Aakhar Bhojpuri e-magazine

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मासिक भोजपुरी ई-पत्रिका

2015 मई, अंक 4

एगो डेग भोजपरु ी साहित्य खाहि

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© आखर ● मई, 2015 ● 1

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प्रकािन / संपादन िंडल : संजय ससंह , ससवान देवेंद्र नाथ सिवारी , वर्ा​ा शसश रंजन सिश्र , नई सदल्ली नबीन कु िार , दबु ई

िकनीकी -एहडह ंग, कम्पोहजंग असिनी रूद्र , न्यू यॉका असनिेष कु िार विा​ा , अबू र्ाबी छाया हचत्र सियोग स्वयम्बरा बक्सी पी. राज ससंह

आखर पिा ग्राि पोस्ट- पंजवार (पोखरी) ससवान , सबहार 841509 क़ानूनी सलािकार लसलिेिर नाथ सिवारी , पटना

आखर

बड़प्पन

प्रवािी परु बी

भोजपरु ी सिने मा आ भोजपरु ी दक्षिण के फिल्म ( तल ु नात्मक अध्ययन )

बतकूचन

चौधरी कन्है या प्रिाद सिंह

वर्ष: 2015 अंक 4 मई । ई - पत्रिका सब पद अिैिहनक बा ।

जौहर शाफियाबादी

िौरभ पाण्डेय

मनोरमा सिंह

खोईंछा

शसश भष ू ण

माई रे माई राज मोहन

पराि​िश िंडल प्रभाष सिश्र , नाससक अिुल कु िार राय , बनारस र्नंजय सिवारी , िुंबई चंदन ससंह , पटना

िौ िाल के भइल भोजपरु ी पिकाररता पंकज भारद्वाज

परदेि िे पाती ज्योत्िना प्रिाद

प्रकाहि​ि रचना लेखक के आपन ि आ ई जरुरी नइखे की संपादक के हिचार लेखक के हिचार से हिले । लेख पे हि​िाद के हजिेदारी लेखक के बा । सुर्ीर पाण्डेय , दबु ई पंसडि राजीव , फ़रीदाबाद असजि सिवारी , सदल्ली बृज सकशोर सिवारी , सोनभद्र

संपका : आपन िौसलक रचना , लेख ,कसविा , फोटो , सवचार आखर के ईिेल-आईडी aakharbhojpuri@gmail.com पे भेज सके नीं । सुसवर्ा खासिर रचना सहंदी यूसनकोड िें ही भेजीं । िुख्य पृष्ठ छाया/आिरण : असि​ि सिश्र , असनिेष कु िार विा​ा , असिनी रूद्र रेखा हचत्र : शसश रंजन सिश्र www.aakhar.com | Twitter: @aakharbhojpuri © आखर ● मई , 2015 |●facebook/Aakhar 2


आखर के फुलवारी आपन बाि : बिकूचन : प्रिासी पुरबी : हबदेहसया लोक संस्कृहि, हगरहिह या आ पलायन : िाई रे िाई : परदेस से पािी : गांि के िालि आ पलायन : जिाब (लघुकथा) : भोजपुरी के प्रिासन संस्कृहि : कहि​िा : कलकि​िा िें हपयिा बारे लाल ेन : िािृ हदिस : ओरिन : िाला ल का रे : िीसरा िोचाश : बंगाल सूबा िें िोरा के व्यापार : सोनिा कारन अइलो राि एिी रे : भारिीय डायस्पोरा : भाषाई गहि​िीलिा : : निका च्चा : संिदे ना के जोि जगािे िाला:चौधरी कन्िैया प्रसाद जी : हदल जब बच्चा था जी भाग-4 : भगिान जब चिीिें सुधार दीिें :

आखर जिाि सौरभ पाण्डेय जौिर िाहियाबादी देिेंद्र नाथ हि​िारी राज िोिन ज्योत्सना प्रसाद सुनील पाण्डेय सि​िा सिाय िन्ु ना पाण्डेय राजीि उपाध्याय िहि रंजन हिश्र नुरैन अंसारी गोरख िस्िाना हृहषके ि चिुिेदी डा॰ उिेि जी ओझा पी. राज हसंि संिोष कुिार डा॰ िन्ु ना लाल गप्तु ा आ डा॰ राजीि रंजन सरोज हसंि प्रिोद हि​िारी बज ृ हकिोर हि​िारी िंग इनायिपुरी

4 5 8 8 13 14 15 16 17 21 22 24 24 25 26 29 32 36 -42 44 48 50

गांधी जी के ू ल सपना : हनठाि हचंिन : कहि​िा : खोई ंछा : दिेज : अनाथालय : आहि रे बलि हचरई (अंहि​ि भाग) : जंगल राज (हबदेहसया के पािी) : दुहनया किा​ाँ से किा​ाँ जा रिल बा : बाल परदेसी : िाई हदिस : रंगनू यात्रा संस्िरण : कुक्कुरजाि (लघुकथा) : लड़ाइयो िें जूझे हकसानिे के बे ा : किानी अउरी किानी के नायक : सौ साल के भइल भोजपुरी पत्रकाररिा : िथेली िें सिय (भाग 4) : भारि िें हकसान आत्ि​ित्या के िूल िजि : भोजपुरी हसनेिा आ दहिण के हिल्ि : भोजपुरी हसनेिा के ि​िशिान हस्थहि आ भहिष्य : भोजपुरी गा​ाँि-सिाज के धरोिर ’गंगा िइया ... ’ : राउर बाि : हनिोरा :

पीयूष’हि​िेदी भारि डा॰ एस॰ के ॰ हसंि चंद्रभूषण पाण्डेय िहि भूषण राजीि हिश्र स्िहस्ि आनयन अहसि कुिार हिश्र हनराला रीिा हसन्िा प्रभाष हिश्र अहसि हिश्र आिीष राय गणेि जी बागी अिुल कुिार राय हिंध्य हिश्र पंकज भारिाज अहनल प्रसाद गौरि हसंि िनोरिा हसंि अहभषेक भोजपरु रया धीरेन्द्र कुिार राय आखर के ओर से आखर के ओर से

52 53 54 55 57 58 60 63 64 65 67 68 72 73 74 76 79 82 84 87 89 93 94


आखर चौपाल

कि

आपन बात

सान के करेजा जब जड़ु ा जाला ि देश के अंगना दआ ु र चिक उठेला । बैशाख के बाली से सनकलल अनाज के गोटाईल दाना देख के सकसान के सहया हसषा ि हो जाला । जेठ के सम्भासवि िाप िें भी बसंि लउके लागेला । साल भर के योजना क्षन भर िें बन जाला । बसु चया के नया फ्रॉक से लेके बाबूजी के चश्िा के टूटल फरेि िक के सपना रास के बढ़ि अम्बार के साथे जवान होि जाला । लेसकन इहे सपना जब टूटेला ि अन्नदािा के वजूद सि​िरा जाला । ओकरा सविास ना होखे सक एक साल से बनु ल सपना सा​ाँच होखे के करीब आके दगा दे जाई । एह साल प्रकृ सि जवना बेरहिी से सकसानन के आाँख के सपना सिनलSससयS उ देख के सनदा यिा के भी दया आ जाई । एजगु ा कई िरह के सवाल खड़ा कईल जा रहल बा । कुि लोग एकरा के प्राकृ सिक प्रसिशोर् के रुप िें देख रहल बा ि कुि लोग सरकारी िंत्र के किी के हवाला दे रहल बा । कारण एगो नईखे हो सकि बासकर पररणाि एकही बा – सकसानन के आाँख से बहि अनवरि लोर । भोजपरु रया सिाज के असर्कांश आाँख इहे लोर सलहले आज िझर्ार िें खड़ा बा । एकटक देख रहल बा – सिाज के ओर, सरकार के ओर आ भगवान के ओर भी । उम्िीद के सकरण फूटि सदखाई नइखे देि बासकर आस सजयिा आजओ ु ।

िाक्सा कहले रहे सक चेिना के घर सदिाग ह । सदिाग िबे काि करी जब आदिी के पेट भरल रही । भोजपरु रया सिाज अपना िाटी के लेके हिेशा चैिन्य रहल बा । चेिना सजयि रहो एकरा खासिर अपना श्रि के सार्न बना के आपन पेट भरले बा । कुि ि प्राकृ सिक संसार्नन के अभाव आ कुि सरकारी ईच्िाशसि के किी के चलिे रोजी रोजगार के िलाश िें िाटी से पलायन करे खासिर िजबूर भईल बा यवु ा ऊजा​ा । पलायन के ददा के सजयले बा हिनी के सिाज । बासकर बररसन िक संघषा के भट्ठी िें िप के जब सािने आईल बा ि िॉरीशस के खबु सरु िी लेके । आर्सु नकिा के चकाचौंर् से ओकर आाँख नईखे चौंसर्याईल । आजओ ु ओजगु ा के शीषा पद पर सवराजिान भोजपरु रया अपना बसहन के देखिे पि ु े ला- “का बसहना ! कईसन बासड़स?’’ कवनो सिाज िें पलायन पररवार आ सिाज के बनावट के िरु देला । भोजपरु रया सिाज पलायन के असभशाप के भी सृजन के आर्ार बना सलहलस । सबरसहन के वेदना , सपया के इंिजार आ करेजा के हूक से सनकलल आह के संगीि के सरु िें बांर् के हिेशा खासिर सहेज सलहलस भोजपरु रया सिाज -

पलक झपकावे के जादू िाईये के गोदी िें होला । हिनी के असस्ित्व िाई से, पह्चान िाई से, स्वासभिान िाई से आ संस्कार से भरल गगरी के निी भी िाईये से बा । आर्सु नक सवकास के सवसंगसि र्ीरे र्ीरे िाई आ बचवन के बीचे खाई बढ़ा रहल बा । िाई के ि​ि​िा के कली पसु पपि होखे के पसहले िरु झा जािा । वात्सल्य के कोंढ़ी िें िहत्वाकांक्षा के जहर सिा रहल बा । ई सब कुि भावी दसु नया खासिर ठीक नइखे । एक सदन िाई सदवस िना सदहला से बहुि कुि ना बदली । जिाना के चनु ौिी एक िरफ आ भावी पीढ़ी के सनिा​ा ण एक िरफ । भावी पीढ़ी के सिाजीकरण िें किी रह जाई ि उ परेशानी के सािने चट्टान बनके खाड़ नइखे रह सकि । एह दौर के चनु ौसियन के दबाव एिना ि​ि हो जाव सक िाई के वात्सल्य आ ि​ि​िा के िा​ाँह से भावी पीढ़ी वंसचि हो जाव । कवनो सिाज के संस्कृ सि ओह सिाज के गीि संगीि िें रचे बसेला । भोजपरु ी के प्रचसलि गीि संगीि एकर अपवाद बा । एगो जिाना रहे जब सभखारी ठाकुर आ िहेंदर सिससर के गीि सनु े खासिर जटु ल लोगन के जिावड़ा देख के सथयेटर उद्योग के ससंहासन डोल गईल रहे । सासहत्य आ संगीि जेउाँवा संिान खानी भोजपरु ी िाई के सेवा करस । के हू कि ना रहे । असर्का करे के होड़ रहे । आज उहो दौर आईल बा जब संगीि भोजपरु ी िाई के सम्िान िार िार करे पर उिर आइल बा । सासहत्य सकपकाईल िहसस ु करिा । आदिी के दसि​ि वासना के सावा जसनक कईल जािा लोक संगीि के नाि पर । गीिकार, संगीिकार, असभनेिा, असभनेत्री, गायक आ गासयका सन के एगो परु ा गटु भोजपरु ी के लगु ा लटु े पर लागल बा । ई संक्रिण के बेरा बा हिनी खासिर । अगर हसथयार डाल सदयाई ि संस्कृ सि के लोप हो जाई । भोजपरु रया हसथयार ना डाले । संकट के सोझा सहिालय खानी खाड़ हो जाला । आज फे रु आपन भसवपय सरु सक्षि राखे खासिर अिीि से प्रेरणा लेबे के जरुरि बा । दू गो उपाय बा । खराब के सवरोर् करीं आ नीिन सवकल्प परोसीं । पानी के बल ु बल ु ा स्थायी ना होला । स्थासयत्व ि सनिा ल िरंग िें ही होला । जवना नेह िोह से रउआ सभे आखर के अंगीकार कईले बानी उ सववेचना से परे बा । आशीवा​ा द आ सिथा न के हाथ हिनी के कपारे रही एसह उम्िीद आ सविास के साथे आखर के ई अंक रउआ सभे के सोझा बा । अपना सवचार आ सझ ु ाव से नवाजि रहब एसह कािना के साथेआखर पररिार

रेसलया ना बैरी, जहसजया ना बैरी, पईसवे बैरी ना, सपया के ले जाला जे सबदेशवा उ पईसवे बैरी ना ! “िाई” शब्द उचरिे हिनी के नस नस िें वात्सल्य आ ि​ि​िा के सागर उिड़े लागेला । सदन भर के थकल गोड़ के िारु िें आस्िे से एक अंजरु ी िेल िाप के नरि नरि हाथ के अंगरु ी से दरद भगावे के दवाई िाईये के लगे होला । बररसन से सनंद के बाट जोहि सख ु ल आाँसखन के

© आखर ● मई , 2015 ● 4


बतकूचन

बतकूचन...

इसाख-जेठ िें घािा-घािा, गा​ाँवें-गा​ाँवें, थहराि देही, बथि िरुए घूि​ि बाबूजी लोगन के के ना देखले होई ? जवने दअ ु रा बाबूजी के ठेकाना िीलो, उहवा​ाँ उन्हकर िहुाँ ना आाँसख बोले लागे आ जवाब उन्हकर कान ना, ईहे अाँसखया जोहे ! उनका ओह आाँसखन िें लोर के निी ना, लहकि करेजा के र्आ ु ाँ होि रहे । कवना घरे ससउजी नइखन ? कवना घरे गौरा नइखी ? खलसा जाने आ जोहे के काि बा । टीपन भर िीसल जाओ । आ, घर-पररवार के बेवसाँ िया उलार होखे के नौबि जसन आओ, बस ! "लाज रसखहऽ ए बसेसर बाबा ! बसु चया सनकहा दअ ु रा लासग जाओ !" ईहे ऊ उिेद हऽ के कल ना र्रे देवे । बाबूजी गा​ाँवें-गा​ाँवें, घािा-घािा.. "कवनो नीिन लइका होखे ि रउओ ना​ाँव बिाइब, ए भाईजी.." करि घूिसु । एह बाबूजी लोगन के बऽल होि रही िाई । िाई, जे अक्सरहा आपन लइकाई ं के सबिला, आ गवना भइला का बाद से कुहुकल भल ु ा जासु । सोचलहू ाँ प ना सोचाये जे ई िाइयो कबो बसु चया होसखहें । एह अबोली िहिारी के िन िें हर िन, हर घड़ी आपन सजसनगी के भूि आ आपन ’करेजा’ के भसवस्य के बीच हड़बोंग िचल करे । िब के अचके िें बड़ भइल ऊ बुसचया, िाने िाई, आपन बसु चया के बड़ भइल देखे ि एकबेररये ि​िाि बोल परे, ".. देविाऽ, एही लगसनये कुसल्ह ओररया जाइि.. जवना घर के ई लि​िी हई, बुची ओही दअ ु रा जास.ु ." ई सोच पारम्पररक होखल करे, जे एक पीढ़ी से दोसर पीढ़ी िें ससरि आवे । अपना बचु ी से लागल उिेद, आसासनरासा, उिाह-सबिोह के जवन लहररयन िें सहलोर लेि ई

िाई सकदि भइल रहि रही, ओही लहररयन से िर भइल बाबूजी आपन बेंवि के िउलि, ि कबो नकारि, गा​ाँवें-गा​ाँव,ें घािा-घािा भिु लाइल सफरसु । आजओ ु ई बाबूजी गा​ाँवें-जवारे लउक जइहें । िाई किहू ाँ के काहें ना होखसु अक्सरहा​ाँ ई ना चाहसु जे उन्हकर ससरु ारर के बेिी अस लोग ओकरा बसु चयो के ससरु ारी होखो । अइसन काहें ? एहसे जे एह िाई के िन िें घरे-पररवार ना, बलुक सउाँसे सिाज से पूिे लाएक जाने कािना-कािना सवाल घिु री पारि रहल करे । जवना िरद के अङुरी एह िाई के ओकर बाबूजी र्रा देले रहलन, ओह िरद से भला अब कवन सवाल आ कवन ससकायि ? बासकर, घर-पररवार के बेिी आ लोगन प ि िन िारहीं के पारल बड़ु ए । कवनो एगो बाि होखे ि कहल जाउ । भल ु इले सदन ना भल ु ाला । का बाबूजी के ई कुसल्ह िब ना लउकल रहे ? उहा​ाँ का बस लइका प चसल गइल रहनीं । "लइका नरि-सभु ाऊ हऽ..", बाबूजी कहस,ु "कलकात्ता िें सकिाबी के दोकानी प बा.. हुनरिन्द हऽ.. पािा आपनहू ाँ दोकान कऽ लीही.. " कािगार-िजूर एगो बाप अपना खोज-खबर प एह से ढेर कुिऊ कसहयो ना पावे । से एकरा आगा कवनो बसियो पि ु ल ना बने । जोहल, साँकारल, ठानल कुसल्ह किना िें पोसाई, कइसे पोसाई, आसक ना पोसाई, जइसन िलफि सवालन प िब कवनो जवाब ना िीलो । जवार भर िें बेटवन के बाबू लोग ’सिय-घड़ी’ आ ’लगन’ नसजकािे गंगाजी के सोंस अस बूड़ा िरले रही । भा, घसड़यार अस िहुाँ बवले पटाइल रही । सा​ाँसहू ाँ ना घींची लोग । एगो नवका पररवार के बसे के सघु ड़ी िें सिाज के हई कवन बेजाई ं सरूप लउके ? काहें अहंकार आ बेसरिी के पाटन के बीच बेवहार आ नरिई के हइसन

सौरभ पाण्डेय सौरभ पाण्डेय जी के पैत्रिकभूत्रि उत्तरप्रदेश के बत्रिया जनपद के द्वाबा पररक्षेि हऽ । रउआ पचीस बरीस से सपररवार इिाहाबाद िें बानीं । त्रपछिा बाइस बरीस से राष्ट्रीय स्तर के अिग-अिग कॉपोरे ट इकाई िें काययरत रहि बानी । आजकाि के न्द्रीय सरकार के पररयोजना आ स्कीि के संचािन खात्रतर एगो व्यावसात्रयक इकाई िें नेशनि-हेड के पद पर काययरत बानी । परों को खोिते हुए (सम्पादन), इकत्रिया​ाँ जेबी से (काव्यसंग्रह), छन्द्द-िञ्जरी (छन्द्द-त्रवधान) ना​ाँव से राउर ककताब प्रकात्रशत हो चुकि बाडी स । सात्रहत्य के िगभग हर त्रवधा िें रउआ रचनारत बानीं आ त्रहन्द्दी आ भोजपुरी दूनो भासा िें सिान रूप से रचनाकिय जारी बा । सात्रहत्रत्यक संत्रिप्तता के दोसर क्षेि बा - सदस्य प्रबन्द्धन सिूह ई-पत्रिका,”ओपनबुक्सऑनिाइन डॉट कॉि’ ; सदस्य परािशयदािी िण्डि िैिात्रसक पत्रिका ’त्रवश्वगाथा’ । © आखर ● मई, 2015 ● 5


बतकूचन सपसाई ? अबसहयों ले ई बेढंङई खूबे चलल आ रहल बा, आ सनकहे लउके ला । ना नािा के कवनो िाने, ना सम्बन्र् के कवनो ि​िलब, ना सनहोरा के किहीं सनु वायी ! सनु लसनु वावल, कहल-कहवावल, िसपटाइल, ररररयाइल कुसल्ह अनेररया, एह अहंकार का सोझा ! भाव-भावना के जब हेह िरी लसराहीं के बड़ु ए, ि कवना करि के जाि-पा​ाँि ? काहें के गोत्र ? आ का गोत्र के ना​ाँवें जनवावल भाईचारा ? कइसन ररस्िा ? कइसन सम्बन्र् ? आ, अव्वल कवना करि के ’आपन’ कहाि ई सिाज ? परोजन सनबसह जाओ के उिेद िें ’ओसारा’ आ ’भरोसिन्द लोगन’ के जोहि अिदी के आगा-पािा बिाई ं पराया के होला ? आन्ह के लउके ला ? के हू ना ! सभ आपने लउकी । आगा से लेके पािा ले सभ अपनहीं सिाज, अपनहीं नािा, अपनहीं जाि के लोगवा लउसकहें । िबहू ाँ बेटी के एगो किजोर बाप का सङे जवार-सिाज के हिना सघनहा बेवहार काहें होखे ? कवन घरे, कवना दअ ु रे बड़का बाबूजी, भा चाचाजी, भा फूफाजी आ पाहुन नइखन ? कवना अाँङने आ पररवारे बड़की िाई भा चाची भा फुआ नइखी ? िबो काहें अपने कहाि लोगवा अपनहीं के खून चूसे िें लागल रहेला ? िाई के हइसना सवालन प आजु ले कवनो जवाब ना िीलल । घर के दलानी आ सपिवसड़या के कोठारी बेजवाबे के साँकेिा परल िाई के लोर से ओद होि रहल बा । जासि-प्रथा के बेिाल बूझीं जइसे सभ के कान्हा प चढ़ल सभन के कान फूाँकि रहेला, आ लोग बेिलवा से िुआइल नर-सपसाच भइल अपनहीं िें एक-दोसरा के नोंचि-चोंथि-बकोटि जीयि जा रहल बा । का कवनो नवहा बबआ ु जीवन घींसचहे, आ का कवनो बचु ी सनकहे घर बसइहें ? जेठ के घाि खलसा सपयरी, काजर आ िऊर ससहा यावे के सपना जगावि ना आवे । बलक ु आपना बसु चया के सोझगर सजसनगी खासिर बेर-बेर सचसचरी पारि िाई-बाबूजी लोगन के िहुाआइल िन-बगइचा िें गम्ु िस के र्ूरर आ लचारी के गादा​ा उड़ावि आवेला ! आ ओही र्ूरर आ गादा​ा से ऊ रसह-रसह के सपसाची ’सबण्डो’ उठावि आवेला ! गाँइयन िें आजओ ु कहाला, जे र्रू र-गादा​ा के भाँवर पारि हावा के ओह ’सबण्डो’ िें भूिवा घिु री पारेले स । बाि इसचको बेजाई ं नइखे । बसु ि-सबचार प जबले राि​िी स्वारथ के ’हसोथू’ िाप बनल रही, सोच-बेवहार िें भिु वने के जोर बनल रही । भोजपरु रहा सिाज िें अइसहू ाँ सबयाह का आगा कुिऊ लउके ना, आ ना हाल्दे कुिऊ सोचाला । ना कवनो सपना,

ना कवनो लच्ि, ना कवनो उद्योग । कवनो बाबूजी बसहरी -एक सिय ई कलकत्ता रहे, अब िम्ु बई, सदल्ली, पंजाब भइल बा-- किाए जाि बाड़े ि लइसकया के सबयाह खासिर । कवनो िाई घर के काि-काज िें लइसकयन के बलािे जोरि रहेले, ि ओकर सबयाह खासिर । लइसकये ना कािना लइकओ आजु पसढ़ रहल बाड़े सऽ ि खलसा अपना सबयाह खासिर । अब हइसना प कवनो इस्कूल िें चलि परीच्िा िें नकल के ’लूट’ िसच रहल बा ि कवन अचम्भा जी ? हइसना परीच्िा आ ररजल्ट के रउआ काहें िाने-ि​िलब पूसि रहल बानीं ? साहेब, सटीसफके ट िीले के चाहीं सटीसफके ट ! ’पास’ भइला के सटीसफके ट ! ’नकल’ के हेह ’खेल’ िें आगा से लेके पािा ले, आ, ऊपर से लेके नीचा ले, सभ के सभ ’ईिानदार’ कसण्िब्यूसन कऽ रहल बा । किहीं के हू एह ’वेबस्था’ के सखलाफ गाल करि ना लउकी । ठेका प परीच्िा ’कसिट’ हो जािा । नाहीं ि असगले लगसनया सबयाह प बसन आई ! के हू के िोड़ीं, रउए एह ’नकल’ प रोक का, बस एहके बाउर बोल भर दीहीं ! बन्दूक सनकल जाई िहाराज ! गोली चसल जाई ! गादा​ा उसड़ जाई ! राउर सजसनगी बसस गइल, आ राउर सिय सनकहे सनकसल गइल, ि एकर का िाने, रउआ इन्हनीं के सजसनगी नासस देब ? चलल बानीं रउआ सिाज सर्ु ारे ? पसहले आपन सोच सर्ु ारीं ! देखीं जिाना कहवा​ाँ से कहवा​ाँ जा रहल बा, आ एकर का ’सडिाण्ड’ बा आजु ! सनकहे पसढ़-लीसख के बचु ी लेडीडाग्दर ना बसन जइहें । बबआ ु के कवनो वजीफा ना िीले लागी । आ लेसडये डाग्दर कहाये के बा ि दसखन-टोला के सरु ससिया के कि ि​ि आाँकीं । खूब दवइयन के ना​ाँव रटले बीया । साि दजा​ा से आगा ऊ भलहीं ना पसढ सकल, बाकी सदिाग के खूबे िेसज हऽ । पढ़ल ना, ऊ कढ़ल बीया । िवना प ओकरा हाथ िें जस बा । जेठ-असाढ़ िें अनार्ून किाई करेले । सावन-भादों िें जइसे ओकर लाटरी सनकलल परेला । सङहीं ओकर िरदो लागल बा । कबहू ाँ ऊ किहीं दवाई के दोकानी िें लागल रहे । आपना िेहरारु सरु ससिए सङे अब ’डाग्दर साहेब’ कहािा । कस के पीसट रहल बाड़न स दनू ो । अपना-अपना िरीजन सङे लोगवा इन्हनीं के दआ ु र प फसजरहीं से सबटुराए लागेला । ’देखसनहार के र्रसनहार लागल’ का कहाला, रउओ िसन देसख आई ं इन्हनीं के दअ ु रा ! बासकर, सभ के हू के भासग सरु ससिया आ ओकर िरदा अस ना नू होखी ! से हेह ’सबयहजोगू’ ससच्िा आ परीच्िा से जवन लइका-लइकी सनकल रहल बाड़े स, ऊ ’ऊाँटहा सबलार’ अस उटपटंसङये बाड़े स । पूरा शिु ुर्ा बु ा​ा ! सदल्ली-िम्ु बई-गज ु राि जइसना जगहा से किावल पइसा प बाबूजी लोग भलहीं खुल्लिखुल्ला नसि अाँङरास,ु बासकर,

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बबआ ु आ बबनु ी के गोड़ सचकी सि​िल प ना लउके । ’ऊाँटहा सबलार’ अस फानि सफरेला लोग । आ आजु के बाबएु जी लोग कवन करि के बा ! बेरोजगारी के िारल ओह ’घूरा-भारा’ लोगन के बसहरी सनकलिे अचके िें पइसा का भेंटा जािा, पाग पसहरल ’सिर्ी’ अस सलफाफाबाजी बसियावे लागऽिा लोग ! आ िवना प एह जिाि के बेगोड़-िूड़ी के ’भोजपरु रहा ससनेिा’, आ सटटकारी पारि ’गाना’ िीसल जािा । कोइला के बघार िें कररखा के पोचारा, भला अउरी का कहाला ? ईहे कारन बा जे आजु सिाज िें सोझ दू िरी के जीवन आ जीवन के र्ारा बहि बझ ु ाई । आजक ु े हेह नवही लइसकयन िें िबके अबोली ’बसु चया’ रउआ साएदे लउकी । एह लइसकयन के िाइयो पारम्पररक िाई अस साँकेिा िें सबसरु ि ना िीसलहें, बलुक आपन ’जगसजिनो’ बेसटयन प इन्हनीं के अकूिे भरोसा होला ! सबयाह भइला प एह लइसकयन के नइहर से इन्हनीं के ससरु ारी भलहीं कुिऊ नसि जाओ, हाथे एगो िोबाइल जरूर चसल जाला । ई िोबाइसलया ि बस सार्न हऽ जी ! एकर के कइसे उपयोग कऽ रहल बा, ई अपना िें एगो अलगे सबसय बा । जवन िोबाइल सिाज-जवार िें होसगर लोगन, सबसेसकर िेहरारू खासिर जानकारी आ जागरुकिा के बढ़ावे के बड़हन कारन भइली स, उहे िोबइसलया किना घर-पररवार के नास करे प लागल बीया । हिनी के हाँसी-हाँसी िें बिकही करीं जा,

जे ’गौरसिण्ट’ ऊ होले, जे सिण्टे-सिण्टे गौर करेले, आ हर के हू के हर सदन के सहसाब रपट लेि रहेले । आजु के िाई लोग ’गौरसिण्ट’ अस नवही सबयाहल लइसकयन से खलसा सदने-राि ना, बलुक िने-िन के सहसाब लेि लउक जइहें । बबनु ी ससरु ा बससहें िऽब, जब बबनु ी उहवा​ाँ रसचहें । बसे खासिर पसहले जूरक े​े परेला । आ, जरु ला के पसहले ओह पररवार िें रचे के परेला । बासकर, जिाना ि ऊ आइल बड़ु ए जे ढेर लइसकयन खासिर उन्हनीं के ससरु ारी िें जरु ला आ रचला के साइि हाल्दे आविे नइखे, ऊ बससहें का खाक ? हइसना िें का सबयाह, आ का सबयाह भइला प के ससरु ारर ? ’एडवांसपन’ के जवन ना हावा बहल बा सक पररवार के पररवार ि​िाइल बा । आ एही बयार िें सभके पािा उघार भ रहल बा । बासकर, के हू के होस नइखे । पररवार बसे से पसहलहीं उजरर रहल बाड़न स । बासकर, आपना लङटई प लोग-बाग आन्हर-बसहर भइल बा । आजु ढेर पररवार के लोग ना परम्परे सनभावे लायक रसह गइल बा, आ ना उनका लगे आर्सु नक बेवहार आ चलन के ि​िा बूझे के बेंवसिये बा । ’आर्ा िीिर, आर्ा बटेर’ आली सजसनगी जीयि रेंड़ी के फे ड़ भइल लउक रहल बा लोग, िाने बेि​िलबे उिान ! खैर, एह सबसय प फे र कबो.. .

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परु बी

प्रवासी पुरबी कुलवा के लाज राखे िूिे गइलें सइया​ाँ, से बटोही सनु ऽ हो सपया जाई बसलें सबदेस । सबरहा सिावे रासि, सनन नाहीं आवे, प व ी जोहर शाफियाबादी ू से बटोही सनु ऽ हो, भइनी जोसगसनया के भेष ।

गइलें कलकत्ता जाई भइलें सगरसिसटया, से बटोही सनु ऽ हो, भके -भके भेजेलें सनेस ।

वेद बदलाई

डहके लें रोजे सइया​ाँ उढ़री ना राखस, से बटोही भोजप सनु ऽ हो,ुरी िन पड़े जब-जब देश ।

ननलय उपाध्याय

पसिया िें सलखलें बाड़ें, िसठया िें अइहन, से बटोही सनु ऽ हो, हि भा​ाँखी गौरी-गणेश ।

बेमार बचवा के हिी

ध्रव ु गुप्त

जसन होखे पंसडि िोिा, िशुाँ ी के हसलया, से बटोही सनु ऽ हो, बसन गइलें देसवा सबदेस ।

जा

िोटको देवरवा ला​ाँघी देलस सिंदु र, से बटोही सनु ऽ हो, बभना ब्रजी परदेस । बाल बिु रू खेसि बारी नािा खोंिा सबके , से बटोही सनु ऽ हो, हाँसी हाँसी झेलीलें क्लेश । िेहरी के पीड़ा 'जौहर' लोग बुझे हीरा, िम्भं ग भोजपरी से बटोही सनु ऽ हो, िरदे बा सगरी नरेु श ।

िंतोष पटे ल

जौहर शात्रियाबादी

त्रबदे सिया के पाती

जौहर शाकियाबादी जी शाकियाबाद शरीि गोपािगंज , त्रबहार के रहे वािा हई । अपने भोजपुरी खात्रत सबसे पत्रहिे १९७० िें गोपािगंज अनुननराला िंडिात्रधकारी के सोझा अनशन कइिे रहीं । भोजपुरी सात्रहत्य के आाँचर िें हर त्रवधा िें सृजनरूपी खोइछा​ाँ भरे िें रउआ नेह-छोह से जुटि बानी । भोजपुरी िें पत्रहिा गजि िहाकाव्य 'रं गिहि', ऐत्रतहात्रसक उपन्द्यास 'पुरबी के धाह', ित्रित त्रनबंध संग्रह ,कत्रबरा खिा बाजार िें, 'वेद और कु रान’ सत्रहत दजयन भर बहुचर्चयत कृ त्रत प्रकात्रशत भइि बा । वतयिान िें इहा​ाँ के 'भोजपुरी व्याकरण' त्रिखे िें पूणय िनोयोग से जुटि बानी । प्रकाहि​ि रचना लेखक के आपन ि आ जरुरी नइखे की इ संपादक के हिचार लेखक के हिचार से हिले । © आखर ● मई , 2015 ● 8


पलायन

बबदेबिया लोक िंस्कृबत बिरबिबिया आ पलायन

दे वेंद्र नाथ नतवारी

भो

जपरु रया बर्ार से पलायन, प्रवासन के दू-िीन ससदयन परु ान परंपरा आजु ले लगािार चलि आ रहल बा। ई, एह इलाका के एगो अइसन सच्चाई बा जवना से के हु इनकार नइखे कर सकि। अगर रउआ यकीन नइखे िऽ सीवान, िपरा, आराबक्सर, देवररया, गोरखपरु , बसलया-बनारस, सिजा​ा परु , जौनपरु गाजीपरु , बेसिया, िोसिहारी के रेलवे स्टेशन के सीन इयाद करीं। एह स्टेशनन से वैशाली, बसलया- ससयालदह, अम्रपाली, अवर्-आसाि, जनसेवा, बाघ, सप्तक्रांसि, संपका क्रांसि, पवन, गोदान, जइसन िेन से अनसगनि लोग के कासफला रोज सदल्ली, पंजाब, बंगाल, असि, बंबई, सूरि आ चेन्नई खासि प्रवासन करेला। भीड़ के इ आलि की चार िहीना पसहले ररजवेशन सलहीं

कं फिा ना सिली। अइसन घटना से रउओ कबो द-ू चार जरूर भइल होखब। हिरा एहु बाि के यकीन बा, रउओ कबो ना कबो अइसन िेन से बिौर प्रवासी एह िहानगरन के जिरा पऽ सनकलल होखब। अइसन िेनन के सिकालीन सहंदी सासहत्यकार अरूण प्रकाश अपना एगो लघक ु था िें 'भइया एक्सप्रेस' के नाि सदहले बाड़ें। पसहले जवन पसनया जहाज प्रवासी िजदूरन के आपन िािृभूसि से दूर ले जाि रहे। आजू ओह पसनया जहाज के स्थान हवाई जहाज ले सलहले बा। पटना, लखनऊ, सदल्ली, कलकत्ता से खाड़ी के देश खासि रोजना कई गो जहाज उड़ेलें। हर जहाज िें सैंकड़न के संख्या िें भोजपरु रया बर्ार के 'सबदेससया' बइठल सिल जइहन। यूनाइटेड प्रासवन्स बैंसकं ग इंक्वायरी किेटी ररपोटा 1929-30 िें

सिया के पाती देवेन्द्र नाथत्रबदे त्रिवारी

ननराला

देवररया, युपी के रहे वािा देवर ें नाथ त्रतवारी जी , द संडे इं त्रडयन भोजपुरी पत्रिका के कॉपी एत्रडटर रत्रह चुकि बानी। इाँ हा के स्वतंि पिकार भी बानी आ एह घरी वधाय िहाराष्ट्र िे आगे के पढाई कई रहि बानी । कई गो शोध परक िेख अिग अिग पत्रिकन िे प्रकात्रशत हो चुकि बा । आखर पेज से शुरु से जुि​ि बानी आ भाषा सात्रहत्य प कई गो िेख आखर प भी िात्रग चुकि बा ।

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पलायन औपसनवेसशक काल िें भइल सवस्थापन के बारे िें सलखल गइल बा - 'आजु से बीस बरीस पसहले इ एगो िान्य िथ्य के रूप िें कहल जा सकि बा सक बनारस सडसवजन िें कवनो पररवार अइसन नइखे जेकर एको सदस्य बंगाल, आसाि, आ दोसर प्रदेश िें नौकरी खासि ना गइल होखे।' अइसना िें आई ं, एह प्रवासन के इसिहास के िसनका टटोल सलहल जाए। कािें भइल प्रिासन ? 1765 िें बंगाल के राजस्व प्रशासन ईस्ट इंसडया कं पनी के हाथ िें चल गइल। कं पनी के भूसि पट्टेदारी योजना के अंिगा ि ना खासल जिीन के हस्िांिरण आसान भइल बलुक जिीन संबंर्ी सववादन के चलिे िक ु दिा, अपरार् आ भ्रष्टाचार के भी बढ़ावा सिलल। कजा के बोझ के चलिे अनेक सकसानन के आपन जिीन साहूकार के हाथे बेंचे के पड़ल चाहें सगरवी राखे के पड़ल। निीजिन जवन सकसान हासशया पऽ रहलें उनका सदवासलया होखे से भूसिहीन श्रसिकन के संख्या िें इजाफा भइल जवन अंि​ि: सवदेश िें प्रवासी बन गइलें। अिने ना, 18वीं शिाब्दी िें भारि अपना हस्िसशल्प उद्योग के दि पऽ एगो बड़हन उत्पादक शसि रहे जहा​ाँ लाखन लोसगन के रोजी-रोटी के प्रबंर् होि रहे। खासिौर पऽ वस्त्र उद्योग काफी फलि-फूलाि रहे आ एसहजा िैयार उत्पाद के सवदेश िें काफी िा​ाँग रहे। असल िें सब्रसटश वस्त्र उद्योग भारिीय वस्त्र के िक ु ाबला ना कर सकि रहे। निीजा अंग्रेजी हुकुि​ि द्वारा िरह िरह के प्रसिबंर् थोप सदहल गइल जवना से भारिीय हस्िसशल्प उद्योग के सा​ाँस थिें लागल । जहा​ाँ एक ओर 19वीं शिाब्दी आवि आवि भारि के हस्िसशल्प उद्योग खास िौर पर वस्त्र आ हथकरघा उद्योग जवना िें ढाका के िलिल, बनारस सिजा​ा परु के साड़ी आ कालीन उद्योगन के पिन हो गइल, उहें दोसरे ओर आर्सु नक औद्योसगकरण िूलि: बंबई, कलकत्ता आ बंगाल/सबहार के कोयला उत्पादन क्षेत्र िक सीसि​ि रहल। अिने ना, 19वीं सदी के आसखरी 4 दशक िें लगािार पड़े वाला आकाल ग्रािीण जनसंख्या, खास िौर पऽ खेसिहर िजदूर, बनु कर, िोटहन जोि वाला सकसान आ दबल-कुचल लोग के दख ु पऽ नून िले के काि िाने गरीबी िें आटा सगल

करि रहे। 1857 के क्रांसि के बाद अंग्रज े ी हुकुि​ि के दिनकारी आसथा क नीसियन के चलिे अनाज के पैदवार िें भारी किी आइल आ दाि भी बढ़ गइल। ओसहजा दूसरे ओर, एही कालखंड िें खद्यान्न के सनया​ा ि िें वसृ ि भइल जवना से देश िें अनाज के संकट पैदा हो गइल। भूख से बेबस इंसान, रोटी के िलाश िें भटकबे करी। अइसन भटकि इंसान के अरकसटया आ आरकासटन (अंग्रेजी भिी एजेंट) अपना चाल िें असानी से फाँ सा सलहलन स। अकाल के प्रभाव कि करे खासि, अंग्रेजी हुकुि​ि के नहर बनावे के चाहि रहे जवना से अनाज के उत्पादन बढ़े बासक सरकार रेल सनिा​ा ण पऽ असर्क जोर सदहलस जवना से कं पनी राज के व्यावसासयक सहिन के पूसिा होखे। अंग्रेजी सरकार देश के औद्योसगकरण करे िें भी नकाि सासबि भइल जवन गरीबी आ बेकारी के दरू करे के आसखरी उपाय रहे​े़। अइसना िें कृसष पऽ अत्यासर्क सनभा रिा, िौसिी बेरोजगारी, बड़हन पैिाना पऽ असशक्षा आ जासिप्रथा के चलिे श्रिजीवी वगा के एगो सहस्सा सवदेश िें जाए खासि िजबूर भइल। अइसन पररसस्थसियन िें औपसनवेशक आ सम्राज्यवादी िाकिन द्वारा अंग्रेजी हुकुि​ि के िजदरु न के सनया​ा ि करे खासि असानी से िना सलहल गइल। इहा​ाँ इहो बिावल जरूरी बा सक सवदेश जाए वाला 99.6 फीसदी श्रसिक अंग्रेजी उपसनवेशन िें आ 0.4 फीसदी फ्रेंच/ डच/ पिु ा गु ाली उपसनवेशन िें गइलें। एह प्रवाससयन िें करीब 98 फीसदी लोग िजदूर रहलन आ 2 फीसदी िें व्यावसायी/ र्िा प्रचारक/ परु ोसहि/ ससिदोषी लोग रहे। के िऽ हगरहिह या ? 1833 िें दास प्रथा के उन्िल ु न के बाद सब्रसटश राज के िय अफ्रीकी दास आजाद हो गइलें। जवना से सब्रसटश उपसनवेशन के बगान आ खेि िें िजदूरन के भारी किी हो गइल। एह किी के पूरा करे खासि अंग्रेजी हुकुि​ि द्वारा 1834 िें इनडेंचर लेबर ससस्टि के व्यवस्था बनावल गइल। इ एगो करार बि व्यवस्था रहे। जवना के अंिगा ि आजु के पूवी उत्तर प्रदेश आ सबहार से िजदूरन के भसिा कइल गइल। इ िजदूर सगरसिसटया कसहलें। सगरसिसटया( एग्रीिेंट) के भोजपुरीकरण हऽ। एह करारबि व्यवस्था के अंिगा ि 3 से 5 साल के एग्रीिेंट होि रहे। करार

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पलायन करे वाला िजदरू के सनर्ा​ा ररि वेिन पऽ खेि/बगान आ कारखाना िें काि करे के पड़ि रहे। अनबु ंर् सिाप्त होखे के बाद सगरसिटया िजदूर के उपसनवेश िें कहीं बसे चाहें दोसर जगहा काि करे चाहे घर वापसी के इजाजि सिल जाि रहे। एह सगरसिसटया परंपरा के पूरा वणा न सफजी के एह सगरसिसटया गीि िें बाभोली ि​िें देख अरका ी भरिाया िो, कलकत्ता पार जाओ पा​ाँच साल रे 'हबदेहसया'। डीपुआ िें लाये पकड़ाई कगदुआ िो अाँगठु िा लगाये दीना िाय रे 'हबदेहसया' ।

पररभासषि कइल गइल बा ओह िें एगो बड़हन 'टी' िांसपोटेशन हऽ। एही िांसपोटेशन से प्रवासन के प्रवाह बढ़ेला। अग्रेजी शासन के आपन कल करखाना खासि कच्चा िाल के आवश्यकिा रहे। एह खासि अंग्रेजी हुकि​ि 1857 के आस पास पूवा​ांचल आ सबहार के रेल नेटवका के िाध्यि से कलकत्ता से जोड़लस। पसहले पसहले 1857 िें कलकत्ता से सिजा​ा परु खासि ईस्ट इंसडयन रेलवे के पसहला गाड़ी चलल रहे। 3 िाचा 1859 के प्रयाग से कानपरु िक रेल चले लागल आ 1870 िें कोइलवर पल ु बन जाए के बाद 1880 िें िध्य आ उत्तर सबहार के बंगाल आ नाथा वेस्टना रेलवे से जोड़ल गइल।

इ व्यवस्था 1920 िें सिाप्त हो गइल। एह व्यवस्था के अंिगा ि िॉरीशस िें करीब 449220, सूरीनाि िें 324000, गयु ाना िें 240000, सत्रसनडाड िें 144000 आ सफजी िें 68000 हजार प्रवासी िजदरू गइलें।

यािायाि के बेहिर ससु वर्ा िें लोग इहा​ाँ से कलकत्ता खासि प्रवाससि भइलें आ कलकत्ता से औपसनवेसशक बगान िें। िशुाँ ी रहिान खान के आत्िकथा 'जीवन प्रकाश' आ पंसडि िोिाराि सनाढ् य के 'सफजी द्वीप िें िेरे 21 वषा ' िें एकर सवस्िृि सववरण िौजूद बा।

रेहलया बैरन आ प्रिासन के ररश्िा

हबदेहसया लोक संस्कृहि

रेल प्रवासन के गसि के कवने लेखा प्रभासवि कइलस एकर सववरण लोकगीि संग्रह किा​ा रािनरेश सत्रपाठी के आख्यान िें िौजूद बा। ऊाँहा के सलखि बानी, 'एक बेर हि जौनपरु से प्रयाग जाि रहनी। बनौर रेलवे स्टेशन पऽ कुि िेहरारून के रोवल सनु ाई पड़ल। ऊ शायद असहर/ चिार जासि के िेहरारू रहलीं। ऊ कुि िरद लोसगन के सवदा करे आइल रहली। जे कलकत्ता जाि रहलन। संयोग से हि थडा क्लास के जवन बोगी िें बइठल रहनी ऊहो लोग ओही बोगी िें चढ़लें। िेन, प्लेटफािा पऽ िेहरारूअन के रोवि िोड़ र्आ ुाँ उड़ावे लागल। ओह िरद लोग के संघे कुि िेहरारू भी बइठल रहली, जे आपन पसि के लगे कलकत्ता जाि रहली। जइसे िेन िेजी पकड़लस। िेहरारून कुल्ही रोवि रोवि ई गीि गावे लगलीं-

भोजपरु रया इलाका से व्यापक पैिाना पऽ प्रवासन से भावनात्िक िसि भइल। इ िसि आपन देश िोड़े वाला 'सबदेससया' आ ओकरा पीिे िूट गइल पत्नी अउर पररवार दूनो के भइल। सविोह के एह पीड़ा के रागात्िक असभव्यसि 'सबदेससया लोक गीि गायन परंपरा' िें भइल जवना के आर्ार बना के सभखारी ठाकुर 1917 िें 'सबदेससया' लोक नाट् य के सज ृ न कइलें। एह दनू ों 'सबदेससया' िें फका इ रहे सक सभखारी ठाकुर जी के 'सबदेससया' कलकत्ता िें किाि रहे आ असली 'सबदेससया' आपन देश से दूर 'आन िल ु ुक' िें। इहा​ाँ इहो बिावल जरूरी बा सक 'सबदेस' शब्द के पसहला प्रयोग अिीर खस ु रो साहब के रचना िें सिलेला। अिीर खस ु रों साहब के एगो गीि देखीं-

पुरूब से रेहलया आिे, पछुि से जिहजया, हपया के लादी गई िो। रेहलया िोई गई िोर सिहिया, हपया के लादी गई िो रेहलया न बैरी, जिहजया न बैरी ऊिे पइसिा बैरी िो देसिा देसिा भरिाये, ऊिे पइसिा बैरी िो...'

असल िें वैसिक स्िर पऽ प्रवासन खासि जवन '5टी' के

© आखर ● मई, 2015 ● 11

कािे को ब्यािे हबदेस, अरे! लहखया बाबुल िोरे कािे को ब्यािे हबदेस भैया को हदयो बाबुल ि​िल दो-ि​िला ि​िको हदयो परदेस अरे! लहखया बाबुल िोरे...


पलायन एकरे बाद कबीर साहेब के भी कई गो दोहा आ सासखयन िें 'सबदेस' के प्रयोग सिलेला जवन अध्यासत्िक संदभा न िें भइल बा। कबीर दास एगो दोहाप्रीि​ि को पहिया​ाँ हलख,ूाँ जो किाँ िोय हबदेस । िन िें, िन िें, नैन िें, िाको किा​ाँ साँदस े ॥

भाई आ जहाजीन) रािायण/ आल्हा उदल/ रािचररि िानस/ हनिु ान चसलसा/ गीिा-कुरान, सिुआ अचार आसद। ई गठरी, अवशेष के रूप िें िॉरीशस के सशवरात्री, सफजी के दशहरारािलीला, सत्रसनडाड के 'होसे कासना वाल' आ सूरीनाि के गीि गवनई िें आज भी सजंदा सबया। जहा​ाँ एह गठरी के ित्व किजोर पड़ले ऊाँहा के भोजपरु रया संस्कृसि किजोर पड़ गइल। सत्रसनडाड आ गयु ाना एकर उदाहरण कहल जा सकि बा।

1884 िें काशी सनवासी पंसडि बेनी िार्व राि अपना एगो लोक गीि िें पसहला बेर 'सबदेससया' शब्द के प्रयोग कइलेंजवन ओह आदिी के संबर्ं िें रहे, जे आपन गा​ाँव िोड़ के सवदेश चल गइल बा-

खैर सा​ाँच िऽ आजु भी उहे बा, भोजपरु रया बर्ार से जाए वाला हर प्रवासी अपना सांस्कृसिक गठरी िें भोजपरु ी आ भोजपरु रया संस्कार जरूर बान्ह के ले जाला। आ इ 'सबदेससया' जहा​ाँ जालें आपन संस्कृसि के सबया जरूर बो देलन।

कािें िोरी सुधी हबसारे रे हबदेहसया िड़पी िड़पी हदन रैन गिा​ाँओ रे कािें िोसे नेहिया लगाये रे हबदेहसया...

इ संक्रिण के दौर बा। 'बहुसंस्कृसि' आ 'हाइसब्रड संस्कृसि' के दौर बा। अइसना सवपररि िाहौल आ चहु ाँ ओर दबाव के बाद भी आपन िूल भोजपरु रया संस्कृसि के बचावल, सहेजल हर भोजपरु रया के सजम्िेदारी बा। आई ं आगे बढ़ी भोजपरु रया भाव िें सजये के प्रण लींही।

1896 िें राि सकल पाठक सद्वजराि द्वारा सबदेससया के इयाद िें रसचि 'संदु री सवलाप' सलखल गइल। 1912 िें गोरखपरु से 'प्यारी संदु री सवयोग' नािक पुसस्िका िपल जेह िें 'सबदेससया' शैली के गीि रहे। भिखारी ठाकुर जी के भिदेभियागिनिा कराय सैंया घर बइठलें से अपने लोभइलें परदेस रे हबदेहसया चढ़ली जिहनया​ाँ बैरन भइली ि​िरी से के िोरा िररिें कलेस रे हबदेहसया इहा​ाँ इ कहल अनसु चि ना होई, प्रवासन चाहें सवस्थापन खासल भौसिक रूप िें ना होखेला। एकरा साथे प्रवासी चाहें सवस्थासपि लोग के साथे-साथ उनकर सांस्कृसिक गठरी भी प्रवाससि होखेले। एह गठरी िें लोक परंपरा, लोक सासहत्य आ उनकर भाषा -संस्कार जइसन िूलभूि ित्व भरल रहेला।

बोल िंिी के बसंिी बाण बढ़ के िूाँक दऽ । भोजपरु रया भाि भइया, िान बढ़ के िूाँक दऽ ।। (रंगि​िल) िासक भोजपरु रया सांस्कृसिक गठरी अिर-अजर बनल रहो। जय भोजपरु ी । संदभश ग्रंथ  'सबदेससया' - बद्री नारायण प्रकाशक- उत्तर िध्य सांस्कृ सिक कें द्र, इलहाबाद  'काहें गइले सबदेश' - संपादक िौसिी िजिूदार, िैंगो पसब्लके शन एण्ड सडस्िीब्यटू सा , इलहाबाद  'प्रवासी िजदूर'- लेख- र्नंजय ससंह, प्रसि​िान िें िपल  'सफजी द्वीप िें िेरे 21 वषा ' - पंसडि िोिा राि सनाढ् य  'जीवन प्रकाश'- िशुाँ ी रहिान खान

सगरसिसटया प्रवाससयन के संघे भी सांस्कृसिक गठरी गइल। जवना िें शासिल रहे सविोह से उत्पन्न गीि, ररश्िा ( जहाजी

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मात-ृ दिवस

माई रे माई (सरनामी कववता) िाई रे िाई सनु िू िू ना रोइये चाहे दूर िोसे जाईला िू ना रोइये फबे है ना अब हवा ना िो बझ ु ा है बरखा सख ु के िाहीं िें आसखर ना रहल कौनो सठकाना जाय संघे हिार गठरी िें बस एही गनु ाह के कजा​ा िोर याद खाली िोसे चोराय के जोगे के सब से लेजायला बाकी र्ोये क दाग सब जायला िू ना रोइये ना ना खोज और हिे सजनगी के आसरा िें िू टाइि से पहले ओरायेगे िेल सदया के बोझा के िारे िझ ु ा​ा येगे फूल सपना के अंजोर पे रसिया िागे जईसे सांस कोई और भरिायेगे खाली याद अब िोड़ के जायला िू ना रोइये भले र्ीरे र्ीरे हि ओरायला िू ना रोइये सनु िू सनु िू िाई रे िू ना रोइये

राज मोहन उिेच , नीदरिैंड के रहे वािा राज िोहन जी सरीनािी भोजपुरी के वतयिान सिय के बहुत बिहन प्रभावशािी आ ख्यात्रतप्रत्रसद्ध गायक हई , नया धुन तकनीकी आ अंदाज िे 200 बररस पत्रहिे पिायन के ददय के इाँ हा के अपना गीतन के िाध्यि से आवाज दे के एगो बहुत उं च स्थान प भोजपुरी के िे के गईि बानी । कनाडा अिेररका भारत आ अउरी कई गो देसन िे आपन प्रस्तुत्रत दे चुकि बानी , एह घरी नीदरिैंड ( हािैंड) िे बानी © आखर ● मई, 2015 ● 13


पलायन

परदे स से पाती परदेस से भेजल रउरा पािी के , जान लीं राउर नन्ही-परी का कइली ! रुनझनु -रुनझनु पायल बजावि, दउड़ि भागि हाँसि सखलसखलाि, बइठि उठि सगरि सढिलाि ! बड़ा िसु श्कल से पलंग िक पहुचाँ पइली, पलंग के ससरा पकड़ सस्थर भइली ! पलंग पर फडफडाि राउर पािी देख , जीि के भाव से िंद-िंद िस ु कइली ! पलक झपकिे झपट्टा िरली सचट्ठी राउर उठा के कुि फड़ली, कुि खइली कुि के लार िें सान लड् डू बनवली !

