Aakahr 2015 april

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मासिक भोजपुरी ई-पत्रिका

2015 अप्रैल , अंक 3

एगो डेग भोजपुरी साहित्य खाहि

www.aakhar.com

© आखर ● अप्रैल, 2015 ● 1

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प्रकािन / संपादन िंडल : संजय ससंह , ससवान देवेंद्र नाथ सिवारी , वर्ा​ा शसश रंजन सिश्र , नई सदल्ली नबीन कु िार , दबु ई

आखर पिा ग्राि पोस्ट- पंजवार (पोखरी) ससवान , सबहार 841509 क़ानूनी सलािकार लसलिेिर नाथ सिवारी , पटना

िकनीकी -एहडह ंग, कम्पोहजंग असिनी रूद्र , न्यू यॉका असनिेष कु िार विा​ा , अबू र्ाबी छाया हचत्र सियोग स्वयम्बरा बक्सी पी. राज ससंह

धरमन बाई के याद में

आखर वर्ष: 2015 अंक 3 अप्रैल । ई - पत्रिका सब पद अिैिहनक बा .

राहल ु िांकृत्यायन आ भोजपरु ी

ननराला

जौहर शाकियाबादी

हम सिंहन भोजप के सिंह रु ी शरू वीर कंु वर सिंह

इंनिहान में नक़ल

नाटक : माइंड िेट

मंगल पाण्डेय - वीर जवनवा हो रामा

प्रमोद निवारी

िरोज सिंह

महेन्द्र सिंह

िंजय सिंह

ऊ पागल कक हमनी के ? िंग इनायिपरु ी

भोजपरु ी के माथ के टीका : महेन्द्र समसिर मन्द्ु ना पाण्डेय

पराि​िश िंडल प्रभाष सिश्र , नाससक अिुल कु िार राय , बनारस र्नंजय सिवारी , िुंबई चंदन ससंह , पटना

प्रकाहि​ि रचना लेखक के आपन ि आ ई जरुरी नइखे की संपादक के हिचार लेखक के हिचार से हिले । लेख पे हि​िाद के हजिेदारी लेखक के बा । सुर्ीर पाण्डेय , दबु ई पंसडि राजीव , फ़रीदाबाद असजि सिवारी , सदल्ली बृज सकशोर सिवारी , सोनभद्र

संपका : आपन िौसलक रचना , लेख ,कसविा , फोटो , सवचार आखर के ईिेल-आईडी aakharbhojpuri@gmail.com पे भेज सके नीं । सुसवर्ा खासिर रचना सहंदी यूसनकोड िें ही भेजीं । िुख्य पृष्ठ छाया/आिरण : असि​ि सिश्र , असनिेष कु िार विा​ा , असिनी रूद्र रेखा हचत्र : शसश रंजन सिश्र www.aakhar.com facebook/Aakhar | Twitter: @aakharbhojpuri © आखर ● अप्रैल, 2015| ● 2


आखर के सिपाही आपन बाि : चइिी: चइिा : लोक साहित्य के संिदे निील धरोिर : हिधना के दोष : बिकूचन: हबिार, सांस्कृहिक पररचय : ि , ि​ि हबिारी िई ं : हबिार िें िेिरारून के हस्िहि : िहलकाईन आईल बाड़ी : ना क — िाइंड से : कहि​िा : हबहस्िल्लाि बनारस के : आज गउिां ि​िर िो गइल : नािीं किली : रािुल सांस्कृत्यायन आ भोजपुरी : रािुल सांस्कृत्यायन: यात्रा (पयश न) िें जीिन यात्रा : िंगल पाण्डेय,ब्िीर जिनिा िो रािा : आजादी के लड़ाई िें कुंिर आ भोजपरु ी के योगदान : ि​ि हसंिन के हसंि िूरिीर कुंिर हसंि : धरिन बाई के याद िें : निन करेनी : हदल जब बच्चा िा जी भाग- -3 : हिक्षा प कांि कांि करि िीहडया :

आखर जिाि जौिर िाहियाबादी देिेंद्र नाि हि​िारी गणेि जी बागी सौरभ पाण्डेय ज्योत्सना प्रसाद नुरैन अंसारी िनोरिा हसंि पीयूष हि​िेदी भारिीय ि​िेंद्र प्रिाप हसंि स्ि​िंत्र निल अहनिेष कुिार नीलांबज ु हसंि हृहषके ि चिुिेदी जौिर िाहियाबादी प्रभंजन कुिार संजय हसंि उदय नारायण हसंि सरोज हसंि हनराला अिोक कुिार हि​िारी बज ृ हकिोर हि​िारी प्रिोद हि​िारी

4 5 6 8 9 11 16 17 19 20 28 29 31 31 32 35 38 40 43 46 48 49 51

बा​ाँझ : िे सष्टृ ा : पगली : आहखर ऊ के रिे : आरक्षण के लाठी : ऊ पागल की ि​िनी के : किां गइल िोर गांि िो ? : बालिन : किंिा गइल ऊ लोग ि​िार बड़की िूआ : कै िी से देिनागरी िें पाठ अनुिाद : ऐ-जी, बबुआ के बाबू : भोजपरु ी के िाि के ीका : ि​िेंद्र हिहसर : सिुआन लोकसंस्कृहि के परब : हकसानन के परब ि सिुआन : ह कोढ़ा के च नी : सिुआन : सगु ािा हपयासल िोई बैिाख िें : ि​िेली िें सिय भाग-3 : गज ुं ा : कहि​िा : राउर बाि : हनिोरा :

धनंजय हि​िारी चंद्रभूषण पाण्डेय डा॰ एस॰ के ॰ हसंि अहजि कुिार हि​िारी प्रभाष हिश्रा िंग इनायिपुरी हनराला अनन्या प्रसाद अनूप श्रीिास्ि​ि पी॰ राज हसंि अिुल कुिार राय िन्ु ना कुिार पाण्डेय िहि रंजन हिश्र डा॰ उिेि जी ओझा अहि​ि झा डा॰ रीिा हसन्िा अहसि हिश्र अहनल प्रसाद नबीन कुिार गोरख प्रसाद िस्िाना आखर के ओर से आखर के ओर से

54 57 58 59 61 64 66 67 68 70 72 73 75 77 78 80 81 82 84 85 86 87


आपन बात भो जपरु रया सिाज चेिना के पया​ा य हs । उल्लास के प्रिीक हs । जवानी के अँगड़ाई हs आ बालपन के सहलकोरा भी । नया दल ु सहन के सौंदया हs आ योद्धा के ललकार भी । एिना सवसवर्िा भरल सिाज से सनकलेवाली सासहसययक पसिका के सािने जवन दबाव होला, “आखर” के सोझा भी बा । दबाव सब कुछ सिेट लेबे के , सासहयय के अलग-अलग सवर्ा के साथे सिाज के नायकन के उसचि िहयव देबे के आ सबसे बड़हन, पाठक गण के अपेक्षा पर खरा उिरे के । सपछला दनु ू अंक के बारे िें रउआ सभे के प्रसिसिया पढ़ सनु के उयसाह चरि पर बा । एकरा बादो हिनी के अपना दासययव के बोर् बा आ सनरंिर बनल रही । भारि के स्विंि​िा संघषा के इसिहास िें अप्रैल िहीना के सवशेष िहयव बा । अंग्रेजी सत्ता के अययाचार से िस्ि होके 1857 िें देश पसहला हाली प्रसिरोर् कईलस । प्रसिरोर् के स्वर देबे वाला भोजपरु रया लाल रहलन – िंगल पांडेय । जवना हुकूि​ि के सखलाफ के हू खड़ा होखे के सोच भी ना सकि रहे, भोजपरु रया स्वासभिान ओकरा सोझा हसथयार लेके अड़ गइल । 8 अप्रैल 1857 के िाँ भारिी के वीर सपूि के फाँसी पर चढ़ा सदहल गइल । िंगल पांडेय के शहादि सल ु गि सचंगारी के र्र्कि ज्वालािख ु ी बना सदहलस । एसह ज्वालािख ु ी िें िप्त होके भोजपुररया िाटी पर एगो शेर प्रकट भईल – वीर कुँवर ससंह । आरा से लेके, गाजीपरु , बनारस, आजिगढ़, बसलया िक एह शेर के गजा ना के साक्षी बनल । दसु नया के सवा श्रेष्ठ फौज कुँवर ससंह से एक हाली ना बेर बेर परासजि भइल । सिटीश फौजी लोग के बीच आिंक के पया​ा य बन चक ु ल रहे इ बढ़ु शेर । जीवन के अंसि​ि यद्ध ु जीि के अप्रैल 1858 िें सदा सवा दा खासिर एह र्रा र्ाि से सवदा सलहलन वीर कुँवर ससंह । अपना पीछे छोड़ गइलन, प्रेरणा के अथाह सागर जवना के एक बदूं भी िांसि के कीसिा िान रच सके ला । भोजपरु रया िाटी िें जनिल राहुल सांकृययायन के अवदान के िख्ु य र्ारा ओिना िहयव नइखे देले जवन सिले के चाहीं । शायद एकर वजह इहे रहे सक राहुल जी सबना कवनो गटु आ सगरोह के चक्कर लगवले सिकालीन सिाज िें आपन उपसस्थसि दजा करा देले रहनी । उँहा के व्यसियव के अलग अलग पहलू के सनरपेक्ष सववेचना कइल जाव ि हर पहलू पूणािा के आभास कराई । एगो सासहययकार, एगो संि, एगो िांसिकारी, एगो सवदूषक, आ एगो भाषासवद के रुप िें सिाज पर उँहा के छाप सिग्रिा िें देखल जा सकि बा ।

आखर चौपाल

सबहार के अिीि गौरवशाली रहल बा । सशक्षा के कें द्र, राजनीसि के कें द्र, व्यापार के कें द्र, आ कला संस्कृसि के कें द्र रह चक ु ल बा सबहार । ससंर्ु घाटी सभ्यिा के बाद प्राचीन भारि के इसिहास के अगर सबहार के इसिहास कहल जाव ि असिशयोसि ना होई । एिना संदु र आ िजबूि नींव पर टीकल इिारि अगर भहरा जाव ि के हू इहे कही सक इिारि के रहसनहार ठीक नईखन । अपना िरफ उठ रहल उँगली से सबहारी सकपका जाि रहलन हा । सबहार सदवस के बहाने अपना स्वणीि इसिहास से प्रेरणा लेके नया सबहार बनावे के संकल्प सदख रहल बा एक एक सबहारी िें । ई एगो सख ु द संकेि बा । कवनो सिाज अपना संस्कृसि से कट के आपन असस्ियव आबाद नईखे रख सकि । संि​िण के दौर से सनकले खासिर छटपटाि सबहार एकर साक्षाि उदाहरण बा । “शहनाई” शब्द सनु िे कान िें सिठास घल ु जाला आ जेहन िें एगो िस्वीर िैरे लागेला । उ िस्वीर सबना आयिा आ प्राण के ना होला बलुक जीवंि होला । चेहरा पर िस्ु कान आ होंठ पर संगीि सलहले भारि रयन सबसस्िल्लाह खान के जब अविार लेबे के भइल ि उँहा के भोजपरु रया िाटी के वरण कइनी । परु ा जीवन गंगा िाई के गोदी िें सार्ना कइनी आ दसु नया के “शहनाई” के िायने बिवनी । गंगा जिनु ी िहजीब इँहा के साथ पा के सखलसखलाये लागल । बाबा सविनाथ सबसस्िल्लाह के शहनाई के सबना भोग ना लगावस । एिना बड़ वजूद रहे खान साहेब के । आज के दौर िें “सबसस्िल्लाह” आ “सविनाथ” के बीच के खाई पाटे खासिर शहनाई के उहे गूज ँ जरुरी बा, जवन हिनी के बीच नइखे रह गइल । चईि के िहीना बड़ा चंचल होला । शीि के असर कि होखिे भोजन के प्रकृसि िें बदलाव जरुरी हो जाला आ भोजपरु रया सिाज एकरो के एगो उयसव “सिआ ु न” के रुप िें िनावेला । चारो सदशा िें संगीि के आलाप सनु ाई देबे लागेला । सकसान के डेहरी, आि के िंजर, िहुआ के कोंच, सचरईन के चोंच आ प्रकृसि के िार्यु ा से सनकलल संगीि सभका के िदहोश क देबेला । सपया के सबना सबरसहन के सबरह पानी सबनु छटपटाि िछरी अस हो जाला । अइसना सस्थसि िें बरबस ही स्वर फूट पड़ेला- हो रािा... . “आखर” के ई अंक अपना गोदी िें अपना पररवेश, अपना इसिहास आ सवसवर्िा के सहेजले भोजपरु रया सिाज के सोझा बा । उम्िीद बा एक बेर फे रु रउआ सभे के आशीवा​ा द आ सझ . ु ाव के सवनम्र बरखा होई । - आखर पररवार

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आखर चौपाल

चइती िारी देली कान्हा जी के िसिया हो रािा कुबरो सवसिया काटे-र्ावे चइि के रसिया हो रािा

पव ू ी

जोहर शाकियाबादी कुबरो सवसिया..

कसहके गइले श्याि सचसिया पेठाएब,

वेद बदलाई

कइलें करार कहलें कबो ना भूलाएब हिनी से कई देली घसिया हो रािा...

ननलय उपाध्याय

भोजपुरी

िड़पेली सखी सबऽ टपके कजररया,

िड़पे ले जइसे िछररया बेमजलारसबनबचवा के हिी िाना िारे कुहूकी कोइसलया हो रािा...

जा

ध्रव ु गुप्ि

हिनी से कवन चक ु भइल बा बिावस आवस चाहे सचसिया िें सलख के पेठावस जौहर श्याि भइले सनरिोसहया हो रािा...

िम्भंग भोजपुरी

िंिोष पटे ल

जौहर शात्रियाबादी

त्रबदे सिया के पािी

जौहर शाफियाबादी जी शाफियाबाद शरीि गोपालगंज , बबहार के रहे वाला हई । अपने भोजपुरी खाबि सबसे पबहले १९७० में गोपालगंज अनुननराला मंडलाबिकारी के सोझा अनशन कइले रहीं । भोजपुरी साबहत्य के आँचर में हर बविा में सृजनरूपी खोइछाँ भरे में रउआ नेह-छोह से जुटल बानी । भोजपुरी में पबहला गजल महाकाव्य 'रं गमहल', ऐबिहाबसक उपन्यास 'पुरबी के िाह', लबलि बनबंि संग्रह ,कबबरा खडा बाजार में, 'वेद और कु रान’ सबहि दजजन भर बहुचर्चजि कृ बि प्रकाबशि भइल बा । विजमान में इहाँ के 'भोजपुरी व्याकरण' बलखे में पूणज मनोयोग से जुटल बानी ।

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प्रका हि​ि रच


चइत महिना

चइता : लोक साहित्य के संवेदनशील धरोिर क सासहयय कवनो भी संस्कृसि के र्रोहर हऽ आ एह र्रोहर के सबसे िख ु ररि आ उयकृष्ट रूप भोजपरु रया संस्कृसि िें देखे के सिलेला। भोजपरु रया बर्ार िें लोक जीवन सदा से संवदे नशील आ जागरूक रहल बा। देश आ सिाज के प्रसि इहे संवेदनशीलिा लोक सासहयय खासि प्राण वायु होखेला आ आपन असस्ियव के बचावे के आर्ार भी प्रदान करेला।

लो

फागनु के अंि के साथ फगआ ु के अंि हो जाला आ चइिा के िाल ठोका जाला। िूलि: चइिा के राि जन्िोत्सि से जोड़ के देखे के परंपरा लोक िें बा। बाहक चइिा िनोिैज्ञाहनक रूप से चइि िाि के िािािरण िें सनाईल ओि प्राकृहिक उिंग के उदगार िऽ जिन सिचू ा प्रकृहि िें रचल बसल बा। सांस्कृहिक आधार पऽ एक िरे से इ ‘हिंदु नि​िषश’ के प्रारंभ के जयघोष आ िुल्लास िऽ।

दरअसल भोजपरु रया संस्कृसि िूल रूप से अपना िाटी से जड़ु ल एगो प्राकृसिक सौंदया बोर् के नाि हऽ। इहाँ सारा रीिनीि प्राकृसिक सवलक्षणिा पऽ आर्ाररि बा। र्रिी-आकाश, हवा-पानी, पाथर-पहाड़, गाछ-वक्षृ , सचरई-चरु​ु ं ग, जीव-जंिु आ िनष्ु य सभे जवना प्राकृसिक पररसस्थसियन से जब-जब, जइसेजइसे प्रभासवि होखेला, ऊ ओही िोिासबक भेष-भाव आ िनोवैज्ञासनक दशा-सदशा िें प्रदशा न करेला। ऊ चाहे फगआ ु होखे चाहे चइिा, चाहे बारहिासा होखे भा पूरबी एह सब िनोभाव प्रर्ान असभव्यसियन के संबंर् खाँटी प्राकृसिकिनोवैज्ञासनक बोर् पऽ आर्ाररि बा।

चइिा, चइि िास िें गाए जाए वाला ऊ गीसि-शैली हऽ जवना िें प्राकृसिक वणा न से नवो रस के रसर्ार प्रवासहि होला। िबो एह िें सवशेष रूप से भसि, श्रंगृ ार, सवरह, सवयोग आ करूण रस के प्रार्ानिा होला। खास िौर पऽ जे िरे से फगआ ु के भोजपरु ी भाषा-सासहयय िें एगो सवशेष गायन शैली आ सवर्ान बा ओही िरे से चइिा के भोजपरु ी भाषा-सासहयय िें आपन एगो सवर्ागि स्वरूप, सवशेष शैली आ गायन के कला बा।

फागनु िें वािावरण के अल्हड़पन आ प्रकृसि के िस्िाना सिजाज से िनई प्रभासवि रहेला जवना के उदगार पोसा-पला के राग-रंग रूप िें फले-फूलाये लागेला। एह के पसहचान आ प्राकृसिक िल्ु यांकन कर के कबो योगीराज कृष्ण एह के ‘रंग िहोयसव’ िें पररवसिा ि कइलें िऽ कबो ई िया​ा दा परू ु षोि​ि प्रभु श्रीराि के वैचाररक ऊजा​ा से 'सकि् वदंसि' आ पौरासणक घटनाि​ि के आर्ार बनल। फगआ ु जहाँ 'प्रहलाद-सहरणकष्यप' से जड़ु ल एगो ऐसिहाससक कथ्य-िथ्य पऽ आर्ाररि बा उहवें चईिो राि जन्ि-उयसव आ उल्लास पऽ आर्ाररि बा।

चइिा गीसि परंपरा के िूलि: िीन गो स्वरूप भोजपरु रया बर्ार िें िौजूदगी बा(क) चइिा (ख) चइिी (ग) घा​ाँ ो सवर्ागि रूप-स्वरूप के साथ उपया ि ु शैली भोजपरु ी लोकसासहयय िें प्रचसलि बा। (क) चइिा - चइिा के सवर्ागि स्वरूप 'रूढ़ आरोह' से भरल िहज दू-िीन पंसि के कथ्य पऽ आर्ाररि होखेला। जहाँ खास िौर पऽ श्रगृ ांर वणा न होला। जइसे-

देवेन्द्र नाथ त्रिवारी देवररया , युपी के रहे वाला देवेंद्र नाथ बिवारी जी , द संडे इंबडयन भोजपुरी पबिका के कॉपी एबडटर रबह चुकल बानी। इँहा के स्विंि पिकार भी बानी आ एह घरी विाज महाराष्ट्र मे आगे के पढाई कई रहल बानी । कई गो शोि परक लेख अलग अलग पबिकन मे प्रकाबशि हो चुकल बा । आखर पेज से शुरु से जुडल बानी आ भाषा साबहत्य प कई गो लेख आखर प भी लाबग चुकल बा । © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 6

त्रब प्रकाहि​ि रचना लेखक के आपन ि आ जरुरी


चइत महिना " एिी ठइयां ए रािा, एिी ठइया​ाँ रािजी के भइले जनि​िा एिी ठइया​ाँ..." एगो अउर बानगी देखीं-

हुल्लास-उिंग से प्रभासवि िनोवैज्ञासनक वेग-सवरह वेदना के सचिण सवयोगी संदभा न िें जि के होखेला। ऊ चाहें कृष्णरार्ा होखस, चाहें सम्यक संकल्प के कवनो नायक। सवछोह आ दरु ाव चइि िास ना चाहे। संयोग के आह्वान सवशेष रूप से चइिी के अंग बनेला।

"चइि िें राि जी जनिलें ए रािा चइि िासे... घरे-घरे बाजेला बधैया ए रािा चइि िासे... "

भोजपरु रया संस्कृसि िें कृसषकिा के प्रर्ानिा बा। इहाँ खेिी खासि लोग आपन ‘सप्रय’ के ‘प्रेि-प्रणय सनवेदन’ के ठुकरा देला। सवरह के एह भाव से भरल कई गो चइिी गीिन के अनगु ंज ु न भोजपरु रया बर्ार िें चइि िाह िें सनु ाई पड़ जाला-

(ख) चइिी- चइिा के िख्ु य सासहसययक रूप 'चइिी' के रूप िें उभर के सािने आवेला, जवन अपना सवर्ागि स्वरूप आ काव्यकासयक चौकसी से भरल- परु ल भाव प्रर्ान गीि होखेला। बिौर बानगी-

“ रािा सा​ाँझिी के सुिल, िू ली हकररहनया​ाँ िो रािा िबो नािी जागेला ि​िरो बलिआ ु िो रािा... बबरी हखंचली आ हखंचली पयररया िो िबो नािी जागेला...”

“ िारी देली कान्िा जी के िहिया िो रािा कुबरो सिहिया का े-धािे चइि के रहिया िो रािा कुबरो सिहिया...” - जौिर

बिौर बानगी एगो िशहूर चइिी“ चढ़ल चइि हचि लागे ना रािा बाबा के भिनिा... कब िोइिें हपया से हिलनिा िो रािा बाबा के भिनिा...” (ग) घा​ाँ ो - घाँटो, चइिा से सिलि जल ु ि एगो असभव्यसि शैली के नाि हऽ जवना िें चइिे खानी वाक्य यद्ध ु होखेला। बिौर बानगी-

“ सुरसिी ि​ि​िा के कररलें सुहिरनिा िो रािा कं ठे सुरिे कं ठे सुरिे, िोखऽ ना सिैया िो रािा कं ठे सरु िे...” चइिा, चइिी आ घाँटो के बाररक सवभेद ना पकड़इला के चलिे कुछ लोग एकरा के िहज गायन शैली िानेला। बासक सच्चाई इहे बा सक इ िीनों अपना अलग-अलग रूप-स्वरूप आ काव्यकासयक काया िें बन्हा के एक-दोसरा से साफ अलग बा।

वइसे भी चइि सिसृ द्ध के िहीना हऽ। खेि- खसलहान िें एह सिसृ द्ध के दशा न चइिे िें होखेला। िइयार फसल देख के के कर छासि िें खुशी के लहर सहलोर ना िारी। बासक संयोग से सवयोग िक आ सवयोग से संयोग िक के एह िासिा क िागा िें वेदना, पीड़ा के कई गो फूल फूलाला अउर िरु झइबो करेला आ आसखर िें हरससंगार जस फूला-फूला के झड़ जाला। सचंिन के इहे िनो वैज्ञासनक जागसृ ि चइिी के िेरूदण्ड बनेला। िनौवैज्ञासनक रूप से सचंिन, जीवंि​िा आ संवेदना के र्रािल रहल भोजपरु ी खासि सवडम्बना के बाि इ बा सक एकर सांस्कृसिक परंपरा िें कुछ अवांक्षनीय ित्त्वन िसलनअश्लीलिा, फुहड़पन आ नंगई के बोलबाला सबिल कुछ साल िें आिािक रूप से बढ़ल बा। जवना के दष्ु प्रभाव से 'चइिाचइिी' जइसन सांस्कृसिक सम्पदा सम्पन्न र्रोहर के सिक्ष असस्ियव बचावे के चनु ौसि खड़ा हो गइल बा। अइसना िें सिय के इहे िाँग बा सक संि​िण के एह दौर िें हिनी अपना सांस्कृसिक सवरासि के प्रसि गंभीर होई ं आ भोजपरु रया गौरव के प्रसिकन के जीवंि राखे के प्रयास करीं। पनु सना िा​ा ण आ जीणोंद्धार के एह दौर िें भोजपरु ी खासि एको डेग ना उठावे वाला के इसिहास कबो िाफ ना करी। जय भोजपुरी । (सियोग : प्रबोध कुिार हि​िारी, पंकज प्रजापहि जी)

चइिी िें नवो रस के प्रर्ानिा होखेला जवना िें चइि के © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 7


चइत महिना

विधना के दोष गाँव के दसक्खन छोटी िक ु ी टोला काल्हु के सफसकर ना आजु सहे के िजबूर नान्ह-नान्ह सि​िली लूगा थम्हले िोटका र्ागा अझरु ाइल लसटआइल झोंटा सचचरी घींचि आ सचप्पी फें कि झोंटा कसहया बन्हाइल आ चोटी कसहया लिहर भ गइल ई टोला के बझ ु इबे ना कईल बासकर ......

िाड़ गइलन स परु​ु ब वाला रासि के अन्हररया िें आइल कुछु परछाई अन्हररया छँटल आँसख िें उसग आइल लाल र्ागा एकरा बाद... घंटन लोराइल आँसख आसक आसखर िें... सभ सथरा गईल सवर्ना फे नु दोसी भइल बा ।

© आखर ● अप्रैल, 2015 ● 8

गणेश जी बागी गणेश जी बागी भोजपुरी आ बहन्दी साबहत्य के उभरि साबहत्यकार हई , साबहबत्यक वेबसाइट ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम के संस्थापक आ पथ बनमाजण बवभाग बबहार सरकार में सहायक अबभयंिाके रूप में कायजरि गणेश जी बागी पटना (बबहार) में बनवास करे नी. इहा के पैिृक बजला बबलया ह. बागी जी छं द युक्त आ छं द मुक्त कबविाई करे नी, इहाँ के लघुकथा बहुिे पसन कईल जाला.


बतकूचन

बतकूचन...

वनो लइका भा लइकी के घाँटी िें आवाज भलहीं देविा-पीिर के दीहल होखो, बाकी ओकनी के बोली आ भासा उन्हनीं के िाइये के दीहल होला । आगा इन्हसनन के ससहा यावे िें भलहीं सउँसे घर-पररवार, आस-पड़ोस लासग जाओ, बासक कवनो बबआ ु -बबनु ी आपना सिय िें कइसन बोलसनहार हो के ठाढ़ भइल बा लोग, ई घर-पररवार भा आसपड़ोस ना बलुक उनकर सउँसे सिाज आँकेला । सङहीं, ईहो ओिने साँच बा जे कवनो सजन्दा सिाज आपन प्रखर बोलसनहारने के दि प अपनो दि सार्ेला । कहलो बा जे बेिी आ सिाज, ई दनू ो इकाई एक दोसरा से रस पाइ जीये ली सऽ । हर िरीके ! कहे के िाने ई, जे जइसन बेिी, ओइसने ओकर सिाज होई । आ जइसन सिाज होखी ओइसने ओह सिाज के बेिी आ लोग होइहें ।

स्वारथ आ नारकीय भावदासा के कारने एक सवन्दु आ एक सिय के बाद कवनो भोजपरु रहा बेिी अपना सिाज का ओर से सनसला प्त हो जा रहल बा । उपरी िौर प ओकरा ना के हू प भरोसा बा, आ ना ऊ के हू से कवनो िरी के सासयवक अपेक्छा राखेला । खलसा ओकरा अपना ि​िलब से ि​िलब बा । आ ओह ि​िलब के सार्े के फे रा िें चलि अनसदना के ओकर गनु ा-भाग बा ! िाने, स्वारथ सार्े के होखे ि ’िूँ देविा’, आ ना, ि ’जा सरऊ परोरा रोपि होखबऽ ि अपना घरहीं रोसपहऽ, हिार कुछऊ उखाड़ ना लेबऽ’ के भावदशा िें जीयि भोजपरु रहा सदिाग से बेलगाि लोगन के जिाि बसन के रसह गइल बाड़े । पीढ़ी दर पीढ़ी देस-दासा के िख्ु य र्ार से फररका परल, एक ओरे जीयि ई सिाज जब कबो के हू से उिेद बन्हबो कइलस ि उपसट बन्हलस । चाहें ऊ देस के चनु ाव िें बान्हल उिेदे काहें ना होखो ! अब उिेद िें हेह िरी ि​िइला के का कहल जाओ ?

एह आर्ार प जवन देखल-बूझल जाओ जे आपन भोजपरु रहा सिाज किना एकवसटयाइल जीयि बा, ि राउर कनपटी से घाि चूए लागी । िाने फे रु ऊहे बसिया, गोजर के बदलाव के उठल बा अइसन ना तेज आन्ही हजार गोड़ ि भोजपुररहा सिाज के लाख, बासकर कुसल्ह गोड़वा लाख दीसा िें बढ़ि ! सोझ चलहीं के नइखे । एही कहवा​ाँ ई गोड़ जाता, कुछुओ बझ ु ाते नइखे !! कारने हर िरीके िजगर ई सिाज ओह रासह प ओ िरी - मनोज भावुक र्उरि कबो ना लउकल, जवना रासह प चलि-बढ़ि आपना देस के अउरी सिाज कहाँ से कहाँ चहुपँ गइलन स, भा चहुपँ े प बाड़े स । ई कहल बेजायँ ना होखी जे ओइसनो सिाजन के सवकास िें ओह भोजपरु रहा लोगन के बड़हन जोगदान बा जे “ हमनी के घर-दआ ु र के केहू आन्ह नइखे लूटत । अपने आजु ओह सिाज के सहस्सा हो चक ल बाड़न । सचकी, ु बीच के लोग हऽ । अपने नेता हवे । अपने गा​ाँव-जवार भोजपरु रहा लइका भा लइकी भोजपरु रहा क्षेि से बसहरी किाल के ठेकेदार हवन । अपने बीच के पसु लि-सिपाहीप किाल करि लउके ला लोग । बासकर ओही लोगन के उपयोसगिा भोजपरु रहा क्षेि िें ससद्ध ना हो पावेला । घोर अफ़िर बाड़न । “

सौरभ पाण्डेय सौरभ पाण्डेय जी के पैिृक भूबम उत्तरप्रदेश के बबलया जनपद के द्वाबा क्षेि हs । बपछला बीस बरीस में राष्ट्रीय स्िर के अलग अलग कॉपोरे ट इकाई में कायजरि रहल बानी । आजकाल के न्द्रीय सरकार के ग्रामीण-पररयोजना आ स्कीम के संचालन खाबिर एगो व्यावसाबयक इकाई में नेशनल-हेड के रूप में कायजरि बानी । परों को खोलिे हुए (सम्पादन), इकडयाँ जेबी से (काव्य-संग्रह), छन्द-मञ्जरी (बविान) नाव से फकिाब प्रकाबशि हो चुकल बाडी स । साबहबत्यक संबलप्तिा के दोसर क्षेि बा सदस्य प्रबन्िन समूह ई-पबिका ,ओपनबुक्सऑनलाइन डॉट कॉम ; सदस्य परामशजदािी मण्डल िैमाबसक पबिका ’बवश्वगाथा’; सदस्य सम्पादक-मण्डल – ई-पबिका ’कबविा-प्रसंग’. © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 9


बतकूचन अपना क्षेि आ जवार िें हइसन अन्हररया काहें बा ? काहें बािबाि प गारा-गारी, िारा-िारी बा ? काहें बाि-बाि प लट्ठिबल्लि, गोली-फटाखरी बा ? काहें बेवहार के हई सघनही सरूप बा ? ई कवन सोच हऽ ? अइसना सोच िें अझरु ाइल लोगन के भावदासा के ि​िस कहल जाला जेकरा बारे िें श्रीिद्भाग्वद्गीिा के कहल सनु ीं अनबु न्र्ं क्षयं सहंसाि् अनवेक्ष्य च पौरुषि् । िोहाि् आरभ्यिे किा यित्तािसि् उच्यिे ॥

एह इस्लोक के एकै क शब्द जइसे सोझ ठाढ़ लउकि बा । ठाढ़े ना, जइसे लङटे नाचि लउक रहल बा । स्वारथ से उपजल िहुराइल िोह, भयंकर डाह, जासि-पाँसि ऊँच-नीच के सघनही सरूप, भयंकर सलंगभेद, वैचाररक कोढ़, बेलूरी ससच्छा, अछछ गरीबी, बेगारी, गण्ु डई, बेिी आ लोग खासिर अकथ सनरादर, भोग -सबलास खासिर असंयिी ललक । िाने रउआ कुछऊ अनेररया सोचीं, भोजपरु रहा सिाज के बेवहार िें ऊ लउक जाई । एह कुसल्ह के सबरोर् िें सोचे आला भलहीं किनो लोग होखो, सर्ु ार खासिर लासग के भीड़े आला सिवेिी अिदी हाल्दे ना लउसकहें । अइसन नइखे जे अपना सिाज के नोचे-चोंथे आ गींजे आला के हू बसहरी के लोग आइल बा । ि​िनी के घर-दुआर के के िू आन्ि नइखे लू ि । अपने बीच के लोग िऽ । अपने नेिा ि​िे । अपने गा​ाँि-जिार के ठे केदार ि​िन । अपने बीच के पुहलस-हसपािीअफ़सर बाड़न । एक हाली फे र से नजर फे रीं । आपन घरपररवार के लूटे आला छुसिहर चोरन के हेह िरीके पैठ रउआ कवन सिाज िें देखले बानी ? अपना गाँव-जवार-सिाज के सबकास कवनो दोसरा ग्रह आइल देविा ना कररहें । कहाला जे जीयि घर िें साही ना अिाली स । बासकर, इहँवाँ सासहये ना बादरु बसल बाड़न स । अपना घर के घरइये खा रहल बाड़े । अिना कुसल्ह के बावज़ूद भोजपरु ी िाई के कुछ बेटा कुछऊ सनकहा सकारायिक सोचि कबो ठाढ़ो भइले, ि लोग-बाग जवन ना सटटकारी पारल जे बाबू लोग पराइ चलले । आ ना, ि ओह भलिानसन प उिेद-आसा-स्वारथ के ऊ ना बोझा लासद दीहल गइल जवना के सोचला भर से कुबेरओ के िसिसन्ु नी िार दीही ! अइसन बाि नइखे जे भोजपरु रहा क्षेि के अकास िें खलसा सिस्ने पच्छ बा । सनकहा सक ु ु ल पच्छ के अँजोरओ बा । ई सिाज एगो अद्भुि जीवट आला लोगन के सिाज हऽ । कवनो पररसस्थसि भा कवनो ठेकाना काहें ना होखो, सभ िें सिरस ! हर जगहा, हर हालि िें भोजपरु रहा जीयिे नइखन, एक सिय के बाद ओह हालाि आ ठेकाना के सनकहा सनयंिक आ संचालक हो जा िारे ।

कवनो ठेकाना काहें ना होखो, एक सिय बाद भोजपुररहा ओ जगहा के बड़हन हस्िी हो जाले ! देस छोड़ीं, दसु नया के कवनो देस-प्रदेस, नगर-शहर किहू ँ िाक लीहीं । राउर आँसख खुल जाई । जाने किना देसन के ि रास्राध्यच्छ आ जन-निु ाइन्दा ले भोजपरु रहा बाड़े । भलहीं उनकर बाप-दादा ओह देसन िें ’सगरसिसटया’ आ िजूर-कहाँर अस हँकावल गइल रहले । अकथ सजसनगी जीयि-भोगि ऊ लोग सनभा ले गइले । बासकर आजु ओही देसन िें उनक ु र पोिा-परपोिा लोग र्िक बनवले बा । ि बाि फे रु ऊहे - ई श्रद्धा आपन सिाज खासिर काहें नइखे ? चइि िाह साल के पसहल िाह हऽ । रउओ अनकसे बझ ु ाई जे बररस के हेह पसहल िाह िें हिहू ँ का ठान के बइठ गइल बानी । बासकर, हिार कहनाि सोझ बा । साल के सरु​ु आसिये िें काहें ना हिनीं के नीर-क्षीर सोचीं जा ? ना ि हइसना सिाज के का आवाज होखी ? का भासा होखी ? आ होखबो करी ि के हू काहें सूनो ? भोजपरु ी भासा के उयथान आ पसहचान के बाि ि िब नू होखी जब भोजपरु रहा जवान एकवसटये सोचे लागसु ! जवन सोचसु सकारायिक सोचसु ! कवनो सजन्दा सिाज आपन लइकन आ आगे आवे आली पीढ़ी प सविास बना के बढ़ेला । नया पीढ़ी खासिर सनकहा जगहा बनावेला । हिनी के बूढ़-परु ान लोगन के कइलका कुसल्ह नीिन-बाउर प निन करीं जा । कवनो सवाल ना । पूवाजन के कइलका प सभके गवा होखे के चाहीं । बासकर सजसनगी उहँवें ना रुक जाले, आगा बसढ़ जाले । ना ि कवनो सिाज भिु हा हो जाला । भिु हा सिाज के का चीख, आ का भासा जी ? भासा होले जीयि-जागि सिाज के । पसहले हिनीं के जागी जा, होसगर होखीं जा । ढेर र्ाजा फहरौनी जा हिनी के , आ खूब नारा लगौनी जा । जवन भेंटाइल बा ऊ सोझहीं बा । लउक रहल बा जे बाबूसाहेब के बाि पाँड़ेजी नइखन सनु ि । पाँड़ेजी के कहलका िें जादवजी के भागीदारी नइखे । जादवजी से होने किकर टोला िहुँ फुलौले बा । आ ई कुसल्ह सर्ा गइल, ि खाड़ी आ सउसदया के पइसा अलगे हुिँ च िचवले बा ! कलसा आ िीनार अलगे आपन-आपन बाँसहं चढ़ावे प लागल बाड़े स ! गबु रइला आ सपलआ ु अपनहीं िें गयु थिगयु था भइल एकदोसरा प चढ़िे-भीड़ि सजसनगी गँवा देलन स, आगा ना बढ़ऽ स । अब भइु याँ पलथी िारर के गहीर सोचे के काि बा । एकसदस भइला के काि बा । हिनीं के अपना के सजग क लीहीं जा ि के हू के बेंवि नइखे जे हिनीं के कगररयाओ । जय भोजपुरी ।

© आखर ● अप्रैल, 2015 ● 10


सबहार सदवि सवशेष

वबहार, सा​ांस्कृवतक पररचय

इसे ि साल के िीन सौ पैसठों सदन के आपन अलग िहयव होला लेसकन एही सदनन िें से कवनों सदन अपना सवसशष्टिा आ उपलसब्र् सवशेष के कारण क्षेि-सवशेष खासिर आि से खास हो जाला आ ओह क्षेि –सवशेष के लोगन खासिर श्रद्धा-भावना के सवषय बन जाला l सबहार खासिर भी 22 िाचा श्रद्धा-भावना से जड़ु ल सदन ह l एह सदन के ऐसिहाससक दृसष्ट से जहाँ िहयव बा उंहे अंगरेजन के शासन काल िें दबल-कुचलल सबहारी लोगन खासिर खुलल-हवा िें साँस लेबे के असर्कार ना सही लेसकन फे रु से आपन एक अलग पहचान बनावे के असर्कार ि सिसलए गइल रहे l कारण सक ई उहे सदन ह जवना सदने सन- 1912 िें अंगरेजी शासन के दौरान सबहार के बंगाल से अलग एगो संपूणा राज्य के दजा​ा सिलल l साथ ही सबहार के एक अलग पहचान भी l वैसे ि एह घटना के घसटि भइला सौ साल से बेसी हो गइल बावजूद एकरा एकर िहयव आज भी कवनों िरह से कि नइखे l

हर राजनीसिक पाटी के एगो अलग सोच होला आ कवनों घटना के देखे के एगो अलग नजररया भी l एकरा साथ ही आपन एक अलग पहचान बनावे के ओकरा जरूरि भी होला आ भीड़ से अपना के अलग सदखावे के चाहि भी l आजादी के बाद से सबहार िें अनेक सरकार बनल आ ऊ आपन काया काल पूरा भी कइलस l पर सब सरकार अपना िन-िोिासबक आपन ‘घोषणा-पि’ यानी सवचारणीय सवषयन के सूसच बनवलस आ वोही के ि​िु ासबक आपन काया -आचरण कइलस l नीिीश कुिार के सरकार िें 22 िाचा के िहयव पर ध्यान देहल गइल आ ओह सदन के ‘सबहार-सदवस’ के रूप िें िनावे के परम्परा पड़ल l सबहार िें एह सदन सरकारी छुट्टी भी घोसषि कइल गइल बा l

‘ग्लोबलाइज़ेशन’ शब्द के प्रयोग आज बहुि जोर-शोर से हो रहल बा l सवज्ञान के सवकास आ आवा-गिन के सार्न िें िांसिकारी पररविा न के पररणािस्वरूप पूरा सवि एक हो गइल बा l र्रिी के एक छोड़ के खबर आँख झपकिे दोसरा छोड़ ले पहुचँ जािा l एह से एक देश-सिाज के रीसि-नीसि, सिाजसंस्कृसि के बाि दोसरा सिाज के लोग झट से जानसिझ जािा लेसकन ई सब ि आज के बाि ह जबसक हि अभी बाि एह विा िान सिय के नइखी करि बसल्क आज से सैकड़ों साल पसहले के करिानी जवना घड़ी सवज्ञान के ना ओिना िरक्की भइल रहे ना ही आदिी एक जगह से दूसरा जगह एिना आसानी से आ-जा ही सकि रहे l आवा-गिन के सार्न के नाि पर पसनया जहाज, नाव, डोंगी, कहींकहीं रेलगाड़ी, िट्ठु ीभर लोग के पास िोटर गाड़ी भी रहे, ि कहीं पशु के सवारी रहे ि कहीं डोली–पालकी से काि चलावल जाि रहे l कभी–कभी ि िीलों के यािा अपना दूनू पैर के भरोसे ही िय करे के होि रहे l सड़क के जाल भी एह िरह से ना पूरा देश िें ना सबछल रहे l रास्िा के नाि पर कहीं पगडंडी रहे ि कही सबयावान जंगल के कसठन रास्िा भी िय करे के पड़ि रहे l ओह सिय एक शहर से दोसरा शहर िें गइल एगो सजा से कि ना रहि रहे l शारीररक रूप से किजोर आ बूढ़ा लोग ि अपना िंसजल िक पहुचँ ही ना पावि रहे l एकर एगो उदाहरण ध्यान िें आविा–सनु ले बानी सक परु ाना सिय िें घर के परु सनया जब घर से चारों र्ाि करे खासिर सनकलस ि घरवाला लोग उनकर अइसन भीि िन आ भरल आँख से सवदाई करो िानो ऊ चारो र्ाि करे ना जाि होखस बसल्क कवनों अइसन जंग पर जाि होखस जवना से उनका वापस लौटे के उम्िीद ना के बराबर होखे l ओह भावना िें ओह सिय आ पररसस्थसि के अवलोकन करिे हुए हि आजो ओह ददा से रू-बरू हो जाइले ,काहे सक ई घटना स्वयं चीख-

ज्योत्सना प्रसाद बसवान , बबहार के रहे वाली ज्योत्सना जी , हहंदी भाषा आउर साबहत्य में बी. ए. (प्रबिष्ठा), एम्. ए. कइले बानी , अउर पटना बवश्वबवद्यालय से प्रोिे सर डॉ नंदफकशोर नवल के बनदेशन में महाप्राण बनराला के गद्य के शैलीगि अध्ययन पर डॉक्टरे ट कईले बानी l हहंदी में उपन्यास “अगजला” प्रकाबशि बा दू गो उपन्यास “अंि​ि:” आउर “मुक्तकुं िला” , कबविा संग्रह आउर कहानी संग्रह प्रकाशन के प्रिीक्षा में बा l अरबी भाषा के मशहूर उपन्यास “अल-रहीना” के हहंदी में “बंिक“ शीषजक से अनुवाद आउर प्रकाशन l जॉडजन, चीन आउर अमेररका में आयोबजि सम्मेलनन में कबविा पाठ l एह घरी मुंबई में रबह रहल बानी । © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 11


सबहार सदवि सवशेष चीख के ओह सिय के पररसस्थसि के दरसाविा l कारण सार्ारिया चारों र्ाि करे खासिर अपना गहृ स्थ– जीवन के सजम्िेदारी से ि​ि ु यानी बूढ़ा लोग ही जाला l बूढ़ा शरीर से ओिना दगु ा ि रास्िा के िय कईल बहुि ही कसठन काया होई जे बहुि कि लोग ही पूरा कर पावि होई l अपना लक्ष्य के पूरा कई के अपना घरे वापस लवटल बहुि सहम्ि​ि, संयोग आ संघषा के बाि रहे l एह से चारों र्ाि पूरा कईके बहुि किे लोग अपना घरे वापस लवट पावि रहे l जब कही के हू के अइसन संयोग बनि रहे सक ऊ अपना चारों र्ाि पूरा करके अपना घरे वापस लौटि रहे िब घरवाला लोग आ स्वयं ओह आदिी खासिर कवनों उयसव से कि ऊ सदन ना रहि रहे l एह से आपन ख़ुशी के व्यि करे खासिर घरवाला एगो बड़का भोज देि रहे l िबे से चारों र्ाि से वापस लौटला के बाद भोज देबे के एगो परम्परा बन गइल होई l कहे के अथा ई बा ओह सवषि पररसस्थसि िें भी, जब कही भी यािा करे के िन िें आइल सवचार भी के हू के सहज ही डरा देबे िें सक्षि होखे l सबहार से ना जाने के िना पररवार हजारों- हज़ार िील के कसठन यािा करे खासिर िैयार हो गइल रहे l आसखर काहे? उत्तर स्पष्ट बा के हू सबना कोई ठोस कारण के अपना घर छोड़े खासिर िैयार होई का ? जब सक ससफा अपना घर ही छोड़े के बाि ना होखे बसल्क अपना िािृभूसि के सवयोग झेले के भी बाि होखे l के हू शायर कहले बा – “कुछ िो िजबूररयाँ रहीं होंगी यूँ ही कोई बेवफा नहीं होिा l” ई िजबूरी कुछ आउर ना बसल्क आपन आ अपना पररवार के पेट के पाले के सवाल रहे, ओकरा के सज़न्दा बचावे के कसिकस रहे l जवना चलिे ई लोग के अपना संयि ु -पररवार के , अपना सगा –सम्बन्र्ी के , गाँव-टोला के हिेशा-हिेशा खासिर छोड़े के पड़ल l आपन आ अपना पररवार के पेट पाले खासिर l ई लोग अपना र्रिी के सवयोग- पीड़ा अपना हृदय िें दबवले, आपन िन िार के अपना र्रिी से कूच कर गइल l ई लोग अपना र्रिी के ि हिेशा खासिर छोड़ देहलस लेसकन ओकरा ि​ि​िा के बंर्न के ना िोड़ पावल l एही कारण एह पलायन िें जेिना लोग सरु सक्षि अपना-अपना िंसजल िक पहुचँ पावल ऊ सभे अपना हृदय िें अपना –अपना िाटी के सगु ंर् बसा के ले गइल l सबहार के कई बड़ा-बड़ा शहर गंगा के िटपर बसल बा l सबहार के राजर्ानी भी गंगा के िट पर ही बसल बा l जिीन भी उपजाऊ बा l बावजूद एकरा िौया वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त िौया आ सम्राट अशोक के गौरवपूणा घरिी

आर्सु नक काल िें गरीबी के िार से उबर ना सकल l कारण लोगन के हाथ िें ना कोई सवशेष परम्परागि हूनर रहे ना सवज्ञान के एिना िरक्की के बावजूद बड़ा-बड़ा कलकारखाना ही आज िक इहाँ लागल बा l आजो जनसंख्या के बोझ खेिी के ही उठावे के पड़ेला l चाहे आदिी के नौकरी पर आसश्रि रहे के पड़ेला l एही से कवनों िरह के सरकारीगैरसरकारी नौकरी खासिर ररि पद के ‘वेकेंसी’ सनकलेला ि ‘एक बल ु ावे चौदह र्ावे’ के बाि के कहो ‘एक बल ु ावे लाखों र्ावे’ वाली सस्थसि उयपन्न हो जाला l नौकरी के साक्षायकार िें रेन के भीिरी बईठ के जेिना लोग आवेला करीब –करीब ओिने रेन के ऊपर बईठ के l बावजूद एकरा जान जोसखि िें डलला के भी कोई फायदा ना होला l असर्कांश लोग साक्षायकार से बैरन वापस आ जाला l सबना नौकरी, सबना रोजगार के लोग सज़न्दा लाश के लेखा के हू-के हू िरह से अपना जीवन के ढोवेला l एह पररसस्थसि िें कोई अनहोनी हो गइल, चाहे प्राकृसिक आपदा आ गइल ि भूखिरी के ससवा कोई दोसर रास्िा आपन जीवन के चलावे के शेष ही ना रह जाय l कजा​ा िें डूबल सकसान के आँख के सोझा आयिहयया करे के आलावा कवनो दोसर रास्िा सूझबे ना करे l हि िंशु ी प्रेिचंद के उपन्यास के नायक के बाि नइखी करि बसल्क इक्कीस्वी सदी के सकसान के बाि कर रहल बानी l आजो सकसान आयिहयया करे के िजबूर हो जाला l जब आजादी के एिना बररस बाद भी सबहार के एह िरह के हाल बा िब देश के गल ु ािी के सिय का होई ? सबहारी लोग के सािने ि दइू एगो रास्िा बचल होई l पररवार सिेि भूख से िर जाए,चाहे अपना गाँव-नगर के अलसवदा कह के गाँव से सनकल जाव l अइसने सवषि पररसस्थसि सबहार से लोगन के अपना र्रिी से दूर जाए के पड़ल होई l सबहार से सवस्थापन बदस्िूर आजो कायि बा l गाड़ी के सडब्बा िें र्क्का-िक्ु की खाि लोग भी आपन आ अपना पररवार के भसवष्य सवाँरे के चाह अपना िन िें लेहले अपना र्रिी से सवदा ले रहल बा l जीवन के पगडंडी पर सगरि-सम्भलि ई लोग भी आपन िंसजल पा ही लेला l सबहार से सवस्थापन- पलायन के परम्परा ससदयों से चलल आ रहल बा l एही से सबहारी लोग र्रिी के हर कोना िें अपना जीवन से जूझि सिल जाई l पर ई लोग अपना र्रिी से दूर भले ही चल गइल बा पर ओकरा स्नेह आ सगु ंर् से ना l एह से ई लोग अपना साथे आपन संस्कृसि आ सभ्यिा भी बीज रूप िें लेले गइल बा l जेकर एगो प्रययक्ष प्रिाण आज भी देखे के सिलेला l आज सबहार–सदवस ससफा सबहार के भू-भाग िें ही नइखे िनावल जाि बसल्क अिेररका, सिटेन,

