Jun15

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2015 जन ू , अंक 5

भोजपुरी

एगो डेग भोजपुरी साहित्य खाहि

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© आखर ● जन ू , 2015 ● 1

@aakharbhojpuri


प्रकािन / संपादन िंडल : संजय ससंह , ससवान देवेंद्र नाथ सिवारी , वर्ा​ा शसश रंजन सिश्र , नई सदल्ली नबीन कु िार , दबु ई

िकनीकी -एहडह ंग, कम्पोहजंग असिनी रूद्र , न्यू यॉका असनिेष कु िार विा​ा , अबू र्ाबी छाया हचत्र सियोग स्वयम्बरा बक्सी , पी. राज ससंह, चेिन कु िार

आखर पिा ग्राि पोस्ट- पंजवार (पोखरी) ससवान , सबहार 841509 क़ानूनी सलािकार लसलिेिर नाथ सिवारी , पटना

आखर ISSN: 2395 –7255

वर्ष: 2015 अंक 5 जून । ई - पत्रिका सब पद अिैिहनक बा ।

सरू ीनाम

तइयारी

परधाननन भोजपरु ी

कबीर

चान ई. एस. चन् ु नी

अनूप श्रीवास्तव

सरोज ससंह

संतोष पटेल

बबयाहकटवा कक कलाकार

काउ फादर आ लोकगीत समता सहाय

तंग इनायतपरु ी

भोजपरु ी ससनेमा: अब गा​ाँव आ माटी के महक बा नदारद

जज के ऊपर के बा ? गौरव ससंह

धीरेंद्र राय

पराि​िश िंडल प्रभाष सिश्र , नाससक अिुल कु िार राय , बनारस र्नंजय सिवारी , िुंबई चंदन ससंह , पटना

प्रकाहि​ि रचना लेखक के आपन ि आ ई जरुरी नइखे की संपादक के हिचार लेखक के हिचार से हिले । लेख पे हि​िाद के हजिेदारी लेखक के बा । सुर्ीर पाण्डेय , दबु ई पंसडि राजीव , फ़रीदाबाद असजि सिवारी , सदल्ली बृज सकशोर सिवारी , सोनभद्र

संपका : आपन िौसलक रचना , लेख ,कसविा , फोटो , सवचार आखर के ईिेल-आईडी aakharbhojpuri@gmail.com पे भेज सके नीं । सुसवर्ा खासिर रचना सहंदी यूसनकोड िें ही भेजीं । िुख्य पृष्ठ छाया/आिरण : असनिेष कु िार विा​ा , असिनी रूद्र रेखा हचत्र : शसश रंजन सिश्र www.aakhar.com | facebook/Aakhar | Twitter: @aakharbhojpuri © आखर ● जन ू , 2015 ● 2


आखर के फुलवारी आपन बाि : बिकूचन : गीि : कबीरदास : कबीर के भाषा: सूरीनाि िें हिंदुस्िानी प्रिासन के किानी : गा​ाँि : करे अगिानी : भोजपुरी लोकगीि : गा​ाँि आ लोक जीिन : गोकुल जइसन गा​ाँि : दू गो कहि​िा (ि​िार गा​ाँि, बे ी) : के िना बदल गइल बा गा​ाँि : कहि​िा (िोर गा​ाँि रे, गउंिा के िा ी) : बाउजी के डायरी (पहिला पन्ना) : एि​िाि (लघुकथा) : नसीब : काऊ फादर (लघुकथा) आ बे ी के हबयाि गीि : बंगाल सूबा िें िोरा के व्यापार (भाग-2) : भोजपुरी संस्कार गीिन िें नीहि िल्ू य : बे ी हबयाि: िइयारी : परधाहनन : ग्लोबलाजेिन, ग्लोबल िाहि​िंग ग्लोबल हिलेज आ ि​िाभारि : हदल जब बच्चा था जी (भाग-5) : भोजपुररया इलाका िें िादी -हबयाि :

आखर जिाि सौरभ पाण्डेय जौिर िाहफयाबादी देिेंद्र नाथ हि​िारी संिोष प ेल चान ई॰ एस॰ चुन्नी गोबधशन भोजपुरी फिेिचंद बेचैन रहिकांि हसंि कुिारी हिनीिा ’रंजन’ चंद्रभूषण पाण्डेय नुरैन अंसारी संिोष कुिार िहि अहनिेष कुिार ि​िाश गणेि जी बागी अहभषेक भोजपरु रया सि​िा सिाय पी॰ राज हसंि देिेंद्र नाथ हि​िारी अनूप श्रीिास्ि​ि सरोज हसंि — हनराला बज ृ हकिोर हि​िारी डा॰ रीिा हसन्िा

4 6 9 10 11 15 18 19 20 23 24 25 26 27 29 30 32 34 37 40 42 — 46 48 49

पारंपररक गीिन िें श्लीलिा आ अश्लीलिा : एगो गीि, एगो कहि​िा : हबयािक िा की कलाकार : भोजपुरी दोिा : दू गो लघुकथा : गईु या​ाँ : गरीबी के फसरी : जज के ऊपर के िु बा का ? : छनुकी : अगिु ा : भोर : यात्राि​िृ ांि : सरकंु डी दराश (पहिला भाग ) : सपना: िकीकि से अंजान (भाग-1) : भोजपुरी िें फइलल अश्लीलिा के हखलाफ खड़ा – अम्बा : हसनेिा हबना किन अकाज िो जाई : भोजपरु ी हसनेिा: अब गा​ाँि आ िा ीके ि​िक बा नदारद : हसयासि के आपन िाकि देखािे के पड़ी : सािाहजक चररत्र (लघुकथा) : पयश न : गप्तु धाि रोि​िास : दू ठो कहि​िा : भोजपुररया दोिा : राउर बाि : हनिोरा :

उदय नारायण हसंि गोरख प्रसाद िस्िाना िंग इनायिपुरी अिोक कुिार हि​िारी के ि​ि िोिन पाण्डेय डा॰ सोनी पाण्डेय प्रभाष हिश्र गौरि हसंि अरहिन्द कुिार पाठक धनंजय हि​िारी ज्योत्सना प्रसाद रौिन कुिार जलज कुिार अनुपि — अहिनाि राि हनहिन चन्द्रा — धीरेन्द्र राय हनरंजन कुिार हिश्र हिज भूषण चौबे आदिश हि​िारी श्वेिाभ रंजन आचायश संजीि ि​िाश आखर के ओर से आखर के ओर से

50 52 53 55 56 57 58 61 63 64 67 70 74 — 77 78 — 80 84 85 86 87 88 90 91


आखर चौपाल

आपन बात

िाज के प्रारसम्भक इकाई पररवार हs । “सबयाह” ए इकाई के बीज हs । एसह बीज से जनिेला पररवार । पररवार से सिाज, आ सिाज से वहृ ि सिाज । भोजपरु रया सिाज सबयाह के एगो उत्सव के रुप िें िनावेला । एह उत्सव िें नहा के भोजपरु रया संस्कृसि सबहँस उठेले । सांस्कृसिक ित्वन के िहाकुम्भ लागेला लगन िें । एह िहाकुम्भ िें गोिा लगाके आदिी के साथे साथे पशु पक्षी भी िृप्त हो जाला । सािासजक एकिा के जवन सवहंगि दृश्य भोजपरु रया सबयाह िें लउके ला, उ अद्भुि बाटे । कुछ संस्कारन िें भाई के जरुरि बाटे, ि कुछ िें भौजाई के । िािा के सबना ि सबयाहे ना हो सके । बेटी के सबयाह के पसहले टोला-िोहल्ला, गाँव-जवार, सहिई-निई के लोग खायेक लेके आवेला । ई खाली खायेक ना होला बलुक जकड़ल सम्बंर्न खासिर संजीवनी होला । नईहर से नेविा खासिर सनकलल बहँगी िें लचकि छाँटलफटकल अनाज के दाना भी अपना भाग्य पर इिराि कँ हार से कह उठेला-

र्ासिा क जकड़न िें उलझल रहे । एगो र्िा नया नया उपटल रहे । अपना सववेक आ उपलब्र् अवसर के लाभ उठाके सत्ता प्राप्त कइलस । दस ु रका र्िा सनािन काल से चलल आवि रहे। आप-अपनी के श्रेष्ठ देखावे के कािना र्िा के सवकृसि के राह खोल सदहलस । संि कबीरदास जी सिाज के ध्यान एह सवकृसि का ओर आकृष्ट कइनी । कठिल्ु लापन आ र्ासिा क रुसढ़वासदिा पर जि के हल्ला बोलनी । उँहा के साफ कहनी सक सत्य के िलाश खासिर ज्ञान िागा पर चले के पड़ी । ई राह दष्ु कर जरुर बा बासकर गरु​ु के सनदेशन िें एही राह पर चलके सत्य से साक्षात्कार कइल जा सकिा ।ई बाि खाली उँहा के कहनी ना बलुक अपना सजनगी िें सजयनी । जवन आदिी अपना बारे िें दो टूक कहिा सक कलि आ ससयाही हाथ से नइखे छुआईल, ओकरा सचंिन के स्िर कौिुहल के सवषय बा । आज संि कबीर पर दसु नया भर के पचासन सविसवद्यालयन िें शोर् काया हो रहल बा । ज्ञान के उत्कषा आि जन के भाषा िें जब आकार लेला ि के िना सहजिा से गूढ़ से गूढ़ बाि कह जाला एकर एगो उदाहरण देखीं, जवना िें भीिर के अंिः के जगावि कबीरदास जी सबना लाग लपेट के इशारा करिानी-

िनी जल्दी चलु रे कँ हरा, जल्दी चलु

जागु जागु रे ननसदया िहसलया आइल चोर ।

िाकि होइहें सदसदया बहरा, जल्दी चलु ।

5 जून के दसु नया भर िें पया​ा वरण सदवस िनावल जाला । पया​ा वरण संिुलन के अवर्ारणा सवकास के िहत्वाकांक्षा के नीचे दबा के क्रंदन कर रहल बा । प्रकृसि के बेपानी करे के कोसशश जीव जगि पर भारी पड़ रहल बा । सीसि​ि होि संसार्न आ आदिी के बढ़ि लालसा के बीच के सवरोर्ाभास सािने आ रहल बा । कबो बाढ़ ि कबो सूखा । देश के आर्ा भाग िें असिवसृ ष्ट ि आर्ा िें अनावसृ ष्ट । कहीं खुबसूरि पहाड़न के रौद्र रुप, ि कहीं बफाबारी के खौफ । एक सदन के बहस आ आयोजन से कुछ बदले वाला नइखे । जब ले जन जन के िानस पटल पर ई चेिना अंसकि ना होई, िब ले प्रकृसि के बेिहाशा दोहन होि रही । त्वररि लाभ के आकषा ण िें बन्हाईल िानव अपना भावी पीढ़ी के भक्सी झोंके खासिर पटकथा सलखि रही ।

सबयाह रोपािे गीि गवनई शरु​ु हो जाला । संझा-परासि, िइया के गीि, गाई के गोबरे से आगे बढ़ि, बाि हास-पररहास िक जाला । हास-पररहास अपना चरि पर पहचँ के भले “गारी” बन जाव, बासकर ई गारी सनु े खासिर सबके िन लालासयि रहेला । जे गावेला उहो पीछे ना हटे आ जेकरा खासिर गवाला उ छाव चाहे जेिना क लेव, िने िने गच्च रहेला । बररसन के िन के िईल एह उत्सव के प्रवाह िें बह जाला । कन्यादान के बेरा बेटी के “बाबा” के साथे हीि-पररि, आपन-बैरी सब एक हो जाला । चारु सदशा के लोररआइल आँख आ छटपटाि करेजा के साथे प्रकृसि भी बेटी के बाबा के साथे रो पड़ेलेर्ीरे बहे गंगा िर्रु े बहे जिनु ा, सरजू बहेला िँझर्ार िाही पइसी बाबा हो थर थर काँपेलें, कइसे करब कन्यादान । 2जून के कबीरदास जयंिी िनवनीहजा हिनी के । संि कबीर के आगिन वसंर्ु रा पर ओह बेरा भइल रहे जब सिाज

भोजपरु रया सिाज अपना पया​ा वरण के लेके हिेशा चैिन्य रहल बा । पया​ा वरण संिुलन िें िहत्वपूणा भूसिका अदा करे वाला वक्षृ न िें सिाज देविा के देखेला । नीि, पीपल, सिी, के ला एकर उदाहरण बा । आि के पल्लव के सबना ि कवनो

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शभु काि के कल्पना नइखे कईल जा सकि । हिनी के सिाज पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृसिक प्रिीकन के िाध्यि से ई चेिना हस्िांिररि करि आईल बा । आजओ ु करि बा । एगो बानगी देखींनीसिया के डासढ़ िईया लावेली सहंडोलवा सक झूली-झूली ना िईया िोरर गावेली गीसिया हो सक झूली-झूली ना । स्वाभासवक बा सक जहाँ देवी के वास रही, ओकरा संरक्षण खासिर आि जन ससक्रय रसहहन । आज के दौर िें भोजपरु ी गीि-संगीि सनरंिर पिन का ओर जा रहल बा । एकर सबसे बड़ कारण बा िटस्थ लोग के खोखलापन आ जागरुक लोगन के दसु वर्ा । सिाज जेकरा से नेिृत्व िांगेला अगर उ िौन रह जाई ि अयोग्य लोग आगे आ जईहन । सिाज जेकरा िें आपन रक्षक देखेला अगर उ दसु वर्ा

िें आ जाई ि भक्षक रक्षक बने के दावा करे लसगहन । आज जरुरि एह बाि के बा सक जिल पानी िें रोड़ा फें कल जाव । िरंग के र्ार िें डूबि उिराि िलीनिा के सकनारे आवे के पड़ी । सनिा लिा िूल ित्व हs । इहे स्थायी रहल बा आ आगे भी रही । ध्यान रहे सक सभे अपना सहस्सा के काि करि रहो । हृदय के जवना गहराई से रउआ सभे आखर के अंगीकार कइले बानी, ओकर थाह लगावल सम्भव नईखे । हिनी के यात्रा िागा हिेशा सनसवा घ्न बनल रही अगर एसहलेखाँ रउआ सभे के िागा दशा न सिलि रही । आखर के जून अंक एसह सविास के साथे सिसपा ि करि ...

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ीि आखर


बतकूचन

बतकूचन...

र- आँगन, दर-दरवाजा, दआ ु र-कोठारी, सखड़की-अहािा, जहवें देखीं, सभ जगहा अपना-अपना ढङ-रङ के हीि-नािा, िरदिेहरारू, छोट-बड़ अँसड़सल बाड़े, परल बाड़े । थाकल, थहराइल, हँकासल, पटाइल ! जेठ के टभकि घाि । सक ु ुँ वारन के का पूछेके बा, एक से एक िजगरन के िहुँ िछरी अस बवा गइल बा । बासकर, सबयाह परोजन के सदन । ससहा याइ के िनसन्ु नी बिकूचन चल रहल बा । ओह पररवारन के , जहवाँ परोजन बा, िेठ, जवान भा लइकन के गोड़ िें ि जइसे चकरसघन्नी लागल बा । होने जवन जानी नइखी पटाइल, ऊ घर के िेहररुअन सङे बाझल बाड़ी । काि के किी बा ? सगनही के नइखे । ’ढेर सदना प भेंटऽइलू हा हो, ए फुआजी..’ कहि जवन ना गङ-जिनु जलर्ारा बहे लागऽिा सक कवनो अनिना बझ ु ािे अचके िें ’आ िार बढ़नी रे..’ कहि सबलाहँ जािा ! लइसकयन के ि जइसे कुसल्ह अबूझ बूझे के बेरा आ िौसि आइल बा बल ु ा ! नािा-ररस्िा, सबयाह-बेवहार के िाने-ि​िलब बूझे िें ’बाड़ा’ नू रऽस बा ! ’आह्यासह’ करि रसह-रसह के फें कर देि बाड़ी स । पररवार के िेठ भा जवन जाना के नाँवे परोजन ओजाइल बा, हनक ु र बड़-बूढ़-बाप जे होखस,ु उनकरा सजसनगी भर के कुसल्ह कइलका एही बेरी लउसक जाई । लउसक का जाई, लउक रहल बा, सपछला डेढ़ िहीना से । सबटुराइल सभ हीि-नािा, सङ-सँघसिया आँसख फारर-फारर गम्ु िी बन्हले बा लोग - "ईहो अब देसखये सलयाव, ई दअ ु रा कइसे ससज रहल बा !" खइनी िीसि हलुअइया सलस्ट थिवले बा, आ चौकी प ओठङल छोटका च्चा के राह जोह रहल बा - "सभ कुछ के बेरा नू होला जी.. काल्हए परोजन हऽ आ हई देखीं कुबेरा !

बाद िें हिरे प्रान खासिर चसढ़ बइठी लोग.. " रसह-रसह लागे बदु बदु ाये - "ई कवन ढङ हऽ िहराज.. नवका ि ना हऽ ई लोग, परु खन से नाँव बा । बासकर, डालर-चाचा के का कहाव.. रङ-ढङ ि नवके अस ओढ़ले बानीं" छोटका च्चा आजकाल गाँव-जवार िें ’डालर-चाचा’ के नाँवें ’फे िस’ भइल बाड़े । भोजपरु रहा जवान दसु नया िें कहवाँ नइखन जाि स, कहवाँ से किाइ नइखे आवि स । एही अङने िाड़ो गड़ाइल बा, सजावे के झालर आ फुदेना सबदेस से आइल बा । आ सनु ािा जे चालीस-पैंिासलस गो ले लिकी कार आ पाँच गो ले लक्जरी-बस िें बररयासि आई । जवारो िें नेविा सबहरे के गइल बा । होने बाजा आला के अबहीं ले पिे नइखे । "जा िरदे, का नीिन रसहि जे सिसलटरी बैण्ड कऽ सदयाइि, छोटका च्चा से पसहलहीं कहले रहनीं । सान आ िान ि आलगा, टाइि प दअ ु रा ठाढ़ ि भ जइिे सऽ बाकी, कहाला नू, बऽड़ का आगा आ घोड़ का पाछा ना होखे के ! अब र्उरऽ उन्हनीं का पाछा घािा-घािा " - िननजी िारर िनाइला के नकफोरा भइल रहले । कहे के िाने, जेकर जइसन बेंवि, िइसने िें बाझल । ओइसने िैयारी आ बेवस्था िें अझरु ाइल । अइसना िें कपरा घािो चूओ िऽ का चूओ ? जेठ के बीसख घाि दँवकि उछाह आ सजम्िेवारी से बेर-बेर हार रहल बा । दपु हररयो िारर गम्ु िस कइले अँइंठल बीया । गाछ के पिई ले नइखे हीलि । िवना प पंडीजी के कइलका अलगे आफि कइले बा । काँच काठी आ ओद गोई ंठा से उठि िररचाह र्आ ु ँ ! आँसख फोर के जइसे लोर सङे सकरसकरी चआ ु दीही । अइसना िें फरा​ा टा सख ु का

सौरभ पाण्डेय सौरभ पाण्डेय जी के पैतृक भूमि उत्तरप्रदेश के बमिया जनपद के द्वाबा पररक्षेत्र हऽ । रउआ पच्चीस बरीस से सपररवार इिाहाबाद िें बानीं । मपछिा बाइस बरीस से राष्ट्रीय स्तर के अिग-अिग कारपोरे ट इकाई िें काययरत रहि बानी । आजकाि के न्द्रीय सरकार के पररयोजना आ स्कीि के संचािन खामतर एगो व्यावसामयक इकाई िें नेशनि-हेड के पद पर काययरत बानी । परों को खोिते हुए (सम्पादन), इकमिया​ाँ जेबी से (काव्यसंग्रह), छन्द्द-िञ्जरी (छन्द्द-मवधान) ना​ाँव से राउर ककताब प्रकामशत हो चुकि बाडी स । सामहत्य के िगभग हर मवधा िें रउआ रचनारत बानीं आ महन्द्दी आ भोजपुरी दूनो भासा िें सिान रूप से रचनाकिय जारी बा । सामहमत्यक संमिप्तता के दोसर क्षेत्र बा - सदस्य प्रबन्द्धन सिूह ई-पमत्रका,”ओपनबुक्सऑनिाइन डॉट कॉि’ ; सदस्य परािशयदात्री िण्डि त्रैिामसक पमत्रका ’मवश्वगाथा’ । © आखर ● जन ू , 2015 ● 6


बतकूचन दी, भँड़ोल ढेर कऽ रहल बा । एके बन्न करावऽ िहराज ! बेना हाँकि सभ बऽड़ आ प्रणम्य लोग दअ ु रा खसटया-िखि-चौकी परले-सम्हरले सगरे सिाजे ना ’सवि’ भर के सिस्या प सचन्िन -िनन करि अझरु ाइल बा ! र्नबादआला चाचाजी ि रसह-रसह ओबऽिे प खीससया उठस - "ससरु ा जब ऊ पसहला हाली आइल रहे, िबहीं हि कहनीं, जे ई बड़का फें कू हऽ । बोली के गोली से सरवा होली खेली। बासक नाः, सउँसे अिरीका जइसे बउराइल रहे.. अब भोगसु अिरीका राि"

आ बेवहार के नाँव प ढोंग !"

उनका एह सोझ सनणा य प के ह का बोलो ! बड़ िनई ! छौ बररस भइल, बीस-पच्चीस सदन अिरीका रसह के का अइल बाड़े, अिरीका के कवनो सबसय प उनके सवशेषासर्कार रहेला ।

इहवाँ दआ ु र पर जाने काहें होने चल्ु हानी िें बड़की िाई रेस भइल सनु ऽइली ।

"का जी, अिरीको िें परर्ानी लड़ाला " अब जिना बसु ि ओइसने सवाल ! चाचाजी के ि ई खनखनाइ के लागल - " आ ना चपु रहबऽ.." अइसनन से सचकी का बसियावल जाव ! "हिार गँइयो सरवा ऊहे रसह गइल, भकचोन्हर के भकचोन्हर !" - चाचाजी कनसखये सिकवि िहुँ फे र लेलन । ढाला प के चाह-गिु सटयो प आजकाल बिकूचन के सबसय ईहे बा - "चलऽ सार् परु ा कऽ सदहलन स लइका सछिेसर पसर्या के " "ए िहराज ई सबयाह हऽ ? फुट्टानी हऽ फुट्टानी ! आ हे फुटानी के गोड़ ना, पाँसख होले " "ि िूँ काहें जऽरर-िअ ु लऽ ए गोसाई ंजी ?"