ज्योत्सना प्रसाद त्रसवान , त्रबहार के रहे वािी ज्योत्सना जी , हहंदी भाषा आउर सात्रहत्य िें बी. ए. (प्रत्रतष्ठा), एि्. ए. कइिे बानी , अउर पटना त्रवश्वत्रवद्यािय से प्रोिे सर डॉ नंदककशोर नवि के त्रनदेशन िें िहाप्राण त्रनरािा के गद्य के शैिीगत अध्ययन पर डॉक्टरे ट कईिे बानी l हहंदी िें उपन्द्यास “अगयिा” प्रकात्रशत बा दू गो उपन्द्यास “अंतत:” आउर “िुक्तकुं तिा” , कत्रवता संग्रह आउर कहानी संग्रह प्रकाशन के प्रतीक्षा िें बा l अरबी भाषा के िशहूर उपन्द्यास “अि-रहीना” के हहंदी िें “बंधक“ शीषयक से अनुवाद आउर प्रकाशन l जॉडयन, चीन आउर अिेररका िें आयोत्रजत सम्िेिनन िें कत्रवता पाठ l एह घरी िुंबई िें रत्रह रहि बानी ।

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पलायन

िांव के हालत आ पलायन सहले आपन गांव घर िोडी के बाहर किाये जाये वाला िें सरकारी नोकररहा आ चटकल,सहंद िोटर,सैल,कोइलरी िें ठीक ठाक िनखाह पर काि करे वाला लोग ही ढेर रहि

रहे ।

पारी िें सबजली सिलिा । अगर के हू अबर दबु र आदिी गांव िें दईु चार गो दर्ु ारू पशु राख के , भा कवनो दक ु ान कइ के र्ंर्ा करिा, ि ओकर गाय- भैंस खोला जािा आ दक ु ान लुटा जािा । शहर िें जहां राि भर पसु लस पेिोसलंग करसिया, ओसहजा गांव िें कुि घटना भइला प पसु लस के पहुचं े िें घंटो लागिा । गांिन के सरकारी अस्पिाल खाली ि​िर रेिर करे खाहिर, ि सरकारी स्कूल खाली हखचडी हखयािे खाहिर िी रिी गइल बाडन स ।

बाकी सपिला डेढ़- दइु दशक िें जवना सहसाब से लोग आपन गांव िोड़ी के पलायन कइ रहल बाडे, ऊ वाकई िें सचंिाजनक बा । कुि इंजीसनयररंग,सडप्लोिा भा कवनो दोसर सरकार के ढुलिल ु रवैया से खेिी भी अब खाली नाि के ही टेक्नीकल सडग्री वाला के ि सिझ िें रह गइल सबया । शहर िें जहां िोटे िोटे चीझू आविा, बाकी सबसे ढेर अइसन लोग गांव अिर िांवन िे पलायन के के लाखों के बीिा होिा, ओहीजा गांव िें परु ा के िोडिा आजकल, जेकरा लगे ना ि कवनो रोके के बा त िरकार आ परु ा फसल बरबाद भइला प पचहत्तर भा सौ खास सडग्री बा, ना कवनो अनभु व । रुसपया के चेक सिलिा ।खाद बीया के भी हाल जनप्रबतबनबि लोि के हि अइसन कइगो लोग के जानि बानी जे खाली हवाई फायर कइला उहे बा । रहल सहल कसर टीवी आ ससनेिा परु ा कइ देले बा, जवना िें 'सभ्य िाने शहरी' के आपन अच्िा खासा खेिी बारी होखला के े जिह कुछ ठोि कदि आर्ार पर ही काि होिा । क बाद भी बाहर जाके ठेकेदारी िें कवनो कारखाना िें िजदरु ी करिा । िीन काठा िें उठावे के पड़ी । िडक, अब सवाल बा सक हिना कसठन पररसस्थसि िें घर आ दइु काठा िें दआ ु र वाला रेली के बबजली, िुरक्षा,लघु उद्योि गांव के लोग कइसे अपना आ आपन पररवार के सडब्बा अइसन किरा िें दस दस लोगन के आबद पर बेहतर काि करे एगो बेहिर सजंदगी देउ ? एगो बंसढयां जीवन के संगे रहिा, उहो परु ा िसहना के काि के के पड़ी । कवनो कारखाना िलाश िें लोग आपन गांव,घर,बूढ िाई -बाप के बदले पांच-ि: हजार रूसपया खािीर । िोड के सनकल जािा शहर की ओर । ओकरा चाहें आबफि काहें ना िां व से दोसरा प्रदेश िें गइला प यूपी सबहार के एकर सबसे बड कारण बा सरकारन के गांव होखला के नािे िेन आ स्टेशन प आई काडा िें लाि िकेला ? िें ससु वर्ा देबे िें भेदभाव । आजु एगो बेहिर िांगला के नाि पर पीट पीट के पइसा वसूलािा जीवनशैली के ि​िलब शहरी जीवन ही हो । ऊ सब सहिा... एगो बेहिर सजंदगी के सपना परु ा कइला गइल बा । भेदभाव आिना सक गांव के लोग ि​िलब गंवार बा खासिर... जवन िात्र एगो भ्रि बा ओकर। आजकल। गांवहीं से जाके शहर िें बसल लोग आपना के गांव वाला कहे िें आ आपन िािृभाषा बोले िें लाजािा । ससु वर्ा अगर गांवन से पलायन के रोके के बा ि सरकार आ आ सरु क्षा के नाि पर गांवन के खाली भाषण आ कागज िें ही जनप्रसिसनसर् लोग के खाली हवाई फायर कइला के जगह याद कइल जािा । शहर के जहां भरपूर सबजली सिल रहल कुि ठोस कदि उठावे के परी । सडक, सबजली, बा, ओसहजा गांव िें 'एक हफ्िा सदन ि एक हफ्िा राि' के सरु क्षा,लघउु द्योग आसद पर बेहिर काि करे के परी । कवनो

सुनील पाण्डेय बत्रिया, यू.पी. के रहे वािा सुनीि पाण्डेय जी भोजपुरी िें िगातार त्रिख रहि बानी आ आखर से जुि​ि बानी। इहा​ाँ के िेखनी िें गांव-जवार के बारे िें बहुत बात रहेिा। ए घरी सुनीि जी इंदौर िें रहेनी आ काययरत बानी।

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कारखाना चाहें आसफस काहें ना गांव िें लाग सके ला ?जबकी इ हर िािला िें शहर से सस्िा सासबि होई, एह के सोचे के परी । सदन भर नेिासगरी करि गांव के सरकारी िास्टर आ डाक्टर लोग प डंडा चलावे के परी । हालाि के रोना रोई के हसथयार डाले वाला लोग के भी सोचे के परी सक जब बाहर जाके हिनी के बारह बारह घंटा खटी सके नी जा, ि अपना गांवे अपना काि खासिर काहें ना कुि कइ सके नीं जा ? कवनो नेिा आ पाटी के सपिे नारा लगावला

जवाब

के जगह अपना आ अपना गांव के हक आ बेहिरी खासिर आवाज उठावे के परी। िब जाके कुि बसढयां होई । गांव िें भी बहुि अइसन काि हो सके ला जवना से एगो ठीक ठाक जीवन जीयल जा सके ला । किना लोग अइसनो बाडे जे गांवहीं रह के शहर के एगो इंजीसनयर-िैनेजर ले ढेर पइसा किा िारे आ शानदार जीवन जीय िारे । जरुरी बा इच्िाशसि आ गांव िें रहला के सपिडापन ना सिझला के ।

( लघ ु कथा )

गो सचरई आकास िें उड़ि जाि रहे अउरी कहि जाि रहे-

बाकी जवाब ना सिलल। एक सदन एगो सार्ारण पंसडि असयनी अउर कहनी हि बिाएब। पसहलका के ि​िलब रउआ राजा बानी राउर इहा​ाँ भी जरुरि बा और ऊपर भी । दस ृ ओकर इहा​ाँ भी पूि ु रका के ि​िलब गरीब ,लाचार वि नईखे और ऊपर भी ना ।

''जेकर इहा​ाँ बा ओकर उहा​ाँ बा , जेकर इहा​ाँ नईखे ओकर उहा​ाँ भी नईखे ,

िीसरका के ि​िलब वेश्या जेकर इहा​ाँ ि पूि बा बासकर उहा​ाँ नईखे और,

जेकर इहा​ाँ बा ओकर उहा​ाँ नईखे अउरी जेकर इहा​ाँ नईखे ओकर उहा​ाँ बा। ''.

आसखरी िें हि सार्ारण पंसडि जेकर इहा​ाँ ि पूि नईखे बासकर उहा​ाँ बा।

राजा आपन सखड़की से सनु ि रहलन उनका बझ ु ाइल ना, उ सगरी नगर िें सढंढोरा सपटवा सदहलन जे इ सवाल के जवाब दीही ओकरा भारी इनाि सिली । बहुि लोग कोसशश कईल

राजा उनका जवाब से संिुष्ट होकर आपन दरबार िें राख सलहलन ।

समिा सहाय त्रसवान, त्रबहार के रहे वािा सिता सहाय जी भोजपुरी िें िगातार त्रिख रहि बानी। इहा​ाँ के िेखनी िें व्यत्रक्तगत अनुभव के बहुत कु छ पढ़े के त्रि​िेिा। गायन के क्षेि िें भी सिता जी के नाि बा। अभी इहा​ाँ के कदल्िी िें रह रहि बानी।

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भोजपरु ी के प्रवासन संस्कृवत

िोटो : िंकल्प िंस्था , बसलया

दु

सनया भर के बड़ लेखकन खासिर अपना जिीन से सवस्थापन भा सबिोह के सवाल एगो असियंि संवेदनशील आ िासिा क िद्दु ा रहल बा । हालांसक इहो सांच बा जे सक एह र्रिी के सा​ाँस्कृसिक सवकास के सिूचा इसिहास ही जात्रा, संक्रिण आ सवस्थापन के इसिहास रहल बा । एह इसिहास िें भौगोसलक भा सा​ाँस्कृसिक सवस्थापन हिनी के एक िरफ भीषण त्रासदी , ि दूसर ओर नया नया सदशा देखावे वाला एगो असनवाया सवकास-परसकररया के रूप िें देखाई देवेला । नया भा खशु हाल परदेश आ इलाका के िलाश िें चाहे अपना भीिरी अंिसबा रोर् के सिार्ान ढूाँढे बदे आदिी आसदकाल से अपना कुनबा आ कबीलन के साथे भटकि रहल बा । ” लेसकन भोजपरु ी अंचल के संदभा िें ई बाि पूरी िरह लागू ना हो सके ला काहे से सक एह अंचल िें प्रवसन

भा सवस्थापन खुशहाल स्थान के िलाश भर ना रहे, बसल्क खुशहाल जगह पर जाके जी-जान से किाई करके आपन आ अपना पािे रह गईल, िूटल पररवार के खुशहाली िलाशे के िंशा आ िजबूरी रहल बा । एही से जब हिनी के भोजपरु ी प्रान्ि के पलायन आ एसहजा के श्रसिक संस्कृसि पर बाि करीले जा, िब हिनी के ई िथ्य के सिझ आ जान लेबे के चाहीं सक इहा​ाँ श्रसिक संस्कृसि के बसु नयाद एसहजा के पलायन से जड़ु ल बा । जउन ना के वल िजबूरी से उपजल रहे बसल्क एहिें स्वेच्िा वाला पलायन के िानससकिा के भी कहीं-नाकहीं सूत्र सिलेला । सभखारी ठाकुर अपना जगपरससि नाटक ‘सबदेससया’ के पसहलके दृश्य िें उजागर कईले बाड़ें – सबदेसी – सलाह बा सक हिार िन करिा जे िनी कलकािा

मुन्द्ना पाण्डेय गोपािगंज त्रबहार के रहे वािा िुन्ना कु िार पांडे जी , भोजपुरी भाषा खास कई के त्रभखारी ठाकु र प बररआर शोध कईिे बानी , इाँ हा के ररसचय के त्रवषय ही त्रभखारी ठाकु र जी रहनी । भोजपुरी नाटक आ त्रभखारी ठाकु र के नाटकन प गत्रहराह िेख त्रिखिे बानी । त्रहन्द्दी आ भोजपुरी िे इाँ हा के िगातार त्रिख रहि बानी । एह घरी अत्रसटेंट प्रोिे सर के रुप िे कदल्िी िे काययरत बानी ।

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पलायन से जाके हो अइिीं । सन्ु दरी – “ ए रवो, रउआ कलकािा जाये के कहि बानी, रउआ कवना बाि के िकलीफ बाटे?” सबदेसी – “हिरा कवनो बाि के दुःु ख-िकलीफ नइखे, बाक़ी हिार दोस्ि अइलहाँ कलकािा से। कलकािा के सिाचार ससु न के हिरो िसबयि कइले बा सक हिहू ाँ जाइब। हि पंद्रह सदन िें लवसट के चल आइब।’’

दरअसल जउन सवस्थापन आ पलायन पसहले िजबूरीबस रहे बाद िें ओसहिे देखा-देसख के िौर पर पलायन भी शासिल भ गईल । (जउना ओर सभखारी ठाकुर अपना नाटक िें इशारा कईले बाड़ें) । एह अंचल िें बाहर से लंबा सिय बाद किाके लउटे वाला के बड़का इज्जि से देखल जाला । भोजपरु रया अंचल िें रेलवे स्टेशन पर प्रवासी ‘सबदेसी’ लोग के ररसीव करे ला गा​ाँव-जवार के नािा-ररश्िेदार लोसगन के हुजूि के दृश्य आि बा ।

बहरहाल, एह सब बाि सवचार से अलगा हटके जगदीश र्नञ्जय ससंह सलखले बाड़े कौनो चीज के िकलीफ ना चिुवेदी जी के बाि पर भी ध्यान देबे के जरुरि बा । उहा​ाँ के होखल, दोस्ि से कलकािा के बारे िें सनु के ओइजा जाए बदे श्रसिक प्रवसन के अपना सिूचा अध्ययन आ व्याख्या िें िसबयि हो गईल आ पनरह सदन िें लउट के आवे के बाि – प्राकृसिक कारण पर सबसेस जोर देके के हिनी के प्रवसन के कारण िें ‘स्वेच्िा’ भोजपरु रया पढ़ल-बलखल सिूचा पूवा​ां चल के एह िें शासिल कईले आ ‘िजबूरी’ दनु ु िें से कौना के नाि सलहल जाई? िासिला बड़ा जसटल बा िध्यविग जे नौकरी के फेरा िें बाड़ें । उहा​ाँ के सलखले बानी सक “जउन । एहिें कौनो दू राय नइखे की ‘स्वेच्िा’ बाहर िईल उ फेर िा​ाँव खाबतर जउन सिय भारि िें अकाल पड़ो सूखा पड़ो भा बाढ़ आवे, ओह–ओह सिय भा ‘िजबूरी’ िें काि करे गईल लोगन के पराया हो िईल । (अबिकां श िजदूरन के संख्या बढ़ जाव । सफर भी श्रेणीबि करे बदे काफी अध्ययन हो ु से ही चक ु ल बा आ हो रहल बा । बाकी बस्िबत िें इ बात िांच बा) । उ कुि जगह अइसन रहे जहवा​ाँ शरू सभखारी ठाकुर अपना नाटक के नायक कबो ना लौिल, भा लौिबो कईल िजदूर लगािार उपलब्र् रह सन । इ जगह रहे – बस्िी, गोंडा, फै जाबाद, के िाफ़ाि जउन बाि के ओर इशारा कर त िौि​िी लौिानी खानी गोरखपरु , आजिगढ़, जौनपरु , गाजीपरु आ रहल बाड़े ओहिें प्रवसन के ‘पल ु ’आ ‘पशु ’ थ्योरी अपया​ा प्त बा । ए सब से । एबहिे जब बभखारी ठाकुर सबहार के शाहाबाद । इ सब उ सजला रहे अलग जाके हिनी के प्रवसन के संदभा के अपना नािक िें बबदेिी के लउि जहा​ाँ के जनसाँख्या भारि िें सबसे घना जनसाँख्या िानल जाला आ जहा​ाँ के खेिी सिझला के जरुरि बा । शौसकया िौर पर आवे के दृश्य रचत बाड़ें त उ बड़ा बढ़ि जनसंख्या के साथ ना दे सकि रहे परदेस गिन पूरा िरह से भोजपुरी अंचल पर लागू ना होखी । काहे से सक अइसन आदशग बस्िबत के िाबिला हो । इहे उ सजला रहे जहा​ाँ किजोर वगा के लोग के संख्या बेसी बा जे अपना जाला आ उ देखे वाला के एिो लोगन के संख्या भी असर्का रहे । ” ई बाि सांच बा सक भोजपरु ी अंचल भारि के आसथा क सस्थसि के उपर उठावे खासिर ख़ाि तरह के ‘नोस्िेबजजया’ िे सबसे घन जनसाँख्या वाला क्षेत्र िें से एक पसहले कलकािा, असि के ओर गईल घेर लेला । बा । जासहर बा सक जब जिीन कि आ लोग, आ आजु सदल्ली, िंबु ई, पंजाब, आदिी बेसी होइहें ि प्रसि व्यसि आय पर हररयाना, दसक्षण भारि की ओर आ असर पड़बे करी । अइसन सस्थसि िें दोसर सि​ि ृ इलाका के खाड़ी देशन के ओर जा रहल बा । पूवा​ांचल के इलाका जउन ओर पलायन ही एकिात्र सहारा हो जाला । ध्यान देबे के बाि भोजपरु ी प्रान्ि बा ओहिें के असर्कांश सजला के लोग एकर इहो बा सक येह के टेगरी िें पढ़ल-सलखल उहो िबका आई जे बड़ उदाहरण बा । इसिहाससक आर्ार पर देखल जाओ ि के अपना िूल जगह से सवस्थासपि हो के नौकरी खासिर दूसरा 18वीं आ 19वीं शिाब्दी िें श्रसिक लोग बड़ भारी संख्या िें जगह पर पहुचाँ ल बा । स्वेच्िा से गईल लोगन के संख्या भी पूवी बंगाल-रंगपरु के ओर गईल रहे । 19वीं शिाब्दी के अंि कि नईखे । चाहे जउन होखे बासकर एिना ि सांच बा सक िक जनगणना आाँकड़ा के अनस ु ार रंगपरु िायिेससंग आ इहा​ाँ भोजपरु ी अंचल िें प्राकृसिक सिस्या ि रहबे कईल बासक िक सक बिा​ा भी शारीररक िेहनि के आकषा ण के बड़ कें द्र रहे िनपु य के िनपु य द्वारा शोषण के अनेक रूप भी िौजूद रहे । नौकरी के आकषा ण पलायन िें ई एगो बड़ कारण रहे ।

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पलायन । एसहसे भोजपरु ी प्रवसन के पड़िाल भा खोजबीन करे के संदभा िें हिनी के एकरा सिाजशास्त्रीय कारण के भी िानबीन करके चाहीं । भोजपुररया पढ़ल-हलखल िध्यिगश जे नौकरी के िे रा िें बािर गईल उ िे र गा​ाँि खाहिर पराया िो गईल । (अहधकांि हस्थहि िें इ बाि सांच बा) । उ कबो ना लौ ल, भा लौ बो कईल ि िौसिी लौ ानी खानी । एहिसे जब हभखारी ठाकुर अपना ना क िें हबदेसी के लउ आिे के दृश्य रचि बाड़ें ि उ बड़ा आदिश हस्थहि के िाहिला िो जाला आ उ देखे िाला के एगो ख़ास िरि के ‘नोस् ेहल्जया’ से घेर लेला । एसहसे इ नाटक के देखिसनु ि-पढ़ि हिनी के एगो अलग िरह के भाव सस्थसि िें आ जानी जा, जहा​ाँ प्यारी सन्ु दरी के पीड़ा हिनी के पीिे रह गईल पररवार के लोसगन के पीड़ा बनके सािने आ जाला, आ हिनी के अपना से सबदेसी के जोड़ सलसहले जा । लेसकन अफ़सोस के बाि इ बा सक ई भाव दशा संचारी भाव सनयन ए कुल्ही ‘सबदेसी’ लोग के सहरदय िें उिरेला, स्थायी भाव सनयन नाही । प्रवसन से लउटल स्थायी भाव बने भी ि कइसे? पसहलको आ आजु के (िाने उदारवाद के बाद के ) एह सबदेसी के सािने दू गो बड़ सवाल बा, जउन ओकरा संवेदनिंिु के सनसपक्रय कइले बा । पसहलका, आसथा क अवस्था, दूसर, गा​ाँव िें रोजी-रोजगार के सदक्कि आ उहा​ाँ के सािासजक संरचना के भीिर फइलल शोषण-िन्त्र के अनसगनि रूप । एही से जब बद्रीनारायण एह क्षेत्र के पलायन आ श्रसिक संस्कृसि के पड़िाल कइले ि ‘सबदेससया’ के आसथा क अपवाय के कथा कहले । बहरहाल जउन प्रवसन के ‘इज्जि’ के रूप िें देखल जाि रहल बा ओह पर चंद्रशेखर असर्क सबस्िार से सलखले बाड़ें- “सारण के सिाज िें िौसिी प्रवास के लाभ अक्सर सदखाई पड़िे हैं । उदाहरणाथा देवररया गा​ाँव के जउन लोग बंगाल गईल, ओह लोगन के बारे िें कहल जाि रहे सक ओह लोग के ‘रहन-सहन िें उन्नसि’ भईल । चान चौरा गा​ाँव से जे भी बहरा गईल, ओकरा के ओकर घर वाला लोग इज्जि देबे लागे । चाहे उ के िनो कि उसिर के काहे ना होखे, काहे से सक उ पररवार के किाऊ सदस्य बन जाि रहे । इ प्रवासी अपना के अपना नािाररश्िेदारी िें उंचा बूझे लोग । इज्जि से देखे जाए के एह प्रवसृ ि के चलिे भी सारण के सकसानन िें िौसिी प्रवास के आदि बढ़ल । हाला​ाँसक 19वीं सदी के उिरान आ 20वीं सदी के पूवा​ा िा िें कृसष के बढ़ि संकट के शरू ु आिी सिय िें ए सब सजला के अनेक पररवार कि लगान देबे वाला जिींदारी िें जाके स्थायी रूप से बस गईल । बहरहाल, बाद िें एह प्रवसृ ि

िें सगरावट आईल आ िौसिी प्रवास के प्रवसृ ि बढ़ल । ” िाईग्रेशन एंड लाईवलीहुड इन सहस्टोररकल पसा पेसक्टव : अ के स स्टडी ऑफ़ सबहार, इंसडया, अजा न डी हान(2002), द जना ल ऑफ़ डेवलपिेंटल स्टडीज िें भोजपरु ी अंचल के श्रसिक संस्कृसि आ पलायन के कारण पर सलखला के र्नञ्जय ससंह अपना शोर् िें हवाला सदहले बाड़ें सक ‘ पलायन (20वीं के शरु​ु आि िें) के कारण खाली गरीबी ना रहे, बसल्क के हु के बेटा बाहर ‘ससवा स’ करि रहे ि उ सम्िान के बाि रहे । प्रवास पररवार के देखभाल खासिर एगो रास्िा रहे आ खेिी िें िदद खासिर एगो जररया रहे । ’ एह प्रसंग िें इहो बाि ध्यान िें राखला के जरुरि बा जे एह अंचल से प्रवास के बड़ कारण िें से भूसिहीनिा, कि िजदूरी भा नकद िजदूरी ना, सािासजक भेदभाव आ दिन भी रहे । परु ान खसियान िें एह अंचल िें पलायन के कारण पर सबचार कईला के क्रि िें इहो बिावल जाला सक इहा​ाँ से बहरा जाके काि करे वाला िें से असर्कांश लोग नौकररहा आ ससपाही(सेना िें) बा । कहल ि इहो जाला सक सबद्रोह िें दस हजार से ऊपर ससपाही भोजपरु रया रहले । एह बाि के पीिे के बररयार कारण इहे बा जे 17वीं आ 18वीं सदी िें भोजपरु आ ओकरे लगे बक्सर फौजी ससपासहयन के भरिी के दू गो बड़ कें द्र रहे । भोजपुररया क्षेत्र के िैलंगन के बक्सररया कहल जाव । 18वीं सदी िें जब देस के बागडोर अंग्रेजन के हाथ िें आईल ि उहो सन िगु लकालीन परंपरा के रखलन जा । ओकसनयों के भोजपरु भा बक्सर से सिलंगहन के भरिी कर जा । इ बाि इयाद रखे वाला बा जे भोजपरु रया इलाका िें सेना के प्रसि एगो असजबे आकषा ण शरू ु वे से रहल बा । जेकरा सकहा​ाँ के सवांग ससपाही होखे भा आजवु ो होखेला उ पररवार गा​ाँव जवार िें बड़ा इज्जि से देखल जाला । कहे के ि​िलब ई बा सक एह इलाका िें प्रवसन के परंपरा भरिी भईल ि एसहजा के िवारी लोग के शौख रहबे कईल । एह संदभा िें पलायन के बडका कारण िें से दू गो घटना बहुि सजम्िेदार भईल । पसहलका कारण बा, पसहलका सबिजि ु के सिय 1914 के अकाल आ 1934 के भूकंप । भारि देस खासिर इ दू गो घटना बीसवीं सदी के बहुि बड घटना रहे । जउन एह इलाका के आसथा क दशा के सबगाड़ के रख सदहलस । ध्यान रहे सक इहे सिय सभखारी ठाकुर के भी उदय के सिय हवे । सभखारी ठाकुर के उदय से भोजपरु रया अंचल के पीड़ा के आवाज भेंटा गईल । परवसन िें शहरीकरण भी एगो बड कारक बा, एहिें कौनो दू

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पलायन राय नइखे सक शहरीकरण हिेशा से अभावग्रस्ि गा​ाँव के लोग के अपना ओरी नगदी िजूरी आ सिय पर भगु िान से खींचेला । िेहनि के फल अनाज के बदला नकदी से आ सिय से भगु िान के सोच के जन-िजदूर अभाव वाला जनिा आपना आसथा क आ सािासजक सस्थसि के सर्ु रे के आस िें पलायन क जाला । आजादी के बाद भी पलायन के इहे चररत्र किोबेश रहल बा । सभखारी ठाकुर एह ओरी अपना नायक से कहववले बाड़ें – “कहना िानs करब ना देरी

जल्दी भेजब सनेस बल-बसु ि से रोजे किाईब नकद िजूरी हरिेस” िालूि होखे सक भारि के असर्किर क्षेत्र िें आजवु ो िजदरू ी के बदले अनाज देबे के चलन रहल । अब इ हाला​ाँसक र्ीरे-र्ीरे कि हो गईल बा । भोजपरु ी सिाज िें एकरा के ‘बसनहारी’ कहल जाला । बहरहाल, सभखारी ठाकुर के सिय िें प्रवसन के जउन पररपाटी रहे, उ स्वेच्िा आ िजबूरी दनु ु के देन रहे ।

सन्दभश : 1. लेख-किस्थापन िा ददद और लेखि िा अंतर्द न, जीतेन्द्र भाकिया, िथादेश(र्ाकि​ि पकि​िा), िं । हररनारायण,िर्द -19, अंि-5, जुलाई 1999, पृ । 40-41 । (र्ूल कहंदी िे भोजपुरी अनुिाद – स्ियं) 2. कभखारी ठािुर रचनािली, पृ । 29 । 3. देखल जाि-किंह,धनञ्जय,भोजपुरी प्रिािी श्रकर्िों िी िंस्िृ कत,िी । िी । किरर राष्ट्रीय श्रर् िंस्थान,नोएडा-201301, उत्तर प्रदेश, पृ । 6-7 । (र्ूल कहंदी िे भोजपुरी अनुिाद – स्ियं) 4. देखल जाि-र्ाईग्रेशन एंड लाईिलीहुड इन कहस्िोररिल पिद पेकटि​ि : अ िे ि स्िडी ऑफ़ कबहार, इंकडया, अजद न डी हान (2002), द जनद ल ऑफ़ डेिलपर्ेंिल स्िडीज, 115-142 । (र्ूल अनुिाद अंग्रेजी िे भोजपुरी र्ें –स्ियं) 5. देखल जाि- चतुिेदी, जिदीश प्रिाद, किजी र्ें प्रिािी भारतीय, भारतीय िांस्िृ कति िंबंध पररर्द्, नईकदल्ली, िं । 1985, पृ । 153 । (र्ूल अनुिाद कहंदी िे भोजपुरी र्ें –स्ियं) 6. देखल जाि-लोिकप्रय िंस्िृ कत िा द्वंद्वात्र्ि िर्ाजशास्त्र,िंदभद : कबदेकिया, चंरशेखर, अनु । एिं िं । िोपाल प्रधान, िांि, जिर्, इलाहाबाद 211001, प्र । िं । 2011,पृ । 30-31 । (कहंदी िे भोजपुरी र्ें अनुिाद-स्ियं) । 7. देखल जाि-लोिधर्ी नाि् य परम्परा : कभखारी ठािुर िा नाि् य िाकहत्य, पीएच । डी । 2008(कद । कि । ), अप्रिाकशत(कहंदी िे भोजपुरी र्ें अनुिाद-स्ियं) ।

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केहू ना तोहार

का​ाँहे दिदकर सुगना

का​ाँहे प्रीि लगावे िन ? कुि ना िोहार। सब साज ससंगार हाथ के जेवनार िूसट जाई सब कुि के हू ना िोहार॥

का चाहीं, का ना चाहीं

कई लोग का​ाँर्े िोहार चसढ़ िोसड़ जाई

एकर सफसकर िू का​ाँहे करे सगु ना। राह चलि जा सदन-दपु हरी सा​ाँझ ढ़ली ना ढ़ली का​ाँहे सोचे सुगना । का​ाँहे सफसकर सगु ना ॥

बा​ाँची जे िोहके का​ाँर्े िोसड़ आई। के हू ना िोहार॥

जवन सिललऽ िवने िोहार हऽ पथर हऽ ई सक

सदन साल लगा के

हवे फूल सगु ना।

गा​ाँठ जेवन जोड़लऽ िू

का​ाँहे सफसकर सगु ना॥

लोग गा​ाँठ सब एक-एक रोज िोड़ाई।

िन सचरई हऽ िन के ना सनु ऽ

के हू ना िोहार॥

िन ललची कुि ना कुि िा​ाँगी सुगना।

सप्रय-असप्रय िू जेकर रहलऽ

का​ाँहे सफसकर सगु ना॥

उहो सब िोहके प्रेि बना के घर दआ ु र सब िोहसे िोड़ाई।

के हू ना िोहार॥

राजीव उपाध्याय बत्रिया, यू. पी. के रहे वािा राजीव उपाध्याय जी भोजपुरी िें कत्रवता के सृजन िगातार कर रहि बानी। भोजपुरी पत्रिकन के साथ भी इहा​ाँ के जुि​ि बानी। ए घरी राजीव जी कदल्िी िें रह रहि बानी आ काययरत बानी।

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कलकतवा में वपयवा बारे लालटेन (शवश रं जन वमश्र )

ईकायीं के सनु ल एगो गाना इयाद बा । रेसडयो पे सनु े के िौका सिलल रहे । गासयका के नाि ठीक से इयाद नईखे सक के रहे... सायद सवंध्यावाससनी देवी भा ससिेस्वरी देवी । बाकी गीि के बोल सनु ी के इहे बुझाईल की आपन गा​ाँव-जवार-िाटी-पानी आ पररवार के िोड़ी के दूगो रोटी के जोगाड़ िें लोग कहा​ाँ कहा​ाँ ना गईले आ कवन िरह के काि ना कईले । गीि के दू लाइन- "कहा​ाँ से आवे साहब बहादरु , कहा​ाँ से आवे िेि... कलकिवा िे सपया हिरे बारे लालटेन" ओह सिय के लोगन के सािासजक सस्थसि, दसा ददु ा सा सभे के बिा रहल बा । आ खाली इहे गीि ना अईसन ढेर गीि बनल जेह िें ओह घरी के हालाि के वणा न रहे । चाहे भोजपरु रया क्षेत्र के लोकगीि भा सूरीनाि खासिर रवाना होि जहाज िें बंर्ाईल िन के हूक िें देस के िुटल आ परदेस के रोटी के जुगिु िें भल ु ाईल घर-पररवार के चचा​ा बा । रोटी ि आपन देस िे भी बा बाकी दू रोटी असर्का के लालच भा िजबूरी िे लोग परदेस के राह र् लेले । रोजी रोटी के खोज िें परदेस के राह पकड़ल कवनों नया नईखे । कलकत्ता भारि के पसहलका व्यापार के न्द्र बनल । अंगरेजन के भारि पे कब्जा िारे के पसहलका उिजोग एसहजे से भईल । अंग्रेज़ सब के राज बढ़ोिरी के साथे प्राकृसिक सम्पदा के लूटे के एसहजा खूब िौका लउकल । आ ई खाली भारि के ही बाि ना रहे, ढेर देसन िें एहनी के इहे काि होि रहे । आपन राज्य के सवस्िार िें अंगरेजी हुकूि​ि हर िरह के हथकं डा अपनवलस । व्यापार के नाि पे, कल कारख़ाना के नाि पे, रोजगार देवे के नाि पे हरेक देस आ ओसहजा के लोगन के खून चस ु ाईल । इंहा िक की जब िॉरीशस ,सूरीनाि आ सफ़जी जईसन देस .के अपना सहसाब से दहु े के खूब कोससस भईल । प्रकृसिक सम्पदा ि रहे बाकी एह संपदा के लूट के अंगरेजन के झोली िें डाले खासिर िजूरन के जरूरि रहे । जे खाये कि आ िासलक के किा के जादे दे । सरु​ु आि िें कुि भारिीय व्यापारी , बढ़ई , लुहार जईसन कािगार लोग गइल बाकी ओसहजा जाके बंर्आ िजूर बन गईले । सन 1798 से लेके ु सन 1808 िक ई बंर्आ ु िजूरन के कबूिर बाजी चलि रहल । िई 1816 िें िौररसस के गवना र के आदेस पे एसहज से गइल बंर्आ ु िजूरन के आजादी ि सिलल बाकी आपन देस के राह भल ु ा गइल । ओह आदेस के बाद भारि से िजूरन के लावे पे रोक लगा सदहल गइल रहे । 1817 िें ओसहजा से कुि लोग लवट पाइल । ओह घरी ले अंग्रेजन के भारि पे सत्ता पे लगभग कब्जा हो गइल रहे । बाकी अभी भी एह देसन के सवकास खासिर िजूर वगा के © आखर ● मई , 2015 ● 22


आउरी जरूरि रहे । िौररसस के गवना र के प्राथा ना पे ईस्ट इंसडया कं पनी एसहजा से भारिीय कै दी सब के भेजे लागल , आ ई लोग भी ओसहजा बंर्आ ु िजूर बन गईले । सन 1833 िें जब सब्रसटस सरकार दासिा प्रथा पे रोक लगवलस िब एह िजूरन के किी भईल आ ओह किी के पूरा करे खासिर अंग्रेज़ चाल चलले कं टरेक्ट आ एग्रीिेंट पे पा​ाँच साल खासि िजूरन के भेजे के । परचार भइल की सबदेस िें नौकरी सिली । कं टरेक्ट पा​ाँच साल खासिर रही, आवे-जाये के सटकस, पा​ाँच रोपेया िसहना के िजूरी , छ्व िसहना के िजूरी पसहलही सिली , िजूरी िें से एक रोपेया कटाई जे पा​ाँच साल के बाद एके साथे 60 रोपेया सिली , राशन -कपड़ा आ िकान सभे िफ ु ु ि जईसन लालच पसारल गइल । भारि के ओह सिय िें टुकड़ा टुकड़ा िें बंटाईल रजवाड़ा आ ओहपे सनरंकुस सासन बेबस्था , रोजगार के किी एक बड़ा िजदूर वगा खड़ा का देले रहे । आ इहे कारण भईल की लोग दू रोटी आ आगे के सनिन होि सजंगी के सपना देखि अंग्रेजन के कं टरैक्ट आ एग्रीिेंट पे अंगूठा लगा सदहले । जेकर कं टरैक्ट बनल उ कं िाकी कहाईल आ जेकर एग्रीिेंट रहे उ सगरसिसटया बन गइल । चौदह पानी के जहाज के काल कोठरी िें भरल भारिीय िजूरन के भाग के डोरी िौररसस के बंदरगाह पे बंर्ा गइल । उ जिरा कईसन रहल आ उ पा​ाँच साल कईसे गज ु रल एकर दरद सूरीनािी आ िौररसस के गीिन िें भेंटा जायी । सरनािी गीिकार आ गायक राजिोिन जी के एक गीि के बोल देखीं कोई आाँसू पीके रहेगे कोई आड़े िेन सससके है रौई हे िायी बाबा ठीहा िन िे र्री है चलल जब जहसजया कलकत्ता के सकनारे िुटल सब ररस्िा नािा भगवान के सहारा सनकरले सरनाि के ओरे नवा नवा िकदीर से नािा जोरे कईसन हवा अब चली दईु िट्ठु ी एक सदन िजूरी पेट के आग बझ ु ावे खासिर ही लोग अंग्रेजन के सेना िें भी

भिी भईल आ अपने लोगन पे गोली दाग देलस । िंगल पांडे के कथा सभके िालूि बा, बाकी ओह सवद्रोह के बाद भी अंग्रेजन के हुकुि बजावल आ रोटी खासिर ओहनी के गल ु ािी कइल ना िुटल । अब चाहे एकरा खासिर लोग सवि यि ु िें भी अपना के झोंक सदहले । अससक्षा, लाचारी के िारल लोग ही कलकत्ता के राह र्ईले । इिे कलकत्ता आज िक ले के िना के पे पाल देलस । आजो कलकत्ता के बन्दरगाि, कारख़ाना , रेलिई, कोइलरी, िोिल्ला, सड़क, पाकश सभे जगिा रोजी रो ी के हचंिा िें िाड़ िुड़ि, आपन गा​ाँि घर के त्याग के लोगन के भीड़ लऊक जाला । आ एि भीड़ िें आपन भोजपुरी प्रदेि के लोग कुछ ज्यादे िी भें ा जईिन । काि कावनों िरह के होखे , करे िें सरि कईसन ? परदेस िें के देखि बा ? गा​ाँव के खेसिहर जिींदार बाबू साहेब कलकत्ता िें कुलीगीरी भी कर लेस ि के देखेवाला बा । आ कलकत्ता के आर्सु नक रहन सहन के सवदेस के दजा​ा अईसहीं ना रहे । र्नी बंगाली बाबू लोग के घोड़ा वाला सफटन गाड़ी ि िनी कि आिदवाला खासिर हाथ ररकसा जवना िें आदिी जानवर बनी के सखंचि होखे । सभे ठाट रहे । सड़क के सकनारे राि िें लालटेन के रोशनी खासिर िेल डाले के काि भा सड़क के र्ूर के पानी सिररक के दबावे के काि करे िें लोग कभी कि ना बझ ु ल । आ इहे ना जब इ लोग गा​ाँवे लवटे ि आस बखान करे सक अगर इ ना रहिें ि िय कलकत्ता अनहार रसहि भा र्ूर िे उसर्या जाईि । शायद इहे भाव एह लोग के िहरारून के भी आइल होखी । िबे ि बिावे िें के िना गवा के बाि बा सक- "कलकत्तवा िें सपया िोरे बारे लालटेन..." एही भोजपरु रया सिाज के आपन अलग पहचान भी बनल । ए बी सी डी (आरा बसलया छ्परा आ देवररया ) प्रदेश के लोग असड़यल आ लाठी चलावे िें आगे रहे । अब कोइलरी ,कल-कारख़ाना , साहेब लोग के कोठी हर जगहा पे इहे लोग के िैनािी रहे । अबहुओ ं पसि​ि बंगाल के आसनसोल, अंडाल के कोइलरी इलाका िें इ बाबू लोग के िूिी बोलेला । आजादी के बाद देस के दसा बदलल कलकत्ता जईसन आउरी सहर (शहर) के राह खल ु ल । िंबु ई, िद्रास , सदल्ली अइसन लोग के नया सठकाना बनल जे रोजी रोटी के िलास िें भटकट रहे । लोग नया परदेस िे नया कारीगरी नया हुनर

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ससखि दसु नया िें आगे बढ़े लगले । सशक्षा के नाव पे अब इहे लोग सिंदु र भी लांघ अईले बाकी अबकी बंर्आ ु िजूर ना बसल्क कुसल कारीगर बनी के । आज एही क्षेत्र के लोग हरेक क्षेत्र िें आपन हुनर आ कारीगरी के लोहा िनवा रहल बा । गल ु ािी के ससक्कड़ से िूटिे सभे के सदन दसु नया बदल गइल बा । कबो "पसनया के जहाज से पलटनीया.... " वाला गीि िें आपन सोहाग के आवे के िनावि िेहरारू लोग खासिर बाजार

मात-ृ दिवस नुरैन अंसारी

अब घरे आ गइल । अब रोपेया पसीना के राहे आवेला ि परदेस अब परदेस ना बझ ु ाये । देस सबदेस के दूरी अब कुि घंटा के रह गइल बा अयीसन िें कवनों िेहरारू के गीि गाके "रेसलया बैरन सपया के लेई जाय रे..." ना कोसे ला लोग बसल्क नवकी दल ु सहसनया खुसी खुसी आपन सवांग के परदेस नौकरी भेजे ले ।

ओरहन गोरख मस्िाना

कौनो भी ररश्िा से उनका किी के भरपाई न होई , के हू के िनो करी दल ु ार बासकर िाई न होई !

आग लागल भाग िें, घर फूस खर के जर गइल का हो ! असगनी देव िोहरी पेट एह से भर गइल

लाख िस ु ीबि सही के भी जे अपना कोख िें पालल अपने ठोकर खा के जे हरदि हि के सम्भालल , ओकरा से बढ़ के दसु नया िें के हू दाई ना होई के हू के िनो करी दल ु ार बासकर िाई न होई !

सा​ाँच हऽ बररयार के साथे सहारा लाख िें झोपड़ी ला दया दरकल आज िोहरी आाँख िें रूप र्ूर्ू भयानक देखीं के दूसनया डर गइल

िाई के ि​ि​िा के आगे फीका ह हर सपररसिया जे भूखे ली औलाद खासिर सजनगी भर खर-सजउसिया , वोकरा अंचरा से बढ़ के कौनो परिाई न होई के हू के िनो करी दल ु ार बासकर िाई न होई ! हर र्ाि से बढ़ के ह िाई के चरण-र्ाि करब पूजा िाई के न होखब कबो नाकाि , दुःु ख देबs अगर िाई के ि िहार भलाई न होई के हू के िनो करी दल ु ार बासकर िाई न होई !

ढ़ेर िें राखी के रघआ ु सनहारे िकदीर के जरल बकरी अर्जरल झबरा बढ़वलस पीर के जीयि जी सजनसगए िें सनरर्न बेचारा िर गइल ना रहल िड़ई पलानी, िान िप्पर ढ़ह गइल कुि बचल ना, सजयेला बस लोर आाँसख रह गइल काल्हु िक राजा रहे जे आजु दर बदर भइल जर गइल डेहरीं बखारी, र्न गेहूाँ जौ जरल भूख से लइकन के िहुाँ , लउके ला जस िरु दा िरल सभे दू रोटी ला दूलि, नून ला हेहर भइल देह पर लगु री ना लउके , अाँग िोपल भार बा लोर असखया​ाँ से पराइल, अजब िोहरी िार बार्ार िें सि​िरा गइल, सपना कुल्ही पिझर भइल।

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िु

ताला लटका रे ! िेसर दआ ु रे पर से सचसचअसयले- “ िनी एक लोटा पानी ले-आव हो I ” िाथ प के लूगा सररहावि ससबिरी के िाई लोटा िें पानी आ बिासा लेले दआ ु र पर सनकसली I

“का भईल ह? बाि कुिु आगे पड़ी बढ़ल?”

सिु ेसर गि​िा से सललार पर के पसेना पोंि​ि कहे लगले, “फाइनल हो गईल I खाली सदन के लेके बाि रुकल बा I उहो फाइनल हो जाई I बैसाख िें एगो लगन बा I बाबाजी से पूिनी हा, उ सदन बहुिे नीिन बा I” सिु स े र अपना गा​ाँव के एगो नीिनाह सकसान रहले I दस सबगहा पर खेिी करि रहले I इज्जि-बरोह, िीज-िेवहार, नूनिेल, सब खरचा उनक ु र खेसिए पर अंटकल रहि रहे I बेटी सेयान हो गईल रहे I सबयाह के सचंिा िें रासि के नीसन उसर्याई गईल रहे I हीि-नाि के सहयोग से दूरर के सहिईये िें सबयाह ठीक हो गईल I बैसाख के अंजोरा िें सि​िी के सिलक आ चिुदासी के सबयाह के सदन र्रा गईल I सिु ेसर खेि के डाड़ार पर खाड़ हो के गोहू ाँ के अर्पाकल बासल नीरेखि-नीरेखि जागिे सपना िें डूसब गईले I ओसारा िें बोरा के िल्ली लागल बा I अभी गोहू ाँ के भाव नईखे खुलल I बैपारी र्उरि बाड़े सs I एक हफ्िा अवरू देसख के सबक्री होई I एक हफ्िा िें भाव कुिु उंचा सिल जाई I “सहर से गल्ला वाला गप्तु ा जी आईल बाड़े I एक हफ्िा बाद वाला रेट पर िांगि बाड़े I दे देि बानी I”

टेक्टर पर बोरा लादासयल बा, गप्तु ा जी रूपया के गड् डी हाथ िें र्रावि बाड़े –“गीसन ल सिु ेसर भाई ! सहसाब अपना जगह, बेहवार अपना जगह, आ एगो अउरी बाि, सुसि​िरी के सबयाह खासिर कवनो चीझु के दरकार लागी ि हि बानी I” दआ ु र पर बररयासि लागि बा, अंगरेजी बाजा बाजि बा, दआ ु ा के िेयारी करवावि गप्तु ा जी लगे आइके कान िें ु रपज हाँसस के कहिारे, “ दािाद ि एकदि राि जी अस खोजले बाड़s ! “ ससु न के करेजा अघा गईल I भण्डार-कोन कररया-अन्हार भईल बा बझ ु ािा जे बसु ढयाआन्ही आयी I गोहू ाँ के बासल बनउरी के िारर से सबर्नु ाई गईल बाड़ी सs, िये फ़सल िअ ु ला िदु ा​ा अस जिीन पर सूसि गईल बा, खेि पानी से भरल बा, बासल िें के अर्पाकल अनाज पानी से फूसल गईल बा I सगरे से डाठ आ अनाज के सड़ांर् उठि बा I

सिु ेसर के िये सपना बसु ढ़या-आन्ही उड़ा ले गईल I ससु ि​िरी के अनकहा रंगीन अरिान पर बनउरी के उज्जर चद्दर बीसि गईल I सिु ीिरी के िाई के चौका-बिा न के भोरेभोरे होखे वाला खटर-खटर के आवाज़ नईखे आवि I सनु े िें आवि बा, सिु ेसर बाहारा किाए गईल बाड़े I सिु ेसर के घर पर िाला लटकल बा I

हृत्रिके श चिुवेदी बत्रिया युपी के रहे वािा हृत्रषके श जी , आखर पेज से शुरुवात से ही जुडि बानी , ठे ठ भोजपुरी आ भोजपुरी के खांटी शब्दन प बकढया पकड , गीत कत्रवता गजि त्रिखेनी , एह सिय इाँहा के किकत्ता िे काययरत बानी ।

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तीसरा मोचा​ा श के िहान परब लोक सभा चनु ाव होखे वाला रहे । हि आपन ऑसफस िें चनु ाव के िइयारी िें लागल रही । चनु ाव करावे वाला लोग के भेजे खासिर सूची बनावि रही । सूची िें इहो र्ेयान सदहल जाि रहे सक किा चारी के कुि ससु वर्ा भी रहो । बाकी कुि सिय के बाद इहो सनयि हटा सदहल गईल कारण सक उग्रवाद प्रभासवि क्षेत्र िें के हू गईले ना चाहि रहे । सूची बसनके िेयार भईल । सूची पढ़ी के किा चाररयन के कोसल शरू ु हो गईल । हिही रहनी हा ओने जाये वाला ? बाकी हि का करिी सभकर कोसल सनु के चपु चाप रही । उग्रवाद क्षेत्र िें जाये वाला दल के एक साथ खड़ा कऽके सिझावल गईल सक वोसहजा पहुचके गा​ाँव के के हु आदिी से कुिुओ लेबेके नईखें आ ना ही वोसहजा कुिुओ सकन के खायेके बा । सभ के हु आपन खाना लेके जाई । आ चनु ाव के दू सदन पसहले सबेरे ऑसफस के सािने से बस खुली । सनयि सिय से सब के हु के आ जायेके होई ।

दे

नोकरी आ चनु ाव जइसन सडयूटी के डर से सभ के हु सिय से आ गईल । बसो सिय से खुल गईल । वोह बस िें हिार एगो नजसदकी किा चारी रैना जी रहले । उ अिना डेराईल रहले सक राहिा के हर एक घंटा के सािाचार हिरा के िोबाइ्​्ल प देि रहले । बस खुलला के बाद शहर के बहरी बस रूकल आ सभ के हु जलपान कईल । बस चलल सभ के हु के चेहरा से डर के अंदाजा लगावल जा सकि रहे । उग्रवाद क्षेत्र िें प्रवेश करे से पसहले एगो लाईन होटल प रूक के सभ के हु खाना खाईल । वोसहजे सभ के हू एक साथे बोलल सक चलऽ भाई खशी के िाई कब ले खरसजउसिया िनाई । चलऽ चली जा आजूये हिनी के सजनगी के आसखरी सदन बा । के हू कहे सक अरे काहे

डेराि बाडऽ भाई िरबो करब स ि सरकार सजनगी सजये खासिर हिनी के पररवार के पईसा दे सदही अरे आसखर हिनी के पररवारे खासिर नु नोकरी करि बानी जा । असही सब के हू एक दोसरा के सहम्ि​ि बढावि रहे । थोडही देर िें बस खुल गईल । बस िें सभ के हू के दूनो हाथ आपस िें सटल रहे शायद सबके हू भगवान से इहें प्राथा ना करि रहले सक सही सलाि​ि आपना आपना बथु प पहुचाँ जाव । िबही गोली के िड़िड़ाहट से पूरा जंगल गंज ु े लागल । बस लड़खड़ाि सड़क के एक ओरी जाके एगो फे ड से लसड के खाड़ हो गईल । जब सभके होश आईल ि देखल सक बस के आगे के शीषा चकनाचरु हो गईल बा । चालक आपन स्टेयररग प ढेर हो गईल बा । सभ के हू के काटऽ ि खनु ना । सभ डेराईल आपन-आपन सीट प र्सल जाि रहले । िबही एगो डेरवावन लउकि उग्रवादी आपन हाथ िे बन्दूक सलहले , बस िें बईठल लोग के ओरर िनले, बस के के वाडी के लगे आईल । ओकरा साथे खाड़ दोसर उग्रवादी रोबदार बोली िें बोलऽलस ‘‘ अगर जान के सलाि​िी चाहि बाडऽ लोग ि हाली से के वाडी खोलऽ, हिनी के लगे सिय नईखे । ‘‘ डर के िारे सभ के हू के सघघ्घी बन हो गईल । पसहले ि सभ के हू एक दोसरा के िहु िाके लागल । बस के खलासी कवनो राहिा ना देसखके बस के के वाडी खोल सदहलस आ दूनो उग्रवादी बस के भीिरी आ गईले । वोह िें से एगो उग्रवादी कठोर बोली िें बोललस ‘‘ के हू चालाकी ना करर, हिसनके बाि र्ेयान से सनु ऽ, आ वोह प अिल कर । ना ि फोकट िें िारल जईब लोग । हिसनके साथी बगल के खेिऽन िें लक ु ाईल बाड़न , आ बस के चारो ओरर से घेरले बाडन । हिसनके दईु ये आदिी ना सिझल जाव

डा॰ उमेश जी ओझा जिशेदपुर झारखंड के रहे वािा डा. उिेश जी ओझा , त्रपत्रछिा कई साि से भोजपुरी िे त्रिख रहि बानी । इाँ हा के सैकिन िेख कई गो अिग अिग पि पत्रिका अखबार िे छत्रप चुकि बडु वे । पिकाररता िे त्रडप्िोिा के संगे संगे एि काि भी कईिे बानी आ एह घरी जिशेदपुर िे रत्रह के झारखंड सरकार के सेवा दे रहि बानी ।

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। ‘‘ उग्रवासदयन के बाि ससु नके सभ के हू के चेहरा के हवाई उड़ गईल सक कब का होई, के कर जान जाई, के करा से पईसा सिनाई िालुि ना । सभ के हू के देही से हर-हर पसीना सनकलि रहे । िबही एगो उग्रवादी गरजल सक ‘‘ ई ईलाका हिसनके ह एसहजा हिसनके चलेला । सरकार हिसनके उपर इनाि रखले सबआ । बासक हिसनके आि लोग से पेयार आ दल ु ार से पेश आवेनी जा । जे हिसनके पेयार ना सिझे ला ओकरा के हिसनके नफरि से सिझावेनी, नफरि के ि​िलब बझ ु ाला ना ि सिझल सक किल से ‘‘ । दोसरका उग्रवादी डरावना हंसी हंसि सचल्लाईल, ‘‘ हिनी के करनाि रोज अखबारन िें िपि बा । आजू के घटना काल्हू अखबार िें िपी जे बाची से पढी । अब हाली से अगड़ी जासि के लोग सीट िोडी के खाड हो जाउ, हिनी के उनका साथे नरिी बरिब जा । ‘‘ ई बाि ससु नके सपिडी जासि वाले लोग डेराये लागल सक जान के खिरा बा, उग्रवादी अगडी जासि के बझ ु ाि बाड़न ।

