Sep - Oct 2016

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संयक ु ्तंक (सस्ंबर-अकटूबर)

भोजपुरी

2016 अकटूबर वर्ष: 2 अंक:9

एगो डेग भोजपुरी साहित्य खाहि

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प्रकाि​ि / संपादि मंडल : संजय ससंह , ससवान देवेंद्र नाथ सिवारी , वर्ा​ा शसश रंजन सिश्र , नई सदल्ली नबीन कु िार , दबु ई

िकिीकी -एहडह ंग, कम्पोहजंग असिनी रूद्र , न्यू यॉका असनिेष कु िार विा​ा , अबू र्ाबी छाया हचत्र सियोग स्वयम्बरा बक्सी , पी. राज ससंह, अजय कु िार, असि​ि सिश्र

आखर पिा ग्राि पोस्ट- पंजवार (पोखरी) ससवान , सबहार 841509 क़ािूिी सलािकार लसलिेिर नाथ सिवारी , पटना

ब्कूचन 20

ववहतन

सौरभ पतण्डेय

आखर ISSN: 2395 –7255

वर्ष: 2 । अंक: 8-9 (सितंबर-अक्टूबर -2016) । ई - पत्रिका मल्ू य : शन्ू य सब पद अवैिहिक बा ।

पद्मत सिश्रत

7

गजल

भोजपुरी डत॰ जौहर शतफियतबतदी

27

ननंदक ननयरे रतखिये ज्योत्सनत प्रसतद

19

केकरत के सतधू कही​ीँ केकरत के चोर ्ंग इनतय्परु ी

34

भोजपरु ी सितज आ भतर्त पी. रतज ससंह

48

20

ददवतली

सस्ु मि् सौरभ

22

परामिश मंडल प्रभाष सिश्र , नाससक अिुल कु िार राय , बनारस र्नंजय सिवारी , िुंबई चंदन ससंह , पटना बृज सकशोर सिवारी , सोनभद्र

सुर्ीर पाण्डेय , दबु ई पंसडि राजीव , फ़रीदाबाद असजि सिवारी , सदल्ली असि​ि सिश्र, डु िरांव राजेश ससंह , ओिान

भोजपरु ी अस्मि्त के सवतल (चचत्रकथत) िनोज कुितर

79

आखर में प्रकाहि​ि रचिा लेखक के आपि ि आ ई जरुरी िइखे की संपादक के हवचार लेखक के हवचार से हमले । लेख पे हववाद के हजम्मेदारी लेखक के बा । संपका : आपन िौसलक अप्रकासशि रचना , लेख ,कसविा , फोटो , सवचार आखर के ईिेलआईडी aakharbhojpuri@gmail.com पे भेज सके नीं । सुसवर्ा खासिर रचना सहंदी यूसनकोड िें ही भेजीं । राउर रचना पासहले से कहीं प्रकासशि ना होखे के चाहीं । मुख्य पृष्ठ छाया/आवरण : आिीष हमश्र www.aakhar.com | facebook.com/Aakhar | Twitter : @aakharbhojpuri


स्थाई स्तिंभ आिन बात : बतकूचन : िौरभ िाण्डेय सचत्रकथा : मनोज कुमार राउर बात सनहोरा

कचिता / गज़ल गीत 4 7 81 83 84

च िंतन/ बत-कही तनी होखे द िेयान सिया हमरा के : एि. डी. ओझा आजी के थाती िे (महु ावरा) : अजं ली राय सनदं क सनयरे रासखए आँगन कुटी छवाय (भाग- 1): ज्योत्िना प्रिाद लोक-िंस्कृ सत नारीए िे िमृद्ध होला : के शव मोहन िाण्डेय तोसहं के बेंची धसन भइिीं ले आइब : डा॰ प्रमोद कुमार सतवारी राजसनसतक िाटीन के बीच िैंडसवच बनत आर.बी.आई. गवनषर : गौरव सिंह भोजिरु ी िमाज आ भार्ा: िी. राज सिहं कहाँ ले कहीं हम ‘सकरण’ के कहानी: िंकज भारद्वाज मातृभार्ा के िवाल : देवन्े र नाथ सतवारी भोजिरु में - एगो आदं ोलन भोजिरु ी खासतर (ररिोताषज): रसव प्रकाश िरू ज दू गो सकताब : डा. प्रमोद कुमार सतवारी : लइकी कइिे करी िढाई शहर जा के : समसथलेि चौरसिया कै ररयर:िझु ाव आ सवकल्ि (सहन्दी सवशेर्) : अनरु ाग रंजन मधबु नी सचत्रकला : असभर्ेक कुमार श्रीवास्तव िचरा : माई भगवती िे भगत लोगन के िंवाद के गायन शैली : नबीन कुमार :

15 33 34 37 42 45 48 51 53 55 59 66 75 77 79

ई कवन सहिाब : राजीव समश्र दहेज : अवनीश िाठक हम स्वाथी हई ं: डा॰ प्रमोद िरु ी झल ु हु ा झल ू त कृ ष्ण मरु ारी : हृसर्के श चतवु दे ी कइिन भइल सवकाि : लोके न्र मसण समश्र खग बझू ेऽ खगही के भार्ा:जयशक ं र प्रिाद सद्ववेदी गजल : डा॰ भोला प्रिाद आग्नेय गजल : डा॰ जौहर शासियाबादी रुकीं मत -झक ु ीं मत: डा॰ असनल प्रिाद 15 गो हाइकू : डॉ. (श्रीमती) शारदा िाण्डेय दू गो गीत: आरती आलोक वमाष : तीन गो कसवता: अवधेश कुमार रजत तरघिु का : बािक ु ीनाथ सिंह दू गो कसवता: नरु ै न अिं ारी: टहलआ ु : िीमा स्वधा गीत : समसथलेश मैकश गीत : जसनत कुमार मेहता दू गजल : अशोक कुमार सतवारी

17 17 17 18 18 18 19 19 41 59 68 69 70 71 72 73 73 74

कथा कहानी/ लघु कथा 3 ठो चटु कुला : बािक ु ीनाथ सिंह के करा के िाधू कहीं के करा के चोर:तंग इनायतिरु ी सदवाली : िसु स्मत िौरभ राधा के सिसिल्टी : बािक ु ीनाथ सिंह जब बदमाशी करत रहनी -2 : प्रीतम िाण्डेय िलनवा के काथा: सवध्ं य समश्र सवहान : िद्मा समश्र के बा आिन : डा॰ ऋचा सिहं िी-िी गाड़ी (बाल कहानी) : मनोज कुमार कलजगु के िदु ामा: असभर्ेक सतवारी

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आखर चौपाल

आपन बात आखर िररवार

भो

जिरु ी भार्ी लोग िऽ अक्िर एगो तोहमत लागेला सक ई लोग अिना भार्ायी असस्मता के लेके जागरुक नइखे । हालासक एह िंकल्िना के कवनो मजबतू आधार नइखे तब्बो एह बात के एकदम िे नकारलो नइखे जा िकत । कवनो भार्ाभार्ी के मन में अिना मातृभार्ा खासत जवन िम्मान आ िवं ेदना लउके ला, िामान्य तौर िऽ उ भोजिरु रयन में ना लउके । अगर रसहत त लउसकत जरुर । िवाल ई बा सक एगो भोजिरु रया अिना माई भार्ा के आत्मिात काहें नइखे कर िावत ? का अड़चन बा ओकरा िोझा ? जवाब हर आदमी के िता बा । िररवार में जनमल सशशु के जनमते ओकरा चाचा, काका, दीदी, भैया, चाची, काकी लोग के सचन्हावल जाला । तनी बड़ होला त छोट-बड़ खासत व्यवहार के मयाषदा सिखावल जाला । उ िब िीखे के सस्थसत में होला । एही िमय में हमनी के जाने अनजाने ओकरा िे छल करे नी जा । उ अिना माई के बोलत िनु ेला, दल ु ारत देखेला बासक अिना माई भार्ा के बारे में आउर जाने के ओकर लालिा अधरू ा रह जाला । जब खदु िीखे के सस्थसत में आवेला तब तक िीखेवाली भार्ा बदल जाला । ओकरा अवचेतन मन में माई भार्ा हमेशा सवराजत रहेले । एही चलते जबे भोजिरु ी के लेके कवनो चचाष, सवमशष भा आंदोलन होला त उ स्वाभासवक तौर िऽ ओकरा िे जड़ु ल महि​िू करे ला । भोजिरु ी भार्ा के अकादसमक स्तर ि िम्मान सदयावे खासतर जवन स्वतःस्िूतष आंदोलन शरु​ु भइल बा उ एही स्वाभासवकता के िररणाम ह । एह आदं ोलन के अगआ ु ई यवु ा वगष कर रहल बा । ओकरा िाछे ना त कवनो मठ के मठाधीश लागल बाड़न नासह कवनो गप्तु एजेंडा बा । उद्देश्य िाि बा – भोजिरु ी के अकादसमक स्तर ि िम्मान । एह आंदोलन में उ तत्व िाि लउक रहल बा जवना िे भोजिरु रयन खासतर भोजिरु ी के आत्मिात करे खासतर रास्ता आिान होइ । िसहला तत्व, भोजिरु ी खासत िम्मान आ दिु रका माई भार्ा खासत िंवेदना । भार्ायी असस्मता खासत प्रकट भइल ई चेतना सनसित रुि िे मील के ित्थर िासबत होइ । भोजिरु रया िमाज में हर सदन एगो उत्िव के रुि में देखल जाला । हर मसहना अिना गोदी में कवनो ना कवनो उल्लेखनीय त्यौहार िमेटले आवेला । सितम्बर मसहना के दू गो िरब उल्लेखनीय बा – तीज आ सजउसतया । दनु ू िरब में नारी शसि के िमिषण, त्याग, श्रद्धा आ सवश्वाि के आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 4

उत्कर्ष सदखाई देबल े ा । एगो में ित्नी अिना िसत के कल्याण आ हर जनम में उनकर िाथ िावे खासतर अखण्ड व्रत करे ली त दिु रका में महतारी अिना ितं ान के हर िंकट िे बचावे खासतर सनजषला व्रत करे ली । भोजिरु रया िमाज में स्त्री के हर रुि िरु​ु र् के िम्बल प्रदान करे ला । शोक आ ितं ाि में डूबल िरु​ु र् खासतर ित्नी के प्रेम जीवन खासत राग िैदा करे ला । जब दसु नया में िब के हू िे सवश्वाि उठ जाला त माई के अँचरा में भरोिा के नया बीज िे रु िे अक ं ु ररत होला । बसहन के बान्हल रक्षा ित्रू भाई के कतषव्य िथ िे सवचसलत ना होखे देबेला । बेटी के सकलकारी िे प्रकृ सत के िारा िौंदयष जागृत हो जाला । इहे राग, बीज, रक्षा-ित्रू आ सकलकारी आदमी के जीयइबो करे ला आ उबरबो करे ला । त्याग आ िमिषण के िाथे-िाथे नारी के शसियो भोजिरु रया िमाज में स्तुत्य बा । दशहरा के शरु​ु आत के िाथही हमनी के िमाज के िरु लय भसिमय हो जाला । हर घर में देवी के आराधना आरम्भ हो जाला । दगु ाष जी के सवसवध रुिन के बखान करे वाला िासहत्य आ िंगीत जन- जन के अनप्रु ासणत क देबल े ा । बरु ाई के मसहमामंडन करे वाला आिरु ी प्रवृसत वाला लोगन के करे जा दहले लागेला । देश के हर स्त्री अिना में शसि के िाक्षात्कार करे ली । स्त्री के भोग्या मात्र िमझेवाला लोग के एक बेर िे रु भान हो जाला सक शसि के रुि धारण क के नारी िमस्त आिरु ी शसियन के सवनाश कर िके ली । त्रेता में िाक्षात सवष्णु के शसि- िजू ा करे के िड़ल रहे रावण के िहं ार करे खासतर । दशहरा के दश सदन िमाज आत्मसचतं न करे ला आ एह सनष्कर्ष ि िहचँ ल े ा सक बरु ाई के तनो ताकतवर होखे ओकर अतं सनसित बा । दशहरा सबतला के थोरहीं सदन बाद दीिावली के सदयरी जरे ला । िंघर्ष के राह िऽ चलके हर िंकट के जीत लेबे के अविर िऽ जरे ले सदयरी । िंकल्ि आ िाहि के ि​िलता के उिलक्ष्य में जरे ले सदयरी । िमाज अिना नायक के सवजय-िवष ि जरावेला सदयरी । हर दौर में खल चररत्र रहल बाड़न । ओह चररत्रन के आिन िाम्राज्य भी रहल बा । कवनो ना कवनो नायक ओह िाम्राज्य के मसटयामेट क के प्रजातांसत्रक शािन स्थासित कइले बा । लोक के हाथ में ित्ता आवे के उल्लाि-िवष के अविर ि जरे ले सदयरी । भोजिरु रया िमाज के दशहरा आ सदयरी-बाती के अविर ि बहते बधाई । ओइिे तऽ कवनो भार्ा के िासहत्य अिना के स्त्री िे मि ु क के आिन


आखर चौपाल असस्तत्व बचा ना िके , बासक भोजिरु ी में नारी सवमशष कुछ असधके लउके ला । गीत, गजल, कथा, कहानी, नाटक िसहत िासहत्य के हर सवधा में स्त्री के कें र में राख के िासहत्य िृजन के काम भइल बा आ खबू े भइल बा । एकरा िाछे ठोि तासकष क आधारो बा । भोजिरु रया िमाज कृ सर् आधाररत िमाज ह, जहाँ िमदु ाय के बड़ा महत्विणू ष भसू मका होला । एगो आदमी के आिन माई त होखबे करे ली, टोला िड़ोि के चाची काकी भी बड़की माई आ छोटकी माई कहाली । वइिहीं आिन जनमल बेटी आ भाई िटीदार के बेटी में कवनो िकष ना होखे । बसहन के िररभार्ा के दायरो घर िररवार के चौहद्दी िे बहरी सनकल के िमदु ाय तक जाला । मेहरारुन के मंडलीयो घर िररवार के िाथे गाँव मोहल्ला तक आिन हस्तक्षेि करत लउक जाला । सबयाह शादी में एह हस्तक्षेि के महि​िू कइल जा िकत बा । िामासजक िंरचना खासतर ई िामदु ासयक भावना िंजीवनी के काम करे ला । कतनो सविसत्त में िख ु के आशा बनल रहेला । एह उम्मीद के सजयावेवाली के हू आउर ना, कवनो चाची, काकी, महतारी, बसहन, बेटी, गोसतनी, ननद भा िाि ही होली । औद्योसगक िमाज में एह बंधन के अभाव सदखाई देबल े ा । एकाकी िररवार में िसत ित्नी के बीच के सववाद

िल ु झावे वाला कवनो मजबतू खम्भा ना होला । क्षसणक िरे शानी िे आदमी सवर्ादग्रस्त हो जाला । हताशा, सनराशा आ सविलता आदमी के कंु सठत क देबल े ा । एह िमाज के कें र में राख के जब भी िासहत्य रचल जाई त ओमे प्रेम कम निरत असधक नजर आई, काहे सक िासहत्य िमाज के दिषण होला । भोजिरु ी में जब िासहत्य रचाई त उ िामासजक वास्तसवकता के उिेक्षा नइखे कर िकत । इहे कारण बा सक सभखारी ठाकुर िे लेके महेंदर समसिर तक के िृजन में स्त्री कें रीय तत्व बाड़ी । अतं -अतं तक भोजिरु रया मनई उम्मीद बनवले राखेला आ ओकर प्रकटीकरण िृसजत िासहत्य के िख ु द अतं में लउके ला । सिछला िंयि ु ांक के रउवा िभे जवना उत्िाह िे अिनवले बानी, ओही उत्िाह िे एह िन्यि ु ांक के भी अिना हृदय में जगह देब सवश्वाि बा । अिना सवसवधता के िहचान के िाथे आखर के एगो आउर िन्यि ु ांक रउरा हवाले ।

-टीम आखर

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 5


आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 6


सचंिन/ बिकही

बतकूचन– 20 िौरभ िाण्डेय

जगत का हऽ ? अिना जाने भर में ई िभ बझु ल े ा । एह ि​िं ार के रोजीना के चलत िे रा में का-का िें टाइल बड़ुए, अिना बधु ी-सबबेक िे िभे एह ि सनकहे बसतया दीही । एह लउकत जगत के , एह िइलल िंिार के , चलल जात िभ कारबार का हऽ, एह ि बसतयावत अनसदने लोग भेंटा जइहें ! बासकर ईहो ओतने िाँच बा जे िभ के हू अिना -अिना िमझ, आिन जानल-सजयल अनभु व आ आिन बटोरल-गनु ल जानकाररये भर िे एह जगत आ िंिार के बझु ल े ा आ बसतयावेला । लइकनो के आिन िमझ आ बधु ी होले । त बड़-बढ़ू लोगन के आिन अलगे िोच आ सबचार होला । अिना सबचारहीं िे िरु सनयो अिना ि बीतल, सबगड़ल हर कुछ के बझू त सजयत बनल रहेला लोग । एही लगले ऊ लोग अिना-अिना िंिार में नीमन-बाउर बझू त-भोगत आ एह ि​िं ार के चलल आवत कूसल्ह कारबार के गनु त सजयत चलल जाला । मने, िभ के आिन-आिन िंिार बा । कूसल्ह समला के ईहे कहल जा िके ला, जे ई दसु नयो एगो गजबे के दसु नया सबया ! िभ के दसु नया अिना ढङ के ! िरु​ु ज के अँजोरा में कतना ना कुछ सदठार बा ! बासकर, कौ हाली बझु ाला जे एहू ले ढेर त रात का अन्हारा में अलोत बा ! जाने का होखी जे कतहीं कूसल्ह अलोतवा िोझा आ गइलन िऽ ? चनरमा के बीनल-िटकाइल उज्जर झाँहीं में अचकच करत ई दसु नया रासत के लभेराइल कररयई में िाँचहूँ ऊहे ना होले, जवन ओकर सदन वाला रूि में देखे के हमनीं के लकम िरल बड़ुए । सदन अगर सदन हऽ, त रसतयो रासतये हऽ ! एगो अलगे के िमै-िंिार ! सिस्निच्छ के रात लमहर घोंघ तनले गमे-गमे ि​िरत का कुछ ना लुकवावत आ का कुछ ना लउकावत अिना िरु रये आवल करे ले ! आ कतहीं अमावि के कुच-कुच अन्हार कररखा िइलवले होखे, त कुछऊ कहहीं के नइखे ! सचन्हलो चीजइु या अनसचन्हार बझु ाए लागेले । रोजीना के जानल देखल िे ड़न के डासढ़ भा मँजु वान के झोंझ कौ हाली रीढ़ में कँ िकँ िी के कारन हो जाले िऽ ! एह कूसल्ह ि त ढेर लोग सनकहे बसतयावहूँ के ना चाहिु । आ तवना ि, अक्िरहाँ लोगन खासतर ई रासत होले काहें के ? ितू े के ! त लोग िों-िों करत ितू ल करे ला । जले के हू के करे जा में के धँिल सहड़ं ाइल-घोंटाइल बाथा के उिसट के बसहरावे के कारन नत बसन आओ ! आम सजसनगी में के हू खासतर कुछऊ जाने-बझू े के कबो जरूरत बनबो कइल, त एह कूसल्ह खासतर एक िे एक बड़-बढ़ू लोग बा । सनकहे गसहराह आ बसु धमान कहात एक िे एक बाबाजी लोग होला । मोट -मोट आ मासहर-मासहर िंसडतन के िउँिा िोढ़-िोढ़ जमात भइल करे ले ! सजन जाना के कहल्का ि सिवा आँसख मँसू द के भरोिा करे के , अउरी कवनो सवकल्ि एह िमाज के लगे नइखे रहे सदयाइल । आ िही बसतयावल जाव, त लोगओ जानल ना चाहि,ु ना एह ि कुछऊ िोचे के चाहेले । जे, सकररन डुबला आ सकररन िुटला का बीचे नजारा काहें हतना

गम्ु मी मरले, त कौ हाली रहस्यमय भइल रहेला ? एही िे ई कथनी चलल बा, जे जवन कुछ अिना आँखी लउकल करे ला, ओतने भर ले ई दसु नया ना भइल करे ! कहाला जे िभ के आँसखयो अलगा-अलगा ढङं िे सतकवेले । मरद होखिु भा मेहरारू, िभन के आँसख के कुछऊ जानकारी चाहीं, त अिनहीं ढङ िे जोहेले ! एह के नजररये िे ताड़ल कहाला । अइिन-अइिन ना मेहरारू बाड़ी िऽ, जे सनकहे ताक दीहें िऽ, त िरत-िुलात कवनो हररयर लतरी नरम िरत कररया जइहें िऽ ! उताने चटकल िुलाये के तैयार कोंढ़ी अचके में झरसख के गीरर िरी ! िाँझ-सभनिारे दनू ो बेरा िेन्हात गाइ सबिख ु े लसगहें िऽ । अिना सधयवा के चानी ि करू के तेल थोित ‘कचऽ-कचऽ तेसलया..’ के िरु कढ़ले कवनो िरहर माई के अचके में दाँती लागे लागी । ‘हमार बाबू हमना..’ के िरु ि ठुमकत बबआ ु के अचके में ‘कोल्हू के बदरा’ अि ‘दबु राई’ घेरे लागी । बात-बात में रोअत बबआ ु बेरेबरे िाँि टाने लसगहें । ई कूसल्ह, ई िभ, एह ि​िं ारे के चलल आवत कारबार के सहस्िा हवे िऽ । ई िभ एही ि​िं ार के दािा आ काथा हवे िऽ ! आजु िे ना, िरु सनया-िरु खन के जमाना िे ! ईहे नजर-नजर के िे र कहाला । एह नजर के लगला आ नजर के अँइछँ ला का िाछा अिना िमाज के इसतहाि में का-का नइखे भइल ! कतना-कतना ना आि-िड़ोि सबगड़ गइल बाड़े िऽ । कतना ना हीत-नाता िे भाव-बेवहार छूसट गइल बा । घर-दआ ु र छोड़ीं, िउँिे गाँव के गाँव ले बरा गइल बा । मरद लोग हालाँसक एह कूल्ही में ढेर ना िरिु । मरदो लोग बाड़े, बासकर कम बाड़े । अलबत्ते देखीं, नजर आ सकररया के ‘काट’ खासतर मरद लोग जरूरे सबद्या सिखले बा । बाबा मच्छे न्दरनाथ आ बाबा गोरखोनाथ ‘नाथ िम्प्रदाय’ के माध्यम िे एही कूसल्ह के ‘काट’ खासतर बड़हन िरिचं िीखल रहे लोग । खसलहा िमाज में िइलल एह घोर तामसिक कारबार ि जोरदार ‘काट’ मारे खासतर । िाई ं जी कहले बानीं, जे, हासन-लाभ जीवन-मरन जि-अिजि सबसध हाँथ ! माने, ई छौ गो कारन ि अमदी के बि ना, सबधना के बि चलेला । एह छौउओ के मनई अिना-अिना करम िे भोगल करे ले । त अिना हाँथे का बा ? एह ि लोकाचार कहेला, जे आइल-गइल, खाइल-िीयल लीहल -दीहल, ई छौगो करम अिना हाँथे बा ! माने, ई छौउओ अिना कइले चलेला, आ सनभवले सनभेला । बासकर एहू सनभवला में नजर, सकररया, टोटका, टोना आसद-आसद के बड़हन ‘खेला’ बा । गाँव-जवार में नजर लगला के आ नजर अँइछँ ला के एक िे एक सखस्िा-काथा कहात-िनु ात बनल बाड़े िऽ ! अतना सक आजओ ु एण्रॉयड मोबाइल के इस्िीन ि अिना तजषनी िे खाबरु -खाबरु बकोटत लइकी के अचके में िछाड़ मारत आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 7


भइु यँ ें लोसटयइला के खबर िनु े के समल जाला ! ‘जतरा सबगसड़ गइल, आ काम निा गइल’ के रोना रोअत आजओ ु कतना िढ़ऽकुआ आ नोकरीजोहआ लइका लिरात लउसक जइहें ! एही िे कौ हाली बझु ाला, जे अइिना िोच-बेवहार के बड़-बड़ हरि अिना िमाज के मन-बद्ध ु ी में गसहरे सभतरी गाड़ल तख्ती ि बल ु ा खोद-खोद के उके रत सलखाइल बा । अइिन जे ई हाल्दे मेटकइले ना मेटकाओ । कहाला, जे सशक्षा िे जागरुकता आ सववेक बढ़ेला । बासकर, सशक्षा िे नू ? गाँव-जवार में आजु सशक्षा के नाँव ि जवन चीका आ डोला-िात के भदेिी धरु खेल भइल बा, ओह ि अलगा िे एगो िरु ान सलखे के िरी । एह सशक्षा िे के हू का उमेद करो, जवन तोता-रटंत का आगा कुछऊ जगसहये ना देले ? िे, बररिन ना, िीढ़ी दर िीढ़ी नजर, छाया, टोना, टोनही, डाइन, ओझा, गनू ी, बाबा, भतू , बरम, देव, देवी, मने, दक ु ा-दक ु ा के िरिंच बनल आ िइलल चलल आ रहल बा । करीब हर गँइयें में के हू ना के हू रउआ भेंटा जाई, जेकरा लगे एक िे एक ‘आिन सकररये, आँखी देखल’ सखस्िा-काथा कहे के बड़ुए । असधका जानकार लोग त घर के घर टोह लेले बा, जे के करा घर में कवना के नजर कतना ‘गसहर’ बा, आ कवना के बोली कतना ‘माहर’ सबया ! आजु िे ना, कौ िीढ़ी िसहलहीं िे ओह ‘घर-िररवार’ के चचाष होत आवत समल जाई । कौ हाली िरु ान नाँव आ घर हटतो रहेलन िऽ, आ नवहानवहा नाँव-घर जड़ु त रहेलिन िऽ । बासकर अइिन सखस्िा-कहानी बनल रहेला । आजओ ु के िमै में कवन मइया, कवन िुआ, कवन काकी, कवन भउजी ‘खेलेली’, ई गाँव के अक्िरहाँ मेहरारुअन के सनकहे मालमू भइल करे ला । त मन में िवालओ उठे ला, जे काहें सबिेि क के ई मेहरारुए ‘खेलेली’ िऽ ? त कारन बा, घनघोर ‘अिरु क्षा’ के किारे चढ़ल खखोरत डाह के टभकत भाव ! एगो त सबना तुक के सशक्षा, भा एकरा कुसशक्षा कहीं त बलक ु ऊ नीमन, आ तवना ि भरल जवानी में सबधवा भइल िुआ, काकी भा भउजी लोगन के िहाड़ भइल सजसनगी के अगिरे काटे के किारे िरल िराि ! अइिना में इन्ह जानी के सदमाग में आिन लहरत देसह के जरूरत आ तरािल मन के बेचैनी हर घड़ी खीला ठोंकत ‘बयेखड़ा’ धँिावत रहेली िऽ । आ ईहे काँहें, सबयहली आ सबअहसतयो में िे ढेर जानी के सजसनगी के बड़हन सहस्िा िरदेि कमाये गइल अिना मरद के इतं जार में अगिरे सजयत-काटत बीसत जाला । कमाये गइल अइिन मरदो लोग त छठे -छमँसहयं े गाँवें आवल करे ले । अब अइिना माहौल में िरल मेहरारुअन खासतर आि-िड़ोि में िलाना जानी के अिना बेकत िङे मनमउज करत रहला के असनवषचनीय िख ु , आ सचलाना जानी के जनमतआ ु बबआ ु -बबईु के सकलकारी िारत बोली आ टाँिी मारत अवाज िहिह सजसनगी के झलझल बानगी बझु ाए लागेले । एह कारनन िे जनमेला अगिरे सजसनगी काटत ओह मेहरारुअन के मन में िरचडं डाह ! एह डाह का मारे उन्हनीं के जीउ हर घड़ी सहड़ं ाइल घोंटात रहेला । आ, मार सित्ते ऊ जरत रहेली िऽ । मनहीं मन एही जरला का िाछा अिना के ‘बझु वा देवे’ के िे रा में, जे ‘हमहूँ कुछऊ बानीं’, जरसनयाही मन के सघनही भाव इन्हनीं के तंत्र-मंत्र-जंत्र आ ‘डाइन-सकररया’ भा ‘देवी खेलावे’ के धँआ ु त गली में भटका देला । आ अइिन मेहरारू कूसल्ह िहजहीं ओह भटकाव में लगातार भल ु ात चल जाली िऽ ! अतना सक घर-िमाज, आि -िड़ोि हर जगहा बाउर हो जाली िऽ ! त ईहो बा जे, असशक्षा के कारने आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 8

सौरभ पाण्डेय सौ रभ पाण्डेय जी के

पैतृकभूमि उत्तरप्रदेश के बमिया जनपद के द्वाबा पररक्षेत्र हऽ । रउआ पचीस बरीस से सपररवार इिाहाबाद िें बानीं । मपछिा बाइस बरीस से राष्ट्रीय स्तर के अिग-अिग कॉपोरे ट इकाई िें काययरत रहि बानी । आजकाि के न्द्रीय सरकार के पररयोजना आ स्कीि के संचािन खामतर एगो व्यावसामयक इकाई िें नेशनि-हेड के पद पर काययरत बानी । परों को खोिते हुए (सम्पादन), इकमिया​ाँ जेबी से (काव्य-संग्रह), छन्द्द-िञ्जरी (छन्द्दमवधान) ना​ाँव से राउर ककताब प्रकामशत हो चुकि बाडी स । सामहत्य के िगभग हर मवधा िें रउआ रचनारत बानीं आ महन्द्दी आ भोजपुरी दूनो भासा िें सिान रूप से रचनाकिय जारी बा । सामहमत्यक संमिप्तता के दोसर क्षेत्र बा - सदस्य प्रबन्द्धन सिूह ई-पमत्रका,” ओपनबुक्सऑनिाइन डॉट कॉि’ ; सदस्य परािशयदात्री िण्डि त्रैिामसक पमत्रका ’मवश्वगाथा’ ।

नीमन-नीमन मेहरारू के िमाज अनेररये डाइन भा देवी के नाँव देत जीयल मोहाल कऽ देला । जब िमाज के अकाि में घनघोर तमि के घाटा िीढ़ी दर िीढ़ी घेरले होखे, त सववेक के अँजोर हाल्दे मन के धरातल ि ना उतरे । आजओ ु िसजरे िे बरखा के सझसहरी बनल रहए । कौ सदन भ गइल रहे आजु । एक बेरा रामजी खबू उड़ाित-िड़ाित लागिु हहािे िीटे । त तीन बेरा ऊ सझहरी िारत एकिरु रये झींसियात जािु । आगा-िाछा चारू ओर ओदे-ओद, तरे -तर भइल बा । अङनवे-दअ ु रे आ ओिरवे ले ना, िभके मनओ में मार सकच-सकच भइल बा । हइिे बरखा िरे के हऽ ? जीउ उसबया भरल बा । उिरी बेला भइल रहे । मँझली चाची िछवा ओिारा में बँिखट िरले रामधनी बो, रामजनम बो, धेनसु खया के माई, िुदेना िुआ आ अउरी द-ू तीन जानी िङे कहँवाँ-कहँवाँ के बतकही उठवले रहली । धेनसु खया के माई मँझली चाची के चानी ि भर चड़ु ु आ ललका तेल थोित उनकर बार मींित माथ दबले जात रहली । मँझली चाची के ई किरबत्थी आजएु के ना हऽ । के हू चाहे त सदन भर तेल घोंित उनकर माथ दबावत रसह िके ला । ऊ िसहषयाइ के ‘अब छोड़ दऽ’ ना कसहहें । ‘आ रोंऽऽ, रउआ मीिऽतानी त तनी सनकहे मीिींऽऽ.. राउर ना त हथवे बझु ाता, आ ना अङुररये बझु ातारी िऽ ! हमरा किरा ि त बझु ाते नइखे जे इसचको तेलओ लावल बा ?..’ ‘का दल ु सहन ? कूसल्ह बथवा अिना चासनये ि बइठवले रहेलू का हो ?’ धेनसु खया के माई दबावत-दबावत सनकहे उसबया भरल रहली - ‘का हो खड़ेिरी काकी ! तनी तँहू ीं कहऽ.. हमरा कौ घटं ा भइल इनकर किार मींित आ माथ दबावत ?..’ ‘आ ना रहे देबू ? जा छोड़ऽ होने, हम अिहीं ठीक बानीं..’ - मँझली


चाची हँिते-हँित धेनसु खया के माई के मीठसहं सझररक सदहली - ‘का हम आिन माथ दबवावे के बोलवनीं हाँ तहन लोग के ?.. जाः-जाः.. रहे दऽ..’ तले िुलवा, रामधनी बो के बारह-तेरह बररि के छौंड़ी, हँकाित धउअरल आइल - ‘आरे माईऽऽ.. सललवा के मइया मरर गइली रे ऽऽ.. !’ ‘आऽऽसह !.. बढ़ू ी चसल गइली ! .. ई कब रे .. ?’ ‘घटं ा भर ले भइल..’ ‘आछा..!’ - अतना िनु ते रामधनी बो अिना के िम्हारत जइिे असस्थराह होखे लगली - ‘आ हँ, आजु तीन सदन िे हकहकी त बरलहीं रहे । हमरा त ओही सदने मालूम भ गइल रहे, जे ऊ अब ठसठहें ना, जब मसठयवा के बगइचा में उनका हतना करे ड़ घमु री लागल रहे । हऊ दािा उनकर, का कवनो डागदर के मान के रहल हा ? नाः ! अनेररया के रोिया सजयान कइलेहा सत्रवेनी ! खसलहा लोगन के जनावे के , जे बड़ा इतं जाम कइले बाड़े अिना माई खासतर..’ ‘का सजयान भइल हा हो ? अतनो ना कररहें बेटा लोग ? तवना ि कसलकओ आजकाल कमाितु भइल बाड़े ? अतना त करहीं के चाहीं..’ - िुदेना िुआ सनकहे शास्त्र आ नीसत के बात करे लगली । एही में रामजनमो बो आिन बात मेरवली - ‘आ हँऽ, रउओ िसहये कसह रहल बानीं, ए िुआजी.. उनकर लूर-लकम-दािा कूसल्ह दोिरे रङ के रहे । एह ि कुछऊ कहे लाएक बा का ? का कहल जाव ?’ अतना कहते िभ जानीं के आँसख आि​ि में िङहीं समलल, आसक इसचसकये में ‘िभ’ कहा गइला के चमक कूसल्ह जानी के महँु ि लहर गइल । ‘का रे िुलवा, तें ओह घरे गइल रहले हा का रे ..?’ ‘माई, ऊ मसनसिया न.ू . ऊ मानते ना रहे.. ओकरे कहला ि िङे गइल रहनीं..’ ‘खोभालवनोऽऽ.. तोरा मना नू कइले रहनीं हाँ हम, जे ओह घरे जाए के नइखे ?’ - रामधनी बो के अवाज मारे रीिी चट दे ऊँच भ गइल । िुलवा एह ि कुछऊ कसहत, आ सक चिु ाइल रसहत, ई त ना बझु ाइल, बासकर रामजनम बो के मन जरूर लुबलुबाह भइल रहे - ‘आ चिु ना रहऽ, लगलू अनेररये सचकरे ! का रे िुलवा, अउरी का देखले हा ओजगु ा रे ? .. का होता बचु ी ?’ ‘आ ना रहे देसब ?’ - रामधनी बो भलहीं िुलवा ि सखसझयइली हा, बासकर, बाड़ी त िुलवा के माइये नू ? ऊ ना चाहत रहली जे बसु चया के एह लगले कुछऊ जाने भा बोले के िरे । बासकर ओइजा िे आइ के िुलवा त अलगे सचहं ाइल रहे । ओकरा कौ गो ना चीजु अजबु े बझु ात रहए उहँवाँ के ! ‘हँ ए माई, कसलका चाचा उनका घाट ि ले जायेके हाली-हाली कइले रहले । घरवा िभ ि सचकरत रहले जे हाल्दे कइल जाव, ना त देसह सबगड़ रहल बा !’ - ई कहते िुलवा अिना लइकबधु ी िे िछ ू लि - ‘ई काहें रे ?..

देसह सबगड़ी, ऊहो हइिे ? हतना हाल्दे ?.. काँहे माई ?..’ ‘आ दरु ो रे ! अब ई हम का जानीं, जे का सबगड़ी आ का बनी ?..’ रामधनी बो एह चलत बसतया के झटके में ओररयावे के कइली - ‘जो भागेले सक ना इहँवाँ िे..’ तले मँझसलयो चाची िे ना रहाइल - ‘आ का रोंऽऽ.. का भाग-ु भागु कइले बानीं जी ?.. जाये दे रे बसु चया, तोर माई िरु​ु ए के कठकरे ज हई..’ - आ िे र अिना बोली के नरमई में िछ ू े लगली - ‘अउरी के के चहिँ ल बा रे बसु चया ओजगु ा ?’ ‘के हू ना..’ ‘आ हँ, त के चहिँ ी ? तबहूँ कहत बाड़े तें जे घटं ा भर ले भ गइल बा मअ ु ला । अबहीं ले के हू चहिँ ल नइखे ?’ ‘ना.. खासलहा मन्दो िुआ लउकल रहली हा..’ ‘ऊहे तऽ कहई,ं जे ऊ काहें ना चहिँ ली हा ! िङहीं बररिन िे ‘गोधाई’ चलल आवत रहे !’ िुलवा के ई सतरछई इसचको ना बझु ाइल । ऊ अिना माई का ओरर िे ओजगु ा िे िरक जाये के अबकी िोझ इिारा िा गइल । रामधनी बो कुछऊ िछ ू ती तले िुलवा चलल उहँवाँ िे भासग । ‘देखींऽऽ ! मन्दो िे रु एक हाली अगिरे रसह गइली सक ना ? ‘ - धेनसु खया के माई के बोली में िाँचहूँ के उदािी बझु ात रहए । ‘आ हँ होऽऽ !.. के का लेके आइल बा, आ का िाई आ भोगी, ई के जान िके ला ?’ - मँझली चाची का मँहू ें अनायािे बोली िूटत गइल - ‘..मन्दो खासतर कबहूँ का रहल ? ना माई, ना बाि, आ ना आिन घरे -दआ ु र ! भाई -भउजाई के घरे अिना देसह खासतर िरल सजयत जा रहल बाड़ी ।.. सबयहओ भइल त तीसनये मसहना में मरद चसल गइल । दोहराई के एही गाँवें आ गइली..’ ‘एही नू कारने, मन्दो के सतंतहा जीसभ के बोल-बसतया ि का कहल जाव, ओकर सतकवलओ ले माहर होला !.. तवना ि ऊ दक ु ा-दक ु ा सबद्या सिखले सबया !.. राम-राम !’ कवनो मेहरारू एह गोल में अिना जगसहया िे उठल ना । बलुक िभ के बइठे के ढङ जरूर बदल गइल रहे । आ िभन के आँसखन के ितु ली सनकहे चाकर भइल सतकवे िे बेिी कुछऊ िनू े खासतर जहआइल लगली िऽ ! ‘ए बसहनी, कवनो रोहा-रोहट नइखे बझु ात का ? का जी, कुछऊ िनु ाता.. तनी कान लगाई ंतऽ ?.. ‘ - िुदेना िुआ िे ना रहाइल । ‘आ का के हू रोई जी ? जवन रहली हा, ऊ रहबे नू कइली हा । ई का सत्रवेनी आ कसलका नइखन जानत ? दनू ो बेटओ लोगन के ई कूसल्ह खबू सनमना िे मालमू बा, जे का रहे अिना जमाना में उनकर हजारी बाबा िङे अमावि के अमावि रात-रात भर नहररया ि के िीखा-सिखौअल !.. ओहोह.. सछसछः !’ आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 9


‘आ चिु इबो करऽ रानी !.. बसहनी, आिन गँइयँ ो के नाँव िउँिे जवार भर में खराब भइल त इनके आ हजारी बाबा के चलते !.. कतना ना लोग कहेला जे कुबेरा-कुबेरा रासत ले नहररया का िाछा इन्ह जाना के दीया बारत देखल गइल बा !.. हम त ना जानीं, ए बसहनी, जे का िाँच हऽ ? बासकर, गसहराह त ऊ रहबे कइली हा । आ, हजाररयो बाबा कइिे मअ ु ले, ई कूसल्ह कवनो भोर िरे के चीजु हऽ ?..’ ‘छोड़ीं, हटाई ं उनकर चरचा ! कतना-कतना ना जानी उनका िे कवनकवन ना लूर िीखल आ िढ़ल लोग ! सछः-सछः !’ ‘हम त अिना बचु ी के हर-हमेिे कहल करीं ले, जे एक त ऊ सललवा िङे रहो जसन । रहहूँ के िरल त ओकर सदहल कुछऊ खाओ जसन । आ कतहीं खाहूँ के िरल त िसहले अिना दनू ो गोड़ के आि​ि में बासन्ह के दसहना गोड़ के अङूठा के जमीनी ि ठाढ़े दबावत, सदहल्का में िे द-ू तीन दाना भा बदँू भंइु याँ सगरा दीही, आ तब खाई, भा िीही !’ - कहत-कहत रामजनम बो आिन तेजई बखाने लगली - ‘जान बा तबे ले नू जहान बा ? माने, िभकुछ त तबहीं ले नू बा जबले मनई सजयत बा ? का जी ?’ ‘देखीं, बात ि बात चल रहल बा, बासकर ई कूसल्ह के चचाष ना करे के ..’ अइिन कहतो कहत मँझली चाची बसतया के छोर आगा िरी बढ़ा सदहली - ‘बासकरऽ.. हम का भल ु ाइसब दादा ? आिन गसु ड़या ि के हऊ मारन चाल ? गसु ड़या तब कौ बररि के रहे, िनरह चढ़ल रहे दक ु ा ! माई रे माई, सिछवा अँवरवा ि ऊ का जे देखलि.. ओकर िउँिे देसहये अचके में काठ भ गइल रहे ! ओकर देही के िउँिे रङ भक्क दे उज्जर भ गइल । बझु ाय जे देही में खनू े नइखे !.. टेङरहीं के ओझाजी ना आइल रसहते त आसह हो करम ! सजसनगी भर छछनते नू रसह जइतीं अिना बाछी खासतर हम !’ अतना कहते ना कहत मँझली चाची के दनू ो अँसखया लोरा गइली िऽ ! ‘हँ ए काली माई, जागल रसहहऽ, आ सजयवले रसहहऽ, सधयवन-ितु वन के ..’ ‘तब का ! टेङरहीं के ओझा जी के तब इिारा िाि इन्हहीं ि बनल रहे.. िोझ नाँव त ना सलहले ऊ, बासकर हर अदं ाज िे उनकर इिारा एही मइये ि िरल रहए ! तब गसु ड़या के बड़का बाबजू ी सजयत रहले । ऊ िरू ा तनतनाइल उखसड़ गइल रहले ! भर अङना धम-धम गोड़ िटकत, रसह-रसह के िरु रयाि,ु कलकाता जाइ के ईहे िीखऽतारी िऽ इन्हँनीं के ? अब िे हमहूँ देसख रहल बानी, जे के कहँवाँ का िीसख-िढ़ रहल बा ? तबे िे त उनका घर िे हमनीं के नाता टूसट गइल । आ अइिन ना टूटल जे आजु ले ना जोड़ा िकल..’ ‘इयासदये नइखे हमरा ?’ - िुदेना िुआ कड़ी िे कड़ी जोरत बोलली ‘टेङरहीं के ओझाजी कवनो का एके हाली अिना गाँवें आइल बाड़े ? हमहूँ कौ हाली देखले बानीं उनकर कइल्का कूसल्ह । बड़ सदमगगर रहनीं ऊहाँ का । तीन-तीन घटं ा आगी में राई आ लाल मररचा झोंकत जाि करिु । आ देर रासत, मौिम कतनो खराब भइल करो, घाटा कतनो करे ड़ चौहद्दी मरले होखो, ऊ आँटा के गसु ड़या बना के ओह ि सनकहे नेंबू आ िेनरु मलत कूसल्ह बीसखया एक हासलये में उिटा सदहल करिु । ओझेजी के जोर रहे जे इन्ह जानी के हाल्दे कइल्का िरल ना करे । अँटवा के गसु ड़यवा ि आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 10

तीन गो रे घारी घींचिु ओझाजी, आ ओह गसु ड़यवा के अगं भंग करत जाि,ु जले ऊ गसु ड़यवा सछन्न-सभन्न नत हो गइल करे । तब दजु नष िरु घाट भइल करे । उहँवें ओह अँटवा के मरु दवा बहावल गइल करे ..’ ‘हँ हो, कौ रात हमरो डरे नीन ना िरे । एह दसु नया के कारबार में जवन लउके ला, ऊहे भर ले दसु नया आ एकर कारबार थोरहीं ना होला !..’ ‘आ हमार बबआ ु ना बेराम भइल रहले ?’ - रामजनम बो काँहें के जे चिु इती ? ऊहो आिन गावे-िनु ावे में लासग गइली - ‘..तब का उसमर रहे बबआ ु के ? छौउए बररि नू ! दइू रात.. बबआ ु के बोखारे ना उतरल । रसह -रसह के उनकर अँसखया लागे जे िलटी मार दीही । िाँि आ छाती त अइिे चले, जे बझु ाइ जे लोहार के भाँती चल रहल बा । आ अइिना में मोटकी के देवरा लंगड़ू हजाम बझू ीं जइिे हमनी के िोझा भगवान बसन के ठाढ़ भ गइल रहले । ऊहो इिऽरे -इिारा में बबआ ु के ओह दािा खासतर एही बढ़ू ी के नाँव धइले रहले । आ ई नँउआ कइिे खल ू ल ? त लवगं िे ! सिछवा दसखन ओरे चक ु ू -मक ु ू बइठल ऊ दक ु ा-दक ु ा िढ़त जाि.ु . आ लौङवा िे लौङवा समलावत जािु । आ उठावले त बे िटलहीं कूसल्ह लवंगन के एगो लड़ी बसन गइल ! लंगड़ुओ हजाम बड़ जानकार हवे, ई कूसल्ह के । िमै ि धरा जाव, त कवनो जानी कतनो कुछऊ कइले होखि,ु ऊ काम ना करी । ‘हावा मराइल’ मनई कतनो ना िके ता में िरल होखो, लंगड़ू भर िँजरा ओहके अिना ि घींचत चढ़ा लेले, आ कचकचाइ के बासन्ह देले । ई सललवा के मइया लङड़ुओ ि कवनो कम उतजोग कूसल्ह कइले बाड़ी, जे उनका िे प्रान छूटो ? बासकर, िारे ना िा िकली । का-का ले बसतयावल जाव उनकर ?.. चलीं, जवन जीउ ले के आइल रहली हा, ऊहे जीउ लेके चसल गइली..’ ‘ए माई, कहँवाँ बाड़े रे ..’ - सिरीदयाल अङनवा में घिु ते चाल िरले । मँझली चाची अिना एह बइठल गोल िे बसहरी सनकले के ठाढ़ भ गइली ‘हँ ए बबआ ु ..’ ‘अरे िनु ले हा .. सललवा के ईया मर गइली । घाट ि जाये के सक ना ?..’ ‘का तँहू ूँ बसतयावऽ तारऽ ए बबआ ु ? आजु ले गइल बाड़ऽ ओह घर के कवनो काम भा िरोजन में ?’ ‘ना.. बासकर हम एह िे िछ ु नीं हाँ, जे के ऽह ना गइल हा घाटे । ई त गजबे भ गइल नू आजु ! दबु ेजी भा मसठया के बाबाजी के कहे, ओह टोलओ िे के हू घाटे ना गइल हा ! िभे कहलसिहा जे बरखा के सदन बा, घाटा करे ड़ कइले बा । गाङाजी उिनाइल बाड़ी । गइल मोसस्कले बा । एह ि दनू ो भाइये आ कुछ आउर हीत उठा ले गइल हा लोग..’ ‘आछा, अब तँू चिु ा जा तऽ.. ‘ - मँझली चाची आँखहीं िाछा के ओिरवा का ओर इिारा करत कूसल्ह मेहरारुअन के होखे के आहट दे सदहली । सिरीदयाल बसहरी सनकलत मसठया ओरे बढ़ गइले । ‘गोड़ लागऽतानी ए बाबाजी..’ - मसठया में घिू त सिरीदयाल बाबाजी के लगहीं भँइु यें बइठ गइले ।


