E magzine january 2014

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आर्ष विद्मा गुरुकुरभ की ह द ॊ ी भासिक ऩत्रिका िम्ऩादक - स्िाभी अबमानॊद ियस्िती

-

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आशीर् ऩञ् ु ज :

ऩज् ू म गुरुदे ि

िेदाॊत फोध

: प्रकयण ग्रॊथ

स्िाभी अबमानॊद ियस्िती जी िे .. श्रीभद्

गीता : अध्माम ५

शाॊडडल्म बक्तत ि​ि ू : प्रथभ अध्माम (द्वितीम आहिक)

(कभष िन्माि मोग) श्रीयाभ चरयत भानि : उत्तय

िॊत िाणी

काण्ड (रुद्राष्टकॊ)

त्रफर्म िक्ष ृ

2

: िाधक कल्माण


जो प्रत्यऺ दृष्टिगोचर होता है मनुष ् उतना ही जानता है शेष सारा अदृश्य

उसे कल्ऩना मात्र ऱगता है 'ईश्वर' चेतना की

शष्तत है जो ब्रह्माण्ड के भीतर

बाहर जो कुछ है , उ

में व्याप्त है उसके अगणित क्रिया कऱाऩों में , उसका ए प्रकृतत हुए भी

ववश्व व्यवस्था का संचाऱन भी है संचाऱ

ददखाई नहीं दे ता तयोंक्रक

कायय होते

सवयव्याऩी, सवयतनयन्ता है ।

अचचन्त्य, अगोचर, अगम्य ऩरमात्मा, चेतना के रूऩ में सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है , ऐसे में मनटु य की ईश्वर दशयन की आकांऺा ए

कौतुक की

ऱगती है

तनममत्त कारि है तो

सष्ृ टि में यदद

वस्तु का कोई

ईश्वर है ष्जस प्रकार प्रािों के समुच्चय

को महाप्राि कहते हैं, वैसे ही आत्माओं के समुच्चय को ऩरमात्मा कहते हैं। “शौनक मञ्जूषा" सुधी ऩाठकों

साधकों को सही

अथों में ब्रह्म, ईश्वर, ऩरमात्मा आदद का तनरं तर ददग्दशयन कराती रहे गी, ऐसा मेरा ऩूिय ववश्वास है । ६५ वें गितंत्र ददवस के सुअवसर

हमारी शुभकामना है क्रक -----

"............................................ ऩयॊ िैबिॊ नेतुभेतत ् स्ियाष्रभ ् िभथाष बित्िासशर्ा ते बश ृ भ् " (

अऩने राटर को ऩरमवैभव

ऱे जाने में समथय हो सकें।,,,,)

ऩत्रत्रका में अऩना योगदान दे ने वाऱे सभी भततों को मेरा आशीवायद !

----- स्िाभी अबमानॊद ियस्िती

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(२) (३) उ

, उ १

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श्रीभद्

गीता : अध्माम ५ (कभष िन्माि मोग)

िन्माि मोग (कभष-िन्माि) की प्राक्तत कभष मोग के त्रफना कहिन ै । कभष मोग का भुनन ब्राह्भी क्स्थनत को शीघ्र

ियरता ऩूिक ष प्रातत

कयने िारा

रेता ै । ब्रह्भ भामा िे निऩा ु आ ै , अज्ञान िे ज्ञान

ढका ु आ ै ; आत्भा अनात्भ तत्िों िे ढकी ु मी ै , इ कायण जीि अऩने स्िरूऩ को न ीॊ ऩ चान ऩाता भोह त ो य ा ै

श्रीभद

गीता का कभष िन्माि मोग -

अजुन ष फोरे:- े कृष्ण, कबी इ

भष िन्माि को उत्तभ फताते ैं, कबी कभष मोग को उत्तभ। कृऩमा

दोनों भें भेये सरए जो बी कल्माण कायक ो उिे फताने की कृऩा कयें । श्री बगिान फोरे:- े अजन ुष , कभष

िन्माि

कभष मोग दोनों ी भनष्ु म का

ोकय

ी ैं, ऩयन्तु िाधन कयने भें कभष मोग

कयता ै क्जिके

कल्माण कयने िारे ैं। िास्ति भें ै

ह दो

श्रेष्ि ै । कभष मोगी ऩुरुर् जो

ककिी िस्तु की इच्िा कयता ै , जो िॊिाय भें ह

बी िॊिाय िे

ककिी िे द्िेर्

ै , ननसभत्त भाि ी

कभष ैं, ह कभष मोगी िदा िन्मािी िभझने मोग्म ै । ह याग द्िेर् विकायों िे यह त ोकय िॊिाय

