अनुरुऩ उसके वश भं हं। जफ कोई व्मत्रि का आकषाण दस ु यो के उऩय एक िुम्फकीम प्रबाव डारता हं , तफ
रोग उसकी सहामता एवॊ
सेवा हे तु तत्ऩय होते है औय उसके प्राम् सबी कामा त्रफना असधक कद्श व ऩये शानी से सॊऩन्न हो जाते हं । आज के बौसतकता वाफद मुग भं हय व्मत्रि के सरमे दस ॊ कत्व को कामभ ू यो को अऩनी औय खीिने हे तु एक प्रबावशासर िुफ
यखना असत आवश्मक हो जाता हं । आऩका आकषाण औय व्मत्रित्व आऩके िायो ओय से रोगं को आकत्रषात कये इस सरमे सयर उऩाम हं , श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि। क्मोफक बगवान श्री कृ ष्ण एक अरौफकव एवॊ फदवम िुॊफकीम व्मत्रित्व के धनी थे। इसी कायण से श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन एवॊ दशान से आकषाक व्मत्रित्व प्राद्ऱ होता हं । श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के साथ व्मत्रिको दृढ़ इच्छा शत्रि एवॊ उजाा प्राद्ऱ होती हं , स्जस्से व्मत्रि हभेशा एक बीड भं हभेशा आकषाण का कंद्र यहता हं । मफद फकसी व्मत्रि को अऩनी प्रसतबा व आत्भत्रवद्वास के स्तय भं वृत्रद्ध, अऩने सभिो व ऩरयवायजनो के त्रफि भं रयश्तो भं सुधाय कयने की ईच्छा होती हं उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि का ऩूजन एक सयर व सुरब भाध्मभ सात्रफत हो सकता हं । श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि ऩय अॊफकत शत्रिशारी त्रवशेष ये खाएॊ, फीज भॊि एवॊ
श्रीकृ ष्ण फीसा कवि श्रीकृ ष्ण
फीसा
कवि
को
केवर
त्रवशेष शुब भुहुता भं सनभााण फकमा जाता हं । कवि को त्रवद्रान कभाकाॊडी
ब्राहभणं द्राया शुब भुहुता भं शास्त्रोि
अॊको से व्मत्रि को अद्द्द्भत ु आॊतरयक शत्रिमाॊ प्राद्ऱ होती हं जो व्मत्रि को
त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन व सनमसभत दशान के भाध्मभ से बगवान
मुि कयके सनभााण फकमा जाता हं ।
सफसे आगे एवॊ सबी ऺेिो भं अग्रस्णम फनाने भं सहामक ससद्ध होती हं ।
श्रीकृ ष्ण का आशीवााद प्राद्ऱ कय सभाज भं स्वमॊ का अफद्रतीम स्थान स्थात्रऩत कयं । श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि अरौफकक ब्रह्माॊडीम उजाा का सॊिाय कयता हं , जो एक प्राकृ त्रत्त भाध्मभ से व्मत्रि के बीतय सद्दबावना, सभृत्रद्ध, सपरता, उत्तभ स्वास्थ्म, मोग औय ध्मान के सरमे एक शत्रिशारी भाध्मभ हं !
श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के ऩूजन से व्मत्रि के साभास्जक भान-सम्भान व ऩद-प्रसतद्षा भं वृत्रद्ध होती हं ।
त्रवद्रानो के भतानुसाय श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि के भध्मबाग ऩय ध्मान मोग कंफद्रत कयने से व्मत्रि फक िेतना शत्रि जाग्रत होकय शीघ्र उच्ि स्तय को प्राद्ऱहोती हं ।
द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म स्जस के पर स्वरुऩ धायण कयता व्मत्रि को शीघ्र ऩूणा राब प्राद्ऱ होता हं । कवि को गरे भं धायण कयने से वहॊ अत्मॊत प्रबाव शारी होता हं । गरे भं धायण कयने से कवि हभेशा रृदम के ऩास यहता हं स्जस्से व्मत्रि ऩय उसका राब असत तीव्र एवॊ शीघ्र ऻात होने रगता हं । भूरम भाि: 1900 >>Order Now
जो ऩुरुषं औय भफहरा अऩने साथी ऩय अऩना प्रबाव डारना िाहते हं औय उन्हं अऩनी औय आकत्रषात कयना िाहते हं । उनके सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि उत्तभ उऩाम ससद्ध हो सकता हं ।
ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रभ की वृत्रद्ध औय सुखी दाम्ऩत्म जीवन के सरमे श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि राबदामी होता हं ।
भूल्म:- Rs. 730 से Rs. 10900 तक उप्रब्द्ध >> Order Now
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81
अगस्त 2014
जैन धभाके त्रवसशद्श मॊिो की सूिी श्री िौफीस तीथंकयका भहान प्रबात्रवत िभत्कायी मॊि
श्री एकाऺी नारयमेय मॊि
श्री िोफीस तीथंकय मॊि
सवातो बद्र मॊि
कल्ऩवृऺ मॊि
सवा सॊऩत्रत्तकय मॊि
सिॊताभणी ऩाद्वानाथ मॊि
सवाकामा-सवा भनोकाभना ससत्रद्धअ मॊि (१३० सवातोबद्र मॊि)
सिॊताभणी मॊि (ऩंसफठमा मॊि)
ऋत्रष भॊडर मॊि
सिॊताभणी िक्र मॊि
जगदवल्रब कय मॊि
श्री िक्रेद्वयी मॊि
ऋत्रद्ध ससत्रद्ध भनोकाभना भान सम्भान प्रासद्ऱ मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय मॊि
ऋत्रद्ध ससत्रद्ध सभृत्रद्ध दामक श्री भहारक्ष्भी मॊि
श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि
त्रवषभ त्रवष सनग्रह कय मॊि
श्री ऩद्मावती मॊि
ऺुद्रो ऩद्रव सननााशन मॊि
श्री ऩद्मावती फीसा मॊि
फृहच्िक्र मॊि
श्री ऩाद्वाऩद्मावती ह्रंकाय मॊि
वॊध्मा शब्दाऩह मॊि
ऩद्मावती व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि
भृतवत्सा दोष सनवायण मॊि
श्री धयणेन्द्र ऩद्मावती मॊि
काॊक वॊध्मादोष सनवायण मॊि
श्री ऩाद्वानाथ ध्मान मॊि
फारग्रह ऩीडा सनवायण मॊि
श्री ऩाद्वानाथ प्रबुका मॊि
रधुदेव कुर मॊि
बिाभय मॊि (गाथा नॊफय १ से ४४ तक)
नवगाथात्भक उवसग्गहयॊ स्तोिका त्रवसशद्श मॊि
भस्णबद्र मॊि
उवसग्गहयॊ मॊि
श्री मॊि
श्री ऩॊि भॊगर भहाश्रृत स्कॊध मॊि
श्री रक्ष्भी प्रासद्ऱ औय व्माऩाय वधाक मॊि
ह्रीॊकाय भम फीज भॊि
श्री रक्ष्भीकय मॊि
वधाभान त्रवद्या ऩट्ट मॊि
रक्ष्भी प्रासद्ऱ मॊि
त्रवद्या मॊि
भहात्रवजम मॊि
सौबाग्मकय मॊि
त्रवजमयाज मॊि
डाफकनी, शाफकनी, बम सनवायक मॊि
त्रवजम ऩतका मॊि
बूताफद सनग्रह कय मॊि
त्रवजम मॊि
ज्वय सनग्रह कय मॊि
ससद्धिक्र भहामॊि
शाफकनी सनग्रह कय मॊि
दस्ऺण भुखाम शॊख मॊि
आऩत्रत्त सनवायण मॊि
दस्ऺण भुखाम मॊि
शिुभख ु स्तॊबन मॊि
(अनुबव ससद्ध सॊऩण ू ा श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि)
मॊि के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं ।
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82
