Aakhar bhojpuri Magazine

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मासिक ई-पत्रिका

भोजपुरी

2015 सितम्बर, अंक:8

एगो डेग भोजपुरी साहित्य खाहि

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© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 1

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प्रकािन / संपादन मंडल : संजय ससंह , ससवान देवेंद्र नाथ सिवारी , वर्ा​ा शसश रंजन सिश्र , नई सदल्ली नबीन कु िार , दबु ई

िकनीकी -एहडह ंग, कम्पोहजंग असिनी रूद्र , न्यू यॉका असनिेष कु िार विा​ा , अबू र्ाबी छाया हचत्र सियोग स्वयम्बरा बक्सी , पी. राज ससंह,

आखर पिा ग्राि पोस्ट- पंजवार (पोखरी) ससवान , सबहार 841509 क़ानूनी सलािकार लसलिेिर नाथ सिवारी , पटना

आखर ISSN: 2395 –7255

वर्ष: 2015, सितंबर । अंक 8 । ई - पत्रिका सब पद अिैिहनक बा ।

फोक मे खोया लोक (भाग-1)

भोजपरु रया लोक के तीन रंग : डोमकच, जट-जटटन आ हरुका ु

प्रमोद ततवारी

मुन्ना कुमार पाण्डेय

लोकगीतनभोजप में रु ी आत्मीयता

लोकगीत के महत्व

िंतोष पटेल

उदय नारायण सिंह

भोजपरु ी लोकगीतन में स्त्िी जीवन

स्त्मतत-शे ष : मोती ृ बी.ए.

लोक िंस्त्कार- खोईंछा

लोकनाटक- बरतहु ारी

मनोरमा सिंह

िरोज सिंह

परामिश मंडल प्रभाष सिश्र , नाससक अिुल कु िार राय , बनारस र्नंजय सिवारी , िुंबई चंदन ससंह , पटना बृज सकशोर सिवारी , सोनभद्र

सुर्ीर पाण्डेय , दबु ई पंसडि राजीव , फ़रीदाबाद असजि सिवारी , सदल्ली असि​ि सिश्र, डु िरांव

भगवती प्रिाद द्वववेदी

महेन्र प्रिाद सिंह

आखर में प्रकाहि​ि रचना लेखक के आपन ि आ ई जरुरी नइखे की संपादक के हिचार लेखक के हिचार से हमले । लेख पे हि​िाद के हजम्मेदारी लेखक के बा । संपका : आपन िौसलक रचना , लेख ,कसविा , फोटो , सवचार आखर के ईिेल-आईडी aakharbhojpuri@gmail.com पे भेज सके नीं । सुसवर्ा खासिर रचना सहंदी यूसनकोड िें ही भेजीं । मुख्य पृष्ठ छाया/आिरण : असनिेष कु िार विा​ा www.aakhar.com | facebook/Aakhar | Twitter : @aakharbhojpuri © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 2


आखर के फुलवारी आपन बात : बतकूचन : भोजपुरी पारं पररक गीतन के महत्व : लोकगीत में बचपन : भोजपुररया लोक के तीन रं ग : डोमकच, जट-जटटन आ हुरुका : जन्म के उछाह में सोहर के सरसता : फोक’(folk) के झोंप में भुलाइल लोक के तलाश ( भाग 1) : भोजपुरी हमार : भोजपुरी लोकगीतन में स्त्री जीवन : जीउटतया: बटलदानी जीमूतवाहन के ईयाद के परब : भोजपुरी लोकगीतन में आत्मीयता : लोक कला आ भोजपुररया संस्कृटत : आँगन के पौधा : भोजपुरी लोक-गीतन में बढ़त अश्लीलता: तीन गजल भोजपुरी में : सावन : सावन के घर बदरा (कजरी) : भादो-माघ : दू गो कटवता : मराठवाड़ा में गबरटघचोर के प्रदशशन : भोजपुरी : छटव बदले खाटत चाहीं युवा कंधा : भोजपुरी के टवकास, टबहार के टवकास : छनुकी :

आखर जमात 4 सौरभ पाण्डेय 5 उदय नारायण टसंह 8 रीता टसन्हा 9 मुन्ना कुमार पाण्डेय 10 केशव मोहन पाण्डेय 14 प्रमोद टतवारी 19 अलख अनाड़ी मनोरमा टसंह शटश रं जन टमश्र

21 22 23

संतोष पटेल देवन्े र नाथ टतवारी अनन्या प्रसाद सुटस्मत सौरभ

27 30 31 32

डा॰ ब्रजभूषण टमश्र ज्योत्सना प्रसाद हृटषकेश चतुवदे ी नथुनी प्रसाद पाण्डेय े पाठक पराग सूयशदव प्रमोद कुमार पाण्डेय टमटथलेश चौरटसया

35 36 36 37 38 39 40

सुधीर पाण्डेय 42 अरटवन्द कुमार पाठक 43

अधीरजी लेखक : कुमुदनी : सेल्फ ररस्पेक्ट : हे कृष्ण राउर आइल जरूरी बा : दू गो गीत : खोई ंछा : टजंदगी आ जाम : बायेन : टदल जब बच्चा था जी (भाग-8) : बरतुहारी : मोती बी.ए. - जे आखरी सांस ले कटवता टजयत रहे : बाजारू माल बना टदहल गइल भोजपुरी के - साक्षात्कार: पुरटबया तान-लोकराग पऽ झूमल वधाश : लोकगीतन के नैसटगशक सौन्दयश से साक्षात्कार : चरमरात आ बेमार टशक्षा प्रणाली : टसयासत के चक्रव्यूह में अझुराइल जाटतगत आरक्षण : खानाबदोश : टकसान : राउर बात : टनहोरा :

डा॰ उमेश जी ओझा टब्रज भूषण चौबे सतीश कुमार रे जलज कु॰ अनुपम गुड्डू कुमार शाह सरोज टसंह कमलेश पाण्डेय प्रभाष टमश्रा बज ृ टकशोर टतवारी महेंर प्रसाद टसंह भगवती प्र॰ टिवेदी

44 44 45 48 49 50 51 52 55 56 62

पंकज भारिाज

65

पंकज प्रजापटत

67

धीरें र कुमार राय

68

मनीष प्रसाद गौरव टसंह

71 73

स्वटस्त आनयन अटनल प्रसाद आखर के ओर से आखर के ओर से

75 77 78 79


आखर चौपाल

भा

आपन बात

षा के कें द्र िें राख के दसु नया भर िें बहुि शोर् भइल बा । शोर् ग्रंथन के भाव भी सदहल जा रहल बा । नॉि चोिेस्की जइसन भाषासवद ि दसु नया के हर कोना िें बड़ी श्रद्धा से पढ़ल जालें । एह सवषय पर सलखल गइल लगभग सारा ग्रंथन िें भाषा के उत्पसि, सवकास, िानव सभ्यिा के सवकास िें भाषा के योगदान, भाषा के सिक्ष चनु ौिी, असस्ित्व रक्षा खासिर भाषा के संघषा जइसन िद्दु ा प्रर्ानिा से उठावल गइल बा । भोजपरु ी भाषा भी एह सविशा के रेस िें कबो कबो दौड़ लगावि नजर आवेले । एकरा पसहले सक एगो िुद्दा बन के सािासजक चेिना के कुरेंदो एकर र्ार कंु द नजर आवे लागेला । कहीं ना कहीं एकरा पीछे हिनी के हड़बड़ी आ एह सदशाई जनि​ि सनिा​ा ण कइले सबना िोचा​ा बंदी के भावना के भी दोष बा । भाषा के िजबूिी सिलेला ओकरा सासहत्य से । बेशक भोजपरु ी िें सासहत्य सृजन के बढ़ावा सदहल जा रहल बा । आरसम्भक सासहत्य भी सल ु भ बनावल जा रहल बा । एकरा बादो भोजपरु ी के बढन्िी के गसि संिोषजनक नइखे । एगो बाि राहि देबे वाली जरुर सबया सक भोजपरु ी के अभी िक के सवकास यात्रा िें कवनो सरकारी भा दरबारी सहायिा के योगदान नइखे । भोजपरु रया अपना िाई भाषा के अपना खून-पसीना से सींच के एजगु ा ले सलयाइल बाड़न जहा​ाँ भोजपरु ी भाषा पर भी सविशा होिा । माई के रूप रंग सजल गीि, छंद से गाभी के मार से आ गजल, िेर, बंद से संि, नाथ, घाघ जी के महस से घोराइल मा ी हनगशनु के िाप से आ पुरबी के द्वंद्व से कवनो भाषा के सिृसद्ध के पिा चलेला ओकरा लोकगीिन के सवसवर्िा से । भोजपरु ी लोकगीिन के िाकि सवसवर्िा ि हइले हs, एकर सबसे बड़हन पज ूाँ ी ह घर-घर िक पहुचाँ । संझा-परािी , रोपनी गीि, कटनी गीि, ओसवनी गीि, जाँिसार, श्रृंगार, हास्यव्यंग्य आ सवरह – सिलन के िोसियन से सजल भोजपरु ी गीिनके िाला एगो दौर िें हर भोजपरु रया के कं ठ के शोभा बनल रहे । जइसहीं एगो कं ठ से गीि फूटे, कइ गो कं ठ सिलके ओकर आवृसि आ प्रभाव दनु ू बढ़ा देव । भोजपरु ी िाटी के भाषा सहयs । िाटी िें से सनकलल आ िासटये िें पोसाइल । शहर के सखंचाव आ गा​ाँव के दबाव एकरा िूल ढा​ाँचा के बहुि हद िक बदललस । शहर के सम्​्ांि वगा के भाषा आ संस्कृ सि भोजपरु ी के ठेठपन रहे ना सदहलस । कुछ लोग ि आपन पहचान छुपावे लागल । भोजपरु ी खासिर ई संक्रिण काल रहे । जे पढ़ सकि रहे ओकरा भोजपरु ी से सचढ़ रहे । जे सलख सकि रहे उ सलखो ि के करा खासिर ? एह दौर िें भी भोजपरु रया सिजाज अपना लोकगीिन के वासचक परम्परा सजयवले रहल । इंटरनेट जनजन के िन िें दबल भाषायी चेिना के स्वर सदहलस । आज पररणाि सािने बा । भोजपरु ी लोकगीिन के संरक्षण के लेके अब कवनो

दसु वर्ा नइखे । सडसजटल भोजपरु रया सिाज एह गीिन के सडसजटलाइज्ड कर रहल बा । आखर एह काि खासिर प्रसिबद्ध बा आ लगािार काि कर रहल बा ।सचल्हो-ससयारो के कथा ि जरुर सनु ले होखब रउरा? सजउसिया िें एह कथा के वाचन-श्रवण होला । पूवा जन्ि के संसचि सनिन बाउर प्रारब्र् असगला जनि िें भी आपन असर देखावेला । सचल्हो के िप उनका लसड़कन के सदघा​ा यु बनाविा ओसहजा ससयारो के लालच उनका लसड़कन के छीन लेिा । कथा के अंि िें ससयारो भी सत्य सनष्ठा से सजउसिया व्रि करिारी आ अपना पवू ा जन्ि के पाप से िक्त ु होके सदघा​ा यु लसड़कन के िहिारी बनिारी । सपिृसिात्िक सिाज िें पत्रु के खास िहत्व होला । भोजपरु रया सिाज िें भी बा । लेसकन एह सबसे परे ई व्रि िाई आ ओकरा बेटा के बीच जवना बन्र्न के रचेला ओकर दोसर उदाहरण नइखे । बेटा के सविास रहेला सक ओकरा िाई के िप ओकरा पर कवनो संकट ना आवे दी, ओसहजा िाई भी अपना बेटा के सरु क्षा के प्रसि आिस्ि रहेले । काहें ना रहो ? उ खर-सजउसिया के सनयसि​ि व्रि जे करेले । एह साल एगो अजीब संजोग बनल रहल हा । सशक्षक सदवस आ जन्िाष्टिी के त्यौहार एके सदने पड़ल रहल हा । सवपररि पररसस्थसि िें संघषा क के देश के शीषा पद प्राप्त करेवाला सवा पल्ली रार्ाकृ ष्णन से जब उनकर सवद्याथी लो जन्िसदन िनावे के प्रस्िाव राखल ि उाँहा के कहले रहनी सक, “अगर हिार जन्िसदन सशक्षक सदवस के रूप िें िनावल जाई ि हिरा बहुि खशु ी सिली ।‘’ िब से सशक्षक सदवस िनावे के परम्परा चल पड़ल । एजगु ा ई बिावल जरुरी बा सक रार्ाकृ ष्णन पर भगवान कृ ष्ण के प्रभाव सववेचना के परे रहे । दशा न शास्त्र के अध्येिा के रुप िें दसु नया भर िें अपना प्रसिभा के लोहा िनवावेवाला रार्ाकृ ष्णन जी अपना दशा न के असर्कांश सहस्सा गीिा के कें द्र िें राख के सलखले रहनी । सकिाब खररदे के पैसा ना रहला के चलिे बड़ बसहन के सफलॉसफी के सकिाब से दशा न शास्त्र के पढ़ाई करेवाला एक सदन अपना दशा न से परु ब आ पसि​ि के बीच सेिु िैयार करेवाला दाशा सनक के रुप िें प्रसससद्ध पाई, के हू ना सोचले रहे । दसु नया देखलस सक िाखन चोरावेवाला, रास रचावेवाला, पापी कं स के वर् करेवाला आ गीिा के उपदेश देबेवाला कृ ष्ण के असर जब के हू पर सर चढ़ के बोले लागी ि उ कइसे रार्ाकृ ष्णन बन के यगु के उद्धार करी । रउआ स्नेह के बरखा िें नहा के हिनी के उत्साह लगािार बढ़ रहल बा । प्रस्िुि बा भोजपरु ी सासहत्य के िाकि के एहसास करावि आखर के नवका अंक । सविास बा राउर आशीवा​ा द सिली ।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 4

ीम आखर


बतकूचन

बतकूचन... िौरभ पाण्डेय

गो सवाल के जवाब बिावऽ, ए भाई लोग ! दू गो गाछ बा । जवना प थोर-बहुि सचरई बाड़ी स । पसहल्का गाछ के सचरइयन के नेिा दोसर गाछ के सचरइयन के नेिा से कहलस जे हिनी के एगो सचरई देदऽ ि हिनी का िहनीं लोगन से सगनिी िें दोबर जाइब जा । दोसरका गाछ के सचरइयन के नेिा कहलस, जे नाऽ, िूहाँ ीं अपना गोल िें से एगो सचरई देदऽ, ि दनू ो गोल के सचरइया सगनिी िें बरोबर हो जइहें सऽ । बिावऽ जा सभे जे दनु ों गछवन प कौ-कौ गो सचरई बाड़ी सऽ ?" सवाल सनु िे ’कदि’ िर सबटुराइल लइका-जवान सभे आपनआपन िूड़ी सभड़ा सदहल लोग । एह गाछ ओह गाछ करि सभे पा​ाँच, साि, नौ, अठारह पढि, लागल बदु बदु ाये । बासक के हू खाँखारर के ना बोलि रहे । िले अचके िें रािचरन सवाल के हावा सनकालि उकरर परले - "ना जइबऽ लोग.. ! गाछ-सबररछ प का खाली पनरह पचीस गो ले सचरई होली सऽ ? जे बदु बदु कइले बाड़ऽ सभे ?.. सइ दू सइ सचरइयन के झोंझ होला झोंझ !.." ई सनु िे जवन ना ठहाका उठल जे रािचरन अपनहूाँ सचहा​ाँ गइले । रािचरन, बाबस ू ाहेब के नासि हवे, कद-काठी आ उसिर से छरहरा जवान ! पा​ाँच बररस भइल, िन से िसनका गरि हो गइल बाड़े । बासकर बाबूसाहेब के खून हवे, ि किहीं उठल-बइठल बारल नइखे । कबो घड़ी-कुघड़ी िसनका बहसक जाले िऽ उनका के अगोरले सफरि, देसह-र्ाजा से िस्ु टंड, िनिोहन गोंड़ उनका हुरिूसि, गोंि​ि, चदरा के गा​ाँिी बान्हि, सनकहे सोसर् देले । एक सिय रहे, अइसन चारों इकाई --बाबूसाहेब, रािचरन, िनिोहन गोंड़ आ गा​ाँव-जवार के लोग-- भोजपरु रहा सिाज के सिहुि-जीवन के एगो अलगे ’सूत्र’ बइठावि लउकल करि रहे । परम्परा से आवि जीवन-िूल्य के गा​ाँठि ई ’सूत्र’ विा िानओ के संदभा के ससहा यावे वाला सूत्र हो सके ला सक ना, एह प अब गाँसभराहे सवचार करे के जरूरि बझ ु ािा । सिहुि-जीवन के हेह ’सूत्र’ िें आपसी भरोसा आ लौसकक बेवहार के िूल्य प चाहें ि के हू सीकि भर अघा सके ला । आ नाहीं, ि एकर ठीक उलट,

भोजपरु रहा िाटी िें सािंिवाद के ’िोथा के गा​ाँठ’ से बेर-बेर जाि​ि ’शोषक आ शोसषि’ के सघनही सरूप के हू देख सके ला । कहे के िाने ई, जे आजक ु े ढङ के िोिासबक एह ’सूत्र’ के िूल-भावना आिना ना बदल गइल बा, जे अब ई सोचले नइखे सोचाि जे सबना सोआरथ के कवनो सहसिल्लू ’सिहुि-जीवन’ संभवो बा ! िबहीं िऽ, ई सनािनी ’सूत्र’ आजु पारम्पररक जीवन-िूल्य के बिा सके से खसलहा नइखे चूकल, बलक ु , भोजपरु रहा सिाज के ’टा​ाँठ’ देसह प गिे-गिे पराइल जासिवाद के सचचरी से िालिेल बइठावे के ’सराप’ भोगऽिा । सिाज के देसह प आजु करुआ िेल के घोंसो, जेसे, ई सचचररया सिटाओ ? सक ना ! छोड़ीं जी.. ढेर सोचेि, ि सदिाग के दही हो जाई ! हेने गाछ प के सचरइयन के ’सवाल’ अलगे खोभाहट कइले बा । जाने कवन गाछ आ गोल के नेिवा के कहलका आसखरी िें िनाइल ? पसहलका गोल दोबर भइल आसक दोसरका गोल बराबर भइल, ई के जाने ? ई कूसल्ह बसिया कवनो सवाल ना बिावे । सवाल खलसा पररसस्थिी बिावे ला । कवनो सवाल के आगापाछा जाने के होखे, ि रउआ ओह ’सिाज’ के ’शास्त्र’ जाने के परी । सकिाबी ना, जीयि शास्त्र ! बासकर, ई लकि अब रसह कहवा​ाँ गइल बा ? छूटल जािा । सभ िऽ ’सिाजशास्त्र’ के आयासि​ि ससद्धांि पढ़े िें लागल बा । के हू ि होखो, जे अपना ’सिाज’ के पढ़ो ! सनकहा ढेर भरि के सनवारन के कारन बसन आई । आजु जाने किना ना अनेररया के गाछ-सबररछ उसग आइल बाड़े सऽ, जवना प सचरइयन के आपन-आपन गोल बनल आ बसल जा रहल बा । आ, कूसल्ह गोलन के नेिवन के ईहे कहनाि बा जे दोसरका गोल वाला हिना सचरई दे देव, भा होिना सचरई ले लेव, ि ओकर गोल के हई हो जाई, भा हऊ हो जाई ! का नीिन, का बाउर, एह प िऽ कवनो चचे नइखे होि । जवन होिा ऊ अपनाअपना गोल के दोबर-िीबर करे के फे रा िें िथ-फोरउव्वल होिा । भा, के हू िरी अपना गोल के आन्ह गोल के बरोबर करे के बेंवि सनकालल जा रहल बा । साि-दाि-दण्ड-भेद कुछऊ अपनावे के

सौरभ पाण्डेय सौरभ पाण्डेय जी के पैतृकभूमि उत्तरप्रदेश के बमिया जनपद के द्वाबा पररक्षेत्र हऽ । रउआ पचीस बरीस से सपररवार इिाहाबाद िें बानीं । मपछिा बाइस बरीस से राष्ट्रीय स्तर के अिग-अिग कॉपोरे ट इकाई िें काययरत रहि बानी । आजकाि के न्द्रीय सरकार के पररयोजना आ स्कीि के संचािन खामतर एगो व्यावसामयक इकाई िें नेशनि-हेड के पद पर काययरत बानी । परों को खोिते हुए (सम्पादन), इकमिया​ाँ जेबी से (काव्यसंग्रह), छन्द्द-िञ्जरी (छन्द्द-मवधान) ना​ाँव से राउर ककताब प्रकामशत हो चुकि बाडी स । सामहत्य के िगभग हर मवधा िें रउआ रचनारत बानीं आ महन्द्दी आ भोजपुरी दूनो भासा िें सिान रूप से रचनाकिय जारी बा । सामहमत्यक संमिप्तता के दोसर क्षेत्र बा - सदस्य प्रबन्द्धन सिूह ई-पमत्रका,”ओपनबुक्सऑनिाइन डॉट कॉि’ ; सदस्य परािशयदात्री िण्डि त्रैिामसक पमत्रका ’मवश्वगाथा’ । © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 5


काहें ना परे ! कहे के िाने, जे सवलवे प कुहराि िचल बा । सवाल के आगा-पाछा जाने के के हू बइठिे नइखे । एकर कारनो बा । किना ना सवाल बाड़े सऽ, जेकर आगा-पाछा ढेर सोचला प ढेर पछ ु सनहारन के पूवाज-पीिर उघटाये आ नसाये लसगहें । आजक ुे ’िलफि सवाल’ भा ’कचोटि सिस्या’ कूसल्ह के सोर प कइसेकइसे खाद-पानी सदयाइल बा, भा सदयाि रहल बा, ई जानकार लोगन के िन िें ससनेिा लेखा घूिे-नाचे लागी । आ नवहा बासकर ’अनजान’ जवान लोग अाँखफोर होखे लसगहें ! से, बसु द्धिानी आ फाएदा दूनो एही िें लउके ला जे पररसस्थिी आ विा िान के लेके सवाल प सवाल दागल ि जाओ, बासकर, ओह सवालन के भूिकाल के िोपि ! किहीं ओह प चचा​ा -बहस जसन हो जाओ ! बिाई ं, हइसना िाहौल िें संस्कार आ परम्परा के नसाि देखि, के हू के सफसकर होखबो करो, ि कइसे होखो ? कुछऊ नीिन बा ि कइसे, कुछऊ बाउर बा ि काहें, एह कूसल्ह का सोझा अिदी के बेवहार कइसन होखे के चाहीं, ई के बिाई ? सोच के सबसय बा । बासकर, सोझ बिावे वाला के हू नइखे । एहीसे सउाँसे सिाज के बेवहार िें आलस के भाव आ ि​िस के गणु प्रभावी बा । श्रसु िस्ित्ृ यसु दिं सम्यङ् सनबद्धं स्वेषु किा सु । र्िा िूलं सनषेवेि सदाचारि​िसन्द्रिः ॥ (श्रहु ि आ स्महृ ि जिना ’सदाचार’ के बा​ाँचल े े, ऊ िमनी के करम (गण ु ) में हनकिे मेरािल बा, आ ऊिे लोगन के धरम के सोरर (मूल) िऽ । एिीसे ’सदाचार’ के पालन हबना किनो आलस कइले करे के चािीं) लीहीं ! ई ि पसहलहीं से कूसल्ह लीखल आ कहल बा ! एही लगले ईहो ओिने सा​ाँच बा, जे सभ के आपन-आपन करि होला आ ओह करि-पालन के आपन-आपन प्रवसृ ि होले । अइसन ना होसखि ि काहें अजा नु सबजयी कहऽइिे ? आ काहें दज ु ोर्न नसइिे ? सभके करिफल आ चलन एकही ना होसखि ? बासकर, भोजपरु रहा सिाज बल ु ा फे रु से ई कूसल्ह से लािहीं ना, वाि भ गइल बा । राि भजीं ! िब ऊहो एगो चलने रहे जे, बाबूजी के बड़का आजा, िोटका बाबा, से उनका सजयिे कबो ई ना पछ ु ाइल जे काहें ऊ अपना जवानी िें ’नाका-बीछी’ पा​ाँड़े के पलानी रािसह भर िें खसन्िएखन्िी अपनहीं खोनि उजार-पजार देले रहले ? आ ना कबो ई पछ ु ाइल, जे काहें दोसरहीं सदने, भोर होि ना होि, उनकरे िेहरारू, झल ु नी िइया, ओही ’नाका-बीछी’ पा​ाँड़े के दर्ु िहुाँ ा नासि के कोरा िें जाँिले सशवाला िें ससउजी प दस सेर दूर् हहऽ-हहऽ भभका देले रहली - "अघा ए ससउजी, अघाऽ ! आाँसख खोलऽ.. खोलऽ िऽ कूसल्ह लउकी.. चपु ा जसन !.." देविा हो देविा, िोटका बाबा झल ु नी िइया के ओह र्िक प इसचको चू-ाँ चा​ाँ-चपड़ ना कऽ सकल रहले ! ऊहो कवनो शसक्तए के प्रभाव रहुए, जवन िोटका बाबा के काने िन-िसस्िष्क िें अिा के ओह रासि खा उनकरा से िाण्डव करौलस । आ ईहो एगो शसक्तए के

सरूप रहुए, जे सदन के अाँजोररया िें िोटका बाबा के कूसल्ह चू-ाँ चपड़ के चपु ावि, कइलका कूसल्ह के सबरावि, र्ो-र्ा के र्ऽ सदहलस । सा​ाँचहीं कहल बा - "शसक्त सवना िहेशासन सदाहं शव रूपकः !" िक्ती ना िोखसु ि हसउजी जइसे मदु ाश ! माने महिसन्ु न ! िक्ती के जोर का आगा हसउजी के किन बेंि​ि ? ढेर ले ढेर बउरइिें, अनमनइिें । बउरासु ! िक्ती हनकिे उहजया दीिें । ईहे चलन चलल आ रहल बा, एक जिाना से ! ससहये कहल बा, जीवन जिना लउकावि जीयल जाला, ओहले किहीं ढेर अलोि सजयाला । एह अलोिवे के उघारल, बा​ाँचल आ ओह अनकहल सजयल्का प व्यंजना-लक्षणा िें बसियावल ’सासहत्य’ कहाला । आपसी सिझ आ बेवहार-चलन के हू के जीवन िें चप्ु पे रेघारी पारेला । ऊ कानहीं सनु ाये भा नसि सनु ाए, कौ हाली ऊ आाँखहूाँ ना लउके , बासकर, एकि​ि सोचसनहारन के ऊ अपना लहऽररयन के उफान प बटोरि जटु ावे लागेला । बेवहार आ सिझ के कूसल्ह ’जिा’ पररवार के पूिन खासिर ’पररपाटी’ हो जाला । आ एकर आगा, ऊहे आवे वाली पीढ़ी खासिर ’परम्परा’ बन जाला । िाने, पररपाटी आ परम्परा दनू ो सिय परला प सिाज का सोझा ठाढ़ कइल जा सके ला । बासकर, एह प के हू सोचि कहा​ाँ बा ? जवन होिा ऊ खलसा अिने ले, जे "गाङाजी के खूटाँ ी-खा​ाँटी, लोहे के िचान, हिरो सकररयवा उिररहऽ हो भगवान !" िाने लोगन के सिझ िें पररपाटी आ परम्परा कइसहूाँ ओररयावे लाएक ’बवाल’ अस होके रसह गइल बा, जवना के सिय-घडी-साइि प सनपटान कइल जरूरी होला । कइसहूाँ ओररयावल जाओ जेहसे हाल्दे सपण्ड छूटो ! बासकर अइसन काहें ? के हू के के हू रगेदले बा ? जे एह ’बवाल’ का पाछा देस ना सवदेसओ से लोग ’हाहो दइया, हाहो िइया’ करि हाँकासल-सपयासल गा​ाँवें चहुपाँ ि रहेला ? िरदे-िेहरारू अनेररये हलकान होि रहेला नू ? काहें ? िानीं ि भगवान, नाहीं ि पत्थर ! सदक्कि एह ’दोगलई सोच’ से बा जवन िन थोर कऽ देिा । ऊ सदन बझ ु ाला जे गइल, जब प्रकृसि जीवन के सहज सहस्सा बझ ु ाए । एक फसजरे से लेले रासि खा सूिे घररया ले लोग प्रकृसि ’िाई’ के अाँचरा-कोरा िें लोसटयावल करे । कवनो नदी, कवनो पोखरा, कवनो नहर होखो, ओह िें गाङाजी के भाव बहि लउके । सख ु -दख ु के िान, खेि के गिु ान, बगइचा के हररयरी, घाि के चरचरी, बादरन के छा​ाँहीं, परम्परा के बा​ाँहीं र्इले-गहले लोग एक सरु रये जीयि जासु । बेटवन के जोर आ बेसटयन के लोर से लोगन के जीउ आकार, आ ई सिाज बेवहार पावल करे । खेलि-कूदि बसु चया अचके िें बऽड़ हो जाव ! सबदाई घररया दअ ु रा से सनकले लागे, ि बझ ु ाए जे असिान के छािी आ र्रिी के करेजा फासट जाई । कहाँरओ भइया लोगन के अस ना हूक उठे जे चलि खा खेि के िेड़वे प असवारी सटका देवे लोग - "दइू छन सनहार लऽ बबईु .. ईहे आपन गा​ाँव के ससवान हऽ.." अिना प िऽ कठ-करेजओ के दासा िोि भइल बसह चले ।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 6


के करा रोअला से गाङा नदी बसह गइलीं, के कर रे सजअरा कठोर ? आिाजी के रोअला से गाङा नदी बसह गइली, भउजी के सजअरा कठोर.. गोर परीं, बा​ाँसह र्रीं, असगला कहाँरवा रे, िसनका जे डोसलया घिु ाऽउ ! िीसल लीहीं, िीसल लीहीं, सङ के सहेसलया से, कहवा​ाँ जे फे र के भेंटाऽउ ? एह गीिन के टा​ाँसी प अब कुछ कहहीं के बा ? भोजपरु रहा सिाज िाव आ भाव के बहाव िें जीये वाला गिखोर सिाज रहल बा । बासकर रउआ ? रउआ दू अच्छर का पसढ़ लेले बानीं, राउर नजर-सनगाह िें भोजपरु रहा लोगन के रहे आ बरिे के ढङे नइखे बझ ु ाि ? राउर नजर िें एगो सिाज के िौर प भोजपरु रहा ’बेलूरा’ लेखा जीये के अभ्यस्ि होले ! बासकर रउओ ई जान लीहीं, गाङाजी हिसनये के बीच ’िाई’ कहाली ! आजओ ु ! गा​ाँव िें बड़ आ पीपर के फें ड़ा िें गा​ाँव के कुल-देविा आ पूवाज-पीिर के ना​ाँव चलेला । रउआ कवन अच्छर-ज्ञान कऽ लेले बानीं िहराज, जे राउर सदिाग गाङाजी के खलसा ’नदी’ भर ले गीनऽिा, आ बड़-पीपर खलसा सबररछ भर ले जानऽिा ? का ई बसिया हिनी के िालूि ना रहुए ? बासकर, कवनो

नदी-पोखर काहें ना होखो, सभ खासिर हिनीं के िन िें ’गाङाजी’ आला भाव सहलोर िारि रहल बा । कवनो लौसकक बेवहार काहें ना होखो, जात्था के जात्था लोग िये पररवार आपन सललार टेके पोखर, नदी, नहर-सोिा का सकनारे ’जै गाङा िइया’ करि चहुपाँ जाला । लोग गाङाजी से आपन भूि-भसवष्य, करि-र्रि, गिीदगु ा िी के भाव बसियावेला । राउर ज्ञान ि आजु हिनीं के िाइये के नास सदहलस ए िहराज ! गाङाजी आजु अपनहीं जीवन प रोअऽिारी ! ना जी ना, रउआ पसहले हिनी के परम्परा के िरि बूझीं । प्रकृसि का सङे बनल हिनीं के सिरस जीवन के ’भाव’ पसियाई ं । आ िब रउआ हिनीं से बसियाइब जे ज्ञान आ सवज्ञान का कहाला ! एह कहल्का के िहुाँ फटऽई नि बूझीं भाईजी ! बलक ु सनकहे देखीं िऽ हिनीं के जीवन-बेवहार िें सनािन काल से चलल आवि प्रकृसि आ प्रानी के बीच सोझ-सिहुि जीवन, आ ओह जीवन के ढङ लउक जाई । ई कूसल्ह हिनी के लोक-बेवहार के सहस्सा हऽ । हिनीं के नैससगा क जीवन िें बनावटीपन के सघनहीं पसहलहीं ढेर घोरा चक ु ल बा । बासकर अब नाः ! हिनीं के अनपढ़े सही.. कवनो बेजाइाँ ना.. बलक ु ई ढेर नीिन बा ! देविाऽऽ ! ई बसिया आजु सउाँसे सिाज एकजूट भइल एकसरु रये बोसलि..

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 7


लोकगीत

पा

भोजपरु ी पारं पररक गीतन के महत्व उदय नारायण सिहं

रम्पररक से ि​िलब ऊ ससलससला से बा, जवन पीढी-दर-पीढी लगािार आगे बढि रहेला । अब एकरा खासिर चाहे सार्न जवन होखो । भोजपरु ी गीिन के परंपरा के आगे बढे िें एक िरफ जहा​ाँ एकर गेयिा, लयात्िकिा, संप्रेषनीयिा कारन रहल; जवन एकरा के सनु े भा िोहे लायक बनवलख, उाँहवे िौसखक, वासचक, सलसखि सार्न से ई र्ीरे-र्ीरे एक दोसरा के िहुाँ से, आाँख से गज ु रि, सभे के िन पर राज रजावे लागल । आज एकर डंका कई गो देसन िें बाजिा ि एगो सवाल ि उठल स्वाभासवक बा सक आसखर कवन कारन बा सक ई आजो सजअिार सबया आ सजउआिार सबया ? एकर कुछो न कुछ ि कारन होई नूं, जवन एकरा िें अिर रस डाल के रखले होई सक ई आबाद रहो ? सा​ाँचहु, बाs! ओह कारक िें एह गीिन के भीिर कुछ अईसन ित्व बाडें स s, जवन एकरा के सजअिार राखे िें िहत्वपूणा भूसिका सनबाहेलें s स s आ ऊ खाससयि का ह, ई जानल जरूरी बा हिरा -रऊआ खासिर । आगे-बासकर एकरा पसहले हिनीं के पारंपररक गीिन के िहत्व पर िनीं नजर डाल सलहीं स s!

एह िहत्व के जाने खासिर बानगी के रूप िें पसहले एगो गीि के सहयोग सलआव । गीि के बोल सभे जानिा"साजन चलले रे मोरंग देसिा रे, िमिं जईिीं ओहि देसिा, िो सजनिा, सनेहिया जहन िूर s, िो सजनिा" ई गीि भोजपरु रया बर्ार िें झूिर के रूप िें गवाला । एह िें नासयका कहसिया सक हिार साजन िोरंग देस सबआह करे जा िारें आ उहो हिार से नेह िूर के , हिहुं जईिीं!अब एह गीि के इसिहास पर सविशा होखो-भगवान राि के सबआह अयोध्या से जनकपरु आईल रहे-िाने पसि​ि आ उत्तर सदशा िें । िब जनकपरु आ आजो जनकपरु नेपाले िें रहे । िाने ई घटना ई बोर् कराविा सक हिनीं इहां के ररस्िा सदु रू नेपाल के िराई िें होि रहे । अब के हु कह सकिा s सक ई ि त्रेिा के कहानी ह ि उपर वाला झूिर पर सवचार

कईल जाव-िोरंग भी नेपाल के एगो ब्लॉक ह, सजला ह । िाने भोजपरु ी के बर्ार के लोग भी ओह घडी आपन सबआह-शादी नेपाल िें करि रहे । एही गीि के असगला पंसक्त बा-"साजन लाहग के जहद िम कोईलर िोईिीं रे, उडी जईिीं ओहि देसिा" कोईलर बन के उडे के आ ओह साजन संग जाए के पाछे एगो ओह घडी के औरिन के सािासजक पररसस्थसि के छाया लऊकिा । ओह घडी के सवडंबना रहे सक औरिन के सिाज बाहर सनकले के इजाजि ना देि रहे । ऊ लोग अपने दसु नया िें रहे के िजबूर रहे । कल्पने िें भले उडो भा संगे जाव लोग । आज के सदन िें ई वजा ना टुटल बा । आज के नासयका के संगे अगर ओकर प्रेिी बेवफाई करे ि ऊ िरु न्िे स्कासपा यो सनकसलहे आ चहेट सदहे भा कोटा से िािला के सनपटारा करवा सलहें । प्रेिी राि भोंकार पार के रो सदहें । एह प्रसंग के व्याख्या के बाद ई ि जरूर उभर के आईल सक परु ान सािासजक ररश्िन आ औरिन के ददु ा शा के सस्थसि के उपर वाला गीि िें एगो िथ्य छुपल बा । हिनीं के चाहेब स ि एकरा के गसहराई ले अध्ययन कर के ओह घडी के एह पररदृश्य के आंकलन कर सकिानीं स s! अब एही ढंग से एगो दोसरो गीि के अध्ययन कईल जाव-गीि के बोल बा-"गंगा जी के ऊाँची अरररया, हि​िईया एक रोिेली िो, ए गंगा मईया, अपनीं लिर मोिे देिु ि डूबी धाँसी जईिी नूं िो । "-एह गीि के अथा पर िनीं नजर डालीं-एगो सिवई, गंगा जी के सकनारे सबलखि सबआ आ कहि सबआ सक रऊरा हिरा के आपन एगो लहर दीं िासक हि डूब-र्ाँस जईिीं । आगे के पंसक्त के सारांश बा सक ओकरा के लोग बांसझन कहिा आ ऊ गंगा जी से आशा करसिआ सक उहां के आसीरवाद सिली ि ऊ िहिारी बन जाईि । हिनीं के एह गीि के आऊर सब भाव पर ना जा के "सिवईया" शब्द पर रूके के बा, आसखर सिवईया के ह s ? भोजपरु ी शब्दन के िालगोदाि िें घस ु ला पर एकर अथा ना सिली, एकरा खासिर अलग लोक भाखा िें डुबकी लगावला पर गरु​ु िख ु ी-पंजाबी िें एकर अथा भेंटाई । ओह िें सिवी के अथा "पररत्यक्ता औरि" बिावल बा । कटोरी कटोररया होला भोजपरु ी िें, डॉक्टर डॉक्टरवा होला

उदय नारायण त्रसिंह संगीत के मशक्षक , िोकगायक आ भोजपुरी संगीत िें नवीन प्रयोग करे खामतर उदय नारायण ससंह जी जानि जानी । छपरा , मबहार के रहे वािा हईं। इाँहा के भोजपुरी भाषा सामहत्य आ संगीत िें हरदि कु छ नया, कु छ अिग करे खामतर प्रयासरत रहेनी । अभी छपरा िें बानी ।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 8


भोजपरु ी िें ि सिवी सिवईया होि सबया भोजपरु ी िें आ िब जा के एह गीि के भाव भी प्रकट हो जािा । एकर अथा एह प्रकार से आविा-बा​ाँझपन के कारन एगो पररत्यक्ता औरि गंगा जी के शरण िें जा के पत्रु प्रासप्त के कािना करसिआ । अब एकर गहन सिीक्षा होखो-भोजपरु ी भाखा के ही ना, लगभग हर क्षेत्रीय भाखा के ई सवशेषिा होला सक ऊ आवश्यकिानस ु ार दोसरो भाखा के शब्द उर्ार लेबो । पंजाबी-गरु​ु िख ु ी से ई शब्द ले के एगो किना बडहन ररस्िा कायि करे के सफल प्रयास लऊकि बा इहां । अईसहुं सबहार-गरु​ु गोसवंद ससंह-भोजपरु ी आ पंजाब भा पंजाबी के आपस िें खून के ररश्िा रहल बा । अगर ना रसहि ि भोजपरु ी के आसद कसव-कबीर-के रचना के गरु​ु िख ु ी िें अनवु ाद ना गवाईि । आज भोरे-भोरे जवन गरु​ु ग्रंथ साहेब के गरु​ु द्वारा िें सबदकीरिन गवाला, ओह िें भोजपरु रया कबीर आ ऊहां के रचनन के बहुिे योगदान बा । एकरा बाद ई कहे िें हिरा-रऊरा सहचक ना होखे के चाहीं सक एह पारंपररक गीि के रचना काल िगु ल आ गरु​ु गोसवंद ससंह साहेब के काल के आसपास होखे के चाहीं, जब भोजपरी आ गरु​ु िख ु ी भाखा एगो सहेली के रुप िें संगही रहि रहे लोग । अईसही एगो पारंपररक गीि िें हिरा एगो शब्द सिलल रहेजािा जोडा । एह शब्द के खोजे पर सभरनीं ि थाह सिलल सक िगु ल

काल के सैसनक लोग जब लडाई लड के सस्ु िाए के क्रि िें जवन कपडा पेन्हि रहे, ओकरा के "जािा जोडा" कहल जाि रहे । ओह गीि के ऐसिहाससकिा पर ऊाँगली उठावल िसु श्कल बा, जवन गीि ओह काल के सजअि होखे । अब रसन चौकी के चचा​ा कुछ गीिन िें भेंटाला । रसन चौकी के िाने भईल-कवनो सवशाल घर के िख्ु य द्वार के ठीक उपर बनल झरोखा, जवना पर बईठ के शहनाई भा कवनो ससु षर वाद्य(जवन िंहु से फूाँक के बजावल जाव) बजावल । एह काल के आराि से कल्पना कईल जा सके ला-ई काल राजा रजवाडा लोग के काल के ह । चसु क अईसन सवशाल दरवाजा बनवावे के सािथ्या आि आदिी के ना रहे आ ओह घडी कवनो बाराि आवो ि हाथी-ऊंट सब ओह सवशाल दरवाजा से होके गज ु रि रहे । ओकरे उपर "रसन चौकी"बाजि रहे । सांचहुं पारंपररक गीिन िें एगो इसिहास छुपल होला । पसि​ि के सवचारक कहले बा लोग सक अगर कवनो देस के सांस्कृसिक सवरासि भा ओकर इसिहास के थाहे के होखो ि पारंपररक लोग गीिन के अध्ययन करीं । आपनो भोजपरु रया क्षेत्र िें अईसन ढेर सारा गीि फें कल भेटइहन स, जवना के सहेज के आ ओकर अध्ययन कर के ित्कालीन इसिहास के आज के लोग के सोझा राख के आपन सवरासि के सवराटिा के उभारल जा सके ला ।

लोकगीत में बचपन

रीता सिन्हा िय बदलल । सिय के साथे-साथे िनोरंजन के सार्नों बदल गइल। आज के जिाना िें परु नका िनोरंजन गरि बालू िें पानी के ठोप लेखा बीला गइल। हिनी अइसन लोग के उ कुसल्ह कबो-

कबो टीसिा । पहीले गोदी के लईकन के भा छोट लईका-लईकी के खेलावल जाई ि खेलावेवाली नानी, िौसी, ईया, फुआ लोग हाँस-हाँस के िजाक िें कहि-गावि रही । जब लईका नानी सकहा​ाँ जाई ि बाबा, चाचा के कहाई आ जब अपना घरे रही ि नाना, िािा के कहाई । बाबू (िोररलिा ) के मामा आिेले मामा गदिा पर बइठल आिेले माछी हभनकि आिेला कुकुर भक ु ि आिेला मच्छर का ि आिेला हचल्लर नोचि आिेले खजुि खजिु ाि​ि आिेले

देख-देख ये बाबू ि​िार ... एगो बाि बड़ा िजेदार रही । जब नानी खेलइहे ि बाबा के खूबे कसहये । िौसी चाचा के खूबे कसहये । ईया नाना के आ फुआ िािा के । बेचारी िाई का करस । उ हंसि सबका के नीिन गयीहें "देख-देख ए बाबू ि​िार बाबा आिेनी भा नाना आिेनी भा मामा,चाचा आिेनी पालकी पर बईठल आिेनी पंखा डोलि आिेला मोर नाचि आिेला भा​ाँ गाि​ि आिेला नाच िोि आिेला हमठाई बं ाि आिेला देख-देख ये बाबू ि​िार...।" ई गवाई आ अंगना िें खूबे हंसी होई । बीि गइल जिाना । रह गईल इयाद । एकरा के सजयावल अब हिनी के काि बा । सबलाये के ना चाही ।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 9


भोजपरु रया लोक के तीन रं ग : डोमकच, जट-जटटन आ हुरुका

लो

कजीवन से गसहरा भावात्िक स्िर से जड़ु ल भारिीय संस्कृसि कई गो लोकसंस्कृसियन के सिच्ु चय हवे । एसहिे हर प्रान्ि बोली भासा के लोकजीवन के आत्िा के सनवास होखेला । एह बाि िें भी कवनो छव-पा​ाँच नइखे सक परिेक देस के संस्कृसि के िूल िें ओइजा के अलगा-अलगा जवार के अनेक प्रदशा नकारी कलारूप िें होखेला । एह कलारूपन िें ओह जगह के आपन संस्कृसि के स्पष्ट दशा न होखेला । कहीं िौसि के , फसल के , शादीजनि, अनष्ठु ान, यज्ञ-परोजन आसद के गीि-नत्ृ य के सवर्ान बा ि कहीं देविा लोग के राजा इंद्र, भगवान राि-कृष्ण-सशव के प्रशंसा िें नाटकासद कईल जाला आ आजवु ो कईल जा रहल बा । एगो बड़ खाससयि अउर बा कवनो देस के लोकसंस्कृसि ओह देस के असभजन संस्कृसि के सािने बड़ा िजबूिी से खड़ा होके आपन िूल असस्ित्व िें ओह देस के सांस्कृसिक पहचान अपना से बनावेला । चूसाँ क हिनी कींहा कई िरह के लोकसंस्कृसि परु​ु ब से पसछि ले आ उिर से दसखन ले अनघा वेयाप्त बा एसहसे हिनी के देस बहुसांस्कृसिक देस हवे । एह पर हिनी के गवा भी बा । बहरहाल,

जहा​ाँ ले भोजपरु ी लोकरंग के बाि बा ि ओइपर चचा​ा करेसे पासहले एगो बाि एकदि साफ़ क लेबे के चाहीं सक नाटक िें सनसहि जीवन के आर्ारसशला सजा नात्िक कल्पना होखेला, एसहसे सािासजक सवकृसि के सवसभन्न पक्षन के नजरअंदाज़ ना करेला । एसहसे कवनो सिाज आ संस्कृसि के ओकरा सिग्रिा िें जाने खासिर ओह देससिाज के सांस्कृसिक सचन्ह के खोजबीन, पड़िाल जरुरी हो जाला । भोजपरु रया अंचल आ सिाज िें आसपास कई गो प्रदशा नकारी कलारूप प्रचलन िें बा, जवना पर िख्ु यर्ारा के असभजन संस्कृसि के छाया नईखे पड़ल । एह सब सजसिें पूरे कलारूपन पर पूवा​ांचल के आपन सांस्कृसिक सवरासि अउर सािासजक पहचान स्पष्ट सदखाई देला । सबदेससया ि एह प्रांि के ससरिौर हअ, बाकी एहिे से कुछ प्रिख ु कलारूप बा, जवना पे एगो सनगाह डालल जरुरी बा । डोमकच (स्त्री लोकना ् य) : सबहार अउर पूवी उत्तर प्रदेश के ई नाट् य शैली ‘सस्त्रयों का लोकनाट् य’ नाि से भी जानल जाला । एकरा के ‘घर के बंद कोठरी