अगड़ी जासि वाला सहज भाव से आपन-आपन सीट िोसडके खाड हो गईल । एह प एगो उग्रवादी सचल्लाईल ‘‘ के हू सपिड़ी जासि के ि नईखें खाड भईल ? भेद खुली ि उ िारल जाई । ‘‘ एकरा प एगो सरु शे बाबू र्ड से िाफी िांगि आपना सीट पर सट गईले । जेकरा प दोसरका उग्रवादी, सरु शे बाबू के एक चटकन िारि कहलस सक चलऽ िु िरु गा बनऽ । ओकरा बाद उ बस के भीिर जासि के पहचान करे लागल । बासक सभ के हू ि ओकरा एके लेखा लागल काहे सक के करो चेहरा प थोडे सलखल बा सक उ अगडी भा सपिडी जासि के ह । ओहनी के चाल चलन से सभका भीिरी डर बढल जाि रहे । बंदूक सलहल उग्रवादी ‘‘ ठीक बा सभ खाड आदिी के पहचान हो गईल बा । सभ के हू जे भी रूपया पैसा सलहले होखे हिार साथी के दे देव । जे ना सदही िारल जाई । ‘‘ बस िें बईठल लोग के सविास भईल सक उग्रवादी अगड़ों के ना हवन । उ लोग सहज िहसूस करे लागल । बस िें खाड अगड़ी जासि के लोग डर के िारे आपना पासे राखल रूपईया पैसा उनका के दे सदहले ।

उग्रवादी फे रू बोलऽलस ‘‘ सपिड़ी जासि के लोग बडी खस ु लागि बा, चलऽ िु लोग भी रूपईया पईसा सनकाल के हिार साथी के दे द । ‘‘ अगड़ी जासि के लोग खुस भईल सक चलऽ उहे ना सपिड़ी जासि के लोग भी लुटा गईले । िबही दोसरका उग्रवादी ठहका िाररके जोर से हंसलस, ‘‘ हिसनके अईसही अगड़ी-सपिडी के बांटी के लटु ेनी जा । िहनी लोग चनु ाव करावे जाि बाड जा , हिसनओ के देस के सरकार, राजनीसिक पाटी आ नेिा लोग से ई सभ ससखले बानी जा । हिसनके के करो सिथा क नईखी जा । ‘‘ अब सभ के हू सिझ गईल रहे सक उ लोग लुटेरा ह राहजनी करेला । एही बीच एगो लुटेरा, ‘‘ चल अब औरिन के बारी बा , िु लोग िास्टररन हउ चनु ाव करावे जाि बाडू ई कान आ नाक िें जवन थोड बहुि गहना पसहनले बाडू दे दऽ । के करो साथे कवनो नरिी ना बरिल जाइ । ‘‘ असगला सीट पर चपु चाप नया नोकरी लागल एगो िास्टररन रंजु के देखी के लुटेरा सचल्लाईल, ‘‘ अरे िे काहे चपु बासडस ?‘‘ ि का करर लउकि नईखे सक हिरा पास कवनो गहना नईखे । ना कान िें ना गरदन िें ना अंगरु ी िें ‘‘ रंजु बोलली । अरे चल ‘‘ के कहि बा सक िहरा लगे गहना नईखे इजिो एक िरह के गहना है । चलऽ अबही हिसनके उहे ढेर जरूरि बा । ‘‘ ‘‘ चपु रहऽ , का िहनी के बसहन बेटी नईखे ? ‘‘ रंजु सबना कवनो डर के बोलली । ‘‘ िु देखल चाहि बाडू हिसनके िाकि ऐसहजा सहजडन के फउज बा िहरा के के बचाई । ‘‘ आ रंजु के खाड क सदहलस । बस िें बईठल सभ के हु चपु चाप आपन-आपन जान जाये के डर से देखि रहल । ‘‘ चलऽ ना ि िोरा के उिार के सभ के हू के जान िार देब । ‘‘ ‘‘ सभ के हू के काहे, हिरे के िार दे, एगो गरीब आ लाचार अउरि कि हो जाई एह दसु नया से । ‘‘ दोसरका लुटेरा गरजल ‘‘ अरे िु कांहे आपन जान देबे प िुलल

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बाडु ? िरे दे इ लोग के , आपन जान जाये के डर से िहार इज्जि भी लुटवावल चाहि बाड़न, ई लोग िरद ना अउरि ह लोग । ‘‘ एह प िरद लोग डर से सख ु ाईल आपन होठ प जीभ फे रे लगलन । उ लोग के उ लइकी बसढया लागल । जे आपन इज्जि देके उ लोग के जान बचावल चाहि रहे । सब के हु एक दोसरा के िंहु देखे लागल । िबसह एगो बन्दूक सलहल वोह लईकी से पूिलस ‘‘ अरे िु कवन जासि के हउ । ‘‘ ‘‘ िहरा जाि पाि से का लेवे के बा इजि के कवनो जाि ना होला । अगड़ो के इज्जि लुटल सक सपिड़ो के । ‘‘ ‘‘िब ि बस िें बईठल सभ अउरिन के इज्जि लुटब जा, काल्हू के अखबार िें िपी सक उग्रवादी अगड़ी आ सपिड़ी जासि के अउरिन के इजि लुटले आ जान िार सदहले । ‘‘ अगड़ी आ सपिड़ी जासि के सिथा क आ उग्रवादी संगठन हिनी जईसन सिसरा िोरचा के संगठन के कारनािा से थरथरा जईहे । ‘‘ िबही िरु गा बनल सरु शे बाबू खड़ा होके सगडसगडाि ,‘‘ उग्रवादी जी हि एह देश के बेरोजगारन के फउज के एगो बेकार

ससपाही हई । हिरो के आपन र्ंर्ा िें शासिल कर सलही । आपन िदाद बढाई । बेकार िें हिार जान लेके का करीब ?‘‘ ‘‘जान बचावे खासिर का देबऽ ?‘‘ ‘‘एगो बोिल आ एगो पोलीथीन शराब के झोरा िें रखले बानी राहजनी क के । ओकरा के पी के आपना भीिरी के आगी ठंढा करी । ‘‘ लटु ेरा शराब के बोिल आपन िहंु िें उलटे लागल । िबसह उ बहादरु लईकी उ लोग के जोर से र्सकया सदहलस । लुटेरा लडखड़ा गईले । एह प सरु शे बाबू अईसन लाि िरले सक जईसन गेन्दा खेले खासिर िारल जाला । लुटेरा के हाथ से बन्दूक फे का गईल, पीिे से बस के खलासी वोहनी के घससटलस आ आपन आगोस िें दबोच सलहलस । बस िें बईठल सभ के हू िें िाकि आ गईल आ सभ के हु सिलके दनु ो लुटेरा के दबोच सलहले । िार खाके उ लोग बेहोस होखे लागल । सभके भीिर बईठल जासिगि भावना खि​ि हो गईल रहे । खलासी बस िेजी से चलावि दनु ो लुटेरा के नजदीक के थाना िे देि सभ के हु के चनु ाव करावे खासिर उ लोग के सिय रहिे स्कूल (बथु ) िकले पहुचा सदहलस । दोसरा सदन शांसि से चनु ाव करवा के उ लोग सकुशल लउट आईल ।

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बंगाल सबू ा में शोरा के व्यापार

िोटो िाभार : पी.राज सिंह

िनी के आपन स्थानीय इसिहास से किना अनसभग बासन जा ? हिनी के सविसवद्यालयन िें कइसन इसिहास पढ़ावल जाला ? यसद हि कहीं सक डच आ अाँगरेज़ व्यापारी रउरा गा​ाँव से आदिी आ जनावर के िल िूत्र राख , रेह , पअ ु रा आसद ढोके बारूद बनावि रले हन आ ऊ बारूद फे र रउवा सखलाफ इस्िेिाल होि रहे , ऊ बारूद एसशया , अफ्रीका आसद देशन िें व्यापाररक सहि के बढ़ावे खासिर , ओह देशन पर कब्जा जिावे खासिर इस्िेिाल होि रहल हां ि रउवा शायद सबस्वास ना होई । लेसकन ई बाि शि प्रसिशि सा​ाँच बा । कई प्रकार के असभलेखन के गहराई से अध्ययन कईला पर ई बाि स्पष्ट हो जाि बा । अइसे ि िर्ु लकाल के अंसि​ि सिय िे आ आर्सु नक काल के प्रारम्भ िें यसद कवनो यूरोसपएन के स्िसृ ि अवशेष सम्पूणा भोजपरु रया क्षेत्र िें कहीं लउके ि आाँख बंद कई के सनपकषा सनकाल सलसहं की ऊ लोग ई िीन िें से कवनो एक भा

सभ काि करि रहल ह । ऊ िीन काि रहल हां , अफीि , नील भा शोरा के व्यवसाय । ई िीनो चीज सवि व्यापार के वस्िु रली हां सन ।

एह लेख िें शोरा के व्यवसाय से जडु ल बाि के जानकारी हि देबे के प्रयास करेब । शोरा का ह ? एकर उत्पादन कइसे होि रहल ह ? एकरा से बारूद कइसे बनावल जाि रहल ह ? डच आ अंग्रेजन िें कइसन प्रसिस्पर्ा​ा त्िक व्यापार होि रहल ह आसद सब बाि पर भी कुि सवस्िार से चचा​ा कईल जाई । आ स्थानीय इसिहास सवि के इसिहास से के िरह गहराई से जडु ल बा ई भी प्रकाश िें आयी । आज के िपरा के भूसि पर डच नागररक सब के िात्र दू गो स्िसृ िसचन्ह रह गईल बा । एक , िपरा के पसि​ि उत्तर के िरफ बसनयापरु जाए के रासह िें डच सेिेिी ( कब्रगाह ) जहां एगो िक़बरा लगभग िीन सौ बररस से एही िरह खड़ा बा । ई िक़बरा डच ईस्ट इसण्डया कं पनी (VOC , Verenigade

पी राज त्रसहं छपरा , त्रबहार के रहे वािा पी राज हसंह जी आर एस कािेज त्रसवान िे एसोत्रसयेट प्रोिे सर बानी , नया तकनीकी से जुि​ि अपना िातृभाषा खात्रत हर तरह से िागि भीि​ि , अपना त्रवशेष कै िरा से जवार के हर पहिू के कै द करत भोजपुरी भाषा के एगो सात्रहत्रत्यक किात्िक उं चाई दे रहि बानी । एह घरी इाँ हा के छपरा िे बानी ।

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Oostinische Companie ) पटना भाग के प्रर्ान Jacobus Van Horn के ह । ई बाि सारण गजेसटयर जवन एगो अाँगरेज़ आई सी एस असर्कारी द्वारा सन 1905 िें सलखल गईल बा के पृ ० 146 पर दजा बा । कररंगा गा​ाँव यादव बहुल गा​ाँव ह आ सन 1712 िक डच सब के अर्ीन रहल ह । ऐही गा​ाँव के चौहद्दी िें कब्रगाह बा जहा​ाँ सब यूरोप के लोगन के दफनावल जाि रहे । दस ु रका सनशानी बा , िपरा के प्रससि सजला स्कुल जहां से देश के पसहलका रापिपसि राजेंद्र प्रसाद िैसिक िक के पढाई कईले आ पूरे बंगाल सूबा िें प्रथि अईले । के हु के िन िें ई प्रश्न स्वाभासवक रूप से उठ सके ला सक आसखर ई डच के रले हन ? आ साि सिन्ु दर के पार के देश से आ के िपरा अइसन िोट जगह िें का करि रले हन ? खोज शरू ु भ गईल । किना परु सनया लोग से पूिनी बासकर के हु कुि ना बिा पावल डच सब के बारे िें । हिनी िें एगो सबसे परु ान सशक्षक बानी 84 वषीय , उहा​ाँ से जानकारी सिलल की चम्पारणे ना उनकर बाबू जी के ज़िाना िें उनका गा​ाँवे भी नील के खेिी होि रहल हां । िाने ई भईल की भोजपरु रया क्षेत्र िें नील भी अंिरापिीय व्यापार के वस्िु रहल हां । र्ाज़ीपरु आ आस पास के इलाका िें अफीि के खेिी होि रहल ह । शायद सरकार से परसिट लेके भा चोरी िुपा के आज भी होला । र्ाज़ीपरु िें अफीि के कारखाना भी रहल ह । िाल ढोवाई गंगा आ सरजू नदी के िागा से कलकत्ता के हुगली िक होि रहल हां । चीन िें अफीि यि ु के चरचा करि अंग्रेजी सहंदी के उपन्यासकार असि​िाभ घोस आपन उपन्यास सी ऑफ़ पॉसपज (अफीि ) िे एह सम्बन्र् िें सलखले भी बाड़े ।

िपरा िें अंग्रज़ े न से पसहले अईले । डच एगो साहसी , जोसखि उठावे वाला व्यापारी रहले । टैवसना यर फ़्ांसससी हीरा के व्योपारी रहले । ऊ 1666 िें पटना के यात्रा कईले रहले । उनकर यात्रा विृ ांि के हवाले से सारण गजेसटयर िें कहल गईल बा सक डच लोग के पटना िें एगो घर रहल ह आ ऊ लोग शोरा के व्यापार करि रहे ।शोरा शि ु करे खासिर ऊ लोग Chaupar .( आज के िपरा ) िें एगो कारखाना/ लगवले रहे । टैवसना यर फे रु आगे सलखि बाड़े की शोरा के शि ु कईला के बाद ओकरा के पटना होिे हुए नदी िागा से हुगली भेजल जाि रहुवे । बाद िें शोरा के व्यापार से अंग्रज े भी आकसषा ि भईले काहे सक गन पाउडर बनावे िें शोरा के बहुि ज्यादा प्रयोग होि रहल ह । आई ं ऊपर के िथ्य के परिान पावे खासिर कुि और स्रोि के खाँगारल जाव । अब हि रउवा सभ के र्ेयान www.highbeam.com से प्रकासशि आलेख The Indian Salt Peter Trade , the Military Revolution and the Rise of Britain as a Global Superpower का ओरर ले जाए के चाहब । संिेप िें िथ्य कुि एह प्रकार बा । 1601 से 1801 िक जहाजन के हजारों फे रा एसशया आ यूरोप के देशन के बीच लागि रहे । जहाजन पर ईस्ट इसण्डया से िाल यूरोप के बजारन िें ढोवाि रहे । ए सब जहाजन पर हजारों टन िाल लदाि रहे जवना िें 16 % िाल शोरा होि रहे । अउर सब व्यापार के िाल िें कॉफ़ी , चाय , ससल्क , सगु सन्र्ि िसाला आसद रहे । शोरा जहाज के िलहथी िें रखाि रहे जवन पैखाना आ िोरी के पानी सनयर िहके बासकर एह दगु ा न्र् िें भी एगो लुकाईल राजनैसिक , व्यापाररक शसि के सगु ंर् रहे । अब िक ई बाि साफ़ हो जाि बा की शोरा के प्रयोग गन डच ईस्ट इंडडया कंपनी ( VOC)

डच सब के बारे िें जानकारी सिलल सारण गजेसटयर िें । पृ ० 24 पर के बाि के भावानवु ाद सलख रहल बानी । डच

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पाउडर / बारूद बनावे िें कईल जाि रहे । शोरा के उत्पादन आ सविरण िें स्थानीय आ वैसिक स्िर पर काफी गलाकाट प्रसिस्पर्ा​ा भी रहे । इसिहास के िध्य काल िें शोरा ही पसहलका चीज रहल हां जेकर सवि भर िें िांग रहल हां । ई आज जारी भूिंडीकरण के प्रसक्रया के इसिहास के पसहलका फे ज ह । एकर सवि व्यापार पिु ा गाली सब शरू ु कईले । पिु ा गाली सब के िख्ु य अड् डा श्री लंका रहे । बाद िें डच कं पनी ( VOC ) ओह लोग के चहेट देहलख आ यूरोप के बाजार िें सनयसि​ि सप्लाई करे लागल । ई सत्रहवीं शिाब्दी के दस ु रका दसक के बाि ह । एकरा बाद अंग्रज े ी कं पनी , " कं पनी ऑफ़ लन्दन िचेन्ट् स " के प्रवेश होि बा । इहे कं पनी बाद िें ईस्ट इंसडया कं पनी (EIC ) के नाि र्ारण कई लेहलस । अबिक यूरोप िें गन पाउडर के बहुि िांग बढ़ गईल रहे आ यूरोप के आिंररक स्रोि से एह िांग के पूरा ना कईल जा सकि रहे । एह किी के डच कं पनी (VOC ) आ अाँगरेज़ कं पनी ईस्ट इंसडया कं पनी ( EIC ) पूरा करे के कोसशश कईलख । ई दनु ो कं पनी अउर सब जगह शोरा के उत्पादन के सम्भावना के खोजला के बाद आपन र्ेयान सबहार िें कें सद्रि कईले सन । एह िें पटना एगो प्रिख ु व्यापाररक कें द्र के रूप िें उभर के सािने आईल । पलासी के यि ु : डच कं पनी VOC शोरा व्यापार पर 18 वीं शिाब्दी के आर्ा सिय िक हावी रहल । लेसकन बाद िें 1750 िक ईस्ट इंसडया कं पनी एगो सािररक शसि के रूप िें उभर के सािने आईल आ शोरा के व्यापार पर आपन वचा स्व जिावे लागल । 1757 िें पलासी के यि ु भईल आ बंगाल

सूबा के ससराजद्दु ौला के हार से फ्रांसीसी कम्पनी भी प्रसियोसगिा से बाहर हो गईल काहे सक ऊ लोग यि ु िें ससराजद्दु ौला के साथ देले रहे । फे र 1759 िें डच कं पनी बीदर िें ईस्ट इंसडया कं पनी से भी यि ु हार गईल । एकरा बाद भारि के कहो दसु नया के 70 % शोरा उत्पादन पर अाँगरेज़ कं पनी असर्कार हो गईल आ एही अनपु ाि िें दसु नया िें ओकर असर्कार भी बढल । इहा​ाँ हि दोबारा र्ेयान सदयायब सक शोरा के उत्पादन िें सबहार के पटना , िपरा आसद जगह प्रिख ु कें द्र रहली सन । शोरा का ह ? शोरा "नीिक " अथा िें आि बोल चाल िें प्रयोग होखे वाला शब्द ह । बासकर ई नीिक ना ह । शोरा िें कई प्रकार के ित्वन के नाइिेट रहेला जवना िें प्रिख ु रूप से पोटाससयि नाइिेट पावल जाला । शोरा के शि ु कई के पोटाससयि नाइिेट सनकालल जाि रहे । पोटाससयि नाइिेट, अिोसनया आ , गंर्क के एगो अनपु ाि िें सिलवला पर ई सिश्रण एगो प्रबल सबस्फोटक के रूप ले लेला जेकरा के हिनी के बारूद , गन पाउडर , ब्लैक पाउडर आसद नाि से जानेनी सन । वजन के सहसाब से बारूद िें पोटाससयि नाइिेट 65-70 % रहेला । िध्य काल से आर्सु नक काल ले एसशया अफ्रीका िें व्यापाररक, सािररक , राजसनसिक सहि के बढ़ावे खासिर बारूद के प्रयोग के इसिहास पावल जाला । सफर भी एसशया आ यूरोप के बीच व्यापार िें शोरा एगो सहायक चीज ही रहल ह , वजन से िात्र 16% . िख्ु य वस्िु कपास , िसाला आसद रहल ह । जहां िक सबहार आ बंगाल के प्रश्न बा इहा​ाँ यूरोप के प्रिख ु देशन िें डच आ अंग्रेजन के उपसस्थसि ही इसिहास के पन्ना िें प्रिख ु िा से दजा बा । एह क्षेत्र से व्यापार के वस्िु िें िख्ु य रूप से शोरा ही रहल ह । ( क्रि​िः )

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भोजपरु रया पलायन : िॉरीशि

िोटो िाभार : माइक्रोिॉफ्ट Bing

िोनवा कारन अइलो राि एही रे सोनिा कारन अइलो राि एिी रे हिररच देस से गहल गइले सोनिा सरीर, एिी रे हिररच देस ।

कद

ल्ली के राजघाट सस्थि गांर्ी दशा न द्वारा संचासलि सकिाब के दक ु ान से हिरा िारीशस के सहंदी रचनाकार सोिदत्त बखोरी के सलखल ‘‘एक िारीशसवासी की सहंदी-यात्रा’’ नािक सकिाब सिलल । पढल शरू ु कइनी एकर पसहला अध्याय ‘बचपन’ िें सलखल एगो पैराग्राफ पर हिार नजर सटक गइल जेकरा िें सलखल रहे-“भोजपरु ी के वल घर की भाषा नहीं, सारे गा​ाँव की भी भाषा थी, भोजपरु ी के बल लोग सहंदी सिझ लेिे थे और सहंदी ससखाना चाहिे थे िो वह सहायक ससि होिी थी । आज हि सनस्संकोच कह सकिे हैं सक इस देश िें सहंदी फली फूली है िो भोजपरु ी के प्रिाप से । ’’ सोिदत्त बखोरी िॉरीशस के एक सप्रु ससद्व सहंदी रचनाकार हई ं । बखोरी जी के एह पंसियन से हिरा िें ना जाने कवन उत्सक ु िा भर गइल सक हिार िन िें िारीशस के जाने ला ललक बढ़ गइल । इसिहास साक्षी बा सक सन 1833 ई. िें सवि से दास प्रथा

सनिा ूलन हो गइल पर एकरा खाि​िा के ठीक बाद एगो नया प्रथा जनि लेलस । वइसे ि सन 1760 ई. से ही फ्रांसससी लोग दसखन भारिीयन के उख के खेिी ला शिा बदं िजदरू के रूप िें भिी शरू ु कइलस जेकरा दसक्षण अफ्रीका, िारीशस, सूरीनाि, सब्रसटश गयु ाना, फ्रेंच गयु ाना आ अनेक कै रेसबयन देशन िें उख के खेिी ला जहाज िें भर भर के ले जाइल गइल । एने सन 1798 ई. िें दास प्रथा के सिासप्त ला सब्रसटश संसंद िें सन् 1822 ई िें एगो सबल आइल बासकर इ सबल सन 1828 ई. िें पास हो सकल काहे सक बिावल जाला सक ओह सिय सब्रटेन िें गल ु ाि आ दास से हिददी राखे वाली सरकार रहे । िबही इ सबल पास हो सकल । अंि​िुः सन 1833 ई ं िें दासप्रथा के पूरा खाि​िा हो गइल । सवडम्बना देखी सक सब्रसटश उपसनवेश िें एने दास प्रथा खि​ि भइल आ ओने सन 1834 ई. िें शिा बंद प्रथा या ‘‘इनडेचर लेबर ससस्टि Indenture Labour System के शरू ु आि हो गइल । India Empire, January, 2011, िें गयु ाना के यवु ा लेसखका Andrea Seepersaud ( From Whernce They Left : Paying Homage to Indentured Serv-

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ants 1834-1920) के पष्ठृ संख्या- 26 िें एगो आलेख िें सलखि बाड़ी सक ‘‘सन 1834 ई. से 1839 ई. िक िकरीबन 6100 िजदूरों िें से िात्र 100 िसहलायें िॉररशस, आस्िेसलया और सब्रटेन पहुचं े । 1916-17 िक 1,194,956 शिा बंर् िजदरू भारि से िॉररशस, सब्रसटश गयु ाना, सत्रसनडाड, जिैका,ग्रेनडे ा, सेट लूससआ, द कालोनी ऑफ नाटाल, सेंट सकट्ट्स, सेंट सवन्सेंट रीयूसनयन आइलैंड, सूरीनाि, सफजी, आस्िेसलया, ईस्ट असफ्रका और सेशल्श पहुचं े ।’ आाँसख िें सख ु के सपना आ िन िें सख ु ी बने के उम्िीद सलहले आपन देश, पररवार, घरबार, सब कुि के िोड़ एगो नया दसु नया िें पंहुचा सदहल गइलें । 31 िई 1924 िक लगभग 4 लाख 50 हजार लोग िारीशस पहुचाँ लें । उहें 1838 ई. िें कै रेसबयन देसन िें सबसे पसहलें गयु ाना िें 238909 सगरसिसटया पहुचाँ ल । 75236 लोग भारि लौट आइल एह िें 70 प्रसिशि पूवी उत्तर प्रदेश से आ 15 प्रसिशि लोग सबहार से रहलें । 1845 ई से 1917 ई िक 143939 भारिीय िजदूर सत्रसनडाड पहुचाँ ल । अंग्रेजी के शब्द ‘एग्रीिेंट’ से ‘सगरसिट’ आ एकरे से शब्द ‘‘सगररसिटीया’’ बनल बा । जे शिा बंर् िजदरू भारि से िारीशस, सब्रसटश गयु ाना, सत्रसनडाड, जिैका,ग्रेनेडा, सेट लूससआ, द कालोनी आफ नाटाल, सेंट सकट्ट्स, सेंट सवन्सेंट रीयूसनयन आइलैंड, सूरीनाि, सफजी, आस्िेसलया, ईस्ट असफ्रका और ससआचल्स आसद देशन िें गइल उहे सगररसिटीया िजदरू , जहाजी भाई, कुली आसद नाि से जानल जाला । एगो आंकडा के अनस ु ार -िारीशस िें सबसे पसहला भारिीय सन 1835 ई. िें आइलें । 20 वीं सदी के शरू ु आि िें एह देश िें भारिीयन के संख्या 200,000 से 300,000 के आसपास रहे उहे आजू इ बढ़के करीब 800,000 से 900,000 िक हो गइला । िारीशस के अप्रवासी घाट भा

इिीग्रेशन डीपो पर 2 नंवम्बर 1834 के पसहला जत्था एटलस नािक नाव से उिरल आ 31 िई 1924 िक िजदूरन के दल उहां उिरि रहल । सगरसिट ‘एग्रीिेंट’ का सबगड़ल रूप ह । सबहार आ पवु ी उत्तर प्रदेश के भोजपरु ी भाषा भाषी अनपढ़ िजदरू ‘एग्रीिेंट’ के सबगड़ले रूप बोलि रहलें जेकरा सगरसिट कहल जाि रहे । सवशेष कर इ िजदूर सबहार आ पूवी उत्तर प्रदेश के अलावा बंगाल, गज ु राि, िसिलनाडु आ आन्र प्रदेश से रहलें जेकर भाषा अवर्ी, भोजपरु ी, गज ु रािी िसिल और िेलुगू आसद रहे पर उहां पहुचाँ के सभे िजदरू न के भाषा भोजपरु ी ही हो गइल । भोजपरु ी भाषा के इसिहास िें रास सबहारी सलखि बानी ‘इन िजदूरों ने अिानवीय यािनाएाँ िथा भीषण आसथा क कष्ट के सदन भोगने पडे​े़ परन्िु उन लोगों ने अपनी संस्कृसि को नहीं िोड़ा । आज भी भोजपरु ी भाषा संस्कसि जीसवि है और इनकी भाषाओं के सिश्रण के बावजूद अपना अलग असस्ित्व कायि सकये हुए है ।’ पहला सगरसिसटया नािक उपन्यास िें सगररराज सकशोर ‘सगरसिसटया िजदरू न के त्रासदी के बयान कइले बाड़न - ‘एक अनजान देश िें आि आदिी का िहत्व नहीं के बराबर होिा है । अफ्रीका िें भारिीयों की सजन्दगी नौकरों जैसा भी नहीं बसल्क इससे भी बदिर गल ु ािों जैसी हो गई थी ।’ गा​ाँर्ी जी कहि बानी - “सगरसिसटया िरन्नािक जीवन जी रहे हैं...... िात्र दस सशसलंग देकर सगरसिसटयों को गल ु ाि बनाया जा रहा हैं ।’’ सहंदी आलोचक आ इसिहासकार रािसवलास शिा​ा अपान सकिाब ‘गा​ाँर्ी, आंबेडकर लोसहया और भारिीय इसिहास की सिस्या’ िें सलखि बानी सक - ‘‘सगरसिसटया िजदरू ों के साथ

सिं ोि पटेल बेत्रतया, पत्रि​ि चंपारण, त्रबहार के रहे वािा संतोष पटेि जी , ररसचय स्कॉिर (भोजपुरी), हई , यूजीसी नेट क्वात्रि​िाइड, एि ए, एि कि​ि के संगे संगे त्रसत्रनअर त्रडप्िोिा - गायन (संगीत) िे , संपादक - भोजपुरी त्रिन्द्दगी, सह संपादक - पुवायन्द्कूर, (हहंदी - भोजपुरी ), सात्रहत्रत्यक संपादक त्रडिें डर (हहंदी- इं त्रलिश- हहंदी), ररयि वाच ( हहंदी), उपासना सिय (हहंदी), हई । कई गो भोजपुरी आ त्रहन्द्दी ककताब त्रिख चुकि बानी , कु छ शोध परक भोजपुरी ककताब प्रकाशन िे बडु वे

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जैसे व्यवहार कै सदयों के साथ भी नहीं होिा, उन्हें सजिना काि करना पड़िा हैं, कै सदयों को भी उिना नहीं करना पड़िा । गल ु ािी भोगने के बाद जब वे िूटिे हैं , िब भी बरसों िक उनिें गल ु ािी की बू बनी रहिी है । गुलािों की संिान गल ु ाि होिी है वैसे ही सगरसिसटया िजदरू ों के बालक भी उन्हीं की िरह सगरसिसटया िान सलए जािे थे ।” िारीशस िें सोना सिले के लालच दे के पंहुचा सदहल गइल इ भोला भाला लोगन के बहुि कष्ट सहे के पड़ल । इ लोग पहाड आ पत्थर के काटि-काटि अपने सोना जइसन शरीर के गला चक ु ल रहलें बासकर उहा​ाँ सोना होखे िब नू उनका सिसलि । उनका बदले िें सिलल अंगे्रजन के खूनी चाबक ु जवन उनकर पीठ पर सड़ासड़ पड़ि रहे ।इहे व्यथा िारीशस के एक लोक गीि िें सनु ाई पडेला ‘सोनवा कारन अइलो राि एही रे सिररच देस से गसल गइले सोनवा सरीर, एही रे सिररच देस ।’ साल 2009 ई िें िारीशस यात्रा पर गइल भाषासवद डा राजेन्द्र प्रसाद ससंह जी पवनी सक उहा​ाँ लोग पररवार िें फरा​ा टेदार भोजपरु ी बोलेला । वइसे सगरसिसटया िजदरू जहां गइलें आपन िोटरी िें भोजपरु ी के बान्ह के ले गइल रहस । शरू ु िें िौसखक परम्परा िें इ िजदूर लो भोजपरु ी के गीि शोक भा खुशाी िें गावस । जेिे अल्हा उदल, सबरहा सबद, चैपाई, ललना, सोहर आ सवआह के गीि रहे । िारीशस के िहात्िा गांर्ी संस्थान के भोजपरु ी सवभाग िें एकरा जोगा के राखल बा । अब ि िॉररशस सरकार 30 िई 2011 ई के िारीशस के संसद से एगो सबल पास कर के भोजपरु ी यूसनयन के स्थापना क देले सबया । संगे संगे सरकार भोजपरु ी लोकगीि झू​ू​ूिर नाच आसद के यूनेस्को से एकर कल्चरल हेरसे टज िें शासिल करे के िांग कइले सबया जबसक अप्रवासी घाट एकिात्र यूनेस्को हेरसे टज साइट के िान्यिा देले बा । िॉररशस के सप्रु ससि सहंदी सासहत्यकार राज सहरािन के अनस ु ार - ‘‘ िॉररशस िें भोजपरु ी लोक गीि आ लोक कथा सिलेला. जवना िें भारिीय शिा बंद िज्दरु ण के दीन-दारुण-ददा -दयनीयिा के कथा कहानी बा. सरु​ु ज उगे से लेके ढूढे िक कोड़ा के िार खा के बैल लेखा गोरन के कोठी िालसकन के

खेि से उबरे के बाद उ िजदरू आपन दुःु ख ददा बांटे के जररया इहे भोजपरु ी के लोकगीि रहे ।’’( भोजपरु ी पंचयि-नवंबर2014 पेज-15) िॉररशस िें भोजपरु ी सासहत्य के पसहल पस्ु िक 1920 ई िें िपल रहे जेकर नाि रहे - सववाह िंगल. जेकरा गया ससंह भा भाग्यविी जी संकलन कइले रही.बासकर एकरा 60 साल बाद 1969 ई िें ब्रजेश िर्क ु र भगि के िर्क ु लश िपल. जवना िें भोजपरु ी गीि, भजन, सवआह-देवी देविा के गीि सवरहा आ झूिर बा . उनकर दोसर सकिाब रहे - िर्ु बहार. एह सकिाब िें र्िा , राजनीसि, परब-त्यौहार, आसद के बारे बा. उन्हान के िीसर सकिाब बा - िर्सु लका जेकरा िें िाररशस के आजादी के गाथा-गीि, सवरहा, झूिर सदहल बा । 1970 ई िें डॉ प्रेिचंद िॉररशस िें भोजपरु ी आ 1981 ई िें कुबेर सिश्र िारीशस के भोजपरु ी लोकगीिों का सववेचनात्िक अध्ययन पर शोर् कइले बाडन । भोजपरु ी सवद्वान दीिलाला िोसहि 1979 ई िें श्िॉररशस की भोजपरु ी िें प्रचसलि लोकोसिया​ाँ, िहु ावरे, और पहेसलया​ाँश् नािक सकिाब सलखले. श्री नारायण दि सभक्की के लोक संगीि गीि िाला, रूद्र पोखन के - भोजपरु ी गीि सन 1972 िें आईल जबसक दयानंद लाल बंसंि राय के - सीरी िद्भगवि गीि, सत्यनारायण स्वािी के कथा आ आया रसववेद प्रचाररणी सभा से भोजपरु ी कसविा के संकलन िपल बा । 1992 ई उदय नारायण गंगू के शोर् िारीशस के भोजपरु ी लोक सासहत्य आइल. 1994 िें दीिलाला िोसहि के भोजपरु ी गीि, बाल गीि, पहेली, गोदना के संकलन आइल बा. सीिाराि राियाद के िाटी के लोरश् 1997 िें िपल जवना िें गीि गो भोजपरु ी के नत्ृ य-नासटका बा । 1987 िें भोजपरु ी इंसस्टट् यूट संस्था के गठन श्रीि​िी सररिा बर्ु ू के संपादन िें भोजपरु ी पसत्रका (ससररफ एक िात्र अंक) प्रकसशि कइले बा । 1994 ई िें भोजपरु ी िहत्व के पस्ु िक कन्यादानश् जेकर के सररिा बर्ु ू सलखले बाड़ी सबसे पासहले अंग्रेजी िें 800 पष्ठृ के आईल बा बासकर 2010 िें िॉररशस की भोजपरु ी परम्परा नाि से प्रकसशि भईल बा । 1980 ई िें बंसंि िाससक पसत्रका (िहात्िा गा​ाँर्ी संसथान से बहरल रहे. वसंि के एह सोलहवा अंक के प्रकाशन िॉररशस

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िें भोजपरु ी वषा के रूप िें िानवाला के उपलक्ष िें प्रकसशि भईल रहे.जेकर संपादन िॉररशस के रापिकसव असभिन्यु अनि जी कइले बानी । 2010 िें सररिा बर्ु ू के दू गो सकिाब आईल - भोजपरु ी बोल, आ भोजपरु ी के सहज व्याकरण. वइसे भोजपरु ी के सािग्री िॉररशस के सहंदी पात्र पसत्रका िें 1960-80 िक खूब सनकलल । िहात्िा गा​ाँर्ी संसथान, िॉररशस के भोजपरु ी भाषा के सवभागाध्यक्ष डॉ ससु चिा रािदीन के शादी के गीि संस्कार िंजरी (575 पष्ठृ िें) प्रकसशि भईल बा जेिे वैज्ञासनक आर्ार से सहन्दू संस्कार के व्याख्या बा । भोजपरु ी के लिहर सचन्िक लेखक श्री अक्षयवर दीसक्षि जी एगो आलेख - प्रवासी भोजपरु ी का अंिरद्वन्द जवन - अजब िें संकसलि बा पष्ठृ 38 -39 िक) िें सलखि बानी सक श्री िनु ेिर लाल सचंिािसण भोजपरु ी भाषा िें नाटक, कहासनयां, कसविाएाँ सलखिे रहे हैं जो भारि िें प्रकासशि पसत्रका भोजपरु ी कहासनयां एवं परु वइया िथा िररश्सस के बसन िें प्रकासशि होिी रहिी थी । भोजपरु ी िें िॉररशस सनवासी ज्ञानेिर रघवु ीर, वैरागी, प्रहलाद रािशरण, पंसडि ठाकुर दि पंसडि, श्री िंज ु ानन्द नेिा, रािदेव र्रु दं र इन्द्रदेव भोला, भोजपरु ी सज ृ न िें लागल बाड़ें ।

के ई िाध्यि बन सके ला निीजा ई भईल सक सहंदी के खड़ी बोली के लोग अपनावे लागल. बासकर घर िें एकर प्रयोग स्पदहनं थ्िंदबं के रूप िोटीया भोजपरु ी के रूप िें चलि रहल । इहो बाि देखे लायक बा की िॉररशस िें सक्रयोल के जबाबी भाषा भोजपरु ी रहे बासकर 20 वीं सदी िें आया सिाज के िारीशस िें उदय से भोजपरु ी के खासा नक ु सान भईल. आया सिाज खोली बोली के प्रचार करे लागल आ एह िरे उहा​ाँ सहंदी के आगे बढ़ावे िें िुहीि चलल आ एकर असर ई भईल कुि लोग भोजपरु ी के िोड़ि चल गईल. सहंदी के सवशेष सम्िान के भाषा िानल जाए लागल चूसाँ क एही लेखा सहंदी के प्रचार भइल बासकर इहो सांच बाि बा की भोजपरु ी के िाध्यि से लोग सहंदी बोले सलखे के उहा​ाँ जान सकल. िॉररशस के सवद्वान एस भच्ु कोय के िानल बा की उहा​ाँ के सािासजक संगठन, िंसदर के पज ु ारी, सशक्षक आ िािा सपिा सभे भोजपरु ी के घर के भाषा आ सहंदी के सशक्षा के भाषा सक्रयोल, फ्रेंच के साथे िाने लागल । हाल िें िॉररशस सरकार द्वारा भोजपरु ी यूसनयन के स्थापना से िॉररशस िें भोजपरु ी के पनु स्था​ा पना के उिेद जागा देले बा बासकर आवे वाला सिय आ भूिंडलीकरण के एह सवकट दौर िें भोजपरु ी खासिर चनु ौिी कि नइखे भईल. सगरसिटीया गवना िेंट िें आ गईल बासकर भोजपरु ी सपिुआ गईल ।

िॉररशस देश के रूप िें सवकास करि गईल आ एने ठीक उलट भोजपरु ी के सवकास रुकि गइल भा सपिड़ गइल. के हू कहल सक भोजपरु ी के सलखे के कवनो सार्न नइखे ना सशक्षा

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भोजपरु ी पलायन

भारतीय डायस्पोरा : भाषाई िबतशीलता

डॉ. मुन्ना लाल गुप्ता - डॉ . राजीव रं जन

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वीं सदी के भारिीय डायस्पोरा परु नका आ नयका डायस्पोरा के सवकास के पररणाि ह ।भारिीय डायस्पोरा बहुिे ही कसठन पररश्रि, लगन, सज ृ नशीलिा, कठोर पररश्रि आ उद्यिशीलिा के चलिे सिद्रु पारीय गंिव्य देशन िें आपन सवसवर्िापूणा सािासजक सांस्कृसिक पहचान अउर भाषा के सरु सक्षि रखले बा ।इ सवसवर्िा एकर प्रवासन के इसिहास, क्षेत्रीयिा, भाषा, र्िा , आसथा क आ शैक्षसणक पष्ठृ भूसि के चलिे बा ।भारिीय डायस्पोरा िें भाषाई - गसिकी से जड़ु ल स्वरुपन के सिझे खासि भारि से लोग के सिद्रु पारीय देसन िें आवागिन के ऐसिहाससक चरण आ स्वरूपन िें देखल जा सकि बा ।पसहला चरण, पूवा औपसनवेसशक रहे जवन सैसनक असभयान, वासणसज्यक बसाहट, आ र्ासिा क प्रचारकन से जड़ु ल रहे ।दस ं ीवाद, ु रका चरण, वासणसज्यक औद्योसगक पूज औपसनवेसशक पूज ाँ ी यगु से संबंसर्ि रहे, जहा​ाँ यूरोपीय कालोसनयन खासि सत्रहवीं सदी के आरंभ से सनरंिर दासन, ससिदोष लोग, कं गनी-सिस्त्री िजदूर आ औपबंसर्क िज़दूरन के िलपूवाक, बलपूवाक आ सववशिावश प्रस्थान जारी रहल, जवन उन्नीसवीं आ आरंसभक बीसवीं शिाब्दी िें संस्थागि अउर वैर्ासनक रूप प्राप्ि कर आपन चरिोत्कषा प पहुचाँ गइल ।औपसनवेसशक काल के प्रवासन िें सिान सािासजकऐसिहाससक पररवेश के चलिे भारिीय डायस्पोरा िें आपन पैिृक भाषा के अनक ु ू लन, पररविा न, संरक्षण आ ह्रास की

लगभग सिान प्रसक्रया से गज ु रे के पड़ल ।सिसरका चरण उत्तर औपसनवेसशक रहे जहा​ाँ अकुशल, अिा कुशल, कुशल आ उच्च कुशल प्रवासन सवकासशील आ सवकससि देसन खासि भइल । भारिीय डायस्पोरा के सवकास अलग-अलग क्षेत्रन िें सािासजक अनक ु ू लन के चलिे भारिीय डायस्पोरा सिदु ायन िें भाषा के सस्थसि भी सवसवर्िापूणा बनल बा ।एह सिदु ायन िें पूवाज भाषा के बचा के रखल आ ओकर पूणािया सवलुप्ि हो गइल दूनो सवपरीि रवु ीय सस्थसि देखे के सिलि बा ।कुि पररसस्थसियन िें जीवन के अलग-अलग पक्षन िें इनकर असस्ित्व बनल-बचल बा ।श्रीलंका िें िसिल इस्टेट, इंग्लैंड िें पंजाबी ससक्ख आ संयक्ु ि राज्य अिेररका िें गज ु रािी सहंदू आपन पूवाजन के भाषा के अपनवले बाड़ें ।ठीक एकरा सवपरीि जिैका के भारिीय आपन िूल भाषा के सबसार देले बाड़ें ।िॉरीशस, सफ़जी आ सूरीनाि िें भारिीय भाषा आपन असस्ित्व आज भी बनाए रखले सबया ।एह जगहन प बिौर बोली भोजपरु ी सजनगी के अनौपचाररक क्षेत्रन िें आज भी प्रचसलि बा, बासक र्ासिा क आ सांस्कृसिक गसिसवसर्यन िें सहंदी भाषा प्रचलन िें बा ।सफ़जी आ िॉरीशस िें िानक सहंदी के सरकारी िौर प िहत्व प्रदान कइल गइल बा ।गयाना आ सत्रनीदाद िें भोजपरु ी लोकगीि के िाध्यि सबया, जबसक सहंदी जीवन के अन्य क्षेत्र िें प्रचसलि सबया ।एह सभ देसन िें स्थानीय रूप से प्रचसलि बोल-चाल (Lingua Franca) के

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पलायन अलग भाषा भी प्रभावी सबया, उदाहरण खासि श्रीलंका िें ससंहली, िॉरीशस िें फ़्ें च आ अंग्रेज़ी, सक्रओल, सफ़जी िें सफ़जी भाषा, सूरीनाि िें डच सक्रओल अउर गयाना आ सत्रसनदाद िें सक्रओल अंग्रेज़ी प्रचलन िें सबया । भारिीय डायस्पोरा िें सवद्यिान भाषाई गसिशील प्रसक्रया के सिझे खासि एह प्रवासी सिुदायन के क्षेत्रगि सािासजकभासषक बनावट आ सवसवर्िा के जानल जरूरी बा ।औपसनवेसशक अनबु ंसर्ि िज़दरू अउर अन्य प्रवासी सिूह द्वारा बोलल जाये वाली बोली आ भाषा के सवसवर्िा के राजेंद िेस्त्री (2007) सनम्नानस ु ार प्रस्िुि कइले बानी:i. प्रथि प्रवासन िॉरीशस आ सब्रसटश गयाना खासि िोटानागपरु (झारखंड), बंगाल, सबहार के आसदवासी क्षेत्रन से भइल रहे ।एह क्षेत्र के लोगन के र्ांगर/ सहल कुली के नाि से जानल जाि रहे ।ई लोग ऑस्िो-एसशयासटक भाषा (संथाली, िंडु ा आ हो) बोल रहलें । िारीशस िें आजओ ु - उपनाि / कुलनाि (सरनेि) बा दोगूर आ सदगूर, जवन र्ांगर के अपभ्रंश ह| ii. िद्रास बंदरगाह के िाध्यि से दसक्षण भारि के िसिल आ िेलुगु भाषी प्रवाससयन के खूब प्रवासन भइल ।िलयालि आ कन्नड़ भासषयन के संख्या लगभग सीसि​ि रहे ।भारिीय डायस्पोरा िें िसिल आ िेलुगु भाषा के भी पया​ा प्त प्रसिसनसर्त्व बा । iii. कलकत्िा बंदरगाह से उत्तर भारिीय इंडो-आया न भाषा (भोजपरु ी, अवर्ी, िगही, कन्नौजी, राजस्थानी, ब्रज आ उसड़या) बोले वाला लोग के प्रवासन भइल । iv. पसश्चिी आ िध्य भारि से बंबई बंदरगाह के िाध्यि से आज के िहारापि प्रांि के िराठी आ कोंकणी भाषी लोग के खास िौर प िॉरीशस खासि प्रवासन भइल । v. प्रवाससयन के कुि भाग उदा ू बोले वाला िस ु लिान लोग के

भी रहे । vi. एह औपबंसर्क सगरसिसटया श्रसिकन के साथे गज ु रािी, बंगाली, आ पंजाबी बोले वाला कुि भारिीय व्यापाररयन के प्रवेश एह औपसनवेसशक बागान िें भइल । गंिव्य देश िें भारिीय प्रवाससयन के सस्थसि अलग रहे ।औपसनवेसशक कालीन असर्कांश प्रवासी भारिीय पढ़लसलखल ना रहलें ।उ ना ि गंिव्य बागान के भाषा जानि रहलें आ नाही ऊ औपसनवेसशक भाषा (अंग्रेज़ी, डच आ फ़्ें च) जानि रहलें ।इहा​ाँ िक की अलग अलग भारिीय सिदु ाय आपस िें वािा​ा लाप करे के सस्थसि िें भी ना रहे, काहेंसक उत्तर भारिीय इंडो-आया न भाषी रहलें जबसक दसक्षण भारिीय द्रसवड़ भाषी रहलें ।कुल सिला के सवदेशी पररसस्थसि सिसश्रि भाषा (कोईन/Koine सपज़ीन/Pidgin) के पष्ठृ भूसि बनावि रहे ।बिौर बानगी सफ़जी िें औपसनवेसशक कालीन अंिर-नज ृ ािीय संपका के चलिे दगू ो सपज़ीन भाषा का सवकास भइल ।एह िें से एगो फ़ीसजयन भाषा से बनल रहे आ प्रवासी भारिीयन के आवे से पसहले से िौजूद रहे, बासक दस ु रकी के सवकास भारिीय लोग के चहुपं ला के बाद सहंदी के आर्ार प सनसिा ि बनल ।ऐसह िरे निाल (दसक्षण अफ्रीका) िें भारिीय लोग के आगिन से पसहले देशज ज़ल ु ु आ झोिा बोकलयन अउर यूरोपीय भि​िन िे आधार प कनकर्द त ‘िनािालो’ कपज़ीन भारत िे उत्तर आ दकिण भाकर्यन िे बीच िंिाद िे र्ाध्यर् बनल ।एही तरे दोिर िेिन र्ें भी प्रिािी भारतीय िर्ुदाय द्वारा पकहले िे अकस्तत्ि​िान स्थानीय िंप्रेर्ण िे भार्ा िे कद्वतीय भार्ा िे रूप र्ें अपनािल िइल ।बतौर बानिी जर्ैिा, ियाना, किकनदाद र्ें किओल इंकललश आ र्ॉरीशि, रीयूकनयन, िेशेल्ि र्ें किओल फ़्रेंच, िूरीनार् र्ें िोंिो-स्रनन और किंिापुर आ र्लाया र्ें र्लय आकद । कोईन बनाब / कोईनाइजेिन = (बोहलयन के सि​िलीकरण)

डा. मुन्द्ना लाल गुप्ता िूित: नािंदा त्रजिा के रहे वािा डॉ. िुन्ना िाि गुप्ता जी िहात्िा गा​ाँधी अंतरराष्ट्रीय हहंदी त्रवश्वत्रवद्यािय (वधाय) के डायस्पोरा अध्ययन त्रवभाग िें सहायक प्रोिे सर बानी। गैरभोजपुररया होखे के बावजूद भी भोजपुरी खात्रत इहा​ाँ के सिपयण सराहे योलय बा। इहा​ाँ के 'भारतीय डायस्पोरा आ गा​ाँधी', 'भारतीय डायस्पोरा िें जात्रत आ वगय', 'भारतीय डायस्पोरा िें भाषाई गत्रतत्रशिता' जइसन त्रवषयन पऽ जबरजस्त पकि बा। अतने ना सात्रहत्य के प्रत्रत भी इहा​ाँ के नेह बा। अपने के कई कत्रवता के राष्ट्रीय स्तर पऽ सराहना आ पुरूस्कार दूनो त्रि​ि​ि बा। देश-त्रवदेश के शोध पत्रिकन िें अपने के शोधपि आ आिेख िगातार छपत रहेिा। © आखर ● मई, 2015 ● 37


पलायन बहुि सारी बोसलयन के बीच बोल-चाल खासि कईगो भाषा के बोसलयन के सि​िलीकरण से नई बोली (बोल-चाल- lingua franca ) के सवकास के कोइन सनिा​ा ण आ कोईनाइजेशन कहाला । उदाहरण – नइकी भोजपरु ी जवन सत्रसनदाड भोजपरु ी आ प्लाटेंशन सहंदस्ु िानी के जन्ि, नटाल िें नएका कोईन के कलकसत्तया बाि (नटाली सहंदी), गयु ाना िें परु सनया सहंदी कहल जाला| कोईन हनिाशण के कुछ उदािरणिारीशस, गयाना, सत्रसनदाद, दसक्षण अफ्रीका आ सरु ीनाि िें .. सक्रया+ला+सहायक सक्रया = हि देसखला । सफजी िें.. सक्रया+िा+सहायक सक्रया = हि देखिा है । िाररशस, गयाना, सिसनडाड, दसक्षण अफ्रीका अउर सूरीनाि िें....

भसवपयि काल आ प्रथि परू ु षसक्रया+ब= हि देखब ( िैं देखूंगा ) जबसक सफजी िें, भसवपयि काल...

