!र#त% क( सहे ज लघक ु था सं3ह-3
ल6ला 7तवानी
!र#त% क( सहे ज लघुकथा सं3ह-3 1.
$र&त( क* सहे ज
2.
इंसा3नयत िजंदा रह8
3.
:काश पुंज
4.
सज ृ न का @Aोत
5.
मदाEनी मख ु ौटे को सलाम
6.
@मॉग
7.
जकड़न
8.
द3ु नयादार8 क* असRलयत
9.
Tडिजटल शाद8
10.
पहचान
11.
नम@ते
12.
Xवाब परू ा हो गया
13.
'प' से पढ़ाई भी 'प' से पापा
14.
आदे श या इनायत?
15.
अनमोल पदक
16.
भाभी क* राह
17.
अbभुत 3नखार
18.
cकसको कहूं मd मां!
19.
$र&ते का जामा!
20.
बीड़ा
21.
रामरखी-1
22.
दआ ु का असर
23.
gRमक hवकास
24.
याद( का सफर
25.
और $र&ता बन गया------
26.
घुन
27.
Rमlट8 मु@कुराती थी
28.
दे नहार कोई और है-------
29.
oयार का पौधा
30.
अनेक भार8 जेबq
31.
hवजेता कौन?
32.
ग(गा ि@कमबाइक
33.
जब जागो तभी सवेरा
34.
नव सु:भात
35.
अपना आRशयाना
36.
ऐसे भी cकया जाता है मोह sयाग
37.
उसका uयवहार ह8 उसका संदेश है.
38.
जीवनसाथी
39.
सॉvटवेयर का हाडE तमाचा
40.
मुकाबला
41.
मोबाइल से बागवानी तक
42.
इरादा
43.
मुिwत मq है मौज बड़ी
44.
पांडुRलhप
45.
अनुपम उपहार
46.
oयार क* xखड़क*
47.
तकनीक* गवाह8
48.
हमददy क* हवा
49.
अRभनव उsसव
50.
काuय-रचनाओं का मेला
51.
जाग युवा जाग
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1.
$र&त( क* सहे ज
नव वषE के पहले मह8ने के पहले सoताह का पहला ~दन, 1 जनवर8- 2018 सबक* तरह सज ु ाता के Rलए भी साल के Rलए ल•य 3नधाE$रत करने का ~दन था. ल•य 3नधाE$रत
cकए जाएं या नह8ं, इस hवषय मq वह पशोपेश मq थी. कुछ लोग( का मानना है- ''ल•य
3नधाE$रत नह8ं करने चा~हएं, wय(cक अwसर ल•य पर ~टके रहना मम ु cकन नह8ं होता है''. इसके hवपर8त कुछ लोग कहते हd- ''हम ल•य ह8 3नधाE$रत नह8ं करq गे, तो ƒबन पqदे के लोटे क* तरह इधर-उधर लुढ़कते रहq गे''. तभी उसके सामने एक सhु वचार आ गया''$र&ते अहसास के होते हd,
अगर अहसास हो तो अजनबी भी अपने होते हd, अगर अहसास नह8ं हो तो अपने भी अजनवी होते हd.'' सुजाता इसी सुhवचार पर hवचार करती रह8. उसे ऐसा लगा, मानो उसे ल•य Rमल गया हो. सचमुच आज बहुत-से अजनबी तो उसके अपने थे, लेcकन अपन( के $र&त( को सहे जने मq ज„र उससे कोई चूक हुई होगी, तभी वह मन से अकेल8 थी. उसने अपनी फोन नंबर वाल8 डायर8 3नकाल8 और सभी अपन( के नंबर मोबाइल मq सेव कर Rलए.
एक-एक कर वह सभी अपन( को नए वषE क* हा~दEक शुभकामनाएं कहती हुई $र&त( क* सहे ज मq जुट गई.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
2.
इंसा3नयत िजंदा रह8
सब ु ह-सवेरे उठते ह8 चाय पीते-पीते मोना ने लैपटॉप खोला. आज सकाराsमक खबर( क* खोज मq उसे †यादा नह8ं भटकना पड़ा. सबसे पहल8 खबर थी-
''एिwसडqट के बाद तड़प रहा था यव ु क, भीड़ क* इंसा3नयत मर गई लेcकन सा$रका क* नह8ं''
उसने चटपट पूर8 खबर पढ़8. पहले तो वह8 सब नज़ारा. सड़क के बीच(बीच खून से
लथपथ युवक तड़पता रहा और आते-जाते लोग मुंह फेर कर 3नकलते रहे . कुछ मोबाइल से hवTडयो और hपwचर लेते रहे . तो wया इंसा3नयत को घुन लग गया था?
''ƒबलकुल नह8ं. म~हला ट8चर सा$रका ने इंसा3नयत का फजE 3नभाने मq त3नक भी दे र8
नह8ं क*. उसने उलटे पड़े जˆमी यव ु क को हाथ लगाने से भी कतरा रहे थे, सा$रका ने न RसफE उसे खुद सीधा cकया, बि‰क अपने दप ु lटे से उसके Rसर से बहते खून को रोकने
क* कोRशश भी क*. पुRलस को कॉल करने के बाद जैसे-तैसे एक ऑटो को ‹कवाकर खुद ह8 घायल युवक को सुंदरलाल जैन अ@पताल ले गŒ. अ@पताल मq सभी ज„र8 :cgया
पूर8 करके तब @कूल के Rलए रवाना हो सक*ं. बाद मq घायल युवक क* भले ह8 मौत हो गई, लेcकन इंसा3नयत िजंदा रह8.
मोना को याद आया, cक आज से 25 साल पहले भी उसे इंसा3नयत के िजंदा होने के सबूत उस समय Rमले थे, जब रै ड लाइट ज•प पर एक टै wसी ने मोना और उसके
प3तदे व के @कूटर को ~हट कर ~दया था. @कूटर भी Žगर गया था और वे दोन( भी.
इंसा3नयत ने तब भी अपना फज़E 3नभाने मq त3नक भी दे र नह8ं क* थी. एक स†जन पु‹ष कार मq अपनी पिsन को खून चढ़वाने जा रहे थे. उ•ह(ने सब कुछ भूलकर उस
टै wसी का पीछा cकया. 3 cकलोमीटर तक पीछा करने के बाद भी जब वे टै wसी को नह8ं पकड़ पाए, तो उसका नंबर नोट करके वाhपस आए और मोना क* डायर8 मq Rलखकर पRु लस से भी बात कर गए. इसी बीच एक स†जन प‹ ु ष ने सहारा दे कर मोना को खड़ा cकया, एक स†जन साइcकल पर जाकर पास क* पRु लस चौक* पर सच ू ना दे आए, एक
स†जन ने मोना के प3तदे व को गोद मq उठाकर फुटपाथ पर रखा, एक स†जन ने @कूटर को उठाकर cकनारे कर ~दया. ऐसा लग रहा था, मानो इंसा3नयत के सारे तsव( का
जमावड़ा हो गया था. पRु लस क* िजoसी मोना और उसके प3तदे व को लेकर पास के $र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
सरकार8 अ@पताल ले गई. वहां टै wसीवाला पहले ह8 पहुंचा हुआ था, wय(cक पुRलस को उसका नंबर Rमल गया था और सब चौcकय( को चौकस कर ~दया गया था. पRु लस क*
म@ ु तैद8 के कारण ह8 मोना और उसके प3तदे व का इलाज संभव हो सका था. सा$रका क* इंसा3नयत क* बात पढ़कर ये सभी मंज़र मोना के सामने चलŽचA क* तरह आज cफर जीवंत हो उठे थे.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
3.
:काश पुंज
लRलत कलाओं क* द8वानी अ‹xणमा अwसर कला द8घाEओं मq जाया करती थी. आज भी वह ‘ी राम कला द8घाE मq एक ŽचA :दशEनी देखकर आई थी. उसे बहुत-से ŽचA अ’छे लगे थे, लेcकन एक ŽचA के सामने वह बहुत दे र तक खड़ी रह8 थी. cफर आगे के ŽचA
दे ख ƒबना ह8 वह वाhपस आ गई थी. hवचार( मq खोई वह मानो @वयं से ह8 वाताEलाप कर रह8 थी. ''wया आकषEण था उस &वेत &याम ŽचA पटल पर, cक मd ŽचARलखी-सी खड़ी रह गई थी?'' ''इससे अŽधक आकषEण क* भला क‰पना भी क* जा सकती है wया?'' अंतमEन के एक कोने ने आवाज़ आई- ''&वेत वसन, योŽगय( क*-सी नतम@तक योग मु“ा, उस पर एक हाथ मq फरमान, दस ू रे हाथ मq मोबाइल यानी आज का सब कुछ- कलम, Tडwशनर8, बटुआ, स•पकE-सूA और जाने wया-wया? अजीब-सी मु“ा थी न!'' ''पर मेरा ”यान तो उस ŽचA पर था ह8 नह8ं.''
''तो cफर कहां खोई हुई थीं?'' एक :&न ने उछाल मार8. ''तु•हq पता है, मd 65 साल पहले के उस अhव@मरणीय मंज़र पर पहुंच गई थी.'' ''अ’छा, वह8 84 साल के दादा लछमन क* उस अं3तम मुखमु“ा पर?'' अंतमEन के दस ू रे कोने ने आवाज़ आई.
''ƒबलकुल सह8 पहचाना. :ातःकाल क* अमत ृ वेला, वह8 &वेत वसन, योŽगय( क*-सी
नतम@तक योग मु“ा, अbभुत थी उस समय क* शांत मुखाकृh–, िजसमq न फरमान क*
गुंजाइश थी, न ह8 मोबाइल क* क‰पना. परम शां3त, बस परम शां3त. वे नहा-धोकर, दध ू क* तरह धुले हुए &वेत वसन धारण कर, &वेत-पावन मन से पhवA |ंथ के सामने नतम@तक हुए, तो cफर नतम@तक ह8 रहे थे. बहुत दे र बाद भी जब वे भाई जी से :साद लेने नह8ं आए तो ~ह•मत भाई खद ु ह8 दे खने चले आए थे.''
''cफर वह8 हुआ था न! िजसक* ~ह•मत भाई को आशंका थी?'' ''हां, उनके बेटे डॉ. नारायण को बुलाया गया. आशंcकत डॉ. नारायण भी अपने बेटे डॉ. जगद8श को कैमरा लाने को बोल आए थे. परमस–ा मq ल8न उसी मख ु म“ ु ा मq पहले
उनका फोटो खींचा गया, cफर ~हलाया गया. पर वहां था ह8 wया? महज एक :काश पंज ु .''
'':काश पंज ु ?'' अंतमEन के एक और कोने ने आ&चयEचcकत होकर कहा.
''तम ु ने दे खा नह8ं? उस ŽचA मq उस &वेत &याम छhव के ऊपर :काश पंज ु .'' ''दोन( ŽचA( का wया तालमेल लगा त• ु हq ?'' एक और :&न उछला. $र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
''तो सुनो. तब मd 6-7 साल क* थी. ~ह•मत भाई के बेटे को दौड़कर डॉ. नारायण के घर
जाते, cफर दौड़कर डॉ. नारायण को आते, cफर दौड़कर डॉ. जगद8श को आते हुए दे ख मd भी वहां भागी हुई गई थी. मdने उस मख ु म“ ु ा को सा˜ात दे खा था. आज जब मd उसे याद करती हूं, तो मझ ु े लगता है, cक अं3तम सांस के समय उ•हq :काश पंज ु के दशEन अव&य हुए ह(गे.''
''सह8 कह रह8 हो. अं3तम समय मq सभी ऐसे ह8 :काश पंज ु क* ह8 तो कामना करते हd.'' अंतमEन मानो संतšु ट-सा लग रहा था.
''तभी उस ŽचA के :काश पुंज ने मुझे इतना आकhषEत cकया था.'' वह पुनः :काश पुंज मq खो गई थी.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
4.
सज ृ न का @Aोत
आज उसके पांचवq उप•यास का hवमोचन हुआ था. प@ ु तक छपने से पहले ह8 उसक*
तार8फ( के पल ु बंधने लगे थे. hवमोचन-@थल पर दे खते-दे खते ह8 पांच सौ प@ ु तकq ƒबक
गई थीं. फूलमालाओं से लद8 हुई वह घर आई थी. यहां भी समारोह जैसी ि@थ3त से उसे अब 3नजात Rमल8 थी. उसने :भु के शक ु राने cकए, िजसने शां3त से आराम के Rलए रात बनाई है. पर hवचार( को शां3त कहां. वह अतीत मq ह8 hवचर रह8 थी.
न जाने wय( बचपन से ह8 उसे सपने बहुत आते थे. सपने भी ऐसे-वैसे नह8ं, cक आए और चले गए, आते भी कई cकलोमीटर लंबे, वो भी बार-बार वह8 सपना. बड़े होने तक भी उसका यह8 RसलRसला चलता रहा. वह अनेक डॉwटर( के पास गईडॉwटर कहते- ''आपके मुताƒबक अनेक बार सपने आपके लेखन मq सहायक हुए हd, तो आपको cकसी इलाज क* ज„रत नह8ं है. म@त र~हए.'' मनोवै›ा3नक का कहना था- ''आपका शानदार-जानदार उप•यास ''~हमालय क* हुड़क'' अगर आपके सपने क* उपज है, तो आप मेरे Rलए भी :ाथEना क*िजएगा, cक मुझे भी ऐसे सपने आएं.''
सपन( क* इसी उधेड़-बुन से उसका सा~हsय-संसार समb ृ ध होता जा रहा था. शायद सपने ह8 उसके सज ृ न का @Aोत थे.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
5.
मदाEनी मुखौटे को सलाम
उसने कभी सोचा भी न था, cक बेटे को तरह-तरह के मख ु ौटे बनाना Rसखाने वाल8, Rसफ़E और RसफE घर मq रहने वाल8 उसक* पिsन मस ु ीबत के समय मदाEनी मख ु ौटा भी लगा
सकती है. पीछे के दो ~दन( क* sव$रत घटनाओं का •यौरा सन ु कर उसने अपनी पिsन के
मदाEनी मख ु ौटे पर गवE महसस ू cकया था. वह आज घर मq सरु ž˜त बैठा हुआ है, तो Rसफ़E इसी साहसी मख ु ौटे के कारण. अकूत स•पh– का माRलक सोमेश अपहरणकताEओं के चंगुल मq फंस गया था. शाम तक घर न आ पाने और मोबाइल पर कोई जवाब भी न दे ने के कारण सुRमAा ने पुRलस मq
प3त क* गुमशुदगी दजE कराई थी. अपहरणकताEओं ने सुRमAा को 82 लाख ‹पए cफरौती दे ने को कहा था. एक ट8वी सी$रयल क* तजE पर सुRमAा ने उनसे कह ~दया, cक वह केवल 10 लाख ‹पए ह8 दे सकती है. बाक* रकम के Rलए उसको प3त के साथ बdक जाना होगा. अपहरणकताE उसे धमकाते भी रहे , लेcकन वह बहुत धैयEपूवEक उनसे भी समझौता-वा–ाE करती रह8 और पुRलस से भी तालमेल बनाए हुए थी. सुRमAा bवारा सोमेश क* RमRसंग क* Rशकायत पुRलस मq दजE होने क* सूचना
अपहरणकताEओं को सोमेश के एक वॉlसऐप |ुप से Rमल गई थी, िजसे वे खुद मॉ3नटर कर रहे थे, इसRलए आरोपी सुRमAा को बार-बार अब पुRलस मq न जाने क* चेतावनी दे रहे थे. वह उनको तस‰ल8 दे ती रह8. hववेक से काम लेते हुए उसने अपहरणकताEओं से कहा- ''मdने RमRसंग क* Rशकायत क* है, एफआईआर तो नह8ं करवाई है .''
अपहरणकताEओं के कहे अनुसार वह उ•हq 10 लाख ‹पए दे ने गई थी. साद8 वदy मq उसके साथ मौजूद जनाना पुRलस ने उ•हq और उनके साŽथय( को Žगरvतार कर Rलया और
सोमेश ƒबना cकसी नुकसान के छुड़ाया जा सका. उसने पिsन के इस मदाEनी मुखौटे को सलाम cकया.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
6.
@मॉग
वह ट8बी क* बीमार8 से जझ ू रहा है. डॉwटसE ने कहा है, बदलते मौसम मq खानपान का रखq ˆयाल. भरपरू सि•जय( और मसाल( वाला दRलया हŸTडय( को मजबत ू रखेगा और
रोग :3तरोधक ˜मता मजबत ू करने मq भी मदद करे गा. उसे खाने को xखचड़ी तक नसीब नह8ं होती है . डेयर8 :ॉडwlस के नाम पर घर मq केवल उसे ह8 आधे कप दध ू मq आधा
कप पानी Rमलाकर ~दया जाता है. 2 घंटे बतEन 3घसने के बाद Rमले दस ‹पय( मq से मां उसके Rलए साढ़े सात ‹पर मq एक गाजर लाई, शरद ऋतु का समय अपने पूरे शबाब पर
था. ट8बी क* बीमार8 ने भी शबाब ~दखाया. वह कब तक दम खींच पाता! इधर ~द‰ल8 के @मॉग ने दम ~दखाया, उधर उसके दम ने ह8 दम तोड़ ~दया.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
7.
जकड़न
कभी समाचार( क* सxु खEय( मq छाया जाने वाला वह, आज जेल के सींखच( के पीछे रहने को hववश था. अब उसके पास अपने अतीत मq झांकने के अलावा कोई काम नह8ं था.
वह8 अतीत , िजसे झांककर दे खा तो जा सकता था, लेcकन उसे सध ु ारने क* कोई राह
शेष नह8ं बची थी. उसक* एक ह8 गलती सोशल मीTडया पर वायरल हो गई थी, उसी का अंजाम है यह जेल. मेरे दो@त ने कई बार समझाया था- ''यार, फेसबुक-चैट पर अंट-शंट मत Rलखाकर, कभी तू भी फंसेगा और हमq भी फंसाएगा.''
