सदाबहार का)यालय सं-ह-1
संकलन और 23त6ु तकरण – ल9ला 6तवानी
सदाबहार का)यालय सं-ह-1 1. 2. 3. 4.
तभी कुछ आएगा मज़ा - राजीव गु4ता ............................................................... 4 हाइकु - गुरमेल भमरा....................................................................................... 5 व=त - राजकुमार कांद ु ..................................................................................... 6 ज़रा फासले से रहा करो - अंEकत शमाG 'अज़ीज़' .................................................. 8
5.
सJभावना जीवनसार बने- - लMला Nतवानी .......................................................... 9
6.
PहंदMदे श का भाRय : - लखमीचंद Nतवानी ......................................................... 10
7.
दे श हमारा - राजकुमार कांद ु............................................................................ 11
8. 9. 10.
िजंदगी - मनजीत कौर ................................................................................... 13 कुदरत के ददG से अनजानआज का इंसान : - िजतZ [ अ\वाल............................. 14 दे ना अब साथ मेरा - आशीष _ीवा`तव ........................................................ 16
11.
तलाश - अंEकत शमाG 'अज़ीज़'...................................................................... 17
12.
उस रोज़ PदवालM होती है - लMला Nतवानी...................................................... 18
13.
cवकास कd कdमत - डॉ. gदMप उपाiयाय ...................................................... 19
14.
gेम gभु का वरदान है - लMला Nतवानी ......................................................... 20
15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26. 27. 28.
आओ बनZ वो करोड़पNत!! - आशीष _ीवा`तव ................................................ 21 आंसू - लMला Nतवानी .................................................................................. 22 डूबता सरू ज - डॉ. gदMप उपाiयाय ................................................................ 23 नए वषG का संदेशा - लMला Nतवानी............................................................... 24 नये वषG का `वागत - gवीण ग4ु ता .............................................................. 25 हो gेमवहां-बसेरा यहां- - gदMप कुमार NतवारM ................................................ 26 रोको अoयाय के धारq को - लMला Nतवानी .................................................... 27 मेरM भी सुन लो बात- आशीष _ीवा`तव ....................................................... 29 चांदनी धुंध मZ नहाई है - लMला Nतवानी ........................................................ 31 जoमPदन मुबारक!जoमPदन मुबारक ! - गुरमेल भमरा ................................... 32 मन के दMप जला दे भगवन - लMला Nतवानी ................................................. 34 gेम का गुलशन महक रहा है - लखमीचंद Nतवानी ......................................... 35 तू ज़ीरो बनके दे ख ज़रा - लMला Nतवानी ..................................................... 36 ये Pदखावे कd दNु नया - आशीष _ीवा`तव ...................................................... 37
29. 30. 31.
जाग युवा जाग - लMला Nतवानी ................................................................... 38 अगर तम ु sलखते हो - यव ु ा कcव राज sसंह .................................................. 41 मt पतंग बन जाऊं - लMला Nतवानी ............................................................... 42
32.
मेरे गीत अमर कर दो - लखमी चंद Nतवानी................................................. 44
33.
मधरु मझ ु े मन मीत sमला - लMला Nतवानी ................................................... 45
34.
नया सवेरा (नववषG) - जीवन gकाश चमोलM .................................................. 46
35.
sलyट का संदेशा - लMला Nतवानी ................................................................. 47
36.
यह दे श तेरा भी मेरा भी - राजकुमार कांद ु ................................................... 49
37. 38. 39. 40. 41.
चंद अशरात - लMला Nतवानी ........................................................................ 50 खोजती रह`य प| ृ वी - आशीष _ीवा`तव ...................................................... 51 संबंध सुहाना है - लMला Nतवानी ................................................................... 55 cपंजरे का तोता - राजकुमार कांद ु ................................................................. 56 =यq दे श बेचते हो? - लMला Nतवानी ............................................................. 58
42.
sमलके आगे आना है - आशीष _ीवा`तव...................................................... 60
43.
मुि=त मZ है मौज बड़ी - लMला Nतवानी ......................................................... 62
44.
भीतर बाहर -
- कैलाश भटनागर ................................................................ 63
45.
प~स पोsलयो रcववार - लMला Nतवानी........................................................... 64
46.
सात फेरे कब लेना है – आशीष _ीवा`तव ..................................................... 65
47.
ये नीर नहMं है, आंसू हt - लMला Nतवानी ........................................................ 66
48.
सबसे अ•छे sम‚ - आशीष _ीवा`तव ........................................................... 67
49.
संघषG =या है? - लMला Nतवानी .................................................................... 68
50.
अजुGन का गवG हरण
51.
- राजकुमार कांद ु ....................................................... 70
मानव बनकर तुम जी तो सके! - लMला Nतवानी ............................................ 73
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1. तभी कुछ आएगा मज़ा - राजीव गEु ता बोलोगे तुम सनम, तभी कुछ आएगा मज़ा
होगा जो कुछ करम तभी कुछ आएगा मज़ा हqठq से जो न कह सके,नज़रq से उसी को कह दोगे जब बलम, तभी कुछ आएगा मज़ा दNु नया कd शत‡ तोड़कर चल दो अगर जो तुम बनकर के हमकदम,तभी कुछ आएगा मज़ा धरती से sसतारq तक,लहराएगा cgयतम जब gीNत का परचम,तभी कुछ आएगा मज़ा महके हुए गीतq के संग, साँसq कd ताल पर, पायल करे छम छम,तभी कुछ आएगा मज़ा
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सं\ह-1
2. हाइकु - गुरमेल भमरा 1.sमले थे दःु ख
Eकया है मुकाबला अब हt सुख.
2.दे श महान रखZ साफ-सफाई स•चा Šान. 3.बीजे बबल ू ,
कांटे-हM-कांटे sमले, समझी भूल. 4.महान काम, दान करे जो आंखZ, उसे सलाम. 5.NततलM आई, फूलq पे मंडराती, मन को भाई . 6.चुप मZ सुख
बहुत बोला था जब sमले थे दःु ख. 7.काम महान दान करे जो आंखZ उसे सलाम.
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सं\ह-1
3. वJत - राजकुमार कांदु ऐ व=त नहMं तू =यq थकता? हरदम हM चलता रहता है,
दम ले-ले घड़ी भर Œक कर तू, मत सोच कौन =या कहता है?
Pदन भर चल-चलकर सरू ज भी, जब शाम ढले थक जाता है,
Eफर दरू कहMं वह पिŽचम मZ, बस रजनी मZ खो जाता है. चंदा भी रोज नहMं उगता, घर अपने हM Œक जाता है , Eफर तू हM नहMं =यqकर Œकता, तेरा जग से =या नाता है?
सुनकर मुझ मख ू G कd बातZ,
Eफर व=त बड़ा मु`काया है,
तू साथ मेरे बस चलता चल, कहकर मुझको समझाया है. धरती से लेकर अंबर तक, पवGत से लेकर समंदर तक, दे वq से लेकर दानव तक, पशुओं से लेकर मानव तक. जो साथ चला मेरे सुन लो, उसने हM मंिजल पायी है,
िजसने भी मेरM सु•ध लM हM नहMं, बस हरदम मंह ु कd खायी है.
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सं\ह-1
जो सोया उसने खोया है, कुछ पाने को कुछ करना है ,
झर-झर बहता झरना कहता, जीवन हरदम हM चलना है. जीवन-सरगम हर पल बजती Nनत गीत नए मt गाता हूं, कुछ दे र व=त के साथ चला, खुदको मंिज़ल पर पाता हूं.
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सं\ह-1
4. ज़रा फासले से रहा करो - अंOकत शमाQ 'अज़ीज़' जो भी Pदल मZ है वो कहा करो कभी तुम मZ तुम भी Pदखा करो
जो है ल•ज़ ल•ज़ के दरsमयान उस अनकहM को सन ु ा करो ज़हन को अपने ‘रहा करो ज़रा फ़ासले से रहा करो. जो नहMं sमला वो क़रMब था जो sमला बहुत हM अजीब था ये जो sमल गया तो करम समझ जो ना sमल सका वो नसीब था यूं हM िज़ंदगी को रवां करो ज़रा फ़ासले से रहा करो.
जो ना खुल सके वो Eकताब =या ये गुनाह =यूं वो सवाब =या
=यूं ये खेल दNु नया मZ चल रहा तेरे मेरे बीच Pहसाब =या
ये वहम है इसको फ़ना करो ज़रा फ़ासले से रहा करो.
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सं\ह-1
5. सSभावना जीवन-सार बने - ल9ला 6तवानी सJभावना जीवन-सार बने, हर मानव का _ंग ृ ार बनेसJभावना से कायम धरती यह भेद नहMं कोई करती जग-जीवन को स” ु ढ़ करती
हम धरती पर =यq भार बनZ? सJभावना से भरपरू गगन सीमा-रे खा से दरू मगन
केवल समभाव कd इसको लगन =यq का हम संहार करZ ? सJभावना से हो दे श अभय हर भारतवासी बने NनभGय हो स–य-अPहंसा-शील कd जय =यq जीत हमारM हार बने?
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सं\ह-1
6. Uहंद9: दे श का भाWय - लखमीचंद 6तवानी PहंदM हमारM आन हमारM शान हमारे दे श का ईमान. PहंदM हमारM आशा हर भारतवासी कd अsभलाषा हमारM रा—˜भाषा. PहंदM हमारा cवŽवास बहुजन Pहत कd आस राजभाषा के ™प मZ दे श का cवकास. आओ sमलकर इसको आगे बढ़ाएं इसकd वैŠाNनक sलcप का संबल लेकर अ•धका•धक कायG PहंदM मZ करके इसका भcव—य उššवल बनाएं दे श का भाRय जगाएं.