सपसजन शब्द Business का सपसजनीकृि रूप ह Business = bijnes = pigin ई भाषा िानक भाषा के भांसि कवनो सिदु ाय के िािृभाषा ना होखे अउर ना ही एकरा िें कवानो िरह के िानकीकरण के प्रसक्रया होखेला । उदािरण- नटाल िें, अंिर-नज ृ ािीय संपका के चलिे ‘फनाकालो’ सपसजन के जन्ि- यूरोपीय आ जनजािीय जल ु ु अउर झोसा बोले वालन के नज ृ ािीय संपका के चलिे ‘फनाकालो’ सपसजन के जन्ि भइल । हक्रयोल आ हक्रयोलीकरण िानकीकरण)

- (हपहजन बोली के

सक्रओल, सक्रआर (बनल, उत्पन्न होखल) आ स्पेसनश शब्द कोलोन( कोलोनी के िूल वासी) से सिलकर बनल बा| (आर.के .जैन, 2004) सक्रओलीकरण के उदहारण - अफ्रीकन आ यूरोपीयन से सिल के जवन वंशज बनल ओकरा के सक्रओल नाि से जानल जाला ।कै रेसबयन देसन िें एह प्रसक्रया के चलिे सक्रओल सब्रसटश कै रेसबयन कहलइलें ।भाषा के क्षेत्र िें, सक्रओलीकरण के उदाहरण, िारीशस के िूल लोगन के भाषा + फ्रेंच = सक्रओर अंग्रेजी के भाषा । एकरा िें फ्रेंच भाषा के शब्द बहुिायि सिलेला| जब एगो पीढ़ी सपसजन बोली के प्रथि भाषा के रूप िें सीखेले आ एकरा के िािृभाषा के रूप िें स्वीकार लेले ि एह भाषा के व्यवहार क्षेत्र के अउर व्यापक बनावे के काि भी स्वभासवक रूप से होखे लागेला ।अइसन सस्थसि िें सपसजन बोली के सक्रयोल कहल जाला िाने ई सपसजन के सक्रयोलीकरण हो जाला ।सक्रयोल के सपसजन भाषा के िानकीकृि रूप भी कहल जा सकि बा|

सक्रया+एगा= हि देखेगा (िैं देखूंगा) िृिीय परू ु ष आ भूि काल खासि िाररशस िें -ऊ देखलस सिसनडाड िें- ऊ देखल गयाना िें -ऊ देखले सरु ीनाि िें- ऊ देसखस (सरनािी सहंदी) सफजी सहंदी िें- ऊ देखऊ / देसखस हपहजन/Pigin (बोहलयों का हिश्रण) - जब कवनो दू भाषा सिदु ाय के सदस्य संपका िें आवेलन ि भाषा अलग-अलग होखे के चलिे उनका बीच संप्रेषण टूटे लगेला, सफर ऊ एगो िीसर अइसन सिसश्रि भाषा के जन्ि देवे खासि बाध्य होखेलें जवन िानक रूपन से सभन्न होखेले ।एह संदभा िें, काया व्यापार के संपासदि करे खासि जवन िीसर सिसश्रि भाषा के जन्ि सदहल जाला, उहे सपसजन भाषा कहाले ।

वास्िव िें सक्रयोलीकरण के प्रसक्रया सपसजन भाषा उत्पन्न होखे के ठीक सवपररि बा| सपसजन िें भाषा के व्यवहार सीसि​ि होखेला ।बासक सक्रयोल िें भाषा व्यवहार के िानकीकृि करके सवस्िार देवे खासि कोसशश होखेला ।जहां सपसजन भाषा के सशक्षा के िाध्यि के रूप िें प्रयोग संभव नइखे उहें सक्रओल के एगो िािृभाषा भाषी सिदु ाय होखेला जवन एह भाषा िें औपचाररक सशक्षण-प्रसशक्षण के आवश्यकिा के िहसूस करेला ।

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पलायन ओ. बी.एच. (सिुद्रपारीय भोजपुरी हिंदी) - औपसनवेसशक काल िें उत्िर भारिीय लोगन के अंिररापिीय प्रवासन सफजी, िारीशस, गयु ाना, सूरीनाि जइसन देश खासि भइल ।उत्िर भारिीय लोगन िें कई भाषा-बोली के लोग जइसे भोजपरु ी, अवर्ी, िगही, कनौजी, उसड़या, संिाली, िंडु ा, हो आसद रहलें ।बासक एह िें भोजपरु ी भाषा के लोग के संख्या कूल्ही उपसनवेशन िें ज्यादा रहे ।एही चलिे सिद्रु पारीय भारिीय सिदु ाय िें अलग-अलग देसन िें भोजपरु ी से प्रभासवि सहंदी भारिीय लोगन के बोल-चाल (सलंगआ ु फ़्ैं का) के भाषा बनल जवना के ‘सिद्रु ापारीय भोजपरु ी सहंदी’ के नाि से जानल जाला । ओबीएच के उदाहरण आ कोइन के उदाहरण सिान बा जइसे- सरनािी, सफजी सहंदी, कलकसिया बाि, निानी सहदी , परु सनया सहंदी (गयु ाना), सत्रसनदाद भोजपरु ी इत्यादी । िारीिस की भोजपुरी भाषा का निूना: “बहुि सदन पसहले क बाि ह एगो असदिी का साि गो बेटा आ एगो बेटी रहे सािो भाई सयान रहलन स सवयाह हो चकल रहे ।बसहन क सादी अबहीं ना भइल रहे ।ऊ सािो भाइन क आसखं क पिु री रहे ।बासक सािों भउजाई एक दल ु रुई ननद से जरलु स। बाप क िअ ु ला का बाद सािो भाई कार बार अपना हाथ िें ले सलहलन । बाप क संबंर् िें सािो भाईन के परदेस जाये के परल..... ।” (‘साि भाइन क बसहन’ िारीशस भोजपरु ी, अंक 9, फरवरी 1973) हिजी हिंदी- सफजी के स्थानीय भाषा (काईसबिी) अउर सहंदी भाषा क्षेत्र के भाषा यथा अवर्ी, िगही, ब्रज, भोजपरु ी के प्रभाव

से नव सवकससि सहंदी के रूप के फीजी के भारिवंशी सफजी बाि आ फीजी सहंदी के संज्ञा दीहलें ।आज फीजी िें कई सहंदी लेखकन के फीजी सहंदी िें सासहसत्यक रचना सनरंिर प्रकासशि हो रहल सबया ।प्रो. सब्रु िनी (डउका परु ान), प्रो. रेिण्ड सपल्लई(अर्ूरे सपने), प्रो. सब्रज सवलास लाल, श्री िहेन्द्र चन्द्र शिा​ा ‘सवनोद’ आ बाबूराि शिा​ा फीजी सहंदी के सासहसत्यक गौरव प्रदान कइलें बानी । हिजी हिंदी भाषा का निनू ा : “का कररहो संझाक? फ़ीजीलाल भोजन पानी कर लेई िू घिु ाय देना खेिन िा ।र्रू ।िू ु प जटु ा है जिीन कोसडयायि े़ देख लेना ।िोटा है, के िना करी अके ल ।आज नाही िो सबहान, देखना कइसे है ।टेि रसहिे-उसदि नरायन कै इस्टेट घिु ाय देना ।दूरस े देखाय देना नाही िो कुत्ता आफि कररहें ।पाल रखे है दईु िीन जबर कटहा कुत्ता ।एक कै नाि र्ररस है कालीचरन ।वही कालीचरनवा सबन से बदिास ।सके अदसिन कै सजंदे नोच लेवै ।कुत्ता ना होि िो सूरज सिलाय देि ऊनास ।ऊना है िो कइबीिी लेसकन चाल चलन, रहन सहन एकदि सहंदस्ु िानी ।अब सहंदस्ु िानीक संगे रहे, काहे न रहन सहन बदली ।बड़ी अच्िी है लेसकन ।अब हि जब जाइि उर्र, बड़ा कायदास बािचीि करी ।पसहले वासलस िो ऊना बहुि अच्िील है ।पसहले वाली, बो ! एक नंबर कै घरु िस ु ही ।बइठना संझाक पूरा सखस्सा े़ बिाइब ।चलो, फ़ीजीलाल, िू खाना खाव ।सूरज, जायक देखो कासिनीक का बाि है ।“ (सब्रु िनी, 2001, डउका परु ान) “हि पोटा लुइस शहर गइल रहनी ।वांह परी हि आने कोसवलेन जो औरी एगो िद्राजीन औरी एगो खाला संगे रहलन स ।हि सब एगो रेस्टोरां िें गैनी स औरी आपलों और सालायों खैनी औरी पीनी स ।घर आवट बखि, रों पोएं से आगे हिनी के लोटो के ला रू िें एगो कुलु गर गय्ल ।बीफे के हिनी आका

डा. राजीव रंजन िहात्िा गा​ाँधी अंतरराष्ट्रीय हहंदी त्रवश्वत्रवद्यािय वधाय के डायस्पोरा अध्ययन त्रवभाग के अध्यक्ष प्रो. राजीव रं जन राय जी िूित त्रजिा िऊ (उत्तर प्रदेश) के रहे वािा हईं। उत्तर प्रदेश प्रशासत्रनक सेवा िें वररष्ठ अत्रधकारी के पद से इस्तीिा दे के अपने अध्ययन -अध्यापन के क्षेि से नाता जोि त्रिहिे बानी। 'िानवत्रवज्ञान', 'सिाजशास्त्र', 'संस्कृ त्रत त्रविशय' जइसन गंभीर त्रवषयन पऽ अपने के त्रवशेष पकि बा। 'भारतीय डायस्पोरा के त्रवत्रवध आयाि' जइसन चर्चयत पुस्तक के अपने सहिेखक बानी। रउआ िागयदशयन िें पूवी उत्तर प्रदेश आ त्रबहार से खािी देश िें होखे वािा प्रवासन आ ओकर सािात्रजक आर्थयक प्रभाव पऽ कई िहत्त्वपूणय शोधकायय हो रहि बा। देश त्रवदेश के प्रत्रतत्रष्ठत ररसचय जनयि िें राउर कई गो शोध पि आ आिेख प्रकात्रशत भइि बा। अतने ना अपने के भारतीय डायस्पोरा के त्रगनि-चुनि त्रवशेषज्ञन िें भी शात्रि​ि बानी। © आखर ● मई, 2015 ● 39


पलायन आिय के सवंदु िें गैनी औरी गोपाल के घरे से हिनी खासिर डोकला औरी िोदक भेजल गइल ।वाह कै सन िज़ेदार खायाके के रहल ।िॉरीशस ि िहान ह ।उ ि स्वरग जयसन बा ।” कलकहिया बाि ( नैिाली हिंदी) - दसक्षण अफ्रीका के स्थानीय भाषा आ भारिीय भाषा के सवसभन्न रूपन के ससम्िश्रण से जवन सहंदी भाषा के रूप उभरल, ओकरा के नािाली सहंदी आ कलकसिया बाि कहल जाला ।दसक्षण अफ्रीका िें बसल भारिीय िूल के लोगन के बीच बोलल जाए वाली सहंदी के सवसशष्ट भासषक शैली के नैिाली नाि से संबोसर्ि कइल जाला ।दसक्षण अफ्रीका चार प्रांिों िें बाँटल बा निाल, के प, आरेंज फ्री स्टेट आ िांसवाल ।दसक्षण अफ्रीका के िहानगर डरबन िें भारिीय िूल के सनवासी सबसे असर्क बाड़ें ।इहा​ाँ बोली जाये वाली सहंदी जवन भोजपरु ी सहंदी के एगो सवसशष्ट रूप ह, भारिीयन के बीच बोलल जाले ओह के नैिाल िें बोलल जाए के चलिे नैिाली कहल जाला । आज दसक्षण अफ्रीका िें नैिाली बोले वाला भारिीय िूल के लोग असर्क नइखन । एही चलिे नैिाली िें सासहत्य लेखन बहुि कि हो रहल बा । उहा​ाँ के लोकगीिन िें नैिाली के रूप आज भी देखे के सिल जाला ।लोकगीिन के एगो सवसशष्ट रूप जवना के ‘चटनी’ नाि से संबोसर्ि कइल जाला, आजकल प्रसिसष्ठि भारिीय सिाज िें बहुि लोकसप्रय हो चक ु ल बा ।सववाह के अवसर प आज एकर िा​ाँग बहुि बढ़ गइल बा काहेंसक पसि​िी सडस्को के शैली िें ढलल ई नैिाली लोकगीि आर्सु नक फै शन के प्रिीक बन गइल बा ।एह चटनी लोकगीिन िें भारिीय सिाज के सांस्कृसिक आ भासषक िूल के ओर सफर से भारिीयन के आकसषा ि कर रहल बा ।इ नैिाली सहंदी ही ह जवन भारिीय लोसगन के उनका िूल भारि से आ उनकर किा क्षेत्र दसक्षण अफ्रीका से जोड़ले बा । नैिाली हिंदी भाषा निूना : बागन का साहब - यू रास्कल, िुर् िार् छोड़ डेना चाहिा है ।हर् िुर्ारा बोिी बोिी िाि डालेिा । सगरसिसटया श्रसिक - नाहीं साहेब.... हर् िार् छोड़ िे िहां जाइब ? दुई चार कदंनां िा हर्िा छुिी देि । परु हनया हिंदी (गयाना िें) - गयाना के स्थानीय भाषा आ भारिीय भाषा के सवसवर् रूपन के सिश्रण से परु सनया सहंदी के

जनि भइल । सरिानी भाषा - सरनािी भाषा के सवकास सूरीनाि के डच भाषा आ अनबु ंर् श्रसिक व्यवस्था के िहि गइल भोजपरु ी आ अन्य भारिीय भाषा के बोले वालन के भाषा-बोली के सिश्रण से भइल ।सरनािी, सूरीनाि िें रहे वाला अप्रवासी भारिीयन के संपका भाषा भी रहे| एकरा के सरनािी, सरनािी सहंदी, सरनािी सहंदस्ु िानी भी कहल जाला| उच्चारण के दृसष्ट से एकर शब्द अवर्ी बोली से सिलि जल ु ि बा बासक एकरा प रोिन सलसप के प्रभाव भी साफ़ नज़र आवेला ।असल िें एह के रोिन सलसप िें सलखल जाला ।डॉ. जीि नारायण, सरनािी के प्रिख ु लेखक बानी । सरनािी भाषा निूना : “ इ बरीस दसु नया भर के नवजवानन के बरीस िानल गइल ह ।ओही के खासिर इ कहानी एक नवजवान लोंडा और एक नवजवान लड़की के बारे िें बिावल जा है ...........। (पष्ठृ 15, सरनािी पसत्रका, अंक 1, 1986) “ि का करीं अब ओहीं कनिराक के काटै पा​ाँच बररस भैन ।सफर कागद पाएन, ि बोले जाओ, िू सहया​ाँ रसहहो िो खेि देइब ।आठ दअ ु न्नी रोज देइब ।बोले पा​ाँच चवन्नी, डेढ़ रुपया रोज किाइि हउ ।ि सकवड़वा से बसिया लगे पर एक खूब बसढ़या आदिी है........... । (‘परु खन के याद िें’, पष्ठृ 42-43, सरनािी पसत्रका, अंक 1,1986) हत्रहनदाड भोजपुरी और उसका संघषशण - एन. जयराि (2004) सत्रसनदाद भोजपरु ी आ िानक सहंदी के संघषा ण प अध्ययन कइले बानी| सत्रसनदाद िें अनबु ंर् श्रसिक व्यवस्था के िहि श्रसिक, खेसिहर के पसि​ि सबहार, पूवी उत्िर प्रदेश (सयक्ु ि प्रांि), दसक्षणी सबहार के िोटानागपरु पठार से हो, संिाली, िंडु ा, भोजपरु ी, अवर्ी, िगही, िैसथली भाषाभाषी लोगन के ले जाइल गइल रहे| बाद के सदनन िें बंगाली, नेपाली आ दसक्षण भाषी लोगन के (यथा िसिल, िेलग,ु िलयालि) के ले जाईल गइल ।खेिी के दौरान आपसी बािव्यवहार (सलंगआ ु फ़्ैं का) खासि भारिीय अनबु ंर् श्रसिक भाषाई गसिशीलिा ( कोईन सनिा​ा ण प्रसक्रया आ भाषाई सि​िलीकरण ) के साथ एगो नई भाषा के सवकास कइले जवना

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पलायन िें भोजपरु ी भाषा के प्रर्ानिा रहे, एह नया सिसश्रि भाषा के ही सत्रसनदाद भोजपरु ी कहल गइल ।एह भाषा के इसिहासकार लोग, औपसनवेसशक शासकन द्वारा ‘प्लान्टेशन सहंदस्ु िानी’ भी कहल गइल । सत्रसनदाद िें प्रवाससि भारिीयन के द्वारा आपसी बािव्यवहार (सलगआ ु फ्रैंच) खासि कोईन सनिा​ा ण प्रसक्रया आ भाषाई सि​िलीकरण के चलिे स्वि:स्फा ू ि रूप िें जवन सत्रसनदाद भोजपरु ी के जन्ि भइल रहे ऊ अब संघषा ण के सशकार सबया ।एह संघषा के कारण के की पड़िाल से कईगो कारण नजर आवि बा, जवना िें प्रिख ु बा:1.शरू ु आि से ही औपसनवेसशक सत्ता द्वारा सत्रसनदाद भोजपरु ी भाषा के िोड़ के सत्रसनदाद सक्रयोल अंग्रेजी अपनावे खासि भारिीय सिदु ाय प दबाव| 2.चूसाँ क भाषा के संबंर् संस्कृसि से ह ।भाषा संस्कृसि के वाहक होखेले ।जवन भारिीय गइल रहलें, उनका प िरहिरह से भारिीय संस्कृसि, भारिीयिा के िोड़ के दोसर अन्य औपसनवेसशक संस्कृसि के अपना लेवे खासि दबाव डालल जाि रहे| 3.औपसनवेसशक शासकन के प्रभावी िानससकिा के चलिे सत्रसनदाद भोजपरु ी के बोले वाला के सनम्न जासि, गांवगंवार आउर चिार सहंदी जइसन-शब्दन से संबोसर्ि कइल जाि रहे| 4.सशक्षा आ ‘रोजी-रोटी’ खासि एह भाषा के उपयोगी ना होखे के चलिे भारिीय पररवार भी आपन आवे वाली पीसढयन े़ के सजनगी के सरु क्षा खासि आपन बचवन के सत्रसनदाद भोजपरु ी के ससखावे से पसहले सत्रसनदाद सक्रयोल अंग्रेजी के ससखावल पसंद क रहल बाड़ें ।इहे कारण बा सक ई भाषा संघषा ण के सशकार होके दि िोड़ रहल सबया । हत्रहनदाद िें िानक हिंदी के संघषश - सत्रसनदाद िें ‘कनैसडयन प्रेस वाईटेररयन सिशन’ द्वारा भारिीय श्रसिकन के िानक सहंदी ससखावे के काया प्रारंभ भइल ।शरू ु िें ि ई भारिीय सिाज के बीच काफी फलल-फूलल बासक आज एह भाषा के भी संघषा ण हो रहल बा ।एह भाषा के सत्रसनदाद संघषा ण के भी कुि प्रिख ु कारण बा, जो सनम्न हो सकि बा । 1.भारिीय ‘िानक सहंदी’ भाषा के सिशन द्वारा ससखावाल जाए के चलिे एकरा के सक्रसियन सिशन के र्िा​ा न्िरण की

सक्रया ( भारिीय को सक्रिन ) के साथ जोड़ल जला ।एह चलिे औपसनवेसशक सिय िें प्रवाससि भारिीय ‘िानक सहंदी’ भाषा के प्रसि भयभीि रहलें । 2.औपसनवेसशक सत्िा द्वारा ‘िानक सहंदी’ के जगहा प्राथसिक सशक्षा खासि सत्रसनदाद सक्रयोल अंग्रेजी आ उच्च सशक्षा अउर नौकरी व्यवसाय खासि अंग्रज े ी के आवश्यक बनावल गइल बा ।एकरा से भी सत्रसनदाद िें िानक सहंदी के संघषा ण भइल । िंदिभ 1. जयरार्, एन. (2004), द डायनॉकर्टि ऑफ़ लैंलिेज इन इंकडयन डायस्पोरा : द िे ि ऑफ़ भोजपुरी / कहंदी इन किकनदाद, डायनॉकर्टि ऑि ऑफ़ लैंलिेज इन इंकडयन डायस्पोरा, जयरार्, एन. (िं.) द इंकडयन डायस्पोरा: डायनॉकर्टि ऑि र्ाइग्रेशन, िेज, नई कदल्ली । 2. जैन, रकिन्द्र िे .(2004), रेि ररलेशन, ईथकनकि​िी, टलाि एंड िल्चर : अ िम्पेरके ि​ि ऑफ़ इंकडयन्द्ि इन किकनदाद एंड र्लेकशया, जयरार्, एन. (िं.) द इंकडयन डायस्पोरा: डायनॉकर्टि ऑि र्ाइग्रेशन, िेज, नई कदल्ली । 3. र्ेस्त्री, राजेंद (2007), लाइि इन द डायस्पोरा, लाल बी.िी., रीव्ि पी., और राय आर. (िंपा.), द एनिॉयटलोपीकडया ऑि द इंकडयन डायस्पोरा, ऑटि​िोडद यूकनिकिद िी प्रेि, नई कदल्ली । 4. ईिेन्द्होलर, पैकरि (2004), रकजस्िर लेिल ऑफ़ एथनो-नेशनल प्यूररिी ; द एथाकनजेशनऑफ़ लैंलिेज एंड िम्युकनिी इन र्ॉररशि, िॉल्यूर् 33, िै कम्िज यूकनिकिद िी प्रेि , नई कदल्ली । 5. हूिूर्किंि, किनेश य, (2011), इंकडया – इन – डायस्पोरा : अ र्ॉररकशयन पिद पेकटि​ि , जयरार् एन. (िंपा.) डायिकिद िीज इन द इंकडयन डायस्पोरा, ऑटिफ़ोडद , नई कदल्ली 6. चंरशेखर भट्ट एंड िी. एल. एि. भास्िर , 2011, लोिे कलिी एंड आइडेंकि​िी इन द इंकडयन डायस्पोरा : कलंिकिकस्ि​ि डायिकिद िीज इन र्ॉररशि, जयरार् एन. (िंपा.) डायिकिद िीज इन द इंकडयन डायस्पोरा, ऑटिफ़ोडद , नई कदल्ली राय, राजीि रंजन (2014), भारत िे दूर लघु भारत, जोशी रार् शरण, राय, राजीि रंजन, चंरयान प्रिाश, खिी प्रशांत, भारतीय डायस्पोरा : किकिध आयार्, राजिर्ल प्रिाशन, नई कदल्ली । 7.

रस्तोिी, िकिता, (2012), िर्िार्कयि अनुप्रयुक्त भार्ा किज्ञान अकिरार् प्रिाशन, कदल्ली ।

8.

नारंि,िैश्ना, ( 2006), िमिामभयक भार्ा किज्ञान, यश पकललिे शंि, कदल्ली ।

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कहानी

नवका च्चा

ज बाबूजी गीिा के स्कूल से िुट्टी करा के गांवे ले जाए के िैयारी िें जटु गईलन । पि ु ला पर सक'काहें बाबूजी, हिसनका काहें गावें

जा िानी जा ?"

बाबूजी उनकर गोल-िोल जवाब दे देहलन । गा​ाँव के नाि से गीिा के खुसी ओरािे ना रहे । उहा​ाँ ओकर असोक च्चा और चाची जे रहि रहे लोग । 7 साल सबयाह के भईल बाकी अभी ले कवनो संिान ना रहे एसे गीिा ओ लोग के दल ु रुई रहली । असोक च्चा सांझे कान्हा प बईठा के बान्हा सलया जास पटउरा सखयावे । बाकी कुि देर बाद गीिा उदास हो गईली ओके िाई के इयाद आवे लागल पररयार साल अंसि​ि बार िाई के गा​ाँव के अंगना िें लेटावल देखले रहे ।

"हं बनी ! बाबूजी के सबयाह होिा, िोहार िाई ि िोहके िोडके भगवान् जी के लगे चल गइल नूं । अब िोहार देख भाल करे खासिर नवसक िाई अवsिारी । िोहके खूब प्यार कररहें" गीिा जब से होस सिहरली िब से आपन िाई के खसटया पर ही देखली, टीबी के बेिारी के वजह से ओके िाई के नेह िोह-दल ु ार से दूर राखल गईल । अब गीिा के नवसक िाई के देखे खासिर जीव िपटु ाय लागल । कुल सगनु अउर रसि भईला के बाद बाराि सबदा भईल दोसरका सदने सभनस ु हरे कसनया दआ ु रे आ गईल । नाऊाँन से पसहले सगिवा के अगिु ाई रहल नवसक िाई के लगे पहुचे के । कोहबर िें पहुचं ला प जब गोद भरे के सिय आईल ि आजी गोहरउली - 'अरे हाली से टरकसन आली के बचवा ले आवा सन गोद भराव "

ओकरा बाद पि ु ला प सक, "िाई कहा​ाँ गईल ?" सभे कहे "िाई भगवान जी का लगे चल गईली अब न अइहें कब्बो ..."

अब गीिा से कहा​ाँ रहाईस होईि झटे नवसक िाई के कोरा जा के बईठ गईली, सब के हू ि हंस सदहल बाकी आजी के खीस बरल देखि बनि रहे । सखससया के कहली -

ओकरा बाद उ बाबूजी के संगे कलकत्ता आ गईल पढाई सलखाई करे खासिर ।

"एके हाल्दे हटावा सन ना ि दसु ल्हन के फे र सबटीसहने होई"

ए बार गांवे जाये के प्रयोजन ओके ना बझ ु ाईल । गावें चहुपला पs … दआ ु र-अंगना के चहल-पहल देख के सगिवा के रहाईस ना भइल | चाची से अपना पूि सलहली " ए चाची , आज कुि बा का ? चाची अंकवारी िें र्र के पचु कारे लगली और कहली - "बनी, खुस हो जा िोहार नवसक िाई आवsिारी ।"

गीिा के चाची नवसक के कोरा से उठा के अपना कोरा िें बईठा लेहली । गीिा के कुिु बझ ु ाईल ना , बाकी सनक ना लागल । नया कसनया के नाि नवसक र्रा गईल कुि सदन सबिला के बाद गीिा नवसक िाई बाबूजी के संगे कलकत्ता आ गईल । नवसक गीिा के ख्याल दल ु ार िें कवनो कसर ना रखली । गीिा भी अपना नवसक िाई के पा के बहुि खुश रहली । अभी िवे-ि​िास बीिल की फे र गांवे जाए के िैयारी

का ? नवसक िाई िाने ? सगिवा सचहुक ं के पछ् ु लस ?

सरोज त्रसंह बत्रिया , युपी के रहे वािी सरोज हसंह जी , त्रहन्द्दी भोजपुरी आ बंगिा सात्रहत्य िे उभरत एगो बररआर नाव बानी । हािे िे इाँ हा के त्रिखि त्रहन्द्दी काव्यसंग्रह " तुि तो आकाश हो " आईि ह । भोजपुरी िे सैकिन गीत गजि कत्रवता कहानी के रचना कई चुकि बानी । पाक किा िे दक्ष सरोज जी एह घरी गात्रजयाबाद िे बानी ।

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होए लागल ए बेर बाबूजी के और िाई के रोवि देख के गीिा से रहल न गइल और नवसक से पि ु सलहली "नवसक िाई काहें रोवsिारू बाबूजी भी रोवि रहले हा​ाँ ?

कुि सदन बाद गीिा आ िाई बाबूजी के कलकत्ता जाए के िैयारी होए लागल । जाि सिय गीिा अपना बाबूजी से कहे लगली "बाबूजी, फे र ि हिनी के आवे के होई जसल्दये ? " काहें ? बाबूजी पि ु लन

नवसक अंचरा से लोर पोछ्ि कहे लगली - "बच्ु ची, िोहार असोक च्चा अब नईखन भगवान जी का लगे चल गईलन" गा​ाँव के दू गटु के झगड़ा,िार पीट सलटावे िें एगो लाठी कपार प अईसन लागल सक जवन जिीनी पर सगरले के फे र उठ ना पईले "। गीिा ि जइसे सन्ु न हो गईली । गांवे चहुपाँ ला पर हर ओरी िाि​ि रहे। जवन आजी अभी एकदि टांठ रहली एकदि बेिररया सनयर हो गईली अउर चाची के दसा देख के गीिा के एकदि नीक ना लागल सफ़े द साड़ी िें लपेटाईल देह न कवनो साज ना ससंगार । जवन की हिेसा सजल संवरल रहि रहली । गीिा आसखर चाची से पि ु सलहली - "ए चाची िू काहें सफ़े द साड़ी पसहरेलु, सटकुली के िना नीक लगेला उहो ना लगावेलु काहें ?"

एह प चाची उदास हो के कहे लगली - "के करा खासिर साज ससंगार करी बनी , िोहार चाचा ि चल गइले "उनके खासिर नु कुल साज ससंगार रहल हा "

"नवका च्चा" के ले आवे खासिर " गीिा कहली । "नवका च्चा ... !!! िाने ? बाबूजी हैरानी से पि ु लन । िाने िाई के िअ ु ला के बाद नवसक िाई अईली , ओही िरे असोक च्चा के गईला के बाद नवका चाचा न अइहें का? देखs ि चाची के िना उदास बाड़ी रंगीन साड़ी भी नइखी पसहर सकि "। गीिा के बाि पूरा होईि ओसे पसहलही बाबूजी जोर के झापड़ गीिवा के गाल पर िरलन । आजी , चाची, नवसक, सब के हू सकपका गईल ई का भईल ? एसे पसहले गीिा के बाबूजी कब्बो न िरले रहलन । गीिा के सिझ ना आईल की अइसन कवन गलिी खासिर ई झापड़ बाबूजी िरले । दहसि के िारे आज ले ना पूि पईलस सक उ का गलि कह देले रहल । ई बाि के कई साल बीि चक ु ल बा बाकी गीिा के आज ले आपन गलिी ना बझ ु ाईल ।

गीिा के अब कुि-कुि बझ ु ाये लागल । कसहू ाँ िेरही बीिल ।

अब चाची के सफ़े द साड़ी िें देखे के आदि हो गईल बा ।

िोटो िाभार : शसश रं जन समश्र

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श्रद्ांजबल

संवदे ना के जोत जगावेवाला चौधरी कन्हैया प्रसाद ससिंह जी प्रमोि कुमार दतवारी

कब

हार के भोजपरु सजला के नोनार गांव िें 2 जनवरी 1941 के जनिल चौर्री कन्हैया प्रसाद ससंह जी लगभग हर सवर्ा िें खूब कलि चलवले बानीं । उहां के कसविा, उपन्यास, कहानी, एकांकी, नाटक, सनबंर्, बाल-सासहत्य, गजल सब सलखले आ संजोए जोग सलखले बानीं । एह सब प उनक ु र िक ु म्िल सकिाबो बाड़ी स, हाल के सदनन िें उहां के गोपी सवरह प कें सद्रि पद के रचना िें लागल रहनी ह आ प्रचरु िात्रा िें पद सलखले बानीं, उिेद बा जसल्दए ओहू के एगो संग्रह हिनी के सोझा होई । भोजपरु ी के एगो परु ान कहावि ह सक ‘आदिी चाि से ना काि से पहचानल जाला’ आ एह बाि के पूरा भोजपरु रया सिाज िानी सक उहां के हाड़िोड़ काि कइनीं, कृसष सवभाग के नौकरी आ घर-पररवार के भरपूर सजम्िेदारी के साथे-साथे भोजपरु ी सासहत्य के बढंिी खासिर कुिुओ उठा ना रखनी । सबसे बड़ बाि सक कन्हैया प्रसाद जी आत्ि​िग्ु र् लेखक ना रहीं, उहां के हिेशा भोजपरु ी भाषा आ सासहत्य के बारे िें सोचि रहीं आ एगो संस्था जइसन काि करि रहीं । अक्सरहां लोग सेवा वाला काि खासिर अकादेिी आ सरकार के सहयोग खोजि रहेला बासकर उहां के ‘भोजपरु ी संदभा ग्रंथ’, ‘भोजपरु ी इनसाइक्लोपीसडया’ जइसन बड़हन काि िें अपना दि प हाथ लगवनी । िीन खंड िें प्रकासशि ‘भोजपरु ी सासहत्य दपा ण’ जइसन काि आसान ना होला बासकर कन्हैया प्रसाद जी के सिपा ण से ऊ पूरा भइल । इहां के आपन सासहसत्यक नाि ‘आरोही’ रखले रहीं आ आरोहण इनका स्वभाव िें रहे । बासकर व्यसिगि आरोहण ना भोजपरु ी सासहत्य आ सिाज के आरोहण खास िौर से दसलि, दसि​ि आ उपेसक्षि सिाज के ले के इनकर नजररया एकदि साफ रहे । इहां के बहुि बसढया े़ से जानि रहीं सक िसु ि अके ला के ना सिलेला, जब िक सिाज परेशान रही एक आदिी के सफलिा, सफलिा ना अश्लीलिा कहाई । ‘िरकरी चारो िरफ दसु र्या जरि, भूख के िारे अंर्रे ा िा रहल’ जइसन शेर अइसहीं ना सलखाला ।

कन्हैया प्रसाद जी कई गो सवर्ा िें भरपूर िात्रा िें सलखले बानीं बासकर उहां के कहासनयन के बाि सनराला बा । भोजपरु ी कहानी के जइसन ऊंचाई आ जइसन िेवर इहां के देले बानी, ऊ कवनो भाषा के कहानी के सोझा भोजपरु ी के सीना िान के खड़ा होखे के िाकि दे रहल बा । चौर्री कन्हैया प्रसाद ससंह के एगो कहानी सबया, बड़प्पन । एह कहानी से उनक ु ा सोच आ दृसष्ट के पिा चलेला । बड़, िोट, ऊंच-नीच के बंटवारा अक्सर र्न के आर्ार प लोग करे ले बासकर एकर असली पिा ि लोग के सोच आ व्यवहार से चलेला । बहुिे िहीन ढंग से एह बाि के चौर्री कन्हैया जी एह कहानी िें उठवले बानीं । पाप आ पन्ु य के अक्सर बहुिे सिही ढंग से देखल जाला । एह कहानी के नायक गसनया जब अपना घोड़ा से कहेला सक ‘चल बेटा, हीरा रे, एक जान के सवाल बा । बहुि पसु न होई ।’ ि ई बाि स्वगा - नरक सदयावे वाला पाप पुसन के ना एह र्रिी के स्वगा भा नरक बनावेवाला पाप पसु न के ओर संकेि करि बहुिे ऊंच बाि कहेला । सफे द कॉलर वाला डॉक्टर साहब

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आ दू रोटी खासिर संघषा करेवाला गरीब इक्कावान गसनया के ई कहानी असल िें पूरा भारि के िस्वीर खींचि सबया जवना िें अरबपसि लोगन के संख्या लगािार बढ़ि जा रहल बा बासकर ओही अनपु ाि िें गरीबी आ सकसानन के आत्िहत्या बढ़ि जा रहल बा । कन्हैया प्रसाद जी बहुि िहीन संकेि से दनू ों पात्रन के सचत्र सखंचले बाड़े । गसनया भूखे रहे काहे सक ऊ राि के दू िीन गो सहि लोग के भोजन करावे िें सब दाल चाउर ओरवा देले रहे । दूसरा ओर डॉक्टर साहेब िदु ा​ा के सूई खोभे िें संकोच ना कइले काहे सक उनक ु ा बाबूजी के िक ु दिा लड़े खासिर पइसा चाहीं । एगो कहिा सक भावक ु बनला से पइसा कहां से आई आ दस ू रका के पइसा सदहल जा रहल बा, ऊ भूखे काि कर रहल बा िबो पइसा नइखे लेि काहें सक ि​िाि कोसशश के बादो िरीज के जान ना बचा पावे के अपरार् बोर् ओकरा के कचोट रहल बा । असल िें ई एगो िरीज, डॉक्टर भा गसनया के कहानी ना ह, ई आदसियि के कहानी ह जवना से हिनी के रोज जूझ रहल बानीं जा । प्रससि आलोचक डॉ. सववेकी राय अपना सकिाब ‘भोजपरु ी सासहत्य : प्रगसि की पहचान’ िें एह कहानी के

ि

बड़प्पन -

‘लघिु ानवोन्िेष’ वाला प्रवसृ ि के कहानी कहले बाड़े । असल िें ई कहानी बहुिे कि शब्द िें आंसख के सोझा सिाज के यथाथा सचत्र सखंचि सबया । जवना घरी ई कहानी सलखाइल होखी, हो सके ला ओह घरी अइसन सचत्र कि रहल होई बासकर आज के सिय िें अइसन सचत्रन के संख्या लगािार बढ़ि जा रहल बा । कन्हैया प्रसाद जी के साथा किा एही बाि िें बा सक उनक ु र सलखल हिनी खासिर सदन प्रसिसदन जरूरी होि जा रहल बा । एगो लेखक के इहे आकांक्षा होला सक ऊ भावी पीढ़ी के जादे संवेदनशील, जादे इंसान बनावे । भौसिकिा आ अंर्ार्र्ंु सख ु के दौड़ िें अझरु ाइल हांफि नयका पीढ़ी के सोझा अिावस के अन्हार िइले बा अइसन सिय िें संवेदना के जोि जगावे वाला कन्हैया प्रसाद जी के साथ िोड़ल बहुिे बड़ क्षसि बा । बासकर शरीर से भले उहां के नइखीं रचनारूप िें हिनी के बीच बानीं आ भरपूर बानीं । आखर आ िमग्र िोजपुररया पररवार के तरफ िे एह महत्वप् हहा के भ ख र भ रना​ाकार के ्रद्ांजभ कहा​ाी िड़प्पा के “प्रमोद कुमार भतवारी” जी आखर के जरी पहनं व े िा​ाी |

चौिरी कन्हैया प्रिाद बिंह जी (कहानी )

सनया टिटि उड़वले चलल जाि रहे । टिटि ढकर-ढकर करि रहे । ओकर पाट…पज ु ा​ा बझ ु ाि रहे सक अलग-अलग हो जाई । सड़सक उभड़…खाभड़ रहे । टिटि पर बइठल डाक्टर िने-िन अनसात्त रहन । डाटे के िन करत्त रहे, बासकर चपु रह जाि रहन । जानि रहन सक एकर परु ान आदि ह । किहू ाँ रोगी देखे जाये के होखी, त्तब असहीं करेला । कुि कहला पर कह लागी- ’डाक्टर बाबू रउरा बाहर के हई ं । इहा​ाँ के लोग के नइखीं जानि । िनी-िनी कुि हो गइला पर लोग डाक्टर के पास ना जाए । अब-िब के घरी लाग गइला पर लोग डाक्टर के पास जाला । रवे कही ाँ सक अइसन िें देरी करे के चाहीं? परान िुटे िें का कवनो सिय लागेला? आ घोडा कं चाल आउर िेज कर दी । जबाब देि ना बनी । भर रहिा बकि रही । ‘चल बेटा’ ! हीरा रे ! एक जान के सवाल बा । बहुि पसु न होई । लोग के ओठे पर िोर ना​ाँव रही । देख के । गड़हा बा । ऊाँचा बा । जोर लगा के । बहुि दूर्

सपयले बाड़ । आज िलीदा सखआइब । खुदा हो! दया कर । रोगी के उसिर द । डाक्टर के हाथ िें जस द । िू िासलक हव । िोहरे भरोसा बा । गाडी से बच के । चल सग्ु गा । सकनारे से । बच-बच के । हाय हाया! ई का? अबसहएाँ से थकान! खनदान के दीया बिु ाय ित्त । हाय अल्लाह! रहि कर । नूर द । परवरसदगार हव । ससरु ी हवा बढ़ही नइखे देि । कइसन गिी पड़ रहल सबया । लोग रहिा से हटिे नइखे । सरु ाज नू हो गइल बा । जब गसनया घोडा के िनावेला त्तब डाक्टर के बझ ु ांला सक ऊ उनकरे िनावन करत्त होखे । सरू ु -सरू ु िें उनका ओकर बड़बडाइल खराब लागि रहे । अब ऊ ओह पर र्ेयान ना देस । कबो-कवो ऊ अइसन बाि बोलेला सक डाक्टर के हाँसी हवा िें पाँवरे लागेले । गसनया स्वभाव के खरा ह । के हू के चगु ली करे के हाल ना जाने । डाक्टर ओकरा के अउर टिटि वालन से जेयादा एह

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श्रिांजबल से िानेलन सक ऊ बहुि सदन से अस्पिाल के डाक्टर लोग के चढावत्त आ रहल बा । चररत्र के अच्िा आदिी ह । सवसवासघात्त करे के हाल ना जाने । कवनो सिय कहल जाय त्तइयार रहेला । कवनो फरिाइस ना करे । गा​ाँव-देहाि के लोग ओकरा टिटि के सगसु नया िानेला । बड़-िोट के लेहाज ओकरा नजर िें रहेला । िहाँगा-से- िहाँगा सवारी िोड़ के डाक्टर के ले जाये खासिर िैयार रहेला । कवनो गा​ाँव के के हू के घरे जाये के होखे, ओकरा रहिा पूिे के ना परे । गसनया के नजर िें रोगी के ना जाि होले. ना र्रि । जवना िेजी से िस ु लिान के घरे जाला, ओही िेजी से इसाई भा सहन्दू के घरे भी । ना​ाँव से िस ु लिान होइयो के ऊ सहन्दू ह । ओकरा िाई के एगो फकीर पर बहुि सबसवास रहे । ऊहे फकीर एकर नॉव "गसनया' रखले रहले । “ डाक्टर साहेब ! रउरा भगवान पर सबसवास कररला सक ना? “ डाक्टर के र्ेयान टूटल । पसहले ि ओकरा सवाल के ना सिझलन । फे र से पूिे के चाहि रहन । िबले सखयाल हो गइल । “काहे ? का बाि ह ?” “कुि ना ! असही ाँ पूि​ि रही” “ हि भगवान के िानीला । ढकोसला के ना । एगो अनजान ससि कं आगा िाथा झक ु ाई ंला । ओही ससि के भगवान जानीला ।“ “ठीक बा, िानी । रउरा िान सकीला । हिा-सिु ा के ि ढकोसला के िानही ाँ के परी । “ डाक्टर के सदिाग गसनया के बाि के साथ कदि-से-कदि सिला के ना चल सकल । िन िें पूि के सिझ लेबे के लहर आइल । एगो बड़प्पन के चादर ओढ़ले रहन । ऊ घसकि बझ ु ाइल । टाई ठीक कइले । कोट-पैंट पर के र्ूर रूिाल से उड़वले । िहुाँ पर रूिाल गिे-गिे चलावे लगले । िन िें कुदार चलि रहे । अपना के ना रोक सकले –“काहे ?” गसनयो आदिी ह । सब कोई अपना के सबको से बड़ सिझेला । हाथी भा कार पर चढ़ेवाला लोग सइसकसलहन के हटि देख के हाँसेला । हिरो से बड़ लोग दसु नया िें बा, ई भल ु ा जाला; बासकर अपना से िोट के नॉव अाँगुररये पर रहेला । डाक्टर के सदिाग िें अपना बाि के ना पकड़ाि देख के गसनयो

के खस ु ी भइल । ऊ खाँखार के गला साफ कहलस आ कहे लागल । - “ के हू कहे सक सिठास होले । सभे कही ऊ कइसन होले ? िीठ लागे से सिठास ह । रउरा िान लेब । हिरा सदिाग िें ना र्ाँसी । के हू सिसरी सखया के कही सक जइसन लागि बा उहे सिठास ह । हि िान लेब । “ गसनया चपु हो गइल । डाक्टर के डर लागे लागल । ऊ गसनया के एके सवाल से डरेलन । ऊ जब पूिेला सक बबआ ु लोग कब आई, िेि साहेब कब आएब, िब सा​ाँच बोले के साहस ना पड़े आ उनका झूठ बोले के पड़ेला । आजो उनका बड़का लइका के सचट्ठी आईल रहे । सलखल रहे सक बेबी जाये खासिर रोवेले । ओकरा के पढ़िे बूझ गइल रहन सक उनकरे सलखावल होई । आगे अउरी साफ सलखल रहे सक िुिटी सिली ि चल अइह चाहे के हू के भेज दीह ना त्त िाई बरखा सरू ु होिे चल आई । अइसन बाि ना रहे सक ऊ ले आइल ना चाहि होखस । कवनो िकलीफ ना होखे, कवनो खरचा कि होखे, कवनो अपना औरि से प्यार ना होखे, घर के लोग रोकि होखस, सेहू बाि ना रहे । सोचि रहन सक ई लोग ना रही, िब खूब सलखाईि । अब बझ ु ाि बा सक ओही सिय ढेर सलखात्त रहे । ‘हजूर’ राि द-ू िीन गो सहि लोग आ गइल रहन । दाल-चाउर सब रािे िें साफ हो गइल रहे । अब लौटब, िब खरीदाई । घर िें पइसो नइखे । सिलबे का करेला सक बा​ाँचो? िहाँगी जान िरले सबया । डाक्टर िुटकारा सिलल देख के अपना के हलुक िहसूस कइले । बलाय टर गइल रहे । दोसर के हू रसहि, िब सबसवास ना करिन । सोसचत्तन सक कुि िा​ाँगें खासिर बहाना कर रहल बा । गसनया पर सबसवास हो गइल । ऊ िांग के कुि ना ले सके । “त्तब अनगत्त ु े से असही बाड़ ?” “आवि खा नथुन साह के दोकान पर चाय पी लेले रही । नथुन साह के जानीला नू?ाँ अस्पिाले के पास िें उत्तर भीरी दक ु ान सबया । बेचारा गरीब आदिी ह । सदल के खराब ना ह । हिरा साथे पढ़ि रहे । ियभा ि​िारी के चलिे ओकर ई हाल भइल बा, ना ि ओकरा कवना चीज के किी हइस ।“ टिटि के रूकिे लइका घेर लेले सन । उिर के डाक्टर सीर्े रोगी के पास गइले । बक्सा लेले पीिे -पीिे गसनयों रहे । डाक्टर

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के चपरासी टिटि के पास रह गइल रहे । रोगी के खाटी के दसहना और एगो कुसी पर डाक्टर बइठले । गसनया खाटी के ससरहाना बायीं ओर जाके खड़ा हो गइल । डाक्टर रोगी के कलाई देखि रहन आ गसनया उनकर चेहरा । उनकरा चेहरा पर उभरि भाव के उ पढ़ के सिझि गइल । डाक्टर लोगन के साथ रहि-रहि बहुि कुि जाने लागल रहे । “ सस ु िु पानी चाहीं । जल्दी । हालि ठीक नइखे । गिी खासिर सूई देबे के परी ।“ -रोगी के िािी पर आला घिु ा के डाक्टर बोलले । सस ु िु पानी िैयार रहे । िैयार ना करे के परल । जसल्दये सिल गइल । रोगी के दसहना हाथ डाक्टर के आगा उघार पड़ल रहे । उनका हाथ िें सूई रहे । एक हाथ िें सस्पररट िें भींजल रूई के फाहा रहे । साहस ना होि रहे सक सूई देस । िन के संस्कार िदु ा​ा के खोभे से िना करत्त रहे । गसनया के िरफ देखलन । ओकरा नजर िें सघरना भरल रहे । ऊ दरवाजा िरफ बढ़ल । डाक्टर के बझ ु ाइल जइसे सक ऊ उनकरा जइसन पापी के हत्या करे खासिर हसथयार ले आवे गइल होखे ।रोगी िर गइल एह िें हिार का दोष ?हिरा पास लोग गइल, िब हि अइबे कइनी ।…………. िसनको देररयों ना कइनी । हि ि आइल बानी ।....… हिार सिय लागल ।…….… हिरा ि फीस सिलहीं के चाहीं । कह देब सक िर गइलन...... िव के फीस दी?…….…लोग रोवे-गावे लागी ।…....….... बाबूजी

के िक ु दिा खासिर, करज चक ु ाये खासिर रूपया चाही… भाई के कॉलेज के फीस चाही । लइकी के 8-9 साल बादें भारी सिलक चाही ।……….भावक ु बनला पर कहा​ाँ से आई? हाथ पर सस्पररट िलि देर भ गइल । िन कड़ा करके आाँख िूदाँ के सूई र्ाँसा देले । दवा के पज ु ा​ा थिा के , सखआवे-सपआवे के िरीका बिला के , फीस टेंसटअवलन आ जाके टि-टि पर बइठ गइलन । गसनया से नजर सिलिे नजर झक ु ा लेलन आ दोसरा ओर देखे लगलन । डाक्टर के बइठ गइला पर गसनया टिटि बढा देलस । लोग के िरफ देख के हाथ जोड़ के बोलल- 'िब हि जाि बानी ।' एक आदिी घोडा के िरफ बढ़ल । हाथ िें हररयर पा​ाँच रूपया का नोट रहे, 'अपना टिटि के भाडा लेले जा ।‘ गसनया सनु के अनसनु ा कर देलस । घोडा के चाबक ु िार देलस । हाथ के इशारा से बत्तलवलस सक भाडा ना चाहीं । घोड़ा पर के चाबक ु डाक्टर के अपना पीठ पर िहसूस भइल । ऊ देखलन गसनया के आाँख से झर-झर लोर बहि रहे । ऊ ओकरा बड़प्पन्न के ऊाँचाई देखे लगलन ।

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कहानी श्रंख ृ ला

त्रचि - स्वयंबरा बक्सी

सदल, जब बच्चा था जी ( भाग –4) (कथाकार आपन लईकाई ं के बदिासी िें आपन इयार के घरे के दूर् सजआन कर देले रहन । फे र ओह घर से इनका के लगभग िड़ीपार कर सदयाईल । उिीर भईला पे कथाकार के फे र उ घर िें जाये के िौका सिलल आ फे र घटनाक्रि के फलैस बैक चलल बाकी एह बेर बासक करुण रहल । ओह घटना से हट के फे र से कथाकार के लईकाई ं के बदिासी िें गोिा लगाई ं- ) 1980-81 के बाि ह , 8 पास कs लेले रहनी ,स्कूल िसन दूर रहे । बाबु जी से सचरौरी कईला पर एगो साईसकल सकना गईल रहे । ओह घरी नया नया साईसकल सिल जाओ ि, अगराये वाला बाि रहे । हिहू खूब अगराई अपना साईसकल पर, के हू के िुवे न दी ; के हू के दी ना । रोज़ र्ोई पोिी । हs, िs , एक सदन आवि रही स्कूल ले, रास्िा िें एगो िगु ा​ा रोड पार करि रहे । आ हिार साईसकल के सनचे आईये ि गईल । फर-फर कईलस, आ ओकर पंसखया हिार साईसकल के रीि िे फ़स गईल । िगु ा​ा के िासलक ओही दरे, हिार साईसकल के हेंसडल र्रा गईल । झाव-झाव कs के कई लोग घेर सलहल । हि ठहरनी लईका, बड़ा िसु स्कल भईल । कहs सन 10 गो रूपया सनकाला । अब हिरा लगे चवन्नी ना... दस गो रूपया कहा पाई । िन रोवासयन हो गईल । कहs सन साईसकसलया िोर लs । पूरा िहु ल्ला िगु ा​ा वाला के साथे ।

कहs सन, साईसकल र्रा जाओ... पैसा सलयाई िs साईसकल सिली । बड़हन फ़े रा िे पड़नी...िने िन सोचsिानी.घरे पिा चली ि अलगा ले कुटाई होई ।

सोचि सोचि, उ लोगन से कहनी सक चलs... पईसा घरे सदवा देब । बाि फ़ररया गईल घरे, चल के पईसा देवे के । उ लोग एगो लईका के , जे सक हिरा ले िसन बड उसिर के रहे साथे लगा सदहल पैसा सलयावे के आ हिरा साईसकल पर बैठ गईल । चल सदहनी.... सफर िन िें आईल सक (जब िगु ा​ा के पैसा हि दे देब िब िs इ िगु ा​ा हिार ना हो गईल हि कहनी िगु ा​ा साथे ले जासयब.) उ लोग कहल,बनबा ढेर सहरो अरे इ िगु ा​ा घायल होखे के पईसा बा... पूरा िगु ा​ा के 20 रूपया लागी बड़ा फे र िें पड़नी, इ िs पूरा-पूरा बलजोरी होि रहे हिरा साथे । सफर कहनी सक िगु ा वा साथे ले जाये दs, ना ि इ बाि के सबस्वास घरे वाला लोग ना करी सक इ दघु ा टना हो गईल बा । िगु ा वा देखा के पैसा सदवा देब ना िs कसह लोग सक झूठ बोलsिा ।हिार पोजीसन घर िें बहुि ठीक नईखे । एह पर लोग िैयार हो गईल , सईसकल के हैसन्डल पर िगु ा वा के टांग बांर् के टांगल गईल और उ लईकवा बैठ गईल... आगे के फ्रेि पर । िन िें सबचार बनsिा सक अब का करी ...? घरे िs जा ना सके नी... एह हाल िें, उहो िगु ा​ा लेके । बाबु जी िs कासटये के फे क देब हिरा के

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कौनो बसु ि काि ना करे । सोचि सोचि एगो प्लान िन िे आईल . कहनी ए भाई - आगे बैठला से सदक्कि होिा आवs पीिे बैठ जा । पसहले िs उ ना नक ु ु र कईलस फे रु उिर के पीिे बइठ गईल । आर्ा काि िs हिार बन गईल । बस अब उ ढलान के जोहे लगनी… जवन रास्िा िें पडि रहे । ढलान आईल ....बाया हाथ ले साईसकल के हेंसडल पकड़ के पलट के दासहना हाथ ले खीच के एक के हुनाठ सदहनी उनका के गदा सनया पर... उ िहु े के भारी र्डाि से सगरलन । हिार साईसकल के पायसडल और िेज़ हो गईल... कहनी , आवs िs । अब उ सचल्लाि बा । हिार िगु ा वा आ आ आ आ .... हो दादा.. ले के भागsिा ... र्रs र्रs ....ले के भागल....(उ िरलस गोहार...) काहे के र्र... अब हि फट दे हई गली ले हउ गली हो के चलsनी पराय । गाजीपरु के कउनो गली ऐसन ना रहे जेकरा बारे िें हिरा पूरा भूगोल िालूि ना रहे ...। लेसकन, अब का करी ...? साईसकल िें िगु ा​ा बान्हल बा... घरे कै से जाई .? बाभन के लसयका… राि-राि... िरु गा के साथे ....!? घरवा वाला, िगु ा वा देखिे घरे ले बहररया सदही लोग... का करी ,का करी । सोचिे रही सक सलीि सिया देखा गईलन । देखिे सलीि सिया ले कहनी- अरे एगो बाि फस गईल बा सलीि भाई, सनपटवाव । कहले, का बाि बा ..? हि कहनी- अरे एगो लईका 20 गो रूपया लेले रहल हs.. पईसा िांगि रही, ना देि रहल । ओकर िरु गवा उठा सलहनी

ह, एह्के कही बेचवा सदसहिा । ना िs बाबु जी हि के बेसदन कs सदहन । सलीिो सिया फे र िें पड़ गईलन । लेसकन उहो का करस... हि एकदि ले पीिे पड़ गईनी सक बेचवावा ...बड़ी िेहनि कईके ,सलीि सिया एगो सचकवा के इहा उ िरु गवा के हु िरे 15 रुसपया िे बेचवईलन सफर का !!!! अब ि हाथ िें 15 रूपया..। दसु नया के सबसे अिीर लईका । सदनही सपना िें लउके ....का-का ना कीन ली । अब सिस्या इ आईल की 15 रूपया लुकवाई कहा​ाँ ...? घरे के लोग देख ली िबो ठीक नईखे । फे रु 15 रूपया के भाज(फुटकर) करईनी । एक एक रूपया के नोट के आ सब सकिाब कापी िें अख़बार के गािा (cover ) चढ़sवनी । िाई देखनी िs बड़ा खुस, सक लईका बड़ा बसढ़या से सकिाब कापी सहेज के रखेला । ओही गािा िें एक एक रूपया स्टेपलर से स्टेपल कईनी । जब खचा​ा करे के होखे एगो सकिाब आ कापी के गािा फाड़ी आ ओही से पाटी होखो । अरे 10 पैसा िें एगो पेडा सिले भाई ओह घरी... कुल सिला के दू िसहना ले खूब रंग रहल । ि भाई लोग एक िगु ा​ा के पाटी दू िसहना ले िनावल गसयल ।लेसकन फे रु "ससयार" उ िरकुल के िरे ना गईले (हिार उ रस्िवा सजनगी भर खासि बन हो गईल ) कबो कबो पैसा के किी बझ ु ाव िs ......... िन करे- जानबूझ के के हू के िरु गवा चाप दी का ....?

बृज त्रकशोर त्रिवारी पिािू झारखंड के रहे वािा बृजककशोर त्रतवारी जी एह सिय शत्रक्तनगर सोनभर िे काययरत बानी । भोजपुरी िे हास्य व्यंलय के रचना इाँ हा के एगो अिग आ उं च पहचान बनावेिा । आखर पेज से जुि​ि बृजककशोर जी भोजपुरी िे िगातार रचना कई रहि बानी भोजपुरी िे त्रिख रहि बानी ।

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भगवान जब चहीहें, सुधार िीहें !