पर मdने उसक* बात मानी ह8 कब थी! बात तो मdने बापू क* भी नह8ं मानी थी. रोज कहते थे- ''बेटा, बेकार क* बातq मत सोचा कर.''
पर मd तो सोचता भी था, बोलता-Rलखता भी था. मां ने भी मोबाइल लेते समय ह8 बहुत समझाया था- ''बेटा, मdने दे खा है, cक मोबाइल हो या और कोई चीज़, उसक* लत बहुत बुर8 होती है . एक बार कोई लत लग जाए, तो cफर cgकेट हो या पढ़ाई या cफर नौकर8, यह लत बरबाद8 क* ओर मोड़ लेती है.'' पर मd माना ह8 कब था! उस ~दन भी ऐसा ह8 हुआ था. हमारे दे श क* cgकेट ट8म पड़ोसी दे श से मैच हार गई थी. खुद cgकेटर होते हुए मझ ु े पता था, cक cgकेट बड़ा अजीब खेल है. एक ह8 पल मq
cकसी भी ट8म का पलड़ा ह‰का-भार8 होते दे र नह8ं लगती. बस मेरा समय ह8 खराब था. जाने cकस जुनून मq मdने अपने दो@त के साथ फेसबुक-चैट करते Rलख ~दया- 'हमार8
cgकेट ट8म क* इस मैच मq इसRलए हार हुई, wय(cक यह मैच पहले से ह8 cफwस था. हमार8 ट8म ने मैच हारने के Rलए पैसे Rलए थे.' जाने कैसे मेर8 चै~टंग का @g*न शॉट वायरल हो गया और मd जकड़ा गया. यह जकड़न बढ़ती गई और आज न मd मोबाइल हूं, न मेरे पास मोबाइल है, मेरे पास है तो Rसफ़E और Rसफ़E जकड़न के साथ एक अनु–$रत :&नŽच¡न.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
8.
द3ु नयादार8 क* असRलयत
रवीता अपने ममी-पापा क* इकलौती संतान थी और लाड़ल8 बेट8 या कहq cक राजकुमार8
क* तरह पल8-बढ़8 थी. उसके चेहरे पर आई एक Rशकन भी ममी-पापा का चैन छ¢नने के Rलए पयाEoत थी. िजस चीज पर हाथ रखती थी, वह तरु ं त उसके hपटारे मq सि•मRलत हो जाती थी. एक बार वह छोट8-सी xखलौना साईcकल के Rलए मचल8 थी, जो आज भी घर के मq गेट से अंदर जाते ह8 छोट8-सी टे ƒबल पर सजी हुई ”यान आकhषEत करती है,
जबcक वह खुद फ़ैशन Tडजाइ3नंग मq एम.बी.ए. करके अब एनीमेशन का कोसE कर रह8
है. उस पर बैठ¢ छोट8-सी Tडजनीलdड क* पर8-सी गुTड़या न•ह8-सी रवीता क* तरह लगती
है. cफर उ£ के अनुसार सचमुच क* हर साईज क* साईcकल, cफर @कूटर और cफर कार के Rलए मचल8. उसक* हर Tडमांड तुरंत पूर8 होती थी, wय(cक :भु क* कृपा से उसके
ममी-पापा दोन( के वcक¤ग होने के कारण अपनी इकलौती ƒब~टया क* कोई भी तम•ना पूर8 करने के Rलए उ•हq एक पल भी सोचना नह8ं पड़ता था.
एक ~दन चांद क* चांद8-सी चमकती रात मq उसक* चांद8-सी चमकती cक@मत |हण-|@त हो गई. रात को ¥यारह बजे एक फोन कॉल से उसको पता लगा cक उसके h:य पापा का एwसीडqट हो गया है और उ•हq ¦ौमा सqटर मq ले जाया गया है. उसके बाद तो ममी को लेकर आई.सी.यू. मq जाना, ममी-पापा दोन( को संभालना, आने-जाने, Rमलने-जुलने और
फोन करने वाल( को संभालना, समय-असमय दवाइयां लाना, जांच-$रपोट§ लाना, हर दस ू रे ~दन पापा को इमरजqसी ऑपरे शन के Rलए ले जाते दे खना, cफर सात-आठ घंट( बाद
ऑपरे शन सफल होने क* सूचना पाना, पुनः दस ू रे -तीसरे ~दन उस ऑपरे शन के साईड
इफैwlस को ठ¢क करने के Rलए पापा को इमरजqसी ऑपरे शन के Rलए ले जाते दे खना ह8 उसक* 3नय3त हो गई. इस दौरान अsयंत शार8$रक व मानRसक तनाव व थकान के कारण वह दो बार बेहोश भी हो गई थी, िजसक* भनक भी उसने ममी को नह8ं लगने द8. ढाई-तीन मह8ने आई.सी.यू. मq जीवन-मsृ यु से जूझते हुए उसके पापा को बचाया नह8ं जा सका. उनक* इस ददEनाक मsृ यु से मां-बेट8 दोन( शार8$रक व मानRसक „प से टूट चुक* थीं. इस बीच बहुत-से $र&तेदार(-संबंŽधय(-RमA(-ममी पापा के सहकRमEय( व फेसबुक के साŽथय( ने अपनी तरफ से अपनी-अपनी साम©यE के अनस ु ार भरपरू सहायता भी क*,
लेcकन उस न•ह8-सी कोमल कRलका को इस दौरान द3ु नयादार8 क* असRलयत मालम ू हो चक ु * थी. उसे पता चल चक ु ा था cक कौन-कौन उनका वा@तhवक ~हतैषी था और कौन केवल अपनी उपि@थ3त दज़E कराने के Rलए आता या फोन करता था.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
9.
Tडिजटल शाद8
शीतल-मंद-सग ु ंŽधत समीर क* तरह समीरा शांत @वभाव क* थी और बोलती भी बहुत
कम और धीरे थी. उसके तीखे नैन-नwश और बड़ी-बड़ी काल8-कजरार8 आंख( क* तरह उसक* संवेदनाएं भी तीखी थीं और अपे˜ाएं बड़ी. तीखी सवेदनाओं ने उसे सईद से Rमला ~दया था. दोन( असीम oयार क* सीमा तक पहुंच चक ु े थे, पर ƒबना दे खे. wय(cक यह Tडिजटल :ेम था. फेसबक ु और मोबाइल ने इसमq महªवपण ू E भRू मका अदा क* थी. कुछ समय पहले ह8 उनका वाताEलाप हुआ था''समीरा, तुम मुझे cकतना चाहती हो?'' ''खुद से पूछो.''
''हमारा मज़हब अलग है और तहज़ीब भी.'' ''oयार cकसी सीमा का मोहताज नह8ं होता.'' समीरा का कहना था. ''हमारा दे श भी Rभ•न है, wया तुम पाcक@तान आ सकोगी?'' ''जहां तुम होगे, अब तो वह8 मेरा दे श होगा.''
''सोच लो, बड़ी क*मत भी दे नी पड़ सकती है तु•हq .''
''oयार ने डरना कब सीखा है?'' समीरा न जाने कब यह सब बोलना सीख गई थी. $र&ता पwका हो गया था, पर मज़हब और तहज़ीब आड़े आ रह8 थी. जब तक शाद8 नह8ं हो जाती, सईद को भारत आने का पासपोटE नह8ं Rमल सकता था. Rलहाज़ा Tडिजटल शाद8 क* योजना बनी. पहले समीरा को धमE और नाम बदलना पड़ा. cफर Tडिजटल शाद8 यानी 3नकाह, wय(cक उसके ƒबना लड़के को शाद8 के Rलए वीज़ा नह8ं Rमल सकता था. इधर लड़क* के घर चार मौलवी आ गए थे, उधर से लड़के ने 3नकाह के Rलए हामी भर8. Tडिजटल 3नकाह हुआ, लड़के को वीज़ा Rमला, तब कह8ं जाकर शाद8 हो सक*. Tडिजटल शाद8 के ƒबना हक*क* शाद8 का होना मुि&कल था.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
10.
पहचान
19 Rसतंबर का ~दन :ोRमला कभी नह8ं भल ू पाती. वह चाहती है, cक 19 Rसतंबर कभी
आए ह8 न! लेcकन hपछले दस साल( से हर साल क* भां3त 19 Rसतंबर आ ह8 जाता है. यह8 तो वह ~दन था, जब :ोRमला क* हंसती-खेलती िजंदगी मq |हण लग गया था. सारा ~दन भाग-दौड़ करती :ोRमला हर बात के Rलए मोहताज हो गई थी. अचानक उसका बोलना-खाना-पीना-चलना-cफरना बंद हो गया था. मंह ु ं टे ढ़ा हो गया था, बांयां हाथ लटक गया था, पूरा बांयां ~ह@सा लकवे से :भाhवत हो गया था. तुरंत ऐ•बुलस d आ गई थी,
ऐ•बुलस d मq ह8 उसका इलाज शु‹ हो गया था, उसक* cक@मत अ’छ¢ थी, cक आठ ~दन( मq ह8 वह ठ¢क हो गई और अ@पताल से घर आ गई, लेcकन यह अपंगता इतनी ज‰द8
उसका पीछा कहां छोड़ने वाल8 थी! लकवे ने उसे खुद से भी पहचान करा द8 थी, और( से भी.
अब न वह अपना कोई काम खुद कर पाती थी, न घर का. चाय-दध ू भी उसे च•मच से hपलाया जाता था, वह भी टे ढ़े मुंहं से इधर-उधर ƒबखर जाता. सारा ~दन वह अपने मq
खोई रहती और खुद को पहचानने लग गई, जो गु‹ओं के कहने पर अब तक न कर पाई
थी. प3त का स’चे सहयोगी का „प भी सामने आ गया था. िजन बि’चय( को वह 3नपट नादान समझती थी, उ•ह(ने घर को कैसे संभाल Rलया, यह वह अब तक नह8ं समझ पाई थी. वह न जाने कब तक ऐसे ह8 सोचती रहती, अगर छोट8 ƒब~टया 'ममीSSSS--' पुकारती हुई कमरे मq न आ जाती.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
11.
नम@ते
जीवा रोज सब ु ह ज‰द8 uयायाम के Rलए 3नकल जाया करता था. लौटते समय मं~दर मq हाथ जोड़ने अव&य ‹कता था. :ायः कोई भी उसे उस समय Rमलता नह8ं था. आज दे र
हो जाने के कारण वह मं~दर के 3नकट पहुंचा, तो मं~दर के :ांगण मq पीपल के व˜ ृ तले सफेद साड़ी मq Rलपट8 सौ•य म3ू तE के समान एक बज ु ग ु E अ•मा ~दखीं. उसने बड़े अदब से हाथ जोड़कर 'अ•मा नम@ते'' कहा.
''नम@ते बेटा, जुग-जुग िजयो, सदा @व@थ रहो.''
आशीवाEद सुनकर जीवा च¬क गया. कह8ं ये चेतना अ•मा तो नह8ं हd! ”यान से दे खने पर उसे hव&वास हो गया, cक वह8 तो हd. cफर :स•नता से हुलसकर बोला- ''अ•मा, आपने शायद मुझे पहचाना नह8ं, मd आपका जीवा हूं.''
अ•मा ने भी मुंहं उठाकर उसे दे खते हुए अपने पोपले मुख से कहा- ''अरे जीवा, तू यहां कैसे? तूने मुझे कैसे पहचाना? कैसा बांका नौजवान हो गया है! cकसी क* नजर न लगे.!'' ''अ•मा इतना oयारा आशीवाEद आपके Rसवाय भला और कौन दे सकता है? आपके
आशीवाEद से ह8 आपका जीवा सचमुच एक बड़ा अफसर बन गया है.'' जीवा के हषE क* सीमा नह8ं थी.
''याद आ गया जीवा, शायद बीस साल पहले तू हमारे घर कूड़ा उठाने आता था.''
''हां अ•मा, मd वह8 जीवा हूं. मd तो अपने म•मी-पापा क* मदद करने के Rलए कूड़ा उठाने आता, तो उनक* तरह 'कूड़ा' ह8 कहता था, आपने ह8 मुझे कहा था- ''जीवा, तू कूड़ा उठाने के Rलए नह8ं बना है, एक ~दन तू बहुत बड़ा अफसर बनेगा. तू बस नम@ते cकया कर, तुझे दे खते ह8 हम कूड़ा तुझे दे दq गे, हां एक बात का ”यान रखना, @कूल मq पढ़ाई ”यान से करना. अ•मा, उस बाsको भूला नह8ं जीवा, हमेशा याद रखता रहा.'' ''पर आज तुम यहां कैसे बेटा?''
''मेर8 एक मौसी यहां रहती हd, कुछ ~दन उनसे Rमलने आया हूं. अ•मा आप ठ¢क तो हd. रं जन भै-या कैसे हd?'' ''हां रे जीवा, मd ठ¢क हूं और तुझे दे खकर बहुत खुश भी, तेरे रं जन भै-या भी ठ¢क हd.'' ''अ•मा, यहां कैसे बैठ¢ हd? आपको कह8ं पहुंचा दं ? ू ''
''बेटा, तन ू े मझ ु े याद रखा, यह8 बहुत है. मd तो रोज मं~दर मq दशEन करने आती हूं, cफर थोड़ी दे र स@ ु ताने के बाद घर चल8 जाती हूं. रं जन सैर करने गया है, बस आता ह8 होगा.''
''अ•मा, आज मझ ु े एक बार cफर आपका oयारा आशीवाEद Rमल गया. मेरा जीवन ध•य
हो गया. मd चलंू अ•मा, मौसी मझ ु े ना&ता दे कर ऑcफस जाएंगी, उ•हq दे र न हो जाए!'' $र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
''जा बेटा जा, सबका समय क*मती होता है.'' ''अ•मा, नम@ते.'' ''नम@ते बेटा, जग ु -जग ु िजयो, सदा @व@थ रहो.''
कुशल समाचार पछ ू ने माA से ह8 चेतना अ•मा का मन महक उठा था.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
12.
Xवाब पूरा हो गया
बचपन से ह8 सन ु ील का Xवाब डॉwटर बनने का था. आज 27 साल क* उ£ मq वह
डॉwटर बन भी गया, लेcकन उसके Rलए उसे cकतने पापड़ बेलने पड़े थे, उसे याद आ रहा था. तीन साल से ह8 यह पछ ू े जाने पर cक वह बड़ा होकर wया बनेगा? उसका ®ढ़ता से एक ह8 जवाब होता था- डॉwटर.
संयोगवश उसक* आंख( क* रोशनी मंद पड़ने लगी थी. पांच साल का होते-होते वह ~दuयांग कहा जाने लगा था. उसक* आंख( क* रोशनी पूणEतया समाoत हो गई थी. तान( का लंबा दौर चल पड़ा था-
''अरे ! अंधा wया डॉwटर बनेगा?'' ''जनाब क* आंखq तो काम नह8ं कर पा रह8ं, बड़ा आया डॉwटर बनने वाला!'' जैसे-जैसे तान( का सा£ा†य पसरने लगा, उसका डॉwटर बनने का Xवाब सु®ढ़ होता चला गया.''
एक ~दन एक साथी bवारा यह कहने पर, cक ''इस ज•म मq तुम कभी डॉwटर नह8ं बन सकते.''
''अगर ऐसा ह8 है तो मd संक‰प लेता हूं cक मd मेहनत और लगन से डॉwटर बनके ~दखा दं ग ू ा.'' सुनील बोला. सुनील ने मेTडकल मq :वेश के Rलए आवेदन cकया, लेcकन वहां उसे 3नराशा हाथ लगी. कहा गया, '®िšट बाŽधत छाA कभी Žचcकsसा क* पढ़ाई पूर8 नह8ं कर सकते.' अपने
आsमhव&वास और सकाराsमकता को बरकरार रखते हुए उसने खुद ह8 Žचcकsसा क* पढ़ाई आरं भ कर द8. उसने प’चीस पु@तक( को अपने Rलए ऑTडयो $रकॉडE करवाया और
उ•हq सुनना आरं भ कर ~दया. आज उस क* मेहनत रं ग लाई और वह पहले ऐसे ®िšटह8न छाA बन गया था, िजसने Žचcकsसा क* पढ़ाई पूर8 क*. संक‰प और ®ढ़ इ’छा शिwत क* बदौलत उ•ह(ने वाकई अपने Xवाब को पूरा कर के ~दखा ~दया.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
13.
'प' से पढ़ाई भी 'प' से पापा
आज अंतराEš¦8य सा˜रता ~दवस है. आज डॉ. पhवAा को सा˜रता समारोह मq जज बनके जाना था. कभी-कभी अचानक ह8 परु ानी याद( का hपटारा खल ु जाता है. आज भी ऐसा ह8 हुआ. पhवAा को कई साल पहले का अंतराEš¦8य सा˜रता ~दवस याद आ रहा था. उस ~दन पhवAा ने खद ु को एक अंधरे े कमरे मq कैद कर Rलया था. cकसी से Rमलने या बात करने का उसका मन नह8ं कर रहा था. यह जानते हुए भी cक ऐसा होना मिु &कल है, cफर भी वह हर अ’छे -बुरे hवचार से मुwत होना चाहती थी. मन का आलोड़न भला कब ‹क सका है! रह-रहकर उसक* Rशकायत( का पुRलंदा खल ु ता ह8 जा रहा था.
''हे भगवान, मेरे पैदा होते ह8 मेरे hपता को अपने पास wय( बुला Rलया? मd एक बार भी उ•हq oयार से hपता न कह सक*.''
''मेर8 मां को अनपढ़-जा~हल wय( बनाया. कुछ पढ़8-Rलखी होतीं, तो अपना व हम ब’च( का गुजारा तो ढं ग से कर लेतीं! cफर मां को दस ू र8 शाद8 भी नह8ं करनी पड़ती.''
