मासिक भोजपरु ी ई-पत्रिका
2015 फ़रवरी, प्रवेशाांक
एगो डेग भोजपुरी साहित्य खाहि
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© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 1
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प्रकािन / संपादन िंडल : संजय ससंह , ससवान देवेंद्र नाथ सिवारी , वर्ाा शसश रंजन सिश्र , नई सदल्ली नबीन कु िार , दबु ई
िकहनकी -एहडह ंग, कम्पोहजंग असिनी रूद्र , न्यू यॉका असनिेष कु िार विाा , अबू र्ाबी छाया हचत्र सियोग स्वयंवरा बक्सी, पी. राज ससंह
आखर पिा ग्राि पोस्ट- पंजवार (पोखरी) ससवान , सबहार 841509 क़ानूनी सलािकार लसलिेिर नाथ सिवारी , पटना
परु बी
आखर वर्ष: 2015 अंक 1 फ़रवरी । ई - पत्रिका
भोजपरु ी सिनेमा
जौहर शाफियाबादी
प्रमोद नतवारी
भोजपरु ी भोजप के स्वरुप ुरी आ अपेक्षा
बतकूचन िौरभ पाण्डेय
डा॰ गरु ु चरण सिांह ’गरु ु ’
बेमार बचवा के हांिी
ध्रव ु गप्ु त
भोजपरु ी के
िेवा में आखर रीता सिन्हा
बेद - बदलाई ननलय उपाध्याय
जानत, पार्टी आ परु स्कार जजतेंद्र वमाा
पराििश िंडल प्रभाष सिश्र , नाससक अिुल कु िार राय , बनारस र्नंजय सिवारी , िुंबई चंदन ससंह , पटना राजेश ससंह , ओिान
सुर्ीर पाण्डेय , दबु ई पंसडि राजीव , फ़रीदाबाद असजि सिवारी , सदल्ली बृज सकशोर सिवारी , सोनभद्र
प्रकाहिि रचना लेखक के आपन ि आ ई जरुरी नइखे की संपादक के हिचार लेखक के हिचार से हिले । लेख पे हििाद के हजम्िेदारी लेखक के बा । किनो भी हििाद के बाि प न्यायालय क्षेत्र हसिान रिी । संपका : आपन िौसलक रचना , लेख ,कसविा , फोटो , सवचार आखर के ईिेलआईडी aakharbhojpuri@gmail.com पे भेज सके नीं । सुसवर्ा खासिर रचना सहंदी यूसनकोड िें ही भेजीं । www.aakhar.com | facebook/Aakhar | Twitter: @aakharbhojpuri
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आखर के फु लवारी से : िभु कािना आपन बाि भोजपुरी साहित्य के जिन - अब ना ि कब ? बिकूचन भोजपुरी के सेिा िें आखर बेद – बदलाई जाि पा ी आ पुरस्कार हदल जब बच्चा था जी ग्राि कथा काल चक्र िरिािा के िान घूस िथेली िें सिय पुरबी बेिार बचिा के िंसी बाल - गीि फुआ ए सरू ु ज़ एगो घर हलखि िनिा ििार भोजपुरी के स्िरुप आ अपेक्षा भोजपुरी के संििि - सरभंग संप्रदाय जँिसार यूरक े ा ोना , ो का , ो रि ििहिल हबदेहसया के पाहि रोजगार, खाड़ी (गल्फ) देि भाषाई एकिा आ लोकगीि किना सिाज के प्रहिहनहि िऽ भोजपुरी हसनेिा? भोजपुरी संस्कृहि के िािक भोजपुरी हसनेिा ? इिाँ से किाँ - भोजपुरी हसनेिा के भहिष्य
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पाण्डेय कहपल आखर जिाि आखर सौरभ पाण्डेय डा॰ रीिा हसन्िा हनलय उपाध्याय हजिेंद्र ििाश बज ृ हकिोर हििारी िहि रंजन हिश्रा अहिनी रुद्र प्रभाष हिश्रा िनंजय हििारी डा॰ अहनल प्रसाद जौिर िाहफयाबादी ध्रिु गप्तु िहच हिश्रा िैलजा पाठक ऋहषके ि चििु ेदी डा॰ सोनी पाण्डेय िालिी हत्रपाठी गरु ु चरण हसंि संिोष प ेल अिुल कुिार राय आििु ोष हसंि उदय नारायण हसंि चन्दन हसंि हनराला अहनिेष कुिार ििाश देिेंद्र नाथ हििारी प्रिोद कुिार हििारी डा॰ एस॰ के ॰ हसंि हनहिन चंद्रा
4 5 6 8 10 11 14 16 18 21 24 27 33 37 38 39 40 41 42 43 44 46 53 55 57 60 64 66 68 70 74 77
शभ ु कामना पव ू ी
जोहर शाफियाबादी
वेद बदलाई
ननलय उपाध्याय
भोजपुरी
बे जात ,पार्टी आ पुरस्कार
िम्भांग भोजपुरी
जजतें द्र वमाा
िांतोष पर्टे ल
त्रब
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आखर चौपाल
आपन बात
आ
ज से लगभग सवा साल पसहले “आखर” आकार सलहलस । उद्देश्य स्पष्ट रहे, भोजपरु ी िें उपलब्र् सासहत्य भंडार के जन जन िक पहचुँ ावल आ यवु ा उजाा के भोजपरु ी सलखे खासिर उकसावल । ई दनु ू काि शरुु भइल । भोजपरु ी से डाह करेवाला लोग एगो हौवा खड़ा कइले रहे सक भोजपरु ी िें गद्य सासहत्य के अभाव बा । आरोप इहो रहे सक सदन प्रसिसदन सलखाये वाला पद्य भी सासहत्य के श्रेणी िें ना आवे । आखर गद्य सासहत्य लेखन प्रसियोसगिा शुरु करवलस आ हर िहीना दस गो श्रेष्ठ रचनन के चयसनि क के लेखक गण के लगे परु स्कार/प्रोत्साहन के रुप िें भोजपरु ी सासहत्य के सकिाब पठावे के शरुु आि भइल । भोजपरु ी सासहत्य के बढ़ावा देबे खासिर ई एगो असभनव प्रयोग रहे जवना के खुबे सराहल गइल । लोग जड़ु े लागल । र्र्ंु छुँ टे लागल । आज सिरह हजार से बेसी लोग हिनी के साथे बा । हर िहीना अलग अलग सवर्ा के लगभग ढाई सौ रचना आखर के अुँकवारी िें अविररि होि बाड़ी सन। सलखे वाला लोग सिाज के हर िबका के बा । हर आयु वगा के बा । कुछ स्थासपि सासहत्यकार बाड़न ि कुछ उभरि भी । पाठक लोग के संख्या भी हजारों िें बा । सनसिि रुप से ई जिल पानी िें कं कड़ फें कला खानी बा । सहलकोरा उठे लागल बा । आखर के ईिानदार कोसशश रंग देखा रहल बा । शरुु आिी सफलिा काि करे खासिर आत्िबल ि देबे
करेला ,नैसिक दासयत्व भी बढ़ा देला । हिनी के अपना नैसिक दासयत्व के सनवा हन करे खासिर प्रसिबद्ध बानी जा । ओही दासयत्व बोर् के पसहलका फूल “आखर ई पसिका” रउआ सभे के सोझा सबया । सासहत्य के साथे ई सवडम्बना देखल गइल बा सक ओकर कई गो चेहरा होला । दरबार िें पनपी ि दरबार के सोझा ढरक जाई । खशु हाली देखी ि नाचे लागी । िकलीफ देखी ि दरद से बेहाल हो जाई । शायद एसहसे सासहत्य के सिाज के दपा ण कहल गईल बा । दरबारी सासहत्य उच्च वगा के ध्यान िें राख के
आज सतरह हजार से बेसी लोग हमनी के साथे बा । सलखल जाला। लेखक के सफलिा एह बाि पर सनभा र करेला सक जेकरा बारे िें सलखािा उ के िना सफल बा । राजनीसिक आ आसथा क सत्ता के दि पर सलखेवाला रचनाकार हो जाला आ सलखाये वाला िहान । िध्यि वगा के कें द्र िें राख के जवन सासहत्य रचाला ओकरा िें सौंदया आ संघषा के अद्भिु सिन्वय देखे के सिलेला । एकर कारण इहो बा सक िध्यि वगा अपना दसु नया िें िगन रहेला । अपना हास्य आ सवषाद िें के हू के साझेदार ना बनावे के चाहे । सिाज के अंसिि आदिी के जब सासहत्य अपना िें लपेटेला
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भोजप रु ी साहित्य के जतन-अब ना त कब ?
ि करेजा बहरी सनकल आवेला । भोजपरु रया सिाज के बनावट िें उच्च वगा नदारद बा । एह कारण “आखर” दरबारी सासहत्य से परहेज करी । आखर के अुँगना िें अगर सौंदया के शिीलापन ,संघषा के िाप , सवरह के वेदना आ वंचना के छटपटाहट सदखाई पड़ी ि ई स्वाभासवक बा । भोजपरु रया खर के पसहलका अंक रउवा सभ के आुँखी के सिाज िें ई सब कुछ लउके ला आ खबु े लउके जोहर ला । शाफियाबादी सोझा बा। नवका लोग के उिजोग के पसहला डेग रउवा सभ के अुँगरु ी पकड़ के आगे बढ़ो । रउवा सभ के प्रेि आ दल ु ार से इ नवजाि के लालन पालन रउवे सभ के हवाले। अब एकरा के आगे बढ़ावेउपाध्याय आ ऊुँचाई पे पहचुँ ावे के सजम्िा रउरा ननलय “हमनीकक दावानइखे नइखेकक ककहमनी कोरे । े े ईईदावा “हमनी
आ
पव ू ी
वेद बदलाई भोजपुरी
े कवशेजा ष बानी . के केहमनी कवशेषकबानी . कवशेजा ष बने कवशेष बनेचाह के भी चाहनइखे भी नइखे .” .”
सबसरि सबलिि आपन सासहसत्यक थािी के सम्हारे खासिर इ हिनी के लघु प्रयास बा। सपछ्ला दू-िीन दसक िें भोजपरु ी के रंग रूप सबगड़ल आ सासहसत्यक र्ार लगभग भोथर हो गईल। अश्लीलिा ध्रव ु गकेुप्तफइलि अन्हार भोजपरु ी के िंहु पे कररखा पोि देहलस। एह सबगड़ि रूप िें आपन आुँचर बचावे खासिर बसढयां सलखे पढ़े आ गावेवाला लोग भोजपरु ी से िंहु फे र लेहल । इक्का दक्ु का सलखसनहार आपन ब्लॉग आ एकार् पसिका िक ससिट गईले । जवन भोजपरु ी जजतें द्र वमााके िासिला िें भरल परु ल एहवाि सासहत्य आ सासहत्यकारन रहली उनका िस ु िाि के सजनगी भेंटा गईल । नवका पीढ़ी के भोजपरु ी िें सलखे के कहे बसियावे िें भी शरि बझ ु ाला । सपछ्ला दस बररस िें सोशल िीसडया प क्ांसि भईल ि ढे र लोग एक दूसरा से जड़ु े लागल, आपन राय सवचार एक दूसरा के बिावि िां सिझि एगोलनवका राह पकडले । एही उिजोग िें तोष पर्टे आखर के जनि भईल । फे सबक ु प भोजपरु रया जिाि के सचंिा खाली अश्लीलिा िक ही ना रहल, भोजपरु ी से जड़ु ल हरेक पहलु प बाि होखे लागल । एही क्ि िें सवचार जनिल आपन सासहसत्यक थािी के संभारे के … भोजपरु रया सिाज के आपन भाषाननराला िें सलखे के प्रेरणा देवे के । हिनी के सवचार बस लत्त ु ी रहे जवन अब सूनसु ग रहल बा । अब एह क्ांसिकारी हवन िें राउर नेह छोह के आहसि ही भोजपरु ी के शद्ध ु करी ।
बेमार बचवा के हिी
हिनी के ई दावा नइखे सक हिनी के सवशेष बानी जा । सवशेष बने के चाह भी नइखे । बस इहे कािना बा सक िाईभाषा के सेवा होि रहे । देश दसु नया िें फइलल आखर के एक एक सदस्य अपना िाई भाषा के प्रसि इहे सिपा ण भाव राखेलें । सिपा ण के एह यज्ञ िें कुछ प्राप्त करे के कािना नइखे । बस होि करि रहे के बा आपन सहस्सा । सविास बा एक ना एक सदन एह यज्ञ से “भोजपरु ी िाई” के पनु जा न्ि होई । अपना गौरव के साथे ...अपना सौंदया के साथे ।
जात ,पार्टी आ पुरस्कार
िम्भां ग भोजपुरी - आखर
त्रबदे सिया के पाती
हिनी के जवन करे जा रहल बानी जा, पिा ना आवे प्रकाहिि रचना लेखक के आपन ि आ जरुरी नइखे की इ संपादक के हिचार © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 6
आखर चौपाल वाला सिय एह के कईसे देखी ? आ विा िान िे लोग अलंकार भा व्याकरण के गलिी सिल सके ला । गलिी एह के कईसे लेबे वाला बा ? हिनी के कबो एह बाि ि गलिी होला, बाकी कुछ अंक खासिर एह िरह के के सविास ना रहे सक एह सजनगी िे हिनी के अईसन अशद्ध ु िा के नजरअंदाज करी भाव पे ध्यान सदहीं जिाि के सदस्य बनब जा जे भोजपरु ी भाषा आ । गलिी खासिर पसहलहीं िाफी िांगि बानी जा । एह सासहत्य खासि सदन राि लासग के िेहनि करी । हिनी िरह के गलिी कवनो पसिका खासिर आ भाषा खासिर के जिना भी आदिी एह जिाि िे बानी जा भा अउरी अपरार् ह, रउरा सभे से सनहोरा बा सक हिनी के हरेक जोहरआशाफियाबादी हिनी के संघसिया लोग जे एह जिाि िे नईखे जे गलिी पे टोसकं , सलाह सदहीं, आलोचना करीं । रउवा भी एह पसिका खासि लेख भेजले बा उ कं ही ना कं ही सभ के इहे कुल्ह बाि हिनी िें आउर सर्ु ार ले आई अपना िािभृ ाषा से िनी बेसी प्रेि करेला एसह से आ आगे बढे के रासह देखाई । भेजले बा ।
पव ू ी
वेद बदलाई
ई-आखर हिनी खासि पसिका भा पेज भर नइखे, इ एगो सदया बा जवन घनघोर अन्हररया भोजपुरिेंी रासह देखावि बा। इ सांच बा सक ओह दीया खासि विा िान पररदृश्य अनुकुल नइखे बासक जवन सिपा ण के िेल एह सदया िें भरल गइल बा उ एकरा के िसद्धि ना पड़े दीही। उम्िेद ही ना सविास बा सक एह सदया के अंजोर आपन चिक जरूर छोड़ी आ एह खासि एगो अलौसकक संिोष िन िें हो रहल बा ।
आजू के वैसिक जगु िे जब िनी-िनी बाि खासि लोग पईसा किाये के सोचि बा ओह सिय िे हिनी के एह आखर पररवार के इ उिजोग प गवा हो रहल बा । हिनी के एगो सपना रहल ह आ शायद हिनी के जिना भी आदिी एह जिाि िे बानी जा आ अउरी भी संघसिया लोग के भी इ सपना रहल सक भोजपरु ी िे लगािार सलखाउ, आ शायद " आखर " पेज आ अब ई-पसिका ओह सपना के जिीन प ले के आ रहल बा । हिनी के िय आदिी कही ना कही कवनो प्रोफे सन िे बानी जा बासक आपन िािभृ ाषा भोजपरु ी के रसरी से हिनी के एक दस ु रा से बन्हाईल बानी जा। हिनी िे से के हू लिहर भा हिनी के बड़का सासहत्यकार ना हई ं जा, बस सासहत्य आ आपन भाषा के प्रेिवश आपन थािी के सजावे सररहारे िें लागल बानी जा । नया बानी जा, एह पसिका िें गलिी के संभावना बा , कोसशश करि बानी जा की भाषाई अशद्ध ु िा ना रहे, बाकी कहीं ना कहीं भाषा, विा नी,
- आखर जिाि
ननलय उपाध्याय
बे
जात ,पार्टी आ पुरस्कार
िम्भांग भोजपुरी
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जजतें द्र वमाा
िांतोष पर्टे ल
त्रब
आखर चौपाल
बतकू चन
पु रसनयन के कहल हऽ, हर काि के खास उद्देश्य होखे िबे ऊ कवनो िाने-ििलब के काि होला । िबे ओह काि के भइल सकारथ बा आ ना, ि ओके भइल बेजाइुँये बूझीं । बाकी ईहो ओिने सही हऽ जे किनो नीिन उद्येश्यपरक काि काहें ना होखो, ओकर सनकहा साइि ना भइल ि ओकर उसजयाइल असम्भवे बूझीं । िाने उद्येश्य आ साइि के संजोगहीं प कवनो काि के भइल सम्भव होला । ई कुसल्ह कहला के िाने का बा? ईहे, जे, करि के गिी आ दासा दनू ो प र्ेयान राखे के चाहीं। एही दनू ो के गसु न के आगा सवचार कइल जरूरी बा । िबे कवनो सक ु ाज के परु नाहिी के िानेििलब सकारथ हो सके ला । कहनाि अिने बा जे भोजपरु रया पाठक के हाथ िें आजु जे ई-पसिका ’आखर’ के प्रसि आइल बा ि ई ’इलेक्रासनक पसिका’ एही सुघड़ी आ साइि के इंिजार करि रहे दक ू ा! काहें जे एक अरसा से भोजपरु ी भासा के उत्थान के बाि हो रहल बा। भासा के उत्थान खासिर होि काि के गसि िें, साुँचो देखल जाए ि, कवनो किी नइखे लउकि। बाकी िबो अकाज काहें होिा ? सबन्दवु ि कवनो बाि होखीि ि सनकहा अकाज के कारन कहइबो करीि । गोजर के हजार गोड़ ि भोजपरु रया सिाज के लाख कहीं! बाकी लाख गोड़वन के सदसा एक लाख! इ सिाज एकिसु ड़ये आजु ले ना सोचलस आ ना। जाये दीहीं आगा के आगे देखल जाई। अबहीं इहे झलकि बा जे एह ई-पसिका के नाुँवें एगो अइसन चउिरा बन्हाइल बा, जवना के िजगर वैचाररक रौशनी सिली, इहे उम्िीद बा। एही सुघड़ी, एही साइि के बल ु ा इंिजार रहे। कवनो बन्हाइल चउिरा खासिर सदयरी जरि लउके ि बूसझ जाये के चाहीं जे अन्हार बड़ु ए। अइसना िें दीया के जरल किना जरूरी हो सके ला, ई कहे के ना बूझे के बाि हऽ। आ, अन्हार के कवनो रंग-ढंग हो सके ला। िबे नू, सदयररया रोससनये के सार्न ना हऽ, बलक ु ई एगो प्रिीक होले। प्रिीक अपना आप प सविास के , िलफि िन के उछाुँह के । एकवसटये लगन के , सहरदा के फफाइल भाव के ! ई सदयरी प्रिीक हऽ, सुँकराि काल-घड़ी िें जरूरी जीवनी-शसि के , आरोग्य के आ आरोग्य खासिर जरूरी सफाई के ! आजु जीवन के हर क्षेि िें लउकि ह्रास के देखि सासहत्यकारन प सजग आ सचेि होखे के बड़हन सजम्िेदारी बा। काहें जे, सिाज के कुसल्ह किवे
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 8
सौरभ पाण्डेय "सौरभ पाण्डेय जी के पैतृक भूमि उत्तरप्रदेश के बमलया जनपद के द्वाबा क्षेत्र हs । मपछला बीस बरीस िें राष्ट्रीय स्तर के अलग अलग कॉपोरे ट इकाई िें काययरत रहल बानी । आजकाल के न्द्रीय सरकार के ग्रािीण-पररयोजना आ स्कीि के संचालन खामतर एगो व्यावसामयक इकाई िें नेशनल-हेड के रूप िें काययरत बानी । परों को खोलते हुए (सम्पादन), इकड़यााँ जेबी से (काव्य-संग्रह), छन्द्द-िञ्जरी (मवधान) नाव से ककताब प्रकामशत.
आपना िूल से भटकल जा रहल बा। का परम्परा, का पररपाटी, का बाि-व्यवहार, का लोकाचार । सभे प जइसे कवनो गरहन लासग गइल बा। ई काहें ? काहें जे, हिनी के सशक्षा के आ सवद्या के बीच के भेद सबसरा देले बानी जा। दूनों िें घालिेल भइल चलल जा रहल बा। सवद्या-बसु द्ध के बाि करि आपन सिाज, पेटभराउआ जोड़-िोड़ आ कागजी सशक्षा का पाछा पड़ल बा। लोक-सिाज सवचारपरक सवद्या से दरू भइल जाि बा। खाली, देह-सख ु खासिर ििाइल लोग िन आ बसु द्ध के सख ु प सोचल बंद क सदहले बा । जवन लोक-सिाज िें अन्िररक्ष भा र्रसिये ना, एकर कुसल्ह अवयव, जइसे जीवन, जल, औषसर्, बनस्पसि के कहो सभे के शासन्ि आ सिसृ द्ध के इच्छा राखि रहे, जवन लोक-सिाज सउुँसे जगिी के अवयव के बीचे सहयोग-सयु ोग के बाि करि रहे, ऊ सिाज बझ ु ािा जइसे िसिसन्ु नी िें परल बा। जवन भूसि प गिे -गिे परिाथी, परिहंस, िनु ी-ज्ञानी लोगन के उपसस्थसि रहल बा, ओही भूसि के लोक-सिाज सुँकेि सवचार आ घनघोर स्वारथ के अन्हार िें आन्हर भइल जाि बा। कबो आध्यात्ि के भावना एह सिाज के नसेनसे बहि रहे बाकी आजु के सस्थसि का बा एह प का कहल जाए? इ कहे के नइखे। आध्यासत्िक सवचार आ पंथीय सवचार िें ढे र फरक होला। दूनो एक्के ना हऽ, जइसन अपना सिाजे के एगो वगा प्रचार करे िें लागल बा । बलक ु ई आध्यात्िे हऽ जे आि-जन के सफलिा भा असफलिा के सहज भाव से सुँकारे के सोचगर बनावेला ।’उभय सक ु ृ ि-दष्ु कृिे’ िबे संभव हो सके ला ।
लोग आपन-आपन घर-दआ ु र, दर-दोकान, गलीिोहल्ला आसद के सफाई कइल सुरु कऽ दीही ि कवन बेजायुँ होई? गंदसगये आ कुव्यवस्था के कारन ि शुद्ध, सकारथ आ सजग सवचार सूसि रहल बा! कवनो सचेि आ सनष्ठावान सिाज किा प्रर्ान होला। किवे िपस्या हऽ। किा देह से होखो भा िन से, एकरा खासिर ित्परिा कवनो सजग सिाज के पररचायक हऽ। आ ई सम्भव होला साफ िन से, साफ िाहौल से ।
ससद्धसरस्विी स्िोि िें स्वच्छिा के आह्वान देखे जोग बा -स्िच्छव्रिः स्िच्छचररत्रचञचुः स्िच्छान्िरः स्िच्छसिस्ििृहतः। स्िच्छं भित्या प्रपदं प्रपन्नः स्िच्छे त्िहय ब्रह्महण जािु यािु ॥ आजु अिने ले। फे रु भेंट होई ि अइसहीं ’बिकूचन’ होई।
आध्यासत्िके िन, सोच िें सववेक के जगसह देला। आ, कवनो सववेसकये िन शसु चिा आ शद्ध ु िा खासिर आग्रही हो सके ला। शसु चिा िाने स्वच्छिा। एकरा सबना देह-िन कुसल्ह प िािससक प्रवसृ ि हावी होि चसल जाले। शसु चिा खासिर आग्रह कबो कवनो राजनैसिक भा पंथीय िंिव्य ना हऽ, आ ना अइसन िाने के चाहीं।
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 9
आखर चौपाल
“भोजपु री के से वा में आखर”
आ
खर , भोजपरु रया सिाज अपना िािभृ ाषा के लक ु ाईल गनु के उजागर करे के कोसशश िें लागल पसिका बा । इ शब्द सलखि िन भर आईल सक अइसन भरपूर सिद्ध ृ भाषा के इ सदन कांहे आवे के ह सक ओकरा के उजागर करे के पड़ल। भोजपरु ी सहन्दी के छोट बसहन हई । सहन्दी के बररयार करे िें भोजपरु ी के बड़हन योगदान बा । सहन्दी िें कई गो बाि स्पष्ट करे खािी भोजपरु ी के शब्दन के जरूरि पड़ेला । भोजपरु ी बोले आ सनु े िें िीठ भाषा ह । िहीन से िहीन बाि कहे खािी शब्दन के ढे र बा । जइसे देखीं- ‘बिीया’ फरहरी िें बिीया लाग गइल। अब इ बिीया िें जवन भाव बा ओकरा के सहन्दी भा अंग्रेजी िें का कहाई । अब देखीं ‘टटइनी’ । देह टटािा । अब कहल जाव देह िें ददा बा, देह दख ु ािा । इ कहला से ‘टटइनी’ जवन होिा उ भाव ना नू आई। अजब ‘खजाना’ बा भोजपरु ी के लगे । सजनगी के हर संस्कार खािी एक से एक गीि बा। शायदे कवनो भाषा के गीि एिना सिद्ध ृ होई । सब गीि अपना प्राचीनिा, सिृद्धिा, सािासजकिा, संस्कार से भरल पड़ल बा । जनि, जनेऊ, सबआह, गौना, के अलावे कृसष प्रर्ान देश के चलिे, सब काि खािी- जिसार, कूटनी, पीसनी, कटनी, सोहनी, िेला सबका खािी गीि बा । एकरा अलावे बारहिासा अलगे बा । सब देबी-देविा के गीि अलगे बा । सब भाव से भरल। अब लीं, प्यार, दल ु ार से भरल ‘गारी’ । सबआह िें चाहे अईगा आइल पहना, अगआ ु , सिर्ी जले औरिन से ‘गारीवाला’ गीि ना सनु ीहें ‘खइबे’ ना करीहे। गारी आ उहो प्यार भरल। वाह रे ! अब इहे बसंि बा। गांवे गांव फगआ ु राि भर गावल जाइ। फगआ ु बीिी ना सक ‘चइिा’ शुरू । आज भोजपरु ी ससनेिा िें काफी अश्लीलिा घस ु गइल बा । सिअथी गीि भोजपरु ी के पहचान हो गइल बा । एकरा के दूर कइल बड़ी जरूरी बा । ‘आखर’ के र्न्यवाद बा सक ओकर ध्यान ए पर बा । ‘आखर’ अपना िािभृ ाषा के ओकर आपन स्थान सदयावे खािी भरपूर प्रयास कर रहल बा। फे सबूक से जब हि जडु नी ि ‘आखर’ के भोजपरु ी खािी िन से लागल देख संिोष भइल।‘आखर’ अपना उद्देश्य िें जरूर सफल होई। िन से लागल काि पूरा होला । देर-सबेर से घबड़ाये के नइखे । हृदय से हिार शभु कािना अपना िािभृ ाषा से जड़ु ल ‘आखर’ से बा । © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 10
डा. रीता ससन्हा गोपालगंज, मबहार के रहे वाली डॉ0 रीता मसन्द्हा जी MA , Ph.D. हईं । शोध मवषय"भोजपुरी सामहत्य िें गीमत काव्य", रहल बा । सेवामनवृत मशमक्षका वी एि इंटर कालेज के आ महन्द्दी भोजपुरी सामहत्य िे बररआर काि । इाँहा के मलखल उपन्द्यास - " धरनी िें धसौं कक अकासमह मचरौं " काफी चर्चयत रहल बा । "निक रोटी" समहत कई गो कहानी पत्र पमत्रकन िें प्रकामशत हो चुकल बा । "अटल स्वराज" नािक पमत्रका िें स्तंभकार भी बानी ।
कथा / साहित्य
बेद -बदलाई
भो जपरु ी के नाटय शैली िें प्रहसन एगो िहत्वपूणा शैली रहे । लोग कउडा प बईठ जास, कल्पना के एगो आर्ार भेटाईल ,आ सुरू हो जाय प्रहसन । बाद िें इ नाटक के बीच िें दू गो सीन के बीच िनोरंजन के बहि बड आर्ार रहे ।
सिलय उपाध्याय आरा , मबहार के रहे वाला मनलय जी , महन्द्दी आ भोजपुरी सामहत्य िे उत्कृ ष्ट रचना कईले बानी । इाँहा के मलखल महन्द्दी नाटकन के िंचन भी होला । कई गो भोजपुरी मसनेिा आ महन्द्दी धारावामहक के मस्िप्ट भी मलखले बानी । हाले कफलहाल इाँहा के गंगा यात्रा ( गंगोत्री से गंगासागर तक ) भी कईनी ह । भोजपुरी भाषा आ सामहत्य िे बहुते गुढ़ आ पोढ़ जानकारी इाँहा के जरी बा । सम्प्रमत िुम्बई िें बानी ।
आखर खासि सलखे के भइल ह ि सोच लेनी सक अबसक प्रहसन सलखब । प्रहसन सािने बा , अब इ फ़ै सला रउरा सब के हाथ िें बा, इ बेद बदलाई सक ना । शभु ि् करोसि कल्याणि् । आरोग्यि् र्नसंपदाि् ॥ शिु बसु ध्द सवनाशाय, दीपः ज्योसि निोऽस्ििु े ॥ [ िंच प शहनाई आ एह िंि के आवाज के साथ िनी सा अंजोर लउकि ई कलसा प जरि सदया के अंजोर ह । र्ीरे से रोशनी कही उपर से बड कलसा प आविा आ सुन्दर घडा जवना के सिसथला पेंसटग स सजावल गईल बा। घडा के उपर आि के पलो प ढ् कनी , ढ् कनी प लागल सदया आ दीया के अंजोर िे गणेश जी के खूब सनिन िस्वीर लागल लउकिा । ] [ िस्वीर प आविे िानर के आवाज आवे लागिा। ] [ रोशनी पूरा आ जािा आ पिा चलिा सक स्टेज ना कवनो शादी के िंडप ह। कोना से एगो औरि पीयर साडी पसहनले आ रहल सबया आ आपना गदा न िें टीिकी सािने की ओर लटका के दूगो सछऊंकी से बजावि आ रहल बाडी िानर चाची। िंडप िे आके कलसा के प्रणाि करिारी । ] [ नाच के संगे गीि आरम्भ हो जािा । ] िानर चाची : आरे आरे सगनु ी, आरे आरे सगनु ी, सगनु वा ले के आव िोहरे सगनु वा ए सगनु ी होखेला सबयाह [ एह गीि के आसखरी कडी िे एक ओर से लोकरानी जवन दश्ु यंि के शकंु िला सनयन सनु र बाडी. नाचि झूिि आविारी। उनका नाच से इ
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बाि सिझ िें आ जाए के चाही सक इ पंच ित्व के प्रसिसनसर् हई । अब दूनो अब दूनो लोग सिली के गाविा ।]
उिरल ि दूर् सपयवले रहे । बेद :
इ..हिरा के , उ िोहार किजोरी रहे सक ए बोिल दूर् के भी इंिजाि ना कर सकलू
लोक रानी : आरे आरे बेद बाबा आरे आरे बेद बाबा, लोक रानी: जा हि ि िहारा के बेद बनवले रही ,िू पोसथया ले के आब िोहरे पोसिया ए लबेद हो गईल। राजा आ ररसस आ ससु वर्ा जोहर शाफियाबादी के चक्कर िें आगिन के संगीि के भल ु ा बेद बाबा होखेला सबयाह । गईल। [ बेद एह िरीका से आविारे सक उनकर चार परू ु षाथा देखी,अब इ ना हो सके , सबयाह झलक जाय । आके लोक रानी के सािने थोडा अकड के बेद : ननलयिें होिा उपाध्याय होटल आ हिहू सके ि िें बानी । बाकी झक ु के प्रणाि करs िारे ]
पव ू ी
वेद बदलाई
बेद :
िािे रउरा ।
भोजपुरी
[ बेद नफ़रि के साथ िानर चाची के देखिारे ] बेद :
बेमार बचवा के हिी
िू एह पसवि िंडप िें कईसे आ गईलू ?
लोक रानी : बेद ! बेद :
[ परी लेखा सजल कुछ लईकी एगो बड नगाडा सनयन लेके आविा लोग, लोकरानी दू गो बाडी सनयन रंगीन डंडा से बजाविारी आ उ एकदि िाित्ृ व वाला िाहौल िे जजतें द्र वमाा लेके चल जािा। लोक रानी के कं ठ से पवु ी के िान के साथ िानर के संगीि चढिा आ रुक जािा। ]
िािे अब के िानर बजाविा ?
जात ,पार्टी आ पुरस्कार
लोक रानी : नईखे बजावि । बेद :
लोक रानी: देख एकरा के बाजे द । एकरा लय िें िहिारी के गरभ बाजेला, र्रिी के गभा के बाजे के संगीि ह िानर। एकरा के कला बनके ि बाजे ध्रव गुप्देतख हि बजा के ु द। सनु ाविानी ।
अब ि के ह के बजावे भी ना आई । भल ु ा जाई !