गोसाई ंजी छन्न दे िड़क परले - "हि का जरऽब आ िअ ु ब जी ? गँइया-जवार िें अउरी के ह के बेटी-बेटा बा सक ना ? लूरलकि-बेवहार नसािा ि इन्हनीं लोगन का िारे । सजनका बेंवि बा, िका ऊ लसगहें आगी िें िूिे ?" "हई लीहीं.. अब सहनकर सूनीं ! हािना के ह सोचऽिा जी ? भाए, आपन काि बनिा, भाँड़ िें जाए जनिा ! का रउओ गोसाई ंजी !.. हा हा हा.. " "ई ठट्ठा िूँ नइखऽ करि ए बाचा दरोगाजी के ’गान्ही छाप’ बोलऽिा.." गोसाई ंजी सपसिया भरले - "ईहे भोजपरु रहा लोगन के सोच आ बेवहार बा, एक सरु​ु ए से, आदशा के नाँव प गिु ान,

गोसाई ंजी ि जइसे रोकले ना रुकले, - "के सकी अइसना िें जी ? कवना के पूि नइखे ? भा के कवना के बाप न हऽ ? सभ के सभ बा । सभ पर सभ बा । कहलो जाला ’बाढ़े पूि सपिा के र्रिे’ । एही के िुक िें िुक सिलाई ं ’बसु चया जाई अपना करिे’ ओहहोः ! का ई खलसा िुक हऽ ? सउँसे सजसनगी भर के गाथा हऽ!"

"का रे रिौसिया का भइल बा रे ? का गादसह िचल बा ?.." दअ ु लस । ु रा के ह पछ दस बररस के रिौसिया, नन्हकू भऽर के लइकी, पछ ु ािे आङना ओरे र्ऽउरर चलल । रिेसर दूबे, गाँव भर के भउजइयन के देवर बनि फीरेले, िले अङौछी से िहुँ िोपले खें-खें करि बसहरी सनकलले "बड़की िाई आजु के ह के जीये ना दीहें ए बाबू.. पररछावन के लोढ़ा साफा-ओफा कके र्इले रहली हऽ । बनारसवाली ओही लोढ़वा से अपना किरा के िोरी बन कऽ देले बाड़ी.. काजे पाछा गड़हवा से िूस आवि िारे स !" "हा हा हा अब उनको का गलिी ? उनका होस िें िसाला आ सपसान ि सिक्सी िें होि चलल आइल बा !" "ि जाऽऽस,ु सिसक्सये से परीछ देसु !!" - बड़की िाई के पारा ि जइसे बसहरी छलके प आइल रहे । सङे -सङे िँझसलयो चाची िड़क उठली - "अउरी सबलायि के पढ़लकी लेइ आवसु " जाने काहे िँझली चाची के एह वक्रोसि िें क्रोर् कि, भँड़ास ढेर बझ ु ाि रहे । सचकी अब का पररछाओ ? का पज ु ाओ ? आजु के कसनया ई कुसल्ह चीजअ ु न के नाँव आ उपयोग जसनहें िब नू पूजे आ पररछे के बाि कररहें ! का रसहये गइल बा ? ना पीढ़ा, ना पाटी, ना जाँि, ना ओखर, ना ससरीस, ना इनार, ना ढेंकुल ! परोजने के परोजन ई कुसल्ह जोहािा आ लउकऽिा । ना िबके जीवन-ढङ रसह गइल बा, आ ना ओह लाएक बेवहारे बा । बासकर, जग-परोजने सबसर्-बेवहार ि िनावले जािा । ना

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ि अबके बररयाि िें के ह हाथी-घोड़ा ले आवऽिा ? ’बनल’ लोगन के सवखो बा, ि घोड़ा के जागहा टट्ट र्उरऽ िारे स । िवनो प सङ वाला खेिन के िासलकन से किना सनहोरा करे के परऽिा, ऊ आलगा । होने बररयाि के लकि प जवन कहाओ किे होखी । लइका के सँघसियन के कहे, लइकवे टुन्न हो जािारन स । अब हेह िें "ि​िंचा प सडस्को.." होिा ि कवन बेजाई ं बा ! राि भर बररयाि ना उत्पाि होिा । ऊ एलजी के िड़िड़ी िराए लागऽिा, जे ससियाना के सूिा-सूिा सछिर जाओ । बररयाि के ना सान बा, ना िजा​ा दा । बाकी आजु के जवान एही िें टुन्न बाड़े । िब के सिय बररयाि जनवासा िें आवे ि असस्थराह होखिे सवाल-जवाब के दौर चले । एक-सेएक सवाल आवऽ सऽ । अब ना ओइसन सवाल-पछ ु सनहारे रसह गइल बाड़े, आ ना के ह जवाब खासिर बइठिे बा । कहाला जे, रावण के लंका िें भौसिक सख ु के पारावार ना रहे । र्न के िद िें लोग आन्हरे ना भइल रहले, िन-करि-बचन से राछछ भ गइल रहले । आजु के कवनो भोजपरु रहा बररयाि देसख लीहीं, झट दे बझ ु ा जाई जे लंका के ऊ सिाज कइसन होखी आ कइसे बेवहार करि होखी ! सबयाह के दोसर सदन हऽ । िाड़ो िें चारूओर से पदा​ा आ साड़ी िनाइल बा । सिर्ी बऽर हीि आ पाहन सङे पाँसि िें बइठल बाड़े । टेङर बो के सनकहा पूछ बा आजु । टटकारर के गारी गावे िें उनकर जोड़ओ ि नइखे । "देखो-देखो रे सबदौसिया िोर भसूर आवेले " भा "हाथी-हाथी सोर कइले गदहो ना ले आया रे .. िोरा.. " से सरु​ु भइल टेङर बो के टाँसी सनु सनहारन के कान से र्आ ु ँ सनकाल देला । भोजन सरु​ु भइल । जीसभ आ कान दनू ो के आपन-आपन रऽस िीसल रहल बा ! िन सनकहा िनसाइल भइल बा । हथेली भर के फुलवरा हाथहँ ले ना ओड़ाओ, िनकी िें फससक जाये ! िले ि िसु ि बाबा सखससया भरले । सोझ ससउजी के अविार ! उसठ गइले - "हि ना खाइब !" फुलवरा चभकि पाँसि सन्न ! "काहें ए बाबा ? का भइल ?कुछऊ बोलऽब " बाबा छछािे दअ ु रा अक्सहे खाटी पटा गइले । उपसर्याजी आपन िूड़ी पटक देनीं उनका गोड़ प - "बड़का बाउजी रउआ दस जूिा िार लेब हिरा कपार पऽ, जवन हिरा से कवनो बेजाई ंभइल होई"

उपसर्याजी के किनो ररररयऽइला प बाबा काहें िसनको खँखारहँ जासु । "ए बाबा.. देखीं जी, बोलबो करऽसब" - सभ ओर से िनउवल होखे लागल । "कुच्छु ना कुछऊ नइखे जा िूँ लोग पावऽ लोग.. एकदम्ि से पँजरे नइखे आवे के " - चलि िान-िनउवल के आर् घण्टा बाद राि-राि करि बाबा हनक ु ले । आ जवन ना हनक ु ले जे सभ के सक्के दि बन भ गइल । िाँड़ो िें बइठला बीस-पचीस सिनट ले भ गइल रहे । बासकर, बाबा के नाँवें अबहीं ले एगो गारी ना गवाइल रहे । िसु ि बाबा एही प छनसक गइनीं - "हई अपिान ? अनेररया हई ं हि का रेऽ ? नाँव ले नइखन स देले हिार ? लइका के बाप के बड़का बाबूजी हई ं.. कसह द सऽ अइसहीं इलाहाबाद नइखीं बसल" सछिेसर पसर्या के जान िें जान आइल । बाबा िनले । िाड़ो िें बान्हल र्ोिी का पाछा से खसलहा टेङर बो से गारी गवावल गइल । सङे कवनो िेहरारू ना । टेङरो बो चनु -चनु के जवन ना रेघाइ-रेघाइ गारी गवली जे िसु ि बाबा के दूनो कान हररयर हो गइलन स । कनसखये सिकवि काने-जीभे रस लेि िसु ि बाबा प्रसन्न भ गइले ! बढ़ु ऊ के ’िाइण्ड के इसण्डया’ जवन ना ’अप्प’ भइल जे िीसन गो ले फुलवरा ऊपर से चाँप सलहनीं उहाँ का । पेट आ हाजिा बाद िें देखाई ! सही कहल बा हर सबसर् के आपन-आपन लासलत्य बा ! आपन-आपन छोह हऽ । परम्परा आ बेवहार के िहीनी हऽ ई कुसल्ह ! बासकर ईहो ओिने साँच बा जे सभ बड़ा िेजी से सबलाइल जा रहल बा ! कहवाँ रसह गइल बाड़े अपना गाँवजवार िें अब िसु ि बाबा ? कहल बा जे, ’बहिा पानी सनिा ला, बन्र्ा गंदा होय’ । लोक आ सिाज बहिे पानी हऽ । बासकर, ई कवन बहाव हऽ ए रािजी ! कुसल्ह चहल-पहल आजु चार-पाँच सदन िें खि​ि भ गइल ! आइल लोग अब गइल लोग हो गइल बा । उपसर्याजी के सजसनगी फे रु सिरस हो गइल, जइसे रहे । फे रु उहे बाि रे उहे बाि ! सछिेसर पसर्या लोटा थिले ढाला प से आवि लउकले । सबसेसर हजाि गोड़ लगले - "बाबा कुसल्ह सनकहा सनपसट गइल नू ? खूऽस बानी नू रउआ ?"

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"ईहो कहे के बा सबसेसर!" बेरुकले कहि सछिेसर पसर्या बढ़ि गइलन । घरवा दनू ो बूढ़ बेकसिये भर ले रसह गइल बाड़न । भाँय-भाँय

पूवी

करि खोंिवा एइजे बा, ओसहीं सिकवि । सचरई-पंछी, गूदीफुरगद्दु ी उसड़ गइली स । फे रु अगला कवनो परोजन िें सबटुराए के सदन-घड़ी बनी । िले उपसर्याजी आ उनकरा अस पीढ़ी के लोग ररेठा से दआ ु र प उसर्याइल आइल पिई

गीत

जोहर शाकफयाबादी

शीिली बेयररया हऽ अँचरा के छइयाँ, सगनाई ंदख ु आपन कवन- कवन सइयाँ

वेद बदलाई

अँसखया िें जादू, कजररया िें टोना हिरा ना आवे करे कवनो चोन्हा, सबरहाभोजप के िािल रु ी रहब एही ठइयाँ सगनाई ंदख ु ...

ननलय उपाध्याय

गउवाँ नगर छुटल, बाबा अँगनइया, ससखया सलेहरी आ सब पहनइया, चढ़ली जवसनया के रूि अँगरइया सगनाई ंदख ु ...

बेमार बचवा के हसी जा

ध्रव ु गुप्त

जनी जा सबदेस सइयाँ घरही िें रहऽ, सिली जल ु ी दख ु ऽ संग-े संगे सहऽ, ु ऽ सख चहकी अँगनवा िें अपनो सचरइया सगनाई ंदख ु ... शहर के ओरी का बढ़ाइले पउवाँ, ओकरो से सनक बाटे देखी आपन गउवाँ खेि खररहसनया िें बाजे शहनइया सगनाई ंदख ु ...

सम्भंग भोजपुरी

संतोष पटे ल

जौहर शात्रियाबादी

बबदे ससया के पाती

जौहर शाकियाबादी जी शाकियाबाद शरीि गोपािगंज , मबहार के रहे वािा हई । अपने भोजपुरी खामत सबसे पमहिे 1970 िें गोपािगंज अनुननराला िड ं िामधकारी के सोझा अनशन कइिे रहीं । भोजपुरी सामहत्य के आाँचर िें हर मवधा िें सृजनरूपी खोइछा​ाँ भरे िें रउआ नेह-छोह से जुटि बानी । भोजपुरी िें पमहिा गजि िहाकाव्य 'रं गिहि', ऐमतहामसक उपन्द्यास 'पुरबी के धाह', िमित मनबंध संग्रह ,कमबरा खिा बाजार िें, 'वेद और कु रान’ समहत दजयन भर बहुचर्चयत प्रकाहि​ि रचना लेखकभइि के आपन आ जरुरी नइखे की केइ सं'भोजपु पादक केरीहिचार लेखक केमिखे हिचारिेंसेपूहिले । कृ मत प्रकामशत बा ।ि वतय िान िें इहा​ाँ व्याकरण' णय िनोयोग से जुटि बानी । आखर स्थाई पिा : संजय कु िार ससंह, ग्राि पोस्ट -पंजवार (पोखरी),सीवान सबहार 841509

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तवशेष आलेख

कबीर दास लेखक: देवेंद्र नाथ ततवारी

“ ि​िन िै इश्कक़ िस्िाना, ि​िन को िोहियारी क्या, रिें आजाद या जग िें, ि​िन दुहनया से यारी क्या।

सिं

, सार्ु आ सन्यासी के पररभाषा देश, काल, सिय के अनस ु ार बदलि रहेला। आि बोलचाल के भाषा िें संि के ि​िलब सजनगी आ आचरण िें पसवत्रिा, लोक िंगल के भावना, सहज-सरल रहन सहन, संिोष के भाव से भरल इंसान। के ह संि भसि​िागी होखेला, के ह ज्ञानिागी, के ह हठयोगी, के ह िें आत्िबोर् असर्क रहेला, के ह परिात्िा के सचंिन िें लागल रहेला। कबीर दास लोक संि रहनी आ इहे लोक कल्याण के भावना उँहा के लोक िें रहे खासि प्रेररि कइलस। इहाँ इ बिावल जरूरी नइखे सक कबीर के भाषा भोजपरु ी हऽ। उहाँ के स्वयं कहि बानीबोली ि​िरी पूरबी, ि​िें लखे निीं कोय । ि​िके िो सोई लखे, धुर पुरब का िोय ।। अगर ध्यान से देखीं िऽ इहाँ के सजनगी के सबसे बड़हन आदशा सदाचरण से रहल आ सिाज िें फइलल कुररसियन, पाखंड के सवरोर् अउर सािासजक सिरसिा के िजबूि कइल

बा। कबीर बाबा ना फकीराना चोला र्ारण करि बानी, ना ढाढ़ी बढ़ावे ना जटा र्ारी बने के कोसशश करि बानी। कबीर बाबा के कहनाि बािन ना राँगाये राँगाये जोगी कपड़ा । आसान िारर िंहदर िें बईठे , िह्म छाड़ी पज ू न लागे पथरा ।। कनिा फड़ाय जोगी ज िा बढौले, दाढी बढाय जोगी िोइ गइले बकरा ।। जंगल जाइ जोगी धुहनया रि​िलै, काि जराय जोगी िोइ गइले हिजरा ।। िथिा िड़ु ाय जोगी कपरा रंगौलो, गीिा बा​ाँहच के िोइ गइले लबरा ।। किहिं कबीर सुनो भाई साधो, जि दरिजिा बा​ाँधल जइबे पकरा ।। ऊँहा के आपन किा (बनु कर) के साथे ईिानदारी से परि सत्ता से जड़ु े के प्रयास करि बानी। साँच पूछीं िऽ कबीर के सजनगी के हर अंग िें सार्िु ा आ लोक िंगल के भाव भरल बा। ऊँहा के चित्कार नइखी करि बासक लोक िें ज्ञान आ दशा न के भाव आि लोसगन के बोली-वाणी िें सिझावे के राह पऽ

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आगे बढ़ि बानीहबन नैनन के सब जग देखे, लोचन अचिे अंधा । किे कबीर कुछ सिह ं पररिें, यि जग देख्या धंधा।। अंिरिन के प्रेरणा से उन्ि​ि ु लौसकक सचंिन के प्रश्रय का बदौलि कबीर बाबा जवन ससरजनी ऊ यगु बोर्, जीवन दशा न के आत्िसाि करि िानविा आ सवि कल्याण के उद्घोष बनल। जे जइसन देखल कबीर के सासहत्य िें ओइसने भाव सिलल। के ह के सूफी नजर अइनी, के ह के ित्त्वदशी, के ह के दाशा सनक, के ह के सनरगसु नया। इहे कबीर के खाससयि बा। बिौर बानगी हई सनगा णु गीि देखीं।

पहनया भरर जरर कोइला िो गइल, अब हसधरी बु ाि​िऽ िाड़ी आहग ।। नैया नीचे... एक अचरज ि​ि आउर देखली, बानर दिु े धेनु गाइ। अजी दधु िा दहु ि दहु ि अपने खइले, घीउिा​ाँ बनारस जाइ।। नैया नीचे... कुछ खइले कुछ भइुाँ या हगरिले, कुछ ि​िु िा​ाँ िें लप ाइ। किेले कबीर बचन के फे रा, ओररया के पानी बड़ेररया जाइ।।

आत्िअनभु ूसि सच्चा उपासना हऽ। कबीर बाबा के भीिरभीिर अनहद राग बाजि बा। एह प्रेि प्रकाश के गसहर सागर खाली प्रकाश ज्ञान-प्रकाश से प्रकासशि बा। ऊँहा के खदु कहि बानी-

नैया नीचे नहदया डूबी ए नाथ जी, अब नइया िें नहदया डूबी ।।

प्रेि के हपआला हपआइ के िो, गुरू देलें बउराइ। हबरिा अहगहन िन िलफइ िो, हजय कुछ ि सुिाइ।।

एक अचरज ि​ि आउर देखली, कुइया​ाँ िें लागल बाड़ी आहग।

कबीर के भाषा : भोजपुरी संतोष पटेल

सा के जनि एगो िहत्वपूणा घटना ह जवन सिय के दू सहस्सा िें बाँट देलस, ईसा से पसहले (BC), आ ईसा के बाद (AD) इ एगो दसु नया के लिहर घटना बा। हि एही िरह (analogy) पर भारि के ख्याि भाषावैज्ञासनक डॉ राजेंद्र प्रसाद ससंह जी के भोजपरु ी भाषा के लेके एगो प्रसि​िान देख रहल बानी जवन कबीर के लेके बा। कबीर से पासहले भोजपरु ी आ कबीर के बाद भोजपरु ी, इहाँ के आपन एगो शोर् पस्ु िक "भोजपरु ी के आर्सु नक भाषाशास्त्र" िें भोजपरु ी के सनिा​ा ण प्रसकया िें कबीर के काल के सवभाजक रेखा िानिे दू गो बड़ा िहत्वपूणा लेख सलखले बानी एगो "कबीर पूवा भोजपरु ी भाषा के सनिा​ा ण प्रसक्रया" जेकरा िें बिावल बा सक भोजपरु ी भाषा के कुछ आसदि सूत्र वेद िें बा। ओकरा बाद डॉ ससंह के दस ु र आलेख "कबीर के बाद भोजपरु ी भाषा" िें कबीर के भाषा भोजपरु ी बिावल गईल बा संगे संगे सनगा णु सम्प्रदाय के र्रि दास, र्रनीदास, पलटू दास, दररयादास, सरभंग भा सशवनारायणी संप्रदाय के कसवयन के कसविा िें भोजपरु ी सनखर के आईल बा।

डॉ राजेंद्र प्रसाद ससिंह जी के अनुसार - भोजपुरी भाषा और सासहत्य के इसिहास में कबीर वितन - सबिंदु (turning point ) हैं । इससिए भोजपरु ी भाषा और सासहत्य का काि - सवभाजन कबीर को कें द्र मानकर सकया जाना चासहए। कबीर के भाषा पर सवचार कइल जाव आ हिनी भाषा के अध्येिा लोगन के उहाँ पर सदहल ि​ि के अवलोकन कइला पर आउर उलझि चसल जाइब. सोझराये के जगह ओझराये के जादे उिेद बा ओकर कारन िें भोजपरु ी क्षेत्र के सवद्वान लोग जादे बा, उहो सहंदी के सवद्वान लो, जे खखार के कहे िे का जाने कांहे लजाि बा लो सक कबीर के भाषा भोजपरु ी हs। कबीर के वाणी के संग्रह 'बीजक' कहाला. जेकर िीन गो भाग बा - रिैनी, सबद, आ साखी। एकरा बारे िें सबसे पासहले रउरा आचाया रािचंद्र शक्ु ल के सवचार देसख - सांप्रदासयक सशक्षा और ससिांि के उपदेश िख्ु यि: साखी के भीिर है जो

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दोहे िें है. इसकी भाषा सर्क्ु कड़ी अथा​ा ि राजस्थानी,पंजाबी सिली खड़ी बोली है, पर रिैनी और सबद के गाने के पद हैं सजनिे काव्य की ब्रज भाषा और कहीं कहीं परु बी बोली का भी व्यवहार है (सहंदी सासहत्य का इसिहास, पष्ठृ -75) िासिला इहे से सबगड़ि बा. कबीर दास के बानी के उहाँ के चेला आ कबीर पंथी संि लोग एकवट कइले बा एह िें कवनो दू राय नइखे, पाठ भेद िें अंिर एह लेखा बा की राजस्थानी कबीर पंथी, काशी-गोरखपरु , आ पंजाब के 'गरु​ु -ग्रन्थ सासहब' िें कबीर के बानी अलग अलग भाषा िें संकसलि बा। िसलन डॉ िािा प्रसाद गप्तु आ डॉ पारसनाथ सिवारी राजस्थानी परम्परा िें जोर दे रहल बा सक कबीर के भाषा राजस्थानी बा, डॉ रािकुिार विा​ा आ बाबूश्याि सन्ु दर दास पंजाबी परम्परा िें कबीर के 'बसनयन' के भाषा संरचना के पाठ िय करे के आर्ार बनावल लो। बासकर डॉ शक ु देव ससंह के सम्पासदि 'बीजक' िें अवर्ी, भोजपरु ी भा पूवी प्रदेश के पाठ परम्परा के भाषा संरचना के दृसष्ट से सनणा​ा यक िहत्व प्रदान कइल गइल बा।

" History, Bhakti and Public Memory, page-60, Permanent Black,2009.