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सं\ह-1
7. दे श हमारा - राजकुमार कांदु सर पर ताज Pहमालय तो पग धोता Pहoद का सागर है धन-वैभव-ऐŽवयG पूणG यह भरM gेम कd गागर है
क•छ से ले आसाम तक फैलM मेरM दोनq बाहZ हt मंिजल एक यहां है सबकd जद ु ा-जद ु ा पर राहZ हt.
सज ु लाम सफलाम धरती पर फैलM ह‘रयालM चादर है
सर पर ताज Pहमालय तो पग धोता Pहoद का सागर है. तीन समु[q का है संगम नPदयq कd भरमार यहां गंगा-यमुना-कावेरM संग
बहे •चनाब कd धार यहां तीनq सागर र›ा करते पवGत पहरे दार है सर पर ताज Pहमालय तो पग धोता Pहoद का सागर है. Pद~लM मZ Pदल मेरा बसता मुंबई अथG कd रानी है
लखनऊ है तहजीबq वालM काशी शान पुरानी है
Pहoद-ू मुि`लम-sसख-ईसाई रहते सब sमल भाई भाई
दया धरम और स–य अPहंसा
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सं\ह-1
के संग gेम कd गागर है सर पर ताज Pहमालय तो पग धोता Pहoद का सागर है.
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सं\ह-1
8. िजंदगी - मनजीत कौर कैसे-कैसे ™प, हमZ Pदखाती है िजंदगी, कभी छांव कभी धूप, बन जाती है िजंदगी. दे ती है कभी घाव ऐसा, जो भर पाए न उ• भर, और मरहम कभी घाव पे, लगाती है िजंदगी. खsु शयq से कभी, दामन भर दे इंसान का,
और कभी खन ू के, आंसू Œलाती है िजंदगी. स•चाई कd राह, बहुत कPठन है मेरे दो`त, कांटq कd नोक पे, चलवा के आज़माती है िजंदगी. मुिŽकलq का दौर, जब इंसान पे आये,
नंगे पांव कड़कती धूप मZ चलवाती है िजंदगी. समय कभी एक सा, रहता नहMं इंसान पे, कभी हमZ, हंसाती और कभी Œलाती है िजंदगी. जब तक समझ पाएं, िज़ंदगी कd अहsमयत, पकड़ मZ न आने पाये, गुज़र जाती है िजंदगी.
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सं\ह-1
9. कुदरत के ददQ से अनजान: आज का इंसान - िजत_ ` अ-वाल द‘रया को 4यास और ठं ड लगी है आज सूरज को! धरती मां क़ैद होकर
`वंय तलाश रहM है रज को! हवा क़ैद है धए ु ं मZ और
धरती बंधक ऊंची मीनारq कd! सागर मZ जहर और गंदगी करती Pहफ़ाज़त Eकनारq कd! पेड़ बेसुध दMवारq पर और
उलझे खेत मुकदमq मZ!
आबादM ज़मीं खा रहM और जंगल खामोश सदमq मZ! पहाड़ Nनरं तर टूट रहे और
आकाश पे˜ोल पी रहा! सहमा चांद भी तारq मZ छुप-छुप कर है जी रहा! आबादM अपार बढ़ रहM कारखाने Nनत खुल रहे !
sमžटM गुणवता खो रहM
अवsश—ट रोज गंदे घुल रहे !
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सं\ह-1
अcव—कारq कd दNु नया मZ
परमाणु परM›ण है हो रहे !
`वंय हM `वंय के cवनाश को हम हt बीज बो रहे ! कुदरत का ददG पहचानो
अंधाधंध ु यंू ना वार करो!
`वाथG के चंगुल से Nनकलकर पयाGवरण पर cवचार करो!
sसलsसला अगर यहM चला तो आसमां से बदsलयां भी जहर बरसाएंगी! जैसी करनी वैसी भरनी कुदरत भी एक रोज कहर बरपाएगी!
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सं\ह-1
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दे ना अब साथ मेरा - आशीष dीवा3तव
इंतजार Eकया बहुत Pदन Ÿबगड़ गए, ताजे रखे फूल भी, E ज मZ सड़ गए.
sमला नहMं कोई, Pदन यूं हM कड़ गए, sसर के भी बाल मेरे, यंू हM झड़ गए.
एक त¡ ु हZ दे खके मन, ¢खल-सा गया है, तेरM अदाओं पे, मेरे नैन गड़ गए. दे खी संद ु रता, मन मेरा खो गया,
अ•छा हुआ नैन, तेरे भी लड़ गए. मझ ु को तम ु भाए और Pदल को लभ ु ाए, मन पे मेरे तुम, नशे-से चढ़ गए.
रोकना तो चाहूं, पर बोल न पाऊं, पैर मेरे तेरे र`ते मZ अड़ गए. जहां भी तुम जाओ मन पीछा करता है , संग तेरे हम भी गाड़ी मZ चढ़ गए. तुमने तो मुझको पसंद कर sलया, पता नहMं पापाजी =यq उखड़ गए. मन को समझाया, माना हM नहMं, 4यार के सफर मZ, हम आगे बढ़ गए. दे ना अब साथ, मु`कुराके मेरा,
हम तो तु¡हारे च=कर मZ पड़ गए. एक तुम हM मुझको अपने-से लगे,
तभी 4यार मZ, हम तु¡हारे पड़ गए.
अ•छा लगा 4यार मZ, तुम भी जकड़ गए, मुझसे हM शादM करने को अड़ गए,
मुझसे हM शादM करने को अड़ गए .
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सं\ह-1
11.
तलाश - अंOकत शमाQ 'अज़ीज़'
कोई सहर कd दआ ु मZ तलाशता है मुझे कोई हसीन Eफ़ज़ां मZ तलाशता है मुझे तलाश होती है अ=सर मेरM फ़क़dरM मZ कोई हक़dर जहान मZ तलाशता है मझ ु े तलाशता है कोई नात कd सदाओं मZ कोई ग़ज़ल कd ज़ब ु ां मZ तलाशता है मझ ु े तलाशता है मुझे कोई दŽत ओ सहरा मZ कोई शहर मZ मकां मZ तलाशता है मुझे तलाशता है हंसी मZ कोई तब`सुम मZ
अज़ीज़ ददG ओ फ़ुगां मZ तलाशता है मुझे हक़dर - तु•छ दŽत - जंगल
फ़ुगां - फ़‘रयाद
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सं\ह-1
12.
उस रोज़ Uदवाल9 होती है - ल9ला 6तवानी
जब मन मZ हो मौज-बहारq कd , चमकाए चमक sसतारq कd , जब खुsशयq के शुभ घेरे हq तoहाई मZ भी मेले हq
आनंद कd आभा होती है , उस रोज़ PदवालM होती है।। जब gेम के दMपक जलते हq , सपने जब सच मZ बदलते हq , मन मZ हो मधुरता भावq कd , जब लहकZ फसलZ चावq कd , उ–साह कd आभा होती है , उस रोज़ PदवालM होती है ।। जब gेम से मीत बल ु ाते हq , दŽु मन भी गले लगाते हq ,
जब कहMं Eकसी से वैर न हो , सब अपने हq कोई ग़ैर न हो , अपन–व कd आभा होती है , उस रोज़ PदवालM होती है।। जब तन-मन-जीवन सज जाए , सJभाव के बाजे बज जाएं , महकाए खुशबू खुsशयq कd ,
मु`काए चंदNनया सु•धयq कd , तिृ 4त कd आभा होती है ,
उस रोज़ PदवालM होती है ।।
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
13.
gवकास कh कhमत - डॉ. 2द9प उपाlयाय
तुम कहते हो
बीजारोपण से लेकर व› ृ बन जाने तक इंसानq ने हM
बहुत दे खभाल कd थी करनी भी थी =यqEक तम ु से बहुत आशाएं थीं उ¡मीदZ थी, `वाथG भी था तम ु कहते हो
सभी आशाएं, सभी उ¡मीदZ पूणG कd हt
इससे भला कौन इंकार करता है तुमने घनी छांव दM
आंखq को सुकून Pदया
वातावरण को सुoदर बनाया मीठे -मीठे फल Pदये तुम कहते हो
Eक अब बुढ़ा गये हो
Eफर भी घनी छांव दे ते हो कां¥dट के जंगल मZ शुJध हवा का संचार करते हो इससे भी नहMं है इंकार
लेEकन अब तुम बाधक बन बैठे हो शहर को cवकास चाPहए
और तुम बीच राह आ खड़े हुए हो अब तु¡हारM कdमत पर हM होगा cवकास पहले भी तुमने हM Pदया है अब भी तु¡हZ हM दे नी है
त¡ ु हZ हM दे नी होगी अपनी कुबाGनी.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
14.
2ेम 2भु का वरदान है - ल9ला 6तवानी
gेम मन कd आशा है, करता दरू Nनराशा है,
चoद श¦दq मZ कहZ तो, gेम जीवन कd प‘रभाषा है. gेम से हM सम ु न महकते हt, gेम से हM प›ी चहकते हt, चoद श¦दq मZ कहZ तो, gेम से हM सरू ज-चांद-तारे चमकते हt. gेम शीतल-मंद-सुवाsसत बयार है, ऋतुओं मZ बसंत बहार है , चoद श¦दq मZ कहZ तो,
gेम आनंद का आधार है . gेम हमारM आन है, gेम दे श कd शान है, चoद श¦दq मZ कहZ तो, gेम gभु का वरदान है.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
15.