''अब नये पापा कहते हd, मुझे hपता समझो, मझ ु े इ†जत दो, मुझे पापा कहो. तुम ह8
बताओ, कैसे कहूं भगवन ऐसे आदमी को hपता, जो सारा ~दन मां को गाRलयां 3नकालता हो, hपटाई करता हो, मझ ु े पढ़ाई से दरू रखता हो, मुझे दो ‹पए क* ककहरे क* cकताब भी नह8ं दे पाता हो!''
''एक उनके भाई यानी मेरे $र&ते से चाचा जी ह8 तो हd, जो मुझे पढ़ाई करने क* :ेरणा दे ते रहते हd, लेcकन अपने बड़े भाई के सामने उनक* एक नह8ं चलती.''
''आज तो मdने ककहरे क* cकताब के Rलए चाचा जी क* कमीज क* जेब से दो ‹पर 3नकाल Rलए, अब वे भी मझ ु से नाता तोड़ दq गे. cफर मd wया क„ंगी?''
तभी जोर-जोर से दरवाजा पीटने क* आवाज से उसके hवचार( क* तं“ा टूट8. ''पhवAा, दरवाजा खोलो.''
''अरे बाप रे !, यह तो चाचा जी क* आवाज है. िजसका डर था वह8 हुआ!'' डरते-डरते पhवAा ने दरवाजा खोला. टॉचE क* तेज रोशनी से उसक* आंखq च¬Žधया गŒ. तेज रोशनी और डर के मारे उसने आंख( के सामने हाथ रखते हुए ‹आंसी-सी होकर कहा- ''चाचा जी, मझ ु े माफ कर द8िजए, मdने आपक* जेब से ककहरे क* cकताब के Rलए RसफE दो ‹पए ह8 3नकाले हd. ये ल8िजए.''
''यह कैसी बात कह रह8 हो बेट8? आज तो अंतराEš¦8य सा˜रता ~दवस है. मd 50 बि’चय( को cकताब( का सेट बांटने वाला हूं. ये पहला सेट तेरे Rलए है. मd तझ ु े ह8 लेने आया था. ये cकताबq मd अपनी पhवAा के हाथ( से ह8 बंटवाऊंगा, और अब मd इस बात के Rलए बड़े भै-या से मक ु ाबला करने मq भी नह8ं ड„ंगा.'' $र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
''तुझे डरा कौन रहा है पगले!'' बड़े भै-या ने उसक* बात सुनकर कहा- ''मd अभी चौपाल
से आ रहा हूं. गांव क* सब बि’चय( और म~हलाओं के पढ़ने क* बात चल रह8 थी. मdने तो पhवAा क* मां का नाम भी सा˜रता कायEgम के Rलए Rलखवा ~दया है.'' ''ओह पापा, आप cकतने अ’छे हd!'' पhवAा ने लाड़ से कहा था. बस उसी ~दन से उसे 'प' से पढ़ाई भी Rमल8 थी और 'प' से पापा भी.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
14.
आदे श या इनायत?
काRमनी को आज SCERT मq मˆ ु य मंAी के हाथ( से रा†य @तर का SCERT Award Rमला था. वह जब परु @कृत होकर घर आई, तो उसे अनम ु ान भी नह8ं था, cक घर मq इतने सारे लोग एकƒAत ह(गे. नाते-$र&तेदार, RमA-प$रŽचत सब एक साथ. प3तदे व ने
रा@ते मq इस आकि@मक पाटy का ज़रा-सा भी संकेत नह8ं ~दया था. अब सब जा चक ु े थे. काRमनी भी शयन-क˜ मq पहुंच गई थी, पर 3न“ा दे वी उससे दरू 8 बनाए हुए थी. हां, ई&वर को वह नह8ं hव@मत ृ कर पा रह8 थी. उसे याद आ रहा था.
काRमनी बराबर एक क˜ा से दस ू र8 क˜ा मq पढ़ाने जा रह8 थी. हर कालांश मq उसक* सहयोगी अ”याhपका आकर उससे पूछ लेती थी- ''काRमनी जी, आपने सwयूEलर पर ह@ता˜र कर ~दए.''
''नह8ं, मुझे सwयूEलर के दशEन ह8 नह8ं हो रहे .'' काRमनी 3-4 बार जवाब दे चुक* थी.
आxखर8 कालांश मq ई&वर ह8 कह8ं से मुड़ा-तुड़ा सwयूEलर लेकर आई थी और उसे पढ़वाकर ह@ता˜र करवा गई थी. काRमनी से बहुत छोट8 होते हुए भी जाते-जाते ई&वर आदे श दे गई थी- ''काRमनी जी, यह शोधपA आपको ज„र Rलखना है. हमारे hवbयालय से एक आप ह8 हd, जो लेखन का यह काम कर सकती हd.'' उसी आदे श का पालन काRमनी ने cकया था, िजसके कारण आज उसे सबसे पहले SCERT Award आयोजन का सबसे पहला SCERT Award Rमला था. वह तय नह8ं कर पा रह8 थी, cक वह आदे श उसक* सहयोगी अ”याhपका ई&वर का था या जगत 3नयंता ई&वर का. यह तय करना भी मुि&कल था, cक वह आदे श था या इनायत?
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
15.
अनमोल पदक
रात का खाना खाने के बाद शRमEšठा सब ु ह के ना&ते आ~द क* तैयार8 करके सोने क*
तैयार8 करते-करते म@ ु कुरा रह8 थी. उसे ~दन भर क* मजेदार घटनाएं जो याद आ रह8
थीं. आज वह अपने @कूल क* छाAाओं के साथ hपक3नक पर 'फन ऐंड फुड hवलेज' गई थी. वहां लगातार छाAाओं क* जीत क* उbघोषणाएं हो रह8 थीं.
सबसे तेज़-ऊंचे झल ू े पर सबसे अŽधक दे र तक झल ू ने का पदक- जय‘ी hपिoपल. पानी मq सबसे अŽधक दे र तक रहने का पदक- अ3नता सूद
सेवा3नवhृ – क* कगार पर खड़ी शRमEšठा को अपने छाA-जीवन क* याद आ रह8 थी, जब हर :3तयोŽगता मq उसे पदक Rमलते थे. तभी छाAाओं व अ”याhपकाओं क* Rमल8 जुल8 :3तयोŽगताओं के आयोजन क* उbघोषणा हुई. शRमEšठा :स•नता से उsसा~हत हो गई. सबसे पहले उbघोषणा हुई''सबसे तेज़ ताल8 बजाने वाले को hवजेता घोhषत cकया जाएगा.''
शRमEšठा को क*तEन मq ज़ोर से ताल8 बजाने का अ¸यास था ह8, सो एक पदक उसक* झोल8 मq आ गया था. cफर 'फन ऐंड फुड hवलेज' hवषय पर तुरंत ह8 गीत सिृ जत कर गाना था. आठ-दस हजार गीत Rलखने-गाने वाल8 शRमEšठा के Rलए यह भी बांएं हाथ का खेल था. और ये Rमला उसे-----दस ू रा पदक.
ज़ोर से चुटक* बजाने मq भी वह अuवल रह8 थी और तीसरा पदक भी उसका हुआ. और सबसे बड़ी एवं अहम उbघोषणाअब ~दल थामकर स3ु नए- 'फन ऐंड फुड hवलेज' शी‰ड द8 जाती है- सबसे अŽधक पदक पाने वाल8 शRमEšठा को. आइए शRमEšठा जी एक और बार @टे ज पर आइए और शी‰ड ले जाइए. लौटते समय बस मq मनुहार करके शRमEšठा को hपक3नक पर चलने के Rलए मनाने वाल8 छाAाएं कह रह8 थीं. मैडम 'सवE‘ेšठ पदक' तो आपके रहे .
शRमEšठा ने @नेहपूवEक कहा- ''आप लोग मुझसे चलने के Rलए मनुहार न करतीं, तो यह कैसे संभव हो पाता!'' इसRलए सारा ‘ेय आप सब को.
सोते-सोते शRमEšठा सोच रह8 थी- ''छाAाओं के साथ संभवतः यह आxखर8 hपक3नक यादगार बन गई और पदक अनमोल.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
16.
भाभी क* राह
नं~दनी क* सास-ननद( क* बात सन ु कर सन ु ीता हैरान होती थी. सन ु ीता भी परू 8 कोRशश
करती थी, cक अपनी सास और एक ननद को परू 8 तरह संतšु ट रख सके, लेcकन ऐसा हो नह8ं पाता था. कुछ-न-कुछ खामी रह ह8 जाती थी. नं~दनी :ाइमर8 मq पढ़ने वाले अपने तीन( छोटे ब’च( को सास के पास छोड़कर प3त के साथ यरू ोप क* सैर पर गई थी.
उसक* ननद ने ह8 कहा था- ''भाभी, आपको सैर का मौका Rमल रहा है, 3नि&चंत होकर आराम से सैर पर जाइए, ब’च( क* दे खभाल करने मq ममी क* मदद करने के Rलए मd आ जाऊंगी.'' कोई सास को कहता- ''तु•हार8 बहू इतने छोटे ब’च( को तु•हारे पास छोड़कर कैसे चल8 गई है?'' सास का जवाब होता- ''तो wया हुआ? ब’च( क* छुl~टयां होती हd, तो मुझे भी ले जाती है. उसक* घूमने क* उ£ है, अब न घूमेगी तो कद घूमेगी?'' तीन( ननद( मq से cकसी को भी नं~दनी से कोई Rशकायत नह8ं थी.
नं~दनी के वाhपस आने पर नं~दनी ने उससे पूछ ह8 Rलया- ''पूनम, तुम यह सब कैसे मैनेज कर लेती हो?''
''कुछ नह8ं, मd तो बस भाभी क* राह पर चल रह8 हूं.'' ''मd समझी नह8ं!'' सुनीता ने हैरानी से कहा.
''जब भै-या क* शाद8 हुई थी, तो हम ब~हनq सोच रह8 थीं, अब भै-या तो भाभी को ह8 घुमाएंगे, हमq भूल जाएंगे, लेcकन ऐसा हुआ नह8ं. भाभी हम ब~हन( मq से cकसी एक को या ममी को साथ Rलए ƒबना घर से 3नकलती ह8 नह8ं थीं. हमार8 हर छोट8-बड़ी ज„रत पर उनक* पैनी नजर रहती थी, हमारे ज•म~दन को वे बहुत खास बना दे ती थीं, हमार8 शा~दय( मq भी कोर-कसर उ•ह(ने नह8ं रहने द8, अब भी हर वार-sयोहार पर हमारे साथ होती हd. सच पूछो तो मdने इसे $र&ते 3नभाने क* कला माA ह8 समझा था, पर अब समझ आ रहा है, cकतनी बड़ी कुबाEनी द8 थी भाभी ने इस राह पर चलकर!''
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
17.
अbभुत 3नखार
cकताबq खर8दने और पढ़ने का शौक रखने वाल8 @नेहा :ग3त मैदान मq लगा ''प@ ु तक मेला'' देखने गई थी. उसने कुछ प@ ु तकq खर8दते-खर8दते अपना हाथ रोक Rलया.
''अब तक wया हाRसल हुआ है तझ ु े @नेहा? इतनी प@ ु तकq पढ़कर तम ु ने अपनी uयिwतगत लाइ¹ेर8 मq सजा रखी हd, पर अपने मन के एक Rम©या hवचार तक से मw ु त नह8ं हो पाई हो, कभी अपने मन क* प@ ु तक को पढ़ा है!'' एक प@ ु तक ने उससे पछ ू ा था.
सवाल उसे वािजब लगा था. पु@तकq वह8ं काउं टर पर छोड़कर उसने घर क* राह पकड़ी
थी. सsय ह8 उस hवचार को वह 3तलांजRल नह8ं दे पाई थी, ''पर wया वह hवचार Rम©या था?'' उसने खद ु से पूछा था.
''ल8िजए, यह hवचार Rम©या कैसे हो सकता है भला! रोज़ ह8 तो उसे सुनना पड़ता है-
''@नेहा, इतनी लंबी-चौड़ी काया पर इतनी छोट8-छोट8 आंखq दे ते समय तम ु जगत-3नयंता से पूछ नह8ं सकती थीं, cक इतना असंतुRलत काम वह कैसे कर सकता है?'' यह :&न
सुनते ह8 उसके अंतस से hव&वास या क~हए cक आsमhव&वास xखसकता-सा नज़र आता
था. यह8 सोच-सोचकर चलते हुए वह अपनी सोसाइट8 के मं~दर तक पहुंच गई थी. यहां गणेशोsसव क* धूम मची हुई थी. पंTडत जी क* सुमधरु आवाज़ मq बहुत सुंदर भजन चल रहा था. भजन समाoत करते हुए पंTडत जी कथा करने लगे. वे बोले''अŽधक खाने के शौक*न मोटे पेट वाले लंबोदर गणेश जी महाराज क* आंखq बहुत छोट8 थीं. सच पूछो तो इ•ह8ं छोट8 आंख( मq उनके अ:3तम uयिwतsव का राज 3छपा हुआ था. दरअसल, गणेश जी क* आंख( को सू•म-ती•ण ®िšट का सूचक माना जाता है.''
पंTडत जी क* इस एक बात ने उसके अंतस के सsय को उजागर कर ~दया था. वह भी तो ऐसी ह8 हुआ करती थी. उसे याद आया आज से कई वषE पहले एम. ए. क* wलास मq भारbवाज सर ने उसके अ:3तम उ–र से अचंRभत होते हुए कहा था- ''@नेहा, तु•हार8 सू•म-ती•ण ®िšट का जवाब नह8ं.'' तब पूर8 wलास के hवbयाŽथEय( क* दजEन( जोड़ी आखq उसक* छोट8-छोट8 आंख( पर ~टक गई थीं. कई ~दन( तक उस मंज़र को वह भुला नह8ं
पाई थी. वह मंज़र सsय था, तो cफर ''सबसे बड़ा रोग, कुछ तो कहq गे लोग'' वाल8 बात को वह wय( भल ु ा दे ती है! पंTडत जी क* उस एक बात से उसे अपनी छोट8-छोट8 आंख(
पर गवE महसस ू होने लग गया. उसने मन क* cकताब को पढ़ना सीख Rलया था, उसका
आsमhव&वास अटल हो गया था, उसके uयिwतsव मq अbभत ु 3नखार अव&य आ गया था.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
18.
cकसको कहूं मd मां!
'cकसको कहूं मd मां!' यह :&न केवल सबको आकhषEत करने वाले ‘ी कृšण के सामने ह8 नह8ं था, ि@मत हा@य वाल8 ि@मता के अंतमEन मq भी था. हमेशा क* तरह आज भी ि@मता इस :&न से जझ ू रह8 थी. उसे याद आ रहा था-
अपनी चार बे~टय( मq से केवल बड़ी बेट8 का hववाह संप•न करने के तरु ं त बाद एक कार दघ ु Eटना मq उसक* मां का दे हांत हो गया था. hपता पहले ह8 द3ु नया छोड़कर जा चक ु े थे. मां क* मsृ यु का समाचार सुनकर ि@मता क* hववा~हत बड़ी ब~हन क* सासू मां ने उसे
तुरंत मायके भेज ~दया था. समाचार Rमलने पर जीजा जी भी ऑcफस से तुरंत आ गए
थे. तब से उ•ह(ने ह8 माता-hपता क* भूRमका 3नभाई थी. आंट8 ने अपने बेटे को कहा था''बेटा, इसक* मां तो रह8 नह8ं, इसक* तीन( ब~हन( क* िज•मेदार8 तुम लोग( क* है. सबक* शाद8 करके ह8 यहां वाhपस रहने आना, बाक* Rमलना-Rमलाना तो चलता ह8 रहे गा.'' ि@मता ने सासू मां का ऐसा उदारतापूणE सbuयवहार पहले कभी दे खा-सुना नह8ं था. दस ू रे
नंबर क* ब~हन क* शाद8 मq उ•ह(ने ह8 क•यादान क* र@म अदा क* थी. उसक* सासू मां ने कहा - ''बहू, जैसे तु•हार8 बड़ी ब~हन ने अपनी िज•मेदार8 बखूबी 3नभाई है, तुम भी ऐसा करना. हमारे भी कुल क* लाज का सवाल है.''
हुआ भी ऐसा ह8, उसने और उसके प3त ने दस ू रे नंबर क* ब~हन क* शाद8 मq क•यादान क* र@म 3नभाई. उसक* सासू मां भी वैसी ह8 3नकल8. सबसे बड़ी ब~हन अभी भी छुटक*
यानी ि@मता को संभाले हुए थी. सबका uयवहार इतना मनभावन, cक पता ह8 नह8ं लगता था, कौन cकसका सगा है. कुछ साल बाद ि@मता का भी क•यादान करने क* बेला आई, जो उससे बड़ी ब~हन और उसके प3त ने cकया. संयोगवश ि@मता को भी सासू मां
वैसी ह8 Rमल8. अब उसक* तीन बड़ी ब~हन( को Rमलाकर सात मांएं हो गई थीं. सब एकसे-बढ़कर-एक. ि@मता को समझ ह8 नह8ं आता था, cकसको कहूं मd मां!
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
19.
$र&ते का जामा!
समीरन तन से ह8 नह8ं, मन से भी घायल हो चक ु * थी. आज वह अ@पताल के
आइ.सी.य.ू वाडE मq भतº थी. जब तक उसे होश नह8ं था, वह कुछ सोचने के काƒबल नह8ं थी, होश आते ह8 उसे hपछले दस साल( से कल तक का वाकया याद आ रहा था.
दस साल पहले पन ु ीत से उसक* जान-पहचान हुई थी. बात आई-गई हो जाती, अगर पन ु ीत उस जान-पहचान को $र&ते का जामा नह8ं पहनाता तो! रोज़ क* तरह उस ~दन भी वह @कूल से बाहर आई, तो पुनीत उसको साइcकल पर
ƒबठाकर घर छोड़ने गया था. ~ह•मत जुटाकर पुनीत ने उससे hववाह क* बात छे ड़ी थी. hवधुर पुनीत को अपने चार ब’च( के लालन-पालन के Rलए तथाकŽथत मां चा~हए थी. अकेल8 कमाऊ समीरन से अŽधक अ’छा $र&ता उसे भला कहां से Rमलता!