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के रंगिंच’ भी कहल जाला । एहिे कथावस्िु के कवनो सलसखि भा सवख्याि प्रिाण ना होला, ना ही असभनय, रंग-रूसढ़ के कवनो सलसखि व्याकरण । एकर आर्ार खाली कपोल-कसल्पि बाि होखेला । िंच खासिर भी डोिकच िें कवनो िािझाि ना होखेला, एहिे घर के खल ु ा बड़ आाँगन भा खल ु ा छि ही िख्ु य िौर पर िंच खासिर प्रयोग होखेला । गा​ाँव िें जवना घर से लइका के बाराि दूसरा गा​ाँव गईल रहेला ओही घर के िेहरारू लोग ई खेला खेलेला । वर के िाई आ ओकर फुआ भा चाची अलग-अलग ‘दउरा’ िें बइठ जाला लोग । वर के िाई के पैर के अंगूठा दउरे के बाहरा एगो ससन्दूर भरल ‘पैला’ िें रखल जाला । एह ससंदूर के को लाग के ससन्दरू कहल जाला, एह सिय वर के िाई के बड़ा संयि रहे के पड़ेला काहे से सक अइसन िानिा आ सविास होखेला सक जवना प्रकार की हरकि बर के िाई कररहें ओइसने हरकि करे वाली पिोह उनकरा भेंटाई िाने घरे आई । एसह सविास के करिे अउर औरि लोग बर के िाई के सहदायिों देि जाला लोग सक ‘दंिवा िसि सबदोरही, दंि सबदोरनी अईिो है’ (दा​ाँि ि​ि सबदोररहअ, बरना सदा दा​ाँि सबदोरे वाली, बाि-बाि पर हाँसे वाली, पिोह आ जाई)” डोिकच िें िेहरारून के आपसी चहु ल से संवाद आ आंसगक सक्रयाकलाप से (साफे सिझी जे एकर कवनों व्याकरण ना होला) असभनय आ प्रदशा न संभव होखेला । ई लोकनाट् य रूप एह िािला िें अनूठा बा जे एहिे ना ि अ िंच-व्यवस्था के सािग्री के बारे िें असर्का सचंिा कईल जाला ना कवनो औपचाररक िंच के सफसकर । भेश-भूषा िाने वस्त्र-सवन्यास आसद के औपचाररकिा घरे के िरद आ िेहरारून के कपड़ा-लत्ता से पूरा कर सलहल जाला । डॉ॰ िहेश प्रसाद ससन्हा के कहनाि बा सक “एकर असभनय िेहरारूअन के उ वगा करेला, जेकरा ना ि िंच के शास्त्र के ज्ञान होखेला अउर ना भेशभूषा आ असभनय के सवसभन्न िद्रु ा के पूवा​ा भ्यास भा पूवा​ा नभु व । ई िेहरारू लोग लालटेन के रौशनी िें िख्ु यिः आंसगक आ वासचक असभनय द्वारा एह प्रदशा न के काया पूरा करेला लोग ।” जद्यसप डोिकच एगो लोकरंग ह, बाकी एकर सावा जसनक प्रदशा न असभयो ससु नसि​ि नईखे । एसहसे एकरा के ‘बंद किरा के रंगिंच’ कह सदहल जाला । सबदेससया के एगो नया ढंग से व्याख्यासयि करे वाला आ खेले वाला रंगकिी संजय उपाध्याय ‘डोिकच’ पर आर्ाररि एगो नाटक सदल्ली िें राष्रीय नाट् य सवद्यालय के भारि रंग िहोत्सव िें ‘हरससंगार’ नाि से प्रदसशा ि कइले रहनीं । जइसे िहानगरीय दशा क

के पररचय भी एह नाट् यरूप से भईल । बाि चाहे जउन भी होखे, बासक सबहार आ पूवा​ांचल के आसथा क कारणन से पलायन के सूत्र भी एह नाट् यरूप िें लउके ला आ एहिे डोिकच के असभनेसत्रयन के आाँसू भी बा । सबदेससया िें अगर ‘सपया गईले कलकिवा हे सजनी’ के पीड़ा बा िअ डोिकच िें “अनारकली डोहमनी के डोम किा​ाँ गईले/ डोम गईले कलकत्ता नगररया, ओिी मे रि गईले/कलकत्ता नगररया में नथनु ी हबके ला/ ओिी में लुभईले” के ददीला िान बा । पूरसबया िेहरारूअन के सहरदय के वेदना दनु ो ओर बा । इहे बझ ु े बा सक सावा जसनक प्रदशा न न भईला के बावजूद िेहरारूअन के सहभासगिा के एह लोकनाट् य शैली के नजरंदाज कईल िसु श्कल बा । शायद इहे वजह बा जे कथासशल्पी फणीिरनाथ रेणु जी अपना उपन्यास ‘िैला आाँचल’ िें एकरा प्रभाव के सवस्ि​िृ सचत्रण कईले बाड़े । एगो सवशेष बाि अउर बा सक ई लोकनाट् य अलग-अलग प्रान्ि आ और संस्कृसि िें अलग -अलग नाि से प्रचसलि बाटे । जइसे हररयाणा िें एकरा के ‘खोराखोरी’, पसि​िी उत्तर प्रदेश िें ‘खोसड़या’, अवर् िें ‘नकटोरा’, राजस्थान िें ‘टूसटया-टूटनी’ कहल जाला । ज -जह न : अपना स्वरुप आ प्रस्िसु ि के ढंग िें जट-जसटन, डोिकच के सनचका बा । ई लोकरंग के प्रचलन भोजपरु रया सिाज से िनी बेसी सिसथला ओरी बेसी बा । एहू लोकनाट् य रुप के खाससयि िेहरारूअन द्वारा खेलल गईल बा । एहिे पात्र के भूसिका, गीि, नत्ृ य सब कुछ औरिन द्वारा संचासलि होखेला । एकर दशा क-वगा भी औरिे होखेली जा । एह सलहाज से सम्पूणा रूप से ‘िेंस नॉट अलाउड’ वाला नाटक के रूप िें लउके ला । एकरा उत्पसत्त के संदभा स्पष्ट नइखे, बासक एकरा बारे िें एगो अनिु ान ई बा जे जब गा​ाँव से बाराि के संघे जब घर के सब परु​ु ष चल जाव लोग िब रिजगा करके गा​ाँव आ घर, संपसत्त के पहरेदारी खासिर (िनोरंजन के बहाना से) िेहरारू लोग के ई नाट् य पैदा भईल । एकरा के लोकगीि आ आंचसलक नाट् य के बीच के अवस्था के निूना भी िानल जानल जाला ।” एहिें औरि लोग ही जट (परु​ु ष) आ जसटन के भूसिका सनभावेला लोग । एकरा संघे ही, एहिे सास-ननद, ननदोई, ससरु , बेटा आसद सब नािे भी देखावल जाला । ई लोकरंग ससदयन से दसि​ि स्त्रीिन के इच्छा आ िन के कािना के िसु क्त के

डा॰ मुन्ना कुमार पाण्डेय गोपािगंज मबहार के रहे वािा िुन्ना कु िार पांडे जी , भोजपुरी भाषा खास कई के मभखारी ठाकु र प बररआर शोध कईिे बानी , इाँ हा के ररसचय के मवषय ही मभखारी ठाकु र जी रहनी । भोजपुरी नाटक आ मभखारी ठाकु र के नाटकन प गमहराह िेख मिखिे बानी । महन्द्दी आ भोजपुरी िे इाँ हा के िगातार मिख रहि बानी । एह घरी अमसटेंट प्रोफे सर के रुप िे कदल्िी िे काययरत बानी ।

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रचनात्िक प्रयास ह । “एहिें दाम्पत्य जीवन के उ िासिा क पक्ष भी उभरेला जउन ना पौरासणक कथा िें िें बा अउर ना परंपरागि प्रेिाख्यान िें” एकरा प्रस्िावना वाला गीिन िें सावन िें भाइयन के (नैहर ले जाए खासिर) बोलावे के िासिा क गीिात्िक संवाद भी होखेला, जइसे “हिरो सिाद रे भईया, भईया आगू कसहहो / सनु ैि भईया घोसडया दौड़ायेि । एकरा अलावा छे का-देखनउकी, सववाह के प्रसंग आसद प्रिख ु कथाएाँ भी एहिे होखेला जउन एकरा कथावस्िु के आर्ार होला । लेसकन ई एिने भर नइखे एकर खाससयि आ कथ्य के क्षेत्र कई िसिला िें सवसशष्ट बा । एहिे लोकजीवन के कई गो अउर यथाथा , िींि रंग भी शासिल होखेला ।

एसहसे एह लोकनाट् य के संघे भी कुछ लोक-सविास जड़ु ल बा । जइसे, एकरा के खेले के उपयक्त ु सिय सावन भा भादो के िसहना के शक्ु लपक्ष के िानल जाला । जइसे ई “अकसर चा​ाँदनी राि िें असभनीि होखेला, अईसन प्रिाण सिलल बा, जेिे कवनो फुलवारी भा बगईचा िें ई संपन्न होखला । चा​ाँदनी राि एह प्रदशा न िें एक िरफ उद्दीपन के काया करेला ि दस ू रका ओर प्रकाश-व्यवस्था के भी । बाग-बगीचा भा फुलवारी िंच के भा रंगशाला के काि करेला ।” एगो दस ू र लोकसविास भी बा जवन उत्तर सबहार के सिसथला प्रांि से जड़ु ल बा । ईहा​ाँ ‘अकाल आ सूखा के सस्थसि िें इंद्रदेव के प्रसन्न करे खासिर आ झिाझि बरखा के कािना से ई खेलल जाला, जेकर प्रस्िोिा आ प्रेक्षक दनु ों औरि होखेला लोग ...एह खेल िें, नत्ृ य बा, असभनय बा, गायन बा, परन्िु आिया नईखे एहिे कवनो सवशेष वाद्य नईखे । ई काि लयदार, लोचदार आ पदचाप के की ध्वसनय आ संिसु लि संयसि​ि िालबद्ध िाली बजाके काि चला सलहल जाला ।’ अकाल आ सूखा से सनजाि पाये खासिर ई आयोजन लोकसविास के एगो टोटका सनयन एह अंचल िें प्रचसलि बा । एकरा बारे िें श्रीि​िी इन्दबु ाला देवी जी सलखले बानी सक “जाट-जासटन लोकनत्ृ य के सवसवर्िा से भरल-परु ल एगो लोकगीि नाट् य हवे, जवना के प्रभाव क्षेत्र िैसथली भाषा-भाषी अंचल के चारों ओर प्रसाररि बा । एकरा के ‘जाट-जासटन,’‘लारंग,’ ‘झूिर’ आसद के नाि से पक ु ारल जाला ।” बरखा बूनी से सूखल एह अंचल के जिीन आ ओकरा िाध्यि से एइजा के लोग के जीवन के भी ससंसचि करे के ई कोसशश एकरा गीिन के करुणा िें लउके ला ‘बरसो, बरसो इन्नरदेि! पानी हबना अकाल पड़ा। बरसि बरसि इन्नर देि​िा पानी हबना अकाल पड़ल िो राम।’ अईसन अनष्ठु ानपरक आयोजन के ‘हरपरौरी’ भी कहल जाला । एकर सजक्र सवसलयि क्रुक अपना सकिाब ‘पॉपल ु र ररलीजन एंड फोकलोर ऑफ़ नॉदा ना इंसडया’ िें कइले बाड़े” एगो बाि सवशेष रूप

से ध्यान देबे वाला बा जे सक ए सब लोकनाट् य रूपन िें रंगभाषा के शास्त्र खाली असभनेिा ही ना रचेला, बसल्क ओह अंचल प के सिाज के लोग के व्यसक्तगि उर सांस्कृसिक पररवेश (लोकगीिनत्ृ य-संगीि) भी एहिे भागीदार होखेला । ई दनु ो नाट् य रूप िें एगो बड़का सवशेष ई बा सक ई लोकरंग नाट् य सवर्ा पर परु​ु ष वचा स्व के सािने िेहरारूअन द्वारा उछालल गईल चनु ौिी बा । ई लोकनाट् य औरिन के औरिन खासिर औरिन द्वारा अनष्ठु ासनक खेल हवे । आ अपना असलसखि व्याकरण अउर व्यसक्तगि जीवानभु व से खेले जाये वाला ई दनु ो नाट् य रूप कवनो िंच भा दृश्य-बंर् के िोहिाज भी नईखे । हालांसक ई बाि सा​ाँच बा सक दृश्यबंर् आ िंच असभनेिा के स्पेस देबल े ा । कांहे से सक उ एगो पररवेश देबल े ा, जहा​ाँ उ अपना आपके असभव्यक्त कर सके ला, िबो एकर कवनो सवशेष प्रभाव आ जरुरि ना ि डोिकच िें लागेला ना ही जट-जसटन िें । एह दनु ों िें ही दशा क आ असभनेिा के िंचीय भेद नइखे बसल्क परस्पर सहभासगिा बा । अइसन एहू खासिर बा कहे से सक शायद एह दनु ो प्रदशा न िें कवनों सवशेष रूसढ़ असनवाया रूप से काि ना करेला । िरूका : संभविः भारिवषा के कवनो लोकसंस्कृसि िें ‘हुरूका’ अके ला अइसन प्रदशा नकारी रूप बाटे, जवन कलाकार भा उनकरा लोग के प्रदशा नकला के नाि पर नईखे बसल्क एगो वाद्ययंत्र के नाि पर रखल गईल बा । हुरूका एगो ख़ास जनजासि (गोंड) के पारंपररक वाद्ययंत्र हवे, जउन एगो बड़ डिरू जइसन लउके ला । एकरे के गला िें लटकाके ढोलक खानी बजावि हुरूका कलाकिी आपन प्रदशा न करेला लोग । एकरा के ‘गोंड़’ नाच भी कहल जाला । नटुआ भा लौंडा नाच सनयन ही ‘हुरूका’ नत्ृ य-असभनय भी भोजपरु ी इलाका सवशेषकर रोहिास, कै िूर, सासाराि, आरा, बसलया, गाजीपरु , सारण (अब छपरा), ससवान अउर गोपालगंज के इलाके िें गोंड जनजासि के िरद लोग द्वारा खेलल जाला । एकरा प्रदशा न िण्डली िें लगभग दस से असर्का कलाकार शासिल होखेला लोग । आ एकर आयोजन िख्ु य रूप से पत्रु जन्ि, शादी-ब्याह, िंगल बर्ाई आसद के अवसर पर कईल जाला । एकर निा न-गायन-प्रदशा न आि​िौर पर सदन के बेरा िें िक्त ु ाकाशी िंच पर होखेला, जबसक कई िौका पर ई रसियों िें भी होखेला । ‘हुरूका’ नाच के प्रस्िसु ि-सवर्ान के बारे िें सवनोद अनपु ि सलखले बानी सक “नाच िण्डली के िसु खया के ‘व्यास’ कहल जाला । िूलगायक, सनदेशक अउर प्रसशक्षक होखेला । एगो िंडली िें दु गो लबार (सवदषू क), द-ु िीन गो नटुआ (निा क), चार-पा​ाँच गो बजसनया (वादक) आ िीन-चार गो सहायक गायक होखेला । । ।एह प्रदशा न िें भेशभूषा सािान्य होखेला लेसकन ‘व्यास’ र्ोिी-कुिा​ा के साथ िरु ठे ा बा​ाँर्ेला । नचसनया स्त्री के भेशभूषा िें साड़ी पसहरेला” आि​िौर पर अन्य पारंपररक नाट् य रूप सनयन ही हुरूका के

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कथानक के आर्ार र्ासिा क, पौरासणक आख्यान ही होखेला, सफर भी ई अपना सिाज के सािसयक सवाल के भी अपना कहानी िें शासिल क लेबेला । जइसे, परदेस जाि पसि के रोके के दु गो अलग दृश्य के उल्लेख सवद्या चौहान जी कईले बानी । पसहलका ‘नररअर के ह किा िुरल े ा दनु ो हिकिा, बर िू घर पर िी रहि​ि ना ।।1।। आरे भररि िुई बखरी के पहनया, बर िु घर िी रहि​ि ना ।।2।। घर पर रहि​ि दाल भाि खईि, सोईि सीिल पह या ना ।।3।। एसह सिया एगो अउर हुरूका गीि देखे लायक बा । एह गीि िें िेहरारू अपना पसि पर सबशेष रोष प्रकट करि ओकरा के बरु ाभला कहिारी ‘फूल एक फूहल गइले, फूलेिा दािानिा हपया मोर गइले हबदेसिा कई के गिनिा जांघ िोर थाको रे हपयिा, बहिया लागो घनु िा जाहि िाथे डलले रे मअ ु ना हसर में सेनरु िा’ एह लोकनाट् य िें श्रंगृ ाररक गीि भी सिलेला । पसि-पत्नी, सास-बहूननद, सवयोग आसद के गीि भी एहिे बा । भोजपरु ी जनजीवन के संस्कृसि िें प्रोसषिपसिका नासयका लोसगन के वेदना के कई गो गीि सिलेला काहे से सक अभाव आ गरीबी िें सजए वाला ई इलाका अपना श्रसिक संस्कृसि के कारण प्रवसन/पलायन के पीड़ा के दंश भी बहुि बररस से झेल रहल बा । एह नाट् य के लोक परसससद्ध के कारण एह सबके प्रदशा न िें व्याप्त िात्कासलकिा अउर जीवंि​िा के करिे ही बा । हुरूका के कलाकार, गायक अपना गीिन के िरु िं े आशक ु ाव्य रचना करे िें भी सक्षि होखेला लोग । एगो अउर सवशेष बाि इहो बा सक सदन िें के अपना प्रदशा न िें हुरूका दल के एगो कलाकार अपना हाथ के सहारे पेट पर एगो भा दगु ो ई ंटा से भरल एगो ओखर रखेला आ एगो भा दगु ो कलाकार गीि गावि ओखर से ई ंटा कूटि आपन असभनय करेले । एसह िरह के सक्रया के पीछे के िका पिा नइखे सक एसिया काहे होखेला । एिने ना एह पूरा प्रसक्रया के दौरान गोल घेरा िें सिूह द्वारा गायन-वादन-नत्ृ य-असभनय चलि रहेला । जदसप हुरूका के कलाकारन िें से असर्कांश अक्षर ज्ञान से अनजान, िहरूि भा बहुि कि पढ़ल-सलखल होखेला लोग (एकरा सािासजकराजनीसिक कारण के पड़िाल सफ़लहाल एइजा जरुरी नइखे) लेसकन ई लोग परंपरा िें, संगि िें आपन गीि-संवाद-कथा इयाद क

लेला लोग आउर अपना अद्भिु प्रसिभा से प्रदशा न के दौरान एहिे जरुरि ि​िु ासबक जोड़-घटाव भी क लेबेला लोग । िाने संगि िें के सीखल सवद्या के अलावा जन्िजाि िेर्ा के र्नी ई लोककलाकार खाली के वल हुरूका ही ना बसल्क भारिवषा के अनेक संस्कृसि अउर उनकर लोक कलारूप िें आि बा । अन्य लोकनाटक सनयन हुरूका िें भी लबार के भूसिका बहुिे िहत्वपूणा होखेला । लबार अगर कुशल ना होखे ि पूरा के पूरा प्रदशा न बैठ जाई । एसहसे एहिे भी लबार के बिकही के बड़ भूसिका होखेला, जउन हाँसी ि अ पैदा करबे करेला, चटु ीला व्यंग्य भी करेला । लबार के असभनय के गा​ाँव-जवार िें ‘हर बोलाई’ कहल जाला ।” जहवा​ाँ ई हुरूका होखेला ओह प्रदशा न स्थल के लोग िीट्ठा, फल, र्ूप-अगरबत्ती चढ़ाके पूजेला आ हैं आ डीह बाबा, कुलदेविा, ग्राि देविा, शारदा िािा के भी आरार्ना कईल जाला । हुरूका नाच ससु नयोसजि, सगु सठि आ गठल ना भईला के बावजूद बहुिे आकषा क, िनोरंजक अउर गेयात्िक होखेला ।’ जदसप उदारवाद के बाद जउन पररविा न शहर-गा​ाँव आ सिाज िें आईल आ शहर से लउटल ‘सबदेससया’(देसी भूसिपत्रु ो लोग) भाई लोग के कथा भी शायद एह पर असर्का असर नइखे डाल सकल, लेसकन ईहो िींि सा​ाँच बा जे बाजार एह पर आपन रंग चढ़ाईये रहल बा । एकर कलाकार लोग अब ि एहू िें कहीं-कहीं गायकी िें आ हाँसी सलयावे खासिर फुहरई भर दे रहल बा लोग, बावजूद एकरा पूरा भोजपरु रया अंचल के लोकजीवन भौसिक ससु वर्ा अउर सार्न के अभाव से प्रभासवि होके भी अपना िूल जीवन संगीि से अलगा नईखे हो सकल । एसहसे ई अपना सिस्या, दःु ख, िनाव आ संघषा से िसु क्त पाए खासिर एह िरीका के अनष्ठु ासनक आयोजन करेला । ई कलारूप एह पूरा गंगा-गंडक-घाघरा अंचल के लोकोत्सव हवे, एइिे एह लोक के संस्कृसि के दशा न होखेला । सा​ाँच कहल जाव ि पूरसबया संस्कृसि के ई सब नाट् य, गीि, नत्ृ यरूप ना के वल एइजा के जनजीवन के सांस्कृसिक पहचान हवे बसल्क एह प्रान्ि के लोगन के जािीय गाथा भी ह । भोजपरु रया संस्कृसि के अध्ययन िें ई िीनों कलारूप असनवाया जरूरि के रूप िें हिनी के सािने आवेला, आ आजु आपन ई संस्कृसि के संरक्षण एगो सािूसहक ईिानदार परयास के िा​ाँग कर रहल । ई सब के सबना हिनी के आपना असस्ित्व आ पहचान के संकट खड़ा होई जाई ।

अगर ई नया नईखे , आ अगर ई पुरान नईखे होत , त बुझिहs ई कवनो लोकगीत ह । - लेझवन डेझवस

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लोक- संस्कार

जन्म के उछाह में सोहर के सरसता

फोटो– BSU मारीशि

के शव मोहन पाण्डेय

लोक

-सासहत्य कवनो संस्कृसि के आगे परी ले के चले वाला सबसे सहज िाध्यि होला । सबना कवनो रोक-टोक आ सबना कवनो बान्ह के असलसखि रूप िें कवनों सिाज के जन-जीवन के सन्ु नर आ सहज झा​ाँकी लोकगीिन के िाध्यि से प्रस्ि​िु होला । सा​ाँच बा सक लोके -गीि से लोक जीवन के सा​ाँस कायि रहेला । ई लोकगीि िें अपना-अपना जवार के आपन-आपन पसहचान आ सवशेषिा के साथे जन-िानस िें सवद्यिान पावल जाला । एह लोकगीिन के चित्कार ि ईऽ होला सक खाली शब्दन के हेर-फे र से स्वरुप बदल जाला बासकर भाव के िाकि ऊहे रहेला । लोकगीिन के गावल होखे चाहें सनु ल, एहसे लोक जीवन के सिद्ध ृ आ आनन्दायक जीवन के ससरजना होखे लागेला । लोक-जीवन िें लोकगीिन के िाध्यि से पररवार, सिाज, देश के सख ु -दख ु , जग-परोजन, दशा-ददु ा शा, पीड़ा-उछाह, जीअन-िरन, िेल-सिलाप, ररश्िा-नािा जइसन सगरो व्यसक्तगि

आ व्यावहाररक पक्षन के साथे सजनगी के यात्रा िें साथ सनभावि रहेले । लोकगीिन से जीवन जीए के ढंगो आवेला, सीखो सिलेला आ आदशो स्थासपि होला । जगि के शाि​ि​िा आ जीवन्ि​िा सजनगीए के कारण बा । र्रिी पर जीव बाड़े ि सजनगी िें सगरो रंग बा । सनािन र्िा के िानी िऽ एह िानषु जीवन िें सोलह गो संस्कारन के बाि कहल जाला । हिनी के लोक जीवनो िें ओह संस्कारन के बड़ा आदर बा । लोक-जीवन के सगरो आचार-सवचार ओह संस्कारन से प्रेररि आ सनयंसत्रि भइला के साथ हीं सजलो-साँवरल लागेला । ओह संस्कारन के पावन बेला पर िन एगो दोसरे उल्लास आ आनन्द से भर जाला । ओह उछाहन के व्यक्त करे िें लोक-जीवन से सबसे िाकिवर आ सहेजे वाला गसृ हणी लोग के आस्था, सनष्ठा आ सविास सबसे असर्का रहेला । लोक-जीवन िें संस्कारन से गज ु रि हिरा-रउरा आ सबका घर के ईआ, नानी, िाई, फुआ, बहीन,

के शव मोहन पाण्डेय तिकु ही रोड, सेवरही, कु शीनगर, उ. प्र. के रहे वािा के शव िोहन पाण्डेय, एि.ए.(सहंदी), बी. एड. बानी। अिग अिग िंच िा दजयनो नाटक मिखिे आ मनदेमशत कइिे बानी। अनेक सिाचार-पत्र आ पत्र-पमत्रकन िें अढ़ाई सौ से अमधका िेख, आधा दजयन कहानी, आ अनेक कमवता प्रकामशत। भोजपुरी कहानी संग्रह 'कठकरे ज' प्रकामशत। आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहामनयन के प्रसारण, टेिी कफल्ि औिाद सिेत भोजपुरी कफमि​ि ‘कब आई डोमिया कहार’ के िेखन-मनदेशनकइिे बानी। के शव जी ए घरी कदल्िी िें रहेनी।

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लोक- संस्कार बेटी, सभे सबसे पसहले जिु ेला लोग आ अपना कोसकल-कं ठ से गीिन के वीणा बजा के स्वर के रस के बौछार से िन के आह्लाद व्यक्त करेला लोग । ऊ लोग अपना गीिन से जीवन के संस्कारन के अउरी रंजक बना देला लोग । संस्कारन से सिाज अपना रीसिनीसि के अनस ु ार संस्काररि होि रहेला । ओह अवसरन पर कुछ सवशेष सवसर्-सवर्ान, पूजा-पाठ कइल जाला, कुछ लोकाचार सनभावल जाला । इ लोकाचार आ संस्कार पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्िांिररि होि रहेला । ओह संस्कारन के अवसर पर गावलबजावल, नाचल, स्वा​ाँग भरल, हाँसी-िजाक, छे ड़छाड़ कइल सजनगी िें अउरी रंग भर देला । सर्वा नारी के गोद भरल रहे, इहे भारिीय सोच के चरि पररणसि होला । ओह गोद िें बेटा खेलि रहे, एकर इच्छा िऽ आजओ ु व्याप्त बा । सगरो सिाज िें असर्किा िें रहबो करेला । पंस ु वन संस्कार के बाद जब घर िें जन्ि होला िऽ पररवार, जासि, सबरादरी, टोला, िोहल्ला िें उिंग छा जाला । जनि के प्रसन्निा िब खाली बाप-िहिारी के ना हो के सगरो पररवार के संगे सबके हो जाला । सािासजक प्रसन्निा हो जाला । ओह अवसर पर जवन गीि आस-पड़ोस, घर पररवार के काकी-चाची, फुआ-दीदी गावे ला लोग, ओह के सोहर कहल जाला । सोहर के किहू-ाँ किहूाँ िंगल भी कहल जाला । पत्रु के जनि लेहला पर बारह सदन, िाने बरही ले ई गीि गावल जाला आ बालक के बरही के साथवे एकर सिापन होला । सािान्य रूप से ओह सोहर के िीन गो रूप सिलेला - (1) देि​िा जगािन, (2) सोिर आ (3) खेलिना । जब के हू के घरे बेटा के जनि होला िऽ दाई चाहे िहरीन घर के बाहर सनकल के फूलहा चाहे सपिल के थरीया हाँसआ ु से बजावे लागेली । ओह थररया के आवाज सगरो टोला-िोहल्ला िें सबके कान िें जा के एक बाि के ऐलान करेला सक फलाने के घर िें वंश के बढ़ोत्तरी हो गइल बा । सक ओकरा साथवे िानव-वंश के बढ़ोत्तरी हो गइल बा । ऊ थररया बजावल सनु के आस-पड़ोस, घर पररवार के सगरो काकी-चाची, फुआ-दीदी जिु के देविा जगावे लागेली । ओह देविा जगावन के सपत्तरो नेविल कहल जाला । काकी-चाची, फुआ-दीदी अपना गीिन के िाध्यि से अपना सपत्तर िाने पूवाज लोग के नाि ले-ले के ई सूचना देला लोग सक देखीं लोगीन, हिनी के अपना गीि से ई शभु सूचना देि बानी जा सक रउरा सभे के आत्िा के शांसि बदे िपा ण करे वाला रउरा कुल िें र्रिी पर जनि ले लेहले बाड़े । हे देविा लोग, हे सपत्तर लोग, रउरा सभे ओह जनि​िआ ु के आगिन पर आनंसदि हो के आशीष दीं लोगीन । ईहे सूचना देि गीि के गज ुाँ सनु ाए लागेला आवहू गोसिया रे आवहु गोसिन आरे...ऽऽ गाई के जगावहू सशविसु न बाला सक

जनिे ले नािी नू होऽ । एगो दोसरा उदाहरण से सोहर के िंगल रूप के पिा चल जािा । ऊ िंगल गीि बहुि हद ले देविा आ सपत्तर लोग से सनु ावि होला । देखीं ना, गावहू ए सखी गावहू गाई के सनु ावहू होऽ आरे, सब सखी सिली गावहू आज िंगल गीि नु होऽ । देविा जगवला के बाद पिरा िें शभु बेला देख के लगन सनसि​ि कइल जाला आ ओह सनसि​ि लगन पर सोहर गावल जाला । सा​ाँझे, रािे, सबहाने चाहे दपु हररया, कवनो बेरा िेहरारू कुल ‘ससु िका-गहृ ’ के दआ ु र पर बइठ के सोहर के अिरीि वषा​ा से गा​ाँवजवार के साथे अपना संस्कारन के सिद्ध ृ करे लागेला लोग । िेहरारू लोग सोहर गावे खासिर ‘सूिक-गहृ ’ के दआ ु र चाहें आसपास के स्थान एह से चनु ेना लोग सक गीिीया प्रसूिा के साथवे नवजािो के कान िें पड़े । एहके िानससक िान्यिा होला सक सोहर सनु ला से जच्चा-बच्चा दूनो जने के स्वास्थ्य लाभ सिलेला । हिरा बझ ु ाला सक भले स्वास्थ्य लाभ सिलि होखे चाहे ना, बाकी एही बहाने रोचक संगीि िऽ सनु े के सिलबे करे ला । बाजन बाजे सि बाजन नउबिी बाजन होऽ ऐ जी, राजा राि लीहले अविार अयोध्या के िासलक होऽ । बरही िाने लइका जनिला के बारह सदन पर के काया क्रि । ओह सदन ले रोजो, कवनो बेरा, जबे सा​ाँस सिले, िेहरारू लोग जिु के सोहर गावेला लोग । आजओ ु िऽ पत्रु -प्रासप्त उत्सवन के प्रर्ान िानल जाला । ओह अवसर पर पाँवररया लोग के गावल आ नाचल िऽ होखबे करे ला, जिु ल िेहरारूओ लोग नाचे-गावेला लोग । एह अवसर पर नाचे-गावे के प्रथा आसद से चलि आ रहल बा । अपना रािायण िें िहसषा वाल्िीसक जी राि जी के जनि पर अप्सरा लोग आ गंर्वा न के नाचे-गावे के बाि सलखले बानी । ‘जगःु कल च गंर्वा​ा ः ननिृ िु ाप्सरो गणाः ।’ अपना ‘रघवु ंशि्’ िहाकाव्य िें आसदकसव कासलदास जी भी सलखले बाड़े सक राजा सदलीप के िहल िें ‘अज’ के जनि लेहला पर वेश्या लोग नाचि-गावि बा । ‘सख ु श्रवाः िंगलत्रसनस्वनाः प्रिोद नत्ृ यैः सह वारयोसषिाि्’ । ओही िरे बेटा जनिला पर अपनीहों गा​ाँव-जवार िें सनु े के सिलेला । एगो सफल्ि िें प्रयोग भइल ई पारंपररक गीि देखीं -

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लोक - संस्कार जगु जगु सजयसु ललनवा, भवनवा के भाग जागल होऽ, ललना, लाल होइहे, कुलवा के दीपक िनवा िें आस लागल होऽ । ई देखे के सिलेला सक सोहर िें असर्किर राि-कृष्ण के जनि से संबंसर्ि गीि होखेला । सोहर गीिन िें वण्या -सवषय के सवसवर्िो पावल जाला । कुछ सोहरन िें िहिारी ना बनला के टीस रहेला ि कुछ िें गभा​ा वस्था िें कुछ सवशेष खाए-पीए के असभलाषा आ कुछ िें पत्रु जनि के आह्लाद के साथही देवी-देविा के पूजा-पाठ के कथाप्रसंग । ई सगरो सोहर के सवसवर् रंग हऽ, जवना िें बर्ाई सूचक सोहरे गावल जाला । ‘सोहर’ के उत्पसत्त जाहें जेऽ िरे भइल होखे, पत्रु के आगिन पर होखे वाला एह गीिन के छं दओ ‘सोहरे’ हऽ । सोहर गावे खासिर कवनो बाजा के जरुरि ना पड़ेला । एह खासिर ना ढोलक के थाप चाहीं, ना झा​ाँझ के झोंझ रहेला । भोजपरु ी के सोहर के बारे िें सवद्वान लोग के ई ि​ि हऽ सक ऊ िक ु आ सनयि से परे होला । भाव व्यक्त करे खासिर बान्हा कइसन? भोजपरु ी के सोहर कवनो पहाड़ी नदी जइसन स्वछं द आ र्ारदार होला । हिरा िाई के ई पसंदीदा सोहर रहे । देखीं ना िाथे िक ु ु ट कृि कुण्डल ओढले पीिाम्बर होऽ िाई होऽ, बा​ाँसरु ी बजावि कृष्ण जनिे ले िोरा कोखी आवेले होऽ । । सोहर के गीिन िें संभोग श्रंगृ ार के वणा न के सथवे आनन्द आ उल्लासो के अद्भिु वणा न सिलेला । ओह गीिन िें सद्यः िाई बने वाली औरि के िन के गदु गदु ावे वाला शब्दन आ गीिन के असर्किा होला । अइसनके गीिन के ‘खेलवना’ के नाि सदहल जाला । एह सोहरन िें पसि-पत्नी के संबंर् िें कबो-कबो पड़े वाला खटास के साथे देवर-भाभी के पावन संबंर् के उजागर कइल जाला । एह िरे के अनेक सबम्बन के ससररजना कऽ के अनसगनि सोहर भोजपरु ी िें गावल जाला । हि अइसहूाँ अपना िाई से बेर-बेर सोहर गवा-गवा के ओहके ररकाडा क के ऑसडयो रखले बानी, जवन अब खराब हो िा आऽ इ लेख सलखि बेरा अंिर-िन से ईयाद आविा । िाई के गावि सोहरन िें कई गो ‘खेलवनो’ सनु ले बानी । देखला पर सिलेला सक सोहर के सवषय के सवस्िार के िल ु ना िें खेलवना िें संसक्षप्तिा रहेला । देखे के सिलेला सक एह खेलवना से नया उिीर के बहू-बेटी लोग के ज्ञान सदआला । खेलवना िें लइका जनिला से घर िें आइल खशु हाली, बर्ाई, नेग-चार आसद के सथवे ननद-भौजाई के हाँसी-सठठोली के सिश्रण रहेला । एगो उदाहरण देखीं बबआ ु रुन िनु झनु िनु

अंगना सोहावन अइले नाऽ अपना बाबा के खरचा करावन अइले ना नाऽ । अपना दादी के चोररका लटु ावन अइले नाऽ । । सोहर िें गदु गदु ी के एगो दोसरो सचत्र देखीं । एहसे पिा चल जािा सक लोक जीवन िें प्रकृसि के सबना कवनो जग-परोजन, कवनो उछाह-अिरख के कल्पना नइखें हो सकि । चकवा जे पछु े ले हुनहुन कब होइहें झनु झनु कब होइहें होऽ । । सोहर गीिन िें पसि-पत्नी के रसि-क्रीड़ा, गभा​ा र्ान, गसभा णी के शारीररक बनावट, दोहद, प्रसव-पीड़ा, िहरीन चाहें र्गसडन के बोलवला से ले के पत्रु के जनिला ले के भी वणा न होला । एकरा सथवे कई जगह ईहो वणा न सिलेला सक प्रसव-पीड़ा के बेरा पत्नी अपना पसि-परिेिर से दूर ना रहेके चाहे ले । राि-सीिा के वणा न पर आर्ाररि ईऽ सोहर देखीं नाऽ राि चलेले रथ सासज के के हू देखहूाँ ना पावेला होऽ अरे, सीिा कहेली कर जोरर हि रउरा साथे चलेब होऽ ए साहेब, अंिर-वेदना के ई बसिया हि के करा से कहेब होऽ । । गभा विी स्त्री जवन-जवन चीज के खाएके सवशेष इच्छा व्यक्त करेले ओहके ‘दोहद’ कहल जाला । कासलदास जी स्पहृ ाविी वस्िःु के षु िागर्ी िें एकर वणा न कइले बाड़े । अइसनका वणा नन िें ईहो सिलेला सक सन्ु नर-बेटा के जनि देहला पर दोसरो औरि प्रसूिा से ओसहसनके बेटा पावे के उपाय पूछेले । राि जइसन बेटा के देख के ससु ित्रा पूछेली । देखीं हाँसी-हाँसी पछ ु े ली ससु ित्रा रानी सनु हू बसहना कोससला नु होऽ ए बसहना कवन-कवन व्रि कइलू रिइया पत्रु पवलू नु होऽ । । सोहर के गीिन िें छे ड़छाड़ आ गदु रु ावे वाला गीिन के असर्किा भइला के साथवे छोट-िोट कथो-कहानी के वणा न सिलेला । एह िरे के अनेक सोहर गीिन से भोजपरु ी भाषा अउरी सिद्ध ृ होले आ

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लोक-संस्कार सथवे भोजपरु ी के लोक-सासहत्य के अिर र्रोहरन िें भी बढ़ोिरी होला । बािचीि, कथा-कहानी पररवार के हर सदस्यन के सथवे पसि-पत्नीयो के बीच देखे के सिलेला । देखीं ना सपया पीअर सपया पीअर के हिरो सार् पीअररया हि चासहले होऽ । र्सन नइहर र्सन नइहर लोचना भेजवाव पीअररया िहु ूाँ पसहर नू होऽ । । बेटा जनिला पर ‘पाँवरीया’ नाचेला लोग । ई पाँवरीया असर्किर िस ु लिान होला लोग, जे भगवान राि के कथा के गा-गाके नाचेला लोग । अब िऽ पाँवरीया लोग के नाच-गाना भरे िेटाऽ िाऽ बाकी जब ऊ लोग ढोलक पर कुकुही (एक िरे के बाजा) के िर्रु संगीि से आपन राग सिला-सिला के गीि जब गावेला लोग िऽ िन िें उछाह भर जाला । अपना गा​ाँव-देहािन िें, जहा​ाँ सोहर के गीि आ पाँवरीया के नाचन के प्रथा, भले दूबरे हालि िें सही, जीअऽिा, ओसहजा के रम्यिा देखिे बनेला । हि लइकाई ं िें अपनदा दआ ु र प पाँवरीया लोग के नाचल-गावल देखले बानी आ ऊऽ सचत्र आजओ ु आाँख िें बसल बाऽ । सोहर गीिन िें पाँवरीया लोग के भी वणा न सिलेला । एगो उदाहरण देखीं दअ ु रा पर नाचेला पाँवरीया िऽ अंगनवा कोिकवा नाचे होऽ, आरे, ओबरी िें नाचे ले ननदीया िऽ होरीला कसह-कसह के होऽ । आरे, दे दऽ भाभी अपने कं गनवा ललन के बर्इया लेबऽ होऽ । बर्इया या नेग लेबे िें फुआ सबसे आगे होली । फुआ, पाँवरीया, िहरीन, र्ंगसडन आसद लोगन के नेग िाँगला के वणा न सोहर गीिन िें भरपूर सिलेला । नेग िा​ाँगे के बेरा िऽ हर जनि​िआ ु राि-कृष्ण आ हर िाई कोससला-यशोदा हो जाला लोग । एगो र्ंगसडन के नेग िा​ाँगला के वणा न देखीं िसचया ही बइठल कोससला रानी, बड़की चउर्राइन होऽ, ए रानी, हि लेबो सोने के हाँसआ ु ि रुपवा के खापड़ी होऽ । पसहरी ओसढ र्गसडन ठार भइली, चउिरा चढ़ी िनावेली होऽ आरे बंस बाढ़ों रे, फलाना राि के घरवा बररसे सदन हि आइब होऽ । ।

लोक-जीवन के सवडंबना देखीं सक जहा​ाँ बेटा के जनिला पर उत्सव िनावल जाला, ऊहवें बेटी के जनिला पर सवषाद फइल जाला । सोहर िें कई जगह एकर वणा न सिलेला सक िहिारी कहेली सक जे िरे परु इन के पिई बेयार के का​ाँपेला होही िरे बेटी के जनिला पर हिार करेजा का​ाँपऽिा । कहल जाला सक एही कारने बेटी के जनिला पर सोहर ना गावल जाला । कई जगह बेटी-जनि के पीड़ा भी व्यक्त भइल बा । रउरो देखीं ना जेठ बइसखवा के परु इन लहर-लहर करे एऽ, आरे, िासह कोखी सर्अवा जनिली ि परु​ु ख बेपछ परले एऽ । िइले ओढ़न, िइले डासन, कोदो चउरा पंथ भइले एऽ, आरे, रेंडवा के जरेला पसंसगया, सननररयो नासह आवेले एऽ । स्त्री लोग के भाग्य पर अटूट सविास होला । ऊ जानेला लोग सक भगवान के जो कृपा होई िऽ कपार से बा​ाँसझन नाि के कलंक िेटाऽ जाई । भोजपरु ी सोहरन िें भारी-से-भारी सबपिन िें औरिन के र्ैया के रेखांसकि कइल गइल बाऽ । कई जगह ई देखे के सिलेला सक अपने उिीर के औरिन के गोदी िें नवजाि के देख के दोसर औरि अपना संिानहीन भइला के व्यथा िें आहि हो जाले । सोहर गीिन िें िऽ बंध्या औरिन के दशा के अइसन वणा न सिलेला सक पत्थरों के सीना के झाँकझोर देलाऽ । ओह िरे के सोहर िें सास के दव्र्ु यवहारो के वणा न सिलेला । एगो सोहर देखीं िचीआ बइठल िोरे सास, सगरी गनु आगर हेऽ । ए बहुअर, उठऽ नाहीं पनीआ के जावहू चचु सु हया एक बोलेले हेऽ । । अपना बा​ाँझपन से औरि एिना परेशान सबआ सक गंगा जी से जा के गोहार लगावि सबआ । एगो सोहर देखीं गंगाजी के ऊाँच अररवा, िेवइया एक रोवेले होऽ । आरे गंगा िाई, अपनी लहररया हिके देिू िऽ हि डुसब िरर जइसि होऽ । पत्रु के जनि पर देविा आ पूवाज लोग के गोहराऽ के ओह लोग के र्न्यवाद ज्ञापन कइल होखे चाहे आशीष देबे के कािना होखे, चाहे

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लोक- संस्कार वंश-वसृ द्ध के चचा​ा , ईऽ सब देविा जगावल कहाला । पत्रु के प्रासप्त के इच्छा रखे वाली औरि, गभा के वेदना से व्याकुल िरुणी, पिोह के िंगल कािना िें लागल सास, दौड़-दौड़ के र्ंगसडन बोलावे िें व्यस्ि पसि देव, बेटा के जनिला पर र्न-दौलि के नेग िा​ाँगे वाली िहरीन, कूद-कूद के आपन उछाह लटु ावि ननद आसद के वणा न सोहर के गीिन िें बहुिे होला । नवजाि के रोआई, िाई के आनन्द, सास के प्रसन्निा आसद के वणा न खेलवना के वण्या -सवषय हऽ । एह सब के अलग-अलग कइल कसठन होला । कुल सिलाके देविा उठावन के बाद बेटा के जनि के पूवा-पीसठका के वणा न सोहर िें होला िऽ उत्तर-पीसठका के वणा न खेलवना िें । भले सिाज िें पररविा न होऽ िाऽ, लोक-जीवन भी संस्कारन के चादर के सिय-सिय पर र्ोऽ के साफ-सथु रा करे के चाह राखिा, आ करिो बाऽ । दसु नया सवकास के पा​ाँख लगा के लंबा उड़ान भर रहल सबआ । दरू ी काऽ कहाला, ई िऽ बझ ु ािे नइखे । अब िऽ सगरो सफर एगो सक्लक पर सनभा र हो गइल बाऽ । सिाज िें पररविा न के

सथवे सनि नया-नया आंदोलन के जनि होिा । आर्ी आबादी के सवशेषण पर नारी-िसु क्त के बाि कइल जािा । िबो सोचे वाला बाि ई बाऽ सक आजओ ु बेटा के जनि उछाह के संचार करे िें कवनो कसर नइखे छोड़ि । भले सिय के साथ चलि लोग-जीवन िें भी लइका के जनि के सोहर अब सूिक-गहृ से चल के नससांग होि के बेड पर चल गइल बा, िबो अभीन कईगो ईया-नानी, कईगो फुआकाकी बाऽ लोग जे संस्कारन के जीअवले बाऽ लोग । ऊ लोग जानि बाऽ लोग सक अपना डुबि संस्कारन के बचा के ही अपना वैभवशाली संस्कृसि के सिद्ध ृ कइल जा सकल जाला आ ढोलनगाड़ा वाला गोलबाजी से दूर अपना असली भोजपरु रया के पररचय सदहल जा सकल जाला । काहे सक कवनो लोक-जीवन के लोकसासहत्य ओह लोक-िानस के हृदय के असभव्यसक्त होला । लोकसासहत्य लोक-िानस के भावना के साँचका दपा ण आ प्रिीक होला । िऽ सबके सोचे के चाहीं सक हिनी के कहा​ाँ बानी जाऽ, काऽ करऽ िानी जाऽ आ काऽ करे के चाहीं ।