अगस्त 2014
घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि को स्थाऩीत
कयने से साधक की सवा भनोकाभनाएॊ ऩूणा होती हं । सवा प्रकाय के योग बूत-प्रेत आफद उऩद्रव से यऺण होता हं । जहयीरे औय फहॊ सक प्राणीॊ से सॊफसॊ धत बम दयू होते हं । अस्ग्न बम, िोयबम आफद दयू होते हं ।
दद्श ु व असुयी शत्रिमं से उत्ऩन्न होने वारे बम
से मॊि के प्रबाव से दयू हो जाते हं ।
मॊि के ऩूजन से साधक को धन, सुख, सभृत्रद्ध,
ऎद्वमा, सॊतत्रत्त-सॊऩत्रत्त आफद की प्रासद्ऱ होती हं । साधक की सबी प्रकाय की सास्त्वक इच्छाओॊ की ऩूसता होती हं ।
मफद फकसी ऩरयवाय मा ऩरयवाय के सदस्मो ऩय
वशीकयण, भायण,
उच्िाटन इत्माफद जाद-ू टोने वारे
प्रमोग फकमे गमं होतो इस मॊि के प्रबाव से स्वत् नद्श हो जाते हं औय बत्रवष्म भं मफद कोई प्रमोग कयता हं तो यऺण होता हं ।
कुछ जानकायो के श्री घॊटाकणा भहावीय ऩतका
मॊि से जुडे अद्द्द्भत ु अनुबव यहे हं । मफद घय भं श्री
घॊटाकणा भहावीय ऩतका मॊि स्थात्रऩत फकमा हं औय मफद
कोई इषाा, रोब, भोह मा शिुतावश मफद अनुसित कभा
कयके फकसी बी उद्दे श्म से साधक को ऩये शान कयने का प्रमास कयता हं तो मॊि के प्रबाव से सॊऩण ू ा ऩरयवाय का यऺण तो होता ही हं , कबी-कबी शिु के द्राया फकमा गमा अनुसित कभा शिु ऩय ही उऩय उरट वाय होते दे खा हं ।
भूल्म:- Rs. 1650 से Rs. 10900 तक उप्रब्द्ध >> Order Now
सॊऩका कयं । GURUTVA KARYALAY Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
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अगस्त 2014
83
अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि अभोद्य् भहाभृत्मुज ॊ म कवि व उल्रेस्खत अन्म साभग्रीमं को शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवद्रान ब्राह्मणो द्राया सवा राख भहाभृत्मुॊजम भॊि जऩ एवॊ दशाॊश हवन द्राया सनसभात फकमा जाता हं इस सरए कवि अत्मॊत प्रबावशारी होता हं ।
अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि कवि फनवाने हे तु: अऩना नाभ, त्रऩता-भाता का नाभ, गोि, एक नमा पोटो बेजे
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अभोद्य् भहाभृत्मुॊजम कवि दस्ऺणा भाि: 10900
याशी यत्न एवॊ उऩयत्न त्रवशेष मॊि हभायं महाॊ सबी प्रकाय के मॊि सोने-िाॊफदताम्फे भं आऩकी आवश्मिा के अनुसाय फकसी बी बाषा/धभा के मॊिो को आऩकी आवश्मक फडजाईन के अनुसाय २२ गेज सबी साईज एवॊ भूल्म व क्वासरफट के
असरी नवयत्न एवॊ उऩयत्न बी उऩरब्ध हं ।
शुद्ध ताम्फे भं अखॊफडत फनाने की त्रवशेष सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं ।
हभाये महाॊ सबी प्रकाय के यत्न एवॊ उऩयत्न व्माऩायी भूल्म ऩय उऩरब्ध हं । ज्मोसतष कामा से जुडे़
फधु/फहन व यत्न व्मवसाम से जुडे रोगो के सरमे त्रवशेष भूल्म ऩय यत्न व अन्म साभग्रीमा व अन्म सुत्रवधाएॊ उऩरब्ध हं ।
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785 Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
अगस्त 2014
84
गणेश रक्ष्भी मॊि प्राण-प्रसतत्रद्षत गणेश रक्ष्भी मॊि को अऩने घय-दक ु ान-ओफपस-पैक्टयी भं ऩूजन स्थान, गल्रा मा अरभायी भं स्थात्रऩत कयने व्माऩाय भं त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । मॊि के प्रबाव से बाग्म भं उन्नसत, भान-प्रसतद्षा एवॊ
व्माऩाय भं वृत्रद्ध होती
हं एवॊ आसथाक स्स्थभं सुधाय होता हं । गणेश रक्ष्भी मॊि को स्थात्रऩत कयने से बगवान गणेश औय दे वी रक्ष्भी का
Rs.730 से Rs.10900 तक
सॊमुि आशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।
भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं ।
त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए भॊगर
मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि के ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की कभी, गबाऩात से फिाव, फुखाय, िेिक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि के दद्श ु प्रबा,
भूल्म भाि Rs- 730
बूत-प्रेत बम, वाहन दघ ा नाओॊ, हभरा, िोयी इत्मादी से फिाव होता हं । ु ट
कुफेय मॊि कुफेय मॊि के ऩूजन से स्वणा राब, यत्न राब, ऩैतक ृ सम्ऩत्ती एवॊ गिे हुए धन से राब प्रासद्ऱ फक काभना कयने वारे
व्मत्रि के सरमे कुफेय मॊि अत्मन्त सपरता दामक होता हं । एसा शास्त्रोि विन हं । कुफेय मॊि के ऩूजन से एकासधक स्त्रोि से धन का प्राद्ऱ होकय धन सॊिम होता हं ।
ताम्र ऩि ऩय सुवणा ऩोरीस
ताम्र ऩि ऩय यजत ऩोरीस
ताम्र ऩि ऩय
(Gold Plated)
(Silver Plated)
(Copper)
साईज 1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”
भूल्म 460 820 1650 2350 3600 6400 10800
साईज
भूल्म
साईज
भूल्म
1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”
370 640 1090 1650 2800 5100 8200
1” X 1” 2” X 2” 3” X 3” 4” X 4” 6” X 6” 9” X 9” 12” X12”
255 460 730 1090 1900 3250 6400
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com >> Order Now
85
अगस्त 2014
नवयत्न जफित श्री मॊि शास्त्र विन के अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि के िायं औय मफद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न जफित श्री मॊि कहराता हं । सबी यत्नो को उसके सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉकेट के रूऩ भं धायण कयने से व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसके साथ हं । नवग्रह को श्री मॊि के साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता हं । गरे भं होने के कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय को रगते हं , वह गॊगा जर के सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे अभृत से उत्तभ कोई
औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ के सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं एसा शास्त्रोि विन हं । इस प्रकाय के नवयत्न जफित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत कयके फनावाए जाते हं ।
अद्श रक्ष्भी कवि अद्श रक्ष्भी कवि को धायण कयने से व्मत्रि ऩय सदा भाॊ भहा रक्ष्भी की कृ ऩा एवॊ आशीवााद फना
यहता हं । स्जस्से भाॊ रक्ष्भी के अद्श रुऩ (१)-आफद रक्ष्भी, (२)-धान्म रक्ष्भी, (३)-धैयीम रक्ष्भी, (४)गज रक्ष्भी, (५)-सॊतान रक्ष्भी, (६)-त्रवजम रक्ष्भी, (७)-त्रवद्या रक्ष्भी औय (८)-धन रक्ष्भी इन सबी रुऩो का स्वत् अशीवााद प्राद्ऱ होता हं ।
भूल्म भाि: Rs-1250
भॊि ससद्ध व्माऩाय वृत्रद्ध कवि व्माऩाय वृत्रद्ध कवि व्माऩाय भं शीघ्र उन्नसत के सरए उत्तभ हं । िाहं कोई बी व्माऩाय हो अगय उसभं राब के स्थान ऩय फाय-फाय हासन हो यही हं । फकसी प्रकाय से व्माऩाय भं फाय-फाय फाधाएॊ उत्ऩन्न हो यही हो! तो सॊऩण ू ा प्राण प्रसतत्रद्षत भॊि ससद्ध ऩूणा िैतन्म मुि व्माऩाय वृत्रद्ध मॊि को व्मऩाय स्थान मा घय भं स्थात्रऩत कयने से शीघ्र ही व्माऩाय भं वृत्रद्ध
भूल्म भाि: Rs.730 & 1050
एवॊ सनतन्तय राब प्राद्ऱ होता हं ।
भॊगर मॊि (त्रिकोण) भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद के त्रववादो को हर कयने के काभ भं राब दे ता हं , इस के असतरयि व्मत्रि को ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं । त्रववाह आफद भं भॊगरी जातकं के कल्माण के सरए भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं ।
भूल्म भाि Rs- 730 >> Order Now
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86
अगस्त 2014
त्रववाह सॊफॊसधत सभस्मा क्मा आऩके रडके-रडकी फक आऩकी शादी भं अनावश्मक रूऩ से त्रवरम्फ हो यहा हं मा उनके वैवाफहक जीवन भं खुसशमाॊ कभ होती जायही हं औय सभस्मा असधक फढती जायही हं । एसी स्स्थती होने ऩय अऩने रडके-रडकी फक कुॊडरी का अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके वैवाफहक सुख को कभ कयने वारे दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं ।
सशऺा से सॊफॊसधत सभस्मा क्मा आऩके रडके-रडकी की ऩढाई भं अनावश्मक रूऩ से फाधा-त्रवघ्न मा रुकावटे हो यही हं ? फच्िो को अऩने ऩूणा ऩरयश्रभ एवॊ भेहनत का उसित पर नहीॊ सभर यहा? अऩने रडके-रडकी की कुॊडरी का त्रवस्तृत अध्ममन अवश्म कयवारे औय उनके त्रवद्या अध्ममन भं आनेवारी रुकावट एवॊ दोषो के कायण एवॊ उन दोषं के सनवायण के उऩामो के फाय भं त्रवस्ताय से जनकायी प्राद्ऱ कयं ।
क्मा आऩ फकसी सभस्मा से ग्रस्त हं ? आऩके ऩास अऩनी सभस्माओॊ से छुटकाया ऩाने हे तु ऩूजा-अिाना, साधना, भॊि जाऩ इत्माफद कयने का सभम नहीॊ हं ? अफ आऩ अऩनी सभस्माओॊ से फीना फकसी त्रवशेष ऩूजा-अिाना, त्रवसध-त्रवधान के आऩको अऩने कामा भं सपरता प्राद्ऱ कय सके एवॊ आऩको अऩने जीवन के सभस्त सुखो को प्राद्ऱ कयने का भागा प्राद्ऱ हो सके इस सरमे गुरुत्व कामाारत द्राया हभाया उद्दे श्म शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि त्रवसबन्न प्रकाय के मन्ि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का हं ।
ज्मोसतष सॊफॊसधत त्रवशेष ऩयाभशा ज्मोसत त्रवऻान, अॊक ज्मोसतष, वास्तु एवॊ आध्मास्त्भक ऻान सं सॊफॊसधत त्रवषमं भं हभाये 30 वषो से असधक वषा के अनुबवं के साथ ज्मोसतस से जुडे नमे-नमे सॊशोधन के आधाय ऩय आऩ अऩनी हय सभस्मा के सयर सभाधान प्राद्ऱ कय सकते हं । >> Order Now
GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) Call Us - 9338213418, 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
ओनेक्स जो व्मत्रि ऩन्ना धायण कयने भे असभथा हो उन्हं फुध ग्रह के उऩयत्न ओनेक्स को धायण कयना िाफहए।
उच्ि सशऺा प्रासद्ऱ हे तु औय स्भयण शत्रि के त्रवकास हे तु ओनेक्स यत्न की अॊगूठी को दामं हाथ की सफसे छोटी उॊ गरी मा रॉकेट फनवा कय गरे भं धायण कयं । ओनेक्स यत्न धायण कयने से त्रवद्या-फुत्रद्ध की प्रासद्ऱ हो होकय स्भयण शत्रि का त्रवकास होता हं ।
>> Order Now
अगस्त 2014
87
अगस्त 2014 -त्रवशेष मोग कामा ससत्रद्ध मोग 6
सूमोदम से प्रात: 10:36 तक
21
सामॊ 6.14 से 22 अगस्त को यात्रि 9.03 तक
14
फदन 12:19 से 16 अगस्त को सूमोदम तक
27
सूमोदम से यात्रि 12.14 तक
18
फदन 11:52 से यातबय
30
फदन 3.46 से यातबय
20
सूमोदम से फदन 3:41 तक
-
-
त्रिऩुष्कय मोग (तीनगुना पर दामक) 31
यात्रि 5:14 से सूमोदम तक
फद्रऩुष्कय मोग (दौ गुना पर दामक ) 2
सामॊ 5.16 से 3 अगस्त को प्रात: 9.49 तक
त्रवघ्नकायक बद्रा 3
सामॊ 6:09 से 4 अगस्त को प्रात: 6.13 तक
16
प्रात: 6.30 से सामॊ 6.11 तक
6
यात 2:56 से 7 अगस्त को फदन 1:47 तक
19
सामॊ 7:40 से 20 अगस्त को प्रात: 8:23 तक
9
यात 3:35 से 10 अगस्त को फदन 1:37 तक
23
फदन 2:48 से 24 अगस्त को प्रात: 4:02 तक
12
यात 2:23 से 13 अगस्त को फदन 12:44 तक
29
फदन 2:56 से दे य यात 3:42 तक
मोग पर : कामा ससत्रद्ध मोग भे फकमे गमे शुब कामा भे सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ होती हं , एसा शास्त्रोि विन हं । त्रिऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब तीन गुना होता हं । एसा शास्त्रोि विन हं ।
फद्रऩुष्कय मोग भं फकमे गमे शुब कामो का राब दोगुना होता हं । एसा शास्त्रोि विन हं ।
शास्त्रोि भत से त्रवघ्नकायक बद्रा मा बद्रा मोग भं शुब कामा कयना वस्जात हं ।
दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका गुसरक कार (शुब)
मभ कार (अशुब)
सभम अवसध
सभम अवसध
यत्रववाय
03:00 से 04:30
12:00 से 01:30
04:30 से 06:00
सोभवाय
01:30 से 03:00
10:30 से 12:00
07:30 से 09:00
भॊगरवाय