इहे बाि के Christian Lee Novetzke, आ Hawley सलखि बा - kabir's literary legacy grew into three major streams: the Eastern tradition, composed in areas of present-day Bihar and uttar pradesh, is preserved in the Bijak and represents a collection of verses sacred to the Kabir Panthis; the Sikh tradition records verses attributed to kabir in the Guru Granth Sahib, themselves culled from older manuscripts, especially the Goindval Pothis; and the western or Rajasthani tradition, where Kabiris on of the Dabu Panthi's lumanaries, remembered in the Pancavani and Sarvangi collections..... .. extracted from the book - Christian Lee Novetzke,

Champaran is known for the experiment with truth and non-violence of Mahatama Gandhi year back in 1917 but is also the first preaching place of Saint Kabir. Chatia- Barharwa, the first preaching place of the great sanit is 10 km away from Areraj, a subdivision under East Champaran district where the first Math of the Firke-Bhaktahi branch of kabir panth was established year back in 1577.( The Hindustan Times, Patna, Thursday, November 27, 1997)

अध्येिा सवद्वान डॉ शक ु देव ससंह के शोर् एह सदसाई बड़ा प्रासंसगक बा उहाँ के सलखि बानी की –“कबीर पंथ िें िहत्वपूणा 'भगिाही पंथ ' के संस्थापक भगवान गोसाई कबीर के वचनों को सलसपबि करने का यथासंभव प्रयास सकया कबीर के रिैनी, सबदी, साखी, और सबदी के सवसभन्न रूपों यथा चांचरर, वेली, सवरहली, चौंिीसा, इत्यासद को भी भगवान गोस्वािी ने ही सलसपबि सकया और उन्होंने इस ग्रन्थ-गसु टका का नाि 'बीजक' रखा। बीजक यासन िूल िन्त्र, बीजक अथा​ा ि कबीर के अनेक प्रकार के कथनों का िारिम्यबि सनसि​ि प्रकार के के न्द्रीय सवचारों से असभप्रेररि उसियों का संग्रह। भगवान् गोसाई का 'बीजक' र्ीरे र्ीरे कबीर का प्रिीक बन गया ( भगिाही पंथ: वत्त ृ , संि कबीर और भगिाही पंथ, डॉ शक ु देव ससंह, सविसवदयालय प्रकाशन, पष्ठृ -5) एही सकिाब िें डॉ साहेब कबीर के नािा चंपारण से जोडि बानी। कबीर के चंपारण कनेक्शन देखीं –

भासा के स्िर पर हिनी के कबीर बाबा के ऊपर भाषाशास्त्रीय लोगन के सवचार के अवलोकन कइल जरुरी बा

सतं ोष पटेल बेमतया, पमि​ि चंपारण, मबहार के रहे वािा संतोष पटेि जी , ररसचय स्कॉिर (भोजपुरी), हई , यूजीसी नेट क्वामि​िाइड, एि ए, एिकि​ि के संगे संगे मसमनअर मडप्िोिा - गायन (संगीत) िे , संपादक - भोजपुरी मिन्द्दगी, सह संपादक - पपुवा​ांकुर, (हहंदी - भोजपुरी ), सामहमत्यक संपादक मडिें डर (हहंदी- इं मलिश- हहंदी), ररयि वाच ( हहंदी), उपासना सिय (हहंदी), हई । कई गो भोजपुरी आ महन्द्दी ककताब मिख चुकि बानी , कु छ शोध परक भोजपुरी ककताब प्रकाशन िे बडु वे

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सबसे पसहले देखल जाउ सक डॉ सनु ीसि कुिार चटजी का सलखि बानी बाबा कबीर के भाषा पर – " Kabir was an inhabitant of the Bhojpuriya tract, but following the practice of the Hindustani poets of the times, he generally used Braj-Bhakha and occasionally Awadhi. His Braj-Bhakti at times, betrays an eatern-Bhojpuriyan from here and there, and when he employs his own Bhojpuriyan dialect, Braj-Bhakha and western forms show themselves.(p-68, भोजपरु ी भाषा का इसिहास, रास सबहारी पाण्डेय) सप्रु ससि भाषाशास्त्री डॉ सनु ीसि कुिार चटजी भोजपरु ी भाषा के सम्बन्र् िें सलखे के क्रि िें सलखले बानी सक कबीर के पद भोजपरु ी भाषा िें सलखल बा -जइसे –

भोजपरु ी का ही एक रूप है। प्राचीन काल िें, आज ही की भांसि, इस बोली का कोई सासहसत्यक िहत्व न था, अिएव जब कबीर की प्रससिी हई िो उनके पदों को पछाह की सासहसत्यक भाषाओ ँ िें रूपान्िर आवश्यक था । (पष्ठृ -256, वही ) डॉ िैनेजर पाण्डेय 'भोजपरु ी के आसद कसव : कबीर, आलेख िें कहि बानी" कबीर दास भोजपरु ी के कसव रहीं । एक बाि के कइगो आर्ार बा. पूरा भसि आन्दोलन संस्कृि के सखलाफ िािृभाषा िें सज ृ न के आन्दोलन रहे,भसिकाल के सब संि अपना अपना िािृभाषा िें आपन आपन बाि कहल । इ असखल भारिीय आन्दोलन रहे" (पेज- ४, भोजपरु ी के आसद कसव कबीर) एही बाि के कबीर बाबा क इसे सलखि बानीसंस्कीरि िै कूप जल भाखा कि​िा नीर िन िन को सीिल करे हनरिल करे सरीर

1.कनवा फराई जोगी जटवा बढ़वले, 2.सिु ल रहलौं िें नीर भरर हो 3.बाबा घरे रहलू ि बबूई कहइलू 4.का ले जइबो प्रीि​ि घर अइबो ( साभार - ओ एंड डे बंगाली ऑफ़ सलटरेचर, भाग-1, डॉ सनु ीसि कुिार चटजी, साभार- संिकसव कबीर की भाषा - डॉ जयकांि ससंह जय) ओही लेखा डॉ उदय नारायण सिवारी जी, (भोजपरु ी भाषा और सासहत्य के पेज -254-57 िें) िक़रीबन चार पदन के चचा​ा कइले बानी जवन सनचे सदहल बा –

1. कौन ठगवा नगररया लुटल हो 2.िोर हीरा सहराइल बा कीचड़े िें 3. सूिल रह्ं ू िैं नीद भरर हो, गुरु सदहलें जगाई 4.अपने सपया की िैं होइबो सोहासगसन एकरा बाद उहाँ के वेल्वेसडयर प्रेस से प्रकासशि 'कबीर साहेब के शब्दावली' के चचा​ा कइले बानी जहाँ से ऊपर सदहल कसविा सलहल गइल बा एह पदन के भाषा भोजपरु ी बा जबसक कहीं कहीं अवर्ी के पटु बा। डा॰ उदय नारायण सिवारी िानि बानी - वास्िव िें कबीर की िािृभाषा बनारसी बोली थी, जो

बकौल डॉ पाण्डेय, कबीर बाबा कहि बानी - बानी िोर परु बी ... एकर ि​िलब भइल की कबीर के कसविा भोजपरु ी के कसविा ह। अइसन नइखे की श्यािसन्ु दर दास आ रािचंद्र शक्ु ल के सोझा भोजपरु ी के रूप ना रहे बासकर उहाँ सभे भोजपरु ी के साफ़ -साफ़ उल्लेख करे के बदले ओकरा के सबहारी भा फे र परु बी बोल कह के आपन असिंजस पाठक के सौंप सदहली आ ओह सभे के भ्रि िें डलली । डॉ असनल कुिार आंजनेय भोजपरु ी अकादिी, सबहार से प्रकासशि पस्ु िक 'सवचारबंर्' िें एगो सवाल खड़ा कइले बानी सहंदी के िहंि संपादक लोगन से – " बोली ि​िरी परू ब की, ि​िें लखे ना कोय, ि​िको िो सोई लखे जो धुर पूरब का िोय” एह साखी के देसनहार कबीरो का भाषा पर ले भोजपरु ी के भभूि झारी के खरखराि पसछिहा रंग देबे के अनरथ कइल। एह लोग के बउसाव चले ि खांटी परु​ु सबहा संि सशवनारायण स्वािी, गल ु ाल साहेब, भीखा साहेब, र्रनी दास आसद के भी खड़ीबोली के पहाड़ा पढ़ा देउ"( पष्ठृ -9)

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िूल्यांकन प्रो॰ गदार्र ससंह ' भोजपरु ी सासहत्य के इसिहास' िें कबीर के भाषा पर सलखि बानी सक- कबीर के भाषा पर एने खूब सवचार हो रहल बा आ प्रत्येक सवचारक क्षेत्रीय दृसष्टकोण के आर्ार पर कबीर के भाषा पर सवचार क रहल बाड़ें. जइसे आज िक कवनों इसिहास व्यसि-सनरपेक्ष हो के नइखे सलखाइल, ओसही कबीर आ कबीर- सासहत्य पर सनरपेक्ष दृसष्ट से सवचार करे के के ह साहस प्रदसशा ि नइखे कइले कबीर कहिारे की जे आपन घर पसहले जारे, उ हिरा साथे चले, बासकर एसहजा सस्थसि ई बा सक कबीर के लुकाठी से दोसरे के घर जारे िें सभे ित्पर बा, आपन घर ना." (पष्ठृ 214, संि सम्प्रदाय के कसव) कबीर वाड् िय (खंड-१,पष्ठृ -16 पर) िीन खंड िें प्रकासशि भइल. एकर संपादक द्वय डॉ जयदेव ससंह आ डॉ वासदु वे ससंह बानी. संपादक द्वय कबीर के भाषा-स्वरूप प नया ढंग से सवचार कइले बानी सभे."चूसँ क रिैनी के पाठालोचन िें शक ु देव ससंह एह सनष्कषा पर पहचल बानी सक कबीर के भाषा के िूल ढांचा अवर्ी आ भोजपरु ी पर पडल बा एही से कबीर वाड् िय के संपादक द्वय साखी आ सबद के पद िें पंजाबी आ राजस्थानी के प्रयोग के असंगि िानि बा लोग। संपादक द्वय के िोिासबक कबीर के स्वभासवक भाषा पंजाबी आ राजस्थानी ना भोजपरु ी आ अवर्ी रहे। इहाँ ई बिावल जाएज बा सक डॉ कृष्णदेव उपाध्याय 'भोजपरु ी सासहत्य' के इसिहास िें, राससबहारी पाण्डेय 'भोजपरु ी भाषा के इसिहास िें, नागेन्द्र प्रसाद ससंह ' भोजपरु ी सासहत्य के संसक्षप्त इसिहास िें कबीर के भाषा भोजपरु ी बिवले बानी। हनष्कषश :प्रो गदार्र ससंह के 'कबीर के भाषा' सदहल सवश्लेषण देसख आ िय करीं " कबीर के सिय िें राजस्थान िें सडंगल सासहत्य के भाषा रहे। ब्रज भाषा के सपंगल कहल जाि रहे, बासकर एकर प्रचार ओह

घरी अिना ना रहे, जिना अष्टछाप कसव लोगन के सिय िें भइल. सदल्ली िें सहन्दवी रहे, दक्कनी िें हैदरावाद, दौलिाबाद, आ गल ु िगा िें भी रहे, एकर दक्कनी सहंदी नाि रहे, एकरा असिररि अवर्ी आ भोजपरु ी के क्षेत्र रहे, भोजपरु ी सबहार, उत्तर प्रदेश, िध्य परदेश के कुछ सजलन आ नागपरु रया के नाि से झारखण्ड के कुछ सजला िें बोलल जाि रहे. कबीर के काशी क्षेत्र ह, सवद्यापसि सिसथला िें, ससि लोग िगर् िें, आ नाथ पंथ के गोरख नाथ के गोरखपरु भोजपरु ी क्षेत्र रहे. अवर्ी आ भोजपरु ी िें उिना सिानिा बा सक जरा सा बदवाल क देला पर दनु ों िें कवनो अंिर ना रसह जाई, ... अब सवाल बा कबीर के िूल भाषा का हो सके ला?(भोजपरु ी भाषा के इसिहास,पेज -217) प्रो॰ ससंह सलखि बानी - " जइसे भगवान बि ु के वचन िगर्ी िें रहे, बासकर बाद िें चसल के ओह भाषा के िध्यदेश के भाषा पासल के ढांचा िें ढाल सदहल गईल, ओसहीं कबीर के भाषा िूलि: बनारसी भोजपरु ी रहे बाद िें उनकर सशष्य लोग ओकरा के कइ रंग िें रंग देहल। नागरी प्रचाररणी सभा के संस्करण िें पंजाबी आ राजस्थानी के प्रभाव बहि बा, बासकर यसद ठीक नजर गड़ा के जांच कइल जाव, ओकर असली जासि के पहचान हो जाई। ओह िें भोजपरु ी के संज्ञा शब्द सिसलए जाई सक्रया पद भी आपन िूल रूप िें भेंटा जाई.(पष्ठृ - 218) आ कबीर काशी के रहेवाला रहीं बनारस के बोली िूलि: भोजपरु ी बा आ एही से कबीर एही बोली िें आपन बाि कहले होखब। सनष्कषा इहे बा सक हिनी कुछ लोगन के सवचार देखीं सक उहाँ सभे कबीर के भाषा के का कहि बानी। रेवडेंट अहिद शाह, सवचार दास जी के साथे हिनी जा ससकला सक कबीर के भाषा क्रिश: बनारस, सिजा​ा परु आ गोरखपरु के आसपास के बोली ह, आ प्राचीन पूवी ह, पंसडि परशरु ाि सद्वदेवी के ि​ि कबीर के भाषा िें पूवी सहंदी(भोजपरु ी) भी बा। आचाया हजारी प्रसाद सद्ववदी कबीर पस्ु िक िें कबीर के पद संकसलि कइले बानी। आ भाषा िें भोजपरु ी के असर्किा बिवले बानी। कुल सवन्दअ ु न के देखला के बाद – कबीर साहेब बनारस के रहीं आ इ बाि सभे जानेला सक बनारस के बोली भोजपरु ी हीयs. एही से कबीर के भोजपरु ी के आसदकसव स्वीकार कइल जाला।

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सरू ीनाम से :

सरू ीनाम में त ंदुस्तानी प्रवासन के क ानी

चान .ई.एस. चुन्नी भोजपुरी अनुवाद : शमशरं जन मिश्र

न 1873 से 1916 के बीच लगभग 34,000 सगरसिसटया िजदूर भारि से सूरीनाि गईले । कलकत्ता से 64 जहाज जवना िें एगो जहाज के नाि “लाला रूख” रहे, सगरसिसटया िजदूरन के लेके सूरीनाि रवाना भईल । अलग अलग प्रांि के लोग जब सूरीनाि पहचं ल ि अपना के सहंदोस्िानी कहलस । लगभग 3000 सहंदोस्िानी लोगन के िोहल्ला अगल बगल बनल । इहे लोग आज सूरीनािी सहंदोस्िानी कहाला । सूरीनाि पसहले डच लोगन के सनवास रहे आ एह लोग के खेिीबारी, जेह िें चीनी(ऊख), कौफ़ी ,रूई के खेिी खासिर िजदूरन के जरूरि रहे । एसहजा सदहाड़ी िजूरी के भाव आदिी पे 12 आना आ िेहरारू लोग के 8 आना सिलि रहे , उहे

जवन भारि िें 1-2 आना सदहाड़ी िजूरी रहे । एकरा अलावे आवे जाये खासिर गाड़ी के सार्न, कपड़ा, खाना, घर, इलाज आ दवाई के वेवस्था करीब 2-3 िसहना ले िफ्ु ि रहे, जवन पाँच साल के बेगार के एवज िें रहे । एकरा खासिर एगो सिझौिा (एग्रीिेंट) बनवाल गइल, आ जे भी एह एग्रीिेंट से सूरीनाि आइल उहे लोग सगरसिसटया कहाईल । हालांसक, पाँच साल के बाद उ लोग चाहे ि भारि आ सकि रहे भा सूरीनाि िें बस सकि रहे । करीब 12,000 लोग भारि लवट गइल बाकी असर्का लोग सूरीनाि िे बस गईले, एह लोग के करीब 2 -5 एकड़ जिीन जीवन यापन करे खासिर सिलल । ई लोग एसहजा छोट सकसान बन गईले । बाकी जे लोग लवट के भारि आइल उ लोग जिींदारन के अत्याचार, भेदभाव आ सवर्वा लोगन के सस्थसि, गरीबी आ

बबदे ससयाचुन्नीके पाती प्रोिे सर चान इ०एस०

ननराला

प्रोिे सर चान० ई०एस० चुन्नी (पारािारीबो, 1953 ) जी “हहंदोस्तानी प्रवासन इमतहास आउर भारतीय डायस्पोरा” के प्रोिे सर बानी। इं हा के नीदरिैंड के फ्री एिस्टडयि यूमनवर्सयटी िें िािा रूख के पोस्ट पे बानी ।

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पलायन सवकास के बासर्ि राह देसख के सगरसिसटया िजदरू फे र से भारि छोड़ देले । एकरा खासिर अंगरेजन के राजकाज, एसहजा के प्राकृसिक प्रकोप जईसन ढेर कारण बनल जेकरा कारण उ लोग फे र से सगरसिसटया िजूर बने के आ फे र से सवदेश िें बसे खासिर आपन कदि बढ़ा सदहले । हिंदोस्िानी सिाज के हनिाशण हिनी के ध्यान देवे के चाहीं की जे भी सगरसिसटया िजदूर भारि आइल ओह िें लगभग सत्तर प्रसिशि लोग 16 से 35 साल के रहे । ओह िें लगभग दू सिहाई लोग 20-30 साल के रहे , कुछे लोग 40 साल आ कुछ ऊिीरदराज (2%) रहे जबसक एक चौथाई लोग 20 साल के नीचे रहे । परदेस िें एक दोसरा के सहारा बने खासिर एह सगरसिसटया लोगन के बीच भिी के बाद आपसी आत्िीयिा बनल । जहाज़ी भाई-बसहन, सडपो भाई-बसहन जईसन जिाि िें लोग आपसी प्रेिभाव से एकजटु भईले । एह सगरसिसटया सिूह िें असर्का लोग अके ले ही रहे जे सूरीनाि के बागान िें एक एक गाँव एक देस के बन के ससफा सहंदोस्िानी रहे । ओह घरी गाँव के नािा सनभावल बहि जरूरी रहे । आपन गाँव जवार के िरह एसहजा भी ग्राि पंचायि के नैसिक िूल्य राखल गइल । उदाहरण खासि अगर गाँव के के ह कुछ अनैसिक काि कईले होखे , जईसे गाँव के लईकी के साथे बदसलूकी कईले होखे ओह के गाँव से सनकाल सदयाई आ उ कुजाि हो जायी । सजा के भी व्यवस्था भईल सक अईसन आरोपी के कुछ जिु ा​ा ना भी लगावे के व्यवस्था कइल गइल । ईसाई सिाज के छुट्टी के बीच सहन्दू आउर िस ु लिान लोगन खासि भी परब त्योहार के छुट्टी राखल गइल । सहन्दू के 32 आ िस ु लिान के 16 र्ासिा क छुट्टी राखल गइल । सिाज छोट रहे आ सब र्रि के लोग सिलल जल ु ल रहे एह से सब परब त्योहार साथे िनावल जाि रहे । फगआ ु , सदवाली, भागवि, िहु रा ि सब साथे िनावल गइल । चूसं क र्ासिा क आर्ार पे इ सिूह बहि छोट रहे एह से सहन्दू आ िस ु लिान के बीच भी सबयाह के भी िान्यिा सदयाईल । रीसि ररवाज सनभावे खासि पररवार के जरूरि होला, एह से भाई आ बसहन के रूप िें पररवार िें शासिल कर सलयाईल । छोट लईकन आ अनाथन के सनःसंिान भागीदार लोग स्वीकार कर लेले आ एह िरह से सहंदोस्िानी सिाज बनल । एह सगरसिसटया सिाज िें ओह घरी एक भरी किी इ रहे सक औरि िरद के अनपु ाि सवसि रहे जे एह लोग के पररवार बनावे िें बड़का बार्ा रहे । जे लोग सूरीनाि आइल रहे ओहिें िरद

के संख्या 23,405(70%) आ िेहरारू के संख्या 10,232 (30%) रहे । 100 िरद के िल ु ना िे 40 िसहला के अनपु ाि पाररवाररक आवश्यकिा के सहसाब से सही ना रहे । लईका सभ िें संख्या (कुल 4,360, 13%) के सहसाब से सलंगानपु ाि लगभग सही (2458 लईका, 902 लाईकी) रहे । सहंदोस्िानी िसहला के किी आ सहंदोस्िानी सिाज से बाहर शादी आ यौन संबंर् के घणृ ा के रूप िें देखल भी सहंदोस्िानी िसहला के सस्थसि िजबूि कईलस । िसहला लोगन िें आर्ा वयस्क िसहला लोग शादीशदु ा रहे । एकल आ सवर्वा-सवर्रु लोग जाड़े सज़ंदासदल आ िख ु र रहले लोग । सूरीनाि आके उ लोग जादे स्विंत्र हो गइल । आपन साथी चनु े के आजादी के साथे अदला बदली के भी स्विन्त्रिा सिलल । एही सिाज िें बहसाथी (पसि) प्रथा भी स्वीकार कर लेवल गइल । एकरा अलावे लईकी लोगन के भी सस्थसि िजबूि रहे, सबयाह करे खासिर पईसा (दहेज/िेहर) भी सदयाि रहे । एकर कारण इ भी बनल सक सूरीनाि आवे वाला लोग असर्कांश िजदूर लोग पसि​ि सबहार आ पूवी उत्तर प्रदेश के रहे एह से एक िरह के रीसि ररवाज के बंचावल आसान रहे । सहन्दी, भोजपरु ी आ अवर्ी बोलेवाला सिाज िें आगे चलके सिलल जल ु ल आ बदलल रूप सरनािी सहन्दी बनल । बहिे सहंदोस्िानी लोग सवदेशीभाषा के आसान रूप सरनाि टोंगों आ बाद िें कसठन डच के भी सीख लेलस लोग । इ सरनािी सहन्दी आजों सूरीनाि िें फलि फुलि बा बाकी एकर एही सिाज जे गयु ाना आउर सत्रसनदाद िें बसल रहे, ओसहजा एकर रूप फीका पड़े लागल बा । लगभग 16% लोग के जान के नक ु सान रोग से, पानी िें डूबे से आ बागान प्रबंर्न के शोषण आ अत्याचार से भईल । बाकी जे लोग बाँच गईले उनका लोग के िेहनि, किख़चा आ शांसिसप्रयिा के कारण र्ीरे र्ीरे उ लोग सम्पन्न हो गइल । पसहले छोट सकसान आ बाद िें व्यवसायी बनले । 1950 के दशक के बाद एसहजा सशक्षा के स्िर िें भी सर्ु ार भईल आ लोग सिाज के हरेक क्षेत्र िें प्रसिसनसर्त्व करे लगलें । 1930 के दसक िें इ लोग आपन सिाज के जनसंख्या वसृ ि पे ध्यान देवे के शरू ु कईल आ एकर निीजा सलंगानपु ाि के सर्ु ारे िें काि आइल । इंहा िक सक बढ़ु िरद आ जवान िेहरारू के सबयाह भईल ( बढ़ु वा हे घरे- जब कवनों िेहरारू आपन िरद के सूसचि करे ि अईसहीं पछ ु े ) । इ लोग सवर्वा जब सवर्वा हो जाि रहे ि “पनु सवा वाह भा अके ले” रहे इ चनु े के आजादी रहे । 1940-1970 के बीच सहंदोस्िानी िेहरारू लोग बहिे संिान