सब कुछ ठ¢क चल रहा था. अचानक कल पुनीत का रौ“ „प ~दखाई ~दया. रात को घर आते ह8 उसने समीरन से तलाक के कागज़ पर ह@ता˜र करने को कहा. समीरन ने कहा- ''पुनीत, ये कैसी बहक*-बहक* बातq कर रहे हो?''
''मd तु•हारा खर8दा हुआ ग़ल ु ाम नह8ं हूं, जो तु•हq जवाब दं ,ू ज‰द8 से ह@ता˜र कर दो. मुझे बहुत अ’छा $र&ता Rमल रहा है.'' ''cफर एक और $र&ते का जामा! उसक* िजंदगी भी इसी तरह बरबाद करोगे?''
तभी एक नुक*ला वार हुआ था और खून क* धार बह 3नकल8 थी. उसके बाद आज उसने अपने को अ@पताल के पलंग पर पाया था. आसपास घूमती पुRलस से ह8 उसे पता चला था, cक पुRलस ह8 उसे यहां लाई थी.
वह सोच रह8 थी- ''$र&ते का यह कैसा जामा था, इनायत के बदले खून पर ~टका था!''
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
20.
बीड़ा
''हे मेरे ज•मदाता, तम ु Žचंता मत करो, अब त• ु हार8 अhवकाएं सजग और साहसी हो चक ु * हd. अब छे ड़खानी करने पर वे कहने लगी हd- 'हम चेहरा wय( 3छपाएं? शमE तो
उनको आनी चा~हए'. अब तम ु cफर महान कहलाओगे. तम ु 3नि&चंत होकर अपना 70वां ज•म~दन मनाओ.'' आज अhवका ने कहा था. उसने यह भी कहा था.
''Rलंग पर8˜ण करवाकर लड़क* होने का पता लगने पर भी तम ु ने मझ ु े ज•म लेने ~दया, मुझ पर यह अहसान cकया''? (तु•हq द3ु नया के सामने शेखी बघारने के Rलए नार8-पु‹ष का अनुपात सह8 बनाए रखने क* मजबूर8 थी.)
''तुमने मेरा नाम अhवका रखा. मझ ु पर यह अहसान cकया''?
''जब मdने तुमसे अhवका का अथE पूछा, तुमने बड़ी शान से सन शाइन कहा और मुझे हर समय सूरज क* तरह चमक-दमकदार रहने को :े$रत cकया''.
''cफर मुझे बताया- अhवका का अथE प© ृ वी भी है और मुझे प© ृ वी क* तरह धैयEवान बनकर रहने को :े$रत cकया''.
''तु•हारा मन cफर भी नह8ं भरा. अब मुझे बताया गया- अhवका का अथE डायमंड भी है और मुझे डायमंड क* तरह अपने को बेशक*मती समझकर रहने को :े$रत cकया''.
''मd पूछती हूं, मुझ पर यह अहसान wय( cकया''? ''तुम स–र साल के हो गए हो और मझ ु पर इतने अहसान कर आज़ाद कहलाकर इतरा रहे हो, cकसRलए''?
''बोलो, जवाब दो. मd सूरज क* तरह चमक-दमकदार होकर तु•हq लुभाऊं और तुम मेरे साथ छे ड़खानी करो, wया इसी को अहसान कहते हो''?
''मd प© ृ वी क* तरह धैयEवान बनकर तु•हारा हर ज़ु‰म धैयE से सहूं, wया इसी को अहसान कहते हो''? ''मd डायमंड क* तरह बेशक*मती बनकर बार-बार ƒबकती रहूं, wया इसी को अहसान कहते हो''? ''तुम मन से अपने को बुज़ुगE कहकर मेर8 र˜ा करने मq अपने को असमथE मानते हो, cफर भी अपने मजबरू नह8ं, महान कहलाते हो, wया यह8 त• ु हारा •याय है''?
''त• ु हारे बाRलग-नाबाRलग और वय@क-बज़ ु ग ु E बेटे बार-बार मेरे तन-बदन-आsमा को घायल करते रहq . wया यह8 त• ु हारा •याय है''?
''मझ ु े पता है, तम ु मजबरू हो, लेcकन अपने को मजबरू नह8ं, अनभ ु वी और महान कहके
इतरा रहे हो.''
और---और---''त• ु हारे बेटे?---वे मनमानी करने को आज़ाद हd.'' $र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
''तुम आज़ाद हो, वे आज़ाद हd, सब आज़ाद हd, बस अhवकाओं को आज़ाद नह8ं, धैयEवान होना है.''
''मजबरू तम ु हो या अhवकाएं''?
''मझ ु े पता है, तम ु नह8ं बोलोगे. बोल ह8 नह8ं सकोगे. कुछ कर भी नह8ं सकोगे. तम ु
मजबरू हो. तम ु तो बस महान कहलाने के इ’छुक हो. कुछ बोलने और करने, :3तकार करने और मक ु ाबला करने का बीड़ा अhवकाओं को ह8 उठाना पड़ेगा.''
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
21.
रामरखी-1
एक ज•म के संबंध का इतना बड़ा फल तो नह8ं Rमल सकता! हमेशा क* तरह आज भी रामरखी-1 यह8 सोच रह8 थी. 86 साल क* उ£ मq झक ु * कमर वाल8 रामरखी-1 का चलना-cफरना मिु &कल हो गया था. इसRलए शाम को सांŒ बाबा के मं~दर मq जाना भी मिु &कल हो गया था. घर के पास ह8 मं~दर था, िजसमq साल( से जाने का उसका 3नयम टूटता-सा लग रहा था. अwसर रामरखी-1
और रामरखी-2 के बीच वाताEल ाप चलता-
''तू मुझे कैसे Rमल गई? मd तो Žचराग लेकर भी तझ ु जैसी समŽधन नह8ं पा सकती थी और संयोग दे खो, तेरा नाम भी रामरखी!'' रामरखी-2 कहती!
''मुझे wया पता? तू अपने भगवान से पूछके बता न! मेर8 तो तीन बे~टयां ह8 थीं, तीन(
शाद8 करके अपने घर चल8 गŒ. तेरा बेटा मुझे सहारा न दे ता, तो मd न जाने कहां भटक रह8 होती?'' रामरखी-1 कहती.
''तू मुझे न Rमलती, तो इतने सारे पुराण( क* कथा मुझे कौन सुनाता?'' ''तू न सुनती तो मd cकसे सुनाती! यह सारा पु¾य तेरे को ह8 जाता है.'' ''वो तेर8 इतनी ब~ढ़या ल¬गा-इलायची वाल8 चाय मझ ु े कौन hपलाता?''
''और वो आलू के ल’छे दार परांठे मलाई वाल8 दह8 के साथ मुझे कौन xखलाता?''
दोन( क* ऐसी ह8 ल’छे दार बात( मq ~दन के ढाई बज जाते और रामरखी-2 क* बहू आशालता @कूल से आ जाती. cफर तीन( का एक साथ हंसते-xखलxखलाते भोजन खाना
रोज़ का काम था. आशालता को पता ह8 नह8ं लगता था, कौन-सी रामरखी उसक* मां है और कौन-सी सास. hवनोद को ह8 मां और सास के अंतर का पता कहां लग पाता था! वह शाम को ऑcफस से घर आता, तब कोई भी रामरखी उसके आगे-पीछे घूमकर उसक* हर ज़„रत का ”यान रखती. वह भी रामरखी-1 और रामरखी-2 क* हर ज़„रत का ”यान रखता. अब सम@या रामरखी-1 के सांŒ बाबा मं~दर मq जाने क* आ गई थी. ऐसी कौन-सी सम@या है, िजसका हल नह8ं 3नकल सकता? शाम को ऑcफस से आकर hवनोद रामरखी-1 को गोद मq उठाता और रामरखी-2 उसके साथ-साथ चलती. रामरखी-1 अwसर यह8 सोचती, cक उसका कोई बेटा होता, तो शायद वह भी ऐसा नह8ं कर पाता. यह तो अनेक ज•म( के प¾ ु य का बंधन था, जो उ•हq इस „प मq बांधे रख रहा था.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
22.
दआ ु का असर
आज एक क&मीर8 सट ू वाले को दे खा, तो मझ ु े मोना क* कहानी याद आ गई. आजकल मोना का अपना ई.ƒबज़नेस बहुत अ’छा चल 3नकला है. अब इस ई.ƒबज़नेस यहां तक पहुंचा कैसे? उन ~दन( वह अभी पढ़ती थी. एक क&मीर8 शॉल वाला उनक* सोसाइट8 मq शॉल बेचने आता था. अwसर ऐसा होता था, cक मोल-भाव करवाने के
चwकर मq पड़ोस क* 4-5 म~हलाएं इकlठ¢ हो जाती थीं. उसक* ƒबg* तो अ’छ¢ हो जाती थी, म~हलाओं को संतुिšट होती थी, cक हमने शॉल स@ते मq पटा Rलए. वह भी कुछ तो कमाकर ह8 जाता होगा. न जाने wय( मोना को ऐसा करना अखरता था! वह जब उसके
घर के पास आता, तो मोना को जो पसंद आता, वह उसके बताए दाम पर ले लेती. मोना ने तभी सोच Rलया था, cक कभी उसे अपना ƒबज़नेस करने का अवसर Rमला, तो वह दक ु ान( के बजाय उस जैसे लोग( से ह8 अŽधक सामान लेगी, ताcक उनको भी कमाने का अŽधक अवसर Rमल सके. अब अवसर Rमलते ह8 उसने उसी शॉल वाले से थोक मq शॉल लेना शु‹ cकया. cफर अ•य सामान के Rलए भी ऐसे सामा•य लोग( को ढूंढ- ढूंढकर
उनको 3नयRमत रोज़गार दे ना शु‹ cकया, उसका uयवसाय अपने आप :ग3त करता गया. शायद यह दआ ु का असर ह8 था.
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लघुकथा सं|ह-3
23.
gRमक hवकास
दे श हो या जीवन-शैल8 या cफर hवचारधारा, hवकास एकदम ह8 नह8ं हो जाता, यह बात उसे 80 साल क* उ£ मq अब जाकर महसस ू हुई है, इसRलए उसने पीछे मड़ ु कर दे खना श‹ ु कर ~दया है.
घर के सामने वाला बरगद का पेड़ भी तब छोटा था, जब उसने :ी3त के संग ग•ु बार( से खेलना श‹ ु cकया था. बढ़ते हुए बरगद के पेड़ क* तरह कब उसक* cकशोराव@था आई,
यौवन क* अठखेRलयां शु‹ हुŒ, वाधEwय आया, उसने और उसक* पिsन ने चलने के Rलए कब छड़ी थाम ल8, उसे पता ह8 नह8ं लगा. :भु पर hव&वास भी एक ~दन अचानक हो उसे सका था. इससे पहले वह अपनी म@ती मq म@त था.
:ी3त को एक तरह क* मेTडकल :ॉ•लम थी, िजसके चलते वह िजतनी बार भी कंसीव करती, उतनी ह8 बार पाचवq या छठे मह8ने मq गभEपात हो जाता. 18 बार गभEपात होने के बाद लै:ो@कोhपक सजEन डॉwटर और IVF hवशेष› ने उसक* :े¥नqसी का केस हdडल cकया. इसे वह द•पh– तो इसे चमsकार मानता ह8 था, डॉwटसE भी इसे चमsकार मानने लग गए थे. अब बेटे का hववाह भी स•प•न हो गया था और अपने प$रवार क* बागडोर संभाल ल8 थी. अब वह हर िज़•मेवार8 से मुwत था,
वह :ी3त के साथ रामे&वरम गया और RशवRलंग क* पज ू ा क*. hपछले साल सावन मq उसने 'Rशव पुराण' क* कथा का आयोजन करवाया. उसमq उसने सुना था-
''Rशव जी ने रावण क* कठोर तप@या से खुश होकर अपने RशवRलंग @व„प दो Žच¡न दे ने से पूवE कहा- ''इ•हq जमीन पर मत रखना, वरना ये वह8ं @थाhपत हो जाएंगे''. लंका जाते हुए :मादवश गौकणE ˜ेA मq वह वहां रखे गए, िजसके प&चात दोन( RशवRलंग वह8ं @थाhपत हो गए. दोन( RशवRलंग िजस मंजष ू ा मq थे उसके सामने जो RशवRलंग था, वह
च•“भाल और जो पीठ क* ओर था, वह बैजनाथ के नाम से :Rसbध हुआ''. इस सावन मq वह सफेद झख धोती-कुताE-बंडी पहने बड़ी ‘bधा के साथ RशवRलंग युगल के दशEन भी कर आया था. उसके Rसर के बाल भी उड़ गए थे, बरगद के प–े भी झड़ गए थे.
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लघुकथा सं|ह-3
24.
याद( का सफर
cकसीक* याद( का सफर कब थम पाया है, जो र8ना का थमेगा! दोन( बेट( के अपनी-अपनी नौकर8 पर सप$रवार रहने के कारण र8ना और उसके प3त ह8 घर मq रह गए थे. छोटे बेटे क* शाद8 को भी बीस साल होने को थे. ब’चे भी आते-जाते रहते थे, ममी-पापा को भी बल ु ाते रहते थे, पर र8ना क* याद( का सफर थम नह8ं पाता था.
''पापा, ममी का @कूल श3नवार को भी खुला होता है, हम सब घर मq होते हd. ममी सुबहसुबह राजमा बनाकर जाती हd, आते ह8 चावल बनाती हd, तब हम लंच खाते हd. wया ऐसा नह8ं हो सकता, cक हम चावल बनाकर रखq और कम-से-कम उस ~दन तो ममी आते ह8 आराम से खाना खा सकq?'' एक श3नवार को पांच साल के अबोध बालक का मासूम-सा सवाल था.
''हां बेटा, wय( नह8ं बना सकते? बात तो तु•हार8 ठ¢क है.''
''cफर हम ऐसा करना कब से शु‹ करq गे पापा?'' एक और मासूम सवाल उसक* ओर से था.
''ऐसा करते हd, cक आज मd ममी के Rलए चाय बनाकर रखता हूं, अगल8 छुlट8 से चावल भी बनाकर रखqगे. तब तक पूछ भी लqगे, cक चावल cकतने बनने हd.'' ''पापा, टे ƒबल लगाने और सलाद काटने का काम मेरा होगा.'' बड़े बेटे ने कहा था.
उस ~दन र8ना को चाय तैयार Rमल8 थी, अगल8 बार से लंच तैयार Rमला था. उसके बाद तो हर समय सभी हाथ बंटाने को तैयार रहते थे. इस बार जब र8ना छोटे बेटे के पास गई थी, तो बहू ने कहा था- ''ममी, आपने बेटे को खूब ¦q ड cकया है, मेर8 हर छोट8-बड़ी ज़„रत का बहुत ˆयाल रखते हd.'' इस बात को याद कर र8ना हषE से hवभोर हो जाती थी.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
25.
और $र&ता बन गया
लालचंद रात को सोते समय आज के घटनाgम को याद कर भगवान को ध•यवाद दे रहा था. कोTड़य( के दाम आधे टमाटर ƒबक पाए थे, इसRलए वह उदासी से मंह ु ं लटकाए रे लवे @टे शन पर बैठा था.
''राम-राम दादा जी,'' उसने कहा था. ''राम-राम बेटा,'' कहते हुए उदास बैठे हुए लालचंद ने नज़रq ऊपर उठाकर एक अजनबी को दे खा और कहा- ''बेटा, आप मुझे जानते हो?''
''नह8ं दादाजी, जानता तो नह8ं हूं, पर मेर8 आदत ह8 सबसे $र&ता बनाकर बात करने क* है, cफर आप तो सचमुच मेरे दादाजी जैसे लगते हd. वे भी ऐसे ह8 थे.'' ''wया अब वे नह8ं रहे ?''
''नह8ं दादाजी, आज उनक* पहल8 बरसी है.'' ''मd तु•हारे cकसी काम आ सकता हूं बेटा?'' ''दादाजी, इसी बारे मq आपसे बात करनी थी.'' ''बोलो बेटा.'' ''दादाजी, लगता है आपके पास इस बोरे मq टमाटर हd. इतने सXत टमाटर हd!'' उसने बाहर से ह8 हाथ लगाकर दे खा था और है रानी से कहा था. ''दादाजी wया ये बेचने के Rलए हd''? हां बेटा, टमाटर तो बहुत अ’छे और ताज़े हd, अभी-अभी खेत से तोड़कर लाया था, पांच cकलो ƒबक गए, बाक* पांच cकलो बचे हd.'' ''ठ¢क है दादाजी, ये ल8िजए 500 ‹पए और ये खाल8 बोरा.'' आगंतुक ने 500 और खाल8 बोरा दे ते हुए कहा. ''इतने ‹पए काहे Rलए दे त हो बचवा? इतना दाम तो नह8ं है!'' आ&चयE से लालचंद ने कहा था. ''दादाजी मुझे पता है, आजकल टमाटर 100 ‹पए cकलो ह8 चल रहे हd. अब आपसे
दादाजी क* बरसी के Rलए मोल-भाव थोड़े ह8 क„ंगा?'' कहकर वह चलने लगा. इतने मq उसे कुछ ”यान आया और बोला ''दादाजी, आपको कहां जाना है, मd मोटर से छोड़ दं ? ू ''
''अरे नह8ं ƒबटवा, हम कहां मोटरवा मq बैठqगे? अब तो सारा सामान ƒबक गया, ‹पए अंट8 मq आ गए. अब तो घर ह8 जावqगे'' सारे टमाटर ƒबक जाने और अ’छे दाम Rमलने के कारण खश ु ी मq लालचंद को अपनी भाषा याद आ गई थी.