के कभष फन्धन भें न ीॊ ऩड़ता

भत ु त ो जाता ै ।

अज्ञानी भनष्ु म कभष मोग

िन्माि (िाॊख्म) मोग को

प्रकाय अनब ु ि कयके आत्भतत्ि को

िभझते ैं, क्जन् ोंने अच्िी

झ सरमा ै , जो आत्भतत्ि भें क्स्थत ो गमे ैं, ह दोनो मोगों को

ी िभझते ैं। ज्ञान मोगगमों (िन्माि) द्िाया जो क्स्थनत उऩरब्ध की जाती ै, कभष मोग द्िाया बी मोगी उिी क्स्थनत को प्रातत ोता ै । अतः जो कभष मोग

ज्ञान मोग को

दे खता ै, ह आत्भतत्ि का अगधकायी

ऩुरुर् ै , ि ी स्िरूऩ क्स्थनत को जानता ै । े अजन ुष , कभष मोग के त्रफना िन्माि मोग (कभष-िन्माि) की प्राक्तत कहिन ै । कभष मोग का को शीघ्र

कयने िारा भनु न (जो िदै ि जाग्रत ै , िाक्षी बाि भें क्स्थत ै ) ब्राह्भी क्स्थनत

ियरता ऩि ष प्रातत ू क क्जिने अऩने

रेता ै ।

को जीत सरमा ै जो क्जतेक्न्द्रम ै , ऐिा विशद्ध ु आत्भा, िम्ऩण ू ष प्राणणमों की आत्भा

ऩयभात्भा ो जाता ै । ह िम्ऩूणष िक्ृ ष्ट भें व्मातत ो जाता ै । ऐिा कभष मोगी कभष कयता ु आ बी कभष भें सरतत न ीॊ ोता तमोंकक विश्िात्भा ोने

उिभें ननजी

दि ू ये की बािना िभातत ो जाती ै । कताष, कय् ,

किमा का स्िबाितः अबाि ो जाता ै । तत्ि को जानने िारा मोगी, भैं -

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के अबाि िे यह त ो जाता ै - २


ह दे खता ु आ, िन ु ता ु आ, स्ऩशष कयता ु आ, िघ ू ॊता ु आ, बोजन कयता, ु आ

, कयता ु आ, िोता ु आ,

श्िाि रेता ु आ, फोरता ु आ, त्मागता ु आ, ग्र ण कयता ु आ, आॉख खोरता ु आ, भॉद ू ता ु आ ककिी बी शायीरयक कभष भें िाभान्म भनुष्म की कामों को

य ी

ह सरतत न ीॊ ोता ै

ैं अतः उिभें कताषऩन का बाि न ीॊ ोता ै । जो

आिक्तत का त्मागकय कभष कयता ै

भें य ते ु ए बी

ह ह जानता ै कक इक्न्द्रमाॉ अऩने अऩने कभों को ऩयभात्भा भें अऩषण कयके

कबी बी कभष फन्धन भें सरतत न ीॊ ोता ै , जैिे

का ऩत्ता

िे सरतत न ीॊ ोता ै ।

कभष मोगी केिर इक्न्द्रम

फवु द्ध

शयीय द्िाया आिक्तत को त्माग

क्स्थत ोकय कभष कयते ैं।

ऐिा कभष मोगी स्िबाितः कभष कयता ै, उिका व्मि ाय फच्चे के िभान ोता ै जो सभट्टी िभझता ै । मोगी अऩने

को

कयके इक्न्द्रमों िे व्मि ाय कयते ैं। अ भ ्

फन्धन भें न ीॊ फॊधते ैं। ह ननयन्तय आत्भ क्स्थत य ते ैं। कभष मोगी कभष

िोने को िभान

दे फुवद्ध

की आिक्तत का ऩूणत ष मा

त्माग कयके ननयन्तय शाक्न्त को प्रातत ोता ै । तमोंकक ह ऩूणष ज्ञान को प्रातत ो जाता ै ; उ की शान्तािस्था भें ननयन्तय

कयता ै

ोने िे िे कभष िम्ऩूणष ज्ञान

जो िकाभ ऩरु ु र् ैं ह विसबन्न इच्िाओॊ के सरए

भें

आितत ोकय कभष फन्ध भें पॅिते ैं। जो भनष्ु म निद्िाय िारे शयीय भें िबी कभो को की इच्िा त्माग दे ता ै ननग्र कभष भें