12:00 से 01:30
09:00 से 10:30
03:00 से 04:30
फुधवाय
10:30 से 12:00
07:30 से 09:00
12:00 से 01:30
गुरुवाय
09:00 से 10:30
06:00 से 07:30
01:30 से 03:00
शुक्रवाय
07:30 से 09:00
03:00 से 04:30
10:30 से 12:00
शसनवाय
06:00 से 07:30
01:30 से 03:00
09:00 से 10:30
वाय
याहु कार (अशुब) सभम अवसध
अगस्त 2014
88
फदन के िौघफडमे सभम
यत्रववाय
सोभवाय
भॊगरवाय फुधवाय गुरुवाय
शुक्रवाय
शसनवाय
06:00 से 07:30
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
शुब
िर
कार
07:30 से 09:00
िर
कार
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
शुब
09:00 से 10:30
राब
शुब
िर
कार
उद्रे ग
अभृत
योग
10:30 से 12:00
अभृत
योग
राब
शुब
िर
कार
उद्रे ग
12:00 से 01:30
कार
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
शुब
िर
01:30 से 03:00
शुब
िर
कार
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
03:00 से 04:30
योग
राब
शुब
िर
कार
उद्रे ग
अभृत
04:30 से 06:00
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
शुब
िर
कार
यात के िौघफडमे सभम
यत्रववाय
सोभवाय
भॊगरवाय
फुधवाय गुरुवाय
शुक्रवाय
शसनवाय
06:00 से 07:30
शुब
िर
कार
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
07:30 से 09:00
अभृत
योग
राब
शुब
िर
कार
उद्रे ग
09:00 से 10:30
िर
कार
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
शुब
10:30 से 12:00
योग
राब
शुब
िर
कार
उद्रे ग
अभृत
12:00 से 01:30
कार
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
शुब
िर
01:30 से 03:00
राब
शुब
िर
कार
उद्रे ग
अभृत
योग
03:00 से 04:30
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
शुब
िर
कार
04:30 से 06:00
शुब
िर
कार
उद्रे ग
अभृत
योग
राब
शास्त्रोि भत के अनुशाय मफद फकसी बी कामा का प्रायॊ ब शुब भुहूता मा शुब सभम ऩय फकमा जामे तो कामा भं सपरता
प्राद्ऱ होने फक सॊबावना ज्मादा प्रफर हो जाती हं । इस सरमे दै सनक शुब सभम िौघफिमा दे खकय प्राद्ऱ फकमा जा सकता हं ।
नोट: प्राम् फदन औय यात्रि के िौघफिमे फक सगनती क्रभश् सूमोदम औय सूमाास्त से फक जाती हं । प्रत्मेक िौघफिमे फक अवसध 1 घॊटा 30 सभसनट अथाात डे ढ़ घॊटा होती हं । सभम के अनुसाय िौघफिमे को शुबाशुब तीन बागं भं फाॊटा जाता हं , जो क्रभश् शुब, भध्मभ औय अशुब हं ।
* हय कामा के सरमे शुब/अभृत/राब का
िौघफडमे के स्वाभी ग्रह
शुब िौघफडमा
भध्मभ िौघफडमा
अशुब िौघफिमा
िौघफडमा स्वाभी ग्रह
िौघफडमा स्वाभी ग्रह
िौघफडमा
स्वाभी ग्रह
शुब
गुरु
िय
उद्बे ग
सूमा
राब
फुध
योग
भॊगर
अभृत
िॊद्रभा
शुक्र
कार
शसन
िौघफिमा उत्तभ भाना जाता हं ।
* हय कामा के सरमे िर/कार/योग/उद्रे ग का िौघफिमा उसित नहीॊ भाना जाता।
अगस्त 2014
89
फदन फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक वाय
1.घॊ
2.घॊ
3.घॊ
4.घॊ
5.घॊ
6.घॊ
7.घॊ
8.घॊ
9.घॊ
यत्रववाय
सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
सोभवाय
िॊद्र
शसन
गुरु
भॊगर सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
भॊगरवाय
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
फुधवाय
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु भॊगर सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु
भॊगर
गुरुवाय
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
शुक्रवाय
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु
शसनवाय
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
िॊद्र
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
िॊद्र
िॊद्र फुध
10.घॊ 11.घॊ 12.घॊ
यात फक होया – सूमाास्त से सूमोदम तक यत्रववाय
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
सोभवाय
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
भॊगरवाय
शसन
गुरु
भॊगर
फुधवाय
सूमा
शुक्र
फुध
गुरुवाय
िॊद्र
शसन
गुरु
शुक्रवाय
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
गुरु भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु
सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
िॊद्र
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
भॊगर सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शसन
गुरु
भॊगर
सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसनवाय
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु भॊगर सूमा
शुक्र
फुध
िॊद्र
शसन
गुरु
भॊगर
िॊद्र
िॊद्र
होया भुहूता को कामा ससत्रद्ध के सरए ऩूणा परदामक एवॊ अिूक भाना जाता हं , फदन-यात के २४ घॊटं भं शुब-अशुब सभम को सभम से ऩूवा ऻात कय अऩने कामा ससत्रद्ध के सरए प्रमोग कयना िाफहमे।
त्रवद्रानो के भत से इस्च्छत कामा ससत्रद्ध के सरए ग्रह से सॊफॊसधत होया का िुनाव कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं ।
सूमा फक होया सयकायी कामो के सरमे उत्तभ होती हं । िॊद्रभा फक होया सबी कामं के सरमे उत्तभ होती हं । भॊगर फक होया कोटा -किेयी के कामं के सरमे उत्तभ होती हं । फुध फक होया त्रवद्या-फुत्रद्ध अथाात ऩढाई के सरमे उत्तभ होती हं । गुरु फक होया धासभाक कामा एवॊ त्रववाह के सरमे उत्तभ होती हं । शुक्र फक होया मािा के सरमे उत्तभ होती हं । शसन फक होया धन-द्रव्म सॊफॊसधत कामा के सरमे उत्तभ होती हं ।
अगस्त 2014
90
ग्रह िरन अगस्त -2014 Day 1
Sun
Mon
Ma
03:14:37
05:09:52
06:09:05
2
03:15:35
05:22:00
3
03:16:32
4
Me
Jup
Ven
Sat
Rah
Ket
Ua
Nep
Plu
03:06:02
03:09:23
02:22:09
06:22:40
05:27:54
11:27:54
11:22:24
10:12:51
08:17:34
06:09:37
03:08:06
03:09:36
02:23:22
06:22:42
05:27:53
11:27:53
11:22:23
10:12:50
08:17:32
06:04:23
06:10:11
03:10:10