आओ बन_ वो करोड़प6त!! - आशीष dीवा3तव
एक gŽन का उ¨र दे कर वो करोड़पNत बनने वालM है उसे बताना है रोशनी Eकस जगह से कालM है!! gNतभागी मु`कुराई, cवक~प सुने Ÿबना हM बताया
रोशनी तो रोशनी, पूरM कd परू M दाल हM कालM है !!
g`तोता बोले, आपने ये =या गलतफहमी पालM है घड़ी कd सइ ु यq को दे खते हुए बोलM gNतभागी बताइए अब कहां Pदखती ह‘रयालM है !!! Eकसान कd लगाई बागड़ हM खेत खाने वालM है इतना सन ु दशGक दMघाG ने बजाई जोर से तालM है सबके चेहरq पर Pदखी खुsशयq कd लालM है
बोले g`तोता, आपकd बात तो बड़ी NनरालM है लोगq ने =यq इतनी मह–वपूणG बात टालM है हमZ sमलकर अब दे श मZ लाना ह‘रयालM है
=यqEक ह‘रयालM से हM घर-घर खुशहालM है आपकd cवचार शैलM gणाम करने वालM है आपका समय पूरा हुआ, जीती हुई रकम आपके खाते मZ पहुंचने वालM है.
नम`कार, दे cवयq और सšजनq याद र¢खये फलदार पौधq को लगाना हM काफd नहMं हम सबको करना, पेड़q कd रखवालM है, =यqEक ह‘रयालM सबको करोड़पNत बनाने वालM है.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
16.
आंसू - ल9ला 6तवानी
यह सच है, आंसुओं पर Eकसी का ज़ोर नहMं होता, यह भी सच है,
आंसुओं जैसा पुरज़ोर सहारा कोई और नहMं होता. खुशी मZ खुशी का उपहार होते हt आंसू,
ग़म मZ भी ग़म कd Nनकासी का आधार होते हt आंसू. तनहाई मZ यादq का आगार होते हt आंसू,
जमहाई मZ थकान का gNतकार होते हt आंसू. हास-प‘रहास मZ भी नमद ू ार होते हt आंसू,
उदासी मZ उदास-भाव का इज़हार होते हt आंसू. कभी अनकहM बातq को संजोते हt आंसू,
कभी-कभी यq हM दामन sभगोते हt आंसू. आंसुओं कd भी अपनी भाषा होती है,
घ©ड़यालM आंसुओं पर मानवता पशेमान होकर रोती है.
महंगाई का बढ़ता \ाफ दे खकर अ=सर ढुलक पड़ते हt आंसू,
पड़ोसी कd कोठª कd बढ़ती मंिज़लq को दे खकर लढ़ ु क पड़ते हt आंस.ू 4याज काटने वालq को Œला दे ते हt 4याज के आंस,ू
कभी-कभी तो सरकार को हM •गरा दे ते हt 4याज के आंस.ू अवसर-समय-`थान कोई भी हो, Œकते नहMं हt आंस,ू
अपने आने का कोई-न-कोई वािजब बहाना ढूंढ हM लेते हt आंस.ू आंखq कd मैल को धोते हt आंसू,
सच पूछो तो हMरे -मोती होते हt आंसू .
Eकसी कd याद मZ जो Nनकलते हt आंसू , बेशकdमती-अनमोल होते हt वो आंसू . वैसे तो पानी-हM-पानी होते हt आंसू , जाने कैसे खारे हो जाते हt आंसू .
यq तो चतुर-चालाक चोर होते हt आंसू,
इoहZ सहे जकर र¢खएगा बड़े पुरज़ोर होते हt आंसू.
ज़रा-से ढुलक गए तो sशकायत बन जाते हt आंसू, वरना नायाब इनायत बन जाते हt आंसू. सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
17.
डूबता सूरज - डॉ. 2द9प उपाlयाय
तुम अ`ताचल के सूयG हो
अ`त होना तु¡हारM NनयNत है बहुत Eकया तु¡हZ gणाम
जब तम ु उPदत हुए अब जब तम ु अ`त हो चले हो Nनशा का होगा आगमन
और छा जाएगा अंधकार Eफर कहां त¡ ु हारा अि`त–व
और =या त¡ ु हारM उपयो•गता
उजासcवहMनता मZ =यq कोई पूजे तु¡हZ तुम अब उ—मा cवहMन हो चले हो और नहMं रहा वैसा तेज
तुमको ढलना है अब ढल जाओ और करो cव_ाम
अब sशकायत कैसी =या तुम प‘र•चत नहMं मानव `वभाव से! हम Eफर नया सूरज खोज लZगे
वह सूरज जो धरा मZ उजास फैला दे
और अपनी `वणG रिŽमयq कd आभा से आलोEकत कर दे नई सुबह के साथ करZ गे उसका `वागत तु¡हZ जाना है, तुम जाओ अलcवदा.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
18.
नए वषQ का संदेशा - ल9ला 6तवानी
नई उमंगZ नई तरं गZ, वषG नया ले आया है सभी सख ु ी हq सब स¡पoन हq, यह संदेशा लाया हैनए वषG मZ नई पहल हो, जीवन सग ु म-सरल अपना अनसल ु झी जो रहM पहे लM, वह सल ु झे न रहे सपना 4यारे -4यारे सपन सलोने वषG नया ले आया है
सभी सख ु ी हq सब स¡पoन हq, यह संदेशा लाया है-
नए वषG का उगता सूरज, रं ग नए ले आया है
सजZ सलMके से सब ‘रŽते, ढं ग नए ले आया है नवल हषG उ–कषG नवल संग वषG नया ले आया है सभी सख ु ी हq सब स¡पoन हq, यह संदेशा लाया है-
जो बीता उसे जानZ दZ हम, नए व=त के साथ चलZ बीते समय से सबक सीखकर, साथ समय के हम बदलZ आनंद कd नवरं ग PहलोरZ , वषG नया ले आया है सभी सख ु ी हq सब स¡पoन हq, यह संदेशा लाया है-
नई उमंगZ नई तरं गZ, वषG नया ले आया है सभी सख ु ी हq सब स¡पoन हq, यह संदेशा लाया है-
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
19.
नये वषQ का 3वागत - 2वीण गुEता
नये वषG के `वागत मZ हम, जन-गण का शुभ मंगल गायZ नये वषG के `वागत मZ हम, जन-गण का शुभ मंगल गायZ
सारे जग का भाRय उदय हो, sमल कर हम सब दआ ु मनायZ जन-गण का शभ ु मंगल गायZ.
बदल रहM है आज ये धरती, ढूंढ रहM है नई PदशायZ
तोड़ ™Pढ़यq के हम बंधन, नव आयामq को अपनायZ आज भल ु ा कर `वाथG को अपने, जीवन को कर अपने वश मZ िजस पथ पर हो सब का मंगल, उसी राह पर कदम बढ़ायZ Jवेष-[ोह को sमटा के मन से, सबको अपना मीत बनायZ नये वषG के `वागत मZ हम, जन-गण का शुभ मंगल गायZ. हर मानव को इस धरती पर, समता हो अ•धकारq कd बंद करZ दक ू ान जहाँ मZ, धमG के ठे केदारq कd
हो दे श-वेष या भाषा कोई, sलंग-रं ग या जाNत हो आज sमटा दZ बीच से अपने, दरू M इन दMवारq कd
बांध gेम का नाता सबसे, खुsशयां जग मZ हम फैलायZ
नये वषG के `वागत मZ हम, जन-गण का शुभ मंगल गायZ. दया-धमG औ’ स–य-अPहंसा, का मागG हमZ अपनाना है गीता के उस कमG-योग सा, ये जीवन हमZ बनाना है नहMं कभी Eफर कुŒ›े‚ हो, वो लाखq जीवन कd कुबाGनी हम सब एक कुटुंब के वासी, ये मं‚ हमZ sसखलाना है
जो बांध दे सब को एक सू‚ मZ, वो गीत gेम का हम दोहरायZ नये वषG के `वागत मZ हम, जन-गण का शुभ मंगल गायZ.
सदाबहार का…यालय
25
सं\ह-1
20.
हो 2ेम-बसेरा यहां-वहां - 2द9प कुमार 6तवार9
ि`नRध समीर Ÿबन आहट के, घर आकर हौले मु`काये,
cवकsसत gसन ू के मधुकण से, घर का हर कोना महकाये.
रcव कd सन ु हलM EकरणZ हर ›ण, पड़ तन पर इसको सहलायZ,
मलयज-सा यश cव`ता‘रत हो, gभ-ु रस ऐसा बरसायZ. मधुमास बने जीवन सबका,
खुsशयां अsलंद मZ …या4त रहZ , कोना-कोना gफुि~लत हो औ अजा सदा जीवंत रहे .
मानवता का हो स¡gेषण, हो gेम यहां पर cव`ता‘रत, iवंsसत हो ई—याG मानव कd, gगNत का Jयोतक gसा‘रत. बस नूतन वषG नहMं 4यारे ,
ये gE¥या रहे हर पल यहां, हम रहZ नहMं,
तो नहMं सहM,
हो gेम-बसेरा यहां-वहां. नोट:अजा= gकृNत अथवा आPद शि=त
सदाबहार का…यालय
26
सं\ह-1
21.
रोको अqयाय के धारs को - ल9ला 6तवानी
मत रोको इन बरसातq को दो भीगने तन-मन-gाणq को माना कपड़े गीले हqगे सड़कq के नट ढMले हqगे Pहल जाएंगी नPदयq कd दाढ़Z भी आएंगी कुछ-कुछ बाढ़Z भी
पर सींचZगी भू के तारq को सींचZगी सख ू े-ख़ारq को
आने दो अब बरसातq को मत रोको इन बरसातq को. मत रोको अ_ुधारq को
होने दो तरल मन-तारq को ये Œककर Pहमकण बन न सकZ ये ™प बांध का ले न सकZ Eफर लZगे रोक ये भावq को अंतरतम के g`तावq को बा•धत न करZ Pदल-तारq को NनयंŸ‚त न करZ शुभ भावq को बहने दो अ_ुधारq को
मत रोको अ_ुधारq को. मत रोको रहमत-धारq को gभु कd आशीष के तारq को
इनसे झंकृत तन-मन कर लो आशीषq से झोलM भरलो
हरो दMन-दख ु ी कd cवपदाएं करो दरू कंटMलM बाधाएं
Eफर gभु तम ु को हषाGएंगे
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27
सं\ह-1
रहमत-धारे बरसाएंगे झरने दो रहमत-धारq को मत रोको रहमत-धारq को. रोको अoयाय के धारq को पथ-अनय पे चलने वालq को रोका न गर तो दख ु होगा
सुख का पथ Eफर बा•धत होगा जीवन मZ अंधेरा छाएगा
रcव Šान का Eफर Nछप जाएगा मत झेलो इनके वारq को Nछड़ने दो oयाय के तारq को मत रोको oयाय-उजालq को रोको अoयाय के धारq को, रोको अoयाय के धारq को.
