Utsav

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उ"सव लघक ु था सं-ह-4

ल1ला 2तवानी


उ"सव लघुकथा सं-ह-4 1.

$माट( फोन

2.

धंध ु लके का अ4स

3.

र$म अदायगी

4.

ईमानदार> का उ@सव

5.

अCभनव उ@सव

6.

अनFगनत आंखJ

7.

जब जागो तभी सवेरा

8.

सालFगरह

9.

कोर-कसर

10.

SवकTप

11.

VतीWा

12.

Sवरोध करJ गे, गYतरोध नह>ं

13.

पहचान

14.

अि$त@व का आभास

15.

'Yनक] ^यू`> चॉकलेट'

16.

गफ़लत

17.

cकतने जौहर?

18.

वेषभूषा

19.

दानापरु क] दिु Tहन

20.

ऐYतहाCसक उपलिhध का उ@सव

21.

असंतुCलत ^याय


22.

Sवiान-बाला

23.

उगालदान

24.

$मYृ त

25.

पkृ ठभCू म

26.

अनूठा आSवkकार

27.

नए यथाथ( का सज ृ न

28.

गोरा हो: The Golden Boy

29.

चमक

30.

Wमा

31.

मंिज़ल

32.

ज{न

33.

शहनशाह

34.

Vेरणा

35.

चेतावनी

36.

मेकअप

37.

~लाYनंग

38.

खुद को पहचानो

39.

•ह€मतवाल>

40.

कSवता क] पर>Wा

41.

हसीन •वाब

42.

चाल दे ख ले

43.

टै टू

44.

नई इबारत

45.

भूख हड़ताल


46.

सां@वना

47.

…ंग ृ ार

48.

और इंद ु पास हो गई

49.

$वीकाय(ता

50.

बोझ

51.

अनुkठान


1.

$माट( फोन

''बबीता, आज आपका बेटा $कूल 4यŠ नह>ं आया? ‹बŒटू बता रहा था.'' नीता ने बबीता से फोन पर पूछा.

''हां नीता, उसे पेन-पJCसल पकड़ने मJ •द4कत हो रह> है, सो डॉ4टर को •दखाने गई थी.'' ''डॉ4टर ने 4या कहा?'' ''डॉ4टर ने उसे $माट( फोन नह>ं दे ने के Cलए कहा है.'' ''4यŠ? $माट( फोन से 4या नुकसान होता है?'' ''$माट( फोन से उं गCलयŠ क] मांसपेCशयां कमजोर हो जाती ह•.'' ''म•ने भी कह>ं पढ़ा था- $माट( फोन से ब‘चŠ क] पकड़ कमजोर हो रह> है िजससे उनके Cलखने और Fच’कला जैसे हुनर भी VभाSवत हो रहे ह•. अब 4या करोगी? ब‘चŠ क] यह आदत तो छूटनी मुि{कल है.'' ''मिु {कल 4या है? दवाई तो लेनी ह> पड़ती है न! यह दवाई ह> तो है ! इसे लेना नह>ं

छोड़ना है. ब‘चे तो कहJ गे, cक हम इससे बहुत कुछ सीखते ह•. उसके Cलए हमJ समय Yनकालकर उनको •दखाना-Cसखाना होगा. इससे वे सीख भी जाएंगे और $माट( फोन के नुकसान से भी बच जाएंगे, एक बात और अ‘छ” होगी, cक हमJ भी पता होगा, cक वे 4या और 4यŠ सीख रहे ह•.''

''यह बात तो सह> है,'' नीता ने सहमYत जताते हुए कहा- '' म• भी ‹बŒटू को समझाकर $माट( फोन से दरू रखूंगी.'' अगले •दन से ब‘चŠ क] उं गCलयŠ क] मांसपेCशयŠ को कमजोर बनाने क] कवायद सु• हो गई थी. अब दोनŠ ब‘चŠ के हाथŠ मJ इमरजंसी के Cलए फोन तो होता था, $माट( फोन नह>ं.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


2.

धुंधलके का अ4स

अभी-अभी सोमे{वर के पास पुCलस के कं`ोल –म से फोन पर मैसेज आया था.

पुCलस कCम{नर ने उसको शाबाशी दे ते हुए अ‘छे व िज€मेदार नाग—रक क] उपाFध से SवभूSषत cकया था. मैसेज पढ़कर सोमे{वर को शाम क] बात याद आ रह> थी. जनवर> के अंYतम •दन क] सद( शाम को हसीं बनाने के Cलए छोटे बेटे के साथ सोमे{वर दे श क] आन 'इं˜डया गेट' दे खने गया था. इं˜डया गेट के आस पास फैल> धंध ु cकसी को Vदष ू ण का दkु प—रणाम लग रह> थी, तो cकसी को नई कSवता के

सज ु लके मJ अपराध कर गाड़ी भगाकर ले ृ न का Vेरणा$’ोत. सोमे{वर को उस धंध

जाने वाले cकसी अपराधी का अ4स •दखाई •दया था. उसने गाड़ी रोककर वहां तैनात पCु लस को आगाह करने क] कोCशश क], लेcकन उसक] बात पCु लस वाले को समझ ह> नह>ं आ रह> थी.

उनक] बात को लंबा चलता दे ख एक और पुCलस वाला पास आया और बात को समझने क] कोCशश करने लगा. शी™ ह> वह समझ गया, cक सोमे{वर गूंगा-

बहरा (मूक-बFधर) होने के कारण इशारŠ से बात कर रहा था. उसने इन इशारŠ को

समझने क] थोड़ी `े Yनंग भी ल> हुई थी. वह शी™ ह> समझ गया, cक कोई अपराधी अपराध करके गाड़ी से भाग रहा है. उसने सोमे{वर से पूर> जानकार> लेकर त@काल कार(वाई शु• कर द>. तीन घंटे क] सुYनयोिजत मेहनत के प{चात अपराधी पकड़ मJ आ पाया था.

धुंधलके के अ4स ने उसको दे श के Cलए एक दे शभ4त नाग—रक बनने का गौरव Vदान cकया था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


3.

र$म अदायगी

वॉCलबॉल œखलाड़ी और पव(तारोह> अ•œणमा Cस^हा के Cलए 29 जनवर>, 2018 एक बार cफर जीत का •दन बन गया था. इस बार यह जीत उसे कानूनी लड़ाई मJ हाCसल हुई थी. उसे याद आ रहा था आज से सात पहले का एक दद(नाक हादसे वाला •दन, जब हवाएं तो सद( नह>ं थी, लेcकन कुछ अराजकत@वŠ के •दल अव{य सद( हो गए थे.

यह हादसा 11.4.11 को हुआ था. œखलाड़ी अ•œणमा Cस^हा प•मावत ए4सVेस से लखनऊ से •दTल> जा रह> थीं. बरे ल> से पहले धनेती रे लवे $टे शन पर कुछ

अराजकत@वŠ ने उनके साथ बरु > तरह से मारपीट क] और उ^हJ ध4का दे कर `े न से

फJक •दया. $टे शन मा$टर से सच ू ना Cमलने पर पहुंची रे लवे पCु लस ने उ^हJ िजला अ$पताल मJ भतŸ करवाया था. हालत मJ सध ु ार न होने पर अ•œणमा को •दTल> भेजा गया था, जहां उनका पैर काटना पड़ गया. तब से श• ु हुई थी वह कानन ू ी लड़ाई.

इस कानूनी लड़ाई के दाव-पेचŠ के बारे मJ 4या बताया जाए! पहले तो रे लवे अ•œणमा को रे लया’ी ह> नह>ं मान रहा था, जबcक अ•œणमा का `े न •टकट सबूत के तौर पर शु•आत मJ ह> स प •दया गया था. रे लवे का यह भी कहना था cक वह जानबूझकर `े न से कूद> ह•. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब रे लवे ने अपनी चूक मान ल> है. इस बीच अ•œणमा ने कृ‹’म पैर के सहारे एवरे $ट फतेह cकया. 29 जनवर>,

2018 को रे लवे 4ले€स `ाइhयूनल -लखनऊ बJच ने रे लवे को सात लाख बीस हजार •पये मुआवजा दे ने का आदे श जार> cकया. 7 साल से तन-मन से बुर> तरह आहतघायल कृ‹’म पैर के सहारे जीने वाल> अ•œणमा को जनवर> क] सद( हवाओं मJ इस मामूल> मुआवजे को दे ने क] र$म अदायगी क] गई थी.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


4.

ईमानदार> का उ@सव

आज 26 जनवर> 2018 का •दन डॉ4टर Sपता सWम के Cलए यादगार •दन बन गया है. उसके छोटे बेटे संकTप को '•हमवीरŠ' क] $पेशल `े Yनंग मJ सव(…ेkठ जवान के –प मJ उभरने पर •दTल> के राजपथ पर होने वाल> मु¢य परे ड मJ '•हमवीर' टुकड़ी का

कमांडर बनाया गया था. वह अपने समूह मJ सबसे आगे चल रहा था और उसी ने

अपने समूह के Cलए राk`पYत को सलामी द> थी. उसक] टुकड़ी के आगे जाने के बाद Sपता ने वहां होते हुए भी मानो परे ड नह>ं दे खी. वे अपने SवचारŠ मJ ह> खोए हुए थे.

डॉ4टर Sपता सWम को हर साल Yनयम से परू ा टै4स भरने का ईमानदार> का उ@सव

मनाते दे ख बेटे Cस•धांत और संकTप ने भी ईमानदार> का उ@सव मनाने क] बात मन मJ ठान ल> थी. वे अपने Sपता को परू > ईमानदार> से मर>जŠ क] सेवा करने को

दे शभि4त मानते थे. वे खद ु भी दे श क] सेवा करना चाहते थे, पर डॉ4टर बनकर

नह>ं, cकसी और –प मJ. Cस•धांत cकसान बनकर दे श-सेवा मJ संल£न होना चाहता था और संकTप ने बचपन से ह> सेना का जवान बनने का संकTप Cलया था. Cस•धांत ने जहां cकसान बनकर दे श क] ज–रत के अनु–प अपने ¤यवसाय को पूर> तरह ˜डिजटल बना Cलया था, वह>ं ज€मू-क{मीर के ल•दाख मJ इंडो-Yतhबत सीमा पुCलस

(आईट>बीपी) के सैYनक •हमवीरŠ के Cलए $क]इंग अ¥यास के एक स’ के आयोजन मJ सव(…ेkठ Vदश(न करते हुए संकTप ने अनेक •हमवीर सैYनकŠ क] जान भी बचाई थी. बफ( पर फरा(टा भरते हुए $क]इंग करते हुए कई जवान cफसलने जो लगे थे. हां, डॉ4टर Sपता सWम को इस बात का भी गव( था, cक दोनŠ बेटे उसक] तरह हर साल Yनयम से पूरा टै 4स भरने का ईमानदार> का उ@सव मनाते थे.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


5.

अCभनव उ@सव

उ@सवŠ का @योहार अपने पूरे Yनखार पर था, हवाओं मJ, cफ़ज़ाओं मJ, Vेम-ह>-Vेम

समाSवkट था. नॉद(न( Cमनेसोटा मJ रहने वाले एSवएशन $टूडJट अCभनव-िजiासा क]

Vेमगाथा प—रवार वालŠ को भल>भांYत iात थी. उनका अनुमान था cक शी™ ह> आने वाले वेलJटाइन डे के •दन उ^हJ उन के Vणय-बंधन का शुभ समाचार Cमल सकता है, लेcकन अCभनव के मन मJ कुछ और ह> चल रहा था.

''पापा, आप तो अCभनव सझ ु ावŠ के Vणेता ह•, मझ ु े भी िजiासा को Vेम के इज़हार का कोई अCभनव उपाय सझ ु ाइए न!' अCभनव ने कहा था.

''बेटा, तु€हारे बाक] Cम’ तो आगामी वेलJटाइन डे क] VतीWा मJ ह> हŠगे, तुम भी उसी •दन कोई जुगत लगा लेना.''

''पापा, कोई अCभनव सझ ु ाव क] आकांWा है.'' ''ठ”क है, कल छुŒट> है, भयानक स•द(यŠ क] वजह से ¦ो Sवंग लेक पूर> तरह से जम गई है. सब बफ( पर SपकYनक के Cलए चलते ह•. बस तुम बफ( पर Cलखने वाला सामान साथ मJ रख लेना.''

अCभनव ने अगले •दन क] VतीWा करते आंखŠ-आंखŠ मJ रात काट ल>. सुबह होते ह> पूरा प—रवार SपकYनक पर गया. दस ू रे •दन अCभनव ने एक ~लेन cकराए पर Cलया और अपनी गल(§Jड को एक छोट> सी हवाई •`प पर ले जाने के Cलए कहा. इसके

बाद अCभनव क] गल(§Jड िजiासा इसके Cलए राजी हो गई. अCभनव लेक के ऊपर ह> ~लेन उड़ाता रहा. अचानक िजiासा ने कहा- ''अCभनव, दे खो-दे खो नीचे लेक क] बफ( पर cकतना सुंदर ¨{य है. cकसी ने बफ( पर Cलखा है 'मैर> मी'. पास ह> एक •दल के बीच एक लड़के-लड़क] का $केच भी है.''

''cफर 4या इरादा है?'' अCभनव ने शरारत से पछ ू ा. ''ये तुमने Cलखा है?'' 'िजiासा क] चमकती आंखŠ मJ सहज िजiासा थी. ''ठ”क समझीं, जTद> जवाब दो.'' झमककर अCभनव ने कहा. ''हां, कब?'' िजiासा क] दस ू र> िजiासा थी. ''आज और अभी.'' अCभनव ने हवा मJ ह> उसको डायमंड —रंग पहनाई.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


दोनŠ क] खुशी का •ठकाना नह>ं था. थोड़ी दे र मJ जब अCभनव-िजiासा घर आए तो

उन के चेहरे क] मु$कान पूरे प—रवार क] मु$कान बन गई थी. पापा ने कहा- ''बाप-रे बाप, कुछ नया करने के च4कर मJ हम सबको cकतनी मश4कत करनी पड़ी? कर>ब 25 फ]ट लंबे अWरŠ से 'मैर> मी' Cलखने के Cलए हमJ चार घंटे खटना पड़ा.''

''ठ”क है, पर आज के •दन हम सबका अCभनव उ@सव तो हो गया न!'' यह िजiासा के पापा क] खुशनुमा आवाज़ थी, जो यह शुभ समाचार सुनकर सप—रवार पहुंच गए थे.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


6.

अनFगनत आंखJ

भै©या-भै©या, दे खो तो, अखबार मJ आपका फोटो छपा है. cकतने सुंदर लग रहे ह• आप!

'अ‘छा-अ‘छा, ªयादा हTला मत कर. अ€मा-बाबा को शांYत से पूजा करने दे , और

सुन, ये अखबार यहां रख जा.'' Vॉजे4ट ˜डजाइन मJ •Sवतीय वष( के 24 वषŸय छा’ गŠगा ने कहा. अखबार तो गŠगा के हाथ मJ ह> रह गया. उसक] आंखJ तो कुछ और दे ख-सोच रह> थीं.