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पलायन उत्पन्न कईलस । कबो कबो दस से भी ऊपर । हिार िौसी के ही उन्नीस बाल-बच्चा रहे आ सभे स्वस्थ रहे । एकर कारण सभे के उसचि पोषण आहार सिलल । उपजाऊ जिीन के पैदावार, िछली, दाल-भाि आ सब्जी जईसन स्वस्थ आहार खूब सिलि रहे । 1970 िक सहंदोस्िानी सिाज के आबादी सूरीनाि के िूल सनवासी क्रीओल से ज्यादा हो गइल । बहि से सहंदोस्िानी सशक्षा िें ऊंचा स्थान ले ले आ बहिे लोग देस के राजर्ानी पारािारीबो भी पहचं ल जहां क्रीओल लोग के बहिायि रहे । 1969-1973 के बीच सहंदोस्िानी सिाज सूरीनाि के सत्ता भी हाससल कर लेलस । हालांसक क्रीओल लोग एकरा के आपन असस्ित्व खासिर खिरा बझ ु ल आ फे र कुछ जािीय ध्रवु ीकरण भी भईल । 1973 िें क्रीओल लोग के पाटी बहि कि अंिर से चनु ाव जीिल । क्रीओल नेिा आ प्रर्ानिंत्री के घोषणा आइल सक दू साल के भीिर सूरीनाि के नीदरलैंड से आजादी सिल जायी । सूरीनाि के सहंदोस्िानी सिाज नीदरलैंड के रायल सकं ग्डि िें अपना के सरु सक्षि िानि रहे । एही कारण से ढेर लोग के डच नागररकिा भी रहे । एह घोषणा के बाद ढेर सहंदोस्िानी लोग अपना के सूरीनाि िें असरु सक्षि िहसूस कईल आ नीदरलैंड बसे के िैयारी िें लाग गइल । िध्यवगीय पररवार आपन जिीन संपसत्त के बहि कि दाि िें बेच के भा जेकर सूरीनाि िें आपन पररवार बांचल ओकरा के दान कर के नीदरलैंड िें बस गइल । ढेर लोग खासि इ बहि ददा नाक अनभु व रहे , 100 बररस के भीिर दु पीढ़ी के बीच दूसरा बार सवस्थापन आ प्रवासी बनल । नीदरलैंड िें फे र से सहंदोस्िानी सिाज के पनु गा ठन कईल गइल । फे र से संस्कृसि सनखरल आ नीदरलैंड के संस्कृसि के साथे घल ु सिल के एक हो गइल । भारिीय ससनेिा के बढ़ि

प्रभाव आ संचार िाध्यि (उपग्रह टेलीसवजन, इंटरनेट, िोबाइल फोन) प्रवासी भारिीय से एह सिाज के पहचान बनावे आ बरकरार राखे िें िदद सिलल । ढेर लोग आपन जड़ के खोज करे सबहार आ उत्तरप्रदेश दौरा कइले । इ लोग अपना के भारि से जड़ु ल िहसूस ि करेला बाकी एक पाररवाररक ररश्िावाला कड़ी नईखे बनल । इ लोग भारि िें जािी,सिाज आ रंगरूप से जड़ु ल भेदभाव के कारण अपना के असहज िहसूस करेला । एही बीच 1980 िें, सूरीनाि के शासन व्यवस्था सिसलट्री के सजम्िे आइल आ 1987 िें फे र से लोकिन्त्र बहाल कईल गइल । एह बार क्रीओल , सहंदोस्िानी, आ आउर सिाज के लोग के बीच सत्ता के बंटवारा कईल गइल । सूरीनाि के आबादी करीब आर्ा लाख के बा आ अब जािीय संबंर् सौहादा पूणा बा । सहंदोस्िानी आजों बड़हन सिाज बा आ एसहजा सहंदोस्िानी संस्कृसि के सजंदा रखले बा । अब इ लोग नीदरलैंड आ सहंदस्ु िान के सिाज िे ररश्िा बना रहल बा । सहंदस्ु िान पैिृक भूसि ह एसहजा से सांस्कृसिक आ आध्यासत्िक जड़ु ाव बहि िहत्वपूणा बा । खास करके नत्ृ य-संगीि आउर कला के आदान-प्रदान खासिर । कुल सिला के सगरसिसटया िज़दरू न के प्रवासी भारिीय बनला के आ एक नया सािासजक संस्कृसि के बनावे आ बढ़ावे के इ अद्भुि कहानी बा । जेह िें इ लोग आपन सभ्यिा आ संस्कृसि के सवषि पररसस्थसि िें भी बँचा के राखल । आज सूरीनाि िें 300,000 से भी असर्का सूरीनािी सहंदोस्िानी रहेलें । नीदरलैंड के कुल डच आबादी के 1 % लोग (175,000, 2013 के गणना ) प्रवासी भारिीय सिाज के सहस्सा बाड़ें ।

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गा​ाँव

गा​ाँव 1. आपन गउिां

2. गा​ाँि गीि

घन बसवररया बीया पीपर आ बर बा । अइहs ए जम्ु िन चाचा ओइजे हिार घर बा।।

परिी परास अकरौटा आ भीटा, कहीं कहीं लउके ले रेही रे िोरा, गउँवा के लिहर सरेही रे िोरा ।।

िलवा िलइया के का करीं बड़इया बहिे नीिन लागे करिी लेड़इया पूछिे पछ ु ि चाचा चसल आइब रउआ गउँवा के परू ु ब बरि जी के चउरा आि अिरूसर्या कटहर बड़हर बा अइह ए जम्ु िन चाचा... बीया िससजसदया सशवाला बाटे भारी िौलवी अजान पूजा करेले पज ु ारी पंडी जी र्ोबी के चाचा कसह बोलावेले बाबू साहेब सबका से दोस्िी चलावेले लागल खड़न्जा पगडंडी डहर बा अइहs ए जम्ु िन चाचा... गउँवे िें भूि बाड़े गउँवे िें सोखा सबगरल बनावेलन ससनचरी के कोखा होखेला झगरवा िऽ पंच फररआवेले र्रु ी बाबा िन के िइसलया िेटावेले टीबल ु सरकारी बाटे अवरी नहर बा अइहs ए जम्ु िन चाचा... के हवे जे िवु ेला िऽ छोड़ी हरवाही सब के ह एके साथे जाला परवाही ईसदया का सदने सहंदु खाले जाक संग िें फगआ ु के सदने िुससलि रंग जाले रंग िें बाड़ा िनसायन लागे कुछु के ना डर बा अइहs ए जम्ु िन चाचा... भोरहीं िें सनगा नु गावे सशवजी गोसाई ं चकरी चलावेली कलाविी के िाई कुछऊ जो घटेली िऽ सिल जाला पइँचा अइब ि सिली जाई भाव के गलइचा सिआ ु सखआइसब िोहके नाही लगहर बा अइहs ए जम्ु िन चाचा...

घरु ह के खेिवा िें बड़े-बड़े ढेला फोरे ले लई के कुदार पलटू जी आलू के िेढ़ा लगावे हांके ले हरवा के दार बीच खररहनवा िें र्नवा पीटाला उड़ी-उड़ी पड़े ले खेही रे िोरा।। काका के भइँससया डबरवा िें हीरे पसड़या चोन्हा ले िकनाय चनर भइया चरावे ले गइया एसड़या िें फाटल बा बेवाय दोबरल र्ोसि फटहवा बा कुरिा घिवा िें जरे ले देही रे िोरा।। साँझ होिे ससवाने िें बोले ला ससयरा रसह रसह सजयरा डेराय िोरा गउँवा िें लागल बाटे भाठा भोरे-भोरे इँटवा पथाय पिरू के पअ ु रा िें सपसलयन के डेरा सपलवन से सनेह री िोरा।। िोरा गउँवा िें बरि बाबा बाड़े चारों ओर बाटे परसियान पांडे पीपर िर बइठ के पढावँसु लररकन के दे ले सगयान दू दूगो बड़़ु वे ससवाला ए भइया दूर से लउके सरेसह रे िोरा ।।

कहे ले गोबर्ा न कसव भोजपरु रया सून िसन र्इ के सर्यान गड़ही के िीरे बसल हि बानी िसटये के बड़़ु वे िकान सिआ ु के लबरी िलाई से बसढ़ के कबो-कबो सिले परेसह रे िोरा ।।

गोबर्धन 'भोजपुरी : एकवारी मजिा बमिया के रहमनयार गोबधयन 'भोजपुरी' जी के िन गीत, कमवता, नाटक िेखन आ िंच से काव्य पाठ अउर नाटकन िें अमभनय करे िें मवशेष िागेिा। इहा​ाँ के रािायण आ िहाभारत के भोजपुरी पद्दानुवाद कइिे बानी। अपने के रचना पत्र-पमत्रकन िें प्रकामशत होत रहेिा। भोजपुरी के सेवा खामत इहा​ाँ के कई गो सामहमत्यक, सांस्कृ मतक संस्था सम्िामनत कइिे बािी स। (संदभय : अाँजुरी भर िू ि , भोजपुरी संस्थान, इं रपुरी, पटना ) © आखर ● जन ू , 2015 ● 18


गा​ाँव

करे अगवानी - फते चं द बे च ैन करे अगवानी कोइल बसगया िें गाइके भौंरा गनु गनु ाये डाली फूलवन प जाइके रसहया बोहारेली बसंिी ई बयररया सरसों सँवारे पीयर चदरा सबछाई के गेहवँ ा के बसलया करेला अठखेसलया िीसीया िगन नीला गोटवा लगाइके सपना िें सपया जब लउके आर्ी रसिया िन-िन जरावे सवरसहन के जगाइके िस्िी िें गावे सभे गाँव के छोकरवा ढोल, िदृ गं , झाँज अउरी डफरा बजाइके िोहक सगु ंर्वा से भरर सदहले बसगया अिवा के िोजरा से रस बरसाइके

फ़तेह चंद ‘बेचैन’ गा​ाँव डू हा, मजिा बमिया के रहे वािा ितेहचंद 'बेचैन' जी िुक्तक, गजि, हास्य व्यंलय कमवता, कहानी, गीत आ मनबंध िेखन खामत जानि पमहचानि जानी। भोजपुरी के उत्थान खामत सािामजक-सांस्कृ मतक संस्था सन के साथे काि करे के अनुभव । सामहत्य सेवा खामतर सामहमत्यक -सांस्कृ मतक संस्था सन से सम्िान प्राप्त । संदभय : 'अाँजरु ी भर िू ि', भोजपुरी संस्थान, इं रपुरी, पटना

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लोकगीत

भोजपुरी लोकगीत: गा​ाँव आ लोक जीवन

भो

जपरु ी लोक सासहत्य अपना प्राचीनिा आ सवस्िृि-व्यापक क्षेत्र खासि जानल-िानल जाला। एकरा गभा सवभा िें एह क्षेत्र िें सभ्यिासंस्कृसि, ज्ञान-सवज्ञान, इसिहास-भूगोल का साथे जवन बररयार, सि​ि ृ लोक संस्कार आ लोक परंपरा के भण्डार सिलेला ऊ साइिे कवनो दूसर भाषा सासहत्य िें भेंटाव।

सांस्कृसिक, आसथा क आ ऐसिहाससक संदभा न के सिावेश होला। जवना के व्यापक प्रभाव िन-िसस्िष्क के स्थाई रूप से प्रभासवि करे िें सहायक होला। लोकगीि खासि अंग्रेजी िें Folk Song शब्द के व्यवहार होला। चैंबसा सडक्शनरी िें एकर अथा बिावल गइल बा ' Any song or ballad originating among the people traditionally handed down by them' ि​िलब अइसन गीि जवना के उद्गार आ उदगि लोक िें भइल आ ऊ परंपरागि भाषासवद् आ भाषा वैज्ञासनक अनस ु ंर्ान आ अगर गा​ाँवन से पलायन के रूप िें सिलि गइल। लोक शब्द के जन गंभीर अध्ययन के कसौटी प चढ़ के ई सिदु ाय, संसार, दसु नया-जहान सािान्य जनिा े े रोक क बा त सरकार आ भोजपरु रया लोक सासहत्य अपना किना का अथा िें जानल जाला। लोकगीि वोही रूप लोककथा, लोकगाथा आ लोगगीि जनप्रतततनति लोग के सिान्य आ जनिा के सवद्वान सवचारन के गेय आसद सभन्न-सभन्न परंपरा आ श्रेसणयन िें खाली हवाई फायर कइला रूप होला। लोकगीि का सवषय िें पािात्य सवभि भइल। जवन अपना भीिर सवसभन्न सवद्वान राल्फ सवसलयि के ि​ि बा, लोकगीि े क जगह क छ ठोस कदम ु कोसटयन िें वगीकृि बा। भोजपुरी लोकगीि वोह िूल वक्षृ के िरह होला जवना के जड़ के वोही परंपरा के सवसशष्ट आ िहत्त्वपूणा उठावे के पड़ी । सडक, भूिकाल िें सस्थर होला आ जवना िें नया नया कड़ी िानल जाला। तबजली, सुरक्षा,लघु उद्योग शाखा फूटि रहेला। ि सवद्वान लेखक िैसक्सि गोकी एकरा के 'सािसु हक प्रेरणा के प्रबलि​ि आतद पर बे ह तर काम करे कवनो भाषा के लोक सासहत्य िें लोकगीि स्रोि िनले बाड़न। े क पड़ी । कवनो कारखाना के आपन सवशेष परंपरा होला। जवन अपना गेय लोक सासहत्य के प्रस्िुसि के चलिे चाहें आतफस काहें ना गा​ाँव साचहँ भोजपरु ी लोक सासहत्य आपन भावजानल जाला। लोकगीिन िें िानव जीवन भंसगिा खासि देश दसु नया िें जानल जाला। एकर में लाग सकेला ? के यथाथा , सहज-सरल आ स्वाभासवक लिहर परंपरा आ सवशाल भण्डार अबसहयो प्रवसृ ियन के संपूणा बखान होला। जवन रहस्य के पेटी िें बंद परल बा। अगर कुछ पदा​ा ससदयन से िानव जीवन के सभ्यिा, संस्कृसि रूपी दस्िावेज का ओट से बाहरो आइल बा, ि ऊ बहि कि बा। ि​िलब अपना भीिर सवरले सजवले पीढ़ी दर पीढ़ी लोक संसार के एकर सस्थसि ओह सहिनदी जइसन बा जवना के कुछ आंसशक भेंटि गइल । लोक सासहत्य िें लोक संस्कृसि के वणा न भाग लउके ला ि असर्कांश भाग लुकाइल होला। एकर सनसि​ि सिलेला। जवन िानव सिाज के पाररवाररक, सािासजक, रूप-रेखा खींच के संस्कार-परंपरा आ ज्ञान-सवज्ञान, िनोरंजन

रत्रिकांत त्रसंह जय प्रकाश मवश्वमवद्यािय, छपरा िें 'भोजपुरी मवभाग' िें व्याख्याता रमवकांत हसंह जी गा​ाँव चैनपुर, िशरक के रहमनयार हईं। इं हा के पररवार िें शुरू से ही भोजपुरी िें पठन-पाठन के िाहौि रहि बा। इं हा के बि भाई शशीकांत जी भी भोजपुरी मशक्षण से जुि​ि बानी। भोजपुरी सामहत्य के संरक्षण खामत इहा​ाँ के 'भोजपुरी इनसाइक्िोपीमडया' तइयार करत बानी एकरे संमक्षप्त रूप िें 'संमक्षप्त भोजपुरी ज्ञान दपयण' के नाि से पुस्तक प्रकामशत भइि मबया। भोजपुरी पत्रकाररता पऽ इहा​ाँ के पीएचडी कर रहि बानी। इहा​ाँ के भोजपुरी िें पत्रकाररता के मवद्याथी िोग खामत कई गो टेक्सट बुक प्रकाशन खामत तइयार बािी स। इं हा के पूवय िें प्रभात खबर से जुि​ि रहि बानी आ अबमहन एगो अमनयतकािीन भोजपुरी सामहमत्यक पमत्रका 'भोजपुरी संवाद' के संपादक भी बानी । © आखर ● जन ू , 2015 ● 20


के सशक्षा ससदयन िक सलहल जा सकि बा ा़एिना सि​ि ृ बा भोजपरु ी लोक सासहत्य। लोकगीि ओही परंपरा के सनवा​ा ह करि अपना सवसवर् आ बहआयािी रूप िें सचसन्हि बा। आज लोकगीि, संस्कारगीि, ऋिुगीि, श्रिगीि, व्रिगीि, देवीगीि, जासिगीि आसद िें सवभि बा। जवना िें संस्कार गीि का श्रेणी िें जनि, छठी, िंडु न, जनेऊ, सबयाह आ ित्ृ यु का अवसर प अलग-अलग गीि के सवर्ान होला। ऋिुगीि िें - कजरी, सहंडोला, होरी, चइिा-चइिी, जाड़ा, चौिासा, बारहिासा

हनगशण ु - भोजपरु ी लोकगीिन िें सनगा णु के सवशेष िहत्त्व होला। िूलि: सनगा णु के िानवीय जीवन के यथाथा के बहि करीब सिझल-बझ ु ल आ िानल गइल बा। एह गीिन िें सनगा णु रूप िें परि ब्रह्म के उपासना आ ित्ृ यु के अभाज्य अकाट् य सत्य के वणा न पावल जाला। ि​िका ओढािै चदररया चलिी बेररया प्रान राि जब हनकसन लागे, उलह गई दोउ नैन पिररया भीिर से जब बािर लाये, छुह गई सब ि​िल अ ररया चार जने हिल खा उठाइहन, रोिन ले चले डगररया कि​ि कबीर सनु ो भाई साधो, संग चली ि​ि सख ू ी लकररया -कबीर दास

व्रिगीि िें - नागपंचिी, पीसड़या, गोर्न, सजऊसिया, छठ, नविी श्रिगीि िें- रोपनी, सोहनी, कटनी, पीसनी, जिसारी, कोल्ह जाहिगीि िें - अहीर, दस ु ार्, गोड़, चिार, र्ोबी, कहाँर आसद गीिन के परंपरा बा। ि​िलब िय जीवन के एगो टहकार लाइन एह लोकगीिन िें सिासहि होके इसिहास बन चक ु ल बा। एकरा साथे सवसवर् संदभा न के प्रस्िसु िकरण िें लोकगीिन के िहत्त्वपूणा स्थान के एगो सवशेष िया​ा दा रहल बा। एह गीिन िें नारीगीि, बालगीि, पहेलीगीि, शोषणगीि, िानवीय संघषा के साथे जागरण आ देशभसि जइसन गीिन िें जवन सौंदया वणा न के उदाहरण सिलेला ऊ साचहँ अनपु ि िनोरि दृश्य आ िाहौल के प्राकृसिक वािावरण पैदा करेला। लोकगीि िूलि: कवनो क्षेत्र सवशेष के आि जनिा द्वारा गावल जाय वाला गीि होला। जवना िें ओह क्षेत्र के सभ्यिासंस्कृसि, सवचार, रीसि-ररवाज आसद के वणा न के साथे ग्रािीण पंरपरा, गवई भाव के स्वभासवक सचत्रण सिलेला ि दोसरे ओर भारिीय संगीि के िूल स्रोिन के झाँकी भी। भोजपरु ी एगो सि​ि ृ भाषा के नाि ह जवना िें शब्दन के अकूि भंडार बा। 22 करोड़ से भी ज्यादा लोग एकरा के देश-सवदेश िें बोलि बा।

परू बी- पूरबी के ि ुख्यि: पूरब क्षेत्र के गायकी से संबसं र्ि िानल जाला। बासक आज सउँसे देश िें लोकर्नु न िें एह के एगो आपन िक ु ाि बा। एकर शरू ु आि छपरा िें भइल बासक जसल्दए इ आरा, बसलया, बनारस, कलकत्ता ससहि सउँसे भोजपरु रया क्षेत्र िें पसर गइल। इ गीि अपना सबरह, वेदना आ श्रंगृ ार पक्ष खासि प्रससि बा एकर आर्सु नक जनक छपरा के जलालपरु सनवासी पं िहेंद्र सिश्र के िानल गइल बा। िोरे हपछुिरिा अरे हनम्बुआ के खेि​िा, िोरी ननहदया रे हनम्बुआ चुिेला सारी राि िोरी ननहदया रे... -िहेंद्र सिश्र ूिर- खुशी, हषा आ उल्लास के साथे झूि-झूि के गावला के झूिर के पसहचान िानल गइल बा। एकरा के लोकर्नु के प्राचीन शैली के रूप िें भा जानल जाला। जन्ि, सबयाह आसद के साथे सभन्न-सभन्न उत्सव प झूिर गावे के एगो सवशेष परंपरा बा। जवना िें औरिन के झडुँ एह गीि के संपासदि करि सदखाई पड़ेला। झूिर एगो अइसन सकारात्िक िनोरंसजि िाहौल पैदा करेला जवना के व्यापक आ दीघा प्रभाव श्रोिा का िन सिजाज प पूणाि: दृसष्टगोचर होला।

भोजपरु ी लोक सासहत्य द लिहर भाग लोकगीि िें सिासहि बा। अगर भोजपरु ी लोकगीिन के सवसवर् रूप-स्वरूप आ प्रकार के देखल जाव ि लोक जीवन आ िानवीय संवेदना के उछाह भावना के एगो परु हर परंपरा देखे के सिली।