© आखर ● अप्रैल, 2015 ● 12


सबहार सदवि सवशेष आँस्रेसलया, कनाडा, बहरीन, किर, यूनाइटेड अरब अिीराि ,सरनीडाड आ टोबैगो, िाँरीशस जइसन देशन िें भी ‘सबहार-सदवस’ पर जहाँ एक ओर चचा​ा करि लोग सिल जाई उहई दोसरा ओर ओकरा के िनावि लोग भी दीख जाई l सबहार शब्द संस्कृि के शब्द ‘सवहार‘ से बनल बा l जवना के अथा होला बौद्ध–िठ l सबहार िें अनेक बौद्ध-िठ रहे l एह िठन िें बौद्ध-सभक्षक ु लोगन के सयय-ज्ञान के सशक्षा भी देहल जाि रहे l एह से कुछ लोग एकरा के बौसद्धक-के न्द्र चाहे सवद्यालय से जोड़ के देखेला l बसख्ियार सखलज़ी के एगो दूि बोर्गया से सत्तर सकलो िीटर दूर सबहारशरीफ िें आइल रहे l ऊ बसख्ियार सखलज़ी के जानकारी देहलस सक वोह शहर िें एगो सवद्यालय भी बा आ ‘हि​िार’ िब्द के अिश िोला हिद्यालय l गौि​िबद्ध ु के बौसर्यव के प्रासप्त भी एही सबहार के एक वक्षृ के नीचे भइल रहे जे बाद िें बोसर्वृक्ष कहाइल आ ‘गया’ ‘बोर्गया’ बन गइल l ई सबहार िें ही बा आ बौद्ध र्िा के लोगन खासिर िीथा स्थल l एही बोर्गया िें सज ु ािा के हाथ के बनल खीर ग्रहण करके गौि​ि बद्ध ु के िज्झ-िागा यानी िाध्यि –िागा के िहयव के आभास भइल l सबहार ससफा उहे ना ह जे आज संचार-िाध्यि िें देखावल जा रहल बा l सबहार के एक गौरवपूणा इसिहास रहल बा l सविसवजेिा ससकन्दर ि सबहार िक ना पहुचँ पवले लेसकन उनकर सेनापसि सेल्यूकस चन्द्रगप्तु िौया से ससफ़ा परासजि ही ना भइले असपिु आपन बेटी के सववाह भी चन्द्रगप्तु से उनका करे के पड़ल l सम्राट अशोक के सनशान आजो भारि के हर ससक्का िें िसु द्रि होला l अपना देश के गौरव, हर भारिीय के जान से भी असर्क प्यारा आपना सिरंगा के के न्द्र के सस्थि अशोक–चि सनरंिर प्रगसि आ जीवन्ि​िा के संदशे हर भारिवासी के देला l राजिंि के दौर िें भी गणिन्ि के अलख जलवले वैशाली के एक अलग पहचान रहे जे आर्सु नक गणिन्ि के प्रेरणा बनल l सशक्षा के क्षेि िें नालंदा सविसवद्यालय आ सवि​िसशला के कवनो िक ु ाबला ही ना रहे l कहल जाला सक नालंदा सविसवद्यालय के द्वारपाल भी चौदह भाषा के ज्ञािा रहे l जे के हू सवद्याथी ओह सविसवद्यालय िें नािांकन खासिर आवे ओकरा सबसे पसहले द्वारपाल के ही परीक्षा से होके गज ु रे के पड़े l नालंदा के खण्डहर आजो ओकर भव्यिा आ सवशालिा के इयाद करावे िें सक्षि बा l िौया वंश के पिन के बाद आपसी कलह आ षड् यंि के सशकार हो गइल सबहार l जवना के पररणािस्वरूप चन्द्रगप्तु

आ अशोक के टक्कर के कोई पराि​िी दोसर राजा ना हो सकल l पर कालांिर िें कई छोटा-बड़ा राज्य के उदय भइल l ई राज्य भी सार्न के अभाव िें चाह के भी बहुि कुछ ना कर सकि रहे l सफर भी िनष्ु य-िाि के ई इच्छा रहेला सक ऊ अपना जीवन-काल िें कुछ अइसन कर सके जवना से ओकर नाि होखे आ ओकर एक अलग पहचान बन सके l एही सोच के पररणािस्वरूप सबहार के अलग-अलग क्षेि िें अलगअलग िरह के कला के सवकास भइल l सबहार के अलग-अलग क्षेि िें अलग-अलग भाषा बोलल जाला l वैसे राष्रभाषा सहंदी सबहार के हर क्षेि िें बोलल आ सिझल जाला l सहंदी से सबहार के कवनों क्षेिीय भाषा के वैर भी नइखे सफर भी हर क्षेि िें अलग-अलग भाषा-बोली बा l वोह िें खुल के बोलल-बसियावल जाला l सबहार िें बोलल जाये वाला भाषा िें सहंदी के साथे –साथे िख्ु य बा- भोजपरु ी, िगही ,िैसथली, अंसगका l कला - क्षेत्र १.िधुबनी पेंह ंग

सबहार िें कई िरह के कला सवकससि भइल बा जवना िें सिसथला पेसन्टग के स्थान सबसे ऊपर बा l ई पेसन्टग िख्ु यरूप से सबहार के दरभंगा, िर्बु नी क्षेि िें देखे के सिलेला l एह पेसन्टग िें प्राकृसिक रंग के प्रयोग से िूलिः परम्परागि र्ासिा क देवी-देविा के सचि बनावल जाला l चूसँ क ई िान्यिा बा सक सीिाजी सिसथला के बेटी रहली एह नािे रािजी सिसथला के दािाद भइले l एही कारण परम्परागि सिसथला पेसन्टग िें राि-सीिा के ही सबसे असर्क स्थान सिलल बा l सिसथलांचल िें एह पेसन्टग के उपयोग कोई भी शभु अवसर पर कइल जाला सवशेषकर शादी–ब्याह, उपनयन के अवसर पर l एह परम्परागि पेसन्टग के भी आज नया रूप देबे के कोसशश कइल गइल बा l एकरा के सिय के िाँग के अनस ु ार सवकससि आ आर्सु नक भाव िथा सवचार से जोड़े के प्रययन कइल गइल बा िासक सिय के साथ जहाँ एक ओर एकरा िें सवकास हो सके उहई दूसरा ओर एकरा िें असर्क से असर्क लोगन के आकसषा ि करे के क्षि​िा सवकससि हो सके l सिसथला पेंसटंग के आगे बढ़ावे के श्रेय जािा- भारिी दयाल, िहासंदु री देवी, स्वoगंगा देवी, सीिा देवी के l ई लोग अपना अथक पररश्रि से एकर एक अलग आ सवसशष्ट पहचान सदलवलस l

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सबहार सदवि सवशेष २. िन्जूषा आ श सबहार के प्राचीन अंग राज्य के आटा ह िंजूषा आटा l एकरा के अंसगका कला भी कहल जाला l विा िान सिय िें अंग राज्य (भागलपरु आ ओकरा से सटल ओकर पडोसी क्षेि ) के कुछ भाग सबहार के अलावा पसि​ि बंगाल, नेपाल के िराई आ झारखंड िें पर गइल बा l िञ्जूषा आटा िख्ु यि: बाँस से बनल रहेला जेपर नाग देविा के सचि बनावल जाला l ई सबहुला– सबषहारी पूजा के सिय िें अगस्ि िहीना िें बनावल जाला l िञ्जूषा आटा के बहुि ऐसिहाससक िहयव बा आ सबहुला के प्रेि आ ययाग के सचिकारी के िाध्यि से दरसावल जाला l िञ्जूषा आटा पर शोर् से ई सनष्कषा सनकलल बा की सवि के सबसे परु ान सचिकला के ई सवर्ा ह जवना के कहानी कहे के िाध्यि बनावल बा l दस ु रका सबंदु जे आउर िहयवपूणा बा उ ई बा की ई कला पया​ा वरण के क्षेि िें एक सन्देश देिा साँप के कईगो जासि प्रजासि के सवलुप्त होखे से बचावे खासिर l ३.प ना कलि अठारहवी आ उन्नीसवी सदी िें िग़ु ल दरबार से पलायन कईल सचिकार लोग पटना के सवसभन्न िोहल्ला िें बस गईल, ओ कला के जे िग़ु ल दरबार िें नोहर आ िनोहर नाि के सचिकार शरु​ु आि कईले रहे लोग, आ ओकरा िें पटना िें नया प्रयोग कईल लोग जे कागज आ हाथी दांि पर बनावल जाव l ई सचिकला ‘पटना कलि’ के नाि से जानल गईल l ‘पटना कलि’ िें वाटर कलर के उपयोग कई के आि लोगन के जीवन शैली देखावल बा l सवि िें ई अपना िरह के एगो अनूठा कला बा l ‘पटना कलि’ के कलाकृसि आज पटना आटा कॉलेज िें संजो के रखल बा l संगीि-क्षेत्र सबहार िें संगीि के िीनों क्षेि- गायन-वादन-नयृ य- काफी सवकससि बा l भारिरयन सवससिल्लाह खां के सम्बन्र् सबहार के ही र्रिी से रहल बा l सबससिल्लाह खां के डुिराव िें जन्ि भइल आ काशी के इहाँ के आपन किा भूसि बनबनी l इहाँ के शहनाई वादन के क्षेि िें ओह िोकाि पर पहुचँ गइनी जवना के आगे कवनो राह बचल ना l प्रससद्ध सफ़ल्ि ‘गूज ँ उठी शहनाई ‘ िें इहे के शहनाई पूरा सफ़ल्ि िें गूज ँ िा आ सफ़ल्ि के शीषा क के साथा क भी करिा l संगीि (शहनाई वादन ) के क्षेि िें िील के पयथर इहाँ के सासवि भइनी l ध्रपु द गायकी के क्षेि िें सबहार के कइगो घराना बहुि नाि किइले बा l जवना िें

दरभंगा घराना के िसल्लक लोग आ बेसिया घराना के सिश्रा लोग के बहुि नाि बा l Dagar school of Dhrupad भी एही बाि के गवाही देिा l सबहार िें गया के भी शास्त्रीय संगीि िें बड़ा नाि बा l ई शास्त्रीय संगीि के क्षेि िें ठप्पा आ ठुिरी खासिर सवशेष रूप से नाि किइले बा l एह क्षेि िें राि प्रo सिश्रा, पंसडि गोबर्ा न सिश्रा आ प्रससध्द गायक पद्मश्री गजेन्द्र नारायण ससंह के काफी नाि बा l चम्पानगर के बनैली के न्द्र के राजकुिार श्यािनन्द ससंह के भी बड़ा नाि बा l लोक संगीि गायन

लोक-गीि के क्षेि िें भी सबहार पीछे नइखे l सबहार िें हर अवसर खासिर अलग- अलग िरह के गीि गावे के परम्परा बा l बच्चा के जन्ि के बेरा से जे गीि–खेलवना, सोहर शरू ु होला ऊ छट्ठी–बरही िक चलि रहेला l कभी-कभी अगर बच्चा सिईसा िें पड़ गइल ि ई ससलससला सिईसा िक लम्बा खींच जाला l वैसे ही शादी-सववाह के अवसर पर भी देखल जाला l छें का-फलदान (छें का के अथा होला लसड़का यानी वर शादी खासिर छें का गइले l फलदान के अथा भी व्यवहाररक रूप से उहे भइल l ) के सिय से जवन गानाबजाना शरू ु होला ऊ शादी िक चलि रहेला l शादी के जेिना भी नेग होला हर नेग पर ओकरा अनस ु ार गीि गावे िें ररवाज बा l गाना िें एिना सवसवर्िा बहुि ही कि राज्य िें सनु े के सिलेला l एह गानन िें संझा-पराहि, हि​ि जी के गीि, िईया के गीि, सोिर, सिाना, झूिर छें कािलदान के गीि ,िल्दी के गीि,चुिािन के गीि, निछुआ के गीि, सिलक के गीि, िाटीकोरवा के गीि, द्वार-पूजा के गीि, इिली घोटउआ के गीि, कन्यादान के गीि, सेंदरू दान के गीि, अबटौनी के गीि सिर्ी-सिलान के गीि, गारी, जोग, दआ ु र छे काई के गीि, कोहबर के गीि ही ना बसल्क न जाने आउर के िना िरह के गीि सबआह िें गावे के ररवाज सबहार िें बा l सबहार िें हर अवसर पर गीि गावे के प्रचलन बा l एही से सबहार िें रोपनी के , सोिनी के जंिसार ,िगआ ु ,चैिी ,कजरी, पूिी या पूरबी, हबरिा आसद पररसस्थसि के अनस ु ार गावल जाला l िादन परु ाना सिय िें िनोरंजन के सार्न गाना-बजाना ही रहे l जब कभी खेिी–बारी के काि से लोग के सिय सिले,

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सबहार सदवि सवशेष चाहे कोई िौका होखे ि लोग आपस िें सिल-जल ु के गाविबजावि रहे l ई कवनों-कवनों जगह ‘गवनई’ के नाि से भी जानल जाला l एकरे साथे संगीि के कुछ उपकरण भी एह िरह के लोक संगीि के संगे बजावे के प्रचलन बा l जवना िें िख्ु य रूप से बजावल जाला – ढोलक, िबला, बांसरु ी, हारिोसनयि l वैसे कभी-कभी सारंगी के भी उपयोग देखे के सिल जाला लेसकन पािायय संगीि के उपकरण के साथ सबहारी लोकगीि के संगि ना के बराबर होला l सबहारी लोकगीि के गासयका पद्मश्री शारदा ससन्हा के नाि सवशेषरूप से उल्लेखनीय बा l ई यवु ा-पीढ़ी िें भोजपरु ी लोक गीि के प्रसि लगाव बढ़ा देले बाड़ी l परु नका लोगन िें हिंध्यिाहसनी देिी के नाि भी बहुि बा l इहाँ के ऑल इसण्डया रेसडयो (पटना ) के लोक-गासयका रहनी l लोक- नृत्य सबहार िें नयृ य के नाच कहल जाला l पूरा सबहार िें एके िरह के नयृ य ना होला आ ना ही एक दस ू रा िें सिरूपिा ही बा l सबहार के अलग-अलग क्षेि िें अलग-अलग िरह के नाच होला l इहाँ के कुछ नयृ य क्षेिगि बा ,ि कुछ जासिगि या पेशागि जैसे –धोबी नाच, झूिर नाच, िा​ाँझी नाच, गोड़ नाच, जीहिया नाच, िोर-िोरनी, डोि-डोहिन, भूआ-बाबा, रािबाबा ,कठघोड़िा नाच, लौंडा नाच, बािर नाच, ने ु आ नाच, न -नह न के नाच l परु नका सारण सजला के ग्रािीण क्षेि िें बाराि िें लौंडा के नाच के काफी प्रचलन बा l एह नाच िें िरदाना औरि के पररर्ान आ श्रंगृ ार िें नाच के बरािी लोग के िनोरंजन करेला l एह िरह के पररर्ान आ श्रंगृ ार करके हास्य के िाध्यि से लोग के िनोरंजन करना आजकल ि आि बाि हो गइल बा l चाहे ऊ कवनों हास्य सफ़ल्ि होखे चाहे टेलीसवजन पर हास्य – काया ि​ि l रंगिंच पूवा​ांचल िें वैष्णव आन्दोलन के प्रचार िें लोक नाटकन के िहयवपूणा भूसिका रहल बा जेसहिें सबहार सारथी के भूसिका सनभवाले बा l सिसथला िें नाटक सलखेके शरु​ु आि १४ वी शिाब्दी से भ गईल रहे l ज्योहिरीश्वर ठाकुर के ना क “धुिशसिागि” १३२५ ईस्िी िें हलखल एक ि​ित्िपूणश ना क रिे l बहुि प्राचीन काल से ही सबहार कला आउर कलाकारन के संरक्षण के िख्ु य कें द्र रहल बा l सबहार के

कीिा सनया आ सबदापि पूवा​ांचल के नाटक परंपरा के एक िहयवपूणा कड़ी बा l सबहार िूलिः कृसष प्रर्ान राज्य ह l आज भी सबहार के अथा -व्यवस्था के 22 % सहस्सा कृसष से ही आवेला जबसक उद्योग–र्ंर्ा से ससफा 5% l अथा - शास्त्र िें एक शब्द बा ‘सछपी बेरोजगारी‘ एह शब्द के प्रयोग कृसष के सन्दभा िें कइल जाला l एह शब्द के प्रयोग ओह पररपेक्ष िें कइल जाला जब खेिी िें ओह सनसि​ि अवसर् िें सकसान के करे खासिर कुछ ना रहे आ एक िरह से वोह काल सवशेष िें ऊ बेकार रहेला l आपन ऊ कीि​िी सिय एही िरह से बरबाद कर देला l चाहे जिीन के ओह छोटा सहस्सा पर पूरा पररवार आ कभी-कभी पूरा कुनबा लागल रहेला जवना के एक-दू आदिी बहुि आसानी से कर सके ला l एह िरह से बाकी के लोगन खासिर ऊ सछपल बेरोजगारी ही होिा l एह सिय िें आपन िन लगावे खासिर कभी-कभार नाटक आसद खेलल जाला l एह नाटकन िें कभी िुलसी कृि ‘रािचररि िानस’ पर आर्ाररि भोजपरु ी िें नाटक चाहे रािलीला होला ि कभी ओही िें हास्यरस के पटु डाल देहल जाला l एकरा अलावे कई सािासजक ,सिसािसयक नाटक भी खेलल जाला l एह क्षेि िें हभखारी ठाकुर के नाि सवशेष रूप से उल्लेखनीय बा l सभखारी ठाकुर विा िान सारण सजला के कुिुपरु के रहे वाला रहले l ऊ जािीय पेशा यानी हजाि​ि बनावे के काि खासिर खड़गपरु (कलकिा) आ गइले l उहई उनका रािलीला देखला से उनको िन िें नाटक सलखे के आ असभनय करे के उयसाह जागल l ऊ भोजपरु ी िें ‘सबदेससया’ नािक नाटक सलखले आ नाटक िें असभनय करे लगले l उनकर असभनय एिना लोकसप्रय भइल सक ओकरा के देखे खासिर हजारों दशा क के भीड़ होखे लागल l भोजपरु रया क्षेि िें उनका नाटक के अद्भिु प्रभाव रहे जवना के देख के अंगरेजी सरकार उनका के रायबहादरू के उपासर् देहलस l देश के आजाद भइला पर भी उनका अनेक राष्रीय पदक आ परु स्कार सिलल बा l भहिष्य के संभािना िैसथल कोसकल हिद्यापहि, आचायश हि​ि पूजन सिाय, हदनकर, राि​िृक्ष बेनीपुरी, नागाजशुन, िणीश्वर नाि रेणु, जानकी बल्लभ िास्त्री जइसन रचनाकार एह र्रिी के ही देन ह l देशरयन डॉ राजेन्द्र प्रसाद (भारि के प्रथि राष्रपसि ), लोकनायक जयप्रकाि नारायण भारि के ऊ अनिोल रयन ह लोग जेकर नाि ससफा सबहार के इसिहास िें

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सबहार सदवि सवशेष ना बसल्क भारि के इसिहास िें स्वणा​ा क्षर से सलखल बा l गाँर्ी जी के जीवन िें घसटि घटना िें से चम्पारण के नील के खेिी के सवरुद्ध जे आन्दोलन भइल रहे ओकर किा भूसि भी सबहार के ही चम्पारण ह l एह र्रिी पर जहाँ ब्रजहकिोर बाबू, िौलाना िजिरुल िक़, िौलाना खदु ाबक्श अइसन सवभूसि के जन्ि भइल बा उहई सहच्चिानंद हसन्िा जी जइसन दुलाभ व्यसियव के र्नी आदिी के भी जेकरा खासिर एक रचनाकार के कहे के पड़ल –‘एक जन्िजाि चिविी l ‘ सब सिला जल ु ा के कहल जा सके ला सक सबहार के एक गौरवपूणा इसिहास रहल बा ि ओकर विा िान आ भसवष्य भी सम्भावनाओं से भरल बा l जरूरि बा ि बस सबहार-

सरकार आ उहाँ के नागररक के कदि से कदि सिला के ,परस्पर िालिेल आ आपसी सहयोग के आर्ार पर सबहार के चहुिं ख ु ी सवकास के ओर अग्रसर करे के l िब ऊ सदन दूर ना रही सक एक बार पनु : सबहार अपना इसिहास के दहु रावि आकाश के ओह ऊचाई पर पहुचँ जावो जहाँ से ऊ सम्पूणा भारि के प्रसिसनसर्यव करि सवि िें एगो सिसाल कायि करो l हिरा किा के साथ हिार आशावादी दृसष्टकोण सनसि​ि ही सबहार के िंसजल िक पहुचँ ाई आ िब सबहाररयन के सीना गवा से फूल जाई l िब िक दत्तसचि भाव से सबहार के सवकास िें लागल रहे के पड़ी l हि सबहाररयन के िेहनि आ सरकार के प्रययन के सही रास्िा सिली ि दनू ू के ससम्िसलि प्रयास एक ना एक सदन सनसि​ि रंग ले आई l एही हासदा क कािना के साथ आपन बाि सिाप्त करि बानी l

िs िम हबिारी िई ! पावन र्रिी हिरा सबहार के प्रसिभा के हवएु खदान कबो िहेंद्र सिश्र कबो सभखारी हई ि कबो बीर कुँवर िांसिकारी हई देश के दश्ु िन खासिर आरी हई हs हि सबहारी हई !

थो ड़ा बरु बक,थोड़ा अनाड़ी हई िेहनि के पक्का पज ु ारी हई अपना हक़ पे बररयारी हई बासकर सदैव नरि आभारी हई हs हि सबहारी हई ! भगवान बद्ध ु के र्रिी से हवएु हिार नािा जहां चाणक्य जईसे रहले कूटनीसि के ज्ञािा राजेंद्र बाबू से खुलल देश के राष्रपसि के खािा हिरा रग-रग िें बहेला अशोक-चन्द्रगुप्त के खून चेहरा पे देख सके नी आज भी शेर शाह के जूनून दसु नया िें ज्ञान के अविारी हई सशक्षा िें सबका पर भारी हई सबसे ज्यादा आई.ए.एस - आई.पी.एस असर्कारी हई हs हि सबहारी हई !

नुरैन अंसारी

हिरा िेहनि के परकाष्ठा के जग िें देला लोग उदहारण सब बड़का शहर के बड़की सबसल्डंग चिकि बा हिरा कारन हि भोजपरु ी ,िैथली , िगही के हई सबशद्ध ु उच्चारण हिरा कला -संस्कृसि कौशल के जग िें होला गणु गान

गोपालगंज , बबहार के रहे वाला नुरैन अंसारी जी , भोजपुरी आ बहन्दी मे लगािार गजल आ कबविा के बसरजना कई रहल बानी । आखर प शुरु से ही नुरैन जी के बलखल भोजपुरी कबविा आ गजल पोस्ट हो रहल बा । इँ हा के एह घरी फदल्ली मे बानी ।

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सबहार सदवि सवशेष

वबहार में मेहरारुन के वस्िवत

बि

हार सदवस, खाली सबहार के एगो राज्य के रूप के बहुिे िानक पर बहुि पीछे बा लो, ससु वर्ा अउर आपन पहचान सिले के खुसी आ उयसव िनावे के हीं असर्कार से वंसचि बा लो। सबसे पहले ि ई साक्षरिा दर से सदन ना ह। इ सदन एगो राज्य के िौर पर एक ही साफ हो जाई, सिचु े देस के साक्षरिा दर 74.4 प्रसिशि ओर अगर उपलसब्र् पर गरब करे के ह, ि बा, जे िें िेहरारू लो के साक्षरिा दर 65.46 प्रसिशि । ह दोसर ओर सब किी आ किजोरी पे बसढयां से चचा​ा करे के जबसक िरद लो के 82.14 प्रसिशि। एकर िल ु ना िें सबहार िें भी सदन ह ; लेसकन हि इहां एह िौका प खासिौर से एगो कुल साक्षरिा 63.82 प्रसिशि बा जेिे िेहरारू लो के 53.33 राज्य के सबकास िें सबहार के औरिन के के िना सहस्सेदारी बा प्रसिशि आ िरद लो के 73.39 लेसकन ग्रािीण साक्षरिा दर आ के िना उनका के भागीदार बनावल गईल सबहार में कुल िाक्षरता के बाि कईल जाव ि उ खाली 43.9 बा एह बाि पर चचा​ा कईल जरूरी सिझ प्रसिशि ही बा, ओहिें िेहरारून के साक्षरिा े 63.82 प्रसतशत बा जे म िानी। कहल जाला कवनो पररवार आ सिाज दर िाि 29.6 प्रसिशि ही बा । सांच िें ई के िना बड़हन, बराबरी आला आ के िना मेहरारू लो के 53.33 बहुि कि बा अउर हिनी के गंवअन के ढेर िरक्कीपसंद बा अगर इ पिा लगावे के बा ि प्रसतशत आ मरद लो के सिस्या आ सािासजक आसथा क सपछड़ापन से ओह सिाज िें औरिन के सस्थसि देख लीं, एकर सीर्ा सीर्ा संबंर् बा। 73.39 ले स कन ग्रामीण रउवा सब सांच िालूि चल जाई। िाने पढिसलखि, कांर्ा से कांर्ा सिलाके काि, सब िाक्षरता दर के बात कईल एगो उदाहरण से इ सिझल जा सके ला, भारि िें 1000 लसडका पाछे 943 लईसकनी िोचा​ा पर बराबरी से सहस्सेदारी करि लईकी जाव त उ खाली 43.9 के अनपु ाि बा लेसकन सबहार िें इ अनपु ाि आ िेहरारू सीसा होले जेिें से सिाज आपन प्रसतशत ही बा, ओहमें 918 ह, के न्द्र-शासषि प्रदेश सिलाके कुल 35 िंहु देख सके ला। मेहरारून के िाक्षरता दर राज्य के लईका-लईकी के अनपु ाि सूची िें इहों सांच बा सक अउर जगह सनअर सबहारों झारखंड के स्थान सबहार से बहुि उंच 17वां मात्र 29.6 प्रसतशत ही बा । िें औरि, टीचर, डाक्टर, इंजीसनयर, वकील, ह ि सबहार के 25वां बा। आ ऐकर संबंर् भी पिकार भा अईसने कुल ढ़ेर कै ररयर िें बा लो आ राज्य के सवकास िें आपन सहस्सेदारी करि बा लो। लेसकन अईसन औरिन िें से जादा आबादी उ लो के बा, जे लो के पररवार सिद्ध ृ बड़़ू वे आ जे लो शहर िें रहिा। एह लो के लगे सशक्षा अउर बाकी िरह के िौका हाससल करे खासिर गरीब पररवार आ गंउअन के लईसकनी आ िेहरारू लो के िुलना िें ढेर अवसर शरू ु से रहे। हालांसक उहो बराबरी िें कई गो पेंच बा बाकी िब्बो गंउअन के िल ु ना िें इ लो के ढ़ेर ससु बर्ा के िौका सिलल बा, एहिे कौनों सक-सबु हा नईखे। खैर, हि बाि करिनी शहर िें रहे वाली वंसचि िबका के लईसकनी आ िेहरारू लो के आ गांव िें रहेवाली गरीब किजोर जाि सिाज से आवे वाली औरिन के । ई लो सबकास

औरिन के सािासजक सस्थसि आ सशक्षा से बा। इ बाि के सबहार के सरकार भी बझ ु ि सबआ , एही से सबहार सदवस के िौका प खासिौर सरकार कहलस ह सक िैसरक पास िेहरारून के औसि प्रजनन दर पूरा देस के 2 ह आ सबहारो के 2 ह। दोसर ओर इंटर पास िेहरारून के औसि प्रजनन दर पूरा देस के 1.7 ह जबसक सबहार के ओसे किे 1.6 ह। एह से सिझल जा सके ला सक कं हवा अउर के िना जोर देहला के जरूरि बा। ऐही से सबहार सरकार के आगे के योजना बा सक राज्य के सब पंचायि िें एगो उच्च िाध्यसिक सवद्यालय खोलल जाउ, आ एही साल 1000 अईसन स्कूल बना देबे के लक्ष्य राखल गईल बा। इ बसढया बाि रहे सक सरकार िसहला सदवस के सदन हीं घोसषि कईलस सक सबहार िें

मनोरमा त्रसहं बसवान , बबहार के रहे वाली मनोरमा जी , स्विंि पिकार के रुप मे अपना लेखन शैली से बहुिे प्रभाबवि कईले बानी । कई गो पि पबिका आ अखबार खाबि इँहा के लगािार बलख रहल बानी । एह समय इँहा के बंगलोर मे बानी । © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 17


सबहार सदवि सवशेष इ साल िसहला सशसिकरण के ह, आ सरकार एह बाि के ध्यान िें रख के सबहार सदवस के सदन िसहला लो के खासिर सवशेष घोषणा कईलस । पसहले का भईल आ अब िक का भईल ? बसढयां बा सक अब जे शरू ु आि हो रहल बा ओकरा ओर आस बांर् के देखल जाउ। एही से 22 िाचा के सबहार सदवस के सदने सरकार घोषणा कईलस ि ओकर अभी स्वागि ि कईले जा सके ला। हां इ देखे के बाि रही सक उ लागू भी हो पाविा सक नाहीं। सबहार राज्य िसहला सशसिकरण नीसि 2015 घोसषि हो गईल बा आ ओकरा पर कै सबनेट के िोहर लाग गईल बा। इ एगो बहुि सकारायिक डेग ह, काहे सक एह िें लईसकनी आ िेहरारू लो के सबकास के सब प्रसकया िें बराबर के सहस्सेदारी के बाि कहल गईल बा, चाहे सशक्षा होखे, रोजगार हो आ चाहे राजनीसि भा प्रशासन िें भागीदारी। एगो गौर करे आला बाि इहो बा, सक सबहार देस के पसहला राज ह जहंवा पंचायि िें पचास प्रसिशि आरक्षण सबसे पसहले 2005 िें लागू भ गईल रहे, जबसक भारि सरकार के ओर से 2009 िें संसवर्ान संशोर्न कई के पंचायि िें िसहला लो खासिर 50 प्रसिशि आरक्षण के सवर्ेयक पाररि कईल गईल रहे। हालांसक इ एगो दूरदशी आ िांसिकारी शरू ु आि रहुए, बाकी इ देखल गईल सक पंचायि िें िसु खया आ सरपंच िसहला चनु ा िारी आ असली कुरसी उनकर पसि भा घर के िरद लोग संभाल लेिा लो। अईसन बहुिे कहानी आ ररपोटा सािने आईल, जे से लोग के पिा चलल सक िसहला सशसिकरण खाली कागजी बाि बा सबहार िें। लेसकन बाद िें कई गो अईसनों िसहला िुसखया आ सरपंच के कहानी पिा चलल जे सब सवरोर् सहके अपना दि पे गांव के काि-काज कईली आ बदलाव ले के अईली। सपछला साल सबहार िें जिीनी स्िर पर काि करे आला संगठन ‘इसक्वटी फाउंडेशन’ सबहार के 21 अईसने िेहरारू के सांच कहानी ‘ सलसटल विु नै स्रांग पसा नैसलटीज’ के नाि से ले के आईल रहे। उ पढ़े से पिा चलेला सक गया के भगविी देवी, आ िर्बु नी के सिसलया देवी जईसन िेहरारू लो भी बा जे सदहल गईल आ हाससल राजनीसिक िाकि के गांव जवार के सबकास आ सर्ु ार िें इस्िेिाल करे के बसढया से जानेली। लेसकन इहो सांच बा सक अईसन िेहरारू लो के सगनिी कि बा, ज्यादा संख्या उनकरे बा जे खाली कागज पर िसु खया बाड़ी। इहां इहो जानल जरूरी बा सक अब कोनो गांव के उयथान िें िसु खया के बहुि सशि भूसिका बा। चाहे िनरेगा आ नरेगा जईसन के न्द्र के योजना के लागू करे के होखे, चाहे सबकास के आउर ढ़ेर काया ि​ि के लागू करे खासिर फं ड के इस्िेिाल। एकरा अलावा भी सरकार पंचायि के टैक्स चाहे कर लगावे के िाकि देबे के पक्ष िें भी

सबआ िासक पंचायि अउर बररयार हो जाउ। साथ हीं दघु ा टना जईसन हालि िें पंचायि के पास ही राहि रासश बांटें के असर्कार होखो। अइसना िें सनरक्षर, असशसक्षि िेहरारू आरक्षण के बावजूद आपन सब िाकि के संगे काि ना कर पई ंहें। ऐसह से साईसकल आ पोशाक योजना आ साठ प्रसिशि नंबर ले अईला प दस हजार के वजीफा योजना इ सब के बाद अब ई लक्ष्य िय कईल गईल बा सक सबहार के हर लईकी कि से कि 12वीं िक ले सशसक्षि जरूर होखे। अब सबहार सरकार के ि​िाि आलोचना के बादो इ के हु असन्ठया ना सके ला सक बीिल साल िें स्कूल िें लईसकनी सब के संख्या बढ़ल बा। आ उनकर साक्षरिा दर भी पहले से बेहिर भईल बा। लेसकन इहो बाि बा सक आंकड़ा आ गणु वत्ता दनु ों िें जिीन आसिान के फरक होला, सबहार िें बहुि लो खासिर खाली सबआह हो जाओ एकरा खासिर लईकी के िैसरक आ इंटर के सडग्री के जोगाड़ कर लेला लो। अभी हाले िें सबहार िें िैसरक के परीक्षा िें चोरी करवावे खासिर सखड़की प लटकल ररश्िेदार लो के फोटो सिूचा दसु नयां िें घूि गईल, ई फोटो पर अउर कुछो कहल जाउ पर सबसे पहले इ हिनी के राज्य के सशक्षाव्यवस्था, प्रशासन आउर पूरा सशक्षण िंि पर बड़का सवाल बावे। सबसे पसहले एकरा प ध्यान सदहल जरूरी बा, चोरी आला ससस्टि सरकार के ह आ ओ िें पढ़ल उ लो के िजबूरी ह जे पसब्लक स्कूल िें नईखे पढ़ पावि। एकरा अलावा राज्य सरकार के ओर से लईसकनी सब के आयिरक्षा खासिर िाशा ल आट्ा स ससखावे के प्रावर्ान आ िेहरारून के ससपाही से लेके सब इंस्पेक्टर िक के भिी िें 35 प्रसिशि आरक्षण देवे के भी घोषणा भईल ह। हालांसक 2013 िें िसहला लो के पसु लस िें 35 प्रसिशि आ सहकाररिा संस्था िें 50 प्रसिशि आरक्षण के घोषणा कईल जा चक ु ल बा। सबहार िें कुल 8,463 प्राथसिक कृसष-ऋृण संस्था आ 521 व्यापार सनकाय बा एह सब िें िेहरारून लो के बराबर के सहस्सेदारी हो गईल बा, साथे साथ सरकार द्वारा संचासलि सहकाररिा दग्ु र् संघ आ 22 से जादे सहकाररिा संस्था िें भी औरिन के 50 प्रसिशि के सहस्सेदारी बा। इ छोट बाि नईखे, कागज पर बहुि कुछ सिल गईल बा, कायदे से सबहार िें बहुि बड़हन बदलाव सदखायी देबे के चाहीं बाकी अइसन अभी नईखे भईल। शायद इ िाकि के अपना हक िें इस्िेिाल करे के िैयारी अब बहुि जरूरी बा। जईसे र्ीरे-र्ीरे ‘िसु खया िैडि’ बनके िेहरारू लो के आपन िाकि के एहसास आ आपना बल प काि करें के भरोसा हो गईल बा, ओही िरह सहकाररिा आ पसु लस सेवा िें आरक्षण से भी आवे आला सदन िें सबहार के सिाज िें सख ु द बदलाव के उम्िीद कईल जा सके ला ।

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सबहार सदवि सवशेष

मविकाईन आईि बाड़ी ! सदन भर िहभारि बांचेली !

कहें हिके , “क्लीन हो जाओ, क्यों रखिे ये घसटया दाढ़ी !”

हिरी कपार पर नांचेली !

नवहा नवहा हिरा घर िें, िसलकाईन आईल बाड़ी !

अपनी िांगन पर अड़ जाली ! जे िना करी हि लड़ जाली !

एकसदन काि से अइनी जब !

कहें हिसे सक जीन्स ले आव, हि नाही पसहनेलीं साड़ी !

खूब ऊ सेवा कईली िब !

नवहा नवहा हिरा घर िें, िसलकाईन आईल बाड़ी !

लगनी सोचे ई का होिा ! कउवा कईसे बनल िोिा !

घरवा के होटल जानेली !

सोचि रहनी िवले कहली, “राजा, हिको चसहए गाड़ी !”

हिरा के वेटर िानेली !

नवहा नवहा हिरा घर िें, िसलकाईन आईल बाड़ी !

पेप्सी कोला बीयर पीएं ! पॉपकोना आ सचप्स प जीएं ! रोटी िरकारी रुचे ना, हिरासे िांगे सबरयानी ! नवहा नवहा हिरा घर िें, िसलकाईन आईल बाड़ी !

नखरा सक उनकर एिना बा ! गीसन ना पाई ं के िना बा ! जेिने होखो सब ठीक बा !

पचहत्तर गो िीि िंगावें !

जईसन होखो सब नीक बा !

सब पईसा िें आसग लगावें !

काहें सक हिरी िनवा िें ि, बस ऊहे सिाईल बाड़ी !

हिरो के कुछ बासि बिावें !

नवहा नवहा हिरा घर िें, िसलकाईन आईल बाड़ी !

टेढ़ आँसख कइके सिझावें !

पीयूष त्रिवेदी भारिीय देवररया युपी के रहे वाला पीयुष बद्ववेदी भारिीय जी, स्विंि लेखन के क्षेि मे बानी , कई गो अखबार पि पबिका मे इँ हा के लेख छप चुकल बा । भोजपुरी मे इँ हा के लगािार बलख रहल बानी । एह समय इँ हा के नोयडा मे बानी ।

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भोजपरु ी नाटक

नाटक : माइांड सेट

पात्र पररचय परु ु ष पात्र 1. खदेरन 2. राि लखन 3. ससंघासन 4. नाकी 5. सब्जी वाला 6. आदिी 1 7. आदिी 2 स्त्री पात्र 1. रूसी औरि 2. सब्जी बेंचे वाली

- उसिर करीब 60 बररस - उसिर 35-40 बररस (सशक्षक) - उसिर 35-40 बररस - उसिर करीब 25 बररस - उसिर करीब 35 बररस - उसिर 25 बररस - उसिर करीब 40 बररस - उसिर करीब 30 बररस - उसिर 30- 40 बररस

(खदेरन पैंट कोट पेन्हले आ िेतरतीि टाई िन्हले, हाथ में छडी घुमावत मंच प आवत िाडन।) खदेरन (दशा क से) निस्कार, जे बासे दण्डवि, हाय हेलो। रउवा सभे िहाराज कुछ बोलिे नइखीं, हं ई भइल। आछा ई बिाई ं, ईिानदारी से, कवन आछा लागल ह ? आने

सनु े िें कवन असभवादन सबसे नीिन लागल हा? औनेस्टली बिाइब दशा क 1 दण्डवि खदेरन के ह हो, दण्डवि नीिन लागल ह ? कवनो बाि ना िहरा अइसन ढेर लोग बा. दशा क 2 निस्कार खदेरन एके गांव के हव जा का? दशा क 3 हाय हेलो खदेरन (खुश होके ) हं.... ई बाि भइल। वेरी इंटेसलजेंट! सिझा​ा इं िनी इनका लोग के , सक जवन रोवाब आ सघु रई अंगरेजी िें बा उ सहन्दी आ भोजपरु ी िें नइखे। अंग्रेजी बोलला से आसदिी दूरे से सचन्हा जाला सक कवनो िहानपरु​ु ष ह। ग्रेट िैन। बासकर का करब अइसन िाइंड सेट वाला आदिी के सिझावल आसानो बाि नइखे। हिरो शहररया िें बा लोग, थोके िें। अब कह सनु ाई सक आंखे देखाई। चली हि सलया चलि बानी आपन शहर बोकारो के ददंु ीबाग हाट िें.. (सब्जी हाट के दृष्य। बीच िें “नाकी के चाय” दोकान पर रािलखन, कुिा​ा -र्ोिी, जैकेट पेन्हले कान्हा पर झोरा

महेन्द्र प्रिाप त्रसंह महेन्द्र प्रसाद हसंह, एक सुप्रबसद्ध रं गकमी आउर समाजसेवी बानी आ इं हा के फदल्ली में रबहला । भोजपुरी नाट्य-बविा आ समाजसेवा के समर्पजि संस्था रं गश्री के संस्थापक श्री महेन्द्र जी के अनेक नाटक के फकिाब छपल आ मंचन हो चुकल बा । प्रस्िुि नाटक के मंचन िरवरी में भारि सरकार के संस्कृ बि बवभाग आ रं गश्री के सामूबहक भोजपुरी नाटक महोत्सव में भईल रहे ।

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भोजपरु ी नाटक लटकवले आ ससघांसन पैंट शटा पेन्हले झोरा सलहले आवि बाड़ें आ नाकी चाय बनावि बाड़ें। दो िीन आदिी सब्जी कीनि आ झोरा सलहले आवि-जाि बाड़न। बाजार के शोर सनु ािा) राि लखन ए नाकी ! बनाव ि फटा-फटा दू गो चाय। आउर बिाव ससंघासन भाई पढ़ल सक ना हिार सकिाब ? नाकी कड़क िीठा नू िाट् साहेब ? (राि लखन इशारा से हािी भरि बाड़न) ससंघासन हँ । भोजपरु ी पढ़े के िजा आ गइल भाई । आपन गाँव आ लइकाई ं के इयाद िाजा हो गइल। बहुि बसढयाँ। कइसे िू असिना सिें सनकाल लेल भाई ? नोकरी के संगे-संगे लेखन आ उपर से आईएएस के िइयारी? राि लखनसब हो जाला। जहाँ चाह िहाँ राह। ससंघासनअबकी ि इंटरव्यू बसढयाँ भइल हव, कब ले ररजल्ट आविा ? राि लखन हँ देख, आजे काल्ह िें आवहीं वाला बा। (िबिक राि लखन के नजर सवंग के िरफ जािा जहाँ खदेरन छड़ी ले-ले आवि बाड़े।) हई हैट-वैट पेन्हले छड़ी घूिावि के ह इयार ? खदेरन बाबा ? ससंघासन उ ि सालभर से अपना बेटी लछसिसनया सभरी सदल्ली नू गइल रहन, कब अइलन हा ? नाकी- परसवें अइले हां, िरकारी कीनल इनके सजम्िे बा। बेटा पिोह ना आव स एसहजा । राि लखन - िरदवा हुसलया एकदि बदल लेले बाड़ें, हि ि सचन्हबे ना कइनी हां। ससंघासन आविारे - आविारे। राि लखन गोड़ लासगला ए खदेरन बाबा। कब अइनी हां ? ससंघासन बोलि नइखन हो, का बाि बा ? खदेरन (स्विः दशा क से) रसस्टक िेन। गँवार, इसडएट । डोंट नो हाउ टू टौक । बोले के लूरे नइखे । स्िाल ससटी, नो रेसनंग। एहीसे एहनी से बाि करे के हिरा िने ना करे । बट आई सवल गीव रेसनंग । ना सीखाइब ि आसखर ई कइसे सीसखहें स ? आई िस्ट टीच पअ ु र िेन नाकी आई ं-आई ं खदेरन बाबा बइठीं । गोड़ लागिानी । खदेरन नैकी, आई डोन्ट लाइक सदस । ई हिरा एकदि ठीक ना लागे । ह्वाट खदेरन बाबा ? हि के हई ं िहार, हू आई ऐि योर ? बोलऽ हि िोहार दोकान पर के हई ं ? बाबा ?

