शौनक मञ्जूषा ( माह - फरवरी -२०१४ अंक -३)

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आर्ष विद्मा गुरुकुरभ की ह द ॊ ी भासिक ई-ऩत्रिका िम्ऩादक - स्िाभी अबमानॊ ियस्िती

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आशीर् ऩुञ्ज

: ऩ0 ऩू0 गु0 स्िाभी अबमानॊद ियस्िती जी िे.....

िेदाॊत फोध

: प्रकयण ग्रॊथ

शाॊडडल्म बक्तत ि​ि ू

:

प्रथभ अध्माम (प्रथभ आहिक)

श्रीभद् बगिद गीता

:

अध्माम ३ (कभष मोग)

श्रीयाभ चरयत भानि

: उत्तय काण्ड (रुद्राष्टकॊ)

िॊत िाणी

: िाधक कल्माण

3


----- स्िाभी अबमानॊद ियस्िती 4


-

२०१४

- ३ 5


-

२०१४

- ३ 6


श्रीभद्

गीता : अध्माम ३ (कभष मोग)

तीिया अध्माम अजन ुष के कभष के फाये भें प्रश्न िे

ी आयॊ ब

ोता

ै । दि ू ये अध्माम के ३९िें

श्रोक भें क्जि कभषमोग के ननरूऩण का िूिऩात ककमा गमा था, ि ी उ य ा

ै। इ

कभषमोग के ननरूऩण के िूिऩात िे रेकय अॊत

अध्मात्भज्ञान, तत्त्िवि​िेक, भनोननयोध की भु य िबी फातें कभषमोग के प्राण की

जो फातें क ी

-

रगी

, जीिन त्रफॊद ु की

कभषमोग कुछ न ीॊ

जाएगा -

ननया कभष

कयने का िीधा अथष

ो जाएगा कभषमोग िे मोग को

अध्माम के अॊत ुई

ै । भारूभ

ैं।

ैं उ

ोता

: इनके

जाएगा। तमोंकक इ ी ननकार

ोता ै कक मे कयते

फातों को कभषमोग िे

कभष को उिी रूऩ भें छोड़ दे ना

औ अकेरे य ने दे ना। कभष के उ

रूऩ को

कयने का उऩाम ननकारा

ी रे

गीता ने अऩने अरौककक रूऩ भें उिे ऩरयभाक्जषत एिॊ शुद्ध

ै । गीता के इ

क्जिका जया बी प्रमोग भायक

उऩाम के ऩ रे का कभष रो े मा ऩाये के ढॊ ग का

जाता

चक्र एिॊ उि​िे उत्ऩन्न िॊकटों का को बस्भ कयके - भाय व्माधधमाॉ दयू

ोती

प्रिा

जायी यखता

- अभत ृ फना दे ता

ै,

ैं, ककॊतु अऩाय शक्तत सभर जाती

इिीसरए कृष्ण ने इ ै कक इ

ै , अनेक व्माधधमों को ऩैदा कयता

उऩाम की औ

ै - जन्भ-

ै । गीता का उऩाम उ

फना दे ता

ै।

के

रो े मा ऩाये

ै , क्जिके िेिन िे

सिपष

ै।

फवु द्ध की - अतर औ मक्ु तत की - खफ ू

फुवद्धरूऩ मोग की अऩेक्षा कभष अत्मॊत तुच्छ

ी प्रशॊिा की

ै –

'दयू े णह्मियॊ कभष' (२।४९)। उिी श्रोक भें इ

मोग मा उऩाम को फुवद्ध