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लिर लिर लिराई िो िोरी चढली जिहनया​ाँ जब िोरे राजा दरिाजिा प अइलें, घरिा अाँगनिा सोिाई िो (पारंपररक)


सोिर - भोजपुरी जीवन िें संस्कार सवर्ान के सवशेष िहत्त्व सदहल गइल बा। जन्ि से ित्ृ यु िक भोजपरु रया जन जीवन संस्कारिय िाना-बाना से बनु ल होला। सोहर ओही सवर्ान के एगो कड़ी िानल गइल बा। भोजपरु रया लोक संस्कृसि िें स्त्री के गभा​ा र्ान, पंस ु वन, सीिांिोनयन संस्कार किा के सवर्ान के परंपरा पूवाकाल से प्रचसलि बा। कहल जाला की एह अवसर प गावल गइल गीिन के जच्चा-बच्चा दूनो प सकारात्िक प्रभाव पड़ेला। एकरा अलावा भोजपुरी संस्कार गीिन िें िंगल, खेलवना, छठी, नहवावन, अन्न प्राशन खासि गीि भी िौजूद बा। कि​िा​ाँ िो कृष्ण जी के जनि भइलें, कि​िा​ाँ बाजेला बधइया िो ललना के करी कोहखया सुलछहन, हकसुन जी जनि ले ले िो कि​िा​ाँ बाजेला बधइया िो ललना (पारंपररक)

िनोरंसजि िाहौल लेके आवेले। चौिासा िें िख्ु यि: िीन ऋिु गरिी, बरसाि आ ठंढा के चार-चार िहीना का रूप िें कालक्रसिक वणा न होखेला। कजरी- सावन-भादो िास िें गावल जाए वाला गीिन िें कजरी (कजली) गीि के आपन िहत्त्वपूणा स्थान बा। कजरी िें स्त्रीयन के सिूह गाँव के बाग-बगीचा िें झूला लगा बड़ा आसन्दि भाव से एह गीि के गावेला लोग। कजरी गीि प्रेि के प्रिीक का रूप िें सिझल जाला। जवना िें पसि-पत्नी के प्रेि भाव का श्रंगृ ार भाव के उद्घासटि कइल जाला। बनारस आ सिजा​ा परु के कजरी सविप्रससि बा। िोली/िोरी- होली का त्योहार का अवसर प गावल जाए वाला गीिन के होली(होरी), फगआ ु , फाग आसद के नाि से जानल जाला। होरी गीि के भारिीय आ भोजपरु रया संस्कृसि िें सवशेष सांस्कृसिक आ र्ासिा क िहत्त्व बा। इ एगो िजबूि सािासजक सद्भाव के दृश्य पैदा करि सदखाई देला।

सं ा- साँझ के बेरा गावे के चलिे एह गीि के संझा गीि के नाि से जानल जाला। एह गीिन िें साँझ के प्राकृसिक वण्या सवषय के साथे ओह कालक्रि के िनसा के उद्घासटि कइल जाला। एकरा अलावे एह गीिन िें घर के परु खा-परु सनयन संघे देविा लोसगन के भी गोहरावल जाला। परािी- जइसन सक नाि से साफ बा, इ गीि प्राि:कासलन बेला िें गावल जाला। एह गीिन िें प्राि: कासलन ऊजा​ा के संचाररि करे आ घर-पररवार के सदस्यन के किा के प्रसि आंदोसलि करे के भाव भरल रहेला। परािी िें देविा सपिर का संघे- संघे घर के परु खा-परु सनयन के नाि ले के गोहरावल जाला। जाँिसारी- जँिसारी के भोजपुरी श्रिगीि का रूप िें जानल जाला। गाँव िें िेहरारू जाँिा चलावि सिय एह गीि के गावि रहल ह लोग एही से एकर नाि जँिसारी पड़ल। अइसन िानल जाला सक एह गीि के गावे के क्रि िें जवन ध्वसनक िाहौल पैदा होला ऊ ददा आ थकान के सिटावे िें सहायक होला। भोजपरु ी श्रिगीिन िें रोपनी, सोहनी, सपटनी, कुटनी, कोल्ह, डोली, खरखसटया, पालकी आसद से संबंसर्ि गीिन के परंपरा िौजदू बा। चौिासा- भोजप ुरी प्रदेश अपना सवसवर्िा-प्राकृसिक सौंदया खासि जानल जाला। इहाँ के हर िौसि ऋिु एगो संदशे आ

चइिा/चइिी- चइि िास िें गावल जाए के चलिे एकर नाि चइिा पड़ल। घा​ाँ ो- घाँटो चइि िास िें गावल जाला। इ सवशेषि: दु पंसि के गीि हऽ। एह सब गीिन िें सीिा-राि, रार्ा-कृष्ण, सशव-पावा िी आसद देवी-देविा लोसगन के िनोहारी श्रंगृ ार वैभव के स्िुसि कइल जाला। पिश गीि- व्रि, त्योहारन के र्रिी कहाए वाला उ रत्नगभा​ा क्षेत्र ससदयन से अपना भीिर र्िा , आस्था, सविास आ आध्यासत्ि​िा के थासि अस संजोअले आज एह आर्सु नक यगु िें प्रवेश करि सवसभन्न संदभा न आ आयाि के द्योिक बा। भोजपरु रया लोक जीवन व्रि-त्योहार, पवा -उत्सव से भरलपरु ल होला। पवा गीि िें िख्ु यि: देवी-देविा, छठ गीि, पीसड़या गीि, नागपंचिी, बहरा, गोर्न, भइया दू, पनढरकउवा, सझसझया आसद िख्ु य रूप से गावल जाला। देिी गीि- भोजपरु ी अंचल िें देवी पज ू न के आपन एगो सवशेष िसहिा-िहत्त्व रहल बा। जवना िें अलग-अलग ढ़ग से देवी के आरार्ना गीि का िाध्यि से कइल जाला। देवी पचरा, देवी गीि, भजन, आरिी ओकरे सवंम्ब सवर्ान हऽ।

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नागपंचिी गीि- श्रावण श ुक्ल पंचिी के नागपंचिी पवा का रूप िें िनावल जाला। एह पवा िें भोजपरु रया जनिानस साँप (नाग) के पूजा करि दूर् आ र्ान के लावा के चढ़ावा चढ़ावि नाग देव आ नाग िािा के गीि गावे के परंपरा यगु -यगु से रहल बा। छठ गीि- छठ गीि कासिाक षष्ठी के अंज ोर िनावल जाला। छठ पवा िख्ु यि: सूया विा होला जवना िें सूया देव के आरार्ना कइल जाला। एह िहापवा िें नदी, िालाब, पोखर आ जल स्रोि के करीब बइठ के िेवा-सिष्ठा, फल-िूल से सूया देव के अरघ सदहल जाला। छठी व्रि सवशेष िौर प पत्रु कािना खासि कइल जाला। साभावा बइठल उनक ु र बाबा झंखेले राि हिरा के सबनु बेटा के कई गइले राि िसचया बइठल उनकर आिा रोवेली हो राि हिरा के बांसझन कई गइले राि ।।(पारंपररक)

जागरण गीि- जन चेि ना के जगावले जन जागर गीि के िख्ु य उद्देश्य होला। एह गीिन िें देश, सभ्यिा-संस्कृसि, संस्कार, ररसि-ररवाज, पवा -त्योहार के वणा न के साथे ओकर िया​ा दा बचावे के अपीलो होला िऽ जन चेिना के जगावे के उिंग-उत्साहो। भोजपरु ी िें 'बटोसहया', 'सफं रंसगया', 'सकसनवा', 'अछूि के सशकायि', 'गोरख पांडेय के जन गीि', 'सि​िवा' जइसन गीिन के लिहर परंपरा रहल बा जवना जन चेिना खासि पूरजोर-पूरहर प्रयास कइल गइल बा। भोजपरु ी लोक सासहत्य के कवनो दायरा िें नइखे बाँर्ल जा सकि, इ अथाह बा। बासक अफसोस अइसन िहान लोक संस्कृसि के सवद्रपु करे के लगािार कोसशश हो रहल बा, अश्लीलिा आ बाजारवादी िाकि एह संस्कृसि पऽ हावी हो रहल बाड़ी स जवन एकर िूल आसस्ित्व खासि खिरा के घंटी बा। सिय रहिे यसद एह भाषा-सासहत्य के संरक्षण-संवर्ा न पऽ ध्यान ना सदहल जाई ि इ सवलप्तु हो जाई।

गोकु ल जइसन गा​ाँ व वंदृ ावन जइसन बारी बा, गोकुल जइसन गाँव खेलेलें लईका कान्हा जईसनऽ, झूसल कदम्ब के छाँव

बाबा गोसपयन के िाथे पर सबंसदया बड़ा सोहाव खेलेलें लईका कान्हा...

िाई जसोदा जइसन लागे, हर घर के िहिारी सबकर कान्हा िारेलें, सनि अँगना िें सकलकारी झूसि-झूसि के सचरई गावे छे ड़े िन के भाव खेलेलें लईका कान्हा...

नवकी दल ु सहन अँगना िें, जब िटक िटक के चलस लचके किररया सपयरी घघुँ टा िान के जब ऊ चलस पायल बाजे अइसे जइसे बाजेला ससिार खेलेले लईका कान्हा...

बाबज ू ी नंद बाबा जइसन, कहानी रोज सुनावस रोवस जसद लईका उनके , घोड़ा बन के खेलावस

कुमारी त्रित्रनता 'रंजन' भोजपुरी के युवा स्वर कु िारी मवमनता 'रं जन' गा​ाँव इसारी मजिा बमिया के रहमनहार हईं। एतना कि उमिर िें भोजपुरी खामत इं हा के सिपयण सराहे योग बा। सांस्कृ मतक काययक्रिन िें सहभामगता, िेखन, गायन अउर अमभनय िें मवशेष रूमच बा । आकाशवाणी गोरखपुर से मनयमित काव्य पाठ ।मवमभन्न पत्र-पमत्रकन िें रचना प्रकामशत ।

संदभय: 'अाँजरु ी भर िू ि', भोजपुरी संस्थान, इं रपुरी, पटना

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मार गा​ाँव

बेटी

आजूओ हिरा गँउवा सभनस ु ार से संझौिी गल ु जार बा बासक बैलन के घंसटअन से अब ना गूंजि बर्ार बा

कहे के िs बेटी आ बूढ सउसे सिाज के होखेला बासक बेसटअन के छान्हे ढेला आ बढु उ के पछुआ खोलाि बा

सगने के िs ढेर बाडी सन कुईयाँ आ िालाब हिरा गाँवे बासक लेरुअन के सपआस अब ओह िें ना बिु ाि बा

हिरा गाँव िें के ह अब अपना सख ु िें ना हँसे

िीन कनौसजया िेरह चल्ु हा का भईल हिरा गाँवें बडकी िाई के सहयरा हिरा खािी ना छछनाि बा काहे दो हिरो िाई लुका के पावरोटी सखयावेले हिरा के िँझली िाई के दीहल िाड़-भाि डूभा िें हिके ना भेटाि बा

अनका के दख ु े देसख के सभे के सहयरा जडु ाि बा िोबाईल पs फूहर गीिन के बहार बा ऐह घरी अब सबआहन िें गाँवें कै सेटे से गारी गवाि बा फुनगी िs खाली सचन्हासीऐ होखेला आपन ऐ "भूषण" फें ड आ रुख िs हररअर बा जबले जर-सोर सींचाि बा

अब िs बाबा-आजी खािी पारी बन्हा गईल बा घरवा िें बाबा-आजी के डाँट आ अन्हरचटकी िहीना िें दू चारे सदन भेटाि बा

रूनक ु ी झनु क ु ी बेटी िंगाला पोसे के बेररया खाली बेटे पोसाला

अनकर बेटी पs लार चआ ु के आपन बेटन के नाक पोंछाला देखs ऐ "भूषण" ईहे कहाला कुक्कुर के पोंछ नासहऐ सोसझआला आपन िउगी के बनरी सिझ ु के अनकर िेहरी के सनु री कहाला

चंद्रभूषण पाण्डेय आरा , मबहार के रहेवािा चंरभूषण पाण्डेय जी , भोजपुरी िे ठे ठ आ गमहराह रचना खामत जानि जानी । भोजपुरी कमवताई के एगो बररआर ठे हा के रुप िे इाँ हा के िगातार मिख रहि बानी । एह घरी ईहाँ ा के बेगुसराय िे बानी ।

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केतना बदल गइल बा गा​ाँव ~ नरु ै न अंसारी

फोटो : चेतन कुमार, मनेर ( बबहार )

घर घर संस्कृसि शहर वाली लागल पसारे पाँव एसी/कूलर के हवा िें दब गइल बरगद के छाँव सिय के संगे के िना बदल गइल बा गाँव ! न रहल परु नका लोग, न रहल बाि परु नका सकस्सा-कहानी बन गइल, सगरी चीज़ सनिनका !

प्रेि अउर भाईचारा िें, हाकल डाईन लागल दोसरा के देख के जरे के , डाह िन िें जागल ! पसहले जेकर बसिया िन िें, सिसरी के रस घोले अब पिा ना उहे लोगवा, गजबे बोली बोले !

नवका फै शन िें टूट गइल, सब लाज हया के डोर भवे-भसरु , सास-ससरु के , ररश्िा भइल किजोर !

पवा त्योहार िें भी नइखे,अब पसहले जइसन भाव सबना िूछ ँ के लोगवा, िूछ ँ पर फे रि बाटे िाव सिय के संगे के िना बदल गइल बा गाँव !

ि​ि पछ ु ीं ि बसढ़या होइ, आज संस्कार के दशा अब ि लसड़का िारे बाप के , देखे लोग ि​िाशा !

कट गइल सगरी बाग-बगीचा, िस्ु िाि भइल फुलवारी शहर िें बसे के सबके , र्इले बा घनघोर बीिारी !

"के ह का कही" के , िन से अब सनकले लागल डर गाव िें बाबू जी से पसहले ही, बेटी खोजेले वर !

सख ु गइल सगरी पोखरा-ईनार, नहर भईल सबयाबान अपना दशा पर फफक- फफक के रोअि बा खसलहान !

बदलल चाल-चलन के साथे, भेस भूषा पहनाव इया,फुआ ,काका,काकी, सबसरल सगरी नाव सिय के संगे के िना बदल गइल बा गाँव !

गाँव के लोगवा के ही आपन, गाँव ना सनिन लागे खीर-पूड़ी, के छोड़ के लोगवा, सपज़्ज़ा के पीछे भागे !

सोहर, झूिर होरी के लोग, भूल गइल बा गीसिया छूछे- छूछे बीि जाले छठ ,पीसड़या,खर-जीउसिया !

सबरहा ,सनगा नु , चइिा ि सनु े के खूब िन िरसे बासकर अपने िें बेसाँस लोगवा, सनकले नहीं घर से ! © आखर ● जन ू , 2015 ● 25

िट्ठा-छाछ के जगे सपये लोग पेप्सी कोला ठंडा सक्रके ट के आगे बौना हो गईल, गाँव के गल्ु ली- डंडा ! सपछला एक दसक िें भइया, गज़ब भईल बदलाव सडसजटल दसु नया के पड़ल बा, बहि गहीर प्रभाव सिय के संगे के िना बदल गइल बा गाँव !


गंउवा के माटी

मोर गा​ाँव रे ! चरर-िरर-चर करे बसवररयाँ, घंटा के गूज ँ े नाँद रे हर जाि र्रि के जहवाँ संगि, ऊहे हिरो गाँव रे

गउवाँ के िाटी के , जब याद िोहे आई रही-रही िरसी सजयरा, आई बस रोवाई

लहर-लहर लहरेला खेिवा, हर-हर-हर हररयाली से साि सबु ह गूजेली गसलयाँ, लररकन के सकलकारी से पवन चले परु वाई बन, बहु ारे हर एक ठाँव रे हर जाि र्रि...

एह र्रु र भरल गसलयन िें सबिल िोहरे लररकइया जबरी िाई िहुँ िें ठूँसे, कहे रवाँ िोरे कन्हइयाँ दादी कोरवाँ काथा सनु ि, आवे िोहे ओंघाई रही-रही...

गोकुल, वंदृ ावन जइसन हो, दर्ू -दही के रेला बा साफ सघु र हर गली-गली बा, नाही ठेलि ठेला बा सचसड़यन के चहकार गूज ँ े, िगु ा​ा के गज ुँ े बाँग रे हर जाि र्रि...

ओल्हा पािी, गल्ु ली-डंडा, चीका जिे बररया िें स्वीसिंग पल े नररया िें ु िें, रस ना सिली, सिलल ट् यूवल सख ु सिु ल पअ ु रा पहली के , शहरी िें ना पाई रही-रही...

र्ोिी, कुरिा, ससर प पगरी, इहे रउवे पहनावा सरल सार्ारण जीवन हउवे, नइखे कवनो सदखावा झोपड़ एक उठावे खासिर, उिड़ल सगरी गाँव रे हर जाि र्रि...

गउवाँ के कण-कण िोहरा के , गउवाँ िें पक ु ारेला आशा के सदयना सदल लेके, रसहया के सनहारेला बचपन संगी संग खेले के , िनवाँ जब अकुलाई रही-रही..

शरद ऋिु के सरस हवा, बरबस कउड़ा जरवावेला छानी पलानी टप-टप चूव,े जब-जब बरखा आवेला ओररयानी के पानी िें चलावे बबुआ नाँव रे हर जाि र्रि... झूिर के झनकार कबो, कजररयो र्ूि िचावेली बछवाँ से सिले के गइयाँ, साँझ के र्ावल आवेली चईि िें एसी, कुलर जस, लागे अिवा के छाँव रे हर जाि र्रि...

संतोष कुमार 'शत्रश' गा​ाँव बछईपुर मजिा बमिया के रहे वािा हईं। कमवता, कहानी, नाटक, एकांकी, उपन्द्यास, किल्ि मस्क्रप्ट आ गीत िेखन आ मनदेशन िें इहा​ाँ के दक्ष बानी। इहा​ाँ के 'कियुगी अिसर', 'िजदूर की व्यथा', 'िेरे गीत', 'िेरा बचपन' जइसन कृ मत प्रकामशत मबया आ 'नवरं ग' (एकांकी संग्रह), 'तोहरे खामत', 'नाजायज' उपन्द्यास आ खून का ररश्ता जइसन कृ मत छपे खामत तइयार बािी स। उत्कृ ष्ट सृजन खामत इहा​ाँ के हहंदी सामहत्य सम्िेिन प्रयाग समहत कईगो सामहमत्यक-सांस्कृ मतक संस्था सम्िामनत कइिे बािी स। इहा​ाँ के टेमिकिल्ि 'हिारा​ा़ अमस्तत्व' कािी चर्चयत रहे। संदभय : 'अाँजरु ी भर िू ि', भोजपुरी संस्थान, इं रपुरी, पटना

© आखर ● जन ू , 2015 ● 26


बाउजी के डायरी (पहिला पन्ना) (अहनमेष कुमार वमा​ा)

चा

ह र्ईल-र्ईल सेरा गईल रहे, आ ओसारा िें बईठल सबनोद के करेजा िें, बढ़ि बेचैनी के िाप से आँख के लोर ना रुकि रहे।

अचानके उनका ढेर कुसल्ह चीज िन पड़े लागल रहे। स्कूल के बाद से गाँव छोडले, ि फे नु बहररए के बसन के रह गइलें उ। शरू ु िे िोका ना सिलो आ बाद िें िने ना करो गाँव जाए के । ढेर बाझल रहसु अपना बम्बई के नोकरी िें। लईका- फईका भईला के बाद ि िेहरारू भी आनाकासनये करस।ु गिे-गिे सबनोद अपना िाईक्रो ( बहिे छोट ) घर- पररवार िें िसन बेससये अझरु ा गइलें। कबो िाई-बाउजी के सिले के िन होखो, ि सटसकट भेज के इहें बल ु ा लेस।ु बासक़र हफ्िा दु हफ्िा िें उहो लोग वापस चल जाओ। दनु ो लो के एके साल के भीिर पारा-पारी गज ु रला के बाद सबनोद गाँव के घर जिीन बेच देहलें। ओह सिय कुल सािान के बीच बाऊजी के एगो डायरी सिलल रहे, जेकरा के उ अपना साथे ले आइल रहलें। बम्बई अईला के बाद उ डायरी के सनयो रासख के उ भल ु ा गईल रहलें। काल्ह घर िें सफाई करि घरी उनक ु र िेहरारु पछ ु ली के हेिना सदन से झठू ो के हई सरल डायरी र्ईले बानी, फें क दी ना। सबनोद कहलें, ना-ना रुकs , पसहले देखे दs का बा एकरा िें। बाऊजी के सप्रय चीज हवे ई । आजु एिवार के उ अनगिु ही चाह के संगे बाऊजी के डायरी पढल शरू ु कइलें। 1 जनिरी 1977, हदन िहनिार आजु िहीना के पसहला सदन बीि गईल बासक अभी ले िनख़ाह नईखे आईल। भोरे-भोरे जाि रहनी ि ई कहली की सांझी के लौटानी िें चौक से एक पाव सजलेबी ले आएि। सबआह के बाद पसहला हाली ३ बरीस िें कुछ िंहु खोल के ई िंगले रहली आ जेब िें हिरा चवन्नीओ ना रहे। भोलाराि से उर्ार िांगे िें बहिे लाज लागि रहे। बासक़र उ बहि नीिन आदिी हवें जे अपने कहलें, की िास्टर साहेब रउआ आराि से दे देि कवनो बाि नईखे। हि गीन के चारे गो सजलेबी लेहनी। आज सजनगी िें पसहला हाली बाऊजी के सीख से अलगा हट के काि कईनी। भर रास्िा साईसकल चलावि हिार िन अपरार् बोर् से भरि गईल रहे। घरे पहचँ के जब इनका के सजलेबी के ठोंगा देहनी ि चेहरा पे खुसी आईल देख के हिरा करेजा के िनसक सा © आखर ● जन ू , 2015 ● 27