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28
सं\ह-1
22.
मेर9 भी सुन लो बात- आशीष dीवा3तव
हे महान वैŠाNनक! तुम सुन लो मेरM बात
इस धरा से समा4त कर दो मि`त—क प›ाघात* उ•चत इलाज के अभाव मZ हो न Eकसी पे आघात इस दNु नया से दरू भगा दो मि`त—क प›ाघात मt मि`त—क प›ाघात* से पी©ड़त रख लो मेरM लाज मझ ु को भी उपल¦ध करा दो स`ता, संद ु र इलाज। मt भी बो सकूं खेतq मZ अनाज
उपलि¦धयq पर अपनी कर सकूं नाज ललकार सकूं आसमां मZ उड़ते बाज
`वयं कर सकूं अपने सब कामकाज मt मि`त—क प›ाघात*से पी©ड़त रख लो मेरM लाज मुझको भी उपल¦ध करा दो स`ता, सुंदर इलाज। चाहे तो =या नहMं कर सकता परोपकारM समाज ठान ले तो हर Nनःश=त को सश=त बना दे आज मt भी बजाना चाहता हूं gेम-शांNत के साज पाना चाहता हूं ऑ`कर, नोबल जैसे ताज मt मि`त—क प›ाघात*से पी©ड़त रख लो मेरM लाज मुझको भी उपल¦ध करा दो स`ता, सुंदर इलाज। लाइलाज बीमारM कह कर •गराओ न मुझपर गाज
नए आcव—कारq से खोल दो बीमा‘रयq के सारे राज। šयादा कहने को नहMं हt मेरे पास अ~फाज़ आप `वयं हM लगा लZ गंभीरता का अंदाज
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सं\ह-1
और sमटा दZ लाइलाज बीमा‘रयq कd खाज़ मt मि`त—क प›ाघात*से पी©ड़त रख लो मेरM लाज मझ ु को भी उपल¦ध करा दो स`ता, संद ु र इलाज।
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30
सं\ह-1
23.
चांदनी धुंध म_ नहाई है - ल9ला 6तवानी
आज मानवता डगमगाई है, चांदनी धुंध मZ नहाई है. पेड़q से आ रहM हt आवाज़Z दरू हq हम न इस गsु ल`तां से दरू M मानव ने खद ु बढ़ाई है चांदनी धंध ु मZ नहाई है.
तारे रह-रहके PटमPटमाते हt भूले-भटकq को पथ Pदखाते हt राह मानव ने खुद गंवाई है चांदनी धुंध मZ नहाई है.
चo[मा धुंध से ढका ऐसे
मन माया से मलMन हो जैसे इसी माया से चोट खाई है चांदनी धुंध मZ नहाई है. जुगनू ने आज रट लगाई है
sमलके रहने कd कसम खाई है भेद कd चाल =यq चलाई है? चांदनी धुंध मZ नहाई है.
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31
सं\ह-1
24.
जqमUदन मुबारक! जqमUदन मुबारक! - गुरमेल भमरा
खुश रहो हर दम, जहां भी रहो,
cवदे श हो या इं©डया. ले लो ब•चq से खsु शयां बहुत, हम भी करते थे यहM कभी, मां-बाप कd खश ु ी थी हमारM भी कभी. जoमPदन मब ु ारक! जoमPदन मब ु ारक! Pदन थे वे भी, जब ब•चे थे छोटे , तोतलM ज़ुबां , मासूम-से चेहरे ,
हंसते, कभी रोते, नाचते और गाते, जाते `कूल, ब`ते मZ EकताबZ उठाए, करते शरारतZ , लगते थे अ•छे .
जoमPदन मुबारक! जoमPदन मुबारक!
हुए जवान तो पढ़ाई कालेज मZ, कुछ ख़ुशी, कुछ Eफ़¥, नशा जवानी का, वे हM तो थे Pदन कुछ बनने-बनाने के, पढ़ते थे रहते, जब रात भर सारM, जाते थे दे ने •गलास भर दध ू ,
कमजोरM न हो, यहM थी Eफ़¥. जoमPदन मुबारक! जoमPदन मुबारक! हुई शाPदयां, इNतहास दह ु राया, रं ग Ÿबरं गे ¢खले जो फूल, ज़ुबां तोतलM, वहM कहकहे , Eफर गूंज उठा आंगन ,
वहM कॉcपयां, वहM पtsसलZ,
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सं\ह-1
लेEकन, कैलकुलेटर-इंटरनेट नया,
खश ु रहZ , आबाद रहZ , पढ़Z और खब ू पढ़Z . जoमPदन मब ु ारक! जoमPदन मब ु ारक! भर कर जीएं, मनाएं जoमPदन, खाएं केक , ब•चq के हाथq , ¢खचवाएं फोटो, चारq तरफ से, ल=कd डे है आज आप का.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
25.
मन के द9प जला दे भगवन - ल9ला 6तवानी
दMप बहुत-से जला चुकd हूं, हुआ न दरू अंधेरा, जीवन बीत रहा है NनsशPदन, करके तेरा-मेरा। कृपा”ि—ट जब हो तेरM तब, तू-हM-तू Pदख जाए,
मन के दMप जला दे भगवन, जग रोशन हो जाए॥ कभी न आई पास त¡ ु हारे , भटकd Jवारे -Jवारे ,
सबकd आस लगाई पल-पल, अब तो नयना हारे । अ_क ु णq को तेल बना जो, Eकरणq को फैलाए,
मन के दMप जला दे भगवन, जग रोशन हो जाए॥ आने को है अंNतम ›ण, पर मt तैयार कहां हूं, तNनक समय दे चरणोदक से, मt चुपचाप नहा लूं। राह कौन-सी आऊं िजससे, तू मुझको sमल जाए?
मन के दMप जला दे भगवन, जग रोशन हो जाए॥ नहMं बुJ•ध है, बल भी कम है, साधन भी सीsमत हt, चारq ओर अंधेरा छाया, उššवलता प‘रsमत है।
तू gकाश के सुमन ¢खला दे , ›ीण वदन मु`काए,
मन के दMप जला दे भगवन, जग रोशन हो जाए॥
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
26.
2ेम का गुलशन महक रहा है - लखमीचंद 6तवानी
मन का मधुबन चहक रहा है
gेम का गुलशन महक रहा हैचारq ओर हt आज बहारZ फूल-हM-फूल हt िजधर NनहारZ सरू ज दमके, चंदा चमके
तारq का जाल भी लहक रहा है gेम का गल ु शन महक रहा हैइस गुलशन मZ जो भी आया
उसने Nनज मन को महकाया उसने चाहत-राहत पाई साज़ खुशी का खनक रहा है
gेम का गुलशन महक रहा हैgीत कd है बस रMत NनरालM िजसने Nनभाई उसने पाई लाख हq मुिŽकल, पाया है हल रं ग इŽक का झलक रहा है
gेम का गुलशन महक रहा है-
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
27.
तू ज़ीरो बनके दे ख ज़रा - ल9ला 6तवानी
तू ज़ीरो बनके दे ख ज़रा
ज़ीरो को कहMं से भी दे खो ज़ीरो हM नज़र वो आता है, ज़ीरो है ऐसा अंक िजसे घटना-बढ़ना नहMं आता है, तू उसकd मPहमा समझ ज़रा तू ज़ीरो बनके दे ख ज़रा. लगे Eकसी अंक के दांएं दस गुना उसे कर जाता है
यq तो उसका अि`त–व नहMं Eफर भी वह मान बढ़ाता है तू सोच-समझकर दे ख ज़रा तू ज़ीरो बनके दे ख ज़रा.
तू लगे जो एक(gभु) के दांएं Œतबा तेरा बढ़ जाएगा
लग जाए अगर तू बांएं
संसार से तू जुड़ जाएगा
तू दांएं लगकर दे ख ज़रा तू ज़ीरो बनके दे ख ज़रा.
ज़ीरो बनने से डरता =यq? मरने से पहले मरता =यq? हMरो तो सब बनना चाहZ कुछ अलग-सा तू ना करता =यq? खुद को पहचान के दे ख ज़रा तू ज़ीरो बनके दे ख ज़रा.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
28.
ये Uदखावे कh द6ु नया - आशीष dीवा3तव
अ•छा सोचो तो, आराम लग जाता है यहां तो स•चे पर भी इ~जाम लग जाता है जो काम करने वाला है, करता रहता है जो नहMं करता उसका नाम लग जाता है. लगाना चाहो, गमले मZ आम लग जाता है बाहर न Nनकलो तो भी घाम लग जाता है ये Pदखावे कd दNु नया है दो`तq
यहां झठ ू े के हाथ भी ईनाम लग जाता है अ•छा सोचो तो, आराम लग जाता है
स•चे पर भी कभी इ~जाम लग जाता है जो काम करने वाला है, करता रहता है जो नहMं करता उसका नाम लग जाता है. Eकसी के दे खने भर से लगाम लग जाता है वो मु`कुरा भी दे , तो सलाम लग जाता है ये मतलबी दNु नया है दो`तq
यहां चलते रहो Eफर भी जाम लग जाता है अ•छा सोचो तो, आराम लग जाता है स•चे पर भी कभी इ~जाम लग जाता है जो काम करने वाला है, करता रहता है जो नहMं करता उसका नाम लग जाता है.
सदाबहार का…यालय
37
सं\ह-1
29.