‘का सिरीदयाल.. जीयऽ ! कहँवाँ िे बबआ ु ?..’ ‘बि अइिहीं । बाबाजी, आजु त ऊ मइया चसलये गइली नू !..’ ‘जाहीं के रहे.. मेयाद िरू ा भ गइल रहे ।.. के रोसकत ?’ ‘बासकर ई नीमन त ना नू भइल बाबाजी, जे आन्ह टोला के लोग घाटे नासहयो गइल, कम िे कम ओह टोलवा के लोगन के त जाए के चाहत रहे..’ ‘तँू गँभीर लइका हवऽ बबआ ु ! नीमन िोच के हवऽ । अतने बझु ाइल रसहत लोगन के त लोग गइल ना रसहते ? जाये के चाहत रहे । तवनो ि ना गइल लोग । कवनो बात ना..’ ‘कवनो बात ना ? बाबाजी, रउआ एक हाली बोल िार देवे के चाहत रहे । रउआ नाँव िे भइल चाल ि कम िे कम लोगन के जटु ान त भइल रसहत..’ बाबाजी ई िसु न के गसहराहे िाँि सघचं ले आ दइु छन सिरीदयाल के टकटकी बन्हले सतकवत गइले । िे रु असस्थराहे गमे-गमे िढ़त िनु ावे लगले - ‘िाखंडम् आसितानाम् च.. चरन्तीनाम् च.. कामतः.. गभष.. भतृषसह रुहाम् चइवऽ.. िरु ा िीनाम् च.. योसर्ताम् !.. कहे के माने ई बबआ ु , जे जवन औरत िाखंडी होखे, अिना मन के भइल जवन बझु ाइ तवन करत सिरे , आन्ह मेहरारुअन के गरभ-हन्ता होखे, आ अिना भतार िङे बेरे-बेरे राड़ मचावे वाली आ रोह करे वाली होखे, मद्यिान करत होखे, त अइिना मेहरारुअन के असं तम सिया में भा सितरकाम में सहस्िा ना लेवे के !.. ई शास्त्रोि हऽ !..’ ‘आसह ! तब तऽ उनकर दनू ो बेटा लोग भा नाता के कुछु लोग जे गइल बा, ऊ लोग के का कहाई ?’ ‘ऊ लोग सनसलषप्ती में सजयत आ सनष्काम-कमष के अधीन गइल बा लोग.. कवनो अकाज ना.. िभ िही बा !’ ‘का बाबाजी ? हमरा ना बझु ाइल राउर ई शास्त्रोि बचन ! अरे जब देसहये मासटये भ गइल, तब कवन आह भा डाह जी ? िभ त देसहये िे नू बा ? नाता-ररश्ता, आइल-गइल, कइल-करावल, लीहल-दीहल कूसल्ह ?.. अब त उनका खासतर त िभ खतम बा ! आ हमनी के जले जीयब जा, कूसल्ह भइल्का-कइल्का के गावत रहब जा । िीढ़ी दर िीढ़ी ईहे त होत आइल बा !’ ‘िही ! उसचत कसह रहल बाड़ऽ बबआ ु ! बासकर ई जे तँू कहला हा न,ू जे जब देसह मासटये भ गइल, तब कवन आह आ डाह ?.. त एह के अतना हलुके जसन लीहऽ !.. एह देसह के शरीर कहल जाला, ऊ खसलहा लउकते शरीर ले ना होला । दू तरी के शरीर अउरी होला जवना के हर अमदी होखो भा औरत िङही सजयेला ! एहू शरीरन के आिन-आिन गती आ प्रवृती होले । एहू ि धेयान बनल रहो, तबे शास्त्रोि बचन बझु इहें िऽ..’ ‘आछा.. ऊ का ?’ ‘हई शरीर जवन हमनी के िङे बा, ई भौसतक शरीर कहाला, भा ‘इस्थल ू शरीर’ हऽ । एही शरीर िङे दू गो अमतू ष शरीरओ कमष करत रहेला । माने,

िभ के हू के आिन-आिन अतं रमन, भा ‘िक्ष्ू म शरीर’, जवन सक सबचारिरक होला, आ एह दनू ो शरीरन के भइला के जवन कारन होला, ऊ शरीर । एह सतिरका शरीरवा के नाँउओ ‘कारन शरीर’ होला..’ ‘लीहीं.. ई त हम नया िनू रहल बानीं । आ जी, ई के हू देखले बा ? जवन लउकऽता ऊहे नू प्रमान होला ?..’ ‘हँ देखले त ईहो के हू नइखे, जे मअ ु ला के बाद के हू के कवन गती होला ? तब काँहें के ओह जीउ खासतर हतना िरे िान बाड़ऽ जे चसल गइल ? कतना जनावर मअ ू ल सबगाइल िरत रहेले िऽ ! छोड़ दऽ एहू के जीउ के िोचल ! एगो जीयत देसह रहे, ऊ अब नइखे । बि !.. आ जवन बात देखला के प्रमान कहाता, ओह ि तँू जानते बाड़ऽ, हम का कहसब ? .. अिना िाँचों इसन्रयन के क्षमता के बढ़ावऽ ना, िभ बझु ाए लागी ! जइिे डागदर आला लगाई के आिन िनु े के जोर बढ़ावेला लोग.. खदु बष ीन िे आिन आँखी के जोर बढ़ावल जाला । हमार इसन्रये भर के िहचँ काँहे असं तम प्रमान होखे लागो ? सक ना ?’ सिरीदयाल के चट दे बझु ा गइल जे बाबाजी का कसह रहल बाड़े । बाबाजी के अध्ययन त बड़ले बा । ‘आछा त बाबाजी, रउआ ई मानेनीं जे उहाँ का डाइन रहली हऽ ?’ सिरीदयाल िोझ िवाल कऽ सदहले । ‘हम ई का जानीं ए बबआ ु ? गीता में भगवान अिनहीं कहले बाड़े, कमषणो ह्यसि बोद्धब्यम.् . बोद्धब्यम् च सबकमषणह्.. अकमषणस्य बोद्धब्यम.् . गहना कमषणो गतीऽसह !...माने, जे बबआ ु करम के गती बड़ गहन होले.. हाल्दे ई बझु ाइ ना ! कमषवे ना अकमष आ सवकमषओ होलन िऽ जवना के िल ओह सहिाब िे ना समले जवना सहिाब िे कमष के िल भेंटाला । जब ई भगवाने कहले बानीं, त हमार-तहार का औकात बा जे एह ि कुछऊ बोलीं जा ? जे, के कर कवन करम, धरम आ भासग आ प्रवृती रहल बा ? अब ईहो जानऽ, जे ई प्रवृसतयो तीन रङ के होले, ित,् रज आ तमि प्रवृती । एही तीनों प्रवृसतयन के सभन्न-सभन्न आनिु ासतक समलान िे कवनो मरद भा मेहरारू के बेिीगत आचरण आ गनु बनल करे ला.. आ ओही लगले जनम सलहला ि ऊ आिन जीवन सजयेल करे ला.. आ ओही लगले ओकरा आिन कइल्का के जीवन-भोग समलत रहेला । एही िे के हू राजा, त िाध,ू त ितं , भा धनी, सभखारी, भा हत्यारा, खडजंत्री भा डाइन भा ओझा के करम में आिन मन लगावत सजयत जाला । आ आगा चसल के , ई जीवन सजयल ओकर जीवन-िररचय हो जाला ।’ ‘आऽऽछा.. मने, एही लगले लोगन के जीवन के ढङ आकार लेला, ना ? जे िलनवा का हवे भा का ना हवे ?’ ‘हँ, अइिहूँ बसू झ िके लऽ । देखऽ, जइिे कवनो भौसतक, भा लउकत, बझु ात आ छुआत, सिण्ड ि कवनो बल काम करे ला, ओिहीं कूसल्ह बल अतं मषन के इकाइयो ि काम करे ला, आ ओकरो िररनाम ओही अलङे होला, जइिे भौसतक सिण्ड ि लागल बल िे िररनाम समलेला । एही िे जान जा, जे मन िे सनकलल िोच आ सबचार के िकारात्मक भा नकारात्मक प्रभाव आ प्रसतसिया त होइबे करी । ई तँू चाहऽ भा जसन आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 11


बोलीं ? आ तँहू ीं का बोलबऽ ?..’ सिरीदयाल बाबाजी के डबर-डबर मँहु सतकवत जात रहले । बाबाजी के बझु ा गइल रहे जे लइका सनकहे सचंहा गइल बा । एहिे, तकष आ गसझन सबचारन िे एकरा तसनको ओझरावे के नइखे । सिरीदयाल तले चप्ु िी तरु ले - ‘माने, जतना कूसल्ह सबिेि प्रिचं भा सबनािकारी शिी बाड़ी िऽ, ओकरा में िच्चाई बा ! ना ?..’ ‘होखी नू ! .. तामसिक प्रवृती के िाधे के खासतर तामसिक जीवन के भेद जाने के िरी सक ना ? नकारात्मक िोच के घनीभतू भइला ि, सबचार-तरंग नकारात्मके नू होई । काँहें ? त कहनीं हाँ ना, जे भौसतक इकाई ि लागल बल िे जदी भौसतक िररनाम समले के बा, त िक्ष्ू म ि लागल िक्ष्ू म बल िे िक्ष्ू मए िररनाम नू समली । समलहीं के चाहीं !’

चाहऽ ! ई तहरा नीमन लागो भा बाउर लागो ।’ ‘आछा..’ - सिरीदयाल बाबाजी के एकै क शब्दन ि आिन कान ओड़ले रहले । ‘त ए सहिाब िे देखऽ त मंत्र का हवे िऽ ? ऊ अइिन शब्द भा अइिना शब्दन के िमहू होलन िऽ, जेकरा बोलल जाव त सबिेि प्रकार के ध्वनी सनकली । एह ध्वनी भा अवसजया के तरंग िे ओही तरी के सबिेि-सबिेि प्रभाव होई, जइिन कवनो भौसतक सिण्ड ि ओकर प्रभाव होसखत ।’ ‘माने, रउआ भतू -सि​िाच, डाइन-ओझा के इकाई के िाँच मानेनीं ?..’ बाबाजी सिरीदयाल के एह िवाल ि बोलले कुछऊ ना, बि, एकटक मँहु सतकवत रहले । सिरीदयाल के बझु ाइल त कुछऊ ना । बासकर, रहइबो ना कइल - ‘बाबाजी, का भइल ? अचके में रउआ चिु ा काँहे गइनीं ?’ बाबाजी खँखारत िे र बोले के कइले - ‘हम्म.. बबआ ु , हम िोचऽतानीं, जे तहरा िे ई कूसल्ह बसतयायीं, सक ना ? ई कूसल्ह अतना हलुक भा मनल्ग्गू बात ना हई िऽ । मानऽ त िोझ सवग्यान हऽ, आ ना मानऽ त भारी ढकोिला हऽ, िोझ अधं सबस्वाि !..’ ‘अरे .. ? सबग्यान आ ढकोिला एकए िलड़ा ि ? बहबाऽऽ ! ..’ सिरीदयाल एकबेररये अचकचा गइले । ‘ईहे तऽ !.. सनभषर त ई कर रहल बा जे सबग्यान के तँू भा के हूए.. जानत का बा, आ जानतो बा त कतना जानत बा ?.. सबग्यान के नाँवें ित्थर सदमाग के मसतिन्ु न लोगन के जमात िे एह िमाज के ओतने सनरािा भ रहल बा, जतना सक ढकोिला िइलावत लोगन िे खतरा बा ! सबग्यान के िरचार में उतरल तथाकसथत सबग्यानी लोग आजु के ऊँच अस्तर के सबग्यान के कतना जानकार बाड़े ? बात मनोसवग्यान आ िराभौसतक सवग्यान के अस्तर के होखी, आ बाबू लोग कररहें िामान्य अस्तर के सनयमन के बात ! आ कुछऊ बोलत, खी-खी खी-खी करत हर िवाल भा जवाब ि अिना िे दोिर मत के लोगन ि ठट्ठा मारत, ररगावे लागी लोग ! एह ि का आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 12

‘बाबाजी, हम बसू झ गइनीं । अब एह सबद्या के माने भा ना माने के िवाले नइखे हमरा खासतर । हमरा रउआ मंत्र, तंत्र आ जत्रं के माने-मतलब आ उियोग बताई ं। आ ई कइिे प्रभावी होला ई कहीं ?’ ‘देखऽ, तंत्र के माने होला त्राण देवे वाला । आ मंत्र के मतलब ‘मन’ के त्राण देवे वाला । ई दू तरीका के होला, एगो त िाथषक वाक्य रूि में मत्रं , जे कुछऊ करे के सनदेश देला । आ दोिर प्रकार होला बीज मत्रं के । जवन कुछ अच्छर भा िंजि ु ाच्छर के सनरूसित होलन िऽ । बीजमंत्र एकही अच्छर भा एकै गो िजं ि ु ाच्छर भइला के कारन सबन्दवु त प्रभावी होलन िऽ । माने बड़ा मारक मानल जालन िऽ । ई दनू ो तरी के मत्रं वा सबिेि ध्वनी-प्रभाव आ तरंग-प्रभाव के कारक होलन िऽ । ईहे प्रभाव कहाला ऊजाष के प्रभाव ! माने, जहँवाँ गती होई उहँवें स्िदं न होई । आ ईहे ऊजाष के िसहल प्रारूि के असभबेिी हऽ । ईहे असभबेिी, ईश्वर के शिी हऽ । ठीक नू ? एह ऊजाष के चाहे जइिे उियोग कइल जाव, ऊ काम करबे करी । कल्यानकारी उियोग करबऽ, त कल्यान करी । आ एहिे सबनाि करवावे के चाहऽ, आ सबनाि के काम में एह शिी के उियोग करऽ, त ऊ सबनािे करी । सबनाि के प्रयोगकताष मरद भा मेहरारू लोगन के ई िमाज कुछु अलगे तरीका के शब्द आ रङ देत, कुछऊ-कुछऊ नाँव देवे लागेला । अब बझु ाइल जे ओझा का हवे, आ का डाइन हई िऽ ?’ ‘अरे त्तेरी की !.. खबू सनकहे बझु ा रहल बा बाबाजी । नीमन िमझा रहल बानीं ।.. आ बताई,ं ई जत्रं का होला जी ?..’ ‘जत्रं हऽ िाधन, भा माध्यम.. जवना के प्रयोग िे कौ प्रकार के ना सकररया िाधल जाली िऽ । एही के उियोग िे, आ अउरी कूसल्ह कमषकाण्ड के िहयोग िे कवनो सबधान िधाला । आ एकरा अलावहूँ अउरी कतना ना सबधान-सबधी होली िऽ, जे बोलचाल में ‘िजू ा-िाठ’ कहाला ।..’ अबले बबोजी के सिरीदयाल िे बसतयावत आ सिरीदयाल के ई कूसल्ह िनु ावत रि समले लागल रहे । ‘बाबाजी, हमरा ई बझु ाइल जे तामसिक शिी के कुछऊ ना कुछऊ ध्वनी आ तरंग होखबे करे ले । आ ऊहे अिना प्रभाव िे जरूरत के मोतासबक िररनाम के भइला के कारन होली िऽ । ऊ िररनम आ ओकर िरूि का-


का हो िके ला ?’ ‘ई बबआ ु जसन िछू ऽ ! हम तामसिक प्रवृती आ ओकर िररनाम ि गसहराहे कवनो चचाष ना करब । िकारात्मक िोच आ जहत-कल्यान चाहे वाला लोगन के एह कूसल्ह ि हाल्दे चचाष करहूँ के ना चाहीं । बलुक चहबऽ त, एकर ‘काट’ के कुछ शब्द आ ओह िे सनकलत ध्वनी के िरूि जरूर बता िके नीं..’ ‘त बाबाजी ऊहे बताई..ं बताई ं बताई ं !.. ‘ - सिरीदयाल के हलाि कवनो चहकत बासकर बड़ सिधवा बाचा के हलाि लेखा उिान ि रहए । ई ताड़ते बाबाजी के हँिी बर गइल । सिरीदयाल के जब ई बझु ाइल जे बाबाजी उनकर उछाह ि बड़ा मजा ले रहल बाड़न, त ऊहो िहजे लजा गइले - ‘हम तसनका ढेर छोह में आ गइनीं का, बाबाजी ? हा हा हा..’ िे र असस्थराह होत बाबाजी के मन िारे के कइले - ‘रउआ सकररया आ ओकरा ि प्रभावी शब्द आ ध्वनी ि बसतयावत रहनीं हाँ..’ ‘हँ ! बासकर ई बतावऽ, जब तँू हतना िकारात्मक बाड़ऽ, तब त हई हलाि बा ई कूसल्ह जाने के । त जेकरा मन में घोर डाह आ घोर सित्ते भरल बा एह िमाज के लेके.. जे खीझी जरत आिन सजसनगी सबता रहल बा, ऊ मेहरारू अइिन कुछऊ जाने के आ िीखे के कतना हलाि आ सदगदारी में होखी ?.. हँ सक ना ? .. कहे के माने ई, जे कुछऊ रहस्यमय जाने के , आ अलोता कूसल्ह के अँजोर में िावे के उछाह बड़ करे ड़ होला । ई िभ चीजइु या होखबे अइिन करे ली िऽ !..’

‘का कहे के बा बाबाजी ? रउआ एकदम िही कसह रहल बानीं । .. अब आगा बोलीं..’ ‘बबआ ु , त िनु ऽ ! ई तामसिक प्रभाव होला िम्मोहन के , िोखन के , ज्वर के , बाधा के , भेदन के , छे दन के , जहर-माहर के , मारन के , सबनािन के । कहे के माने, अइिने के लेके आउर कूसल्ह ढेर प्रभाव बाड़न िऽ..’ ‘जी..’ - सिरीदयाल चिु चाि आँख बड़-बड़ कइले िनु त जात रहले । ‘अब इन्हसनये के ‘काट’ खासतर मत्रं आ ध्वनी के सिद्ध कइल गइल बा । ई ज्वरओ, माने बख ु ारओ, कौ गो ना तरीका के होले, तािज्वर, एकासहक ज्वर, त्रयासहक ज्वर, िंतािज्वर, सवर्मज्वर, भतू ज्वर, माहेश्वर ज्वर, वैष्णव ज्वर आसद-आसद ! एही ज्वर कूसल्ह के ‘सछंदी-सछंदी’ करे के आवाहन होला । कहाला, जे इन्हनीं के प्रभाव उच्चासटत करऽ हे नाथ !’ अतना कहते बाबाजी लगले आिन आँसख मनु ले िंस्कृ त भािा के एगो मंतर भोजिरु रयावत िर-िर िर-िर िढ़े - ‘..िवनचक्षभु षतू ानाम.् . िासकनी, डासकनी, सवर्मदष्टु न कूसल्ह के , िवषसवर्म् हर.. हर.. ! एही लगले अकाि, भतू ल के िवष सवर्मता भेदय-भेदय, छे दय-छे दय, मारय-मारय, शोर्य-शोर्य, मोहय-मोहय, जारय-जारय, प्रहारय-प्रहारय, उन्हनीं के छाया माया आ प्रच्छाया कूसल्ह के हेरय-हेरय.. ई भेद प्रभावी होखो रे होखो !.. जाः जाः, दरू जाः.. !’ बाबाजी झोंक में लगातार िढ़त चलल जात रहले । उनकर िढ़ला के अवाज बरिाती िाँझ के कारन सनकहे गसहर भइल िइलल जात बझु ात रहए । तले बाबाजी के िरु एगो सबिेि लय में बदले लागल । आँसख बन्न रहे । बझु ात रहए जे उनकर चेहरा अगाध शांसत के हलुक-हलुक लहररयन में, बे कवनो कोरसि​ि के आस्ते-आस्ते िँवरत जात होखे ! सिरीदयाल के दनू ो िइलल आँसख एकटक बाबाजी का मँहु ि जामल रहे । थोरही देर में उनकर आँसख खल ू ल । उनका चेहरा ि ओह घरी कवनो भाव ना बझु ात रहए । आिन िोझ, शांत आ िहसमल्लू भाव में ऊ सिरीदयाल के अिना ओरी चिु चाि सतकवत िवले । सिरीदयाल के ई अब िाँचहूँ बझु ा गइल रहे, जे ई जगत खसलहा िंिारे ना हऽ, काल के बहाव में िल-िल आगा िरी लगातार ि​िरत जाये वाला एगो िमरथ इकाई ! बलुक ई कतना ना भ्रम-भेद-भय के मजगर िमहारओ हऽ । प्रकृ ती के रउआ श्रद्धा िे सनहरत िँकार लीं, ई प्रकृ सतओ रउआ अिना भाव-भावना िे सनकहे िँवार दीही । सजसनगी तर जाई । आ नाऽ, त िउँिे सजसनगी भाव के तराि में छटिटाते बीसत जाई । सिरीदयाल आस्ते िे आिन मड़ु ी नवावत, बे बोलले बाबाजी के गोड़ लागत, आस्ते िे उसठ गइले । बरखा के िाहा-िाहा झींिी िावि के बहत हावा के मनिायन कइले रहे । सिरीदयाल के गोड़ अिना दअ ु रा ओरे डेगेडेग बढ़त जात रहए, चिु चाि । अगवे िीिर के बड़का गाँछ रहे, जवना ि भगजोगसनयन के एकिरु रये भक ु -भाक, भक ु -भाक बनल रहे । ई देखते सिरीदयाल के अचके में मस्ु की छूसट गइल । उनका मँहू ें अनायािे बोल िूट चलल - ‘बाह रे सजसनगी, बाह !..’ िोटो : अजय कुितर

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 13


कथा-कहानी

3 ठो चुटकुला बािक ु ी नाथ सिंह

चटु कुला नं०1 खखोरन(उमर १०िाल) के एगो छोट भाई रहे। ऊ बेमार िड़ गइल। खखोरन ओकरा के डॉ० के िाि ले गइले। डॉ० आला लगा के देखले आ कहले सक "रोगी मर गया है।" तले छोटका भइयवा कहता-- ना डा० िाहेब हम मरल नइखीं। खखोरन ओकरा के डाँट के कहले--"रे ,चिु ! ते बेिी जानतारीि?" बाबजू ी कहले बारें सक डा० के बात मनीह। जब डा० िाहेब एक बेर कह देले सक तें मर गइल बारे त तोरा लुबरु -लुबरु बोलल जरूरी बा? चल तोरा के श्मशान घाट िहचँ ावतानी। चटु कुला नं० 2 िर जी िातवाँ क्लाि में लइका लोग के गमु राह करे खासत िवाल िछ ू नी"-बच्चों! हाथी का िसु लंग क्या होगा?" हरधोवन िबिे िाछा बेंच िर बइठल रहि। ऊ हाथ उठा के जोर िे िछ ू ले--"िर जी हम बताई?"ं िर जी कहनी--हँ,बताव हरधोवन। हरधोवन खड़ा होके नटी िार के कहले"िर जी! हाथा"॥ िर जी कहनी--बड़ा बनलोल लइका बा। रे तोरा के हाथा"के बता देहल ह। हाथी त खदु िसु लंग शब्द ह। एकर स्त्रीसलंग होला"हथनु ी"।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 14

चटु कुला नं० 3 िर जी दोिरा सदन िातवाँ क्लाि में िे र िवाल िछ ू नी --बच्चों! बताओ"सिया" सकिे कहते हैं? हरधोवन हाथ उठा के िछ ू लें---िर जी हम बताई?ं िर जी कहनी--हँ,बताव। हरधोवन खड़ा हो के जोर-जोर िे कहे लगले--"दसखन िड़ी खड़ा हो के हाथ उठा के जवन खाइल जाला,उहे सिया ह।" िर जी कहनी--िे ट चिु ! एकरा कुछ ना बझु ाला। बासक लब-लब बोलल छोड़ी ना। आरे जवना िे काम करे के बोध होखे तवन सिया ह। दसखन िड़े हाथ उठा के खाइल जाला तवन सिया ना ह।


च त िं न-बतकही

तनी होखे द सेयान पपया हमरा के एि.डी ओझा

स्त्री

िर अत्याचार सि​िष िरू ु र् वगष हीं नईखे कइले ,बलुक िरू ु र् िे ज्यादा एक स्त्री दोिरा स्त्री िर कइले सबया । ई अत्याचार कभी स्त्री द्वारा िरू ु र् िे समसल के त कभी स्वतंत्र रूि िे कइल गइल बा । स्त्री ,जे प्रथम िभ्यता के नींव डलले सबया, जे बन बन भटकत िरू ु र् के घर में रहे सिखवले सबया ऊ खदु अिने सबरादरी िर अत्याचार करे में भी तसनको िीछे नईखे । भोजिरु ी गीतन में अईिन तमाम उदाहरण बा, जेवना िे िता चलता सक नारी के दसु दषन के सनयतं ा नाररए सबया । िािु ितोसह के बैर अनासद काल िे ‘कुकुर सबलारर’ के बैर के रूि में चलल चसल आवता । एगो िािु अिना ितोसह के सदयरी में खाना देत रहली । सदयरी के खाना िे क्षधु ा के िसू तष कइिे होई ? एक बेरर कहीं िे मेहरारू में िबहरी अइगा आइल । ितोसह खश ु भइल सक आजु िेट भरर भोजन समली । लेसकन ई का? ओईजो सदयररये में भोजन समलल । िािु िसहलहीं ओईजा बता के आ गइल रहली सक हमार ितोसह अनखाती ह । सदयररये में भोजन करे ले । एगो अईिहीं िािु अिना ितोसह के िांि के िका के सखया सदहली । ऊ हरमेशा ितोसह िे ठीक िे ना बोलि,ु लेसकन ओ सदने बड़ा सियार िे कहली – ‘ऐ बबआ ु बो आव खाल’ बबआ ु बो खश ु । खइली । खा के कहली – खात त्रपयत सासु बड़ नीक लागल, अचवत हो, सासु घूमत्रतया देत्रहया । िािु कहली - जा, िसु त रहs । मन ठीक हो जाई । कुछ देरर बाद बेटा

अइले । िािु अिना बेटा िे कहली सक ितोसह कोहना के ितू ल सबया । खाना भी ना बनवलसिहा । बेटा के अहम के चोट िहचं ल । घर में गइले । लगले छाकुसन िे मारे । मेहरारू के महंु िे झाग सगरे लागल । एक छाकुत्रन मरले रामा दोसर छाकुत्रन मरले, तीसर छाकुन में धनी त्रबगे लगली मुंह से गजवा । एगो अउरी मातृ भि रहले । उनक ु र महतारी कहली सक ई ितोसह ठीक नइखे । ऐकरा के मारर द । बबआ ु आज्ञा के िालन कइले । उनक ु ा के जगं ल में बहला िुिलाई के ले गइले । ओईजा उनक ु ा के धोखा िे जहर दे सदहले । ऊ कहली सक हमार किार घमू ता । बड़ा प्यार िे ऊ उनक ु र मड़ू ी अिना जांघ िर धई के उनक ु ा के ितु वले । ऊ ितू ली त ितू ले रसह गइल । उनक ु ा लईका के होनहारी रहे । िेट िासड़ के लईका सनकासल सलहले । घरे अइल िर महतारी के लईका सदहले । महतारी के सवश्वाि ना भइल । ऊ कहली सक तू अिना मेहरारू के नईखs मरले । ई लईका भी बन में के बनस्िती के ह । बेचारू के मेहरारू मरर गइसल, महताररयो ना खश ु भइल । अब ननद भौजाई के बारे में चचाष हो जाऊ । ननद भौजाई के छत्तीि के आंकड़ा भगवान के दआ ु र िे हीं सलखाई के आइल ह । भौजाई के अइल के बाद ननद के लागेला सक ओकर िररवार िे वचषस्व अब खत्म हो गइल । ऐ िे वचषस्व के लड़ाई में कभी ननद के िलड़ा भारी त कभी भौजाई के होला । कई बार ननद भौजाई के डांट िनु ावे खासतर दाल, िब्जी में नमक िड़लो के बाद डासल देली । मिाला में कंकड़ समला सदहें । खािकर ई सतहाने खासतर सक भौजाई लूररगर बाड़ी सक ना ? कहल जाला सक घरू ो के सदन कबो ना कबो बहरे ला । भौजाई के सदन भी लवटेला जब ननद ि​िरु ा चसल जाली । अब उनक ु ा अविरे िर आवे के आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 15


बा । ऊहो भौजाई िर सनभषर करता सक ऊ बोलावतारी सक ना? एगो लोकगीत में इहे प्रिंग के सजसकर बा । ननद के जब िता चलता सक उनक ु रा भतीजा भइल बा त ऊ दऊरल आवतारर सक नेग समली, लेसकन उनक ु ा के आवत देसख के भौजाई कीली ठोक देतारी । ननद कहतारी सक हमरा के एक सचरूवा तेल दे द ,हम किार िर छासि लेब आ ओकरे के नेग मासन लेसब, लेसकन भौजाई के कहनाम बा सक जब िे गांव िे तेली गइल तब िे तेल के बहत सदक्कत हो गइल बा । जब हारर के ननद चल देतारर त भौजाई कहतारी सक तू नीचे नीचे जईहs , ऊिर के रास्ता जइबू त तहरा बीरन भईया िे भेंट हो जाई । भईया िे भेंट भइल के मतलब ननद के नेग समले के गारण्टी हो जाई । िाि, ननद, गोसतन िे त्रस्त स्त्री अब िबिे खल ु े आम लोहा लेबे लागल सबया । ऊ अब िढ़ल सलखल आवसतया आ कहसतया – हमारी िािु हो ... अच्छा िे जेवना बनाना, मैं दि दजे में िढ़ने वाली । मैं इगं सलश कालेज में िढ़ने वाली । +++++++++++++++++++ महल िर कागा बोला है रे । शब्द िनु िईयां जागा है रे । ए ननदी जी ऐिी बातें ना कररयो, अभी तो तुझे िर घर जाना है रे । महल िर कागा ... ए गोसतनी जी ऐिी बातें ना कररयो, अभी तो मेरा आधा िाझा है रे । महल िर कागा ... ए िािु जी ऐिी बातें ना कररयो, अभी तो मेरा मायका सजन्दा है रे । महल िर कागा ... स्त्री िसत नामक जीव िे भी दो चार हाथ करे खासतर बईठल सबया । िसत िररवार के िब खासतर िामान ले आवतारे , बासकर ित्नी खासतर कुछ ना , त ऊ सवरोध स्वरूि के वारर बन कई देसतया । िसत कहतारे – खोलो ना ए धनी बजर के वररया । ित्नी दो टूक शब्द में कसह देसतया सक जेकरा ितु े के बा हमरा गोड़तारी िसू त जाऊ । आ अब त लोकगीत के भार्ा भी बहत कुछ बदल गइल बा । ित्नी िसत के खल ु े आम धमकी देबे लागल सबया तनी होखे द िेयान सिया हमरा के । जईिे कराही में िआ ु िूलत है, ओइिे िूलाइसब तोहरा के । तनी होखे द िेयान सिया हमरा के । आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 16

एस॰ डी॰ ओझा

मिया के रहे वािा , ई. एस. डी. ओझा जी , आईटीबीपी से मडप्टी किांडेट के पोस्ट से ररटायर भइि बानी । महन्द्दी आ भोजपुरी िे सोसि मिमडया प सिानांतर रुप से मिख रहि बानी । देस मवदेस के अदभुत जानकारी इमतहास वतयिान से जुि​ि धार्मिक िान्द्यता से जुि​ि जानकारी पाठक के सोझा िे आवेनी । एह घरी इाँ हा के चंडीगढ िे रमह रहि बानी ।


कचिता

ई कवन हिसाब ? राजीव समश्र बड़ा िोर िनु त बानीं बड़ा आगे महु े जाता भारत देिवा हमार एक देने िख ु ल रोटी अचार बा एक और िड़ू ी सजलेबी छनाता राजीव अब समसडया िे जवाब मांगीं की के करा िे करीं िवाल कबो कबो त अिने अगं रु रया एह में गोताइल िनाइल बझु ाता बेजाई ंलागे ला सजनगी कबो, मन में उठे ला िवाल कबो कबो कवन सबकाि के डगररया ह, कवने नगरीया कवने देिवा ह सचन्हल िररचल लो बड़का बड़का ए०िी० में मय सहिाब लागता रउरे बझू ीं िभे की कवन सहिाब !!

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दिेज़ अवनीश िाठक देश में दहेज खासतर लड़सकयन के जरावल जाता रुसिया िइिा ना समलला िर घर िे सनकालल जाता । एहिे कतना प्रभासवत बा आिन िमाज एहमे के हू के लागत बा ना कवनो लाज । रोजे रोजे बढ़ल जाता ई बीमारी लागता सक गरीब के बेटी रसहहं े कंु आरी । जतना डर ना रहे एक बेरा अग्रं ेजन के राज िे ओहिे जादा डर बा एह बेरा शब्द दहेज िे । बासकर एहिर ना कवनो कदम उठावल जाता देश में दहेज खासतर लड़सकयन के जरावल जाता ।

िम स्वार्थी िई डॉ० प्रमोद िरु ी हम स्वाथी हई ह जी ह िही िनु नी हम स्वाथी हई ... मतलबी ना हई आन के खासतर जान हासिर बा तन -मन -धन सदल जान हासजर बा बासक िाँच कहीं त हम स्वाथी हई ... हम आिन बसु झलें अिने खासत कररलें हर उ काम -जेहिे घर -िररवार -िमाज िबकर भलाई होखो अिना स्वाथष खासत हम अिना ला ! कुछ ना कर िावेनी काहे की हम स्वाथी हई ... स्वाथष के मतलब भी खदु के खासतर कइल होला त हम हर काम भी त अिने ही खासतर कररलें त ठीक बा !! तु काहे कहबऽ हम खदु े कहत बानी ह हम स्वाथी हई...ं

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आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 17


कचिता

झल ु िु ा झूलत कृष्ण मरु ारी ह्रसर्के श चतवु दे ी चन्दन काठ के बनल झल ु हु वा, रे शसमया बा रिरी, बन-िूलन िे िन्ु दर िाजल, भाव-िगु ंध भरी, झल ू त श्याम झल ु ावत राधा, गावत िसख कजरी , िेंग लगावत लसलता सवशाखा,देखत िब िसखया री, अमृत अधर नयन कजरारे , रूि बनल बा न्यारी, मोर मक ु ु ट गले हार बैजंती, ओठवा ि बंशी प्यारी, मंद मिु सु कया,चचं ल सचतवन,उिवन हरी भरी, करत हाि-िररहाि ग्वाल िब,मारत समसल थिरी, छछनत नैन,सजया आतरु ,सदन कब हमरो उबरी, छसब बरने “ऋसर्” कातर सहरदय,अँसखयन लोर ढरी!!

भगजोगनी िे रौशनी, मांगे िरु​ु ज उधार ि​िना भारत में इहे, अब होता िाकार । भोजिरु रया जज़्बात के , रोज उड़त बा धल ू भोजिरु ी के बाग़ में, बा दसु दषन के िूल । अच्छा सदन के आि में, मरर मरर जात सकिान । कईिे खाए के समली, िब्जी दाल सि​िान अन्धकार के राज भी, होखी एक सदन िे ल “दीिक” बारऽ धैयष के , डासल आि के तेल । छुरी काख ं में दासब के , महंु िे बोले राम िंिद जा के देसख लऽ, कइिे होला काम ।

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खग बूझऽे खगिी के भाषा जयशक ं र प्रिाद सद्ववेदी

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कइसन भइल हवकास लोके न्र मसण समश्र मांझी के माथे उठल, लोकतन्त्र के लाश । गांधी तहरा देश में, कइिन भइल सवकाि । नारी के अिमान िर, मौन रहे िरकार िासहले नैसतक मल्ू य बा, िाछे बा व्यािार । जीडीिी के ग्रोथ िे, के करा मतलब यार कुलबल ु ात जे भख ू िे, रोटी मांगे चार । मड़ई जरल गरीब के , झरे आँसख िे लोर देख ठठा के हँि रहल, जेकरा मन में चोर । हर िरकारी योजना, हर िरकारी काम सलखा गइल बा देश में, धनी-मनी के नाम ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 18

बादर बन्हलें खेसतहर कबहूँ बाररि िर िभ सनरभर अबहूँ कहाँ मनु ाफ़ा भइल सकिानी िसदयन िे बा इहाँ सनराशा । खग बझू ऽे खगही के भार्ा । सढसमलात चलत भहरात चलत के हू ना िाथ सदखे इहवाँ हहरात बहे लुक्कड़ सनकहे सबगरल जात खेत के आशा । खग... रिरी काहें लटकत घेंटी काहें सतकवत दोिर नेती कुिुते जान िँ ित ना कबहूँ काहें झेलत करज कऽ िाशा । खग... अब त देखता नजर उठाई सबलखत कबों न समलतें भाई उनक ु े दसु बधा तु ओरववता नीमन देता उहें सदलािा । खग...


कचिता इसचको बनल रसहत बेवस्था िोझे ि​िरल ठूंठ अवस्था नवहा काहें छोड़तें गाँव खेती िे उिजत असभलार्ा । खग...

गज़ल डॉ० जौहर शसियाबादी

उतजोग िगरी बा जल ु ुमी जल ु सित्ती अि लागे इलमी भइु याँ उतरर भरा अक ं वारी तन मन धन िे इहे तरािा । खग...

प्रेम के के तना टेढ़ डगर बा, हम हूं िोंची तहु ूं िोचऽ । आकुल नैन बेचनै अधर बा, हम हूं िोंची तुहूं िोचऽ ।

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िारा ि​िना एहर-ओहर बा, हम हूं िोंची तुहूं िोचऽ । िनु ा िनघट गांव नगर बा, हम हूं िोंची तुहूं िोचऽ ।

गज़ल डॉ० भोला प्रिाद ‘आग्नेय’ बसं दशो में वि िनु हरा लागेला । काहें सक जमाना बहरा लागेला ॥ हहरत रसह जाई करे जा सजनगी भर । जब कबो प्यार िे िहरा लागेला ॥ आिनो त गैर हो जाला ओ घरी । सदल िे चोट जहाँ गहरा लागेला ॥ जख्मे सजगर उनके देखाई कइिे । चमचन के भीड़ कोहरा लागेला ॥ आसखर भरोिा करीं त कइिे करीं । कुल काम ओकर दोहरा लागेला ॥ जेकरे के हम बझू ीलां आिन । शतरंजी एगो मोहरा लागेला ॥

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काँच के तोहरो हमरो घर बा, हम हूं िोंची तुहूं िोचऽ । हाथ में हमरो तोहरो ित्थर बा, हम हूं िोंची तुहूं िोचऽ । ित्ता के बेमोल लड़ाई, उलझल बाड़े भाई-भाई खतरा अब तऽ आठों िहर बा, हम हूं िोंची तुहूं िोचऽ । मजहब धमष में झगड़ा कइिन, मानवता के रगड़ा कइिन स्वारथ िब झगड़ा के जड़ बा, हम हूं िोंची तुहूं िोचऽ । अधं ा नगरी चौिट राजा, जि मरु ई ति बाटे खाजा बेचैनी िब का 'जौहर' बा हमहूं िोंची तहु ूं िोचऽ ।

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आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 19


कथा –कहानी

केकरा के साधू किीं केकरा के चोर ? तंग इनायतिरु ी

बो-कबो जवन कवनो िमैनार में बइठल सवद्वान लोग के मण्डली ना बता िावेला के गांव में कउड़ा तािेवाला लोग बड़ा आिानी िे हिं ी-हिं ी में कह देला । आज िे दू मसहना िसहले एक आदमी कीहाँ तीलक में गाँवे कइनी त रात के रुक जाये के िड़ल । भोरे लौटे में देर हो गइल काहें सक ढेर सदन िर अिना गाँवे गइल रहनी । लोग भेंट करे भोरहीं िे आवे लागल, त धीरे -धीरे मजमा बढते चल गइल । हाल-चाल , खैर-खैररयत , नाश्ता -चाय होते, बतकही के सिलसिला आगे बढते चल गइल । अतने में के हू अखबार ले ले आइल त हम लेके हेसडंग देखे लगनी । सलखल रहे - “ िाम्प्रदासयक ताकतों िे मक ु ाबला करने में िेकुलर िोिष कभी िीछे नहीं हटेगा ”

िनु के हम हँिे लगनी आ गौरी शक ं र िमझु ावे लगले - देख, िेकुलर आ िंप्रदासयक के मानी सकताब में चाहे जवन होत होखे बासकर आज के माहौल में एकरा के एह तरे िे बझू े के चाहीं सक जवन माजा मार रहल बा तवन िेकुलर ह आ जवन माजा मारे खासतर मँहु सिजा रहल बा, बासकर मौका समलत नइखे उ एह िेकुलरवन के मोतासबक िम्प्रदासयक ह । चाचा , िांच िछ ू त दनू ू एके चट्टा-बट्टा हउँए । एमें कवनो िेकुलर ना हउँए । अब बाकी बचनी हमनी , त हमनी के बोका हई ँ िन । एतना कह के जोर िे ठहाका मरले । िभे हँिे लागल त िे र बोल िड़ले - एजी जवन िरब धरम आ िरब जात के खनू सबना कवनो भेद-भाव के चिू लेव ओकरा िे बड़हन िेकुलर के बा ? हमरा त बझु ाता जे अिगर डाक्टर के जवन खनू -िेशाब जाँच के दोकान खल ु ल बा ओलर नाम “जनता जाँच कें र” हटा के “िेकुलर जाँच कें र” होखे के चाहीं । काहे सक उ िबकर खनू जाँच करे खासतर सखंचल े े आ उिर िे िइिो ले ले ।

हमरा गांव के बदरी महतो मन में बदु बदु ा के ओके गते-गते िढले आ हमरा िे िवाल क देहले - ए बबआ ु , ई िेकुलर आ िम्प्रदासयक का ह ? हम िोचे लगनी सक इनके कइिे िमझु ाई ं ? हम आगे कुछ बोलती तले गौरीशक ं र जे हाथ में खरु िी लेहले घाि गढे जात रहले, िनु के खड़ा हो गइले आ बीच में टिक िड़ले - ए बदरी चाचा , उहाँ के अग्रं ेजी में बताएब । आव हम तहरा के ठे ठ भोजिरु ी में िमझु ा दीं ।

तं

उनका बात िर िारा लोग हँिे लागल । हमरो हँिी छूट गइल । अतने में लालसबहारी बात के उिरे उिर लोक लेहले - आ भाग मरदे ! आज के सियािी माहौल में “ जनता जाँच कें र ” आ “िेकुलर जाँच कें र” दनू ू के मानी ऐके हो गइल बा । एह दनू ू शब्द के मतलब उहे लोग भंजावता जे लोग के एह दनू ू नाम िे कवनो

िंग इनायिपरु ी

ग इनायतपुरी (सुनीि कु िार तंग) जी आजू के सिय िें देश मबदेश िें एगो जानि िानि कमव के रूप िें स्थामपत बानी। इं हा के सीवान के रहे वािा हईं आ पैतृक भूमि मपिुई (दाउदपुर) ह। पेशा से हस्तरे खा आ अंगुिांक मवशेषज्ञ हईं तंग जी। हास्य-व्यंग के रूप िें, िजामहया शायर के रूप िें आ िंच संचािक के रूप िें इं हा के भोजपुरी, महन्द्दी आ उदूय के सैकिों कमव सम्ि​िेनन िें देश-मबदेश िें आपन एगो अिग पहचान बना चुकि बानी। देश के शीषयस्थ पत्रपमत्रका िें तंग जी के रचना प्रकामशत होते रहेिा। दु बररस पमहिे , भोजपुरी िें उं हा के काव्य-संग्रह “के हु िन पि​ि” प्रकामशत हो चुकि बा। भोजपुरी खामतर आखर के संघषय िें इहा​ाँ के बहुत योगदान रहि बा।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 20


कथा –कहानी मतलब नइखे । इनको बात िर िे र एक बेरा हँिी लागल । जोर-जोर िे ठहाका िनु के आउरी लोग जामा हो गइल । खबू भीड़ लेखान मजमा जो गइल । ई िब देख के हम अिना मन में िोचे लगनी जे बात त ठीके बा । िाँचहूँ एह तरह के जेतना नैसतक शब्द बा ओकर इस्तेमाल गांव वाला िीधा-िादा लोग अनैसतक ढगं िे थोड़हीं करता ? अगर इमानदारी िे िोचल जाव त िामासजक न्याय , दसलत-महादसलत , सिछड़ाअसतसिछड़ा , िशमाँदा , अल्ि​िंख्यक - बहशंख्यक , िवषहारा, बजु आ षु , बी.िी.एल. , ए.िी.एल. िांस्कृ सतक राष्रवाद , जइिन राजनीसत के टेसक्नकल शब्द गांव के लोग नइखे इजाद कइले बलक ु उहे बसु द्धजीवी लोग इजाद कइले बा लोग जे लोग कहीं ना कहीं राजनीसतक रोटी िेंके वाला लोग के िहयोगी िासबत भइल बा लोग , भा खदु े बा लोग । हमरा याद िड़े लागल जे हमनी के लइकाई ं में गांवा गाँई हर िनीचर के गणेश जी के एक मठु ी चाउर , िूल आ एगो िइिा के िगं े शनीचरा भगवान के प्राथषना आ रोज-रोज स्कूल के प्राथषना िब धरम-मजहब के लइका लाइन लगा के एके िंगे गावत रहले । कवनो भेद-भाव ना रहे । उ स्कूल के एगो सिस्टम रहे । आसखर , कवन अइिन बात हो गइल जे हमनी कीहां के लइका शनीचरा आ भगवान के प्राथषना त दरू , अब राष्रगान भी गावे में आना-कानी करतारे । हमरा बहत िोचला के बाद इहे बझु ाइल जे जब ले राजनीसत के दखल हमनी के िामासजक आ धासमषक जीवन में बरकरार रही तब ले एह रोग िे सनजात िावल कसठन बा । जब ले ई राजनीसत के टेसक्नकल शब्द िर िमाज का ओर िे अक ं ु श ना लगावल जाई तब ले एह तरह के तमाशा होते र ही । एह बदचलन राजनीसत के िोझा ओही लोग के िेकुलर के उिासध सदया रहल बा जे

लोग कवनो लालचवश चउक -चौराहा िर अिने धरम के बेवजह बरु ाभला कहे के तैयार बा । बाह रे राजनीसत ! रहल बात मीसडया के त इहो मानहीं के चाहीं जे आज अखबार दोकानदार में कवनो िरक नइखे । इलेक्रासनक मीसडया िे लेके सप्रटं मीसडया तक ले अिना टीआरिी के िे र में िड़ल रहता । िबकर बात िनु त-िनु त जब बदरी महतो िे बरदाश्त ना भइल त लगले कहे - हमरा िब बझु ा गइल । अब सजयादे िमझु ावे के जरुरत नइखे । होंसियार के इशारा कािी ह । हमरा के एक्के -बेरा एतना बेवकुि आ जासहल जिाट मत बझू ी लोसगन । इहे नू बात सक सबना भेद भाव के जे िबकर खनू खींच लेव आज के यगु में अिली िेकुलर उहे ह । बासकर एगो बात हम कहेब सक अिगर डाक्टर अगर खनू खींचल े े त कह के खींचेले आ ओकर अच्छा भा बाउर िांझी ले रीिोटो देले । आज के यगु के अिली िेकुलर त उ बा , जे खनू ो खींच लेता आ हमनी के ितो नइखे चलत । आ बहादरु ी त इहो बा सक आजादी के बाद करीब ित्तर बररि िे हमनी इतं ेजारे करत रह गइनी िन, आज ले कवनो रीिोटो ना समलल । अबसकर उनका बात िर के हू के मँहु िर हँिी ना रहे । िबका मँहु िर अइिन लागत रहे जइिे बदरी महतो गाल िर जोरदार तमाचा मार देले होखि । एके बेरा िभे िन्नाटा में आ गइल । अइिअन लागत रहे सक सिसछलका एलेक्िन में बटाइल जात आ धरम के खेमा रह-रह के महँु सबरावत होखे । हमहूँ जान-बझू के एने-ओने ताके लगनी । िे र घड़ी देखनी आ बोल िड़नी - आरे , ढेर टाइम हो गइल । इरिान गाड़ी स्टाटष करऽ चलल जाव ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 21


कथा –कहानी हदवाली (लघु-कर्था)

िसु स्मत िौरभ

ज भोरे िे मसु नया बहत खश ु रहे। महेि कुम्हार के ई िाँच बररि के बेटी के आज दीवाली जे मनावे के रहे। उ कबो अिना बाबू के खेलौना रंगे खासतर रंग ले आके देबे त कबो माटी िे बनल डोल, चक्ु का, दीयरी के बांि के ओसड़या में िररया के राखे। िमचू ा आँगन में चौकड़ी भरत घमू त रहे आ रह-रह के अिना माई लगे जाके कहे“माई... माई, बाबू ई िामान बेचे बाजारी ि कब जइहें? हमहूँ जाईब उनका िगं े। ओसहजा ढेर लोग अइहें आ उ लोग बाबू िे चक्ु का, दीयरी, खेलौना खरीदीहें आ हमनी के िईिा समली। िे र... िे र बाबू उ िईिा िे हमरा खासतर िुलझड़ी, समठाई, कुसल्हया-चसु कया खरीद दीहें आ हमनी के घरे आके तोरा िगं े दीवाली मनाइब जा।” शायद ई बात मसु नया के माई ओकर मन रखे खासतर कबो कहले होई। दिु हररया में कुछ खइला के बाद महेि बाजार खासतर सनकलले त मसु नया भी िाथे जाये के सजद करे लागल। ओकर माई महेि िे कहली- सलयवले जाई ंिंगे, लइका ह तनी घमू ली त मन बाझ जाई। महेि मना ना कइले आ मसु नया िगं े बाजार चल सदहले। बाजार में एगो छोट जगह देख के महेि आिन िामान ओसहजा िै ला सदहले बेचे खासतर आ आि जोहे लगले कवनो खरीददार के । बाजार में बररयार भीड़ रहे आ िब दक ु ान रंग-