[ बेद अनिना सा बा, ओकरा इ सब अच्छा नईखे लागि । परी लोग नगाडा लेके सनकल जािा। ]
िम्भांग भोजप बेद : ुरी
लोक रानी : िू अपना पोथी िें ि राजा के सलखल । राजा के गावल, आ आजो गावs िारs, कबो सिझल सक इ के ह ? [ बेद नफ़रि से देखिारे ]
िांतोष पर्टे ल छोडी इ ना बाजी, बाि साफ़ बा ।
लोक:
काहे ना बाजी ?
बेद :
अब बेद बसजहे बस,अब होटल के सबयाह िे सगनु ि उठे ला ना , जवन होला िवन बेद ननराला से होला ।
त्रबदे सिया के पाती
लोक रानी : िानर ना ,िां नर.. ! उ िाई जे जनि भईला प िहार नार कटले रहॊ, बेद :
ई ! हिार लईका अस्पिाल िे होईहे स
[ लोकरानी के गस्ु सा चढ़िा ]
लोक रानी: िहरा जन्ि के सिय हिार दूर् ना प्रकाहिि रचना लेखक के आपन ि आ जरुरी नइखे की इ संपादक के हिचार लेखक के हिचार से हिले । © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 12
बेद : िंि के िाकि बा लोक रानी: िहरा िंि के हि स्वर देले रही। जाके भारिाज िसु न से पछ ू सलह, सोहर सनु के साि बेद गवले रहन ।
लोक रानी: बजाव भईया बजना । [ बेद एह र्नु के अनुकरण करे के कोसशष कर िारे ] बेद : िं ग ल ि भगवान सवष्णु । लोक रानी: बजाव भईया बजना , बजाव शहनाई
[एक िरफ़ से साि बेद दूसर िरफ़ से सोहर के आवाज आविा । ] बेद : ििलब जे शास्िर सलखल, ओकरा पासे शैली ना रहे ?
बेद :
पंसडि िंगलि भगवान सवष्णु
[ बेद पंसडि के लय-स्वर टुटे लागल बा , उ सम्हार नईखन पावि । लोक रानी सवजई भाव से कहsिारी । ]
[ लोक रानी गस्ु सा िे ] लोक रानी: चलs गा, गा, हि बिाविानी शैली ! [ बेद पंसडि चनु ौिी स्वीकार क ले िारे ] बेद :
िंगलि भगवान सवष्णु
लोक:
ब जा व भ ई या ब ज ना
लोक रानी : बजाव भईया बजना , बजाव शहनाई बाजा के बजाई लेहब , बेद बदलाई । [ बेद बदलाई के स्वर कई िरह से आविा जवन लोक रानी के नजररया, आ िानर चाची के नजररया के गूंज सदखाई पडिा । ]
[ लोक एक दि उनके सुर िे गा दे िारी । बेद िनी अउर जोर लगाविारे ] बेद :
िंगलि भगवान सवष्ण,ु िंगलि गरूण ध्वज: ।
लोक रानी: ब जा व भ ई या ब ज ना , ब जा व श ह ना ई । बेद :
िंगलि ।
[लोक रानी बेद के रोक देिारी। आ अपने अलग सरु िे गाविारी ]
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 13
कथा / साहित्य
जाहत, पार्टी आ परु स्कार
भो जपरु ी सम्िेलन जब खत्ि भउवे िबले राि हो गइल रहवे । बझ ु ािे ना रहे सक रास्िा के ने बा । हिरा घरे लवटल जरूरी रहवे । के पड़े जाई ? बझ ु ािे ना रहवे । िले देखवु ीं सक एक सकओर भोजपरु ी के बहिे भाग्यसवर्िा लोग जािा । हि ओही लोग का पाछा लाग गउवीं - िहाजनो येन गिः सः पंथा । सभे खस ु रु -फूसूर करि जाि रहवे । हिरा बझ ु उवे सक कवनो िहान सासहसत्यक बाि होिा । हि ध्यान से भाग्यसवर्ािा लोग के बिकही सनु े लगवु ीं । ‘‘ई ि भोजपरु ी सम्िेलन ना भइल ।’’ ‘‘ि का भइल ?’’ ‘‘ई ि फलाना पाटी के सम्िेलन हो गइल ।’’ ‘‘ऊ कइसे जी ?’’ ‘‘देखनीं हऽ ना, सभे नेिा ओही पाटी के रहल लोग ।’’ ‘‘हुँ, हुँ.....’’ ‘‘ठीक कहऽिानी ।’’ गोल िें एगो सहिसि बनल बझ ु ाइल । िले दोसर भाग्यसवर्ािा जी कहले ‘‘ई ना ि भोजपरु ी सम्िेलन भइल ह, ना पाटी के सम्िेलन भइल ह ।’’ ‘‘ि का भइल ह जी ?’’ ‘‘ई जासि के सम्िेलन भइल ह ।’’ ‘‘ऊ कइसे जी ?’’ ‘‘देखनी ह ना, सभे नेिा एके जाि के रहलन । पाटी भले दोसर-दोसर रहे ।’’ ‘‘ई बाि ि रहल ।’’ ‘‘हुँ हुँ...’’ ‘‘चपु रहीं ई पाटी के सम्िेलन रहल । फलाना जासि के बदनाि िि करीं ।’’ -पसहलकूुँ भाग्यसवर्ािा जी गरिा के कहले । ‘‘हुँ हुँ, ना ठीक ना होई ।’’ ...‘‘रउवा सभे सासहत्यकार होके गंडु ई करऽिानी । हि डेराएवाला नइखी ।’’ ‘‘हुँ, हुँ । ई फलाना जासि के सम्िेलन रहल । दोसर लोग थपड़ी बजावे खासिर बोलावल गइल रहल ।’’
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 14
सितेंद्र वर्ाा मसवान , मबहार के रहे वाला मजतेंर विाय जी भोजपुरी भाषा आ सामहत्य खामत अब ले कई गो ककताब मलख चुकल बानी । महन्द्दी आ भोजपुरी िें इाँहा के मलखल कई गो ककताब प्रकामशत हो चुकल बाड़ी स। मबहार टेक्सस्ट बुक के कक्षा ६ से ८ तक के भोजपुरी सामहत्य के मसलेबस मनिायण समिमत के िहत्वपूणय सदस्य रह चुकल बानी । अमखल भारतीय भोजपुरी सामहत्य सम्िेलन से जुड़ल बानी ।
पवन र्टू न
‘‘हुँ, जी । ठीक कहऽिानी ।’’ ....‘‘ई पाटी के सम्िेलन रहल ।’’ ‘‘ई जासि के सम्िेलन रहल ।’’ ‘‘पाटी के ।’’ ‘‘जासि” ‘‘पाटी ।’’ ‘‘जासि ।’’ बझ ु ाईल जे िारा-िारी होिा । हि के हू िरहा जान बचा के ओह गोल िें से सनकललीं । आगा दोसर भोजपरु ी भाग्यसवर्ािा जी लोग के दोसर गोल रहे । हि ओह लोग के पाछा लाग गईनी । ‘‘रउवा फलनवा के हाथे परु स्कार काहे लेनीं हऽ ?’’ -ई आवाज हिरा एगो जानल-पहचानल लेखक के लागल । बाि परु स्कार के चलि रहे ि हिार उत्सुकिा आउर बढ़ गईल। हि परु स्कार सनणाा यक ससिसि के सदस्य रहीं आ ई लेखक अपने परु स्कारे लेवे खासिर हिरा के पीसठया िरले रहलें । ‘‘ि का परु स्कार गोड़ से लीं ?’’ ‘‘बे जी ! रउवा गंभीरिा से हिार बाि लीं ।’’ ‘‘अब रउवे बिाई ं, परु स्कार हाथे से नूुँ सलआला ।’’ ‘‘आरे ऊ सांप्रदासयक नूुँ हउवें ।’’ ‘‘ि रउवा उनकरे पाटी के फलाना नेिा से काहे परु स्कार ले ले रहनीं ।’’ ‘‘हि काहे ना लेि जी । एिे सांप्रदासयकिा के कवन बाि बा !’’ ‘‘
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 15
कदल, जब बच्चा था जी !
कथा / साहित्य
बा
ि ि परु ान ह... छठा-सािवाुँ िें पढ़ि होखब। गाजीपरु िें रहि रहीं। िहु ल्ला बहि ठीक ना रहे पढाई के िािले िें। कहे के ििलब पढाईसलखाई कि होखे... ओह िुहल्ला के लईका खेले कूदे आ बदिासी िें आगे रहस। हिहू उहे बयार िें बहि रहीं, पढाई-सलखाई साढ़े बाईस रहे। खेल कूद खूब होखे। ओह िें कही छुट्टी के सदन होखो,ि पूछही के ना रहे। ओहू सदन, छुट्टी के सदन रहे। आ कुल टोला के आठ दस लईका… एगो साथी रहे- “लल्ु लू” पक ु ारू नाि रहे ओकर। घरे के ठीक-ठाक रहे। 8-10 गो भई ंस लागस ओकर। दर्ू के बसढ़या कारोबार। ओही के छि पर खेलि रहीं जा, खूब र्िाचौकड़ी होि रहे। एक सदन खेलिे खेलि हिरा लघशु ंका लाग गईल। उहवा, देसख की कही जगहे ना लउके की फाररंग हो ली। िले... देखनी के कोना िें एगो रेनवाटर के पाईप सनकलल रहे,जवन सक छि ले चार पाुँच इंच ऊुँचा रहे। हि कहनी- नाली ि सिलल! के जाओ नीचे… एही िें र्ीरे से सिझ लेवे के काि बा। हिहू पाईप िें सनशाना लेके सनपटा सदहनी। सफर से खेल (र्िा चौकड़ी )चालू हो गईल। िले नीचे ले लल ु वु ा के िाई (जवना लईकवा के छि रहे ) छि पर आ गईनी। लगली डांट के पूछे- ए, इ नीचे पानी के सगरावल ह यह पाईप से ? अब इ के बोलो की पानी के सगरवले बा ? सबके लगली डांटे।
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 16
बृि सिशोर सतवारी पलािू के रहे वाला बृजककशोर मतवारी जी एह सिय सोनभर िे काययरत बानी । भोजपुरी िे हास्य व्यंग्य के रचना इाँहा के एगो अलग आ उं च पहचान बनावेला । आखर पेज से जुड़ल बृजककशोर जी भोजपुरी िे लगातार रचना कई रहल बानी।
आसखर हि कह सदहनी-“चाची, हिके लागल रहल ह, ओसहजगु े कs लेनी ह। अरे बाप रे! एिना कहिे चाची, करेजा पर हाथ सपटे लगनी, आ र्ई ि लेहनी हिार बार। आ, ले झापड़,ि ले झापड़,पीठ ले, कपार ले र्नु सदहनी।गारी अलगा ले। िसकानौनु (इ गाजीपरु िें कहल जाला )। के हू िरे उनका से झींगा िस्ु िी कsके छूटनी,आ लगनी भागे। लेसकन भागी के ने ? उनकर छि ले सटल, भैसन खासिर ओसार बनल रहे। ओही पर के हू िरे कूद के नीचे अईनी। के हू िरे जान बचल। सीर्े आ के , िांई से कहनी, सक हउ लल ु वु ा के िाई हिरा के बड़ी सपटनी ह।
रेनवाटर के पाईप ना रहे। उ ि खाना बनावे वाला चूल्हा के र्इु या सनकले वाला पाईप रहे। आ ओह सदन, ओह घरी उहाुँ चूल्हा पर पाुँच सकलो दूर् अउटाये खािी चढ़ल रहे। आ, िू जे बाड़ न, उहे दर्ु वा िें ”क” देले रहला ह!” अब ि हिार का हाल भईल ? हि का बिाई! हुँसि-हुँसि बरु ा हाल हो गईल। “आही रे लल ु वु ा! आही रे लल ु वु ा…” कहिकहि, हंसि हंसि। आ जेिना दरद ओह सदन के िार से पडल रहे, कुल भल ु ा गईनी।
...असगला अंक िें जारी
हिरो िािा जी चलनी लड़े,लल ु वु ा के िाई से (आसखर कईसे उनकर लाल पर हाुँथ छोड़ देली ह उ )। िसनका देर िें िािा जी लउट के गईनी। आही दादा! हिार िािा जी भी,हिरा के लगनी कूटे! हिरा कुछ बझ ु इबे ना करो सक,आज हिार इ ददु ा शा काहे होि बा ? के हू िरे साुँझ भईल। बाबु जी अइनी ड् यूटी ले। िािा जी हाल-चाल कहले होखब बाबु जी ले। आह दादा! अब ि प्रलय नु हो गईल। बाबु जी आउरी लिहरे लगनी आ उहो दिभर। के हनाठे -के हनाठे ,िक्ु का-थपरा,कुछहू बासक ना रहल ये दादा! हिरा अबो ले ना बझ ु ाईल सक इ कुल काहे होिा ? आज के कर िहु देखले रहनी ह ? दू सदन ि लल ु वु ा के घर देन गईबे ना कईनी। एक सदन लल ु वु ा भेटा गईल। पूछनी का रे ? “ओह सदन िोर िाई हिरा के कहे िरलस ?” पासहले ि, कुछ ना बोललस। सफर जोर से हुँसे लागल।
कबीरा खड़ा बाजार में बेचे आपन नाम । तुलसी ज़र्ाा बेच के चलावे आपन काम । ।
राजहंस र्ाना चगु े मोती गटके काग । लोक-तंत्र के गााँव में आपन-आपन भाग । ।
कहsिा - “उ जवना नाली के िू देखला ह ? उ
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- तंग इनायत परु ी
“ग्राम-कथा: हमार गााँव पवना”
कथा / साहित्य
आ
पन छोटहन नांव के उल्टा बडहन गांव ह पवना । नांव पे िि जायीं, पवना-पवनी भला इ कवनो नांव ह ? इ सही बा सक जगह के नांव से ओह जगहा के उंच-नीच के िालूिाि होखेला बाकी एसहजा गांव के नांव से कथानक के कवनो लाग लपेट नईखे । सवशेष िें इहे बा सक सिससर बाबा िाने कथाकार के लईकाई के देह िें एसहजे के र्ूर लपेटाइल बा । आउरी छोटबड सवशेषिा बा, राउर नजरी के सोझा आगे आई । लीं गांव के नांव से शरू ु भइनी आ एसहजे अटक गइनी । कहे के ढे र बा, आ एिने ना रउरो सनु े के ढे र बा... सिससर बाबा के परबचन !!! अब रउओ इ िि कहब सक सिससर बबवा का-का सलखि रहेला । अब पवना जईसन गांव प सलखला के िाने का, जहाुँ न कवनो िाजिहल बा, ना कवनो चित्कारी िंसदर-िसस्जद भा दरगाह के नािो सनशान । ि सिससर बाबा काहें आपन िगज के कचरस प दोसरा के िगज पकावि बाड़े । बाकी पढ़ लीं, िने-िने गनु लीं, काहे से सक कबो कबो कचरा प िंसदर के चढावल फूल भी भेंटा जाला । कवनो हरजा नईखे, आ पढला के बाद लेखक प भनु भुनाइब िि... काहें से सक एह रचना खासिर कथाकार के नोबेल परु स्कार सिली, राज के बाि बा... इ हि आजे भोरे-भोरे सपना िें देखनी ह । अब रउआ नक्शा पे पवना के खोजब ि जहआ जाइब । एह से हि एह गांव के ठीक ठीक रस्िा देखावि बानी । गवें-गवें चलीं हिरा जोरे, पैदल भा गाड़ी से भा िन के कोरे कोरे, रास्िा आसान बा । िन िनसायी ना, आ कबो अकबकाई ना । ि बाुँर् लीं फें टा आ गोडे जूिा चिरेटा ।
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 18
शसश रंिि सर्श्रा आरा, मबहार के रहे वाला शमश रं जन मिश्र जी , भोजपुरी िे हास्य व्यंग्य के संगे संगे गमहर सामहत्य के मसरजना करे खामत जानल जानी , इाँहा के महन्द्दी आ भोजपुरी भाषा प पकड़ बेजोड़ आ धारदार बा । इाँहा के मलखल कई गो लेख महन्द्दी भोजपुरी के कई गो पत्र पमत्रकन िें प्रकामशत हो चुकल बा । एह घरी इाँहा के कदल्ली िे रहत बानी ।
लीं ससररराि जी के नाि आ करीं परसथान । सबहार के भोजपरु सजला के नांव जानि होखब !!! ना...!!!? अरे उहे जवना के ढे र लोग अबहओं आरा सजला कहेला । हुँ हुँ हुँ.... ठीक बझ ु नी । उहे... ि कुछ बररस पसहले िक भोजपरु रया इलाका िें एगो कहावि चलि रहे- “ए०बी०सी०डी०” माने आरा, बलिया, छपरा आ देवररया लििा । अब एह में आरा, छपरा त लबहार में भईि, आ बलिया-देवररया उत्तरप्रदेश में । अब एह ए०बी०सी०डी० के पदवी काहे लमिि एकर कहानी तनी अंदरूनी मलमिा बा, िवन एह क्षेत्र खालतर बदनामी िईसन कह सलकिा, बाकी हम ना कहब । ज्यादे िाने के बा त लबहारबंगाि के कोईिरी के िोगन से लमिीं, बता लदहें । रंगदार- िठै त इहे चार िगहा से रहन आ ओह में आरा सबिे आगे रहे। इनका िोग से दहशत रहे । कहावत रही स“जजला में जजला आरा, आउरी सभे जजल्ली । बीरन में बीर कुंवर जसंह आउरी सभे जबल्ली ।।” भा- “आरा लििा घर बा, कवन बात के डर बा ।” ि जे बा से की एह कहावि के थोर-बहि छाप एह गांव िें भी रहे । बाबु साहेब( लईका भा सेयान) आपन बबआ ु नी ना छोडि रहन । भले घरे सिआ ु प सजनगी कटि होखे गांव के गान्ही चउक ( गाुँर्ी चौक) प इनका सभे के रईसी देखे के सिल जाि रहे । पनेहेरी के दोकान प बही के के िना पन्ना भराइल बा इ ि उहे पनेहरी जाने । बाकी बाबू साहेब के ठाट रहे । आउरी भेद के बाि कहके आपन गाुँव के नांव ना नू हंसासयब । खैर अभी गाुँव की ससवान र्रीं । आरा के जीरो िाइल से दू सकलो िीटर आगे गड़हनी रोड प बढब, ि िेिररयां गांव भेंटाई । एसहजा से एगो रास्िा बाएं गईल बा जवन सहार िक जाले, बस इहे पकड़ लीं । कहीं िड़ु े के नईखे इहे राह पवना
जाला । िेिररया से 14 सक०िी० पड़ी पवना । अब गांव िें घस ु िे जवन नजारा सिली ि रउओ कहब सक जवन गांव प हेिना बिरस सलखाइल दूरे से उजाड़ लउकि बा । अरे िहाराज ! घबराई जन इ उजाड़ जिीन ि इ गांव के सवशेष पसहचान देले बा । एकर चचाा आगे सिली । आगे बढ़ीं ि एगो चउरस्िा आई, जवना के एगो नाि देवल बा- गान्ही चउक । ना ना...!!! गान्ही बाबा से जडु ल एसहजा कवनो अईसन बाि नईखे । अब परु सनया लोगन के सरर्ा से राखल एह नाि के िहत्व ढे र बा । इहे चौक से एगो अउर रस्िा फुटल बा जवन सन्देश जाले । एह रस्िा के कारण गांव िीन-चार टोला िें बंटा गईल बा । घबड़ाई जन !!! अब कहीं नईखे जाएके , इहें गान्ही चउक प सगरी गांव के भेद खल ु ी । सिससर जी के गांव के पसहचान करीं, सिससर जी के िख ु ारसवंद से उवाचररि । सिससर बाबा के अलगे पसहचान बा एसहजा । इहाुँ इनकर आसस्ित्व इनकर बाबा के नावे जानल जाला । फलाना बाबा के नािी-पोिा हवे । ि उहे फलाना बाबा के पोिा के लइकाई से जडु ल कुछ इयाद िें गोिा लगायीं जा । ि गांव िें प्रवेश भईल आ गान्ही चौक प पहचं नी सक लोग बाग के नज़र िें आ जाईब सक गांव खासिर के िना परु ान बानी । जान-पसहचान ढे र होई ि पंवलगी शरू ु हो जाई । “गोड िागीं ए बाबा ! ढे र लदन पे...” “और हािचाि ठीक बा नू !!??? अभी रहे के बा नू ? सााँझ के भेंट करब...” एह गान्ही चउक से लेके सिससर जी के िकान िक सड़क के दनु ो ओर दोकान बाड़ीसन । एक से बढ़ के एक सजसनस के सािान भेंटा जाई । चाय के गिु टी से लेके खीरिोहन के झांपी िक । लकठो आ घघु नी के खोिचा से लेके िाड़ी के हांड़ी िक । िजिआ ु इिर से लेके रेक्सोना के बोिल से फुहार फें के वाला सेंट िक । िरसकन के कुरिा से लेके सससलक के अंसगया िक सब एसहजे भेंटा जाई ।
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अब अचकचायीं, दि र्रीं... ढे र चीज भेंटाई देखे के ... लीं गान्ही चउक प गंगािाि एह सगु ंर् के सनशा िें ि हि भल ु ाईये गईनी । िीठ आ िनी कासाह गन्ह एह गांव के एगो सवशेष सिठाई के ह । अब कहब ि हुँसब िि... एह गांव खासिर इहे सिठाई बंगाली रसगल्ु ला ह, आगरा के पेठा ह । अच्छा अब एकर नाि बिा देि बानी । इ ह सजलेबी, आर्ा पकल जािनु के रंग के सजलेबी, िीसी के िेल िें के छानल सजलेबी । गरिा गरि खाईब, ि इ भल ु ा जाईब सक के िना खईनी, रस के चवु ि र्ार के अईसन सडु पब सक िन सिजाज िर हो जाई । खा लीं... अरे पचास सगराि आउरी लीं ... अब सजलेबी प्रससद्ध ि एसहजा के चाट भी प्रससद्ध । सनराला, सदलवाला, सदल्लीवाला, कलकिावाला आ ना जाने का का... टाट के झोपड़ी िें आगे ससंघाडा कचौड़ी, कोइला के चूल्हा प सदनभर पानी सिलि आ गरि होि िटर के छोला । ओह झोपडी िें घस ु के देखीं, गणेश आ लक्ष्िी जी के िूसिा के साथे बदन उघाड़ हीरो आ कुल्हा के बल पे अटकल सहरोइन के फोटो जरुर भेंटाई । दोकानदार सासहत्य के बहि प्रेिी हवें, सबल्लो रानी चिन बहार लखनऊवाली के सलखल शायरी के सकिाब के चार लाइन भी लगसयले बा... “सोना लदया सुनार को पायि बना लदया, लदि लदया यार को घायि बना लदया” भा “ये खुर्ा हम तुमसे फररयार् करते हैं, मत भेज उधार मांगने वाले जो हमें बबाार् करते हैं” चाह-पानी के दोकान आ पान बीड़ी के दोकान अईसन दू जगह होला जहाुँ गांव भर के खबर पहचं ेला । के करा घर िें आज सहंग के छौंका पडल बा इहो खबर सिल जाई एसहजा । बाकी रंज खस ु ी स्नेह से पगासयल गाुँव के बेयार िें सनासयल राउर िन ििंगा पे कवनो लाग लपेट के लपट ना लागी । एह गाुँव के बाजार के इहे िसहिा सक दस गो आउरी गाुँव-जवार के काज परोजन आ सबर्-व्यवहार के , िय नेविा-पेहानी
के , खाजा-खजल ु ी-बेलगरािी के सभकर वेवस्था कर देवेला । िास्टर हनीफ बैंड के सपस्टन से रािर्नु के साथे राजा राजा करेजा िें सिाजा वाला गीि भी बाजेला । कुल सिलाके एह गाुँव के बाजारे गाुँव ह भा बदलि सािासजक व्यवहार के ब्यापार करि गाुँव अब बाजार ह । बाकी कुछो होखे, इ सिससर जी के गाुँव ह आ आपन गाुँव के बडाई करब... रउआ बझ ु े के बा ि बझ ु जाई ं की गाुँव बदल गईल बा । बाज़ार जादे आ व्यवहार कि हो गईल बा । सिससर जी के लाल टीका देसख के हू पंवलागी भले जन करे बाकी ललका झंडा जरुर देखा दी । अब रउआ एह गाुँव िें अइनी ि दआ ु रे आयीं, लसचदाना आ बिासा से खरिेटांव करीं । िंहु िीठ करीं आ जवन जबनु देखनी ओकरा के िने िि लायीं । गाुँव ह हिार, हिरा खासिर ि िाई के आुँचर ह, एही गाुँव के र्ूर देहीं िें लागल बा । जबनु ना कहब... ओइसे गाुँव के दसक्खन ससवान प सलखल बा- आदशा गाुँव पवना िें पर्ारने के सलए र्न्यवाद ।
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कथा / साहित्य
काल चक्र
आ
रा शहर से गाुँव लौटि, ढे र राि हो गइल रहे । हाल्ट से उिर के एक्का के सवारी, सफर कई कोस पैदल चलला के बाद ‘एकवना’ गाव आदिी पहचुँ ो । पसहले रास्िा रहे, अउरी एक्का दवु ार ले जाि रही सन, लेसकन सपछला बाढ़ िें सड़क दह गइल रहे । अब इ सड़क राजनीिी के सशकार सबया । एक-दू चनु ाव ि लासगये जाई बने िें । एह से पैदल जल्दी जाये ला सदयरा देने से रास्िा नजदीक रहे । राि िें गंगाजी के सदयरा सायं - सायं बाजे । डरो खूब लागे । लोग कहे की एह सदयरा िें खूब भूि बाडन सन । सौ िुह, हज़ार सखस्सा रहे परेिन के । िन िें भए दूर करे ला हि एग्यारह हाली हनिु ान चालीसा के पाठ कईसन । गाुँव के प्रकांड पंडीजी ‘सिपाठी जी, के भी बाि याद आइल । उनका के लोग बाउर कहे; कांहे के उनकर ‘थीयोरी’ सभे से अलग रहि रहे । अउरी, सब से अलग बाि करे वाला बाउर कहला चाहे उ के िनो साुँच काहे ना बोलि होखो । भूि प अजीब-अजीब बाि कहि रहन सिपाठी जी । कहस की सहन्दू र्रि िें भूि ना होखे । भूि िाने काल , सिय । जवन बीिल परु ान बाि ह उहे ‘भूि’ । एही से व्याकरण िें पढ़ावल जाला ‘भूिकाल’ । जवन अभी हिनी के भूि के स्वरुप बािे उ िसु स्लि औरी अुँगरेज़ से आइल बा । कवनो गीिा, बेद , परु ाण िें भूि के बाि नइखे । राकस अउरी यक्ष के बाि बा । कुछ पंसडि, जानकार लोग उनका से बहस करे ।
असििी रुद्र आरा , मबहार के रहे वाला अमिनी रुर जी , अिेररका के न्द्यूयॉकय िें टेक्नोलॉजी कं सलटेंट हई । इाँहा के मलखल कई गो महन्द्दी आ भोजपुरी लेख अलग अलग पमत्रका िे प्रकामशत हो चुकल बा । आखर प शुरुवे से मलख रहले बानी ।
एक जाना कहलन “ पंडी जी हनिु ान चालीसा िें सलखल बा : भूि सपचास सनकट नाही आवे, िहाबीर जब नाव सनु ावे”; िल ु सीदास कह गईल बाड़े भूि के बारे िें । कइसे ना होला भूि?”
सिपाठी जी आगे बिावस; “अरे पोंगा ! वैसदक शास्त्र के सिय बलात्कारी लोग के सपचास कहाि रहे; जे सुिल िेहरारुन के संगे जबरदस्िी करs सन । उहनी के सवयाह सपचास सबयाह कहाि रहे । ससहये बा: िहाबीर जी के नाव ल; आ थुरs लउर ले ि इ बलात्कारी भागे जेहन सन । औरी भूि; िाने काल, बीिल बाि । हनिु ान जी के नाव लेब ि ना दःु ख वाला बीिल बाि याद आई; ना बीिल बाि सनु ाई दी ना सदखाई दी “। ओह घरी हिहू पछ ू ले रही : “ सिपाठी जी चली िान लेनी राउर बाि; के बीिल बाि याद ना आई । बीिल काल ही भूि ह । लेसकन बीिल िोर्टो िाभार— http://psichologas.lt/ © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 21
बाि देखाई औरी सनु ाई ना दी? इ का भइल? बझ ु ाइल ना?” । “एकरे कालचक् कहाला ।” : सिपाठीजी कहले । सिपाठी जी कालचक् वाला भूि के बारे िें बिइलन लेसकन, बझ ु ाइल ना । िन िें जवन भूि के स्वरुप से डर बैठल रहे; ओही से डर लागो । अन्हार; सनु सान िें झाय-झाय झींगरु के बोली बाजि रहे । डर अउरी बढ़ि गईल । आगा बढ़नी, ि लागल की के हू हिार पीछे आवि बा । हि पसीना-पसीना हो गईसन । कई हाली िड़ु के देखनी । कबो बझ ु ाइल के के हू आगे चलि बा ।। डर से कई हाली पूछबो कइनी: “ के हs ए भाई “? लेसकन सदयरा िें हिार आवाज़ गूंज के हिरे सनु ाई देलख ; “के हs ए भाई? । कबो लागे की भरि बा; कबो लागे की साचो के हू बा । कहीं भूिवा हिरे आवाज़ सनकाल के हिारा से नइखे नु पूछि ? काफी देर चलि हो गईल रहे । कुछ देर बाद लागल की हि एके जगसहया बार बार घिु ि बानी । ५ सिनट बाद हिरा बझ ु ा गइल की हि रास्िा भटक गईल बानी । अब राि के अन्हार िें कुछ लउको ना; टॉचा िें बैटरी भी लगभग ख़िि रहे । भगजोगनी लेखा टॉचा कुछ सिनट जलsल । ओही िें कही जगह बइठे - सुिे के जोहनी । सोचल गईल के अब के हू यािी आई ि साथे हो जइल जाई, ना ि भोर होई ि रास्िा नीिन ले जोह के गावुँ चहपल जाई। गिी के राि; कुच कुच अन्हररया; कुक्कुरससयार के आवाज़ । हि आपन गिछा ससरहाने राख के लेट गईसन । सफर से कई गो बाि िन िें आवे लागल । कई गो भूि के सखस्सा सदिाग िें ओहर गइल । ईया हिेसा कहस के राि के जिरा ना करे के । राि हो जावs ि कहीं र्रिसाला िें रुक जा । बहि जरूरी होखे ि के हू के साथे ले लs बासक अके ले िि जइह । सांच कहि रही ईया । बढु - परु सनया के बाि िसु सबिे िें सही बझ ु ाला । इहे सब सोचि थोडे देर बाद नीद आ गइल । पिा ना कवन पहर रहे आ कब हि सूि गईल
रहीं । ढे र अजीब – अजीब आवाज आवि रहे । लागि रहे कवनो जानवर के झुण्ड आवि बा । अन्हररया राि िें अंदाजा लगावे के कोसशश कईनी; घोपडासनीलगाय रहली सन । हि सांस थाि के बैठ गइनी । कवन ठीक हिरा के ऊपर से र्ांग के चल जा सन । घोपडास-नीलगाय के बड़का झण्ु ड अउरी हि अके ला । बाचल ही भलाई रहे। सोचनी की का देविा आज परीछा लेके ही रहि ! अगल – बगल से ढे र घोपडासनीलगाय गज ु रली सन । एिना डर कबो ना लागल रहे । कवनो के खरु ले चोट ना लागो एही फे रा िें बाचि रहनी । अब, चनरिा के रोशनी िें िनी-िसन देखाई देि रहे । थोडे देर िें घोपडास-नीलगाय के झूंड गज ु र गईल । सफर से शांसि हो गईल, आ हवा के आवाज़ फे न सनु ाई देवे लागल । लेसकन कुछ देर िें लागल के के हू कराहि बा । “ आह आह” के आवाज पसछि देने से आवि रहे । “के हs” हि पूछनी । “के हू बा का”? हि घायल पडल बानी गडहा िें” अवाज आइल । “रुक आवि बानी” । हि कहनी । आवाज़ ि नीिन से सनु ाई ना देि रहे; लेसकन िदाा ना आवाज़ रहे अन्हार िें कसहू टोवि-टावि हि गडहा के जरी पहचुँ नी । “कहवा बाड़; कइसे घाही हो गईल हs ?” हि फे न पूछनी । आवाज़ कुछ देर ले शांि रहल । फे न उ आदिी सचसचयाइल । “ना ; इ कईसे हो सके ला? ना ! िू नीचे िि उिररहा । िि आवs”। सफर से आवज़ आइल । ओकरा बाद हि कई हाली बोलनी “ के ह? काहे अइसे कहिारs” लेसकन कवनो आवाज फे न ना आइल । कुछ देर िें फे न से र्ीरे से भुनभनु ाि आवाज़ आइल “िि आव; नीचे िि उिररहा” हिरा लागल के शायद उ आदिी बेहोश हो गईल की का ? हिरा अब ओकर िदद करही के रहे । ओकरा के छोड़ के भाग
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जइिी ि एकरा ले बड पाप ना होइि । संकट िें आदिी आदिी के काि आवे ला । हि ओह गडहा िें कईसह उिरे लगनी । कांट- पाि ढे र उगल रहे; कई जगह से देह सछला गईल । आर्ा रास्िा के बाद ना बझ ु ाओ की के ने ले उिरी, के ने ले कूदी । लउकिो ना रहे । फे र एगो गांसछ के डांसढ हाथ िें र्राइल; ओकरा जइसही र्इसन उ टूट गईल, आ ओकरा लेले देले हिहू गडहा िें । बालू रहे ि बेसी चोट ना बझ ु ाइल । बासक गडहा िें के हू ना रहे ।ढे र अंर्ार िें खोजनी खोजनी; टीिी टीिी टॉचा २ सिनट ले जलल बासकर के हू ना सिलल । लेसकन इ ना हो सके । एही िें ले के हू बोलि रहे । हिार ि जइसे देंसह चीर सदआउ ि खून ना । कवनो भूि ि ना रहे? फे र हिरा लागल की; ढे र चोट लागल बा हिरा । घोपडास- नीलगाय के खरु के चोट रहे । नींद िें घोपडास- नीलगाय र्ांग के चल गईल रही सन, चोट बझ ु ाइल ना । हिरा लागल की हि ओकनी से बाच गइल रही लेसकन सब नींद िें सोचि रही । अब दरद ढे र बझ ु ाये लागल । कुछ सिनट िें ही अकबकी बरे लागल । लागल के काहे उिर गइनी ? सायद आर्ा नींद िें रही एह से लागल के के हू बल ु ावि बा । अंििा न के बाि होइ । बाहर सनकले के रास्िा भी ना बझ ु ाओ; एसहजा ि चनरिा के रोशनी भी ना आवि रहे । ढे र देर ले बैठल रहनी । ईगो नीलगाय के झूंड औरी गज ु रल । झूंड के आवाज़ रहे कुछ ५ सिनट िक । सफर आवाज़ ओसझल दूर होखि चल गइल । ढे र चोट लागल रहे ; कुछ देर िें अपने कराहे के आवाज हिरा िहु से सनकले लागल। हे भगवान् के हू के भेज द िदद ला ।
“रुक आवि बानी” । िददग़ार के आवाज िनी नजदीक रहे । लेसकन कुछ जानल पहचानल रहे । “कहवा बाड़; कइसे घाही हो गइलs हs ?” आवाज़ ऊपर से सफर आइल । अब हि पक्का रही । इ कै से हो सके ला ? इ ि हिार आपन आवाज़ रहे । “कहवा बाड़; कइसे घाही हो गइलs हs?” आवाज़ फे रु से आइल । “ना ; इ कईसे हो सके ला? ना ! िू नीचे िि उिररहा । िि आवs “ । हि जोर से सचसचया के कहनी । हिरा लागल के अब हिार सदल डूबल जािा । िाने हि कालचक् िें फसल रही । पंसडि जी के ‘कालचक्’ हिरा याद पड़ल । हिरा लागल की अब हि बेहोश हो जाईि । हनिु ान चालीसा पढ़े के कोसशस कइसन लेसकन ना कह पइनी । हि फे न से सचसचलाये के कोसशस कइसन “िि आव; नीचे िि उिररहा” ।
कुछ देर िें आवाज आइल के हू के हिार कराह के आवज़ सुन के “के ह?” के हू दूर ले चीसचयाइल । “के हू बा का”? हि घायल पडल बानी गडहा िें” । हि भगवान् के र्न्यबाद देि कहनी ।
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 23
कथा / साहित्य
हरवाहा के मान
अ प्रभाष सर्श्रा छपरा, मबहार के रहे वाला युवा लेखक प्रभाष जी , भोजपुरी भाषा आ सामहत्य के लेके बहुत संजीदा बानी । इाँहा के लेख कई गो भोजपुरी पमत्रका िे छप चुकल बा । आखर पेज प इाँहा के लगातार भोजपुरी िे मलख रहल बानी । कफलहाल इाँहा के नामसक िे बानी ।
रे रोड छोड़ब सन की कचार दीं !"