फ़ोटो साभार : शशश रं जन शिश्र

िोटो िाभार : गग ू ल

िनी के उिर के लोग अइसन भूकम्प देखलहीं ना रहल ह काहे की उन्नईस सौ चौसिस के बाद ई सबसे बड़का भूकम्प रहल ह जवन एह इलाका िें आइल रहल ह। कहल बा जे भगवान के आगे के हु के ना चले। भगवान के लाठी िें खाली िार होला, आवाज ना होला। सेकूलर,सिप्रदासयक, अगड़ा-सपिड़ा, दसलि-पसिान्दा, सहन्द,ु िसु स्लि, ससक्ख, इसाई, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक, िण्डल-किण्डल के राजनीसि आ रोज रोज के खुराफाि भगवान जी दइु ये सिनट िें बराबर कर देहले। दू सिनट खासिर र्रिी का कांपल सक अफसर आ चपरासी दनु ु एके रफ्िार िें घर िोड़ के सफल्ड िें भागे लागल लोग। के हु के के हु पि ु वईया ना रहे। वाह रे भगवान जी के कररश्िा। जब भगवान जी चहीहें सबका के ओकर औकाि बिा दीहें। ना कवनो परदा रहे ना कवनो िे ड़खानी। के जीन्स पेन्हले बा आ के सलवार-कुिा​ा , ऐसे के हु के कवनो ि​िलब ना रहे। सभे आपन-आपन जान लेके भागि जाि रहे। पले भर िें भगवान जी सबका सर्ु ार दीहले। पाका िें के ऊ नजारा ि हिरा भल ु ाि नइखे जब एके चटाई पर पंसडि जी आ िौलाना साहेब दनु ु जाना बईठ के रीलीफ िें बटाइल सबस्कुट चपु चाप खाि रहे लोग। ओह बेरा ना उ सहन्दु रहलें ना उ िस ु लिान। पले भर के झटका िें हो गइल रहे लोग ससर्वा इंसान। ना पंसडिाइन के चाय िुआि रहे ना शेखाइन के पदा​ा सबना र्रि नासाि रहे। ना के हु कम्यूसनस्ट रहे, ना कोंग्रेसी, ना के हु भाजपाई। सभे सचल्लाि रहे, बचाई ं-बचाई ं। बाह रे भगवान के ऐ ंटीबाइसटक दवाई। एके सिनट िें सबका िें िेल-सिलाप। िाने सारा झगड़ा दू सिनट खासिर साफ। दरअसल आदिी के खरु ाफाि जब हद से सजयादा बढ़ जाला ि भगवानजी आ चाहे अल्लाह सिया​ाँ असहीं नू सर्ु ार देले। ना ओह बेरा कवनो

दरोगा के जरूरि रहे ना कवनो ससपाही के आ ना िसहले पसु लस के । सभे असहीं सर्ु र गइल रहे। कवनो िीसटंग िें अगर हजार दू हजार लोग इकट्ठा होला ि एक सौ से सजयादा सरु क्षा खासिर पसु लस होला, बासक़र इहो एगो किाल बा जे बीसन लोग सबना अपना घरे िें िाला लगावले, घर िोड़ के सड़क पे बेिहासा भागि जाि रहे लोग आ के हु से के हु के कवनो खिरा ना रहे। ओह बेरा के हु के बॉडीगाडा के जरूरि ना रहे, ना गाड़ी, ना ड्राईवर। सभे एही िरे रफ्िार िें रहे। सा​ाँचे कहल बा जे हिनी के के िनो सबगड़ जाई ंसन, भगवान जब चाह दीहें ि दू सिनट िें सर्ु ार दीहें। खैर, ई बूझइला के बाि बा। ना ि हिनी के उ जीव हई ं सन जे अगर सब कुि सािान्य हो जाव आ रीलीफ बांटे के सिल जाव ि हिनी के ओहु िाल िें आर्ा िाल िारे लागब सन। बहुि लोग ओसह िें से आपन चनु ाव लड़े के खचा​ा सनकाले लागी। सा​ाँच ि ई बा की दइु ये सिनट के झटका िें सारा लोग एिना घबरा गइल रहे सक बझ ु ाट ना रहे सक के के ने भागो। जेकरा जेने िौका सिलि रहे, ओसनये हिाश भागल जाि रहे। जब र्ीरे-र्ीरे र्रिी के खीस शांि भइल ि जवन सखसस कांपि रहे िवन थोड़ी देर खासिर बन्द भइल। बासक़र उ दर अइसन सक के हु घरे लौटे के नािे ना लेि रहे। सउंसे सदन बीि गइल, राि हो गइल। सबजली नदारद, कुि-कुि अनहररया आ भूखे सपयासे फक-फक परान। बासक़र डरे घरे के चहु ानी िें के जाव आ नाश्िा खाना के बनाओ? दक ु ानो ि ना खुलल रहे सक कुि कीन के भूखाइल लइकन के सदआव। हाय रे िजबूरी ! अब पाका िें बइठल लोग का करो। हाय रे िजबूरी ! अब पाका आ स्कूल के िैदान िें बइठल लोग का करो ? जब कवनो उपाय ना सूझे ि आदिी भगवान-भगवान करे लागेला,

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बासक़र उहो के िना देर? अब एक दोसरा से बसियावला आ हंसी िज़ाक के अलावा दोसार कवनो रस्िो ना रहे। आदिी थोड़े देर खासिर दख ु िनावेला। दख ु ो िनावल देर िक सम्भव नईखे। िौका सिलिे हंसी िज़ाक िें लीन हो जाला। हाय रे आदिी ! िनी सा शासन्ि का भइल सक िौका सिलिे एक दस ू रा से हंसी िज़ाक करे िें आ कटाक्ष करे िें के हु से के हु बाज ना आवि रहे। आसखर खसलहा बइठल िजबूर आ भख ु ाइल िनई आ करो ? इहे आदिी के सफिरि ह। हिरा बझ ु ाला सक इहे हंसी-ठहाका वि के बड़हन से बड़हन घाव के भी भर देला। िजबरु रये िें आदिी रोएला आ घबराला बासक़र जइसे िनी सा सस्थसि सािान्य होला सक आदिी के चहु लबाजी शरू ु हो जाला। पाका िें डरल-सहिल लोग बइठल ि रहे बासक़र र्ीरे-र्ीरे सजनगी लवटे लागल ि चपु कइसे रहो। हिार पड़ोससया िदन भाई उदासी िुड़लें। आपन िोटकीिोटकी भउजी के टारगेट कइलें आ लगले कहे- जब ि​ि सहले लागल ह ि हिरा बझ ु ाईल ह जे हिार िोटकी भउजी ि​ि पर से र्ि-र्ि नीचे उिरिारी। सनु के सारा लोग ठहका लगा के हाँसे लगएु आ भउजी लगली चनु चनु ाए- जाई ं-जाई, लागिा जे राउर िेहरारू ि पाव भर के बाड़ी। आरे हिार बाबूजी सखयावले बाडें िब नू अइसन देह बा। उदास टेंशन से भरल सदिाग के िौका सिलएु आ लोग खूब हंसएु । राि प्रवेश भी िौका ना िोडुअन आ ओह हंसी-सठठोली िें िनी आउर र्ार देहुअन- आरे भाई, जब र्रिी कांपे लगएु ि िास्टराईन र्ाबाक से अपना चउकी पर से सगर गउई। हिरा बझ ु उए सक कहीं िास्टराईन के चउकी पर से सगरला से ि ना र्रिी सहले लागल? राि प्रवेश के बाि पे िनी आउर ज़ोर से ठहाका लगएु । िास्टराईन लगईु कहे- आउर के हु ना भेटाइल ि हिहीं भेटाइनी ह? अपने ि भागे के बेरी सीढ़ी पे िीन सढसिसलया खउवन। एह नोक-झोंक िें सबका िजा आवि रहे आ सबका ई बाि बझ ु ाि रहे सक बोसझल सदिाग के हल्का करे खासिर एह से बेहिर कवनो उपाय नइखे। हरे राि ठाकुर एह सब के ससलससला आगे बढ़उवन- जब र्रिी डोले लगएु ि हिनी के घर िें से सनकल-सनकल के भागे लगईु ं सन ि देखिानी जे

िास्टर साहेब नंग-र्ड़ंग खड़ा होके लेक्चर दे रहल बानी- अरे भाई, घबड़ा लोसगन ि​ि। इ भूकम्प ह। घबरइला से का होई ? थोड़ी देर िें इ अपने ठीक हो जाई। घबरइला से का होई ? सहम्ि​ि से काि ल लोग। अनेरे बेवकूफ लेखां सचल्ला िार लोसगन। एकदि घबरइला के जरूरि नईखे। हिनीए के साथे राि परीिन भाई भागाि रहुअन। उनका से बदा​ा श्ि ना भइल ि बोल पडुअन- खैर हिनी के ि घबराइले बानी सन, रउरा जाई ं आ घरे से र्ोिी चाहे पैंट पेन्ह के आई ं। सनु के लोग ढेर देर ले ठहाका लगउए। िास्टर साहेब हंसिे कहे लगुई ं- रे हिरो के ना िोड़बे सन का? एह िर-िज़ाक पर ओह अन्हारा िें ढेर देर ले ठहाका लागि रह गउए। इहे ह आदिी के सभु ाव। िनी भर िउका का सिलल, लोग अपना रास-रंग िें आ जाला, आ चाहे इ कहीं सक एक-से-एक दख ु के नदी हंसी-उिाह के सिन्ु दर िें जाके लोप हो जाला। अइसे इहों कहल बा जे दोसरा के हंसी-ठहाका देख के जे िस्ु काइल ना आ दोसरा के रोदन आ दख ु -ददा िें जेकर आाँख नि ना भइल, उ आदिी कइसन ? आज, कई रोज एह बड़हन त्रासदी के गज ु र गइल। बासक़र जब-जब अपना पड़ोसी देश नेपाल के दख ु टीवी पे लउकिा िब-िब िन दख ु ी हो जािा आ िानविा के आाँख लोर बहावे लागिा। एह दख ु िें ना कवनों र्रि के गंर् बा ना जासि के िेवर। आाँख के सोझा बस आदिी आ इंसासनयि। एलान के िोिासबक दस हजार से सजयादा लोग के जीवन-सफर अचानक रास्िे िें रुक गइल बा। पिा ना के िना लोग सनुःसंिान हो गइल बा आ के िना अनाथ। खैर, आदिी आदिी के खो देले बा इहे ऊख कि ना होला। एह त्रासदी पे खाली दुःु खिनावल जा सके ला। कवनो सवरोर् चाहे एहिजाज नइखे कइल जा सकि। ईिरीय फै सला पे कवन सवरोर् आ कवन एहिजाज? रोज-रोज इन्कलाब सजंदाबाद िुदा​ा बाद करे वाल लोग एक दि चुप बा, लाचार बा, हिप्रभ बा आ सनरुत्तर बा। एह फै सला पर कवना संसद िें हंगािा करी लोग आ सवरोर् िें के कर पिु ला जराई लोग ? हिरा स्व॰ िेराज फै जाबादी के एगो शेर याद आविा- “सदल

िंग इनायिपुरी तंग इनायतपपुरी (सुनीि कु िार तंग) जी आजू के सिय िें देश त्रबदेश िें एगो जानि िानि कत्रव के रूप िें स्थात्रपत बानी। इं हा के सीवान के रहे वािा हईं आ पैतृक भूत्रि त्रपिुई (दाउदपुर) ह। पेशा से हस्तरे खा आ अंगि ु ांक त्रवशेषज्ञ हईं तंग जी। हास्य-व्यंग के रूप िें, िजात्रहया शायर के रूप िें आ िंच संचािक के रूप िें इं हा के भोजपुरी, त्रहन्द्दी आ उदूय के सैकिों कत्रव सम्ि​िेनन िें देशत्रबदेश िें आपन एगो अिग पहचान बना चुकि बानी। देश के शीषयस्थ पि-पत्रिका िें तंग जी के रचना प्रकात्रशत होते रहेिा। दु बररस पत्रहिे, भोजपुरी िें उं हा के काव्य-संग्रह “के हु िन पि​ि” प्रकात्रशत हो चुकि बा। भोजपुरी खात्रतर आखर के संघषय िें इहा​ाँ के बहुत योगदान रहि बा शुरुए से। © आखर ● मई, 2015 ● 51


को थाि लेने सक फुरसि भी वही देिा है, औ र्ड़कने की एजाजि भी वही देिा है। “ आदिी उहे कर सके ला जवन ओकरा हाथ िें बा। अइसन त्रासदी िें िानविा पक ु ा फार के रोवेला आ हर सम्भव िदद खासिर ित्पर हो जाला। इहो संच बा सक एह िरे के िदद िें उ िलहि जरूर होला जवन वि के बड़हन से बड़हन घाव भर देला। एह बारे िें एगो बाि के प्रशंसा जरूर करे के चाहीं जे पाटी लाइन से ऊपर उठ के हिनी के कें द्र सरकार आ राज्य सरकार जवन भूकम्प पीसड़ि आ लोग के सहायिा िें जटु ल बा उ अपना-आप िें एगो किाल बा। पसहला बेरा राजनीसि आि आदिी के संवेदना के , सबना कवनो राजनीसि कइले

अपना दररयासदली के पररचय देले बा। सब से किाल इ बा सक अपना पड़ोसी देश के एह सवपसत्त के सिय िें सहायिा क के जवन सवदेशन िें र्ाक जिवले बा आ िानविा के पररचय देले इ कबहींना भइल रहल ह। अबगे बझ ु ािा सक ई देश बि ु के ह, िहावीर के ह, सववेकानद के ह आ िहात्िा गांर्ी के ह। अब जरूरि एह बाि के बा सक पक्ष-सवपक्ष एक दोसरा के कोसल िोड़ के एह सवषय िें सकारात्िक सोच के साठे काि करे लोग ट ई ऐिेहाससक हो जाई। आ अगर फे र उहे नकारात्िक आरोप्रत्यारोप करि रहल लोग, ि जब भगवान चाहे अल्लाह सिया​ाँ दू सिनट िें करोड़न-करोड़ लोग के सर्ु ार सके ले ि िट्ठु ी भर लोग के सर्ु ारे िें किना पल लागी। खैर अबहूओ ाँ ं से ऊपरवाला हिनी के सद्बसु ि देस।

गा​ाँधी जी के टूटल सपना बपयष ु बिवेदी ‘भारत’ कबो रहे जे सोन सचरइया,

भ्रष्टिंत्र के दीिक लागल ।

उहा​ाँ न बा अब सोना चा​ाँदी ।

खोखल हो गईल इिान सब ।

बहि रहे जहा​ाँ नदी दर्ू के ,

पईसा की राँगन िें राँसग के ,

उहा​ाँ भूसख से िरे आबादी ।

बा बदल गईल इंसान सब ।

चोर पहुसाँ च गइलन सन सत्ता, र्रर नेिा जईसन भेषवा ।

प्रेि, त्याग, सख ु किे लऊके , बस लऊके कलह कलेशवा ।

गा​ाँर्ीजी के सपना टूटि जािा, अन्हार िें देसवा ।

गा​ाँर्ीजी के सपना टूटि जािा, अन्हार िें देसवा ।

ढाई सदी रहे गोरन के ,

अनसगनि सिस्या बादो भी,

फे र जाके आईल खादी ।

बा सझलसिल आस के दीयना ।

लाख पूि आ सेनरु कीि​ि,

यवु ा खून, ई देश बचाई,

बड़ िहंग बा ई आजादी ।

बा ई सबस्वास के दीयना ।

बासकर कीि​ि आजादी के , नाहीं सिझे देस नरेसवा ।

यवु ा बनी जनिा के सेवक, ना नेिा जईसन बलेशवा ।

गा​ाँर्ीजी के सपना टूटि जािा, अन्हार िें देसवा ।

गा​ाँर्ीजी के सपना पूजी, उबरी अन्हार से देसवा ।

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हास्य

दनठाह दचंतन

गो ससि िहात्िा से कोई पुिलक – “ िहाराज , िेहरारू के वश िे करे के कोई िंिर बिाई ं “ ।िहात्िा जी बोललन – “ बचवा ! अइसन कौनों िंिर होइि िs हि घर से भाग के सार्ु बनिीं ?

ओने , जज साहब अपरार्ी से कोटा िे पूिलन – “ िोरा पर आरोप बा सक िू अपना िेहरारु के कं िोल कईले बाड़s ? अपरसर्या बोललक – “हजूर ई बाि बा सक.............”

जदी उ जादे िेज-िराक बारी आ रऊआ कुि ससिससिाह हई ि आपन बचल खुचल िेज उनके गोर िे हाँस-हाँस के डालके सनस्िेज हो जाइं !

उ चाहे जेिना कररया होखस , रऊआ कोससस कर-कर के , िीठ बोल-बोल के ई बाि उनका िन िे बईठावे के बा सक उरवसी, िेनका, राम्भा उनका से उन्नइस बारी लो !

उनकर बनावल भोजन चाहे जेिना खकवा काहे न होए , पानी पी-पी के िारीफ करीं , हर घोंट िे ई जरूर कहाए सक जवार िे अइसन रसोई के हु न पकावेला ! ई बाि बार -बार कहे के बा सक ई “रेसेपी” टीवी पर " िास्टर-सेफ" िे भेज देवल जाए , ि बड़ा सहट हो जाई , पसहला इनाि सिली !

जदी उनकर नईहर के लोग रावण के गनु पर भी गएल होखे िबसहयों आपन वाकचािुरी आ सक्रयाकलाप से उनकर नईहर के सब लोग के 'रािजी के अविार' ससि करे के कोसशश करीं आ ई कोसशश िे हरदि सचेष्ट रहीं !

िनख़ाह के सब पईसा चपु चाप सबल्कुल सहज सिसपा ि भाव से िेहरारू के हाथ िें असपा ि कर दीं और रोज आसफस जाए के टाइि लईकन लेखा सगड़सगड़ाके दू-चार रूपया िांगी ! ए काि िे होससयारी रहे काहे की जादे दा​ाँि चीयरला से “ओवर-एसक्टंग” के खिरा बा !

बराई ंि​ि , सफलिा सिली जरूर ! जादे घबराहट होए ि उनका सािने ई गाना गावे के शरू ु कर दीं – “रससया के नार बनावो रे रससया के ..........!

जज साहब िरु त्ते बोललन – “सफाई ि​ि द , िरीका बिावs िरदवा !” कहला के ि​िलब ई बा सक आपन िेहरारू के खुस रखल ब्रहिाण्ड के सबसे परु ान सिस्या बा । द्वापर, त्रेिा, कलयगु सब िे दूल्हा लोग िेहरारू के खुस राखे खासिर लेटेस्ट िरीका अपनवलन बाकी िेहरारू लोसगन भी दूल्हा से सखससयाए खासिर नाया नाया खोज करि रहली , एह कारण से पत्नी-भगि िरद लोगन के संख्या सकसन भगवान के जिाने से आज िक सदन दनू ा राि चौगनु ा बढ़ि पर बा । आज अइसनके एगो िरद-िहान से भेंट भएल रहे , उ ई सिस्या पर कुि उपाय बिवलन आ कहलन सक ई उपाय के अपना के घर के खाऊाँ-खाऊाँ से पक्का िसु ि सिली , आ जऊन लोग “औरि-फोसबया” से परेसान बा , ओकर कल्याण होई , िाथा के िूसर फूल िे बदल जाई , ई उपाय सबना का​ाँट-िा​ाँट के सलखािा सक जेकरा जरूरि बा , उ गिे से पढ़ लीं आउर फायेदा उठा के आपन जीवन खस ु हाल बना लीं :

भोरे भोरे उठके राि-राि जपि चाय बनाके िेहरारू के सपयाई ं, जब उ सबिौना पे बैठ के चाय सपये के शरू ु करस ि उहें नीचे जिीनवा पर आसनी सबिाके अनल ु ोिसवलोि करीं , दंडविासन आ शवासन करीं !

डा. एस . के . त्रसंह बत्रिया, युपी के रहे वािा डा. एस के हसंह जी एह घरी बनारस िे अत्रसस्टेंट कत्रिश्नर बानी । भोजपुरी आ हहंदी सात्रहत्य िें सिान दखि राखेनी । भोजपुरी भाषा प िगातार त्रिख रहि बानी ।आखर पेज प इाँ हा के त्रिखि कई गो त्रववेचनात्िक िेख , भोजपुरी कत्रवता आ चुकि बा ।

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कबवता

करम

पाती

सलखल करि के अब िs पोिहीं के पsरी जीऐ के बा िs िरहीं के पsरी

स्वसस्ि श्री सरब उपिा जोगे सउसे कुल देविा गोहराके जे ससु न के िन खुश होक्खे "भूषण"से खबर सलखावि बानी

ढेला ढुक्कुर िोड िासड के आिदी भा ईिदी के पज ु हीं के पsरी

भईससया अबकी पाडी सबआईल हरदी गरु सपआवि बानी बबनु ी के पाहुन साईसकल खासि दआ ु रे रग्गर बेसहले बानी

कहs िारे "भूषण" करर के साँउसे िनन अब िs कान्हा से कान्हा के जोरहीं के परी

सोचब कसहू ाँ गोई ंठा सभके

अंजरु ी भरल सोना चानी के नईखे अब दरकार

चंरभूिण पाण्डेय आरा , त्रबहार के रहेवािा चंरभूषण पाण्डेय जी , भोजपुरी िे ठे ठ आ गत्रहराह रचना खात्रत जानि जानी । भोजपुरी कत्रवताई के एगो बररआर ठे हा के रुप िे इाँ हा के िगातार त्रिख रहि बानी । एह घरी ईहाँ ा के बेगुसराय िे बानी ।

िसि जसन िनीको अपने काि चलावि बानी दूर्वा घीउवा बेसच बेसच दाि चक ु ावि बानी

रउवो खासिर भरर के शीशी घीउवा हि चोरवले बानी चईि िें बरखा से अबकी ईच्ची भ गेंहू बचवले बानी

हो सके िs िाड भाि से भरर दींहीं सरकार

राडी बर्ु आ ु बs के कोंहडा फे र से िान्हें लत्तर चढवले बानी बढु उ-बसु ढयो के देह-नेह कई के फरहर फे नु बनवले बानी

अब िs लाद का सोझा जाि र्रि हिके ना सोहािा

सीिा पर जे जे पहरा दे िा सभे के गोडवा लागि बानी अनकर देश से काहे के झगरा हासकिों के खबर पेठवले बानी

बर्ु आ ु देखीं खाली पेटे पीअला अस लोसटयािा

सचठ्ठी के िु िार िुट्टी होक्खसु आाँचरा से िोहार नन्हका के िाई

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जसन बूझीहs िब्बे अईहs गोड पखारि बोलि बानी


कहानी

खोई ंछा

सावन आपन बेटी के सवदाई के िइयारी िें लागल रहन, सबयाह ि सबयाह होला बाकी अब ि बेटी के गवनो करे िें एड़ी से पसेना िूटे लागि बा । सभनसहरे से झापी - बक्सा, डाल दउरा, खसटया - सबिावन , िोसक - िसकया सब एक जगह करि रहन । िने - िने सवचारि रहन की दू गो बैलगाड़ी िें ि िय चसलए जाइ । बसु चया के जाये वाला गाड़ी िें ओहार िनवा देले रहन । अभी इहे सभ सवचारि रहन की बसु चया के िाई आके पि ु देली- " बसु चया के खोइिा देवे के बा , पईसा सदही ना "। बसावन एक हाथ से सपयरी र्ोिी के खटु ा टोवि बसु चया के िाई दने िाक के पि ु ले- "किना चाही ?" बसु चया के िाई अपना अचरा के गेठी खोलि कहली"पवनी - पंडी जी के देवे खासिर जवन काल्ह देले रही वो िें से 5 रुपया बाचल बा, अउरी कुिुओ दे सदही ि फे ट के खोइिा िें डाल देहब । बसावन के िन करि रहे की आज हजार - दू हजार रहीि ि बसु चया के खोइिा िें डाल सदसहसि बाकी असो ि दु बखि खाए के भी िोहाल बा । अभी हलुवाई के िजरु ी , बाजार प के बसनया के डालडा-चीनी के पइसा अउरी ह । इयाद परल बढ़ई के खसटया के बनाई भी देवे के बा । अपने ि आदिी बसखटवो पे सिु जाला बाकी बेटी के ससरु ा बसखट दे के सवदाई ना नु होई । दवु ार प के पलानी िें सीसो के र्रन रहे उहे देई के बढ़ई के कहलन की पावा - पाटी बना द , खाली सिु री सकने के पड़ल । अब दवु ारो उघार हो गइल बा बासक अब कवनो सचंिा नइखे । अब कवनो िाल - गरु बाड़न स की पलानी के सचंिा करसु । असो जेठ - बइसाख ले कही से कदि भा आि के भी लकड़ी र्रन खािीर जोगाड़ हो जाइ ि बनु ी-बदरी िें उठे-बइठे खािीर एगो पलानी के जोगाड़ कइल

जाइ । बसावन के आपन काि ि कसहु बसनहारी क के चल जाि रहे । रोज चोकर वाला पाव भर सपसान से बनल रोटी पनसपआइ िें िील जाला, िीन सेर खेसारी भा र्ान बसन िें सिल जाला । बसनहारी िें 2 सबगहा कोला सिलल बा ओसह पे असरा लागल बा । बइसाख खि​ि होि -होि बरखा होखे लागेला, रोसहनी नक्षत्तर िें र्ान के सबअड हररअर हो जाला । िहीना डेढ़ िहीना िें हाथ-हाथ भर के र्ान रोपनी लायक हो जाला । जब ले सबया बोवे लायक होला िब ले सनचे के खेि जोि-जाि के रोपे खासिर िइयार कइल जाला । असाढ़ िें रोपनी सरु​ु हो जाला , सावन िक चलेला । सब सगरहथ के इहे कोसशश रहेला की ओकर आपन रोपनी पसहले हो जाओ । अगाि हो जाओ । अब ि सजए खासिर अबही से र्ान के खेिी के सपना देखे के परी । रोपनी िें चार सेर िजूरी अउर िेढ -आरी पे बइठा के दाल - भाि िरकारी अचार िसलकार सखआवे लन । पसहले िहीना दू िहीना रोपनी चलि रहे बाकी अब बड़की िसलसकनी अपना नइहर से िजूर िंगवा लेि बाड़ी । बड़ा कठजीव हई , किनो हाथ - गोड़ जोडला पे दू सेर उसीना चाउर पइचा ना देली । पर साल किनो कहनी की िलसकनी जिने रउवा से बने ओिने पइचा दे दीही , पूस िें हि राउर पइचा फे र देहब । बाकी बड़की िलसकनी के पेट के पानी ना सहलल । बसावन के चहु ानी पा​ाँव डेढ़ पा​ाँव आनाज से बेसी ना होखे , वोही िें से िटाक िटा​ाँक भर बना के काि चलि रहेला । अब साग - िरकारी के का कहल जाओ । नेनआ ु - लउका अब लउकि नइखे , िचान बान्हे के जगह होखे िब नु । पसहले िहीना दू िहीना िें ि​िरी- भाि भी भेटा जाि रहे । कबो पोसठया , कबो दू चार गो गरई,ससंगी , टेंगरा भी सिल जाि रही स । बासक अब ि लागि बा की ि​िररयो के आकाल पर गइल बा । बसु ढ़या पोखरा िें अब पानी ना रहे , पसि​ि भर के आहर भी सख ु ा गईल , पानी अिने रहेला की बइठलो भईस नइखी स भींजि, असही

शत्रश भूिण डु िराव , त्रबहार के रहे वािा शशी जी , व्यपार के क्षेि िे बानी , भोजपुरी भाषा िे िगभग हर िुद्दा हर पहिू प त्रनबंध शैिी िे इाँ हा के त्रिखेनी । एह घरी इाँहा के हा​ाँगकांग िे बानी ।

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कहानी लेवाड़ िांज के चल आवि बाड़ी स । अब का कइल जाउ कसहु गोसाई ंजी के नाव लेके सजयल जाि बा । गरीब आदिी के अकील हरदि भल ु ाईल रहेला । िासलक - िलसकनी के का कहे के बा । ओह लोग के बाल - बच्चा ि , जवन हिरा बसु चया के देखे के ना सिलल होइ वहु े भकोसि रहेला लो । हिार िेहरारू अपना बेटी के खोइिा खािीर सिसिआइल चलि सबया वोने काल्हे देखनी िासलक के िोटका भाई जवन सहर िें बड़का नेिा बाड़न उनकर िेहरारू अउरी बेटी ठोर रंग के , गाल पोि के अइली हा स । हिनी के िेहरारू, लइकी के ठोर लाल िबे होला जब कईसहु किहू भभु नु फुट जाला । बड़का लोग से का कुफुि करे के बा, कसहु बेटी के पार लगा देनी, रेल - ठेल के हिनी के दनु ो बेकि के भी सजनगी पार लाग जाई ।

बान्ह के का करब । गोसाई ं जी के गोहरा के हाथ जोडले , आाँख िें लोर भर के बेटी के सबदाई कइलन ।

ले दे के बसनहारी िें जवन दु सबगहा खेि सिलल बा वोही पे आस रहे । सोचले रही की गेंहू बेच के बसु चया के गवना फररया देब । जब गेहूाँ पटावे के रहे िब नहर िें पानी ना आइल , अब बहंगी पे पानी ढो के के हु खेि के पटवन कइसे करो । अइसन पाला परल की गेहूाँ कहा से होइ , अब ि ऊपर से बरखा बररस गइल । गेहूाँ कररया होके खेिे िें सिु गइल । बसावन के बसनहारी िें िालीक गड़ही वाला खेि देले बानी , अइसन पानी लागल की अब गेहूाँ ि दरु , दू चार िोटरी भूसा भी ना होई । िासलक के खेि के पटवन ि कसहु पसम्पंग सेट से हो गइल , खेि उचास प बा ये ले पानी सनकस जाला, बरखा से ओिना नक ु सान ना भइल । पइसा के बल बा | पाला के दवाई िार के जवने बाचल उ िासलक लोग बचावल । अब ि िालीक से ही कसहु करजा भा पइचा िांग के साल लगावे के पड़ी ।

िासलक बसावन के िसनका भीरी आ के कहलन- "अच्िा सनु , आज हासकि लोग गावाँ िें आइल बा फसल देखे खािीर, ऊपर से आदेश भइल बा की सकसान के िआ ु वजा सदहल जाओ । एह साल अगर सकसान के िआ ु वजा सरकार ना सदही ि हिनी के काि ि कसहु चल जाइ बाकी िहनी के ि सभ लीलाि हो जाई ।

बसावन के सोच िें पडल देख के उनकर िेहरारू टोकली "का सोचे लगनी जी ? पइसवा सदही... सकररन फुट गइल , सर सेकराहे सवदाई हो जाइ ि खाए-सपए के बेरा ले अपना घरे पहुचं जाइ लोग "। बसावन के लागल की करेजा भारी हो गइल । बसु चया के िाई ठीके कहि बाड़ी, देरी हो जाइ ि अब नास्िा पानी के जोगाड़ करे भर कुबि नइखे । आपन सपयरी के खूंटा खोल के दस-दस रुपया के ि​िोराइल - चिोराइल दु गो कागज के नोट रहे , ऊ बसु चया के िाई के हाथ प र् सदहलन । जब घर के हाड़ - िांस के लसि​िी दोसरा के अंगना जाि बाड़ी ि र्ोिी के खूंटा िें कागज के लसि​िी

बाराि सबदाई करके बसावन सीिलपाटी सबिा के आाँख िूंद लेले । सोचलन की िनी हाथ - गोड सोझ क लेवल जावो । आाँख भारी भइल आवि रहे बाकी करेजा अइसे र्क-र्क करि रहे जइसे ढेका के िस ु र सगरि होखे । सोचि रहन की कसहु सदन काट सलहल जाओ ि सांझी के बसु चया के िाई से कहके खुदी के भाि बनवा के िाड़ , नून संगे खा लेब । अिने िें उनका कान िें िालीक के बोली सनु ाइल "बसावन... ये बसावन सूि गइले का रे ? अब ि बेटी के गवना हो गइल अब िनी देह झार । बसावन झटके पे उठ के खड़ा हो गइले । िंहु से खाली अिने सनकलल- " जी िालीक "।

अब बसावन का कहस , अिने कहले- "अब का करे के होइ िासलक ?" िासलक बोले शरू ु कइले " देख साहेब लोग घूि घूि के खेि देसख लोग अउरी ररपोटा बना के कलेटर साहेब के सदही लोग िब िवु ावजा सिली । हि हासकि लोग के दवु ार पे बइठा के चाय नास्िा करा देले बानी , उ लोग बसढ़या से ररपोटा बना के कलेटर साहेब के दे सदही लोग । ररपोटा सलखे के साथे साथे हासकि लोग के खेि िें से खराब भइल गेंहू के निूना भी ले जाई लोग । जेकर फसल जिने खराब रही ओकरा ओिने पइसा सिली । अब सनु , िोरा के जवन हि कोला देले बानी ओकरा के काट के चटाई - चटाई भर गेहु हिरा सभ टोपरी िें सकनारे - सकनारे सबिा दे । अइसन िराइल फसल से ररपोटा अउरी िगड़ा बनी । बसावन हसुवा उठा के चल देले । जइसे जइसे िासलक कहले वोइसे - वोइसे कइले । साहेब लोग आइल, कागज पे सलखल लोग , बसावन के सिटल िवु ार िें से निूना खासिर बोरा िें भरवा सलहल लोग , बर्ार घिु ि घिु ि बसावन के खेि दने भी चल आइल लोग । वोह िें गेहू के एको डाठ ना बाचल रहे, सभ िसलकार लोग के खेि िें

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कहानी सबि गइल रहे । अब अइसन खराब फसल गा​ाँव भर िें के हु के ना रहे । हासकि पूि देहलन "ई के कर खेि हा जी , सबके गेहु खेिे िें िारा गइल , ये िें ि कटनी हो गइल बा ।" िासलक जवाब सदहलन - हुजूर ई हिरा बसनहार के कोला हा , अब एहनी के जीिे इहे सबगहा , दु सबगहा खेसिए बा । कसहु जीव जान लगा के जिना बाचल बचवलन स ।

के िंजूरी भी रुक सके ला , सफर से जा​ाँच हो सके ला । बसावन चपु -चाप अपना िालीक के िहुाँ िाकि रहन । उनका इयाद पड़ल सक एक बेर िासलक उनका के सिझावि रहन "झूठ बोलल अउरी गहु खाइल बराबर होला । " के सररहारी , कहा सहारा सिली , जवना के िुवनी ऊहे सबला गइल ; खोजि रही सावन के फुहार , र्र्कि िाटी र्रा गइल ।

हसकि गा​ाँव के लोग के सलस्ट िें से बसावन के नाि खोज के लाल सनसान लगा देहले । आसखर सरकार के इहो ि बिावे के बा की 5 से 10 प्रसिशि फसल के क्षसि नइखे भइल । आसखर 100 % क्षसि के ररपोटा काल्पसनक लागी , िआ ु वजा

दहेज़ (राजीव वमश्र)

गो सकसान बासी भाि िें पानी आि के एगो फांकी िीस के भा रसिया के बाचल सलट्टी के खा के पानी पी के की खराई जसन िारो लउर कान्हा पे सलहले अपना खेि बर्ारी जाला । दपु हररया िें सिलो भ जसन सिलो खाए के अपना िाई िाट्टी के संजोइ गोडी, पानी लगाई की चैिी के फसल िक ले बसहनी के सबयाह बा । रोपया कौड़ी जोड़े के बा । सिु े के परयास करी बाकी नींन कहाँवा ? आाँख िदु ाईल ना की सपनवे िें देखीहें ! ओहो पलेट जसन कि परी जाउ ।गा​ाँव के लोग आ हीिनािा का कही ? कवनो जिाना रहे की दआ ु रे बररयाि लागो ि दू चार सडराि सरबि घोराउ सोंउफ डारी के । अिना ना नीक लागि रहे सक का कहल जाव । बड़ा परेि से लोग चार पांच पिई पड़ु ी बंसीपरु वाला कटहर के िरकारी जरे खा लेि रहे । बह बही होि रहे । नासद िही के सनकलो ि , इ फलनवा भइया फलनवा काका बाबा के चार पांच अंजरु ी डार भैया आठ जोड़ी िरले बाड़े पची जाइ। ओने से भी - िरदे हि अिना कहां खानी ! उ ि ठनढई (उ हे सरबि सोंउफ वाला ) पचा देले रहे !! आजु प्लेट के चक्कर अलगा, अवरू आजु ि दू जगहा से अएगा आइल बा | का दो फलनवा पटना -रांची से हलवाई बोलवले बाड़न । सलट्टी चोखा पोलाव दाल, पूड़ी आ पनीर के िरकारी ।उनका सकहा​ाँ के जाइ अवरू दोसरा सकहां के जाइ उहो जंजाल बा ।

बाकी बूढ़ परु सनया लो एह के िुरल चाहि बाड़न । एगो बाबा कहलन अजी इ िय पईसा के बोखार ह आपन संस्कृिीयो नसािा अवरू एके पिल पे िय गाउंज िाउज । दोसरका काका - सही कहनी रउवा कच्ची पक्की सभ िेरा के बूढ़ परु सनया के इज्ज़िों ि जािे बा । सभे एके जरे ? बन होखे के चाहीं ई कुल्ही !! नीन खुलल फे रु उहे खेिे । दू चार गो नवहा- का हो भईया प्लेट ओलेट के के हु से कहाईल बा ? हलवाई भइल बा ? सिलक के सािान के पूरजी लईका सकहां से आइल होखे ि अबसहये से कुिु बयना दे द ना ि बाद िें सब नखरा करीहन सन । िहंगो परी । अब बेचैनी अवरु बढ़ल । िन िें सोचले पईसा कोडी जवन जोराइल रहे ओह िें से अर्वा ि लईका के दे सदयाईल । अर्वा सिलक प नु देबे के बा । ओही िें से कुिु कासढ़ के बायना दे आवि बानीं काल्हुवे । खेि िब ले कटा जाई पइसा के इंिजाि हो जाइ !! अवरू परदा गीर जाि बा जब आन्ही ओला से फसल खेिे िें सूि जाि बा ! अभी बाक़ी बा :अब एह के पूरा रउरा सभे के करे के बा एगो डेग दहेज के सबरोर् िें

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रउरा सभे के आपने


कहानी

अनाथालय

सदन हि एगो अईसन जगह पहुचनी जहा​ाँ एगो आदिी दोसरा खासिर िरि रहे दोसर आदिी िीसर खासिर आउर िीसर चौथा खासिर । उहा​ाँ हर पल हर कोई िरि रहे िगर सजयि कोई ना रहे । हि एगो अईसन पररवार से सिलनी जहा​ाँ सकश्िों िें भी सजनगी हर कोई के नइखे सिलल बासक प्यार के र्ागा से सब के हू बंर्ल रहे , एगो अइसन पररवार जे अनाथ रहे । उ पररवार अपना लोगन से सबिड़ के अपना लोगन के एगो अलग दसु नया बना लेले बा, ओह पररवार िें चीख ना सन्नाटा शोर करि रहे ,उहा​ाँ एगो के रोअल दोसरा खासिर लोरी बन जाि रहे के हू के रोटी के हू के भख ु सिटावि रहे । पूरा भीड़ के चीरि आ खींढी के सगनि हि चौथा िाला ले ि पहुच गईल रहनी बासक अबो एगो खािोशी रहे , सन्नाटा रहे आ दरू िक फईलल अन्हार भी जेकरा दस ू रा ओर कुि लईकन के िस्ु कुराहट टीि-सटिाि रहे । ओह लईकन के आरी -कगरी कुि अइसन शब्द घिु ि रहे जवन ओकनी के नादान से बचपन के बा​ाँर् देले रहे , जईसे सनरीह , गरीब , डर , अनाथ आउर सांच आ उ शब्द उ सहिल लईकन के आाँख िें लउकि रहे जवन एगो खंढहर भईल देवाल के पािे से हिरा जईसन अनजान आदिी के झा​ाँकि रहे । कौनो नया चीज लईकन खासिर बहुि प्यारा होला आ उ चीज पावे खासिर कौनो लईका कौनो कोसशश ना िोड़ेला ,शोर िचाई , सजद करर आ ना पईला पे चीखी आ चीलाई उहा​ाँ हिनी के पास कै िरा रहे , हिनी के गाड़ी रहे चारोिरफ हिनी के हीं शोर रहे आउर उ लईकन के सन्नाटा । आज उ हिनी से सिले के िईयार ना रहलेसन , उ हिनी के पास आवे से भी डरसन । खैर हि कारण ि नईखी जानि िगर हिरा अईसन लागल की हिनी के नया कपड़ा लत्ता हिनी के अलग करदेले रहे आ चाहे इ कहीं की हम्हीं सिझ ना पईनी की ओकनी के एिना शान्ि सजनगी

अब कौनो अनजान हलचल के अपनावे के िईयार ना रहे । उहा​ाँ हरिरफ एगो नया कहानी रहे । कोई इ नइखे जानि की ओकर नाि का ह ,कोई इ नईखे जानि ओकर घर कहा​ाँ बा , कोई अपना बाबूजी के नईखे जानि ि कोई िई के नईखे जानि ,कोई नईखे जानि की ओकर पहचान का ह लेसकन एगो सवाल जे हर के चेहरा पे साफ़ – साफ़ लउकि रहे की "हिार गलिी का ह ?" "हि गनु ेहगार बानी ि काहे बानी ???".....। कुि सदन पसहलेसहं एगो लईका उहा​ाँ आईल रहे । सब लोग सिलके ओकर नाि राजा रखले रहे ओकर उिर इहे कौनो 14 - 15 साल के रहे । हि उ लईका से सिले के चाहि रहनी लेसकन उ कोई से सिले के ना चाहि रहे कोई बिावल की उ लईका अपना अनाथ होखे के चस्िदीद गवाह बा । उहा​ाँ के लोग इहो बिावल सक ओकरा कैं सर बा । सांच कहीं ओकरा सांच के जाने के िाकि ना रहे लेसकन ओकरा से सिले के हिार एगो चाहि रहे, हि ओह लईका के जरी पहुचं नी । उ चपु बईठल रहे हि ओकरा से बाि करे के कोसशश कईनी िगर उ िबो चपु रहे ,हिरा पास एगो टॉफ़ी रहे हि उ टॉफ़ी उ लईका के देहनी िब उ कहलस "ि ईहा​ाँ के लोग रउआ के सब कुि बिा देहलस ?" हि सहम्ि​ि जटु ावि ओकरा से पूिनी " िहरा डर ना लागेला " "डर ........" उ जोर - जोर से हंसे लागल , िाली बजावे लागल आ फे र अपना आप के सम्भालिे बोललस "हि िानिानी की िौि के सन्नाटा िें सक ु ू न ना होला ि का इ सजनगी खािोश बा ?" "आ जौन डर के बाि रउआ करिानी उ डर ि हिरा से बेसी रउआ चेहरा पर लउकिा इहा​ाँ खड़ा हर कोई के चेहरा पर सदखिा एही से अब ि डर से डरे लागल िुट गईल बा " उ कुि आउर भी कहे के चाहि रहे िगर कहिे -कहि उ अपना गि के िुपा लेलस सायद इहे गि ओकरा सजये के सहारा होखो ।

स्वत्रस्ि आनयन त्रसवान त्रबहार के रहे वािा स्वत्रस्त आनयन जी अभी इं जीन्द्यररं ग के पढ़ाई कर रहि बानी आ भोजपुरी, त्रहन्द्दी िें िघुकथा त्रिखेनी। ए घरी इहा​ाँ के भोपाि िें बानी।

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कहानी हि एगो पत्रकार हई रोज बहुि से जगह पे जानी आ बहुि से सजनगी के बहुि करीब से देखेनी आ फे र उ सब सजनगी के टटोलेनी आ खंघालेनी िगर पसहला बेर ओह अनाथालय के सजनगी के एिना करीब से देखला के बाद हिार खुद के सजनगी िार-िार हो गईल । इहे सब सोचि सोचि ना जाने कब सांझ हो गईल आ िबे एगो आवाज आईल " देख लोग इ राजा के का भईल " सब के हू दउरल आ हिहू ाँ भागिे - भागि राजा के किरा ले पहुचं नी उहा​ाँ राजा लम्बा - लम्बा सांस लेि रहे । कुि लोग डाक्टर के लेवे खासिर भागल लेसकन अन्ि ि सब के हू जानि रहे एही से हिनी के िायूस होके इन्िजार करे लगनी सन अब अब अब .... आ फे र एगो चीख उ सन्नाटा के चीरि ओसह सन्नाटा िें कहीं लुका गईल ,सब के हू ओह गिगीन िाहौल िें डूब गईल रहे। के हू रोवि रहे ि के हू सविास ना कई पावि रहे । आज िकले के हु राजा के हंसि ना देखले रहे बासक पिा ना िरला के बाद राजा के चेहरा पर कवना बाि के िस्ु कुराहट

रहे । गिे-गिे एसहन्ग दू सदन बीि गईल आउर आज हि आ हिार टीि ओह अनाथालय के कुि खोखला वादा दे के लवट आईल सबआ, आ अब हि कुि खाली पन्ना िें ओह सजनगी के उिारे के कोसशश करिानी िासक कुि लोग आवे वाला सिय िें इ िहत्वपूणा सवषय के आपन - आपन िद्दु ा बना सको चाहे सीर्े - सीर्े इ कहीं की एह सवषय के कुि लोग आपन जीि आउर दोसरा के हार के कारण बना सको बासकर का कहीं उ सजनगी के हि चररिाथा कई नईखी पावि काहे सक एहसास के कौनो सचत्र ना होला ,एहसास सनराकार होला , सबलकुल सनराकार , एकदि सनराकार ....................।

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कहानी

आवह रे बालम वचरई ( अंवतम भाग)

चचि : शसश रं जन समश्र

अब ले रउरा पढ़नी सक बाबू सकररपाल ससंघ के दयु ार पे चम्पा बाई के नाच के िैयारी होिा । िय गा​ाँव जवार जटु ल बा । ओसह बीच िें देस के परर्ानिंत्री के िरे के सूचना सिलल । दारोगा आ एस डी एि के कहला पे बाबू साहेब नाच रोकवा सदहले । अब एसहजा से आगे पढ़ीं-

हे दआ ु र बा । आ दआ ु र प दरी ससियाना सब ओसहिरे बा । बासकर अपना नेिा के गईला के दख ु लउकिा बेकिी बेकिी के चेहरा पर । चंपाबाई के बर-सबदाई हो गईल बा । ठाकुर साहब नेग-जोग िें किी ना करे वाला हऊवन । लेसकन राि के इगारह बजे से गईल ठीक ना रहे । ि सभकर सूिे के बेवस्था परु नका हवेली िें हो गईल । दगु ो हरवाह चंपा के देख-रेख िें िैनाि बा लोग । चंपा सिु ल बाड़ी । बासकर नींन बा सक आविे नईखे । अजबे अभाग हो गईल । आजु ले अईसन ना भईल रहल ह कब्बो सक स्टेज पर से सबना नाच-गाना के चंपा उिर गईल होखस । बासकर ऊपर वाला के हाथे सभे िजबूर बा ।

हरवाह आ के पूसि गईल ह सक-पानी-ओनी ना नु सपयब रऊवां। चंपा फे रु सिु े खासिर आाँसख बंद करिारी । िले कहीं दूर से िाईक पर हल्लो-हल्लो के आवाज सनु ाईल । आ द-ु चार सिनट के बाद एगो सरु ीली आवाज सनु ाये लागल- आसह रे बालि सचरई... । चंपा आाँख बंद के सिु ल चाह िारी । िबले गवईया उठान लेिा- कवनी खोिवा िें लक ु ईलू आसह रे बालि सचरई... । गजबे जादू बा एकरी आवाज िें । अगर एकरी साथे रायसाहब अिुल बाबू के िबला के संगि हो जाव ि सनु वईया ऊठे के नावे ना ली । ईहे खूबी होला संगीि िें । सबदवान से ले के सनपढ़ ले,लईका से लेके सयान ले, जीऊ से लेके जन्िु ले सबका प एकर परभाव परेला । अनगिु े चंपा के गरदन प कुि गरिाहट के अहसास भईल । हाथ से िुवला प बझ ु ाईल सक अरे ई ि लोर ह । जवन बेकहले-पूिले आाँसख से सनकल गईल बा । उठ के पानी सपयली । हरवाह के बोला के पूिली-ए काका! ई के गाविा हो?

असित कुमार समश्र त्रसकं दरपुर बत्रिया युपी के रहे वािा अत्रसत कु िार त्रिश्र जी भाषा त्रहन्द्दी आ भोजपुरी प बररआर पकि रखिे बानी । भोजपुरी िे ठे ठ आ खांटी भोजपुरी के अपना िेखनी से परोसे के क्षिता इाँ हा के िेख िे देखि जा सके िा । स्वतंि रुप से कई गो पि पत्रिका अखबार िे इाँ हा के िेख आ चुकि बा । एह घरी इाँ हा के बत्रिया िे ही बानी ।

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हरवाह कहलन-आरे ई सरू वा ह । नीिन गावेला । नोसनयाटोला िें आजु सबटोर भईल बा । आज खाली सनरगनु गवाई,परर्ानिंिरी जी खासिर । चंपा कहली सक -ए काका हिहूं सूने चलब । सलया चलs हिके । हरवाह भौंचक ! कहलन सक-अरे चंपाबाई रऊवां ई का कहिानी । एगो सूर के सनु े खासिर रऊवां जाईब । गांव-जवार सभ ओसहजा सबटुराईल बा । दोसरे िें राऊर सरु च्िा...ठाकुर साहब जासन गईनीं ि हिार जाने ले लेब । चंपा कहली सकके हू ना जानी । हि चदरा ओसढ़ लेिानीं । आ िेहरारुन के भीड़ िें सबसे पािे रहब । हरवाह के असकल फे ल... । हार िासन के हरवाह आगे आगे चले लगलन । आ पािे पािे चंपा । जो रे सूरवा िोर भाग जाग गईल । रुप आ गनु के खान चंपा, जेके देखे खासिर लोग ि​िवाला हो जाला । ऊ चंपा आज एगो सूर के सनु े खासिर जा िारी । िबले चंपा के डेग पनरोहा िें परल,सगरला से बचली । िहुाँ से िी! िी! सनकलल । सूिल कुकुर भूक ाँ े लगलन स । हरवाह दूर-दूर क के कहे लागल सक- दअ ु ररका के पनरोहा ह । डहररये प बही । एने चंपा संगीि के नासा िें चुपचाप चलि जा िरी । गेहूाँ के कटाईल खेि िें एगो चौकी सबिल बा । एक ओरी पांच गो ई ंटा साज के िीनगोड़वा चौकी पर एगो िब्बीस सिाइस साल के सन्ु दर लईका गाविा । अाँजोर के नांव प एगो गेस जरसिया आ देखवईया भइुाँ या बईठल बा । कुिु ढ़ेर रसदार लोग घर से बंसखट लेके आईल बा । िेहरारु लोग िसन दरू से लग्ु गा से िहुाँ िोप िोप देख रहल बा । अईसन स्टेज आ अईसन िाहौल देखके चंपा सचहा गईली । एकबारगी िन िें आईल सक- ना हिरा लाएक नईखे ई । बासकर िन कहलस सक- ना ई एगो कलाकार के अपिान हो जाई । हिरो के देखे खासिर ि लोग एहीिरे आवि होई । हरवाह चंपा के िेहरारुन की ओर बईठे के इसारा क के िरदनन िें चसल गईल । चंपा भइुाँ या बईठ के अाँचरा से िहुाँ ढ़ंसक के सनु िरी । चंपा के िन इसस्थर नईखे । सोचSिारी सक गजब के राग आ दरद देले बाड़ी सरसिी जी इनके । ना िाएक ठीक बा, न अाँजोर, ना इस्टेज, ना सनु वईया । बासकर िब्बो एगो जादू बा ए सूरदास िें सक हिना लोग दीवाना बा ईनकर ।

भोर िें चार बजे जब गेस बिु ाये लागल ि काररक्रि बंद भईल । हरवाह इसारा से चंपा के बोला के कहलस सक- अब चलीं ना ि के हू जान जाई ि हिरा के फजीहि हो जाई । बेिन से चंपा के आवे के परल । एक घंटा बाद चंपा अपना िंडली के साथे सहर चल गईली । सहर के बासिए कुिु अऊर ह । लोग रासि के रासि िनबे ना करेला । एगो अजबे नासा बा सहर के सजसनगी िें । कहवा​ाँ जाए के बा पिे नईखे,बासकर भागिभाग िचल रहेला । सौ घंटा के एक सदन होईि ि का जने लोग िसन खसलहर सिसलि । लेसकन सहर के अईसनो रंगीनी िें चंपा के सदन-राि नईखे कटि । आजु पांच सदन हो गईल चंपा ना ठीक से खािारी ना सपयिारी । राणा सिर बहादरु ससंघ के काररंदा आ के लवट गईल,बासकर चंपा सिले से िाना क सदहली । िीन गो साटा के बेयाना फे रा गईल । आज सबेरे से चंपा के िन अकुलािा । सूरदास के चेहरा रसह रसह के याद आविा । चंपा अपना काररंदा सिु स े र के बोला के कहली-हरे सिु स े रा! ठाकुर सकरपाल ससंघ के गा​ाँव देखिारे?सिु ेसरा कहलस सक-हं । देखिानीं । चंपा कहली सक-ओसहजा नोसनयाटोली िें एगो सूरदास रहेलन । बड़ी नीिन राग बा उनक ु र । साच्िाि सरसिी जी बाड़ी उनक ु ा पर । जो सलया आऊ उनक ुे। सिु ेसरा कहलस-चंपा ई ठीक नईखे । कहां ऊ सूर आ कहवा​ाँ िूं । देखs नाचे गावे वाली जबले इस्टेज प रहेले िबले िरजाद बनल रहेला । जहां इस्टेज से उिरल सक ओकर पिन सरु​ु । िू ओके िोड़ द । का र्ईल बा ओकरा िें ! चंपा के िहुाँ लाल हो गईल । सखससया के कहली-िूं हिके कानून ि​ि ससखाउ । जेिना कहिानी ओिने सनु ! सिु ेसरा ठीक बा कसह के चल गईल । सदयाबरान के बेरा बा । चारों ओर संझवि बरािा । सपररसिया बिा गईसल ह सक-सिु ेसर आ सूरदास जी बईठका िें आ गईल बा लो । चंपा नास्िा-पानी के इन्िजाि करे के कसह के खदु े िैयार होखे िें लागल बाड़ी । सोचिारी सक कां पसहरीं ? ऊहे नीला लंहगा ठीक रही जवन ओसह सदन रहे । अनगिु े चंपा के होंठ पर एगो दख ु के हंसी आईल । ओह ! सूरदासजी के लऊकबे ना करेला । हि कुिऊ पसहर लेई ं का फरक परी । सूरदास चंपा के सोझा बईठल बाड़न । दनु ु लोग चपु बा । सूरदास कुिु देर के बाद कहलन-रऊवां हिके ईयाद

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कईनी,हिार भाग बा । अब आदेस करीं । का करे के बा हिके । चंपा कहली-देखीं सूरदासजी! हि बासि के घिु ा सफरा के ना कहब । ई सही बा सक हजारों लोग हिरी रुप देह के लालची बा । हिरी एक एक अदा पर लोग आह भरेला । बासकर ओसह सदन हि राऊर आवाज सनु नीं ि हिके लागल सक राऊर जगह ऊ ना ह । एगो सिठास आ एगो कसक बा रऊरी आवाज िें । सही पूिीं ि हि िसहए से बस रऊरे बारे िें सोचिानीं । आजल ु े अईसन कब्बो ना भईल रहल ह । के िने रुप के कदरदान ई ंहवां से खाली लवट गईल लोग । सूरदास कहलन-बाई जी ! ई ि राऊर बड़कपन बा जे हिके एिना िान-सम्िान सदहनीं । रऊवां का चाहिानीं हिसे? चंपा कहली- देखीं हिरी लगे कवनो बाि के किी नईखे । हि बस रऊवां से सबयाह कईल चाहिानीं । सूरदास के चेहरा के रंग उिरे लागल । सूरदास कहलन-देखीं! चंपाबाई हि सूर हई ं ,गरीब हई ं । लेसकन इजिदार हई ं । रऊवां से सबयाह क के हि सबरादरी से बहरा हो जाईब । रऊवां बहुि सघु र बानी, बासकर हि राऊर सघु राई देसखये ना पाईब । हिके िाफ करीं । आ फे रु कब्बो ि​ि बोलाईब हिके इहवां । चंपा के कटला पर खून ना । सूरदास के बासि बजर सनयर करेजा पर घाव कईलस । चंपा उठ के खड़ा हो गईली । उनस ु े रोवाई रोकािे ना रहे । िुरिं े दोसरा किरा िें चसल गईली । सिसेरवा आके सूरदास के सलया गईल ।

सिसेरवा पीिे सखड़की से जाके के वाड़ी खोललस । चंपा अपना सबिौना पर आराि से सिु ल रहली । िहुाँ पर अजबे सासन्ि । सपररसिया दौरर के उठवलस । चंपा के गरदन एक ओर उझसु क गईल । सगरो देह नीला परर गईल रहे । बगल िें िूस िारे वाला दवाई रहे । आ सीसी के नीचे एगो कागज । सपररसिया पढ़े लागलसप्रय सूरदासजी । रऊवां एके झटका िें हिके हिार औकाि बिा सदहनी । राऊरो दोस ना । हिहीं भल ु ा गईनी सक हि नाचे गावे वाली हई ं । सिाज िें हिके जगह ना सिली । राऊर सबरादरी दोसर बा,हिार सबरादरी दोसर... । हिरी सबरादरी िें रऊवां नीयर हजारों सूरदास के जगह बा । बासकर रऊवां नीयर हजारों सबरादरी िें एगो चंपा खासिर जगह नईखे । रऊवां बहुि इजिदार बानी । बासकर हिरी ईजि के नीलाि करे वाला सिाज ि राऊरे ह । के कर िन ना होला सक उहो के हू के िाई बेटी बसहन के नांव से जानल जाव । हिनीं खासिर लोग आपन िेहरारु िोड़ देला, बासकर िेहरारु नीयर िानेला ना ।

लेसकन िब्बो हिके रऊवां से कवनो ससकाईि नईखे । हि जानिनीं सक हिरो लगे एगो सहरदय बा । ओिे प्यार बा आ ऊ प्यार बस रऊवां खासिर बा । हि जािनीं एह दसु नया से । हो सके ि हिरा खासिर एक हाली ऊहे वाला गीि गा देब-आसह रे बालि सचरई.... ।

सबेरे घाि चढ़ला ले जब चंपा के के वाड़ी ना खुलल ि सपररसिया सिसेरवा से कहलस सक-आजु ले कब्बो एिना देर ले चंपा ना सिु ली । िनी देख ि का बाि ह?