सबरंगा चाइनीज झालर, लाइट, िटाखा, खेलौना िे िजल रहे। कािी चहल-िहल रहे आ लोग खश ु होके चाइनीज िामान खरीदत रहले । बासिर मसु नया के िामान लेबे के हू न आइल। एक आध गो लोग अइले भी त ओकर खेलौना, चक्ु का हाथ मे लेके देखले आ िे र महंु बना के चल सदहले। मसु नया बेचारी कतना देर ले आवाज सदहलि“ले लऽ , ले लऽ, दीयरी ले लऽ, चुक्का ले लऽ...” बासिर के ह ना आइल ओकर चक्ु का, दीयरी आ खेलौना लेबे। दिु हररया िे िांझ भइल आ िे र िांझ िे रात लेसकन मसु नया आ महेि के एगो िामान ना सबकाइल। अब त बाजार भी उठे लागल रहे। मसु नया अब थाक गइल रहे आ ओह बेचारी के नींद आवत रहे तबो रह रह के कह उठे - “ले लऽ , ले लऽ, दीयरी ले लऽ, चुक्का, ले ल...।” महेि बेचारे भरी मन िे अिना बेटी के ओर देखले आ िामान के माथा िर रख के मसु नया के एक हाथ िे कोरा टंगले आ घर देने चल सदहले। उ का कर िकत रहन, चाइनीज िामान के आगे उनकर िब िामान िीका िड़ चक ु ल रहे। घरे िहचं त ले मसु नया नींद में बेिधु हो गइल रहे आ ओकर माई बगल के मसं दर में िे एगो के ह के बारल सदया उठा के ले आइल रहे अिना घर के अजं ोर करे खासतर।

गड़हनी, भोजपुर के कल्ल,ू दशहरा आ पदवाली खापत मरू त बनावत

फोटो—अविनाश राि

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 22


कथा-कहानी

राधा के पिपसल्टी

िा

बािक ु ी नाथ सिंह

रण सजला में भकुरासभठी एगो गाँव बा । एह गाँव में कई एक बार जाए के मोका समलल बा । भकुरा जाए के िम में उहवाँ अगडु -अगडु लोग िे भेंट हो जाला आ ओह लोग के सचत्र हमरा सदल के िदाष िर हमेशा उभरत रहेला । भकुरा गइला िे एगो लाभ त ई समलल सक मास्टर िाहेब राम उछाल सतवारी के घरू ा तर बइठे के मोका समलल । आ ओसह घरू ा उटके रे आ तािे में हमरा कहानी के मस्त िात्र राधा भेटा गइले । राधा मास्टर िाहेब के हरवाह रहि । खटे में उनका दसहने के हू ना बहे बासकर उनकर खोराक भी रहे । 2 सकलो चाउर के भात उ अके ले देख देि । कलछुल िे भात-दाल देहल उनका ि​िंद ना रहे । गाँव में सजन जाना कलछुल िे भात देि त राधा कहि सक ई मदषवा बड़ा करमकीट बा । तिसलए जे उसझल देव त उ कहि - ई िाटी बड़ा सदलदार बा । मास्टर िाहेब उनका थाली में अिना िे भात के तिली उसझल देत रही । एही िे मास्टर िाहेब के हरवासहओ ं उ कबल ू कइले रहि । िबु ह 25 रोटी िे नास्ता करि आ 12 बजे 2 सकलो चाउर के भात भोजन करि । भोज में खाए बइठ जाि त लोग तमािा देखे लागे । २ गो ितल में उ भोज खाि । एगो में िरू ी आ एगो में िब्जी । एक बार मसु खया जी का घरे भोज रहे । राधा के भी सनमत्रं ण रहे । सखयावे वाला लोग लागल सगन-सगन के िरू ी देवे । राधा त सखिी भतु हो गइले । बासकर उ लोग सगनल ना छोरल । िाठ गो िरू ी खइला िर दधू ही बाल्टी िे एक बाल्टी िानी सियले अब उ बि-बि कहे लगले ताले िे र एक आदमी दि गो िरू ी सगरा देलि । एह तरह बि-बि करत 70 गो िरू ी के बाद िुल स्टॉि लागल । एक सदन राधा बाजार गइल रहि । ठे ला िर िीिा लगावल रहे आ एक जाना दोकानदार रिगल्ु ला बेचत रहि । ओह िीिा में 100 गो रिगल्ु ला रहे । हारा-बाजी लग गइल सक जे िमचू ा रिगल्ु ला खा जाई ओकरा के फ्री में सखयावल जाई आ ऊिर िे 100 रूिया ईनाम सदयाई । राधा िीिा के समठाई िाँच समनट में िाफ़ कर देहलन । 100 रूिया लेहलन आ चलते बनलन । ओह सदन का बाद का मजाल के हू के सक राधा िे खाए में हारा-बाजी लगा लेव । एक सदन हम मास्टर िाहेब के घरू ा बइठल रही । उहों का रहीं आ ताले राधा भी आ गइलन । अगर घरू ा तर राधा होखि त घरू ा के आनदं दोगनु ा हो जाला । िसहलका त उनका रहला िे ई होला सक घटल-बढल ईधन ं के जोगाड़ ऊ करत रहेले । दोिर काम ऊ ई करे ले सक मनोरंजन के जवन उहाँ

दीया जरे ला ओकर बातीयो उिकावत रहेले । अबहीं टटके आिना बेटी सकहाँ िे आइल रहि । अभी दू मसहना िसहले आिना बेटी के शादी मजसलि​िरु कइले रहि । मास्टर िाहेब का मदद िे उनकर बेटी लक्ष्मी के शादी बसढ़या घर में हो गइल रहे । मास्टर िाहेब िछू देहनी – “कह राधा लक्ष्मी के घर के िमाचार कह” । राधा कहे के शरू ु कइले – “जान जाई मास्टर िाहेब सक हम मजसलि​िरु िबु ह आठ बजे िहचँ गइनी । चौक िर नजर दउरवनी त समठाई त कवनो ना लउकल, त का कइनी सक बतािे आधा सकलो सकन लेहनी । जाते-जात एक दजषन लइका हमरा के घेर लेले िन । ऊ त कहीं जे हम बतािा सकन लेले रहीं, ना त खासलये जइती त हमरा छाँय-छाँय लाज लासगत । जाते-जाते हमरा बइठे के कुरिी समलल । घर त करकटे के बा बासकर ओकर िाफ़-ि​िाई देख के मन हररअर हो गइल । आधा घटं ा के भीतर हमरा िामने िच्चीि गो िरू ी आ आधा सकलो आलू के भसु जया गरम-गरम नास्ता में आ जाता । हमरा ई मालमू रहे सक नास्ता में िरिन ना मागं ल जाला एह िे िच्चीि गो िरू ी िर आिना मन में ितं ोर् क लेहनी । अइिे आइत त दि गो िरू ी िोटो: पी रतज ससंह आउर देख देती । खैर, हमरा खश ु ी में कौनो कमी ना रहे । ताले ले प्लेट में कि ध के चाय एगो लइका लेके आइल । जान जाई मास्टर िाहेब सक प्लेट में कि देखनी त हमरा बझु ा गइल सक लक्ष्मी के शादी अइिन घर में हम कर देले बानी जवना घर के “सिसिल्टी” िब जगह ना समली ।”

बासक ु ी नाथ ससंह मि मडि

स्कू ि मशक्षक। छपरा (मबहार) िें मनवास। भोजपुरी भाषा से जुिाव आ भोजपुरी िें कमवता-कहानी िेखन। ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 23


सिंस्मरण

जब बदमाशी करत रहनी -2 प्रीतम िाण्डेय

ब हमनी के प्राईवेट क्वाटषर में गईनी जा त ऊ बहत ही िँकरा इलाका रहे । एगो िातर गली के रास्ता रहे आ लोग ओसहमें आिन िाईसकल खड़ा करे । कुछ सदन त िब ठीक ठाक बीतल लेसकन एक सदन िाईसकल चलावे के बररयार इच्छा मन में जाग गइल । एगो शमाष जी हमनी के िामने रहत रहनी त हम शमाष जी िे कहनी सक तनी आिन िाईसकल दीं , हमरा चलावे के मन बा । शमाष जी हमरा के लईका बझू के आ चाहे जवन भावना िे , िाईसकल ना देहनी । हम बहत ररगीर कईनी लेसकन उहाँ के लगे कवनो ओकर िनु वाई ना रहे । हमार मन बहत दख ु ी भइल िाईसकल ना समलला िे । हम एकर बदला लेबे के ठान लेहनी । बि असगला रासत के एगो बोि बाबू रहनी , उहाँ के िाईसकल के हवा खल ु गइल आ ओकर सिन भी गायब हो गइल । िवेरे बोि बाबू के ड्यटू ी जाए के बेरा िाईसकल के हालत देख के खीि हो गइल लेसकन उहाँ के आिन िाईसकल लेके बनवावे गईनी आ ओसनए िे ड्यटू ी चल गईनी । दू तीन सदन बाद िे र हवा खल ु ल , बोि बाबू आ िरु े मनिरु ( बसलया ) के राधेश्याम सतवारी जी दनु ू आदमी के । सबहान भइल अब हाला भइल आ बोि बाबू आिन सिछला घटना के भी बतवनी लेसकन शमाष जी के हवा ना खल ु ला के चलते के ह हमरा िर शक ं ा ना करे । अब भइल सक के हवा खोलता रात में जाग के देखल जाई । एमें हमार बाबा भी हामी भरनी सक हँ रात के देखल जाई । अब हमरा कवनो उिाय ना लऊके सक का करीं । करीब 7-8 सदन ले खबू गश्ती भइल लेसकन ओकरा बाद भी हम िकड़ाए के डरे िाईसकल के िँजरो ना जाई ं । लेसकन खरु ािाती मन , कब ले शांत रहो । एक सदन चल गईनी हवा खोले , सबजली ना रहे आ गलती िे हमरा िे शमाष जी के िाईसकल के हवा खल ु गइल आ ओने िे सतवारी जी ड्यटू ी िे आके आिन िाईसकल खड़ा कर देनी । अब हम त उहाँ के देखते काँि गईनी ।

बाबा िे नासलि भइल आ शमाष जी के भी बोलावल गइल । अब त हमरा कटले खनू ना रहे । शमाष जी अईनी आ िछ ू नी सक बोलऽ बाबू हमनी िे का बैर बा । हम बोलत ना रहीं तले बाबा के गसम्हराह एगो िड़ल आ हम सिखावल िग्ु गा सनयन बके लगनी । हम कहनी आिन वाकया जवन हमरा आ शमाष जी के बीच भइल रहे त सतवारी जी िछ ू नी सक शमाष जी िे सदक्कत रहे , हमनी के काहे हवा खोलत रहल ह । हम बता देहनी की रऊआ लोग के खोलला िर के ह हमरा िर शंका ना करत रहल ह । िभे मँहु दाब के हँिे लागल आ हमरा रोवला के ठीक ना रहे , डर आ चटकन के चोट िे । िभे हमरा के चिु करावल । शमाष जी हमरा के कहनी सक काल्ह िे हमरा जाए िे िसहले तु िाईसकल मन भर चलईहऽ । तब जाके हम चिु भईनी आ असगला सदन िे िाईसकल हमरा खासतर फ्री हो गइल । ओह सदन िे लोग के हवा खल ु ल बन्द हो गइल । शमाष जी के बेटा रहनी प्रभात भईया आ उहाँ के नौकरी में रहनी । जब उहाँ के छुट्टी में त उहाँ िे हमार इ शैतानी हमार इया बतवनी । तब उहा के मसु स्कया के रह गईनी लेसकन ओही िाँझ हमरा खासतर एगो नया चमचमात िाईसकल कीनके हमरा खासतर ले अईनी । ओकरा बाद जतना सदन उहाँ के छुट्टी रहे , रोज िवेरे हमरा के िाईसकल सिखावल उहाँ के आिन ड्यटू ी बझू नी और उहें के सिखावल और सहम्मत सदहल की हम िाईसकल बहत कम उम्र में चलावे के िीखनी । आज शमाष जी आऊर बाबा दनु ू आदमी ररटायर कर गईनी लेसकन आना जाना हमेशा रहेला । उ िब सदन जब याद आवेला त मन कहेला सक का हो तु िधु र कईिे गइलऽ ? जवाब आज ले हमरा लगे ना जटु ल सक आसखर हम कईिे िधु र गईनी । शायद ईश्वर के कृ िा चाहे इया जी के िरवररश िधु ार देहलि । आज भी कबो कबो इया जी कहत रहेनी की बबओ ु इ तेहीं हईि । ओ घरी एगो ठगाइल मस्ु की छुट जाला आ दाँत सचयारा जाला ।

मने एक त सगरनी गाछी िर िे आ दोिरे मरलि सबच्छी । सतवारी जी देखते आग बबल ू ा हो गईनी काहे सक उहों के एक सदन एह िरे शानी िे िामना भइल रहे । बि िकड़ले हमरा के घरे ले अईनी आ

असगला भाग में समली िरस्वती िजू ा के आ िईिा गायब करे के घटना ।

प्रीि​ि पाण्डेय

को िा बिडीला , सजला - छिरा के रहे वाला प्रीतम िाण्डेय जी अभी िढाई कर रहल बानी आ जयप्रकाश सवश्वसवद्यालय िे स्नातक भाग - 2 में बानी।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 24


कथा-कहानी

फलनवा के कार्था चार्लसय मडकें स के कहानी “नोबडीज स्टोरी” के भावानुवाद

सवध्ं य समश्र

वन एगो देश में दु कवन एगो गांव रहे । उहे गांव में ना जाने कवन एगो आदमी रहत रहले । गांव के , देश के ,आ मनई के नावँ जानल ढेर जरुरी नईखे । कवनो काथा खाली नावँ बता देहले िे ना िरू ा हो जाला । काथा में जवना बात सजसकर कइल जाला उ ढेर जरुरी बा । ई काथा में जवना बात के सजसकर होता उ बात एतना िाधारन बा सक अइिन बात हर जगहा होत रहेला - हमरो गांवे होत रहेला... रउओ गांवे होत रहेला । अब गांव के कवनो नाम धऽ सलंही, देश के कवनो नाम धऽ सलंही आ मनई के नाम रमेश ...िरु े श ...गणेश ...सदनेश.... भऽ सचरकुट ...कुछुओ राख सलहल जाओ ... कवनो अतं र िड़े के नईखे । बासकर िहूसलयत खासतर ,चलीं, उ मनई के नाँव रख सलहल जाओ - “िलनवा!” अब ई काथा के नाँव हो गइल – “िलनवा के काथा”। ...अब रउआ िभे िलनवा के काथा िनु ी । तऽ िलनवा जवन गांव में रहत रहले ओसह गांव में एक जाना सचलानवा भी रहत रहले । िलनवा के मड़ई िे िटले उनकरो महल खड़ा रहे । िलनवा के दू कठ्ठा खेत के जरी सचलानवा के बड़हन बारी -बगइचा आ िमष हाउि रहे । िलनवा के दआ ु र िर एक जोड़ी बैल रहले िन त सचलानवा के दआ ु र िर हाथी-घोडा-गाय-लगहर िब कुछु रहे ।िलनवा के घर में एगो टुटही िाइसकल रहे त सचलानवा के बथान में मोटर गाडी आ मोटरिाइसकल दन्ु नु रहे । कहे के माने ई जे भगवान् जी सचलानवा के कुसल्ह मामला में िलनवा िे बीि रखले रहनीं । और त और िलनवा के दू गो सनिढ लईका खेती मजरू ी के काम करऽ िन त सचलानवा के चार गो लईका बसढ़या िढ़-सलख के कुसल्ह कवनो-न-

कवनो िरकारी नोकरी धऽ लेहले िन । बासकर िलनवा के मन में एह बात के कवनो मलाल ना रहे । बेचारु आिन हाथ गोड़ चलावि । जवन भेंट जाओ ओसह में आिन आ अिना िररवार के हिं ी खिु ी िे राखि । कबो-कबो आिन लईका िभ के खराब हालत देख के उनका दःु ख होखे । आिन हालत िधु ारे खासतर िसहले बटाई िर किष लेके खेती कइल शरू ु कइले । बाद में एगो खटाल खोल लेहले । बासकर एक िाल अइिन िख ु ाड़ िरल जे कुसल्ह ि​िल चौिट हो गइल । खटाल िर के गाय िभ के िता ना का बेमारी भइल जे उहो मर गइल िन । उनकर बढ़ू मेहरारू एही बीचे बेमार हो गइल । िेवािानी ना समलला िे एक सदन उहो मर गइल ।हार-िाछ के दनु ु लईका बॉम्बे कमाए सनकल गइले िन । बासकर हाय रे देवा ! होनी के कुछु अउरी मजरू रहे । रे लगाड़ी के एक्िसिडेंट हो गइल ...। बेचारा दनु ु लईका बाहरे मर गइले िन ...। आिन देश के माटी ना निीब भइल ओकनी के ...। िलनवा के आिन लईकन के लाश देखे के निीब ना भेंटाइल । बेचारु कुहकते-डहकते उहो मर गइले । गांव के लोग समल -जल ु के उनका के िूक-ताि आइल । अब जसद रउवा उ गांव में जाईब त एगो मरू सत लउकी। ओसह िर सलखल बा –“श्री सचलाना जी ...बहत बड़हन िमाज िेवी रहनी ...इहाँ के एमए-बीए आ िता ना का-का िढ़ के कलक्टर बन गईनी ...। ररटायर भइल िर गांव के िेवा करत करत इहाँ के देहांत नब्बे बाररि में भइल ।” िे नु कुछु अउरी आगे दोिर मरू सत लउकी । ओसहिर सलखल बा- “श्री सचलानवा जी के बड़का लईका .....इहों के िता ना के तना िढ़ाई िढ़ के वैज्ञासनक बन

सवंध्य सिश्र सी वान मबहार के रहे वािा ववध्य मिश्र जी आखर पररवार से बहुत कदन से जुडि

बानी, आ भोहौरी िें िगातार कमवता, कहानी की सृजन कर रहि बानी । ए घिी इहा​ाँ के तेजपुर असि िें रह रहि बानी ।

िोटो : जतगरण डॉट कॉि

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गईनी ...आ प्रयोगशाला में दघु टष ना भइल िर ....देश िेवा करत इहाँ के देहांत हो गइल । गांव के इहाँ िर नाज बा ।” एही तरे दिु रका लईका-” फ़ौज में अि​िर बन गइले, आ देश खासतर लड़ाई में शहीद हो गइले । गांव के उनको िर “नाज” बा ।” “श्री सचलानवा जी” के “सतिरका-चउथका” लईका िर भी गांव के ”नाि बा” उहो लोग िता ना का-का दू कऽ के , िता ना के के लेखां मर गइल बा लोग। ...आ गांव के उहो लोग िर नाि बा एहीिे उहो लोग के मरू सत गांव में लागल बा । जे जन्म लेहले बा , ओकरा एक सदन हे-तरे ना त हो-तरे मरसहं के बा । ई मनई के िंघर्ष के कहानी बा जवन कहल जाला , िनु ल जाला , गावल जाला । सचलानवा के खर- खानदान के काथा त लोग इयाद रखले बा । काऽ िलनवा एहू जोग ना रहले जे उनकर काथा लोग इयाद राखो ? काऽ िलनवा जइिन आदमी के िंघर्ष के कवनो अहसमयत नईखे ? जे माटी-ढेला में जन्म सलहल... जे घाम-बरखा में सजनगी सजयल... जे कष्टे-सवयोग में मर गइल... काऽ अइिन “िलनवा” के काथा के कवनो मोल नईखे ?रउरो आि िाि कई गो िलनवा होईहें लोग । का अइिन िघं र्ष खासतर

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ित्थर के मरू सत ना त एगो मासटए के ढेला िे स्मारक नईखे बनावल जा िकत ?का िलनवा के काथा के ना िनु ावल जाओ ? का िलनवा के काथा भल ु वा सदहल जाओ ? बतायीं िभे ...।


कथा-कहानी

पवहान िद्मा समश्रा

काल गांवे जाये के बा, बासकर ई िमझ में नईखे आवत की एतना बररि बाद उँहा के लोग हमरा के िसहचानी की ना, सबयाह िादी, मौका िर त आउरो ररश्तेदार लोग भी आइल होई, िबका बीच में आिन शहरीिन, रहन िहन के आदत छोड़ के , ठे ठ गवं ई अदं ाज में, खाली ओ गाँव के “छोटका बबआ ु ” बन के सजए खासतर हमार मन तरित रहे । आज चचेरा भाई अजय के लईका के सबयाह में ई मौका समलल, त हम टाल ना िवं ली , िजं ोग िे सटकटों भी समल गइल रहे, मन में एगो उमगं , हलाि के जैिे नदी उमडत रहे । हमरा िाथे दनु ो बड़का भैया ओउर भौजी लोग भी जातरहली । घर में अइिन तैयारी होखे लागल जैिे हम जगं ल में जा रहल बानीं । प्रीसत के बार बार मना करला के बावजदू न जाने का का नाश्ता में बना सदहली, सनमकी, ठे कुआ, भंजू ल सचउड़ा, सबस्कुट, अब के िमझाई की हमार गाँव अब उ िरु नका गाँव ना रह गइल, बहत कुछ बदल गइल बा, िोच, सवचार ओउर शायद लोग के रहन िहन के तौर तरीिा भी । अरे उ हमार गाँव ह, हमार जन्मभसू म, हमार माई जइिन लेसकन माई के नांव मन में आवते आँख िे गंगा जमनु ा बहे लागल । मन सहल़क सहल़क के रोये खासतर बैचनै हो गइल । “का भइल? एतना उदाि ओउर सनरीह बन के सबयाह शादी में जाइब? ” िीछे िे प्रीसत टोक सदहली । “ना ना, माई के इयाद आ गइल ओकरा आसखरी िमय में भी ना समललीं ई नौकरी खासतर । माई के ममता , नेह छोह िब भल ु ा देवे के िडल माई बीमार रहे, आ हमार नया नौकरी में तरु ं त ज्वाइन करल जरुरी रहे, बि हम जबले लौट के अइल, माई ना समलल । आज उ िब मजबरू ी याद आ रहल बा । ओ घर के कोना कोना में माई के याद सबखरल बा प्रीती, की िमेटेले ना िमेटाई ” आज रात के गाडी िे जाए खासतर तैयारी शरू ु हो गइल । नयकी ितोह के प्रीती िाडी, श्रृगं ार के िमान चड़ू ी, सिदं रू आ चादं ी के िायल रख के

उिहार तैयार कर देली, हमरा के नाश्ता में ठे कुआ सचउरा, बादामके नमकीन , बेिन के लड्डू सडब्बा में रखके सदहली । जैिे िरदेश िे घरे लौटला के खश ु ी होत रहे, वैिने खश ु ी आज हमरा सदल सदमाग में छाइल रहे । जैिे आजो माई हमार इन्तजार करत होई, बाबजू ी सिवान में खडा होके राह देखत होईन्हें , आ घर के चल्ु हा िर माई गरम भात िकावत होई की दू सदन िे िफ़र में चलल छोटका बबआ ु के भख ू लागल होई । हम जानतानीं सि आज अब कुछ ना शेर् रह गइल, न माई के इतं िार, न बाबजू ीके दल ु ार, न अगं ना के आम गाछ में फ़रल समठुआ आम के स्वाद सदन, बररि, मसहना, बीतत, िमय के धार िगं े िब बह गइल । बासकर जे शेर् बाचं गइल बा , ओही धरोहर के िमेट के ले आइब, माई के िनू अगं ना में खडा होके तल ु िी मैया के गीत गावत, माथ िर अचं रा राख के जोत जलावत, माई के मधरु मसू तष अिना कल्िना में िहेज के ले आइब । जगदम्बा जी के मंसदर में सदया जला के माई जइिन घर िररवार, गाँव के िख ु मांगब । आज एतना सदन के बाद गाँव के धरती िर िाँव रखते हर गली, मोड़, िड़क, ग्राम देवता, िबिे माफ़ी मांगब सि हम रोजी रोटी के मजबरू ी में गाँव के भल ु ा जरुर गइल िर अिना सजनगी ओउर मन के हर धड़कन में अिना गाँव के बिवले बानीं । रेन में अच्छा िे जगह समल गइल । प्रीती बार बार िमझावत रहली “दवाई िमय िर खा लेब, तेल, मिाला मत खाइब, िहचं ते िोन करब” बासकर हमरा के कुछ न िनु ात रहे । आ रेन चल िडल । िामने वाला बथष िर एगो और िररवार अिना गांवे जात रहे, मौिम के हालचाल िछू त , गाँव घर के माहौल िर आके बात होखे लागल । उ बातचीत िे मालमु भइल सि आज कल गाँव के यवु ा िीढी के बीच एगो नया रोजगार चल सनकलल बा, जे लोग लंबा िमय िे , रोजी रोटी खासतर गाँव छोड़ , शहर भा िरदेश चल गइल बा, उनकर घर त ढहत, भहरात जरजर अवस्था में िहचँ गइल बा, देख भाल के अभावे आ िमय िमय िर गाँव ना िहचँ िावे के मजबरू ी में उ घर ओउने िौने दाम में सबक रहल बा, नव्जवानन के चांदी बा । हमार कान खडा हो गइल । उ

पद्मा सिश्र

िशेदपुर , झारखंड के रहे वािी पद्मा मिश्रा जी , प्रिुख अखबार जइसे वहदुस्तान , जागरण , प्रभात खबर , भास्कर आ राष्ट्रीय आ स्थानीय पत्र पमत्रकन िें िगातार मिखत रहेनी । कहानी संग्रह , बाि कमवता, कहानी संकिन , काव्य संकिन, उपन्द्यास प्रकामशत हो चुकि बा । आकाशवाणी से मनयमित कमवता पाठ करे नी । कइ गो सम्िान से सम्िामनत पद्मा जी एह घरी जिशेदपुर िे बानी ।

िोटो : जतगरण डॉट कॉि

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 27


अनजान समत्र आज जैिे हमार शभु सचतं क बन के आइल रहे । “गाँव के बाकी लोग सवरोध काहें ना कइल?” “कै िे करी? जेकर घर बा उ लवट के एक बार आिन घर दआ ु र के िधु लेवे आवते नइखे, गाँव में गरीबी के चलते, सशक्षा के कमी बा एसहिे रोजगारो नईखे समळत । रौआ जानते बानीं सि अब मेहनत के काम के हू करे के ना चासह, ऐिने में खाली िडल जमीन, खँडहर के बेचे खरीदे आ कमीशन के नाम िर कुछ धन कमा लेला के अलावे चारा का बा?” ओ घरी भाई िाहब के चेहरा उतर गइल, बडकी भाभी रुआंिा हो उठली बासकर हमरा मन में अनेक सचंता आ सिसकर के सवचार आवे लागल , सिर एगो िक ु ू न आ राहत समलल सि यसद हम ना चाहब त के हू जबरन हमार घर कै िे छीन ली? हमरा के िोच सवचार में डूबल देख के िबलोग चिु हो गइल रहे । रात हो गइल , भाभी खाना िरोिे लगली, खाना खाके कब नींद आ गइल िता ना चलल । जब आँख खल ु ल त भोर होत रहे । गाँव नजदीक आवत रहे , िटरी के सकनारे सकनारे आज भी शौच खासतर लड़का , बड़का िब नजर आवे लागल लोग । हमरा चेहरा िे मस्ु कान आ गइल स्कूल िे लौटत िमय रे लगाड़ी िर ित्थर िें के वाला बचिन के सदन याद आवे लागल गाँव के स्टेशन िाि आवत रहे, जैिे मन में बिावल याद के सिटारा के हू धीरे धीरे खोलत जात होखे, अइिनिोच के मन बार बार भरआवे । आज माई रसहत त ओकर खश ु ी के थाह ना समसलत बासकर अिना घर िे समले के , अिना कोठरी, अगं ना के तल ु िी माई िब िे समले के खश ु ी भी कम ना रहे । गाँव िहचँ त िहचँ त दिु हररया हो गइल, अजय के घर िे ढोलक बजा बजाके गावल जात ओउर तन के गीत सिवान तक िनु ात रहे । भौजी भी हलािके एगो गीत गावे लागली- “कहवं ा के राजा सबयाहन आवेले, माथे मक ु ु ट मख ु े िान” । हमार घर आ गइल उहे लाल खिड़ा वाला बड़का मकान और खम्बा जैिे हमनीं के स्वागत खासतर आकुल व्याकुल, खडा समलल । अगं ना में आिन बैग रख के हम िबिे िसहले माई के रोिल तुलिी मईया के गोड़ लगलीं, भले एतना िाल में के तना ित्ता झरल होई, के तना आन्हीं तूफ़ान िहल होई ई छोट िा तुलिी के सबरवा, बासकर माई के रोिल िंस्कार जइिन आज भी ओइिने िरल िुलात बा । आँसखन िे बहत आंिू के रोक िावे में आज हम अि​िल होत बानीं । िब कुछ बा, अगं ना के अमरुद, तल ु िी मैया, माई के राम रिोई,ं आ छोटका खटोला जे िर बैठ के माई सचउड़ा कुतत रहे, बि माईए नईखे । िीछे िे भैया हमरा कंधा िर हाथ रखत कहलन –“जे ना रहल ओकरा खासतर दख ु ी मत हो, जे बांच गइल बा ओही के िंजो ल” । तबले अजय आ ओकर बेटा आके चरण स्िशष कइल लोग । “आ गैनीं भैया? रास्ता में कौनो तकलीि त ना भइल?” -“ना िब ठीक बा” हम शांत होके बोललीं । बासकर मन के भीतर के तना कुछ, छूटल, बीतल, िमय के प्रवाह में सबछुड़ गइल ररश्ता, नाता िे जडु ल भावना के एगो नदी उमड़ल आवत रहे । जेकरा के रोक िावे में हम अिमथष रहलीं । िांझ के बरात जाए के रहे, अजय के दआ ु र िर बैंड आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 28

बाजा वालन के धमकार शरू ु हो गइल रहे । िभ के हू तेयार होखे लागल, िड़ोि के िट्टीदार, आ दरू के चचेरा भाई अिना बेटा आ ओकरे िंघसतया के िाथे हमिे समले खासतर आइल रहे, उ लोग के िरनाम करला के बाद गाँवके सवकाि , िढाई आ िरकारी योजना िर भी बात सछडल । बात बात में मालमू भइल सि िरकार ‘हाई- वे’ बनावावत सबया आ जेकर जमीन बीच में िडत बा उ दि लाख भा बीि लाख कट्ठािरआिन जमीं बेच के मालामाल हो जात बा । रउओलोग के जड़ी अइिन सवचार होखी त हमरा के बताई ं “ई हमार लईका अच्छा कीमत सदलवा दी । ना त जमीन त जइबे करी , कौनों फ़ायदा ना समली, राउर लोग के भी तीि लाख ले समल जाई । “हाँ चाचा जी , राउरों फ़ायदा होई आ हमरो कुछ कमीशन समल जाई ” खश ु ी िे हलित वीरें दर बोल उठल-“हम आच्छा दाम सदलवा देब बासकर दिू र लोग बेईमानी कर ली” । हम ओ घरी त कुछ न बोललीं , बि मन सवक्षब्ु ध हो गइल रहे , हमार चप्ु िी देख के उ सिर अगला बात कहे लागल -”चाचा जी, , रौआ लोगन के घरवो ढहत सढमलात बा आ के हू इहां रही न, ई खँडहर बने िे िसहले एकरो अच्छा दाम समल जाई, सचतं ा मत करीं , हम बानीं न”ु । अब हमरा िे चिु न रहाइल, -हे वीरें दर, तंू सचंता मत कर, हम कौनो बच्चा नईखीं । तोहरा व्यािारी सदमाग में हमार भावना के बात िमझ में ना आई । अरे ई घर ना, हमार िरु खन के मंसदर हा, माई के प्यार दल ु ार, बाबू जी के डांट िटकार, लररकाई ं के खेल तमाशा, दोस्त, िगं सतया िबकर याद िंजोवाले बा ई घर के करा के करा के कीमत लगैब? ई घर ना सबकाई, एकर मरम्मत करवाके बढु बजु रु गन खासतर बईठाका बनीं, के हू के बेटी के सबयाह में उियोग होई, बासकर सबकी ना । हम िररवार िसहत हर िाल अिना माई के , िरु खन के मंसदर के दशषन करे अईब, , हम अिना गाँव िे दरू कहाँ बानीं” । वीरें दर चिु चाि हमार मंहु देखते रह गइल बझु ाइल जैिे बंजर उदाि धरती में कौनों अक ं ु र िूट रहल बा, स्नेह भरल माटी के महल लेके । एगो नयका सवहान के भोर हो रहल बा ।


कथा-कहानी

के बा आपन डॉ० ऋचा सिंह

िमसतया के उिर बडा कसठन िमय बा हस्िताले चहिे के । िॉय िॉय करत अन्हरीया बा । कोरा मे बोखार िे तित ओकर िाल भर क् बेटवा। िटही लगु री मे लिेटले अिने दधु महु ा दल ु रूवॉ के करे जा िे सचिटवले बिमसतया अिने भतारे के िीछे िीछे भागत चलत जात बदहवािल एक गो मतारी "का जाने भगवान हमिे काहे के नराज हउए?.....हमरे िजु ा भगती मे कौन किर रसह गयल का जाने गोलआ ू के बाबू िे कउनो अनसहत ना न भइल जवने िे देवी देवता नराज हउए गोलआ ु क् शरीर तवा जैिन जरत बा.. दोहाइ डीह बाबा क् तसन दया करी। गोलआ ु के ठीक होत् य िॉच बाभन क् मँहु जठु कराई ब।् हमरे लईका के कु छ ना होखे के चाहीं अगर ये के कुछ भइल त हम आिन जान दे दे ब....। खेलावन िाईसकल िरिट भगावत ह तबले इ का अरे िइसकली क चेन अबहीयै टूटै के रहल ह।आजै यहीउ के धोखा दे वैते रहल ह्।खेलावन मन ही मन खीझ गइल ,अबही कोि भर चलले िर शहर आयी बडे नोहरे क बेटवा बा सकिमसतया अउर खेलवना क करे जा बा गोलआ ू ।आज आधी रात िे बोखार िे तड़ित बा आँख उलट गइल अरे गोलूआ क बाबू तनी ज ल्दी करा हम कहत हइ एके कुछ हो गइल बा। अन्हररया रात में दोनों िरानी भागत जात हउए अरे गोलू क महतारी डेरा मत हम हई,खेलावन के सदलािा िे बिमसतया के जान मे जान आइल। हे भगवान हस्िताल जल्दी आ जाय।डाग्डर बाबू जल्दी समल जाइह....तोहके िरिाद चढाई ब ।तबै एगो सचरई सचसचयाए लगल सटसटहरी क चाची ि​िरु ....खेलावन के महँु िे सनकलल।अब नहर क छोर सनगचा गइल ह वही के बाद िड़क समल जाइ।बि अब चहि ल हई।सिकर मत तरा कउनौ रस्ता जरूर समली गोलू ठीक हो जाई।एतनी बात िनु तै बिमसतया के आख ं िे आिं झरै लगल ।हा िही कहत हउआ।आधी रात अउर िरकारी अस्िताल इहॉ डाक्टर सदन मे त डयटू ी िर अइबै ना करतै अउर इ त रात बा।अस्िताल मे ताला बन्द देखते दोनो िरानी क जी बइठ गयल तबही चौकीदार के देखते मन मे आि बनल चौकीदार के लेके डाक्टर क दरवाजा खटखटवल बहत देरी

िोटो : सललकर डॉट कॉम

के बाद एगो मनइ सनकलल अउर घड़ु की बोले लगल"का हे बे " डाग्डर िाहब िे समले के ह़, हमार बचवा बहत बीमार ह देह बहत गरम हउ ए रसह रसह के बेहोि हो जात। डाक्टर िाहब सजला िर गयल हउए कल िबेरे आया इ कसहके दरवाजा बन्द करै लागल कम्िोटर िाहब तसनक हमार बात िनु ा खेलावन सगडसगडायै लागल । सकिसमतया उ अनजान अदमी के आगे सगर गइल िाहेब दया करा....एतनी रात के हम कहॉ जाइब रउआ ा़ हमरे बचवा के बचा ला। ओकरे िर तरि खा के उ मनई बगल के एक प्राइवेट डाक्टर सजतइ लाल क िता सदहलै ,उहा लोगन चल जा देखा कुछ हो िके ला दोनो िरानी आनन िानन मे सजतइ के दवाखाने िर चहूि गइलै घन्टी बजाते ही सजतइ लाल सनकलनै देख दाख के 500 िर ममला तय कइल बोखारे क् मामल ू ी दवाई देके कउनो एक ठे िईू लगउलै ।अउर कहन सक हम गारन्टी ना ले िसकला उिर वाले िे प्राथना करा सक हमरे दवाई िे इ ठीक हो जाय इ कसहके नीम हकीम सबलखत बिमसतया और खेलावन के अबोध बच्चा के डेगू जइिन जानलेवा सबमारी मे मामल ू ी दवाई देके भेज देहलै।िसत ित्नी के काठ मार गयल ।अब अिने गॉव के ओर बढनै वैिहअ उनकर ये शहर के ह उनकर आिन।

डॉ० ऋचा ससंह हररिरं िी जी कॉलेज ,वाराणिी में एिोसिएट प्रोिे िर डॉ० ऋचा सिंह सहन्दी आ भोजिरु ी िासहत्य के कलमकार बानी । िोटो : जतगरण डॉट कॉि

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कथा-कहानी

पीपी गाड़ी (बाल कहानी) मनोज कुमार

“िी

ऽ...िीऽऽ...!” िीटी बजावत एगो इस्कूल भैन गांव के इनार वाला मोड़ िर आके रूकल। उहां इस्कूल रेि में छोट-छोट कुछ लइका खसड़आइल रहलें। िब भैन में बइठ गइलें त हानष मारत गाड़ी आगे बढ़ गइल। उहवं ा िे कुछे दरू ी ि अिना घर के दआ ु र िर िरबसतया मनोहर के इस्कूल जाये खासत तइयार करत रहली। खसटया िर बइठल मनोहर िछ ू लें-”माई, का हम ऊ गाड़ी में बइठ के कबो इस्कूल ना जा िकत हई?” ं “ना बेटा।” िरबसतया कहली-”ऊ त प्राइवेट इस्कूल के गाड़ी हवे। तहके गांव के िरकारी इस्कूल में िढ़े खासत जाये के बा।” “बासक हमार कई गो िंघाती लोग उहे गाड़ी में बइठ के इस्कूल जायेला। एगो हमही ना जायेनी।” छः िाल के मनोहर मािसू मयत िे कहलें। “कवनो बात ना बेटा।” िरबसतया ओके िमझु ावत कहली-”हमार बेटा जब िढ-सलख के बड़ आदमी बन जाई त आिन गाड़ी में घमू ी!” “बासकर माई....।” मनोहर आगे कहलें-”हमरा लगे त इस्कूल के कवनो रेि भी नइखे। हम जवन किड़ा घर में िसहरे नी, उहे िसहर के इस्कूल भी जायेनी। अइिन काहे?” “इस्कूल के रेि भी तहार इस्कूले िे समली, बेटा।” िरबसतया कहली”जसहया ऊ समली, तब तूहूं आिन इस्कूल रेि िसहर के जइह!” “बासक हमके ऊ रेि समली कब? छौ मसहना त अइिहीं बीत गइल बा।” मनोहर कहलें। “जब िरकार दीहें, तब समल जाई।” माई आगे कहली-”तहके इस्कूल में भरिेट खाना समलेला सक ना?”

“हां, ऊ त समलबे करे ला!” “िढे खासत सकताब समलल ह सक ना?” “हां, सिसछले हलता त समलल हवे!” “ओही तरे एक सदन रेि भी समल जाई। हम तहार भाई टुनटुनवो के तइयार क देत बानी। उहो के अिना िगं े इस्कूल लेले जा।” “ना माई। माट िाहेब बड़ा ररसिआयेलें। कहेलें सक तहार भाई अभी बहत छोट हवे। एके इस्कूल लेके जसन आव।” “अरे अब कहां छोट रह गइल बा टुनटुनवा! आिन गोड़ िर िरिट धउरे ला! दू िाल िे ऊिरे के हो गइल बा। एही बहाने इस्कूल में बइठे के त िीखी। ओसहजा खाना समली त उहो के लेके सखला दीहऽ!” “बासक ऊ हमके बड़ा तगं करे ला माई। हमके िढ़े ना देला। एही िे माटिाहेब भी ररसिआयेनी।” मनोहर आिन िमस्या बतवलें। “तू ओकर बड़ भाई नू हवऽ।” माई कहे लगली-”ओकर ख्याल तंू ना रखबऽ त दिू र के हू थोड़े नंू राखी? बाउजी खेत िर काम करे गइल बाड़ें। हमहूं दिू र के हू के घरे अब काम करे जायेब। तब ले तू भाई के ध्यान रसखह।” “अच्छा, ठीक बा माई।” छौ िाल के मनोहर आिन द-ू अढ़ाई िाल के छोट भाई टुनटुनवा के िाथे लेके बगल के िरकारी इस्कूल में िढ़े चल गइलें। उहां तीन-िाढ़े तीन घटं ा के हू तरे सकलाि में बइठे के िड़त रहे। जब सटसिन के बेरा िब लइकन के दिु हर के खाना समल जाये, ओकरा बाद ऊ भाई के लेके घरे चली आवें। कहे के जरूरत नइखे सक इस्कूल जाये के अिल मकिद का रहे? तब ले ओकर माई िरबसतया अड़ोि-िड़ोि के कुछ घर में काम करके आ

िनोज कुिार

वा

मर्लिकी नगर , मबहार के रहे वािा िनोज कु िार जी , आखर से शुरु से ही जुि​ि बानी । पेशा से अध्यापक , काटुयमनस्ट आ सामहत्यकार िनोज कु िार जी भोजपुरी काटुयन आ महन्द्दी िे बाि सामहत्य खामत जानि जानी । वतयिान िे िनोज जी िोमतहारी मबहार िे रह रहि बानी । िोटो : जतगरण डॉट कॉि

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जात रहली। बाबजू ी आिन मजरू ी कर के िांझी खान आवत रहलें। तब ले घर के दअ ु रा के आगे मनोहर आ टुनटुनवा दनू ों खेलें। िामने के िड़क िे जब कवनो गाड़ी, टेम्ि,ू जीि आसद िीटी बजावत जाये त टुनटुनवा खश ु ी िे उछल के सचल्लाये-”ऊ िीिीऽ गाड़ी....!!” कबो कवनो गाड़ी गजु रे त अक्िर ऊ “िीिी गाड़ी” कहके ओकरा िाछे भागे। तब मनोहरा के धउर के ओके िकड़े के िड़त रहे। “गाड़ी के िाछे मत धउर, टुनटुनवा...” ऊ भाई िे कहे-”ना त तें सकचड़ा जइबे।” ओसह सदने िांझी के बेरा मनोहर अिना भाई के लेके गांव के कुछ लइकन के िंगे खेलत रहलें। तबे भोला उहवं ा एगो िाइसडल मारे वाला लइकन के सतिसहया गाड़ी ले के चहं िल। ऊ ओिर बइठ के िाइसडल चलावे त गाड़ी आगे बढ़े। ओमें एगो बटन भी रहे जे के दबवला िे बदल-बदल के गाना बाजे आ िाथे-िाथ आगे के बत्ती भी भक ु भक ु ाये। िारा लइकन कुल्ही कुतूहल आ ललचाइल नजर िे भोला के गाड़ी चलावत देखत रहलें। ऊ िाइसडल मार के गाड़ी के चक्कर सदलावत बोलल-”हई देखऽ, हमार नया िीिी गाड़ी। बाउजी आजएु बजार िे सकनके लइलें ह।ं ” “ए भोला, तहार ई गाड़ी त बड़ा नीमन हवे। जरा हमरो के चलाये दे ना।” मनिख ु जे ओकर खाि िंघसतया रहे, सनहोरा कइलि। “ना रे ।” भोला के आज भाव बढ़ल रहे। ऊ िाि मना करत बोलल-”हमार बाउजी कहले बाड़ें सक एह िर के हू दिू र जना के जन बइठइह। अगर टूटल त टंगरी तरू देब। तनी मनी ना िरू ा िात िौ रूसिया के आइल बा ई।” “िात िौ रूसिया!” कई गो लइका के महंु िे सनकलल। “हां।” भोला िीना िुला के कहलें। “ई त िांचो बहत महगं ा बा।” राधे कहलि। लइकन के ऊ झंडु में भोला के शान अउरी बढ़ गइल। ऊ आिन सतिसहया िाइसकल के िाइसडल मार के गोल-गोल घमु ाये लागल। “िीिीऽ गाड़ी.........िीिीऽ गाड़ी........!” टुनटुनवा खासत ऊ छोटहन िा गाड़ी एगो अजबू ा चीझू रहे। ऊ ओह के नजदीक िे देखे आ चढ़े खासत मचलत रहे। मनोहर ओ के िंभाले के भरिक कोसशश करत रहे-”ना रे टुनटुनवा। भोलवा तोहके आिन गाड़ी िे ना नु चढ़ाई। ओकरा लगे मत जो।” “ऊ िीिीऽ........ऊ िीिी........हमू चढ़ब!” टुनटुनवा कहलि। भोला िाइसडल मारत जब ओकर नजदीक िे गजु रल त टुनटुनवा तसन आगे बसढ़ आइल। “हट जो रस्ता िे।” भोला ओहके हाथ िे िाछे के ओर ठे ल सदहलि। टुनटुनवा सढलसमला के िाछे सगर गइल। िे नु जोर-जोर िे सचल्ला के रोये लागल। मनोहर अिना भाई के उठाये के कोसशश करे लागल। बासक

लइका िभे तमाशा देखे लगलें। एतना देर में भोला आिन सतिसहया िाइसकल लेके उहवं ा िे चंित हो गइल। टुनटुनवा भाई के िाथे रोअत घरे अइले। तबले बाउजी भी आ गइल रहलें। ओके रोअत देख के िछू लें-”का रे मनोहरा? भाई के मरले बाड़े का? ई काहे रोअत बा?” “ना बाउजी। हम ना मरनी ह।” मनोहर कहल-”ऊ भोलवा एके धक्का दे के सगरा सदहलि ह।” “काहे? ओकर एतना सहम्मत हो गइल बा?” “ऊ आिन िीिी चलावत रहे। टुनटुनवा ओ िर चढ़े खासतर गइल त ऊ धक्का दे के भाग गइल।” मनोहर बतवलि। “हम अबे ओकर बाि के लगे जात हईं िररआये.....।” धनेिर तुरते ररसियाये वाला प्रानी रहलें। घर के आसथषक तंगी आ काम-धंधा के अभाव िे ऊ सचड़सचड़ा समजाज के हो गइल रहलें। छोट-छोट बात िे गोिाइल आ के हू िे झगड़ा मोल ले सलहल उनकर िभु ाव बन गइल रहे। “रहे दीं जी.......।” िरबसतया िमझु ावत कहली-”के ने लइकन के खेल में रउओ िड़े जात बानी। लइका िभन में ई िब त होखबे करे ला।” “ना........ऊ हमार लइका के काहे धक्का मार के सगरा दी? एतना िेसतया हो गइल बा का...?” धनेिर के खीि ना ओराइल। “अब चिु हो जाई...।” ं िरबसतया एगो थररया में िरही चाउर के भजु ा, नीमक आ एगो हररहर मररचा ले के ओके देत कहली-”लीं, अबे भजु ा भजु नी ह। िसहले कुछ खा लीं। रउरा भख ु ाइल होखब।” मनोहर कहलि-”बाउजी, रउओ हमनी के एगो िीिी गाड़ी सकन दीं ना? टुनटुनवा चलाई। ना त ऊ रोज भोलवा के गाड़ी िे चढ़े जाई आ भोलवा छुए खासतर भी ना दी।” “िीिी गाड़ी सकन दीं। सहयां खाये के िइिा नइखे आ तहरा के हरहरी िझू ता!” धनेिर सचढ़ गइलें। िरबसतया देखली, कइिे मनोहरा के चेहरा िल भर में उतर गइल। जवन आंसख में अिना बाि के देख के तसनका देर िसहले एगो चमक लउकत रहे, ऊ चमक कहीं अचानक कहीं खो गइल। लइकन के अबोध मन भला कहां अमीरी आ गरीबी के देखेला। ओके त हमेशा इहे लागेला सक हमार महतारी बाि िबकुछ करे में िक्षम बाड़ें। बि खाली कहला भर के देरी बा। दसु नया के शायद ही कवनो महतारी बाि अइिन होइहें जे आिन लइकन के खश ु ी खासतर कुछ ना करे के चसहहें। िरबसतया कहली-”का जी, िीिी गाड़ी के तना में आएला?” धनेिर के कहे िे कुछ िहले मनोहर तिाक िे कहलि-”भोलवा बतावत रहे सक ओकर गाड़ी िात िौ रूसिया में सकनाइल ह।” िरबसतया थोड़ा देर ला चिु ा गइली। िे नु धनेिर िे धीरे िे िछ ू ली-”आज कुछ काम-धधं ा समलल रहे सक बइठसकये भइल ह?” आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 31