- पवन

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लोक-भाषा: लोक साटहत्य

‘फोक’(folk) के झोंप में भुलाइल लोक के तलाश ( भाग 1) प्रमोद कुमार सतवारी

चपन के एगो घटना इयाद पड़ रहल बा । दस ू रािीसरा पढ़ि रहल होखब जा, संगे के एगो लइका बड़ा खरु ाफािी रहे । िास्टर साहेब के एकदि सपनसपना देि रहे, जब ऊ सछकुनी ले के ओकरा के िारे चलस िऽ ऊ खट से कहीं नपािा हो जाए । एक सदन िास्टर साहेब एकदि सजसदया गइले सक आज ना छोड़ब । उहो कि ना रहे भाग के एगो पेड़ प चढ़ के लक ु ा गइल । पेड़ िनी झरनाठ रहे ऊपर से एगो काकी ओकरा प लउका चढ़ा देले रही । पिा लगावि िास्टर साहब पेड़ िक पहुंच गइले बासकर चश्िा िें लाख आंख गड़वला के बादो उनक ु ा के कुछो ना लउकल । पीछे से हिनी के हे हे ले ले कइले रहीं जा । िास्टर साहेब खीझ के पूछले, ‘का जीऽ, ि​िु सब को लइका लउक रहा हैॽ’ एगो लइका जवाब देहलस, ‘गरु​ु जी, लइका िो ना बासकर िीन गो लउका लउक रहा है ।’ कुछ देर के बाद गरु​ु जी लइका के बदले भसिया लउका से सिझौिा कऽ ले ले । आ ऊ उत्पािी लइका िीन गो लउका गरु​ु जी के सोझा दूरहीं से फें क के र्ीरे से सरक सलहलस । जब लोक के बाि आवेला िऽ ई घटना हिरा के बरबसे इयाद आवे लागेला काहें सक लोक भी फोक के फे रा िें ओह पेड़ प लक ु ाइल लइका जइसन बा । बलक ु ई कहल जादे सही होखी सक लोक लक ु ाइल लइका ना एगो बड़ झरनाठ पेड़ ह जवना के कई गो रूप बा । सवाल ई बा सक ओकरा के रउआ कहां से देखि बानीं । देखेवाला लोग के अपना भेद के कारण लोक के िािला बड़ा उलझल बा, ‘लोक’ शब्द के नाि लेिे ढेर सारा सवाल िन िें आवे लागेला । पसहला ि इहे सक एह लोक के ि​िलब का हऽॽ गांव के लोग लोक के साथे इहलोक से परलोक िक के बाि करि रहेले आ दनू ो के सर्ु ारे के चक्कर िें कहीं के ना बांचेले । लोक के साथे अक्सरहां वेद के बाि भी चलि रहेला । गोस्वािी िल ु सीदास ‘लोकहुं वेद ससु ासहब रीिी, सवनय सनु ि पहंचानि प्रीिी’ कह के एगो र्रािल पऽ दूनो के जोड़ देबल े े । जब लोक आवेला िऽ गिे से शास्त्र के भी सखंचले आवेला, अक्सरहां ई दूनों के प्रयोग एक दूसरा

के सवरोर्ी के रूप िें लोग करेला । एही लोक के साथ ले के एगो बड़का दशा न बा जवन कई हजार साल से लोग के परेशान कइले बा जवना के लोकायि (लोके षु आयि: लोकायि) कहल जाला । इहे ना सहन्दी के बड़का आलोचक आचाया रािचंद्र शक्ु ल ‘लोक’ के सासहत्य के आर्ार बनवले आ ‘लोकिंगल’, ’लोकर्िा ’, ‘लोकव्यवहार’ जइसन पदावली के उपयोग कऽ के एही के कसौटी पऽ सबहारी जइसन कुछ कसव लोग के खाररज कऽ देले आ िल ु सीदास आ सूरदास के सहन्दी सासहत्य के बड़का ससंहासन प बइठा देले । कुल सिला के लोक शब्द आजओ ु उलझावेला, एही से हि सोचनी हऽ सक अबकी बार लोक सासहत्य आ भोजपरु ी के बदले ‘आखर’ पऽ लोक के बारे िें बाि कइल जाव । असल िें एह उलझन के पाछे अंग्रज े ी के ‘फोक सलटरेचर’ के बड़ भूसिका हऽ । एही शब्द के अनवु ाद के रूप िें लोक सासहत्य शब्द चले लागल । फोक के उपयोग आसदि सिाज खासिर भा नागररक संस्कृसि से दरू रहेवाला अनपढ़, गंवार लोग खासिर कइल जाि रहे । बासकर भारिीय परंपरा िें लोक लउके वाला यानी नजर आवेवाला प्रत्यक्ष जगि से शरू ु हो के पूरा दसु नया के ही देखावे लागेला । लोक िब्द, एिना परु ान आ एिना दूर िक जाला हक लोक-अहधपहि, लोकापिाद, लोकाचार, लोके ि, लोके षणा, हत्रलोक, देिलोक, लोकायि, लोकपाल, लोकनाथ से ले के लोकनायक िक पिचं जाला । एिी से िम एकर िुलना झरनाठ बरगद के पेड़ से कइनी िऽ जिना के कई गो रूप लउके ला । हफर सिाल ई खड़ा िो जाला हक ओकरा के रउआ किां से देखि बानीं । एक ओर से देखला पऽ ऊ बि​ि पुरान बूढ़ लउके ला, दस ू रका ओर से देखला पऽ नया कनखी फेंकि एकदम िाजा नजर आिेला । एक ओर से जजशर, परंपरा के नाम पऽ रूहढ के भार ढोअि ढि​ि बझ ु ाला िऽ एक ओर से िास्त्र के रस्िा देखाि​ि नया िाजगी से भरल रोज नया नया रूप लेि लउके ला । एक बेर बझ ु ाला सक एकर सोर ि खाली गांव िें बा बासकर गहराई से देखला पऽ पिा चलेला सक एह सोर के छोर िऽ बड़का िहानगरन से ले के सवदेश िक िें रहेवाला लोगन के

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लोक-भाषा: लोक साटहत्य लगे गिे से पहुंच गइल बा आ उहां एगो नया कनखी फोड़ रहल सबया । लोक के शास्त्र से का ररश्िा हऽ, लोक के जन से का संबंर् हऽ, सिथक से एकर कइसन संबंर् हऽ, आजकल कुछ ढेर चसचा ि शबद लोकसप्रय िें के िना ‘लोक’ होला आ के िना ‘सप्रय’ होला, एह सब पऽ सवस्िार से असगला खंड िें बाि कइल जाई सफलहाल आई ंलोक के कुछ िहत्वपूणा लक्षण पऽ बाि कइल जाव । 1.अिं के हिलोप लोक के सिझे के रस्िा ‘िैं’ के सांकर गली से ना ‘हि’ के हाइवे से गज ु रेला । सभ्यिा के सवकास के क्रि िें अउरी कवनो चीज िें बढ़ोिरी भले न भइल होखे, ‘िैंपन’ िें घनघोर बढ़ोिरी भइल बा । हिनी के देखिे देखि पररवार, ररश्िा, गांव, जवार के जगह पऽ व्यसक्त आ व्यसक्तवाद आवि चल गइल । लोक के सबसे बड़ लक्षण ई हऽ सक एकरा लगे अहं के जगह ना होखे । ‘राि जी के सचरई, राि जी के खेि; खा ले सचरई भर भर पेट’, या फे र ‘सबै र्न गोपाल के ’ कह के लोक एक िरह से सबकुछ परि् सत्िा के भा सिाज के संउप देवेला आ एही िें आपन िसु क्त देखेला । इहे कारण बा लोक रचना के रचनाकार के हऽ, एकरा के खोजे िें बसढया बसढया शोर्ाथी लोगन के पसीना छूट जाला । कई बार िऽ अइसनो

िोला हक किनो देिी देि​िा भा पहिले के किनो बड़ रचनाकार के नाम पऽ अपनो रचना के लोग जोड़ हदिल करेले । आज जब िर जगि अपना नांि के हिलापट्ट ंगिािे, लगिािे के िोड़ लागल िोखे, िब ई कल्पना कइल भी कहठन बा हक के िू अपना पूरा हजनगी भर के मेिनि के िू अउर के नाम पऽ दे हदिी । ठीक ओइसहीं जइसे सक अब लोग एह बाि पऽ जल्दी यकीन ना करी सक कुछे दशक पसहले िक एगो भाई अपना दूसरा भाइयन के बच्चा-बच्ची के िऽ खूब प्यार करी बासकर अपना बेटा बेटी के गोसदयो लेवे िें संकोच करि रहे । अहं के एही सवलोपन से लोक के दूसरका सवशेषिा के राह खल ु ेला । 2.सामूहिकिा पऽ जोर जब अहं ना रहे िऽ सिाज से जड़ु े िें सदक्कि ना होखे । असल िें ई सिाज के ओह सिय के सवशेषिा हऽ जब आदिी के संख्या कि रहे आ ऊ जंगल, जानवर आ ि​िाि िरह के सवषि पररसस्थसि से संघषा करि रहे । आजो जब आदिी खिरा िें भा िसीबि िें ु होखेला ि ओकरा के आपन पररवार आ सिाज इयाद आवेला

बासकर एकरा से बाहर सनकलिे फे र से अपना आप िें िस्ि हो जाला । लोक कदि कदि पऽ सिूह के ले के चलेला । ऊ चाहे खशु ी के बाि होखे भा गि के । कवनो संस्कार होखे, त्योहार होखे, खेल होखे, काि होखे हर जगह सिूह लउकी । लोक के शायदे कवनो खेल होई जवना के रउआ अके ले भा दू लोग के साथे खेल पाइब, ज्यादािर िें कि से कि चार पांच लोग के जरूरि पड़ी । नया सिाज के व्यसक्तवासदिा के ई पहचान हऽ सक रउआ अपना किरा िें बंद हो के िोबाइल भा लैपटॉप पऽ िसहना गज ु ार सके लीं । असल िें ई खाली सिय गज ु ारे आ चार लोग के साथे खेले के िािला ना हऽ, एकर प्रभाव पूरा सजनगी िें पड़ेला । अके ले जीवन गज ु ारे वाला बच्चा आ शरु​ु ए से सिूह िें रहेवाला बच्चा के जीवन िें साफ फका देखल जा सके ला । 3.प्रकृहि से साझेदारी ‘लोक जीवन’ के अगर कवनो दस ू र नांव देवे के कहल जाव ि हि ओकरा के ‘प्राकृसिक जीवन’ कहल चाहब । पिा ना कइसे िथाकसथि सभ्य लोग प्रकृसि के दश्ु िन िान के ओकरा पऽ असर्कार करे के बाि करे लागल, अपना सख ु खासिर ओकर शोषण करे के सवकास के पैिाना िाने लागल । आज पसि​ि के कुछ अद्धा सशसक्षि लोग के प्रभाव िें हिनी के सभ्यिा के पररभाषा िय कर रहल बानीं जा आ जे प्रकृसि से जेिना दूर बा ओकरा के ओिना सवकससि िान रहल बानीं जा । लोक प्रकृसि के साथ सहजीसविा िें यकीन करेला । लोक खाली खेिी-सकसानी भा गांव से जड़ु ल संस्कृसि के नाि ना हऽ, ऊ एगो जीवन शैली हऽ ऊ चाहे गांव िें होखे भा सवदेश िें । अगर िहानगर िें रहि कवनो व्यसक्त अंगना के बचावे के आ पेड़ लगावे के कोसशश करि बा िऽ ई िानीं सक ओकरा भीिर लोक सजंदा बा । अंगना खाली एगो खाली जगह ना हऽ, ओह खाली जगह िें खल ु ा आकाश भरल रहेला, ओकरा िें सूरज से ले के चांद िारा िक के उपसस्थसि होला, ओह खल ु ा स्थान िें सचरई चरु गनु से ले के चूंटा िाटा िक के आवे के अवकाश होला । अंगना एगो अइसन सखड़की के काि करेला जवना के िाध्यि से हिनी के प्रकृसि के ओर झांक लेवेनी । लोक प्रकृसि के ओर खल ु ेवाली एह सखड़की के बहुि िहत्व देवेला । ओकरा आचार, व्यवहार, जीवन शैली हर रूप िें रउआ के प्रकृसि से एगो आत्िीय आ गहीर ररश्िा नजर आयी । हि इहां खाली भोजपरु ी लोक के बाि नइखीं करि । पूरा दसु नया के लोक सासहत्य के ई सवशेषिा हऽ ।

प्रमोद त्रिवारी भभुआ मबहार के रहे वािा प्रिोद कु िार जी , कें रीय मवश्वमवद्यािय गांधीनगर , गुजरात िे अमसस्टेंट प्रोफे सर बानी । इाँ हा के भोजपुरी आ महन्द्दी सामहत्य खामतर िगातार काि कर रहि बानी । पत्र पमत्रकन िें प्रिोद जी के रचना आकषयण के कें र होिी स । भोजपुरी भाषा आ सामहत्य के इाँ हा के अपना िेखनी से बररआर चोख धार देिे बानी । एह घरी गांधीनगर गुजरात िे बानी ।

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लोक-भाषा: भोजपुरी

भोजपुरी हमार अलख अनाड़ी भोजपरु ी हिार जानि दसु नया संसार बा एक से बढ़ के एक गथु म्गथु ी िेयोहार बा होली- सदवाली कबो पूजा िहाकाली के गोरी के गरदनवा िें िोसियन के हार बा सपिा राजा दशरथ िऽ भईया श्री राि किो भाभी सीिा रानी कनहुाँ देवर लखन लाल जी ननद-भउजाई के झूिर आकाश ठेके सास िािा रानी कोसशल्या किाल की बढ़ु वो जवान होला फगआ ु के िान सनु ीं बढ़ु ीयो के देखी चान छीपी जाला बादर िें भोजपरु ी भाषा लागे शहद के छात्ता हऽ सागर सिाईल होखे सोना के गागर िें किो लागे होरहा किो लाग िा फुरेहरी जल लेले खाड़ बाड़ी बहुआ गवनेहरी गंगा जी के पानी िें चिक बाटे चानी के टुकुर-टुकुर िाक िाड़े बाबा खड़ेसरी बड़ भाई छोटा के सपिा अस प्यार देवे छोट भाई जाने भगवानों ले ऊाँचा भई ंसी के दर्ु -दही हा​ाँथे सपयावे रोज खल ु रु -खल ु रु हाँसे रोज गली से कुाँचा

घर िें सबलाई देली- िस ु न पऽ पहरा िाछर कुलेल करे नदी बीच लहरा भोजन पऽ दही-दूर् भूली जाये सर्ु -बर्ु आर पऽ लीलकं ठ देखी बनी जाई जिरा लागे बर्ार कईले सोरहो ससंगार होखे िके या के बाल किो र्ान के कटोरा बबरी पऽ गि-गि चिके रेि चि-चि िारे िलपआ ु ाँ कराही िें सहलोरा गईया-भई ंसीयन के गरदन िें गरउटी िोससकल िें परी जाईब देहब चनु उत्ती बाघ अस कुकुर सनशाना सार्े टुाँकु-टुाँकु िलजद्ध ु शरू ु कनहुाँ खेल िें फनउत्ती किो के ल्हुआड़ चले छांह बा​ाँसवार िर चईिा के र्नु किो लईका सेयाना बाबा दआ ु र पोिा-पोिीन के सपयार देि पश-ु पंछी गावे भोजपरु ी रंग गाना

भउजाई के आगे िें फे ल होि बाड़ी िाई खाना के थाली लगा के राह िाकि िाड़ी बबआ ु जी अईले ना, अबहीं ले खईले ना सनरछल परेि भींजे आाँगन-घर झाड़ी भोजपरु ी भाषा हऽ रस िें डुबावल, सोना के थरीया िें व्यंजन सजावल सा​ाँच बाि कहिानी िानी चाहे जनी िानी हीरा के हार िें नगीना िढ़ावल बोली से रस चयु े िहुआ के फूली जवानी कचनार गोरी सोना के गल ु ी अाँसखयन के र्ार नाहीं काजर सम्हार खाये

पा​ाँव िें िहावर शोभे नाक-नकबल ु ी पलंग बईठल सास रानी सपसढ़या पऽ गोसिनी दि-दि रसोई घर सबज ु ी पऽ चटनी आाँगन इिराये जइसे इिर के खशु बू िें कुलवंिी नारी शोभि फूल अस िहोगनी

सबजल ु ी के फे ल करे िा​ाँथ प के सटकुली घोघी िें चरु ा-गड़ु का करी ककुली पछे या बेयार कबो परु बा िल्हार गावे लइकन के नजर गड़ल िाड़ पऽ के अठुली 'अलख-अनाड़ी' भोजपरु ी दल ु ारी बेटी नजर नाहीं लागे पावें राखी सम्हारी के भाषा के रानी हिार सदल्ली राजर्ानी गीि- राग, भजनों के कोठी अम्बारी के

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लोक-जीवन

भोजपुरी लोकगीतन में स्त्री जीवन मनोरमा सिंह

लो

कगीि लोक सासहत्य के सबसे सहज,सरल आ सबले बररयार िाध्यि ह, बड़-बड़ पोथी-पिरा, सकिाब आ सबदवान लो के बाि आ ससर्ान्ि के करो हाली बझ ु ाला ना । बाकी उहे सब बाि,सब बाथा-काथा लोकगीिन िें बड़ी असानी से सिा जाला, हजारों साल के इसिहास इ गीिन िें दजा बा, कं ठ से इ सब गीि फुटले के साथे लोग हजारों साल पसहले के आपन सजनगी भा इसिहास आ परू ु खा-परु सनयां से जड़ु ा जाला। कहे,सनु े,सिझे िीनों खासिर आपन लोकजीवन के लगे सबसे बेहिरीन िाध्यि लोकगीि ह, इ गीिन िें लोग के सख ु द:ु ख, आस-सनरास,दरद-िरि सब लौके ला आ संगे संगे कौनो सिाज के सािासजक-सांस्कृसिक इसिहास, सोच, चलन के भी पूरा अन्जाद सिल जाला। खैर, आपन भासा आपन बोली के गीि के बोली चाहे कहीं रहीं कान िें पड़ेला ि रोआं खड़ा हो जाला, छठ, होली जईसन िौका पर आपन जवार पथार िें ना रहीं िब्बो बचपने से जवन गीसियां सनु ि आ रहल बानी अपने आप अवचेिन िें गंज ु े लागेला। लेसकन आज आपन इ लेख िें हि भोजपूरी लोकगीि के

एगो दोसर पछ के बारे िें बाि करब, लोकगीिन के सीसा िें भोजपरु रया सिाज िें लईकी आ िेहरारून लो के चेहरा देखे आ सदखावे के कोसशश करब जे बहुि नीिन नईखे आ जेकरा अब बदले के चाहीं। कहल जाला सक कौनो सिाज के उन्नसि के पािा लगावे के बा ि उ सिाज िें िेहरारू लो के दासा िालूि कर लीं, रउवा सब सांच िालूि हो जाई। भोजपूरी िें जीवन के सब रंग सब अवसर खासिर गीि बा, जनि से लेके अस्िसान घाट जाए िक ले, सोहर से सनगा णु िक के जात्रा बा भोजपूरी लोकगीिन के बाकी आपन लोकसंस्कृसि िें जौन ललनवा के आईला पर बर्ाईया बाजे लागेला ओसह संस्कृसि िें बेटी कहेले- एके कोखी बेटा जन्िे एके कोखी बेसटया, दू रंग नीसिया,काहे कईल हो बाबू जी,दू रंग नीसिया,बेटा के जनि िें ि सोहर गवईल अरे सोहर गवईल िमार बेररया कािे मािम मनईल,दू रंग नीहिया कािे कईल िो बाबू जी। अईसने कई गो गीि बाड़न स, जेिे लईकी के िकलीफ सनु ल जा

मनोरमा त्रसिंह मसवान , मबहार के रहे वािी िनोरिा जी , स्वतंत्र पत्रकार के रुप िे अपना िेखन शैिी से बहुते प्रभामवत कईिे बानी । कई गो पत्र पमत्रका आ अखबार खामत इाँहा के िगातार मिख रहि बानी । एह सिय इाँहा के बंगिोर िे बानी ।

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लोक-जीवन सके ला, जनि देवे वाली िहिारी के िजबूरी िहसूस कईल जा सके ला आ पालेवाला सपिा के काठ हो गईला के भी सिझल जा सके ला। भोजपूरी लोकगीि के छानल जाव ि कई गो िौका के अईसन गीि सिली जेिें लईकी होखला के दरद अलगा से िालूि चल जाई आ साथे इहो पािा चली सक आपन सिाज िें लईकी लो के का सस्थसि बा। एगो और गीि हचनरगरहन संसझया लागेला, सूरज गरहन भोरे, आ लागेला बेटी गरहन भईले जबसे जनि, दसो सदसा खोज अईले बाबा सनु र बर, हार गईले खोसज खोसज नहीं सिलले बर, कईसे िें कररहें बाबा कन्यादान हो। एगो और हिनी के इलाका के बहुि लोकसप्रय लोकगीि ह जेकर इस्िेिाल भोजपूरी सफसलि 'गंगा सकनारे िोरा गांव' िें भी कईल गईल बा उ गीि के अंिरा पर िनी ध्यान दीहींहिरो कुसिु हो बेटी आाँसख के रे पिु ररया, सदनवा हरेलू ए बेटी भसु खया रे सपयससया, रसिया हरेलू हो बेटी ि​ि​िा के रे नींसदया, रसिया हरेलू हो बेटी िईया आाँसख रे नींसदया कवन बेटी होई जेकरा इ गीि सनु के , िरि सिझ के नीक लागी? आपन होखे पर ग्लासन ना होई सक हिरे कारण िाई बाबा के ई हाल बा? अउर होस संभलला के बादे से एही सब सनु -जान के उ लो कवन िानससकिा कवन सोच के साथ बड़ होि होई लो? आपना होखे पर, आपन लरु -गनु पर के िना भरोसा होखि होई इ लो के िन िें? चाहे जे कहीं लेसकन परंपरा, सवरासि जे कहल जाओ लेसकन इ सोच लईकी लो के आपने घर िें परायापन िो जरूरे भर देि होई, िन िें एगो हुलक िो जरूर डाल देि होई सक एक सदन चल जाए के बा इहां से, इ सब हिार आपन लोग ह बासक हिहीं

पराया हई ं। बेटी के िन के भीिरे इ बाि के के िना कचोट बा इ एगो गीि िें पािा चलिाबाबा कवने नगररया जआ ु खेलल, सक हिरा के हारर अइल, हिरा के हारर हइल, बेटी अवर् नगररया जआ ु खेललीं ि, िोहरा के हारर अइलीं, िोहरा के हारर अइलीं, बाबा कोसठया-अाँटररया काहे ना हरल, सक हिरा के हारर अइल, हिरा के हारर हइल, बेटी कोसठया-अाँटररया हिार लसछिी ि, िू हऊ पराया र्न िू हऊ पराया र्न । इहां िकले बेटी कहसिया सक-बाबा गइया-भाँइससया काहे न हरल सक,सक हिरा के हारर अइल, ओपर बाबा कहिारे-बेटी गइयाभाँइससया हिार लसछिी ि,िू हऊ पराया र्न िू हऊ पराया र्न । कहे के िाने इ गीि सनु े िें भले नीक लागि होसख लेसकन सिय के साथ सोच बदले के चाहीं, परर्ानिंत्री देस के लोग से 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के गहु ार करिारे, लगािार हजार लईका पीछे लईकी के अनपु ाि सगरि जािा ि एकड़ जड़ िें कहीं न कहीं इ सोच भी बा जे पीढ़ीयन से सिलल बा सक बेटी बोझ ह, बेटी पराया र्न ह। बचपने िें इ ओर हिार ध्यान जाि रहे जब िां आ चाची, िािी, फुआ लो कई गो अईसन गीि गावि रहे लो जेिे राजा दशरथ रानी कोससला आ उनकर चार पत्रु जईसन बेटा देवी-देविा आ सपिर से िांगल जाि रहे, हि िां से कहि रही एगो गीि हिनी खासिर भी गाव ि िां गावे लागि रहली-रूनक ु ी-झनु क ु ी बेटी िांसगले आ घोड़वा चढ़ल के दिाद, सनु के बड़ी नीिन लागि रहे। लेसकन जरूरी बाि इ ह सक भले व्यवहार िें लईकी लो के दासा बहुि घर िें बहुि ठीक आ बराबरी के होखी बासक लोकगीिन िें बेटी के जीवन िें होखला के उत्सवर्सिा िा नईखे आ होसख ि बहुि कि बा। लोकगीिन िें बेटी िजबूरी, किजोरी, बोझ, सजम्िेदारी अईसही आईल बारी, इ सिय के साथ बदले के चाहीं ।

फोटो– रववप्रकाश िूरज

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लोक-पवश

फोटो- गूगल

जीउततया: बतलदानी जीमत ू वाहन के ईयाद के परब शसश रंजन समश्र ए अररयार ! का बररयार !! बैठे के दे देबो हसंिासन पाठ राम जी से कहि​ि

फलनिा के माई भख ु ल बाड़ी हजउहिया ......

हे कह के पीढ़ा के जवना पे जीउि िहाराज सबराजेलें पा​ाँच बार उठावल बईठावल जाला । ई कवनों बेद परु ाण के िंिर ना ह । लोक संस्कृसि िें िंहु े-िंहु े फै लल लबेद ह । जवना िें कवनों सवशेष सलसखि सवर् ना होखे । बरि त्योहार के सवर् के एक पीढ़ी से दोसर पीढ़ी िक, एक सिाज से दोसर सिाज िक देखादेखी आ िंहु से कहल बािन से ही आगे बढ़ेला । हरेक परब के अलग सवर्, व्यवहार आ िान्यिा आ सभे असलसखि । सचल्हो- ससयारो के कथा, बहुला के कथा आ ना जाने के िना लोक कथा । आज के वैज्ञासनक जगु िें एह िरह के हरेक परब के बसु द्धजीवी लोग नकार सदही । बाकी कवनों सनणा य लेवे से पसहले लोक परब आ ओकर पाछे के छुपल गूढ रहस्य के जानल बहुि जरूरी बा । काहे एह परब के लोक व्यवहार िें एिना प्रचसलि करल गइल ? काहे लोगन के र्रि के भय देखा के एह परब के िनावे खासि बाध्य कर सदहल गइल । अयीसने कुछ पहलू के छुवि एह लेख के िाध्यि से पढ़ीं जीउसिया जईसन लोक परब के बारे िें । हिनी के सािासजकिा के िजबूि करे िें लोक व्यवहार, संस्कार, संस्कृसि आ परब-त्यौहार के सवशेष िहत्व बा । सभे परबत्यौहार के पाछे परु खन के वैज्ञासनक सोच जेहिें शारीररक,

िानससक स्वास्थ्य के बढ़ावे के , पाररवाररक आ सािासजक ढांचा के िजबूि करे के गूढ आ गहीर बाि छुपल बा । अईसन परब-त्यौहार िें िीज आ जीउसिया के नाि सबसे ऊपर बा । जीउसिया भा जीसवत्पसु त्रका व्रि के िाने ह सक संिान के उिीर- अदोआय बढ़ावे खासि कइल जाला । जेकर संिान ना होखे उहो िेहरारू लोग एह बरि के करेली । जीउसिया आसिन िसहना के अनहररया (कृष्णपक्ष) के अष्टिी के िख्ु य रूप से भोजपरु ी बहुल इलाका पूवी उत्तरप्रदेश, सबहार आ सिसथलाञ्चल िें िनावल जाला । जीउहिया के कथा जीउसिया के प्रचसलि कथा लोग एह बरि के सदन पढे ला । कथा िें राजा जीिूिवाहन के आपन प्रजा के प्राणरक्षा िें आपन प्राण के आहुिी देवे के आ फे र प्राण हरेवाला से लिहर उिीर के आशीवा​ा द पावे के चचा​ा बा । कथा शंकर जी के िाध्यि से पावा िी जी के सनु ावल जािा । सहिालय क्षेत्र िें एगो गंर्वा के राज्य रहे । राजा जीिूिके िु बहुिे दयालु रहलें हिेशा र्रि करि िें लागल रहस , एहसे जनिा स्वछं द हो गइलरहे आ एक सदन िहल के घेर लेलस । राजा आपन राज आपन गोत्र के लोग के सौंप के आपन बेटा जीिूिवाहन के साथे िलय पहाड़ पे चल गईले । एक रोज जीिूिवाहन घिु ि रहले ि एगो पहाड़ के चोटी पे हड् डी के ढेर देखाई पड़ल । पछ ु ला से िालूि पड़ल की ई सब गरुड़ के करािाि ह । आगे बढ़ले ि एगो बूढ़ी रोवि रहली । पछ ु लें ि उ कहली“हि नागलोक के रहेवाला हई ं। ई जेिना हड् डी देखि बाड़s उ सब नाग के हड् डी ह । गरुड़ से करार बा सक रोज एगो नाग उनकर भोजन बनी । आ जेह सदन गरुड़ के भोजन ना सिली उ सभ नाग के

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लोक-पवश एके बेर खि​ि कर दी । आज हिार बेटा शंखचूड़ के बारी बा । एही से रोवि बानी , एसहजा गरुड़ से गोहार लगावे खासि आइल बानी ।“ जीिूिवाहन ओह बसु ढ़या के सिझवले- “हि िहार बेटा के जगह पे जाईब” । आ लाल कपड़ा िें अपना के लपेट के बसल स्थान पे सिु गईले । गरुड़ आईले आ लाल कपड़ा िें लपेटाईल जीिूिवाहन के पंजा िें दबा के उड़ गईले आ पहाड़ पे ले जाके बईठ गईले । गरुड़ के आिया भईल सक पंजा िें दबोचला के बादो िसनको आह-उह के आवाज ना आइल । उ लाल कपड़ा हटा के देखले ि जीिूिवाहन रहलें । उनकर पररचय पछ ु ले ि जीिूिवाहन सब सकस्सा सनु ा सदहले । गरुड़ उनकर बहादरु ी अवरू दोसरा के प्राणरक्षा खासि आपन बसलदान देवे के सहम्ि​ि से बहुि प्रभासवि भईले । खशु होके आशीवा​ा द िें जीवन दान सदहले आ आगे से नाग के बसल लेवे से िक्त ु कईले । जीिूिवाहन के अनरु ोर् पे जेिना नाग िरल रहले सब के जीवन वापस िंगले । गरुड़ प्रसन्न भईले, सभ नागन के प्राण लवटवले । जीिूिवाहन के राजपाट भी वापस आवे के आशीवा​ा द सदहले । एह िरी जीिूिवाहन के प्रयास से नाग-वंश के रक्षा भईल आ िबे से बेटा के रक्षा खासि जीिूिवाहन के पूजा के चलन शरू ु हो गईल। जीमूि​िािन : जािक कथा के नायक से कुलदेि​िा बने िक बौद्ध र्िा िें भगवान बद्ध ु के आदेश बा – “चरथ सभक्खवे चाररकं बहुजन सहिाय बहुजन सख ु ाय” ।

भारिीय सिाज िें बहुजन के अथा होला सािान्य वगा चाहे उ गांव के रहेवाला होखे भा शहर के । एह सािान्य वगा िें आपन बाि आ उपदेश के पहुंचावे खासि लोक कथा आ उपिा के सहारा सलहल गइल । आ इ सब लोक कथा के िाध्यि से लोग आपन भाषा (सकाय सनरुसत्तया) िें उपदेश के इयाद राखे एकर छूट रहे । बौद्ध र्िा के एह शैली के कारण बौद्ध सासहत्य िें अनेक कथा के सिावेश भईल । भगवान बद्ध ु से लेके बाद के चौरासी ससद्ध लोग िक अनेकानेक पात्र के रचना भईल आ ओसे जडु ल छोट-बड़ कथा सवकससि भईल । एह सब कथा के जािक कथा कहल जाला । आ एह जािक कथा से लगभग हर परंपरा आ र्िा प्रभासवि भईल । जािक कथा के अलग अलग रूप स्थान आ सिय के अनसु ार पररवसिा ि आ सवकससि भईल । संस्कृि ग्रंथ बहृ त्कथा िें बैिाल पच्चीसी के कथा ( 16वीं कहानी) आइल बा । बहृ त्कथा के रचना

495 ई० पूवा िें राजा सािवाहन के िंत्री गणु ाढ् य कईले रहन । बद्ध ु के काल भी 563 ई० पूवा से लेके 483 ई० पूवा िक के ही बा । एह से बहृ त्कथा िें जािक कथा के सिावेश बा । बहृ त्कथा के भाषा प्राकृि रहे आउर एह सकिाब िें लगभग 7 लाख छं द रहे । कश्िीर के कसव सोिदेव भट्ट एह सकिाब के संस्कृि िें अनवु ाद कईले आ नाि सदहले “कथासररत्सागर” । “वेिाल पन्चसवन्शसि” यानी बेिाल पच्चीसी “कथा सररि सागर” के ही भाग ह । बेिाल पच्चीसी के कथा के बहुि भाषा िें अनवु ाद भईल । ई कहानी खाली सदल बहलाव खासि ना रहे, एकर जािक कथा िें जीवन के साथा क करे के अनेक गहीर बाि कहल गइल रहे । सोलहवीं कहानी िें जीिूिवाहन के कथा बा । कथा िें जीिूिवाहन के िहान आत्िा, िहापरु​ु ष बनावल गइल । एह पात्र के िहानिा से प्रभासवि िगर्, सिसथला, बंगाल, उड़ीसा िक के लोग अपना के एह पात्र से जोड़ सलहले । जीिूिवाहन एक जगह के ना रह गईले । जािक कथा से सनकल के र्िा आडंबर रसहि लोकर्िा आ लोकपरब के देविा बन गईले । सिाज के उच्च वगा से लेके दसलि वगा िक ले पज ु ल गईले । सािासजक सिन्वय के जवन स्थापना जीिूिवाहन से भईल उ कवनों आउर कथा आ पात्र िें ना लउके । िगर् के िहादसलि जासि “भईु या​ाँ” अपना के जीिूिवाहन से असर्का जोड़लस । सािासजक रूप से दसलि आ बसहस्कृि एह सिाज के छूआछूि के बंर्न िें बान्ह के परब त्योहार, रीि-ररवाज िें भी कवनों स्थान ना सदहल गइल रहे । िहादसलि एह जासि के जीिूिवाहन िें एगो उद्धारकिा​ा आ एगो अईसन देविा के रूप लउकल जेकरा के अपनावे िें कवनों रोक ना रहे । भईु या​ाँ जासि जीिूिवाहन के आपन कुलदेव बना लेले । जीिूिवाहन के आपन प्राण के आहुिी देवे के पण्ु यसिसथ के आपन कुलपवा घोसीि कईलस । आ जीिूिवाहन के पनु जीसवि भईला के खशु ी िें लगभग एक हफ्िा िक उत्सव िनावे के सवर्ान कईलस । अब दसलि जासियन के उत्सव पज ू ा पाठ के कवनों जानकारी ि रहे ना, ि लोक श्रसु ि के आर्ार पे आपन सवर् बना सलहले । श्री हषा के सलखल संस्कृि नाटक नागानंद िें जीिूिवाहन के कथा के वणा न बा । एह नाटक के सहन्दी िें व्याख्या आचाया बलदेव उपाध्याय कईले बाड़ें ।

शत्रश रिंजन त्रमश्र आरा, मबहार के रहे वािा शशी रं जन मिश्र जी , भोजपुरी िे हास्य व्यंग्य के संगे संगे गमहर सामहत्य के मसरजना करे खामत जानि जानी , इाँहा के महन्द्दी आ भोजपुरी भाषा प पकि बेजोि आ धारदार बा । इाँहा के मिखि कई गो िेख महन्द्दी भोजपुरी के कई गो पत्र पमत्रकन िें प्रकामशत हो चुकि बा । एह घरी इाँहा के कदल्िी िे रहत बानी ।

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लोक-पवश अलग ना करल जा सकल । पीढ़ा पे िाटी के सचल्हो ससयारो बना के ससंदरू चढ़ावल, नेनआ ु (िरु यी) के पत्ता पे जीउसिया के स्थापन कर के पीढ़ा के उठावल-बईठावल कवनों वेद िें सलखल ना सिली । लोक संस्कृसि के परब ह , द-ू चार गीि गंगा िायी के , दू-चार गीि ब्रह्म बाबा के आ हो गइल पूजा । पज ु ा के बाद लोग जीउसिया के आपन बेटा बेटी के पसहराई । जीउसिया बनवाए िें भी सािासजक सवषि​िा रहे । सम्पन्न लोग बेटा खासि सोना के आ बेटी खासि चांदी के जीउसिया बनवावि रहे । बाकी जे सनर्ा न रहे उ एगो र्ागा से भी काि चला लेि रहे ।

बरि करे के लोकाचार : बरि से पसहले नेहाय खाय के सवसर् लगभग हरेक लोक परब िें बा । सांसाररक करि से अपना के िक्त ु करके शरीर आ आत्िा के साफ सफाई के सदन िासक बरि िें शसु द्ध रह सके । बेटा बेटी से खानदान भरल रहे एह सोच के नेहान खाय के सदन अयीसने चीज खाये के सवर् बनावल गइल । िड़ु आ (रागी) के आटा के रोटी, सिपसु िया के िरकारी आ नोनी के साग । िड़ु आ के आटा खूब पसरेला, नोनी के साग आ सिपसु िया के लत्तर के साथे भी इहे बाि बा, एगो लत्तर िय खेि के छाप लेवेला । खेसिहर उच्चवगा ि शाक भाजी से शाकाहार कर ली बाकी दसलि सपछड़ल वगा जेकरा भी एको र्ूर जिीन ना उ का खाई ? कुछ प्रदेश िें िछली के शाकाहार िानल जाला । िछली के भेद ह ससर्री आ पोठीया । छोट िछरी जवन खूब अंडा देवेले आ आपन संख्या सवस्िार करेले । कुछ जगह झींगा िछरी भी लोग एही क्रि िें िानेला । ि बरि के दू सदन पसहले से ही िय गबड़ा- गड़ही, नाहर –पोखर ऊसबछ के िछरी िरायी आ नेहाय खाय के सदन एकरे सेवन होला । नेहाय खाय के सदन चूल्हा चौकी पसबिर करके ओठगन ( आटा के ठेकुआ जे लगभग एक हथेली के बराबर होला) बनी। जेिना लईका-लईकी, ओिने ओठगन । ई ओठगन िनी कडक होला, िासनिा बा की एह ओठगन के खईला से एकरे लेखा देह बररयार होई । होि परािे, सकरीन फूटे से बहुि पसहले िय िेहरारू लोग उठी आ इहे ओठगन से सरगही करी । सरगहीयों के सवर्ान बा । दू टूकी ओठगन सचल्हो आ ससयारो के नाि पे घर के छान्ह छि पे फें काई की उहो लोग खा लेस । अब चील आ ससयार एह बरि िें कै से अईलें एकर कवनों प्रिाण नईखे । सरगही के बाद पूरा 24 घंटा खासि सनजा ला बरि शरू ु होला । बरि के सदन सा​ाँझ के िय िेहरारू लोग एक जगहा एकट्ठा होके पज ु ा करी । एह लोक परब आ जािक कथा के बढ़ि प्रभाव ही रहे की बाद िें जीसविपसु त्रका व्रि कथा गढ़ सदहल गइल । शंकर भगवान आ पावा िी िाई के बीच संवाद करा सदहल गइलसक सजउसिया के सदन जीिूिवाहन के पज ु ा करे के चाहीं । दान र्रि के बाकी एह पूजा िें से लोक संस्कृसि आ सवसर् के

बरि के दोसरा सदन पारन काइल जाला बरि के िूड़े खासि । एह सदन बूटाँ के अंकुरी, िड़ु आ के दाना आ नोनी के कच्चा साग सललल जाला । बटूाँ लगभग हर जगहा सिलेला एह से बरि के दसु रका सदन बूटाँ आ बेसन के सवशेष कढ़ीनिु ा व्यंजन बनेला । भोजपरु क्षेत्र िें एकरा के टोरा कहल जाला । टोरा आ भाि खाके बरि िड़ु ल जाला । खान-पान के िैज्ञाहनक पिलू : िड़ु आ के परयोग लोग प्रोटीन के स्रोि के रूप िें करेला, एकर पानी सोखेवाला सवशेष गणु के कारण पेसचश ग्रस्ि रोगी के सखलावल जाला । िलशसु द्ध करे िें आ आंि के िाकि पहुंचावे िें िड़ु आ के जोड़ नईखे । बाज़ार िें रागी िाल्ट के नाि से इहे िड़ु आ के सत्तू खूब बेचाि बा । नोनी आ सिपसु िया रेशेदार आ सपु ाच्य सब्जी ह । िड़ु आ, सिपसु िया से आंि के शोर्न हो जाये आ बरि करके शरीर के आंिररक पाचन सक्रया के िसनक आराि पहुंचावल आ फे र बूटाँ जईसन अनाज के खाना िें शासिल करल परु खन के वैज्ञासनक सोंच के पररणाि बझ ु ाि बा । ओठगन आटा, खांड भा गड़ु के लोक परब लोग खासि बनावल बा । वैज्ञासनकिा के र्रि के आड़ देके जन िानषु िे प्रचसलि कइल । लोगन के रहन सहन के सर्ु ारल आ साथे साथे संस्कृसि के रक्षा ही लोक परब के उद्देश्य होला । जीउसि​िा जईसन परब जवना िें उंच-नीच, अिीर-गरीब के भेद भल ु ा के िाई आ संिान के परब बना सदहल गइल । र्रि आ देविा के परे करके राजा जीिूिवाहन के गणु गावल गइल । एह सदन िेहरारू लोग बस इहे प्राथा ना करेला सक- हे जीउि ! जैसे िोहार बसलदान के बदला िें िहरा जीवन के अदोआय बढ़ल । ओइससहन हिरो लईका-लईकी के अदोआय बढ़ाव । संदभश : 1. जीसवत्पसु त्रका व्रि कथा, ठाकुर प्रसाद बक ु सेलसा , वाराणसी 2. िगर् की रहस्यावृि सार्ना संस्कृ सि – डॉ० रवीन्द्र कुिार पाठक 3. बेिाल पच्चीसी, सवसकसोसा डॉट ओआरजी 4. बद्ध ु , भारिकोश

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लोक-पवश

भोजपुरी लोकगीतन में आत्मीयता िंतोर् पटेल

लोक

गीि सजसनगी के सरल, सहज आ छल कपट से दूर, सवचार-भाव के परोसन ह । इ कुल्ही गीि जहवां एक ओरर परब-त्योहार, सबआह, जन्िोत्सव के हुलास के दोगनु ा कर देले उहें दोसरा ओरर िेहनि आ पसेना के गणु गान करके सजनगी िें रस के संचारो कर देले । संगही कुल्ही थकान दरू कर के िन के िरोिाजा बना देले । सांच कहल जाय ि लोकगीि अदिी के जनिजाि गीि ह आउर एही िें बसेली लोक संगीि के आत्िा । लोकि​ि ह सक ‘रस‘ सासहत्य िें काव्य के आत्िा ह । उहे लोकगीिन िें रस छलकावे के अजगूि िाकि बा जवन िपि गरिी िें देह पर ‘रसबेसनया‘ डोलावि लउके ला । लोकगीिन िें नेह नािा के सिठास आउर हंसी-सठठोली के अइसन झंकार होला सक देह के रोंवा रोंवा नाच उठेली । अचरज ि िब होला जब लोकगीिन िें जहवा​ाँ सरलिा आ भोलापन के िस्वीर झलके ला उहें भरपूर सासहसत्यक सौन्दयों सदखाई देला । सासहत्य िें भाव पक्ष होखे भा कला पक्ष, इ कुल्ह सवशेषिा लोकगीिन िें लउकबे करेला । ‘रस‘ अइसन सक काठ के करेजा होखे भा पथल के सहया, इ कुल्ह के अइसन पसीजा देला सक सब कर आंख छलछला उठेला । लोकगीिन िें श्रंगृ ार रस, संयोग आ सवयोग दूनू भाव बड़ा िासिा किा से जोराइल सिलेला । अब भोजपरु ी के ‘शेक्सपीयर‘ कहाये वाला सप्रु ससद्ध रंगकिी आ कसव सभखारी ठाकुर जी के ‘सवदेसशया‘ के उदाहरण के रूप िें देखीं । रस िें सवरसहनी नासयका के भोलापन आउर ओकर सवरह वेदना दूनू के अजगिु सिश्रण देखे के सिलेला । नासयका के डर बा सक पूरूब सदशा िें जसद ओकर पसि किाये जाि बाडे ि उहा​ाँ के जनानी जवन सन्ु नर आ जादूगरनीयो होली सन, हो सके ला नासयका के पसि के ‘सग्ु गा‘ बना के सपंजड़ा िें बंद कर के अपना वश िें ना कर ल सन । बासकर, सवरहनी नासयका के पसि अपना िेहरारू के लाख िना कइलो के बादो परदेश चल जा िारे । अब सवरहनी के िन िें अइसन टीस आ हीया िें अइसन हूक उठि बा सक उ अचके गीि बनकर सनकल पड़ि बा । जइसे-

परू ु ब के पसनया खराब रे । उहवा​ाँ के गोरी सभ हवे जादूगरनी । जइए के िररहे कटार रे । सगु ना बनाई सदहे, पीजड़ा िें रासख सलहें । बान्ही सलहें अंचरा के खूट रे । हि हाथ िलिे रहब सदन रासि । के पसिआई हिार दःु ख रे ।

एह सकसीि के अनेकानेक संयोग, सवयोग आ सवरह के बहुिे भाव लोकगीिन िें िौजूद बा । भोजपरु ी भाषा के क्षेत्रन िें शादीसबआह के बेरा िेहररून द्वारा गीि गवनई के परम्परा रहल बा । उ कुल्ही घरे िें स्वांग, िनोरंजन, डोिकच, जलआ ु नाच आसद नाच आ गायन िें िगन हो जाली । ओह सभनी के द्वारा गावल लोकगीिन िे नायक के परेि िें डूबल नासयका, नायक से सिले के आिंत्रण देली आउर अपना प्रेिरोग के इलाज करे खासिर सनहोरा करि गा उठेली ‘रससया िू हउअ के कर, हिरो पे िसनका िाक । बहुिे नजर फे रवल हिरो पे िसनका झा​ाँक । कसलयन के सेज राख पत्ता से हवा कर द । हि प्रेि रोगी बानीं, िसनका ि दवा कर द । । एह िरह के नेह-सनिंत्रण लोकगीिन िें खल-बेखल भाव के संगे िौजूद बा । लोकगीिन िें प्रकृसि जड़ु ाव बड़ा गसहर ह । सूरूज, चांन, कउआ, हंस, िोर, चकोर कुल्ह से आदर भाव आउर आत्िीयिा से जड़ु ल भाव लोकगीिन के प्राणवायु ह । एकर एगो बानगी देखीं‘बोलेला िंडु ररया पर कागा सपया के घर आवन होई । अइहें बलि परदेसी सजसनसगया सोहावन होई ।

‘देसवा परू ु ब जसन जाउ रे सजनवा ।

सिंिोष पटे ल बेमतया, पमि​ि चंपारण, मबहार के रहे वािा संतोष पटेि जी , ररसचय स्कॉिर (भोजपुरी), हई , यूजीसी नेट क्वामिफाइड, एि ए, एिकफि के संगे संगे मसमनअर मडप्िोिा - गायन (संगीत) िे , संपादक - भोजपुरी मिन्द्दगी, सह संपादक - पपुवा​ांकुर, (सहंदी - भोजपुरी ), सामहमत्यक संपादक मडफें डर (सहंदी- इं मग्िश- सहंदी), ररयि वाच ( सहंदी), उपासना सिय (सहंदी), हई । कई गो भोजपुरी आ महन्द्दी ककताब मिख चुकि बानी , कु छ शोध परक भोजपुरी ककताब प्रकाशन िे बडु वे । © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 27


लोक-पवश सबयाह, लइका के जन्िोत्सव के अवसर पर जवन गीि गावल जाला उ घर-पररवार आउर सगा सम्बंर्ी िक सीसि​ि होला बासकर सावा जसनक रूप से गाये जाये वाला लोकगीिन िें कजरी, होली, चइिी आसद िें गजब के सिठास होखेला । फागनु के लोकगीिन िें ‘जोसगरा‘ भा ‘पहपट‘ अइसनके लोकगीि ह‘आि िोजराई गइले िहुआ फुलाइल िन अगराई गइले ना । देह नेसहया के रस िें रसाई गइले ना ।