03:09:50
02:24:35
06:22:43
05:27:53
11:27:53
11:22:23
10:12:49
08:17:31
03:17:30
06:17:05
06:10:44
03:12:15
03:10:03
02:25:48
06:22:44
05:27:53
11:27:53
11:22:22
10:12:47
08:17:30
5
03:18:27
07:00:10
06:11:17
03:14:21
03:10:16
02:27:01
06:22:46
05:27:52
11:27:52
11:22:22
10:12:46
08:17:28
6
03:19:25
07:13:43
06:11:51
03:16:26
03:10:30
02:28:14
06:22:47
05:27:50
11:27:50
11:22:21
10:12:44
08:17:27
7
03:20:22
07:27:44
06:12:25
03:18:30
03:10:43
02:29:27
06:22:49
05:27:46
11:27:46
11:22:20
10:12:43
08:17:26
8
03:21:20
08:12:15
06:12:59
03:20:35
03:10:56
03:00:40
06:22:50
05:27:39
11:27:39
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अगस्त 2014
सवा योगनाशक मॊि/कवि भनुष्म अऩने जीवन के त्रवसबन्न सभम ऩय फकसी ना फकसी साध्म मा असाध्म योग से ग्रस्त होता हं । उसित उऩिाय से ज्मादातय साध्म योगो से तो भुत्रि सभर जाती हं , रेफकन कबी-कबी साध्म योग होकय बी असाध्म होजाते हं , मा कोइ असाध्म योग से ग्रससत होजाते हं । हजायो राखो रुऩमे खिा कयने ऩय बी असधक राब प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता। डॉक्टय द्राया फदजाने वारी दवाईमा अल्ऩ सभम के सरमे कायगय सात्रफत होती हं , एसी स्स्थती भं राब प्रासद्ऱ के सरमे व्मत्रि एक डॉक्टय से दस ू ये डॉक्टय के िक्कय रगाने को फाध्म हो जाता हं । बायतीम ऋषीमोने अऩने मोग साधना के प्रताऩ से योग शाॊसत हे तु त्रवसबन्न आमुवये औषधो के असतरयि मॊि, भॊि एवॊ तॊि का उल्रेख अऩने ग्रॊथो भं कय भानव जीवन को राब प्रदान कयने का साथाक प्रमास हजायो वषा ऩूवा फकमा था। फुत्रद्धजीवो के भत से जो व्मत्रि जीवनबय अऩनी फदनिमाा ऩय सनमभ, सॊमभ यख कय आहाय ग्रहण कयता हं , एसे व्मत्रि को त्रवसबन्न योग से ग्रससत होने की सॊबावना कभ होती हं । रेफकन आज के फदरते मुग भं एसे व्मत्रि बी बमॊकय योग से ग्रस्त होते फदख जाते हं । क्मोफक सभग्र सॊसाय कार के अधीन हं । एवॊ भृत्मु सनस्द्ळत हं स्जसे त्रवधाता के अरावा औय कोई टार नहीॊ सकता, रेफकन योग होने फक स्स्थती भं व्मत्रि योग दयू कयने का प्रमास तो अवश्म कय सकता हं । इस सरमे मॊि भॊि एवॊ तॊि के कुशर जानकाय से मोग्म भागादशान रेकय व्मत्रि योगो से भुत्रि ऩाने का मा उसके प्रबावो को कभ कयने का प्रमास बी अवश्म कय सकता हं । ज्मोसतष त्रवद्या के कुशर जानकय बी कार ऩुरुषकी गणना कय अनेक योगो के अनेको यहस्म को उजागय कय सकते हं । ज्मोसतष शास्त्र के भाध्मभ से योग के भूरको ऩकडने भे सहमोग सभरता हं , जहा आधुसनक सिफकत्सा शास्त्र अऺभ होजाता हं वहा ज्मोसतष शास्त्र द्राया योग के भूर(जि) को ऩकड कय उसका सनदान कयना राबदामक एवॊ उऩामोगी ससद्ध होता हं । हय व्मत्रि भं रार यॊ गकी कोसशकाए ऩाइ जाती हं , स्जसका सनमभीत त्रवकास क्रभ फद्ध तयीके से होता यहता हं । जफ इन कोसशकाओ के क्रभ भं ऩरयवतान होता है मा त्रवखॊफडन होता हं तफ व्मत्रि के शयीय भं स्वास्थ्म सॊफॊधी त्रवकायो उत्ऩन्न होते हं । एवॊ इन कोसशकाओ का सॊफॊध नव ग्रहो के साथ होता हं । स्जस्से योगो के होने के कायण व्मत्रि के जन्भाॊग से दशा-भहादशा एवॊ ग्रहो फक गोिय स्स्थती से प्राद्ऱ होता हं । सवा योग सनवायण कवि एवॊ भहाभृत्मुॊजम मॊि के भाध्मभ से व्मत्रि के जन्भाॊग भं स्स्थत कभजोय एवॊ ऩीफडत ग्रहो के अशुब प्रबाव को कभ कयने का कामा सयरता ऩूवक ा फकमा जासकता हं । जेसे हय व्मत्रि को ब्रह्माॊड फक उजाा एवॊ ऩृथ्वी का गुरुत्वाकषाण फर प्रबावीत कताा हं फठक उसी प्रकाय कवि एवॊ मॊि के भाध्मभ से ब्रह्माॊड फक उजाा के सकायात्भक प्रबाव से व्मत्रि को सकायात्भक उजाा प्राद्ऱ होती हं स्जस्से योग के प्रबाव को कभ कय योग भुि कयने हे तु सहामता सभरती हं । योग सनवायण हे तु भहाभृत्मुॊजम भॊि एवॊ मॊि का फडा भहत्व हं । स्जस्से फहन्द ू सॊस्कृ सत का प्राम् हय व्मत्रि भहाभृत्मुॊजम भॊि से ऩरयसित हं ।
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अगस्त 2014
कवि के राब : एसा शास्त्रोि विन हं स्जस घय भं भहाभृत्मुॊजम मॊि स्थात्रऩत होता हं वहा सनवास कताा हो नाना प्रकाय फक आसध-व्मासध-उऩासध से यऺा होती हं । ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवि फकसी बी उम्र एवॊ जासत धभा के रोग िाहे स्त्री हो मा ऩुरुष धायण कय सकते हं । जन्भाॊगभं अनेक प्रकायके खयाफ मोगो औय खयाफ ग्रहो फक प्रसतकूरता से योग उतऩन्न होते हं । कुछ योग सॊक्रभण से होते हं एवॊ कुछ योग खान-ऩान फक असनमसभतता औय अशुद्धतासे उत्ऩन्न होते हं । कवि एवॊ मॊि द्राया एसे अनेक प्रकाय के खयाफ मोगो को नद्श कय, स्वास्थ्म राब औय शायीरयक यऺण प्राद्ऱ कयने हे तु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि सवा उऩमोगी होता हं । आज के बौसतकता वादी आधुसनक मुगभे अनेक एसे योग होते हं , स्जसका उऩिाय ओऩये शन औय दवासे बी कफठन हो जाता हं । कुछ योग एसे होते हं स्जसे फताने भं रोग फहिफकिाते हं शयभ अनुबव कयते हं एसे योगो को योकने हे तु एवॊ उसके उऩिाय हे तु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि राबादासम ससद्ध होता हं । प्रत्मेक व्मत्रि फक जेसे-जेसे आमु फढती हं वैसे-वसै उसके शयीय फक ऊजाा कभ होती जाती हं । स्जसके साथ अनेक प्रकाय के त्रवकाय ऩैदा होने रगते हं एसी स्स्थती भं उऩिाय हे तु सवायोगनाशक कवि एवॊ मॊि परप्रद होता हं । स्जस घय भं त्रऩता-ऩुि, भाता-ऩुि, भाता-ऩुिी, मा दो बाई एक फह नऺिभे जन्भ रेते हं , तफ उसकी भाता के सरमे असधक कद्शदामक स्स्थती होती हं । उऩिाय हे तु भहाभृत्मुॊजम मॊि परप्रद होता हं । स्जस व्मत्रि का जन्भ ऩरयसध मोगभे होता हं उन्हे होने वारे भृत्मु तुल्म कद्श एवॊ होने वारे योग, सिॊता भं उऩिाय हे तु सवा योगनाशक कवि एवॊ मॊि शुब परप्रद होता हं । नोट:- ऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा िैतन्म मुि सवा योग सनवायण कवि एवॊ मॊि के फाये भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं । >> Order Now