“बगल के गांव के इटं भट्ठा िे काम भइल ह। तीन िौ रूसिया समलल बा।” धनेिर कहलें। “आ ऊ िाल भर िसहले िरकार के ओर िे बैंक में हमनी के जवन खाता खोलवइल गइल रहे ओ में कुछ िइिा-वइिा आइल ह सक ना?” ऊ उम्मेद िे िछ ू ली। “ना। बलुक हमनी के जवन एक हजार रूसिया खाता खोले के नावं िे जमा भइल रहे ऊहो अब िान िौ हो गइल बा।” धनेिर सति मन िे कहलें”अब बैंक वाला कहत बाड़ें सक ओमें अउरी िइिा डालऽ ना त खाता बन हो जाई। “ऊ काहे जी?” िरबसतया अचकचा के कहली-”हम त िनु ले रहनी सक बैंक में िइिा बढ़ेला? बासकर हमनी के घट कइिे गइल?” “ओह में िे दू िौ रूसिया प्रधानमत्रं ी बीमा योजना में कट गइल बा। दू िौ बैंक के दघु टष ना बीमा योजना में कटल ह। एक िौ खाता ना चलावे खाती कटल ह। अब िइिा ना जमा होई त खाता बन क सदहल जाई।” “हाय राम। िरकार ई कइिन-कइिन काननू चलावत सबया? गरीब िर एतना जल ु मु काहे?” “बि जल ु ुमे बा।” धनेिर माथ ि हाथ ध के कहलें। “गरीब आदमी कहवं ा जाई। एतना मंहगाई के जमाना में कहां िे ननू , तेल, चाउर, आटा, दाल जरू ी? हमनी जइिन आदमी का कमाई, का खाई आ का बचाई?” “ हाल त ई हो गइल बा सक अिना गांव-जवार में अब कवनो काम-धंधा भी नइखे समलत। जबसक िरकार िरू ा काम देहे के वादा करत रहली।” धनेिर कहलें। “ई बीमा योजना में का समली जी?” िरबसतया कहली। “दू लाख रूसिया।” “अच्छा! ऊ कब?” िरबसतया उत्िक ु ता िे िछू ली। “जब हम मएु ब, तब!” धनेिर कहीं शन्ू य मे ताकत कहलें। “हाय राम!” िरबसतया हड़बड़ा गइली-”कइिन बात करत बानी जी? हमके ना चाहीं अइिन एको िइिा....।” “उहो अिानी िे समले तब न......।” धनेिर कहलें-”बीमा के िइिा िरकार एतना अिानी िे कबो ना देली।” “छोड़ी जी ऊ िब बेकार के बात। िनु ीये के हमार जी घबरा जाता।” िरबसतया कहली-”आजू हमके एगो घर िे हई िाच ं िौ रूसिया िगार समलल ह। हई लीं आ अिना ओरी िे कुछ समला के हमार बबआ ु खासतर एगो िीिी गाड़ी ला दीं।” धनेिर िइिा लेके सहिाब लगावे लगलें सक ओकरा लगे आिन तीन िौ रहे। अब आठ िौ में िे िात िौ के सतिसहया िाइसकल सकना जाई त बासक बचल एक िौ रूसिया में खाये-िीये के कवन-कवन िामान सलया िके ला? दाल डेढ़ िौ रूिया सकलो? तेल िौ रूिया.....??? आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 32

जबसक लइकन के एह महं गाई वाला सहिाब-सकताब िे भला काथी मतलब रहे! मनोहर अिना महतारी के बात िनु के ओकर गला िे झल ू गइलें आ हलि के कहलें-”िांचो रे माई? हमनी के भी िीिी गाड़ी आई का?” धनेिर टुनटुनवा के गोदी उठा सलहलें-”काल हमार बेटा के नया िीिी गाड़ी सकना के आ जाई।” “िीिीऽ....िीिीऽ....!!” सकलकारी मारत टुनटुनवा बाि के कबो दाढ़ी नोचे, कबो मोंछ उमेठे। धनेिर के एह घडी एगो अनजाना गवष आ खश ु ी के समलल-जल ु ल अहिाि होत रहे। असगला सदन जब नया िीिी गाड़ी सकना के आइल त मनोहर ई देख के हैरान रह गइल सक एमे बइठे के एगो ना बलुक दू गो िीट सदहल रहे। ऊ हलि के कहलि-”अरे बाह बाउजी! रउआ त कमाल क सदहनी! अइिन गाड़ी त भोलवो के लगे नइखे। एमे त द-ू दू गो िीट बा। माने हमहू बइठब आ िाछे टुनटनवो बइठ िके ला!” धनेिर बेटा के बात िे धीरे िे मस्ु करा सदहलें। िरबसतया इशारा िे िछू ली सक ई त अउरी महगं ा होई। उ बतवलें सक दू िौ जादे िड़ल ह। ि​िन िड़ गइल त आजू के कमाई में िे िे ट के ले लेहनी। दनू ों लइका के खेले के हो जाई। मनोहर असगला िीट ि बइठ के िइडल चलावत रहे, टुनटुनवा िाछे बइठल रहे। गाना वाला िीटी बाजत रहे आ िीिी गाड़ी दअ ु रा िे िरिट धउरत रहे।


सचंिन/ बिकही

आजी के थाती से अजं सल राय

मु

हावरा आ कहावत कउनो भार्ा के जान होला, ओकर गहनागरु रया होला । जेकरा प्रयोग कइले िे खाली भार्ा के िंदु रता ही ना बढ़ेला, भार्ा में एगो मीठािन अ गंभीरता भी आवेला । महु ावरा अ कहावत िे हमनी के कम आखर में आिन बात िामने वाला के िमझावे में ि​िल हो जाइला जा । बाकी कुछ िमय िे देखत हई की हमनी के मातृभार्ा भोजिरु ी िे ई गहना गायब होत जात बा । एकरे सधयान में रख के हमरे मन में अिना भोजिरु ी के कहावत अ महु ावरन के एक बार सिर रउवा िभे के याद सदलावे के मन भइल बा । त ए मसहना िे रउवा िब के हर मसहना हमरे आजी के खजाना िे एगो कहावत िढ़े के समली । भोजिरु ी के महु ावरा अ कहावत कहीं सजयत बा त उ हमरे आजी के बतकही में । उनकरा िे आधा घण्टा बसतयावल मने चार छ गो कहावत जरूर िनु े के समली । त हमके जेतना याद आवत जाइ रउआ िभें िे िाझा करत जाइब । कउनो गलती-िही के िधु ारब जा ।

लादल भईिा लादल जाय, छुच्छा भईिा कहरत जाय । अर्थजवना भईिा के िीठी िे बोझा लादल रहे,उ लदले गम्भीरायल चलल जात रहे । आ जवन खाली जात रहे उ मारे कहरत रहे । कहला क माने ई बा की जेकरा िे कउनो सजम्मेदारी ना रहे उ देखावे खासतर ढेर अकबकाला । प्रयोगमय िररवार के सजम्मेदारी समश्रा जी के बड़का बेटा िम्हारे ला बासक सदन रात छोटका एतना बहिेला जेकर कउनो सहिाब ना । इहे कहाला “लादल भइिा लादल जाय,छूच्छा भइिा कहरत जाय” ।

एह अक ं के िसहला कहावत बा-

अंजसल राय

खनउ उत्तरप्रदेश के अजं सल राय जी , िोिल िाईट ि सहन्दी आ भोजिरु ी मे लगातार िृजन क रहल बानी । बी एड तकले िढल अजं सल जी गृहणी हई आ लखनउ मे ही रसह रहल बानी । िोटो : जतगरण डॉट कॉि

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 33


सचंिन/ बिकही

पनिंदक पनयरे रापखए आँगन कुटी छवाय (भाग- 1) ज्योत्स्ना प्रिाद

हल जाला “सनंदक सनयरे रासखए आँगन कुटी छवाय” लेसकन ओही सनदं क िे िमाज के कल्याण होला जे सि​िष ओही काम के सनदं ा करे जे देश व जग सवरोधी होखे । अगर कवनों सनदं क मात्र अिना नाम के िाथषक करे खासतर चाहे अिना कवनों क्षरु स्वाथष यानी अथष,िम्मान के िरू ा करे खासतर या कवनों तरह के आिन अथवा अिना कुटुंब के व्यसिगत लाभ उठावे खासतर ओह कताष (जेकरा िे हमार तात्ियष व्यसि,वगष या िस्ं था िे बा) के व्यािक उद्देश्य के भल ु ाके ओकरा के हमेशा बरू ा-भला ही कहे त ऊ सनदं क के वल सनंदक के शासब्दक अथष के ही ग्रहण कर िावेला ओकरा में सछिल ओकरा गढ़ू अथष के ना । उिरोि िंसि में ‘सनंदक’ शब्द के प्रयोग सि​िष सनदं क के शासब्दक अथष यानी बरु ाई करे वाला के या ओकरा के ‘बदगो’ कह लीं ओह अथष में कतई नइखे भइल । इहाँ हर अच्छा-बरू ा काम के सबना िमझलेबझु ले सनंदा करे के भी के हू के खल ु ा छूट नइखे दे देहल गइल । एकर ई तात्ियष भी कतई ना भइल सक अिना देश-िमाज में रहते हए भी हम ओकरा िे एतना कट जाई ं सक अिना देश-िमाज के कवनों तरह के सवर्म िररसस्थसत या उथल-िथु ल में भी हम ओकरा िाथे खड़ा भी ना हो िकीं । ई देश हमरो ओतने ह जेतना सक एह देश के कवनों दोिरा नागररक के । अिना देश के िँवारे आ सवकाि में िहयोग के सजम्मेवारी हमरो ओतने बा जेतना हम के हू दिू रा िे उम्मीद रखतानी । एह िे अिना प्रगसत के िथ िर अग्रिर होखे खासतर ई देश जेतना अिना दोिरा िन्तान के ओर सनहारता ओतने हमरो ओर सनहारता, अइिने सवचार हमरा हृदय में होखे के चाहीं । ई देश अिना तरक्की में िहयोग खासतर ओतने आशा एवं आकांक्षा भरल नजर िे हमरा ओर देखता जेतना अिना दोिरा िन्तान के ओर ई बात हमरा अिना ध्यान में हमेशा रखे के चाहीं । तबे नू हम एक आदशष िन्तान खानी अिना स्तर िे अिना देश के सवकाि में िहयोग दे िायेब । एकर अथष ई ना भइल सक हमार ई देशभसि हमरा के अिना इतर कतषव्य िे सवमख ु करावेला । काहेसक कवनों देश िे ओकरा नागररक के अटूट बधं न आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 34

होला । एह िे एक के सबना दिू रा के असस्तत्व अधरू ा होला । हमार ई मातृभसू म हमरा िे ई कबहीं ना चाही सक हम अिना दोिर सजम्मेवारी िे मँहु मोड़ सि​िष देश-िेवा में रत हो जाई ं । काहेसक अिना देश िे हमार िहचान बा त हमही अिना धरती के एक नया िहचान भी सदलावेनी । एह िे ई जरूरी नइखे सक हमार ई िहयोग हमरा देश में कोई िांसतकारी िररवतषन ही ला दे । चाहे हम अिना जीवन के दोिर-दोिर सजम्मेदारी के सतलांजली दे सि​िष अिना देश के ही माला िे रत रहीं । हमरा िे हमार देश आ हमार धरती माता ओतने िहयोग के आकांक्षी रहेले जेतना िहयोग कइल हमरा औकात में होखे । कई बार हमार ई िहयोग िांकेसतक भी होला त कई बार वइिने जइिे लंकासवजय में राम के िहयोग एक सगलहरी िे समलल रहे । एकर अथष ई ना भइल सक हमार अिना देश के प्रसत िहयोग सि​िष भावनात्मक रहे । हम अिना शरीर िे कुछ ना करीं । अिना देश के चहसँ दश सवकाि खासतर हमरा अिना स्तर िे भी प्रयत्न करे के िड़ी । ई ना सक हम दोिरा िर िारा भार डाल स्वयं ओकरा िे मँहु मोड़ लीं । हमरा अिना देश के िररसस्थसत आ िीड़ा के ठीक-ठीक आभाि आ आंकलन भी होखे के चाहीं तबे नू हम ओकर उसचत िमाधान सनकाल िायेब । हमरा खासतर ई अशोभनीय होई सक हमरा अिना देश आ िमाज के के हू गाली दे तबहूँ हम चिु रहीं आ अिना देश के सवकाि के बात आवे तबहूँ हम मौनी बाबा बन जाई ं । वइिहीं हमरा खासतर इहो ठीक ना होई सक जहाँ हमरा बोले के चाहीं उहाँ हम राग-सवराग िे शन्ू य हो एह िंवेदनहीन व्यसि-िा प्रतीत होई ं आ जहाँ मौन धारण करे के बा उहाँ सबना िोचलेिमझले कुछ के कुछ बोल दीं । दोिरा ओर जब हमरा देश के हमार जरूरत होखे तब हमरा खासतर इहो शोभानीय ना रही सक हम िन्ू न हो माटी के लोंदा बन जाई ं या सिर बतु बनल अिना आँख के िामने अिना


देश आ िमाज के दगु सष त होत देखत रहीं । हमार देश आ िमाज हमरा अिना एही आँखन के िामने गतष में धँित रहो आ हम बि सनबषल बनला के स्वांग भर रचत रहीं या खामोश रह के ई तमाशा देखत रहीं ई के हू खासतर अच्छा न होई । आसखर हम कब ले अिना देश के िँवारे खासतर के हू दोिरा के अिना छलछला आइल एह आँखन में अिमथषता के भाव लेहले इन्तजार करे ब ? कब ले के हू यगु िरु​ु र् के िदािषण के इतं जार में आिन िलक-िाँवड़े सबछ्वले रहेब ? चाहे अिना एह िनू ी आँखन िे ओकर राह सनहारत हाथ िर हाथ धइले बइठल रहेब ? हमरा स्वयं अिना स्तर िे अिना देश के आगे बढ़ावे खासतर प्रयत्न आ िररश्रम करे के िड़ी । ई िही बा सक एक अके ला के कइला िे कुछ ना होखे । ई कहलो जाला सक अके ला चना भांड ना िोड़ेला त ओही जा ई हो कहल जाला सक बँदू बँदू िे ही तालाब भरे ला । जब हमरा अिना एही दनू ू नैनन के िामने हमरा देश आ िमाज के िख ु शांसत आ िव्ु यवस्था के नाश होखत रहे आ हम प्रसतकार तक ना कर िायीं त हमरा सजन्दा रहला के अथष का भइल ? हम धृतराष्र त हई ं ना सक हमरा अिना स्वाथष के आगे अिना एह ऊिरी आँखन िे ही ना हृदय के आँखन िे भी कुछ स्िष्ट सदखाई ना देत होखे आ तवना िर हम अिना के शरू -वीर ही ना बहत बड़ा आदमी िमझे के भल ू कर बइठल होखीं । हम अगर शांसतसप्रय हई ंआ के हू के बीच में बोले के नइखीं चाहत त एकर अथष ई कतई ना भइल सक हम एगो ओइं िन अँधा हई ं जवना के िामने ओकरा देश के दगु षसत होत होखे आ सिर भी ऊ इहे कहे सक ओकरा देश के सस्थसत के वास्तसवक स्वरूि के ओकरा त जानकाररए नइखे । एतने भर ना जब हम एक सववेकी प्राणी होके भी अिना देश के ओह िीड़ा के अिना हृदय िे महि​िू भी नइखीं कर िावत त हमरा मानव जासत खासतर प्राणी के आगे ‘सववेकी’ सवशेर्ण लगवला के जरूरते का बा ? ई कहाँ तक उसचत कहाई ? हमरा त बरु ाई के प्रसतकार करे के चाहीं । हम अिना एह नग्न आँखन िे ई रोज देखी ले सक अगर एगो शाहजीरा भर के सचउटी िर गलती िे भी हमार िैर िर जाला त उहो औकात भर दम लगा के जोर िे हमरा के काटेले त सिर हम मानव होके भी जब हमरा अिना देश िर कवनों बात आवेला तब हम कोई प्रसतसिया काहे ना दे िाइले ? हम हमेशा मौन काहे रहीले ? हम यसद सजन्दा बानी त हमरा सजन्दा दीखे के भी त चाहीं । ई बात अलग बा सक हम एक शांसतसप्रय देश के शांसतसप्रय नागररक हई ंआ के हू के िचरा में सबना वजह िड़े के ना चाहेनी । बासकर एकर अथष ई भी कतई ना भइल सक जब हमरा नजर के िामने हमरा घर के इज्जत तारे -तार होखत होखे तबो हम अिना मँहु िर ताला लगा के “अजगर करे ना चाकरी िच्ं छी करे ना काम, दाि मलक ू ा कह गये िबके दाता राम” कहत िड़ल रहीं । जवना धरती िर एक ओर अिना ईश्वर िर अिना के िरू ा तरह िे न्योछावर करे के आ ओिर िरू ा तरह िे अिना के आसश्रत बनावे के मन्त्र देहल गइल बा ओही अिना धरती िर िोलह कला के अवतारी भगवान श्री कृ ष्ण अिना गीता में कमष के महत्ता के प्रसतिासदत कइले बारन । एह िे एकर सनणषय हमरा अिना िररसस्थसत अनक ु ू ल लेबे के िड़ी सक कहाँ हमरा गीता के देखावल राह िर चले के बा आ कहाँ िंत कसव मलूक

ज्योत्सस्ना प्रसाद ज्यो त्सना

जी (जन्द्िस्थान: मसवान) वहदी भाषा आउर सामहत्य िें बी.ए. (प्रमतष्ठा), एि. ए. आउर पटना मवश्वमवद्यािय से प्रोफे सर डॉ नंदककशोर नवि के मनदेशन िें िहाप्राण मनरािा के गद्य के शैिीगत अध्ययन पर डॉक्टरे ट कईिे बानी l वहदी िें उपन्द्यास “अगयिा” प्रकामशत बा दू गो उपन्द्यास “अंतत:” आउर “िुक्तकुं तिा” , कमवता संग्रह आउर कहानी संग्रह प्रकाशन के प्रतीक्षा िें बा l अरबी भाषा के िशहूर उपन्द्यास “अि-रहीना” के वहदी िें “बंधक “ शीषयक से अनुवाद आउर प्रकाशन l जॉडयन, चीन आउर अिेररका िें आयोमजत सम्िेिन िें कमवता पाठ l आजकि िुंबई िें मनवास l

दाि के अनश ु रण करे के बा ? एह िे हमरा दृसष्ट िे अिना देश के बारे में भी कोई बात होखे तबो ना बोलीं ई वइिही उसचत ना होई जइिे के हू हमरा घर के इज्जत उछालत होखे आ हम ओह िमय भी मौनव्रत धारण करके बइठल रहीं । काहेसक हम के तनो शांसतसप्रय आ समतभार्ी होई ंजब बात हमरा अिना िर आई तब हम चिु काहे बइठे ब ? ई ‘आिन’ शब्द ही बड़ा सवसचत्र ह जेकरा में लाग जाला ऊ असतसप्रय हो जाला । एह आिन शब्द के जादू त देख लीं सक एकरा आगे ना घर मायने रखेला ना देश । मायने रखेला त सि​िष ई ‘आिन’ शब्द जे एक जासतवाचक िंज्ञा के भी अिना सनकटता के ताकत िे एक मतू ष रूि दे देला । एतने भर ना ई शब्द हमरा िे हृदय के स्तर िर तादात्म्य भी स्थासित कर देला । हम एह शब्द िे जड़ु ते दरू -दरू रहते हए भी ठीक वइिही आि​ि में जड़ु जाइले जइिे एह शब्द के ‘आ’ के उच्चारण में एक-दिू रा िे दरू ी बनावत हमार होंठ ‘ि’ तक आवते-आवत एक-दिू रा िे सबलकुल सचिक जाला, आि​ि में जड़ु जाला । जब िररसस्थसत अनक ु ू ल ना होखे आ बात अिना िर आ जाव त हम चिु कइिे बइठे ब ? ई ‘आिन’ घर होखे चाहे देश ? हम ऊ िब कुछ कर गजु रे ब जेकरा बारे में हम कभी िोंचले ना होखब । वइिे उहाँ हमरा ओह िररसस्थसत के अनक ु ू ल सनसित ही कोई बड़ा आ ठोि सनणषय लेबे के होई । काहेसक उहाँ त हमरा ना अिना आँखन िर िट्टी बनहला िे काम चले के बा ना अिना ओठं के सियला िे । कारण ई देश के हू व्यसि सवशेर् के जागीर ना ह बसल्क ई हमनी िभे के जन्मभसू म,कमषभसू म आ मातृभसू म ह । एह िे एकरा के िँवारे आ िधु ारे के सजम्मेवारी भी के हू व्यसि सवशेर् िर नइखे असितु हमनी िब िर बा । हमनी िभे खासतर ई सनंदनीय बात होई सक हम अिना देश में रहके भी अिना देश के िेवा ना कर िाई ं । अिना आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 35


आँख के िामने अिना देश के बरु ाई देखत रहीं आ ओकरा िे आिन आँख चरु ावे खासतर जानबझू के अिना आँखन िर िट्टी बाँध के अँधा बने के स्वांग करीं । िमाज में के हू कवनों अच्छा काम करे त ओकर बराई या बरू ा काम करे त ओकर सनदं ा होखहीं के चाहीं । प्रजातंत्र के त इहे िौन्दयष ह सक जवन बात हमरा अनसु चत लागत होखे,चाहे जवन काम हमरा उसचत ना लागत होखे ओकरा के हम सबना सहचक कह िके नी । दोिरा शब्दन में हम एकरा के एह तरह िे भी कह लीं सक हमरा अिना िसम्वधान िे ई असधकार समलल बा सक ऊ हर काम जे हमरा देश आ िमाज खासतर हमरा दृसष्ट िे अनसु चत होखे सबना कवनों भय के हम ओह िब कामन के सवरोध शांसतिणू ष ढगं िे कर िके नी । दोिरा ओर उहई हमरा अिना दलगत,जासतगत द्वेर् िे ऊिर उठ के के हू के उत्तम काम के हृदय िे िराहना करे के भी असधकार बा । ई हमरा ऊिर बा सक हम प्रजातंत्र के एह उिहार के कहाँ तक िमझत व आत्मिात करतानी ? हम अिना बसु द्ध-सववेक के उियोग कर एक सववेकशील नागररक होखे के िररचय देतानी सक अिना स्वाथष में अँधा होके अिना अनिु ार तोड़-मरोड़ के अिना िसम्वधान िे समलल अिना एह असधकार के भी दरूु ियोग करतानी ? हमरा अिना िसम्वधान िे बोले के स्वतन्त्रता समलल बा । अिना िसम्वधान िे समलल एह असधकार के ई कतई अथष ना भइल सक हमरा मँहु में जे आवे हम सबना िोचले-िमझले ओकरा के बोलत रहीं । काहेसक जहाँ असधकार समलेला उहाँ ओह असधकार िे जड़ु ल कतषव्य भी रहेला जेकर िालन कइल हमार आप्त धमष होला । एह िे कवनों बात सि​िष कहे

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 36

खासतर हमरा ना कहे के चाहीं आ ना ही जानबझू के कोई अइिन उलजलूल बात ही कहे के चाहीं जवना िे हमरा िमाज के शांसत आ व्यवस्था भंग हो जाय । हम अगर अिना देश के एक िमझदार नागररक हई ं त हमरा अिना कवनों विव्य के बहत िोच-िमझ के आ अिना सववेक के िररचय देते हए देबे के चाहीं । हमार देश मात्र एक देश ही ना ह बसल्क िांस्कृ सतक रूि िे एक अइिन िुलवारी ह जवना में रंग-सवरंग के िूल के सखले के िमान रूि िे अविर ही ना समले बसल्क िबका एक ही तरह के समट्टी आ िरू ज के रौशनी भी प्राप्त होला । एही िे नू एक ही देश में कई तरह के सि​िष लोग ही ना रहे बसल्क रहन-िहन,खान-िान,वेर्-भिू ा भी देखे के समल जाला । प्रकृ सत भी हमनी के एह सभन्नता िर आिन महु र लगा देले । काहेसक तबे नू एक ही देश में कई तरह के िंस्कृ सत के िाथे कई तरह के जलवायु भी बा । हम उत्तर िे दसक्षण आ िरू ब िे िसच्छम तक भारत के दशषन आ भ्रमण कर आई ंआ देखीं सक एह धरती िर जलवायु आिन कौन-कौन रंग आ जलवा देखावता ? एही धरती िर रउआ कहीं विष िे ढकल िृथ्वी के दशषन हो जाई त कहीं एही देश में िानी खासतर त्रासह-त्रासह करत मरुभसू म के लोग भी दीख जाई । ऊहई दोिरा ओर जब हम आिन नजर घमु ायेब त िायेब सक कहीं कल-कल,छल-छल करत नदी समली त कहीं ियषटक के स्वागत में आिन सवशाल भजु ा िइलवले अथाह िमरु भी । (िमश:)


सचंिन/ बिकही लोक-सिंस्कृपत नारीए से समद्ध ृ होला

भा

के शव मोहन िाण्डेय

रत के िामासजक व्यवस्था देखला िर एगो बात िाि हो जाला सक िमाज चाहे के तनो िरु​ु र्-प्रधान होखे त का, एकर िमिन्नता नारीए िे बा। अब त ररयो ओलंसिको में नारी िदक के शरु​ु आत क के सिद्ध कर सदहले बाड़ी। ई सिद्ध हो गइल बा सक िरु​ु र् के आँख भले ही औरतन के चाल-चलन आ किड़ा िे ले के बोलल-बसतयावल आ देसहए िर सटकल बा त का ह, अब अबला कहीं िे नइखी नारी। ई आजएु िे ना, लोक-जीवन आ लोक िस्ं कृ सत एकर िसहलहीं िे प्रमाण रहल बा। भोजिरु रए िमाज में देख लीं। बात चाहे छठ के होखे, चाहे भाई-दजू के , बात चाहे बहरा के होखे, िीसड़या के होखे, तीज, जीउसतया, चउथ, चनरमा, बरम बाबा, नाग देवता, अनवत, चाहे कवनो िरव-त्योहार, िोहर, मगं ल, िवू ी, कजरी आसद, िबके िमृद्ध करे में िरु​ु र् िे बहत आगे औरत बाड़ी। जब कबो कुछु सलखे, बोले के बात आवेला त औरत के लोक-िक्ष रूि हमरा आँसख के िोंझा िँवर जाला। मन आदर आ श्रद्धा िे तर हो जाला। आदर आ श्रद्धा एहू कारने सक िमाज के हर तरह िे िमृद्ध करे वाली नारी आजओ ु बहत उिेसक्षत बाड़ी। आजओ ु ऊ कई ठाँवे अिना विदू खासतर कोंहरत बाड़ी। ई नारी के िभु ावे ह सक तबो िमाज िरि बनल बा, नाही त अगर ईहे हाल िरु​ु र्-असस्तत्व के िाथे होइत त िता ना, िमाज में के तना बड़का तफ़ ू ान आ गइल रसहत। हम सदल िे नारी के ओह िभु ाव के प्रणाम करत बानी। प्रणाम करत बानी नारी के ओह जज़्बा के सक तबो हर प्रकार िे भोजिरु ी के , लोक-िंस्कृ सत के िमृद्ध करत बाड़ी। वैिे त अिना भारतीय िंस्कृ सत में अचरज में डाले वाला अनेक तथ्य समलेला। एगो ईहो बात बा सक भारतीय िंस्कृ सत में हर प्रकार िे सवसवधता देखल जा िकल जाला। ई सवसवधता भोजिरु ी की गहना बन जाले। एगो अलगे िहचान बन जाले। इहे सवसवधते त अिना भोजिरु ी िंस्कृ सत के सवसशष्टता देला आ अलग िहचान बनावेला। एह िंस्कृ सत आ िहचान के कवनो बनल-बनावल सनसित ढ़ाँचा में नइखे गढ़ल जा िकत। ई त बलखात अल्हड़ नदी जइिन कवनो बान्हो िे नइखे घेरा िकत। ई त ओह विंती हवा जइिन बावली, मस्तमौला आ स्वतंत्र ह, जवना िर के हू के जोर ना चलेला। अिने मन के मालीक। एह के कवनो सदशा-सनदेश के माने -मतलब िता नइखे। एह िंस्कृ सत के के हू गरू ु नइखे आ ना एह के कवनो बात के गरू ु रे बा। ई त बि जन-मानि के अतं ि िे सनकलल एकदम सनरइठ आ िावन मानसिकता आ भावक ु -िरि िोच को देखवेवाला हमनी के िसहचान ह। हमनी के त अिना िांस्कृ सतक िमृसद्ध आ उिलसब्धयन िर मग्ु ध हो के खाली वाहवाही ना देनी जा, एकरा िथवे जीवन-जगत िे ओकरा िंबंध के आ अउरीओ तमाम िांस्कृ सतक घटकन के आि​ि के िंबंध के मन िे जोड़बो करे नी जा। हमनी के िमझबो करे नी

जा। भोजिरु ी िस्ं कृ सत में िबं धं न के दायरा खाली अिना कुनबा आ आिे -िड़ोि ले ना होला, दोिरो गाँव के लोग ‘िलाना’ काका, सचलाना चाचा, भाई आसद कहाला लोग। काकी, चाची, मौिी, िुआ ढ़ेर समलेली अिनी सकहाँ। अगर िासहत्य के नजर िे देखल जाव त िछीम के देशन में सलसखत िासहत्य के िरंिरा रहल बा। ओसहजा बोलचारू िासहत्य के िरंिरा ना के बराबर बा। ओने के सचंतन आ अध्ययन सलसखत दस्तावेि आ िबतू के आधार बनाके कइल जाला, जवना एकदम उसचते बा। प्रमाण िे प्रमासणकता सिद्ध होला। एकरा ठीक उल्टा अफ्रीका में वासचक िरंिरा भरिरू रहल बा, एकदमे िमृद्ध, बाकीर ओसहजा सलसखत िरंिरा हइए नइखे। ओसहजा के अध्ययन खातीर मौसखक िोतन के िहारा सलहल ही उसचत होई। भारत में सलसखत आ लोक-िंस्कृ सत के मौसखक िरंिरा लगभग एक्के बराबर िशि आ िमृद्ध रहल बा। एसहजा के िाररसस्थसतक आ तासकष क दनू ो िरं चना के बीच स्िष्ट रूि िे कवनो बँटवारा के लाइन तय नइखे कइल जा िकत। कुछ चीज अइिन अरूर बा जवना के िरू ािरू ा लोक चाहें सशष्ट िरंिरा में रखल जा िकल जाता, बाकीर एह दनू ों के बीच में ढेर चीज अइिन बा जवना के दनू ों में िे कवनो एक में ना राखल अिभं व बा। हमनी के इहो इयाद राखे के चाहीं सक जवना चीज के आज सनस्िक ं ोच रूि िे सशष्ट चाहे सलसखत िरंिरा में राखल जा िकल जाता, ऊ िब कबो कभी वासचक िरंिरा में रहल बा। भारत में देखल जाय त लोक आ सलसखत िरंिरा में रामायण-महाभारत के

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िैकड़ों रूि बा। लोक आ शास्त्र के गणु ात्मक योग िे िसलत भसि िासहत्य त एगो नया सत्रकोणे रच सदहलि। अगर लोक आ शास्त्रने के कें र मानल जाव त ई कुल रचना एह दनू ो कें रन के बीच एह ढंग िे सस्थत बा सक लोक-ममषज्ञ एहके लोक-िरंिरा के ज्ञान अउरी िासहत्य के सलसखत रूि करार देंला लोग आ शास्त्र-ज्ञानी एही रचनन के शास्त्रीय ज्ञान अउरी सशष्ट िासहत्य के लोकोियोगी िस्ं करण कही लोग। मनष्ु य त िामासजक प्राणी ह, बाकीर आदमी के िगरो ि​िना, िगरो इच्छा िमाज आ इसतहाि में िरू ा ना होला। आदमी के ि​िना आ ओकर इच्छा िमाज अउरी इसतहाि िे प्रभासवत त होला, बाकीर िमाज अउरी इसतहाि िे बान्हाइल ना रहेला। एही िे त आदमी ‘स्वप्न लोक िष्टा’ ह। इसतहाि के कवनो कालखडं होखे चाहे िमाज में िइलल कवनो सवचारधारा, स्त्री-िरु​ु र्, नर-मादा, मरद-मेहरारु में भेदभाव िाि-िाि लउके ला। जहवाँ िरु​ु र् अिना ि​िना िर नगर, महल, स्मारक आ नया-नया राजवंशन के उदय करत रहल बा, ऊहवें औरतन के ि​िना आ इच्छा लोकगीतन में दजष होत रहल बा। एक अथष िे लोक-िासहत्य अउरी िमृद्ध भइला के िाथे-िाथ प्राचीनो भइला िर ई नया सचतं न के कें र बन जाला। मन बेसहचक मानेला सक लोकिासहत्य के िमृसद्ध में नारी िभु ाव के बड़ा योगदान बा। हम अिना बाि-महतारी के िबिे छोटका िंतान हँई, जवना कारने ओह लोग िे हमार िसन्नकटता उनका प्रौढ़ा अवस्था िे उनका वृद्धा अवस्था ले बनल रहल। हम कई बेर अनभु व करीं सक माई जब कवनो सवर्म िररसस्थसत में िड़ जाव तब गीत गावे लागें। ओह बेरा माई के गीत खाली गीत ना हो के उनका अतं र के िीड़ा होखे। हमके िाि-िाि ईयाद बा सक ऊ गीत गावत कम, गीत रोअत असधका लागें। कवनो सवर्म-िररसस्थसत में ऊ अिना के रौिदी लेखा प्रस्तुत करत गावे लागें – अब पत्रत राखीं ना हमारी जी, मुरली वाले घनश्याम।। बीच सभा में द्रोपदी पुकारे चारू ओररया रउरे के त्रनहारे दुष्ट दुशासन खींचत बाड़ें देत्रहंया पर के साड़ी जी, मुरली वाले घनश्याम।। दःु ख-दरद, हँिी-खश ु ी के गीत में व्यि कइल लोक-जीवन के असभन्न अगं रहल बा। जब माई हमरा के ितु इहन तब लगभग हमेशा गीत गइहें। उनका गीतीया के बोलवे िे हमरा लइका मन के बझु ा जाव सक उनका मन में एह बेरा हर्ष-उल्लाि, िीड़ा-वेदना, ममता-दल ु ार आसद कवना भाव के असधकता बा। जब ऊ िहज रसहहें तब आिन िबिे सप्रय गीत जवना में सिंगारों रहे, प्रेमों रहे, ऊहे गीत गइहें – अजब राउर झा​ाँकी ये रघुनन्दन।। त्रहरत्रिर-त्रहरत्रिर ईहे मन करेs रउरे ओररया ताकी ये रघुनन्दन। अजब राउर झा​ाँकी ये रघुनन्दन।। मोर मुकुट, मकराकृत कुण्डल आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 38

के शव िोहन पाण्डेय

िकु ही रोड, सेवरही, कु शीनगर, उ. प्र. के रहे वािा के शव िोहन पाण्डेय, एि.ए.(वहदी), बी. एड. बानी। अिग अिग िंच िा दजयनो नाटक मिखिे आ मनदेमशत कइिे बानी। अनेक सिाचार-पत्र आ पत्र-पमत्रकन िें अढ़ाई सौ से अमधका िेख, आधा दजयन कहानी, आ अनेक कमवता प्रकामशत। भोजपुरी कहानी संग्रह 'कठकरे ज' प्रकामशत। आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहामनयन के प्रसारण, टेिी कफर्लि औिाद सिेत भोजपुरी कफमि​ि ‘कब आई डोमिया कहार’ के िेखन-मनदेशन कइिे बानी। 2002 िे िासहसत्यक िस्ं था ‘िव ं ाद’ के िचं ालन। अलग-

अलग मंचन िे दजषनन नाटकन के लेखन आ सनदेशन। अनेक िमाचार ित्र आ िसत्रकन में सनरन्तर प्रकासशत।

पैजत्रनया बाजे बा​ाँकी ये रघनु न्दन। अजब राउर झा​ाँकी ये रघुनन्दन।। हमरा त लोकगीत आ लोक-िासहत्य के िमृसद्ध में िबिे असधक औरतने के योगदान बझु ाला। उदाहरण के रूि में हम अिना माई के ईयाद क के कहीं त कवनो िरब-त्योहार के बेरा जब भैया लोग घरे ना िहचँ े लोग चाहें आवे में देरी हो जाव त हमार माई िरू ा के िरू ा कौशल्या बन जाि।ु ऊ कौशल्या, जेकरा राम लोग के िमय रूिी कै के यी वन में भेज देहले सबया। ओह बेरा त माई गावते-गावते इतना रोअि सक अवजवे बइठ जाव, के कई बड़ा कत्रिन तूाँ कइलू राम के बनवा भेजलू ना। हो हमरो के वल हो करेजवा तुहू कात्रियो लेहलू ना। हमरा राम हो लखन के तुहू बनवा भेजलू ना। हमरा सीतली हो पतोत्रहया के तूाँ बनवा भेजलू ना। के कई बड़ा कत्रिन तूाँ कइलू राम के बनवा भेजलू ना।। ओह बेरा हमहूँ उनका िे छुि के उनका ददष भरल गीतन के िनु ीं आ िलक िे टिके खातीर तइयार भइल लोर के िोंछ के कतहूँ दरू हट जाई।ं लोकगीतन के बेर-बेर िनु के आ ओहमें आइल मद्दु न िर उनकर िोच आ िंवेदना के त ना, बाकीर अिना माई के एगो कें र मानके बहत कुछ िमझले बानी। हमरा िरू ा सवश्वाि बा सक लोकगीतन के मरम िमझे वाला हर आदमी अइिने अनभु व िे गजु रत होई। औरतन द्वारा गावे वाला लोकगीतन के स्वभाव ह सक ओहमें बहते बड़को बात अक्िर कवनो


िाधारण घटना-प्रिंग के जररए, बाकीर अनभु सू त के गहनता िे कहल जाला। गीतन के अतं में एकाध गो अइिन िंसि आ जाला, जवना िे िसहले के िाधारण घटना-प्रिंगों अिाधारण रूि िे महत्विणू ष बन जाला। लोकगीतन में जीवन-जगत के बड़का-बड़का तथ्य वस्तुसनष्ठ िहिंबंधन के बहाना िे कहल जाला। आज के औिसनवेसशक आधसु नकता के िसहले िृसष्ट आ िमाज त का, िररवार के भारतो के अवधारणा खाली मनष्ु य िर कें सरत नइखे रसह गइल। ओह बेरा त आदमी के भौसतक िख ु -िमृसद्ध खातीर खाँची भर प्राकृ सतक उिादानन के बेसहिाब दोहनो के िरंिरा नइखे, बाकीर प्रकृ सत के अवयवन के िाथे प्यार, िारस्िररकता आ िहसनभषरता के जीवन जीए िर जोर रहल बा। एही कारने त अिना सकहा गगं ा मइया बाड़ी, सवन्हाचल देवी बाड़ी आ लगभग िब जासत-प्रजासतअन के िेड़न िर कवनो ना कवनो देवता के वाि आ घर-दआ ु र मानल जाला। भले के हू सहम्मत क के सदल खोल के आ जबान के ताला तरु के स्वीकार ना करे , बाकीर आजओ ु ढेर लोग बा सक जब घर में बेटी के जनम होला त ओह लोग के लागेला सक सजनगी में अन्हार हो गइल। महतारी बनल औरत अिनही के कोिे लागेले सक अगर ऊ जनती सक बेटी होई त कवनो जतन क के ओह मािमू के कोसखए में मार देती। बेटी के जनम के खबर िा के बाि मँहु लटकवले, मरु झाइल घमू े लागेले। ई िब औरतन के गीसतयन में देखे के समलेला – जब मोरे बेटी हो लीहलीं जनमवा​ाँ अरे चारों ओररया​ाँ घेरले अन्हार रे ललनवा​ाँ सासु ननद घरे दीयनो ना जरे अरे आपन प्रभु चलें मुरुझाइ रे ललनवा​ाँ। अब िरू ा के िरू ा ई बझु ाए लागेला सक िमाज में बेटी के जनम िे दख ु ी भइला िर, एह के खराब माने के आदत के एगो िीमा िे असधका बढ़े िे रोके खातीर ओही िमजवा के भीतरीये एगो लोक-सवश्वाि उभरे ला। लोग के बझु इबे ना करे ला सक बेटी जनमला िर बाि-महतारी चाहे कुलखानदान के लोग के लोग दख ु ी काहें होलें? सचंता काहें करें ले? एहके सबना जनले एह मद्दु ा िे कवनो लेखां न्याय नइखे हो िकत। ई चरचा आगे कइल जाई, जब एह कारन के िाि करे वाला िररसस्थसत िाि हो जाई। वेटी के जनमला िर ओकरा के मारे के कोसशश चाहें असभलार्ा कवनो गीतन में ना समलेला। जनमला के बाद बेसटयो माई के कोख िे जनमल, ओकरे खनू -दधू िे िीरजल आ िैदा भइल एगो िंतान होले। ऊहो एगो बेटे जइिन अिना बाल-लीला िे बाि-महतारी के करे जा जड़ु इबे करे ले। ओकरा प्यार -दल ु ार में बाि-महतारी जीवन की िगरो िीड़ा, भले तनीए देर खारीरा, भल ु ा जाले। ई िब भारतीय िरंिरा िे मान्यता प्राप्त िवं ेदना आ भावना हवे। आधसु नकता के अइला के िाथही एगो आदशष भारतीय िररवार के आदशष स्त्री बनावे के असभयान के िथवे िवं ेदना आ भावना घटल बा। भावना स्त्री बनवला के , भावना लोक-गीतन के । िमय के िाथे चले के होड़ लगावत आज के आदमी तकष चाहे कुछू कहे बाकीर लोक-जीवन, लोकिासहत्य आ लोक गीतन के स्वरूि त सवकसिते भइल बा। िमृद्धे भइल

बा। लोक-गीत आ लोक-असस्तत्व आधसु नक तासकष क िोच के िररणाम ना ह। एकरा के त बरीिन िसहले िररभासर्त आ िोसर्त कइल गइल बा। ऋग्वेद के िप्रु सिद्ध िरु​ु र् ि​ि ू में ‘लोक’ शब्द के व्यवहार जीवन आ जगह दनू ों के अथष में कइल गइल बा। नाभ्या आिीदतं ररक्षं शीष्र्णो द्यौः िमवतषत्। िदभ्​् यां भसू मसददष् शः श्रोत्रात्तथा लोकां अकल्ियन।् । गाँव-जवार के लोग िस्ं कार, ऋत,ु िजू ा-व्रत, अउरी दोिर कायषकलािन आसद के अविर िर जब अिना मन के भावना के उद्गार गा के करे ला लोग त अइिही लोक-िगं ीत के िृजन हो जाला। लोक-िगं ीत िभ्यता, िस्ं कार आ िमाज के िमृद्ध करे के िाथे-िाथे बोली, भार्ा आ भावो के एगो अलगे िहचान देबे में िक्षम होले। भोजिरु ी लोक-िगं ीत के त अिना िरिता, मादकता, िमृसद्ध, उन्माद, अिनािन, ठें ठिन आसद के कारने िबिे िमृद्ध कहल जा िकल जाता। जन-जन में अिना प्रचरु ता, व्यािकता आ िइठ के कारने भोजिरु ी लोक-िंगीत के प्रधानता स्वाभासवक बा। कजरी के एगो रूि देखीं – आ हो रामा, सइया​ाँ गइले परदेश भेजे ना सन्देश ये हरी। करे त्रकलोल ननदी झूला लगाके देख दशा त्रदल के सपनों में आ के आ हो रामा, बा​ाँचल सावन त्रदन शेष भेजे ना सन्देश ये हरी।। भोजिरु ी िरू ु ब के बोली ह। िरू ु ब! जहवाँ के माटी िदानीरा नसदयन के तरंगन आ रि िे हमेशा आप्लासवत रहेले। जब मसटए िरि होई त िगं ीत के िरु में सनरिता कहाँ िमाई? जब िरिता, मादकता, िन्ु दरता, प्रेम, ममता, िमिषण, िररश्रम, जीवटता, जीवन आसद के बात आई त जीवन देवे वाली, जीवन भोगे वाली आ जीवन बनावे वाली नारी के तरे बँच जाई? -- नारी त जीवन के आधार होले। लोक-िंस्कृ सत, लोक-िंस्कार, लोकजीवन नारीए िे जीअ ता, त लोक-िंगीत ओह देवी के सबना के तरे हो िके ला? एगो सवज्ञािन में िनु े के समलेला सक ‘नारी! प्रकृ सत की अनिु म कृ सत। प्रेम और िौंदयष की प्रसतमसू तष! --- ममता और स्नेह का िाकार रूि।’ बात िाि बा सक नारी चचाष के सबना कवनो देश, िमाज आ वातावरण के लोक-िगं ीत के जीरो आ खार कहल जा िकल जाता। भोजिरु रयो-िगं ीत में नारी के अनसगनत रूिन के चचाष का बरनन देखल जाला। भोजिरु ी के सिगं ार, करुणा, वीर, हास्य, सनरगणु िगं ीत होखे चाहें आजु काल्ह के सिल्मी ठुमका, िगरो झाँझ, िखावज, हारमोसनयम, बैंज,ू सगटार नारीए के आगे-िाछे अिना िरु के िाधना करत लउके ले। िोहर में नारी के एगो रूि देखीं – मचीया बइिल मोरे सास सगरी गुन आगर हेऽ। ए बहुअर, ऊिऽ नाही पनीया के जावहु चुचुहीया एक बोलेलेऽ हेऽ।। आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 39


भोजिरु ी लोक-िंगीत में बरनन चाहे ऋतुअन के होखे, चाहे ब्रत के , चाहें देवी-देवता के , चाहें िंस्कार के , जासतयन के होखे चाहें मेहनत-मजरु ी के , हर िंगीत में नारी के िगरो रूि को िावल जा िकता। भोजिरु ी लोकिंगीत आल्हा भले वीर रि िे िराबोर रहेला त का ह, नारी सववशता, असधकार, िन्ु दरता आ िमिषन के बहाने लउकीए जाले, जाकी त्रबत्रटया सन्ु दर देखी, ता पर जाई धरे तरवार।। या चार मुलुकवा खोत्रज अइलो कतहु ना जोड़ी त्रमले बीर-कुाँअर कत्रनया जामल नैनागढ़ में राजा इन्दरमल के दरबार बेटी सयानी सम देवा के बर मा​ाँगल बाघ झज्जार बत्रड लालसा बा त्रजयरा में जो भैया के करों त्रबयाह करों त्रबअहवा सोनवा सेऽ -----।। िावन के हररहरी में िगरो भोजिरु रया धरती लहलहात रहेले, तब कवनो नवही मेहरारू अिना िहु ाग िे दरू ना रहे के चाहे ले। कजरी के गीतन में नारी के प्रेयिी स्वरूि के देख के के वर मन ना रसवत होई। हरित, तरित आ बरित मन के एगो सचत्र देखीं – भइया मोर अइलें बोलावे होऽ सवनवा में ना जइबें ननदी। चहें भइया रहें चाहें जाएाँ होऽ स्वनवा में ना जइबें ननदी।। भोजिरु ी-क्षेत्र में मनावे वाला िगरो व्रत-त्योहारन में नारी के िावन रूि के बरनन अिने आिे लउक जाला। व्रत-त्योहार त वइिही स्त्री के सनष्ठा के प्रतीक ह। त िे रू ओहिे नारी अलगा के तरे हो िके ले ? भोजिरु ी माटी के िबिे िावन व्रत छठ में करुणा िे िनाइल, छठ माता के आशीर् िावे के आग्रही एगो नारी के सचत्रण देखींपटुका पसारर भीत्रख मा​ाँगेली बालकवा के माई हमके बालकऽ भीत्रख दींत्रह, ए छिी मइया हमके बालकऽ भीत्रख दींत्रह। बात चाहे चइता के मादकता के होखे, चाहे िोहर के िद्यः-प्रितू ा के , बहरा के भसिन के होखे, तीज के िसतव्रता नारी के , जीउसतया के ित्रु वत्िला के , नारी के िभु ाव िे िब िानंसदत बा, िमृद्ध बा। हम कह िके नी सक नारी चइता के सबरह ह। ऊ लोरी के थाि ह। नारी सनरगनु के िब छंद ह। ऊ कँ हरवा के कलित िीड़ा ह। िचरा के झमू त भसिन ह। आल्हा के मदाषनी अवतार ह। नारी िगआ ु के मांिल मतवना ह। छठ के िमसिषत िश ु ीलता ह। ऊहे सवदाई की लोर ह। िोहर के िद्यः-प्रितू ा माई ह। सबरहा के अलाि ह। झमू र के भाव व्यजं ना ह। जँतिार के ध्वसन िर नाचत रगवो नारीए ह। नारी बारहमािा के वणषन ह। सनधषनता के आह नारीए व्यि करे ले। ररश्तन के िगरो डोर नारीए िम्हारे ले। भोजिरु ी के कवनो लोक-िगं ीत के बात कइल जाव, नारीए के रूि िहीले झलके ला। ननद-भौजाई के सटभोली होखे चाहें िाि के शािन, देवर के छे ड़छाड़ होखे, चाहे जेठ के बदमाशी, नारी के खाली उिसस्थसतए िे लोक-िगं ीत में इनकर बरनन िभं व होखे ला। आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 40