शयीय भें य ते ु ए बी न ीॊ य ता ै, ऐिा िशी ऩुरुर् क्जिने

सरमा ै ; क्जिकी फुवद्ध क्स्थय ै, जो कभष

आत्भानन्द भें य ता ै

िे त्मागकय अथाषत अकताष बाि िे कभष कयते ु ए की इच्िा िे भुतत ै ,

ऩयभेश्िय िास्ति भें अकताष ै , ह िॊिाय के जीिों के

कयता ु आ, कताषऩन की,

िे इक्न्द्रमों का कयिाता ु आ कभों की,

िॊमोग की यचना कयते ैं; ककन्तु स्िबाि ी इ िफका कायण ै अथाषत भामा का आयोऩण

ईश्िय

हदमा जाता ै तो उिे कताष िभझने रगते ैं। ऩयन्तु ऩयभात्भा अऩने अकताष स्िरूऩ भें क्स्थत य ते ु ए

कोहट कोहट ब्रह्भाण्डों का िज ृ न (स्िबाि) उिके कताषऩन, कभष ऩयभात्भा

दे ते ैं।

उनकी प्रकृनत के कायण ोता ै । भनुष्म भें बी प्रकृनत

कभषपर िॊमोग का कायण ै

ककिी के ऩाऩ कभष को

ककिी के शुब कभष को ग्र ण कयता ै । ऩाऩ

ऩुण्म जीित्ि

बाि अथिा शयीय बाि के कायण उत्ऩन्न ोते ैं। ऩयभात्भा ननत्म शुद्ध आत्भतत्ि ै , ननयाकाय ै अतः ऩाऩ ऩण् ु म िे उिका कोई िास्ता न ीॊ ै । -

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- २


अज्ञान िे ज्ञान ढका ु आ ै ; ब्रह्भ भामा िे निऩा ु आ ै , आत्भा अनात्भ तत्िों िे ढकी ु मी ै , इ कायण जीि अऩने स्िरूऩ को न ीॊ ऩ चान ऩाता

ह भोह त ो य ा ै । ऩयन्तु क्जनका अज्ञान आत्भ ज्ञान

के कायण नष्ट ो गमा ै, उिका ह आत्भ ज्ञान िूमष के िभान उ

तत्ि को प्रकासशत

दे ता ै ।

अज्ञान के विरीन ोते ी दे बाि, जीि बाि नष्ट ो जाता ै ।

ब्रह्भ बाि स्िमॊ ी उिभें उहदत ो जाता ै । क्जिका

आत्भा भें क्स्थत ै, जो ननयन्तय ब्रह्भ बाि

भें क्स्थत ै , िदा आत्भयत ै ; क्जनके कभष दोर् ज्ञान द्िाया बस्भ ो गमे ैं अथाषत आिक्तत क्जनकी नष्ट ो गमी ै उनके कभष

तथा भामा के कायण ननक्श्चत आिागभन िभातत ो जाता ै । ह ननज इच्िा िे स्िमॊ

प्रकट ोते ैं। िाॊिारयक आिागभन के फन्धन िे ह िदा के सरए भुतत ो जाते ैं। क्जनका

बाि भें क्स्थत ै जो ब्राह्भण कुत्ते

चाण्डार भें

बाि अथिा ब्रह्भ बाि यखता

ै ; ऐिे ऩरु ु र् द्िाया िास्ति भें िॊिाय जीत सरमा गमा ै अथाषत ह िॊिाय फन्धन िे ऊ दोर् यह त

ै । क्जनका

ह बी िभबाि के कायण दोर् यह त ो ब्रह्भ स्िरूऩ ो जाते ैं। म ी ब्राह्भी क्स्थनत

बाि भें क्स्थत ै जो ब्राह्भण कुत्ते

चाण्डार भें

बाि अथिा ब्रह्भ बाि यखता ै ; ऐिे

ऩुरुर् द्िाया िास्ति भें िॊिाय जीत सरमा गमा ै अथाषत ह िॊिाय फन्धन िे ऊ ै

ो जाते ैं। ब्रह्भ,

ो जाते ैं। ब्रह्भ, दोर् यह त

ह बी िभबाि के कायण दोर् यह त ो ब्रह्भ स्िरूऩ ो जाते ैं। म ी ब्राह्भी क्स्थनत ै । जो

वप्रम को ऩाकय वर्षत न ीॊ ोता, तथा अवप्रम को ऩाकय उद्विग्न न ीॊ ोता ै , िदा उदािीन

शाक्न्त

भें क्स्थत, क्स्थय फुवद्ध क्जिके िॊशम िभातत ो गमे ैं; ब्रह्भ िेत्ता ऩुरुर् िदा ब्रह्भ भें क्स्थत य ता ै अथाषत स्िमॊ ब्रह् स्िरूऩ ोता ै । क्जिका अन्तःकयण फा यी विर्मों भें न ीॊ डोरता ै ऐिा आिक्तत यह त ऩुरुर् आत्भानन्द को प्रातत

