मेरी कहानी - गुरमेल सिंह भमरा - भाग 5

Page 1

मेरी कहानी - 5

गरु मेल स हिं भमरा की आत्मकथा का पािंचवािं भाग (एपप ोड 85 – 105) िंग्रहकर्त्ा​ा एविं प्रस्तत ु कर्त्ा​ा लीला ततवानी


मेरी कहानी – 85

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन December 10, 2015 दद िंबर 1966 में मझ ु े PSV लाइ ैं

समल गगया था और मेरे

ाथ रोज़ रोज़ नए नए

किंडक्टर आते थे। कई दफा हफ्ते दो हफ्ते के सलए भी कक ी किंडक्टर को मेरे दे ते थे। उन ददनों

ाथ बक ु कर

ड़क पर कारें कम हुआ करती थीिं और ब ें बहुत बबज़ी होती थी। ब बहुत होती थी। चार चार पािंच पािंच समनट बाद ब ें चलती थी, कफर भी दो छतों वाली

र्वि

ब ें होने के बावजूद भी ब ें भरी रहती थी और किंडक्टर को बार बार तीन घिंटीआिं बजानी पड़ती थी कक ड्राइवर ब

को कहीिं खड़ी न करे । लोगों की शकायतें आती ही रहती थीिं ,जज

के सलए हमें mr. butlar के दफ्तर में आ कर हमारी कोई बात नहीिं

फाई पेश करनी होती थी। वोह गुस् े में

न ु ता था और हमारा ही क ूर ननकालता था और अक् र कहा करता

था कक “जो लोग यहािं किंपलेंट करने आते हैं, वोह अपना

मय ननकाल कर आते हैं , उनके

ददमाग खराब नहीिं हैं जो इतनी दरू ररपोटि करने आते हैं। “. यह मेरा भागय ही था कक मझ ु े स फि एक दफा ही उ किंपलेंट इतनी

ीरीय

के

ामने पेश होना पड़ा और यह

भी नहीिं थी। एक दफा किंडक्टर ने तीन घिंटीआिं बजा दी थी कक ब

भरी हुई थी और मैं आगे के ब स्टॉपों पर ब को खड़ी न करूँ। कक ी ने मेरी ररपोटि कर दी थी कक ऊपर की छत पर चार पािंच ीटें खाली थीिं और मैंने जान बझ ू कर ब खड़ी नहीिं

की थी। बटलर ने बहुत बोला था और मैं चप ु रह कर न ु ता रहा। यहािं तक मझ ु े याद है ारी उम्र इ के बाद मुझे कक ी भी मैनेजर के ामने पेश नहीिं होना पड़ा ,स फि तब ही पेश होता था जब कोई एक् ीडेंट होता था क्योंकक इ में इिंशोरें

और क्लेम की बातें होती थीिं।

आठ नौ घिंटे रोड पे रहने के कारण एक् ीडेंट होते ही रहते थे और मेरे भी बहुत हुए थे लेककन मेरा कभी भी कोई क ूर नहीिं हुआ था और जब मैंने काम छोड़ा था तो मेरा लाइ ैं बबलकुल क्लीन था।

1980 के बाद तो हर

ाल मैनेजमैंट की ओर

ड्राइर्विंग अवाडि ददए जाते थे , मैडल और ारे

के बाद मैडल और

में

ेफ

दटि कफकेट समलते थे। पहले मैनेजजिंग डायरै क्टर

ाल की ररपोटि और अचीवमें ट पड़ कर

और इ

े हमें पाटी दी जाती थी और उ न ु ाता था , इ

पर खब ू तासलआिं बजती थीिं

टीकफकेट मैनेजजिंग डायरै क्टर हर एक को स्टे ज पर हाथ समला

कर दे ता था और तासलआिं खब ू बजती थीिं और फोटो सलए जाते थे। हर

ाल अवाडि समलने

मेरे पा

बहुत े मैडल और टीकफकेट जमा हो गए थे ,घर में कहाूँ पड़े होंगे याद ही नहीिं लेककन उन मैडलों की याद अब सलखते मय ही आई है । यह पाटी बहुत कलरफुल होती थी। इ

में बीअर पीने के सलए मैनेजमैंट की तरफ

करा के हम काउिं टर

े बीअर लेते थे।

े फ्री टोकन ददए जाते थे, जजन को कैश


मैनेजजिंग डायरै क्टर इिंस्पैक्टर और समल जाते थे, और हम उन

भी

ीननयर इिंस्पैक्टर बीअर पीते पीते हमारे

े खल ु कर बातें करते थे ,खाने बड़े बड़े टे बलों पर

ाथ घुल

जे होते थे

जजन में अिंग्रेजी खाने और इिंडडयन खाने होते थे। हमारे खानों में अक् र पकौड़े , मो े, जस्रिंग रोल, दटक्कीआिं मीट करी ,छोले और कबाब होते थे। अूँगरे ज़ लोग हमारे खानों पर टूट पड़ते थे ,प्लेटें भर भर के ले जाते थे। खब ू पेट भर कर खाते थे। कुछ लोगों की पत्नीआिं और बच्चे भी

ाथ होते थे। आखखर में डािं

हमारे लड़के अिंग्रेज़ों की पजत्नओिं के

होता था जो रात दे र तक चलता रहता था।

कर के बहुत खश ु होते थे क्योंकक उन के पनतओिं को कोई माइिंड नहीिं होता था। बाद में बहुत फूड बच जाती थी और कोई फूड घर ले जाना चाहे तो ले जा

ाथ डािं

कता था। हमारे लोग अिंग्रेजी फूड उठा लेते थे और गोरे हमारी इिंडडयन

फूड ले जाते थे। यह पाटी बहुत मज़ेदार होती थी। एक ददन एक के नौ द

ुबह के

मय मैं दध ू की बोतलें उठाने घर के बाहर ननकला। लोहे की तार

होता था जज वजे

में बारह दध ू की बोतलें रखी जा

े पहले पहले हर घर के

और पुराना जज

कती थीिं और समल्क मैंन

ामने नया दध ू की बोतलों का के

े बना ुबह

रख जाता था

में खाली बोतलें होती थीिं ले जाता था। दध ू की बोतलें तीन पकािर की होती

थीिं ,एक का ढकन स ल्वर रिं ग का होता था जज

को स ल्वर टौप बोलते थे और इ

में क्रीम

कुछ कम होती थी क्योंकक कुछ लोग स हत के सलए और वज़न कम करने के सलए इ अच्छा

मझते थे, द ु री होती थी गोल्ड टौप जज

होती थी बसलऊ टौप जज

खड़ी करके उ

े चाय बहुत अच्छी बनती ककन या नछकडी नहीिं बनती थी।

एक ओपन बैक वैन होती थी ,जज

रखे होते थे। यह वैन बैटरी की रफ़्तार

में फुल फैट समल्क होता था और ती री

े केवल चाय ही बनाई जाती थी। इ

थी और चाय ज़्यादा दे र पडी रहने पर भी ऊपर हर समल्क मैंन के पा

को

पर चाली

े चलती थी और इ

े धीरे धीरे चलती थी। दध ू

पचा

दध ू के के

की स्पीड बहुत स्लो और पािंच मील घिंटे प्लाई करके समल्क मैंन दध ू वाली डेरी में वैन को

की बैटरी चाजि करने के सलए प्लग को

ॉकेट में लगा दे ता था। उन ददनों

चोरीआिं नहीिं होती थी। हफ्ते बाद जब समल्क मैन दध ू का दह ाब करके पै े लेने आता था

तो बहुत दफा हम घर पर नहीिं होते थे ,इ सलए पै ों का दह ाब करके, एक लफाफे में डाल कर बाहर ही दरवाज़े पर बोतलों के ाथ रख दे ते थे , कोई द ू रा आदमी उठाता नहीिं था। अगर पै े कम या ज़्यादा होते तो समल्क मैन दह ाब करके बाहर ही बोतल के नीचे रख जाता था। वोह ईमानदारी के ददन अब एक

पना बन कर रह गए हैं। अब तो चोरीआिं इतनी

बड़ गई हैं कक घरों को अलामि लगे हुए हैं। समल्क मैंन दध ू रख गगया था .जब मैं बोतलों का के को

उठाने लगा तो दो बोतलें एक तरफ

सलप हो कर गगर गईं और टूट गईं .मन अप ेट हो गगया .मैंने

दे खा ,दध ू वाला अभी जज़आदा दरू नहीिं था .मैं दध ू वाले के पा समल्क मैंन था .मैंने उ

ड़क की एक ओर

पौहुिंचा तो वोह एक नया को बताया कक दो बोतलें टूट गईं और अब दो और मुझे दे दे .उ


ने दो बोतलें दे दीिं और मैंने उ

े पुछा कक पहले वाला समल्क मैंन ककया छुटी पर था जो

नहीिं आया ,तो वोह बोला कक उ को काम

े जवाब हो गगया था ककओिंकक उ

की कम्पप्लें ट

बहुत आती थीिं . मुझे यह च ही लगा ककओिंकक हमारे ाथ भी उ ने कुछ गलत काम ककये थे ,लगता था उ की याददाश्त इतनी अच्छी नहीिं थी ककओिंकक कई दफा वोह जज़आदा चें ज दे जाता था और कई दफा जज़आदा चाजि कर लेता था . मैंने दध ू वाली डेरी के मैनेजर को एक गचठ्ठी सलखी थी . यह डेरी तकरीबन चासल पहले की बिंद हो चक् ु की है .इ

वर्ि

का नाम होता था midland counties dairy .यह डेरी पैन

रोड और पैन फील्ड रोड के कोने पर होती थी और इ

जगह अब macdonald बना हुआ है . जब मैंने मैनेजर को गचठ्ठी सलखी थी तो मैनेजर मेरे घर आया था और मेरी शकाएत ुनी थी और समल्क मैंन पर एक्शन लेने का भरो ा ददया था . इ भरो ा हो गगया कक वाकई मैनेजर ने उ

समल्क मैंन के बताने

समल्क मैंन पर एक्शन सलया था . अब मैं

ोचता

हू​ूँ कक काश यह इिंडडया में भी हो जाए ताकक लोगों को अच्छी र्वि समल के . दध ू ला कर मैंने चाय बनाई और टे बल पर आकर पीने लगा . तभी बाहर पोस्ट मैन ने लैटर होल में े गचदठआिं फैंक दीिं. मैं उठ कर गचठीआिं उठा लाया ,एक तो होने जा रही बीवी की थी और द ु री र्पता जी की। चाय की चस् ु कीआिं लेते लेते मैंने र्पता जी की गचठ्ठी खोली ,जज

में

उन्होंने शादी के बारे में कुछ बातें सलखी हुई थीिं। द ू रा खत बीवी का था और इ

में भी शादी का ही जज़कर ककया हुआ था। खतों में अब बहुत बातें होने लगी थीिं लेककन यह खत ऐ े होते थे जै े एक ाधारण गाूँव की लड़की सलखती है । बात बात पर जी शब्द का रयोग और मुझ मा ूसमयत थी जो उ

े कुछ डरा डरा

ा होना ,एक ऐ ी

मय बहुत भली लगती थी। यह मा ूसमयत शादी के बाद भी बहुत ालों तक रही थी लेकन वकत के ाथ ाथ वोह पना ही बन गई है । अब तो हमारा

झगड़ा भी कभी कभी हो जाता है लेककन शादी के 48 मालूम नहीिं है कक हम कक

ाल बीत जाने के बाद भी हमें कोई

बात को ले कर कभी झगडे थे। यह नोंक झोंक तो हर समआिं

बीवी में होती ही रहती है लेककन अगर

ीरीय

ना हो तो इ

में कोई हैरानी वाली बात भी

नहीिं होती।

ोचता हू​ूँ बचपन को भी याद करते हैं और वोह बचपन की बातें कभी भूलती भी नहीिं। इ ी तरह शादी े पहले और कुछ ाल बाद के वोह ददन भी कभी नहीिं भूलते क्योंकक उ

मय तो दोनों हवा में ही उड़ते रहते हैं। जब बच्चे हो जाते हैं तो हवा में तो

ककया उड़ना जमीिंन पर चलने के सलए भी ननयम बनाने पड़ते हैं। गगयानी जी अपने बैड रम में

े ननकल कर नीचे आ गए। मैंने उन्होंको बताया कक मेरी

शादी की ताररख पक्की हो गई थी। गगयानी जी ने बोला कक मैं ट्रै वल एजेंट के पा ीटें पक्की करा आऊूँ। गगयानी जी की बात घर

े चल पड़ा। ट्रै वल एजैंट के पा

ुन कर मैं काम पर जाने

पौहिं चा तो वहािं कोई खा

एक पटे ल था। अफगान एअर लाइन की

ीट के बारे में मैंने उ

जा कर

े एक घिंटा पहले

रश नहीिं था। ट्रै वल एजैंट को दो

ीटें बुक करने को


बोला । ककराया मेरा खखयाल है उ जज

मय तकरीबन डेढ़ दो

को हम भइया कहते थे ,ने अमत ृ र की दो

हीथ्रो एअरपोटि

ौ पाउिं ड ररटनि होता था। पटे ल

ीटें बुक कर दीिं लेककन यह फ्लाइट लिंडन

े नहीिं जाती थी बजल्क गैटर्वक एअरपोटि

े जाती थी। डेट का मुझे याद नहीिं

लेककन मेरा अिंदाजा है यह माचि के आखखर में ही होगी क्योंकक जब हम अमत ृ र एअरपोटि पर उतरे थे तो काफी गमी थी।

ीटें बुक करा के मैं काम पर चला गगया। मेरा और ज विंत का काम अब होता था कपड़े

खरीदना। शननवार को ही हम को शॉर्पिंग का वक्त समलता था। उन ददनों माक् ि ऐिंड स्पैं र और वूलवथि ही

े बड़ीआ स्टोर होते थे। इ

बीटीज़ होता था जजन में इन में शख्

था जज

ने इ

के इलावा वुल्वरहै म्पपटन में एक और स्टोर

े भी ज़्यादा एक् पैंस व चीज़ें होती थीिं। बीटी एक ऐ ा

स्टोर को शुर ककया था और मरने

े पहले अपना

काम करने वालों के नाम कर गगया था। मैं और ज विंत ने माक् ि ऐिंड गमि

ूट सलए , कमीज़ें लीिं ,मफलर सलए और अच्छे है ट सलए जज

करते थे। जीऊलरी शॉप h . saimual जजन की दक ु ाने उ

वक्त

ारा पै ा स्टोर में पैं र में

े बड़ीआ

पर हम बाद में हिं ा ारे इिंगलैंड में होती थी में

े घर वालों को दे ने के सलए गगफ्ट सलए। उन ददनों मेरी बहन भी अफ्रीका

े आई हुई थी। उ को ले कर एक ददन मैं बीटीज़ में गगया और अपनी अधा​ांगगनी के सलए कीमती कपडे और ज्यूलरी खरीदी। पता ही नहीिं चला ,यह कुछ महीने कै े बीत गए। गचदठआिं सलखते सलखते वक्त का पता ही नहीिं चला। हम दोनों समआिं बीवी प्लैननिंग बना रहे थे कक मेरे इिंडडया आने पर शादी

े पहले

शॉर्पिंग करने के सलए कहाूँ कहाूँ जाना था और पहले ददन हम ने कहाूँ समलना था। हमने फै ला ककया था कक जीटी के रे लवे लाइन के फाटक के नज़दीक नज़दीक समलेंगे। यह रे लवे का फाटक धैनोवाली गाूँव मैंने बता ददया था कक मैं धम ू धाम बरानतओिं

ाइकल वाले की दक ु ान के

े एक दो फला​ांग पर ही है । बीवी को

े शादी प िंद नहीिं करता था और ना ही ज़्यादा

े मेरी इतनी ददलचस्पी थी। मेरी बीवी कुलविंत धम ू धाम

ब कुछ करना

चाहती थी लेककन मैं अपनी जज़द पे था। बाद में वोह भी मान गई थी। कफर वोह ददन भी आ गगया जब मैने सलख ददया था कक अब यह मेरा आखरी खत होगा और गाूँव पहुूँचने के द ू रे ददन ही मैं फाटक पर समलूिंगा। काम पर मैंने नोदट दे ददया था और ाथ में यह भी सलख ददया था कक इिंडडया

े आ जाने के बाद मैं यहािं ही काम करूँगा।

मैं और ज विंत अपने अटै चीके स्टे शन तक

और बैग ले कर ट्रे न स्टे शन पर पहुूँच गए। गगयानी जी

ाथ आये थे। हम ने दटकट सलए और ट्रे न में बैठ गए। रास्ते में कई दफा हम

ने अपने दटकट और पा पोटि चैक ककये ,हम दोनों का

भ कुछ मेरे चमड़े के बैग में ही था।

तीन घिंटे बाद हम लिंदन पैडडिंगटन स्टे शन पर पहुूँच गए। बाहर ननकल कर शायद हम ने वूसलच के सलए अिंडरग्राउिं ड ट्रे न ली और वूसलच पौहिं च गए। वूसलच मेरी बहन बहनोई और बच्चे कुछ दे र पहले ही अफ्रीका

े आये थे। वूलीच में बहनोई

ेवा स हिं के माता र्पता जी


रहते थे। दे र रात तक हम बातें करते रहे ।

ुबह को रर्ववार था। बहनोई

ाहब और उन के

बहनोई करनैल स हिं हम दोनों को कार में बबठा कर गैटर्वक एअरपोटि की तरफ चलने लगे। जब एअरपोटि पर पहुिंचे तो पता चला कक फ्लाइट तो कैं ल हो चक् ु की थी और उन्होंने हमें लैटर भी डाला था ,लेककन हमें तो लैटर समला ही नहीिं था। ननराश हो कर हम ने ामान क्लोक रम में जमा करा ददया और वार्प जल्दी

ो गए।

वूसलच आ गए। मूड ऑफ हो गगया था और हम

ुबह को बहनोई और करनैल स हिं ने तो काम पर जाना था ,इ

सलए मैं

और ज विंत अकेले ही टै क् ी ले कर एअरपोटि पहुूँच गए। चैक इन पर हम ने अपना जमा करवाया और मैं टॉयलेट चले गगया। जब मैं वाप

आया तो ज विंत वहािं नहीिं था। मैं

है रान हो गगया कक कहाूँ गगया होगा। कुछ दे र बाद ज विंत के था। ज विंत ने मुझ कर उ

करके ओके कह ददया और चले गगया।

मैंन को पकड़ा दीिं। पुसल

ज विंत ने बताया कक वोह उ े इलीगल इसमग्रैंट उतार सलए थे। ज विंत मुझे बताने लगा कक उ और पा पोटि उ

ाथ एक पुसल

मैन आ रहा

े पा पोटि और दटकटों के बारे में पुछा तो मैंने अपने बैग

को पकड़ा दीिं। ज विंत ने पुसल

के दोस्त के पा

मैन ने

मझते थे और पसु ल

ने पुसल

ामान

ने उ

े ननकाल

भी कुछ चैक के कपडे तक

वालों को बताया भी था दटकटें

था लेककन वोह मानते ही नहीिं थे। ज विंत काफी अप ैट

हो गगया था। कुछ दे र बाद अफगान एअरलाइन का जहाज़ रनवे पर आ गगया था और धीरे धीरे

भी लोग हाथों में बैग पकडे जहाज़ की ओर जाने लगे। जब जहाज़ में बैठ गए तो कुछ

दे र बाद ही ज विंत ने दो पैग्ग डबल र्वस्की के आडिर कर ददए। ररलैक् और

हो कर हम बैठ गए

ब कुछ भूल कर हम र्वस्की पीने लगे। अब जहाज़ ने भी इतनी लम्पबी उड़ान भरी कक

द ू रे ददन

ुबह काबल एअरपोटि पर जा कर ही लैंड हुआ। हमारा जहाज़ ामान उतार कर तो कहीिं और चला गगया और हम एक द ू रे जहाज़ की इिंतज़ार करने लगे जो लाहौर े आना था और इ चलता…

में बैठ कर ही हम ने अमत ृ र पहुिंचना था ।


मेरी कहानी – 86

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन December 14, 2015

काबल एअरपोटि पर जब हम लैंड हुए तो दे खा इदि गगदि भी तरफ पहाड़ ही पहाड़ थे। यह पहाड़ तो हम को जहाज़ में बैठे बैठे ही ददखाई दे रहे थे क्योंकक हम इन के ऊपर ही उड़ रहे थे। इतने पहाड़ जज़िंदगी में कभी नहीिं दे खे थे। अफगाज नस्तान को जजतना भी हम जानते थे ,ब

काबल किंधार के नाम

खश ु हो कर हम

े ही जानते थे। एयरपोटि पर जो पुसल

वाले घूम रहे थे काफी

े बातें कर रहे थे क्योंकक वोह उदि ू भी बोलते थे। हमारी इ

भी पिंजाबी ही थे और ज़्यादा तर गाूँवों

थे जो अपने ररश्तेदारों

े समल कर वाप

फ्लाइट में

े आये लोग ही थे। बहुत े तो बज़ुगि मरद औरतें पिंजाब आ रहे थे। इन भी के पा भारी भारी

ोने के गहने थे। बज़ुगों ने मोटे मोटे कड़े , अिंगूठीआिं और गले में मोटी मोटी चेनें पहने हुए थे। ोने े हम भारतीओिं को बहुत लगाव है और ोना उ वक्त पािंच छै पाउिं ड तोला ही होता था। जो तन्खआ ु ह उ बहुत स्ता होता था। इ जाया करते थे।

वक्त इिंगलैंड में समलती थी ,उ

दह ाब

सलए लोग अक् र इिंडडया को जाते वक्त

े भी इिंगलैंड में यह

ोने के भारी गहने ले

जहाज़ में बैठे लोगों का नज़ारा अभी भी मझ ु े याद है । बहुत लोग ऐ े थे जो शायद कभी अपने गाूँव े भी बाहर नहीिं गए होंगे और कुछ ाल इिंग्लैन्ड में रहने के बावजद ू वोह वै े ही ददखाई दे रहे थे जै े अभी भी गाूँव में ही रह रहे हों। इ अफगानी पुसल

बात का जज़कर मझ ु े एक

अफ र ने भी ककया था कक इन लोगों पर बबदे श में रहने के बावजूद कोई

फरक नहीिं पड़ा था। एक बज़ुगि पर तो मेरा दोस्त ज विंत बहुत हूँ ता था। वोह बज़ुगि हमारी ाइड की रो में ही बैठा था। उ ने जो पगड़ी र पे बाूँध रखी थी बहुत बुरी तरह बाूँधी हुई थी और उ के र के बाल पगड़ी की तैहों े बाहर को झािंकते हुए ददखाई दे रहे थे। लगता था उ

को जहाज़ की

ीट में बैठना मुजश्कल लग रहा था और वोह

बैठा था। एक दो दफा एयर होस्टै

ने उ

ीट पर पैरों के बल

को कहा भी लेककन वोह कफर उ ी तरह बैठ

जाता। ब े बरु ी बात उ

ट्रे में उ

को जहाज़ में ददया हुआ खाना अच्छा नहीिं लगता था। पहले तो खाने की को यह ही नहीिं मझ आता था कक वोह उ को कै े खाए। जब भी एयर होस्टै

आती , उ को कहता ,” बीबी ! यह ले जा ,मझ ु े तो एक बक ु चावल का ला दे ” और

ाथ

ही वोह अपने दो हाथों अपनी पगड़ी लेता। उ

े बक् ु क बना कर दशािता। ज विंत बहुत हिं पड़ता। कभी यह बज़ग ु ि े उतार दे ता और उ को खोल कर झटके दे ता और कफर र पे बाूँध

की कलाई पर बड़ा

ोने का कड़ा था। ज विंत उ

को कहने लगा ,” बाबा !

यह कड़ा तो ददखाना !” . बज़ुगि ने ज विंत को घूर कर दे खा और चप ु रहा। अब यह बज़ुगि काबल एयरपोटि पर हमारे

ाथ घूम रहा था। उ

के हाथ में बैग था।


कुछ दे र बाद एक आदमी आया ,पता नहीिं कौन था वोह ,आते ही बोला ,” आप के luggage पर कुछ गलत लेबल लगे हुए हैं , कृपा अपने अपने ट् ू के ों के नज़दीक खड़े हो जाएूँ, हम ब दरुस्त करना चाहते हैं । एक कमरे में जहाज़ में े ननकाले गए भी ूटके एक

लाइन में रखे हुए थे। भी अपने अपने ामान के पा खड़े हो गए। मैं भी अपने अटै चके के नज़दीक खड़ा हो गगया जो हरे रिं ग का था और मैंने नया ही सलया था। एक आदमी आया और मुझे कहने लगा ,” यह अटै चीके अटै चीके मैंने उ

पर एक कपडे का छोटा

तो मेरा है “. मैं है रान हो गगया क्योंकक मैंने तो ा टुकड़ा भी बाूँध रखा था और द ु री बात यह थी कक

पर अपना नाम भी सलखा था लेककन वोह स्याही

गगया था लेककन उ

का ननशाूँन अभी भी कुछ कुछ था। मैंने जोर दे कर कहा ,”

यह मेरा है “. वोह शख् की पहचान नहीिं थी।

े सलखा नाम कक ी कारण समट

घबराया

भी का

ा चले गगया ,मालम ू होता था ,उ

रदार जी

को अपने अटै चीके

ामान चैक हो गया और हम बाहर आ गए और कैफे

े चाय

केक खाए। कुछ दे र बाद एक एरोप्लेन रनवे पर लैंड हुआ। यह प्लेन फ्रूट के बक् ों े भरा हुआ था। फ्रूट के बक् े अनलोड ककये गए और इ के बाद जहाज़ में ीटें कफक् की जाने लगीिं .यह

दे ख कर हम बहुत है रान हुए। ीटें कफक् करते करते काफी घिंटे हो गए आखर में वोह वक्त भी आ ही गगया जब हम जहाज़ के अिंदर बैठ गए। ूयि ढल रहा था। इिंजजन स्टाटि हुआ और कुछ ही समनटों में हम कफर हवा में उड़ने लगे। आधा पौना घिंटा ही हुआ था जब हम अमत ृ र शहर के ऊपर उड़ रहे थे। कोई लड़की लाऊड स्पीकर ाहब के नज़दीक आ गए हैं।

े बोली कक हम हररमिंदर

भी नीचे दे खने लगे। नीचे हररमिंदर

ाहब दीख रहा था और

लोग हाथ जोड़ कर वाहे गरु ु वाहे गरु ु बोल रहे थे। कुछ ही समनटों में हम राजा ािं ी एअरपोटि अमत ृ र पर लैंड हो गए। एरोप्लेन की स डड़ओिं

े हम नीचे उतरे तो दे खा द

बारह पुसल

के आदमी खड़े थे ,दे खते

ही इिंडडया की पुरानी यादें आने लगीिं। कुछ लोग धीरे धीरे बोल रहे थे ,यह यमदत ू यहािं ककया कर रहे हैं ? . इतने वर्ि इिंग्लैण्ड में रह कर यह भारत की पुसल भय

ा लगा। यहािं ही रनवे पर उन्होंने

े पता नहीिं ककयों एक

भी के पा पोटि चैक ककये। चैककिंग के बाद

भी

आगे जाने लगे। रनवे के एक तरफ लोहे की तार की फैं बी

बाइ

वर्ि का लड़का हाथ में एक

बनी हुई थी और इ के बाहर एक ोटा पकडे गाये भैं ें चरा रहा था और हमारी तरफ

भी दे ख रहा , ोच रहा होगा ,काश वोह भी कभी एरोप्लेन में बैठ

के। एयरपोटि बबजल्डिंग के

नज़दीक हम पहुिंचे तो दे खा बबजल्डिंग की छत पर बहुत लोग बैठे थे ,हो अपने ररश्तेदारों को लेने आये हों।

कता है वोह अपने

यह एयरपोटि अभी नई नई ही खल ु ी थी और यह एक समसलटरी एयरपोटि ही होती थी। इ की बबजल्डिंग ऐ ी थी जै े एक ब

अड्डा हो। जब हम अिंदर आये तो उ

मय

ारा काम

रजजस्टरों पर सलख कर ही होता था ,कोई कम्पप्यूटर नहीिं होता था। कस्टम में हर कोई


घबराया

ा ददखाई दे रहा था। रोज़ एक ही फ्लाइट आती थी और कस्टम अगधकारी पै े

बनाने के चक्क्र में होते थे। अटै चीके

खोल खोल कर

ब को परे शान करते और कुछ लोग

बचने के सलए पाउिं ड दे रहे थे। मेरे और ज विंत के पा इलैक्ट्रीकल चीज़ ,इ

ना तो कोई

ोना था ना ही कोई

सलए हम जल्दी ही बाहर आ गए। बाहर आये तो ज विंत के चाचा जी

आये हुए थे और ज विंत हम को त स री अकाल बोल कर चले गगया। इधर मेरे र्पता जी और मामा जी जो अमत ृ र में ही रहते थे आये हुए थे। र्पता जी के पा रौलीफ्लैक् कैमरा भी था ,जज

े उन्होंने फोटो खीिंची।

एयर लाइन की ओर जाना था। अटै चीके के पा

े एक ब

भी अपना अपना एक कुली

पहले ही वहािं खड़ी थी जज ामान कुसलओिं

कर खड़ी हो गई। हम बाहर आ गए और कुली गगया तो मेरे अटै चीके

में बैठ गए। मामा जी

ररट्ज़ होटल के बीच बने कार पाकि में आ ामान उतारने लगे। जब

ारा

ामान उत्तर

का नामोननशान भी नहीिं था। हम घबरा गए क्योंकक मैंने तो

कैमरा भी अटै चीके

रदार जी !

के ऊपर रखवा रहे थे। मैंने भी अपना

े ऊपर रखवा ददया और र्पता जी और मैं ब

अपना स्कूटर था। आधे घिंटे में ही ब

रौलीफ्लैक्

े ब

ने हमें ररट्ज़ होटल तक ले

ारा

में रख ददया था। कुली

े पुछा तो वोह कहने लगा कक

ामान तो आ गगया है । घबराया हुआ मैं ब की छत पर चढ़ के दे खा तो वहािं कुछ नहीिं था। पैननक की जस्थनत में मैंने ररक्शे वाले को जो पा ही खड़ा था जल्दी बोला एयरपोटि !! और मैं ररक्शे में बैठ गगया। होटल

े ननकल कर हम

ड़क पर आ गए लेककन ररक्शे वाला बहुत धीरे चला रहा था। कुछ दे र बाद ररक्शे वाला मुझे बोला ,कक रास्ते पर चलना है ?. यह न ु कर मैंने उ ी वक्त ररख्शे

े छलािंग लगाईं और भागय

े एक टै क् ी आ रही थी। मैंने उ े रोका और उ े

एयरपोटि को जाने के सलए बोला और उ े तेज चलाने को कहा। पिंद्ािं समनट में हम एयरपोटि पहुूँच गए। मैं टै क् ी

े उतरा और एयरपोटि बबजल्डिंग की तरफ जाने लगा। जब मैं ब्ािंडे में

पहुिंचा तो दे खा वहािं दो अटै चीके पड़े थे ,एक मेरा और एक कक ी और का । अटै चीके ों के ऊपर दो कोट पड़े थे। मैंने कुछ नहीिं दे खा ,अपना अटै चीके उठाया, टै क् ी में रखा और टै क् ी वाले को बोला ,ररट्ज !

मैंने यह भी दे खना मुना ब नहीिं

मझा था कक कोई मुझे दे ख रहा था या नहीिं, या कौन इन

अटै चीके ों का मालक बन बैठा था। जब हम ररट्ज़ पुहिंचे तो र्पता जी उदा

एक कु ी पर

बैठे थे। जब उन्होंने मुझे दे खा तो उठ खड़े हुए और मेरी तरफ दे खा। मैंने मुस्करा कर कहा ,समल गगया !. इ के बाद इ ी टै क् ी वाले को हम ने अमत ृ र ब स्टे शन को जाने के सलए बोला। ब उ

स्टे शन पर पहुूँच कर ,टै क् ी वाले ने जजतने पै े मािंगे मैंने उ

े ज़्यादा

को दे ददए लेककन मुझे याद नहीिं ककतने पै े ददए थे ,वोह भी खश ु हो गगया और ब

बैठ कर फगवाड़े की तरफ जाने लगे। कुछ ही घिंटों में फगवाड़े पहुूँच कर हम ने

में

ालम तािंगा


ककया क्योंकक उ नज़दीक आ गए।

वक्त टाूँगे ही होते थे और एक घिंटे में राणी पुर के अपने ही खेतों के

खेतों की तरफ दे ख कर एक उल्हा कुछ बदला

ा आ गगया ,पुरानी यादें वाप

आ गईं लेककन कुछ

ा भी लग रहा था। किंू एिं की जगह अब ट्यूबवैल लगा हुआ था और एक तरफ एक मै ी फगूि न का ट्रै क्टर खड़ा था जो र्पता जी ने सलया हुआ था। कुएिं के बब्क्ष कुछ

बदले हुए लगे। आम और जामुन के बक्ष ृ है ही नहीिं थे। कुछ ही दे र में हम घर आ गए। माूँ दादा जी और छोटे भाई ननमिल भी आ गए। ननमिल को तब ही दे खा था जब वोह मझ ु े फगवाड़े ट्रे न तक छोड़ने आया था। अब बड़ा हो गगया था। भतीजा अपनी माूँ के

ाथ अफ्रीका

चले गगया था। घर में कोई खा

बदलाव नहीिं था। माूँ बहुत खश ु थी। र्पताजी बाहर चले गए और माूँ रोटीआिं पकाने लगी। बहुत दे र बाद माूँ के हाथ की बनी हुई रोटी खाई , मज़ा आ गगया। एक दफा मास्टर र्वद्या रकाश ने बोला था ,east or west ,home is the best ,और आज मुझे इ

के अथि

मझ आये थे ,ककतना खश ु था मैं !

हमारा यह मकान काफी बड़ा था और बेछक बहुत अच्छी ककचन नीचे बनी हुई थी लेककन शुर े ही ैकिंड फ्लोर पर बनी ककचन ही इस्तेमाल ककया करते थे और अब भी उ ी तरह ककचन ऊपर ही थी। मैंने अपना चब ु ारा दे खा जज

में मैंने कुछ तस्वीरें बना कर ऊपर टिं गी

हुई थी ,वोह अब भी वहािं ही थीिं और ननमिल ने भी उ में कुछ इज़ाफा ककया हुआ था। वोही ट्यूब लाइट कमरे में थी। भी तरफ दे ख दे ख कर पता नहीिं मुझे ककया समल रहा था। माूँ कमरे में आई और बोली, ककया लाया है मेरे सलए ?. मैंने अपना अटै चीके

खोला और

कुछ ददखाने लगा। कपडे ननकालते ननकालते मेरी ननगाह एक रुमाल पर पड़ी जो मेरा नहीिं था। मैंने उठाया ,उ

में कोई चीज़ बाूँधी हुई थी जो कुछ भारी भारी लगी। वै े ही मैंने बोला कक यह रुमाल मेरा तो है ही नहीिं था ,कफर यह कहाूँ े आ गगया ! यिंू ही मैने रुमाल को खोला ,मैं है रान हो गगया ,उ कहाूँ

े यह आ गगया ,मेरी

में बहुत भारी एक ोने का कड़ा था। मझ में नहीिं आया। माूँ बोली ,जरर तन ू े ही सलया होगा ,तझ ु े

याद नहीिं आ रहा होगा। मैंने कहा कक मेरी यादाश्त इतनी कमज़ोर नहीिं थी।

ोचने लगा कक

ोने में मेरी रगच कभी हुई ही नहीिं थी और कफर भी ोना अपने आप मेरी झोली में गगर गगया था। इ कड़े के बारे में मुझे आज तक मझ नहीिं आई कक कहाूँ े मेरे अटै चीके में आ गगया। हो

कता है कक ी ने गलती

उतार सलया होगा और उ

की चाबी भी मेरे अटै चीके

रुमाल में बाूँध कर अटै चीके ने ही अमत ृ र ब

े मेरा अटै चीके

था वै े ही चला गगया था ,जज

अपना

मझ कर ब

को लग गई होगी और उ

पर

ने कड़ा

में डाल ददया होगा ,या कफर जब काबल एयरपोटि पर एक

आदमी ने कहा था कक यह अटै चीके उ

े मेरा अटै चीके

का था ,उ

को ही गलत फैहमी हो गई हो और

उतार सलया होगा । कुछ भी हो जै े कड़ा आया

के बारे में सलखग ूिं ा।


रात बहुत हो चक् ु की थी। माूँ र ोई में ही ोया करती थी , ो वोह ोने के सलए चल पड़ी, ननमिल पहले ही चले गगया था। मैंने जालिंधर रे डडओ लगा सलया और खखयालों में खो गगया क्योंकक चलता…

ुबह मैंने कुलविंत को समलने के सलए जाना था।


मेरी कहानी – 87 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन December 17, 2015 बदामी रिं ग का पयजामा

ूट जो मैंने माक् ि ऐिंड स्पैं र

े सलया था पहन कर मैं बबस्तर में

लेट गगया था । रे डडओ लगा हुआ था।, यह वोह ही रे डडओ था जो कभी मैं और मेरे र्पता जी फगवाड़े े तब लाये थे जब गाूँव में नई नई बबजली आई थी और अभी भी बहुत अच्छा चल रहा था।

फर की थकान थी और पता ही नहीिं चला कब नीिंद आ गई। जब

कुछ कुछ ठिं डक थी और मैंने घर

े एक खादी की चादर ओड़ ली जज

ुबह उठा तो

को पिंजाब में खे ी

कहते थे (अब पता नहीिं ,यह खे ीआिं हैं या नहीिं क्योंकक तब ज़्यादा तर लड़ककयािं ही बनाया करती थीिं और अब तो

भी स्कूल कालज जाती हैं ) और बाहर खेतों की तरफ जाने लगा।

रास्ते में लोग समल रहे थे और उन

े मैं हाथ समला रहा था और बातें करके आगे चला जा

रहा था। लगता था जै े कल ही मैं गाूँव

े गगया था।

मेरी तरफ दे ख कर कुछ लोग है रान हो रहे थे कक मेरे तो दाढ़ी होती थी और अब मैं क्लीन शेव था लेककन वाप

भी जानते थे कक जजतने भी इिंगलैंड को जाते थे क्लीन शेव हो कर ही

आते थे। पयजामा

ूट पहन कर मैं रात को

ही गगया था। इिंग्लैण्ड में तो पयजामा क्योंकक यह स फि

ूट पहन कर घर

े बाहर ननकल ही नहीिं

ोने के वक्त ही पहना जाता था। ककतनी आज़ादी मह ू

,ऐ े लगता था जै े मैं जेल लोगों

ोया था और बाहर भी मैं पैजामा

ूट में

कते थे

कर रहा था मैं

े बाहर आया हू​ूँ।

े बातें करता करता मैं दरू खेतों में आ गगया ,यह वोही मेरे दोस्त बहादर के खेत थे

जजन में अब गें हू​ूँ लैह लहा रही थी और कुछ ही हफ़्तों में कटाई के मुकाम पर पहुूँचने वाली थी। कहीिं कहीिं ेंजी और चौटाले के भी खेत थे जजन का हरा हरा चारा पशुओिं को ददया जाता है । मुझे याद आ गगया जब स्कूल के ददनों में मैं इन्हीिं चौटाले और

ेंजी के खेतों में

े मेथे तोड़ कर घर ले आता था और माूँ मक्की के आटे में मेथे , नमक ,समचि और म ाला

डाल कर चल् ू हे पर मक्की की रोटीआिं पकाया करती थी और मैं दही और माखन के

ाथ

खाया करता था। इिंगलैंड में तो टॉयलेट रम के कमोड पर ही बैठना पड़ता था लेककन आज खल् ु ले खेतों में बैठना अच्छा लगा। गाूँव में कोई खा

बदलाव नहीिं था। खेतों

े जब मैं वाप

आ रहा था तो पीपल अब भी

वही थे और नज़दीक ही कुछ लोग बैठे थे और स्वणि स हिं नम्पबरदार का अफ ो और उ

का लड़का

ोहन स हिं वहािं ही बैठा था। नम्पबरदार स्वणि स हिं की इिंगलैंड में ही

मत्ृ यु हो गई थी। निंबरदार स्वणि स हिं वोही नेक इिं ान था जो मेरे पा पोटि बनाते ाथ फगवाड़े की कचहरी में गगया था और त ीलदार के

नम्पबरदारी अिंगूठी

कर रहे थे

े स्टैंप लगाईं थी। इ

मय मेरे

ामने मेरी गवाही दी थी और एक

की वाइफ बिंतो की मेरी माूँ ने बहुत मदद की थी


और इ

की दो लड़ककआिं

ी ो और जीतो मेरी बहन के

ाथ हमारे घर में चक्की

े आटा

पी ा करती थीिं ,तब मैं छोटा होता था। तब यह बहुत गरीब होते थे लेककन आज तो स्वणि स हिं के पोते पै े में खेल रहे हैं। उन लोगों में मैं भी बैठ गगया और टाऊन में ही अपनी लड़की

ोहन स हिं

े अफ ो

जाहर ककया। स्वणि स हिं हमारे

ाथ रहता था। बहुत पहले मैं सलख चक् ु का हू​ूँ कक ी ो की शादी अनूप स हिं के ाथ हो गई थी जो स घ िं ा पुर े आया हुआ था और अनूप स हिं कुछ दे र बाद इिंग्लैण्ड आ गगया था और समडलैंड रै ड ब किंपनी में ब किंडक्टर लग गगया था। अनूप स हिं , ी ो के

ी ो के

ाथ हमारे ही टाऊन में बसमांघम रोड पर रहता था। उ

ी ो और अनूप स हिं के दो बच्चे ,एक लड़का और एक लड़की थे। उ

कानून बना था ,जज के सलए बुला

वक्त एक नया

के तहत कोई लड़की अपने माता र्पता को इिंडडया

कती थी। इ

कानून के तहत ही

वक्त तक

े अपने

ाथ रहने

ी ो ने स्वणि स हिं को बुला सलया था।

कभी कभी मैं उन को समलने के सलए जाय करता था। स्वणि स हिं कक ी फैक्ट्री में काम पर भी लग गगया था। इन का घर बबलकुल बसमांघम रोड के

ाथ ही था। यह रोड हमारे टाऊन

े बसमांघम तक जाती है ,तकरीबन पिंद्ा मील लम्पबी यह रोड है और ड्यूअल कैरे ज वे है ,एक

तरफ गाड़ीआिं जाती हैं और द ु री तरफ

े आती हैं। लोग अक् र इ

चलाते हैं। एक ददन स्वणि स हिं यह रोड क्रॉ

ड़क पर गाड़ीआिं तेज

कर रहा था कक एक तेज गाडी ने उ

को

इतनी ज़ोर

े दरू तक फेंका कक स्वणि स हिं बेहोश हो गगया। बहुत ी हड्डीआिं टूट गई थीिं। पता लगने पर मैं भी हस्पताल गगया था और उ के बहुत ी पट्दटआिं की हुई थीिं। जब वोह कुछ ठीक हो कर घर आया तो उ

को समलने के सलए मैं

ी ो के घर गगया था।

ददन बफि बहुत पड़ी हुई थी और बहुत ठिं ड थी। जब मैं ऊपर गगया तो छोटे े कमरे में स्वणि स हिं किंबल ओढ़े चारपाई पर बैठा था। मैं भी चारपाई पर ही बैठ गगया और उ े बातें करने लगा। कुछ दे र बाद स्वणि स हिं दुःु ख भरी आवाज़ में बोला ,” गरु मेल! इ

वलाएत

ने मझ े तो मैं गाूँव के खल ु े बहुत दुःु ख ददया है ,इ ु े खेतों में ही अच्छा था “. मैं बोला ,” निंबरदारा ! घबराता क्यों हैं ,तू जल्दी ठीक हो जाएगा ” . यह मेरी आखरी मल ु ाकात थी। काफी दे र बीमार रहने के बाद वोह यह कुछ दे र लोगों

िं ार छोड़ गगया था।

े बातें करने के बाद मैं घर आ गगया। घर आ कर गु लखाने में स्नान

ककया। तब तक रोटी तयार हो चक् ु की थी और मैं चल् ू हे के नज़दीक ही बैठ गगया। चल् ू हे में जल रही लकड़ीओिं