कँु आर लड़की भाई के शभु के खातीर कासतक में सिसडया ा़ के व्रत रहेली िों त महतारी लोग अिना ितू के रक्षा खातीर सजउसतया। मेहरारू अिना िहु ाग के रक्षा खातीर तीज व्रत रहली िों त एही तरे औरतन में बहरा आ िनढरकउवा जइिनका ढेर व्रत-त्योहार देखल जाला। नारीए के माध्यम िे भोजिरु ी लोक-िगं ीत में जन-जीवन के आसथषको िक्ष के झाँकी प्रस्ततु हो जाला। देखीं ना – सोने के र्ाली में जेवना परोसलों, जेवना ना जेवें अलबेला, बलम कलकत्ता त्रनकल गयो जीऽऽ। भोजिरु ी लोक िासहत्य में नारी के जवन सचत्रण कइल गइल बा, ऊ मांिल, मादक आ आकर्षक भइला के िाथे-िाथे रिदार, सशष्ट आ िभ्यो बा। िसत-ित्नी, भाई-बहीन, माई-बेटी, ननद-भौजाई, िाि-ितो हके जवन बरनन हमनी के िामने समलेला, ओह िे िमाज में नारी के अनसगनत सचत्र असं कत हो जाला। नारी के जवना रूि के शद्ध ु आ ित्य बरनन भोजिरु ी लोग-िंगीत में िावल जाला, ऊ दोिरा जगे दल ु षभ बा। िमय के िाथे बदलाव के बयार के गंध िभे िँघू ता। भोजिरु ी के लोकिंगीतो ओह िे अछुत नइखे। व्याविासयकता आ बाजारू िंस्कृ सत लोकिंगीत के कुछ रंगीन क देहले बा। भोजिरु ीओ लोक-िंगीत िर आधसु नकीकरण के मल ु म्मा चढ़ाके बाजार में िरोिल जाता। मांिलता के वचषस्व के िाथही रिदार रूिो के सबिारल जाता। भोजिरु ी जइिन गभं ीर आ िमृद्ध भार्ा के दसू र्त कइल जाता। भोजिरु ी भार्ा, भाव आ िगं ीतो में रोज नया-नया जीए-खाए आ दू िइिा कमाए के अविरो िृसजत कइल जाता। नारी के अनेक रूिन के बरनने िे भोजिरु ी के लोक-िगं ीत के अतीत त िमृद्धे बा, वतषमानो में रोजगार के अविर उिलब्ध हो ता। एह आधार िर कहल जा िकता सक अगर अिना जबान आ कलम िर ियं म रहल त आवे वाला आिनो काल्हू बड़ा उजर बा। ई त िचहूँ कहल गइल बा सक हर ि​िलता के िाछे एगो नारीए के हाथ रहेला। एकरा के मानला के िाथही स्वीकारो करे के क्षमता राखे के िड़ी। नारीए िे त ई िृसष्ट बा। खाली मात्रा िे ना, 'नारी' हर प्रकार िे 'नर' िे आगे बाड़ी। नारी िमृसद्ध बाड़ी, िभ्यता बाड़ी, िंस्कार बाड़ी, िंस्कृ सत बाड़ी, िासहत्य बाड़ी। आज िरिता के िाथे िजग नारी के िभु ाव खाली लोर (आँिू ) बहावे वाला नइखे, नारी के हर िभु ाव के नमन।


कचिता

रुकीं मत -झक ु ीं मत

असनल प्रिाद वतषमान एगो बहत नदी ह (इ कोई नया बात हम नईखी कहत ।) बहे दीं, रोकीं मत नाव के खेले दीं लहरन िर -डाँड़ के आवाज आ ह्रदय के धड़कन के जगु लबदं ी रोकीं मत कान लगा के िनु ीं काहे रोकतानी, काहे रूकतानी मजधार में ? के हू रोक रहलबा रउआ के राउर िामथ्यष आ िाहि के िीमा के धार के जाँचे खासतर तूिान अईबे करी । बहत मसु श्कल बा एकरा के िमझल एह सवराट प्रश्न के

लेसकन तरु ी एह िीमा के ना त हाथ िर हाथ ध के िमझे लागब त देर हो जाई (आज ले के हू िमझ ना िाइल ।) देखीं िामने सक्षसतज िर िरू ज डूब रहल बाड़े लेसकन के तना मोहक रंग के जादू सबखेरत, देखीं उनकर ढंग तसनको घबरात नईखन शांत शाश्वत घाटी में नीचे झाँक रहल बाड़े िनु ी मसं दर के घड़ी-घटं ा बाजे लागल गाय-गोरू के खरु िे धरु ा उड़े लागल नाव खेवत रहीं, रुकीं मत देह झक ु जाव लेसकन मन-झक ु ीं मत ।

असनल प्रसाद

िू

ितःहथुआ, मबहार के रहेवािा हयीं । अंग्रेजी सामहत्य िें शोध । सामहत्य अकादिी खामतर यशपाि के ‘झूठा सच’

के कु छ अंशन के अंग्रेजी िें अनुवाद । भारत, मिमडि ईस्ट, अिेररका, चाइना, कनाडा अउरी ऑमस्िया िें आयोमजत अन्द्तरायष्ट्रीय सम्िेिनन िें पेपर प्रेजेंटेशन अउरी कमवता पाठ ।अंग्रेजी, वहदी अउरी भोजपुरी िें िेखन । यिन, िीमबया, पटना अउरी िुंबई के मवश्वमवद्याियन िें अध्यापन । सऊदी अरे मबया िें अंग्रेजी भाषा आ सामहत्य के प्रोफे सर बानी ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 41


चकताब प े

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तोहि​िं के बेंची धहन भइसीं ले आइब डा॰ प्रमोद कुमार सतवारी

भोजपुरी संस्कार-गीत सपं ादक, श्री हिं कुमार सतवारी आ श्री राधावल्लभ शमाष भोजिरु रया िमाज के िांस्कृ सतक अमीरी के के हू के प्रमाण देखे के होखे तऽ ओकरा के एह भार्ा के लोकगीत िढ़े िनु े के चाहीं। ई लोकगीत एह क्षेत्र मे चलेवाला लोग के डेग डेग िऽ भेंटाए ली िं आ खाली गोड़े िे ना सदल सदमाग तक िे अइिे लिटा जाली िं सक िरू ा सजनगी गजु र जाला बासकर एहनी के स्वाद मन िऽ िे ना उतरे । आमतौर िऽ िरंिरा िे चलल आ रहल एह भोजिरु ी लोकगीतन के चार भाग में बांटल गइल बा1. सस्ं कार गीत 2. सगृं ार गीत 3. श्रम गीत 4. भत्रि गीत अध्ययन के िसु वधा खासतर अइिन बंटवारा कइल जाला, अिल में ई िब जीवन गीत भा जीवन राग के अगं हई िन जवना में तमाम प्रकार के सवचार के भरल गइल बा। ई चारों प्रकार के गीत जीवन के महीन िमझ िऽ आधाररत बाड़ी िन। एह गीतन िे कवनो देश आ िमाज के िभ्यतािंस्कृ सत, रीसत-ररवाज, कला, िासहत्य, धमष, नीसत, िमाज के स्वरूि आसद के मजगर ज्ञान प्राप्त कइल जा िके ला। एह गीतन में िमाज के िारंिररक ज्ञान, लोग के िमझ, सजनगी जीए के ढंग, आि​िी बेवहार आसद के बारे में छोट िे छोट बात के जानल जा िके ला। सजनगी खाली सवचार िे ना चले, ओकरा खासतर आचार के जरूरत िड़ेला। आचार के रउआ आचरण भा बेवहार के एगो रूि कह िके नीं। िवाल उठी सक आचरण का हऽ, एकर एगो उत्तर(एगो एह िे सक सवचार के दसु नया में अनेकतावाद चलेला) ई होई सक रउआ भीतर के भाव आ सवचार जब काम (कमष) के रूि में सजनगी में उतर आवेला तऽ ओकरा के राउर आचरण कहल जाला। रोज-रोज के काम िे कवनो चीज के बारे में एगो िोच के जनम होखेला आ िैकड़न िाल तक जब एह काम (कमष) के अध्ययन - सवश्लेर्ण कऽ के व्यवसस्थत आ िोढ़ रूि दे सदहल जाला, बार बार ओकरा अतं के जांच-जांच के सिद्ध क सलहल जाला (एही िे कुछ लोग एकरा के सिद्धांतो कहेला) तऽ एकर एगो धारा सनसित हो जाले जवना के सवचारधारा कहल जाला। कई लोग सवचार के एगो खाि वाद िे जोड़ के एकरा के दाशषसनक मत िे जोड़ेले आ दसक्षणिंथी सवचारधारा, वामिंथी सवचारधारा, लोकवादी सवचारधारा आसद नांव देबेले। अिल में नांव आ धारा ना ऊ सवचार महत्विणू ष होखेला जवन खाि तरह के कमष खासतर रस्ता बनावेला/बतावेला। एह सवचार आ एकरा िऽ आधाररत व्यवहार के िाछे तकष -सवतकष िे ले के एह सवचार के उियोसगता आ बेवहार िब शासमल रहेला। बासकर एगो बड़ आबादी के लगे एतना तकष सवतकष के िमय ना होखे एह िे ऊ अिना जीवन में िरल ढंग िे एह सवचार के अिनावेले आ एह सवचार आ व्यवहार के जोड़ के एकरा के आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 42

िोटो: ववफकपीडडयत

‘िस्ं कार’ नाम देबल े े। िक्ष ं िे में िस्ं कार के जाने के ई एगो ढगं हो िके ला। अइिने ढेर िारा िंस्कारन के ‘िसम्मसलत आ बड़ रूि’ के कवनो िमाज आिन ‘िंस्कृ सत’ कहेला। ई िंस्कृ सत एक तरह िे ओह िमाज के प्रकृ सत िे जड़ु ल रहेला। जहां खबू िानी बा, हररयाली बा, खेती बाड़ी बा उहां के िंस्कार में खेती िे िंबंसधत गीत िगं ीत आ बेवहार उहां के लोक जीवन में खबू लउकी, उहें दिू रा ओर रे सगस्तान में रहेवाला लोग के िंस्कृ सत में िानी बचावे के , ऊंट के िजू े के आ बालू िे बचे खासतर नाक-आंख तोिे के िंस्कार लउकी। कहे के मतलब ई सक प्रकृ सत कवनो ना कवनो रूि में

डा॰ प्रिोद कुिार सिवारी

भुआ मबहार के रहे वािा प्रिोद कु िार जी , कें रीय मवश्वमवद्यािय गांधीनगर , गुजरात िे अमसस्टेंट प्रोफे सर बानी । इाँ हा के भोजपुरी आ महन्द्दी सामहत्य खामतर िगातार काि कर रहि बानी । पत्र पमत्रकन िें प्रिोद जी के रचना आकषयण के कें र होिी स । भोजपुरी भाषा आ सामहत्य के इाँ हा के अपना िेखनी से बररआर चोख धार देिे बानी । एह घरी गांधीनगर गुजरात िे बानी ।


िस्ं कृ सत में मौजदू रहेले। जब एह प्रकृ सत के आधार ि बेवहार ना कर के कवनो गलत रूि में कइल जाला तऽ एकरा के ‘सवकृ सत’ नांव सदहल जाला आ जब िघु ड़ आ ि​िु ंस्कृ त रूि में बेवहार में उतारल जाला तऽ एकरा के िंस्कृ सत नांव सदहल जाला। एह तरह िे प्रकृ सत-सवकृ सत-िंस्कृ सत िगं े-िगं े चलत रहेली ि। भोजिरु रया क्षेत्र िे एगो उदाहरण ले के एह बात के नीमन ढगं िे िमझल जा िके ला। भख ू िबका के लागेला आ एकरा बाद िब के हू खाना खोजेला ई िामान्य घटना हऽ एकरा के रउआ ‘प्रकृ सत’ कह िके नीं। बासकर भख ू लागल आ रउआ दिू रा के हू के खाना छीन के भा लूट के खा गइनीं तऽ एकरा के ‘सवकृ सत’ कहल जाई। बासकर एही खएका के जब खदु खाए िे िसहले घर के बड़ बजु गु ष के भा घरे आइल मेहमान के सखयावल जाय। मेहमान के खाना िरोिला के िाथे चार गो जेवनार (कबो कबो गाररयो) गा के िनु ावल जाई। जब खाना के आ खाएवाला के िम्मान कइल जाई तऽ एकरा के िंस्कृ सत कहल जाई। आ सखयावेवाला िररवार के िंस्काररक िररवार कहल जाई। हर िमाज कवनो ना कवनो रूि में अिना िंस्कृ सत के सनमाषण करे ला आ कोसशश करे ला सक बाद के िीढ़ी ओकर िालन करे । ई िांच बा सक प्रत्येक िमाज के आिन िंस्कार होला बासकर िंस्कार के मामला एतना िरल ना हऽ। एकही इलाका के , बलुक एकही गांव के एकही धरम के लोग के भीतर िंस्कार के ले के लड़ाई चलत रहेला आ लोग एक दिू रा िऽ िंस्कारहीन होखे के आरोि लगावत रहेले। खाि तौर िे सहदं ू धरम में एह िंस्कार के वणष व्यवस्था आ जासतवाद िे बहत गसहर ररश्ता बना सदहल गइल बा। जे ऊंच वणष भा ऊंच जात के बा ऊ अिना के िंस्कारवाला बझू ल े ा आ दिू र लोग के छोट मानेला। एही िे जब हम श्री हिं कुमार सतवारी आ श्री राधावल्लभ शमाष जी के द्वारा बड़ा मेहनत िे ि​िं ासदत सकताब िऽ सलखे चलनी हऽं तऽ हमरा िोझा कई गो िमस्या ठाढ़ हो गइली हं ि। का एह िंस्कार गीतन के िरू ा भोजिरु रया िमाज के प्रसतसनसध मानल जाव? अगर िांचो मानल जाव त िे र ‘जनेऊ गीतन’ के कहां राखल जाव? काहें सक िमाज के एगो बड़का सहस्िा के तऽ जनेऊ िसहने के असधकारे नइखे समलल। एह सकताब में जनेऊ गीत के वणषन बा आ जवना लोग के एकरा के िसहने के असधकार समलल बा ऊ एकरा के सवशेर्ासधकार के रूि में देखेले। अइिहीं जवन िोरह गो िस्ं कार के बात कइल जाला ओकरा में िे बहत िारा िंस्कार के करे के हक िमाज में िब के हू के नइखे समलल। िांच िछ ू ल जाव तऽ िंस्कार गीतन के भोजिरु रया िमाज िे गसहर ररश्ता बा बासकर ई िरू ा िमाज के प्रसतसनसध ना कहल जा िके । एह बात में दू राय नइखे सक एह गीतन में िमाज के ऊंच नीच, बड़-छोट आसद के भाव भरल बा। जवन व्यसि कवनो चीज के रचेला ऊ अिना सहिाब िे रचेला आ ओकरा में ओह व्यसि के आिन िस्ं कार, ओकर आिन िोच आिन दृसष्ट चाहे अनचाहे ओकरा भीतर अइए जाला। जइिे एह िंस्कार गीतन में भोजिरु रया िमाज के उच्च वगष के बेिी सचत्रण भइल बा जबसक िंस्कार तऽ हर वगष के लोग करे ले। आज जरूरत बा सक िमाज

के हर तबका अिना सजनगी के सजये के िैकड़न हजारन िाल के िरंिरा के प्रामासणक ढंग िे कागज िऽ उतारे । ई सकताब शरु​ु आत करे खासतर एगो आधार के काम कऽ िके ले। एह सकताब में मख्ु य रूि िे िोहर, मडंु न, जनेऊ आ सबयाह के गीतन के वणषन कइल गइल बा आ िे र सबस्तार िे िोहर आ सबयाह के अलग अलग प्रिंग के िमय के गीतन के बहते मेहनत िे िंकसलत कइल गइल बा। एकरा में िोहर के भीतर खेलवना, छठी िजू न, आंख-अजं ाई, बधैया, बरही आसद के गीत बाड़ी िं त दिू रा ओर सबयाह के भीतर िगनु , मइयागीत, सतलक, चउका, चमु ावन, िझं ा िराती, सितरनेवतन, मंडि, मटकोर, बंिरोिी िे ले के हरदी चढ़ाई, इमली घोंटाई, बन्ना, टोना, िहाना, नहछू, िररछन, लावा मेराई, कन्यादान, िोहाग, कोहबर, जेवनार, िमदावन आसद आसद के गीतन के अलग िे जटु ावल गइल बा। कवनो सकताब के िबिे बड़ खासियत ई होखेला सक चाहे अनचाहे ओकरा में िमाज आ िमय आिन बात कहे लागेला। रजो रानी के कहानी में िनु े के समलेला सक रोज रानी के गोबर िाथे के िड़त रहे भा राजकुमारी के खएका ना समलत रहे। अिल में एह कथा गीत िभ में िमाज के िच्चाई अिने आि सनकल आवेले। एह िस्ं कार गीतन में भी गरीबी, मजदरू ी िे ले के िररवार के भीतर के क्लेश, आम जन के सवश्वाि आ खाि तौर िे मेहरारून के हालत बहत िाि रूि में िोझा आ गइल बा। एगो गीत में आइल बा सक एगो मेहतरानी राजा दशरथ के मंहु देख लेत सबया त अिना िंवाग िे कहत सबया सक िता ना आज के सदन कइिन बीती, िबेरे िबेरे एगो सनरबसं िया के मंहु देख लेले बानीं। िाि बा सक इहां राजा भा दशरथ िे बेिी लोक सवश्वाि बोल रहल बा आ एगो िररवार में आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 43


छोट बच्चा के होखे के महत्व का होला, वंश के आगे बढ़े के मतलब का होला ई बात बोल रहल बा। अइिहीं एगो दिू र गीत में एह बात के वणषन कइल गइल बा ित्नी के अिना िसत िे समलल के तना जल ु ुम हो गइल बा। िसहले िािू जी बइठ जात बाड़ी, ऊ गइली त गोसतनी आ गइली, गोसतनी गइली त ननद आ के बइठ गइली, िब के हू गइल तब ले लइका जाग गइल, कइिहूं लइका के ितु वली तब ले भोर के ‘चचु सु हया’ बोले लागल। गोररया के मन के बात मने में रह गइल। अँजोररया रात, बड़ा कसठन ए बालम ॥1॥ बड़ा कसठन िे िािु हटवलों , एतने में आ गइल गोतसनया ए बालम । बड़ा कसठन िे गोतनी हटवलों , एतने में आ गइल ननसदया ए बालम ॥2॥ बड़ा कसठन िे ननदी हटवलों, एतने में रोवे बलकवा ए बालम । बड़ा कसठन िे बबआ ु ितु वलों , एतने में बोले चचु सु हया ए बालम ॥3॥ िबिे बड़ बात सक खाली मेहरारुए के ददष के सचत्रण नइखे भइल। एही में अइिनो गीत बाड़ी ि‘गोररया चलेले नइहरवा, बलमु अचं रा धई के रोए । बाग में रोए, बगइचा में रोए, गल ु री के िें ड़ तरे रोए । बलमु ि​िु क ु ी धइके रोए ॥ दअ ु रा िर रोए दलसनया िर रोए, चउकी िर मड़ू ी धइके रोए । बलमु ि​िु क ु ी धइके रोए ॥ िेज िर रोए िलँसगया िर रोए , खसटया िर िाटी धइके रोए । बलमु ि​िु क ु ी धइके रोए ॥ अिल में ई गीत िंस्कार गीत िे बेिी जीवन-गीत हई िं। भले एकरा में राजा रानी आ िोना चांदी िे बात शरू ु होखत होखे बासकर अिली रंग तऽ गांव के माटी के बा। उहे अिली िोना हऽ जवना िरू ा सकताब में सबखरल िड़ल बा। िावन भदउवा के सनसि अन्हररया , सबजल ु ी चमके िारी रात ए । आरे , ितू ल कन्त हम कइिे जगाई , भँइिीं तरु ावेली छान ए ॥1॥ बोसलया त ए िरभु एक हम बोलीले, जाहँ बोली िनु ी मन लाइ ए । भँइिी बेंची िरभु चरु वा गढइतीं , हम रउरा िोइतीं अचेत ए ॥2॥ बोसलया त ए धसन एक हम बोलींले, जाहँ बोली िनु ी मन लाइ ए । तोसह के बेंसच धसन भँइिी ले आइब , बछरु चरइबो िारी रात ए ॥3॥ के तोरा ए िरभु कुसटहें िीसिहें , के तोरा करर जेवनार ए । के तोरा ए िरभु दधु वा अँवसटहें , के तोरा जोरन लाइ ए ॥4॥ चेरी बेटी ए धसन कुसटहें िीसिहें , चेरी बेटी करर जेवनार ए । बसहना हमार धसन दधु वा अँवसटहें, अम्मा मोरर जोरन लाइ ए ॥5॥ िाथहीं एह सकताब के िबिे बड़ खबू ी बा सक एकरा में लगभग 80 िन्ना में भोजिरु ी शब्दन के बारे में सवस्तार िे बतावल गइल बा। जवना के छोट मोट शब्दकोश कहल जा िके ला। कई गो गीतन के स्वरसलसि सदहल गइल बा जवना िे ओकरा के के हू चाहे तऽ आराम िे गा िके ला। ई एगो बड़ काम बा। एकरा अलावे सकताबन के िचू ी, प्रमख ु शोध ग्रंथ िब के नांव िे ले के एह गीतन के जे लोग िंग्रह कइल बाड़े उनक ु र सजि कइल गइल बा जवना में डुमरांव के श्री सशवकुमार लाल िे ले के छिरा के श्री मती शरदा देवी तक शासमल बाड़ी। अिली शोध ग्रंथ तबे बनेला जब ओकरा में आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 44

हरे क बात के प्रमाण के िाथ सदहल जाव। तबो हम इहे कहब सक ई 500 िेज के िंग्रह भोजिरु ी लोकगीत के थाती के बहते नन्हीं गो सहस्िा बा। अइिन हजार गो ग्रंथ आई तब जा के भोजिरु रया िंस्कृ सत के अिली चेहरा िोझा आ िायी। खाली िंस्कारे गीतन के कई गो िंग्रह हो जाई। ओकरा अलावे िमाज के बहत बड़ िख्ं या अइिन लोगन के बा सजनका िस्ं कार के ‘िस्ं कार’ माने के दररयासदली अभी िमाज के एगो तबका नइखे देखवले। ओहू के िक ं सलत करे के जरूरी काम अबहीं बाकी बा। हो िके ला सक ओहनी के अइला के बाद िस्ं कृ सत के अउरी सवशाल रूि आ बेहतरीन रूि िोझा आवे। तब एह िस्ं कार गीतन के बहाने जीवन के राग िनु ाई िड़ी। एह िब मामला में ई सकताब एगो शरू ु आती आधार बन िके ले। आगे काम करे वाला लोग प्रसिद्ध िासहत्यकार श्री हिं कुमार सतवारी िे बहत कुछ िीख िके ले। एह सकताब के मल्ू य 20 रूिया बा। उमेद कइल जाव सक िरू ा सकताब ना िही, गीत भा कथा रूि में ही िही, अलग अलग िमाज के गीतन के माध्यम िे हमनी के ओह सवचार िब के जाने के मौका आखर के िाठक लोग िे समली जवन िंस्कार के रूि ले चक ु ल बाड़ी िं। के जानत बा सक कवना गीत में कुहक ं त करे जा के आवाज िनु ायी िड़ी जाई‘‘अम्मां के िचं ली गगररया, त जइिे घीव गागर ए िेहो सदहले बाबा सनकाली, त जइिे जल माछर ए’’

िोटो- मवयंबरत बकशी


च त िं न/बतकही

राजहनहतक पार्टीन के बीच सैंडहवच बनत आर.बी.आई. गवननर गौरव सिहं

ब-जब लोकिभा के चनु ाव होला ओह मे दू गो गटु बनेला । िसहला िक्ष जवन ित्ता के हिदार रहेला आ दिू रा सविक्ष जवन ित्ता िक्ष के सनरंकुश होखे िे बचावेला । हमेशा िे आर.बी.आई. (ररिवष बैंक ऑफ़ इसं डया) के गवनषर दनु ो िाटीन के बीच िैंडसवच बनत रहल बाडे । चसु क सितम्बर में रघरु ाम राजन के कायषकाल खत्म भइल ह । अगस्त के असं तम हप्ता तकले एक तरह िे िरकार आ आर.बी.आई. के बीच खीच तान चलत रहल ह । िोशल मीसडया िे लेके सप्रंट मीसडया तक लोग अिना अिना अनमु ान िे आर.बी.आई के नया गवनषर के कयाि लगावत रहल ह । हर मीसडया चैनल अिना अिना अनमु ान िे सलस्ट बनाके कयाि लगावत रहे । के ह एि.बी.आई. (स्टेट बैंक ऑफ़ इसं डया) के चेयर मैनेसजंग डायरे क्टर, अरुन्धाती भट्टाचायष के अनमु ान लगावत रहे आ कोई राजन के ही आगे दोबारा िे कायषकाल ग्रहण करे के रूि में देखत रहे । ओह सलस्ट में सवजय के लकर (UPA के िमय िाइनेंि कमीशन के अध्यक्ष), अरसवन्द िब्रु मसणयम (वतषमान में सवत्त मत्रं ालय में प्रमख ु आसथषक िलाहकार), राके श मोहन, अशोक चावला आसद अइिन कव गो नावशासमल रहे । एह सलस्ट में एगो अउरी शख्ि, उसजषत िटेल के नावशासमल रहे, जे बाद में जाके बनले । देश में राजसनसतक प्रसतद्वसं दता के वजह िे एगो िैटनष बन चक ु ल बा । जब जब िरकार बदलेले तब-तब िरु ान चीज के झार-िोछ के नया बनावे के कोसशश कइल जाला । इ घटना भी ठीक ओकरे लेखा बा जईिे आज-ू काल इजं ीसनयररंग आ मेसडकल कॉलेज में ररिचषर लोग िरु ान ररिचष में २०-२५ प्रसतशत मॉसडसिके शन करके आिन िेिर िसब्लश करवावे के कोसशश करे ला । ओिही िरकार बनेले त सनसत के भी नावबदलत रहेला जबकी िरू ा िंक्शन आ िंरचना सबल्कुल उहे रहेला । ओही िम में आर.बी.आई. गवनषर के बदलल जाला । एकरा िीछे िोच इ मानल जाला सक सविक्षी िरकार के िमय वाला गवनषर तात्कासलक िरकार के िाथे भेदभाव करी । चक ु ी हतना कुछ होखला के बादो, मनि​िदं दल्ू हा खोजला

के बादो अन-बन चलत रहेला आ चलत रही । इ एगो ितत प्रसिया ह । इहे अन-बन एह बात के िंकेत देला सक िबकुछ ठीक चल रहल बा । हमेशा सविक्षी िरकार तात्कासलक िरकार द्वारा चनु ल गइल गवनषर में छे व मारत रहेले । बीजेपी के मास्टर स्रोक आर.बी.आई. के नयका गवनषर बने वाला सलस्ट में िबिे टॉि ि रही अरुंधसत भट्टाचायष । लेसकन हमरा लेखा बहत लोग के एह बात के डर रहे सक अगर आर.बी.आई. के गवनषर बदलत बाड़े त ओह िसमसत के िंरचना के का होई जवना के रघरु ाम राजन, उसजषत िटेल के अध्यक्षता में ‘उसजषत िटेल िसमसत’ के अतं गषत बनईले रहन । रघरु ाम राजन अिना कायषकाल में तीन गो मख्ु य िसमसत बनईले रहन । िसहला ‘सबमल जलान िसमसत’ जेकर उद्देश्य रहे नया बैंकन के लाइिेंि देवेके, दिू रा ‘नसचके त मोर िसमसत’ जेकर उद्देश्य रहे िाइनेंसियल इन्क्लूजन वाला एररया में जांच िड़ताल करके दरु​ु स्त करके आ तीिरा िसमसत ‘उसजषत िटेल िसमसत’ रहे जवना के उद्देश्य रहे मोनेटरी िासलिी ि जाचं करे के आ िमस्यन के हल जोहेके । ‘उसजषत िटेल िसमसत’ वाला राइव बहत ज्यादा महत्विणू ष एह िे रहे काहे सक ओकरा में बहत िारा नया-नया बदलाव कइल गइल रहे । ओह िसमसत के खाका 2018 तक के तईयार कइल गइल रहे सक कब का, कतना आ कईिे करे के बा? इहाँ तक सक महगं ाई के िमय िारणी के तहत टारगेट कइल गइल बा । चक ु ी िामान्यतः होला का सक आर.बी.आई. के गवनषर के तीन िाल के कायषकाल समलेला आ दू िाल बढ़ा देवल जाला । एह िे टारगेट भी ओही मतु ासबक बनल रहे जवना में इ मान के चलल गइल रहे सक बाकी के गवनषर लेखा इनकरो कायषकाल बढ़ी । गवनषर लोगन के अन्दर भी प्रसतस्िधाष चलत रहेला । एह िे इ बहत ही स्वाभासवक बात रहे सक अगर आर.बी.आई. के गवनषर बदसलहे त नीसतगत बदलाव लाजमी बा । लेसकन बीजेिी मास्टर स्रोक खेललि आ उसजषत िटेल के भारतीय ररजवष बैंक के 24वां गवनषर के रूि में 5 सितम्बर 2016

गौरव ससंह रो हतास, मबहार के रहेवािा गौरव जी इंजीमनयररग के छात्र हईं । सिसािमयक मवषय प भोजपुरी िें िगातार मिखत बानी । एह घरी VIT वेर्लिोर से आपन इं जीमनयररग के पढ़ाई करत बानी ।

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िे तीन बाररि खासतर सनयि ु कइलि, जवना िे सनसत जेव के तेव बाच गइल आ गवनषर भी बदला गइल । राजत्रनत्रतक खड़पेंच वईिे त रघरु ाम राजन के कायषकाल बढोत्तरी के सखलाि असभयान मई मसहना िे ही िब्रु मण्यम स्वामी शरू ु कर देले रहन । िब्रु मण्यम स्वामी, रघरु ाम राजन के भारतीय होखला ि शक करत रहले आ अमेररका खासतर काम करे के आरोि तक लगावे िे ना चक ु ले । िब्रु मण्यम स्वामी इहाँ तक कहले रहन सक आर.बी.आई. खासतर एगो राष्रवादी गवनषर के जरूरत बा । अब सविक्ष के नेता लोग िब्रु मसनयम स्वामी िे उसजषत िटेल के राष्रीयता के बारे में चचाष कइल चाहत बा । बीजेिी के िरकार बनला के कुछ मसहना बाद रघरु ाम राजन एगो िावषजसनक कायषिम में मेक इन इसं डया के चीन के सवकाि मॉडल िे प्रेररत बतावत भारत में एकर ि​िलता िर िंदहे कइला आ ‘मेक इन इसं डया’ के बजाय ‘मेक िार इसं डया’ के बेहतर बतावे वाला बयान के चलते बीजेिी बहत नाराज रहे । एहिे उनकर कायषकाल के 4 सितम्बर िे आगे बढे वाला िारा िंभावना ओही सदन िमाप्त होखे लागल रहे । रघरु ाम राजन िंजू ीवाद के सखलाफ़ जवन लड़ाई लड़ल रहन उ बहत लोगन के ि​िन ना आइल रहे । एहमे बड़-बड़ बैंकन के असधकारी, कॉरिोरे ट घरानन के मासलक शासमल रहले, अउरी कुछ राजनेता लोग भी शासमल

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रहले । िरकार के रघरु ाम राजन िे अतना असधक नाराजगी रहे सक नयका गवनषर के चयन खासतर बनावल गइल िसमसत के अध्यक्ष िरम्िरानिु ार ररजवष बैंक के गवनषर के बनावे के बजाय के सबनेट िेिेटरी िीके सिन्हा के बनावल गइल रहे । इ िसमसत अिना स्तर ि छानबीन करके असन्तम रूि िे गवनषर िद खासतर िैनल में तीन गो नाव प्रस्तासवत कइलि । िसहला नाम, वतषमान में सवत्त मत्रं ालय में प्रमख ु आसथषक िलाहकार डॉ. अरसवन्द िब्रु मण्यम, दिू रा नाविवू ष प्रमख ु आसथषक िलाहकार डॉ. कौसशक बिु अउरी तीिरा नावररजवष बैंक के सडप्टी गवनषर डॉ. उसजषत िटेल । एह तीनो में िे, प्रधानमत्रं ी नरे र मोदी उसजषत िटेल के नाविर आिन असं तम िहमती देले । दिू रा तरि कुछ जानकार लोगन के इहो कहना बा सक जनवरी 2016 में जब उसजषत िटेल के कायषकाल में एक िाल के वृसद्ध कइल गइल रहे तबे िे एगो िंकेत समले लागल रहे सक आगे आवे वाला िमय में उसजषत िटेल के बड सजम्मेदारी देवल जा िकत बा । उत्रजथत पटेल के सोझा चुनौती उसजषत िटेल के िोझा िबिे बड चनु ौती बा ब्याज दर ि सनयंत्रण राखल । हालाँसक इ बात भी िही बा सक ब्याज दर के सनयंत्रण करे , घटावे आ बढ़ावे के िै िला अब अके ले गवनषर ना करे ला बसल्क छः िदस्य लोगन के िाथे समलके करे ला । लेसकन एकरा बावजदू भी लोग कप्तान के ही के न्रीय खेलाडी के रूि में देखेला । अमेररका के िे ड रे ट में होखे वाला


बदलाव भारतीय अथषव्यवस्था के प्रसतकूल रूि िे प्रभासवत कर िके ला । एह िे रघरु ाम राजन लेखा िारा क्षेत्र के एक िाथे कवर करके चले के िड़ी अउरी रे िो रे ट ओकरा अनिु ार सनयसं त्रत करे के िड़ी । यनू ाइटेड स्टेट अउरी यरू ोसियन यसू नयन के ओर िे कइल गइल ‘क्वांसटटेसटव इजीन्ग’ अउरी ‘िे ड टेिेररंग’ जईिन चीज िे लडे खासतर एगो बसढ़या स्तर ि िोरे क्ि ररिवष के भी जरूरत िड़ी । िसिमी एसशयाई देशन के राजनीती असस्थर बा । कब के ने करवट ले सलही कुछो िता नइखे । एह घरी कच्चा तेल के कीमत बहत सनचे बा आ देश के चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) सनयत्रं ण में बा । अगर तेल आिन वाि​ि लय में आई तब हालत अउर सबगड़ िकत बा । एह िब िे महगं ाई बढे के भी आिार बढ़ िकत बा । एकरा अलावां उसजषत िटेल लगे एगो अउरी बड िमस्या इ बा सक भारत के िरकारी बैंकन के लाखो करोडो रोिया के कजष डूब गइल बा । मौजदू ा वि में डूबत कजष के कूल सहस्िेदारी के लगभग 8 प्रसतशत तक िहचे वाला बा । असगला िाल अउरी बढे के अनमु ान बा । एह िे उसजषत िटेल के एह िर सवचार करके रोके के प्रयाि करे के चाही ना त आवे वाला िमय में एगो बड़हन चनु ौती के रूि मे इ िोझा आ के खड़ा होई । रघरु ाम राजन एनिीए यानी नॉन- िरिॉसमिंग ऐिेट के खत्म करे के बात करत रहन । एनिीए मतलब अइिन ऋण जवना के लोग बैंक िे ले त लेत रहे बासकर वाि​ि करे के नामे ना लेत रहन । अइिन ऋण बड़-बड़ िजंू ीिसत, बड़-बड़ कॉरिोरे ट घराना के मासलक अउरी बड-बड कंिनी लेवे ली िन । उदहारण के रूि में सवजय माल्या के कंिनी । रघरु ाम राजन िारा बैंकन के कहले रहन सक िब लोग आि-आिन बैलेंि शीट, आिन-आिन खाता िाफ़ करि लोग । इ बात बड़-बड़ िजंू ीिसत अउरी बड़-बड़ कॉरिोरे ट घरानन के मासलकन के सबल्कुल ि​िदं ना आइल रहे, जवना ि लोग उंगली उठवले रहे । एह िब जगहा ि अगर राजसनसतक चीज उसजषत िटेल के प्रभासवत करत बा त आवे वाला िमय में बड़हन िमस्या िैदा कर िकत बा । राजन के अधुरा सपना उत्रजथत कररहे पूरा राजन के कायषकाल के िासहले आर.बी.आई. बहत िारा इसं डके टर जईिे ग्रोथ, रोजगार, महगं ाई, एक्िचेंज रे ट के टारगेट करत रहे । लेसकन राजन एके चीज ि बसढ़या िे िोकि कइले महगं ाई । चक ु ी उनकर मानना रहे सक बाद के बािी िारा िै क्टर एक दिू रा िे जडु ल बा । उनकर िबिे बड़ा सचंता एह बात के रहे सक G20 के िारा देशनं में िबिे ज्यादा महगं ाई भारत के ही रहे । उसजषत िटेल, रघरु ाम राजन के लक्ष्य के कतना आगे तक ले जात बाड़े इ आवे वाला िमय बताई । महगं ाई के टारगेट करे खासतर िासहले WPI(Wholesale Price Index) के लेके चलल जात रहे लेसकन रघरु ाम राजन के मानना रहे सक CPI(Consumer Price Index) के टारगेट करके चलल जाई त ज्यादा आिानी िे लक्ष्य के िावल जा िकत बा । एकरा िीछे मख्ु य कारन इ रहे सक WPI में फ़ूड आ तेल आसद ना जोड़ल जात रहे । एह िे उ वाला सहस्िा के जोड़ घटाव ना हो िावत रहे । लेसकन िीिीआई के तीन लेवल ि बसढ़या िे वणषन कइल बा । शहरी, ग्रामीण आ शहरी अउरी ग्रामीण दनु ो के समलाके ।

रघरु ाम राजन के िबिे खाि बात इ रहे ‘उसजषत िटेल िसमसत’ में बहत िारा नया नया स्टेि के हरा झड़ी बहत जल्दी ही दे देले रहन । चक ु ी उसजषत िटेल बड़ा िारदसशषता के िाथे आिन िझु ाव रघरु ाम राजन के िमक्ष रखले रहले । ओह में चार गो महत्विणू ष बात रहे । िसहला, लक्ष्य िीिीआई के 4% लावे के रहे ±2% के उतराव चढाव के िाथे । एकरा खासतर िमय सनधाषररत भी कइल गइल रहे । हर 12 मसहना ि 2-2 % कम होत लक्ष्य 4% के हासिल करे के बा । दिू रा सक एकरा खासतर कवन टूल उियोग कइल जाई? ‘उसजषत िटेल िसमसत’ रे िो रे ट के टूल के रूि में िझु ाव देले रहे । तीिरा बात इ रहे सक एकरा खासतर स्रेटेजी का होखे के चाही? ‘उसजषत िटेल िसमसत’ इहे िझु ाव देलि सक रे िो रे ट हमेशा िीिीआई िे ज्यादा होखे के चाही । शरु​ु आत में रे िो 8% के आि-िाि रहे अउरी िीिीआई 11% के आि िाि । लेसकन सिलहाल के सस्तसथ इ बा सक रे िो रे ट उहे 8% बा अउरी िीिीआई घट के 6% के आि िाि आ िहचल बा जवन की अच्छा चीज बा । कुल समला के कहल जा िकत बा सक रे िो अउरी िीिीआई के अतं र हमेशा िकारात्मक होखे के चाही । चौथा िबिे बड बात सक एकरा में जवाबदेही इ प्रावधान कइल गइल रहे । ‘मोनेटरी िासलिी’ के सनणषय अके ले गवनषर ना सलही बसल्क एकरा खासतर अलग िे ‘मोनेटरी िासलिी िसमसत’ बनावल जाव जवना के अध्यक्ष आर.बी.आई. के गवनषर होखि, उिाध्यक्ष चारो में िे कवनो एगो सडप्टी गवनषर होखि अउरी तीन गो अन्य िदस्य के रूि में होखि । ओह तीनो में दगु ो RBI ऑसि​ि के बाहर के लोग होखे के चाही अउरी एगो RBI के एग्जीक्यसू टव डायरे क्टर हो िके ला । एह िसमसत के िबिे िसहला बड बात इ बा सक सनणषय बहमत के आधार िर लेवे के बा । दिू रा सक जवाबदेही तय कइल गइल बा । अगर बनावल ढाचं ा के मतु ासबक ‘मोनेटरी िासलिी कसमटी’ िीिीआई के िहचावे के अि​िल होत सबया त ओकरा के िसब्लक स्टेटमेंट इशू करे के िड़ी । ओह स्टेटमेंट में िसमसत के हर िदस्य लोग हस्ताक्षर कररहे । ओह में कारन बतावे के िरी सक काहे समशन िे ल भइल? आगे एकरा िर का एक्शन सलआई? अउरी कब तक इ चीज िधु र जाई िरू ा खाका िेश करे के िड़ी । तीिरा सक आर.बी.आई. के अन्दर एगो िामसू हक सवमशष लोकतासन्त्रक तरीका िे शरु​ु आत भइल बा । राजन के एह ि​िना के उसजषत िटेल के आगे बढ़ावे के चाही । अतं में सनष्कर्ष के रूि में इहे कहल चाहब सक भारतीय अथषव्यवस्था ि एह बदलाव के कवनो खाि अिर ना िड़ी । ओकरा िीछे िबके बड कारण बा सक उसजषत ओही सिस्टम के िाथे काम करत रहल बाड़े जवन आज चल रहल बा । रहल बात िरकार अउरी आर.बी.आई. के बीचे अनबन के त उ खतम ना होई । आर.बी.आई. गवनषर हमेशा िे राजसनसतक िाटीनं के बीच िैंडसवच बनत आइल बाड़े लोग आ बनत रसहहे लोग । चक ु ी राजसनसतक िाटी सबजनेिमैन के मदद करे खासतर हमेशा रे िो रे ट के कम करे खासतर सचसं तत रहेले । जबकी आर.बी.आई. के मख्ु य सचतं ा महगं ाई रहेला । रे िो रे ट के दोहन कइला ि महगं ाई चरम ि िहचे के आिार रहेला । एह िे आर.बी.आई. िरकारी नीसतयन के ध्यान में राखी के एगो बीच के रास्ता ढूंढे खासतर हमेशा िे प्रयािरत रहेला ।

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च त िं न/बतकही

भोजपरु ी समाज आ भाषा िी राज सिहं जसद भोजिरु ी भार्ी िमाज के देश सवदेश में कवनो स्थान बा , कुछुओ िछ ू बा त ओकर श्रेय बा एह िमाज के कुछ रेडमॉकष सवशेर् चाररसत्रक गणु न के । एह लेख में ऊहे िब गणु न के िंछेि में चचाष करे के कोसशश बा । भोजिरु ी भार्ी प्रदेश : आिन देश के िसहलका आ शायद अबतक के असं तम भार्ाई िवेक्षण करे वाला सबद्वान प्रशािक आ अि​िर िर जी ए सग्रयिषन सलखत बाड़े ( सलंग्वसस्टक िवे ऑि इसं डया , भाग 5 , िृ 40 िे आगे ) “इि तरह उि भभू ाग का , सजिमे के वल भोजिरु ी बोली जाती है , क्षेत्रिल सनकालने िर िचाि हजार वगषमील होता है । इि भभू ाग में सनवासियों की जन िख्ं या , सजनकी मातृभार्ा भोजिरु ी है , दो करोड़ है ।’’ एह िंख्या में मगही , मैसथली , अवधी आसद के अलगा कईल बा । अब एह में ध्यान देबे के बात ई बा सक ऊ िवे 1901 में छिल रहे । ई िब आक ं ड़ा 1901 में भईल जनगणना के आधार िर सग्रयिषन िाहेब द्वारा सलहल गईल रहे । 1901 में भारत के कुल आबादी रहे 294360000 । िे रु 1941 के जनगणना के अनिु ार भारत के आबादी 388000000 रहे । एगो सबलकुल िाधारण प्रसतशत के गणना कइला िर भोजिरु ी भार्ा-भािी के िंख्या देश के आबादी के 14.5 प्रसतशत भईल । ( िाभार श्री दगु ाष शंकर प्रिाद सिहं के सकताब , भोजिरु ी के कसव और काव्य के भसू मका , िृ० 2 ) आज के अद्यतन जनगणना के अनिु ार भी भोजिरु ी भार्ाभािी के िंख्या के प्रसतशत अतने होखे के चाहीं । (1) भोजिरु ीया बहभार्ी होले । एक भार्ा आ िंस्कार त ऊ आिन माता सिता , घर , आि िाि के भार्ा िमाज िे िहजे िीख जाले । दोिरका , तीिरका भार्ा भी आिन आधसु नक सशक्षा आ रोटी रोजगार के जरूरत के

कारण िीख जाले । भोजिरु ी क्षेत्र में सशक्षा के माध्यम सहदं ी बा जवन घर िररवार के भार्ा , प्राथसमक स्तर के मनोरंजन के भार्ा , आिन िहिासठयन के भार्ा , खेल के भार्ा िे थोड़े अलगा होला । जन्म िे स्कुल जाये के बेरा ले भोजिरु ी प्रदेश के एगो लईका आिन घर , िमाज आ खेल कूद के िाथी िब के बीचे ढेर िमय ले भोजिरु ी भार्ा में ही बोले बसतयावेला । स्कुल में आवते सहदं ी िे ओकर िामना होला । बासकर शरु​ु वे िे लगातार बढ़ावा , िकारात्मक िसु ष्ट , िरु स्कार , िराहना , िामासजक प्रसतष्ठा आ मान्यता समलत रहला के कारण एह दोिरकी भार्ा सहदं ी के भी एगो भोजिरु ी भार्ी लईका उसमर चढला के िाथे एसह िम में िीख जाला । बहत अिहज , बहत अलगा आ छींटाइल ि​िरल ना बझु े ई काम के । कारण बा भोजिरु ी क्षेत्र के भार्ा आ िस्ं कृ सत , रीसत ररवाज आसद देश के अउर भागन िे थोड़े अलगा रहला के बादो कहीं गसहराहे एगो बररयार बधं न िे बन्हल बा । ई आतंररक बधं न आ िम्बन्ध एक सदन के ना ह , कई यगु न के ह । (2) मतलब सहदं ी के रूि में दभु ार्ी भईला के गणु आ चररत्र के एगो भोजिरु रया बैरवाली आ सविरीत िररसस्थसत में ना आत्मिात करे । तसन कसठनाई त होला बासकर आत्मिात करे के ई प्रसिया ढेर मात्रा में ओतने िहज रूि में होला जेतना िहज रूि में आिन ऊ माई भार्ा / प्रथम भार्ा के िीखेला । जब दोिरकी भार्ा के आत्मिातीकरण , ओकर अतं रग्रहण ( internalization ) के मनोवैज्ञासनक , िांस्कृ सतक , िामासजक िररसस्थसतयन में ढेर अतं र नइखे त सहदं ी िे अलगा होखे के बात , ओकरा के कमजोर करे के बात , राजभार्ा के िद िे उतारे में िहजोग करे के बात जे कुछ सवद्वान् लोग उठा रहल बा ऊ कतना िही बा ? (3) बहत भोजिरु रया जे रोटी रोजगार खासतर दरू प्रदेश भा देश में रह रहल बाड़े सहदं ी के अलावा एगो तीिरकी भार्ा जइिे सक बांग्ला , मराठी , िंजाबी आसद भी िहजे िीख जाले । हमार अल्ि जानकारी के अनिु ार मारीशि के भोजिरु रया चारभार्ी होले । भोजिरु ी , सहदं ी , सिओल आ

पी राज ससंह

परा , मबहार के रहे वािा पी. राज वसह जी आर एस कािेज मसवान िे एसोमसयेट प्रोफे सर बानी , नया तकनीकी से जुि​ि अपना िातृभाषा खामत हर तरह से िागि भीि​ि , अपना मवशेष कै िरा से जवार के हर पहिू के कै द करत भोजपुरी भाषा के एगो सामहमत्यक किात्िक उं चाई दे रहि बानी । एह घरी इाँ हा के छपरा िे बानी ।

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राजकाज के भार्ा के रूि में अग्रं जी भा फ्रेंच उहाँ के लोग बोले िमझु ल े ा।