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-एगो अभासगन


जंगल राज

दनराला (दबिेदसया के पाती )

जं

से प्यार करि रहल बा लोग । आउरी आजकल ि ि​ि पूिीं, िहक रहल बा ई शब्द । रोजे रोज अखबार िें आवेला सक जंगलराज के सखलाफ लड़े के बा, जंगलराज के वापसी हो गईल बा, जंगल राज के वापसी होखी । लेसकन जंगलराज के बारे िें कुि जानकारी अगर नेिा लोग जटु इले रसहि ि एकरा के एिना बेर, एह िरीका से बोले िें लजाईि लोग ।

गलराज... ! सपसिलका कुि साल से ई एगो अईसन शब्द हो गईल बा, जेकर सबसे बेसी सढंढोरा सपटाला । पूरा सहंदी इलाका िें एह शब्द के फै शनेबल ु िरीका से प्रयोग कइल जाला । कई बेर ि जंगलराज सच्चो िें एगो राज रहे । जैन सार्-ु संि खासिर एक सनकाह लेखा लोग भी जंगल राज-जंगल राज रटि रहेला जिाना िे सबसे ससु वर्ाजनक, सगु ि आउरी सघु र राज । सबहार-उत्तरप्रदेश आउरी झारखंड खासि एह शब्द के । जानकारी ई बा सक 232 ईसापूवा िें जब चक्रविी सम्राट लोकसप्रयिा िनी बेसी बा । आउरी आजकाल सबहार िें एह अशोक के ित्ृ यु भइल ि िौया सम्राज्य के पिन भी शरू ु हो शब्द के िान बढ़ल बा । जेकरे बझ ु ािा, उहे िाश के पत्ता गइल । कुि कालखंड के बाद अशोक के पोिा लेखा जंगलराज शब्द के फें ट देिा । एह िध्यप्रदेश,गज ु राि, दसक्खन, िैसूर आसद शब्द के प्रयोग राजनीसि के लोग सदल खोल रोजे रोज अखबार में आवेला इलाका िें आपन प्रभा​ाव बढ़ावे शरू कईलन ु के करि बा आउर िकसद बा एह शब्द के त्रक जंगलराज के त्रखलाि । उ आपन राज के साढ़े 25 राज िें बंटले अलोि िें कानून के राज खि​ि हो जाये के आउर एह बंटवारा िें जैन सार्ु लोगन के बिावल, अंर्रे नगरी-चउपट राजा के बारे लड़े के बा, जंगलराज के सगि​िा के ध्यान रखले । ओह राज्यन िें ु िें बिावल । चाहे अईसनका राज होखे, वापसी हो गईल बा, जंगल िगर्, अंग, कौशल, कस, सवदेह, करू, काशी ु ु जेकरा िें के हू के हू के सनु े खासिर िइयार आसद के साथे एगो प्रिख ु नाि जंगलराज के रहे राज के वापसी होखी ना होखे, गंडु ा-बदिाश राज कर सन, । िब जंगलराज के राजर्ानी असहच्ि​िा होखि शासन अकिा ण्य हो जाओ, ओही के बिावे । लेत्रकन जंगलराज के बारे में रहे । एह राज िें जैन सार्ु लोगन खासिर सबसे खासिर जंगलराज शब्द के इस्िेिाल हो कुछ जानकारी अगर नेिा सव्ु यवसस्थि आउरी सगु म्य वािावरण रहे रहल बा । सबहार िें सपसिलका कुि साल । ओही िरी जंगलराज के सवकससि भी कईल से लालू जी के राज खि​ि भइला पर लोग जुटइले रत्रहि ि एकरा गा इल रहुवे । भाजपा आउरी नीिीश कुिार के पाटी के के एिना बेर, एह िरीका से लोग एह शब्द के हवा िें उिलले रहे आउर एह प्रसंग के पूरा चरचा साथा वाह नाि के एगो ओकरा बाद िो नीिीशजी के राज आईल बोले में लजाईि लोग । सकिाब िें बा । साथा वाह कउनो सार्ारण िो लालूजी के पाटी के लोग भी जंगलराजसकिाब ना ह । एकर लेखक भी कउनो सार्ारण जंगलराज के गाना गावे लागल रहे लोग आदिी ना रहले । साथा वाह- प्राचीन भारि िें । लेसकन एहू कहे िें कउनो संकोच ना होखे के चाहीं सक एह पथ पिसि नाि से जवन सकिाब सबया, ओकर लेखक शब्द से सबसे जादा प्यार भाजपा के लोग करेला । सबहार िें िोिीचंद्र जी रहनी । एह सकिाब िें िोिीचंद्रजी यात्रा, यात्री िुटभइया नेिा से लेकर बड़का नेिा िाने िोदीजी िक ई शब्द लोग, रास्िा, रास्िा के पिसि आसद के रख के प्राचीन भारि

त्रनराला पेशा से पिकार , तहिका आ प्रभात खबर खात्रत िगातार त्रिखे वािा त्रनरािा जी , औरं गाबाद त्रबहार के रहे वािा हईं । इाँ हा के पुरत्रबया तान बैनर के नीचे भोजपुरी के पारम्पररक गीतन के सहेजे, सररहारे आ ओह के नया किेवर िे प्रस्तुत करे िें िागि बानी । एह घरी पटना िें त्रनवास बा

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के कई गो िहत्वपूणा अध्याय के खंगलले बानी आउर सािने लावे के कोसशश कईले बानी । गंभीराह िथ्य आउरी िका के साथे । िोिीचंद्रजी आपन सिय िें सवख्याि सवद्वान रहलीं । भारिेंदु हररिंद्र के पररवार से रहले बासकर इनकर आपन पहचान भइल । भारि के वेशभूषा आउरी भारि िें पथ पिसि, दईु गो इनकर सकिाब दसु नया भर िें चसचा ि भइल । जवन पस्ु िक के इहवां बाि होखि बा आउर जेकरा िें जंगलराज के बारे िें सवस्िार से चरचा बा, ओह पस्ु िक के भूसिका वासुदवे शरणजी जईसन सवद्वान सलखले रहलन । इ ि एगो सकिाब के बाि भइल, जेकरा िें जंगलराज के चरचा बा । अगर एकरो से सिझ िें ना आवे िो सबहार के नेिा

लोगन के अंग्रेजी िें सलखल जगदीश चंद्र जैन के सकिाब ‘ लाइफ इन एनससएंट इंसडयाुः एज्ड सडसपक्टेड बाई जैन कें स’ भी बंचवावल जा सकि बा । अब एह सकिाब के बारे िें जनवावे के काि बा । खास कई के अभी सबहार िें । काहे सक सबहार चनु ावी िोड िें घस ु चक ु ल बा आउरी रोज-रोज एक-दोसरा के सगरावे-पटके के खेला शरू ु हो गईल बा । एह खेला िें जंगलराज एगो सबसे जादे प्रयोग िें आवेवाला शब्द बा आउरी होखी भी । कि से कि ई बिावे के काि बा सक िु लोग एह शब्द के गारी लेखा बोल के आपन सि​ि ृ इसिहास के गररआवि बाड़ जा ।

िुदनया कहा​ाँ से कहा​ाँ जा रहल बा

दु

सनया कहा​ाँ से कहा​ाँ जा रहल बा। सबज्ञान के चित्कार िीसरका- सरकारी नलकूप आ नहर से पानी ना सिलला से देख आदिी चकरा जािा। लेसकन सकसान के हालि सनजी बोररंग पर बढ़ल खचा​ा िें कवनों सर्ु ार नईखे होि। सकसान के जीवन के चउथका- फसल बीिा ,अनदु ान,बीज,खाद सिले िें सदक्कि हर िन जोसखि से भरल बा। देह िोड़ िेहनि आ पांचवा- सरकारी क्रय के न्द्र पर के सबचौसलया। कइला के बादो जब ले अनाज घरे आ के र्रा ना जाव िले िासिये पर प्राण रहेला। असो के लहलहाि खेि पर ओला गावन िें आज भी सकसान 'फसल बीिा'ना जाने। बेिौसि पड़ल आ फसल करीया हो गइल। ये बेरा बरखा से पीसड़ि सकसान के पसहले के डा॰ रीता दसन्हा हासकि के , के पूिो कृसष सलाहकार भी िक ु ासबल डेढ़ गनु ा िआ ु बजा आ पचास के जगे झांकी पारे ना अइले । िैिीस प्रसिशि नक ु सान के भी िसि पूसिा के दायरे िें ले आवे के प्रर्ान िंत्री के घोसना सबहार आ यू पी के िख्ु य फसल र्ान, राहि भरल बा। साथे ररजबा बैंक के सनदेसों गेंहू, िकई, उरद, िसूर, रहर, िटर, जौ, बूट, संिोष देबे वाला बा। राज्य सरकार के चाही सक िंगु , खेसारी, राई, सरसों आ िीसी ह। कें द्र सरकार के सही जानकारी ित्परिा से सकसान के सारा दारोिदार इहे फसल पर देबे। राज्य सरकार चाही ि सबजली,पानी के टीकल बा। सब नीिन, बेजाय एही पर बा। झरु ाइल देह लेले सबल िाफ़ क सके ला। सकसान आपन सजनगी ओरवा देव ि ओकर दोष के करा पर बा? ई दुःु ख कहे िान के बा? गाि के आिो सगर गइल। असो के बरखा सपिलका सौ साल के रेकाड िुडले बा। चटसनयों दल िौसि सबभाग आपन पूवा​ा निु ान ठीक करो। बीिा कम्पनी सचेि ु ि। होखो। एक दोसरा के िाथे खेलला से ना होई। हकसान के सािने पांच गो सिस्या बासकसान जिीन के करेजा ह। एकर दुःु ख सबकर पेट के पसहलका - हर साल िौसि आ बाढ के िार दुःु ख ह। आ करेजा के िसहिा के नइखे जानि ? दस ु रका- जंगली जानवर आ कीडन के प्रकोप

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बाल परदेसी

ते

रह बररस के बचु नु अपना भटकोईआ सनअर आंख से फाड़ -फाड़ के एने-ओने देखि बारे , बासकर उनकर सवसलया चाचा के देखाई नईखे देि l बेचारा बुचनु के गला रुन्हाए लागल आ आंख िें से लोर के नदी बहे खासिर हुिचे लागल l बचु नु के हुगं सहम्ि​ि कके अपना जरी बईठल आदिी से पि ु ु वन सक -रऊरा ,हिार चाचा देखाई देिारे का ? लाल गि​िी वाला सजन होही सीटवा के लगे खड़ा होके खईनी बनावि रहले हs l बगल आला आदिी सीर्े कह देहलस- ना हिरा नईखे िालूि l जनसेवा ऐक्सपरेस के सीवान जक्सन से चलला चार-पा​ाँच सिनट हो गईल रहुवे , बचु नु के चाचा सवसलया पानी भरे खासिर सीवान जकसन पर उिरल रहुवन, बासकर अभी पानी अर्े जरसकं ग भरले रहुवन िलेक ले टेरने चल देहुवे l ऊ के हुगं जल्दी से चढुवन बासकर टेरने िें एिना भीड़ रहे सक उनका बचु नु के लगे पहुचं े िें पनरह सिनट लाग गऊए l ऐने एह पनरह सिनट िें बेचारे बचु नु के सससकी आ रोआई देखके अगल-बगल के लोग उनका के सिझावि आ चपु करावि रहुए l चाचा जल्दीए आ जईहें , ऊ असगलो टीसन पर दोसरों सडब्बा िें चढ़ल होईहे िs आ जईहे l िु चपु हो जा बबआ ु - कहि िहाि​ि सिझावि रहुवन l िहाि​ि के औरि रािाउिी अपना झोरी िें से सनकाल के दु गो ठेकुआ बचु नु के ओर बढ़वली , लs बबआ ु हई खा लs l बचु नु उ ठेकुआ ले लेहुवन , िलेक ले सवसलया सगरि- भहराि ,उसबिाि फानि सीट के जरी पहुचवु न l सवसलया के देख के बचु नु के जान िें जान आईल l पाम्हीं सनअर िोि पर फईलल नाकी के पानी के बाएं हाथ के कलाई से घसीट के पोंि के आपन चवसनआ िस ु क ु ी चाचा काऊर िोड़ु वन l भटकोईया आंख के सनकलल पानी हसला पर उठल गाल पर चिकि रहे आ ओहींग ऊपर के कोना िें बेिीं वाला आर्ा टुटल सीट पर से बचु नु पि ु ु वन -कहां चल गईल रहनी हs ?हिरा िs बड़ी डर लागि रहल हs l

सवसलया- अरे बड़ु बक , ऐिें डेराए के का बा l भीड़ देखि नईख , ऐिें िें लाि रखे के जगहे नईखे l के हुगं -के हुगं ससर के पहुचल बानी lलs हई पानी पी लs l आ ई ठेकुआ कहां से ? बचु नु - सहंहा के देनी हs l रािाउिी के ओर इशारा क के बिऊन l सवसलया बड़ी गौर से रािाउिी कावर देखुवन आ फे नु कहुवन आच्िे चलs ठीक बा , ऊ बाद िें खईहs अभी राख दs l सवसलया बचु नु के सािने वाला ऊपर के सीट पर के हुगं जगु ाड़ भीड़ा के बईठ गऊवन l िहाि​ि - भाई जी कहां ले जाए के होई ? सवसलया- सदल्ली ले जाएि सन l िहाि​ि- ई बबआ ु बड़ी रोअि रहल हs l बड़ी िनवनी हs सन l ई रऊरा संगे रह के पढ़े ले का ? सवसलया- ना भाई जी , ई गांवही रहि रहले हs l हिारा रािखेलावन भईया के चार िहीना पसहले टीवी के चलिे जान चल गईल l अब इहे ऊनकर एगो बबआ ु बारे , िीन गो ईनकर बसहन बारी सन l इनकर िहिारी सजद कके हिरा संगे नोकरी करे खासिरा भेजले बारी l का करेि सबना नोकरी- चाकरी के घर - दआ ु र कईसे चली l िहाि​ि - बासकर भाई जी ई िs अभी एकदि िोट लईका बारे , ई कवन नोकरी कररहे अभी , ईनका के पढ़ईिी लोगीन , पढ़ - सलख के ठीक -ठाक उिर हो जाईि िs अच्िा नोकरीयों सिल जाईि l सरकार काऊरी से पढ़ाई , कपड़ा , खाना सब िफ ु ु ि िें सिलिे बा l रऊरा ईनका िहिारी के सिझावे के चाही l सवसलया- का कहीं भाई जी , पढ़े िे िs ई ठीके रहल हs , सािवां के ईसम्िहान अबगे पास कईले बा l बासकर खाली

प्रभाि त्रमश्र छपरा, त्रबहार के रहे वािा प्रभाष त्रिश्रा जी भोजपुरी िें िगातार त्रिख रहि बनी आ आखर के साथे जुि​ि बानी। इहा​ाँ के कहानी आ कत्रवता दुनु िें हाथ सधि बा। कि​िहाि इहा​ाँ के नात्रसक िें काययरत बानी।

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पढ़ाई -सलखाई से घर -दआ ु र नानु चली l घर के खचा​ा ,बसहन सन के सबआह -शादी , ई सब िs करे खासिर पैसा -कौड़ी चाही , िs ई ना किईहे िs कईसे होई lएही कुल्ही से इनकर िहिारी हिरा संगे भेजले बारी l रािाउिी- रऊरा कोसशश करेि की एह बबआ ु के आसान काि सिलो , ना िs इ िs फुल सनअर बबआ ु सखले के पसहलही सख ु ें लगीहे l ईनका के अपना लगे पढ़ावहु के इंसिजाि करेि के हुगं , िैसटक ले पढ़ा देि िs आगे कबो सरकारीयों नोकरी सिले के राहिा खुलल रही l

भिीजा आईल बारे , अब ईहो एहीजी रहीहे l एहपर सबसेसर िीन सौ रुसपया सकराया बढ़ावे के कहले l के हुगं िनावि - सिझावि अढ़ाई सौ पर बाि बन गईल l अब डेरा के भाड़ा एह िहीना से ग्यारह सौ से बढ़के साढ़े िेरह सौ हो गईल रहे l ई सब बाि सबिला पर फे नु सभे खाए लागल l खा - पी के सवसलया आ बचु नु सिु लेहुए लोग l

एहींग कुि- कुि बसिआवि राहिा कटे लागल l राि भईला पर बचु नु आ सवसलया घरे से बना के सिलल सलट्टी आ खजूर खा के बईठले - बईठले सककुर के सिु ि- जागि राि काट देहुवे लोग l

असगला सदने सवसलया आ बटु ु ल , बचु नु के लेके फै क्टरीफै क्टरी घिु ें लगएु लोग नोकरी खासिर l जब द-ु िीन सदन िें कहीं बाि ना बनल िs उनके गांव के ओही जी रहे वाला अवर्ेश अपना जान पहचान के एगो सरदार जी सकं हा कपड़ा के दोकान िें नोकरी लगावे के बाि करे खासिर सवसलया आ बचु नु के ले गउवन l सरदार जी सकं हा बाि बन गईल l असगला सदन से बचु नु सरदार जी के कपड़ा के बड़हन गोड़ाऊन से दोकानी ले कपड़ा पहुचं ावे लगअ ु न l बेचारे बचु नु के पगार बाईस सौ रुसपया िय भईल रहे l खाए के खोराकी बीस रुसपआ रोजो अलग से l सबेरे नौ बजे से राि के नौ बजे ले l

असगला सदने टेरने सदल्ली पहुचं ल l सवसलया , बचु नु के ले के अपना डेरा पर आ गईले l ओजी उनका गावं के आऊरी िहसाि जाना रहि रहुए लोग बचु नु के देख के बटु ु ला कहलसअरे सवसलया भईआ , हेकरा के सदल्ली घिु ावे ले आईल बार का ?

पसहला सदने काि कके जब बचु ुन डेरा पर अईले िs रोआईन िंहु बना के सवसलया से कहले - चाचा हिरा से ई काि ना होई lबड़े़ी िेहनि बा lिसलकवा आ आऊरों लोग िोट-िोट गलसियों पर डांटि रहेला लोग l आ ओजी हिार िन नईखे लागि l

सवसलया- ना बटु ु ल , अब इहो एहीजी हिनीए के लगी रही l एकरो के अब एहीजी कवनो नोकरी लगावे के बा l

सवसलया - देख बचु नु बेटा , ई परदेस हs , हिनीओं के जब आईल रहनी सन िs बड़ी गंजन रहे , र्ीरे -र्ीरे िु काि सीख लेब िs आराि सिले लागी , आ पैसा बढ़ जाई l घरे पईसा के जरुरि बावे l िु ओजी नोकरी करि रह िलेक ले हि दोसरों जगह िहरा नोकरी खासिर बसिआएि l कहीं ठीक-ठाक नोकरी सिल जाई िs ई िोड़ के ऊ करे लगीह l बासकर बेटा , कवनो काि से घबराए के ना चाहीं l र्ीरे-र्ीरे ई सब काि के िहरा आदि हो जाई l िु आज ले एंहग कवनो काि नईख कईले एह से सदक्कि होिा l जा हाथ - िहु ं र्ो लs l

सवसलया- अरे बसहन जी , आपना िरफ से िs आदिी ऊठा ना र्री बासकर कवनो फै कटरी िे दस- बारह घंटा से कि काि ना करे के पड़ेला , आ ओकरा बादों इ पढ़ीहे िs जरुर आदिी पढ़ाई l का कहेि पेट के आगी , सदिागी के िेजी के भोथर कई देला l

बटु ु ल - का हो बचु नु िहरा गांवे िन ना लागल हs l चल एहुजी गांव के ढेर लोग बा , गावे आला िजिा सिली l जा नहा लs , फे नु खाना खाईल जाई l भूख िs लागीए गईल होई l सवसलया आ बचु नु नहा- र्ोआ के अपना डेरा ( किरा) के चारु लोग के संगे खाए बईठले l गरिागरि भाि-दाल आ चोखा के स्वाद खूबे नीक लागि रहेl िले एही बीच िें िाकान िासलक सबसेसर के नजर किरा के बाहर पड़ल चप्पल पर पड़ल lऊ िुरि बटु ु ल के आवाज देि किरा के दरवाजा खोल देहुवन l ई हेिना चप्पल कहां से ? के हु नया आईल बा का l बीचे िें सवसलया कहले हs ई हिार

बटु ु ल खाना बन गईल का ? - सवसलया पि ु ु वन l हs अब बनीए गईल बा , चल अब बईठल जाव - बटु ु ल कहले l

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सभे जाना एके संगे बईठ के खाना खाए लगअ ु े लोग lखािों सिय सभे बचु नु के सहम्ि​ि बढ़ावि रहे लोग l खाना खा के बचु नु सवसलया के संगे चदरा ओढ़ के सिु गगईले , बासकर एिना थकान के बादों बचु नु के नींद ना आवि रहुए l उनका शायद ई लागे लगअ ु े सक ऊ अब सजनगी िें आगे पढ़ाई ना कर पईहें , ऊ कवनों अच्िा नोकरी ना कर पईहें l गांव के सभे साथी ,खेि-दआ ु र , बगईचा -गिुली उनका आंखी के जरी आवि रहे l के हुगं करवट बदलि -बदलि ढ़ेर राि िें उनका नींद आ गईल l

बासकर आज जवन घटना बचु नु के संगे घटल बा ऊ रोज हिनी के देश िें हजारों लईकन के संगे घटिा l बचु नु जईसन हजारों लईका रोजों अपना सजनगी िें कुि करे-बने के सपना देखे के पहीलहीं , िैसटकों ले पढ़ाई पूरा करे के पसहलहीं , िोि -दाढ़ी पर पाम्हीओं आवे के पसहलहीं लाचारी िें बाल िजदरू बने , आपन खेि-खररहान , स्कूल -आंगन , बगईचा -िैदान िोड़ के हरिेशा खासिर बाल परदेसी बने के राहिा पर टेरने िें ठुसाईल बड़की -बड़की नगर िें पहुचं रहल बारे l

माई वदवस ( अवसत कुमार वमश्र)

ि

बेरे साि बजे से दस बजे ले हिार कलास रहेला । िीन घन्टा लगािार टरा -टरा करेनीं । फे रु घािा िें अईला प िहुाँ झरु ा जाला घरे आके िेज प सकिाब पटकनी हं । कुरिा के बटाि खोलिे बानी सक िले िाई लोटा िें पानी आ टटका गूर ले के कपार प खाड़ा... । ईहो न ! रोज के इहे हाल बा । एबेरा कसह सदहनीं हं-का रे ! िनीं सस्ु िा लेबे दे । िूं ि आविे हासजर हो जाले । िाई कहसिया-आिा ठीक बा । िनी बादे िें पी सलहs । र् देिनीं । िन थासक गईल बा । देवाली के टेक लेके बईठ जािनीं । आ िसकया उठाविे बानी सक एक अाँगरु ी के सबच्िी लऊकसिया । अब का करीं ? िेज प से कटोरी उठा के ससउठां से सबच्िी के ओिे डाल देिनीं । अब कटोरी िें बईठल सबया सबच्िी । हि ओके देखिानीं । पसहले ि का जने के िना हाली देखले होखब । कुिु बीिल बासि िन पर गईल । हि इंटर िें सबग्यान बगा से रहनीं । डाक्टर बने के बड़ा सवख रहे । प्रोजेक्ट वका िें ईहे सबच्िी सिलल रहे । के िना पढ़नीं एकरा बारे िें । लागािार आर्ा घंटा एक्जासिनर के सोझा बोलले रहनीं हि एकरी बारे िें । गरदा हो गईल रहे । सबसे ढ़ेर नम्बर हिरे रहे प्रोजेक्ट वका िें । आथोपोडा संघ िें सासिल सबच्िी

सनसेचन से पसहले नाचे ले । एकरी एही नाच से नर सबच्िू आकससा ि होला । ई एरेसक्डना वगा के जन्िु ह । एकर बैज्ञासनक नांव पैलेसम्नयस बेन्गालेसन्सस ह... । आह ई सिय कहवा​ाँ ले के आ गईल हिके । अब हि सासहत्य के सबद्याथी बानीं । हिके अब ई बैज्ञासनक सबबेचना से का फायदा बा । अनगिु े िन परिा सक 'आखर'खासिर िािृसदवस पर लेख सलखेके बा । बे ! हेिना कठीन चीझु प के सलखी जी । आ हि िदा​ा ना होके । िोड़s िना क देिानीं । िबले सबच्िी पर र्ेयान जािा । ई अब खरखरासिया । साईद भागे के फे रा िें सबया । िोड़ दी का एके । एकर लईका-लईकी एके खोजि होईहन स । ओह!इयाद आईल! ई ि अपना लईकन के जनि देिे िर जाले । अपना लईका लईकी खासिर हेिना बड़ त्याग ? िब कांहे खासिर जनिे देले । आपन जीवन बचावे के असर्कार ि सभकर बा नु । आह!ईहे ि ह िािृत्व सख ु । जवन अपनी िरला िें भी अपनी लईकन के जीवन देला । खुद िर जाला,एसे सक हिार लईका लईकी दसु नया देखे । ओह ! हिरी आाँख िें आंसू ! कटोरी उठा के बाँसवारी के जरी सबच्िी के िोड़ सदहनीं हं । घरे आ के देखिनीं सक िाई बंसखट पर सनभेद सिु ल सबया । ना,आजु ना जगाईब एके । आज अपने खाना सनकाल के खा लेब । आ िाई उठी ि ओसे िाफी िांगब । िाई रे िू िहान बाड़े ।

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रं गन ू यात्रा संस्मरण

िोटो िाभार :आशीष राय

िु

भाव से िर्ु खासि लररयाईल आ सशकारी वाला सभु ाव जाने सक “

चरन वे िर्ु सवंदसि" िाने सक जे चले उहे िर्ु पाई वा ला नारा के स्वीकार कईल जरुरी बा आ हि अपना के ओसह प्रजासि के िानेनी । गोड़ िे आभासी चाका, आ सकस्ि​ि िे र्रु र फांके के जगु ल जोड़ी हिार िसबयि अईसने बना गइल सक हिरा घिु े िे बड़ा िाजा आवे लागल। हरिेसा डांण िे फें टा बासन्ह के िइयार रहेनी आ इंकलाब बोली के सनकले खासि बेचैन । हिरा गरु​ु देव टैगोर के कहल एगो लाइन अबसहयो िन परेला सक “ आसि जन्िे रोिांसटक, आसि सेई पथे पसथक, जे पथे देखाय चले दसक्खन वािासे, पासखर इशारा जाय जे पाथेर अल्​्य आकाशे “ िाने सक हि जनि से रोिांसटक आ ओह रासह के राही ह ई जवना ओर हवा के इशारा होला आ जवना अनंि आकास के ओर सचरई इशारा करेली सन ।

उपरा सलखलका गरु​ु वर के कहल बाि के रउवा सभ हलुक िे ले सके नी कांहे सक उ िाजा देबे वाला बाि नइखे अईसन हि िानि बानी आ उिेद बा सक रउवा सभ के भी अईसने लागि होई । हािना लाि चाक बसियावला के िाने इहे बा सक हि खुब भटके नी बासक अपना अनुभव के शब्द रुपी फुल बना के गहु े यासन सक सलसपबि करे िे एक निर के असकसियाह हई आ डर लागेला सक ओह अनभु व िे शब्द अबर भा कि जसन परर जाउ । काल्हु बिकही के बीचे सशखा वापणेय जब रंगून के बारे िे हिरा से सलखे के सनहोरा कईली ह ि सोचनी ह सक चलs कोसशश कइल जाउ, का पिा ससयाही बसह सनकले आ कलि हिरा के देसख के आपन र्सन िनावे लागो । िाचा के िहीना िे हिरा लागल सक सबजनेस के ससलससला िे हिरा िलय देस ( िलेसशया ) आ म्यांिार (विा​ा ) जाये के बा । कुआलालिपरु आ यंगून ( रंगून) हिरा रासह के िई पड़ाव रहे जहा​ाँ जाये के ही रहे । रंगून के बारे िे हि अिने जानि रहनी सक ओजगु ा

आशीि राय गाजीपुर , युपी के रहे वािा आशीष राय जी , त्रहन्द्दी आ भोजपुरी सात्रहत्य जगत िे एगो जानि िानि नाव हई , इाँ हा के पेशा से इत्रन्द्जत्रनयर बाकी व्यवसायी हई । व्यसाय के त्रसित्रसिा िे देसत्रवदेस के यािा प रहेनी । एह घरी इाँ हा के कानपुर िे बानी ।

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लटु ा सदहल, अईसे हिहू कबो कबो उपर झांप सलसखये लेनी ि फे रु हि लुटवनी ि का लुटवनी । असगला पांच घंटा खाि सपअि गाना सनु ि ससनेिा देखि सनकल आ िलय देस पहुचं े के खुशी हि अपना िोबाईल के फ्रंट ( एह घरी सेल्फी कै िरा कहािा ) कै िरा िे देसख के गील भईनी । कुआलालम्परु के एअरपोटा , गजबे लागि रहे,हि ि बस एक टक ओसह के सनहारे िे लागल रहनी ( हि पसहलहु आईल बानी आ हर बेरर हिार इहे हाल रहेला ) । िलेले हिार एगो सहयोगी जे हिरा के होटल पहुचं ावे आईल रहले, उनक ु ा आवाज से हिार एकटक लागल आंसख रासह िोड़लस आ हि उनक ु ा संगे सनकल गईनी ।

जाये वाला हर पसि के अपना िेहरारु से “ िोरे सपया गये रंगून, सनु े खासि टेलीफोन करे के पड़ेला । आ अंसि​ि िगु ल शासक के सफरंसगया भारि से बगा देले रहले सन ि उनक ु ा रंगून जाये के परल रहे । हंसी िजाक से अलग रंगूनके बारे िे कवनो बररआर जानकारी ना रहला के व जह से कई गो संघ सिया लोगन के फोन करे के परल आ संघसिया लोगन से सनु ला के बाद शाकाहारी खासि िरसे वाली हिार जीभी सख ु े लागि रहे । कीराफिींगा खाये के शौखीन देस िे हिरा लेखा घास फुस खाये वाला के लाज बचावे खासि हिार अर्ा​ांगनी हिार िेहरारु सकचन िे पलासी आ पानीपि के यि ु लड़े लगली आ एगो सांच सहंदस्ु िानी यायावर के यायावरी खासि अउलाहे जेवानर बन्हा गईल । बेरा प हि सदल्ली के इंसदरा गांर्ी हवाई अड् डा से िलेसशया एअरलाई ंस के हवाई जहाज िे बईठ गइल रहनी आ उहो बेरे प कुआलालम्परु खासि सनकल गइल । एने कई सदन से हवाई जहाज के सगरला भल ु इला के घटना सदिाग िे घिु ि रहे बासक बररआरी ओकनी के एक लंगे सररहावि, िसु स्कयाि खुबसरु ि चेहरन के निस्कार देखि िन हररअर हो गईल । एसह िसु स्क प ि कसव लोग िय

असगला दू सदन सबजनेस के काि िे बड़ु ल रहनी आ िलय देस के पसहले के यात्रा के वजह से लगभग िय चीझू देखल रहे ि उहे कुसल्ह सदिाग िे घुि​ि रहे । एसह कुसल्ह िे रंगून जाये के सदन नजसदका गइल, आ एक हाली फे रु से कुआलालम्परु एअरपोटा प हि रहनी । िय सिला के 2 घंटा के यात्रा रहे, आ 2 घंटा बाद जब हि रंगून एअरपोटा प रहनी ि हिरा पारपत्र (वीजा ) खासि जवन सक आन एराइवल ( पहुचं ला प सिले के ससु वर्ा ) रहे, हि रेरर िे खाड़ हो गईनी । वीजा बनवावे िे लगभग 1 घंटा लासग गइल । म्यांिार से भारि के सीिा लागल बा, कई शिाब्दी से दनु ो देस के बीचे सम्बंर् रहल बा , आवाजाही रहल बा बासक सपसिला कुि सिय से चीन के प्रभाव के कारन ई सम्बंर् िसन थीरा गइल बा । जइसन सक पसहलही से हिरा लागि रहे, एअरपोटा कुि खास ना रहे, सार्ारण एअरपोटा ओह देस के आसथा क अवस्था के बारे खुदे कहि रहे । एअरपोटा से सनकलला के बाद हिरा सबजनेस के सहयोगी श्रीिान लुइस िहोदय अपना गाड़ी ले के आईल रहले, आ उहे हिरा के , हिरा रुके वाला जगसह प, जवन एअरपोटा से लिसि 20 सकलोिीटर प रहे ले के अईले । रासह िे बसियावि घरी लुइस जी बिवले सक होटल से आर्ा सकलोिीटर प सहंदस्ु िानी रेस्टोरेंट बा जवना के नाव “कोररयेंडर लीफ" ह । सहंदस्ु िानी ओह रेस्टोरेंट के चला रहल बा आ स्वासदष्ट शाकाहारी खाना ओजगु ा रहे वाला सहंदस्ु िानी लोगन खासि आकषा ण के कें द्र बा । रउवा सभे बसु झ सके नी सक नाव सनु िे हिरा चेहरा प खुशी के लाली पसर गईल रहे । होटल चहुपं ला के बाद नहा र्ो के सोचनी की िेहरारु के यंगून पहुचं ला के सचु ना पठा सदही, आ जानल पहचानल आपन उ गाना भी सनु ली , बासक ई हो ना पावल, कांहे सक

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िलय देस िे नीिन से काि करि हिार फोन रंगून अईला के बाद खि​िे दासखल रहे । अंिरापिीय रोसिंग के ससु वर्ा प एजगु ा बैन बा , आ एसह बाि से हिरा सदिाग िे घिु े लागल सक म्यांिार कांहे एगो बंसदश वाला देस बा , आ बड़हन भौगोसलक क्षेत्रफल के संगे संगे अउलाह िात्रा िे खसनज पदाथा रहला के बादो इ देस कांहे अिना सपिड़ल बा । एजगु ा देखावटी लोकिंत्र बा जवन पसहले के सैसनकन के चलिे, असर्किर नागररकन के असर्कार के सल ु ी प चढा देले बा । सरकार के सखलाफ कवनो सवचार के कंु चे खासि ओजगु ा के कानून आ ओजगु ा के सैसनक सरकार फरहर सबआ । खैर एसह कुसल्ह सोच िे हिरा िन परुवे सक व्हाट् स-अप से बसियावल जा सके ला बासक ई सुसवर्ा भी आई फोन प अभी आईल नइखे । बाद िे ई सोचाहट भउवे सक होटल के फोन से फोसनया सलहल जाई, ओकरा बाद एगो लोकल ससि कीन सलहल जाई । हिरा लागि बा हि ढेर गसहराह बिकही करे लगनी, का करी, िकनीकी के सवद्याथी रहल बानी एकरा बादो हिरा इसिहास आ संस्कृसि िे घनघोर रुसच बा आ अईसन सािसयक भटकाव ि रउवा सभ ससहये जाईब । बिा​ा के िरदाना लोगन के स्थानीय पसहरावा लंगु ी आ शटा ह । एजगु ा शटा के उपर लंगु ी ओइसही बन्हाले जइसे हिनी के ओर पैंट के उपर शटा , बस लंगु ी प बेल्ट ना पसहरे ला लो । िेहरारुन के पसहरावा घाघरा चोली ह जवन दसक्षण भारि के पसहरावा से िैच करेला । स्थानीय पसहरावा के शवख अिना बा सक सरकारी आ सनजी कम्पनी िे काि करे वाला किा चारी आ असर्कारी लो भी इहे पसहरे ला । लईसकसनयन के िोट होि पसहरावा भले पसि​ि के खोज होखे बासक दसक्षण पवु ा देसन िे ओकरा के बररआर चनु ौिी सिल रहल बा । हिरा देखे से भड़काउ भा ओइसन पसहरावा एजगु ा खासि कवनो िाने ना राखेला । एजगु ा के जेवन के बारे िे हि ईिानदारी से कसह िएक दु गो रेस्त्रा के िीनू देखला के बाद, पि ु िाि कइला के बाद हिरा लागल सक एह प उहे लो सलखो जे हिरा बाद आई । िय िीनू िे कीरा फिींगा,सचरई चरु​ु ं ग के बनल खाना के बारे िे पढला के बाद हिारिन सभनक ु गउवे, आ सोचे लगवु ी सक एगो शाकाहारी जीउ का जाने किना अनभु व से बांचले रसह जाई । परु ान रंगून के नाव बदल के यंगून कई सदहल गईल बा , जवन एजगु ा के िेन नदी ह । नदी प एगो पूल बनल बा जवना के देसख के हिरा आपन हावड़ा पूल िन परर गउवे, बाद िे पिा चलुवे सक एकरो के अंग्रेजवे बनवले बाड़न स । सांसझ के पांच

बजे लागल रहुवे, हिार स्थानीय सहयोगी सिस नेय रहुवी, उ अंग्रेजी भाषा िे बड़ा िेज रहुवी आ एसह वजह से उ हिार दभु सषया बनसन गउवी । उहे रंगून के खास खास देखे वाला जगसह के बारे िे आ सबि प्रससि बि ु के िंसदर िेडेगन पैगोड़ा देखे के कहुवी । शहर के बीचो बीच िे ससंगिुरा पहाड़ी प बनल एह सनु हरा बि ु के िंसदर के उंचाई लिसि 100 िीटर बा, जवना िे 6000 सकलो के सोना के प्रयोग भइल बा । एह िंसदर के गम्ु बद शहर िे के सनयो से लउक सके ला । ई िंसदर म्यांिार िे बौि र्िा के आस्था के देखावेला । िंसदर के आहािा िे सबदेशी पया टकन खासि फीस लागेला जवन 10 डालर ह । सिस नेय, िीसरा शिाब्दी िे बनल एह िंसदर के बनावे से ले के एकर ऐसिहाससक जानकारी हिरा के देहुवी, बदला िे हि सहंदस्ु िान िे बौि र्िा के उदय आ फे रु प्रभा हीन भईला प आपन ज्ञान झरुवी । िंसदर के आहािा िे एगो यरु ोसपयन जोड़ा के बि ु के बारे िे बिावि एगो गाइडके टोसक के कुि देर खासि हि आपन ज्ञान जवन सारनाथ आ बोर् गया से सिलल रहुवे झारे लगवु ी आ संगे संगे सारनाथ के पड़ोसी भईला के आपन शान, ज्ञान के रुप िे ओह लो के सोझा रखुवी, जवना के ससु न के सिस नेय

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हिरा के िंसदरवे िे बौि सभक्षू बने के सलाह दे देहुवी । बि ु के भव्य िसु िा के देसख के , हिरा उनक ु र िसु िा पज ु ा सवरोर् वाला सोच के बाि अपना िने िे राखे के परुवे कांहे सक कहला प र्ासिा क भावना आ आस्था प घाव लागे के खिरा रहुवे । अपना अर्जल गगरी िलकि जाय वाला ज्ञान प िने िन सखलसखलाि कोहनाि िंसदर िे 3 घंटा बीिा के आपन आध्यासत्िक थािीके अपना संगे ले के होटल िे आ गाँउवी । असगला सदने अनगिु े हलाहे उसठ के हि पैदले टहरे चसल गंउवी । साफ सथु रा चाकर सड़क, र्ल ु र्वंु ा र्क्कड़ से दूर, सगरे से सजावल चौराहा , खुबसरु ि पाका, देसख के लागि रहुवे सक अबसहयो एजगु ा के लोगन के हररअरी खटके ला ना । हिरा िालूि ना बासक दसु नया भर के कई गो शहर देखला के बाद हिरा ई पसहला शहर लउकुवे जवना िे कानूनी रुप से दपु सहया आ सिपसहया गाड़ी बैन बाड़ी स । ससगनल प कई हाली गाड़ी के लिहर रेरर लउकुवे बासक िय एक लाईन िे, के हू के पसहले सनकले के अकुिाई ना आना ही कवनो लाटसाहेब पेंउ पांउ हाना बजावि लउकुवन । िेल एजगु ा हिनी के देस से आर्ा दाि िे बा । गरीब देस भईलाके बादो सड़क प गड़हा ना लउकुवे,हो सके ला भ्रष्टाचार के इंडेक्सिे म्यांिार नीचे होखे । सफरंसगयन के बनावल िकानन के संगे संगे आर्सु नक िररका से बनल उंच उंच िकान, यािायाि के पालन करि सिका नागररक, शासपंग िाल के फूड कोटा िे अंिरापिीय खान-पान आ ओकर गिक, स्िीट फूड के शौखीनी से भरल रंगून के गली लउकुवे बासक शाकाहारी खाये वाला के िहु ररगावि । िनकी देर िे काि प जाि लोग लउके लगवु े, जवना िे लगभग 70 परसेंट िेहरारु रहुवी स जवन देखावि रहुवे के सिाज िसहला ससश्िकरण के ओर डेग र्ई रहल बा । भाषा के सिस्या से हिरो भीड़े के परुवे, जब हि फल के दोकासन से संिरा कीने के कोसशश करुवी ि इशारा िे

बाि करे के परुवे । अंग्रज े ी जाने वाला लोग एजगु ा कि बा, शायद अबसहनो स्कुलन िे अंग्रेजी ना पढावल जाला भा कि स्कुलन िे पढावल जाि होई । बहरी घाि कड़ेर होखे लगवु े ि हि होटल आ गंउवी आ नहा र्ो के उपवास िरु े खासि डाईसनंग हाल के ओर बसढ गंउवी। ियांिार आपन नया साल के स्वागि के िइयारी िे जटु ल रहुवे,जवना के “ वाटर फे सस्टवल “ के नाव से जानल जाला । असगला 2-3 सदन बाद एजगु ा के िय सरकारी, प्राईवेट संस्था संस्थान 10 सदन खासि बन हो जइहन स । एह िेवहार के रुप रेखा अपना ओर के फगआ ु से सिलि जल ु ि ही बा । सड़क के सकनार प बनल िचान से, सड़क प आवे जाये वाला लोगन प पानी फे के , पानी से भेंवे के रेवाज बा । चसु क ियांिार के सिाज, कट्टर बौि सिाज ह एसह से एजगु ा अल्प –संख्यक लोगन खासि ओिना सौहादा नइखे । एसह से एजगु ा बेसी िेवहार ना िनावल जाला। ियांिार िे अंसि​ि सदन रहे, घर से सनकलला हफ्िा भर से बेसी हो गइल रहे, अब घरे जाये खासि िन बेचैन होखे लागल रहे । आपन सबजनेस के काि हाउ हाउ ओररयाई के ओह जगसह प जाये के रहे जंहवा हिनी के इसिहास के पाना के एगो अजीि शसख्सयि आ अंसि​ि िगु ल आपन सनवा​ा ससि सजनगी बीिवले रहले आ अंसि​ि सांस ले ले रहले । आजू सिस नेय के जगसह प सिस थंडार रहली आ उनक ु र अंग्रेजी हिरा के आिस्ि करि रहुवे सक हि उनक ु ा से आपन बाि ठीक से कसह सके नी । पेशा से के सिकल इंसजसनयर सिस थंडार के अंसि​ि िगु ल के बारे िे कुिउ जानकारी ना रहे । रास्िा िे जाि घरी हिनी के एगो रेस्त्रा प रुकुवी जा , सिस थंडार अपना खासि िांसाहारी खाना आडा र करुवी आ हि बहुि सोच सिझ के

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अपना खासि शाकाहारी नडु ल्स । नडु ल्स हिरा सहसाब से िनी बेसी पसनगर रहुवे, जवना के चिच आ कांटा से खाईल दरु ह काि रहुवे। पेट भरर गइल बहाना कई के हि ओकरा के ओसह पानी िे उिाह िारि िोसड़ के अंसि​ि िगु ल वाला जगसह खासि सनकल गंउवी जा । 10 सिनट गाड़ी चलला के बाद एगो िसस्जद लेखा घर के सोझा गाड़ी रुकुवे ि सोझा िौलवी साहब के ई कहि सक “िशरीफ लाइये “, उद्दा ू ससु नके िनकी देर खासि अपना देस जइसन लगवु े । कही ि रेसगस्िान के बंजर क्षेत्र िे हररअरी । खैर हि िौलवी साहब के संगे संगे उनक ु ा पािे पािे जाये लगवु ी, एगो हाल िे पहुचं िे, िसल्लकाये सहंदस्ु िान जीनि िहल के कब्र,उनक ु ा दनु ो बेटा के कब्र से घेराईल, आ ओह हाल के देवाल, बदनसीब बादशाह के अंसि​ि

सदनन के बेबसी के कहानी सनु ावि रहुवे । एगो सम्राट के अपना अंसि​ि सदन िे अपना देस से सनकाला हो के दफन खासि दु गज जिीन ना सिले के बेबेसी के आलेख पसढ के शायदे कवनो पथर सदल के करेजा ना पसीजी । हाल से उिरि खींढी हिरा के अंसि​ि िगु ल के कब्र ले, ले के गउवे । अजीज शायर सम्राट के हि पपु पांजसल भेंट करुवी । इसिहास के एजगु ा हि जीअि देखवु ी,सांसझ हो गइल रहुवे, हि अपना होटल खासि सनकल गंउवी, कांहे सक हिरा लउटे के रहुवे अपना देस,अपना विन , सहंदस्ु िान खासि ...

लघ ु कथा असर

कुक्कुरजाि "िसु खयाजी, ई स्साला रॉसकया ’कुक्कुरजाि’ के इज्जि खराब करे प िल ु ल बा." "अरे का भइल रे शेरुआ..... िसनका सोझ-सोझ बिाउ.." "िसु खयाजी, ई ससरु ा काल्हु राह चलिा एगो िोट लइका के बेि​िलबे कासट सलहलस" "हाँ रेऽऽऽ ? सही बाि ?.....," िसु खयाजी गरजले. "िसु खयाजी, गलिी भ गइल.. दरअसल उ लइकवा के गोड़ से एगो ढेला लसड़ के हिरा लासग गइल आ हिरा बझ ु ाइल जे ऊ जान-बसु झके िरलस हऽ. एही भरि िें हबका गईल."

पचीस बररस पसहले राजेिर ससंह गा​ाँव िोड़ बम्बई के एगो उद्योगपसि के दिाद बसन ओसहजे बस गइले. हाइ-फाइ िाहौल िें जनिल आ पढ़ल-बढ़ल ससंह साहब के बेटा सजद करे लागल जे ऊ होली गा​ाँवे िें िनाई. बबआ ु के सनयो पढ़ लेले रहे जे गा​ाँव िें होली िस्ि होला. एक हप्ता के बाद बबआ ु होली िना के वासपस बम्बई चहुपाँ ल आ चहुपाँ िे अपना डैड आ िॉि के गोड़ र्इ के परनाि कइलस. हाय-बाय करे वाला लइका प गा​ाँव के रंग आ बसंिी बयार के असर साफा लउकि रहे.

"हूऽाँ ऽऽ.. सिझ-बसु झ के नू कवनो काि करे के चाहीं, ना ि हिनी भा ’आदिजाि’ िें का अंिर रसह जाई ? ओइसहू ाँ ई बाि पंचायि िें कई हाली कहाइल बा जे िेहरारू, िोट लइकन आ बूढ़-परु सनया के गलसियों प नइखे काटे के .. बासकर िहनी लउंडा-लफाड़ी के ि कुिऊ सनु ािे नइखे.. सदन-प-सदन िहनी प ’अदिीपन’ हावी भइल जा रहल बा. हि फे नु कसह रहल बानी.. सर्ु र जा स, ना ि कसहयो ’अदिी’ के िउअि िरबs सऽ.." "िाफ़ क दीं िसु खयाजी, आगा से अइसन गलिी कबो ना होखी."