े मज़ा आ रहा था। र्पछले ददन के बने हुए ाग को माूँ ने दब ु ारा तड़का लगाया हुआ था जज े ल ुन की भीनी भीनी खश ु बू आ रही थी। माूँ ने कािं ी की थाली में ाग और उ के ऊपर घर की गाये का ताज़ा माखन ,दो मक्की की रोटीआिं ,एक कौली में दही और

ाथ ही एक ग्ला

और मैं मज़े

े खाने लगा। इ

लस् ी का रख ददया । वर्ों बाद ऐ ी रोटी खाने को समली थी रोटी के आगे इिंगलैंड के

भी खाने फेल थे। जी भर कर


खाना खाया और गु लखाने में जा कर हाथ धोये और कफर अपने चब ु ारे में आ कर कपडे बदलने लगा।

मैंने अपनी बेस्ट पैंट (ट्राऊज़ )ि और शटि पहनी। यह कपडे मैंने डडज़ाइनर शॉप

े सलए थे

जो कुछ एक् पैंस व थे और यह कपडे बाद में भी मैंने बहुत रह े पहने थे। नैकटाई और जैकेट पहनी और गले में डडज़ाइनर मफलर डाला और शू पहन कर बाहर आ गगया। माूँ को पता था कक मैंने अपनी बीवी कुलविंत को समलने जाना था। शायद नौ द कक

वजे होंगे और

टाइम पर समलने का वादा था याद नहीिं। मैं नीचे आ गगया ,बाइस कल उठाया और घर

े बाहर आ गगया। लोगों

े हाथ समलाता हुआ मैं गगयान चिंद की दक ू ान की तरफ चल पड़ा।

जब मैं उ

की दक ू ान पर पौहुूँचा तो गगयान चिंद उ वक्त झाड़ू े दक ू ान की फाई कर रहा था। मैंने उ े त स री अकाल बोला ,उ ने अपना मिंह ु ऊपर उठाया और है रानी े मेरी तरफ दे खने लगा। पहचान कर हाथ समलाया और गले लग गगया। मझ ु े मालम ू था कक मैं उ

को बदला हुआ लगता था। उ ने मझ ु े पगड़ी के बारे में कुछ नहीिं पछ ु ा और र्पछली बातों को याद करके हम हूँ ते रहे । कफर गगयान चिंद खखल खखला कर मास्टर हरबिं स हिं की बात करने लगा ,वोही पुरानी बात ,” ए गगयान चिंद! बनत कौन मैंने गगयान चिंद

ी कफल्म है ! “. कुछ दे र बाद

े रात को समलने का वादा करके र्वदा ली और गाूँव

े बाहर आ गगया।

मैं पगडिंडी पर

ाइकल चलाता हुआ माधो पुर की तरफ जाने लगा। आगे छोटी ी नदी जज को कैल बोलते थे (इ ी कैल का द ू रा दहस् ा दो मील दरू द ू री तरफ था जजधर ड़क बनाई गई थी और हमारे गाूँव में भारत

माज

ेवक कैम्पप लगा था ),उ

पर बने पुल के

नज़दीक पहुूँच गगया और खड़ा हो कर इदि गगदि दे खने लगा। इ पुल के ाथ मेरी बहुत यादें जड़ ु ी थीिं। एक दफा रकार की तरफ े इ नदी को खल ु ा चौड़ा करने के ऑडिर आये थे , ारा गाूँव अपने अपने फावड़े और टोकररआूँ ले कर यहािं काम कर रहा था। इ दादा जी भी थे। मट्टी खोदते खोदते अचानक दो

ािंप नीचे

में मैं और

े ननकल आये थे ,शोर

ा मच

गगया था लेककन वोह कहीिं भाग गए थे। इ

नदी पे पहले कोई पुल नहीिं होता था। बर ात के ददनों में इ

को पार करने के सलए दो

आदमी लोगों की मदद ककया करते थे। पानी में बहुत बड़ा कड़ाहा जज में गुड़ बनाया जाता है , डाल दे ते थे. इ में लोगों को बबठा कर यह दो आदमी पार करा दे ते थे और बदले में लोग उन को कुछ स क्के दे दे ते थे। कफर वोह भी ददन आये जब इ

पर पुल बनना शुर हो

गगया था और हम दे खने जाय करते थे। माधो पुर मैं पहुूँच गगया था ,वोही गसलआिं थीिं जजन में े हो कर हम बर ात के ददनों में फगवाड़े जाय करते थे । माधो परु को पार करके मैं चहे ड़ू रे लवे स्टे शन के पा

पहुूँच गगया। यही वोह स्टे शन था जज दु ह ै रा दे खने जालिंधर जाय करते थे।

े ट्रे न पकड़ कर हम


अब मैं जीटी रोड पर आ गगया था और मेरी मिंजज़ल नज़दीक आ रही थी। इ

जीटी रोड की

पता नहीिं ककतनी यादें ज़हन में आ रही थीिं. जब हम बबदे श में चले जातें हैं तो हमारा ददल अपनी जनम भूसम को कभी छोड़ता नहीिं है ,लाख हम अपने काम में वय त रहें लेककन ददल अपने दे श में ही रहता है ,यह मैं नहीिं धैनोवाली ब

अड्डे पर आ गगया। वहािं

ब के

ाथ ऐ ा ही होता है । बी

समनट में ही मैं

ाइकल ररपेअर की दक ू ान के नज़दीक मैं आ गगया

,जै ा कक मैं और कुलविंत ने वादा ककया हुआ था।

ज़्यादा दे र मुझे इिंतज़ार नहीिं करना पड़ा। एक लड़की को मैंने रे लवे के फाटक को पार करते

हुए दे खा जज के बाइस कल की र्पछली ीट पर पािंच शै ाल की लड़की बैठी थी ,ककया यही होगी कुलविंत ? मैं ोचने लगा। कुलविंत की जो फोटो मेरे पा थी ,वोह स्माटि कपड़ों में थी लेककन यह तो बबलकुल

ाधाहरण कपडे थे। एक समनट में ही वोह

दक ू ान के नज़दीक आ गई। मैंने आगे बड़ कर कुलविंत को

ाइकल वाले की

त स री अकाल बोला, जज

का

जवाब उ

ने बहुत धीरे े ददया और मुझे भी यकीिंन हो गगया कक यही कुलविंत थी, लेककन ककतनी शमीली जै े मिंह ु में जुबािं ही ना हो। अपने अपने ाइकल पकडे हुए हम धीरे धीरे जीटी रोड के ाथ ाथ चलने लगे। वोह कुछ बोल नहीिं रही थी और मैं ररवाजन भी घर के दस्यों का हाल चाल पूछ रहा था।

कफर मैंने कहा ,” चलो हम जालिंधर छावनी रे लवे स्टे शन पर चलते हैं ,वहािं

ाइकल स्टैंड पर

ाइकल खड़े करके ट्रे न में बैठ कर जालिंधर चलते है “. कुछ ही दे र में हम छावनी रे लवे

स्टे शन पर पहुूँच गए , ाइकल हम ने खड़े ककये ,ट्रे न पकड़ी और जालिंधर शहर पहुूँच गए। मैं बातें कर रहा था लेककन कुलविंत कम बोलती थी और मैं कुलविंत की छोटी बहन शमी के ाथ बातें करने लगता जो खब ू खश ु थी। एक अच्छी

में चले गए और एक राइवेट कैबबन में बैठ गए। छोटा

ी हलवाई की दक ू ान दे ख कर हम उ

ा एक लड़का आडिर लेने आया और

मैंने जो आडिर ददया याद नहीिं लेककन र गुल्ले जरर याद हैं। हम खाने लगे और चाय पीने लगे। अब कुलविंत की खझजक कुछ कुछ दरू हो रही थी ,हम गचठीओिं की बातें करने लगे लेककन वोह स फि मुस्करा दे ती। बहुत बातें तो याद नहीिं लेककन हम जल्दी ही दक ु ान आ गए।

े बाहर

हम कफर घूमने लगे और हमारी नज़दीकीआिं काफी हद तक आगे बड़ गई थीिं। मैंने कुलविंत को कड़े के बारे में बताया जो मुझे मेरे ही अटै चीके अटै चीके

में समला था ,रब ने छपर फाड़ कर ही

में फैंक ददया था। आगे की प्लैननिंग के बारे में हम बातें करने लगे कक हम अपनी

शादी के सलए गहने और कपडे खद ु ही खरीदें गे। कुलविंत ने मुझे अपनी माूँ का

न्दे श भी

ुना ददया कक कक ी ददन मैं उन के घर आऊिं। एक हफ्ते तक आने का वादा मैंने कर ददया

और मुझे खाना कुलविंत के घर ही खाना था। अब बातों में अपनापन मह ू

घुमते घुमते तीन चार वज गए थे और कुलविंत जाने के सलए कहने लगी। इ

होने लगा था। सलए हम

रे लवे स्टे शन पर पहुूँच गए , छावनी के टकट सलए और ट्रे न में बैठ कर कुछ ही समनटों में


छावनी पहुूँच गए। अपने बाइस कल सलए और छावनी शहर के बाजार में फ्रूट लेने के सलए चल पड़े। कुलविंत को छावनी की एक एक दक ू ान का पता था क्योंकक वोह यहािं के स्कूल में पड़ा करती थी। एक फ्रूट की दक ू ान

े मैंने अच्छे अच्छे फ्रूट की एक बास्केट बनवा ली और कुलविंत के

बाइस कल के पीछे बाूँध दी और हम वाप

जीटी रोड पर धैनोवाली रे लवे फाटक की ओर

चल पड़े। कुछ ही समनटों में हम धैनोवाली ब मुस्कराई और कहने लगी ,” पता है जब

स्टैंड पर पहुूँच गए। अब कुलविंत कुछ

ुबह मैं बोलती नहीिं थी तो ककया हुआ था ?”. नहीिं ,मैंने कहा। कुलविंत बोली ,” इधर आप आ गए थे और उधर मेरे एक नज़दीकी दादा जी पिंप े

ाइकल के टायर में हवा भर रहे थे ,न तो मैं आप को बता

थी ,यह दादा जी ककया

कती थी ,ना बोल

कती

े समल रही हू​ूँ ,यह तो अच्छा ही हुआ कक वोह जल्दी चले गए नहीिं तो यह हमारे घर चले जाते क्योंकक यह बहुत ख्त ुभाव के हैं “. मैं हिं

ोचें गे कक मैं कक

पड़ा और कुलविंत को अलर्वदा करके जीटी पर

ोच रहा था कक यू​ूँ तो हम की

ाइकल दौड़ाने लगा।

गाई हो चक् ु की थी लेककन इ

पहली मुलाकात में ककतना

आनिंद था। जवानी में छुप छुप कर जब रेमी समलते हैं, ऐ ा ही तो अनभ ु व होता है ! 48 वर्ि पहले का यह ददन हमारे सलए ककतना भागयशाली था। चलता…


मेरी कहानी – 88 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन December 21, 2015 कुलविंत

े समल कर ऐ ा मह ू

हो रहा था कक अब तक मैं अधरू ा ही था और अब कोई

मेरा अपना हो गगया था। जब दो रेमी समलते हैं तो उन में र्पयार की बातें बहुत होती हैं ,उन का यह र्पयार उन दोनों को कक ओर ले जाएगा ,कक ी को भी पता नहीिं होता। बहुत दफा तो यह र्पयार शारीरक और मानस क तजृ प्त के सलए ही होता है । शादी के वादे ककये

जाते हैं लेककन जज़आदा तर यह ककये वादे अ फल हो जातें हैं लेककन जब पता हो कक दोनों ने शादी के बिंधन में एक हो जाना है तो बात इलग्ग होती है ,इ इ

में कोई डर नहीिं होता ,खा

यह ददन इ ी सलए ही हमारे

कर जब घर वालों को भी ुनैहरी ददन थे।

मय

हम बड़ ू े हो गए हैं तो वोह बात तो अब बन नहीिं गहनों कक तरह होती हैं जजन को

में कोई शुबाह नहीिं होता।

ब गगयात हो। शादी

मय पर

े पहले के

ब कुछ बदल जाता है ,अब

कती लेककन यह परु ानी यादें

ोने के

ीने में छुपा कर ,याद करके, हिं ी और खश ु ी समलती है ।

हमारे पहले समलन के बाद घर आते ही मैंने कुलविंत को खत सलखा और इ

में वोह

बातें सलखीिं जो हम ने की थी और एक हफ्ते तक कफर आने को मैंने सलख ददया और इ ददन मैंने कुलविंत के घर भी जाना था। कुलविंत के र्पता जी बहुत दरू कक ी शहर में एक अच्छी नौकरी पर थे और अब शादी का पबांध करने के सलए धैनोवाली आ गए थे। एक ददन अचानक हमारे घर आ गए। काफी ऊिंचे तगड़े शख्

थे वोह ड्रैस्ड थे। मैंने उन

े हाथ समलाया और उन्होंने बहुत बातें मुझ े कीिं लेककन कै ी बातें थीिं अब याद नहीिं। कफर मेरे र्पता जी भी बाहर े आ गए और बातें करने लगे। मेरे र्पता जी ने उन्हें बता ददया था कक गुरमेल का र्वचार

ादा शादी करने का था। मैं

तो बाहर चले गगया था , बाद में ककया बातें हुईं मुझे कोई पता नहीिं ,हाूँ यह मालुम हो गगया था कक शादी 14 अरैल की पक्की थी। कुछ ददनों बाद अब हमारे घर में बातें होने लगीिं कक बराती तो द

गगयारा ही होंगे लेककन यह कौन कौन होंगे। हमारा भाईचारा तो बहुत बड़ा था , वाल यह था कक कक को बल ु ाया जाए कक को न बल ु ाया जाए। अब मैं

ोचता हू​ूँ कक जवान बच्चे तो अपनी मज़ी कर लेते हैं लेककन बज़ुगों को इ

ककतनी मु ीबत आती है ,यह जवान बच्चे था कक

को शादी

मझ नहीिं

कते। उ

भी लोगों का अपना अपना एक भाईचारा होता था जज

भाईचारे के

मय एक ररवाज़ होता

के तहत

भी एक द ू रे

मारोहों पर न्योता दे ते थे। आज तो शादी का काडि दे ते हैं लेककन उ भी लोगों के घर जा कर दो

पहले यह गुड़ चार

ेर होता था ,जज

ेर भी खत्म हो गगया था।

मय अपने

ेर गुड़ दे ते थे और शादी पर आने को कहते थे।

को एक धड़ी गुड़ कहते थे लेककन धीरे धीरे यह दो


एक ररवाज़ और होता था कक जब शादी हो जाती थी तो एक ददन भाईचारे के शादी वाले के घर में इक्क्र होते थे और अपने यह वही तकरीबन छै इिंच चौड़े और अठरा बी को बीच में फोल्ड ककया होता था और इ

भी लोग

ाथ अपने अपने वही खाते ले कर आते थे। इिंच लम्पबे पेपर की कापी जै ी होती थी जज

को एक लम्पबे धागे

े बाूँधा हुआ होता था ,इ की जजल्द लाल रिं ग की होती थी ,र्ववाह शादीआिं और कोई जररी ररकाडि इ वही में सलखे होते थे और यह हर घर में होती थी। दररओिं पर

भी लोग बैठ कर अपनी अपनी वहीआिं

खोल लेते थे और बताते थे कक उन के घरों में र्पछली शादी पर अब की शादी वाले ने ककतने पै े ज़्यादा ददए थे। कफर वोह

भी पै े वाप

करते थे और

ज़्यादा दे दे ते और वही पर भी सलख दे ते कक र्पछले पै े वाप

ाथ ही कुछ और

ककये और अब द

या पािंच

रपए ज़्यादा ददए। यह स स्टम कक ी ज़माने में बहुत अच्छा होता था क्योंकक शादी वाले घरों को उ मय आगथिक मदद समल जाती थी लेककन आज यह स स्टम एक ररवाज़ बन कर ही रह गगया था और पै ों की कोई कीमत रह ही नहीिं गई थी। हम ने अपनी वही दे खख तो मालूम हुआ कक हमारे पै े लोगों की तरफ ही थे क्योंकक हम लोगों की शादीओिं पर दे ते ही रहे थे और हमारे घर में र्पछले द बाराह वर्ि े कोई शादी ही नहीिं हुई थी। हम ने अब कक ी का कुछ भी नहीिं दे ना था और जो ददया हुआ था ब भूल गए। शादी में एक मेरे मामा जी और उ की ारी फैसमली और मेरी मा ी जी और उन की ारी फैसमली को इन्वाइट ककया गगया। ताऊ रतन स हिं और उन का बेटा चरण स हिं गाूँव में नहीिं थे। ताऊ निंद स हिं और उ

के भतीजे रीतू को भी इन्वाइट ककया गगया। बहादर की फैसमली हमारे

भाईचारे में नहीिं आती थी। जीत की फैसमली हमारे भाईचारे में आती थी ,इ उन के घर गगया। जीत घर पर नहीिं था। उ

सलए मैं खद ु

के र्पता जी और चाचा जी वहािं थे। मैंने उन

को अपनी

ारी बात बताई कक मेरी शादी बहुत ादा होनी थी ,तो न ु कर वोह अजीब अजीब बातें करने लगे और कुछ आना कानी करने लगे। जीत के चाचा जी कुछ कट्टर

र्वचारों के थे। बहुत बातें करने के बाद मझ ु े बोले ,” अब बताओ कक हम आएिं या ना आएिं ?”. मैंने कहा ,” यह आप की मज़ी है ” और उठ कर मैं वाप आ गगया ,मन में ोचा ” तुम्पहारे बगैर जै े शादी नहीिं होगी “. शादी को अभी काफी ददन रहते थे और जै े मैंने कुलविंत को बताया हुआ था ,धैनोवाली फाटक पर पहुूँच गगया। कुलविंत रे लवे लाइन के फाटक के पीछे ही मेरा इिंतज़ार कर रही थी और मुझे दे खते ही आज उ

ाइकल वाले की दक ू ान पर पहुूँच गई और मुझे दे खते ही मुस्करा उठी। की छोटी बहन ाथ नहीिं थी। आज उ की ड्रै भी अच्छी थी और चेहरा खखला

खखला लग रहा था। है लो कह कर हम दोनों अपने अपने बाइस कलों पर

वार हो कर छावनी

रे लवे स्टे शन की तरफ चल पड़े और

ददन वाली खझजक

ाह

ाथ बातें ककये जा रहे थे। उ

काफी दरू हो गई थी , अब नज़दीकीआिं बड़ गई थीिं और अपनापन लग रहा था। बातें करते करते मैंने कुलविंत को बताया कक आज हम ने वोह कड़ा जालिंधर जा कर बेच दे ना था और


पै े

े मज़े करें गे। आज तक मुझे यह

मझ नहीिं आया कक मैं कड़ा क्यों बेच रहा था

जब कक पै ों की तो मुझे इतनी ददकत नहीिं थी। और आज भी यह खरीदती है ,या उ

ोने

े मेरा लगाव कभी रहा ही नहीिं था

ोने का डडपाटि मेंट कुलविंत का ही है ,मुझे पता ही नहीिं है कक वोह

के पा

ककया है ।

बातें करते करते हम छावनी रे लवे स्टे शन पर पहुूँच गए।

ाइकल स्टैंड पर

कराये और दटकट ले कर ट्रे न में बैठ गए। जालिंधर जा कर हम

ाइकल जमा

ुनारों की दक ु ानों के चक्क्र

लगाने लगे और कड़े की कीमत पूछने लगे। कुलविंत को इ

का ज़्यादा गगयान था और

हम ने कड़ा बेच ददया। कड़ा

के 1200 रपए समले ,जो बेस्ट

जगह जगह जाने राइ

थी।

े हम को कड़े की

ही कीमत का अिंदाजा हो गगया था और एक दक ू ान में

ाढ़े आठ तोले का था और इ

ोचता हू​ूँ आज यही कड़ा अढ़ाई तीन लाख का होगा। खैर हम पै े ले कर खश ु

हो गए और एक चाय की दक ू ान

े कुछ खा पी कर

िंत स नीमे में कोई कफल्म दे खने चले

गए लेककन कफल्म का नाम याद नहीिं। कफल्म दे ख कर बाहर ननकले और कुछ मटरगश्ती करने के बाद हम वाप

छावनी स्टे शन पर आ गए ,अपने अपने

ाइकल सलए और

धैनोवाली फाटक पर आ गए। अब मैंने कुलविंत के घर जाना था। खझझकता खझझकता कुलविंत को भी कुछ घबराहट हो रही थी क्योंकक उ

ा मैं कुलविंत के

ाथ चल पड़ा।

के सलए भी यह बहुत मुजश्कल घड़ी थी। जल्दी ही हम कुलविंत के घर के आगे खड़े थे। कुलविंत की माूँ र ों के तेल की बोतल ले कर दरवाज़े पर आ गई और दोनों तरफ तेल चोया। कफर हम अिंदर आ गए। घर के

भी

दस्य खश ु खश ु थे और खाने की महक भी आ रही थी। कुछ लड़ककआिं भी आ गई थीिं जो

कुलविंत की

ख्यािं थीिं और मेरे

ाथ बातें करने लगीिं। ऊपर

भोजोवाल वाले अचानक आ गए जज

े कुलविंत के मामा जी

े कुलविंत की माूँ कुछ डर गई क्योंकक वोह बहुत पुराने र्वचारों के थे लेककन वोह मुझे समल कर जल्दी ही चले गए ,पता नहीिं ककया ोचा होगा उन्होंने। ड्राइिंग रम में अपनापन मह ू

भी इकठे बैठे थे ,कुलविंत की बहनें मेरे पा

बैठी बातें कर रही थीिं ,हर तरफ

हो रहा था। खाना भी आ गगया जो मैंने और कुलविंत ने इकठे ही खाया।

एक बात थी कक घर में कुलविंत बहुत बोल रही थी ,कोई खझजक नहीिं थी जै े बाहर एक कैद खाना था और भीतर एक खल् ु ला मैदान। आज मैं यह मझ कता हू​ूँ कक क्यों ! इ के बाद मैंने र्वदा ली और रानी पुर आ गगया। एक ददन माूँ ने मुझे कुलविंत के सलए कपडे और नए गहने बनवाने के सलए बोला और कहा कक हम खुद ही जा कर खरीद लें । अब मुझे अपनी भूल मह ू

हुई कक मुझे कड़ा बेचना नहीिं चादहए था। खैर पै े तो मेरे पा थे ही और कुछ पै े माूँ ने दे ददए। एक या दो ोने की चड़ ू ीआिं माूँ ने दीिं ,मुझें परू ा याद नहीिं और कुलविंत को मैंने खत सलख ददया कक वोह मुझे उ ी जगह समले। कभी कभी

ोच आती है कक जब

लोग बूढ़े हो जाते हैं ,तो युवा बच्चों पर बहुत गधयान दे ते हैं कक कहीिं गलत रास्ते पर ना


चल पढ़ें लेककन जो उन्होंने अपनी जवानी के ददनों में ककया होता है वोह या उन को

ोचना नहीिं चाहते। हम दोनों को एक लाइ ैं

ब भूल जाते हैं

समल गगया था और कोई बिंददश

नहीिं थी। दोनों के घर वालों को पता था लेककन हमें यह कोई गगयान नहीिं था कक बज़ुगि इ को कै े ले रहे थे।

कुलविंत को सलखी गचठ्ठी के मुताबक मैं कफर धैनोवाली फाटक पर

ाइकल वाले की दक ू ान

पर पहुूँच गगया। हमेशा की तरह कुलविंत फाटक के पीछे मेरा इिंतज़ार कर रही थी और मुझे

दे खते ही मेरी तरफ आ गई। बातें करते करते हम कफर छावनी की ओर चल पड़े। हमेशा की तरह छावनी स्टे शन पर

ाइकल खड़े ककये , जालिंधर की ट्रे न ली और जालिंधर शहर आ गए।

पहला काम था गहने खरीदने का। कुछ दक ु ानें दे खीिं ,जजन के बारे में मुझे तो कोई गगयान नहीिं था लेककन कुलविंत को इन के बारे में पता था। एक बड़ी

ुनार की दक ू ान में हम बैठ

आ गगया। यह राणी हार इतना खब ू ूरत था कक हम दोनों इ

पर कफदा हो गए ,हालािंकक

गए। मुझे

ुनार ने बड़ीआ बदढ़या

ैट ददखाए। एक

ोने की जानकारी नहीिं थी। इ

झुमके थे। हम दोनों

ैट उ

राणीहार के

ने ददखाया जो हम दोनों को प िंद

ाथ आठ चड़ ु ीआिं थीिं और कानों के सलए

ोने के बारे में अनाड़ी ही थे ,इन गहनों की चमक दमक दे ख कर ही

हम ने खरीद सलए ,पै े दे कर खश ु खश ु हम दक ू ान

े बाहर आ गए।

यहािं यह सलखना भी भूलूिंगा नहीिं कक बहुत वर्ों बाद जब इिंगलैंड में आ कर हम ने नए गहने लेने थे तो चड़ ू ीओिं में े काले रिं ग की कोई ऐ ी चीज़ ननकली थी जो ोने का वज़न बढ़ाने के सलए

ुनार चडु ड़ओिं में डाल दे ते थे । बेचने पर

ारे

ैट का आधा

ोना ही हमें समला

था। मुझे याद है , ुनार की दक ू ान में तरह तरह के दे वी दे वताओिं की फ्रेम की हुई तस्वीरें थीिं ,शायद यह दे वी दे वते ुनार को धोका घड़ी करने के सलए आशीवािद दे रहे होंगे । गहने ले कर हम कपड़ों की दक ु ानों पर घूमने लगे। कुछ

ाड़ीआिं खरीदीिं ,कुछ और कपडे सलए जो

मुझे याद नहीिं। एक काफी बड़ा बैग जो मैं इिंग्लैण्ड

े ले कर आया था ,कपड़ों

े अच्छी

तरह भर गगया था। अरैल का महीना शुर हो गगया था और काफी गमी हो गई थी। लक्ष्मी पैले

स ननमे के

ामने एक रै स्टोरैंट था ,खाना खाने के सलए हम उ

पर फैन घूम रहे थे ,जज

े रै स्टोरैंट में ठिं डी हवा थी। अब ररलैक्

में घु

गए।

ीसलिंग

हो कर हम ने ढे र

बातें कीिं ,दोनों खश ु खश ु थे ,ककया ककया बातें हुईं ,याद नहीिं लेककन जजतनी बातें भी कीिं अच्छी थीिं। रै स्टोरैंट

े ननकल कर हम वाप

रे लवे स्टे शन पर आ गए ,जालिंधर कैंट का दटकट सलया

और बैठ कर और जालिंधर कैंट या छावनी पहुूँच गए ,अपने अपने

ाइकल सलए और कफर

धैनोवाली फाटक पर आ गए। कुलविंत धैनोवाली की तरफ रवाना हो गई और मैं जीटी रोड पर चलने लगा। एक घिंटे में मैं अपने गाूँव राणी पहुूँच गगया। घर आ कर मैंने कपडे माूँ के

ारे गहने

पुदि कर ददए क्योंकक यह अब लेडीज़ का काम ही था। जो कुछ भी मन में

होता था ,माूँ जज

को अक् र हम बीबी ही कहा करते थे उन

े ही कह दे ता। र्पता जी के


ाथ मेरी खझजक अब भी कुछ कुछ थी। उन

जो माूँ के

ाथ होती थीिं ,दादा जी के

रहने के कारण हमारा लगाव बहुत था। जज

ब बातें होती थीिं लेककन वोह बात नहीिं थी

ाथ भी बहुत बातें होती थीिं क्योंकक बहुत वर्ि इकठे

ददन

े मैं गाूँव में पहुिंचा था ,हर रात को मैं गगयान चिंद की दक ू ान पर जा बैठता था। बहुत बातें हम करते ,बीच बीच में गगयान चिंद की पत्नी भी एक छोटे े दरवाज़े े अिंदर

आ जाती ,यह दरवाज़ा गगयान चिंद की दक ू ान और घर के बीच में होता था। जब गगयान चिंद का

ोने का वक्त होता तो उ

की पत्नी इ ी दरवाज़े

ला दे ती क्योंकक गगयान चिंद दक ू ान में ही

े उ

के सलए एक छोटी

ोया करता था। हमारी वोह ही बातें और वोह ही

वातावरण होता था। दक ू ान में वोह ही मठाई की पीपीआिं थीिं जजन के का होता था जजन में

कर अक् र गगयान चिंद को कहा करते थे ,” गगयान

चिंद ! मठाई का रॉकफट तो तू खद ु ही खा जाता हैं “. गगयान हिं शादी

ामने का दहस् ा शीशे

े मठाई दीखती थी। मैं रोज़ ही कुछ ना कुछ ले लेता और इतनी ही

मठाई गगयान चिंद खा जाता। हम हिं मास्टर हरबिं

ी चारपाई

पड़ता था। गगयान चिंद

स हिं की बातें बहुत ककया करता था।

े कुछ ददन पहले

की बातें भूलती नहीिं। इ

े हमारी रात की मुलाकातें खत्म हो गई थीिं, इ ी सलए गगयान चिंद

दक ू ान में पता नहीिं ककतनी अच्छी या बुरी बातें हम ने की होंगी

,ककतने गाूँव के लड़के लड़ककओिं के

िंबिंधों की बात की होंगी ,गाूँव के शादी शुदा मरद और

चररतरहीन औरतों की बातें हुई होंगी मालुम नहीिं लेककन यह बहुत थीिं। यह दक ू ान गाूँव का अखबार ही तो था जज में ारी खबरें समल जाती थीिं। गगयान चिंद की पत्नी इतना बोलती नहीिं थी लेककन शादी के बाद जब ददन के वक्त कभी कभी मैं जाय करता था तो वोह मुझ े हल्का

ा मज़ाक कर लेती थी कक अब मैं इ

सलए रात को दक ू ान में नहीिं आता ,क्योंकक

कोई मुझे आने नहीिं दे ता था। कुछ भी हो यह र्पयार ही तो था जो वोह छोटी भूलने नहीिं दे ता। चलता…

ी दक ू ान को


मेरी कहानी – 89 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन December 23, 2015 13 अरैल को मेरे मामा जी और उन का

ारा पररवार आ गगया था , कुछ दे र बाद मा ी जी और

ारा खानदान भी आ गगया था। घर में रौनक हो गई थी। लड़ककआिं नाचने गाने

लगीिं। घर की छत्त पर खल ु ी जगह थी और बच्चे भाग दौड़ कर रहे थे। रीतम स हिं झीवर हलवाई था जो

ुबह को ही आ गगया था। रीतम स हिं का घर हमारे घर की र्पछली ओर ही

था और उन लोगों के

ाथ हमारे

म्पबन्ध घर जै े ही थे। र्पता जी और दो चार और लोग

र्वस्की का आनिंद ले रहे थे और खब ू ठहाके लगा रहे थे। रे डडओ बाहर रखा हुआ था जो ऊिंची आवाज़ में बज रहा था ,लेककन कक ी का गधयान रे डडओ की तरफ मालूम नहीिं होता था ,एक शोरगुल

ा था। एक बात थी कक ज़्यादा मेहमान ना होने के कारण

भी पा

पा

बैठे बातों

का मज़ा ले रहे थे जो बहुत अच्छा लगता था क्योंकक खल ु कर एक द ू रे के ाथ बातें हो रही थीिं। ढोलक के ाथ औरतें भी अपना मज़ा ले रही थीिं ,कफर रे डडओ कक ने न ु ना था। खाना कािं ी की थासलओिं में ही परो ा जा रहा था और पानी के सलए पीतल के बड़े ग्ला ,कोई क्रॉकरी नहीिं थी। एक तरफ दो औरतें बतिन

थे

ाफ कर रही थीिं जो गाूँव में शादी

मारोहों पर यह काम ककया करती थीिं। दे र रात तक यह स लस ला चलता रहा और

ुबह

को जल्दी उठने को कह ददया गगया था। छत पर मदों के सलए चारपाईओिं पर बबस्तरे लगा ददए गए थे और औरतों बच्चों के सलए नीचे दालान में वयवस्था की गई थी। बातें करते करते

भी

ो गए थे।

ुबह को कारें आ गई थी। अब तैयारी शुर हो गई थी ,जज

था।

में पहले मुझे गुरदआ ु रे में जाना

ज धज कर मैं तैयार खड़ा था। दो भाबबओिं ने मेरी आूँखों में

ुरमा डाला ,हाथ में

ककरपान पकड़ाई और मैं चल पड़ा। गाती हुई औरतें मेरे पीछे पीछे चलने लगीिं। गुरदआ ु रा ( रामगदढ़या जाती का गुरदआ ु रा ) गाूँव के बबलकुल द ु री ओर था और धीरे धीरे चलते हुए पिंद्ा बी और

समनट लग गए। गुरदआ ु रे में जा कर मैंने माथा टे का ,गगयानी जी ने अरदा

ब को पर ाद ददया और हम वाप

भी धैनोवाली की ओर चल पड़े।

की

चल पड़े। घर पहुूँच कर मैं कार में बैठ गगया और

जब हम धैनोवाली फाटक पर पहुिंचे तो हम है रान हो गए जब आगे बाजे वाले खड़े बाजा बजा रहे थे और हम ने तो बाजा ककया ही नहीिं था , कुलविंत के र्पता जी ने रे लवे के फाटक े घर तक जाने के सलए बाजे वालों को बल ु ा सलया हुआ था। कुछ समनटों में ही हम कुलविंत के घर के आगे खड़े थे। कुछ रस्में करने के बाद हमें एक छोटे े बरात घर में जाने को कहा गगया। वहािं जा कर हम

भी आराम

े बैठ गए और हमारे सलए चाय मठाई बगैरा

गई। बातें करते करते 11 बज गए थे और हमें कुलविंत के घर जाने का

वि की

िंदेश आ गगया


क्योंकक शादी की र म घर की छत्त पर होनी थी। पािंच समनट में हम घर आ गए और छत पर पहुूँच गए यहािं शासमआना लगा हुआ था। ग्रन्थ

जी हुई थी और एक गगयानी जी पाठ कर रहे थे। कई बातें अब याद नहीिं लेककन इतना याद है कक कुछ दे र बाद मैं और कुलविंत ग्रन्थ ाहब जी के

ाहब की बीड़

ुन्दर पुर्ाकों में

ामने हाथ जोड़ कर बैठे थे। स खों में चार लािंव पड़ी जाती है और हर लािंव के दौरान

दोनों को महाराज की बीड़ की परकमाि करनी होती है । जब र म लोगों ने लैक्चर ददए ,ज़्यादा तो याद नहीिं लेककन एक शख्

म्पपूणि हो गई तो कुछ

जो कहीिं रोफे र था ,उ

ने

बहुत कुछ बोला था कक अगर आज ऐ ी ादा शाददयािं होनी शुर हो जाएूँ तो बेटी पैदा होने का कोई बोझ ना मझे। ारी रस्में बहुत जल्दी खत्म हो गई और हम कफर े बरात घर में आ गए। र्पता जी अपने

ागथओिं को डड्रिंक दे रहे थे और हिं ी मज़ाक चल रहा था।

जल्दी ही कफर हमें खाने का

न्दे श आ गगया और हम छत पर उ ी शासमआने के नीचे आ

गए यहािं अब कुस य ि ािं मेज लगे हुए थे और उन पर क्रॉकरी जी हुई थी। बराती ज़्यादा नहीिं थे ,स फि एक बड़े पररवार जै ा वातावरण था। हम खाने का लत ु फ ले रहे थे और औरतें इदि गगदि बैठी गा रही थीिं और अपने गानों में हम पर जोक्

की वर्ाि भी कर रही थी।

खाना खा कर हम नीचे आ गए और कुलविंत के घर के आूँगन में आ कर बैठ गए। कुलविंत ने अपने हाथों

े काफी कुछ बनाया हुआ था ,जै े मेज पोश ,चादरें और कुछ और भी था जो अब याद नहीिं। यहािं ही कुलविंत की तीन शादी शुदा बहनें और उन के पनतओिं े पररचय

हुआ जजन में किंु दन स हिं किंु दी जो मेरे ाथ रामगदढ़या स्कूल में ही पड़ा करता था और जजन को मैं मुबाई में भी समला था के ाथ बहुत बातें हुईं। किंु दी अब तक एक बेटे का बाप भी बन चक् ु का था। यह

भी रस्में कुछ ही घिंटों में हो गई थी और मेरा अिंदाज़ा है कक हम तीन चार बजे वाप

चल पड़े थे। कार की र्पछली कुलविंत के र्पता जी

ीट पर मेरे

ाथ बैठी कुलविंत रो रही थी। मेरे र्पता जी

े हाथ समला रहे थे और उन को गले

े लगा रहे थे क्योंकक वोह रो

रहे थे। यों ही हमारी गाड़ी चली कुलविंत फुट फुट कर रोने लगी। जीटी रोड पार करके जब

हम चाहे डू गाूँव में दाखल हुए तो मैंने दे खा ,कुलविंत की आूँखों का काजल और सलप् दटक रो रो कर चेहरे का हुसलआ बबगाड़ रही थी। उ का रोना अब बिंन्द हो गगया था और मैंने उ े चेहरा ठीक करने को कहा। अपने प ि में

े उ

ने छोटा

ा शीशा ननकाला और उ

अपना चेहरा दे ख कर मेरी ओर दे खा और मुस्करा पड़ी। चेहरा

ाफ करके उ

ने कफर

सलप् दटक लगाईं। ” अब ठीक है ” मैंने कहा और वोह कफर मुस्कराई और कुछ कुछ होने लगी।इ

तरफ अभी

में

मान्य

ड़क बनी नहीिं थी और कच्चे रास्ते की हालत बहुत बुरी थी। दहचकोले ले ले कर कार आगे बढ़ रही थी और बाहर की धल ू कार के दरवाज़ों में े अिंदर दाखल हो कर हमारे नए कपड़ों पर पड़ रही थी।


कुछ ही दे र बाद हम घर के दरवाज़े के आगे खड़े थे। भीतर गड़वी ले कर खड़ी थी , जज हाथ मार कर पीने

े औरतें गा रही थीिं। माूँ एक

में पानी समला दध ू था। माूँ जब पीने लगती तो मैं गड़वी पे

े रोकता ,जज

भी हिं

पड़ते। कुछ और रस्मों के बाद हम भीतर

आ गए। औरतें हमें ऊपर चब ु ारे में ले गईं। औरतें लड़ककआिं और बच्चे हो गए थे और कुछ दे र बाद मैं नीचे आ गगया और दोस्तों मा ी और उन के घरों के

भी

भी चब ु ारे में इकठे

े बातें करने लगा। मामा जी ,

दस्य खाना खा कर अपने अपने गाूँवों को चले गए और

घर का वातावरण शािंत हो गगया। मा ी जी की बड़ी लड़की नछिं दो कुछ ददन और हमारे घर में रहने के सलए रज़ामिंद हो गई थी ।

ुहाग रात मनाने का जो आज कल कलरफुल इिंतज़ाम ककया जाता है ,उ

मय यह

बबलकुल नहीिं होता था। रात हो चक् ु की थी और नछिं दो ने चब ु ारे में मेरे और कुलविंत के खाना रख ददया और चले गई। बड़े मज़े

े हम ने खाना खाया और हूँ ते रहे । खाना खा कर

मैंने नछिं दो को आवाज़ दी कक वोह बतिन ले जाए। नछिं दो आ कर दे र बाद कैटल में दध ू और

यह ही कह

ह ीन रात थी।

शुर

ुबह उठे तो ऐ ा लगा जै े हम े ही

दादा जी

ब के

भी बतिन ले गई और कुछ

ाथ में दो कप्प रख कर शुभ रारी कह कर चले गई। हम दोनों

ने ककया ककया बातें कीिं ,अब याद नहीिं ,ब

जब

ामने

ाथ जल्दी समक्

ददओिं

कता हू​ूँ कक यह जज़िंदगी की

े एक द ू रे को जानते थे। कुलविंत की आदत

होने की है । ररवाज़ के मुताबक कुलविंत र्पता जी और

े घुिंगट ननकालती थी और मैंने भी उ

को ऐ ा करने

े नहीिं रोका था क्योंकक

मुझे यह अच्छा लगता था । माूँ और मा ी जी की लड़की नछिं दो के

ाथ वोह घुल समल गई

थी और माूँ के मना करने के बावजूद कुलविंत घर के काम में वयस्त हो गई थी। नछिं दो बहुत खश ु ददल थी ,इ सलए जल्दी ही उन का आप ी रेम बड़ गगया था। दादा जी के चरणों में जब वोह माथा टे कती ,तो वोह बहुत खश ु होते और आशीवािद दे ते । र्पता जी अक् र के

ारा ददन या तो खेतों में चले जाते थे या राणी के बाजार में अपने दोस्तों

ाथ होते। र्पता जी की एक बात दे ख कर मुझे है रानी होती थी कक उन्होंने

ारी उम्र

खेती कर के दे खख नहीिं थी और अब यह इतना बड़ा इिंकलाब कै े आ गगया था। हो

कता है

, ारी उम्र बाहर गुज़ार कर वोह हमेशा के सलए गाूँव में रहने का मन बना चक् ु के थे ,जै ा कक उन्होंने एक दफा मुझे दहिंट भी ददया था लेककन मैंने उन की बात को गधयान में नहीिं सलया था और उन्होंने यह

च्च कर ददखाया था ,तभी तो उन्होंने ट्यूबवैल लगा सलया था

और ट्रै क्टर भी ले सलया था। कुआिं अब भी वही​ीँ था लेककन इ मशीनरी नहीिं थी। ऊपर फीट ही नीचे था जज नहीिं था। यह भय दनु नआ छोड़ गए थे।

ाथ वाली कुएिं की

े बबलकुल खल ु ा था और पानी बबलकुल ऊपर तकरीबन द

की तरफ दे ख कर कुछ भय

च्च

के

ाबत उ

ा लगता था और यह

बाराह

ेफ बबलकुल

मय हुआ जब इ ी कुएिं में गगर कर र्पता जी यह


अब हमारा प्लान कुछ घूमने कफरने का था और इ बुक करानी थी। इ

े पहले वाप

इिंगलैंड जाने की

ीट भी

सलए एक ददन मैं जालिंधर एअर अफगान के दफ्तर में गगया और

कुलविंत के सलए

ीट का पता ककया। मेरी दटकट तो ररटनि थी लेककन कुलविंत के सलए कोई

उ े कहा कक दो

ीटें फस्टि क्ला

ीट खाली नहीिं थी। बुककिंग क्लकि कहने लगा कक स फि फस्टि क्ला

हमारी

आ गगया और द ू रे ददन चिंडीगढ़ जाने का

रोग्राम बना सलया। चिंडीगढ़ मेरे बहनोई के दोस्त नागी को

ौंपना था।

ुबह

कोई ब

ीटें ही थीिं। मैंने

की बुक कर दे । मुझे काफी पै े और दे ने पड़े थे लेककन

ीटें ओके हो गईं। दटकटें ले कर मैं वाप

काम करते थे। बहनोई

की

ाहब रहते थे जो स्टे ट ऑकफ

में

ाहब ने उन के सलए एक गगफ्ट भी मझ ु े ददया हुआ था जो मैंने उन

ुबह टाूँगे में बैठ कर हम पहले फगवाड़े को चल पड़े। अभी तक ना तो फगवाड़े को

जाती थी ,ना ही कोई टै म्पपू। फगवाड़े पहुूँच कर हम ने चिंडी गढ़ के सलए ब ली और कुछ ही घिंटों में हम चिंडी गढ़ पहुूँच गए। थ्री वीलर ऑटो ले कर हम नागी ाहब के घर पहुूँच गए। नागी ाहब कोई ती पैंती वर्ि के नौजवान थे और उन की पत्नी बहुत ुन्दर और हिं मुख थी. नागी की पत्नी और कुलविंत ने समल कर खाना बनाया। यह खाना हमें हमेशा याद रहे गा ककओिंकक इ में

ब्जीआिं बहुत थीिं और बहुत ही छोटी छोटी कौसलओिं वि की गई थीिं। खाना बहुत ही स्वाददष्ट था।

शाम को नागी और उ

में दाल

की पत्नी हमें शॉर्पिंग

ेंटर ले गए ,कौन

ैक्टर था हमें याद

नहीिं लेककन चिंडीगढ़ हमें बहुत अच्छा लगा। खल ु ी ड़कें ,बड़ी बड़ी कोठीआिं और फाई इतनी कक लगता नहीिं था कक हम इिंडडया में ही थे। यह शायद 1957 ,58 ही होगा जब मेरे दादा जी कक ी ज़मीन के के