जवासहर खूबे जोर से सचल्लाि बड़ी झटका से ब्रेक लगईले। पसु लस के खंटारा जीप के 14 साल से हांकि -हांकि ि ऊ एह गाड़ी के चलावे िें एकदि सिसिार खां बन गईल रहअन । बासकर आज ि ऊनकर सब अनभु व िेल बेचे चल जाईि अगर जिादार साहेब जोर से सचल्ला के -" आगे देखs आगे" ना कह के जवासहर के सचेि करिीं। जीप अचानक रोकला पर सभे बईठल पसु लस लोग के िनी िनी चोट के हू के अपने लोगन से टकरा के ि के हू के गाड़ी के फ्रेि आ सीट से टकरा के लागीए गईल रहे। एही चोट के सखसीआईल जब थानादार सरु द्रें ससंह गाड़ी से उिरले, ि उनकर ससपाही आ जिादार छोटन सिवारी आपन गिछा झाड़ि आ सरु ेंन्दर बाबु के िहु ं पढ़ि गाड़ी के आगे आ के सब लईकवन के जोर से डंटले सक- का रे ! िोहनी के देह िें डर-भय नईखे? िोहनी के ई सब पड़रू लेके फाटक िें बंद क देि। जिादार सिवारी जी के सचल्लाईल आवाज आ पसु लस के गाड़ी देख के सब लईकवन, जवन पड़रू चरावे खासिर बथानी के बगईचा जाि रहन सन, हदस गईलें । ओही िें से कुछ लईका ि जोर-जोर से सचल्लाि-भहराि अपना-अपना घरे अपना गाुँव के ओर भागे लगलें ।
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 24
एही सिय िें ससपाही नटवर अहीर अपना दौड़े के प्रसिभा थानेदार साहब के देखावि एगो लईका िंटुआ के पकड़ लेहले। िंटुआ के गंजी पकड़ले, सरु ेन्दर ससंह के लगे ले आके र्क ु ु न लेखा सांस फुलावि आ छोड़ि नटवर कहले सक- लीं हजूर ! इहे सड़क के िासलक बनल सफरिा। ई पसु लसो के देख के रोड पर से नईखे हटि। थानेदार साहेब ओह लईका के नाव आ बाप के नाव पछ ु के फे र से एहंग (अईसन) गलिी ना करे के कसह के छोड़ सदहले। ऐने नटवर अहीर, ससपाही र्नेश आ भगवान िहिो के लगे जाके िोछ पर िाव देि, अपना गरदन के लसपटाईल गिछा सररहारे लगले। ऐह लोग िें कवनो बाि होईि ओकरा से पसहलहीं थानेदार सरु न्े दर बाबु सभे के गाड़ी िें बईठे के आ जवासहर से ठीक से गाड़ी चलावे के कसह के गाड़ी के आगे वाला सीट पर पसर गईले। गाड़ी अब गाुँव ओरी बढ़े लागल आ दज ु ोड़वा पोल (रांसफािा र) के लगे से बाएं वाला सोसलंग पर हारन बजावि जीप अब र्ीरे-र्ीरे चले लागल। ओही राहिा िें बड़ी झटकल डोलडाल करि आवि झकर बाबा के रोक के थानादार साहब जीपे िें से पछ ु ले सकसशवनाथ सिससर के घर के ने बा? झकर बाबा अपना हाथ से इशारा करि कहले सक -ह ह... ऊहे अगवा बड़ के गाछ िर बड़का िकान वाला घर हवे िासलक बाबा के । िासलक बाबा अबहीं घरहीं बानी। सरु दें र बाबू फे नु पछ ु ु लन-अरे भाई ! हि सशवनाथ सिससर के िकान पूछिानी। ि झकर बाबा कहले- अरे दरोगा जी, उन्हें के नाव हवे िासलक बाबा। िासलक बाबा गाुँव के एगो बड़हन सम्िासनि आदिी रहनी। जब जीप बड़ के गाछी के लगे पहचल ि बड़ के छाुँह िें बईठल साि-आठ गो लोग चौकी आ
खसटया पर से उठ गईल । थानेदार साहेब जीप से उिर के ओह लोग के िरफ पहच के पछ ू नी -सशवनाथ सिससर जी के घर इहे ह? हुँ हुँ… आई ं ईहे ह। आयीं बईठी जा… ओही गाुँव वाला लोग िें से के हू कहलस। अब सरु द्रें बाबू िासलक बाबा से पररचय भईला के बाद प्रणाि पािी क के बइठ गईले। उ अब िासलक बाबा से घर िें भईल डकै िी के बारे िें पछ ु े लगले। िासलक बाबा सबकुछ गिे गिे बिावे लगनी। एही बीचिें गाुँव के ढ़े र सभे लोग जुटे लागल। एह एररया िें भईल ई पसहलका डकै िी रहे। ई डकै िी िीन सदन पसहले िासलक बाबा के घरे भईल रहे। पसु लस भी अंचसभि रहे। िासलक बाबा के बाि खत्ि होिे होिे पानी आ चाय आ गईल। सभे पसु लस आला आउर गाुँव के कुछ बढु परु सनया लोग चाय सपये लागल। अब र्ीरे-र्ीरे गाुँव के लोग भी डकै िी वाला िािला िें आपन बाि रखे लागल। एही बीच िें रािचंद्र कहले सक- ए दरोगा जी ! एह डकै िी के भेसदया के हि जानि बानी। एह घर िें डकै िी िासलक बाबा के हरवाह संिोखीया करवईले बा। देखीं ई हे संिोखीया… हाथ से इसारा क के बिवलन । संिोखी िासलक बाबा के कुसी के बाएं भइु ंया चूका -िूका बईठल रहलें । बेचारा संिोखीया जब से घर िें चोरी भईल रहे कुछु ना खईले रहे। बासकर एह्जी ि गाुँव के लोग दोसरे खेल खेल देहलस। अभी के ह कुछ कसहि एह से पसहलही िरु ारी बाबा कहले सक- हुँ दरोगा साहेब, इहे पांच सदन पसहले घर िें िचान बनईले रहे, आ ई घर के कोना-कोना के हाल
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जानि बा। एकरा के छोड़ के आउर के ह ई काि नइखे कईले। ओने से हरेराि, भटेसर, भगृ ,ु चंदरिा आ देवनाथ संभे एके संगे कहे लागल- हुँ दरोगा साहेब, ई डकै िी संिोखीये के काि ह। एकरा के छोड़ब िि। ई सब बाि सनु ी के संिोखी ि ओहीजे बईठलेबईठले भदरा गईले। उ फे नु के हू िरहा उठ के बईठले आ दरोगा जी के ओरी हाथ जोड़ीके कहलेना हजुर, हि ि िासलक के आदिी हई ं। हिार ि चार पीढ़ी एही घर के खाना आ नीिक खा के सजअलस। हि अईसन काि नईखी कईले। फे न संिोखी िासलक बाबा का ओरर देखे लगअ ु न। ि िासलक बाबा बड़ी गंभीर आवाज िें संिोखी के नीचे बईठे के कहलन। संिोखी ि बईठ गईलें, बासकर उनका बझ ु ाि रहे सक उनका नीचे र्रिी हईये नईखे। आुँख के लगे सदने िे िारा टिटिाए लागल। सदने िें उनका सबकुछ कुच-कुच अन्हार लागे लागल। अब दरोगा साहेब संिोखी से कुछ सवाल पछ ू नी। बेचारा संिोखी सब जबाब हाथ जोड़ के देि गईल। ऐने िासलक बाबा ई सब बाि सिझि रहअन। उ ई बाि जानि रहन सक गाुँव के कुछ लोग संिोखीया के स्वािीभसि आ ईिानदारी से खूबे जरे-र्नके ला। संिोखीया िासलक बाबा के हरवाह होके भी उनका घर के सवांग सनयर रहि रहे। ओकरा एसहजा खूबे इज्जि सिले, ईहे बाि बहिे पंड़ी जी लोग के ना सहाय। उ लोग संिोखीया चिार के एिना इज्जि आ उहो पंड़ीजी के घर िें देख के भीिरे-भीिरे र्नक के राख होि रहे लोग। कुछ देर खासिर िाहौल बड़ी शांि हो गईल। िब सरु दें र बाबू पूछनी सक- िासलक बाबा एहपर राउर का कहनाि बा? कहीं ि संिोखीया के अभी एसहजे
से ले जाई जीप िें ? िासलक बाबा आपन चश्िा उिार के र्ोिी के फाड़ से पोंछ के पहीन लेहले आ िब उ बड़ी गंभीर आवाज िें दरोगा के आुँख िें आुँख सिला के बड़ी रौब से कहले-दरोगा बाबू ! ई संिोखी हिार सवांग ह, हिार हरवाह ना ह । अगर जईसन ई लोग कहिा सक डकै िी ईहे करवईले बारे ि अगर इ बाि ससहयों होई ि सिझीं की हिरा घर िें डकै िी नईखे भईल। अगर सब सिान संिोखी के घर िें गईल बा ि बझ ु ीं की ऊहो हिार, घरे ह। अब िासलक बाबा गाुँव वाला लोग के ओरी चेहरा कके कहले सक- देख लोगीन ! संिोखी जईसन ईिानदार आ स्वासभिानी आदिी पर िू लोसगन झूठा इल्जाि िि लगाव जा । अईसन इंसान सैकड़ो बररस िें के हू जन्ि लेला। हिरा खशु ी बा सक आज ई हिरा संगे बा। इनका पर ई आरोप एकदि गलि बा। अब िासलक बाबा कुसी से उठ के दरोगा जी के असभवादन करि आ कहि सक- इ डकै िी के डकै ि सब के रऊरा ठीक से िहकीकाि क के पिा लगाई ं, गाड़ी िक छोड़ खासिर चले लगलें । दरोगा जी भी एिना जीवट आ सवशाल हृदय आदिी के ना देखले रहन। उनका िन िें िासलक बाबा के प्रसि स्नेह आ सम्िान उिड़ल। उ बाबा के गोड़ लागी के जीप िें बईठ गईले। नटवर जीप के हाना बजावि र्ीरे-र्ीरे आगे बढावे लगले। आज सचहीं िें एगो ईिानदार, सविासी, स्वासभिानी, कररया रंग बासकर सफे द िन वाला, सज्जन दसलि गरीब के एिना सम्िान अपना िासलक से सिलल जवना से सक ओकर सहया जड़ु ा गईल। उ आज िहसूस कईलन सक उहो एगो सिाज के इंसान हवे जेकरा से लोग प्यार करेला।
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कथा / साहित्य
घस ू
प्र
णाि सर, हिरा टीसी अउरी िाकाशीट चांही । इलाहाबाद यूसनवससा टी िें हिार सलेक्शन हो गईल बा।” अठारह साल के दबु र पािर शरीरवाला एगो लइका एक सांस िें जनिा इंटर कॉलेज के क्लका शिाा जी से कहलस। ओकरा चेहरा पर उत्तेजना और ख़स ु ी साफ़ साफ़ पढ़ल जा सकि रहे।
“बहि बसढ़या” शिाा जी टेबल से आपन चश्िा उठा के नाक पर चढ़ावि कहले “नाि बिाव।” “रत्नेश शिाा ।” शिाा जी अपना सलस्ट िें नाि लगले जोहे और रत्नेश के नाि टापर िें देख के उनका चेहरा पर चिक आ गईल । “अच्छा ि िूही टॉप कईले बाड़। अब ि िहके 'बेसी' देबे के पड़ी” रत्नेश उनका बेसी के िाने न सिझ पवलस। दरअसल रत्नेश के टॉप अइला से शिाा जी के घोचाहे घूस िांगे के नैसिक बल सिल गईल रहे। सरकारी फीस ि बस एक रुपया ही रहे िाकाशीट के पर जनिा इंटर कॉलेज िें शिाा जी कि से कि बीस लेस अउरी के हू घोचाह देबे वाला सिल जाऊ ि बेसी लेहला से भी परहेज भी ना करस। घूस लेहल ख़राब ह इ सब जानेला और उहो जानि रहले बासकर उ एके ऐसन िरीका से लेबे के कोसशश करस की उ एके न्यायोसचि ठहरा सकस। होई कवनो जिाना जब लोग अव्वल आवेवाला के परु स्कृि करि होई, अबके जिाना िें ि इ घोचाह घूस लेबे खासि प्रेरक के काि करेला। शिाा जी के बाि इहे सासबि करि रहे । “हि राउर ििलब न सिझनी।” “ले आव पचास रुपया और लेजा आपन टीसी अउरी िाकाशीट।” “पचास रुपया” रत्नेश के आुँख खल ु ल रह गईल। “अिना अचम्भा िे काहे परि बाड़s ए बबआ ु ” बगल िें ही ठाड़ चपरासी सशवचरना कहलस “कॉलेज टॉप कईले बाड़। अबे सिठाई के दाि ि िहसे िंगसयबे ना कईल।” लसगये दस ु रका क्लका गप्तु ा जी और िीन गो और चपरासी िड़ु ी सहलाके © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 27
धिंिय सतवारी मसवान , मबहार के रहे वाला धनंजय जी आखर पेज से शुरुवात से जुडल बानी । इाँहा के आखर प कई गो कहानी लामग चुकल बा । भोजपुरी भाषा के ले के इाँहा के प्रयास सराहनीय बा । लगातार भोजपुरी िें मलख रहल बानी ।
सशवचरण के बाि के अईसे सिथा न कईल-लन लो जइसे की कवनो बहि बडहन ज्ञान के बाि कह देले होखस लो । पचास रुपया के बाि सनु के रत्नेश के चेहरा से िय ख़शु ी गायब हो गईल रहे। “हिरा लगे ि एकही रुपया बा और सरकारी रेट भी ि एकही रुपया हs।” उ अपना पासकट िे से एक के नोट सनकालि कहले। “सरकारी रेट के बाि छोड़” शिाा जी सखससयाि कहनी “अब िू हिरा के सनयि कानून के जानकारी देबs । हिनी के बीस से कि के हू से न लेनी जा। िू टॉप कईले बाड़ ि पचास िंगनी ह। खैर पचास नईखे ि बीस दे दs । ओह से इसचको कि प बाि ना बनी। ” “पर हिरा लगे ि एके रुपया बा।” रत्नेश लगभग हाुँथ जोड़ि कहले। “ि वापस जाके पईसा सलयाव। ओकरा सबना टीसी आ िाकाशीट ना सिली।” रत्नेश के चेहरा रुआुँसा हो गईल। उनकर गांव ओसहजा से १५ सकलोिीटर रहे। जाि आवि िें शाि के पांच बसज जाईि आ िले-ले ि स्कूल बंद हो जाईि। ऊपर से एिना पईसा घर िें भी ना रहे। बाजार से कजाा सिलला के उम्िीद न रहे। आुँख के सोझा अन्हररया घेर लेहलस। “हि बहि गरीब घर से बानी।” उ सफर सगडसगडईले “हि पर दया देखाई। काल्ह अंसिि िारीख बा एडसिशन के ।” “गरीब होखs भा अिीर सनयि ि िहरा खासिर ना नु बदली। अब िू गरीबी के रोना रो के ले जइबs ि पाछे से सब गरीबी के ससटा सफके ट लेके आई और एक रुपया िें ही ले जाई। हि
िैनेजिेंट के का जबाब देब।” शिाा जी आपन िजबूरी बिवले। घूस के भी आपन कुछ ियाा दा होला । एक बार दया देखा के ियाा दा के पालन न होखे ि सफर आगे ओकर सनवाा हन कईल िसु स्कल हो जाई। शिाा जी अउरी कुछ के पालन करसु चांहे ना बासक ऐह ियाा दा के जरूर पालन करस। इुँहा िक की उ अपना ररश्िेदार लोग से भी कह देले रहले की ररश्िेदारी स्कूल से बहरी अउर ि अउर ररश्िेदार लोगन से ऊ स्कूल िें भी ना सिलस। सफर का उ अिीरी अउरी गरीबी के ररश्िा िसनिे ? रत्नेश कुछ देर उम्िीद िें खड़ा रहले की शिाा जी के दया आई और उ उनके दे सदहे। पर शिाा जी के ना ि दया ही आईल ना ही नाि िें शिाा लगला के बाद भी कवनो शिा । उ साथी लोग के साथै देश के सिस्या सुलझावे िें सदल्ली पहच गईले। रत्नेश के बझ ु ा गईल की इ लोग उनकर बाि न िानी ि िायूस होके वापस लौटे लगले। आपन भसवष्य टूटला के दःु ख र्ीरे र्ीरे लोर बनके टघरे लागल और कॉलेज के गेट पर पहचले ि भडs भडs लोर उनुका आुँख से टपके लागल। कॉलेज के गेट पर हेड क्लका विाा जी आपन साइसकल लगावि रहले। उ रत्नेश के रोवि देख उनका पास चल आसयले। “का बाि बा बेटा” विाा जी प्यार से पूछले “ काहे रोविारs ?” रत्नेश के करेजा के िसन बल सिलल। उ सस ु क ु िे -सस ु क ु ि िय बाि बिला सदहले। विाा जी अपना जेब िें हाथ डलले ि उनका लगे
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दस रुपया रहे। उ सािने वाला सरु शे चायवाल से दस रुपया लेके रत्नेश के दे देहले आ, के हू से इ बाि ना बिावे के कहले। रत्नेश के भरोसा न होि रहे की दसु नया िें अइसन भी के हू हो सके ला। उ र्उरि स्कूल िें वापस चल गईले। रत्नेश वापस टीसी अउरी िाकाशीट लेके असयले ि विाा जी गेट पर ही रहले। रिनेस उनकर गोड़ छूवले। ख़शु ी और अहसान से उनका िुह से एक शब्द न सनकलल पर आुँसख से सगरि लोर, विाा जी के अहसान के साफ़ साफ़ कहि रहे। विाा जी उनके खशु होखे के आशीवाा द देहले। “आज राि ि हिके इलाहाबाद जायेके बा। एडसिशन कराके वापस आएब ि राउर पईसा लेके आएब।” रत्नेश कहले। “एकर कवनो जरुरि नईखे। परु स्कार सिझ सलह। आगे के लगाव।” कसहके विाा जी स्कुल के
िू हिरा िरफ से पढाई पर ध्यान भीिरी चल गईले।
विाा जी हेड क्लका रहले। िने िीन गो क्लका आ कुसल्ह िें सबसे ऊपर। ओइसे ि उनका और शिाा जी के सीसनओररटी िें खसलहा एक सदन के अंिर रहे आ एही वजह से शिाा जी उनका के कबो आपन सीसनयर न िानस। एकरा अलावा दनु ु जाना के स्वभाव िें भी जिीन आसिान के अंिर रहे। विाा जी सांच बोलस, सही काि करस और सांचे के सजअसु । शिाा जी ठीक एकरा उलट रहले। विाा जी के कवनो भी गलि काि खासिर पेिेंट ना रहे और घूस ि उनका खासिर पाप। कुल सिला के उ ओ सारा गणु न के सवपल ु स्वािी रहले जवना खासिर आर्सु नक सिाज के लोग उनक ु ा से नफरि करे आ ठीक ओइसने उनक ु र सहपाठी लोग करे। विाा जी के आचरण सिाज के चलन के सवरोर्ी रहे आ पररणाि
स्वरुप उनके के हू पसंद ना करे- नाही िैनेजिेंट नाहीं सप्रंससपल , नाही चपरासी नाही साथी अउरी नाही सशक्षक लोग। कॉलेज िें उनकर सस्थसि जीभ के रहे जेकरा बत्तीस दािन से बच के रहे के पड़ेला पर ओकरा सबना शरीर के काि भी ना चलेला। ठीक ओसहंगा सनयि कानून के जानकार भईला के वजह से उनका सबना काि भी ना चले। जनिा इंटर कॉलेज, सटसपकल इंटर कॉलेज ही जइसन रहे जहा पढाई कि अउरी राजनीिी बेसी होखे। राज्य और कें द्र िें ि सरकार पाच साल िें बदलेला बासक एसहजा साल िें कई बार सरकार बने अउरी सबगड़े। सशक्षक से लेके चपरासी िकले , छाि से ले के सप्रंससपल िकले सब राजनीिी के जानकार रहे। चाय से लेके खाना िक प राजनीिी के ही चचाा होखे। अइसन न रहे की खाली चचाा ही होखे बसल्क जिके राजनीिी भी होखे। छाि कुल पास के ही सडग्री कॉलेज िें यूसनयन के चुनाव िें सक्ीय भूसिका सनभाव सन। कबो सवरोर्ी के कपार फोर सन ि कभी ओकनी के आपन कपार फोरवा के आव सन । चपरासी लोगन िें प्रिोशन से लेके इन्क्ीिेंट के झगडा रहे ि सशक्षक लोग िें सीटी अउरी टीटी ग्रेड के झगडा। सप्रससपल दीनानाथ जी के उपाध्याय जी पद से हटा के खदु सप्रंससपल बने खासिर हाई कोटा ले खीच ले गईल रहले। चपरासी अउरी सशक्षक लोग के हाई कोटा से दौडला से एिना ज्ञान हो गईल रहे जेिना की कोटा के स्टाफ के ना होई। कवन जज कवना सदने बइठे -ले औरी के करा कोटा िें के कर के स बा इ सबके जबु ानी याद रहे। स्कूल के िैनेजिेंट के सोच रहे की सशक्षा के उद्देश्य सिाज सेवा ह अउरी कॉलेज के एको लइका फे ल न होख सन एकरा ले बडहन सिाज सेवा का होई। प्रशासन चाहे के िना भी सख्ि होखे पर जनिा इंटर कॉलेज के पररणाि 100 प्रसिशि आवे। अगर
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कवनो लसडका नक़ल से भी पास ना होखे ि शिाा जी बोडा िें जाके काि करा देस।ु िनी खचाा ज्यादा आवे पर कवन उनका अपना जेब से देबे के रहे। छाि से एही बहाने 10 के 50 लेबे के िौका सिले। सरकारी सवभाग लेखा एसहजो भी घूस सनचे से ऊपर ले बटाऊ और चपरासी से लेके िेनेजर िक के िाल सिले। इलाका के सारा छटल बदिाश लसडका कुल के जिावड़ा जनिा इंटर कॉलेज िें होखे। अइसन न रहे की जनिा कॉलेज िें पढावे वाला िास्टर के किी रहे पर हालाि देख के लोग ओही सहसाब से ढल गईल रहे। चौबे जी नया नया अईले ि उनका पढावे के बड़ा जोश रहे। सफसजक्स के टीचर रहले और अपना क्लास िें सब लसडका कुल के भौसिक िल ु ा पर नापस।ु १२ के सबसे छटल लसडका गजेन्दरा उनका िाप पर खरा न उिरल और उ ओके एक सदन झपसड़या देहले। सफर का शाि के स्कूल के ही गेट पर अपना गाव के लोगन के संगे उ चौबे जी के घेर लेहलस और सफर उनकर अइसन स्वागि भईल की आजवु ो सदन िें ओके जरूर एक बार याद करेले अउरी स्कूल के बसकया सब स्टाफ भी। ओह सदन के बाद उ कभी के हू पर पढ़े के जोर न देहले। खैर बाि होि रहल ह विाा जी और शिाा जी के । शिाा जी एक सदन के जूसनयर रहले पर उ एके कभी न िानले आ विाा जी सीसनओररटी के चैलेंज करे खासिर उनके हाई कोटा खीच ले गईले। पाच साल के िक ु दिा के बाद जीि विाा जी के ही भईल आ िब िन िसोस के शिाा जी ठंडा हो गईले। विाा जी भी िाहौल देख के अपना के कागजी काि िें सससिि क देहले और सफर ओ लोग के सबच कवनो टकराव के बाि न रह गईल। शिाा जी के स भले हार गईल रहले पर ओकर कचोट उनका िन िें हिेशा रहे और गाहे बगाहे उ
अपना सम्पन्निा से विाा जी के सनचा देखावे के कोसशश करस। साथ ही इहो सासबि करे के कोसशश करस की अब ईिानदारी के जिाना नईखे और इिान के पूछ्वसयया के हू नईखे। विाा जी एकर जिके सवरोर् करस। एह घटना के 15 साल बीि गईल और दनु ु जाना ररटायर हो गईल लोग। संयोग से िीन िहीना बाद ही दनु ू जाना के आखरी लड़की के शादी रहे। दनु ू जाना पेंशन खासिर सजला िें चक्कर लगावे लागल लोग। शिाा जी घूस लेबे और देबे िें अभयस्ि रहले। उनकर इ अनभु व काि आसयल और उनकर कागज फटाफट आगे बढे लागल। विाा जी सत्य के राह पे रहले और उनका पूरा सविास रहे की उनकर काि सबना घूस के हो जाई। विाा जी के सब लोग जाने और उनकर इ नीिन स्वाभाव ही उनकर दश्ु िन बन गईल। पेंशन सवभाग के लोग डर से उनसे ना ि घूस ही िांगे ना उनकर कागज आगे बढ़ावे। देखि देखि शादी के सिय एकदि सनयरा गईल। एक िरफ जहा शिाा जी के चेक बनके , हस्िाक्षर खासिर इंस्पेक्टर के टेबल पर पहच गईल, ि विाा जी के कागज क्लका के ही ऑसफस िें रहे। उ रोज उनसे झूठ बोले। शादी िें अब बस िीन हफ्िा रह गईल रहे और विाा जी के भी शंका होखे लागल। शादी िें खचाा रहे और पईसा लगे एको ना। आज उ साफ़ साफ़ बाि करे के सोच के पेंशन कायाा लय पहचले। बहि जोर देहला पर क्लका साफ़ बिा देहलस। विाा जी के पैर से ि जिीन ही सखसक गईल। अब ि पईसा देहला के बाद भी 2 िसहना लासगि। उनके िहसूस भईल की के िना बडहन र्ोखा उनके साथे भईल बा। अब ि सिय से पईसा ना सिली और सबना पईसा के लड़की के शादी कईसे होई। पूरा गाव जवार िें थूथू होई। विाा जी दःु ख के िारे ऑसफस के सािने वाला सीढ़ी पर
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बईठ गईले। साथ ही असग्न परीक्षा भी आ गईल। िय सजनगी घूस के सखलाफि क के अब उ अपना स्वाथा खासिर घूस सदसहिे। िन िें िन्द चले लागल। िबे शिाा जी वहा पहच गईले। “विाा जी कागज कहा ले पहचल?” चुटकी लेि शिाा जी पूछले। विाा जी कुछु न बोलले। “बझ ु ािा अभी सलसपक के टेबल पर ही बा।“ अपना बाि के खदु जबाब देि उ कहले “जले जेब न ढीला करेब िले दस जनि िक उ आगे ना बढ़ी। वैसे भी रौवा कवन जल्दी बा। बेटी के सवयाह िें भी कवन ज्यादा खचा करेके बा। हिरा खासन कवनो थोड़े ठाट बाट से सवयाह करेब। हिार ि आज चेक सिल जाई। आसखरी लड़की के शादी बा, सदल खोल के खचा करेब। अइसन शादी पूरा जवार िें के हू न कईले होई। रौवा जरूर आएब।“ विाा जी उनके अपना पेंशन के सस्थसि बिा देहले। शिाा जी भी उनके साथे बईठ के उनके सहम्िि देवे के सदखावा करे लगले। इंस्पेक्टर से सिले के उ आपन अजी देले रहले और बल ु ावा के इन्िजार करि रहले। “हि रौवा से हिेशा कही ने की इिानदार के अब पूछ नसयखे। अब ि िानेब न की हि सही रहनी।“ शिाा जी कहले।
विाा जी के सदल अभी भी इ बाि िाने के गवाही ना देि रहे पर सच ि उहे रहे। एही सबच चपरासी बाहर आईल और उ ख़शु ी से खड़ा हो गईले। चपरासी उनके अन्दर ले गईल। दू सिनट बाद बाहर अईले ि बरु ी िरह से हाफि रहले और चेहरा से सारा ख़शु ी गायब रहे। अइसन लागि रहे की देंसह के िय खून के हू सनकाल लेले होखे। “का भईल?” सचंिा से विाा जी पछ ू ले।
“हिरा आवेदन िें इंस्पेक्टर कईगो आपसत्त कईले बा। अब ि सब ठीक करे िें िहीनो लागी। लड़की के बाराि आवे वाल बा। कहा से करेब हि सारा इंिजाि?“ कसहके शिाा जी सीढ़ी पर कपारे हाथ र् के बैठ गईले। “हौसला िि हारी, सब ठीक होई” विाा जी सहम्िि देहले।
िबे चपरासी उनके अन्दर जाए के इशारा कईलस। इंस्पेक्टर विाा जी के बोलावि रहले। विाा जी के बड़ा आिया भईल की उनसे का काि हो सके ला। उनकर ि कागज भी अबे इनका डेस्क िक नईखे पहचल। उ इहे सोचि उनका के सबन िें दासखल भईले। “प्रणाि सर।“ इंस्पेक्टर अपना जगह से उठ के उनके गोड़ छुवले। विाा जी खासिर पहेली अउरी गसहरा गईल। जवना असर्कारी के लोग झक ु के सलाि करेला उ, उनका जैसन िािूली आदिी के प्रणाि करिा। “लागिा रौवा हिके ना पसहचननी” इंस्पेक्टर कहले “हि रत्नेश हई” विाा जी याद करे के कोसशश कईले पर ओिना पूरान बाि उनका याद ना पडल। सफर रत्नेश खदु उनके परु ान बाि बिवले और उनसे अईला के कारण पूछले। विाा जी अईला के कारन बिवनी। िरु िं ही इंस्पेक्टर सलसपक के िलब कईले और सफर जिके डाट लगवले। आनन फानन िें विाा जी के काि करे के आदेश देहले। अब विाा जी के लागि रहे की सत्य के राह पर चलल गलि ना रहे। आज उनके सच के जीि लउकि रहे। पर उ अन्दर से खशु ना रहले। उनका सािने शिाा जी के लड़की के शादी रहे। “हि आपन चेक एक शिा पर लेब” उ कुछ सोच के
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कहले। “कवना शिा पर?” रत्नेश सचहा के पूछले। “िहके शिाा जी के काि भी करे के पड़ी। लड़की के शादी बा और पईसा ना सिली ि शादी टूट जाई। सबके बेटी एक सािान ही होले” “पर रौवा िालूि बा न की उहा के सारा सजदगी का कईनी? अगर रौवा न रसहसि ि आज हि ऐ जगह ना पहचल रसहसि।“
आज भी पूछ बा। दसु नया के इिान के पूछ्वसयया कभी ना खिि होईहे। हिरा जैसन अज्ञानी लोग सोचेला की घूस से आदिी सब काि क सके ला बासक अंि सिय िें आदिी के इिान ही ओकर साथ देला” कहि कहि शिाा जी के आुँख िें आंसू आ गईल। विाा जी उनके उठा के गले लगा लेहनी। सफर दनु ु जाना आपन आपन चेक लेके रेन पकडे चल सदहल लोग ।
“िू शिाा जी के गलिी के सजा उनका लइकी के ि नईख नू दे सकि। िहके उनकर काि करे के पड़ी” रत्नेश आपन स्वीकृसि दे देहले। चपरासी शिाा जी के बोला के सलयाईल। रत्नेश चेक पर हस्िाक्षर क के शिाा जी के दे देहले। शिाा जी के कुछु सिझ िें ना आईल।
क हिार के बिार में अन्हारो के दरकार का बा ?
