Itihas ka dohran

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इ"तहास का दोहरान लघक ु था सं2ह-9

ल5ला "तवानी


इ"तहास का दोहरान लघुकथा सं2ह-9 1.

सं&कार

2.

सह ु ाना उपाय

3.

सुकून क3 महक

4.

छतर8 वाल8 लड़क3 (=वजेता लघुकथा)

5.

थDपड़ का कमाल

6.

FरGतH क3 भूख?

7.

&माटN OPतभाएं

8.

गूंज

9.

‘पFरमल’

10.

कोई बहाना नह8ं चलेगा

11.

मेर8 मां

12.

ल\य पर ]यान

13.

आज के _व ु

14.

पेट`ट

15.

इPतहास का दोहरान

16.

Undo का बटन

17.

गलतफ़हमी

18.

कiपना के पंख

19.

jयथा

20.

मk डॉnटर बनूंगी

21.

मर8न लाइफ सेवर


22.

अमर शह8द हे मू कालाणी

23.

बेsटयां

24.

छोट8-सी भूल

25.

आकाश क3 शाद8

26.

हुनर

27.

उड़ी बाबा!

28.

उiलू

29.

अफसाना

30.

आशीवाNद

31.

वचन

32.

नई जान

33.

नvता

34.

संयोग

35.

गोद

36.

अंगूठा

37.

पFरंदा

38.

एयर &xाइक

39.

पांच झरोखे

40.

अzातवास

41.

मासूम मु&कुराहट!

42.

जुनून

43.

यह कैसी पर8|ा?

44.

सूरजमुखी फूल

45.

साढ़े तीन ~मनट


46.

घHसला

47.

आशीवाNद

48.

सात दाने

49.

खब ू सरू त संघषN

50.

हौसले क3 शमा

51.

वेदना


1.

सं&कार

”अंकल, „बsटया क3 शाद8 का कॉडN लाया हूं, आपको आकर „बsटया को आशीवाNद भी दे ना है और सारा काम भी संभालना है.” †कशोर ने कहा. ”बहुत-बहुत मुबारक हो बेटा, हम तो कब से „बsटया क3 शाद8 क3 Oती|ा कर रहे थे. PनिGचंत रहो, हम अवGय आएंगे, „बsटया को आशीवाNद भी द` गे और काम भी संभाल`गे. अरे हां, लड़का अपनी „बरादर8 का ह8 है न!” अंकल क3 &वाभा=वक उˆसुकता थी.

”अंकल. लड़का अपनी „बरादर8 का तो नह8ं है, पर बहुत सुशील और समझदार है. „बsटया के साथ पढ़ता था. आपको याद होगा, हमार8 Oेम =ववाह भी ऐसे ह8 हुआ था. मेर8 पˆनी भी „बरादर8 क3 नह8ं थी, ले†कन पFरवार म` †कसी को उससे कोई ~शकायत नह8ं है.” ”„बलकुल याद है बेटा. यह भी सच है, †क बहू ने बड़H क3 इŠज़त म` कोई कोर-कसर नह8ं छोड़ी. वा&तव म` बात जात-„बरादर8 क3 नह8ं होती है, सं&कारH और आपसी समझ क3 होती है”.

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लघुकथा सं•ह-9


2.

सुहाना उपाय

नए साल ने द&तक दे द8 थी. OकृPत ने सतरं गी चोला पहन ~लया था. कह8ं 3 •ड•ी सेिiसयस तापमान ने sदiल8 को ~शमला बना sदया था, तो ~शमला को बफNबार8 के अŽभुत स•दयN से युnत कर sदया था. ~सडनी म` रात 9 बजे होने वाल8 सुO~सŽध आPतशबाजी से पहले बरखा रानी ने जमकर रसधार बरसाई और 12 बजे क3

आPतशबाजी से पहले भी अपना रं ग जमाया. ''कब रोकने से ’कते हk द8वाने!!' लोगH ने जमकर बाFरश के साथ ~सडनी के हाबNर „“ज पर कर8ब 12 ~मनट तक आPतशबाजी का आनंद ~लया. दPु नया भर के लोग नाच-गाकर 2019 का &वागत

करने को उˆसुक थे. सुहानी को भी 2019 के &वागत के ~लए कुछ सुहाना करना

था. पर उसे समझ नह8ं आ रहा था, †क वह नया और सुहाना nया करे ! तभी उसे

अपने पापा क3 सीख याद आई, †क जब भी मन म` कोई द=ु वधा हो, उसे सु=वधा से सुलझने दो. थोड़ी दे र सोचना बंद कर दो. सुहानी ने ऐसा ह8 †कया. तभी उसे लग रहा था, कोई उसे कुछ कह रहा है. वह कोई और नह8ं, &वयं नया साल था-

''मेरे &वागत म` पाट” करना और रे जॉलूशन बनाना „बiकुल नॉमNल है जो †क

•यादातर लोग करते हk. मेर8 शु’आत –यू जीलkड से होती है, nयH†क भारत से कर8ब साढ़े सात घंटे आगे है. ऑ&xे ~लया भारत से भारत से कर8ब साढ़े पांच घंटे आगे है, ~सडनी के हाबNर „“ज पर कर8ब 12 ~मनट तक आPतशबाजी होगी. डेनमाकN म` लोग पुरानी Dले˜स को दरवाजे पर और द8वार पर फ̀ककर तोड़ मेरा &वागत करते हk.

&पेन म` –यू ईयर के मौके पर 12 अंगूर खाने का Oचलन है. †फल8=पंस म` –यू ईयर का से~ल“ेशन पैसे के इदN-™गदN ह8 घम ू ता है. कपड़H पर भी गोल पैसे sदख`गे.

जापान म` नए साल के मौके पर मंsदर क3 घंट8 को 108 बार बजाने क3 परं परा है . ि&व˜जरलkड म` लोग जानबझ ू कर भी आइसš3म को जमीन पर ™गराना शभ ु समझते हk.

›ांस म` नए साल के &वागत म` पैनकेक, foie gras और शkपेन खाना-पीना स£प–नता का Oतीक माना जाता है.

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लघुकथा सं•ह-9


साउथ अमेFरका के दे शH म` नए साल के मौके पर रं गीन अंडवेअर पहनने का x•डशन है. ऐnवडोर म` लोग –यू ईयर ईव पर कागज पर =पछले साल क3 बुर8 चीज` ~लखकर उसे जला दे ते हk.

™चल8 म` लोग नए साल क3 रात म` क„“&तान म` सोते हk. आइFरश लोग –यू ईयर वाले sदन द8वारH पर “ेड फ̀कते हk. सह ु ानी, तम ु nया करोगी?'' ''सब अपने-अपने दे श क3 सं&कृPत के अनु¤प नए साल का जGन मनाते हk, मk भी

भारत क3 &व&थ परं परा यानी सकाराˆमकता-सजगता-समाजसेवा क3 साकार OPतमा बनना चाहती हूं. मk हर र=ववार को ममी-पापा के साथ अनाथालय म` जाऊंगी और अपनी उv के ब¦चH के साथ दो घंटे जमकर खेलग ूं ी, उ–ह` हंसने-हंसाने का वातावरण दं ग ू ी, उ–ह` पढ़ाऊंगी और उनक3 पसंद का खाना §खलाऊंगी.'' सुहानी मानो सोते से जाग गई थी.

वह बहुत खुश थी. उसे नए साल का जGन मनाने का नवीन और सुहाना उपाय जो सूझ गया था!

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लघुकथा सं•ह-9


3.

सुकून क3 महक

ताजा समाचार थे- =पछले 12 sदनH से 5 •ड•ी से कम तापमान sदiल8 म` चल रहा है. एक jयिnत अपनी कार से कुछ सफेद-सा sदखाते हुए ™चiला रहा है- sदiल8 म` sहमपात हो गया. ~शमला म` -17 •ड•ी तापमान! तो nया sहमयुग आ गया है? एक संदेश आया-

''sदये जलाने क3 र&म अब पुरानी हो गई, एक दस ू रे को जलाना पसंद करते हk अब लोग.'' जाने कैसे ये लोग ऐसा संदेश भेज सकते हk! nया इनक3 िजंदगी म` म& ु कुराने का एक भी पल नह8ं आया, जो इनके मन को महका सके? यादH ने अंगड़ाई ल8. जा पहुंचा 1980 म`. उन sदनH ट8.jह8. पर र=ववार को =पnचर आया करती थी. ट8.jह8. तो सबके पास था, पर Gवेत Gयाम और छोटा. र=वकांत का घर भले ह8 छोटा था, पर उसके पास ट8.jह8. रं गीन था और बड़ा भी. तदनुसार उसका sदल भी बड़ा यानी नेक था. र=ववार

को आसपास रहने वाले उसके सब भाई उसके यहां †फiम देखने के ~लए एक„¨त होते थे. ''Pतवानी यार! तू भी आ जाना ना, बड़ा मजा आएगा. ब¦चे भी बहुत खुश हो जाएंगे.'' पPतदे व से उसका &नेह-~सnत Pनहोरा होता था. उसके इस भावभीने Pनमं¨ण को &वीकार न करने का तब कोई बहाना नह8ं चलता था. ऑ†फस म` कायNरत र=वकांत क3 पˆनी तो †क™चन से बाहर Pनकल ह8 नह8ं पाती थी, nयH†क इतने लोगH के ~लए शानदार-लज़ीज •डनर जो बनाना होता था. र=वकांत सबक3 स=ु वधा का ]यान रखते हुए खद ु ऐसी जगह बैठकर †फiम दे खता था, जहां कोई नह8ं बैठना चाहता था. बड़े अंतराल म` •डनर श’ ु हो जाता था. र=वकांत सबको Dयार से खाना §खलाता. †फiम खˆम हो जाने पर आसपास के लोग तो घर चले जाते, दरू रहने के कारण हम` वह इतनी रात को घर नह8ं जाने दे ता. सबको

स=ु वधाजनक „ब&तर पर सल ु ाकर वह बहुत बड़ा jयवसायी दस ू रे sदन अपने jयवसाय के ~लए तन को तैयार करने के ~लए डाइPनंग टे „बल के नीचे सुकून से सो जाता. यादH क3 अंगड़ाई अब भी उसके सुकून क3 महक से सुवा~सत है.

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लघुकथा सं•ह-9


4.

छतर8 वाल8 लड़क3 (=वजेता लघुकथा)

आज एक कला OदशNनी म` एक ™च¨ दे खा. ™च¨ nया था, बोलते-चालते =वकास और Oदष ू ण का जीवंत ™च¨ांकन था! एक तरफ धुआं छोड़ती गा•ड़यां, एक तरफ Oदष ू ण फैलाती कल-कारखानH क3 ™चमPनयां. उस ™च¨ को दे खकर मुझे उस छतर8 वाल8

लड़क3 क3 याद आ गई, जो ऑ&xे ~लया म` लगातार 4 मह8ने तक मुझे सुबह सैर

करते हुए ~मलती रह8 थी. उसी समय पर उसी जगह पर, nयH†क उसे ठ©क नौ बजे काम पर पहुंचना होता था और मुझे ठ©क नौ बजे घर, ता†क सबको नाGता ठ©क समय पर ~मल सके. =पचक3 नाक वाल8 गोर8-™च˜ट8-नाट8 वह चीनी लड़क3 कोई भी मौसम हो, छतर8 ताने चलती थी. पहले सद” का मौसम था. हiक3 सन ु हर8 धप ू बहुत सह ु ानी लगती थी, पर वह यानी •डnसी छतर8 ताने! मझ ु े आGचयN लगा. †फर मkने सोचा, शायद यह गोर8™च˜ट8 होने के कारण रं ग काला न पड़ जाए, इस डर से छतर8 ताने चलती थी. एक sदन गड ु मॉPनªग के बाद मkने उससे पछ ू ह8 ~लया. उसका जवाब च•काने वाला था. ''Oदष ू ण.'' उसका जवाब था. ''Oदष ू ण? मझ ु े तो यहां कोई Oदष ू ण नह8ं sदखाई दे रहा!'' मेरे मन म` तो sदiल8 बसी हुई थी.

''आप पॉश सबबN म` रहने वाल8 हk, जरा आउट &क˜Nस म` आकर दे §खए. कार` तो पूर8 ~सडनी म` हk ह8, ™चमPनयH का धुआं सांस लेना तक दभ ू र कर दे ता है. नीची

™चमPनयां पॉiयूशन लेवल को और ऊंचा कर दे ती हk.'' उसने नाक पर हाथ को ऐसे

रख ~लया था मानो इस समय भी ™चमPनयH का धुआं उसक3 सांस को Oद=ू षत कर रहा हो.

मुझे हैरानी हो रह8 थी. 20 साल से यहां आती रह8 हूं, दो-दो साल भी रहकर गई हूं, न मnखी-म¦छर, न Pतलच˜टा-Pछपकल8. कूड़े के Pनपटान क3 सjु यव&था. सफाई और अनुशासन ऐसा, †क दं ग रह जाओ. उस sदन उसक3 बात से दं ग रह गई थी.

''इंडि&xयल एFरया म` संचा~लत कल-कारखानH क3 ™चमPनयH से उठते धए ु ं व आसपास बहती के~मकलयुnत गंदगी भी Oदष ू ण को बढ़ाने का काम कर रह8 है.'' उसने कहा था.

''ऐसा nया!'' मेर8 हैरानी बढ़ती जा रह8 थी.

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लघुकथा सं•ह-9


''यहां Oदष ू ण sदखाई नह8ं दे ता, पर Oदष ू ण के कारण सूयN क3 †करण` इतनी Oद=ू षत हो गई हk, †क सद” म` भी छतर8 के „बना धूप म` चलने से ˆवचा क3 ऐसी बीमाFरयां हो जाती हk, िजनका ठ©क होना मिु Gकल है. इस~लए बचाव म` ह8 समझदार8 है.'' तब से मk भी छतर8 वाल8 बन गई थी.

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लघुकथा सं•ह-9


5.

थDपड़ का कमाल

बचपन म` थDपड़ शायद सबने खाए हHगे, पर थDपड़ क3 गूंज भी होती है, यह हम` सबसे पहले बताया डॉnटर डkग ने 1986 क3 सभ ु ाष घई क3 †फ़iम कमाN म`, जब sदल8प कुमार के थDपड़ का जवाब अनुपम खेऱ ने कुछ यूं sदया:

"डॉnटर डkग को आज पहल8 बार †कसी ने थDपड़ मारा है..फ&टN टाइम..इस थDपड़ क3 गूंज सुनी तुमने..इस गूंज क3 गूंज तु£ह` सुनाई दे गी...पूर8 िज़ंदगी सुनाई दे गी." उसके बाद ~सयासी थDपड़, रोमांsटक थDपड़, सड़क छाप थDपड़, बुलबुल पांडेय का

थDपड़ सबक3 गूंज सुनाई दे ने लगी. थDपड़ कमाल का भी होता है, यह बताया महान †šकेटर स™चन त`डुलकर ने.

''मझ ु े महान †šकेटर या †क †šकेट का भगवान कहा जाता है , उसका ¯ेय जाता है मेरे ग’ ु और कोच रमाकांत आचरे कर क3 मेहनत और अपनी लगन को,'' स™चन

त`डुलकर का मानना है, ''बिiक मk तो यह कहूंगा, †क इसका ¯ेय जाता है मेरे ग’ ु के उस थDपड़ को, जो मेरे ग’ ु ने मझ ु े लगाया था.'' ''थDपड़ और आपको?'' ¯ोता का है रान होना &वाभा=वक था. ''मk भी तो आ§खर सबक3 तरह ब¦चा ह8 था न! वह थDपड़ न लगता, तो अब तक ब¦चा ह8 रहता.'' स™चन ने सहजता से कहा. ''ऐसा nया था उस थDपड़ म`?'' ¯ोता क3 हैरानी बढ़ती जा रह8 थी. ''यह थDपड़ ह8 तो मेर8 कामयाबी का राज है!'' स™चन क3 आंखH म` एक चमक sदखाई द8. ''पर थDपड़ लगा nयH?'' असल बात तो यह8 है. ''अब नादाPनयां क3 तो थDपड़ तो पड़ना ह8 था न! हुआ यह †क मेरे ~लए असल8 †šकेट क3 शु’आत तब हुई जब मk 11 साल का था. मेरे भाई को मुझम` कोई OPतभा नजर आई और वह मुझे आचरे कर सर के पास ले गए. मेरे =वकास म` उनके साथ

गुजारे वो चार-पांच साल मेरे ~लए काफ3 अहम रहे . आचरे कर सर पेड़ के पीछे खड़े होकर हमारा खेल दे खा करते थे और बाद म` हमार8 गलPतयां बताया करते थे. वे

हमारे अ°यास के ~लए कुछ मैच ऑगNनाइज करवाया करते थे. वह सामने वाल8 ट8म

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लघुकथा सं•ह-9


को बता दे ते थे †क मk चौथे नंबर पर बiलेबाजी क¤ंगा.' स™चन क3 आंखH म` आचरे कर सर के ~लए दो अ¯ु „बंद ु थे. ''ऐसे ह8 एक sदन मैच खेलने के बजाए मk वानखेड़े &टे •डयम म` शारदा¯म इंि±लश मी•डयम और शारदा¯म मराठ© मी•डयम के बीच हैFरस शीiड का फाइनल दे खने चला गया. मk अपनी ट8म का हौसला बढ़ाने वहां गया था. मkने वहां सर को दे खा और उ–ह` ~मलने चला गया. उ–ह` पता था †क मk मैच खेलने नह8ं गया ले†कन उ–हHने †फर भी पूछा †क मkने कैसा OदशNन †कया. मkने उ–ह` बताया †क मk मैच छोड़कर अपनी ट8म

का हौसला बढ़ाने यहां आया हूं. इतना सुनना था †क उ–हHने मुझे एक जोरदार थDपड़ लगाया. मेरे हाथ का लंच बॉnस छूट कर दरू ™गरा. सारा सामान फैल गया.'' स™चन अभी भी अ¯ुपूFरत नैनH से आचरे कर सर को ढूंढ रहे थे.

''उस समय सर ने मुझे कहा था, 'तु£ह` दस ू रH के ~लए ता~लयां नह8ं बजानी हk. ऐसा खेलो †क लोग तु£हारे ~लए ता~लयां बजाएं.'' स™चन ने कहा.

''उस sदन के बाद मkने काफ3 मेहनत क3 और घंटH Oैिnटस करता रहा. अगर उस sदन ऐसा नह8ं होता तो शायद मk &टkड म` बैठकर लोगH क3 हौसल अफजाई ह8 करता रहता. यह थDपड़ का ह8 कमाल था.'' स™चन त`डुलकर के 87 वषN के कोच और ³ोणाचायN पुर&कार =वजेता रामाकांत आचरे कर नए साल 2019 का &वागत करके दPु नया को अल=वदा कह गए.

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6.

FरGतH क3 भूख?

आज सु~मत ने एक अनमोल वचन पढ़ा''भूख FरGतH को भी लगती है, Dयार कभी परोसकर तो दे §खए.'' FरGतH को भी भूख लगती है? इससे पहले उसने कभी इस पर सोचा नह8ं था. आज

भी उसने सोचने पर समय लगाना उ™चत नह8ं समझा था और नए साल के &वागत म` jय&त हो गया. समय ~मलते ह8 उसे †फर से उस ''भख ू '' ने jय&त कर sदया और डोर8 से लटकते हुए बiब को दे खते हुए वह अतीत क3 गहराइयH म` उतरता चला गया.

इस बार †šसमस पाट” के पासNल गेम म` सु~मत को पुर&कार के ¤प म` छोट8-सी

डायर8 ~मल8 थी. सभी पुर&कार Pनयत रा~श 10 डालर के अंतगNत ह8 थे, पर सु~मत

तो अपने पुर&कार से बहुत खुश था, डायर8 ~लखने क3 आदत उसे बचपन से जो थी. अब नए साल के ~लए उसे एक नई डायर8 क3 ज¤रत भी थी. नई डायर8 शु’ करने से पहले पुरानी डायर8 पर नजर डालना ज¤र8 था. बीते साल उसने माइšोवेव का इशारा समझा था. उसने साथ देने से इनकार कर sदया था, नया ले आया. तभी उसके सास-ससुर आ गए थे. सु~मत ने माइšोवेव म` चाय बनाई.

''ममी-पापा, नए माइšोवेव म` सबसे पहल8 चाय आपके ~लए बनी है.'' उनके चाय पीते समय स~ु मत बड़े आदर से बोला. ''तब तो मंह ु ं sदखाई भी दे नी पड़ेगी!'' पापा ने भी उतने ह8 Dयार से कहा. जेब म` हाथ डाला, तो दो डालर का ~सnका हाथ म` आ गया, वह8 स~ु मत को दे sदया. स~ु मत ने

ध–यवाद तो †कया, ले†कन डायर8 म` ''दो डालर'' ~लखते हुए मख ु „बचकाया था. उसके ~लए †कतने लोगH ने मख ु „बचकाया होगा, उसका कोई sहसाब डायर8 म` नह8ं था. उसने घर का Fरनोवेशन और प`ट-पॉ~लश करवाया था, नीरज को sदखाया, नीरज ने ''गुड'' कहा. सु~मत ने ''अनमने मन से गुड'' ~लखा था. उसने †कतने लोगH को ''अनमने मन से गुड'' कहा था, उसक3 कोई ™गनती डायर8 म` नह8ं थी.

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सु~मत ने दो&तH के पूरे समूह के साथ ~सडनी के हाबNर „“ज पर नए साल के &वागत

म` आPतशबाजी दे खी थी. अगले sदन सबका ''हैDपी –यू ईयर'' आ गया था, अं†कत का संदेश अं†कत नह8ं हुआ, स~ु मत का मन कसैला हो गया था, उसके कारण †कतने लोगH का मन कसैला हुआ होगा, यह उसक3 डायर8 म` अं†कत नह8ं था. बहुत सोचने के बाद सु~मत क3 प`~सल ने नई डायर8 के Oथम पेज पर ~लखा''भख ू FरGतH को भी लगती है, Dयार कभी परोसकर तो दे §खए.''

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7.

&माटN OPतभाएं

~सफ़N 6 लाख ’पये म` सोलर पावडN ´ाइवरलेस &माटN बस के तैयार होने क3 बात हम` ह8 नह8ं सबको हैरान करने के ~लए काफ3 है. यह &माटN बस तैयार क3 है हमारे दे श क3 &माटN OPतभाओं ने. †कसी भी दे श क3, †कसी भी उv क3 OPतभा हो, वह अपने बलबूते पर दे श-दPु नया को &माटN बना दे ती है. अnसर हमारे दे श क3 OPतभाएं भी समय-समय पर अपने बलबूते पर अपनी &माटN नेस का पFरचय दे ती रह8 हk, यहां तक †क &माटN बस भी बना दे ती

हk. हम बात कर रहे हk पंजाब क3 लवल8 Oफेशनल यPू नव~सNट8 (एलपीय)ू के &टूड`˜स क3.