बाक] लोगŠ क] बेशक दो ह> आंखJ होती हŠगी, लेcकन गŠगा नवीन कुमार क]

अनFगनत आंखJ थीं. यह सब गŠगा को कहां पता था! वह तो अपने काम मJ Cश•दत से तTल>न रहता था. उसका «यान पढ़ाई पर तो था ह>, पया(वरण और महंगाई पर भी उसक] पैनी नज़र थी. दे श क] न•दयŠ क] गंदगी से भी वह भल>भांYत वाcकफ था. ¬धन क] कमी से जूझते दे श को वह नजर अंदाज़ कैसे कर सकता था! cकफायत तो उसे घुŒट> मJ Sपलाई गई थी. इसCलए उसने न•दयŠ के पानी से कचरा Yनकालने के

Cलए तेल के खाल> ˜डhबŠ, साइकल के कुछ पाŒ(स, ~लाि$टक और लकड़ी क] मदद से एक मशीन तैयार क] थी. इस गŠगा ि$कमबाइक क] क]मत 30 हजार •पये है, जब

cक इस व4त िजन मशीनŠ का इ$तेमाल न•दयŠ क] सफाई के काय- मJ cकया जा रहा है, उनक] क]मत करोड़Š •पये है . खाल> ˜डhबŠ क] वजह से मशीन ‹बना cकसी मेहनत और सुरWापूव(क पानी पर तैरती रहती है . यह Cसफ( पानी मJ संभलकर तैरती ह> नह>ं है बिTक यह मुहानŠ से कचरा भी बाहर करती है.

यह सब गŠगा क] लगन का नतीजा था, जो आज अखबार मJ छपा था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


7.

जब जागो तभी सवेरा

आज म•ने 100 मीटर क] दरू > 42.20 सेकंड मJ दौड़कर नया Fगनेस वTड( रे कॉड(

बनाया है. आप मेर> खुशी का अंदाज़ा लगा ह> सकते हŠगे. म• भी बहुत खुश हूं और मुझे 3 साल पहले के उस •दन क] बात याद आ रह> है , जब म• भारत मJ थी. म• रोज क] पाक( मJ जॉFगंग कर रह> थी, cक मुझे एक आंट> ने 'गुड मॉYन®ग'' कहकर मुझसे बात करनी चाह>.

''आपको बहुत अ‘छ” तरह जॉFगंग करते दे ख मुझे बहुत खुशी हो रह> है .'' ''जी, शcु ¦या, बस ये मेरा शौक है, अब तक तो घर गह ृ $थी मJ ¤य$त थी, अब दोनŠ ब‘चे कॉलेज के हो$टल मJ पढ़ रहे ह•, सो अपने Cलए कुछ समय Yनकाल पाती हूं.''

''आप इतना तेज़ दौड़ पाती ह•, आपने कभी cकसी $पोट( स एसोCसएशन से जुड़ने क] कोCशश नह>ं क]?'' आंट> ने पूछा था.

''बस, अपने Cलए समय ह> नह>ं Yनकाल पाई. अब तो दे र हो चक ु ] है.'' ''नेक काम के Cलए कभी दे र-सवेर नह>ं होती है. ऐसे मJ तो जब जागो तभी सवेरा होता है.'' आंट> ने मुझे जगाने क] कोCशश क] थी. ''अब तो मुि{कल लग रहा है.'' मेरा दरु ा‰ह ह> समœझए. ''ऐसा है लता जी, म• एक hलॉगर हूं और अ4सर Vेरणा और Vो@साहन दे ने वाले hलॉ£स ह> Cलखती हूं. आपको हमार> बात पर ज़रा भी Sव{वास हो, तो घर जाकर

हमारा 'अभी म•ने शु•आत ह> क] है' hलॉग पढ़कर दे œखएगा. शायद आपको भी Vेरणा Cमल सके.'' आंट> से मेर> यह पहल> और आœखर> मुलाकात थी.

म•ने hलॉग पढ़ा था और 105 वष( क] आयु मJ दौड़कर नया Fगनेस वTड( रे कॉड( बनाने वाले जापान के ‘गोTडन बूट’ के नाम से VCस•ध Yनवासी •हदेcकची Cमयाजाक] के

कथन से VभाSवत हुए ‹बना नह>ं रह सक]- उ^हŠने कहा था- ''अभी म•ने शु•आत ह> क] है.'' मझ ु े लगा, cक उस श¢स ने तो 90 बसंत पार करने के बाद दौड़ना श• ु cकया था, म• तो अभी 50 बसंत भी नह>ं देख पाई हूं. अभी दे र नह>ं हुई है . कुछ समय बाद ह> हमार> पोि$टं ग इटल> मJ हो गई थी. मेरा मन Vेरणा से सराबोर था ह>, इटल> मJ मझ ु े

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लघुकथा सं‰ह-4


ऐसी संगYत भी Cमल गई. म•ने Vय@न जार> रखा. उसी का सुप—रणाम है, cक दौड़ मJ आज का यह नया Fगनेस वTड( रे कॉड( मेरे नाम दज( हो गया है.''

आंट> ने मुझे दरु ा‰ह से मिु 4त •दलाई थी और मुि4त से जीत से जीत हाCसल हो गई.

उ@सव

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8.

सालFगरह

आज सुनंदा-सुरेश के Vपोज डे क] सालFगरह थी और उनके बेटे सुCमत क] शाद> क] पहल> सालFगरह भी. मेहमानŠ के Cलए लंच क] तैयार> करते-करते सुनंदा को Sपछले साल क] बातJ याद आ रह> थीं. तब उसने सपने मJ भी नह>ं सोचा था, cक 3 •दन बाद सुCमत क] शाद> भी हो जाएगी. ''सुCमत बेटा, बाजार से जरा हरा धYनया तो ले आ.'' 'ममी, अब म• धYनया लेने भी जाऊंगा 4या?'' हमेशा क] तरह उसक] ना नुकुर बरकरार थी.

''बेटा, नाना जी को रायते मJ धYनया न •दखे, तो उ^हJ रायता पसंद नह>ं आता, म•ने अभी दे खा, धYनया ख@म हो गया है.'' ''अ‘छा लाता हूं. 30 साल पहले आपका Vपोज डे था, सो उसका ज{न मनाने नानानानी तो आएंगे ह> न!'' सुCमत गया तो अकेला था, पर आया अकेला नह>ं. अपने •दल के बदले cकसी का

•दल भी उसके साथ था. असल मJ उसने सhजी के ठे ले के पास पेड़ पर एक साद>-सी सूचना दे खी- ''यहां आसपास चोर-लुटेरे होते ह•, कृपया पस( आ•द अपनी क]मती चीजJ संभालकर रखJ.''

क]मती चीजŠ मJ •दल को शुमार नह>ं cकया गया था और सुCमत उसी को खो बैठा था.

दस ू रे •दन उसी समय सुCमत ने खुद पूछा- ''ममी, आज सhजीवाले से कुछ लाना है?'' ''नह>ं बेटा.'' ममी का जवाब था. सCु मत तो- ''अ‘छा, म• थोड़ी दे र मJ आता हूं.'' कहकर चला गया था, पर कभी ऐसे बाहर न Yनकलने वाले सCु मत के इस प—रवत(न से ममी हैरान अव{य थीं.

आज सुगंधा के दश(न-द>दार के साथ सुCमत क] उससे बात भी हो गई थी. उसका नाम पता लगने के साथ वाŒस ऐप भी ए4सचJ ज हो गया था.

अगले •दन cफर उसी समय सCु मत को बाहर जाते दे ख ममी को कुछ आशंका हुई. उसके बाहर Yनकलने के साथ-साथ ममी भी चप ु के से उसके पीछे गई. ठ”क Vपोज डे

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लघुकथा सं‰ह-4


के •दन सCु मत को cकसी सुंदर-सी लड़क] को Vपोज़ करते दे खा, तो चुपके से उनक] फोटो भी खींच ल>.

उसके बाद ममी का चेहरा तो œखला-œखला-सा लग रहा था. सुCमत क] हालत भी कुछ अजीब-सी थी. उसने सुगंधा को मैसेज भेजा था''cफजा मJ महकती शाम हो तम ु , ~यार मJ झलकता जाम हो तुम.'' रात को खाना खाने के बाद पापा ने ह> बात छे ड़ी थी- ''सCु मत. शाद> के बारे मJ त€ ु हारे 4या Sवचार ह•?''

''शाद>!cकसक] शाद>?'' सुCमत ने कहा तो पापा ने चहककर कहा- ''मेर>.'' और cफर उसे फोटो •दखाते हुए कहा- ''दे ख ये लड़क] तुझे पसंद है?''

अपनी फोटो दे ख सCु मत सकपका गया. ''पापा, ये फोटो आपको कहां से Cमल>?'' ''कह>ं से भी Cमल> हो, तुम अपना इरादा बताओ.'' ''पापा, अब म• 4या बताऊं?'' इतना ह> कह पाया सुCमत. ''4या नाम है इसका? और हां, इसके पापा का फोन नं. •दलवा दे , तो उनसे बात क–ं. कल ह> शाद> हो जाए, तो तुम आराम से वैलJटाइन डे को हनीमून पर जा सकोगे.''

cफर पलक झपकते ह> सब कुछ हो गया था. आज सुनंदा के माता-Sपता के साथ सुगंधा के माता-Sपता भी तो आने थे न! दोनŠ क] शाद> क] सालFगरह जो थी. प—रवार मJ खCु शयŠ का सागर लहरा रहा था.

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9.

कोर-कसर

''अंकल, ‹ब•टया क] शाद> का कॉड( लाया हूं, आपको आकर ‹ब•टया को आशीवा(द भी दे ना है और सारा काम भी संभालना है.'' cकशोर ने कहा. ''बहुत-बहुत मुबारक हो बेटा, हम तो कब से ‹ब•टया क] शाद> क] VतीWा कर रहे थे. Yनि{चंत रहो, हम अव{य आएंगे, ‹ब•टया को आशीवा(द भी दJ गे और काम भी संभालJगे. अरे हां, लड़का अपनी ‹बरादर> का ह> है न!'' अंकल क] $वाभाSवक उ@सुकता थी.

''अंकल. लड़का अपनी ‹बरादर> का तो नह>ं है , पर बहुत सुशील और समझदार है. ‹ब•टया के साथ पढ़ता था. आपको याद होगा, हमार> Vेम Sववाह भी ऐसे ह> हुआ था. मेर> प@नी भी ‹बरादर> क] नह>ं थी, लेcकन प—रवार मJ cकसी को उससे कोई Cशकायत नह>ं है.'' ''‹बलकुल याद है बेटा. यह भी सच है, cक बहू ने बड़Š क] इ±ज़त मJ कोई कोर-कसर नह>ं छोड़ी''.

उ@सव

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10.

SवकTप

बीस साल जेल क] सजा काटने के बाद आज पुkकर जेल से आजाद था, cफर भी वह वाSपस जेल मJ शेष जीवन ¤यतीत करना चाहता है , 4यŠcक उसको इससे अ‘छा कोई SवकTप नह>ं Cमल पा रहा है. जेल क] ओर वाSपस चलते-चलते भी उसके मन का गहन मंथन जार> है. ''म•ने अपनी ~यार> प@नी और बीस साल क] लाड़ल> बेट> क] ह@या कर द> थी''. ''दोनŠ मेर> हर बात मानती थीं. cफर आœखर उनका दोष 4या था? दोष तो मेरा ह> था. उस रात न जाने cकस वहशीपन ने मझ ु पर वशीकरण मं’ से वशीभत ू कर •दया था''. ''अब न घर रहा, न घरवाल> और न घर क] इकलौती वा—रस. और गांव? गांव ह> कहां रह गया है? जुलाई 2016 मJ आई भीषण बाढ़ मJ सब तबाह हो गया. अब गांव भुतहा हो गया है. पूरे गांव मJ Cसफ( वह ह> एकमा’ जीSवत ¤यि4त ह•''.

''इससे तो अ‘छा वह> उधम Cसंह नगर क] Cसतारगंज जेल है, जहां उसने अपनी उ² के सबसे अ‘छे पड़ाव वाले बीस वष( गज ु ारे ह•''. अचानक उसे बचपन मJ सन ु ी कहानी ''cफर चु•हया क] चु•हया'' याद आई. आज वह भी तो यह> करने जा रहा है.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


11.

VतीWा

आज सुबह-सुबह अखबार क] सुखŸ दे ख अनुषा के पापा के जहां एक ओर गव( हो रहा था, वह>ं Sपछले साल अपने cकए पर पछतावा भी हो रहा था. अखबार क] सुख़Ÿ थी''अनुषा ने कामयाबी क] एक नई Cमसाल पेश क]'' उ^हJ वह •दन याद आ रहा था, जब अनुषा रो-रोकर शाद> न करने क] दह ु ाई दे रह> थी.

''पापा, अभी म• बहुत छोट> हूं, मेर> उ² शाद> के लायक नह>ं है, ~ल>ज़ मेर> शाद> मत क]िजए.'' अनष ( कहा था. ु ा ने दःु खी मन से बहुत अनन ु यपव ू क ''चुप रह छोकर>, सुनती हो भागवान, बेट> को समझा दो, मेरा Cसर न खाए. मझ ु े इसके hयाह के Cलए बहुत-से काम करने ह•.''

''ठ”क तो कह रह> है बेट>, आप मानते 4यŠ नह>ं? इस उ² मJ शाद> करने से उसक] जान पर भी आफत आ सकती है .'' ''अब तुम अपनी नसीहत अपने पास रखो. तु€हार> शाद> भी तो इसी उ² मJ हुई थी, cफर 4या आफत आई?'' ''तब से अब तक आफत मJ ह> तो •दन बीत रहे ह•. आए •दन अ$पताल के च4कर ह> लगाते रहो.'' ''अब तुम दोनŠ मेर> नजरŠ के सामने से दरू हो जाओ, वरना मेरा हाथ उठ जाएगा.'' उनका हाथ कई बार उठ भी चुका था. व4त रहते चाइTड लाइन और पुCलस क] मदद से अनुषा क] शाद> को रोक न Cलया गया होता, तो वह भी अपनी मां क] तरह

अनपढ़ ह> रह जाती और र£बी राk`>य ट>म के Cलए खेलकर कामयाबी क] एक नई Cमसाल पेश करने क] सुख़Ÿ का आना भी नामम ु cकन था. तभी प’कारŠ क] ट>म क]

घंट> से उनक] तंµा टूट>. थोड़ी दे र मJ अनुषा प’कारŠ को संबोFधत करते हुए कह रह> थी''म• 10वीं कWा मJ थी तभी मझ ु े मेर> शाद> से ठ”क 10 •दनŠ पहले चाइTड लाइन

और पCु लस ने बचाया. म• अब 11वीं कWा मJ हूं. म• 9वीं कWा से `े Yनंग ले रह> हूं और अंडर-19 के Cलए खेल चक ु ] हूं. अब म• र£बी राk`>य ट>म के Cलए खेल रह>

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


हूं. म• अंतरा(k`>य लेवल तक खेलना चाहती हूं. अभी मुझे असल> मुकाम क] VतीWा है.''

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


12.

