Aakhar dec 2016

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भोजपुरी

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बतकूचन– 22






गोरखनाथ

महायोगी गोरखनाथ 11वीं सदी के महान च तिं क आ चसद्ध परु​ु ष रहीं । जीवन के सत्य जाने खाचतर ईहािं के योग के माध्यम बनइचन आ समू े भारत भर में घुमननी आ आपन दर्शन आ बात के लोग तक पहुँ इनी । गोरखनाथ जी के अब तक चलखल 40 चकताब के बारे में डॉ०पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल खोज कइले बाड़ें जवना में कुछ प्रमुख चकताबन के नाम — सबदी, पद, गोरखगणेर् गोष्ठी, गोरखदत्त गोष्ठी (ग्यान दीपबोध), ग्यान ौंतीसा, जाचत भौंरावली (छिंद गोरख) आचद बा । उत्तरप्रदेर् के गोरखपुर के नाम गोरखनाथ जी के नाम पर रखाइल बा । गोरखपुर भोजपुरी क्षेत्र ह आ गोरखनाथ जी के र ना में भोजपुरी के प्रभाव साफ साफ झलके ला ।


कबीर दास

भोजपुरी के आचदकचव । जब भचिकाल के जुग रहे तो चनरगुचनया पिंथ के र्ुरुआत कई के आपन माईभाषा के हचथयार बनाई के जड़ता अउरी ढकोसला पर चबरोध र्ुरू कइनी । मगहर में जनमनी, कार्ी करमस्थली बनल आ जीवन के आचखरी बेला में फे रू मगहर गइनी । भगु ोल के अनुसार एह छोट भोजपरु रया दायरे में आपन पूरा जीवन गुजार देनी । कबीर साहब बाचक अपना समय में, अपना माईभाषा में जवन बात कहनी, उ दुचनया में फइलल, सब के हू अपनवलस अउरी भोजपुरी माटी पर जनमल एगो अईसन सतिं हो गइनी, जेकरा पर सब के हू आपन दावेदारी करे लागल । अउर ईहे बात भोजपुरी माटी खाचतर सबसे गवश के बात हो गइल चक उ कबीर साहब हमनी के रहले, जे दुचनया के बाड़े । कबीर साहब के चनरगुचनया गीत के आज दुचनया चदवाना बा । भोजपुरी भाषा- साचहत्य आ समाज खाचत अजर-अमर-अनमोल थाती त बड़ले बा ।


घाघ

भारत के पचहला कृचष कचव । उत्तरभरत के चकसान, पर्पु ालक आ जन-जन के कचव, जे आपन कहावत आ दोहा में हरेक समस्या के समाधान र ले रहन । ाहे बरसा के , बीआ रोपे के र्गुन होखे भा बरध के पचह ान सब सवाल के जवाब कहावत के माधायम से लोग के जबानी ढ़ल । घाघ के जन्मस्थान आ सही समय के बारे में सटीक जानकारी नइखे। कुछ चवद्वान इनका के अकबर के समय के कहेला । श्री दुगाश र्िंकर चसहिं के अनुसार ईहािं के जनम छ्परा के आसपास ह आ बाद में चनवास कन्नौज रहल । एचहजे सरायघाघ नाम के जगह घाघ के नाम पर बसल बा । घाघ के सब कहावत कहीं चलचखत ना रहे । कचव रामनरेर् चत्रपाठी के चकताब 'घाघ और भड्डरी' में कहावत सब के सक िं लन बा ।