इन छा¨H ने दे श क3 पहल8 &माटN बस तैयार क3 है. यह बस न ~सफN सोलर पावडN है बिiक ´ाइवरलेस भी है. इस गाड़ी को 106व` इं•डयन साइंस कां•ेस (आईएससी) म` Oद~शNत †कया गया. पूर8 तरह पलूशन-›3 इस बस क3 क3मत कर8ब 6 लाख ’पये है. ''यह बस कैसे चलती है?'' हमारा पहला OGन था. ''सौर ऊजाN क3 मदद से इलेिnxक मोटर इस बस को चलाने म` स|म है.'' OPतभाओं का उµर था. ''Oदष ू ण?'' हमार8 अगल8 िजzासा थी. ''सौर ऊजाN म`

Oदष ू ण का भला nया काम? „बलकुल

का &माटN जवाब था.

Oदष ू ण ›3.'' &माटN OPतभाओं

''गPत?'' हमार8 िजzासा क3 र¶तार भला कहां ’कने वाल8 ·ह8! ''30 †कलोमीटर OPत घंटे क3 &पीड से „बना ´ाइवर के चल सकती है.'' OPतभाओं ने च•काया. ''इस बस को Oोगाम करने म` †कतना समय लगा?'' हमार8 &वाभा=वक िजzासा थी. ''12 मह8ने.'' &माटN OPतभाओं ने हम` हैरान करने म` कोई कसर नह8ं छोड़ी थी. ''अ–य कोई =वशेष =ववरण?'' हमारे OGन आगे बढ़ रहे थे.

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''एक बार फुल चाजN होने के बाद इस बस म` 10 से 30 लोग 70 †कलोमीटर तक का सफर तय कर सकते हk.'' OPतभाएं मुखर थीं. ''Pनयं¨ण?'' हमारा आ§खर8 OGन था. ''बस जीपीएस और ¸लट ू ू थ का Oयोग ने=वगेशन के ~लए करती है. इसे 10 मीटर के दायरे म` रहकर भी कंxोल †कया जा सकता है.'' &माटN OPतभाओं क3 &माटN नेस पराका¹ठा पर थी. इसके बाद तो हमारा उस &माटN बस म` बैठकर सफर (या¨ा) करना ह8 बाक3 था.

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8.

गूंज

आज गूगल पर कुछ सचN करते हुए रामधार8 ~संह sदनकर का मजेदार बाल गीत सामने आ गयाचूहे क3 sदiल8-या¨ा इस बाल गीत ने मुझे 1967 म` पहुंचा sदया, जब रामधार8 ~संह sदनकर जी राज&थान =वGव=वŽयालय म` आए थे. उनके आने क3 खबर सन ु कर हम बहुत

उˆसाsहत थे. हमने सं|ेप म` उनक3 जीवनी भी रट ल8 थी. उनसे nया-nया OGन पूछने हk, कौन-कौन सी क=वताएं सुन ल8 हk, यह भी सोच ~लया था. एक बात पnक3 थी, †क उनक3 क=वता ''sहमालय पे OPत'' अवGय सुननी है.

महाक=व sदनकर जी आए. हमारे र8डर सरनाम~संह 'अ’ण' जी ने सं|ेप म` उनका पFरचय sदया''रामधार8 ~संह 'sदनकर' (23 ~सतंबर 1908-24 अOैल1974) का ज–म ~समFरया, मुंगेर, „बहार म` हुआ था. उ–हHने इPतहास, दशNनशा&¨ और राजनीPत =वzान क3 पढ़ाई पटना =वGव=वŽयालय से क3. उ–हHने सं&कृत, बां±ला, अं•ेजी और उदN ू का गहन अ]ययन †कया था. वह एक Oमुख लेखक, क=व व Pनब–धकार

थे. उनक3 अ™धकतर रचनाएँ वीर रस से ओतOोत है. उ–ह` पŽम =वभूषण क3 उपा™ध

से भी अलंकृत †कया गया. उनक3 पु&तक सं&कृPत के चार अ]याय के ~लये साsहˆय अकादमी पुर&कार तथा उवNशी के ~लये भारतीय zानपीठ पुर&कार Oदान †कया

गया. उनक3 काjय रचनाय` : Oण-भंग , रे णुका, हुंकार, रसवंती, Žव–Žव गीत, कु¤|े¨, धूपछाँह, सामधेनी, बापू, इPतहास के आँसू, धूप और धुआँ, ~मचN का मज़ा, रिGमरथी, sदiल8, नीम के पµे, सरू ज का ¸याह, नील कुसम ु , नये

सभ ु ा=षत, चšवाल, क=व¯ी, सीपी और शंख, उवNशी, परशुराम क3 Oती|ा, कोयला और क=वˆव, म=ृ µPतलक, आˆमा क3 आँख`, हारे को हFरनाम, भगवान के डा†कए.'' उसके बाद महाक=व ने परशुराम क3 Oती|ा के अPतFरnत बहुत-सी क=वताएं सुना», िजसम` जोश क3 Oमुखता था. अंत म` हमार8 तरफ से ''sहमालय के

OPत'' क=वता क3 फरमाइश हुई. महाक=व ने इशारे से सबको शांत करवाया, †फर इशारे से अपने सामने से माइक हटवाया. †फर जो उ–हHने क=वता पाठ †कया, मानो sहमालय &वयं हुंकार भर रहा हैमेरे नगपPत! मेरे =वशाल इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


साकार, sदjय, गौरव =वराट, पौ’ष के पूंजीभूत •वाल ! मेर8 जननी के sहम-†कर8ट ! मेरे भारत के sदjय भाल ! मेरे नगपPत ! मेरे =वशाल ! =वGव=वŽयालय के इतने बड़े सभागार म` „बना माइक के शेर क3 तरह ''मेरे नगपPत! मेरे =वशाल'' के गूंज आज भी कानH म` गूंज रह8 है.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


9.

‘पFरमल’

पFरमल से आपको ऋ=षकेश मुखज½ क3 सदाबहार †फiम 'चुपके-चुपके' के Oोफेसर पFरमल „¨पाठ© यानी धम¾³ क3 याद आ गई होगी. सच है न तो उस †फiम को भुलाया जा सकता है, न ऋ=षकेश मुखज½ को न उनके सदाबहार †करदार

धम¾³, ओमOकाश, असरानी या †फर अ~मताभ ब¦चन को. ले†कन हम बात कर रहे हk महाक=व सूयNकांत „¨पाठ© Pनराला क3 उस 'पFरमल' क=वता सं•ह क3 जो आज हम` पु&तकालय म` sदखी थी.

''आपके पास महाक=व सय ू Nकांत „¨पाठ© Pनराला क3 ‘पFरमल’ ~मल जाएगी

nय?'' साsहˆयकार राम=वलास शमाN ने सर&वती प& ु तक भंडार के प& ु तक-=वšेता से पछ ू ा.

''उसके न ~मलने क3 कोई संभावना नह8ं है.'' पु&तक-=वšेता ने कहा

और 'पFरमल' Pनकाल द8. राम=वलास शमाN उसे उलट-पलटकर दे खने लगे. सब पेज ठ©क थे. ''आप यह †कताब nयH खर8द रहे हk?'' यह OGन पु&तक-=वšेता का नह8ं था &वयं जनक=व Pनराला का था.

''सादर Oणाम सर, आप यहां कैसे?'' अचानक Pनराला जी को वहां दे खकर उस समय लखनऊ =वGव=वŽयालय के छा¨ राम=वलास शमाN का च•कना &वाभा=वक था. ''OGन पर OPतOGन मत क3िजए? जवाब द8िजए जनाब, आप यह †कताब nयH खर8द रहे हk?'' महाक=व क3 िजzासा थी. ''इस~लये †क मk इसे पढ़ चक ु ा हूं.'' इस जवाब ने महाक=व को हैरान तो करना ह8 था! ''पढ़ चुके हो, †फर खर8दने क3 nया ज¤रत है?'' महाक=व ने †फर OGन उछाला. ''मk तो बहुत कम †कताब` खर8दता हूं. इसक3 क=वताएं मझ ु े अ¦छ© लगती हk. उ–ह` जब इ¦छा हो तब पढ़ सकंू , इस~लये खर8द रहा हूं.'' राम=वलास जी ने जवाब sदया. Pनराला जी ने उनके हाथ से †कताब लेकर पीछे के प–ने पलटते हुए कहा- ''शायद ये बाद क3 (मुnतछ–द) क3 रचनाएं आपको न पस–द हH.'' ''ये ह8 तो इस प& ु तक क3 जान हk.'' राम=वलास जी ने उµर sदया.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


पाठकH से रचनाओं पर OPत†šया लेने का ढं ग भी Pनराला ह8 था Pनराला जी का. 'पFरमल' आज भी महाक=व सय ू Nकांत „¨पाठ© Pनराला जी क3 OPतPन™ध क=वताओं

का सं•ह माना जाता है. यह8 प& ु तक =वदे श क3 लाइ“ेर8 से एक पाठक पढ़ने के ~लए ले जा रहा था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


10.

कोई बहाना नह8ं चलेगा

बहुत Oती|ा के बाद अभी-अभी पाFरजात का छोटा-सा मैसेज आया था- ''मां मk दो sदनH म` पहुंच रहा हूं, आप और पापा पै†कं ग करके र§खएगा.'' छोटे -से संदेश से मां का मन कहां भरता! लग रहा था, मैसेज आधे म` ह8 पो&ट हो गया था. वह उसके पुराने संदेशH म` ह8 पाFरजात को खोज रह8 थी. =वचारH क3 लहर थी, †क न जाने कहां तक लहरा जाती थी.

''†कतने चाव से मkने उसका नाम पाFरजात रखा था. मkने सुना था- ''पFरजात के व| ृ क3 खा~सयत है †क जो भी इसे एक बार छू लेता है उसक3 थकान चंद ~मनटH म` गायब हो जाती है. उसका शर8र पुन: &फूPतN OाDत कर लेता है.'' मk भी उसको छू

लूंगी, तो मेर8 थकान काफूर हो जाएगी. पाFरजात क3 †कशोराव&था तक ऐसा हुआ भी था. ले†कन अब! अब थकान ~मटाने के ~लए †कसको छुऊं? वह तो पहले पढ़ाई के ~लए, †फर नौकर8 के ~लए अमेFरका चला गया था न! अब या तो उसक3 त&वीर

है, या †फर मैसेज! nया इ–ह8ं को छूकर संतोष करना पड़ेगा? मां ने नयनH के कोरH तक आए दो अ¯ुकणH को वह8ं रोक ~लया था. मैसेज आने क3 संभावना अभी बनी हुई जो थी.

''पाFरजात के दै वीय व| ृ म` साल म` बस एक ह8 मह8ने म` फूल §खलते हk. मेरा

पाFरजात भी sदसंबर क3 छु˜sटयH का एक मह8ना हमारे पास आता ह8 था. †कतनी

रौनक हो जाती थी उन sदनH घर म`! उ–ह8ं sदनH सेवइयH क3 खीर भी बनती थी, पेठे का हलवा भी बनता था. पकवानH क3 खुशबू से पड़ो~सयH का मन भी महक जाता था. कोई खाने वाला हो, तभी तो चीज बने न! वरना उv क3 इस दहल8ज पर हम nया बनाएं और †कतना खाएं?'' मां के कान मोबाइल क3 खनक पर थे. ''पाFरजात के पेड़ से फूल झड़ते हk तो वे पेड़ के कर8ब नह8ं, बहुत दरू जाकर ™गरते हk, मेरा पाFरजात मझ ु से Pछटक तो नह8ं जाएगा!'' मां के कान मोबाइल क3 खनक सन ु ने को बेताब थे.

इस बार मोबाइल क3 सुर8ल8 खनक ने मां का मन खनका sदया''मां यह तु£हार8 बहू का संदेश है. मां जी, इस बार दहल8ज लांघने का बहाना मत द8िजएगा, इस घर क3 दहल8ज भी आपक3 ह8 है. आप फेसबुक पर एक बार लाइक करती हk, तो लाइक हो जाता है , दब ु ारा लाइक करती हk, तो अनलाइक हो जाता

है. बस आप एक बार वहां क3 दहल8ज लांघकर बाहर आइए, यहां क3 दहल8ज लांघकर इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


अंदर आइए और अपनी पोती रा™धका को भारतीय सुसं&कार द8िजए. इस~लए न आने का कोई बहाना नह8ं चलेगा.''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


11.

मेर8 मां

अभी-अभी प¨कार =वजयी ™च¨कार मोsहत का सा|ाˆकार लेकर गए थे. मोsहत क3 माताजी फूल8 नह8ं समा रह8 थीं. रह-रहकर उ–ह` रा¹x8य ™च¨कला OPतयो™गता का पFरणाम घो=षत होने का मोहक समां याद आ रहा था.

''आज क3 ™च¨कला OPतयो™गता का Oथम पुर&कार जाता है- '' उˆसुकता जगाए रखने के ~लए उŽघोषक बोलते-बोलते तPनक ’क गए थे. मोsहत के अPतFरnत सभी

OPतभा™गयH क3 गदNन` उचक रह8 थीं. सबने ™च¨ बनाने म` अपना सारा हुनर जो झHक sदया था! ''और आज क3 ™च¨ OPतयो™गता का Oथम पुर&कार जाता है- मोsहत कुमार

को.'' अबके सभी OPतभा™गयH क3 गदNन` नीची हो गई थीं और वे कन§खयH से दे ख रहे थे मोsहत को, मोsहत क3 नजर` अब भी =वनvता से झुक3 हुई थीं. ''मोsहत के हुनर ने सभी PनणाNयकH को मोsहत कर sदया है,'' उŽघोषणा अभी जार8 थी. ''आपको जानकर अˆयंत आGचयN होगा, †क Oथम परु &कार =वजेता मोsहत कुमार

~सफN दाय` हाथ के साथ ह8 पैदा हुए थे. उसी एक हाथ ने यह कमाल कर sदखाया है. कृपया मोsहत कुमार और उनक3 माताजी को मंच पर लाया जाए.'' दो सुसि•जत बालाएं मोsहत कुमार और उनक3 माताजी को सˆकारपूवNक मंच पर ले जाने के ~लए आई थीं. उŽघोषणा अभी भी चल रह8 थी- ''PनणाNयकH ने मोsहत को OPतयो™गता म` OPतभा™गता करने के ~लए बहुत मना †कया था, ता†क पुर&कार न ~मलने पर वह हताश न हो, पर मोsहत का जवाब था''हताशा क3 ™चनगार8 nया जलाएगी हमको, अंगारH ने ह8 तो हमको हौसले के झल ू े म` झल ु ाया है.'' सचमुच आज हताशा क3 पराजय हुई है, उसके हुनर क3 जीत हुई है. इसी हुनर को यह xॉफ3 Oदान क3 जा रह8 है .'' ''मेरे हुनर क3 हकदार मेर8 मां है , िज–हHने खद ु हौसला रखते हुए, मझ ु े इस मक ु ाम पर पहुंचाया है . इस~लए यह xॉफ3 मेर8 मां को द8 जाए.'' ता~लयH क3 गड़गड़ाहट अभी भी उनके कानH म` गज ूं रह8 थी.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


12.

ल\य पर ]यान

आज सुबह-सुबह &वामी =ववेकानंद का एक स=ु वचार पढ़ने को ~मला"उ=µ¹ठत जा•त OाDय वराि–नबोधत." अथाNत ् उठो, जागो, और ]येय क3 OािDत तक ’को मत. इस सु=वचार से &वामी =ववेकानंद से संब™ं धत एक †क&सा याद आ गया. ''ब¦चH, तुम nया कर रहे हो?'' &वामी =ववेकानंद ने अमेFरका म` Àमण करते समय पुल पर खड़े कुछ लड़कH को कुछ करते दे खकर कहा.

''हम नद8 म` तैर रहे अंडे के PछलकH पर ब–दक ू से Pनशाना लगाने क3 को~शश कर रहे हk, पर †कसी भी लड़के का एक भी Pनशाना सह8 नह8ं लग रहा.'' ''मk को~शश कर सकता हूं?'' &वामी =ववेकानंद ने पूछा. ''अवGय &वामी जी.'' लड़कH ने कहा. उ–हHने एक लड़के से ब–दक ू ल8 और Pनशाना लगाने लगे. उ–हHने पहला Pनशाना

लगाया और वो „बलकुल सह8 लगा, †फर एक के बाद एक उ–हHने कुल 12 Pनशाने लगाए. सभी „बलकुल सट8क लगे.

''&वामी जी, भला आप ये कैसे कर लेते हk? आपने सारे Pनशाने „बलकुल सट8क कैसे लगा ~लए?'' हैरान हुए लड़कH ने उनसे पूछा –

''असंभव कुछ भी नह8ं है. तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा sदमाग उसी एक काम

म` लगाओ. अगर तुम Pनशाना लगा रहे हो तो त£हारा पूरा ]यान ~सफN अपने ल\य पर होना चाsहए. तब तुम कभी चूकोगे नह8ं. यsद तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो ~सफN पाठ के बारे म` सोचो.'' &वामी =ववेकन–द जी बोले.

ल\य पर ]यान दे ने का पाठ उन लड़कH के ~लए एक वरदान था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


13.

आज के _ुव

बचपन म` बालक _ुव क3 पौरा§णक गाथा सुनी थी, जो बहुत Oेरक लगी थी. तप&या करते हुए बालक _ुव को अनेक Oकार क3 सम&याएं आ» पर–तु वह अपने संकiप पर अ•डग रहे , तPनक भी =वच~लत नह8ं हुए. आज के _ुव क3 गाथा भी कुछ-कुछ इसी Oकार क3 है. आज के _ुव हk इटवा के एसडीएम _ुव कुमार. इटवा के एसडीएम का पदभार संभालते ह8 _ुव कुमार इस को~शश म` लगे रहे , †क

दे ह jयापार के ~लए मंब ु ई तक बदनाम ~सŽधाथNनगर जनपद के „ब&कोहर गांव क3

ग§णकाएं (सेnस वकNसN) इस काम को छोड़ने का संकiप ल` और समाज क3 मÂ ु यधारा से जड़ ु `. बहुत-से लोग उनको इस संकiप से •डगाने के ~लए कहते रहे -

''„ब&कोहर गांव अं•ेजH के जमाने से ह8 दे ह jयापार के ~लए च™चNत है. एक तरह से यहां क3 Oथा है †क लड़क3 पैदा हुई तो वह दे ह jयापार म` ह8 उतरे गी. शाद8 होने के बाद भी ये मsहलाएं इस jयापार म` ~लDत रहती हk. ऐसे म` भला आप इनसे यह काम कैसे छुड़वा सक̀गे?'' ''मेरे Dयारे सा™थयो, ठान लो तो कुछ भी असंभव नह8ं है. को~शश करने वालH क3 हार नह8ं होती. †फर अगर एक भी सेnस वकNर यह काम छोड़कर समाज क3 मुÂयधारा से जुड़ जाए, तो मk अपने Oयास को सफल समझूंगा. मk ल\य OाDत होने तक लगातार काउं स~लंग करता रहूंगा और उनको समझाता रहूंगा.''

उनक3 लगातार काउं स~लंग रं ग लाई. अभी हाल ह8 म` 20 ग§णकाएं पFरवार संग सावNजPनक तौर पर जुट8ं और वह8ं पर शपथ ल8 †क वे अब इस jयापार से तौबा करती हk.

''हम गर8बी म` जी ल`गे, ले†कन दे ह jयापार म` नह8ं कूद` गे.'' इन ग§णकाओं ने ऐलान †कया. इस गांव म` कर8ब 20 ग§णकाएं हk.

उनके शपथ लेते ह8 एसडीएम ने इस टोले को गोद लेने और राशन और ~श|ा sदलाने के साथ-साथ पFरवार म` कर8ब 12 लड़†कयH क3 शाद8 अपनी तनÂवाह से कराने का ऐलान कर sदया. एसडीएम ने इस कायNšम म` इलाके के लोगH को भी बल ु ा ~लया

था. सबने इन ग§णकाओं क3 मदद करने और मुÂयधारा से जोड़ने का संकiप ~लया है.

पौरा§णक _ुव क3 तरह आज के _ुव भी सबक3 नजर के ~सतारे बन गए हk.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''मेरा सौभा±य है †क अरसे से चले आ रहे इस कलंक को खˆम कराने म` मk कामयाब हुआ.'' आज के _ुव का कहना है.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


14.

पेट`ट

पेट`ट करवाए गए &टूiस का jयवसाय Pनरं तर OगPत पर था. अपना jयवसाय जहां परम संतुि¹ट और अ™धक आ™थNक लाभ sदलवाता है, वह8ं अकूत समय भी लेता

है, †फर भी कभी-कभी &मPृ तयH का झरोखा खल ु ने के ~लए समय ह8 Pनकाल ह8 लेता है.

नफ़ासत उसक3 हर अदा म` थी, सल8का उसके हर †šयाकलाप म` था, =वनvता उसके हर श¸द म` थी, सफाई उसक3 आदत म` थी और सहे ज उसका शौक. उसे काम करना भी आता था, करवाना भी आता था, मगर Dयार से. जोर से बोलना उसने सीखा नह8ं था, šोध म` बस उसक3 भ•ह` वš हुई नह8ं, †क सामने वाला चारH खाने ™चत, श¸द बोलने क3 दरकार ह8 नह8ं. घर क3 हर चीज उसक3 &नेsहल Ãि¹ट से चमकती-दमकती रहती थी. बाजार से कोई चीज लाने म` भले ह8 चार चnकर लग जाएं, पर चीज आती थी बsढ़या, स&ती और sटकाऊ. ~सफN फैशन के ~लए चीज लाना उसने सीखा नह8ं था. चीज वो, िजसक3 अंदर-बाहर से साफ-सफाई करने म` भी आसानी हो और जगह के अनुकूल हो. आज से 12 साल पहले उसने नायलोन नेट का एक सोफा खर8दा था. एकदम कसा हुआ, बहुत खूबसूरत, बsढ़या, स&ता, sटकाऊ, हiका, अंदर-बाहर से साफ-सफाई करने म` आसान और जगह के अनुकूल. 12 साल म` उसके रं ग-¤प का कुछ नह8ं „बगड़ा, अलबµा नायलोन नेट थोड़ी ढ8ल8 ज¤र पड़ गई. ऐसी चीज अब ~मलनी

मुिGकल थी और सारा sदन सबका उठना-बैठना वहां, सो &वा&Äय का भी ]यान रखना था.

=वदे श म` चीज को Fरपेयर कराने से उसे फ̀ककर नई लेना स&ता रहता है. इस~लए लोग खुद Fरपेयर करते रहते हk. नाइलोन नेट को कसने का कोई तर8का नह8ं था.

इस~लए उसने सारा घर घूम ~लया, †क ठ©क करने का कुछ जुगाड़ ~मल जाए. ~शŽदत का साथ था, सो उसे जुगाड़ तो ~मलना ह8 था.

पुरानी टे „बल के पाए बदले थे, उनको साफ करके उसने अहाते म` रख रखा था, उस पर उसक3 नजर गई.

''यूरेका, यूरेका.'' उसने कहा.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


†फर उसको एक पुरानी अलमार8 का सफेद सनमाइका वाला sह&सा भी ~मल गया. ''बस काम बन गया''. उसने सोचा.