Sवरोध करJ ग,े गYतरोध नह>ं

''ब•हनŠ और भाइयŠ, हमारे मन क] आवाज हैYछड़ने दो ^याय के तारŠ को रोको अ^याय के धारŠ को. अ$पतालŠ मJ हो रह> अ¤यव$था को सुधारने के Cलए हम Vदश(न कर रहे ह•. बेहतर $वा$¶य-सेवा Vा~त करना हमारा अFधकार है. आप सब इससे सहमत तो ह• न!'' शCम(kठा ने Sवरोध-Vदश(न का आग़ाज़ करते हुए कहा. ''‹बलकुल सहमत ह•रोको अ^याय के धारŠ को.'' एक साथ सबक] आवाज गंज ू ी. ''हमJ अ$पताल क] लाइनŠ मJ अFधक दे र तक न खड़ा होना पड़े, दवाइयां जTद> उपलhध हŠ, डॉ4टर केवल वे दवाइयां ह> न CलखJ जो उस अ$पताल के पास ह> उपलhध हŠ. बस इ^ह>ं छोट>-छोट> बातŠ के Cलए ह> हमारा आज का Vदश(न है. और हां, आपने सुना होगा cक कल सड़क हादसे के Cशकार दो नाबाCलग ब‘चŠ ने

पुCलसवालŠ के सामने ह> सड़क पर तड़प-तड़प कर दम तोड़ •दया, लेcकन वे गाड़ी गंद> हो जाने के डर से उ^हJ अपनी सरकार> गाड़ी से अ$पताल नह>ं ले गए. यह इंसाYनयत के साथ सरासर ज़ुTम है. ऐसी बातŠ को बदा({त नह>ं cकया जाएगा.'' ''‹बलकुल जीरोको अ^याय के धारŠ को.'' ''शCम(kठा जी,'' एक प’कार जगह बनाते हुए वहां नमूदार हो गया था- ''आपके Vदश(न क] एक ख़ास बात हमJ बहुत पसंद आई. Vदश(न न केवल शांYतपूव(क चल रहा है, बिTक न तो $वा$¶य-सेवाओं को बाFधत होने •दया जा रहा है, न साव(जYनक

स€पS¸ को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. आप इसके बारे मJ कुछ कहना चाहJ गी?'' ''बस, हम तो सबके Cलए अ‘छ” $वा$¶य सेवाएं चाहते ह•, बाक] $वा$¶य-सेवाओं को बाFधत करना या साव(जYनक स€पS¸ को नक ु सान पहुंचाना तो इंसाYनयत के साथ गYतरोध करना है , हम Sवरोध करJ गे, गYतरोध नह>ं. वो दे œखए, हमारे पYत-भाई-बेटे कैसे ‰ीन कॉ—रडोर बनाकर ए€बल • को जाने क] जगह दे रहे ह•!'' ु स

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


''वाह बहुत अ‘छे , म• भी इस Vदश(न का •ह$सा बन जाता हूं. जोर सेरोको अ^याय के धारŠ को.'' सब एक साथ- ''रोको अ^याय के धारŠ को.''

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


13.

पहचान

19 Cसतंबर का •दन VोCमला कभी नह>ं भल ू पाती. वह चाहती है, cक 19 Cसतंबर

कभी आए ह> न! लेcकन Sपछले दस सालŠ से हर साल क] भांYत 19 Cसतंबर आ ह> जाता है. यह> तो वह •दन था, जब VोCमला क] हंसती-खेलती िजंदगी मJ ‰हण लग गया था. सारा •दन भाग-दौड़ करती VोCमला हर बात के Cलए मोहताज हो गई थी. अचानक उसका बोलना-खाना-पीना-चलना-cफरना बंद हो गया था. मुंहं टे ढ़ा हो गया

था, बांयां हाथ लटक गया था, पूरा बांयां •ह$सा लकवे से VभाSवत हो गया था. तुरंत ऐ€बुलस • आ गई थी, ऐ€बुलस • मJ ह> उसका इलाज शु• हो गया था, उसक] cक$मत अ‘छ” थी, cक आठ •दनŠ मJ ह> वह ठ”क हो गई और अ$पताल से घर आ

गई, लेcकन यह अपंगता इतनी जTद> उसका पीछा कहां छोड़ने वाल> थी! लकवे ने उसे खुद से भी पहचान करा द> थी, औरŠ से भी. अब न वह अपना कोई काम खद ु कर पाती थी, न घर का. चाय-दध ू भी उसे च€मच

से Sपलाया जाता था, वह भी टे ढ़े मंह ु ं से इधर-उधर ‹बखर जाता. सारा •दन वह अपने मJ खोई रहती और खुद को पहचानने लग गई, जो गु•ओं के कहने पर अब तक न

कर पाई थी. पYत का स‘चे सहयोगी का –प भी सामने आ गया था. िजन बि‘चयŠ को वह Yनपट नादान समझती थी, उ^हŠने घर को कैसे संभाल Cलया, यह वह अब तक नह>ं समझ पाई थी. वह न जाने कब तक ऐसे ह> सोचती रहती, अगर छोट> ‹ब•टया 'ममीSSSS--' पुकारती हुई कमरे मJ न आ जाती.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


14.

अि$त@व का आभास

उसे कहां पता था, cक घर से 10वीं क] पर>Wा दे ने जा रहा वह बस क] चपेट मJ आ जाएगा, Cसर क] घातक चोट से र4तरं िजत हो जाएगा, राहगीर उसे दे खकर भी अनदे खा करते चले जाएंगे, इंसाYनयत क] दे वी एक अनजानी लड़क] उसके Cसर से बह रहे खून को रोकने के Cलए अपना दप ु Œटा उतारकर उसके Cसर पर बांधेगी, इसके बावजूद खून नह>ं •का तो वह अपने दोनŠ हाथŠ से उसका Cसर दबाकर बैठ

जाएगी, अ$पताल भी उसे भतŸ करने से इंकार कर दJ गे. इंसाYनयत क] दे वी को ध^यवाद दे ने के Cलए भले ह> वह इस दYु नया मJ नह>ं है, लेcकन cकसी क] सहायता न करने क] समाज क] फलती-फूलती Sवष बेल के चलते भी इंसाYनयत ने अपने अि$त@व का आभास करा •दया था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


15.

'Yनक] ^यू`> चॉकलेट'

सुबह-सुबह Yनक] ने अखबार खोला, तो सबसे पहल> खबर थी''जीत के बाद बोले कोहल>, साझा VयासŠ से Cमल> सफलता'' 'साझा Vयास' शhद से उसे याद आई कुछ •दन पहले क] वह सुनहर> खुशनुमा

शाम, जब उसे राk`पYत भवन मJ राk`पYत •वारा 'सव(…ेkठ उ•यमी म•हला' के पुर$कार से स€माYनत cकया गया था. उसने भी समारोह के बाद प’कारŠ के V{नŠ

का जवाब दे ते हुएअपनी इस महान उपलिhध का …ेय 'साझा Vयास' को ह> •दया था. वह उपलिhध 'साझा Vयास' के कारण ह> तो Cमल> थी. वरना पYत के अकाल दे हावसान के बाद सामा^य CशWा Vा~त Yनक] रोते-झींकते िजंदगी ‹बताने को मजबरू होती. उसक] िजंदगी को नई तरह से संवारने का काम उसक] बहू मोYनका ने cकया था. $वभावतः एक कलाकार मोYनका ने शाद> के तरु ं त बाद घर मJ ह> 'ऑट( 4लासेज' श• ु कर द> थीं. संभांत घरŠ क] बि‘चयां व म•हलाएं

Fच’कार>, पJ•टंग, पैcकं ग आ•द सीखने उसके पास आया करती थीं. वह खद ु भी अभी तक नई-नई कलाएं सीखने मJ संल£न थी. हनीमून के Cलए ऑ$`े Cलया गई थी, तो

वहां से चॉकलेट बनाना सीखकर आई थी. सास का मन लगाए रखने के Cलए उसने घर मJ ह> इ€पोट» ड चॉकलेट बनाने का काम शु• कर •दया और उस ¤यवसाय को

सास के नाम 'Yनक] ^यू`> चॉकलेट' से शु• cकया. वह खुद चॉकलेट बनाती, उसक] सास और मेड उनक] पैcकं ग करतीं. धीरे -धीरे Yनक] भी चॉकलेट बनाना सीख गई. अब तो उसे पता ह> नह>ं लगता, cक समय कहां उड़ा जा रहा था! बहुत लोकSVय उसके चॉकलेट क] ‹ब¦] भी खूब हो रह> थी. इस Vकार 'साझा Vयास' से ह> वह इतने बड़े स€मान क] हकदार बनी थी.

'साझा Vयास' से पTलSवत और फलने-फूलने वाला 'Yनक] ^य` ू > चॉकलेट' आज सफलता के Cशखर को चम ू रहा था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


16.

गफ़लत

कभी-कभी हम ऐसी गफ़लत क] Fगर¼त मJ Fगर¼तार हो जाते ह•, cक समझ ह> नह>ं आता, cक सब कुछ जानते हुए भी cकसी समय समझदार> कहां चल> जाती है! आज उसके साथ ऐसा ह> हुआ. वह परे शान भी है और पशेमान भी. सभी खाताधारकŠ क] तरह वह भी जानती थी, cक ब•क क] ओर से ऑनलाइन पेमJट से पहले आने वाला वन टाइम पासवड( (ओट>पी) cकसी को न बताने क] सलाह द> जाती है. उसको एक टे Cलकॉलर •वारा 10 •पये VोसेCसंग फ]स लगने क] बात कह> गई थी. उसने अपने दो डे‹बट काड- से 10 •पये जमा कराने क] कोCशश क], लेcकन उससे नह>ं हो पाया. तभी एक टे Cलकॉलर ने उसक] मदद करने के Cलए उसका ओट>पी पछ ू ा. उसको अपना शभ ु े‘छु समझकर गफ़लत मJ उसने ब•क क] सलाह को

अनसन ु ा करके उसको ओट>पी बता •दया. टे Cलकॉलर को उसक] बाक] ज–र> जानकार> तो उसके 10 •पये जमा कराने क] कोCशश से ह> पता लग गई थी.

थोड़ी ह> दे र मJ पता चला cक उसके उसके 10 •पये तो जमा नह>ं हुए, अलब¸ा उसके दोनŠ डे‹बट काड( hलॉक हो गए. बाद मJ ब•क को फोन करने पर पता चला, cक उसके अकाउं ट से बीस Cमनट मJ 10 बार मJ 75 हजार •पये Yनकाल Cलये गये थे.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


17.

cकतने जौहर?

आज cफर प•मा को एक और जौहर से –ब– होना पड़ा था. एक जौहर तब हुआ था, जब उ^हJ 1947 के भारत Sवभाजन के समय पाcक$तान से लुट-Sपटकर आना पड़ा था. Cसफ़( पहने हुए कपड़Š मJ रानी प•मावती-सी सद ुं र प•मा को अपने पYत के साथ वहां से भागना पड़ा था. शु¦ है, उसक] सुंदरता से cकसी ने

œखलवाड़ नह>ं cकया. उस समय भी वह भीगी ‹बTल> नह>ं बनी, शेरनी ह> रह>. सड़क पर बटन बेचे और 2 सालŠ मJ ह> cफर राजरानी क] पदवी हाCसल कर ल>. प—रि$थYत ने एक बार cफर तब जौहर करवाया, जब तीन छोटे -छोटे ब‘चŠ को छोड़कर उसके पYत परलोक Cसधार गए. उसने बहादरु > से दYु नया का सामना cकया. तीनŠ ब‘चŠ क] शा•दयां क]ं. जौहर भी चलते रहे . एक बेट> के संतान होने क] कोई

उ€मीद नह>ं थी, दस ू र> बेट> के ज^म से ह> आ•ट( ±म‰$त बेटा हुआ, बहू दघ ु (टना‰$त होकर दYु नया छोड़ गई, अब वह 45 साल के बेटे के साथ अकेल> रह गई, हां •दल क] बीमार>, डाइ‹बट>ज़, बी.पी. उसके Fचर पाट( नर बन गए थे. कुछ समय पहले

उसक] 'ओपन हाट( सज(र>' हुई थी. आज डॉ4टर ने बेटे को को ट>.बी. क] ला$ट $टे ज पर पहुंचा हुआ बताया, साथ ह> यह भी कहा- ''आप डाइ‹बट>ज़ क] मर>ज ह•, बेटे क] सेवा करके आपको भी ट>.बी. हो जाने क] पूर> संभावना है.''

''हो जाने दो ट>.बी., मेरा बेटा है, भले कुछ भी हो जाए, मुझे तो उसक] सेवा करनी

ह> है.'' भीगी ‹बTल> न बनकर एक और जौहर के Cलए तैयार बहादरु शेरनी प•मा का जवाब था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


18.

वेषभूषा

आज मुझे कुछ •दन पहले क] बात याद आ गई. म• और अि€बका सैर कर रहे थे. हTक]-फुTक] बातJ चल रह> थीं. आजकल क] वेषभूषा पर म•ने कहा- ''आजकल तो लड़cकयŠ क] वेषभूषा भी ऐसी हो गई है, cक कई बार तय ह> नह>ं कर पाते, cक अमुक लड़क] है या लड़का.'' अि€बका हंस पड़ी. आज अि€बका का फोन आया''आंट> जी, आपने वह खबर पढ़>? उस •दन आपक] बात पर म• हंस पड़ी थी, लेcकन इस समाचार ने आपक] बात को सह> Cस•ध कर •दया.'' ''कौन-सी खबर बेटा?'' म•ने पूछा. ''लड़का समझ डीयू $टूडJट को पीटा, ...'लड़क] हूं' सन ु ते ह> भागे हमलावर''. अि€बका का कहना था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


19.

दानापुर क] दिु Tहन

''दिु Tहन दानापुर क] आई, लेके रथ पे बारात, $वागत करने दT ू हे राजा, ठाड़े प—रजन के साथ''. हमने सुरेखा को ये पंि4तयां सुना¬, तो उसे Sव{वास नह>ं आया. ''द>द>, शायद मुझे कुछ उTट> बात सुनाई दे रह> है.'' सुरेखा का कहना था. ''हां भाई, सुनने मJ यह भले ह> उTट> बात लगे, पर यह> सीधी-सह> बात है .'' ''मतलब, दT ू हे के •वार पर बारात लेके दिु Tहन पहुंची!'' सरु े खा का आ{चय( चरम पर था. ''ऐसा कैसे हो सकता है?'' ''हो 4यŠ नह>ं सकता? जो करना चाहो, वह> हो सकता है.'' ''‹बहार मJ राजधानी पटना के मनेर मJ एक दT ु हन रथ (ब£घी) पर सवार होकर

बाराYतयŠ के साथ अपने दT ू हे को लेने उसके •वार पहुंची. बारात मJ सभी प• ु ष गल ु ाबी रं ग क] पगड़ी पहने गाजे-बाजे के साथ न@ृ य करते और झम ू ते नजर

आए. यहां आम शा•दयŠ से अलग न दहे ज का झंझट था, न परं परा क] बेड़ी. वर पW ने बारात का $वागत-स@कार cकया.'' ''पर 4यŠ?'' सुरेखा का अगला V{न था ''दिु Tहन के Sपता ने लड़cकयŠ को लड़कŠ के बराबर •दखाने का संदेश दे ने के Cलए तय cकया था, cक उनक] बेट> बारात लेकर दT ू हे के घर जाएगी.'

''लो भई, यह तो बड़ी अ‘छ” बात है. तब तो हम भी गाएंगेबारात लेकर रथ पर सवार, दिु Tहन पहुंची दT ू हे के •वार.'' सुरेखा क] खुशी का कोई •ठकाना नह>ं था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


20.

ऐYतहाCसक उपलिhध का उ@सव

''अंबर से अवYन तक दे खो, उषा ने आंचल फैलाया, अपनी अ•œणम लाल> लेकर, Yछतराती आई वह माया.'' अंबर से अवYन तक का यह मनोहार> ¨{य तो म•ने अनेक बार •दे खा-Yनहारा है, उसे अपनी कSवता-कहानी का Sवषय भी बनाया है, लेcकन आज अंबर मJ अवYन को दे खकर मन Sवभोर हो गया. म•ने तो 4या, खुद अवYन ने भी शायद ह> कभी सोचा हो

cक एक अनोखे ऐYतहाCसक Wण का Yनमा(ण करते हुए वह अंबर मे अकेले जाएगी और वह भी खुद अकेले फाइटर ~लेन उड़ाकर. आज उसने इYतहास रच •दया. आज के अखबार अवYन क] इस ऐYतहाCसक उपलिhध क] सुœख(यŠ से अटे पड़े ह•''अकेले फाइटर ~लेन उड़ाकर अवनी चतव ु »द> ने रचा इYतहास'' ''½लाइंग ऑcफसर अवनी चतुव»द> ने अकेले उड़ाया फाइटर जेट, ऐसा करने वाल> पहल> भारतीय म•हला''

''इYतहास रचने वाल>ं फाइटर पायलट अवनी चतुव»द> क] बेहद खास त$वीरJ ...'' सोशल मी˜डया पर भी उसक] उपलिhधयŠ क] धूम मची हुई है. अवYन के अCभभावक भावSवभोर होकर चेस, टे बल टे Yनस खेलने के साथ-साथ $केFचंग और पJ•टंग करने वाल> बेट> क] इस ऐYतहाCसक उपलिhध का उ@सव मना रहे ह•.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


21.