हीरा डोम

सई साल से जादा समय हो गइल । ओह घरी के चहिंदी के सबसे प्रचतचष्ठत पचत्रका में महावीर प्रसाद चद्ववेदीजी एगो भोजपुरी कचवता छपनी । कचवता के र्ीषशक रहे- “अछूत के चर्कायत” । एह कचवता के रव ईया रहनी हीरा डोम । भोजपुरी के पचहलका चलचखत कचवता चलखेओला कचव । अनजान-गुमनाम नाम रहनी हीरा डोम बाचक उहािं के जब कचवता छपल त चहिंदी साचहत्य जगत में खलबली म गइल । ओह कचवता के धार अईसने ोख रहे । अिंगरेजन के राज अउरी सामाचजक भेदभाव के चखलाफ आपन माई भाषा में जवन कचवता र नी, उ भोजपुरी में आपन भाव के व्यि करे के , प्रचतरोध के धार के पजावे के आधार देहलस अउरी ओकरा बाद भोजपुरी में चलचखत कचवता के दुचनया के अध्याय र्ुरू भइल । एकरा बाद त अध्याय पर अध्याय जुटत ल गइल । एह कचवता के बाद हीरा डोम भोजपुररया नाट्य परिंपरा के आगे बढ़ावे में अउरी सघु र-सव्ु यवचस्थत रूप देबे में अनमोल भूचमका चनभवनी, जेकरा आधार पर बाद में भोजपुरी नाटकन के दुचनया के चवस्तार भइल ।


ई कविता महािीर प्रसाद वि​िेदी िारा संपावदत ‘सरस्िती’ (वसतंबर 1914, भाग 15, खंड 2, पृष्ठ संख्या 512-513) में प्रकावित भइल रहे ।


बाबू रघुबीर नारायण

पवहला भोजपुरी लोकराष्ट्रगीत ‘बटोवहया’ के रचवयता अिंगरेजन के ताप बढ़त रहे । भारत एगो खाली र्ाचसत-र्ोचषत देस के रूप में दुचनया में ख्यात होखत रहे भा अिंगरेजन के कोचर्र् रहे चक ईहे रूप में अब दुचनया में एकर पह ान बनो । तब सारण चजला के एगो लाल आपन माईभाषा के हचथयार बनाई के एगो लबिं ा गीत भोजपुरी में चलखलस- “बटोचहया” । भारत के चवचवधता, सदुिं रता के बतावेवाला एगो कालजयी गीत, जेकर जोर के फे रू कवनो गीत, कवनो दोसर भाषा में ना चलखाइल । ओह भोजपरु रया लाल के नाम रहे रघुवीर नारायण, जेकरा के लोग बाबू रघुवीर नारायण कहेला । छपरा के दचहयावा में 31 अिूबर 1884 जनमल बाबू रघुवीर नारायण अिंगरेजी, फारसी जईसन भाषा के पारिंगत ज्ञाता रहनी बाचक जब देस के सनेस देबे के मोका आइल त उहािं के बटोचहया अउरी भारत भवानी जईसन अमर र ना के आपन माई भाषा में र नी । आपन माईभाषा से अपरिंपार प्यार अउरी राष्ट्रीयता के भावना से ओतप्रोत रहेवाला भोजपरु रया समाज के बी बाबू रघुवीर नारायण के गीत बटोचहया स्वाचभमान बढ़ावे के काम कइलस अउरी आजो कर रहल बा । बटोचहया गीत के खाली भोजपुररये के ना, बलुक भारत के लोकराष्ट्रगीत मानल जाला । एक जनवरी 1955 के ईहािं के दुचनया से चवदा भइनी ।



राहु ल सांकृत्यायन

महापिंचडत राहल सािंकृत्यायन । जीवन के मल ू मिंत्र घुमक्कचड़ बुझेवाला राहल जी जीवन भर घुमत रहनी आ एही के साथे आपन अध्ययन ालू रखनी । जहाुँ गइनी ओचहजा के भाषा आ रहन सहन के सीखनी । अनुपम ज्ञान के भिंडार के सहेजत ईहािं के देर् चबदेर् में आपन धाक जमइनी । भोजपुरी अिं ल आजमगढ़ उत्तरप्रदेर् में 9 अप्रैल 1893 के जनमल राहल जी के मल ू नाम के दारनाथ पाण्डेय ह । ईहािं के 14 अप्रैल 1963 के एह सस िं ार से चवदा लेनी । भोजपुरी में तीन नाटक— ‘मेहरारून के दुदशर्ा’, ‘नइकी दुचनया’ आ ‘जोंक’ के माधायम से ईहािं के समाज के जागरन के बात कइनी । स्वतन्त्रता सग्रिं ाम के लड़ाई से ले के चकसानन के नेता, भोजपुरी नाट्य चवधा मे ुँ सामाचजक आ वैचिक यगु के परोसेवाला यायावर साचहत्यकार महापचिं डत राहल सािंकृत्यायन जी के आखर पररवार के ओर से नमन