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लघुकथा सं|ह-3
26.
घुन
Rश‰पेश बहुत समय से सन ु ता आ रहा था''$र&ता और hव&वास दोन( दो@त हd, $र&ता रखो या न रखो, hव&वास ज़„र रखना, wय(cक जहां hव&वास होता है, वहां $र&ते अपने आप पनप जाते हd.'' इस बात को वह मानता भी था, लेcकन wया वह hव&वास कर पाया था? शायद नह8ं, इसRलए तो वह 3नतांत अकेला रह गया था. बचपन से ह8 मां के :3त उसका hव&वास डोलता रहा था, इसRलए मां के :3त ह8 $र&ता पूर8 तरह से नह8ं पनप पाया था. शाद8 के
बाद मां से अलग रहा. पिsन Rश‰पा क* हर ग3तhवŽध पर अपनी संदेह भर8 नज़र ने उसे पिsन के पूणE समपEण को समझने मq hवफल कर ~दया. बेट8 कृ3त के पैदा होने पर वह बार-बार उसके नैन-नwश, रं ग-„प को अपने नैन-नwश से तोलता रहा. पिsन wया यह
समझ नह8ं पा रह8 थी! बेटा सज ृ न भी उसक* ऐसी नज़र से वाcकफ़ था. नतीजा उसके सामने प$रवार से दरू 8 के „प मq आया था. शाद8 के समय कृ3त क* ®िšट
क•यादान के
Rलए hपता के आने क* :ती˜ा मq ƒबछ¢ हुई थी. आxखर चाचा-चाची ने उसका क•यादान cकया. Rश‰पा बेटे के प$रवार मq म@त हो गई थी, cफर भी Rश‰पेश का अhव&वास कभीन-कभी खटकता ज़„र था. Rश‰पेश को अब महसूस होने लगा था, cक संदेह के घुन ने उसक* िज़ंदगी को खोखला कर ~दया था, अब समझौते मq अहं का घुन उसके आड़े आ रहा था.
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लघुकथा सं|ह-3
27.
Rमlट8 मु@कुराती थी
मझ ु े ह8 मग़ ु ालता हो गया था, cक मd माट8 को र¬द रहा हूं. अब लगता है, माट8 ने ह8 मझ ु े र¬द ~दया है.'' क‰लू कु•हार पdट-कमीज़ पहने हवाई जहाज मq बैठा मन-ह8-मन बद ु बद ु ा रहा था.
य( उसका बद ु बद ु ाना बेमतलब तो नह8ं था. उसके हाथ बरु 8 तरह से एलजº|@त हो चक ु े
थे. चाक चलाकर cफर भी बरतन और कलाकृ3तय( का सज ृ न करने का लोभ संवरण वह नह8ं कर सका था. ''अब तो डॉगदर साहब ने Rमlट8 से खेलने को मना cकया है, wया
तब भी नह8ं मानोगे?'' कलुआइन बोलती थी. क‰लू सुन लेता था, पर माने कैसे? चाक चल रहा है, तो जीवन चल रहा है न! वो तो भला हो बेटे के RमA ह$रया का, िजसने बंगलौर मq डॉwटर8 पढ़ने वाले बेटे को बापू का पूरा हाल दे ~दया था. बेटा तुरंत आ गया था. बापू को Rमlट8 मq लथपथ हाथ( से चाक चलाता दे ख बहुत नाराज़ हुआ था. उसी समय माई-बापू को लेकर बाज़ार गया, हवाई जहाज मq पहनकर
याAा करने लायक कपड़े-जूते ~दलाकर लाया और झ(पड़ी को रामहवाले कर बंगलौर के
Rलए रवाना हो गया था. ~टकटq वह पहले ह8 ले आया था, वरना wया माई-बापू मानने
वाले थे! दो ~दन बाद उसक* फाइनल पर8˜ा का आxखर8 पचाE था. cफर बापू का इलाज करवाने के Rसवाय और wया काम था? यहां सब डॉwटर जान-पहचान के थे, सब
सुhवधाएं भी थीं. यह8 सब समझाकर वह उनको साथ ला पाया था. कलुआइन ने भी बेटे का साथ ~दया था- ''भला मानो बेटे का जी, उसे आशीष दो- जुग-जुग िजए. आजकल ऐसे बेटे Rमलते ह8 कहां हd भला?''
माई-बापू को हवाई जहाज क* सीट पर ƒबठाकर बेटे ने उनक* त@वीर उतारने के Rलए बापू को मु@कुराने को कहा था, मां तो वैसे ह8 म@त थी, cफच-cफच हंसती रहती थी. क‰लू अपनी याददा&त मq शायद पहल8 बार मु@कुराया था. अब तक तो Rमlट8 क*
म@ ंु र कृ3त को पल भर के Rलए :ेम से 3नहारता ु कुराती थी, क‰लू बनाई Rमlट8 क* सद था, cफर दस ू र8 कृ3त बनाने मq जट ु जाता था.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
28.
दे नहार कोई और है
कलआ आज ऊपरवाले क* करनी सोच-सोचकर है रान रहा था. ु
कैसी अbभत ु hवडंबना थी! य( तो सारा गांव उसे भी महादानी कहता था. अपने खेत से वह जो भी अ•न-दलहन-3तलहन लाता था, रा@ते मq ज„रतमंद( मq बांटता आता था.
कहता था- ''वह उनका ~ह@सा है.'' ऊपरवाले ने उसको भी कभी भख ू े पेट नह8ं सल ु ाया था. आज पहला ~दन था, जब वह अ•न के दाने Rलए 3नहार रहा था. उसक* ~ह•मत भले ह8 जवाब दे गई हो, पर उसक* पिsन कमल8 ने सबको ढाढ़स बंधाया था. ''अपनी तो दो ह8 आंखq सd, ऊपरवाले क* हज़ार सd, काहे ~ह•मत हारत हो. एक ~दन हम बरत नाह8ं कर सकत हd का? ''कमल8, सबेरे से चू‰हो ठं डो पÂयो है, थारा मd इतनी इतनी ~ह•मत कठq सूं आ गी सै?'' कलुआ ƒबसूरने-सा लगा था.
''याद सै, सबेरे संत जी कै बो‰या था''दे नहार कोई और है, जो दे वत ~दन रे न'' कदै न भी दे वै, तो धीरज राखो. ऊपरवालो सबेरे तो भूखो उठावै सै, रात को भूखो कोनी सुलावै!''
''कोन xखलावैगो. सबक* फसल तो सूखे ने बरबाद कर द8 सै.''
तभी दरवाज़े पर द@तक हुई थी. कलुआ ने 3नराशा से कहा था- ''आओ भाई, दरवाजो तो खु‰यो पड़ो सै. थे भी •हारे सागे भख ू मq शाRमल हो जाओ.'' ''सेठ जी, हम खाने नह8ं xखलाने आए हd.'' आगंतुक ने कहा. ''काहे का सेठ, भूखा सूं काहे ~ठठोल8 करत हो भाई?''
''हम ~ठठोल8 नह8ं कर रहे . हम ''Ãेश ¹ेड बेकर8'' वाले हd. इस टाइम हमार8 िजतनी भी ¹ेड बच जाती है , ज„रतमंद( मq बांट दे ते हd. इस गांव मq सूखे क* खबर Rमल8 थी, सो आज यहां आए हd. िजतनी ज„रत हो, ¹ेड ले लो और ताजी-ताजी खा लो.''
कमल8 ने शुcgया कहते हुए दो ¹ेड ले ल8. कलुआ तो हैरान-सा दे ख रहा था. उनके जाने के बाद कलुआ ने कहा था- ''तू कांŒ कह रह8-सी कमल8, ''दे नहार कोई और है-----------''
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
29.
oयार का पौधा
~दuया दादाजी क* तेरहवीं पर भारत आई हुई थी. आज उसे दादाजी क* बहुत याद आ
रह8 थी, िज•ह( ने उसे जो oयार का पौधा ~दया था, वह आज एक बड़े व˜ ृ का „प ले चक ु ा है.
~दuया के दादाजी उस को अंतराEš¦8य बेट8 कहते थे. कहते भी wय( न! उसके hपता रं गनाथन भारत से थे, माता जल ू 8 पै$रस से थी, ~दuया का ज•म अमे$रका मq मागº के
नाम से हुआ था, उसका रं ग-„प भी अंतराEš¦8य ह8 अŽधक था. &वे3तमा Rलए उसके तनबदन क* रं गत मां पर गई थी और बाल( का भूरा रं ग उसे नानी से उपहार मq Rमला था, बाक* नैन-नwश hपता और दाद8 क* दे न थे. वह अपना पहला ज•म~दन मनाने भारत आई थी. उसक* ~दuय सूरत-सीरत को दे खकर उसके दादाजी ने ह8 उसका नामकरण
मागº से ~दuया के „प मq cकया था. उसके पांचवq ज•म~दन पर उसके दादा जी ने उसको एक पौधा उपहार मq ~दया था. ''दादा जी, आप मुझे Žगvट मq पौधा wय( दे रहे हd?''
''यह उपहार हमार8 भारतीय सं@कृ3त का एक अRभ•न अंग है. इससे ह8 हम ब’च( को पयाEवरण क* सुर˜ा करना Rसखाते हd.''
''वह कैसे दाद? ू '' ~दuया ने हैरानी से पूछा.
''दे खो बेट8, व˜ ृ हमारे पयाEवरण को शुbध और @व@थ बनाए रखते हd, हमq फल-फूलदवाई-Œधन-इमारती लकड़ी आ~द दे ते हd और रं ग-ƒबरं गे फूल( के „प मq चार( तरफ सुंदरता और महक भी इ•ह8ं से हd.''
''दाद,ू पर मd इसे अमे$रका कैसे ले जाऊंगी?'' ~दuया का @वाभाhवक सवाल था.
''इसको यह8ं बŽगया मq रोप दो, मdने इसके Rलए Rमlट8 खोदकर छोटा-सा गŸढा भी बना ~दया है. इसका पालन-पोषण हम करq गे. हम तु•हq समय-समय पर इसका फोटो भेजते
रहq गे, तुम जब यहां आओगी, तो तु•हq यह दे खकर खुशी होगी, cक तुमने भी पयाEवरण क* सुर˜ा के Rलए एक छोटा-सा :यsन cकया.''
''दाद,ू मd भी अमे$रका मq अपने दो@त( को ख़ास अवसर( पर पौधा ŽगÅट क„ंगी.'' ''शाबाश बेट8, इस तरह तम ु तम ु परू 8 द3ु नया मq oयार के पौधे रोप सकोगी.''
उसने यह8 cकया भी था और सबको पयाEवरण क* सरु ˜ा करने के :यsन मq सहायक
होना Rसखाया भी था. उसी oयार के पौधे से ~दuया महक रह8 थी और जग को महका रह8 थी.
$र&त( क* सहे ज
38
लघुकथा सं|ह-3
30.
अनेक भार8 जेबq
कई ~दन( क* कमज़ोर8 के बाद आज नीरा अपने को त3नक ठ¢क महसस ू कर रह8 थी,
cफर भी कभी-कभी उसे यह पीड़ा कचोटती रहती थी, cक wया वह सचमच ु इतनी बीमार
हो गई थी, cक उसे 5 ~दन आइ.सी.यू मq रहना पड़ा था. cफर वह सोचती, ''चलो अब तो सब ठ¢क हो गया है और वह काम मq लग जाती. पड़ोस के डॉ. hवनोद ने ह8 उनका इलाज cकया था. एक तो डॉ., ऊपर से पड़ोसी, नीरा को उन पर परू ा भरोसा था. शाम को ठं डी हवा चल पड़ी थी. नीरा कई ~दन( से बाहर 3नकल8 भी नह8ं थी, आज सैर के Rलए पॉकE मq जाने को उसका मन कर आया, सो वह चल8 गई. संयोगवश सामने से डॉ. hवनोद आते ~दखे. डॉ. hवनोद ने उनको सैर करते हुए दे खकर :स•नता जताई और हालचाल पूछा. नीरा ने अपनी तƒबयत संतोषजनक बताते हुए अपनी शंका ज़ा~हर कर द8''डॉ. साहब, एक बात बताइए, wया मेर8 तƒबयत सचमुच इतनी खराब थी, cक मुझे 5 ~दन आइ.सी.यू मq रहना पड़ा था''?
खीसq 3नपोरते हुए डॉ. hवनोद बोले-''ब~हनजी, आपक* जेब से तो कुछ नह8ं गया. पैसा तो सरकार8 लगा. तीन ~दन मर8ज़ के होते हd, दो ~दन डॉwटर के''. और वे आगे चल ~दए. नीरा को जाते हुए डॉ. hवनोद क* पीठ मq अनेक भार8 जेबq ~दखाई पड़ीं.
$र&त( क* सहे ज
39
लघुकथा सं|ह-3
31.
hवजेता कौन?
~दल:ीत के hपता मनजीत आज बहुत खश ु हd, आनंदा3तरे क मq वे समझ नह8ं पा रहे हd,
cक hवजेता उनक* मेहनत है, या बेट8 क* :3तभा. आज उनक* बरस( क* कड़ी मेहनत रं ग लाई थी. ~दल:ीत को Rल•का बक ु ऑफ रे कॉŸEस bवारा सबसे †यादा मैथमै~टकल
कैलकुलेश•स करने के Rलए 1-2 नह8ं 11नैशनल और 2 व‰डE रे कॉडE Rमल गए हd.
~दल:ीत के hपता मनजीत Rसंह खद ु मै©स के ट8चर हd. उ•ह(ने ~दल:ीत को मै©स मq
बड़ी-से-बड़ी कैलकुलेश•स को सेकंŸस मq सॉ‰व करने के Rलए :े$रत cकया और उसक*
मदद क*. बेट8 क* :3तभा से वे वाcकफ थे ह8, इसRलए जब वह @कूल और कोŽचंग के
काम से 3नजात पाकर ~दल:ीत मन बहलाने को बैठती, तो उसके hपताजी उसे बड़े रोचक तर8के से पुनः मै©स मq लगा दे ते. खुद समय को भी पता नह8ं चलता, cक cकतना समय कैसे uयतीत हो गया. आज ~दल:ीत के Rलए Rल•का बुक ऑफ रे कॉŸEस ट8म के सद@य अनंत काशीभाटला ने कहा- ''10वीं क* छाAा ~दल:ीत पहल8 ऐसी शˆस बन गई हd, िज•ह(ने एक साल के अंदर 13 रे कॉडE बना Rलए हd. Rल•का बुक ऑफ रे कॉŸEस के इ3तहास मq यह बहुत कम दे खने को Rमला है''.
$र&त( क* सहे ज
40
लघुकथा सं|ह-3
32
ग(गा ि@कमबाइक
भै-या-भै-या, दे खो तो, अखबार मq आपका फोटो छपा है. cकतने संद ु र लग रहे हd आप!
'अ’छा-अ’छा, †यादा ह‰ला मत कर. अ•मा-बाबा को शां3त से पज ू ा करने दे , और सन ु , ये अखबार यहां रख जा.'' :ॉजेwट Tडजाइन मq bhवतीय वषE के 24 वषºय छाA ग(गा ने
कहा. अखबार तो ग(गा के हाथ मq ह8 रह गया. उसक* आंखq तो कुछ और दे ख-सोच रह8 थीं.
बाक* लोग( क* बेशक दो ह8 आंखq होती ह(गी, लेcकन ग(गा नवीन कुमार क* अनŽगनत आंखq थीं. यह सब ग(गा को कहां पता था! वह तो अपने काम मq Rशbदत से त‰ल8न
रहता था. उसका ”यान पढ़ाई पर तो था ह8, पयाEवरण और महंगाई पर भी उसक* पैनी नज़र थी. दे श क* न~दय( क* गंदगी से भी वह भल8भां3त वाcकफ था. Œधन क* कमी से जूझते दे श को वह नजर अंदाज़ कैसे कर सकता था! cकफायत तो उसे घुlट8 मq hपलाई
गई थी. इसRलए उसने न~दय( के पानी से कचरा 3नकालने के Rलए तेल के खाल8 Tड•ब(, साइकल के कुछ पाlEस, oलाि@टक और लकड़ी क* मदद से एक मशीन तैयार क* थी. इस ग(गा ि@कमबाइक क* क*मत 30 हजार ‹पये है, जब cक इस वwत िजन मशीन( का
इ@तेमाल न~दय( क* सफाई के कायÆ मq cकया जा रहा है , उनक* क*मत करोड़( ‹पये है . खाल8 Tड•ब( क* वजह से मशीन ƒबना cकसी मेहनत और सुर˜ापूवEक पानी पर तैरती
रहती है . यह RसफE पानी मq संभलकर तैरती ह8 नह8ं है बि‰क यह मुहान( से कचरा भी बाहर करती है.
यह सब ग(गा क* लगन का नतीजा था, जो आज अखबार मq छपा था.
$र&त( क* सहे ज
41
लघुकथा सं|ह-3
33.
जब जागो तभी सवेरा
आज मdने 100 मीटर क* दरू 8 42.20 सेकंड मq दौड़कर नया Žगनेस व‰डE रे कॉडE बनाया है. आप मेर8 खश ु ी का अंदाज़ा लगा ह8 सकते ह(गे. मd भी बहुत खश ु हूं और मझ ु े 3 साल पहले के उस ~दन क* बात याद आ रह8 है, जब मd भारत मq थी. मd रोज क* पाकE मq जॉŽगंग कर रह8 थी, cक मझ ु े एक आंट8 ने 'गड ु मॉ3न¤ग'' कहकर मझ ु से बात करनी चाह8.
''आपको बहुत अ’छ¢ तरह जॉŽगंग करते दे ख मुझे बहुत खुशी हो रह8 है .'' ''जी, शुcgया, बस ये मेरा शौक है, अब तक तो घर गह ृ @थी मq uय@त थी, अब दोन( ब’चे कॉलेज के हो@टल मq पढ़ रहे हd, सो अपने Rलए कुछ समय 3नकाल पाती हूं.'' ''आप इतना तेज़ दौड़ पाती हd, आपने कभी cकसी @पोटE स एसोRसएशन से जुड़ने क* कोRशश नह8ं क*?'' आंट8 ने पूछा था.