नाकी खदेरन बाबा। खदेरन नो, आई ऐि नॉट खदेरन बाबा । सहयर आई ऐि योर कस्टिर । इट इज नॉट सवलेज। ई गांव ना ह । इहां हि िोर कस्टिर हई ं । िाने गहकी हई ं आ गहकी के का बोलल जाला, बाबा ? नो । सर ! सर ! बड़ु बक भकोल कुछ ना सीख पइलें । एही से िोहनी जाना एहीजे सड़ि रह गइल । साल भर पसहलहू ँ इहे चाह के दोकान आ आजो उहे, जहाँ के िाहां । नो प्रोग्रेस । कारण इसण्डयन िेन्टसलटी । राि लखन खदेरन बाबा ! रउवा ि एकदि बदल गइनी ? खदेरन िास्टर, आई हेट कॉसलंग खदेरन, आई ऐि नॉट खदेरन। टेल िी सिस्टर खैदरेन चाहे सिस्िर के . रेन । ससंघासनई का कहिार रे िरदे, िेस्िर ? सदल्ली जाके बाबा जी से िेस्िर हो गइल ? खदेरन िेस्िर ना सिस्टर-सिस्टर । श्री भा श्रीिान के अंगरेजी िें सिस्टर कहल जाला । ए िास्टर, प्लांट वकार के ससखाव ना ? राि लखनहि का ससखाइब ? सब जानेलें । आई बइठीं । खदेरन व्हाट बइठीं ? हिरा से कुछ सीखे के चाहि होख ि बइठीं । अइसे का बइठीं ? टाइि वेसस्टंग । देखऽ हि सीख के स्पीक इंगसलश । अंग्रेजी िें बोल सकि बानी । बट यू साल भर बादो, नो प्रोग्रेस । ससंघासनअंग्रेजी बोले के सीख लेल ि कवन िरक्की कर सलहल ? खदेरन अंगरेजी बसु द्ध के बटखरा ह । देस िें ऊँच से ऊँच नोकरी पावे खासिर आसदिी एही बटखरा से िउलालन, जनल ? रािलखनबाबा ऊ जबाना अब गइल। खदेरन ख्वाब ि​ि देख। जागऽ, िबे बझ ु ाई सक का िरक्की कर लेनी हि ? ससंघासन का कर सलहलऽ ? खदेरन िहरा िालूि बा हि कहाँ गइल रहीं ? ससंघासन अउरू कहाँ जइब ? आपन बेटी लछसिसनया सकहां सदल्लीए नू गइल रह ? खदेरन हं...... का कहल ह ? सदल्लीए (दशा क से) सनु नी सभे नू ? िाने पढ़ला सलखला के बादो एगो सबु सहि नावों र्रे ना आइल । सिस्टर ससंघआसन । वेरी सैड । ससंघासन ि का कहीं, नई सदल्ली ? खदेरन ना बझ ु ब ? अब सनु ऽ हि कहिानी, सक

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भोजपरु ी नाटक हि कलकत्ता गइल रहीं भा हि सदल्ली गइल रहीं, कइसन लागिा सनु े िें ? काहो िास्टर, िू ि ढेर पढ़ल सलखल बाड़ । िू बिाव..........इहे नू लागिा जइसे सक हि बोकारो से, चास भा जैना िोड़ गइल होखीं । अब ओकरे के हि कहिानी, आई हैड सबन टू कै ल भा कै लकाटा भा डेल्ही । किना फरक लागिा ? बोलऽ । (दनू ों एक दोसरा के देख के हंसि बाड़न) ई लागि बा सक जइसे हि लॉडा बेंसटग भा लॉडा िाउंट बेटन के घरे से भोज खा के ढेकरि आवि होखीं ? बोलऽ । लागि बा सक ना ? टेल िी आनेस्टली । इिानदारी से बोलऽ िास्टर । रािलखनना ! ई राउर िानससकिा बा । खदेरन िानससकिा नइखे िास्टर ! अंग्रज े ी के िोल बड़का-बड़का सवद्वाने जानेलें। िू लोग का जनबऽ ! ना अपने ढंग से पढ़ल-सलखल, ना बाल-बच्चा के पढ़इब। ई का कहलें हां, सनु ल हा ? लछसिसनया सकहां गइल रहीं। इज सी लछसिसनया ? ससंघासनअरे उहे लक्ष्िी बोलऽ । खदेरन लक्ष्िी ? नो । िू जानऽिार अब ओकर नाि का बा ? सबदेसी कम्पनी िें नोकरी करेले, ओकरा के सउँसे दसु नया कहेला, लैक्स िाई, जब फोन आवेला ि कहे ले, लैक्स िाई स्पीसकं ग । हिार सन-इन-लॉं जे बाड़े उहो इंगलैंड के कं पनी िें बड़का अफसर बाड़न। राि लखनउहे दिाद नू, जे िबकी गइल रह ि पवलसगयो ना कइलन आ आपन संघसियन से कहलन सक गाँव के आदिी हवन ? सउँसे गाँव िें हाला बा सक िहरा से पेग बनावे के कह देलन स िब िू सखससया के सबहाने भइला लवट आइल रह ? (रािलखन ससंघासन के रोकि बाड़न) खदेरन अरे छोड़ उ परु ान बाि। ओह घड़ी हिरा सिझ ना रहे । र्ोिी कुिा​ा पेन्ह के गइल रहीं ि का कहिे सभके सोझा ? हिार सन इन लॉं हाई सोसाइटी वाला हवे। बड़का-बड़का लोग के साथ उठना बइठना बा िहरा अइसन प्लांट के िजूरा ना हवे। नाकी (बाि काटि) सन्नी सलओन ! अरे ई सनी सलओन ि सहरोइन हीअ बाबा । रउवा ओकरा के सचसन्हला का ? (सबकनी पसहनले सन्नी सलओन के फोटो सनकाल के देखावि) हि फोटवो रखले बानी। खदेरन (डांटि) र्ि् बड़ु बक बकलोल । अंगरेजी िें सन-इन-लॉं दािाद के कहल जाला । नाकी ओह! हि कहीं सक .. खदेरन जानिार उनकर लइकाई ंके नाि रहे सिीर शिा​ा । उनकर बाप िहिारी रखले रहन, आ ओसहजा का

कहालन ? सैि ! इंग्लैण्ड, अिेररका, आस्रेसलया, लण्डन, कनाडा से फोन आवेला ि कसहंह,े सैि स्पीसकं ग, या, या सैि स्पीसकं ग । ससंघासनि नाि सबगाड़ के का सिल गलइन ? खदेरन सबगाड़ देलस सक संवार देलस, ई िहरा नइखे बझ ु ाि ? ि िनी िास्टर के नाि बोल के देख । ससंघासन राि लखन खदेरन सनु के िन िें का छसव बनिा ? इहे नू सक उघारे-सनघारे, जंगले-जंगल, िीर र्नहु ी सलहले र्ावि चले वाला कवनो जीव होखस । चाहे िूहूँ िसन अपने निवा के बोल के देख, ”ससंघासन“ सनु ला प का बझ ु ािा ? इहे नू सक कवनो गाय भा बैल आपन सींघ, िहरा आसन िें लगवले होखे ? खराब ि​ि िसनह, िहरे ज्ञान खासिर एगो उदाहरण देिानी। आ एकरे के िनी अंगरेजी िें बोल के देख, रैिलैक्स भा रोलेक्स चाहे ससंघासन के ‘सँगस ै न’ बझ ु ाइ सक दसु नया के टॉप िान्ड घड़ी आ फोन के आसवष्कारक भा िासलक होखऽ। ससंघासनसनु ऽ अब बस कर । िबे ले बकर-बकर अंग्रेजी के इंटा ठाँय- ठाँय कपार पर फोड़ले बाड़ । बझ ु ािा सक दािाद साथे सबलाइिी पेग िार के आइल बाड़न ! खदेरन हि ना पेग िारी िुहीं देसी हाँड़ी घींचि होखब राि लखन(हंसि) छोड़ीं बाबा, अच्छा ई बिाई ं सक रउवा हेिना अंग्रेजी कहाँ से सीख लेनी ? खदेरन वेरी गडु क्वेिन, बहुि अच्छा सवाल । लसनांग का नो ऐज सलसिट । आई ट् वेल्भ िन्थस् ऐट िाइ डौटसा हाउस इन डेल्ही एण्ड सस्पसकं ग एभरी डे इंसग्लश । बेटी सकहाँ एक साल रोज अंगरेजी बोलि रहीं । उहाँ 95 परसेंट लोग अंग्रेजीए बोलेला । नन्हीं-नन्हीं सकड् स आने लसडको स्पीक अंग्रेजी । एण्ड यू, िास्टर होके स्पीक ऐण्ड राइट सहन्दी आ भोजपरु ी, सशट् ससंघासन िू का भोजपरु रया भल ु ा गइल ? खदेरन भोजपरु रया! िू लोग भोजपुररये िें अंटकल रह जइब । बड़ु बक भकोल कहींका, भोजपरु ी के कवनो िोल बा ? ससंघासन अरे काहे नइखे िोल ? आ नासहयो बा ि भोजपरु ी आपन िािभृ ाषा ह । रािलखनअब बाबा एही बाि प सनु ी एगो हिार कसविा खदेरन सनु ाव अउरी का करब.. (िंहु घिु ा लेि बाड़न)

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भोजपरु ी नाटक रािलखन हजज्ञासा

जहिया िोि सम्भरनी, आ अंकुरल सृहष्ट के िर चीज से पररचय करइली ि​िार

िािृभाषा आजो हिन्दी भा अंग्रेजी िें जब किनो बाि ना बझ ु ाए ि हियरा के पोरन से हनकस, सूरूज के जोि अस िे ािली अज्ञान के कुिासा ि​िार िािृभाषा, भोजपुरी ि​िार िािृभाषा ससंघासन वाह-वाह िास्टर साहेब खदेरन (सचरावि) वाह-वाह करेवाला िहरा अइसन भोजपरु रया लोग कसिना साल से िड़ु ी रगड़िाड़ें, काहें नइखे सरकार आठवां अनस ु ूची िें शासिल कर देि ? सहन्दी, भोजपरु ी, िैसथली, िगही ऑल आर रस्टीक लैंग्वेज िाने गवांरू भाषा । आ जे ई गंवारू भाशा बोली ऊ गंवारे नू लागी ? िास्टर जस्ट सथंक, िसन सोच, िू जाके ट पेन्हले बाड़, िासलेट र्ोिी आ सससलक के कुरिा झरले बाड़, उ ि खैर देखहीं से लागिा देहािी । बरु ा ि​ि िसनह। िू अगर हैटो पसहन ल, खूब बसढया कोट पैंट आ टाइयो लगा ल आ भोजपरु ी बोलऽ,”ए नाकी एक कप चाह बनइह“ । सिूचा बेकार, पसा नासलटी चैपट। आ उहे, कुरिे-र्ोिी पेन्हले, अंग्रेजी िें बोल, ”नैकी सिंग ए कप ऑफ टी प्लीज ।“ रािलखन ि का हो जाई? खदेरन बड़का- बड़का सूटेड-बूटेड के हावा सनकल जाई । नाकी ई बाि बाबा सोरह आना साँच कहिानी। काल्हुए एगो आसदिी अइले ि बेंचवा पर िीन-चार आसदिी बइठल रहन आ जगह ना सिलल ि गहकी खड़े रहन िले उनका िोबाइल पर फोन आ गइल जननी सक ना बाबा ? फोनवा पर कादो बोललस, सस्पसकं ग, सस्पसकं ग। बस जिना जाना बइठल रहन ओकरे िहु ँ िाके लगलन। आ दू जाना ि उठ के आपन जगसहया दे देलन। खदेरन (दूनों से) सनु लऽ जा । नसकया पकड़ लेलस। चाबस पट्ठा ! ससंघासन देख बाबा हि ि जादे नइखी पढ़ल बासक एगो बाि कहीं िहरे जइसन िानससकिा वाला लोग सउँसे देश के नास कर देले । खदेरन का नास क देलन ? ससंघासन आज हिरा भोजपरु ी भाषा के िहयव रसहि

ओ भोजपरु ी सासहययकार के सिाज िें िान सम्िान सिलि रसहि ि ऊ आपन खेि बेचके , सकिाब छपवा के िंगनी िें बांटि ना सफरिे । राि लखन ऊ कुल सवद्वान सवचारक हिरा भटकल सिाज के राह देखइिन आ सिाज आगे बसढि। बासक इहे िानससकिा के चलिे सब सवद्वान, अपना बालो-बच्चा आ सिाज के सोझा बोका बनल बाड़ें । लोग िजाक बनवले बा सक, देख ई कसव जी हवें खेि बेचके भा भसवष्य-सनसर् के पइसा से सकिाब छपवइले फ्री िें बाँटे खासिर। काहे सक िहरे अस अंगरेजी िानससकिा वाला नेिा चनु के संसद आ सवर्ान सभा िें जाि बाड़ें आ सत्ता पर कासबज बाड़ें आ सजनका चलिे सरकारी स्कूल के पढ़ाई चैपट होिा आ गली-गली कुक्कुरित्त ु ा अइसन अंग्रेजी िीसडयि स्कूल खुलि जाि बाड़ी सन। खदेरन ऊ भकोल नइखे होसषयार बा आ ऊ जानि बा सक अंग्रेजी के किना िहाि​ि बा, आ िू नइख जानि । रािलखन का िहाि​ि बा, खाली सोचला के फका बा, आ ओकरे के कहल जाला िानससकिा आने िाइंडसेट। ससंघासन ई िहरा िालूिो बा सक सरकार सहन्दी िें काि-काज करे वाला के परु स्कारो देि सबआ। का जाने काल्हु भोजपरु रयो ... खदेरन (बाि काटि) ि एही से सिझऽ सक काहे सहन्दस्ु िाने िें सहन्दी के बढ़ावा देबे खासिर प्रोयसाहन देबे के पड़ि बा ? (रािलखन आ ससंघासन एक दोसरा के िंहु िाकि बाड़न) एक जना िहरे अइसन सहन्दी के िाला जपे वाला हिरा सन इन लॉं से लगले कहे सक अब अंगरेजी के जिाना लद गइल । अब सरकार सहन्दी िें काि-काज करे वाला के परु स्कारो देि सबआ । ि ऊ कहले सक सहन्दी पढ़े सलखे वाला िहरा अइसन कुछ बेकूफन के परु स्कार-उरस्कार देके हिनी अइसन बड़का अदसिया अन्हररअवले ना रसहहें ि िूहूँ लोसगन अंगरेसजआ पढ़ के काल्हु से हिरे पांसि िें लगबऽ ना बइठे ? एह से जहाँ बाड़ ओसहजे रह। छोट िंहु आ बड़ बाि ि​ि बोलऽ । बस िहुँ े ससठुआ गलइन । ससंघासन आछा ई बिाव सक जे आपन िािृभाषा, िािृभूसि आ िाई के िाला जपे, ऊ िहान, आ सक जे अययाचारी सफरंसगयन के भाषा के आ ओकर ि​िारी के िाला जपे ऊ िहान, हिरा के बिाव ? खदेरन ह..ह.. बनल रह िहान । िहार बाप िहान बनले नू ? खेि बेचके भोजपरु ी के सकिाब छपवले आ िंगनी िें बटले, िुहूँ बाँटऽ आ िहान बनऽ । राि लखनअरे बाबा ई बझ ु ीं सक ई पररसस्थसि रउरे

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भोजपरु ी नाटक अइसन िानससकिा वाला लोसगन के उपराजल बा। आउर सनु ीं खदेरन (बाि काटि) का उपराजल बा ? कबोकबो अइसन कुफुि से भेंट हो जाला सक जन कहीं । पढ़लो सलखल होके िनबे ना कररहें, अउरी लसगहें गलथेथ करे। का ि सनु इहें ! रािलखन भाषा भाव के असभव्यसि के एगो िाध्यि ह । के हु अंगरेजी िें कइल, के हु सहन्दी िें कइल ि के हु भोजपरु ीए िें कइल । भाषा से के हु बड़ आ छोट ना होला । ओकर कथ्य आने बाि से होला । ससंघासन एकदि ठीक बाि बा। बाकी अनपढ़ आ गंवार आदिी के ई कुसल्ह बाि ना नू बझ ु ाई । ऊ किनो सिझइला पर अंगरेजीए के पगरु ी करि रसहहें । एगो कहाउिो ह सक भई ंस के आगे बीन बजाए भई ंस बइठ पगरु ाए। खदेरन यू िीन आइ ऐि भई ंस? हि भइंस हई ं? नाकी (बीच िें बाि बदलि) लीं बाबा राउर चाह बन गइल । खदेरन व्हाट चाह लीं ? बोल टी प्लीज़ सर । नाकी टी प्लीज सर खदेरन अरे िोरा इहां बड़-बड़ आसदिी आविांड़ेजािांड़े, िें ि सीख, आ अंगरेजी िें बोडा लगाव, (बोडा के िरफ देखि आ चाय पीअि) अइसनका लोसगन के फे र िें ि​ि पड़ । रािलखनअच्छा बाबा एगो बाि बिाई सक इंगलैंड िें झाड़़ू बहारू करे वाला भा िोरी साफ करे वाला, चाहे दोकान िें बिा न िांजे वाला, कवन भाषा बोलेलें । ससंघासनअब अइसन बाि पूछ देल इनका से । ई कवनो इंगलैंड गइल बाड़ें ! दसु नया के नक्सा िें इंगलैण्ड कहाँ बा इहो ना जानि होइहें। सदल्ली से आविांड़े ओही िें फूलल बाड़ें । इंगलैंड जइिन ि का जाने का करिन । खदेरन िू गइल बाड़ का ? सदसल्लओ ना गइल होखब ! आ गइलो होखब ि स्टेसन के उर्ा छू के चल आइल होखब । कसन्टन्यूवस टुवेल्भ िन्थ स्टे। साल भर से सदल्लीए िें रहीं । ससंघासनई जवन सवालवा पूछले हां ओकर जबाब द ना । नाकी आएं भईया, ि ई सब झाड़़ू बहारू आ िोरी साफ करे वाला कौन भाषा बोलेलें स इंगलैण्ड िें ? ससंघासनई ि खदेरने बाबा नू बिइहें । खदेरन छोड़ इंगलैंड के बाि अपना औकाद िें रह

। ससंघासनदेख खदेरन बाबा, जेकर जवन भाषा ह ऊहे बोली । अंगरेज बा ि के िनो िूखा, चपाट होई अंगरेजीए बोली, सहन्दी भा भोजपरु ी ना बोली । ऊ चाहे ओसहजा के प्रर्ानिंिी होखे, चाहे घोड़ा के लीद साफ करे वाला, िासलक होखे चाहे नोकर-चाकर बोली अंगरेजीए । रािलखनएकदि ठीक कहि बाड़ ।(खदेरन चपु -चाप चाय सपयि बाड़न) आछा बाबा, ई बिाई ंसक राउर बेटी-दािाद के कर नोकरी करेला लोसगन ? खदेरन इंगलैंड के िल्टीनेषनल कम्पनी िें नोकरी करेला लोग। ससंघासन अब के हू आपन नोकर-चाकर के आपन भाषा ना ससखाई ि ओकरा से काि कइसे कराई ? खदेरन (सखससया के ) िू काहे नइख अंगरेजी कम्पनी िें नोकरी पा लेि ? एण्ड यू नो िाई सन-इन-लॉं, सैि गेट्स 50 थाउजेंड, िाई डॉटर लैक्स िाई गेट्स 40 थाउजेंड । ऊ नोकर-चाकर बा ? नाकीका... का बाबा ? हिरा के िनी भोजपरु ी िें सिझाई ं। खदेरन ई अंगरेजीए के देन ह सक हिार दािाद के 50 हजार आ बेटी के 40 हजार िन्खाह सिलेला । सहन्दी आ भोजपरु ी बोलऽ । (ससंघासन के ) एगो भाई के एि.ए. करवले बाड़ऽ नू सहन्दी िें सक भोजपरु ी िें ? बलाबस्िी भोजपरु ी के पसिका बेंचि सफरिाड़ें । अभी ि गँउवे के लोग हंसिा नू, कुछ सदन बाद लइका ढेला फे सकहें स । ससंघासन बाबा िहार सदिाग चटक गइल बा । िहरा िालूिो बा अब सरकार भोजपरु ी के संसवर्ान के आठवीं अनस ु ूची िें डाले जा रहल सबया । अब हर कॉलेज आ स्कूल

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भोजपरु ी नाटक िें भोजपरु ी के पढ़ाई शरू ु हो जाई। खदेरन िाकि रह। ससंघासन आ ईहो जान ल सक आपन िािृभाषा के भल ु ाके , असली नाि आ पहचान अंगरेजवन सकहाँ सगरवी रख के जे राि भर उरुआ अइसन स्पीसकं ग- स्पीसकं ग करिा, ओकरा से बसढया हिार भईयवा अपना घरहीं बइठल, िाईबाबू के सेवा करि, 50 हजार से बेसी, पढ़ा-सलखा के किा सलही । रािलखन अिने ना ओकर सदिागो खुला रही, सोच कुन्द ना होई आ रचनायिकिो ना िरी । कारण सक ओकरा एगो िच्ु छ काि के , कुली अइसन िाथा पर, रािे-सदन बोझा नइखे नू ढोवे के पड़ि । खदेरन िाने हिार बेटी दािाद कुली बा? रािलखन उहे साइबर कुली कहीं। ससंघासन वाह ! एकदि ठीक कहल। खदेरन (सचढ़ावि) िहरा वाह-वाह कइला से ना ऊ कुली हो जाई ना अंगरेजी आ भोजपरु ी बराबर हो जाई । हिार बेटी दािाद िुच्छ काि नइखे करि । िहरा लोसगन से बेसी इज्जि वाला काि करिा । बाकी िहरा लोग के अइसे ना बझ ु ाई, डेिो देबहीं के पड़ी । नैकी कि सहयर, हेने आव । बोल, सॉरी एक्सक्यूज िी । बोल- बोल.. नाकी सॉरी एक्सक्यूज िी । खदेरन हँ.. भेरी गुड। िुहूं लोग अब देख ल। कह सनु ाई सक आँखें देखाई । (नाकी से) हउ देखिारे नू जवन आदिी आविा, उनका के अइसन र्क्का िररहे सक उ सगर जास आ उनकर िरकारी सछं टा जाय । आ फे र कहीहे.. सॉरी एक्सक्यूज िी... नाकी बासकर बाबा हिरा के िारे लागी िब ? खदेरन आरे िारी कइसे हि बानी नू । िोरा के ि हि अिना बड़हन ढाल दे देने बानी सक िोर ढाल देसखए के ओलार हो जाइहें (राि लखन आ ससंघासन हंसि बाड़न) खाली खीखी-खीखी दांि सनपोरला से बसु द्ध ना होखे । सिझवला पर ि सिझब लोग ना, आँखें देखाविानी ि खीखी -खीखी कइले बाड़न । ससंघासन अच्छा-अच्छा देखाव । (खदेरन नाकी के सिझा के भेजि बाड़न आ नाकी जाके एगो आदिी जे पैंट शटा पेन्हेल, िरकारी के झोरा टंगले आविाद्व ओकरा के र्क्का िार देिा, आ आसदिी सगर जािा) नाकी सॉरी एक्सक्यूज िी । आदिी 1 कवनो बाि ना, (सगरल सब्जी उठाके झोरा

िें रखि बा आ चल जािा) नाकी (हंसिे खुशी से बोलि) बाबा रावा ि गजबे िंिर बिवनी । र्क्का िारला के बाद हिरा के सचहा के िाकि रहे सक कइसे ऐकरा आिना अंगरेजी आविा । खदेरन वेल डन, चाबस पट्ठा । देखल ? सनु ल हा ? का कहले हां दाँि सनपोरि, र्क्का खइला के बाद ? कवनों बाि ना- कवनो बाि ना । जइसे फे नु र्क्का िारे के नेविा देि होखस। िें बइठ । (ससंघासन से) अब िू के हू के अबकी र्क्का िार आ सहन्दी भा भोजपरु ी िें बोल के देख सक ‘िाफ करीं भाई, गलिी हो गइल ।’ ससंघासनए बाबा हि जानिानी सक िहरे अइसन िानससकिा वाला 100 िें 90 बाड़न, का करबऽ । सजनगी भर िंसदर िें घंटी बजइला आ झाड़़ु ओ लगइला पर िानससकिा सड़ले रह जाला । खदेरन छोड़ऽ हो । सड़ल बा सक हाई क्लास बा, ऊ ि देखिे बाड़ आ भोगिे बाड़, िबो बझ ु ाि नइखे । इहे बझ ु वावे खासिर कहिानी सक कर के देख। ससंघासनहिरा नइखे करेके । खदेरन अच्छा छोड़, (नाकी से) आव रे हेने आव । नाकी का बाबा ? खदेरन अबकी जे आई नू ओकरा के ओसहीं र्क्का िारके कसहए सक िाफ करब सरकार गलिी हो गइल, बोल कइसे बोलबे ? नाकी (कान पकड़ के ) िाफ करीं बाबा, ई हिरा से ना होई । िार के देह गािान कर सदहें स । खदेरन अच्छा बइठ देख हि करिानी । (एगो आदिी कुिा​ा र्ोिी पेन्हले दोसरा ओर से हाथ िें झोरा लेले आविा, खदेरन ओकरा के र्क्का िार देि बाड़न । ओकर िरकारी सगर जािा) िाफ करब सरकार गलिी हो गइल। आदिी 2 आन्हर बाड़ का, लउकि नइखे । (सचढ़ावि) िाफ करब सरकार गलिी हो गइल । अँसखया िें कुछ गइल बा का । बूढ़ बकलोल कहींका राह चले के लूर नइखे । र्क्का िारि बाड़ें । नाकी जायेदीं-जायेदीं सरकार, परु सनया आदिी बाड़ें । ( नाकी िरकारी उठाके देिा । आदिी बडबड़ाि चल जािा ।) आदिी परु सनया बाड़न ि कह घर िें रहस। खदेरन देखलऽ, अरे ऊ हिार िडरो कर सकि रहे । आपन लाइफ के ररक्स लेके िहारा लोग के आखँ खोले के कोससस कइनी । बासक िू लोसगन आन्हर बटेर अइसन,

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भोजपरु ी नाटक भोजपरु ी-भोजपरु ी कइले बाड़ । देश के इहे सबसे बड़ दभु ा​ा ग्य बा सक आदिी सच्चाई िें ना जीअलें । रािलखन ना ना दभु ा​ा ग्य बा सक हिनी का आपन भाषा, संस्कृसि पर स्वासभिान नइखे । खदेरन का स्वासभिान करबऽ ? अंगरेजी इंटरनेशनल लैंग्वज े ह, दसु नया भर के लोग जानेला। रािलखन भोजपरु रओ दसु नया के कइएक देश िें बोलल जाला, िॉररसस, सूरीनाि सफजी, गयु ाना, सिसनदाद, हॉलैंड इहाँ ले सक लण्दन आ आिेररको िें भोजपरु ी के संस्था बाड़ी स, आ भोजपरु ी बोले वाला बाड़न। ससंघासन बाकी इनका अस सोच रखे वाला भकोल ई बाि ना नू बसु झहें । खदेरन वाह्ट ? का बोललऽ, भकोल ? हि ना हई ं । िू हव नाकी ए बाबा, ए भईया, अरे बइठीं ना छोड़ीं ना के िना सदन पर ि अपना गाँवे के आसदिी से भेंट भइल ि अनेररया के एगो बहस ले के बइठ गइनी सभे । बाबा गाँवे ना गइल रहीं ? खदेरन ना-ना िें चुप रह, यू कीप क्वाइट । इनका लोसगन के िाइंड सेट हि ठीक करि बानी । ससंघासन अरे छोड़ ना, िू आपन िाइडं सेट ठीक करऽ । खदेरन सहन्दी सफल्ि देखले बाड़, निस्िे लण्डन जवना िें किरीना कै फ बाड़ी ? चाहे काला पयथर देखले बाड़ जवना िें सिोहन भाई आ असि​िाभ भाई बाड़ें ? ससंघसन हँ हँ कह ना । खदेरन का देखइले बा ? सहरोइन हीरो के घासे नइखे देि आ जइसे हीरो एक लाइन अंगरेजी बोललस, सहरोइन हीरो पर सफदा हो जाि बाड़ी । ईहे ह अंगरेजी के िहाि​ि ।

ससंघासन ईहे ि दभु ा​ा ग्य बा सक पढ़ल-सलखल आदिी अंगरेजी के िानससकिा से बेसी पीसडि बाड़ें । फीसलिवा बनावे वाला कवनो दोसर दसु नया से आइल बाड़ें ? खदेरन कुछो होखे बाकी ई िहरा िानहीं के परी सक अंगरेजी बोलला से आदिी भारी भरकि लागेला । रािलखन आदिी भारी लागे चाहे ना बासकर ओकर गोड़वा जरूर भारी लागेला । नाकी गोड़ भारी ि जब िेहरारून के गभा रहेला ि कहाला सक गोड़ भारी हो गइल । ई अंगरेजी बोलला से गोड़वा काहे भारी लागेला, ए भईया ससंघासन आह ! लागेला सक आदिी अंगरेजन के गल ु ािी के गभा ढोअि बाड़ें। रािलखन बाबा, आज देश के जरूरि बा राजेन्द्र बाबू अइसन सवद्वान आ राजनेिा के जे राष्रपसि होइयो के सदल्ली के राष्रपसि भवन िें भोजपरु रये िें बसिआवि रहन । अिना उनका िन िें अपना भासा के प्रसि आदर आ सम्िान रहे । खदेरन ि ओहसे कुछो बनल ? भोजपरु ी संसवर्ान िें आ गइल सक राजेन्द्र बाबू के सिार्ी बन गइल सदल्ली िें ? रािलखन छोड़ीं ओहिें ि राजनीसि हो गइल बाकी देखीं सक जापान, जिा नी, फ्रांस, रूस दसु नया के अिना िाकिवर आ सम्पन्न देष बाड़ीसऽ बाकी ओसहजा के हू अंग्रेजी ना बोलेला । ओसहजा के लोग आपन िािृभाषा िें बोलेला आ ओहपर गवा करेला । (एगो रूसी औरि के पइस) खदेरन आरे छोड़ हो ! ढेर रूसी लोग के देखले बानी एक लाइन कवनो के सबु सहि अंगरेजी ना बोलो आवे (रूसी औरि आलूवाला से िोलिोल करि सबया) रूसी, देख होने, रूसीए हई । सनु सब्जीवाला - असदन सकलो जेसेच रूपी (दस उंगसलयाँ सदखािे हुए) । दवाई दवाई रूसी लेडी नहीं आथ रुपये सकलो सब जगह सिल रहा

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है आप िहंगा बेच रहे हैं (बािचीि के िाइि चलि बा) ससंघासन देखल रूसी होके सहन्दी बोलि सबया सब्जीवाला - एिा खराशो। खदेरन आरे एकरा अंग्रेजी बोले आई िबे नू बोली (नगीच जाके ) रूसी लेडीनहीं 20 रु. का ढाई सकलो देंगे ? सब्जीवाला - अच्छा ले लीसजए- ले लीसजए। खदेरन (सब्जीवाला के दस रोपेया देि एक सकलो खासिर इशारा करि लेडी से) िैदि यू नो भेरी गदु सहन्दी । रूसी लेडी क्या आपको सहन्दी नहीं आिी ? खदेरन एक सकलो आलू । ससंघासनकइसन लागल (रािलखन आ ससंघासन जोर से हंसि लोट-पोट हो जाि बा) खदेरन (िंच के दोसरा ओर जाके ) इसडएट, ब्लडी रसस्टक लेडी । इसचको एसटके ट ना िैनर से भेंटे नइखे । हि एह ससरु ी के िारीफ करे के खेयाल से कहनी, िैदि यू नो भेरी गदु सहन्दी ि ना थैंक्यू कहलस आ ना र्न्यबाद, (सबरावि) क्या आपको सहन्दी नहीं आिी ? भकचोन्हर ससंघासन का ए बाबा बिइल ना, सहन्दी आवेला सक ना ? (हंसि) खदेरन के , हिरा ि खीस बरल हा सक इनके कस के जबाब दीहीं बाकी औरि गनु े चपु रह गइनी हाँ । सोचनी सक का हि एह िरु​ु ख के िहुँ े लगाई ंजेकरा आदिी के इसचको पहचाने नइखे आउर कहाँ, के करा से, कउँची बोले के चाहीं एकर ज्ञाने नइखे । रािलखन जाए दीं बाबा । सवाल ि जरूर कटु रहे बाकी ज्ञानबद्धा क रहे । खदेरन अरे छोड़ हो, ज्ञानबद्धा क िहरा खासिर होई। बलुक एही िरु खपन से ई इसण्डया िें बोलावल गइली आ ना ि इंग्लैंड ना बोलावल गइल रहिी। सब्जी वाला - ए... चाचा ए. चाचा, ई अलुईया छूट गइल। ससंघासन का बाबा, अइसन िार िरलस, ई ि िहार गभा पाि करवा देलस । जाए द अंगरेजवन के गल ु ािी के गभा सगर गइल ि अच्छे भइल । अब के हू से ि​ि कहीह अंगरेजी बोलेके।(रािलखन से) चल हो ।

(रािलखन एक ओर आ ससंघासन दोसरा ओर जाके िरकारी कीने लागि बाड़न। रािलखन के िोबाइल पर फोन आवि बा ऊ बाि करे लागि बाड़न। िबिक) खदेरन कहब, हजार बेर कहब । आ सभे से कहब । (दशा क से) रऊवा सभे अंगरेजी बोलीं, अंगरेजी सलखीं, अंगरेजी पढ़ीं, अंगरेसजए गाई ं, अंगरेसजए खाई ं, अंगरेसजए नेहाई ं । भोजपरु ी िें का र्इल बा? हँ बलुक भोजपरु ी का बहाने कवनो नेिा-सेिा भा अफसर के साथे फोटो-सोटो खींचावे के िोका लागे भा कवनो पाटी-साटी से सटकट-ससकट के बेंवि बने ि जरूर बोलीं । हि ना िना करब । बासकर कबो एहनी अइसन कुफुसि के फे र िें ि​ि परब । आ अगर जो ई भोजपरु ी आ सहन्दी के सकिाब देबे खासिर कसिनो ररसगर करस ि​ि लेब सभे । हँ बलु िंगनी िें द सऽ िब ले लेब । दू पईसा कबाड़ी वाला देइये नू जाई । अइसे हि जानि बानी रउवा सभे अपनहीं हिरो से बेसी सिझदार बानी । एहनी अइसन जासहल थोरहीं बानी । ठीक बा चलि बानी परनाि। रािलखन (खशु ी िें सचसचआि) ससंघासन भाई (रािलखन जाके ससंघासन के गले लगावि बाड़न) हो गइल भाई । ररजल्ट इंटरनेट पर आ गइल । 45वां रैंक बा । ससंघासन िब ि कलक्टर हो गइल भाई ! बर्ाई हो भाई (रािलखन के गले लगावि बाड़न। खदेरन कनखी से दनू ों के देखि बाड़न । रािलखन के िड़ु िे जाए लागि बाड़न) रािलखन रूकीं बाबा रूकीं। िनी असीरबाद दीं (रािलखन खदेरन के गोड़ छू के परनाि करि बाड़न) ससंघासन असीरबाद द । कलक्टर हो गइले । आपन गाँव के नाि रोशन कर देले । हि आवि बानी सिठाई लेके (बाहर जाि बाडन) खदेरन कलक्टर ! रािलखन सखससआइल नइखीं नू बाबा ? खदेरन (भावक ु होके ) िू हिरा के गोड़ छू के परनाि कइल हा ? रािलखन ि रउवा हिार बाबा लागब । ( खदेरन रामलखन के अंकवारी बान्ह लेत बाड़न । आपन हैट उनका माथा पर रख देत बाड़न । सभे फ्रीज कर जात बा। परदा गगरत बा )

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मक्त ु क

तोिरो सजनवा

रंग हर रंग के सबखर जाला, रूप अउरी असर्क सँवर जाला ।

िोहरो सजनवा फागनु वा िें आई

राज रस राज के चले खाली, बाकी रसवा कहू सबसर जाला ।।

संग ले के डोसलया कहार सहनाई िोहरो सजनवा फागनु वा िें आई।।

कोइलररया

घंघु टा के अड़वां से झकबू लजाई के

गंर्वा िें िािल, चलसिया बयररया।

िीरछी नजर दािे अँगरु ी दबाई के

सबरह बोली बोले रे कोइलररया, सबरह बोली बोले रे कोइलररया।।

भगबू ि चनु री िें गोड अझूराई।।

लसु क छीसप पेंड़वा िें बोलै आर्ी रसिया

िोहरो सजनवा फागनु वा िें आई।।

ससु न-ससु न बोसलया, दहसक जाले छसिया

देसहंयां क पोर-पोर सचवा िें ढारल

िदन रस घोले, रे कोइलररया।

ललकी दल ु सहया क रूप संइहारल

सबरह बोली बोले रे कोइलररया, सबरह बोली बोले रे कोइलररया।।

लाल-लाल सेन्दरु ा सपयरकी गोराइ।।

सबसि जाले रसिया सक, लेि करवसटया

िोहरो सजनवा फागनु वा िें आई।।

सोसच-सोसच सजना के , सँगवा के बसिया

भूल जइहं गांव-घर संसघया-संघसिया

सपनवा िटोले, रे कोइलररया।।

नई-नई रीसि-प्रीसि नई-नई बसिया

सबरह बोली बोले रे कोइलररया, सबरह बोली बोले रे कोइलररया।।

सपयवा ‘‘नवल‘‘ संघ िनवा रंगाई।।

सबसि गइलै बरसो पठवले न पसिया

िोहरो सजनवा फागनु वा िें आई।।

िन से भूलाि न, सवररयां संघसिया सक नेसहया टटोले रे कोइलररया.. ।। सबरह बोली बोले रे कोइलररया, सबरह बोली बोले रे कोइलररया।।

सदनवा हो रसिया सक गरिी सरदीआ जाने-अनजाने कोइल िर्रु दरदीआ

स्विंि नवल

क िह-िह खोले, रे कोइलररया।। सबरह बोली बोले रे कोइलररया, सबरह बोली बोले रे कोइलररया ।

चफकया , चंदौली , उ.प्र. के स्विंि नवल जी बपबछला कई बररस से बहन्दी आ भोजपुरी मे लगािार बलख रहल बानी । ईहँ ा के बलखल भोजपुरी गीि के आवाज दे के कई गो गायक मंचीय प्रस्िुबि भी देले बा । कई गो राष्ट्रीय स्िर के पि पबिका मे इँ हा के लेख कबविा छप चुकल बा । साबहत्य के लगभग हर बविा मे इँ हा के बलखले बानी । एह समय इँ हा के चंदौली मे बानी ।

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वबवस्मल्िाह बनारस के ! (अवनमेष कुमार िमा​ा)

“ह

ि िहार गारी भी सनु लेि अगर सरु िे होखी ि “। अइसन सबचार राखे वाला सच्चा संगीि सार्क जेकर शहनाई के आवाज सनु के ई देस के आजादी के शरु​ु आि भइल रहे। ओइसन, आजीवन सरु के िहान सार्क भारि रयन उस्िाद सबसस्िल्लाह खान के जनि 21 िाचा 1916 के सबहार के डुिरांव िें भइल रहे। िाई सिट्ठी आ बाऊजी पैगम्बर खान नेह से आपन दस ु रका बेटा के किरुद्दीन कहो लोग। एक सदन बाबा रसूल बक्स खान जे खुद भी शहनाई बजवाि रहनीं, आपन पोिा के देख के ‘सबसस्िल्लाह’ कहनीं। कहल जाला की उहाँ के शायद एहसास हो गइल रहे की शहनाई के नया िक ु ाि पे ले जाए के सबसस्िल्लाह घरहीं से अब हो गइल बा। िबे से किरुद्दीन सबसस्िलाह खान बन गइनी। बनारस के आपन किा भूसि बनावले उस्िाद जी के िानना रहे की शहनाई के र्नु से जब गंगा के र्ार से उठि हवा टकराला ि, र्नु अउरी िनिोहक हो जाला। 3 बररस के उसिर िें जब उहाँ के पसहला हाली बनारस, अपना िािा जनाब आली बक्स सवलायिु के लगे गइनी आ काशी सविनाथ िसन्दर िें उहाँ के शहनाई बजावि सनु नी ि हैरान हो गइनी। शहनाई खासिर ललक जाग चक ु ल रहे। सवलायिु साहब के भी आपन भांजा के रूप िें सशष्य सिल गइल। दस बररस िक उहाँ के छोटी चक ु ी शहनाई बाजा के हीं रेयाज़ करि रहीं। ओकरा बाद जाके उहाँ के असल शहनाई सदयाइल। ओकरा बाद से शहनाई से अइसन नािा बनल, की उहाँ के रासि के सिु े के बेरा भी शहनाई लेके सुि​ि रहीं। 1930-1940 के बीच िािा के साठे उहाँ के बहुि जगह शहनाई बजवाले रहनी बाकी 14 बररस के उसिर िें इलाहाबाद के संगीि सम्िेलन िें उहाँ के आपन पसहलका बंसदश बजावनी। सबसस्िल्लाह खान जी ठुिरी, चैिी, कजरी, के एगो नया िरीका से लोग के सािने रखे लगनी जेकरा के लोग बहुि पसंद भी कइल। बाकी उहाँ के असल पहचान बनल शरू ु भइल 1937 के कलकत्ता (अब कोलकािा) असखल भारिीय संगीि सम्िेलन से। भोजपरु रया िाटी के िहक उहाँ के संगीि से हिेशा लउकि रहे। बचपन के बाि ह, रेयाज़ करे के सिय इहाँ के लागल की किरा िें इि के खुशबू फै ल गइल बा। फे नु ध्यान आइल की इि ि लगावले हीं नईखीं हि। आँख खोल के देखनी ि एगो लंबा, गोर बाबा खड़ा रहलें। लंबा दाढ़ी रखले आ खाली लंगोट पसहनलें। देख के उ डेरा गइलें, ि बाबा बोललें- बाह बेटा बाह, बजावs-बजावs , जा िजा करबs। उहाँ के लागल की शायद बालाजी के साक्षाि © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 29


दरशन भइल ह। ई बाि उस्िाद जी आपन िािाजी के बिावनी। िािाजी एक पड़क्का देहसन गाल पे आ कहनी की ई बाि के हु से बिावे के ना चाहीं आ खयाल रखीह की आगे भी के हु के ना बिावs। गंगा-जिनु ी िहजीब के प्रसिरूप खान साहब के िानना रहल की संगीि अइसन चीज ह जेकरा िें जेकरा िें जाि-पाि कुछो नइखे। संगीि कवनो िजहब के बरु ा ना चाहेला। उहाँ के अकसर क़हि रहनी सक इस्लाि िें िौससकी के एहसे हराि कहल गइल बा सक जादू जागा देवे वाला ई कला के ना रोकल गइल, ि एक से एक फनकार एकर रागनी िें डुबल रही लोग आ दोपहर-साँझ के निाज कजा हो जाई। एक हाली के बाि ि उस्िाद सबसस्िल्लाह जी के बहस इराक के एगो िौलवी जी से हो गइल। िौलवी जी के कहनाि रहे की संगीि हराि ह, शैिानी चक्कर ह आ एकरा िें ना पड़े के चाहीं। उस्िाद जी कुछ ना कहनीं आ खाली राग भैरवी िें अल्लाह ही-अल्लाह, अल्लाह ही- अल्लाह गावे लगनी। िनी देर के बाद जब उहाँ के चपु भइनी ि िौलवी जी से पछ ु नी की अब बिाव इ गलि बा? के हु के लगे कवनो जवाब ना रहल आ फे नु आगे के हु बहस भी ना कइलस। उहाँ के कहले रहनीं सक सरु हीं इबादि ह आ खुदा िक पहुचं े के सीर्ा रास्िो। खाली िीसरा दजा​ा िक के िालीि लेहले सबसस्िल्लाह जी के जेिना ज्ञान रहे संगीि के , उ एह बाि के पक्का करेला सक संगीि के हु पइसा दे के सीख लो अइसन नइखे हो सकि। आ ना सक के हु बड़का सडग्री ले लो ि ओकरा बेससआई जानकारी होखबे करी। संगीि एगो सार्ना रहे उहाँ खासिर। 1938 जब आल इंसडया रेसडयो के शरु​ु आि भइल िबे से खान साहब के शहनाई के आवाज रेसडयो के असभन्न अंग बन गइल रहे। इहाँ के शहनाई के पसवि शरु​ु आि के बादे पंसडि नेहरू जी 15 अगस्ि, 1947 के आपन भाषण शरू ु कइले रहनी। जाने के िना राष्रीय अंिराष्रीय सिारोह िें शहनाई बजा के आपन कला से लोग के सम्िोसहि कइले रहनीं। भर भर के परु स्कार भी रहे इहाँ लगे। पद्म भूष, पद्म सवभूषण सिलला के बाद 2001 िें उहाँ के भारि रयन से सम्िासनि कइल गइल । उहाँ के शहनाई के एगो अइसन उचाई ं पे पाहुचा देहले रहनी सक सब परु स्कार भी ओकरा सािने फीका लागेला। लोग कहेला सक संगीि उहाँ के ऊपर वाला के उपहार के रूप िें सिलल रहे। बाकी सच्चाई बा सक उहाँ के एह िक ु ाि पे पहुंचे खासिर बहुि अभ्यास कइले रहनीं। संगीि उहाँ के जीवन जीये के िरीका रहल। हर चीज िें उहाँ के संगीि सदखो। एक

हाली राि के 1-2 बजे के करीब सबसस्िल्लाह जी बइठलबइठल वाह-वाह करे लगनी। घबराइल उहाँ के िेहरारू पछ ु नी की का भइल जी, सब ठीक बा न?ु ि उस्िाद जी कहनी की सनु s, कहीं ि बेगि अख्िर जी के गावल “दीवाना बनाना है िो दीवाना बना दे” बाजिा। उ कहली की सनु ाई ि पड़िा बासकर के कर ह ई ओटा नइखे, आ रउआ चपु -चाप सिु ीं अब । भोरे पिा लगवु े की बहुि दरू कहीं पे रेकॉडा बाजि रहे रासि के आ हवा के झोंका से ओकर हल्का आवाज रह रह के उस्िाद जी के कान िें पड़ि रहे, आ बेगि अख्िर के रहल । लिा जी के गीि भी उहाँ के बहुि पसंद रहल आ हिेशा उहाँ के कहि रहनी की लिा जी के कवनों अइसन गीि हिरा सनु े के आज ले नइखे सिलल जेकरा िें एगो सरु भी एने-ओने भइल होखो। सकस्ि​ि से दनु ु लोग के भारि रयन भी साथे हीं सिलल। सबसस्िल्लाह खान हिेशा कहीं सक सरु िहराज के हु के बपौिी ना हवें आ जे एकर सार्क बन जाई इ ओकरा सिल जाई। बाकी अिना नाव किईला के बादो सबसस्िल्लाह खाँ अपना उपलसब्र् से खुस ना रहलनीं। उहाँ के हिेशा कहीं सक असल खांटी सरु लागले कहा बा , ओसह के ि हि जोहि बानी , आ ओसह के पावे खासि हि शहनाई बजावि बानी , जसहये उ असली सरु लासग जाई ि बसु झ लेब सक हि बाबा सबिनाथ के शरण िे पहुचं गइल बानी। उस्िाद जी क़हि रहनीं सक हि कुछो पैदा थोड़े कइले बानी। जवन भइल उ ऊपरवाला के करि ह। बाकी शहनाई िें जवन हि लेके चलेनी उ बनारस के अंग ह। सजंदगी भर िंगलगौरी आ पक्का िहल िें रेयाज़ करि जवान भइल बानी ि कहीं ना कहीं बनारस टपकबे करी हिार शहनाई से। ढेर लोग के नइखे पिा बाकी उहाँ के सययसजि राय के सफल्ि “ जलसागर” िें असभनय भी कइले रहनीं। सफल्ि “गूंज उठे शहनाई िें उहाँ के संगीि देहले रहनीं। ओकरा बाद उहाँ के काफी नाराज भी भइल रहनीं सफल्ि बनावे वाला लोग से काहे से सक उहाँ के शहनाई के एगो अहि सहस्सा काट सदहल रहे सबना बिावले। ओकरा बाद सफल्ि “स्वदेश” िें ए.आर.रहिान सज उहाँ से शहनाई बजावे के सनहोरा कइले रहलें आ ओ सफल्ि के गीि “ये जो देश है िेरा” िें इहाँ के शहनाई बजावले रहनीं । आजीवन सबसस्िल्लाह खान साहब के िानना रहे सक “दौलि ख़रच कइला से घटेला बाकी सरु के हु ख़रच करो ि

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बढ़ेला”। एह बाि के िान के उहाँ के कबो पइसा के पीछे ना भगनी। बाकी जीवन के आसखर सिय आवि-आवि एगो टीवी इंटरव्यू िें उहाँ के एक हाली कहले रहनीं- भारि रयन सिलला के खुशी बा, बाकी भारि सरकार से सशकायि भी बा की संगीि के क्षेि के लोग ला सरकार के आसथा क नीसि बहुि उदासीन बा। जे कलाकार संगीि के जीवन िान के आपन सब कुछ ओकरा िें लगा के भारि के नाि बहरी दसु नयो िें रौशन कर रहल बा ओकरा के सरकार खाली परु स्कार देके का पड़ला झाड़ लेि सबया। ओकरा बाद ओकर सर्ु लेवे वाल के हु नइखे ।

अइसे सरकार के जवन भी रवैया रहल ना रहल ओकरा से कबो संगीि के इ सच्चा सार्क के फरक ना पड़ल आ उहाँ के अइसन इसिहास सलख के इहाँ 21 अगस्ि 2006 के से सबदा ले लेहनी। सशष्य बनावे िें उहाँ के हिेशा सझझक रहो। काहे से सक उहाँ के लागो सक उहाँ लगे बहुि कि जानकारी बा आ ओटने जानकारी उ ठीक से दे भी ना पाएि के हु के । िबो उहाँ के सशष्य के रुप िें 2 ठो बेटा, नासज़ि हुसैन आ नय्यर हुसैन आ सशष्य एस. बल्लेश शहनाई के संगीि के आगे बढ़ा रहल बा लोग ।

आज गउिा​ां शहर हो गइि

नाहीं कहिीं

आज गउवां सहर हो गइल, िानs अिररि जहsर हो गइल ।

खुसल के कबहू ँ आपन उ बाि नाहीं कहली, जागल जवन प्यार िें ज़ज्बाि नाहीं कहली ।

ना ऊ सपपरा बगइचवा रहल, अब ि भोर दपु हर हो गइल ।

जासन गईनी उनक ु ा चप्ु पी के राज हि, चपु रसह के आपना सदल के हालाि नाहीं कहली ।

भाई - भाई लड़ाई करे, दू गो चूल्हा के घर हो गइल ।

रूसल बा उनक ु र िनवा टूटल भी बा ि का, सौ झूठ सनु ली िबो सदन के रासि नाहीं कहली ।

उहे पेप्सी आ बरगर सिले, बाटी चोखा कहsर हो गइल ।

अंसखया से जब बहेला गंगा-जिनु ा के र्ार, दू बूदँ आँसवु न के बरसाि नाहीं कहली ।

जेिना िहल दिु हला बनल, ओिने सदल खंडहर हो गईल ।

उ बासन्ह सलहली ख़ुद के अपने ही बान्ह िें, सनज नेह के उ बदलल हालाि नाहीं कहली ।

नील अकससया िें सचरई उड़ल, अब करेजवा बजsर हो गइल ।

गावेली सबरहा के उ भावन िें गूथँ ी के , बासकर ओ ददा के भी नगिा उ नहीं कहली ।

नीलांबुज त्रसंह

हृत्रषके श चिुवेदी

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राहुि सा​ांकृत्यायन आ भोजपरु ी (डा. जौहर शावियाबादी

हापंसडि राहुल सांकृययायन ठेठ भोजपरु रया िदा​ा ना आ खाँटी सिझ ु ल-सल ु झल सवद्वान रहनी । उहाँ के अपना देशभसि-राजनीसिक सचंिन से भारिीय स्विंि​िा आंदोलन के एगो नया सदशा सदहनी । राहुल जी के व्यसित्त्व जहाँ एक ओर पूणा राजनीसिज्ञ, देशभि-रणनीसिकार के रूप िें खूब उभरल िऽ दस ू रा ओर एगो सजग सासहयय-प्रहरी आ अपना िािभृ ूसि भारि आ िािभृ ाषा भोजपरु ी के सदसाई सिसपा ि सिकालदशी सवचारक-सचंिक के रूप िें भी खूब उभरल-सनखरल बा ।

िहापंसडि का िन िें शायद एह िनोवैज्ञासनक सौंदया -बोर् के सूि पैदा हो गइल रहे, सक भारि के पहिला अक्षर ‘भ’ आ भोजपुरी के पहिला अक्षर दूनू एक दूसरा के पूरक बा । एिी से उिा​ाँ का भारि आ भोजपुरी दूनू के लड़ाई के बड़ा िान-सम्िान आ गौरिपूणश ढंग से लड़ि रिनी । राहुल बाबा यसद घिु क्कड़ सार्ू रहनी िऽ सासहयय के सार्क भी, आजादी के दीवाना रहनी िऽ सकसान आन्दोलन के परवाना भी। सहंदी के पक्षर्र रहनी िऽ भोजपरु ी के िरफदार भी । बहुआयािी, बहुभाषी व्यसित्त्व के र्नी राहुल जी सहंदी िें ‘गंगा से वोल्गा िक’ सलखले बानी िऽ भोजपरु रयो िें कि काि नइखीं कइले। हिारा सिझ से उहाँ का आपन उयकृष्ट रचना आ निूना सासहयय-सज ृ न के कौशल भोजपरु रयो िें परोसले बानीं । जवन अपना वैचाररक ऊँचाई आ गंभीर चेिना का चलिे भोजपरु ी सासहयय िें िील के पयथर बा । सनश्छल हृदयर्ारी, बौसद्धक िांसि के पज ु ारी िहापंसडि राहुल सांकृययायन के िनोवैज्ञासनक नैसिक संदभा के ऊँचाई एह साँच के आयिसाि कर के र्ारदार िेवर का साथ कागज का छािी िें उिरल, “िािृभाषा िूड़े ना बलुक आपस िें टूटल सदल के जोड़ेले।” जहाँ िक भोजपरु ी भाषा के सवाल बा िऽ भोजपरु ी एगो भाषा िाि ना हऽ, ई एगो कालान्िर से संस्कृसि का रूप िें आपन पहचान बना के सहंदू-िस ु लिान सबके सिला के पसवि गंगा खानी आपन प्रसाद आ पसवि​िा प्रदान करि सवा र्िा सिभाव, एकिा-सिानिा© आखर ● अप्रैल, 2015 ● 32


सि​िा संदसशा िा आ आपसी िेल-जोल के इसिहास गढ़े िें आपन एगो अलग पहचान रखे लें। जवना के झलक आजो भोजपरु ी सिाज िें डेगे-डेग पर देखल जा सकि बा। राहुल बाबा िनसा-वाचा-किा णा से इ सासबि कर देले बानी सक िािृभाषा िाई के दर्ू का साथे सिलल जीवन के रस हऽ। एह से अपना िािभृ ाषा के सम्िान कइल, अपना िाई के सम्िान बा। राहुल बाबा एसह से कबो अपना िािृभाषा भोजपरु ी के सहन्दी के बोली ना िननी, ना जरूरि के भाषा के जािीय भाषा के हवाई कल्पनों से जोड़े देनी, ना कबो स्वीकार कइनी। अपना िािृभाषा के िशाल ओह सिय िें सावा जसनक सभा िें ऊँचा हाथ उठा के जरवनी, जवना घड़ी भोजपरु ी रचनाकार आ भोजपरु ी भाषा-भाषी लोग िनोवैज्ञासनक उदासी आ सडप्रेशन िें रहे। आज़ादी से पसहले आ आज़ादी के बाद एिना र्ारदार िेवर, बेबाक लहजा आ िदा​ा ना के दि-खि के साथ सासहयय संगोष्ठी से राजनीसिक िंच िक भोजपरु ी के पक्ष राखे वाला दूसर के हु ना रहे, इ ससफा आ ससफा बाबा राहुल जी के ठेठ भोजपरु रया िदा​ा नापन रहे, जे ज्योसि जरावल, आ भोजपरु ी सलखे-पढ़े वाला लोग िें आयि सविास के भाव जगावल आ सबका के बिावल सक –