िसभये क्लका विाा जी के भी चेक लेके असयले। “राउर भी चेक बन गईल?” असविास से शिाा जी पूछले “ इ चित्कार कईसे हो गईल?”
के हू देलखए िी त का करी ?
“शिाा जी, इ चित्कार नाही ईिानदारी के फल ह” विाा जी के जगह रत्नेश उनके जबाब देहले और 15 साल परु ान बाि के बिवले की कै से चायवाला से कजाा लेके विाा जी उनकर िदद कईले रहले जब उ उनके िाकाशीट और टीसी देबे से इंकार क देहले रहले।
बानर कहीं ओड़ा तर तोपाई ? - शारर्ानंर् प्रसार् जी , जकताब ' बाजकर' मे
सच्चाई जान के शिाा जी ग्लानी िें डूब गईले। सारा सजंदगी उ विाा जी के कभी सीसनयर ना िनले पर आज ि अपने आप ही उनकर हाथ विाा जी के चरण पर जा पहचल। “आज हि हार गईनी विाा जी। हिके िाफ़ करी। रौवा एकदि सही कहि रहनी ह। इिानदार के
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कथा / साहित्य
हथेली में समय (भाग : 1)
ह
डा॰ असिल प्रसाद िूलतःहथुआ, मबहार के रहेवाला हयीं । अंग्रेजी सामहत्य िें शोध । सामहत्य अकादिी खामतर यशपाल के ‘झूठा सच’ के कु छ अंशन के अंग्रेजी िें अनुवाद । भारत, मिमडल ईस्ट, अिेररका, चाइना, कनाडा अउरी ऑमस्िया िें आयोमजत अन्द्तरायष्ट्रीय सम्िेलनन िें पेपर प्रेजेंटेशन अउरी कमवता पाठ । अंग्रेजी, हहंदी अउरी भोजपुरी िें लेखन । यिन, लीमबया, पटना अउरी िुंबई के मविमवद्यालयन िें अध्यापन । सऊदी अरे मबया िें अंग्रेजी भाषा आ सामहत्य के प्रोफे सर बानी ।
म िब िीलबया में रहनी, रहनी त खािी एक-डेढ़ बररस बालकर सालहलययक दृलि से उ समय बहुत महत्त्वपूर्ण रहे l लिखत-पढ़त, पढ़ावत समय अच्छा से बीतत रहे बालकर रािनीलतक उथि-पुथि के चिते नौकरी छोड़ के आवे के पड़ि l हमार लमत्र आ छोट भाई िस, लवद्वान प्रोफे सर डॉ. लशव प्रसाद पेड्डी एक लदन एगो नोट-बुक िेके हमरा इहााँ अइिे आ कहिे लक एह नोट-बुक में रऊआ आपन संस्मरर् लिखीं l हमरा संगे लदक्कत ई बा लक हम पढ़ीिे ज्यादा बालकर लिलखिे कम l दूसरे हमरा िानते संस्मरर् लिखि कवनो आसन काम ना ह ! हम कहनी लक हम संस्मरर्ायमक उपन्यास लिखे के कोलशश कर सलकिे l उ बहुत खुश भइिे आ अपना पयनी से ई बात कहिे लफर दूनू िाना उपन्यास के टाइटि के सुझाव लदहि िोग: “डेट्स इन माई पाम” (“Dates in My Palm”) l हमरा भी ई नाम खूब सोहाइि काहेंलक एकरा में “डेट्स” आ “पाम” दूनू में pun (श्लेशािंकार) बा िवन एह टाइटि के अथण के फइिावाता आ गलहर भी करता l हम अंग्रेिी में लिखि शुरू कर देहनी िे अभी पूरा नइखे भइि ओही के हम भोिपुरी में लफर से लिख के आखर टीम के लनहोरा पर हम ‘आखर’ e-magazine पर शुभकामना आ बधाई के साथ साझा कर रहि बानी l
स
िय के सदन, िारीख, िसहना आ बररस िें बाुँर्ल बड़ा िसु श्कल बा l सिय नदी आ सिन्ु दर के पानी जइसन बहि जा रहल बा l हिेशा गंिव्य िक पहचुँ ल संभव ना होला; कभी बीच र्ार िें, कभी सकनारा पर, आ कभी भवंर िें अझरु ा के रह जाला आदिी l कबो जीवन-जहाज से अचानक उिरे के भी पड़ जाला सबना जनले काहे ? कब ? आ कहवाुँ? कहानी ओह सिय के प्रवाह के कल्पना के चोंच से पकड़ सके ला आ अपना पाुँख प बइठा के आदिी के िन आ आत्िा िें सछपल रहस्य के दसु नया के सािने ले आ सके ला l कहानी िें ई खूबी बा l कहानी
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एगो जररया भी बा आदिी के अपना अनजान, अनदेखा िंसजल पर पहंचे के ; कहानी िें बल बा, शसि बा, कहानी शािि बा, कहानी के कवनो चौहद्दी नइखे, कहानी के ना आसद बा ना अंि बा l कहानी नदी के र्ारा जइसन बह रहल बा l नदी के र्ारा कुछ कहिा, कहानी भी कुछ कहिा l ध्यान से सनु ी, कहानी नदी के र्ारा जइसन कुछ कह रहल बा ! संसार कहानी के सवसभन्निा से भरल बा, कुछ कहानी अइसन बा जे आदिी के गंिव्य िक पहचं े के पसहले से लेके आ बाद िक कहल गइल बा l अइसन कहानी बहि डरावना बा जे सनदोष आ अबोर् नींद पर बाज के जइसन झपट्टा िारि रहेला जब िक की आदिी उ कहानी के अपने से सजयि नइखे अपना जनि र्रिी पर या जब िक आदिी उम्िीद, संभावना, सिसृ द्ध आ इज्जि के ऊंचाई के नया जंगल के पार नइखे कर जाि l
अप्रत्यासशि ढंग से पुँहचल नया जगह पर कई िरह के उलझन, नया संबंर्, काि के सचंिा आ सिायोजन के बीच कहानी सलखा रहल बा, सनःशब्द, सबना जनवले सबना बिवले िकड़ा के जाल के िानाबाना के िरह, सदिाग के अचेिन अन्हार अथाह अगार् गहराई िें, जहाुँ सूरज, चन्द्रिा आ िारन के पहचान कुछ अलग िरह के बा l घर से दूर, भूिध्य सागर के िट पर बसल एगो जगह जेकर अरबी भाषा िें ‘अंजीर के साया’ नाि रहे, कसनष्क के सिि उनका के सिय के अपना हथेली िें ‘पकड़’ के रखे के कहलें l अिीि के िरह-िरह के इयाद के साथे आ भसवष्य के आस आ उम्िीद के साथ एकांिवास खासिर उ बहि अच्छा जगह रहे; आपन, एकदि आपन, सनजी पसवि स्थान जहाुँ बचपन िें रटल श्लोक खानी एकदि िाज़ा बा यादगार चेहरा, यादगार जगह, छोटका दरबार के भिु हा िहल िें राि िें ससयारन के बोलल, पावा िी जी
के पोखरा के घाट पर इंद्रपरु राज के हासथयन के झांवा से रगर-रगर के नहवावला, शीशिहल से उल्लू के वू–हू, कबूिर के पंख के फड़फड़ाइल आ कचहरी के घंटाघर के आवाज l एकरा चलिे कसनष्क के कभी अके लापन ना िहसूस होला; एकांि िें एह यादन से उनका काफी िदद सिलेला आपन अके लापन कि करे िें l कसनष्क अपना देश के लोगन के साथे कै रो स्रीट िें एक अपाटा िेंट सबसल्डंग िें रहि रहले l ऊपर से नीला रंग के पानी वाला भूिध्य सागर बहि शांि सदखि रहे लेसकन उहाुँ के लोग अन्दर से सवचसलि लागि रहे l सपन खजूर, अंजीर आ जैिून के पेड़ के किार अपना जिीन से बंर्ल उहाुँ के उथल-पथु ल के साक्षी रहे l सिय िें अचानक आइल बदलाव के कारण बाहर के लोग अपना-अपना देश जाए के बेचैन हो गइल l बन्दूक के गोली के आवाज से प्रवासी लोग के ह्रदय ओसहगाुँ र्ड़के लागल जइसे कवनो सचरई के गरदन आ पाुँख सिय के सशकं जा िें कस के फुँ स गइल होखे आ उ सचरई भाग ना सके l इंद्रपरु राज के शीशिहल के कबूिरन अइसन अगर शीशिहल से सजन्दा बाहर सनकल गइल िबो ओकरा बाद बहरंगी वेसनस के सखड़की लागल आसलशान सभा-भवन जेकरा देवार पर िकड़ा आपन सशल्पकारी करि जाल फइलवाले बाड़ेसन, के आस-पास के अिीि के छोडल खालीपन आ त्यागल िसहिा िें कै द रही l सूचना प्रौद्योसगकी िें क्ांसि अईला के बाद आदिी के ओकर भसवष्य शानदार आ आशापूणा लउकिा जवना के चलिे परु ाना चीज के जगह नया चीज ले सलहले बा आ आदिी के सोचे के िरीका ओकरा िूल आवश्याकिा के बारे िें भी बदल गइल बा l एकरा बावजूद आदिी के आशा-िष्ृ णा, िोह-िाया, सपनाअसभलाषा, हषा -सवषाद, इच्छा-िड़प ओकरा वासना– लालसा, िका-सवचारर्ारा के गभा से पैदा होला l
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पचास के दशक के पसहले रेसडयो के आसवष्कार एगो चित्कार रहे, ओहघरी रेसडयो कीने-राखे के सबका सािर्थया ना रहे l पचास के दशक िें इंद्रपरु िें सबसे पसहले रेसडओ आइल उहाुँ के िहाराजा सकहाुँ आ ओकरा के ड् योढ़ी के सािने िैदान िें लोग के देखावे खासिर रखाइल, ई ििाशा कई सदन ले चलल l गाुँव-जवार के लोग के आिया होखे सक ई आवाज कहाुँ से आविा ! सनसिि रूप से ई आवाज उ लोग के िासलक के आवाज ना रहेl रेसडयो के आइल ओह लोग के िन िें हैरानी पैदा कइलस l अन्हररया राि रहे, शायद सबसे अन्हररया राि, राि ससंगारी अपना िन िें सोचली l ओह अवस्था िें पलंग प लेटल, गागी के िन िें कवनो सवचार ना रहे, ित्ृ यु के सवचार ि एकदि ना रहे; जीवन उनका शरीर से कवनो घरी बहि बाहर आ सके ला, उ सोचली l बाबू िाररका प्रसाद के छोट बसहन कांिा सचरई अइसन फदफ ् दाि अपना घबराहट िें देवार के ओट से बाि करि रहली l देवार के ओने से जे बाबू कासलका चरण के बड़ भाई के डेरा रहे जेने से िेजपत्ता अइसन सूखल आ पािर आवाज सनु ाइल, “दरद शुरू हो गइल बा ?” कांिा के जवाब देबे के फुसा ि ना रहे ! डी. सी. सबजली के पीअर सटिसटिाि रिहीन उपसनवेशी अिीि के र्ंर्ु ला रोशनी िें, आर्ा राि के जब सब िहिारी लोग साुँस रोकले रिजगा कइले रहे लोग ओसह बेरा इंद्रपरु राज के अिला लोग के डेरा िें लसड़का के रोवल सुनाइल, आर्ा राि के बाबू िाररका प्रसाद के दूसरका बेटा पैदा भइल l पीअर रोशनी िें खाली ओ लसड़का के िहिारी के उजर दर्ू चिकि रहे, उ पीअर सटिसटिाि रोशनी िें, उजर चिकि रहे सनबाा र्, नीरव िित्व, जेकरा के ओह बेरा के सािान्य उत्तेजना भरल सिय िें िापल-जोखल संभव ना
रहे l लसड़का डी. सी. बल्ब के पीअर रोशनी के परछाई िें सन्ु दर, सघु र लउकि रहे, सस्थर रूकल लहरन के बीच इंिजार िें, जब िहिारी के आुँख के कजरारी पपसनयन के सब्र के बाुँर् से, रूकल लहर सफर टकराए लागी; ओ िहिारी के , जेकर ह्रदय पावा िी जी के पोखरा के किल के पत्ता जइसन फइलल रहे l लसड़का के िहिारी पावा िी जी के पोखरा जइसन शांि लेटल रहली आ उनकर गहरा रंग के परु ईन के पिई अइसन देह पर िाघ के िहीना िें भी पसेना के बदूं , ओस के बदूं अइसन लउकि रहे, ओह बेरा जब पूस सवदा लेि रहे आ फागनु नजदीक आवे खासिर इंिजार करि रहे, ओह बेरा जब राि के िौसि ठंडा आ सख ु कर रहे l आर्ा राि के लसड़का पैदा भइल; किरा िें से चिईन सनकलल आ ई ख़बर औरि लोग के सदहलस जे लोग उम्िीद आ भय के साथ आुँगन के बगल वाला बरािदा पर बइठल रहे लोग l बाबू िाररका प्रसाद के छोट बसहन थररया के बेलना से बजावे लगली l बाबू कासलका चरण लाल के िेहरारू जल्दी जल्दी बइठका िें गइली जहाुँ बाबू कासलका चरण कुसी पर बइठल िोसियासबंद के िोटा चश्िा लगवले, अपना आप से बसियावि एगो बड़का टेबल पर िाश पसरले ‘पेशेंस’ खेलि रहले l ओह बेरा जब राि ससंगारी उनका बैठका िें सबजली के गसि से पहचुँ ली आ उनकर बाुँह छुअली l ओही घरी बाबू कासलका चरण के हाथ िें काला पान के एक्का रहे जेकरा के उ थाक लगावे खासिर रखे जाि रहले, िेहरारू के बाुँह छुवला से बड़ी जोर के सचहकले आ उनका ओर देखले आ िरु त्ते सब बाि सिझ गइले, उनका के बर्ाई देहले आ ठाकुर जी के किरा के ओर दूनू हाथ जोरले बच्चा आ जच्चा के स्वस्थ होखे के कािना करि l लसड़का के रंग कररया रहे आ ओकरा गदा न पर एगो छोट घेघ अइसन रहे l एकरा बावजूद लसड़का के िहिारी के खशु ी िें किी ना रहे लेसकन सचंिा जरूर रहे, अपना
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आदि के अनुसार उ चपु चाप एकरा बारे िें सोचि रहली l बाबू कासलका चरण के िेहरारू चुपचाप सबना कोई से बिवले बगल के गाुँव िें ओझा से राय लेबे खासिर चिईन से ख़बर भेजवा देले रहली l बाबू िाररका प्रसाद सबु ह होखे के इंिजार करि रहले अपना सिि, डॉ ए. डी. चटजी से लसड़का के गदा न पर उगल गोला के बारे िें राय लेबे के l लसड़का के छसठहार बड़ा िख़्ु िसर ढंग से िनावल गइल l ई सब बाि कसनष्क अपना ईया से पछ ु ले रहले जब उ इंद्रपरु िें कॉलेज िें पढ़ि रहले, ओह कॉलेज िें जे ओह इलाका के नािी कॉलेज रहे l बाबू िाररका प्रसाद जयप्रकाश नारायण आ डॉ. राि िनोहर लोसहया के सिाजवादी सवचारर्ारा से बहि प्रभासवि रहले आ बहि लोकसप्रय सशक्षक रहले l सिाज के लोग पर आ बसकं घि हाई स्कूल के लसड़कन पर उनका पढाई-सलखाई के बहि गसहरा प्रभाव रहे; लसड़का लोग उनका के उनका सवििा, सहजिा आ िेज सदिाग के चलिे बहि आदर आ प्रशंसा करे लोग l ओह जिाना िें उ अपना सिय से आगे रहले; पढाई- सलखाई िें आ अपना सोच िें, नया नया सकिाब ख़रीदे आ पढ़े िें l जब भी उ कवनो बड़ा शहर िें जास ि नया सकिाब ले आवस जेकरा चलिे उ अपना घर िें बहि बसढ़या लाइब्रेरी रखले रहले l पंसडि िंगल दत्त सिपाठी उनकर परि सिि रहले l पंसडि िंगल दत्त िंझोला कद के , हंसिख ु , िेज सदिाग आ जझ ु ारू व्यसित्व के िासलक रहले l साथ ही उ एक उत्ति आ प्रभावशाली विा रहले l उनका िें श्रोिा के िंििग्ु र् करे के क्षििा रहे l जे. पी. आ लोसहया के सवचारर्ारा से प्रभासवि एगो सािासजक काया किाा आ सरु ाजी रहले l जब इंद्रपरु राज उनका के कॉलेज खोले खासिर जिीन ना देि रहे िब उ आिरण अनशन करके कॉलेज खासिर जिीन लेहले आ पचास के दशक िें इंद्रपरु िें कॉलेज खल ु ल ओकरा दू बररस बाद बाबू िाररका प्रसाद के दूसरका बेटा, कसनष्क, जेकरा के उनकर ईया प्यार
से जनिला के िरु त्ते बाद ‘चासििंग’ लाल पक ु ारे लगली, के जनि भईल l बाबू कासलका चरण लाल के घर िें ख़शु ी के साथेसाथे सचंिा भी आइल l खचाा बढ़े के सचंिा, आ ऊपर से होली भी नजदीका गइल रहे । बासक टोला िोहल्ला के िेहरारुन के गाना बजाना थोडे देर खासिर बाबू कालीका चरण आ उनकर र्िा पत्नी राि ससंगारी देवी के सचंिा कि क सदहलस l बाबू कासलका चरण अपना बैठका िें बइठल औरि लोग के सिूह-गान सनु ि बीच-बीच िें िस्ु कराि फे रु िाश खेले िें रि गइले l चासििंग लाल िें बा अंश गनेस जी के चासििंग लाल िें बा अंश हनिु ान जी के चासििंग लाल िें बा अंश सबसनु जी के
चासििंग लाल िें बा अंश राि जी के चासििंग लाल िें बा अंश सशवजी के चासििंग लाल िें बा अंश सकसुन जी के चासििंग लाल िें बा अंश कासिा केय जी के चासििंग लाल िें िेज बा सरू ु ज भगवान के चासििंग लाल िें कासन्ि बा चनरिा के
चासििंग लाल के सनरोग रसखहें आसनी कुिार दईु भाई चासििंग लाल के रक्षा कररहें दगु ाा भवानी चासििंग लाल के रक्षा कररहें काली िाई चासििंग लाल के आशीष सदहें सरु सिी िहारानी
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(क्रििः )
गीत / कहिता
प रु बी गांव- घरऽ देशऽ छोड़ी गइले सवदेशवा, से ननसदया िोरी रे, भईया िोरे बारे सचि-चोर
िौहर शासियाबादी जौहर शाकफयाबादी जी शाकफयाबाद शरीफ गोपालगंज , मबहार के रहे वाला हई । अपने भोजपुरी खामत सबसे पमहले १९७० िें गोपालगंज अनुिंडलामधकारी के सोझा अनशन कइले रहीं । भोजपुरी सामहत्य के आाँचर िें हर मवधा िें सृजनरूपी खोइछााँ भरे िें रउआ नेह-छोह से जुटल बानी । भोजपुरी िें पमहला गजल िहाकाव्य 'रं गिहल', ऐमतहामसक उपन्द्यास 'पुरबी के धाह', लमलत मनबंध संग्रह ,कमबरा खड़ा बाजार िें, 'वेद और कु रान’ समहत दजयन भर बहुचर्चयत कृ मत प्रकामशत भइल बा । वतयिान िें इहााँ के 'भोजपुरी व्याकरण' मलखे िें पूणय िनोयोग से जुटल बानी ।
गेठरी िें बान्ही थािी िसटया के चूिी-चाटी, से ननसदया िोरी रे, चललें सवदेशवा के ओर पसनया जहसजया से बनी सगररसिसटया, से ननसदया िोरी रे, लेले गइलें नेसहया के डोर परु खन के सदहल संस्कार ना सबसरलें, से ननसदया िोरी रे, नाहीं रीसि-नीसिया के लोर िॉररशस, गयु ाना, सफजी जस कई देशवा, से ननसदया िोरी रे, राजा-प्रजा भईया बारे िोर र्नऽ भोजपरु ी िाई भाषा के निनवा, से ननसदया िोरी रे, कुलवा से देले बारी जोर दनू ु प्रासण आएब छठ करे खासिर देसवा, से ननसदया िोरी रे, कहऽ जौहर करीहें बटोर © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 37
गीत / कहिता
बेमार बचवा के िं सी आजु ढे र सदन पर सु ि ले - सु ि ले ठट्ठा के हं स रहल बा के िना सदन से बे िार बचवा
ध्रुव गुप्त
गदगद बाड़ी दादी सोचके सक बबु आ के गोदी िें भरके खे लावि बाड़े साच्छाि भगवान जी भाखि बाड़ी िने - िने हलु िान जी खसिरा सवा रूपईया के परसाद
खु श बाड़ी बबु आ के िाई सक बे ट वा के सनसचं ि सु ि ले ले सनबटा सलहे के िना सदन से परल घर-सगरस्िी, सभिरा-बहरा के पहाड़ जईसन काि बाप के कु म्हलाइल आं सख िें आजु के िना-के िना सदन बाद लऊट के आईल बाटे बचवन सनहन चिक दु ख -दसलदर, बे िारी, सबपि आ अन्हार से सघरल घर िें लऊट के आईल बा अं जोररया
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गोपालगंज , मबहार के रहे वाला ध्रुव गुप्त जी ररटायडय आईपीएस अमधकारी हईं । महन्द्दी िे गजल आ कहानी के ककताब राजकिल से प्रकामशत हो चुकल बा । भोजपुरी भाषा आ सामहत्य के भी मनरंतर अपना लेखनी से सिृद्ध कर रहल बानी । िुक्त छन्द्द िें इाँहा के मलखल कमवता, गीत ,नवगीत अपने आप िे बेजोड़ रहेला । एह घरी इाँहा के पटना िे बानी ।
गीत / कहिता
बाल-गीत १
शसि सर्श्रा गोरखपुर , युपी के रहे वाली शमच मिश्रा जी पुना िे रहेनी । इाँहा के भोजपुरी लोकगीतन के संग्रह/ संकलन प काि कई रहल बानी । महन्द्दी आ भोजपुरी सामहत्य खामत इाँहा के लगातार मलख रहल बानी । भोजपुरी लोकगीतन प इाँहा के मलखल ककताब भी आवे वाला बा । महन्द्दी िे दु गो उपन्द्यास प्रकामशत हो चुकल बा , एगो प्रकाशन िे बा ।
र्न्ु ि िन्ु ि एक कउड़ी पउली ऊ कउसड़या गंगा बहउलीं । गंगा िािा बालू देहसलसन , ऊ बलइु या भज ु इसनयाुँ के देहली । भज ु इसनया हम्िें भूजा देहसलस , ऊ भज ु वा घसकटवा के देहली । घसकटवा हम्िें घास देहसलस , ऊ घससया हि गइया के देहलीं । गइया हम्िें दूर् देहसलस , ऊ दर्ु वा हि राजा के देहली । राजा हम्िें घोड़ा देहलै , उही घोड़े आईला , उही घोड़े जाईला , पान फूल खाईला । परु ान भीि सगराईला , नया भीि उठाईला । बसु ढ़या आपन खपरी , सपरी सभाुँर ।। (ई गीि असल िे ओठंसघ के लईकन के अपना गोड़ प सिु ा के झल ु हु ा झल ु ावि गावल जाला । )
२ ( लोरी ) आ रे सनसदया सननर परु से , खसटया गोनरी गोरखपरु से , बाबू अइलैं नसनयउरे से , सोने कै थारा कोने से , सझनवा कै भाि रसोइया से जें ल बाबू िूुँ , िोर चंनन अइसन िहुुँ , िोर िाई करे लरु खरु रया िोर दादा बान्हैं परु रया । © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 39
गीत / कहिता
फुआ (अनुवाकदत ककवता )
चा
र गो चड़ु ी के आलसपन से
बासन्ह के िु ओह खनकि चसु ड़यन के आवाज बन कई सकि रहलू हs !
बासक सबसर् के सबर्ान कलाई प गाढ़ नीला रंग िे गोदाईल कु. पा. ? िहरा आंसख िें कररया र्ब्बा लेखा उभरि सबसछया के गोल गोल घिु ावि घरी हि , िहार गांठ देखले रही ुँ जवना के िू कबहू ुँ नईखू खोलले । फुआ ; रासि के आसिान से कुछ ना बरसी िु ि ओह नीला परदा के भेद के अिीि िे सेन्ह लगावि रहलू ह नू , कवन दू कंु डली बांचि का दो फे रा प गीि गावि हिनी के अपना पेट प सिु ा के कबो अंकवारी िे ि कबो गरदन से भींच के ओह अभागा िरद के साथे सबसुरि जे िहरा के सबआह क के ले आईल रहे आ छोसड़ गइल रहे आपन सपअरर िउर अउरी लाल ससन्होरा बररसो बररस िहार भगोड़ा िरद िहरा के कई गो सशकाईि उलाहना िे बासन्ह गइल
बन गईल रहलू जइसे हसस्िनापरु के दआ ु री प काठ् या बनल ठाड़ चौकीदार भरल अनाज, पाका छि ,बीगहा िे जिीन के िालसकन, िहरा िाथ से, सललार के आगे ले लटकल घंघु िें आग उसगलि ओह लाल सटकुली के सािना के कररि ? िु सिय के िरजईु के खाली छोड़ देहलू िहरा िालूि रहे, जिीन िाटी आसिान फूल बगइचा से भारी बा िहरा कलाई के गोदना चिकि िछरी, बालू के नदी िे घोरा घोरा के िअ ु ल गांव िे सजअि रहे ई कहानी ....
शैलिा पाठि बनारस , युपी के रहे वाला शैलजा पाठक जी , महन्द्दी िे आंचमलक रुप के बररआर भाव देखावेनी, जवन भोजपुरी के जरी रहेला । इाँहा के मलखल पद्य रचनन िें जहााँ भोजपुररया ठे ठ अंदाज रहेला ओजुगे सामहत्य के बररआर रुप के भी दशयन होला । कई गो कमवता अलग अलग पत्र-पमत्रकन िे छप चुकल बा । एह घरी इाँहा के िुम्बई िे रहत बानी ।
सासु ससरु कहि ना अघास,ु सक कररया िोट लइकी से हिार लइका खुस नईखे बासक, फुआ िू ि ओह लो के सेवा िें © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 40
गीत / कहिता
सरु ू ज
सठ
ठुरि कांपि सपज़वल जाड़, छील-छील ले जािा चाि, िासु के छे दि, हाड़ गलावि, पहचं ि बा रीढ़ के पार, ए सरुु ज ! िू काहाुँ बाड़s ? जिि बा सदलवा के बाि, कड़कि बा सबदन के िान, कुँ पकपाि बा भाव सहया के िाल-िलैया काठ भईल बा,
जिि बा सब िंि -ऋचा, जिि बा ऋग-बेद -साि, जब टपकी आुँख से लोर गरि, िब गली सकल जिल सौंसार, ए सरुु ज ! िू काहाुँ बाड़s ? सलसख द एगो सचसचयाि चीख, चटकन लागे सन्नाटा के , जाड़ा के जागल नींद खल ु े, कल-कल बहे नसदया आ िाल, ए सरुु ज ! िू काहाुँ बाड़s ? © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 41
हृसषिे श ितुवेदी बमलया युपी के रहे वाला हृमषके श जी , आखर पेज से शुरुवात से ही जुडल बानी , ठे ठ भोजपुरी आ भोजपुरी के खांटी शब्दन प बकिया पकड , गीत कमवता गजल मलखेनी , एह सिय इाँहा के कलकत्ता िे काययरत बानी ।
गीत / कहिता
एगो घर कलखत एगो घर सलखि क सौ बार रउुँदल जाली ुँ संस्कार के अन्हार गली िे ुँ फे ुँ क के कईल जाला हजार गो सवाल सक घर ि बाप के हs फे रु कईसे सलख सके लू एके आपन घर ? ऊ घर जेकरी खािी बहवली ुँ राि सदन खून सगरी उिर पूजली ुँ डीह ब्रह्म चढवली ुँ भर भर लोटा र्ार नीि िर अउरी बारर के सदयना िल ु सी िर िनवली ुँ सगरो देव सपत्तर अपनी प्राथा ना िे ुँ घोर के सजवली ुँ रसोई िेुँ ुँ हरदी अउरी नून के एगो हद िक जेकरे एक एक ईटुँ िे ुँ हिनी के स्नेह क रंग भरल ह चउखट से िंडु ेर िकले हिरी हाथ क थाप कुछ िहावर जस लाल कुछ सरसो ुँ सनयर सपयर फईलल िनोहर गीि गावि सिली ऊ घर के आपन सलखि जि गईल खून जब कहल गईल ई घर भी िोहार ना पसिगहृ ह जब चाहे बहररया सके ला थि गईल हाथ कलि सूख गईल के के कही ुँ आपन घर ।
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 42
डा॰ सोिी पांडे आजिगढ़ युपी के रहे वाली डा. सोनी पांडे जी , अध्यापक हईं । गाथांतर के संपादक, महन्द्दी भोजपुरी सामहत्य िे एगो जानल िानल नाव , िातृभाषा भोजपुरी िे कई गो गीत मलख चुकल बानी । सम्प्रमत इाँहा के आजिगढ़ िे बानी ।
गीत / कहिता
मनवा हमार
ए
र्ालती सिपाठी संगीत से स्नातक , दु गो मवषय िे एि. ए. िालती मत्रपाठी जी बनारस, युपी के रहे वाली हईं । इाँहा के संगीत , योग आ सामहत्य के क्षेत्र िे बहुत काि कईले बानी । भोजपुरी पत्र पमत्रकन िें लगातार मलखत रहेनी । आकाशवाणी िें प्रस्तुमत दे चुकल बानी । कफलहाल बनारस िें रहेनी ।
ह गीि िें एगो गाुँव के गरीब िेहरारू के सदल के ददा के वणा न बा I जेकर सपया परदेसे किाए गईलन सक घर के सदन-दशा बदल जाई अउरी सनिन सदन आ जाई I बासकर उनक ु र कवनो सनेस ना सिलला से िनवा बेहाल भईल बा I हिरा के दे के गईल घरवा दआ ु र हो इसचको ससु र्या नाही सलहलऽ कईसे भईलs पार हो कसह गईलs रसखहs र्सनया कुलवा के लाज हो िसनको ससु र्या नाही सलहलऽ.... बाबज ू ी के र्ईलस खोंखी अम्िा जी के सससयाुँ भूअरा बरर्ा छोड़ीं दीहलस दआ ु र हो िसनको ससु र्या नाही सलहलऽ.... बर्ु ना के फाटल जािा, सर्ु ना उघारे सर्या फूलिसिया के चुनरी सोहाले छोटका कहेला हि पढ़ब अब सकिाब हो सोचि सोचि िोरा बथेला कपार हो िसनको ससु र्या नाही सलहलऽ.... पेट आसग बझ ु ि बाटे बान्हे सब र्राई लग्ु गा-फट्टा साथ छोड़लसस अब ना सहाई कसह गईलs रसखह सजनी घरवा के लाज हो िसनको ससु र्या नाही सलहलऽ... सदनवा पहाड़ लागे रसिया ना बीिे कईसन हो गईल सई ंया, करेजवा ना भींजे ललकी चुनररया करे िोहरे गोहार हो कबलक र्ीरा र्रे सहयरा हिार हो िसनको ससु र्या नाही सलहलs…...