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अगस्त 2014
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भॊि ससद्ध कवि
भॊि ससद्ध कवि को त्रवशेष प्रमोजन भं उऩमोग के सरए औय शीघ्र प्रबाव शारी फनाने के सरए तेजस्वी भॊिो द्राया शुब भहूता भं शुब फदन को तैमाय फकमे जाते है । अरग-अरग कवि तैमाय कयने केसरए अरग-अरग तयह के भॊिो का प्रमोग फकमा जाता है ।
क्मं िुने भॊि ससद्ध कवि? उऩमोग भं आसान कोई प्रसतफन्ध नहीॊ कोई त्रवशेष सनसत-सनमभ नहीॊ कोई फुया प्रबाव नहीॊ
भॊि ससद्ध कवि सूसि अभोघ भहाभृत्मुॊजम कवि
10900
श्रात्रऩत मोग सनवायण कवि
1900
तॊि यऺा
730
याज याजेद्वयी कवि
11000
* सवा जन वशीकयण
1450
शिु त्रवजम
730
सवा कामा ससत्रद्ध कवि
4600
ससत्रद्ध त्रवनामक कवि
1450
त्रववाह फाधा सनवायण
730
श्री घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्धप्रद कवि
6400
सकर सम्भान प्रासद्ऱ कवि
1450
व्माऩय वृत्रद्ध
730
सकर ससत्रद्ध प्रद गामिी कवि
6400
आकषाण वृत्रद्ध कवि
1450
सवा योग सनवायण
730
दस भहा त्रवद्या कवि
6400
वशीकयण नाशक कवि
1450
योजगाय वृत्रद्ध
730
नवदग ु ाा शत्रि कवि
6400
प्रीसत नाशक कवि
1450
भस्स्तष्क ऩृत्रद्श वधाक
640
यसामन ससत्रद्ध कवि
6400
िॊडार मोग सनवायण कवि
1450
काभना ऩूसता
640
ऩॊिदे व शत्रि कवि
6400
ग्रहण मोग सनवायण कवि
1450
त्रवयोध नाशक
640
सुवणा रक्ष्भी कवि
4600
अद्श रक्ष्भी
1250
त्रवघ्न फाधा सनवायण
550
स्वणााकषाण बैयव कवि
4600
भाॊगसरक मोग सनवायण कवि
1250
नज़य यऺा
550
3250
सॊतान प्रासद्ऱ
1250
योजगाय प्रासद्ऱ
550
*त्रवरऺण सकर याज वशीकयण कवि कारसऩा शाॊसत कवि
2800
स्ऩे- व्माऩय वृत्रद्ध
1050
इद्श ससत्रद्ध कवि
2800
कामा ससत्रद्ध
1050
* वशीकयण (2-3 व्मत्रिके सरए)
ऩयदे श गभन औय राब प्रासद्ऱ कवि
2350
आकस्स्भक धन प्रासद्ऱ
1050
* ऩत्नी वशीकयण
640
श्रीदग ु ाा फीसा कवि
1900
स्वस्स्तक फीसा कवि
1050
* ऩसत वशीकयण
640
अद्श त्रवनामक कवि
1900
हॊ स फीसा कवि
1050
सयस्वती (कऺा +10 के सरए)
550
त्रवष्णु फीसा कवि
1900
स्वप्न बम सनवायण कवि
1050
सयस्वती (कऺा 10 तकके सरए)
460
याभबद्र फीसा कवि
1900
नवग्रह शाॊसत
910
* वशीकयण ( 1 व्मत्रि के सरए)
640
कुफेय फीसा कवि
1900
बूसभ राब
910
ससद्ध सूमा कवि
550
गरुड फीसा कवि
1900
काभ दे व
910
ससद्ध िॊद्र कवि
550
ससॊह फीसा कवि
1900
ऩदं उन्नसत
910
ससद्ध भॊगर कवि
550
नवााण फीसा कवि
1900
ऋण भुत्रि
910
ससद्ध फुध कवि
550
सॊकट भोसिनी कासरका ससत्रद्ध कवि
1900
सुदशान फीसा कवि
910
ससद्ध गुरु कवि
550
याभ यऺा कवि
1900
भहा सुदशान कवि
910
ससद्ध शुक्र कवि
550
हनुभान कवि
1900
त्रिशूर फीसा कवि
910
ससद्ध शसन कवि
550
बैयव यऺा कवि
1900
धन प्रासद्ऱ
820
ससद्ध याहु कवि
550
शसन सािे साती औय ढ़ै मा कद्श सनवायण कवि
1900
दब ु ााग्म नाशक
460 1050
ससद्ध केतु कवि
550
उऩयोि कवि के अरावा अन्म सभस्मा त्रवशेष के सभाधान हे तु एवॊ उद्दे श्म ऩूसता हे तु कवि का सनभााण फकमा जाता हं । कवि के त्रवषम भं असधक जानकायी हे तु सॊऩका कयं । *कवि भाि शुब कामा मा उद्दे श्म के सरमे
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GURUTVA KARYALAY Call Us - 9338213418, 9238328785, Our Website:- www.gurutvakaryalay.com and www.gurutvajyotish.com Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com (ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
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GURUTVA KARYALAY YANTRA LIST
EFFECTS
Our Splecial Yantra 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
12 – YANTRA SET VYAPAR VRUDDHI YANTRA BHOOMI LABHA YANTRA TANTRA RAKSHA YANTRA AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA PADOUNNATI YANTRA RATNE SHWARI YANTRA BHUMI PRAPTI YANTRA GRUH PRAPTI YANTRA KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA
For all Family Troubles For Business Development For Farming Benefits For Protection Evil Sprite For Unexpected Wealth Benefits For Getting Promotion For Benefits of Gems & Jewellery For Land Obtained For Ready Made House -
Shastrokt Yantra 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42
AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) BHAGYA VARDHAK YANTRA BHAY NASHAK YANTRA CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA DARIDRA VINASHAK YANTRA DHANDA POOJAN YANTRA DHANDA YAKSHANI YANTRA GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) GARBHA STAMBHAN YANTRA GAYATRI BISHA YANTRA HANUMAN YANTRA JWAR NIVARAN YANTRA JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA YANTRA KALI YANTRA KALPVRUKSHA YANTRA KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) KANAK DHARA YANTRA KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA KARYA SHIDDHI YANTRA SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA KRISHNA BISHA YANTRA KUBER YANTRA LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA LAKSHAMI GANESH YANTRA MAHA MRUTYUNJAY YANTRA MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA NAVDURGA YANTRA