िेवर के साथ वकालि करि बल ु ंद कइनी। बनारसी लाल चिुवेदी आ परिेिरी लाल गप्तु ा के सपना साकार कइनी। फे र 1947 िें असखल भारिीय सासहयय सम्िेलन (बम्बई) आ सदसंबर 1947 िें भोजपरु ी सासहयय सम्िेलन गोपालगंज सबहार िें सावा जसनक िंच के अध्यक्षिा करि सिय जवन सवद्विापूणा अध्यक्षीय भाषण देनी। ऊ आज भोजपरु ी भाषाभाषी लोग खासिर संजीवनी के काि कर रहल बा। िहापंसडि राहुल सांकृययायन के ओह ओजस्वी भाषण के भोजपरु ी रचनाकार लोग पर एिना गसहर प्रभाव पड़ल, सक ऊ लोग आयिसविास से भर गइल आ राहुल बाबा के आह्वान पर भारिीय भोजपरु ी सासहयय सम्िेलन पसिका से पसहले पंसडि िहेंद्र शास्त्री जी पटना से भोजपरु ी के पसहला पसिका ‘भोजपरु ी’ नाि से 1948 िें सनकलनी, फे र अंजोर, भोजपरु ी कहासनयाँ ओकरा बाद पसिका िें िाँिा लाग गइल। काहे सक राहुल बाबा सिु ल भोजपरु ी सिाज के सिकालदशी बाबा बन के जागा देलन आ अपना िािृभाषा के सवकास खासिर सबका के आशावन बना देलन। जवना से भोजपरु ी के सिद्ध ृ करे िें नोहे-दाँिे भोजपुररया रचनाकार लोग एगो नया हौसला से लाग गइल।

ढीठ ना लगावे जाने, आन के बहुररया।

राहुल जी एिने ना सक खाली भोजपरु ी भाषा सासहयय के उसचि सम्िान आ देश के अष्टि सूची िें शासिल करावे के िनोवैज्ञासनक सूिर्ार बनलें, बलुक खुद अपने रचनायिक काया िें लागलो रहलें। के िना भाषण-लेख-सनबंर् सलखलें आ जेलो िें रह के सलखलें, आ बादो िें िरे का बेर ले अपना िािृभाषा िें सलखि-पढ़ि रहलन। नाटकन िें गीिों सराहे योग सलखले बारन –

आन पर लड़ावे जान, जान के ना जाने जान,

गीि

चले के उिान जाने, िान के लउररया।

एके िाई-बपवा से एक ही उदरवा िें,

बानी िरदानी जाने, चाल िस्िानी ‘भान’ु ,

दूनों के जनिवाँ भइल रे परु​ु खवा।

होला एक पानी के िरद भोजपरु रया।

पूि के जनिवाँ िें नाच आ सोहर होला,

(भनु ेिर प्रसाद ‘भान’ु )

बेटी के जनि परे सोग, रे परु​ु खवा॥

झूठ ना बखाने जाने, छूि-छाि नाहीं िाने, िाने जाने सभके , ना जाने जी हुजरु रया। र्रु रया चढ़ावे जाने, पीठ ना देखावे जाने,

र्नवा, र्रसिया पर बेटवा के हक होला, एही आन-बान-शान से राहुल बाबा एक साथ दू िरह के लड़ाई के श्रीगणेश कइनी। एक िरफ ि रचनायिक िांसि भोजपरु ी भाषा के सजग रचनाकार लोग चलाविे रहे, बाकी ओह िें गंभीर िंिणा के प्राण फूँक देनी। िऽ दूसरा िरफ राजनैसिक स्िर पर भोजपरु ी के हक़ के आवाज के जोरदार © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 33

सबसटया के कुछुओ ना हक रे परु​ु खवा॥ िरदा के खइला-किइला के रहिा बा,

सिररया के लागेला के वाड़ रे परु​ु खवा ॥


खेवे के रणपवा सजसनसगया भर परी ओके ,

आपन भोगल-ओसावल के अनभु व के कौशल भोजपरु ी िें पैदा करे वाला ।

सिग्र स्त्री सविशा भोजपरु ी िें करे वाला।

क्षेिीय भाषा िें लइकन के प्रारंसभक सशक्षा देवे के स्लोगन भोजपरु ी क्षेि िें देवे वाला।

भोजपरु ी िें स्वासभिान पूणा सावा जसनक सभा िें भाषण के भाषा बनावे वाला ।

भोजपरु ी रचनाकारन के िनोबल बढ़ावे खासिर शेक्ससपयर से सभखारी ठाकुर के िुलना करे वाला प्रथि बहुभाषी सवद्वान ।

भोजपरु ी के जायज हक खासिर राजनैसिक आर्ार पर पसहला िख ु र आवाज़ उठावे वाला किा योगी।

राष्रभाषा के साथ आपन िािृभाषा के सम्िानजनक हक़ खासिर आंदोलनायिक के प्रथि यद्ध ु वसृ त्तकार।

भाषा सविशा के साथ पसहला बेर भोजपरु ी का हक़ िें ई कहे वाला सक भोजपरु ी के सिद्ध ृ भइला से सहंदीयो सिद्ध ृ होई, सहंदी के कवनो क्षेिीय भाषा से नक ु सान नइखे।

भोजपरु ी भाषा-भाषी लोग से पसहला बेर जोरदार िेवर िें अपना िािृभाषा िें बोले आ सलखे िें संकोच छोड़े के आह्वान करेवाला।

आजादी के बाद भोजपरु ी िें पि-पसिका प्रकाशन के सूिर्ार।

भोजपरु ी के सहंदी के एगो बोली ना िाने वाला प्रथि बहुभाषी सवद्वान।

हिार िािृभाषा के हू से कि नइखे ई िनोवैज्ञासनक शसि भोजपरु ी भाषा-भाषी लोग िें भरे वाला।

भोजपरु ी रचनाकर लोग से गद्य-सासहयय पर पसहला बेर सवशेष ध्यान देवे के आग्रह करे वाला ।

लइके जे िरदा िअ ु ल, रे परु​ु खवा ॥ सिररया के िवु ले ि बसिये कवना पूछा, जीअिे सवसिया ले अवे, रे परु​ु खवा ॥ अंसखयें के देखिे पिु ुररया ले रखले बा, िार-गारी देला सदन-राि रे परु​ु खवा॥ ओसह रे खसरु वा िरदवा के सकछु नाहीं, सिररया के भकसी झोकावे रे परु​ु खवा ॥ 1942 िें राहुल बाबा के दू गो नाटक संग्रह भोजपरु ी िें प्रकासशि भइल पसहला नाटक संग्रह िें िीन गो नाटक – िेहरारून के दरु दशा, (2) नइकी दसु नया, (3) जोंक आ दस ु रा नाटक संग्रह िें पाँच गो नाटक – (1) ढुनिनु नेिा (2) जरिनवा के हार सनहचय, (3) जपासनया राछस, (4) देस रछक, (5) ई हिार लड़ाई शासिल रहे। एह सब नाटकन िें िाि िीन गो उपलब्र् बा बाकी पाँच गो अबले नइखे सिल सकल। जवन छपरा से नइकी दसु नया प्रकाशन से प्रकासशि भइल रहे, बाकी ऊ अबले नइखे सिल सकल। राहुल बाबा के ई सब रचना सवचार प्रर्ान बा। जवना के जररये राहुल बाबा भोजपरु ी जनिा के एगो साफ-सथु रा वैचाररक ऊँचाई देवे के काि कइले बानी, आ जन-चेिना पर बल देले बानी। िहापंसडि जी के चाह बस एिने ना रहे सक भोजपरु ी भाषा सासहयय सिद्ध ृ होखे आ एह के उसचि सम्िान सिलो बलुक उनकर इहो अरिान रहे सक भोजपरु ी सिाज पचरावासदिा सिदु ाय से ऊपर उठे, जवना से एगो सिद्ध ृ भारि के कल्पना साकार होखे। एही सदसाई उहाँ के सोच रहे साँच पर बा आँच खाली जी हजुरी बा इहाँ, चाहे जइसे होखे पररविा न जरूरी बा इहाँ॥ (रंगिहल, जौहर शासफयाबादी) एह िरह से राहुल सांकृययायन के िूल्यांकन उहाँ के किा किाई के आर्ार पर कइल जाय िऽ इ सच्चाई खल ु के सािने आई। 

प्रौढ़ प्रगसिशील वैचाररक िूल्यन के सिावेश से भोजपरु ी सासहयय िें आर्सु नक रचना संस्कृसि पैदा करे वाला ।

के हू एह सच्चाई से इंकार नइखे कर सकि सक राहुल बाबा के नैसिक ऊजा​ा आ रचना र्सिा िा पर अब िक सांगो-पांग सवचार आ इंसाफ भोजपरु ी चाहे सहंदी िें नइखे हो सकल। जवन होखे के चाहीं। कुछ लोग उहाँ के साम्यवादी कह के खाली साँच छुपावे के असफल कोसशश जरूर कइले बा, बाकी इंसाफ ना।

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राहुि सा​ांकृत्यायन: यात्रा ( पयाटन ) में जीिन यात्रा

भा

सिलल। चूसँ क राहुल भगवान बद्ध ु के लइका रहले ओही से इहाँ के नाि राहुल पडल । आगे के सांकृत्यायन इहाँ के गोि “सांकृयय” से सिलल । संस्कृि के िहान सवद्विा, अद्भुि िकाशसि अनपु ि ज्ञान भंडार के चलिे काशी के पंसडि लोग इहाँ के “ि​िापंहडि” के उपासर् देलस ।

9 अप्रैल 1893 िें सजला आजिगढ़ के पंदहा गाव जवन की इहाँ के नसनहाल रहे, िें इहाँ के जन्ि सपिा श्री गोवर्ा न पांडेय और िािा श्रीि​िी कुलवंिी जी के घरे भईल । कुल चार भाई आ एक बसहन िें इहाँ के सबसे बड़ रहनी । सपिृकुल से इहाँ के नाि के दारनाथ पांडेय सिलल बाद िें इहाँ के नाि दािोदर स्वािी दसक्षण भारि िें रहला से सिलल आ अंि िें जब इहाँ के बौद्ध र्िा अपना लेनी िब इहाँ के नाि राहुल

36 भाषा के ज्ञािा राहुल जी के सनयसि​ि सशक्षा के सौभाग्य ि ना सिल सकल बासक इहाँ के सनयसि​ि स्व-ध्याय से भारिीय संस्कृसि, इसिहास, वेद, परु ाण, दशा न आ सवि के बहुि सारा भाषा िें पांसडयय प्राप्त कइनी । इहाँ के प्रारंसभक सशक्षा िदरसा से उदा ू िें आरंभ भईल । िीन कक्षा के बाद इहाँ के फूफा िहादेव पंसडि अपना घरे ले गइनी ओह बेरा िहादेव पंसडि जी के बराबरी के आस-पास के 20-25 कोस िें कवनो सवद्वान ना रहले । इहवे राहुल जी के संस्कृि के सशक्षा “संस्कृि सारस्वि” से आरम्भ भईल । परंपरा के अनस ु ार राहुल जी के सवयाह िाि 14 साल के अवस्था िें जबरदस्िी कर सदहल गइल । एक बेर घीव के घइली इहाँ से सगर गइल आ ओिे से दू सेर घीव बह गइल ओह बेरा नाना के डांटला के डर से घर छोड़ के भाग के एगो िठ िें सार्ू हो गइनी । इहाँ के वाराणसी िें पूरा संस्कृि सासहयय अउरी दशा न पढ़नी। जब कलकत्ता गइनी ि अंग्रेजी, िद्रास जा के िसिल, सिरुपसि जा के िेलग,ु लाहौर से अरबी, आया सिाज के संपका िें अईनी ि वेद आ बौद्ध र्िा के संपका िें अईला से पाली, प्राकृि, अपभ्रंश, सिब्बिी, चीनी, जापानी अउरी ससंहली भाषा ससखनी आ सारा बौद्ध ग्रन्थ के िनन कइनी। कई गो ग्रन्थ बौद्ध र्िा पर भी सलखनी जइसे सक बद्ध ु चया​ा (1930), र्म्िपद (1933), िसज्झिसनकाय (1933), सवनय सपटक (1934), दीघा सनकाय (1934) आसद । आ इहे इहाँ के सवा श्रेष्ठ उपासर् 'सिसपसटका चाया ' के पदवी प्राप्त कइनी । राहुल जी के यािा से अनरु ाग के कारक इहाँ के नाना श्री रािशरण पाठक जी रहनी

रिीय सस्कृसि के एगो िहान दशा न “वसर्ु वै कुटुम्बकि” के शासब्दक अथा जेिने छोट बा ओकर दाशा सनक अथा ओिने सारगसभा ि । आसखर सारा पथ्ृ वी आपस िें कुटुंब के िरे से होई ? इ ि िबे संभव बा जब सक एक जगसह (स्थान) के लोग दोसरा जगसह के लोगन से सिले-जल ु े अउरी एक दस ू रा के भाषा-संस्कृसि के सिझे । इ बाि कहल जेिना असान बा, कइल ओिने कसठन। लेसकन एकरा के यथाथा के पररपाटी पर एह भारि के एगो संिान उिरनी आ जंगल-जंगल, पवा ि-पवा ि, देश-सवदेश, जा के उंहा के सभ्यिा, संस्कृसि, भाषा खाली सीखनी आ सिझनी नाही बासक ओकरा के ग्रन्थ के रूप िें संकसलि भी कइनी। इहाँ के यािा-विृ ांि के एगो शास्त्र के रूप देनी आ “घिु क्कड़ शास्त्र” के रचना कइनी । घिु क्कड़ शास्त्र के पष्ठृ 81 पर इहाँ के सलखने बानी “िनष्ु य स्थावर वक्षृ नहीं वह जंगि प्राणी है अिः चलना िनष्ु य का र्िा है” । इहाँ के नाव ि रउआ सबन के सिझ िें आ गइल होई । इहाँ के सवि सवख्याि आपन भोजपरु रया िाटी के लाल “ि​िापंहडि रािुल सांकृत्यायन” जी बानी । राहुल जी के सहंदी यािा सासहयय के जनक िानल जाला । राहुल जी के जीवन िें पया टन खाली घिु े सफरे ला, आनंसदि-अचंसभि होखे ला ना रहे बलूक एकरा िूल िें अध्ययन आ संकलन के प्रवसृ ि सवोपरी रहे ।

प्रभंजन कुमार नरकरटयागंज , पबछमी चम्पारन , बबहार के रहे वाला प्रभंजन कु मार बमश्र जी सी-डैक नोयडा से िकनीकी के क्षेि मे उच्च बशक्षा ले रहल बानी । इँ हा के कई गो लेख पबि पबिका मे पुरस्कृ ि भईल बा । एह घरी इँ हा के नोयडा मे बानी ।

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। नाना जी अपना जवानी के सदन िें फ़ौज िें रहनी । नाना जी अपना फौजी जीवन के कहानी बालक के दारनाथ के सनु ाई ं जेकरा से बालक के दार के िन िें देश दसु नया देखे के शवख उयपन्न भईल । इहां के यािा के बीच के एक-एक संस्िरण के एिना जीवंि रूप से सलखनी ओ िे से कुछ बसढ़या उदहारण िेरी लद्दाख यािा(1926), लंका यािावाली(1927-28), सिब्बि िें सवा वषा (1939), सोसवयि िध्य एसशया(1947), सकन्नर देश(1948), घम्ु िकड़ शास्त्र(1949), सहिालय प्रदेश (1954), एसशया के दगु ा ि खंडो िें(1956), आजिगढ़ परु ाियव (1955) आसद बा ।

भबवष्य अत्यंत उज्जवल, भूत से भी अबिक प्रशस्त है । बहंदी भाषी लोग भूत से ही नहीं आज भी सि से अबिक प्रवास बनरत जाबत हैं । गायना (दबिण अमेररका), बिजी, मशेस, दबिण अफ्रीका, तक लाखों की संख्या में आज भी बहंदी भाषा भाषी िै ले हुए हैं” ।

जनपदीय भाषा के सम्िान राहुल जी के स्वभावगि सवशेषिा रहे जेिे से भोजपरु ी इहाँ के सप्रय जनपदीय भाषा रहे । होखे के भी चाही कहे की इ उ भाषा रहे जवना के र्रु ा-िाटी िें खेल के बड़का भइनी ओकरा के के हू भल ु ा बेटा आ बेटी के भेद-भाव सकिा का ? कबो ना । इहाँ के भोजपरु ी िें जइसन की हिनी सब के पिा बा की 13 पर उिे के हलखल एगो बहुि सारा नाटक “रािुल बाबा” के नाि से वी शिाब्दी िें बसख्ियार सखलजी भारि से सलखनी । राहुल बाबा सािासजक सवषि​िा के े पं ह ि बा “एक माई बापवा वापसी के सिय िें भारि के अिूल्य सम्पदा सवरोर् िें, बेटा आ बेटी के भेदभाव पर आ इहाँ के ज्ञान के कें द्र नालंदा अउरी िक्षसशला से एक िी उदरवा में दन ू ों एही िरह के सािासजक ज्वलंि िद्दु ा पर सविसवद्यालय के ईष्या​ा वश जरा गइल । आ सलखनी । बेटा आ बेटी के भेद-भाव पर उहे में जनमवा​ाँ भइल रे कुछ सकिाब चीनी यािी सिय सिय पर चीन के सलखल एगो पंसि बा “एके िाई बापवा से ले गइले । कुछ सिब्बि िें रहे । ि इ बाि राहुल पुरखवा, पत ू के जनमवा​ाँ एक ही उदरवा िें दूनों िें जनिवाँ भइल रे सांकृययायन जी के खटकि रहल । एह ला इहां परु खवा, पूि के जनिवाँ िें नाच और सोहर में नाच और सोिर िोला के ओकर संग्रह करे खासिर के िना बेर हजारो होला बेटी जनि र्रे सोग रे परु खवा” । ओिे सक.िी. के दरु ी पैदल िय कई के कश्िीर आ बेटी जनम धरे सोग रे “कनैला की कथा” औरी “सि​िी के बच्चे” लद्दाख के रास्िा से सिब्बि अउरी चीन के बड़ा चसचा ि रहल । भोजपरु ी नाटक िें िीन प र खवा” । ु यािा अनेको बेर कई के गदहा आ खच्चर पर नाटक(1944) अउरी पञ्च नाटक(1944) संस्कृि के ग्रन्थ अलग-अलग प्रकार के इहाँ के अपना जन्िभूसि के अपना प्रसिभा से पाण्डुसलसप लाद-लाद के ले अईनी । ओकरा िें से बहुि सारा सेवा कइनी । चाहे उ कवनो क्षेि िें होखे । पटना संग्रहालय िें एगो अलग सवभाग बना के सरु सक्षि रखल राहुल सांकृययायन ओ दौर के उपज रहनी जब भारिीय बा । राहुल जी िथ्यान्वेषी आ सजज्ञासु प्रवसृ ि के रहनी एसहसे सिाज अंग्रेजन के अर्ीन रहे। जे से सक सिाज, संस्कृसि, इहाँ के लगभग सारा र्िा के अध्ययन कइनी । अथा व्यवस्था अउरी राजनीिी सब के सब संि​िणकालीन लगभग १५० से भी असर्क ग्रन्थ अलग-अलग भाषा िें दौर िें रहे । उ दौर नवचेिना के संचार फूके वाला सिाज सलखे वाला राहुल जी के अनरु ाग सहंदी से एिना रहे सक उहे के सर्ु ारक लोग के रहे, काग्रेस के रहे, ससहययकार के रहे । शब्द िें “मैंने नाम बदला, वेशभूषा बदली, खान-पान राहुल जी एकरा से अछूिा न रहनी आ एही से बेर-बेर घर बदला, संप्रदाय बदला लेगकन गहन्दी के संबधं में मैंने छोड़ के सार्ू बनला के बाद भी इहाँ के सिाज िें वासपस गवचारों में कोई पररवततन नहीं गकया” । आरंबभक बहंदी के अईनी आ आपन योगदान सिाज के हर क्षेि िें सदहनी। चाहे नाम खडी िोली नाम राहुल जी के ही देहल रहे । बहन्दी के उ सासहयय होखे चाहे र्िा के रुसढ़वादी परंपरा । एह बीच िें प्रसंग इहा​ाँ के बवचार रहे बक “बहंदी, अंग्रेजी के िाद दुबनया के भारिीय स्विंि​िा िें भी िहयवपूणा भूसिका िें रहनी 1921-27 अबिक संख्यावाले लोगों की भाषा है । इसका साबहत्य 750 के बीच के सिय राहुल जी के जीवन स्विंि​िा आन्दोलन आ इसवी से शुरू होता है और सरहपा, कन्हापा, गोरखनाथ, सािासजक आन्दोलन देनी एह बीच िें इहाँ के आजिगढ़ के चन्र, किीर, जायसी, सूर, तुलसी, बिहारी, हररश्चंर, जैसे कांग्रेस के अध्यक्ष रहनी । राजेंद्र बाबु के साथे सिल के बहुि कबव और लल्लूलाल, प्रेमचंद जैसे प्रलेखक बदए हैं इसका सारा आन्दोलन िें ससिय भाग लेनी एही बीच िें छपरा िें

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बाढ़ आइल जवना िें इहाँ के पीसड़ि लोग के खूब सेवा कइनी आ स्विंि​िा आन्दोलन के वजह से 6 िहीने बक्सर जेल िें, डेढ़ िसहना हजारीबाग जेल िें भी इहाँ के जाये के पडल । एह बीच िें इहाँ के अज्ञािवास िें नेपाल िें भी रहे के पडल । एकरा बाद फे नु कई बेर 1938-44 के बीच सबहार के सकसान आन्दोलन िें इहाँ के भाग लेनी । 1940 िें सबहार प्रांिीय सकसान सभा के अध्यक्ष सनवा​ा सचि भइनी । एही ससलससला जिींदारी प्रथा के सवरुद्ध सकसान भाई लोग के साथे हसआ ु लेके उंख काटे लगनी बाद िें जिींदार के लठैि िार के कपार फार देले सन आ एह ससलससला िें राहुल जी के एक साल के सजा भईल, सजा काटे के सिय देवली के म्प िें राहुल जी एगो ग्रन्थ “दशा न-सदग्दशा न” के रचना कर सदहनी । 1942 के सययाग्रह के बाद साप्तासहक पसिका “हुक ँ ार” के संपादन भी कइनी । एह बीच िें इहाँ के न जाने के िना भूख हड़िाल कइनी, सययाग्रह कइनी एही बीच िें इहाँ के कम्यसु नस्ट पाटी के सदस्यिा लेहनी आ अबकी बेरी 29 िसहना जेल िें रहनी आ ओकरा बाद इहाँ के लंका चल गइनी । इ राजनैसिक सिय िें राहुल जी बहुि सारा ग्रन्थ के रचना सिाज के राजनैसिक जड़ से चेिना िें लावे खासिर कइनी। अगर ओिे से देखल जाव ि साम्यवाद हीं क्यों?(1934), सदिागी गल ु ािी(1937), क्या करें?(1937), िानव सिाज (1942), आज की सिस्याए (1944), भागो नहीं बदलो (1944), आज की राजनीिी (1949) प्रिख ु रहे । राहुल जी अपना सजज्ञासु आ घिु क्कड़ प्रवसृ ि के वजह से सन्यासी से वेदांिी, आया सिाजी, सकसान नेिा बौद्ध सभक्षु से लेके साम्यवादी सचन्िक िक ले के लम्बा सफ़र िय कइनी । 1916 िक आवि-आवि राहुल जी के झक ु ाव बौद्ध -र्िा के ओरी होि चल गइल आ 1930 िें श्रीलंका जा के बौद्ध र्िा िें दीक्षा ले सलहनी आ दािोदर सार्ू से राहुल हो गइनी । 1932 िें यूरोप के यािा पर गइनी 1935 िें जापान, कोररया, िंचूररया के भी यािा पूरा कइनी । अपना जीवन िें कुल िीन सववाह कइले रहनी पसहला बचपन िें पररवार द्वारा, दूसरा िास्को िें भारिीय-सिब्बि सवभाग के ससचव “लोला येलेना” नाि के िसहला से इहाँ के परेि भईल आ इहाँ के बीआह कइनी। एिने ना इहाँ के रूस िें संस्कृि सशक्षक के नौकरी लेसननग्राद िें करे लगनी अउरी अंि िें राहुलोसवच नािक पुिरयन भी प्राप्त भईल । बाद िें इहाँ के रूस से भारि आ गइनी । 1950 से राहुल जी अपन आवास नैनीिाल आ एकरा बाद दासजा सलंग िें बनइनी आ इंहवा इहाँ के िीसरका बीआह भईल । बाद िें िर्िु ेह के रोग के कारण साि िसहना रूस िें इलाज

करवावे जाये के पड़ल लेसकन कवनो फायदा ना भईल ओकरा बाद इंहा के वासपस भारि आ गइनी। इहाँ के 14 अप्रैल 1963 को दासजा सलंग िें अंसि​ि साँस लेहनी । आ इ दसु नया से हिेशा-हिेशा खासिर सवदा ले सलहनी । राहुल जी के व्यसियव के शब्द नइखे देहल जा सकि । काहे सक जेकरा नाि पर लोग के िना लोग अपन शोर् कर चक ु ल बा अउरी करिा, ओकरा बारे िें कुछ सलखल सही नइखे। अब देखी ना जेकरा नाि के आगे आ पीछे एिना प्रययय आ उपसगा होखे जैसे िहापंसडि, शब्द-शास्त्री, सिसपटकाचाया , अन्वेषक, यायावर, कथाकार, सनबंर्-लेखक, आलोचक, कोशकार, अथक यािी, ियवान्वेषी, यगु पररविा क औरी जाने का का? जेकर सलखल सासहयय एिना सवस्ि​िृ बा सक जवना के कल्पना भी नइखे कइल जा सकि । राहुल जी के सासहयय के कई भाग िें बाटल जा सकsिा जइसे कथा सासहयय, जीवनी, पया टन, इसिहास दशा न, भाषा-ज्ञान, भाषासवज्ञान, व्याकरण, कोश-सनिा​ा ण, लोकसासहयय, परु ाियव उपन्यास, सनबंर्, कहानी, आयिकथा, संस्िरण, टीकाकार, आसद । राहुल जी के रचना के आर्ार बसहजा गि् के यािा आ अंि​िा न के आंदोलन के सिसन्वि रूप ह । भाषा आ सासहयय बारे िें इहाँ के सवचार बा की “भाषा और साहित्य, धारा के रूप िें चलिा िै िकश इिना िी िै हक नदी को ि​ि देि की पष्ठृ भहू ि िें देखिे िैं जबहक भाषा देि और भहू ि दोनों की पृष्ठभूहि को हलए आगे बढिी िै । कालक्रि के अनुसार देखने पर िी ि​िें उसका हिकास अहधक सुस्पष्ट रूप से दृहष्टगोचर िोिा िै । ऋग्िेद से लेकर १९िीं सदी के अंि िक की गद्य धारा और काव्य धारा के संग्रिों की आिश्यकिा िै” । भारि सरकार राहुल जी जइसन िहान व्यसियव के आदिी के श्रद्धांजसल देवे ला भारि सरकार के िानव संसार्न सवकास िंिालय के िरफ से “ि​िापंहडि रािुल संकृत्यायन पुरस्कार” यािा विृ ांि के सवा श्रेष्ठ लेखक के हर साल देले । िहा पंसडि राहुल संकृययायन जी के 1958 िें सासहयय अकादिी परु स्कार, 1963 िें पद्म भूषण परु स्कार भारि सरकार के िरफ से सिलल । आ इहाँ के जन्िशिी पर 1993 िें 100 पैसे के डाक सटकट भी जारी कइलस । राहुल जी के प्रेरणा श्रोि के काव्यपंसि बा :

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सैर कर दुबनया की गाबिल, बजंदगानी बिर कहा​ाँ, बजन्दगानी गर रही तो, नौजवानी बिर कहा​ाँ ?‘‘


मंगल पाण्डेय

मांगि पाण्डेय िीर जिनिा हो रामा...

लासी के लड़ाई भईला 70 बररस हो गईल रहे । एगो पूरा पीढ़ी अंग्रेजन के गल ु ािी िें जनि लेके ियृ यु के प्राप्त हो गईल रहे । सभे गल ु ािी के आपन नीयसि िान लेले रहे । कुछ लोग एकरा के पूवा जन्ि के प्रारब्र् कहे ि कुछ लोग ओकनी के िाकि बखान के आपन हीन भावना देखावे । स्विंि​िा का ह ? एकर का िोल होला ? ई सारा प्रश्न अंग्रेजी सविसवद्यालयन िें कै द हो गईल रहे । भारि के शोषण के सनि नया इसिहास रचल जाि रहे । कहीं कहीं सछटपटु सवद्रोह देखे के सिल जाव लेसकन ओकर स्वरुप स्थानीय रहे । अंग्रेजन के भारि पर खाली राजनीसिक असर्कार क के चपु ना बइठे के रहे । “व्हाईटिैन बडेंस” के जिु ला उछालल गईल आ िथाकसथि असभ्य भारिीय लोग के सभ्य बनावे के नाि पर सांस्कृसिक हिला शरु​ु भईल । भारिीय परम्परा िें सवष्णु के अविार लेबे के परम्परा रहल बा । ईिरीय अविार िब होला जब सिाज कोिा के अवस्था िें रहेला । अविारी सिाज के जोड़ेला, झकझोरेला आ ओकरा िाकि के एहसास कराके र्रार्ाि से सवदा ले लेला । एसह पररसस्थसि िें उत्तरप्रदेश के बसलया सजला के नगवा गाँव िें जल ु ाई 1827 िें िंगल पांडे जी के अविार भईल । भारि िािा के बररसन से जकड़ल शरीर िें हलचल भईल । गंगा िाई जल ु ाई के िहीना िें नाचे लगली । के जानि

रहे सक इहे बालक एक सदन देश के आजादी के राह खोल दी ? सिय सरकि रहे । जस जस िंगल पांडे जवान होखस िस िस कोिा िें जा चक ु ल सिाज िें सगु बगु ाहट उठि रहे । बसलष्ठ शरीर के र्नी िंगल पांडे फौज िें भिी हो गईलन । 1857 के िांसि के सिय कलकिा के लगे बैरकपरु के सैसनक छावनी िें पैदल सेना के ससपाही रहलन । पूजा पाठ आ व्यायाि सनयय के सदनचया​ा िें शासिल रहे । अपना संस्कृसि आ अपना पहचान पर गवा रहे िंगल पांडे के । एसह बीचे िहुँ ा िहुँ ी बाि फइले लागल रहे सक नइकी राईफल िें जवन कारिूस भरािा ओिें गाय आ सअ ु र के चबी सिलावल गईल बा । ओबेरा के दस्िावेज एकर साक्षी बाड़न स सक कई बार सिटीश हुक्िरान लोग के सनचला स्िर के अंग्रेज असर्कारी एह बारे िें आगाह कईले रहलन स । िद िें पागल हाथी के कुछउ ना सझ ु े । आ सत्ता के िद ? उ ि आउर खिरनाक होला । शीषा असर्काररयन के कान पर जूँ ना रेंगल । खबर र्ीरे र्ीरे सिंदु र िें लागल आग खानी पसरल जाि रहे । भोर के बेरा लोटा लेके कान पर जनेउ चढ़ा के सदशा िैदान जाये के िैयारी आ एही दौरान एगो अश्पश्ृ य जासि के व्यसि

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के पांडेय जी से टकराईल उ घटना रहे जवन लिु ी के बारुद बनावे के काि कईलस । हास्य भाव िें िंगल पांडेय कहलन सक “ र्रि के नाश क देहलs नू ?” जबाब भी पररहास िें सपरो के आईल रहे – “ अब र्रि ना बाँची बाबा ? नईकी राईफल के गोली भरे के पसहले दाँि से सखंचे के बा । आ ओिें गाय आ सअ ु र के चबी सिलावल गईल बा । र्रि ि के हू के ना बाँची बाबा ! ना सहंदू के ना िस ु लिान के ! ना हिार ना राउर !” लोटा हाथ से छुट गईल । आँख जरे लागल । हृदय रोवि रहे । एह कलंक के सिटावे खासिर एकही रास्िा बाँचल रहे – सवद्रोह । 29 िाचा 1857 के परेड के सिय रहे । गोली चलावे के अभ्यास भी करे के रहे । गोली चलावे के किांड सिलल बासकर गोली ना चलल । अंग्रेज साजेंट ह्यस ु न के सविास ना भईल । उ एने ओने िाके लागल । अचानक ओकरा शेर के दहाड़ सनु ाईल । उ दहाड़ िंगल पांडेय के रहे –“ ऐ भारि िाई के लाल ! जाग जा लो ! अब कवना सोच िें बाड़s लो ? आजादी के देवी दनु ू हाथ फइला के हिनी के न्यौिा भेजले बाड़ी । आगे बढ़s लो आ एह अययाचारी शिअ ु न पर हिला करs लो ।‘’ ह्यस ु न िंगल पांडे के ओर बढ़ल । खड़ा रहे के आदेश सदहलस । पांडे जी के आँख िें खून नाचि रहे । अपना र्िा आ संस्कृसि के सािने उनका आँख ना झक ु ावे के रहे । बंदूक उठल । गोली चलल । ह्युसन के िड़पि देख के लेसटटनेंट बॉब आगे आईल । गोली चलवलस । सनशाना चक ु गईल । िलवार सखंच के िंगल पांडे पर टूट पड़ल । पांडे जी के एकही वार से बॉब के िलवार वाला हाथ जड़ से कट के जिीन पर लोटाये लागल । एगो आउर अंग्रेज पीछे से वार करे खासिर िंगल पांडे पर सनशाना सर्लस । एसह बीचे एगो दोसर भारिीय जवान ओह अंग्रेज के खोंपड़ी पर हिला कईलस । र्रिी के गोदी रि रंसजि हो गईल । अपना आदिी सन के ई

हाल देख के कना ल व्हीलर िंगल पांडे के ओर बढ़ल । अचानक सिवेि स्वर ओकरा कान िें गज ुँ ल – “ खबरदार, अगर कवनो आगे बढ़ल ! आज िोहनी के अपसवि शरीर एह पसवि शरीर के छू भी नइखे सकि ।‘’ सचंगारी भड़क गईल रहे । आग लाग गईल रहे । अविारी िंगल पांडेय के चेहरा पर सवजय के िस्ु कान रहे । भारि िाई एह सिवेि स्वर के साथे कोरस गावि रहली । चारो ओर एकही स्वर सनु ाई देि रहे – भारि िािा की जय ! बंदक ू िें एगो गोली बाँचल रहे । अंग्रेजन के हाथ से ना छुआये खासिर िंगल पांडेय अपना सीना पर बंदक ू राख के फायर कईलन बासकर सनशाना चक ु गईल । बंदी बना सलहल गईलन । फौजी न्यायालय से ना ई ंसाफ के उम्िीद रहे ना सिलल । 8 अप्रैल 1857 के फाँसी पर चढ़ा सदहल गईल एह शूरवीर के । ओह बेरा के दस्िावेज साक्षी बा सक स्थानीय जल्लाद भी िंगल पांडे के फाँसी पर चढ़ावे से िना क देले रहलन स । कलकिा से जल्लाद बोलावे के पड़ल रहे अंग्रेजन के । इसिहास साक्षी बा सक पसहलका स्विंि​िा संग्राि के पसहलका शहीद िंगल पांडे के शहादि बाँव ना गईल । परु ब से पसि​ि िक उत्तर से दसक्षण िक िांसि के आग र्र्के लागल । एह संघषा के बाद अंग्रेजन के रीसि आ नीसि िें व्यापक बदलाव भईल । पसहलका हाली भारिीयन के िाकि से दु चार भईल सिटीश सरकार । ईस्ट इंसडया कम्पनी के हाथ से सत्ता सछना गईल । एह सब के बावजूद भारिीय चेिना पर िंगल पांडे के छाप असिट हो गईल रहे । लोग आगे आवे लागल । िांसि के िशाल कबो ना बझ ु ल । अंि​िः देश आजाद भईल । िंगल पांडे एह देश के सािथ्या के प्रिीक बन के आज भी हर सदल िें जीसवि बाड़न । यगु यगु ांिर िक जीसवि रसहहन ।

संजय त्रसंह बसवान , बबहार के रहेवाला , संजय हसंह जी भोजपुरी भाषा साबहत्य संस्कृ बि खाबि बररआर काम कई रहल बानी । भाषा आ साबहत्य प बररआर पकड आ भोजपुरी मे लगािार बलख रहल बानी । पंजवार गांव मे लगािार सांस्कृ बिक अ बौबद्धक कायजक्रम करा के आवे वाला पीढी के नया राबह देखा रहल बानी । एह घरी इँ हा के बसवान मे बानी ।

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वीर बाबु कंु वर सिंह सवशेष

आजादी के लड़ाई मे कुं वर आ भोजपरु रयन के योगदान उदय नारायण हसंि आजादी खासिर लड़ल गईल लड़ाई िें भोजपरु रया इसिहास के िहानायक बाबू कुवंर ससंह अईसे ि लवट अईनीं बासकर बारूद के जहर र्ीरे-र्ीरे पूरा शरीर िें पेहि होि गईल । आ बांह कटला के घटना के ठीक एक िहीना बाद ऊहाँ के आपन एह शरीर के ययाग देनीं । सबलख उठली र्रिी िईया । कह उठली-"जो रे बचवा जो, िे ि िर के इसिहास िें अिर हो गईले बासकर हिार का होई, अब के हिार सपना परु ाई? पं.सवा दवे सिवारी जी एह घटना के बड़ी ही िासिा क ढंग से सलखले बानीं"सबसर गईल रे,सबसर गईल रे िाई के चांद-सरु​ु जजवा सबसर गइल रे। ना अईसन भईल कबो, ना अईसन गईल कबो बरजल ना जरु िे खा परलय अईसन दईब कबो लहक गईल रे,लहक गईल रे छाविे खा छानी नवका

लहक गईल रे। भारि के आन गईल वीरन के िान गईल अंगूरी पर परवि जे थाम्हल ऊ कान्ह गईल गटक गईल रे,गटक गईल रे काल बसु ढया हिरा लाल के गटक गईल रे। सबसर गईल रे,सबसर गईल रे िाई के चान-सरु​ु जवा सबसर गईल रे।"

जोस परु ा उफान पर आ गईल रहे । कई -कई गो पड़ोसी गाँव के गंवई सेना थाक के थाक जटु के एह िैयारी िें लागल सक जब बबआ ु न लोहा लेवे के िईयारे बानीं ि हिसनयों के उनकर साथ देवे के चाहीं।चल देहलख लोग कंु वर ससंह से सिले । एह दृश्य के "चन्द्रशेखर सिश्र" जी अपना लेखनी से संवरले बानीं । ऊहाँ के एक िरफ ओह गवंई सेना के जोस आ दोसरका िरफ बबआ ु न के लड़े के िैयारी पर अपना िहाकाव्य-कुवंर ससंह-

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िें कह िानीं सक"हुक ँ ार उठल जब सेना के गूंजल आवाज़ नभ चीर गईल, के हू वीर िपल बा भारि िें सरगो िें अईसन सोर भईल। फर फर फर देसहया फरफराईल र्रिी के बाि इयाद भईल, िब र्रिराज के आगे सब परु खन के फररयाद गईल र्रिी पर हिके भेज दs हि सरगे िें नासहं रहब घेरले सबपसत्त भारि के बा हिहू ँ चल के लोहा लेहब। हि बईठ इहाँ लूटीं बहार हिरा र्रिी पर दाग लगे, अईसन सख ु वा हि ना भोखब िहरा बैकंु ठे आग लगे। हिरा र्रिी पर जब दस ु िन पांव र्रि होई, नाहक जनिवनीं हि बेटवा, ऊ पक्ु का फाड़ रोअि होई। अपना िाई के रोअल सनु


ना फाटल करेजा टूक-टूक, जवना छािी िें देस प्रेि उसकवलस नासहं यार हूक, बेटवा ले के पनहीं घूिीं िाई सेवे दासी बन के जेकर बैरी सख ु से सिू े सर्क्कार यार ओह जीवन के ।" इ ि स्वगा िें के परु खा-परु सनया के हुफ ँ ान हs। िनीं अब गवंई सेना के िाव सनु ीं । सभे पहुचँ ल बबआ ु न इहाँ आ कहलख- "राऊर नेविा ि सनु लेनीं सs, अब आदेस करीं, का करे के बा?" इहाँ कुवंर ससंह जी के खाली सदलेररए नईखे लऊकि बसल्क एगो बड़हन सदल के होखे के बानगी लऊकिा, जब एह सवाल पर कुवंर ससंह जी कहिानींबाबू कहलन सनु ल भाई ऊहाँ लोथs लोथ पर भहराई, अन्जाने िें किहू ँ ओट से असगन बाण गोली आई। ि जेकर प्यारी घर के सिररया ऊ लवट घर चला जाए, जेकर प्यारी भारि िािा ऊ रन िें चढ़ के लोहा चबाए।"

रऊरे िाई के दर्ू सपअनीं हिनीं के पानी सपअलें बाटीं? कहीं भोजपरु रया भागि पवनीं सरदार हिके बिलाय दीं संका िन िें ि​ि राखीं रण िें चढ़ के आजिाय लीं। िार लोहा से गोरवन के लासवा पर लास सबछाई देब हड़वा िें नून सिाईल बा बदले िें खून बहाई देब।"

सोच इहे िन बूढ़ सनथारल कोस बा कोसट सङे संगी सहोरा देस आ जासि के नाि बदे, परु खा सब खईनीं घास के रोटी जीअि भीसि चनु ाई सरीर सर झक ु ल ना िन टूटल कोसट।"

एगो भोजपरु रया के िाव देखीं-

सालि बाि,कचोटि आँि सनठाह िूफान सदया बीच ठानी,

"जेकर बैरी बच जाय ओकरा िरुवारी के सर्रकार, जे सबना िारे लऊटे घर के ओकरा िईयारी के सर्रकार, जेकर िोंछवा नीचे झक ु े ओकरा सरदारी के सर्रकार जेकर पीठवा िें घाव लगे ओकरा िहिारी के सर्रकार।"

अब बझ ु ाई ई इसिहास के सक दीपक जीसि सक अन्हर पानी"

गवंई सेना कि थोड़े रहे! िनीं ओने के िाव देखीं-

अँकवारी लगा लेनीं कुवंर ओह लड़वईया के , साट लेनीं अपना छािी से । खुसी के लोर छलक पड़ल आँख से आ एने बाँह आ छािी के िछरी फरफराए लागल । अपना परु खा परु वज के ससु िर के कह उठनीं कुवंर-

"बाबू के बोली गोली जस लग गईल जवानन के छािी

"हे परु खा,अगआ ु सब वंसज बा कर जोसड़ ई एक सनहोरा

"हे परु खा लोग ! हे अगआ ु !! हि रऊए लोसगन के ससु िर के कहिानीं । इयाद राखेब, ई कुवंर के वचन हs-

आ साँचहुं इसिहास गवाह बा सक ऊ लडाई लड़नी बबआ ु न की थरा​ा गइल ईस्ट इसन्डया कं पनी । बनावल गईल योजना, संगे ि गाँव-जवार के सेना रहलही रहे । 27 जल ु ाई 1857 के िारीख सबहार के जवानी के अंगड़ाई के सबूि बन के आईल । दानापरु के सवद्रोही ससपाही लोसगन के अपना साथे जोड़ के आरा से जब कूच कईनीं कुवंर िs अईसन बझ ु ाईल सक रणचंडी अपने नगाड़ा पर थाप दे के लोगन के लड़ाई लड़े के नेविा देि होखस । सगरो सैसनक कूदे लगलन सs, जोस पूरा उठान पर आ गईल-

उदय नारायण त्रसंह संगीि के बशक्षक , लोकगायक आ भोजपुरी संगीि में नवीन प्रयोग करे खाबिर उदय नारायण हसंह जी जानल जानी । छपरा , बबहार के रहे वाला हईं। इँ हा के भोजपुरी भाषा साबहत्य आ संगीि में हरदम कु छ नया, कु छ अलग करे खाबिर प्रयासरि रहेनी । अभी छपरा में बानी ।

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(एह दृश्य के सवा दवे सिवारी राके शजी अपना िहाकाव्य-कालजयी कुवंर ससंह िें सलखले बानीं)"सब जय भारि के जय बोले सब देस जासि के जय बोले, फे रु एक साथ सिल के जोर्ा हर हर हर बि बि बोले। जय बोले कुवंर बहादरु के र्रिी िईया के जय बोले, बजरंग बली या अली सवजय जय जय जय जय जय जय बोले ि​ि रुकs वीर, चढ़ चलs वीर लड़ िरs वीर,कट िरs वीर, साम्राज्य सबगाड़ि चल वीर ससंहासन टारि चलs वीर।" आरा जेल िें ओह घड़ी कै दी भी रहलें सs । एक्के हुक ँ ारी पर दरवाजा टूट गईल आ लूटा गईल आरा हाऊस । अंगरेज सिलसिला के जगदीशपरु आ बीबीगंज पर चढ़ाई कर देहलन सs । बासकर कुवंर के सहआव कि ना भईल । सासाराि,सिजा​ा परु ,रीवां के राह र्ईलेबर्ार के गरिावि-लड़ाई लड़ि, बाँदा िें ठहराव सदआईल । एकरा बादे कानपरु के घेराबन्दी कर के आजिगढ के ऊ लड़ाई लड़नी बबआ ु न कुवंर, जवन इसिहास के एगो परिोख बन गईल । उहाँ के ऊ हुिच्चा देनीं सक अंगरेजवन के सेना के नानी इयाद आ गईल । (सवा दवे सिवारी राके स जी के नजर िें)"रूंड सगरे िूंड सगरे झंडु झंडु िंडु सगरे

कंु ड भरे रि के प्रचंड चंड जारी बा, खंड खंड भंड िहािंड हंड दंड पड़े भड् ड भड् ड फटफटाह िोपन के लारी बा। िाका-डागवेल-वेनवील के नाबाह चले आह-दाह-जाह िें िबाह भईल भारी बा जंग ई बढ़ु ंग के सफरंग रंग िसद्धि बा गसज्झन गोहार गवा गढुआईल जारी बा। बासज बासज बासजन से बाद बाद बासदन से, िर कर के सेना ना िार करे अॉ​ॉ​ॉंटेले, दस ु िन पराई चलल िोब रोब हाई परल सिसिया सबजेिा सकं सकं अईला िन कांखेंले।" अईसन ढेर लड़ाई बा,जवना के चरचा होखो ि कव गो सकिाब सलखा जाव, जवन बढ़ु ऊ बासकर जवान लड़वईया लड़नीं । लेसकन आजिगढ़ के लड़ाई लड़ला के बाद लवटानीं िें बसलया के सशवपरु घाट पहुचं े िक अंगरेज पीछा कईल ना छोड़लें सs । एने बर्ार गरिाईले रहे । िवले अंगरेजवन के बड़का ओसफसर डगलस नाव से पार करि कुवंर ससंह पर गोली चला देहलस । ऊ गोली लाग गईल बाँह िें । िल्लाह

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घबडा गईलें सs, नाव बीचे िें ठाढ़ हो गईल । एगो ि गाय के चबी से बनल गोली आ उहो लाग गईल बाँह िें... बबआ ु न के बझ ु ाईल- ई बाँह अब अपसवि हो गईल । ऊहाँ के िल्लाह से सनहोरा कई ंनी- हिार बाँह काट द लोग । बासकर सभकर सहम्ि​ि काँप गईल... करेजा डोल गईल । आ िब, अपना आप िें एगो परिोख बनावि, भोजपरु रया इसिहास के िहानायक अपने हाथे, अपने िेरुआर से अपने बाँह काट के गंगा िईया के सऊँप देनीं (सवा दवे सिवारी राके श जी के काव्य से) "नाव सकनारे सडाक दे ठाढ़ सनहारी भज ु ा बबआ ु न बयाँरी सोझ उठा के दासहन खग चकाचक थाहि दांव सर्ु ारी। लेs गंसगया िईया कर भेंट अपावन के कर पावन हारर छप्प से छे व छपाक सगरेव हहा हलफी जन गंग पक ु ारी। नाव सहले जल र्ार सहले भवु भार सहले नभ डोलल हारर सदग् सदगन्ि सहले गंसगया िईया अँचरा सङे कापल साड़ी। कच्छप पीसठ प शेष सहले जसहीं बंसहया पर छे व दर्ु ारी ना सहलुए ि गर इचको बबआ ु न सहआ िन साहस भारी।"


वीर बाबु कंु वर सिंह सवशेष ( कहानी )

हम वसांहन के वसांह शरू िीर कांु िर वसांह

लेहखका : सरोज हसंि

त्रचि - आत्रशष त्रिवेदी

"ए

सबहारी ! िू 15 अगस्ि को फैं सी-ड्रेस प्रसियोसगिा िें क्या बनेगा ? सरु जीि िो भगि ससंह बन रहा है । सुि​ि सभु ाष चन्द्र बोस और नीला सरोजनी नायडू बन रही है ।"

भरिी भईला के बाद पसहला सदन ही ओकरा क्लास के लईका कुल घेर के पूछे लगलन सन कहाँ से आये हो क्या नाि है ? राजू खस ु ी-खस ु ी कहे लागल सक हि राजू पांडे, छपरा से आयें हैं "

सबहारी नाव सनु िे ही राजू सचढ गईल िब्बो खीस छुपावि कहलस- "हि िब िहायिा गाँर्ी बन जायेंगे "

छपरा ? ये कहाँ है, गाँव है क्या ? िुरिं े राजू कहलस "नहीं नहीं सहर है सबहार िें है ", कुल लईका ठठा के हँसे लगलन, सहर या शहर ? सबहारी हो "

हा हा हा हँसि राहुल कहे लागल- "िू िो सहंदी शद्ध ु बोल नहीं पािा िहायिा गाँर्ी क्या खाक बनेगा ? ऐसा कर िू सार्ारण सा स्विंि​िा सेनानी बन जा कुछ कहना नहीं पड़ेगा हाथ से बस झंडा घिु ािे रहना "वैसे भी, हिारे क्लास के दो बच्चे िहायिा गाँर्ी बन रहे हैं, िैं खुद सरदार पटेल बनूंगा िेरे सलए िो कुछ ख़ास बचा ही नहीं "

राजू के नया स्कुल िें पढ़े खासिर चढ़ल िन उिर गईल बझ ु ल िन से घरे आईल िाई बड़ा नेह छोह करि पूछे लगली "बाबु कईसन रहल आज के सदन, के हू सनगी साथी बनल की ना ?" उदास िन से राजू कुछ न कहलस खाली पछ् ु लस सक "िाई कुल लईका हिरा के सबहारी काहें कहि रहलन सन, का सबहारी भईल खराब होला ?"