ठंडक सिलल। राि के खाना िें रोटी आ आलू के िरकारी रहे। हिेसा लेखां, पसहले हिरा के खाना परोसली आ थरीया िें दु ठो सजलेबी र्s देहली। हि सखससया के एगो करवनी, ई कसह के की हिरा िीठ ढेर पसन्न ना ह। ओकरा बाद बबआ ु के लेके उहो खाये बईठली। 4 बररस के भइलो पे बबआ ु अपने हाथे खाए िें असकिीयास, आ उनकर िाईए सखयावेली उनका के लाड़-प्यार िें। 'अपने हाथे खाये द' के बाि पे सखससया जाएली, आ कहेली की हिी-चक ु ी लईका पे एिना जल ु ुि जसन करीं। ओकर िाई सजयिीया आ जबले हि जीएि अपना हाथे सखयाएि। जेकरा जरंिुस लागेके बा लागो। ई ब्रह्मास्त्र के बाद हि फे नु चपु हो जाएनी आ आजूओ हो गईनी। बबआ ु के सखयावल शरू ु कईली ि उनका सजलेबी बड़ी पसन पड़ल, आ िुरन्िे खा गइलें। फे नु अउरी चाहीं के लगलें हल्ला िचावे, जवना पे ई सलया के दस ु रको खीया देहली। फे नु हल्ला शरू ु कइलें, ि ई अंसि​ि सजलेबी भी सखयावे लागली। बासक़र बबआ ु अपने खाये के सजद्द कइलें आ आर्ा खा के बसकया भईु आ लसरा देहलें आ उ खाये लायक ना रह गईल। आजु पसहला हाली हिरा बबआ ु पे खीस बरल, बासक़र उनकर िाई के आँख िें चिक देख के हि चपु लगा गइनी। बबआ ु के सिु ा के बोरसी जरा के हिारा लगे बईठ के कहलीदेखनी नू, बबआ ु अपने हाथे खाए लागल। हिरा से रहल ना गईल आ कह देनी- एिना िन से िंगवले रहलू ह कि से कि चीसख ि लेहले रहिु एक हाली। हिार बसिया ओराइला के पसहले हीं उ कहली- घबराई ं जन, जब बबआ ु सेआन होके पसढ सलसख के कलक्टर बन जई ंहे नू िब इनका से एक सेर सजलेबी डेली कीनवा के खाएि। हि अब सनरुत्तर होके बईठल

- बईठल ई कुल सलख रहल बानी। सिाप्त। सबनोद बो कप लेवे अईली आ सेराईल चाह आ सबनोद के आँख िें लोर देख के घबराईले पछ ु ली- का भईल जी, अईसन का सलखल बा की रउआ नीहर आदिी के आँख से लोर चअ ु िा... बाि का बा? सबनोद कहलें- िहरा याद बा आसखरी बार जब िाई बाऊजी लोग आईल रहे इंहवा, आ वापस जाए के एक सदन पसहले, बाऊजी भोरे-भोरे हिरा ऑसफस जाए के बेरा कहले रहनी। बबआ ु , लौटानी िें एकार् सकलो सजलेबी ले अइह, िहरा िाई के बडा पसन परेला। ओह सदन सांझी खा हिरा आवे िें देरी हो गईल रहे आ हि सजलेबी ले के ना आईल रहनी। असल िें ओह सदने हि भल ु ा गईल रहनी। आ बाऊजी के िनकी सा िेज बोल देहले रहनी की एह उसिर िे एह कुसल्ह चीझू से परहेज करे के चाहीं, एहीसे हि नईखीं सलयाईल। बाऊजी भी कहलें की, बबआ ु िु ठीक कहलs ह आ फे नु उँहा के कुछों ना कहनी। ओ बेरी ना बझ ु ाईल, बासक़र आजु एहसास भईल बा की हिरा से के िना बडहन पाप हो गईल बा। खैर िु जा, लईकन के देखs, अभी ि हि पसहलके पन्ना पढ़नी ह। डायरी के पढल अभी जारी बा ...

अत्रनमेष कुमार िमाध मसवान के रहे वािा अमनिेष कु िार विाय जी , भोजपुरी भाषा आ सामहत्य िे िगातार मसरजना कई रहि बानी , आखर पेज से जुि​ि अमनिेष जी भोजपुरी िे गीत , कमवता , कहानी के संगे संगे अपना िोटोग्रािी खामत िानि जानी । कि​िहाि इाँ हा के अबुधाबी , युएई िे रमह रहि बानी ।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 28


एिवात

जु सगु नी नईहर आईल सबया, अपना कोठरी िें जािे वोकर आंसख से झर-झर लोर चवु े लागल आ साि साल पसहले के बाि सनीिा लेखा आंसख के सोझा लउके लागल, वोह घरी सगु नी के उसिर पंद्रह साल के रहे, हाई इस्कूल के परीक्षा अउवल निर से पास कईले रहे, गर्बेररया हो गईल रहल िले दआ ु री पर िीन चार गो िोटरसाईसकल आ के रुकली सन, रसव के बन्दक ु के जोरी, जबरी, बाबूजी, िािा अउरो चार पांच लोग पकड़ के लेआवल लोग आ कोठरी िें बईठा के बहरी से सीटीसकं नी लगा सदहल गईल । वोकरा कुछुओ ं ना सिझ िें आवे सक ई कुल का होि बा, िर-िाबर सगु नी के नया साड़ी पसहनावल गईल, रसवयो के कुरुिा अउर सपयरी र्ोिी पसहना के अंगना िें लावल गईल, फे नु दनु ों के अगली-बगली बईठा सदहल गईल, पंडी जी के िंिर आ रसव के आँसख से लोर एके साथे चलि रहे, रसव के हाथ पकड़ के जबरी सगु नी के िांग िें सेनरु डलवावल गईल, एह िरे सगु नी आनन फानन िें एहवाि हो गईल । होि सभनस ु ारे दवु ारी पर लोगन के जटु ान होखे लागल, रसव के बाबूजी आ उनक ु र ररश्िेदार आइल रहले, िान िनौअल के संगे-संगे र्िसकयों के दउर चले लागल, सगु नी के बाप रसव के बाबूजी के गोड़े सगर गलिी हो गईल, गलिी हो गईल, कसह के िाफ़ी िांगि रहलें, दोसर ओरी सगु नी के िािा र्िसकयाविो रहलें । बहिे बाद सबवाद भईल, बासकर दबाव िें रसव के घर वाला सगु नी के अपनावे के िैयार हो गईल, खैर.... जईसे िईसे सवदाई हो के सगु नी रसव के घरे चल आइल । सुगनी बझ ु गईल सक वोकर पकडुआ सबयाह हो गईल बा ।

रसव वोह घरी इंजीसनयरी दूसरा साल के सवद्याथी रहलें, पसहला साल िें कालेज टाप कईले रहलन, सबयाह भईला के बाद से रसव एकदि चपु चाप रहे लगलन, के ह से ना बोलस,ु अकसरे रोअि रहस, िाई के बहिे सिझउला पर एक सदन उ

लघु कथा

भोकार पार के रोवे लगलन आ एके लाईन कहलन "िाई हिार इज्जि परसिस्ठा ि ले सलहलन सन" पूरा पररवार एकाकी आ सगु नी बेचारी भ गईल रहे । रसव वोह साल परीक्षा छोड़ सदहले । खैर सिय सबि​ि गईल,रसव पढ़ सलख के सरकारी सवभाग िें इंसजसनयर हो गईले, सब कोई सगु नी के िाफो कर सदहलस बाकी रसव ना । िाई के आवे के आहट पाई के सगु नी अपना के सहेजे के कोसशश करे लागल, बेटी के िरु झाइल चेहरा देख िाई एक साथे कई गो सवाल पूछ बईठली । "का बाि बा सबसटया ?" "िू खुश नईखु का ?" "िोहार देह काहे गलल जाि बा ?" "ससरु ा िें खाये के नईखे सिलि का ?" "सास ससरु सिावि बा का ?" "ना िाई अईसन कवनो बाि नईखे, हि खुश बानी आ सास ससरु ि देविा सनयन बा लोग" "ओह ! ि िोहार गोद आज ले हररहर ना भईल वोसे िू दख ु ाि बाडू" ु ी बझ सगु नी कुछ ना बोललस पर वोकर आँख से बहि पानी बहि कुछ कहि रहे । "िू रोअs सजन सबसटया, िोहार बाबूजी से कह के काल्हे शहर के बड़का डाक्दर से िोहके देखावे के बेवस्था करि बानी" "डाक्टर का करी िाई, िू बाबूजी से कह दे सक बन्दक ु के बल पर उ हिार गोसदयों हररहर करा देस"

गणेश जी ‘बागी’ गणेश जी बागी भोजपुरी आ महन्द्दी सामहत्य के उभरत सामहत्यकार हई , सामहमत्यक वेबसाइट ओपन बुक्स ऑनिाइन डॉट कॉि के संस्थापक आ पथ मनिायण मवभाग मबहार सरकार िें सहायक अमभयंता के रूप िें काययरत गणेश जी बागी पटना (मबहार) िें मनवास करे नी। इहा के पैतृक मजिा बमिया ह। बागी जी छंद युक्त आ छंद िुक्त कमवताई करेनी, इहा​ाँ के िघुकथा बहुते पसन कईि जािा । © आखर ● जन ू , 2015 ● 29


का

नसीब

लेज के चउथी घंटी बाजल । रेशिा के अगराइल िन अइसन चहलस सक क्लास से एके बेरी उड़ के उहां पहचं जइिी जहवा उनकर िन-िीि असभषेक उनका इन्िजार िें खडा होइहें । असभषेक बाइलोजी ा़ के छात्र हउअन आ रेशिा कला के छात्रा हई । एही से दनु ू आदिी एके बेरी ना सिल पावस । एगो आदिी के इन्िजार करहीं के पड़ेला । असभषेक पस्ु िकालय के कोना िें बइठल सकिाबन ओरी सनहारि रहलें बासकर िन िें रंगीन सपना के घटा उनहि रहे । गोर छरहर देह िस ु सकयाि िन के भोराइल भाव इनका िन के िोह लेले रहे । उनका आँख िें उभर आइल-नेह नहाइल सिलन के लसराइल भोर । जब बन संवर के रेशिा एक सदन गाव के घोनसारी िें गइल रहली । इ ओ घरी ि​िहर िें रेशिा के गाँवे रहस । उनका के देखिे कं ठ से फूट पड़ल‘‘हिरा ओरी िू देखऽ एक बेररया, हि िरी-िरी जायेब िोहार सकररया । ‘‘रेशिा अचकचा के पीछे घूि के कुछ कहहीं के चाहि रहली िले बर्ार सकओर से ठाकुर साहेब के आवि नजर टकराइल जइसे कवनो परिाणु बि के सवस्फोट हो गइल होखे । ठाकुर साहेब आविे गरजले-‘बबनु ी, िे िाक इनका सकओर आ ना िअ ु ले ि आज बे िअ ु वले ना छोड़ब । ‘ इनका ि जइसे करेंट िार सदहलस । उनकर दसु नया अन्हार होखे लागल । इ का जानि रहलें सक ठाकुर साहब लगहीं खइनी बनावि के ह से बसियावि रहलें । गाँव के लोग बीच-बीचाव कके िसिला ठंढावल । िब सांस िें सांस आइल । आजो उ दृश्य इयाद आवेला ि िन िरिरा जला । बासकर आज ि उहे रेशिा उनका करेज के कसक हो गइल बाड़ी । असभषेक ! असभषेक !! आज ि सहन्दी के क्लास िें िाजा आ गइल हो । प्रोफे सर साहेब पढ़ावि रहनी ह ि बिवनी ह सक

‘साली‘ आ ‘जीजा‘ शब्द कइसे बनल । उहां के बिवनी ह सक‘जब करेजा िें साली िबे उ साली ह । ओकरा के देख के जब िन अघा जाव, जी-जाव िब उ-जीजा‘ ना ि कवना बाि के जीजा । का असभषेक, इ बाि ठीक ह? असभषेक उनका के का जबाब देसि कहलें-‘अभी अनुभव नइखीं कइले । ‘ कहे के ि कह देलें बासकर उनका बझ ु ाइल जइसे उंट चोरा के उ खलेखले जाि होखस । उनका इयाद पड़े लागल जब उ भउजी के कहला पर भइया के साली बोलावे खासिर गइल रहलें । रास्िा पर उनका छोह-छाव के चलिे रहिे ना बझ ु ाइल । उ चलिे चलि बइठ जास आ कहस सक अब हिरा से नइखे चलल जाि । हि जब बांह र् के उठाई ि कहे लागस- ए जी, सबना सिलके -दहेज के हिार हाथ बांह र् लेनी, ि ठीक बा अब ि हि राउर हो गइनी । अब हि रउरे घरे रहेब । ‘ आजो इ बाि करेजा िें सालेला । सांचहं साली-साली आ करेजा िें साली । ‘ ‘ए जी का सोचे लगनीं । उ अचकचा के जगलें । उ कहलीआज हि कुछ पछ ु े के चाहि बानीं । हिरा िन-िंसदर के देविा, अइसे कब ले चली । इ पूजा के फूल देविा के चरण िें कब ले चढ़ी? असभषेक गम्भीरिा से िरु िं कहलें-‘रेशिा, िहरा के हि परान से बेसी िानीले । आपन सजनगी के हरेक खशु ी दे देवे के िइयार बानीं । बासकर िू बिावऽ-सजनगी भर के साथी इ सिाज बने दी का? एक ि िहार जाि ना हई । दोसरे गरीब बाप के बेटा । आपन िड़ु ी असभषेक के छािी िें सटाके कहली‘प्रेि िें जाि-पाि के देवाल ना होखे । इ दू गो िन के सउदा ह । दसु नया िें कवनो अइसन देवाल नइखे जवन िहरा के हिरा से अलग कर देव । रेशिा भावावेश िें आके झझोर के पछ ु लीकहां गइल िोहार कहनाि, उ आदिी कइसन जेकरा के सिाजे बदल देवे । ‘ ‘रेशिा‘ िू सिाज के बखान नइखु जानि । इहां के लोग जरि​िअ ु ना ह । ‘

अत्रभषेक भोजपुररया ग्रा- भटवमिया, पो0- बादरजिीन, मजिा- छपरा के मनवासी अमभषेक जी , भोजपुरी भारती पमत्रका के उप संपादक हइं । आ भोजपुरी सामहत्य आ संस्कृ मत के अिख जगावे िे सदैव तत्पर, सामहमत्यक पररवार से जुडि भोजपुरी भाषा िे एक से बकि के एक नीिन नीिन िेख कमवता मिखेनी।

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हि खूब जानि बानीं । िरद-िेहर राजी ि का करी काजी । बस, अब ि एके गो रास्िा बा- हिरा के ले के भाग चलऽ । बोलऽ बा िंजरु ?‘ रेशिा पछ ु ली । भागला के नांव कायरिा ह रेशिा । िहरा से वादा करि बानीं अपना गोड़ पर खडा भइला के बाद िहरा के हि दल ु सहन ा़ बना के ले जाएब । अभी ि सबरु करऽ । रेशिा सखससया के अिने कहली- ‘िुहं िरदे हउअ का? आ चल देली । उनका बझ ु ाइल जइसे िनवा के सार् के सरार् हो गइल होखे । असभषेक िेसडकल कम्पलीट करे पटना पढ़े चल गइलें । रेशिा असभषेक के सबना िउर गइली । रेशिा आ असभषेक के प्यार के बाि िेल खानी गाँव भर िें पसर गइल । रेशिा के बाप इ सनु के जिीन िें गड़ गइलें । अब सदन-राि एही फे रा िें लागल रहस सक सबसटया के कइसे हाथ सपयर कर दीं । छािी पर के बोझा कइसे उिरी । बचपन से पोसल बेटी सरर्ा के सूरि आ ि​ि​िा के िूरि रहस बासकर दहेज के एह जबाना िें छािी के बोझा हो गइली । शादी के फे रा िें सदन-राि सछसछआइल सफरस । गोड़ के चाि सखआ गइल । कहीं घर सिले ि वर ना कहीं वर सिले ि घर ना । जहां दनु ू रहे उहां के िोलाई सनु के आँख िें जोन्ही फुलाये लागे । जेकरा सर्ु पलासनओ नइखे ओकर िोलाइ सनु के करेज दलके लागे । ठाकुर साहब के सचन्िा िें डुबल देख के रेशिा के िाई कहली- ‘ए रवंऽ, का सचन्िा िें डुबल बानीं । अपना बबनु ी िें कसिये का बा । अइसन सघु र,सशु ील, साफ के कर बेटी बा । इनका कवन चीज के लुर नइखे-ससआई-फराईसे खायेक बनावे िक । ‘ रेशिा के बाबु सखससया के कहलें-‘एह घरी लोग रुसपआ के जािल भइल बा । रुप-रंग पछ ु े ना कोई, रुसपआ सदही से सिर्ी होई । पइसा के आगे रुप-रंग के पछ ु ि बा हो । भगवान का जाने बबनु ी के भाग िें का सलखले बाड़े । ‘ ठाकुर साहेब अबसकर घिु ि-घिु ि रािपरु गाँव िें शादी ठीक कइलन । लइका जनिा बजार िें स्टूसडयो रूप श्री के सनिन सबजनेस सम्हरले रहे । इहो सबआह राजबलि बाबु िास्टर साहेब के िदद से ठीक भइल । हारल-खेदाइल अबसकर एक लाख नगद आ एगो िोटर साइसकल सकार सलहलन । एक सदन फागनु के सगनु सोहरे लागल । हाथी-घोड़ा हेनहेनाि आइल । इ िर-उपर र्ोिी पसहरले िन िरले दआ ु ा ु र पज

खसिर बइठल रहस । सचन्िा-सचन्िा िें इनकर सचि जरि रहे‘एके गो िाई के कोखी से बेटा-बेटी दनु ू पैदा होला । बासकर बेटा भइला पर थररया बाजेला आ बेटी भइला पर पसंगी के असगयो बिु ा जाला? उनका िन िें सवाल उठि रहे-एकर सवरोर् ि िेहरारुओ लोग के करे के चाहीं बासकर अपना भाई के सवआह िें उहो लोग उछाह िें गावेला-‘‘बड़हन अजरु ी पसररह ए िनोज दल ु हा, बड़हन नइया िोहार हे । ‘‘भा-बड़काबड़का बटुला िॅगनी छोटका काहे ले अइलऽ हो । ‘ एही सिय दआ ु रपूजा के गीि शरु​ु हो गइल-‘सलहीं ना अनजानों बाबा र्ोसिया, हाथ पान के वीड़ा, करीं ना सिसर्या से सिनिी ससर आजू नवाई । जवन ससर कसहयो ना नवल िवन ससर बेटी हो रेशिा बेटी कारणे आज नवाई । ‘ ठाकुर के अइसन बझ ु ाइल उनकर िाथ आज एही बेटी के कारण झक ु गइल बा । दहेज खसिर ढेर थुकि-फसजहि के संगे रेशिा सबदा हो गइली । बासकर रेशिा के नसीब िें सख ु कहाँ रहे । राि-सदन के खोबसन । सास-ननद के ठोना-‘लरपिु ा, िोटर साइसकल नासहये देलन सन । झोंटा र्के सनकाल ससरु ी के । ‘ रोज के ठनहथ हो गइल रहे । एक सदन रसोई घर से सकरासन िेल के संगे कांच िांस के िंसाइने गंर् संघु के पड़ोसी लोग दउरल । जरि रेशिा के आग बझ ु ावे लागल लोग । देखल लोग सक स्टोव फूट के पसरल िेल अिोर् कइले बा । रेशिा के छपरा हसस्पटल िें भरिी करावल गइल । उ सजनगी आउर िउअि से संघषा करि रहली । ओही घड़ी एगो डॉक्टर इिरजेन्सी वाडा िें आइल । रेशिा पर नजर पड़िे उनकर चेहरा सख ु गइल । बेचैनी बढ़ गइल । उ खून चढ़ावे खसिर पक ु रलें । बासकर खून देवे वाला रहे के । खून देवे वाला ि कफन देवे के प्रसिक्षा िें रहे । डॉक्टर के ि जइसे ठकुआ िार सदहलस । खुद आपन खून सदहलें । रेशिा र्ीरे-र्ीरे आपन आँख खोलली आ नसा से पछ ु ली-‘हि कइसे बांच गइनी ए बसहन!‘ लगली पक ु ा फार के रोवे । नसा चपु करावे लागल । ‘देखऽ हो दे डाक्टर साहेब आवि बानीं । उहें के आपन सजनगी देके िोहरा के बचवले बानीं । ‘ रेशिा-‘असभषेक! कह के बेहोश हो गइली । दनु ू जाना के आँख से लोर गंगा-जिनु ा बन के उिड़े लागल । असभषेक अिीि िें लवट के सोंचे लगलें‘रेशिा के अइसन गंजन के दोषी हिहीं बानी नू । ‘ रेशिा र्ीरेर्ीरे आँख खोलली बासकर उनका उदास चेहरा से सजनगी भागि नजर आवि रहे । असभषेक हालाि के भांप के गम्भीर होि जाि रहस िले रेशिा र्ीरे से लगे बोलवली आ कहे

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लगली-‘असभषेक, जे सजनगी ना ढोवे सकलऽ ि ल अब लाश ढोवऽ । ‘ इहे कहके उनका गोदी िें िड़ु ी र्के हिेशा-हिेशा खासिर एह दसु नया से चल गइली । असभषेक पक ु ा फार के रोवे लगलन । सिलन उनका खासिर नदी के दूगो सकनारा हो गइल

रहे । असभषेक के बझ ु ाि रहे जइसे उनकर अिीि दआ ु र पर आके सपआसे लवट गइल होखे । शायद हिरा आ रेशिा के नसीब िें इहे सलखल रलऽ ।

काऊ फादर

नारस खासिर एगो कहावि कहल जाएला :''राँड़-साँढ़-सीढ़ी-सन्यासी, एसे बचे िे सेवे काशी ''

एक बार शहर िें एगो साँढ़ बहि िंग कईले रहल । ओकरा के बनारस भेजे के प्लान बनल । जहाँ बनारस पर नौ िन बोझा िहाँ एक िन अउर सही । िब अंग्रेजवन के ज़िाना रहे । लोग सोचे लागल रेलवे िें आवेदन ि अंग्रेजी िें भेजे के होखी । ओबेरा शहर के जोन बनारस पड़े । अब साँढ़ के अंग्रेजी का होखेला ? बहि सोच सवचार भईल । हल सनकलल ''काउ फादर'' के रूप िें । सबके िीसटंग भईल, रेलवे िें सचट्ठी सलखाईल, काउ फादर जािारें, कृपया वहाँ से कोच भेजे । अंग्रेजी के भाषा बड़-छोट सभे YOU अउर HE कहाला । िुि और आप िें कौनो फका ना । अब बनारस िें बझ ु ाइल सक