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गणेश जी बागी


बकिान

लड़ाइयो में जझ ू े वकसानवे के बेटा लड़इयो िें जूझे सकसनवे के बेटा िड़इयो िें ओकर रकिवा सपसाले सजसनसगया सकनाले सजसनसगया सबकाले । आज भोजपरु ी के यशस्वी कसव जगदीश ओझा संदु र जी के याद आवि बा । अबूझिाड़ के जंगल िें चाहें लेह लद्दाख िें िरे वाला कवनो भी जवान...अम्बानी आ अडानी के लइका ना होला...उ बसलया गाजीपरु बक्सर जइसन गा​ाँव देहाि के कवनो सकसान के लइका होला । जेकर बाबू जी करजा लेके ओकरा के पढ़वले रहेलन...की उ फौज िें भिी होके उनकर सपना पूरा करी...इहा​ाँ गरीबी आ आभाव के िड़ई आपन िेहनि के बांस आ पिलो से िावेलन । ..बाकी दनु ू जगह सकसान के दरु दसा बा. सीिा पर भी आ खेि िें भी...एक जगह बेटा िरेला एक जगह बाप । एक िारीख के दसु नया सवि िजदूर सदवस िनाई । कभी दसु नया के साम्यवाद के िायने सिझावे वाला िाक्सा एगो नारा सदहले की...'दसु नया के िजदरू ों एक हो" लेसकन आज दसा बदल गईल बा.हाल इ बा की िजदरू से भी बत्तर हाल आज सकसान के हो गइल बा..रउरा आठ घण्टा िेहनि िजदूरी करि ि ओकर पइसा रउरा के सिल जाइ । बाकी कजा​ा लेके हाड़ िोड़ िेहनि से अन्न उपजाए वाला के गारंटी नइखे की खेिी से ओकर कवनो लाभ होई की ना.. सोचे वाला बाि बा...अबकी बसलया गइल रहनी जसहया गइनी िसहया िंझउवा​ाँ गा​ाँव िें एक आदिी आत्िहत्या क सलहल । िीन सदन िें िीन आदिी आपन जान ले सलहल...बाकी देस के बाि िोड़ सदहीं । आसखर काहें? दू िहीना िें लगभग दू हजार सकसान आपन जान दे देहले । एकही कारण बा...सपना जब टूट जाला ि सजयल बेकार लागेला..के हू सोचले होइ की उ गेंहू बेच के बेटी के सबयाह करी । के हू इहो सपना देखले होइ की एह बेरी के िड़ई िवा

ली.के हू लइका के फीस जिा करी...सभ के कवनो ना कवनो अरिान िबे पैदा हों जाला जब उ खेि िें बीज रोप देला.. लेसकन आसखर िें जब अनाज काट के घरे ले आवे के बेरा होला..ि कुदरि के कहर से ज्यादा उ सिावेला जे रहि करे के सरकारी ठीका ले लेहले बा । अब कवनो सकसान जान ना सलही ि का करी । सफर भी ससयासी रोटी सेक के आपन कुसी चलावे वाला लोग ओकरा लाश प राजनीिी कइला से बाज ना आवेले.. कुि सदन पसहले सदल्ली िें गजेन्द्र आत्िहत्या क सलहले । .ि सबके होश उड़ गइल..उहो रोवे लागल जे गेंहू आ जौ ना सचन्ह पाई.. उहो अपना के सकसान बिाई जेकरा ई पिा नइखे की कवना खेिी िें कब कब पानी खाद सदहल जाला । लेसकन एसी िें बइठ के गा​ाँव के सवकास के सचंिन करे वाला लोग के झकझोरे खासिर इ जरूरी बा की रउरा सदल्ली िें आत्िहत्या करीं ना ि के हू प कवनो असर ना पड़ी...सकसान आज हासशया प बा...िजदरू से भी बत्तर हाल िें..के हू दुःु ख ददा बझ ु े वाला नइखे...असिय बाररश पाला..से ओकर कब फसल नक ु सान हो जाइ ई भगवानो नइखन जानि । दोष के कर बा एकरा प लम्बा बहस हो जाइ । बस राजेश जोशी के एगो चार लाइन के कसविा से हि सब असिय काल के गाल िें सिा गइल सकसान भाई लो के श्रर्ांजसल असपा ि करि बानी । देस के बारे िें सलखल गइल एक हजार सनबन्र् िें एगो अिर वाक्य फे र से दोहरावि बानी.. भारि एगो कृसष प्रर्ान देस ह दोबारा ओके पढ़े खासिर जइसही आाँख झक ु ावें नीं । िइसही सलखल पावेनी की की सपछ्ला कुि वषा िें डेढ़ लाख से असर्क सकसान आत्िहत्या क लेले बाड़े ।

अिुल कुमार राय बत्रिया युपी के रहे वािा अतुि कु िार राय जी काशी िें संगीत के साधना कर रहि बानी । भोजपुरी आ हहंदी िें त्रिखे के एगो खास शैिी ह अतुि जी के । भोजपुरी के पारम्पररक गीतन प इाँ हा के त्रववेचनात्िक ढंग से त्रिखाईि िेख आखर प पत्रहिे भी पोस्ट भईि बा । भोजपुरी िोकगीत आ पारम्पररक गीतन प इाँ हा के िगातार त्रिख रहि बानी । कि​िहाि बनारस िे त्रनवास बा । © आखर ● मई, 2015 ● 73


कहानी

कहानी अउरी कहानी के नायक ग कानाकानी सनु ल । िंहु ा- िहुाँ ी कहल । आ कहानी के िहक हावा िें फइल गईल । ऊाँघाईल-अलसाि गांव एकबैक जासग गईल । लईका-सयान-िरद-जनाना सब लोग रस ले-ले के बसियावे लागल ।जेिने िंहु ओिने कहानी उपट गईल ।के हु र्रफसरी करि देखले रहे ि के हु चूिाचाटी करि । एहुिरे सपिला होली िें उ दन्ु नून के आपस िें अझरु ा के रंग लगावि खुलेआिे लोग देखले रहे । एह से कहानी के के हु झूठ ना िानि रहे ।

लो

सब लोग के इशारा उ रहरी के खेि के िरफ रहे, जवन कानून के भाषा िें िौका- ए वारदाि रहे ।िौका-ए-वारदाि अपनसह िें फा​ाँफर आ गोट दनु ू लउको ; एही से कहानी के अससलयि भी अपने आप िें फा​ाँफर आ वजनदार दन्ु नु बझ ु ाउ । चसनरका काका िौक़ा-ए-वारदाि िें िहकीकाि करे खासिर ढुक गईले । उनका उ जगह के िआ ु यना करे के रहे ,जहा​ाँ अनेि भईल रहे ।चसनरका काका अपना गांव के हर लईकालईकी पर नजर राखेले । ई घटना उनका आाँसख के सोझा से कै से सबसचल गईल , एह बाि के उनका बड़ा अफ़सोस रहे । के लेखां-दनु ी उनकर िन हो गईल ।ई बाि के परवाह ना करिे हुए सक ररिावा उनकर भिीजी लागेले , उ रहरी के खेिे िें लगले गररयावे । जब उनकर गारी के हु ना सनु ल , जब उनका िौका-ए-वारदाि से कउनो सरु ाग ना सिलल ; ि सघरना से ,सक सबसख से , सक जगु प्ु सा से , उनका लघशु ंका लाग गईल । उ िौका-ए-वारदाि पर लघशु ंका कs के चल अईले ।

बर्ु ना के िेहरारू हाथ झिका-झिका के सगरो गांव िें कहि सफरे -''ई अनेि के कवनो ओर-िोर बाs ? पसहले राि के अन्हारा िें , आाँख के अन्हे ई कुसल्ह काि होि रहल हs ; अब अइसन ज़िाना आ गईल बा सक खुलेआि .......।''

ओकर सलपसस्टक के चटख रंग आ कं गन के झिक के सोझा िरद लोग के बसु ि हेरा जाऊ आ जानना सडपाटिेंट फरके से सलाि करे ।कहानी के जेिना रसगर बर्ु ना के िेहरारू बना देहले रहे ओिना रसगर का के हु बनायीं ? जीिन अहीर रािअवर् से पंचाईिी िें हार गईल रहले । आपन हार के बदला चक ु ावे खासिर जीिन के िौका सिल गईल । कहानी ि सब लोग सनु ाविे रहे बासकर दश्ु िन के जरला पर नून डाले खासिर जीिन कहले --“का हो रािअवर् िहार भई ंससया पाल खोजसिया काs ?” रािअवर् िड़ु ी सनहुरा के चपु चाप टकस लेहले । गांव िें जवन कहानी के चचा​ा रहे उनको सनु े के सिल गईल रहे । बासकर करsस ि काs करsस । अपने बसहन कुलबोरनी हो जाए ि गांव नगर हंसबे नु करी ? बासकर जीिनवा के कहल उनकरा करेजा िें बरिी सनयर लाग गईल । फनफनािे घरे गईले आ ररिावा के लािे िक्ु के िारे लगले -"कुलच्िनी ,कहा​ाँ-कहा​ाँ जाके िहंु िें कररखा पोिवावि बाड़े ? गाव -नगर िें हिार इज्जि के िसटयािेट करर देहले । '' "हि का कईले बानी ?” --- फें करि ररिावा बड़ी िसु श्कल से कुिू बोल पवलस । " काs कईले बाड़े ? ….िोरा नईखे पिा ? सगरे गांव कहि बा जे सबलास के सार के संघे .....” --- काs कहस रािअवर् एकरा आगे………. ? अपने बसहन के िहत्तर से सबसखया गईले । एगो टांगी उठा के िारे र्वले-- "रहु, िोरा के िवु ाईए देिानी । ना िे रहबे ;आ ना झगरा के जर बा​ाँची ।” "हs िवु ा दs ।िहरो सजिेदारी ख़ि​ि हो जाई ।"- नासगन लेखां फुफकारि ररिावा सांचहूं सािने आ गईल । उ ि भल िानल जाऊ राि अवर् के िेहरारू के , जे बीच िें आ के राि अवर् के हाथ से टांगी िीन लेहलीं ।ना ि

त्रवंध्य त्रमश्र त्रसवान, त्रबहार के रहे वािा हवंध्य त्रिश्रा जी भोजपुरी िें कत्रवता आ कहानी त्रिख रहि बानी । आखर पेज पे इहा​ाँ के कत्रवता िगातार प्रकात्रशत होिा। ए घरी इहा​ाँ के तेजपुर आसाि िें रह रहि बानी।

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रािअवर् ररिावा के नट्टी कासटये देहले रसहिे । आपन खींस के हु िरे रोकि रािअवर् घर से बहरा सनकल गईले । कहानी के अंि खोजल जरूरी रहे ।

सकि । अब शादी सबयाह िें सदक्कि होई, बबनु ी! लोग कई गो कहानी सनकलले बा ........।” कहानी के नासयका अचम्भा िें पर गईलस ।

भौजाई के दल ु रुई रहे ररिावा । बासकर गा​ाँव नगर के अफवाह से भौजाई के िन खट्ट हो गईल रहे ।िनी डा​ाँसटए के पि ु सल – "रीिा बबनु ी , गांव नगर के लोग जवन कहि बा िवन झूठ कहि बा का ?" सससकि-सससकि ररिावा पि ु लस --"लोग काs कहिाs ,भौजी ?” "इहे जे िू सबलास के सार के संघे रहरी के खेि िें ....... ।" "िहार िन सा​ाँच पसियािाs एह बाि के , भौजी ?” अब ररिावा के सससकी बंद हो गईल रहे । -''भौजी हि िहार कसि …….. अपना िरल िाई बाप के कसि खा के कहि बानी ।हि खाली सबलास के सार से एिने पि ु ले रहनी सक अभी ले कंु वारे बाडs का हो ?...... आ ओसहजा गांव के अउरी के हु ना रहे ।खाली हिार सहेली लोग रहे ।हि िजाक कईले रहनी भौजी । हि ना जानि रहनी जे एिना िोट बाि के लोग भारी बिंगड़ बना सदही ।" भौजाई अपना ननद के बसढ़या से जानि रहली बासकर िबो उदास िन से कहली –“हि लोग के िंहु नईखी नु बंद कर

एही बीचे राि अवर् चसनरका काका के लग से वापस लौट अईले । ररिावा के सबयाह चसनरका काका के सर -पूि से फाइनल कर के । भलही दूल्हा पत्नीहंिा आ दहु ाजू रहे ;कहानी के दोसरा गांव िें फइलला से पसहले ररिावा के सबयाह सनपटा देहल जरूरी रहे……. ।

सबयाह िय भईला के बाद से कहानी के िहक हावा िें र्ीिा परे लागल । िौक़ा-ए-वारदाि रहरी के खेि काट सदहल गईल । सनयि सिय पर बाराि आईल आ रीिा के सबयाह चसनरका काका के सर-पूि से ख़ुशी ख़ुशी हो गईल । बाराि ओसह रहरी के खेि िें सटकावल गईल ।बाराि के हलचल िें िौका-एवारदाि के ठूंढही --खूंटी सब कचरा- सपचरा गईल । हावा िें कहानी के जगह पूड़ी सिठाई के िहक फइल गईल । एह िरह कहानी ख़ि​ि हो गईल , बासकर कहानी के नायक के हउए एकर िलाश अबसहंन लेक जारी बा ।

“ जवना हिसाब से अकबर-बीरबल के किानी िें बबरबलवा के िशसयार बतावल जाला ओ हिसाब से बुझाता अकबरवा घचाके रिे का दू ! “

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सौ साल के भइल भोजपुरी पत्रकाररता पंकज भारद्वाज

ज से सौ साल पसहले सन् 1915 िें ‘बगसर सिाचार’ के शरू ु आि भइल रहे । एकरा के भोजपरु ी पत्रकाररिा के क्षेत्र िें पसहला कदि िानल जाला । बक्सर के रहेवाला िास्टर जयप्रकाश लाल के एकर श्रेय जाला । ऊ गांर्ीवादी क्रांसिकारी रहन आ अंगरेजी हुकूि​ि से लोहा लेबे खासिर ही सिाचार पत्र सनकाले शरू ु कइलन । िब पूरा देस िें अंगरेजन के सखलाफ बगावि के बयार बहि रहे । 1914 िें पसहलका सवि यि ु शरू ु हो चक ु ल रहे । भारि के साथे-साथे दसु नया के कइगो गल ु ाि देसन िें आजादी के आग लहक गइल । गल ु ािी के सजसनगी से िंग आ चक ु ल लोगन के िन िें आजादी के सपना सहलोर िारे लागल । भारि िें भी अंगरेजन के सखलाफ गोलबंदी िेज हो चक ु ल रहे । अइसने िें िास्टर जयप्रकाश लाल शाहाबाद के लोगन के अंगरेजी सत्ता के सखलाफ एकजटु करे खासिर ‘बगसर सिाचार’ सनकाले शरू ु कइलन । बिावल जाला सक एकरा चलिे शाहाबाद के पूरा इलाका िें क्रांसि के आग एगो अलगे रूप र् लेहलस । िास्टर जयप्रकाश लाल बक्सरे के रहे वाला रहन । हालांसक िब शाहाबाद सजला रहे आ बक्सर ओकर एगो अनिंडु ल रहे । बक्सर के डुिरांव थाना के चकनी गांव िें 28 िाचा 1888 के उनकर जनि भइल रहे । सफलहाल उनकर गांव डुिरांव अनिु ंडल के ससिरी थाना िें परेला । जयप्रकाश जी के बाबूजी के नाि रािानंद लाल रहे, जे डुिरांव िहाराज के एगो किा चारी रहन । इनका िीन लइका-जयप्रकाश लाल, हररहर लाल आ उदय प्रकाश लाल । जयप्रकाश जी सबसे जेठ रहन । उनकर पढ़ाई-सलखाई भोजपरु िदरसा िें भइल । एसहजे से ऊ उदा ू आ फारसी के पढ़ाई कइलन । एकरा बाद डुिरांव हाई इंसग्लश स्कूल िें इनकर दासखला भइल, जहां से

एंिेंस के परीक्षा पास कइलन । एकरा कुि सदन बाद ऊ बक्सर के भूसिहार ब्राह्मण सिसडल इंसग्लश स्कूल िें सशक्षक के पद पर बहाल हो गइलन आ िास्टर साहेब के नाि से िशहूर हो गइलन । बाद िें ऊ एह स्कूल के हेडिास्टर बन गइलन । िास्टर साहेब सहन्दी, भोजपरु ी, संस्कृि, उदा ,ू फारसी आ अंग्रेजी जइसन भाषा के बसढया े़ जानकार रहन । कहल जाला सक िहापंसडि राहुल सांकृत्यायन उनका से अंगरेजी सीखे बक्सर आइल रहन । खैर, 1905 िें जब बंग-भंग आंदोलन भइल, िब िास्टर साहेब के उसिर िसु श्कल से सत्रह-अठारह बररस रहे आ ऊ हाई स्कूल िें पढ़ि रहन । लेसकन, लोकिान्य बाल गंगार्र सिलक के भाषण सनु के उनका पर अइसन असर भइल सक एसहजे से उनका जीवन िें नया आ क्रांसिकारी िोड़ आ गइल । ऊ अंगरेजन के सखलाफ सिड़ल लड़ाई िें ससक्रय हो गइलन । 1908 िें राजेंद्र बाबू, जे आजादी के बाद देस के पसहला रापिपसि बनलन, अपना बड़ भाई िहेंद्र प्रसाद के साथे डुिरांवे िें रहि रहन । राजेंद्र बाबू से जयप्रकाश जी के एसहजे पसहला िल ु ाकाि भइल । 1912 िें जब सबहार बंगाल से अलग भइल, िब जयप्रकाश जी खूब खुश भइलन । बक्सर िें ‘यंग िेन एसोससएशन’ के गठन कइलन, जेकर िख्ु य िकसद रहे भोजपरु ांचल के जवानन िें रापिीयिा के भावना के संचार कइल । एह बीच िहात्िा गांर्ी भी दसक्षण अफ्रीका से भारि लवट आइल रहन । गांर्ी जी के आह्वान पर पूरा देस अंगरेजी हुकूि​ि के सखलाफ लोहा लेबे खासिर एकजटु होखे लागल । देस के कोना-कोना िें क्रांसिकाररयन के जटु ान होखे लागल । बक्सर िें जयप्रकाश लाल भी िास्टर के नोकरी िोड़ आजादी के लड़ाई िें कूद परलन । ओह घरी टेलीफोनिोबाइल के जिाना ना रहे । अखबार, पत्र-पसत्रका के भी ओइसन र्िक ना रहे । अइसना िें क्रांसिकाररयन के आपन

पंकज भारद्वाज संराव , बक्सर , त्रबहार के रहे वािा पंकज भारद्वाज जी , प्रत्रतत्रष्ठत त्रहन्द्दी दैत्रनक िे वररष्ठ पिकार बानी , भोजपुरी आ त्रहन्द्दी सात्रहत्य प बररआर पकि रखिे बानी । बक्सर के सात्रहत्रत्यक इत्रतहास प गत्रहराह जानकारी रखिे बानी । एह घरी इाँ हा के बक्सर िे बानी ।

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बाि लोगन िक पहुचं ावे िें बहुि सदक्कि िहसूस होि रहे । एहसे सनपटे खासिर आ भोजपरु रयन िें क्रांसि के भावना भरे खासिर िास्टर साहेब ‘बगसर सिाचार’ सनकाले शरू ु कइलन । ‘बगसर सिाचार’ पसहले हाथे से सलखल जाि रहे । िास्टर साहेब आ उनकर चेला लोग कै थी सलसप िें अपना हाथे सिाचार पत्र िैयार करस जा आ घूि-घूि ओकरा के बांटस जा । बाद िें बनारस के सरस्विी प्रेस िें एकर िपाई होखे लागल । िीन-चार साल िक असनयिकालीन रूप से ‘बगसर सिाचार’ िपि रहल । 1918 िें एकर प्रकाशन बंद हो गइल । लेसकन, अिना जरूर भइल सक िास्टर साहेब के ‘बगसर सिाचार’ भोजपरु ी पत्रकाररिा के शंखनाद क दीहलस । भोजपरु ी के एह पसहला अखबार के एगो-दगू ो प्रसि िास्टर साहेब के घर के लोगन के पास रहे । लेसकन, िास्टर साहेब के नािी आ बक्सर कोटा िें ओकील सर्ु ीर कुिार श्रीवास्िव बिवले सक करीब िेइस साल पसहले बक्सर के ित्कालीन कलक्टर दीपक कुिार के कहला प ऊ लोग उनके के कुल्ही दे दीहल । एह से अब ‘बगसर सिाचार’ के ले के कवनो प्रिाण ओह लोग सभरी नइखे रसह गइल । ओइसे कइगो भोजपरु ी लेखकन के आलेख िें ‘बगसर सिाचार’ के सजसकर सिलेला । कुि लोग िानेला सक 1914 से इ सनकले शरू ु भइल रहे । चूंसक अखबार के ले के कवनो शोर् ना भइल, एहसे एह संबंर् िें कुिऊ साफ ना कहल जा सके । जे होखे, लेसकन भोजपरु ी के जाने-सिझे वाला लोग अिना जरूर िानेला सक िास्टर जयप्रकाश लाल ही भोजपरु ी के आसद पत्रकार रहन आ ‘बगसर सिाचार’ पसहलका सिाचार पत्र । एकरा बाद करीब िीस-पैंिीस साल िक भोजपरु ी पत्रकाररिा के क्षेत्र िें कवनो खास काि ना भइल । सनयसि​ि रूप से दैसनक सिाचार पत्र ि कबो ना सनकलल । 1948 िें पटना से िहेंद्र शास्त्री एगो सद्विाससक पसत्रका सनकाले शरू ु कइलन, जेकर नाि रहे ‘भोजपरु ी’ । भोजपरु ी के िशहूर रचनाकार डाू गरू ु चरण ससंह ‘बगसर सिाचार’ के कवनो पष्टु प्रिाण के अभाव िें एसहजे से भोजपरु ी पत्रकाररिा के ठोस शरू ु आि िानिारन । बहरहाल, ‘भोजपरु ी’ के एकही अंक सनकलल आ इ बंद हो गइल । 1949 िें बक्सरे के रहे वाला अवर्सबहारी सिु न (जे सकसान नेिा सहजानंद सरस्विी के सहयोगी रहन आ बाद िें दंडी स्वािी सविलानंद सरस्विी के नाि से िशहूर भइलन) फागू राय ‘सवशारद’ के संगे ‘कृषक’ सनकाले शरू ु कइलन । 1952 िें ‘भोजपरु ी’ के प्रकाशन फे र शरू ु भइल । एना पारी आरा के रघवु ंश नारायण ससंह एकर प्रकाशन िाससक रूप से शरू ु कइलन । डाू ससंह के िोिासबक एकरा पसहलका पांच अंक के संपादन सविनाथ

प्रसाद ससंह कइलन । बाद िें रघवु ंश बाबू संपादक बनलन । 1958-59 िक ‘भोजपरु ी’ सनकलल, फे र बंद हो गइल । सिबारा 1963 िें एकर प्रकाशन शरू ु भइल आ 1973 िक जारी रहल । दस साल के बाद एकर प्रकाशन फे र से बंद हो गइल । चार साल बाद, 1977 िें असखल भारिीय भोजपरु ी सासहत्य सम्िेलन ‘भोजपरु ी’ के प्रकाशन के सजम्िा उठवलस, जे आज िक िप रहल बा । देखल जाव ि, सौ साल के एह सफर के दौरान भोजपरु ी िें दैसनक सिाचार पत्र के कवनो ठोस प्रिाण नइखे सिलि । हं, पत्र-पसत्रका खूब सनकललीसऽ । सौ साल िें करीब पवने दू सौ से जादा पत्र-पसत्रका के प्रकाशन भइल । एह िें ढेर सासहसत्यक-सांस्कृसिक पसत्रका बाड़ीसन । एकइसवीं सदी के शरू ु आि होिे, भोजपरु ी के एगो नया र्ार सिलल । सफसलि जगि िें नया क्रांसि आइल आ एहके चलिे भोजपरु ी भाषासंस्कृसि के नया आयाि सिलल । भोजपरु ी के प्रभाव भारि के अलावा दसु नया के कइगो देसन िें बढ़ गइल । बाजारवाद के दौर िें भोजपरु ी के सडिांड खूब बढ़ल । एहसे िीसडया हाउस भी अिूिा ना रहल । 2008 िें देस के सबसे बड़ िीसडया हाउसन िें सगनाए वाला अररंदि चैर्री के प्लानिैन िीसडया भोजपरु ी िें ‘द संडे इंसडयन’ पसत्रका के प्रकाशन शरू ु कइलस । इ राजनीसिक-सािासजक-सासहसत्यक-सांस्कृसिक सरोकार के पसत्रका रहे । एकर काया कारी संपादक बनावल गइल िूल रूप से भोजपरु सजला के आरा सनवासी ओंकारेिर पांडेय के , जे पत्रकाररिा के क्षेत्र िें एगो बड़ नाि बाड़न । एहिे दू राय नइखे सक भोजपरु ी पत्रकाररिा के क्षेत्र िें इ पसत्रका िील के पत्थर सासबि भइल । पसहला बेर भोजपरु ी िें अइसन पत्रकाररिा शरू ु भइल, जे वैसिक बोर् से लैस रहे । भोजपरु ी से संबंसर्ि कइगो िद्दु न पर सवशेषांक सनकालल गइल, जेकर खूब बड़ाई भइल । एह िरे ‘द संडे इंसडयन’ भोजपरु ी पत्रकाररिा के नया अध्याय बन गइल । भोजपरु ी पत्रकाररिा पर लंबा सिय से परल र्र्ंु साफ करे वाली इ पसत्रका देस के कोना-कोना िक पहुचं ल । अिेररका, यू के , िाूरीशस ससहि दसु नया के दस-बारह देसन िें भी इ भेजल जाि रहे । हालांसक पांच साल बाद 2013 िें एकरो प्रकाशन बंद हो गइल । सफलहाल यूपी के लखनऊ से जनादा न ससंह एगो साप्तासहक सिाचार पत्र सनकालेलन, जेकर नाि ह ‘भोजपरु रया अिन’ । एकरा अलावा सदल्ली से भी भोजपरु ी िें साप्तासहक सिाचार पत्र सनकल रहल बाड़सन, एहिें ‘न्यूज सबंद’ु आ ‘हिारा पूवा​ांचल’ प्रिख ु बा । सदल्ली से एगो िाससक पसत्रका सनकल रहल सबया-‘हेलो भोजपरु ी’ । इलेक्िाूसनक िीसडया िें भी भोजपरु ी के र्िक बढ़ल बा । िहुआ, गंगा, अंजन टीवी ससहि

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भोजपरु ी िें सिाचार प्रसाररि कइल जा रहल बा । इंटरनेट के प्रभाव बढ़ला के बाद इ-पेपर के जिाना आइल ि भोजपरु ी एहू से अिूिा ना रहल । भोजपरु ी िें ऑन लाइन न्यूज पोटा ल आ पसत्रका के भी शरू ु आि हो चक ु ल बा । ‘द भोजपरु ी डॉट कॉि’ आ ‘आखर’ एह सदशा िें एगो बेहिर कदि सासबि भइल बा । कहे के ि​िलब ई सक िास्टर जयप्रकाश लाल के ‘बगसर सिाचार’ से शरू ु भइल भोजपरु ी पत्रकाररिा सौ साल िें बहुि अच्िा-बरु ा सदन देखलस । हालांसक सहन्दी, अंग्रेजी, उदा ू आ अन्य क्षेत्रीय भाषा लेखा भोजपुरी पत्रकाररिा के ऊ र्ार ना

सिल पावल, जेकर दरकार रहे । एह सदशा िें अभी बहुि काि कइल बाकी बा । लेसकन, सकून एह बाि के बा सक भोजपरु ांचल िें पैदा भइल लोग एह खासिर लगािार काि क रहल बा । एहसे उिेद बनिा सक भोजपरु रया िाव-िेवर लेखा एक सदन भोजपरु ी पत्रकाररिा भी दसु नया से आपन लोहा िनवाई । एकर राह बन चक ु ल सबया आ कारवां भी सनकल चक ु ल बा ।

भोजपुरी िेत्र के पत्र-पहत्रका : कइगो चैनलन पर

परु वइया

भोजपरु ी संबाद पसत्रका

सनेस

सिकालीन सासहत्य

सिाचार सवंदु

स्विंत्र दस्िक

हिार इंसडया

अंजोर

पूवा​ांकुर

भोजपरु ी संसार

उड़ान

सबगल ु

भोजपरु ी संसद

कसविा

सबपना

भोजपरु ी संस्कार

कृषक

सभनसहरा

खोंई ंिा

भोजपरु संवाद

भोजपरु ी पसत्रका

गा​ाँव-घर

भोजपरु रया अिन

गा​ाँव-जवार

भोजपरु ी कहासनया​ाँ

झंकोर

भोजपरु ी चबूत्तरा

टटका राह

भोजपरु ी जनपद

द संडे इंसडयन

भोजपरु ी सजनगी

सदल्ली न्यूज िैक

भोजपरु ी दशा न

दल ु ारी बसहन

भोजपरु ी िाटी

सनसभा क संदशे

भोजपरु ी लोक

पनघट

भोजपरु ी वानी

पररिन

भोजपरु ी वािा​ा

पािी

भोजपरु ी सवि

सम्िेलन

भोजपरु ी सासहत्य

हिार बोल

भोजपरु ी ससटी

हिारा पूवा​ां चल

भोर

हालचाल

भोर सभनसार

हेलो भोजपरु ी

भोरहरी

िहा भोजपरु

िाई

ललकार

लाल िाटी

लक ु ार

सवभोर

बीर भोजपरु रया

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भोजपरु ी


उपन्याि

हथेली में समय ( भाग –4)

िोटो िाभार : ड्रीम टाइम

किानी अब ले – बदलि सािसजक पररवेश िें व्यसि के चेिना के सनिा​ा ण हो रहल बा, एक बालक कसनपक, एक यवु ा द्वाररका, एक बज ु गु ा बाबू काली चरण लाल िीनो जाना के सजनगी आगे बढ़ रहल बा आपन आपन आशा, आकांक्षा आ संघषा के साथ l आजादी के लडाई िें भाग सलहल िहापरु​ु ष लोग के प्रभाव इंद्रपरु के जनिा पर बा, ज्ञानदेव सबहारी आ पंसडि िंगल दत्त जईसन प्रबि ु लोग नवका पीढ़ी के लोग के िन िें त्याग आ सािासजक प्रसिबि​िा के भावना भरे के चाहिा l इंद्रपरु िें राजनीसिक आ सांस्कृसिक िाहौल बा l ओह सिय िें िध्यिवगीय पररवार एक अइसन ईकाई रहे जहा​ाँ लसड़कन के भौसिक अभाव के बीच भी बौसिक सवकास के सािग्री िें कवनो किी नइखे कइल जाि l अब आगे पढ़ीं....

द्वा

1964

ररका के अपना पढ़ाई िें जे ररि​िा आ गइल रहे ओकरा के भरे खासिर उ ओहबेरा के जेिना िशहूर सकिाब रहली सन ओकरा के कीनस आ पढ़स आ अपना सित्र लोग से ओसहपर चचा​ा करस l ठाकुर-घर िें उनका पास कुि अइसन सकिाब रहली सन, जइसे वेलेस हेगेन के After Nehru Who (1963), सर्ु ीर र्र के Gandhi’s Emissary (1967), डी. एफ. कराका के Out

of Dust (1944), डॉ राि िनोहर लोसहया के Guilty Men of India’s Partition (1970), िहु म्िद करीि िागला के Roses in December (1973) आ एकरा अलावा प्रेिचंद, सविल सित्र, यशपाल, आशापूणा​ा देवी, सशवानी, कृपणा सोबिी, अि​िृ लाल नागर, भगविी चरण विा​ा , राहुल सांकृत्यायन के उपन्यास आ अउरी िरह के सकिाब भी रहली सन l जब सिझररया अखबार देबवे ाला रािगोपाल जी आवस िा उनका से कहल रहे सक उनका आ बाबू कसलका चरण लाल खासिर Illustrated Weekly of India, Reader’s Digest, सदनिान, र्िा यगु , सहंदस्ु िान, कादसम्बनी, नवनीि आ लसड़कन खासिर चंदािािा, पराग, नंदन, चम्पक, बालक आ लोटपोट जरूर दे सदहल करस l द्वाररका िें सदाशयिा आ उदारिा बहुि रहे जेकरा से लोग नाजायज फायदा भी उठावे l ऊ अपना व्यवसाय आ राजनीसिक काि िें एिना व्यस्ि हो जास की अपना लसड़कन के बहुि ध्यान ना दे पावस l गागी के एकर सचंिा बराबर लागल रहे l ऊ अपना लसड़कन के सब क्षेत्र िें आगे बढ़ावे के चाहि रहली l ऊ आपन सचंिा के बाि अपना िसरु से ना कह सकि रहली l एक सदन ऊ सखड़की से देखली सक बाबू कासलका चरण चासिां ग के साइसकल चलावे के सीखावि रहले ई देख के उनका िन के सचंिा थोड़ा कि भइल l कासलका बाबू पसहले कसनपक के िायल देहले कइसे साइसकल पर चढ़ल जाई l उ जेंगा सभे साइसकल पर चढ़ेला ओंगा ना चढले l उनकर

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िरीका दोसर रहे l उ पायसडल पर पैर ना रख के पायसडल के घंडु ी पर आपन पैर टीका के रेले साइसकल के हैंडल कस के पकड़ले आ लंगड़ी काटि जब पूरा स्पीड पकड़लस िब फान्ह के सीट पर बइठ गइले ! देखिे देखि इंद्रपरु बाजार के ओर जाएवाला सड़क पर िेजी से जाए लगले, साथे–साथे आपन िोसियासबंद के भारी चश्िा के एक हाथ से ठीक करि अचानक कचहरी के सािने के फौबारा के दायें िड़ु के पारबिी जी के पोखरा के कीनारे-कीनारे साइसकल चलावि कटहरी के बीच से सनकल के अपना घर के सािने अइले l साइसकल के थोडा र्ीरा कइले आ पायसडल के घंडु ी पर पैर रखके जेंगा एगो घड़ु सवार रकाब पर पैर रख के घोडा पर से उिरेला ओसहगां उ एक िलांग िें साइसकल पर से उिर गइले l चासिांग आाँख-िंहु खोलले अचरज से उनका के साइसकल पर चढ़ि, साइसकल चलावि, साइसकल पर से उिरि देखि रह गइले l कासलका बाबू चौड़ा कन्र्ा, िोटा कद के गठल शरीर के आदिी रहले उनकर हाथ के चौड़ा कलाई के गदु गर हथेली पर दूनू िजबूि अंगूठा उनका अभाव आ अविानना के सजनगी से बचावि हिेशा ससपाही जइसन खड़ा रहे l बाबू कासलका चरण लाल बहुि आत्ि-सनभा र आ सनपकपट आदिी रहले l ऊ अपना ईिानदारी के साथे कोई सिझौिा ना कइले l अपना अभाव के सजंदगी िें सख ु ी रहले l खाली सिय िें िाश आ शिरंज खेलना उनकर शौक रहे l कभीकभी लसड़कन के साथ कै रि भी खेलस, खासकर के अिवार के सदने l अिवार के सदन के खाना खइला के बाद ठाकुर जी के किरा के सािने बरािदा िें कम्बल पर सोलापरु ी चादर बीिा के कै रि खेलल शरू ु हो जाव l उ हिेशा अपना साथे कसनपक के पाटा नर बनावस l शरू ु िें उनका ना बझ ु ाइल सक कसनपक बाया​ाँ हाथ से खेलिारे बाद िें जब ऊ देखले िा उनका ई बाि पसंद ना आइल काहेकी उनका सिझ से बाया​ाँ हाथ से कवनों काि कइल अच्िा ना होखे l कसनपक स्वाभासवक रूप से बयांहत्थी रहले ऊ गेंदा भी बाएाँ पैर से खेलस, शटल कॉक भी बाएाँ हाथ से खेलस l कासलका बाबू कसनपक के बहुि सिझवले, िनवले की बाएाँ हाथ से ना खेलेके l असल िें कसनपक के जब भट्ठा िुआइल िब ऊ बाएाँ

हाथ से सलखेके कोसशश कइले लेसकन पंसडि िंगल दत्त उनका के दासहने हाथ के ऊाँगली से अबीर के एक परि लगावल स्लेट पर ‘रािs गसि देहु सिु सि’ सलखववले l बाि आइल गइल हो गइल l लोग ओसहपर ध्यान ना सदहल आ ओह सिय के िानससकिा के अनस ु ार कसनपक के दासहना हाथ से सलखे-पढ़े के परल, लेसकन ऊ खेले िें बाया​ाँ हाथ आ पैर के इस्िेिाल करस l एक सदन के बाि ह उनकर बाबा कसलका बाबू उनका के सहंदी िें सलखना सलखावि रहले ओही सिय ‘सित्र’ शब्द आइल कसनपक ओकरा िें दीर्ा आकार लगा के सलखले ‘िीत्र’l अचानक कसनपक के सदन िें िारा लउके लागल आ उनका गाल पर कासलका बाबू के थप्पड़ के आवाज द्वाररका के बनावल दिु ंसजला घर िें चारो िरफ सनु ाइल l ओसह सदन के बाद से कसनपक के एक सित्र के खोज के शरू ु आि भइल जेकरा नाि आ व्यसित्व िें स्वर आ व्यंजन के सही िेल होखे l कासलका बाबू कसनपक के अच्िा सित्र भी रहले लेसकन घर से बाहर उनका अके लापन रहे, उनका एगो साथी के जरूरि रहे l कासलका बाबू एक बहुि अच्िा गसणिज्ञ रहले, इंद्रपरु दरबार िें ई बाि सभे जानि रहे सक कासलका बाबू सहसाबसकिाब एकदि पक्का रहेला आ कोई उनका रहिे सहसाब िें गड़बड़ी ना कर सके ला l ई दक्षिा उनका पररवार िें एक पीढ़ी से दोसरा पीढ़ी िें आइल रहे लेसकन कसनपक सहसाब िें किजोर रहले उनका सहसाब िें िन ना लगे l उनकर कल्पनाशील िन के असि​िासकाक ज्ञान ओिना भावे ना l ओकरा ठीक उल्टा उनका अंग्रेजी, संस्कृि आ इसिहास िें बहुि िन लागे l बाबू द्वाररका प्रसाद के िन िें ई बाि रहे सक उनकर लड़का पढ़ के अच्िा करे लोग l कासलका बाबू के शरीर अब थाकि रहे l एही बीच िें लड़का लोग के खेले िें ज्यादा िन लागे आ खासकर के कसनपक के जासूसी उपन्यास पढेके के आदि लाग गइल l बाबू द्वाररका प्रसाद अपना व्यवसाय आ स्थानीय राजनीसिक काि िें व्यस्ि रहस आ लसड़कन के पढाई पर ओिना ध्यान ना देस उनका अनस ु ार लसड़कन के ज्यादा टोक-टाक ना करे के चाहीं l एक सदन उनकर िबीयि खराब रहे आ ऊ घरहीं रहले ओसहबेरा

अत्रनल प्रसाद िूितःहथुआ, त्रबहार के रहेवािा हयीं । अंग्रेजी सात्रहत्य िें शोध । सात्रहत्य अकादिी खात्रतर यशपाि के ‘झूठा सच’ के कु छ अंशन के अंग्रेजी िें अनुवाद । भारत, त्रित्रडि ईस्ट, अिेररका, चाइना, कनाडा अउरी ऑत्रस्िया िें आयोत्रजत अन्द्तरायष्ट्रीय सम्िेिनन िें पेपर प्रेजेंटेशन अउरी कत्रवता पाठ ।अंग्रेजी, हहंदी अउरी भोजपुरी िें िेखन । यिन, िीत्रबया, पटना अउरी िुंबई के त्रवश्वत्रवद्याियन िें अध्यापन । सऊदी अरे त्रबया िें अंग्रेजी भाषा आ सात्रहत्य के प्रोिे सर बानी । © आखर ● मई , 2015 ● 80


लड़का लोग के ट् यूशन पढ़ावे िास्टर श्यािल घोष अइले l द्वाररका बाबू आपन आाँख बंद कइले पलंग पर लेटल रहले आ नीचे चटाई सबिा के लड़का लोग बइठल पढ़ि रहे लोग, घोष बाबू Stories from East and West के कहानी Dick Whittington and his Cat पढ़ावि रहले l द्वाररका बाबू आाँख बंद कइले सब सनु ि-सिझि रहले l उनका बड़ा आिया भइल ई देख के सक लड़का लोग के ना कहानी बझ ु ािा, ना शब्दाथा िालूि बा, ना स्पेसलंग के कवनो ज्ञान बा आ ऊ लोग एगो वाक्य भी अंग्रेजी िें नइखे सलख सकि l ओसहसदन से ऊ लड़का लोग के पढाई पर ध्यान देबे के सोच सलहले l उनकर आपन परु नका सदन याद आ गइल l खाली इच्िा रहला से का होई ? खाली िेज भइला से का होई ? अगर लसड़कन के पढाई-सलखाई पर ध्यान ना सदहल जाई ि कुि ना हो पाई l पढ़े िें िेज रहला के वावजूद भी ऊ अपना बाबूजी के सपना ना पूरा कर सकले l िबीयि ठीक भइला के बाद ऊ अपना लसड़कन के पढ़े खासिर रूटीन बनवले आ घर के लोग के लसड़कन के पढ़े के बेरा काि करवावे से िना कइले l लसड़का लोग के अलग किरा िें पढ़ेके व्यवस्था कइल गइल l एक सदन कांिा ओ लोग के पढ़े वाला किरा िें अचानक अइली ि उनका शक भइल सक उ लोग कोसा के सकिाब नइखे पढ़ि लोग, कवनो दोसर सकिाब पढ़िा लोग l ओसहबेरा कसनपक कोसा के सकिाब के बीच िें जासूसी सकिाब रख के पढ़ि रहले सक के हू के शक ना होखे l ऊ बाद िें ई बाि अपना बड़ भाई द्वाररका के कहली l फे रु ई बाि के सशकायि ऊ अपना बाबूजी कासलका बाबू से कइली l कासलका बाबू कहले सक ऊ का कर सके ले बबआ ु एह लोग पर ध्यान नइखन देि l एक सदन द्वाररका गागी के संगे अचानक ओह लोग के किरा िें अइले, कुि देर पढाई के बारे िें पूिला के बाद कसनपक के चौकी पर के िोशक उठवले l िोशक के नीचे कुशवाहा कान्ि आ कना ल रंजीि के उपन्यास िुपावल रहे ! ई देख के द्वाररका बाबू बहुि हंसले, उ सब सकिाब जब्ि क लेहले आ कसनपक के सिझवले सक उपन्यास पढ़ल कवनो ख़राब बाि ना ह l उपन्यास इम्िहान ख़ि​ि हो गइला के बाद पढ़े िें कवनों खराबी नइखे, लेसकन पढ़े के बेर पढ़ला से बहुि नक ु सान बा l एही बीच िें कांिा िेजी से किरा िें अइली आ जोर-जोर से बोले लगली आ द्वाररका के ओर िख ु ासिब होक कहे लगली,

“ना भईया, ई अच्िा बाि नइखे, नावेल पढ़ला से बहुि खराब असर पड़ेला l’” द्वाररका कांिा हे हाथ से ईशारा कइले चपु रहेके, लेसकन कांिा चपु ना भइली l कांिा अपना आदि के अनस ु ार अपना ऊाँच आवाज िें बोलिे गइली l कांिा द्वाररका-पररवार के स्वघोसषि प्रॉक्टर रहली l उनका गागी से पररवार के िसलकाई िें प्रसिद्वसन्दिा रहे l कवनो भी काि बीना हल्ला कइले ना हो सकि रहे l एह हस्िक्षेप के असर द्वाररका-पररवार पर बहुि दूरगािी परल, शरू ु िें के हुके बझ ु ाइल ना आ बाद िें लोग सिझ के भी सिझे के कोसशश ना कइल l आदिी अपने आपन सहिैषी आ अपने आपन दश्ु िन बा l आपन आपन अहि् के अन्हार कोठरी िें सभे अपना अंिरात्िा के बंद कइले रहे l जब स्वाथा पड़े ि कोठरी से सनकल के बाहर आवे लोग आ फे रु ओही कोठरी िें जाके बंद हो जाव लोग l पूरा संयि ु पररवार के बोझ बाबू द्वाररका प्रसाद पर लदा गइल, आ कुि बोझा ऊ एहसे उठवले सक उनका िन िें सिाज सवोपरर रहे जे उनका िन िें हिेशा प्रसिध्वसनि करि रहे सक अगर ई हि ना करेब ‘ि लोग का कही l’ स्वाथा के र्ासिन सा​ाँप दर्ु ारू गाय के पैर िें िाना िार के ओकर दूर् सपए लागल, स्नेह के गाि िें इपया​ा के कोंढ़ी घरे लागल ऊ फुलाइल जब ओहबेरा ओकरा के िुर के फें कल संभव ना रहे, ओकर जड़ काफी गहीर ले फइल गइल रहे l ई बाि सही रहे सक बाबू कासलका चरण लाल घर के बज ु गु ा रहले लेसकन असली िासलक द्वाररका बाबू रहले l द्वाररका बाबू हिेशा ओह बेरा के ‘लोग का कही’ के िानससकिा से प्रभासवि रहले l अपना आ अपना पररवार के आगे ऊ सिाज आ इंद्रपरु बाज़ार के रखले l उनका लगे कवनो पढाई के बड़का सडग्री ना रहे, लेसकन ऊ बहुि ऊाँचा स्िर के पढ़ल-लीखल आदिी रहले आ ओहसे भी उपर ऊ एक बहुि उम्दा इंसान रहले l अके ले ही बहुि कि उसिर िें उ बाबू कासलका चरण के सजम्िेवारी के अपना कान्ह पर उठवले पररवार के सिाज िें एक स्थान बनवले l उनकर आिया जनक उपलसब्र् से इंद्रपरु ही ना बसल्क पूरा इलाका के लोग के िन िें उनका प्रसि प्रशंसा आ आदर के भाव रहे, साथ ही लोग पर उनकर रोब-दाब भी रहे l (क्रि​ि:)

© आखर ● मई, 2015 ● 81


भारत में वकसान आत्महत्या के मल ू वजह

भी हाल िें देश के राजर्ानी िें घटल घटना कई गो प्रश्न खड़ा कर रहल सबया । उ घटना अब पूरी िरह से राजनीसिक घटु ी पी चक ु ल सबया । खैर , हिार िद्दु ा ओने नइखे अलग बा, कौनो सिस्या के खाली राजनीसिक कारन आ हल ना होला ओकर िकनीकी कारन भी होला अउरी िकनीकी सझ ु ाव भी । जईसे सबसे बड कारन बा खेिी िें आर्सु नक िकनीक के किी, देश के हर गली िें इंजीसनयररंग कॉलेज बा लेसकन कृसष से सम्बंसर्ि िकनीक अउरी िकनीकी सलाह देवे िें आज भी काफी हद िक सफल नइखे । कुल सिला के कहल जा सके ला कृसष सशक्षा अउरी उच्चस्िरीय शोर् के किी देखल जा रहल बा । आज के िारीख िें कृसष सशक्षा अउरी ओह से सम्बंसर्ि शोर्किा​ा खाली नाि िात्र के रह गईल बाड़े । एगो अउरी आिया वाला सवषय बा सक भूिंडलीकरण के सिय िें भी बहुरापिीय कं पनी के िाध्यि से आवे वाला आर्सु नक िकनीक भी कृसष िक जिीनी स्िर पर नईखे पहुचाँ पावि । िकनीकी सिस्या िें दस ू रा कड़ी बा उसचि प्रबंर्न अउरी िकनीकी सझ ु ाव ि​िलब इ सक रापिीय स्िर प एगो जलवायु कं डीशन के ि​िु ासबक प्लान बन सके ला एह से दू गो फायदा होई पसहला इ, जवन लोग जबरजस्िी उल्टा खेिी करेला िानी कवनो जिीन कपास खासिर अच्िा बा लेसकन जबरजस्िी र्ान बोए लागेला जवना के प्रभाव बड़ा सवषि पड़ेला या ि उपज ठीक ना होई या अइसन होई सक देश िें ओकर िात्रा अिना बढ़ गईल सक सरकार रखाव प्रबंर्न के लेके बेचैन रहेले एकरे चलिे सकसान के अनाज के दाि सगरे लागेला । दूसरा सिस्या इ होला सक जवन बोए के चाहि रहे ओकर आकाल पड़े लागेला जवना के चलिे सरकार के आयि करके के िजबूरी पड़ जाला । इ दनु ो सिस्या हल हो सके ला आयाि के भी न्यूनि​ि कईल जा सके ला अउरी सकसान के फसल के ि​िु ासबक कीि​ि

सिलेलागेला । एकरा साथे कवन फसल कब बोए के बा, बीज के प्रजासि कवन होखे के चाही, कब बोए के बा, कौ बेर ससचाई करके बा, किना सिय अन्िराल होखे के चाही एह सब प िकनीकी सझ ु ाव बहूि ही ज्यादा जरूरी ित्व होला । पानी के भी ठीक से उपयोग हो पावेला जवना से खेिी के सिय पानी प्रबंर्न के सिस्या के भी न्यूनि​ि करे िें िदद सिलेला । िकनीकी सझ ु ाव िें इहो हो सके ला सवशेषज्ञ सारा प्रसक्रया के िैकेसनज्ि डेवेलप करस िाकी कवनो बीिारी ि​ि लागो फसल िें । एहसे सकसान के फसल भी अच्िा होई, उत्पादन भी अच्िा होई अउरी सकसान प्रसशसक्षक भी होइहे । िकनीकी कारन सझ ु ाव सझ ु ाव के क्रि िें खाद्य सरु क्षा के िैकेसनज्ि के कं प्यूटरकृि करके लूप होल के कि कईल जा सके ला जवना चलिे सकसान अउरी सका​ा र दनु ु परेशान सबया । 'सांिा कुिार के ररपोटा ' के पदा​ा बनावल उसचि काि नइखे लागि, सबकुि पसब्लक डोिेन िें होखे के चाही, PDS प्रणाली जवन सदनों सदन किजोर हो रहल सबया ओकरा थोडा िजबूिी सिली । खेिी के आर्ार प ओह प्रकार के उद्योसगक र्ंर्ा पास िें सवकससि करके भी सकसान के आनाज िूल्य के िजबूि बनावल जा सके ला । एहसे कं पनी के भी फायदा बा अउरी सकसान के भी, शहरी क्षेत्र के अपेक्षाकृि कि दाि िें िजदूर भी सिल जईहे अउरी िोटे भाग प खेिी करेवाला सकसान के पाटा टाइि नौकरी भी सिल जाई । शहरी क्षेत्र के ठेला ठेली के सजंदगी से भी प्रवासी आदिी के राहि सिली । अउर भी बहूि फायदा बा एह से अउरी बहुि िकनीकी सझ ु ाव हो सके ला सकसान के राहि पहुचावे के क्रि िें । अब बाि कईल चाहब राजनीसिक सझ ु ाव का हो सके ला सकसान के आि सिस्या के हल करे खासिर । सबसे पसहला इ सक भूसि असर्ग्रहण सबल बनावि सिय जलवायु के सिजाज और फसल के पैदावार के िद्देनजर रखिे हुए बनावल जाओ । काहे सक ओह औद्योसगक सवकास के कवनो ि​िलब ना होई जवन कृसष योग्य भूसि प लगावल जाई । एकरा पीिे हि एहे

गौरव त्रसंह रोहतास, त्रबहार के रहे वािा गौरव जी इं जीन्द्यररं ग के छाि हईं। भोजपुरी िें िगातार त्रिख रहि बानी। ए घरी गौरव जी VIT यूत्रनवर्सयटी वेल्िूर , तत्रि​िनाडू से पढ़ाई कर रहि बानी।

© आखर ● मई , 2015 ● 82


कारन देब सक औद्योसगक चीज सेकेंडरी सक्रया हवे, जवना के सीर्ा सम्बन्र् प्राथसिक सक्रया (खेिी) से बा । जब प्राथसिक सक्रया किजोर परे लागी ि सेकेंडरी सक्रया खासिर पूरा के पूरा आयाि कइल बहूि हद िक संभव नईखे । एहसे िृिीय सक्रया िजबूि करके बा ि सद्विीय सक्रया िजबूि करेके परी, ठीक वोइसही सद्विीय िजबूि करके बा ि प्राथसिक िजबूि कईल बहूि ज्यादा जरूरी बा । एहिे एगो अउर बाि हो सके ला भूसि लीज प लेल जा सके ला सकसानन से िाकी सकसान के जिीन प िासलकाना हक बनल रहो अउरी सनयसि​ि भागीदारी सिलि रहो, एह से सकसान के आत्िसविास िें चार चा​ाँद लागल रही । अभी सफलहाल िें लीज वाला सनयि िोबाइल फ़ोन के टावर लगावे वाला िें बा, सीि काडा कं पनी एयरटेल,आईसडया,वोडाफोन सब के सब िसहना देला ओह सकसान के जेकरा खेि िें टावर गडाला, इहे ना एगो आदिी िें ओकरा घर से नौकररयों देला । एह से सभे चाहेला सक हिरा खेि िें गडा जाव । िंसा होखे के चाही करके , अइसन कवनो बाि नईखे सक सकसान सवकास खासिर जिींन नइखे देल चाहि, सकसान भी चाहेला सक हिनी के देश िरक्की करो लेसकन शहरी लोगन के सदिाग िें एगो गलि प्रसिसबम्ब बन जाला सक सकसान जिींन नइखे देवल चाहि जवना चलिे सवकास रुकल बा । एह से राजसनसिक सिीकरण सिझी जवन औद्योसगक घराना से सिल के बनल बा, वोइसन सनयि कानून होई ि सकसान से िीने के ना परी अउरी नाही कवनो जोर जबरजस्िी करे के परी, सकसान अपना िने ला के दे सदहे । राजसनसिक सझ ु ाव के अगला कड़ी िें लोन प्रसक्रया प जोर देल चाहब । सकसान के आत्िहत्या के एगो बररयार कारन बा सहुकारन से लेल लोन जवना के दर काफी ज्यादा होला अईसे िें फसल िरा गईला प सकसान आपा खो बइठेला आसखर कहा​ाँ से चक ु ाई । सरकारी लोन िें जवन स्विंत्रिा बा उ हिनी से नइखे िुपल । हिरा सिझ से पैसा उर्ार ना देके सरकार के िरफ से ग्रािसभा के स्िर प अइसन िैकेसनज्ि डेवेलप कईल जा सके ला जवना िें ऋण के रूप िें पईसा ना बसल्क खाद,

बीज, कीटनाशक आसद के व्यवस्था कईल जा सको । ओह िैकेसनज्ि िें एह बाि के भी स्पष्ट कईल जा सके ला सक पैदावार के ि​िु ासबक ही सरकार सकसान से वापस पईसा ना बसल्क आनाज ही ली । हि जवन ससस्टि के सवकससि करके बाि करि बानी ओह िें सकसान के साथ साथ सरकार के भी फायदा होई । ओह ससस्टि िें ऋण के रूप िें सकसानन खासिर िकसनकी िशीन जईसे हावेस्टर, िेक्टर, थेसार आसद भी उपलब्र् करावल जा सके ला जवना के दर किसेकि प्राइवेट वालन से ि किे नू होई । वोही कड़ी िें एगो अउरी बररयार सिस्या बा बाजार वाला जवना िें सकसान िें उसचि सिल ना पावेला । एह िें िध्यस्िा करेवाला व्यापारी सबसे ज्यादा फायदा िें रहेला । देसख एसहजे दू गो बाि सािने सनकल के आविा औद्योसगक क्षेत्र से उत्पासदि हुए वस्िु को औद्योसगक घराने के लोग ही गसणि लगाके करेला, जबसक कृसष क्षेत्र के िूल्य के िूल्यांकन या ि सरकार करेले या सफर क्रेिा यानी की व्यापारी । सकसान असहाए सदखाई देला हिेशा बोअि सिय, काटि सिय अउरी बेचि सिय भी । बहूि ज्यादा उत्पादन हो गईल, सड़ी गली फे काई ना ि बहूि कि दर सिली जवना से लागिो ना सनकली, िबो सकसाने के सि​िा लेदर आ कि भईल ि व्यापारी कि दाि प क्रय करके ज्यादा िनु ाफा लेके बाजार के जरूरि परू ा करे खासिर बेच दी िबो सकसाने ठगल िहसूस करेला । िूल्य सगरे के एगो अउरी िूल कारन बा उपभोिा के अनस ु ार फसल के चयन करे के चाही ना ि पररवहन खचा​ा ऐिना आ जाला जईसे िानी जेिना के बबआ ु ना ओिना के झनु झनु ा लाग जाला, एह से फसल िजबूरी िें नस्ट करे के पर जाला । सरकार के िूल्य िय करि सिय सभ िापदंड के ध्यान िें रखल जरूरी बा । अइसन सबल्कुल नइखे सक सझ ु ाव के किी होखो सिस्या के हल करे के बस लागू करेके िैकेसनज्ि अउरी िंसा के जरुरि बा ।