Blessing of Durga Win over Enemies Blessing of Bagala Mukhi For Good Luck For Fear Ending Blessing of Chamunda & Navgraha Blessing of Chhinnamasta For Poverty Ending For Good Wealth For Good Wealth Blessing of Lord Ganesh For Pregnancy Protection Blessing of Gayatri Blessing of Lord Hanuman For Fewer Ending For Astrology & Spritual Knowlage Blessing of Kali For Fullfill your all Ambition Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga Blessing of Maha Lakshami For Successes in work For Successes in all work Blessing of Lord Krishna Blessing of Kuber (Good wealth) For Obstaele Of marriage Blessing of Lakshami & Ganesh For Good Health Blessing of Shiva For Fullfill your all Ambition For Marriage with choice able Girl Blessing of Durga
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YANTRA LIST
43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64
अगस्त 2014
EFFECTS
NAVGRAHA SHANTI YANTRA NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA SURYA YANTRA CHANDRA YANTRA MANGAL YANTRA BUDHA YANTRA GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA) SUKRA YANTRA SHANI YANTRA (COPER & STEEL) RAHU YANTRA KETU YANTRA PITRU DOSH NIVARAN YANTRA PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA RAM YANTRA RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA SANKAT MOCHAN YANTRA SANTAN GOPAL YANTRA SANTAN PRAPTI YANTRA SARASWATI YANTRA SHIV YANTRA
For good effect of 9 Planets For good effect of 9 Planets Good effect of Sun Good effect of Moon Good effect of Mars Good effect of Mercury Good effect of Jyupiter Good effect of Venus Good effect of Saturn Good effect of Rahu Good effect of Ketu For Ancestor Fault Ending For Pregnancy Pain Ending For Benefits of State & Central Gov Blessing of Ram Blessing of Riddhi-Siddhi For Disease- Pain- Poverty Ending For Trouble Ending Blessing Lorg Krishana For child acquisition For child acquisition Blessing of Sawaswati (For Study & Education) Blessing of Shiv Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & 65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA) Peace Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth 66 SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA For Bad Dreams Ending 67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Vehicle Accident Ending 68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All 69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending 70 For Education- Fame- state Award Winning 71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan) 72 Attraction For office Purpose 73 VASI KARAN YANTRA Attraction For Female MOHINI VASI KARAN YANTRA 74 Attraction For Husband PATI VASI KARAN YANTRA 75 Attraction For Wife PATNI VASI KARAN YANTRA 76 Attraction For Marriage Purpose VIVAH VASHI KARAN YANTRA 77 Yantra Available @:- Rs- 255, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..
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अगस्त 2014
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Gemstone Price List NAME OF GEM STONE
GENERAL
Emerald (ऩन्ना) Yellow Sapphire (ऩुखयाज) Blue Sapphire (नीरभ) White Sapphire (सफ़ेद ऩुखयाज) Bangkok Black Blue(फंकोक नीरभ) Ruby (भास्णक) Ruby Berma (फभाा भास्णक) Speenal (नयभ भास्णक/रारडी) Pearl (भोसत) Red Coral (4 यसत तक) (रार भूॊगा) Red Coral (4 यसत से उऩय)( रार भूॊगा) White Coral (सफ़ेद भूॊगा) Cat’s Eye (रहसुसनमा) Cat’s Eye Orissa (उफडसा रहसुसनमा) Gomed (गोभेद) Gomed CLN (ससरोनी गोभेद) Zarakan (जयकन) Aquamarine (फेरुज) Lolite (नीरी) Turquoise (फफ़योजा) Golden Topaz (सुनहरा) Real Topaz (उफडसा ऩुखयाज/टोऩज) Blue Topaz (नीरा टोऩज) White Topaz (सफ़ेद टोऩज) Amethyst (कटे रा) Opal (उऩर) Garnet (गायनेट) Tourmaline (तुभर ा ीन) Star Ruby (सुमक ा ान्त भस्ण) Black Star (कारा स्टाय) Green Onyx (ओनेक्स) Real Onyx (ओनेक्स) Lapis (राजवात) Moon Stone (िन्द्रकान्त भस्ण) Rock Crystal (स्फ़फटक) Kidney Stone (दाना फफ़यॊ गी) Tiger Eye (टाइगय स्टोन) Jade (भयगि) Sun Stone (सन ससताया) Diamond (.05 to .20 Cent )
(हीया)
MEDIUM FINE
200.00 550.00 550.00 550.00 100.00 100.00 5500.00 300.00 30.00 75.00 120.00 20.00 25.00 460.00 15.00 300.00 350.00 210.00 50.00 15.00 15.00 60.00 60.00 60.00 20.00 30.00 30.00 120.00 45.00 15.00 09.00 60.00 15.00 12.00 09.00 09.00 03.00 12.00 12.00 50.00
500.00 1200.00 1200.00 1200.00 150.00 190.00 6400.00 600.00 60.00 90.00 150.00 28.00 45.00 640.00 27.00 410.00 450.00 320.00 120.00 30.00 30.00 120.00 90.00 90.00 30.00 45.00 45.00 140.00 75.00 30.00 12.00 90.00 25.00 21.00 12.00 11.00 05.00 19.00 19.00 100.00
(Per Cent )
(Per Cent )
FINE
SUPER FINE
1200.00 1900.00 1900.00 2800.00 1900.00 2800.00 1900.00 2800.00 200.00 500.00 370.00 730.00 8200.00 10000.00 1200.00 2100.00 90.00 120.00 12.00 180.00 190.00 280.00 42.00 51.00 90.00 120.00 1050.00 2800.00 60.00 90.00 640.00 1800.00 550.00 640.00 410.00 550.00 230.00 390.00 45.00 60.00 45.00 60.00 280.00 460.00 120.00 280.00 120.00 240.00 45.00 60.00 90.00 120.00 90.00 120.00 190.00 300.00 90.00 120.00 45.00 60.00 15.00 19.00 120.00 190.00 30.00 45.00 30.00 45.00 15.00 30.00 15.00 19.00 10.00 15.00 23.00 27.00 23.00 27.00 200.00 370.00 (PerCent )