अगले sदन सुबह-सुबह चाय पीकर वह बेटे के साथ ''बPनं±स'' गया. वहां से कुछ पेच आsद ले आया. †फर पूरा बढ़ई वाला सामान लेकर बैठ गया. बड़ी मेहनत से नाप-

जोखकर शाम तक उसने चार सीट वाले सोफा के ~लए सद ुं र-से चार &टूल बना ~लए. अब सोफा पर बैठना आसान हो गया था. नायलोन नेट क3 ढ8ल अब अखरती नह8ं थी, nयH†क उसके नीचे सहारा दे ने के ~लए

लकड़ी के खूबसूरत &टूल जो आ गए थे.

ये खूबसूरत &टूल बेकार पड़े लnकड़ से खुद घर पर बनाए गए थे.

वह8 &टूल उसने पेट`ट करवा ~लए थे. आगे चलकर वह8 उनका jयवसाय भी बन गया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


15.

इPतहास का दोहरान

अभी-अभी =व–नी के मोबाइल पर उसके ऑ†फस से मैसेज आया था- ''मुबारक हो, 27वीं कंपनी भी अब आपक3 दे खरे ख म` काम करे गी.''

एक और कंपनी क3 िज£मेदार8 संभालना यानी काम म` बढ़ोतर8, ओहदे म` ऊंचाई, वेतन म` वŽ ृ ™ध, =व–नी सोचकर खुश हो रह8 थी. खुशी क3 बयार ने &मPृ त का वातायन भी खोल sदया था.

''तु£हारे नाना जी 27 गावH क3 पो&ट ऑ†फसH के पो&टमा&टर थे. सुबह-

सुबह 27 पो&टमैन अपने-अपने गांव से डाक के थैले लाते थे, दोपहर तक डाक क3 छं टाई होती थी, लंच के बाद वे अपने-अपने गांव क3 डाक लेकर जाते थे.'' ममा बताया करती थीं. ''नाना जी ने कौन-सी &x8म से पढ़ाई क3 थी?'' =व–नी ने पछ ू ा था. ''कॉमसN.'' ''वाउ!'' =व–नी को हैरानी हुई थी. इस पूर8 कहानी म` =व–नी को बस दो चीज` =वशेष ¤प से याद रह गई थीं- 27 और कॉमसN.

†फर =व–नी क3 ~श|ा म` भी जŽदोजहद का वह मक ु ाम आया था, जो Oायः सभी ब¦चH के सामने आता है.

दसवीं nलास क3 बोडN पर8|ा म` =व–नी ग§णत म` 99 और =वzान म` 95 नंबर लाई थी. अपने &कूल से वह दोनH म` Oथम थी. &कूल म` OधानाचायाN ने कहा- ''=व–नी, साइंस लोगी न!''

''मैडम, मेर8 ’™च कॉमसN म` है.'' घर म` भी यह8- ''हमार8 बेट8 साइंस लेगी, हमारे घर म` भी कोई डॉnटर या इंजीPनयर बनना चाsहए.'' साइंस म` पी.जी. †कए पापा ने कहा था. रोज रात को •डनर पर इस बात पर बहस होती थी. ''ममा, मेर8 ’™च कॉमसN म` है. आप तो खुद ट8चर हk, आप मेरा साथ दे ना.''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''„बलकुल बेटा, ™चंता मत कर, पर एक बात बता कॉमसN ह8 लेना था, तो साइंस म` इतनी जी-तोड़ मेहनत nयH क3?''

''ममा, कल को कोई यह न कह सके †क इसको साइंस म` एडमीशन नह8ं सका था, इस~लए कॉमसN ल8 थी.'' ममा ने अपने &कूल क3 काउं सलर ~मसेज बैनज½ से काउं ~स~लंग करवाई थी. ~मसेज

बैनज½ ने एक नह8ं तीन बार टै &ट ~लया, तीनH बार पFरणाम कॉमसN ह8 आया- ''=व–नी को कॉमसN ह8 sदलवाना, खब ू चमकेगी.'' ~मसेज बैनज½ ने ममा से कहा था. उस sदन से ममा ने सÂती से रोज रात को •डनर पर होने वाल8 बहस बंद करवा द8 थी. उसके बाद कॉमसN ऑनसN, एम.एफ.सी., कैपस से शानदार नौकर8, =ववाह, =ववाह के बाद =वदे श म` Pनवास, †फर वहां नौकर8 सब जiद8-जiद8 हो गया था. कॉमसN क3 ’™च, ग§णत क3 =वशेष यो±यता, हर |े¨ का सामा–य zान, वाकचातुयN, Oोजेnट का शानदार O&तुPतकरण, सबने ~मलकर उसे कहां-से-कहां पहुंचा sदया था और आज 27वीं कंपनी. 27 और कॉमसN! उसे नाना जी क3 बहुत याद आ रह8 थी.

इPतहास का दोहरान जो हुआ था!

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


16.

Undo का बटन

बहुत ~म–नत` करने पर हम कुछ sदन रहने के ~लए चंपा के पास आए थे. चंपा क3 भानजी ~म–नी भी अपनी इंटनN~शप करने के ~लए उनके पास रह रह8 थी. चंपा, उसके पPतदे व और ~म–नी तो सुबह होते ह8 नहा-धोकर चलते-†फरते नाGता लेकर काम पर Pनकल जाते थे, अपने घर क3 तरह हम दोनH ह8 पीछे अकेले रह जाते थे. रात को

सब •डनर पर ह8 हम सब एक साथ ~मल पाते थे. वह समय मौज-मजे का होता था. एक sदन सबक3 फरमाइश पर मkने सब ु ह नाGते पर हलवा बनाया था. सब खब ू मजे से खाकर गए थे. थोड़ा हलवा बचा हुआ था. •डनर खˆम होते ह8 मkने कहा- ''&वीट •डश पर थोड़-थोड़ा हलवा हो जाए?'' सबका मूड दे खते हुए मk हलवा गरम करने के ~लए उठने लगी, तो झट से ~म–नी उठ खड़ी हुई- ''आंट8 जी, मk गरम कर लाती हूं.'' ~म–नी गई तो सह8, पर 2-3 बार िnलक करने पर भी उससे माइšोवेव ह8 &टाटN नह8ं हो रहा था. मk सामने बैठ© दे ख रह8 थी, समझ गई †क nया हो रहा है- ''पहले Undo के बटन को िnलक करो.'' उसने ऐसा ह8 †कया और माइšोवेव तुरंत &टाटN हो गया.

''sटप दे ने के ~लए थknयू आंट8 जी.'' बड़े Oेम से कहकर ~मनी हलवा गरम कर लाई. माइšोवेव ने तो Undo के बटन से सह8 काम †कया, ले†कन मेरे मन म` =वचारH क3 तरं ग` उथल-पुथल करने लग ग». nया एक Undo का बटन इंसान के अंदर †फट नह8ं

हो सकता! कम-से-कम मुझे तो इसक3 सÂत ज¤रत थी. नह8ं तो मुझे 30 साल पहले क3 ~म–नी क3 ममी क3 बात आज भी इतना nयH परे शान करती?

दे खा जाए तो ~म–नी क3 ममी ने वह8 तो कहा था जो हर यव ु ा होती बेट8 क3 मां को सन ु ना पड़ता है- ''भाभी जी, „बsटया को खाना बनाना ~सखा द8िजए, कल को उसे ससरु ाल जाना होगा, काम आएगा.''

मेरे पास दो =वकiप थे. या तो उस समय जवाब दे दे ती''मk तो sदन म` एक बजे घर आ जाती हूं, „बsटया सब ु ह आठ बजे घर से Pनकलकर रात को आठ बजे ऑ†फस से आती है, वह थक3-हार8 आए और खाना बनाए, तब हम खाएं?'' या †फर उनक3 बात को आया-गया कर दे ती.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


पहले =वकiप का मkने उपयोग नह8ं †कया, दस ू रे =वकiप के ~लए Undo के बटन क3 ज¤रत थी, जो मेरे पास नह8ं था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


17.

गलतफ़हमी

आज एक समाचार पढ़ा''अ~मत शाह को &वाइन Æलू, कां•ेस नेता बीके हFरOसाद ने कसा =ववाsदत तंज'' दPु नया को यह nया हो गया है? †कसी क3 बीमार8 पर भी तंज! शाह क3 बीमार8 पर तंज कसते हुए कां•ेस के रा¹x8य महास™चव बीके हFरOसाद ने इसे 'सूअर का जुकाम' बताया और कहा †क कनाNटक सरकार को अि&थर करने क3 को~शश कर` गे तो और भी गंभीर बीमाFरयां हHगी.

समाचार पढ़कर अनुषा को बरबस अपनी मां क3 याद हो आई. उसक3 मां को अधरं ग हो गया था. अ¦छ©-खासी चलती-†फरती, घर म` सारा काम करती मsहला अचानक

„ब&तर पर बैठने को मजबूर हो जाए, इससे ददNनाक बात और nया हो सकती है? मां

सारा sदन कहतीं- ''पता नह8ं कौन-से ज–म म` कौन-से पाप †कए थे, †क यह महामार8 मुझे लग गई, कहां तो भाग-भागकर सबक3 ज¤रत` पूर8 करती रह8, अब पानी का ™गलास पास पड़ा है, पर पानी =पलाने के ~लए भी †कसी क3 सेवा लेनी पड़ती है!''

लगातार उनक3 यह बात सुनकर हम भी मानने लग गए थे, †क ''हो-न-नो यह †कसी पाप कमN का ह8 OPतफल है.''

कुछ sदन पहले एक और समाचार पढ़ने को ~मला था- ''सह8 तर8के से नह8ं नहाने से जान भी जा सकती है. इससे लकवा मारने, sदमाग क3 नस फटने, हाटN अटै क जैसे मामले दे खने को ~मल रहे हk.'' †फर उस पर †फिज~शयन क3 सलाह भी पढ़8. अनष ु ा को मां क3 बीमार8 क3 बात समझ म` आ गई. उसने तरु ं त मां को फोन लगाया

और उ–ह` बताया- ''आजकल लोग बाथ¤म म` जाकर शावर खोल कर उसके नीचे सीधे खड़े हो जाते हk, यह तर8का गलत है. नहाते समय सबसे पहले पैरH को ~भगोना चाsहए. इसके बाद एक-एक अंग को ~भगोते हुए ~सर को सबसे अंत म` ~भगोएं. ठं ड म` यह सावधानी =वशेष तौर पर बरतनी चाsहए. नहाने का सह8 तर8का पता नह8ं होने से ठं ड म` &नान करते समय ह8 “ेन हे मरे ज व लकवा क3 आशंका •यादा रहती है . इस~लए भूल जाओ, †क यह बीमार8 †कसी पाप कमN का OPतफल है.'' इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


एक समाचार म` एक इंसान दस ू रे इंसान पर तंज कर रहा है, दस ू रे म` गलतफ़हमी दरू कर जीने का सह8 तर8का ~सखा रहा है.

अ~मत शाह वाल8 खबर को दब ु ारा पढ़ा, ~लखा था''ठं ड म` Oभावी हो जाते हk &वाइन Æलू के वायरस.'' कोई कां•ेस नेता बीके हFरOसाद को यह बताकर उनक3 गलतफ़हमी भी दरू करे .

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


18.

कiपना के पंख

नासा Žवारा खींचे गए "=पलसN ऑफ़ †šयेशन" अथाNत ् "सिृ ¹ट के &त£भ" नामक अPतO~सŽध ™च¨ को दे खकर दशाNई गई ''चील PनहाFरका'' के =वGलेषण से मkने Pन¹कषN Pनकाला था- ''PनहाFरकाओं म` अnसर तारे और •ह8य मÇडल ज–म लेते हk.'' मेर8 इस Ãि¹ट को †कसी ने दरू Ãि¹ट कहा, †कसी ने sदjय Ãि¹ट, नासा ने इसे अŽभुत उपलि¸ध का नाम sदया था और मुझे अपनी इस Ãि¹ट को और =व&तत ृ करने के

~लए हर संभव सहायता दे ने क3 पेशकश भी क3 थी. मेर8 िज£मेदार8 और अ™धक बढ़ गई थी. खुशी क3 इस वेला ने मुझे अतीत के ग~लयारH म` पहुंचा sदया था. ''मेरा नाम आपने PनहाFरका nयH रख sदया पापा?'' थोड़ा बड़े होने पर मkने यH ह8 उˆसक ु तावश पापा से पछ ू ा था. ''तु£हारे दादा जी क3 अनुभवी आंखH के कारण. जब तु£हारा ज–म हुआ था, तो तु£हारे दादा जी ने तु£ह` दे खते ह8 तु£ह` PनहाFरका के संबोधन से संबो™धत †कया था. जब मkने इसका कारण पूछा, तो बोले थे- 'चारH तरफ Pनहार रह8 थी, मानो अभी से अपनी राह PनधाNFरत करना चाह रह8 हो.'' ''सच म` पापा?'' ''हां, सच म`. जब तु£ह` अ&पताल से घर लाए थे, तो तुमने कमरे क3 छत को ऐसे Pनहारा था, मानो आकाशगंगा से परे क3 †कसी गैलेnसी को Pनहार रह8 हो.''

†फर मुझे याद आया वह समय जब मk िजंदगी के उस चौराहे पर खड़ी थी, जहां सबको अपनी-अपनी राह PनधाNFरत करनी होती है . साsहˆय म` मेर8 ’™च थी, 2-

3 भाषाओं पर मेरा आ™धपˆय था, पर मk कुछ नया करना चाहती थी, जो यूनीक तो हो ह8, चुनौतीपूणN भी हो, सो मkने =वzान क3 राह चुनी थी. &नातक क|ा तक तक

पहुंचते-पहुंचते ह8 मौसी ने ऑ&xे ~लया म` पढ़ने का –योता भेज sदया. ऑ&xे ~लया म` ढे रH =वकiप थे, मkने रोबोsटnस का =वकiप चुना, इसी म` &नातक, परा &नातक, शोध करके नासा पहुंच गई थी. अब मुझे रोबोsटnस और गैलेnसी क3 भाषा का भी zान हो गया था. वहां मुझसे मेरे नाम 'PनहाFरका' का मतलब पूछा गया, मkने

बताया 'ने¸युला'. गैलेnसी और ने¸युला के |े¨ म` मk Pनत नए ~सŽधांतH का OPतपादन करती रह8.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


नासा क3 सहायता के हाथ मेर8 कiपना के पंख बन गए थे. मुझे अपने अंदर तारे और •ह8य मÇडल ज–म लेते sदखाई दे ने लगे थे.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


19.

jयथा

यह कैसा भाषण है? कानH म` कभी राहुल गांधी क3 ’क-’ककर बोलती हुईअ&फुट-सी आवाज आ रह8 थी, तो कभी अ§खलेश यादव क3 Pन&तेज ]वPन और †फर अचानक नर` ³ मोद8 जी क3 गरजती हुई आवाज गूंज रह8 थी, ले†कन यह jय™थत मन वाल8 मsहला आवाज †कसक3 थी, समझ म` नह8ं आ रहा था, इस~लए मk कान लगाकर सुनने लगी. ''मेरे Dयारे ब¦चो, मkने त£ ु ह` आजाद करवाया , आजाद8 के अनठ ू े हषN का अहसास करवाया, अब तम ु ह8 मझ ु े सन ु ाने लग गए! ''वnत का तकाजा है अब पˆथर ह8 बोल`गे, sदलH से कह दो गÆ ु तगू बंद कर` .'' मुझे समझ म` आ गया था, यह भारतमाता कह रह8 थी. ''असल म` तम ु आजाद8 के मायने ह8 नह8ं समझ पाए हो. आजाद8 का मतलब &वतं¨ता होता है, &व¦छं दता नह8ं. मkने तु£ह` बोलने क3 आजाद8 द8 और तुम

=ववाsदत बोल बोलकर एक दस ू रे पर क3चड़ उछालने लगे.'' jय™थत मन क3 यह jय™थत पुकार थी.

''आजाद8 का अथN jयथN क3 खींचतान और सर फुटौjवल नह8ं होती. आजाद8 sदलH क3

भाषा समझती है, पˆथरH क3 नह8ं. तुम तो पˆथरबाजी पर उता¤ हो गए. यह भी भूल गए †क क3चड़ पर पˆथर उछालने वाले के कपड़े भी क3चड़ म` सन जाते हk.'' एक मां क3 jयथा के उŽगार चरम पर थे. ''एक बार sदल से सोचकर दे खो, nया तुमने इसी आजाद8 क3 पFरकiपना क3

थी? एक ओर 22 =व~भ–न =वचारधाराओं के दल ~मलकर अपनी महारै ल8 कर` और Oधानमं¨ी मोद8 के §खलाफ द¹ु Oचार कर` , दस ू र8 ओर =वµ मं¨ी अ’ण जेटल8 'मोद8 बनाम =वप| का शोर' ¸लॉग ~लखकर =वप| को जमकर सुनाएं. nया इस तरह

तुम ''सबका साथ, सबका =वकास'' क3 संकiपना को साकार कर पाओगे?'' मुझे लग रहा था, भारतमाता क3 अ¯ुधारा बरसने को आतुर थी.

''nया तुम समझते हो, †क „बना बंधनH के आजाद8 का कोई मतलब रह जाता है? यह तो Pनरं कुशता का पयाNय हुआ न! िजस तरह एक के अ™धकार तभी तक सुरÈ|त रहते हk, जब तक दस ू रा अपने कµNjयH का पालन करता है, उसी तरह तु£हार8 आजाद8 तभी इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


तक सुरÈ|त है, जब तक तुम दस ू रH क3 आजाद8 को सुरÈ|त रहने दे ते हो, उसक3

क³ करते हो. यह8 तो हमार8 वसुधैव कुटु£बकम वाल8 भारतीय स°यता-सं&कृPत ने हम`-त£ ु ह` ~सखाया है. पर शायद तम ु ने इसको भल ु ा sदया है और मेरे दामन को

अjयव&था के नापाक दाग से कल=ु षत कर sदया है.'' भारतमाता सब ु कने-सी लगी थी. ''मk यह भी जानती हूं, †क तुम मेर8 गहन-गंभीर jयथा को भाषण का नाम दे कर मुझे चुप कराने पर तुले हुए हो, पर त£ ु ह` समझाना मेरा फ़ज़N है. मेर8 jयथा, तु£हार8 jयथा न बन जाए, इसका ]यान तु£ह` ह8 रखना होगा. तथा&तु, सदा खुश रहो.'' पसरा हुआ स–नाटा असहनीय लगने लगा था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


20.

मk डॉnटर बनूंगी

आज एक समाचार पढ़ारायगढ़ः 14 †कमी रोज घने जंगल से होकर, जान जो§खम म` डाल &कूल पहुंचती है यह छा¨ा मन म` उˆसुकता हुई उस छा¨ा से ~मलने क3, सो माइक-शाइक लेकर हम पहुंच गए महारा¹x के रायगढ़ िजले म`. ''आपका नाम nया है?'' हमारा पहला सवाल था. ''Pन†कता कृ¹णा.'' उसने कहा. ''सन ु ा है आपको &कूल जाने के ~लए रोज 14 †कमी चलना पड़ता है?'' ''जी, आपने ठ©क सुना है. मुझे रोज 14 †कमी चलना पड़ता है, वह भी घने जंगल से होकर.''

''घने जंगल से होकर! †फर तो बहुत डर भी लगता होगा?'' ''बहुत डर लगना चाsहए, पर मk घबराती नह8ं, मुझे डॉnटर जो बनना है . बस डॉnटर बनने का सपना सजाते-सजाते मk &कूल पहुंच जाती हूं.'' ''†फर भी, थोड़ा-बहुत डर तो लगता ह8 होगा?'' हमार8 हैरानी बढ़ती जा रह8 थी. ''मkने अnसर जंगल8 सुअरH और सांपH का सामना †कया है. एक हÆते पहले मुझे &कूल जाते समय जंगल म` एक त`दआ ु भी ~मला. मk पहले डर गई ले†कन †फर सुरÈ|त अपने घर पहुंच गई.''

''यानी ये भी आपके साथी बन गए हk? आपको &कूल पहुंचने म` †कतना समय लगता है?'' ''मेरा &कूल गांव से सात †कलोमीटर क3 दरू 8 पर है. रोज &कूल आने-जाने के दौरान मझ ु े चौदह †कलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. एक तरफ से या¨ा म` मझ ु े दो घंटे लगते हk.''

''†फर तो थकान भी हो जाती होगी!''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''हौसले वालH को थकान नह8ं होती. सुबह मेरा &कूल 10 बजकर 45 ~मनट पर शु¤

होता है. मk अपने घर से सुबह 8 बजकर 45 ~मनट पर Pनकलती हूं. इतना ह8 नह8ं शPनवार को मेरा &कूल सब ु ह आठ बजे का होता है , इस~लए इस sदन मझ ु े सब ु ह छह बजे घर छोड़ दे ना पड़ता है.'' ''मौसम साथ दे ता है?'' ''मौसम मझ ु े nया साथ दे गा! मk मौसम के अनस ु ार ढल जाती हूं. मेरे इलाके म` अnसर भार8 बाFरश होती है, ऐसे म` मेरा &कूल जाना बहुत कsठन हो जाता है. बाFरश होने पर रा&ते म` कमर तक पानी भर जाता है.'' थोड़ा ’ककर वह कहती है-

''शाम को साढ़े चार बजे &कूल छूटता है. छु˜ट8 होते ह8 मk अपने घर क3 तरफ लंबे-

लंबे कदम बढ़ा दे ती हूं. बाFरश के मौसम और सsदNयH म` जंगल के अंदर जiद8 अंधेरा होने लगता है, इस~लए जंगल म` Oवेश करते ह8 मk दौड़ लगाना श¤ ु करती हूं, ता†क जiद8 घर पहुंच सकूं. जंगल8 जानवरH को दे खकर मेरा sठठक जाना &वाभा=वक है.'' ''दौड़ लगाते-लगाते आप अ¦छ© ऐथल8ट भी बन गई हHगी?'' ''जी, मk साइंस और ग§णत म` अपनी nलास के हर छा¨ से सबसे •यादा नंबर लाती हूं और मेर8 रोज क3 मेहनत ने मुझे एक अ¦छ© ऐथल8ट भी बना sदया है. मk तहसील म` होने वाल8 ऐथल8ट OPतयो™गता म` दो साल से Oथम आई हूं.'' ''आप डॉnटर nयH बनना चाहती हk?'' ''मk बड़ी होकर डॉnटर इस~लए बनना चाहती हूं, ता†क मेरे गांव के उन लोगH को इलाज जiद8 ~मल सके, िज–ह` इलाज कराने के ~लए गांव से कई †कलोमीटर दरू जाना पड़ता है, इस दौरान कई क3 मौत भी हो जाती है.''

''बस एक आ§खर8 सवाल, आपके माता-=पता nया करते हk?'' ''जी, वे धान लगाने का काम करते हk.'' ''Pन†कता जी आपसे ~मलकर हम` बहुत खुशी हुई. हमार8 शुभकामनाएं आपके साथ हk.'' भावी डॉnटर Pन†कता ने मेरा मन मोह ~लया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


21.