एकै माई बापिा से एकही उदरिा में दूनों के जनमिा भइल, रे परु ु खिा । पत ू के जनमिा में नाच आ सोहर होला

बेटी के जनम परे सोग रे परु ु खिा । (मे हरारून के दुददिा से )


रामेश्वर वसंह कश्यप

रेचडयो आकार्वाणी पटना से जचहया ‘लोहा चसहिं ’ नाटक प्रसाररत होखे पूरा चबहार थम जाय । एह नाटक के पात्र लोहा चसहिं एतना प्र चलत भइल चक एह नाटक के नाटककार प्रो० रामेिर चसहिं कश्यप के उपनाम लोहा चसहिं पड़ गइल । पटना चविचवद्यालय में चहन्दी के व्याख्याता आ बाद में एस पी जैन कालेज, सासाराम के प्रा ायश पद के सर् ु ोचभत करत कश्यप जी चहन्दी आ भोजपुरी दूनों के समान रूप से सेवा करत रहीं । ईहािं के आपन नाटक, कहानी, लेख, गीत आ कचवता से भोजपुरी के साचहत्य के धनी कइनी । जनम सन 1927 में 16 अगस्त के रोहतास चजला के सेमरा गािंव में भईल रहे आ ईहािं के 24 अक्टूबर 1992 के डायचबटीज़ के बीमारी से हार के भोजपुरी साचहत्य सस िं ार के सनू कर देनी । आखर पररवार उिंहा के रच त कुछ कहानी, गीत आ कचवता के एचहजा सक िं चलत कर के आपन श्रद्धा समु न अचपशत करत बा ।





मोती बी० ए०

मल ु ुक आजाद भईल आ ओकरा ठीक एके साल बाद एगो चसनेमा आईल- “नचदया के पार” । चदलीप कुमार साहेब हीरो रहनी आ काचमनी कौर्ल नाचयका । ओह चसनेमा में आठ गो गीत अउरी सब गीत में भोजपुरी के भरपूर प्रयोग । मने आजादी के तुरिंत बाद चहदी चसनेमा में भोजपुरी के इज ु हो गइल । ई िं ेक्र्न चमलल अउरी ओकर लोकचप्रयता अईसन भइल चक बाद में कई गो चसनेमा में भोजपुरी के प्रयोग र्रू प्रयोग करेवाला के हू अउरी ना भोजपुररया माटी के लाल रहनी-मोती बी०ए०, जे नचदया के पार के गीतकार रहनी । उहािं के चहिंदी चसनेमा में भोजपुरी के बीज डलनी, जेकरा आधार पर बाद में भोजपुरी आपन भाषा में चसनेमा बनावे के चहम्मत जुटवलस । चसनेमा के मोती बी०ए० जी भोजपुरी दुचनया के आपन र ना से चवपल ु भिंडार देनी । उहािं के भोजपुरी में हाईकु चलखनी, जे एगो नया प्रयोग रहे अउरी भोजपुरी साचहत्य के दायरा के बढ़ावे में बड़हन भचू मका चनभावेवाला प्रयोग । सबसे खास बात ई रहल चक मोती बीएजी आपन र ना से माई भाषा के तो सेवा कईबे कइनी,भोजपुरी के समृद्ध अउरी प्रचतचष्ठत करवईबे कइनी, सगिं े-सगिं े भोजपुरी में क्षेत्रीय अउरी राष्ट्रीय मुद्दा पर चलखी के देर् के चनमाशणों में अहम योगदान चदहनी । एक अगस्त 1919 के देवररया चजला के बरेजी गािंव में ईहािं के जनम भइल अउरी 18 जनवरी 2009 के ईहािं के दुचनया से चवदा लेनी ।