आरा / छपरा / बलिया लि​िा घर बा

(4) कवनो आदमी मजबरू ी में ही दभु ार्ी होला । बासकर बहलता वादी , बहभार्ी , बह िांस्कृ सतक देश में ई एगो बहत बड़ ताकत बन के आगा आवेला । सद्वभार्ी , बह भार्ी भईला िे रोजगार के अविर बढ़ेला , नौकरी रोजगार के उनती के राह खल ु ेला , िामासजक प्रसतष्ठा में बृसद्ध होला , एगो िमन्वयवादी िमाज बनेला आ

त कवन बात के डर बा ।

अतं में देश के िायदा त होखबे करे ला । (5) दभु ार्ी भईला िे एगो वैज्ञासनकं शोध के अनिु ार बसु द्ध लब्धअक ं ( आई क्यू ) में वृसद्ध होला काहे सक एक भार्ा िे दोिरा भार्ा में भाव आ सवचारन के बदलत घरी सदमाग के स्नायु तंत्र के एक लेखा िे किरत होत रहेला । भासर्क मान्यता िे ओह भार्ा िमाज के अउर देशन में आ देश के अउर भागन में प्रसतष्ठा भी बढ़ेला । ई बात भोजिरु ी िर भी शत प्रसतशत िही बा । (6) भोजिरु ी देश िेवा में लागल िौजी जवानन के भी भार्ा ह । भोजिरु रया क्षेत्र में कल कारखाना कम बा । रोजगार के अविर कम बा । देश के िसच्छमी प्रांतन जइिे सक गजु रात ,महाराष्र ,राजस्थान आसद में जतना उद्योग , व्यािार के सवकाि भईल बा ओतना भोजिरु ी प्रदेश में नइखे भईल । एह के चलते हरे क गाँव में नवही लोग के ई शगल बा सक देह बनाव , दउर आ मलेटरी , िारा मलेटरी में भरती होखs । एगो अनमु ान के अनिु ार भरती के इहे रलतार रहल त िंजाब हररयाणा के िाछा धके लत भोजिरु ी क्षेत्र एह िेवा में एक नंबर िर आ जाई । (7) िेना में भरती आ नौकरी के िवख , बहादरु ी के काम करे के शगल कवनो नया ना ह । ई मध्यकाल िे ही एह माटी िे जड़ु ल बा । मिु लमानी शािन काल में भी जारी रहे । अग्रं ेजन के िमय में भी भोजिरु आ बक्िर में िउज में बहाली के दू गो कें र रहे । भोजिरु ी माटी के एह गणु के वणषन शाहाबाद गजेसटयर , डॉ उदय नारायण सतवारी आ श्री दगु ाष शंकर सिहं के सकताबन में िप्रमाण कईल बा । एसह कड़ी में हाल के इसतहाि में बाबू कंु वर सिंह आ मंगल िांडे के अतल ु नीय िंघर्ष के याद कईल जा िके ला । कहे के माने बा सक भोजिरु ी प्रदेश देह िे लाम लहकार , िष्टु वीर जवानन के देश ह । बहत ही प्रचसलत एगो कहावत प्राये िनु ल जाला -

डॉ उदय नारायण सतवारी आिन सकताब भोजिरु ी भार्ा और िासहत्य में सलखत बाड़े“ भोिपरु ी स्वभावतः यद्ध ु लिय होते हैं । अतएव मगु ि सेना तथा उसके बाद 1857 के भारतीय लवद्रोह तक लिलिश सेना में उनका बड़ा सम्मान रहा । लबहार में िचलित लनम्नलिलित पद में भी भोिपुररयों के युद्धलिय स्वभाव की चचा​ा है ।” भागलपुर के भगोत्रलया कहलगा​ाँव के िग पटना के देवत्रलया तीनू नामजद सत्रु न पावे भोजपुररया त तीनू के तूरे रग ।” इ िद के उदाहरण सग्रयिषन भी आिन सकताब में देले बाड़े । 17 वीं आ 18 वीं शताब्दी में भोजिरु आ ओकरा िटले बक्िर में िौजी सि​िासहयन के भरती के दू गो मख्ु य कें र रहल । एह क्षेत्र के िौजी जवानन के मगु ल काल में सतलगं े आ अगं रे जी िेना में बक्िररया नाम रहे । (8) भोजिरु ी भार्ी प्रदेश अिना देश के भीतरे ना िरू ा दसु नया में िस्ता श्रम सनयाषत करे वाला भाग के रूि में प्रसिद्ध बा आ रहल ह । हाल के अतीत में मॉरीशि , िरू ीनाम , सिजी , असफ्रका आसद देशन में इहाँ के मजदरू गईले । आज अरब खाड़ी के देशन में भी ढेर लोग नौकरी में बा । इहाँ के माटी उिजाऊ बा बासकर जनिख्ं या घनत्व बहत असधका बा । इडं ोगगं से टक प्लेन भा गांगेय क्षेत्र के उिजाऊ माटी में अनेक प्रकार के िसिल उिजावल जाला । िरदेश बहरा में नौकरी करे के एगो बड़ कारण इहो बा । (9) िे रु भी जब एगो भोजिरु ी भार्ी आिन मल ू वाि िे रोजी रोटी खासतर दरू देश जाला तब आिन भार्ा आ िंस्कृ सत के बचा के राखे के हर िंभव कोसशश करे ला । डॉ उदय नारायण सतवारी आिन सकताब भोजिरु ी भार्ा आ िासहत्य में सलखत बाड़े सक भोजिरु ी क्षेत्र के बहरी भोजिरु रयन के िबिे बड़ अड्डा कलकत्ता रहल बा ( िृ 237 ) । ई ओह घरी के बात ह जब कलकत्ता सब्रसटश िाम्राज्य के भारत में राजधानी रहे । कलकत्ता ओह घरी भोजिरु ी जीवन आ िंस्कृ सत के कें र रहे । हजारों भोजिरु रया कलकत्ता आ भागीरथी के सकनारे बनल जटू के करखाना में काम करत रहले । हजारों लोग हरे क रसववार के मौनीमठ में जमा होत रहले आ भोजिरु ी लोक गीत , लोक कथा , लोक गाथा ( आल्हा , सवजय मल आसद ) गा के आ िनु के आिन मनोरंजन करत रहले । (10) 1923 में जब देश के नया राजनैसतक राजधानी सदल्ली में बनल तब भोजिरु ी भार्ी लोग गते-गते सदल्ली काओर रुख कईल । देश के आसथषक आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 49


राजधानी बम्बई काओर भी िलायन आ प्रवािन के रुख भईल । िे रु िरू त , अहमदाबाद आसद औद्योसगक शहरन काओर भी आबादी के एगो बड़ सहस्िा के िलायन भईल । बासकर भोजिरु रया जहाँ कहीं भी गईले आिन िंस्कृ सत आ िरम्िरा आ भार्ा के हर जगह बचावे सनबाहे के कोसशश कइले । एकर िबिे जबर उदाहरण छठ िवष बा । बम्बई में िमरु सकनारे लाखों लोग जटु के छठ के िामसू हक आयोजन करे ला । इहे हाल सदल्ली आ देश का दोिर शहरन के भी बा । (11) जसद हाल के डेढ़ दू िौ बररि िे भोजिरु रया िमाज आिन देश ही में ना सवदेशन में भी िस्ता श्रम सनयाषत करे खासतर िरसिद्ध बा त ओकर प्रधान कारण एह िमाज के श्रमशीलता के गणु भी बा । एगो अइिन गणु जवन आिन मेहनत आ ईमानदारी के बलबतू े नया स्थािना के देश में िमृसद्ध आ खश ु हाली ले आवेला । कृ सर् आधाररत सवश्व में एसह प्रदेश के लोग मॉरीशि , िरू ीनाम , सिजी आसद देशन में जाके ऊख उिजावे के आिन सकिानी के गणु के कारण प्रसिद्ध भईले । ओह देश के आगा बढे में िहायक भईले । (12) एक िमय भोजिरु ी क्षेत्र के बाहर भोजिरु रयन के िबिे बड़ आडा कलकात्ता रहे । उहाँ लोग भागीरथी के सकनारे जटू समलन में काम करत रहे ।ढेर लोग दरवानी , रे क्शा आसद छोट मोट काम भी करत रहे । जब कलकत्ता के आसथषक राजनीसतक महत्व कम होखे लागल , रोजगार के अविर िीसमत होखे लागल त एह श्रमशील िमाज के एगो बड़ तबका सदल्ली , बम्बई , गजु रात , िरू त आसद शहरन काओर रुख कईलि । (13) प्रवािन के प्रारंसभक काल में भोजिरु रया फ़ौज/ सि​िाही , खेती , आ कल कारखाना के छोट मोट काम में लागल रहले । मगु ल काल , अग्रं ेजन के िमय जसद ई िमाज आिन लड़े के छमता आ बहादरु ी खासतर िरसिद्ध रहल त कलकात्ता के जटु के कारखाना में मजरू आ दरवान के रूि में ।

शरू ु शरू ु में जे भोजिरु ी श्रम आधाररत अकुशल मजदरू के रूि में सवश्व में प्रसिद्ध रहले ऊ आज-काल्ह अधष कुशल आ कुशल मजदरू के रूि में भी जानल जाले। । एह िबंध में हम आिन हाल में िम्िन भईल लदाख जतरा के अनभु व राखे के चाहब । लदाख सजला में गमी के सदन में जब बरि गल जाला 10 -15 हजार ले भोजिरु ी भार्ी लोग छोट मोट काम में लागल रहेला । मसहना जनू के रहे । एह लोगन में असधका चम्िारण आ गोिालगंज के लोग रहे । िबेरे िबेरे चौक चौराहा िर ई लोग काम खासतर खड़ा हो जाला । िे रु काम के अनिु ार दाम भा मजरू ी तय होला । खाली इटं ा जोड़े के काम छोड़ के घर / भवन बनावे के िारा अद्धष कुशलता आ कुशलता वाला काम एह लोग के सजम्मे रहेला । प्लास्टर, िंगमरमर, िानी के िाइि , बाथरूम सिसटंग , छत ढलाई , वेसल्डंग , मकान के िटु ी रंगाई , सबजली के काम आसद के काम में लदाखी लोग के बसु द्ध काम ना करे । इटं ा जोड़ाई के काम आ िड़क बनावे के काम में नेिाल आ छत्तीिगढ़ के लोग लागेला । बासकर लदाखी लोग के ई मलाल जरूर रहेला सक ओह लोग के आमदनी के 20 - 25 % भोजिरु रया सबहारी लोग ले उड़ेला ।एगो लदाखी बसु द्धजीवी के महु ँ िे जब हम एह भाव के बात िनु नी त तकष िे िमझु ावे के कोसशश कईनी सक तब इन िब मेहनत आ अधष कुशलता वाले कामों िे िीख लेना चासहए । मैं जानता हूँ ये अब आि​िे नहीं होगा क्योंसक आिके यहां लाखों देशी सवदेशी ियषटक आ रहे हैं और उन लोगों िे आिको अच्छा ईजी मनी समल जाता है । उनका चिु लगा जाये के िरल । हाँ , अतं में एक बात जरूर दोहरावे के चाहब भोजिरु ी लोग के िौज , सि​िाही में भरती होखे के सिलसिला जवन मग़ु ल काल िे शरू ु भईल तवन आज ले स्वतंत्र देश भारत में भी सबना रुके चालु बा । जे तरे आजादी के बादो भोजिरु ी क्षेत्र में कल कारखाना , उद्योग के सवकाि ना भईल एह प्रदेश के नौजवानन के िौज , सि​िाही में भरती भईला िे बसढ़या

फोटो—पी राज स हिं

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च त िं न/बतकही

किा​ाँ ले किीं िम ‘हकरण’ के किानी... (भोजिरु ी के मशहूर िासहत्यकार आचायष गणेशदत्त ‘सकरण’ के िण्ु यसतसथ िर सवशेर्) िंकज भारद्वाज

मिम एक हजार िाल िरु ान भोजिरु ी के कोर गढ़े में ना जाने कतना रचनाकारन के हाथ बा, लेसकन एह रचनाकारन में िे कुछ अइिनो बाड़न जे अिना कलम के बतू े कालजयी हो गइलन। सकरण जी के नाम अइिने भोजिरु रया रचनाकारन के िचू ी में दजष बा। हम बात क रहल बानी आचायष गणेशदत्त ‘सकरण’ के । उहे सकरण, सजसनका कसवताई के लोहा राष्रकसव सदनकर भी मनले रहन, मैसथली आ सहदं ी के मशहूर कसव नागाजषनु सजसनका िंगे कसवता िाठ कके खश ु होत रहन। हास्य कसव िांढ़ बनारिी के त एक बेर मचं े छोड़ के भागे के िरल। मन-समजाज िे खांटी भोजिरु रया सकरण जी के भीतर मजगर आग भरल रहे, जे िमय िाके उनक ु ा कलम के सियाही बसन गइल। वीर रि के अदभतु रचनाकार भइलन सकरण जी। इ जासनके अचरज हो िके ला सक सकरण जी बहत िढ़ल-सलखल ना रहन। बि मैसरक िाि, लेसकन भीतर कसवताई के भरू अइिन िूटल सक आज उनक ु ा सलखला िर सवश्वसवद्यालयन में शोध होता। एहमें दू राय नइखे सक सकरण जी अिना कलम िे भोजिरु ी िासहत्य के खबू -खबू िंवरलन। सकरण जी के रूि में एगो नया समजाज समलल भोजिरु ी के । सहन्दी में भी ‘असग्निथ’ जइिन प्रबंध काव्य िसहत कइगो रचना क के सकरण जी एह बात के िासबत कइलन सक इ नइखे कहल जा िकत सक भोजिरु ी के कलमची सहन्दी के अखाड़ा में दगं ल नइखे खेल िकत। लेसकन, जबले देह रहल, भोजिरु ी िे नेह ना टूटल। गजबे प्यार रहे उनक ु ा अिना भार्ा िे। नेिाल के काठमांडू िे लेके भटू ान के सथम्िू तक भोजिरु ी के िताका िहरवलन। सकरण जी के अिली नाम गणेश सतवारी रहे। 5 जनू 1933 के बक्िर

सजला के इटाढ़ी प्रखंड के बैरी गांव में इसनकर जनम भइल रहे। बाबू जी के नाम िंसडत महादेव सतवारी रहे, जे अिना इलाका के प्रसतसष्ठत सकिान रहन। सकरण जी जब होश िंभरलन तब देश गल ु ाम रहे आ गोरन के आतंक चरम िर रहे। सिरंसगयन के गल ु ामी उनक ु ा खटके लागल, लेसकन उसमर अइिन रहे सक चासहके भी कुछ खाि ना क िवलन। अतना जरूर भइल सक बगावत के आग रग-रग में भरर गइल, जे आगे चसलके उनक ु ा कलम के धार सदहलि। सकरण जी के प्रारंसभक सशक्षा गांव के ही स्कूल में भइल। िढ़ेसलखे में ऊ बहते नीमन रहन। लेसकन, िाररवाररक उलझन आ अथाषभाव के चलते मैसरक िाि कइला के बाद आगे ना िसढ़ िवलन। कसवताई के धनु किार िर लररकांइए में िवार हो चक ु ल रहे, एहिे मन एही में रम गइल। िेयान भइलन तब सहन्दी िासहत्याकाश में रामधारी सिहं ‘सदनकर’ के नाम ध्रवु तारा लेखा चमकत रहे। सदनकर सबहार के बेगिू राय सजला के रहे वाला रहन। सकरण जी कसवताई के हनर िीखे खासतर उनक ु ा िे भेंट कइलन। िसहलके भेंट में ऊ सदनकर जी के मजे में प्रभासवत कइलन। सकरण जी के कसवताई में रूसच आ रचे-गढ़े के क्षमता देसखके सदनकर जी कहलन सक लागल रहऽ, बहत आगे जइबऽ। राष्रकसव के इ बात िवा िोरह आना िांच भइल। िमय के िाथ सकरण जी आ उनक ु र कसवताई सनखरत चसल गइल। बहत कम िढ़ल-सलखल सकरण जी स्वाध्याय के दम िर आिन ऊ मोकाम बनवलन जवन बहत लोग खासतर बि ि​िना भर होला। उनक ु र िसहला कसवता िंग्रह ‘सिंजड़ा’ 1962 में प्रकासशत भइल। एही िाल भारत िर चीन हमला कइलि, तब सकरण जी मचमचात जवानी के मासलक रहन। चीन िे समलल हार उनक ु र मन कबल ू े खासतर तइयार ना भइल। लगभग ओनतीि बररि के सकरण जी के भीतर कै द वीर-रि के कसव

पंकज भारद्वाज

क्सर के रहे वािा पंकज भारद्वाज जी िूित: पत्रकार हईं बाकक अध्ययन-अध्यापन के काि िें भी इहा​ाँ के िन िागेिा। सामहत्य, सिाज, राजनीमत से जुि​ि िुद्दन पऽ रउआ सरोकारी तेवर के साथे आपन कि​ि चिावेनीं। दैमनक वहदुस्तान, सन स्टार डेिी, दैमनक जागरण, राष्ट्रीय सहारा िें राउर िेख िगातार छपत रहेिा। रउआ पमहिे द संडे इं मडयन के साथे भी जुि​ि रहीं।

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जासग गइल आ रचना भइल ‘सकरण बावनी’ के । सहन्दी िासहत्य में जवन महत्व भर्ू ण के ‘सशवा बावनी’ के बा, भोजिरु ी में उहे दजाष ‘सकरण बावनी’ के समलल। बावन गो छंद आ हर लाइन चीन के खल ु ा चनु ौती। महाकसव भर्ू ण सशवा जी के नायक बनवलन, त सकरण जी एगो घायल िैसनक के । खैर, सकरण जी अिना एह रचना िे भोजिरु रयन के जगावे शरू ु कइलन। उनक ु ा महंु िे एकर िाठ िसु नके लोग दगं रसह जाि। सहन्दी िट्टी में कसववर गोिाल सिहं नेिाली के कसवता ‘सहमालय ने िक ु ारा’ जवन ति ू ान खड़ा कइलि, भोजिरु ांचल में उहे काम ‘सकरण बावनी’ कइलि। चीनी आिमण के िमय सकरण जी के इ रचना खबू बाहबाही बटोरलि। एकर िररणाम भइल सक सकरण जी िररचय के मोहताज ना रसह गइलन। 1966 में ‘सकरण बावनी’ के प्रकाशन भइल। एही िाल कसववर ब्रजसकशोर नारायण के अध्यक्षता में मोसतहारी में भोजिरु ी िम्मेलन के आयोजन भइल। एहमें ‘सकरण बावनी’ खासतर सकरण जी के स्वणष िदक सदहल गइल। सकरण जी भोजिरु ी में गीत, गजल, कसवता के अलावा उिन्याि, लसलत सनबंध, खंड काव्य आ नाटक भी सलखलन। 1980 में उनक ु र रचना ‘धसू मल चनु री’ प्रकासशत भइल। भोजिरु ी के इ ऐसतहासिक उिन्याि खबू धमाल मचवलि। दू िाल बाद, 1982 में भोजिरु ी के िौरासणक उिन्याि ‘रावण उवाच’ के प्रकाशन भइल। हालांसक सकरण जी एह बीच बहत कुछ सलख चक ु ल रहन, लेसकन िइिा के अभाव में कइगो रचना प्रकासशत ना हो िवसलिन। स्वासभमानी अइिन सक के हू के आगे कबो हाथ ना ि​िरलन। भोजिरु ी नाटक ‘सजसनगी गरीब के ’, ‘भोजिरु ी लसलत सनबंध’, भोजिरु ी गीसत रूिक ‘सिंगला’, भोजिरु ी के शोध प्रबंध ‘भोजिरु वैभव’ िसहत कइगो रचना अभी तक अप्रकासशत बाड़ीिन। सबहार के भोजिरु ी अकादमी के िौजन्य िे उनक ु र रचना ‘िती के श्राि’ प्रकासशत भइल। अकादमी उनक ु र भोजिरु ी खंड काव्य ‘ितिंथी’, भोजिरु ी कोश ग्रंथ ‘मानि कोश’ आ भोजिरु ी शोध प्रबंध ‘अगस्त्यःजीवन वृत्त आ िंस्कृ सत’ के प्रकाशन के सजम्मा उठवले सबया। िसिम बगं भोजिरु ी िररर्द, कोलकाता के िहयोग िे भोजिरु ी सनबंध िंग्रह ‘सवचार के तार’ आ भोजिरु ी कसवता िंग्रह ‘अजं रु ी भर गीत’ के प्रकाशन िंभव हो िावल। िरस्वती के वरदित्रु सकरण जी भोजिरु ी में ‘रामायण’ आ ‘महाभारत’ के भी रचना कइलन। िांच खंड में रचल ‘महाभारत’ के एगो खंड प्रकासशत भइल। अन्य चार खंड अप्रकासशत बा। ‘रामायण’ के भी प्रकाशन ना हो िावल। सकरण जी के कलम िर वीर रि के अलावा श्रृगं ार रि के भी मजे में अिर िरल। अइिन िामंजस्य राष्रकसव सदनकर में देखे के समलेला, जहां यगु धमष के ‘हक ं ार’ िसु नके ‘उवषशी’ भी ‘कुरूक्षेत्र’ के रूख क लेले। वीर रि के िंगे-िंगे श्रृंगार रि में िराबोर एक-िे-एक गीत सलखलन सकरण जी। भोजिरु ी गीतन के नया धार समलल। उनक ु र रचना ‘के िर के गंध लेके िरु वा चलल रहे’ के करा याद नइखे। इ गीत भोजिरु ी गीतन के सिरमौर कहल जाला। भोजिरु ी के मशहूर गायक भरत शमाष ‘व्याि’ के िहचान बनल इ गीत। उनक ु र छसव गढ़े में एह गीत के महत्विणू ष योगदान रहल। आज भी भरत शमाष के आवाज में सकरण जी के इ गीत िसु नके लोग भावसवभोर हो जाला। भोजिरु ी गीत-गजल में अतना िघु र उिमा आ आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 52

कल्िना बहत कम देखे के समलेला। भरत शमाष सकरण जी के ‘गरू ु जी’ कसहके िक ु ारि। कुछ बात त जरूर रहे तबे न सकरण जी के सलखल गीतन के िरु े श वाडेकर, अनरु ाधा िौडवाल, वाणी जयराम आ कुमार शानू लेखा बॉलीवडु के मशहूर गायक-गासयका लोग आिन आवाज सदहल। कई बेर मायानगरी बबं ई (अब मबंु ई) िे नेवता आइल, लेसकन अिना गांव बैरी िे बैर ना िधलन। बैरी िे मोहब्बत बबं ई के नेवता िर भारी िरल। सकरण जी अिना गांव में ही रसहके भोजिरु ी के िवं ारे में लागल रसह गइलन। कसवता िाठ खासतर कहीं जाि, लेसकन घसू म-सिरर के बक्िर आ बैरी आवि। कहल जा िके ला सक बक्िर आ बैरी के प्रसत ऊ ‘नॉस्टेलसजक’ रहन आ इहे ‘नॉस्टेसल्जया’ उनका रचनाधसमषता के अतना िघु र सवतान रचलि। अिना िासहत्य-िाधना के दम िर सकरण जी बहत कािी शोहरत बटोरलन। उनक ु र क्षमता देसखके भागलिरु सवश्वसवद्यालय उनक ु ा के ‘आचायष’ आ ‘डी. सलट्.’ के उिासध सदहलि। सकरण जी के कइगो रचना भागलिरु सवश्वसवद्यालय आ वीर कंु वर सिंह सवश्वसवद्यालय, आरा के भोजिरु ी सिलेबि में शासमल कइल गइल बाड़ीिन। समजाज िे अक्खड़ आ िक्कड़ सकरण जी असं तम दम तक भोजिरु ी के िेवा में लागल रसह गइलन। हालांसक सजसनगी के असं तम िमय में बेमारी उनक ु ा शरीर के बहत बरु ा तरे जकसड़ लेले रहे, ओकरा बादो कवनो िासहसत्यक िंगठन िे बोलावा आवे त िहचं े में इसचको अिकसतयाि ना। लमिम छह-िात िाल िसहले बक्िर में आयोसजत भइल भोजिरु ी अकादमी के िम्मेलन हमरा याद बा जवना में सकरण जी लरखरात िहचं ल रहन। उनक ु र हालत देसखके िब अचरज में रहे। शरीर िाथ ना देत रहे। िनु ,े बोले आ देखे के क्षमता भी खतम हो चलल रहे, लेसकन भोजिरु ी िे लगाव अइिन सक घरे सबछवना िर ना रसह गइल। िम्मेलन में शासमल भइलन आ आिन बात भी रखलन। इहो कहलन सक हमरा एह बात के मलाल बा सक िरकार भोजिरु ी के िंगे िौतेला रवइया अिना रहल सबया। आज ले भोजिरु ी के िंसवधान के अठवां अनिु चू ी में शासमल ना कइल गइल। एकरा खासतर िबका एकजटु होके आवाज लगावे के चाहीं। िाथषक आ िररणामजनक प्रयाि होखे के चाहीं। मरे िे कुछ मसहना िसहले एह आलेख के लेखक िे सकरण जी के भेंट भइल रहे। एगो िवाल िर उनक ु र िीधा जबाब रहे सक हमरा रचना के िमाज एक न एक सदन िमीक्षा करी। एसहजा िे जाए के बाद जमाना हमरा के जरूर ढूंढ़ी। एही भरोिा के िंगे सकरण जी अिना सजसनगी के गरदन तक डूसबके सजयलन। भोजिरु ी माई के इ लाल 5 सितंबर 2011 के हमनी के िाथ छोसड़के िदा खासतर िरा गइल। उनक ु ा शव यात्रा में हजारों लोग शासमल भइल। हर आदमी उनक ु ा कासबसलयत के चचाष में मशगल ू रहे। आजो जब कबो भोजिरु ी के चचाष होला त सकरण जी िट िे याद िरर जालन। भल ु ाइल भी कइिे जा िके ला अतना िघु र भोजिरु रया ि​ितू के , जेकर सजसनगी एगो सजंदा कहानी रहे। सकरण जी भोजिरु ी के बेहतरीन रचनाकार रहन। उनक ु ा गीत-गजल आ उिन्याि के कवनो जोड़ नइखे। उनक ु ा रचना के जायज िमीक्षा होखे के चाहीं। हम उनक ु ा िे समलल बानी। भोजिरु ी खासतर उनक ु र लगाव डाह िैदा करत रहे। अइिन बहत कम लोग होला जे आिन सजसनगी अिना भार्ा के सवकाि खासतर लुटा दे। (आभार : चंद्रभूषण राय, अध्यक्ष, लबहार)


च त िं न/बतकही

मातभ ृ ाषा के सवाल देवेंर नाथ सतवारी

ब कबो के ह अिना मातृभार्ा के बात करे ला तऽ िबिे िसहले वचषस्वकारी भार्ाई िमहू के बसु द्धजीवी तलवार ले के खड़ा हो जाले, उनका अिना असस्तत्व िऽ िंकट सदखे लागेला। ऊ धमकी देवल े न सक मातृभार्ा के िम्मान सदहला िे राष्रवाद खतरा में िड़ जाई। राष्रीय चेतना िऽ िंिमण होई आ क्षेत्रीय चेतना मख ु र होई। अइिन बसु द्धजीवी लोग इ तकष देवल े ा सक अगर हमनी के सवकाि चाहत बानी िऽ त सवश्वभार्ा मिलन अग्रं ेजी िे जड़ु े के िड़ी। एही में हमनी के आ भारत दनू ों के भलाई बा। इ लोग एतना सजद्दी आ अहक ं ारी होखला के राउर बात तक रखे के मौका ना दीही आ नाहीं राउर िक्ष िनु ीं। हम खदु अइिन तथाकसथत बसु द्धजीवी लोग के कोिभाजन के सशकार भइल बानी आ सिछला कुछ हलता िे लगातार एह लोग के कुतकष िे द-ू चार हो रहल बानी। दरअिल इ िब सलखे के िीछे िे िबक ु के माध्यम िे भोजिरु ी के सखलाि जहर उगलत एगो स्वनाम धन्य आलोचक के िोस्ट बा। अिना िोस्ट में इ तथाकसथत आलोचक जी भोजिरु ी के मान्यता समले िे ‘सहदं ी के सचदं ी-सचदं ी होखे’ के झठू ा अदं श े ा में सदमागी तौर िऽ सवसक्षप्तन जइिन व्यवहार करत कई गो कुतकष गढ़ले रहलन। खैर अइिन बसु द्धजीवी लोग के जाने के चाहं ी सक कवनो भारतीय मातृभार्ा मिलन भोजिरु ी, राजस्थानी, भोटी आसद के ओकर हि सदहले िे ना सहदं ी के िेहत िऽ कवनो अिर िड़ी नाही अग्रं ेजी के कुछ बनी सबगड़ी। भोजिरु ी भार्ी होखे के बावजदू हमके इ माने में कवनो गरु े ज नइखे सक हमनी के सहदं ी चाहे अग्रं ेजी में सनिणु होखे के चाहीं बासक मातृभार्ा के कीमत िर कबो नाहीं। हमनी एह तथ्य िे िररसचत बानी ि सक िंिार के मय भार्ा स्वभावत: एक जइिन बा। कवनो भी भार्ा के देखी- मय के िासहत्य में उहे एक जइिन उत्कृ ष्ट कल्िना के भाव, उहे प्रेरणादायक सवचार आ आदशष झलकतसझलसमलात समली। एकरा के एह तरे िमझल जा िके ला सक वासल्मकी रामायण, कंब रामायण आ तल ु िी रामायण कुल्ही में राम के आदशषवादी मयाषदा िरू ु र्ोत्तम रूि हमनी के िन्मख ु प्रकट होखेला। एह िे हमनी के

कवनो भार्ाई दरु ाग्रह नइखे बासक आिन मातृभार्ा के कीमत िऽ कवनो कृ सत्रम रूि िे थोिल गइल भार्ा के गल ु ामी हमनी के नइखीं ि कर िकत। मातृभार्ा हमनी के िंस्कृ सत के धारक-िोर्क सहयऽ आ एही के अँचरा तले हमनी के जीवन-मल्ू यन के िीखे, गणु े आ जोगावे में ि​िल हो िावेनी। मातृभार्ा हमनी के सवराित हऽ आ आगे वाले वाला िीढ़ी में हमनी के सवराित (िांस्कृ सतक) के हस्तांतरीत करे के माध्यम भी इहे हऽ। वैश्वीकरण, आधसु नकीकरण आ तेजी िे बदलत िामासजक-िांस्कृ सतक, आसथषक आ राजनीसतक िररदृश्य में तकरीबन हर भार्ा के िामने असस्तत्व के िंकट बा। सवशेर्ज्ञन के मानी तऽ एह िदी के आसखर तक मौजदू ा सवश्व के आधा िे असधक भार्ा/बोली नष्ट हो जइहें िऽ। गहन अध्ययन के बाद जारी कइल गइल एगो सवस्तृत ररिोटष में यनू ेस्को इ मंतव्य प्रकट कइले सबया सक दसु नया में करीब 6 हजार भार्ा बाड़ी ि जवना में िे 3 हजार सवलुप्त हो रहल बाड़ी ि। आ एह भिवन में िे 96 िीिदी भार्ा दसु नया के चार प्रसतशत आबादी द्वारा बोलल जाली ि। 25 िीिदी िे भी कम भार्ा शैसक्षक प्रणाली में अनप्रु यि ु होखेली ि आ 100 गो िे भी कम भार्ा

देवेंद्र नाथ सिवारी दे वररया , युपी के रहे वािा देवेंर नाथ मतवारी जी , द संडे इंमडयन भोजपुरी पमत्रका के कॉपी एमडटर रमह चुकि बानी। इाँ हा के स्वतंत्र पत्रकार भी बानी आ एह घरी वधाय िहाराष्ट्र िे आगे के पढाई कई रहि बानी । कई गो शोध परक िेख अिग अिग पमत्रकन िे प्रकामशत हो चुकि बा । आखर पेज से शुरु से जुि​ि बानी आ भाषा सामहत्य प कई गो िेख आखर प भी िामग चुकि बा ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 53


अक ं ीय क्षेत्र में काम आवेली ि। अगर भारतीय िररप्रेक्ष्य में एह के देखल जावऽ त इ िंकट बेहद गंभीर बा। नेशनल ज्यॉग्रािी न्यजू में प्रकासशत एगो ररिोटष में एह बात के तस्दीक कइल गइल बा सक वतषमान भारत में करीब 700 भार्ा-बोली के मौजदू गी बा। एह में 10- 20 िीिदी भार्ा मरे के कगार मानें मृत्यश ु ैय्या िऽ आिन सदन सगनत बाड़ी ि। भिवन के बेदम होखे के सस्थसत के अदं ाजा एही बात िे लगावल जा िकत बा सक दसु नयाभर में 199 भार्ा अइिन बाड़ी ि जवना के बोले वालन के िख्ं या एक दजषन लोग िे भी कम बा। एगो भार्ा के नष्ट भइल िमझल जाई जब ओह भार्ा के आिन सवराित बतावे वालन में एकर जनिख्ं या 35 प्रसतशत या सिर एकरा िे कम रह जाले। इ िंकट खाली बोली िऽ नइखे एकरा जद़ में िंस्कृ त जइिन िक्षम भार्ा भी सबया। खैर अगर अइिने रहल तऽ आवे वाला कुछ िाल में हमनी के मातृभार्ा भोजिरु ी भी ना बाँची। इ बहत गभं ीर सस्थसत बा काहेंसक एगो भार्ा के अतं एगो िंस्कृ सत के अतं हऽ। गणतन्त्र सदवि के सदने िाल 2010 में अडं मान सनकोबार द्वीि िमहू के हजारन िाल िे बोलल जाए वाली एगो आसदवािी भार्ा हमेशा खासत सवलुप्त हो गइल। अिल में एही सदन अडं मान में रहे वाली ‘बो’ कबीला के आसखरी िदस्य 85 बररि के बोआ िीसनयर के सनधन के िाथे एह आसदवािी िमदु ाय द्वारा बोलल जाए वाला ‘बो’ भार्ा भी लुप्त हो गइल। एह सस्थसत खासत िरकार आ जनता दनू ो दोर्ी सबया। यसद हमनी अिना मातृभार्ा भोजिरु ी के िमृद्ध आ सवकसित करे के चाहत बानी तऽ हमनी के शैक्षसणक िद्धसत में एकरा के शासमल करे के िड़ी। वतषमान में राज्य िरकार द्वारा िच ं ासलत आ राज्य िरकार द्वारा अनदु ासनत सवद्यालयन में प्राथसमक सशक्षा मातृभार्ा िे प्रारंभ होखेले बासक सबहार आ उत्तर प्रदेश के भोजिरु ी भार्ी अचं ल में अइिन कवनो व्यवस्था नइखे बनल जवना िे भोजिरु ी माध्यम िे प्राथसमक सशक्षा ग्रहण करे के मौका समले। सवश्व के िारा सवचारक आ सशक्षा शास्त्री एह बात के गवाही देवेलन सक सशक्षा के माध्यम मातृभार्ा ही होखे के चांही। दसु नया के सवकसित देशन मिलन फ्रांि, रूि, चीन, जमषनी, जािान में सशक्षण के हर स्तर िऽ मातृभार्ा में सशक्षा सदहल जाला। रउआ िभे एह तथ्य िे िररसचत बानी सक मय यरू ोसियन देश, राष्र-राज्य हवें आ एह में ज्यादातर देिन में भार्ा उनकर राष्रीयता के आधार बा। स्वीडन, नॉवे, हगं री, जमषनी, आयरलैंड, इटली, स्िेन आ ितु षगाल जइिन देिन के आिन मातृभार्ा बा। एगो भार्ा के बचावे आ जोगावे के इसतहाि िे प्रेरणा लेवे के बा तऽ हमनी के इजराइल के इसतहाि जाने के होई। ईस्वी िदी के आरम्भ में यहदी लोग के उनका मल ू भसू म िे ईिाई आ बाद में इस्लासमक अरब आिमणकारी लोगन द्वारा सनष्कासर्त कर सदहल गइल। इ यहूदी लोग अमेररका, भारत, रूि, जमषनी इत्यासद देिन में प्रवासित भइल। भारत के छोड़ के अन्य देश में ओह लोग के गजु र-बिर करे में बहत िंकट के िामना करे के िड़ल। इहाँ तक सक जमषनी आ रूि में यहूदी लोग के नरिंहार तक भइल बासक अिना मल ू भसू म आ मातृभार्ा के प्रसत अइिन श्रद्घा एह लोग के भीतर रहे जवन लगातार एह लोग के प्रेररत आ उद्वेसलत करे । इ लोग धीरे -धीरे िंगसठत भइल आ करीब 1800 िाल बाद 1948 में आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 54

यद्ध ु लड़ के आिन देश के हासिल कइलि। उ लोग आिन मातृभार्ा सहब्रू के नव सनसमषत देश इजराइल के राष्र भार्ा के तौर ि चनु लि। इ लोग अिना स्मृसतयन के आधार िऽ सहब्रू के िनु सनषसमत कइलि आ स्कूल जाए वाला प्रत्येक सवद्याथी खासत सहब्रू िढ़ल असनवायष कर सदहलि। नतीजा िोझा बा आज सहब्रू एगो िशि भार्ा के तौर िर आिन स्वतंत्र असस्तत्व रखत सबया। गरू ु देव रवीरनाथ टैगोर के मानना रहे सक ‘मातृभार्ा में सशक्षा दीहल जाए सक नाही दीहल जाए एह तरह के कवनो बहि बेकार बा, काहेंसक िब के आिन मातृभार्ा में सशक्षा िावे के जन्मसिद्ध असधकार बा।’ बावजदू एह अभागा देश में आजादी के एतना िाल बाद भी इ तकष आ बहि के सवर्य बनल बा। आजु मातृभार्ा के माध्यम िे सशक्षा के व्यवस्था भी धीरे –धीरे िमाप्त हो रहल बा। बदलत िररवेश में आज हमनी अिना िररवार में बचवन िे एक, द,ू तीन नाहीं बलक ु वन, टू, थ्री िनु ल ज्यादा ि​िंद करनी। हमनी के गवष होखेला जब बबआ ु चार लोग के बीच में अग्रं ेजी में िोएम आ राइम्ि िनु ा देला। बासक ओह िोएम िे बबआ ु के िमझदारी के तना बढ़ेला आ उनका में नैसतक मल्ू यन के सनरोिण के तना होखेला इ रउआ िभे जानत बानी। इ बेहद अि​िोिनाक बा सक आजु दसु नया के लमिम 96 िीिदी भिवन ि असस्तत्व के िंकट बा। दीगर बा सक दसु नया के आबादी त रोज बढ़ रहल सबया बासक एह आबादी के असभव्यि करे वाली भार्ा रोज घट रहल बाड़ी ि। जदी इहे िरू तेहाल रहल त दसु नयाभर के लोग महज चार िीिदी भिवन के माध्यम िे खदु के व्यि कररहें। भार्ा होखे चाहें बोली, िभी के असस्तत्व िमाज खासत बेहद जरूरी बा। अगर इ खत्म हो गइल, त भार्ाई सवसवधता भी िमाप्त हो जाई। मातृभार्ा के प्रचलन कम होखल मतलब आदमी के आिन जड़ िे कटल ह। एकरा के सजयतार आ िवं ाद के भार्ा बनावल रखल एगो चनु ौती बा। जवना के सजम्मेदारी हमनी ि बा सक हमनी अिना मातृभार्ा के जोगा-िहेज के रासख तासक इ िरत-िुलात रहे ।


च त िं न/बतकही

भोजपुर में - एगो आिंदोलन भोजपुरी खापतर (ररपोता​ा ज) रवव प्रकतश सुरज

भोजिरु सजला के इसतहाि बहत िरु ान ह,जब जब भोजिरु सजला के इसतहाि सलखाला त एसहजा के माटी िे उिजल िांसत के सजसकर जरुर होखेला,चाहे ऊ 1857 के बाबु बीर कंु वर सिंह के सबदेिी शािन के सखलाि सबरोह होखे,खेसतहर आ मजदरू के नक्िल सबरोह होखे चाहे जयप्रकाश बाबु के छात्र आन्दोलन,सबरोही स्वभाव एसहजा के माटी में रच -बि गईल बा । 5 सितम्बर 2016 के भी एगो िांसत भोजिरु सजला के मख्ु यालय आरा िे जनम लेलि जब एसहजा के कूल्ह नवजवान लईका , आि​िी सबचारधारा भल ु ा के कूल्ह राजनीसतक िाटी,आम जनता,व्यािारी िभे ऐसतहासिक बंद में शासमल भईल । अबकी के िांसत रहे आिन मान-िम्मान , माईभार्ा भोजिरु ी के रक्षा खासतर आ बैनर कवनो खाि राजनीसतक िाटी भा िंगठन ना रहे बसल्क लोकल स्टूडेंट,कलाकार,मीसडया के लोग के असभयान जेकरा के नांव सदहल गईल रहे 'भोजिरु ी बचाई ं असभयान' । आरा चँसू क हमार जन्मभसू म ह,हमार घर एसहजा बा त हमहूँ गवाह बननी ई अनोखा िांसत के । आई ं रवआ ु िभके िनु ावत बानी ई आन्दोलन के आंसखनदेसख । आरा शहर भोजिरु सजला के मख्ु यालय होखे के िगं े शाहाबाद क्षेत्र (िरु नका सजला) के िबिे बड़का शहर ह,एसहजा बाबु बीर कंु वर सिहं जी के नांव ि वीर कंु वर सिहं सवश्वसवद्यालय के स्थािना में भईल रहे । ई सवश्वसवद्यालय मगध सवश्वसवद्यालय िे अलग होके बनल रहे । मगध सवश्वसवद्यालय में भोजिरु ी के िढाई आरा के जैन कॉलेज में तत्कालीन मख्ु यमंत्री के आदेि िे चलत रहे । आरा में 1992 में नया सवश्वसवद्यालय बनला के बाद भोजिरु ी के िी.जी. सबभाग के आरा के ही जगजीवन कॉलेज में सशलट कर सदहल गईल । 2000 में सवश्वसवद्यालय में स्वतंत्र रूि िे िी.जी. के सबभाग खोले के सनणषय सलहल गईल आ अकादसमक कौंसिल िे अनमु सत के बाद ई िै िला ि असभर्द के भी मोहर 2001 में लाग गईल । 2006 में तत्कालीन सवधान िार्षद अरुण कुमार के िण्ड िे

यसू नवसिषटी के ओल्ड कैं ि​ि में एगो अलग िे भोजिरु ी-भवन के स्थािना भईल आ 2007 में सबभाग के जगजीवन कॉलेज िे एसहजा सशलट कर सदहल गईल । आरा ही ना िमचू ा भोजिरु रया क्षेत्र के लोग में उम्मीद जागल सक अब भोजिरु ी भार्ा-िासहत्य-िस्ं कृ सत ि बसढ़या शोध कायष होई । िर सबभाग में कबो भोजिरु ी के स्थायी प्रोिे िर के सनयसु ि ना हो िाईल आ सबभाग सहदं ी-सबभाग के सशक्षक आ कुछ बाहरी सशक्षक के भरोिे चलत रह गईल । एह बीचे कई गो छात्र लोग इहाँ िे आिन िी.जी. आ सि.एच.डी. के िढाई िरू ा कइले,गोल्ड मैडल सलहले आ कई जगे नौकरी भी लागल । एगो आक ं ड़ा के मतु ासबि अबहीं ले 24 िी.एच.डी. , 1100 एम.् ए. के सडग्री इहाँ िे सदहल जा चक ु ल बा । आ कई गो छात्र लोग के शोध कायष मल्ू याङ्कन खासतर जमा बा । मई 2013 में राजभवन िे कुलिसत के नामे एगो िाती आईल जेकरा में कड़ा आदेश में ई स्िष्टीकरण मगं ल गईल रहे सक कवन सनयम आ अध्यादेश (आसडषनेंि एडं रे गल ु ेशन) के आधार ि सबभाग चल रहल बा,सबना बी.ए. कोिे के एम.् ए. के िढाई कईिे चल रहल बा आसद ।

रसव प्रकाश सरु ज

रा भोजपुर के रहे वािा रमव प्रकाश सूरज जी, जे एन यू से इटामियन भाषा िें मडप्िोिा आ सोशि डबर्लयूआरके िें स्नातकोत्तर के मडग्रीधारी हईं । वतयिान िें एसोमसएसन फॉर स्टडी अाँड एक्शन (ASA) िें सह संयोजक बानी ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 55


मालूम हो सक सवश्वसवद्यालय िे िम्बद्ध आठ गो कॉलेज में स्नातक स्तर के िढाई भी चलेला िर कवनो अगं ीभतू कॉलेज में सबभाग ना चले । सवश्वसवद्यालय के देने िे राजभवन के कवनो जवाब ना सदहल गईल । 2014 में डॉ. नीरज सिहं जी सबभागढ़यक्ष बननी,ठीक ओही घरी सिलेबि में बदलाव भईल,आ िहायक प्राध्यािक के सनयसु ि के मासमला जोर िकडे लागल । बी िी एि िी िहायक प्राध्यािक के सनयसु ि के सवज्ञािन सनकललि बासकर एह में भोजिरु ी के एको िोस्ट ना रहे , जबसक सिसछलका स्लेट के एग्जाम में भोजिरु ी िे 4 लोग ि​िल भी भईल बा । एह मासमला ि अस्थायी सशक्षक लोग हाईकोटष चली गईले । माननीय न्यायालय आ राजभवन िे लगातार यसू नवसिषटी में मान्यता िम्बसन्धत कागि मांगल जात रहे िर यसू नवसिषटी कबो एकर कागि उिलब्ध ना करवा िाईल । ररजल्ट ई भईल सक 22 फ़रवरी 2016 के राजभवन िे भोजिरु ी सबभाग बन करे के आदेि आ गईल । एही ना अबकी के दीक्षांत िमारोह में सिसछलका िाले के िाि छात्र लोसगन के गोल्ड मैडल भी ना सदहल गईल । अबकी के िेशन िे एडसमशन जब बंद हो गईल त 'प्रभात खबर' िेिर के लोकल कैं ि​ि िेज ि नामांकन बन होखे के एगो नेि आईल िर के हू जाड़े ध्यान ना सदहलि । एही सडिाटषमेंट के एगो छात्र जे सक भोजिरु रया आन्दोलन िे भी जडु ल बानीं , स्यंदन िमु न जी , उहाँ के िोशल मीसडया के जररये सबभाग बचावे के गोहार कईनी । आरा के रंगकमी रसवन्र भारती जी एह न्यिू के िटनानाउ डाट काम न्यिू िोटषल ि फ़्लैश कईनी आ ररिोटषर आ रंगकमी समत्र ओम प्रकाश िाण्डेय के मासमला के जानकारी करे खासतर कहनी । जे भी िोशल मीसडया ि देखले रहे िभे हरकत में आईल आ 'आखर' िररवार के वररष्ठ िदस्य आ हमार समत्र असमत समसिर जी भी हमरा िे कहनी सक मासमला के तह तक िहचं े के बा । िौभाग्य िे असगला सदन 28 अगस्त के जनवादी लेखक िंघ के एगो काव्य िाठ में हमरा जाए के रहे आ चँसू क नीरज सिंह जी ई िंस्था के प्रदेश िसचव हई ं त मौका बसढ़या रहे,हमहूँ िोशल मीसडया िे आिन समत्र लोग िे आग्रह कईनी सक काव्य िाठ के बहाने नीरज िर िे समल के इसस्थसत के जानकारी सलहल जाव । िर हमरा आ ओ िी िाण्डेय के छोड़ के के हू ना आईल , नीरज िर भी अस्वस्थ्र रहीं त उहाँ के कहनीं की असगला सदन सबभाग में आयीं िभे,आराम िे बात होई । हम िे र 'आखर' के व्हाट्िएप्ि ग्रिु िे लोग के जटु े के कहनीं, आ समत्र ओ िी िाण्डेय जी भी आिन मीसडया के समत्र लोग के आवे के कहनी । असगला सदने हम,ओ िी िाण्डेय,भोजिरु ी शोध िंस्थान,धनबाद के कृ ष्णेंदु जी आ ित्रकार समत्र अटल जी आ िधु ांशु जी उहाँ िहचं नी जा,नीरज िर िे अनौिचाररक बात भईल , बासकर उहाँ के कहनीं सक चँसू क मासमला भी िी महोदय के िाि सबचार खासतर बा त हमनी के उहाँ िे ही समले के िड़ी । कुलिसत सललाचन्द िाहा जी के उहाँ बईठ के ही िोन भईल आ समले के िमय भी समल गईल । कुलिसत महोदय जे भी जानकारी सदहनी हमनी के सवसडयो बना सलहनी जा आ ित्रकार समत्र लोग भी आिन न्यिू खासतर बाइट लेलि लोग । कुलिसत महोदय कहनी सक सबभाग बंद ना होई,असगला सिंसडके ट के मीसटंग िे िाि आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 56