मर8न लाइफ सेवर

अभी-अभी एक कमाल का समाचार पढ़ने को ~मला''12 साल के ब¦चे ने •डजाइन †कया ऐसा जहाज जो करे गा समु³ क3 सफाई'' ~सफ़N 12 साल क3 उv म` इतना बड़ा काम! यह तो सचमुच कमाल हो गया! यह जहाज ~सफ़N समु³ क3 सफाई ह8 नह8ं करे गा, यह मर8न लाइफ सेवर भी है. मर8न लाइफ सेवर यानी समु³8 जीव-जंतु और पौधH को बचाने म` मदद करने वाला. यह सब †कया महारा¹x के पुणे Pनवासी 12 साल के हािजक काजी ने. ''आजकल आपके नाम के बहुत चचÉ चल रहे हk, थोड़ा =व&तार से बताएंगे, आपने nया †कया है?'' हमने 12 साल के हािजक काजी से पछ ू ा. ''मkने तो बस एक ऐसे जहाज का मॉडल तैयार †कया है जो ~सफN तैरेगा ह8 नह8ं, बिiक समु³ से गंदगी भी साफ करे गा. इसके जFरए जल Oदष ू ण को कम करने और मर8न लाइफ (समु³8 जीव-जंतु और पौधे) को बचाने म` मदद ~मलेगी.'' हािजक काजी का =वनv जवाब था.

''आपको यह आइ•डया आया कैसे?'' हमार8 िजzासा &वाभा=वक थी. ''मkने कुछ डॉnयुम`x8 दे खीं और महसस ू †कया †क समु³ के जीव-जंतुओं पर कचरे का †कतना असर होता है. मkने सोचा †क कुछ करना चाsहए. हम जो मछल8 खाने म`

खाते हk, वह समु³ म` Dलाि&टक खा रह8 हk, इस~लए एक तरह से हम भी समु³ क3

गंदगी खा रहे हk और यह मानव जीवन को भी Oभा=वत कर रह8 है . इस~लए मkने एक जहाज का •डजाइन तैयार †कया, जो समु³ क3 गंदगी साफ करे गा और इसे ए=वNस (ERVIS) नाम sदया है.''

''जहाज के फंnशन और फ3चर के बारे म` कुछ बताएंगे?'' हमारा अगला OGन था. ''जी „बलकुल. जहाज स`x8पेटल फोसN का इ&तेमाल करके कचरे को खींच लेगा. इसके बाद यह पानी, मर8न लाइफ और कचरे को अलग-अलग करे गा. मर8न लाइफ और पानी को वापस सम³ ु म` भेज sदया जाएगा, जब†क Dलाि&टक वे&ट को 5 अलगअलग भागH म` बांटा जाएगा.''

''जहाज के •डजाइन क3 =वशेषता?'' इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''जहाज के Pनचले sह&से म` एक स`सर या मैकेPन•म होगा जो मर8न लाइफ, पानी और Dलाि&टक को •डटे nट करे गी. इस जहाज के बेस से एक मशीन जुड़ी होगी जो सम³ ु से Dलाि&टक कचरे को खींचकर इसे साइज के अनस ु ार बांटने का काम करे गी.'' काजी ने बताया.

''आपने अपने इस आइ•डया को †कसी को sदखाया?'' हमार8 अगल8 िजzासा थी. ''मk अपने इस आइ•डया को TedEx और Ted8 के जFरए इंटरनैशनल DलैटफॉमN म` भी पेश कर चक ु ा हूं. मेरे इस आइ•डया क3 कई इंटरनैशनल &कॉलसN और संगठन Oशंसा कर चक ु े हk.'' इसके बाद तो काजी को शाबाशी और शुभकामनाएं दे ना ह8 शेष बचता था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


22.

अमर शह8द हे मू कालाणी

अभी कुछ sदन पहले फेस„बक पर एक मैसेज आया था''26 जनवर8, शाम 5.30 बजे sदiल8 =वधान सभा म` भारत के एक šाि–तकार8 एवं &वत–¨ता सं•ाम सेनानी अमर शह8द हे मू कालाणी क3 OPतमा का अनावरण †कया जाएगा.''

संदेश nया था, अमर शह8द हे मू कालाणी क3 शिÂसयत का परवाना था. यH तो इस

बहादरु बालक हे मू कालाणी को हमारे ज–म से पहले ह8 अं•ेजी सरकार ने फांसी पर

चढ़ाकर अमर शह8द कर sदया था, पर हमारा बचपन हे मू कालाणी क3 कहानी सुनते-

सुनते ह8 अ•सर हुआ था. उन sदनH घर-घर म` हे मू कालाणी का †क&सा ब¦चH को सुनाना आम बात थी. इस~लए हे मू कालाणी को तो हम कभी भी भल ु ा नह8ं पाए, पर आजाद8 के इतने सालH बाद उनको sदiल8 सरकार का यह स£मान दे ना हम` ग=वNत

कर गया. इस संदेश के पढ़ते ह8 हमारे सोने का समय हो गया था, पर मन तो हे मू कालाणी क3 &मPृ तयH म` रमा हुआ था.

23 माचN, 1923 को ज–मे हे मू कालाणी भारत के एक šाि–तकार8 एवं &वत–¨ता सं•ाम सेनानी थे. उनका ज–म

~स–ध के सÂखर (Sukkur) म` हुआ था. उनके =पताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं मां का नाम जेठ© बाई था.

जब वे †कशोर वय&क अव&था के थे, तब उ–हHने अपने सा™थयH के साथ =वदे शी व&तुओं का बsह¹कार †कया और लोगH से &वदे शी व&तुओं का उपयोग करने का

आ•ह †कया. सन ् 1942 म` जब महाˆमा गांधी ने भारत छोड़ो आ–दोलन चलाया तो हे मू इसम` कूद पड़े. 1942 म` उ–ह` यह गुDत जानकार8 ~मल8 †क अं•ेजी सेना

ह™थयारH से भर8 रे लगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरे गी. हे मू कालाणी ने अपने

सा™थयH के साथ रे ल पटर8 को अ&त jय&त करने क3 योजना बनाई. वे यह सब कायN अˆयंत गDु त तर8के से कर रहे थे, †फर भी वहां पर तैनात प~ु लस क~मNयH क3 नजर उन पर पड़ गई और उ–हHने हे मू कालाणी को ™गरÆतार कर ~लया और उनके बाक3 साथी फरार हो गए. हे मू कालाणी को कोटN ने फांसी क3 सजा सन ु ाई. उस समय के

~संध के गणमा–य लोगH ने एक पेट8शन दायर क3 और वायसराय से उनको फांसी क3 सजा न दे ने क3 अपील क3. वायसराय ने इस शतN पर यह &वीकार †कया †क हे मू कालाणी अपने सा™थयH का नाम और पता बताये पर हे मू कालाणी ने यह शतN

अ&वीकार कर द8. 21 जनवर8 1943 को उ–ह` फांसी क3 सजा द8 गई. जब फांसी से पहले उनसे आखर8 इ¦छा पूछ© गई तो उ–हHने भारतवषN म` †फर से ज–म लेने क3

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


इ¦छा जाsहर क3. इंकलाब िजंदाबाद और भारत माता क3 जय क3 घोषणा के साथ उ–हHने फांसी को &वीकार †कया. अं•ेजी शासन ने उ–ह` फांसी पर लटका sदया था. हे मू कालाणी अमर हो गए. दे शभर म` जगह-जगह हे मू कालाणी के नाम को अमर करने वाले

कॉलोPनयां, पॉकN, चौक हk. हमारे गह ृ नगर जयपुर क3 हमार8 कॉलोनी आदशN नगर

(~स–धी कॉलोनी) म` भी हेमू कालाणी पाकN म` हे मू कालाणी क3 OPतमा &था=पत क3 गई है.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


23.

बेsटयां

बेट8 के ज–मsदन पर उसक3 सभी सहे ~लयां सपFरवार आई हुई थीं. बसंती क3 80 साल क3 सासू मां शकुंतला भी उनके पास ऑ&xे ~लया आई हुई थीं, हमने उनको भी लाने के ~लए उसको =वशेष ¤प से कह sदया था. सभी बुजुगÓ क3 तरह वे भी ना-नुकुर कर रह8 थीं-

''आप सब ब¦चH के बीच मk nया क¤ंगी जाकर, आप लोग जाइए.'' बहू न मानी''ममा, आप ह8 तो कहती हk- ब¦चे-बढ़ ू े बराबर होते हk.'' ''बसंती मेरे कान बंद हk, मुझे कुछ सुनाई नह8ं दे रहा, मk चलकर nया क¤ंगी?'' ''ठ©क है ममा, †फर सब ु ह मk आपको पहले डॉnटर के पास ले जाऊंगी.'' वह पाट” म`

आने से पहले सासू मां के कान साफ करवाकर आई थी. यह सब शकंु तला ने ह8 मझ ु े बताया था.

&वभाव से शांत-सौ£य sदखने वाल8 शकुंतला अपनी तीनH बहुओं क3 तार8फ करते फूल8 नह8ं समा रह8 थीं. ''जैसी मेर8 बसंती है, वैसी ह8 मेरे अमेFरका वाल8 बहू Gवेता और भारत वाल8 हFरता भी हk. तीनH एक से बढ़कर एक हk.'' ''पड़ो~सन` कहती थीं, तीन बेटH क3 मां हो, दे खना सब सोच` गे वो संभालेगा, वो संभालेगा और तु£ह` कोई पूछेगा भी नह8ं. पर सच बताऊं इन तीनH बहुओं ने मेर8 इतनी सार-संभाल ल8 है, †क कोई nया लेगा? भगवान ऐसी बेsटयां सबको दे .'' ''Pतरं गे झंडे के तीन रं गH के नाम वाल8 तु£हार8 बेsटयां हk, तुम उनक3 भारतमाता हो,'' ''आपने सच कहा है, मk भी मां क3 तरह इनको चलाती हूं. ये अपने ब¦चH को कुछ भी कर` , कुछ भी कह` , मk बीच म` नह8ं बोलती. हमने भी तो अपनी मज½ से अपने ब¦चे पाले, इ–ह` भी पूर8 आजाद8 ~मलनी चाsहए.''

तभी हमार8 बेट8 ''sxपल संडे'' आइसš3म ले आई, जो Pतरं गे के रं गH से सस ु ि•जत थी. 26 जनवर8 जो आने वाल8 थी. उस sदन भारत का गणतं¨ sदवस भी होता है और ऑ&xे ~लया डे भी.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


24.

छोट8-सी भूल

अभी-अभी अनुषा का छोटा-सा मैसेज आया था- ''आंट8 जी, बहुमूiय परामशN के ~लए बहुत-बहुत शु†šया, मेरा माइ•ेन अब ठ©क हो गया है.'' &मPृ त पर जोर डाला, ले†कन कौन-सी परामशN क3 बात कह रह8 थी अनुषा, याद नह8ं आ रहा था. उससे ~मले भी 2 साल हो गए. इस बीच उससे कोई संवाद भी तो नह8ं हुआ. बहुत याद करने पर याद आया. उस sदन हमारे यहां लंच पाट” पर 30 लोग आने थे. =पछले sदन से तैयाFरयां चल रह8 थीं. सुबह से सब काम म` लगे हुए थे. अनुषा भी लगी हुई थी. शाम को 5 बजे सब चले गए. हमने सब सामान समेटना शु’ कर sदया. अनुषा कह8ं sदखाई नह8ं द8. बाद म` पता चला उसके ~सर म` ददN है. उसने रात को खाना भी नह8ं खाया. सुबह

सब &कूल-ऑ†फस चले गए, अनुषा दे र तक सोती रह8 थी. 12 बजे वह उठकर आई. ''कैसी है त„बयत अनष ु ा?'' मkने पछ ू ा था. ''आंट8 जी, ~सर ददN हो रहा था, अब कुछ ठ©क है .'' वह बोल8. ''~सर ददN है या माइ•ेन!'' ''आंट8 जी, माइ•ेन है.'' ''इतनी-सी उv म` माइ•ेन!'' मुझे हैरानी हुई थी. ''जी आंट8 जी, ममा को भी होता है.'' ''एक बात बताओ, कल इतनी गम½ थी, दोपहर म` नहाने गई थी, कैसे नहाया था?'' ''आंट8 जी, बस शावर खोलकर उसके नीचे खड़ी हो गई, जब तक ठं डक नह8ं पड़ी.'' ''सीधे ~सर पर पानी डाल sदया होगा.'' मkने पूछा. ''जी आंट8 जी, मk ऐसे ह8 करती हूं.'' ''बस, यह8ं मात खा ग». अचानक ~सर पर पानी डालने क3 वजह से ~सर क3 न~लकाएं ~सकुड़ने से या रnत के थnके जमने से ¸लड सकुNलेशन ठ©क से नह8ं होता. िजससे ~सर ददN, माइ•ेन, लकवा व “ेन हे मरे ज जैसी सम&याएं खड़ी हो जाती हk.''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''आंट8 जी, मk आगे से बहुत ]यान रखूंगी, ममा को भी बता दं ग ू ी.'' शायद इसी छोट8-सी भूल को उसने सुधार ~लया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


25.

आकाश क3 शाद8

आकाश क3 शाद8? nया आकाश क3 भी शाद8 होती है? मुझे भी हैरत हुई थी. इससे भी अ™धक हैरत तब हुई, जब मkने आकाश क3 शाद8 का समाचार पढ़ा. इसे आकाश क3 शाद8 कह` या अनोखी शाद8, एक ह8 बात है. ''nया अनोखा हुआ था इस शाद8 म`?'' एक सवाल था. ''सब अनोखा-ह8-अनोखा था आकाश क3 शाद8 म`.'' ''अरे भाई जरा यह तो बताओ, आकाश ने कब-कहां-†कससे शाद8 क3? हमने तो कभी आकाश क3 शाद8 क3 बात सन ु ी ह8 नह8ं.'' ''बीती 25 जनवर8 को मुंबई म` आकाश ने रा™धका से शाद8 क3.'' ''अ¦छा तो आकाश दi ू हे का नाम है!'' ''यह8 तो! यह शाद8 अनोखी इस~लए, †क इस शाद8 म` सभी मेहमान महापु’षH, नेताजी सुभाषचं³ बोस और सैPनकH के ´ेस म` आए थे. रा¹xOेम को दशाNने के ~लए अनूठे तर8के से यह =ववाह समारोह स£प–न हुआ. मेहमानH ने कहा †क =ववाह समारोह म` रा¹xOेम दशाNने क3 यह अनूठ© पहल है. समारोह के ~लए पूरे

पFरसर को Pतरं गे से सजाया गया था। समारोह म` आए हुए मेहमानH को उपहार म` Pतरं गा व&¨ sदए गए.'' ''nया करते हk आकाश जी?'' ''jयाÂयाता डॉ. पवन अ•वाल के छोटे बेटे आकाश ने ÆलोFरडा म` पढ़ाई करने के बाद =पता क3 सलाह पर वहां क3 नौकर8 ठुकरा द8 और भारत म` ~श|क क3 नौकर8 कर रहे हk.''

=ववाह के बाद आयोिजत समारोह पर डॉ. पवन ने कहा, 'िजस तरह से हमारे सैPनक दे श के ~लए अपना कतNjय Pनभा रहे हk, उसी तरह दे श के हर नागFरक को सेवा करना चाsहए. दे श के OPत कृतzता jयnत करने और रा¹xOेम का संदेश दे ने के ~लए समारोह का आयोजन †कया गया.'

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''सच म` आकाश क3 शाद8 समारोह दे श के नाम †कया गया यह शाद8 समारोह अनोखा ह8 है.''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


26.

हुनर

PनPतन बारहवीं क|ा के बोडN क3 पर8|ा के ~लए „बलकुल तैयार था. उसक3 पर8|ा क3 तैयार8 भी चकाचक चल चल रह8 थी और वायो~लन क3 सुर8ल8 धुन` भी अपना जाद ू

„बखेर रह8 थीं. एक कलाकार सब काम अनुशासनपूवNक करते हुए भी अपने आज म` ह8 म&त रहता है , PनPतन भी ऐसा ह8 कर रहा था, ले†कन नाम सदानंद राव होते हुए भी PनPतन के पापा के sदन-रात आनंद से बहुत दरू तनाव म` बीत रहे थे.

सदानंद के सामने ढे र सार8 खबर` थीं और उन खबरH का =वGलेषण करने का अपना पFरOे\य''INDW vs NZW: ~मताल8 राज ने रचा इPतहास, बनीं 200 वनडे खेलने वाल8 पहल8 मsहला †šकेटर'' †šकेटर बनना भी आजी=वका और O~सŽ™ध का एक अ¦छा साधन है! वे सोचते. ''अब कk सर का हो सकेगा 100 फ3सद8 इलाज, इजरायल8 कंपनी का दावा'' यह8 तो है साइंस लेने का एक लाभ. FरसचN म` लगे रहो और †फर जो लाभकार8 पFरणाम Pनकलता है, वह आˆम संतुि¹ट के साथ-साथ समाज क3 सेवा भी. „बना FरसचN के उनका Pन¹कषN Pनकलता.

''रजनीकांत क3 लगातार 3 †फiमH ने कमाए 100 करोड़, ऐसा करने वाले वह पहले त~मल ऐnटर'' वाह nया बात है ! यह भी अ¦छ© हैटsxक रह8. एक कलाकार भी इतनी ऊंचाई तक! वे हैरान होते. ले†कन PनPतन तो वायो~लन का शैदाई है. यह सदानंद क3 राय नह8ं थी, कल के अखबार क3 सख ु ½ ऐसा कह रह8 थी. PनPतन के फkस क3 OPत†šया थी''nया ग़ज़ब क3 वायो~लन बजाता है यह लड़का! इसके पयNवे|ण का जवाब नह8ं. कोयल क3 कूं-कूं हो या गाय का रं भाना, घोड़े क3 sहनsहनाहट हो या xै †फक जैम पर गा•ड़यH के भHपुओं क3 भुनभुनाहट,कुµे क3 भH-भH हो या मोटर क3 पH-पH या †फर ऐ£बुलस k का सायरन, हर आवाज को बड़े ]यानपूवNक कैच करके वायो~लन पर

तiल8नता से हू-ब-हू Pनकालना अŽभुत हुनर है. इस हुनर को कोsटशः सलाम.''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''अगर मk PनPतन से अपनी मज½ क3 &x8म लेने को कहूंगा, तो वो लड़का एक बार भी नाक-भ• नह8ं ~सकोड़ेगा, ले†कन †फर उसके इस हुनर का nया होगा?'' PनPतन के पापा क3 द=ु वधा बढ़ती ह8 जा रह8 थी. ''SIMONE DE BEAUVOIR †कताबH से ह8 Pघरे रहते, तो ~स£फनी के Oणेता कैसे बन पाते?'' nया PनPतन आधुPनक ~स£फनी का Oणेता बनते-बनते रह

जाएगा?'' उनक3 =वचारधारा खुद से ह8 सवाल करती और †फर अधूरे जवाब छोड़कर भटक जाती.

PनPतन „बना †कसी तनाव के अपनी म&ती म` कभी वायो~लन छे ड़ता, कभी पढ़ाई म` रम जाता. सदानंद का आनंद उनसे ¤ठा हुआ था. ''मk भी अजीब पागल हूं. िजसके ~लए मk अपना अमन-चैन बबाNद कर रहा हूं, वह मौज म` सब कुछ कर रहा है. †फर मk इतना सोच ह8 nयH रहा

हूं? उसक3 Meditation उसे वायो~लन म` भी िजतनी सहायता कर रह8 है, उतनी ह8 पढ़ाई म` भी. उसके ~लए दोनH र&ते खल ु े हk. समय आने पर िजसे वर8यता दे नी

होगी, दे दे गा. मुझसे सलाह ल8, तो कहूंगा- 'बेटा िजंदगी तेर8 है, जो करना हो अपनी मज½ से करो.' वह भी खुश रहे गा, मk भी खुश.'' उनका PनणNय था. सदानंद ने भी आज म` जीने का हुनर सीख ~लया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


27.

उड़ी बाबा!

Oयागराज के कुंभ पवN पर न जा सकने के कारण हमने गुजरात के आणंद िजले के धमNज गांव क3 सैर का ह8 कायNšम बना ~लया था. धमNज गांव िजसका नाम

हो, उसम` धमN नाम का शायद कोई संकेत ~मल जाए, गांव है तो nया हुआ? धूल भरे रा&ते, बैल या घोड़ा गाड़ी, क¦चे-पnके मकान और दरू तक नजर आते खेतH क3 त&वीर sदमाग म` ~लए हम चल ह8 तो पड़े.

पर यह nया? धल ू भरे रा&ते, बैल या घोड़ा गाड़ी, क¦चे-पnके मकान और दरू तक नजर आते खेतH का कोई नामोPनशान नह8ं! पnके और साफ सथ ु रे रा&ते, उन पर दौड़ती म~सNडीज या बीएमड¸लू जैसी महंगी गा•ड़यां और गांव के चौक-चौराहH पर

मैnडॉनiड जैसे रे &टॉर` ट! यह संप–नता तमाम जगह „बखर8 हुई यानी गांव के लोग शहर8 और •ामीण दोनH पFरवेश क3 िजंदगी जीते हk. अब हमने वहां के सरपंच जी से तो बात करनी ह8 थी! ''गांव नाम होते हुए भी यहां गांव जैसा कोई माहौल sदख नह8ं रहा, इसका कारण बताएंगे?'' हमार8 पहल8 िजzासा थी. ''धमNज गांव को एनआरआई का गांव भी कहा जाता है, जहां हर घर से एक jयिnत =वदे श म` काम-धंधा करता है. यहां लगभग हर पFरवार म` एक भाई गांव म` रहकर खेती करता है , तो दस ू रा भाई =वदे श म` जाकर पैसे कमाता है. ऐसा कहा जाता है क3 हर दे श म` आपको धमNज का jयिnत ज¤र ~मलेगा. दे श का यह शायद पहला गांव

होगा िजसके इPतहास, वतNमान और भूगोल को jयnत करती कॉफ3 टे बलबुक Oका~शत हुई है .'' सरपंच जी का कहना था.

''यह तो बहुत ह8 अचरज क3 बात है!'' हमारा हैरान होना &वाभा=वक था. ''इस गांव क3 खुद क3 वेबसाइट भी है तो गांव का अपना गीत भी है. „“टे न म` हमारे गांव के कम से कम 1500 पFरवार, कनाडा म` 200 अमेFरका म` 300 से •यादा

पFरवार रहते हk. इसका sहसाब-†कताब रखने के ~लए बाकायदा एक डायरे nटर8 भी बनाई गई है, िजसम` कौन कब जाकर =वदे श बसा उसका पूरा लेखा जोखा है.'' हम` जानकार8 ~मल8.