जाग युवा जाग - ल9ला 6तवानी
जाग युवा जाग
Eक तेरे जागने से दे श जगेगा दे श जगेगा और हर ›े‚ मZ cवकास करे गा, °—टाचार और दरु ाचार का अं•धयारा छं टे गा,
भारतीय सं`कृNत और स±यता का सरू ज सारे संसार को
आलोEकत करे गा, हर ›े‚ मZ भारत सबकd अगुआई करे गा. तुम जानते हो जब-जब
भारत का युवा जगा है
cववेकानंद का उदय हुआ है cववेकानंद के घट मZ cववेक के आनंद का उदय हुआ है Eफर cववेकानंद ने सबको cववेक के आनंद से प‘र•चत कराया है भारतीय सं`कृNत और स±यता से
अ¢खल जगत को प‘र•चत कराया है. तुम जानते हो जब-जब
भारत का युवा जगा है
वीर हकdकत का उदय हुआ है भगतsसंह का उदय हुआ है
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
ल²मीबाई का उदय हुआ है Eफर वीर हकdकत ने भगतsसंह ने ल²मीबाई ने सबको दे शभि=त के साहस से प‘र•चत कराया है इसी साहस से उoहqने अ¢खल जगत को साहस का पाठ पढ़ाया है. तुम जानते हो जब-जब
भारत का युवा जगा है
आयGभžट का उदय हुआ है आयGभžट ने 1-10 अंकq और दशमलव का आcव—कार Eकया है, वाराहsमPहर का उदय हुआ है वाराहsमPहर ने शूoय का आcव—कार Eकया है ,
सी. वी. रमन का उदय हुआ है सी. वी. रमन ने रमन इफै=ट का आcव—कार Eकया है , अंत‘र› मZ जाने वालM gथम भारतीय मPहला क~पना चावला का उदय हुआ है क~पना चावला ने भारतीय अमरMकd अंत‘र› या‚ी के ™प मZ दे श का मान बढ़ाया है, पी. वी. sसंधु का उदय हुआ है पी. वी. sसंधु ने ओलि¡पक खेलq मZ
मPहला एकल बैडsमंटन का रजत पदक सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
जीतने वालM पहलM ¢खलाड़ी के ™प मZ दे श को स¡मान हाsसल कराया है, लता मंगेशकर का उदय हुआ है
भारत कोEकला लता मंगेशकर ने गायन के ›े‚ मZ अनप ु म कdNतGमान `थाcपत Eकया है,
होमी जहांगीर भाभा का उदय हुआ है होमी जहांगीर भाभा ने
परमाणु ऊजाG सं`थान `थाcपत Eकया है. जाग युवा जाग
Eक तेरे जागने से दे श जगेगा दे श जगेगा और हर ›े‚ मZ cवकास करे गा.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
30.
अगर तुम uलखते हो - युवा कgव राज uसंह
"तो Eफर sलखो....अगर तुम sलखते हो !" अगर तुम sलखते हो एक युवा कd आज़ादM पर, उसकd `वछं दता पर !
तो Eफर sलखो एक बाप के cववशता पर, और एक माँ कd ममता पर ! अगर तुम sलखते हो इŽक़ को, गुलाब को मोह¦बत को,
तो Eफ़र sलखो भूख को, ग´हू को और •चपके हुए आँत को ! अगर तुम sलखते हो gशि`त गान एक दे वी का,
तो Eफ़र sलखो कुछ गीत,अनकहे ¥oदन,एक वैŽया के। अगर तुम sलखते हो समाज के बुराइयq को,
तो Eफर उससे पहले sलखq इनको ख–म करने के उपायq को । अगर तम ु sलखती हो नारM उ–पीड़न पर, अपमान और समाज पर, तो Eफर sलखो गागµ,ल²मीबाई और रिजया स~ ु तान पर ! अगर तम ु sलखते हो कoयाकुमारM मZ हुए सय ू ¶दय पर, तो Eफर sलखो गाँव के उस चरवाहे के सूयाG`त पर ! अगर तुम sलखते हो पराधीनता, उपNनवेशवाद और अपमान को, तो Eफ़र sलखो `वतं‚ता, `वराšय, `वाsभमान को ।
अगर तुम sलखते हो रात के शानदार सुखद नींद को और `व4न को,
तो Eफर sलखो एक Nतरं गे से sलपटे फ़ौजी के िज`म से बहे र=त को ! अगर तुम sलखते हो मंिजल कd खोज मZ जगी अधखुलM अलसाई आँखq को, तो Eफर sलखो मंिजल पर कदमq के Nनशानq को ! सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
31.
मv पतंग बन जाऊं - ल9ला 6तवानी
मेरा मन है Eक मt पतंग बन जाऊं मकर सं¥ािoत और पतंगो–सव कd पावन वेला पर सय ू Gदेवता कd सा›ी मZ पतंग कd तरह
नील गगन कd नीsलमा मZ लहराऊं मt पतंग बनंू शांNत कd
सौहादG कd सJभाव कd इंसाNनयत कd gेम कd NनमGल आनंद कd परोपकार कd अNत•थ के स–कार कd खुsशयq के संचार कd
मPहलाओं के स¡मान कd दे श कd ऊंची-उšजवल शान कd महंगाई के उपचार कd °—टाचार के संहार कd भेदभाव के उoमूलन कd स–पथ के PदRदशGन कd और सब तक यह संदेश पहुंचाऊं Eक कैसे मानव जीवन कd लाज बचेगी कैसे इंसान कd इंसNनयत िज़ंदा रहे गी
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
मेरा मन है Eक मt पतंग बन जाऊं मकर सं¥ािoत और पतंगो–सव कd पावन वेला पर सय ू Gदेवता कd सा›ी मZ पतंग कd तरह
नील गगन कd नीsलमा मZ लहराऊं.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
32.
मेरे गीत अमर कर दो - लखमी चंद 6तवानी
इ•छा थी इस जग के हे तु, कुछ तो करके जाऊं,
और नहMं तो धoयवाद के , गीत हM कुछ गा पाऊं,
ि=ल—ट, सहजता-रPहत गीत =या, गाऊं और सुनाऊं, तNनक सरसता और मध‘ु रमा, गीतq मZ भर दो मेरे गीत अमर कर दो
इस ™खे दख ु भरे जगत मZ, कोमलता लानी है,
एक सलोनी गमक सम ु न-सी, जग मZ फैलानी है, कैसे फैले महक कहां से, मधक ु ण लाऊं लट ु ाऊं? इतने सारे रं ग Nनराले, मt कैसे भर पाऊं,
तNनक मधुर और लुनाई, गीतq मZ भर दो मेरे गीत अमर कर दो
इस सूखी धरती मZ सुख के, अंकुर कैसे फूटZ ?
सजल मेघ सम पNनयल मन से, भीत Jवेष कd टूटे, कैसे मेघ बनूं मयूर को, Eकस cवध मt हषाGऊं?
‚ाPह-‚ाPह करता जगतीतल, उसे त4ृ त कर पाऊं, तNनक सजलता और सरलता, गीतq मZ भर दो मेरे गीत अमर कर दो
सदाबहार का…यालय
44
सं\ह-1
33.
मधुर मुझे मन मीत uमला - ल9ला 6तवानी
मधुर मुझे मन मीत sमला
उर का सुमन सgीत ¢खलाकब से थी आकां›ा आए कोई मन का सम ु न ¢खलाए
मधु मकरं द सग ु ंध सव ु ाsसत शीतल पवन पन ु ीत sमला
मधरु मझ ु े मन मीत sमला. एक मPदर-सा झqका आया cgयजन का संदेशा लाया मन मZ नव उमंग से पू‘रत अनुgा¢णत संगीत sमला
मधुर मुझे मन मीत sमला. मन का सूना था जो कोना
कPठन बहुत था gमुPदत होना उसकd एक झलक से मेरे शूoय ·दय को गीत sमला
मधुर मुझे मन मीत sमला. चारq ओर बयार सुहावन
लगती है सुखकर मनभावन जीवन को जीवंत बनाता
सौ¡य सम ु धुर सुमीत sमला
मधुर मुझे मन मीत sमला.
सदाबहार का…यालय
45
सं\ह-1
34.
नया सवेरा (नववषQ) - जीवन 2काश चमोल9
बीता व=त, Eफर एक नया सवेरा लाएगा, आप सब कd िजoदगी मZ, Eफर एक नया उजाला दे जाएगा. आने वाले उजाले को, यंू हMं तम ु , अंधेरे मZ न बदल दे ना,
हो सके तो, भटके हो िजस बीते व=त के अंधेरे मZ, आने वाले नव वषG के उजाले से उसे sमटा दे ना. वरना यंू हM गज ु रते जाएंगे, Pदन िजoदगी के, रह जाएंगे अरमान, सपनq मZ Ÿबखर के. सोचते हो =या अब तुम?
सोचने का व=त अब गुजर रहा,
आज Eफर तु¡हारM िजoदगी कd, दहलMज पे, तु¡हZ जगाने एक नया सवेरा आ रहा.
अब भी जाग जाओ, जागने का व=त है , वरना उजाला ढल जाएगा, अंधेरा छा जाएगा, Eफर न तु¡हZ , बीता सवेरा जगाने आएगा. यूं हM हर उजाला, अंधेरे मZ बदल जाएगा, और हर अंधेरा एक नया सवेरा लाएगा, पर याद रखो दो`तो, Eफर न गुजरा व=त वापस आएगा.