''बस, अपने Rलए समय ह8 नह8ं 3नकाल पाई. अब तो दे र हो चुक* है.''
''नेक काम के Rलए कभी दे र-सवेर नह8ं होती है. ऐसे मq तो जब जागो तभी सवेरा होता है.'' आंट8 ने मुझे जगाने क* कोRशश क* थी.
''अब तो मुि&कल लग रहा है.'' मेरा दरु ा|ह ह8 समxझए.
''ऐसा है लता जी, मd एक •लॉगर हूं और अwसर :ेरणा और :ोsसाहन दे ने वाले •लॉ¥स ह8 Rलखती हूं. आपको हमार8 बात पर ज़रा भी hव&वास हो, तो घर जाकर हमारा 'अभी मdने शु‹आत ह8 क* है' •लॉग पढ़कर दे xखएगा. शायद आपको भी :ेरणा Rमल सके.'' आंट8 से मेर8 यह पहल8 और आxखर8 मुलाकात थी.
मdने •लॉग पढ़ा था और 105 वषE क* आयु मq दौड़कर नया Žगनेस व‰डE रे कॉडE बनाने
वाले जापान के ‘गो‰डन बूट’ के नाम से :Rसbध 3नवासी ~हदेcकची Rमयाजाक* के कथन
से :भाhवत हुए ƒबना नह8ं रह सक*- उ•ह(ने कहा था- ''अभी मdने शु‹आत ह8 क* है.'' मुझे लगा, cक उस शˆस ने तो 90 बसंत पार करने के बाद दौड़ना शु‹ cकया था, मd तो अभी 50 बसंत भी नह8ं दे ख पाई हूं. अभी दे र नह8ं हुई है . कुछ समय बाद ह8 हमार8 पोि@टं ग इटल8 मq हो गई थी. मेरा मन :ेरणा से सराबोर था ह8, इटल8 मq मुझे ऐसी
संग3त भी Rमल गई. मdने :यsन जार8 रखा. उसी का सप ु $रणाम है, cक दौड़ मq आज का यह नया Žगनेस व‰डE रे कॉडE मेरे नाम दजE हो गया है.''
आंट8 ने मझ ु े दरु ा|ह से मिु wत ~दलाई थी और मिु wत से जीत से जीत हाRसल हो गई.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
34.
नव सु:भात
~दन क* आपाधापी पण ू E कोलाहल मq भले ह8 अंतमEन क* भावनाएं सष ु oु ताव@था मq रहq , लेcकन राƒA के स•नाटे के आगोश मq वे पन ु ः जागत ृ हो उठती हd. ‹wमा के साथ भी
ऐसा ह8 हुआ था. आज उसने रे Tडयो पर सब ु ह-सब ु ह समाचार( के बाद एक कhवता 'स: ु भात' क* दो पंिwतयां सन ु ी थीं.
''नयन का नयन से, नमन हो रहा है लो उषा का आगमन हो रहा है.'' आगे ‹wमा सुन नह8ं पाई थी, wय(cक अब तो उसके जीवन मq न उषा का आगमन होना था और न ह8 नव सु:भात का. ‹wमा क* सु:भात तो उसी ~दन ढल गई थी, जब उसके प3त मोहन क* तेरहवीं के तुरंत बाद उसके ससुराल वाले उसे वद ं ृ ावन के वb ृ धा‘म मq
छोड़ गए थे. अपने मोहन क* ‹िwमणी अब ‹wमा कहलाती थी. ƒबना बाल( का मुंडा हुआ Rसर और सफेद धोती उसक* पहचान हो गई थी. cकतनी खुशी से वह अपने प3त के साथ फाग के मह8ने मq फाग गाती थी!
''फागण आयो फागxणयो रं गा ~दयो रRसया, हो रं गा ~दयो रRसया, फागण आयो''. सचमुच उसके रRसया फागण मq उसे रं गरं गीलो फागxणयो लाकर दे ते थे. अब तो वे ~दन फ़ाXता हो गए हd. अब तो न उसक* होल8 मq रस का रं ग बरसता है, न ~दवाल8 मq मन
का ~दया जलता है. सचमुच ह8 उसके ''सबै ~दन एक समान'' हो गए थे. सोचते-सोचते न जाने कब उसे नींद आ गई. सुबह वह8 3नयRमत भागमभाग और आपाधापी.
ना&ते के पहले द8 गई एक अŽधसूचना ने सबके मन-मयूर को हhषEत कर ~दया था.
''आज सबको आ‘म क* बस से शहर ले जाया जाएगा, ताcक सब अपनी मनमजº से फाग-उsसव के Rलए नए कपड़े, Rमठाई, रं ग-गुलाल आ~द खर8द सकq. इस बार होल8 पर आ‘म मq सभी hवधवाएं भी धूम-धड़ाके से होल8 खेलqगी''.
‹wमा को लगा, नव सु:भात क* सुखद बेला मq उषा का आगमन हो रहा है .
$र&त( क* सहे ज
43
लघुकथा सं|ह-3
35.
अपना आRशयाना
cकतना शौक था उमेश को अपने आRशयाने का! आज उसको अपना आRशयाना Rमल गया है, लेcकन cकतने पापड़ बेलने के बाद! 2010 मq उसने इसे बक ु कराया था. तीन साल मq मकान Rमलना था. ढाई साल मq ƒब‰डर ने 22 माले का ढांचा खड़ा कर ~दया और 80% रकम हड़प ल8, उमेश और अ•य उपभोwता साल( तक अपने आRशयाने क* :ती˜ा ह8 करते रह गए. उसके बाद श‹ ु हुआ अपने जैसे पीTड़त( को ढूंढकर |प ु बनाना, श3नवार-
रhववार Rमलना-जुलना, छुl~टयां लेकर कोटE के चwकर लगाना, hपछले 4 साल( से cकराए के घर का रq ट और Rमलने वाले घर क* ईएमआई, दोन( दे ते आना. एडवोकेट और सीए
RमA क* मदद से बैलqसशीट 3नकलवाने पर पता लगा, cक उनके फंड को ƒब‰डर ने दस ू र8 कंपनी मq ¦ांसफर कर ~दया था. cफर फंड 3नल ~दखाकर माकÊट से पैसे भी उठा Rलए.
इतना ह8 नह8ं, उनके उस पैसे से ƒब‰डर ने cकसी दस ू र8 जगह बड़ा-सा oलॉट भी खर8द Rलया था. यानी उनके पैसे से एक दस ू र8 कंपनी खड़ी कर उसमq ¦ांसफर कर ~दए गए और बैलqसशीट पर सीधा घाटा ~दखाकर काम रोक ~दया. खुद भी ~दवाRलया हो गया,
उमेश जैसे अनेक उपभोwताओं को भी ~दवाRलया कर ~दया. भला हो रे रा का, िजसक* मदद से सात साल बाद उ•हq घर Rमल पाया. आज उसी घर क* गुनगुनी धूप मq उ•हq
अपने चाचाजी का बहुत साल पहले का स’चा cक@सा याद आ रहा था. उस समय सरकार8 नौकर8 मq चाचाजी क* त•Xवाह माA 237 ‹पए थी. छोटा ह8 सह8, पर रहने को सरकार8 घर Rमला हुआ था. एक ~दन रhववार को सुबह चाय पीते हुए अखबार मq डी.डी.ए. के oलॉlस क* नीलामी के बारे मq पढ़ा. अपनी जेब टटोल8, उसमq 40 ‹पए थे. पsनी से लंच तक आने को कहकर 3नकल पड़े. घर आकर पsनी को बताया''मd डेढ़ सौ गज़ का oलॉट खर8दकर आया हूं.'' ''मज़ाक मत क$रए जी.'' पsनी को hव&वास नह8ं आ रहा था. ''मज़ाक नह8ं, सच कह रहा हूं.'' ''पैसे कहां थे?'' ''चाल8स ‹पए थे, तीस ‹पए बयाना दे आया हूं, 500 कल बdक से 3नकालकर दे दं ग ू ा. काम बन जाएगा.'' चाचाजी ने आनन-फानन घर भी बना Rलया था. अभी बेट8 6 साल क* ह8 थी, cक घर बनाकर cकराए पर चढ़ा ~दया. अब उसमq रहकर मौज कर रहे हd. तभी पsनी चाय लेकर आई. िजंदगी के बदले हुए गxणत क* गणना करते हुए उमेश जी क* तं“ा टूट8 और वे अपने आRशयाने मq चाय का लsु फ़ उठाने के अहसास को जीने लगे.
$र&त( क* सहे ज
44
लघुकथा सं|ह-3
36.
ऐसे भी cकया जाता है मोह sयाग
वे अ’छे @वभाव के सीधे-सादे uयिwत थे. ल•मी माता क* उन पर अपार कृपा थी. पज ू ाअचEना के नाम पर वे न cकसीका बरु ा करते थे, न cकसीको बरु ा कहते थे, न cकसीका बरु ा सन ु ते थे. वे हर समय भगवान और मsृ यु को याद रखते थे wय(cक, भगवान का
सदै व अि@तsव भी 3नि&चत है और मsृ यु का आना भी 3नि&चत है. अपने कामकाज के
बाद समय Rमलने पर वे थोड़ा बहुत पढ़ लेते थे, लेcकन जो पढ़ते थे उसको अ’छ¢ तरह गुनते भी थे. एक बार उ•ह(ने पढ़ा cक, "हम घर मq रहने से नह8ं फंसते, :sयुत घर को अपना मानने से फंसते हd.'' यह बात उनके मन मq घर कर गई थी. उ•ह(ने भरसक
:यsन cकया, लेcकन घर को अपना मानने से बच नह8ं सक पा रहे थे सो, उ•ह(ने घर मq सबको कह ~दया था cक, बेट8 क* शाद8 करने क* अपनी िज़•मेदार8 के बाद वे घर का sयाग कर दq गे. कोई सच समझता था तो कोई महज मज़ाक, लेcकन उ•ह(ने बेट8 क* शाद8 करने के बाद सचमुच घर का sयाग कर ~दया. पूछने पर अपने गु‹ के आ‘म मq जाकर रहने क* बात कह8. आ‘म मq गु‹जी ने उ•हq रहने के Rलए कमरा भी दे ~दया.
यहां वे केवल समाज सेवा और साधना के अ3त$रwत वे कोई काम नह8ं करते थे, लेcकन समाज सेवा के Rलए धन क* उ•हq कभी कोई कमी नह8ं आई. न जाने कैसे यहां भी ल•मी माता क* उन पर अपार कृपा रह8. उनके घरवाले तथा hवशेषकर पोता कभी-कभी
Rमलने भी आ जाते थे. एक ~दन अपने hपता के कहने पर उनका पोता चार लाख ‹पए लेकर आ‘म मq आया और मनचाह8 जगह पर अपना कमरा बनाने के Rलए आ|ह cकया. उ•हq लगा एक बार cफर वे बंधन मq बांधे जाने वाले हd. कुछ सोचकर उ•ह(ने पोते को
इस तरह का आ|ह न करने को कहा. बहुत कहने पर भी जब वे न माने तो, पोता ‹पए लेकर वाhपस चला आया. अगले ~दन अमत ृ वेला मq ह8 चौक*दार को एक Žचट दे कर बोले cक गु‹जी के जगने पर वह उ•हq दे दे और वे कह8ं चले गए. उसके बाद कई बरस तक उनका कोई प–ा-~ठकाना नह8ं लगा. उसके बाद तो घरवाल( ने उ•हq ढूंढना भी बंद कर ~दया. स•भवतः सचमुच ह8 उ•ह(ने स’चा मोह sयाग कर ~दया था. ऐसे भी cकया जाता है मोह sयाग.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
37.
उसका uयवहार ह8 उसका संदेश है .
काम ह8 पज ू ा है कहने को वह महज एक फूल(वाला है, लेcकन वह कोई साधारण
फूल(वाला नह8ं है. उसे महान संत नामदे व व तक ु ाराम जैसे संत( क* ‘ेणी मq भी रखा जा सकता है, जो अपने-अपने uयवसाय मq म¥न रहते हुए भी :भ-ु भजन के सहारे भवसागर से तर गए और अमर हो गए. बात यह नह8ं है cक वह पज ू ा करता है या उसे कोई
RसbŽध :ाoत है. बस वह अपने काम को ह8 पज ू ा समझता है और यह8 वा@तव मq उसक* पूजा है भी. वह थोक मq फूल लेने जाने के Rलए साइcकल पर चढ़ते ह8 कोई-न-कोई
भजन गाता-गुनगुनाता चलता है. राह8 उसके भजन( क* आवाज़ आने तक सुनने के Rलए चलते-चलते राह मq ‹क जाते हd. भजन सुनने व याद करने के Rलए उसे कह8ं जाना भी
नह8ं पड़ता है . वह फूल खर8दकर मि•दर के बाहर आसन जमा लेता है और अ•दर चलने वाले भजन सन ु ते हुए, गुनगुनाते हुए मालाएं hपरोता रहता है. माला hपरोते हुए वह :भुभजन मq इतना ल8न हो जाता है मानो माला मq वह फूल नह8ं, अपने मन को hपरो रहा हो. कई बार |ाहक के दो-तीन बार पुकारने पर ह8 वह उ•हq , अपना uयवसाय होने के
कारण भले ह8 पैस( से पर, भगवान का :साद समझकर फूल और फूलमालाएं दे ता है.
मालाएं hपरोकर जब वह लोग( के घर( के गेट पर मालाएं टांगने के Rलए ‹कता है तो, भजन गाते हुए माला टांगता है. स•भवतः यह8 कारण है cक मां सर@वती से उसे दोहरा वरदान Rमला है. उसका कंठ तो इतना मधरु है ह8 मानो वे @वयं उसके कंठ मq
hवराजमान ह( और दस ू रे वह जो भी भजन सुनता है, वह उसे अ’छ¢ तरह याद हो जाता है. कभी-कभी वह खुद cकसी पंिwत क* रचना कर उसे ह8 गुनगुनाता रहता है. लोग
उसके मधुर कंठ क* ~दल से 3नकल8 हुई आवाज़ को सुनने के Rलए पलक-पावड़े ƒबछाकर उसके आने क* :ती˜ा करते हd और मन-ह8-मन सोचते हd cक इस फूलवाले का तो काम ह8 पूजा है. cकतना अ’छा हो cक हम भी अपने काम को पूजा बना सकq! उसका uयवहार ह8 उसका संदेश है.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
38.
जीवनसाथी
सन ु ंदा क* शाद8 तय हुए चार मह8ने हो चक ु े थे, लेcकन वह अभी तक सRु मत से Rमलने नह8ं जा पाई थी. सRु मत के अRभभावक कई बार ब’च( के Rमलने के Rलए कह चक ु े थे, लेcकन सन ं ा के अRभभावक इसके Rलए राज़ी नह8ं हुए. सन ु द ु ंदा भी बहुत दhु वधा मq थी. वह कई बार मां को समझा चक ु * थी''मां, ऐसी बीमार8 मq शाद8 करना ƒबलकुल ठ¢क नह8ं होगा.''
''सब ठ¢क हो जाएगा लाडो, शाद8 क* खुशी मq सब भूल जाएगी.''
''शाद8 से मेर8 आवाज तो वाhपस नह8ं आ पाएगी, अटक-अटककर बोलते हुए आपको तो मd cकसी तरह समझा लेती हूं, सुRमत को कैसे समझाऊंगी? ससुराल वाल( को पता चलने पर उनका uयवहार मेरे साथ कैसा होगा, ज़रा सोचो तो सह8! cफर मd ठ¢क से सीधी चल भी नह8ं पाती, फेरे कैसे लूंगी?''
''हमने बहुत cक@से ऐसे दे खे हd, िजनमq शाद8 के बाद बड़ी-बड़ी बीमा$रयां खsम हो जाती हd.'' ''सगाई के समय तो मेरे शमाEने क* बात कहकर आप लोग( ने बात स•हाल ल8, wया सार8 उ£ मझ ु े ऐसा uयवहार ह8 करना होगा?''
सुनंदा क* एक न चल8. शाद8 के ~दन नज़द8क आते जा रहे थे. आxखर उसने फैसला ले ह8 तो Rलया.
फेसबुक मैसqजर पर अपनी पूर8 uयथा Rलखकर सुनद ं ा ने सुRमत से कह8ं दस ू र8 जगह
शाद8 करने का अनुरोध cकया. तुरंत सुRमत का जवाब आ गया- ''मुझे भी ऐसा अटै क पड़ चुका है, अब मd ƒबलकुल ठ¢क हो गया हूं. तुम Žचंता मत करो, मd तु•हq कल ह8 अपने डॉwटर के पास ले चलूंगा. भगवान ने चाहा तो शाद8 से पहले ह8 सब ठ¢क हो जाएगा. मdने एक बार तु•हq अपनी जीवनसंŽगनी मान Rलया है, अब तुम ह8 मेरे Rलए सब कुछ हो.''
अब सुनंदा जीवनसाथी के सपन( मq खो गई थी.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
39.
सॉvटवेयर का हाडE तमाचा
कोटE के कटघरे मq अपराधी के „प मq खड़े डॉwटर अजय को अफसोस हो रहा था, cक वह सॉvटवेयर का डॉwटर wय( नह8ं बना? आज उसे मौज-म@ती के उन कुछ हसीन पल( क*
याद नह8ं आ रह8 थी, िजनके कारण वह यहां तक पहुंचा था, उसे याद आ रह8 थी अपनी पsनी &वेता क* बेवफाई. &वेता ने ह8 तो अपने प3त पर शक के कारण 3नगाह रखने के Rलए उसके फोन मq एक ऐसा सॉvटवेयर इ•@टॉल कर ~दया िजससे वह उसके फोनकॉ‰स सुन सकती थीं और
मेसेज भी पढ़ सकती थीं. उसी से उसे पता चला cक मdने cकसी का रे प कर ~दया है. उसने यह भी देख-सुन Rलया था cक मd एक बार मq एक म~हला से Rमला था और वहां हम दोन( ने शराब पी. बाद मq मd म~हला को घर छोड़ने उसके साथ गया और बीमार
होने का बहाना कर वह8ं ‹क गया. रात को मdने म~हला का रे प कर ~दया. अगले ~दन म~हला ने मुझे फोन cकया, मdने
उसे डरा-धमकाकर चुप कर ~दया.