''गांव क3 संप–नता का आलम इसी से लगाया जा सकता है †क यहां दजNनभर से •यादा Oाइवेट और सरकार8 बkक हk, िजनम` •ामीणH के नाम ह8 एक हजार करोड़ से •यादा रकम जमा है. गांव म` मैnडॉनiड जैसे =प•जा पालNर भी हk तो और भी कई इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


बड़े नामी रे &टॉर` ट क3 ›`चाइजी भी हk. इसके अलावा आयुवÉsदक अ&पताल से लेकर सुपर &पे~श~लट8 वाले हॉि&Dटल भी हk.'' इस गांव क3 गौरवगाथा बयान करती है.

''गांव वाले हर साल 12 जनवर8 को धमNज डे से~ल“ेट करते हk, िजसम` शा~मल होने के ~लए दPु नया के कोने-कोने म` बसे गांव के एनआरआई पूरे पFरवार के साथ यहां

आते हk. वो मह8नH तक यहां रहते हk और मौज-म&ती करते हk, अपने ब¦चH को गांव क3 सं&कृPत से ¤ब¤ कराते हk.'' हमार8 है रानी का आलम भी बढ़ता जा रहा था. ''भारत के आम गांवH क3 तरह यहां चौराहH पर खेती †कसानी क3 चचाN कम ह8 होती है, बिiक इंटरनैशनल पॉ~लsटnस को लेकर लोग बड़े चाव से चचाN करते हk. डॉलर के बढ़ते दाम, भारत-अमेFरका पॉ~लसी, डॉनiड xं प क3 =वदे श नीPत और अमेFरका, कनाडा के वीजा कानून यहां अnसर चचाN म` रहते हk.'' हमार8 जानकार8 म` इजाफा हो रहा था.

''धमNज गांव क3 सबसे बड़ी खा~सयत nया है?'' हमारा यह पूछना अवGय£भावी था. ''धमNज गांव क3 सबसे बड़ी खा~सयत है उसक3 संप–नता और इसम` भी सबसे बड़ी बात है, †क यह „बना †कसी सरकार8 मदद के है. =वदे श म` बसे धमNज के लोग अपने गांव के =वकास के ~लए जी भरकर पैसे भेजते हk. इसका असर गांव के माहौल पर भी sदखता है. गांव क3 अ™धकतर सड़क̀ और ग~लयां पnक3 हk. कुछ चौराहH को दे खकर

तो आप अंदाजा ह8 नह8ं लगा सकते, †क यह †कसी गांव का नजारा है या †कसी शहर का. कुछ चौराहH को तो „बiकुल =वदे शी शहरH क3 तरह लुक sदया गया है.'' ''उड़ी बाबा!'' हमारे मंह ु ं से अक&मात Pनकल गया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


28.

उiलू

बात मुंबई एयरपोटN क3 है. एयरšाÆट के कॉक=पट म` अचानक से एक •े कलर का उiलू उड़कर आया और कमांडर क3 बा» तरफ क3 सीट के बगल म` आकर बैठ गया. •ाउं ड &टाफ ने काफ3 मशnकत के बाद उiलू को वहां से हटाया जा

सका. हमने सोचा, आज उiलू से ह8 बात कर ल8 जाए. उसे तPनक सांस लेने क3 मुअiलत दे कर हमने अपना पहला OGन उछाला- ''उiलू भाई, कैसे हk आप?''

पता नह8ं nयH उiलू से कुछ बोला नह8ं गया, उसके झर-झर आंसू Pनकलने लगे. हम` दःु ख भी लगा, †क पता नह8ं हमने कुछ गलत तो नह8ं कह sदया, तभी उiलू ने

अपनी चDु पी तोड़ी- ''आप „बलकुल ™चंता न कर` मैडम Pतवानी, ये दःु ख के नह8ं खश ु ी के आंसू हk. असल म` आज †कसी ने मझ ु े भाई के संबोधन से पक ु ारा है, अ–यथा मk

तो यह8 सन ु ता आ रहा था- ''तम ु तो Pनरे उiलू हो.'' ''काठ के उiल,ू त£ ु ह` अnल कब आएगी?'' आsद-आsद.

''आपको कैसे पता चला, †क मk मैडम Pतवानी हूं?'' मेर8 िजzासा &वाभा=वक थी. ''ल8िजए, 1983 का बसंत ऋतु का वह खूबसूरत sदन मुझे अ¦छ© तरह याद है, जब

मk बसंती फूलH का नजारा लेते हुए आपके &कूल के एक पेड़ पर आ गया था, आपने मुझे दे खकर न हiला-गi ु ला मचाया, न मुझे उड़ाने क3 को~शश क3, आप झट से अपनी कला अ]या=पकाओं ~मसेज =व=पन हाँडा और •योPत सुमन को बुला ला» और मेरे खूबसूरत &केच बनवाए. मुझे यह भी याद है, †क जो भी मुझे दे खने आता था, उसे आप इशारे से बता रह8 थीं, †क होल8-होल8 जाना, शोर न मचाना.''

''उड़ाने से मझ ु े याद आया, आप जेट एयरवेज के एक =वमान के कॉक=पट म` कैसे चले गए थे?''

''बहुत समय से मेरा भी एक सपना था, †क =वमान क3 सैर क¤ं, पर आप लोग तो =वमान म` मुझे जाने नह8ं दे ते, इस~लए मk कॉक=पट म` जाकर बैठ गया था. जब तक पाइलेट &टॉफ आया, मkने अपने सपने को अंजाम दे sदया.'' ''अ¦छा अपने बारे म` कुछ और बताओ.'' ''मk रा„¨चार8 प|ी हूं. मुझे sदन क3 अपे|ा रात म` अ™धक &प¹ट sदखाई दे ता है. मेरे कान बेहद संवेदनशील होते हk. रात म` जब मेरा कोई ~शकार (जानवर) थोड़ी-सी भी हरकत करता है , तो मुझे पता चल जाता है और मk उसे दबोच लेता हूं. मेरे पैरH म`

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


टे ढ़े नाखूनH-वाल8 चार-चार अंगु~लयां होती हk, िजससे मुझे ~शकार को दबोचने म`

=वशेष सु=वधा ~मलती है. चूहे मेरा =वशेष भोजन हk. उiलू लगभग संसार के सभी भागH म` पाया जाता है.''

''आपक3 †कतनी OजाPतयां हk?'' ''उiलू छोटे और बड़े दोनH तरह के होते हk और इनक3 कई जाPतयाँ भारत वषN म` पाई जाती हk. बड़े उiलओ और घ±ु घू है . मआ पानी के क़र8ब ु ं को दो मÂ ु य जाPतयाँ मआ ु ु और घ±ु घू परु ाने खंडहरH और पेड़H पर रहते हk.''

''हमने सुना है †क उiलू बनाने का अथN है मूखN बनाना, पर बहुत-से लोग उiलू को बुŽ™धमान मानते हk.'' ''अपनी-अपनी समझ है. अपना उiलू सीधा करने के ~लए कुछ तो लोग कह` गे ह8. बड़ी आंख` बुŽ™धमान jयिnत क3 Pनशानी होती है. मेर8 आंख` भी बड़ी होती

हk, इस~लए उiलू को बŽ ु ™धमान माना जाता है,हालां†क ऐसा ज¤र8 नह8ं है पर ऐसा =वGवास है. यह =वGवास इस कारण है, nयH†क कुछ दे शH म` Oच~लत पौरा§णक कहाPनयH म` उiलू को बुŽ™धमान माना गया है. Oाचीन यूनाPनयH म` बुŽ™ध क3

दे वी, एथेन के बारे म` कहा जाता है †क वह उiलू का ¤प धारकर पÄ ृ वी पर आई

हk. भारतीय पौरा§णक कहाPनयH म` भी यह उiलेख ~मलता है †क उiलू धन क3 दे वी

ल\मी का वाहन है और इस~लए वह मूखN नह8ं हो सकता है. sह–द ू सं&कृPत म` माना जाता है †क उiलू समŽ ृ ™ध और धन लाता है. वैzाPनकH का दावा है †क उiलुओं म` सुपर ˜यून बुŽ™ध होती है, जो उनके ~लए मददगार होती है.'' ''कुछ लोग उiलू से डरते भी हk?'' मkने पछ ू ा. '' जी हां, डरावने sदखने के कारण कुछ लोग उiलू से डरते भी हk.'' उiलू ने बेबाक3 से कहा.

''sदवाल8 और उiलू क3 ब~ल का कनेnशन हैरान भी करता है और परे शान भी.'' ''अब लोगH के अध=वGवासH का nया कह` ? कुछ लोग तो sदवाल8 पर ल\मी पूजा करने के बाद ल\मी क3 आरती भी नह8ं करते. nयH†क आरती के बाद मां चल8

जाएंगी. ये तो सामा–य लोगH क3 बात` हk. जो सामा–य लोग सोच भी नह8ं पाते. इस sदन भी लोग एक जीव क3 ब~ल दे ते हk. वो हk हम बेचारे उiलू. अपना उiलू सीधा करने के ~लए लोगH को उiलू बनाना भी कोई इनसे सीखे.''

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लघुकथा सं•ह-9


''आपका कोई ज–मजात दGु मन भी है?'' ''अब कहना तो नह8ं चाsहए, पर यह बात सच है , †क कौआ मेरा ज–मजात दGु मन है. हम दोनH एक दस ू रे को दे खते ह8 बगैर कुछ †कए लड़ने पर उता¤ हो जाते हk और अंत तक लड़ते ह8 रहते हk.''

''आपक3 बड़ी आंख` आपक3 कैसे मदद करती हk?'' ''हमार8 बड़ी आंख` हमको अˆय™धक दरू 8 से ह8 ~शकार दे खने क3 अनुमPत दे ती हk. इसके अलावा मk आपको अपनी कुछ =वशेष बात` बताता हूं.

मेरे पंख बहुत कोमल होते हk, इस~लए हम उड़ने म` बहुत कम आवाज करते हk. पÈ|यH म` केवल उiलू ह8 नीले रं ग को पहचान सकता है. हमार8 Ãि¹ट इतनी पैनी होती है , †क पÈ|यH म` केवल हम ह8 †कसी व&तु को 3 डी एंगल से देख सकते हk.

हमारे दांत नह8ं होते, हम ~शकार को चबाकर नह8ं खाते, बिiक Pनगल जाते हk. सबसे ख़ास बात- हमारे गुट को संसद कहते हk यानी अनेक उiलू एक जगह इक˜ठे

हो जाएं, तो इस ख़ास मौके को संसद कहते हk, ले†कन आप लोग िजसे संसद कहते हk उससे इसका कोई ताiलुक नह8ं है.'' मk उसक3 बŽ ु ™धमानी पर हैरान थी. ''अ¦छा उiलू भाई, अब आप आराम कFरए, आप बहुत थक गए हHगे.'' ''ओ.के. थknयू मैडम जी.''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


29.

अफसाना

अभी-अभी एक समाचार पढ़ाउमा दे वी ने 54 साल क3 उv म` सातवीं बार नैशनल चk=पयन~शप जीती कनाNटक क3 आर उमा दे वी ने इंदौर म` चल रह8 86व` नैशनल „ब~लयâNस ऐंड &नूकर टूनNम`ट म` सीPनयर मsहला „ब~लयâNस कैsटगर8 का §खताब जीता. उमा दे वी ने अपने से 33 बरस छोट8 पंजाब क3 क3रत मंडल को पछाड़कर नैशनल चk=पयन~शप

जीती. कनाNटक क3 उमा ने शानदार OदशNन करते हुए लगातार दस ू र8 बार इस §खताब को जीतने का गौरव हा~सल †कया. यह8 नह8ं, उमा दे वी ने 54 साल क3 उv म` सातवीं बार नैशनल चk=पयन~शप जीती. उमा दे वी का यह =वजय अ~भयान अपने आप म` एक खब ू सरू त अफसाना बन गया.

अफसाना से याद आ» एक और उमा दे वी यानी टुनटुन. टुनटुन का वा&त=वक नाम उमा दे वी था, िजसे †फiमH के ~लए टुनटुन कर sदया गया. वा&तव म` टुनटुन

हFरयाणा म` ज–मी एक दब ु ल8-पतल8-छरहर8 लड़क3 थी, िजस पर रे •डयो पर गाने सन ु सुनकर †फiमH क3 पाGवNगाPयका बनने का जुनून सवार हो गया और वे उµर Oदे श से भागकर मुंबई पहुंच ग». यहां उ–हHने बतNन मांजने और सफाई करने का काम भी †कया, वह भी मुÆत म`. उ–ह` ~सफ़N ~सर छुपाने के ~लए बसेरे क3 ज¤रत थी, उ–हHने †कसी के घर कभी खाना भी नह8ं खाया.

टुनटुन का शाि¸दक अथN है, तुन-तुन यानी ~सतार क3 ]वPन. उनक3 खनकती आवाज सचमुच ~सतार क3 ]वPन क3 तरह थी. उमा से टुनटुन नाम रखने के बाद वे इतनी

लोक=Oय हुई थीं †क टुनटुन का पयाNयवाची श¸द ह8 मोट8 औरत हो गया. इसे उ–हHने अ¦छे ¤प म` ह8 ~लया. एnxे स के अलावा उमा क3 बड़ी पहचान गाPयका क3 भी थी. उनके जीवन का पहला ह8 गाना था ‘अफसाना ~लख रह8 हूं sदल-ए-बेक़रार का'. 1947 म` Fरल8ज हुई ‘ददN’ †फiम से ये गाना बहुत बेकाबू sहट हुआ था. आज भी सन ु ा जाता है. †फiम म` उनके गाए बाक3 गाने भी बहुत अ¦छे थे. उ–हHने तब क3 बाक3 गाPयकाओं के मत ु ा„बक nला~सकल £यिू जक क3 xे Pनंग नह8ं ल8 थी, इस~लए उनक3

सीमाएं थीं ले†कन वे वाकई म` बहुत ह8 =वशेष गाPयका थीं. उनके गानH म` †कसी भी †क&म क3 कोई कमी नह8ं थे, वे बहुत अ¦छे थे. उनक3 सब पहचानH को फ3का करने वाला था उनका jयिnतˆव. उनक3 उपि&थPत बहुत ह8 आकषNक और ताकतवर थी. जहां वे मौजूद होती थीं, हर मदN तमीज़ सीख जाता था. उन जैसे तेज-तराNर, वाकपटु,बेधड़क और चतुर संवादक दल ु Nभ हk. वो भी तब इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


जब वे पढ़8 ~लखी नह8ं थीं. उनका बचपन ¨ासsदयH म` बीता. एक के बाद एक दख ु ~मलते रहे . £यूिजक, एिnटं ग, स£मान हर चीज उ–हHने अपने हौसले से OाDत

क3, नसीब से नह8ं. प’ ु षH के वचN&व वाल8 दPु नया म` वे च˜टान क3 तरह न sहलाई जा सकने वाल8 थीं.

‘अफसाना ~लख रह8 हूं sदल-ए-बेक़रार का' के खूबसूरत अफसाने क3 रोचक बात यह है, †क 'ददN' †फiम का यह गाना अ~भने¨ी मुनjवर सुiताना पर †फलमाया गया, जब †क दस ू र8 अ~भने¨ी सुरैया चाहती थीं, †क यह गाना उन पर †फलमाया जाए. आपको याद होगा, †क सुरैया &वयं बहुत अ¦छ© पाGवNगाPयका थीं.

टुनटुन क3 पहल8 †फiम 'बाबुल' थी. अ~भनय म` वे चाल” चैप~लन के लैवल क3

आsटN &ट थीं. बस दोनH क3 =वषय-व&तु म` फकN था. ले†कन बुPनयाद8 लोगH पर पड़ने

वाला टुनटुन का असर भी उतना ह8 था. sहंद8 न बोल सकने वाले जो करोड़H, •ामीणक&बाई दशNक sहंद8 †फiमH के डायलॉग नह8ं समझते थे, वे चैप~लन के द8वाने थे, वे टुनटुन के भी द8वाने थे, nयH†क दशNकH को जोड़ने के ~लए वे महज भाषा पर PनभNर नह8ं रहती थीं.

अफसाना चाहे †फiमी उमा दे वी का हो या नैशनल „ब~लयâNस ऐंड &नूकर टूनNम`ट क3 आर उमा दे वी का, अफसाने क3 खब ू सरू ती का कोई जवाब नह8ं.

इPतहास का दोहरान

58

लघुकथा सं•ह-9


30.

आशीवाNद

यथा Pनयम मk Oातःकाल क3 सैर कर रह8 थी. Oातःकाल क3 इस सैर का अलग ह8 लुˆफ़ होता है. हो भी nयH न! पूर8 रात क3 नींद के बाद सब थकान से रsहत

ताजातर8न होते हk. हवा भी ताजा! यह8 ताजी हवा खाने हम सैर पर जाते हk. पंछ©सुमन-गगन-धरा सब पर ताजगी के छ©ंटे होते हk, िज–ह` हम ओस के नाम से जानते हk. पूर8 रात मौन रहने के कारण सब बPतयाने क3 मौज म` होते हk. यह8 मौज आज धरती माता के मन को मगन †कए हुए थी.

''आप चलते हुए कदम-कदम पर मझ ु े ध–यवाद nयH कह रह8 हk?'' चहुं ओर दे खा, कोई नह8ं था. पर आवाज तो आई थी! ऊपर दे खा, कोई नह8ं sदखाई sदया. ''नीचे दे खो, मk बोल रह8 हूं, आपक3 धरती माता!'' अब तो संदेह क3 तPनक भी गुंजाइश नह8ं थी. ''सादर Oणाम धरती माता, आप मझ ु े तम ु कsहए न! तम ु म` माता का जो अपनापन होता है, उसका कोई जवाब नह8ं!'' मkने सादर अ~भवादन करते हुए कहा. ''मेरे OGन का जवाब तो दो बेट8.'' मां ने †फर कहा. ''आप खुद सब जानती हk. हम आपके ऊपर धम-धम करते चल` या खरामा-

खरामा, आप धैयNपूवNक सब सहती जाती हk, न ™गला न ~शकवा, न कोई ~शकायत. इस~लए चलते हुए कदम-कदम पर मन से अपने आप ध–यवाद Pनकलता ह8 चला जाता है.'' धरती माता मु&कुराती हुई-सी लगी. ''आप पर कोई कचरा डाले या पानी, दाना डाले या सानी, आप सहनशीलता क3 सा|ात OPतमा बनी रहती हk.'' धरती माता अब भी सहनशीलता से सन ु रह8 थीं. ''आप क3चड़ से पानी अलग कर अपने अंदर समा लेती हk, बाक3 ~म˜ट8 को अपना sह&सा बना लेती हk. कूड़े-कचरे से आपको कोई Pघन नह8ं आती, उससे आप खाद बना

लेती हk, हम न तो पॉ~लथीन का उपयोग बंद करते हk, न उसका सह8 ढं ग से Pनपटारा करते हk, आप †फर भी उससे Pनपटने क3 भरसक को~शश करती हk, वह भी मूक

रहकर. ~शकायत करना आपक3 †फ़तरत म` ह8 नह8ं है.'' धरती माता मौन होकर सुन रह8 थीं.

इPतहास का दोहरान

59

लघुकथा सं•ह-9


''हर तरह के पानी को आप अपने अंदर जŠब करके, खPनज आsद ~मलाकर साफ करके †फर हम` ह8 दब ु ारा उपयोग करने के ~लए Oदान करती हk, ध–य है आपक3

दानशीलता! हम इतने Pनः&पह ृ nयH नह8ं रह पाते!'' धरती माता nया जवाब दे तीं! ''हम कुछ सीख नह8ं सकते, तो आपको ध–यवाद तो दे ह8 सकते हk. शायद आपको

कदम-कदम पर मन से आपका ध–यवाद करना और सराहना करना ह8 हमारे अंदर †कसी एक सŽगुण का अंश मा¨ आने क3 वजह बन जाए!'' धरती माता का मु&कुराना जार8 था, शायद यह8 एक मां का आशीवाNद था.

इPतहास का दोहरान

60

लघुकथा सं•ह-9


31.

वचन

स•दयाN आज बहुत खुश थी. अभी कल ह8 तो उसक3 सगाई क3 बात लगभग पnक3 हुई थी. लड़का ऑ&xे ~लया म` रहता है. शाद8 के बाद उसे भी ~सडनी जाकर रहना

होगा. कैसा होगा उसका नया जीवन, नया दे श, नया पFरवार. अब तक वह केवल बेट8 ह8 थी. वहां उसे पˆनी, बहू, भाभी आsद न जाने †कतने FरGते Pनभाने हHगे. कैसे Pनभाएगी वह. तभी उसने मोबाइल म` एक सु=वचार पढ़ा''FरGतH क3 ह8 दPु नया म` अnसर ऐसा होता है, sदल से इ–ह` Pनभाने वाला रोता है, झक ु ना पड़े तो झक ु जाना अपनH के ~लए nयH†क, हर FरGता एक नाज़ुक समझौता होता है.'' nया उसे भी हर FरGते के साथ समझौता करना पड़ेगा? nया पPत के साथ भी ~सफN समझौता कारगर होगा! तभी उसे अपनी ऑ&xे ~लया क3 =पछल8 या¨ा क3 &मPृ त हो आई.

अपनी पड़ो~सन एलेnसा क3 शाद8 म` वह गई थी. शाद8 से पहले ह8 वचन ले ~लए गए थे. एलेnसा खुद भी ऑ†फस म` नौकर8 करती थी और अ¦छे पद पर Pनयुnत थी. हर एक क3 भांPत उसे भी ऑ&xे ~लया म` अनुशासन म` रहना ज¤र8 था. कल को पPत कह दे †क मुझे अपनी ऑ†फस म` ज¤र8 काम है, तुम घर संभालकर जाना, ऐसा तो नह8ं चलेगा न!

उसने पहले ह8 भावी पPत से बात कर ल8 थी''जैसे तु£हारे ~लए ऑ†फस म` समय पर पहुंचना ज¤र8 होगा, मेरे ~लए भी ज¤र8 होगा. मk तु£हार8 ज¤रत का ]यान रखूंगी, तुम मेर8 ज¤रत का ]यान रखोगे?'' ''„बलकुल, इसम` कोई संदेह नह8ं है.'' ''मk तु£हारे माता-=पता, भाई-बsहन को पूर8 इ•जत दं ग ू ी और उनक3 हर ज¤रत का ]यान रखूंगी, nया तुम भी मेरे FरGतेदारH के साथ ऐसा ह8 jयवहार कर सकोगे?''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''पnका, „बलकुल पnका.'' ''मk हरसंभव तु£हार8 इ¦छा का ]यान रखूंगी, nया तुम भी मेर8 इ¦छा का मान रख सकोगे?