असंतुCलत ^याय

Fच’कला VYतयोFगता मJ Vथम $थान Vा~त करने पर खुश होकर लौट रह> –मी सोच

रह> थी, cक आज Fच’कला अ«याSपका से हुआ मेरा वाता(लाप सह> था या ग़लत, घर मJ बात क–ं या नह>ं, आ•द-आ•द. असल मJ –मी ने Fच’कला VYतयोFगता मJ जो Fच’ बनाया था, उसके बारे मJ ह> उसक] Fच’कला अ«याSपका ने उसे बल ु ाकर पूछा था- ''यह तो म• समझ गई cक

तम ु ने ^याय क] दे वी बनाई है, मगर एक तो आधYु नका ऊपर से वेशभष ू ा और ^याय से असंतCु लत 4यŠ है?''

''मैडम, आधुYनका तो इसCलए cक आज के जमाने मJ आंखŠ पर काल> पŒट> वाल>

परं परागत ^याय क] दे वी को कोई $वीकार नह>ं करे गा. आज ब‘चा-ब‘चा आधुYनक

होने के साथ तक( मJ भी मा•हर है, cफर भला ^याय क] दे वी आधुYनका 4यŠ न हो!'' ''अ‘छा एक बात और बताओ, यह वेशभष ू ा और ^याय से असंतCु लत 4यŠ है?'' ''कारण $पkट है, आज असंतुCलत वेशभूषा को ह> आधुYनक वेशभूषा का पया(य माना जाता है और तथाकFथत आधुYनक मनुkयŠ का ^याय भी असंतुCलत होता है.'' ''म• समझी नह>ं.'' सचमुच न समझने वाल> Fच’कला अ«याSपका ने कहा. ''हमारे घर क] अदालत को ह> दे ख ल>िजए. पापा चाहते ह• cक उनके प—रवारवालŠ का खूब आदर-स€मान हो, लेcकन ममी के प—रवारवालŠ के Cलए उनका वैसा रवैया नह>ं

है.'' –मी ने तYनक •ककर कहा -''पापा का मानना है- इ‘छाशि4त, संकTपशि4त और एका‰ता क] शि4त. ये तीन शि4तयां कम या अFधक मा’ा मJ हर ¤यि4त के पास होती ह•. जब ममी के प—रवारवालŠ के मान-स€मान क] बात आती है , तो उनका एकमा’ सपाट जवाब होता है- ''हमारे समाज क] यह> र>Yत है.'' उस समय आधYु नक

कहलाने वाले लोग अपनी इ‘छाशि4त और संकTपशि4त का Vयोग करके समाज क] र>Yत को 4यŠ नह>ं बदल सकते?'' Fच’कला अ«याSपका को अपने घर क] अदालत क] याद भी आ गई थी, जहां सचमुच ऐसा ह> असंतुCलत ^याय होता था. पYत क] ब•हन क] हर गलती माफ होती थी, लेcकन उसक] ब•हन क] जरा-सी बात का बतंगड़ बन जाता था.'' बहरहाल उ^हŠने –मी को Vथम पुर$कार के यो£य समझा था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


सोचते-सोचते –मी घर तक पहुंच गई थी, उसने $कूल क] बात को घर मJ बताने का मन बना Cलया था, ताcक समाज मJ संतुलन बनाए रखने मJ सहायक हो सके.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


22.

Sवiान-बाला

आज हSष(ता के हष( का •ठकाना नह>ं था. वह अतीत क] $मYृ तयŠ मJ खो गई. हSष(ता न तो आईट> कंपनी क] इंिजYनयर है और न ह> अFधक पढ़>-Cलखी बाला, लेcकन छोट>-सी उ² मJ VYतभा मJ वह cकसी से कम नह>ं है. ''आपने 14 साल क] उ² मJ पढ़ाई 4यŠ छोड़ द> थी?'' प’कार •वारा सहारनपुर क] 16 साल क] हSष(ता अरोड़ा से पूछा गया.

''म• भारत मJ CशWा को कमतर नह>ं आंकती लेcकन ये कॉमन कोस»ज मेरे Cलए नह>ं ह•. मेरे क€~यट ू र ट>चर ने मझ ु े तकनीक क] एक नई दYु नया से –ब– कराया. म• जो करना चाहती हूं वह मझ ु े वत(मान CशWण ¤यव$था मJ नह>ं Cमलेगा. $कूलŠ मJ क€~यट ू र को भी मह@व दे ना चा•हए.'' हSष(ता का जवाब था.

''आजकल सोशल मी˜डया पर आपक] खासी चचा( है, वजह बता सकJगी?'' अगला V{न था. ''स€भवतः आप ‹बटकॉइन माइYनंग और c¦~टोकरं सी के काम करने के तर>के के ऐप के बारे मJ बात कर रहे ह•!'' ''हां जी, ‹बटकॉइन c¦~टोकरं सी के बारे मJ आपने पहल> बार कब सुना था?'' ''2016 मJ.'' ''इतनी जTद> आप चचा( मJ भी आ ग¬!''

प’कार ने हैरानी से कहा.

''लगन और एका‰ता से काम cकया जाए, तो न कुछ मुि{कल होता है और न ह> अFधक समय लगता है, cफर भी ऐप को SवकCसत करने के Cलए छोट>-से-छोट> जानकार> जुटाने मJ 2 साल तो लग ह> गए.'' ''एक V{न आपक] पा—रवा—रक पkृ ठभCू म के बारे मJ. 4या आपके अCभभावक Sवiान से पkृ ठभCू म से ह•?

''पkृ ठभूCम का तो नह>ं कह सकती, लेcकन मेरे ¨िkटकोण को आप उ^ह>ं क] दे न है. वैसे ममी ग•ृ हणी ह• और पापा फाइनJसर.''

''बहुत अ‘छे , अब आप इस ऐप के बारे मJ कुछ Sव$तार से बताइए.'' उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


''ऐप-$टोर पर उपलhध यह पेड c¦~टो ऐप 1000 से ªयादा c¦~टो करं सीज क] वैTयू मJ हो रहे बदलाव के बारे मJ बताता है. यह ऐप इसी साल 28 जनवर> को लॉ^च cकया था.'' हSष(ता ने हष( से कहा. ''इतने कम समय मJ यह •हट हो गया?'' प’कार ने आ{चय( CमF…त हष( से कहा. ''इसे आप मेर> लगन और एका‰ता का प—रणाम व परु $कार भी कह सकते ह•.'' हSष(ता का हष( चरम पर था.

''तो इस बार 28 फरवर> को राk`>य Sवiान •दवस पर आपका ऐप Sवशेष चचा( का Sवषय रहे गा?'' ''ऐसा हुआ तो मझ ु े हष( ह> होगा.'' हSष(ता ने कहा. सचमुच 28 फरवर>, राk`>य Sवiान •दवस पर ऐसा ह> हुआ. Sवiान-बाला हSष(ता और उसका c¦~टो ऐप अखबार क] सœु ख(यŠ मJ छाए हुए थे.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


23.

उगालदान

अपने नाम के अनु–प चं•µका-सी शांत-शीतल इंद ु कभी-कभी रौµ –प भी धारण कर

लेती थी. सखी के साथ सैर करते हुए Vसंगवश उसे अपने ऐसे ह> एक 50 साल पहले के रौµ –प क] $मYृ त हो आई थी. ''‹बलकुल ठ”क बात है, संगYत ह> तारती है और संगYत ह> डुबोती है . इसका ªवलंत

उदाहरण मेर> ममी ह•.'' तYनक सांस लेकर वह बोल>- ''बात उन •दनŠ क] है, जब म• कॉलेज मJ पढ़ती थी. म€मी ªयादा पढ़>-Cलखी नह>ं थीं और म• कॉलेज मJ पढ़ रह> थी. भाई-ब•हनŠ मJ म• ह> सबसे बड़ी थी, इसCलए घर मJ मेरा दबदबा था.'' ''‹बलकुल मेर> ह> कथा कह रह> हो 4या?'' सखी ने कहा. ''हो सकता है. एक •दन म• कॉलेज से जTद> आ गई. 4या दे खती हूं, cक पड़ोस वाल> आंट> आई हुई थीं, ममी और आंट> गेहूं साफ कर रह> थीं और अपने ससरु ाल पर भड़ांस Yनकालती हुई रोए जा रह> थीं. उनको मेरे आने का भी पता नह>ं चला. म• चप ु के-से कमरे मJ दाœखल हो गई और उनक] बतक•हयां सन ु ने लगी.'' ''मेरे सहुरे ने ऐसे-ऐसे जुTम cकए, cक 4या बताऊं?'' आंट> का कहना था. ''मेरे सहुरे ने भी ऐसा ह> cकया था.'' यह ममी क] आवाज थी. इंद ु को आंट> क] बात तो नह>ं खल>, लेcकन ममी क] बात उसे नागवार

गुजर>. 18 साल तक ममी क] ऐसी बात कभी नह>ं सुनी थी. वे मेर> तरह शांत रहती थीं और हर एक के गुण ह> दे खती थीं. आज अचानक 4या हुआ?''

इंद ु ने ममी को इशारे से कमरे मJ बुलाया और कहा- ''ममी, आज तक तो दादाजी मJ आपको गुण ह> •दखते थे, आज आंट> क] बात सुनकर आप यह नया राग कैसे

अलाप रह> ह• और रोए भी जा रह> ह•? आज से आंट> का घर मJ आना बंद है, आगे से ऐसा मेला लगा, तो म• पापा से Cशकायत कर दं ग ू ी. आप आंट> क] उगालदान ह•

4या? जो वो उगलJगी, आप ‰हण करती जाएंगी? ममी बाहर आ¬, तो आंट> जा चुक] थीं. उस •दन के बाद ममी को न तो सहुरे से कोई Cशकायत रह>, न घर मJ वैसा मेला ह> लगा.'' इंद ु के शांत-स€य मुखमंडल पर आज भी उस रौµ –प क] छाया झलक रह> थी.

उ@सव

34

लघुकथा सं‰ह-4


24.

$मYृ त

होल> के रं गŠ क] बौछार अपने पूरे शबाब पर थी. हवा मJ गुलाल, cफज़ा मJ

गुलाल, गालŠ पर गुलाल, मन पर गुलाल, तन पर गुलाल, यानी गुलाल अपनी रं गत ‹बखेर रहा था. पु•ष ह> नह>ं, म•हलाएं भी होल> क] म$ती मJ Yनभ(यता से सराबोर थीं. म•हलाओं क] टोल> को कुछ सैYनक रWकŠ ने आ{व$त कर •दया था''आप खेलJ म$ती से होल>, कुछ नह>ं ‹बगाड़ेगी आपका शरारYतयŠ क] टोल>.'' हुआ भी ऐसा ह>. म•हलाएं म$त, सैYनक सरपर$त. तभी धड़ाम क] आवाज सुनकर एक सैYनक उमेश उधर भागा, एक लड़क] को Fगरा हुआ दे खकर वह उसक] मदद मJ जुट गया. तब तक कुछ म•हलाएं और सैYनक भी सहायता मJ हाथ बंटा रहे थे. अक$मात च4कर खाकर Fगर पड़ी लड़क] को उमेश

अपनी गाड़ी मJ लेकर अ$पताल गया. कुछ दे र मJ ह> वह लड़क] ठ”क हो गई थी, तब तक उसके घरवाले भी आ गए थे.

बाद मJ साFथयŠ को पता लगा, cक उमेश के घर से आए भाई के दे हावसान का दःु खद समाचार भी उमेश को अपने क¸(¤य से ˜डगा नह>ं पाया था और वे लड़क] के

—र{तेदारŠ के आने तक उसे संभालते रहे . सबको $मYृ त हो आई लौह पु•ष सरदार पटे ल क], जो प@नी क] मौत का तार पढ़कर भी धैय(पूव(क केस लड़ते रहे थे और अपने 4लाइंट को िजता •दया.

उ@सव

35

लघुकथा सं‰ह-4


25.

पkृ ठभूCम

म•हला पहलवान नवजोत कौर ने सीYनयर एCशयाई कु{ती च•SपयनCशप मJ गोTड मेडल जीतकर इYतहास रच •दया. वह यह मेडल जीतने वाल> पहल> भारतीय म•हला

ह•. उनके इस $वœण(म इYतहास के पीछे जो पा—रवा—रक पkृ ठभूCम है, नवजोत कौर उसको शायद कभी नह>ं भल ु ा पाएगी.

उसे अ‘छ” तरह याद है, cक उसक] सफलता के पीछे उनके पूरे प—रवार का @याग

और अथक मेहनत भी Yछपी है. Sपछले लगभग दस सालŠ से उसके cकसान Sपता सख ु चैन Cसंह ने अपना सख ु -चैन ताक पर रख कर कज( ले-लेकर अपनी बेट> क]

`े Yनंग मJ मदद क] थी. भाई यव ु राज अ‘छा c¦केट खेलते थे, लेcकन उ^हŠने भी

अपने Sपता और बहन नवजोत क] मदद के Cलए खेल छोड़कर cकसानी श– ु कर द> थी.

आपसी सहयोग और Vेम-~यार क] पा—रवा—रक पkृ ठभूCम ने नवजोत कौर क] नव ªयोYत को VªªवCलत कर •दया था.

उ@सव

36

लघुकथा सं‰ह-4


26.

अनूठा आSवkकार

आज सभी समाचार प’Š मJ मैकैYनक मकरानी के पानी से चलने वाल> कार के चच»

ह•. 10वीं पास मकरानी ने पानी और काबा(इड से अCस•टल>न बनाकर इसे

Sव•युत ऊजा( Cलि4वड ½यूल मJ बदलने क] तकनीक अपनाई है, जो 10-20 •पए VYत ल>टर के •हसाब से माइलेज दे गी. मकरानी ने Vधानमं’ी नरे ^µ मोद> के मेक इन

इं˜डया से Vे—रत होकर यह कार बनाई है. सबसे ख़ास बात है उनक] दे शभि4त. वे अपनी इस तकनीक को cकसी भी Sवदे शी ¤यि4त या कंपनी से साझा नह>ं कर रहे ह•. यह दे सी तकनीक दे श के Sवकास के Cलए है. मकरानी क] सफलता पर VकाCशत इन समाचारŠ से उनक] प@नी क] Vस^नता का •ठकाना नह>ं रहा और उनको कई साल पहले क] बात याद आ गई. ''म•ने एक सपना दे खा है.'' सालŠ पहले मोह€मद रह>स मकरानी ने प@नी से कहा था. ''यह कौन-सी नई बात है? सपने सब दे खते ह• और आप तो सपनŠ के सौदागर ह•. सुनूं तो भला, 4या दे खा है?'' प@नी ने तंज से कहा था. ''म•ने सपने मJ देखा, cक म•ने पानी से चलने वाल> कार बनाई है .'' ''मकैYनक साहब, सारा •दन कारJ ठ”क करते हो, तो सपना भी ऐसा ह> तो दे खोगे न!'' प@नी के तरकश मJ अभी तीर तीखा बाक] था. ''बेगम सा•हबा, यह सपना म•ने बंद आंखŠ से नह>ं खुल> आंखŠ से देखा है, अTलाह

Cमयां ने चाहा तो दे खना, यह सपना एक •दन यह सपना एक •दन हक]कत बनकर रहे गा.'' ''सचमच ु यह सपना हक]कत बन गया!'' वह हैरानी से अपने से ह> बोल> और सबका मंह ु मीठा करवाने के Cलए मीठ” Cसवइयां बनाने चल पड़ी.