काऊ फादर िने कौनो होली फादर,या चचा के फादर होखीहें । उहाँसे फस्टा क्लास सैलून भेजल गईल । एने शहर के लोग बूझल अंग्रेजवन के सदिाग के कौनो सठकाना ना हs । पिा ना एिना अच्छा कोच काहे आसयल बा । बान्ह छान्ह के चढ़ा सदहल लोग । अब साँढ़ के ओसहिे दू सदन िें अउर िाथा खराब हो गईल । बनारस स्टेशन पर गाडी के इन्िजारी होखि रहे । भाई फादर जी आवि रहले । सभे हाथ िें फूल िाला सलहले फादर जी के इन्िजार करि रहे । बैंड बाजा बाजे के पूरा िैयारी रहे फादर के अगआ ु ई िें । र्ीरे-र्ीरे ट्रेन प्लेटफािा पर पहचँ गईल । सैलून के दरवाजा खोलाईल । बदहवास साँढ़ ओसह िे से सनकल के अफरा- िफरी िचा सदहलें । अब इ लोग का बैंड--बाजा बजाई । सभे के बैंड बजा सदहलन उहे ।

समता सहाय मसवान, मबहार के रहे वािा सिता सहाय जी भोजपुरी िें िगातार मिख रहि बानी। इहा​ाँ के िेखनी िें व्यमक्तगत अनुभव के बहुत कु छ पढ़े के मि​िेिा। गायन के क्षेत्र िें भी सिता जी के नाि बा। अभी इहा​ाँ के कदल्िी िें रह रहि बानी।

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बेटी के हबयाि गीत समता स ाय

बे

टी के सबआह िें िरह -िरह के सवचार सविशा होखि रहेला आपस िें । िाई- बाप के अलग,बाप- बेटा के अलग, साथी- सिाजी से अलग, सहि नािेदार से अलग । बासकर बाप-बेटी के बीच जवन सवचार होखेला ओसह भाव के दशा​ा वि एगो गीि :आि से सिठी िहअईया हे बाबा सक, अरे बाबा िहआनी लागी गईले कोच साजन लोगवा घेरर अईले हो सक अरे बाबा … कोठा से ऊपर कोठररया हो बाबा, सक अरे बाबा सझरी सझरी लागेला सकवाड़ साजन लोगवा घेरर अईले हो … िासह कोठा सूिीले बेटी के बाबा, सक अरे बाबा ठंढी ठंढी चलेला बेयार साजन लोगवा घेरर अईले हो … िासह पईसी जगावेली बेटी हो कवन बेटी, अरे बाबा काहे रे सूिीला सनरभेद साजन लोगवा घेरर अईले हो … कुछु रे सूिीला कुछु जागीला हे बेटी, सक अरे बेटी कुछु रे दहेजवा के सोच साजन लोगवा घेरर अईले हो … गईया िें सदहनी भँइससया ए बेटी सक अरे बेटी बारहो बरन र्ेनू गाई साजन लोगवा घेरर अईले हो …

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एिना दहेज़ हि बेटी के सदहनी सक अरे बेटी िख ु वो ना बोलेला दािाद साजन लोगवा घेरर अईले हो … एिना दहेज़ रउआ हिरा के सदहनी, सक अरे बाबा छुडी लासग रुसेले दािाद साजन लोगवा घेरर अईले हो ... िहु र िुड़ाई बेटी छुसड़या बनवसयनी, सक अरे बेटी सोनवा के िठु ीया लगाई साजन लोगवा घेरर अईले हो … जब रे दल ु ारी के बेटा छुडी हाथ सलहले, सक अरे बेटी नई नई करेले सलाि साजन लोगवा घेरर अईले हो ...


बंगाल सबू ा में शोरा के व्यापार ( भाग 2)

फोटो साभार : पी.राज ससंह

(गिािंक से आगे : सपछिा अिंक में छपरा के स्थानीय इसिहास के एगो अल्प ज्ञाि पहिू पर चचात भईि रहे । हमनी के देखनी सन जे बिंगाि सूबा में डच साहसी व्योपारी आके साल्ट पीटर (शोरा) के व्यवसाय करि रिे हन । शोरा (साल्ट पीटर) ऊ िोग आदमी आ जनावर के मि मूत्र से बनावि रहि हा आ ओकर सप्िाई यूरोप के देशन में करि रहि ह । शोरा के फे रु ररफाइन कई के पोटाससयम नाइट्रेट में बदि​ि जाि रहि हा । पोटाससयम नाइट्रेट के उपयोग बारूद बनावे में होि रहि हा । ई बारूद दसु नया के देशन पर कब्जा करे में इस्िेमाि होि रहे। पूरा बिंगाि सूबा में छपरा शोरा के उत्पादन के एगो प्रमख ु कें द्र के रूप में रहि ह । )

(1757 के पलासी यि ु के बाद देश िें अंग्रेज़न के शासन पक्का आ िजबूि हो गईल। र्ीरे र्ीरे डच व्यापारी आपन बोररया सबस्िरा बान्ह के देश से चल गईले । आज के छपरा सजला स्कूल के भवन कभी डच सब के सनवास, अन्न के भण्डार आसद रहे।) एह बीच डच ईस्ट इंसडया कं पनी ( VOC ) के एगो अउर बड़

भवन के पिा लागल बा । ऊ भवन ह आज के सजलासर्कारी के काया​ा लय के ठीक पसच्छि िरफ सड़क पार के भवन । आजकल एह भवन िें सब प्रकार के ररकाडा रखाला आ एही भवन िें पररवहन भवन ससहि एकार् गो अउरी सरकारी काया​ा लय बाड़ी सन । िध्य काल से आर्सु नक काल ले एसशया आ अफ्रीका िें व्यापाररक , सािररक , राजनीसिक सहि के बढ़ावे खासिर बारूद के प्रयोग के इसिहास पावल जाला । सफर भी एसशया आ यूरोप के बीच व्यापार िें शोरा एगो सहायक चीज ही रहल ह ।, वजन से िात्र 16% , िख्ु य वस्िु कपास , िसाला आसद रहल ह । जहां िक सबहार आ बंगाल के प्रश्न बा इहाँ यूरोप के प्रिख ु देशन िें डच आ अंग्रेजन के उपसस्थसि ही इसिहास के पन्ना िें प्रिख ु िा से दजा बा । एह क्षेत्र से व्यापार के वस्िु िें िख्ु य रूप से शोरा ही रहल ह । भारि िें िध्यकाल िें िोरा िगु ल साम्राज्य के सवस्िार के कारनन िें एगो कारन बारूद आ िोप के सफल प्रयोग भी रहल ह । शोरा के प्रयोग

पी राज त्रसहं छपरा , मबहार के रहे वािा पी राज हसंह जी आर एस कािेज मसवान िे एसोमसयेट प्रोिे सर बानी , नया तकनीकी से जुि​ि अपना िातृभाषा खामत हर तरह से िागि भीि​ि , अपना मवशेष कै िरा से जवार के हर पहिू के कै द करत भोजपुरी भाषा के एगो सामहमत्यक किात्िक उं चाई दे रहि बानी । एह घरी इाँ हा के छपरा िे बानी ।

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आ . उत्पादन के िकनीसक जानकारी िगु लन के रहल हा लेसकन, उत्पादन ओह जिाना िें सवके सन्द्रि रहल ह । िुगल सैसनक एकरा के बाजार से कीनि रहले सन । के न्द्रीय स्िर पर एकर उत्पादन ना होि रहे । 1580 आवि आवि जहांगीर के शासन काल िें िुग़ल सैसनक शोरा के उत्पादन आ बारूद सनिा​ा ण के कारोबार अपना हाथ िें ले लेहले । 15 वीं शिाब्दी िक भारि के राजा लोग भी शोरा के भण्डार बनावे के प्रयास शरू ु कई देले रहे । बंगाल आ जौनपरु सल्िनि के दरबारी सवद्वानन द्वारा बनावल फारसी शब्दकोशन िें शोरा उत्पादन के सवस्िार से वणा न सिल जाला । ई सब सन्दभा एह से िहत्वपूणा हो जाि बा सक बंगाल आ जौनपरु के बीच के भूभाग बाद िें शोरा उत्पादन के प्रिख ु भाग के रूप िें प्रससि भईल । कुछ इसिहासकारन के अनस ु ार 1460 इस्बी िक ( यानी ईस्ट इंसडया व्यापार शरू ु होखे के पसहलहीं से ) फारसी सोि से ई साफ हो जाि बा सक बंगाल आ जौनपरु राज िें कुछ राजा के ओरर से संगसठि रूप से शोरा के उत्पादन होि रहल ह । इसिहासकार लोग के ई सिूह िानेला सक भारि एह कला िें यूरोप से लगभग एक हजार बररस आगा रहल ह ।

गंर्क आ चारकोल ( काबा न ) । एकरा िें पसहलका सबसे असर्का िहत्व के बा । गंर्क आ चारकोल आसानी से बाजार िें सिल जाला । लेसकन शोरा जेकरा से पोटाससयि नाइट्रेट बनावल जाला आसानी से ना सिले । पोटाससयि नाइट्रेट बारूद िें ऑक्सीडाइजर के काि करेला । गंर्क के िौजूदगी िें चारकोल िें आग िेजी से पकड़ेला । एह सक्रया िें असर्क से असर्क ऑक्सीजन के सप्लाई पोटाससयि नाइट्रेट से होला । अँगरेज़ 18 वीं शिाब्दी के अंि ले आपन िोपन िें पोटाससयि नाइट्रेट , गंर्क आ चारकोल 6:1:1 के अनपु ाि िें करि रले हन । शोरा के अउर सब भी उपयोग बाड़ी सन जइसे सक आसिशबाजी , कपड़ा रंगे िें , चिड़ा सख ु ावे िें , साबनु बनावे िें , र्ािु किा िें आसद । बासकर आर्सु नक यगु के प्रारम्भ िें शोरा के उपयोग िख्ु य रूप से बारूद बनावे िें होखे लागल । यूरोप के देश अपना अनभु व से जान चक ु ल रहले सन सक बारूद के िेजी से ना बनावल जा सके । यि ु के सिय जिना बारूद लागी ओिना ना सिल सके । एह से शासन्ि के सिय भी कबो बारूद के िांग कि ना भईल । कीन कीन के एकरा के गोदाि िें जिा कईल जाि रहे ।

िोरा , बारूद के उत्पादन : शोरा प्राकृसिक रूप िें भी पावल जाला लेसकन ई अिना ना होला सक एकरा से अिना बारूद बन सके सक यि ु िें ओकर प्रयोग हो सके । परु ान देवालन पर नोनी लागल ि सभे देखले होई । नोनी िें ऊजर रंग के जवन चीज लउके ला उहे शोरा ह । ई ऊजर पदाथा परु ान गाय भई ंस के गोबर , पअ ु रा आसद पर भी कभी कभी उग जाला ।

भारि िें डच आ अंग्रेज़न के आगिन 1600 इस्बी के बाद भईल । एह दनु ो शसि के अईला से शोरा के व्यापार सम्बन्र्ी बहि दस्िावेज आज उपलब्र् बा । शोरा उत्पादन जवन एगो छोट ग्राि कला रहल ह आ जेकर खरीदार छोट िोट कारोबारी रहले , अब एगो बड़ संगसठि अंिरराष्ट्रीय व्यापार के सहस्सा बन गईल जेकर आसथा क , सािररक , राजनीसिक िहत्व बहिे बढ़ गईल । बारूद : बारूद के िीन िख्ु य अवयव होला , पोटाससयि नाइट्रेट ,

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1803 से प्रथि सवि यि ु िक पोटाससयि नाइट्रेट के डच ईस्ट इंडडया कंपनी ( VOC)


औद्योसगक उत्पादन नाइसट्रक अम्ल , सवद्यिु आका लैंप आ वायिु ंडल िें नाइट्रोजन के संजोग से होखे लागल । बासकर आर्सु नक काल के प्रारम्भ िें शोरा के उत्पादन आदिी आ जानवर के िल िूत्र, राख, घास-भूसा के उपयोग से कइल जाि रहे। असल िें एह पररविा न के पाछे एगो बैक्टीररया बा जे काबा सनक पदाथा के खा के आपन सबष्ठा बाई प्रोडक्ट के रूप िें ऊजर पदाथा के छोडेला । इहे शोरा ह । लेसकन ई आर्सु नक खोज ह । िध्य काल िें बैक्टीररया के खोज ना भईल रहे । ऊ बैक्टीररया के नाव ह , क्लॉस्ट्रीसडयि बोटुलीनिु बैक्टीररया । एह सक्रया के पूरा करे खासिर बैक्टीररया के कि ऑक्सीजन वाला क्षारीय िाध्यि के जरूरि होला । एही जैसवक सक्रया के सगु ि करे खासिर एगो 2X1.5X1 गज के गड़हा बनावल जाि रहे । एही गड़हा िें आदिी आ जानवरन के िल िूत्र , घास भूसा आसद भरा जाि रहल ह । बाद िें एह कम्पोस्ट के सख ु ावल जाई, फे र िूि पानी आसद से सभजावल जाई, एक दूहाली िर ऊपर कईल जाई । लगभग साल भर एह सक्रया के कईला के बाद सूखे के छोड सदयाई सूखला पर नोनी सनयर जािल पपड़ी के बटोर सलहल जाि रहे । सभंजवला पर जवन पानी नीचे सरवि रहे , ओकरो के भी नरी बना के बटोर लेहल जाि रहे । फे रु ओह पानी के ढ़ेर देरी ले उबालला के बाद नीचे बइठल ठोस के बटोर सलहल जाि रहे । इहे ठोस पदारथ शोरा ह ।

जाि रहल ह । बरसाि िें नदी के पानी उफन के जिीन पर पसर जाई । ई पानी एक दू िहीना भा भर बरसाि लागल रही , जेकरा चलिे िाटी िें उपलब्र् सब ित्वन के लवण पानी िें घल ु जाि रहल ह । कच्चा िाल के रूप िें काबा सनक अवसशष्ट आदिी आ जानवरन के िल िूत्र आसद असानी से सिल जाि रहल ह । जाना िजूरा भी सस्िा आ सहजे उपलब्र् रहले हँ । पानी सख ु ला के बाद ई लवण सब जिीन के ऊपर पपड़ी के रूप िें बांच जाि रहल ह । 2. एह क्षेत्र के िापिान शोरा के औद्योसगक उत्पादन खासिर बैक्टीररया के सक्रया के बढ़ावे िें उपयि ु रहल ह । 3 .एह क्षेत्र िें क़च्चा िाल के रूप िें काबा सनक अवसशष्ट , आदिी आ जानवरन के िलिूत्र आसद भी प्रचरु िात्रा िें पावल जाला । सस्िा जाना िजूरा के बारे िें कुछ कहहीं के नइखे । 4 . ओह घरी सड़क अच्छा ना रहली हा सन । सारा कारोबार जल िागा से होि रहल ह । सरजू आ गंगा से हगली िक जल िागा बहि सगु ि आ सस्िा रहल ह । भोजपरु रया भाग से अफीि आ नील के भी अंिरराष्ट्रीय व्यापार होि रहल ह । बासकर शोरा-व्यापार के िहत्व कुछ दोसर रहल ह ।

जौनपरु से बंगाल िक , िख्ु यिः छपरा , शोरा उत्पादन के कें द्र होखे के कई गो कारण हो सके ला । 1. प्राकृसिक रूप से एह क्षेत्र िें शोरा पसहले से भी पावल

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भोजपरु रया संस्कार

लेखक :देवन्द्े र नाथ ततवारी

फोटो साभार : चेतन कुमार , मनेर

भोजपुरी संस्कार गीतन में नीतत मल्ू य प्रस्िािना

वनों लोक-संस्कृसि अपना गीि-संस्कार आ परंपरा के िाध्यि से लोक-जीवन िें सािंजस्य अउर िूल्यन के जीवंि बनावेले। जदी िानवीय व्यवहार के सांस्कृसिक आयोजनन के पष्ठृ भूसि िें सिझे के कोसशश कईल जाय िऽ भोजपरु ी लोक-संस्कृसि एह नजरी से सवकससि संस्कृसि कहल जाए के हकदार सबया। भोजपरु ी संस्कार-गीिन िें नैसिक िूल्यन के संप्रेसषि करे के क्षि​िा पऽ कवनो िरीका के शक शबु हा नईखे कईल जा सकि । ई अकाट् य, अभाज्य आ सनसवा वाद रूप से ससि सत्य बा। भोजपरु ी संस्कारगीिन िें जवन नैसिक िल्ू यन के भाष्य कईल गईल बा ऊ अपना आप िें काव्यालोचना के प्रसि​िान बा आ भोजपरु ी के सासहसत्यक सिसृ ि के प्रिीक भी । ओइसे िऽ भोजपरु ी संस्कार-गीिन के कें द्र िें िानवीय जीवन के प्रत्येक अंग के सचत्रण भइल बा बासक उत्तरोिर सवकास के कई चरण िें एह संस्कार-गीिन के भाषाई स्वरूप िें बदलाव देखे के सिलेला । असल िें भोजपरु ी संस्कार गीिन के अंिवा स्िु सवश्लेषण पऽ कें सद्रि हिार शोर् अध्ययन से ई सनष्कषा प्राप्त भईल सक भोजपरु ी संस्कार-गीिन िें नैसिक िूल्यन से संबंसर्ि भाव िें

कवनों पररविा न नइखे आईल। ई एगो सख ु द संकेि बा काहें सक आज भोजपरु ी पऽ चहओ ं र से सांस्कृसिक संक्रिण के खिरा आ दबाव बढ़ रहल बा । प्रस्ि​िु शोर् अध्ययन िें संस्कार-गीिन िें सिासहि नैसिक िूल्यन के देखे के दृसष्ट प्रस्िासवि करे खासि एगो छोट बासक िहत्त्वपूणा प्रयास कईल गईल बा । सिाज-संस्कृसि, िानव जीवन आ प्रकृसि से संबंसर्ि ई शोर् एही से असर्क प्रासंसगक हो गईल बा काहेंसक भौसिकवादी यगु िें एकर सवलप्तु होखे के संभावना बढ़े लागल बा । लोक-िानस आ नैहिक िूल्य साँच पूसछ िऽ लोक-िानस के आर्ारशीला पऽ ही लोकसासहत्य के सज ृ न होखेला अिने ना सज ृ न आ सनिा​ा ण के ई प्रसक्रया सि​ि चलि रहेला । एकर आर्ारभूि ित्वन िें नैसिकिा आ र्ासिा किा के संरक्षण, लोक- संस्कृसि के असभव्यसि, ससु चिा आ स्वाभासवकिा, भाषा के वासचक प्रयोग, रूसढ़ आ परंपरा के सनवा​ा ह आसद िौजूद रहेलन । एह संस्कार गीि िें स्वाभासवक लौसकक नैसिक सचंिन अंिसना सहि बा। ई सचंिन िानवीय जीवन बोर् आ दाशा सनक पक्ष दूनो से सि​ि ृ बा । असल िें इहे भोजपरु ी लोक संस्कृसि के जीवन

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दशा न भी हऽ । बिौर बानगी ई भोजपरु ी लोरी गीि देखींए चंदा िािा, आरे आिऽ पारे आिऽ सोना के क ोररया िें, दूध भाि लेिे आिऽ बबुआ के िुि​िा​ाँ िें घु ु क... एह लोरी गीि िें िनोवैज्ञासनक रूप से ररश्िन के अहिीयि के स्थासपि कईल गईल बा- बबआ ु ई चंदा िोहार िािा हवें जवन हर वि िोहरा साथे रसहयन । िोहार रक्षा कररहन । दरअसल एह गीि के िूल िें जाके पड़िाल कईल जाय िऽ लइका के िािा के िौजूदगी उहाँ संभव नईखे बासक जब लईका के अवचेिन िन िें संस्कार िूल्यन के सनरूसपि कईल जा रहल बा िऽ उनकर करीबी नािेदार/ररश्िेदार से पररचय करावल जरूरी बा । बासक अइसन सिय िािा के अनपु सस्थसि के चलिे सांकेसिक (ससंबोसलक) रूप िें चंदा से िुलना कईल जाि बा । अब एकरा के िसन दोसर संदभा िें देखल जाय िऽ एह पथ्ृ वी के अलावा ब्रह्मांड से भी पररचय करावे के प्रयास कईल जा रहल बा । एगो अउर पलना गीि देखींअरे ूल- ूल, ूल- ूल बाबा के दल ु रूआ ूल, दादी के खेलिना ूल ूलना ूलेला दल ु रुआ रे

बबुआ ूलना... एह गीि िें भी दल ु ार, नेह जइसन भाव िऽ भरले बा बासक संबंर्न के बिावल गईल बा साथे साथ लईका के जीवन आदशा जइसे श्रवण कुिार, लाल बहादरु शास्त्री आ जवाहर लाल जइसन बने के बाि भी सीखावल जा रहल बा । बु उिल आ नैहिक िूल्य

सांख्य शास्त्र िें बिावल गईल बा सक सृसष्ट िें आदिी के

जबसे आँख खल ु ल िब से ऊ सबसे पसहले बसु ि के सवकास िें लागल बा । दाशा सनक लोग एह बसु ि के ‘अनभु ूसि’ आ ‘स्िसृ ि’ दूगो रूप िें बिवले बा। वैसदक सासहत्य से लेके लोक सासहत्य िक िें कहल गईल बा, ‘बसु ि बल हऽ’ । एही बसु ि के बढ़न्िी आ सशक्षा जइसन िूल्यन के संवर्ा न खासि िनोवैज्ञासनक प्रयासन िें भोजपरु ी बझ ु ऊअल(पहेली), बोर्ोसि आसद के आपन एगो अलगे िक ु ाि बा। बझ ु ऊवल एक ओर जहाँ लसड़कन खासि अचरज आ रहस्य के खजाना होखेला उहें दोसरे ओर बाल-िन के िकाशील अउर सवचारवान बनावेला। िऽ आई ं, पहेसलयन के पांि से एगो पहेली के बिौर बानगी सनरेखल जायिाथ ना गोड़ ना, पा​ाँि ना पे ी, घरे-घरे घूिे ई के कर दू बे ी जेकरा घर ई बास बनािे, ओकरा घर नास करािे। (उत्तर: हचंिा)