धरीक्षण वमश्र

भोजपुरी के चसद्ध आ चवलक्षण कचव प.िं धरीक्षण चमश्र के जनम 1901 में उत्तर प्रदेर् के आज के कुर्ीनगर चजला में तमकुही तहसील के एगो गाुँव बररयापुर में भइल । पिं० धरीक्षण चमश्र ‘छपला’ से अचधका ‘चछपवाला’ में चविास करें र्ायद, तबे त उनकर पचहलका काव्य-सग्रिं ह ‘चर्व जी के खेती’ सन 1977 में छपल, ऊहो र्भ ु च िंतक लोग के जोर पर। ओही लोग के प्रयास से दूसरका सग्रिं ह 1995 में ‘कागज के मदारी’ के रूप में आइल। बाद में ‘धरीक्षण चमश्र र नावली’ ार खिंड में छपल, जवन भोजपुरी भाषा खाचतर कुबेर के खजाना से कम नइखे। हर तरह से भरल-पूरल पररवार वाला धरीक्षण चमश्र एगो लमहर आ सचिय जीवन जीयले। सत्तानबे बरीस के उमीर में काचतशक कृष्ट्ण नवमी माने 24 अक्टूबर, 1997 ई० के धरीक्षण चमश्र जी हे राम चलखत अपना भरल-पूरल पररवार के बी े अिंचतम साुँस चलहले। ई सयिं ोग ह चक कुछ अउर, नवमी (राम नवमी) के उगल सरु​ु ज के अवसानो नवमीये के भइल। भोजपुरी के प्रथम आ ायश-कचव धरीक्षण चमश्र के पाचथशव देह भले परमसत्ता में लीन हो गइल बाचकर ऊ आजुओ भोजपुरी अिं ल के गिंध बन के लोक-मन में चवराजमान बाड़े। आखर पररवार के ओर से नमन ।




गोरख पाण्डे य

देर् के आजादी से ठीक दू बररस पचहले देवररया उत्तरप्रदेर् के पिंचडत के मुिंडेरवा गाुँव में एगो अइसन मनई के जनम भइल जे आपन जीवन भर र्ोचसत, दचलत, गरीबी के जकड़न से समाज के आजादी के सपना देखल । समाज में फै लल आचथशक, समाचजकता के सोझा आपन कलाम के ताकत रख के समाज में अलग िािंचत के र्ुरुआत कइल । सामाचजक चवषमता प चलखल ईहािं के गीतन के मिं न आजूओ भारत के बड़बड़ चविचवद्यालय में होला । ईहािं के 29 जनवरी 1989 के एह सस िं ार से चवदा लेनी । आखर पररवार के ओर से गोरख पाण्डेय जी के नमन ।





िैलजा कुमारी श्रीिास्ति

भोजपुररया अिं ल सीवान चजला के पचहला स्नातक मचहला । ईहािं के एगो अइसन साचहत्यकार रहली ह चजचनका माटी से जुड़ाव ओतने गचहर रहल ह जतना उिं उ आसमान मे सो त रहली ह । ई बात उुँहा के र ना से चमलेला । भोजपुरी , चहन्दी , सस्िं कृत , अिंग्रेजी के चवद्वान के सगिं े सगिं े , माटी के खािंटी अिंदाज उुँहा के र ना मे बड़ा नीमन से सररहार के चमलेला । इनकर चलखल आ च त्रलेखा पुरस्कार से प्रकाचर्त चकताब ‘च न्तन कुसमु ’ ऋतुअन आ मौसम प आधाररत समाज, वातावरण, भौगोचलक रुप प चलखाइल भोजपुरी चनबिंध सग्रिं ह ह । ईहािं के बाणभट्ट के चलखल कादम्बरी के भोजपुरी में अनुवाद कइले बानी । ईहािं के जनम 27 अक्टूबर 1927 के भइल रहे आ 31 चदसबिं र 1989 के एह सस िं ार से चवदा लेनी । आखर पररवार के तरफ से नमन ।