उसे अपने शौहर क] दे शभि4त पर भी बहुत गव( महसूस हो रहा था. उसे यह सोचकर भी खुशी हो रह> थी, cक पे`ोल-डीजल का SवकTप बनने वाल> यह अनूठे आSवkकार वाल> तकनीक स$ती भी पड़ेगी और पया(वरण के अनुकूल भी रहे गी.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


27.

नए यथाथ( का सज ृ न

आज सुबह अखबार उठाते ह> अखबार क] Vमुख सख़ ु Ÿ दे खकर CशTपा को अपने सुपु’ यथाथ( पर गव(CमF…त ~यार आया. सुख़Ÿ थी-

''215 दे शŠ का राk`गान याद कर चुका है 11 वषŸय छा’ यथाथ(, Cल€का बुक ऑफ वTड( —रकॉ¾(स मJ नाम है दज(''

CशTपा ने यथाथ( आवाज दे कर वह सुख़Ÿ •दखाई. यथाथ( को कुछ साल पहले क] बात याद आ गई.

''मैम, म• अंदर आ सकता हूं? यथाथ( ने अपने $कूल क] €यिू जक ट>चर से पछ ू ा. ''आओ यथाथ(, कैसे आए हो?'' ''मैम जी, मझ ु े आपसे कुछ सीखना है.'' ''बोलो, 4या सीखना है?'' ''मैम मझ ु े अपने दे श के राk`गान क] धन ु तो आती है, 4या आप मझ ु े कुछ और दे शŠ के राk`गान क] धन ु J Cसखा सकJगी?'' ''अव{य, बहुत खुशी से.'' इसके बाद €यूिजक ट>चर ने यथाथ( को जापान, …ीलंका और नेपाल जैसे दे शŠ के

राk`गान क] Vैि4टस कराई और इ^हJ गाना भी Cसखाया. बाद मJ यथाथ( खुद इंटरनेट क] मदद से रोज कर>ब एक घंटे अलग-अलग दे शŠ के राk`गान सीखने लगे. यथाथ( हर •दन मां के पास आकर उन दे शŠ का नाम बताता था, जो मां ने कभी सुने भी नह>ं थे. वह मां से रोज अलग-अलग दे शŠ के राk`गान

क] मांग करता था. मां उसे

इनका SVंट Yनकालकर दे दे ती थी. इसी का प—रणाम है cक आज उसे 215 दे शŠ के राk`गान याद ह•. यथाथ( ने $वयं अपने नए यथाथ( का सज ृ न cकया था.

उ@सव

38

लघुकथा सं‰ह-4


28.

गोरा हो: The Golden Boy

ब•कॉक मJ आयोिजत एCशया कप $टे ज आई आच(र> मीट मJ गोTड मेडल अपने नाम करने वाल> ट>म मJ आकाश और गौरव के साथ गोरा हो शाCमल ह•. इन तीनŠ œखला˜ड़यŠ ने मंगोCलया को हराकर VYतयोFगता मJ पहला $थान हाCसल cकया. गोरा हो क] कहानी पढ़कर बचपन मJ पढ़> एकल¤य क] कहानी याद आ गई. गोरा को गोTडन बॉय भी कहा जा रहा है , जो उनका नया उपनाम बन चुका है. उस समय के एकल¤य ने खद ु से धनSु व(•या सीखने का शानदार उदाहरण V$तत ु

cकया था. गोरा हो ने भी ऐसा ह> cकया. धनSु व(•या मJ SवलWण VYतभा के धनी गोरा झारखंड के राजनगर टाउन के बाल>जड ु ी नाम के जनजातीय गांव मJ रहने वाले ह•. वे एक गर>ब cकसान के बेटे ह•. गोरा ने जYू नयर और सब जYू नयर $तर पर Vादे Cशक

और नैशनल लेवल पर 100 से ªयादा मेडल अपने नाम cकए ह•. 6 साल के छोटे से समय मJ ह> वह बहुत तेजी से अंतरराk`>य $तर पर छा चक ु े ह•. आच(र> के िजन जानकारŠ ने भी गोरा को ल¿य पर Yनशाना साधते दे खा है, वह मानते ह• cक Yनि{चत –प से उनका अगला ल¿य तो4यो ओCलंSपक 2020 ह> होना चा•हए. धनुष और तीर से ल¿य भेदने क] उनक] कला अ•भुत है.

गोरा क] उपलिhधयŠ को दे खते हुए राªय सरकार ने उ^हJ $पेशल टै लंट माना और Sपछले साल राªय सरकार ने 2.70 लाख क] क]मत का Sवशेष धनुष उपहार मJ •दया.

उ@सव

39

लघुकथा सं‰ह-4


29.

चमक

''फ़नकारा ना•दरा को उसके उ€दा फ़न के Cलए नामजद cकया जाता है.'' ना•दरा को यह उ•घोषणा बेहद नागवार गुजर>. ''वह अकेल> 4या इतना बड़ा काम कर सकती थी? नह>ं न! तो cफर सबका नाम 4यŠ नह>ं Cलया गया?'' ''बीबी, सबका नाम नह>ं Cलया जा सकता.'' उसे जवाब Cमला था. ''वजह?'' ''जंग लड़ते Cसपाह> ह•, नाम Cसपहसालार का ह> होता है न!'' सवाल पर सवाल था. ''यह जंग नह>ं है.'' तYनक •ककर ना•दरा बोल>, ''फ़न का यह नायाब नमन ू ा सबक] आंखŠ के खन ू के कतरŠ क] कुबा(नी से लाल हुआ है.''

''तो इनाम क] रकम सबमJ बांट दे ना.'' उ•घोषक ने अTफ़ाज़ उछाले. ''फ़नकार इनाम या रकम का भख ू ा नह>ं होता, फ़नकार को अपने फ़न क] तार>फ़ क] •वा•हश होती है .'' ना•दरा के तTख़ जवाब ने उ•घोषक को लाजवाब कर •दया था.

थोड़ी दे र मJ दब ु ारा उ•घोषणा हुई- ''कामयाबी का सेहरा फ़नकारा ना•दरा क] ट>म के नाम cकया जाता है. सबक] आंखŠ मJ जीत क] चमक थी.

उ@सव

40

लघुकथा सं‰ह-4


30.

Wमा

अ•दYत और जयदे व लाला जी को लेने व• ृ ध आ…म गए थे. अ•दYत उसे अपने घर ले आई थी. उसे पता था, cक व• ृ ध आ…म से लाला जी को ले आने मJ काफ] समय

लगेगा. कुछ औपचा—रकताएं भी तो पूर> करनी पड़Jगी न! cफर भी वह Cमनट-दर-Cमनट घड़ी पर नजर डाल रह> थी. समय क] सुई मानो सरकना भूल गई थी. उसे सुबह क] बात याद आ गई.

लाला जी को रात को खांसी ने बहुत परे शान cकया था. वह खद ु पYत क] खांसी से परे शान थी, ऊपर से बार-बार बहू के नींद न आने क] Cशकायत. वह 4या करती? उसे 4या करना था! जो करना था, बेटे ने ह> करना था. सुबह होते ह> व• ृ ध आ…म वालŠ से बात क] और छोड़ आया. बहू ने चैन क] सांस ल>, पर उसक] तो सांस जीवनसाथी मJ ह> अटक] हुई थी. तभी अ•दYत का फोन आ गया था. ''हैलो मां, म• अ•दYत बोल रह> हूं.'' ''खुश रहो बेटा, इतने •दनŠ बाद कैसे याद आई हमार>?'' मां क] आवाज मJ दद( भी था और ~यार भी.

''हैलो मां, पापा क] त‹बयत अब कैसी है?'' अ•दYत ने फोन पर पूछा. ''4या बताऊं बेटा?'' ''मां, जTद> बताओ न! पापा क] त‹बयत अब कैसी है?'' वह बहू के डर के मारे कुछ बता भी नह>ं पाई थी. cकसी अYनkट क] आशंका कोअ•दYत ने भांप Cलया था. तुरंत गाड़ी लेकर आ गई थी. पूरे छः मह>ने बाद वह

आई थी और मां से Cमल> थी. Sपता के व• ु कर जयदे व ृ ध आ…म मJ जाने क] बात सन को फोन करके कहा-

''आप Sपताजी को व• ृ ध आ…म से वाSपस लाने के Cलए चCलए, म• ममी को घर छोड़कर आ रह> हूं.''

तभी गा˜ड़यŠ क] आवाज ने उनक] Sवचार तंµा को तोड़ •दया. जयदे व सहारा दे कर लाला जी को अंदर ला रहा था और अ•दYत ने उनका सामान उठा रखा था. अपने cकए पर पशेमान लाला जी ने पलंग पर बैठते ह> कहा- ''ब‘चो, मझ ु े Wमा कर दे ना.

उ@सव

41

लघुकथा सं‰ह-4


म•ने तो छः मह>ने पहले आप दोनŠ को शाद> क] इजाजत भी नह>ं द> और घर पर आने-जाने और फोन पर बात करने को भी मना cकया, आज आप लोग ह> मेरा सहारा बने हो!'' ''बचपन मJ माता-Sपता भी तो हमार> cकतनी भल ू Š को Wमा कर दे ते ह•, 4या हम

उनक] एक भूल को भी Wमा नह>ं कर सकते!'' अ•दYत और जयदे व ने एक साथ कहा और माता-Sपता के गले लग गए.

उ@सव

42

लघुकथा सं‰ह-4


31.

मंिज़ल

उस •दन म•ने ताई जी से पूछा था- ''ताई जी म• ल>क से हटकर कुछ करना चाहता हूं. आप मुझे कोई नया कोस( सुझाइए न, िजससे मेर> आय भी अ‘छ” हो और म• दे श के Sवकास मJ सहायक भी हो सकूं.'' ताई जी ने मुझे एक cक$सा सन ु ाया.

''बचपन से ह> Yनराला को ल>क से हटकर कुछ करने का शौक था. इसी शौक के चलते Yनराला ने पहले वेटरनेर> क] ˜ड‰ी हाCसल क]. अब वे डॉ4टर बन गए थे.

डॉ4टर बनने के बाद भी कुछ नया जानने और करने क] उनक] ललक जागत ृ रह>.

इसी दौरान उ^हJ सरकार •वारा चलाए जा रहे ए‰ी ि4लYनक ए‰ी ‹बजनेस सJटर के बारे मJ पता चला. इस सJटर से उ^हŠने दो मह>ने का कोस( cकया और उनक] िजंदगी बदल गई. आज गांव-गांव जाकर वे लोगŠ को खेती के अलावा कमाई के अ^य

SवकTपŠ जैसे बकर> पालन, मछल> पालन और डक फाCम®ग के बारे मJ जानकार> दे कर दे श के Sवकास मJ सहायक बन रहे ह•. हर मह>ने उनक] 1.25 लाख •. क] कमाई भी हो रह> है.'' मुझे अपनी मंिज़ल Cमल गई थी.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


32.

ज{न

अCभषेक मालवीय और अCभजीत अCभराज ने इंि£लश मJ एक उप^यास Cलखा था- ''Àी साइडेड लव $टोर>''. यह उप^यास Cसफ़( भारत मJ ह> नह>ं, आठ दे शŠ मJ चFच(त हुआ. खुशी क] इस बेला मJ दोनŠ अपनी कोCशश क] कामयाबी का ज{न मनाते हुए अतीत क] यादŠ मJ खो-से गए. इस कामयाबी से पहले उ^हJ नाकामयाबी से भी दो-चार होना पड़ा था. वे 12वीं कWा पास करके मेडीकल पर>Wा क] तैयार> करने हे तु कोFचंग के Cलए कोटा गए थे. कोटा

मJ वह> हुआ, जो अ4सर बाक] Sव•याFथ(यŠ के साथ होता है. बहुत मेहनत से कोFचंग करने के बावजद ू वे नाकामयाब हो गए. दोनŠ मायस ू -से बैठे थे. अCभजीत को ग़ज़लŠ का शौक था. उसने यंू ह> सcफ( ग करते हुए एक ग़ज़ल पढ़>. ग़ज़ल का अंYतम बंद था''कोCशशJ मानव क] कहतीं cक कोCशश करते ह> जाओ कोCशशJ मानव क] अ4सर सफल करवाती जाती है .'' उसने बार-बार इस बंद को पढ़ा और अCभषेक को भी पढ़वाया. ''तू बार-बार इस बंद को 4यŠ पढ़ रहा है?'' अCभषेक ने तुनककर कहा. ''तुनक मत यार, मुझे लगता है, यह बंद हमसे कुछ कह रहा है, कुछ 4या बहुत कुछ कर रहा है.'' अCभजीत ने उ@सा•हत होकर कहा. ''तू कहना 4या चाहता है, 4या हम एक बार cफर कोCशश करJ यानी एक साल और खराब करJ ?'' अCभषेक क] तुनक बढ़ गई थी.

''नह>ं यार! कोCशश करJ , पर ज–र> नह>ं cक कोFचंग क] ह> करJ .'' ''cफर 4या करJ ?'' अCभषेक अब सुनने के मूड मJ था. ''यार, तझ ु े याद है! हमारे इंि£लश वाले सर हमार> इंि£लश Cलखने के $टाइल से बहुत खश ु थे और उ^हŠने हमसे कई $टोर>ज़ भी Cलखवाई थीं.'' ''उससे 4या?''

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


''हम इस हुनर को और आगे बढ़ाएंगे. हमारा यह साल तो बेकार हो ह> गया. इस

साल हम दोनŠ Cमलकर इंि£लश मJ एक उप^यास Cलखते क] कोCशश करते ह•. cफर दे खी जाएगी.'' बस इसी कोCशश का नतीजा है आज क] कामयाबी का ज{न, िजसे वे मना रहे थे. तभी अCभजीत के मोबाइल पर Sवदे श से इस उप^यास क] 50 कॉSपयां भेजने का ऑड(र आ गया. दोनŠ खुशी से उछल पड़े.

उ@सव

45

लघुकथा सं‰ह-4


33.

शहनशाह

आज उसे नतीजे मJ एक और जीत हाCसल हुई थी. जीत के ज{न क] खुशी मनाते हुए उसे अपना अतीत याद आ रहा था. उसे इ€तहान से कभी भी डर नह>ं लगा. कारण? वह हर चीज को अ‘छ” तरह पढ़तासुनता-गुनता. नतीजा- समय आने पर वह मन के उस Fच’ांकन को सह> जगह पर सह> ढं ग से V$तुत करने मJ कामयाब होता रहा. उसका यह> V$तुYतकरण लेखŠ-

hलॉ£स मJ VYतc¦याओं के –प मJ सामने आने लगा. एक •दन एक लेखक ने उसक] VYतc¦या पर Cलखा''आप VYतc¦याओं के शहनशाह ह•, लेखन के भी शहनशाह हो सकते ह•, अपनी VYतभा को पहचाYनए और Yनखा—रए.'' उसने इस काम मJ तYनक भी दे र नह>ं क]. वह िजस साइट से जड़ ु ता रहा अपनी

कामयाबी के झंडे गाड़ता रहा. cफर वह एक और सा•हि@यक साइट से जड़ ु गया. यहां VYतयोFगताएं यानी इ€तहान भी होते थे. शी™ ह> उसे एक VYतयोFगता का Sवजेता

घोSषत cकया गया और एडCमन भी बना •दया गया. आज उसी साइट पर वह एक बार cफर Sवजेता घोSषत cकया गया था. एक पाठक ने VYतc¦या मJ Cलखा था''आप cक$सागोई के शहनशाह ह•, अगल> रचना क] VतीWा रहे गी.'' वह इस VYतc¦या मJ कगन होता, उसके पहले ह> उसके सामने एक अनमोल वचन आ गया''कामयाबी को •दमाग मJ मत ‹बठाइए, नाकामी को •दल मJ मत बसाइए''. और वह cफर एक SवYनंग cक$सा Cलखने मJ जट ु गया.