ी क ा बी

ै । उिके ऩ रे के -

'मािानथष उदऩाने' (२।४६) भें बी इ

ज्ञान मा फवु द्ध की प्रशॊिा की

ै औ क ा

इिी के िाथ 'एर्ातेऽसबह ता' (२।३९) भें िे ऩाए जाते

ैं -

िाप

ै कक इिी िे ी

ै िाॊख्म मा िाॊख्ममोग का भागष औ

हदमा दि ू या

िॊक्षेऩ भें इन् ें िाॊख्म औ मोग मा ज्ञान औ कभष के भागष बी क ते बी ।

बी िाप

ै कक कभषमोग के भागष भें बी -

२०१४

ज्ञान रगा

काभ

ै।

ै कक दो भागष स्ितॊि रूऩ

ै मोग मा कभषमोग का भागष। ैं तथा ज्ञानमोग एिॊ कभषमोग ी ै। – ३

7

जाता


अजन ुष ने िीधे औ फतामा गमा

िाप दे ख सरमा कक ज्ञान मा फवु द्धिारा िाॊख्म भागष

िे उत्तभ

ै । उिके भक ु ात्रफरे भें दि ू ये मा कभष के भागष की कोई धगनती न ीॊ

अध्मात्भज्ञान के कयते

ी कभष कभषमोग

ै , उिने म ी ननष्कर्ष ननकारा।

जाता

ै कपय तो ननस्िॊदे

इिी के िाथ उिने

ै । महद इ

म ी ि​िोत्तभ औ ि​िषश्रेष्ठ

बी दे खा कक -

'तस्भाद्मुध्मस्ि' (२।१८), 'उक्त्तष्ठ कौंतेम मुद्धाम कृतननश्चम:' (२।३७) तथा 'मुद्धाम मुज्मस्ि' (२।३८)

भें िाप

ी उिे मद्ध ु कयने की आज्ञा दे

फाय-फाय क ा जा य ा ि​िोत्तभ फतामा जा य ा कयता

, आहद-आहद।

िोच भें ऩड़ गमा कक

ै । दि ू यी ओ

े जनादष न,

ै?

तो ज्ञान भागष

ी कतषव्म क ा जा य ा

ै।

िकने के कायण कृष्ण िे प्रश्न

े केशि, महद कभष की अऩेक्षा फवु द्ध - ज्ञान - को

ैं तो कपय (ह ि ॊ ात्भक मुद्ध जैिे) घोय कभष भें भुझे तमों रगाते

ि ी ननश्चम कयके दोनों भें

को

कबी कभष की औ कबी कपय उ ै । इिीसरए अजुन ष

स्ऩष्ट जानना चा ता भें

ी) फताए

म ाॉ 'ऩयु ा' शब्द का अथष

फोर

कभष की,

श्री बगिान ने उत्तय हदमा ी (ऩूिष

ै कक जैिे भुझे चतकय भें डारा जा य ा

ै कक स्ऩष्ट

कबी ज्ञान की फात कयते

ै क्जि​िे उिे कोई िॊदे

े ऩाऩयह त (अजुन ष ), इ

य े।

िॊिाय भें दो प्रकाय के भागष

भने

ैं ऩ रा ज्ञाननमों का ज्ञानमोग औ दि ू या मोधगमों का कभषमोग।

ै ऩि ू ष

भें । 'ऩयु ा' शब्द इिी गीता भें आगे बी दो फाय आमा

भें औ दि ू या 'मज्ञाश्च विह ता: ऩुया' (१७।२३) शब्द आमा -

ैं तो

ज्ञान की। इि​िे िुननेिारा भ्रभ भें ऩड़ जाता

'ि मज्ञा: प्रजास्िष्ृ ्िा ऩुयोिाच प्रजाऩनत:' (३।१०)