छ: िसहना पसहले ही राजू अपना पररवार के सनगे अपना बाबूजी के िबादला भईला के वजह से छपरा से सदल्ली आईल रहे । िाई बाबू भी खुस रहे लोग की राजू के पढ़ाई सलखाई सदल्ली जइसन बड़ शहर िें अंग्रज े ी स्कुल िें बहुि बसढयां से होई । िगर नया जगह जाये के राजू के जेिना जोसखरोस रहल उ कुछ सदन िें ही उिर गईल । नया स्कुल िें

िाई के भी िन दख ु ी भईल सनु के बाकी राजू के खुस करे खासिर कहे लगली "अरे ना ना बाबु हिनी के सबहार प्रान्ि से आईल बानी जा नू' एसे सबहारी कहेलन सन ।" अब ई रोजरोज के बाि रहल कबो ओकरा के 'सड़क' के 'सरक' कहे खासिर कबो 'कपड़ा' के 'कपरा' कहे पर हंसी उड़ावs सन ।

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स्कुल के ि पररवेस बदलल रहबे कइल अब घर के भी


पररवेस बदले लागल बाबूजी अब अपना के पापा कहावे पर जोर देवे लगलन । भोजपरु ी के जगह खड़ी बोली बोले पर जोर सदयाए लागल । राजू खासिर अचानक से एिना बदलाव ओकरा के अंि​िा ख ु ी करे लागल । छपरा िें उ क्लास िें पसहला स्थान ले आवि रहल 'बाकी इहां ओकरा खासिर ट् यशु न लगावे के पड़ल । स्कुल िें लईकन के िजाक के जररया बन गईल रहे । अपना के नया पररवेस िें ढाले के उ भरसक परयास करे लागल रहे अउर काफी हद िक बोल चाल िें सर्ु ार भी आ गईल िगर िन के कोना िें हीन भावना घर कर लेले रहे । ओही से गिु सिु रहे लागल ।

अच्छा !! बड़-बड़ आँख कर के बाबा कहे लगलन "अरे िहु ू ँ बहादरु ी से जवाब दे सदहल कर "एक सबहारी सब पर भारी " "ई ठीक कहलs बाबा" राजू खुस हो के कहलस । फे र िनी उदास होके कहे लागल "बाबा ! जानsिारs आज टीचर जी 15 अगस्ि खासिर फें सी ड्रेस प्रसियोसगिा िें भाग लेवे खासिर स्विंि​िा सेनानी बने के कहली ह । हिरा क्लास के कईगो लइका लईकी सहस्सा लेि बा लोग, हिरा खासिर कवनो बसढ़या पाटा नइखे बाचल बाबा "।

बाबा पसहले कुछ देर सोचलन सफर िसु स्कयाि कहलन " हूाँह कइिे जनबs ए अभी हिसनका लगे दू सदन बा ओिे हि िहरा के िईयार करा देब ,सचंिा ि​ि करs बबुआ, बाप त तोहार "।

आज क्लास िें टीचर जी कहली सक 15 अगस्ि के फें सी ड्रेस प्रसियोसगिा बा एिे देस के स्विंि​िा सदयावे िें जे जे िहान लोग योगदान े पैदा भईल बा नू, उ अंग्रज देले बाड़न उहे बन के आवे के बा ।

"पर बाबा हि बनब का ?

तहरा के

"बीर कंु वर ससंह बनबs बबआ ु "। राजू अपना पसहलका स्कुल िें हर नाटक और रंगारंग काया ि​ि िें बड़ा िनोयोग से सहस्सा लेसनन ,कर्लमा​ाक्ि के बारे "बीर कं वर ससंह"..... ई के रहलन ? ु लेि रहल, एसे टीचर जी के सचु ना देिे ही खुसी में बताई बीर कंु वर सिंह हि ि नाव भी नईखी सनले " राज िनी ु ू से भर उठल िगर टीचर जी के जािे ही राहुल के अचरज से पूछे लागल । बाि से सब जोस ठंडा हो गईल ओकरा लगे के बारे में थोरे बताई " बाबा राजू के बाबूजी की ओर देख के लागल सक सही िें उ कुछ भी न बन पाई । उदास कहे लगलन " हूहँ कइसे जनबs ए बबआ ु , बाप ि िोहार अउर थाकल िन से घरे पहुच के कालबेल बजइलस िाई के अंग्रेज पैदा भईल बा नू, उ िहरा के लेसनन ,कल्िा​ा क्स के बारे जगह पर दरवाजा पर बाबा के देख के ओकर खुसी के िारे िें बिाई बीर कंु वर ससंह के बारे िें थोरे बिाई " एिना सनु े के चीख़ सनकल गईल बाs बाs । बाबा भी राजू के देख के सनहाल रहल की बाबूजी आयं-बायं देखे लगलन । हो गईलन आ कोरा िें उठा लेहलन । आज कई िसहना बाद राजू एिना खुस देखाई देि रहल ओकर दख ु ि के ु ि-सख "ए बाबा हिरा के बिावs उनका बारे िें" फे र बाबा खइलासाथी हेिना सदन बाद भेटाईल रहलन । बाबूजी के सख्ि सपयला के बाद रािी िें राजू के बीर कंु वर ससंह के बारे िें रवईया से राजू के िन के बाि िने िें रह जाि रहे । सबस्िार से बिsवलन । राजू बड़े चाव से उनकर बीरिा के गाथा सनु ि गईल । बाबा भी उयसक ु िा बस पूछे लगलन "इहाँ देस के राजर्ानी िें आके कइसन लागsिा बबआ ु ? "अच्छा ......? बाहं िें गोला लागला के बाद िलवार से राजू िहु सबचका के कहे लागल "छपरा आपन लेखां लागि रहल बाबा इहाँ ि सब कुछ बहुि बनावटी लागेला, हिरा के स्कुल िें कुल सबहारी कहेले सन ओिने ना "एक सबहारी सौ सबिारी" कह के भी सचढ़ावेलेसन"

आपन बाहं काट देहलन ? राजू गोल-गोल आँख करके अचरज पूछे लागल ? "हाँ बबआ ु अस्सी साल के उसिर िें एिना साहस कवनो रन बकुड़ा ही कर सके ला"

सरोज त्रसंह बबलया , युपी के रहे वाली सरोज हसंह जी , बहन्दी भोजपुरी आ बंगला साबहत्य मे उभरि एगो बररआर नाव बानी । हाले मे इँ हा के बलखल बहन्दी काव्यसंग्रह " िुम िो आकाश हो " आईल ह । भोजपुरी मे सैकडन गीि गजल कबविा कहानी के रचना कई चुकल बानी । पाक कला मे दक्ष सरोज जी एह घरी गाबजयाबाद मे बानी । © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 44


"अब ि हि बीर कुवंर ही बनब " पूरा जोस िें भरके राजू कहे लागल । दोसरा सदन से राजू के िेवर ही बदलल रहे आज स्कुल िें भी उ बहुि खुस रहल, प्रसियोसगिा िें नाव सलखाए खासिर टीचर जी के लगे गईल टीचर पुछली "राजू क्या बनोगे ?" िैि िैं 'वीर कंु वर ससंह" बनूगं ा " क्याs वीर कंु वर ससंह ? टीचर चऊंक के पछ ु ली "यस िैि आपको नहीं पिा ? वीर कंु वर जी सबहार िें जन्िें 1857 की िांसि के वीर योद्धा थे । सजन्होंने अंग्रेजो को िरिे दि िक नाको चने चबवा सदया ।" टीचर जी के ओकरा आगा अउर कुछ पूछे के सहम्ि​ि न भईल । िने-िने सोचे लगली सक इनके बारे िें घर जाकर सवसकपीसडया पर पढना होगा ।

सािने बईठल दशा क लोगन के उयसक ु िा देखल बनि रहे काहेसे सक इ पसहला िौका रहे जेिे वीर कंु वर के हू बनल रहे । सब सेनानी के बारे िें सबके पिा रहुवे िगर वीर कंु वर के बारे िें बहुि कि लोग रहे जेकरा पिा रहे । कंु वर ससंह उफ़ा राजू भरपूर उयसाह के साथ िलवार भांजि स्टेज पर अविररि भईलन अउर बाबा के ससखावल कसविा बल ु ंद आवाज िें कहे लगलन अईसन लागि रहे जइसे छ: िसहना के भरल रीस बाहर सनकलि बा । "सन अठारह सौ सनिावन देस के सनग्राि िें गंगा िाई के िीरे हि ससंहन के ससंह शूरवीर कंु वर ससंह उसिर थी हिारी अस्सी गोरन के सर काटे जैसे खस्सी चनु -चनु कर िारे गए सफरंगी सिर िें बचे खुचे डूब गए गंगा के भंवर िें देख कर ऐसा प्रकोप यिराज भी ससहर गए बझ ु ाने जो आये दावानल इंद्र भी डर से घर गए हि ससंहन के ससंह शूरवीर कंु वर ससंह

राजू के ि बस छुट्टी होिे ही घरे भागे के जल्दी रहल । आज से बाबा ससखावे वाला रहलन िईयारी जोर-सोर से सरु​ु हो गईल । दरजी से बीर कंु वर के ड्रेस भी ससया गईल । आसखर 15 अगस्ि के सदन आ गईल बाबा राजू के बसढ़या से िईयार करा के पूरा अदाकारी भी नीक से ससखा देहलन । राजू िें जहाँ उयसाह रहल उहाँ िनी घबराहट भी रहल सक लईकन फे र सचढ़ावे ि ना लसगहेसन ? बाबा राजू के घबराहट भांप गईलन ओकर पीठ ठोकि कहलन "घबरा सजन बीर कंु वर हि रहब िहरा सनगे, बीर ना घबराला । बस जवन बोले के बा पूरा सहम्ि​ि और बहादरु ी से बोल डसलहे " बीर कंु वर के भेस िें राजू के चेहरा भी ओज से भर उठल । सब लईकन के भेस भूसा से पसहचान िें आ जाि रहल सक के का बनल बा । सबसे प्रश्नवाचक सनगाह राजू पर रहल जे भी पूछे "िुि क्या बने हो ? राजू बड़े शान से कहे "हि है वीर कंु वर ससंह" िब्बो सब के सनका सिार्ान जस के िस रहल, खैर ध्वजारोहण के बाद फैं सी ड्रेस प्रसियोसगिा सुरु भईल । बारी-बारी भगि ससंह, सरोजनी नायडू, िहायिा गाँर्ी , सभु ाष चन्द्र बोस , सबसस्िल , खुदीराि आसद-आसद स्टेज पर आवि गईल लोग सब एक से बढ़कर एक बनल रहे लोग । अब बारी रहे कंु वर ससंह के टीचर जी घोषणा कईली "अब आपके सािने आ रहे हैं 1857 की िांसि के िहान और वीर योद्धा सजनकी वीरिा के गीि भोजपरु रया क्षेि के घर घर िें गाये जािे हैं ।"

एिना कहि िलवार हवा िें भांज के गवा से छािी चौड़ा कर के स्टेज के बीचोबीच खड़ा हो गइले । िाली के गडगडाहट कि होखे के नाव न लेि रहे, अउर सािने बईठल बाबा के आँख िें खुसी के लोर न थि​ि रहे । स्टेज से नीचे उिरिे ही राजू दऊड़ के बाबा से जा के सचपट गईल । पीछे से राहुल के आवाज आईल "वेल डन वीर कंु वर" आज िुि वीर कंु वर न बनिे िो हिें ऐसे िहान योद्धा के बारे िें पिा भी नहीं चलिा ।" िड़ु के राजू देखलस ि ओकरा सनग के कुल साथी िाली बजावे लगलनसन िब ओकरा अपना जीि के एहसास भईल । वीर कंु वर के साथे-साथे आज राजू के भी बड़का जीि हाससल भईल रहे ।

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वीर बाबु कंु वर सिंह सवशेष

धरमन बाई के याद में धरमन चौक मस्जजद ,आरा (

का

िोटो िाभार :लोकेश दीवाकर )

जाने काहे दो जब-जब बाबू वीर कंु वर ससंह के जनि सदन आवेला, भा चाहे उनकर बाि चलेला, हिरा र्रिन बाई बहुिे िन परे लागेली । उहे र्रिन बाई, सजनका नाि पर आरा िें र्रिन चौक बा । आरा िें सभे जानेला ओह चौक के । बहुिे लोग ओह र्रिन के कहानी भी जानेला सक के रहली उ, बासकर र्रिन पर बाि ना करल चाहेला । इ आज दस बररस से हिरा रह-रह के अखरेला । जबसक सच ईहे बा सक बाबू वीर कंु वर ससंह के अध्याय र्रिन के सबना पूरा न होला । बासकर आजओ ु कंु वर ससंह के नाि पर िरह-िरह के आयोजन होला । उनका नाि पर सैकड़ा भर संस्थान चलेला, चलावल जाला । बासकर कउनो आयोजन िें, कंु वर ससंह के जनिसदन पर र्रिन के एको हाली इयाद ना कइल जाला । आरा िें कई हाली खाली हि र्रिन के िलाश के चक्कर िें गइनीं । बेर-बेर सभे से इहे बाि पूछि रह गईनी सक र्रिन के बारे िें बिाई ंजा । बासकर के हू खल ु के बाि करे के अबसहयो ले िइयार ना होला । के हू कहे सक नाचि रहली । के हू बिावि रहल सक एसहजे के रहसनहार रहली । आउरी के हू िो बड़ी अश्लील भाषा िें बिावे लोग सक कुछ नाहीं, बाबू कंु वर ससंह

जिींदार रहनी िो उहां के उ रखैल रहनी । जेिना िंहु , ओिना िरीका के बाि बिावे लोग बासकर सच बिावे के जहि​ि के हू ना उठावे । र्रिन के प्रसि हिार सजज्ञासा लगािार बढ़ि गईल । बाद िें कुछ लोगन से दंिकथा के सनु े शरु​ु कईनी िब गिे-गिे बाि खुले शरू ु भईल । सबसे पसहलका जानकारी ि ई सिलल सक र्रिन बाई खाली गासयका, कलाकार भा नचसनया ना रहली । हं, ई बाि सही बा सक अपना जिाना के उ सबसे िसहूर कलाकार रहली । उनकर बसहन करिन भी िसहूर कलाकार रहली । करिन बाई के नाि पर आरा िें करिन टोला बसल बा । लोग बिावेला सक र्रिन बाई आउर बाबू वीर कंु वर ससंह िें प्रेि भईल । बाबू कंु वर ससंह डूब के प्रेि करे लगनी र्रिन बाई से । एह प्रेि के भी एगो सकस्सा बिावल जाला । भइल अईसन सक पटना के एगो िहसफल िें अंग्रेज लोग बाबू वीर कंु वर ससंह के बोलईलस । ओह िहसफल िें सबहारे के एगो अंग्रेजन के सपट्ठू राजा भी भाग लेले रहलन । िहसफल शरू ु भईल । जब िहसफल शरू ु भइल िो र्रिन नाचि-गावि नेग लेबे सबके लगे जाि रहली । ओह घरी िब बाबू वीर कंु वर ससंह के िाली हालि खस्िा हो गईल रहे । अंग्रेज लोग ओह सपट्ठू राजा के इशारा पर र्रिन बाई के बाबू वीर कंु वर ससंह से

त्रनराला पेशा से पिकार , िहलका आ प्रभाि खबर खाबि लगािार बलखे वाला बनराला जी , औरं गाबाद बबहार के रहे वाला हईं । इँ हा के पुरबबया िान बैनर के नीचे भोजपुरी के पारम्पररक गीिन के सहेजे, सररहारे आ ओह के नया कलेवर मे प्रस्िुि करे में लागल बानी । एह घरी पटना में बनवास बा।

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साल से देि रहे सक र्रिन बहुि खास रहली आरा खासिर, बाबू वीर कंु वर ससंह खासिर । बिावल जाला सक ओकर सनिा​ा ण बाबू वीर कंु वर ससंह ही करवईले रहले । बाबू वीर कंु वर ससंह आपन प्रेि के सनशानी के रूप िें बनवले रहले ओकरा के आ एह िरीका से उ एगो अकथ कहानी के प्रेि के सनशानी बा ।

धरमन चौक , आरा

भी नेग िांगे के भेजलस लोग । कंु वर ससंह के लगे जब र्रिन गईली िो उहां के लगे दईु गो िलवार रहे । दनु ो ओर किर िें खोंसल । उहां के एगो िलवारे सनकाल के नेग िें र्रिन बाई के दे सदहनीं । फे रू इशारा भईल िो दस ू रको िलवार सनकाल के देबे पड़ल । जब दनु ो िलवार सनकाल के कंु वर ससंह दे सदहनीं िो उहां िहसफल िें सपट्ठू राजा आउर अंग्रेज लोग सिली के लागल बाबू वीर कंु वर ससंह के हंसी उड़ावे सक बाबू साहेब िो सनहयथा हो गईले । ई बाि र्रिन के अखर गईल । र्रिन के लागल सक उ अपरार् कर देली । अपना करि से सबहार के एगो प्रिख ु लड़ाका के हंसी के पाि बनवा देली । ओह िहसफल के बाद र्रिन कंु वर ससंह के के लगे आई के िाफी िंगली आउर ओकरा बाद िेल जोल बढ़ल । िेलजोल अईसन बढ़ल सक ओकरा बाद र्रिन गावे के पेशा भी छोड़ देहली आउर आपन कुल किाई भी 1857 के लड़ाई िें लगा देहली । कहल जाला सक र्रिन खदु भी एह संग्राि िें भाग लेले रहली । र्रिन के िौि झांसी के रानी लक्ष्िीबाई के संग देबे िें भईल । इ एगो कहानी ह... सकस्सा ह, एकरा के नईखी पसिया सकि ि अब एही सकस्सा के सवस्िाररि रूप भारि सरकार के प्रकाशन संस्थान से प्रकासशि एगो सकिाब िें भी आ गईल बा । ओह सकिाब के रसश्ि जी सलखले बानी, जे बाबू वीर कंु वर ससंह नाि से प्रकासशि बा । ओह सकिाब िें िो साफ- साफ सलखल बा सक र्रिन बाई बाबू वीर कंु वर ससंह के दूसरका िेहरारू बनली बाद िें । अब ले एह िथ्य के खंडन नईखे भइल । जबसक सकिाब अईला आठ-नौ बररस िो होईये गईल । िने साफ बा सक र्रिन के कहानी खाली सकस्सा न ह । आउर उ सकिाब ना भी आईल रहे िब्बो आरा के र्रिन चौक पर अवसस्थि िसस्जद ओह बाि के गवाही ना जाने के िना

सबहार के ई िशहूर प्रेि कहानी अबसहयो ले दफन बा । बाबू वीर कंु वर ससंह के जब भी चरचा होखे िो र्रिन के भी इयाद करेके चाहीं । एकरा से बाबू वीर कंु वर ससंह के कवनो कद कि ना होखी । एह संदभा िें एगो प्रसंग बिावल चाहब । िहाराजा रंजीि ससंह जी बड़का राजा भईनी आउरी बड़का लड़ाका भी । उहां के एक बेर िोरां नाि के एगो कलाकार पर सदल आ गईल । िोरां के पावे खासिर उहां के आपन प्रर्ानिंिी फकीर अजीजद्दु ीन के भेजनी । अजीजद्दु ीन बहुिे सिझवले रंजीि ससंह के राउर पहचान िस ु लिान सवरोर्ी के बा । आउर रउआ एगो िस ु लिान िेहरारु के सदल देि बानी चाहे देबल चाहि बानी । रंजीि ससंह कवनो बाि ना सनु ले । प्रर्ानिंिी गईले । िोरां के िाई शिा रखली सक हिार बेटी उनका इहां िब्बे जाई जब राजा खुदे हिरा सकहां आवस । िहाराजा रंजीि ससंह िोरां सकहां गईले । िोरा के िाई उनका से घर के काि करववली । िोरा के नाि पर ससक्का चलवावे के बचन लेली । िहाराजा रंजीि ससंह सब खासिर िईयार हो गईले िब रंजीि ससंह के साथे आवे के उनके इजाजि सिलल । िोरां िहारानी बन के िहाराजा रंजीि ससंह के इहां अईली । शासन कईली । बाद िें एह काि के करे खासिर, िहाराजा रंजीि ससंह के ससक्ख सिदु ाय िनसखया के सजा भी देहलस आउर उहां के खुशी खुशी ई काि कईनी भी बासक िोरां के प्यार के सजंदा रखली । कहां आझू िोरां से प्रेि करे के एवज िें चाहे िोरां के घरवाली बनावे के कारण िहाराजा रंजीि ससंह के बदनािी होला । प्रेि िो प्रेि होला । बाबू वीर कंु वर ससंह के प्रेि कहानी के भी दफन कईला से कवनो फायदा नईखे । नक ु सान जरूर बा सक एगो नासयका के नायकयव से सबहार आउर पूरा देश वंसचि बा । ओह के उभारे के काि बा । बासकर बाबू वीर कंु वर ससंह के जे नायकयव रहल बा । व्यसियव रहल बा । कृसियव रहल बा ओह िें ओकरा से किी ना आई, बलुक श्रंगृ ारे होखी ।

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वीर बाबु कंु वर सिंह सवशेष

नमन करे नीं निन करेनी बीर बांकुड़ा, कुँवर ससंह िरदाना के I अब परिोख कहाँ बा ओह, आजादी के दीवाना के II दस ु िु न के खेिा िें जे सक, हाहाकार िचा सदहले I भोजपरु रया िाटी के िाकि, का हउवे देखला सदहले II लड़ि भीड़ि र्रू र चटावि, उ आगे बढ़िे गइले I दष्टु सफरंसगअन के सीना पर, बाघ लेखा चढ़िे गइले II आन ना िनले अंगरेजन के , कवनो रेख-ससवाना के ... निन.... बीच गांग िें बाँह िें लागल, आके दस ु िु न के गोली I फौलादी नरससंह हँकसड़के , बोलल िहुँ से ई बोली II “बाँह कासट के करीं चढ़ावा, ले हई गंसगया िाई I बासकर एिना देs िाकि, दस ु िु न के हाथे ना आई IIं “ िाई कईसे बाि ना िानस, एह पागल परवाना के ...... निन.....

अशोक कुमार त्रिवारी ‘एडवोके ट’ बबलया उ. प्र. के द्वाबा क्षेि के बनवासी अशोक कु मार बिवारी पेशा से वकील हई , इँ हा के बलखल भोजपुरी काव्य संग्रह ' पबहलका डेग " प्रकाबशि हो चुकल बा । इँ हा के बलखल कई गो कबविा लेख पबिका पािी आ अउरी भोजपुरी पि पबिका मे प्रकाबशि भईल बा । एह समय इँ हा के बबलया मे बानी ।

घेर घार के िनो भइल, दस ु िु न के हाथे ना अईले I िारि-काटि, र्ूरर उड़ावि, गढ़ िें जाइ सिा गइले II सांचो बाबू कुँवर ससंह के , अइसन अिर कहानी बा I देश के बच्चा-बच्चा के , आजो ई चढ़ल जबानी बा II खून देइके नीख चक ु वले, देश के दाना-दाना के .... निन करेनी .....

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कहानी सिरीज

बचि - स्वयंबरा बक्सी

(अि तक, लेखक के आपन बमत्र के छत पे लागल बचमनी मे छत के मोरी िुझ के पेशाि करी बदहले । िाकी ई कनफ्युजन में बमत्र के घरे के मय दूि बजआन भईल आ लेखक के मजगर िंगाई-बिं चाई भईल । लेखक पे जवन गुजरल, उ त उहे िुझलें िाकी रउरा सभे के हंसी ना रुकी । एह से पढ़त रहीं )

ती

स साल से ऊपर हो गईल एह बाि के । एही िें एगो शादी िें भाग लेवे, गाजीपरु जाये के िौका सिलल। सोचनी सक चली िनी उहां से भी हो आई जहाँ सक हिार सजनगी के सबसे कीि​िी पल (बचपन) बीिल बा । सब साथी लोग के (बाराि के ) बोलली सक िू लोग जा, हि बाद िें आईब । पसहले ि आपन िाकन िासलक के घरे गईनी, सजनका घर िें रहि रही । सफर िन पड़ल चली, िनी लल ु वु ा के इहा । िन के कुल योजना बना सलहनी, सक चाची सफर िारे के दउड़ईहें ,ि कईसे भागे के बा । आ उ का-का कर सके नी, ओह सहसाब से कुल प्लासनंग बना सलहनी । पसहले ि गईनी ,"काशी साह" के सिठाई के दक ु ान पे (उनकर सिठाई के बहुि िशहूर दक ु ान बा) । पूछनी सेठ जी 5 सकलो दर्ू से के िना खोवा बनेला (िन िें इ सवचार रहे सक 5 सकलो दूर् के बराबर कुछ ले जाई ,जवन सक हि ख़राब कs देले रहनी ह ) साह जी कहनी- सवा सकलो हि सहसाब कईनी, उ पांच सकलो दूर् िें ,एक सकलो ि पानी

जरूरे होई । कुल जोड़ि-घटावि एक सकलो कलाकं द पर िािला जिल । एक सकलो कलाकं द सलहनी । आ िन बररयार कइ के चल सदहनी लुलुवा के घरे । पहूंचनी ि उहां के सफजा एकदि बदलल रहे । िीस साल िें , कुल हेने के होने हो गईल रहे । खैर, जाके घंटी बजा सदहनी । एगो बसु चया के वाड़ खोललस । अनचीन्ह आदिी के देख के , ओकर चेहरा प्रश्नवाचक हो गईल ! हि कहनी सदनेश बाड़न का ? (लुलुवा के नाि सदनेश रहे ) उ कहली, अभी िs पापा जी घरे नईखी । (ओह उ लल ु वु ा के बेटी रहे ) हि कहनी- चाची ? हs....आजी सबया ! कहनी, िनी बोलावs चाची के । चाची अईनी ,अब ढेरे बढ़ु ा गईल रहनी उहां के (आर्ा डर ि खि​ि सक अब, िरीहें ि ना ) उहो हिरा के कहाँ सचन्हस, कहनी - हs बाबु बोलs । हिहूं सढठा के कहनी- अरे चाची भीिर ना बोलाईब । बहरीये ले भगा देब का ? उ कहनी - काहे ना बाब,ु आवs - आवs बैठs । भीिरे आ गईनी ।

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कलाकं दवा टेबल ु पर र्s सदहनी (जैसे सक वल्डा कप के रोफी होखे ) बिकही होखे लागल । उ बेर–बेर जाने के कोसशश करस सक हि के हई ? पर हिहु काहे के बिाई सक हि के हई ! कहनी- पसहले चाय - वाय िs सपयाई ,चाची । अब आईल बानी ि बिसयबे करब सक हि "के " हई । आ फरिाईश भी कs देनी सक -चाय िसन शद्ध ु े दूर् के रहे ि ठीक ! िसनका देर िें चाय आ गसयल । चाय वाय सपयला के बाद कहनी- चाची एगो बाि बा । हिार पररचय जान के फे रु से पीटे िs ना न लगबू ? चाची कहनी- सफर से ? एकर का ि​िलब बा ?हि िोहे कब पीटले बानी बाबु ?( हि िने िन कहनी,उ ि हिरे िन जानsिा ए चाची) आसखर िें , बिा सदहनी । हि के हई ं । अब ि चाची हिार खाली िंहु देखस , उनकर नािी लोग उनका के ... उनकर नज़र के पलकी नईखे सगरि । एकटसकये देखले जाsिानी ऊहां के , उनकर िहंु से कुछ बोलीए ना फूटे । अरे रे रे रे रे पंडी जी रउवा हई ं। आ के , दनु ु हाथे कान पकड़ के , दल ु ार िें, हिार िड़ु ी सहलावे लगनी आ लगनी िस्ु की काटे ।

कहनी - चाची हिके िाफ़ कs सदहs । अब ि िािला सबगड़ गईल । इहे कहिे चाची हिार गोड़ (पैर) र्s सलहनी आ लगनी रोवे । (उनकर नािी, पिोह लोग लागल सचहा के देखे ) कहनी- बचवा, सजनगी िें एगो इहे बहुि बड़ गलिी भईल बा ।,बाभन पर हाथ उठावे के .; इ बोझ लेके हि ऊपर ना जाईल चाहब, अब हिार सजनगी के अंसि​ि सिय चलिा । रउवा हिरा के , िाफ़ क दी । (आ गोड़ छोड़बे ना करस ) हिार ि बकारे (बोसलये) बंद ! का बोली? कहनी : अरे चाची, इ का करि हउ? चाची कहनी- ना, पसहले हिरा के िाफ़ करs बचवा । हिहु कह देनी- ठीक बा, ठीक बा । छोड़ीं अच्छा । िब कही जाके चाची हिार गोड़ छोडनी आ हिरा के गला लगा सलहनी । आ जेिना आशीष उनका के आवे कुल सदहनी । िन एकदि रोवांस हो गईल (आउर सोचे के शसि ख़ि​ि) चले घरी आपन नंबर दे सदहनी सक लल ु वु ा आई िs बाि करा दीह । कायदे से एह कारुसणक अंि के आगे अब कुछ सलखे के ना चाही… बाकी एक सदन फोन आईल लल ु ुवा के घरे से कहनी- हलो !

हिार िs फे रु होश उड़ल सक कहीं फे रु से ि चालू ना हो जईहें ;लेसकन सीन बदलल रहल । आ अब हिार हाल-चाल, बेटा-बेटी के हाल-चाल, हिार "िाई-बाबु जी" के हाल-चाल । का करsिारs ? कहा बाड़s ? एिना सदन कहाँ रहलs?

ओहर से आवाज़ आईल - चाचा प्रणाि ! हि गाजीपरु से सदनेशजी (लुलुवा) के बेटी ।

एही सब िें बीिल । अब चले के सिय आ गईल , हि कहनी- चाची अब चलब । आ उनकर कान के लगे जाके

हिरो बझ ु ा गईल , सक चाची हिार पररचय िीसरका पीढ़ी से करा देले रहनी |

सफर ओकर आवाज़ आईल -चाचा ! हा हा हा हा हा हा !

बृज त्रकशोर त्रिवारी पलामू झारखंड के रहे वाला बृजफकशोर बिवारी जी एह समय शबक्तनगर सोनभद्र मे कायजरि बानी । भोजपुरी मे हास्य व्यंग्य के रचना इँ हा के एगो अलग आ उं च पहचान बनावेला । आखर पेज से जुडल बृजफकशोर जी भोजपुरी मे लगािार रचना कई रहल बानी भोजपुरी मे बलख रहल बानी ।

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मीहिया के कांव-कांव आ हशक्षा के कान ले के उडे वाला कउआ !

फ़ोटो साभार : शशश रं जन शिश्र

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हार राज्य एक से बढ़ के एक नया घटना के कारण चचा​ा िें बनल रहेला, िीसडया के लोगवा भी सबहार के वणा न अइसे करेले जइसे ऊ पथ्ृ वी के ना िंगल भा वहृ स्पसि ग्रह के कवनो राज्य होखे। हाल के सदनन िें परीक्षा कें द्र के एगो फोटो बड़ा चसचा ि रहल ह, िीसडया िें ओकर अभूिपूवा कवरेज आ सवद्वान लोसगन के व्याख्या देखी के हिरा के एगो परु ान कहावि इयाद आइल हऽ - ‘कउआ कान लेले गइल, कउआ कान लेले गइल। आ ई सनु िे आदिी अपना कान के ना देख के कउआ के पीछा दउड़े शरू ु क देलस।’ सबहार के जे िसनको जानि होई ऊ एह बाि पा संदहे ना कर सके ला सक एह राज्य के लोग गजब के िेहनिी लोग ह। खास िौर से पढ़ाई के िािला िें खराब से खराब, एकदि बदिर पररसस्थसि िें रह के पढ़ाई आ परीक्षा के िइयारी करेवाला लइका/लइसकन के अगर भारि स्िर पऽ कवनो िेररट बनावल जाव ि हिरा ई कहे िें कवनो संदहे नइखे सक ओकर टॉपर सबहार के छाि होई। दरअसल िूिान िेल जइसन भागि िीहडया के जइसिीं ‘कान के सािे एगो कउआ के िो ो’ हिलल हक ओकर हदिाग जूिा िें सिा गइल एि से ऊ ‘कउआ’ के अलािा कुछ अउर कुछ सोचे के जि​ि​ि ना उठिलस। जहां देखीं बस उहे एगो फोटो। एगो सबना प्लास्टर वाला चरिल्ला िकान, ओकरा सखड़की प लटकल जान जोसखि िें डलले लोग आ भीिर पची से नकल करि लइका लइकी सब। एह सब से सनष्कषा का सनकलल 1. एह राज्य के सब छाि ‘नकलची’ हउए। 2. राज्य के लोग िेहनि करे के बजाय नकल आ चोरी क के परीक्षा पास करेले आ दूसरो क्षेि िें अइसने शाटा कट के चक्कर िें पड़ल रहेले।

3. पूरा प्रदेश के गासजा यन नकल करवावे खासिर कवनो हद िक जा सके ले। 4. राज्य िें पढ़ाई –सलखाई ना होखेला, खाली सडग्री बांटल जाला आ अगर परीक्षा होखबो करेला ि अइसहीं नकल क के लोग पास हो जाला। जब हि ई सब देखि रहीं िऽ हिरा िन िें कई गो सवाल चलि रहे-

1. नकल करेवाला क गो छाि से सवाल पूछल गइल सक ऊ काहें नकल करि रहले भा नकल कइला से उनक ु ा के का सिल जाई? 2. नकल करेवाला आ करावेवाला लोगन के आसथा क आ सािासजक पष्ृ ठभूसि के पड़िाल क गो चैनलवाला लोग कइले रहे? 3. आज जब िाइिोफोन, स्िाटा फोन, पेजर, ह्वाट् सएप से लेके ि​िाि िरह के िकनीकी ससु वर्ा िौजूद बा िबो जान के जोसखि के साथे सचट पहुचं ावे वाला बीसवीं सदी के िरीका लोग काहें अपनावि रहे । 4. जवना स्कूल के छाि नकल करि रहे ओह स्कूल के किना ससु वर्ा सिल रहल बा। ओकर िास्टर कइसन बाड़े, उहां पढ़ाई के स्िर कइसन बा, िास्टर लोगन के के िना िनखाह सिलेला? 5. नकल करेवाला छािन के आंिररक परीक्षा िें प्रदशा न कइसन रहल बा? 6. एह िस्वीर के पूरा राज्य के प्रसिसनसर् बनावे से पसहले राज्य के नवोदय सवद्यालय, के न्द्रीय सवद्यालय आ शहर के ि​िाि दस ू र स्कूल आ ओकरा छािन के बारे िें के िना पिा लगावल गइल?

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7. भारि िें आ सबहार िें ही के िना लोग बा जे एगो परीक्षा िें पास होखे खासिर आपन जान जोसखि िें डाल के दीवार के सहारे चउथा िंसजल िक चढ़ जाई? आ एिना खिरा िोल लेवे खासिर कवने शसि प्रेरणा के रूप िें काि करि रहे? 8. सशक्षा व्यवस्था िें छाि के िूल्यांकन क खाली एगो िानक अंसि​ि परीक्षा के नंबर काहें बा? सि​ि् िूल्यांकन, सि​िाही, छिाही परीक्षा के अंक, कक्षा िें उपसस्थसि, सलखे आ बोले के क्षि​िा के कवनो िहयव काहें ना होखे ? 9. 95 प्रसिशि नकल गाइड से होला, गाइड बनावेवाला कइसे पिा चल जाला सक कवन सवाल परीक्षा िें आ रहल बा ? 10. चैनल वाला लोग िनी िेहनि क सशक्षा के व्यवसायीकरण आ अपरार्ीकरण करेवाला िंि प कवनो बाि काहे ना कइलस? 11. एह िद्दु ा के एको बार काहे ना उठावल गइल सक ‘सपु र– 30’ से ले के नेिरहाट िक के संबंर् एही सबहार से रहल बा अउर देश भर के राज्य के लोग कवनो राज्य के छािन के िेहनि आ प्रसिभा से घबराला ि ओकर नांव सबहार हउए। बकायदा रेलवे आ बैंसकं ग के परीक्षा देवेवाला छािन प हिला भइल बा। अगर ई सब खाली नकल क के पास होखेले स ि एहनी से अिना घबराए के का जरूरि बा? असल िें ई सारा सवाल के जवाब खासिर िीसडयावाला लोसगन िेहनि करे के पसड़ि अउर िनी-िनी सिझ के भी जरूरि पसड़ि। िकीकि ई बा हक परीक्षा िें किनो बच्चा िे ल आ पास ना िोखेला, अगर के िू िे ल िोला ि या ि ऊ हिक्षक िोखेला या बच्चा के िां-बाप, भाई-बहिन िोखेले। आ जवन िस्वीर िीसडया िें लउकि रहे ओकरा के देख के

इहो कहे के चाही सक एह स्िर प सिाज फे ल भा पास होखेला। ई िस्वीर गासजा यन, सशक्षक के साथे पूरा सिाज आ सशक्षा व्यवस्था के फे ल होखे के घोषणा करि रहे जवना ओर लोग के नजर ना गइल। फे ल भइला प छाि-छािा के आयिहयया के खबर हर ररजल्ट के सिय सनु े के सिलेला, रउआ किना बार सुनले बानीं हक छात्र के िे ल भइला प ओकर अध्यापक भा गाहजशयन आत्ि​ित्या क लेले। एगो गरीब, किजोर आ बेचारा छाि के कपार प बोझ डाल के अपना िहयवाकांक्षा के रोटी सेंकेवाला सिाज एकर सबसे बड़ अपरार्ी ह जवना के सजा सिले के चाहीं। खाली िस्वीर देख के हि बिा सकि बानीं सक नकल वाली ओह िस्वीर िें ज्यादािर छाि हनम्निगश आ गरीब पष्ृ ठभूहि​िाला होई। जादेिर छाि के ढंग के सकिाब, कलि आ कापी िक ना भेंटाइल होई। आज िकनीक के कारण नकल कइल अिना आसान िो गइल बा आ बड़का लोग िाइक्रोिोन, स्िा श िोन, लेजर पेन, पेजर, वाटा ए सएप से लेके ि​िाि िरि के यंत्र से कब नकल क लेला ई बगल िें खाड़ इनिेहजले र के पिो ना चले िबो आपन जान जोहखि िें डाल के पुरा पाषाण काल के हच पिुचं ािे िाला िरीका जिन गाहजशयन लोग अपनाि​ि रिे, उनुका बारे िें ठिर के सोचे के जरूरि बा। बहुि संभव बा सक एह लोगन के लगे नया िकनीक के यंि रहले ना होई आ रहलो होई ि एह लोग के चलावे ना आवि होई। अिीर आ ऊंचा वगा के लोगन खासिर सशक्षा जीवन िरण के प्रश्न ना होखे, एह लोगन के लगे जीवन जीए के ि​िाि िरीका होला, बासकर गरीब लोगन के लागेला सक कवनो कष्ट क के बचवा बसचया के पढ़ा लेब ि घर के दसलद्दर दूर हो जाई। जिन बाप कई पीढ़ी से िाड़िोड़ िेिनि के बादो िालि सुधरि ना देखलस ओकरा के लागेला के ि​िार

प्रमोद त्रिवारी भभुआ बबहार के रहे वाला प्रमोद कु मार जी , कें द्रीय बवश्वबवद्यालय गांिीनगर , गुजराि मे अबसस्टेंट प्रोिे सर बानी । इँ हा के भोजपुरी आ बहन्दी साबहत्य खाबिर लगािार काम कर रहल बानी । पि पबिकन में प्रमोद जी के रचना आकषजण के कें द्र होली स । भोजपुरी भाषा आ साबहत्य के इँ हा के अपना लेखनी से बररआर चोख िार देले बानी । एह घरी गांिीनगर गुजराि मे बानी ।

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बचिा पढ़ हलिें ि हजनगी सधु र जाई। ि​िरा के एि िस्िीर िें गरीब िां बाप के अपराध बोध के िािाकार लउकि रिे। जिन भाई अपना बहिन के नीिन हकिाब कापी खरीद के ना दे पइलस, जिन बाप पइसा के किी के कारण कोहचंग िें पढ़ा ना पइलस ऊ सोचलस हक एक हदन िेिनि क के कइसिूं पास करा हदिीं। एही बहाने कुछ ि िन के बोझ हलुक होई। वीसडयो िें िीसरा िंसजल से सगरि आदिी के िजबूरी के इयाद करे के सिय िीसडया सवशेषज्ञ लोग काहें ना सनकाल पाइल। जान के बाजी लगावल एिना सस्िा कबो ना होखे जरूर किनो अइसन सपना ओि आदिी के लगे रिल िोई जिन जान के बाजी लगािे खाहिर ओकरा के उत्साहि​ि कइले िोई । सशक्षा िासफया सब गरीबन के एह िजबूरी के फायदा उठावे खूब जानेले स। जवना सिाज िें गाइड छापेवाला सशक्षा के दश्ु िन ई प्रचार करि होखे स सक ‘हकिाब खरीद के आपन पइसा आ ओकरा के पढ़े िें आपन सिय खराब ि​ि करीं’ ओइसन सिाज के चल्ु लू भर पानी िें डूब के काहें ना िर जाए के चाहीं। रउआ सवश्वास न होखे ि संगे लगल फोटो देख सलहीं। खैर, सशक्षा िासफया आ एकर सबजनेस करेवाला लोगन प का बाि करीं ऊ एगो अलगे कहानी बा। बासकर ई सिझल बहुिे जरूरी बा सक सशक्षा के उद्देश्य खाली सदिाग िें सूचना भरल ना ह, एकर लक्ष्य रट्टा िार के कुछ सवाल के उयिर सलख दीहल ना ह, बलुक हिक्षा खाली हदिाग के खुला हदिाग बनािे के प्रहक्रया ि। एगो अइसन हदिाग जिन चेिना आ हि​िेक के साि हनणशय ले सके । जिन आदिी िें ई हि​िेक पैदा करे हक खाली पइसा आ पद पािल हिक्षा के ि​िलब ना ि। अइसन सशक्षा जवन आदिी के इंसान बना सके । असल िें ई िस्वीर बिा रहल सबया सक सबहार िें एक

ओर सशक्षा के गरीबी, बदहाली अउर अपरार् से भरल इलाका बा जहां सशक्षा पावे खासिर जान िक के बाजी लगावे प लोग िजबूर बा दूसरा ओर िट्ठु ी भर सशक्षा के कुछ बेहिरीन सनजी भा सरकारी स्कूल बाड़े स जहां खाली ऊंच आ सयिाशाली वगा के लोग के बच्चा पहुचं पावे ले स। एगो अइसन राज्य जिां के हिद्यािी परू ा देि िें अपना िेिनि, प्रहिभा अउर संघषश क्षि​िा के लगािार लोिा िनिाि​ि रिल बाडे स उिां िालिाल िक एगो कें द्रीय हिश्िहिद्यालय ना रिल ि। सनसि​ि रूप से ई िस्वीर एगो भयानक रोग के प्रिाण दे रहल बा बासकर एह रोग के जइसन व्याख्या कइल जा रिल बा ऊ एि रोग के हनदान ना बलुक एगो िानहसक रोग के लक्षण ि। ई िस्वीर नकल करेवाला आ करावेवाला लोग के ना, असल िें सशक्षा िंि के हकीकि बिा रहल सबया। एकरा प गंभीरिा से सवचार क के भसवष्य िें अइसन हालाि से बचे के रास्िा सनकाले के जरूरि बा। छाि खाली स्कूली आ िां-बाप के ना पूरा सिाज के सजम्िेदारी होखे ले स। अगर हिनी के ज्ञान आर्ाररि सक्षि सिाज चाहि बानीं जा ि ओकरा खासिर आगे बढ़ के हालाि के बदले खासिर कदि उठावे के पड़ी। आ ई ना भल ु ाए के चाहीं सक जवन गासजा यन अपना बचवा-बसचया के पास करावे खासिर चउथा िंसजल िक दीवार चढें के खिरा िोल ले सके ला ऊ ओकरा भूखा रहला प कसहयो व्यवस्था आ िंि के खसटया खड़ा क सके ला,ओकर र्ज्जी उड़ा सके ला। हिरा के ई िस्वीर भयानक भसवष्य के आहट दे रहल सबया, िन िें सवाल आ रहल बा सक कान िें िेल डाल के सूिल सिाज के किा​ा -र्िा​ा आ नेिा लोग के भी कुछ सनु ा रहल बा?