''nयH नह8ं, त£ ु हारे और मेरे म` nया फकN है?'' ''अभी भी समय है सोच लो, कल को मुकर मत जाना. ऐसा न हो †क तुम पहले घर

आकर बैठे रहो, †क मk आऊंगी और तु£ह` कॉफ3 =पलाऊंगी, †फर खाना बनाऊंगी, तु£ह`

भी घर म` कंधे-से-कंधा ~मलाकर मेरे साथ काम करना होगा. ये सब बात` अभी से तय हो जानी चाsहएं, आ§खरकार मk भी नौकर8 वाल8 हूं.'' पPत के वचन दे ने पर ह8 उसने शाद8 के ~लए रजामंद8 द8 थी. जब तक स•दयाN ऑ&xे ~लया म` रह8, एलेnसा से उसक3 बात होती रह8. वह बताती थी, †क पPत बाकायदा उसे बराबर8 का दजाN दे ता था और कोई भेदभाव नह8ं होता था. उसक3 शाद8 म` ह8 त’ण से उसक3 मुलाकात हुई थी, अब उससे शाद8 क3 बात चल रह8 है. ''स•दयाN को भी तो ~सडनी जाकर नौकर8 ह8 करनी पड़ेगी, उसे भी तो वहां के कड़े अनुशासन का पालन करना पड़ेगा. शाद8 तो भारत म` ह8 होनी है, यहां तो पं•डत जी सात फेरH के साथ सात वचन भरवाएंगे, िजनम` ~सफN नार8 के समझौते क3 ह8 बात होगी, †फर उसके कड़े अनुशासन का nया होगा?'' स•दयाN सोच रह8 थी. FरGता पnका होने से पूवN उसने त’ण से खुल8 बात करने का मन बना ~लया था.

इPतहास का दोहरान

62

लघुकथा सं•ह-9


32.

नई जान

अभी-अभी एक समाचार ने मेरा ]यान आक=षNत †कयाsदiल8 क3 हवा म` नई जान फूंक रह8 हk ये मशीन` नई जान श¸द मुझे सुदरू अतीत म` ले गया. जब मशीन` sदiल8 क3 जहर8ल8 हवा म` नई जान फूंक सकती हk, तो एक संवेदनशील jयिnत एक लगनशील बालक के मन

म` नई जान nयH नह8ं फूंक सकता है! बहुत साल पहले ऐसा ह8 हुआ था. हमारे पेन ›kड इं³ेश ने यह †क&सा बताया था. बचपन से ह8 मेरे FरGते के एक चाचाजी OPतभाशाल8 और बहुत संवेदनशील थे. ले†कन उनक3 OPतभा, संवेदनाओं और धैयN को सौतेल8 मां क3 अनावGयक डांट फटकार और =पटाई Pनगल गई थी, ~लहाजा वे गांव से भागकर शहर पहुंचे. शहर म` कोई अपना तो था नह8ं, सो उ–हHने एक धनी jयिnत का दरवाजा खटखटाया''साहब कोई काम ~मलेगा?'' ''nया काम कर सकते हो?'' ''साहब जो भी कह` गे. पूरा घर संभाल सकता हूं.'' सेठ जी 8-9 साल के उस बालक के साहस और बेबाक3 को दे खते ह8 रह गए. ''ठ©क है, पर वेतन nया लोगे?'' ''साहब वेतन क3 nया आवGयकता है? ~सर छुपाने के ~लए जगह चाsहए, वह8 बहुत है.'' ''अंदर चलो, काम ईमानदार8 से करना.'' सेठजी के घर रहने-खाने का sठकाना ~मल गया था. सचमुच वह बालक सारा घर संभाल रहा था और †कसी को उससे ~शकायत नह8ं थी. Dयार व स£मान क3 भी कमी नह8ं थी. मा~लक का हमउv बेटा भी उससे sहल~मल गया था. दोनH एक-दस ू रे क3 परे शानी को „बना कहे ह8 समझ जाते थे. ''संजू बाबा, आज इतना मायस ू -सा nयH बैठा है?'' संजू को परे शान दे खकर चाचा जी ने पछ ू ा.

''दे खो न! मुझसे ये सवाल नह8ं हो रहे , करके नह8ं जाऊंगा, तो &कूल म` =पटाई हो जाएगी.''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


=पटाई? चाचा जी के सामने सौतेल8 मां क3 अनावGयक डांट फटकार और =पटाई का मंजर जीवंत हो उठा. उसने उसके सारे सवाल हल करवा sदए. संजू ह=षNत हो उठा. शाम को घर आकर सेठ जी ने उसका गह ृ कायN दे खा, सारे सवाल सह8! उ–ह` =वGवास नह8ं हुआ, उससे पूछा- ''ये सवाल †कसने हल करवाए?''

''भैया ने.'' संजू ने डरते-डरते कहा. चाचा जी क3 &नेsहल पेशी हुई''बेटा ये सवाल तुमने कैसे हल कर ~लए? कभी &कूल गए हो nया?'' ''जी, दस ू र8 क|ा तक पढ़ा हूं. उसके बाद सौतेल8 मां क3 =पटाई से डरकर आपके Dयार क3 गोद म` शरण ल8 है.''

''पढ़ना चाहते हो?'' सेठ जी ने उसके ~सर पर Dयार का हाथ †फराते हुए कह ह8 तो sदया! ''जी मा~लक, मौका ~मला तो यह अहसान कभी नह8ं भूलूंगा.'' †फर nया था? उसका पढ़ाई और घर संभालने का काम चलता रहा. 12वीं पास करके वे दे हरादन ू म` सवÉ आफ इं•डया म` नौकर8 करने लगे. उन sदनH वह हमारे ह8 घर पर रहते थे. साथ ह8 आगे क3 पढ़ाई भी कर रहे थे.

बचपन म` अनावGयक डांट फटकार और =पटाई, Dयार के अभाव व भार8 काम के बोझ ने उनका बचपना तो छ©न ह8 ~लया था, साथ ह8 ट8 बी क3 बीमार8 भी दे द8. िजसके ~लये उ–ह` नैनीताल के पास ~भवानी सेनेटोFरयम म` भरती †कया गया. वहां से ठ©क होकर आने के बाद उ–हHने पीछे मुड़कर नह8ं दे खा. उ–हHने नैनीताल म` ह8 अपनी Oेस &था=पत क3, अपना समाचार प¨ Pनकाला जो चल Pनकला. साथ ह8 वह पढ़ाई भी जार8 रखे हुए थे. अब वह एक गणमा–य jयिnत बन चक ु े थे. अ¦छा बंगला और बोट हाउस भी था. जाने-माने नेतागण जब भी नैनीताल आते थे, उनके घर पर ज¤र आते थे. वह 14 =वदे शी भाषाएं फराNटे के साथ बोल

सकते थे, पढ़ व ~लख भी सकते थे. मेरे =ववाह म` सि£म~लत होने भी वह आये थे पर उसी sदन उनक3 त„बयत खराब हो गयी और उ–ह` बीच म` से ह8 जाना पड़ा. कुछ समय बाद उनका दे हावसान हो गया. तब उन पर एक ल¸धOPत¹ठ समाचारप¨

म` 'च™चNत लोग' कालम म` लेख छपा था. &थानीय दरू दशNन व आकाशवाणी ने भी

उनको ¯Žधांज~ल दे ते हुए एक कायNšम OसाFरत †कया था. यह भी एक कमाल ह8 था िजसम` †क&मत का खेल और पढ़ने क3 लगन दोनH ह8 थे. इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


एक संवेदनशील jयिnत ने एक लगनशील बालक के मन म` नई जान फूंक द8 थी.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


33.

नvता

रोज क3 तरह आज भी मk सैर पर गई थी, बस समय कुछ ~भ–न था. वैसे मk

सुबह 8 बजे जाती हूं, जब सूरज को उदय हुए 2 घंटे हो चुके होते हk, आज सायंकाल 6 बजे गई थी, जब सूरज के ढलने म` 2 घंटे शेष थे. सुबह भी धप ू तेज होती है, शाम को भी तेज थी, †फर भी सूरज के jयवहार म` जमीन-आसमान का अंतर!

''यह कैसे हो गया?'' मन म` एक OGन उठा. अब भला सरू ज दादा के मन क3 बात को मk nया समझं? ू

''सूरज दादा, Oणाम.'' हमने सीधे सूरज से ह8 बात करनी शु’ कर द8. ''आय¹ु मान, बŽ ु ™धमान, सेवामान,'' सरू ज दादा ने शभ ु आशीवाNद दे ते हुए पछ ू ा. ''मन म` कोई शंका है nया प¨ ु ी?'' शायद वे मेरे असमंजस को जान गए थे. ''दादा जी, शंका तो नह8ं कह सकते, हां िजzासा अवGय है.'' ''कहो पु¨ी, PनिGचंत होकर कहो.'' सूरज दादा ने आGव&त करते हुए कहा. ''दादा जी, सुबह तो मुझे आपके Oकाश म` Oखरता का पुंज महसूस होता है, इस

समय आप नvता के पुतले बने हुए लग रहे हk. मेरा अनुमान सह8 है nया?'' मkने अपनी िजzासा रखी. ''„बलकुल सह8 है पु¨ी.'' सूरज दादा ने कहा. ''वो nयH? कोई खास कारण?'' ''सुबह मुझे Oखरता क3 सÂत ज¤रत होती है . उस समय मुझे Oजा के पालन-पोषण का कायN करना होता है, रात के जीव-जंतुओं से Pन&तार sदलवाना होता है, खेतH को पोषक तãव दे ने होते हk, &व¦छता क3 सार-संभाल करनी होती है, गsृ ह§णयH के धुले

कपड़H, अनाज, मसालH, पापड़H को सुखाना होता है . इसके ~लए यौवन के Pनखार क3 ज¤रत होती है , उस समय मेरे यौवन का समय होता है, तदनुसार Oखरता का पुंज होने म` ह8 सबका भला sदखता है.'' सूरज दादा ने अपना राज खोला.''

''दादा, आप बात तो ठ©क कह रहे हk. हम मानवH के साथ भी ऐसा ह8 होता है. यौवन म` शिnत का पंज ु भी होता है, अतः ब¦चH के सज ृ न और पालन-पोषण के ~लए शिnत

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लघुकथा सं•ह-9


का संचार होता है , ले†कन मुझे लगता है, अहंकार भी अपना रौब sदखाता है.'' मkने sहचकते हुए कहा.

''यह8 तो मुझम` और मानवH म` अंतर है. समय के साथ मk अहंकार को छोड़ता चला

जाता हूं, यौवन के ढलते ह8 अपने अनुभव से नvता का चोला धारण कर लेता हूं. उस समय जैसे मेरे तेज म` कमी आ जाती है, मानवH को भी कई संदेशे आ चुके होते हk. आंखH क3 रोशनी कम होती जाती है, कानH क3 |मता मंद हो जाती है, दांत झरने लगते हk, घुटने ™चटकने लगते हk, ले†कन अहंकार का •ाफ बढ़ता ह8 चला जाता है. वह सोचने लगता है- मkने ब¦चH के ~लए बहुत कुछ †कया, अब ब¦चे मेरे ~लए सब कुछ कर` , जब †क मk †कसी से कोई अपे|ा नह8ं रखता. दे ता-ह8-दे ता हूं. िजसे तुम sदन कहते हो, उस समय धरती के उस भाग को तेज-ताप-रोशनी दे ता हूं, †फर तु£हार8 रात म` „बना †कसी भेदभाव के धरती के बाक3 बचे हुए भाग को सब कुछ

अपNण करने चला जाता हूं.'' छोट8-सी बदर8 क3 ओट म` जाते हुए सूरज दादा क3 खर8खर8 बात` मेरे sदल म` उतरती जा रह8 थीं. ''यह8 नvता और Pनः&पह ू रे भाग को O•व~लत करने के ~लए ृ ता मुझे धरती के दस पुनः शिnत Oदान करती है. यह8 नvता मुझे पूजनीय एवं स£माननीय बनाती है'' बदल8 को सहलाकर दादा ने पुनः कहना शु’ †कया.

अनभ ु वी सरू ज दादा क3 नvता का राज मझ ु े समझ म` आ गया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


34.

संयोग

हर बुधवार क3 तरह इस बुधवार भी मk English Conversation (Australian

Accent)पढ़ने के ~लए &कूल गई थी. संयोग ऐसा हुआ, †क मुझे क|ा म` अक&मात भारत के Oथम रा¹xपPत डॉ राज`³ Oसाद के बचपन क3 याद आ गई. हुआ यह †क हमेशा क3 तरह मk अपनी क|ा म` सबसे पहले पहुंची थी. हमार8 ट8चर को तो आधा घंटा पहले आना था, सो वे पूरे sदन पढ़ाने के ~लए सेsटंग कर रह8 थीं. ''होम वकN कर ~लया?'' गुड मॉPनªग करने के बाद उ–हHने मुझसे काम करते-करते ऐसे ह8 संवाद शु’ करने के ~लए पूछ ~लया.

मk तो पहले ह8 ब¦चH क3 तरह होम वकN हाथ म` लेकर बैठ© थी, सो मkने वह8 sदखा sदया. जवाब दे ने क3 ज¤रत नह8ं पड़ी. ''ओह! वैर8 गुड.'' उ–हHने है रानी से कहा. ''आप सबने होम वकN कर ~लया है?'' जब होम वकN वाला पीFरयड आया, तो उ–हHने सबसे पूछा. &वभावतः सबने हां कहा था. ''मkने 14 श¸द यु±मH म` से †कसी एक यु±म का वाnय बनाने को कहा था, ल8ला ने

सभी यु±मH के वाnय बनाए हk, इस~लए सबसे पहले ल8ला ह8 अपनी पसंद का वाnय सुनाएगी.''

मkने अपनी पसंद का वाnय सुना sदया. बाद म` सबने अपनी-अपनी पसंद का वाnय सुनाया. 2-3 छा¨ाओं ने नं. 8 वाnय ह8 तैयार †कया था.

''मkने आपको एक यु±म का वाnय बनाने को कहा था, आपने सभी वाnय nयH बना sदए?'' ट8चर ने आ§खर म` मुझसे पूछा.

''हम यहां zान अिजNत करने के ~लए आते हk िजतना अ™धक zान अिजNत हो सके, अ¦छा है. इस~लए मkने सभी वाnय ~लख ~लए थे.'' ट8चर क3 शाबाशी के साथ ह8 मुझे डॉ राज`³ Oसाद के बचपन का †क&सा याद आ गया. उनको PनदÉ शानुसार पर8|ा म` 14 म` से कोई 5 OGन करने थे. उ–हHने सभी

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लघुकथा सं•ह-9


OGनH का उµर ~लखकर अंत म` ~लख sदया था- ''कृपया †क–ह8ं 5 OGनH के उµर जांच`.''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


35.

गोद

अभी-अभी पुलवामा के शह8द मेजर =वभूPत के पा™थNव शर8र पहुंचने का भावभीना समाचार पढ़ा. =पछले साल ह8 मेजर =वभPू त से शाद8 करने वाल8 Pन†कता के सामने

मंगलवार को जब Pतरं गे म` ~लपटा पPत का पा™थNव शर8र आया तो उ–हHने माथे को चूमने के बाद 'आई लव यू' बोल उ–ह` अंPतम =वदाई द8. उनके साहस को नमन करते हुए मुझे शकुंतला क3 &मPृ त हो आई.

''भरत क3 मां हूं मk! भरत से ह8 भारत है. मk शकंु तला हूं. अगर मk ह8 मायस ू रह8 तो मेरे भरत का nया हाल होगा?'' परसH ह8 शकंु तला से मल ु ाकात हुई थी, तब उसने कहा था. ऑ&xे ~लया क3 इं•डयन सीPनयर ~सsटजंस क3 मीsटंग म` पल ु वामा

के 40 शह8दH क3 &मPृ त म` गमगीन-बो§झल वातावरण को शकंु तला ने ह8 हiका †कया था.

''भारत मां क3 तरह मेरे भी कई लाल हk. एक मुझे यहां मीsटंग म` छोड़कर गया

है, एक पुलवामा म` मेजर है, एक लेह म` पो&टे ड है.'' 80 साल क3 शकुंतला सबको हंस-हंसकर जवाब दे रह8 थी. इस हंसने के पीछे ग़म का भरा-पूरा सैलाब था, यह उसको भी पता है, हम सबको भी.

''शह8द मेजर द¹ु यंत क3 तीमी हूं, दे शभिnत मेरे लालH को घु˜ट8 म` =पलाई गई

है, उससे पहले वह घु˜ट8 मkने और मेरे मेजर पPत ने जमकर पी थी.'' शकुंतला ने

कहना जार8 रखा- ''मेरे मेजर ने कहा था, मेरे शह8द होने पर रोना नह8ं है , बेटH को भी फौज म` जाने से मत रोकना. मkने ऐसा ह8 †कया था, आंसुओं को बाहर आने ह8 नह8ं sदया था, अब तो आंसू भी पˆथर हो गए हk.'' शकुंतला ह8 सबक3 िजzासा के आकषNण का क̀³ थी.

''मेजर ने ह8 सबसे छोटे बेटे का नाम भरत रखा था. परू ा पFरवार ह8 दे श के काम आ रहा है , तो उदास होने क3 गंज ु ाइश ह8 नह8ं है . मेरा भरत िजंदा आया तो उसे मां क3 गोद ~मलेगी, शह8द हो गया तो भारत मां क3 गोद ~मलेगी. दोनH म` कोई फ़कN नह8ं है.'' ''सचमुच ऐसी ह8 वीर माताओं के कारण भारत मां के लाल =वषम पFरि&थPतयH से भी मुकाबला कर लेते हk, मां क3 गोद तो ~मलेगी ह8!'' मेरे मन ने मझ ु े तसiल8 दे ने क3 को~शश क3.

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लघुकथा सं•ह-9


36.

अंगूठा

कभी-कभी कोई सामा–य-सी बात भी अतीत के झरोखH म` ले जाती है, यह बात मुझे आज समझ आई.

सुबह उठते ह8 दाsहने हाथ के अंगूठे के ददN ने मुझे उं ग~लयH क3 महासभा म` पहुंचा sदया. वतNमान के =ववादपूणN महौल ने इस महासभा को भी =ववाद का मंच बना sदया था.

अंगूठा अपने को उं गल8राज क3 पदवी का अ™धकार8 समझता था, तो

तजNनी, म]यमा, अना~मका और कPन¹ठा अपना ह8 राग अलाप रह8 थीं. कPन¹ठा को अपने दस ू रे नाम कPन¹का पर भी गवN था और सबसे छोट8 होने के कारण उसे सबसे अ™धक Oेम क3 आकां|ा भी थी.

अना~मका sदल क3 कर8बी और =ववाह क3 अंगूठ© पहनने के कारण ग=वNत थी. म]यमा सबसे बड़ी होने के दपN से द8=पत थी. तजNनी क3 तो बात ह8 Pनराल8 थी. अंगूठे के साथ योग म` सहायक होने, तजNनी म` ¯ीकृ¹ण के सुदशNन चš थामने, बाण (तीर) चलाने म` अंगूठे या म]यमा के साथ

तजNनी का संग ज¤र8 होने, चुप रहने या जाने के इशारे क3 Oतीक होने, खाŽय पदाथN चखने, अंगूठे के साथ कलम पकड़ने, सुई म` धागा =परोने, कंचा फ̀कने, चुटक3 भरने, बटन लगाने आsद के कई रे कॉडN उसी के नाम थे.

शांत रहकर अंगूठा अपनी बार8 क3 Oती|ा कर रहा था. सबने उसे कुछ कहने को

उकसाया.

''अब मk ह8 फFरयाद8 बनंू और मk ह8 जज, यह ठ©क नह8ं रहे गा. जब चन ु ाव ह8 होना है, तो आप म` से कोई जज बने, तभी बात बनेगी.'' अंगठ ू े ने अपने =वचार रखे.

''इसका मतलब जो जज बनेगा, उसे चुनाव से बाहर होना पड़ेगा?'' सभी ने मन म`

सोचा. तभी सबसे पहले बोलने वाल8 कPन¹ठा ने कहा- ''वैसे तो मk सबसे छोट8 हूं, पर अगर आप सबको मंजूर हो, तो यह काम मk ह8 कर दे ती हूं,'' उसके सबसे छोट8 होते

हुए भी बाक3 तीनH उं ग~लयH ने अपनी &वीकृPत दे द8, अ–यथा उनके PनवाNचन क3 राह ह8 बंद हो जाती.

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लघुकथा सं•ह-9


''दे §खए, मेरे =वचार म` मेरा महãव सबसे अ™धक है, nयH†क मk †कसी भी उं गल8 के साथ तालमेल कर सकता हूं, पर मेरे „बना सबका काम ’क जाता है,'' अंगूठे ने अपनी बात जार8 रखते हुए कहा, ''आपको ग’ ु ³ोणाचायN Žवारा एकलjय से ग’ ु

दÈ|णा म` अंगठ ू ा मांगने वाल8 बात तो याद ह8 होगी? उनका मानना था †क न होगा बांस न बजेगी बांसरु 8...''

''पर यह तो पुराने जमाने क3 बात हुई.'' म]यमा ने बीच म` टोकते हुए कहा. ''चलो इस जमाने क3 बात कर लेते हk, इसी कॉलोनी म` पावNती गोयल आंट8 रहती हk न! उनका दाsहने हाथ का अंगठ ू ा छोटा और मड़ ु ा हुआ है , †फर भी परू 8 कॉलोनी म` उनके जैसा कोई sदलदार और दमदार jयिnत नह8ं होगा और उनके जैसी रसोई तो कोई बना ह8 नह8ं सकता. सारे काम वे मेरे ह8 बलबूते पर करती हk...'' ''ठहरो-ठहरो, िजनके अंगूठा नह8ं होता, वे भी तो सारे काम कर लेते हk न!'' अन~मका भला nयH पीछे रहती!

''ऐसे तो िजनके दोनH हाथ ह8 नह8ं होते, वे भी तैराक3 तक कर लेते हk.'' तजNनी कब तक चुप रह सकती थी. ''चलो यह भी सह8, पर मुझे बात तो पूर8 कर लेने द8िजए. अनूप क3 बात तो याद है न! नाम अनूप और काम कु¤प! †कतने दःु ख सहकर माता-=पता ने पाला था

उसको, एक ह8 झटके म` यह कहकर ''मk आतंक3 बनने जा रहा हूं.'' माता-=पता के अरमानH के साथ दे श क3 सरु |ा को भी अंगठ ू ा sदखा sदया था, यह तो भला हो

उसक3 मां क3 भावभीनी ™च˜ठ© का, िजसम` मां ने उसको आतंकवाsदयH के जाल से Pनकलकर घर आने के ~लए राजी †कया. जाने कैसे अनप ू को सŽवŽ ु ™ध आ गई, †क उसने आतं†कयH के जाल को छोड़कर अपने घर आने का मन बना ~लया और आतंकवाद को अंगठ ू ा sदखा sदया...'' ''यह8 तो बात है, बस अंगूठा sदखा दो, ™चढ़ा दो, साथ छोड़ दो, यह8 आता है

तु£ह` ...'' तीनH उं ग~लयH ने एक साथ कहा- ''तुम हमारे राजा बनने लायक हो ह8 नह8ं.''