में चिंडीगढ़ कोटि में जाया करते थे। तब चिंडीगढ़ अभी बन ही रहा

था और दादा जी हमें बताया करते थे कक यह बहुत ही ुन्दर शहर बन रहा था । आज हम चिंडीगढ़ में ही थे और दे ख दे ख कर है रान होते थे। दे र रात तक हम बाहर रहे और बाहर ही खाया र्पया। ब ु ह नागी तो काम पर चले गगया और हम ने

ारे ददन के सलए एक औटो ले सलया जजन

में हमें चिंडीगढ़ के बहुत े ैक्टर ददखाए गए। अब ज़्यादा तो याद नहीिं है लेककन इ के बाद जै ा नागी ने हमें बताया था हम र्पिंजौर गाडिन चले गए। नागी ने र्पिंजौर गाडिन के बारे में कुछ कुछ मुझे रात को ही बता ददया था कक यह गाडिन पहले औरिं गजेब के कफदाई खान ने बनाया था .लोकल राजाओिं ने उ े चैन भी थी कक वहािं एक बीमारी भी शुर हो गई जज

ौतेले भाई

े रहने नहीिं ददया था .एक बात और

े गदि न

ूज जाती थी। इस्रीओिं को यह

ज़्यादा होती थी और कफदाई खान की बेगमों को भी यह बीमारी लगने लगी थी ,जज कर कफदाई खान यहािं

े चला गगया था और कभी वाप

नहीिं आया था ,इ

े डर

सलए यह गाडिन

ददओिं तक वै े ही खराब और जिंगल बना रहा। पदटआले के महाराजा यादर्विंदर स हिं ने इ को कफर

े रहने योगय बनाया। यह गाडिन चिंडीगढ़

े अठरा बी

मील दरू ही होगा।


जब हम वहािं पुहिंचे तो दप ु हर का वक्त था और ज़्यादा लोग नहीिं थे। कहने की बात नहीिं कक

यह गाडिन हमें बहुत अच्छा लगा। ज़्यादा तो याद नहीिं लेककन यहािं पानी के फुहारे चल रहे थे ,हमें बहुत अच्छा लगा। आमों के बक्ष ृ बहुत थे और हम ने रौलीफ्लैक् कैमरे को स्टैंड पर कफक्

करके और उ

को ऑटोमैदटक पर

ैट करके अपनी दोनों की फोटो खीिंची थी ,वोह

हमारी र्पिंजौर गाडिन की यादगार है । हम तकरीबन एक घिंटा यहािं रहे थे। इ छोटी

ी याद कभी कभी ताज़ा हो जाती है । कुलविंत के चड़ ू ा पहनने

जगह

े एक

े ज़ाहर होता ही था कक

हमारी नई नई शादी हुई थी ,कुछ लड़के कुछ दरू घम ू रहे थे और शायद हमारे बारे में बातें कर रहे होंगे ,एक ने ऊिंची बोला ,”ओए इिंद्ा बबल्ली ! “. हम मस् ु करा ददए थे। इिंद्ा बबल्ली उ मय एक रस द्ध ऐक्ट्रै

हीरोइन होती थी। कौन

हुआ करती थी जो अक् र पिंजाबी कफल्मों में

ा होटल था यहािं हम ने खाना खाया याद नहीिं लेककन इ

आ गए और झील पर चले गए ,इ

न् ु दर के

के बाद हम वाप

ाथ

चिंडीगढ़

झील का नाम मुझे याद नहीिं लेककन यह जगह हमें

बहुत अच्छी लगी और यहािं बोदटिंग भी की और कुछ फोटो भी सलए जो शायद कक ी एल्बम में पड़े हों ,कुछ याद नहीिं। ारा ददन घूम घूम कर हम थक गए थे और घर आ गए ,नागी भी काम

े आ गगया था और उ

तक बातें करते रहे । कर

ने मुझे ठिं डी ठिं डी बीयर र्पलाई ,खाना खाया और दे र रात

ुबह को नागी और उ

की पत्नी हमें ब

त स री अकाल बोल कर चले गए और हमारा

चलता…

स्टे शन ले गए और ब

चढ़ा

फर राणी पुर की ओर शुर हो गगया।


मेरी कहानी – 90

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन December 28, 2015 चिंडीगढ़ का

फर बहुत अच्छा रहा था । घर आ कर एक दो ददन घर में ही रहे । मह ु ल्ले की कुछ औरतें आ जाया करती थीिं और हमारे आूँगन में बैठ कर गप्पें मारती रहती थीिं। बचनो और गेजो भाबी

े मेरा मज़ाक इिंगलैंड जाने

े पहले भी चलता रहता था और अब भी वोह

रोज़ ही आ जाती थीिं। बचनो भाबी मेरे ताऊ रतन स हिं की बहु थी ,जो मेरी शादी पे तो नहीिं आई थी लेककन अब रोज़ ही आ जाती थी। यह बचनों भाबी वोही ही थी जज के पा बचपन में मैं

ोया करता था और इ

की ही बड़ी बेटी गुड्डी का हाथ चारे की मशीन में

आया था। गुड्डी अब बड़ी हो गई थी और अब भी उ ददनों में कुलविंत बहुत

का लगाव मेरे

ी औरतों को जानने लगी थी।

ाथ वोही था। कुछ ही

कई दफा मैं बाहर पीपलों की तरफ चला जाता और मास्टर बाबू राम के लड़के राम जज

को नप्पल भी बोलते थे,

लभ ु ाया राम भी आ जाता जज राम

े बातें करता रहता। कभी कभी राम

रप

रप का बड़ा भाई

के हाथ में हमेशा स गरे ट ही होती थी। जब बचपन में हम

रप के घर उन के र्पता मास्टर बाबू राम

े पढ़ा करते थे तो उ

मय लभ ु ाया राम

की नई नई शादी हुई थी और हमारे एक ाथी हरभजन ने लभ ु ाया राम की पत्नी के बारे में कुछ शब्द बोले थे और इ पर मास्टर बाबू राम ने उ को बहुत पीटा था और हमें भी इन का घर छोड़ना पड़ा था। नप्पल यानी राम रप इ बात को याद करके हूँ ता रहता था और बताता था कक हरभजन तो अब बहुत ही गलत रास्ते पर चला गगया था। गगयान चिंद की दक ू ान ती चासल गज की दरू ी पर ही थी ,इ सलए मैं उधर भी चला जाता और उ के

ाथ गप्पें हािंकता रहता।

कुछ ददन बाद हम ने

ुन्दर नगर जाने का रोग्राम बना सलया , वहािं मेरे मामा जी के लड़के

िंतोख स हिं की पोजस्टिं ग हो गई थी। इ

इिंगलैंड जाने घिंटे ब ब

े पहले वोह भाखड़ा डैम पर काम करते थे और

े पहले मैं उन को समलने के सलए गगया था .

में लगे याद नहीिं लेककन रास्ते में पहाडी इलाके के

कै े चल रही थी और ककतने खतरनाक रास्ते थे

ुन्दर नगर पहुूँचने में ककतने ीन याद हैं और इन रास्तों में

ब याद है . जब

ुन्दर नगर हम

पहुिंचे तो िंतोख ब स्टैं ड पर हमें लेने आया हुआ था। जल्दी ही हम घर पहुूँच गए। हमारी भाबी पहले ही खाना तैयार कर रही थी। भाबी बहुत हिं मख ु है और अब दोनों समआिं बीवी

हुसशआर परु में रहते हैं यहािं िंतोख ने बहुत अच्छा मकान बना सलया था और अब वोह बहुत बढ़ ू े हो चक् ु के हैं लेककन भगवान ने उन्हें कोई बच्चा नहीिं ददया। िंतोख की बहन की लड़की और उ

का पनत कभी कभी आ कर उन को दे ख जाते हैं।

िंतोख को एलज़ाइमर है और उ

की यादाशत बबलकुल खत्म हो गई है .

िंतोख जब फगवाड़े

में स र्वल इिंजननयररिंग कर रहा था तो राणी पर हमारे घर ही रहा करता था ,इ ी सलए उ


े हमारा लगाव बहुत था। वै े भी िंतोख बहुत ही हिं मुख होता था और उ का चेहरा बबलकुल मेरे चेहरे े समलता था। जब कभी मैं मामा मामी को समलने डीिंगरीआिं अपने नननहाल जाया करता था तो कई लोग मुझे दे ख कर

िंतोख ही

बातें करने लगते थे लेककन मैं बोलता कम था और

मझ लेते थे और मुझ

िंतोख बहुत बोलता था ,जज े उन लोगों को मझ आ जाती थी कक मैं िंतोख नहीिं हू​ूँ और वोह उठ कर चले जाते थे। िंतोख स हिं का एक छोटा भाई ननरविंत स हिं भी है लेककन उ के ाथ मेरा कोई कौन्टै क्ट नहीिं हो का और उ े दे खे भी पचा

ाठ वर्ि हो चक् ु के हैं।

जब हम घर पहुिंचे तो भाबी ने उठ कर कुलविंत को अपनी बाहों में ले सलया और कफर मुझे पकड़ सलया कक मैंने उन को कभी खत नहीिं डाला था। मैं भी हीिं हीिं करता जवाब दे ता रहा। यह घर उन को गवनिमेंट की और

े समला हुआ था और छोटा ा था लेककन बहुत ाफ ुथरा था। भाबी खाने बहुत अच्छे बनाती थी और हमें भी भूख लगी हुई थी। खाना खा कर मज़ा आ गगया। कुछ दे र आराम करने के बाद िंतोख मुझे अपने काम की ाइट पे ले गगया। काम दे ख कर मैं है रान हो गगया।

िंतोख ने ऑकफ

कुछ इिंस्ट्रक्शिंज़ ददए और हम चल पड़े काम दे खने।

में जा कर द ू रे इन्ज्नीरों को

पहाड़ को काट कर एक टनल बन रही थी। कुछ लोग कुआिंगोज़ यह कुआिंगो एक मशीन

े पत्थरों को काट रहे थे।

े चलते थ, जज के आगे एक गचज़ल होती थी और जब यह चलती

थी तो गचज़ल का है मर ऐक्शन होता था जै े हथौड़ा एक समनट में हज़ार दफा पत्थर टकरा रहा हो. गचज़ल आगे तरफ तकरीबन बी

े तीखी होती थी और पत्थरों को काटती थी। यह टनल हर

फीट चौड़ी होगी। जब मैंने दे खख थी तो तब डेढ़ दो

ौ गज़ ही बनी थी।

पहाड़ के बीच यह बन रही टनल बहुत अच्छी लगी। िंतोख ने मुझे बताया था कक यह टनल बनने े रास्ता बहुत कम हो जाएगा। अब तो यह टनल काफी बबज़ी होगी, मझ ु े इ के बारे में कोई पता नहीिं है कक यह है भी या नहीिं। हम

ाइट

े वाप

आने लगे ,कुछ ट्रकक काटे हुए पत्थर के टुकड़ों को कहीिं ले जा रहे थे। हम घर आ गए और कफर शाम को िंतोख मझ ु े अपने दोस्तों के पा ले गगया जो वॉलीबाल खेल रहे थे। हम भी उन के

नैट के नज़दीक आ कर जोर

ाथ खेलने लगे। काफी शोर मच रहा था, खा

कर जब कोई

े वौली मारता और पुआएिंट हो जाता। जब अूँधेरा होने लगा

तो हम घर आ गए। द ू रे ददन हम मिंडी में शॉर्पिंग करने चल पड़े। क्योंकक

िंतोख को काम

की और

े जीप समली हुई थी ,इ सलए उन्होंने घर का कुछ राशन खरीदा और हम ने भी दो गमि काडडिगन खरीदे । पा ही एक नदी थी जज पर पुल बना हुआ था। हम पुल पर जा रहे थे कक एक पहाड़न हमारे पा ,इ

सलए उ

ने उलटी कर दी जज

े गुज़री तो शायद वोह ठीक नहीिं थी

के कुछ छीिंटे भाबी के कपड़ों पर पड़ गए। भाबी तो

गस् ु े में नतलसमला उठी और बोली ,” एह पहाडड़ये भी बाूँदर ही हुिंदे आ “.

िंतोख ने कहा


,”चल छोड़ भी ” लेककन भाबी बोले जा रही थी। मुझे भाबी के हम तो चप ु ही रहे लेककन मेरे ददल में उ िंतोख नदी जो उ

ुभाव का पता था ,इ

सलए

पहाड़न के सलए हमददी थी। कुछ दे र बाद मैं और

जगह बहुत नीची थी के नीचे चले गए और ट्राऊज़ज़ि को ऊपर की तरफ फोल्ड करके और जूते उतार कर ठिं डे पानी का नज़ारा लेने लगे . कुछ और इदि गगदि घूम कर हम वाप

आ गए। शाम को हम ने रोग्राम मनाली जाने का बनाया।

ुबह जब उठे तो मेरी

अधा​ांगगनी की तबीयत खराब हो गई और तेज बख ु ार हो गगया। मनाली का रोग्राम कैं ल हो गगया और द ू रे ददन हम वाप अब

राणी परु आ गए।

ब कुछ हो गगया था ,स फि एक छोटा

दो हज़ार रपए का होगा एक मेरा अकाउिं ट

ा काम था,

ोचा वोह भी करता चलूँ ।ू शायद

ट्र ैं ल बैंक फगवाड़े में , जो रे लवे रोड पर होता था।

एक दफा जब कुछ पै े लेने के सलए मैं गगया तो वोह कहने लगे कक यह नौनिं रै ज़ीडैंट अकाउिं ट है ,इ

सलए पहले जालिंधर है ड ऑकफ

े मिंजूरी लेनी होगी। यह

अप ैट हो गगया था । मैंने फै ला ककया कक अकाउिं ट बिंद ही करवा दिं ग ू ा। इ

ुन कर मैं छोटे

े काम

को करने के सलए मेरे बहुत ददन लगे जजन को सलखने के सलए भी वक्त लगेगा। आखरी ददन मैं जालिंधर है ड ऑकफ के मैनेजर को समला और उ े बातें कीिं। अपनी रिं जजश उ

को बताई तो वोह बोला ,” इतने पुआड़े में क्यों पड़ना था , अपने कक ी

दोस्त को हमारे ऑकफ उ

े फामि लेने के सलए कह दे ते ,जो तुम्पहें इिंगलैंड भेज दे ता और तुम

पर दस्तखत करके इिंडडया भेज दे ते और कफर वोह दोस्त तुम्पहारे सलए अकाउिं ट खल ु वा

दे ता और तुम ब्लैक मखण जजतनी मज़ी जमा करवाते रहते और कभी भी आ कर दो समनट में पै े ले लेते” मैंने कहा ,” फामि ले कर मैंने ब

ोचग ूिं ा ,कफल हाल इन पै ों की मिंजूरी

पकड़ी और फगवाड़े आ गगया , ीधा बैंक गगया और र्वदड्रावल फामि

भर ददया और अकाउिं ट क्लोज़ करने के सलए कह ददया। बैंक बैंक बुक फाड़ कर फैंक दी। घर आ कर हम ने वाप

पहले ही बुक हो चक् ु की थी लेककन मुझे याद नहीिं ,कक

े बाहर आ कर मैंने गुस् े में

जाने की तैयारी शुर कर दी।

गाूँव का ही दारी नाम का एक लड़का था जो राणी परु

े फगवाड़े को तािंगा चलाता था. उ

ामान और हमें धैनोवाली छोड़ दे ना था और धैनोवाली

अमत ृ र एअरपोटि पर जाना था। ननयत ददन घर के

ीट तो

तारीख को हम ने जहाज़ लेना था।

हम ने पैककिंग कर ली थी।

ने ही हमारा

क् ैं शन कर दो “, वोह

भी

धैनोवाली की तरफ चल पड़े। रात हम धैनोवाली रहे और

े हम ने टै क् ी में

दस्यों को समल कर हम ुबह को टै क् ी आ गई जज

का

इिंतजाम कुलविंत के डैडी ने ककया हुआ था और हमारे ाथ ही एअरपोटि जाना था। ुबह को हम चल पड़े और कुछ ही घिंटों में अमत ृ र राजा ािं ी एअरपोटि पर जा पहुिंच।े हम वक्त े काफी पहले पहुूँच गए थे ,इ था के पा

सलए हम एक चाय के खोखे जो एअरपोटि बबजल्डिंग के

कु ीओिं पे बैठ गए और चाय का आडिर दे ददया। इदि गगदि कोई

ामने

फाई नहीिं थी


और चाय वाले खोखे के

ामने वै े ही गिंद था जै े आम

(अब तो काफी शानदार बड़ी बबजल्डिंग है ). वक्त

ामने होता है

े तीन घिंटे पहले एअरपोटि बबजल्डिंग के दरवाज़े खोल ददए गए और तब तक काफी

लोग आ गए थे। एक बात मैं भूला नहीिं, उ ब

स्ती दक ु ानों के

मय लोग अभी भी ऐ े थे जै े इिंडडया में

पकड़ने के सलए धक्म्पधक्का करते हैं। लोगों के पा

रजाईआिं जो मोटे मोटे रस् ों के लोगों के पा

खादी की चादरों में सलपटी हुई ाथ बाूँधी हुई थीिं ,कुछ लोगों ने गन्ने बािंधे हुए थे और कई

आम के आचार के मरतवान ् थे। जब हम

तो वोह नज़ारा कभी भूलता नहीिं। हर कोई अपना अपना रख रहा था और हम दोनों एक दीवार के

भी भीतर चैक इन काउिं टर पर गए ामान एक द ू रे के आगे हो कर

ाथ खड़े चप ु चाप यह

ब दे ख रहे थे। कई तो

लड़ रहे थे जै े उन का जहाज़ छूट जाएगा और वोह पीछे रह जाएिंगे। कुलविंत के डैडी भी जहाज़ चढ़ाने आये लोगों में खड़े थे और मझ ु े घरू घरू कर इशारा कर रहे थे कक हम भी अपना

ामान आगे रखें लेककन मैंने हाथ

करें । इ ी जहाज़ में दो गोरे भी थे जजन के एक् ेंट

े इशारा ककया कक वोह कफक्र ना

े पता चलता था कक वोह अमेररकन थे।

एक बोला ,” eh ! whats going on in here ,never seen like it before !”. चैक इन पे यूननफामि में दो स हिं थे। एक ने गुस् े में एक की रजाई और ददया और मुझे बोला ,” आप आइये में हम वहािं

धीरे धीरे लोग आ रहे थे और भी की

उठा कर दरू फैंक

ामान रखा और दो समनट

े फारग हो गए और इसमग्रेशिंन की तरफ बड़ गए। यहािं

हाल में आ गए और ररलैक्

!

रदार जी “. हम ने अपना

ूटके

े कुछ समनटों बाद हम

हो कर बैठ गए और जहाज़ की इिंतज़ार करने लगे। ब चैन

े बैठ रहे थे। मैं

ोच रहा था कक कै े लोग थे हम

ीटें इ ी जहाज़ की थीिं ,कफर चैक इन पर इतनी घबराहट क्यों थी। कुलविंत थकी

हुई लग रही थी और वै े भी घर वालों को छोड़ कर पहली दफा इतनी दरू जाना उ के सलए अ हनीय हो रहा था ,वोह चप ु चप ु थी ,उ का वोह चेहरा अभी तक याद है और वै े

भी कुलविंत जस्मानी तौर पर बहुत हलकी थी। खाने पीने के सलए वहािं हाल में कुछ नहीिं था। रनवे हमारे ामने ही था और हम शीशे की दीवार े बाहर दे ख रहे थे। तभी एक जहाज़ लैंड हो गगया और पिंजाबी उ

में

े हाथों में बैग पकडे हुए एअरपोटि बबजल्डिंग की तरफ आने लगे और कस्टम वाली बबजल्डिंग के दरवाज़े े अिंदर जाने लगे। कुछ दे र बाद हमें भी जहाज़ की तरफ जाने को कहा गगया। दो अगधकारी दरवाज़े पर खड़े ,जजन के हाथों में पै ेंजर सलस्ट थी ,दे ख दे ख कर हमें जाने दे रहे थे। जहाज़ के नज़दीक पहुूँच कर हम जहाज़ की ीढ़ी े चढ़ने लगे। जहाज़ के दरवाज़े पर खड़ी दो अफगानी लड़ककआिं हमारा वागत कर रही थी। बोडडांग काडों पे ीटों के निंबर दे ख कर हम जल्दी अपनी

ीटों पर आ गए ,बैग ऊपर कम्पपाटि मेंट में रखा और ररलैक्

हो कर बैठ गए।


अफगानी लड़ककआिं लोगों की मदद कर रही थीिं। धीरे धीरे

भी यारी आ गए और जहाज़ का

दरवाज़ा बिंद कर ददया गगया। कुछ दे र बाद माइक में कक ी लड़की ने इिंजग्लश में अनाउिं में ट की, जो याद नहीिं लेककन भी अपनी अपनी

ीट बैल्ट बाूँधने लगे। इिंजजन स्टाटि हुआ ,और कुछ दे र बाद स्पीड बड़ गई और जहाज़ धीरे धीरे चलने लगा। जहाज़ रनवे पर काफी दरू चला गगया और खड़ा हो

गगया। कुछ समनट बाद इिंजजन फुल स्पीड पर हो गगया और एक दम तेज दौड़ने लगा और

ऊपर उठ गगया। कुलविंत ने मेरा हाथ पकड़ सलया और र्विंडो के बाहर दे खने लगी। अमत ृ र शहर के ऊपर हम उड़ रहे थे। मैं ने कुलविंत को नीचे हरमिंदर

ाहब दे खने को कहा। जहाज़

ऊिंचा और ऊिंचा हुए जा रहा था और कुछ ही समनटों में हम बादलों के ऊपर थे। कुलविंत के मन में ककया होगा ,यह तो वोह जाने लेककन हम एक नई दनु नआ ब ाने चल पड़े थे जो अब सलखते

ोच रहा हू​ूँ कक क्या माूँ की गोद में जज़िंदगी गुज़ार दी। चलता…

मय

े क्या हो गगया। अपनी धरती माूँ को छोड़ कर

ौतेली


मेरी कहानी – 91

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन December 31, 2015

हमारा जहाज़ अमत ु का था और हम बादलों के ऊपर उड़ रहे थे. कुलविंत मरु झाई ृ र छोड़ चक् ी लग रही थी और मेरे किंधे पर

पता कक वोह मह ू

ो रही थी या

र रख कर आूँखें बिंद ककये हुए ो रही थी. मझ ु े नहीिं ोने का नाटक कर रही थी. मुझे पता है कक वोह ऐ े ही

कर रही होगी जै े जब मैं भी पहली दफा अकेला जहाज़ में बैठा था. लेककन एक

फरक था कक इ

जहाज़ में दो गोरों को छोड़ कर

भी पिंजाबी थे और वोह भी गाूँवों के रहने

वाले ही थे. कुछ समनटों में ही हम काबुल एअरपोटि पर जा पहुिंचे और द ु रे जहाज़ की इिंतज़ार करने लगे. जज़आदा वक्त नहीिं लगा जब द ू रा जहाज़ भी आ गगया और हम उ

में

वार हो गए और हम कफर आ मान में उड़ने लगे. अब डैजस्टनेशन, लिंदन गैटर्वक एअरपोटि

ही था. रात होने लगी थी और नीचे कुछ ददखाई नहीिं दे ता था. उड़ते रहे और अब लौ होने लगी थी. जा रहे थे. हम भी इ

काम

ारी रात

ात आठ घिंटे हम

भी टूथ पेस्ट और ब्श हाथों में सलए टोएलेट की और

े जल्दी फागि हो गए और ब्ेकफास्ट की इिंतज़ार करने लगे.

जल्दी ही ब्ेकफास्ट

े भरी प्लाजस्टक की ट्रे आने लगी. ब्ेकफास्ट खतम हुआ ही था कक माइक में कोई लड़की बोली कक हम गैटर्वक एअरपोटि पर पहुूँचने वाले हैं और कृपा अपनी अपनी

ीट की पेटीआिं बाूँध लें । अब

ारे जहाज़ में दहलजल ु होने लगी थी और कुछ लोग

अपनी

ीट बैल्ट की परवाह ककये बगैर ऊपर के कम्पपाटि मैंटों

थे। लड़ककआिं बोल रही थीिं, “कृपा अपनी अपनी

े अपने बैग उतारने लग गए

ीटों पर बैठे रहे ” लेककन हम पिंजाबी ककयों

मानने लगे थे, हम तो अब भी ग्रामीण ही थे। नीचे लन्दन की इमारतें ददखाई दे रही थीिं और धप मय इिंगलैंड का मौ म ु छाई हुई थी जज े खश ु ी मह ू हो रही थी क्योंकक इ बुरा ही होता है । कुछ ही समनटों में जहाज़ रनवे पर लैंड हो गगया। जहाज़ े उतरते ही हम

ीधे एअरपोटि की बबजल्डिंग के अिंदर ही आ गए और कस्टम में आ पहुिंच।े कक ी ने पा पोटि की वजाए कुछ नहीिं दे खा और हम आगे जा कर लगेज बैल्ट पर अपने अपने ूट के ों का इिंतज़ार करने लगे जो रे सलिंग पर घूम रहे थे । जब हमारे अटै चीके

आये तो हम ने उठा सलए और ट्रॉली पर रख सलए और एअरपोटि के

मेन हाल में आ गए। एक बैंच पर हम बैठ गए। कुछ समनट बाद मैंने कुलविंत को कहा कक वोह मेरी इिंतज़ार करे , जब तक मैं एक टै क् ी ले आऊिं। टै क् ी के सलए मझ ु े कोई द

समनट

लग गए और जब मैं टै क् ी ले कर आया तो कुलविंत बहुत घबराई हुई इदि गगदि दे ख रही थी। अब तो कभी कभी मझ ु े अपने मन में हिं ी आ जाती है लेककन उ का उ वक्त का वोह चेहरा अभी तक मैं भूला नहीिं। टै क् ी वाला एक गोरा था, उ टै क् ी की ओर ले जाने लगा। टै क् ी का ककराया उ

नें

ने हमारी टरौली पकड़ी और

ाढ़े चार पाउिं ड कहा था। उ

ने


हमारा

ामान टै क् ी में रखा और लन्दन का मैप दे खने लगा। हम ने बहन के घर वूसलच

डैं ी लेन पर जाना था.

एक घिंटे में हम वूसलच बहन के घर आ पहुिंच।े बहन बहुत खश ु हुई थी। हमारी शादी े कुछ ाल पहले बहन धैनोवाली जा कर कुलविंत को समल भी आई थी, इ सलए वोह कुलविंत को पहले

रदार

े ही जानती थी। इ

सलए दोनों जल्दी ही घुल समल गईं। शाम को हमारे बहनोई

ेवा स हिं भी आ गए। इकठे ही हम ने खाना खाया।

ककया करते थे, इ ारी कहानी

ेवा स हिं बहुत हिं ी मज़ाक सलए अब वातावरण बहुत ही मनोरिं जक था। मैंने भी अपनी दोनों की

ुनाई जज

े दे र रात तक हम हूँ ते रहे ।

ुबह को

ेवा स हिं तो काम पर

चले गगया और हम ने टै क् ी ली और पैडडिंगटन रे लवे स्टे शन पर आ गए। इिंडडया में तो कुली समल जाते हैं लेककन इिंगलैंड में कोई कुली नहीिं होता,

ो खद ु ही अपना

ामान ट्रे न में रखा

और घर की ओर चल पड़े। तीन घिंटे में हम अपने शहर आ गए। रे लवे स्टे शन

े टै क् ी ली

और घर आ गए। मैंने दरवाज़े के हैंडल को खटखटाया लेककन कक ी ने दरवाज़ा नहीिं खोला। मैंने बैग में की चाबी ननकाली और

ामान अिंदर ले आये। कुलविंत को मुस्करा कर मैंने कहा, “लो यह

हमारा घर है “. हमारा बैड रम ऊपर था, इ सलए हम ने अपना ददया। छोटा

ामान बैड रम में रख

ा हमारा घर, मैंने कुलविंत को ददखाया और बाहर गाडिन में चले गए। कोई कोई

गोरी अपने गाडिन में रस् ी पर अच्छा था, जो

े घर

ाल के इ

ूखने के सलए कपडे डाल रही थी ककओिंकक उ

ददन मौ म

महीने अक् र ठिं ड वाला ही होता है । गोररआिं दे ख कर कुलविंत

है रान हो गई कक इनका रिं ग इतना गचट्टा था। हम घर के भीतर आ गए और ककचन के बारे में कुलविंत को

ारा कुछ

मझाया ककओिंकक गै

चाय का पैन ननकाला, उ में टूटी

कुकर उ

े पानी डाला और गै

के सलए एक नई चीज़ थी। मैंने कुकर के एक बनिर पर रख ददया,

कुलविंत ने खिंड और चाय पत्ती डाल दी, गगयानी जी की एक दध ू की बोतल

े कुछ दध ू डाला

और कुछ दे र बाद चाय तैयार हो गई। टे बल पर बैठ कर हम चाय पी रहे थे कक तभी

अचानक दरवाज़ा खोल कर गगयानी जी आ गए। कुलविंत को गगयानी जी के बारे में मैंने

पहले ही बताया हुआ था। उ ने उठ कर गगयानी जी के चरण पशि ककये और मैंने भी त स री अकाल बोला। चाय के सलए गगयानी जी को पुछा तो वोह कहने लगे कक उन्होंने अभी थोह्ड़ी दे र पहले ही पी थी। इिंडडया की बातें होने लगी और मैंने बताया कक इिंडडया में रहते हुए मैं ज विंत को समल नहीिं का था। गगयानी जी ब के ाथ घुल समल जाते थे और जल्दी ही कुलविंत को भी लगा जै े वोह घर के दस्य ही हों। कुछ दे र बातें करने के बाद हम ऊपर बैड रम में चले गए और को वाडि रोब में रखने लगे। जल्दी ही कमरा

ारा

ूट के

खोल कर

ामान

ामान ठीक ठीक जगह पर दटका ददया और

ज गगया। गगयानी जी ने रात को काम पर जाना था और वोह अपना खाना बनाने

लगे। कुलविंत ने रोटी के बारे में पुछा तो मैंने ही कुलविंत को बता ददया कक गगयानी जी रोटी


नहीिं खाते थे, उन का खाना

े इलग्ग होता था लेककन बहुत है ल्थी होता था। यही वजह थी कक ९० वर्ि की उम्र हो जाने पर भी उन का ब्लड्ड रेशर एक जवान जै ा था। उन का खाना कोई ज़्यादा कुक नहीिं करना पड़ता था। जल्दी ही वोह खाना ले कर टे बल पर आ बैठे। खाते खाते हमारे

ाथ बातें भी करते चले जा रहे थे। उिं न्होंने बताया कक कुछ ददनों में

ज विंत की शादी भी होने वाली थी और ज विंत के वाले को वोह जानते थे। रीतम स हिं अकाली दल पाटी के

ुर जत्थेदार रीतम स हिं

रीिंह शिंकर

रगमि मैम्पबर थे और एक दफा जब फतेह स हिं ने पिंजाबी

ूबे के सलए मोचाि लगाया हुआ था और मरण वति रखा हुआ था तो मरण वति तोड़ने पर जत्थेदार रीतम स हिं ने उ मय उन को जू का ग्ला र्पलाया था, यह बात रीतम स हिं ने मुझे खद ु 1974 में बताई थी और उ

वक्त के फोटो भी ददखाए थे। जत्थेदार रीतम स हिं

हर वक्त अपनी कार में एक बन्दक ू धारी रक्षक रखते थे। ज विंत की चाची रीतम स हिं की दरू की बहन थी और उ

ने ही यह ररश्ता करवाया था। काफी बातें करने के बाद गगयानी

जी काम पर चले गए और हम ने टीवी ऑन कर ददया। उ

वक्त इिंडडया में टीवी नहीिं होते थे, स फि ददली में ही अभी शुर हुआ था। इिंगलैंड में भी जो टीवी होते थे, उन का फ्रेम लकड़ी का होता था और स्क्रीन बहुत छोटी होती थी। चैनल

भी स फि दो ही होते थे BBC और ITV. बेछक यह चैनल इिंजग्लश में ही थे, कफर भी कुलविंत बहुत मज़े े दे ख रही थी। वै े भी वक्त पा करने के सलए टीवी बहुत हाई था, रे डडओ लेने का कोई फायदा नहीिं था क्योंकक इिंडडया का कोई स्टे शन आता ही नहीिं था। कुछ महीने बाद मैंने एक काफी पावरफुल इलैजक्ट्रक रे डडओ सलया था जज external services of all india radio कभी कभी ुनाई नहीिं दे ता था, कफर भी इिंडडया रे डडओ को

को एक अिंग्रेजी कफल्म आती थी बेछक इतनी

ुन लेते थे लेककन इतना क्लीअर

ुनने के सलए ककतने इछक होते थे। दे र रात

मझ तो नहीिं आती थी कफर भी मज़े

दे खते थे। यह कफल्में अक् र ड्रैकुला की होती थीिं जज कुछ और हौरर मूवीज़ होती थीिं जज

पर अच्छा मौ म हो तो

में ऐक्टर कक्रस्टोफर ली होता था और

में र्विंस्टन राइ

की ऐजक्टिं ग बहुत अच्छी होती थी. कुलविंत ने भी पहली दफा इिंजग्लश कफल्म दे खख थी। कफर हम ऊपर ोने के सलए चले गए। ुबह उठ कर चाय बना कर पी और बाहर को शॉर्पिंग करने चल पड़े। हमारे एररए में उ

वक्त दो इिंडडयन दक ु ाने होती थीिं और वहािं

े ही घर का राशन लाते थे। दालें

ब्जीआिं समचि

म ाले बगैरा सलए, दो दो बैग भर कर घर ले आये। खाना बना कर खाया और मैं अपने काम के डैपो की तरफ चल पड़ा, ताकक पता चले कक मुझे काम पर रखें गे या नहीिं क्योंकक

काम के बगैर तो कुछ भी नहीिं था। जब मैं क्लीवलैंड रोड डैपो पहुिंचा तो ीननयर इिंस्पैक्टर के दफ्तर में पहुिंचा। उ े समल कर काम के बारे में पुछा। ीननयर इिंस्पैक्टर समस्टर लाली ही था। उ ने रै जजस्टर में मेरा पुराना ररकाडि दे खा और उ ी वक्त मुझे कहा कक मैं आज ही शुर करना चाहता हू​ूँ या कल

े। मैंने कहा कक कल

े। तो लाली ने मुझे कहा कक मैं


क्लोददिंग डडपाटि मेंट

े अपनी यूननफामि ले लूँ ू और

मुझे मेरी ड्यूटी भी बता दी।

क्लोददिंग डडपाटि मेंट में चाली ही था, उ ने मेरा

ुबह को काम पर आ जाऊिं और उ

ाइज़ चैक ककया और दो

ने

ैट यूननफामि के

ला ददए और कहा कक मैं कफदटिंग रम में जा कर इन्हें पहन कर दे ख लूँ ।ू कफदटिंग रम

बाहर आ कर मैंने ओके कह ददया और चाली ने यूननफारमें पैक कर दीिं। चाली मेरी तरह बबदे शी ही था और जमेकन था, मुझ े इिंडडया की बातें पूछने लगा। मैं बताता गगया और चाली ने बताया कक कुछ महीने बाद वोह भी अपने दे श जमेका जाने वाला था, वहािं उ

के

माूँ बाप भाई बहने रहते थे और उन की एक फामि थी। यह लोग भी हमारी तरह ही थे। चाली बताता गगया कक उन के फामि में उन के दे श में

िंगतरों के बक्ष ृ बहुत थे। उ ने यह भी बताया कक िं तरों के बक्ष ग ृ आम लोगों के पा थे और जब वोह छोटे होते थे तो िंगतरों

े फुटबाल खेला करते थे, ककक्क मारते,

ोचता हू​ूँ कक उ वक्त करते थे। हम भी एक

िंगतरा फुट जाता और द ू रा और ले लेते। अब मैं

ब बबदे शी लोग हम इिंडडयन की तरह ही अपने दे श को याद ककया

मय में ही इिंगलैंड आये थे और एक जै े ही थे।

यूननफामि ले कर मैं घर आ गगया। जब घर आया तो कुलविंत मेरे गले लग गई, वोह बहुत उदा थी। वोह अकेली घबरा गई थी। बेछक गगयानी जी रात की सशफ्ट लगा कर ऊपर ोये हुए थे लेककन जो कुलविंत की हालत थी मैं मझ कता था। हम बैठ कर बातें करने लगे और उनको बताया कक जब मैं आया था तो उ वक्त मैं भी इतना ही उदा था। बातें करते करते वोह कुछ

मान्य

ी हो गई। मैंने उ

को बताया कक मुझे काम समल गगया था और

कल को मैंने काम पर चले जाना था। वोह खश ु तो हो गई लेककन अकेली रहने का भय उ े ता रहा था। मैंने उ े

मझाया कक धीरे धीरे

ब ठीक हो जाएगा। कुछ दे र बाद हम बाहर

को घूमने ननकल पड़े ताकक कुलविंत को एररये की वाकफी हो है और चलते चलते हम इिंडडयन दक ु ानों की ओर कफर कर रही औरतों के

ाथ बातें करने लगे, जज

के। हमारा एररया काफी बड़ा

े चले गए और दक ु ानदार में काम

े कुलविंत को कुछ अपनापन

ा लगने लगा।

हम काफी घूमे और घर आ गए। अब कुलविंत का हौ ला कुछ बड़ा। गगयानी जी अब उठ चक् ु के थे और नीचे आ गए थे। गगयानी जी के खखयाल ऐ े थे कक वोह कक ी जल्दी ही समक्

ो कर

े भी

हो जाते थे क्योंकक वोह बातें ही ऐ ी करते थे कक लोग उन की तरफ खीिंचे

चले आते थे। धमि की बातें उन की ऐ ी होती थी कक उन में कोई वहम भरम नहीिं होता था। गुरबाणी के शलोक पड़के, उन के अथि करके नहीिं

मझाते। लेककन उन का ही बेटा उन को

मझ

का था।

ुबह को मैं जल्दी उठा, यूननफामि पहनी और काम पर चले गगया। पुराने दोस्तों

और ड्राइवर के

ाथ ब

ले कर कक ी रुट पर चल पड़े।

े समला

ारा ददन काम ककया, घर आया।

कुलविंत इिंतज़ार कर रही थी और उ ने चाय का कप ला कर मेरे आगे रख ददया। आज वोह इतनी उदा

नहीिं थी क्योंकक गगयानी जी ने उ को बोर नहीिं होने ददया था। इ ी तरह दो


हफ्ते हो गए और एक ब्स्पनतवार् को मुझे तनखाह का पहला लफाफा समला । घर आ कर मैंने लफाफा कुलविंत को दे ददया। पाउिं ड दे ख कर वोह खश ु हो गई। एक रर्ववार को मैं कुलविंत को डालेस्टन स ननमा दे खने ले गगया। कफल्म मुझे याद नहीिं लेककन इ

े कुलविंत

खश ु हो गई. ऐ े ही कई महीने हो गए कुलविंत बहुत ी औरतों को जानने लगी थी। उ मय इ रोड पर मेरा और एक और इिंडडयन का घर ही होता था। धीरे धीरे तीन मेरे दोस्त जो मेरे थे। इ

ाथ ही काम करते थे, उन्होंने भी इ ी रोड पर घर ले सलए। वोह तीनो शादी शुधा

सलए उन की पजत्नओिं के

ाथ कुलविंत का मेल जोल बड़ गगया। उ

इिंडडयन औरत काम नहीिं करती थी। औरत का काम करना अच्छा नहीिं तीन दोस्त थे, तरलोचन स हिं , जागीर स हिं और

मय कोई भी

मझा जाता था। यह

ारधा राम। बाद में एक और दोस्त मोहन

लाल टिं डन ने भी नज़दीक ही घर ले सलया था। यहािं यह भी बता दूँ ू कक अब जागीर स हिं ारधा राम और टिं डन यह दनु नआ छोड़ चक् ु के हैं।

कुछ महीने बाद मैंने क्लीवलैंड रोड डैपो

े पाकि लेन डैपो सशफ्ट हो जाने के सलए एप्लीकेशन

दे दी जो जल्दी ही मिंज़ूर हो गई और मैं पाकि लेन डैपो

े काम करने लगा। पाकि लेन डैपो

में ही मेरा दो त मोहणी काम करता था, जज ने मुझे यहािं काम करने के सलए उत् ाह्त ककया था। मोहणी दो तीन वर्ों बाद ही इिंडडया में एक था लेककन मैं हमेशा उ

ड़क हाद े

े यह दनु नआ छोड़ गगया

का ऋणी रहू​ूँगा क्योंकक इ काम े मुझे बहुत लाभ पहुिंचा था। पाकि लेन में आने का मेरा और भी एक मक द था। तरलोचन, जागीर, टिं डन और ारदा राम यहािं ही काम करते थे और रात के पैदल चल कर ही घर आ जाते थे। 1967

मय जब हमारी सशफ्ट एक ही होती थी तो हम े ले कर 2001 तक मैंने पाकि लेन में ही काम

ककया और यहािं ही मेरी ररटायरमैंट हुई। हर ाल मझ ु े हस्पताल चैक अप के सलए जाना पड़ता है और पाकि लेन डैपो के ामने की ड़क पर े हो कर जाना पड़ता है और जब वहािं खड़ी ब ों को दे खता हू​ूँ तो परु ाने ददनों की याद आ जाती है लेककन वहािं डैपो में चलते कफरते ड्राइवर भी नए चेहरे ददखाई दे ते हैं। अब तो यह डैपो मेरे सलए एक धमि स्थान जै ा ही बन गगया है । चलता…


मेरी कहानी – 92

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन January 04, 2016

अब काम पर मैं रोजाना जाता था और कुलविंत के सलए भी यह एक

धाह्र्ण बात हो गई

थी. मेरे काम की सशफ्टें ऐ ी होती थीिं कक मझ ु े काफी वक्त समल जाता था, इ

सलए काम

े आ कर मैं और कुलविंत बाहर घूमने चले जाते. इ

े एक तो यह फायदा हुआ कक ी औरतों को जानने लगी थी और द ु रे एररये की वाजक्फअत भी हो गई थी.