करवा के आवश्यक कागि राजभवन भेजा जाई । भी िी महोदय हमनी के िी िी डी िी जमील अख्तर के िाि भेज सदहनी कागि देखे खासतर,िर अख्तर िाहेब कवनो कागि ना देखा िईनी । हमनी के ईहे लागल सक आजू ले कुछ ना भईल त असभयो भरोिा नईखे होखत,कुछ करे के िड़ी । कुलिसत महोदय के सवसडयो िोशल मीसडया के िगं े िब चैनल तक िहन्चावल गईल आ सप्रंट मीसडया के समत्र लोग िे आग्रह भईल सक जेतना हो िके न्यिू के बढ़ा चढ़ा के छािीं िभे । ओही सदन रंगकमी समत्र ओ िी िाण्डेय एगो व्हाट्िएप्ि ग्रिु बनवले ' भोजिरु ी बचाओ असभयान' के नांव िे । उहाँ के आरा के िब छात्र िंगठन आ मीसडया के लोग के ओह असगला 3-4 सदन में ओह ग्रिु िे जोड़ सदहनीं आ 3 तारीख , िनीचर के जे िी मि ु ाकाश मंच ि एगो िवषदलीय बैठक बोलावल गईल जवना में िवषिम्मसत िे 5 सितम्बर के एह मासमला ि आरा बंद कईल जाई । 5 सितम्बर के सबहान एगो नया उम्मीद ले के आईल जब िभ राजनीसतक दल,छात्र िगं ठन के लोग, व्यािारी, मीसडया आ आम जनता िड़क ि उतर गईल । भोरे ७ बजे िटना जाये वाला डेली िैिेंजर के लाइि लाइन शटल रेन आ िघं समत्रा एक्िप्रेि के रोक सदहल गईल । शहर के चारों ओर हाईवे ि राजनीसतक दल के कायषकताष लोग बईठ गईल , जे में ना कोई वाहन शहर के भीतर आईल ना कोई बाहर गईल । इहाँ तक सक इस्कूल िब के ओर िे िसहले िे ही छुट्टी के घोर्णा रहे । कूल्ह समला के शहर के जनजीवन ठप्ि िड़ी गईल,जे बंदी के कारन ना


जानत रहे ओकरा के जब बतावल जाए त ऊ भी बंद के िमथषन में उतर गईल । 12 बजे यसू नवसिषटी में िवषदलीय छात्र िभा भईल आ िक ं ल्ि सलहल गईल सक जब ले भोजिरु ी भार्ा के असस्मता ि िवाल खड़ा रही,ई आन्दोलन चलत रही आ उग्र रूि धारण करी , एकरा बाद यसू नवसिषटी में भी तालाबदं ी हो गईल । लोकल ही ना नेशनल मीसडया ि भी ई बदं ी आ ई बदं ी के कारन माने भोजिरु ी भार्ा के असस्मता के िवाल चचाष में आ गईल । बदं ी के बाद िमीक्षा बैठक में ई तय भईल सक अबहीं सवश्वसवद्यालय में िढाई शरू ु होखे में ऑसिसियल कायषवाही में कुछ िमय लाग िके ला त का ई आन्दोलन रोक सदयाए.एकर उद्देश्य ईहे रहे बि ? त जवाब रहे ना , दरअिल सवसश्वद्यालय में भोजिरु ी के िढाई बंद होखे के मासमला एगो मवका देले रहे िबके िोचे ि सक अब ऊ िमय आ गईल बा जब भोजिरु ी भार्ा के िही िम्मान सदलावे के लडाई लड़ें के िड़ी । एह आन्दोलन ि देि-सबदेि के मीसडया आ एसहजे रहे वाला ही ना बसल्क िरदेिी भोजिरु रया लोग के निर रहे आ जवन ढंग िे आन्दोलन के िमथषन बढ़त रहे , अब ई सनणषय सलहल गईल सक आगे के लडाई अब लड़ें के बा । एगो िवषदलीय कोर ग्रिु के गठन भईल आ ई सनणषय भईल सक ई आन्दोलन के िाटी-िॉसलसटक्ि िे कोई मतलब ना रही , 'भोजिरु ी बचाओ असभयान' कवनो िस्ं था ना एगो आन्दोलन के रूि में चलत रही , आ कोसि​ि रही सक जहाँ कहीं भोजिरु ी के असस्मता के िावला होई,आन्दोलन होई,ओकरा के िमथषन देवल जाई,आ कोसि​ि कईल जाई सक अलगअलग िस्ं था आ भोजिरु ी खासतर लड़ें वालू लोग एक मचं ि एक बैनर के नीचे आवि । अब तक असभयान के आरा में ३ बैठक हो चक ु ल बा, िमथषन लगातार बढ़ रहल बा , मीसडया में चचाष के सबिय बन चक ु ल बा ,भोजिरु रया लोग एह उम्मीद िे ताकता सक नवजवान के कान्हा ि चलत ई आन्दोलन ही भोजिरु ी के िम्मान सदलवा िके ला । सडहरी,करगहर,सबिमगंज,बक्िर,चिं ारण िब जगे माहौल में बदलाव के गंध महि​िू कईल जा िके ला । आज समत्र लोग बक्िर में बा , िता चलत बा सक उसहजा आरा िे भी उत्िाही माहौल बा , लईका ही ना लईकी सबद्याथी लोग िदयात्रा सनकलल रहे आ जसल्दये एगो बड़का आन्दोलन देखे के समली । आिरा त ईहे लागल बा सक िभे भोजिरु रया एके िंगे एके मंच ि आवे तबे आन्दोलन एगो बड़का आकार सलही आ बररिन-बररि िे जे भोजिरु ी भार्ा के प्रसत लािरवाही आ हकमारी भईल बा ऊ भोजिरु रया लोग के वासि​ि समली । 'भोजपुरी बचाओ अत्रभयान' के अभी तक के तय भईल लक्ष्य आ उद्देश्य:1. भोजिरु ी भार्ा के बदं िडल िढाई जल्द िे जल्द आरा,छिरा यसू नवसिषटी में चालू होखे 2. भोजिरु ी भार्ा के अष्टम अनिु चू ी में शासमल कर के िंवैधासनक दिाष देवल

3. सबहार,य.ू िी.,झारखंड में भोजिरु ी के सद्वतीय राजभार्ा के दजाष के मांग 4. असगला बी िी एि िी सनयसु ि , स्लेट एग्जाम में भोजिरु ी सबिय के शासमल करवावल 5. सबहार में बदहाल भोजिरु ी अकादमी के इसस्थसत आ गणु वत्ता में िधु ार 6. भोजिरु ी सिनेमा,गीत-िंगीत में व्याप्त अश्लीलता के सखलाि असभयान 7. आम जनमानि में भोजिरु ी भार्ा िढ़े,सलखे आ बोले खासतर प्रेररत कईल 8. भोजिरु ी िासहत्य-िंस्कृ सत के रक्षा आ िरचार खासतर हरमेिा आन्दोलनरत अत्रभयान के कोर ग्रपु में अभी तक बनावल गईल रणनीत्रत:1. सवसश्वद्यालय ि आन्दोलन के जररये लगातार दबाव बना के आवश्यक कारवाई खासतर बाध्य कईल 2. राज्यिाल िे समल के भोजिरु ी भार्ा आ सशक्षा के उत्थान खासतर हस्तक्षेि के मांग 3. अष्टम अनिु चू ी में शासमल करे करे खासतर शाहाबाद के सत्रस्तरीय िचं ायत प्रसतसनसध के िगं े प्रधानमन्त्री के िबं ोसधत करते हए हस्ताक्षर असभयान 4. हस्ताक्षर असभयान के बाद िसहले बनारि आ िे र सदल्ली में िंिद के ित्र के दौरान धरना-प्रदशषन 5. असभयान के सबस्तार गते-गते िमचू ा भोजिरु रया क्षेत्र में जहाँ भी भोजिरु ी खासतर आन्दोलन चलता ओसहजा िहचँ के आिन िमथषन देवे के बा आ आवरु िब अलग-अलग िस्ं था के एह असभयान िे जोड़े के बा 6. अश्लील गीत-सिनेमा के बसहष्कार चरणबद्ध तरीका िे आ आरा के दगु ाषिजू ा िंडाल में िब जगह भोजिरु रया आन्दोलन के िमथषन में िोस्टर-बैनर के प्रदशषन 7. रामलीला के दौरान रामलीला भसू म ि िरचा सवतरण आ नक्ु कड़ नाटक के जररये जागरूकता 8. 16 सितम्बर के 'जागरण जतरा' आरा शहर में , वाल िेंसटंग,रोडिेंसटंग के शरु​ु आत 16 ताररख िे ही 9. छठ िजू ा के दौरान हर घाट ि कैं ि लगावल आ भोजिरु ी जागरूकता के िोस्टर,बैनर,िरचा के जररये बढ़ावा 10. 25 सितम्बर के गगं ा महािचं ायत के दौरान बक्िर में जनप्रसतसनसध,मत्रं ी,आ भोजिरु रया कलाकार लोग के जटु ान के िोझा सजला में असभयान के औिचाररक घोर्णा आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 57


कचिता शारदा िाण्डेय

15 गो हाइकू 1 िारि के छू लोहा िोना बनेला िभे जानेला ।

6 खाली देखल जबाब ना हो िके ला अनाचार के ।

11 कठितु री िगरो िंिार बा आिन का बाऽ ?

2 बीतल जाता कुसल्ह सदन उदाि िधे ना काम ।

7 मधु ऋतु में कोइल कुहू करे मन किके ।

12 जे आइल बा ओकरा जाए के िरी के बाँचल ?

3 एक आ एक तारा डूबे लागल िख ु जइिे ।

8 रात के टीका चान चमकल तऽ जग अँजोर ।

13 िाँच कहल आसग मे दहल हऽ िभे ना कहे ।

4 उतराइल सचकनाई सनयर मन के बात ।

9 रासत झारे ले चान के कँ कही िे घघँू र बार ।

14 एगो लतु ुकी चीर देले करे जा असन्हयार के ।

5 जे आिन बा ऊहे छुरी भोंकऽता िाठा उदाि ।

10 चाँद- िरु​ु ज सवराट के आँसख हऽ मन हऽ िाखी ।

15 जगले ि िीर जाई , ि​िना तऽ भरमाई ।

डॉ. (श्रीि​िी ) शारदा पाण्डेय

मिया , उत्तरप्रदेश के रहे वािी श्रीिती शारदा पांडे जी , सेवामनवृत प्राधानाचायय हई, महन्द्दी िे एि. ए. , डी. कफि. इिाहाबाद मवश्वमवद्यािय से कइिे बानी । भोजपुरी िे प्रकामशत रचना -1- सुपणाय कथा ( कमवता संग्रह ) 2- अतीत अिृत हs ( कमवता संग्रह ) 3- िुतुकी ( हाइकु संग्रह ) - सम्िामनत उ. प्र. सरकार 4- रस बोध के एने ओने ( मनबंध संग्रह ) - सम्िामनत , राष्ट्र भाषा संस्थान

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 58


चकताब चमलल

दू गो पकताब डा॰ प्रमोद कुमार सतवारी 1-भारतीय सात्रहत्य के त्रनमाथता धरी्षणण त्रमश्र लेखक - वेद प्रकाश िांडेय (िासहत्य अकादेमी, सदल्ली) िासहत्य अकादेमी के सकताबन के एगो बहते चसचषत योजना हऽ भारतीय िासहत्य के सनमाषता। एह श्रृख ं ला में भारत के िब भार्ा के अइिन सवद्वान लोग िऽ सकताब छािल जाली ि जे देश के िासहत्य के सदशा देले होखे। एही श्रृख ं ला में धरीक्षण समश्र िऽ ई सकताब आइल सबया जवना के तइयार कइले बाड़न वेद प्रकाश िांडेय। कसव आ आचायष धरीक्षण समश्र एगो अइिन भोजिरु रया हउअन सजनका सलखाई में ठे ठ भोजिरु रया समजाज के डेगी डेगी ि महि​िू कइल जा िके ला। एगो भरिरू सजनगी सजए वाला धरीक्षण समश्र जी (1901-1997) लोक आ शास्त्र दनू ों ि जम के काम कइनीं आ भोजिरु ी के िाथे िाथे सहन्दीयो में सलखनीं बासकर मन रमल भोजिरु ी में। चार खंड में छिल धरीक्षण समश्र रचनावली उहां के िमिषण के िबतू बा। उहां के िसहलका सवश्व भोजिरु ी िम्मेलन के िेतु िम्मान आ िासहत्य अकादेमी के भार्ा िम्मान िे िम्मासनत कइल गइल। धरीक्षण समश्र के िढ़ते हमरा सदमाग में कबीर गंजू े लागेलन। बहत बार जब हम एगो भोजिरु रया प्रसतसनसध के कल्िना करे नी जेकरा में एह िंस्कृ सत के भावक ु ता, अक्खड़िन, व्यंग्य, माटी िे जड़ु ाव आसद िे ले के श्रम के िम्मान आ प्रेम के गंगा जइिन प्रवाह िब होखे तऽ अनायािे हमरा के कबीर इयाद आवेलन। धरीक्षण समश्र के रचना एही कबीरी िरंिरा िे जड़ु त बाड़ी िऽ। भले इहां के अलंकार दिषण आ काव्यदिषण जइिन ग्रंथ सलखनी आ 140 गो िारंिररक आ कुछ नया अलंकारन के रचना कइनी (जवन बहते जरूरी रहे।) बासकर हमरा के उनक ु र व्यंग्यकार रूि आ िमाज के जरी लािा सनयन िटल गांव के मनई वाला रूि ढेर मोहेला। िमाज के सविंगसत िऽ तऽ इहां के चोट कइलहीं बानीं। देसवयो-देवता लोग के बड़ा मीठ तरीका िे सखचं ाई कइले बानीं। उहां के िाि िाि सलखले बानीं सक हम अिरा भगवान के ना बदरा के मांगे लीं (सक िानी बरिो आ नीमन खेती होखो) आ धरती माई के आशीवाषद जोहेनी-

‘आि बादरे के आ भईु ंके ए दइु के करीं औरी त िबके िररहाि में उड़ाईलें।’ सशव आ िरस्वती के िंगे बतरि के नमनू ा देखे जोग बा‘िरु गन का कहले सवर् काहें िजी अके ले िी गइनीं भासग रहे बररयार सक कइिों ओसह सदन रउरा जी गइनीं।

डा॰ प्रिोद कुिार सिवारी

भुआ मबहार के रहे वािा प्रिोद कु िार जी , कें रीय मवश्वमवद्यािय गांधीनगर , गुजरात िे अमसस्टेंट प्रोफे सर बानी । इाँ हा के भोजपुरी आ महन्द्दी सामहत्य खामतर िगातार काि कर रहि बानी । पत्र पमत्रकन िें प्रिोद जी के रचना आकषयण के कें र होिी स । भोजपुरी भाषा आ सामहत्य के इाँ हा के अपना िेखनी से बररआर चोख धार देिे बानी । एह घरी गांधीनगर गुजरात िे बानी ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 59


तवनों ि शीतलता खासतर िािं देसह िर लिटौनीं गगररन के जल माथा का ऊिर रखवा के टिकौनीं’ आ िरस्वती जी ि उनक ु ा सलखलका के बहाने आज के बहत िारा कसव लोग इयाद आ जइहें‘कसवता हमहूं रसच दीं हे िरस्वसत, अइिनका हमके बल दे दीं अथवा कसव सिद्ध कहाइ िकीं, कुछ अइिनका हमके छल दे दीं अथवा जहां जा के िढ़ीं, तहां श्रोता िजी हमके डल दे दीं एतनों ना बने तब डूसब मरे के , एको सचरुआ हमके जल दे दीं।’ धरीक्षण समश्र िमाज के हर तबका के िाखंड ि प्रहार कइले बानीं। जहां एक ओर इहां के कबीर के िरंिरा िे जड़ु त बानीं‘कंठी सतलक मधरु ी बानी। दगाबाज के तीन सनशानी ।।’ आ ‘िांझ िबेरे माला िे री, कसह के उलटत तसनक न देरी हाथे जिमाला के थइली, िाथ छोसडा़ के िमु सत िरइली’ िमाज के खनू तक में िइिल जासतवाद के सकटाणु के िमझे आ ओकरा के उके रे में उहां के िानी नइखे। ‘मिु सलम िे सहदं ू लोगन के सचरूकी अलगे सबलगावेला। लेसकन जनेव सहदं -ू सहदं ू में भेद-भाव उिजावेला।।’ एक ओरी कबीर बाड़न त दिू रका ओर गांधी जी। गांधी जी िे िादगी, कमखची, अछूतोद्धार, असहिं ा आसद के प्रेरणा लेत िमाज के सविंगसत िर खबू चोट कइले बानीं। दष्ु टन के नाश बदे कृ ष्णचंर चि धइलें िराधीनता िै गांधी चखाष ले िरले हऽं । ‘िनकीिन उन्माद ना िमधीिन उन्माद एसह में कुछ आिन दशा रसह जाला ना याद।।’ ‘ई ना बेटी के सबयाह ह, डाकू के लटू हवे। खाली प्राण शेर् रसह जाला, एतने एमें छूट हवे।।’ आजादी के बाद कइिे ि​िना टूटत बा आ कइिे गोरका अग्रं ेजवन के हटते कररयवा अग्रं ेजवा िब कब्जा जमा लेत बाड़े ि, एकरा ि समसिर जी के कमेंट बेजोड़ बा‘आइल िरु ाज बा िही िनु ात बात कान में न आख ं िे देखात बा न आवते बा ध्यान में। िरु ाज ना देखात बा जवार में िथार में न ढाब ढाठ भाठ में न बागं रे कछार में। अकाल अन्न-वस्त्र के िवार बा किार िर िरु ाज िैर करत बा समसनस्टरन के कार िर।।’

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आजादी के 70 िाल बादो ि​िना ि​िने बनल रह गइल बा, िरु ान िेनानी लोग के देश के वतषमान िे ई सनराशा हर भार्ा के रचनाकारन में समल जाई। अिली व्यंग्यकार खाली दिू रे के ना अिनो खबू खबर लेबल े ा। ‘तुक्कड़ िरु ान रहनीं कसव सकंतु अब कहैनीं, अचरज में आ के बहते हम डूबनीं-उतरै नीं हम दीन दख ु ी लोगन िर आंिु ना बहौनीं अन्याय देसख करर के हम चिु िदा लगौनीं। एगो िासहत्यकार खाली िंख्या बल िे ना िंचासलत होखे आ ना ही िबका के खश ु राखे के कोसशश करे ला। ऊ िमाज के नब्ज िकड़ेला। एही के िबतू बा सक जब बेहमई-कांड भइल रहे ओह घरी उहां के ‘िूलन िप्तशती’ के रचना कइले रहीं। ई सकताब सहदं ी भोजिरु ी दनू ों में सबया। एकरा खासतर उनक ु र खबू आलोचना भइल बासकर उहां के अिना सववेक के आवाज िनु त इहे सलखनी सक‘जब जब नारी अिमान िही, तब तब शोसणत िे िनी मही रूिासयत करती यही तथ्य, िूलन देवी है सवचर रही।’ धरीक्षण समश्र जी ि कें सरत ई सकताब उनक ु ा िरू ा व्यसित्व आ रचना के जानकारी देत सबया। वेद प्रकाश िाडं ेय जी िरल भार्ा में शोधिरक ढगं िे सकताब सलखले बाड़न। उहां के धरीक्षण समश्र रचनावसलयो के िह ि​िं ादक रहीं। 2011 में छिल 112 िेज के एह सकताब के दाम खाली 50 रूसिया बा आ ई िासहत्य अकादेमी, सदल्ली िे छिल सबया।


2-ऐतवारू के बतकही नारायण सिहं , उत्तरा प्रकाशन झारखडं । 112 िन्ना। दाम- 70 रूिया। भोजिरु ी में िासहत्य के कमोबेि हर सवधा में लेखन हो रहल बा आ मजगर हो रहल बा। िमस्या प्रकाशन के आ िहचं के बा। राउर लेखक िे ि​िं कष बा, भा रउआ लगे कइिहूं सकताब चहिं गइल त ठीक ना तऽ ढेर सकताब के बारे में लोग के एह िे जानकारी नइखे सक ओकर िही प्रचार प्रिार के व्यवस्थे नइखे। भोजिरु ी लगे सहन्दी-अग्रं ेजी जइिन एगो नीमन प्रकाशक नइखे। नारायण सिंह जी 1968 िे लगातार सलख-छि रहल बानीं। इहां के आधा दजषन िे बेिी सकताब छि चक ु ल बाड़ी ि आ इहां के कथाकार उिन्यािकार के रूि में आिन िोढ़ िहचान बनवले बानीं। देिज छौंक नारायण सिंह के कहासनयन के अलगे ठाट देबेला। भोजिरु ी में इहां के ‘एतवारू के बतकही’ नांव िे एगो स्तंभ हरे क अतवार के सलखत रहीं। एह स्तंभ में िमय-िमाज के िकड़े के महीन कोसशश होत रहे। एह स्तंभ के लेख िब के सकताब के रूि सदहल गइल बा। एह लेख िब के रउआ व्यंग्य के रूि में िढ़ िके नी आ चाहीं त आज के हकीकत बयान करत कवनो कहानी के रूि में िनु िके नीं। िमय भले बदलल होखे हलतवा उहे बा। एतवारू जवन एगो िढ़ल सलखल िचेत नागररक के प्रसतसनसध बाड़न, अइिन एतवारू रउआ कदम कदम ि भेटा जइहें। एतवारू अिना बेटा के एगो नामी स्कूल में एडसमशन करावे जात बाड़न, बाि के बगल में खाड़ बेटा के एगो सचत्रण देखीं‘’नौसनहाल जी उनका बगल में अिना बि​िी के कुरता िकड़ले खाकी नेकर में चरखाना के कमीज आधा खोंिले आधा िताका लेखा िहरवले आिन कोंहड़ा लेखा मंड़ु ी उठा के मेला के भीड़ में भल ु ाइल बाछा लेखा चावा िर खड़ा हो के िता ना के ने सतकवत रहलन।‘’ एतवारू के बेटा के िौज िे बोलावा आइल बा आसखरी िरीक्षा खासतर बासकर ऊ नइखन जाइल चाहत। एतवारू कहत बाड़न‘िब िाहि अिना महतारी आ बसहन के डांटला भर ले बा। िउज में ना जाइसब। अरे हम त िउज में भरती भइल चाहत रहनी। सलसखत में िािो भइल रहनीं। इटं रव्यू आ मेसडकल में बोलावल रहे। गरीबी में खाइल िीअल ठीक

िे ना भइल रहे। छाती कतनों िुलाई ं एक डेढ़ इचं िे जयादा िुलबे ना करे ।’ िब कुछ बदल रहल बा बासकर व्यवस्थवा उहे बा, अमीर अउर अमीर आ गरीब अउर गरीब हो रहल बा। नौकरी के िवाल के उठावत लेखक कहत बाड़े‘अगं रे जवन के राज में जवन िसु लि इस्ं िेक्टर रहे ओकर लइका आजु एि िी बनल बा। अब देश गल ु ाम होई त ओकर लइका डी आई जी बसन जाई। कवनो िरक नइखे।’ व्यंग्यकार अिना िमय के िकड़ेले, एह में रउआ के नेता आ िाटी आसद के नाम समली। लेखक अिना सवचार आ िक्षधरता के खल ु के रखले बाड़े। बासकर इहां नाम महत्विणू ष नइखे, व्यग्ं यकार अिना िमय के िकड़ेले। रउआ एह नाम िब के हटा के कवनो अउर नांव के रख दीं। बसतया उहे

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रही। अि​िर िे समले खासतर आम जनता हलता हलता भर इतं जार करत बा बासक‘बड़का अि​िर लोग िब छोड़ के मैच खेलत बाड़न, लेखक कहत बाड़े‘िारा प्रशािन मैदान में बा। बझु ाता सक के सनयो उग्रवाद नइखे के सनयो भख ू मरी नइखे, के सनयो अिराध नइखे। िब ओर शांसत बा, राजा लोग एह शांसत के िमय में आिन मन बहलावता लोग।’ अिली व्यंग्य ऊ ना होला जवन रउआ के गदु गदु ावेला, उहो ना होला जवना िे मट्ठु ी तन जाए आ रउआ गस्ु िा में ठाढ़ हो जाई।ं जोरदार व्यंग्य रउआ भीतर िीड़ा के एगो अइिन धारा बहा देला सक ई िमझे में ना आवे सक का करीं। एह हाल ि रोई ं सक हिं ी। बाहर वाला के राउर आंिू भले ना लउके बासकर भीतर मन टूट के रोअत रहेला। एह बात के महि​िू े के होखे त नारायण सिंह के व्यंग्य ‘नचसनया के िनही’ िढ़ लीं। एगो कलाकार के सजनगी, घनघोर मेहनती होखला के बादो गरीबी झेलेवाला के िंघर्ष के सचत्रण अइिन लोराइल कलम िे कइल गइल बा सक रउआ कुछ देर खासतर िन्न हो जाइब। एगो कोमल चेहरा आ िन्ु नर शरीर वाला सकशोर के गोड़ िनही सबना बदिरू त लउकत बा आ िवाल के जवाब में ऊ कहत बा- ‘गोड़ नइखे जरत काहें सक गरम धरती िर चलत चलत तारू के चाम जतू े अइिन कड़ेर नू हो गइल बा। बासक िेट के गरमी त एह गरम धरती िे भी जादा नू होखेले।’ जीत, ि​िलता, तरक्की, सवकाि, प्रगसत जइिन शब्द एह घरी एतना चमक रहल बाड़े ि सक एहनी चमक के िीछे के कररखा, एहनी के जगमग के िाछे के अन्हार िऽ के हू के नजर नइखे जा िावत। जीत, जीत, कवनो कीमत िऽ जीत; कवनो माध्यम िे जीत आ एकरा बाद का। एकर जवाब के हू के लगे नइखे। नारायण सिंह अिना एतवारू के छोट िररचय देत कहते बाड़न- ‘एतवारू एगो जागरूक, िढ़ल सलखल, घटना के नजदीक िे जाने बझू े के कोसशश करे वाला एगो ईमानदार आ िंघर्षशील िात्र हउए। ई िैं टम आ हैरी िॉटर भा स्िाइडरमैन जइिन कवनो महामानव ना हऽ। ई लड़ेला बासकर एह िघं र्ष में जीतेला कम हारे ला जादा।’ इहे ऊ चीज ह जवन एतवारू के एतवारू बनावेला, एही िे ऊ िाठक के अिना जइिन लागेला। व्यवस्था में बइठल लोग अइिन तंत्र बना रहल बा सक मेहनत करे वाला, िघं र्ष करे वाला आ ईमानदारी िे काम करे वाला के लगातार हारे के िड़ रहल बा।

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नारायण सिंह अिना सजनगी के जादे िमय धनबाद में गजु रले बानीं बासकर मातृभार्ा के ताकत एह सकताब के अलगे ठाट दे रहल सबया। बसलया सजला के गोसन्हया छिरा गांव के रि एतना भरिरू बा सक बाहर के प्रवाि के कड़ेर घाम ओकरा िोझा सटक नइखे िाइल। नारायण सिहं जी सहन्दी में लगातार सलख रहल बानीं, बासक भोजिरु ी के उनका लगे आिन अलग अदं ाज बा। उमेद बा सक आवेवाला िमय में उनक ु ा एह अदं ाज के कई गो रंग भोजिरु रया जनता के देख-े िढ़े-चखे के समली।


कथा-कहानी

कलजुग के सुदामा असभर्ेक सतवारी

िा

वन के मसहना रहे िे िभे बोलबम जाएके तईयारी अिना अिना सहिाब िे करत रहे । गाँव में अनाज के खरीद सबसकरी करे वाला जीउत िाह के मेहरारू मंगरुआ के माई अिना गोसतनी लाला बो मगसहसनया आ भेलाइँ ओली जोरे दल बल िंघे बोलबम गइल रहे । ओने मगं रुओ अिना िंघसतया असमत जादो मनु ा जादो आ असमत सतवारी िंघे बोलबम अिना माई के जाए िे दू सदन िसहलहीं सनकल गइल रहे । बाकी राह बाट में ओह लोग के भेंट मल ु ािात ना भईल िे मगं रूआ अिना िंघसतया लोग जोरे घरे आ गइल रहे । घरे आवते मगं रूआ के िोन ि ओकरा लाला चाचा के लइका मगसहयावा िे िता चलल की ओकरा माई के ओसहजा बोलबम के रास्ता में चले में तकलीफ़ होता , मगसहयावा कहत रहे की बझु ाता जे कवनो कुछ जोग टोना क देले सबया काहे की इसनके घरे िे सनकलेके बेरा बड़की ( िदु ामा बो ) दअ ू रीये ि बईठ के का का दोनी बद्बु ुदात रहे आ ओसह घरी िे इसं हकर मन खराब रहे बाकी आज ढेरे खराब हो गइल बा । त मगं रूआ ई कुसल्ह िनु के कहलि जे ठीक बा िसहले घरे आव लोग सिर कुछ िोंचल जाई आ िोंचलि की सदक्कत त असमतो सतवारी के भईल रहे । उँहको बररयार काछ लाग गइल रहे आ नीचे दनु ो गोड़ के तारावा में िोरा हो गइल रहे जवना िे की उन्हका के कुछ कुछ दरू ी ि िहारा देबे के िरत रहे । जब उन्हका के के हू कइलसहं ना रहे त माई के के हू का करी ,इहे िोंच के मंगरूआ महसटया देलि । आ एने चार सदन के बाद माइ अलईि त उ लार िआ ु र होके िारू हो गइल रही । कुछ सदन तक त गांवहीं के खरगसु िया डाकडर िे गोड़ में के िोरा के दावा बीरो भईल बाकी अब लाज लेहाि कहीं भा देहाती िोंच उ गोड़ के भीतर जे काछ लागल रहे ओह ि के हू के धेयान ना रहे । आ कुसल्ह लोग के अन्हरचटकी लाग गइल रहे िे ई लोग ओझाई भतु ाई में लागल रहे बि एसहजे गलती भ गईल आ आठ सदन बाद एकसदन मगं रूआ बो अिना िाि के तेल लगावे गइल त उ जांसघ ि के घाव महक गइल । जब ितोह िाड़ी उठा के देखलि त उ सबहोि हो गइल आ होश में आवते लागल छाती सिट के रोवे ।

एह खबर िे धावाधाही मगं रूआ के बाबू जीउत गाँव घर के कहला िनु ला ि दू हिार रोिेया दे के मंगरूआ के ओकरा माई के दावा बीरो करे खासतर आरा भेजलन काहे की उन्हका भीरी चाउर गहू के लदनी करे िे िुरित ना रहे ! काहे की एही सबसजनेि िे चार गो लइका िंघे चार गो लईकी दगु ो ितोह आ नाती िोता के गजु ारा होत रहे । मगं रूआ के एगो चरिोखरी में िसहले िरचनू के दोकान रहे बाकी ओतना चलत ना रहे त ओकरा के तरू के उ राशन िताई के सकराना दोकान क लेले रहे बाकी उहो दोकान कुजागहा होखे के चलते गहं कीं के आवग िे दरू रहे । एकाध गो छूटल िटकल आवते रहन ओहिे कमीनी कुछ खाि ना होत रहे । बि दोकान दउरी के खचाष बरचा िंघे दू बेकत के दावा दारू किहूँ चला देत रहे । अब एह अचानक आइल आिातारा खासतर के हू तइयार ना रहे । एक त घर िररवार के खरचा ऊिर िे दगु ो बेटी आ दगु ो बेटा के सबयाह कइला के बाद जीउत भीरी कुछ बाँचल ना रहे आ उ डाँड़ तक करजा में डूबल रहन । इहे कुसल्ह सबचारत मंगरूआ गांवहीं िे ररजरभ टेम्िू क के माई के मेहरारू िंघे आरे ले गइल । िोटो: ववफकपीडडयत

आरहीं िे असमत सतवारी के िोन क के कुसल्ह बात बतवलि त उ कहलें की िजषन सबकाि सिंह बाड़ें उनक ु े िे देखाव सिर देखल जाइ । तय िमय ि डाकडर िाहेब सकंहां देखावल गइल उ दगु ो जाँच सलख के ओह घाव के रेसिगं करवावे के कह के चल गइलन । जाँच के ररिोटष लेके असमत सतवारी िघं े मगं रू हॉसस्िटल के सभतररये के दवाई दोकान िे दवाई आ रेसिगं के िामान लेलें जवना में की कुसल्ह चार हिार रोिेया लाग गइल । जब जांच ररिोटष आइल तब भतू भरम में िरल मंगरूआ के िररवार के कुसल्ह असकल सछतरा गइल । डाकडर कह देलन की दू सदन सबच क के दू मसहना तक रेसिगं चली । िधु ार के कवनो गारंटी नइखे । बड़ी उभ चभु लागल रहे की का कइल जाव , कहाँ देखावल जाव ? रेसिंग खासतर दइु ये सदन ि दू हिार रोिेया के जरूरत रहे आ भीरी रोिेया ना रहे िे करजा ऋण बढ़ल जात रहे । िटना ले जाए के नामें िे जीउत िाह के मेदनी काँित रहे आ आरा में ओइिन कवनो िधु ार होत निर ना आवत रहे । दिु रके रेसिंग के बाद

असभषेक सिवारी

रा , मबहार के रहेवािा अमभषेक मतवारी जी भोजपुरी सामहत्य के नया कि​िकार हईं । आजकाि िुंबई िें रहत बानी ।

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कथा-कहानी मंगरूआ कहलि जे ऐ असमत चाचा िस्ता दवाई सदयवावे के कवनो उिाय होखे त जोगाड़ लागवाव , ना त िरू ा िररवार बेंचलो के बाद बझु ाता की माई के इलाि ना हो िाई । असतना िनु के असमत सतवारी कहलें की काल्ह भोरे तें िजु ी ले के ि​िना सिनेमा के लगे आव, ओसहजे सजतेंर सिंह िे बसतयावल जाइ । उंनक ु र मेसडकल के एजेंिी बा का जाने ितु ार लाग गइल त खेला हो जाई । होत सबहाने भादो भदावारी में सझरी सझरी िरत बनु ी के बीचे मंगरूआ ि​िना सिनेमा के लगे चहिँ के सतवारी जी के िोन कइलि । उ अइलन आ िीधे दनु ो लोग सजतेंर सिंह के लगे िहचँ ल । िजु ी देखते उ कहलन जे तँू लोग िीधे िदर हॉसस्िटल भीरी हमरा एजेंिी ि चल जा लोग ओसहजा आलोक होइ उ तोहरा लोग के जरूर कुछ मदद करी । अब ई िाक्षात् देवता के गोहार कहीं जे मंगरूआ के सकस्मत के खेला ओसहजा जाते दवाई त बािारू रे ट िे आधा दाम ि समले लागल आधा िमस्या त एसहजे ओररया गइल । आ िंघे लागल एगो रेसिंग करे ओला कम्िाउंडर भी समल गइल जवन की डेरा ि आईएके रेसिंग क देत रहे । दि गो रेसिंग के बाद िे र िे जे जाँच सलखले डाकडर त ओकर ररिोटष देख के आलोक कहलें की सस्थसत ठीक नइखे बझु ात । तोहन लोग के इसनका के िटना देखावे के चाहीं । इसन्हकर सकडनी ि अिर आ गइल बा । सक िनु ते मंगरूआ के तरवा चटक गइल । िोन क के अिना बाबजू ी िे कहलि की हइिन बात बा िे डाकडरो िाहेब कहतानी िटना मेरो हॉसस्िटल में ले जाएके हम का करीं ? जीउत िाह कहलन जे हम त अभी बर्ह्ष बाबा त आइल बानी तोहरा माइये के एगो िाड़ी लेके । इहं ां के कहतानी की कइल बा । कवनो िएदा नइखे देखावला िे जबले उ िदु मवा बो सजही तबले ई चैन िख ु िे ना रहीहें । ई बात मगं रूआ असमत सतवारी िे बतवलि त सतवारी जी कहलें की ठीक बा उ िब बाद में देखाई िसहले इलाि त करवावल जाव ! असतना कह के सतवारी जी कवनो जरुरी काम िे तीन चार सदन खासतर बनारि चल गइलन । एही उहािोह में िँ िके बाँव दसहन करत तीन सदन अउरी सनकल गइल आ तले सस्थसत अउरी सबगड़ गइल । जन्माष्टमी के सदन भोरे भोरे आनन िानन में लेके मगं रूआ आ बाकी लोग िटना भागल । ओसहजा जाते डाकडर कह देलि की सकडनी में इि ं े क्शन हो गइल बा डायसलसि​ि करे के िड़ी । डायसलसि​ि के खरचा िसु नएके हावा गमु हो गइल रहे । ऊिर िे िहर बदलला िे िभ कुछ बदल गइल रहे । दावा दारू कुसल्ह महँगा, जीउत िाह िभका भीरी रोिेया माँगत जटु ावत जीव सजयावेके कोसशश कइलन । कई गो ओझा गनु ी भीरी देखवलन तरह तरह के बात सबचार भईल बाकी अतं में मगं रूआ के माई िाँथ छोड़ देलि । एह खबर िे िरू ा गांव में तहलका हो गईल रहे । मगं रूआ के िररवार के आधार ओकर माई आज अिमय ही दसु नया छोड़ के चल गईल रहे । बाकी एने अब जीउत िाह आ लालबाबू िाह के सदमाग में अलगे चीझ आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 64

नाचत रहे की एकरा के िदु मवा बो मरले सबया । काहे की घाव भइला िे के हू के सकडनी ना िे ल होखे । अब त ओकरा िे एकर बदला लेबहीं के होखी । इहे कुसल्ह हॉसस्िटल में लालबाबू आ जीउत गरमा गरमी में बसतयावत रहे लोग की एकर लाि लेके चल आ िदु ामा के दआ ु र ि ध के कहल जाव की ले तोरा मन के शांसत अब समल गईल नँू । बािी सस्थसत सबगड़त देख के बनारि िे लवटल असमत सतवारी िमझवलें की अभी ई कुसल्ह करे के घरी िमय नइखे तँू लोग िसहले इसन्हकर िरवाह करे के िोंच लोग िे र गांवे चल के कुछ सबचारल जाइ । ढेर देरी के िमझवला के बाद जीउत आ उनक ु र िररवार मगं रूआ के माई के लेके बाँि घाट िरवाह करे गईल लोग । रासत खासन कईिहूँ िमझा बझु ा के ओह लोग के राखल गईल आ सिर होत सबहाने कुसल्ह लोग घरे आइल । घरे अइला के बादे िे जीउत आ उनक ु र भाई लालबाबू जीउत के लइका मंगरूआ चंदनवा सि​िसहया मनआ ु िदु ामा बो के अके ला में खोजे लगलें िन । ओहनी के िाफ़ िाफ़ कहनाम रहे की हमनी के माई के बेमारी ना िदु मवा बो ही मरले सबया । बे ओकरा के मरले हमनी के चैन ना समली । ओइिे िदु ामा आ िदु ामा बो कवनो गैर ना रहे लोग । िदु ामा त जीउत के ही बड़का बाबजू ी के एगो अके ला लइका रहलन । चार गो बेटा आ तीन ववफकपीडडयत गो बेटी के बाि महतारी िदु ामा िदु ामा बोिोटो: के सजसनगी बड़ी कष्टकारी सस्थसत में ही बीतत रहे । रोज िाँझ खासन िदु ामा िीअरो बाजार िे हररयर तरकारी सकन के ले आवि आ ओकरे के होत िसजरे माथा ि उठा के जवार िथार में बेंच के होखे ओला कमीनी िे नव िररवार के िेट िोित रहन । उनक ु र मेहरारू तसनक चालू िरु जा रही आ दू अछर िढ़ल रही जेहिे की भोर आ िाक्षरता में अनिढ़ मेहरारू लोग के कलम सिनसिन िकड़े के सिखावत रही । एह लोग के कवनो खानदानी देवता रहन डाँक बाबा जे की िदु ामा बो के ही देह ि आवत रहन एहू िे िभनी के माथा चटकल रहत रहे । मगं रूआ के माई के मअ ु ला िे िदु ामा आ िदु ामा बो दनु ो बेकत बड़ी दख ु ी भईल रहे लोग बाकी जीउत के दआ ु र ि गईल लोग त जीउत के लइका मनआ ु ओह लोग के गारी दे के खदेर देलि । ओनेिे रोवत छछनत िदु ामा बो घरे अइली आ आिन गोसतनी होखे के जवन कमषट होला उ करत रही । ओह लोग के ई भनक समल गईल जे ई जीउत के िररवार एह लोग के मारे के िे र में बाड़न ि । ई लोग गाँव घर में भी एकाध लोग िे कहल की हइिन बात िनु े में आइल हा । बाकी के हू एह ि गभं ीरता िे ना धेयान देलि । एक सदन होत सबहाने लगभग िाढ़े नौ बजत होइ ओसह घरी असमत सतवारी आ बढ़ू ा सतवारी गड़हनी बैंक में कुछ जरुरी काम िे जात रहे लोग । गाँव िे मोटरिाइसकल ि सनकलल लोग त सिवान ि मगं रूआ आ सि​िसहया गाँव में के एगो लइका जोरे बांि के टेना आ मगंु ड़ी लेले लउकलें िन । गाड़ी रोक के दनु ो सतवारी लोग मगं रूआ िे िछ ु ल लोग त मगं रूआ कहलि की उ िदु मवा बो आज जासतया हमरा माई के बईठा देबे । आज ओकरा के रोके खासतर हमनी के एसहजा जटु ल बानी जा । चाहे एह खासतर


कथा-कहानी मार झगरा भी होइ त हमनी के आज हटे के मडू में नइखीं जा । अिना िे असमत आ बढ़ू ा सतवारी मंगरूआ के िमझा बझु ा के कहल लोग की ई िब भतु भरम में मत िर । िढ़ सलख के इहे कुसल्ह करब िन त के हू का कही । िमझवला बझु ावला ि त ओह घरी मंगरूआ बात बझु के घरे जाए लागल आ ओने सतवारी जी लोग आगे बाजार देने सनकल गईल । बैंक में िहचं ला के बादो असमत सतवारी मगं रूआ के िोन क के िछु ल चहलें की कहाँ बाड़े बाकी ओकर िोन ना लागल । हड़बड़ी में ओने िे गांवे आइल लोग त िता चलल की।मंगरूआ आ जीउत िाह के िररवार समल के ओसह जगहा ि िदु ामा आ िदु ामा बो के मअ ु ली के मार मरले बाड़े िन । िदु ामा के दनु ो हाँथ टूट गईल बा । िदु ामा बो िसहलहीं िे दामा के मरीज रहली आ एह मार िे छाती ि हमचला के चलते उनक ु र बोली चाली बन्द हो गइल बा । िदु ामा अिना मेहरारू के लेके आवे के सस्थसत में ना रहन काहे की ओह लोग के ई कुसल्ह जानवर लेखा सिवान ि िे घिं ेटत गांव में ले आइल रहन िन । िदु ामा आ िदु ामा बो अिहाय लेखा बेहोि रहे लोग आ गाँव के लोग के भी चेतावनी ई जानवर ना िनु लें िन । जब एहनी के अिना िे ई बझु ा गईल की अब ई मू जइहें िन त िदु ामा बो के झोंटा िकड़ के गली गचु ा में लािारत मंगरूआ आ मनआ ु उन्हका के दआ ु री ि िटक अइलन ि । अब कुसल्ह सबगड़ला के बाद के हू कसतना िम्हार िके ला । ई मंगरूआ आिन जान बचावे खासतर जाके चरिोखरी थाना में उलटु े िदु ामा आ

िदु ामा बो ि ही के ि क देलि । बाकी ओसहजा ई दांव उल्टा िड़ गईल आ गांवे िे आइल चौकीदार कुसल्ह िच्चाई थाना प्रभारी के बता देलि । बेचारे िदु ामा हसतना िहला के बादो के ि मोकदमा ना कइलें आ लइकन के बाहरा िे बोलवावे खासतर िोन करवइलें । माई बाि ि भईल अत्याचार िनु के तीन गो लइका अइलन िन त मडरे करे के िे र में बाकी रोिेया िइिा के कमी आ िररवार के आिातारा में िरल िरान देखके गाँव घर लोग बाग़ के कहले िमझवला िे िसहले माई बाबू के इलाि करवावे गइलन ि । के ि करे के असधकार आ िबतू होते हए भी ई लइका के ि ना कइलन ि । बाि के हाँथ के प्लास्टर आ माई के छाती ि ओरच के बान्हल कमाची देख के समटं ु आ आवते िक ु ा िार के रोवे लागल । कईिहूँ लोग के िमझला बझु ावला िे लइका धीर त ध लेलन ि बाकी मन में िंतोर् ना भईल । चार सदन के बाद िदु ामा बो के डाकडर दोबारा देखे के बोलवले रहे । लइका ले के गइलन ि देखावे । डाकडर सकंहां कमाची खल ु ल आ छाती के एक्िरे भईल । एकहूँ बाता िलामत ना रह गईल रहे । कमाची खल ु ते ही अइिन दरद उठल की रात के दू बजे िदु ामा बो दसु नया छोड़ के िदा खासतर चल गइली । आजो टेढ़ हाँथ लेले सजन्दा िदु ामा जीउत के िररवार ि कवनो के ि मोकदमा ना कइलन । आ उहे िदु ामा दावा बीरो के आधा अधरू ा समलल दाम िे आिन इलाि करवाके िे र िे तरकारी बेंचे में मशगल ू बाड़न ।

फोटो-स्ियिंबरा बक्शी

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 65


च त िं न-बतकही

लइकी कइसे करी पढाई शिर जा के समसथलेश चौरसिया

िाष सजल्ला के िोखररया के रहसनयार िोनम यादव (बदलाइल नाम ) कक्षा 12 के िढ़ाई वीरगजं िे िरू ा कइल के बाद मेसडकल के िढाई करे के चाहत रहली । एकरा खासतर उनका कॉम्िीसटशन के इसम्तहान (entrance exam) देवेके रहे । एकर तैयारी करे खासतर िोनम के कोसचंग करे काठमांडू जा के उहे शहर मे ही कवनो सकराया िर रूम ले के रहेके रहे । कोसचगं के िीि के आलावा िोनम के काठमांडू में रहे खाए के खचष ही 8 िे 10 हजार रुिैया हर मसहना िरे । िोनम के सिताजी प्राइवेट नौकरी करत रहले । उनका लगे एतना िैिा त ना रहे, बाकीर आिन बेटी के जइिह िढावे के चाहत रहले । ऊ ई ना चाहत रहले की बेटी भसवष्य में ई कहि की उनकरा कवनों मौका ना सदहल गइल । िोनम के सिताजी उनकरा िे कहनी 'बेटी, हम तोहार खचष कवनो भी हालत में उठावे के तैयार बानी । बि तू मेहनत िे िढाई करत रह ।' िोनम आिन सिताजी के बात के िमझली आ िरू ा मेहनत िे िढाई कइल आ सशक्षा मत्रं ालय के इसम्तहान सदहली । िौभाग्य िे िसहलके प्रयाि में ही उ बीडीएि (दाँत के डॉक्टरी) में उनकरा धरान मेसडकल कलेज में दासखला समल गइल उ भी खल ु ा छात्रवृसत में । काठमांडू में कोसचगं करे बखत िोनम के बहत तरह के दोस्त समलल रहे । कुछ िढ़ाई के नाम िर के वल मौजमस्ती करे वाली भी रहली आ कुछ घर के हालत के िमझ के िढ़ाई िर ध्यान भी देहत रहली । इसम्तहान के तैयारी के बखत ही िोनम के िता चलल की कुछ लड्सकयन के घर वाला त िीि के िैिा देवे खासतर कजाष तकले लेके काम चलावत बाटे लोग । ई देख के िोनम के आिना सिताजी िर बहत गवष भइल । ऊ िरू ा मेहनत कइल आ िोचली की आगे के िढ़ाई करे खासतर ऊ बैंक िे एजक ु े शन लोन ले सलहें । आ आसखरकर उनकर बीसड़ि के िढ़ाई खासतर एजक ु े शन लोन भी समल गइल जेिे उन्करा आिन िढाई के खचष िरू ा करे मे बहूत आिानी भइल । ओहीिे ऊ आिना तरि िे िरू ा मेहनत िाथे आिन िढाई िरू ा कइल । आजु उ काठमांडू में ही अच्छा नोकरी करत बाड़ी । आजु