होली के लेखा, ‘कजरी‘ के भोजपरु ी क्षेत्रन के एगो लोकसप्रय लोकगीि िानल जाला । बरखा के िौसि िें प्रकृसि के एगो जादूई रूप सौन्दया िें नहाइल देखाई देला । आसिान कररया कररया बदरी से भर जाला । पूरवा हवा के शोर आउर बाररश के जोर से िोर वन िें नाचे आ सथरके लागेलें आ िब टंगा जाला अिराई िें झूलवा । सज्जी वािावरण आनंदिय आ रसिय हो जाला । फे र ि, सावन के अइसने सोहावन रूप िें रूपवसियन के कजरी, जब हवा िें गंज ु े लागेली ि अस बझ ु ाला सक उ लोकगीि हीया िें उिरि जा रहल बा 1. ‘आइल सावन सोहावन ससखया वन िें नाचे िोर हेबादर गरजे, सबजरु ी चिके पवन िचावे शोर हे ।‘

‘अंगरु ी िें डंसले सबया नगीनीया रे ए ननदी सपया के बोला द दीयरा जरा द िनी, सपया के बोला द ।‘ पूवा​ांचल िें लोक आस्था के िहापवा ‘छठ पूजा‘ ह । एह परब के प्रसि असीि आस्था के बानगी लोकगीिन िें देखाई देला । छठ पूजा के हरेक सवर्ान िें लोकगीि जड़ु ल बा । एह अवसर पर जब िसहला कुल्ही सिल के छठी िईया के गीि एक सरु िें गावेली ि िन परान िें खशु ी के सहज संचार होखे लागेला । एही सवर्ान िें एक जगह छठी िईया आपन घाट के पूरा साफ-सथु रा भइल नइखी देखि ि सशवजी पर सखससआ जाि बाड़ी । सशव जी उनकर िानिनौवल करि बानी एही सिय छठी िईया आ सशवजी िें जवन संवाद होि बा उ इ लोकगीि िें बा‘कोपी कोपी बोलेली छसठय िािा, सनु ू ए िहादेव िोरा घाटे दसु भया उपजी गइलें, िकरी सबआई गइले, ह ंसी ह ंसी बोलेले िहादेव, सनु ी ए छठीअ िइया रउआ घाटे दूसभया सछलाई देबो, िकरी उजारी देबो । गोबरे सलपाई देबो, चनन सछसडसक देवो, दूर्वे अरग देबो । घीउए हुिाद देबो, नररयर फरग देवो, फलवे अरग देबो सेनरु े भरन देबो, पीअरी पेन्हन देबो, बिीए रोसनी देबो । एह लोकगीि िें छठी िईया के खीस के सशवजी पर देखावल गइल बा । आ सशवजी उनका िनावे के बाि कर रहल बानी दनू ू चीज सिलके जहवा​ाँ भसक्त रस के संचार करि बा उहे प्रेि से सब कुछ संभव हो सकि बा एकर संदशे सदहल गइल बा । छठ पूजा के अवसर पर ‘कोसी‘ भरे के परम्परा बा ओकर एगो दृश्य एह लोकगीि िें देखीं-

2. ‘कइसे खेले जइबू सावन िें कजररया बदररया घीरी आइल ननदी दादरु िोर पपीहा बोले पीऊ पीऊ ससु न के िनवा डोले भींजी पसनए िें पीअरी चनु ररया बदररया घीरी आइल ननदी ।‘

‘रासि छसठय िइया रहलीं रउआ कहवां जोड़ा कोससय भरन भइले िहवां के रा ठेकुआ चढ़न भइले जहवा​ाँ । ।‘

लोकगीिन िें गाथा गीि के अलगे आ अनपु ि स्थान होला । लोकगाथा िें आल्हा, लोररकायन, सोरठी-वज ृ ाभार के कथा, सबहुला के कथा (सवहुला बालालखन्दर) आसद ढ़ेरे प्रससद्ध बा । एक से बढ़के एक सबरहा आउर पूरबी के ि बािे सनराला ह । लोकगीिन िें परु बी के बड़ा िोल-िहत्व ह । भोजपरु ी भासा िें पूरबी के बादशाह ‘िहेन्दर सिससर‘ के सलखल ‘पूरबी‘ के ि कवनो जोड़े नइखे । किाल के ‘पूरबी‘ सलखले बानी िहेन्दर सिससर जी जवना दोसरा जगह दल ु ा भ बा-

लोकगीि िें सवसवर्िा के भाव के अभाव नइखे । आाँख के सभंजावे वाला ‘सनरगनु ‘ बा ि सहरदया के सहलावे वाला ‘सिदन’ बा‘ िाने बेटी के सवदाई गीि । जहवा​ाँ सनरगनु आत्िा आ परिात्िा के सिलन के अनेक सबम्ब के सहारे प्रस्िसु ि कइल जाला । बेटी के सवदाई गीि से कवन िनई ना होई जे सहल ना जाि होई । एगो ‘सनरगनु ‘ देखींः‘जेसह सदन पूरा करार हो गाई ओसह सदन सगु ना फरार हो जाई । िाई बाबू र्इले रसहहें, र्इले रसहहें िाई आई जे बोलावा िब रोके ना रोकाई िहल दआ ु री कुल्ह उजार होइ जाई ।‘

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लोक-पवश लोकगीि िें बेटी के सवदाई वाला सिय सहरदया के लोर के सैलाब िें उिारे जइसन ह । जब बेटी के सवदाई के सिय गावल जाला ‘बेटी भोरे भोरे जब ससरु ाल जइहे सबका अंसखयां िें अंसआ ु उिार जइहे भोर गइया के सखआई, सांझे सझवि के देखाई एने बाबू रोअि होइहें, ओने रोअि बाड़ी िाई सबका अंसखया के भोर सभनसार जइहें ।‘ बेटी भोरे भोरे ...।

लोकगीि जादेिर सािसु हक रूप से गावल जाला एह से सहयोग भाव के जनि होला आ एकरा से ससखे के भावना उपजेला । एह गीिन िें कवनो दावं-पेंच ना होखेला बलक ु िर्रु िा, रस आ लासलत्य बरसि रहेला । लोकगीि आजो जीवन के सन्ु दर सबम्ब सचत्र देखावि आपन प्रभाव डालेला । आजक ु ाल्ह अश्लीलिा, फुहरपन आ नकली कथा कहानी लोकगीि के सिठास भाव के खि​ि कर रहल बा । अब जब एकरा ना बचावल गइल ि नवही पीढ़ी लोकगीि के हिनी के ऊपर का प्रभाव होखेला ओकर जादू के ना सिझ पाई । हिनी आपन परम्परा आ संस्कृसि के सहेजसिेट के रखे वाला लोकगीिन के िरि के सिझे के पड़ी आउर ओकरा के बचावे ला साथा क प्रयास करे के होई ।

फोटो—रववप्रकाश िरू ज

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लोक कला

लोक कला आ भोजपरु रया संस्कृतत फोटो—रववप्रकाश िरू ज

देवेन्र नाथ त्रिवारी

लोक

जीवन के सािासजक, आसथा क आ अध्यासत्िक भावना के असभव्यसक्त लोककला के िाध्यि से खूब होखेला। इसिहास के पन्ना पलटल जाए िऽ एह बाि के अनभु व होई सक िानव िाटी, र्ाि,ु पत्थर, लकड़ी, बा​ाँस, बेंि आसद के िाध्यि से आपन भावना के सकार रूप देि जासहर करि आइल बा। हिनी का देश िें िूसिा कला आ स्थापत्यकला के िहत्व सनसवा वाद रहल बा। ससंर्ु घाटी के सभ्यिा से सलहले आजिक भारि िें िूसिा कला, सचत्रकला आ स्थापत्यकला के लगािार सवकास भइल बा। ससंर्ु घाटी के कला अवशेषन िें पत्थर, का​ाँसा, चूना, िसृ त्तका ससहि कई अन्य र्ािअ ु न के प्रयोग भइल बा। उहें िोहनजोदड़ो के कला िें सिट्टी के बिा न, बचवन के खेले खासि पश-ु पसक्षयन आकृसियन से सजल सखलौना भी सिलल बा। िय भारि के लोककला के सांस्कृसिक आ सािासजक दृसष्ट से अत्यंि िहत्वपूणा िानल जाला। एही ससलससला िें भोजपरु ी-अंचल(पूवा​ांचल) आपन लोककला के जररए लोकसंस्कृसियन के सकार करि आइल बा।

भोजपरु ी-अंचल िें जहा​ाँ एक ओर नगरीय िूसिा कला आ स्थापत्यकला के सवकास भइल उहें दोसरे ओर लोकजीवन से जड़ु ल जरूरी सिान, देवी-देविा के िूसिा , बचवन के सखलौना आ रहे-बसे खासि अवास के सनिा​ा ण लोककलाकार करि आ रहल बाड़े। भोजपरु ी-अंचल िूलि: र्ासिा क क्षेत्र हऽ। इहा​ाँ के लोग देवी-देविा के उपासना इबादि के साथे कई िरह के लोकाचार पऽ आस्था भी रखेलन। आपन आस्था आ िनौसि पूरा होखे खासि लोककलाकार देवी-देविा के िूसिा गढ़लन, जवन एह क्षेत्र के प्राचीन िंसदरन िें िौजूद बा। ग्राि देविा( काली िाई, ब्रह्म बाबा, डीह बाबा, सत्ती िाई) जइसन लोसगन के सपंडी(स्थान) भी एह बर्ार िें सिलेला। इहा​ाँ के िंसदरन िें लोककला आ स्थापत्यकला के अद्भिु संगि देखे के सिलेला। हनिु ानजी, दगु ा​ा िाई, सशिला िाई आसद के िूसिा के देख के एह बाि के बोर् स्वि: हो जाई सक इहा​ाँ के लोग आपन र्ासिा क भावना आ आस्था व्यक्त करे खासि लोककला के िाध्यि बनवले

सिया के पाती देवेन्र नाथत्रबदे त्रिवारी

तनराला

देवररया, युपी के रहे वािा देवर ें नाथ मतवारी जी , द संडे इं मडयन भोजपुरी पमत्रका के कॉपी एमडटर रमह चुकि बानी। इाँ हा के स्वतंत्र पत्रकार भी बानी आ एह घरी वधाय िहाराष्ट्र िे आगे के पढाई कई रहि बानी । कई गो शोध परक िेख अिग अिग पमत्रकन िे प्रकामशत हो चुकि बा । आखर पेज से शुरु से जुि​ि बानी आ भाषा सामहत्य प कई गो िेख आखर प भी िामग चुकि बा ।

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लोक कला बाड़े। भोजपरु ी-अंचल के लोग पररसस्थसि आ जलवायु के िोिासबक परंपरागि आवास के सनिा​ा ण करेलन। आपन आसथा क सस्थसि आ पररसस्थसि के अनस ु ार घर बनावेलन। एह अंचल िें जहा​ाँ एक ओर अत्यंि सवकससि स्थापत्यकला सदखाई सदही उहें दोसरे ओर गा​ाँव के लोग झोपड़ी, खपड़ैल, फूस-टाट- कं डा के घर बना के रहेलन। खेसिहर सकसान के घरे भूसा-अनाज रखे खासि, डेहरी, खोप, भस ु ौला घर, लवना रखे खासि अलगे से एगो किरा, रसोई घर, अाँगनइया आ बैठका के साथे-साथे दलान रहेला। कच्चा िकान िें बाहर के भाग िें दलान आ भीिर के भाग िें अंगना रहला। घर दआ ु री यानी चौकठ पऽ नक्कासी काि रहेला। भोजपरु ी अंचल के गहृ -सनिा​ा ण िें इहवा के लोक कला आ संस्कृसि साफ-साफ झलके ला। खेि-बर्ार के रखवाली खासि िचान बनावे के बहुिे परु ान परंपरा बा। एही िचान पऽ बइठ के सकसान आपन फसल के रखबारी करेलन। भोजपरु ी अंचल के ज्यादािर गा​ाँव िें सत्ती िाई के स्थान जरूर देखे के सिल जाई। सत्ती िाई के स्थान सपंडाकार होखेला। एह अंचल के लोककला आ संस्कृसि के असल दशा न सववाह आ र्ासिा क अनष्ठु ान

िें देखे के सिलेला। सववाह के बेरा कच्चा बांस के िाड़ों, आि के लकड़ी के पीढ़ा, हरीश आ कोहबर िें लोककला के छाप झलके ला। गोर्ना, नागपंचिी जइसन िोहार के बेरा गा​ाँव के नारी कई प्रसिकन के रचना करे ली जवन एह अंचल के लोककला के सजीव उदाहरण बा। खास िौका पऽ खास िरह के िाटी के बिा न इहा​ाँ बनावल जाला। जइसे िाटी के सदया, कोशी, हाथी, हसड़या, िौला, नसदया, कोशा, परई । एकरे अलावे बा​ाँस से बनल सपु ा, बेना, खा​ाँची, दउरा भी देखे के सिलेला। िज ुाँ के िनल डसलया, िउनी, सोन्होरा ढकनी भी इहा​ाँ के बेटी-बसहन खूब सबनेली। जहा​ाँ िक खेिी खािी औजार के बाि बा िऽ, खरु पी, हाँसआ ु , टांगी, टा​ाँगा, कुदारी, हथ्था, डोल ढेंकुल इत्यादी के बदौलि एह अंचल के कृषक आपन खेिी के काि करेलन। एह अर्ार पऽ हिनी के इ कहल जा सकि बा सक भोजपरु ी अंचल िें लोककला के एगो सिद्ध ृ परंपरा रहल बा जवन वैसिककरण के एह दौर सबसरल जाि बा। एह र्रोहर के बचावे खासि प्रयास करे के होई। अगर अइसन ना कइल जाई िऽ हिनी के लोकसंस्कृसि आ लोककला खाली संग्रहालय िें देखे के सिली।

आँगन के पौधा अनन्या प्रिाद लागल बा गल ु ाब के पौर्ा हिरा आाँगन िें देखिे-देखिे बीिेला हिार सदन-राि िन असि उत्सक ु हो जाला देख के ओकरा के सहलि-डुलि आ हाँसि-खेलि-िस्ु काि l

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लोकगीत-वतत मान िसु ममत िौरभ

भोजपुरी लोकगीतन में बढ़त अश्लीलता

फोटो — AMBA

भो

जपरु ी के आज िक भारिीय संसवर्ान के आठवा​ाँ अनस ु ूची िें शासिल क के भासा के दजा​ा भले ही ना देल गईल होखे बासकर ई जगजासहर बा सक इ भासा खाली भारि िें ही न बलक ु सवदेस िें भी आपन पसहचान बना ले ले बड़ु वे आ संसार के कई गो देसन िें इ बोलल आ सिझल जा रहल बा । भोजपरु ी भासा के गौरविय परंपरा के पररचय िें भोजपरु ी लोक गीिन के भी प्रिख ु योगदान रहल बा । एह गीिन के प्रिख ु सवर्ा जइसे सोहर, सनरगनु , झूिर, चइिा, पूरबी, कजरी, पचरा आसद भोजपरु ी लोक परंपरा के पीढ़ी दर पीढ़ी चलायिान राखे िें आपन िहत्वपूणा भूसिका सनबहले बाड़ी स । इ गीि पूरे भोजपरु ी बोले वाला जन आवाि के लोक संस्कृसि, िीजत्यौहार, परंपरा, सविास, िान्यिा आसद से बड़ी गहराई से जटु ल बाड़न स आ एकर झलक इ गीिन िें बड़ा ही जीवंि रूप िें लउके ला । बासकर एगो बड़ दःु ख के इ बाि बा सक आज के सिय िें

भोजपरु ी गीिन िें पनपि अश्लीलिा आ फूहड़िा एह गीिन के छसव के र्ूसिल करे के प्रयास कर रहल बा जवन भोजपरु ी के सवकास िें भी कहीं न कहीं बार्क सासबि होिा । यसद एह गीिन के स्िर आ रचना पर ध्यान देल जाए ि हिनी के देख ससकले जा सक अश्लील आ सद्वअथी गीिन के बोल आ दृश्यन से आज के पूरा भोजपरु ी िनोरंजन जगि भर चक ु ल बा आ हालाि इ बा सक भोजपरु ी गीिन के नाि सनु िे ही सािन्य जन के चेहरा पर सिरस्कार के भाव सहज ही उभर के आवेला । अइसन बाि नइखे सक सिूचा भोजपरु ी लोकगीि अश्लील ही होला भा शरु​ु आि से ही एह िरह के सद्वअथी गीिन के रचना कइल जाि रहल होखे बासकर सपछला दू दसक िें इ गीिन पर हावी होखि बाजारुपन अउर व्यवसायीकरण से एह गीिन के दसा आ सदसा दूनो बदल गइल बा ।

भोजपरु ी लोक गीिन के इसिहास प नजर फे रला पर बझ ु ाला

सत्रु ममि सौरभ करनौि भोजपुर के रहे वािा सुमस्ित सौरभ जी वायुसेना िें काययरत बानी । इहा​ाँ के कमवता, कहानी, मनबंध आकद मिखत रहेनी । अनेक पत्र-पमत्रका िें भी इहा​ाँ मिखि प्रकामशत होत रहेिा । ए घरी इहा​ाँ के नागपूर िें काययरत बानी

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लोकगीत-वतत मान सक एह गीिन के शरु​ु आि कि से कि सौ से डेढ़ सौ बररस पसहले के बा आ एह िें साफ़-सथु रा, सिु र्रु , कणा सप्रय सािासजक गीिन के एगो बररयार परंपरा देखे के सिलेला । प्रारंभ से ही जहा​ाँ एक ओर िहेंदर सिससर, सभखारी ठाकुर, लक्ष्िण शाहाबादी, िोिी लाल िंजल ु , भोलानाथ गहिरी, नगीना पाण्डेय जइसन गीिकार लोग एह गीिन के सलखे के परंपरा के िजबूि बनावे प्रयास कइल ओसहजे दोसरा ओर इ गीि िो । रफ़ी, िन्ना डे, सवंध्यवाससनी देवी, शारदा ससन्हा, भरि ससंह भारिी, संिराज ससंह रागेश, िो० खलील जइसन गायक-गासयका के आवाज िें सपरोअल गइल । भोजपरु ी लोक गीिन के प्रचार- प्रसार के शरू ु आिी सार्न बनल सांगीसिक आयोजन, नाच-नौटंकी, आकाशवाणी, भोजपरु ी-ससनेिा, चौपाल आसद । आकाशवाणी पटना, बनारस, गोरखपरु , इलाहबाद आसद अइसन कें द्र रहे जेकर एह लोक गीिन के सवकास और प्रसार िें बहुि बड़ योगदान रहल । बाि यसद भोजपरु ी ससनेिा के गीिन के कइल जाव ि र्रिी िइया, लागी नासहं छूटे राि, गंगा िइया िोहे सपयरी चढ़इबो, नसदया के पार आसद के गीि ि लोगन के जबान पर रच-बस गइल रहे । बासकर ओह गीिन िें अश्लीलिा के ि कवनो पटु न लेल गइल रहे ! लोक गीिन के सिाज िें प्रसाररि करे के परंपरा के आगे बढ़ावे के काि शारदा ससन्हा, िन्ु ना ससंह, भरि शिा​ा जइसन गायक लोग आपन गीिन के कै सेट भा अल्बि के िाध्यि से भी कइल लोग जवन काफी चसचा ि भी भइल । एह यगु गीि के सिूचा भोजपरु ी जन आवाि के करेजा के छुअबे ना कइलन स, ओह प राज भी कइलन स । इहे ना, िनोज सिवारी, सनु ील छै ला सबहारी जइसन सदग्गज लोग के कै ररयर के शरु​ु आि भी एह गीिन के गावे से ही भइल । अब गीिन के रचना सहन्दी ससनेिा के गीिन के िजा प होखे लागल रहे लेसकन ओह सिय िक भी गीिन िें फूहड़िा के प्रयोग ना भइल रहे । बासकर सपछला पन्द्रह से बीस बररसन िें एह भोजपरु ी लोक गीिन प हावी होखि व्यवसासयकिा गीिन िें सद्वअथी सब्द आ नंगापन परोस के अश्लीलिा के गिा िें ढके ले के काि कइले बा । भोजपरु ी गायकन िें रंगीला, सनरहुआ, रससया, छसलया, कल्पना, कल्लू सनयन ना जाने कई गो नाि आ एह लोगन के सिय के कई गो िशहूर कहाये वाला गीिकारन के पदापा ण से भोजपरु ी गीिन के साफ़ सथु रा छसव िसटयािेट हो चक ु ल बा । आज ि सस्थसि इ बा सक भोजपरु ी गीि अश्लीलिा के पया​ा य बनल जा रहल बा आ लगभग हर भोजपरु ी भासी एह गीिन के चलिे बाहरी सिाज िें अपना आप के शसिांदा िहसूस कर रहल बा । अब हिनी के सािने सवाल इ उठिा सक एह साफ़-सथु रा छसव वाला सनश्छल लोककं ठी गीिन के रास्िा अश्लीलिा के ओर िड़ु ल कइसे आ एकरा खासिर के करा के सजम्िेदार ठहरावल जाय? एह प्रश्न पर गंभीरिा से सवचार कइला प हिनी के सािने कई गो बाि

उभर के आवेला जवन इ गीिन के अश्लीलीकरण के कारण बनल । एह िें भोजपरु ी िनोरंजन जगि िें बढ़ि बाजारुपन, सहन्दी ससनेिा के नक़ल, गहन प्रसिस्पर्ा​ा , गरीबी आ असशक्षा साथ ही साथ भोजपरु ी जन आवाि के संवेदनहीनिा के प्रिख ु रूप से रेखांसकि कइल जा सके ला । अगर आज के सहन्दी ससनेिा जगि पर नजर डालल जाए ि एह बाि से कबहुं इनकार ना कइल जा सके सक सहन्दी सफ़ल्ि आ गीिन के पूरा के पूरा व्यवसाय ही नग्निा आ देह उघारुपन के नींव पर सटकल बा । एह सफल्िन िें अश्लील आ सद्वअथी फूहड़ संवाद आ गीिन के प्रयोग ि एगो आि बाि हो गइल बा । जासहर बा सक जब बॉलीवडु के सफल्ि आ गीि “जो सदखिा है, वही सबकिा है” के बाजारू नीसि के िहि फल-फूल रहल बाड़न स ि कि बजट वाल भोजपरु ी सफ़ल्ि आ संगीि व्यवसाय प एकर असर ि पड़बे करी । एह प्रभाव के चलिे भोजपरु ी सनिा​ा िा-सनदेशक आ गीिकार भी बाजारू िकनीक वाला सफ़ल्ि आ गीिन के सनिा​ा ण शरू ु कर देलस लोग । दोसर प्रिख ु बाि एह गीिन के गावे वाला गायक-गासयका लोगन के लेके सािने आवेला । एह प्रसिस्पर्ा​ा के दौर िें लोगन के नीिन-जबनु सोचे के शसक्त सबल्कुल हेरा गइल बा । एक—दोसरा से आगे बढ़े िें उ लोग सही-गलि िें फरक कइल भल ु ा गइल बा लोग आ कुछुओ करे के िैयार बा लोग । यसद कवनो गायक या गासयका इ कह के सक गीि के बोल फूहड़ बा, गीि गावे से िना कर देिा ि ओकर जगह लेबे खासिर सैकड़ों लोग किार िें खड़ा बाड़े । एह प्रकार से गायकन के सोझा आपन रोजी-रोटी खासिर अउर कवनो सवकल्प नइखे बा​ाँचि । दभु ा​ा ग्य के बाि ि इ बा सक आपन बसढ़या नाि आ पहचान बना चक ु ल कई गो नािी-सगरािी गायक आ गीिकार सजनकर नाि हि ना लेल चाहब, भी एही रास्िा पा चल देले बा लोग । िीसरका बाि इ सक आज के सिय िें हर आदिी चिक-दिक के सजनगी सजयल चाहिा, प्रसससद्ध के आकाश िें चिकल चाहिा, पइसा किाइल चाहिा । चकाचौंर् के सजनगी के सपना देखि हर नवहा लोग गायक भा कलाकार बनल चाहिा काहे सक उनका लोग के इ प्रसससद्ध आ पइसा किाए के सबसे आसान रास्िा बझ ु ािा । साथ ही गरीबी आ असशक्षा के कारण लोगन िें नीक-जबनु िें अंिर करे क्षि​िा सदनोसदन खि​ि होखल जा रहल बा । यसद आज के सिय के भोजपरु ी लोक गायकन के सूची उठा के देखल जाव ि अस्सी प्रसिशि गायक लोग कि पढ़ल-सलखल आ गरीब पष्ठृ भूसि से बा लोग । ओह लोग के ि इहो न बझ ु ाला सक जवन गीि उ लोग गवले बा भा गाविा ओकर भाव का बा । एकर एगो उदाहरण िशहूर भोजपरु ी गासयका कल्पना के रूप िें सदहल जा सके ला । जब उनकर पसहलका भोजपरु ी अल्बि ररलीज भइल रहे ि उनका भोजपरु ी के कहो सहन्दी भी ठीक से ना आवि रहे आ ओह एल्बि के कई गो गीि अश्लील आ सद्वअथी रहन स । एह से दोष एह गासयका के न होके ओह गीिकार आ सनिा​ा िा के कहल ज सकिा जे उनका नासिझी के फायदा

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लोकगीत-वतत मान उठावल । इ चचा​ा के एगो अंसि​ि आ प्रिख ु बाि एह ओर भोजपरु ी जन आवाि के संवेदनहीनिा, लापरवाही आ एगो कठोर क़ानून व्यवस्था के लागू ना होखल भी बा । हिनी के सिाज िें, आपन लोक संस्कृसि के साथ यसद कुछ गलि हो रहल बा िा हिनी के नैसिक किा व्य बा सक ओकरा सवरोर् िें आवाज बल ु ंद कइल जाव बजाय एह के सक हिनी के पलायनवादी रास्िा अपना लीहीं जा । जब भोजपरु ी गीिन िें अश्लीलिा रूपी घनु लागे लागल रहे ओही सिय िें हिनी के एकर सवरोर् करे के जरुरि रहे जवन शायद हिनी के ईिानदारी से ना कइनी जा आ निीजा हिनी के सोझा बा । अंि िे, ऊपर कहल सब बािन पर सवचार कइला प हिनी के इ सनष्कषा पर पहुचाँ ेनी जा सक भोजपरु ी लोकगीिन के दसा आ सदसा

सबगाड़े िें बाजारू िा​ाँग आ िजबूरी दनू ो के प्रिख ु हाथ रहल बा । अइसन बाि नइखे सक आज के सिय िें नीिन भोजपरु ी लोकगीिन के सलखे के काि सबल्कुल बंद हो गइल बा भा बसढ़या लोक गीि नइखे गावल जाि । आज भी दूरदशा न आ आकाशवाणी से सघु र देशी लोक गीिन के प्रसारण हो रहल बा । हा​ाँ, इ जरुर बा सक अश्लीलिा के भीड़ िें एह गीिन के गायक-गासयका कहीं िोपा भा भल ु ा गइल बा लोग आ उनका लोग के खोज के आगे बढ़ावे के काि हिनी के ही बा । साथ ही इ आपन नैसिक किा व्य बनिा सक हिनी के भोजपरु ी लोक गीिन के सवकास िें सहायक बनीं जा िासक इ गीि आपन िूल रूप छोड़के अश्लीलिा के सपटारा ि​ि बन जाय । अिः, हिनी के हर हाल िें पारंपररक भोजपरु ी गीिन के लप्तु प्राय होखे से बचावे के बा जवना से हिनी के भोजपरु ी भाषा चक-चक करि रहे ।

फोटो—रववप्रकाश िूरज

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भोजपुरी ग़जल

तीन गजल भोजपरु ी के (दू)

(एक)

के बा आपन कवन पराया कइसे के पसहचानब जी छोट जगसहया गोड़ पसारब कइसे चादर िानब जी

जिहूररयि बेराि बा कइसे कहीं गज़ल सब लोग बेलगाि बा कइसे कहीं गज़ल

एके अङना छीपा बाजल, घसड़यो-घंट सनु ाइल बा घर सउरी के भा िउअि के कइसे रउआ जानब जी

ना चैन ना अराि बा कइसे कहीं गजल िकदीर, यार, वाि बा कइसे कहीं गज़ल

सबके िन िें घरु​ु ची बाटे, घेंट कटउअल जारी बा अइसे िें के करा के कइसे अाँकवारी िें बान्हब जी

इन्सासनयि के बाि बा जेही इहा​ाँ करि बदनाि ओकरे नाि बा कइसे कहीं गज़ल

छपले बाटे घोर अन्हररया कहीं अाँजोररया भल ु ा गइल सिय-सा​ाँप फुफुकारि बाटे कइसे एकरा िारब जी

लड़ लेिीं दि लगा के जे कुरुखेि एक हो हर ठावा​ाँ-ठाई ंलाि बा कइसे कहीं गज़ल

अाँउजाइल बा सजनगी-सजनगी गा​ाँव भइल बा र्आ ु -ाँ र्आ ु ाँ लकड़ी काठी ओद बल ा बा कइसे असगया जारब जी ु

(तीन) आग िस ु क ु ी से लगावल ना िनु ाससब होई सदयना बूिल बा, जरावल ना िनु ाससब होई

के हू जीिल के हू हारल का िीलल हिनी का बेवजह जश्न िनावल ना िनु ससब होई

अब कहीं बा कहा​ाँ रजगज ऊ बगइचावाला अबहूाँ सि​िली उड़ावल ना िनु ाससब होई

होश से काि लीं, जसन जोश िें आई ंझब से िफ्ु ि सजनगी के गाँवावल ना िनु ाससब होई

रूप नारी के बा अखबार, पसिररका, टीवी एिना औरि के सगरावल ना िनु ाससब होई

डा॰ ब्रज भूषण त्रमश्र िगभग पैंतीस बररस से भोजपुरी आंदोिन िें सकिय बानीं । ’भोजपुरी प्रबंधकाव्य : वास्तु और मशल्प' मवषय पर पी०एच०डी०। कमवता, गजि, गाथा के तीन संग्रह, काव्यशास्त्र आ आिोचना के एक-एक पुस्तक प्रकामशत । नािंदा िुक्त मवश्वमवद्यािय, इमन्द्दरा गा​ाँधी राष्ट्रीय िुक्त मवश्वमवद्यािय, एस०सी०आर०टी० (मबहार) के भोजपुरी पाठ्यि​ि खामतर िेखन आ संपादन । नेशनि मिट्रेसी मिशन खामतर पुस्तक िेखन । भोजपुरी-महन्द्दी कोश के सहायक संपादक । पूवय िें ’कोइि’ के संपादक आ ’ भोजपुरी सम्िेिन पमत्रका’ के संपादक िण्डि िें रहि बानीं । ’अमखि भारतीय भोजपुरी सामहत्य सम्िेिन’ के पूवय िहािंत्री । िुजफ्फरपुर मजिा के िूि मनवासी । मबहार मबजिी मवभाग के मनयंत्रक पद से सेवामनवृत आ अब िुजफ्फरपुर (मबहार) िें मनवास ।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 35


कतवता

सावन पs दू गो कतवता सावन

सावन के घर बदरा (कजरी)

ज्योत्समना प्रिाद

हृसर्के श चतवु दे ी

ररिसझि-ररिसझि सावन के फुहार कभी बूंदा-बा​ाँदी कभी िस ु लार्ार जल-िग्न भइल बा खेि-खसलहान बच्चन के होंठ पर आइल िस्ु कान

बरसि सावन के घन बदरा, जिरा नाहीं फे रले ना I अनकठ बोलेला हो सवनवा, जिरा नाहीं फे रले ना I

नगर, कस्बा हो या सफर हो गा​ाँव बच्चा बनावे लगले कागज के नाव कागज़-कॉपी घर के लागल फड़ाये घड़ी-घड़ी पानी िें नौका लागल डलाये

पी-पी रटि पपीहा नाचि, िोर करे सकलकार, खसु ल-खसु ल जाला बाजबु नवा, जिरा नाहीं फे रले ना I

रेनकोट,गिबूट के देखीं ना आइल राज छािा-छिरी सबना ना चले के बा काज सिरंगी इंद्रर्नषु ी िनोरि नीला आकाश बांर् लेिा सबके अपना सौन्दया के पाश

प्रेि–िगन सपय बाउर भइनी, छूटल झल ु हु ा के रस-डोरर, सजयरा र्ड़के पी के करनवा, जिरा नाहीं फे रले ना I

जल से भरल चा​ाँदी-सा चिके सउसे राह िन िें उठे घड़ी-घड़ी चाय-पकौड़ी के चाह !

“ऋसष” ररससयाई कहे िन चािक, सावन-िेघ घाव करे घािक, बसु नया असगया लागावे बदनवा, जिरा नाहीं फे रले ना I

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 36


भादो-माघ नथनु ी प्रिाद पाण्डेय िासलक ! भादो हवे, खरची घर िें पावो भर , हिरा नइखे I लसड़का आठो, िेहरी हिार, हिहूाँ अबे भूखे बानीं I रऊरे छा​ाँहें रसह अइनीं जा​ाँ रऊरा हाँई ंजीवन-दानी I रोपनी-सोहनी सब बंद भइल, बसनहारी के नइखे अलि, रऊरे आसरा बा िासलक अबभूखे देही िें नइखे दि I डेढ़ा-सवाई जेसह पर होखे, भादो भर के खरची दे दीं, सा​ाँवा, टा​ाँगसु न, िडुआ, बजड़ा, जवने होखे, िवने दे दीं I र्ान- सपसान कुछु दे दीं जे जीअसन लइका हिार I भगवान भरल राखस हरदि डेहरी, कोसठला, राऊर बखार I चढ़िे वैशाख भरना करब रत्ती भर ना बाकी लागी I िरजी करीं, िासलक जल्दी सक चल्ु ही िें बरो आगी I सादा सनसान, सलखल सनसान, जवने चाहीं, बनवा लीं, कट्ठा भर गोंयड़ा के खेिवा बैनािा िें सलखवा लीं I अाँठुली ऊसीन के िीन राि

कइसो-कइसो कटनी हाँ जा​ाँ, िीठा िें चोकर सासन-सासन, िीन सदन चटनी हाँ जा​ाँ I छोटका लइका लोरे पी के िीन सदन से रसह जािा I ओकरा िाई के सब दर्ू वा अाँसखयन पड़े बसह- बसह जािा I पापी पेट िानि नइखे, सहि-नाि िहुाँ फे रर लीहल I के हू नइखे लेि सवपसत्त िें, सोझो-टेढ़ सलािी, लइकन के प्रान बाँचा ली रऊरा करब रोज गल ु ािी I रऊरे भरोस बा, बस िासलक ! अब बोरीं चाहे िारीं I हिनीं के भगवान अपनहीं राखीं- प्रान - चाहे िारीं I हे भगवान ! िहीनन िें से भादो-िाघ हटा द I ई गरीब के भक्षक भारी ई दूनू िास घटा द I िाघ - बाघ बसन के खा जाला भादो ह अाँसखकढ़वा I दस िहीना के बरीस होखो कर द कवनो जादो I हाय ! हाय रे िाघ िहीना हाय ! हाय रे भादो !!

नथुनी प्रसाद पाण्डेय नथुनी प्रसाद पाण्डेय जी के जन्द्ि –1 जनवरी,1957 के ह । गरीब आ मपछि​ि गा​ाँव-पररवार िें पािन पोषण आ पढ़ाई मिखाई जैसे तैसे कइिा के बादों इहा​ाँ के िगातार सामहत्य सृजन कर रहि बानी । अप्रकामशत रचनाकार। सहंदी ,भोजपुरी,उदू,य बंगिा आ अंग्रेजी िें िेखन। मशक्षक,हाई स्कू ि,उजा​ाँय।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 37


कतवता

दू गो कतवता ियू षदवे पाठक ‘पराग’

गावत मे घ मल्हार रे !

जय बोल

कड़क-कड़क कड़कसि बाऽ सबजरु ी गावि िेघ िल्हार रे। झिु -झिु झिु कि पानी बरसल आइल आज बहार रे। कररया चादर ओढ़ के रसिया, र्ड़कावे सवरसहन के छसिया होखे लागल आसिान से, र्रिी के असभसार रे। िोर िगन िन नाचे वन िें, जगल जवानी जन-जीवन िें, सिरंगी चनु री लहराइल, हुलसल सहया हिार रे। चढ़ल प्रकृ सि के गजब जवानी, छुि-छुि हिके बन के रानी, िाल-िलेइया का दरपन िें, उिकल रूप िहान रे। खनक उठल गोरी के कं गना, िा​ाँके-झा​ाँके दआ ु रा अंगना, लासग गइल अाँसखया िें पाँसखया छन-छन लागे भार रे। लोग उिंग रंग िें िािल झझकल भाव रहे से जा​ाँिल, टेरि कान्हा​ाँ रार्ा-रार्ा, सवरह भइल बटिार रे। ढर-ढर ढरकल लोर भोर ले, चैन-चरु ा के गइल चोर ले, कइसे बझ ु ी 'पराग' आग, जब पड़िे रही फुहार रे।

कलि, आज ओकर जय बोल! जे आपन खासिर सभ सोचे, जे गरीब के लूटे-नोचे, र्ाक जिावे खासिर आपन अपने हाथे पीटे ढोल। जेकरा से सभ कोई का​ाँपे, जे लोगन के गदा न चा​ाँपे, सा​ाँच बाि सोकर कहला पर िक्ु का से फोरे नकलोल। करे राि-सदन काला र्ंर्ा, सभका के जे जाने अाँर्ा, होसशयार बन भरे सिजोरी दसु नया के सिझे बकलोल। िहुाँ िें राि बगल िें छूड़ी, जनिा के सनि छीले िूड़ी, कउआ के किा व्य करेबोले कोइल अइसन रस घोल। जे बइठे ले ऊाँचा आाँसन, घंटन दे बसढ़या भासन, त्यागिूसिा आ न्यायिूसिा बन करे करोड़ों रूपया गोल। जेकर नाि सभत्तर बाटे, जहवा​ाँ अफसर चानी काटे, जेकर सभ करिूि जान के , कोई खोल सके नऽ पोल।

सूययदेव पाठक ‘पराग’ भोजपुरी, सहंदी आ संस्कृ त सामहत्य के हर मवधा िें अमधकार से मिखे वािा सूययदेव पाठक 'पराग' जी िूित: सीवान मजिा के रहे वािा हईं। इहा​ाँ के बहुचर्चयत व्यंग्यकृ मत 'हीरो चररत िानस' 1978 िें प्रकामशत भइि। एकरा िें दोहा, सोरठा, चौपाई आकद छं दन के प्रयोग शास्त्रीय रूप िें भइि बा। इहा​ाँ के उपन्द्यास 'अछू त', नाटक 'जंजीर' के साथे कई गो गीत संग्रह, गजि संग्रह प्रकामशत भइि बा। इहा​ाँ के अमखि भारतीय भोजपुरी सम्िेिन के 24वा​ाँ अमधवेशन के अध्यक्ष भी रहनी। © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 38


लोक-नाटक

मराठवाड़ा में गबरतघचोर के प्रदशत न प्रमोद कुमार पाण्डेय

हल जाला सक कला के क्षेत्र िें भाषा कबो दीवार ना बनेंले आ ई ससद्ध िब भइल जब िहात्िा गांर्ी अंिरराष्रीय सहन्दी सविसवर्ालय [प्रदशांकारी कला] के हिनी के टीि एगो ठेंठ भोजपरु ी नाटक के िंचन िराठी क्षेत्र िें कइनी स। भोजपरु ी के शेक्ससपयर सभखारी ठाकुर द्वारा रसचि नाटक ‘गबरसघचोर’ के िंचन हिनी के टीि भीिराव अंबेडकर िराठवाड़ा सवद्यापीठ िे सद. 16-082015 कइलस। अगर हिनी के नाटक शद्ध ु िराठी क्षेत्र िें करि बानी ि जाहीर सा बाि बा सक दशा क भी िराठी ही सिसलहें जे भोजपरु ी से काफी दूर बा। बराबर एह बाि के डर हिार टीि के सचंसि​ि करि रहे सक भाषा अलग होखे के चलिे का हिनी के एह प्रस्िसु ि खािी दशा क सिसलहें सक नाहीं। बासक जवन कुछ नाटक के दौरान भइल उ हिनी के सोच के सवपरीि रहे, नाटक के दशा क भी सिललें आ नाटक से आपन एगो संबंर् भी स्थासपि कइलें। दशा कगण के प्रसिसक्रया देख के इ कहीं िहसूस न भइल सक हि एह क्षेत्र के भाषा के सबल्कुल सवपरीि भाषा िें नाटक के िंचन कर रहल बानी। भोजपरु ी आपन सिठास का जादू एह कदर जिवलस सक िराठी दशा क झूि गइलें। गबरसघचोर नाटक के शरु​ु आि िें जइसहीं ‘लहरा’ के र्नु बजल दशा क अपने आप के झूिें से रोक ना पवलें। ‘सपयावा गईले कालकिवा रे सजनी’ गीि प दशा क भावक ु होि भी नजर अइलें । ‘हवन बबआ ु हिार ओदर से’ गीि जवन िाई के ि​ि​िा के असभव्यक्त करि बा, प्रसव पीड़ा के दृश्य देख के दशा क एिना भावक ु हो गइलें सक आपन आाँसू रोक नाहीं पवलें। उहें गबरसघचोर के असभनय [जवन सक स्वयं हि सनभावि रहनी] ‘बाबा हि कुछ कहब’ सनु ि िराठी दशा क ठहाका लगावे से खदु के रोक नाहीं पवलें। हैरान ि िब हि अउर हो गइनी जब एगो 15 साल के िराठी लड़का हिार फोन नंबर आ ईिेल िांगि बिवलस सक रउआ वाला चररत्र [गबरसघचोर] के सकरदार हि सपछला साल इहें प कइले रही। सफर जब हि पिा कइनी ि िालूि भइल सक सभखारी ठाकुर रसचि नाटक

गबरसघचोर के िंचन िराठी भाषा िें अनवु ाद कर के ओकर प्रस्िसु ि SBES Arts and Commerce college and Performing Art Dept. िें कइल गइल रहे। औरंगाबाद िें हिनी के टीि गबरसघचोर नाटक के दू गो प्रस्िसु ि कइलस पसहला प्रस्िसु ि 16-8 2015 के SBES Arts and Commerce college and Performing Art Dept.िें कइलस आ दोसर 17-8-2015 के भीिराव अंबेडकर िराठवाड़ा सविसवद्यालय के नाटक सवभाग िें कइलस। नाटक िें कलाकार रहलेंसूत्रधार 1- श्वेि ा सक्षरसागर , सूत्रधार 2 -अनन्या नािदेव, गलीज -रवींद्र िंडु े , गलीज बि- असभलाषा ससंह , गबरहघचोर- प्रिोद कुिार पाण्डेय, गड़बडी- सववेक कुिार ग ुप्िा पंच- रोसहि कुिार, जल्लाद- सौरभ कुिार ग प्ु िा समाजी/गायन सुन ीिा थापा, गौरी शंकर, यदुवशं यादव मंच प िारमोहनयम- सदलीप कुिार, ढोलक- श्याि प्रकाश नाटक के सिापन के बाद उहा​ाँ के नाटक सवभाग के सवभागाध्यक्ष सभ कलाकारन के सम्िासनि करि कहलन की सक बहुि साल बाद कवनो अइसन नाटक देखे के सिलल ह जवन पूरा िरे लोक शैली जवना िें संगीि आ असभनय के अनोखा िालिेल बा। उहा​ाँ के भोजपरु ी के शेक्सपीयर सभखारी ठाकुर के भी निन कइनी आ अपना सविसवर्ालय के वासषा क नाट् य िहोत्सव िें हिार टीि के आिंसत्रि कइनी। एह िरे के प्रसिसक्रया भोजपरु ी लोककला प गवा करे सबब बनेला।

प्रमोद कुमार पाण्डेय िूितः बमिया के रहे वािा प्रिोद कु िार पाण्डेय रं गिंच के सधि किाकार हईं । अबमहन इहां के िहात्िा गांधी अंतरराष्ट्रीय सहंदी मवश्वमवद्यािय, वधाय िें ‘कफल्ि आ मथयेटर अध्ययन मवभाग’ िें शोधरत बानी । रं गकिय के िाध्यि से भोजपुरी के प्रमतमित िंचन प स्थामपत करे के कोमशश िें िागि बानी । © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 39


नवहन से तनहोरा

समसथलेश चौरसिया

भोजपुरी : छतव बदले खातत चाहीं युवा कंधा

चा

चाजी हि काल्हु स्कूलिें डांस कईले रहनी सभे कोई हिरा के खबु े सरहले रहे । अच्छा ! बहोि बसढ़या डांस करे ल का, कवन गाना पर डांस कईले रल ह ?