''अब मेर8 बात भी सुन लो,'' जज साsहबा ने सबको चुप कराते हुए कहा- ''राजा बनने का हक तो केवल अंगूठे को ह8 है. आजकल जमाना ह8 अंगूठे का है. आपने दे खा होगा †क अंगूठा sदखाकर ™चढ़ाना तो पुरानी बात हो गई. अब तो आपको †कसी क3 कोई भी बात अ¦छ© लगे, झट से अंगूठा sदखा द8िजए. सामने वाले का sदल बाग-

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


बाग हो जाता है. फेसबुक पर जो लाइक है , वह भी तो अंगूठा ह8 है . लोग

अ™धका™धक लाइक पाने के ~लए ह8 न जाने nया-nया करते हk! अब अंगूठा कुछ कहे न-कहे , अंगठ ू े क3 मsहमा अपरं पार है. सब ~मलकर बोलो- अंगठ ू े महाराज क3!'' ''जय.'' सबने एक साथ ~मलकर कहा. अंगठ ू े ने ~सर झक ु ाकर सबका अ~भवादन &वीकार †कया.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


37.

पFरंदा

उसने जैसे ह8 सुबह-सुबह अपना ¸लॉग Oका~शत †कया, ¸लॉग का नंबर दे खकर ह=षNत हो गई. nया था उस नंबर म`!

वह नंबर था- 2112. सबके ~लए यह केवल नंबर, पर कनक के ~लए खुशी का

खजाना. उसके अपने नाम म` भी तो यह8 =वशेषता थी, उiटा-सीधा एक समान. तभी उसे बचपन म` डालडा का •ड¸बा बहुत अ¦छा लगता था. उiटा-सीधा एक समान से उसे 1991 क3 याद भी आ जाती थी. उस साल ए£स, sदiल8 क3 डॉ. टnकर ने उसका यx ू े स Fरमव ू ल का ऑपरे शन †कया था. दस ू रे sदन जब वह उसे देखने आई तो डॉ. टnकर ने उसे बताया था- ''त£ ु ह` तो शायद पता नह8ं लगा होगा, मkने 3 घंटे

झक ु कर त£ ु हारा ऑपरे शन †कया था. उसका संतल ु न „बठाने के ~लए 3 घंटे वèासन

म` ~सर ऊपर करके बैठना पड़ा, तब कह8ं जाकर कमर सीधी हुई और मkने कुछ खाया=पया.'' संतुलन! &मPृ तयH का पFरंदा ऑ&xे ~लया उड़ चला था. उसे याद आई jह8ल चेयर लेकर रोज सैर पर Pनकलने वाल8 85 साल क3 ऑ&xे ~लयन मsहला कोह क3. कोह यानी अवधी भाषा म` इसका अथN šोध?ले†कन मsहला का संतुलन गज़ब का था. उसक3

PनमNल हंसी इतनी लाजवाब थी, †क लगता नह8ं †क उसने कभी ग& ु सा †कया होगा. उसक3 स~ु श|ा का ह8 यह पFरणाम था, †क आज भी चलते-†फरते लोग उससे एक घंटा बPतयाकर खुश होते हk.

~श|ा से पFरंदा †फर भारत के „बगड़े बोलH के जाल म` उलझ गया था. इ–ह8ं „बगड़े बोलH के कारण न तो संसद अपना काम सह8 ढं ग से कर पा रह8 है , न ह8 सरकार. अंदर के दGु मनH के साथ बाहर8 दGु मन भी वार करने से नह8ं चूकता. ~श|ा के OचारOसार से होने वाले फायदH से वह अनजान नह8ं था. उसने ~श|क को पढ़ाते हुए सुना था- ''†कसी कारण से एक व| ृ काटना पड़े, तो OकृPत के संतुलन के ~लए दस नए व| ृ लगाओ'' ले†कन असल म` हो nया रहा था? मानव अपनी मानवता भूलकर दस व| ृ काटकर एक व| ृ भी लगाने से कतराता है, †क †फर रोज इसको पानी दे ना पड़ेगा.

पानी? पFरंदे को †फर याद आया. ''तीसरा महायुŽध हुआ, तो पानी के कारण ह8 होगा'', यह कई बार वह सुन चुका था, ले†कन पानी क3 बरबाद8 का नजारा उसे रोज sदखाई दे ता था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''जैसे उ•ड़ जहाज का पंछ© †फFर जहाज पै आवै'', जहाज श¸द से कनक क3 &मPृ तयH का पFरंदा भी मोबाइल के मैसेज से पुनः वा=पस आ गया था. सुदशNन ख–ना का मैसेज था-

''अब इंतजार है 3113 का और आप यह कर सकती हk, यानी †फर उiटा-सीधा एक समान!''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


38.

एयर &xाइक

पुलवामा हमले क3 तेरहवीं का sदन भी आ गया था, ले†कन शह8दH के पFरवारH को †कसी तरह से संतुि¹ट ~मलने क3 कोई संभावना नह8ं sदखाई दे रह8 थी. सभी

दे शवा~सयH का मन भी मायस ू -सा हो रहा था. सुबह-सवेरे अखबार खोला, तो ऐसी

कोई खबर नह8ं sदखाई द8, िजससे †कसी साथNक बदले क3 भावना sदखाई दे . बदला भी साथNक होता है! यह बात कम ह8 लोग सोच पाते हk, ले†कन सरकार और भारतीय वायु सेना ने यह संभव कर sदखाया. 40 शह8दH क3 तेरहवीं के sदन पीओके म` एयर

&xाइक कर भारतीय वायुसेना ने आतंक3 कk पH को ने&तनाबूद कर sदया. थोड़ी दे र बाद ह8 यह समाचार आ भी गया था.

इस महˆवपण ू N ऑपरे शन क3 तैयार8 पल ु वामा हमले के बाद से हो रह8 थी और पाक

को सतकN होने का कोई मौका न ~मले. पा†क&तान को उलझाए रखने के ~लए उड़ान भरने के ~लए ±वा~लयर एयरबेस को चन ु ा गया. इन सबके बीच मोद8 जी शांत™चत

होकर अपने सब काम Pनय~मत ¤प से कर रहे थे. 'जो आग त£ ु हारे sदल म` है वह8 मेरे सीने म` भी है' कहने, 'इलाका तु£हारा होगा, वnत और धमाका हमारा

होगा' कहने, 'भारत पहले छे ड़ता नह8ं, ले†कन बाद म` छोड़ता भी नह8ं' कहने, कुंभ के मेले म` गंगा-&नान करने, =व™धपूवNक पूजन-अचNन करने, &व¦छा•sहयH के चरण

पखारने, चुनावी-जनसभाएं करने, नींव रखने, उŽघाटन करने जैसे अनेक चेहरे sदखाई sदए, पर †कसी चेहरे से अंदाजा नह8ं लगाया जा सका, †क मोद8 जी के मन म` nया चल रहा है? ऐसा “éमने¹ठ© चेहरा †कसी-†कसी का ह8 हो सकता है . इस “éमने¹ठ© चेहरे ने एयर &xाइक करवाई, पर Pनहˆथे नागFरकH या जवानH क3 बस पर नह8ं, पा†क&तान के उन जैश आतंक3 कk पH पर जहां 'मानव बम' बनते थे. यह एयर &xाइक केवल बदले क3 भावना नह8ं थी, यह था साथNक बदला, आतंक क3 जड़ को ने&तनाबद ू करना.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


39.

पांच झरोखे

आज बहुत समय बाद वह आराम से सोई है. उसका मन शांत व मि&त¹क तनाव रsहत हो गए थे. Pन³ा ने दे ह के साथ-साथ मन और मि&त¹क क3 थकान ~मटा द8 थी. यह सब कैसे हो गया! वह खुद अचं~भत थी. ऐसा नह8ं था †क इससे पहले वह †कसी मनो™च†कˆसक के पास नह8ं गई थी. एक छोड़ उसने अनेक मनो™च†कˆसकH के चnकर लगाए थे, पर उनम` और इस मनो™च†कˆसक म` एक अंतर था. बाक3 सब उसके अ~भभावकH से अस~लयत जानने क3 को~शश करते थे, पर इसने इससे अकेले म` ह8 बात करना उ™चत समझा. शायद उसका तर8का ह8 यह8 हो. उसने भी †कसी अ–य के सामने अपनी jयथा को मख ु र नह8ं †कया था, इस बार कोई चारा न था, बोलना ह8 पड़ा.

''डॉnटर साहब, आप दे ख ह8 रहे हk, †क मk अभी भी सूरत से मनभावन लगती

हूं, OPतभा क3 भी मुझम` कमी नह8ं थी. बचपन म` मेर8 इसी खूबसूरती और OPतभा पर वह~शयत का साया पड़ गया था, इस~लए कभी-कभी मुझे उस समय क3 चीख` बेबस कर दे ती हk.'' सामने पड़े पानी के ™गलास से एक घूंट पानी पीकर वह तPनक संयत हुई.

''उससे पहले मझ ु े घर म` बहुत Dयार ~मलता था, ले†कन इस हादसे के बाद मk

™चड़™चड़ी हो गई और Dयार को तरसती रह गई. अब मk 18 साल क3 होकर भी गु•ड़यH म` Dयार ढूंढती हूं.'' वह डॉnटर साहब क3 OPत†šया दे खना चाह रह8 थी, ले†कन वे Pन~लNDत-से sदखे. ''&कूल म` मेर8 OPतभा को सराहने वाले कम थे, ई¹याN करने वाले अ™धक, यह भी मझ ु े नागवार लगता था.'' उसने एक घंट ू पानी और =पया.

''ममा अपना „बजनेस करती हk. उ–हHने अपने नाम पर एक दक ु ान †कराए पर

ल8, उसम` एक सहे ल8 को भी सहभागी बनाया. सहेल8 ने उं गल8 पकड़कर पहुंचा पकड़ ~लया और ममा को दक ु ान छोड़नी पड़ी. मन करता है, उसको जकड़कर §झंझोड़ दं .ू '' उसके बोलने म` जकड़कर §झंझोड़ने क3 तiखी &प¹ट थी. उसने गहर8 सांस ल8 और चुप हो गई.

''और कुछ?'' डॉnटर साहब ने पूछा.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''बस †फलहाल इतना ह8 याद आ रहा है, इससे याद आया †क मk कुछ-कुछ भूल जाती हूं, †फर अचानक याद आ जाता है.''

''दे §खए, आपके मि&त¹क म` पांच मि&त¹क हk.'' डॉnटर साहब ने कहा.

=वGवासपूवNक

''पांच मि&त¹क?'' उसने कहा, ''ले†कन मेरे =वचार से तो हर jयिnत बेटा, बाप, भाई, पPत, ~म¨ आsद होता है, तो nया वो अ™धक मि&त¹क वाला होता है?'' ''नह8ं, ये तो उसके ¤प हk. †कसी म` अनेक तरह क3 OPतभा होती है, उसे बहुआयामी कहते हk. आपक3 बात कुछ अलग है, िजस समय िजस मि&त¹क का वचN&व होता है, आप वैसा jयवहार करती हk.'' ''इसका कोई इलाज?'' ''इलाज आप खुद हk. आप अपने आप म` रsहए, खुद को सहलाइए, खुद को बहलाइए, खुद को अपना साथी बनाइए, सब आपके साथी बन जाएंगे.'' ''और नींद?'' ''नींद भी आपक3 सहचर8 बन जाएगी. बहुक̀s³त न रहकर &वक̀s³त रsहए.'' ''†फर कब आऊं?'' ''मेरे sहसाब से तो आपको आने क3 ज¤रत ह8 नह8ं पड़ेगी.'' डॉnटर साहब के पास दब ु ारा न जाने का संकiप लेकर ह8 उसने चार झरोखH को =वदाई द8 थी.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


40.

अzातवास

आज एक समाचार ने महाभारत युग म` पहुंचा sदया. इस युग म` कौरवH ने अपने ह8 भाइयH को अzातवास के ~लए भेज sदया था. इस अzातवास का कारण था आपसी संघषN. आप जानते ह8 हk †क आपसी संघषN से पFरवार, समाज, दे श-दPु नया का

सवNनाश हो जाता है. अzातवास क3 यह परं परा आज भी जार8 है, ले†कन इसका कारण सकाराˆमक है. अzातवास क3 इस परं परा को जी=वत रखने वाले सूरत के

डायमंड †कं ग हk सवजीभाई ढोल†कया. उनके पFरवार वाले इसका अनुसरण करते हk.

पैसे क3 वैiयू बताने के ~लए वे ब¦चH को अzातवास पर भेजते हk. ढोल†कया जी के श¸दH म`-

''इसक3 श’ ु आत 17 साल पहले हुई थी. हम अपने परू े पFरवार के साथ =वदे श गए थे. वहां एक रे &तरां म` जब खाना खाने के बाद मkने „बल देखा तो उसम` 4 पापड़ क3 क3मत 16 पाउं ड थी. मkने भतीजे से पछ ू ा †क 4 पाउं ड का एक पापड़ है. इतना महंगा पापड़ अलग से मंगाने क3 nया ज¤रत थी? तो उसने कहा †क मkने पापड़ दे खा, रे ट नह8ं. आपको पापड़ पसंद है, इस~लए मंगा ~लया. उस वnत मkने उससे कुछ नह8ं

कहा, ले†कन मkने सोचा †क हमारे ब¦चH को पैसे क3 क3मत nया होती है , यह तो पता चलना ह8 चाsहए. तभी से हम अपने पFरवार क3 –यू जेनरे शन को पढ़ाने-~लखाने के बाद, एक मह8ने तक „बना अपनी पहचान बताए और „बना फोन के †कसी दस ू रे

शहर म` अzातवास पर भेजते हk. इस एक मह8ने म` उसे 4 नौकFरयां कर पैसे कमाने होते हk.'' पैसे क3 क³ होने के कारण ह8 –यू जेनरे शन को अzातवास पर भेजने वाले सवजीभाई ने 179 ’पये क3 नौकर8 से इतनी बड़ी 9 हजार करोड़ क3 कंपनी बनाई. इस जॉब के दौरान ह8 उ–हHने डायमंड कsटंग और पॉ~लश का काम सीखा. †फर धीरे -धीरे अपना धंधा श¤ ु करने क3 सोची. सरू त आकर उ–हHने यह काम श’ ु †कया, आज सरू त और मंब ु ई म` 'हFर कृ¹णा एnसपोटN Oा. ~ल.' म` 8000 कमNचार8 काम करते हk.

ये कमNचार8 सामा–य कमNचार8 नह8ं हk, कंपनी म` इनका बहुत बड़ा योगदान है. इनको Oेरणा और Oोˆसाहन दे ने के ~लए सवजीभाई उ–ह` कार या घर दे ते हk. वे उ–ह` ज¤रत क3 हर चीज मुह·या करवाते हk. उनका कहना है- ''कंपनी •यादा बड़ी होती तो सबको एक-एक म~सNडीज ब`ज ज¤र दे ता.'' अ™धक मुनाफा होने पर ऐसा होना भी संभव है,

सबको भरपेट मुÆत खाना §खलाने वाल8 इस कंपनी के Pनयम बहुत सÂत हk. „बना हे लमेट ´ाइव करनेवाले और तंबाकू खानेवालH पर सÂत कारNवाई होती है. अ¦छे इंसान

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


ह8 अ¦छ© कंपनी बना सकते हk. स¦ची लगन और मेहनत के पFरणाम&व¤प खड़ी इस कंपनी Žवारा इस साल एक-एक कमNचार8 से पूछ-पूछकर घर, कार, जूलर8 या एफडी

म` से िजस चीज क3 भी ज¤रत •यादा कमNचाFरयH को होगी, वह तोहफा sदवाल8 पर sदया जाएगा. कमNचाFरयH के लाजवाब योगदान के ~लए उ–ह` sदए जाते हk क3मती तोहफे और ब¦चH को पैसे क3 क3मत बताने के ~लए उ–ह` sदया जाता है अzातवास.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


41.

मासूम मु&कुराहट!

जैसे ह8 तिृ Dत ने मु&कुराती हुई „बना बालH वाल8 खूबसूरत दi ु हन का समाचार दे खा, तिृ Dत पहले तो उसे दे खती ह8 रह गई. वह म& ु कुराहट ओढ़8 हुई मु&कुराहट नह8ं थी, मासूम मन क3 मासम ू मु&कुराहट लग रह8 थी. “े&ट कk सर से ›3 होने के बाद

~लवर और र8ढ़ क3 हâडी का कैसर! लगातार पांच साल के इलाज और

क3मोथेरपी के बाद बाल भला कहां बच सकते थे! इतने बड़े तांडव के बाद भी इतनी मासूम मु&कुराहट! मलये~शया क3 दi ु हन वै¹णवी क3 त&वीर दे खते-दे खते तिृ Dत अपनी त&वीर म` खो गई.

उसे भी तो इस तांडव से दो-दो हाथ करने पड़े थे न! हमेशा से भारतीय पFरधान क3 द8वानी तिृ Dत कभी बनारसी साड़ी और कभी कामदार सलवार-सट ू म` सजने वाल8 खब ू सरू त ग•ु ड़या-सी लगती थी. आज उसने पाGचाˆय पFरधान के साथ ~सर पर

हैटनम ु ा टोपी को म& ु कुराहट के साथ अपना ~लया था, ता†क हर †कसी को अपनी

दा&तां बयां करने के ददN से बच जाए. पर उसे nया ~सफN इसी तांडव से जझ ू ना पड़ा था? †कस-†कस तांडव को ™गनाए?

भले ह8 नैन-नnश खूबसूरत हH, पर रं ग सांवला हो तो लड़क3 क3 शाद8 म` मुिGकल

आना &वाभा=वक-सा हो गया है. †कसी तरह शाद8 हुई, तो †फर संतान होने म` दे र8 पर सासू मां का तांडव भी कोई कम नह8ं था. वह भी हुआ †फर सासू मां का गंभीर

¤प से बीमार होना और सब बहुओं के †कनारा कर जाने पर सारा बोझ उस पर आना भी †कसी तांडव से कम कहां था? सासू मां क3 सेवा कर उ–ह` अंPतम =वदाई दे कर

सांस भी नह8ं ल8, †क ननद` घर-Žवार म` अपने sह&से क3 मांग पर अड़ ग». ससरु जी ऐसी वसीयत जो कर गए थे! उस तांडव को भी वह सहजता से झेल गई थी. नाम के अन’ ु प िजतना कुछ sह&से म` आया,उसी म` उसने तिृ Dत क3 खोज कर ल8 थी. अभी एक और तांडव उसक3 Oती|ा म` था. उसने सपने म` भी नह8ं सोचा था, †क मा¨ शार8Fरक कमजोर8 के कारण ¸लड टे &ट करवाने जाने पर उसे डॉnटसN

“े&ट

कk सर का मर8ज घो=षत कर द` गे. कk सर का अथN ह8 था क3मोथरे पी करवाना और क3मोथरे पी का सीधा संबंध बाल उड़ जाने से था. ~शÈ|त होने के कारण इन सब नतीजH से वह वा†कफ़ थी, †फर भी अपनी इ¦छा शिnत के बलबूते पर सु~शÈ|त होने का Oमाण वह अपनी मासूम मु&कुराहट के ¤प म` दे पाई.

यह8 इ¦छा शिnत आज भी उसक3 मासूम मु&कुराहट कायम रखने और तांडव झेलने का संबल बनी हुई है.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


42.

जुनून

अभी-अभी कला-द8घाN म` पFरणाम क3 घोषणा करने के बाद ~शiपा घर वा=पस आई है. रह-रहकर उसे एक ™च¨ के सामने लगी भीड़ क3 याद आ रह8 थी. ''™च¨कार ने गज़ब का ™च¨ बनाया है.'' एक दशNक का कहना था. चुपचाप भीड़ का sह&सा बनी ~शiपा सुन रह8 थी.

''ये सहारा दे ने वाला हाथ भी बहुत खूब भू~मका अदा कर रहा है.'' ''यह मदाNना हाथ लग रहा है.'' ''पPत को पवNत क3 ऊंचाइयH तक पहुंचाने के ~लए यह पिˆन का हाथ सहारा दे रहा है.'' ''छोड़ो जी, यह हाथ ह8 नह8ं है, एक उं गल8 मा¨ है.'' ''एक उं गल8 को कम मत समझो, वासुदेव नंदन ¯ी कृ¹ण ने एक उं गल8 पर पूरा गोवधNन पवNत ह8 उठा ~लया था.''

''असल म` यह एक उं गल8 नह8ं, सहयोग का मधरु -शिnतदायक अहसास है.'' एक समझदार दशNक ने कहा. ~शiपा को यह बात बहुत पसंद आई.

''यह सा|ात जुनून का अहसास है.'' ~शiपा के मन ने कहा था. यह8 बात उसने बाक3 PनणाNयकH के PनणNय के बाद उसने अपने PनणाNयक मत के ¤प म` कह8 थी. यह जुनून का अहसास ह8 तो था, िजसने ~शiपा को पल-पल सहयोग sदया था. अ–यथा सात समुंदर पार ऑ&xे ~लया म` पहाड़-सी िजंदगी अकेले दम

जीना, दो-दो ब¦चH क3 परवFरश कर उ–ह` लायक बनाना, भारत म` रहने वाले भारतीय सेना म` तैनात पPत का उˆसाह बढ़ाना अपने आप म` एक पहाड़ पर चढ़ने जैसा ह8 तो था! ''आप सेना म` भारत रह` और मk ब¦चH के साथ ऑ&xे ~लया म`, यह कैसे हो सकता है?'' 20 साल पहले ~शiपा ने कहा था. ''~शiपा, यह8 तो हमार8 पर8|ा क3 घड़ी है न! सौभा±य से हम` ऑ&xे ~लया क3 ~सsटजन~शप ~मल गई है. कल को बड़े होकर इन ब¦चH को पता चलेगा, †क माता=पता के साथ रहने के फैसले के कारण हमने ऑ&xे ~लया म` पढ़ाई करने का अवसर इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


गंवा sदया था, तो वे हम` माफ नह8ं कर पाएंगे. कभी मk आता रहूंगा, कभी तुम आती

रहना, समय कटता चला जाएगा.'' बस =ववेक के इसी परामशN को उसने अपना जुनून

बना ~लया था और समय केवल कटा ह8 नह8ं था, बहुत अ¦छ© तरह िजया गया था. ™च¨ म` भार8 बोझ के साथ पहाड़ पर चढ़ने को आतरु एक jयिnत को सहारा दे ती हुई वह उं गल8 उसे =ववेक के उस परामशN क3 याद sदला गई थी, िजसे ~शiपा ने अपना जन ु न ू बना ~लया था. ब¦चH ने भी अपने माता-=पता के ˆयाग और तप&या को अपना जुनून बना ~लया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


43.

यह कैसी पर8|ा?