िोनाम के िररवार के उनकरा िर गवष बा । बासिर हर लइकी िोनम जइिन िमझदार ना होली । काठमांडू में ही िोनम के िाथे वीरगंज के ही स्वासत श्रेष्ठ (बदलल नाम ) भी िढ़त रहली । ऊ एगो आजाद ख्याल के लइकी रहली आ नयाँ शहर में आजाद िंछी सनयन उड़े लगली । ऊ िमय िर कोसचगं भी ना जात रहली । ऊ आिन िढ़ाई भी ठीक िे ना करत रहली आ शहर में घमु े आ मौजमस्ती मात्र करत रहली । उनकर दोस्त िभन भी ओइिने रहले लोग, सदन भर घमू सिर मौजमस्ती करे वाला । जब िैिा कम िडत रहे त स्वासत कोसचगं के िैिा भी उड़ा देत रहली । ऊ घर िे सकताब कोिी के नाम िर िैिा लेती अउरी ऐयािी मे खचष कर देती । स्वासत अब िरू ा तरह िे बदल गइल रहली । ऊ आिना घर-िररवार िे झठु बोलत रहली । जब इसम्तहान के नतीजा आइल, त उनकर झठु के िोल खल ु गइल । ऊ लगातार हरे क िरीक्षा में मेररट सलस्ट में आवेके के त दरू के बात, िाि सलस्ट में भी ना आवत रहली । स्वासत के अब घरे गइल भी ममु सकन ना रह गइल रहे । आसखरकर घर के लोग उनकर िढ़ाई छोड़ा सदहल आ बदनामी िे बचे खासतर जलसदहे उनकर सवयाह करा सदहल लोग । जरुरी बा िढाई ..... आजु के दौर में ज्यादातर माई-बाबू अिना बेटी के िढावे खासतर शहर भेजे के िरु ा आ िख्ु ता इन्ताजाम करे के चाहत बा लोग । कुछ लइकीयन शहर में िढाई िरू ा करके आिन भसबष्य के ि​िना के िख ं लगावे मे िक्षम हो जाली लोग । बासिर कुछ लइकी सबगड़ भी जासल । अइिन मे माई-बाबू के ई ना िोचेके चाही की शहर जा के िढाई करे वाली हर लइकी आिन भसवष्य िवार ही लीहन । शहर जा के िढाई करे वाली आिन लड़की के िसु बधा िब देला के बाद भी उनकर िढाई िर भी ध्यान देवे के चाही । िमय-िमय िर लइकी के िाथ रहे वाली िघं सतया, उनकर सशक्षक िे भेट के रे के चाही । बसच्चयन के होखेवाला िरीक्षा आ ओमे हो रहल प्रगसत के भी सनगरानी करत रहेके चाही । कोसचगं क्लाि में तिरीबन हर मसहना बच्चा लोग के टेस्ट होखेला । एमें

समसथलेश चौरसिया

वी

रगंज, ि​िाष, नेिाल के रहे वाले समसथलेश चौरसिया जी भोजिरु ी खासत िमसिषत बानी । अलग अलग ित्र िसत्रका िमाचार में इहं ा के भोजिरु ी के कलमकार हई ं । वतषमान में सब. सि. कोइराला स्वास्थ्य सवज्ञान प्रसतष्ठान, धरान, नेिाल में कायषरत बानी ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 66


कोसचगं क्लाि में तिरीबन हर मसहना बच्चा लोग के टेस्ट होखेला । एमें उनकर ररजल्ट कइिन बा ई भी देखेके चासह । कही लइकी झठू त नैखी बोलत । बच्चा लोग झठू तबे बोलल शरु​ु करे ला जब ऊ कुछ गलत काम कइल शरू ु करे ला । शहर में िढाई करे के िमय होस्टल भा ररश्तेदार इहा रहे के व्यस्था कइल उसचत रहेला । होस्टल में रहे वाली लइकी के िमय बेिमय बाहर आइला गइला िर होस्टल चलावेवाला लोग टोका-टाकी करत रहेला । अगर लइकी बाहर कमरा लेके रहत बाड़ी त उनका आवश्यकता िे जादा आजादी समल जाला । के तना बेर उ आिन िघं सतया िब िे घर वाला िे बात कराके उनका के बहकावे के काम करे ली । जरुरी बा की िमय-िमय िर बेटी िे समले लाए िहर जाई । बेटी िर राखी भरोिा ... कुछ लइसकयन िढ़ाई करे ली िँ त कुछ सबगड़ भी जाली िँ । जरुरी बा की बेटी िर भरोिा राखी । उनका के िमझदार बनाई । लइकी के ई िमझाई की उ हर बात के िही-िही माता-सिता के बतावि । िही बात कइला िे उनकर बात के िमझल जा िकत बा ई भरोिा जताई । हर लइकी सबगड़ल ना होखेली, आज के िमय में बेटी के ह िे कम ना होली । एिे ऊंकरा के िढ़ाई करे लाए शहर जाए के मौका सदही । अइिन नइखे की खासल दोिर शहर जा के ही लइसक सबगड़ जाली, के तना बेर लइसक आिन घर भा आिन गाँव/शहर में रहला के बादों सबगड़ जाली । एिे ई डर मन िे सनकाल सद की शहर जाके िढ़े वाली लइकी सबगड़ जाली । के तना बेर ई देखल जाला की शहर जाके िढेवाली लइकी दोिर लइकी िे जादा आत्मसवश्वािी हो जाली । ऊ बाहर के लोग के िाथ कइिन बताषव कइल जाव ई िब भी सिख लेवेली । आत्मसवश्वािी लईकी घरिररवार खासतर मदतगार िासबत होखेली लोग । बेटी िर भरोिा राखके ओकरा के शहर

िढ़ाई करे भेजी । बासिर उनका िर आवश्यकता अनिु ार तसन-मनी ध्यान भी देहत रही । उनकर जरुरत के िमझी अउरी उनकरा के िमझा के राखल करी जेिे उ गलत काम करे िे िसहलही एक बेर जरूर िोचि । के तना बेर त िंघसतया के चक्कर में िड़ला के कारण मात्र िे ही लइकी सबगड़ जाली । बेटी िढ़ावे खासतर जरूरी बात जेिर देवे के चाही ध्यान ...  बेटा बेटी में िकथ ना समझी । आज के जमाना मे बेटी, बेटा से कम नइखी ।  बेटी के बेहतर भत्रवष्य खात्रतर बेटी सबके भी भेजी सहर में पिाई करे ।  बेटी कहा रहत बाड़ी एकर खदु देत्रख आ समझी, बेटी के राय के भी त्रदही अहत्रमयत ।  जब बेटी के खचथ बिे लागे त बेटी से पूछताछ करे से त्रझझकी मत ।  समय-समय पर बेटीसे त्रमले जाई त आपन पत्नी के भी जरुर ले जाई काहेकी माई बेटीके जादा अच्छा से समझ सकत बाड़ी ।  बेटी के त्रश्षणक, होस्टल में रहेवाली रूममेट अउरी होस्टल सच ं ालक से बात करके उनकरा बारे मे जानकारी लेत रही ।  बेटी के पढ़ाई मे प्रगत्रत होत बा की ना एकर भी समय-समय पर जाच-बूझ करे से जन त्रहचत्रकचाई । सबसे महत्वपूणथ बात बा की बेटी के आत्मत्रवश्वास मे कबों कमी ना होखे त्रद आ उनकर हर पररत्रस्र्त्रत मे गात्रजथयन के रुपमे उनका परू ा पररवार के सार् बा कहके भरोसा त्रदलाई ।

फोटो-स्ियिंबरा बक्शी

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 67


कचिता

दू गो गीत आरती अलोक वमाष

िोटो: वपकमबे डॉट कॉि

पुरधायन चाची झनु रु झनु रु िायल बाजे चड़ू ी खनखन खनके चलेली िरु धायन चाची खबू े तन तन के ।। घरे - घरे घमु घमु के बात बनावेली शादी सबयाह के हालात बनावेली कहीं अगआ ु ,कहीं असकलाबआ ु बन के चलेली िरु धायन चाची खबू े तन तन के ।। उनके बसतया जैिे कवनो बझु व्वल हर कमवे में ऊ बाड़ी बड़ी अव्वल कबो रूिेली कबो मनावेली िबहन के चलेली िरु धायन चाची खबू े तन -तन के ।। िबहन के मनवा के आग ई बझु ावेली जाके घरे घरे िबके झगड़ा िझरु ावेली अके ले देसहया में के तना गणु ी काज बा िबके मरज के इनके लगवे इलाज बा रहते इनका काम नइखे दोिर जन के झनु रु झनु रु िायल बाजे चड़ू ी खनखन खनके चलेली िरु धायन चाची खबू े तन तन के ।।

महंग भइल चार आना के झनु झनु ा समले ,आठ आना के िुग्गा एक रूिैइया में समलत रहे िनु र- िनु र िग्ु गा ।। ना जाने ऊ िस्ती के सदनवा कहवं ा गइल? आग लागल बाजारी में हर चीजवे महगं भइल ।। बदल गइल मेला में के ितु ुल,गसु डया, सखलौना सचिट नाक वाली आ गइल लेडी डायना िछ ू लाऽ िर कहऽ तारें हइ ई मेड इन चाइना काम बावे जेही िेही, दाम त खबू े भइल रऊये बोलींऽ हमर गांव के ई दशा के कइल ? ना जाने ऊ िस्ती के सदनवा कहवं ा गइल ।।

आरिी अलोक विा​ा मस वानाँ , मबहार के रहे वािी श्रीिती आरती आिोक विाय जी , भूगोि मवषय िे स्नातकोत्तर कइिे बानी । पेशा से गृहणी हई । महन्द्दी भोजपुरी िे िगातार मिख रहि बानी । एह घरी मसवान िे ही बानी ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 68


कचिता

तीन गो कचिता अवधेश कुितर रज्

1- सावन क सोम्मार िज धज के सनकिीं घर िे नवकी भउजी भी हमार, दधू चढावे शक ं र जी िर ह िावन क िोम्मार। िंघवा उनके कालोनी भर क मेहरारुन क बा टोली थार िजा के िबही चलल बा करत हिं ी सठठोली एक दिू रे क िाडी गहना िबसह खबू सनहारत बा घर िररवार क दःु ख िख ु रस्ता भर बसतयावत बा डांटे बसु ढ़या िाि तबसहयें तोिा खल ु ल किार।। मसन्दर में बा भीड़ बहत होत बा धक्कम धक्का धीरे धीरे चला बहररया िमझावे िबके कक्का बह के कजरा गाल िै आवे िाडी भी लथराइल जल्दी के िे रा में सतवराइन क िायल भी अझरु ाइल गमी िे बेहाल भयल िब चएु िेनरु रंगल सललार।। गडु ् डू के मेहरारू के आवे लागल चक्कर दबु े जी क ितोह सगरल

गोड़ में लागल टक्कर मन्ु ना बो के गोदी में लईका रोई रोई महु वा नोचे काहें लेइके अइसलं िंघवा मनवे मनवा िोचे सगरत िरात भहरात िबै िहचँ ल सशव के द्वार।। दशषन िजू न कइके सनकलल जब मसन्दर िे िब बहरे देख के मेला िजल बा ठे ला समश्राइन क मन लहरे कहसलं गप्तु ाइन िे चला हो लेइला आलता सबंदी देख ले ना कतहँ िे बसहनी चालु ह छोटकी ननदी हलता भर के बाद सिर आई िावन क रजत िोमार। 2 - राजनीत्रत क गारी हत्रर्यार ऊ गररयावें, इहो गररयावें बाद में दनु ो महंु िुलावें ई िोचें हम कम्मे बोलसलं ऊ कहें हम कुछउ ना कहसलं जनता िोचे िकड़ किार राजनीसत क गारी हसथयार।। बसहन बेटी माई क इज्जत उतारे में ना इनके सदक्कत दसलत िवणष का नारा गंजू ें अिने नेता के हर के हू िजू े आरोिन क लागल अम्बार

अवर्ेश कुिार रजि

नारस मनवासी अवधेश कु िार रजत जी महन्द्दी आ भोजपुरी के कि​िकार हईं । इंहा के कमवता संग्रह प्रीत की छांव छप चुकि बा । बनारस के स्थानीय सिाचार पत्र द्वारा "राष्ट्र गौरव रत्न अिंकरण" से सम्िामनत अवधेश जी वहदी आ भोजपुरी िें कमवता तथा गीत िेखन करत बानी ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 69


कचिता राजनीसत क गारी हसथयार।। के हू बसहन त के हू चच्चा देवें समलके िबके गच्चा जनता के भड़कावें खासतर चाल चलें नेता कुल शासतर झठु सहं मचावें िब हाहाकार राजनीसत क गारी हसथयार।। सहन्दू मसु स्लम लड़ीहें ना जबले चैन समलीं इनहन के ना तबले जबले घर ना दक ू ान िँु काई नींद न िसियन के तबले आई कइलें रजत ई देशवा बेमार राजनीसत क गारी हसथयार।।

माई के ही गररयावेलन। माई क बोटी समल नोचें लाज न इनहन के आवे, आिन माई दश्ु मन बनलीं दिू र क महतारी भावे। जे िोर्लि खनू सियाई के ओके ई देखें सहकारत िे।। बन्द भइल बा अँसखयाँ ओकर खाली ित्ता के स्वारथ िे।। बसु द्ध में इनहन के गोबर अध्यािक कुल घोरे लन, जवन जवन उ िाठ िढ़ावें ई कुल ऊहे बोलेलन। जवन रहे सशक्षा क मसन्दर आज भईल बदनाम बा, वोटन के घसटया राजनीसत क लउकत अब िररणाम बा। इनहन का रख िैहन रजत देशवा के हमरे सहिाजत िे।। बन्द भइल बा अँसखयाँ ओकर खाली ित्ता के स्वारथ िे।।

3- चाहत हौ आज़ादी जेके चाहत हौ आिादी जेके भारत में चाहे भारत िे बन्द भइल बा अँसखयाँ ओकर खाली ित्ता के स्वारथ िे।। माई क लग्ु गा खींच खींच के देसहयां क जोर देखावेलन, बोले आयल का िसियन के

तरघुसका बािसु क नाथ सिंह

रउआ बहत सनमन बानी कब ? जब िोंची सक लोग जाल िाज नइखे। नैसतकता के रोग अिने के ध लेले बा त एकर कवनो इलाज नइखे ॥

ईमानदारी रउआ के गौरे ि लेले बा त टोटल एररया कभरे ज मत करीं । मरु ा अगर छलक के आवता त आवे दीं तरघिु का लेवे में िरहेज मत करीं ॥

रउआ के शसनचरा ना छोड़ी िाँचो ई जग-जासहर बा । तनी ओकरा लगे िट के देखी ँ जे छव-िाँच में मासहर बा ॥

ित्य के राह िर चले वाला किारे हाथ ध के झोंखतारे । बािक ु ी के हाल मत िछु ीं करनी के िल भोगतारे ॥

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 70


कचिता

दू गो कविता नरु ै न अिं ारी

बेटी

दानव दहेज़ के

बड़ा भाग्य िे घर में होला बेटी के अवतार लक्ष्मी मान के िजू ा करीं, मत िमझीं भार

अब होत नईखे शादी सबना गाडी सबना मेज के घर-घर में घिू गईल दानव दहेि के ।

दोिरा घर के िम्ित हई रवआ ु घरे ना रसहहन उठते ही डोली एक सदन ई ि​िना हो जइहन चल जइहन िे र छोड़ के रावरु घर-ि​िं ार बड़ा भाग्य िे घर में होला बेटी के अवतार

बाबू के बैल सनयन लागत बाटे दाम बसढ़या दसु ल्हन के िगं े चाही खबु े िामान रो-रो देत बाटे माई-बाि बेटी के तेज के घर-घर में घिू गईल दानव दहेि के ।

हर के हू ए दसु नया में आिन भाग्य लेके आवेला खरचा नाहीं के हू के , दोिर के हू चलावेला िबकर दाता उहे हउवन जेकर मसहमा बा अिार बड़ा भाग्य िे घर में होला बेटी के अवतार

बेसटहा चाहे कर लेव खदु के शहीद िर कम नाही होला तनको बेटहा के सजद खनू ि​िीना के कमाई लोग देत बा िहेज के घर-घर में घिू गईल दानव दहेि के ।

ई िंिार के जननी हई, मत रउवा दत्ु कारी बेटी के सबित िमझ के ताना कबो ना मारी बबनु ी के भी बबआ ु खासन करत रही दल ु ार

बझु त नईखे के हू भी ररश्ता के मरम लालच में िब कुछ हो जाता बेभरम लोग बना देत बा सचता दसु ल्हन के िेज के घर-घर में घिू गईल दानव दहेि के ।

बड़ा भाग्य िे घर में होला बेटी के अवतार ।

नरु नै अंसारी

गो

पािगंज , मबहार के रहे वािा नुरैन अंसारी जी , भोजपुरी आ महन्द्दी िे िगातार गजि आ कमवता

के मसरजना कई रहि बानी । आखर प शुरु से ही नुरैन जी के मिखि भोजपुरी कमवता आ गजि आ रहि बा । इाँ हा के एह घरी कदर्लिी िे बानी ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 71


कचिता

टहलुआ सीित मवधत

हर िबु ह िरू ज के िाथे-िाथे उ रोज आवेला नया-नया भरती रंगरूट िुरती आ िजगता िे लैि हमार नवका टहलुआ चिु े चाि/बजु गु ाषना अदं ाज में ढेर काम करते रहेला बैठका दआ ु र के झाड़बहु ार गाय भैंिन के घारी के ि​िाई िूल िौधान के िानी देत बड़ी चाव िे/आिन रोज के काम में मगन हमार नवका टहलुआ बासकर हवेली के देहरी लांघत बेरा िकुचाइल ओकर देह प्राण जइिे छुआये भर िे कही भ्रष्ट ना हो जाए ई धोआइल िाफ़ सचक्कन िक्कीया िशष िोटली में बांधल रोटी के िाथ चटनी खाते-खाते

सीिा स्वर्ा सीित मवधत

बगहत, प.चंपतरण, बबहतर

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 72

आँख चार होते ही थभक जाला अक्िरहा बड़ी गौर िे देखत ओकरा जाने काहे अइिन लागेला सक गहरा ताम्बई रंग िर िबिे मख ु र बा त ओकर आँख ही जे िब कुछ देखत-िनु त िहत भले बा बासक स्वीकारत नइखे/िरू ा मन िे।


कचिता

कविता आ गजल गीत समसथलेश मैकश

गजल जयनन् कुितर िेह्त

दअ ु रा िे के ह खाली जाये,त अिमान बा दगु ो रोटी दे द गरीब के ,बड़ा एहिान बा

सजया 'हरख'ू के लहलहाइल बा आजु अङना में धान आइल बा

अिना खाती त इहां,जानवरो सजयत बा जे और के काम आ जाये ,उहे इिं ान बा

चार िइिा का चकमकाइल बा आँख बेटवो के अब मोटाइल बा

के ह के माई नइखी ,के ह के बाबू नइखन आ जेकर के ह नईखे,ओकर भगवान बा

िच के रसहया भरल बा ित्थर ले चोट खइला ि ई बझु ाइल बा

दल ु ार माई बाबू के , एगो अलगे चीज ह कबो क के देख,कहे मे बड़ी आिान बा

गोड़ धरती ि लोग के बा कहाँ? चाँन के रासह में टङाइल बा

एसहजा अिना दख ु िे , के ह दख ु ी नईखे िभ लोग , दोिर के िख ु िे िरे शान बा

ऊ जे बाँटत सिरत रहे मलहम आज आिन चोट में भल ु ाइल बा

'मैकश' काम न,ु हमेशा बसढ़या करत रह ना त देखलsचान िे अभीयो सनशान बा

नेह के डोरर तार-तार भइल एह तरी जोर िे सखचं ाइल बा

सिसथलेश िैकश

जयसनि कुिार िेहिा आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 73


कचिता

दू गजल अशोक कुमार सतवारी

-1 -

उगल िेड़ जनले चलऽ छाँह भइल, कहीं एहके िनकल सक बउराह भइल । सनहारत रहे टक-टकी लोग बन्हले , उठल टांग िानी के कुछ थाह भइल । कहानी मे कुछ तऽ भला ट्सवस्ट आइल, चलs एगो थेथर त गसम्हराह भइल । चले कासिला सचउँटा-सचउं सटन के अक्िर, जराँ मीठ चीनी के कुछ आह भइल । कटेगरी बनावे के बाटे चनु ौती , इहाँ मामला बाटे जहआह भइल । हरे क बात बा तोहरो नािाक गासभन , जमाना बदे बाटे अँउजाह भइल ।

-2बाटे हमरा िता तोहरा औकात के , नाहीं चाहेनी खोलल हलुक बात के । िाँच के बाज में जोर बाटे बहत , का जरुरत बा ओकरा बकुलिाँत के । बा भरोिा कवन गोमख ु ी बाघ के , अब कवच का बनी एह सभतरघात के । हमिे नइखे सछिल छे द थररया के ऊ , जवना थाली मे खात रहे रात के । दश्ु मनी दाँत तक आके रँ उदा गइल , दोिती बाटे कीड़ा बनल दाँत के ।

सदहीं कौनो मेडल की मारी िटक के , बा लोगन बदे बात अझरु ाह भइल ।

अशोक कुिार सिवारी

मिया उ. प्र. के द्वाबा क्षेत्र के मनवासी अशोक कु िार मतवारी पेशा से वकीि हई , इाँ हा के मिखि

भोजपुरी काव्य संग्रह ' पमहिका डेग " प्रकामशत हो चुकि बा । इाँ हा के मिखि कई गो कमवता िेख पमत्रका पाती आ अउरी भोजपुरी पत्र पमत्रका िे प्रकामशत भईि बा । एह सिय इाँ हा के बमिया िे बानी ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 74


चिक्षा

अनरु ाग रंजन

कैररयर:सुझाव आ पवकल्प (पहन्दी पवशेष)

सढ़या कै ररयर के िलाह देवे वाला अग्रं ेजी ज्ञान के बेहतर बता के एही भार्ा में सनमन आ स्थाई भसवष्य के गारंटी देत आइल बा लो। लेसकन दसु नया में जहवा सहदं ी बोले वालन के िंख्या के सलहाज िे अग्रं ेजी आ चीनी भािा के टक्कर देत बा, ओसहजा नया बाजार सहदं ी सवर्य के एगो नीमन कै ररयर के रूि में स्थासित कइले बा। सहदं ी ए घरी िरकारी क्षेत्र िे बाहर सनकल के सनजी क्षेत्र के भी जरूरत बन गईल बा। इटं रनेट ि सहदं ी में लगातार बढ़त िोटषल्ि के वजह िे सहदं ी में प्रसशसक्षत लोगन के मांग में तेजी ले आईल बा। सहदं ी िढ़े, िमझे आ एही क्षेत्र में कै ररयर बनावे के चाहत रखे वाला लोग खासतर बाजार लगातार सवकसित हो रहल बा। एह पाि्यक्रमन के मदद से बनावल जा सके ला कै ररयर सहदं ी में बेहतर िंभावना के तहत अब देश के तमाम सवश्वसवधालयन में एहिे जड़ु ल िाठ्यिम शरू ु कइल जात बा। कुछ िरंिरागत िाठ्यिम भी एह सदशा में बेहतर िासबत हो िके लन िन। सहदं ी में आिन ज्ञान के बेहतर बनावे ला एह सवर्य में स्नातक के अलावे व्याकरण, शैक्षसणक सहदं ी, सहदं ी अनवु ाद, सहदं ी िासहत्य, रचना लेखन, सस्िप्ट राइसटंग, कॉिी राइसटंग जइिन सवर्यन में यजू ी, िीजी आउर िीएचडी कइल जा िकत बा। एकरा अलावे भी ढेरे िंस्थान अलग-अलग िहलूअन ि ढेरे िाठ्यिमन में िमय -िमय ि आवेदन माँगत रहेला। सहदं ी में दसु नया के कई देश िे लोसशि आ स्कॉलरसशि के ऑिरो देत बा,जवन िमचू ा दसु नया के दरवाजा रउआ ला खोल देत बा। एह सस्ं र्ानन से कईल जा सके ला पिाई:

हर राज्य में सस्थत सवसश्वद्यालय भािा आधाररत िाठ्यिम के आिन

गसतसवसध के प्रमख ु सहस्िा राखेला,लेसकन कुछ सवसश्वद्यालय आ िस्ं थान सहदं ी में अिना बेहतर िाठ्यिमन के सलए जानल जाला। एहमे प्रमख ु बा-



अंतरराष्रीय त्रहंदी त्रवश्वत्रवद्यालय पंचटीला, वधाथ (महाराष्र) त्रहदं ी त्रवभाग, हैदराबाद यत्रू नवत्रसथटी, हैदराबाद



त्रदल्ली यत्रू नवत्रसथटी, त्रदल्ली



पण ु े यत्रू नवत्रसथटी, पण ु े (महाराष्र)



बनारस त्रहंदू त्रवश्वत्रवद्यालय, वाराणसी



अत्रवनाशत्रलंगम डीम्ड यूत्रनवत्रसथटी िॉर वुमन, कोयम्बटूर



माखनलाल चतुवेदी राष्रीय पिकाररता त्रवश्वत्रवद्यालय, भोपाल



आध्र ं यूत्रनवत्रसथटी, त्रवशाखापट्टनम

 

दूरस्र् त्रश्षणण सस्ं र्ान, के रल यूत्रनवत्रसथटी, त्रिवेंद्रम7 अलीगढ़ मुत्रस्लम यूत्रनवत्रसथटी, अलीगढ़ (उ.प्र.)



इत्रं दरा गांधी नेशनल ओपन यत्रू नवत्रसथटी, नई त्रदल्ली



अइसे त्रमलेला काम के मौका सहदं ी में महारत आउर सडग्री रखने वालन उम्मीदवारन के कें र आ राज्य िरकार के कायाषलयन में बतौर सहदं ी भार्ा असधकारी, िचू ना एवं आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 75


जनि​िं कष असधकारी, सशक्षक आउर अनवु ादक के तौर िर कायष करे के अविर समल िके ला। एकरा अलावा िावषजसनक क्षेत्र में लैंग्वेज इटं रप्रेटर, रांिलेटर आ सहदं ी भार्ी क्षेत्रन में सलंक ऑसि​िर के भसू मका के सनवषहन करे के मौका समलेला। सनजी िेक्टर में भी एह भार्ा के एक्ि​िट्षि के खासतर ढेरे नया अविर बा, जहां वेबिाइट कंटेंट राइटर, कॉिी राइटर, रांिलेटर, इटं रप्रेटर, सस्िप्ट राइटर, प्रि ू रीडर, सहदं ी टेलीकॉलर आउर एजक ु े शन के तौर िर कै ररयर बनावे के अविर समलेला ।

अनरु ाग रंजन भोजपुरी खामत जागरुक नवहा , अपना कै ररयर खामत पढाई के संगे संगे भोजपुरी भाषा िे िगातार मिख रहि बानी । छपरा के रहे वािा अनुराग जी अभी दुगायपुर िें इं जीमनयररग के पढ़ाई करत बानी ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 76


च त िं न-बतकही

मधब ु नी हचत्रकला असभर्ेक कुमार श्रीवास्तव

सव

सवधता में एकता, अलग अलग िस्ं कृ ती के घर,लोक कथा कला अउर का जाने के तना नाम के उिमा िे अिना देश के नवाजल गइल बा । यसद कौनो कोण िे आिन देश के तस्वीर सखचल जावो त ए गो रंगीन तस्वीर उभर के िामने आई, ओसह में एगो कोना सबहार के समसथला क्षेत्र बा । कहल जाला कला अिना के स्थासित करे खासतर कौनो क्षेत्र सवशेर् के मोहताि ना होखेला । हम बतावल चाहत बानी समसथला के लोक सचत्रकला के बारे में जवन आिन जीवंतता आ िजीवता खासतर जग में प्रसिद्ध बा । मधबु नी सचत्रकला आिन िफ़र समट्टी के देवाल िे शरू ु क के कागज िर होत महल, िग्रं हालय,िरकारी कायाषलय िे लेके आज िसहने के किड़ा तक ले आ गइल बा । मधबु नी सचत्रकला सबहार के दरभगं ा, मधबु नी आ नेिाल के भी कुछ सहस्िा में बनावल जाला । मधबु नी सचत्रकला के उत्िसत्त के बारे में हम जानल चहनी त िता चलल की एकर जन्म आज िे लगभग 3000 िाल िासहले रामायण यगु में भइल रहे । राम-िीता के सववाह के िमय राजा जनक आिना राज्य के कलाकारन िे बनवइले रहन । िासहले खाली उच्च वगष के औरत ब्राम्हण अउर कायस्थ के घर के मेहरारू लोग के ही इ कला बनावे के इजाजत रहे लेसकन िमय के िाथे एह तरे के प्रथा खत्म हो गइल । अिना देश के आजादी िे िसहले एकर नाम “समसथला सचत्रकला” रहे लेसकन आजादी के बाद भारतीय हस्त कला बोडष के सनदेशक ि​िु ल ु जयकर के िहयोग िे “मधबु नी िेंसटंग” क देवल गइल । मधबु नी िेंसटंग में आजकल िे सब्रक रंग(किड़ा के रँ गे वाला रँ ग) के इस्तमाल कइल जाता, लेसकन िासहले एहमे चटख रंग ही लगावल जात रहे । टहकार लाल, हररयर, सियर । आ ई िब रंग िासहले लोग अिने िे

बनावत रहे । जईिे िफ़े द रंग चावल चाहे उड़द के दाल िे बनावल जात रहे । हररयर रंग िेम(खाये वाला िब्जी) या कौनो िेड़ के लत्तर िे बनावाल जात रहे । सियर रंग हरसिगं ार के िुल िे, लाल रंग खासतर कुिमु के िुल चाहे कुमकुम िे त सिंदरू ी रंग खासतर सिंदरू के उियोग कइल जात रहे । आज भी “मधबु नी िेंसटंग” के कागज बनावे खासतर गाय के गोबर के घोल बना के बबल ू िेड़ के गोंद समलावल जाला िे र ित्तु ी किड़ा िे ओह घोल के कागज िर लगा के घाम में िख ु ावल जाला । “मधबु नी िेंसटंग” में खाितौर िर सहन्दू देवी-देवता , प्राकृ सतक निारा, िरू ज-चाँद, िेड़-िौधा आ खाि कके सबयाह के सचत्रकारी कइल जाला । एह िेंसटंग के घर में सतन गो खाि जगह िर बनावल जाला- िजू ा-स्थान, कोहबर (सबआहल दल्ू हा-कसनयाँ के घर) अउर शादी-सबआह में चाहे कौनो खाि उत्िव में । एहमे गाय के गोबर के उियोग जरुरी िे कइल जाला काहे की गाय के गोबर में एगो सवशेर् रिायन होखेला जेकरा िे सलिल जगहा िर सवशेर् चमक आ जाला । हमनी के घरे भी सबयाह में जौन कोहबर बनेला उ “मधबु नी िेंसटंग” िे ही बनेला । कोहबर बनावे के सबसध त अिना ओरी िब घर में बा जवन सबआह के सदन बनेला । कोहबर में बांि, तोता, मछली, कछुआ अउर कमाल के ित्ता जरुर बनेला काहे की बांि िरु​ु र् सलंग आ वंश बृद्धी के त कमल के ित्ता औरत के जनन अगं के प्रसतक ह । तोता ज्ञान आ सवकाि के प्रसतक ह इत्यादी । मधबु नी िेंसटंग सतन तरह िे बनावल जाला । िसहला भीती सचत्र, दिू रा िट सचत्र आ तीिरा अररिन िे । भीती सचत्र में भगवान् लोग सशव-िावषती, राधा-कृ ष्णा, दगु ाष, काली, लक्ष्मी-सवष्णु जी लोग के सचत्र बनावल जाला ।िट सचत्र जमीन िर बनावल जाला जवना के छोटका रूि के हमनी के रंगोली कहेनी ि । तीिर अररिन के हर शभु अविर िर घरे घरे मेहरारू आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 77


लोग के हाँथ िे बनावल जाला । अररिन हर जगह अलग अलग हो जाला । मधबु नी िेंसटंग के बारे में भले अिना देश के लोग कम जानत होई लेसकन सहन्दस्ु तान िे हजारो सकलोमीटर दरू जािान सनयर देश में मधबु नी िेंसटंग के नाम जगमगाता । जी ह...जािान देश के तोकोमाची सहल्ि शहर के सनगाता में “समसथला म्यसू जयम” बा जहाँ आज सबहार के मधबु नी िेंसटंग के िाथे िाथे अिना देश के कला अउर िंस्कृ सत के िरू ा दसु नया िल-िुल रहल बा । अतने ना समसथला म्यसू जयम में िालो भर अिना देश िे कलाकार लोग जात रहेला और उहा कुछ मसहना रह के आिन आिन कलाकृ सत बनावेला लोग । म्यसू जयम के तरि िे ही कलाकार लोग के आवे जाय,रहे खाय के खचाष उठावल जाला । एगो िरु ाना कलाकार के बात मानी त मधबु नी िेंसटंग के बहमल्ू य तस्वीर जािान, फ़्ांि, जमषनी आ अमेररका आसद देश में समल जाई लेसकन अिना देश में ना समली । आज िे लगभग ढाई दशक िासहले जािान सनवािी “हािेगवा” भारत घमु े आइल रहन त उनकर मल ु ािात मधबु नी िेंसटंग के कुछ कलाकार िे भइल । हािेगवा के जब िता चलल की सहन्दस्ु तान के ई कला लुप्त होखे के कगार िर बा त उनका आिना ईहा के एगो कला “उकोयोए” के याद आइल । 17वी िदी के ई कला के नाम सनशान आज जािान िे समट गइल बा तबे उ िै िला कइलन की मधबु नी िेंसटंग के हम समटे ना देम । हािेगवा कहेलन की हम िचीिो बेर भारत के यात्रा कइले बानी आ हर बार ररक्शा िे मधबु नी के गांव-गांव घमू के जहाँ भी बसढ़या िेंसटंग समलेला खरीद लेवेनी । ओसह िमय हािेगवा के मल ु ािात मधबु नी िेंसटंग के महान कलाकार गगं ा देवी िे भइल । गगं ा देवी मधबु नी िेंसटंग के सबख्यात नाम बारी । उ कई बेर जािान गइल आ उहाँ महीनो रह के समसथला म्यसू जयम खासतर मधबु नी के िेंसटंग बनवले बारी । इ कला में गंगा देवी के िाथे िाथे कई गो कलाकार के िद्मश्री िरु स्कार, राष्रीय िरु स्कार, ताम्रित्र, अगं वस्त्र, श्रेष्ठ सशल्िी िरु स्कार आसद समल चक ु ल बा । सदल्ली के िवू ष मख्ु यमंत्री सशला दीसक्षत अिना एगो िाक्षात्कार में बतइली की 70 के दशक में मधबु नी िेंसटंग के कलाकार के अिना कलाकृ सत के िही दाम िता ना रहे । सशला दीसक्षत ए गो कलाकार िीता देवी िे एगो िेंसटंग खररदली जेकर दाम िीता देवी िंरह रुिया बतवली । सशला दीसक्षत के आियष के सठकाना ना रहे आ उ िचहतर रुिया देके िेंसटंग खरीद लेहली । आज सशला दीसक्षत के कहनाम बा की अतं राषष्रीय बाजार में उ िेंसटंग के कीमत िाचाि हिार िे भी असधक बा । मधबु नी के कलाकार लोग बतावेला की मधबु नी में कौनो आटष गैलरी नईखे अउर ना िटना में जा के इ िेंसटंग के बेचे के कौनो उिाय बा एह कारन हमनी के आिना कला के आधा-िौना दाम िर सबचौसलया के बेचे खासतर मजबरू बानी ि । मधबु नी िेंसटंग के द्वारा 2002 में गजु रात में भइल दगं ा के गजु रात िीररज बनावल गइल बा त कही भ्रणू हत्या, दहेि आ आतंकवाद जइिन गहरा सवर्य के भी सचत्रण कइल गइल बा । ताज्जबु इ बात के बा की सबहार राज्य के आतना िरु ाण आ प्रसिद्ध कला के प्रसत स्थानीय लोग के िाथे-िाथे स्थानीय प्रशाशन आ अउरी िरकार आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 78

असभषेक कुिार श्रीवास्िव

परा , मबहार के रहे वािा अमभषेक कु िार श्रीवास्तव जी , भोजपुरी िें िगातार मिख रहि बानी । किा संस्कृ मत पययटन स्थि के बारे िे िगातार मिख रहि बानी । रचना बा।

भी शरू ु िे उदािीन बा । बि िरम्िरा के नाम िर इ कला चल रहल बा । जहाँ भारत के बािार में भारतीय कला के महु ँ मागल दाम िर खरीद बेच कइल जाला ओसहजा मधबु नी िेंसटंग के अिना देश में असभतक कौनो सठकाना निीब नइखे भइल । समसथला में समसथला कला िंस्थान भी बा लेसकन उ आजकल आसथषक सस्थसत के िमस्या िे जझु त बा । अब हम अतं में इ कहल चाहत बानी की आिन देश आ आिन राज्य आिना ही कला आ कलाकारन के तौहीन कर रहल बा । िरकारी आ गैर -िरकारी िस्ं था के समल के इ कला के उत्थान करे के चासह । (समसथला िेंसटग के द्वारा बनावल गइल कुछ सचत्र । िभं ार-गगू ल)


च त िं न-बतकही

पचरा : माई भगवती से भगत लोगन के सिंवाद के गायन शैली नबीन कुमार भोजिरु रया

भो जिरु ी गायन शैली में िचरा एगो शैली ह । िचरा काहे नांव िड़ल एकरा िाछे के कारण हम नइखी जानत । िचरा शब्द िे जसद कवनो माने सनकालल जाउ त एह िे लगातार बोले के भान होला । यासन सक आदमी कवनो चीझू के भा के हू िे लगातार बसतयावत रहे । िचरा शैली कब बनल कइिे बनल एकरा िाछे का इसतहाि बा एकर जानकारी हमरा नइखे ।

कहल जाला की भगवती माई िे भगत लो के आिन िंवाद ह जवना के नाव सदयाइल बा िचरा । यासन सक मय देवी गीत िचरा ना ह । बासक हर उ गीत जवना में भगवती िे िंवाद होखे कुछ मांगल जाउ ,गोहरावल जाउ, आिन िमिषण के बतावल जाउ उ िचरा ह ।

आखर | सितंबर-अक्टूबर 2016 | 79


च त िं न-बतकही भोजिरु ी के गायन सवधा मे कइ गो अचम्भा वाला चीझू लउके ला । शीतला माई के गीत एगो अलगे ह आ उ िचरा मे ना आवे । िोचे वाला बात बा सक सबमारी चेचक जवना छोटी माता बड़ी माता ( मातादाई ) हमनी सकओर कहाला , खासतर जवन गीत गवाला उ शीतला माई के गीत ह । यासन मातादाई आवे के िाछे के कारण ह गरमी , देसह के गरमी के वजह िे बासक देसह के गरमी िे होखे वाला बेमारी के ठीक करे खासत जवन सवधा सबनल उ कहाइल शीतला माई के गीत । ठीक ओइिही िचरा गीत के शरु​ु वात कुछ अइिने कारण िे भइल होइ । डि/डिरा के एह गीतन में प्रयोग के चलते कहाला चमड़ा के काम करे वाला जासत के गीत हो िके ला , बासक अइिन कवनो िाक्ष्य भाई एह बात के खाड़ करे वाला कवनो चीझू हमरा आजू ले नइखे लउकल । नट नसटन लो के देवी लो के िजु ाइ के िाक्ष्य बा , हमरा गाँवे अस्कासमनी माई के मसं दर के िजु ाई होला जवना मे गांव ना उहे नट नसटन लो करे ला त िम्बन्ध हो िके ला बासक इहो दमगर िम्बन्ध नइखे । त हम एह सवधा के भोजिरु ी के झमू र लेखा एगो सवधा मान के चलब जवन कवनो खाि वगष क्षेत्र के बधं न िे अलग बड़ुवे । िचरा भगवती माई के गीत ह एहू ि एगो शक ं ा बा काहे सक डा. कृ ष्णदेव उिसधया जी के सकताब ' भोजिरु ी लोकगीत - भाग -2 ' में िचरा शीर्षक के नीचे जवन िसहला गीत सदहल बा ओह मे भगवती के िगं े िगं े कई गो देवता के गोहरावल गइल बा । आरे िरु​ु ब में िसु मररले उगल िरु​ु ज जी के आरे िसछम में िसु मररले चन्नर जोसत हो । आरे आठवा ही काठवा के नइया सिररजल हो आरे कंचव के मागतारी मांग हो । हो िके ला इ गीत शरु​ु वाती गीत होखे गोहरावे खासतर , काहे ँ सक असगला िंसि जवन एह गीत के बा भा एह गीत के बाद के जवन गीत एसह िम मे लय में िरु में सदहल बा ओह भगवती आ मय बसहन लो के गोहरावल जाता आरे आगे त चढेले िरु​ु ज जी आरे सिछवा चढेली चन्नर जोसत हो । आरे सबचवा में चढेली हमरा सबसघन जी बसहसनया नइया खेवल े ा के वटा मल्लाह हो । िरु ज चनरमा के बसहन के रुि मे भगवती काली के देखावल गइल बा । सबसघन बसहन के कहल जाता जवन िाररवाररक ताना -बाना के देखा रहल

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बा । बासक कहीं ना कहीं िचरा मे भगवती के मौजदु गी एजगु ा िे समले लागल बा । आगे के िचरा मे कुछ अइिने भाव आरे उतर में िसु मररलें उत्तर देवतवा दसखन में िसु मरो वीर हनमु ान हो । आरे िरु​ु ब में िसु मररलें िरु​ु ब देवतवा चसल भइली कमरू का देि हो । कमरू िे एजगु ा कामाख्या देि यासन सक आिाम िे मतलब बा । यासन सक कामाक्षा माई के भगत एजगु ा गोहरा रहल बाड़े । हर सदशा हर ओर के देवता के गोहरावत भगत अिना एह िचरा में कामाक्षा माई यासन सक आिाम के प्रसिद्ध कामाक्षा मंसदर मे स्थासित माई के गोहरावत बाडे । िचरा मे भगवती के आराधना खासतर जवन िंवाद होला , जेकरा िे िंवाद होला , कवनो चीझू खासत िंवाद होखे , उ हर गीत िचरा में सगनाला । चाहे उ िडं ी जी िल्लो खासत कहिु भा घीउ खासत । लोकगीत मे िम्प्रेर्ण काव्य के माध्यम िे होला आ भगवती खासत हर अइिन काव्य िचरा में सगनाला । िचरा मे भगवती के आराधना मे भगत आिन अिमथषता दबु षलता सनधषनता के बतावत बाड़े , कुछ मागं त नइखन बासक आिना गरीबी के कारण देवी के गोहरावत बतावत बाडे िचरा के माध्यम िे भगत कहत बाडे कइिे में बारी दीिक देवघरवा घरवा घरनी ना तेल ना बाती हो ॥ भगवती के जबाब अिना भि खासतर घरवा देसव घरनी रे भगता भाड़ावा देसव तेल हो । िोने के दीयवा रे िम के रर बाती बारु बारु सदयवा रे िेवका , जरे ला िारी राती ॥ त िचरा कहीं ना कहीं माई भगवती आ भगत के आि​िी िंवाद के भोजिरु ी सवधा ह जवन िंविे भोजिरु ी क्षेत्र मे बड़ा मनगर तररका िे घरे घरे गवाला ।


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पाठक कोना

राउर बात

फ्रंट देखला िे भीतर के भी अदं ाजा समल जाला। काहे सक अनमु ान त लगावल जा िके ला। हमार अनमु ान---जहन्नमु भरल तरन्नमु िे त जश्ने जन्नत का होई?जब िबु ह भरल मादकता िे त शाम के आलम का होई? बािसु क नाथ सिंह अँगरे जी में एगो कहावत बा सक "First impression is the last inpression" .... आखर एह के िरू ा तरह िे िॉलो करे ला :-) .... आखर के मख्ु य िृष्ठ देख के ही मन हसर्षत हो उठे ला, एक िाथ अनसगनत ख्याल/याद सदल सदमाग में दउड़े लागेलाराजीव कुमार सिंह मख ु िृष्ठ मनोहर ह ।रोिनी में धाने ना रोिाला, जीवन रोिाला ...सचरईचरु​ु ं ग,असदमी जन िबकर आत्मा के तर करे क अमृत रोिाला।िी राज सिंह जी के आवरण बदे बहत -बहत धन्यवाद।अउर एतना िन्ु दर कलेवर खासतर आखर टीम के बधाई।जय भोजिरु ी िमु न सिंह एकदम मन चहचहा गइल ! इहे न कहाला इतं ेजार के िर । आ हई सबटुइयन के देख बड़ िघु र लागत बाड़ीिन ! बधाई बा आखर के । -बृज भर्ू ण चौबे

आखर के मख ु िृष्ठ बड़ा िनु र लागता. धन रोिनी के दृश्य िम िामसयक बा. अदं र के िेज भी देख के तन मन जड़ु ा गइल. बसढ़या काम हो रहल बा. आखर टीम के बधाई! - जनकदेव जनक भोजिरु ी िमाज खासतर बहत बड़ा जोगदान बा। मख ु िृष्ठ बहत ही िदंु र बा। इ आभार खासतर रउवा के आसशवाषद बा - हरे न्र नाथ दबु े कमषप्रधान क्षेत्र भोजिरु ी आ कटनी के िोटो कभर ि , भीतरी के हर लेख के िे बसढ के एक , बझु ाता सक िंविे भोजिरु रया क्षेत्र एह अक ं मे लउकत बा - एि के दबु े

भोजपरु ी सासहत्सय के संभारे खािी आ नया ऊंचाई देवे खािी राउर सहयोग के जरूरि बा । भोजपरु ी िें सलखीं आ "आखर" के साथे भोजपरु ी सासहत्सय के बढ़ावे िें सहयोग करीं । ~आखर पररवार

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लेखक कोना

चनहोरा जय भोजिरु ी ! मातृभार्ा सवशाल िागर ह , मातृभार्ा के िम्बधं माई आ मातृभसु म िे बा , मनष्ु य के सजनगी मे माई , मातृभार्ा आ मातृभसु म के बहत बड़ महत्व बा । भोजिरु रया क्षेत्र के असधकतर लोग वतषमान मे रोजी रोटी कमाये आ भसवष्य के िररहारे के िे रा मे अिना माटी आ माई भार्ा िे दरु हो गईल बा , ओसह दरु ी के कम करे के प्रयाि के नाव ह आखर । आखर के नेव एसह उद्देश्य िे राखल गईल बा । आखर के िे िबक ु िेज आिन तीिरा वर्षगांठ एह मसहना ( अक्टूबर) मे मनावे जा रहल बा ।

रचना भेजे के कुछ जरुरी सनयम -

आखर ई िसत्रका रउआ िभे िे बा आ रउआ िभे खासतर बा । इ राउर आिन िसत्रका हऽ जहाँ रउआ आिन माई, माटी आ मातृभार्ा भोजिरु ी िे जड़ु ल अनभु व, कथा, कहानी, व्यंग्य, िंस्मरण, ररिोताजष, गीत-गिल, कसवता, सचत्रकारी भेज िकत बानी। असगला मसहना भोजिरु रया क्षेत्र खासत बहत ही महत्विणु ष मसहना ह । भोजिरु रयन खासतर लोकिवष के मसहना ह ।

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असगला मसहना मे छठ िजु ा , गोधन िजु ा , सिसड़या व्रत जइिन लोकप्रसिद्ध त्योहार बा । त नवम्बर मसहना खासत सवर्य बा 

1. लोकिवष के प्रकृ सत िे जड़ु ाव 2. लोकभार्ा के िरं क्षण में सस्त्रयन के योगदान 3. लोकगीतन में प्रकृ सत िंरक्षण के भाव लोकिवष के महत्व एह सवर्यन ि कें सरत राउर सलखल लेख के इतं ेजार आखर के रही , एकरा अलावा , जरुरी नईखे सक राउर लेख / रचना एसह ले कें सरत रहे , रउवा भोजिरु ी िासहत्य के कवनो सवधा मे अगर कुछ बेहतर बररआर आ मौसलक सलखले बानी त ओह के आखर के इ मेल ि भेजी , हमनी के कोसशश बा सक भोजिरु ी िासहत्य के कवनो सवधा मे सलखाईल हर चीझू के आखर ई िसत्रका के िाठकन तक ले के िहचं ल जाउ । नोट- आिन रचना / लेख हमनी के 20 अक्टूबर 2016 िे िसहले भेज सदँही जवना िे हमनी के िमय ि नवम्बर अक ं के सनकाले खासत प्रयाि कइ िकी जा।

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आिन मौसलक रचना यसु नकोड िॉन्ट/कृ सतदेव िॉन्ट में टाइि करके भेजीं । रचना भेजे िे िसहले कम िे कम एक बार अिने िे प्रि ू रीसडंग जरुर कर लीं । कौमा, हलंत, िणू सष वराम िे सवशेर् ध्यान दीं । रचना में डॉट के जगहा सि​िष िणू सष वराम राखीं । ध्यान रहे राउर रचना में कवनो अिंिदीय आ अश्लील भार्ा भा उदाहरण ना होखे । राउर रचना के स्वीकृ सत के िचू ना मेल भा मैिेज िे सदयाई। रचना के िाथे आिन िाि​िोटष िाइज के िोटो आ आिन िररचय (नाम, िता, कायष आ आिन प्रकासशत सकताबन के बारे में यसद होखे त) जरुर भेजीं । रचना भेजे के िता बाaakharbhojpuri@gmail.com िसत्रका खासतर राउर हाथ के खींचल िोटोग्राि, राउर बनावल रे खासचत्र, काटूषन जे सवसभन्न सवर्य के अनरू ु ि होखे, उहो भेजीं । छोट-छोट लईकन के कलाकारी के भी प्रोत्िासहत करे खासतर स्थान सदयाई । ओहनी के सलखल रचना भा सचत्र भेजीं ।



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