सृष्टि नियंता ने चौरासी लाख योनियों में केवल मानव को विवेक संपन्न बनाया है। शब्द की सामर्थ्य केवल मनुष्य के पास ही है। तत्वान्वेषी महापुरुष इन दो सोपानों पर आरूढ़ हो कर लोक कल्याण हेतु अनुभूत सत्य को शब्दबद्ध करते हैं। उनका अनुभूत सत्य जब शब्दायित होता है तो वह सूत्र रूप में अध्यात्म जगत के पट खोलता है। ऐसा ही एक सूत्रात्मक संकलन 'शांडिल्य भक्ति सूत्र' के रूप में हम सब को 'महर्षि शांडिल्य' की