इसsलए आज हM, नव वषG के शुभागमन पर, sमटा डालो, आज के उजाले से, बीते कल के अं•धयारे को, कल जो सवेरा जगाने आएगा तुमको, उससे पहले जगा डालो, तुम उसीको.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
35.
uल{ट का संदेशा - ल9ला 6तवानी
sलyट हमZ sलyट दे ती है साथ हM दे ती है एक संदेशा Eक ”भला” करने मZ अपना भी ”लाभ” Nछपा होता है =यqEक ”भला” श¦द का उ~टा श¦द ”लाभ” हM होता है सबके भले मZ अपना भला भी Nछपा होता है हां एक बात का iयान रखना मुझे आदे श दे ते समय अवŽय चेक कर लेना आदे श सहM Pदया है Eक नहMं
और मेरे ि`वच को दबाना, मगर 4यार से आ¢खर मt आपकd हमदम हूं, दो`त हूं, सेcवका हूं माsलक ने आपको जो sलयाकत दM है उसका सदप ु योग करो हमेशा.
sलyट हमZ sलyट दे ती है साथ हM दे ती है एक संदेशा Eक मt मानती हूं आपका हर आदे श चुपचाप ऊपर बुलाते हो, तो ऊपर आ जाती हूं
नीचे बुलाते हो, तो नीचे आ जाती हूं ऊपर चलने को कहते हो, तो ऊपर चल पड़ती हूं नीचे चलने को कहते हो, तो नीचे चल पड़ती हूं इसी तरह आप भी
माsलक कd रज़ा मZ राज़ी रहो दःु ख-सख ु को समझो एक समान
यहM तो है स•चा और NनमGल Šान
सदाबहार का…यालय
47
सं\ह-1
जो माsलक ने Pदया है, उसी मZ खुश रहो हर समय मख ु से शक ु राने-शक ु राने कहो यहM करती हूं मt भी हमेशा.
sलyट हमZ sलyट दे ती है साथ हM दे ती है एक संदेशा Eक आपके आने से पहले मुझ मZ
कूड़ेदान वाला कूड़ेदान ले गया हो तो कूड़े कd दग ु ¹ध हM आपको सताएगी
इ‚-फुलेल लगाए कोई …यि=त गया हो तो इ‚ फुलेल कd सुगंध हM आपको आएगी
इसsलए हमेशा अ•छª और मधुर वाणी हM बोलो
=या पता वह वाणी हM आपके अंNतम श¦द बन जाएं आपके अंNतम श¦द हM आपकd पहचान बन जाएंगे बाकd सब अ•छे काम और वचन भुला Pदए जाएंगे इसका iयान रखो हमेशा
यहM है मेरा यानी sलyट का संदेशा.
सदाबहार का…यालय
48
सं\ह-1
36.
यह दे श तेरा भी मेरा भी - राजकुमार कांदु
अ~लाह गर हt तेरे भगवान हt मेरे भी है लाल लहू तेरा तो लाल है मेरा भी इंसान रहो बनके यह सबने sसखाया है यह दे श तो है पहले तेरा भी मेरा भी बांटा है हमने रब को ऐलान कर दो सबको अब दे श ना बांटZगे ये तेरा भी है मेरा भी Pहoद ू हq चाहे मुि`लम ‘ हम एक मां के बेटे sमलजल ु कर बढ़Z आगे ‘ यह दे श हमारा है
बाजू हM हt हम दोनq ‘ एक िज`म हमारा है
यह भी मुझे 4यारा है ‘ वह भी मझ ु े 4यारा है
सदाबहार का…यालय
49
सं\ह-1
37.
चंद अशरात - ल9ला 6तवानी
ग़म sमलते गए सरे -राह, ख़ुशी कd तलाश मZ ग़म से Eकया Eकनारा, रा`ते हM खो गए
इस लंबी िज़oदगी मZ ज़ायका बनाये हt ति~खयां भी ज़™ ु रM हt, Pदल मZ इoहZ सजाये हt
साथ हमसफ़र जो है तो चलने का है मज़ा जो हमकदम खुदा हो, तो खुदM से हो पहचान
जो खुद को खास कहते हt, बड़े हM आम होते हt खुदा हM खास हt, ऐसा अदMबq ने बताया है
ददG-ए-Pदल से हM दNु नया मZ सारे काम होते हt
गर ये नहMं तो Pदल के उजाले भी बड़े नाकाम होते हt
हौसलq से हM तो िज़oदगी आसान होती है इस रोशनी से हM Pदलq मZ जान होती है
(अदMब-गुणीजन)
सदाबहार का…यालय
50
सं\ह-1
38.
खोजती रह3य प~ ृ वी - आशीष dीवा3तव
अपने अंदर एक संसार sलये घूम रहM है प| ृ वी
अपनी हM धूरM पर चo[मा को लादे
लगा रहM है प‘र¥मा सरू ज कd......
जैसे कर रहM हो साधना...gाथGना अपने अंदर के संसार को बचाने कd.... भाग रहM है ऐसे जैसे sमल गया हो, अपने हM जैसा कोई \ह sमलने को आतुर है या बचने कd कोsशश मZ अपने से बड़े \ह से पता नहMं Eकस बंधन मZ बंधी है च=कर पर च=कर लगाती जैसे खोज रहM हो आकाशगंगा मZ अपने जैसा हM गुम हुआ संसार कोई.....। संसार िजतना बड़ा संसार अपने अंदर sलये घूम रहM है प| ृ वी उससे कहMं बड़ा
संसार उसका बाहर है। वह घूम भी रहM है तो ऐसे Eक
अंदर के संसार को पता हM न लगे
सदाबहार का…यालय
51
सं\ह-1
जैसे प| ृ वी के भीतर पल-बढ़ रहा है एक परू ा संसार
वैसे हM हरे क gाणी का है अपना बनाया हुआ एक संसार। बंधन म= ु त धीरे -धीरे तोड़ रहा है
जैसे संसार सारे बंधन प| ृ वी भी धीरे -धीरे
तोड़ रहM है अंत‘र› के बंधन अपनी हM धुरM से ¢खसक
जा रहM है सूरज के समीप जैसे शु¥ और बुध
पहुंच गए सPदयq कd अनवरत या‚ा कर....। जैसे आज मंगल है, प| ृ वी भी वैसी हM थी
जब मंगल आ जाएगा प| ृ वी कd ि`थNत मZ
प| ृ वी कहलाएगी बुध
बह ृ `पNत हो जाएगा मंगल मंगल बन जाएगा प| ृ वी शु¥ समा जाएगा सूरज मZ....।
चलता रहे गा यह च¥ आ¢खर सूरज को भी तो चाPहए ऊजाG
गर न हो भरोसा तो दे ख लो दस ू रM आकाशगंगाओं कd gE¥या। जीवन
केवल सांसZ रहते रहना हM जीवन नहMं सदाबहार का…यालय
52
सं\ह-1
जीवन तो इसके बाद भी है। प| ृ वी केवल यहM प| ृ वी नहMं कई और प| ृ वी
इसके बाद भी हt। चo[-सय ू G केवल यहM नहMं
कई और चांद-सरू ज हt। संसार केवल
यहM संसार नहMं जल, थल, वायु का और भी संसार है। जैसे आकाशगंगा sसफG हमारM हM नहMं कई और आकाशगंगाएं भी हt। जरा Nनकल कर दे खो प| ृ वी के बाहर
नई िजंदगी तु¡हZ बुला रहM है
Eकसी नए \ह पर....! अकेला कहॉ हूं मt तुम गए तो लगा
अकेला हो गया हूं मt असफलता से डरता रहा इसsलए Eक हो जाउं गा अकेला..... पर आंखZ बंद कd तो लगा अकेला कहां हूं मt gNतPदन सरू ज sमलने आता है, मझ ु से Eकरणq संग
चं[ बNतयाता है राŸ‚ मZ सदाबहार का…यालय
53
सं\ह-1
मुझसे तारq संग
हवा हमेशा होती है साथ मेरे जैसे पव ू Gजq कd अ”Žय शि=त घल ु M-sमलM हो
जब शभ ु •चंतक नहMं होते मेरे पास
तब भी एक परू ा संसार मेरे आसपास होता है यहM तो मेरM सफलता है.... मेरे उ–साह का कारण मुझ पर बनी हुई है gकृNत कd कृपा
सदाबहार का…यालय
54
सं\ह-1
39.
संबंध सुहाना है - ल9ला 6तवानी
है gेम से जग 4यारा, सुंदर है सुहाना है
िजस ओर नज़र जाए, बस gेम-तराना हैबादल का सागर से, सागर का धरती से धरती का अंबर से, संबंध सह ु ाना हैतारq का चंदा से, चंदा का सरू ज से
सरू ज का Eकरणq से, संबंध सह ु ाना हैस¢खयq का राधा से, राधा का मोहन से मोहन का मुरलM से, संबंध सुहाना हैपेड़q का प¨q से, प¨q का फूलq से
फूलq का खुशबू से, संबंध सुहाना हैजन-जन मZ gेम झलके, हर मन मZ gेम छलके मन का इस छलकन से, संबंध सुहाना है-
सदाबहार का…यालय
55
सं\ह-1
40.
gपंजरे का तोता - राजकुमार कांदु
चqच है मेरM लाल-लाल और पंख हt मेरे हरे -हरे आज बताता हूं मt तुमको
ज»म हt मेरे Eकतने गहरे ! सo ु दरता हM मेरM दŽु मन
Nनज Eक`मत पर रोता हूं चप ु न रहूंगा आज कहूंगा मt cपंजरे का तोता हूं.
पेड़ के कोटर मZ हM मेरM दNु नया से पहचान हुई बीता बचपन हुआ बड़ा मt
हर मुिŽकल आसान हुई `व•छ गगन मZ cवचरण करता ह‘रयालM मZ सोता हूं चुप न रहूंगा आज कहूंगा मt cपंजरे का तोता हूं.
कलरव करता पेड़q पर मt तरह-तरह के फल खाता था पीकर ठं डा जल झरने का फूला नहMं समाता था.
बंधु-सखा सब साथ हt मेरे एक झु¼ड मZ होता हूं चुप न रहूंगा आज कहूंगा मt cपंजरे का तोता हूं.
सदाबहार का…यालय
56
सं\ह-1
छोटM सी लालच का मtने म~ ू य बड़ा चक ु ाया है
डाल के दाना जाल Ÿबछाके मझ ु को गया फंसाया है.