म~हला तो चुप हो गई, &वेता चुप नह8ं रह सक*. उसने म~हला को अपने प3त के अपराध के बारे मq बता ~दया.
म~हला अपने रे hप@ट क* पsनी पर भला hव&वास wय(कर करती? उसने दोन( पर केस कर ~दया. &वेता ने सॉvटवेयर का हाडE सबूत पुRलस के हवाले कर ~दया.
अजय अभी भी उसी सॉvटवेयर के हाडE सबूत के करारे तमाचे क* लाल8 को अपने गाल पर महसूस कर रहा था.
$र&त( क* सहे ज
48
लघुकथा सं|ह-3
40.
मुकाबला
आज बनानी के hववाह क* पांचवीं सालŽगरह थी. उसने तो ऑcफस से छुlट8 ले ल8 थी,
पर संजय को छुlट8 नह8ं Rमल पाई थी, सो वह अकेल8 ह8 cकचन मq केक-भोजन वगैरह बनाने मq uय@त थी. तन भले ह8 ि@थर हो, पर वायु क* ग3त से भी अŽधक चंचल मन भला कब ि@थर रह सका है! वह तो पांच साल पीछे पहुंच गया था.
आज ह8 के ~दन उसक* शाद8 हुई थी, अगले ~दन वह फेरे के Rलए मायके आने वाल8 थी. माRमयां-माRसयां उससे Rमलने के Rलए सजने क* तैयार8 शु‹ करने वाल8 थीं, cक एक फोन ने सबके होश गुम कर ~दए थे. बनानी क* नानी का @वगEवास हो गया था. वे रात को अ@पताल मq थीं, पर उनका ”यान बनानी क* शाद8 मq था. चार बजे दोन( बेट( ने
उनको बताया, cक बनानी के फेरे हो गए. बस, तभी से उनक* आंखq चढ़ने लगी थीं. भोर होते-होते वे चल बसी थीं. शाद8 पर आए दोन( बेटे और बहुएं सामान समेटकर vलाइट पकड़कर तुरंत चले गए थे. बनानी ने आते ह8 अपने oयारे मामाओं-माRमय( के बारे मq पूछा. उसे बताया गया- ''नानी जी क* तƒबयत कुछ ठ¢क नह8ं चल रह8 है.''
तीन ~दन बाद उसके ससुराल मq $रसेoशन क* तैयार8 हो रह8 थी. अलसुबह समाचार आया संजय क* बुआ जी का @वगEवास हो गया है. $रसेoशन मq सबसे पहले आने वाल8 बुआ
जी और उनके बेटे नह8ं आए. संजय को बताया गया- ''बुआ जी क* तƒबयत कुछ ठ¢क नह8ं चल रह8 है .''
बनानी और संजय मधुयाRमनी से लौटकर आए, तो उ•हq दोन( हादस( का पता चला और यह भी पता चला, cक दोन( तरफ मांओं ने बात को अपने तक ह8 रखा, बनानी और संजय को तो wया अपने प3तय( तक को नह8ं पता लगने ~दया गया. यह cकतना खतरनाक दोराहा था, िजससे उ•हq मुकाबला करना पड़ा था.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
41.
मोबाइल से बागवानी तक
आज अखबार मq अपना फोटो छपा दे खकर cकसान अ3नल को बहुत खश ु ी हो रह8 थी.
उसे कुछ समय पहले क* बात याद आ गई. समय के साथ Tडिजटल होती जा रह8 यव ु ा पीढ़8 अपने अRभभावक( को भी Tडिजटल बनाने को उsसक ु होती जा रह8 है . अ3नल के
साथ भी ऐसा ह8 हुआ था. उसका बेटा 3नxखल उस के Rलए एक ऐंÌायड मोबाइल लाया था. हर hपता क* तरह अ3नल ने उसको लगभग डांटते हुए कहा था-
”अब इस उ£ मq मd भला मोबाइल चलाना सीखूंगा wया? वैसे भी यह बहुत महंगा होगा, इसे अभी वाhपस कर आ.” ”पापा, आप सह8 कह रहे हd. वा@तव मq यह बहुत महंगा है, wय(cक मd सबसे आधु3नक तकनीक वाला मोबाइल लाया हूं.” अ3नल के चेहरे पर अपने Rलए बेटे के oयार से नरमी
आते दे ख 3नxखल ने कहना जार8 रखा- ”आपक* उ£ के सभी लोग अब मोबाइल चलाना सीख रहे हd, तो आप wय( नह8ं सीख सकते? आप तो उन सबसे अŽधक पढ़े -Rलखे और समझदार भी हd.” 3नxखल का तु‹प का यह इwका काम कर गया था. पापा के नजद8क आते हुए बेटे ने उसे ~दखाकर कहा था- ”पापा’, यह दे xखए. यह ‘ऐप जी’ है. इसे एक cकसान के बेटे भूपq“ ने hवकRसत cकया है और इस ऐप क* मदद से cकसान( को मौसम, ज„रत और क*मत आ~द क* जानकार8 Rमल रह8 है. बहुत लाभ होने से यूपी के cकसान बहुत खुश हd.” ”हमq wया फायदा होगा? हम तो म”य :दे श के हd?” उसक* उsसक ु ता जग-सी रह8 थी.
”पापा, रोज ऐसी नई-नई बातq दे खने-सीखने को Rमलqगी.” 3नxखल का उsसाह चरम पर था. ज‰द8 ह8 उसने मझ ु े मोबाइल चलाना Rसखा ~दया था. मd 2002 से खेती कर रहा था, पर मुि&कल से भरपेट खाना जुटा पाता था. शुg है cक होRशयार बेटा वजीफे से पढ़ता गया और अ’छ¢ नौकर8 पा गया था.
2014 मq इसी मोबाइल ने मुझे खेती छोड़ बागवानी करनी Rसखाया. आज मुझे एक पेड़ से साल भर मq कर8ब एक cकवंटल तक अम„द Rमल जाते हd. 120 पेड़ तो अम„द के ह8 हd. इसके अलावा Rभंडी, RमचE व मल ू 8 आ~द क* खेती भी होती है. धन बरसता दे ख
सभी मझ ु से सलाह लेने आते हd. अब मd उनको बता सकता हूं cक- ”cकसान( को परं परागत फसल( के साथ-साथ बागवानी भी अपनानी चा~हए. हमq खेत मq सभी फसल उगानी चा~हए, ताcक सालभर आमदनी Rमलती रहे इससे cकसान( को कजE नह8ं लेना पड़ेगा.”
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लघुकथा सं|ह-3
उसके hवचार( क* धारा अभी भी बहती रहती, अगर वायदे के अनुसार कल वाला पAकार अखबार लेकर उसके पास नह8ं आता. उसके साथ चाय पीते-पीते वह 3नxखल के साथसाथ मोबाइल क* म~हमा भी गाता रहा.
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लघुकथा सं|ह-3
42.
इरादा
आज सिु šमता के घर ज&न का माहौल था. हो भी wय( न! आज उसके प3तदे व सRु मत
क* $रटायरमqट जो होनी थी. सब ु ह-सब ु ह ब’च( के कॉलेज व सRु मत के ऑcफस जाने के बाद वह शाम के ज&न क* तैया$रय( मq जट ु 8 हुई थी. उसक* याद( का सफर भी :ग3त पर था. कॉलेज क* @म3ृ तय( से अब तक का सफर उसने पल( मq तय कर Rलया.
कॉलेज के ~दन( मq ƒबंदास रहने वाल8 सुिšमता क* कॉलेज क* पढ़ाई पूर8 होते ह8 नौकर8 लग गई थी. ज‰द8 ह8 माता-hपता ने िजसके प‰ले से बांध ~दया, उसक* होकर वह
ससुराल चल8 आई थी. प3त के पु‹ष होने के अहं कार के सम˜ उसके ƒबंदासपने को
~टकने का अवसर भला कहां से Rमलता? शीÎ ह8 वह समझ गई, cक जब तक वह मन से मजबूत नह8ं बनती, उसका अि@तsव ह8 खतरे मq है. उसने गुपचुप मन मq एक इरादा कर Rलया था. उसका मानना था-
‘’यक*न हो तो रा@ता 3नकलता है, हवा क* ओट लेकर भी Žचराग जलता है’’. युbध के पहले क*-सी शां3त उसके हलचल भरे जीवन मq आ गई थी. वह hवभागीय
पर8˜ाएं उ–ीणE करती हुई नौकर8 मq तरwक* पाती गई. प3त का अहंकार भी उ–रो–र उ•नत होता गया. नतीजा, एक ~दन उसके हाथ मq आ गया तलाक का नो~टस. सुिšमता के सु®ढ़ इरादे से प3त का पौ‹ष चो~टल हो गया. सुिšमता क* cक@मत अ’छ¢ थी, cक शीÎ ह8 तलाक पाकर खोखले पौ‹षsव क* मजबूत जकड़ से मुिwत पा गई थी.
नौकर8 चल रह8 थी और अकेलापन भी. ऐसे मq ऑcफस के ह8 अपने एक मातहत को, जो उससे दस साल छोटा भी था, साथी के „प मq अपनाना उसने उŽचत समझा. 25 साल से वह उसके साथ गह ृ @थी का सुर8ला साज बजा रह8 थी. उसके सु®ढ़ इरादे और सुखद गह ृ @थ जीवन क* हर जगह सराहना होती थी. आज उसमq सRु मत क* $रटायरमqट से सक ु ू न का नया पड़ाव आने वाला था. वह ज‰द8-ज‰द8 तैयार8 मq जट ु गई.
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लघुकथा सं|ह-3
43.
मुिwत मq है मौज बड़ी
''hपंक* खल ु ा hपजड़ा हाथ मq Rलए wय( खड़ी हो, Žचंक* ŽचTड़या कहां गई?'' ममी ने बाजार से आते ह8 बेट8 को डांटते हुए पछ ू ा. ''Žचंक* को तो मdने उड़ा ~दया.'' मासRू मयत से hपंक* ने जवाब ~दया.
''उड़ा ~दया का wया मतलब? ऐसे ह8 मनमजº से कुछ भी कर दे गी?'' ममी का ग@ ु सा और बढ़ गया था.
''ऐसे ह8 नह8ं, मdने सोच-समझकर cकया है.'' ''बता तो सह8, तूने wया सोचा-समझा, मd भी तो जानूं?''
''ममी आप बाहर से ताला लगाकर मझ ु े घर मq बंद कर गई थीं, बाहर से ताल8 बजाबजाकर मेर8 सहे Rलयां मुझे खेलने के Rलए बल ु ा रह8 थीं.''
''तो--?'' ममी ने बीच मq ह8 टोकते हुए पूछा. ''मd कैसे जाती? ताला जो बंद था, मd उदास हो गई थी. Žचंक* ने मेर8 उदासी को ताड़ Rलया, वह मुझसे ब3तयाने लगी.'' ''wया कह रह8 थी?''
''कह रह8 थी- बंधन के कारण उदास हो न! सचमुच बंधन बहुत दख ु दाई होता है . तुम अपनी सहे Rलय( के साथ खेलने नह8ं जा पा रह8 हो, मेर8 सहे ल8 भी कई ~दन से चीं-चीं करके मुझे बुला रह8 है, मd भी कहां जा पा रह8 हूं?'' ''तुम जाना चाहती हो अपनी सहे ल8 के पास?'' Žचंक* से मdने पूछा था.
''उसने कहा- मd जाना चाहती हूं, मुिwत का गीत गाना चाहती हूं, म@ती से पंख फैलाकर उड़ना चाहती हूं, पर तु•हार8 ममी के शौक के कारण बंधन ह8 मेर8 3नय3त बन गया है.''
''मुझे समझ मq आ गया था- ''मुिwत मq है मौज बड़ी'', इसRलए मdने उसे उड़ा ~दया. ऊपर पेड़ पर दे खो न ममी, वह अपनी सहे ल8 से Rमलकर cकतनी खुश लग रह8 है? बताओ
मdने अ’छा cकया न!'' hपंक* ने उसक* खुशी को महसूस करते हुए कहा. ''हां hपंक* रानी, तूने बहुत अ’छा cकया. अब मd तुझे कभी ऐसे घर मq बंद नह8ं करके जाऊंगी.'' ममी ने उसे oयार करते हुए कहा- ''मुिwत मq है मौज बड़ी''.
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लघुकथा सं|ह-3
44.
पांडुRलhप
नव वषE के अवसर पर hवनीता हर साल कोई-न-कोई संक‰प लेती थी और उसे परू ा करने का भरसक :यsन भी करती थी, लेcकन जो परू ा हो जाए वो संक‰प ह8 कैसा! कोई-न-
कोई अड़चन संक‰प को परू ा होने से रोक लेती थी. इस बार उसने न कोई इ’छा पाल8, न कोई उ•मीद रखी. cफर wया हुआ? hवनीता को याद आ रहा था.
टे ल8फोन क* घंट8 बजी थी- ''हैलो, आप hवनीता जी बोल रह8 हd?''उधर से आवाज़ आई थी. ''जी मd hवनीता ह8 बोÏ रह8 हूं, आप कौन साहब बोल रहे हd?'' ''मd राš¦8य Rसंधी भाषा hवकास प$रषद से द8पq“Rसंह बोल रहा हूं.'' ''जी फरमाइए.''
hवनीता जी, आप सा~हsयकार हd न!'' ''जी, कुछ-कुछ Rलखती तो रहती हूं.'' ''Rसंधी भाषा मq cकताब छपवाने के Rलए आपके पास आपक* cकसी cकताब क* पांडुRलhप पड़ी है wया? आंRशक सहायता से :काRशत होने के Rलए पांडुRलhप भेजने क* आज अं3तम तार8ख है.''
''जी, एक है तो सह8. Rसंधी मq कhवताएं हd.'' ''आप आज भेज सकती हd?'' ''जी, पहले तो उसे ढूंढना पड़ेगा. Rमल भी जाएगी, लेcकन उसे आज ह8 आपके पास इतनी दरू Rभजवाना मेरे Rलए तो मिु &कल होगा.''
''ठ¢क है, आप दे खकर बता द8िजए, cफर मd ह8 cकसी को भेजकर मंगवा लेता हूं.'' द8पq“Rसंह जी ने cकसी को भेजकर पांडुRलhप मंगवा ल8 थी, कुछ मह8न( मq वह भारत
सरकार क* पांडुRलhप आंRशक सहायता से :काRशत होने के Rलए @वीकृत भी हो गई थी,
आज दस हजार ‹पये का पहला चेक भी आ गया था. बस कुछ ह8 ~दन( मq cकताब छप जाएगी. नए साल के पहले सoताह मq वह पांडुRलhप पु@तक का आकार ले लेगी, िजसे hवनीता एक कोने मq रखकर भल ू चक ु * थी. यह चमsकार तो था ह8 और नए साल मq साकार होने वाला संक‰प भी.
hवनीता सोच-सोचकर हैरान थी.
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लघुकथा सं|ह-3
45.
अनुपम उपहार
अलग प$रवार और Rभ•न पšृ ठभRू म से आए होनोलल ु ु के मैwफारलेन और रॉƒब•सन क*
शwल-सरू त और ‹Žचयां इतनी Rमलती-जल ु ती थीं cक उनके ÃqŸस यह कहकर Žचढ़ाते थे cक दोन( एक ह8 लड़क* से शाद8 करq गे. दोन( दो@त( उ£ मq दो साल का अंतर था.
उनक* पहल8 मल ु ाकात 60 साल पहले पन ु ाहु @कूल मq छठ¢ wलास मq पढ़ने के दौरान
हुई. यह मल ु ाकात शीÎ ह8 दो@ती मq बदल गई. एक ह8 @कूल मq पढ़े . एक ह8 ट8म मq
खेले और कई बार नोकझ(क भी हुई. बड़े होने पर रॉƒब•सन अलोहा एयरलाइ•स मq पायलट बने. इसके बाद भी दोन( cफRशंग करने और खेलने के Rलए एक-दस ू रे से Rमलते रहे . यहां तक cक दोन( क* फैRमल8 भी एक-दस ू रे के काफ* कर8ब रह8. दोन( के पास
अ’छ¢ जॉब और फैRमल8 थी, पर दोन( अपने असल8 माता-hपता के बारे मq नह8ं जानने क* वजह से परे शान रहते थे. कई बार ढ़ूंढने क* भी कोRशश क*, लेcकन कामयाबी नह8ं Rमल8. 2017 का cgसमस उनके Rलए एक अनोखा उपहार लाया. दोन( ने एक ह8 वेबसाइट पर DNA टे @ट करवाया तो जाकर स’चाई का पता चला cक दोन( सगे भाई हd. असल मq 7 ~दसंबर, 1941 को हुए 'पलE हाबEर अटै क' क* चपेट मq होनोलुलु शहर भी शाRमल था. अटै क के बाद यहां के लोग आजीhवका के Rलए लगातार संघषE कर रहे थे. इसRलए बड़े भाई मैwफारलेन के ज•म के समय ह8 उनक* मॉम िजनेवीव ने बथE के समय ह8 ब’चे को गोद दे ने का फैसला cकया, यह बात मैwफारलेन के सगे नाना-नानी ने ह8 गोद ले Rलया. अब 15 मह8ने बाद उसी शहर मq िजनेवीव ने दस ू रे बेटे यानी
रॉƒब•सन को ज•म के समय ह8 गोद दे ~दया. कागज़ी कारEवाई पूर8 न होने के कारण इतना कंvयूजन रहा.