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 43
बेबाक बतकिी
भोजप रु ी के स्वरुप आ े ा अप क्ष
भो जपरु ी सऊुँसे भारि सिेि दसु नया भर के लगभग बीस देसन िें पसरल एगो सिद्ध ृ भाषा के रूप िें स्थासपि सबया। िख्ु य रूप से सबहार के दस, उत्तर प्रदेश के चउदह आ िध्यप्रदेश, झारखंड के कुल अट्ठाइस सजला के अलावे सदल्ली, कानपरु , सरु ि, िंबु इ, नागपरु , हैदराबाद, कोलकािा, रांची जिशेदपरु बोकारो इत्यासद िहानगरन िें एह भाषा के बोले सिझे सलखे वाला लोग के संख्या लगभग छब्बीस करोड़ बा, जवन भारि के सम्पणू ा आबादी के 20 प्रसिशि के आसपास बा । भोजपरु ी भाषा आ सासहत्य के इसिहास के बारे िें सविानन के बीच काफी ििभेद बा। सविान लोग िानेला सक अपभ्रंश सासहत्य से आर्सु नक आया भाषा के सवकास भइल। भोजपरु रयो के परु ान स्वरूप अपभ्रंश िें देखल जा सके ला। सासहत्यकारन के साथे एगो बड़ सिस्या इ बा सक उ लोग कवनो भाषा के जन्िसिसथ आ जन्िस्थान के खोज करे िें आपन सभ ऊजाा खिि कर देला। बाकी सवचारणीय िर्थय इ बा सक कवनो भाषा के जनि ना होखे, यगु ानरू ु प जनिानस िें ओकर स्वरूप पररविा न होला। जब कवनो भाषा असभजात्य के लबादा ओढ़ के आि आदिी खासिर दरू ु ह बन जाला, ि आि आदिी ओह भाषा के औसचत्य-अनौसचत्य के सवचार छोड़ के सहजभाव से सरलिापूवाक अपना भावना के असभव्यसि करि चल जाला। ओह घरी इ सहज आ सरल भाषा भले सविानन के बीच प्रचसलि भाषा से सभन्न देखाइ देले बासक़र ओकर िूल स्वरूप िें ढे र फका ना रहे। र्ीरे- र्ीरे सिाज के हर िबका ओह भाषा के अपना लेला आ ओह लोक भाषा िें सासहत्यो के सज ृ न होखे लागेला। इहे लोकभाषा ओह क्षेि के संस्कृसि के संवाहक आ सवचार सवसनिय के िख्ु य िाध्यि बन जाला। भोजपरु रयो एकर अपवाद नइखे। अपभ्रंश के ससद्ध-नाथ सासहत्य िें भोजपरु ी के प्रारसम्भक स्वरूप के दशा न इ ससद्ध करे खासिर काफी बा सक ओ घरी जनिानस िें भोजपरु ी बोल चाल के भाषा बन गइल रहे। िेजी से ओकर स्वरूप बदलि रहे। सफर ि अिीर खुसरो आ कबीरदास के िाध्यि से एकर सासहसत्यक स्थापना भइल। सासहसत्यक इसिहास के सवदयापसि िल ु सीदास, सूरदास इत्यासद िहाकसवयन जइसन कवनो कसव भले भोजपरु ी िें सलखे वाला ना भइलन, बासक़र भोजपरु ी क्षेि आ बोले वाला लोगन के संख्या िें वसृ द्ध होि चल गइल। स्वािी दररयादास, जीवनदास जइसन संि िहात्िा के पद भोजपरु ी © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 44
गुरुिरण ससंह ‘गुरु’ रोहतास , मबहार के रहे वाला गुरुचरण हसंह ‘गुरु’ जी अमखल भारतीय भोजपुरी सामहत्य सम्िेलन के अध्यक्ष बानी । ईंहा के भोजपुरी के लगभग हर मवधा िें सामहत्य मसरजन कईले बानी । कई गो भोजपुरी ककताब प्रकामशत हो चुकल बाड़ी स । कु छ दैमनक अखबारन िे इाँहा के स्तम्भकार भी बानी। व्यंग्य के सहारा लेके जरटल से जरटल बात सरलता से कह देबे िें गुरु जी के कवनो जोड़ ना ह । सम्प्रमत वीर कुं वर हसंह मव0 मव0 के अंतगयत एस0 पी0 जैन कॉलेज िें हहंदी के एसोमसएट प्रो0 बानी ।
भो
जपुरी भाषा आ साकहत्य के इकतहास के बारे में कवद्वानन के बीच काफी मतभेद बा। कवद्वान लोग मानेला कक अपभ्रंश साकहत्य से आधुकनक आयय भाषन के कवकास भइल ।
के गौरव बढ़वलस। 1800 ई० िें जब फोटा सवसलयि चक ु ल बा। विा िान िें ि भोजपरु ी पिकाररिा आ कॉलेज कोलकािा के स्थापना भइल आ ओिे सहन्दी लेखन के िेवर देखहीं लायक बा। पढ़ावे के सनणा य सलहल गइल, ि सहन्दी प्रोफे सर के वैसिक भाषा के रूप िें स्थासपि आ सवदेशन िें रुप िें सदल सिश्र के सनयुसि करल गइल। सहन्दी संवर्ासनक िान्यिा प्राप्त भोजपरी के अपने घर िें ै ु सासहत्य के खड़ी बोली के स्वरूप के आरंसभक काल उपेक्षा के दंश झेले के पड़ रहल बा। असखल भारिीय से ले के आज िक के सवकास यािा िें भोजपरु ी भाषी भोजपरु ी सासहत्य सम्िेलन से लेके नवोसदि संस्था सासहत्यकारन के िहत्वपूणा भूसिका रहल बा। जसद इ ‘आखर’ सिेि कइ गो संगठन भोजपरु ी के आठवीं कहल जाओ की सहन्दी के राजभाषा लायक बनावेशाफियाबादी के अनसची िें सासिल करावे खासिर एड़ी चोटी के जोहर ु ू कोसशश िें भोजपरु ी भाषी सासहत्यकारन के सवाा सर्क पसीना एक कइले बा, बासकर लोकसभा िें सिथा न आ
पव ू ी
स्वीकृसि के बादो एकर घोषणा ना कइल गइल, इ दभु ाा ग्यपणू ा बा। 22 भाषा संसवर्ान िें शासिल होके अपना भाग्य ननलय पे इिराउपाध्याय रहल बा, बासक़र संसवर्ान के अनस ु ार अहा िा परू ा कइला के बादो भोजपरु ी के संवैर्ासनक दजाा ना सिलला के िलाल 22 करोड़ भोजपरु रयन के बा। 28-29 सदसम्बर 2013 के असखल भारिीय भोजपरु ी सासहत्य सम्िेलन के पटना असर्वेशन िें भाजपा के प्रविा रसवशंकर प्रसाद जी आ नेिा प्रसिपक्ष सशु ील िोदी जी सिेि भाजपा के कइ गो नेिा लोग िंच से स्पष्ट घोषणा कइले रहे सक नरेंद्र िोदी पी०एि० बसनहें ि भोजपरु ी के संवैर्ासनक िान्यिा सदहल जाइ। अब एह वादा के पूरा करे के सिय आ गइल जजतें बा ।द्र एहवमाावादा पर सविास करके भोजपरु ीया जनिा अपना क्षेिन से भाजपा के पक्ष िें सम्पूणा सिथा न देलस। अब भोजपरु ी के आठवीं अनस ु ूची िें सासिल क के भाजपा दसु नया भर िें पसरल भोजपरु ी भाईयन के सम्िासनि करो। भोजपरु ी जािीयिा, सां प्रदासयकिा, क्षेिीयिा आ दलगि िांतोष पर्टे ल राजनीसि से उपर उठ के राष्रीयिा आ िानविा के बाि करे वाली भाषा ह। एह भाषा के संवैर्ासनक िान्यिा दे के राष्रीयिा आ िानविा के सबल बनावे के प्रयास भाजपा िारा करल जाव।
“भोजपुरी भाषा के लगभग एक हजार वेद बदलाई बररस तक के समद्ध ृ इकतहास बा.” भोजपुरी
योगदान बा ि असिशयोसि ना होई। भारिेन्दु हररशचन्द्र, िहावीर प्रसाद सिवेदी, रािचन्द्र शुक्ल, प्रेिचंद, जयशंकर प्रसाद इत्यासद से लेके नािवर ससंह, िैनेजर पाण्डेय , के दारनाथ ससंह, अरुण किल, सशवपज ु न सहाय, राहल सांकृत्यायन आसद भोजपरु ी भाषी सासहत्यकारन िक सहन्दी सासहत्य के सवकास िें के िना योगदान देलन, इ के ह से सछपल नइखे।
बे
जात ,पार्टी आ पुरस्कार
जदसप भोजपरु ी भाषा के लगभग एक हजार बररस िक के सिद्ध ृ इसिहास बा, बासक़र भोजपरु ी लेखन िें िेजी 19 वीं सदी के आसखर आ 20वीं सदी के आरंभ िें आइल बा। आज भोजपरु ी िें सासहत्य के सवसवर् सवर्ा के रचना प्रचरु िािा िें हो रहल बा। गजल, नवगीि, प्रबंर् काव्य, िि ु क काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक आ आलोचना के क्षेि िें भोजपरु ी कवनो भाषा से कि नइखे। िेग अली िेग, हीरा डोि, राहल सांकृत्यायन, रघुबीर नारायण, सशवपज ु न सहाय, िहेंद्र सिश्र, सभखारी ठाकुर, रघवु ंश नारायण ससंह, दगु ाा शंकर प्र॰ ससंह, रािेिर ससंह कश्यप, िनोरंजन प्रसाद ससन्हा, कंु ज सबहारी कंु जन, गणेश दत्त सकरण, भवु नेिर प्रसाद भानु, चंद्रशेखर सिश्र, पाण्डेय कसपल, रािवचन शास्त्री अंजोर, डा॰ प्रभुनाथ ससंह, प्रो॰ सब्रजसकशोर, जौहर शसफयाबादी जइसन सैकड़ों सासहत्यकारन के लेखनी से भोजपरु ी सासहत्य आपन वैसिक रूप बना
िम्भांग भोजपुरी
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 45
त्रब
बेबाक बतकिी
भोजपुरी के संतमत : सरभंग संप्रदाय
स
रभंग सम्प्रदाय संििि के एगो शाखा ह। एकर प्रचार-प्रसार देश के अन्य प्रांिन िें भइल, बासकर जवन स्वरूप िें इ चम्पारण-सारण िें देखाई पडेला उ रूप िें दोसर जगहे ना सिले। सभन्न-सभन्न साम्प्रदासयक ससद्धांिन आ िान्यिन के साथ उ पंजाब िें ‘सरभंग’, िद्रास िें ‘ब्रह्मसनष्ठ’ बंगाल िें ‘अघोरी’ आ उत्तर प्रदेश सबहार िें ‘औघड़’ के रूप िें प्रचसलि बा। वस्ििु ः संििि के एह शाखा िें संििि के सभ िूल लक्षण प्राप्त होखलो पर साम्प्रदासयक स्िर पर एकरा िे अइसन प्रवसृ त्त देखाई पडेला, जेकरा आर्ार पर एकरा के ना ि ब्रह्मसनष्ठ कह सकल जाला ना अघोरी आ औघड़। सवशेष लक्षण के आर्ार पर एकरा उपर कहल िि के आस-पास के कहल जा सके ला। चम्पारण िें एकर जवन रूप प्रचसलि रहल ओकरा िें उपर कहल अलग अलग िि के बहि िान्यिा से सिलि जल ु ि बा पर कुछ सवशेष लक्षण के संगे सरभंग सम्प्रदाय के एगो सवसशष्ठ स्वरूप के वल सारण-चम्पारण िें पावल जाला। एही से ई िि के सवसशष्ट स्वरूप का जड़ु ाव के वल चम्पारण से ही बा। चम्पारण के सवसशष्ट पहचान के एक िहत्वपूणा आर्ार सरभंग सम्प्रदायो बा। सरभंग सम्प्रदाय के बारे िें डॉ र्िेन्द ब्रम्हचारी शास्त्री जी आपन आलेख ‘‘ चंपारण आ भोजपरु ी’’ (पष्ठृ 95-97 भोजपरु ी सनबंर् सनकंु ज, असखल भारिीय भोजपरु ी सासहत्य सम्िलेन, 1977 ई) िें सलखि बानी सक : ‘‘शाहाबाद, सारन आउर चम्पारन ईहें िीन भोजपरु ी के गढ़ ह। एिें चंपारण सजला कई एक दृसष्ट से आपन अलग सवशेषिा रखिा। एक ओर सहिालय के िराई, दूसर ओर वेगगासिनी- गण्डकी - िानों दूनों ओर से प्रकृसि संदु री आपन सवशाल बांह फै ला के एह सजला के रक्षा कर िारी । चंपारण सजला के िहत्व संि सासहत्य के सवकास के इसिहास िें एिना असर्क बा सक ओकर पूरा पूरा अंदाज लगावल िसु श्कल बा. इहाुँ संि सवचार र्ारा के दू दो श्रोि फूटल एगो वैष्णव भसि आ दस ू र शैव हालांसक दनु ो के िूल उपसनषद रहे। पीछे चल के एह पर बौद्ध र्िा आ इस्लाि खास कर के सूफी िि - के भी प्रभाव पडल।
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 46
संतोष पटेल बेमतया, मबहार के रहे वाला संतोष जी , कई साल से भोजपुरी भाषा िे मलख रहल बानी । " भोजपुरी मजनगी " नाव से पमत्रका भी मनकाल रहल बानी , भोजपुरी के कई गो मवषयन प इाँहा के शोध पिे लायक बा । कई गो भोजपुरी पमत्रकन िें इाँहा के मनयमित रुप से मलखेनी । संतोष जी िंचीय कमव भी हई। कफलहाल कदल्ली िे काययरत बानी ।
चंपारण सजला संि सासहत्य के एक सवशेष संप्रदाय के जन्ि भूसि ह आ सवस्िार भूसि बा, जेकर नाि ह सरभंग सम्प्रदाय। बहि अफसोस के बाि बा सक अभी िक एह संप्रदाय के सवचार र्रा और सासहत्य दूनो से जन सार्ारण अपररसचि बा, और सबहार के बाहर के लोग के ि आहटो नइखे सिलल । ”सरभंग सम्प्रदाय’ िें जे सरभंग शब्द आइल बा, ओकर ििलब इहे बा सक ओइसन संिन आ सार्कन के ‘सम्प्रदाय’ के सरभंग-सम्प्रदाय कहल जाला जे अपना वासना आ इसन्द्रयन के अपना वश िें क सकल होखे। सरभंग संिन के आगे चल के दगू ो भाग हो गइल, जेकरा िें सनरबानी आउर घरबारी दूगो नाुँव से पक ु ारल गइल । सरभंग के ससद्धाि िूलिः कबीर के संििंि के परम्परा ह। एकरा िें गृहस्थ आ सन्यासी दनु ु लोग रहल बा। गहृ स्थ के आचार र्िा सन्याससन से अलग रहल बा। सरभंग खान पान से परहेज ना राखस। डॉ योग्नेद्र नाथ सिवेदी जी ‘चम्पारण की सरभंग संि परंपरा’ के एगो आलेख िें सलखि बानी ( चंपारण िहोत्सव स्िाररका ,2003 पष्टृ -16) “ सरभंसगयो ने अपने ससर्ान्िों के िारा सािासजक सिरसिा वगा सवभेद का खंडन, सहन् भावना का उद्भेदन सकया था। इसी कारण्र इनिें सहज िानवीय संवेदना का सवकास पाया जािा है इनकी रचनाएुँ जो भोजपरु ी, ब्रजभाषा या टूटी फूटी खड़ी बोली िें सिलिी हैं। इनके सिरस ससर्ान्िों से ओिप्रोि हैं और अब िक चम्पारण के जनिानस िें स्िसृ ि रूप िें सवद्यिान है ।” डॉ शोभाकान्ि झा आपन शोर् ग्रन्थ ‘िहसषा कबीर और चंपारण‘ िें सलखले बानी (पष्टृ -91) “जो सबना भेदभाव सकये जनिा के सम्पूणा अंगो को ग्रहण करिा है वही सरभंग है या जो संि परम्परा के सनयिों का सवािंग पालन करिा है वही सरभंगी है।”
सरभंग संि कसवयन के रचना के अध्यात्िवादी कसविा बिावि डॉ ररपस ु दु न श्रीवास्िव जी भोजपरु ी कसविा: रूप रंग िें उर्िृ करि बानी की “संि कसवयन के रचना अध्यात्िवादी कसविा िें रखल जा सके ला। ससद्ध कसवयन से ले के चंपारण के सरभंग संप्रदाय के कसवयन िक के कसविा हि अध्यात्िवादी कसविा कह ससकले। इहाुँ जानबूझ के हि ‘भसि कसविा नइखी कहे के चाहि ( भोजपरु ी पद्य संग्रह-पष्ठृ संख्य -6 प्रकाशक: सवि भोजपरु ी सम्िलेन, 2001) सरभंग या अघोरपंथ आपन िूल उत्स बेद िें बिावेला। ‘सरभंग’ शब्द के व्यत्ु पसत्त स्पष्ट नइखे। कुछ लोग ‘सर’ शब्द के व्यत्ु पसत्त ‘स्वर’ से िानेले। डॉ र्िेन्द्र ब्रह्मचारी जी आपन शोर् ग्रन्थ िें ‘‘संििि का सरभंग संप्रदाय’’ िें सरभंग कसवयन के चचाा कइले बानी जे िूलिः भोजपरु ी के सलखि रही । क. भगिी दास - सचलवसनया सरभंग िठ के प्रवा िक रहीं। ई िठ िोसिहारी से िीन सिल पसिि के कवनो गांव के बा। ख . रघवु र दास -चंपारण सनवासी रहीं। इहां के सम्बंर् िें सवस्ििृ जानकारी के अभाव बा। ग. दरसन दास - िोसिहारी के लगे चइलाहा गाुँव के रही। घ. शीिलाराि - राजपरु ा, छिौनी (िोसिहारी) सनवासी रहीं। इहाुँ के जासि के िेली रहीं। इहाुँ के िेल के रूपक बन्हले बानी ‘‘िन िौसी िेसलसनया के िेल पैर के आवाहन करिानी । पांच ित्व के कोल्हू िें िीन गुण के िहिानी ।।’’ ड. सूरि राि - िलाही (चंपारण) के रहे वाला रहीं। साड़ी िोरा फासट गइले, अंसगया िससक गइले, नयन
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टपकी रंग भींजल रे भींजिे भींजिे बारी चढ़ली अटारी, जहाुँ बसे सपयवा िोर रे। च . िालेराि - गोनरवा -सोहरवा, जासि के लोहार रही। इहां के खेिी के रूपक देके अध्यात्ि के सशक्षा देि रहनी। छ. सभसरो दास आ हरलाल के बारे िें जानकारी उपलब्र् नइखे। (साभार: भोजपरु ी सासहत्य का इसिहास: प्रो गजार्र ससंह ) रिेश चन्द्र झा के सकिाब चंपारणः सासहत्य और सासहत्यकार पष्ठृ 5-6 िें सलखि बानी “ चंपारण का सरभंग संप्रदाय सहंदी सासहत्य के सवकास िें िहत्वपूणा स्थान रखिा है। इस संप्रदाय िें अनेक प्रससद्ध परुु ष हयें हैं सजनका जन्ि एवं किा भूसि दोनों चंपारण की र्रिी है ।’’ रिेश चन्द्र झा जी सरभंग सम्प्रदाय के छव गो परम्परा के संकेि दे रहल बानी 1.करिा राि -र्वल राि के परम्परा 2.सभखि राि के परम्परा 3.सदा नन्द बाबा के परंपरा 4.हरलाल बाबा के परम्परा 5.सभनक राि के परम्परा 6.योगोिराचया के परंपरा चम्पारण के सरभंग परंपरा के प्राचीन प्रविा क िें िोिी राि के बाद सबसे प्रिुख संि रहलीं भीखि राि । िोिी राि जी के बारे िें जादे जानकारी ना सिल सकल । भीखि राि - भीखि राि के सिय के ठीक ठीक पिा अबहीं ले नइखे चलल बासकर एिना िालूि बा की सक सरभंग सम्प्रदाय के सबसे शरुु आिी कसव भीखि राि रहनी। इहां के घर चम्पारण के िार्ोपरु
गाुँव िें रहे। इहां के पसहले के नाि भीखा सिश्र बिावल जाला। सरभंग संप्रदाय के सबसे प्रससि कसव टेकिन राि के गुरु रहीं। भीखि राि के दू गो चेला रहलें टेकिनराि आ हररहर राि। एह बाि के रास सबहारी पाण्डेय जी सलखले बानी। ( रास सबहारी पाण्डेय, भोजपरु ी भाषा का इसिहास, पष्ठृ सं-79) भोजपरु ी सासहत्य के इसिहास िें प्रो गदार्र ससंह जी सलखले बानी, ‘‘ भीखिरािजी पसहले वैष्णव संि रहनी। गरू ु प्रीििराि जी के देहावसान के बाद इहां के िीथा यािा पर सनकल गइलीं उहां से अइला के बाद िार्ोपरु िें सिासर् ले लेनी। भीखि राि क प्रससि ग्रंथ बीजक अप्रकासशि बा। भीखि राि के एगो कसविाहंस करना नेवास अिरपरु िें चले ना चरखा, बोले ना िांिी अिर सचर पेन्हे बह भांिी, हंसा .... (भोजपरु ी पद्य संग्रह, भीि राव आंबेडकर सबहार सविसवद्यालय, िज ु फ्फरपरु , सबहार, पष्ठृ सं-28) संि ेकिन राि - चम्पारण सजला के र्नौिी नदी के िट पर बसल झखरा गाुँव के सनवासी रहनी। इहां के जासि के लोहार रहनी। रोजी रोटी आ गरीबी के कारन राज सिस्त्री के काि करि रहनी। िार्ोपरु के िंसदर के के वरी बनावट खा नािी संि बाबा भीखि राि के आससरबाद उहां के सिलल आ फे रु बाद िें भीखि राि के चेला हो गइलन। बाबा भीखि राि जी के िीन गो चेला रहलें बासकर टेकिन राि जी सभसे िसहूर चेला रहीं। टेकिन राि जी बहि ससद्ध आ चित्कारी संि रहन। इनका बारे िें के कहल जाला सक इहां के ब्रह्मा के साक्षाि दरसन भइल रहे। टेकिन राि जी िाघ िहीना के अंजोर पख के पंचिी, जे बसंि पंचिी के नाि से िसहूर बा, ओसह सदने सिार्ी लेले रहीं। संि टेकिन राि जी के सलखल एगो पद बा - संि
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से अंिर ना हो नारद जी, चूसुँ क सरभंग संप्रदाय के जनि आ िठ चम्पारण सजला िें बा। एह से यहाुँ के संिन के बानी िें भोजपरु ी के शब्दन के बेवहार छूट के भइल बा। टेकिन राि जी के हर पद िें भजन करे वाला भगिी के राह पर चले वाला ज्ञानी संिन खासिर भगवान के सहरदय िें कइसन जगह रहेला आ संिन के देह के भीिर भगवान के आत्िा के बास के ह रूप िें रहेला, एकरे के नारद आउर भगवान के बिकही के रूप िें संि कसव रखले बानी। टेकिन राि के सशष्य परम्परा िें टहल राि, दरसन राि, कीरा राि, सिसरी बाई आ रािस्वरूप राि रहनी। टेकिन राि के पद के संग्रह ‘‘ भजन रसिाला’’ पावल गइल बा। टेकिन राि के पद संि से अंिर ना हो नारद जी, संि से अंिर ना भजन करे से बेटा हिारा, ग्यान पढे े़ से नािी रहनी रहे से गरुु हिारा, हि रहनी के साथी संि जेवे के ि बटीं िें जेइले, संि सोए हि जागी सजन िोर संि के सनन्दा कइले, िाही काल होई लागी ।। (टेकिन रािः भजनिाला) ( इंटरिीसडएट भोजपरु ी गद्य पद्य (भाषा आ सासहत्य) सबहार इंटरिीसडएट सशक्षा पररषि आ भोजपरु ी अकादिी, सबहार के ओर से प्रकासशि) भीनक राि- भीनक राि सरभंग सम्प्रदाय के ससद्ध कसव रहनी। भीनकराि के जनि चम्पारण के सहोरवा गोनरवा नाि के जगह भइल रहे। इ राजपरु से 16 िील दूर बा। इहवे भीनकराि के सिार्ी बा। रास सबहारी पाण्डेय ( भोजपरु ी भाषा का इसिहास, पष्ठृ 78) डाॅ कृष्णदेव उपाध्याय ने इनका जन्ि 1925 िाना है। ’डॉ शोभाकांि झा जी आपन सकिाब ‘िहसषा कबीर और चंपारण’ िें सभनक राि के सनवास राजपरु , भेडहारी, पवू ी चंपारण बिवले बानी (पष्टृ 96)। िनसा बाबा भीनक राि के चेला रहनी। डाॅ योगेन्द्र नाथ सिवेदी के िोिासबक भीनकराि जासि के
ििवां रहीं। भीनकराि के सशष्य परम्परा अदापरु , पूवी चम्पारण िें बा। इहे िठ िें भीनक राि जी के बानीयन के संग्रह बा। इनका सम्बन्र् कबीर दास की सशष्य परम्परा से रहे। इनकर पद के सम्बन्र् सनगा णु सार्ना से बा। भीनक राि के सशष्य परम्परा िें श्रीिीनक राि, गोसवन्द दास (दस ु ार्), रकटूराि (दस ु ार्), सीिाराि दास (कोईरी), सबसुनीदास (दस ु ार्) आ सशवदास। भीनकराि जी के रचना हस्िसलसखि बा, जवन इहां से जडु ल िठन िे राखल बा। पोथी के रोज र्ूप-दीप देखावल जाला। आसग लागे बनवा जरे परबिवा, िोरे लेखे साजन जरे नइहरवा। रािस्िरूप राि- रािस्वरूप राि पूवी चम्पारण के सपपरा कोठी, िोसिहारी के झखरा गाुँव िें रहि रहीं। इहाुँ के ित्ृ यु के बारे िें बिावल जाला की 1851 िें भईल रहे। सरभंग संप्रदाय के एह कसव के गरुु टेकिन राि जी रहीं । इहां के टेकिन राि जी सशष्य परिरा के आसखरी चेला रहीं। रािस्वरूप राि जी टेकिन राि जी क सलखल ‘‘भजन रिनिाला’’ के प्रकासशि सन 1950 ई िें करवले रही। रािस्वरूप राि जी के देहांि 1951 िें भइल। रािस्वरूप राि जी के एगो भोजपरु ी के कसविा देसखअरर् परर् िें रहना संिो अरर् परर् िें रहना सोहंग सबद सवचारी के ओह िें िन लगाई सिकुटी िहल िें बैठ के गगन िहल िें जाई । सदानंद- चम्पारण के सासहसत्यक पररचय िें शोभाकान्ि झा बिवले बानी सक सदानंद पसिि चंपारण के िझौसलया स्टेशन से 5 सकलोिीटर पसिि िीरजापरु के जररये ‘चनायनबान’ गाुँव के सनवासी रही।सरभंग संप्रदाय के प्रिख ु कसव सदानंद 1885 ई के आसपास सवर्िान रहीं। इहाुँ के िूल नाव सचिर्र सिश्र रहे।सन्यासी भइला के बाद सदानंद नाि से
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सवख्याि भइनी। इनकर एगो संग्रह ‘योगांग िुिवाली’ राष्रभाषा पररषद् के चैबे संग्रह िें रखल बा। ‘चनायनबान’ िें इहाुँ के जीसवि सिासर् लेले रहीं इंकनर सशष्य परम्परा िें ‘िंगरु ाहा’ (चंपारण) गाुँव के परंपि बाबा भइनी। सपपरा गाुँव िें ‘बालखंडी’ बाबा रही . पंरपि बाबा भोजपरु ी िें खूब सलखले बानी। (शोभाकान्ि झा, सहंदी सासहत्य को चंपारण की देन)।
बालखंडी बाबा- इहां के गोसवंदगंज थाना के िहाराजगंज, पीपरा गांव पवु ी चम्पारण के सनवासी रहनी। बालखंडी जी के जन्ि 1840 के आसपास भइल रहे। इहां के अलौसकक प्रिीभा से सम्पन्न रही। बचपन िें इनका नाि रािप्रेि साह रहे। बालखंडी बाबा के सवआह लइकाइये िें हो गइल रहे। सन्यास लेवे के बाद इहां के गरू ु हरलाल बाबा उनकर नाि बालखंडी रखलें। इनकर भसि रचना होरी, झरोखे का झूिर भोजपरु ी िें उपलब्र् बा। इनकर ित्ृ यु 1942 ई िें भइल रहे। बालखंडी बाबा के कसविा कसविा के निूना देखींर्ीरे र्ीरे चलु सैंया के नगररया अजपा जाप उठि भूसि अंिर लासग गइली हो िोरर उल्टी नजररया। भगिीदास- िोसिहारी से िीन सिल पसच्छि सरभंग संप्रदाय के सचलवसनया िठ बा। ओह िठ के प्रविा क भगिी दास जी रहले। आजू से लगभग एक-डेढ़ सौ बररस पसहले इहां के सिार्ीस्थ भइल रहीं। ओह घरी उनकर उम्र रहे एक सौ पचीस बररस के रहे। भगिी दास के एगो भोजपरु ी कसविाभल ु ा गइल िनवा जान के िाि- गरभ िें भगिी काबल ु ल, इहाुँ सुिल बाड़ िान के (साभार: भोजपरु ी पद्य संग्रह, भीि राव आंबेडकर सबहार सविसवद्यालय, िज ु फ्फरपरु , सबहार, पष्ठृ - 31)
िाले राि- चंपारण सजला के गोनरवा - सोहरवा गाुँव िें िाले राि के जनि भईल रहे। ई सरभंग संप्रदाय के सार्ू कसव रही। फसली सन 1262 िें पोिा नािक जगह िें इ सिार्ीस्थ भइनी। िाले राि जी के एगो भोजपरु ी कसविाराि भजन करू भाई, सदनवा बीटल हो जाई ।। टेक।। साव सकहाुँ से दरब ले आएलो, सूद पर देली लगाई सूिा हान भेल एही जग िें, घरहूुँ के िूर गंवाई ।। 1।। अएिन साहो कहब कछु काहो, रहबो िन सकुचाई (साभार: भोजपरु ी पद्य संग्रह, भीि राव आंबेडकर सबहार सविसवद्यालय, िज ु फ्फरपरु , सबहार, पष्ठृ - 32) करिा राि- सहन्दी सासहत्य आ और सबहार के अनस ु ार करिा राि उत्तर प्रदेश के िूल सनवासी रहनी। अकाल पडे के कारण उहां के िज ु फ्फरपरु के कांटी नािक स्थान पर अइनी फे र ढे े़कहा (सत्ता घाट) के सररया िें आपना स्थान बनवनी। उहां के सरभंग सम्प्रदाय के कसव रहीं। इहां के रचना ”करिा राि के पद“ नाि से प्रकासशि बा। करिा राि के पद िें भोजपरु ी के प्रभाव लउके ला। उदाहरण देखींगहै गरीबी झूठ न बोले जथा लाभ संिोपा िन िन से उपकार पराया करिा संि अनोपा परंपि बाबा- परंपि बाबा िंगरु ाहा, गोसवंदगंज, पवू ी चम्पारण के सनवासी रहीं इहां के सदानंद बाबा के चेला रहीं। सरभंग सम्प्रदाय के संि कसव परंपि बाबा के सलखल भोजपरु ी के पद सिलेला। िरलाल बाबा- हरलाल बाबा 1850 ई िे बडहरवा नाि के गांव िें आपन िठ बनवनी। 1896 ई िें इहवे बाबा सिासर्स्थ भइनी। इहां के सलखल पद ‘संि परवना’ बा जवन बडहरवा िठ िें सरु सक्षि बा। डाॅ. शोभाकान्ि झा आपन शोर् प्रबंर् िें हरलाल बाबा के जनि गोपालगंज सजला के हररपरु गांव बिवले बानी।
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दरसन दास/राि- इहां के सरभंग सम्प्रदाय के कसव रहीं। िोसिहारी से लगहीं चइलाहा गांव बा उहे दरसन दास जी रहि रहीं। आजू से लगभग 150 साल पसहले इहां के सिासर् लेले रहनी। इहां के रचना भोजपरु ी िें सिलेला। उहाुँ के एगो भोजपरु ी कसविा देखीं औचक डंका पड़ी िन िें कर होसशयारी हो काल सनरंजन बड़ा खेलल बा खेलाडी हो । (साभार: भोजपरु ी पद्य संग्रह, भीि राव आंबडे कर सबहार सविसवद्यालय, िज ु फ्फरपरु , सबहार, पष्ठृ - 33) िनसा राि- सरभंग कसव िनसा राि सदानंद परम्परा के संि कसव रहनी। इहां के पसिि चम्पारण के िस ु हरवा, साठी के सनवासी रहनी। इहां के रचना िें भसि रस की र्ारा प्रवासहि बा। िनसा राि सरभंग संप्रदाय के अइसन संि कसव रही जेकर नाि बड़ा आदर से सलहल जाला। बाद िें पवू ी चंपारण के घोड़ासहन के लगे ससरिैंन गढ गाुँव िें आपन सनवास बनवनी ओकरा बाद भटवसलया, के सररया, पूवी चम्पारण िे रहे लगनी। िनसा राि जी कसविा के उदाहरण देखींलाग गइल नजरी उल्टा गगनवां िें, लाग गइल नजरी।। ना देखीं िेघिाला, ना देखीं बदरी । (भोजपरु ी पद्य संग्रह, बी आर ए सबहार सविसवद्यालय पष्ठृ -34) योगोिर राि/योगेिराचायशः इनकर जनि 1884 ई िें ढाका परगना- िेहसी के रूपवसलया गांव िें भइल रहे। इहां के रचना भसििूलक बा। परिहंस बाबा के नाि से सवख्याि योगेिर राि के सनवास रूपवसलया िठ रहे। ”स्वरूप प्रकाश“ नािक इनकर पद के संग्रह प्रकासशि भइल बा जेिे भसि के असवरल र्ारा प्रवासहि बा। इनकर रचना देखीं टूटे पंचरंगी सपजड़वा हो सगु न उसडे़ जाय, सगु नु रहले सपजड़वा िें सोभा बरसनन जाय।।
हडिु राि - सडह राि झखरा िठ, पीपरा कोठी ( पूवी चंपारण) के एगो सरभंगी कसव रही। सडहूराि के एगो भोजपरु ी कसविा देखींहरर भज िनआ ु कर परिीि । नाि लेि ब्रह्म जागे काि होि ससद्ध लोक ।।
सीिल राि - सरभंग सम्प्रदाय के लिहर संि कसव सभनक के सशष्य सीिल राि रहनी। इहाुँ के चेला परु न राि, रािर्न आ सिसरीदास रहलें, एह सभे के भोजपरु ी के रचना उपलब्र् बा। िगरू राि आ जोगेसर राि - एह दनु ु जाने झखरा िठ के असर्कारी रहनी। िंगरू राि सहन्दू देवी देविा के ना िानस। इ सनगा णु कसव रहले उहे जोगेसर राि के रचना िें रहस्यवाद बा। िंगरू राि के कसविा‘‘आव देवी सिल के चली लागल बा लगसनया। पास्पि िें परिापी देवी बार दूुँ िू जासनया।।’’ (िहसषा कबीर और चंपारण, पष्ठृ -100 ) एकरा अलावा जोगेिर राि सबल राि र्वल राि पूरन राि, सभखारी राि, रािर्न राि, प्राण परुु ष, रािनेवाज (झखरा), सिसरी राि (आदापरु ), प्रीिि राि, डीह राि , इनर राि, सनाथ राि, कारी राि, (सभे झाखारा) के चचाा डॉ शोभाकांि झा जी आपन शोर् ग्रन्थ ‘‘िहसषा कबीर और चंपारण’’िें सलखले बानी । परम्परा के कृसि स्ंिंभ के संपादक डॉ सिीश कुिार राय सलखि बानी (पष्टृ -36), वैसे िो चंपारण िें भोजपरु ी का सासहसत्यक प्रारम्भ सरभंग सम्प्रदाय के संि कसवयों की रचनाओं से ही िाना जािा है (असर्क खींचिान करने पर यह सीिा दसवीं सदी के कसिपय ससद्ध कसवयों िक जा सकिी है सकन्िु इसे उत्तर िध्यकाल िें िाना) भोजपरु ी सासहत्य के इसिहास
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लेखक डॉ कृष्णदेव उपाध्याय ने सभनक राि, सभखि राि, टेकिन राि, योगेिराचाया की बासनयों को भोजपरु ी के अंसिि िाना है।’’
पवन र्टू न
एह िरह लगभग दू सौ साल पसहले सचंिािनपरु िठ के सूरि राि बाबा गण्डकी नदी के िट पर बडहरवा िें एगो िठ बनवलें। लगभग िेरह पीढ़ी ले इ िठ के िहािि योग्य सरभंगी होि गइले। देखल जाव ि बगहा। पं. चंपारण से जीवर्ारा पूवी चंपारण िक आ सदु ूर नेपाल िराई से गण्डकी िट िक सरभंगी संिन के सवशाल क्षेि रहल । एह संि लोगन के काव्य रचना कुच्छे क संसग्रहि बाड़ी सन कुछे क लोक कं ठ पर सवराजिान जेकर संग्रह करे के काि पंसडि गणेश चैबे कइसन। भीनक राि के पदावली बा जवान ठे ठ भोजपरु ी ह। िनसा राि के रचना बा जवान भोजपरु रये िें बा ।
पंसडि रिेश चन्द्र जहां चंपारण की सासहत्य सार्ना नाि के ग्रन्थ िें सरभंगी संि के रचना संग्रह कइले बानी। सरभंगी रचना के उहे संसार बा जवान कबीर बाबा के रिैनी के । सरभंगी रचना के लिहर भंडार झखरा िठ (जीवर्ारा, पूवी चंपारण) िें बनकट, आदापरु िें राखल संग्रह िें भीनक राि, सदिाग राि, गनपि राि के रचना संग्रसहि बा । एह िरह देखल जाव सके ला स्विंििा से बहि पासहले भोजपरु ी पद्य के चंपारण िें सरभंग सम्प्रदाय के बहि िहत्वपूणा योगदान बा जेकरा पर नाथ आ कबीरपंथ के प्रभाव देखाई देला ।
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जाँतसार
इ
"जांिवा पीसि िोरा हथवा खीअइले की नाही अइले ना परदेससया बलिआ ु की नाही अइले ना....."