जी, नेपाली गाना पर । आ सहंदी पर भी नचले रहनी, बहोि िाली बजल रहे । अच्छा, इंसग्लश गाना पर भी नाचे ल ? जी कबो कबो, सर कहेनी िब । अच्छा, भोजपरु ी गाना पर ना नाचे ल ? सछ : , भोजपरु ी गाना पर ना नाचेनी , काहे ? भोजपरु ी गाना फूहड़ होला । िोहरा से के कहल ख ? सन्ु दर गाना खोजके वोपर नाच ि ना होईि ? ना, सर लोग भोजपरु ी गाना पर ना नाचे देवेला, सर कहेनी भोजपरु ी फूहड़ होला ।” ऊपर सलखल संबाद हिर भिीजा के ह । एक सदन सबेरे सबेरे

आईल रलन हिरा लगे ि बाि भईल रहे । उनकर बाि सनु के उनकरा पर ना उनकर सशक्षक लोग पर खीस बरि रहे । भिीजा ि अभी िीसरी कक्षा िे पढ़ेलन, अबोर् बाड़न बासकर गरु​ु सभे के ि बझ ु ेके चासहि सक भले कुछ फुहड होखे भोजपरु ी िे बासकर उनकर इ किा ब्य ना ह की बच्चाके सदिाग िे अनाप सनाप भा गलि चीज भर दीं । बेचारा भिीजा के सदिाग ि इहे सिझी की भोजपरु ी फूहड़ बा औरी कुछूओ नईखे । ई सब बाि वोह सदन हि सदनभर सोचि रह गईनी । सा​ाँझ भईल ि एगो संघसिया के फोन आईल सक एक जगह बैठल जाव। हि कहनी सक चली सठक बा । सांझ के एक जगह पर हिार स्कूल के संघसिया बैठल रह्नी आ ढेर सारा बाि भईल । एसहिे हि आज सबु ह भिीजा से भईल बिकही भी कहनी । संघसिया लोग िे एक संघसिया पहाडी (नेपाली) भी रहलन आ पेशा से एक सनसज स्कूल के हेडिास्टर भी हवन । हिार बाि सनु के उ कहलन सक सठके ि कहलख सर, भोजपरु ी फूहड़ बा ि फुहड़े नु कहल जाई । एसहिे एक दोस्ि जे पत्रकार हवन उनकरा के साथ देि कहनी की स्कूल िें भोजपरु ी बोलेके अगर सदहल जाय ि सारा सवद्याथी सबगड़ जईहें । सारा गाली-गलौज करे लसगहे । एसहपर अभी िकले चपु रहल एक संघसिया कहि बाड़े की यार हिर ि जबु ाने सबगड़ गईल बा भोजपरु ी बोलिे बोलिे । हिनी पूछनी की का भईल ि उहाके कहनी की काल्हु आपन बॉस से बसियाि रहनी की बॉस कहले “ि​िु को िो सहंदी भी नहीं आिी” । एहसे उ संघसिया बहोि उदास

त्रमत्रथलेश चौरत्रसया पेशा से िेमडकि कािेज के अध्यापक मिमथिेश चौरमसया जी मबरगंज नेपाि के रहे वािा हई । भोजपुरी भाषा सामहत्य संगीत गीत के प्रचार प्रसार िे िागि बानी। इं टरनेट के दुमनया िे भोजपुरी के प्रचार प्रसार खामत तत्पर इाँ हा के मबरगंज , नेपाि िे रहेनी ।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 40


नवहन से तनहोरा हो गईल रहलन । ई सभ कुल सनु के हिार िन भी सनरस हो गइल आ ई नकारात्िक संबाद के िोड़ेके हि कोसशश कईनी । हि कहनी की आज हिनी के यवु ा बगा जे सबशेष रूप से अच्छा ओहदा पर बाड़े आ जेकर िाईभाषा भोजपरु ी हवे उहे लोग अगर अइसन नकारात्िक सन्देश बच्चा के सदिागिें भर दी ि कईसे भोजपरु ी के सवकास होई ? अगर पढ़ल सलखल सशसक्षि लोग भोजपरु ी के साथ छोड़ सदहे ि आसखर िें खाली जगह भरेला बाउरे लोग आई नु । आ ईहे कारण बा की आज भोजपरु ी के लोग फूहड़पनसे नािा जोड लेहले बा । हिनी बच्चा रहनी िब नेपाली, सहंदी, इंसग्लश पढ़ि गईनी । वोह बेर सोचेके क्षि​िा ना रहे बासकर आज जब पढ़सलख के अच्छा ओहदा पर पहुच के भी कुछो ना कईनी आ उहे बच्चा वाला सबचार लेके चलसन ि कइसे सवकास होई भोजपरु ी के ? आपन हेडिास्टर वाला संघसिया से कहनी की एक बाि बिाव “का लईका सब आपन िनसे जवन भी गाना पर नाच सके ले ? की के हूके अनिु सि लेवेके परेला जईसे की डांस टीचर आसद ? िब उ कहनी की ह रहेला डांस टीचर भा कल्चरल टीचर रहेला जे सनगरानी करेला । िब हि कहनी की अगर अईसन बा ि का कवनो बच्चा रउवा लोगन के अनिु सि लेके अच्छा गाना नइखे गा सकि ? अगर गाना भोजपरु ी िें ही बा बासकर सन्ु दर बा ि िोहनी के परहेज काथी के बा ? पूरा भोजपरु ी भाषा पर प्रसिबन्र् काहे ? िोहनी के फूहड़ शब्द से आपसि बा की पूरा भाषा से ? कि​िी िें अगर नइखे कुछ कर सकि ि दोसर के गारी ि ना सदही । हि फे रसे उहे हेडिास्टर संघसियासे पूछनी की अगर सबहान बीरगंज एररयािें भोजपरु ी के असनवाया सबषय कर सदहल जाि बा ि का िोहनी प्राइवेट स्कूलिें ना पढाई करब ? िब जाके हेडिास्टर संघसिया कहि बाड़े की कहेना जरुर पढाएि । एहपर सिसर संघसिया जे कहले रहे की उनकर जबु ान बीगड गईल बा , उ कहि बाड़े की “हिर बॉस के हि कथी जवाब सदहीं, अब ि लागि बा की सहंदी

ससखेके पड़ी ? उ कहलन की हिरा ि नेपाली भी नीिन से ना आवे, सहंदी भा नेपाली बोलला पर सबिे भोजपरु ी सिक्स हो जाला । वोह बेररया बहोि सनराश आ लज्जा िहसूस करेनी । उनकरा के सांत्वना देि हि कहनी की देख जब िक िू अपने आपसे लजाि रहब िब िक िोहरा के सभे के हू लजवावि रही । संसार के इहे दस्िूर बा । िोहर बॉस होखस या जे भी उनकरा के कह की जी हिर भाखा भोजपरु ी ह, िाई भाषा भोजपरु ी ह । वोसहसे भोजपरु ी सिक्स होजाला, वोइसे भी भाषा ि एक दूसराके िनके बाि आदानप्रदान करेवाला िाध्यि ह । का सहंदी बोलले जरुरी बा , भारि िें भी ि िसिल ,िेलगू , िलयालि सब सहंदी ना बोलेले भा बोलेले ि टुटल फूटल ि का उ लोग आगे नइखे ? अगर िोहर बॉस उच्च सबचार के बाड़े आ भाषा प्रसि ज्ञान बा ि िोहर सबचार के जरुर सरसहये । ई सारा संबाद के सनचोड़ इहे रहल की आज बहुि सारा यवु ा पस्ु िा देश के बहुि लिहर ओहदा पर पहुंचल बाड़े । बहुि जाना सप्रंससपल भईल बाड़े ि के हू पत्रकार ि के हू वकील ि के हू सासहत्यकार ि के हू पसु लस प्रशासन ि बहुिे जाने डॉक्टर इंसजसनयर भईल बाड़े । ओह सबलोग से सनहोरा बा की जे भी राउर क्लाइंट भा पेशेंट अगर भोजपरु ी भाषी बानी ि रौवो दू शब्द भोजपरु ीिें बसिया सदही । अगर सवद्याथी भोजपरु ी बोलि बाड़े ि डांटला के बदले उनकरा के दूगो भोजपरु ी के सही शब्द ससखा सदहीं । अगर के हू भोजपरु ी गाना पर नत्ृ य करके चाहि बाड़े ि नीक गाना खोजके दे सदहीं । बासकर एके बेर भाषा पर ही आरोप ना लगाई । एक बाि आउर सभ हेडिास्टर लोगन से की कबो सनु र भोजपरु ी गाना पर चेला सभन से नत्ृ य कराके देखीं, के िना सराहना सिली रौवा के असभभावक लोगन से । एक बाि जान सलही लोगन के फूहड़पन से परहेज बा बासकर भोजपरु ी भाषा से ना । आ ई फूहड़पन हटावेला यवु ा पस्ु िा आगे ना आयी ि के आयी ?

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 41


भाषा आ तवकास

भोजपरु ी के तवकास :तबहार के तवकास िधु ीर पाण्डेय

भो

जपरु ी के सवकास से सबहार के सवकास कईसे जड़ु ल बा , आयी ए सबषय पर कुछ बाि होखे ।

संचार के माध्यम बने भोजपरु ी - आर्सु नक जगु बा । िोबाईल के जिाना बा । झसु नया बाड़ा परेशान सबया । रोजो िोबाईल पर कवनों िैसेज आ जािा अऊरी पईसा कट जािा । उहा​ाँका भी परदेस गईल बानी । अब अनपढ़ जाि के ए जिाना िे के िना दरु दासा बा, के हु से छुपल नईखे । पूरा टोला िे झगरु के लररका जिु ना ही पढ़ल-सलखल बा । झसु नया चहुप गईल िोबाईल ठीक करावे, जिु ना के लगे । जिु ना िोबाईल देखलस आ कहलस-

फोटो :

" चाची रे , ई बेिारी कस्टिर के यर िे बाि कईला पर ठीक हो जाई । काश ! िे 2 क्लास से असर्का पढ़ल रसहिे चाहे कस्टिर के यर वाला भोजपरु ी िे बसियावि रहीि । " संचार िे भोजपरु ी के सवकास , सबहार के सवकास िे बढ़ि डेग हो जायी ।

संिैधाहनक पेच - िान्यिा का चक्कर िे ढेर काि गड़बड़ाईल बा । सिाज ई बाि िाने के िैयार नईखे की , भोजपरु ी के पढ़ाई भी ईस्कूल िे होखे के चाही । अपवाद छोड़ के एकर कहीं पढ़ाई ना होला । सबसे बड़ा सिस्या सनजी ईसकूल सन से बा । सिाज आ भोजपरु ी जगि के अगआ ु लोग के एकरा बारे िे सोंचल सबसे जरूरी बा । संवैर्ासनक िान्यिा , भोजपरु ी आ सबहार के इज्जि बढ़ा दी । भईल नू सबहार के सवकास । सघु र हसनेमा आ गीि गिनई - पंच सभे , सबसे जेयादा खिरनाक िद्दु ा ईहे बा । फूहर गीि - गवनई आ ससनेिा से लोग भोजपरु ी से सघना गईल बा । जनि​िे लररकन के लोग भोजपरु ी से

दरू भगावि बा । सा​ाँच पछ ु ीं िs के हु बोले के नखे चाहि । ए फुहारका कुकुरि​िु ा सन के कानूनी ईलाज आ सािासजक बसहसकार जरूरी बा । अब सनिन ससनेिा बनी , रोजगार बढ़ी , सबहार र्सनक होई । भोजपुरी बने राजनैहिक मद्दु ा - अभी िकले भोजपरु ी के संवैर्ासनक िान्यिा सदलवावल कवानों दल के एजेंडा िे नईखे । एकर ि​िलब बा की एकरा पर के हू के र्ेयान नईखे । अब जरूरि बा गा​ाँव , चऊक सन पर आंदोलन के । आंदोलन से सबका र्ेयान िे ई बाि आयी । अब दसु नया जानी एकरा बारे िे िs , बाहर से भी लोग पढे आई । भोजपरु ी के रुिबा आ ईस्कूल - कवलेज खल ु जायी िs रोजगार बढ़ी । सबहार के सवकास होई । नीरस अगिु ा - अगर अगवु ा किजोर होखे िs , लागल सबयाह कट जाला ।सैकड़न गो गटु भोजपरु ी के सवकास खासिर बा , लेसकन आपस िे कवनों गांठजोर नईखे । ई सबसे बड़हन रोग बा । अब आि भोजपरु रया सिसझये नईखन पावि की का होिा । अगर ई बेिारी ठीक हो जाव िs , लड़ाई िे र्ार आ जायी । भाई अगवु ा लो के आदर बढ़ी , ई लो सबहारे आ उ पी के होई लो नु , िs सबहार के सवकास होई । सिु ल पुरहनया के आदर - भोजपरु ी के इसिहासी कागज िे िs बड़हन - बड़हन शेर लोग बा । लेसकन ना कवनो िंच बा , ना गसहराह परयास । ओट लगावे वाला ढेर लोग सिल जायी । नािी लोग िठार्ीश बन के उजरल िठीया बना दहले बा भोजपरु ी के । ना कबीर खानी घम्ु िकड़ बा के हु , नाही सभखारी लेखा जीऊगर । सारा कसव लो छपास हो गईल बा । भाई , आगे आयीं लोसगन । भोजपरु ी के उद्धार खासिर रऊआ सब के जागल बहुि जरूरी बा ।

सध ु ीर पाण्डेय गोपािगंज के रहे वािा सुधीर पाण्डेय जी भोजपुरी िें िगातार मिख रहि बानी । इहा​ाँ के िेख आ कमवता िें हर तरह के मवषय रहेिा । सुधीर जी आखर से बहुत सिय से जुि​ि बानी ।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 42


अब ढेर सिु ला से रोग बढ़ जाला ।

बराबरी के मौका - सबसे बड़हन बाि ई बा की िेहरारू लररसकन िे अभी भी सशक्षा के किी बा । भोजपरु ी के सवकास से ई िािला ठीक हो जायी । जब सिाज के आर्ा अंग जवन के िना जगु से पीछूआईल बा , बराबरी पर आ जायी । काहेकी ईहे भाषा नु हिनी बचपने से बोलले बानी जा , िs सीखे िे सबसे आसान ईहे नु रही । रोजगार से लेके ,संस्कृसि आ टेकनीक से लेके खेल कूद सब िे िाजा आ जायी ।

जब जाग जायी लो िs सनरोग हो जायी लो आ रोग खि​ि भईल भी सबहार के सवकास से जडु ल बा । अनेररया निछेहड़या रोख - जब लररका सबलाला हो जा सन िs , सब असकल खराब हो जाला । भाई नवछे सड़या लो , जब आऊर बाऊर गाना सनु िे बाड़s लो िs िनी ओकरा के साफ सथु रा रखे के भी इंिजाि करs लो । खाली दोसरे भाषा िे सासहत्य ना होला । कुछ सलखे के भी कोसशश होखे । अपना लईका - फईका के भी बोले के अऊरी सलखे के ससखावल लो ।

ि​िबल भोजपरु ी के सवकास = सबहार के सवकास भईल नु । मख्ु यधारा मे िापसी - अब भोजपरु रया सबगड़ल लो जे , हिनी से सखससया के नकसली , गंडु ा , बेलूरा बनल बा , ओकरा के िख्ु यर्ारा िे सलयावे खासिर भोजपरु ी के सवकास बहुि जरूरी बा । अपना भाषा िे बसियावाला से ओ लोग के सदल आ सदिाग पर सनिान असर होयी । संभव बा सर्ु ार जाव लो ।

अब सनिन ससक्षा सिल जाव ,एकरा से बड़हन सवकास का होई सबहार के । खेिीबारी - सकसानी के जानकारी - भाई अपना राज िे ढेर लो खेिीबारी करेला । अगर आर्सु नक खोज के जानकारी भोजपरु ी सिले िs के िना काि आसान हो जायी । उपज बढ़ जायी । रोजगार बढ़ी , लोग के परदेस गईल कि होयी । िन आ खेि दूनू हररहर रही ।

अगर अईसन होि बा िs , अपरार् , लूट िे किी आयी । सिाज के लोग संसचि रही । सरु ाज आयी । अब बोलीं , भोजपरु ी के सवकास से सबहार के सवकास जड़ु ल बा नू ।

भोजपरु ी के सवकास , िाने सबहार के सवकास भईल ।

छनुकी

अरत्रवन्द कुमार पाठक

अन्नपूणाश

गाना

सम्मान

भूखाईल भूखे ना रही दािा के दूआर अनपूरना परु ईहें करिे दल ु ार

उनका खासिर गहराई िें गावल अपना िउज िें गसहरा नहावल।

पांकी के के सदही सम्िान किल ओसहजे सखलेला सफर भी अनजान

***

हकरीपा

***

दंभ पइसा होखे चाहे होखे पद जसहीं आई दंभ बढ़ेवाला रहिा सिझ ल हो गईल बन्द

***

‘अ’ ह अध्याि​ि ‘क’ ह करिव्य सांचे गरू ु सकरपा के खेल अरजनु चाहे एकलव्य ***

*** © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 43


अधीरजी लेखक

उरा नया लेख सलखे के शरू ु कईले बानी कवनो बाि नईखे । राउर लेख के हु नईखे पढि , वोहसे आपन सलखल बन ि​ि करी । एकर ि​िलब ई नईखे सक रउरा सलखे नईखे आवि । सजनगी एगो लिहर पाठशाला हऽ जवना िें आसखरी सांस िकले कुछुओ ना कुछुओ आदिी सीखिे रहले । जीवन िें असफलिा आ ओकर अपिान के अनभु व कईल बहुि िहंग बा । ई आदिी के रीढ़ के िजबूि करेला । एक हाली जे इ आसग से पार हो जाई, ओकरा के कवनो घटना आपन राहिा से हटा नईखे सकि ।

असर लउकि रहे । सपछला कई बररसन िें आि

डॉ. उमेश जी ओझा आदिी िें बड़ी िेजी से अर्ीरिा के सवकास भईल बा

अबही के दौर िें भोजपरु ी सासहत्य के लेखक के सािने एगो बडहन सिस्या आ गईल बा । भोजपरु ी सासहसत्यक कईगो पसत्रका छपि बाडी स, सासहत्य भी छप रहल बा । बासक सासहत्य के कवनो असर खासकर भोजपरु ी लोगन प नईखे लउकि । हिसन के सोचे के चाही सक भोजपरु ी सासहत्य काहे प्रभावहीन हो गईल बा ? पसहले सासहत्य अउर कला िें कवनो चीज शासिल होि रहे िऽ उ कला के रूप िें ओकर असर लउकि रहे । सिाज के सवचार अउर सविशा िें

। लेख के पढे वाला सिु ल बाड़न । लेखक आपन लेख के लेके अर्ीर बाड़न । आपन लेख के जसल्दये यश चाहि बाडन । जवना के सासहत्य के नया असग्न परीक्षा कह सकि बानी । एकरा िें घीव के काि कईले बा सिु ल पाठक । आ पाठक के सिु ल उनकर िानससक अवस्था के बनावे िें सबसे बडहन काि कईले बा सिसडया । उहे रचना ज्यादा पढ़ल जाि बा जवन गंभीर नईखे । गंभीर रचना के पाठक कि होि जाि बाड़न एकर बडह़न असर सासहत्य पऽ पड़ल जाि बा । सासहसत्यक पसत्रकन के पाठक कि भईल बाडन । जवना िें आसान लेख के िांग बढल बा । आजु बडहन भाग , बसु द्वजीवी कहवावेला खासकर िीसडया , बेचैन आत्िा सनहन , एने से ओने हवाई जहाज लेखा िडराि लउकि बाडन । आजू अईसन लेखक बनि बाडन जे हर िरह के सिझौिा करेके िेयार बाड़न, ओकर दष्ु पररणाि के िहसूस कईले नईखन चाहि । बस सासहत्य िें एके चीज खोजि बाड़न पईसा । बासक उहो नईखे सिलि ।

लघ ु कथा : कु म ुद नी

बार -बार फ़ुक िारे बाकी ससवाय आंखी िें सिज भर्ू ण चौबे उर्ेड़-बनु िें कई िरह के बाि सोचि कुिदु नी के हु िरे लागेवाला र्आ गोइठा सनु गा के चूल्हा पर पिीला बइठा देले रहे । ु ाँ के कुछ सिलि ना रहे। एह बरसाि िें भी न सजयल दूभर हो जाला , हर सनकसार िे खसटया पर परल िाई के खोखी सरु​ु होखे चीज के आफि। किना जिन क के पूरा ि पटइबे ना करे आ जब पटाए ि ओकर कहरल बरसाि खासिर गोइठा बटोरनी सक भर बरसाि असो के हू दूसरा चालु हो जाय। एक गोड़ सीर्ा आ एगो पट कके गाले के दआ री लवना िां ग ना जाए के परी। द स रा के कवनो चीज हाथ र्इले बइठल कुिदु नी पिीला के पानी के े ु ू देबे के होला ि आदिी ना जाने का का खेला पढ़े लागेलन , इ सिकवि रहे सक कब खउलेला। पानी भले ना खउले ना जानेलन सक ह एक सदन उहो कुछो खासिर के हु के दआ बासकर कुिदु नी के िन िनही िन खूब खउलि रहे। ु री पर जइहन .... हू ! आदिी सदहन काहे के ! ऊपर से भड़क ना जाने कवना बाि से सदक् बरि रहे ! काल्ह बोसलयो भी बोल सदहन। एसह से िरर-िरर के एके क सचपरी पाथी कसलका बो काकी कहि रहली सक " कुससु ि के फे रु के अिना गोइठा बटोरनी सक कि -से कि भर सावन - भादो ि कवनो लइका भइल बा ,..अब का ? िोहरे सिउरी ि सहय ...सिले भगवान दु -दु दःु ख ना काटे के परी । गो पिु दे देहलन। " इ बाि िन िें आविे कुिदु नी झनक के चूल्हा से एकरा बाद ि सदन सनक होखही लागेला बाकी इ घर ..! इ घर पानी उिरलस जवन खउले लागल रहे। " जइसे भगवान के हुके पिु े ना अइसन बा सक िसनको बरखा होखे ि चूअला के िारे डबहा लाग जाये के सदहन .. दस ु रा के िेहना िारे िें ि लोग आगे रहेला आ आपन बा सफर घर के सब सािान ओद। बाबु से कसहये कहले रहनी सक एक बखान ....." हड़उिारन से पिीला उठवले सनकसार िें जाि खीझ िें हाली नररया -पटरी उजरवा के फे न से बइठवा द बाकी ना... उनका सपए िनही -िन बदु बदु ाि उ िाई लगे पहुचल " ले पानी गरि क सदहनी ।“ से फुरसि सिली िब न। एगो िाई सबया सक एकर बेिारी बझ दवु ारी के बहरी कुछ िेहरारुन के सगि गावल सनु ाइल कुिदु नी बहरी ु ाि बा कबो जइबे ना करी। का जाने कवन पाप कइले रहनी सक भगवान अइसन िाई झकलस ि एक झन्ु ड सोहागीन पोखरा नहाके आवि रहलीसन । पछ ु ला -बाबू के घरे जनिा देहलन जेकरा आज िक कबो सफसकरी ना होला सक पर पािा चलल सक आज सिज ह उ एक छन खिीर ओइजे जड़ होगइल घर िें एगो सेयान लइकी सबया। आंसख लोर से भरी गइल उसिर के सिस सनयरा चक ु ल कुिदु नी सोचे लागल ना जाने ओकर सिज कसहया आई ? © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 44


साभार : मवकी हाउ

ितीश कुमार रे

सेल्फ-ररस्पेक्ट

भाग-एक : बनारस ब्लू जी, हई लीं राउर एप्लीके शन MD साहेब वासपस कर देलऽ हन" – चपरासी कहलख

डब्लू के पसहलहीं से ए बाि के संदहे रहे सक MD ओकरा के अपना घरे जाये के छुट्टी ना दीही । एसे उ चपु चाप आपन एप्लीके शन ले लेहलख । डब्लू ससंह 25 साल के जवान लईका रहे । उ दू बररस से बनारस िें एगो IT फिा िें काि करि रहे, बासकर रहे वाला उ छपरा के रहे । हालांसक डब्लू वेब डेवलपर के रूप िें बहुिे िेज़िरार रहे लेसकन कं पनी के िासलक आउर MD िनोज विा​ा ओकरा से काि के ससलससला िें हिेसा बरु ा-भला कहे । कौनो गलिी होखला पर िा​ाँ-बसहन के गाली देवे लागे । डब्लू गा​ाँव िें रसहिन िऽ सायद इ सब बदा​ा स्ि ना करीिन लेसकन बनारस जईसन शहर िें अपना प्रोफे सन आउर नौकरी खासिर सह जासु । डब्लू कुछ देर बाद MD के के सबन िें पहुचाँ गईल । आउर सवनम्रिा

से MD से कहलख – “ सर हिार घर गईल ज़रूरी बा । छुट्टी िंजूर कर सदहीं ना “ MD ओकरा के सखससया के देखलख और जोर से कहलख – “ सकससे पूछ के अन्दर आया रे ि​िु । साsलाs ि​िु को पैसवो चासहये आउरो छुरट्टयो चासहए" डब्लू कहलख – “ िाफ़ करीं सर । लेसकन हिरा घरे जाए के िन बा । छुट्टी िा चहबे करी “ MD – “ जा िऽ पूछि का बाड़ऽ ? पईसा ना सिली लेसकन ओिना सदन के । “ डब्लू कुछ सोच के कहलख – “ अच्छा... चलीं ठीक बा” भाग-दू : छपरा : डब्लू एक हफ्िा के छुट्टी पर छपरा आपना घरे आ गईल । हालांसक ओकर पररवार अब गावें ना बसल्क छपरा टाउने िें रहि रहे । पापा अध्यापक रहलें आउर 50 सकिी दूर

सिीश कुमार रे सतीश रे , रजौिी, छपरा, मबहार के मनवासी हईं. अभी फरीदाबाद िें फाइनि इयर इं जीमनयररं ग के छात्र हईं । अपना कॉिेज पमत्रका के सह संपादक भी हईं और 'अनन्द्या' नाि के सामहमत्यक क्िब से जुडि बानी । कमवता और कहानी मिखे के शौक बा ।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 45


सोनपरु िें पढ़ावि रहलें । आपना नौकरी से परेशान डब्लू के घरे आके बड़ा सक ु ू न सिलल । िाई के हाथ के खाना, सबना दबाव के सजनगी । देखिे-देखिे चार-पांच सदन बीि गईल ।

दे देहनी ।” डब्लू के अब गवा और रोिांच से रोंगटा खड़ा हो गईल ।

ओकर पापा आगे कहलें – “ हिओ ु बाबूजी खानी अपना selfrespect से कबो सिझौिा ना कईनी । हिरा सोनपरु स्कूल िें हेडिास्टर लईका सब के सरकारी फं ड खा जाि रहलें । ए काि िें BDO (Block Development Officer ) भी उनका साथे रहलें । हि इ ्ष्टाचार बदा​ा श्ि ना कईलीं आउर सवद्याथी सब के ओकनी के हक के पैसा पाए खासिर उत्सासहि कईनी । हिरा इशारा पर पापा के बाि सनु के डब्लू के बहुि ख़शु ी भईल । साचों ओकरा सवद्याथी पूरा गा​ाँव वाला सब के साथ सिलके खूबे हंगािा कईलन पापा के बड़ा सदक्कि रहे आये-जाए िें । भोरे 5 बजे के रेन पकड़ सन । हि सजला-ऑसफस िें एगो सचठ्ठी सलखनी । आसखर के सोनपरु जाये के होखे । जाए िें दू घंटा से हेडिास्टर के झक ु े के पडल आउर लईका बबु आ हि जौन भी इज्ित ज्यादा लाग जावे आउर अिने टाइि आवे िें भी सन के फं ड के पैसा वापस करे के पड़ल । लागे, रेन के इसन्िज़ार के टाइि अलग । जब एकरा बाद हेडिास्टर हिरा के िंग करे डब्लू फॉिा लेके DEO ऑसफस गईल िऽ उहां किविे बानी उ एह से काहे कक लगलें । हि भोरे-भोरे उठ के रेन पकड़ी िबो बहुिे लोग जिा रहे । जब ओ लोग के पिा उहा​ाँ पहुंचि-पहुचाँ ि दस-पंद्रह सिनट लेट हो हि कबो के हू के आगे झु क ि चलल सक डब्लू, िोहन जी के बेटा हऽ िऽ सभे जायीं । एक सदन हिरा दस सिनट लेट लोग ओकरा के बहुि िनलख । आस-पास होखला के चलिे हेडिास्टर हिार हासजरी नईखीं । इ गु ण हि तहरा जिना भी लोग रहे सभे असर्कारी सब के काट देहलन । हि इ सह के रह गईनी पर कहलख सक िोहन बाबु के फॉिा हऽ, जसल्दये उनकरा से कुछु ना कहनी । ओ घरी िहार दादाजी से िे ि े बानी । चिऽ काि हो जाए के चाहीं । असर्कारी भी हैरान रहे िाई िहरा छोट भाई के साथे गा​ाँव िें रहि सक इ ज़रूर कौनो बड़का इज्ज़िदार आदिी के रहली । हि असगला सदने राि के डेढ़ बजे हि उनकर एगो कहानी तहरा रान्सफर के फॉिा हऽ, िबे अिना लोग उनकर उठ गईनी, एक घंटा िें खाना बना के , नहापैरवी करऽिा । र्ोवा के ढाई बजे भोर के रेन पकड़ लेनी के बतावा तानी । आउर चार बजे भोर िें स्कूल पहुचाँ गईनी । डब्लू घरे आके पापा के सारा बाि बिवलख उहा​ाँ बरािदा िें गिछा सबछा के िीन घंटा । ओकर पापा ओकरा से कहलें – “ बबआ ु हि जौन भी इज्ज़ि आराि कईलीं । साि बजे से स्कूल शरू ु हो गईल । हेडिास्टर किवले बानी उ एह से काहे सक हि कबो के हू के आगे झक ु ल ओह सदन दू सिनट देर से अइलें । हि उनकरा सािने उनकर नईखीं । इ गणु हि िहरा दादाजी से लेले बानी । चलऽ हि उनकर हासजरी लाल-कलि से काट देहनी । हेडिास्टर पटना से सोनपरु एगो कहानी िहरा के बिावा िानी । िहार दादाजी बहुि बस पकड़ के पढावे आवस । असगला सदन फे र हि डेढ़ बजे उठ स्वासभिानी आदिी रहनी, उहा​ाँ के सदिाग के लोहा सभे िानि रहे गईलीं आउर चार बजे स्कूल पहुच गईलीं । हेडिास्टर किनो । दोसरा गा​ाँव िें एगो िहिो रहलें सजनकरा से ज़िीन के अदलेनकोसशश कईलें लेसकन फे र दू-िीन सिनट लेट से अईलन । हि फे र बदलेन के खानदानी लड़ाई चले । एक बार उ के हू के ससखावला िें से उनकर हासजरी काि देहनी उ घबरा के BDO का लगे गइलें । पड़ के बाबूजी के बीच-बाज़ार िें गाली देवे लगलें । बाबूजी के खून असगला सदन BDO पौने साि बजे भोर िें स्कूल पर आ गईलें खौल गईल िगर उहा​ाँ के ओकरा िंहु न लगनी । बाबूजी असगला िासक हिरा देरी होखला पर हिरा पर कारवाई कर सकस । उ सदने ज़िीन के िासलकाना हक खासिर िक ु दिा दायर कई दीहलें । देखलें सक हि पासहले से ही गिछा सबछा के सिु ल बानी । उ िन चार साल ले िक ु दिा चलल जावना िें कोटा सारा ज़िीन के िसोस के रह ।गइलें । इ सब एक िसहना िक चलल । अंि िें िासलकाना हक बाबूजी के सौंप सदहलख । िहिो पूरा िरीका से हेडिास्टर हिरा लगे आ के िाफ़ी िांगे लगलन सक उनकरा से बबा​ा द हो गईलें । बाद िें के हू उनका से कहलख सक सार्ु राय गलिी हो गईल । उ कहलें सक हि हार िानऽ िानी । रउरा रेन से खासिर उनकर आत्ि-स्वासभिान ही सबकुछ बाटे, िू उनका लगे दरू से आवेनी, आउरो रेन के वज़ह से अगर दस सिनट लेट जा आउरो िाफ़ी िांग लऽ । असगला सदने िहिो बाबूजी के गोर पर होइओ जानी िऽ ओकरा खासिर हिरा राउर हासजरी ना काटे के आके सगर गइलें । बाबूजी उनकरा के िाफ़ कर देहनी आउर चार चाहि रहे । BDO भी हिरा से फ़ोन पर कहलें सक अब से स्कूल साल के लड़ाई िें जीिल सोलहो बीघा ज़िीन उनकरा के दान िें एक सदन पापा डब्लू से कहलें – “ बबआ ु हई फॉिा DEO ऑसफस िें जिा कर के आ जा िनी । आपन रान्सफर हि इहंवें करावा िानी । सोनपरु बड़ा दूर पड़ेला, रेन से आवे जाए िें हरासनये बा । अब नौकरी के जौन दस साल बाचल बा िवन छपरे िें पढ़ा के गज़ ु ारे के बा ।”

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 46


के पैसा िें कवनो गड़बड़ ना होई । जवन भईल ओकरा के िाफ़ कर दीं । असगला सदन से हि फे र से पांच बजे वाला रेन से स्कूल जाए लगलीं ”

जब उ अपना ऑसफस िें पहुचं ल िऽ ओकरा िालूि पड़ल सक MD ओकर िनख्वाह रोक देले बा । जब उ MD के ऑसफस िें पहुचं ल िा MD भड़क गईल आउर कहलख – “ साला सबना पूछे ि​िु अन्दर कै से आ जािा है ? का ? िंहु काहे िाक रहा है ?”

दू सदन के भीिर ही डब्लू MD िनोज विा​ा के कं पनी के सवा र हैक कर के सारा प्रोजेक्ट सडलीट कर देलख । डब्लू के वज़ह से िनोज विा​ा के बारह लाख के नक्ु सान भईल । आ एने डब्लू के प्रसिभा आउर नाि के वज़ह से डब्लू के कं पनी र्ीरे-र्ीरे वेबसाइट बनावे वाला कं पनी िें सबसे आगे हो गईल । डब्लू एहू पर ना िाने आउर बीच-बीच िें िनोज विा​ा के सवा र हैक कर लेवे । िनोज विा​ा के कं पनी के नाि बहुिे खराब हो गईल । अब उनकर कं पनी के किा चारी सब के खचा​ा भी ना सनकले । एगो परु ान किा चारी ओकरा के बिवलस सक खाली डब्लू ही सवा र हैक कर सकऽिा । MD अब भीिर से टूट गईल रहे, उ कौनो कीि​ि पर डब्लू से सिझौिा करे के चाहि रहे । ए खासिर उ ओकरा ऑसफस गईल । जब उ ओकरा के सबन िें घस ु ल िऽ देखलख सक डब्लू फ़ोन पर बाि करि रहे । डब्लू MD के एक नज़र देखलख, फे र फोन रख के कहलस – “ के करा से पूछ के भीिर अईलऽ हऽ ? " MD ओकर िंहु िाकि रह गईल ।

डब्लू – “ रउरा हिार िनख्वाह कै से रोक देले बानी । ऑसफस भर िें सबसे अच्छा काि हिे करीले “

डब्लू फे र से कहलख –“ जा बाहर जा । आउर हिरा से पूछ के भीिर आवs”

MD – “ हराि खोर ! जब सबसे िहंगा वेबसाइट पर काि चलि रहे िऽ िू घरे भाग गईल रहला । िसहना कवना बाि के चाहीं । दू पैसा के टैलेंट नइखे आउर बहस करबे हिरा से ।”

MD आपन कं पनी बचाए खासिर खून के घूटाँ पीके बाहर गईल और कहलस – “ may i come in ?” डब्लू उनकरा के आवे के कहलस ।

डब्लू सखससया के कहलस –“ अभी ले बड़ सिझ के सलहाज करि रहनी हां, अब िहार रौब बदा​ा श्ि ना करेब । भांड िें जावे िहार नौकरी । “ इ कह के डब्लू के सबन से बाहर सनकल आइल ।

MD कहलख – “ हिरा कम्पनी के बक्श दऽ । हिरा आपना व्यवहार पर पछिावा बा ।”

डब्लू अपना पापा आउर दादाजी के कहानी सनु के बहुि गवा कईलस । उ अपना बारे िें सोचे लागल, ओकरा अपना पर शरि आवे लागल । असगला सदन भोरे उठ के डब्लू बनारस के रेन पकड़ लेहलख । भाग-3 : बनारस

असगला सदने डब्लू आपन जान-पहचान के कुछ Web Developer दोस्िन का लगे गईल आउरो कुछ आपन काि शरू ु करे खासिर िन बनवलख । कुछ सदन बाद डब्लू आपन िीन गो दोस्ि के साथे सिलके डेढ़ लाख के शरू ु आिी सनवेश के साथे आपन कं पनी शरू ु कईलस । एकरा खासिर एगो बड़ हॉल िें ऑसफस सलआइल । डब्लू लकड़ी के आपन अलग के सबन बनवईलख ।

डब्लू िेही िस्ु कान छोड़ के कहलस – “ िहार गिु ान िऽ चकनाचूर करबे करब, िहार कम्पनी भी बंद करवा के िानब । काहे से सक हिरा लगे अपना बाप-दादा खानी self-respect िऽ बा लेसकन वो लोग खानी दया नइखे । “

हम लोकगीतन मे अपना के झिन्हे के कोझि​ि करेनी । लोकगीत, लोक संगीत, लोक भाषा , असल मे हमनी के पहिान ह । - नबीन कुमार भोजपुररया

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कृष्ण - जन्माष्टमी

हे कृष्ण राउर आइल जरुरी बा ! जलज कुमार अनपु म हे अजन्िा भसक्त के सागर अविरण अननु ाद के पालनकिा​ा , दःु खहिा​ा स्वािी एहसास अउरी सविास के आज यह कलयगु के भवसागर िें आके राह सदखावल जरुरी बा हे कृष्ण राउर आइल जरुरी बा बदल गईल पररभाषा बहुिे अब राउर सासहत्य भी ना सिाज िें ना बा िशहूर प्यार ,त्याग के ि​िलब से लोग भईल दूर सनज स्वाथा िें पड़के सबके हु हो गईल बा िजबूर बिु े लागल बा दीप जवन संस्कार, स्वासभिान के अब ओहके जलावल जरुरी बा आके राह सदखावल जरुरी बा हे कृष्ण राउर आइल जरुरी बा का कही रउरा से यगु अइसन आईल अब ि आदिी के आदिी ना सहु ाि बा बाि करी जे सविास, अउरी वफादारी के उदहारन अब जानवर के सदयाि बा फे रु से एक बेर ज्ञान के ,शंख बजावल जरुरी बा आके राह सदखावल जरुरी बा हे कृष्ण राउर आइल जरुरी बा सजनगी अउरी जिाना के कशिकश िें ि​ि​िा अब जघे जघे सबलखि बा अइसन चलल बयार दसु नया िें िानविा अब हर जगहे सल ु गि बा जहवा उद्गि स्थान रहे प्रेि के अब उहो से उ जहर उगलि बा यह पररदृश्य िें राउर आके सिझावल जरुरी बा आके राह सदखावल जरुरी बा

जलज कुमार अनुपम बेमतया, मबहार के रहे वािा जिज जी भोजपुरी िें िगातार मिख रहि बानी आ आखर के पेज पे भी इं हा के कमवता-कहानी प्रकामशत होत रहेिा। कफिहाि जिज जी कदल्िी रह रहि बानी।

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कतवता

दू गो गीत!

गडु ् डू कुमार शाह

"देश के तवकास" बदलि नेिा नासह बदलि सिाज बा कागज प सलखाला देशवा करि सबकास बा आवेला चनु ाव होला बड़े बड़े वादा हारो चाहे जीिो के हू होला नासह पक्का कलपि गरीब भख ु े िरि सकसान बा कागज प सलखािा करि देसवा सबकास बा कहे प्रशासन अब आईल बा सशु ासन सब कुछ ठीक होई कोई सचंिा जसन बढि अपरार् रोज होि बलात्कार बा कागज प सलखािा करि देसवा सबकास बा झांसक झांसक देसख लेहनी टोला गांव शहर किही ाँ सबकास ' गडु ् डू ' आवे नासहाँ नजर बढल बेरोजगारी भईल सजअल िहु ाल बा कागज प सलखािा करि देसवा सबकास बा

"शहीद" लाज िाटी के आपन बचाई सलहले शीश भारि िाई के चढाई सदहले सजनगी के सब सख ु दख ु आपन कइले देश के नाि िे । जीवन िरण के गि ना कईले कुद गईले संग्राि िे ॥ सदल क्रांसि से आपन लड़ाई सदहले । शीश भारि िाई के चढाई सदहले ॥ एक अनेक सिल के लड़ले छोड के जासिवाद हो । बेड़ी िे जकरल िाई , के कइके सब याद हो ॥ शान देशवा के आपन बढाई सदहले । शीश भारि िाई के चढाई सदहले ॥ सदल िे सबके सपना रहुवे भारि होखे आजाद हो । िबिे उं चा रहे ततरं गा भारत

के सरिाज हो ॥ सांच िनवा के आपन परु ाई सलहले । शीश भारि िाई के चढाई सदहले ॥

सुख सलाई के काठी झनयर बर के भक ु से बतु ा जाला । आ दुख ओद लवना झनयर जरत रहेला धवुं ात रहेला बाझकर बुताला ना । - पी िंद्रझवनोद

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लोक संस्कृतत

खोईंछा िरोज सिंह "सवदाई के बेर िाई देले अचरा िें िट्ठु ी भर चाउर पा​ाँच गोटा हरदी दूब आउर ससक्का कहे के थोर होला बाक़ी एिे भरल रहेला नेह छोह दल ु ार अखंड सौभाग्यविी और सख ु िय जीवन के आससरबाद अपरम्पार "

खो

इंछा भा खोछा आपन भोजपरु ी संस्कृसि िें बहुि प्रचसलि सब्द हवे बाक़ी एकर शासब्दक अथा िो हिरो नइखे पिा पर काहे कब और कै से सदहल जाला ई पिा बा .... लइकी के सबयाह भैला के बाद सवदाई के सिय भा बेटी जब नइहर से ससरु ा और ससरु ा से नइहर जाले िब िाई/ सास/ननद/भौजाई अंचरा िें खोई ंछा भर के सवदा करेले ... खोई ंछा भरे के भी जगह जगह कुछ अंिर बा कई जगह हरदी से रंगल चाऊर और गड़ु से भरल जाला कई जगह जीरा और पा​ाँच गो खड़ा हरदी और ससक्का से / कई जगह चाउर हरदी और दबू और ससक्का डाल के भरल जाला ....िगर खोइंछा भरे के िहात्म्य सबके एके बा .....!सक जात्रा सवघ्न रसहि होखो बेटी भा पिोह अखंड सौभाग्यविी और जीवन सख ु सिसृ र् से पररपूणा होखो! खोइंछा हिेशा आाँचर िें सूप से सदहल जाला ..ऊ बाि अलग बा सक आर्सु नक जिाना िें िेहरारू लोग आाँचर ख़राब ना होखो एसे बाद िें रुिाल िें डाल लेला लोग ....एिे प्रयक्त ु होखे वाला सूप और आाँचर एकर भी खास िहत्व बा सूप ----आपन भोजपरु ी सिाज िें सूप के खासा िहत्व बा इ सभे जानि बा साथ साथ एकर

एगो खास गणु भी बा । "सार सार को गहि रिे थोथा देय उडाय" िाने इ खाली श द्ध ु चीज के ग्रहण करेला एसे सूप के शभु िानल जाला । आाँचर- िेहरारू लोग के अंचार बहुि िहत्वपूणा होला ...एक िरह से सिझल जाऊ िा एगो िेहरारू के संसार होला ....सख ु दःु ख के साझेदार होला लइकन के छाव देवे वाला आपन गररिा के ढाके वाला ...एसहसे खोइंछा आाँचर िें भरल िें सदयाला िासक ऊ आशीवा​ा द हिेशा साथ रहो! खोई ंछा िें भरे वाला सािग्री और ओकर िहात्म्य । चाउर -चाउर (अक्षि)िाने कबो ना टूटे वाला .सफ़े द रंग शभु के प्रिीक बा एसहसे चाउर के शभु और र्ान र्न्य से पूणा िानल जाला और खोई ंछा िें भरे के िाने ऊ जहा​ाँ भी जाये ओकर जीवन र्ंर्े से पूणा रहो । िरदी -सहंदू र्िा -शास्त्र िें अईसन कवनो िांगसलक काया नइखे जेिे हरदी के प्रयोग ना होि होई .....एके शभु सनरोगी और पसवत्र िानल जाला .....खोइंछा िें डाले के िाने ओकर जीवन सनरोगी रहो । दबू --दबू के भी आपन शाश्त्र िें बहुि बखान सिलेला .और शभु भी िानल जाला ..और एकर एगो ख़ास गणु होला दबू के पौर्ा एक बार जहा​ाँ जि जाला , वहा​ाँ से नष्ट कईल बड़ा िसु श्कल होला देखे िें भले चोट होला िगर एकर जड़ बहुि गहरा पनपेला... ! खोइंछा िें भरे के िाने ओकर जीवन सवघ्रासहि अक्षण्ु ण रहो दूब जैसन । गड़ु - ग ड़ु के प्रर्ान ग णु सिठास होला एसहिरह खोइंछा लेब े वाळी के जीवन िें सिठास रहो ..!एसे कही गड़ु भी खोइंछा िें सदहल जाला । जीरा -कई जगह जीरा हरदी से भी खोइंछा भराला जीरा के खोइंछा के सन्दभा िें का िहत्व बा इ िा हिरो नइखे पिा । ( खोई ंछा प एगो किानी आखर ई पहत्रका के मई 2015 , अंक 4 मे पढल जा सके ला जिन िहि भूषण जी के हलखल ि http://aakhar.com/index.php/28-may15 )

सरोज त्रसिंह बमिया , युपी के रहे वािी सरोज ससंह जी , महन्द्दी भोजपुरी आ बंगिा सामहत्य िे उभरत एगो बररआर नाव बानी । हािे िे इाँ हा के मिखि महन्द्दी काव्यसंग्रह " तुि तो आकाश हो " आईि ह । भोजपुरी िे सैकिन गीत गजि कमवता कहानी के रचना कई चुकि बानी । पाक किा िे दक्ष सरोज जी एह घरी गामजयाबाद िे बानी ।

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बेबाक बतकही

तजंदगी आ जाम

कमलेश पाण्डेय

चौिहु ानी रऊआ के ललकार रहल बा । बीचे िें फं सल बानी रउआ आ राउर चारो िरफ झांव-झांव िचल बाटे । रउरा पीछे एगो गाडी ककास हारन बजा के बिावि सबया की बत्ती लाल से हररहर हो गईल बा । बासकर रऊआ करब का? आगे एगो बड़का-चक ु ी बस, नईखे होि टस से िस । बराबर के लेन िें खलबली बाटे जेने गाडी कूल्ह खोंसखयाि एक दसु रा से सटल जाि बाड़ी सन । एने रऊआ लोग खड़ा बौसखयाि बानी, ओने पीछे के गाडी रऊरा सब के िंहु ररगावि दोसरका ओर के लेन से ओवरटेक कईले फरा -फरा सनकलि रहली स, बासकर अब सािने ओरा से आवे वाली गसड़यन से िहु ां-िहु ी खड़ा हो गईल बाड़ी स । ि​िला संसद के सभिरी चले वाला बहस लेखा अझरु ा गईल बाटे । राउर सखससआहट सपनसपनाहट बन गईल बा । रउरा हड़बड़ी बाटे, जईसन रोजे रहेला । रऊओ होरनवे पर चढ़ के बईठ गईल बानी आ अगल बगल बाजि अके ष्रा िें पंचि सरु पर बाजे लागल बानी । एकदम्िे कहीं से परगट होके एगो ससपसहया रउआ के चलान र्रा देले बाटे । रउआ भकुआ जा िानी । हारन बजावला प जिु ा​ा ना? एने-ओने देखे लागल बानी जे कौनो दोसर देस िें ि नईखीं चहुंप गईल । रऊआ कूल्ह रोडवन के आपन बाबूजी के ना ि िाईबाप सरकार के संपसत्त ज़रूरे सिझि आईल बानी । रोड प लेन कसह के पारल ऊज्जर लाइन के हिेसा गाड़ी के जेने बझ ु ाय ओने घिु ावे वाला स्टीयररंग जईसन किाल के चीज़ के अपिान बूझि अईलीं । रऊआ गाडी लेन िें चलावे के सनयि के आदिी-जाि के एके सीर् िें चले वाला भेंडा जईसन जनावर बनावे के सासजस सिझी ले । िनी आउर िोट उज्जर पट्टी सबछा के बनावल ‘जेबरा क्राससंग’ रउरा गाडी रोकला के ना, आदिी जन के कचारि सनकल जाय के

सनेस देि बझ ु ाला । राउर जवन हाना हिेसा “हट पांजर” सचंसचयाला, जेबरा क्रससंगवा प गोडे-गोडे जाि लोगन के देख के िारे खीस के बउखे लागेला- “हट सरऊ । । िोरा । । ।” सांझी के घरे लऊटि बेरा राउर थाकल सिजाज भनभनाि बा । रउआ ‘लो-बीि’ चलल हेठ लागेला । पूरा दि लगा के आपन हेड लाइट सािने के रासफक प झोंक दीले । राउरे लाइट रोड प सब पर भारी पड़े ईहे चासहले, जवन किी पड़ेला फुल हारन के चें-चें से बराबर करीले । रासि के पाटी िें राउर हाथ िें छलकि जाि आवे के रसहया िें ई जवन रस्िा के जाि अडल बा ओकरा पछाडल जरुरी लागिा रउआ । रउरा कपार प लड़ाई के िैदान के ससपाही चढ़ जाि बा, क्लच-ब्रेक-एक्सीलेटर के सिरसूल लेके रउआ लेनहेन-िेन सब प हेंगा जईसन चले लागि बानी । लालबत्ती, फुटपाथ, साइसकल, ठेला, बस-रक सबकर िूडी काटि आगे सनकलि जाि बानी । जाि के चीर के जीि के रणभेरी िाने आपन हाना जोड़ से बजावि रउआ एही जोश िें आगे एगो कि रैसफक वाला चउक प लाल-बत्ती हेलि र्रा जाि बानी । जानिो बानी जे रोज इहा​ाँ पसु लस रउरा जईसन कूदक्कड़ िछररयन के फं सावे बदे कांट लगा के रोज़ बईठल रहेले । रउआ फे र भकुआईल बानी । छौ गो लाल बत्ती फनलीं, दू बार उलटा लेन से चल के सबसे आगे बढ़ गईलीं, स्कूल- अस्पिाल के लगे से पंचि सरु िें हारन बजावि भगलीं । चार हासल गाड़ी फुटपाथो प चढ़ा देहलीं आ जेबरा क्रोससंग प कई लोगन के कचारि -कचारि रसह गईलीं, बासकर के हू टोकबो ना कईलस, आ ईहा​ाँ पीयर बत्ती फनला प हजार रोपया के चलान थिा देहल गईल । भगवान आ पसु लस के लीला के हू बझ ु ले बा आज ले !