कुलविंत बहुत अभी कुछ ही महीने हुए थे कक हमारे घर में एक खश ु ी आ गई. हमें पता चला कक कुलविंत माूँ बनने वाली थी. माूँ बाप बनने का अह ा भी एक अजीब बात होती है . हम फूले ना माते, हमारे घर एक नया महमान जो आने वाला था. कुछ महीने बाद ज विंत भी शादी

करा के इिंडडया

े आ गगया था लेककन उ

की पत्नी अभी इिंडडया ही थी. कुछ

ाल बाद

बहादर भी शादी के सलए इिंडडया चले गगया था और कुछ महीने इिंडडया रह कर शादी करा के आ गगया था लेककन उ

की पत्नी कमल भी कुछ अर ा इिंडडया में ही रही थी. अब यह एक

इिंकलाब ही आ गगया था औए धीरे धीरे

भी लड़के इिंडडया जा कर शाददयािं रचा रहे थे।

कुछ

मय पहले मैं सलख चक् ु का हू​ूँ कक १९६२ के इम्पमीग्रेशन एक्ट े कुछ मय पहले कूलों कालजों के लड़के ही जज़आदा आये थे और अब एक एक करके भी इिंडडया आ कर

शाददयािं करा रहे थे. कुछ तो अपनी पजत्नओिं को में आती थीिं. जो लोग हम और कुछ

े बहुत पहले आये थे, वोह जज़आदा तर शादी शद ु ा ही होते थे ाल काम करके वाप इिंडडया चले जाते थे लेककन जो अब लड़के आये थे वोह

शादी करा के या तो पजत्नओिं को आ जाती थीिं. ब रहना

ाथ ही ले आते थे और कुछ पत्नीआिं बाद

ाथ ही ले आते थे या उन की पत्नीआिं कुछ अर ा बाद

यह नया ट्रैंड ही ऐ ा हुआ कक ब ने हमेशा के सलए राणी माूँ की गोद में वीकार कर सलया था. ददनबददन हमारी आबादी बढ़ने लगी थी और यह ही कारण था

कक अूँगरे ज़ लोग हमारे खखलाफ होते चले जा रहे थे खा खखलाफ बहुत होते थे और कभी कभी छोटी थे।

कर अूँगरे ज़ लड़के तो हमारे

ी बात को ले कर हमारे लोगों को पीट भी जाते

1968 का वर्ि हमारे सलए बहुत बरु ा था। यह वोही वर्ि था जब वल् ु वरहै म्पपटन ाऊथ वैस्ट के हलके े एक टोरी ऐम्पप पी इनोक पावल (ENOCH POWEL ) अिंग्रेज़ों को भड़का रहा था जज

की वजह

े एक पाटी नैशनल फ्रिंट उभर कर आ गई। इ

लड़के ही थे जजन को

ककन है ड भी कहते थे क्योंकक यह अपने

टाइट ट्राऊज़ज़ि और बड़े बड़े बट ू पहनते थे। इन में

के मोटर

रों को शेव करके रखते थे,

े ही एक और गिंड ु ा ग्रप ु ननकल कर आ

गगया था जजन को है ल्ज़ ऐनज़लज़ बोलते थे, इन के पा होते थे, इन के शरीर टै टू

पाटी के मैम्पबर आम गोरे

बड़े बड़े पावरफुल मोटर

ाइकल

े भरे हुए होते थे। इन की तरफ दे ख कर ही डर लगता था। इन ाइकल इतनी जोर े गूिंजते थे कक गोरे भी घबरा जाते थे। हमारे लोगों को


गासलआिं ननकाल कर बेइज़त करना या पीट दे ना इन के सलए मामूली बात थी। अरैल १९६८ का महीना आ गगया था, एक महीने तक हमारे घर में नया मैह्मान आने वाला था लेककन जो बाहर हो रहा था, मैं कुलविंत को बताना नहीिं चाहता था। अरैल 1968 की इनोक पावल की एक स्पीच ने

ारे इिंग्लैण्ड को हमारे खखलाफ कर ददया था

। इतहा

में यह स्पीच एक बहुत रस द्ध स्पीच है जज को RIVARS OF BLOOD कहा जाता है । एक ाल पहले पासलिमेंट में एक बबल पेश ककया गगया था जो रे रीलेशन्ज़ के नाम

े जाना जाता था। इ

उन के उ

ाथ

का मक द यह था कक जो बाहर

हनशीलता बड़ाई जा

के और अगर कक ी के

े बबदे शी लोग आये हुए थे ाथ धक्का या बेइिं ाफी हो तो

को पूरा इन् ाफ समले लेककन इनोक पावल ने एक स्पीच बसमांघम में दी, जज

कहा ” बाहर

में उ

ने

े लोग आ कर हमारे लोगों की नौकररयािं छीन रहे हैं, उन की कल्चर का हम

पर बुरा रभाव बड़ रहा है, एक ददन इ

दे श में बहुत खन ू खराबा होगा, हमारी कौम अपनी दे श में खन ू की नदीआिं बहने लगें गी”. यह स्पीच बहुत लम्पबी थी

अथी खुद बना रही है , इ और इ

स्पीच के

ाथ ही हमारे खखलाफ नफरत बड़ गई थी ।

आम लोग तो फैक्टररयािं में काम करते थे और उन पर तो ज़्यादा अ र नहीिं पड़ा लेककन जजतने हमारे लोग ब ों पर काम करते थे, उन पर यह अ र बहुत पड़ा क्योंकक हर दम हम पजब्लक के कॉन्टै क्ट में ही रहते थे, खा कर जब रात की सशफ्ट होती थी तो यह गोरे लड़के लड़ककआिं जब क्लब्बों

े ननकलते थे तो अपनी शराब हम पर ही ननकालते थे। जब

हम ककराया लेने के सलए उन के पा

जाते तो हम को बहुत तिंग करते, कभी कहते यह दे गा, कभी कहते वोह दे गा, कोई लड़की की ओर इशारा कर दे ता। आखर में ककराया दे तो दे ते लेककन बहुत दख ु ी करते। कई दफा ब पर बहुत शोर मचाते, ब की घूँटीआिं बजाने लगते जज े ड्राइवर भी तिंग आ जाता। मेरा ड्राइवर स्कौच ( लोहे का एक कक म का पी जो खड़ी ब

के वील के नीचे रखा जाता है ताकक ब

आ जाता और लड़ने के सलए तैयार हो जाता और हो जाते। इ हमारे

ररडने न लगे ) लेकर ब ब उ

की छत पर

के तगड़े शरीर को दे ख कर चप ु

ड्राइवर हैरी बीवर ने हर वक्त मुझे बचाया था ।

भी लोग पावल की स्पीच

े दहल गए थे और

जाना पड़ेगा। यहािं एक इिंडडयन कॉसमडडयन है , जज 2010 में एक ककताब सलखी है जज

में उ

ोच रहे थे कक हम को अब यहािं

का नाम है राजीव भास्कर, उ

ने सलखा है कक उ

ने भी

के माूँ बाप ने भी अटै चीके

बाूँध सलए थे कक अब उन को यह दे श छोड़ कर वाप लोगों ने अपने मकान उ

इिंडडया जाना पड़ेगा। हमारे बहुत े े पर लगा ददए थे लेककन लेने वाला कोई नहीिं था। टोरी पाटी में ल

वक्त लीडर होता था एडवडि हीथ। उ

बाहर ननकाल ददया क्योंकक पावल की

ने इनोक पावल को इ ी स्पीच के कारण पाटी

ारी दन ु ीआिं में इिंगलैंड का अक

खराब हो रहा था । इनोक

पोटि में दटल्बरी डॉकयाडि और अनेक जगह के गोरे वकिरों ने स्ट्राइक कर दी।

ोशसलस्ट पाटी के मैम्पबर इनोक पावल के खखलाफ मुजाहरे करने लगे। हमारी इिंडडया

े आई


औरतें भी इिंजग्लश ना आने की वजह तो इिंजग्लश मदों

े गोरी औरतों की गासलआिं

ह लेतीिं क्योंकक उन को

े भी कम आती थी।

अब तो यहािं बच्चे जो पले बड़े हुए हैं वोह अिंग्रेज़ों जै े हो गए हैं लेककन उ मय तो भी इिंडडया े ही आये थे। बहुत बातें मैं कुलविंत को ना बताता क्योंकक इन बातों का अ र हमारे नए मेहमान पर पड़

कता था। नए महमान आने

एक गाड़ी ले ली जो मैं कई ददनों

े एक गैरेज जज

े कुछ हफ्ते पहले मैंने चार

ाल पुरानी

का नाम ATWOODS था ( अब यहािं

कुछ नहीिं है )जो हमारे शहर के चैपलैश इलाके में थी, दे ख रहा था। गाड़ी बहुत अच्छी किंडीशन में थी जो उ वक्त मुझे 425 पाउिं ड में समल गई। यह गाड़ी AUSTAN 1100 थी और इ

का रजजस्ट्रे शन निंबर अभी भी मुझे याद है और यह होता था AJW 362B। चलाने

में बहुत अच्छी और स्मूद थी। जब मैं घर ले कर आया तो कुलविंत बहुत खश ु हुई। मुझे गाड़ी के बारे में कुछ गगयान नहीिं था लेककन यह हमारा भागय ही था कक यह गाड़ी बहुत अच्छी ननकली। कुलविंत भी अब खश ु खश ु रहने लगी।

11 मई का वोह ददन याद है जब कुलविंत को लेबर पेन्ज़ शर ु हो गई और मैंने एक टे लीफून बूथ जो हमारी रोड के आखर में ही था हस्पताल को टे लीफून कर ददया। आधे घिंटे में एम्पबुलें

आ गई। कुलविंत के कपडे और नए बेबी के सलए कपडे हम ने पहले ही एक बैग में

रख सलए थे। एम्पबूलैं

कुलविंत को बीच

हस्पताल ले गई (यह हस्पताल चाली

ाल पहले

का बिंद हो चक् ु का है जो टै टनहाल रोड पर होता था ). रात भर मैं हस्पताल को टे लीफून करता रहा कक कुलविंत कै ी थी। न ें हिं लेककन मुझे चैन ना आता।

ुबह को मैं काम पर चले गगया लेककन द

आ गगया। मैंने घर आ के टे लीफून बूथ birth to a baby girl “. था और मरीज़ों के

कर कह दे ती ” dont worry, she is fine ” वजे ही छुटी ले कर

े टे लीफून ककया तो न ि बोली, ” she just gave

ुन कर मेरी खश ु ी का कोई दठकाना नहीिं रहा, यह 12 मई 1968

ाथ समलने के

मय में मैं हस्पताल जा पहुिंचा। कुलविंत एक छोटे े कमरे में एक बैड पर लेटी हुई थी और पा में ही एक छोटी ी कौट में हमारी बबदटआ पडी थी। यों ही मैं भीतर आया कुलविंत का चेहरा खखल गगया और मैं

ोचती थी कक आप शायद बेटी का

मैंने कहा और कौट

ाथ ही रो पड़ी, कहने लगी, ”

ुन कर नहीिं आओगे “. यह ककया बोल रही हो ?

े बेबी को उठा सलया और उ

की ओर दे खने लगा। ककतनी र्पयारी थी,

दे ख दे ख कर प न ि हो रहा था मैं. कुलविंत के रोने का कारण मैं

मझ रहा था क्योंकक वोह

भी बहनें ही थी और उन के एक भाई भी हुआ था लेककन पैदा होने के बाद जल्दी ही इ दनु नआ े चले गगया था, भाई के सलए वोह ारी उम्र तर ती ही रही थीिं। एक और कारण भी था और वोह था ऐ े कई ककस् े हुए भी थे कक कुछ पुरर् बेटी का दे खने नहीिं आये थे, यह हमारे माज की ोच की एक लाहनत है ।

ुन कर ही हस्पताल

अब तो हस्पताल में माूँ को ज़्यादा दे र रखते ही नहीिं हैं, अवल तो उ ी ददन घर भेज दे ते हैं, नहीिं द ू रे ददन अवश्य ही भेज दे ते हैं लेककन उन ददनों कई कई ददन तक माूँ और बच्चे को


हस्पताल में रखते थे। कुलविंत के घर आने

े पहले मैंने एक रैम खरीदी जो दक ू ान में

े बैस्ट थी ( अब हम उ

बात को याद करके हूँ ते हैं ). यह रैम बहुत बड़ी थी और बाद में इ ी रैम को ले कर कुलविंत माककिट को जाया करती थी और ऊपर बेटी को ुला कर ननचे

ारी माककिट की शॉर्पिंग जज

में आलू प्याज़ के बैग और द ु री

को आती थी और हमारा घर एक मील की दरू ी पर होता था। इ

ब्जीआिं रख कर घर

रैम की फोटो कहीिं एल्बम

में है और जब कभी यह फोटो दे खते हैं तो खब ू हूँ ते हैं ( अब तो बहुत हलकी और प्लाजस्टक की होती हैं). जज ददन कुलविंत और बेबी ने घर आना था, मैंने रैम को खोल कर ऊपर का

ीट वाला दहस् ा कार की र्पछली

ीट पर रखा और बीच

हस्पताल जा पहुिंचा। कार पाकि में कार खड़ी की और नस ग ां वाडि में जा पहुिंचा। कुछ जररी कागज़ात तयार करने के बाद एक न ि बेबी को हाथों में सलए हमारे ाथ कार पाकि में आई और बेबी को कार ीट पर पडी रैम में सलटा ददया और हमें बाई बाई कह ददया। हम घर की ओर चलने लगे। जब घर आये तो गगयानी जी और ज विंत घर पर ही थे। गगयानी जी बहुत खश ु हुए और उ ी वक्त हमारी बेटी का नाम भी रख ददया। नाम रखा गगया हरकीरत कौर भमरा। यह नाम हमें भी बहुत अच्छा लगा था। अब हमारा ारा गधयान हमारी बबदटया की तरफ ही हो गगया था। यहािं भल ू ना जाऊिं गगयानी जी के ारे पररवार ने हमें इतना र्पयार ददया कक हम अभी तक समलते हैं।

ज विंत को उ

फैक्ट्री में काम समला नहीिं था यहािं इिंडडया जाने

े पहले काम छोड़ कर गगया

था। अब उ

को कौलकास्ट फाऊिंडरी में काम समला था जो बहुत भारी था, लेककन पै े भी अच्छे थे। एक ददन अचानक इिंडडया े गगयानी जी को टे लीग्राम आ गगया कक ज विंत की पत्नी बलबीरो इिंडडया

े आ रही थी और हीथ्रो एअरपोटि पर पहुूँचने वाली थी। मैं घर पर ही था और ज विंत को लेने उ की फाऊिंडरी में जा पहुिंचा और फाऊिंडरी के मैनेजर को जा कर

बताया कक मैं ज विंत को लेने आया था । मैनेजर ने मझ ु े कु ी पर बैठने के सलए बोला और खद ु ज विंत को लेने फाऊिंडरी के भीतर को चल पड़ा। पिंद्ािं समनट बाद ज विंत मेरे खड़ा था। उ

का। मैंने उ हिं

का मिंह ु फाऊिंडरी की काली राख

ामने

े इतना काला था कक मैं उ े पहचान ना

वक्त ही पहचाना जब वोह बोला, ” ककदािं गरु मेल, की खबर है ”. मैंने कुछ

कर कहा कक उ

कक इ

की पत्नी एअरपोटि पर पहुूँचने वाली थी। यहािं यह भी सलखना चाहूिंगा फाऊिंडरी को बुचड़ फाऊिंडरी भी कहते थे क्योंकक यहािं काम इतने भारी और गिंदे थे

कक कमज़ोर आदमी यहािं काम कर ही नहीिं अूँगरे ज़ था जो इिंडडया में फौज में था और इ ी सलए हमारे लोग उ

कता था और यहािं का मैनेजर भी बहुत ख्त ैकिंड वल्डि वार में उ की एक टािंग कट गई थी,

को लिंगा (LAME ) बोलते थे। ज विंत ने बोला कक वोह कपडे

बदल कर और मूँह ू हाथ धो कर वाप

आता है । कुछ दे र बाद ज विंत आ गगया और हम घर

आ गए। ज विंत उ ी वक्त ट्रे न ले कर लिंडन हीथ्रो को चल पड़ा। लिंडन उ थे जो दरू के ररश्ते

े ज विंत के भाई लगते थे। उ

के पा

के एक ररश्तेदार

गाड़ी थी और वोह दोनों


एअरपोटि पर जा पहुिंच।े ज विंत की पत्नी बलबीरो को लेकर वोह रात के बारह वजे हमारे घर आ गए। हम अभी जाग ही रहे थे कक ज विंत की पत्नी बलबीरो के आने

े घर में रौनक

ी हो गई।

बलबीरो काफी हिं मुख थी और आते ही ऐ े बातें कर रही थी, जै े वोह बहुत दे र े यहािं रह रही थी। अब कुलविंत को भी ाथ समल गगया था। बलबीरो के आने े एक नए अगधयाए का आगाज़ होने वाला था। एक ददन गगयानी जी ने मुझे बताया कक उन्होंने अपने

ारे पररवार

के सलए भी स्पॉन् रसशप भेज दी थी, यानी ज विंत के छोटे भाई कुलविंत स हिं , उ बहने बिं ो और नछिं दी और उ जज इ

की माूँ। कुछ ही महीनों में

की दो

ारा पररवार यानी ज विंत की माूँ

को हम भी बीबी कहने लगे थे, दो बहने और भाई आ गए। घर में रौनक हो गई थी। में मज़े की बात यह है कक मेरे इ

छोटे

खश ु हो गए थे। हमारी बेटी हरकीरत जज बलबीरो ही

े घर में इतने लोग हो गए थे कक हम बहुत को हम र्पिंकी कहने लगे थे, बीबी नछिं दी बिं ो

िंभालते थे। कुलविंत को कोई कफक्र ही नहीिं था। यह ऐ े था जै े र्पिंकी हमारी

नहीिं उन की थी। कभी कभी

ोचते हैं कक अब छोटे

े छोटे बच्चे को अपना इलग्ग कमरा

चादहए। इतने मैम्पबर होते हुए भी हमारे घर में कभी झगड़ा नहीिं हुआ था । इ र्पयार को ज़ाहर करने के सलए कोई अलफाज़ नहीिं हैं। यह कै ा र्पयार था कक ना तो हम उन के गाूँव में कभी गए, ना ही ही वोह हमारे गाूँव आये। वोह जाती के जट्ट और हम रामगदढ़ये, कफर भी नछिं दी बिं ो मुझे

गे भाई की तरह मानती हैं और उन के बच्चे जो अब र्ववाहत हैं हमें

मामा जी मामी जी कह कर बुलाते हैं। ब कते हैं।

चलता…

यह र्पछले जनम का ही कोई दह ाब ककताब कह


मेरी कहानी – 93

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन January 07, 2016

बहादर और हरसमिंदर (लड्डा ) दोनों भाई हमारी बेटी हरकीरत को दे खने आये उनके पा

भी गाड़ी दहलमैन इम्पप थी , इ सलए अब ब ों में

खत्म हो गगया था। मेरे शादी कराने

फर करने

थे. क्योंकक

का स लस ला

े या बेटी हो जाने के बाद भी हमारे समलने जुलने में

कोई कमी नहीिं आई थी, ऐ ा रेम था हमारा, यही वजह थी कक जब बहादर की पत्नी इिंडडया

े आई थी तो बहादर की पत्नी कमल और कुलविंत का रेम ऐ े हो गया था

जै े वोह एक द ू रे को पहले के चाचा जी

े ही जानती थीिं। मैं सलख चक् ु का हू​ूँ कक बहादर लड्डा और उन

रदार के र स हिं ने ninveh road handsworth पर घर ले सलया था जो

निंबर 155 में रहते थे। मैं और कुलविंत अपनी बबदटआ अक् र आ जाया को मैं ऐ ा नहीिं

को ले कर ninveh road उनके घर

करते थे और बाहर घूमने और कफल्म दे खने भी चले जाते थे। इन बातों

मझता कक उ

मय अकेले हम ही ऐ े थे बजल्क उ

मय

ब लोगों

में इतनी रेम भावना होती ही थी। कुछ दे र बाद जगदीश ने भी शादी करा ली थी और वोह भी अपनी पत्नी उतरा के

ाथ रह रहा था और उतरा भी हमारी पजत्नओिं के

गई थी जो अब तक जारी है । हमारी औरतें इिंडडया के

ाथ घुल समल

िंस्कार ले कर आईं थीिं। बहुत े लोगों ने उ वक्त अपने घरों में इिंडडया े आये हुए ककरायेदार रखे हुए होते थे और यह औरतें उनकी रोटी बनाकर दे ती थीिं। आज हमारी बहुओिं े या बेदटओिं े ऐ ी उम्पमीद करना

ही एक मज़ाक होगा। कई घरों में तो बहुत बहुत ककरायेदार रहते थे और उन की इलग्ग इलग्ग वक्त की सशफ्टें होती थीिं लेककन यह औरतें ब को खाना बनाकर दे दे ती थीिं। कोई मदि उनके रहते हुए अपना खाना खद ु बनाये यह औरतें हार ही नहीिं कती थीिं। यह मैंने ुना नहीिं बजल्क बहुत घरों में दे खा था । इ ी सलए मैं उन भी औरतों को अपना लाम

पेश करता हू​ूँ। कुछ अर ा बाद बहादर के एक नज़दीकी ताऊ जी के लड़के परमजीत और उ की पत्नी जागीरो भी बहादर के घर ही रहने लगे थे। इन दोनों भाईओिं और इन के चाचा जी ने परमजीत और जागीरो को अपनों की तरह घर में रखा था। बहादर और लड्डा जागीरो को अपनी

गी भाबी

े भी बड़ कर इज़त दे ते थे लेककन

ररश्तों में दरारें भी पड़ और जागीरो को दी है उ

मय के

मय जब वोह बेघर थे ,उनको

े छै महीने बाद ही मुझे एक रै गुलर किंडक्ट्रे स्

ड्राइवर को कुछ अर ा बाद रै गुलर किंडक्टर या किंडक्टरे समली वोह एक आयरश औरत थी जज

समल गई थी जो हर

समल जाया करते थे। यह ड्राइवर

किंडक्टर की पक्की जोड़ी बन जाती थी और यहािं भी जाना हो रै गुलर किंडक्ट्रे

ाथ कभी कभी इन

जाती हैं लेककन जो र्पयार मह ु ब्बत बहादर और लड्डे ने परमजीत

को स फि मैं ही जानता हू​ूँ। उ घर जै ा वातावरण दे ना कोई छोटी बात नहीिं थी। कुलविंत के इिंगलैंड आने

ाथ

इकठे ही जाते थे। मुझे जो

का नाम था irene russel (आइरीन

रस् ल ). आइरीन की दो लड़ककआिं थीिं। बड़ी लड़की ने हमारे

ाथ काम करने

वाले एक


पाककस्तानी लड़के

े शादी की हुई थी। इ पाककस्तानी को भी राजा कह कर बुलाते थे और यह आज़ाद कश्मीर े था लेककन राजा जब एक बेटे का बाप बना तो कुछ अर े बाद ही उ

को जबरदस्त हाटि अटै क हुआ था और वोह यह िं ार छोड़ गगया था ,आइरीन की बेटी ने इस्लाम धारण कर सलया था और मजस्जद जाने लगी थी । छोटी लड़की मौरीन मेरे एक दोस्त भुर्पनिंदर की दोस्त थी जो बहुत स्माटि था। यह लड़की उ े शादी कराना चाहती थी लेककन भूर्पिंदर का बड़ा भाई जो खद ु एक अूँगरे ज़ लड़की े शादी करवा चक् ु का था ,भर्ू पिंदर को जोर दे रहा था कक वोह इ

लड़की

कोई बहाना बना कर मौरीन

े शादी ना कराये और आखर में भर्ू पिंदर ने

े नाता तोड़ सलया था। मौरीन को मैं जानता था , वोह बहुत खब ू रू त और ददल की अच्छी लड़की थी। इ बात े आइरीन बहुत दख ु ी थी और मझ ु े कहती रहती थी कक अगर इ ने यह शादी नहीिं करानी थी तो इतनी दे र तक मौरीन के क्यों जाता रहा।

ाथ

भर्ू पिंदर ने भी इिंडडया जाकर र्ववाह कर सलया था और अपनी पत्नी को

इिंगलैंड ले आया था , उ के एक बेटा

और एक बेटी भी हुए थे ,उ की पत्नी का नाम न ु ीता था और वोह बहुत वर्ों बाद यह िं ार छोड़ गई थी। इ के बाद भूर्पिंदर इिंडडया जा

कर

ुनीता की छोटी बहन

सलखना पड़

े शादी करा कर ले आया था। (बड़े दुःु ख के

रहा है कक दो महीने हुए भूर्पिंदर भी यह

ाथ यह भी

िं ार छोड़ गगया है )

आइरीन हम दोनों को समलने हमारे घर आ जाया करती थी और हरकीरत के सलए बहुत कुछ ले कर आती थी। कभी कभी हम भी उनके घर जा आया करते थे जो र्वलनहाल रोड के पा

ओल्ड हीथ में कौं ल के नए बने मकानों में था। आइरीन का पनत तो ज़्यादा नहीिं

बोलता था क्योंकक वोह एक ऐल्कॉहॉसलक शख् उ

ही था जो हमेशा शराबी ही रहता था लेककन

की बेटीआिं हरकीरत के

ाथ बहुत खेलती रहती थीिं। ाल 1968 के बारे में मैं पहले मय जस्कन है ड का बहुत जोर था और वल् ु वरहै म्पपटन में एसशयन

सलख चक् ु का हू​ूँ कक उ लोगों पर काफी हमले हुए थे, इ सलए हमने भी अपना मकान ल े पर लगा ददया था। उ मय तक गगयानी जी का ारा पररवार मेरे घर में ही रहता था। अब गगयानी जी को भी कफक्र हो गगया था कक अब उन को भी कहीिं जाना पड़ कहने लगे ,” गरु मेल ! हम ने

जाएगा।

एक ददन गगयानी जी मझ ु े

ोचा है कक यह घर हमें ही दे दे ,ताकक हमें कहीिं जाना ना

पड़े और तुम भी इ ी तरह हमारे

ाथ रहते रहो “. 1450 पाउिं ड का हमारा

ौदा हो गगया

और हम ने मकान गगयानी जी को दे ददया। हम उ ी तरह रहने लगे और दो पाउिं ड हफ्ते का ककराया गगयानी जो को दे ने लगे। यह स लस ला ज़्यादा दे र तक नहीिं चला। इनोक पावल को टोरी पाटी

े ननकाल ददया गगया था और इ

होने लगे थे । एक गगया, जज

ाल बाद ही पा

में इिंडडयन ही रहते थे।

ककया कक क्यों ना हम इ इ

के बाद हालात धीरे धीरे कफर

वाला ही एक घर छोड़ कर घर निंबर 38

े पहले जै े ेल पर लग

ेल का बोडि लगने के बाद ही कुलविंत और मैंने मशवरा

घर को दे खें ,अगर अच्छा हो तो ले लें। एक ददन हम ने

घर का दरवाज़ा खटखटाया। एक औरत ने दरवाज़ा खोला जो बहुत कम बोला करती थी। उ ने हमें ारा घर ददखाया। घर में तीन बैड रम थे और ककचन भी बड़ी थी और इ


के

ाथ ही दे ी टाइप का गु लखाना बना हुआ था। 1650 पाउिं ड का हमारा ौदा हो गगया और दो महीने में ही हम इ नए घर में आ गए। कुछ महीने बाद ही कुलविंत कफर े गभिअवस्था में थी और एक और नए मेहमान का इिंतज़ार हो गगया था। उ

मय बाथ रम बहुत घरों में नहीिं होते थे। यह वल्डि वार फस्टि के ज़माने के बने हुए थे। अब धीरे धीरे बहुत े अिंग्रेज़ों ने बाथ रम बनवा सलए थे। जब हम इ घर में सशफ्ट

हुए तो काउिं ल ने एक स्कीम शुर कर दी। जज ने भी अपने घर में बाथ लगवाना हो , काउिं ल उ को आधे पै े ग्रािंट दे दे ती थी। बहुत े बबल्डर इ काम में लग गए थे। हम ने भी एक बबल्डर े कॉन्टै क्ट ककया और हमारे हमारे घर में बाथ बनाने के सलए 480 पाउिं ड का कॉन्ट्रै क्ट

ाइन हो गगया ,जज

में

े हम ने स फि 260 पाउिं ड ही दे ने थे , शेर् पै े

काउिं ल ने दे ने थे। काम शुर हो गगया और छै हफ़्तों में नया बाथ रम बन गगया और ही ककचन में नया प्लास्टर हो गगया था। इ

ाथ

े घर का हुसलआ ही बदल गगया था। ें ल बाथ को जाना नहीिं पड़ता था और रोज़ाना नहाना िंभव हो गगया था ट्र

अब हम को जज के हम

भी इिंडडयन बचपन

काम

े आदी थे। हमारा घर तो अब नया था लेककन ज़्यादा

वक्त कुलविंत गगयानी जी के घर ही गुजारती थी। बिं ो, नछिं दी, बीबी और बलबीरो हरकीरत को हर दम

अपने पा

ही रखती थी। उ को बहुत खश ु रखती थीिं। इतना र्पयार कक ी द ू रे के बच्चे को दे ना बहुत कम लोग दे कते हैं। हरकीरत , जज को हम र्पिंकी बोलने लगे थे ,गगयानी जी को बाबा जी कह कर बुलाती ,बिं ो को बाको कहती ,सशन्दी को नननी कहती। इतना समला र्पयार बच्चा कै े भूल

कता है ? अब र्पिंकी की अपनी बेटी भी 27 वर्ि की हो

गई है लेककन वोह अब भी उन ददनों को याद करती है और जब भी हमारे पा

आती है बिं ो

नछिं दी को समल कर जाती है । 18 मई 1969

को र्पिंकी के जनम

ाल बाद हमारी द ु री बेटी का जनम हुआ ,जो रौएल हस्पताल में पैदा हुई। मुझे कुलविंत के मन का पता था , इ सलए हस्पताल जाने े पहले मैंने कुलविंत के सलए

एक

H . SAMUAL

े एक

ोने का नैकले

खरीदा। जब मैं

हस्पताल के मैटरननटी वाडि में पहुिंचा तो दरू े ही कुलविंत का मुरझाया हुआ चेहरा दे खा, वोह आूँखें बिंद करके बैड में लेटी हुई थी और पा ही कौट में बेटी ो रही थी। मैंने पहले बेटी को दे खा जो बहुत ुन्दर लगी। इ के बाद मैंने कुलविंत की कलाई पकड़ी। मैं मुस्करा रहा था। कुलविंत भी मुस्कराई लेककन यह झूठी मुस्कराहट थी। मैंने जेब े नैकले का शानदार डडब्बा ननकाला और कुलविंत को पकड़ा ददया। उ ने खोला तो दे खते ही खुश हो गई। कफर

बोली “एक और बबदटआ आ गई “. मैंने कहा ,” मेरे सलए बेटा बेटी में कोई फरक नहीिं है “. कफर मैंने कौट

े बेटी को उठा सलया और उ

भी हिं ने लगी और ,”यह र्पिंकी

े ज़्यादा

की और दे खने और बातें करने लगा। कुलविंत

कहने लगी ,”मर जाूँणी ककतनी ोहणी है और इ

ोहणी बन कर आई है “. मैंने कहा हाूँ

का नाम मैं रीटा रखता हू​ूँ , हमारे

ाथ एक


अटै सलअन लड़की रीटा काम करती है जो बहुत न् ु दर है ,ब ऐ ा ही नाम इ का होना चादहए “. अब हमारे घर में दो नाम हो गए थे रीटा और र्पिंकी। जब मैं घर आया तो बिं ो नछिं दी और बीबी

भी उदा

थे। मुझे है रानी हुई कक यह ब ककया ओ रहा था। बीबी आूँखों में आिं ू सलए बोली ,” गुरमेल ! अगर बेटा हो जाता तो अच्छा था ,चलो भगवान की मज़ी के आगे हम ककया कर

कते हैं “. मैंने कहा ,” बीबी ! यह कै ी

बातें कर रहे हो , मुझे तो कोई फरक ही नहीिं है “. गगयानी जी भी आ गए और कहने लगे ,” तुम

ब का ददमाग खराब हो गगया है , भगवान ने जज

इ में ककया बड़ी बात है “. कुछ ददन बाद कुलविंत रीटा

को भेजना था भेज ददया ,

को ले कर घर आ गई। बिं ो नछिं दी

कुलविंत की मदद के सलए हमारे घर में ही अक् र रहतीिं। कुछ ददन बाद हमारी पड़ो न जो चाली

निंबर में रहती थी और जज

को हम चाली

वाली कहा करते थे ,हमारे घर में आ

गई और आूँखें भर कर बोली ” कुलविंत ! एक और पत्थर आ गगया , लड़का होता तो घर में खश ु ीआिं आ जातीिं ” . मुझे बहुत गुस् ा आया और मैंने उ औरत को कहा ,” बहन मैंने इ बेटी की परवररश करनी है और कर कता हू​ूँ , कक ी और को इ बात की कफक्र नहीिं होनी चादहए ” . कहना तो मैं बहुत कुछ चाहता था लेककन कह नहीिं का। इन बातों को दे ख कर मुझे इतना गुस् ा आता था कक मुझे मझ नहीिं आती थी कक ककया करूँ। बेटी हमारी थी और कफक्र लोगों को था ,यह मेरी राणी पर

मझ में नहीिं आता था कक क्यों !

े मेरे माता र्पता ने ऐ ा कुछ नहीिं सलखा था जज

लेककन यहािं लोग हमको हमददी ददखा रहे थे। इ

में

कक कुलविंत इन बातों को कै े ले रही थी क्योंकक उ

े लगता हो कक वोह उदा े ज़्यादा कष्ट इ

िंतुलन अ मान्य हो चक् ु का था। मुझे

लोग स्री को लक्ष्मी भरी ननगाह

रस्वती का दजाि

े क्यों दे खते

हैं। बचपन

कुलविंत की माूँ

मझ नहीिं आती थी कक जज

दे श के

दे ते हैं वोह अपने घर में पैदा हुई लड़की को नफरत े ही मैं बहुत भावुक र्वचारों का रहा हू​ूँ। हमारे

माज में जो हो रहा है ,इ े दे ख दे ख कर मुझे कक ी धमि

खखयाल में

बात का था

की तो खद ु की जज़िंदगी एक भाई को

दे खने के सलए तर ती रह गई थी और यही वजह थी कक ऐ ी ही बातों का ददमागी

थे

े भी लगाव नहीिं रहा था । मेरे

भी धमि स फि ककताबों ग्रिंथों और कमि कािंडों तक ही

ीमत

हैं, इन में कोई

च्चाई नहीिं है । धमि उतनी दे र तक ही है जजतनी दे र तक हम मिंददर मजस्जद गुरदआ ु रे या

गगरजे में होते हैं ,उन के बाहर आते ही हम कफर

े पहली हालत में आ जाते हैं। एक तरफ

तो हम कहते हैं कक जो भगवान करता है , ठीक करता है और द ु री तरह बेटी पैदा होते ही ददल बदल जाता है ,यह कोई नहीिं

ोचता कक औरत के ददल पर क्या बीतती है ।

लोग कुछ भी कहें ,बेदटओिं के आने

े हमारे घर की रौनक बहुत बढ़ गई थी। रीटा के आने के कुछ दे र बाद बहादर के घर भी इिंडडया में एक बेटी ने जनम सलया था जज का नाम रखा गगया था ककरण और अभी तक उ ाथ

को

ब ककन्नूँू कहकर ही बुलाते हैं । यह तीनों बेटीआिं

ाथ बड़ी हुई हैं। हफ्ता या दो हफ्ते बाद बहादर और हम

एक द ू रे के घर जाते ही


रहते थे और यह तीनों बेटीआिं एक

ाथ खेलती रहती थीिं। जब इन तीनों की पुरानी तस्वीरों

को दे खते हैं तो बहुत खश ि ी में पढ़ाई कर ु ी समलती है । अब तो ककरण का बेटा भी यूननव ट रहा है और बेटी ीननयर स्कूल में पड़ रही है लेककन हम को तो इन तीनों बेदटओिं में वोह बचपन ही ददखाई दे ता है । चलता…


मेरी कहानी – 94

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन January 11, 2016

पाकि लेन डडपो में आ कर मैं बहुत खश ु था और एक बात े और भी खश ु ी थी कक आइरीन जै ी मेट मझ ु को समल गई थी। अछे ाथी का होना भी ककस्मत की बात ही होती है । पहले है री बीवर ड्राइवर होता था तो मैं उ आइरीन मेरी किंडक्ट्रे

के

ाथ किंडक्टर होता था, अब मैं ड्राइवर था तो

थी। यूिं तो हम दरू दरू के रटों पर काम करने जाते रहते थे लेककन

हमारा पक्का रुट था underhill एररये

े warstone एररये को जाना। यह

एक घिंटे में पूरा हो जाता था लेककन हमें हर एक चक्कर के बाद बी सलए समल जाते थे। इ

वक्त में आइरीन के मुिंह

ारा एक चक्कर

समनट मस्ती करने के

े पहली बात जो ननकलती थी, mr.

bhamra cup of tea ? मैं बोलता yes आइरीन। वोह कैफे में जाती और दो कप चाय के ले कर मैस्

रम में आ जाती। यह मैस्

था जज को स्टै फोडि स्ट्रीट ऑकफ

रम ड्राइवरों किंडक्टरों और इिंस्पैक्टरों

बोलते थे। आइरीन के इ

टीहौसलक बना ददया था। द

े भरा रहता

कप ऑफ टी ने मुझे भी

बारह कप चाय के रोज़ाना पी जाता था और पीता भी बहुत गमि गमि था। एक आदत थी आइरीन की फ्रूट खाने की। अिंडरदहल े पहले स्कॉटलैंड आइलैंड के नज़दीक एक शॉर्पिंग में घु

ेंटर के नज़दीक हम ब

खड़ी कर लेते और आइरीन एक फ्रूट शॉप

जाती और कभी पीच कभी ऐपल और कभी कोई और फ्रूट ले आती। आधे मुझे दे

दे ती और आधे खद ु रख लेती। काम करते करते हम खाते रहते। पै े हम बाद में दह ाब कर लेते। आइरीन अब इ

दनु नआ में नहीिं है लेककन उन की यादें कभी कभी आ जाती हैं।

मेरी कहानी के एर्प ोड 92 में मैंने इनोक पावल की स्पीच rivers of blood के बारे में सलखा था जज

की वजह

े racial tension हमारे शहर में बहुत बढ़ गई थी लेककन इ ी दौरान 1969 में ही एक और धमाका हुआ। बहुत पहले मैंने यह भी सलखा था कक इिंग्लैण्ड में पगड़ी के

ाथ काम करने की बहुत फैजक्ट्रयों में इजाजत नहीिं थी। शायद ही कोई फैक्ट्री मासलक होगा जो पगड़ी की इजाजत दे ता था। ब ों में तो कम्पपनी की ओर े ड्रै कोड बने हुए थे कक हर एक को स्माटि यूननफामि के ाथ है ट पहननी जररी होगी। हमारे ाथ एक लड़का काम करता था, जज का नाम था तर ेम स हिं िंध।ू वोह तीन हफ्ते काम पर नहीिं

ने दाहड़ी रखी हुई थी और र पे पगड़ी भी रखी हुई थी। बुककिंग क्लकि ने उ ी वकत मैनेजर बटलर को टे लीफून कर ददया। बटलर एक बहुत ही ख्त आदमी था। वोह उ ी वक्त आ गया और तर ेम स हिं को कहा कक वोह शेव करके आये वरना उ आया। जब आया तो उ

को काम

े जवाब हो जाएगा। तर ेम वाप

express & star के ऑकफ के धमि में इ

बात

चले गया और पहले टाऊन के

ाम के अखबार

में गया और एक बयान ददया कक वोह एक स ख है और उ

र पे पगड़ी रखना लाज़मी है । वोह पगड़ी बाूँध कर काम करना चाहता है लेककन े उ

को मना ककया जा रहा है ।


कफर तर ेम एक स ख लीडर c . s . panchhi को समला जज ने जा कर टाऊन के ट्रािं पोटि डडपाटि मेंट के

ाथ मीदटिंग की, लेककन उन्होंने यह बात उ ी वक्त ठुकरा दी। पिंछी ने इ

बात को यहीिं खत्म नहीिं ककया बजल्क उ े

ने ट्रािं पोटि जैनरल वकिजि यूननयन (T G W U )

िंपकि ककया . यूननयन ने पगड़ी के हक्क में मोशन पेश कर ददया और वोह ट्रािं पोटि

कमेटी

े समले लेककन ट्रािं पोटि कमेटी ने उन की बात को भी ठुकरा ददया। वोह कहने लगे

कक उन का जस्ट्रक्ट ड्रै

कोड है , इ

को ना मानने वाले को काम पर रखा नहीिं जाएगा। अब

तक हर टाऊन में गरु दआ ु रे बन चक् ु के थे। गरु दआ ु रे के स ख लीडरों और लोकल इिंडडयन वकिरज़ ए ोस एशन ने इ पगड़ी की शर ु हो गई।

मदु हम को तेज कर ददया और बात अब स ख धमि

म्पबिंददत

आज इिंगलैंड में इतने शानदार गुरदआ ु रे बन गए हैं कक स ख हर जगह बेखौफ हो कर अपने त्योहार मना रहे हैं और

ड़कों पर जलू

ननकाल रहे हैं जजन में पािंच र्पयारे हाथों में

ककरपान सलए जा रहे होते हैं, यहािं तक कक बहुत बेधड़क हो कर ककरपान पहने रखती हैं लेककन इ और लोग इ

बात को भूल चक् ु के हैं। इ

थे, तब हमारी ही ट्रािं पोटि की गैरेज लोग

हमत भी नहीिं थे क्योंकक

ी स ख लड़ककआिं भी अमत ृ छक कर

ब के पीछे बहुत बड़ी जदोजहद रही है जदोजहद में हमारे लोगों को बहुत दुःु ख हने पड़े

े मुदहम शुर हुई थी तो इ के हक्क में हमारे ही बहुत भी डरते थे कक इनोक पावल की स्पीच े हालात तो पहले

ही बबगड़े हुए थे, इ पगड़ी के वाल े तो और भी बबगड़ जायेंगे। जब ी ए पिंछी और TGWU भी जोर लगा कर थक गए और ट्रािं पोटि कमेटी ने पगड़ी बाूँधने की इजाजत नहीिं दी थी तो वल् ु वरहै म्पपटन में ट्रािं पोटि कमेटी के खखलाफ मज ु ाहरे करने का फै ला सलया गगया। बात अब पासलिमेंट के में बरों तक पौहिं चाई गई। उ

वक्त के अकाली पाटी के रेजज़डेंट

ननकालने का

ोहन स हिं जौली ने 6000 स खों का शािंतमई जलू

िंकल्प ले सलया और यह भी ऐलान कर ददया कक वोह लोगों के

ामने अपने

आप को आग लगा कर मर जाएगा क्योंकक इिंगलैंड में स खों को धासमिक आज़ादी नहीिं दी गई थी। उ

ने यह ददन मुकरि र ककया, वै ाखी वाला ददन 13 अरैल 1969 . इिंग्लैण्ड के समडडया

में तरथल्ली मच गई। मीडीआ लोगों के र्वउ ले रहा था कक वोह इ ककया वोह

वाल पर

ोचते थे। ज़्यादा अूँगरे ज़ यह ही कहते थे कक उनको कोई फरक नहीिं पड़ता था, अगर ही काम कर रहे हों तो। वुल्वरहै म्पपटन के मेयर ने कहा की यह ब्लैक मेल है । उ

मय के इिंगलैंड में इिंडडयन हाई कसमश्नर शािंती मुलाकात की कक

रप ने डडपाटि मेंट औफ ट्रािं पोटि

ोहन स हिं जौली की मौत का इिंगलैंड और इिंडडया के

रभाव पड़ेगा। इिंडडया

िंबध िं ों पर बहुत बुरा े आये ददली गुरदआ ु रा रबिंधक कमेटी के जत्थेदार रदार िंतोख स हिं

ने इिंग्लैण्ड में आकर जगह जगह स्पीचें दीिं और कहा कक इ पर रभाव पड़ेगा। इ जो

पगड़ी के

े अिंग्रेज़ों के इिंडडया में इिंट्रेस्ट

मदु हम के खखलाफ भी हमारे कुछ लोग थे जै े dr. A K S AUJHLA

र ु ीम काउिं ल ऑफ स ख्

यक ू े

े ताउलक रखते थे, उ

का कहना था कक हमारे


खखलाफ नफरत की आग तो पहले ही भड़क चक् ु की थी, इ

ऐक्शन

े और भी ज़्यादा खराब

होगी।

इधर यह बातें हो रही थीिं तो उधर जस्कनहै डों ने बहुत परे शान कर रखा था और बस् वालों पर अटै क कर रहे थे। एक ददन तो हमारे लड़के भी हाककआिं ले कर कुइन स्ट्रीट में आ गए जज में ईवननिंग पेपर एक् रे

ऐिंड स्टार की रै

थी। द ु री तरफ जस्कनहे ड आ गए और बीच

में बहुत ी पुसल कुत्तों को ाथ सलए खड़ी थी। कभी ब ों वाले आगे होते कभी जस्कन है ड और एक् रे ऐिंड स्टार वाले हमारे लड़कों की फोटो ले रहे थे। हमारे कुछ लड़कों को पसु ल पकड़ कर ले गई और चाजि कर सलया क्योंकक उन के हाथों में हाककआिं थीिं और इ

को वे

उफैंस व वैपन बता रहे थे। द ू रे ददन अखबार में फ्रिंट पेज पर हाककआिं पकडे हुए हमारे लड़कों की फोटो थीिं। पुसल और रै हमारे खखलाफ थे। ब के भी मेम्पबरों ने पै े इकठे ककये और अपना वकील कर सलया और मुकदमे में 13 अरैल जज

ददन

भी लड़के ननदोर् स द्ध हुए।

ोहन स हिं जौली ने 6000 लोगों का मज ु ाहरा करना था और अपने

आप को आग के हवाले करना था, नज़दीक आ रहा था, जज गई थी। 8 अरैल को अचानक लिंदन

की वजह

े समननस्टर ऑफ एम्पप्लॉयमें ट mr. earnest

fernyhouse वुल्वरहै म्पपटन आ गगया और वुल्वरहै म्पपटन ट्रािं पोटि कमेटी बात

े दे श के र्वका

े स आ त गरमा े बात की कक इ

पर बुरा अ र पड़ेगा। द ू रे ददन 9 अरैल को कफर दो घिंटे बात चली

और पगड़ी की इजाजत दे ने का फै ला ले सलया गगया। यह स खों की बहुत बड़ी जीत थी। इ के बाद ही ोहन स हिं जौली ने रैज़ीडैं ी े अस्तीफा दे ददया कक वोह अब द ू रे शहरों में स खों के हक्कों के सलए लड़ेगा। इ