जुँिसार के भाव ह । सबेरे उसठ के गेंहू पीसि हिनी के आजी ,नानी गावि रही लोग ।एके ध्यान से सनु सलहला प रोंवा गनगना जाला । ए सवरह के थाह लेबे खासिर िनी एह के भाव सिझे के पड़ी। अब भले सबदेस िने दबु ई आ बीसजंग होखे । बाकी पसहले उत्तरप्रदेश-सबहार के लोगन खासिर सबदेश िाने कलकत्ता । खेिी सकसानी से जब कुछ ख़ास फायदा ना होखे ि बस लालटेन, चटाई आ बक्सा उठा के लोग कलकत्ता पहचुँ जाये । एसहजा जूट के ििाि िील िें िजदूरी से लेके सासहबसगरी िक के काि योग्यिा के सहसाब से भेंटा जाए। बाकी गांवे… घर के संवाग से लेके िेहरारू िक परेशान। जागि-सिु ि िनावे... काली िाई, डीह बाबा से इहे गोहरावे...सक कबले उहाुँ के आइब ? िेहरारु के खाली इहे सचंिा ना रहे की ग़इल बाड़े ि कबले अइहन । सबसे ढे र सचंिा एह बाि के रहे सक कवनो सवि के चक्कर िें अझरु ा ि ना गइले ! एगो गाना ह"किना सिहिया से नेहिया लगिला.... िोरा हबरहिहनया के पगली बनिला" । इ सबरसहन के भाव आ परुु ब के सहारा लेके भोजपरु ी के आर्ा से असर्का सासहत्य रचाइल आ खूब लोकसप्रय भइल । गोंड़ भाई लोग आजों हरूका बजा के गावेला"गिना करिला ए पीया घरे बइठिला अपने बसे ल पीया िो पुरुबी बहनहजया" इ ि लोक संगीि हो गइल । बाकी भोजपरु ी के नवसीखवु ा कसव से लेके आदरणीय सभखारी बाबा िक ले परुू ब के लेके खूब कोसले बा लोग ।सबदेससया िें सपयारी (प्यारी) के करुण सबलाप सनु ी के करेजा फाट जाला"हपया िोर ! ििी जा िो पूरुबिा... पूरुब देस िें ोना बेसीय बा पानी बिुि किजोर..." © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 53
बेबाक बतकिी
अतुल िुर्ार राय बमलया युपी के रहे वाला अतुल कु िार राय जी काशी िें संगीत के साधना कर रहल बानी । भोजपुरी आ हहंदी िें मलखे के एगो खास शैली ह अतुल जी के । भोजपुरी के पारम्पररक गीतन प इाँहा के मववेचनात्िक िंग से मलखाईल लेख आखर प पमहले भी पोस्ट भईल बा । भोजपुरी लोकगीत आ पारम्पररक गीतन प इाँहा के लगातार मलख रहल बानी । कफलहाल बनारस िे मनवास बा ।
प
हिले उत्तरप्रदेशहबिार के लोगन खाहतर हबदेश माने कलकत्ता । खेती हकसानी से जब कुछ ख़ास फायदा ना िोखे त बस लालटेन, चटाई आ बक्सा उठा के लोग कलकत्ता पिुँच जाये
आदरणीय भरि शिाा जी गवले बानी-”गिना करिला ए िरी जी अपने पूरुबिा गइला िो राि"। इ टोना कइसन रहे आ जादू कइसन रहे इ ि बहि परु ान लोग बिाई बासक रोजगार के घोर अभाव आ लाचारी ही सिस्या के जर(ड़) रहे। पसहले के लोग हिनी के परु सनया बहि सम्पन्न रसहिे ि हिनी के लोक सासहत्य िें बड़ा गरीब रहिी जा। बहि संदु र संगीि आ सासहत्य से वंसचि रहिी जा । ससगिंड फ्रायड बाबा के बासि फे र से कहि सक- "सासहत्य अभि ु काि के पररणाि ह" । सीरी सनरहआ जी एक हाली गवले रहनी (िब जब उहाुँ के गायक रहनी) "पीया जी ना जइहा हो परुु बवा जहाुँ बंगसलसनया बसे हो राि"। काल्ह से कलकत्ता घूिि बानी पापा हिार करीब दस साल कलकत्ता रहल बाड़े। फोन प रोज सिझावेलन -"हेइजा िि जइहा... िनी सम्भार के रहेला… अजीब शहर ह उ..." हि जादू टोना प सवस्वास ना करीं लेसकन हि अपना सदल के बाि बिाई ि बनारस के बाद हिरा सदल के करीब कवनो शहर बा ि उ कलकत्ता ही लागल । सही िें कबो कबो लागेला सक रही जाई ं का एइजे बाकी अब के हालाि बदल गइल। अब कलकत्ता के जगह दबु ई आ कुवैि लेले बा। एही से खेसारी गवले आ हीट हो गइले-
सक भोजपरु ी संगीि आ लोक से खाली रउरा सवरह भाव सनकाल दी ि कुछ ना बाची । एह भाव िें अब घून लागि बा । जे कुछ नया कइल चाहि बा उहो फ्यूजन के फे रा िें कनफ्यूजन के सशकार हो गइल बा । लोकसप्रय आ सब वगा के सप्रय िबले रउरा भोजपरु ी िें ना हो पाईब जबले रउरा अपना गीि संगीि के अंसिि भोजपरु रया के दरद से ना जोड़ि। गाना बजाना का ह दःु ख के िरहि ह। अभी अिने...
हार पृथ्वीराज के काहे ना होखी ए भया , जब इहााँ जयचन्र् जस घरुआर त घरही के बा । - पांडे कजपल जी " र्ुजनया के शतरंज जबछल बा "
"करब के करा संगे परब आ सेज पर के करा सङ् गे लड़ब सइयाँ अरब गइले ना.." एगो हिार एि॰ ए॰ पास भउजाई एक हाली अपना िोबाइल िें बजावि रहली"आगी लागो बजर परो गइला िें अरब बीििा लभ कइ उिर रुहपया का करब" ि हिरा आिया भइल बाकी सोचनी िनी ि बझ ु ाइल सक बािी खेसारी के नइखे । सबयाह भइले एक साल भइले आ भइया िीन िहीना बादे खाड़ी देश के वीजा बनवा सलहले । अब दरद फफा के पसरि बा । एही के खेसारी जी भनु ा सलहले… अउरी गायक लोग सिझबे ना कइल सक बासि कहाुँ बा ? कहे के िाने
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यरू े का कवज्ञान के जय उद्घोष
बेबाक बतकिी
अ
सली बाि "सवज्ञान प्रयोगशाला िें कवनो असवष्कार आ चाहे खोज के पसहले यूरक े ा (Eureka) ना सनु े के सिलेला। ज़्यादािर लोग के िूह से सनकलेला-बड़ा अजीब बाि बा"
यूरक े ा परु ािन यूनानी शब्द ह। एकर िाने होला - "िील गईल" बा "भेंटा गईल"। सवज्ञान के प्रत्येक छाि के यूरक े ा शब्द से पररचय जरूर होखी। एह शब्द के प्रचलन िें आवे के सकस्सा भी िजेदार बा। लगभग ईसा पूवा ३०० साल पसहले, यूनान (ग्रीस) के साइरासक्यउस शहर के राजा हाईरो-२ एगो सोनार के आपन सोना के िुकुट बनवावे के सदहलन। उनकरा शक़ रहे जे सोनार उनका िक ु ु ट िें सोना चोरवले बा। बसकर प्रिाण कईसे होसखि? ओह घरी यूनान िें ज्ञान-सवज्ञान के बेरा रहे। उहाुँ से सिाज िें एक से बढ़ के एक लेखक, वैज्ञासनक, कलाकार, सविान लोग रहे। आर्सु नक विा िान सवि सभ्यिा के उदगि ् के स्रोि भी परु ािन यूनान ही बावे। एह पर कभी सवस्िार से चचाा कईल जाई। परेशान राजा, अपना सिय के बड़हन वैज्ञासनक आकािीडीज़ के बोला के कहलन जे उनकरा शक़ बावे जे उनकर कलाकार सोना िें सिलावट कर के िक ु ु ट बनवले बा। बसकर ओकरा के प्रिासणि कईसे कईल जाओ? आकािीडीज़ भी गहरा सोंच िें डूब गईलन। जेिना वजन के सोना राजा सदहले रहलन, िक ु ु ट के वजन सबल्कुल बराबर रहे। बाकीर ओह िें सोना के िना शद्ध ु बावे, ई कईसे पिा चली? ई सवाल के उलझन िें आकािीडीज़ बहि सदन ले परेशान रहलन। लोक कथा िें प्रचसलि िान्यिा बा, एक सदन आकािीडीज़ बाथ टब िें पानी भर के नहाि रहलन। राजा के सोना के िक ु ु ट वाला सिस्या पर सचंिा िें डूबल। उहाुँ का टब के पानी िें डुबकी लीहनी। उनकरा पानी िें घुसला पर टब के पानी के स्िर िसनक ऊंच भईल आ थोड़ा पानी टब से नीचे सगर गईल। आकािीडीज़ के सिस्या के सिार्ान िील गईल। उहाुँ का टब से सनकल के सबना कपड़ा पसहरले "यूरक े ा" "यूरक े ा" सचल्ला के रास्िा िें भागे लगनी। गौरिलब बा जे परु ािन यूनान िें नग्न अवस्था िें बासहर सनकले के
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आशुतोष ससंह मबहार के रहे वाला आशुतोष हसंह जी के पालन पोषण , मसलीगुड़ी आसाि िे भईल बा । संगीत के क्षेत्र िे उभरत सधल िजगर संगीतकार , भोजपुरी मसनेिा के संगे महन्द्दी आ अउरी भाषा के मसनेिा िें अपना प्रभावशाली संगीत से गमहराह छाप छोड़ रहल बानी । कफलहाल िुम्बई िे बानी ।
यू
रे का ज्ञान कवज्ञान के जय उद्घोष ह। ज्ञान खाकतर एकमात्र गुण चाहीं ध्यान के, खाली देखे खाकत ना । हमनी के कवनो चीज पर ध्यान लगा के देखीं समझीं जा त उ आपन समस्त रहस्य खोले के तैयार बा ।
सािासजक िान्यिा रहे। राजा कीहां पहंच के आकािीडीज़ िक ु ुट आ ओिना वजन के सोना िंगवईलन। फे र एक बिा न िें पूरा िरह पानी भर के ओह िें पसहले िक ु ुट डुबवलन। िक ु ु ट के डुबला पर िसनक पानी बिा न से बाहर सगरल। उ पानी के नापल गईल। फे र पानी वाला बिा न िें िक ु ु ट के वजन के खरा सोना डालल गईल। दोबारा सगरल पानी के नापल गईल। दन्ु नू बार के पानी के अनपु ाि िें फका रहे। प्रिासणि हो गईल की िक ु ु ट बनावे वाला कलाकार सोना के चोरी कईले रहे। एह प्रसक्या के सिझे खासिर िसनक ध्यान सदहल जाओ - 10 सकलो लकड़ी आ 10 सकलो लोहा भले वजन िें एक होखे, ओकर अनुपाि िें फरक होखी। िाने दस सकलो लोहा के गोला ढे र बड़हन ना होखी। बसकर दस सकलो लकड़ी ओकरा अनपु ाि िें बहि ज़्यादा होखी। लकड़ी के घनत्व लोहा से कि बा एह से कि जगह लीसह। ठीक ओही िरह, सोना अपना वजन से जेिना जगह लीसह, दोसर र्ािु ओकरा से िेल ना खाई। एह से एक ही वजन से सोना पानी के बिा न िें डलला पर जेिना पानी गीरी, दोसर र्ािु ओकरा से अलग जगहा लीसह आ अलग िािा िें पानी सगरर। ििनी के जीनीगी िें यूरक े ा बोले के िौका –
पर पहचुँ लन। आईन्सटाइन के सभे E=MC^2 खासिर जानेला। एह सूि िक पहचे िें जाने के िना साल लागल होखी। भले लोक कथा िें "यूरेका" शब्द सवज्ञान के खोज से जड़ु ल बा, बसकर असली सज़ंदगी िें, सवज्ञान प्रयोगशाला िें बड़हन खोज होखेला जब कवनो वैज्ञासनक के अपना प्रयोग िें "कुछ अजीब" बाि देखाई देवेला। प्रचसलि िान्यिा से अलग अगर कवनो पदाथा के व्यवहार देखाई देला, ि ओही जा से ऊ कुछ नया खोज चाहे असवष्कार करे लागेला । फजा करीं, इसिहास के ओह काल िें, जब िान्यिा रहे जे सूया आसद ग्रह पर्थृ वी के चक्कर लगावेला। कवनो पसहला इंसान रोज रािी के आसिान के ग्रह नक्षि के पोसज़शन आ गसि के देखल आ सलखल शुरू कईले होखी। ओकर आिया आ सवस्िय के ठे काना ना रहल होखी ई जानी के जे अब िक के जानकारी सब गलि रहे। नया जानकारी के साथ ओकरा खासिर दसु नया िें का बदलल? सरुु ज रोज परु बे से सनकली आ पसच्छिे िें अस्ि होखी। बाहरी दसु नया के देखला िें कुछ ना बदली, बसकर सोच सिझ के स्िर पर पूरा दसु नया बदल गईल। एक घड़ी के ज्ञान िें दसु नया के देखे के िरीका बदल गईल।
एगो छोट घटना से आकािीडीज़ बहि बड़ा ससद्धांि खोज सलहलन। आकािीडीज़ ससद्धांि से दसु नया भर िें ढे रो काि भईल। कालांिर िें "यूरक े ा" - िाने "सिल गईल" सवज्ञान के सवजय उद्घोष लेखां हो गईल।
यूरक े ा ज्ञान सवज्ञान के जय उद्घोष ह। ज्ञान खासिर एकिाि गणु चाहीं ध्यान के , खाली देखे खासि ना । हिनी के कवनो चीज पर ध्यान लगा के देखीं सिझीं जा ि उ आपन सिस्ि रहस्य खोले के िैयार बा । चाहे ज्ञान होखे चाहे कला चाहे खेल कूद चाहे व्यापार।
न्यूटन के िाथा पर सेव सगरल आ उहाुँ का अपना देश सिाज के नया ससद्धांि सदहलन। बाकीर ई ज्ञान एक सदन िें ना आईल होखी। आकािीडीज़ भी कई सदन के गहन सचंिन के बाद कवनो निीजा
यूरक े ा िक पहचं े खासिर, ज्ञान िक पहंचे खासिर खासिर, ध्यान के रास्िा से ही जाये के पड़ी।
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टोना ,टोटका , टोटरम :
बेबाक बतकिी
लोक संस्कृकत के एगो तत्व
टो ना-टोटका पर कुछ कहे के पसहले एगो गीि के दगू ो पंसि पर ध्यान डालल जाव"प ना से बैदा बोलाइ द, नजरा गइनीं गूइंया" इ प्रससद्ध गीि शारदा ससन्हा जी के गावल ह आ भोजपरु रआ बर्ार के लगभग सभे सनु ले बा।एह गीि के अथा भा भाव पर ना जाके ,एह िें प्रयोग िें आइल एगो शब्द-नजरा गइनीं-पर ध्यान डालला के काि बा। इ "नजरा गइले"का ह? इहे ऊ सबआ बा,जहाुँ से हिनीं के बिकही आगे बढी।नजरगज ु र,टोना-टोटका भा टोटरि-जोग एगो सक्या रुप ह,जवन कइल जाला अपने से भा दोसर के हू भी करेला।इ भारि के ि छोड़ी,सबदेसो िें देखे के सिलेला। भोजपरु ी बर्ार िें ि इ रच-बस गइल बा। सशष्ट भा सभ्य पररवारो के भी इ डुँसले बा। बूझल जाव सक इ लगभग सत्तर प्रसिशि आबादी िक आपन पकड़ बनवले बा। हिनीं इहाुँ संपासदि होखे वाला लगभग सभे संस्कार िें एकर हासजरी रहेला।िेहरारू लोग एकरा से ज्यादा प्रभासवि रहेला लोग। ि एकरा पसहले सक लेख िनीं गंभीर होखो,आइल जाव,पसहले चार-पाुँच गो टोटरि के बानगी पर ध्यान डालल जावजनिऊिी(नवजाि) लइकन के नजर-गज ु र ज्यादा लागेला। हुँसि-खेलि लइका अगर रोवे लागेला,ि लरकोरी(नवजाि के िहिारी)के कटले खून ना भेंटाइ।इहुँवे रऊरा फरक बझ ू ा जाइ।एह हाल िें सबसे पसहले एके गो बाि आवेला सक लइका के के हू नजररया देलख।जे नजररअइलख,उ टोना कइल ह आ अब ओह जनिऊिी के टोना से बचावे खासिर कइल जाए वाला प्रयास टोटरि ह। अब एह टोटरि िें राइ-जवाइन ले के पाुँच बेरा लइकवा के अऊुँछ के आग िें डालल जाला।अगर टोना बा ि उिर जाइ। लइकवा के छठीहार िें एगो बजर बट्टू(एक िरह के िाला,जवना िें-कौड़ी,करुअइनीं के फर,चाुँदी से बनावल चंदा,िांबा से बनावल सूया,बाघ के नोह)गरदन िें पेन्हा दीहल जाला,जवना के उद्देश्य इहे होला सक लइकवा के टोना िि
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उदय िारायण ससंह संगीत के मशक्षक , लोकगायक आ भोजपुरी संगीत िें नवीन प्रयोग करे खामतर उदय नारायण हसंह जी जानल जानी । छपरा , मबहार के रहे वाला हईं । इाँहा के भोजपुरी भाषा सामहत्य आ संगीत िें हरदि कु छ नया, कु छ अलग करे खामतर प्रयासरत रहेनी । अभी छपरा िें बानी ।
ि
मनीं इिाुँ हजअनी से ले के मअ ु नीं तक के टोटरम बा । तब सिाल उठता हक इ कब से शरु ु भइल ? आगम आ हनगम-दू गो पद्धहत बा । इ पूरा करम आगम के अधीन आिेला । एकर शरु ु आत अथिवबदे से मानल गइल बा
लागो।कजरौटा से,देह िासलस कइला के बाद काजर आ बचलका काजर के ,जवन अंगूरी िे लागल रहेला,ललाट के दासहने भा बाएुँ लगा दीहल जाला।इ टोसनआह लइकवन के बचावे के प्रयास ह। काहे सक कुछ लइकवा टोसनआह जादा होलें स।उहे लइकवा के अगर िहिारी नइहर भा ससूरा ले के जाली ि घर िें घस ु े के पसहले पाुँच गो सझपटा(इंटा के टुकड़ा)पाुँच बेरा लइकवा के अऊुँछ के पाछे पड़े फें क देवे ली, एह सबसवास के साथे सक नजर होइ ि उिर जाइ। सबआह-शादी िें ि टोटरि अपना परवान पर रहेला। सबआह करे जाए वाला दूल्हा के नजर िि लागो, एकरा खासिर कइ गो टोटरि कइल जाला। नहवावन के बेरा पाुँच गो सहु ासगन जवाइन ले के दूलहू के अऊुँछ-अऊुँछ के गोइंठा के आग िें ओह जवाइन के डाल देवे ला लोग आ िबे दूल्हा देविा घर िें जाके कपड़ा पेन्हे लें।दूल्हा के िऊर भा टोपी िें सूइ खोंसाला,उहो लक ु ा के ।इ एह खासिर सक बबआ ु के के हू नजररआवे िि।एगो गीि सिलल बा हिरा, जवना िें लइकी के िाइ गारी (गाना िें) देच कहिारी अपना सिसर्न के "सासू हछनररओ रे जोग कइली,िन बेगी ले कािे ना अइली।" इ सब टोटरि टोना से बचावे के उपाए नूुँ ह! नाया घर बनवावे के होला ि लिहर बाुँस के पल ु ूइं पर परु ान जूिा,सूप लटका के टांग दीहल जाला आ साुँचहू घर सबना कवनो रोक-टोक के बसनओ जाला। अइसन ना जाने के िना टोना आ टोटरि के बानगी सछं टाइल भेंटाला,जवना के देख-सनु के आदिी सोचे के बाध्य हो जाला सक हो ना हो,एकरा आड़ िें कुछुओ बा।अब रऊआ कहीं के जािरा कइले होखीं आ सबलाइ रास्िा काट देबे ि रूक के िीन हाली गनु ा के सचन्ह अपने से पार सदहीला सक ना? काहे,इ एह सबसवास से सक रास्िा के सबसघन
दूर हो जाइ आ फे र आगे बढ चलींला। िनीं िअ ु नीं के टोटरिो पर एक हाली नजर डालाइए जाय। कवनो अऊसन िेहरारु,जवना के पेट िें बच्चा पलि होखो, खुदा ना खास्िे ऊ िर जास ि सबसे पसहले उनका दनू ो गोर िें सआ ु घोंपाला। सिसान घाट जाए िक सपअर सरसो ुँ सछं टाला। इ एह खासिर सक चड़ु ैल बन के ऊ लवटस िि।इ टोटरि लगभग भोजपरु रया बर्ार के सभे के हू जानेला आ आजो इ टोटका करेला।कहे के िाने सक हिनीं इहाुँ सजअनी से ले के िअ ु नीं िक के टोटरि बा।िब सवाल उठिा सक इ कब से शुरु भइल- आगि आ सनगि-दू गो पद्धसि बा। इ पूरा करि आगि के अर्ीन आवेला।एकर शरुु आि अथवा बेद से िानल गइल बा। टोना भा टोटका एगो सक्या रुप ह।कवनो असभष्ट के सससद्ध खासिर टोटरि भा टोटका होला,जबसक कवनो असनष्ट के सार्े खासिर टोना।टोना करे वाला के अिानवीय िानल गइल बा,जबसक टोटरि करे वाला के िस्िा। इ दनु ों सक्या लक ु ा-छुपा के कइल जाला।के हू देखो िि, टोको िि-एकर पसहलका शिा होला। आगि िें पूजा के छव गो रुप बा।जवना िें सपिर पज ू ा आ भूि पूजा िें टोटरि के चचाा पावल जाला। पूजा के उद्देश्य-िोहन, सम्िोहन,िारन,उच्चाटन आ वशीकरण के सससद्ध िें टोना आ टोटरि के िहत्वपणू ा भूसिका होला। टोना करे वाला के हिनीं के बर्ार िें डाइन भा डाय (िेहरारू के डाइन आ िरद के डाय)कहल जाला।एकर सार्ना होला,जवन िंि भा िंि के सहारे होला।एकरा खासिर आिावस के राि भा दसहरा के दस राि, सिसान भूसि,िूदाा के भस्ि,कररया कूकूर, शराबना जाने के िना सािग्री के चरचा बा, कहल िसु श्कल बा।बसढया ससद्ध डाइन के भोजपरु ी िें
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पवन र्टू न हुँकरा डाइन कहल जाला।अइसनो सिथक बा सक हुँकरा डाइन जड़-सोर से गाछ उखाड़ देवेले। बासकर एहू लोग के ऊपर िानल गइल बा"ओझा"के , जेकर काि ह एह सवपसत्त से छुटकारा सदलवावे के । रक्षक के ऊुँच आसन सिलल बा हिनीं के संस्कृसि िें।ओझा से उपर होलें"भगि",जेकरा प्रसि इ सविास बा सक उनका देह पर सािो बसहन देवी (शीिला, सम्िे, काली, सबसघन, कं काररन, फुलििी आ बसू ढया िाइ)के बास होला।(भोजपरु ी के लोक संस्कृसि िें एही साि रुप देवी के पज ू ा होला)।भगि अपना-आप िें परू ा सार्क के रुप िें हिनीं इहाुँ स्थासपि होला लोग। जब ओझा के ओझइिी काि ना आवे िब भगि लोग आपन जोग भा पूजा पाठ कर के ओह नजर-गज ु र से िसु ि सदलवावेला।हुँ,एकरा खासिर देवल(देव स्थान) भी जाइल जाला आ साि कडाह दूर् भा िूगाा चढावल जाला। सही कहीं ि एकर ओर-छोर नइखे।जेिने डूबब,ओिने रहस्य गहराि जाइ।आज एह वैज्ञासनक जगु िें एह बािन के कवनों िका से सासबि नइखे कइल जा सके ,बासकर इ सबसर्-सबर्ान बा हिनीं इहाुँ आ अगर लोग िानिा ि राऊर सिझावल बेकार जाइ।इ अंर्सविास ह लेसकन जे िानेला ओकर अंर्भसि ह। आपन लोक संस्कृसि जौ जौ आगर बा,जे जेिना डूबी,ओकरा ओिने भेंटाइ ।
© आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 59
बेबाक बतकिी
महकिल
ि
िंदि ससहं छपरा , मबहार के रहे वाला चंदन हसंह जी , भोजपुरी गजल गायकी के वास्तमवक जनक के रुप िें जानल जानी । राष्ट्रीय स्तर प शास्त्रीय आ लोक संगीत गायन िे कई गो पुरस्कार जीत चुकल बानी। बचपन से ही सामहमत्यक रुमच सम्पन्न । कई गो अखबारन िें इाँहा के मलखल कथा, कहानी आ गीत छप चुकल बा । महन्द्दी िें उपन्द्यास भी मलखले बानी । हर सप्ताह भोजपुरी संगीत के कड़ी िें एगो नया लड़ी जोड़ेनी । कफलहाल पटना िें बानी ।
रा
जदरबार खतम िो गईल, रईस लोगन के मिहिल प्राइिेट पाटी बन गईल आ कोठािाहलयन के मिहिल रे ड लाइट एररया में तब्दील िो गईल। आधहु नक काल में मिहिल के स्थान पर संगीत-सम्मलेन ले हलिलस
हसफ़ल' अरबी भाषा के शब्द ह s जवना के िाने होला गोष्ठी, सभा, िजसलस, जलसा आसद बासकर िहसफ़ल शब्द से सािान्यिः 'संगीि के बईठकी' के बोर् होला। इ दू प्रकार के होला,'ििहफले-रक्स' िाने नाच के िजसलस आ 'ििहफले-िस ू ीकी' िाने संग ीि-गोष्ठी'। पररभाषा के िौर पर कहल जा सके ला सक, ''संगीिकार,संगीि-पारखी आ रससक श्रोिा के ख़ास बईठक जहाुँ एक-दूसरा के सुने आ परस्पर सवचार-सवसनिय खासिर उसचि िाहौल रहेला, िहसफ़ल कहाला।'' पािात्य-संगीि िें एगो शब्द आवेला - 'चेंबर-म्यूहजक' , जवना िें संगीि प्रस्िुि करेवाला आ गणु ग्राही श्रोिा के परस्पर सािंजस्य आ संवाद जरुरी अंग हs। एही चेंबर-म्यूसजक के भारिीय संस्करण के िहसफ़ल अथवा संगीि-गोष्ठी कहल जा सके ला। िहसफ़ल, िध्यकाल िें िसु स्लि िहजीब आ भारिीय सिाज के सािंजस्य के देन हs। िहसफ़ल सजे के स्थान के िीन गो श्रेणी िें बाुँटल जा सके ला1. राजदरबार के िहसफ़ल, 2. रईस लोगन के िहसफ़ल, आ 3. कोठावासलयन के िहसफ़ल अब एहिें से कवनो नइखे बाुँचल। राजदरबार खिि हो गईल, रईस लोगन के िहसफ़ल प्राइवेट पाटी बन गईल आ कोठावासलयन के िहसफ़ल रेड लाइट एररया िें िब्दील हो गईल। आर्सु नक काल िें िहसफ़ल के स्थान पर संगीि-सम्िलेन ले सलहलस। प्रस्िोिा आ श्रोिा के दूरी बढ़ल, संगीि कृसिि आ बेजान होि चल गईल। सिय के आर्ार पर िहसफ़ल दू भाग िें बुँटल रहे - 1. राि के िहसफ़ल, एकरा के 'खड़ी ििहिल' भी कहल जाि रहे। एकरा िें िवायफ लोग खड़ा होके , नत्ृ य के साथ भाव बिाके गावि रहे लोग।सासजंदा भी किर िें साज बाुँर्के खड़ा होके बजावि रहे लोग। 2. सदन के िहसफ़ल यानी 'भैरिी के ििहिल', जवना िें संग ीि सुब ह िें श ुरू होि रहे आ बईठ के गावल-बजावल जाि रहे। िध्यकाल िें संगीि आिफहि के चीझ ना रहे, एकर दायरा छोट रहे। ओइसे देखल जाव ि कवनो चीझ जवन 'क्लाससक' कहाला कला चाहे सासहत्य, ऊ आि के चीझ ना हs। ऊ एगो सवशेष वगा खासिर होला काहे सक ओकरा गूढ़िा के , सवसशष्टिा के बूझे के सिझ सभे िें ना होला।
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संस्कृि िें जानकार श्रोिा के 'बिुश्रुि' कहल गईल बा आ िहसफ़ल िें अईसने श्रोिा लोग जटु ि, आिंसिि कईल जाि रहे। सही िोका पर 'दाद' यासन प्रशंसा कईल भी कला हs। 'आह' अथवा 'वाह' प्रशंसावाचक दू गो असभव्यसि हs, जवना के व्यि करेवाला िहसफ़ली िहजीब के जानकार िानल जाि रहे। संगीि-गोष्ठी िें िाली बजावल वसजा ि आ सशष्टाचार के सवरुद्ध रहे। कुलीन पररवार के लसड़का
जे