ी फाय

ै । इिसरए

िकॉू ।

तो इिी तीिये अध्माम भें -

भें । गीता भें तीन

ी श्रेष्ठ

ैं? िास्ति भें आऩके फीच-

ी भुझे फताइए, क्जि​िे भैं कल्माण प्राप्त

म ाॉ अजन ुष कृष्ण िे ऩछ ू ता

ै।

ै औ

ै –

फीच भें सभरे-जुरे िचनों िे ऐिा भारूभ ऩड़ता

ऩ रे

तमा फात

कुछ बी ननश्चम

ी रगामा जा य ा

कृष्ण को अऩना िफिे फड़ा

उिके सरए ह ि ॊ ाभम मुद्ध

इिी िोच भें ऩड़

अजन ुष ने ऩछ ू ा भानते

मद्ध ु ात्भक घोय कभष भें

ै कक धचॊता िोच

ह तैर्ी भानता था। इिीसरए घफया गमा औ

ै । इिका अथष 'ऩि ू ष

२०१४

भें ' भाना गमा – ३

8

ै।


म ाॉ ननष्ठा का अथष दे ना, अवऩषत क्जनभें

ै भागष मा यास्ता। ननष्ठा का शब्दाथष

दे ना, उिी भें जीिन गज ु ाय दे ना। मे दोनों भागष औ

-

दोनों विचायधायाएॉ ऐिी

भें जाने ककतने ि स्र, ककतने रक्ष भ ाऩुरुर्ों ने अऩने जीिन रगा हदए

को सभटा हदमा

ै । इिका िणषन आगे चौथे अध्माम भें

उऩननर्दों भें बी इिका िणषन फ ु त ज्मादा आमा

कोई बी व्मक्तत कभों को शरू ु के त्माग िे

ै ककिी फात भें अऩने को रगा

ोता

ै । भ ाबायत तथा अन्मान्म ग्रॊथों एिॊ

कयके कभषत्माग मा िॊन्माि प्राप्त न ीॊ

कोई बी क्षणबय बी त्रफना कभष ककए न ीॊ ी

ैं, अऩने

ै।

ी सिवद्ध न ीॊ सभरती कल्माण की प्राक्प्त न ीॊ

ोकय िबी को कभष कयना

ैं

िकता। कभों

ो िकती। तमोंकक -

िकता। तमोंकक प्रकृनत के गुणों के िशीबूत

ै। इिसरए -

जो ( ाथ, ऩाॉि आहद) कभष कयने िारी इॊहद्रमों को (जफदष स्ती) योक विर्मों को माद कयता य ता

ढोंगी क ा जाता

ै।

े अजुन ष , (इिके विऩयीत) जो इॊहद्रमों को तो शुरू

दे ता

िे इॊहद्रमों के

के अधीन कयके कभेंहद्रमों िे काभ कयना

ै औ पराहद के सरए धचॊता न ीॊ कयता ि ी श्रेष्ठ

ै।

इिसरए – तभ ु अऩने सरए ननक्श्चत कभष (अिश्म) कयो। तमोंकक कभष कभष ि​िषथा छोड़ दे ने ४ िे ८

तुम् ायी शयीय-मािा बी तो न ीॊ

के श्रोकों के त्रफर्म भें कुछ आिश्मक फातें जानने मोग्म

ै कक त्रफना कभष ककए कभष का त्माग मा िॊन्माि अिॊबि

न ीॊ

ोता। इिभें दो फातें

भाये ऩाि

इिी को 'अशतत:

ैं।

कक

ी न ीॊ उिे त्मागना कैिा?

ो जाती

ै,

झठ ू ी फात

ैं। िास्ति भें ै तो

न ीॊ

ठीक म ी फात िॊन्माि मा कभष-त्माग की

ो ऩाता

२०१४

- ३ 9

ै।

िणषभारा ऩढ़ िणषभारा ऩ ाड़ की

िणषभारा ऩढ़

ै।

ी कुछ तमा?