उ@सव

46

लघुकथा सं‰ह-4


34.

Vेरणा

लगभग 20 साल से मोटर Yनऊरोन ˜डज़ीज़ के चलते हुए भी वे जीवन को सc¦य बनाए रखे हुए ह• और लेखन के Wे’ मJ नए-नए क]Yत(मान $थाSपत कर औरŠ क] Vेरणा भी बन रहे ह•. कभी-कभी वे पीछे मुड़कर अपने अतीत पर नजर डालते ह•.

एक चलता-cफरता-उड़ता, गाता-गुनगुनाता पंछ” अचानक चलने-गाने से मजबूर हो

जाए, तो 4या हो? ऐसे ह> एक •दन जब वे अपने बगीचे मJ बैठे थे, अचानक उनक] नज़र सेब के एक दर¢त पर एक $पाइडर पर पड़ी जो ताना-बाना बन ु रहा था. वे

भीतर से मै£नीफाइंग £लास ले आए, िजस से सब कुछ बहुत साफ •दखाई दे रहा था. $पाइडर इतना अ‘छा जाल बन ु रहा था जैसे औरतJ ¦ोCशये से मेज पोश बनाती ह•. वे दे ख-दे खकर खश ु होते और एक •दन वह> $पाइडर उनक] Vेरणा बन गया.

Vेरणा लेने वाला कह>ं से भी Vेरणा ले सकता है. उनको अ«ययन का बहुत शौक है. रोज रात को सोने से पहले वे कोई अ‘छ” cकताब ज–र पढ़ते ह•. एक •दन उ^हŠने $ट>फन हॉcकं ग क] जीवनी पढ़>. 21 साल क] उ² मJ amyotrophic lateral sclerosis (ALS) नामक गंभीर बीमार> से ‰$त $ट>फन हॉcकं ग ने कई दशकŠ तक अपने को सc¦य बनाए रखा और अपनी जानलेवा बीमार> को मात दे कर ‹बना थके•के ÌÍमांड के अनेक रह$यŠ को दYु नया के सामने रखा. कई सालŠ से मोटर Yनऊरोन ˜डज़ीज़ के चलते हुए उ^हŠने $ट>फन हॉcकं ग क] जीवनी को भी Vेरणा बना •दया. नतीजतन आज वे जीवन को सc¦य बनाए रखे हुए ह• और लेखन के Wे’ मJ नए-नए क]Yत(मान $थाSपत कर औरŠ क] Vेरणा भी बन रहे ह•. हॉcकं ग ÌÍमांड को समझ पाए पर म•हलाओं को नह>ं, लेcकन वे अपनी प@नी के सहयोग से आगे बढ़ रहे ह• और प@नी को भी आगे बढ़ा रहे ह•. दोनŠ एक दस ू रे क] Vेरणा ह•.

सबको सहयोग दे ने और सबका सहयोग पाने वाले Vेरणा के $’ोत ह• 75 साल के Fचरयव ु ा गरु मैल भाई.

उ@सव

47

लघुकथा सं‰ह-4


35.

चेतावनी

कुछ समय पहले एक चेतावनी द> गई थी''आने वाले समय मJ बढ़ती जनसं¢या, जलवायु प—रवत(न और उTका Sपंड से टकराव क] वजह से होने वाले प—रणाम से इंसान के Cलए खुद को बचाना असंभव हो जाएगा, इसCलए वे cकसी दस ू रे ‰ह पर बस जाएं''. यह चेतावनी $ट>फन हॉcकं ग ने द> थी. 8 जनवर>, 1942 को इं£ल•ड को ऑ4सफड( मJ सJकड वTड( वॉर के समय $ट>फन हॉcकं ग का ज^म हुआ था. हॉcकं ग को 21 साल क] उ² मJ amyotrophic lateral sclerosis (ALS) नामक गंभीर बीमार> हो गई थी. इसमJ शर>र क] मांस पेCशयां काम करना बंद कर दे ती ह•. है रान करने वाल> बात यह है cक $ट>फन हॉcकं ग के •दमाग को छोड़कर उनके शर>र का कोई भी भाग काम नह>ं करता था. हॉcकं ग चल cफर नह>ं सकते थे, वह बातJ भी कं~यट ू र क] सहायता से कर पाते थे. डॉ4टरŠ का

अनम ु ान था cक वह पांच साल से ªयादा िजंदा नह>ं रह सकJगे, लेcकन उ^हŠने इन

दावŠ को झुठला •दया. हॉcकं ग के पास अपना एक उपकरण था, जो उनक] ¤ह>लचेअर मJ लगा था. इसक] सहायता से वह रोजमरा( के कामŠ के अलावा अपनी खोज मJ भी जुटे रहते थे. 1974 मJ $ट>फन हॉcकं ग ने दYु नया को अपनी सबसे मह@वपूण( खोज hलैक होल

Fथअर> के बारे मJ बताया. उ^हŠने बताया cक hलैक होल 4वॉ^टम VभावŠ क] वजह गमŸ फैलाते ह•. hलैक होल Fथअर> से –-ब-– कराने वाले $ट>फन हॉcकं ग अपनी खोजŠ के Cलए दYु नया के कुछ Fगने-चुने भौYतक SवiाYनयŠ मJ से एक थे. उ^हŠने ÌÍमांड के कई रह$यŠ से पदा( उठाया लेcकन कभी भी उ^हJ अपने काम के Cलए नोबेल परु $कार नह>ं Cमल सका. इसका कारण है- ''hलैक होल वा$तव मJ कोई छे द नह>ं है, यह तो

मरे हुए तारŠ के अवशेष ह•. करोड़Š, अरबŠ सालŠ के गज ु रने के बाद cकसी तारे क] िजंदगी ख@म होती है और hलैक होल का ज^म होता है. इसे सा‹बत करने का कोई तर>का है भी नह>ं. जो हॉcकं ग का Cस•धांत है अगर उसे वाकई दे खा जा सकता, तो उ^हJ नोबेल परु $कार Cमल सकता था। लेcकन यह अरबŠ सालŠ मJ भी नह>ं होता.'' साल 1998 मJ VकाCशत हुई $ट>फन हॉcकं ग क] cकताब 'अ Ìीफ •ह$`र> ऑफ टाइम' ने पूर> दYु नया मJ तहलका मचाया था. इस cकताब मJ उ^हŠने ÌÍमांड Sवiान के मुि{कल SवषयŠ जैसे '‹बग ब•ग Fथअर>' और hलैक होल को इतने सरल तर>के से

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


बताया cक एक साधारण पाठक भी उसे आसानी से समझ जाए. इस cकताब क] लाखŠ VYतयां हाथŠ-हाथ ‹बक गई. 14 माच( 2018 को $ट>फन हॉcकं ग का दे हांत हो गया. उ^हŠने म@ृ यु से कुछ समय पहले चेतावनी द> थी.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


36.

मेकअप

''हे भगवान, यह cकतना भयानक सपना था!'' तड़के-तड़के झुनकू घबराकर उठ गया था.

''ऐसा 4या दे ख Cलया जी आपने?'' झन ु कू क] झुनक] ने जानना चाहा. ''अर> भागवान, रोज सुबह मेकअप करके कटोरा उठाकर भीख मांगने चला जाता हूं और लोग दया कर भीख दे भी दे ते ह•, प—रवार का खचा( चल जाता है, आज के सपने ने सब म•टयामेट कर दै या.'' बोलने मJ झुनकू क] खुनस साफ झलकती थी. ''अब बताओगे भी!'' झन ु क] क] खन ु स कौन कम थी. ''अब तक तो म• खुद ह> अपना मेकअप कर लेता था, लेcकन सपने मJ भगवान ने मेरा मेकअप कर •दया था.''

''ये लो, यह भी कोई खन ु स क] बात ह•! त€ ु हारा मेकअप का टे म भी बच गया.'' झन ु क] मजे लेती हुई बोल>.

''अरे वो मेकअप ऐसा नह>ं था, cक भीख Cमल जाए. एक तो मेर> दोनŠ बांहJ कट गई थीं, ऊपर से लोगŠ के ताने- ''कमाकर खाओ. कब तक मु¼त क] रो•टयां तोड़ोगे? जानती हो! म• 4या काम कर रहा था?''

''म• 4या जानूं? हां बांहJ कटना तो बहुत बुरा हुआ. हां, तो आप 4या कर रहे थे?'' ''बाक] मजदरू तो Cसर पर ह> 24 ¬टJ उठाकर ले जा सकते थे, म• कुछ ¬टJ दोनŠ कट> बांहŠ पर टं गे थैलŠ मJ और बाक] Cसर पर ढोकर ले जाता था.''

''तब तो तु€हJ बहुत तकल>फ हुई होगी न!'' झुनक] उसके मन को सहलाने लगी. ''झुनक], सच पूछो तो ऐसी मजूर> के बाद जो आ@मसंतुिkट Cमलती थी, उसका मजा ह> कुछ अलग था.'' आ@मसंतिु kट के भाव ने झन ु कू के चेहरे पर रौनक ला द> थी. तभी झुनक] मेकअप का सामान ले आई थी. झन ु कू ने उसे सामान वाSपस ले जाने का इशारा करते हुए कहा- ''पहल> बार आंख खल ु > है, अब मेकअप क] ज–रत नह>ं है. अब मेहनत क] खाएंगे, भीख क] नह>ं. अनमोल मानष ु दे ह> मJ तYनक आ@मसंतिु kट का अनभ ु व भी कर ल.ंू '' उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


वह मजूरŠ के •ठए के Cलए चल पड़ा था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


37.

~लाYनंग

पुCलस और कार कंपनी क] सुYनयोिजत @व—रत ~लाYनंग के कारण वह बाल-बाल बच

गया था और कार स•हत पूर> तरह सुरÏWत था, लेcकन अभी डरा हुआ था. पुCलस क] गाड़ी उसे घर पर छोड़ने जा रह> थी. उसे पूरा घटना¦म याद आ रहा था. मस»डीज़ बJज़ के उस Ðाइवर का कार मJ मौजूद ¦ूज़ कं`ोल Cस$टम पर से Yनयं’ण हट गया और बाद मJ उसे अहसास हुआ cक कार के Ìेक भी फेल हो गए ह•. िजस व4त Ìेक फेल हुए उस व4त कार क] $पीड 120 cकमी VYत घंटे थी.

Ðाइवर ने कार क] ि$टय—रंग संभालते हुए पुCलस को कॉल क], िजसके बाद पुCलस ने तुरंत हाइवे पर मौजूद तीन लेनŠ को पूर> तरह खाल> करवाना शु– कर •दया, यहां तक cक रा$ते मJ पड़ने वाले एक टोल बूथ को भी खोल •दया गया, िजससे कार वहां से आराम से गुज़र सके. उधर कार कंपनी ने कार के Cस$टम को —रमोट पर लेकर कार पर काबू पा Cलया. यह सब कर>ब 1 घंटे तक चला. इस दौरान कार ने 100 cकमी क] दरू > तय कर ल> थी.

उसने चीन क] पुCलस और कार कंपनी के साथ-साथ जगत-Yनयंता को भी इस सुYनयोिजत @व—रत ~लाYनंग के Cलए लाख-लाख ध^यवाद •दया.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


38.

खुद को पहचानो

अCमता ने आज के समाचार प’ क] Vमुख सुखŸ को दे खा''दे श मJ बड़ी ¦ांYत लाने वाले ह• ये 5 युवा वैiाYनक'' इन 5 युवा वैiाYनकŠ मJ अCमता के बेटे अSवक और उसके दो$त Yनशांत का नाम भी सि€मCलत था. अCमता क] खुशी का •ठकाना नह>ं था. उसे कुछ समय पहले क] बातJ याद आ रह> थीं.

दे श-सेवा और समाज-सेवा से अSवक और Yनशांत पुCलस लाइन मJ जाना चाहते

थे, लेcकन भतŸ पर>Wा मJ उनको सफलता ह> नह>ं Cमल रह> थी. कभी वे Cलœखत पर>Wा मJ असफल रह जाते, कभी मौœखक साWा@कार मJ. ब‘चे तो परे शान थे ह>, अCभभावक भी Yनराशा के गत( से बाहर नह>ं आ पा रहे थे. वे भी सबसे अपने ब‘चŠ के भSवkय के बारे मJ बातJ करते रहते थे. एक पड़ोसी ने अCमता को बताया, cक उ^हŠने एक लेख पढ़ा था. उसमJ Cलखा था- ''अगर आप •दन मJ VYत•दन 10 Cमनट भी «यान करने बैठते ह• तो मा’ 2-3 •दन के भीतर ह> आपका मि$तkक ªयादा एका‰ हो जाता है . आप अपने भीतर ªयादा ऊजा( को महसूस करJ गे और साथ ह> तनावमु4त भी हो जाएंग.े आप खुद भी ऐसा करJ और ब‘चŠ को भी ऐसा करने को कहJ , सफलता अव{य Cमलेगी.''

एक और पड़ोसी ने आ{चय( जताते हुए अCमता से कहा- ''अSवक और Yनशांत को तो नवाचार मJ महारत हाCसल है, वे कैसे पीछे रह जाते ह•!'' ''आप ये सब कैसे जानते ह• अंकल जी?'' अब हैरान होने क] बार> अCमता क] थी. ''अरे भाई, आपको शायद याद होगा, cक बचपन मJ वे हमारे बेटे के साथ खेलने आते थे. एक बार म•ने एक पहे ल> पूछ”''एक कंपनी को लगातार खाल> चॉकलेट पाउडर के ˜डhबे ‹बकने क] CशकायतJ Cमल रह> थीं. बताओ वे ‹बना खच» और मेहनत के खाल> ˜डhबŠ को कैसे अलग करJ .'' तब अSवक ने तरु ं त कहा था- ''फाइनल चेcकं ग के समय ˜डhबŠ के सामने एक शि4तशाल>

पंखा रखा जाय. खाल> ˜डhबा अपने आप उड़कर अलग हो जाएगा.'' सच मJ यह ग़ज़ब का जवाब था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


इसी तरह एक और सवाल म•ने पूछा था- ''एक कार कंपनी ने एक बड़ी और ऊंची

कार बनाई, पर कार बनकर तैयार होने के बाद उसे जब शेड से बाहर Yनकालने क] बार> आई, तो शेड क] नीची छत के कारण कार बाहर नह>ं Yनकल पा रह> थी, अब 4या cकया जाए?'' तब Yनशांत ने तरु ं त Yनदान cकया था- ''कार के प•हयŠ क] हवा Yनकाल द> जाय, वह नीची हो जाएगी और आसानी से बाहर Yनकल जाएगी.'' ''cफर आप उनके Cलए 4या परामश( दJ गे?'' ''हम तो ये कहJ गे, cक वे अपने आप को पहचानJ , अपनी •Fच को पहचानJ और तदनस ु ार अपना Wे’ Yनधा(—रत करJ .'' उनके परामश( को मानकर अSवक और Yनशांत ने Sवiान के Wे’ मJ एका‰ता से कुछ नवाचार करने का मन बनाया, उसी एका‰ता और खुद को पहचानने का नतीजा था आज के Vमुख समाचार प’ क] Vमुख सुखŸ मJ अSवक और Yनशांत के नाम का उTलेख होना.

तभी मोबाइल और काल बेल क] घं•टयां बजने लगीं. बधाई दे ने वालŠ का तांता लगना $वाभाSवक था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


39.