ोता ै । ह ब्रह्भ क्स्थत ऩुरुर् िदा अक्षम आनन्द का अनुबि कयता ै । ऩयन्तु जो विर्मी ऩुरुर् ैं उन् ें इक्न्द्रम तथा विर्मों के िॊमोग िे ोने िारे िभस्त बो िुख रूऩ रगते ैं ऩयन्तु उनका ऩरयणाभ भाि दख ै । ह िबी ु े़ िाॊिारयक बोग थोडे के ोते ै । इनका प्रायम्ब अन्त ै अतः ज्ञानी ऩरु िे ग्र ण ु र् इ विर्मों को न ीॊ कयता ै । जो ऩुरुर् शयीय के नाश ोने िे ऩ रे काभ िोध िे उत्ऩन्न िेग को ि ने भें िभथष ो जाता ै ह ऩुरुर् आत्भ क्स्थत मोगी ै , ि ी िुखी ै । -

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आत्भ क्स्थत ऩरु ु र् का अ ॊ काय िभातत ो जाता ै , अ ॊ काय िभातत ोते ी स्िरूऩ क्स्थनत प्रातत ोती ै । ज ाॉ केिर ज्ञान ै , आनन्द ै । अतः उनभें काभ िोध का अॊश भाि बी न ीॊ ोता ै । जो ऩरु ु र् अऩनी आत्भा िे िुखी ैं िदा अऩनी आत्भा भें ि​िोतभ, नाश

कयते ैं, आत्भ ज्ञान िे जो स्िमॊ प्रकासशत ै ह ब्रह्भ क्स्थत मोगी

ोने िारे अिीभ ब्रह्भ िुख को प्रातत ोते ैं। म ी ब्रह्भ ननिाषण ै।

क्जनके िभस्त कभष

दोर् िभातत ो गमे ैं, क्जनके

िॊशम िभातत ो गमे ैं अथाषत क्जन् ें

कोई भ्राक्न्त न ीॊ ै , जो िबी प्राणणमों का ह त कयने िारे ैं, िबी को

दे ना क्जनका स्िबाि ै , जो िाधना

िे आत्भा भें क्स्थत ैं, ऐिे ब्रह्भिेता ऩुरुर् ब्रह्भ ननिाषण को प्रातत ोते ैं जो काभ िोध िे भुतत ैं, क्जन् ोंने अऩना गचत्त

भें

सरमा ै , जो ननत्म आत्भ क्स्थत ोकय आत्भा को जानते ैं ऐिे ज्ञानी ऩुरुर्ों के सरए

ब्रह्भ ननिाषण ी

श्रेम ै

इिी ब्राह्भी क्स्थनत भें ह ितत ् फने य ते ैं

िैयाग्म द्िाया फा य के विर्मों को फा य ननकारकय, भध्म भें क्स्थत

को िॊमसभत

यते ु ए, नेिों को बक ृ ु टी के

तथा नासिका भें विचयने िारे प्राण अऩान िामु को प्राणामाभ द्िाया

ओ रे जाने िारे मोगी, क्जिने इक्न्द्रम, काभना कयता ै ऐिा

, फुवद्ध को मत्न कयके अऩने

ननशीर मोगी इच्िा

भें

कयके ब्रह्भयॊ घ्र की

सरमा ै ; जो केिर भोक्ष की

िोध िे यह त ोकय िदा िदा के सरए भुतत ो जाता

ै। उिका भामा फन्धन मज्ञ

जाता ै

ह स्िरूऩ क्स्थनत को प्रातत

रेता ै

े अजन ुष , भैं िभस्त

तऩों को बोगने िारा िम्ऩूणष रोकों का भ े श्िय तथा िबी प्राणणमों को िदा

दे ने िारा, कृऩा

कयने िारा स्िाथष यह त सभि ू ॉ। जो आत्भ क्स्थत भुझे इ स्िमॊ ज्ञान को प्रातत

ऩयभशाक्न्त को प्रातत ो जाता ै

सिपष बोग कयने िे आदभी ऩशु ह जाता

प्रकाय तत्ि िे जानता ै ह आत्भ स्िरूऩ ोकय

इिीसरए ऩशओ ु ॊ की

ो जाता िे

ै । परतः ऩशु एिॊ आदभी के फीच कोई पकष न ीॊ ह

आदभी को

एिॊ मोग के िॊतुरन के सरए कभष िन्माि की ऩयॊ ऩया शुरू की व्मक्तत अच्िी

ह अऩने कभष का ननिष न

कुि कयना चाह ए। बोग ई

ै । कभष िन्माि भें कोई बी

ऐिी क्स्थनत भें ऩ ु ॊ च िकता

फीच िॊतुरन फनाने के सरए कभष िन्माि िे अच्िी कोई व्मिस्था न ीॊ -

२० ४

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ै।

ै । मोग एिॊ बोग के

रय ॐ !


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