कमलेश पाण्डेय कि​िेश पाण्डेय जी िाने महन्द्दी सामहत्य जगत के कि​ि भाई कि​ितोि व्यंग्यकार आ रं गकिी हयीं । इं हा के महन्द्दी उदूय के सामहमत्यक पमत्रका िफ़्ि िें सह-संपादक बानी । महन्द्दी जगत के तिाि सामहमत्यक पत्र-पमत्रका िें आपन व्यंग्य से पाठक वगय के गुदगुदावत रमहिे । आत्िीय आ गंभीर हंसोि व्यमक्तत्व के धनी कि​िेश पाण्डेय जी गोपािगंज से बानी आ कदल्िी िें रमहिे ।

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कहानी

बायेन

प्रभार् समश्र

सस

गोि​िी - ऊनका सकं हा के ह ि रऊरा लेले जाई , हि ऊनका सकं हा के बायेन ना लेि । आ पछ ु स ि कह देि सक जब खान सपआन , आवा - जाही नईखे ि फे रु ई बायेन भेजला के का जरुरि रहल ह ।

ससिेसरी - अरे कहां रहनी ह रऊवा । हि कबे से आवाज दे िनी आ जजीर पीटिनी ।

ससिेसरी ई बाि सनु के चपु चाप जवन आपन चप्पल खोल के ओही पर भूई ंया बईठल रहली , ओह के पसहन के दऊरी डार पर ले के दरवाजा से सनहुर के सनकल गईली । ऊ गोि​िी से ईहों कहली - चली ठीक बा िलकीनी , हि राऊर बाि सरसिी के िाई के बिा देि ।

िेसरी अपना िाथा पर लेहल दऊरी के अपना डार पर ले के सबंदस े री के घर के बंद के वाड़ी िें लागल जंजीर के बजवली । ऊ जब के वाड़ी खुले के कवनो आसरा ना देखली ि आवाज लगईली - ए सवकरि के िाई , खोल ना हो । कहां बाड़ू ? दु िीन बार आवाज लगईला के बाद ओने से गोि​िी के वाड़ी खोलली ।

गोि​िी - अरे हि रेसडयो सनु ि रहनी ह , राऊर आवाजे ना बझ ु ाईल ह । ई के करा घर के बायेन ह ? ससिेसरी - ई रािनाथ बाबा सकं हा के ह । काल्हुए आईल रहे उनका बेटी सकं हा से ।

जब ससिेसरी गांव भर बायेन बांट के रािनाथ के घरे पहुचली ि उनकर िलकीनी लछीिी पछ ु ली - सभ घरे ठीक से बंटा गईल ह नु ? के हु के घर ि नानु छुटल ह ?

प्रभाष त्रमश्र छपरा, मबहार के रहे वािा प्रभाष मिश्रा जी भोजपुरी िें िगातार मिख रहि बनी आ आखर के साथे जुि​ि बानी। इहा​ाँ के कहानी आ कमवता दुनु िें हाथ सधि बा। कफिहाि इहा​ाँ के नामसक िें काययरत बानी।

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ससिेसरी - ह सभे घरे बटा गईल बा , खाली सबंदस े री बाबा सकं हा राऊर बायेन ना लेहल स लोग । लछीिी - का कहलस लोग ? ससिेसरी - सवकरिा के िाई कहली ह सक जब आवा - गच्छ हई ंए नईखे ि बायेन भेजला के कवन जरुरि रहल ह । लछीिी - आऊरु कुछ कहली ह ? ससिेसरी - ना , आऊरु कुछ ना कहली ह । ऐिने पर हि ओजी से चल देनी ह । लछीिी - ठीक बा , रऊरा अपना घर के बायेन आ हई पईसा र्री । ससिेसरी आपन बायेन आ लछीिी के हाथ से पईसा ले के अपना घरे का ओरर चल देहली । ससिेसरी एह गांव िें बीस बररस से ठकुराईन के काि करि रहली । पूरा गांव िें ऊनका के लोग िानेला , आ ऊहो सब के हु के कहल िानस । गांव के हर घर के नून - हरदी के सहसाब इनका लगे िूंहजबानी रहेला । लछीिी अपना िरद रािनाथ के अंगने िें से आवाज लगईलीएजी , सनु िनी । हेने आई नु । रािनाथ असोरा िें बईठ के खईनी पीटि रहले , ऊ लछीिी के बोलावल सनु के अंगना िें अईले । रािनाथ - हा​ाँ , कहs काहे के बोलईलु ह ? लछीिी - ससिेसरी बायेन बांटे गईल रहली ह ि गोि​िी बायेन ना लेली ह , आ कहली ह सक जब आवा - जाही नईखे ि फे र बायेन के का काि रहल ह ? का कईल जाव ? रािनाथ - का करबु । एगो काि कर िुहीं अपना से जा के द । ठीक से बिीअईह । िान जास ि ठीक बा ना ि चल अईह , ढ़ेर ररगीर ना । काल्ह फे रु उनका कहे खासिर कुछ ना नू रही । लछीिी - ठीक बा । हिीं जा िानी , िनी गर्ु ल ु ुक होखे दी । ऊ ि सब परु नकी बाि उभरबे कररंहे । बासकर चली देखिनी हिु का होिा । लछीिी के बेटी सरसिी के सबआह दु िसहना पसहले भईल रहे । सरसिी के सवदाई होखे के घरी जब ऊ गाड़ी िें बईठे लगईु ि गोि​िी , सरसिी के आंचारा के अपना िाथा पर सटा

लेहुई , आ फे नु अपना हाथ से पानी पीअे के सवसर् खासिर सगलास सरसिी काऊरी बढवली । बेचारी सरसिी िनी िनी पानी ओंठ िक सटा के सगलास के अपना िाई के ओरी बढ़वली । बासकर गोि​िी ओह सगलास के िेजी से अपने ले लेहली आ बाचल पानी पी गईली । ई सब देख के ि लछीिी के करेजा र्र्के लागल , बासकर ऊ कररए का सकि रहली । अपना ससरु ा पहुचला पर सरसिी के िबीयि खराब रहे लागल । ई जब खबर आईल लछीिी के लगे ि उनका शक सीर्े गोि​िी पर भईल । उनका लगवु े सक जरुरे ई कवनो टोटरि कईले बाड़ी । ऊ एह बाि के र्ीरे- र्ीरे अपना अगल बगल बिावे लगली । सरसिी के ससरु ारी िें ओझा बोला के देखावल गईल । कुछ सदन बाद सरसिी के िबीयि ठीक हो गईल । एह सब बाि से लछीिी के शक आऊरु बेसी हो गईल । र्ीरे- र्ीरे बाि फईलि ई गोि​िी के कान िें पड़ल । गोि​िी अपना ऊपर शक आ आरोप से एकदि सिलसिला गईली । पसहले ि ऊ एह बाि के अपना संवाग सबंदस े री के बिवली । सबंदस े री ई बाि सनु के अचरज िें पड़ गईले । सबआह िय भईला से ले के सबआह पूरा होखे ले एकदि एक गोड़ पर खड़ा होके ऊ रािनाथ के हर काि िें साथ देले रहन । सबंदस े री ओह बेरा ि गोि​िी के चपु करा देहले बासकर ऊ खुदे एह बाि से परेशान रहे लगले । गोि​िी ि ओही बेरा पूरुआसाख करे खासिर िईआर रहली बासकर ऊ सबंदस े री के ई कहला पर िान गईली के ऊ रािनाथ से एपर बिीअई ंहें । सबंदस े री के रािनाथ से बसिआवे के पसहलही असगला सदने िंसदर पर गोि​िी के भेंट लछीिी से हो गऊवे । गोि​िी ि जब से सनु ले रहली ई सब बाि एकदि सबसनआईल रहली , के िना देर अपना के रोकस । दनु ु जानी िें एहपर ओहीजी बहस सछड़ गईल । गोि​िी अपना के सिाज िें बदनाि करे के आरोप लगावि लछीिी से पछ ु ि रहुवी सक - िु जे िरह से हिरा के डाईन - भिु ीन होखे के हल्ला िचईले बाड़ू ि ओकर का सबूि बा िहरा लगे । एहपर लछीिी सबदाई के घरी पानी पीअे आला बाि उसगल देहली आ फे र सरसिी के िबीयि बीगड़े के बाि । ई सनु के गोि​िी कहली - अरे लछीिी , ओह बेरा ि हिरा सरसिी बेटी के सबदाई के चलिे रोअि - रोअि हालि खराब रहे , ऊपर से राि के खाना के बाद िनी पेट िें गैस हो गईल रहे । बार - बार सहसचसकओ आवि रहे , ि हि ऊ पानी पी लेले होखेि । अच्छा ि िु ईहे बाि के र् के बईठल बाड़ू । जइसे सरसिी िहार बेटी ओइसे ऊ हिरो बेटी , हि अगर जे ओकरा के िनीओ िनी गलि होखे के सोचले होखेि ि भगवान हिार देह ऊजर क

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सदहें । बासकर एहपर लछीिी कहां चपु होखे वाला रहली । ऊहों पछ ु ली - िहरा ि सनरऊठो पानी सिल जाईि ओह जूठ पानी के पीअे के का जरुरि रहे ? एसहजा इहे सब बाि होि रहे िले िोसदआईन पूजा क के आ गईली आ ऊ एह दनु ु जानी के सिझा बझ ु ा के , लछीिी के अपना संगे लेके घरे ओरी चल गईली । गोि​िी भी पूजा क के घरे आ के सबंदस े री से सब बाि बिवली । एहपर सबंदस े री कहले - ि छोड़ अब , हिरा रािनाथ से पूछला के कवनो काि नईखे । आज से ऊनका घर से आयेन - बायेन बंद । ओने रािनाथ आ लछीिी भी अपना घर के लईकन के सिझा देहुवे लोग सक ऊ खेलहु कूदे सबंदस े री के घर कावर जन जाई लोग । ई सब भईला एक - डेढ़ िहीना बीि गईल रहे बासकर दनु ु पररवार के सिलान के के नहु से कवनो प्रयास ना भईल रहे । सांझी के बेरा गोर्ल ु ी होखे लागल रहे , लछीिी हाथ िूंह र्ो पोछ के एगो झोरी िें बायेन ले के गोि​िी के घरे चलली । दअ े री के देख के ऊ घूघ िान के र्ीरे से ु रा पर बईठल सबंदस दरवाजा िूंही आंगना िें पहुचली । लछीिी के देख के गोि​िी सारा िाजरा सिझ गईली । गोि​िी - अरे िु कईसे , ल हई कुरसी बईठs । लछीिी - अरे हिरा ऐिना ना काि बढ़ गईल बा सक के सनओ आवे जाए के फुरसि नईखे सिलि । जब से सरसिी गईल बाड़ी सब काि हिरे कपारे आ गईल बा । कुछ देर ऐनेओने के बाि भईला के बाद लछीिी बायेन के झोरी गोि​िी काऊरी बढ़वली - ल हई बायेन ल । काल्हे सरसिी के ससरु आि कटहर सिठाई आ कपड़ा लेके आईल रहन । गोि​िी पसहले ि सकुचईली , बासकर फे रु ऊ झोरी ले लेहली ।

बासकर ऊ झोरी ले के कहली - जब हि डाईन - भिु ीन हई ि फे र हिरा घर से खान - सपआन , आईल - गईल रखला के का जरुरि बा ? लछीिी - अरे ना हो , ऊ हिरा से गलिी हो गईल रहे । हिार संवाग कहि रहन की उ अईसन काि ना कररहें बासकर हि ऊपर-झापर के आ ओझा- गुनीलो के कहला से सक ई सब टोटरि से भईल बा , िें सविास क गईनी । बासकर काल्हु सरसिी के ससरु आईल रहुवन ि ऊ कहि रहुवन सक सरसिी के ओह घरी टोटरि - ओटरि ना र्ई ंले रहुए , उनका पेट िें कवनो दोसर बेिारी रहे आ ई डॉक्टर से देखवला पर जांच िें सनकलल , आ ऊ जवन दवाई देले रहुवन ऊ दवाई खईला पर चार पांच सदन िें नीिन हो गईल । ई बाि सनु के हिरा आ हिरा संवाग के एह बाि के बड़ी दख ु भईल सक सक हिनी के ओझा- सार्ु के चक्कर िें पड़ के कें ग िहरा पर झूठे शक करि रहनी ह सन । हिरा के िु िाफ क द । हिरो कवनो गलिी ना रहल ह , बेटी के िबीयि खराब के सनु के आ लोग के िरह - िरह के बाि सनु के हिरो िाथा काि ना करि रहे ।

गोि​िी - ऐिें िाफी के कवन बाि बा । सच्चाई जान गईनी ि हिरो बड़ी संिोष सिलल ना ि िरे के सदन ले हिरा पर ई कलंक रसहए जाईि । काली िाई के आससरबाद से सभे खुश रहो । गोि​िी के भी ई सच्चाई सनु के बड़ी राहि सिलल । ऊ चाय बना के लछीिी खासिर ले अईली , आ फे नु दनु ु जानी पसहले सनअर बईठ के बसिआवि चाय के िजा उठावे लागल लोग ।

बहुत दुख के बात बा झक हमनी के एगो अईसना समय मे जीअत बानी जा जंहा अश्लील फुहर गीत प्रझसद्ध होखल जात बाड़न स । ई बहुत घातक िीिू बा , आ हमरा बहुत बाउर लागेला , जब कवनो फुहर गाना प छोट छोट लईकन के टीवी प नाित देखेनी । हमरा अभी तक के कै ररयर मे , हम ओइसन कवनो गाना ना करेनी जवना के गीत के बोल से हम कम्फटेबल नईखी । - श्रेया घोषाल

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कहानी श्ृंख र ला

दिल, जब बच्चा था जी ( भाग –8)

बृज सकशोर सतवारी

गो सकस्सा "भोजन परु ाण" से , कुल सिला के कसह ली सक रउवा लोग के बढ़का भईया खाए िें िनी रउवा लोग के सोच ले दईु डेग आगे रहन । बचपने के बाि बा, सब कोई घर िें ससिलािे रहि रहे । हिनी के सब चहेरा भाई बसहन िें खूब िेल रहि रहे । ओही िें एगो चाचा के लईकी रही -हिरा ले चार - पांच साल बड़ ,दीदी लागस । बासक हिार उनका ले िनी छिीस के आकड़ा रहि रहे । लगभग रोजे लड़ाई होखो उनका ले , बाबा भा बड़ बढु ले सबना उनकर सशकायि कईल भा सबना उनका से लड़ले एकहू सदन ना बीिे । बासक घर िें उनकर डंका बाजो । उ खूब किकिा​ा रही कुलही काि करस खाना भी बनावस एह से हिरे हार िाने के पड़ि रहे । के हू भी हिार सिथा न ना करो । सदसदया हिरा से ढेर टेढ़ एह से रहि रहे सक हि िनी रोटी दबा के खाि रहीं आ उनका के चल्ु हा पर एक एक गो रोटी सेके िें कुलही करि हो जाओ । एही रोटी के चक्कर िें हि रोज बवाल करीं । गिी के सदन रहे, एक सदन सा​ाँझ के िनी देरी से घर िें अईनी... घर िें सब बेकि लो खा लेले रहे । हिही खाए के बाकी रहीं । बैठनी खाना खाए... रोटी िरकारी बनल रहे ,हिरा के परोसा गईल । हिरो के पिा लाग गईल सक सब के हू खा लेले बा ,बस अब का... र्ीरे से देखनी सक के िना रोटी बाचल बा देखनी सक खाए ले दू चार गो असर्का रोटी बा । काहे के , दबा के खा गईनी ... आ लगनी अउरी रोटी के िांग करे ।

मचत्र - स्वयंबरा बक्सी

अब रोटी रहो िब न सिलो । कईनी हि गोहार , हिरा खासिर खाना नईखे ,इ सदसदया जान बझ ु के कि रोटी बनवलस सहया सक हिार पेट ना भरो । भईल सक ठीक बा अब हाथ र्ो लs ... एकार् रोटी कि भईला से कौनो बाि ना होला । हि कहनी ,काहे के हिार पेट नईखे भरल ,हि अउरी खाईब । के हू िरे हि िान गईनी । सदसदया के खूब डांट सखया के । फे रु इ भईल सक हिरा के खाना िें किी ना होई भाई । बड़ा िसल्ली सिलल । गिी के सदन ,घर के बहरे सूिी जा । खा ि लेले रहीं चाप के , रािी खा जब रोटी आपन लीला देखावे लागल पेट िें । गरि के िारे िार सपयास लागे ,आ खीच के पानी पी लेनी । आही दादा ....लगवु े रोटी फुले पेट िें ... उठ के लगनी छटपटाये । कभी उठ के बैठीं, कभी रेंगे (उठ के चले ) लागी । कुलही करि हो गईल... हार के , िािा जी के जगावे के परल । हिार हाल देख के ओही रािी सढबरी जोरासयल । सहंग के सडब्बा खोजाईल । सहंग सखयावल गईल । दादा हो दादा ! ओकर बाद सहंगो आपन असर देखावे लागल । ओह राि खूब सदवाली िनल... िरह िरह के आवाज के पटाखा चलल । ि​ि पूछी सभे ! राि भर िरेंगन सगने िें सबिल । के हू िरे भोर िें कुछ आराि सिलल िs नीन लागल । सबेरे बहुिे देरी ले सूिल रहनी । दीसदयो के रािी के सब खबर लाग गईल रहे । सदसदया झकझोर के जगावि रहे । हाँस के कहलीउठs बाबू ! नास्िा बन गईल बा ! अब ओह घरी हि का कहले रहनी, इयाद नईखे पड़ि जी !

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लोक-नाटक

बरतहु ारी

महेन्र प्रिाद सिहं पात्र पररचय पुरुष पात्र 1. 2. 3. 4. 5. 6.

िंगरू - पंसडि भेश िें ठग, उसिर 40 बररस ढोंढ़ा - हजाि वेश िें ठग, िंगरू के भाई, उसिर 35 बररस ठठेरा - बरिन पीटे वाला, उसिर 35 बररस सीिल - बर के बाप, उसिर 45 बररस गदु री - ब्ंसरोपन के बड़ बेटा, उसिर 30 बररस ब्ंसरोपन - लइकीवाला, उसिर 50 बररस

स्त्री पात्र 1. पारबिी - सीिल के िेहरारू, उसिर 40 बररस (मंगरू पंसडत के भेष में आ ढोंढा हजाम के भेष में झोरा लटकइले मंच के एक ओर से हांफत आवत बाड़न आ एक जगह बइठ के लमहर सांस लेत बाड़न) ढोंढ़ा -िंगरू भइया, कसिना ले भेंटी, दनु ो लोटवा के ? (झोरा िें से

फ़ोटो िाभार : रं ग श्री

मचत्र - स्वयंबरा बक्सी

लोटा सनकास के देखि) िंगरू -फुलहवा लोटवा डेढ़ सौ से कि िें ना सबकी, भारी बा! ढोंढ़ा -आ सपिररयवो कवनो हलक ु नइखे। िंगरू -हाँ, दूनों सिलाके करीब 200 रोपेया ले भेंटा जाये के चाहीं। ढोंढ़ा -बाकी िंगरू भइया एगो बाि कहीं ? िंगरू -(चारों ओर देख के ) फे नु भइया ? ना िू ढोंढ़ा हव ना हि िंगरू हई ं। का बझ ु लऽ ? ढोंढ़ा -बझ ु गइनी बाबा। अब गलिी ना होई। रउवा दवु ा​ा सा बाबा आ हि गबूचन ठाकुर। इहे नू ? (िंगरू हुंकारी भरि बाड़न।) बाकी बाबा, हे 200 रोपल्ली से का होई ? कुछ बड़हन सोचीं। िंगरू -रािे िालपआ ु आ सेवई चभल नू ? ढोंढ़ा -आ सदनवा िें ना ? पड़ु ी आ पोलाव पर लदलद दाल, गदगद रसगोला, छल्हीगर दही, चटकार सियना, खटसिठ चटनी, कुरकुर बजका, बरी आ फुलौरी के कचरकूट भइल ? िंगरू -हाँ ि िनी सबरु राख। ई बरिहु ारी ह। सबना पूंजी लगइले ई कि नइखे। एह िें ढेर ररक्सो नइखे। अब पूछ काहें ? ढोंढ़ा -दहेज िांगल अपरार् ह। िंगरू -हाँ। आ ओकर सबूिो हिनी लगे बा। उनकर अपना हाथे सलखल दहेज के लिहर सलस्ट बा। ढोंढ़ा -से ि ठीक कहि बानी बाबा। दहेज के सलस्टवा िें कउाँची-

महेन्र प्रसाद त्रसिंह िहेन्द्र प्रसाद ससंह, एक सुप्रमसद्ध रं गकिी आउर सिाजसेवी बानी आ इं हा के कदल्िी िें रमहिा । भोजपुरी नाट्य-मवधा आ सिाजसेवा के सिर्पयत संस्था रं गश्री के संस्थापक श्री िहेन्द्र जी के अनेक नाटक के ककताब छपि आ िंचन हो चुकि बा । प्रस्तुत नाटक के िंचन फरवरी िें भारत सरकार के संस्कृ मत मवभाग आ रं गश्री के सािूमहक भोजपुरी नाटक िहोत्सव िें भईि रहे ।

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लोक-नाटक कउाँची सलखवइले रहे लंगड़ा ? िंगरू -(बगली िे से सलस्ट सनकाल के देि) ल पढऽ ढोढ़ा -होंडा स्पेलेन्डर िंगरू -ई लइकवा के सडिांड रहे, ढोढ़ा -भई ंस िंगरू - बसु ढया दसदया सलखववलस। बेचारी के दर्ु -दही ना भेंटाि होई। ढोढ़ा -हं(सलस्ट पढ़ि) लइका के सोना के चेन, िंगरू - ई ि​िररया के िांग रहे, ढांे​ेढ़ा -रंगीन टीवी िंगरू - ई बसहसनया सलखववले रहे। ढोढ़ा -पलंग, बाकस, पीिर के पराि, बटलोही, गगरा, कठवि, चांनी के सछपनु ी, थररया, सगलास, चम्िच, आ एगो चानी के लोटा। िंगरू -ई लइकवा के दादा सलखवइले रहे। ढोंढ़ा -उंह! बड़कवा बने खासिर र्राउं लोटा बाकस िें से सनकास के देलन हा स। िंगरू -हो अखगा​ाँव बाजार आ गइल। (दोकान के नाि पढ़ि) हई देख एगो ठठेरा के दोकान बा। चल चल (ठठेरा से) ए भाई, परु ानो बरिन कीने लऽ ? ठठेरा -हं जी, का बेचे के बा ? ढोंढ़ा -दूगो लोटा बा, जान जइह सक रेल िें हिनी के पासकट िरा गइल ह, अब अइसन अफिरा िें आदिी पर गइल बा सक कवनो उपाय नइखे लउकि। (लोटा सनकाल के देि बाड़न, ठठेरा लोटा पर सलखल नांव गांव पढ़ के ) ठठेरा - रउवे गांव िें हिसनयों के सहिई बा। परे साल ि बरािी गइल रहनी जा। हिार चचेरा भाई के ससरु ारी बा। ढोंढ़ा -(दूनों एक दोसरा के अचरज से िंहु िाकि) हिनी का गांवे ? ठठेरा -हं। रउवा सभे नरहींए चा​ाँदी के हई ंजा नू? (ढोंढ़ा आ िंगरू सून के सन्न हो गइले) िंगरू -नरहीं चा​ाँदी ! बाकी िू कइसे जनलऽ भाई ? ठठेरा -लोटवन पर रउवा सभे के नांव-गांव सलखल बा। िंगरू -आछा-आछा। हं ठठेरा -रउवा सभे बाबू साहेब हई ंजा बाकी देखे िें पंसडि जी आ ठकुराई अइसन लागि बानी सभे, ढोंढ़ा -काहे, हिनी के कपरा प सलखल बा का ? ठठेरा -ना ना पेन्हावा ओढ़ावा से, बरु ा ि​ि िानब सभे। (िउलि बा) िंगरू -ना ना, ठीक बझ ु लऽ भाई। हिनी के दान-दसक्षणा िें सिलल लोटा रहल हा। एगो जजिान के बाप िर गइल रहन उनकरे श्रार् िें सिलल रहे। किना भइल ? ठठेरा -230 रोपया भइल। खल ु ा ि नइखे । (पक ु ारि) ए राजू िनी दू सौ िीस रोपेया ले आव ि। बइठीं सभे ना। चाह बनवावि बानीं।

िंगरू -काहे के िल ु करब। ठठेरा -सहि के गांव के होके रउवा सभे अइसहीं चल जाइब ि आच्छा ना लागी। जल्दीए बन जाई। ढोंढ़ा -ना ना हिनी के कुबेर हो जाई। ठठेरा -राउर गांव सदलदार ह। हिनी सकं हा ि सरार् िें एकदि हलक ु लोटा पंसडि हजाि के े​े देला लोग। ढोंढ़ा -हूंह! जबकी देखे िें, ई बड़कवा लोग के गांव लागि बा ? ठठेरा -हं बड़ले बा। एह गांव िें राजपूि, ब्राम्हण, कायस्थ, बसनया कुसल्ह अिीर बा लोग। िंगरू -दान-दसक्षणा ि आपन-आपन सरर्ा ह। ठठेरा -हं, उहो ठीके कहऽिानी। िंगरू -हउ जे बड़का-बड़का घर लउकिा, ऊ कवन टोला ह ? ठठेरा -ऊ कुसल्ह बभनटेली ह आ हउ राजपूि टोली ह। िंगरू -आछा ठठेरा -िब लवटब जा गांवहीं सक आउर मचत्र - स्वयंबरा बक्सी कहीं जाये के बा ? िंगरू -एगो बरिहु ारी िें अइल बानी जा। आपन दू िीन गो बाबू साहेब जजिान बाड़न गावंही के , उनका लोग के लइकी सेयान हो गइल बाड़ी स। ि उहे जोग बर खासिर बरिहु ारी िें सनकसल बानी जा। सनपटा के गांवहीं जाइब जा। ढोंढ़ा -अउर कहां जाइब जा, 230 रोपया लेके ? िंगरू -कवनो खानदानी बाबू साहेब के नांव बिाव ना जहवां सज ु ोग बर सिल जास। ठठेरा -एगो बाबू सीिल राय बाड़ें उनका हीं रउवा सभे चल जाई ं। बहुि खानदानी ह लोग। 15 सबगहा के जोि हइन। लइको पढ़लसलखल बा। बासक ऊ लोग पइसा ढेर सलही। अपना जजिान के औकाि के सहसाब से जाई ंसभे। आ एगो बाड़े ससपरसन राय उनका हीं किे िें पट जाई। िंगरू -िाने कसिना सडिांड बा लोग के ? ठठेरा -लाख के लपेट िें हो जाई।(घर के भीिर से जंजीर पीटला के आवाज सनु के भीिरे जाके रोपेया लेआके देि) लीं। हउहे घरवा ह सीिल राय के । ढोंढ़ा -आछा। जय राि जी की। ठठेरा -गोड़ लागऽिानी। िंगरू -जय हो। (जाि बाड़न। सै रोपेया ढोंढ़ा के देि) हई र्रऽ। र्ीरजे र्न आ संिोषे बेटा। अकुिा जन। (िबिक के हू आवि बा ओकरा से) ए सरकार बाबू सीिल राय के िकान कवन पड़ी ? सीिल -का बाि बा बिाई ं? िंगरू -बाि बा सक उनके लइका के सबआह के बाि करे के रहे। सीिल -चलीं चलीं सभे। हिरे नाि सीिल राय ह। कहां िकान पड़ी ? ढोंढ़ा -िकान ि बझ ु जाई ंसक बड़का गांव, िंगरू -(बाि काटि) बहुिे बड़हन गांव ह। नांव पड़ी नरहीं चानी।

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लोक-नाटक ओसहजे के बाबू परीखा ससंह, रउवा सभे नांव सनु लहीं होखब ? ढोंढ़ा -(बाि काटि) उहां के 52 गांव के जीिदारी रहे। दवु ा​ा सा बाबा उहा​ाँ के उपरोसहि हई ंआ हिरे गबूचन कहे ला लोग, हि ठकुराई हई ं। उहें के लइकी बझ ु जाई ंसक सबआह जोग हो गइल बाड़ी। उहे बरिहु ारी िें आइल बानी जा। राउर नाि सनु के अइनी हां जा। सीिल -आई ंसभे (अपना घरे सलया के जाि बाड़न।) दृष्य- 2 (सीिल राय के घर। ढोंढ़ा िंगरू सब ओर देखि बाड़न।) िंगरू -ओह टोला िें अरे का दो नउंवा ह, अरे उनकर लइकवा आइए सक बीए पास कइले हइन। सीिल -हं हं, ससपरसन राय। बइठीं सभे। िंगरू -हं हं, उनकरे सभरी से आविे बानी जा। सीिल -उनका सभरी बाि ना बनल का ? िंगरू -ना ना, हिनी के बािे ना कइनी जा। बड़ा छोट बाि पूछ देलें। कहलें सक डेढ़ बज गइल बा खा पी के ि चलले होखब सभे ? ढोंढ़ा -हं! बिाई ना ! हि कहनी सक बाबा चलेके। ई नयका र्सनक बझ ु ािा लोग। अइसे के हू पूछेला ? सीिल -कहीं भला, ई कुसल्ह पूछे वाला बाि ह, सक खाए के बेरा पर सखआवे के चाहीं। पूड़ी छनवा देि बानी अबहीं गोड़ हाथ र्ो सलहीं सभे। (जाये लागि बाड़न) ढोंढ़ा -सरकार बेसी ना, बस दस-दस गो। आ कुछ अंचारो भंसु जया होई ि चल जाई। सभे खा पी ले ले होई, बेसी िल ु ि​ि करब। सीिल -ना ना, सब हो जाई। रउवा सभे िबले िंहु -हाथ र्ोई ं। (सीिल भीिरे जाि बाड़न आ पारबिी से) दू गो बरिहु ार आइल बाड़न स चानी से। जल्दी से पूड़ी भंसु जया बना द (फे नु लवट के एक लोटा पानी ले के आवि बाड़न, ढोंढ़ा आ िंगरू हाथ िंहु र्ोवे के िाइि करि बाड़न। िंगरू भगवान के र्ेयान कर के गोड़ लागि बाड़न।) ढोंढ़ा -बबआ ु जी अभी एहीे​ेजे बानी सक कहीं बहरा गइल बानी ? सीिल -ना पटना गइल बाड़न, ससपाही के बहाली बा ओही िें। ढोंढ़ा -अरे रावा सभे के नोकरी के का दरकार बा ? रउवा सभे सजिदार आदिी बानी, बबआ ु जी नासहयों कुछ कररहें ि सजनगी भ बइठ के खइहें। सीिल -हं से ि ठीके कहऽिानी, बासकर लइका सब के सवख बा बाहर-भीिर जाये के ि हि कहनी सक जा। हिनी के सिें के बाि दोसर रहे। हिार, जान जाई ंसक, बोकारो िें बसढया नोकरी लागि रहे, बासकर हिार बाबा कहलें सक ना िू घरहीं रहऽ, का दरकार बा नोकरी के ? बस गांवहीं रह गइनीं। (पारबिी भीिरे से जंजीर बजावि बाड़ी। सीिल भीिरे जाि बाड़न।) पारबिी -पूछनीं हा​ाँ, सक लइकी कए भाई बसहन सबआ आउर कसिना पढ़ल-सलखल सबआ ? ओकर बाप का करेला ? ई सब पसहले पूछे के नू चाहीं।

सीिल -जल्दी बनाव, सजिदार के बेटी ह। बाकी सब हि पूछि नू बानी। (बहरी आके िंगरू से) लइकी के बारे िें बिाई ंसभे। िंगरू -सीिल बाबू, जजिान के एके गो लइसकए बाड़ी, एही साल बीए पास कइली हा आ सवा गणु संपन्न हई। ढोंढ़ा -आ सरकार भगवान के दया से िसलकार के दू दू गो रैक्टर बा, िीन गो बोररंग लागल बा, गाय-भइंस के दूर्-दही ि खा के नोकर-चाकर अघा जाले। अब एही से बझ ु जाई ंसक एक जगह हिनी के सबआह िय कर के आ गइल रहीं जा। लइका कवनो अफसर िें बहाल भइल रहे। कवन गांव रहे बाबा ? िंगरू -हं हं, कह ना। अरे उहे नू जे पांच लाख आ एगो कार िें िय भइल रहे ? ढोंढ़ा -हं हं उहे ? बझ ु जा​ा इं सरकार सक सब िय हो गइल। जवनजवन िांग रहे सब िान सलहनी जा। काहे सक हिार िसलकार के सवचार ह सक पइसा कौड़ी के सफसकर नइखे करे के । लइकी खानदानी घर िें जाय के चाहीं। आ बझ ु जाई मचत्र - स्वयंबरा बक्सी सक सबहान भइला जब चले लगनी जा ि सवदाई िें जे हिनी के देले उहे देखके िसलकार कहनीं सक ना, इहां सबआह करे लाएक नइखे। ओइसन घर िें हिार लइकी ना जाई। जब हिरा पांच लाख आ कार देबे के बा ि अइसन घर िें काहे के करब ? िंगरू -ना हिार कुरिा ि नीिने रहे, एगो गिछा, ढाई-िीन सौ के पौसलस्टर वाला र्ोिी, आ एक सौ एकावन रोपेया नगद सबदाई रहे। चदर ना रहे, आ एकरा िें..(ढोंढ़ा से) िोरा िें का रहे रे ? ढोंढ़ा -हिार ि 51 गो रोपउवे रहे। आ उहे कोरा र्ोिी आ एगो िरकीन के कुरिा आ गिछवा ि दनू ो आदिी के एके िें के रहे। ि ईहे देख के िसलकार हिार सबजक ु गइनीं। कहनीं सक ना। जहां हिरा परु ोसहि आ पवनी के िान ना भइल उहां हिार बेटी के का िान होई ? 21 हजार छे का देल छोड़वा सदहनीं। सीिल -हनु ! िनी देख लीं भोजन िइयार हो गइल सक ना ? (सीिलभाग के भीिरे जाि बाड़न, षबा ि लेके आवि) लीं हई िबले सरबि पी लीहीं, लगले पड़ु ी भंसु जया बन जािा ि ले आवि बानी। (सीिलफे नु भीिर जाि बाड़न, िेहरारू से) रािो िें रहीहन स, पइसा वाला पाटी बा। पांच लाख आ कार िें कहीं िय भइल रहे बासक सबदाई बसढ़या ना सिलल ि ना कइलन स। पारबिी -ह नू! बसढया सबदाई करे के पड़ी। सीिल -हं सांझ के जाइब आ कीन ले आई ंबाजार प से। पइसा बा ? चार-पांच हजार लागी। पारबिी -पांच हजार लागी सबदाई िें ? सीिल -िब ! पांच लाख भेंट गइल ि बझ ु सक सूरुजा के नोकरी र्इल बा। डेढ़े लाख नू घूस चलऽिा। सब खरचा कइयो के लाखडेढ़ लाख बांच जाई। आ कार राि के लगा सदयाई भाड़ा प। पारबिी -ना एिना के सबदाई ि​ि दीं। सहिे िें सनपटा दीं। सीिल -फे नु उहे बेकुफाना वाला बाि करे लगलू नू ? हजार डेढ़

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लोक-नाटक हजार खासिर पांच लाख आ कार सनकस जाई हाथ से। (सीिल दूगो थररया लेके आवि बाड़न। िंगरू के सोझा ऊाँच पीढ़ा पर परोसि बाड़न आ ढोंढ़ा के नीचे राखि बाड़न। िंगरू र्ेयान करके आ जल सछसडक के खाि बाड़न। फे नु ढोंढ़ा खाि बाड़न।) ढोंढ़ा -बाह! बहुि आछा बनल बा। कचैड़ी एकदि खास्िा बा। सरकार बबआ ु जी के फोटो होई नू ? हिनी के एगो फोटो आ टीपन दे देब। सीिल -ठीक बा िंगरू -(खइला के बाद) रावा सभे के बाि सबचार बड़ा आछा लागल। (सीिल थररया उठाके ले जाि बाड़न।) िनी हिनी के आराि करब जा। िीठा पान अगर सिल जाइि ि बड़ा बसढयां रसहि। आ ई पान ना खास। का हो...? (ढोंढ़ा िड़ु ी सहलावि बाड़न।) िंगरू -ई सिष्ठान प्रेिी हवन....हा...हा.........हा सीिल -आछा हि बाजार से जाके ले आवऽिानी (भाग के जाि बाड़न।) िंगरू -बड़ा बसढयां जोगाड़ लगवलस िें। पांच लाख आ कार के चक्कर िें पांच हजार खरचा करी। ढोंढ़ा -ि खाली पेट भरला से आ दू गो लोटा से कए सदन काि चली। िंगरू -फोटउवा रखले बाड़स नू ? ढोंढ़ा -सचन्ह ना नू जइहें स ? िंगरू -र्ि्! ससनेिा के सहरोइन अइसन सन्ु दर लइकी ना होली स का ? के हू ना सचन्ही आराि कर। (दनू ों जाना पलरि बाड़न। सीिल पान आ सिठाई लेके आवि बाड़न आ ढोंढ़ा िंगरू के देि बाड़न।) सीिल - सलहल जाय बाबा। लइकी के फोटो ले आइल बानी सभे ? घरनी पूछि बाड़ी। ढोंढ़ा -हं जी, फोटो बा, (फोटो सनकाल के देि) लइकी ि बझ ु जाई ं सरकार सक हजारो िें एगो ना सिली अइसन। सलहीं फोटो। बबआ ु जी कहां ले पढ़ल बानी ? हिनी के बबआ ु जी के फोटो दे देब सभे। सीिल -हं हं, दे देब। बबआ ु बीए पास बाड़न। िंगरू -(ढोंढ़ा से) जइसन जोहि रहीं जजिान ओइसने रहन सहन, खान पान, बसु द्ध बेवहार। देखीं किना बसढया सज ु नी बा। ढोढ़ा -ि ना ओह िलेछवा सभरी से भगिीं जा, आ ना भेंट होइि सरकार से। िंगरू -सब प्रभु के िाया ह। जहा​ाँ उनका चहुपाँ ावे के होला उहा​ाँ चहुपाँ ा देले। (सीिल हािी भरि बाड़न।) सीिल बाबू रउवा आपनो िांग बिा देब सक कउाँची-कउाँची चाहीं। ना होखे ि एगो सलस्ट बना के दे देब। हिसनयों के इयाद राखल िोससकल हो जाला। ढोंढ़ा -टीपनवे के पीठवा पर सरकार सलख देब नू, ि इयाद राखे िें

ठीक रही। सीिल -का सलखे के बा। रउवा सभे जे उहा​ाँ िय कइले रहीं उहे दे देब। अउरी छोट िोट चीझ बिस ु ि लोग अपनहीं देला । ढोंढ़ा -हं से ि बड़ले बा। बाकी िसलकार के सवचार ह सक कुछ छूटे के ना चाहीं। सीिल -आछा सलख देब। िंगरू -राउर कै गो लइका-लइकी बाड़न जा ? सीिल -बाबा, लइका ि इहे एगो बाड़े सूरजदेव, आ लइकी दू जानी रही ि सबआह कर देनी। ढोंढ़ा -कहां सबआह कइनी हं ? सीिल -बड़ जानी के जगदीशपरु आ छोट जानी के करनउल कइले बानी। ढोंढ़ा -(िंगरू से) ए बाबा पोसथया िें सब सलख ना सलहीं, िसलकार के सब बिावे के नू होई। िंगरू -(पोथी सनकाल के सलखि) काहे सफसकर कइले बाड़ऽ हि बे सलखले ना रहीं मचत्र - स्वयंबरा बक्सी (सीिल घर िें जाि बाड़न।) सीिल -(पारबिी से) हं हई देखऽ लइकी के फोटो। पारबिी -लइकी ि लइकीए सबया। देखले से बड़ घर के लागि सबया। आ कसिना गहना पेन्हले सबया! सीिल -आरे अपना सरर्ा से बेटी खासिर बनववले होई ! कह सदहीं नू सक लइकी पसन सबया ? पारबिी -हाँ, कह दीं। सीिल -पूछि बाड़न स सक कउाँची सडिांड बा ? कसिना सिलक िांगल जाव ? पारबिी -अस्सी हजार से कि ि​ि िांगब। आ लइका के एगो िोटर साइसकल। सीिल -आरे ऊ पांच लाख आ कार देबे के िइयार बाड़ें स आ िू सत्तरे, अस्सी आ िोटर साइसकल के फे र िें परल बाड़ू । पारबिी -ओकरा कहला से पांचे लाख िें क लेब। सत्तर हजार से कि ि​ि करब सीिल -आरे िू एकदि बउराहीने हऊ ? सै हजार के एक लाख होला। आ ई पांच लाख के लइका जोहि बाड़ें स। सजिदार के एकलौिी बेटी सबया। सूरजा के भाग चिक जाई। पारबिी -ए रवों इ कवनो ठग-उग ना नू हवें स ? ई हिना सिलक अपना िने कहलें हां स ? सीिल -आरे ऊ ना कहलें हा स। बािे-चीि िें हि थाह लगा लेनी हां नू। िहरा लेखा नइखीं नू सक हजार आ लाख िें फरके नइखे बझ ु ाि। 21 हजार के ि छें का छोड़ के चल अइलें हां स, बसढया​ाँ सबदाई ना सिलल ि। पांच लाख आ कार प िय कइले रहन स किहीं। अब एकरा अलावे बोलऽ ना कउाँची-कउाँची लेबे के बा ? सलस्ट िांगिा।

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लोक-नाटक (कागज-कलि पर सलखि बाड़न।) पारबिी -नगद 5 लाख देबे के कहिा नू अपने से। रावा 50 लाख िांगी। सीिल -फे नु बड़ु बक वाला बिकही करे लगलू। एके बे हिना िंगाई ? िहरा से पूछले अनेर बा। पारबिी -ि िंगाई ना ? हिना पूड़ी आ कचैड़ी सखअइलीं, फे नु सबदाई देबे के बा, पांच हजार ओह िें लागी, ि हिना िंगाई ना ? सीिल -आरे सखयावे आ सवदाई िें किना लागी ? कुल साि आठ हजार से बेसी खरचा ना लागी। आ एही िें पचास लाख िांगे लागीं ? पारबिी -ि हिरा से पूछे काहें अइनी हां, जवन बझ ु ाए िवन िांगी। सीिल -आरे घर के आउर सिान बिाव जे िांगल जाव ? पारबिी -घर खासिर, रंगीन टीवी, एगो लोहा वाला बड़का बाकस, एगो जसी गाय, एगो टरैक्टर सलखीं, आ लइका खासिर सूट, घड़ी सीिल -आरे बउरासहन जे पांच लाख देिा ऊ लइका के सूट आ घड़ी ना दीही ? बड़का घर के बेटी रैक्टर पर चढ़ी ? अइसन ि​ि सलखवाव सक सनु हीं िें लागे सक गरीब घर के लइका ह। अछा िू िनी जल्दी बसढयां चाह बनाव। (बहरी आके लइका के फोटो) हई र्रीं लइका के फोटो ढोंढ़ा -टीपनवा आ सलस्टवा दे देिीं सरकार ि हिनी के चलिीं जा। सीिल -अबहीएं ? िंगरू -हं सांझ के चहुप जाइब जा। सीिल -आज रोक जाई ंसभे, सांझ के बाजार प से रावा सभे के बर सबदाई खासिर कपड़ा लािा ले आन देब, ि सबहान भइला चल जाइब। ढोंढ़ा -काल्हु फे र देर हो जाई। (भीिर से पारबिी जंजीर पीट के बोलावि बाड़ी, सीिल भीिरे जाि बाड़न) सीिल -हं कह पारबिी -जाि बाड़ें स ि जाए ना सदहीं। सबदाई नगदे 2-3 हजार दे सदहीं । सीिल -इहे सबदाई िें पांच लाख भेंटी ? सनु लू हा ना ? पच्चीस सौ आ पनरह सौ दे देि बानी। हउ जवन सलस्ट बना के राखल बा छें कनहरुअन के देबे खासिर ऊ ले आव। ओही िें हि जोड़ देि बानी िहार कुसल्ह सडिांड। ले आव। पारबिी -हाँ(सािान के दगू ो सूची ले आन के देि बाड़ी) र्रीं, आजे नू आवे वाला बा बंसरोपना छें का करे ? सीिल -ओह सारे सकहां 50 हजार सिलक िें छें का होई ? ओही सलस्ट िें ले आव जोड़ देि बानी एगो चानी के बरिन सेट। बस ढेर बा। द हेने। (सीिल टीपन, सलस्ट आ रोपया, सलफाफा िें रखि बाड़न आ बहरी आवि बाड़न। ढोंढ़ा आ िंगरू आपस ु िें कुछ बसियावि

बाड़न। सीिल के आवि देख उनके सनु ा के बसिआवे लागि बाड़न।) िंगरू -ओहनी से कवनो िल ु ने नइखे। (सीिल आवि बाड़न) सीिल -हई र्रीं लइका के फोटो। एहिें जवन सलस्ट रउवा कहनी हां, उ सलख देले बानी आ एकरे पाछा उनकर नाि जनि के िारीख कुसल्ह सलखल बा। (सलफाफा देि) िंगरू -बस अब चले के आदेश सदहीं सीिल -अब रउवा सभे कुछ कीने के सिइए ना देनीं। हि एही से नगदे सबदाई दे देले बानी। िंगरू -काहे के , रउवा अिना परेि से आदर सत्कार कइनी इहे का कि रहे ? सीिल -स एगो हिनी के रेवाज चलल आविा। ढोंढ़ा -आछा परनाि सरकार। सीिल -परनाि। (िंगरू के )आछा गोड़ लागऽिानी। कुछ किी हो गइल होखे ि िाफ करब। िंगरू -जय हो, जय हो। कुछुओ किी ना मचत्र - स्वयंबरा बक्सी भइल (पारबिी बहरी आवि बाड़ी) पारबिी -फुलहा बरिन के सेट सलखनी हां ? सीिल -अबके िहरा इयाद परल हा ? पारबिी -आही रे करिवा। जाई ंर्उर के , सलखवा सदहीं। (सीिल गइल चाहि जाि बाड़न सक छे कनहरू, बंसरोपन के पइस। पारबिी घर िें चल जाि बाड़ी।) बंसरोपन -परनाि सरकार ? सीिल -परनाि, रउवा आवे िें देरी कर देनी। लइका के ि हि दोसरा जगह सबआह ठीक क देनी। बंसरोपन -का ? का कहि बानी ? सीिल -उहे जवन रउवा सनु नी हां। बंसरोपन -काहे ? जवन सदन आ सिें िय रहे ओह िें हि हासजर बानी फे नु रावा अइसन गलिी काहे कइनी? सीिल -देखीं सरकार, गरिाई ंि​ि। हि षरबि बनवावि बानी िनी रावा ठंढा सदिाग कर सलहीं फे नु .. बंसरोपन -रखीं सरबि आपन। रउवा जबान के कवनो िोल नइखे ? रउवा आदिी हइं सक बे पेनी के लोटा ? आएं ? सीिल -सनु ी रउवा पांच लाख से बेसी भा....चलीं पांचो लाख दे सकि बानी ? बंसरोपन -रउवा कवनो सपना देखनी हं का? पचास-साठ हजार आ पांच लाख िें रउवा फरक बझ ु ािा सक ना? सीिल -हिरा सब बझ ु ािा। एही से ि जहां से पांच लाख सिलिा उहां हि सबआह ठीक कर देनी। बंसरोपन -जब हिरा से पचास हजार पर िय कइनी िब रउवा पचासो लाख पर ना करे के चाहीं। आदिी के जबान अनिोल होला। आ फे नु रउवा के कवन साला सनकी पांच लाख देिा जी ? आ कउाँची पर देिा ?