•ह€मतवाल>

हर माता-Sपता क] तरह मेरे माता-Sपता ने भी मेरे उªªवल भSवkय का सपना दे खा था. मेरे सम• ृ ध माता-Sपता ने यह सपना तो कतई नह>ं दे खा होगा, cक बेट> झूमा

झार‰ाम क$बे मJ ई-—र4शा चलाने वाल> म•हला बने. cकसी के चाहने मा’ से ह> बात पूर> हो जाय तो कहना ह> 4या? शाद> को अभी महज कुछ ह> •दन बीते थे cक घर मJ महाभारत मच गया”झूमा, सारे गहने मेरे हवाले कर दो.” मेरे पYत बु•धदे व क] यह आवाज थी. ”4यŠ?” ”4यŠ पूछने क] तु€हार> •ह€मत कैसे हुई?” ”वह मेरा $’ीधन है.” ”तुम मेर> $’ी, तो तु€हारा $’ीधन मेरा ह> तो हुआ न!” पYत का हाथ चल गया, साथ ह> सोने के सब जेवर भी उसने बेच •दए और मेर> Sपटाई होती रह>. ऐसे मJ घरवाले भी उसे कहां तक रखते. ब• ु धदे व को सप—रवार घर से Yनकाल •दया गया. अब हमारा पूरा प—रवार बांस क] झोपड़ी मJ रहने को मजबूर हो गया.

YनयYत को मझ ु से जाने कौन-कौन सा कज( लेना था! एक-एक करके दो बे•टयां हो

ग¬. यह दोष भी मेरा ह> था न! एक •दन पYत ने दोनŠ बे•टयŠ समेत मझ ु े जलाने क] कोCशश क]. हम बच गए और वह फ़रार हो गया. कई वष- से वह फरार ह> है .

अपने माता-Sपता क] तरह म•ने भी तो अपनी बेट> के उªªवल भSवkय का सपना दे खा था. म•ने •ह€मत नह>ं हार>. बेट> के Cलए दे खे सपने को पूरा करने के Cलए म• ई-—र4शा

चलाती हूं. म•ने जब पहले •दन ई-—र4शा चलाया तो उस •दन म•ने 25 •पये कमाए. ई-—र4शा पर बैठे लोग मझ ु े रा$ता बता रहे थे. अब म• रोज 400 •पये कमाती हूं.

अभी भी हर मह>ने 4000 हजार •पये क] cक{त अदा करती हूं. यह कज( मेरे पYत ने Cलया था. म• जानती हूं, cक बहुत-से लोग मुझे ई-—र4शा वाल> कहते हŠगे, लेcकन मुझे यह भी पता है, cक अFधकतर लोग मुझे •ह€मतवाल> कहकर मुझसे Vेरणा लेते ह•. उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


40.

कSवता क] पर>Wा

बहुत •दनŠ से मेर> काम करने क] टे ‹बल पर 25 साल पुराना एक नववष( शुभकामना कॉड( पड़ा हुआ है , जो अचानक आज मेरे सामने आ गया. 25 साल से एक ~लाि$टक बैग मJ पड़ा यह शुभकामना कॉड( मेरे Cलए एक Sवशेष मायने रखता है.

ब‘चŠ-बड़Š क] हजारŠ कSवताएं सहजता से Cलखने के बावजूद कभी-कभी एक छोट>-सी कSवता Cलखना एक पर>Wा क] माYनंद लगता है. 25 साल पहले ऐसा ह> हुआ था. मेर> एक सहयोगी अ«याSपका सष ु मा …ीवा$तव मेर> कSवताओं से अCभभत ू थीं. अपने खाल> कालांश मJ घम ू -घम ू कर वह $कूल के सभी बल ु े•टन बोड- पर लगी मेर>

कSवताओं को बड़े «यान से पढ़तीं. शायद उसने अपने पYतदे व कौशल cकशोर जी को भी मेर> कSवताओं के बारे मJ बताया होगा. एक •दन वह बोल>''Yतवानी जी, नववष( शुभकामना कॉड( के Cलए अ‘छ”-सी संदेशमय 8 का¤य-पंि4तयां Cलख द>िजए, हमJ कॉड( छपवाकर अमे—रका भेजने ह•.''

यŠ तो सबको अपनी हर रचना अ‘छ” लगती है, लेcकन cकसी का अ‘छ”-सी कहने का सीधा मतलब है, Cलखवाने वाले क] पसंद क]. हमने मां सर$वती का नाम लेकर 8 का¤य-पंि4तयां Cलख द>ं. उनको पसंद आ ग¬. दस ू रे •दन सुबह $कूल मJ

आकर बोल>ं- ''…ीवा$तव साहब को भी नववष( शुभकामना कॉड( क] 8 का¤य-पंि4तयां बहुत पसंद आ गई ह•, अब हम इसी के कॉड( छपवा रहे ह•.'' वे का¤य-पंि4तयां इस Vकार ह•''नव Vकाश क] œझलCमल वेला, झांक रह> है बादल से। फैलेगा अब $व~न सन ु हर>, नए वष( के आंचल से॥ मंगलमय हो शभ ु कार> हŠ, सोने-से •दन, Yनशा •पहल>। नवल $नेह से बल ु ा रह> है, चमक-गमक मय, cकरण सुनहर>॥'' उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


मतलब म• कSवता क] पर>Wा मJ उ¸ीण( हो गई थी. तभी मेरे समW एक समाचार आ गया- ''आज कSवता •दवस है.''

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


41.

हसीन •वाब

म•ने सपने मJ भी नह>ं सोचा था, cक एक नया अवसर इतने नये अवसरŠ का ज^मदाता हो सकता है. आज एक पुराना कागज हाथ मJ 4या आया, यादŠ का दर>चा खुल गया था.

रात के कर>ब दस बजे भारत सरकार के एक अFधकार> का फोन आया''मैडम, आप कलक¸े चलना चाहJ गी?'' ''कब?'' ''कल.'' ''cकतने •दनŠ के Cलए?'' एक स~ताह के Cलए.'' ''पर यह सब कैसे संभव होगा? मेरे पास न •टकट है, न $कूल को सFू चत cकया है. पता नह>ं मझ ु े छुŒट> Cमल पाएगी या नह>ं?''

''उसक] आप Fचंता न करJ . भारत सरकार का सेमीनार है, आपको ऑन ¾यूट> जाने क] परमीशन Cमल जाएगी. आपको Vो‰ाम अभी बताना होगा.''

''ठ”क है सर, म• दस Cमनट मJ आपको फोन करके बताती हूं. पहले घर से परमीशन लेनी होगी.'' ''ठ”क है.'' और फोन कॉल ख@म हो गई थी. आनन-फानन पYत और ब‘चŠ ने न केवल जाने क] अनुमYत द>, यह कहकर

Vो@सा•हत भी cकया- ''ऐसा अवसर बार-बार नह>ं आता, फोन करके हां कह दो और जाने क] तैयार> करो. हम पीछे सब अपने आप संभाल लJगे.'' आराम से $कूल से भी Cलœखत अनम ु Yत Cमल गई थी. cफर एक स~ताह का शानदार सेमीनार, Vेस कॉ^§ेस, वहां रे ˜डयो अफसरŠ से मल ु ाकात क] बदौलत आते ह> रे ˜डयो

Vो‰ामस से जड़ ु ने का अवसर Cमलना, गायक कलाकारŠ से Cमलने पर cफTम के Cलए पा{व(गायन का अवसर Cमलना, अकादमी के अFधका—रयŠ से मल ु ाकात के कारण कSव

स€मेलनŠ और सेमीनारŠ का अवसर, शी™ ह> अकादमी क] आFथ(क सहायता से छपना उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


आ•द ऐसे ह> $वœण(म अवसर थे, जो उस एक Vो‰ाम के कारण Cमल सके थे. 30 साल बाद भी यह CसलCसला अभी तक जार> है. उस पुराने कागज ने हसीन •वाब क] यादJ ताजा कर द> थीं.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


42.

चाल दे ख ले

शैला आज सुबह से घटना¦म मJ ¦मशः होते बदलाव पर मंथन कर रह> थी. cकससे कहां पर गलती हो रह> है , उसे समझ नह>ं आ रहा था.

शैला पांवŠ मJ पायल पहने महावर लगाए नवरा‹’ महो@सव मJ भाग लेने के Cलए तैयार थी. रे ˜डयो पर गाना चल रहा था''मेरे पैरŠ मJ घुंघ– बंधा ले तो cफर मेर> चाल देख ले.'' शैला क] पायल उस मधुर धुन पर Fथरकने को मचल गई. पायल को मनाने मJ चाची –ठ गई. चाची क] अपनी बेट> Fथरकना तो परे रहा, चलने मJ भी अWम थी. ऐसे मJ उसको भला शैला क] Fथरकन कहां सह ु ाती! ''ठहर, तेर> चाल म• सीधी करती हूं.'' उसने मन ह> मन कहा और शोर मचा •दया-

''अरे , मेर> Yतजोर> मJ से दस हजार •पये cकसने Yनकाल Cलए? Cमल नह>ं रहे , शैला कह>ं तूने तो नह>ं Cलए?'' शैला को सामने देखते हुए वह बोल>. ''नह>ं चाची जी, म• भला 4यŠ लेने लगी? आप मेर> हर तम^ना पूर> कर दे ती ह•, ममी के जाने के बाद आपने ह> तो मेर> हर इ‘छा का ¢याल रखा है!''

''तो cफर कहां गए? दे ख, सीधे-सीधे बता दे , नह>ं तो पुCलस को बुला लूंगी.'' शैला ने •पये Cलये होते, तो बताती न! चाची को नह>ं मानना था, उसने शैला को अपराधी ठहराते हुए पुCलस को बुला Cलया. उसने पुCलस को नोटŠ के नंबर भी बता •दए थे. पुCलस को तो अपना काम करना था, वह तो बेड़ी पहनाकर दोषी को थाने ले जा सकती थी. अब पैरŠ मJ पायल के साथ बेड़ी भी सज गई थी.

थाने मJ म•हला कम(चा—रयŠ ने उससे सच-सच बोलने को कहा, ताcकए उसको बेड़ी से Yनजात Cमल सके. शैला ने YनभŸकता से कहा- ''पCु लस आंट>, मझ ु े बेड़ी से डर नह>ं लगता, झठ ू और अ^याय से नफ़रत है .''

''तो cफर सच 4या है?'' पुCलस आंट> का अगला सवाल था. ''आंट>, म• दावे से तो नह>ं कह सकती, पर सब ु ह चाची जी नोटŠ को दे खकर नील> डायर> मJ कुछ Cलख रह> थीं. cफर म•ने उ^हJ अपने पलंग के बैक Ðॉअर मJ कुछ Yछपाते दे खा था. आप तरु ं त उसक] तलाशी ले सकती ह•.''

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


पुCलस आंट> ने तुरंत अपनी तीम भेज द>. वहां से नोट बरामद हो भी गए. अब

सवाल यह था, cक ये नोट वहां चाची ने रखे या शैला ने! सो नोट फॉरे Cसक जांच के Cलए भेज •दये गये. दोनŠ क] उं गCलयŠ के Yनशान पहले ह> Cलये जा चक ु े थे. नोटŠ

पर चाची क] उं गCलयŠ के Yनशान पाये गये. नोटŠ के नंबर भी नील> डायर> मJ Cमल गये थे. वह Cलखावट भी चाची क] Yनकल>. बेड़ी ने चाची को जकड़ Cलया था. अब चाल दे खने क] बार> शैला क] थी.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


43.

टै टू

कॉ^$टे बल गणेश धांगड़े ने सपने मJ भी नह>ं सोचा था, cक एक टै टू क] मदद से वे 24 साल बाद ‹बछड़ी मां से Cमल सकJगे, लेcकन सचमुच यह कमाल हो गया था.

1989 मJ धांगड़े, जो ठाणे के एक €युYनCसपल $कूल मJ पढ़ते थे, ने अपने दो$त के —र{तेदार के घर मुंबई जाने के Cलए $कूल बंक cकया था, लेcकन वह लोकल `े न मJ बेतहाशा भीड़ होने के कारण अपने दो$तŠ से ‹बछुड़ गए. इस ‹बछुड़न ने उ^हJ 4या4या रं ग •दखाए!

मुंबई मJ उ^हJ खाना खाने के Cलए कुछ समय तक भीख भी मांगनी पड़ी. बाद मJ उ^हJ बेसहारा होने के कारण वलÓ के आनंद आ…म मJ भेजा गया, जहां उ^हŠने सातवीं

4लास तक पढ़ाई क]. सातवीं के बाद उ^हJ अनाथालय भेज •दया गया. इसके बाद वह ठाणे के संकेत Sव•यालय और जूYनयर $कूल मJ 12वीं 4लास तक पढ़े . पढ़ाई मJ

मेधावी होने के कारण उ^हJ महाराk` सरकार से पढ़ाई मJ सहायता मुहैया कराई गई

और ए£जाम दे कर वह पुCलस मJ आ गए. कॉ^$टे बल बनने पर भी उ^हJ अपने प—रवार को ढूंढने मJ बड़ी मश4कत करनी पड़ी. पहचान के Cलए उनके पास एक टै टू था और $मYृ त मJ था केवल एक दरगाह का नाम.

टै टू और दरगाह के नाम के कारण वे अपनी ‹बछुड़ी हुई मां और प—रवार से Cमल

पाए. आज कॉ^$टे बल गणेश धांगड़े क] खुशी का कोई •ठकाना नह>ं और उनक] मां क] खुशी तो बस एक मां ह> समझ सकती है.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


44.

नई इबारत

कंचन आज सचमुच कंचन बनकर Yनखर> है. कड़े प—र…म के बाद राk`>य $तर क] पैरा ऐथल>ट बनकर 2017 मJ उ^हŠने राk`>य पैरा ऐथले•ट4स च•SपयनCशप मJ तीन

$वण( पदक जीते. जीत क] खुशी के उपरांत कुछ सहज होने के बाद वह cफर अतीत क] $मYृ तयŠ मJ खो गई.

2008 से पहले वह रावल इंटरनैशनल $कूल मJ VाथCमक कWा के ब‘चŠ को पढ़ाती

थीं, लेcकन Yनजाम• ु द>न रे लवे $टे शन पर हुए एक हादसे मJ कंचन ने अपना एक हाथ खो •दया. $पाइनल इंजर> क] वजह से कमर के Yनचले •ह$से ने काम करना बंद कर •दया. जब पता लगा cक परू > िजंदगी वीलचेयर पर रहना पड़ेगा तो अवसाद का

Cशकार हो जाना $वाभाSवक था. उसने कर>ब 5-6 साल तक अपने आप को एक कमरे मJ एक तरह से बंद रखा और बहुत कम समय ह> प—रवार के साथ ‹बताती थी. एक बात अ‘छ” हुई, cक वह कुछ-न-कुछ पढ़ती रहती थी. एक •दन उसने पढ़ा”िज़ंदगी एक शतरं ज है , हर शह को मात नह>ं समझना चा•हए, बाज़ी वह> हारता है जो, •ह€मत हार जाता है.” बस यह>ं से उसक] िजंदगी बदल गई. उसने आ@मFचंतन के बाद भSवkय मJ आने वाल> परे शाYनयŠ का सामना करने के Cलए खुद को तैयार cकया. सामािजक काय- मJ

•ह$सा लेने के Cलए Cमशन जागYृ त से जुड़ीं और $कूलŠ मJ जाकर ब‘चŠ को जाग–क करने के साथ ह> $व‘छ भारत, बेट> बचाओ-बेट> पढ़ाओ, पया(वरण बचाओ जैसे अCभयानŠ का भी •ह$सा बनीं. दो साल पहले राजा नाहर Cसंह $टे ˜डयम मJ ऐथले•ट4स के कोच नरसी राम से उनक] मल ु ाकात हुई. उ^हŠने कंचन को Vे—रत cकया तो वह भाला फJक, च4का फJक और गोला फJक खेलŠ का VCशWण लेने लगी. यहां उनके जीवन एक नई •दशा दे ने मJ कोच नरसी राम और ~लैटफॉम( मुहैया कराने

मJ ह—रयाणा पैराCलंSपक कCमट> के महासFचव Fगरा(ज Cसंह ने बहुत सहयोग cकया. पूरे प—रवार के सहयोग से वह आगे बढ़ती गई और आज 3 तीन $वण( पदक उसक] झोल> मJ थे. उसने अपनी भावनाओं को कSवता मJ ढाला‘यह मेरे जीवन क] अब तक क] कहानी है , कल था बचपन तो आज आई जवानी है,

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


तब थीं खुCशयां तो आज आई परे शानी है, cफर भी हार न म•ने मानी है, म•ने भी जीवन मJ कुछ करने क] ठानी है, दYु नया मJ अपनी अलग पहचान बनानी है.’ कSवता क] ये भावनाएं ह> कंचन क] िजंदगी क] नई इबारत बनीं. 2020 मJ पैरा ओCलंSपक होने वाले ह•. उसमJ •ह$सा लेकर दे श के Cलए $वण( पदक जीतना कंचन का ¢वाब है.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


45.