करा संगीत के 'स' भी समझ नईखे, जेकरा 'िाि' के उहचत स्थान के पता नईखे ओईसन श्रोता के िाि-िािी के चक्कर में संगीत तमाम हिकृहत से हिर आईल बा लोग के िहसफ़ली सशष्टाचार के जानकारी िवायफ लोग से सदलावल जाि रहे। िब कोठा अदब,सलीका के स्कूल होि रहे जहाुँ के असभवादन करे, बाि करे, बईठे -बइठावे, स्वागि करे के िौर-िरीका अनुकरण के योग्य रहे।राजदरबारन चाहे रईसन के िहसफ़ल िें संगीि-प्रस्िोिा के ईनाि के रकि सावा जसनक होि रहे बासकर कोठा पर ईनाि नज़्र करे के िरीका बड़ा शालीन रहे। श्रोिा जवन रकि देवे के चाहि रहे ऊ चपु चाप अपना िसकया के नीचे रख देि रहे। गानाबजाना खिि भईला पर श्रोिा पान-इलाईची लेके चल जाि रहे लोग आ बाद िें िवायफ के कवनो दासी-लउड़ी िसकया के नीचे से सब रकि इकठ्ठा करि रहे। इचलन एहसे रहे िासक कोठा पर सउदाबाजी िि होखे आ बेसी पईसा देवे वाला के िल ु ना िें कि पईसा देवे वाला के नजर नीचा िि होखे। 'गोष्ठी' के चलन प्राचीन काल से ही बा। जैन र्िा ग्रन्थ िें भी गोष्ठी के उल्लेख बा जवना िें संगीिकार, सासहत्यकार, कसव, गसणका आ कलापारखी जुटि रहे लोग। बौद्ध सासहत्य िें
'सिज्जा' के उल्लेख बा, जवना िें नत्ृ य-संगीि आ ििाशा होि रहे। िौया काल, शंगु , कुषाण, हषा वर्ा न के काल िें भी गोसष्ठयन के चचाा सिलेला। एह सन्दभा िें एगो उल्लेखनीय आ एह िरह के शायद एकिाि घटना बा सक, िहाकसव आ संगीिकार अिघोष के प्राप्त करे खासिर कुषाण सम्राट कसनष्क यद्ध ु कईले रहन। प्राचीनकालीन गोष्ठी िध्यकाल िें िहसफ़ल रूप िें सनखरल जवन बहि आकषा क रहे। पचास-सौ लोग के बईठे लायक हॉल, रंग-सबरंग के झाड़-फानूस आ कं दील के िसद्धि रोशनी, सदवाल पर सजल सचिकारी, नकली िोिी के झालर आसद से सजल रहि रहे। प्रस्िोिा के असिररि श्रोिा के बईठे खासिर भी गद्दादार आसन आ िसकया लागि रहे। उम्दा पान िहसफ़ल के जान रहे, जवन आयोजक िारा परोसल जाि रहे। रईस लोग चाहे कलाकार आपन 'पनडब्बा' भी लेके जाि रहे। जान के िाज्जबु होइसक रईस लोग पच्चीस साल िक परु ान पान के स्टॉक राखि रहे। जिने परु ान पत्ता ओिने लजीज ! िेहिान लोग के खाए सपए के पूरा इंिजाि रहि रहे। गिी के सदन िें थोड़ा-थोड़ा सिय पर चांदी के िश्िरी िें रखके शरबि आ ठंढी िें चाय चलि रहे। िवायफन के िहसफ़ल के असभन्न अंग रहे 'िज ु रा' । एकर िाने होला असभवादन, आदरसूचक सम्बोर्न, सलाि, आदाब आसद। िगु लकाल िें नत्ृ यसंगीि के शुरुआि िें कलाकार िारा 'सलािी' पेश होि रहे। कत्थक नत्ृ य िें आजो इचलन बा। बाद के सिय िें िज ु रा नाच-गाना के ससम्िसलि रूप के िौर पर व्यवहार िें आवे लागल जवन आज ले प्रचसलि बा। िब िवायफन के बहि सम्िान रहे आ दरबार आउरी रईस लोग के संरक्षण भी प्राप्त रहे। इ िवायफ लोग उच्च कोसट के कलावंि होि रहे लोग साथे अदब आ िहजीब के सजवंि उदाहरण भी। स्वासभिानी भी कि ना ! लगभग डेढ़ सौ बररस पसहले लखनऊ के एगो िहसफ़ल िें िश्ु िरी बाइएगो गजल सनु ावि रही— ''लब बंद कुफ्ल था पड़ा कौलो करार का, बोसों से लाल िो रिा रुख़सार यार का।''
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एही बीच एक जाना िश्ु िरी बाइके नजदीक जाके , िस्ु कुरा के उनका गाल पर आपन अंगल ु ी फे र के कहलें, एक बेर फे र से गाके बिाई ं सक यार के रुख़सार कईसे लाल होि रहे। अभी उनकर वाक्य पूरा ना भईल सक िश्ु िरी बाइके जोरदार चांटा उनका गाल पर पड़ल आ कहली, अईसही लाल होि रहे। िहसफ़ल िें 'भांड़' भी बल ु ावल जाि रहे लोग। इ लोग के नकल, स्वांग आ चटु की से िहसफ़ल जानदार बनल रहि रहे। इ लोग बहि हासजरजवाब होि रहे। एक बेर िोहम्िद शाह रंगीले के दरबार िें नासदरशाह एगो िवायफ के देख के सवाल कइलन - ''अगर औरि सहंदस्ु िान के आ िदा सवलायि के होखे ि संिान कईसन होई?'' िरु िं एगो भांड़ खड़ा भईल आ हाथ जोड़के कहलक सक, गलिी िाफ़ होखे हजूर, संिान 'नासदर' होई। नासदर के एगो िाने 'अनोखा' भी होला। िहसफ़ल ऊ स्थान रहे जहाुँ प्रस्िसु ि करके एगो कलाकार-हृदय का संिोष सिलि रहे काहे सक हर श्रोिा दोसरा के देखा-देखी आह-वाह ना करि रहे बसल्क संगीि सिझ के दाद देि रहे जवना चलिे कलाकार हिेशा सिका रहि रहे लोग, अपना कला के िांजि रहे लोग। िहसफ़ल के िख्ु य साज रहे - पेटी यासन हारिोसनयि,
सारंगी, दांया-बांया (िबला), ससिार, बीन ( इससिार से सिलि-जल ु ि िंि-वाद्य रहे। आर्सु नक सिय िें बीन नाि से एगो सुषीर लोकवाद्य भी बा जवन अक्सर सपेरन के हाथ िें लउके ला ), सरोद आसद। संगीि श्रंगृ ार िें ख़ास भूसिका राखे वाला सारंगी लप्तु होखे के कगार पर बा। बीन ि कबे लप्तु हो गईल। ओइसे ि िहसफ़ल िें पक्का गाना-बजाना यासन ध्रपु द, र्िार, ख्याल, िराना, चिरु गं , सिवट, टप्पा, रागिासलका आसद के बोलबाला रहे बासकर िहसफ़ल िें छोट चीजन जईसे - ठुिरी, दादरा, कजरी, चैिी, सावन, झूला, ग़ज़ल आसद भी बड़ा चाव से सनु ल जाि रहे।िब राग-रंग होि रहे, राग-जंग ना ! प्राचीन काल से आर्सु नक काल के पवू ाा र्ा िक 'गोष्ठी' कवनो ना कवनो रंग-रूप िें प्रचसलि रहे बासकर अब इ इसिहास के चीझ बा। जवन आनंद एक-दस ू रा से आुँख सिलाके प्रस्िुि करे आ सनु े िें रहे ऊ बाि अब सम्िलेन आ बड़का शो िें कहाुँ ! संगीि के स्िर हल्का होि चल गईल। जेकरा संगीि के 'स' भी सिझ नईखे, जेकरा 'वाह' के उसचि स्थान के पिा नईखे ओईसन श्रोिा के वाह-वाही के चक्कर िें संगीि ििाि सवकृसि से सघर आईल बा। िब कोठा, जवन आज बदनाि स्थान के प्रिीक हs, पर भी पईसा देवे के ियाा सदि सलीका रहे
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आज खल ु ेआि पईसा लटु ा के फूहड़पन के प्रदशा न होिा। िब गायक/गासयका के बईठ के ही प्रस्िसु ि देवे के होि रहे ससवाय िज ु रावासलयन के बासकर आज असर्कांश कलाकार लोग सबना संगीि के साथ असभनय के सािंजस्य के सिझले िवायफन के भौंडा-नकल करे िें लागल बा लोग। संगीि ओछ िनोरंजन के सार्न बन गईल बा।शास्त्रीय-संगीि के सम्िलेन भी बाह्यरूप से शास्त्रीय रह गईल बा बासकर िानबाजी, जगु लबंदी के िक ु ाबला, िबला के चित्कार, असर्क आकषा ण पैदा करे खासिर असभनय के िरकीब आसद से शास्त्रीयसंगीि क्लाससकल (classical) ना रहके 'िाहसकल' (massical) हो गईल बा… आ िाससकल श्रोिा के ररझावे खासिर कलाकार कइगो जिन करेला। अगर एगो आयोजन िें ढे र कलाकार होखस ि संगीि सकास हो जाला। जईसे-जईसे सभ्यिा के िशीनीकरण होि गईल, गाना-बजाना यंिवि हो गईल। संगीि से रूह खिि हो गईल। अब ऊ संगीि ना बाुँचल जवन सनु के के ह कलेजा थाि लेवे, आुँख से अनायास लोर सगर जाओ ।
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पवन र्टू न
बेबाक बतकिी
कबदेकसया के पाकत : अब काहे ना होला गााँव में नाटक सिराला पेशा से पत्रकार , तहलका आ प्रभात खबर खामत लगातार मलखे वाला मनराला जी , औरं गाबाद मबहार के रहे वाला हईं । इाँहा के पुरमबया तान बैनर के नीचे भोजपुरी के पारम्पररक गीतन के सहेज,े सररहारे आ ओह के नया कलेवर िे प्रस्तुत करे िें लागल बानी । एह घरी पटना िें मनवास बा ।
ढे
र सदन बाद, ढे र सदन खासिर िािा-गांव िें रह के लवटल बानी। अबकी पारी सोच के गईल रहनी सक खाली गांव िें भा घरे िें नइखे बइठल रहे के , जवार घिु े के बा। घूिनी-सफरनी। हर उ गली से गज ु रनी, जहवां बचपन गज ु रल रहे। जवन गली िें ना जाने के िना हाली सपटाइल रहीं अंटी-एलीगोली खेले खासिर। जवना गली िें ना जाने के िना हाली रहिा चलिे प्रेसिका के सचट्ठी देले रहलीं। जवना गली िें ना जानी के िना हाली फै टाफै टी िें नाक-भभु ून टूटल-फूटल रहे। बासकर गांव िें कुछ चीज खटकि रहल। होली सािने बा। आपन लईकाई के होली इयाद आवि रहे। कईसे बसंि आवे के पसहलहीं से हिनी के होली के िइयारी िें लाग जाि रहीं जा। खाली रंग-गल ु ाल वाला होली खासिर नाही। होली के बाद लगले गांव िें नाटक होखि रहे, ओकरे सबसेस िइयारी चलि रहे। एह बेर गांव िें होली के लेके कउनो सगु बगु ाहट ना देखनीं ि पूछनीं सक का अब नाटक एकदिे से बंद हो गइल बा। जवाब सिलल- जगहे नइखे ि कहवां होई नाटक अउर फे र पसहलका बािो ि नइखे रह गइल। पूछनीं सक काहे पसहलका बाि नइखे रह गईल। के हू जवाब ना सदहलस बासकर हिरा ई बझ ु ाइल सक गांव के इस्कूल के सोझा के एगो छोटका िैदान के खिि हो जाए से सांचो अब पसहले वाला बाि नइखे रह गइल। गांव िें घूसिे सािने इस्कूल पड़ेला। ओकरे सािने एगो छोट-िोट िैदान पड़ि रहे। ओही िैदान के सकनारे एगो चबूिरा रहे, जवन आजओ ु बा बासकर िैदान िें बड़का-बेढब इस्कूल के सबसल्डंग खड़ा हो गइला से उ चबूिरा अब ढहलढुहल अवशेष लेखा हो गइल बा। कोना िें पड़ के सससकि बा। उ चबूिरा कउनो सर्ारण चबूिरा ना ह। हिरा आपन होश िें कि से कि 20 बररस िक उहे चबूिरा आ छोटका िैदान गांव के संभरले रहे। उ चबूिरा ओह काि के करि रहे, जवन बड़का-बड़का सिाज सुर्ारक लोगन के बस िें आजओ ु नइखे। ओही चबिू रा पर नाटक-नौटंकी होि रहे हर साल होली िें। नाटक
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िें िय गांव के लोग भाग लेि रहे। का दसलि-का सपछड़ा आ का बड़ जाि, सभे एके रंग िें रंगल रहि रहे। हीरो के रूप िें दसलि आउर सपछड़ा जासि के लइका के ही पहचान रहे, एह से उ लोग के पूरा गांव सिाज िें आपन इज्जि रहे। नाटके के बेरा नाहीं, सालो भर के हू एकार िार के ना बोलि रहे उ लोग के काहे सक हर साल होली िें उ लोग आपन असभनय प्रसिभा के लोहा िनावि रहे। बड़ जाि के लइकन के पहचान नाटक िें हीरोइन बने के रूप िें जादे रहे। ि अइसन होि रहे सक हीरो-हीरोइन बने वाला के नाटक भइला के बादो सालो भर सजगरी इयारी रहि रहे। आउर नाटक के सिय िो गजबे रंग रहि रहे। परू ा गांव के हर जासि के लोग के टोली बनि रहे चंदा िांगे खासिर। के हू के दआ ु री पर सब लोग जाके बइठ जाि रहे आउर घंटन सचरौरी करि रहे पांच-दस रुपयइया चंदा बढ़ावे खासिर। कवनो जाि के , कवनो जाि के दआ ु री जाए िें लाज ना लागि रहे, ना प्रसिष्ठा कि होखे जइसन बार्ा सािने आवि रहे। जवना-जवना राि नाटक होखि रहे, ओह राि एके
संगे सब लोग बइठि रहे ओह िैदनवा िें। का बड़का, का छोटका। सपछुआरी िें सब जासि के िसहला लोग भी साथे बइठि रहे राि-राि भर। जासि, वगा के िाने टूट जाि रहे। एगो-दईु गो नाटक बदे टूटल रहि रहे इ बासकर अबकी गांव िें रहीं ि लागल सक नाटक बंद होखे से कइसे उ कुल चीज गांव िें उफान िरले बा। आपन टोला के नवका उसिर के लइकन के देखलीं सक उ लोग के पूरा दोस्िी-इयारी आपने टोला भर िें बंर्ा के रह गइल बा। पूरा गांव िक भी ना घूि पावेला इ लोग। िन परेशान हो गइल सक कांहे ओह नाटक के खिि कर सदहल गइल, जे इ कुसल्ह के कई बररस से संभरले रहे । कांहे इस्कूल के बेढब-सबसल्डंग खड़ा होि रहे ि लोग ना कहलस सक सबसल्डंग के अइसन बनावल जाओ, जेकरा िें एगो िैदान बचल रहो। चबूिरा ि आजो बा बासकर का ओकरा के देख के नवका पीढ़ी के लोग पसियाई के नाटक-नौटंकी वाला इ चबिु रा िें के िना िाकि रहे ?
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रोजगार, खाड़ी(गल्फ) देश
बेबाक बतकिी
कु छ सदन पसहले के बाि ह। एक सदन साुँझ खा हि आपन हजािि बनवाए खासिर अपना असफसवा के बगल के एगो सैलून िें गईल रहनी।ओजगु ा हिार हजािि बनावे ला एक जाना अइले । बाि चीि शरू ु भइल, आ उनुकरा बाि करे के अंदाज से हि सचन्ह गइनी की ई भोजपरु रये हवें। िालूि चलल सक घर गोपालगंज बा आ चार िसहना पसहले ही ई अइले ह गोपालगंज से । एही क्ि िे हि उनका से काि आ िनख़ाह के बारे िें भी पछ ू लेहनी, आ ओकरा बाद जवन जानकारी सिलल हिरा, उ हि बहि जरूरी सिझनी सक रउवा सभे से बिावल जाउ । खाड़ी देस िें रोजगार शुरुए से सभे के िनपसन जगसह िानल जाला आ खासकई के हिनी के भोजपरु रया लोग िें सभे के जान-पहचान िें के ह ना के ह अरब देस िें बड़ले बा । पईसा बा इहाुँ एिे कवनो दु राय नईखे। बाकी दस िें से आठ जना कवनो न कवनो वजह से आ चाहे जानकारी के अभाव िें गलि जगह फुँ स जाला भा ई कहीं सक फुँ सस गइल बा लोग। सिाज आ नािा ररश्िा से लाज के िारे लोग बिावे के भी ना चाहेला। नवहा लोग जानकारी के अभाव िें रोजगार सदयावे के वादा करि अइसना सगरोह िें फं स जाला। अगर रउआ भी खाड़ी देसन िें काि करे के िन करि बा ि कुछ बाि के जानकारी राखल जरूरी बा। एगो उदाहरण देवे खासिर हि बिाव िानी की सैलून िे काि करे वाला भाई कवना फे रा िें पड़ल बारें। उनकर दूर के कवनो ररस्िेदार उनका के नौकरी सदयावे ला 2 लाख रूसपया लेहले रहलें । उनका से वादा कइले रहलन सक आबर्ु ाबी िें उनका जाके खाली नोकरी करे के बा आ पईसा किाए के बा । रहे के व्यवस्था भी कं पनी के बा खाली खाये के जवन लागी िवने अपना चेट से देबे के बा । वीजा अईला के बाद उ आपन सटसकट कटा के पहचुँ गइलें आबर्ु ाबी । इहाुँ अईला के बाद कं पनी उनका के नोकरी पे बोलवलस, आ एक हफ्िा खासिर कहीं रहे के जोगाड़ कइके असगला हफ्िा से आपन बेवस्था करे के कह देहलस। िहीना के ३ हजार सदरहि वादा रहे उनक ु ा ररश्िेदार के बाकी कं पनी कहलस सक िहीना हजार रुसपया सिली आ जबले वीजा के पईसा ररकभर ना होखी िबले ओिने पईसा सिली। हजािि बनावे के सिान के खचाा भी ओकरा िें से ही काटल जाई, आ रहे के आपन खचाा । वीजा के पईसा परू ा भइला के बाद डेढ़ हजार सदहल जाई। आज के सिय िें हालि
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असिर्ेष िुर्ार वर्ाा मसवान के रहे वाला अमनिेष कु िार विाय जी , भोजपुरी भाषा आ सामहत्य िे लगातार मसरजना कई रहल बानी , आखर पेज से जुड़ल अमनिेष जी भोजपुरी िे गीत , कमवता , कहानी के संगे संगे अपना फोटोग्राफी खामत िानल जानी । कफलहाल इाँहा के अबुधाबी , युएई िे रमह रहल बानी ।
अइसन बा सक बस आपन गज ु ारा चल जािा। पासपोटा कं पनी ले लेवे ला, आ दु बररस िे एक हाली घरे जाए खासिर िौका सिली। ई कुल बिावि घरी उनुका आुँख िे लोर आ गईल रहे । उनकर गलिी एिने रहे सक उ जान पहचान के आदिी के बाि प भरोसा कई के नोकरी के कागज ना िुँगले, ऑफर लेटर ना िुँगले जवना के लेबर कांरैक्ट भी कहल जाला। अगर के ह के भी नोकरी करे खासिर गल्फ देसन िें आवे के िन बा ि कुछ बाि पे ध्यान दीहल बहि जरूरी बा। बहि बार होला सक िजदूर लोग एजगु ा आ के फं स जाला आ जानकारी के अभाव िें शोसषि होि रहेला। ना िनख़ाह ढंग के सिलेला , ना ढंग से रहे खाये के सिल पावेला । एहीसे िगृ िरीसचका के चक्कर िें ना पड़े के चाहीं। कुछ बाि जवन रउवा सभ के िालिु र हे के चांही गल्फ आवे से पसहले 1.कवनो सही कं पनी नोकरी देवे खासिर पईसा ना िांगे ले । ई पईसा दलाल लोग के पासकट िें जाला। दलाल लोग से बचे के चाहीं आ पंजीकृि कं पनी पे भरोसा राखे के चाही। 2.अगर दलाल लोग से नोकरी के पक्का भरोसा बा िबो नोकरी के ऑफर लेटर जरुर ले लेवे के चाहीं। 3.उ कं पनी के बारे िें आपन के ह जान पहचान के आदिी से, जे उहाुँ पसहले से बा, पिा करवा लेवे के चाहीं।
5.जहां भी नोकरी करे जाई ंओसहजा के भारिीय दूिावास िें आपन रसजस्रेशन करा लेवे के चाहीं। 6.गल्फ िें रहे के खचाा सबसे बड़ खचाा होला एही से हिेशा कं पनी के सदहल घर के चनु ल सही रहेला।
7.कबो आपन िनख़ाह के ह के लगे जिा ना करे के । अइसन ढ़े र सकस्सा होला जब पईसा सरु सक्षि रखे के वादा कइके लोग पईसा लेके भाग जाला। 8.असर्किर देस िें िेसडकल काडा , साल दु साल िें एक हाली देस आवे जाये के सटसकट देवे के सरकारी सनयि बा। नोकरी के बेरा एकरो बारे िें जानकारी लेवे के चाहीं। चाहे कुछु हो जाउ सबना कवनो ठोस सलसखि कागज/ऑफर लेटर के के ह पे जबानी भरोसा ना करे के चाहीं। कुछ देस के हेल्पलाइन नंबर सदहल बा जहाुँ कवनो परेसानी भइला पे िरु िं संपका करे के चाहीं। यू॰ए॰ई॰ - 800 46342 (लोकल) सऊदी अरब - 011-4024444 (ररयाद) कुवैि – 22510891 (लोकल) ओिान - 00968 24695981 (लोकल) किर - 44255704 (लोकल) बहरैन – 377024453 (लोकल)
4.अगर के ह नईखे जे पिा लगा सको ि अपने से फोन करके कं पनी िें बाि करके देखे के चाहीं।
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बेबाक बतकिी
भाषाई एकता आ लोकगीत देवेंद्र िाथ सतवारी देवररया , युपी के रहे वाला देवेंर नाथ मतवारी जी , द संडे इंमडयन भोजपुरी पमत्रका के कॉपी एमडटर रमह चुकल बानी। इाँहा के स्वतंत्र पत्रकार भी बानी आ कफलहाल वधाय िहाराष्ट्र िे आगे के पिाई कई रहल बानी । कई गो शोध परक लेख अलग अलग पमत्रकन िे प्रकामशत हो चुकल बा । आखर पेज से शुरु से जुड़ल बानी आ भाषा सामहत्य प कई गो लेख आखर प भी लामग चुकल बा ।
भो
जपुररया संस्कृकत के सवय श्रेष्ठ स्वरूप एकर लोकगीतन में देखे के कमलेला । एह लोकगीतन के आपन दशय नशास्त्र आ आपन सौंदयय शास्त्र बा। एही से भोजपुरी लोकगीत में कुल्ही लौककक-अलौककक अनुभव के भाव देखे के कमल जाई ।
भो जपरु रया संस्कृसि आपन प्राचीनिा, व्यापकिा आ सवसवर्िा के चलिे एगो सवलक्षण संस्कृसि हऽ। भोजपरु रया रीसि-ररवाज, आचारव्यवहार, पसहनावा-पोशाक, खेिी-सकसानी आ लोक परंपरा के साथे-साथे भोजपरु ी भाषा, भोजपरु रया िाटी के अइसन सवसशष्टिा सदहले सबया जइसे सारा दसु नया के खाससयि इहाुँ ससिट गइल होखे। भोजपरु रया संस्कृसि के सवा श्रेष्ठ स्वरूप एकर लोकगीिन िें देखे के सिलेला। एह लोकगीिन के आपन दशा नशास्त्र आ आपन सौंदया शास्त्र बा। एही से भोजपरु ी लोकगीि िें कुल्ही लौसकक-अलौसकक अनभु व के भाव देखे के सिल जाई। एगो अउर खास बाि इ बा सक भोजपरु ी लोकगीिन िें लोक जीवन रचल-बसल बा एह दनू ो िें कवनो अलगाव नइखे। एही से इहाुँ 'कला कला के खासि' चाहें 'कला सजनगी खासि' जइसन कवनो सववाद के गंज ु ाइश नइखे, काहेंसक कला आ सासहत्य सजनगी के ओही िरे अभाज्य-अकाट् य अंग बा जइसेहवा-पानी। इहाुँ सािंजस्य आ सिन्वय के भाव बा इचको अलगाव नइखे। एही ससलससला िें भाषाई एकिा आ सिन्वय के िलाशि एह आलेख िें बिौर बानगी हि भोजपरु ी आ कुिाुँउनी लोकगीिन के िल ु नात्िक अध्ययन करे के कोसशश कइले बानी। सववाह संस्कार िें कन्यादान एगो अइसन रस्ि हऽ जहाुँ कठ-करेजी िनई का आुँखी के कोर जरूर भींज जाई। जवना बेटी के िाई-बाबा आपन आुँखी के पिु री आ सहया के टुकड़ा जस पललस-पोसलस, आजु उहे बेटी कन्यादान के बाद पराया हो जाई। एह रस्ि के सनभावि बाबा के हाथ काुँपि बा। आुँखी िें उिड़ि सागर के संभारि ऊुँहा के अपना भावना पऽ काबू राखे के लाख कोसशश करि बानी बासक एह पऽ लगाि नइखे लागि आ आुँखी से लोर झर-झर गीरे लागि बा। एह सस्थसि के असभव्यसि िकरीबन हर भाषा के संस्कार गीिन िें सिले ला। एही ससलससला िें भोजपरु रया अुँचल िें हई गीि के गावल जालाकवन गरहनवा लागे जर्न र्ुपहररया, कवन गरहनवा संझबेर हे। कवन गरहनवा बाबा लागे अजधरजतया, कब र्ू उगररन होई हे। सुरूज गरहनवा लागे जर्न र्ुपहररया, चंर् गरहनवा संझबेर हे। जधया गरहनवा लागे आजधरजतया, कब र्ू उगररन होई हे। धोजतया कााँपेला, पोजिया कााँपेला, कााँपेला कुसवा के ढाह हे। © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 68
जधया ले कााँपेलन बाबा हो कवन बाबा, कब र्ू उगररन होई हे। बजहनी ले के कााँपेलन भइया हो कवन भइया, कब र्ू उगररन होई हे। ज्यादािर भोजपरु ी लोकगीि सवाल-जवाब के रूप िें सिलेला। सवाल-जवाब िें सािसु हकिा के बोर्
आ
धुकनक काल में पाश्चात्य सभ्यता द्वारा आरोकपत कइल गइल मल्ू य आ बाजार के प्रभाव भी भोजपुरी संस्कृकत पऽ पड़ रहल बा । संक्रमण के एह काल में भोजपुररया लोग आपन लोक परं परा से गते-गते दूर हो रहल बा । एह अलगाव के रोके के प्रयास होखे के चाहीं
होखेला। एह संस्कार-गीि िें बेटी के ऋण से उगररन होखे के िल ु ना ग्रहण से उगररन होखे से कइल गइल बा। कन्यादान के घड़ी िें भावना के चक्वाि से बाबा आ भाई के शरीर काुँपि बा। हिार दल ु ारी सर्याबसहनी अब पराई हो जाई। अइसन लागि बा सक िाड़ो काुँपि बा, सबयाह करा रहल पंसडजी के पोथी काुँपि बा आ लइकी के बाबा के हाथ िें कुश के पसविी भी काुँपि बा। कुिाुँउनी िें भी एगो अइसन भाव के संस्कार- गीि सिलेला-
एह गीि के भाव कुछ अइसन बा सक बाबा के हाथ काुँपि बा, गोड़ काुँपि बा आ जल-पाि बा। कुसवो काुँपि बा। बेटी अपना बाबा से कहि सबया- बाबा िि काुँपी, र्ीर र्रीं इ एगो रस्ि हऽ जवन सभे के सनभावे के पड़ी। बाबा अपना दल ु ारी सर्या से कह रहल बाड़ेबेटी हि नइखीं काुँपि ऊ कुस काुँपि बा- जल-पाि काुँपि बा। िासिा किा के पटु एह दनु ो संस्कार गीि िें रचल-बसल बा।
इ आिया के बाि बा सक भोजपरु रया क्षेि आ कुिाउुँनी अंचल भौगोसलक रूप से िऽ दरू बाड़े बासक भाषाई- सांस्कृसिक रूप िें एह दूनों के बीच िें काफी सिानिा बा। एह आलेख के आसखर िें हि इ कहल चाहि बानी सक असल िें एक ओर जहाुँ हिनी के आपन परु ािन सांस्कृसिक परंपरा से सिलल लोक आ र्ासिा क संस्कार हिनी के पाररवाररक आ सािासजक सजनगी के प्रभासवि करेला िऽ दोसरे ओर एह उत्तर आर्सु नक काल िें पािात्य सभ्यिा िारा आरोसपि कइल गइल िूल्य आ बाजार के प्रभाव भी भोजपरु ी संस्कृसि पऽ पड़ रहल बा। संक्िण के एह काल िें भोजपरु रया लोग आपन लोक परंपरा से गिे-गिे दूर हो रहल बा। एह अलगाव के रोके के प्रयास होखे के चाहीं। एह से हिनी के इ दासयत्व बा सक असगला पीढ़ी खािी लोकगीि रूपी आपन सांस्कृसिक थासि के जोगावे-सररयावे के प्रयास कइल जाए।
हर हर कं प, िर िर कं प वो तो कं प है गडुए जक धार ए। हर हर कं प, िर िर कं प है कूसै जक डाजल ए। जहय झन कं प बबज्यू, मन झन कं प, वो तो कं प है गडुवे जक धार। वो तो कं प है कूसै जक डाल ए। हम कहााँ कं पे लाडु लडैती, वो तो कम्पै है गुडुए की धार ए। जहय झन कं प बब्जज्यू मन झन कं प, वो तो कम्पै है गडुए जक धार ए। © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 69
हसनेमा
कवना समाज के प्रकतकनकध हऽ भोजपुरी कसनेमा ?