© आखर ● मई, 2015 ● 83


बिनेिा

भोजपरु ी वसनेमा आ दविण के वफल्म (तल ु नात्मक अध्ययन)

िनी के बेगस ु राय िें रहनी आ उ अस्सी के सरू ु के साल रहुए जब िैसटनी शो खत्ि होखे के िुरिं बाद सनयरे के ससनेिा हॉल से लाउडस्पीकर पर गज ुाँ े लागि रहुए, जल्दी जल्दी चल रे कहरा सरू ु ज डुबे रे नसदयां....गीि ि अउर बाजि रहे, गोरकी पिरकी रे आ िेला िें सईयां भल ु ाईल हिार अब का करीं भा हंस के जे देख िु एक बेररया हि िरर िरर जाईब िोहार सकररया लेसकन िोटी चसु क रहला प भी, र्रिी िईया सफसलि के जल्दी जल्दी चल रे कहरा सरू ु ज डुबे रे नसदयां....गीि सनु िे िन पसीजे लागि रहे, काहे? ई िब ना बझ ु ाि रहे बाद िें टीवी अईला के बाद दरु दशा न प एक सदन ‘गंगा िईया िोहे सपयरी चढ़ईबो’ सफसलि देखावल गईल रहे िब पसहला बार भोजपरु ी ससनेिा से आपन चीन्ह-पहचान भईल रहे, आपन भासा िें अपना गांवजवार के काथा देखके चाहे जेिने बझ ु ाईल बासक नीिन लागल, फे र नसदया के पार आ बाद िें दल्ु हा गंगा पार के जईसन ससनेिा भी आईल जेकरा देखे खासिर उहो चाची, भाभी लो ससनेिा हाूल चहुपं ली जे कब्बो सफसलि देखे खासिर घर से बाहरा ना सनकलि रहल लो। एकरा बाद फे र एक-दु गो सफसलि के िोर के वईसन सब के िोह लेवे वाला भोजपूरी सफसलि के चचा​ा ना सनु ाईल बलक ु कुि बररस ले िंदी के दौर आ गईल रहुए। फे र 2001-2002 के बाद ‘पंसडि जी बिाई ना सबयाह कब होई’ आ ससरु ा बडा पईसा वाला से भोजपूरी ससनेिा के एगो अलग दौर शरू ु भईल जे अब िक चलल आ रहल बा। एह बीचे गोसवंदा के दु िीन गो सफसलि आईल रहे, राजा बाब,ु आंखें, खुदगजा , बड़े सियां िोटे सियां ई सब िें उनकर रोल आ बोली बानी परु सबया रहल ह, एिे राजा बाबु आ आंखें िें गोसवंदा खुब पसंद कईल गईले, उनकर लोकसप्रयिा के अंदाजा ससवान सजला के अपना गांव गईला प बझ ु ाईल, िौ िहीना से उपरे िैरवा िें इ दनु ो सफसलि हाल िें लागल रहे।

देखल जाउ ि गोसवंदा के ई सब सफसलि जेकर असर्का दशा क िोट सहर, कस्बा आ गांव के रहले से भोजपूरी सफसलि के आगे के दौर सरू ु भईल, एही सिय से भोजपूरी सफसलि उद्योग फे र से आपन बाजार पकड़े के शरू ु कईल आ ऐही सिय से भोजपूरी सफसलि के आपन िौसलकिा एकदम्िे ओराए लागल आ भोजपूरी ससनेिा बी सी ग्रेड भा ‘पापल ु र’ सहन्दी ससनेिा के नकल बन के रह गईल। ‘गंगा िईया िोहे सपयरी चढ़ईबो’, सबदेससया, बलि परदेससया, लागी नहीं िुटे रािा, र्रिी िईया आ नसदया के पार, के जोर के ससनेिा फे र ना बन पाईल ह। हाल के सदन िें देसवा के चचा​ा सनु ाईल आ बड़ाई भी भईल िब्बो अबसहयों ले साईि सफसलि ररलीज नईखे हो पाईल। ऐकरा अलावा 2008 िें एगो लघु सफसलि ‘उर्ेरबनु ’ आईल रहुए जेकरा बसला न अंिरापिीय सफल्ि िहोत्सव िें सवा श्रेश्ठ सफल्ि श्रेणी िें रजि पदक हाससल भईल रहे, कहे के ि​िलब सक 1961 से शरू ु भोजपरु ी ससनेिा के इसिहास िें वैसिक उपलसब्र् के नाि प खाली एगो लघु सफसलि उर्ेरबनु के ही नाि सलहल जा सके ला। इहां एगो और बाि कहल जरूरी बा, उ ई सक पसहले बहुि पािर लाईन रहुवे सहन्दी आ भोजपूरी िें, दो बीघा जिीन, गंगा जिनु ा, नया दौर, िदर इंसडया जईसन सफसलि सहन्दी िें बनि रहुए जे भोजपूरी के फरक सिटा देिे रहे, इहां िक सक नसदया के पार भी सहन्दी िें बनल ससनेिा ह, आ बादो िें जब जब सहन्दी सफसलि िें उत्तर भारि के गांव के कहानी कहल गईल सफलिा के एगो नाया इसिहास सलखाईल, चाहे लगान के बाि कईल जाव भा सपपली लाईभ आ चाहे हाले आईल ससनेिा ‘पीके ’ के लेसकन ि का इ सब सफसलि के भोजपूरी ससनेिा िान सलहल जाव? एकर जबाब ‘ना’ ह, बासक इ सब उदाहरण से पािा चलिा सक भोजपूरी के लोकसप्रय ससनेिा कईसन हो सके ला आ एकरा से आगे आपन िौसलकिा पाए खासिर भोजपूरी के सब सघसल-सपटल फारिूला िोर के

मनोरमा त्रसंह त्रसवान , त्रबहार के रहे वािी िनोरिा जी , स्वतंि पिकार के रुप िे अपना िेखन शैिी से बहुते प्रभात्रवत कईिे बानी । कई गो पि पत्रिका आ अखबार खात्रत इाँ हा के िगातार त्रिख रहि बानी । एह सिय इाँ हा के बंगिोर िे बानी ।

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गणु वत्ता िें ऐकरों से आगे जाए के पड़ी। दोसर सवाल ई ह सक आसखर का कारण बा सक भोजपूरी िें कौनो सगररश कासरवल्ली, पी शेशाद्री, सगररश कना​ा ड, शंकरनाग, के बालाचंदर, अडूर गोपलकृपणन आउर िसणरत्नि जईसन नाि नईखे, पलायन, सवस्थापन, बेगारी, बेरोजगारी, जिीन से बेदखली के कहानी नईखे। गरीब,दसलि, शोसषि, सपिड़ा आ िेहरारू लो आपन अससलयि के साथ हिनी के ससनेिा िें कहीं नहीं लौके ला लो। सांच कहल जाओ ि सहन्दी सबले बड़हन कारण बन गईल भोजपूरी के सपिड़ला के आ भोजपूररए काहे उ सब भासा-बोली के जेकरा के सहन्दी के बसहन आ िौसी कहल जाला। आपन सबहारे के बाि करीं ि सहन्दी सबके भासा ह लेसकन के करो िािृभासा नईखे, के हु के िािभृ ासा भोजपूरी ह ि के करो िैसथल, अंसगका, बसज्जका भा िगही। अब जे सहन्दी िें सोची, बाि करी, काि करी उ आपन िािृभासा िें कुि ससरजे प कईसे आपन जड़ ओ िरह से पकड़ सके ला जे िरह से कन्नड़, िसिल, िलयालि आ िराठी के लोग पकड़ेला जे लो के सैकड़न साल के सासहसत्यक, सांस्कृसिक सवरासि र्रोहर जईसे सिल जाला। सबसे पसहले ि आपन िािृभासा से कटिे के साथ लोग ओकर सवरासि से कट जाला, जबसक कन्नड़, िसिल, िराठी, िलयालि िें लोग आपन भासा िें जे बसढया सकिाब पढ़ेला ओकरा के सफसलिों िें ढ़ाल देला, एहीजुग से फरक भी सिझ िें आवे लागेला। जे पढलेला उ सहन्दी के भा अंग्रेजी के हो जाला, भोजपरु ी िें लौट के ना जाला, आपन भासा िें खाली बोले बसियावे से ना बासक गम्हीर सलखला पढला आ रचला से ही भोजपूरी के नाि प जे फुहड़पन स्थासपि करल जा रहल बा ओकरा रोकल जा सके ला। कन्नड़ के बाि कईल जाव ि इहां के लो के आपन लेखक आ उनकर सकिाब पर सफसलि बनला पर एिना रूसच रहे सक ब व कारंि जईसन सनदेषक के भी जब उ सशवराि कारंि के उपन्यास चोिाना ददु ी पर एही नाि से सफसलि बनावि रहले जेकरा बाद िें ओ साल के सवा श्रेष्ठ सफसलि के रापिीय परु स्कार सिलल कई बार शसु टंग के बेर लोग के बिावे के पड़ि रहल सक उ सकिसबयन िें कौनो हेर-फे र कईले सबना ओपर सफसलि बनाविाड़े। भासा आ आपन लेखक के लेके अईसन जागरूकिा हिनी सकहां कहां बा? इ बाि प कई गो सफसलि खासिर रापिीय परु स्कार हाससल कर चक ु ल कन्नड़ सफसलि सनदेशक पी शेशाद्री कहिाड़े भोजपूरी ससनेिा, सहन्दी ससनेिा के फुहड़ नकल ह अउर सहन्दी ससनेिा अपने अिरीका आ हॉलीवडु के नकल । ससनेिा खाली

िनोरंजन के िाध्यि नईखे लोग के सशसक्षि आ संवदे नशील बनावे के भी िाध्यि बा ऐही से सबसे पसहले भोजपूरी के सहन्दी ससनेिा िाया से सनकले के होई। बंगाली, िसिल, कन्नड़, िराठी, िलयाली ससनेिा िें शरु​ु ए से पापल ु र से अलग सिानान्िर ससनेिा के बररयार र्ारा रहुए जे असभयो बा बासक अब ि गज ु रािी आ उत्तरपूवा के क्षेत्रीय भासा िें भी बहुि बसढया सफसलि बन रहल बा। शेषाद्री जी के कहनाि बा सक भोजपूरी के भी अईसही आपन जिीन खोजे के पड़ी, कना​ा टक के बारे िें आ आपन सफसलि के बारे िें एगो बहुि नीिन आ जरूरी बाि उ इहो बिउले सक इंहा कन्नड़ के अलावे, कोकं णी, कोदवा आ टुलु भासा भी बोलल जाला, षेशाद्री जी खुदे कन्नड़ आ जादािर ओही इलाका के कहानी प सफसलि बनावेले जे कन्नड़ भासा िें आवेला। लेसकन कना​ा टक िें खाली कन्नड़ िें ही नाहीं बलुक टुलू, कोदवा आ कोंकणी िें भी सफसलि बनेला, बजट आ िकनीक िें किजोर होखे के बाबजूद लोग आपन भासा के सफसलि पसन करेले आ टुलू भासा िें ि अब बसढया े़ सफसलि बने लागल बा। एही से उ िहारापि सरकार के राज्य के ससनेिा हाल िें शाि के शो िें िराठी सफसलि असनवाया रूप से देखावे के फै सला स्वागि कर रहल बाड़े, काहे सक लोग एह से आपन जड़ से जड़ु ी आ क्षेत्रीय ससनेिा के िाली हैससयि भी िजबूि होई। इहो गौर करे वाला बाि ह सक उत्तर भारि के भोजपूरी सिेि बाकी सब भासा के ससनेिा प सहन्दी ससनेिा के असर बा चाहे उ नकल ह लेसकन उहे िंबु ई िें एिना बड़हन सहन्दी सफसलि उद्योग के िाया िें भी िराठी सफल्ि आपन अलगे पहचान आ खाससयि के साथ िौजूद बा बलक ु हर साल ओह िें एगोदगु ो अईसन सफसलि बनेला जे िख्ु यर्ारा के सहन्दी ससनेिा से कई गणु ा बसढया े़ होला। हि कना​ा टक िें सपिला साि-आठ साल से रहिनी एह से ईहां के सफसलि के कौनों अउर राज्य के िल ु ना िें जादा नजदीक से देखिनी आ ऐही से आपन बाि रखे आ सिझावे खासिर दनु ु के जोर के बाि कह रहल बानी। हांलासक अईसन नईखे सक ईहां के सफसलि िें घसटयापन आ फुहड़िा नईखे आईल, सफसलि एगो सबजनेस ह आ सबसे पसहले लोग नाफानक ु साने के बारे िें सोचेला लेसकन इहो बा सक साथे-साथे ओईसनों सफसलि बनि रहेला जे देस-सिाज लेले असगला पीढ़ी के थािी बनि जाला। भोजपूरी िें पट्टु कना हाईवे, बेट्टादी जीवा, भारि स्टोर आ 1 सदसंबर जईसन ससनेिा कहां बा ? इ जादा परु ान सफसलि ना बासक सब रापिीय परु स्कार से सम्िासनि ह, आ जिीन, सवस्थापन से लेके िाल संस्कृसि आ िख्ु यिंत्री के गांव िें जाके कौनो गरीब के घरे रूक गईला के

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बिनेिा बाद उ पररवार के त्रासदी जईसन सबसय पर बनल सफसलि ह। कि बजट िें बने बाला इ ससनेिा प राज्य सरकारों दस लाख िक ले कजा​ा दे देले। हिरा नईखे िालूि सबहारो सरकार ऐ

िरह से सहयोग करेले आसक करी ।

आखर के गाँज ू दमदडया में

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बिनेिा

ि

भोजपुरी दसनेमा के वतत मान दस्थदत आ भदवष्य वनो भी भाषा के गररिा ओकर संस्कृसि बढ़ावेला आ सासहत्य ओकर रसास्वादन करावेला । एह से सबसे पसहले आदिी के ओकरा संस्कृसि पर ध्यान देवे के चाहीं सक ऊ सिाज िें कवना सदसा का ओर जा

रहल बा । अब इहां बाि हो रहल बा भोजपरु ी ससनेिा के विा िान सस्थासि आ भसवपय के । ि हिरा सिझ से आज के भोजपरु ी ससनेिा भोजपरु ी संस्कृसि के नंगा नाच करा रहल बा । आज से अगर बीस साल पसहले के बाि कइल जाव ि उहा​ाँ िक भोजपरु ी ससनेिा अपना सभ्यिा आ संस्कृसि दनु ो के सहेजले हिनी का आंखी के सोझा प्रस्ि​िु होि रहे । ओकरा भीिर भोजपरु रया संस्कृसि के ऊ सब झलक जवन गा​ाँव िें पररवार के भीिर देखे के सिलेला (संयि ु पररवार कइसे चलेला, िाई-बाप के पररवार िें का स्थान होला, गा​ाँव िें फइलल दूर िक के ररश्िा के का अहसियि बा भा कवनो पवा , त्योहार, व्रि, शासदसववाह के िहत्व का होला) के संजो के दशा क सभ के िनोरंजन करि रहे । एकरा साथे साथे ओह सिय के सफल्िन िें पहनावओढ़ाव, रहन सहन एह िरह से देखावल जाव सक दोसर भाषा भा संस्कृसि के लोग हिनी के संस्कृसि के साथ-साथ हिनी के पहनावा-ओढ़ावा भी अपनावे के लालासयि रहि रहे । भोजपरु ी ससनेिा के शरू ु आिी दौर पर अगर नजर डालल जाव ि 1960 के दशक िें ई अपना सिव्रिा पर रहे । ओह सिय जवन भी सफल्ि आइल ओहिें भोजपरु रया संस्कृसि के बखबु ी देखावल गइल । ओह दौर के प्रिख ु सफल्िन िें ‘‘गंगा िइया िोहे सपयरी चढ़इबो-1962’’ आइल जवन भोजपरु ी क्षेत्र के साथ-साथ आउर सब राज्य िें भी काफी सराहल गइल । आज भी जब कहीं ई बाि चलेला सक भोजपरु ी के ऊ कवन ससनेिा बा जवना िें भोजपुररया संस्कृसि आउर सजनगी के

बखुबी देखावल गइल बा ि एह सफल्ि के नाि प्रिख ु िा से सलयाला । एकरा बाद 1963 िें सफल्ि आइल ‘‘लागे नाहीं िुटे रािा, -1965, सबदेससया-1963, भौजी-1965, लोहा ससंह1966, नइहर िुटल जाय, बलिा बड़ा नदान, कब होइहें गवनवा हिार, के करा चरनवा िें लगलें परनवा, नाग पंचिी, सीिा िइया, संइया से भइले सिलनवा, आइल बसंि बहार, सबर्ना नाच नचावे, हिार संसार, सोरहो ससंगार करे दल ु सहसनया, गोस्वािी िुलसी दास आसद ।’’ 1960-70 के दशक िें आइल ई प्रिख ु भोजपरु ी सफल्ि रहे जवना के देखे खासिर दशा क दरू -दरू िक ससनेिा हॉल िें पैदल भा बैल गाड़ी से जाि रहे । ई सब ऊ सफल्ि ह जवना का भीिर से भोजपरु रया िाटी के सौंर्ी खुशबु आवेला । 1970-79 के दशक िें आवे वाला भोजपरु ी सफल्िन के अगर बाि कइल जाव ि प्रिूख रूप से ‘‘ढेर चलाकी जन करऽ1971, बलि परदेससया-1979, डांकू रानी गंगा, दंगल, सि​िवा, िाई के लाल, र्रिी िइया, जागल भाग हिार आसद । एह दशक िें भोजपरु ी सफल्ि के सनिा​ा ण िें कुि किी आइल बासकर रफ्िार रूकल ना । भोजपरु ी ससनेिा खासिर अब दशा क ब ंर् चक ु ल रहे । इंिजार रहि रहे नया नया सफल्िन के । सबसे असर्क सफल्ि 1980 के बाद बनल । एह दौर के सफल्िन पर अगर नजर दउरावल जाव ि िूलिुः ‘‘चनवा के िाके चकोर-1981, संइया िगन पहलवानी िें-1981, संइया िोरे कारण-1981, हिार भौजी-1983, चटु की भर सेनूर1983, गंगा सकनारे िोरा गा​ाँव 1984’’ आसद । ई अइसन सफल्ि बारी स जवन ससनेिा हॉल िें िहीना भर चलल रहली स । एकरा बाद ‘‘सपया के गा​ाँव 1985, दल्ु हा गंगा पार के -1986, रूस गइलें संइया हिार, िाई-1989, पान खाए संइया हिार1984, नइहर के चनु री, सबहारी बाबू, चलऽ सखी दल ु हा देखे,

असिर्ेक िोजपरु रया त्रबहार के छपरा त्रजिा के िहिादपुर प्रखण्ड अन्द्तगयत जनता बाजर, भटवत्रिया के त्रनवासी बानी । इहा के भोजपुरी आ त्रहन्द्दी सात्रहत्य के एगो िजबूत स्तम्भ आ भोजपुरी भारती संस्था, ढोढ़स्थान, जनता बाजार के संस्थापक सदस्य आ भोजपुरी भारती पत्रिका के पूवय संपादक स्व0 प्रो0 वैद्यनाथ त्रवभाकर जी के पुि बानीं । इहा के भोजपुरी भाषा से बीए आ एिए कइिे बानी आ पीएच डी भी कर रहि बानीं । इहा के भोजपुरी के हर त्रवधा िें त्रिखत रत्रहिे खास कर कत्रवता, त्रनबंध आ कहानीं ।

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बिनेिा सजनवा बैरी भइलें हिार’’ आसद बा । एह दौर के कलाकार लोग के अगर बाि कइल जाव ि प्रिख ु रूप से सज ु ीि कुिार, बलराज साहनी, ल्िण शाहबादी, सदलराज कौर, कुणाल ससंह आसद । ई ओइसन कलाकार ह लोग जवन अपना सफल्ि िें फूहरिा भा द्वीअथी संवाद भा गीि सबल्कुल पसंद ना करे लोग । इहे कारण बा सक आज भी एह कलाकार लोग पर सफल्िावल गीि लोग बहुि प्यार से सनु ेला । एह लोगन के सिाज िें एगो आपन िवी बा जवन भोजपरु रया लोग के प्यार पावेला । आज के दौर िें बने वाला सफल्ि के अगर बाि कइल जाव ि ससनेिा दशा क के अपना ओरी खींचे िें सवफल हो रहल बा । काहे सक एह सफल्िन के नािकरण कहानी से अलग होखे ला । कहानी ि होला ही ना । बस सफल्ि के नाि पर आठ-दस गो गीि जवना के शब्द द्वीअथी होला एक दगू ो आइटि गीि जवना िें गीि कि काि वासना के झलक जादे होि बा आ कुि किेडी के िड़का । बस हो गइल भोजपरु ी सफल्ि िइयार! ई कुल्ह सफल्ि बक्स असफस पर िहु कुररये िाटी ले लेि बा । ससनेिा हॉल के कुसी खाली रह जाि बा । सफल्ि पानी िक नइखे िांगि । एह सब के पीिे जवन कारण बा ऊ अच्िा कहानी आ संवाद के किी । अइसन नइखे सक भोजपरु ी िें अच्िा सफल्ि नइखे बनि, बन रहल बा बासकर ई अश्लीलिा भरल सफल्िन का बीच िें दि र्ोंट के रह जाि बा । आज काल्ह के भोजपरु ी सफल्ि के हीरो भी किाल के आ रहल बारें । ना शक्ल ना सरु ि, ना असभनय के लूर । बस पइसा लगावि बालोग दू चार गो िड़क फड़क गीि हो गइल सफल्ि िइयार आ बन गइलें हीरो । सनदेशक भी किाल के बा लोग । उनका ना भोजपरु ी भाषा सिझ आवि बा आ ना भोजपरु रया संस्कृसि । उ लोग बस पइसा किाए खासिर के हू के भी लेके सफल्ि बना देि बा लोग । बदनाि हिनी के भोजपरु ी होले हिनी के संस्कृसि होला । आज भोजपरु ी ससनेिा िें कुकुरित्त ु ा के िरे हीरो-सहरोइन आ सनदेशक पनपि बा लोग, जेकरा ना असभनय के ढंग बा आ ना सनदेशन के कसौटी पिा बा । पसहले के बसनस्पि आज के जवन सफल्ि बन रहल बा ऊ अथा के दृसष्ट से बन रहल बा । ‘चाहें जइसा हो बासकर पइसा हो’ वाला बाि साफ नजर आवि बा । आज के सफल्ि िें िसहला के स्थान परू ु ष के िनोरंजन िात्र भर खासिर सदहल जा रहल बा ।

ओह लोग के सफल्ि िें कहानी के हीसाब से कि आ अंग प्रदशा न खासिर जादा इस्ि​िाल कइल जा रहल बा । सनदेशक, प्रोड् यूसर के नजर िें जे जिना कि कपड़ा पसहन के अपना सजस्ि के निु ाइश करी आज ऊ ओिने बड़ स्टार कहाई । ई हिनी के संस्कृसि ि ना रहे! हिनी के संस्कृसि िें कवनो िसहला के नाभी िक देखाई ना देला, एह बाि के पसहले के सफल्ि िें बखुबी ख्याल राखल जाि रहे बासकर आज हालाि उल्टा हो गइल बा । आज स्त्री के शरीर के संवेदनशील स्थान िोड़ के बाकी सब देखावल फै शन आ िेंड हो गइल बा । एह से हिरा नजर िें भोजपरु ी सफल्ि के स्थान विा िान पररवेश िें भोजपरु ी संस्कृसि के बरबाद करे के सासजश के रूप िें देखाई दे रहल बा आ कुि हद िक ई बाि साूच भी बा । आज भोजपरु ी ससनेिा के लेखक आ सनदेशक ओइसन लोग सािने आ रहल बा जेकर भोजपरु ी भाषा, सासहत्य आउर संस्कृसि से दूर-दूर िक नािा ना बा । ऊ लोग भोजपरु ी के प्रयोग बस आपन जेब गरि करे खासिर कर रहल बा लोग । भोजपरु ी ससनेिा के नाि पर फूहर आ सहन्दी सफल्ि के रूपांिररि कहानी, द्वीअथी गीि आ संवाद आउर संस्कृसि के नंगा नाच करा रहल बा लोग । अब अगर भोजपरु ी ससनेिा के भसवपय के बाि कइल जाव ि विा िान सफल्ि के देख के ना लागि बा सक भसवपय िें दशा क ससनेिा हॉल िक जइहें, जवन अभी कुि जाि भी बारें । दशा क के ससनेिा से बनि दूरी ही कारण बा सक आज सफल्ि बनिे सहरोसहरोइन ससनेिा घर िें बेंचे आ लोग के देखे खासिर अपील करे जाि बा लोग । काहे सक सफल्ि के नाि भा कहानी अइसन हइये ना बा सक दशा क स्विुः ससनेिा हॉल िक पहुचाँ सके ।

अइसन नइखे सक भोजपरु ी िें अच्िा सफल्ि नइखे बनि! बन रहल बा । बासकर एह बजारू आ घसटया सफल्ि के बीच िें ऊ घीस पीट जा रहल बा । एकर उदाहरण ओि प्रकाश यादव सनदेसशि आ कल्लू असभसनि सफल्ि सजना िंसगया सजाइद हिार, रिन राहा सनदेसशि आ दीसलप सगरी असभसनि बी डी ओ साहेब, सनिीन चन्द्रा सनदेसशि देसवा, अजय कुिार रंजू सनदेसशि सारंगा सदावि ृ आसद बा । जवन अपना साफ सथु रा आ अश्लीलिा से कोसो दरू रहला के कारण आ कुि नािचीन कलाकार के एही सिय पर ररसलज भइल द्वीअथी गीि आ संवाद वाला सफल्ि के बीच दि िूड़ के रह गइल । विा िान िें

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बिनेिा भोजपरु ी ससनेिा के नािी सहरो आ गायक पवन ससंह कहलें ह सक ‘‘हि अब कवनो भी अइसन सफल्ि ना करब जवना िें द्वीअथी गीि भा संवाद होई ।‘‘ जवन एगो साथा क पहल बा भोजपरु ी ससनेिा के भसवपय खासिर । अब देखे वाला बाि ई बा सक पवन ससंह अपना कहनाि पर किना खड़ा उिरि बाड़ें । अगर एह िरे के साथा क पहल हर भोजपरु रया असभनेिा आ

सनदेशक द्वारा कइल जाय ि भोजपरु ी ससनेिा संस्कृसि आ सासहत्य के भसवपय उज्जवल बनल रही आ भोजपरु रया दशा क एक बार फे र ससनेिा हॉल िें स्विुः आवे लसगहें ।

भोजपरु ी िा​ाँव-ि​िाज के िरोहर ‘िंिा िइया तोहे बपयरी चढ़इबो’

जीर हुसैन के सलखल पटकथा पर कंु दन कुिार के सनदेशन िें बनल सफल्ि ‘गंगा िइया िोहे सपयरी चढ़इबो’ कई अथा िें भोजपरु ी ससनेिा के इसिहास िें िील क पत्थर हवे । नजीर हुसैन भोजपरु ी ससनेिा के ससरिौर हवें । भोजपरु ी सफल्ि बनवला के पीिे उनकर िकसद खाली िनोरंजन ना रहे। गा​ाँवसिाज से जड़ु ल कई गो सफल्ि उनकरा नावे बा जवना िें भोजपरु ी सिाज के सजयिार फजीहि और सिस्या के जड़ से उभारे क कोसशश कइल गइल बा । ‘गंगा िइया िोहे सपयरी चढ़इवो’ भी एगो अइसने सफल्ि हवे जेकरा िें भोजपरु ी सिाज के वास्िसवक यथाथा जीवंि​िा के साथ पदा​ा पर देखावल गइल बा । ई सफल्ि भोजपरु ी क्षेत्र के गा​ाँव-सिाज, पररवार अउर जनजीवन के सजयि-जागि पोथी हवे। सफल्ि िें भोजपरु ी वािावरण अउर गंवई ित्व के बहुिे बारीकी से सपरोवल गइल बा जे सफल्ि के अउर जीवंि बनावे ला । शैलेन्द्र के गीि ‘हे गंगा िइया िोह सपयरी चढ़इबो, सइयां से कर द सिलनवा हे राि’ आज िक भोजपरु ी ग्रािीण पररवेश अउर देश दसु नया िें बसल संगीि प्रेसियन के बीच लोकापवाद के िरह िशहूर हवे । सफल्ि एगो जिाना से चलल आ रहल जिींदार वगा के असि रुसढ़वासदिा अउर िनिाना प्रवसृ त्त पर कें सद्रि बाटे ।

‘गंगा िइया िोहे सपयरी चढ़इवो’ सविनाथ शाहाबादी द्वारा सनसिा ि उ कृसि हवे जवन भोजपरु ी ससनेिा के नींव रखलस । सफल्ि िें गरीब सकसान के भूसिका िें लखन नािक चररत्र के देखल एगो करेजा के झकझोर देवे वाला अनभु व हवे । जेकर िाप आप जीवन भर अपना सदल-सदिाग से नाहीं सिटा ससकलें। सफल्ि के पटकथा अउर पष्ठृ भूसि पूरी िरह ग्रािीण संस्कृसि, सिाज, परंपरा, ऊाँच-नीच पर आर्ाररि बा । खासकर ग्रािीण पररवेश िें व्याप्त सूदखोरी अउर जिींदारी प्रथा क बारीकी से सचत्रण कइल गइल बा । ित्कालीन सिाज िें एगो गंभीर सिस्या के रूप िें व्याप्त दहेज अउर नारी शोषण के भी कहानी क सहस्सा बनावल गइल बा । प्रेि अउर पररवार क एगो बड़हन िूल्य बा । उत्तर प्रदेश अउर सबहार िें गंगा के अपार श्रिा और आदर के भावना से देखल जाला । एही चलिे आि जनिानस के भावना के सर्यान िें रख के एकर सचत्रण सफल्ि िें खूब कइल गइल बा । आज भी गा​ाँव िें गंगा के सबसे पसवत्र िानल जाला । सफल्ि िें बेचन नािक चररत्र गा​ाँव क एक बड़हन जिींदार हवे जवन सािंिी सवचारर्ारा के प्रिीक बाड़े । गा​ाँव क ही एगो सकसान लखन जेके दारू पीये के आदि बाटे । उ दारू पीये खासिर आपन खेि भी बेच देिा । ओकर पत्नी जब ओके िना करेले ि ओकरा बार-बार सझड़क देला । बेचन के एगो सबसटया

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बिनेिा

सासवत्री बाड़ी जे सफल्ि के नासयका हइन। बहुिे चंचल अउर गा​ाँव के एगो शरीफ लड़की । जिींदार बेचन के लड़का श्याि जे सफल्ि के नायक हवे, एि.ए. के पढ़ाई पास कर गा​ाँव आ जाला । गा​ाँव आके ओकरा लखन के बेटी सासवत्री से प्रेि हो जाि बा । श्याि एगो र्नी पररवार के लड़का बाड़े जबसक सासवत्री एगो किजोर आउर ओही गा​ाँव के पड़ोसी पररवार क बेटी बाड़ी । दूनों पररवार जासि से एक बा लेसकन जासि व्यवस्था िें ऊाँच और नींच के फका उहा​ाँ पइसा से भी बा । दूनों के प्रेि प्रसंग के चचा​ा र्ीरे-र्ीरे गा​ाँव िें फै इले लागल । श्याि के सपिा दनू ों के बीच बढ़ि प्रेि के खबर सनु के श्याि से पढ़ाई के बाद शहर जाकर नौकरी के बाि कर रहल बाड़े । श्याि नौकरी करे के िना करिा । एही बीच श्याि के शादी ठीक हो जाि बा लेसकन उ अपना सपिा बेचन से दहेज लेके शादी करे खासिर िाना कर देिा । ित्कालीन सिाज पर नज़ीर साहब सफल्ि के नायक श्याि के िाध्यि से दहेज के सवकराल रूप पर करारा प्रहार कइले बाड़े । इहा​ाँ दहेज के पीिे स्त्री के लाचारी अउर िजबूरी, सिाज िें एगो जवान बेटी के बाप भइला के ददा अउर सािंिी संस्कार से सवद्रोह के ि​िा स्पशी अंकन करे िें सनदेशक

कंु दन कुिार सफल बाड़े । नायक अपना सपिा से कहि बा सक जेवना जिींदार के पास एिना खेि होखे ओके गा​ाँव के सवकास िें हाथ बटवला के बजाय सूदखोरी करे के पड़े इ कहीं से भी जायज नईखे । जे िरह से बेरोजगारी क आलि देश िें बढ़ रहल बा ओकर सचंिा नायक के िाध्यि से सफल्ि िें कइल गइल बा । नायक कहि बा सक एगो पढ़ल –सलखल आदिी हर काि ठीक ढंग से करेला चाहे उ खेिी होखे या कुि अउर । इहा​ाँ नजीर साहब सशक्षा के िहत्व पर भी जोर देि बाड़ें । ओही दौरान गा​ाँव के स्कूल िें एगो िीसटंग होि बा लड़कीन के सशक्षा के लेके, लेसकन आर्ा गा​ाँव ई कहके एसे आपन सपण्ड िुड़ावल चाहि बा सक लड़कीन के पढ़ाके का फायदा होखी जब ऊ सबयह के दूसरे के घर चल जइहें । ई नजीर साहब के अपना सिाज िें विा िान व्यवस्था के लेके बड़हन सचंिा बाटे जे सफल्ि िें बहुि जोरदार ढंग से उठावल गइल बा। सफल्ि के संवाद ग्रािीण पररवेश अउर सिाज के अगआ ु ई कर रहल बा । गा​ाँव- सिाज िें बोले जाए वाला भाषा क स्थान अउर काल पररसस्थसि के आर्ार पर प्रयोग कइल गइल बा । सफल्ि के संवाद खासिर िख्ु य रूप से भोजपरु ी क प्रयोग कइल गइल बा । लोकोसि अउर िहु ावरा के प्रयोग भी खूबे भइल बा । जइसे- जब लखन के पत्नी अपनी जवान बेटी के शादी क सचंिा जासहर करि बाड़ी िब लखन कहि बाड़े ‘हिार बेटी जेकरा घरे जाई गेस बर जाई’। ई एगो गवई ं कहावि हवे जेकर ि​िलब होला सक लड़की सब गनु के आगर, संपन्न और सशु ील सबया, जेकरा भी घरे ब्याह के जाई पूरा घरवालन के सख ु ी रखी । जबाब िें लखन के पत्नी कहि बासड़न सक ‘घरे ि सिट्टी क िेल नइखे दूसरा घरे गेस बार िाड़ ।’ ई बहुिे परु ान भोजपरु ी कहावि हवे जेकर ि​िलब होला सक जेकरे पास अपने घर िें दीपक जलावे ि​िलब आपन रोजी-रोटी चलावे के अवकाि न होखे उ दूसरा के रोजी-रोटी कइसे चलाई । एही िरह के एगो अउर संवाद जब लखन अपना पत्नी से कहिा बा सक ‘सचंिा न कर हिरा सीिा जइसन बेटी के कउनो रािचंद्र सिसलए जाई ।’ ई भोजपरु ी गा​ाँव-सिाज के एगो सच्चाई हवे । आज भी ओह सिाज िें दल ु हा-दल ु सहन के राि-सीिा के नज़र से देखल जाला । लेसकन लखन के पत्नी ईहा​ाँ पसहले और विा िान सिाज के िूल्यबोर् पर व्यंग करि बाड़ी सक ‘उ भूल िें जन रइहा, रािचंद्र अइलन, र्नषु िोड़लन, सीिा जी के ले गइलन । आजकल बेटी के सबयाह िें र्नषु ना टूटे िाई-बाप के किर टूटेला ।’ एह संवाद के िाध्यि से सफल्ि आजादी के बाद सिाज िें बढ़ि पूंजीवादी वचा स्व अउर रूसढ़वासदिा के िरफ इशारा कर रहल बा अउर लगािार बढ़ि अथा के लोभ िें सदनों-

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बिनेिा सदन टूटि िानवीय ररश्िा के िरफ संकेि कर रहल बा । के लेके एगो जागरूकिा ओह सिय िक आवे लागल रहे । सफल्ि िें खेि-खसलहान, हल, बैल, खान-पान सभे सनसि​ि रूप से ग्रािीण पष्ठृ भूसि पर आर्ाररि इ अइसन सफल्ि जीयिार पोथी के िरह बाटे जे भोजपरु ी सिाज अउर जन- हवे जे बदलाव के सदशा के ओर बढ़ि सदखाई देहलस । जीवन के सचसत्रि करि बा । वािावरण के दृसष्ट से ई सफल्ि रूसढ़वादी संस्कार से ग्रससि हिरा सिाज िें जहा​ाँ कउनों ू रे परु​ु ष से प्यार अउर सफर दस ू र शादी कइल भोजपरु ी सिाज के सच्चाई हिरा सािने परोसले बा । एगो सवर्वा के दस ु द सार्ारन गहृ स्थ के घर क सेट एिनी खूबसूरिी से िैयार कइल एगो पाप िानल जाि रहे। आवे वाले सिय िें एक सख सािासजक बदलाव के िरफ इ सफल्ि इशारा करि नजर गइल बा सक उ सफल्ि के सेट नाही सा​ाँचों कउनों गहृ स्थ के आइल। घर होखे। आजकल बे ट ी के त्र ब याह में एहर अपना रोज-रोज के जीवन से िंग सफल्ि िें एगो नया िोड़ िब आ जाि बा जब गा​ाँव के सािंिी सवचारर्ारा के लोग पंचायि िें ई धनुि ना टूटे माई-बाप के आके ि​िाि िरह के लगािार लाग रहल फिा​ा न सनु ावि बाड़ें सक लखन के दो सदन के कमर टूटेला ।’ एह संवाद के लांक्षन के चलिे सासवत्री गंगा िें कूद के भीिर अपना बेटी के सबयाह करे के होई । िब माध्यम से त्रिल्म आजादी आत्िहत्या करे क कोसशश कइली लेसकन बाप अपना आपके कहीं भी दहेज देवे िें सक्षि के बाद समाज में बढ़ि कउनों िरह से उ बच गइली अउर जब उनका होश आइल ि उ ओह सिय एगो नईखे पावि अउर िजबूर होके उ गा​ाँव के एगो प ज ीवादी वचच स् व अउर ूं िवायफ के कोठा पर रहली । हालाि के 65साल के िंशु ी िनु ेसर से सासवत्री के सबयाह कर देिा । इहा​ाँ सासवत्री सब चपु -चाप सह रहल रूत्रढ़वात्रदिा के िरि इशारा िारल बेचारी आसखर उहा​ाँ से जाए ि कहवा​ाँ ु र करे लगल। सबया अउर ओकर िाई भी थोड़ा-बहुि सवरोर् के कर रहल बा अउर लगािार । ओइजे नाच-गा के अपन गज बाद अपना हाल पर रो के सिझौिा कर लेि बढ़ि अथच के लोभ में त्रदनों- एक सदन जब ओकर पसवत्रिा अउर असस्ि​िा पर आाँच आइल िब उ एकरे सबया । ई ऊ दौर रहे जब भारिीय सिाज िें त्र द न ट ट ि मानवीय ररश्िा के ू साथ सिझौिा नाहीं कइलस अउर परु​ु ष के राज रहे । स्त्री अगर बोलि भी रहे ि चाहरसदवारी के भीिर। ओकर कुल अपेक्षा ओही िरि संकेि कर रहल बा । खुलकर एकर सवरोर् कइलस। देश के आजाद भइले अभी पूरा दो दशक भी ना चाहरसदवारी के भीिर िक दब के रह जाि रहे, ाँ सवि ओके कोई सनु े वाला नाहीं रहे । लखन सासवत्री के बहुि प्यार होखल रहे अउर भारिीय ग्रािीण संस्कृसि के अनगु ूज करि रहे लेसकन अपना िजबूरी पे ओकर कउनों बस ना रहे । पटल पर िा गइल सक भारिीय औरि आपन सब कुि गवां शादी के बाद जइसे ही सासवत्री आपन ससरु ाल जाि सबया, सके लीं पर अपना आबरू पर भारी संकट के सिय भी आाँच नाहीं आवे देलीं । दभु ा​ा ग्य से अचानक िंशु ी के ित्ृ यु हो जाि बा । ओहर रोजगार के िलाश िें श्याि भी शहर आ जाि बा । सासवत्री के ि​िाि िरह के कष्ट ओकरा ससरु ा िें सदहल जा रहल बा । घर के सारा काि कइला के बाद भी प्यार के दूगो हालि के िारल बनारस के संकरीं गली िें अपना बरु ा सिय से ु साइल िहुाँ अपना पूरा बेचैनी के साथ िीठ बोल के हुं ना बोले वाला रहे । इ भी ओह सिय के सिाज जूझि लखन के झल ु आ खड़ा होला । अंि िें दूनों के के एगो सच्चाई रहे सक सवर्वा शादी नाहीं करि रहलीन स हिरा नजर के सािने अजओ ु । ओके कउनों भी परु​ु ष के साथ बइठल, हाँसल, बाि कइल सबयाह हो जाि बा अउर दूनों पररवार आपस िे सिल-जल बरु ा सिझल जाि रहे । एक हीन भावना के सशकार ऊ सब जािा। सफल्ि आसखर िें ई संदशे देि बा सक सिय, पररस्थसि दया के पात्र बन जाि रहलीं। लेसकन सिाज िें र्ीरे-र्ीरे एकरा के साथ सब कुि बदली अउर सिाज परु ान परंपरा, जड़, और

धीरें द्र कुमार राय गाजीपुर के रहे वािा धीरें र राय िहात्िा गा​ाँधी अंतरराष्ट्रीय हहंदी त्रवश्वत्रवद्यािय िें िीत्रडया ररसचयर बानी। इहा​ाँ के एिकि​ि भोजपुरी त्रसनेिा पऽ भइि बा। भोजपुररया सात्रहत्य-त्रसनेिा पऽ इहा​ाँ के त्रवशेष अत्रधकार से त्रिखेनी। इहा​ाँ के उत्कृ ष्ठ शोध कायय खात्रत यूजीसी के प्रत्रतत्रष्ठत एसआएि शोधवृत्रत अबत्रहन हािे िें त्रि​ि​ि बा। देश-त्रवदेश के प्रत्रतत्रष्ठत पि पत्रिकन आ शोध पत्रिकन िें इहा​ाँ के आिेख/ साक्षात्कार/ शोध आिेख िगातार प्रकात्रशत हो रहि बा। इहा​ाँ के अबत्रहन भोजपुरी िोकसंस्कृ त्रत पऽ एगो ककताब प्रकात्रशत होखे वािा बा आ भोजपुरी पिकाररता पऽ कई गो ककताब प्रेस िें बािी स। इहा​ाँ के िहुआ िें भी काि कइिे बानी। © आखर ● मई, 2015 ● 91


सवचार से बाहर सनकलके बदलि िूल्य के िरजीह देई। कउनों भी रूसढ़ आ परंपरा स्थायी सवरासि ना होखे बसल्क ई एगो लगािार बदले वाली प्रसक्रया हवे । बेचन कहिा सक दोष आज एह बचवन के नइखे बसल्क हिनी के बा जे हि लोग बरु ा रीसिररवाज बनाके अपना आप के अबसहनों ओही िें लझरु इलें बालीं जा । ई संदशे सफल्ि के अउर िजबूिी देि बा। भारि गांव के देश ह । आदिी रोजी-रोटी के िलाश िें शहर आ भी गइल ि भी ओकरा सहयरा िें गा​ाँव पूरा असस्ि​िा के साथ जी रहल बा । ग्रािीण पररवेश के एह सफल्ि के गीि के बोल लोकर्नु अउर सिकालीन लोक जीवन के झांकी देखा रहल बा। सफल्ि िे िो. रफी के आवाज िें गावल सवदायी गीि‘सोनवा के सपंजरा िें बंद भइले हाय राि, सचरई के सजयवा उदास । टूट गइले डसलया, सि​िर गइले खोिवा, िूट गइल नील रे अकाश ।’अउर लिा िंगेशकर के आवाज िें ‘काहें बसरु रया बजवल, रे सदु सबसरवल, गइल सख ु -चैन हिार’ के िाध्यि से ग्रािीण पररवेश िें सबखरल लोकगीि के जिीनी संदु रिा से पररचय और सािना होि बा । एही िरह एगो नाचनौटंकी जेकरा िें बाल-सववाह अउर ग्रािीण परंपरा के गीिन िें सनसहि लोकित्व के संजोवल गईल बा। जेके बहुिे खूबसूरि अउर बसढ़या ढंग से हेलेन िसहला के दख ु -पीड़ा के अपना नाचनौटंकी के िाध्यि से बखूबी प्रस्िुि कइले बाड़ी । जइसे ‘हि ि खेलि रहली अम्िजी के गोसदयां, कर गइले कबही सबयाह रे सबदेससया । िवे िहीना कह के गइले कलकिवा, बीि गइले बारहबरीस रे सबदेससया ।।

सफल्ि के गीि-संगीि भी कथा के अनक ु ू ल बाटे । गाना भरिी के न होके कहानी के प्रवाह के गसि देवे वाला बाटे जे पूरी िरह कथा के वाचन कर रहल बा । सफल्ि के कुल गीि अपना सिय िें बहुि चसचा ि भइल रहे । संगीि िें हल्ला-गल्ु ला के ना बलुक लोक संगीि के जगह सदहल गइल बा । सफल्ि ‘गंगा िइया.....के सदंु र संगीि प्रस्िसु ि के दशा क खूब पसंद कइलें। ‘गंगा िइया िोहे सपयरी चढ़इवो’ सािासजक कुरीसि अउर रूसढ़वादी व्यवस्था पर कटार चलावि एगो सीर्ी-सार्ी प्रेि कथा अउर सािासजक कुरीसि पर आर्ाररि सफल्ि हवे जे अपने करूणा भरल अंि से सबकर सदल िू लेले । सािासजक रूसढ़ के चलिे टूटि िानवीय ररश्िा अउर गीरि िानवीय िूल्य अउर सािासजक िाना-बाना के वजह से दूर होि दू गो सजंदगी क कहानी के एह सफल्ि िें बहुि ही प्रभावशाली ढंग से देखावल गइल बा । एिें भव्य सेट नइखे । िारर्ाड़ के कोई भयंकर सीन नइखे । कउनों र्ासिा क कथा भी नइखे । कउनों भी िरह के नाटकीय संवाद नइखे । िसनकों अश्लीलिा नइखे । ई कहानी बहुि घरेलूपन से आगे बढ़ेले अउर सनदेशकीय कौशल से दशा क िंत्रिग्ु र् होके कहानी के प्रवाह िें बहि जालें। ई स्वाथा के दसु नया से दूर ले जाए वाली कहानी पर आर्ाररि उ सफल्ि बा जहा​ाँ गा​ाँव , िालाब ,रास्िा, पगडंडी अउर बैलगाड़ी बाटे । कुल सिलाके भोजपरु ी सिाज अउर जनजीवन के सचत्रण करि ई एगो बेहिरीन सफल्ि बा।

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पाठक कोना

राउर बात गजब!!!! बहुिे नीिन भाई लोग!!!!जबरदस्ि!!!! बहुिबहुि बर्ाई स उसे आखर टीि के !! जगु -जगु जीअ लोग भाई! आज हिार बेटी के JEE Main के ईसन्िहान रहे आ हि गेट के बहरी ब ईठ के एकसरु रऐ पढनी हिार सिय कब बीि ग ईल पिे ना चलल। बैिी खत्ि होखे के पसहलही बर्ाई देिानी! िार िहे सदल शसु क्रया स्वीकार करीं सभे! जय हो भाई!  चन्द्र भूषण पाण्डेय खुबसूरि प्रयास खासिर बहुि बहुि बर्ाई आ शभु कािना 

सहच्चदानंद ि​िाश

भोजपरु ी भाषा के िसव देस िें भोजपरु ी ससनेिा से बनावल गईल बा, से ईहे देखावल जाई. बाकी भोजपरु ी के नांव पर चल रहल संसथानन के के हू जनबो ना करे । “आखर” जईसन पसत्रका आ अईसने कुिु आउर काि आगे बढावे के पड़ी । 

अरहिंद दुबे

भोजपरु ी भाषा के आगे बढ़ावे खासिर सनक प्रयास बा। आखर के पूरा टीि अउर रचनाकार लोगन के ढेर सारा बर्ाई। 

िें ए टाइि िीन गो लईकी पॉसलटेसक्नक करि बाड़ी स और एगो लईकी पॉसलटेसक्नक क चक ु ल बा कुि िैयारी करि बाड़ी स । हिरे िेहरारू एकदि से अनपढ़ी ह बासक लइकन के पढ़वला खासिर उ बहुि कुि कुबा​ा न क देले बा । ओकर निीजा इ बा की हिार लईकी आज b.tech क रहल बा । बीिारी की वजह से हि पैर से भी लाचार हो गईल रहली बासक हिार िेहरारू अनपढ़ होखला की बावजूद हिार सेवा भी कइलस, खेिी भी सम्हरलस और लइकनो के कवनो काि न करे सदहलस की िोहन लोग पढ़ाई करअ जा । आज ओकर निीजा इ बा सक एगो अनपढ़ िेहरारू का एगो लइका इंजीसनयर बा एगो लइकी इंजीसनयररंग करि बा और एगो लइका इंजीसनयररंग क िैयारी करि बा । आज भी जब रोड पर लईसकन के स्कूल से देखेलीं ि िसबयि खुश हो जाले की लइकी भी लइकन पीिे नईखीं स । एस चौिान

आखर के दू अंक पढ़नी । सब एक से एक । भोजपरु ी के नया रूप देखे के सिलल । कोसशश करीं की सप्रंट प्रसि अिरीका िें भी उपलब्र् होखे । हि हर संभव िदद ला िइयार बानी । 

किलेि पाण्डेय

आखर क िाचा अंक पढ़ि रहली । िनोरिा जी क एगो लेख पढ़ली िेहरारुन खासिर गा​ाँव । बहुि अच्िा लागल िगर एिा उ बहुि साल पसहले क सचत्रण कईले बानी । बहुि जगह पर शायद आज भी िेहरारून क सस्थसि ठीक नईखे । िगर आज सस्थसि बहुि बदल गईल बा । करीब 5 साल से हिहु ाँ गाँउवे िें रहि बानी बासक ई देखि बानी की आजकल आदिी लइकन के पढ़वला पर जोर दे चाहे न दे बासक लइकन के पढ़वला क भरपूर कोसशश करि बा । हिरे गांव © आखर ● मई, 2015 ● 93

अहि​ि कुिार पाण्डेय , िाहिंग न डी.हस ,अिरीका

भोजपरु ी सासहत्य के संभारे खािी आ नया ऊंचाई देवे खािी राउर सहयोग के जरूरि बा । भोजपरु ी िें सलखीं आ "आखर" के साथे भोजपरु ी सासहत्य के बढ़ावे िें सहयोग करीं । ~आखर पररिार


लेखक कोना

वनहोरा

य भोजपरु ी ! भाषा आ संस्कार के बीया िाई के गभा िें ही रोपा जाला । बाकी लोग अब एह भाषा आ संस्कार से आवेवाला पीढ़ी के दूर करी रहल बा । कारण सक हिनी के भाषा के पहचान कुि बाउर ढंग से परोसल जा रहल बा । अगर इहे सस्थसि रही ि आवेवाला सिय िें भोजपरु ी के सबसलि जाये िें कवनों दू ि​ि नईखे । भाषा के बचावे के बा ि सासहत्य के सि​ि ृ करे के पड़ी । भोजपरु ी सासहत्य खासि एगो डेग हिनी के बढ़ल, अब एगो डेग रउआ भी हिनी के साथे बढ़ायीं इहे सनहोरा बा । आखर के बढ़ि डेग िें राउर दू कदि हिनी के एह उिजोग िें ज़ोर भरी । भोजपरु ी भाषा के नाि पे जवन कसविा, गीि, कहानी, व्यंग्य, इसिहास, सवज्ञान जईसन सवषय पे भोजपरु ी िें सलखीं । आखर नवका सासहत्यकार लोगन के एक िंच दे रहल बा । आपन रचना के हिनी िक पहुचाँ ायीं, राउर बाि सनु े आ पढ़े खासिर भोजपरु रया सिाज आाँख सबिवले बा । असगला अंक (जून -2015 ) खासि चयसनि सवषय "गाव के िद त स्वरूप , िद त पयाभवर् आ पररवेश , िोजपरु रया क्षेत्र में पयभटा, भियाह शादी आ िोजपुररया िंस्कृभत " जईिा भवषय प िा एह भवषया के कें द्र मे राभख के भ ख रना​ा ( ेख , कहा​ाी , व्यंग्य , कभवता , गीत आभद ) के िेजी राउर बाि सनु े आ पढ़े खासिर भोजपरु रया सिाज आाँख

सबिवले बा ।

रचना भेजे के कुि जरुरी सनयि 

आपन िौसलक रचना यसु नकोड फॉन्ट/कृसिदेव फॉन्ट िें टाइप करके भेजीं ।

रचना भेजे से पसहले कि से कि एक बार अपने से प्रूफ रीसडंग जरुर कर लीं । कौिा, हलंि, पूणासवराि पे सवशेष ध्यान दीं । रचना िें डॉट के जगहा ससफा पूणासवराि राखीं ।

ध्यान रहे राउर रचना िें कवनो असंसदीय आ अश्लील भाषा भा उदाहरण ना होखे ।

राउर रचना के स्वीकृसि के सूचना िेल भा िैसेज से सदयाई ।

रचना के साथे आपन पासपोटा साइज के फोटो आ आपन पररचय (नाि, पिा, काया आ आपन प्रकासशि सकिाबन के बारे िें यसद होखे ि) जरुर भेजीं ।

रचना भेजे के पिा बाaakharbhojpuri@gmail.com

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