भूख हड़ताल

उसक] भूख हड़ताल उसके प—रवार वालŠ और Vशासन को अपने आगे झुका दे गी, इस

प—रणाम क] ज€मू-क{मीर के उधमपुर िजले मJ एक 14 वषŸय छा’ा Yनशा ने कTपना भी नह>ं क] थी. उसने तो बस $व‘छता के महÔव को समझा और उसे अमल मJ लाने के भूख हड़ताल शु• कर द>. यह भूख हड़ताल न तो cकसी cकले के बाहर हुई थी, न जंतर मंतर पर. यह तो घर के अंदर ह> हो रह> थी. भख ू हड़ताल का सबब था घर मJ शौचालय Yनमा(ण करवाना.

एक अपने $कूल मJ एक चचा( के दौरान खल ु े मJ शौच से म4 ु त इलाकŠ और शौचालयŠ के इ$तेमाल के फायदŠ के बारे मJ पता चला था. इसी चचा( के •वारा Yनशा क] भोर

क] श• ु आत हुई. इस चचा( से Vेरणा लेकर उसने अपने घर मJ शौचालय Yनमा(ण करवाने क] मांग क]. जैसा cक हमेशा से होता आया है, पहले cकसी भी नई पहल का Sवरोध cकया जाता है. पर ब‘ची क] भख ू हड़ताल पर गौर cकया गया, तो वह

¤यि4त, समाज, दे श के Cलए •हतकार> ह> थी. इस अCभयान मJ उसके Sव•यालय के 35 और छा’Š ने अपने घरŠ मJ शौचालयŠ के Yनमा(ण क] मांग क]. अब तो गांव-घर के लोगŠ को अनुकूल कदम उठाना ह> पड़ा. सरकार ने $व‘छ भारत Cमशन के तहत न केवल Yनशा के घर पर शौचालय (¤यि4तगत शौचालय) के Yनमा(ण क] मंजूर> द>, बिTक ह½तेभर के भीतर ह> कई घरŠ मJ 558 शौचालयŠ का Yनमा(ण शु– हो गया. दो •दन क] भूख हड़ताल और शुभ संकTप ने इतना बड़ा काम कर •दखाया था.

कJµ>य मं’ी िजतJµ Cसंह •वारा Yनशा को $व‘छ भारत Cमशन का ‘बाल आदश(’ बताते हुए Yनशा को एक $मYृ त Fच^ह और cकताबŠ का एक बैग दे कर स€माYनत cकया गया.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


46.

सां@वना

उनक] प@नी सुन नह>ं सकती थीं और उ^हJ आपसी संवाद करने मJ बहुत •द4कत होती थी. कुछ समय बाद पYत-प@नी एक-दस ू रे के साथ संकेतŠ मJ बात करने लगे. एक •दन वह प@नी के साथ संकेतŠ से बात कर रहे थे, तभी उनका «यान माबेल के कानŠ क] तरफ गया। वह उनके कानŠ को «यान से दे ख रहे थे. ‘ए जी, कान मJ 4या दे ख रहे हो?’प@नी संकेत से कान क] ओर इशारा करके बोल>ं. ‘सोच रहा हूं cक 4या कोई ऐसी मशीन बन सकती है जो सुनने मJ मदद कर सके? य•द सुनने वाल> मशीन बन गई तो cफर म• और तुम आराम से बातJ कर पाएंगे.’ पYत का जवाब था.

प@नी म$ ु कुराकर अपने काम मJ लग गई, पYत अपनी धन ु मJ आSवkकार मJ जट ु गए. खाना-पीना भल ू कर वे Yनत नवीन Vयोग मJ लग गए. धन ु क] धनक से मशीन बन गई. वह मशीन सन ु ने मJ मदद करने वाल> तो न बन सक], हां उससे टे ल>फोन क]

खनक ज–र आई. सार> दYु नया खश ु थी, पYत क] Yनराशा प@नी से छुपी न रह सक]. अले4जJडर ‰ाहम बेल क] प@नी माबेल गारडीनर ने पYत को सां@वना दे ते हुए संकतŠ मJ माबेल बोल>ं, ‘िजस तरह आपने टे ल>फोन के Cस•धांत का आSवkकार कर •दया

है, उसी तरह एक •दन सुनने क] मशीन का आSवkकार भी अव{य हो जाएगा.’ माबेल क] बात स@य Cस•ध हुई. आज सुनने क] मशीन के Cस•धांत का आSवkकार हो चुका है और अनेक बFधर ¤यि4त उसका लाभ भी उठा रहे ह•.''

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


47.

…ंग ृ ार

दग ु ा( दे वी खुद बचपन मJ नह>ं पढ़ पा¬ तो 4या हुआ, वे CशWा के महÔव को भल>भांYत समझती ह•. दे ने वाले ने उनको जैसा सद ुं र –प •दया है, वैसे ह> सुंदर गुण भी. धन क] उनके पास कमी नह>ं है, न ह> दे ने क] मह¸ा को वे कम आंकती ह•.

उनके बारे मJ लोग कहते ह•- ''सबके दो हाथ होते ह•, पर दग ु ा( दे वी के आठ हाथ ह•, वे आठ हाथŠ से बांटती है . उनके अपने आठ $कूल ह•. ये $कूल ¤यवसाय के कJµ नह>ं

ह•, समाज-सेवा का जीता-जागता –प ह•. सरकार ने उनके Vय@न को सराहा है और हर $कूल के Cलए उनको आंCशक सहायता Vदान करने करने के साथ मा^यता भी द> है. समाज ने उनक] •द¤य¨िkट को पहचाना है और खुले मन से उनक] सहायता कर रहे ह•.''

खद ु म•ने भी सब ु ह-सब ु ह उनको तैयार होकर $कूल के दौरŠ के Cलए जाते दे खा

है. cकसी $कूल को पता नह>ं होता, cक दग ु ा( दे वी cकस समय उनके $कूल को दश(न दे ने आएंगी, इसCलए हर $कूल हर समय च$ ु त-द• ु $त चल रहा होता है.

चु$त-द• ु $त रहने के Cलए वे खुद सादा व हTका भोजन लेती ह• और महल जैसे

बंगले मJ भी जमीन पर शयन करती ह•. चमकती सादा-सफेद साड़ी मJ उनके चेहरे का तेज दमकता रहता है . सादा जीवन-उ‘च Sवचार के साथ CशWा का Vचार-Vसार करने के Cस•धांत उनका …ंगार ह•.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


48.

और इंदु पास हो गई

आज हर तरफ एक खबर क] चचा( थी''CBSE 12वीं अथ(शा$’ और 10वीं गœणत क] पर>Wा होगी दोबारा'' यह खबर उन कुछ छा’Š के Cलए भले ह> सुखकर हो, िजनका पेपर अ‘छा नह>ं हुआ था. अFधकांश छा’ दोबारा पर>Wा नह>ं चाहते थे. मुझे यह खबर 1960 मJ ले गई, जब हमने 10वीं क] पर>Wा द> थी. हमार> गœणत क] पर>Wा भी दोबारा हुई थी. नी– का गœणत का पेपर बहुत अ‘छा हुआ था, लेcकन वह बहुत Yनराश थी. कारण? हमेशा 100% अंक लाने वाल> नी– के 5 अंक कटने वाले थे. पेपर मJ रे खागœणत का एक सवाल ह> गलत आया था.उसने Yनर>WकŠ को यह बात बताई भी थी, पर Yनर>Wक 4या कर सकते थे? ख़ैर, शोर मचना ह> था, सो मचा. नतीजतन कुछ •दनŠ बाद पेपर दोबारा होने का समाचार आ गया. नी– बहुत खश ु थी. उसे सब कुछ आता था, इसCलए वह आराम से सो पाई थी. नींद मJ सपना आया, वह भी गœणत के होने वाले पेपर का. उसे तो कुछ करना नह>ं था, लेcकन उसने गœणत

मJ मुि{कल से पास होने वाल> इंद ु क] मदद करने क] बात सोच ल> थी. $कूल बस मJ ह> उसने इंद ु को अपने सपने के बारे मJ बताकर पेपर से पहले कुछ सवाल सीखकर याद करने को मना Cलया था. इंद ु ने ऐसा कर भी Cलया था. और इंद ु पास हो गई.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


49.

$वीकाय(ता

आज 80 साल के दे वदास ने 76 साल क] मगडु बाई से शाद> रचाई. मगडु

बाई 48 साल तक उनक] Cलव-इन पाट( नर रह> ह•. पूरे गांव मJ यह शाद> आकष(ण का कJµ रह>. दे वदास को कुछ •दन पहले क] बात याद आ रह> थी.

''पापा, आप मां से SवFधवत शाद> कर ल>िजए न!'' अपने पैतक ृ Yनवास मJ मगडु के साथ रह रहे दे वदास से बेटे अजु(नलाल ने मनुहार क].

''4या बात कर रहे हो बेटे, ऐसा कैसे हो सकता है!'' दे वदास के चेहरे पर Fचंतन क] रे खाएं थीं. ''हो 4यŠ नह>ं सकता पापा, आप इतने साल से मां के साथ रह भी तो रहे ह• न! मेर> बड़ी इ‘छा है, cक आप दोनŠ के —र{ते को $थानीय र>Yत-—रवाजŠ के मत ु ा‹बक

सामािजक $वीकाय(ता और '^यायवता' Cमले. पापा, ~ल>ज़ मान जाइए न!'' बात परू े प—रवार के सामने हो रह> थी. सबके कहने पर शाद> क] तैया—रयां श• ु हो ग¬.

पहल> प@नी क] रजामंद> से शाद> को ^यायावता तो Cमल सकती है, लेcकन $थानीय र>Yत-—रवाजŠ के मुता‹बक सामािजक $वीकाय(ता के Cलए कुछ खास करना पड़ेगा.

सो 'भंजन' क] Vc¦या पूर> क] गई. भंजन यानी दT ू हे का प—रवार दT ु हन के घर जाता है और वर पW क] ओर से 50 cकलो और वधू पW क] ओर से 10 cकलो चावल दे कर आपस मJ Cमलाया जाता है और इसे पकाकर मेहमानŠ को परोसा जाता है.

दे वदास इस बारे मJ खुशcक$मत रहे , cक दोनŠ ह> पि@नयŠ ने आपस मJ कोई ऐतराज

नह>ं जताया और बात करती रह>ं. पहल> प@नी क] त‹बयत ठ”क होती तो वह भी इस शाद> मJ शाCमल होतीं. सामािजक $वीकाय(ता और '^यायवता' Cमलने के कारण दे वदास और मगडु बाई के साथ-साथ सारा प—रवार Vस^न है.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


50.

बोझ

''म• 13 साल क] ब‘ची नं•दता हूं, $कूल बैग के बोझ तले पूर> तरह दबी हुई.'' ''4या कहा आपने? $कूल बैग के बोझ भी कोई बोझ होता है?'' ''सच है, आप मेर> पीड़ा महसूस कैसे कर सकते ह•? आपके जमाने मJ न तो इतनी मोट> cकताबJ होती थीं, और न ह> इतनी मोट>-मोट> होम वक( और 4लास वक( क] कॉSपयां. अब आपके कंधे तो मजबूत ह• न! म• खुद क‘ची कल> और मेरे कंधे भी

नाजुक-नाजुक, कोमल-कोमल. इतने भार> $कूल बैग के बोझ को संभालना भला मेरे बस क] बात कहां?''

''ममी मेरे दद( को समझती ह•, इसCलए बस $टॉप तक मेरा $कूल बैग ढोकर चलती ह•, उसके बाद तो सारा •दन मझ ु े ह> संभालना होता है न!''

''$कूल के अ«यापक इसे कहां समझते ह•? हर पी—रयड के अ«यापक को मोट>-मोट> cकताब भी हमारे बैग मJ चा•हए होती है, साथ ह> होम वक( कॉपी और 4लास वक( कॉपी भी.'' ''कई बार एक भी cकताब-कॉपी का काम नह>ं पड़ता, उस •दन तो लगता है, cक बेगार ह> क] है.'' ''ख़ैर, अब म•ने ''$कूल बैग'' नाम क] इस cफTम मJ भार> बैग से होने वाल>

परे शाYनयŠ और ब‘चŠ पर पड़ने वाले बोझ को •दखाया है. मेर> cफTम को नैशनल साइंस cफTम फेि$टवल मJ $¦]Yनंग के Cलए चुना गया है. 16 अ^य cफTमŠ के साथ इसे भी ब‘चŠ के 'डी वग(' मJ शाCमल cकया गया है. आपको मौका Cमले तो अव{य दे œखएगा और इसका कुछ हल YनकाCलएगा.'' ''ऐसा न हो, cक $कूल बैग के बोझ तले दबकर मेरे नाजुक कंधे सवा(इकल पेन से पी˜ड़त हो जाएं.''

''अ‘छा, अब म• आपसे Sवदा ले रह> हूं, $कूल बैग के बोझ को cफर से ढोने के Cलए.''

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


51.

अनुkठान

आदत से मजबूर मेघना ने दा•हने हाथ क] म«यमा उं गल> से Cल½ट का ि$वच ऑन

cकया और दद( के कारण उसके मुंह से बड़ा-सा उ¼फ Yनकल गया. अपनी इस हरकत

पर मन ह> मन वह बहुत लिªजत भी हुई. उसे अYनल के साहस क] कहानी जो याद आ गई थी. मेघना को हुआ कुछ भी नह>ं था. बस, सदÓ के कारण उसके दा•हने हाथ क] म«यमा उं गल> सज ू ी हुई थी, उस पर सhजी काटते समय एक कट आ गया था. और अYनल! बचपन मJ ह> एक दघ ु (टना मJ अYनल अपने दोनŠ हाथ गंवा बैठा था. माता-Sपता तो

दख ु ी थे ह>, अYनल भी कम परे शान नह>ं था. उसके बालमन ने हार मानने से इंकार कर •दया-

''जो दYु नया को नामम ु cकन लगे, वह> मौका होता है करतब •दखाने का''. अYनल अपना सब काम खुद करने लगा, उसने $कूल मJ दाœखला Cलया, कॉलेज क]

पढ़ाई भी पूर> क], क€~यूटर का कोस( करके अब औरŠ को क€~यूटर के कोस( करवाता है. उसने अपने साथ हुई अनहोनी को अनुkठान बना Cलया था.

उ@सव

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लघुकथा सं‰ह-4


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