भी हमारे स ख भाई डरते शमािते और

जीत का इतनी जल्दी अ र नहीिं हुआ क्योंकक अभी िंकोच करते थे क्योंकक गोरे अक् र हमें टबिन है ड कह

कर बुलाते थे। एक एररये में urban district का बड़ा शरारत कुछ

ा बोडि लगा हुआ था। कक ी गोरे ने े यह टबिन डडजस्ट्रक्ट ददखाई दे ता था।

े अबिन के पहले T सलख ददया था जज

ालों बाद एक गरु बक्

रख सलया गगया। गरु बक्

स हिं नाम का स ख पगड़ी और लम्पबी दाहड़ी के स हिं तकरीबन चाली

शरीफ और पड़ा सलखा था। उ काम करती थी। गुरबक्

ाल का एक गरु स ख था और बहुत ही की पत्नी मेरी पत्नी कुलविंत के ाथ ड्रै मेककिंग फैक्ट्री में

स हिं को दे ख कर कुछ और लड़कों ने भी पगड़ीआिं रख लीिं। अब

पगड़ी नॉमिल होने लगी थी और मैनेजमें ट की तरफ लगीिं थी। कुछ तर ेम स हिं

ही बन गगया।

द ू रों के सलए

िंकोच खत्म हो गगया था।

जीतने के कुछ महीनों बाद ही काम छोड़ कर कक ी और शहर की

ट्रािं पोटि किंपनी में लग गगया था लेककन जाने इतहा

े हर एक को दो दो पगड़ीआिं समलने

ालों बाद मैंने भी पगड़ीआिं ले ली थीिं और शमि िंधु तो के

ाथ काम पर

े पहले एक ऐ ा काम कर गगया था जो

च्च ही है कक रास्ते बनाने वालों को कदठनाईआिं पेश आती हैं लेककन

फर आ ान हो जाता है . छै महीने हुए उ की एक इिंटरवीऊ टीवी पर ुनी थी, अब तो तर ेम भी हमारी तरह बूढ़ा हो गगया है लेककन वोह वोही वुल्वरहै म्पपटन की बातें


कर रहा था। मैं उ बातें ही हों। मेरी किंडक्ट्रे

को बहुत गधयान

ुन रहा था और लग रहा था जै े यह कल की

आइरीन रस् ल एक आनयरश औरत थी और वोह हमेशा कहती रहती थी कक

यह अूँगरे ज़ अच्छे नहीिं हैं, स खों को पगड़ी की इजाजत दे नी ही चादहए थी। कफर वोह आयरलैंड के बारे में बोलती कक इन अिंग्रेज़ों ने आयरलैंड को बहुत खराब ककया हुआ था और यह अूँगरे ज़ आनयरश लोगों को नफरत करते थे इ ी सलए तो उन की आई आर ए िंघठन इन लोगों के खखलाफ लड़ती थी। 9 अरैल को यह

ब खत्म हुआ तो कुछ चैन हुआ था । कुछ हफ्ते बाद ही 18 मई को हमारी बबदटआ रीटा नें जनम सलया था। यह ददन बहुत बुरे थे। हमारे लोगों की

िंखखया तो ददन-ब-ददन बढ़ रही थी लेककन

ाथ ही नफरत भी बढ़ रही

थी। मुझे याद नहीिं कक ी टाऊन में गोरों ने एक स ख लड़के को मार ददया था और कुछ गोरों ने कहा था “one down, a million go” यानी एक को मारा तो समसलयन यहािं

े भाग

जाएिंगे। गोरे लोगों के हम पर हमले कभी खत्म नहीिं हुए, यह अभी तक जारी हैं लेककन अब हमारे यहािं के पैदा हुए बच्चे भी गोरों े कम नहीिं हैं. बबदे में ककया ककया तकलीफें आती हैं, जब हम अपने दे श में आ कर बताते हैं, तो लोग

ुनना ही नहीिं चाहते। वोह तो ऐ े खआ ु ब

दे खते हैं कक उन्हें इिंगलैंड एक स्वगि ही ददखाई दे ता है , यही वजह है कक आसमर घरों के लड़के लड़ककआिं बाहर आने को तर हमारे

ाथ भारा गिंदा काम कर रहा था। हमारी औरतें जो गाूँवों में मेहतर औरतों

की जगह फखर

ाफ करवाया करती थी, आज खद ु एयरपोटों पर टॉयलेट

े पशुओिं

ाफ कर रही हैं और

े कहती हैं, ” बहन जी मैं एअरपोटि पे काम करती हू​ूँ “. फखर भी क्यों ना करें , पाउिं ड

जो समलते हैं। चलता…

रहे हैं जै े मैंने एक दफा बताया था कक एक थानेदार


मेरी कहानी – 95

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन January 14, 2016

दोनों बेटीआिं धीरे धीरे बड़ी होने लगीिं। कुलविंत भी अब धैनोवाली को भल ू ने लगी क्योंकक

ारा

गधयान तो बच्चों में हर दम रहता था। बच्चों को क्लीननक ले के जाना , उनकी खरु ाक का खखयाल रखना और हर रोज़ ददन में कई दफा नई नई फ्राकें पहनाना, ब ददन बीत जाता था। जब मैं काम के आता, कभी चॉकलेट कभी कक्रप्

में ही

ारा

े आता, कुछ ना कुछ दोनों बेदटओिं के सलए खाने को ले (इिंडडया में गचप् ) ले के आता। दोनों बेटीआिं मेरी ओर

भागी आतीिं। जजतना र्पयार मुझे बेदटओिं

े समला मैं सलख नहीिं

कता। दोनों के

र के बाल

घुिंगराले होते थे , कुलविंत बनाती ही इ

तरह थी कक यह बहुत ुन्दर लगती थी। बहादर और लड्डा जब आते तो वोह भी बहुत र्पयार दे ते। लड्डा तो इतना र्पयार करता था कक अपने दोस्तों

े भी बताता रहता कक बच्चे दे खने हों तो गुरमेल के दे खो। उ

ने एक छोटा

ा लाल रिं ग का कीबोडि भी बच्चों को ले के ददया था जो अब भी एक फोटो में है ,जज

लड्डे की याद ताज़ा हो जाती है । कुछ

मय बाद बहादर की अधा​ांगगनी कमल भी बेटी ककरण के

ाथ आ गई। जब ककरण को

हम ने पहली दफा दे खा तो हम हिं ने लगे कक क्या यह बहादर की बेटी ही थी क्योंकक वोह इतनी दब ु ली पतली थी कक लगता ही नहीिं था की वोह बहादर की बेटी थी। लेककन कुछ ही महीनों में उ ही थी। उ

का शरीर भर गगया था और अब लगने लगा कक वोह वाकई बहादर की बेटी

के बाल कटवा ददए गए थे और अब वोह मेम लगने लगी थी। दे ख कर मुझे

बचपन का बहादर का चेहरा ददखाई दे ने लगता क्योंकक बचपन में बहादर भी शरीर का बहुत सलम होता था। कुछ हफ़्तों बाद हम समलते ही रहते थे और कभी कभी इकठे ही स ननमा दे खने जाते। इधर कुलविंत की बुआ फुफड़ जी कभी कभी हमारे घर आ जाते। बुआ के तीन बच्चे थे दो लड़के जजन्दी और ननिंदी और एक बेटी

ुररिंदर। हमारे बच्चों

े कुछ बड़े थे

लेककन रीटा र्पिंकी को बहुत र्पयार दे ते थे। जब भी कभी हम बुआ फुफड़ को समलने जाने की बात करते ,बच्चे उछलने कूदने लगते। एक और घर था यहािं हम बहुत जाया करते थे ,यह घर बसमांघम में था। इ का भी छोटा ा इतहा सलखना चाहूिंगा। कुछ पहले मैं सलख चक् ु का हू​ूँ कक जब मैं धैनोवाली पहली दफा कुलविंत के घर गगया था तो अचानक कुलविंत के मामा जी भोजोवाल वाले आ गए थे। इ कुछ दे र बाद ही हमारी शादी हो गई थी। शादी के दो हफ्ते बाद ही कुलविंत के कक ी

के

ररश्तेदार की शादी थी और बरात को फगवाडे. जाना था। शादी रामगढ़या कालज के नज़दीक तनाम पुरे रे लवे फाटक के नज़दीक ही थी । उ

ददन कुलविंत बहुत खब ू ूरत ड्रै और शादी की चड़ ु ीआिं पहने हुए बहुत ही चहकती हुई नज़र आ रही थी। तभी एक लड़की हमारी ओर आ गई जो बहुत गोरी ,भोली भाली और कुछ कुछ शमािकुल थी। उ

ने आते ही हमें


त स री अकाल बोला। कुलविंत मुझे कहने लगी ,” यह मेरे उ ी मामा जी की बेटी है जो ददन अचानक आ गए थे जब तुम पहली दफा मुझे समलने हमारे घर आये थे। इ

शादी भी इिंगलैंड के ही एक लड़के े समलने जाया करें गे”. इ इिंगलैंड आ गई थी।

की

े हो रही है और यह भी इिंगलैंड आ जायेगी और हम इ

लड़की का नाम बलबीर था और कुछ महीनों बाद ही बलबीर भी

मुझे याद नहीिं ककतनी दे र बाद बलबीर इिंगलैंड आई लेककन जब ही हमें पता चला कक बलबीर

बसमांघम आ गई है तो हम उ े समलने के सलए उन के घर जा पहुिंच।े बलबीर के पनत गुरमुख स हिं बहुत ही हिं मुख हैं। जब की बात मैं कर रहा हू​ूँ गुरमुख और उन के माता र्पता बहन भाई

ब एक ही घर में run corn road moseley में रहते थे। गरु मुख के र्पता जी इतने

पड़े सलखे तो नहीिं थे लेककन कर्वता बहुत अच्छी सलखते थे। जब वोह अपनी कर्वता मुझे ुनाते तो मैं बहुत वाह वाह दे ता था। शायद इतनी वाह वाह उन्हें और कक ी े नहीिं समलती थी ,इ

सलए जब भी हम जाते वे मुझे अपनी नई कर्वता

ुनाने लगते। गुरमुख और

बलबीर कभी हम को समलने आ जाते और रात हमारे घर रहते और कभी हम उन के घर चले जाते। हमारे घर का एक कमरा उन के सलए ररज़वि ही होता था। कुछ दे र बाद बलबीर

के भी बेटी हुई थी जज को जब हम दे खने गए थे तो एक फोटो बलबीर की बबदटया अजजिंदर को अपने हाथों में सलए मैंने खखचवाई थी जो अब भी कहीिं घर में होगी। बाद में तो बलबीर की दो और बहनों की शादी भी यहािं ही हुई थी और हम भी उन की शादीओिं में शामल हुए थे। अब तो भी बहने हमारी तरह पोते पोनतओिं वाले हो गए है लेककन अब हम खा मारोहों पर ही समल पाते हैं। जजतनी कदठन जज़िंदगी उ जल ु ना ही हम को

काम में मशवरा इन

वक्त थी ,यह

ख ु ी करता था। बलबीर का तो कुलविंत के

ब का समलना

ाथ इतना लगाव है कक हर

े ही लेती है ।

वै े तो और लोगों

े भी हमारा बहुत रेम था लेककन बहादर ,भुआ फुफड़ और बलबीर गुरमुख ,इन तीन घरों े तो इतना समलते थे कक हमारा कोई शननवार और रर्ववार खाली नहीिं होता था। और गगयानी जी की फैसमली के

ाथ तो ऐ े था जै े

भी एक घर के ही

दस्य हों। मेरी काम की सशफ्टें ही ऐ ी होती थी कक गगयानी जी के रहती थीिं ,कभी स आ त कभी धमि कभी इिंगलैंड के उ

ाथ बहुत बातें होती वकत के हालातों पर। गगयानी जी

हमेशा यही कहते रहते थे कक इिंगलैंड के हालत अच्छे नहीिं रहें गे और एक ददन हम को यहािं े जाना पड़ेगा। जब हम

भी मेरे ही घर में रहा करते थे तो गगयानी जी

े अपने काम

करवाने के सलए बहुत लोग आते जाते रहते थे। कुलविंत और ज विंत की पत्नी बलबीरो ारा ददन ककचन में चाय ही बनाती रहती थी। जब मैं और गगयानी जी अकेले होते तो मैं बहुत वाल पछ ू ता ,खा कर धमि के बारे में । एक दफा तो गगयानी जी मुझ

े कुछ खफा भी हो गए जब बात रब है या नहीिं है पर आ

गई। मैं उन को कह बैठा ,” गगयानी जी अगर रब है तो रब को कक

ने बनाया ?”. गगयानी


जी उ

ददन मुझ

े कुछ खफा हो गए और कहने लगे ,” गुरमेल! अभी तू इतना ही जान ले

कक तेरे माता र्पता के मेल कफर तू धीरे धीरे

े एक छोटे

े बबिंद ू

े तू कै े इतना बड़ा आदमी बन गगया ,

मझ जाएगा “. मैंने गगयानी जी को

ौरी बोला लेककन गगयानी जी ऐ ी

बातें करना प िंद भी करते थे। उन का कहना था कक अपनी ही बात को कक ी पर ठूिं ते रहना भी ठीक नहीिं है . भगवान को मानना ना मानना हर कक ी की अपनी ोचने

े ही गगयान बढ़ता है । जो इिं ान हमेशा अपने धमि को ही

ोच है और

ही स द्ध करने की

कोसशश में रहता है वोह गलत है । एक आदमी ने ग्रन्थ ज़्यादा पड़े हुए है और वोह उन ग्रिंथों का हवाला दे कर द ू रे को नीचा ददखाने की कोसशश करता है , वोह ही नहीिं हो कता। यही तो धमों की लड़ाई है ,वोह कहते। कोई दहन्द ू स ख मजस्जद में जाने मु लमान मिंददर गरु दआ ु रे की तरफ दे खना नहीिं चाहता और यह र्वशवा

रखते हैं। ज विंत को इन बातों

े डरता है ,कोई

भी लोग भगवान पर

े कोई मतलब नहीिं होता था ,वोह कई दफा कह

दे ता ,” ओए छडो भी हुिंण इहनािं गल्लािं नू “. हम हिं पड़ते। ज विंत को तो एक बात में ही ददलचस्पी होती थी कक ककतने वजे पब्ब को जाना था। ददन को तो हम गगयानी जी के घर ही रहते थे लेककन रात को तो हम अकेले ही होते थे या जब कोई हमारा मेहमान आ जाए तो हम अपने घर में ही बबज़ी रहते थे। बहादर की पत्नी कमल के आने समलने आये। उ

े कुछ

मय पहले एक दफा बहादर और उ

का भाई हरसमिंदर लड्डा हमें

वक्त यह आम ररवाज़ ही होता था कक पुरर् पब्ब को चले जाते थे और

औरतें उन के सलए खाना तैयार करती थी। पब्ब

े आ कर पुरर् बातें करते रहते और औरतें

उन के सलए टे बल पर खाने की पलेटें ले कर आती। हम गगआरा वजे पब्ब

े आये और

टे बल पर बैठ कर बातें करने लगे। कुलविंत खाना लाने लगी। हम ने मज़े

े खाना खाया।

कुछ दे र बाद बहादर और लड्डा जाने के सलए तयार हो गए। उ

रात ठिं ड बहुत थी और फ्रौस्ट पड़ रही थी। बहादर कहने लगा ,” गरु मेल तम ु यहीिं बैठो ,बाहर ठिं ड बहुत है ,हम दरवाज़ा बिंद कर दें गे “. वोह उठ कर चले गए और हम भी

ोने के सलए बैड रम में चले

गए। अभी

ोने की तयारी कर ही रहे थे कक दरवाज़े पर बैल हुई। है रान हुआ मैं नीचे आया और दरवाज़ा खोला तो दे खा बहादर और लड्डा बाहर खड़े थे। लड्डा बोला ,” ओ यार हमारी तो कार की चाबी जो घर की और चाबबओिं के गुच्छे में थी,

ड़क के गटर में गगर गई है ,ककया

करें “. मैं कोट पहन कर बाहर आया तो दे खा कक गटर का ढक्क्न तो बहुत भारी लोहे का था और घरों का गिंद रोड लैम्पप की रौशनी में चमकता ददखाई दे रहा था। मैं भीतर गगया और एक लोहे की बड़ी जोर

ी बार ले आया। इ

लोहे की बार को हम ने ढक्क्न में घु ाया और

े उठाया। ढक्क्न कुछ ऊपर उठा और बहादर और लड्डे ने जोर

तरफ रख ददया। अब

े उठाया और एक

वाल पैदा होता था कक चाबबओिं का गच् ु छा कै े ढूिंढें। लड्डा जमीन पर

लेट गगया और अपना हाथ गटर में डाला ,लेककन गटर बहुत गहरा था और नीचे कीचड़ में


हाथ पहुूँचता नहीिं था। ब ने कोसशश की लेककन कुछ बन नहीिं पाया। कफर हम ने एक स्कीम बनाई कक हम लड्डे की टाूँगे पकड़ कर रखें और लड्डा दरू नीचे तक हाथ डाले। हम ने ऐ े ही ककया। जब लड्डा आधा नीचे गगया तो उ

का हाथ गटर की तह तक चले गगया

और वोह अपना हाथ गटर में हर तरफ चलाने लगा लेककन चाबी का कोई पता नहीिं चलता था क्योंकक कीचड़ ही इतना था कक चाबी हाथ लगती ही नहीिं थी। लड्डा थक गगया और बाहर आने को कहा। हम ने टािंगें खीिंची और लड्डा बाहर आ गगया। उ

रात ठिं ड भी इतनी

थी कक हम फ्रीज़ हो गए थे। कफर हम ने

स्टे शन जाएूँ ,शायद

ोचा कक क्यों ना हम पसु ल

वोह फायर बब्गेड वालों को बल ु ा कर हमारी मदद कर दें । मैं और बहादर पसु ल

स्टे शन की

ओर चल पड़े।

अभी कुछ दरू ही गए थे कक लड्डे ने जोर

े आवाज़ दी ,” ओए मुड़ आओ , समल गई “.

हमारे जाने के बाद लड्डा कफर लेट कर गटर में हाथ मारने लगा था। जब हम आये तो लड्डे ने बताया कक जब उ

ने एक कौनिर में हाथ चलाया तो चाबबओिं का गुच्छा उ

आ गगया । हमारी खश ु ी का कोई दठकाना नहीिं था क्योंकक था। हम भीतर आ गए। पहले लड्डे ने अपनी कलाई खब ू लगा ददया था और चाय बनाने लगी थी।

ुबह को

ाबुन

के हाथ में

भी ने काम पर जाना

े धोई। कुलविंत ने हीटर

दी के कारण हमारा बुरा हाल हो गगया था और

लड्डे की तो कलाई लाल रिं ग की हो गई थी। दो दो कप हम ने चाय के र्पए लेककन हम

बहुत हूँ े और रात के एक वजे तक बातें करते रहे । लड्डा हिं ने लगा कक अब कभी भी इ गटर के नज़दीक गाड़ी खड़ी नहीिं करें गे। इ के बाद जब भी हम को समलने आते गाड़ी दरू

खड़ी करते और आते ही कहते, “भई हम ने गाड़ी उधर ही खड़ी कर दी है “. लड्डा तो अब इ

दन ु ीआिं में है नहीिं लेककन कभी कभी जब मैं और बहादर वोह बात याद करते हैं तो लड्डे

की याद आ जाती है ।

लड्डे की बहुत खा ीहतें होती थीिं। वोह बहुत तगड़ा जवान होता था। कभी कोई गोरा काला अकड़ने लगे तो उन के ाथ लोहा लेने के सलए झट े तैय्यार हो जाता था। लेककन ददल का ठिं डा भी इतना था कक छोटी मोटी बात हो तो उ

को कभी गुस् ा नहीिं आता था और

मुस्कराता रहता था और लोगों की मदद भी कर दे ता था , कुछ दे र बाद लड्डा वैस्ब्ॉमर्वच की ब

गैरेज में ब

ड्राइवर लग गगया था। कफर वोह अचानक हमेशा के सलए इिंडडया चले

गगया था और क्योंकक उन की घर की जमीिंन बहुत थी ,इ सलए वोह खेती करने लग गगया था। हम कभी ोच ही नहीिं कते थे कक लड्डा कभी इिंडडया वाप जाएगा क्योंकक लड्डा इतना

माटि ली ड्रैस्ड होता था कक लगता ही नहीिं था कक वोह कभी वाप

जाएगा, खेती

करना तो बात ही दरू की थी। लड्डा और बहादर तो भाई थे और उनका र्पयार तो था ही लेककन जब 1973 में मैं र्पताजी की मत्ृ यु के

मय गाूँव गगया था तो हमारा वोह समलन तो

मेरी यादों के एक गहने की तरह है जजन के बारे में वक्त आने पर जरर सलखग िंू ा क्योंकक


यही मेरी लड्डे को

ही श्रद्धािंजसल होगी। इतनी युवा अवस्था में उ का हम

हमारे सलए एक दख ु ािंत है । चलता…

े जुदा होना


मेरी कहानी – 96

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन January 18, 2016

1969 तक जजतनी ब ें थीिं , ब वल् ु वरहै म्पपटन कॉपोरे शन ही चलाती थी। इ ी तरह बहुत े शहरों में लोकल काऊिं लज़ ही ब ें चलाती थीिं। 1 अक्तब ू र 1969 े एक नई ऑगेनाइज़ेशन बना दी गई जज

का नाम रखा गगया west midlands passenger transport executive

और मुख़्त र तौर पर इ कॉवेंट्री और नज़दीक के

को कहते थे WMPTE . इ

िंस्था का दायरा बसमांघम वाल ाल

भी इलाकों तक हो गगया था । इन

भी गैरजों की ब ें तकरीबन

2500 हो गईं। मैनेजर बटलर ररटायर हो गगया था । हर गैरेज में नए मैनज े र आ गए , ारा स स्टम धीरे धीरे बदलने लगा। समननस्टरी ऑफ ट्रािं पोटि की तरफ गए।

े नए नए कानून बन

जब कक पहले काम करने की सशफ्टें बहुत बड़ी होती थीिं और उन में कोई ब्ेक भी नहीिं होती थी। जब कभी हम को द पिंदरा समनट समलते तो हम भाग कर कैं टीन में जाते और जल्दी जल्दी

डैं र्वच और चाय ले लेते थे और जल्दी जल्दी खा कर कफर काम शर ु कर दे ते थे।

अब नया कानन ू बन गगया जज थी और यह ब्ेक अक् र चाली

े मैनेजमें ट को कमज़कम आधा घिंटा ब्ेक जरर दे नी होती

या पैंताली

समनट की भी हो जाती थी। पहले कक ी ने

ओवर टाइम करना हो तो जजतने घिंटे मज़ी लगातार कर

कते थे लेककन अब

बाद मैनेजमें ट को आधे घिंटे की ब्ेक दे नी ही पड़ती थी और एक ददन में टोटल ही काम कर इन कानूनों

ाढ़े पािंच घिंटे ाढ़े द

घिंटे

कते थे। े हमें बहुत ुख हो गगया था । ड्यूटीज इतनी अच्छी हो गईं कक हमें हर घिंटे ा स्पेअर टाइम समल जाता था जज में हम स्टीयररिंग वील की ीट पर बैठे बैठे

बाद बहुत कुछ ना कुछ पड़ते रहते। बहुत े ड्राइवर किंडक्टरों को लाएब्ेरी जाने की आदत पढ़ गई थी ,लाएब्ेरी जाते और तीन चार ककताबें ले आते क्योंकक टाऊन की ेंट्रल लाएब्ेरी बबलकुल नज़दीक ही थी। हमारी यू​ूँननफामि के कोट की जेबों बड़ी बड़ी होती थी। ककताबें जेब में डाल लेते और स्पेअर टाइम में पड़ते रहते। शाम को खत्म करके क्लब्ब में चले जाते। उ

वक्त

हमारी दो क्लब्बें होती थीिं ,पाकि लेंन की और क्लीवलैंड रोड की जो ऑक् फोडि स्ट्रीट में होती थी । दोनों क्लब्बें शाम को ब थे ,इ

स्टाफ

े भरी होती थीिं जज

में इिंस्पैक्टर मैनेजर

भी होते

में बहुत रौनक होती थी।

यह वोह

मय था जब बीअर पी कर ब

चलाने पर कोई पाबिंदी नहीिं होती थी। काम के

दौरान भी जब कभी कुछ वक्त समलता ड्राइवर किंन्डक्टर दोनों पब्ब में चले जाते और एक एक ग्ला कर ब

बीअर पी कर कफर काम करने लगते। धीरे धीरे कानून बन गगया कक बबयर पी

चला नहीिं

कते थे। इ

सलए अब स फि काम के बाद ही पी

कते थे लेककन कई

ड्राइवर कफर भी चोरी चोरी पब्ब में चले जाते और बहुत दफा पकडे भी जाते और उन को


काम

े छुटी भी हो जाती थी ,इ ी वजह

े बहुत ड्राइवर काम े हाथ भी धो बैठे थे। काम के बाद क्लब्ब में बहुत चहल पहल होती थी ,कोई स्नक ू र खेलता ,कोई डाटि खेलता ,कोई ताश और कोई डौसमनोज़। बबयर के काउिं टर पर तरह तरह की बीअर के पम्पप लगे हुए होते थे और लड़ककआिं यह

वि करती थीिं।

मय था जज

वक्त धीरे धीरे काम करने के घिंटे बहुत कम हो गए थे , लेककन मज़े की बात यह थी कक हम ात घिंटे काम करते तो तब भी हमें पेमेंट आठ घिंटे की होती थी ,छै घिंटे काम करते तो तब भी आठ घिंटे की पेमेंट होती थी। रर्ववार के ददन तो कभी कभी ऐ ा भी होता था कक हम चार पािंच घिंटे ही काम करते थे लेककन पेमेंट आठ घिंटे की ही होती थी। मैनेजमें ट को भी शायद इतनी परवाह नहीिं थी क्यों कक मैनेजमें ट को हर समसलयन पाउिं ड की था तो इ

जब् डी समल जाती थी। अगर मैं कहू​ूँ यह

ाल कई

मय हमारा गोल्डन एज ही

में कोई अत्कगथनी नहीिं होगी।

अपनी कहानी आगे ले जाने

े पहले मैं ब

र्वि

की यह मक् ु त र दहस्टरी खत्म करना

चाहूिंगा। यह स लस ला तब खत्म हुआ जब हकूमत ने अक्तब र्वि को ू र 1986 में ब deregulate कर ददया। इ के बाद कोई भी किंपनी ब चला कती थी। बहुत ी किंपनीआिं आ गईं और एक द ू रे

े कम्पपीटीशन शुर हो गगया। जजतने हम ने मज़े ककये थे उतना ही

काम बड़ गगया। डीरै गुलेशन

े कुछ ददन पहले हमें हर ब

आइज़ैक की ररकाडि की हुई कै ेट घर भेजी गई ,जज में उ गगया है , हम ने द ु री कम्पपननओिं े किंपीट करना है ,ज़रा बबज़ने

हो तो तुम ककया करोगे , द ु री किंपनी की ब

तुम ककया मेह ू

बबािद हो जाए ?”.

मैंन को मैनेजजिंग डायरे क्टर ने कहा था ,” अब

मय बदल

ोचो ,अगर यह तुम्पहारा अपना

अगर तुम्पहारे पै ेंजर ले जाए तो

करोगे ,ककया तुम घाटे में जाना प िंद करोगे ,चाहोगे कक तुम्पहारा बबज़ने

यह कै ेट आधे घिंटे की थी। यह टे प हम ने लगा जब ब ों की नई शैड्यल ू

न ु तो ली थी लेककन इ

का पता हमें तब

ामने आई। यहािं हम को कक ी रुट पर जाने के सलए आधा

घिंटा समलता था ,अब स फि बारह तेरह समनट ही समलते थे । हम ब

को तेज चलाते ,एक

ैकिंड भी वेस्ट ना करते कफर भी हम लेट पहुूँचते। टॉयलेट जाना होता तो भागते जाते और भागते आते। हर दम टें शन रहती। अब ककताबें पड़ना तो दरू की बात ही थी । यह भी बताना चाहूिंगा कक आइज़ैक एक जीऊज़ था और की ट्रािं पोटि को भी ऑगेनाइज ककया था।

ुना था कक उ

ने इिंडडया के कलकत्ता शहर

भी ड्राइवर बहुत दख ु ी हो गए थे क्योंकक हम भाग भाग कर तिंग आ जाते ,पै ेंजर हमें गासलआिं दे ते। इतने वर्ों तक ड्राइर्विंग करते करते हम एक् पटि तो बहुत थे लेककन कफर भी कभी कभी तेज़ चलाते हुए ब्ेक लगाते तो कई दफा लोग गगर जाते ,चोटें लगतीिं और हमें मैनेजर के आगे पेश होना पड़ता ,हमें वाननांग हो जाती। एक बात और हो गई थी कक भी


रुट इ

तरह समक्

कर ददए गए थे कक

ारा ददन एक रुट

े द ू रे रुट को ,कफर ती रे रुट

को , ारा ददन ऐ े ही चलता था। पहले पहल तो ऐ ा था कक ड्राइवर भूले भटकते कफरते ,रास्ता भूल जाते और लोगों और ड्राइवर के

ारी कम्पपनी EMPLOYEE BUY OUT हो गई यानी यह कम्पपनी

ड्राइवरों और अन्य काम करने वालों ने खरीद ली। अब यह कम्पपनी हमारी अपनी

हो गई जज के डायरे क्टर इ

को मैनेज करते थे। अब इ

TRAVEL हो गगया। कुछ दे र बाद ही इ ददया गगया और इ

भी आप

का नाम WEST MIDLANDS

कम्पपनी को लिंदन स्टॉक एक्चें ज में फ्लोट कर

के दो दो हज़ार शेयर

पाउिं ड ही बनती थी। हम थे जज

ओर जाना था। लोग मदद भी कर दे ते थे

ाथ खड़े हो कर रास्ता बताते रहते।

1991 में आ कर यह ारे ब

े पूछते कक कक

भी को ददए गए लेककन उन की कीमत स फि दो

में हूँ ते रहते कक हम अब कम्पपनी के मालक बन गए

में हमारा दहस् ा दो पाउिं ड का था। लेककन यह कोई नहीिं जानता था कक इन शेयरों

की कीमत इतनी बढ़ जायेगी कक

भी ड्राइवर अपना

शेयरों की कीमत बढ़ने लगी और हर

ख्त काम भूल जाएिंगे। जल्दी ही इन

ाल नए फ्री शेयर भी समलने लगे।

इन शेयरों के इतने पै े हो गए कक कई ड्राइवरों ने नई गाडड़यािं ले लीिं लककन जजन लोगों ने शेयर

िंभाल कर रखे उन्होंने बाद में अच्छे घर ले सलए। अब काम का बोझ

, इ सलए

भी जी जान

े काम करते थे और द ु री ब

कम्पपननओिं के

ताता नहीिं था

ाथ किंपीट करते थे

,भाग भाग कर द ु री कम्पपनी ब

के आगे जाते। उ

खरीद सलया और कुछ दे र बाद इ

का नाम भी बदल कर ट्रै वल वैस्ट समडलैंडज़ रख ददया।

होती थी ,जज

का नाम था नैशनल एक् रे

यह कम्पपनी द ू रे दे शों में भी ब बहुत

मय इिंग्लैण्ड में एक कोच कम्पपनी

सलसमटे ड ,इ

कम्पपनी ने हमरी कम्पपनी को

किंपनीआिं खरीदने लगी और स्पेन हॉलैंड नॉथि अमरीका में

े रुट खरीद सलए और कफर रे ल गाडड़यािं भी चलाने लगे।

मझ ु े नाम याद नहीिं लेककन अब नैशनल एक् रे

स्पेन की ब

कम्पपनी में मजि हो गई है

और यह बहुत बड़ी कम्पपनी है , यह तो है ब ों का छोटा ा इतहा । ाल 2000 में हम इिंडडया गए थे और आते ही मेरी स हत ने जवाब दे ददया। इ के छै महीने बाद ही मझ ु े मेडडकल ग्राउिं ड पर अरली ररटायरमें ट दे दी गई ,जज तरफ

े मझ ु े बहुत फायदा हुआ। कम्पपनी की े हर हफ्ते इतनी पें शन समल जाती थी कक आराम े गुज़ारा हो जाता था। ारी

जज़िंदगी काम में गुज़र गई थी ,अब लगने लगा कक हम वालाएत में रहते हैं।

अब मन में यह ही था कक ररटायरमें ट का लुतफ उठाया जाए ,बहुत े दे श घूमे जाएूँ लेककन र्वधाता को कुछ और ही मिंज़ूर था। कुछ दे श दे खे और मज़े ककये लेककन जब दो हफ्ते के सलए गोआ हॉसलडे गए , बहुत ही मज़े ककये लेककन दो तीन ददन वाप आने े पहले ही अिंजना बीच पर मुन्दर की लहर ने खीिंच सलया , एक पल तो ऐ ा लगा कक अब मेरा आखरी वक्त आ गगया था लेककन एक लहर ने मझ ु े बीच पर जोर

े पटक ददया ,काफी चोटें


लगीिं। ब

ददन

े मेरी जज़िंदगी का ग्राफ ददनबददन नीचे की ओर जा रहा है । इ

के बाद

ककया हुआ ,यह एक लम्पबी कहानी है . इ ब

एर्प ोड में मैंने मुक्त र जज़िंदगी को

ी अपनी ब

जज़िंदगी के बारे में सलखा है ,इ

मझना आ ान हो जाए। इ

सलए कक मेरी

एर्प ोड में और कुछ नहीिं सलखग ूिं ा। इ

दौरान बहुत कुछ हुआ ,इतना कुछ कक सलखने के सलए हौ ला और वक्त चादहए। काम भी बहुत ख्त ककया ,लेककन मज़े भी बहुत ककये ,स्ट्रै भी बहुत सलए लेककन कलरफुल लम्पहें भी बहुत समले। जी तो चाहता है कक अगर स हत इजाजत दे तो वाप उ ी काम पे चला जाऊिं , पै ों के सलए नहीिं बजल्क उ अब तो

न ु ा है ,काम पहले

वातावरण के सलए जो

े भी एडवािं

ागथओिं के

हो गगया है । ब ों में

,ड्राइवर को रास्ता पछ ै नैव ू ने की जरुरत ही नहीिं है , ट

ाथ समलता था।

ैट नैव लगा ददए गए हैं

े लगातार आवाज़ आती रहती है

,आगे दायें मङ ु ो बाएिं मङ ु ो ,और भी बहुत कुछ बदल गगया है । ब ों पे 1965 े ले कर 2001 तक इतने उतार चढ़ाव दे खे कक ोच कर है रानी होती है । कैं टीन और क्लबों में इतने दोस्तों के यह

ाथ मज़े ककये कक यह जज़िंदगी की एक

न ु हरी याद बन गई है । आधे दोस्त तो

िं ार छोड़ गए हैं लेककन उनकी यादें मन में एक समठा

भी है कक इतनी भाग दौड़ करके भी मुझे हर मैडलों का तो एक छोटा ड्राइर्विंग लाइ ें चलता…

ाल

भर दे ती हैं। मज़े की बात यह

ेफ ड्राइर्विंग अवाडि समलते रहते थे और

ा डडब्बा भर गगया था और आखखर में जब काम छोड़ा तो मेरा

एक दम क्लीन था।


मेरी कहानी – 97

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन January 21, 2016

बेटीआिं र्पिंकी और रीटा बड़ी हो रही थीिं। दोनों की उम्र में एक

ाल का ही अिंतर था लेककन

दोनों जड़ ु वाूँ बहनें ही लगती थीिं क्योंकक र्पिंकी अपनी माूँ पर गई थी जो

रीर

सलम है

और रीटा मुझे पर गई थी क्योंकक मैं कुछ वज़नी हू​ूँ। दोनों घर में खेलती रहतीिं ,काम े वाप आ कर मेरा ारा वक्त उन के ाथ ही गुज़रता। बहादर और कमल जब हमारे घर आते तो उन की बेटी ककनूँू भी र्पिंकी रीटा के

ाथ खेलती तो बहुत अच्छा लगता। जब हम बहादर के घर जाते तो वहािं भी यह तीनों बहुत मस्ती करतीिं। मेरे बहन और बहनोई भी अब अफ्रीका े यहािं आ गए थे और उन्होंने अपना घर इलफोडि के मौर एवेन्यू में ले सलया था। बहन की बेटी नीलम भी र्पिंकी और बहन की बबदटआ नीलम रहते। इनोक पावल और

े छै हफ्ते ही बड़ी थी। जब हम इलफोडि जाते तो र्पिंकी रीटा

ाथ

ाथ खेलतीिं और हम उन की फोटो खीिंचते खश ु होते

ककन(skin head) है डों का

मय बीत चक् ु का था और कुछ कुछ

शाजन्त हो गई थी। इन्हीिं ददनों मेरे दोस्त टिं डन ने भी हमारी रोड पर घर ले सलया था। उ

की पत्नी का नाम था तप्ृ ता और उन के दो बेटे राजू और दीपी थे और एक बेटी थी रे खा।

हम एक द ू रे के घर जाते ही रहते थे और हमारे बच्चे बथिडे पादटि ओिं पर इकठे मज़े करते। सलखना भूल ना जाऊिं टिं डन 1975 में काम छोड़ कर मानचैस्टर चले गगया था और उ

के

बाद उन के दशिन कभी नहीिं हुए और द बारह ाल पहले पता चला था कक टिं डन इ दनु नआ में नहीिं रहा था। लेककन कुछ महीने हुए कुलविंत को पता चला कक टिं डन की पत्नी तप्ृ ता बबल् टन जो कक हम कुलविंत तप्ृ ता को समलने उ

े तीन मील दरू ही है ,वहािं के कक ी मिंददर में आई हुई थी ,तो मिंददर में गई तो वोह अपने बेटे राजू और बेटी रे खा के ाथ

थी। समल कर इतनी खश ु होइूँ कक अब एक द ू रे को टे लीफून करती रहती हैं और उन ददनों की यादें शेयर करती रहती है । अब तो राजू के बच्चे भी बड़े हैं लेककन रे खा ने शादी नहीिं की। आज भी कुछ घिंटे पहले तप्ृ ता का फोन आया था और कुलविंत रे खा को हिं

रही थी कक

” रे खा ! अब तू शादी करा ले भले ही कोई गोरा हो ,कक ी भी जात का हो ,आज कल तो कोई र्वचार ही नहीिं करता” ,रे खा ने जवाब ददया था ,” आिंटी मझ ु े मेरे खखयालों का समलता ही नहीिं “. ऐ े वोह हिं

ाथी

रही थी।

वक्त आगे जा रहा था और 1971 में कुलविंत को कफर बच्चा होने वाला था। कुलविंत को मैं हिं ाता रहता और कहता ,” इ बेबी

दफा तुम्पहारे मन की आशा जरर पूरी होगी क्योंकक इ

तम्पबर में आएगा जो र्पिंकी रीटा के जनम

े पािंच महीने बाद होगा, यानी अब की बार

जनम की डेट उल्ट है और जरर बेटा ही होगा ” .मैं उ था कक वोह कोई गचिंता करे और इ

का अ र उ

दफा बेटा ही हो क्योंकक समक्

का हौ ला बढ़ाता ,मैं नहीिं चाहता

की स हत पर पड़े. यों तो मैं उ

कहता रहता था कक मुझे कोई फरक नहीिं था लेककन ददल इ

दफा

को

े तो मैं भी यही चाहता था कक

फैसमली बहुत अच्छी लगती है । अगर मैं कहू​ूँ कक मुझे


बेटा नहीिं चादहए था तो मैं झूठ बोलूिंगा क्योंकक कफर भी मैं हू​ूँ तो भारती ही। बेटी होने पर मैं तो कफर भी ह लेता कक बेटी हो गई है तो कोई बात नहीिं लेककन कुलविंत को तस् ली मैं कै े दे ता ,ब

यही कफक्र मेरे मन में रहता था। कुलविंत को मैं मनघडत कहानीआिं

रहता था ताकक उ क्योंकक इ

का हौ ला बुलिंद रहे । वै े मुझे यकीन था कक इ

ुनाता

दफा बेटा ही होगा

दफा मैं कुलविंत में अजीब तबदीली दे ख रहा था। दोनों बेदटओिं की गवि अवस्था

के दौरान कुलविंत को उल्टीआिं बहुत लगीिं थीिं लेककन इ दफा वोह बबलकुल स हतमिंद थी ,कोई उलटी नहीिं आई थी। और एक ददन तो अचिंभा ही हुआ ,रात के वक्त हम ोये हुए थे कक ब ु ह तीन चार वजे कुलविंत एक दम घबरा कर बैड े उठी और बोलने लगी ,” मैंने गट् ु टी वाला मिंड ु ा दे खा है जो यहािं बैठा था “. मैंने कहा , ो जा कफर लेट गई लेककन इ र्वशवा

बात को मैंने ददल में

हो गगया था कक इ

दफा बेटा ही होगा।

ददन बीतते जा रहे थे ,पता ही नहीिं चला, 26

ो जा ,कुछ नहीिं है । वोह

हे ज कर रख सलया ,मझ ु े

ौ रनतशत

तिंबर 1972 की रात को कुलविंत को मह ू

होने लगा कक अब वोह फै लाकुन घड़ी आ गई थी। रात को लेबर पेन्ज़ शुर हो गई और रात के एक वजे कुलविंत ने कहा ,” जी ,हस्पताल को टे लीफून कर दो “. मैं भाग कर टे लीफून बूथ को गगया और टे लीफून कर ददया। थोह्ड़ी दे र बाद ही एम्पबुलैं

आ गई , ारे

कपडे बैग में पहले ही डाल कर रखे हुए थे। जब कुलविंत एम्पबूलैं में बैठने लगी तो बुधवार का ददन चढ़ गगया था। मैंने कुलविंत का माथा चूमा और मेरे मिंह े ननकला , ” अब जाओ ु ,बुध काम शुद्ध ही होगा “. कुलविंत चली गई लेककन मुझे नीिंद आ नहीिं रही थी ,दोनों बेटीआिं एक बैड में

ोई हुई थी ,उन के चेहरे दे खता ,तरह तरह के र्वचार मन में आ रहे थे कक भले ही बबदटआ आ जाए लेककन स हत ठीक हो। कभी मैं ककचन में आ कर चाय बना कर पीता ,कभी बैड में लेट जाता। इ ी तरह रात बीत गई।

ब ु ह

ात वजे मैंने हस्पताल

को टे लीफून ककया और न ि को पछ ु ा कक कोई खबर हो तो मझ ु े बताये। ज़रा ठै हरो कह कर न ि चले गई और एक समनट में ही आ कर बोली ,” कुलविंत जस्ट गेव बथि टू ए बेबी बोए “. खश ु ी

े मेरे कान एक दम लाल हो गए, मैंने कहा ,प्लीज़ मेक शोअर। वोह हिं

,” ओ यै

कर बोली

! आई एम शोअर इट इज़ ए बोए “.