लाकर कैद Eकया cपंजरे मZ हालत पर मt रोता हूं चप ु न रहूंगा आज कहूंगा मt cपंजरे का तोता हूं.
कैद नहMं थे तुम Eफर भी सबने इतनी कुरबानी दM बहनq ने सुहाग दM तो
लड़कq ने अपनी जवानी दM आजादM के जšबे कd मt कदर बड़ा हM करता हूं चुप न रहूंगा आज कहूंगा मt cपंजरे का तोता हूं.
जैसे तुमको जान से 4यारM है अपनी हM आजादM
कैद करो मत Eकसी जीव को सब हM चाहZ आजादM सब आजाद हq यह सोचूं मt जागूं चाहे सोता हूं चप ु न रहूंगा आज कहूंगा मt cपंजरे का तोता हूं.
सदाबहार का…यालय
57
सं\ह-1
41.
Jयs दे श बेचते हो? - ल9ला 6तवानी
ओ दे श[ोहM =यq तुम, अपनq से खेलते हो? =यq दे श[ोह करके, मानवता बेचते हो?
िजस पर जoम sलया है, िजसका हो पीते पानी, उस मातभ ु , =या सोच बेचते हो? ृ sू म को तम िजसने त¡ ु हZ दल ु ारा और दध ू भी cपलाया,
उस मां कd 4यारM ममता, NनमGम हो बेचते हो! जब क—ट से कराहे , िजसने तु¡हZ उबारा, उस gेममय cपता को, नादान बेचते हो!
िजसने गले लगाया, तु¡हZ •गरने से बचाया, उस `नेहM बंधु को भी, हैवान बेचते हो!
िजससे बंधाई राखी, वह बPहन भी लšजाई, उसकd पcव‚ता को, हो भाई बेचते हो! शहMदq ने खूं से सींचा, वीरq ने िजसको पाला, अपने उसी चमन को, तुम आज बेचते हो?
लेखा कभी तो होगा, इस पाप और पु¼य का, गठरM उठाए sसर पर, =यq पाप बेचते हो?
है आज Œतबा अ•छा, कल कd भी कोई सुध लो, ईमानदार कहला, ईमान बेचते हो?
चांदM के चंद टुकड़े, कब तक बनZगे साथी? गJदार हो वतन के, तम ु आन बेचते हो?
सदाबहार का…यालय
58
सं\ह-1
जो Ÿबक गया ये भारत, =या तम ु नहMं Ÿबकोगे? पहले वहM ŸबकZगे, जो दे श बेचते हt.
अब भी संभल ओ [ोहM, अब भी समय है बाकd, यह दे श है सभी का, =यq दे श बेचते हो?
सदाबहार का…यालय
59
सं\ह-1
42.
uमलके आगे आना है - आशीष dीवा3तव
sमल सब आगे आओ रे …. नPदयq को बचाओ रे , नPदयां तो हt जीवन रे खा ….जीवन को बचाओ रे । sमलके आगे आना है .. नPदयq को बचाना है, नPदयां तो हt जीवन रे खा .. जीवन को बचाना है। बहुत डाल चक ु े केsमकल , दःु खदायी हो रहा िजससे कल। अब नवाचार अपनाना है,
तब आ पायZगे सुख के पल।
सबने sमल के माना है, जैcवक खेती अपनाना है, नPदयां तो हt जीवन रे खा, जीवन को बचाना है। नPदयां तो हt जीवन रे खा, जीवन को सजाना है। पौधq को लगाना है, पेड़q को बचाना है। जल संर›ण को गांव-गांव, अपनाकर अलख जगाना है। ह‘रयालM sमलके लाना है, खुशहालM लाके छाना है, नPदयां तो हt जीवन रे खा, जीवन को बचाना है। घाट हो रहे मां के मैले, साफ करZ हम कैसे अकेले। सफाई अsभयान चलाना है, चौपाल मZ ये समझाना है। जनभागीदारM बढ़ाना है, िज¡मेदारM भी तय करना है। नPदयां तो हt जीवन रे खा, जीवन को बचाना है। बहुत फैलाया gदष ू ण,
सदाबहार का…यालय
60
सं\ह-1
अब करZ नPदयq का संर›ण। अपना Šान बढ़ाना है, अsभयान को सफल बनाना है। खद ु से हM आगे आना है, हमको ये प¼ ु य कमाना है। नPदयां तो हt जीवन रे खा, जीवन को बचाना है। नPदयां तो हt जीवन रे खा जीवन को बचाओ रे , नPदयां तो हt जीवनरे खा जीवन को बचाना है।
सदाबहार का…यालय
61
सं\ह-1
43.
मुिJत म_ है मौज बड़ी - ल9ला 6तवानी
मुि=त मZ है मौज बड़ी
लाती है खुsशयq कd झड़ी,
मुि=त हM अनमोल रतन है, =या सख ु दे हMरq कd लड़ी!
मिु =त का सख ु वह हM जाने, जो इसका मधरु स पहचाने,
मिु =त का सख ु दे ने मZ भी है,
मिु =त कd तड़प वाला यह माने. मुि=त हM हमको हषाGती,
आनंद-धन जीवन मZ लाती, मुि=त gसाद है परम gभु का,
और अनंत कd अनुपम पाती (प‚). मुि=त एक अहसास है,
जो सबके sलए ख़ास है, इसमZ नहMं कोई छोटा-बड़ा, मुि=त कd बस सबको 4यास है. मुि=त है आनंद कd आभा,
मुि=त है खुsशयq का उजास, मुि=त है उoनNत कd आशा, मुि=त जीवन का मधुमास.
मु=त है धरती, मु=त गगन है, मु=त Pदशाएं, मु=त पवन है,
मुि=त कd चाहत भी मु=त है,
मिु =त कd चाहत को नमन है.
सदाबहार का…यालय
62
सं\ह-1
44.
भीतर - बाहर - कैलाश भटनागर
फ़ैले अं•धयारे मZ राहM, मंिजल अपनी भूल न जाये, बच जाये ठोकर ट=कर से, पांव तले भी शल ू न आये.
अपने घर का Pदया उठा कर, चौराहे पर तम ु रख आये, अंदर अं•धयारा Nघरा रहा
बाहर उिजयारा कर आये.
ये माना, बाहर कd EकरणZ. लांघ दे हरM, आ जायZगी, घनी काsलमा यPद फैलM हो बोलो, वे =या कर पायZगी!
भीतर gकाश जब कर लो तुम, दMपक तब बाहर ले जाना,
हर घर कd दे हरM पर रखकर दMप से दMप जलाते जाना.
सदाबहार का…यालय
63
सं\ह-1
45.
प•स पोuलयो रgववार - ल9ला 6तवानी
प~स पोsलयो का अsभयान, =यq न बने अपना अsभमान. अगर सफल हो यह अsभयान, बने दे श के Pहत वरदान. आज कd आवाज़, पोsलयो रPहत समाज. पोsलयो हटाएं, दे श को बचाएं. आओ sमलकर करZ चढ़ाई, पोsलयो से करZ लड़ाई. आओ धरा का कज़G चुका दZ ,
घर-घर से हम पोsलयो हटादZ . पोsलयो रPहत हq सब इंसान, तभी बढ़े गी दे श कd शान. पोsलयो को हटाना है, दे श को बचाना है. नवयुग का है एक हM नारा,
पोsलयो रPहत हो दे श हमारा.
सदाबहार का…यालय
64
सं\ह-1
46.
सात फेरे कब लेना है – आशीष dीवा3तव
जाNत, मजहब, दNु नया से हमको =या लेना है आप तो इतना बतायZ सात फेरे कब लेना है.
जाNत, मजहब, दNु नया से हमको =या लेना है
आप तो हमZ ये बतायZ, सात फेरे कहां, लेना है. gेम हM भि=त, gेम हM शि=त अपना ये कहना है हमको इक-दज ू े का होकर, gेम से रहना है . sलया है िजतना कुदरत से, उतना वापस दे ना है
sमलकर पेड़ लगाने का इक फेरा šयादा लेना है. बीत रहM है उ• हमारM, दरू M कब तक सहना है
मत भूलो मेरा भी Pदल, कुदरत का इक गहना है . कैसी भी हो मुिŽकल, हमको हM हल करना है
जीवन कd नौका को sमलकर संग-संग खैना है. जाNत, मजहब, दNु नया से हमको =या लेना है
मुझको तो इतना बता दो, सात फेरे कब- लेना है.
सदाबहार का…यालय
65
सं\ह-1
47.
ये नीर नह9ं है , आंसू हv - ल9ला 6तवानी
ये नीर नहMं है, आंसू हt,
जो इन आंखq से बहते हt, =या वहM पुराने लोग हt जो, सPदयq से दे श मZ रहते हt.
वो कहां गई ममता-माया? जो इक पहचान हमारM थी, =यq दया-धमG का मान घटा? िजसने सं`कृNत संवारM थी.
आजाद हुए यह बात सहM, पर बची गुलामी कd क©ड़यां, सोचा था सुमन हंसाएंगे,
पा¾ cव`फोटq कd ल©ड़यां. =या यहM हमारM पर¡परा? =यq दःु ख पलनq मZ पलते हt? है यहM हमारM …यथा-कथा, आंसू नयनq के कहते हt.
अब लM करवट है भारत ने और तNनक सजगता आई है, शायद कुछ कर Pदखलाने कd, कसमZ अब सबने खाई हt. है एक बार आशा जागी, शायद यह दे श संभल जाए, जो मू~य हमारे कु¡हलाए,
वे पुनः सम ु न-सम ¢खल पाएं.
सदाबहार का…यालय
66
सं\ह-1
48.