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कहानी

बा​ाँझ

"ऐ

व्यवहार रहे । यशोदा हालाि से सिझौिों क लेले रहली । िन्ु ना के िाई, एगो नया खबर सनु लु हs ?" सचल्लाि सपंटू के िाई िन्ु ना के घर िें ढुकली ।

"नाs िs ऐ भईयाजी बो । " िन्ु ना के िाई िूड़ी सहलावि कहली । "अरे िूजी िें कवनो जनिल बच्चा फे कले बा । हि देखे जािासन । िुहु चलबु ? " "काहे ना । चली । " कसहके िन्ु ना के िाई उनका साथे हो लेहलीं । उ लोग के बिकही िन्ु ना के चाची यशोदा भी सनु ली । उनकर िन भी बेचनै हो गईल बच्चा के देखे के । बच्चा के नाि सनु िे उनका िन िें लालच पैदा हो जाउ । शरीर से स्वस्थ आउर सन्ु दर भईला के बाद भी कवनो बच्चा के जनि ना देहला से घर के साथै पूरा गांव, उनके बाँझ कसहके िाना िारे । शादी के दस साल बीि गईल रहे आउर उ बच्चा जनिे के कवनो जिन न छोड़ले रहली । ना एको देवी देविा के स्थान आउर पूजा बचल रहे, न कवनो छोट या बड़ डॉक्टर के सक्लसनक । पर जब अंि िें पटना के सबसे बड़का डॉक्टर जोशी कह देहले की उ कबो बच्चा न जनि दे सके ली, िबसे उ टूटल िन से संिोष क लेहलीं । बाँझ के िाना िारला के वावजूद उनकर जेठ आउर जेठानी िन ही िन खुश रहे लोग की चल जर जिीन के बटवारा ना करे के पड़ी आउर सारा संपसत्त चारु लईका कुल के बीचे रही । ऊपर से ि लोग खूब दःु ख देखावे पर अंदर से उ लोग खुश रहे । वैसे जेठानी गाहे बगाहे, यशोदा के बाँझ भईला के याद सदयावि रहस आउर उनके कवनो शभु काि पसहले ना करे देस । गाँव सिाज के लोग के भी इहे

अभी बच्चा के बाि सनु के उनका िन िें िरल ि​ि​िा एक बार सफर सहलोर िारे लागल । पूरा गांव के लोग अगर सबना कवनो िकसद के जाि रहे बच्चा देखे ि यशोदा अपना स्वाथा खासिर ओईजा जाए चाहि रहली । उ अपना िन के बाि अपना पसि से कहली आउर उ हािी भर देहले । उनका के साथे लेके उ िूजवानी की ओर चल देहले । पूरा दसु नया के िाना, सझड़की आउर अपिान के बाद भी उनकर पसि के सहम्ि​ि आउर साथ, उनके आगे सजए के हौसला आउर उम्िीद देऊ । दनु ू प्राणी िज ु वानी पंहुचल लोग । पूरा गांव के लोग पसहले से ही जिा रहे । बच्ची देर से फे कला के वजह से सस्ु ि पड़ गईल रहे पर िबहु ओकर सससकी चलि रहे । सब के हु बच्चा फे के वाला के गररयावि रहे पर के हु ओके ना उठावि रहे काहे से की उ लड़की रहे । यशोदा आगे बढ़के ओके गोदी िें उठा लेहलीं आउर लड़की के सससकी बंद हो गईल । भले यशोदा बाँझ रहली पर आज से पसहले उ दसन बच्चा के अपना गोदी िें लेले रहली, लेसकन अइसन ख़ुशी कहा सिलल रहे । अइसन लागि रहे जैसे उ उन्ही के सहस्सा होखे । गौर से ओकर चेहरा के देखसल ि असद्विीय संदु रिा आउर िेज झलकि रहे । अइसन बच्चा के देखके ि खूंखार से खूंखार अपरार्ी अपरार् कईल छोड़ सदसहि, दवु ा​ा शा ऋसष जइसन िहािोर्ी आपन िोर् छोड़ सदसहि, बररसन से िप कई रहल िपवस्वी आपन िप छोड़ सदसहि, बड़का से बड़का राजा आपन राज पाट छोड़ सदसहि । अइसन बच्चा के पिा ना कवन सनदा यी छोड़ देहलस । ओकरा िसनको दया ना आसयल । उ इंसान ि एकदि ना होइ । लड़की के ठौर सठकाना के बारे िें लोगन िें ि​िाि िरह के

धनंजय त्रिवारी बसवान , बबहार के रहे वाला िनंजय जी आखर पेज से शुरुवाि से जुडल बानी । इँ हा के आखर प कई गो कहानी लाबग चुकल बा । भोजपुरी भाषा के ले के इँ हा के प्रयास सराहनीय बा । लगािार भोजपुरी में बलख रहल बानी । एह समय ईहँ ा के मुम्बई मे बानी । © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 54


कहानी बाि होि रहे पर सबसे ज्यादा सहिसि दगु ो ससद्धांि पर रहे । ओ लड़की के छोड़े वाला या ि अइसन आदिी होइ जेकरा पसहलही से लड़की होइह सन ना ि फे नु कवनो कुवार लड़की के गलिी के वजह से एकर जनि भईल होइ । िने गलिी ससफा लईकी के ही होइ, लईका के ना, एपर कवनो दु ि​ि ना रहे । अब चचा​ा शरू ु भईल की लड़की के का होइ । वैसे ि गांव िें आउर भी कइगो लोग अइसन रहे जे सनरवंशी रहे पर लईकी के गोद लेबे खासिर के हु आगे ना बढ़ल । सपछला साल भी एसह िरह के एगो घटना सािने आसयल रहे पर बाि चक ु ी लईका के रहे लोगन िें लाठी चले के नौबि आ गईल रहे । आज अनाथ लड़की खासिर के हु लाठी चलावे के िैयार ना रहे । यशोदा िने िन खुश रहली की उनका राह िें के हु रोड़ा ना बनी आउर उ अपना पसि के सहिसि लेके लड़की के अपना साथे ले जाए के इच्छा जिा देहली । गांव के ि के हु सवरोर् ना कईल पर घर ही िे सवरोर् चालू हो गईल । उनकर जेठ आउर जेठानी साफ़ साफ़ ना कसह सदहल लोग । ना कुल के पिा ना खानदान के , ना गोि के पिा ना जाि के , अइसन बच्ची िाह्मण के घर िें जाई, इ ि सोचल भी घोर पाप रहे । यशोदा के जेठ जेठानी के िका से पूरा गांव सहि​ि रहे । यशोदा भी िन िें ठान लेले रहली की चाहे कुछु होखे पर लईकी के अपना से अलग ना होखे देब । उनकर पसि उनका साथे रहले । काफी देर के बहसा-बहसी के बाद जीि यशोदा के ही भईल । जेठ-जेठानी ऐ डर से चपु हो गईल की ज्यादा बाि सबगड़ी ि इ लोग आपन सहस्सा लेके अलग हो जाई लोग । ओइसे भी लईकी के रहिे भी र्न ि वोही लोग के लसड़का के सिसलि । अगर लईका रसहि ि बाि अलग रसहि । यशोदा के आज संसार के सबसे बड़का र्न सिल गईल रहे जेकरा से उ आज ले बंसचि रहली । भले उ अपना कोख से ना जनि देले होखस पर ि​ि​िा िें कवनो किी ना रहे । ख़ुशी-ख़ुशी उ लईकी लेके घरे अईली आउर दनु ू परानी नाि रखल लोग ख़ुशी । यशोदा के सजंदगी, ख़ुशी के अईला से गल ु जार हो गईल रहे । सदन दनू ा आउर राि चौगनु ा रफ़्िार से बीिे लागल । गांव के लोग आउर उनकर जेठ-जेठानी असभयो उनके बाँझ ही बझ ु े लोग पर उ ना बूझस अपना के बाँझ । ख़ुशी के िीन साल के होिे ही यशोदा के सकस्ि​ि रूठ

गईल आउर सड़क दघु ा टना िें उनकर पसि के िौि हो गईल । सारा संसार एक झटका िें उजड़ गईल । उनकर सारा साहस, हौसला पसि के साथे चल गईल । पर असभयो उनका लगे सजए के िकसद आउर ख़शु ी के सजम्िेदारी रहे । जैसेिैसे क के उ अपना के संभलली आउर ख़ुशी के पालन पोषण िें जटु गईली । पसि के िरला से उनकर सस्थसि किजोर हो गईल रहे । उनका आउर ख़शु ी के साथै दव्ु या वहार आि बाि हो गईल रहे । जेठ के लईका जब ना िब ख़शु ी के िार द सन । जेठ आउर जेठानी भी बाि बाि पे ख़ुशी के गला घोटे के र्िकी देऊ लोग । र्ीरे र्ीरे यशोदा के िन िें ई यकीन हो गईल की ओइजा ख़ुशी के सजंदगी िहफूज नईखे । उ एकसदन होि सवेरे कभी वापस ना आवे के सचिी छोड़ के , ख़शु ी के लेके गांव से चल गईल । जेठ जेठानी खूब खुश भईल लोग । सबना कवनो इन्िजार आउर अड़चन के यशोदा के सारा सहस्सा वो लोग के सिल गईल रहे । यशोदा ख़ुशी के लेके दरू शहर चल गईली । ओइजा उनका नसा के नौकरी सिल गईल । ख़शु ी के बसढ़या पालन पोषण खासिर उ आपन राि सदन एक क सदहली । ख़ुशी भी पढ़े िें कुशाग्र रहली । हिेशा कक्षा िें पसहला स्थान ले आवस ।

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कहानी बाईस साल बाद उनका कसठन सार्ना के फल ख़शु ी के पीएसएस के रूप िें सिलल । आज ख़ुशी अपना िेहनि से उनका के जीवन भर बाँझ कहे वाला लोग के िहु पर थप्पड़ िरले रहली । ख़ुशी के पसहलका सनयसु ि, उनका अपना ही अंचल िें अंचलासर्कारी के रूप िें भईल । यशोदा के अब ओइजा जाए िें कवनो भय ना रहे । उ गवा से वापस लौटली । िन व्यग्र रहे की कब गांव के लोग आउर जेठ जेठानी उनके सािने आईि आउर उ ओ लोग के बाझ कहला के जबाब देिी । ख़ुशी के बचपन के बाि याद ना रहे आउर इ सोच के की परु ान बाि से उनका दःु ख होइ उ आपन इच्छा िन िें ही दबा लेहलीं । ख़ुशी जल्दी ही अपना काि से लोग के िन जीि लेहलीं । उनकर फै सला लेबे के गणु से प्रभासवि होके ब्लॉक प्रिख ु उनका लगे दजा नो िािला लेके आवस सनपटारा खासिर । ऐइजा अईला के दू िहीना बाद, एगो बड़ा ही अनोखा िािला आईल ख़ुशी के सािने । इ िािला के लेके उ दख ु ी आउर िनाव िें रहली । चारगो लईका अपना िाई बाबूजी के घर से सनकालि रहल सन । िाई बाप के सहस्सा ओ लोग के बेिारी िें बेचा गईल रहे । लईका कुल आपन सहस्सा ले चक ु ल रहल सन । अब लईका के बाप अपना छोट भाई के सहस्सा पर आपन दावा जिवले रहे । पर उ कुल ओके देबे के िैयार ना रहल सन । उनका छोट भाई के पररवार िें के हु सजन्दा ना रहे । "का बाि बा बेटी ?" यशोदा ख़ुशी के िनाव के देख के पूछसल । ख़ुशी सारा बाि बिवली । यशोदा के िन िें िनी शंका भईल आउर उ गांव िथा वादी के नाि पूछसल । गांव भी उन्ही के सनकलल आउर वादी उनकर जेठ सनकलले । उनका अपना कान पर सविास ना होि रहे । जवना बेटा के िाना उनकर जेठानी हरदि िरली, आज उहे बेटा उनके घर से बहरी करि रहल सन । जेठ-जेठानी के इ हाल देख के उनका खुश होखे के चाही पर उ ओह िे के ना रहली जे दूसरा के दःु ख िें खुश होखे । ऊ गाँव जाए के खासिर व्याकुल हो उठली । ख़ुशी साथे जाए के आग्रह कईली आउर उ िान गईली । उ ख़शु ी के साथै चल देहली । पूरा गांव के लोग जटु ल रहे । एक िरफ यशोदा के जेठ आउर जेठानी रहे लोग ि दस ू री िरफ चारु बेटा

जवनकी एक इंच जिीं भी ना देबे के िैयार रहल सन । सब लोग सिझा के हार गईल पर उ चारु अपना सजद पर अडल रहल सन । चार-चार बेटा के जनि देबे वाली िाई-बाप अभागा बनके सगड़सगड़ाि रहे । यशोदा सारा ि​िाशा जीप िें बैठ के देखि रहली । ख़शु ी अपना िरफ से बहुि प्रयास कईली पर कवनो सहिसि ना बनल । के हु के सिझवला के कवनो असर ना भईल आउर साफ़ हो गईल की िािला के सनपटारा अदालि िें ही होइि ।ख़ुशी आउर बाकी पंच लोग जाए खासिर जैसे ही उठल, यशोदा जीप से उिरके सनचे आ गईली । " िन्ु ना आउर इनकर भाई लोग के दूसरा के जिीन पर कईसे हक़ होइ । " यशोदा कहली "जिीन ि हिार ह ।" िन्ु ना आउर उनकर भाई लोग के िहु , खुला रह गईल यशोदा के देखके । इहे हाल उनका जेठ-जेठानी आउर बाकी गांव के लोग के रहे । िब यशोदा सबके गवा से बिवली की ख़ुशी वोही बाँझ के बेटी हई जेके सारा लोग हिेशा िाना िारल, नीचा देखावल । सबसे शसिांदा यशोदा के जेठ-जेठानी रहे लोग । चार गो बेटा भईला के बाद भी असली बाँझ ि उनकर जेठानी रहली । उ आगे बढ़के यशोदा के पाँव पकड़ लेहलीं । "ई का रउवा करिानी दीदी ।" यशोदा उनके उठावि कहली "हिरा जइसन बाँझ के नरक भेजेब का ।" "इ ि​ि कह दसु ल्हन" उनकर जेठानी रोवि कहली "िू बाँझ नइखू । बाँझ ि हि बानी । चारगो बेटा भईला के बाद भी औलाद के सख ु से बंसचि बानी । िू ि दस ू रा के जनिल, औलाद के आपन बना लेहलू जवन की िोहरा के हाथ पे रखले सबया । आज हि बझ ु गईनी की औरि बाँझ ना होले, बाँझ ि हिनी के सोच बा, हिनी के सिाज बा, हिनी के सशक्षा, पालन पोषण बा । आज िू अच्छा सशक्षा आउर पालन पोषण देके सासबि क देहलू की औलाद जनि देहला से ही के हु सौभाग्यविी ना होला । ओकरा से बढ़के जरूरी बा औलाद के बसढ़या सशक्षा आउर संस्कार सदहल ।" सब लोग यशोदा के जेठानी के हां िें हां सिलावल । "अब रउवा सभी सनसस्फकर होके रही हिरा सहस्सा िें ।" यशोदा चले खासिर िड़ु ली आउर कहली -"एहिे से के हु रउवा सब के नईखे सनकाल सकि ।"

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िन्ु नवा आउर ओकर िीनू भाई िहु लटका के खड़ा रहल सन । ख़ुशी भी सचहा के देखि रहली । यशोदा उनके पास आके परु ान सब बाि बिवली । ख़ुशी आगे बढ़के चाचा चाची के पैर छूवली आउर िाई बेटी जीप के िरफ बढ़ चलल लोग । "दसु ल्हन िूहु कुछ सदन रह ना हिनी के साथै ।" उनकर जेठानी सािने आके कहली ।

सोचि रहली । ख़शु ी उनका िन के बाि सिझ गईली । "िाई िू रह जा । हि जानि बानी की अपना िाटी के िोह अपना सदल से कभी ना जाला । सिय सनकाल के हिहू आएब ।" इ कहके ख़ुशी जीप िें बैठ गईली । गाँव के परु ान बाँझ यशोदा आज नवकी बाँझ के साथे घर िें चल गईली ।

यशोदा के भी ि अपना घर िें रहे के बड़ा िन रहे । के िना सारा िर्रु याद जडु ल रहे ओ घर से पर ख़ुशी का कसहये इहे

हे ! स्रष्टा हे ! स्रष्टा िु द्रष्टा बसन के काहे नाच नचाविारs साँच के आँच पे िपे के कसह के रोटी सबन छछनाविारs एगो द्रौपदी के लाज बचा के िनहीं िन इिराि बाड़s टेढ़ बाँगचु के छुवहु ँ के नईखे सोझके के सोझीयाविारs © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 57

चंरभूषण पाण्डेय आरा , बबहार के रहेवाला चंद्रभूषण पांडे जी , भोजपुरी मे ठे ठ आ गबहराह रचना खाबि जानल जानी । भोजपुरी कबविाई के एगो बररआर ठे हा के रुप मे इँ हा के लगािार बलख रहल बानी । एह घरी ईहँ ा के बेगुसराय मे बानी ।


कहानी

पगिी

ब लोग ओकरा के “पगली” क़हि रहे । पिा ने कहाँ से उपरा गइल रहे । गाँव िे कभी घूरा पर , कभी कौनों बहरना के ढेर पर , कभी गंगा जी के सकनारे सदयर िे , कभी लाइन ओह पार चँवर िे – सदन भर घूिे , जहां जगह सिले राि के सिु जाए । बहुि सनम्िन देह-र्आ ु रहे ओकर – बाईस िेईस बररस के लड़की । अइसन लिछड़ देह सक दौड़े लागे ि कोई पकड़ ना पावे । गोर रंग , लंबा नाक , गाय जइसन बड़ बड़ आँख , डांर िक कररया के स गंदा के िारे जाट्टा हो गइल रहे । सब लोग कहे सक कौनों अच्छा घर के लड़की सहय , सनक के एने आ गइल सबया । बहुि कि बोलि रहे , कभी कभी बहुि सरु िे गाना गावे , के िना जगह से फाटल फराक-सलवार पसहन के एने-ओने बउराि चले । “पगली” के जे सिल जाए, उहे खा लेवे । गाँव भर के लोग ओकरा के कुछ न कुछ खाना दे देवे । कुछ लोग इहों कहे सक इ कौनों देवी देविा हवे , कुछ लोग कहे सरकार के जासूस ह , भेस बदल के घिु ि सबया । “पगली” के बेवहार एिना रहस्यिय रहे सक खाली गंदा रहला के वजह से ओकरा के कोई पागल कहे , बासक़र ओकर कौनों व्यवहार पागल वाला ना रहे । राि के सन्नाटा िे भी उ घिु ि रहे , घूिे बेरी राि िे उ कौनों गाना भी गावि जाए । गाना के शब्द ठीक से सिझ िे ना आवे लेसकन बझ ु ाए सक कौनों अच्छा र्नु बा । टोला िे सदु ािा बहू “पगली” के बड़ा खेयाल रखि रही । जब “पगली” टोला िे आवे ि सदु ािा बहू अपना दलान िे ओकरा बल ु ा के रोटी-िरकारी जरूर देस । कबो-कबो उनकरे दलान िे “पगली” सूि जाए । आउर के हु “पगली” के अपना घर िे जादे ना सटकावे । सदु ािा बहू के सब लोग सचढ़ावे सक – “का हो सदु ािा बो , “पगली” बसहन हवे का?" सदु ािा बहू कहस – “जाएदs , का जानी के बा , कौनों देविा बा की देवी बा, हि अपना पे पाप काहे ली ? “

सदु ािा बहू के दल्ू हा सुदािा ससंह पाँच बररस से बाहर किाए गइल रहस , खाली हटिा िे एक बार पोसकाडा आवे ि उ के हु से पढ़ावस, ओहे से उनकर सवांग के हाल चाल िालूि होखे । सदु ािा बहू के कौनों सर्या-पिु ा ना रहे , के िना उपाय भइल लेसकन कोई फायेदा ना भइल । बरहि पज ु इलन , गंगा जी पज ु इली , कए बेर पज ु ा पाठ भइल , बीफे एिवार उपास रखाइल , कोइला िािा गोहरावल गइली लेसकन कोई फायेदा ना भइल । अब पचास बररस से ऊपर हो गइली सुदािा बहू , अब कौनों उम्िेद नईखे । लागि रहे सक संिान के ि​ि​िा उ “पगली” पर उसझल देले बारी । सकिनों लोग हँसे , लेसकन सदु ािा बहू “पगली” के ज़रूर सखयावस । “पगली” भी सदन िे एक बार उनका दलान िे जरूर आवे । गाँव िे चार पाँच िसहना के बाद सब लोग के र्ेयान गइल सक “पगली” के पेट ऊंच होि बा । नया-नया कहानी बने लागल । कोई कहे सक “पगली” के कोई बेभरि कईले बा, एहेसे एकरा सदिाग पर असर पडल बा । जइसे जइसे सिय आगे बढ़े “पगली” आउर खस ु लागे , खूब गाना गावे । कबो-कबो भोर िे गाना के एक लाइन सिझ िे आवे – “रावनवा हर के ले गईल सीिा कंु वार हो.......” एक सदन दपु हररया िे सुदािा बहू के दलान िे गाँव के दाई “ससरसिया” के देख के सब लोग जनलक सक “पगली” के बेटा भइल बा । द-ु िीन सदन के बाद नवजाि के सदु ािा बहू के भरोसे छोडके “पगली” का जाने कहाँ सबला गइल । फे र ओकरा के के हु ना देखलस ! “पगली” के बेटा अभी बत्तीस साल के बा आउर बैंक िे पीओ बा, सबयाह हो गइल बा । संदु र नौजवान , गोर-गरु ाक । सदु ािा बहू अबही सजयि बाड़ी, बेटा-पिोह के देख-देख के कहsली – “िईया सहाय भइली , ि इ सदन देखवली !”

डा. एस . के . त्रसहं बबलया, युपी के रहे वाला डा. एस के हसंह जी एह घरी बनारस मे अबसस्टेंट कबमश्नर बानी ।भोजपुरी आ हहंदी साबहत्य में समान दखल राखेनी । भोजपुरी भाषा प लगािार बलख रहल बानी ।आखर पेज प इँ हा के बलखल कई गो बववेचनात्मक लेख , भोजपुरी कबविा आ चुकल बा ।

© आखर ● अप्रैल, 2015 ● 58


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आविर ऊ के रहे !

ि के 5 बजे जब हि ऑसफस से चलल फे र पढ़ाई के चक्कर िें गाँव छुट गईल आ आज 15 थकल हारल घरे पहुचनी ि घर िे साल बाद फे र िौसी सकं हा जाए के िौका सिलल। िार के डर, सन्नाटा फईलल रहे । िाई एगो कोना सडु ् डुआ से सिले के उयसाह िें दब गईल आ हि रेन िें कुछ िे बईठ के सस खा के सूि गईनी । ु कि रहे,िेहरारू दोसरे ओर िहु लटका के बईठल रहे, लईका लईकी सभे एकदि से भोरे साढ़े दस बजे के करीब हि देवररया स्टेशन पर उदास जेने िेने बईठल रहे लो । हि जा के िाई से पछ ु नी उिरनी । जल्दी जल्दी हाथ िहु र्ो के सलेिपरु खासिर टेम्पु “काहे ए िरी बईठल बारू लो .....?” (हिरा बझ ु ाईल सक सास बहू वाला खींचा िानी हो गईल बा आज) िाई एगो पायजामा टी-शटा िें बईठ गईनी, सलेिपरु से नवलपरु चौराहा खासिर भी टेम्पु सिल गईल। कुछो ना बोललस बाकी िेहरारू एगो कागज़ के पसहरले मड़ ु ी मे अङ्गौछी नवलपरु चौराहा पहुचं ि पहुचं ि ठेंठ टुकरा हिरा हांथ िें थिा गईली । लपेटले धुरा माटी में डुबल दपु हररया हो गईल रहे, बर्ार के िय गेंहू हि देखनी उ कागज़ के टुकरा ना 'िार' रहे कटा गईल रहली सन दूर दूर िक खाली े हमरा लगे आक प्रणाम जवन सक िौसी सकं हा से आईल रहे। “खास आँख के चौंसर्यावि घाि के आलावा एगो जरूरि आ जल्दी आवे के िैसेज सलखल रहे” कईलि आ हांथ िे बैग ले सचरईयो ना लउके । ओजूगा से िौसी के बाि का रहे एकर खल ु ासा ना रहे । के कहलि सक “ढ़ेर दीन गाँव लगभग एक र्पड़ीया परे। कवनों दोसर ससु बर्ा रहे ना ए से पैदले खेिा हि िाई आ िेहरारू के सिझा बझ ु ा के कहनी पर आईल बारअ एही िे खेिी वाला रास्िा र् के चल देहनी । चक ु ी सक “िौसी सकं हा जाए खासिर आसखरी रेन तहरा मालूम नईखे । लईकाई िें खुबे रहल रहनी ए से िय वैशाली सबया हि अभी सनकल जाएि ि सिल रास्िा ईयाद रहे। अभी एक सकलोिीटर जाई िू लोग सचंिा ि​ि करअ, जईसन होई हि ओजूगा जा के चलल रहनी िले पीछे से एगो जानल पहचानल आवाज़ खबर करेि ।” एिना कह के दु गो कपड़ा बैग िे डाल के घर से आईल “ए गडु ् डू भईया....... (हिार घर के नाि गडु ् डू रहे) सनकल गईनी। स्टेशन से सटकट लेके रेन िे बईठ गईनी। रोकs” हि पीछे िूड के देखनी ि सडु ् डुआ कुछ दूरी पर िसु स्कयाि हिरा ओरी आवि लउकल । एगो पायजािा टीिौसी के घर देवररया सजला िें सलेिपरु के लगे डोलशटा पसहरले िड़ु ी िे अङ् गौछी लपेटले र्रु ा िाटी िें डुबल छपरा परेला । अक्सर गिी के छुट्टी िें हि पूरा एक िसहना हिरा लगे आके प्रणाि कईलस आ हांथ से बैग ले के कहलस खासिर ओजूगा जाि रहनी, गाँव के बगल से एगो नदी बहे सक “ढ़ेर दीन पर आईल बारअ एही से िहरा िालूि नईखे । ए जवना िे भोरे भोरे नहाये िे िज़ा आवे दोसर खूबे िरबूज सिले परे गईल िनी खिरनाक बा । चलअ नदी के सकनारे हो के आ असल बाि हिरा से चार पाँच साल छोट िौसी के लईका चलल जाई ।” हिरा ि एक बेर सविासे ना भईल सक ई उहे “सडु ् डुआ” रहे जवना संगे खेले िें खूब िज़ा आवे । सडु ् डुआ ह ? लईकाई िें कवनो बेरा कहीं चल जाए वाला, सडु ् डुआ पढ़े सलखे िें किजोर आ देह हांथ से बररयार कईसनों गाछी पर चढ़ के आि िरु लेवे वाला लईका आज रहे, गाछी पर से आि िुर के भूजड़ु ी बना के सबररया-नून संगे सदने िे एिना डेरािा ? खूब खाई सन। िौसी सकं हा जाए के ससलससला कुछ शाल ले

अजीि कुमार त्रिवारी महाराजगंज बबहार के रहे वाला अजीि कु मार बिवारी जी , शुरु से ही आखर से जुडल बानी आ लगािार भोजपुरी मे गबहराह आ भावात्मक रचना लेख बलख रहल बानी । एह घरी अजीि जी फदल्ली मे रहि बानी ।

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कहानी हि ओकर बाि िान के ओकरा पीछे पीछे रास्िा बदल के चल सदहनी । रास्िा िें िार वाला बाि पछ ु नी ि एक दि सपाट शब्द िे कह दीहलस “कवनों खास बाि नईखे घरे चलअ सब आराि से बसियावल जाई”

अब गाँव नसगचा गईल रहे िसु श्कल से सय िीटर के बाद गाँव सरू ु होईि आ गाँव िे घस ु िे दु िीन घर बाद िौसी के घर रहे ।

िचल रिे । िािला सिझ िें ना आईल । िौसी देवाल पर आपन िड़ु ी पटक-पटक के रोवि रहे । िौसा जी के दस-बीस आदिी सम्हारे िें लागल रहे, सबका आंखी लोर बहि रहे । हिहू ओहीजा आपन बेग रख के एगो लईका के फरके बोला के पछ ु नी ि उ जवन बिवलस उ सनु के हिरा गोड़ के नीचे से ज़िीन सखसक गईल । “उ सडु ् डु चाचा परसो रासि खा चौराहा पर से घरे आवि रहुवन खेिा-खेिी । िले बीचे िे कुछ लोग उनका के घेर के जान से िार देहुवे लो......अभी दु घंटा पसहले उनकर लाश थाना पर से आइल ह.....लाश आंगन िे सिु ावल बा”

सडु ् डुआ कहलस “गडु ् डू भईया ...... हई बेगवा ले के िू घरे चलअ हि बस पाँच सिनट िे पहुचं ि बानी” हिरा लागल सक कवनों काि होई ? एसे हिहू बैग ले के आगे बढ़ गईनी आ सडु ् डुआ दोसरा टोला कवर िड़ु गईल ।

हि के हु िर सहम्ि​ि क के आँगन िे पहुचनी ि देखनी सडु ् डुआ के पासथा व शरीर ओसह कपड़ा िे आँगन िे लेटावल बा जवन कपड़ा पसहरले उ पाँच सिनट पसहले हिरा संगे आवि रला .....

जब हि िौसी के दआ ु र पर पहुचनी ि ओजीगा के दृश्य गजबे भयानक रहे, िय गा​ाँि के लोग िौसी के दआ ु र पर ब ोराईल रिे । घर के भीिरी हृदय हिदारक चीख पक ु ार

हिरा बझ ु ईबे ना कईल सक सडु ् डुआ आँगन िे बेजान लेटल बा ि “उ के रहल ह ?”

हिहू ढ़ेर ज़ोर ना देहनी । एने ओने के बाि बसियावि चले लगनी सन ।

िनोज कुिार

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कहानी

आरक्षण के िाठी

टना िें अभी सभनस ु हरा ना भईल रहे, बासकर अजय के नींद एकाएक टूट गईल । रोज रािी खा दू- िीन बजे ले पढ़ के साि बजे के आसपास सिु के ऊठेवाला अजय के नींद पटना के पांच साल िें पसहला बार ऐिना भोरे खल ु ल रहे । अजय अपना टेबल ु के लैंप बार के बाथरुि िें चल गईले । बाथरुि से आ के दिुवन कईला के बादों जब अंजोर होि ना बझ ु ाईल िs ऊ टेबल ु पर राखल घड़ी के ओर देखले । अभी घड़ी िें चार बज के चालीस सिनट होखि रहे । अजय चपु चाप गैस जरा के पिीला िें चाय बनावे खासिर पानी राख देलन । अपना चऊकी के नीचे राखल बैग के सनकाल के ओिे टेबल ु पर से आ रेक पर से ऊठा- ऊठा के सकिाब भरे लगलन । दु गो बैग िs अजय चारे - पांच सिनट िें भर देलें । बासकर अभीओं कईगो सकिाब आ पसिका सब असयसहीं बाहर पड़ल रहे । अजय अब दूर्, चीनी, पत्ती डाल के चाय िईआर क देले रहन । ऊ दु गो कप िें चाय छान के , पसहले अपना किरा िें के ट् यूबलाईट जरवलन, फे नु ऊ कै लास के जगावे लगलन। कै लास पांच साल से एही किरा िें अजय के संगे रहि रहन । कै लास ऊठ के बईठ गईलन । कै लास के ऐिना भोरे अजय के जाग के चाय बनवला पर बड़ी अचंभा भईल । पसहले ि ऊ कुछ सिसझए ना पईलन । बासकर जब ऊ हाथ-िूंह र्ोके आ कुला - गलाली कs के अईलन आ ऊनकर नजर अजय के चऊकी के लगे भरल-भरल बैग पर गईल िs ऊ िाजरा सिझ गईलें । अजय के टेबल ु आ ऊनकर सकिाबन से भरल रहे आला रेक पर जब नजर गईल िs ऊनका अब परु ा कहानी बझ ु ा गईल । कै लास, अजय के संगे बईठ के पसहलका चस्ु की लेवे लगलें । ई अजय के हाथ के बनावल भोरे के पसहलका चाय के चस्ु की रहे पांच साल िें । आजु ले होि ई रहे

सक कै लास हरिेशा पसहले ऊठस आ चाय बना के अजय के ऊठावस । कै लास - भाई िु ऐिना सभनस ु हरा काहे ऊठ गईल हs । अभी ि अब पांच बजिा । आ हई सब का होिा । सकिाब सब बैग िें, रेक खाली… ई सब अचानक । का भईल ? अजय - देखs कै लास, पांच साल से हिनी के संगे बानी जा । पढ़ाई भी हिनी खूबे िन लगा के कईबे कईनी ह । िु िs जानिे बाड़ सक काल्हु जवन आईएएस के ररजल्ट आईल बा ओिें हिार नईखे भईल । हिरा बहुिे खुशी बा की िु ओिे चनु ा गईल बाड़ । हिार चार बार इसम्िहान िें बईठे के प्रयास भी अब खि​ि हो गईल बा । िु कुछ सदन िें नोकरी पर चल जईब । एह से हि सोचनी हs सक हि पटना छोड़ दी । कै लास - अरे भाई, ई िु का कह िारs । आईएएस ही बनल सजनगी के सारा उद्देश्य थोड़े ना बा । अगर िान ल िु आईएएस ना बन पईल िs का िहार आगे के राहिा बन हो गईल । सैकड़ो बड़हन नोकरी िहार इंिजार करिा आ िु बोररआ सबस्िर बांर् के चले लगल घरे । अभी ि िहार बीपीएससी के साक्षायकार खाली बाचल बा । ओिे ि िहार जरुर होई । भाई, िु िs हिरा के जीवन भर सिझईल, अब ई िहरा का हो गईल सक िु एह िरी सोचे लगलs । काल्हुए पापा के फोन आईल रहे, ि ऊ कहि रहन सक अब घरे आ जा । कुछ सदन बाद टरेसनंग िें चल जईब, िब ले िs घर- पररवार के संगे रह ल । िैसरक के बाद से िs िु घर के िेहिाने बन के रह गईल बाड़ । बासकर हि पापा के ई बाि बिा देनी सक ना हि अभी ना आइब । हि अजय के अके ले छोड़ के गांवे ना रहब । जब टेरसे नंग के सदन सनजकाई ि ओकरा द-ु चार रोज पसहले आइब । हिार बाि पापा भी िान गईनी । आ िु हिरा के सबना कुछ बिईले एह िरहा जाए के िईआरी करे लगल हs

प्रभाष त्रमश्र छपरा, बबहार के रहे वाला युवा लेखक प्रभाष जी , भोजपुरी भाषा आ साबहत्य के लेके बहुि संजीदा बानी ।इँ हा के लेख कई गो भोजपुरी पबिका मे छप चुकल बा । आखर पेज प इँ हा के लगािार भोजपुरी मे बलख रहल बानी । एह घरी इँ हा के नाबसक मे बानी ।

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कहानी । अजय - देखs, हिरा सजनगी िें ऐके गो लक्ष्य रहल ह, आ ऊ रहल ह आईएएस बनल । बासकर , ऊ सपना अब सपने रह गईल । हिरा सजनगी के राहिा काल्हु से एकदि बदल गईल बा, भाई । हिरा के अब हर सिय ई किरा, ई जगहा काटिा, चोट करिा । बड़ी ऊचाट लागिा अब । हि आज असफलिा के पया​ा य बन गईल बानी । काल्हु िs हिरा घरे चूल्हो ना जरल । िां - पापा सभे एकदि टूट गईल बा लो । बाबूजी पसहसलका बार काल्हु फफक - फफक के रोवि रहनी, हिरा िूंह से कवनो बकार ना सनकलल, िs हि फोन काट देहनी । कै लास, िुहु आपन सिान सिेट आ जवन एकार् िहीना बाचल बा टेरसे नंग के पसहले, जा के घरे अपना पररवार संगे सबिाव । िहरा आईएएस भईला के खुशी बहुिे बा बासकर हि एह खुशी के उयसव जोरदार िरीका से जईसे जईसे पसहले कहले रहनी ओह िरहा नईखी िना पावि, एकरा खासि हिरा के िाफ क सदह । अजय के चाय खि​ि हो गईल रहे । ऊ कप र्ोवे बाथरुि के ओर चल गईलन । पीछे - पीछे कै लास भी पिीला आ आपन कप लेके र्ोवे चल सदहुवन । कै लास किरा िें अईला के बाद फे रु अजय के सिझावे के बहुि कोसशश करऊवन सक कसयसहू ँ ऊ पटना रुकस । अजय भी अपना फै सला से सहललन ना । अंि िें कै लास भी आपन बोररआ सबस्िर बांर्े लगलन । नौ बजि-बजि, किरा के िासलक के सहसाबसकिाब क के , अगल-बगल िें रहे वाला दोस्ि- साथी से सिल के दनु ु जाना किरा िें से आपन सिान लेले सनकल गईले लोग ।

आज से लगभग पांच साल पसहले, जब दनु ु जाना एहीजा रहे आईल रहे लोग िो ओह लोग िें ऐगो अलगे उयसाह आ ऊजा​ा रहे, बासकर आज जब ऊ लोग किरा छोड़ के जािा लो ि कै लास जहां अपना िंसजल के पा लेले बाड़ें ओहीजा अजय के असफलिा, अजय के िन के घाव से भर देले बा । अजय के असफलिा से कै लास भी बड़ी दख ु ी बारे । चाहे गांव के स्कूली के पढ़ाई होखे, चाहे िैसरक इंटर आ बीए के परीक्षा होखे, सभे िें अजय हरिेशा कै लास से ढ़ेर आगे रहस । बासकर आज कहानी ऊलट गईल बा । आर्ा- अर्रू ा सफलि असफलिा बांटि दनु ु जाना टेम्पु से पटना से गांर्ी सेिु पार करि हाजीपरु जंक्शन िक पहुचं गईल रहे लोग ।

हाजीपरु टीसन पर जब अजय अचानक सदल्ली के सटकट िंगवु न ि कै लास एकदि अकबका गऊवन ! कै लास अपना घरे छपरा के सटकट लेले रहुवन ! ऊनका लागि रहुवे सक अजय भी अभी घरही चलीहें ! कै लास आ अजय ऐके गांव के रहे लो आ बचपने से संगही पढ़ि आईल रहुवे लो ! कै लास - अजय , िु ई सदल्ली के सटकट काहे लेल ह ! अजय - हि घरे ना जाएि , िु ऐगो हिार बैग घरे लेले जई ंह ! हि अभी सदल्ली अपना दीदी सकं हा कुछ सदन रहेि ! ओहीजी अब सजनगी के आगे के राहिा के फै सला लेि ! बासकर हि जवन भी फै सला लेि ओपर िहार राय पसहले जरुर लेि ! कै लास - िु अभी घरे चल ! द-ु चार सदन बादों िु सदल्ली जा सकिरs ! िु िनी र्ीरज राख ! दु जगहा जहां िु साक्षायकार दे के आईल बाड़ , ओहीिें देखींह कहीं ना कहीं हो जाई ! बीपीएससी के साक्षायकार िड़ु ी पर बा , ओकर नीिन से िईआरी कर , पक्का कहिानीं की िहरा के ओिे के हु नईखे रोक सकि ! िु हिार बाि िान ल ! चल सटकट फे र के छपरा के लेल ! एही बीच िें कुछ घंटा के देरी से चलि सलच्छसव एक्सप्रेस टीशन पर पहुचं गईल रहे ! दनु ु जाना ओही िें चढ़ गऊवे लोग ! छपरा आवे ले कै लास , अजय के लगािार सिझावि , िनावि रहले बासकर अजय भी गांवे ना जाए के िाने सकररआ खा लेले रहुवन ! छपरा पहुचला पर रेन से कै लास उिर गईले ! अजय आपन ऐगो बैग कै लास के थिा के फे नु ओही रेन से सदल्ली ले जाए खासिर बईठ गऊवन ! कै लास बेचारु िन िसोसके अपना एिना बड़हन खशु ी के िौका पर भी उदास ,बझ ु ाईल चेहरा आ सजगरी दोस्ि के सबछुड़न के ददा लेले गांवे पहुचं गईले ! घरे पहुचं ला पर अगरी - कगरी के सभे उनका से सिले आवे लागल ! सभे उनका के अपना- अपना भाखा िें बर्ाई देि रहुवे लो ! घरे अखबार आला लोग भी पहुचं गईल रहे ! कुछ घंटा अपना घर िें सबिवला के बाद आ सभे से सिलजल ु के कै लास , अजय के घरे उनकर बैग ले के पहुचं वु न ! उनका घरे सन्नाटा फईलल रहे ! कै लास , अजय के पापा वकील आ िाई सख ु ला के गोड़ लाग के चऊकी पर बईठ के बसिआवे लगले ! कै लास , अजय के िाई- बाप के चेहरा पर फईलल हिाशा के बड़ी अच्छा से सिझि रहुवन ! कै लास

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कहानी बहुि देरी ले ओह लोग के अजय के भसवष्य िें जल्दी ही सफल होखे के पूरा संभावना बिा के ढ़ाढ़स बर्ावि रहुवन ! अजय जहां अपना गांव के बड़हन सम्िासनि वकील ससंह के लईका रहुवन जेकरा पररवार के सैकड़ो बररस से जिींदारी चलि रहे , ओहीजा कै लास एही गांव के िीजा चिार के लईका रहुवन सजन के हुगं - के हुगं अजय के सहयोग से आपन पढ़ाई पूरा करि रहले ! अजय बचपने से कै लास के खूबे िानि रहुवन ! दनु ु जाना के दोस्िी ओह क्षेि िें एगो ऊदाहरण बन गईल रहे ! बासकर आज एह फौलादी दोस्िी िें आरक्षण के अईसन िार पड़ल बा सक ऊ किजोर होके दूर- दूर होखे खासिर िजबूर हो गईल बा ! आईएएस के परीक्षा िें जहां अजय के ऐगारह सौ चऊवालीस नम्बर आईल रहल ह ओहीजा कै लास के साि सौ दस नम्बर ! बासकर ई आरक्षण के खेला अईसन रहल ह सक ,अजय के बेसी नम्बर ले अईला के बादो आपन सपना सकार ना कर पईले ह , ओहीजा कै लास आरक्षण के टिटि पर सवारी करि बड़ी आसानी से कि नम्बर ले अईला के बादो आईएएस खासिर चनु ा गईल बारे !

आज आरक्षण के लाठी के चोट से अजय के सपना लहुलुहान हो के नीचे िूहकुड़ीए गीरल परल बा ि ओहीजा कै लास के ईहें आरक्षण के लाठी , ऊठा के आकाशी िें चहुपं े के राहिा पर चढ़ा देले बा ! अजय के ह्रदया पर जहां अपना सजगरी कै लास के सफलिा से खुशी बा ओहीजा आरक्षण के िार से बबा​ा दी के कगार पर खड़ा ऊनकर भसवष्य आ सख ु ला आ वकील के घरे पसरल दख ु के सन्नाटा , सनसि​ि रुप से अजय िें िन िें कहीं ना कहीं नफरि के शोला के भड़कावे वाला सचंगारी के काि कर सके ला ! आरक्षण के लाठी से घवासहल अजय जईसे आज , अपासहज जईसन हो गईल बारे , अऊसही हजारों यवु ा ऊत्ति सशक्षा - दीक्षा के बादों बेरोजगारी आ बबा​ा दी के चूल्हा िें झोंका रहल बारे ! एह िरह के घटना लाहे- लाहे ऐगो िौन सचंगारी रुपी िांसि के बीआ बो रहल बा जवना के फसल सिाज िें द्वेष ,जािी के िजबूिी से गांठ बर्ावल , एक - दूसरा से घृणा आ आपन सहि सिूह के िरजीह देबे िें सारा िेहनि करे के ऊपर बल देबे खासिर

िनोज कुिार

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िनोज कुिार


ऊ पागि वक हमनी के ?

गो अइसनो जिाना रहे जब अपना देश िें बड़-बड़ नेिा के भरिार रहे। बड़का-बड़का अिना नेिा रहे लोग जे लोग के ना रहला के बाद िूसिा लगावे खासिर चउराहा ना आँटि रहे। एगो चउराहा बने िले कई गो नेिा लोग के अनयु ायी आपन-आपन स्वगा वासी नेिा के िूसिा लगावे खासिर लाइन िें खड़ा हो जाि रहे लोग आ कई साल के इन्िजार कइला के बाद नम्बर आवि रहे। आज शहर के सवकास हो गइल । चउराहा बनि जािा बासकर िूसिा लगावे लायक नेिे नइखन सिलि । बहुि सदन बाद अपना शहर िें लवटनी ि रोड आ चउराहा के सवकास देख के िन गदगद हो गइल । एक से एक चउराहा आ गोलि् बर, बासकर िूसिा नदारद । रहलो रहे ि नाहीये के बराबर, िाने ऐरा-गैरा के । शाि के सनकलनी ि देखनी सक एगो गोलिबर पे खड़ा हो के एगो आदिी जोर-जोर से भाषण दे रहल बा । कुछ लोग खड़ा होके िजा ले रहल बा। हि एगो आदिी से पूछ बइठुई- ई भाषण देबे वाला के हउवें ? उ आदिी हंसिे कहे लगएु – आरे िहराज, कुछ सदन से पिा ना काहाँ से आइल बा ? एने-ओने घूिल सफरिा । अनाप-शनाप रोजे भाषण देि रहेला । जब सदिागे ठीक नइखे ि ओकरा बोलला के का लेले बानी ? हि िनी र्ेयान से ओकर बाि सूने लगईु ं । ऊ लागािर बोलि जाि रहे- भगि ससंह, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराि बोस, िहायिा गाँर्ी, पं॰जवाहर लाल नेहरु, शास्त्री जी वगैरह-वगैरह सब के हु के िूसिा िs चउराहा पर लाग गइल । अब जवन नयका चउराहा बनिारी सन, ओकरा पर िूसिा बइठावे खासिर नेिा कहाँ से आई ? अगर जासि के राजनीसि ना करे के रसहि िs आज के पॉसलसटसशयन के बाबा अंबेडकरो जइसन नेिा ना याद अइिे । आज काल के नेिा के िूसिा बइठवला ले नीिन बा जे ओह पे

ससयार लोिड़ी के िूसिा लगवा सदआव । कवनो फरक नइखे । अगर सरकारी सरु क्षा ना होखे ि ससयार लोिड़ी के सरु सक्षि नइखे रखल जा सकि । आ ठीक ओही िरे अगर सरकारी सरकारी सरु क्षा ना सदआव ि आज काल्ह के नेिा के सहफाजि सम्भव नइखे । फरक अिने बा सक ससयार लोिड़ी के जनिा सपछहू ँ िें गररयावे ना । पसहला बेर कवनो पागल के बाि पर हिरा अिना जोर से हंसी आइल रहुए । ओकर बाि सनु के भीड़ िें से आवाज आइल – ए भाई ! अइसन हाल बा ि कवनो सासहययकार के िूसिा काहे नइख लगवा देि ? ऊ आदिी फे र बोले लागल – हिरा के पागल बूझिानी का ? िुलसी बाबा, कबीर दास, प्रेिचन्द्र, शरिचंद, बंकीिचंद्र, सबहारी लाल, प्रसाद, सनराला, िहादेवी अब नइखे लोग । हिरा-रउरा लेखां िीन पाँच करेवाला आ जासहलन के गोल चलावे वाला लोग बा । एक लोग के िूसिा लागी ि बस ओटने बूझीं । जे लोग सासहयय के कई सहस्सा िें बाँट सदहल आ दसलि सासहयय के राजनीसि करे लागल लोग, भला बिाई ं ि ओह लोग के चउराहा बाँटे िें कई सदन लागी ? लोग फे र लागल हँसे आ साँच पूछीं ि हिरो बेजोड़ हंसी आइल । एिने िें एगो दोसर पागल आ गइल आ लागल कहे - एकरा बाि पे सविास ि​ि करेि लोग । ई लइकाइये के पागल ह । ई नीिनो बाि के पागल खानी बोलेला । सनु के सारा लोग फे र लागल हँसे । उहो जवन भाषण देि रहे, हँसे लागल आ कहलस – अरे ई ि हिरो भाषण से बड़हन आ फे र आपण भाषण के दोसरा िरफ िोड़लस आ लागल कहे – पागल भइल कवनो छोट बाि ना होला । देश के आजादी के पसहले देशभसि के कई गो अइसन कं पनी रहली सन । अगर उ कं पनी पागल ना बनवले रहिी सन ि लोग आजादी खासिर पागल ना भइल रसहि । हँसिे-हँसिे लोग आजादी खासिर

िंग इनायिपुरी िंग इनायिपपुरी (सुनील कु मार िंग) जी आजू के समय में देश बबदेश में एगो जानल मानल कबव के रूप में स्थाबपि बानी। इं हा के सीवान के रहे वाला हईं आ पैिृक भूबम बपलुई (दाउदपुर) ह। पेशा से हस्िरे खा आ अंगल ु ांक बवशेषज्ञ हईं िंग जी। हास्य-व्यंग के रूप में, मजाबहया शायर के रूप में आ मंच संचालक के रूप में इं हा के भोजपुरी, बहन्दी आ उदूज के सैकडों कबव सम्मलेनन में देशबबदेश में आपन एगो अलग पहचान बना चुकल बानी। देश के शीषजस्थ पि-पबिका में िंग जी के रचना प्रकाबशि होिे रहेला। दु बररस पबहले, भोजपुरी में उं हा के काव्य-संग्रह “के हु मन पडल” प्रकाबशि हो चुकल बा। भोजपुरी खाबिर आखर के संघषज में इहाँ के बहुि योगदान रहल बा शुरुए से। © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 64


जान ना दीसहि । िोरा रंग दे बसन्िी चोला जइसन गाना के हु ना गाइि । रघबु ीर नारायण के बटोसहया आ िनोरंजन प्रसाद के सफरंसगया जइसन गीि ना सलखाइि । शहीदन के टोली हँसिे-हँसिे फांसी पे ना झूसलि । भारि िािा खासिर लोग अपना िाई के गोदी सून ना कररि । बासक़र अफसोस ! र्ीरेर्ीरे पागल बनावे वाली सब फै क्री बंद हो गइली सन । लोग स्वाथी हो गइल । र्ीरे-र्ीरे राष्रीयिा दफन होखे लागल । भाई-भाई के दश्ु िन हो गइले । राजनीसि के अपरार्ीकरण हो गइल । सूप्रीि कोटा के आदेश पर देश चले लागल । आज दूरदरू िक एको गो अइसन पागल नइखन लउकि जवन देश आ राष्रीयिा खासिर िरे सिटे ला िइयार होखस । खाली ओइसन स्वाथी लोग लउकिा जवन बिाशा खासिर िंसदर िुड़े के हरदि िइयार बा । फांसी पर झूले वाला लोग का सोचल आ आज का भइल ? एिना बोल के उ जोर-जोर से रोवे लागल । एिने िें दोसरका पगलवा लागल कहे – चपु रहs चपु रहs ! हि आ िू बानी सन नू ? हिनी के ई लोग पागल कहिा आ हिनी के एह पागल लोग के पागल कहिानी सन । सिय बिाई जे हिनी के पागल हई ं सक ई लोग ? सनु िे एगो सन्नाटा चारो ओर पसर गइल । अइसन बूझाि रहे जे हिनी सभे कवनो िरु दाघसटया िें होखीं । आ शहर के सब चउराहा आ सड़क भर िन कोसि होखे सक कवनो राष्र के सवकास खाली चउराहा, सड़क, भवन, अँग्रेजी स्कूल के चकाचौंर् आ आवागिन के सवकास के नाि ना ह बलुक शैक्षसणक, सािासजक, सांस्कृसिक, सासहसययक आ राजनैसिक, उयथान जब ले स्थासपि ना कइल जाई िबले कवनो राष्र के दसु नया के नक्शा पर स्थासपि नईखे कइल जा सकि । सवशेष राज्य के दरजा पवला से कवनो राज्य सवशेष ना होला ई राजनीसि खासिर कूटनीसिक हसथयार ि हो सके ला बासक़र एकरा से आि आदिी के सपना साकार नइखे कइल जा सकि।

पागल ह। ओकर का भरोसा ? उ ि ब्लेड से कासटए दीसहि । ओकर बाि सनु के सारा लोग हँसे लागल ि सचल्ला के कहलस – का हंसले बानी लोग ? कवनों काि करे खासिर सहम्ि​ि के जरूरि होला आ सहम्ि​ि खासिर जनूनी भइल भा पागल भइल पसहलका शिा ह । सनु के हि कुछ कहे के चहुई ं बासकर आवाज जइसे बन्द हो गइल होखे आ सदिाग जइसे सन्ु न ।

जलेक हि ए गम्भीर सचन्िन-िनन िें लीन रहनीं एिने िें एगो पागल चउराहा पर बनल टावर पर चढ़ गइल । लोग लागल हल्ला करे – गीर जइब, गीर जइब । बासकर उ उिरे के नाि ना लेि रहे। किनो डेरवावे लोग बासकर के सनु ेला । एिने िें दोसरका पगला आईल आ लागल कहे – ना उिरबे िs देख, हे दाढ़ी बनावे वाला ब्लेड से टवरवा के काट देब आ िें गीर के िर जइबे। सनु िे उ डरे उिर गइल आ लागल हँस-हँस के कहे – रउरा लोग से ि कवनो डर ना रहल ह, बासकर उ ि

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िन के बाि अब रउरा लगा के का करब ? आन का घर जो हमेसा बा परब ! धधुं से भर जाय जो आपन गली रोशनी के जोर के कइसे छली होड़ में जी, जान देके का बरब ? रेत में कबहाँ चली ना ई तरी ऊाँट से परतर बड़ा भारी पड़ी सा​ाँच जइसन झूठ लेके का फरब ? आइना पर अब भरोसा के करी रूप लेके दरब से घर ना भरी सामने बा का​ाँट तबहाँ का चरब ?

रास्ता आपन बनावल बा सही डाह से ना, चाह से सोना लही सोच अइसन पोस रउरा का मरब ? -पी चन्रगवनोद आाँख


कहां गईल मोर गांव हो ?