मैंने टे लीफून का र ीवर रख ददया और भाग आया। पहले गगयानी जी का दरवाज़ा खटखटाया और भीतर आ कर खबर

ुनाई तो

भी खश ु हो गए. बीबी कहने लगी ,” अब मुिंह मीठा

करवा “. मैं भागा भागा मठाई की दक ू ान पर गगया और लड्डू सलए। घर आ कर खखलाये। रीटा र्पिंकी भी जाग उठी थीिं ,हिं छोटा यह

भी को

कर उन को नछिं दी बिं ो कहने लगीिं ,” रब ने तुझे

ा भईया ददया है “. वोह भी खश ु लग रहीिं थी लेककन उन को कोई

मझ नहीिं थी कक

ब ककया हो रहा था। कफर गगयानी जी मुझे कहने लगे ,” गुरमेल ! अपनी बहन को

टे लीफून कर दे “. मैं कफर टे लीफून बथ ू की तरफ गगया और बहन को टे लीफून कर ददया ,इ के बाद कुलविंत की

गी बआ जो चैटहै म में रहती थी ,उ ु

को भी टे लीफून ककया ,कफर


बहादर को ककया ,कफर

ब को कर ददया। उ

ररश्तेदारों को मठाई दे ने जा नहीिं मैं बेदटओिं को अकेले छोड़ नहीिं

मय मेरी एक मजबूरी भी थी कक

भी

कता था क्योंकक बेछक गगयानी जी की फैसमली थी लेककन कता था। इ

बात

े कुछ ररश्तेदारों ने मुझे ताने भी ददए

थे लेककन इन बातों का मुझ पर कोई अ र नहीिं था ,क्योंकक

भी को खुश करना आ ान

नहीिं होता। कफर भी मैंने कुछ ररश्तेदारों को लड्डू के पैकेट पा ल ि कर ददए थे। काम

े मैंने छुदटयाूँ ले लीिं थी। यह भी एक अजीब बात ही थी कक र्पिंकी बीच

हस्पताल में

पैदा हुई थी ,रीटा रॉयल हस्पताल में और अब बेटा ननऊ क्रौ हस्पताल में पैदा हुआ था। मैं दो दफा रोज़ कुलविंत को समलने हस्पताल जाता था। कुलविंत भी इतनी खश ु थी कक उ का चेहरा हर दम खखला खखला रहता। जब भी मैं हस्पताल जाता वोह बेटे को ही दे खती थी और उ

के इ

खश ु ी भरे चेहरे को दे ख कर मेरा मन भी खखल जाता। चार पािंच ददन हस्पताल में

रह कर कुलविंत घर आ गई। यूिं तो गगयानी जी के घर के

ारे

दस्य कुलविंत की मदद

करने के सलए थे लेककन मेरी बहन बहनोई आ गए। बहन बहनोई बहुत खश ु थे। बहनोई ेवा स हिं बहुत चीयरफुल शख् है ,आते ही बोला ,” मुझे चाये वाये कुछ नहीिं चादहए ,मिंड ु ा हुआ है तो चाय ही पीणी है ? चल पब्ब को “. बहनोई ाहब मैं और ज विंत तीनों पब्ब को चले गए। बहनोई उन के

ाहब और ज विंत बहुत पीने वाले थे लेककन मैं इतना आदद नहीिं था लेककन ाथ मुझे भी पीनी पढ़ रही थी। जब हम पब्ब े बाहर आये तो बहनोई ाहब कहने

लगे ,” आज मैंने र्वस्की वोदका नहीिं पीनी ,आज तो मैंने मॉटि ल ही पीनी है “. एक ऑफ लाइ ैं

की दक ू ान

े मैंने मॉटि ल ब्ाूँडी की बोतल ली और घर आ कर हम पीने लगे। मीट

बना हुआ था और टे बल पर बैठ कर पीने और बातें करने लगे। बहन बहुत खश ु थी और हमारे ामने मीट की प्लेटें रख रही थी और हिं हिं कर बातें कर रही थी। काफी रात तक हम बैठे ,खाया र्पया और ननकल नहीिं रही थी। बहनोई

ो गए।

ब ु ह उठा तो मेरा

र फट रहा था ,मेरे मिंह ु

े आवाज़

ेवा स हिं तो गाड़ी ले कर लिंडन चला गगया था क्योंकक उ

ने

काम पर जाना था लेककन मेरा ददल बहुत खराब था क्योंकक मैं इतना पीने का आदी नहीिं था ,जज़िंदगी में पहली दफा इतनी शराब पी थी। बहन ने बेटे का नाम

िंदीप रख ददया। हम को भी यह नाम बहुत अच्छा लगा था। बहन रु जीत कौर बेटे के सलए बहुत कपडे लाइ थी और बहनोई ेवा स हिं ने उ ी ददन िंदीप को ोने का कड़ा पहना ददया था। दे ने लेने के स लस ले में कुलविंत पहले

े ही हुसशआर थी ,मुझे कहने लगी कक अब हम को भी बहन को कोई गहना दे ना चादहए था। कुछ ददन हो गए थे और कुलविंत शारीरक तौर पर काफी अच्छी थी। कुलविंत ने मुझे कहा की क्यों ना हम वोह

ैट जो हम ने जालिंधर

े खरीदा था ,इ

हम गाड़ी ले कर

का ही कुछ बहन के सलए बनवा दें । एक ददन

ुनार की दक ू ान जो एक घर में ही थी में जा पहुिंच।े यह घर बसमांघम रोड पर हमारे गाूँव की लड़की ी ो जो नम्पबरदार वणि स हिं की ही बेटी थी के पा वाला घर ही था। हम

ी ो को ले कर उ

न ु ार के घर गए और एक चेन वाला हार जज

में एक


पैंडट था ,दे खा। यह हार शादी

े पहले जालिंधर

ककया तो उ

में

ाढ़े चार तोले का था। हम ने वोह े खरीदा था।

े कुछ काली

ैट

ुनार को ददया जो हम ने

ुनार ने एक लैम्पप की लाइट

ी राख ननकलने लगी।

े पहले चडु डओिं को गमि

ुनार ने कहा कक उन चडू ड़ओिं में

भार बढ़ाने के सलए भारी राख डाली हुई थी ,इ ी तरह रानी हार में भी समलावट थी। हम ककया करते , ारे ैट का हमें आधा ोना ही समला और कुछ और पै े दे कर बहन के सलए हार ले सलया। आते वक्त मैं जालिंधर के

ुनार को याद कर रहा था जज

की दक ू ान में दे वी

दे वताओिं की फोटो लगीिं थीिं। बहन के अपने घर को जाने का वक्त आ गगया था। कपडे जो जो बहन ने मािंगे कुलविंत उ

को दक ू ान में ले गई और खरीद सलए। कफर उ

ने

बफी मािंगी जो बहन ने अपने ररश्तेदारों को दे नी थी। स्वीट मैंन स्ट्रीट में अमीन नाम के एक पाककस्तानी की हलवाई की दक ू ान थी। हम ने तकरीबन पची

ककलो बफी का आडिर दे ददया

और अमीन बफी तैयार करके द ू रे ददन ही हमारे घर छोड़ गगया। एक शननवार बहनोई

ेवा

स हिं आये ,रात रहे और द ू रे ददन रर्ववार को बहन और बहनोई लिंडन को रवाना हो गए। चलता…


मेरी कहानी – 98

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन January 25, 2016 बहन और बहनोई

ेवा स हिं चले गए थे और एक ददन कुलविंत के भआ फुफड़ जी जो ु

चैटहै म में रहते थे आ गए। पिंजाब की रवायत कक लड़की को घी दे ने जाना है , उ

र म के

मुताबक वोह आ गए और कुलविंत के सलए बहुत े मेवे और बटर का एक बॉक् ले आये। बच्चों के सलए बहुत े कपडे और एक गहना भी लाये। बुआ फुफड़ की चैटहै म में अपनी दक ू ान थी, इ

सलए वोह बड़ीआ

दाबड़ा बनाया। इ

े बड़ीआ कपड़े लाये। कफर बुआ ने खद ु ही कुलविंत के सलए

दाबड़े के बारे में कुछ सलखना चाहू​ूँगा कक यह दाबड़ा एक ऐ ी चीज़ है जो बच्चा होने के बाद माूँ को खखलाया जाता है और कुछ हफ्ते इ े खाने के बाद माूँ की स हत जल्दी अच्छी हो जाती है । बबदे शी लोगों में तो ऐ ी कोई रवायत नहीिं है क्योंकक पछमी दे शों में तो खरु ाक ही ऐ ी होती है कक जज खा

जजन

ुर्वधा नहीिं है , इ

में

ब तत्व समल जाते हैं लेककन भारत में ऐ ी कोई

सलए माूँ बाप अपनी बेटी के सलए यह

ब चीज़ें ले कर जाते हैं

े दाबड़ा बनता है । यह दाबड़ा बहुत ताकत दे ने वाला होता है क्योंकक इ को बनाने में जो चीज़ें इस्तेमाल की जाती हैं वोह भी र्वटे मन भरपूर होती हैं क्योंकक इ में घी, ूिंठ, आटा, गुड़ या खिंड, बादाम, र्पस्ता, चारे मगज़,

ौंफ, चार गोंद,

मखाने और कुछ और चीज़ें पड़ती हैं और यह

ौगी, कमरक , फुल

भी चीज़ें स हत के सलए बहुत अच्छी होती हैं। वै े भी यह दाबड़ा खाने में बहुत स्वाददष्ट होता है । अब यहािं की लड़ककओिं में े कुछ खा लेती हैं लेककन कुछ नहीिं। यह दाबड़े का ररवाज़ पता नहीिं कब े चला आ रहा है लेककन ऐ ा लगता है कक पुराने ज़माने में काम बहुत ख्त होते थे। मदि बाहर काम करते थे और औरतें या तो खेतों में काम करती थी या घर में ही बहुत काम थे जै े चक्की े आटा पी ना, चरखा चलाना और खादी के कपड़े बनाना। औरतों का काम मदों े कोई कम नहीिं होता था, इ

सलए बच्चा होने के बाद दाबड़ा एक ताकत दे ने वाली गिज़ा होता था। इ

जल्दी स हत नॉमिल हो जाती थी। एक ददन रह कर बुआ फुफड़ चले गए और अब एक ददन कुलविंत की दरू फुफड़ और उ हैं, उ

े ररश्ते की बुआ

के बच्चे आ गए। इन बुआ फुफड़ ने जो र्पयार ददया और अभी तक दे रहे

की कीमत का अिंदाजा नहीिं लगाया जा

कता। जज

ददन वोह

ब आये, उ

ददन

बाहर धप ू खखली हुई थी और बुआ के बच्चे ुररिंदर, जजन्दी और ननिंदी हमारे बेटे को बाहर गाडिन में ले गए। हमारे बेटे द िं ीप को ुररिंदर ने अपने हाथों में पकड़ा हुआ था। मैं कैमरा ले आया। पहले एक पेपर पर सलखा ” i am 18 days old “और इ फ्राक पर रख ददया और फोटो खीिंची। उ उ

पेपर को बेटे

िंदीप की

ददन बेटा 18 ददन का हो गगया था और वोह फोटो

मय की याद ददलाती रहती है जज

ददन बेटा 18 ददन का हुआ था। एक ददन बहादर कमल भी आ गए और खब ू मज़े ककये। सलखना भूल ना जाऊिं, बहादर का भाई हरसमिंदर कमल के आने

े कुछ ददन बाद ही इिंडडया को जाने के सलए तैयार हो गगया था । जब मैंने


टे लीफून ककया तो वोह हिं

कर कह रहा था कक वोह इिंडडया जा रहा है । जब मैंने पूछा कक

वोह इिंडडया जा कर ककया करे गा तो हिं कक उ

कर बोला कक वोह खेती करे गा। मैं भी हिं ने लगा

ने तो कभी बैल भी पकड़ा नहीिं था, कफर खेती कै े करे गा। वोह कहने लगा कक वोह

अब हमेशा के सलए इिंडडया ही रहे गा और कभी वाप

इिंगलैंड नहीिं आएगा। मुझे उ

पे कोई यकीिंन नहीिं था, मेरा खखयाल था कक वोह कुछ ही हफ़्तों बाद वाप लेककन जब उ क्योंकक उ

को इिंडडया गए कई महीने हो गए तो हम तकरीबन उ

का इिंडडया

े भी मझ ु े कभी कोई खत नहीिं आया था।

अब हमारा पररवार खसु शओिं

की बातों

आ जाएगा

को भूल ही गए

े भरपूर था। गाड़ी ले कर हम घुमते रहते, कभी बहादर के घर

कभी बुआ के घर और कभी गुरमुख बलबीर के घर। कभी कभी हम कौलस यम स ननमें में

कोई कफल्म दे खने चले जाते। यह स ननमा डडली रोड पर होता था। तीनों बच्चों को हम ले जाते। यह स ननमा बहुत पुराना होता था और इ के अिंदर जाते ही अजीब ी बदबू आती थी, इ की दीवारों का पलस्तर टूटा हुआ था और ीटें भी बहुत पुरानी लकड़ी की होती थीिं। बेटे को कुलविंत गोदी में बबठा लेती और दोनों बेदटयािं मेरे पा बैठ जातीिं। एक दफा हम कफल्म महल दे खने गए। आधी कफल्म दे खख थी कक रीटा ने उलटी कर दी। चारों तरफ बदबू

फैल गई। उ ी वक्त हम बाहर आ गए और घर को चल ददए। जब भी कभी कौलस यम की याद आती है तो वोह बात भूलती नहीिं और यह बात रीटा को भी अभी तक याद है । ददन

खश ु ी खश ु ी बीत रहे थे। बहादर और मैं अपनी अपनी पजत्नओिं और बच्चों को ले कर बाहर जाते ही रहते थे। अब हमारा

िंदीप तकरीबन छै

दोनों पररवार बब्जनौरथ को गए। बब्जनौरथ के पा टाऊन बहुत ऊिंचाई पर है , जज एक ब जै ी है और बबजली है । हम

भी उ

ात महीने का हो गगया था। एक ददन हम एक नदी है और बब्जनौरथ छोटा

पर चढ़ने के सलए एक मोनोरे ल लगी हुई है । यह मोनोरे ल े धीरे धीरे ऊपर की ओर नतशी सलफ्ट की तरह चढ़ती जाती

में बैठ कर ऊपर चले गए। ऊपर बाजार था। हम बाजार में घम ू ने लगे और

आगे गए तो दे खा कक वहािं रोमन के ज़माने के खण्डरात थे। उ

वक्त कमल भी गवािवस्था

में थी और कुछ महीने तक कोई अच्छी खबर आने वाली थी। यह बब्जनौरथ का मैंने स फि इ

सलए ही सलखा है कक मैंने कमल जो उ

वक्त र्रिंटड

मुस्करा रही थी तो मेरे मन में र्वचार आया कक इ

ाड़ी में थी, बहुत खश ु थी और दफा बहादर को बेटे की खश ु ी समलेगी।

यह बात आज तक मैंने कक ी को नहीिं बताई, कुलविंत को भी नहीिं क्योंकक इ को इ

मैं यह

सलए मैं ने कक ी को नहीिं बताया कक पता नहीिं रराइज़ सलखना भूलना नहीिं चाहता था।

कुछ महीने बाद

ुबह

ब लोग मुझे ककया

ारा ददन घूम कर हम वाप

ुबह बहादर हमारे घर आया, उ

छोटी

ी बात

मझेंगे। आज आ गए।

के हाथ में मठाई का डडब्बा था,

मुस्करा कर बोला, “कमल को बेटा हुआ है “. च्च ? कुलविंत खश ु ी े झूम उठी, मैं भी खश ु हो गगया। उ ददन बहादर बहुत खश ु था, बहुत दे र तक हम बातें करते रहे । कफर बहादर ने हमें कहा कक उन की बेटी ककरण कुछ ददन के सलए हमारे घर रहे गी, जब तक कक कमल


हस्पताल

े वाप

आ नहीिं जाती। मुझे याद नहीिं कक हम कमल को दे खने हस्पताल गए थे

या नहीिं लेककन बहादर ककरण को हमारे यहािं छोड़ गगया था। र्पिंकी रीटा और ककरण तीनों एक जै ी थीिं और तीनों खश ु थीिं। मैं भी तीनों को बच्चों की कहानीआिं रहता था । एक ददन ककरण उदा

ुना

ुना कर हिं ाता

हो गई और रोने लगी। हम ने बहुत कोसशश की कक वोह खश ु हो जाए लेककन वोह रोये जा रही थी। अपने माूँ बाप को छोड़ना बच्चे के सलए बहुत मुजश्कल होता है , कफर वोह बच्चा जो कभी माूँ बाप े इलग्ग हुआ ही ना हो। हम भी घबरा

गए कक अब ककया कीआ जाए। कफर बहादर को टे लीफून कर ही ददया। मझ ु े याद नहीिं शायद रात को ही बहादर आ कर ककरण को ले गगया। यह ददन बहुत खश ु ी के थे क्योंकक कुलविंत की ओर े मैं अब ननजश्चिंत हो गगया था। एक ददन जब मैं काम MOTORS के पा

े वाप

आ रहा था तो हमारे नज़दीक की एक गैरेज BARLOW

आ कर खड़ा हो गगया और कारें दे खने लगा। वहािं

ौ के ऊपर कारें खड़ी

थीिं जो फौर

ेल थीिं। एक एक करके मैंने बहुत ी कारें दे खीिं। एक कार मुझे बहुत अच्छी लगी और यह थी Triumph vetesse 2000 . गोरा बालो बाहर आ गगया और मुझे कार के बारे में बताने लगा कक इ आज तो 2000

ी था और इ

के पािंच गेअर थे।

मय इतना बड़ा इिंजजन बहुत कम लोग लेते थे क्योंकक पैट्रोल ज़्यादा खचि होता था और उ मय आम गाडडओिं के चार गेअर ही होते थे। इ

कार का इिंजजन 2000

ी इिंजजन नॉमिल ही है लेककन उ

गाड़ी में पािंचवािं गेअर लीवर स्टीयररिंग वील के नीचे था और यह पािंचवािं

गेअर स फि मोटर वे पर जब गाड़ी तेज़ चलानी हो तब ही इस्तेमाल होता था । एक और बात भी थी जो मझ ु े बहुत अच्छी लगी, वोह थी SUN ROOF .मैंने उ ी वक्त डडपॉजज़ट दे ददया और घर आ कर कुलविंत को बताया, कुलविंत खश ु हो गई। द ू रे ददन बैंक े पै े ले कर मैंने गाड़ी खरीद ली और घर ले आया। जवानी की उम्र और बच्चों की खश ु ी, मैंने को कार में बबठाया और टाऊन

भी

े बाहर ले गगया। कार इतनी पावरफुल थी कक ऐक् ेलरे टर

पैडल को पैर लगते ही तेज हो जाती। काम

े आ कर रोज़ मैं कुलविंत और बच्चों को बाहर

ले जाता। एक ददन हम ने बहन को समलने जाने का रोग्राम बना सलया। बहन बहनोई ने अब घर बदल सलया था और मौर एक शननवार को हम घर नहीिं थी, पहले बसमांघम हो जाती थी जो

एवेन्यू

े अब बीहाइव लेन पर आ गए थे।

े लिंदन को चल पड़े। उन ददनों MOTOR WAY M 6 अभी बनी े कौवेंट्री तक A 45 पर जाना होता था और कौवेंट्री

ीधे लिंदन तक जाती थी और उ

पर आवर ही होती थी। यह 120 मील का

े M 1 शुर

वक्त भी SPEED LIMIT 70 माइल

फर भी एक मज़ेदार होता था। यूिं तो मोटर वे

पर थोह्ड़ी थोह्ड़ी दरू ी पर शानदार कैफे बने हुए हैं लेककन इिंडडयन लोगों में GRENADA कैफे ही ज़्यादा लोग र्रय होता था और यहािं आ कर कई एकड़ में बनी हुई कार पाकि में कार खड़ी करके या तो कैफे े कुछ खाने को ले लेते या घर े ही पराठे बना कर ले जाते थे और वहािं बैठ कर मज़े

े खाते और चाय कौफी कैफे

े ले आते थे । जब हम कौवेंट्री

े M


1 पर चढ़े तो आज कार ड्राइव करने का मज़ा ही और था। कुछ दे र बाद ही जब मैंने गाड़ी

को पािंचवें गेअर में डाला तो गाड़ी जै े हवा में उड़ने लगी। स्पीड सलसमट तो 70 मील ही थी लेककन मैंने गाड़ी को टै स्ट करने के सलए स्पीड 90 मील कर दी जो तकरीबन 130 ककलोमीटर बनती है । मुझे गाड़ी चलाने में बहुत मज़ा आ रहा था लेककन कुछ मील चल कर ही स्पीड 70 कर दी क्योंकक पुसल का डर भी था। आज तो छोटी छोटी गाडड़यािं ौ मील तक जा

कती हैं लेककन उ

मय आम गाडड़यािं ऐ ी थीिं कक 60 70 मील पर जा कर ही

बाइब्ेट करने लगती थी। हम बहन के घर पहुूँच गए। रात को बैहनोई ाहब के और दोस्त भी अपनी अपनी पजत्नओिं के ाथ आ गए थे। बहुत मज़े ककये और द ू रे ददन शाम को घर आ गए। बेटा एक था, इ

ाल का होने वाला था। बेटे ने 27

सलए 26 को ही हम ने

तैयार हो गई, ब

तम्पबर को एक

ाल का हो जाना

मो े बगैरा बना सलए और केक भी ले आये। कुछ चीज़ें

द ू रे ददन स फि पकौड़े ही तलने थे। बथिडे कोई खा

नहीिं मनाना था,

स फि टिं डन की फैसमली ने ही आना था। ुबह को मैंने काम पर छै

ात वजे जाना था, इ

सलए 9 वजे के करीब हम

ो गए।

तकरीबन तीन चार वजे मुझे एक भयानक

ुबह

पना आया। मैं अपने गाूँव में घूम रहा हू​ूँ और घूमता घूमता एक ऐ े किंू एिं के नज़दीक पहुूँच जाता हू​ूँ जो मेरे बचपन के मय में हुआ

करता था और यह किंू आिं उजड़ा हुआ था। इ के नज़दीक ही एक बड़ा आम का बक्ष ृ था। इ किंू एिं के ाथ ही पगडिंडी थी जज पर लोग जाते आते थे। इ किंू एिं का पानी काफी ऊपर था जज

पर हरा हरा बूर था। पगडिंडी किंू एिं के बबलकुल

ाथ ही थी और उ

पर चलते चलते मैं

किंू एिं में गगर गगया हू​ूँ। मैं अपने हाथ पैर चलाता हू​ूँ और शोर मचाता हू​ूँ कक मझ ु े बाहर ननकालो, मझ ु े बाहर ननकालो लेककन यह शोर मेरे गले में ही रह जाता है और आवाज़ गले बाहर नहीिं ननकलती । मेरा

े उठ जाता हू​ूँ। कुलविंत और बच्चों की ओर दे ख कर मैं कफर ो जाता हू​ूँ। यह बह ृ स्तपनतवार का ददन था। ब ु ह उठ कर मैं काम पर चले गगया। दो तीन वजे काम े घर आ गगया। शाम को टिं डन उ

ािं

रुक रहा है और मैं घबरा कर बबस्तर

की पत्नी तप्ृ ता और उन के बच्चे दीपी राजू और रे खा आ गए। केक काटा गगया, बच्चों

ने मज़े ककये लेककन पता नहीिं मेरा ददल आज इतना खश ु नहीिं था। बेटा एक

ाल का हो

गगया था और हम रोज़ की तरह अपनी जज़िंदगी के कामों में वय त हो गए। एक हफ्ते बाद इिंडडया

े मेरे छोटे भाई का सलखा खत आया, पड़ कर लगा जै े मैं फट

गगया हू​ूँ। भाई ने थोह्ड़े े शब्दों में सलखा था कक 27 तम्पबर को र्पता जी हमारे खेतों में उजड़े हुए किंू एिं में गगर कर इ दनु नआ े चले गए। ठीक उ ी ददन जब हम बेटे की ालगगरह मना रहे थे और उधर गाूँव में हमारे घर में मातम छाया हुआ था।

चलता…


मेरी कहानी – 99

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन January 28, 2016

man proposes,god disposes . हमारी खश ु ी ज़्यादा दे र तक रह नहीिं र्वगध का र्वधान ही गचलाने

है कक वो जज़िंदगी ही क्या जज में फूलों के

की शायद यह

ाथ कािंटे ना हों

! . रोने

े ककया होता ,कुछ ददन रो कर चप ु कर गए ,लोग आते जाते रहे और हम मु ीबतों

े नघरे अजीब जस्थनत में थे। कुछ ददन बाद छोटे भाई का एक और खत आ गया जज

सलखा था कक जो होना था वोह तो हो गया था ,इ मुझे मेरी माूँ जज

आगथिक जस्थनत भी उ

में

सलए हम कोई जल्दी ना करें लेककन

को हम बीबी कहते थे बार बार मेरी आूँखों के

ामने आ जाती। हमारी

वक्त इतनी अच्छी नहीिं थी, अभी अभी कार ली थी और इ

को

बेचना भी इतना आ ान नहीिं था। कई ददन तक मैं अखबार में ऐड दे ता रहा लेककन कोई ग्राहक नहीिं आया। तिंग आ कर मैं उ ी गैरेज बालो मोटज़ि में गया और उ गाड़ी बेचना चाहता हू​ूँ। वोह तो था ही बबज़ने

को कहा कक मैं

मैंन। कहने लगा ,” आप ने कई ददन

भी दी थी ?” मैंने हाूँ कहा और अपनी मज़बूरी बताई। जजतने की गाड़ी मैंने उ थी ,उ

े ऐड

े खरीदी

ने उ

े बहुत कम पै े ऑफर ककये। उ दह ाब े यह मेरे सलए काफी घाटा था लेककन मैंने उ को हाूँ कह ददया और उ ने उ ी वक्त चैक काट कर मुझे पकड़ा ददया। उदा ी में डूबा मैं घर आ गया और कुलविंत को बताया। कुलविंत ने हौ ला ददया कक कोई बात नहीिं ,गाड़ी कफर कभी ले लेंगे।

अब बात थी मेरे काम की और घर को

िंभालने की ,गगयानी जी को मैंने बताया कक हम ने

इिंडडया को जाना है । गगयानी जी कहने लगे ,गुरमेल ! तेरे जाने

े अब

होगा तो कुछ नहीिं

और ज़रा ठहर के चले जाना। लेककन मेरे मन को पता नहीिं ककया हो गगया था। मैने कहा गगयानी जी अब तो हम ने जाना ही था। उ

वक्त मेरे काम पे मैनेजर होता था mr.

kendal . मैंने एक खत समस्टर कैंडल को सलखा जज और यह भी सलखा कक जब मैं इिंडडया

े वाप

में मैंने काम छोड़ने की वजह बताई

आऊूँ तो वाप

अपने काम पर ही आना

चाहता था। दो ददन बाद ही मुझे कैंडल का खत आ गगया कक उ े मेरे घर के हालात पर दुःु ख है और जब मैं इिंडडया एक हफ्ते का नोदट

े वाप

आऊूँ तो वोह मुझे काम पर कफर

े मेरी जौब दे दें गे।

मैंने दे ददया था और हम जाने की तैयारी में लग गए। बच्चों के

पा पोटि अभी बनाये नहीिं थे ,इ

सलए पहले बैनजी स्टूडडओ में बच्चों की फोटो खखचवाने के

सलए गए। बैनजी ने एक अूँगरे ज़ औरत

े शादी की हुई थी और उ की बीवी और उ की दो बेदटयािं भी कभी कभी स्टूडडओ में काम करती रहती थीिं। द ू रे ददन ही फोटो हमें समल गईं और पा पोटि फामि भरके ,डाक्टर

े फोटो

दटि फाई करके फामि पा पोटि ऑकफ

को भेज ददए। एक हफ्ते में ही पा पोटि आ गए। अब मैं ट्रै वल एजेंट के पा कन्फमि हो गईं। काम का नोदट मेरी आशा

पीटरबरो

गया और

ीटें

खत्म होने के बाद जब मैं अपने पै े लेने गया तो पै े

े कहीिं ज़्यादा समल गए। यह इ

सलए थे कक 1967 में हमारी राइवेट पैंशन शुर


हुई थी ,इ सलए र्पछले छै ालों में जजतने पै े मैंने पैंशन किंट्रीजब्यूशन में ददए उन्होंने पै े वाप दे ददए। इ े मुझे बहुत मदद हो गई लेककन आगे जा कर इ का मुझे नुक् ान ही हुआ क्योंकक पै े वाप

लेने

े इ

ारे

का मेरी पें शन पर अ र पड़ा था।

घर के बारे में मुझे कोई गचिंता नहीिं थी क्योंकक गगयानी जी का

ारा पररवार तो था ही।

इिंडडया को जाने के सलए बहुत पहले हम को लिंदन हीथ्रो या गैटर्वक जाना पड़ता था ,अब काफी ालों े फ्लाइट बसमांघम े अमत ु हो गई थीिं जज में मैं और कुलविंत ृ र जानी शर पहले

ट्रै वल कर चक् ु के थे और बसमांघम

हम

े ती

वक्त बच्चों के

ककलोमीटर दरू ही था । अगर उ

ाथ हीथ्रो या गैटर्वक जाना पड़ता तो हमें बहुत मुजश्कल पेश आती। ननयत ददन हम बसमांघम एअरपोटि पर पहुूँच गए और एअर अफगान की फ्लाइट में बैठ कर इिंडडया की ओर उड़ने लगे। बच्चों को क्या पता था कक क्या हो रहा था ,ब खखड़ककओिं

वोह तो जहाज़ की

े बाहर का नज़ारा ही दे ख दे ख कर खुश हो रहे थे। जल्दी ही रात हो गई और

बाहर अूँधेरा हो गया ,ब

कभी कभी नीचे जब जहाज़ कक ी शहर के ऊपर होता तो नीचे

हज़ारों लाखों बबजली की बत्तीआिं जग मग,जग मग

करती ददखाई दे ती थीिं ।

ुबह

ुबह

जहाज़ किंधार एअरपोटि पर लैंड हो गगया। र्पछली दफा जब हम आये थे तो काबल एअरपोटि पर लैंड हुआ था। पहाड़ों खड़ा था। दो घिंटे बाद इ

े नघरी यह एअरपोटि छोटी

ी थी। एक एरोप्लेन पहले ही रनवे पर

अमत ृ र लैंड हो गए। इ

दफा हमें लेने के सलए कुलविंत के र्पता जी और उ

प्लेन में हम अमत ृ र की तरफ उड़ने लगे। जल्दी ही हम

के मामा जी

का लड़का नछिं दा आया हुआ था। उन की ऐम्पबैज़डर कार में बैठ कर हम जीटी रोड पर दौड़ रहे थे। रास्ते में हम कहीिं खड़े नहीिं हुए और कुछ ही घिंटों में रानीपरु हम अपने घर के गेट के

ामने खड़े थे। छोटे भाई ननमिल ने गेट खोला और मेरे गले सलपटकर ऊिंची ऊिंची रोने

लगा। दोनों भाई काफी दे र इ

हालत में रहे और कफर मैं माूँ के गले सलपट गगया ,बाबा जी

भी नज़दीक ही थे। जो वातावरण उ

मय था ,उ

को शब्दों में सलखा नहीिं जा

कता।

हमारे बच्चे घबराये हुए है रान हो रहे थे , उनको क्या पता था कक यह ब क्या हो रहा था। अजीब दे श ,अजीब लोग और अजीब वातावरण , बच्चे हमे हुए हमारी तरफ दे ख रहे थे।

कुछ पड़ो ी भी आ गए थे और बातें होने लगी। कै े हुआ , क्या हुआ ,क्यों हुआ भी बातें बता रहे थे। छोटे भाई की पत्नी परमजीत र ोई में चाय बनाने लग गई थी , उ को हम ने पहली दफा दे खा था क्योंकक छोटे भाई की शादी पर मैं आ नहीिं उ

वक्त पािंच

उ ने रीटा और का

ुभाव शुर

ाल की ही थी लेककन वोह शुर िंदीप जो उ

वक्त एक

का था। बड़ी बबदटआ र्पिंकी

े ही अपनी उम्र

ाल का ही था

भी को

े कहीिं ज़्यादा बड़ी थी , िंभाल रखा था। र्पिंकी

े ही कक ी रकार के खझझक

े बहुत दरू है । मैंने उ को काफी कुछ मझा ददया था और वोह मेरे दादा जी के ाथ अच्छी तरह घुल समल गई थी। दादा जी अब बहुत बढ़ ू े हो चक् ु के थे और उनको ऊिंचा न ु ाई दे ता था। र्पिंकी ने जब कोई बात दादा जी को बतानी होती तो दादा जी के कान के नज़दीक जा कर ऊिंची

े बोल दे ती। दादा जी बच्चों के


ाथ बहुत खश ु होते। मेरे र्पता जी , दादा जी के अकेले बेटे थे। कोई भी जान कता है कक बेटे के जाने का दुःु ख ककया होता है लेककन रीटा र्पिंकी और िंदीप ने उन के दुःु ख को काफी कम कर ददया था।

बहुत लोगों को हमारे आने का पता चल गया था , इ सलए द ू रे ददन हमारे घर में बहुत लोग आ जा रहे थे। बातों ही बातों में मैंने अपने पने का जज़कर ककया जज में मैं कुएिं में गगरा था। बहुत लोगों को उ कुएिं के बारे में पता ही नहीिं था क्योंकक वोह तो बहुत वर्ि पहले मट्टी े भर ददया गगया था और उ के ऊपर अब खेत थे। मैंने भी जब का वोह

कुआिं दे खा हुआ था ,उ वक्त मेरी उमर पािंच छै वर्ि े ज़्यादा नहीिं होगी। एक आदमी जो मुझ े बड़ा था ,बोला ” ओ हाूँ , तू ठीक है ,किंू आिं होता था ,जज के नज़दीक आम का बक्ष ृ होता था ,उ

को तो बहुत वर्ि हुए भर ददया गगया था “. कफर एक बज़ुगि कक ी आदमी का नाम ले कर बोला कक यह कूँु आ उन के खेतों में हुआ करता था। इ बात े भी है रान हुए कक जब र्पता जी गगरे थे , उ ी मैं बहुत दफा ोचा करता हू​ूँ कक यह

मय ही मुझे इिंगलैंड में

पना आया था। इ

बात को

ब क्या था।

उ ी ददन बहादर का भाई लड्डा भी आ गगया और हमारी बहुत बातें हुईं। मेरे ताऊ ाहब रतन स हिं और उन के बेटे यानी मेरे बड़े भाई गुरचरण स हिं भी आये। गुरचरण स हिं के मिंह ु े शराब की बू आ रही थी और उ

े वोह बहुत खश ु था। ताऊ जी तो शाम को नशे में धत्त ु थे , ज़ादहर ही था कक वोह बहुत खश ु थे लेककन हम तो बचपन

की बातों

े पता चल रहा था कक ददल

े ही ऐ ी बातें दे खते आये थे जै े इिंडडया पाककस्तान की बातें

रहा है । लड्डे ने भी इ

ुनता आ

बात का मुझे जज़कर ककया था कक “यार तेरा ताऊ कह रहा था कक

अच्छा हुआ मर गगया “लेककन मैंने उ को कहा था कक “हरसमिंदर ! हमें ऐ ी बातों े कोई फरक नहीिं पड़ता ,हम तो बचपन े ही इन बातों के आदी हो चक् ु के हैं ” . इ बात को चार ददन हो गए। अक्तूबर का महीना शुर हो गगया था और उ द

वजे का वकत था ,एक आदमी जज

का नाम

ददन ठिं ड बहुत थी। ब ु ह नौ िं ा स हिं था ( यह वोह ही इिं ान था त

जज

ने बहुत वर्ि पहले गाूँव में आये दो ाधओ ु िं को पीटा था और उन की स तार तोड़ दी थी ) हमारे घर आया और आते ही बोला ,” ओए ननमिल स हिं , तुम्पहारा ताऊ एक मील दरू कैल पर (गाूँव के नज़दीक छोटी जाना और कक ी और को भी

ी नदी ) गगरा हुआ है और जाते वक्त एक चारपाई भी ले ाथ लेते जाना । िंता स हिं ने हमें ही बात नहीिं बताई कक

ताऊ जी की तो पहले ही मत्ृ यु हो चक् ु की थी। ननमिल र्वचारा इन बातों शख्

को

े बेखबर एक और

ाथ ले कर ताऊ जी को चारपाई पर सलटा कर ले आया और ताऊ जी के शरीर

को गुरचरण स हिं के घर छोड़ आया। गुरचरण स हिं की पूरी कोसशश थी कक मेरे भाई पर इल्जाम लग जाए लेककन गाूँव के लोग हमारे

ाथ थे और

रपिंच तो खा

कर हमारे घर

की शराफत को जानता था। बहुत े लोगों ने गरु चरण स हिं को भी मझाया कक ताऊ जी की लाश हस्पताल में खराब हो जायेगी , इ सलए िंस्कार जल्दी कर ददया जाए।


अब गुरचरण स हिं की बेटी गुड्डी जज थी , ु राल

े उ

स हिं भी अफ्रीका इज्जत के

का हाथ मशीन में आ कर एक ऊूँगली काट हो गई

के आने का इिंतज़ार करने लगे। दो ददन पहले ही मेरे बड़े भाई अजीत

े आ गए थे। हम तीनों भाईओिं ने ताऊ जी को नहलाया और ताऊ जी को

ाथ अथी पर सलटाया और तीनों

भाई ताऊ जी के लड़के गुरचरण स हिं के

, समल कर अथी को ले जाने लगे। हमारे दादा जी भी

ाथ

ाथ थे और रो रो कर गुरचरण स हिं

को बोल रहे थे कक उन के दोनों बेटे इतनी जल्दी उनकी आूँखों के

ामने

े चले गए और

वोह अभी तक यह

ब दे खने के सलए जीर्वत थे। गरु चरण स हिं भी रोता हुआ बोल रहा था ,” चाचा ! तम ु ने यह दुःु ख दे खने थे “ ताऊ जी को उन की आखरी मिंजज़ल तक हम उन्हें छोड़ आये थे। इतनी दश्ु मनी होने के बावजूद भी हम कफर चलता…

े एक हो गए थे।

ब लोग है रान थे कक


मेरी कहानी – 100

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन February 01, 2016 हमारे र्पता जी और हमारे ताऊ जी इ अपने लोगों

दन ु ीआिं

े ही समले वोह इतने थे कक हमारा

जाता लेककन कहते हैं कक आप का लोगों के

े चले गए थे लेककन जो जो दुःु ख हमें

ारा खानदान हमेशा के सलए ज़ख़्मी हो

ाथ अच्छा र्ववहार कभी बेअथि नहीिं जाता

.ताऊ जी के जाने के बाद जो कुछ हुआ ,इ में लोगों ने हमारी बहुत मदद की . एक बात मेरे ज़हन में हमेशा रहती है कक अगर ारे बजुगि कहीिं े जजिंदा हो कर मेरे ामने पािंच समनट के सलए ही आ जाएूँ तो मैं उन

े पूछू​ूँ कक तुम खामखाह एक द ु रे

े दश्ु मनी रखते

रहे और एक द ु रे की मौत पर खश ु ी मनाते रहे ,तो रहे तो तुम खद ु भी नहीिं ,कफर काहे को द ू रों को दुःु ख दे ते रहे ,एक द ु रे का नुक् ान करते रहे . शर ु

े ही हमारे घर की एक ऐ ी मररआदा थी कक जज

के कारण लोग हमारे घर

े अछे

वाप

आ कर बनाया था और यह हमारा ती रा घर था . द ु रे दो घर बेच ददए गए थे .यह

ताउलक रखने के इछुक होते थे . अब यह हमारा घर गाूँव के बाहर र्पताजी ने इिंगलैंड घर हमारे खेतों

े दो

ौ गज के फा ले पर ही था ,जब कक द ु रे घरों

े हमारे खेत बहुत दरू हुआ करते थे क्योंकक घर गाूँव के बबलकुल द ू री ओर था . अब तो लोगों ने बहुत बड़े बड़े मकान बना सलए हैं लेककन उ वक्त हमारे घर को लोग कोठी वाले भी कह दे ते थे . जब पहले पहल र्पताजी ने मकान के सलए कक ी

े ज़मीन खरीद कर यह मकान बनाया था

तो यह घर अकेला ही होता था ,इदि गगदि घर बहुत दरू दरू थे ,इ सशफ्ट होना चाहती नहीिं थी कक वोह कक के ाथ बातें करे गी . दादा जी बताया करते थे कक माूँ इ था ,कफर भी उ

का मन इ

सलए माूँ इ

घर में

घर में रोया करती थी बेछक यह घर बड़ा और

ुन्दर

घर में लगता नहीिं था .पुराने घर में तो वोह हर दम औरतों

नघरी रहती थी ,कोई चरखा ले कर बैठी होती ,कोई कढ़ाई का काम करती ,कोई यों ही वक्त पा

करने के सलए बैठी होती और इधर उधर की बातें करती रहतीिं। कुछ दे र बाद इ

घर के पा

नए

भी धीरे धीरे कुछ मकान और बन गए और माूँ को पड़ो ी समल गए ,खा

एक घर जो हमारे घर के

कर

ामने बना था उ े में कई भाई रहते थे और उन में तीन चार

भाई तो गिंग ू े ही थे। वोह बहुत अजीब बोलते थे ,उन की कोई बात मझ नहीिं आती थी लेककन माूँ का उन े मोह र्पयार बहुत बढ़ गगया था, माूँ उन की हर बात उन को इछारों

मझ जाती थी और जब वोह हमारे घर में नहीिं होते तो माूँ उन की समम्पकरी करके उन की

बातें हमें बताती । यह

भी लड़के खेती का काम करते थे और बहुत मझदार थे। हमारे घर में आते जाते ही रहते थे और माूँ े बहुत लगाव रखते थे इ सलए जल्दी ही माूँ का ददल इ

घर में लग गगया था । जब पहली दफा हम ने उन गूिंगे लड़कों को दे खा था तो हमें

बहुत अजीब लगा था लेककन धीरे धीरे हमारे सलए भी

ब नॉमिल हो गगया।


पता नहीिं ककतने

ालों

े हम जट्ट मुहल्ले में रहते रहे थे और एक एक घर को हम अच्छी

तरह जानते थे। यह जट मुहल्ला काफी बड़ा था और इ तरखान ब्ाह्मण समश्र और पाटीशन

े पहले तो मु लमान भी रहते थे और मैं तो मु लमान

औरत रहमी के घर उन के बच्चों के जज़आदा कम्पबोज लोग ही थे ,इ

में जज़आदा तो जट ही थे लेककन

ाथ खेलता भी रहता था लेककन इ

सलए इ

नए घर के करीब

को कम्पबोज मुहल्ला कहते थे . यहाूँ आने

े नए

पड़ो ी समल गए थे .बेछक हमारा गाूँव काफी बड़ा था लेककन इन कम्पबोज लोगों के भी पहले े हम काफी वाकफ थे ककओिंकक हमारे खेत और कूआिं कम्पबोज मह ु ल्ले के नज़दीक ही थे

और अपने खेतों को आने जाने गाूँवों की एक खा

बात यह होती है कक गाूँव चाहे ककतना भी बड़ा ककयों ना हो

एक द ु रे को जानते ही होते हैं ,इ उ े कोई खझजक नहीिं थी .

की ररिंग रोड पर ही था और को आ ानी

भी कम्पबोज लोग वाकफ थे .