भें ऩूया कयो - ऩाय कयो। फड़े ग्रॊथों के ऩढ़ने का अथष

त्माग -

कभष छोड़ दे ने िे

तो प्रिॊचना भाि

कबी ग्रॊथों के ऩढ़ने का प्रश्न उठता

ै कक

के ऩढ़ने का त्माग।

ै औ

ैं। चौथे का

ी न ीॊ तो उिे छोड़ने का

: िाधु:' मा 'िद्ध ृ िेश्मा तऩक्स्िनी' क ते

रें उि​िे वऩॊड न ीॊ छूटता। िाभने खड़ी

कभष कयते

ै।

िकेगी।

म ी

जो चीज

कयने िे कयना क ीॊ अच्छा

ै िणषभारा री जाए।


ननहदध्माि

िभाधध, जो आत्भविज्ञान के सरए

अननिामष रूऩ िे आिश्मक

ैं, त्रफना कभों के त्माग के

ै कक चौफीि घॊटे उनिे पुयित उनका भौका

ी क ाॉ

ी न ीॊ

ोती।

कयें ननहदध्मािन आहद की मोग्मता

उठता

ै? इिकी जरूयत क ाॉ स्ऩष्ट

अबी न ीॊ। म ाॉ

ी न ीॊ िकते। कभों का तो ऩॉिाया ऐिा

म ी य े तो ननहदध्मािन औ

ोगा? इिसरए उनके कयने का अथष

कभष तो उिी

ी न ीॊ, फक्ल्क िबी विज्ञानों के सरए

ोगी

ै ? इिीसरए

ो जाता

दि ू यी फात

िभाधध कैिी?

ै कभों का त्माग।

ी न ीॊ। कपय कभों के त्माग का प्रश्न

ी क ाॉ

कबी िास्तविक कभषत्माग मा िॊन्माि की फात उठे

ै कक ऩ रे कभष कयें । कपय त्माग की जरूयत अिश्म

ोगी

ै कक कभष को मूॊ ी छोड़ दे ने िे काभ फनने के फजाए त्रफगड़ता ै । श्रोक भें

जो सिद्ध शब्द ै उिका म ी असबप्राम ै कक

रक्ष्म सिद्ध न ीॊ ोगा क्जिके सरए कभषत्माग कयते ैं। फक्ल्क

काभ त्रफगड़ेगा। इिके फाद ऩाॉचिें श्रोक भें तो

फात बी खत्भ

दी ई ै कक कभों का त्माग मों ी िॊबि

ै । इिीसरए जो रोग जफदष स्ती कभष कयने िारी इॊहद्रमों को योकते ैं, उनका काभ अप्राकृनतक ै , प्रकृनत के ननमभों के विरुद्ध ै । तमोंकक कभष कयने के सरए जफदष स्ती तो खद ु प्रकृनत य ा ै, औ

चरे ैं उिे ी योकने।

: भाया

ै । अस्िाबाविक चीज तो चरने िारी न ीॊ, ठगी ोती ै । ऊ ऐिे रोग

ठ, भायी

य ी ै , ऩदाथों का स्िबाि ी जफदष स्ती अप्राकृनतक - अस्िाबाविक

तो कबी ोने िारी न ीॊ। इिीसरए दॊ ब औ ऩाखॊड चरता ै ,

िे तो दे खने के सरए कभेंहद्रमाॉ रुकी ैं।

बीतय ी बीतय उनका काभ जायी ै । तमोंकक

को तो योक न ीॊ िकते ैं । ऐिे रोगों को छठे श्रोक भें ऩाखॊडी औ सभथ्माचायी

दत ु काया

गमा ै । म ी कायण ै कक िातिें श्रोक भें िफका ननष्कर्ष ननकार सभथ्माचायी औ ऩाखॊडी न ीॊ फनना चा ते औ खािकय ज्ञानेंहद्रमों

तो

हदमा गमा ै कक जो रोग

उनके विऩयीत काभ कयें ।

का ननमॊिण एिॊ अॊकुश यखें।

कक िफिे ऩ रे िबी इॊहद्रमों भें

का इॊहद्रमों

ननमॊिण

य ने िे ज ाॉ ज्ञानेंहद्रमाॉ विर्मों भें पॉिाने के िाथ ी कतषव्म कभों िे विभख ु कयके फेकाय के काभों भें रगा दे ती ैं, ि ीॊ कभेंहद्रमाॉ बी ज्मादती

फैठती ैं। इिीसरए िबी

का ननमॊिण जरूयी क ा गमा ै । इिीसरए

कभषमोग का म ाॉ अथष ै कभों का मोग, जोड़ना मा कयना ै औ इिका श्रीगणेश कभेंहद्रमाॉ ी कयती ैं। इिीसरए आत्भा मा

