Woroni Edition 4 2021

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घूम के दुख भरे पन्ने, कड़वे आँ सू के िकनारे।

हम मगर यहाँ, तो वहाँ कब होते,

41.

सुरिक्षत इस तरह, उस जगह नहीं होते।

धीर में िमलावट, मन की अशांित चढ़ी,

बरसों बाद, मौके की वकालत हमारे बस में बनी।

(hindi) शायद COVID-19 के कारण, हम अंतरार्ष्ट्रीय छात्र ऑस्ट्रेिलया में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। वापसी की असंभवता के डर से जो छात्र ऑस्ट्रेिलया में हैं, वे बाहर नहीं जा सकते। मेरी कहानी भी कुछ ऐसी ही है और यह किवता, ‘शायद’, मेरी भावनाओं को व्यक्त

करती है। शायद, यह किठन समय जल्द समाप्त हो और शायद इस दौरान हम जीवन के इस पाठ से कुछ सीखे।

हम अगर वहाँ, तो यहाँ नहीं होते।

घर छोड़े उड़ान, तो आसमान में समा तभी होते।

साँस को समेट, सामान दरवाज़े के द्वार रख,

सपने सोच में लपेट, चाह से आज़ाद नहीं होते।

दस साल लगे शुरुआत तक पहुंचने की,

पवर्तों की उँ चाई को चख,

िशखर की झलक,

अकेले, डर से बहादुरी महसूस करने की।

चढ़ गये थे हम जब उस वक्त,

के झट से िनकला सच

िक बस हम ही थे बोझ बने अपने ओर,

और खुद हम ही अपना सहारा सक्त।

िफर क्यों आई िज़न्दगी इस मोड़ पर रुख,

जब खुल गये थे आिखर भाग्य हमारे,

पहाड़ की चोटी का जो था वह मीठा स्वाद,

घूम के दुख भरे पन्ने, कड़वे आँ सू के िकनारे।

हम मगर यहाँ, तो वहाँ कब होते,

सुरिक्षत इस तरह, उस जगह नहीं होते।

धीर में िमलावट, मन की अशांित चढ़ी,

बरसों बाद, मौके की वकालत हमारे बस में बनी।

(hindi) शायद

-िसं गापुर में फंसी, ममता


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