(Per Cent)
SPECIAL
2800.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 4600.00 & above 1000.00 & above 1900.00 & above 21000.00 & above 3200.00 & above 280.00 & above 280.00 & above 550.00 & above 90.00 & above 190.00 & above 5500.00 & above 120.00 & above 2800.00 & above 910.00 & above 730.00 & above 500.00 & above 90.00 & above 90.00 & above 640.00 & above 460.00 & above 410.00& above 120.00 & above 190.00 & above 190.00 & above 730.00 & above 190.00 & above 100.00 & above 25.00 & above 280.00 & above 55.00 & above 100.00 & above 45.00 & above 21.00 & above 21.00 & above 45.00 & above 45.00 & above 460.00 & above (Per Cent )
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Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
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अगस्त 2014
सूिना ऩत्रिका भं प्रकासशत सबी रेख ऩत्रिका के असधकायं के साथ ही आयस्ऺत हं । रेख प्रकासशत होना का भतरफ मह कतई नहीॊ फक कामाारम मा सॊऩादक बी इन त्रविायो से सहभत हं। नास्स्तक/ अत्रवद्वासु व्मत्रि भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं । ऩत्रिका भं प्रकासशत फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का उल्रेख महाॊ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष मा फकसी बी स्थान मा घटना से कोई सॊफॊध नहीॊ हं । प्रकासशत रेख ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत होने के कायण मफद फकसी के रेख, फकसी बी नाभ, स्थान मा घटना का फकसी के वास्तत्रवक जीवन से भेर होता हं तो मह भाि एक सॊमोग हं । प्रकासशत सबी रेख बायसतम आध्मास्त्भक शास्त्रं से प्रेरयत होकय सरमे जाते हं । इस कायण इन त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं । अन्म रेखको द्राया प्रदान फकमे गमे रेख/प्रमोग फक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं । औय नाहीॊ रेखक के ऩते फठकाने के फाये भं जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं । ज्मोसतष, अॊक ज्मोसतष, वास्तु, भॊि, मॊि, तॊि, आध्मास्त्भक ऻान ऩय आधारयत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं । फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम स्वमॊ का होगा। ऩाठक द्राया फकसी बी प्रकाय फक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी। हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी रेख हभाये वषो के अनुबव एवॊ अनुशॊधान के आधाय ऩय सरखे होते हं । हभ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रमोग फकमे जाने वारे भॊि- मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोकी स्जन्भेदायी नफहॊ रेते हं । मह स्जन्भेदायी भॊि-मॊि मा अन्म प्रमोग मा उऩामोको कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी। क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं के स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा ऩूसता हे तु प्रमोग कताा हं अथवा प्रमोग के कयने भे िुफट होने ऩय प्रसतकूर ऩरयणाभ सॊबव हं । हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे सबी भॊि-मॊि मा उऩाम हभने सैकडोफाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधग ु ण ऩय प्रमोग फकमे हं स्जस्से हभे हय प्रमोग मा भॊि-मॊि मा उऩामो द्राया सनस्द्ळत सपरता प्राद्ऱ हुई हं । ऩाठकं फक भाॊग ऩय एक फह रेखका ऩून् प्रकाशन कयने का असधकाय यखता हं । ऩाठकं को एक रेख के ऩून् प्रकाशन से राब प्राद्ऱ हो सकता हं । असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩका कय सकते हं । (सबी त्रववादो केसरमे केवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।)
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अगस्त 2014
FREE E CIRCULAR
गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका अगस्त -2014 सॊऩादक
सिॊतन जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग
गुरुत्व कामाारम
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अगस्त 2014
हभाया उद्दे श्म त्रप्रम आस्त्भम फॊध/ु फफहन जम गुरुदे व जहाॉ आधुसनक त्रवऻान सभाद्ऱ हो जाता हं । वहाॊ आध्मास्त्भक ऻान प्रायॊ ब हो जाता हं , बौसतकता का आवयण ओढे व्मत्रि जीवन भं हताशा औय सनयाशा भं फॊध जाता हं , औय उसे अऩने जीवन भं गसतशीर होने के सरए भागा प्राद्ऱ नहीॊ हो ऩाता क्मोफक बावनाए फह बवसागय हं , स्जसभे भनुष्म की सपरता औय असपरता सनफहत हं । उसे ऩाने औय सभजने का साथाक प्रमास ही श्रेद्षकय सपरता हं । सपरता को प्राद्ऱ कयना आऩ का बाग्म ही नहीॊ असधकाय हं । ईसी सरमे हभायी शुब काभना सदै व आऩ के साथ हं । आऩ अऩने कामा-उद्दे श्म एवॊ अनुकूरता हे तु मॊि, ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न औय दर ा भॊि शत्रि से ऩूणा प्राण-प्रसतत्रद्षत सिज वस्तु का हभंशा ु ब प्रमोग कये जो १००% परदामक हो। ईसी सरमे हभाया उद्दे श्म महीॊ हे की शास्त्रोि त्रवसध-त्रवधान से त्रवसशद्श तेजस्वी भॊिो द्राया ससद्ध प्राण-प्रसतत्रद्षत ऩूणा िैतन्म मुि सबी प्रकाय के मन्ि- कवि एवॊ शुब परदामी ग्रह यत्न एवॊ उऩयत्न आऩके घय तक ऩहोिाने का हं ।
सूमा की फकयणे उस घय भं प्रवेश कयाऩाती हं । जीस घय के स्खिकी दयवाजे खुरे हं।
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AUG 2014
अगस्त 2014