हनराला (हबदेहसया के पाती )

गारह बररस पसहले जब अखबार के चाकरी िें अईनी ि िन से लेके िन िक िशीन होखे लागल । कुल चीज छुटे लागल । सबना िाने-ि​िलब के अनेररया िांसिकाररिा के गिु ान िन िें पले लागल । पसहलका कुछ साल िक अईसन लागे सक बस हिहीं शेषनाग बानी, र्रिी के कुल बोझ थिले बानी, एने-होने होखब िो र्रसिये र्ंस जाई। "कुल छुटे लागल" से इहवां कहे के ि​िलब ई बा सक िय राज्य, देस-दसु नया के खबर सरसराि आवे लागल चाहे हहक के हि पकड़े लगनीं । आउर आपन गांि िें का िोि बा उ जानल ओईसने िो गईल जईसे हबिार के किनो गांि िें रहि के िोनोलूलू के खबर जानल । बासकर ई भरि जादे सदन ना रहल । जलसदये सिझ िें आ गईल सक पिकाररिा से चीज बदले के रसहि िो कब्बे बदल गईल रसहि । बड़ु बकाही के परदा हटल ि गांव आवे-जाये के सरप बढ़ा देनी, अउर जादा सिय भी देबे लगनी । ढेर बररस बाद बीस सदन गांव िें रह के लौटल बानी । सबहार के औरंगाबाद सजला िें ओबरा बजार से सटल गांव बा एगो । नाव ह िहथू । ओईसे कहे खासिर ि ि​िहर आला गांव बा बासकर जनि-करि-पढ़ाई-सलखाई, सब ओही गांव िें भईल बा , ओसहजा के िाटी के कण-कण, रग-रग िें बसल बा । सहया -सजया सब बसेला ओह गांव िें बासक का बिाई ं , जब से गांव से लवटल बानीं के कर सकररया खा के कहीं के कर कसि खाई, साचो िें िन बहुिे परेशान रहि बा । सबहार िें दआ ु रे-दआ ु रे दारू पहुंच गईल बा, ई ि सबके पिा होई हिरो रहे । कई गांव िें जाके देखले भी रहीं, बासक एिना पास से ना । एह िरीका से ना िहसूस कईले रहीं । नयका सबहार के दारू से होखि नयका िरक्की के एह सनशानी के आपन गांव िें देखनीं, ि कईसन-कईसन िन भईल बा बिा नइखीं सकि । अभी िैसरक िें पढ़ि चाहे िैसरक िें पहुंचे खासिर िइयार लइकन के सभनसहरे से नसा िे िािल देखलीं

। पिा चलल सक गांव िें एह उिीर के ढेर लईकन के एगो सिूह बा, जे सभनस ु हरे से दारू-दारू के खेल िें लाग जालन स आउर सदन भर एही फे रा िें एन्ने से ओन्ने भटकल चलेलन स । दारूए से कुल्ला होला ओह लोगन के । उ सिूह के लईका लोग 14 बररस के सकशोर उसिर िें ही 25 बररस के जवानी वाला उसिर जी रहल बा । थाह लगावल चाहि रहीं सक दारू के एिना चलन एके हाली कईसे बढ़ल । िब पिा चलल सक पंचायि िें जवन दारू के ठेका हो गईल बा, उ सठकदार लोग अब गांव-गांव िें आपन एगो दक ु ानदार के सेट कई लेले बा । अब हर गांव िें खुलल ओह दक ु ानन पर गईला से आसानी से कब्बो दारू सिल जाला । पसहले ई होखि रहे सक गांव िें िहुआ चआ ु वल दारू सिलि रहे । जेकरा घर िहुआ चअ ु ि रहे, ओकरा बारे िें गांव जानि रहे । ओकरा घर लईकन के जाए के िो कब्बो सहम्ि​िे ना पड़ि रहे, िनाही भी रहे। अउर िब अईसन कवनो उपायो ना रहे सक दोसर कोई गईल अउर ओने से लोटा िें लेले चअ ु उआ दारू चल आईल । चअ ु उआ दारू बनि जरूर रहे गांव िें लेसकन ओह अड् डा पर पहुचं ेवाला लोग लोकलाज के परवाह छोसड़ये के उहवां पहुचं ि रहे और सबके नजर िें दारूबाज कहावे से ना सहचकि रहे । एह कारण से दारूबाजन के संख्या कि रहे । लोकलाज के भय दारूबाजन के संख्या ना बढ़े देि रहे । लेसकन जब से सरकार के सकरपा रस बरसल अउर पंचायि के ठेकेदार बाबू के िरजी से पाउच गांव-गांव िक आसानी से पहुचं ल, ई लोकलाज अउर दबावे-ढकावे वाला सिस्ये खि​ि हो गईल । अब िो के हू जािा, कुरिा-बशु टा के नीचे दबावि बा । चाहे पासकट िें र्ीरे से रखि बा आउर कहीं बईठ के िार लेि बा । लईकन के जवन दारू के आदि लागल बा अउर दारू ले लेबल भी ससु वस्िा हो गईल बा, ओकर थाह अइसने लागल

त्रनराला पेशा से पिकार , िहलका आ प्रभाि खबर खाबि लगािार बलखे वाला बनराला जी , औरं गाबाद बबहार के रहे वाला हईं । इँ हा के पुरबबया िान बैनर के नीचे भोजपुरी के पारम्पररक गीिन के सहेजे, सररहारे आ ओह के नया कलेवर मे प्रस्िुि करे में लागल बानी । एह घरी पटना में बनवास बा © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 66


। दारू के खेल अऊरी प्रकोप से िन सनराश भईल । पिा चलल सक अब रोजे घरे-घरे लड़ाई होखि बा । लईका दारू पी के घरे िें कोहराि िचइले रहि बाड़न स । ई भी पसहलका हाली देखली सक अपने गांव िें लइसकयन के राह चलल िसु स्कल हो गईल बा दारूबाजन के कारण। परेशान िन के शांि करे खासिर एक सदन इस्कूल िें गईलीं । जवना बोराछाप इस्कूल िें पढ़ाई कईले रही उ अब बड़का सबसल्डंग िें बदल गईल बा । दु िल्ला सबसल्डंग बनल बा । िरह-िरह के नारा सलखाईल बा। देश बनावे से लेके सशक्षा फै ला के सिाज बदले िक के । नीचे शौचालय बन गईल बा । िास्टर साहब लोग के संख्या पसहले से जादे हो गईल बा अउर सािवां िक पसहले पढ़ाई होि रहे िो अब आठवां िक गांवें िें होखे लागल बा । इस्कूल ओरे घूि​ि-घाि​ि गईनीं िो एगो िास्साब से भेंट भईल । नया-नवहर िास्साब आईल बाड़ें गांव िें । गु का चभुलाि​ि गुरुजी पररचय पूछलें । बिईनी ि बईठवलें। बाि सनकलल सक रउआ सकहां सिसडल स्कूल िें पढ़ेवाला लइका लोग भी दारू पी रहल बा, अईसन खबर बा हिरा लगे अउर हि देखले भी बानी, काहे नईखी कुछ करि । कहलें सक का करल जाव, सरकारी इस्कूल के इहे हाल बा, इहे भसवष्य बा । के एिना टेंसन लेबे जाव । एह झिेला िें के परे जाव । िास्साब गटु का के पीक थूक-थूक के सरकार के िन भर गररअईलें । बाद िें गु काबाज गुरुजी के बारे िें पिा चलल हक

हदन भर के दुई-चार िाली, इस्कूले िें बईठ के गांजा िार लेबे लें नािीं ि गांि के गंजेड़ी लोग इस्कूले से िोरीका दूरी पर अडए डा लगािे ल सन ि गरु ु जी घाि लगा के ओहनये हिकि​ि रिेलन अउर जईसिीं हचलि सुनगल देखेलन, ओिी िे जाके धुकधुका आिेलन । ग ुरु जी से जादे बहससयावे के िन ना कईल ि लवट अईनीं । गांव से लवटला के बाद बस एक्के बाि, एक ही सवाल सदिाग िें घूि रहल बा। हो सकि बा नयका सबकास के बेयार िें पांच-दस साल बाद सबहार के गांव-गांव िें सड़क बन जाई, सबजली पहुचं जाई, चिचिाि कलेक्टररयेट रही, दिु ल्लािीन िल्ला इस्कूल भी रही लेसकन पांच-दस बररस बाद सबहार िें जवन पीढ़ी आयी, उ कईसन रही ? उ दआ ु रे-दआ ु रे दारू फईल जाए के जगु के नागररक होई। रोज-रोज कलह के काल िें बढ़ल नागररक होखी। कुल चिचिाि सबकास के का ि​िलब रह जाई िब, जब नागररके बेहोशी िें रहे वाला होई । का होखी जब नयका पीसढ़ये पढ़ाई छोड़ के बासक सब करे वाला होखी। सोच के देखीं। कल्पना क के देखीं। दस बररस बाद के , सबहार के सिाज के । कईसन पीढ़ी गांव िें रही। का िाहौल रही गांव के । बस, इहे बाि परेशान कईले बा सक आसखर सरकार , का बनावल चाहि सबआ सबहार के जे दआ ु रे -दआ ु रे दारू पहुचं ा देबे वाला फै सला ले ले सबआ ?

बालमन

त्रचिकारी -अनन्द्या प्रसाद

अनन्द्या प्रसाद ( जन्म 2004) आर. बी. के . स्कू ल, मुम्बई के छािा बाडी l बहुमुखी प्रबिभासम्पन्न अनन्या के पढाई-बलखाई, कत्थक, बपयानो, बचिकारी और गायन में गहरा रूची बा l © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 67


कहँिा गइि ऊ िोग - हमार बड़की िूआ

हिे सबसे पसहले जेकरा बारे िें बिावे जाि बानी, ऊ हिरे बाऊ जी के बड़का बाऊ जी के लड़की रहली; िाने हिार फूआ । लोग बिावेला सक, सबयाह के िुरन्िे बाद उनका गाँव िें भयानक िहािारी आइल आ ओही िें, पूरा पररवार खि​ि हो गइल । फूआ आ कुछ लोग, जे ओ घरी बाहर रहे खाली ऊहे बाँचल । फूआ आपन सजनगी पूजा-पाठ के सौंप देहली । ि एगो सबर्वा िाि ना रसहके , उनकर स्वरूप साध्वी के हो गइल । बाद िें, ऊ आपन सस ु राल छोसड़ के , गउंए आ के रहे लगली आ असन्ि​ि साँस ले, एहींजे रहली । जब हि होस सम्हरनी ि खानदान िें, सबसे बड़हन इन्हई के पवनी । ओइसे ि ईया, बाऊ जी, अम्िा, चाचा-चाची, भइया लोग सभे रहे बाकी गाँव के परु नका पस्ु िैनी घर िें ससक्का चले ि फुए के । सबना ठाकुर जी के भोग लगवले का िजाल बा की के हू के खाना भेंटा जाव । का दआ ु र आ का रसोई, साफ-सफाई एकदम्िे झकास । हाँलासक, ओ घरी कब्बो-कब्बो उनकर सनयि कनूनवा बड़ा भारी लागे । जइसे-जइसे चेघाड़ होि गइनी ई अहसास होि गइल सक, ओ दूबर-पािर हाड़-िाँस के देंसह िें के िना अद्भुि आ सबसाल सकरदार सिाइल बा । ऊ अपने आप िें पूरा परम्परा रीसि-ररवाज आ कला के र्रोहर रहली । आजु सजनगी के कौनो पाला िें देखीं, छोट-छोट कार के बड़हन बिा के करे वाला भौकाली लोग चानी काटि बा । ओही ँ जब हि बड़की फूआ के बारे िें सोचेनी ि हैरानी होला की, के िना सादगी से ऊ सगरो करवा गावि-गनु गनु ाि करि रहली । आँसख िनु ला पे अब्बो बझ ु ाला जे ऊ सिनहीं खड़ा बाड़ी आ हिरे कवनो गलिी पे डाँटि बाड़ी ।

उनकर अलग-अलग, का जने के िना बासि आँसख के सोझा लउकि बा । िुलसी जी के िाला बनावि, फूल चनु ि, डसलया बीनि, कपड़ा के गडु ् डा-गसु ड़या बनावि, अँचारखटसिसठया-पापड, कचरी-सचप्स-पेट ददा के चटपटा गोलीआँवला के िरु ब्बा-पीसड़या-ससरका-िसहया-अिावट बनावि, लुकवावि, बाँटि ससलाई-कढाई बनु ाई, का-का सगनाई ँ सिझ िें नइखे आवि । ओह टाइि िें, गाँव िें सगनल-चनु ल परु सनयन िें सबसे बज ु गु ा हिार फूआ रहली । सजनका के पूरा गाँव सुदािा फुआ के नाव से पक ु ारे आ लइका कुल घंटी वाला फूआ कहँ सन । फूआ के दू जानी सहेसलओ रहे लो, एगो चसिा वाला चाची अउरी एगो दसदया । एह िण्डली के लगे हिनी के पूवाजन के पूरा जानकारी रहे, जवना के सपिर नेविनी खासिर िाँग बनल रहे । एिने ना, कोहबर भा रंगोली बनवला िें ए लोग के कवनो सानी ना रहे । सिलक-सबयाह, बन्ना-बन्नी, सोहर भजन हो भा गारी, लोग आ-आ के सलखवावे । दरअसल हिसनए के एिना जागरूक ना रहनी जा सक ए कुल के एकट्ठा क के सजों सकीं जा, आ अब अफसोस होला । साल िें एक आर् बेर काशी-प्रयाग के चक्करवो लाग जाि रहे । हिरा इयाद बा ऊ अपना गंगा सागर यािा के बारे िें भी अक्सरहा बिावि रहली । ऊहाँ से हिनी के डेरािो रहनी सन आ परेसानो करीं सन । जइसे आगी-पानी ले आवि घरी र्ीरे से हुक्का गड़ु गड़ु ा लीहल, पूजा वाला घण्टी सनकार के बजा दीहल, बेर-बेर पाचक गोली िाँगल, उनकर चटपटी वाला खँड़ाऊँ पसहर के दउरल ।

अनूप श्रीवास्िव देवररया , उ. प्र. के रहे वाला अनूप श्रीवास्िव जी कला प्रेमी हई , संगीि गीि से इँ हा बहुिे गबहराह लगाव ह । भोजपुरी मे इँ हा के बनरं िर बलख रहली बानी । इँ हा के गीि आ कबविा बहुि ही सामबयक आ भाव से भरल होला । अनूप जी एह समय फदल्ली मे रहि बानी ।

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पेट ददा के गोली से एगो बासि िन परि बा, जब गोसलया लीहल जाव ि लोग कहे की एकरा के जीभी पे र् के पानी से घोंट ल नाही ि दँिवा झर जइहँ सन । काहे सक एिें सोहागा सिलल बा । आँवला के िरु ब्बा आ अँचार ि बहुि लोग खइले होई बाकी फूआ के हाथ के बनल चटपट सपसड़या के का कहीं, अब्बो सोच के िहु े िें पानी आवि बा । आ गाल िें, गड् ढा पड़ि बा । ओकर िेसटया के िनो लुकवा के र्राव हिनी के जोह लेि रहनी सन आ चोरा के खइला के दन्ु ना िजा ि रउआ सभे बझ ु िे होखब । एक हाली िोसियासबन्द के आपरेसन के टाइि हि फूआ के सथवें रहनी । आपरेसन के बाद फूआ के आँखी पे पट्टी बान्ह के एकदि सोझ लेटावल गइल रहे आ सहलल-डुलल िना रहे । हि अम्िा आ चाचा के साथे ओही जू बइठल रहनी, एक-बायके फूआ उठली आ जवनी ओर गोड़ कइले रहली ओने िड़ु ी क के सिु गइली । हम्िन के देखिे रसह गइनी जा । पछ ु ला पे बिवली की गोड़वा दसक्खन ओर रहे, एही से ठीक कइनी हई ं । हिरा ई ना

बझ ु ाइल की बन्द किरा िें उनके उत्तर-दसक्खन कइसे पिा चलल । ओइसे फूआ घाि देख के एकदि सही टाइिो बिा देि रहली । हिरे गाँव के आगे से बनारस वाला रेल लाइन गइल बा । ओहपर चले वाला गसड़यन के जानकारी फूआ के रहे । अंन्दाजा एिना सही रहे की रेलगासड़यन के बारे िें बिा देस सक ए टाइि कौन गाड़ी जाि सबआ । आ टाइि से सबआ की लेट । "िरु सलया कहाँ भूसल आए सकसन कन्हैया" एह भजन के हि बचपन िें पसहला हाली फूआ के िहुँ े से सनु ले रहनी । ठाकुर जी के सेवा, पूजा आ खास क के जन्िाष्टिी के रौनक जइसे कसल्हएं के बाि होखे । सलखि-सलखि र्सनया वाला पंजीरी के सगु न्र् सदिागी िें घूसि गइल । एके संजोग कहल जाव भा कुछु अउरी जन्िाष्टसिए के सदने फूआ आपन देसहं छोड़ले रहली । बासक फुआ आजूओ हिनी के इयाद िे बाड़ी ।

© आखर ● अप्रैल, 2015 ● 69


कैथी से दे वनागरी में पाठ के अनुवाद (सपछलका अंक िे रउरा सभे कै थी के इसिहास के बारे िें पढ़नी । उदाहरण खासिर कुछ सचि जवन कै थी िें सलखल एगो पाण्डुसलसप के रहे देखनी । एह अंक िें पढ़ीं ओह सचि िें छपल रचना के अनवु ाद िें पी. राज ससंह जी के प्रयास । कै थी सलपी के इसिहास , सवस्िार आ प्रयोग प पी.राज ससंह जी के सवस्िृि लेख " आखर ई पसिका" के िाचा अंक िे प्रकासशि भईल बा , ओसह ि​ि िे आगे .... )

रा

जेश ससंह जब आपन फे सबक ु स्टेटस पर दू गो फोटो पोस्ट कई के कुछ सलखले ि ऊ कि अचरज आ रहस्य से भरल शब्द ना रहली सन । लगभग ३०० बररस से उनका पररवार के लगे एगो पोथी बा, २००० पेज के लगभग । आज ले के हु ऊ पढ़ नइखे पावल , िाने नइखे लगा पावल । कवनो संि सिाज उहाँ के परु सनया लोग के सँउपले रहे । फे सबक ु पर उपसस्थि सि​ि िंडली से जब कॉिेंट आवे लागल उहो कि अचरज आ रहस्य वाला ना रहे । गौर से देखला पर, अंदाज कईला पर बझ ु ाइल सक कुछ कुछ पढ़ा जा रहल बा । ढेर कुसल्ह नइखे पढ़ाि । हि आपन बाि रखनी सक कै थी सलसप िें सलखल बा । पढ़ा जाई । अक्षर , शब्द, आ िाने सिला सिला के बइठावे के परी । लेसकन बहुि र्ेयान कें सद्रि होई िब ई हो सके ला । िब से ही एगो चैलेंज के रूप एकरा के हि स्वीकार कईनी आ एह काि िें लाग गईनी । िन िें एगो भाव इहो चकररयाि रहल हा सक का जाने एही बहाने भोजपरु ी के एगो परु ान रचना प्रकाश िें आ जाव आ एकर श्रेय हिरा सिलो । आ ई लोभ छोट लोभ ना रहल हा । . ओह पाठ के सडकोड करे िें हई-हई सिस्या के सािना

करे के परल । (1) अछर के जानकारी ना रहे (2) पाठ िें कहीं भी पूणा सवराि , अर्ा सवराि आसद के प्रयोग नइखे । वाक्य सब के िाथ एके गो पंसि से बान्हल बाड़ी सन । शब्द सीिा ना रहला से अनिु ान से शब्द छांट जोर के िाने सिलावे के परल । ( हो सके ला अब भी कुछ किी रह गईल होखे ) 4. भाषा संबंर्ी भी कुछ अड़चन आइल । ि​िलब , ई कवन भाषा ह ? भोजपरु ी ह , अवर्ी ह सक सहंदी सर्क्ु कड़ी ह ? सवषय सहन्दू सिाज के सखी संप्रदाय से सबंसर्ि बा , एकर झलक कई जगह पर सिल रहल बा । प्रस्िुि बा हिार नम्र प्रयास से सनकलल पाठ देवनागरी िें ।

संि सरन खेली एहु खेली जग िाही एही खेलि पीआ देसख सोहाई (1) भूलहु गरभ जसन जापन देसख पीआ देखि सेआनु पी(बी)शेखी (2) सख ु जानहु जसन िोह पीआरी जब दःु ख होि न लेि उबारी (3) बहुसि कसह िोसह बझ ु ाई ऐसन अवसर नही फे रर पाई (4) सोचि जाहु भरी लेहु आनन्दा जेसह िे उबरि फाँस से फन्दा (5) चौपाई ................ ( अस्पष्ट )

पी. राज त्रसंह छपरा , बबहार के रहे वाला पी राज हसंह जी आर एस कालेज बसवान मे एसोबसयेट प्रोिे सर बानी , नया िकनीकी से जुडल अपना मािृभाषा खाबि हर िरह से लागल भीडल , अपना बवशेष कै मरा से जवार के हर पहलू के कै द करि भोजपुरी भाषा के एगो साबहबत्यक कलात्मक उं चाई दे रहल बानी । एह घरी इँ हा के छपरा मे बानी ।

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आपना पिु खिे प्रीिी बढ़ावे खोज करि सिलि पीअ िोरा जब पावहु लेहु अकिजोरा (6) ( शायद भर अँकवारी ) एही सवसर् शोभा लेहु सनहारी पीआ सबनु सनफल जनि पीआरी (7)

िेसह संदु री भै पार ना पावे (3) चौ ० आवि जाि देसख सभ उ िरै पीआ वसी सोई िेसह /जेसह पीआरी पीअ की एही सवसर् चले सो होइ

चौ ० एही सवसर् गनु सिझ ु ावैइ िब पावि पी ( अस्पष्ट ) पीआ पाई दील िगन प्रीिी करै ......(अस्पष्ट )

एही सवसर् जानू सेजाि सआनी अलख पिु खुनी रं लंक बखानी (4)

बहुि गनु सिझ ु ावि ऐसे कासिनी होई पावि पीअ िैसे (8) बहुि गनु सिझ ु ावि िोही कवन उिर देउ िैं िोसह (9) ( अंसि​ि पंसि अस्पष्ट ) दोसरका फोटो िें से जवन जवन पंसि साफ़ साफ़ पढ़े िें सफल भईल बानी ओकरा के एसहजा सलख रहल बानी । एह सब से िूल भाव के ि पिा चसलए जाि बा । एही सवसर् बुसर् बिावि िासह पिु (?) सनेही आनन आसह (2)

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िोर सकनारे बैठल जाहा पार कै अथा पछ ु े हू िोसह िाहा ( 5 ) जेकर अथा सनु हु िन लाई जैसे ससख संदु री सिझ ु ाई (6) सनु ु सदंु री अस बचन हिारी देखहु सहया िाफि सबचारी (7) जे आवे से सभ सफरर जाई जे अस होइ से ऊ िरे आई (8)


िा

ऐ-जी , बबआ ु के बाब.ू ....

गनु िें गवना भइल साल भर सनयरािा , बइसाख िें गइनी रउरा, ि असाढ़ िें सचिी सलखनी, काठ के करेजा ह का राउर ? उ सचिी के हि चउदह हाली खोलेनी आ पढ़ेसन, रउरा कहनी सक छ्ठ िें आइब ि िहरा के नया साड़ी लेके आइब, पसहन के नइहर जइहा बाकी का कहीं का जाने का भईल की अगहन िें सचट्ठी िें आइल राउर की "िाफ़ कररह हिार रानी । नोकरी से छुट्टी नइखे सिलि, सिल जािा ि रेल िें सटकस नइखे सिलि, िन ि करि बा की दउर के चल आई ं, बाकी सविास करा... फागनु बाँव ना जाइ, फागनु िें आइब ि िहरा के नसथया बनवाइब । “फगआ ु के सांझी खा पसहनीहा।" बाकी िाकिे िाकि आज साल बीि गइल । किना भरिा के रखनी हिरा के ! अब फगुआ कइसे बीिल,.पआ ु के लोर दूर् से ना आँसख के लोर से घोरले रहनी । पानी से पआ ु कइसे घोंटनी हिी जानि बानीं । दःु ख कािना ले कहीं, अरे घरवा रहीिी ि दगु ो खइिीं न.... हिरा नसथया के काि नइखे.... आँसख के सोझा सवांग ना रहे ि िये हार नसथया बेकार बा । आग लागो रउरा एह नोकरी के , अब कबले िाकीं । अब फागनु बीिल आ चइि आ गइल हि कािना बरदास करीं । चइि के जाड़ जब हाड़ सहलावि बा ि सबछौना कब ओढ़ना हो जािा बझ ु ािे नइखे । बझ ु ािा...? सक एक साल गवना भइल हिरो कुछ सार् सवख ह की ना । ओसनये कवनो िेहरारु राख लेले बानी का जी....? आि प बइठ के कोइलर कुहुका सिया, ि िन करि बा की ओही नवेडा िें आके रउरा नोकरी िें आग लगा दी ! बजर ना परो रउरा पईसा के ।

रउरा बझ ु ािा… काल्ह से िटर उखारे के बा । जौ िनी किजोर बा । गेंहू दाँवे खासिर खररहान गोबर से सलपे के पड़ी । नविी के पज ु ाई सनयरािा । सदया ढकनी आ कलसा सलयावे के बा । जाँि सखया गइल बा पज ु ाई के गेंहू कइसे सपसाई...? कहनी की थोरे िनीआडा र क दीं... कलसा कइसे रखाई..? पूजा िें नया साड़ी लासग... चूड़ी सटकुली सकनले कािना सदन भइल । िाइये के सदहल ह ओसह से काि चलि बा । काल्ह सचिी आइल रहे ओकर की पाहुन के बोला ले ि बाबूजी के भेजि सवदाई करावे खासिर । हिार सार् ना ह की िनी नइहर से घूि आई ं । सब सखी कहेलीस की कइसन हवन िहार भिार हो की उनके छुरट्टए ना सिलेला । िने सजए ना देि हिरा के ... नविी के एक सदन पहीले आ जाइं । ना ि ओसनये कवनो सबयाह क लेि । आपन सखयाल राख । िाइयो ठीके बाड़ी । बाबू जी रोज पछ ु े लन की बबआ ु के सचिी सलखलुहा ? देखीना; रसिया खा सिु ल रहूई ि कवन दूनी िसटलागना गावि रहूवे... " ए रािा गोररया के हपयिा बिारिा रािा जोन्िीया िो गीन गीन करेली भीनुसरिा..." सनु क ु े उहाइं ना लगयु .े . राउर काठ के करेजा ह । रउरा इ दःु ख बझ ु े खािी िेहरारू होखे के पड़ी ।

रउरा इन्िजार िें : कुसुि देई ग्राि सोनवानी , सजला बसलया

अिुल कुमार राय बबलया युपी के रहे वाला अिुल कु मार राय जी काशी में संगीि के सािना कर रहल बानी । भोजपुरी आ हहंदी में बलखे के एगो खास शैली ह अिुल जी के । भोजपुरी के पारम्पररक गीिन प इँ हा के बववेचनात्मक ढंग से बलखाईल लेख आखर प पबहले भी पोस्ट भईल बा । भोजपुरी लोकगीि आ पारम्पररक गीिन प इँ हा के लगािार बलख रहल बानी । फिलहाल बनारस मे बनवास बा । © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 72


भोजपुरी के माथ के टीका : मिें दर हमहसर (कबल ू नामा - पबहले एगो जरुरी िात, एह लेख में जउनजउन संदभभ आईल िा, उ बहंदी के रहे। िाकी लेख के लय ना टूटे एह कारन हम ओह के भोजपुररये में रखले िानी। बलहल संदभभ के मूल सोसभ हम अंत में दे बदहले िानी -लेखक)

भो

जपरु रया िाटी के कलाकारन पर जब-जब बाि होखेला, िब-िब पूरबी के िहेंदर सिससर के नाि वोह कड़ी िें जरुर आवेला। काहें से सक िहेंदर सिससर सबनु भोजपरु ी सासहयय भा कला-संगीि के चचा​ा पूरा ना हो सके ला। सारण के रहे वाला िहेंदर सिससर जी के खेयािी पूरबी के रचसयिा के रूप िें बा। उहाँ के एगो िाह्मण पररवार िें जनि लेके आपन पारंपररक लीक से हटके भोजपरु रया कलाकिा आ काव्य के एगो सम्िासनि ऊँचाई पर ले गइलन। जहवां-जहवां भोजपरु रया सभ्यिा, भाषा, संस्कृसि पहुचं ल ओइजा ले िहेंदर सिससर जी के ‘पूरबी’ सगरसिसटया भाई लोसगन के संघे कलेवा सनयन गईल। सारण सजला के जलालपरु परखंड के कांही सिश्रवसलया गाँव िें 16 िाचा 1886 के जन्िल सिससर जी के बारे िें िशहूर सखस्सा बा सक उहाँ के सभखारी ठाकुर के भी ससखवले रहनी सक भजन, आध्यासयिक प्रसंग आ कीिा न आसद से भी सिाजोद्धार कइल भी देस सेवा के एगो रूप ह अ। सिससर जी के बहुि िौसलक आ कसल्पि प्रसंग भा गीिन के र्नु के आर्ार पर सभखारी ठाकुर आपन कई गो लोकनाटकन के गीिन के रचलन। हिार कहनाि ई नईखे सक सभखारी बाबा के आपन कौनो िौसलक प्रसिभा ना रहे बसल्क ईहे बा सक वोह सिय सिससर जी के परसससद्ध के ई आलि रहे सक सभखारीयो ठाकुर उनकरा से परभासवि भईले सबनु ना रह सकले। एह बसिया के परिाण सभखारी ठाकुर के कई गो रचना िें सिल जला जेहिें उहाँ के पूरबी र्नु िें रचना कईले बानी। सभखारी ठाकुर के सबदेससया के परससद्ध गीि ‘के करा पर छोड़ के जइब अ ू िी पलानी, के करा से आग िांगब, के करा से

पानी’ िहेंदर सिससर के ही रचना बिावल जाला। हालाँसक कई गो लोग एह गीिवा पर सिससर जी के परभाव िानेला। खैर, िहेंदर सिससर जी के रचनाकाल 1910-1935 ई० के बीच के बा। सिससर जी एगो छोट जिींदार घराना िें जन्िल रहले, एही से उहाँ के सशक्षा-दीक्षा नीिन सिलल रहे। एसहसे भोजपरु ी के कौनो गीिकार भा कलाकार के िुलना िें सिससर जी के शास्त्रीय संगीि के अच्छा आ गंभीर ज्ञान रहे। “सिससर जी द्वारा सलखल-रचल बीसन गो काव्य-संग्रह के चचा​ा उहाँ के ‘अपूवा रािायण’ िें आ अन्य कई जगह पर आईल बा। ि​िेंद्र कजरी, ि​िेंद्र कुसिु ाि​िी, अपिू श रािायण सािों काण्ड, ि​िेंद्र ियंक, भागि​ि दि​ि स्कं ध, कृष्ण गीिािली, भीष्ि बध ना क आसद की चचा​ा भईल बा। बाकी एहिे से असर्कांश आज उपलब्र् नईखे।” ‘अपूवा रािायण’ िें ही एक जगह

मुन्द्ना कुमार पाण्डेय गोपालगंज बबहार के रहे वाला मुन्ना कु मार पांडे जी , भोजपुरी भाषा खास कई के बभखारी ठाकु र प बररआर शोि कईले बानी , इँ हा के ररसचज के बवषय ही बभखारी ठाकु र जी रहनी । भोजपुरी नाटक आ बभखारी ठाकु र के नाटकन प गबहराह लेख बलखले बानी । बहन्दी आ भोजपुरी मे इँ हा के लगािार बलख रहल बानी । एह घरी अबसटेंट प्रोिे सर के रुप मे फदल्ली मे कायजरि बानी । © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 73


सिससर जी आपन पररचय सदहले बानी –

हभखारी ठाकुर के हबदे हसया के परहसद्ध गीत ‘केकरा पर छोड़ के जइब अ टूटही पलानी, केकरा िे आग मांगब, केकरा िे पानी’ मिें दर हमहसर के िी रचना बतावल जाला

‘िउजे सिश्रवसलया जहाँ सवप्रन के ठट्ठ बसे, संदु र सोहावन जहाँ बहुिे िासलकाना है गाँव के पसि​ि िें सबराजे गंगार्रनाथ, सख ु के स्वरुप बह्मरूप के सनर्ाना है।

रुपया ले गइले, पईसा ले गइले, ले सारा सगन्नी

गाँव के उत्तर से दसखन ले सघन बाँस,

ओकरा बदला िें दे गईले ढल्ली के दअ ु न्नी।’

पूरब बहे नारा जहाँ कांही का ससवाना है।

पूरबी के रचसयिा आ भोजपरु ी के इ बेसिसाल हीरा के देहांि देस के आज़ादी सिलला से एक बाररस पसहले छपरा िें 26 अक्टूबर 1946 िें भ गईल। सांच कहल जाव ि अ िहेंदर सिससर के सलखल, बेसलखल (िौसखक परंपरा िें बेयाप्त) लोक प्रचसलि गावल गीिन के एगो लंबा परंपरा सिलेला। ई िहेंदर सिससर के लोक परसससर् के ही परिाण बा। शायद असर्का लोकपरसससर् भी एगो बड़ बजह बा जे सिससर जी के बारे िें कपोल कसल्पि(िनगढ़ंि) भा सांच बािन आ घटना सब के अइसन घोल िईयार हो गईल बा सक उहाँ के िानस ु से बेसी कवनो सिथकीय चररिर लागेनी। अइसन परसससर् बहुि किे लोग के भेंटाला भा नसीब होखेला। सांच कहल जाव िs िहेंदर सिससर जी भोजपरु ी सासहयय आ संगीि के अपना काव्य, गायकी आ जीवन दरसन से एगो बड़ ऊँचाई सदहले बानी । जइसे सहंदी सासहयय खासिर सूर, िुलसी, रहीि, रसखान, परसाद आ िहादेवी जइसन लोग बा वोइसही भोजपरु ी खासिर िहेंदर सिससर। उ भोजपरु ी के िाथ के टीका बाड़ें ।

सद्वज िहेंद्र रािदासपरु के ना छोड़ो आस, सख ु दःु ख सब सह करके सिय को सबिाना है।’ िहेंदर सिससर आपना जीवन िें श्रन्ृ गार, प्रेि, भाइचारा के गीि गवलन। ‘अंगुरी िें डंसले हबया नहगहनया िो’ आ ‘िाँसी िाँसी पनिा हखअइलस बेईिनिा’ उनकर नािी गीि िs। िहेंदर सिससर जब रचना करि रहनी उ सिय सहंदी सासहयय िें छायावाद के रहे लेसकन छायावाद के कवनो ख़ास असर सिससर जी के कसविाई पर नइखे लउकि। सिससर जी के ई िालूि रहे, सक जब देस गल ु ाि होखे िs सासहययकार आ बसु द्धजीवी लोग के का किा व्य होखेला। इहो एगो नोसटस करे वाला बाि बा सक िहेंदर सिससर के सहरदय आ िस्िीख(िसस्िष्क) के द्वंद्व जीवन भर चलि रहे। सहरदय कहे जे संगीि आ िरन्निु के सेवा करs, आ िस्िीख कहे जे देस खासिर कुछो करs। लेसकन सिससर जी दनु ों िें अद्भुि िालिेल बइठवलन। इ बाि जग परससर् बा सक सिससर जी अंगरेजी सरकार के सखलाफ नोट छापे के सहम्ि​ि कइले रहनी आ जेल भी गईल रहनी। अंगरेजी सरकार के सखलाफ सिससर जी के िन िें के िना सबद्रोह रहे एह बाि के सबूि उहाँ के एगो गीि बा‘हिरा नीको ना लागे राि गोरन के करनी

संदभा : 1.

देखल जाए (िूल लेख आ कथन सहंदी िें बा), िहेंद्र सिश्र:जीवन एवं साँस्कृ सिक पररचय, डॉ०सुरशे सिश्र, पररषद् पसिका, पटना, प्र०सं०प्रो० रािबुझावन ससंह, वषा :47, अंक-1-4, अप्रैल2007-िाचा 2008ई०. पृ० 137.

2.

संदभा पसहलके , देखल जाय, डॉ० सुरशे कु िार सिश्र जी ‘सारण वाणी’ के िहेंद्र सिश्र सवशेषांक िें छपल डॉ० सवनोद कु िार ससंह जी के लेख ‘िहेंद्र सिश्र और पूरबी लेखन की परंपरा’ के पृ० 33 के हवाल से ई बाि सलखले बानी.

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ितआ ु न- लोकिंस्कृसत के परब

शहश रं जन हमश्र

स्कू

ली पढाई के बेर सािासजक सवषय िें सभे पढले बा सक “आदिी (िनुष्य) एगो सािासजक प्राणी ह” । अब एह वाक्य िें दूगो िहयवपूणा शब्द बा- पसहला आदिी भा िनष्ु य आ दस ु रका सिाज । आदिी आ सिाज एक दस ु रा के पूरक (पूरा करेवाला) ह । आदिी बा ि सिाज बा आ सिाज बा िबे आदिीयो बा । आसदकाल से जब आदिी जंगल िें रहि रहे ि आपन सरु क्षा खासिर सिूह िें रहे लागल । एसहजे से पररवार, सिाज आ सिदु ाय के सवकास भईल । सिूह आ झण्ु ड िें रहल आसदकाल से प्राथसिकिा रहे । सिूह िें एक साथ रहि आ एक दस ू रा के िदद करि सिाज सवकास के राह पकड़ ले ला । आपन आ सिाज के आवश्यकिा के पूिी एक दूसरा के सहभासगिा से पूरा हो जाि रहे । सिाज के हरेक वगा खासिर सवशेष ध्यान सदयाि रहे । काज-करि के आर्ार पे सिाज बंटासयल रहे , बाकी र्ीरे-र्ीरे इ भेद र्िा आ छुआछूि से अंटा गईल । बाद िें िनवु ादी वणा व्यवस्था के दरू ु पयोग खूब भईल । बाकी एह दरू ु पयोग के बचावे खासिर भी ढेर उपाय कईल गईल रहल ह । एक उपाय रहल ह लोकसंस्कृसि के परब िनावे के । एह लोक-परब के िनावे के पाछे सिाज के हरेक वगा के एक सिु ा िें बान्हे के कोसशश रहे । पूरा भारि िें जगह आ ससु वर्ा के अनस ु ार लोक-परब के िनावे के सवसर् आ सिय अलग बा । बाकी सभे के पाछे एके उद्देश्य इहे बा सक िय सिाज एह परब िें गंथ ु ा जाव । ना बड़-ना छोट, ना छूि- ना अछूि, एह लोक-परब िें सब भेद सिट जाव । र्रि के बाजारू चश्िा हटा के देखीं ि जेिना भी परब ययौहार

बा , सब लोक-परब ह । सकराि, छठ, होली सदवाली, नवराि , सिुआन आ ना जाने के िना परब । सभे परब सािासजक सिरसिा बनावे खासिर कवन सवसर् अपनवले, इ ध्यान देवे वाला बाि बा । उदाहरण िें एसहजा सिुआन पे चचा​ा करब । बाकी परब िें रउआ ससु र् पाठक लोग अंदाज लगा लीं सिुआन भा सिुआ सकराि (संिांसि) ि नािे से बझ ु ा जाला सक एही सदन के सत्तूआ के सम्बन्र् बा । बाकी काहे , चचा​ा आगे बा । सबहार (संगसठि)- पूवी उत्तर प्रदेश िें जहाँ सिआ ु न िनावल जाला ओही सदन बंगाल िें िें “पैला (पीला) बैसाख” परब आ पंजाब िें बैशाखी िनावल जाला । बंगाल आ पंजाब के नया साल एही सदन से शरू ु होला । दसक्खन भारि िें इ लोक-परब के नाि सबशु ि आसाि िें सबहू कहल जाला । किोबेश भारि के हरेक जगहा इ लोक-परब िनावल जाला । सिआ ु न, सकराि, िेष संिांसि, वैशाखी, पैला बैशाख, सबशु भा सबहू सभे के िनवला के पाछे एके कारण बा – नया फसल के अईला के आनंद िनावल आ आपन इष्ट देविा के र्न्यवाद देवे के । सिुआन हरेक साल 13-14 अप्रैल के िनावल जाला । खगोल शास्त्र आ अंग्रेजी कलेंडर के अनस ु ार 21 िाचा के सदन -राि बराबर होला । ओकरा बाद सदन आ राि के अनपु ाि बदल जाला । सदन बड़ आ राि छोट होखे लागी । इ सिय ह नया अन्न के आवे के । दलहन फसल के कटनी एही सिय शरू ु होला । गेिूं के हिंदी िें “कनक” किल जाला आ “कनक” के दोसरका अिश सोना भी िोला । हपयर दि-दि

शत्रश रंजन त्रमश्र आरा, बबहार के रहे वाला शशी रं जन बमश्र जी , भोजपुरी मे हास्य व्यंग्य के संगे संगे गबहर साबहत्य के बसरजना करे खाबि जानल जानी , इँ हा के बहन्दी आ भोजपुरी भाषा प पकड बेजोड आ िारदार बा । इँ हा के बलखल कई गो लेख बहन्दी भोजपुरी के कई गो पि पबिकन में प्रकाबशि हो चुकल बा । एह घरी इँ हा के फदल्ली मे रहि बानी । © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 75


सोना के रंग िें रंगाहयल खेि के देख के हकसान के िन पोरसा भर उछ्लि रिेला । सरसों, गेिूं के पौध गो ाइल बाली के भार से झुकल जाि बा । िाने धरिी के देि से हनकलल आ धरिी के खून से पोसाइल आपन सिृहि के धरिी के िी सिहपशि करि– “त्िदीयं िस्िु देिषे, िुभ्यिेि सिपशये ” । सकसान र्रिी के सेवा करेले आ बदला िें र्रिी आपन छािी फाड़ के फसल देवेली । एकर आनंद उहे जे िाई आ बेटा के बीच होला । सकसान िाई र्रिी के र्न्यवाद देवे खासिर वैशाख के एह सवशेष सदन के उयसव के रूप िें िनावेले । एह सदन नया अन्न खाए के िहाि​ि ह । सिुआन िें भी इहे होला बाकी िसनक परु सनया लोगन के वैज्ञासनक सोच आ लोक संस्कृसि के बचावे के जेिना सवर् एह सिुआन िें बा, उ दोसर परब िें ना लउके । सिुआन के सदन सत्तआ ु (नया अनाज सवशेष चना-जौ के भूंज के चूरन कईल) के साथे आि के सटकोढा, गरु , दूर् खाए आ नया घईला के पानी सपए के िहाि​ि बनवल गईल । आ इहे कुसल्ह दान र्रि करे के । सिआ ु न िें सत्तआ ु खाए के कहल जाला एकरा पाछे कुछ वैज्ञासनक सोच रहल ह । नया अनाज िें गिी होला, नया अन्न के सेवन से कुछ शारीररक प्रकोप भी होला । अनाज के इ गिी पेट िें भी गरिी करेला । वायु सवकार बढे के इ बड़का कारण ह । कबो कबो नया अन्न खसयला से पेट भी झरे लागेला , जेकरा के हिनी कीन्हा चईिार लागल कहाला । भज ु ल अन्न के चूरन पेट िें वायु के दोष दूर करेला । कच्चा आि िें अिल के गणु होला जे वायु सवकार के दूर करेला आ पाचन शसि के बढ़ावेला । एह सिय िौसि के बदलाव होला एह से शारीर िें कफ भी उयपाि िचावेला एह से गरु भी शासिल कर लेवल गईल । साथ िें घईला के ठंढा पानी िाने शारीररक गरिी जे नया अनाज से हो रहल बा ओकरा के शांि करे के । ओइसे एक दू बरखा के बाद जब वािावरण ठंढाला िब नया अनाज के गिी भी शांि हो जाला । बाकी लोक-परब के बहाने िन-िन के इलाज भी हो जाए आ उयसव हो जाए ि का हरज बा ! अब एिने उयजोग िें िय सिाज के कईसे बंर्ाईल इ परु​ु खा-परु सनयन के सोच रहे । लोक-परब के िाने इ जेह िें सिाज के हरेक वगा के कुछ ना कुछ योगदान होखे । ए ही परब ययौहार िें सभे के आिदनी आ उयसव के जररया बने एकर ख़ास र्ेयान देवल गईल । आज के सबगड़ल पररभाषा िें जसजिान आ परु ोसहि के िाने उहे जे पूजा पाठ करावे आ दान दसक्षणा लेवे आ देवे । दान देवेवाला जसजिान आ लेवेवाला परु ोसहि । बाकी इ पररभाषा के िूल रूप िें इ ना रहे । सिाज िें हरेक उ जसजिान रहे जे

के हू से कवनो काि लेि रहे । दोसरका िरह से कहीं ि “सेवा देवेवाला” आ “ सेवा लेवेवाला” एक दस ू रा के जसजिान रहलन । आ इ सब किा प्रर्ान रहे । हज्जाि के सेवा देवे वालन के जेिना ग्राहक उ ओकर जसजिान , एही िरह सिाज के चिा कार, कुम्हार, िेहिर जईसन सेवावालन के भी जसजिान रहन । एिने ना सािासजकिा िें जसजिान के िय सबिी भी होि रहे । बंटाई भी होि रहे । इन्हा िक सक दान दहेज़ िें भी जसजिसनका सदयाि रहे । िाने दहेज़ लेववे ाला अब जसजिान के सेवाकिा​ा हो जाई आ एह से जेिना भी किाई होई उ ओकर हो जाई । इ एगो सिासजकिा के रूप रहे जेह िें एक दोसरा के सहारा देके आगे बढ़ावे के र्ेयान राखल गईल रहे । सिुआन खाली सकसान के परब ना ह, घुन्सारी झोंकेवाला, अनाज सपसेवाला, िाली आ कुम्हार सभे के परब ह । नया अनाज ि सकसान सकं हा आईल, घन्ु साररवाला ि खेिी ना करे बाकी जब उ अनाज भंज ु े के सेवा दी ि कुछ अनाज ओकरो भेंटाई । िाली आि के सटकोढा दी ि अनाज ओकरो भेंटाई । गरु खासिर बसनया के आ नया घईला देके कोंहार के भी कुछ नया अनाज सिली । अब दान-र्रि कई के गरीब-गरु​ु बा आ िाहिण के भी नया अनाज सदयाई । िाने िय सिाज के हू िरे नया अन्न िें आपन आपन सहस्सेदारी राखेला । आ जब इ नया अन्न घर िें आईल ि उपरवाला, आ इष्ट के र्न्यवाद देि परब ि िनबे करी । लोक-परब के इहे िाने ह जेह िें सब के सहभासगिा आ सहभोसजिा रहे । एह परब िे कवनों छुआछुि ना िानल जाए । अगर गौर करब ि छठ जईसन लोक-परब िें जे सिाज िे सबसे अछूि रहल ओकरे बीनल दउरा आ सूप जादे पसबिर । आ कुल एही िरह के बाि बाकी लोक-परब िे भी बा । बस आपन नजररया बदल के देखब ि आपन परु खन के सोंच पे गवा होई । बाकी आज के सिाज के रूप बदल गईल बा । आज के आदिी सािासजक ना होके व्यसिवादी हो गईल बा । संयि ु पररवार जे सिाज के छोट रूप रहे सवलुप्त हो रहल बा आ साथ िें लोगन के सािासजकिा के र्ारणा भी । बदलि पररसस्थसि िें सिाज के किा क्षेि भी बदल गईल आ साथ िें आवश्यकिा भी । बाजारवाद हर जगहा आ गईल । शौसपंग िौल आ जनरल स्टोर सेवाकिा​ा आ हिनी के उनके जसजिान । रोपेया के भावे परब ययौहार िनायीं । अईसन बदलि वािावरण िें लोक-परब िनावल खाली िन के बह्लावल ही कहाई ।

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हकसानन के परब ि सतुआन

िा. उमेशजी ओझा

िुआन के नाव लेिे िन आ सदिाग प बंटु के सािु ओकर सवाद आ सोन्ह खुशबु आ जाला। ओकरा साथे काच आि के सटकोरा के चटनी आ सपयाज, अचार भी सपछे ना रहें । इहे सभ सिलाके ि सिु आन के िजा बा। बंटु के सािु के रउरा चाहे जइसे खाई िजा ही िजा बा, जईसे सरऽबि बना के सपही, सलबरी घोर के , सपडी बनाके , चाहे सलटी बनाके , ओकर अलग ही िजा बा।

से सिल जाि रहें। आ नया फसल काटी के घर िें आ जाये से, सब के हु नया फसल आ फल से परब शरू ु करे ।वोही परम्परा पर सािु, नया आि के सटकोरा के चटनी, सपयाज, आसद खाई के इ परब शरू ु कईल गईल। आज सािु बड़ा िंहगा बेचाि बा। देश सवदेश िें भी एकर आपन पहचान हो गईल बा। वोइसही सकसानन के परब के रूप िें , पंजाब िें एकरा के बइसाखी, बंगाल िें पैला, दसक्षण िें सबश,ु के रल- िसिल आ असाि िें सबहू के नाि से जानल जाला।

एगो जिाना रहे सक सािु खाये के बाि कहे िें लोग लजाि रहें । आजु सािु अन्िराष्रीय हो गईल बा । ओकर पहचान के करो से बिावे के जरूरि नईखे। वोह जिाना िें लोग सािु खाके िंहु प के घीव पोछी के घर से बहरी सनकलि रहले आ कहि रहले सक हि घीव भाि भा घीव िें छानल पसु डये खाके आवि बानी। आजु हिनी के देश होखे चाहे सवदेश सब जगह सािु के बहुि ही गरऽब से खाि बा लोग। एकरा के डाक्टर लोग भी सचसकयसा िें उपचार बिावि बाडऽन।

एह घरर आकाश िें सवशाखा नक्षि होला। पंजाब िें अवरू र्िु र्ाि से िनावल जाला बइसाखी। इ परब परु ा दसु नया के भारि के करीब ले आवेला। ई बईसाख िसहना के पसहला सदन ह। आजु के सदन सरु ज देविा िेश रासश िें घस ु जाले। आजयु े के सदन िहिा जी ससृ ष्ट के रचना, िहाराजा सवि​िासदयय द्वारा सवि​िी संवि के सरू ु आि, िया​ा दा परू ु षोि​ि श्रीराि के राज्यासभषेक, नवरािी के आरम्भ, िहसषा दयानंद द्वारा आया सिाज के गठन, र्िा राज यसु र्सष्ठर के राजसिलक, िहावीर जयंिी आसद बइसाख से ही जडु ल बा। परवसिये इलाका िें ि िेला भी लागेला आ श्रर्ा भसि से लोग देवी के पूजा भी करेले। यही िसहना िें 13 अप्रैल 1919 के जासलयावाला बाग कांड भी भईल रहें।

सिुआन सबहार, उिर प्रदेश िें बडी ही र्ूि-र्ाि से िनावल जाला। ई सहन्दू नववषा के दूसरका िहीना के बइसाख के पसहले के सदन िनावल जाला। ऐकरा के सकसानन के परब भी कहल जाला। आजु के सदन सकसान अपना-अपना खेि से फसल कासट के घर िें राख देले आ वोही खशु ी िें इ परऽब िनावल जाला। फलऽन के राजा कहल जाये वाला आि के भी शरू ु आि भईल रहेला। पेड़ प आि के नया-नया सटकोरा लागी जाला। होली जहवाॉ परु नका साल के सवदाई आ नयका साल के आवे के पहचान बा, ओइसही सहन्दु के परब के शरू ु आि चईिी छठ, रािनविी आ सिआ ु न से हो जाला। हिरा अईसन बझ ु ाि बा सक आजु के सदन सभ के हु एक सिान भोजन करों के सलहाज से सािु खाये के प्रचलन बनल। वोह घरी बंटु के सािु, का अिीर, का गरीब सभके घर िें आसानी

आजु सािु आ आि के वैज्ञासनक कारण भी बिावल जाि बा सक गरिी के सदनन िें सरु ज भगवान के िाप (लुक) से आदिी के शरीर सपि से भरर जाला। ओकरा से छुटकारा पावे खासिर भी लोग आि के सटकोरा के चटनी आ सािु खालऽन । जेकरा से घूप के असर कि हो जाला। ऐकरा अलावे घूप के गरिी लक ु से बाचे खासिर आि के सरबि भी सपयल जाला।

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सिुआन के बर्ाई आ शभु कािना !