सबसे अ€छे uम• - आशीष dीवा3तव
अंतस मZ मेरे समा गया है आपका 4यारा •च‚ आ जाओ, बन जाइए मेरे सबसे अ•छे sम‚ मन मZ मेरे बस गया है आपका हM •च‚ आकर बतला दो दNु नया को हम हt सबसे अ•छे sम‚ सुन रखा है मtने Eक,
ये 4यार होता है cव•च‚ महका दो, जीवन कd ब•गया महके जैसे असलM इ‚ मन मZ मेरे बस गया है आपका हM •च‚ आकर बतला दो दNु नया को हम हt सबसे अ•छे sम‚
कहते हt हर ‘रŽते से ऊपर होते हt स•चे sम‚ खुश हqगे हम-तुम sमलकर तो खुश हqगे अपने cपत ृ
आ जाओ न, बन जाइए मेरे सबसे 4यारे sम‚ मtने तो अपना मान sलया दे खा है जबसे स•च‚
सदाबहार का…यालय
67
सं\ह-1
49.
संघषQ Jया है ? - ल9ला 6तवानी
संघषG =या है? संघषG जीवन है जो जीवन को जीवंत बने रहने मZ सहायक होता है. संघषG है एक परख िजससे cवपc¨ से उबरने कd gेरणा sमलती है. संघषG है एक कसौटM जो gNतकूल प‘रि`थNतयq मZ कसकर खरा सोना बना दे ती है. संघषG है एक सीढ़M जो सफलता कd ओर उoमुख कर cवजय_ी के sशखर पर पहुंचा सकती है. संघषG है एक संबल जो मन-gाण-आ–मा के उoनयन को सहारा दे ता है.
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
संघषG है एक आ_य-`थल िजसमZ बड़े-बड़q को अ•छª तरह जीने का आ_य sमलता है. संघषG है एक खोज जो Eकसी मZ Nछपी gNतभा को सामने लाती है. संघषG है एक sश›क जो ठोकर खाकर भी संभलना sसखा दे ता है. संघषG है एक केवट जो असुcवधा ™पी पतवार से समय ™पी नाव के उस पार जाने कd ›मता बढ़ाता है. संघषG है केवल संघषG जो कभी अंतमGन और कभी बPहमGन मZ मंथन कर र–नq के gाकžय का साधन बनता है.
सदाबहार का…यालय
69
सं\ह-1
50.
अजुQन का गवQ हरण - राजकुमार कांदु
महाभारत युJध के बाद अजुGन को `वयं को सबसे बड़ा धनुधGर होने का गुमान हो गया
था । इधर हनुमान जी अपने आराiय _ी राम जी को सवG_े—ठ धनुधGर मानते थे । इस
gसंग मZ _ी कृ—ण ने हनुमान व अजुGन दोनq का हM गवG हरण Eकया है । इस gसंग को पJय मZ sलखने का gयास Eकया है , Eकतना असफल या सफल हुआ हूँ यह आपकd gNतE¥याएं इं•गत करZ गी । धoयवाद ! कथा सन ु ाता हूँ एक तम ु भी सन ु लो iयान लगाय बाद महाभारत अजGन ु के मन मZ गवG समाय माŒती भी थे अNत गcवGत बस राम नाम को लेकर उनसे _े—ठ नहMं हो सकता जग मZ कोई धनुधGर बात ¿दय कd कृ—ण समझ गए वो थे अंतयाGमी सोच sलया पल मZ काoहा ने दरू हो कैसे खामी
एक Pदवस अजुGन बोले सुन लो •ग‘रधर गोपाल
_े—ठ धनुधGर कौन है अब तक यह घड़ी और यह साल सुनकर पाथG कd ये बातZ काoहा मन मZ मु`काए हt
तुमको sमलना होगा हनुमत से काoहा ये समझाये हt काoहा के संग पाथG चले जा पहुंचे पवGत चोटM पर
जहाँ iयानमRन हनुमान cवराजे थे पवGत कd चोटM पर दे ख के स¡मुख मुरलMधर हनुमत ने उoहZ gणाम Eकया
=या बात हुयी =या खता हुयी •ग‘रधर =यq यहाँ gयाण Eकया तब कृ—ण पाथG को इं•गत कर हनुमत जी से यह बोले हt है कौन धनध ु Gर बलशालM दŽु मन Eकस नाम से डोले हt
सदाबहार का…यालय
70
सं\ह-1
सन ु कर के मोहन कd बातZ अंजनीसत ु म` ु काए हt
गcवGत होकर हनम ु त जी तब _ीराम का नाम बताये हt अब पाथG भला =यँू चप ु रहते हनम ु त को यह समझाया है _ीराम नहMं मt _े—ठ धनध ु Gर पल मZ यह बतलाया है
पुल बनाया प–थर का तब सेना सागर पार हुयी Eफर _े—ठ धनुधGर =यूँ कहते लगता है तुमसे भूल हुयी गर मt होता उस व=त पुल प–थर का कभी न बनवाता हूँ _े—ठ धनुधGर पल भर मZ तीरq से पुल बना जाता
गcवGत अजुGन कd सुन बातZ हनुमत बोले सुनते जाओ
जो कहा उसे कर Pदखलाओ Nनज ताकत पर ना इतराओ तुम पुल बनाओ तीरq का उसको पल भर मZ तोडूंगा गर तोड़ न पाया पुल धनुधGर उ¨म तुमको मानूंगा
सागर के तट पर अजुGन ने तीरq का पुल बनाया है
लेकर cवराट तब ™प कcप ने पुल को हM दहलाया है जब तोड़ सके न पुल कcप तब मुरलMधर से बोले हt है एक परM›ा और अभी यह पाथG ने‚ को खोले हt
जा पहुंचे हनुमत संग सभी जहाँ सात ताड़ के पेड़ बड़े एक बाण से भेदो इन सबको जल Nनकले जहाँ भी तीर अड़े गांडीव हाथ ले अजGन ु ने तब तीर धनष ु पे चढ़ाया है सातq ताड़ का कर भेदन शर धरती मZ हM समाया है
कुछ तो गड़बड़ है नाथ वरन ऐसा कैसे हो सकता है सदाबहार का…यालय
71
सं\ह-1
मेरे राम जगत के दाता है उन सा कोई हो सकता है ? अचरज मZ छोड़ के हनम ु त को अजGन ु अब सागर तीर गया वह ”Žय दे ख कर अsभमानी अजGन ु का माथा Eफर गया अब पल ु नहMं टुकड़े तीरq के सागर मZ थे पड़े हुए काoहा ने दे खा अजGन ु कd नजरZ अब शमG से गड़े हुए केशव ने लोहा गरम दे ख तब सुoदर एक gहार Eकया
Eकतना कमजोर था पुल तु¡हारा कcप ने िजसे बेकार Eकया असमंजस मZ थे पाथG चल पड़े काoहा के पीछे -पीछे अब गवG चूर हो चला शीश भी झुका हुआ नीचे-नीचे जा पहुंचे दोनq वहां जहाँ थे सातq ताड़ खड़े हुए दो ताड़ पार कर तीजे मZ वह तीर sमला था फंसे हुए वह तीर Pदखाकर मोहन ने अजुGन से तब ये पूछा है यह दे खो अजुGन ! तीर तु¡हारा भेदन से भी चूका है
हे पाथG बताओ ! अब तुम हM ! =या अब भी शंका बाकd है ? चाहो तो कोsशश और करो यह तो बस समझो झांकd है तब हाथ जोड़ अजुGन माधव के गीर पड़े थे चरणq मZ
हे नाथ ! ›मा दे दो मझ ु को बड़ी भूल हुयी अनजाने मZ अब गवG नहMं करना मझ ु को यह तम ु ने मझ ु े बताया है
जो कुछ भी जग मZ होता है gभु ! बस तेरM हM माया है
सदाबहार का…यालय
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सं\ह-1
51.
मानव बनकर तुम जी तो सके! - ल9ला 6तवानी
है नदM न अपना जल पीती, केवल औरq के Pहत जीती, है 4यास बुझाती सब जग कd, Eफर भी न कभी होती रMती. हt व› ृ नहMं फल खुद खाते, फलते हt बस औरq के sलए,
šयq-šयq फलते झक ु ते जाते, sमट जाते वे औरq के sलए. हर रोज़ सब ु ह सरू ज आकर, Eकरणq का जाल Ÿबछाता है,
इसमZ =या `वाथG कहो उसका? वह सब जग को दमकाता है. हर शाम चं[मा आकर जो, शभ ु शीतलता Ÿबखराता है,
है कौन `वाथG बोलो उसका? वह सब जग को चमकाता है. हt फूल महकते =यq बोलो? =या उनमZ `वाथG कd गंध होती, उनकd खुशबू सबके Pहत है, वे Ÿबखराते मधु के मोती.
है प| ृ वी `वाथG-हMन सदा, अ¡बर मZ `वाथG का नाम नहMं,
तारq के चमकने मZ हमको, लगता =या `वाथG का काम कहMं? मानव हM केवल वह gाणी, जो `वाथG के कारण काम करे , भाई-से-भाई जंग करे , Eफर चाहे िजए वह चाहे मरे . `वाथG पूरा करने को वह, कोई भी तरMका अपनाए,
हो क—ट भले Eकसको Eकतना, पर अपना काम तो सध जाए. वह कहता सब जग `वाथµ है, धरती-नभ भी अपवाद नहMं, फल-फूल-नदM-सूरज-चंदा, इनकd भी दे ता दाद नहMं.
पर जब तक `वाथG का यह पदाG, मानव मन से न उठाएगा, वह भला करे गा =या सबका? अपना न भला कर पाएगा. इस हे तु अरे ओ मानव तुम, छोड़ो `वाथG का साथ-संग, मानव हो मानवता ओढ़ो, खुद दानवता रह जाए दं ग.
प›ी कd तरह उड़ना सीखे, मछलM कd तरह तुम तैर सके,
है मज़ा तभी Nनज `वाथG छोड़, मानव बनकर तुम जी तो सके.
सदाबहार का…यालय
73
सं\ह-1