सलए माूँ जल्दी ही लोगों

ब े बड़ीआ बात इ ड़क पर

े भीतर ले आया जाया जा

भी लोग

े घुल समल गई थी और अब

घर की यह थी कक यह घर बबलकुल गाूँव

े ही घर को जाने के सलए बड़ा गेट था जज

े कार

कता था। कुछ ही वर्ों में गाूँव में ककतनी तब्दीली

आ गई थी। बहुत पहले मैंने सलखा था, जब हमारे ारे गाूँव के ऊपर ऊपर े एक रास्ता बनाया गगया था और बहुत लोगों की जमीिंन इ रास्ते के कारण खराब हो गई थी तो बहुत झगडे हुए थे। तब इ नए रास्ते को कफरनी बोलते थे। अब यही रास्ता एक ररिंग रोड बन गगया था और यह

ारी

ड़क पक्की बन गई थी। इ

ररिंग रोड पर अब दोनों ओर मकान

दक ु ाने वकिशौपें और बैंक बने हुए हैं। अब तो राणी पुर शहर जै ा बन गगया है । 1973 में जब हम गए थे तो ररिंग रोड पर इतने मकान अभी बने नहीिं थे। बड़े भाई अजीत स हिं भी अफ्रीका

े आ गए थे , मैं और छोटे भाई ननमिल ने बड़े भाई को

बहुत वर्ों बाद दे खा था। र्पताजी के जाने के बाद घर में हमें बहुत परे शानीआिं आने लगीिं थी। हम तो बाहर ही रहते थे ,स फि छोटे भाई ननमिल को ही ारी बातों का पता था। पहली बात तो यह थी कक र्पता जी ने बहुत लोगों को उधार पै े ददए हुए थे जज के पेपर तो ननमिल के पा ही थे लेककन जजन जजन लोगों ने पै े सलए थे , भी कह रहे थे ,” आप के र्पता जी का हमारे

ाथ ररश्ता भाईओिं जै ा था ,हम ने उ

को पै े वाप

दे ददए थे लेककन

हम ने कोई सलख सलखाई नहीिं की थी ,ओ जी हमारी तो बहुत मुहबत थी उन के ाथ “. भी ऐ ा कह रहे थे और आखर में कक ी ने एक भी पै ा हमें वाप नहीिं ककया था। अब हमारे पा उ

इतना वक्त तो था नहीिं कक हम कोटि में के

को भी अभी इतनी

करें ,ननमिल अभी छोटा था और

मझ नहीिं थी। आखर में हम पै े को भूल ही गए लेककन जो पै े

हमारे र्पता जी के बैंक में थे और ज़मीन थी उ का तो कोटि में ही होना था। कुछ ददन हम फगवाड़े कचहरी में जाते रहे और

ारा काम जल्दी ही हो गगया।

अब एक मु ीबत यह थी कक र्पता जी ने गें हू​ूँ तो खेतों में बीज दी थी लेककन अभी कुछ और

फ लें बीजने वाली थीिं लेककन र्पता जी ने ट्रै क्टर बेच ददया था और नया लेने का र्वचार था।


ननमिल को ही इन बातों के बारे में पता था। खेतों में हल चलाने के सलए कुछ नहीिं था। कफर मेरे ददमाग में आया कक बहादर के भाई लड्डे के पा ारी बात उ

ट्रै क्टर था। मैं उ

के घर गगया और

को बताई और पै े दे ने के बारे में बोला। लड्डे ने अपने चाचा गुरदयाल स हिं

के लड़के को ट्रै क्टर दे कर भेज ददया। (बहादर के चाचा जी गुरदयाल स हिं जो राणी पुर

स्कूल में मास्टर भी हुआ करते थे और हम उन े पड़ा करते थे ,दो ाल हुए 90 ाल के हो कर यह िं ार छोड़ गए हैं ). गुरदयाल स हिं का लड़का दे र्वन्दर जज को उ वकत कुक्कू ही बोलते थे ट्रै क्टर ले कर आ गगया और

ारे खेतो में हल चला ददया। मैंने कुक्कू को

पै े दे ने की बहुत कोसशश की लेककन उ ने पै े सलए नहीिं ,कफर मैं घर गगया और लड्डे को पै े दे ने की कोसशश की लेककन वोह गस् ु े हो कर कहने लगा ,” यार गरु मेल !कै ी बातें करता है तू ,यह छोड़ ,कोई और काम हो तो बता “. कफर मझ ु में कुछ और कहने की दहमत्त नहीिं हुई।

यों तो मैंने खेती का

ारा काम ककया हुआ था लेककन अब की बातें और थीिं .खेतों में ट्यूबवैल लगा हुआ था ,जज पर बबजली कभी आती थी और कभी नहीिं आती थी । ट्यूबवैल वाले कमरे की छत पर एक बल्व लगा हुआ था जो हमारे घर े ददखाई दे ता था। जब ही बबजली आती बल्व जग जाता और हम भाग कर ट्यूबवैल की ओर भाग जाते और ऑन कर दे ते ,जज

र्वच

े पानी खेतों को जाना शुर हो जाता। कुछ घिंटे बबजली रहती ,कुछ

खेतों को पानी आ जाता और कफर अचानक बबजली चले जाती। ऐ े ही बबजली की आूँख मचोली लगी रहती।

ारा काम तो ननमिल ने ही

हर बात का इल्म था और हम तो उ

िंभाला हुआ था क्योंकक गाूँव में रहते उ को की मदद ही करते थे जज े उ का हौ ला भी

दग ु ना हो जाता था । शायद द िंबर का महीना आ गगया था और गें हू​ूँ भी अब आधा फुट ऊिंची हो गई थी ,इ सलए पानी की जरुरत तो लगी ही रहती थी। कफर एक ददन अचानक ट्यूबवैल खराब हो गगया ,बहुत कोसशश की लेककन ठीक नहीिं हुआ। अब मैं और बड़े भाई कुछ जानते नहीिं थे ,ननमिल कहने लगा ,” भाई ! निंगल परोड़ गाूँव में एक मकैननक है वहािं चलते हैं “. मैं और ननमिल दोनों बाइस कल ले कर निंगल को चल पड़े। मकैननक घर पर ही था ,उ

े बात की और वोह उ ी वक्त हमारे

ाथ चल पड़ा। उ ने आ

कर बहुत कोसशश की ,कभी पानी आने लगे कभी अचानक बिंद हो जाए। कफर उ की मझ में आया कक बोर ककये हुए पानी के पाइप में कहीिं छोटा ा छे द है जज के कारण पाइप में हवा आ जाती है और रेशर कम हो जाता है और पानी आना भी बिंद हो जाता है । कफर उ ने एक नया तरीका ढूिंढा ,उ

ने बाहर का पाइप यहािं

ाइज़ की एक लकड़ी बना कर उ

को पाइप में ठूिं

े पानी आता है उ ददया और हथौड़े

को पाइप के े ठोंक ददया। कफर

र्वच ऑन कर ददया। एक समनट में ही इतना रेशर हुआ कक पानी जोर े आने लगा। आधा घिंटा वोह मकैननक हमारे पा रहा और बोला ,” नक तो अभी है ,लेककन जब तक ु चलता है तम ु अपना काम चलाओ ,कफर कक ी ददन मैं दे ख लिंग ू ा “.


वोह चला गगया ,दो घिंटे पानी आता रहा और कफर अचानक बिंद हो गगया। बहुत कोसशश की हम ने ,जो मकैननक ने लकड़ी का टुकड़ा पाइप में ढू​ूँ ा था ,वोह भी हम ने ठूिं कर दे खा

लेककन अब तो ट्यूबवैल ने बबलकुल ही जवाब दे ददया, मैं ना मानूिं वाली बात हो गई। शाम

हो गई थी ,ननराश हुए हम घर आ गए। मैं और बड़े भाई ने तो गाूँव े वाप आ जाना था लेककन ननमिल भाई ने तो वही​ीँ रहना था, उ का चेहरा दे खकर मुझे बहुत दुःु ख हो रहा था। एक कक ान को ककतनी मु ीबतों का

ामना करना पड़ता है ,यह दे श की हकूमत जान ले

नौबत पर आ जाए तो दे श में अकाल

िंकट ककतनी दे र तक बचाया जा

तो इतनी खद ु कशीआिं नहीिं होंगी ,जब अन्दाता ही मु ीबतें झेल झेल कर भख ू ों मरने तक की

कता है । बचपन में

धनी राम चाबरक की एक पिंजाबी की कर्वता कक ान के बारे में पड़ा करते थे ,जज

में उ

ने कक ान की हालत बबआन की हुई थी जो बहुत लम्पबी कर्वता थी। उन्होंने सलखा था ,” ऐ कक ान ! मठ ु र्वच तेरा कालजा बदलािं र्वच गधयान ” यानी बार्ि न हो तो तब भी दुःु ख ,ज़्यादा बर्ि हो जाए तो भी दुःु ख।

जब हम घर आ गए तो तीनो भाई मशवरा करने लगे कक अब ककया कीया जाए क्योंकक फ लें

ूखने का डर बना हुआ था और दी भी बढ़ रही थी। हमारे घर में एक तरफ बहुत बड़ा इिंजजन रखा हुआ था जो र्पता जी ने बहुत पहले सलया था। यह इ सलए सलया था कक उ वक्त हम को ट्यूबवैल के सलए बबजली का कुनैक्षन अभी समला नहीिं था और इ सलए

ट्यूबवैल, इिंजजन पर ही चलता था। यह बहुत बड़ा इिंजजन था , जै े पहले पहले आटा पी ने वाली चजक्कओिं के होते थे। यह रे लवे इिंजजन की शकल का था। ननमिल कहने लगा ,” भैया इ

इिंजजन को खेतों में ले जाना कुछ कदठन है लेककन इ

लेककन यह इिंजजन हमारे ट्यब ू वैल पर चल नहीिं

कता ,इ

ट्यब ू वैल पर ले जाना होगा जो इिंजजन पर ही चलता है “. ननमिल एक पड़ो ी के घर गगया और उ

े हमारा काम चल

कता है

सलए एक द ू रे कक ान के

को कहा कक कुछ दे र के सलए वोह अपने बैल हमें

दे दे ,ताकक हम अपने इिंजजन को खेत तक ले जा

कें। इिंजजन को चार लोहे के छोटे छोटे

पदहये लगे हुए थे। बड़े भाई इिंजजन मकैननक थे ,उन्होंने इिंजजन की र्वि कर दी और इिंजजन को एक हैंडल े घुमाया। धक धक धक आवाज़ आखण शुर हो गई और इिंजजन चल पड़ा और ऐग्ज़ॉस्ट पाइप जो ऊपर की तरफ जाता था ,उ

में

ककया और इिंजजन का धुआिं चैक ककया। इिंजजन ठीक

े धआ ु िं ननकलने लगा । तेज़ स्पीड पर

े चल रहा था।

ुबह को इिंजजन खेत में

ले जाने का रोग्राम तय हो गगया ,शाम हो गई और माूँ आवाज़ दे रही थी ,” आ कर रोटी

खा लो !” . हम र ोई की तरफ चले गए जो बाहर ही बनी हुई थी। माूँ मक्की की रोटीआिं पका रही थी और एक तरफ ाग वाली कड़ाही पडी थी जो धीमी आिंच पर रखी हुई थी और उ

में

े ल ुन और अधरक की खशबू आ रही थी। दे ख कर हमारी भूख भी तेज़ हो गई थी

और हमारा चलता…

ारा गधयान खाने की तरफ हो गगया था।


मेरी कहानी – 101

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन February 04, 2016 र ोई घर में बैठे बैठे तीनों भाई बड़े मज़े भी रख दे ती थी) के

ाग (जज

के ऊपर माूँ अक् र घर का माखन

ाथ मक्की की रोटीओिं का मज़ा ले रहे थे और

प्लैन भी बना रहे थे.

ाथ ही द ु रे ददन का

ददि ओिं के ददन थे और चल् ू हे की आग का मज़ा भी ले रहे थे। बच्चों

ने भी वही​ीँ रोटी खा ली थी, और

भी खा कर बड़े कमरे में चले गए थे जज

में अिंगीठी में

कोएले जल रहे थे। हम तीनों भाई दे र रात तक र ोई में ही बैठे बैठे बातें करते रहे . आज तो र ोई गै

े ही खाना बनाया जाता है , इ

कता लेककन उ

सलए अब हाथ ताप्ने का वोह मज़ा तो आ नहीिं

मय घर का बालणिं (लकड़ीआिं आददक) होता था जज

की कोई कमी

नहीिं थी और चल् ू हे के नज़दीक बैठने का अपना ही एक मज़ा होता था. दे र रात तक बैठने के बाद हम

ो गए।

ुबह उठ कर हर काम

े फारग हो कर और परौठे खा कर इिंजजन को

ट्यूबवैल पर ले जाने का रोग्राम बनाने लगे। ननमिल एक शख्

जज का नाम मुझे याद नहीिं

के घर गया जजन े बैल लेने थे। कुछ ही दे र बाद ननमिल दो बैल ले आया। ननमिल ने ही दो मोटे रस् े इिंजजन के आगे बाूँध ददए। दोनों बैलों के गले में लकड़ी का एक फ्रेम जज पिंजाली कहते थे

े बाूँध ददए गए। इिंजजन के दोनों तरफ के रस् ों को इ

को

पिंजाली के बीच में

बाूँध ददया और बैलों को चलना शुर कर ददया। इिंजजन बहुत भारी था और इ के छोटे छोटे पदहये कुछ कुछ ज़मीन को काट रहे थे। क्योंकक ड़क ाथ ही थी, इ सलए जल्दी ही ड़क

पर चलने लगे। बैलों का बहुत जोर लग रहा था, इ सलए बहुत धीरे धीरे चल रहे थे। खेत मुजश्कल े दो ौ गज़ के फा ले पर ही थे, इ सलए ड़क पर जाते कोई खा तकलीफ नहीिं हुई लेककन यों ही ड़क े उत्तर कर इिंजजन को खेत में लाये तो पदहये खेत में धिं ने लगे। इ खेत में ज़्यादा े ज़्यादा हमने पची ती गज़ ही जाना था लेककन बैलों का बहुत जोर लग रहा था और एक बैल की एक टािंग पर इिंजजन लग कर छोटा ा ज़ख़्म भी हो गगया।

खेत में तकरीबन आधा घिंटा लग गगया था लेककन हम कामयाब हो गए और इिंजजन को ठीक जगह पर ले आये। इिंजजन को लैवल ककया और वील पर बैल्ट रखके उ

का द ू रा दहस् ा

ट्यब ू वैल पिंप के वील पर चढ़ा ददया। इिंजजन के आगे हैंडल लगाया और जोर जोर को घम ु ाया, धक धक धक होने लगी और पाइप गगया।

ननमिल बैलों को उ

शख्

े इिंजजन

े पानी आने लगा। हमारा मन खश ु हो

के घर छोड़ने चला गगया और मैं फावड़ा ले कर खेतों की और

जाने लगा और दे खने लगा कक कहीिं पानी लीक ना हो। यहीिं कहीिं मैं कोई लीक हो जाने वाली जगह को दे खता उ को फावड़े

े बिंद कर दे ता। जब ननमिल बैल छोड़ कर वाप

आया

तो मैंने कहा, “ननमिल, मुझे एक गचिंता हो रही है कक यह ट्यूबवैल ननचली जगह पर है जब

कक हमारे खेत कुछ ऊिंचाई पर हैं, पानी हमारे खेतों में पहुिंचग े ा भी या नहीिं ?”. नहीिं नहीिं कोई खा फरक नहीिं लगता, ननमिल बोला। दरअ ल हमारे खेत ड़क के एक ओर थे और


ट्यूबवैल

ड़क की द ु री ओर था। पानी जाने के सलए

ड़क के नीचे

े एक पाइप डाला

हुआ था। मैं और बड़े भाई अजीत स हिं ट्यूबवैल के नज़दीक बैठ कर रे डडओ पे गाने ुनने लगे और ननमिल फावड़ा ले कर हमारे खेतों की ओर चले गगया ताकक खेत की एक एक क्यारी को पानी दे ता रहे । हम दोनों भाई कभी ताश खेलने लगते कभी बातें करने लगते और कभी रे डडओ

ुनने लगते। वक्त का पता ही नहीिं चला और माूँ हमारे सलए दप ु हर का खाना

ले कर आ गई। दोनों भाईओिं ने खाना खाया और कफर माूँ ननमिल को खाना दे ने चल पड़ी।

शायद दो तीन वज गए होंगे, मैंने बड़े भाई को बोला कक मैं ज़रा दे ख आऊिं कक ककतने खेत पानी

े भर गए थे। जब मैं ननमिल के पा

पहुिंचा तो दे खा, ननमिल उदा था और कहने लगा, “एक घिंटा पहले ही पानी यहािं पहुिंचा है और वोह भी अच्छी तरह आता नहीिं, स फि एक ककआरा ही भरा है ”. दे ख न ु कर मैं भी उदा हो गगया और कहा कक मझ ु े तो पहले ही शब ु ाह था कक यह

ाइड ऊिंची थी। कुछ दे र बाद बड़ा भाई भी आ गगया और हम बातें करने लगे

कक अब ककया कीआ जाए। तो था नहीिं, इ

ोच

ोच कर ननमिल बोला कक अब हमारे पा

सलए जजतना भी हो

और कोई चारा

के हमें रोज़ रोज़ आना पड़ेगा। काम तो एक ददन का

था लेककन अब शायद हफ्ता लगा जाए लेककन काम तो करना ही था और डीज़ल और ले आएिंगे। तीनों भाई कफर ट्यूबवैल की और जाने लगे और दे खा कक पानी उछल उछल कर लोगों के खेत ही भर रहा था। ठिं ड बढ़ने लगी थी और अूँधेरा होने को था क्योंकक

ददि ओिं के

ददन छोटे होते हैं। कुछ दे र और बैठ कर हम ने इिंजजन बिंद कर ददया और घर की और जाने लगे।

घर पहुिंचे तो दादा जी पूछने लगे, “काम हो गगया ?”. हम तीनों हिं पड़े, “कुछ अभी रहता है ” कहकर हम भीतर चले गए। बातें तो हम कर रहे थे लेककन हम को पता नहीिं लगता था कक हिं ें या रोएूँ। कुछ दे र बाद रोटी की आवाज़ आने लगी और हम कफर र ोई में बैठ कर बातें करने लगे। इ

रात ठिं ड बहुत ज़्यादा थी और पाला बहुत पढ़ रहा था, इ सलए हम जल्दी ही उठकर भीतर आ गए। आज तो लोग दे र रात तक टीवी दे खते रहते हैं लेककन उ वक्त अभी भी लोग रात का खाना खा कर जल्दी ही रजाईओिं में घु खाना खा कर हम कफर

जाते थे।

ीधे ट्यब ू वैल की ओर चले गए। चारों तरफ घा

पर

ब ु ह उठकर,

फेद चादर

ी दीख रही थी क्योंकक पाला इतना था कक पानी जम गगया था। इिंजजन के आगे हैंडल फिं ाया और घुमाने लगे लेककन स्टाटि नहीिं हो रहा था। काफी दे र के बाद इिंजजन स्टाटि हो

गगया लेककन दो समनट बाद ही बिंद हो गगया। कई दफा स्टाटि ककया लेककन हर दफा बिंद हो जाता। ननमिल को याद आ गगया, उ गाहड़ा हो गगया था। इ

ने डीज़ल वाला किंटे नर दे खा तो डीज़ल जम कर बहुत डीज़ल के किंटे नर को इिंजजन े उतार सलया गगया। कुछ बालणिं

इकठा करके आग जलाई और उ

के ऊपर कुछ दरू ी पर किंटे नर को रखा, धीरे धीरे डीज़ल

पतला हो गगया। यह खेल खतरनाक भी हो

कता था लेककन ननमिल को इ का आडीआ था।

जब डीज़ल के किंटे नर को ऊपर रखा और इिंजजन स्टाटि ककया तो इिंजजन चल पड़ा। पानी आने


लगा। घर

े कुछ पुराने कपडे ले आये और किंटे नर के इदि गगदि सलपट ददया ताकक डीज़ल

गमि रहे जमे नहीिं। कफर

े काम शुर हो गगया। थोह्ड़ा थोह्ड़ा काम रोज़ होने लगा।

एक ददन वोही मकैननक कफर आ गगया और आते ही बोला, ” मुझे एक आईडीआ आया है , कक इ ी पाइप में छोटे

ाइज़ का पाइप लोर कर ददया जाए, इ

े यहािं भी लीक है वोह

बिंद हो जाएगा, पानी कुछ कम आएगा लेककन इतना ज़्यादा फरक नहीिं पड़ेगा”. हम ने उ को हाूँ बोल ददया और द ू रे ददन ही जज

ाइज़ के पाइप उ ने कहे थे, फगवाड़े

े हम एक

रे हड़े पर रख कर ले आये। मकैननक भी आ गगया और काम शुर कर ददया। एक के बाद एक पाइप एक द ू रे

े जोड़ जोड़ कर वोह पहले पाइप में डालने लगा। जब

चले गगया तो उ

ने

र्वच ऑन कर ददया।

ारा पाइप नीचे तक

र्वच ऑन होते ही पानी की तेज़ धार आने

लगी, हमारे चेहरे खखल गए। दे खने में तो लगता था कक पानी पहले जै ा ही आ रहा था क्योंकक अब पाइप छोटा होने के कारण बहुत रेशर े आ रहा था। मकैननक भी अपनी कामयाबी पर खश ु था और बोला, “भाई ाहब अब तो कुछ खाने पीने का रोग्राम हो जाए। ननमिल

मझ गगया था कक वोह ककया चाहता था। ननमिल कक ी

े दे ी शराब की बोतल ले

आया। एक एक पैग हम ने भी सलया लेककन मकैननक को खश ु कर ददया। घर आ गए थे। माूँ ने अिंडों की भुजी बना ली थी क्योंकक घर में ही हमारी कुछ मुरगीआिं थीिं जो ननमिल ने

रखी हुई थीिं। मकैननक को रोटी खखलाई और जजतने पै े उ ने बोले हमने दे ददए। वोह भी खश ु ी खश ु ी ाइकल ले कर अपने गाूँव निंगल परोड़ को चले गगया। अब ट्यूबवैल ठीक हो गगया था और एक ददन में ही

भी खेत पानी

और

िंदीप तो अभी एक

बाद हम अपना इिंजजन भी बैलों

के बाद इिंजजन कभी इस्तेमाल नहीिं हुआ और बाद में कक ी को बेच ददया गगया था। अब हम बेकफक्र हो गए थे। अब मैंने रीटा र्पिंकी िंदीप की ओर भी गधयान दे ना शुर कर ददया।

कुलविंत उ

को कपडे की नापी लगाती थी, जब भी उ

होती कुलविंत

िंदीप के बॉटम को

कहने लगी, “क्यों मुिंडे को इ उ

े घर ले आये। इ

े भर गए। कुछ ददन

की नापी र्पछाब बगैरा

ाफ करके नई नापी लगा दे ती। एक ददन माूँ कुलविंत को

को हवा लगने दो “. इ

के बाद कुलविंत ने भी कभी

लिंगोट नहीिं बाूँधा। हमारे घर के एक तरफ गाये भैं ों के सलए जगह थी। उ का बड़ा

ा ढे र था।

िंदीप ददन को इ

कुछ

की ददकत थी। रोज़ रोज़ मट्टी में खेलने

मट्टी के ढे र

में एक मट्टी

े बहुत खेलता। इिंगलैंड में उ को े वोह बबलकुल ठीक हो गगया और उ

का वज़न भी कम हो गगया क्योंकक इिंगलैंड में वोह ओवरवेट था। लगाव था और ऐ ी आज़ादी इिंगलैंड में बबलकुल नहीिं थी। इिंगलैंड में तो मौ म की वजह

े खराब

मु ीबत में डालती हो, हर दम बािंध के रखती हो, क्यों नहीिं

को खल ु ा रहने दे ती, ज़रा उ

ािं

ाल का ही था और

िंदीप को मट्टी

े बहुत

े हर वक्त अिंदर ही रहना पड़ता था। र्पिंकी रीटा तो इतनी

खश ु थी कक उन दोनों को कभी कोई ले जाता, कभी कोई। गूिंगे उन को अपने खेतों में ले

जाते और वोह एक एक गन्ना पकडे हुए घर की ओर आती और हम उन को दे ख कर हूँ ते।


कभी वोह चने या मक्की के दाने ले कर भड्भून्जे की भट्टी को चले जाती और जब दाने

भून जाते तो दोनों घर की ओर चली आती। बहुत औरतें उन को इिंजग्लश बोलने को कहतीिं, और जब वोह बोलतीिं तो वोह बहुत खश ु होतीिं और हिं ती। आज तो ऐ ी कोई बात नहीिं है लेककन उ

मय इिंगलैंड में जनम लेने वाले बच्चे बहुत कम होते थे और इ ी सलए गाूँव के लोग उनको अिंग्रेजी बोलते दे ख कर बहुत है रान और खश ु होते थे। बहादर के भाई लड्डे की कुछ दे र पहले ही नई नई शादी हुई थी। लड्डे की पत्नी गुरमीत र्पिंकी रीटा को अपने घर ले जाती, उनका मेक अप करती और माथे पर बबिंदीआिं लगा दे ती। खब ू ूरत मेक अप्प में जब दोनों बहने कम्पबोज मोहल्ले में घूमतीिं तो मोहल्ले के बच्चे उन

के आगे पीछे चलने लगते। मेरा खखयाल है हमारे बच्चों की यह बैस्ट हॉसलडे थी और र्पिंकी रीटा को यह

ब अभी तक याद है । दादा जी के पा

तो वोह हर दम आती जाती रहती और

दादा जी हमारे र्पता का दुःु ख भूल कर बच्चों में खो गए थे। चलता…


मेरी कहानी – 102

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन February 08, 2016

ट्यब ू वैल अब ठीक ठाक चल रहा था और खेतों के काम

े फु त ि समल गई थी। अब बड़े

भाई अजीत स हिं अपने दोस्तों और भाबी के ररश्तेदारों को समलने जाने लगे थे । बड़े भाई के अफ्रीका के कुछ दोस्त और कुछ ररश्तेदार थे जजन को समलने वोह रोज़ जाते थे । इधर हम भी अपने बच्चों को

शहर ले जाने लगे। उ

जाती नहीिं थी ,स फि ताूँगे ही चलते थे। घर के

मय हमारे गाूँव ामने ही

शहर को कोई ब

अभी

ड़क थी , इ सलए घर के बाहर

ननकल कर तािंगे

की इिंतज़ार करने लगे। जब तािंगा आया तो वोह भरा हुआ था। हम दे ख कर पीछे मुड़ने लगे तो तािंगे वाला बोला ,” आ जाओ जी ,जगह की कफक्र ना करो ,जगह

बहुत है “. कफर उ ने कुछ मु ाफरों को पीछे जाने को बोला और वोह द ू रे मु ाफरों में ही घु गए ,दो लड़के पीछे दाईं और बाईं तरफ पायदान पर ही खड़े हो गए और हमारे सलए जगह बना दी। हम बच्चों के कुछ घबरा बच्चे इ

ाथ आगे

े गए लेककन मैंने उन को सलए भी डर रहे थे कक

तािंगे वाले के पा

बैठ गए.जब तािंगा चला तो बच्चे

मझा ददया कक कफक्र करने की जरुरत नहीिं है ।

ड़क में जगह जगह खड्डे थे। तािंगा कभी एक तरफ जाता

तो कभी द ू री तरफ। द ु री बात यह थी कक घोड़ी अपनी पीठ

े मखीआिं उड़ाने के सलए पूँछ ू

को दहलाती तो पूँछ ू र्पिंकी को छू लेती

और वोह घबरा जाती ,मैं हिं

के कुछ ही दरू एक छोटी

का मैं पहले कई दफा जज़कर कर भी चक् ु का हू​ूँ

का हौ ला बढ़ गगया और वोह तािंगे की

पड़ता ,जज

े र्पिंकी

ड़क के दोनों ओर गें हू​ूँ और चारे के खेत थे और दरू दरू तक हरयाली ही हरयाली ददखाई दे ती थी। पहले कैल (गाूँव आई ,उ

ी नदी जज

वारी का मज़ा लेने लगी।

)

के पुल को पार करने के बाद एक मील की दरू ी पर ही बानि गाूँव आ गगया।

पुरानी यादों में खोया हुआ मैं उन ददनों को याद कर रहा था कक वोह ही घर आ गगया यहािं पपीते के छोटे छोटे बक्ष ू े भी कह दे ते थे । अब ृ हुआ करते थे जजन को अक् र अररिंड खरबज यहािं कुछ बदला बदला इ

ा लग रहा था।

ड़क के एक एक गज़ की कहानी मझ ु े याद थी ,इ

जगह ककया हुआ था ,उ जगह मज़ा ले रहा था। कुछ दे र बाद जब

ककया हुआ था ,याद करता करता तािंगे के फर का प्लाही गाूँव आया तो समन्दर स हिं की ाइकल ररपेअर की दक ू ान अभी भी वहािं थी लेककन समन्दर स हिं मझ ु े ददखाई नहीिं ददया। एक ददन कालज

े आते वक्त जब बहुत जोर की बारश हुई थी तो इ ी समन्दर स हिं की दक ु ान में हम ने शरण ली थी और उ ी वक्त जोर े बबजली कड़की थी और कुछ दे र बाद ही दो लड़ककआिं रोती रोती आ रही थीिं कक बबजली े उन के दो भाई भगवान को र्पयारे हो गए थे। इ ी दक ू ान पर अक् र दो लड़ककआिं जो

कहीिं टीचर लगी हुई थीिं आ जातीिं और कक ी को टायर में हवा भरने के सलए कहतीिं। दक ू ान े आगे गए तो काफी कुछ बदल गगया था। पहले हमें नहर के ाथ ाथ हुसशआर पुर रोड


को जाना पड़ता था लेककन अब

ीधी

ड़क फगवाड़े को जाती थी .

कुछ समनटों बाद ही

हम फगवाड़ा शहर पहुूँच गए और तािंगा पैराडाइज़ स नीमे के आगे आ कर खड़ा हो गगया। (अब तो पैराडाइज़ स नीमे की जगह बड़े बड़े दफ्तर और दक ु ानें हैं ). मैंने कैमरा ननकाला और तािंगे के ऊपर बैठे बच्चों की फोटो ली ,तािंगे वाला भी घोड़ी के

ाथ ही खड़ा था।

के बाद हम शहर में घूमने लगे। र्पिंकी कुछ बड़ी होने के कारण बहुत कुछ मझ रही थी ,मैं उ को अपने कूल के ददनों के बारे में बता रहा था .नाथ की ोडा वाटर की दक ू ान पर मैं बच्चों को ले गगया .भीतर जा कर था शाएद इ

ोडा वाटर का ऑडिर दे ददया .नाथ अभी भी तगड़ा

सलए कक वोह जवानी के ददनों में कुश्ती ककया करता था .नाथ बचों

करने लगा ,” यू वािंट कॉनि फ्लेक् एक डडब्बा कॉनिफ्लेक्

े बातें

,यू वािंट चौकलेट ?” बचों ने तो कान खड़े कर सलए .मैंने

का सलया और कुछ कैडबरी डेअरी समल्क चौकलेट सलए .दोनों बेटीआिं

तो खश ु हो गईं। बाहर आये और बाूँ ाूँ वाले बाजार में घूमने लगे। नाथ की दक ू ान के

ाथ

ही चमन लाल की ककताबों की दक ू ान होती थी जो शायद अभी भी होगी लेककन मुझे पता नहीिं ,उ

े कुछ ककताबें लीिं। इ

की दक ू ान होती थी जज

के कुछ दरू ही

ड़क के द ु री ओर हे मराज की हलवाई

में अब कोई और था क्योंकक हे मराज तो इिंगलैंड में ही हलवाई का

काम कर रहा था। मुझे ऐ ा लग रहा था कक अब भी मैं इिंडडया में ही रह रहा हू​ूँ। ारा ददन हम फगवाढ़े में घुमते रहे । बच्चे बहुत खश ु थे क्योंकक इतनी खल ु ी जगह बच्चों ने पहली दफा दे खख थी और आज़ादी मह ू

कर रहे थे। शहर में बहुत े दक ु ानदार तो अभी भी वोही थे सलए हमें दे ख कर दक ू ान े उठ कर बाहर आ जाते और भीतर आने की जज़द करते

,इ

,हम बहाना बना कर कक कफर कक ी ददन आएिंगे कह कर आगे चले जाते क्योंकक हम को पता था कक हम

े खश ु हो कर बोलने का उन का मक द तो कुछ न कुछ हम को बेचना

ही होता था। कक ी बड़े रै स्टोरैंट में खाना खाने की ही

खाना ठीक

वजाए हम ने खराएती के ढाबे पर

मझ क्योंकक यहािं का वातावरण घर जै ा ही होता था। खाना खा कर हम

कफर पैराडाइज़ स नीमे के नज़दीक पहुूँच गए और जाते ही एक तािंगा पहले ही खड़ा था। हम जा कर उ में बैठ गए। जब तािंगा स्वाररओिं े भर गगया तो हम राणी परु की ओर चलने लगे।

एक दो ददन राणी पुर

बबताने के बाद हम कुलविंत की बहन को समलने चल पड़े। कुलविंत

की बहन का घर फगवाड़े घर के मह ू

ामने

े दो ककलोमीटर की दरू ी पर निंगल

खेड़े गाूँव में

ही था। हम ने

े तािंगा सलया और फगवाड़े की ओर चल पड़े। अब बच्चों को कोई फरक

नहीिं हो रहा था और वोह तािंगे

तािंगा जा रहा था और मैं भी स्वाररओिं

की

वारी का मज़ा ले रहे थे। दहचकोले खाता हुआ े बातों का मज़ा ले रहा था। कई लोग तो ीधा ही

वाल कर दे ते ,” गुरमेल स हिं ! इिंगलैंड में ककतने रपए समल जाते हैं ,वहािं

,शीशे की हैं ?ठिं ड ककतनी है “. मैं भी उन को इ इिंडडया का कोई खा

ढिं ग

ड़कें कै ी हैं

े जवाब दे दे ता कक इिंगलैंड और

फरक नहीिं था । बातें करने में तो मझ ु े भी बहुत मज़ा आता था। आज


तो ट्रािं पोटि बहुत फास्ट हो गई है लेककन मुझे तािंगे की वारी करना बहुत प िंद हुआ करता था क्योंकक यह धीरे धीरे चलता था और गाूँव के लोगों े घल ु समल जाना मुझे बहुत अच्छा लगता था। जब द ु री दफा मैं 1981 में बेटे

िंदीप को ले कर गाूँव आया था तो उ

वक्त

टैंपू बहुत चल पड़े थे और तािंगे एक दो ही थे लेककन मैं टैंपू को छोड़ कर तािंगे में ही बैठना प िंद करता था। ताूँगा धीरे धीरे चलता था और लोगों े बातों का मज़ा ज़्यादा आता था और खा

कर तािंगे वाले की एक एक बात को गधयान

को मख ु ातब करके बोलता था। हम पैराडाइज़ स नीमे के नज़दीक पहुूँच गए थे। उ

ुनता था जो वोह घोड़े या घोड़ी

वक्त कोई ब

जाती थी ,स फि ररक्शे ही जाते थे। एक कमज़ोर

निंगल खेड़े को नहीिं

ररक्शे वाला हमारी तरफ आया ,”

ाहब ररक्शा चादहए ?” . ” निंगल खेड़े जाएगा ?” ,मैंने पुछा। उ

को बोला। हम

ने हमें ररक्शे में बैठने

भी बैठ गए और ररक्शे वाला धीरे धीरे चलने लगा। तीन बच्चे हमारे

ाथ

थे और ररक्शे वाले का बहुत जोर लग रहा था। यों तो हम इिंडडया े ही बाहर गए थे लेककन पता नहीिं क्यों जब भी भारती अपने दे श में आते हैं तो उन में अपने गरीब लोगों के रनत दया भावना बहुत बढ़ जाती है , और गरीबों की तरफ दे ख कर उन की हालत पे दुःु ख होता है । मैं ररक्शे वाले की टािंगों को दे ख रहा था ,जब वोह जोर लगाता था। ररक्शे वाला यू पी े आया हुआ था जो उ की बोल चाल े ही परतीत होता था। मुझे याद नहीिं ककया ककया बातें उन े मैंने की लेककन वोह खश ु खश ु ददखाई दे रहा था। जीटी रोड पर जाते जाते जब हम निंगल खेड़े की

ड़क पर चलने लगे तो

ड़क बहुत रफ थी,जगह जगह टूटी हुई थी और आगे रे लवे फाटक था जो कुछ ऊिंचाई पर था। अब उ े ररक्शा चलाया नहीिं जाता था और वोह नीचे उत्तर कर जोर जोर बोला और हम

े चढ़ाई चढ़ने लगा तो मैंने उ

को खड़ा होने को

भी नीचे उत्तर गए। वोह जज़द कर रहा था कक हम बैठे रहें लेककन मेरी

ज़मीर इजाजत नहीिं दे रही थी। रे लवे लाइन पार करके हम कफर बैठ गए। अब थी और ररक्शा चलने लगा और द

समनट में ही हम निंगल खेड़े

के दरवाज़े पर खड़े थे। कुलविंत की बहन कुलदीप जज खोला। ररक्शेवाले को जजतने पै े उ मठाई

कुलविंत की बहन के घर

को हम दीपो कहते हैं ने दरवाज़ा

ने बोले कुलविंत ने उ

के दो डडब्बे जो हम ने आते वकत शहर

ड़क अच्छी

े कुछ ज़्यादा ही दे ददए और

े खरीदे थे ,उन में

र गुल्ले ननकाल कर कुलविंत ने ररक्शेवाले को दे ददए और उ

े एक डडब्बे

े दो

को चार वजे के करीब आने

को कह ददया।

कुलविंत और दीपो गले लग कर समलीिं और मैंने भी

त स री अकाल बोला और दीपो के

पनत हरी स हिं

े हाथ समलाया। दीपो का घर बहुत पुराना है और अब भी वही है और यह मकान एक तिंग ी गली में है .घर का बाहर का दरवाज़ा भी बहुत पुराने ढिं ग और भारी लकड़ी का बना हुआ है . हूँ ते बातें करते बच्चों के ाथ हम अिंदर आ गए। दीपो ने एक एक बच्चे को

ीने

े लगाया और हरी स हिं ने

िंदीप को उठा सलया और उन

े र्पयार करने


लगा। बच्चों को यह वातावरण बहुत अच्छा लगा और खश ु हो गए। दीपो कुलविंत े द ाल बड़ी है लेककन भगवान ने उन को कोई बच्चा नहीिं ददया ( हरी स हिं द ाल पहले हाटि अटै क

े इ

दन ु ीआिं को अलर्वदा कह गगया था

और दीपो अब अकेली ही घर में रहती

है ). दीपो का घर बहुत पुराना छोटा ा लेककन फाई इतनी कक इ पुरानेपन में भी एक अजीब ी कसशश है । छोटा ा आूँगन जज में दीवार के ाथ कुछ फूलों के गमले ,एक तरफ र ोई घर ,एक तरफ पानी के सलए नल और गु लखाना ,इ ी आूँगन

े ऊपर को

जाती हुई पक्की ीढ़ी है । हम ड्राइिंग रम जज को वोह बैठक बोलते हैं में आ गए। इ बैठक में कुछ कुस य ि ािं और एक मेज था ,एक तरफ एक शैल्फ बनी हुई थी जज पर दीपो ने अपने हाथों े बनाया एक कपडा बबछाया हुआ था जज पर तरह तरह के रिं गों के वेल बट ू े बने हुए थे जो शायद दीपो ने अपने हाथों े बनाये होंगे। इ शैल्फ पर एक लकड़ी के फ्रेम का इलैजक्ट्रक रे डडओ रखा हुआ था और कुछ हमारी और हमारे बच्चों की

फोटो रखी हुई थीिं जो हम ने कुछ अर ा पहले ही भेजी थीिं। बच्चे अपनी फोटो दे ख कर है रान और खश ु हो रहे थे। बैठ कर हम बातें करने लगे और हरी स हिं मेरे र्पता जी के बारे में बातें करने लगा। कुछ दे र बाद कुलविंत और दीपो र ोई घर में चले गईं

और चाय पानी का इिंतज़ाम करने

लगीिं ,बच्चे भी बाहर आ कर आूँगन में खेलने लगे और नल के हैंडल को दबा दबा कर पानी

े खेलने लगे. कुछ ही दे र में चाय आ गई जज

के

ाथ खाने को दीपो ने बहुत कुछ का ददल इतना बड़ा है कक हर कोई

बनाया हुआ था। दीपो भी बहनों े गरीब है लेककन उ उ े समलने को चाहता है । कोई भी उ के घर जाता है उ हमारी बेटी रीटा चार

को अपना बना लेती है . तब

ाल की ही थी लेककन आज वोह 46 वर्ि की है और चार पािंच

ाल

पहले जब वोह इिंडडया गई थी तो दीपो मा ी को समल के इतनी खश ु हुई थी कक यहािं वाप आ कर हमें बताती थी कक ब े ज़्यादा मज़ा उ े दीपो मा ी को समल कर आया था और उ

का ददल चाहता था कक वोह कुछ ददन दीपो मा ी के पा

रु के

रहे लेककन वोह अपने

ाथ गई थी। बाद में दीपो ने हमें टे लीफून पे बताया था कक जाते वक्त रीटा

ा रो

रही थी। चाय पी कर हम ऊपर छत पर चढ़ गए क्योंकक ऊपर मज़ेदार धप ु थी। हरी स हिं

िंदीप को सलए बैठा था ,बेटीआिं ऊपर इधर उधर दौड़ रही थीिं ,मैं कैमरा ले आया और बच्चों

की कुछ फोटो खीिंची। कुछ दे र बाद कुलविंत और दीपो दप ु हर का खाना बनाने लगीिं। जब खाना बन गगया तो बैठक में कुस ओ ि िं पर

बड़ीआ

ब र्वराजमान हो गए। खाना बहुत बना था। खाते खाते हम बातें भी कर रहे थे। खाना खा कर हम कफर ऊपर छत पर

आ गए और बातें करने लगे।

ही वक्त पर ररक्शे वाला भी आ गगया और हम वाप

की तैयारी करने लगे क्योंकक अिंघेरा होते ही फगवाड़े

जाने

े राणी पुर को तािंगे जाने बिंद हो जाते

थे। ररक्शे में बैठ कर हम जाने लगे तो दीपो और हरी स हिं ररक्शे के

ाथ

ाथ चलने लगे।


गाूँव के बाहर जब हम

ड़क पर आये तो दोनों बहने गले लग कर समलीिं। दीपो ने बच्चों को

र्पयार ददया। हरी स हिं ने मेरे चलता…

ाथ हाथ समलाया और हम राणी पुर को चल पड़े।


मेरी कहानी – 103

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन February 11, 2016 कुलविंत की बहन दीपो

े समल कर बहुत अच्छा लगा था। बहुत ददन ऐ े ही बीत गए, कफर एक ददन हम ने कुलविंत के घर धैनोवाली जाने का रोग्राम बना सलया। ब ु ह ही घर े ननकल कर तािंगा सलया और फगवाड़े

े ब

पकड़ी और जीटी पर ब

चल पढ़ी। चारों तरफ

धद ुिं की चादर फैली हुई थी और दी े हम दठठुर गए थे। याद नहीिं, शायद दद िंबर या जनवरी का महीना चल रहा था। आधे घिंटे में ही हम धैनोवाली रे लवे फाटक पर आ पहुिंच।े

ड़क पार करके पैदल ही हम धैनोवाली को चल पड़े। मन में पुरानी यादें घूम रही थी, जब

इ ी फाटक पर मेरी और कुलविंत की पहली मुलाकात हुई थी। मन ही मन में मैं हिं पड़ा, कक वोह भी ददन थे जब हम दो थे और अब तीन नए मेहमान हमारे बच्चे र्पिंकी, रीटा और िंदीप भी हमारे

ाथ हो गए थे, मन खश ु ी

े भर गया। रे लवे फाटक

नहीिं था, रास्ते में कुलविंत के गाूँव के लोग कुलविंत होकर उन

े कुलविंत का घर दरू

े बातें करने लगते थे और वोह खश ु

े बातें करने लगती। कुछ ही दे र में हम दरवाज़े पर खड़े थे। कुलविंत की माूँ ने

दरवाज़ा खोला और हम भीतर चले गए। जै े मायके में तरह कुलविंत भी हर एक कमरे में घु

ब लड़ककआिं खुश होती हैं, इ ी

कर पुरानी यादों को ताज़ा करती और बोलती जाती, ”

यहािं यह चीज़ होती थी, वोह ककधर गई, ग्रामोफोन कहाूँ गया आददक “. चाय बगैरा पीकर

हम छत पर आ गए क्योंकक अब मीठी मीठी धप ू आ गई थी। यहीिं हमारी शादी की रस्में हुई थीिं, मैं भी पुरानी बातों को याद करने लगा, अभी छै वर्ि ही तो हुए थे हमारी शादी को और इन छै

ालों में बहुत कुछ बदल गगया था। कुलविंत का डैडी गुरबक् स हिं भी बहुत खश ु था और वोह बच्चे बूढ़े और युवा भी े घुल समल जाता था। बातें करते करते पता ही नहीिं चला कब

ूयि दे वता नीचे जाने लगा और ठिं डी कफर बढ़ने लगी। हम कफर नीचे आ गए।

कुलविंत के डैडी ने बाइस कल उठाया और जालिंधर छावनी को चल पड़े और जाते जाते तड़के के सलए प्याज़ काटने को भी कह गए। धैनोवाली समनट ही लगते हैं। एक घिंटे में ही वोह वाप

े छावनी दरू नहीिं है ,

ाइकल

े द

आ गए और आते वक्त मीट और बबयर की

बोतलें ले आये। कुलविंत मीट बनाने लगी तो उन्होंने उ े रोक ददया, शायद उन को कक ी पे भरो ा नहीिं था कक उन े बड़ीआ मीट भी कोई बना

कता है । मट्टी के तेल का स्टोव

उन्होंने जलाया और पतीला ऊपर रख ददया। घी डाल कर वोह प्याज़ बगैरा डाल कर तड़का भूनने लगे। मन ही मन मुझे हिं ी आ गई कक शादी

े पहले इिंगलैंड में मैं भी तो यही ककया

करता था। कुछ ही दे र में उन्होंने मीट को पतीले में डाल ददया और हलकी आिंच पर करके

बबयर की बोतल खोलने लगे जो उन्होंने बफि में रखी हुई थी। उ वक्त कफ्रज होते नहीिं थे और बफि ही इस्तेमाल होती थी। मैं कुलविंत और बच्चे ड्राइिंग रम जज को बैठक बोलते थे में बैठे थे और कुलविंत बच्चों को कमरे में लगी फोटो ददखा रही थी जज की फोटो लगी हुई थी। इ

में उ

के बचपन

कमरे के चारों तरफ फोटो लगी हुई थीिं। कई फोटो बहुत पुरानी


थी जजन का कुलविंत को ही पता था क्योंकक यह फोटो कुलविंत के दादा दादी और उन के भाईओिं की थीिं।

कुलविंत के र्पता जी दो ग्ला ों में बबयर ले के आ गए और मेज पर रख दी, वोह बहुत खश ु ददखाई दे रहे थे और बेटे िंदीप े दहिंदी बोलते। िंदीप तो कोई जवाब ना दे ता लेककन वोह बोली जाते, ”

मो ा लेगा ? अरे िज़रे ला लेगा ?”. कुलविंत की बहन शमी अब बड़ी हो गई

थी और बच्चों के

ाथ खेल रही थी। कुलविंत की माूँ भी बहुत खश ु थी लेककन उ की मानस क हालत इतनी अच्छी नहीिं थी और वोह ज़्यादा बोलती नहीिं थी। कुलविंत ने मुझे

बहुत दे र पहले बता ददया था कक कुलविंत की माूँ को एक बेटा हुआ था जो बहुत मनतें मनाने के बाद हुआ था, उ का नाम तेजजिंदर था और उ को तेजु बोलते थे, लेककन वोह कुछ ाल बाद ही भगवान को र्पयारा हो गगया था और इ के बाद उ का ददमागी िंतुलन बबगड़ गगया था, वोह चप ु चप ु ही रहती थी। कुलविंत के र्पताजी और मैं बबयर पीने लगे और बातें भी कर रहे थे। घर में एक शादी का वातावरण बन गगया था क्योंकक पड़ोस ओिं के बच्चे भी कमरे में आ गए थे और हमारे बच्चों के कुछ दे र बाद खाना आ गगया और करते रहे ।

ाथ खेल रहे थे।

भी खाने लगे। खाना खाने के बाद दे र रात तक बातें

ुबह उठ कर हम कुलविंत के नननहाल भोजोवाल जाने के सलए तैयार हो गए।

भोजोवाल धैनोवाली

े दरू नहीिं है और याद नहीिं हम कै े गए लेककन जब पहुिंचे तो घर के लोग हमारा इिंतज़ार कर रहे थे। कुलविंत ने जज़िंदगी का ज़्यादा दहस् ा भोजोवाल में ही गुज़ारा था। घर पहुूँचते ही कुलविंत धैनोवाली की तरह इ कमरे में कभी उ बच्चों के

घर की तलाशी भी लेने लगी, कभी इ

कमरे में और मुझे भी ददखा रही थी कक वोह इन कमरों में मामा जी के

ाथ खेला करती थी। कुलविंत की मामी जी तो बहुत खश ु थी और कुछ वर्ि हुए वोह कैनेडा में जा कर परलोक स धार गई थी। इ ददन भी पाला बहुत पड़ रहा था और िंदीप के कपडे और नार्पआिं कुलविंत चल् ू हे के

रही और कोयले की अूँगीठी के पा अफ्रीका

ामने रख कर

ुखा रही थी।

ारा ददन धुिंद

ही बैठे रहे । कुलविंत के मामा जी का एक लड़का जो

े आया हुआ था, उ े समल कर मैं बहुत खश ु हुआ क्योंकक वोह इतनी जोक ुनाता था कक जजतनी दे र हम जागते रहे वोह जोक पे जोक ुनाता रहा। ुबह उठ कर हम कफर वाप

धैनोवाली आ गए और मैं कुलविंत और बच्चों को धैनोवाली

छोड़कर रानी पर आ गगया ताकक कुलविंत कुछ ददन अपने माता र्पता के

ाथ रह

के। अब

कफर हम तीनो भाई मज़े करने लगे, कभी फगवाड़े पैराडाइज़ में कफल्म दे खने चले जाते, कभी कक ी होटल में खाने चले जाते। एक ददन अफ्रीका

े भाबी की गचठ्ठी आई और बड़े भैया

को बताया गगया कक अब वोह अफ्रीका चले आएिं क्योंकक बच्चे भाबी को तिंग कर रहे थे। अब जनवरी का महीना चल रहा था, तो बड़े भैया ने अफ्रीका वाप

चले जाने की तैयारी कर ली।

13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार था और गाूँव में बहुत रौनक थी। लड़के लड़ककआिं घर घर जाकर लोहड़ी मािंग रहे थे। जो लोग मीट शराब के शौकीन थे वोह मीट शराब खरीद रहे थे


लेककन हम इ

मामले में चप ु चप ु थे क्योंकक र्पताजी की मत्ृ यु हो चक् ु की थी। लोग ककया

कहें गे, यह र्वचार करके हम घर में ही बैठे थे। दादा जी इ ोटी के

बात को

मझते थे। दादा जी

हारे धीरे धीरे चल कर हमारे कमरे में आ गए और बोले, “अजीत स आिं ! बेटा जो

होना था वोह तो हो गगया, बहुत मुदत के बाद तम ु तीनों भाई इकठे हुए हो, इ सलए तुम खाओ पीओ और मज़े करो “. दादा जी को काफी ऊिंचा ुनाई दे ता था, बड़े भाई बोले- “मीट तो हम नहीिं बनाएिंगे लेककन कुछ कुछ डड्रिंक ले लेते हैं और वोह भी हम मा ी हरनाम कौर के कूँु एिं पर चल कर पीते हैं “.