र
उआ के शव प्रसाद सिश्र के नांव सुनले बानी? एगो अउर सवाल ‘कोहबर की शिा ’ रचना के बारे िें कवनो जानकारी बा? नांव के बाि चलल बा एह से पूछ रहल बानीं सक नांव से कवनो सिाज आ संस्कृसि के का ररश्िा होला? का नांव से कवनो सिाज के िानससकिा के बारे िें कुछ पिा चलेला? हि खाली कुछ भोजपरु ी ससनेिा के नाि ले रहल बानीं। पसहले 1990 िक के ससनेिा- गंगा िईया िोहे सपयरी चढईबो, लागी नाही छूटे रािा, सबदेससया, भौजी, अिर सुहासगन, बलि परदेसशया, चनवा के िाके चकोर, चटु की भर सेनरु , नसदया के पार, दल्ु हा गंगा पार के आसद। अब एकरा बाद के कुछ ससनेिा के नाि सनु ीं ‘ससुरा बड़ा पइसा वाला’, 'सनरहआ सटल रहे', सनरहआ िांगेवाला, सनरहआ बनल डॉन, देवरा बड़ा सिावेला, 'सबरजआ ु ढे ला वाला', 'लड़ाई लऽ अंसखयां ए लौंडे राजा', कहां जइबा राजा नजररया लड़ा के , अंसखया िोहार किाल कइले बा, एक सबहारी सौ पर भारी आसद आसद। सलस्ट लिहर बा बस एकरा के निूना िानीं आ बिाई ं सक ससनेिा के एह नाि सब से सिाज के बारे िें कुछ पिा चल रहल बा सक ना। नांव से कुछ फका पड़ेला भा एकर कवनो ििलब ना
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प्रर्ोद िुर्ार सतवारी भभुआ मबहार के रहे वाला प्रिोद कु िार जी , कें रीय मविमवद्यालय गांधीनगर , गुजरात िे अमसस्टेंट प्रोफे सर बानी । इाँहा के भोजपुरी आ महन्द्दी सामहत्य खामतर लगातार काि कर रहल बानी । पत्र पमत्रकन िें प्रिोद जी के रचना आकषयण के कें र होली स । भोजपुरी भाषा आ सामहत्य के इाँहा के अपना लेखनी से बररआर चोख धार देले बानी । एह घरी गांधीनगर गुजरात िे बानी ।
होखे। बहि सदन बाद हिरा के एगो ससनेिा के नांव सनु े के सिलल रहे- ‘चलनी के चालल दल ु हा’ जइसहीं ई नांव सनु नी बझ ु ाइल जे गांव से एगो ठंडा हवा के झोंका चल आइल, कान िें गीि गूंजे लागल- ‘चलनी के चालल दल ु हा, सूप के पछोरल हो’। देर िक लोक के कल्पना शसि, सबंब बनावे के क्षििा, उपिा अलंकार आ जाने का का िन िें आवि चल गइल आ कान िें र्नु बाजे लागल आ आंसख के सोझा पररछन के सीन चले लागल जवना िें हाथ िें लोढ़ा सलहले दल ु सहन के िाई बाड़ी, ढे र सारा िेहरारू, लइसकन, बच्चा से घेराइल दल ु हा खाड़ बाड़े आ गीि चल रहल बा ‘छोटे िोटे सास बाड़ी बड़े गो दािाद हे, िनकी सा सनहर बचवा, पररछीं सललार हे’ बासकर जइसहीं ‘ढे ला वाला' टाइप के नाि सदिाग िें आवेला अइसन कवनो सीन सदिाग िें ना आवे बलुक एगो पूरा संस्कृसि के बहि सीसिि क देबे वाला टपोरी टाइप के दृश्य आंसख के सोझा आ जाला। एकर बड़ कारण बा सक भोजपरु ी ससनेिा बनावेवाला लोग के अपना संस्कृसि आ सिाज से ररश्िा नइखे। इ कवनो जरूरी नइखे सक सब के हू के अपना संस्कृसि के सिझ होखहीं के चाही। ढे र लोग रोजी-रोटी के जोगाड़ िें लागल रहेला कहां सिाज आ संस्कृसि के चक्कर िें पड़े लोग। बासकर जे संस्कृसि के कारोबार करे चलि बा ऊ अइसन लोग के पहचासनयो ना सके सक कवन आदिी नीिन सलख सके ला, के बसढया े़ संगीि दे सके ला ! ि एकर ििलब बा सक ऊ अपना काि के ले के ईिानदार नइखे। ‘चलनी के चालल दल्ु हा’ जइसन नाि के पीछे शायद सनलय उपाध्याय जइसन कसव के भूसिका ना रसहि ि ई नाि ना आ पाइि। अइसहीं ‘नसदया के पार’ ससनेिा ना बन पाइि अगर के शव प्रसाद सिश्र आ उनक ु ा उपन्यास ‘कोहबर के शिा ’ के सचन्हे वाला आ ‘दोस्िी’ जइसन
ससनेिा सलखेवाला लेखक गोसवंद िूसनस ना रहिे । बहि साल बाद जब एही कहानी प ‘हि आपके हैं कौन’ जइसन सफसलि बनल ि ओहू िें के शव प्रसाद सिश्र के नाि डालल गइल। सदु रू राजस्थान के जनिल सहंदी ससनेिा बनावेवाला िाराचंद बड़जात्या भोजपरु ी के िाकि पहचान लेले आ लगभग भोजपरु ी िें पूरा ‘नसदया के पार’ बना देले। इहे ना जब ‘िैंने प्यार सकया’ बनवले ि शारदा ससन्हा से ‘कहे िोहसे सजना िोहरी सजसनया’ गाना गववले बासकर भोजपरु ी ससनेिा बनावेवाला लोग के एह कलाकारन के इयाद ना आवे। एह लोग के खाली एगो चीज आवेला सक लोग िें सहंसा आ सेक्स के िड़का िार के कइसे पइसा किा सलहल जाव। अक्सरहां हि सनु ले बानीं सक अइसन लोग कहे ले सक ससनेिा बनावे िें बहि पइसा लागेला, हिसनयों के चाहेनीं सक नीिन सांस्कृसिक सफसलि बनाई ं जा बासकर नक ु सान के डर से ना कर पावेनीं। एह िका के खोखलापन प का कहल जाव, का भोजपरु रया लेखक आ गायक लोग करोड़ िें पइसा
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िांगे ले, का ‘नसदया के पार’ बनावे िें बहि पइसा लागल राहे। का गज ु रािी से लेकर बंगाली भाषा िें जेिना ससनेिा बनि बा ऊ सब िें करोड़ो रूसपया खरचा होखेला। असली सवाल पइसा के ना िेहनि आ नीयि के बा जवना के भारी किी भोजपरु ी ससनेिा िें देखे के सिलि बा। भोजपरु ी के ज्यादािर सफल्ि एगो खास वगा के ध्यान िें राखी के बनावल जा रहल बाड़ी स। ससनेिा के नांवे अइसन राखल जाला सक कुछ लोग भुलाइयो के देखे ना जाव आ कुछ लोग खाली नांव सनु के ही ससनेिा हॉल िें पहचं जाव। पसहले एगो ससनेिा होि रहे (असभयो होिे होखी) जवन खाली सबेरे आ रािी के देखावल जाि रहे। ‘गरि जवानी’,‘कच्चीकली’ से ले के ‘पसहलकी राि’, ‘वासना की राि’ जइसन ओकर नांव सकशोर उसिर के लइकन के खूब खींचे, लगभग उहे हाल भोजपरु ी ससनेिा के हो गइल बा। लोग सोचिे नइखे सक कुछ नीिन कइल जाव आ जे भी असभनय, संगीि भा सनदेशन के गंभीरिा से लेवेला ऊ भोजपरु ी के बजाय सहंदी भा दूसर भाषा के ससनेिा िें चल जाला। एक हाली व्यसिगि रूप से हि िनोज वाजपेयी से पूछले रहीं सक रउआ एिना नीिन भोजपरु ी बोलि बानीं एगो ससनेिा भोजपरु ी िें काहें नइखीं करि? ऊ छूटिे कहले हि दउड़ के करब बासकर के हू भोजपरु ी के ढंग के सस्क्प्ट लेके हिरा लगे आवे िब न। असििाभ से लेकर जैकी श्राफ िक के इस्िेिाल कइल जा रहल बा बासकर एह लोग के भोजपरु ी ससनेिा के स्िर सर्ु ारे से कवनो संबर्ं नइखे कुछ सनिाा िा सनदेशक लोग किाई करे खासिर एह नाि के इस्िेिाल करे ले जवना िें सस्क्प्ट आ सनदेशन प िेहनि एकदि ना लउके । भोजपरु ी ससनेिा के साथे एगो बहिे खिरनाक बाि जड़ु ल बा जवना के चचाा बहिे अहि बा। हर जागरूक सिाज अपना संस्कृसि के ले के सम्िान के भाव राखेला अउर कोसशश करेला सक ओकर नीिन
छसव बाहर के लोग के देखे के सिले। बंगाल, गज ु राि आसद राज्यन के लोग के अपना भाषा आ पारंपररक त्योहारन से गहरा ररश्िा भा। दगु ाा पूजा के सिय बंगाल िें आ गरबा के सिय गज ु राि िें रउआ दूसरा भाषा के गीि के कल्पना ना कर सकीं बासकर फगआ ु से ले के भोजपरु ी ससनेिा िक िें सहन्दी के गाना आ ओकर र्नु लगािार सुने के सिल जाई। एह सिाज के लोग अपना सथयेटर आ नाटकन के खाली िहत्वे ना देले बलक ु सटकट कटा के देखे जाले जबसक हिनी के सिाज असभयो किोबेस उहे बा जवन सभखारी ठाकुर के नाटकन खासिर भी अपना बच्चा सब से कहि रहे सक ‘अरे सभखररया के नाच देखले सबना कवन अकाज बा, गइलन स ि गोड़ िोड़ देब ।‘ अइसन नइखे सक बंगाल िें अश्लील सासहत्य आ ससनेिा ना होखे। बंगाली सिाज िें भी एगो वगा अइसन होई जवन खाली िजा, सहंसा आ अंग प्रदशा न वाला चीज देखल चाहि होखी। आसखर देह के कारोबार के सबसे बड़ िंडी ि कलकिे िें न बा, बासकर बाहर के सिाज िें रवीन्द्रनाथ ठाकुर, शरिचंद्र, सत्यजीि राय, ऋिपु णो घोष आ एक से बढ़ के एक सचिकार लोग के चचाा होला। काहें? एह से सक उहां के सिाज अपना सासहत्य, ससनेिा, संगीि आ एह सब से बनेवाला संस्कृसि के सदल से प्यार करे ले। एकरा उल्टा भोजपरु रया सिाज के िथाकसथि सिझदार लोग ‘बेकार ससनेिा’ के नान्ह जाि, छोटका लोग, कि पइसा वाला लोग के ससनेिा कह के सकनारा क लेवेले आ सहंदी भा अंग्रेजी िें घुस के अपना के बड़का सिझे लागे ले। असल िें ई भोजपरु ी सिाज िें बहि गहराई िक ले बइठल सािंिवादी सोच हउए। ससनेिा बड़का छोटका के ना पूरा सिाज के होखेला। ई गलि सोच बा सक कि पढ़ल लोग ‘बगल वाली जान िारे ली’ टाइप चीज से जड़ु ेला। का गरीब आ कि पढ़ल लोग ‘नसदया के पार’ देखे ना
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गइल रहे, ऊ खाली अिीर लोग के बल प बनारस िें लगािार चले के ररकाडा बनवले रहे। ई सब एगो भरि ह, कुल सिला के अइसन ससनेिा से बाहर के लोग के इहे सनेस जाला सक भोजपरु ी िें एकरा अलावा कुछो हइए नइखे। सबसे बड़ बाि सक सफलिा के बादो िनोज सिवारी, सनरहू, रसव सकशन आसद लोग आ एह उद्योग के बड़का लोग एह सस्थसि के बदले कवनो कोसशश ना करे, बलक ु सहंदी ससनेिा िें जाके इहे लोग ढे र िेहनि करे ले आ ओकरा के गंभीरिा से लेवेले। एकरा बादो भोजपरु रया सिाज इनका के आपन िानेला आ सम्िान देवेला। जवना सिय िें िराठी आ गज ु रािी ससनेिा नेशनल अवाडा जीि रहल बा आ आस्कर खासिर नासिि हो रहल बा ओही सिय िें पररवार के बीच भोजपरु ी ससनेिा देखे िें लाज लागि बा एह से शिा नाक सस्थसि भोजपरु ी सिाज खासिर दूसर ना हो सके ।
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पवन र्टू न
भोजपुरी संस्कृकत के वाहक भोजपुरी कफल्म ?
स
ब के हू जानेला सक भोजपरु ी के पसहला सफल्ि 'गंगा िईया िोहे सपयरी चढ़इबो' रहे बासकर एकरो से पसहले भोजपरु ी-गीि, सनदेशक सकशोर साहू के सफल्ि “नसदया के पार” िें 1948 िें असखल भारिीय भोजपरु ी सासहत्य सम्िलेन के अध्यक्ष िोिी बी ए सलखले रहन। एकरे बाद भोजपरु ी गीिन के सफल्ि िें रखल ररवाज बन गइल। भोजपरु ी ससनेिा के भीष्ि सपिािह नासजर हसैन से देशरत्न बाबू राजेंद्र प्रसाद जी कहले रहीं, 'बहि सहम्िि होखे ि भोजपरु ी ससनेिा बनावs।' फे रु नासजर साहब एगो सस्क्प्ट सलखलन, नाि रखलन गंगा िईया िोहे सपयरी चढ़इबो आउर सनिाा िा खोजे लगलन। सनिाा िा के रूप िें सविनाथ शाहाबादी, सनदेशक के रूप िें कंु दन कुिार, हीरो के रूप िें असीि कुिार, सहरोइन के रूप िें कुिकुि आ सहायक कलाकारन के रूप िें रािायण सिवारी, पदिा खन्ना, पटेल अउर भगवान ससन्हा जइसन लोग एह सफल्ि के सहस्सा बनल। गीि शैलेंद्र के ि संगीि सचिगप्तु जी के । 16 फरवरी 1961 के सदन भोजपरु ी ससनेिा खासिर एगो ऐसिहाससक सदन रहल। भोजपरु ी के पसहला सफल्ि ‘गंगा िईया िोहे सपयरी चढ़इबो’ के िहु ूिा भइल आउर शूसटंग शरू ु भइल। सफल्ि बनल आउर 1962 िें रीलीज भइल, गाुँव ि गाुँव, शहरन के लोग भी सफल्ि देख के दीवाना हो गइल। ए सफल्ि के खाससयि रहे दहेज, बेिेल सववाह, नशाबाजी, सािंिी संस्कार, अंर्सविास आउर गाुँव के सिस्या, जे भोजपरु रया लोगन के आपन सजनगी के सिस्या लागल। एह सफल्ि के गीि एिना िोहक रहे सक गली-गली बाजे लागल। पाुँच लाख के पज ूुँ ी से बनल ई सफल्ि 75 लाख रुपया के किाई कइलस। भोजपरु ी सफल्ि सनिाा ण के दौर शरू ु हो गइल बासकर “लागी नाही छूटे राि” आ “सबदेससया” के छोड़ के कवनो दोसर सफल्ि किाल न कइलस। 1977 िें सबदेससया के सनिाा िा बच्चू भाई साह, सुजीि कुिार आ सिस इंसडया प्रेिा नारायण के लेके रंगीन भोजपरु ी सफल्ि 'दंगल' के सनिाा ण कइलन। नदीि-श्रवण के िर्रु संगीि से सजल दंगल व्यवसाय के दंगल िें भी बाजी िार ले गइल। एकरा बाद नासजर हसैन फे न सरु फुरइलन
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हसनेमा
डा॰ एस िे ससंह बमलया युपी के रहे वाला डा. एस के हसंह जी कफलहाल बनारस िे अमसस्टेंट कमिश्नर बानी ।भोजपुरी आ हहंदी सामहत्य िें सिान दखल राखेनी । भोजपुरी भाषा प लगातार मलख रहल बानी ।आखर पेज प इाँहा के मलखल कई गो मववेचनात्िक लेख , भोजपुरी कमवता आ चुकल बा ।
आ राके श पांडेय, पद्मा खन्ना के लेके 'बलि परदेससया' बनइलन। अंजान आ सचिगप्तु के खनखनाि गीि-संगीि के दि पर बलि परदेससया रजि जयंिी िनइलस। एकरा बाद सनिाा िा अशोक चंद जैन के सफल्ि 'र्रिी िईया' आ 'गंगा सकनारे िोरा गाुँव' हीरक जयंिी िनइलक। 1983 िें िोहन जी प्रसाद के हिार भौजी, 1984 िें राज कटाररया के 'भैया-दज ू ', 1985 िें लाल जी गप्तु के नैहर के चनु री आ िसु ि नारायण पाठक के सपया के गाुँव, 1986 िें रानी श्री के 'दल्ू हा गंगा पार' के सहट भइल जेकरा से भोजपरु ी, सफल्ि व्यवसाय िें आगे बढ़ल। 1982 से 2002 िक हालि सबसे खराब रहे। 2003 िें िनोज सिवारी के 'ससरु ा बड़ा पईसावाला' के सपु र-डुपर सहट भइला के बाद भोजपरु ी ससनेिा के नया अविार भइल। िोहन जी प्रसाद रसव सकशन के लेके सईयां हिार आ सईयां से कर द सिलनवा हे राि बनवलन। िोहन जी प्रसाद के असगला सफल्ि 'पंसडि जी बिाई ं ना सबआह कब होई' सहट भइल। असििाभ बच्चन, अजय देवगन, जूही चावला, सिथनु चक्विी जइसन नािी कलाकार भोजपरु ी सफल्ि िें काि करे लगलन। भोजपरु ी सफल्िन के शूसटंग लंदन, िॉररशस आ ससंगापरु िें होखे लागल। सभु ाष घई, सायरा बानो आ राजश्री प्रोडक्शन जइसन लोग भोजपरु ी से जड़ु ल। सदनेश लाल यादव सनरहआ, पवन ससंह, पंकज के सरी, सवनय आनंद, कृष्णा असभषेक , रानी चटजी, नगिा, भाग्यश्री, सदव्या देसाई, पाखी हेगड़े, ररंकू घोष, िोनासलसा, िेिा सिवारी जइसन कलाकार लोग भोजपरु ी ससनेिा िें काि करे लागल। इ उहे दौर रहे जब कल्पना भी गासयका के रूप िें सािने अइली। हिार टीवी आ िहआ सिेि भोजपरु ी के कई टीवी चैनल के शरुु आि भइल। भोजपरु ी सफल्ि के रेड िैगजीन भोजपरु ी ससटी, भोजपरु ी संसार ससहि कई गो सफल्िी पसिका शरू ु भइली सन। 2011 िें िनोज सिवारी के सफल्ि भोजपरु रया डॉन के अंिराा ष्रीय सफल्ि फे सस्टवल िें नेविा सिलल। 2010 िें सनिाा िा प्रवेश ससप्पी के सफल्ि ित्ृ यंज ु य पसहला सफल्ि रहे जवन पूरा देश िें एके साथ लागल। नासयका ररंकू
घोष इहे साल सफल्ि सबदाई से भोजपरु ी सफल्ि इंडस्री िें जवन जगह बनवली उ आजु िक बरकरार बा। नवका सहरोइन िें गंज ु न पंि सफल्ि िार देब गोली, के हू ना बोली से सहट भइली। भोजपरु ी िें एगो आउर सपु र स्टार सवनय आनंद, 'नसनहाल' सफल्ि के जररये अइलन। पवन ससंह आ िोनासलसा के 'एक और कुरुक्षेि' चचाा िें रहल। ज्यादे किाए वाला सफल्ि देवरा बड़ा सिावेला, दाग, दासिनी, साि सहेसलयां सब दो करोड़ से िीन करोड़ िक के व्यवसाय कइलक। सनरहआ पाखी हेगड़े आ िोनासलसा सफल रहल लोग। 2011 िें कहीं भोजपरु ी सफल्ि असर्वेशन, कहीं भोजपरु ी सफल्ि अवाडा िो कहीं भोजपरु ी ससटी ससने अवाडा ििलब सालो भर भोजपरु ी सफल्ि उत्सव रहल। सदल्ली के 'सवि भोजपरु ी सम्िलेन' िें भी सफल्ि पर सवशेष सि राखल गइल। ए साल राजकुिार पाण्डेय के रक ड्राईबर, सनिाा िा आलोक कुिार के सफल्ि साजन चले ससरु ाल आ सनरहआ के पाररवाररक सफल्ि औलाद अच्छा सबजनेस कइली सन। 2012 से 2014 िक िें बनल सैंकड़ों सफल्ि िें खाली द-ु चार गो सफल्ि सपु र सहट भइल होई। ई ि एगो िोटा-िोटी ररपोटा बा। सनष्कषा बा सक भोजपरु ी सफसलि गीिन िें अश्लीलिा बढ़ि जाि बा। संगीि ज्यादािर सघसल-सपटल आ कॉपी-पेस्ट टाइप सिलि बा। अभी भी ठाकुर साहब रेप करि बारन आ लाला जी िंशु ीसगरी करि बारन। शैलेंद्र, िजरूह सल्ु िानपरु ी, अनजान, लक्ष्िण शाहाबादी जइसन गीि सबला गइल बा। रोिांस के नाि पर सहरोइन के ढ़ोंढी सदखावे से बाज नईखे आवि लोग। हिरा ईयाद आविा सक हिहूं 2004-05 िें गोरखपरु पोसस्टंग के बेरी भोजपरु ी सफल्ि “ससुरा बड़ा पइसेवाला” के बनिे देखले रहीं.... टैक्स फ्री आउर अनदु ान खासिर सनिाा िा के सस्क्प्ट जिा करे के होखेला.... पटकथा जइसे जइसे पढ़नी, कपार पीटि गइनी.... पटकथा आ गाना का रहे? सहंदी – उदा ू वाक्य सवन्यास के बेसरि भोजपरु ी अनवु ाद रहे...
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िीस लाख के लागि से बनल ई सफल्ि 110 लाख के कारोबार कईलस... सनिाा िा सर्ु ाकर शिाा जी लाल हो गइलन.... एकरा बाद ि भोजपरु ी सफल्ि िें पईसा लगावे वालन के लहार आ गइल। एक से एक नएका र्सनक लोग फे टा बांर् के कूद पड़ल... जइसे कवनों सपआज- लहसनु ना खाए वाला आदिी पईसा खासिर िांसाहारी होटल बनवा के नफ्फा किाला... वइसे ही लोग भोजपरु ी सफल्ि बनावे िे कूद पड़लन... बड़का बड़का लोग के ईिान हीले लागल... ! एक से एक फूहर सफल्ि बनल... एक से एक अश्लील गाना सलखाइल... 20 करोड़ भोजपरु ी भाषी आबादी के आगे गावि अइसन रील आ गाना रखाए लागल... िनोज सिवारी, रसव सकशन, सदनेश लाल यादव 'सनरहआ', रानी चटजी, ररंकू घोष, पाखी हेगड़े, िेिा सिवारी जइसन लोग भोजपरु ी ससिारा हो गइल… बॉलीवडु आ साउथ इंसडयन सफल्िन के असफल कलाकारन खासि भोजपरु ी सफल्ि उद्योग सफलिा के देसी फािा ूला बन गइल, भोजपरु ी भाषा के सफल्ि अब “आइफा” और कई सवदेशी अवाडा सिारोहन िें प्रीसियर खासिर जािा... कहल जािा सक एह सफल्िन से देशभर के ससंगल स्क्ीन ससनेिाघर एक बार फे र सजंदा हो गइल बा.... अब भोजपरु ी िें असििाभ बच्चन, हेिा िासलनी, जया बच्चन, सिथुन चक्विी, अजय देवगन, सजिेंद्र से ले के हर छोटा बड़ा असभनेिा, गायक, सनिाा िा सनदेशक आ कॉिेसडयन लोग काि करि बाड़ें। भूसिका चावला, नीिू चंद्रा, ऋसषिा भट्ट, िेिा सिवारी,
संभावना सेठ, भाग्यश्री, रसश्ि देसाई, नगिा, पाखी हेगडेे़, िोनासलसा, ररंकू घोष, रंभा, अनारा गप्तु ा, लवी रोहिगी, प्रीसि सझंसगयानी खासि भोजपरु ी सफल्ि अब जान हो गइल बा... वइसे ही राहल राय, िक ु े श खन्ना, कृष्णा, सवनय आनंद, रसव सकशन, शसि कपूर , कुिार सानू, अनूप जलोटा, एकिा कपूर, उसदि नारायण भी जइसन लोग आजकल भोजपरु ी िें कूद गइल बा... असििाभ बच्चन भी भोजपरु ी िें सफल्ि ‘गंगा’ िें काि कइलन… लेसकन भोजपरु ी िाटी के लोग, जेकरा सदल िे भोजपरु ी रहि बा, उ लोग दूरे से सलाि करि बा... सवाल बा सक चोली आ दपु ट्टा के फारिल ु ा के सबना सफल्ि के सविरण लटक जािा...? िनोज वाजपेयी, प्रकाश झा जइसन भोजपरु ी िाटी के लोग एहसे काहे नईखे जड़ु ि ? भोजपरु ी सलखवइया लोग काहे चपु बा ? ई पईसा से पईसा किाये आ बनावे खासिर बाहर के रुपया भोजपरु ी सफल्ि िें लगा के एकर नास करे के रीि कब रुकी ? ई कुछ सवाल बा, सोचीं सभे...! सरकार से सनहोरा बा सक उ अइसन ससिसि बनावे जे भोजपरु ी ससनेिा पर नजर रखे, अश्लीलिा के सीिा िय करे। अश्लील सफल्ि बनावे वालन के खल ु के सवरोर् आ आच्छा सफल्ि बनावे वालन के सम्िासनि कइला के जरूरि बा। कलाकार लोग जे भोजपरु ी सफल्ि िें काि करि बारन उ भोजपरु ी टोन सीख ले ि आउर अच्छा होई। सवि स्िर पर भोजपरु ी के पहचान भोजपरु ी सफल्ि आ सासहत्य से बा एह से एह प ध्यान सदहल जरूरी बा ।
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हसनेमा
इिााँ से किााँ ? भोजप रु ी हसनेमा के भहवष्य
चा
सिसति िंद्रा डु िरांव , मबहार के रहे वाला युवा मनदेशक , भोजपुरी मसनेिा िे सकारात्िक चचाय के शुरुवात करे वाला देसवा कफल्ि के मनदेशक मनतीन चंरा जी , भोजपुरी भाषा आ सामहत्य खामत कलि से ही ना कै िरा से भी आपन शत प्रमतशत दे रहल बानी । कफलहाल इाँहा के िुम्बई िे बानी ।
रो ओरर बरफ जिल बा, िेि आ शांि... अिरीका उज्जर भईल बा । ससंगापरु , सफजी, टोरंटो के बाद काल्ह न्यू जसी िें "देसवा" देखे खासि करीब 50 आदिी, - 10 सडग्री िापिान िें भी जटु ल रहे । जइसेजइसे सफल्ि आगा बढ़ि रहे, लोगन के चेहरा पर अलग-अलग भाव देख के कि से कि िन के अिना शांसि जरूर सिलि रहे सक भोजपरु ी िें साथा क ससनेिा खासि दशा कन के कवनो किी नईखे । ना देस िें ना सबदेस िें । ससनेिा सचि के नदी िें बहि भाषा आ भाव के लहर पर पाि रूपी पिवार से खेवि एक नाव ह । अगर कहानी आ सचिण िनोहारी होखे ि उ नाव लाखन दरसकन के बइठा के कथा के ओह पार दोसरा सकनारा प ले जा सके ला । बहि लोग के बहिे सवाल रहे, आ बेसी लोग इहे पछ ू ि रहे के अिना बसढयां सफसलि बनल बा ि ररलीज काहे नईखे होि ? एह सवाल के जवाब देबे िें पूरा भोजपरु ी ससनेिा आ भोजपरु ी भाषा के सािासजक, आसथा क, सासहसत्यक, सांस्कृसिक आ राजसनसिक सस्थसि के लेखा जोखा हो सके ला । एकर सवश्लेषण िें भोजपरु ी ससनेिा के काल लुकाइल बा । इ आलेख िें हि भोजपरु ी ससनेिा के भसवष्य प आपन व्यसिगि सबचार रखे के कोससस कर रहल बानी । लोग आपन सववाद प्रकट करे खासिर आजाद बा । ससनेिा कहानी कहे के जररया ह। रउवा अगर िहाकाली के गफ ु ा, बराबर गफ ु ा चाहे ऐसिहाससक कवनो गफ ु ा के बारे िें पढब ि ओह िे परु ान सचिकारी होखि रहे, जेकरा िें लोग आपन कहानी, सदनचयाा चाहे कवनो दोसरा जरुरी घटना के सचिण करि रहे । इंसान अगर अपना आपके असभव्यि ना करे ि ओकर पूरा असस्ित्व ख़िरा िें पड़ जाई, आ ई बाि व्यसि सवशेष से लेके सिाज आ राष्र स्िर पर लागू होला । लेसनन कहले रहलन - Of all the arts, for us the cinema is the most important. िाने "दसु नया के िय कला िें सबसे जरुरी जवन कला ह उ ह ससनेिा ।"
२ । आखर पत्रिका
. फ़रवरी २०१५
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भले ही हिनी के देस िें लोग ससनेिा के खाली िनोरंजन कहे बासक िय लो के अचेिन िन िें ई बाि रहेला सक ससनेिा के असर अच्छा - बरु ा बा । एही से सेंसर बोडा के भी गठन भईल बा । देखल जाव ि जवन भाषा के सासहत्य िजबूि रहल बा, ओह भाषा के ससनेिा आ गीि-संगीि िजबूि आ प्रभावी , रुसचकर रहेला । कहे के ििलब के िख्ु यर्ारा के ससनेिा आ गीि संगीि हर वगा खासिर होला । बासकर भोजपरु ी िें अईसन नईखे । सपछ्ला दू साल िें एगो गज ु रािी सफल्ि ऑस्कर खासि गईल आ दू गो सपु र सहट भईल । उ कुल गज ु रािी सफल्ि बंबई के िल्टीप्लेक्स िें भी लागल रहे आ सपु र सहट रहे । कारण ई बा के गज ु रािी सिाज भी कबो आपन भासा के ना सबसरले । इ खाली उत्तर प्रदेश आ सबहार िें भईल बा । "देसवा" नीयन सफसलि एक साल िें पांच गो बनी ि शायद भोजपरु ी ससनेिा िें एगो बड़ सर्ु ार हो सके ला लेसकन इ सोचल सक गाय के सबना दहु ले डायरेक्ट पनीर सनकल जाउ वाला बाि होई । ि आसखर होखी कईसे ? अब एकरा िें जवन शाटा टिा िने की िरु िं से ठीक होखे वाला िरीका होखी इ सक बड़ा चेहरा जइसे की िनोज बाजपाई नीयन लोग हीरो बने । अनरु ाग कश्यप आ प्रकाश झा नीयन लोग भोजपरु ी सफल्ि बनावे। आ ना ि बड़ा बजट के सफल्ि बने, जेकरा िें अउलाह पईसा लगा के िाके सटंग कईल जा सके ।
उ पररसस्थसि के इन्िजार कइल ठीक नईखे । भोजपरु ी ससनेिा आज जवना दौर िें बा एसहजा एगो बहस ि हो रहल बा बासकर हर िरह के बहस बंद भईल एगो भयावह सस्थसि जइसन होखी । हिरा एकरे िें अवसर लउकिा, इहाुँ से एकरा के िोड़ल जा सके ला, एगो नया रास्िा पर एकरा के उिारल जा सके ला , आ िोड़े के शाटा टिा िरीका ि हि बिवनी ह, आ लांगटिा िरीका इ बा सक भोजपरु ी इलाका के सारा स्कूल िें भोजपरु ी के पढ़ाई आ भोजपरु ी िाध्यि िें पढ़ाई (दू िीन सवषय िें) बारहवीं िक असनवाया कईल जाव, आठवाुँ सूची िें डालल जाव, सासहत्य आ ससनेिा खासि सरकारी अनदु ान होखे, जइसे की दोसरा भासा कुल िें बा । आज से 20 साल बाद सफल भोजपरु ी सफल्ि खासिर िरु िं पाठ् यक्ि आ सासहत्य िें बड़हन काि करहीं के पड़ी । दोसरा कवनो रास्िा नईखे । आज जब सदन भर अंग्रेजी बोले वाला लोग न्यू जसी, ससंगापरू आ टोरंटो जईसन जगह प "देसवा" देसख के अच्छा-अच्छा बाि कहिा, ि हिरा िन िें उम्िीद के सकरन जागल बा। लेसकन अगर लोग अपना पहचान के लेकर जल्दी संवेदनशील ना होइहे ुँ, ि इहे सफ़े द आ ठंडा बरफ के चादर नीयन भोजपरु ी भाषा, एकर पहचान, सासहत्य आ ससनेिा ठंडा पड़ जाई आ एकरो पर उज्जर कफन चसढ़ जाई ।
भोजपरु ी ससनेिा के भसवष्य िबे बा जब नया दशा क जड़ु े, नया दशा क ििलब के पढ़ल सलखल भोजपरु रया िध्यि वगा । दोसर कवनो राह नईखे । काहे सक गिे-गिे भोजपरु रया सिाज भी आर्सु नकिा के िरफ बढ़ि बा, साक्षरिा बढ़ रहल बा आ जवना िरीका के दशा क बनावल गईल बा इ र्ीरे-र्ीरे कि होखे लसगहें आ जसल्दये भोजपरु ी ससनेिा आपन िौि िर जाई । भोजपरु ी िें जवना सदन ससनेिा िरी ओह सदन शायद भाषा पर भी घाि हो चक ु ल होखी । एसहसे © आखर ● फ़रवरी , 2015 ● 78
लेखक कोना
हनिोरा
भो जपरु ी सासहत्य खासि एगो डेग हिनी के बढ़ल, एगो डेग रउआ भी हिनी के साथे बढ़ायीं इहे सनहोरा बा । कसविा, गीि, कहानी, व्यंग्य, इसिहास, सवज्ञान जईसन सवषय पे भोजपरु ी िें सलखीं । आखर नवका सासहत्यकार लोगन के एक िंच दे रहल बा । आपन रचना के हिनी िक पहचुँ ायीं, राउर बाि सुने आ पढ़े खासिर भोजपरु रया सिाज आुँख सबछवले बा ।
रचना भेजे के कुछ जरुरी हनयि : आपन िौसलक रचना यसु नकोड फॉन्ट/कृसिदेव फॉन्ट िें टाइप करके भेजीं । रचना भेजे से पसहले कि से कि एक बार अपने से प्रूफ रीसडंग जरुर कर लीं । कौिा, हलंि, पणू ा सवराि पे सवशेष ध्यान दीं । रचना िें डॉट के जगहा ससफा पूणासवराि राखीं । ध्यान रहे राउर रचना िें कवनो असंसदीय आ अश्लील भाषा भा उदाहरण ना होखे ।
राउर रचना के स्वीकृसि के सूचना िेल भा िैसेज से सदयाई । रचना के साथे आपन पासपोटा साइज के फोटो आ आपन पररचय (नाि, पिा, काया आ आपन प्रकासशि सकिाबन के बारे िें यसद होखे ि) जरुर भेजीं । रचना भेजे के पिा बा aakharbhojpuri@gmail.com पसिका खासिर राउर हाथ के खींचल फोटोग्राफ, राउर बनावल रेखासचि, काटूान जे सवसभन्न सवषय के अनरू ु प होखे, उहो भेजीं ।
* छोट-छोट लईकन के कलाकारी के भी प्रोत्साहना खासिर स्थान सदयाई । ओहनी के सलखल रचना भा सचि भेजीं ।
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