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लोक-नाटक सीिल -कुछुओ पर देि होखे अब रउवा सकहां सबआह ना होई । बंसरोपन -अरे हि िहरा अइसन पइसा के लोभी आदिी सकहां अब िंगसनयों िें करब ि ना करब। हई र्रऽ पांच रोपेया जवन सपसछला बेर हिरे सरबि सपअवले रह ओकरे चीनी के दाि। (बंसरोपन बड़बड़ाि चल जाि बाड़न, ”पा​ाँच लाख सपना देखि बाड़ें“ सीिल राय सोंच िें पड़ जाि बाड़न। पाबा िी बगल िें आके ठाड़ हो जाि बाड़ी।) सीिल -(पाबा िी िंहु िाकि) आहो ई कवनो ठग ना नू रहन स ? पाबा िी -आएं ? (अन्हार हो जाि बा।) दृष्य-3 (िंच का दोसरका ओर अंजोर हो जाि बा। ढोंढा आ िंगरू खा के उठि बा लोग।) ढोंढ़ा -बाह सरकार बहुि बसढया िालपआ ु आ सेवई रहे। सिजाज खषु हो गइल। लइकी के फोटो पसन आइल सक ना िािा जी के ? गदु री -हाँ हाँ एकदि पसन बा। िय हो जाई ि हिार बसहन आ भाई दूनों के एके िाड़े-भािे सबआह हो जाई। िंगरू -बहुि उत्ति। गदु री बाबू गदु री -बाबा िंगरू -अब हिनी के अन्हारहीं सनकलब जा बझ ु नी ? दू गो लोटा . गदु री -(बीच िें) बाबज ू ी के आ जाए सदहीं। बर-सबदाई ि उंहे के नू करब। उहा​ाँ के भोरहीं आइए जाइब। बस बाबूजी छें का दे के आ जइिीं ि हिनी ओर से बझ ु ीं सक फाइनले रहे। (थररया ले जाि बाड़न।) ढोंढ़ा -बपवे िासलक-िोख्िार बा। आ जािा ि भोरे बर-सबदाई लेइये के चलल जाई। िंगरू -ठीके बा। देर होई ि सदनों िें कचरकूट होई। (गदु री के इलाइची सलहले पइस।) का ह? गदु री -इलाइची सलहीं ढोंढ़ा -बबआ ु जी, राउर बाबूजी कब ले आ जाइब िकरीबन? गदु री -काल्ह सबेरे 10 बजे ले ि पक्का आ जाइब। िंगरू -िब ठीक बा, हिनी के 10 बजे के बादे चल जाइब जा। गदु री -हाँ उहे ि हिहूाँ कहि रहीं। ढोंढ़ा -कवन गा​ाँव िें बबी के सबअहवा िय भइल हा ? गदु री -अखगा​ाँव रउवा जानि होखब, ओसहजे होिा। (दनू ों के कान खाड़ हो जािा।) िंगरू -अखगा​ाँव, के करा घरे ? गदु री -एगो सीिल राय बाड़न उनके लसडका से होिा। आजएु छें का बा, (बंसरोपन के पइस।) गदु री -बड़ा जल्दी आ गइनी ? हो गइल छें का ?

बंसरोपन -ना ! साला सबना पेनी के लोटा बा। कहलस सक किहीं पांच लाख िें ठीक कर देनी। का जाने कवन दो साले के पांच लाख देिा! (ढोंढ़ा िंगरू पर नजर जािा) इहा​ाँ सभे के ? गदु री -इहा​ाँ सभे के बड़कागा​ाँव के हई ंजा, बरिहु ारी िें आइल बानी सभे छोटू खासिर। आव ना भीिररया। (दूनों भीिरे जाि बाड़न।) िंगरू -(खिरा भांप के , पक ु ारि) ए बबआ ु जी (गदु री बहरी आवि बाड़न) गदु री -का बाबा (बंसरोपन बहरी आवि बाड़न) िंगरू -िनी िैदान जइिीं जा। लाद गड़ु गड़ु ािा। दू गो लोटा होखे ि दीहीं ना आ एगो टारच। ढोंढ़ा -जान जाई ंसक पसु डया बझ ु ािा सक घीव िें के ना रहे। गदु री -लोटा ? आछा देखि बानी (भीिरे गइल चाहि बाड़न। बंसरोपन रोकि) बंसरोपन - कहा​ाँ जाि बाड़ऽ? हो चापाकल सभरी दू गो सडब्बा रखल बा ले सलहीं सभे मचत्र - स्वयंबरा बक्सी ढोढ़ा -आछे (झोरा सलहले िेजी से भागिा िंगरुओ झोरा लेके भागल चाहि बा।) बंसरोपन - िहाराज, पोथी-पिरा लेके जाइब का िैदान? िंगरु -(झोरा रासख के , बगली टोअि, भागि बाड़न) ना ना गदु री - िूहाँ कुसल्ह सखआवल-सपआवल बेकार कर सदहलऽ। बड़का पाटी रहे ओकरा के टीन के सडब्बा देके सब गड़बड़ कर देल। िहरा िालूि बा पट जाइि ि ई पांच लाख सिलक आ दहेज िें कार देबे वाला पाटी रहे। अब ि आपन औकाद बंसरोपन -(बाि काटि) पा​ाँच लाख सिलक ? एकर झोरा देख ि (झोरा खोलके , जल्दी जल्दी देखि एगो फोटो सनकाल के देखि बाड़न) सीिल राय के बेटवा के फोटो आ टीपन। साला इहे कटवइलें स। गदु री - का ? बंसरोपन - चहेट के र्र सारन के (बंसरोपन झोरा फें कि िेजी से बहरी जाि बाड़न। गदु री असिंजस िें कबो झोरा ि कबो बाप कावर देखि बाड़न। िब िक बंसरोपन के पइस।) दूनो टीन के सडब्बा उहा​ाँ फें कले बाड़न स। देख कुछ चोरा ओरा के ि नइखन स नू ले गइल ? ई साला बरिहु ार रहन स सक बरिहु ारी के र्ंर्ा से दहेज लोभी लोग के ठगि सफरि बाड़न स। (परदा हगरि बा)

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स्मतृ त-शेष

मोती बी.ए.-जे आखरी सांस ले कतवता तजयत रहे

भगवती प्रिाद सिवेदी

ब्बे- पार िोिी बी.ए. लिहर बेिारी से जूझि आसखरकार सदेह एहलोक से िक ु ु िी पा सलहलन । सकशोरे उसिर ( 1934 ) से संग-साथ देबे वाली जीवन संसगनी लक्ष्िी सरुपा लक्ष्िी देवी पसहलही ाँ ( 1987 िे ) साथ छोसड़ देले रहली ।बा​ाँसच गइल रहे उंहुका इयाद िे बनवावल 'लक्ष्िी सनवास', जहवा​ाँ सहन्दी , भोजपरु ी , अंगरेजी , उदा ू के एह सिरथी आ कबो सबसे असर्का शोहरि पावेवाला कसव के पसहले कान आउर आंसख जवाब दे सदहलन स, फे रु अके लही ाँ सिल-सिल टूटि , सवलखि-कलपि शरीर से आि​िा सनकसल गइल , संसा टाँगा गइल रहे । कबो कसव-सम्िेलन िे र्ूि िचावे वाला िोिी बी.ए. । सगरावट आ क्षरणशीलिा के एह बाजारवादी सनिा ि सियो िे सरलिा , सहृदयिा आ िनज ु िा के प्रसि​िसु िा बनल रहे वाला िोिी बी.ए । असखल भारिीय भोजपरु ी सासहत्य सम्िेलन के पूवा-अध्यक्ष िोिी बी.ए. । सहन्दी आ भोजपरु ी िे रचल उंहुकर गीि जहवा​ाँ जन-जन के जबान प चढल रहलन स , उहाँवे परु ान सफसलिन िे उाँहुकर गीि शोहरि के बल ु न्दी के छूके िील के पाथर सासबि भइल रहलन स । पच्चीस बररस पसहले बेिाररए के दउरान िोिी बी,ए के सजनगी आ ससररजन से जड़ु ल अनौपचाररक बिकही के खास अंशन के उहा​ाँ के पावन स्िसृ ि िे प्रणािांजसल सरुप सादर पेश करि बानीं । - ओह घरी , जब कसव-सम्िेलन के िंच पर राउर आ डा​ाँ. शम्भूनाथ ससंह के चरचा खूब जोर पर रहे , एकाएक रउवा​ाँ सफसलि िे कब आ कइसे चसल गइली ाँ ? मोिी बी.ए - ओइसे ि िशुं ी प्रेिचंद , प्रदीप , ससु ित्रानंदन पंि , भवानी प्रसाद सिश्र , अि​िृ लाल नागर , भगविीचरण विा​ा , सदु शा न , वन्ृ दावनलाल विा​ा , नरेंद्र शिा​ा , नीरज , नेपाली , शैलेंद्र , राही िासूि रजा सनयर अनेक सासहसत्यक हस्िी कवनोना-कवनो रुप िे सफसलि से जड़ु ल रहली स, बासकर हिार जड़ु ाव एकदि अप्रत्यासशि आ अचानक भइल । भइल ई रहे सक पं. चिवु ेदी के अध्यक्षिा िे बनारस िे ' प्रसाद पररषद' के एगो कसव गोष्ठी िे भाई शम्भूनाथ जी का संगे हिहू हासजर रहली ाँ । जब ' रुप -भार से लदी ि​िु चली' ...... शीषा क कसविा के हि सस्वर पाठ कइली ाँ, ि उाँहा िौजूद " पंचोली आटा सपक्चर' लाहौर के िासलक पंचोली साहब आ सनदेशक रवींद्र दवे िंत्र-िग्ु र् हो गइलन आ असगली सफसलि के गीिकार का रुप िे हिार बहाली हो गइल । सन 1944से 1952 ले लाहुर आ िंबु ई िे रसहके हि सफसलि के

गीि सलखली ाँ । प्रिख ु सफसलि रहली स - कै से कहूाँ , नसदया के पार , सभु द्रा , साजन , ससन्दूर वगैरह । - ' नसदया के पार' िे ि राउर िए गीि सपु र सहट रहलन स । ओह सहन्दी सफल्ि िें भोजपरु ी गीि डाले के बाि रउरा सदिाग के उपज रहे आ सक सनिा​ा िा के ? मोिी बी. ए. - हि लररकाइएाँ से लोकभाषा के िाकि आ सािरथ के बखूबी पसहचानि रहलीं । एह से हिहीं सनिा​ा िासनदेशक सकशोर साहू पर जोर डासलके सदलीप कुिार- कासिनी कौशल असभनीि ' नसदया के पार' खासिर साि गो भोजपरु ी गीि सलखलीं । दूगो गीि के िख ु ड़ा देखीं - 'कठवा के नइया बनइहे रे िलहवा सक नसदया के पार दे उिार ' ..... ' अंसखया सिला के अंसखया रोवे सदन-रसिया हो, कहीं का बसिया , भल ु े ना सरु सिया िोहार ' .... । हि ना खाली पहलकी बेर भोजपरु ी गीि के सफसलि िे प्रवेश सदयवलीं बलक ु ओकरा के स्थासपिो कइलीं । जब सफसलि ररलीज भइल ि ऊ गीि जन-जन के जबान पर रहलन स । सफसलि के नायक सदलीप कुिार ओह गीिन के पसहला बेर ससु न के झूसि उठल रहलन आ ओही घरी लोकभाषा के एगो सफसलि बनावे के दृढ सनियो कs ले ले रहलन , जवन आगा चसलके ' गंगा जिनु ा' बनाके परु ा कइलन । - आठ-नौ बररस के सफसलि लेखन का बाद , जब रउरा गीिन के र्ूि िचल रहे, िबे रउआाँ सफसलि जीवन से संन्यास काहे ाँ ले सलहलीं ?

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साक्षात्कार मोिी बी.ए. - एकरा संन्यास ना कहल जा सके । अपना स्वासभिान के सगरवी राखे के शिा प हिरा सफसलि िंजूर ना रहली स । कसिपय सबन्दअ ु न प हि सिझौिा ना कs पवली आ गांवे आके श्रीकृष्ण इण्टरिीसडयेट कालेज, आश्रि बरहज ( देवररया ) िे जल ु ाई,1952 से इसिहास के प्रवक्ता सनयक्त ु हो गइलीं । 1980 िे सेवासनवसृ त्त का बाद हि फे रु भोजपरु ी सफसलिन खासिर कुछ गीि सलखलीं जवना िे ' गजब भइले राि ', 'चम्पा-चिेली', ' ठकुराइन' वगैरह सफसलि रहली स। - कसविा िे राउर रुझान अपने आप जागल आ सक के हू के प्रेरना से ? मोिी बी.ए. - हि सहन्दी के सवद्याथी ना रहलीं । बस, हाईस्कुल ले सहन्दी सासहत्य पढले रहलीं । फे रु हि कसव बने के होसला कइसे कररिीं ! बासकर हिरा बचपने से सूर िे गावे के सवख रहे । सरु ीला गीिन के ससु नके सनु सनहारन के नीिन लागल । िबे डा. शम्भनु ाथ ससंह सवद्यालय िे अइलन । ऊ हिरा गांव के लगहीं के रहलन । उंहुके कहला से हिहूाँ कसविा सलखे लगलीं । ओसह घरी िहादेवी विा​ा के भाई िनिोहन विा​ा के सम्पादन िे हस्िसलसखि ' सवद्यालय पसत्रका ' के शरु​ु आि भइल रहे , जवना िे हिार पसहलकी कसविा छपल रहे :

' अरी ससख , घूंघट का पट खोल ! कली अभी प्रस्फुसटि नहीं है, िंद सिीरन डोल रही है, रस-परागयिु राग-सरु सभ सबखरा देना अनिोल ...... ' 1938 ले बी,ए. के पढाई कइला िक कसविा सलखलीं । फे रु क्रांसिकारी हो गइलीं। डेढ साल ले जेहल के सजाइ कटलीं । 1941 िे एि. ए. ( इसिहास ) के सडग्री सिलल , ओकरा बाद बी.टी. सासहत्यरत्न कइलीं । बी.ए. आ एि. ए. कइला के बीचे रचल कसविा िोिी बी.ए. के लोकसप्रय बना सदहली स। नाव का साथे बी, ए. सलखे वाला िीन गो सासहत्यकार भइलन - बाबू श्याि संदु र दास , संिराि आ हि । ओह घरी के कसव-सम्िेलनन से हिरा के खूब शोहरि सिलल रहे ।

- ओह घरी के कवनो यादगार कसव-सम्िेलन के इयाद बा का ? मोिी बी. ए. - ओह घरी के असर्किर कसव-सम्िेलन यादगार होि रहलन स । 1939 के एगो कसव-सम्िेलन ( बनारस िे आयोसजि ) आजओ ु इयाद बा, जवना िे ओह सिय के नािी-सगरािी कसव बच्चन , श्यािनारायण पाण्डेय वगैरह आिंसत्रि रहलन । हि श्रोिन का बीचे लक ु ा के बइठल रहलीं । िलहीं काव्य-पाठ खासिर हिार ना​ाँव पक ु ारल गइल । हि आउर लक ु ाए लगलीं, बासकर संयोजक हिरा के पकसड़ के उठा सलहलन । िंच पर ले जाइल गइल । जब गीि पढे लगलीं , ि अिना वहवाही सिलल सक हि खदु े चित्कृि रसह गइलीं । खदु बच्चन जी उसठ के शाबाशी देि हिार पीठ थपथपवले रहलन । गीि के पांिी रहे : ' सज ृ न , यह आह्वान िेरा ! वेदना िे चेिना खो , अचल िूसच्छा ि-सा रहा जो श्रन्ृ ग उर से फूट सनकला एक कल-कल गान िेरा सज ृ न , यह आह्वान िेरा ..... । ' फे रु एगो अउर कसविा के िांग बेर-बेर होखे लागल । िब हिरा ' वह िम्ु हारा िान िासनन' गीि सनु ावे के परल । 1943 िे कोलकािा िे सेठ आनन्दीलाल पोद्दार के संयोजन िें दू सदनी काव्य-सिारोहो के खूब इयाद आवि बा , जवना िें सोना के िोहर लटु ावल गइल रहे आ नेपाली , नीरज का संगही एह िोिी बी.ए. पर भी सोना के िोहर के बरखा भइल रहे । - र्नाभाव िें बहुि संघषा कइलें रहलीं रउआाँ । का कबो पत्रकाररिा से भी जड़ु ाव रहल ? मोिी बी.ए. - छात्र जीवन िें हि दर-दर के ठोकर खइले रहलीं , पत्रकाररिो कइले रहलीं । दैसनक ' आज , संसार , आया​ा विा , अग्रगािी ' जइसन पत्रन से सहायक सम्पादक रहलीं । जब एि.ए. करि रहलीं , ि कबीर चौरा िें पत्रकाररिा करि रहलीं , फे रु उहा​ाँ से भदौनी जाके एि. ए. के िय्यारी । िनखाह िें सिलि पचीस रुपया िें से पनरह फीस िें , दू रुपया भाड़ा िें , चार रुपया एक

भगविी प्रसाद त्रिवेदी भोजपुरी सामहत्य के सशक्त हस्ताक्षर भगवती प्रसाद मद्ववेदी जी सहंदी सामहत्य जगत के भी जानि िानि नाि हईं । सामहत्य के हर मवधा इाँ हा के िेखनी से सिृद्ध भइि मबया । बाि सामहत्य सृजन िें इाँ हा के सिानांतर बहुत कि िोग खाि बा । मद्ववेदी जी के रचना संसार िें आदशय आ यथाथय दुनू के अद्भुत मिश्रण देखे के मि​िेिा । सम्प्रमत पटना िें रह के सामहत्य साधना कर रहि बानी । © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 63


साक्षात्कार सांझ के भोजन िें हरेक िहीना खरच करि रहलीं आ बाकी के चार रुपया िें िए काि सनपटावि रहलीं । बासकर फांका करहूाँ िें िस्िी रहे ओह घरी ।

पस्ु िक के लिहर-लिहर भूसिका सलखले बानीं हि । एने आत्िकथा सलखि रहलीं , जवना के प्रकाशन देवररया के पत्र िें र्ारावासहक रुप से होि रहे ।

- अपना कवना कृसि से रउरा सबसे असर्का प्यार बा ? हि सहन्दी , भोजपरु ी , अंगरेजी आ उदा ू िे िीन दजा न सकिाब सलखले बानीं । अंगरेजी से शेक्ससपयर आ संस्कृि से कासलदास के काव्यकृसियन के सहन्दी आ भोजपरु ी िें काव्यानवु ादो कइले बानी । 'लव एण्ड ब्यूटी ' िे एकावन गो सानेट बा । ' आाँसू डूबे गीि, बादररका , पायल छि-छि बाजे , हरससंगार के फूल , िर्िु ष्ृ णा, कसव और कसविा, प्रसिसबंसबनी, अि​िेर् , कुछ गीि : कुछ कसविा ( सब सहन्दी कसविा-संग्रह ) , ' सेिर के फूल , वन-वन बोलेले कोइसलया , भोजपरु ी सानेट , िल ु सी रसायन , िोिी के िक्त ु क ( िए भोजपरु ी कसविा-संग्रह), ' रश्के गहु ार, ददे गहु र' ( उदा ू काव्य ) वगैरह खास कृसि बाड़ी स। - ओइसे ि ' ससिर्ा' पर उत्तरप्रदेश सरकार के सशक्षा सवभाग से ' राहुल सांकृत्यायन परु स्कार ' उत्तरप्रदेश सहन्दी संस्थान से ' आदशा सशक्षक परु स्कार' राष्रपसि से सिल चक ु ल बा आ सासहत्य रत्न , कसवरत्न , कसवचूड़ािसण , सवद्यावाचस्पसि वगैरह उपासर्यो हाससल भइल बा , िबो सरकारी परु स्कार का बारे िे राउर का नजररया बा ? िोिी बी.ए. - दरू दशा न , आकाशवाणी , सरकारी-गैरसरकारी परु स्कार-सम्िान वगैरह िें हिार कवनो आस्था नइखे । ई सब कुछ अपना लोगन के िष्टु करे आ पइसा किाए के चालबाजी ह - बस ! - आज के सासहसत्यक िंच का बारे िे राउर खयाल ? मोिी बी.ए. - पसहले के िंच सहिचु सासहसत्यक िंच होि रहलन स। अब ि सनु ेवाला श्रोिा, आयोजक , कसव - सभे बदसल चक ु ल बा । अब 'दसक्षणा' के सर्यान असर्का रहेला आ कोसशश रहेला सक कइसे दोसरा के नीचा देखावल जाउ !

- राउर सवपल ु सासहसत्यक देन के देसख के लागि बा सक राउर साथा क िूल्यांकन अब ले ना हो पावल । सिकालीन आलोचना का सबसे िें राउर का सवचार बा ? मोिी बी. ए. - आज के आलोचना गोलबंदी के सशकार हो के रसह गइल बा । अब आलोचना कृसि के पसढके ना , कृसिकार के पहुचाँ आ ओकरा से होखेवाला घाटा-िनु ाफा के सर्यान िे रासखके होि बा । 

जवना िरी सफसलि िें रउआाँ सबसे पसहले भोजपरु ी गीि सलखलीं, ओसह िरी भोजपरु ी सासहत्यो िें का कवनो प्रयोग कइले बानी ाँ ?

मोिी बी. ए. - जरुर ! ' वन-वन बोलेले कोइसलया ' िें रउआाँ हिार प्रयोग देख सकींलें । ई लोकसंगीसिका के संग्रह ह , जवन आकाशवाणी , इलाहाबाद के के शवचंद्र विा​ा के सनहोरा पर ' फोक ओपेरा ' का रुप िे सलखल गइल रहे । ई भोजपरु ी के पसहल प्रयोग ह । - आज कसविा के का हाल बा ? मोिी बी.ए. - आज के असर्कांश कसविन िे काव्यात्िकिा ससरा से गायब बा । बासकर जब कबो हिरा नीिन कसविा सिलेला , हि जरुर पढेलीं । हि हरदि कसविा के िलाश िे रहेलीं - खाली छ्नन्द , गीि आ लए िें ना , एकरा हर रुप िें। सलखे से हिार िन कबो थाके ला ना, काहेंसक लेखने हिरा खासिर सजसनगी बा : ' कलि सजन्दा ना होिी िो कभी का िर गया होिा पहुंचने के सलये घर पर, खदु ा के घर गया होिा ! ' “ हि कसविा के परेिी हई आ ाँ आसखरी सा​ाँस ले कसविा के प्यार करि रहब, ओकरा के जीयि रहब । “

- कहल जाला सक गद्य कसव के कसउटी होला । का रउओं गद्य सलखले बानीं ? एने का सलखलीं रउआाँ ? मोिी बी.ए. - सिय-सिय पर हिहूाँ गद्य सलखले बानीं । गद्य के हिार सकिाब बा - इसिहास का ददा , घनानन्द , बोर्ा , रसखान के

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साक्षात्कार

बजारू माल बना दीहल गइल भोजपरु ी साक्षात्कार - सत्यकाम आनन्द

भो

पंकज भारिाज

जपरु ी एगो बोली हीअ। संवैर्ासनक रूप से एकरा के अभी िक भाषा के दरजा नइखे सिलल। बावजूद एकर दायरा बहुि िेजी से बढ़ रहल बा। एकइसवीं सदी के बीिला पनरह बररस िें भोजपरु ी काफी फरलफूलल। सबसे बड़ बदलाव भइल सक बंद हो चक ु ल भोजपरु ी सफसलि उद्योग फे र से शरू हो गइल। दशा क न के प्यार से भोजपरु ी ु ससनेिा के कारोबार परवान चढ़ि चसल गइल। लेसकन, अफसोस एह बाि के बा सक पइसा किाए के चक्कर िें भोजपरु ी के बजारू िाल बना दीहल गइल। ससनेिा बनावे वाला लोग भोजपरु ी के िरजादा िाखा पर र् दीहल। एकर निीजा भइल सक अश्लीलिा भोजपरु ी ससनेिा के पहचान बसन गइल। एही के बूिे कि लागि िें जादा लाभ के गारंटी बन गइल भोजपरु ी ससनेिा। लेसकन, एकरा चलिे भोजपरु ी संस्कृसि के छसव र्ूसिल होि जा रहल बीया। दूसरा प्रदेश आ बोली-बानी वाला लोग भोजपरु ी ससनेिा के गंदा नजर से देखेला। एही के आर्ार पर भोजपरु ी के आंकल जा रहल बा। इ बाि ‘गैंग्स ऑफ िासेपरु ’ फे ि बॉलीवडु के हीरो सत्यकाि आनंद कहलन। हाले िें अपना प्रस्िासवि सफसलि ‘बवाल बाइस्कोप’ के सनिा​ा ण के ससलससला िें सत्यकाि बक्सर आइल रहन। एही दौरान उनका से िल ु ाकाि भइल। करीब एक घंटा के िल ु ाकाि िें सत्यकाि भोजपरु ी के दशा-सदशा आ अपना सजसनगी के बारे िें खल ु के बािचीि कइलन। कहलन सक ‘बवाल बाइस्कोप’ ससनेिा ना, हिार सपना ह। एहीजा पेश बा पंकज भारद्वाज से सहन्दी ससनेिा के हीरो सत्यकाम के ओही बािचीि के अंशप्र-पसहले रउआ अपना बारे िें बिाई ं ।

कंु वर ससंह सविसवद्यालय, आरा िें भोजपरु ी के प्रोफे सर बाड़न। छोट भाई सर्ु ांशु शेखर सदल्ली िें रसहके यूपीएससी के िइयारी क रहल बाड़न।

प्र-राऊर शादी हो चक ु ल बा? सत्यकाम- जी हं। करीब चऊदह साल पसहले गोवा के रहे वाली सीिा से हिार शादी भइल। दरअसल, एगो नाटक के ससलससला िें हि गोवा गइल रहीं। ओसहजे सीिा से हिार िल ु ाकाि भइल, जे बाद िें प्यार िें बदल गइल। सीिा सफलहाल बाेलीवडु के प्रख्याि सनिा​ा िा-सनदेशक अनरु ाग कश्यप के टीि िें कॉस्टुि सडजाइनर बाड़ी। हिनी के एगो एगारह साल के बेटा बा, जेकर नाि ह जॉडा न आनंद।

प्र-ससनेिा के भूि कब से सवार भइल? सत्यकाम- दरअसल, ससनेिा के िरफ झक ु ाव एगो हादसा रहे, जे आगे चलके सजसनगी बसन गइल। आरा से िैसरक पास कइला के बाद साइंस कॉलेज , पटना िें एडसिशन खासिर बसढया नंबर जरूरी रहे। हिार िन पढ़े िें ना लागि रहे। एहसे घर िें बाबज ू ी, भइया सभका डर रहे सक हिरा नंबर बसढया ना आई आ पटना िें एडसिशन ना होई। एहसे सनपटे खासिर घर के लोग हिरा के नाटक िंडली िें भेजे लागल, िासक कला के आर्ार पर हिार एडसिशन साइंस कॉलेज िें हो जाव। एडसिशन ि ना भइल, लेसकन नाटक से सदल के ररश्िा बन गइल। सांच पूछीं ि, हिरा सजसनगी के सहु ाना सफर शरू ु हो गइल। नाटक िंडली िें आके लागल सक सजसनगी बहुि खूबसूरि सबया। प्र-िंबु ई के रूख कब कइनी?

सत्यकाम - हिार जनि भोजप ुर सजला के आरा शहर िें भइल। पीरो से पूरब हिार गांव बा, जेकर नाि हऽ-सनभा य सडहरा। हिार बाबूजी सशवकुिार सहाय िास्टर रहन। अब ररटायर हो चक ु ल बाड़न। िाई प्रभा सहाय गसृ हणी हई। िीन भाइयन िें हि दूसरा नंबर पर बानी। बड़ भाई डॉ. ससद्धाथा सशवशंकर वीर

सत्यकाम- 1990-91 िें हि आरा िें बी राजन के नाटक ग्रपु से जड़ु नी। करीब साि साल िक घूि-घूि के खूब नाटक कइनी। 1997 िें हि सदल्ली गइनी आ ओसहजा के िशहूर असस्ि​िा सथयेटर ग्रपु से जड़ु गइनी। सथयेटर के डायरेक्टर अरसवंद गौड़ के

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साक्षात्कार लगे पहुंचला के बाद सजसनगी के देखे के नजररया बदल गइल। करीब पांच साल बाद 2003 िें हि िंबु ई चसल गइनी। प्र- सहन्दी ससनेिा िें पसहलका बे्रक कब सिलल? सत्यकाम- वषा 2004 िें हिरा के पसहला बेर सहन्दी ससनेिा िें काि सिलल। सफसलि के नाि रहे-‘बल ु ेट’। डायरेक्टर रहन इरफान खान। एह सफसलि िें हिार आठ-नौ सिनट के रोल रहे। एकरा बाद द-ू िीन गो सफसलि िें काि करे के िोका सिलल, लेसकन दभु ा​ा ग्य से इ सफसलि ररलीज ना भइली सन। प्र-ससनेिा से पसहले रऊआ टीवी सीररयल िें भी काि क चक ु ल रहीं? सत्यकाम- जी। ‘बल ु ेट’ से पसहले हि जी टीवी के िशहूर सीररयल ‘संपि एंड संपि’ ससहि कुछ अन्य सीररयलन िें काि क चक ु ल रहीं। एकरा बाद सहारा टीवी के ‘हकीकि’, जी टीवी के ‘ि​िन्ना हाउस’, ‘सपया का घर’ ससहि कइगो सीररयल िें काि कइनी। प्र-‘गैंग्स आफ वासेपरु ’ कइसे सिलल? सत्यकाम- सनिा​ाि ा-सनदेशक अनरु ाग कश्यप हिार एगो शाटा सफसलि ‘द्वंद्व’ देखले रहन। एह िें हिार काि उनका पसंद परल आ ऊ हिरा के ‘गैंग्स ऑफ वासेपरु ’ खासिर चनु लीहलन। 2012 िें बनल इ सफसलि हिार लाइफ चेंज क दीहलस। एकरा दूनो पाटा िें हि सवलेन सवर्ायक जे पी ससंह के रोल कइले बानी। एहिा हिार एगो डायलाग रहे, जे काफी िशहूर भइल-‘ि​िु से न हो पाएगा बेटा’। प्र-हाल िें ररलीज सफसलि ‘िसान’ के बारे िें कुछ बिाई ं? सत्यकाम- ‘िसान’ िें हि सवक्रि िल्लाह नाि के एगो सािान्य आदिी के रोल कइले बानी। एह सफसलि के बहुिे सराहना हो रहल बा। एिने ना, ‘िसान’ के कांस िें अवाडा भी सिलल बा। प्र-भोजपरु ी सफसलि िें काि करे के प्रस्िाव सिलल सक ना? सत्यकाम- जब ‘गैंग्स आफ वासेपरु ’ िहलका िचवलस, िब लोगन के ध्यान हिरा िरफ गइल। एकरा बाद भोजपरु ी सफसलि िें काि करे के कइगो प्रस्िाव आइल। लेसकन, हि िना क दीहनी। भोजपरु ी िें बहुि फूहर ससनेिा बनावल जा रहल बा। सहन्दी ससनेिा जगि के लोग भोजपरु ी सफसलि के बहुि गंदा नजर से देखेला। एकरा चलिे हिरा बहुि दख ु होला। आसखर भोजपरु ी हिार िाई हीअ। एकर फजीहि देखि नीक ना लागे।

लोग भी दोषी िानल जािा । सत्यकाम- एकरा के कुछ हद िक हि िानब। फूहर ससनेिा लोग के ना देखे के चाहीं। एहसे हिनी के सिाज आ संस्कृसि पर बरु ा असर पड़ रहल बा। भोजपरु ी िें फइलल अश्लीलिा से लड़े खासिर हिनी के एकजटु होखे के चाहीं। जिीनी स्िर पर एकर सवरोर् होखे के चाहीं। प्र-हि सनु ले बानी सक रऊआ एहसे लड़े खासिर ‘अंबा’ नाि के एगो संगठन बनवले बानी। सत्यकाम- जी, ठीक सनु ले बानी। भोजप ुरी िाटी िें पैदा भइला के चलिे हिरो कुछ फजा बनिा। अपना बोली-बानी के बरबाद होि कइसे देखल जा सके ला। इहे सोच के वषा 2014 िें हि अश्लीलिा िक्त ु भोजपरु ी एसोससएशन (अंबा) बनवनी। जनवरी 2015 से भोजपरु ी के अश्लीलिा िक्त ु करे के असभयान शरू ु कइनी जा। आरा िें कलाकार, पत्रकार आ पसु लस-प्रशासन के सहयोग से इ असभयान असरदार सासबि भइल। आरा के चऊक-चैराहा पर अश्लील पोस्टर ना लागे, ना कहीं सावा जसनक स्थान पर अश्लील गाना बाजि सनु ाई पड़ी। अइसन करे वाला लोग के सखलाफ कानूनी कारा वाई भी होला। अब एह असभयान के आग पूरा भोजपरु ांचल िें पसारे के बा। अपना भोजपरु रया भाई लोग के एकरा सखलाफ गोलबंद कइल जाई।

प्र-एही ससलससला िें ‘बवाल बाइस्कोप’ के भी सनिा​ा ण हो रहल बा? सत्यकाम- ‘अंबा’ के जररए अश्लीलिा के सकला िें कै द भोजपरु ी ससनेिा के बाहर सनकाले खासिर कई िरह के प्रयास हो रहल बा। एही के िहि हि एगो सफसलि बनावे के सनणा य सलहनी-‘बवाल बाइस्कोप’। इ सफसलि सहन्दी आ भोजपरु ी दूनो भाषा िें बनी। फूहरपन के एह िें कहीं नािो-सनशान िक ना होई। दरअसल, ‘बवाल बाइस्कोप’ के जररए हि इ सासबि कइल चाहिानी सक ससनेिा के चले खासिर फूहरपन जरूरी नइखे। अगर, थीि बसढया होखे ि लोग खदु सखंचल चसल आई। आरक्षण के िद्दु ा पर आर्ाररि एह सफसलि िें भोजपरु ांचल के ओइसन कलाकारन के िोका दीहल जाई सजसनकर प्रसिभा अवसर के अभाव िें िारल जा रहल सबया। लीड रोल हि करब। ओइसे, ‘बवाल बाइस्कोप’ िें ससनेिा खदु हीरो होई ।

झसनेमा ना, हमार सपना ह ‘बवाल बाइस्कोप’: सत्यकाम

प्र-भोजपरु ी ससनेिा िें पसरल अश्लीलिा खासिर भोजपरु ांचल के

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ररपोटश

परु तबया तान के लोक धन ु पऽ झम ू ल वधा​ा

बा

पंकज प्रजापसत

ि िहात्िा गांर्ी अंिरराष्रीय सहंदी सविसवद्यालय, वर्ा​ा िें भइल एक काया क्रि के बा । जहा​ाँ सप्रु ससद्ध लोकगासयका चंदन सिवारी के गायन भइल । लगभग हजारन के संख्या िें दशा क एह काया क्रि के प्रत्यक्षदशी बनलन । शायद हिार खासिर एक नया अनभु व रहल जेकरा साक्षाि सनु के िन हसषा ि हो उठल । भोजपरु ी गीि-संगीि के चरचा ि सगरो होला, बासक जवना िें फूहड़पन, अश्लीलिा, अभद्रिा जइसन गाना के ज्यादा चरचा होि रहेला । सिाज के एक नया सदशा देखावे के जरूरि बा । काहें सक ि​िाि अश्लील गीि के सनु के घर िें छोट बच्चन से लेके बड़-बज ु गु ा िक के िन भी िलीन हो रहल बा । जेकरा चलिे सिाज से संस्कार, परंपरा, िान-िया​ा दा और इज्जि के भी ह्रास हो रहल बा । इहे ना भोजपरु ी क्षेत्र के साथेसाथे दूसरे क्षेत्र के लोगन िें भोजपरु ी के जवन प्रसार होि बा ऊ ि अउर खिरनाक बा । बाहरी लोगन िें भोजपरु ी गीि-संगीि के

छसव र्ूसिल भइल बा काहें सक सपछला कई सालन से भोजपरु ी गीि-संगीि के जे लोग र्रु र्ं र िानल जाि रहे उ लोग भोजपरु ी ससनेिा के आगोश िें आके भोजपरु ी संस्कार के बचा ना पवलें, बलक ु ओकरा के अउर गिा िें डाल देहलें । ि​िाि सनराशा के बाद भी एक आशा के सकरीन फूटि सदखाई दे रहल बा । उ आशा के सकरीन चंदन सिवारी के गीि िें साफ-साफ झलकल । वररष्ठ भोजपरु ी सासहत्यकार अरुणेश नीरन जी एह आयोजन से गदगद होके कहलन सक ‘लोक से जुड़ल कौनों आयोजन

असफल ना होला काहें झक गैर भाषाई क्षेत्र में अइसन आयोजन में सबसे ज्यादा दुसरो भाषा के दिशक/श्रोता झमल जालन ।’ संस्कार और िया​ा दा के बाि भारि के लगभग हर र्िा , जासि और क्षेत्र-सिदु ाय के खासिर एक सिान बा । शायद इहे एगो बड़

पिंकज प्रजापत्रि िूि रूप से गा​ाँव कौिा मजिा गाजीपुर के रहमनयार पंकज प्रजापमत जी िहात्िा गांधी अंतरराष्ट्रीय सहंदी मवश्वमवद्यािय, वधाय का संचार एवं िीमडया अध्ययन कें र िें 'भोजपुरी मसनेिा के मथिैरटक चेंज' मवषय पऽ शोधरत बानी । भोजपुरी मसनेिा पऽ अमधकार से मिखे वािा पंकज एगो बेहतर वाइस ओवर आर्टयस्ट भी बानी । © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 67


ररपोटश कारण रहल सक िहाराष्र िें वर्ा​ा के र्रिी पर बनल िहात्िा गांर्ी अंिरराष्रीय सहंदी सविसवद्यालय िें भइल चंदन सिवारी के लोक-गायन के सूने खासिर िराठी लोगन (श्रोिा) के भी हुजूि देर राि िक जिु ल रह गइल, एिने ना भोजपरु ी के पारंपररक लोकगीिन के साथे-साथे दशा क और श्रोिा भोजपरु ी र्नु पर अपना के सथरकले से ना रोक पवले । बाि इहा​ाँ खाली र्नु और सबट के ना बा, बाि बा भोजपरु ी लोकगीि िें संस्कार के । जवन संस्कार, िान-सम्िान, िया​ा दा, लोक-लाज के बाि भोजपरु ी भाषा के गीि-संगीि िें बा, उ कुल बाि िराठी, गज ु रािी, पंजाबी,

िसिल, बंगाली आसद के संस्कार िें भी शासिल बा । बस देर ह एकरा के सिझे आ सिझावे िें । जरूरि ह भोजपरु ी के एह छसव के सबका िक पहुंचावे के । जे भी आज िक भोजपरु ी गीिन के हेय-भावना से ना सनु ि रहल होई ओकरा के लोकराग के सूने के जरूरि बा । कौनों भाषा िें गावल गीि गलि ना होले अउर ना अपने संस्कार और संस्कृसि के गलि सदशा देले । गलि िब होला जब गायक, गीिकार, लेखक ि​िाि जे ई सब के परोसेवाला अपने-आप पे आजाला । गलि छसव िब बनेले जब संबसन्र्ि लोग बाज़ार के आगोश (चपेट) िें आ जाला ।

लोकराग ‘पुरदबया तान’ : लोकगीतन के नैसदगिक सौन्ियि से साक्षात्कार

दु

धीरें र कुमार राय

सनया के सबसे बड़ लोकिंत्र के िेला अपना पराकाष्ठा पर रहे। पूरा देश िें बदलाव के एगो व्यापक लहर चलि रहे। देश के जनिा के उत्साह चरि प रहे। सब कुछ एिना बड़ पैिाना पर हो रहे जवन भारिीय राजनीसि खासिर एकदिे अलहदा रहे। एह गहिा-गहिी आ चनु ावी िाहौल िें बदलाव के एगो अउर कवायद चलि रहे। हालांसक इ बदलाव राजनीसिक नाहीं, सांस्कृसिक रहे। दरअसल इ अचानक घटल कवनो घटना ना बलक ु देश-दसु नया िें रह रहल कुछ लोसगन के लिहर संघषा आ सोच के प्रसिफल रहे जे अपना बोलीभाषा, संस्कृसि आ सिट्टी से बेहद लगाव रहेला। एह लोग के एह िहु ीि बदे अडानी, अंबानी, टाटा, सबड़ला चाहे सरकार के कवनो पैकेज नाही सिलल रहे बलक ु एह अनष्ठु ान िें दृढ़ सनिय वाला उ लोग शासिल रहे जे सनःस्वाथा भाव से एह िसु हि के आगे बढ़ावे बदे अपने-अपने ढंग से सहयोग कइलस। लोकगीिन के संरक्षण आ सवकास के एह अनष्ठु ान िें लोक से जड़ु ल ि​िाि लोग ससक्रयिा से भाग सलहल। जवना िें प्रिख ु रूप से असभयान के संरक्षक बी. एन. सिवारी, ‘लोकराग’ के संचालक सनराला व िॉडरेटर सवकास के अलावा नबीन, अनपु िा, शसशसागर, लोके श, सनािन, रािेिर, सशवकुिार, िगृ ांक, श्रद्धा इत्यासद लोग शासिल बा। देखिे-देखिे चंद िहीना िें ही आपसी सवचार-सविशा आ सहयोग के आर्ार प लोक-सवर्ा के सवसवर् क्षेत्रन से संबंसर्ि लोगन के एगो लिहर फौज खड़ा हो गइल।

पररणािस्वरूप 30 िाचा , 2014 के ‘लोकराग डॉट कॉि’ वेबसाइट के ‘परु सबया िान’ नाि से एगो नायाब असभयान के शरू ु आि भइल। िानव जीवन के सिस्ि संस्कार, व्रि, आ िीजत्यौहार जइसे पत्रु -जन्ि, िंडु न, िसटकोर, हल्दी, िाड़ो, सववाह, गवना, सवदाई, फगआ ु , चैिी, कजरी, रोपनी, सवरह, छठ, पीसड़या, सजउसिया, िीज, बहुरा आसद के गीिन के सहेज के , जीवन के हर सख ु -दख ु आ उल्लास के शब्दन िें सपरो के ओकरा के आिजन के हृदय िें उिार देवल ही ‘लोकराग’ के िपस्या ह। जनिानस के हृदय िें बस जाइल, ओकर आशीवा​ा द। प्यार-िनहु ार आ दल ु ार सिलि रहे इ के हू भी कलाकार के जीवन के सबसे बड़ थािी ह। लोक से जड़ु ल सिसपा ि कलाकारन के िंच प्रदान कइल, उनकर िर्रु आवाज आ गायकी से सिूचे लोक-जगि के रूबरू करावल ‘लोकराग-परु सबया िान’ के ध्येय ह।

सबहार के राजर्ानी पटना िें जटु ल परु हर संख्या िें लोगन के उपसस्थसि सबकर ध्यान अपना ओर खींचि रहे। लगभग हजारन के संख्या िें जटु ल सिसपा ि लोगन के भीड़ लोक संस्कृसि के सिसृ द्ध के दस्िक रहे। अवसर रहे 8 जल ु ाई, 2014, प्रेिचंद रंगशाला, पटना िें आयोसजि ‘परु सबया िान’ के लोकापा ण के । लोक संस्कृसि से जड़ु ल ि​िाि छोट- बड़ हसस्ियन के एके साथ एक िंच प जिु ल दल ु ा भ क्षण रहे। वहा​ाँ पहुचाँ के ओइसन सभे अपने आपके गौरवासन्वि िहसूस करि रहे थे जेकरा आपन िाटी

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ररपोटश के आबरू से नेह रहे। दरअसल आपन छोटहन जीवन यात्रा िें सभे लोक संस्कृसि के सपनन के जवन िहल बनु ले रहे, उ आकार लेि सदखि रहे। लोगन के सपना आ उनकर उम्िीद फलीभूि हो रहे। ‘चंदन’ के सरु ीला आवाज़ आ गीि के उिार-चढ़ाव सबके एके र्ागा िें सपरोवि रहे। उनकर उत्साहपूणा गायन ना खाली उनकर संगीि​िय प्रस्िसु ि के असद्विीय व अनूठा बनावि बलक ु उनकर खनकि आवाज़ आ िार्यु ा भरल सरु सीर्े लोगन के ह्रदय िें उिरि रहे।

खास िक ाँ वैसिक ु ाि िक ु ाि बनवले सबया जवना के सरु के अनगु ूज पटल पर आपन िजबूि छाप छोड़ रहल सबया। वर्ा​ा आयोसजि लोकराग परु सबया िान के आयोजन िें चंदन के गायकी के सनु ला बाद राष्रभाषा प्रचार ससिसि के प्रर्ान िंत्री प्रो. अनंि राि सत्रपाठी जी के कहनाि रहे, ‘भोजपरु ी के चंदन का रूप िें ओकर िीजनबाई सिल गइल बाड़ी जवन भोजपरु ी लोकगीिन के प्रसिष्ठा फे र से स्थासपि करी।’ एह सीरीज िें लोक संस्कृसि िें पगल अइसन गीिन के नग के जोड़ल गइल बा जवन सीर्े-सीर्े लोक हृदय से िादात्म्य स्थासपि करि बा। एह गीिन के चंदन बहुिे िल ु ायसियि से गवले बाड़ी।