पर8|ा तो िजंदगी का दस ू रा नाम है. ले†कन यह कैसी पर8|ा? 14 साल क3 ट8या के

सामने यह OGन हमेशा क•धता रहे गा. कहां तो वह उस sदन बहुत उˆसाह से पर8|ा क3 तैयार8 म` जुट8 हुई थी, †क पापा और भाई के होटल से खाना लेकर आने के बाद उसे चैन से भाई क3 खुशी म` सि£म~लत होने क3 खुशी हा~सल होगी. ले†कन वह8 होता है, जो मंजूरे खुदा होता है . असल म`

ट8या का भाई ग=वNत पांचवीं म` पढ़ता था. उसक3 पर8|ा का Fरजiट आया

था. वह nलास म` सेकंड आया था. इससे पFरवार म` खश ु ी का माहौल था. ग=वNत क3 खश ु ी से सब ग=वNत थे और उसी sदन शानदार पाट” का आयोजन तय हुआ था. पाट” के ~लए होटल से खाना लेकर आने वाले न पापा घर वा=पस आए न भाई ग=वNत, आई तो उनके दPु नया से कूच कर जाने क3 खबर. हादसे म` र=वं³ और ग=वNत

क3 मौत क3 सूचना ~मल8 तो उनक3 पˆनी र8ना और मां बेहोश हो ग». बेट8 ट8या भी सुबक-सुबक कर रोई, ले†कन अ–य सद&यH क3 हालत दे खकर उसने दाद8 व मां को

ढांढस बढ़ाया. सुबह पFरवार वालH क3 सलाह पर वह 10वीं का ए±जाम दे ने गई.दोपहर 2 बजे ए±जाम दे कर घर लौट8 और छोटे भाई और =पता क3 शव या¨ा म` शा~मल

हुई. उसने sहंडन शमशान घाट पर ताऊ अPनल के साथ ~मलकर दोनH को मुखाि±न द8. यह कैसी पर8|ा थी? इस पर8|ा को nया वह कभी भुला पाएगी? इसी पर8|ा म` ट8या ने समाज क3 एक नई परं परा को सींचा था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


44.

सूरजमुखी फूल

अभी-अभी सुर`³ को बkक म` पदो–नPत क3 सूचना ~मल8 थी. वह खुशी से फूला नह8ं समा रहा था. उसी खुशी ने उसको &मPृ तयH को ताजा कर sदया था.

सुर`³ बkक क3 =वभागीय पर8|ा पास करके पदो–नPत पाने का आकां|ी था, पर पर8|ा क3 पेचीदगी के बारे म` सुनकर वह भयभीत भी था. तभी उसने एक महान jयिnत रॉब का एक कथन पढ़ा-

''मk एक गायक और गीतकार हूँ, अगर मk ये काम नह8ं कर रहा होता हूँ तो मk एक मुरझाये हुए फूल क3 तरह हो जाता हूँ और जब मk ये काम कर रहा होता हूँ तो मk एक छह फ3ट ऊँचे सूरजमुखी के फूल क3 तरह §खल जाता हूँ.''

इसे पढ़ते ह8 सरु ` ³ ने भी सफलता के ~लए सरू जमख ु ी फूल बनने का इरादा कर ~लया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


45.

साढ़े तीन ~मनट

„बलकुल ठ©क हो जाने के बाद द8पक को अपने बीते sदनH क3 याद आ रह8 थी. भीषण ठं ड के मौसम म` द8पक को रात म` अnसर 2-3 बार लघुशंका के ~लए उठना पड़ता था. „ब&तर से उठने के बाद वह एकदम चल पड़ता था. कई बार वह रात को

™गरते-™गरते बचा था. उसने सुना भी था, †क अ™धकतर हाटN अटै क रात म` ह8 होते हk. अब तो उसे डॉnटर के पास जाना ह8 था.

डॉnटर ने ज¤र8 जांच के बाद उसको हाटN अटै क क3 संभावना से इनकार नह8ं †कया था. उसे ज¤र8 दवाओं के साहN ज¤र8 sहदायत` दे ना भी अपना कµNjय समझा था. ''ठं ड के कारण शर8र का ¸लड गाढ़ा हो जाता है तो वह धीरे धीरे कायN करने के कारण परू 8 तरह हाटN म` नह8ं पहुँच पाता और शर8र छूट जाता है. इसी कारण से सद” के मह8नH म` 45 वषN से ऊपर के लोगH क3 êदयगPत ’कने से दघ N नाएं अˆय™धक ु ट होती पाई गई हk, इस~लए हम` सावधानी अˆय™धक बरतने क3 आवGयकता है .'' डॉnटर ने कहा था. ''हम` nया सावधाPनयां रखनी चाsहएं?'' द8पक का OGन &वाभा=वक था. ''साढ़े तीन ~मनट का Oयास एक उµम उपाय है. 1. नींद से उठते समय आधा ~मPनट गŽदे पर लेटे हुए रsहए. 2. अगले आधा ~मनट गŽदे पर बैsठये. 3. अगले ढाई ~मनट पैर को गŽदे के नीचे झूलते छो•ड़ये. साढ़े तीन ~मनट के बाद आपका मि&त¹क „बना खून का नह8ं रहे गा और êदय क3 †šया भी बंद नह8ं होगी! इससे अचानक होने वाल8 मौत` भी कम हHगी.'' डॉnटर ने अपनी राय जाsहर क3 थी. द8पक ने साढ़े तीन ~मनट के उपाय को रट ~लया था और ˆवFरत ह8 उसका अनस ु रण करने लग गया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


46.

घHसला

सुबह सैर करती हुई &नेहा क3 मुलाकात सैर करते हुए एक ऑ&xे ~लयन द£प=µ से हुई. वहां के Fरवाज के अनुसार दोनH ने 'गुड मॉPनªग' से &नेहा का अ~भवादन †कया. &नेहा ने भी मु&कुराकर अ~भवादन &वीकार †कया और 'गुड मॉPनªग' कहा. द£प=µ

उससे कम उv के थे, इस~लए बस &टॉप को जाने वाल8 सीsढ़यH पर दौड़ते हुए चढ़ गए. उनको दौड़कर सीsढ़यां चढ़ते दे खकर &नेहा अपने अतीत म` =व&मत ृ हो गई. आज भले ह8 सीsढ़यां चढ़ने म` उनको मिु Gकल होती हो, ले†कन हमेशा से ह8 ऐसा नह8ं था. वह और समीर भी दौड़कर सीsढ़यां चढ़ते थे. आज से पचास साल पहले उ–हHने अपना घHसला बनाया था. तब उनके घHसले म` ससरु और दो दे वर भी

=वराजमान थे. &नेहा और समीर भाग-भागकर सार8 िज£मेदाFरयां परू 8 करते थे. इस घHसले म` न–हे पFरंदे भी आ गए. छोटे -से घHसले म` वे भी समा गए, nयH†क वह &नेह-Dयार के PतनकH से Pन~मNत था. एक-दस ू रे क3 परे शानी या †क मजबूर8 को सब महसूस करते थे.

''आज मk तीसर8 बार आया हूं आपक3 रिज&x8 दे ने, आजकल घर म` कोई रहता नह8ं है nया?'' एक sदन पो&टमैन ने &नेहा के &कूल से आने के बाद रिज&x8 दे ते हुए कहा था. ''अब ससुर-दे वर यहां से चले गए हk.'' &नेहा ने संकोच से कहा था. ''दे वर जी क3 नौकर8 जो लग गई है! मkने उ–ह` बkक म` दे खा है.'' पो&टमैन ने jयं±य से कहा था.'' ''बात ये नह8ं है. ब¦चे बड़े हो रहे हk, हमार8 ह8 sदnकत को दे खकर उ–हHने †कराये पर घर ले ~लया है, nवाटN र हमारे नाम था न!'' न चाहकर भी &नेहा ने सफाई द8 थी. समय का चš चलता गया. ओहदा बढ़ने के साथ nवाटN र भी बढ़ता गया और रहने वाले कम होते गए. न–हे पFरंदH ने भी पंख पसार ~लए थे. वे भी अपनी-अपनी नौकर8 पर =वदे श चलते गए. पFरंदH ने अपने ह8 नह8ं हमारे भी पंख पसारे थे. पहले संयुnत पFरवार के कारण हम कह8ं नह8ं Pनकल पाए, †फर ब¦चH क3 पढ़ाई-शाद8 के कारण बंधे रहे . अब जमाना

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


पFरंदH का था. उनको मोबाइल के अPतFरnत पंख भी ~मल गए थे. जब-तब हमार8 बु†कं ग करके पहले सारा दे श घुमाया, †फर =वदे शH क3 बार8 आई. &नेहा के =वचार थम ह8 नह8ं रहे थे. इतना ह8 नह8ं वे पापा को फोन करके कह दे ते- ''पापा, कल वेल`टाइन डे है, गल ु ाब

भेज रहे हk, ''आइ लव यू &नेहा'' कहते हुए एक गुलाब ममा को दे ना मत भ~ू लएगा. रात के कk •डल •डनर क3 ब†ु कं ग- होटल आ~शयाना, टे „बल नं.-14.'' ऐसी ह8 प˜ट8 मझ ु े भी पढ़ाते.

मेरा दाsहनी आंख का केटFरक का ऑपरे शन होना था, वह भी उ–हHने हम` भारत म` नह8ं करवाने sदया. ''ममा, वहां आप दो sदन म` ह8 गैस के पास चल8 जाएंगी, आंख का नाजुक मामला है, ऑपरे शन यह8ं आकर करवाइएगा. यहां हम` 'वकN ›ोम होम' क3 सु=वधा है, कभी मk घर पर रहूंगी कभी =ववेक, पैसH क3 ™चंता नह8ं है. हम` आपक3 ™चंता है.'' बहू ने कहा था. जैसे हमारे घHसले म` छोटे -बड़H के ~लए जगह Pनकलती गई थी, उनके घHसले भी हमारे &वागत के ~लए =व&तत ृ हो जाते थे. जीवन क3 Gवेत-Gयाम सं]या म` अभी भी रं गीPनयां „बखर8 हुई थीं. यह घHसला भी &नेह-Dयार के PतनकH से Pन~मNत था.

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लघुकथा सं•ह-9


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आशीवाNद

Oायः हर ëी jह8लर या ई. Fरnशा पर 'मां क3 आशीवाNद' अं†कत होता दे खा है, पर अnसर आशीवाNद क3 वतNनी अशुŽध (आ~शNवाद, आ~शवादN आsद) होती है. आज भी एक ई.Fरnशा पर आशीवाNद क3 अशुŽध वतNनी दे खकर हम` आशीवाNद का एक सुंदर वाकया याद आ गया.

रा¹xपPत भवन म` पŽम पुर&कारH के =वतरण समारोह का कायNšम चल रहा था. कायNšम से पहले ह8 सभी स£माननीय OPतभा™गयH और अPत™थयH को रा¹xपPत भवन के Oोटोकॉल से अवगत करा sदया जाता है. उस sदन भी ऐसा ह8 †कया गया था. सभी परु &कृत हि&तयH क3 तरह कनाNटक म` हजारH पौधे लगाने के ~लए 107 साल क3 सालम ू रदा थीमnका को रा¹xपPत रामनाथ को=वंद Žवारा पŽम ¯ी से स£माPनत †कया गया.

थीमnका क3 कहानी धैयN और Ãढ़ संकiप क3 कहानी है. जब वह उv के चौथे दशक म` थीं तो ब¦चा न होने क3 वजह से खुदकुशी करने क3 सोच रह8 थीं, ले†कन अपने पPत के सहयोग से उ–हHने पौधारोपण म` जीवन का संतोष तलाश ~लया.

समारोह म` हiके हरे रं ग क3 साड़ी पहने 'व| ृ माता' थीमnका ने अपने मु&कुराते चेहरे के साथ माथे पर „¨पुंड लगा रखा था. थीमnका ने बरगद के 400 पेड़H समेत 8000 से •यादा पेड़ लगाएं हk और यह8 वजह है †क उ–ह` 'व| ृ माता' क3 उपा™ध ~मल8

है. अपने ब¦चH क3 तरह व| ृ H क3 सेवा करते-करते उ–ह` व| ृ H को आशीवाNद दे ने क3 आदत-सी पड़ गई थी.

व| ृ H के &वा&Äयकार8 साPन]य ने ह8 शायद उ–ह` इतनी लंबी &वा&Äयकार8 उv का

तोहफ़ा sदया था. इ–ह8ं व| ृ H ने उ–ह` पहले 'व| ृ माता' और अब पŽम ¯ी के स£मान से स£माPनत करवाया था. फल&व¤प जब परु &कार लेने पहुंची थीमnका को जब उनसे चेहरा कैमरे क3 तरफ करने को कहा गया तो उ–हHने रा¹xपPत का माथा छू ~लया और आशीवाNद sदया.

आशीवाNद दे ना उनका &वभाव जो था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


48.

सात दाने

सहाना के पोते को &कूल के ~लए साइंस का कोई एnसपेFरम`ट करके =वGलेषण करके ले जाना था. वह दाद8 से पूछकर एक छोटे •ड¸बे म` चावल ले गया था. बाद म` जब दाद8 ने दे खा तो वहां चावल के दाने „बखरे पड़े थे. दाद8 ने चावल के दाने समेटकर

वा=पस बड़े •ड¸बे म` डालने के ~लए उठाए, दे खा चावल के सात दाने थे. वे सात दाने सहाना को सुदरू अतीत म` ले गए, जब वह बहुत छोट8 ब¦ची थी. ''पापा, रे •डयो म` बार-बार 'फागन ु आयो रे ' गाना आता रहता है , होल8 आने वाल8 है nया?'' सहाना ने पछ ू ा था.

''हां बेटा, होल8 आने ह8 वाल8 है.'' ''पापा †फर आप हम` सात रं ग ला द8िजए न! हम भी सबको रं ग लगाएंगे.'' सहाना मचल गई थी. ''सात रं ग nयH?'' पापा ने पूछा था. ''पापा, हमार8 मैम ने बताया था, †क इं³धनुष म` सात रं ग होते हk, मुझे इं³धनुष बहुत Dयारा लगता है.'' ''पर मेर8 बेट8 तो पहले ह8 सतरं गी है!'' पापा ने „बsटया को बहलाना चाहा था. ''वो कैसे भला!'' सहाना ने बहलने का &वांग रचा था. ''मेर8 बेट8 म` 'स' से शु’ होने वाले सŽगुण जो हk. कहो तो बता दं ? ू '' ''बता द8िजए, पर सात रं ग ज¤र ला द8िजएगा.'' ब¦ची ऐसे ह8 भला कब बहलने वाल8 थी! ''मेर8 बेट8 स¦ची है, सरल है, संय~मत है, सािãवक है, सचेत है, संतु¹ट है, संवेदनशील है, हो गए न सात सŽगण ु !''

''ऊं ऊं ऊं--पापा इतने भार8-भरकम श¸द भला मk nया समझूं! मझ ु े तो लाल-नीलापीला-हरा आsद सात रं ग चाsहएं.'' सहाना मचल गई थी.

तब भले ह8 वह सात रं गH से सबको रं गकर खश ु हो गई थी, ले†कन िजंदगी म` सफलता तो उसे 'स' से सात सŽगण ु H ने ह8 sदलाई थी. इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


49.

खूबसूरत संघषN

संघषN भी खूबसूरत होता है, यह मुझे पता नह8ं था. वह तो सपने म` एक कलाकृPत

दे खी, िजसम` बड़े-से कठोर पˆथर से बंधी एक खूबसूरत Pततल8 को बहुत खूबसूरती से सीsढ़यH पर चढ़ने के ~लए संघषN करते दे खकर उससे बPतयाया, तब कह8ं जाकर यह पता चला †क संघषN भी खूबसूरत हो सकता है. ''Pततल8 रानी, पˆथर से बंधे हुए होने के बावजूद तुम इतनी खूबसूरती से संघषN कैसे कर पा रह8 हो?'' मेर8 सहज िजzासा थी. ''आपने मुझे रानी कहा है. रानी यानी नार8 और नार8 तो है ह8 खूबरत संघषN का दस ू रा नाम, यह तो नार8 ने हर युग म` ~सŽध †कया है.''

''त£ ु ह` हर यग ु का zान है?'' मेरे आGचयN का sठकाना नह8ं था. ''हम सब OकृPत के अ=वनाशी अंश हk और †कसी-न-†कसी ¤प म` हर युग म`

=वŽयमान होते हk और =वŽयमान होने का सीधा अथN है, संघषN करना. अब यह संघषN मजबूर8 म` भी †कया जा सकता है, खूबसूरती से भी. खूबसूरती से संघषN करने वाले

मेर8 तरह संघषN करते हुए भी अपनी खूबसूरती कायम रख सकते हk.'' मk और हैरान हो रह8 थी. ''ऐसा संघषN करने वाल8 नाFरयां मै¨ेयी, गाग½, =वGववारा लोप, अपाला, मु³ा, घोषा, इ–³ाणी, दे वयानी जैसी =वदष ु ी एवं “éमवाsदनी, सीता

जैसी पाPतìत धमN Pनभाने वाल8, अsहiया जैसी तपि&वनी बन पाती हk.'' Pततल8 ने कहा. ''आधPु नक यग ु म` भी nया ऐसा संभव है?'' मेर8 िजzासा उˆकषN पर थी. ''nयH नह8ं? तुम जो उसका जीवंत Oमाण हो!'' ''मk! कैसे?'' ''भूल ग» nया? जब से ज–म ~लया है, हर एक के साथ समझौता करते हुए भी अपनी अ&मत को बरकरार रखा है और उ¦च पद&थ होने क3 गFरमा भी कायम रखी है. लोग तु£हारे साहस क3 ~मसाल दे ते हk.'' ''मझ ु े चने के झाड़ पर nयH चढ़ा रह8 हो Pततल8 रानी?''

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


वहां तो Pततल8 थी ह8 नह8ं, मेर8 आंख जो खुल गई थी. हां, खूबसूरत संघषN करने का संकiप अवGय ज–म ले चुका था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


50.

हौसले क3 शमा

''हौसला है तो हम हk, हौसले क3 शमा जलाए र§खए, ये वो रोशनी है , िजसे तेल-बाती क3 दरकार नह8ं.'' हौसले क3 यह8 शमा कृ¹णा नगर, sदiल8 के एक 70 वष½य बुजुगN और उनक3 पˆनी

ने जलाए रखी, िजससे उनका खोया हुआ स£मान तो वा=पस ~मला है, बkक को सजा भी ~मल8. ''आपके साथ ऐसा nया हुआ, िजससे आपके स£मान को ठे स पहुंची?'' 70 वष½य बज ु ग ु N से हमने जानना चाहा. ''अजी कुछ न पूPछए, अब तो बkक भी आंख बंद करके काम करने लगे हk.'' बुजुगN

स£मान को ठे स पहुंचने के अPतFरnत क–•यूमर फोरम के 2 साल चnकर लगाने पर भी झiलाए हुए-से थे. ''भाई साहब, शांत हो जाइए, ल8िजए पानी पीिजए.'' हमने उ–ह` पानी का ™गलास दे ते हुए कहा. ''शु†šया जी, बड़ी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है मुझे समाज म` अपने स£मान बचाने के ~लए, मk आपको सं|ेप म` बता रहा हूं.''

''सं|ेप म` ह8 बताइए, वैसे भी इतनी लंबी लड़ाई म` बार-बार आपको अपना प| रखने के ~लए बहुत कुछ बोलना-बताना पड़ा होगा.'' ''सह8 समझा आपने. हुआ यह †क मk 25 जनवर8 2017 को अपने पीएनबी के से=वंग अकाउं ट से चेक के जFरए 490 ’पये „बजल8 का „बल भरने के ~लए गया था. उससे पहले मkने अपना अकाउं ट चेक कर ~लया था, उसम` पयाNDत धनरा~श थी. बkक क3 गलती से मझ ु े

दो बार चेक बाउं स के चलते पेनiट8 झेलनी पड़ी. मेरे अकाउं ट म` 6

लाख से •यादा रा~श थी, †फर भी ऐसा होना और मझ ु पर 890 ’पये का जम ु ाNना

लगना मेरे साथ बहुत बेइंसाफ3 थी. इस बेइंसाफ3 से मेरे स£मान †क ठे स लगी थी. मेर8 पˆनी भी मेरा यह अस£मान सहन न कर सक3, उसने क–•यम ू र फोरम म` यह

कहते हुए ~शकायत द8 †क उ–ह` 890 ’पये क3 पेनiट8 से •यादा अफसोस समाज म` अपनी बेइ•जती को लेकर हुआ है .'' बुजुगN ने पानी का एक घूंट =पया.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


''2 साल क3 लंबी लड़ाई के बाद क–•यूमर फोरम ने बkक को 890 ’पये, ~शकायत

वाले sदन के sहसाब से 9 OPतशत ¸याज समेत चुकाने को कहा, साथ ह8 10 हजार

’पये मआ ु वजे के ¤प म` sदलाने के PनदÉ श sदए, िजसम` मक ु दमे का खचN भी शा~मल है.''

''वा&तव म` आपने हौसले क3 शमा जलाए रखकर समाज को भी एक अOPतम संदेश दे sदया है, †क चुपचाप अ–याय को सहना अ–याय करने से बदतर है. सारा समाज आपको नमन करता है.''

''खश ु रहो बेटा.'' बज ु ग ु N के आशीवाNद ने हमारे हौसले क3 शमा को भी रोशन कर sदया था.

इPतहास का दोहरान

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लघुकथा सं•ह-9


51.

वेदना

‘’वेद पढ़ना आसान हो सकता है ले†कन िजस sदन आपने †कसी क3 "वेदना" को पढ़ ~लया तो समझो ईGवर को पा ~लया.'' आज सब ु ह-सब ु ह सा]या ने सO ु भात करते हुए यह संदेश भी भेजा था. सा]या ने सचमच ु ''वेदना'' को एक नया अथN दे sदया था. हर एक क3 वेदना को अपनी वेदना समझकर सहायता करने वाल8 सा]या भी †कसी वेदना से •&त हो सकती है, यह शायद †कसी को अहसास ह8 नह8ं होने पाता था! ''सा]या, मेर8 आंख का कैsxक का ऑपरे शन होने वाला है, थोड़े sदन के ~लए आकर घर संभाल सको तो अ¦छा है.'' दे वरानी का संदेश ~मलते ह8 सा]या बैग म` कपड़े डालने शु’ करती. ''सा]या, तु£हार8 भाभी क3 बहू क3 •डल8वर8 होने वाल8 है, आकर मदद कर सको तो अ¦छा है.'' सा]या उसे ह8 मां का आदे श मानकर उधर चल पड़ती. ''ममी मेरे सास-ससुर आने वाले हk. हम तो ऑ†फस म` jय&त रहते हk, आप थोड़े

sदनH के ~लए आकर उनको कंपनी दे सको तो बहुत अ¦छा रहे गा.'' सीPनयर मैनेजर के पद पर Pनयुnत छोट8 बेट8 के इस संदेश को वह कैसे नकारती भला! ''ममी मेरे ससुर जी अ&पताल म` एड~मट हk, आप थोड़े sदन आकर „बsटया को संभाल सक̀, तो मk ससुर जी क3 सेवा कर सकूंगी.'' बड़ी बेट8 के इस संदेश को ह8 सेवा समझकर वह उधर का ’ख करती.

सबक3 वेदना को बांटते-बांटते म& ु कुराते रहने वाल8 सा]या को पPत के दे हांत के बाद

अपना बसा-बसाया बड़ा-सा घर छोड़कर इधर-उधर भागने म` †कतनी वेदना से ¤-ब-¤ होना पड़ता होगा, यह शायद सब भल ु ा बैठे थे!

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लघुकथा सं•ह-9


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