हटकोढ़ा के चटनी

ि के िोजर िें ठीक से सटकोढा र्इले ना रहे । बासकर िनोहर काका के आि के फ़ुलवारी ( गाछी ) िें गांव के लईकन के िडरा – िडरा के आइल आ झांकी पारल शरू ु हो गईल रहे । भोला राि के दस साल के बेटा दीपू , उहो फ़ुलवारी के चक्कर काटे, झांकी पारे । बासकर बस एसह इंिज़ार िें सक कब िोजर िें सटकोढा र्री । ओकरा एह बाि के इंिज़ार साल भर से रहे । सपछला साल लाख कोससस के बाद भी दीपूआ के सिुआन िें सटकोढा के चटनी ना सिलल रहे । सपछला साल ठीक से िोजर ना आईल रहे । ओईसे भी गांव िें लोग गाछ रोपे से बेसी कटवावे िें लागल बा। गांव जहां के खेि-खररहान , गाछ – सबररछ पहचान रहे। अब सब खि​ि हो रहल बाऽ । लोग के अब प्रकृसि से कि, आ पईसा से बेसी प्यार बा । दीपू के गांव के भी उहे हाल रहे । गांव िें इक्का – दक्ु की लोग के गाछ छोड़ सदआये िऽ पूरा गांव िें बस खाली िनोहर काका के फ़ुलवारी के गाछ बाचल बाडन सन । उहो उनका सवख के कारन । अब सपछला साल खाली उनके फ़ुलवारी के एक दु गो गाछ िें सटकोढा र्ईले रहे , लेसकन उ सटकोढा दीपू के सिल ना पाईल रहे । एहु साल िनोहर काका सारा गाछ पर दवाई सछड़कवा देहले रहलन, आ फ़ुलवारी िें एगो िचान बनवा के ददन के रखवार बना के बईठा देले रहलन । ददन पसहले पहलवानी करस, बासकर उसिर के साथ अब पहलवानी छोड़ अब रखवारी-जोिाई-कोडाई इहे सब कुसल्ह काि करेलन । ददन के देख के एको लईकन के सहम्ि​ि ना होखे की उ लोग फ़ुलवारी िें घस ु जाये, काहे सक जे लईका फ़ुलवारी िें पकड़ा गईल ओकरा के ददन अपन पहलवानी के अईसन गरु ससखावस, दंड पेलवावस आ उठक-बईठक करवावस जे कारन लईका लोग उनकरा से भागल सफ़रे । एह साल िोजर िऽ अच्छा आईल रहे बासकर दीपू के असकल काि ना करि रहे सक कईसे सटकोढा हाथ लागी । ओईसे दीपू के बाबु भोला िनोहरे काका के खेि किास बासक उनकरा िें एिना सहम्ि​ि िऽ नाहीये रहे सक उ िनोहर काका से सिुआन ला दु गो सटकोढा िांग लेस । सपछला साल सहम्ि​ि कईले रहलन िनोहर काका के िेहरारू शांिी काकी सनु लेहली आ कहली

सक सिआ ु न के चटनी लाऽ िु सटकोढा नोच लेहबे आ हिर लईका सब आि ला टुअर हो जईहन सन । बड़ा सहम्ि​ि कऽ के भोला कहलस दीपूआ के िाई के खाये के िन बा िऽ काकी चार गो गारी और देहली आ कहली सक उ लंगड़ी बागड चले के लुरर नइखे ना छ्टाक भर के बसु द्ध बासकर िंहु पर ज़ोर नईखे चटनी खईहें । इहां हिरा सोझा रसहिी िऽ चार चटकन देसहिी गाल पर । भोला चपु चाप िड़ु ी गडले काकी के सब बाि सनु लेहलन । दीपूओ देवार के ओरा िें खड़ा इ सब बाि सनु लस बासकर कुछ कई ना पवलस । हां िने िन ठान लेहलस सक िाई के असगला साल सिुआन िें सिुआ आ सटकोढा के चटनी ज़रूर सखयाइब । गांव िें एकदि अंि िें भोला के घर रहे आ एक कट्ठा ले दआ ु र एकरा अलावें कही कवनो जिीन ना रहे । उ िनोहर काका के खेि िे काि करसु , किास । गरिी के सदन िें गरीब ला खेि से किाईल सबसे िसु स्कल होला , घाि िाथा पर रहेला आ खाये ला िकई के रोटी, सिआ ु चाहे आ पानी के आस रहेला । लुह ना लागे एह लेल कबो – कबो सटकोढा के चटसनयो सपसा जाला । उहो जवना साल िोजर आईल आ आन्ही पानी से बाच गईल िब । दीपूआ के िाई के पूरा गांव – जवार के लोग बगड़ी कह के बोलावे ला । जब भोला के सबयाह फ़ुलवा से भईल ओकरा भनको ना रहे सक फ़ुलवा बागड हीयऽ । देखे िें िऽ सनु र रहे बासक बागड़ भईला के कारण ओकर सबयाह ना हो पावि रहे फ़ुलवा के िाई-बाबु भोला के र्ोखा िें रासख के फ़ुलवा से सबयाह देलस लोग । जब भोला के पिा चलल िऽ छह िहीना ले भोला ओकरा से बािो ना कईलन । िाड़ी पीये लगलन से अलगे । नसा के जोर िें ओकरा संगे जोर जबरदस्िीयो करे लगलन फ़ुलवा सब सहलस । कबो कवनो ससकायि ना कईलस बासकर िन से िरु झा गईल । एही बीच िें गांव के सरपंच िंगल शिा​ा के गंदा नज़र फ़ुलवा पर पडल । आ बेसरि िंगल शिा​ा ओकरा के एक सदन खेि िें घेर लहलन जब उ भोला ला खाना ले जाि रहे । अपना इज्जि के बचावे ला उ कुदारी उठा लेहलस िबे उहां िनोहर काका आ गईलन । जब पंच अययाचार करि पकड़ा जाला िऽ परपंच रच देला िंगल शिा​ा भी उहे कईलन उ जानि रहलन सक फ़ुलवा िऽ बागड सबया ओकरा बाि पर के सवस्वास करी से सारा दोष ओकरे िाथा िढ़ देहलन ।

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बासकर िनोहर काका फ़ुलवा के िन के भाव पढ़ लेहलन । उ गांव िें सरपंच के सखलाफ आवाज़ उठवलन । िंगल शिा​ा के नाि पर बहुिे थू – थू भईल । िनोहर काका भोला के सिझवलन उ बागड नईखे बिाह सबया । दनु ो िें बड़ा फ़रक बाऽ बिाह ठीक से बोल ना पावे आ बागड के बसु द्ध ना होला बासक िोहर जनाना बहुि होसशयार सबया । भोला के भी िनोहर काका के इ बाि गिे - गिे बझ ु ा गईल । जब उ भोला के िाडी पीये के नसा छोड़ा सदहलस, आ कब उ नसा छुट गईल भोला के पिो ना चलल । फ़े र उ सदन भी आईल जब फ़ुलवा िाई बनल आ दीपू के जनि भईल । भोला के िन दीपू जईसन सनु र लईका के देख बदल गईल । भोला ठीक से किाये लगलन आ दीपू पोसे लगलन । दु साल पसहले जब दीपू आठ साल के रहे स्कुल जाये लागल रहे आ ओकर िाई जेकरा के िय गांव बगड़ी कहे लागल रहे भोला ला खाना ले के खेिे जा रहली खेि के जोिनी रहे। िनोहर काका अपन रेक्टर ले के आवि रहलन , लेसकन रास्िा िें उनकरा ये गो गड़हा ना लऊकल रेक्टर उलीट गईल आ िनोहर काका ओही िें जंिा गईलन । सबसे पसहले उनकरा के फ़ुलवा देखलस, उ सचल्ला ना सकि रहे िबो सचसचआईल आ अपना पूरा काबू से रेक्टर के सहलावे के कोससस करे लागल । पिा ना भगवान जी कहां से ओकरा के येिना जोर देहलन सक रेक्टर हीलल आ जंिाईल िनोहर काका बाहर सनकललें लेसकन ओही िें फ़ुलवा के गोड़ दबा के चूर हो गईल । िनोहर काका ओकर इलाज के सारा खचा​ा देहलन । बगड़ी उनकर जान िऽ बचा लेले रहे बाकी अब बगडी लंगड़ीओ हो गईल रहे । अब उ अपना दआ ू र से कही जा आ ना सकि रहे । इ घटना के फ़ायदा िंगल शिा​ा उठवलन िनोहर काका संगे ओकर नाि जोड़ के बदनाि करे के कोससस कईलन । बासक बगड़ी के जबाब, ओकर बेटा दीपूआ िंगल शिा​ा िें िाथा पर एक ई ंटा िार के देहलस । िंगल शिा​ा के कपार फ़ूट गईल लेसकन इ घटना के बाद िनोहर काका आ काकी िें बड़ा बकझक भईल आ अब काकी के दीपूआ फ़ुसटयो आंखे ना सोहाला । सपछला साल के काकी के गारी के बाद भोला चाहे दीपू के

एिना सहम्ि​ि ि ना रहे सक उ लोग गाछ के सटकोढा िांग लेवे । बाकी दीपू के अपना िाई के िन के िरु ाद पूरा करे के रहे । एही से उ रोज एही टोह िें रहे सक कब फ़ुलवारी िें से ओकरा सटकोढा सिली । बासकर रखवार ददन पहलवान रहलन से फ़ुलवारी के ससवान लांघे के सहम्ि​ि ना होखे । अब िोजर िें टीकोढा र्ऽ लेले रहे आ सिआ ु न िें बस दू सदन बासक रहे । भोला सिुआ सपसवा के सलआ देले रहलन, लेसकन सटकोढा उनकरो हाथ ना लागल रहे सक अचके भंडारी कोना से िेघ गड़गड़ाये लागल आ बयार बहल एकदि बंद हो गईल । दीपूआ के सिझि देर ना लागल सक आन्ही आई आ आन्ही िें सटकोढा सगरी । उ घर से भागल शरू ु कईलस आ एक्के सांस िें िनोहर काका के फ़ुलवारी पहुचं गईल । बासकर उहां ददन पहलवान िस्ु िैदी से खड़ा रहलन । दीपू के गोड िें बग्घा लाग गईल । िबे ओकरा िनोहर काका के छोटकी बेटी सपंकी फ़ुलवारी िें लऊकली । सपंकी ओकरा संगे स्कुल िें पढ़स बासकर बाि कबो ना होखे आज उ सहम्ि​ि कईलस सक सपंकी से सटकोढा िांगी । िबले ओकर नज़र काकी पर पड़ल आ दीपू के अईसे लागल जईसे के हु गोड़ ससक्कड से छान देहलस । िले आन्ही बयार उठ गईल आन्ही बेसी िेज ना रहे बासक सपंकी खुस हो हो के सटकोढा सबने लगली । ओने ददन इ देखे लगलन की फ़ुलवारी के ससवान िें के हु घस ु े ना, िलेले बनु ीयो परे लागल बूनी से बचे ला काकी आ सपंकी िचान के नीचे आ के खड़ा हो गइल लोग । आ ददन बूनी िें भीजि फ़ुलवारी के ससवान पर घिु े लगलन । ओईसे बनु ी िें िऽ दीपूओ खड़ा रहे बाकी फ़ुलवारी के ससवान से बाहर । िब्बे सपंकी आ काकी के सचल्लाये के आवाज सनु ाइ पडल । दीपूआ आव न देखलक िाव... िचान ओरी भागल । उहां पहुचं के देखलस छूंछा गहुअन छत्तर काढ़ के सपंकी के आगे खड़ा रहे आ काकी के िंहु से बोली सनकलल बंद हो गइल रहे । सपंसकयो डरे कांपि रहली । ददन दोसरा ओरी रहलन आन्ही िें उनकरा काकी के सचसचलाईल ना सनु ाि रहे । दीपूआ फ़टाक से अपन बस ु ट खोललक आ छत्तर कढ़ले गहुअन के उपर फ़ें क देहलस । बस ु ट एकदि गहुिन के छत्तर पर सगरल िले ले बड़ा फ़ुरिी से ओकर पोंछी र्ई के दोसरा ओरी फ़ें क देहलस

अत्रमि झा मोबिहारी , बबहार के रहे वाला अबमि झा जी , भोजपुरी आ बहन्दी बसनेमा आ िारावाबहक खाबि बस्क्रप्ट बलखले बानी । भोजपुररया पररवेश प बनल कई गो बहन्दी िारावाबहक के बस्क्रप्ट बलखले बानी । संगे संगे स्विंि लेखन के रुप मे अबमि जी भोजपुरी आ बहन्दी मे लगािार बलख रहल बानी । आखर प इँ हा के लेख अक्सर पोस्ट होला । फिलहाल इँ हा के मुम्बई मे बानी ।

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। एिना छोट लईका के इ सहम्ि​ि देख के काकी अवाक रहली । िले ददन आ गईलन । सांप जोहाईल बासक ना सिलल । शायद भगवान जी काकी के आंसख खोलेला इ घटना रचले रहलन । आन्ही रूक गईल रहे दीपूआ आपन बूसट उठवलस आ घरे ओरी चल देहलस, बासकर आजो ओकरा हाथे सटकोढा ना लागल । आ ना काकी ओकरा से सटकोढा ला पछ ु ली । असगला सदन बरहि बाबा के पूजा ला काकी जाि रहली िऽ भोला के दआ ु र पर बगड़ी के देखली । उ लगड़ाि छोट – छोट आि के गाछी िें पानी पटावि रहे जवन आजे लगावल गाछ बझ ु ाि रहे । उनका से देखल ना गईल पूछ लेहली इ गाछ काहे ला लगवले हऽ बगड़ी । बगड़ी इसारा िें कहलस इ गाछ हि ना हिार लईका दीपूआ लगवलस हऽ । आ कहलस हऽ िाई जब गाछ बड़ हो के सटकोढा दी िब सिुआन िें सटकोरा आ चटनी खाईल जाई । आ हिनी के , के हु के रोकलो ना जाई सटकोरा बीने से । काकी बगड़ी के िय इसारा िऽ ना

बझ ु ली बासक ओकर भाव ज़रूर सिझ गईली । असगला सदन सिुआन रहे सबेरे – सबेरे नहा के दीपूआ , फ़ुलवा आ भोला बईठ गईल लोग । सिुआ सनाये लागल । सटकोरा के चटनी एहु साल ना रहे बासक दीपूआ के चेहरा पर गाछ लगावे के खुसी रहे । दीपू सिुआ के पसहला कौर खाये ही वाला रहे सक काकी के आवाज कान िें पड़ल ये फ़ुलवा । एिना साल बाद पसहला बेर के हु बगड़ी के फ़ुलवा कहले रहे, उ हडबड़ी िें उठे के कोससस कईलस । आ इ सबसर गईल सक ओकर एगो गोड़ किज़ोर बा । उ सगरही वाला रहे सक काकी ओकरा के सम्हार लेहली । दीपूआ , भोला आ फ़ुलवा काकी के देख के भंवचक रहलन सं । काकी कहली आज सिआ ु न हऽ आ िोहरा चटनी खाये के िन बाऽ इ हि जानऽ िानी । िनी देर हो गईल, एक साल लाग गईल हिरा िोहरा इहां आवि-आवि । बासकर इहो हि िहरा बेटा कारन अईनी हं । ना िऽ पिा ना के िना साल लग जाईि इ ससवान लांघे िें । दीपूआ इ देख के बहुि खुस रहे सक ओकरा िाई ला काकी एक कटोरी “सटकोढा के चटनी” सलआईल रहली... ।

सतुआन - िा॰ रीता हसन्िा इि के कृष्ण पक्ष दशिी के (15.3.15) के खरिास आरम्भ भइल जवन आज बैशाख कृष्ण पक्ष दशिी के ( 14.4.15.) के सिाप्त हो गइल । एह सदन सूया िेष रासश िें प्रवेश करेले आ आजयु े से सौर वषा प्रारम्भ होला।

एकर परू ा नाि भइल- "सिआ ु संक्रांहि पण्ु य काल" आज स्नान, ध्यान, दान-पण्ु य के पसवि सदन ह। येह सदन िकई, बूट, जौ, िटर के सिुआ आ आि के सटकोरा के चटनी खाये के प्रचलन बा । आज पसहलका बेर 'सटकोरा 'के नेवान कइल जाला । सिआ ु भोजपरु रया क्षेि के सस्िा , ससु बस्िा शद्ध ु भोजन ह। एक बेर िैयार क के रखा जाई ि के िनो सदन ले खािे रही। सिुआ के बड़ाई कहाँ ले करी । ए बेरा जिाना बदल गइल। गैस के चल्ु हा आ गइल। खायक बनावल बड़ बाि नइखे। लेसकन जवना बेरा चइली, गोईठा, खरपाि, रहरी के खंटु से खायक बने ओ बेरा इहे सिुइया कािे आवे। सिुइया बेरा, कुबेरा आड़े के िइयार रहे। गिछी िें सिुआ बंर्नी आ खेिे नीकल गइनी। सिुआ खा के हीक भर पानी पी लेनी। डकार आ गइल। हो गइल घंटन के छुट्टी। सेहि​िंद। ना घीउ, ना

िेल, ना िरीचा, ना िसाला । ंच भोजन । गिी के दुपिररया िें । आि ! किे िान के नइखे । अपना परु खा के के िना बड़ाई कइल जाव। के िना सोचसिझ के ई संिांसि िें सिुआ चढावे आ खाये के बनवलस लोग। जाड़ के संिांसि िें गिी खािी गडु के लाई आ सिल ि गिी िें ठंढई खािी ' सिुआ '। जब नयका अनाज चाहे फल, फूल होला ि पसहले देविा के भोग लागे िब सभे नवानी करी। आि के बरोबरी कवनो फल ना। ना सियना-िरकारी कवनो बाि ना । सटकोरा के चटनी सपसाई आ जीभ चटकारि भोजन पेट िें । पकला के बाद अईसन रसगर िीठ ि कुछु ना। ि इहे सटकोरा के चटनी सिुआ साथे नेवानी होई । ि चले के सिआ ु आ चटक आि के चटनी खायेके। आपन परम्परा के ना भल ु ायेके । ई गवा करे के बाि ह। आज िनी ढेरे सिआ ु िइयार क के ,चटनी पीस के रखाव। खाईल जाई आ खीयावल जाई । `जय िो सिुआन ।

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सुगावा हपयासल िोई बैशाख में अहसत हमश्र

बह

न्दी िहीना के दस ु रा िहीना ह बैशाख । अनेक ग्रंथ आ परु ाण िें जईसे स्कन्दपरु ाण, पदिपरु ाण, िह्मपरु ाण िें बैशाख िहीना के िहयव प चरचा भईल बा। देवसषा नारद जी कहिानीं सक-

िंिों िें प्रणव,वक्षृ ों िें कल्पवक्षृ , र्ेनओ ु ं िें कािर्ेन,ु देविा लोसगन िें सवष्ण,ु नसदयों िें गंगा, रयनों िें कौस्िुभिसण,और र्ािुओ ं िें जेिरे सोना श्रेष्ठ होला, ओसहिरे िहीना िें बैशाख सबसे श्रेष्ठ ह। र्रि-करि के आँसख देखावि ए िहीना िें जलदान के अनघा फल सिलेला। एही िहीना के सक ु ु ल पच्छ िें सबष्णज ु ी के अविार, नर-नारायण अविार, परसरु ाि जी के अविार, नसृ संह जी आ हृदयग्रीव जी के भी अविार भईल रहे। ईहे िहीना सीिा िईया के जन्िोयसव के भी ह । िानल जाला सक एही िहीना िें सीिा जी र्रिी िें से परगट भईली।िेिाजुग के सरु​ु आि भी एही िहीना िे भईल। बैशाख के इहे पसवि​िा के देसख के बहुिे देव िंसदरन के के वाड़ी खुलेला। आ अनघा िहोयसव भी होला। बदरीनाथ जी के दआ ु र एही िहीना के अच्छै िृिीया के खुलेला। आ सक ु ु ल पच्छ िें भगवान जगरनाथ जी के रथजिरा भी सनकलेला । रार्ािार्व िंसदर िें बैशाखपूसणा िा िहोयसव िनावल जाला। बैशाख िें संिांसि प नहान के सबसे ढ़ेर फल सिलेला । 'सनणा य ससन्र्'ु िें बैशाख सक्ु ल पच्छ के िृिीया के गंगा जी िें नहान के हेिरे बखान भईल बा-

बैशाखे शक्ु लपक्षे िु िृिीयायां िथैव च। गंगािोये नर:स्नायवा िच्ु यिे सवा सकसल्वषै:।।

ननद के हाथ र्ईल जािा,गोड़ प सगरल जािा सक िनी िडुँ ेर प कटोरा िें पानी र् आवs।अपने कोठा नइखे चढ़े के , सिवंसा के िाना बा। 'सहानभु ूसि' जईसन शब्द ए भाव के ब्याख्या का कर पाई ? ई ि ऊ भाव ह,जे सबिें आपन सप्रय के रुप देखेला । 'सगु ना'अब खाली एगो सग्ु गा नइखे रसह गइल। ऊ ि ओ सपयासल सप्रय के परिीक बा जेके पानी सपया के दसु ल्हसनयां के संिोष हो जाई सक 'हिार पसि के सपयास सिट गईल होई'। पदिावि िें भी जायसी जी एही िरह के बरनन कईले बानी।रानी नागि​िी पसहले अपना दख ु के परगट करेलीभा बैशाख िपसन असि लागी। चोआ चीर चँदन भा आगी।। बासकर दख ु से ढ़ेर पसरेला। ु के ईहे खूबी ह सक ई सख नागि​िी के आपन दख ु बढ़ि बढ़ि पूरा प्रकृसि के अपना िें जोरर लेला। अब उनकर दख ु पूरा प्रकृसि के दख ु हो जाला। आगे देखींसरवर सहया घटि सनसि जाई। टूक टूक होइकै सबहराई।। 'टटका गूर आ बैशाख के छाँह' दनु ू के सवाद ऊहे जानीं जे प्रकृसि के अँचरा िें खेलले बा। बारहिासा िें रासर्का जी के सबयोग आ बैशाख के के िना नीिन भाव सिलेला देखीं सभेकै से का र्ीर र्रौ िेरी सजनी सबन िनिोहन देखा। बैशाख िास कदिन की छैं या आवि िे घनश्यािा।।

लोकसासहयय िें बैशाख के अलगे रुप आ रंग लऊके ला । पसि परदेस िें बा । बैशाख के िहीना ह । का जाने कवना हाल िें होई। सपयासल जान जाि होई। के हू पछ ु वईया होई सक ना! परदेस िें के के कर होला ? कवन उपाय करीं ? अनगिु े ओकरी सहया के दरद लोर बसनके सगरे लागिा। आ गीि बनिा सक-

अथक िेहनि करे वाला जीव गदहा के एगो नांव 'बैशाखनन्दन' भी ह । एकर कारन इहे बा सक सावन-भादो िें गदहा पेट भर घास चरर के भी देखेला सक अबहीं ि चारो ओर अनघा हररयरी बा । िने हि कुछु खाईए ना पवनीं अबहीं, आ दबु रा जाला । बासकर बैशाख िें जब हररयरी कि होला ि थोरहु चरर के गदहा के लागेला सक सगरो हिहीं चरनीं हं । आ िने िने खुस होके िोटा जाला । एहीसे गदहा बैशाख के 'िानस पिु ' कहाला।

सगु ना सपयासल होई बैशाख िें। ए ननदो िनी पसनया रखा दS।।

अगर इ कहाव सक बैशाख भाव के , भसि के आ भावना के िहीना ह। ि एकदि सही रही ।

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िथेली में समय ( भाग -३) किानी अब ले – चासिांग लाल घीरे-र्ीरे बढ़े लागल बाड़े l उनकर बाबूजी, द्वाररका प्रसाद आ बाबा, बाबू कासलका चरण लाल पढ़ाई-सलखाई के बहुि िहत्त्व देिा लोग l साथे-साथे उ लोग अपना सािासजक आ राजनीसिक गसिसवसर् िें भी बहुि सिय देिा लोग l उ दूनू आदिी, ख़ास कर के द्वाररका प्रसाद, डॉ राि िनोहर लोसहया आ जयप्रकाश नारायण के सािासजक ससद्धांि से प्रभासवि बाड़े l आजादी के बाद के सािासजक पररविा न के दौर बा, देश के आजादी सिलला के बाद राजा आ जिींदार लोग के सवस्थापन शहर के ओर िेजी से हो रहल बा l – अब आगे पढ़ीं ... 1964

चा

सिांग के सरकारी स्कूल िें दासखला हो गईल जहाँ के प्रर्ानाध्यापक ज्ञानदेव सबहारी अपना स्कूल आ सशक्षक लोग पर पूरा सनयंिण रखले रहले l गंभीर प्रसाद, रघरु ाि भारिी, बसहन जी आ संस्कृि के पंसडि जी जे घोड़ी पर आवस सबेरे ही स्कूल पर चल आवे लोग l िहाराजा इंद्रपरु के अिला लोग, बाज़ार के दक ु ानदार, सवक्टोररया अस्पिाल के डॉक्टर आ नसा आ किा चारी लोग आ बी.डी.ओ. ऑसफस के घर के लसड़कन के ज्ञानदेव सबहारी जी के नाि सनु के ओही स्कूल िें नाि सलखवावल जाव l बसहन जी सहंदी के सशसक्षका रहली जे लसड़कन के बहुि सनेह से सहंदी व्याकरण पढ़lवस आ सलखना सलखे के ससखावस l उ सवर्वा रहली उ उजर साड़ी पसहरले बगल के गाँव से इंद्रपरु बाज़ार के पसच्छि के छोर के िरफ से आवस l एक सदन चासिांग एगो लड़का के सपयल जूठ सगलास से पानी सपयि रहले ओ सिय उ उनका के बोला के सिझवली की एक ही सगलास से पानी पीयल स्वास्थ्य खासिर अच्छा ना ह l उनकर गोल चेहरा जेपर काला चश्िा रहे ऊपर से ि बहुि अलग-थलग सदखि रहे लेसकन वैर्व्य के सदहल सािासजक दरू ी आ कठोरिा के नीचे एक सहज सरल िनोहर िािृभाव भी पैदा करि रहे जवना के चलिे चासिां ग आ आउर लड़का लोग भी उनका से पढ़े के चाहे l एक दूरी बनल रहे लड़का आ सशक्षक के बीच िें जवन ओह अवस्था के लसड़कन िें अनशु ाससि पढ़ाई खासिर बहुि जरूरी रहे l बसहन जी अपना सर्ल कदि से, जे उनकर भाग्य उनका के देहले रहे, इंद्रपरु बाज़ार के बीच से पार करि अपना नौकरी पर जास, लसड़कन के पढ़ावे वाला र्न्य

काि करस जे उनका सजनगी के अन्हार गफ ु ा िें हजारों दीया के अंजोर पैदा कईलस आ ससदअन के सदहल दरद, सािासजक हठर्सिा िा आ अन्र्सविास से उनका के पूरा िरह से ि बाहर ना सनकललस लेसकन एक सम्िान के सजनगी सजए लायक क सदहलस l प्रार्ानाध्यापक ज्ञानदेव सबहारी अनशु ासनसप्रय और आदशा वादी सशक्षक रहले लसड़कन के छड़ी से पढावे िें सविास करस l उ गांर्ीजी के अनयु ायी रहले जे नेहरू जी के व्यसियव से बहुि प्रभासवि रहले l साथ ही उ नेिाजी सबु ास चन्द्र बोस के उयसाह आ शौया के बहुि बड़ा प्रशंसक रहले जेकरा से उ भारि िािा के अंग्रेजन के चंगल ु से बचावे के कोसशश कईले l ई संस्िरण सलखि घरी कसनष्क के इयाद परल की कईसे ज्ञानदेव सबहारी रोज सबु ह लसड़कन के स्कूल के आँगन िें प्राथा ना खासिर जिा करस आ सब लसड़का लोग कै प्टेन राि ससंह के सलखल आज़ाद सहन्द फ़ौज के गीि एक स्वर िें गावे: कदि कदि बढ़ाए जा ख़ुशी के गीि गाए जा ये सजंदगी है कौि की िू कौि पे लुटाए जा l कुछ साल पासहले छुट्टी िें भारि अईला के बाद कसनष्क अपना बीिार बाबूजी के देखे इंद्रपरु आईल रहले आ उ अपना बाबूजी से आपन परु नका स्कूल देखे के इच्छा प्रकट कईले आ स्कूल देखे गईले l स्कूल पहचाने िें ना आईल, स्कूल एकदि बदल गईल रहे l जब उ स्कूल िें घस ु ले ओह सिय उनका अवचेिन िें आज़ाद सहन्द फ़ौज के गीि गूज ं े लागल l ओिना साल सबिला के बाद भी कसनष्क के िन िें नेिाजी के राष्र-प्रेि के उदात्त भाव वैसही आईल जे ओह्बेरा के बचपन के बेरा रहे l एकर श्रेय प्रार्ानाध्यापक ज्ञानदेव सबहारी जी के जाि रहे l छोटा कद के आदिी, ज्ञानदेव सबहारी जी ओह्बेरा के गांर्ीवादी लोग जईसन हिेशा खद्दर के र्ोिी कुरिा आ बाजार िें बाके सबहारी िंसदर के लगे बईठल िोंसचयन के बनावल चप्पल पसहनस l पंसडि िंगल दत्त अईसन उनकरो िंहु पान खईला से हिेशा लाल रहो l स्कूल चलि घरी उ चासिांग के अपना घरे भेज के सदन के खाना आ इंद्रपरु बाजार भेज के बाबा छाप जाफरानी जदा​ा के साथ पान िंगवावस l ई बाि के चासिांग अपना िाई से छुपवाले रहले बाद िें एक सदन कहले,

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“िाँ हेडिास्टर साहेब हिरा के आपन सदन के खाना ले आवेके रोज अपना घरे भेजेनी l” गागी, चासिांग के िाई एक गंभीर आ होसशयार औरि रहली, उनका िने-िने सचंिा भईल लेसकन ऊपर से बीना जनवले कहली, “सवद्याथी के अपना गरू ु जी लोग के सेवा करेके चाहीं l” “लेसकन उनकर पोंिा लोग भी ओही स्कूल िें बा िबो हिरे के काहे भेजेनी l आ कबो-कबो नहईला के बाद हिरे से आपन खद्दर के र्ोिी फींच के देवार पर पसारे के कहेनी l खद्दर के र्ोिी सभन्गला के बाद के िना भारी हो जाला, हिार हाथ दख ु जाला l हि आज बाबा से ई बाि के जरूर कहब l” चासिां ग कहले l उनकर िाई ना चाहस की चासिांग के बाबा के एह वाकया के बारे िें जानकारी होखो l उ चासिांग के बाबा से सशकायि करेसे िना कईली आ स्नेह से उनका के गला लगावि उनका के ‘आईस-पाईस’ खेले जायेके कहली l गागी जानि रहली सक कुछ िास्टर साहेब लोग लसड़कन के बाजार भेज के कुछ-कुछ खाए-पीए के सािान िंगवावेला लोग l उनकर एह बाि से बहुि सचंिा ना भईल l आ उ एकरा बारे िें एह नजर से देखली की कभी-कभी िा बाप-िहिारी भी लसड़कन के बाजारे भेजिा सािान िन्गवावे खासिर l गागी रसोई घर िें बहुि व्यस्ि रहस आ अपना बढ़ होि बेटा लोग के देख के बहुि खशु होखस l उनका ई देख के अच्छा लागो की उनकर िसरु बाबू कासलका चरण लाल लसड़कन के पढाई पर बहुि ध्यान देिारें l उ सब लसड़कन के बल ु ा के सहसाब आ अंग्रेजी के सलखना ससखावस l खासकर के कं डा के कलि बना के आ ओसहिे G-nib खोंस के अंग्रेजी िें सन्ु दर अक्षर सलखे के ससखावस l सलखना के छोटा-छोटा चीज पर भी बहुि ध्यान देस जईसे सक E ,W ,G ,B आ A सलखे िें घिु ाव आ कब कहाँ से कईसे िोड़े के नीब के l एह बाि पर उ बहुि जोर देस की बीना नीब

उठवले ही एके बेर िें अक्षर सलखा जाये के चाहीं l बाबू कासलका चरण आदशा वादी आ पूणािावादी रहले l उनका िन िें द्वाररका के पढाई छोडला दू:ख कि ना भईल रहे l उ ना इंद्रपरु छोड़ सक्ले नना ओसहजा सख ु से रह सकले, उ पररसस्थसि के दास बनके रह गईले l ओकरा चलिे द्वाररका के आपन पढाई छोड़ के आवेके पडल, छोट भाईयन आउर बसहन के भसवष्य खासिर l उ बसकं घि हाई स्कूल िें सशक्षक के नोकरी करे लगले आ आपन पढ़े-सलखे के शौक सकिाब खरीद के आ ओकरा के पढके पूरा करस l ठाकुर जी के घर िें उ आपन सकिाब-घर बनवले जेसहिे सासहसययक, राजसनसिक आ र्ासिा क सकिाब के राखे लगले उनका िन िें कहीं ना कहीं इहो बाि रहे की जवन चीज उनका पररसस्थसि वश जीवन से ना सिल सकल उ चीज उनका संिान के जरूर सिले के चाहीं l आयि-सनयंसि​ि, पररष्कृि, ससु वज्ञ आ जे सिल जाय ओसहसे संिोष करेवाला, सािंिी वािावरण िें पालनपोषण भईला के वावजूद बाबू कासलका चरण लाल उदारिना प्रकृसि के इंसान रहले l सनलहा साहेबन के साथे बहुि किे उसिर िें नोकरी कईला के बाद १९३४ के भूकंप के पसहले ही उ इंद्रपरु राज िें नोकरी करे आ गईल रहले l छोटा आ गठल कद-काठी के उ अपना जवानी िें बहुि अच्छा घड़ु सवार रहले l उनका ठीक उल्टा उनकर बड़का बेटा द्वाररका रहले जे इंद्रपरु बाजार के बदलि सािासजक पररवेश िें बढ़ल रहले, जे ओह सिय के सिाजवादी सवचारर्ारा से बहुि प्रभासवि रहले l एक िेर्ावी छाि जे आगे ना पढ़ सकले आ बाद िें जयप्रकाश नारायण के कहला पर स्कूल के नोकरी छोड़ के व्यवसाय करे लगले आ बहुि यश आ पईसा किईले लेसकन बाबू कासलका चरण लाल के िन के सटस के ख़ि​ि ना कर सकले, बाबू कासलका चरण लाल के िन के िलाल उनकर लाल कि ना कर सकले l उनका िन िें द्वाररका के सवद्विा खासिर इज्जि रहे लेसकन उनका व्यवसाय खासिर ना l इंद्रपरु राज के एक िहयवपूणा आदिी के बेटा व्यवसाय करी उ सपना िें भी ना सोचले रहले l (क्रि​ि:)

अत्रनल प्रसाद मूलिःहथुआ, बबहार के रहेवाला हयीं । अंग्रेजी साबहत्य में शोि । साबहत्य अकादमी खाबिर यशपाल के ‘झूठा सच’ के कु छ अंशन के अंग्रेजी में अनुवाद । भारि, बमबडल ईस्ट, अमेररका, चाइना, कनाडा अउरी ऑबस्िया में आयोबजि अन्िराजष्ट्रीय सम्मेलनन में पेपर प्रेजेंटेशन अउरी कबविा पाठ ।अंग्रेजी, हहंदी अउरी भोजपुरी में लेखन । यमन, लीबबया, पटना अउरी मुंबई के बवश्वबवद्यालयन में अध्यापन । सऊदी अरे बबया में अंग्रेजी भाषा आ साबहत्य के प्रोिे सर बानी । © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 83


ब 2014-15 राष्रीय सफल्ि परु स्कार के घोषणा होि रहे आ लगभग हर िख्ु य भारिीय भाषा के सफल्िन के परु स्कार सिलि रहे ि भोजपरु रयन के चेहरा प एगो बाि साफ साफ लउकि रहे सक का कवनो भोजपरु ी सफल्ि के राष्रीय परु स्कार सिली ? सन 2008-09 िे एगो भोजपरु ी सफल्ि के परु स्कार सिलल रहे बासक कही ना कं ही भोजपरु रयन के िन िे ई लालसा रहे सक कवनो भोजपरु ी सफल्ि के भी राष्रीय सफल्ि के परु स्कार सिलो । िब िक िालूि परल भोजपरु ी सफल्ि " गज ंु ा " के बारे िे । एह सफल्ि के राष्रीय परु स्कार के " स्पेशल िेंशन" ( Special Mention ) श्रेणी िे परु स्कार सिलल बा । कुछ जानकारी सफल्ि " गंज ु ा " के बारे िे सफल्ि - गंज ु ा ( लघु सफल्ि ) सनदेशक - िणृ ाल देव कलाकार - इशू कुिारी , संजना शाह , यशवद्धा न ससंह , कुशाही गांव के लोग सबहार के एगो दूर छोट गांव के असि सपछड़ा वगा से एगो लईकी गंज ु ा के कहानी ह ई सफल्ि । गंज ु ा अपना िाई बाबूजी

के संगे रहेली , गंज ु ा के िाई - बाबज ु ी के लगे अिना पईसा नईखे सक गंज ु ा के स्कुल िे नाव सलखवा सकस लो । असल िे ई सफल्ि गंज ु ा के स्कुल िे पढे खासि कईल संघषा के कहानी ह। सफल्ि के परु ा शसु टंग सबहार के रोहिास सजला के कुशाही गांव िे भईल बा । एह सफल्ि के िख्ु य कलाकार गंज ु ा ( इशू कुिारी ) सकलकारी बाल भवन के छािा हई । संजना शाह जी ( सफल्ि के गंज ु ा के िाई ) आ यशवद्धा न ससंह ( सफल्ि िे गंज ु ा के बाबूजी ) पटना के ही रंगकिी ह लो । सह-कलाकार लो िे कुछ लोग कुशाही गांव के भी बा । सनदेशक िणृ ाल देव सबहार , पटना के रहे वाला हई , एह सफल्ि से पसहले िणृ ाल देव कुछ सहन्दी फीचर सफल्ि खासि काि कईले बानी , अनभु सु ि कश्यप आ अनरु ाग कश्यप के कुछ सफल्िन खासि काि कईले बानी , संगे संगे िृणाल देव , भोजपरु ी फीचर सफल्ि " नया पिा " के अससस्टेंट डाईरेक्टर रहनी ।

- नबीन कुमार, दुबई

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पानी

झंका

खेि खेि पर पानी सलख दीं सर पर छप्पर छानी सलख दीं

अब सचरई चनु िनु के गीि सनु ािे नइखे नेह देह िें अब के हू सउनािे नइखे सहनषीलिा वाला षब्द ओराइल जािा अिररि बोली िें अब जहर घोराइल जािा सँचकी बसिया के करो िसनक सोहिे नइखे पीपर के हु होिे नइखे बरगद सगरी छोड़के िुलसी जाए लागली गउवाँ नगरी चनन के बन अब किही लउकािे नइखे र्रि भइल जािा कुल्ही काँटा बबरु ी के जाि-पाि िें अझरु ाइल सपना षबरी के भेदभाव के भीि कबो भहरािे नइखे आँखे आँखे लोग भरल बा हंसी सबलाइल अइसन आजादी सक सबकर िन िउराइल कबो सिरंगा हुलस हुलस लहरािे नइखे

जँहवा भूख भेंटाय ओकरा िहुँ पर दाना पानी सलख दीं िहल दू िहला के हू ला हिरा ला टाट पलानी सलख दीं राि अिावस के अँसखया के पूनि वाला चानी सलख दीं लिहर र्रि हवे परिारथ दर्ीसच के कुरबानी सलख दीं अिरख इरखा घनु ि ओकर असन्ि​ि राि कहानी सलख दीं

गजल

सूरज बन के जीहीं सबका अंगना भोर सहु ानी सलख दीं

झूठ बड़ा बररयार भइल सच्चाई के हार भइल भ्रष्टाचार के डेंगी िें बयिानी पिवार भइल

िस्िाना फक्कड़फकीर जस सगरे उनकर बानी सलख दीं

गोरख प्रसाद मस्िाना भोजपुरी साबहत्य मे स्थाबपि एगो बडहन नाव डा. गोरख प्रसाद 'मस्िाना' बेबिया चम्पारण से । इँ हा के भोजपुरी भाषा आ साबहत्य खाबि काव्य संग्रह , खंड काव्य , लघु कथा संग्रह के कई गो फकिाब बलखले बानी जवना मे से कई गो लेख आ रचना के इग्नू आ कई गो बवश्वबवद्यालय के भोजपुरी के पाठ्यक्रम मे शाबमल कईल गईल बा । भोजपुरी भाषा आ साबहत्य खाबिर इँ हा के सि​ि प्रयत्नशील बानी । एह घरी ईहँ ा के फदल्ली मे बानी ।

© आखर ● अप्रैल, 2015 ● 85

र्न के र्ाही िें िप के बेली भी िलवार भइल जे करे के आपन कहनी बा, उहे बटिार भइल कलयगु िें नािा ररस्िा बालू के दीवार भइल नेसहया के सबगहा कट्ठा र्रू से र्रू की चार भइल शादी सबआह आजू के बझ ु ीं सक बयपार भइल िबही नू ‘िस्िाना’ के सपना िारे िार भइल


पाठक कोना

राउर बात जय हो भोजपरु ी... एगो िीसडया छाि के रूप िें देशदसु नया भर के नािी-सगरािी पि-पसिकन के पढ़ल पेशेवर जरूरि बा. हि हर भाषा िें पि-पसिका देखली आ कुछ पढ़बो कइली, बासक अइसन संिुसष्ट ना सिलल जइसन 'आखर' के पढ़ले से सिलल हs... संिुसष्ट िाने, पसहला बेर आपन िािृभाषा भोजपरु ी िें कौनों पसिका पढ़ली हs, जइसे हि अपने सिाज, गाँव आ पररवार िें पहुचँ गइल होखीं। हिके घर से एिना दूर रहले के बाद भी आखर के लेख, सवचार-सविशा खालीपन िहसूस ना होखे देला अपने भाषा आ संस्कृसि से परु जोर बान्ह के रखेला। परदेस िें भी रह के अइसन लागि बा की हि घर के अंगनाई िें बइठल बानी. सलाि बा आखर के टीि के आ एह िंच के जहाँ भोजपरु रया चौपाल जि रहल बा ।  पंकज प्रजापहि, िधाश , ि​िाराष्र अगर कौनो सर्ु ार के गंज ु ाईस बा िs उ आि नागररक ही कर सके ला. यवु ा पीढ़ी सािने आके एकरा पर ध्यान दे सके ला. हि खदु एगो गैर सरकारी संगठन से सनहोरा कईले बानी सक अपना िैसनफे स्टो िें डालो एह िद्दु ा के जवन सक भोजपरु रया क्षेि िें अग्रसर बा. अइसने कुछ आदरसनये लोग एगो संगठन के िाध्यि से आपन आवाज उठावे के कोसशश करिा ओकर नाि हवे "आखर". काफी हद िक सफलिा के ओर जा रहल बा लेसकन चनु ौिी अभी काफी बा ।  गौरि हसंि, िेल्लोर , िहिलनाडु आखर के फगआ ु सवशेषांक , गजब लागल , हर लेख एक से बसढ के एक आ बररआर रहल , सप्रंट कब आई , िोबाईल प पढे िे उकुझावन बरिा - सनु ील सिवारी , बसलया  सुनील पाण्डेय, बहलया , उत्तर प्रदेि

होखे .। ए पसिका के पढे खासिर अपना ब्यस्ि सेड्यूल से सिय चोरावे के परिा.....उम्दा आलेख .......  िहिकांन्ि पाण्डेय , ग्रे र नोएडा आखर सब भोजपरु रया संघसिया लोग से हि कहिानी की रउओ पढ़ीं आखर के िाससक पसिका। बहुि नीक लागल।

 गुडएडू कुिार िाि, चेन्नई , िहिलनाडु बेजोड़ एक एक लेख. सदन पर सदन सभु ेख सनु ार होखी िाई से प्राथा ना बा हिर सभी से सनहोरा बा की आखर के िाध्यि से दहेज़ प्रथा जइसन कुरीसि के भी सबरोर् बढ़ावल जाउ भले हि लेखक ना हैं बाकी ए ह पे सलखे के प्रयास करब  राजीि हिश्रा, हदल्ली आज पसिका का अंक ऑनलाइन देखा। वाकई बेहद खूबसूरिी से आपने सािग्री का चयन सकया है। भोजपरु ी बेल्ट आज़िगढ़ से जड़ु े होने के कारण भोजपरु ी के प्रसि आयिीयिा स्वाभासवक है। भोजपरु ी को बोली से भाषा िक प्रसिसष्ठि करने िें आपकी पसिका का योगदान सनसंदहे िहयवपूणा रहेगा। बहुि-बहुि बर्ाई। यसद हिारे सहंदी िें सलखे आलेखों या रचनाओं को आप भोजपरु ी िें पररवसिा ि कर सकें , िो रचनाएँ भी भेजी जा सकिी हैं। कृष्ण कुिार हसंि, जोधपुर िेल सिलला ढेर सदन हो गईल रहे परीक्षा ि कभी िसबयि ख़राब सलंक खोलके देखे िें ढेर सदन हो गईल भल ु ा हू ँ गईल रहनी ... एगो फॉिा डाले खासिर खोजि सिय आखर पे अंसखया दबु ारा गईल ... पढ़ल चालू भईल आउर पूरा आँख लैपटॉप पर नज़र बनइल रहल आसखर िक .. भासव्बहल हो गईनी .. भोजपरु ी सासहयय के उयथान के बीड़ा उयथावे वाला आखर के पूरा िंडली के सार्वु ाद ।

भोजपरु ी के सिद्ध ृ आ सशि बनावे खासिर आखर के प्रयास सराहनीय बा ......."टीि आखर" के प्रयास सफल © आखर ● अप्रैल, 2015 ● 86

गोहिंद हिश्र, िाराणसी


लेखक कोना

वनहोरा

भो जपरु ी सासहयय खासि एगो डेग हिनी के बढ़ल, अब एगो डेग रउआ भी हिनी के साथे बढ़ायीं इहे सनहोरा बा | कसविा, गीि, कहानी, व्यंग्य, इसिहास, सवज्ञान जईसन सवषय पे भोजपरु ी िें सलखीं | आखर नवका सासहययकार लोगन के एक िंच दे रहल बा | आपन रचना के हिनी िक पहुचँ ायीं, राउर बाि सनु े आ पढ़े खासिर भोजपरु रया सिाज आँख सबछवले बा | असगला अंक ( िई -2015 ) खासि चयसनि सवषय बा , " िािृ सदवस , िजदूर भोजपरु ी आ पलायन , भोजपरु ी गीि संगीि ससनेिा के विा िान स्वरुप ,खेिी-बारी सकसान आ प्रकृसि के िार से उपजल संकट" जईसन सवषय प भा एह सवषयन के कें द्र िे रासख के सलखल रचना ( लेख , कहानी , व्यंग्य , कसविा , गीि आसद ) के भेजी ।

ध्यान रहे राउर रचना िें कवनो असंसदीय आ अश्लील भाषा भा उदाहरण ना होखे |

राउर रचना के स्वीकृसि के सूचना िेल भा िैसेज से सदयाई |

रचना के साथे आपन पासपोटा साइज के फोटो आ आपन पररचय (नाि, पिा, काया आ आपन प्रकासशि सकिाबन के बारे िें यसद होखे ि) जरुर भेजीं |

रचना भेजे के पिा बाaakharbhojpuri@gmail.com

पसिका खासिर राउर हाथ के खींचल फोटोग्राफ, राउर बनावल रेखासचि, काटूान जे सवसभन्न सवषय के अनरू ु प होखे, उहो भेजीं |

छोट-छोट लईकन के कलाकारी के भी प्रोयसासहि करे खासिर स्थान सदयाई | ओहनी के सलखल रचना भा सचि भेजीं |

राउर बाि सनु े आ पढ़े खासिर भोजपरु रया सिाज आँख सबछवले बा । रचना भेजे के कुछ जरुरी सनयि 

आपन िौसलक रचना यसु नकोड फॉन्ट/कृसिदेव फॉन्ट िें टाइप करके भेजीं |

रचना भेजे से पसहले कि से कि एक बार अपने से प्रूफ रीसडंग जरुर कर लीं | कौिा, हलंि, पूणासवराि पे सवशेष ध्यान दीं | रचना िें डॉट के जगहा ससफा पूणासवराि राखीं |

© आखर ● अप्रैल, 2015 ● 87



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