की शुवद्ध के सरए जो कभष ककमा जाता ै

तमोंकक उिभें तो शुवद्ध रूऩ

बी गीता के कभषमोग भें न ीॊ आता।

की इच्छा ई। कपय बी उिे कभष क के उिके कयने िारे को बी मोगी

ै– -

२०१४

- ३ 10

हदमा


'मोधगन: कभष कुिषक्न्त िॊगॊ त्मतत्िात्भशद्ध ु मे' (५।२५)। 'दै िभेिाऩये मज्ञॊ मोधगन:' (४।२५) भें बी मोगी का अथष आत्भज्ञानी िे सबन्न ी ै । इिका विचाय ि ीॊ ककमा ै । आगे ८िें श्रोक भें स्ऩष्ट कक कुछ ऐिे

कयने िे तो कुछ कयना क ीॊ अच्छा

हदमा

ै । इिीसरए तुभ अऩने सरए कभों को जरूय कयो।

ी कभों को गीता भें फाय-फाय ननमत नाभ िे क ा गमा

ै।

'ननमतस्म तु िॊन्माि' (१८।७),

'ननमतॊ कक्रमतेऽजन ुष (१८।९), 'ननमतॊ िॊगयह तॊ' (१८।२३) आहद भें

फात ऩाई जाती

ै । ननमत मा ननक्श्चत क ने का

ै कक मों तो खान ऩान आहद कभष िबी रोग कयते ै।

इनके सि​िाम कुछ ऐिे कभष

िभाजह त की दृक्ष्ट िे औ जाता

ी कयने

ननत्म भाने जाते

ोते

इिीसरए इ

ोता

ैं। ै

ैं।

१.

हदए

ैं मा ऋवर्-भुननमों

कयने की फात क ीॊ बी आती

कक िाभान्म कभों िे।

ै । इिीसरए

इनके सरए

ी ननमभ-कामदे फनाना जरूयी

ै तो इन् ीॊ कभों के त्माग िे ै कक ज ाॉ

ै तो उनका

-भि ू त्माग, खानऩान आहद तो त्रफना

ननमत कभों भें आरस्म आहद के चरते राऩयिा ी

बी जान रेना अच्छा

की शुवद्ध

ये क के सरए

कभों के कयने

िॊन्माि औ कभषत्माग का ि​िार आता ै , गीता ने चाय ि​ि ू हदमे

ैं। आधश्रतों की यक्षा, दे श के सरए रड़ना, ऩीडड़तों की िेिा, िॊध्मा,

जोय दे ना औ फात औ

बी उनका कयना

ै औ िभाज ने मा खद ु व्मक्ततमों ने बी उन् ें अऩनामा

ऩूजा आहद ऐिे कभों भें आते क े

ोने

अऩने अॊनतभ कल्माण मा उदात्त स्िाथष के खमार िे बी जरूयी

तथा फड़े-फूढ़ों ने उन् ें फतामा

इन् ीॊ कभों िे

ैं। इनभें तो िबी की भजफूयी

ैं। क्जनभें ऐिी भजफूयी

ै । ऐिे कभष मा तो िभाज के द्िाया

िे ननमत औ

ो जाती

ो जाता

ै।

ै।

ोता ै ।

कभों के त्माग मा िॊन्माि िे तात्ऩमष

ैं –

ो जाने

तत्त्िज्ञान के िाधन-स्िरूऩ ननहदध्मािन औ

िभाधध की

सिवद्ध के सरए कभों का स्िरूऩत: त्माग। २. तत्त्िज्ञान के फाद कभों की ओ छूट जाना जैिे डार िे ऩके ु मे परों का ३. भो

भ्रभ भें ऩड़

भानसिक प्रिक्ृ त्त

ो जाना।

प्रिॊचना फवु द्ध िे मा शयीय, इॊहद्रमाहद के कष्ट के

कभों को स्िरूऩत: छोड़ दे ना। -

ोने िे स्िरूऩत: कभों का िैिे

( २०१४

....) - ३

11

िे


-

२०१४

- ३ 12


( -

२०१४

....) - ३

13


-

२०१४

- ३ 14


-

२०१४

- ३ 15


( -

२०१४

....) - ३

16


उ ,

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। उ

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, इ

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, उ

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२०१४

-

- ३ 17


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।‖ 2/16)

-

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13/21)

― औ इ

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२०१४

- ३

18


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- फर र २०१४

19

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