मा ी हरनाम कौर हमारी माूँ की बहन बनी हुई थी और हमारे ाथ उन लोगों के ताउलक बहुत अच्छे थे। उनका एक बेटा तो हमारे टाऊन में ही रहता है जज े हम समलते रहते हैं .वोह गाूँव

े एक मील दरू अपने खेतों में ही रहते थे। हम तीनों भाई घर

खेतों की ओर चल पड़े और हम रास्ते को छोड़ कर खेतों में

े ननकल कर

े हो कर ही जाने लगे ताकक

हमें कोई दे ख ना ले। आधे घिंटे बाद जब हम मा ी के खेतों में पहुिंचे तो बहुत लोग पहले ही शराब लेने के सलए आये हुए थे। मा ी का बड़ा लड़का ुरजीत खेतों में शराब बनाया करता था और लोगों को बेचता था। पुसल इ

सलए नाज़ायज़ शराब बनाने का उ

भी उन के खेतों में आ कर मज़े करती रहती थी,

को कोई डर नहीिं होता था। हमें दे खते ही

ुरजीत

हमारी तरफ भाग आया और गले लग कर समला। कफर अपनी माूँ हरनाम कौर को बोलने

लगा, ” माूँ ! बहुत दे र बाद तीनों भाईओिं को इकठे दे खा है , तू अिंडे बना “. कफर वोह कमरे के अिंदर गगया और एक बोतल ले आया और बोला, ” यह स्पैशल बोतल है , आप के सलए है “. और कफर वोह ग्ला ों में डालने लगा लेककन हम नाह नाह कर रहे थे, कारण यह था कक वहािं बहुत े खड़े लोगों में एक समसलटरी मैंन भी था जज को मास्टर जी बोलते थे, जज का कुछ अपना ही रोअब होता था, इ के ामने हम बोल नहीिं कते थे, , पता नहीिं क्यों, कुछ उ

की शजख् यत ही ऐ े होती थी। हम ने ग्ला ों को हाथ भी नहीिं लगाया।

कुछ दे र बाद वोह समसलटरी मैंन (उ हरमेल हमारे

का नाम मुझे याद नहीिं आ रहा और उ

का बेटा

ाथ पड़ा करता था और बाद में कैनेडा चले गगया था और वही​ीँ ही वोह

भगवान ् को र्पयारा हो गगया था ) जज

को मास्टर जी बोला करते थे, हमारी तरफ आ

गगया और आते ही बोला, ” बई नौजवानो ! यह शराब इतनी बुरी नहीिं होती बजल्क थोह्ड़ी रोज़ पीने

े हाटि मज़बूत रहता है , मैं भी नहीिं पीता था, कफर एक दफा हमारी ड्यूटी कश्मीर

में लगी। वहािं समसलटरी वालों को थ्री एक्

रम बहुत स्ते दामों पर समलती थी, भी जवान पीते थे लेककन मैं नहीिं पीता था, एक दफा मेरे पेट में मलप (छोटे छोटे ािंप ) पड़ गए। डाक्टर ने दवाई दे कर पेट के र्पया करो, इ

भी मलप ननकाल ददए और मुझे न ीहत दी कक थोह्ड़ी रम

के बाद मैं रम पीने लगा और कफर कभी मेरे पेट में कीड़े नहीिं पड़े, लो मैं भी

ले लेता हू​ूँ और तम ु भी पीओ ” . कफर उ

ने एक ग्ला

में शराब डाल ली और धीरे धीरे


चस् ु कीआिं लेने लगा। उ को पीते दे ख हमारी खझजक दरू हो गई और हम भी धीरे धीरे चारपाई पर बैठ कर पीने लगे। कफर

ुरजीत गाहकों को बोतलें भर भर के दे ने लगा। वोह मास्टर भी उठ कर उधर ही चले

गगया और उ

ने एक पीपी शराब की खरीद कर अपने

बना। बड़े भाई हिं ने लगे कक हम तो खामखाह मास्टर हम

े खझझकता था, हमारे

ाइकल के पीछे बाूँधी और चलता

े खझजकते रहे , दरअ ल वोह तो

ाथ बातें करना तो उ का स फि बहाना ही था। मा ी हरनाम

कौर ने हमारे आगे अण्डों की भुजी की एक बड़ी प्लेट रख दी थी। हमारे पा

ुरजीत भी आ गगया और

बैठ कर बातें करने लगा। छोटे भाई ननमिल ने हमें पहले ही बता ददया था कक हम

बच कर र्पयें क्योंकक यह घर की बनाई शराब बहुत तेज होती है । ुरजीत जज़द कर रहा था कक हम और लें लेककन हम ने बबलकुल और नहीिं ली। ुरजीत े ननमिल ने एक बोतल ली और हम उठ कर वाप

आने को तैयार हो गए। अूँधेरा हो गगया था। कुछ ही दरू हम गए तो

एक आदमी शराबी हो कर

ाइकल के ऊपर गगरा पड़ा था। उ

को दे ख कर हम तीनों हिं

पड़े। आगे गए तो एक और आदमी गन्ने के खेत के नज़दीक गगरा पड़ा था। हम घर पहुूँच गए थे और लोहड़ी का शोर शराबा हर तरफ जी चारपाई पर उदा

े आ रहा था। घर आये तो दादा

े बैठे थे। बड़े भाई ने शराब का एक पैग दादा जी को दे ददया और

एक एक हम को बना ददया। दादा जी कोयले की अिंगीठी के नज़दीक बैठे थे। दादा जी ने वोह पैग एक घू​ूँट में ही पी सलया और बातें करने लगे। उ शायद शराब का

रात दादा जी ने बहुत बातें कीिं, रर हो गगया था। कभी वोह र्पता जी की बातें करके रो पड़ते, कभी उन

की पुरानी बातों पे हिं

पड़ते, कभी वोह उन की बातों पर रोर् जताते । उन ददनों को याद

करके रोते, जब र्पता जी की माूँ उ

वक्त परलोक स धार गई थी जब र्पता जी अभी पािंच

छै

ाल के ही थे। बहुत रात तक हम ने दादा जी े बातें कीिं और इ ी वक्त ननमिल ने दादा जी की कुछ बातें ररकॉडि भी कर ली जज को बाद में न ु कर हम हूँ ते रहते थे। दादा जी के

ाथ हमारा तीनों भाईओिं का यह समल्न भी हमारे सलए एक यादगार ही है ककओिंकक इ

के बाद हम तीनों भाई कभी इकठे नहीिं हो

के .

कुलविंत को धैनोवाली रहते हुए एक हफ्ता हो गगया था. एक ददन उ का बय ू ा जी का लड़का ज मेल हमारे घर आया और बोला, “बहन जी कहती थी उनको धैनोवाली आकर ले जाओ, बच्चे उदा

हैं “. द ु रे ददन मैंने तािंगा सलया, फगवाड़े पहुूँच कर ब

ली और धैनोवाली जा

पहुिंचा . बच्चे मुझे दे खते ही खश ु हो गए . चाये पानी के बाद कुलविंत और बच्चे तैयार होने लगे . तैयार हो कर हम घर े ननकल पड़े .कुलविंत के डैडी हमारे ाथ चल पड़े . जीटी रोड पर पहुूँच कर फगवाड़े की ब .जल्दी ही ब

और हमारी ब चलता…

का इिंतज़ार करने लगे . जीटी रोड पर ब

आ गई और हम उ

बहुत है में चढ़ गए . बच्चों ने नाना जी को बाई बाई कर ददया

फगवाड़े की ओर चल पड़ी.

र्वि


मेरी कहानी – 104

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन February 15, 2016 हम तीनों भाई हर बड़े भाई शर ु

ब ु ह खेतों में जाते थे ककओिंकक खेत तो पािंच समनट की दरू ी पर ही थे.

े ही कीकर के वक्ष ु के बहुत शौकीन थे और यह आदत उन को दे ख ृ की दातन कर हमें भी पड़ गई थी. खेतों में यहाूँ हमारा कुआिं था, उ के नज़दीक काफी वक्ष ृ थे जज में एक कीकर का वक्ष ृ भी था. बड़े भाई अपने चाकू

े हर रोज़ एक टहनी काट लेते, जज

े तीन दातुन बना लेत.े इन दातुनों को मुिंह में चबाते चबाते हम दरू दरू ननकल जाते. कभी

हम पड़ो ी कक ान के खेतों में चले जाते और उन लोगों

े बातें करते रहते. कक ान हमें

गन्ना ले लेने को कहते. कक ान की यही आव भगत होती है कक वोह जो भी उ के पा

वक्त उ

होता है , वोह ही दे ने की जजद करता है . हम भी कभी कभी तीन मोटे मोटे गन्ने खेत

े उखाड़ लेते और जब दातुन खतम होती तो हम गन्ने चू ने लगते. गन्ने चू ते चू ते जब

हम घर की तरफ बड़ते तो गन्ने की आखरी पोरी को चू कर उ को ऊपर नीचे के दािंतों पर रगड़ते, जज

े दािंत बबलकुल

ाफ हो जाते.

घर आकर नल पर हम स्नान करते और बड़े भाई जपज ु ी

ाहब का पाठ करने लगते और

आखर में गरु ु नानक दे व जी की फ्रेम की हुई तस्वीर के ामने खड़े हो कर हाथ जोड़ कर अरदा करते लेककन वोह अकेले ही पाठ करते थे, कभी ननमिल भी शामल हो जाता था लेककन झठ ू नहीिं बोलूँ ग ू ा, मेरी कभी भी इन बातों में ददलचस्पी नहीिं रही थी. भाई

ाहब ने

हमें कभी भी नहीिं कहा था कक हम भी पाठ करें . बड़े भाई मीट शराब के शौकीन थे लेककन ददन में दो दफा पाठ जरुर करते थे,

ुबह को जपुजी

यहाूँ तक मुझे पता है , बड़े भाई कभी भी कक ी के

ाहब और शाम को रहर ाथ बुराई नहीिं करते थे और

का पाठ. च बोलने

े भी डरते नहीिं थे, चाहे कुछ भी हो जाए. बड़े भाई की एक ददलचस्पी होती थी नीम के

पत्तों का र

ननकाल कर पीना जज

पत्तों को तवे पर हल्का

को वे कड़वा घू​ूँट बोला करते थे और कभी कभी नीम के

ा भून कर, उ में एक दो चमचे शक्कर के डाल कर खाया करते थे

और कभी कभी हम भी खा लेते थे. नीम के पत्तों का र था ककओिंकक इतना कड़वा होता था कक हमें

पीना तो ज़हर पीने के बराबर होता

मझ नहीिं आती थी कक बड़े भाई कै े पी लेते

थे. बड़े भाई एक वर्ि हुआ ८० ाल के हो कर इ िं ार को छोड़ गए थे. जज ददन वोह पूरे हुए, वोह अचानक ही िं ार छोड़ गए. वोह हर रोज़ ब ु ह पािंच वजे उठ कर पाठ करते थे. इ ी तरह एक ददन उन्होंने

ुबह पािंच वजे पाठ ककया और बाद में चारपाई पर लेट गए

जै े वोह हर रोज़ करते थे. कुछ दे र बाद भाबी जब चाय दे ने आई तो वोह थे.

जनवरी बीत चक् ु की थी और अफ्रीका

िं ार छोड़ चक् ु के

े भाबी के खत लगातार आ रहे थे कक वोह वाप

जाएूँ ककओिंकक पीछे काम खराब हो रहा था. अब वोह जहाज़ की

ीट का इिंतजाम करने लगे


जो उन्हें शीघ्र ही समल गई. बड़े भाई के अपने उ

ुर

के पनत

ु राल कोटली थान स हिं गाूँव में थे और वोह वहािं

े समलने चले गए और वहािं

े ही उन्होंने आदम पुर भाबी की बहन और

े समलने जाना था. कुछ और ररश्तेदारों को समलकर वोह वाप

राणी पुर आ

गए और एक ददन ददली एअरपोटि को चल ददए. एक हफ्ते बाद ही उन का खत आ गगया कक वोह

ही

लामत पहुूँच गए थे. अब हमारे पा भी कोई खा काम करने को था नहीिं और एक ददन हम बच्चों को ले कर मेरी मा ी के गाूँव बाहो पुर को चल ददए और हमारे ाथ ननमिल की पत्नी परमजीत भी हो ली। याद नहीिं एक या दो ददन रह कर हम वाप

आ गए।

गें हू​ूँ की फ ल ददनबददन ऊिंची हो रही थी और कहीिं कहीिं ऊपर दाने भरने लगे थे। मैं भी अक् र गगयान की हट्टी की तरफ चले जाता। कभी जट्ट मह ु ल्ले में चले जाता, लोगों

समलता, बातें करता और कभी कभी हमारे पहले घर की ओर चले जाता और परु ाने घर में रह रहे लोगों स डड़ओिं

े समलता और छत पर चले जाता, परु ानी बातें याद हो आतीिं। इ ी घर की

े मैं बचपन में गगरता गगरता बचा था, जब रहमत अली गोसलआिं चला रहा था, वोह

दे श सभवाजन के ददन ककतने बुरे और खतरनाक थे। इ ी घर के र्पछले चुबारे में मैंने हारमोननयम वजाना

ीखा था, इ ी घर में एक चोर चोरी करने आया था, इ

घर की यादें

तो इतनी हैं कक ताऊ रत्न स हिं ताऊ नन्द स हिं बुआ परतापो की यादें एक इतहा हुए हैं।

कभी कभी मास्टर बाबू राम का लड़का राम नप्प्ल शुर

रप जज

को नप्प्ल भी बोलते थे, समल जाता।

े ही लड़ककओिं और बड़ी औरतों का चहे ता होता था, उ

जै ी होती थी, जज

के कारण लड़ककओिं को उ

छुपाये

की ऐदटिंग लड़ककओिं

े कोई खझजक नहीिं होती थी, वोह ददल का

बहुत ाफ और हिं मख ु होता था। मेरा दोस्त बहादर कुछ महीने हुए जब इिंडडया गगया था तो नप्प्ल को समल कर आया था। बहादर बताता था कक राम रप यानी नप्प्ल अब बढ़ ू ा हो गगया है लेककन उ की आदतें वोह ही हैं जो बचपन में होती थीिं। कभी कभी मैं पीपलों की ओर चले जाता। मैं छोटा

ा था जब कक ी ने मिंददर के

ाथ एक बोहड़ का छोटा

ा बक्ष ृ

लगाया था, अब वोह बहुत बड़ा हो गगया था। पिंडडत भल् ु ला राम ज्योनतर्ी का पोता गड् ु डू समल जाता, उ े बातें करता रहता। ऐ े घम ु ते घम ु ते ददन बतीत होने लगे और अब और

मय राणी पुर में बतीत करना मुझे बेकार लगने लगा था। इिंगलैंड का अपना घर याद आने

लगा था जज लगी थी।

को गगयानी जी को

भी ररश्तेदारों

पुदि करके आये थे। काम की भी कुछ कुछ गचिंता होने

े समल हो गगया था और अब कुलविंत की ददली वाली बहन को

समलना रह गगया था। इ ी सलए हम ने दटकट ददली समलकर ददली एअरपोटि

े करवा ली ताकक कुलविंत की बहन को

े चढ़ना ही ठीक रहे गा । कुछ ददन शॉर्पिंग में लग गए और हमने

पैककिंग शुर कर दी। याद नहीिं यह माचि महीने का आखखर था या अरैल शुर हो गगया था

लेककन इतना याद है कक गें हू​ूँ की फ ल कटाई के नज़दीक आ गई थी और गमी बढ़ने लगी थी।


जाने

े पहले बाकी

ब घर वालों को तो पता था लेककन दादा जी को अभी बताया नहीिं

गगया था। दादा जी को कै े बताया जाए हमारा हौ ला पड़ता नहीिं था। जाने पहले शाम को जब

े एक ददन

भी बरािंडे में बैठे थे तो मैंने बेटी र्पिंकी को स खाया कक दादा जी को

वोह बताये। जै े मैंने

मझाया, र्पिंकी दादा जी के नज़दीक आ कर उनके कान में कहने

लगी, ” बाबा जी ! अ ीिं कल नूिं इिंगलैंड चले जाणा है !”. दादा जी को

ुना नहीिं, बोले “हैं

?”. मैंने र्पिंकी को कफर कहा कक र्पिंकी ! “ज़रा और ऊिंचा”. र्पिंकी कफर ऊिंची जी ! अ ीिं कल निंू इिंगलैंड चले जाणा है !”. दादा जी के मिंह ु

े बोली, “बाबा

े ननकला, “हैं एएएए?” दादा

जी फूट फूट कर रोने लगे, पता नहीिं ककतनी दे र

े उन्होंने यह तफ ू ान रोक कर रखा हुआ था। हम नज़दीक आ गए और दादा जी के किंधे पर हाथ रख ददए, जज े उन को कुछ

हौ ला हो गगया और चप ु कर गए। दादा जी को जजिंदगी में मैंने कभी रोते हुए दे खा नहीिं था लेककन अब दो दफा उन को रोते दे खा, एक ददन जब ताऊ रत्न स हिं को अथी पर लेकर चले थे और अब आज के ददन । दादा जी ददल के बहुत ख्त होते थे और जल्दी ही ामान्य हो गए और बातें करने लगे लेककन जब र्पिंकी के जवाब में उन्होंने हैं एएएए बोला था, वोह ीन मेरी आूँखों के

ामने

े जाता नहीिं, ब

कभी मैंने ही फगवाड़े

े खरीदी थी, उ

हैं लोग ?????????????

उ ी तरह वोह मुझे ददखाई दे ते है , एक कु ी जो

पर बैठे हुए और आगे छड़ी रखे हुए। कहाूँ चले जाते

टाूँगे वाले को पहले ही कह रखा था कक वोह

ुबह को जल्दी आ जाए। फगवाड़े रे लवे स्टे शन

े हम ने ट्रे न लेनी थी, याद नहीिं ककतने वजे ट्रे न चलनी थी लेककन इतना याद है कक यह छै ात वजे के करीब होगी।

ब ु ह को माूँ और ननमिल की पत्नी

े पहले उठ गईं और

ब्जी बना दी और कफर चाय बना कर पराठे बनाने लगी। हम भी उठ गए और कफर बच्चों को उठाया और ननत्य कक्रया माूँ ने

े फागि हो कर, कपड़े पहनकर तैयार हो गए।

भी ने चाय पी।

ब्जी और पराठे बाूँध ददए जो हम ने ट्रे न में बैठ कर खाने थे। तािंगे वाला जो अपने

गाूँव का ही था, आ गगया। बगैरा चैक्क ककये,

ारा

ामान रखा, अपने पा पोटि और दटकटें चैक्क कीिं, पै े

ब ठीक था, माूँ

े समलकर हम चल ददए, दादा जी को जगाया नहीिं था

ताकक वोह अप ैट ना हो जाएूँ। ननमिल बाइस कल पर ही था, मेरी आूँखों

ाथ

ाथ चल रहा था। अभी अूँधेरा

े पानी बह रहा था, कुलविंत भी चप ु चप ु थी। काफी दरू जा कर जब मैं

कुछ ठीक हुआ तो ननमिल े बातें होने लगीिं। ककया ककया बातें हुईं, याद नहीिं, घर की बातें ही होंगी। फगवाड़े रे लवे स्टे शन पर पहुूँच गए, दटकट सलए और दो कुसलओिं को ामान उठाने को कह ददया। कुली

ामान उठाकर प्लेटफामि की ओर चलने लगे। ननमिल ने भी प्लेटफामि

दटकट सलया हुआ था। प्लेटफामि पर काफी दरू जा कर कुसलओिं ने एक बैंच के नज़दीक ामान रख ददया और हम बैंचों पर बैठ गए। कुसलओिं को कै े पता होता है कक डडब्बा यहाूँ आकर ही खड़ा होगा, मैं पच्ची

ाल

ोचने लगा और मैंने कुली

े पूछ ही सलया। वोह बोला,

े यहाूँ हू​ूँ और मुझे हर ट्रे न और डडब्बे का पता है । मैं भी

ाहब !

ोचने लगा कक जै े


मुझे बस् ों के बारे में पता है , इ ी तरह ही इ को इ के काम का पता है । बातें करते करते ट्रे न आ गई और हम

ीटों पर बैठ गए और ददल्ली की ओर चलने लगे।

ददन काफी चढ़ आया था और भूख लग रही थी। कुलविंत ने पराठे ननकाले और मज़े लगे। चाय वाला भी इधर उधर घूम रहा था और उ

े चाय ली और

े खाने

भी ने जी भर कर

खाया। जै े जै े ददल्ली की ओर जा रहे थे, गमी बढ़ती जा रही थी। एक दो बजे होंगे, बच्चों के चेहरे गमी थी, बच्चों

े लाल हो रहे थे। एक भली

ी पचा

के करीब औरत जो एक र्रिंटड

े बातें करने लगी। पहले तो बच्चे कुछ शमाि गए लेककन जब उ

ाड़ी में

ने ट्र्विंकल

ट्र्विंकल सलटल स्टार गाया तो बच्चे खश ु हो गए और बोलने लगे। लगता था, वोह औरत टीचर ही होगी क्योंकक उ की मटकी थी जज

की बोल चाल बहुत मधरु थी। उ के पा छोटी ी एक मट्टी का मुिंह ऊपर को बोतल जै ा था और एक तरफ पकड़ने के सलए चाय

की केटल जै ा हैंडल लगा हुआ था। उ बच्चों को र्पलाया।

ने मटकी

े एक ग्ला

पता ही नहीिं चला कब ददल्ली रे लवे स्टे शन पर पहुूँच गए। कुली टै क् ीओिं वाले भी हमारे इदि गगदि इकठे हो गए। एक को मैं ने

में ठिं डा पानी डाला और

ामान बाहर ले आया और ामान रखने को कह ददया।

ददल्ली में तो पिंजाब

े बहुत ज़्यादा गमी थी। जब हम टै क् ी में बैठे तो टै क् ी भट्टी की तरह तप रही थी। ट्रै कफक े ननकल कर जब टै क् ी चलने लगी तो कुछ हवा भी लगने लगी। कुछ दरू जा कर टै क् ी खड़ी हो गई, इिंजजन में कुछ खराबी थी। टै क् ी वाला बौनेट खोल कर कार ठीक करने लगा लेककन हम अिंदर बैठे गमी उ

े प ीना प ीना हो रहे थे। कुछ समनट में

ने ठीक कर सलया और कफर चलने लगे। ऐ े तीन दफा हुआ और बच्चों के चेहरों पर गमी के कारण स्पॉट ननकलने लगे। कुलविंत की बहन का घर नतलक नगर में था। नतलक नगर में मकान अब 1962

े ज़्यादा बने हुए थे लेककन अभी भी कई प्लाट खाली पड़े थे। रब रब करके हम कुलविंत की बहन के घर पहुूँच गए और जाते ही मैं बोला, ” भाई चाय पानी बाद में पहले हम

भी ने नहाना है । कुलविंत का जीजा अवतार स हिं बबलखू​ूँ हिं

बोला, “यह है गु लखाना और स्नान करो “. चलता…

कर


मेरी कहानी – 105

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन February 18, 2016

कुलविंत की ददल्ली वाली बहन माया जो अब नहीिं है के घर जा कर हम को कुछ चैन आया, स्नान करके ट्रे न के

फर का थकान कुछ कम हुआ. यहाूँ तक मझ ु े याद है , कुलविंत की बहन माया के अभी दो बेटे ही थे, र्वटू और टोनी और हमारे बच्चों े कुछ ाल बड़े थे।

कुलविंत के जीजा जी अवतार स हिं बबलखु ने यह मकान ककराए पर ही सलया हुआ था और अपना घर उन्होने बहुत दे र बाद सलया था। चाय आ गई थी और पीते पीते बातें भी ककये जा रहे थे लेककन गमी बहुत थी। पिंजाब में तो अभी इतनी गमी नहीिं थी लेककन ददल्ली में तो गमी बहुत थी। ुबह को हमने ददल्ली एअरपोटि पर जाना था. शाम को हम भी नतलक नगर की दक ु ानों की तरफ चले गए. उ कफर भी एक तो शाम की

मय नतलक नगर में दक ु ानें इतनी नहीिं होती थीिं.

ैर हो गई और द ु रे हमने एक दक ू ान में बैठ कर कुछ नमकीन

चीज़ें और चाय बगैरा का मज़ा सलया. कुछ दे र बाद हम वाप बनाने में म रफ हो गईं. जब खाना तैयार हो गगया तो

आ गए. दोनों बहनें खाना

ब ने मज़े

े खाया. दे र रात तक

हम बातें करते रहे. मच्छर दे वते भी जै े हमारी इिंतज़ार में ही थे. हमारे इदि गगदि मिंडरा रहे थे, हम कोसशश करते उन को दरू भगाने की लेककन लगता था, वोह भी इिंगलैंड के खन ू के ही प्या े थे. कुलविंत की बहन ने हमें मच्छरों

े बचने में बहुत हाएता की, उ ने दो चारपाईओिं के ऊपर मछदािनी लगा दी। एक पर तीनों बच्चे ो गए और द ु री पर हम दोनों। मछरों को भी शायद गुस् ा आ गगया था, वोह मछदािनी पर बैठे भीतर की ओर ऐ े झाूँक रहे जै े खखड़की

बच्चे तो जल्दी

े झाूँक रहे हों थे, और मछदािनी के छे दों में

े गु ने की कोसशश कर रहे थे।

ो गए थे लेककन हम को नीिंद नहीिं आ रही थी। कुछ मच्छर अिंदर गु

थे और डिंक मारने शुर कर ददए थे। हमारी अभी पूरा बना नहीिं था। उ

आये

ब की चारपाईआिं आूँगन में थीिं क्योंकक मकान

रात चाूँद भी अपने पूरे यौवन पर था और मछरों की

कलाबाजजयाूँ हमें दीख रही थीिं। जब भी कोई मछर उड़ता मुझे ददखाई दे ता तो मैं भी अपने दो हाथ तैयार रखता और जब ही वोह मेरी रें ज में आते, मैं जोर

े दोनों हाथों में उन को

भीिंच लेता, करता भी क्या, नहीिं तो दश्ु मन हम पर अटै क कर दे ता। कुलविंत दे ख कर अजीब ा मुिंह करके ऊूँ ऊिंह हू​ूँ बोल दे ती। पता नहीिं घिंटा दो घिंटे नीिंद आई होगी लेककन जब

ुबह

उठे तो मछरों ने अपना बदला ले सलया था, जगह जगह हमारी शरीर पर दश्ु मन की गोसलओिं के ननशाूँ थे और बच्चों को तो दे ख कर ही तर

आता था क्योंकक उन को तो पता ही नहीिं

था कक रात को ककया हुआ था लेककन हम तो दे ख रहे थे कक उन के चेहरों पर लाल लाल धब्बे थे। यह रात हमें कभी भूलेगी नहीिं। जल्दी जल्दी नहा कर हम तैयार हो गए। खाना खाया और एक बड़ी

ीटों वाली वैन पर

वार हो कर एअरपोटि की तरफ रवाना हो गए। एअरपोटि की बबजल्डिंग में जाते ही कुलविंत की


बहन बहनोई बबलखु को हाथ

े हम ने बाई बाई कह ददया और वोह चले गए । एक काउिं टर

े द ू रे काउिं टर पर हम जा रहे थे कक एक पुसल

मैंन मेरे पा

आया और बोला, “आप ज़रा

आइये,

ाहब बुलाते हैं “. है रान हुआ मैं उ के पीछे चल पड़ा। जब वहािं पुहूँचा तो वहािं पािंच छै ऑकफ र बैठे थे और एक थानेदार मालूम हो रहा था जो एक स ख था । मुझे बैठने को कहा गगया। जब मैं बैठा तो एक बोला कक यह मेरा पा पोटि नहीिं था, पा पोटि की फोटो मेरे चेहरे

े मैच नहीिं करती थी। मैं तो पज़ल्ड हो गगया कक यह ककया हो गगया। बात स फि

इतनी थी कक मेरी फोटो क्लीन शेवन थी जब कक मैंने पगड़ी बाूँधी हुई थी। अब मझ ु े मझ आ गगया कक माजरा ककया था। भाग्य े मेरी फाइल में वोह लैटर रखा हुआ था जो मझ ु े मेरे मैनेजर समस्टर कैंडल ने मेरे इिंडडया आते वक्त ददया हुआ था कक उ े अफ ो था कक मझ ु े मेरे र्पता जी की मत्ृ यु के कारण मझ ु े काम छोड़ कर जाना पढ़ रहा था और वोह मेरे वाप आने पर मझ ु े काम पर रख लें गे अगर वेकें ी हुई तो। मैं वोह लैटर ननकाल ही रहा था कक ऊपर े कुलविंत एक दम आ गई और आते ही गस् ु े में उबल पड़ी और बोली, ” इन को पगड़ी उतार कर ददखा दो, ताकक ठीक

े त ल्ली हो जाए “.

तब तक मैंने भी वोह लैटर ननकाल सलया था और उ दो तीन लाइनें ही थीिं, और उ

थानेदार की ओर बड़ा ददया। लैटर में

ऑकफ र जो एक स ख था ने कह ददया, ” कोई बात नहीिं

जी, आप घबराइये नहीिं, यह एक फॉरमैसलटी थी, आप जा

कते हैं ”. मैं वहािं

े उठा लेककन

मेरे मन में पता नहीिं ककतनी बातें एक दम घूम गई और जो लोग अक् र इिंडडया पब्बों में खा

ुनाया करते थे, आज मेरे

े आ कर

ाथ भी वही होने वाला था। आज तो एयरपोटों पर कोई

तकलीफ नहीिं होती लेककन जज

ज़माने की बात मैं कर रहा हू​ूँ, उ वक्त एयरपोटों पर हमारे लोगों को बहुत परे शान ककया जाता था खा कर कस्टम में । कस्टम ऑकफ र अक् र कस्टम ड्यट ू ी इतनी बोल दे ते कक लोग घबरा जाते और कुछ कम करने को कहते। वोह मय था, जब इिंडडया में इलैक्ट्रीकल चीज़ें इतनी समलती नहीिं थी और लोग बाहर

े ले कर

आते थे। उन पर ड्यट ू ी तो होती ही थी लेककन हमारे लोग भी पै ा दे ना नहीिं चाहते थे और कुछ पाउिं ड कस्टम अगधकारी को दे कर ननकल जाते थे, जज

के कारण जजन लोगों के पा

स फि कपड़े ही होते थे वोह दख ु ी होते थे। एक एअरपोटि पर तो हमने बहुत कुछ दे खा था। एक दफा तो बहुत लोगों के ूट्के ों पर े चमड़े की बैलटें तक उतार ली गई थीिं। कई अगधकारी तो

ीधे ही कुछ मािंग लेते, “यार कोई पैंन ही दे जा “, और लोग पैंन दे दे ते। लोग

बहुत शकायतें ककया करते थे। भला हो माजवादी पाटी के बलबीर स हिं रामूिंवालीआ का, उ ने एअरपोटि पर ुधार लाने की बहुत कोसशश की और एक निंबर भी ददया था कक अगर कोई तकलीफ आये तो उ ददल को कुछ

निंबर पर टे लीफून करें । बहुत बातें मेरे ददमाग में आईं।

कूँू न समला और हम आगे इसमग्रेशन िं की ओर बढ़ गए लेककन मेरा मन अशािंत

हो गगया था कक अगर यह लोग कोई बाधा खड़ी कर दे ते तो ककया होता। क्लीरै न् हम

भी याबरओिं के

ाथ एक बड़े कमरे में

के बाद

ीटों पर बैठ गए, कुलविंत बोले जा रही थी, ”


कै े लोग हैं यह, उनको पता है कक आप

ही हैं लेककन जान बूझकर पै े बनाने के मक द

े पिंगा डाल रहे हैं”। बातें तो मैं भी कर रहा था लेककन मैं बहुत अप ेट था क्योंकक ऐ ा बहुत लोगों के ाथ अक् र होता ही रहता था और लोग यहािं आ कर अपनी कहानीआिं ुनाया करते थे कक इन जमदत ू ों

एक और बात भी जो हमारे हमारे

े पीछा छुड़ाने के सलए उन को कुछ पाउिं ड दे ने पड़े थे।

ाथ अक् र होती रहती थी कक एअर होस्टै

ाथ अच्छा नहीिं होता था। अगर गोरे यारी हों तो उन के

ाथ हिं

का बतािव भी हिं

बातें करती

रहती थी लेककन हमारे लोगों को जाहल ही

मझती थीिं। रनवे पर खड़े एरोप्लेन की तरफ

हम जाने लगे और जल्दी ही एरोप्लेन की

ीटों पर र्वराजमान हो गए। जब तक प्लेन उड़ा

नहीिं मेरे मन में बरु े खखयाल ही आ रहे थे कक कहीिं मझ ु े एरोप्लेन

े उतार ही ना लें । जै े

ही प्लेन बादलों के ऊपर गगया, लगा मैं अपने घर आ गगया हू​ूँ। बच्चों के ाथ अब मैं बातें करने लगा। कुछ दे र बाद मैंने एअर होस्टै े र्वस्की का एक डब्बल पैग सलया। कुछ दे र बाद

ारा स्ट्रै

दरू हो गगया और बच्चों

े इिंडडया की बातें पछ ू ने लगा, खा

ररक्शे की राइड के बारे में । दोनों बेटीआिं इिंडडया की बातें याद करके हिं

कर तािंगे और

रही थीिं और हम भी

उन की बातों का मज़ा ले रहे थे। जब हम बसमांघम एअरपोटि पर लैंड हुए तो तीन चार वजे का वक्त होगा। जब बाहर आये तो धप ु खखली हुई थी और कुलविंत का फुफड़ हमें लेने के सलए आया हुआ। उ े दे खते ही ब बच्चे खछ ु हो गए। कुलविंत के यह भुआ फुफड़

गे नहीिं हैं लेककन इन

मुहब्बत समला और अभी तक समल रहा है , उ को कक ी तराज़ू

े हमें जो र्पयार

े तोला नहीिं जा

कता।

इनके बारे में मैं कफर कभी सलखग िंू ा, कफलहाल तो वोह अपनी गाड़ी एअरपोटि की बबजल्डिंग के ामने ले आये यहािं कुछ समनट तक पाककांग की इजाजत थी। गाड़ी कोई ज़्यादा बड़ी नहीिं

थी, इ सलए उन्होंने पहले ही गाड़ी के ऊपर रफ रै क कफक्

ककया हुआ था। कुछ ामान बट ू में रख ददया और कुछ ऊपर और हम चल पड़े। जब हम A 45 ड़क पर बसमांघम स टी की और जा रहे थे तो मेरे मिंह ु शोर नहीिं। फुफड़ जोर जोर

े ननकल गगया, आ हा ! ककतनी शाजन्त है , कोई हानि नहीिं, कोई

े हिं

इिंडडया

पड़ा और बोल पड़ा, “बई गरु मेल ! बबलकुल मझ ु े भी

े आकर ऐ ा ही मालम ू हुआ था, ककतना रौला रप्पा, ककतने खामखाह हॉनि, बबना वजह ही हॉनि और कई तो इतने तीखे कक कानों में ददि होने लगता है “. कफर वोह ट्रक्कों के पीछे सलखे हुए जुमलों और शेयरों की बात करने लगे और हम हिं ने लगे। अब हमें मालूम होने लगा कक हम अपने घर आ गए हैं। बसमांघम छोड़ चक् ु के थे और जब वैडन बरी के नज़दीक आये तो अूँधेरा हो गगया था और चारों तरफ दीप माला हो गई मालूम होती थी। ड़कों के खम्पभों पर ट्यूब लाइट

ड़क दगू धआ रिं ग की ददखाई दे रही थी और इतनी

गाडड़यािं होने के बावजूद ककतनी शाजन्त थी।

अपने घर के आगे आ कर मैंने दरवाज़ा खोला और लगा जै े अभी अभी

ारा

ामान अिंदर ले आये। घर ऐ े

फाई की गई हो। गगयानी जी की बेटीआिं बिं ो और नछिं दी ने हर एक


चीज़ बड़े

लीके के

ाथ

जाई हुई थी। कुलविंत उनको बता आई और भी हमारे घर में आ गए और बातें होने लगीिं। ज विंत भी आ गगया था। कुछ दे र बाद मैं ज विंत और फुफड़ तीनों पब्ब की और चल पड़े। पब्ब ही एक जगह होती थी जज में जा कर ररलैक्

हो कर

बातें ककया करते थे। आज तो वोह ररवाज़ लगभग बिंद ही हो गया है और ज़्यादा पब्ब तो बिंद ही हो गए हैं। आज के बच्चे पब्ब के इतने शौकीन नहीिं हैं और अब यह कौस्ट्ली भी बहुत है । हम ऐश ट्री पब्ब में चले गए यहािं ऐन् ल्ज़ बबयर समलती थी जो हमारे लोगों में ज़्यादा रचसलत थी। उ वक्त इिंग्लैंड में हज़ारों कक म की बबयर समलती थी, इतनी वैराइटी आज तक कक ी भी दे श में नहीिं है । परु ाने ऐश ट्री पब्ब की जगह अब नया पब्ब बन गगया

था जो बहुत न् ु दर था। पब्ब का मालक भी अब एक पिंजाबी ही था, इ सलए यह पिंजाबीओिं े भरा रहता था क्योंकक यहािं अपनापन मह ू होता था। याद नहीिं ककतनी दे र हम बैठे रहे

और इिंडडया की बातें रहे , जब हम बाहर आये तो मन हल्का हो गगया था। घर आये तो खाना तैयार था। खाना खा कर फुफड़ जी बसमांघम को चल पड़े। बिं ो नछिं दी भी चले गईं और हम भी

ोने की तैयारी करने लगे।

कुछ दे र हम ने टै ली दे खा, बच्चों की आूँखें नीिंद ऊपर बैड रम में चले गए और

े बिंद हो रही थीिं और कुछ दे र बाद हम

ोने की तैयारी करने लगे।

ुबह का प्लैन यह था कक पहले

अपने डैपो की और जाऊिं और काम के बारे में पता करूँ ताकक जज़िंदगी कफर के। हम

ुबह बहुत लेट उठे । कुलविंत ब्ैक फास्ट की तैयारी करने लगी और मैं नहाने लगा। नहा कर जब बाहर ननकला तो ब्ेक फास्ट तैयार था। मज़े े बहुत दे र बाद इिंगलैंड का ब्ेक फास्ट खाया। ऊपर जा कर कपडे बदले और काम का पता करने के सलए मैं ब

ो गए और

े पटरी पर आ

डैपो को चल पड़ा।

चलता…


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.