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महेंदर वमवसर

परु बी के जनक, परु चबया उस्ताद, परु बी के सम्राट... ना जाने के तना नाम चदहल गइल महेंदर चमचसर के । महेंदर चमचसर भोजपरु रया माटी में जनमल एगो अईसन नाम, चजनका के परु चबया गीतन के पयाशय मानल जाला अउरी परु बी चवधा के जनक । सारण चजला के चमसरवचलया गाविं में 16 मा श 1886 के जनमल चमचसरजी के गीतन के ख्याचत परू ा परु ब इलाका में फइलल । बनारस से कलकत्ता तक कलाकार अउरी श्रोता चदवाना भइलें । चमचसर जी प्रेम गीत के सगिं े राम के प्रसगिं गीत, कृष्ट्ण के प्रसगिं गीतन के थाती देनी । एकरा अलावा चनरगुन, झमू र, गजल से लेके कजरी तक के गीतन के र नी । ईहािंके अपना समय के च शत पहलवान रहनी, सरोकार राखेवाला इस िं ान के रूप में खबू ख्याचत भइल अउरी जब आजादी के लड़ाई में भाग लेनी तो नजीर र देनी । अिंगरेजन के चहला देनी, ईहािं के जेल भइल बाचक जेलो में ईहािं के भोजपुरी के



विश्वनाथ प्रसाद िैदा

आपन अलमस्त, घुमक्कड़ आ हिंसोड़ स्वभाव के चविनाथ प्रसाद र्ैदा जी के कलम से डुमरािंव के देवी के समचपशत श्री डुमरेचजन ालीसा जब चनकलल त समू ा र्हर एह कचव के दीवान हो गइल । पेर्ा से चर्क्षक र्ैदा जी के सगृिं ार के गीत चलखे में महारत हाचसल रहे । ईहािं के चलखल गीत ‘बताव ािंद के करा से कहा चमले जाल’ आजों भोजपुरी के लोकचप्रय गीतन में र्ाचमल बा । चबहार के डुमरािंव में 1911 में र्ैदा जी के जनम भइल रहे ।इनकर मृत्यु के बादो श्री डुमरेचजन ालीसा आजो जीविंत बा । एह भोजपुररया चवभूचत के आखर पररवार के ओर से नमन ।



आचायद महेंद्र िास्त्री

भोजपुरी में चनबिंध चलखे के र्रु​ु आत तब भइल रहे, जब चहन्दी चनबिंध चवकास-यात्रा के लमहर दूरी तय क के बहत आगा बचढ़ ुकल रहे । ओह घरी लचलत चनबिंध के दौर रहे । नतीजतन, भोजपुरी में लचलते चनबध िं से चनबिंध-लेखन के आरिंभ भइल । हर तरह से कसल-मिंजल आ पररपक्व पचहलका भोजपुरी चनबिंध 1947 में चलखाइल रहे । ‘पानी’ र्ीषशक से र ाइल ओह पचहल चनबिंध के प्रकार्न ‘भोजपुरी’ के पचहलका अिंक में भइल रहे । चनबिंधकार रहली आ ायश महेन्र र्ास्त्री । उहें के ओह पचत्रका भोजपुरी के सपिं ादको रहलीं । सीवान चजला के रतनपुरा में सन 1921 में र्ास्त्री जी के जनम भइल रहे आ ईहािं के 1974 में एह सस िं ार से चवदा लेनी । एह भोजपुररया चवभूचत के आखर पररवार के ओर से नमन ।



रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’

कचव आ गीतकार रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’ आपन नाम के जस सगृिं ाररक कचव रहीं । मन के सगृिं ार, तन के सगृिं ार भा प्रकृचत के सगृिं ार सबके आपन कलम के नोक से सजावेवाले प्रणयी जी के जनम 5 जून 1921 में धन्छुहाुँ, चजला भोजपुर, चबहार में भइल रहे । कोईचलया, चसतार, पुरईन के फूल, क नार, वरदान, सोना अइसन भोर आचद जइसन साचहचत्यक थाती के र चनहार 16 अगस्त 1987 के एह दुचनया से चवदा लेलन । आखर पररवार के ओर से नमन ।



जनकवि भोला

आरा र्हर के बी ों बी नवादा में पान के गुमटी । दोकान में पान आ मसाला के साथे कागज पे चलखल िािंचतकारी कचवता । एकर र चयता कचव- भोला । आपन िािंचतकारी कचवता से जन जन के जबान पे ढ़लन आ उनका के नाम पड़ल जनकचव भोला । आपन छोट गुमटी से गुजारा करेवाला भोला जी के सो जनता के गरीबी आ बदहाली के आपन गीतन के धार बनवले । भोला जी दुचनया में नईखन बाकी उनकर गीत आजों जनता के बी चजिंदा बा । आखर पररवार के ओर से नमन ।