शुg है cgसमस के ~दन सdटा wलॉज़ ने दोन( को इतना अनुपम उपहार दे ~दया. सगे
भाइय( क* तरह रह रहे मैwफारलेन और रॉƒब•सन अब नववषE 2018 क* खRु शयां सगे भाइय( के „प मq मना सकते हd.
$र&त( क* सहे ज
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लघुकथा सं|ह-3
46.
oयार क* xखड़क*
पांच साल से मd उ•हq दे ख रह8 थी. शां3त और सौ•यता क* मरू त-सी वंद ृ ा द8द8 क*
@वाभाhवक ऊजाE दे खते ह8 बनती थी. कई बार मd उनसे पछ ू ना चाहती थी- ''द8द8, 85 साल क* उ£ मq भी आप इतना सब अकेले कैसे कर लेती हd?''
लेcकन इस बारे मq बात
करना उŽचत नह8ं समझा. इतने बड़े घर मq अकेले रहना, घट ु न( के ददE को संभालना और रोज़ सवेरे ठ¢क 11 बजे सsसंग मq पहुंच जाना. कभी-कभी उनसे बहुत छोट8 उ£ क* उपदे शक उनसे पूछ लेतीं- ''और वंद ृ ा आंट8, आप wया बता रह8 हd?''
''बस, अपने को पहचान लो, खुद से मल ु ाकात कर लो, इतना ह8 काफ* है.'' वंद ृ ा द8द8
कोमलता से कहतीं और उपदे शक उस पर एक अ’छा-सा ®šटांत बताकर उनक* बात को पूरा करतीं.
एक ~दन सsसंग से वाhपस आते समय मेर8 िज›ासा अपने आप शांत हो गई, जब वे कार मq मेरे साथ ह8 बैठ¢ थीं और मुझसे बोल8ं- ''सsसंग मq आने का मन होते हुए भी इतनी दरू अकेले आना बहुत मुि&कल था. इतने मq पुšपा का फोन आ गया- ''आंट8, गाड़ी मq जगह है, आप को चलना है? मdने हामी भर द8. wया क„ं? चार( ओर अंधेरा है , बस
एक oयार क* xखड़क* खुल8 हुई है, उसी के उजास से काम अ’छे -से चल रहा है. काम वाल8 बाई टाइम से काम कर जाती है, :ेस वाला टाइम से कपड़े :ेस करके दे जाता है, ई.$रwशा वाला टाइम से सsसंग के Rलए ले जाता है और छोड़ जाता है, कह8ं दरू सsसंग होता है, तो cकसी-न-cकसी सsसंगी का फोन आ जाता है, और इन घुटन( को oयार से सहलाकर मनाती हूं. oयार क* इसी xखड़क* क* उजास से मझ ु े अनवरत ऊजाE Rमलती रहती है . शुकराने हd oयार क* इस xखड़क* के.''
तभी वंद ु 8 ृ ा द8द8 का घर आ गया था, वे उतर गŒ, लेcकन उनक* oयार क* xखड़क* खल ह8 रह8, उसी से मझ ु े भी थोड़ी-बहुत ऊजाE Rमल रह8 है.
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लघुकथा सं|ह-3
47.
तकनीक* गवाह8
आरोप मw ु त सभ ु ोमय ने आज चैन क* सांस ल8 थी. उसके मन मq अनेक hवचार आलोTड़त हो रहे थे.
इस द3ु नया मq गन ु ाह भी होते रहते हd, कुछ झठ ू े -कुछ स’चे मामले भी दजE cकए जाते
रहते हd, वा~दय(-:3तवा~दय( क* पेRशयां होती हd, गवा~हयां भी द8 जाती हd और गवा~हय( के आधार पर गन ु ाह8-बेगन ु ाह8 भी साƒबत क* जाती रह8 है . कोलकाता के सभ ु ोमय कपासी नाम के uयापार8 ने बचपन मq अकबर-बीरबल क* कहानी ''पेड़ ने द8 गवाह8'' ज„र सुनी थी, लेcकन तकनीक* गवाह8 के बारे मq उसने कभी नह8ं सुना था, अलब–ा उसने अपने
कामगार( पर 3नगरानी रखने के Rलए अपनी फैिw¦य( मq सीसीट8वी ज„र लगा रखे थे. उसे पता नह8ं था, cक एक ~दन यह8 सीसीट8वी फुटे ज उसक* बेगुनाह8 का सबूत बन जाएंगे.
उसक* एक फैw¦8 मq wलकE के „प मq कायEरत एक म~हला ने 4 साल पहले उस पर बलाsकार का आरोप लगाया था. अब बलाsकार होने क* 3तŽथ व वwत बताना तो लािज़मी था, सो बताना पड़ा. हां, पूरे चार साल तक यह मुकदमा चलता रहा. कोई वक*ल अपने मुविwकल क* बेगुनाह8 जुटा नह8ं पाया.
अब सुभोमय को 4 साल बाद $रहाई Rमल सक*. पुRलस ने सीसीट8वी फुटे ज को खंगाला. िजस फैw¦8 मq आरोपी पर आरोप लगाया गया था, उस फैw¦8 मq तो आरोपी उस ~दन उपि@थत ह8 नह8ं थे. cफर दस ू र8 फैw¦8 क* सीसीट8वी फुटे ज ने गवाह8 द8, cक वे उस
फैw¦8 मq मौजूद थे. इस तकनीक* गवाह8 के आधार पर कोटE मq फुटे ज दे खते ह8 जज ने
उ•हq आरोप मुwत कर ~दया. कोटE से बाहर आकर सुभोमय ने कहा, 'शुg है भगवान का जो मdने सीसीट8वी लगवा रखे थे और ऐन वwत पर संबंŽधत फुटे ज पुRलस के हाथ लग पाई थी.'
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लघुकथा सं|ह-3
48.
हमददy क* हवा
आज फूलकल8 दो स–े यानी 77 साल क* हो चल8 है. एक समय था जब वह कल8 थी,
cफर वह xखला हुआ कोमल-रमणीय-सग ु ंŽधत फूल थी. वह खद ु भी जानती थी, cक आज वह न तो कल8 है, न उसमq फूल-सी कोमलता और रमणीयता है. फूल क* सग ं का ु ध @थान भी अब दग ु ¤ध ने ले Rलया है.
''मां, आपने सन ु ह8 Rलया होगा, कल छoपर वाला आएगा, आपके Rलए छत पर छoपर डाल जाएगा.'' छोटे बेटे ने कहा.
''बेटा, ऐसा भी wया हो गया है?'' ''आप सब जानती हd मां, आपके शर8र क* दग ु ¤ध अब नह8ं सह8 जाती.'' बेटे ने नाक भ¬ Rसकोड़ ल8 थी.
''तुम शायद भूल गए हो, मdने भी बरस( तु•हार8 दग ु ¤ध मq समय गुजारा है.''
''मुझे यह बात अ’छ¢ तरह याद है, पर आप शायद भूल गई थीं, cक दाद8 ने भी साल(
तक पापा क* दग ु ¤ध मq समय गुजारा था, cफर 20 साल पहले आपने cकस जुमE मq उ•हq छत पर छoपर तले रहने क* सजा दे नी चाह8 थी?'' ''दग ु ¤ध असहनीय जो हो गई थी.''
''आज हमारे Rलए भी दग ु ¤ध असहनीय हो गई है.''
''बेटा ऐसा न करो, इतनी गमº मq छत पर छoपर तले कैसे रह पाऊंगी?'' ''दाद8 के टाइम आपको भी तो सोचना चा~हए था न! मd तो बहुत छोटा था, पर इतना तो समझ मq आ गया था, cक दाद8 जी बहुत cक@मत वाल8 थीं, cक छoपर तले जाने से पहले ह8 ई&वर भले के पास चल8 गŒ.''
''छोTड़ए न इन बात( को'' बाहर से आती हुई छोट8 बहू ने कहा- ''आप wय( माताजी को परे शान कर रहे हd? wया आप चाहते हd, cक कालांतर मq मेरा भी यह8 हाल हो? माताजी कह8ं नह8ं जाएंगी. मd ऐसे ह8 उनक* सेवा करती रहूंगी. रह8 बात दग ु ¤ध क*, सो मd सबके Rलए „म Ãैशनर ले आई हूं, लगाकर अपने कमरे मq बैठे र~हएगा.'' हमददy क* हवा ने दग ु ¤ध को उड़ा ~दया था.
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लघुकथा सं|ह-3
49.
अRभनव उsसव
उsसव( का sयोहार अपने परू े 3नखार पर था, हवाओं मq, cफ़ज़ाओं मq, :ेम-ह8-:ेम
समाhवšट था. नॉदEनE Rमनेसोटा मq रहने वाले एhवएशन @टूडqट अRभनव-िज›ासा क*
:ेमगाथा प$रवार वाल( को भल8भां3त ›ात थी. उनका अनम ु ान था cक शीÎ ह8 आने वाले वेलqटाइन डे के ~दन उ•हq उन के :णय-बंधन का शभ ु समाचार Rमल सकता है, लेcकन अRभनव के मन मq कुछ और ह8 चल रहा था.
''पापा, आप तो अRभनव सुझाव( के :णेता हd, मुझे भी िज›ासा को :ेम के इज़हार का कोई अRभनव उपाय सझ ु ाइए न!' अRभनव ने कहा था.
''बेटा, तु•हारे बाक* RमA तो आगामी वेलqटाइन डे क* :ती˜ा मq ह8 ह(गे, तुम भी उसी ~दन कोई जुगत लगा लेना.''
''पापा, कोई अRभनव सुझाव क* आकां˜ा है.''
''ठ¢क है, कल छुlट8 है, भयानक स~दEय( क* वजह से gो hवंग लेक पूर8 तरह से जम गई है. सब बफE पर hपक3नक के Rलए चलते हd. बस तुम बफE पर Rलखने वाला सामान साथ मq रख लेना.''
अRभनव ने अगले ~दन क* :ती˜ा करते आंख(-आंख( मq रात काट ल8. सुबह होते ह8 पूरा
प$रवार hपक3नक पर गया. दस ू रे ~दन अRभनव ने एक oलेन cकराए पर Rलया और अपनी गलEÃqड को एक छोट8 सी हवाई ~¦प पर ले जाने के Rलए कहा. इसके बाद अRभनव क* गलEÃqड िज›ासा इसके Rलए राजी हो गई. अRभनव लेक के ऊपर ह8 oलेन उड़ाता रहा. अचानक िज›ासा ने कहा- ''अRभनव, दे खो-दे खो नीचे लेक क* बफE पर cकतना सुंदर ®&य है. cकसी ने बफE पर Rलखा है 'मैर8 मी'. पास ह8 एक ~दल के बीच एक लड़के-लड़क* का @केच भी है.'' ''cफर wया इरादा है?'' अRभनव ने शरारत से पूछा.
''ये तुमने Rलखा है?'' 'िज›ासा क* चमकती आंख( मq सहज िज›ासा थी. ''ठ¢क समझीं, ज‰द8 जवाब दो.'' झमककर अRभनव ने कहा. ''हां, कब?'' िज›ासा क* दस ू र8 िज›ासा थी.
''आज और अभी.'' अRभनव ने हवा मq ह8 उसको डायमंड $रंग पहनाई. दोन( क* खश ु ी का ~ठकाना नह8ं था. थोड़ी दे र मq जब अRभनव-िज›ासा घर आए तो उन के चेहरे क* म@ ु कान परू े प$रवार क* म@ ु कान बन गई थी. पापा ने कहा- ''बाप-रे -बाप,
कुछ नया करने के चwकर मq हम सबको cकतनी मशwकत करनी पड़ी? कर8ब 25 फ*ट लंबे अ˜र( से 'मैर8 मी' Rलखने के Rलए हमq चार घंटे खटना पड़ा.''
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''ठ¢क है, पर आज के ~दन हम सबका अRभनव उsसव तो हो गया न!'' यह िज›ासा के पापा क* खश ु नम ु ा आवाज़ थी, जो यह शभ ु समाचार सन ु कर सप$रवार पहुंच गए थे.
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लघुकथा सं|ह-3
50.
काuय-रचनाओं का मेला
आज सदाबहार काuयालय मq काuय-रचनाओं का मेला लगा हुआ था. सभी काuय रचनाएं खब ू सज-धजकर आई थीं. गल ु ाबी oलाज़ो-सट ू मq सजी गज़ल 'तभी कुछ आएगा मज़ा'
अपने रच3यता राजीव गoु ता के गण ु गाते नह8ं थकती थी. cकतनी संद ु रता से रचा है मेरे
रच3यता ने मझ ु े! इसRलए मझ ु े सवE:थम @थान हाRसल हुआ है. जापानी पंखा हाथ मq Rलए गरु मेल भमरा के 'हाइकु' wया cकसी से कम थे! वे अपने जापानी रं ग„प पर खद ु ह8 cफ़दा हुए जा रहे थे. इधर राजकुमार कांद ु क* काuय-रचना 'वwत' सबको वwत क* नज़ाकत समझाती डोल रह8 थी. अंcकत शमाE’अज़ीज़’ जी क* नÒम 'ज़रा फासले से रहा
करो' का संदेश दे रह8 थी, तो नील8 साड़ी से मैच करता •लेज़र पहने ल8ला 3तवानी का गीत 'सbभावना जीवन-सार बने' सबको साथ Rमलकर सbभावना से जीवनयापन करने को :ोsसा~हत कर रह8 था. ठे ठ भारतीय वेशभूषा मq सुसि†जत लखमीचंद जी क* कhवता '~हंद8: दे श का भा¥य' ~हंद8 भाषा क* पैरवी कर रह8 थी, तो मनजीत कौर क* कhवता 'िजंदगी' सह8 ढं ग से जीवन जीने का फलसफा बयां कर रह8 थी. िजतq“ अ|वाल क* कhवता 'कुदरत के ददE से अनजान: आज का इंसान' बढ़ते :दष ू ण के खतरे से सावधान कर रह8 थी, तो आशीष ‘ीवा@तव क* कhवता 'दे ना अब साथ मेरा' कुछ शमाEते-कुछ
सकुचाते अपने oयार का इज़हार कर रह8 थी. oयार का इज़हार डॉ. :द8प उपा”याय का
गीत 'hवकास क* क*मत' भी कर रहा था, लेcकन यह इज़हार था कhव का व˜ ृ के :3त.
नए व@A-आभूषण धारण cकए हुए :वीण गुoता का गीत 'नये वषE का @वागत' करने मq uय@त था. तभी अचानक वीणा क* नींद खुल गई और उसका मन कर रहा था, cक ऐसे मेले का
@वoन चलता ह8 रहता तो अ’छा था. उठकर काम करते-करते वह सोचने लगी, cक आज उसे काuय-रचनाओं के मेले का @वoन wय( ~दखाई ~दया! cफर उसे ”यान आया, cक hपछले कई ~दन( से वह रे Tडयो पर ~दन मq कई बार गणतंA ~दवस के उपल˜ मq होने वाले कhव स•मेलन( के hव›ापन सन ु रह8 थी और उसका मन :3त~दन :काRशत होने वाल8 सदाबहार काuय-रचनाओं मq खोया हुआ था.
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51.
जाग युवा जाग
''दाद,ू सामने सरू ज क* रोशनी cकतनी संद ु र लग रह8 है न!'' का•हा ने उsसाहपव ू Eक कहा.
''ƒब‰कुल सह8 कह रहे हो बेटा, यह रोशनी मझ ु े @वामी hववेकानंद जी क* याद ~दलाती है, उनके मख ु पर भी ऐसा ह8 तेज था और बात( मq गज़ब का जाद.ू '' ''wया कहा था @वामी जी ने दाद? ू ''
''उठो, जागो और तब तक नह8ं ‹को, जब तक ल•य ना :ाoत हो जाये.'' ''दाद ू आज @वामी hववेकानंद जी क* 125वीं जयंती है न!'' ''तुझे कैसे पता रे का•हा!''
''लो, और बोलो, का•हा से कोई बात 3छपी रह सकती है wया भला! मdने तो @कूल मq @वामी hववेकानंद पर एक छोट8-सी कhवता भी Rलखी थी. मैडम ने कहा था, मी
hववेकानंद के ज•म~दवस को राš¦8य युवा ~दवस के „प मq मनाया जाता है. आज राš¦8य युवा ~दवस है, इसRलए इसी hवषय पर कhवता Rलखो.''
''तूने Rलखी थी कhवता!'' पोते क* बात सुनकर दाद ू को आ&चयE हो रहा था. ''ज़रा हमq भी तो सुनाओ.''
''तो सु3नए दाद-ू 'जाग युवा जाग
cक तेरे जागने से दे श जगेगा दे श जगेगा और हर ˜ेA मq hवकास करे गा.' ''अरे वाह! कhवता तो बहुत अ’छ¢ Rलखी है तूने.'' ''दाद,ू हमार8 मैडम भी यह8 कह रह8 थी.'' ''और wया कह रह8 थीं तेर8 मैडम?''
''मैडम कह रह8 थीं, यव ु ाओं मq इतना जोश और साहस होता है, cक वह cकसी भी ˜ेA मq कुछ भी काम कर सकता है. जैसे रे ल क* पट$रयां हमq कह8ं का कह8ं पहुंचा दे ती हd, यव ु ा भी दे श को hवकास के पथ पर बहुत दरू तक ले जा सकता है. मैडम क* इसी बात से मझ ु े कhवता का शीषEक 'जाग यव ु ा जाग' सझ ू ा था. घर चलकर आपको पूर8 कhवता सन ु ाऊंगा.''
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''चलो बेटा, घर चलq, चाय का समय भी हो गया है, cफर तु•हार8 कhवता भी तो सुननी है न! शायद हममq भी दे श के Rलए कुछ काम करने का जोश जाग जाए.'' ''जाग यव ु ा जाग.''
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