‘परु सबया िान’ लोकगीिन के संरक्षण के एगो नया पहल बा, जवना के िहि सभखारी ठाकुर आ िहेंद्र सिससर के करीब 200 पारंपररक भोजपरु ी लोकगीिन के चंदन सिवारी के सरु न िें सपरोवल गइल बा। एह इन गीिन के िाध्यि से आंचसलक पररवेश िें सबखरल लोकगीिन के नैससगा क सौन्दया से साक्षात्कार होि बा। चंदन आपन गायकी िें गीिन के साथे बखूबी न्याय कइले बाड़ी। गीिन के एक-एक शब्द सांगीसिक ित्ववन के साहचया से बोल उठि बा। गीिन के िाध्यि से चंदन के आवाज जनसािान्य के गहनि​ि संवेगन के ना खाली छूवि सबया बलक ु हृदय िक संप्रेसषि होि बा। इ गीि जीवन के अथा आ अनभु व के अनेक र्ारा के खोलि बाड़ें। हालांसक गीि भी िबसहने ले गीि होखेला जबले ओह िें िानव के हृदय के िंत्री के छे ड़े के िाकि होखेला। शरीर के भड़कावे वाला ित्व गीि नइखे हो सकि जइसन सक आज के गीि जवना िरे िानवीय भावना के साथ सखलवाड़ कर रहल बाड़ें। बीिल कुछ दौर के िूल्यांकन कइल जाए ि वास्िव िें ‘लोकराग’ के इ प्रयास एगो सार्ना जइसने बा। सबहार के भोजपरु सजला के सबसटया व बोकारो (झारखंड) िें पलल-बढ़ल चंदन लंबा सिय से गायन के क्षेत्र से जड़ु रहल सबया। िहुआ टी. वी. के बहुचसचा ि काया क्रि ‘सरु -संग्राि’ आ ‘सजलाटॉप’ से ससु खा यन िें आइल चंदन आज गायकी के एगो

गा​ाँव-गा​ाँव िें जन-जन के बीच हजारन साल से इसिहास आ परंपरा के आत्िसाि करि लोकगीिन के सांस्कृसिक परम्परा के सवकास स्विः स्फूिा होखेला। एक पीढ़ी से दोसरी पीढ़ी के इ सवरासि िें सिलेले आ इ सब पीढ़ी दर पीढ़ी चलि रहेला। हिनी के सिाज िें सभन्न-सभन्न लोकगायक आ कलाकार लोग ि​िाि लोकशैसलयन के सज ृ न कइले बा। जिन सांस्कृहिक थाहि के जोगािे बदे िजारन कलाकार आपन मय हजनगी खपा हदिले िोइिें आज ओि लोककला आ लोक जीिन में बाज़ार िािी िोि जा रिल बा । निीजा अनेक सांस्कृसिक िूल्य नष्ट हो रहल बाड़ें। आर्सु नकिा के अंर्ी दौड़ िें संवेदनशून्यिा बढ़ि जा रहल बा। पसहले जहां लोकगीि सनु ाई देि रहे उहा​ाँ ससनेिा के गीिन के कोलाहल सनु ाई देि बा। सवसवर्िा के बजाय एकरूपिा बढ़ रहल बा। आपन िाटी के परंपरागि लोकगीिन आ ओकर र्नु के लोग भूलि जा रहल बा। पसहले के लोकगीि जवने िरह से सािासजक चेिना आ ओकर अनभु ूसियन के अंग रहे उ गणु आज के गीिन आ गायकन िें नइखे रह गइल है। लोक गीिन के नाि पर आज के बाजारू गीिन के सनु के इहे लागि बा सक गीि सलखल खाली सद्वअथी शब्दन आ िक ु बंदी के िेल हो गइल बा। अइसन हालाि िें ‘परु सबया िान’ के इ प्रयास सभे के अपना ओर आकसषा ि करि बा।

धीरेन्र राय गाजीपुर(उत्तर प्रदेश) के रहे वािा धीरे न्द्र राय जी िहात्िा गा​ाँधी अंतराष्ट्रीय सहंदी मवश्वमवद्यािय से ककसान आंदोिन पऽ पीएचडी करत बानी। काशी महन्द्द ू मवश्वमवद्यािय से स्न्नातकोत्तर हईं। भोजपुरी मसनेिा पे एि॰कफि॰, मवमभन्न पत्र-पमत्रका िें आिेख प्रकामशत, मसनेिा पर सशक्त िेखन, भोजपुरी मसनेिा एवं एिबि िें गीत/संवाद िेखन से संबंध राखेनी।

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ररपोटश एगो अइसन सिय िें जब लोक संगीि पूरा िरे बाज़ार के चपेट िें होखे। लोक गायकन के एगो बड़हन जिाि खाली अश्लीलिा आ फूहर गवनई से आपन क्षसणक लोकसप्रयिा आ प्रसससद्ध बटोरे िें जटु ल होखे। अश्लीलिा के भोथर गड़ासी से लोक के सनिा ि हत्या कइल जा रहल होखे। नैसिक वजा ना के असिक्रिण हो रहल होखे। लोक गीिन से िानवीय ररश्िा आ संवेदना ख़त्ि हो गइल होखे। जनिानस के भावना पूरा िरे आहि हो गइल होखे। परम्परा के ह्रास हो रहल होखे। संवेदना सनष्ठुर हो गइल होखे। अइसन िें ‘परु सबया िान’ खािी चंदन के िटस्थ होके साफ़-सथु र आ सर्ल गायकी, जनिानस िें एगो अलग छसब स्थासपि करि बा। एह बाजारवाद के अंर्ा दौड़ िें भी ‘परु सबया िान’ आपन र्ार के बचवले रखले। उनकर संग्रहणीय लोकगीिन िें गा​ाँव आज भी हिनी के गा​ाँव के िरे बा। ररश्िन के डोर अबसहनो िजबूि बा। चंदन ने जवन भी गवले बाड़ी ओकरा के हिनी के दादी, िाई, िौसी, बआ ु , चाची सभी पसहले से गावि आ रहल बा आ आज भी गावि बा। चंदन घर-घर के गीि गा के सबके घरन िें बनल बाड़ी। ‘लोकराग’ के प्रयास भी इहे बा सक घर-घर िें ससदयन से गावल जाये वाला लोकगीिन के खनक सिूचा दसु नया िें पहुचं े, जवना से िय लोक जगि लाभासन्वि होखे। ‘परु सबया िान’ खािी चंदन के द्वारा िहेंदर सिससर आ सभखारी ठाकुर के गावल गइल गीिन के एक-एक शब्द लोक ह्रदय के उद्गार ह। उनके लोकगीिन के आपन एगो अलग दसु नया बा जवन हर छल-कपट से दरू कलात्िकिा के सभ बहसन से कट के भी भारिीय सशखर प प्रसिसष्ठि लोकिानस के संसार ह। उनकर गीिन िें जीवन के सवसवर् रंग पूरा उत्साह, उल्लास आ उिंग के साथ िौजूद बा। उनकर गीि जीवन के व्यापक िहागाथा बा। चंदन के गायकी िें गीिन के आंचसलक यथाथा आ सौंदया बोर् जीवंि हो उठल बा जवन सीर्े वाया िनिसस्िष्क हृदय िें उिर जाला। एह गीिन के बोल आ लोकर्नु सिकालीन लोकजीवन के झांकी प्रस्ि​िु करि बा। ‘परु सबया िान’ के लोकगीिन के एह कड़ी िें प्राकृसिक सवसवर्िा आ जनिानस के ह्रदय पक्ष के बखूबी परखल जा सकि बा। उनकर गीिन के

संस्कृसिक पक्ष एिना िजबूि बा सक लोग बरबस ही गीिन के िान के साथ ओह िें डूबि चल जालें जहां गहराई के अंदाजा लगा पावल िसु श्कल हो जाला। उनकर लोकगीि सािान्य लोकजीवन के पािा भूसि िें असचन्त्य रूप से अनायास ही फूट पड़े वाली लयात्िक असभव्यसक्त ह। ‘परु सबया िान’ लोकगीिन के िाध्यि से हिनी के ओह लोक के दशा न करावि बा जहा​ाँ आज भी ररश्िन के कद्र बा। जहा​ाँ पारंपररक िूल्य बचल बाड़ें। एह गीिन िें जीवन भी उत्सव के िरे बा। लोकपरम्परा, संस्कृसि आ लोकजीवन के सवसवर् आयािन िें सजावि-सवांरि लोकगीिन के इ सोंर्ी िहक पूरा दसु नया िें फइले लागल बा। ‘परु सबया िान’ लगभग िरणासन्न हो गइल लोकसंगीि के अपना सार्ना आ कसठन प्रयास से पनु जीसवि करे के वीणा उठवले बा। देश भर िें लोक संगीि के लोकसप्रय बनावे के सदशा िें इ सराहनीय प्रयास बा जवन आगे चलके सहंदी पट्टी िें लोक संस्कृसि के पया​ा य के रूप िें जानल जाई। इ प्रयास देश के सांस्कृसिक स्िर प िजबूिी प्रदान करी। अगर वास्िव िें लोक संस्कृसि के सिद्ध ृ करे के बा ि हिनी के एही िरे के साथा क प्रयास करे के होई। सासहत्य, सिाज, संस्कृसि, ससनेिा, गीि, संगीि लोकरंग इत्यासद के एगो साझा िंच िैयार करे के होई, िासक कई बररस के सार्ना से बनल एह िंच पर लोक संस्कृसि के लेके एगो स्वस्थ्य आ साथा क सविशा के साथ-साथ ओकर सिग्र सवकास के आर्ारभूि ढा​ाँचा िइयार हो सके । लोक के विा िान आ भावी स्वरूप खािी इ एगो जरूरी पष्ठृ भूसि बा जहा​ाँ गंभीरिा से सवचार करे के होई िासक ‘लोकराग’ के जररए लोक संस्कृसि के संरक्षण आ सज ृ न हेिु एगो बेहिर भसवष्य गढ़ल जा सके । सफलहाल स्िसृ ियों िें लंबा सिय िक िाजा रहे वाला लोकगीिन के एह संकलन आ साथा क प्रयास खािी ‘लोकराग’ के पहल ‘परु सबया िान’ के पूरी टीि के बर्ाई आ शभु कािना। इ कारवां अउर आगे बढ़े। बढ़िे ही रहे...

चंदन हि​िारी के गािल कुछ गीि आखर के यू ् यूब चैनल प भी उपलब्ध बा । नीचे हदिल हलंक से देख सके नी https://www.youtube.com/channel/UCB5bPbw5QjeECTdS715O1tg/videos

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तशक्षा-व्यवस्था

चरमरात आ बेमार दिक्षा प्रणाली

मनीर् प्रिाद

सप

छला िहीने 18 अगस्ि के इलाहाबाद हाईकोटा एक ठो बहुि बड़ा िहत्वपूणा आदेश जारी भइल जेकरा से उत्तर प्रदेश के नेिा लोग आ सरकारी पदासर्कारी लोग के नींन के संग-े संगे होश उड़ा देहलस । आदेश रहल उत्तर प्रदेश सरकार के चरिराि आ बेिार सशक्षा प्रणाली के ऊपर, आदेश रहल सरकार के अनदेखी प, आदेश रहल की नेिा लोग आ सरकारी पदासर्कारी लोग के बच्चा सब के दासखला अब सरकारी स्कूल िें करवाये के पड़ी (सनचला क्लास से बच्चा लोग के एडसिशन) । एह फै सला से सगरे खलबली िच गइल बाटे की इलाहाबाद हाईकोटा के अब उल्टा अब के हू कइसे जाउ। आज हालि अिना ख़राब बाटे की सरकारी अफसर अब खदु े अपना बच्चा के सरकारी स्कूल िें ना भेजे के चाहें लें । कारण िात्र इहे बाटे सक स्कुल िे नाही कौनो अध्यापक कासबल बाड़े और नाही कवनो नीिन ससु वर्ा बाटे । गौर करे वाला बाि ई बा की हिेशा छे सत्रय अख़बार िें बच्चा सब के पढाई िे कि और झाड़ू -पोछा लगावे िें ज्यादा देखे के सिलेला। अध्यापक लोगन के सशक्षा से कवनो दूर दूर िक के नािा नइखे, बस रोज हाज़री लगावे स्कूल िें आवेला लोग । स्कूल िें कवनो ससु वर्ा सार्न नइखे जेकरा से लागे की सरकार गंभीर सबआ सशक्षा खासिर । स्कूल के हालि िा एिना ख़राब बाटे की कहीं पे छि नइखे, कहीं पे देवाल नइखे, कहीं पे सलखे वाला श्यािपट्ट नइखे, और

जंहवा प सब कुछ बाटे ि ओइजा कवनो अध्यापक नइखन । सबना अध्यापक के िा लइकन सब िें बड़ा उिंग रहेला की आज पढ़े के न पड़ी लेसकन इ सब सिला के देखल जाओ िा भसवष्य अन्हार के ओर बढ़िा । भारि के हर राज्य के कहीं न कहीं किोबेश सरकारी स्कूल सब के इहे हालि बाटे। ना जाने के िना नया नया सरकारी असभयान सनकलै ला बासकर कवनो सर्ु ार न भइल । साल 2001 िें भारि सरकार के पहल के सौजन्य से सवा सशक्षा असभयान साज आ गाजा-बाजा के साथ शरु​ु भईल । सवा सशक्षा असभयान के उद्देश्य रहे की 'सब पढ़े सब बढे' आ देश के हर भाग के हर बच्चा लोगन के सशक्षा के ससु वर्ा सिले । सवा सशक्षा असभयान के सोच बहुि बड़ा रहलस आ एकरा से बड़ा रहल एह प सनर्ा​ा ररि बजट । बासकर, अफ़सोस इहे बा सक एकर फायदा सही िरीका से के हु के नइखे सिलि, देखल जाउ ि एकर सवफलिा के पीछे बहुि बड़ा हाथ राज्य सरकार एवं नेिा लोगन के साथ साथ सरकारी अफसर सब के भी बाटे । जरुरी बा सक सब कोई सवा सशक्षा असभयान के दरु​ु स्ि बनावे खासिर अच्छा आ कुशल प्रयास करे, जब ले सरकार सवचसलि न होइ िब ले कुछो ठीक न होइ । सरकारी िहकिा अउरी सशक्षा िंत्रालय के सोचे के पड़ी की आवे वाले सिय िें सशक्षा प्रणाली के

मनीष प्रसाद पैतृक भूमि - अरे राज िोमतहारी- मबहार, पढाई मिखाई सब धनबाद (झारखण्ड ) से पूरा भइि. भारत िें एगो कॉि सेंटर सहायक से अपने कै ररयर क शुरुवात कईनी, फे रु इं डमस्ट्रयि ररस्क िैनेजिेंट के आपन कै ररयर बनवनी । यूनाइटेड अरब अिीरात (युएई) िें 5 साि से मडफे न्द्स िें एक्सप्िोमसवेस ररस्क िैनेजिेंट मवशेषज्ञ के पद पे काययरत बानी. मिखे िे रूमच पहिे से बा, आखर से प्रेरणा मि​ि​ि कक िातृभाषा के भी एगो रूप मि​िे के चांही ।

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तशक्षा-व्यवस्था दरु​ु स्ि करे के खासिर संकल्प करे के पड़ी, संकल्प करे के पड़ी की कवनो भाई-बसहन बच्चा/बच्ची सशक्षा से दूर ना रहे, वंसचि ना रहे । आज के सिय िें सनजी स्कूल िें पढ़ावे के खचा बहुि ज्यादा बाटे और इ सबके बस के बाि नइखे । लेसकन सरकारी िहकिा सशक्षा प्रणाली के दरु​ु स्ि करे के बजाये उल्टा अपील कई देहलन सक इ फै सला सही नइखे और उनका बच्चा सब के सजनगी िे ई फै सला अन्हार कई सदही । सनचला िबका के लोग कहीं न कहीं दबल जबु ान से एह फै सला के स्वागि कर रहल बाटे । जब लें खदु पे न ढहेला िब लें घाव के पिा न चलेला । अब उम्िीद िा

इहे बाटे सक या िा इ फै सला सरकार के आाँख खोल दी अउर सब कुछ बसढ़या कई दी भा सरकार के न्याय प्रणाली के सोझा एगो चनु ौिी बना के खड़ा कई दी । ध्यान देवे वाला बाि बाटे सक खदु िख्ु यिंत्री के बच्चा लोग राज्य के सबसे बड़का प्राइवेट स्कूल िें पढेलन । जब राज्य के राजा ही खदु एकरा से िहु लक ु वावे लसगाँहे िब सोची प्रजा के हाल का हो सकिा बा । जब के हू के सही सशक्षा न सिली िा उ इंसान अपना सजनगी के बारे िें कवनो सही फै सला न कई पायी, ना ठीक से किा पायी और ना ही ठीक से सजनगी गज ु ार पायी ।

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सम-सामतयक

तसयासत के चक्रव्यहु में अझरु ाइल जाततगत आरक्षण गौरव सिहं

ब भी बाबा भीि राव आंबेडकर जी के जन्ि आवेला िब भारि के राजनीिी िें एक प्रकार के गरिाहट आ जाला, सब राजसनसिक पाटी अपना अपना िरीका से उहा​ाँ के अपना पक्ष िें करे के कोसशश करे लागेला । लेसकन अबकी गिी उठल बा उहा​ाँ के जयंिी या पण्ु यसिसथ से ना, बलक ु लगले भईल जासिगि अउरी आसथा क जनगणना आ गज ु राि के पटेल सिदु ाय, राजस्थान के गज ु ा र सिदु ाय, िहाराष्र के िराठा सिदु ाय के आरक्षण के िांग से आ हररयाणा के जाट सिदु ाय के िांग प सप्रु ीि कोटा के फै सला से, जवन की सफर से सिहीकरण करि िंडलीकरण के सिह िक पहुच गईल बा । सोशल िीसडया प खासकर करके एकर बोखार आसानी से देखल जा सकि बा, अइसन लागि बा िानी कुछ सदन िक बहस करे के कुछ िशाला सिल गईल होखे । इ एक प्रकार के बड़ा ही सववासदि िद्दु ा पासहले भी रहल बा अउरी आज भी बा । हिहू छोट रही ि लागि रहे अइसन काहे होला ? इ जासि आर्ाररि ना होखल चाहि रहे बसल्क आसथा क आर्ार पर होखल चाहि रहे । लेसकन जईसे जईसे बड होखि गईनी पढ़ि गईनी सारा सवाल के जवाब र्ीरे र्ीरे ही सही, लेसकन सिलि गईल । सबसे पासहले बाि इ शरू ु कहा​ाँ से भईल ? इ ह का ? एकरा के एगो उदहारण से सिझे के कोसशश कईल जाई । जईसे गीिा, िहात्िा गा​ाँर्ी जी पढले रहले आ नाथूराि गोडसे भी लेसकन ओह दनु ो लोग के इंटरसप्रटेशन अपना अपना सहसाब से अलग अलग रहल । एकदि ओकरे लेखा, जईसे कुरान के , स्वाि वैली िें सस्िथ फै जल्ु लाह भी पढले अउरी िलाला भी, लेसकन ओह दनु ो लोग के भी इंटरसप्रटेशन अपना-अपना सहसाब से बा । ठीक ओसही आजादी के पासहले, 1935

के पनु ा पैक्ट् स िें भारि के एगो जासिसवहीन राष्र के कल्पना कईल गईल रहे । ओही जासिसवहीन राष्र बनावे के खासिर, दोसरा लब्ज िें कही ि एगो यूसनफािा प्लेटफ़ॉिा प लावे खासिर एगो जासिगि आरक्षण के व्यवस्था कईल रहे िाकी भारि के जासिगि बेसडयन से दूर कईल जा सके । ओह लक्ष्य के पावे खासिर आरक्षण के िाध्यि बनावल गईल रहे लेसकन सिय के अनस ु ार सब लोग ओकरा के अपना अपना सहसाब से इन्टरप्रेट करके ओकरा के सडफाइन कईलस, जवना के नकारात्िक प्रभाव पडल आ दवाई के साइडइफ़े क्ट सािासजक अन्र्सविास अउरी राजसनसिक ध्रवु ीकरण के रूप िें हो गईल । आरक्षण कवनो कल्याणकारी आ ससु वर्ा देवे वाला सनसि ना ह, बसल्क एगो नागररक पहचान आ राजसनसिक पहचान देवे के िाध्यि ह जवना से जासिसवहीन राष्र के कल्पना कईल जा सके । आज भी हर आदिी के अलग अलग सवचार सिली एह िद्दु ा प, पसहला आदिी कही सक जेकरा के आरक्षण देवल जाला उ आसथा क रूप से अिना किजोर रहेला सक आज के आर्सु नक प्रसिस्पर्ा​ा के सािना ना कर पावेला एही आरक्षण देवल जाला । एही बाि प हजार आदिी टूट के क्रॉस क्वेिन करेला सक आसथा क रूप से किजोर ि उच्च जासि िें भी लोग रहेला । दोसरका आदिी सािासजक पररपेक्ष िें पूरा कहानी के सिझावे के कोसशश करेला सक उ लोग सािासजक रूप से बहूि सपछडल रहल बा एह से आरक्षण जरूरी बा, एहू प ि​िाि िरह से क्रोस क्वेिन पूछाि रहल बा । सिसरका आदिी एकरा के सडफाइन करेला परोपकारी आ कल्याणकारी नजररया से, सक बहूि साल से दसलि जासि के साथे सािान्य व्यवहार नइखे भईल ढेर भेदभाव भईल बा, एह से राजसनसिक आरक्षण जरूरी बा । हिरा सिझ से िीनो िरीका सडफाइन करे के बहूि ठीक नइखे, काहे सक

गौरव त्रसिंह रोहतास, मबहार के रहे वािा गौरव जी इं जीन्द्यररं ग के छात्र हईं। भोजपुरी िें िगातार मिख रहि बानी। ए घरी गौरव जी VIT यूमनवर्सयटी वेल्िूर , तमि​िनाडू से पढ़ाई कर रहि बानी।

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सिाज िें उहे असिानिा पैदा कर रहल बा जेकरा के ख़त्ि करे खासिर हिनी के पूवाज भरपूर कोसशश कईले रहन जा । जबकी सच्चाई इ बा सक आरक्षण के उद्देश्य जासिसवहीन राष्र के कल्पना ह ना सक कवनो असिानिा पैदा करे के जररया । हिरा लागेला सक हिनी के पवू ा ज पनू ा पैक्ट के सिय कबो सपनो िें ना सोचले होइहे जा सक जवन िाध्यि आरक्षण वाला उ लोग ढूंढ रहल बा जासिगि असिानिा ख़त्ि करे खासिर, ओकर साइड इफ़े क्ट एिना भयंकर होई सक आवे वाला सिय िें राजसनसिक वोट बैंक िात्र बन के रह जाई । राजसनसिक हस्िक्षेप बहूि बररयार रूप से हावी बा एह िद्दु ा प, लेसकन अगर पासहले के अपेक्षाकृ ि आज के सािासजक असिानिा के इिानदारी से सवश्लेषण करि ि एह सनणा य प जरूर पहुचि सक सािासजक असिानिा कि जरूर भईल बा । हि एह से कहि बानी काहे सक पासहले जवन िौसखक आ व्यावहाररक सहंसा होि रहे जासि के नाि प उ काफी हद िक कि भईल बा एह िें कवनो दू राय नइखे । लेसकन एक दू उदहारण खाली पेश करके पूरा थ्योरी ध्वस्ि कईल भी ठीक चीज नइखे । एगो अउर बाि बा अगर एकर प्रभाव व्यापक रूप िें नकारात्िक रसहि ि आज िक इ चलल ना रसहि । काहे सक आरक्षण एगो भागीदारी ह जहा​ाँ आके उ आदिी आपन बाि िंच प आके रख सके ला एकरा के एगो उदहारण से सिझल जा सकि बा । जईसे कवनो औरि आपन हर व्यसक्तगि चीज के असभव्यसक्त परु​ु ष से ना कर सके , एही से िसहला खासिर कोई ना कोई ररप्रेजन्े टेसटव होखे के चाही अउरी बा भी चाहे पसु लस िें होखे या संसद िें (संसद िें थोडा कि बा लेसकन बा) । लोग कहेला सक आरक्षण जासिगि काहे बा ? आसथा क आर्ार प काहे नईखे ? पासहले इ बिाई सक आसथा क आर्ार प देवे वाला कवन पैिाना बा ? आज ले आसथा क आर्ार प जवन भी ससु वर्ा देल गईल बा लोग के ओकर एसफसशएंसी का बा ? BPL (Below Poverty Line) वाला रेखा भी साफ़ नइखे । एह िद्दु ा प भी बररयार सडबेट होखि आइल बा कवनो नया बाि नइखे । जिीनी स्िर प एगो अउर बाि आइल बा, उ इ सक गा​ाँव िें जेकरा भीरी BPL काडा होखे के चाही ओकरा भीरी नइखे लेसकन जे सािासजक आ आसथा क रूप से संपन्न बा उ अत्यसर्क लाभ के चक्कर िें गैर काननू ी िरीका से बनवा रहल बा । आसथा क आर्ार प अगर सदआई ि एह बाि प भी आशंका बनल रही सक कही अइसन ि​ि हो जाव सक बसु कं ग सपछड़ा लोग के नाि प होखे आ सडलीवरी संपन्न लोग के । दस ु रका बाि जे आसथा क रूप से किजोर बा ओकरा के ससु वर्ा के जरूरि बा ना सक आरक्षण के , एह से आसथा क रूप से सपछडल लोग के ससु वर्ा के िांग करे के चाही सरकार से, ना सक आरक्षण खासिर । एह िका प आसानी से िहारष्र के िराठा सिदु ाय, हररयाणा के जाट सिदु ाय अउरी गज ु राि के पटेल सिदु ाय के िांग के आसानी से नाकारल जा सके ला । पटेल, जाट आ िराठा सिदु ाय के लोग गा​ाँव िें भले आसथा क रूप से किजोर होखस

लेसकन सािासजक रूप से आज भी बररयार बा । अगर एकर प्रभाव के सववेचना कईल जाव ि एकरा के दू रूप िें देखल जा सके ला पसहला इ सक प्रभाव सकारात्िक जरूर पडल बा उ बाि अलग बा सक र्ीरे रहल बा । कई लोग के बयान आवेला सक गरीबी के कवनो जासि ना होला । इ सब खाली भाषणबाजी करे खासिर ठीक बा काहे सक अगर गरीबी के कवनो जासि ना होखे ि इ बिाई सक सनचे गईला बा गरीबी बढ़ि आ ऊपर गईला प घटि काहे जाला ? कवनो ना कवनो सम्बन्र् जरूर बा । एही से हि सफर दोहरावि बानी सक एगो सेन्सस के रूप िें देखे के जरूरि बा, ना सक एगो दू गो उदहारण के । सिय के साथे राजसनसिक रूप से भागीदारी भी सिलल बा ओही आरक्षण के प्रिाण भी बा । उत्तरप्रदेश, सबहार, िध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश के राजनीिी एकर गवाह बा । दस ु रका प्रभाव नाराकरात्िक रूप से इ पडल जा रहल बा सक ि​िाि जासि आपन संगठन बना के सपछड़ेपन के होड़ िें आगे देखावे के कोसशश कर रहल बा । िाजा उदहारण के रूप िें गज ु राि िें चल रह पटेल सिदु ाय, राजस्थान के गज ु ार सिदु ाय के आरक्षण के िांग आसद । संगठन सझ ु ाव ढूंढे के कोसशश नइखे करि, आपन जासि के खािी के िूल्यांकन नइखे कईल चाहि, बसल्क खाली सपछड़ेपन सासबि करे खासिर साक्ष्य ढूढ रहल सबया जवन दभु ा​ा ग्यपणू ा बा । उ इ सब एह से करि बा काहे सक आरक्षण ओकरा सझ ु ाव के रूप िें लउकि बा जवन सक िृगिृष्णा ह ि​िाि संगठन खासिर जे एह िरह से सोच रखेला । अंि िें एगो सझ ु ाव आ सनष्कषा के रूप िें हि इहे कहल चाहब सक सबसे पासहले लोग के िानससकिा बदले के जरूरि बा । दस ू रा बाि इ सक साइसक्लक प्रोसेस चलि रखे के काि बा जवन नइखे होि । ि​िलब इ सक जेकरा के आरक्षण देवल गईल बा ओकर सिय सिय प िूल्यांकन कईल जरूरी बा सक ओकरा िें के िना सर्ु ार भईल बा ठीक ओकरे लेखा जईसे कवनो छात्र के पढाई के िूल्यांकन ओकर टेस्ट लेके कईल जाला । टेसस्टंग जेिना जरूरी बा ओिने जरूरी बा ओकर पररणाि प एक्शन लेवल । िाने इ सक अगर सर्ु ार आविा ि ओकरा के हटावल जाव अउरी अगर कवन सिदु ाय पररसस्िसथ के अनस ु ार सािासजक आ सांस्कृ सिक रूप से सपछड़ रहल बा, ओकरा के जोडल जाव । लेसकन हो का रहल बा सक खाली जोडल जा रहल हटावल कवनो नइखे जाि । िीसरा बाि सक खाली एगो सनसि से ि​िाि िरह से सवसभन्न लक्ष्य के भेदल नइखे जा सकि एह से अगर कवनो अउरी सवकल्प आ पैिाना लउकि बा ि ओकरा िरफ ईिानदारी से काि करे के जरूरि बा । लोग के इ बाि सदिाग से सनकाल देवे के चाही सक आरक्षण कवनो गरीबी उन्िल ु यन आ कल्याणकारी नीसि ह । चौथा बाि इ सक आरक्षण देवे वाला लाइन हिेशा साफ़ रहो यानी सक कही अइसन ि​ि हो जाव सक होड़ के चक्कर िें कवनो अन्य सिदु ाय खासिर अन्याय ि​ि हो जाव ।

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तचंतन-मंथन

खानाबिोि

मवसमत आनयन

ि आज खासिर ना , हि उ काल्ह के जोहे सनकलल रहनी जे करा बारे िें ई सन्ु लले रहनी की उ जब आवेला िब अपना साथ नया सवेरा ले आवेला । बस ईहे उम्िीद िें की जे सदन भी हि ओकरा से सिलेब , हि आपनआज के अाँर्ेरा के ओकर कल के उजाला िें कहीं दफ़न कर देब , कहीं गिु कर देब िगर का कररन कईसे दफ़न कर दीं , हि गरीब हई ं आ गरीब के काल्ह ि आवेला लेसकन अपना साथ आउर अाँर्रे ा ले आवेला । हिरा इहा​ाँ खाली सांझ होला आ हर सदन एगो सूरज कहीं दरू उ पहाड़ िें डूब जाला , पिा ना के िना उम्िीद , के िना वादा आ के िना सपना लेकर । ई िन कबो – कबो सवाल करेला सक ई भगवान एगो गरीब के सजनगी काहे देलें ? आ अगर सजनगी देले ि एिना गरीबी काहे देलें ? हिनी के पास िरे के आउर भी कारन होला , िगर ई लोग के के सिझाओ सक हिार पसि के हू के प्यार के वास्िे ना उ प्यार जेकरा के रउवा लोग प्रेि कहेनी बसल्क इज्ज़ि आ शिा के कारण िर गईल , के िना आसान होला एगो गरीब के बेईज्ज़ि कईल , ओकर इज्ज़ि के सरे बाजार उछाल देहल , हि ई नईखी कहि की रउवा लोग हिरा पसि के िार देहनी िगर ओ बेरा जब ओकर इज्ज़ि उछाल्ल जाि रहे िब के हू ई हो ना सोचल की उ गरीब के हू के पसि के हू के बाप भी ह , हि जानिानी सक कुछ लोग के ई सोच कर अजीब लागी िगर हा​ाँ ई सच ह सक एगो गरीब भी इज्ज़ि आ शिा के कारण िर सके ला । साहब हिनी सकहा​ाँ के हू के ना रहला से हिनी के घर सनु ा

ना होला बस संसार सूना हो जाला । कहल जा ला की वक़्ि के हू खासिर ना रुके ला ि हिरा खासिर कईसे रुक जाईि। एसहसे हि आ हिार बचल खचु ल दसु नया वक़्ि के साथ कदि से कदि कुछु ना सदखेला । हिनी के रोज अपना अपना गि के उ उजाला िें दफ़न करे के कोसशश िें लाग गईनी सन लेसकन हिनी के ई बाि पिा ना रहे सक ई सब एिना आसान ना होला । सजनगी हर सदन पन्ना पलटि रहे आ हर रोज एगो नया कहानी हिनी के सजनगी से जड़ु ि जाि रहे । हर सदन एगो नया सबु ह से एगो नया सांझ ले हिनी के आपन आपन आसंु से लड़ी आपन – आपन िश्ु कुराहट खासिर िगर राि होि – होि उ आसंु जीि जाओ आ हिनी के हर रोज हार जाईन सन एगो आउर नया सबु ह के उम्िीद िें । उ शहर के भीड़ िें ना जाने कब िन्ु ना आ िसु नया बड होखे लगलेसन । कहल जाला सक आंगन आ िोहल्ला खासिर लईकन के लड़कपन रोनक होला िगर पहला बेर लोग के बीच अपना लईकन के ि​िासा बनिे देखनी । एगो अईसन ि​िासा जेकरा के देख के उ लोग गररयाओ आ उ लोग अगर थोडा खशु हो जाओ ि कुछ पईसा से ओकनी के बचपन खरीद लेि रहे लोग । सांच कहीं ि एगो गरीब के बचपन बहुि कि पईसा िें सबके ला इहा​ाँ के बाजार िें । हिार िन्ु ना रोज कहीं ना कहीं से चार पईसा पा जाि रहे आ उ रोज उ चार पईसा के सनहारो । पिा ना उ चार पईसा के साथ उ कौवन – कौवन से सपना के सजयि रहे , उ नादान

मवत्रमि आनयन मसवान मबहार के रहे वािा स्वमस्त आनयन जी अभी इं जीन्द्यररं ग के पढ़ाई कर रहि बानी आ भोजपुरी, महन्द्दी िें िघुकथा मिखेनी। ए घरी इहा​ाँ के भोपाि िें बानी।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 75


के के सिझाओ की उ चार पईसा से उ आपन सपना का उ खदु के भी सजन्दा नईखे राख सकि । एने िसु नया सांच से सिले के चाहि रहे । दसु नया के देखे के सहन् ना बसल्क जाने के भी चाहि रहे । ओकरा िन िें हर सदन एगो नया सवाल जन्ि लेि रहे आ हि हर सदन ओकरा सवाल से आाँख चोराईन आ बिईिी भी ि का “ सक ई जिीन आ आसिान भगवान हिनी के सहस्सा िें बराबर नईखी बटलेन ? ” कईसे सिझईसि ओकरा के सक “ ई सजनगी हिनी से रूठ सके ला िगर सजनगी से रूठे के हक़ हिनी के नईखे ” कौवन भाषा िें गरीबी के पररभाषा देिी ओकरा के कईसे छीन लेिीं उ नन्ही सी जान के हंसी । उ अक्सर राि िें हिरा से पूछि रहे “ िा​ाँ उ अाँर्ेरा िें से हिनी के कोई देखेला का ? ” । हि हर बेर िस्ु कुरा के ओकर डर ख़ि​ि कर देिे रहनी िगर कभी बिा ना पावि रहनी सक “ हा​ाँ ई सच बा सक उ अंर्ेरा िें से हिनी के कोई झांकेला आ झा​ाँक के हिनी के बेबसी िें से अपना खासिर ि​िासा खोज ले ला ” । शायाद दसु नया खासिर दगु ो ि​िासा खड़ा होि रहे िगर हिरा खासिर कुछ सवाल के साथ दगु ो आउर सवाल खड़ा होि रहे , जेकर जवाब देपावल हर कीि​ि िसु श्कल रहे । िगर कहल जाला सक कुछ सवाल अर्रु ा रह जाला , सजनगी एक बार फे र करवट लेि रहे । उ घनघोर अाँर्ेरा िें एक बार फे र हिार संसार सूना होि रहे िगर ए बेरा उ अाँर्ेरा िें से कोई झांके ना आईल , ए बेरा ओकनी के नादान से सजनगी के कोई खरीदे ना आईल पिा ना हिरा के छोड़ उ ि​िासा के देखे के फुरसि कोई लगे काहे ना रहे । ओ सदन जािे – जािे ओकनी के िहु से “ िा​ाँ ” शब्द से जादा “ भूख ” शब्द सनु ाई देि रहे , ओ सदन गरीबी , िा​ाँ के ि​ि​िा के भी कटघरा िें

ला के खड़ा कर देले रहे आ देखिे सहन् देखिे उ भूख िा​ाँ के ि​ि​िा से जीि गईल आ हिार बचल - खचु ल दसु नया भी ख़ि​ि हो गईल । अब बस बांच गईल रहनी हि आउर हिार लाचारी जेकरा सहारे हि आपन रेंगि सजनगी के काटि रहनी । अब ना कुछ पावे के खशु ी रहे आ ना खोए के गि , सजनगी कौवनो नदी के िरह हो गईल रहे जौवन हर वक़्ि सिन्ु दर के आपन सजनगी सौंपे के िैयार रहे । ए सब के बादो बहुि लोग के खासिर ि​िासा हिरा से सरु​ु होखो आ हिरे पे खत्ि । हि जब लोग से पूछिी सक “ पिा ना आज हिार िन्ु ना कोई के जूठा रोटी खईले होखी सक ना , पिा ना आज िसु नया के चोटी कोई बंर्ले होखी सक ना ” िब लोग हिरा के डांट के भगा देव आ हिरा के पागल कहे लोग लेसकन कईसे सिझाइ उ लोग के सक हि पागल ना हि “ िा​ाँ ” हई ं। खैर पिा ना एिना जल्दी भगवान हिार सून लेलें आ आज हि कौवनो सड़क पर बंद होि आपना आाँखs से एह दसु नया के देखिानी । आज चारों िरफ अनजान चेहरा खड़ा बा । हिरा खासिर ना हिार असन्ि​ि ि​िाशा खासिर । ि आज हि रउवा लोग के सनराश ना करेब , िगर आज शिा एके गो बा की आज रउवा लोग कोई ररश्िा के डोर िें बा​ाँर् ि​ि लेब , आज फे र से जीये के वजह ि​ि देब , आज कोई खासिर फे र से उठे के ि​ि कह देब, आज पीछे से आवाज़ ि​ि लगा देब । आज घर लौट जाए दीं बहुि दूर बा हिार घर , आज घर के लौट जाएाँ दीं ..

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 76


तकसान असनल प्रिाद

(1) ऊ देखिे रह गइले ऊ बइठ् ले रह गइले ऊ बोलिे रह गइले ऊ कुसी छोडले ना ऊ खुसरु –पस ु रु करिे रह गईले ऊ लोग फोटो खीचिे रह गइल खाकी देखिे रह गइल आ ऊ खाक िें सिल गइले !

(2) (कहा​ाँ से ई आदिी आके ) पेड़ से लटक गइल (सब िद्दु ा के ) अपना िौि के साथ गटक गइल दोसर िद्दु ा शरू ु हो गइल अरे के िना फूंका फार के , दहाड़ िार के रोविार भाई आ जेकर बाप िर गइल ओकरा ि छुटिे नईखे रोआई अगर रोवले से दःु ख बझ ु ाइि ि ई दसु नया रोविे-रोविे र्रिी िें ना सिा जाइि? (3) भीड़ जूटल रहे भीड़ जटु ावल रहे

नौटंकी होि रहे पात्र पेड़ पर चढि रहे सूत्रर्ार परदा के पीछे खड़ा रहे लोग आपन चररत्तर देखावि रहे (खेिी-सकसानी पर ) ऊपरवाला के सकररपा बनल रहो नेिा पर जनिा के सकररपा बनल रहो (सजनगी एगो नाटक ह आ हिनी के सखलाडी ) जनिा के िनोरंजन होि रहो कोिेडी सकास के िेलोड्रािा चलि रहो ! (4) नेिा के कुछ िद्दु ा सिलि रहो (बेवजह बरसाि िें ) झींगरु झंझनाि रहो आ बेंग बोली बोलि रहो (पैनल सडस्कशन के नाि पर ) लोग आपस िें िूिू-िैंिैं करि रहो (जहर के असर कहा​ाँ बा पिा नइखे, लेसकन ) जंिर-िंिर पर झाड-फूंक चलि रहो परेिा लोग के भी सजनगी खाि-पीयि चलि रहो (सजनगी िें का र्इल बा ? ) खेल-ि​िाशा चलि रहो आ हिनी के खेल बनल रहो ! © आखर ● सितम्बर, 2015 ● 77

(5) ऊ िर गइल ऊ दसु नया छोड़ के चल गइल ऊ के रहल ह ? ऊ का करि रहल ह? ऊ का चाहि रहल ह? ओकरा साथे-साथे ई रहस्य भी चल गइल !

(6) साठ साल से ऊपर भइल भारि एगो कृसष-प्रर्ान देश ह पढ़ि-सनु ि कान पाक गइल प्रजािंत्र के पहरूआ नइखन ठनकि, अहंकार के अन्हार िें सिु ल बाड़े सपना देखिारे सपना देखाविारे जिीन से ना जडु ला से हाँसआ ु , खुरपी कुदारी िें िरु चा लाग गइल सकसान के िद्दु ा, जिीन के िद्दु ा, हरही गाय, अभी ले ना सजाइल, बके न ि ना हो सकल सबसख ु ी जरूर हो गइल l


पाठक कोना

राउर बात िख ु ौटा के पन्ना बड़ा िजा देि बा , वाह , खूब किाल । ● सनु ील कुमार ‘िंग ’ बहुि बसढ़या ! रेन िें बइठल बइठल दू िीन गो रचना पढ़ गईनी । प्रिोद सिवारी के लेख बहुि बसढ़या बा । पूरा आखर टीि के बर्ाई । 

पी॰ राज हसंि

लोड करर आखर नयका सकिाब, भोजपरु ी सासहत्य के एगो कोना " जहा से कय गो कं ठ सजरह, ररगीर, गोहार करऽिा, उहो काहे खासि ...? ि " राउरे भोजपरु ी भाषा खासि । ● बबलू िमाश रउआ सभे भोजपरु ी खासिर बहुि बड़ काि करि बानी। नयका पीढ़ी के भोजपरु ी से जोड़ल सबसे जरूरी बा। आ आखर एकर नेित्ृ व करे। हिार शभु कािना बडुए।'

आभार परु ा आखर टीि के , हिनी के हर िहीना ई अनिोल भेंट देबे खािीर भाषा खासि ।

● चंद्रिेखर हमश्र, भोजपुरी साहित्यकार, आरा

● सनु ील पांडे

िझ ु े ये भाषा उिनी सिझ नहीं आिी लेसकन इस पसत्रका को देखकर इिना जरुर लगिा है सक कुछ अच्छा काि हो रहा है भोजपरु ी िें । ● िंखदीप बासु, मुंबई

भोजपरु ी के सबसे लोकसप्रय पसत्रका के पढ़े के िौका हाथ से ि​ि जाये दी । आखर काहे सक रउरो आखर रउरो कथा बा एिे ।

● ररिेि रंजन

पसत्रका नवहन खासि राह देखा रहल सबआ , िाटी िे जरर बन्हाईल रहे के चांही । लागल रहे ।

आखर भोजपरु ी पसत्रका के आिख ु पष्टृ बहुि ही जानदार बा अउर सिसािसयक भी बा।एगो प्रसि िोदी के नाि प्रेसषि करे के काि बा ।

भोजपरु ी सासहत्य के संभारे खािी आ नया ऊंचाई देवे खािी राउर सहयोग के जरूरि बा । भोजपरु ी िें सलखीं आ "आखर" के साथे भोजपरु ी सासहत्य के बढ़ावे िें सहयोग करीं ।

● सहच्चन्द्र नंद िमाश

~आखर पररिार

● िंकर चौबे, बहलया

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 78


लेखक कोना य

तनहोरा भोजपरु ी,

िाई, िािभृ ाषा आ िािभृ ूसि के कवनो सवकल्प नइखे। इनका आाँचर के नीचे जवन सख ु के अनभु सु ि होखेला ऊहे स्वगा के सख हऽ। रोजी-रोटी के िजब र ी ु ू रोजी रोटी से िसन बेसी किाये के चाहि िें ना चाहिे करीब सभे अपना िाई आ िाटी से दरू बा। एह किी के िऽ , ना भरल जा सके ला बासक िािभृ ाषा से दरू ी के पाटे के काि आखर कई रहल बा। आखर के नेव भी एही उद्देश्य के परू ा करे खासि राखल गइल बा। आखर रउआ सभे से बा, रउआ सभे खासि बा। इ राउर आपन िंच हऽ जहा​ाँ रउआ आपन िाई, िाटी आ िािभृ ाषा भोजपरु ी से जड़ु ल अनभु व यथा -कथा कहानी, व्यंग्य, संस्िरण, ररपोिाजा , गीि-गज़ल, कसविा, सचत्रकारी भेज सकि बानी। भोजपरु रया क्षेत्र अपना िन िन र्न से भारि राष्र के सहि िे , आपन योगदान देले बा । आजादी से पसहले आजादी के बाद हर घरी दु डेग आगे बसढ के राष्र सनिा​ा ण खासि आपन योगदान देले बा । सम्पणु ा क्रांसि के जन्िदािा जयप्रकाश नारायण ( जेपी ) के जन्िसिथी आ पण्ु यसिथी असगला िहीना िे बा । भोजपरु ी गायन शैली िे परु बी के आपन एगो अलग स्थान बा । लगभग हर नीिन भोजपरु रया गायक / गासयका अपना सरु िाल लय से परु बी गीिन के सजवले बा । परु बी सम्राट िहेंदर सिससर के पण्ु यसिथी असगला िहीना िे बा । आखर फे सबक ु पेज के दसु रा साल भी असगला िहीना िे परु ा होखे जा रहल बा ।

एह से आखर के असगला अँक ( अक्टूबर 2015 ), भारत मे आजादी के बाद सम्पुर्ण क्ांसत, सम्पुर्ण सवकास के प्रर्ेता जयप्रकाश नारायर् के उपर रही,संगे संगे पुरबी सम्राट महेंदर समससर के पुण्यसतथी प कें सित रही । एह के अलावा आखर के दु साल पुरा भईला प रउवा सभ के सवचार आ सुझाव के स्वागत रही ।

रचना भेजे के कुछ जरुरी हनयम 

आपन िौसलक रचना यसु नकोड फॉन्ट/कृसिदेव फॉन्ट िें टाइप करके भेजीं ।

रचना भेजे से पसहले कि से कि एक बार अपने से प्रूफ रीसडंग जरुर कर लीं । कौिा, हलंि, पूणासवराि पे सवशेष ध्यान दीं । रचना िें डॉट के जगहा ससफा पूणासवराि राखीं ।

ध्यान रहे राउर रचना िें कवनो असंसदीय आ अश्लील भाषा भा उदाहरण ना होखे ।

राउर रचना के स्वीकृसि के सूचना िेल भा िैसेज से सदयाई ।

रचना के साथे आपन पासपोटा साइज के फोटो आ आपन पररचय (नाि, पिा, काया आ आपन प्रकासशि सकिाबन के बारे िें यसद होखे ि) जरुर भेजीं ।

रचना भेजे के पिा बा-

aakharbhojpuri@gmail.com 

पसत्रका खासिर राउर हाथ के खींचल फोटोग्राफ, राउर बनावल रेखासचत्र, काटूान जे सवसभन्न सवषय के अनरू ु प होखे, उहो भेजीं ।

छोट-छोट लईकन के कलाकारी के भी प्रोत्सासहि करे खासिर स्थान सदयाई । ओहनी के सलखल रचना भा सचत्र भेजीं |

रउवा सभ से सनहोरा बा सक आपन असगला लेख एसह सबंदअ ु नप कें सद्रि कई के सलखी जवना से बेसी से बेसी लोग भोजपरु ी भाषा, क्षेत्र, इसिहास ,संस्कृसि आ विा िान से आपन पररचय करा सको ।

© आखर ● सितम्बर, 2015 ● 79



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