भोलानाथ गहमरी

भोजपुरी साचहत्य के आकार् में पिंचडत भोलानाथ गहमरी एक अइसन मकत चसतारा हई िं जेकरा प्रकार् से आज हमनी के मातृभाषा उचजयार चबया । एचर्या के सबसे बड़ गाुँव गहमर, गाजीपुर में भोला नाथ गहमरी के जनम 17 चदसम्बर सन् 1923 के भइल रहे । गहमरी जी के प्रकाचर्त र ना में -बयार पुरवैया , अुँजुरी भर मोती , लोक राचगनी आचद काव्य सन्ग्रह बह च शत रहे । गहमरी जी चहिंदीयो में हाथ आजमवेचल बानी बाकी गहमरी जी के ढेर प्रचसचद्ध भोजपुरी गीतन क वजह से चमलल । ईहािं के 8 चदसम्बर 2000 में एह सस िं ार से चवदा लेनी । चनगशुण ‘कवने खोंतवा में ...” के र चयता, तीन गो चकताब (बयार पुरवइया, अुँजुरी भर मोती आउर लोक राचगनी) के सज ृ नकताश, भोजपुरी लोकगीतन के नया चदर्ा देवेवाला अद्भुत साचहत्यकार, गीतकार के आखर पररवार के ओर से नमन ।




जगदीि ओझा ‘सुन्दर’

बचलया के माटी के सगु न्ध, भोजपुरी साचहत्य के काव्य पुरोधा जगदीर् ओझा सन्ु दर आपन कलम से समाज आ देर् के व्यवस्था पे गहीर ोट करत रहन । समाज के जगावे खाचतर आपन कलम के धार से कईगो कालजयी र ना गढ़ले । एगो महान चव ारक, भोजपुरी के सम्मान के आवाज उठावे वाले पचहला भोजपुररया के आखर पररवार के ओर से नमन ।



कैलाि गौतम

मिं पर जब अमौसा के मेला र्रू ु होखे त श्रोता आनिंद में डूबे उतराये लागे लोग । आपन कलम के धार आ आवाज के पतवार पर आनिंद के समुन्दर में श्रोता लोग के घुमावे आ झमु ावे वाला कचव कै लार् गौतम के आपन जीवन काल में पाठक और श्रोता लोग से जवन प्रर्िंसा भा ख्याचत चमलल उ कवनों चवरले कचव के चमलेला । जनवरी 1944 में िंदौली, वाराणसी में जनमल कचव कै लास गौतम जी चदसम्बर 2006 में दुचनया से चवदा लेनी । एह महान कलमकार के आखर पररवार के ओर से नमन ।






विलानाथ वमश्र

4 मा श 1944 के जन्मल चर्लानाथ चमश्र जी के प्रारिंचभक चर्क्षा ग्राम धनाव,छपरा में भइल । फे र चमलर हाई स्कूल पटना से मैचरक आ पटना कॉलेज से बी ए । 2004 में पटना हाई कोटश से प्रर्ासचनक पदाचधकारी के पद से अवकार् लेला के बाद 4 चसतम्बर 2015 के चनधन ।चलखे के र्ौक ब पन से रहे, बाचक चलख चलख के रखत गइनी, कहीं छपवईनी ना ।


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गणेि उपाध्याय ‘गोबर गणेि’

भोजपरु ीया माटी साचहत्य खाचतर हमेर्ा उवशर रहल बा । एक से एक बरहगुना लोग एह माटी पे आइल । अइसने बरहगुना व्यचित्व रहीं कचव गणेर् उपाध्याय उफश गोबर गणेर् जी । कचव के साथे हास्य व्यगिं कार अचभनेता, च त्रकार । मिं पर जब कचव गोबर गणेर् जी के माइक चदयाय त हास्य व्यग्िं य के फुलझरी छुट जाय आ लोग पेट पकड़ के बइठे । उत्तरप्रदेर् के गाुँव करचहया चजला गाजीपरु में 1941 में ईहािं के जनम भइल आ सन 2011 में एह धरती से चवदा लेनी आखर पररवार के ओरसे नमन ।





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