भोजपरु ी िें एगो कहावि कहल जाला सक ‘सचंिा से चिुराई घटे, दख ु से घटे शरीर।’ ई िथ्य आर्सु नक िनोवैज्ञासनक शोर् द्वारा प्रिासणि भी हो गईल बा । एह से पहेली के रूप िें एगो िनोवैज्ञासनक चेिावनी के प्रसि आगाह करि सकारात्िक सोच जइसन िूल्यन के बढ़ावे के बाि सहज सरल िरीका िें सिझा सदहल गईल बा । िनोवैज्ञासनक लोग िन के िीन गो भाग िें बंटले बाअचेिन, चेिन आ असिचेिन। जागिृ अवस्था िें जेकरा बदौलि रोज़िरा​ा के काया -व्यवहार चलि बा उहे िन के चेिन अवस्था ह । अचेिन अवस्था िें संस्कार आ आदि जइसन िूल्य गसिशील रहेलें । सिु ल-जागल दनू ो अवस्था िें ई ससक्रय रहेला । आ एह दनू ो के बाद आसखरी परि ‘असिचेिन’ के कहल जाला । एही असिचेिना के सवकास खासि ध्यान लगावे के बाि हिनी के परु सनया कईले बा लोग । भोजपुरी के सबसे बड़ हि​िेषिा साँच कहीं िऽ भोजपरु ी के सबसे बड़ खाससयि ओ हर पररसस्थसियन-पररघटना के गेय असभव्यसि िें व्यि करे के पररपाटी ह जवना के अंिगा ि लोक गीि, चेिना गीि, श्रि गीि, जासि गीि, कृसष गीि आ अंि​ि: संस्कार गीिन के

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िाध्यि से संपूणा संस्कार आ संस्कृसि के स्वरूप सववेसचि बा। एह संस्कार गीिन के सबसे बड़हन सवशेषिा बनावटीपन से अलगाव, सरल–सहज असभव्यसि आ स्वयं के जगहा पऽ सिूह के व्यापक भाव जासहर कईल बा । भोजपुरी संस्कार गीि िें स्िच्छिा के िूल्य भोजपरु ी संस्कार गीिन िें सांस्काररक, सांस्कृसिक आ दाशा सनक िारिम्य बहि स्वभासवक अउर सहज बा । अइसना िें लोक संस्कृसि के चौपाल के र्ूसिल स्िृसियन के अनदेखी नइखे कईल जा सकि जवन िानवीय िूल्यन के जागिृ स्रोि बाड़ें। एह िूल्यन के झलकी एह संस्कार गीि िें साफ –साफ झलकि बा अिने ना एसहजा प्रेि-भसि के पराकाष्ठा के भी उद्घासटि कईल गईल बागाई के गोबरे ि​िादेि अंगना हलपाई गजिहि आिो ि​िादेि चउका परु ाई चनन चीरी चीरी, हपढई बनाई िे

हनष्कषश नैसिक िूल्य से संबंसर्ि कवनो सबंदु भोजपरु ी क्षेत्र चाहें भोजपरु रयन से अछुिा नइखे । भोजपरु ी ससदयन से िानवीय संस्कार आ संस्कृसि के सि​ि ृ करे खासि प्रयास कइले सबया । आजु जहां एक ओर आपन देश िें सवसवर्िा, गंगा-जिनु ी िहजीब, सौहाद्रा आ आपसी भाई-चारा जइसन सािासजक िूल्य खिरा िें बाड़ें उहें दोसरे ओर हिनी के लोकजीवन आ लोक-संस्कृसि िें गीि- संस्कार- परंपरा के बूिा प सािंजस्यसि​िा आ आपसी लगाव-जड़ु ाव जइसन िूल्य हजारन साल से जीवंि अउर गल ु जार बाड़ें । इहो कहे के जरूरि ना पड़ी सक कवनो लोक भाषा िहज गीि-संगीि आ वासचक असभव्यसि भर ना होखेले बलुक ओकरा िें एगो परु हर परंपरा, संस्कृसि आ जीवनिूल्य सिासहि होखेले । अइसना िें जब इसिहास बिाविा सक जइसे-जइसे सािासजक-नैसिक िूल्यन के प्रसि सिाज के रुझान कि भईल बा, जीवनपिसि आ सांस्कृसिक आंदोलन किजोर भईल बा िऽ दलाल प्रवसृ ि बढ़ल सबया आ िय सिाज सबखराव के सशकार भईल बा । एह से आई ं नैसिक िूल्यन के सशक्षा अपना लोक संस्कृसि से लीहीं आ एकरा संरक्षण के सदशाई कुछ ठोस आ कारगर कदि उठाई ं। संदभश ग्रंथ : असखलेि र ससन्हा. (2008). भोजप रु ी लोकगीतों में संस्कार. पटना : जानकी प्रकाशन.

िाहि पीढिी बइठे ले ि​िादेि, ज ा ओरिाई िे भनु ेिर भास्कर. (2007 )

एह संस्कार गीि िें िूलि: आपन इष्ट के वंदना कईल गईल बा बासक एकर भाव पक्ष िानवीय सचंिन आ चेिना के अद्भुि आर्ारशीला पऽ खड़ा बा । एह िें गाय के िािा के रूप िें आ उनका गोबर के अि​िृ के दजा​ा सदहल गईल बा । अिने ना कवनो भी शभु परोजन के प्रारंभ िें स्वच्छिा आ शि ु िा के प्रर्ानिा देवे के बाि कईल गईल बा काहें सक गोबर से लीपलपोिल घर िें कवनो कीटाणु ना आवेंलन । एकरा साथे-साथ ई संस्कार गीि िनष्ु य, जीवन, सिाज, प्रकृसि आ पया​ा वरण के पारस्पररक संबंर्न के भी अत्यंि सहजिा से व्यंसजि करि बाड़ें ।

भोजपरु ी लोक-संस्कृ सि और परम्पराएं. नई सदल्ली: प्रकाशन सवभाग सूचना और प्रसारण िंत्रालय भारि सरकार . भोजपरु ी भाषा लोक सासहत्य एवं संस्कृ सि. (2014 ). ससपाही ससंह 'श्रीिंि' . पटना : जागृसि पसब्लके शन .

सवद्या ससन्हा. (2011 ). भारिीय लोक सासहत्य परंपरा और पररदृश्य . नई सदल्ली : प्रकाशन सवभाग सूचना और प्रसारण िंत्रालय भारि सरकार . सविासित्र उपाध्याय. (1997). लोकगीतों में क्ांततकारी चेतना . नई तिल्ली : प्रकाशन तिभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार.

देिेन्द्र नाथ त्रतिारी देवररया, युपी के रहे वािा देवर ें नाथ मतवारी जी , द संडे इं मडयन भोजपुरी पमत्रका के कॉपी एमडटर रमह चुकि बानी। इाँ हा के स्वतंत्र पत्रकार भी बानी आ एह घरी वधाय िहाराष्ट्र िे आगे के पिाई कई रहि बानी । कई गो शोध परक िेख अिग अिग पमत्रकन िे प्रकामशत हो चुकि बा । आखर पेज से शुरु से जुि​ि बानी आ भाषा सामहत्य प कई गो िेख आखर प भी िामग चुकि बा ।

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बेटी हबयाि : तइयारी

का

अनपू श्रीवास्तव

रउआ के अपना बेटा-बेटी के सबयाह के िइयारी करे के बा ? जो राउर जवाब हाँ िें, बा ि कागज कलि उठाई ं आ लाग जाई ं िइयारी िें, आ नासहयो बा ि िनोरंजने के नाव पे चसल आई ं। सबसे ऊपर श्री गणेशाय नि: सलखीं, फे रू अपना देवी देविा, गरु​ु आ बड़ बज ु गु ा के सर्यान क के , शरु​ु हो जाई ं । चलीं सबसे पसहले सलस्टवे बनावल जाओ । घर पररवार, पास-पड़ोसी, इयार-दोस्ि, ि​िहर, फुफहर,सिसर्यान, ससरु ाल, सढ़़ुआन, बसहनवरा, आसफस-दफ्िर, स्कूल से जरु ल सगरो खास लोगन के नाव जेकरा के नेविे के बा । खाली एिने करि िें, रउआ के आनन्द सिलल सरु​ु हो जाई, ढेर लोग अइसन िन परी जेकरा के रउआ भल ु ा गइल होखब । एकहक जने के हाव भाव, आ ओ लोग से जरु ल नीिन-बाउर खीसा-कहानी सगरो आँसख के सोझा घूि जाई, आ बझ ु ाई सक ई लोग अब्बे से जूटे लागल बा । खैर जब एिना लोग आई ि ओ लोग के रुकला, ठहरला, खइला-सपयला, आ खासिरदारी के बारे िें, सोचल जरूरी बा । के करा के के करी साथे सेट कइल ठीक रही भा के करा से के कर पटरी ना खाई । जहाँ से सबयाह करे के बा ओइजा से लोगन के आए जाए खासिर सार्न के इन्िजािो करे के पड़ी । फे रू िौसि के सहसाब से, सबस्िरा-सबछौना के ब्यवस्था, जो कही ँ छत्ते पे भा खल ु हा िें, सिु ावे के बा िबरखा-बन्ु नी, आन्ही-पानी अइला पे वैकसल्पक ब्यवस्था कइल । टेन्ट-कनाि, कुसी, बिा न ि सिल जाला बाकी, बाजा-सबजली आ गाड़ी, जनवासा खासिर पसहले से बसु कं ग करावल जरूरी हो जाला । एही िरह से पंसडि, नाऊ, हलवाई, र्ोबी, िोची के िनो खास होखे, ओकरा के पसहले से नेविल जरूरी हो जाला ना ि ऐन िोका पे पहि झेलावे न सन । झेलावे के बासि होखे ि दजी भाई लोग से नीिन उदाहरण

कहँवा सिली । ि रेडीिेड आइटि के छाँसड़ के जउनो सूट-साट ससआवे के होखे ओकरा खासिर पसहलवें चेिल जरूरी बा, ना ि हि देखले बानी िोका पे लोगन के कौनेंगा रोआइन परान हो जाला । जे रउए सजम्िे सगरो ब्यवस्था होखे ि ओकरा के कगजे पे सलख लेई ंसक, के करा से का करावे के बा । सगरो करवन के सजम्िेदार लोगन िें बाँट देई ं आ हर गोल िें, एगो िेठ बना देई ं । जेकरे सजम्िे सबजल ु ी-बत्ती के सजम्िा होखे ऊहे जेनरेटर आ िेल के सनगरानी करे, जेकरे सजम्िे खइलासपयला के सजम्िा होखे ऊहे बरफ, दूर् चाह के स्टाक चेक करि रहे । जेकरे सजम्िे गद्दा-सबछौना होखे ऊहे नहाए, र्ोए आ दिुअन-िंजन के ब्यवस्था देखे । कुछ लोग के पसन्द के सहसाब से नाच-आके स्ट्रा के सजम्िा दीहल जा सके ला, कुछ लोगके फालिू भीड़ बटोरइला से बचे खासिर लगावल जा सके ला । कि उसिर वाला लइका-लइसकन िें,शादी-सबयाह के उत्साह बहि होला, ओकनी के छोट-िोट कार देहला पे ऊ बहि खुसी-खुसी करे लन सन । जइसे सक, एक हाली पूरा घर िें, राउण्ड िरवावल सक, के ह खइले सबना बाकी ि नइखे, सबके सत्त ु े के ब्यवस्था हो गइल बा सक नाही, िसकया, चदरा, पानी, बेना, कछुआ छाप अगरबत्ती जइसन चीजन के जहँवा जरूरि होखे ओइजा पहचँ ावल । गस ु लखाना िें भा दआ ु रे कल पे लोटा, बाल्टी, िउसलया, साबनु थोड़े-थोड़े देर पे चेक करावल । हि ि ई कहब सक, िेठवन के अपना से नथले रहीं आ जरूरि के सहसाब से िनी-िनी डाँट-फटकार के साथे, पचु कारि रहीं आ शाबासी दीहल सजन भल ु ाई ं। अक्सरहा अइसन देखल गइल बा सक, आदिी रुपयापइसा ि खूब खचा करेला बासक, थोड़-िोड़ ब्यवस्था िें किी के चलिे भद्द हो जाला आ खड़गंजी लोग के िसाला सिल जाला । रउआ सोचि होखब सक, आजु िैरज े हाउस, होटल, ररसाट्ा स आ वेसडंग प्लैनर के जिाना िें, ई कुल हि कइसन राग छे ड़ले बानी, बासक, हि कहब सक, जिाना के िनो आगे

अनूप श्रीिास्ति देवररया , उ. प्र. के रहे वािा अनूप श्रीवास्तव जी किा प्रेिी हई , संगीत गीत से इाँ हा बहुते गमहराह िगाव ह । भोजपुरी िे इाँ हा के मनरं तर मिख रहिी बानी । इाँ हा के गीत आ कमवता बहुत ही सािमयक आ भाव से भरि होिा । अनूप जी एह सिय कदल्िी िे रहत बानी । © आखर ● जन ू , 2015 ● 40


बसढ़ जाए लोगन के जरूरि आ देखभाल के पैिाना ऊहे परु नके रहेला । कइ बेर बड़हन-बड़हन चीजन के आगे छोटका पे सर्यान ना जाला, जइसे अगर घर के िेहररुअन के 4 गो ढोलक के जरूरि बा ि ओकर ब्यवस्था करे के चाही, हिार परंपरा आ संस्कृसि एिना सबसाल बा सक, सबयाह के पसहले से सबयाह के बाद ले कुछ ना कुछ घटले रहेला, बस टाइि पे ओही के उपरा दीहलब्यवस्था कहाला । सबकुछ हँसि-गावि होला ि नीिन लागेला, लररकन-िेहररुअन से घर आ जलसा के रौनक होला, ि ओ कुसल्हन के पहनावा-ओढ़ावा, सौख, िौज-िस्िी के पूरा खयाल रखे के चाही । सगफ्ट भा उपहार हिेसा आ हर के ह के नीक लागेला, ि बजट िें, एकरा के जरूर जोरे के चाही । एकरी अलावा हर आदिी के िान-सम्िान के खास ध्यान देवे के चाही, के ह अपना के कगररआइल ना बूझे । टाइि- टाइि पे एक चक्कर सबकी आगे आपन हासजरी लगावल जरूरी होला, एही बहाने ओह लोग के हासजरी लाग जाला । बाहरी लोग आ हीि-नाि के चक्कर िें, अपना करीबी लोग के उपेक्षा ना होखे के चाही, जेआइल बा ऊ ि नीिनबाउर ले-दे के चसल जाई, बाकी, सथवें वाला लोगवा हिेसा

कार आई । सहररया सबयाह िें ि, सब ओरा गइल बा । बह भोजवा के नाव ररसेप्सन र्रा गइल बा । बस ओही िें, खानपान, लीहल-दीहल, नाच-गान सब हो जाला । आदिी अइसे वापस होला जइसे सनीिा छूटल होखे । बरक्षा, सिलक, आ सबयाह के अलावा बहि छोट-िोट रसि होली सन, जवना के आपन िजा, िहत्व आिान्यिा बा । िटकोड़वा, सपिरनेविनी, हरदी, ढोल के आवाज, गारी, बन्नाबन्नी के गाना, सब खि​िें ि​िाि बा । कोहबर से ब्यूटी पाला र लेके सफर िें, एगो नया चीझू जउन जनिल बा ओकर नाव र्राइल लेडीज़ संगीि जवना िें, गीि-गवई से ढेर डेक आ डीजे के हो हल्ला रहेला । बाँसे के िाड़ो, हसड़या, पिुकी, परई, हाथी-घोड़ा, के जगसह फोसल्डंग वाला नकली आइटि आ गइल बा । रउआ सबसे हिार ईहे सनहोरा बा सक, बेटा-बेटी के सबयाह, हाऊ-हाऊ िें, सजन सनबक ु ाई ं । ई कुल कौनो जग(यज्ञ) से कि ना होला । सगरो रसि, रीसि, ररवाज के साथे खूब रस आ उल्लास के साथे करीं सभे । हर रसि के पाछे ओकर एगो र्ासिा क, सिासजक आ वैज्ञासनक कारण जरु ल बा ।

हजनगी िमार बालू के नेंव बाटे बालू के दीवार , फूस के पलानी हs सजनगी हिार ।

पल ु ुई पर के खोंिा हाजार गो बायार, बालू के नेंव बाटे बालू के दीवार फूस के पलानी हs सजनगी हिार ।

छने िें िाशा छने िें िोला , दू-चार छन के ि​िाशा ई होला, जइसे फुलझरी के अंजोर, फे रु अन्हार, बालू के नेंव बाटे बालू के दीवार फूस के पलानी हs सजनगी हिार ।

अि​िृ के र्ार बहे िंहु वा से सजसनका, सवष के दोकान सजे सहयरा िें उनक ु ा, सोनवा के कलसा िें िसदरा के र्ार, बालू के नेंव बाटे बालू के दीवार फूस के पलानी हs सजनगी हिार I।

राि बसन के के ह ऊपर जब होला, किने पथल लउके असहल्या के टोला,

हृत्रषके श चतुिेदी बमिया युपी के रहे वािा हृमषके श जी , आखर पेज से शुरुवात से ही जुडि बानी , ठे ठ भोजपुरी आ भोजपुरी के खांटी शब्दन प बकिया पकड , गीत कमवता गजि मिखेनी , एह सिय इाँ हा के किकत्ता िे काययरत बानी ।

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कहानी

परधाहनन नारस से जौनपरु के रस्िा िें एगो लाल बत्ती गाड़ी खड़खड़ाि रुक गईल । बनारस के िोंससफ िसजस्ट्रेट सशवपरु न ससंह कोटा के स खासिर बनारस से जौनपरु सरकारी गाड़ी से जाि रहलन । गाड़ी रुकला पर ड्राइवर से

पछ ु लन -

लेआविानी, चलीं हिरा संगे, लगले हिार गाँव बा, उहाँ आराि करी िले ले गाड़ी बन जाई । " जज साहेब का ओर देख के उ कहलस । कौन गाँव पड़ी ? जज साहेब पछ ु लन ।

"साहेब नेवादा गाँव "

"का भईल नन्हकू गाड़ी काहें रोक सदहलs ? "साहेब, इंजन िें कवनो खराबी बा " ड्राइवर बोनट खोलि कहलस । ओह ! िके सनक बोलावे के पड़ी कवनो िार टूट गईल बा । ड्राईवर फोन कके िके सनक बोलावे लागल । जज साहेब के चेहरा उिर गईल, का जाने के िना सिय लागी िके सनक के आवे िें आ बने िें ? आस पास खाली खेिेखेि लउकि रहल । गाड़ी से उिर के बेचैनी िें सड़की पर टहरे लगलन । इहे रोड प पिा न के िना बार आ जा चक ु ल रहलन । ई पसहला िौका रहे जे गाड़ी सबगड़ गईल । िले ले एगो ट्रेक्टर आवि लउकल सशवपरु न के , जेके बीस-एकईस बरीस के लसड़का चलावि रहल । उहो बत्ती वाला गाड़ी देख के ट्रेक्टर रोक सदहलस । "का सदक्कि बा गाड़ी िें ड्राईवर साहेब, हि कुछ िदद करीं ?"

"इंजन के कवनो िार टूटल बा, िके सनक बोलsवले बानी " ड्राइवर कहलस । "ओकरा आवे िें ि टाइि लागी, दरू बा ससवा स स्टेसन । साहेब हि ललन हई ं, जौनपरु से नया ट्रेक्टर खरीद के

ने...वा..दा.. नाि गोहरावि जज साहब चउंक गईलन "हिार गाँव आ हिही न सचन्हनी ! सायद 22 बररस बहि होला सचन्ह जगह के अनचीन्ह करे खासिर । सशवपरु न ड्राईवर के सिझा के सक गाड़ी बन जाई ि फोन कर सदहा हि आ जाईब" बोल के ललन के ट्रेक्टर पर चढि कहे लगलन । "चलs बाबू आज हि नेवादा घूि आई ं"। "अरे रउआ काहें आ जाईब? गाड़ी बन जाई ि गाँव आ जाई "। "अच्छा ! अब गाड़ी घरे-घरे चहपं जाले ?" अचरज से सशवपरु न पूछे लगलन " "अरे रउओ कवना जिाना के बाि कर रहल बानी साहेब, अब िो सगरो पक्की सड़क अउर खडंजा बन गईल बा ।" सशवपरु न झेंपि ड्राईवर से कहलन "ठीक बा फे र के ह से पूछ के रािपूजन ससंह के घरे लेिे अईह । " "बाह! राउर ि सहिई बा नेवादा" खुस होि ललन कहलन ।

सरोज त्रसंह बमिया , युपी के रहे वािी सरोज हसंह जी , महन्द्दी भोजपुरी आ बंगिा सामहत्य िे उभरत एगो बररआर नाव बानी । हािे िे इाँ हा के मिखि महन्द्दी काव्यसंग्रह " तुि तो आकाश हो " आईि ह । भोजपुरी िे सैकिन गीत गजि कमवता कहानी के रचना कई चुकि बानी । पाक किा िे दक्ष सरोज जी एह घरी गामजयाबाद िे बानी ।

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जज साहब िसु स्कया भर देहलन, उ कइसे कहिन सक, "हीि ना हिार घर-पररवार नेवादा िें बा । " सड़क से ट्रेक्टर जब गाँव की ओरी िड़ु ल िब सशवपरु न के सबसवास कईल िस ु सकल होि रहल सक, सही िें ई नेवादा 20 साल पसहले वाला गाँव ह ? पूरा गाँव के कायाकल्प हो गईल रहे । चारो ओरी सबजली के खम्भा, जगह-जगह हेंड पाइप , सावा जसनक शौचालय ,जवन पसहले टूटल फूटल प्राथसिक सवदद्य ् ालय रहल ओकरा जगह पर सरकारी इंटर कालेज बन गईल रहल । ललन बड़ा चाव से कुल देखावि रहल "देखीं साहेब, ई अभी नया सचसकत्सालय खुलल बा अब रोगी के लेके जौनपरु भागे के ना पड़ेला ।" "बाह ललन गाँव के ि बड़ा सबकास भईल बा "सशवपरु न चऊँचहाि कहे लगलन । "सािेब, सरकार जेिना पइसा पाररि करेले अउर हबकास योजना बनािेले उ कुल जदी सिी िायने िें लागू िो जाए ि सगरो देस के काया पल िो जाए। ई ि हिनी के सौभाग बा सक हिनी के परर्ासनन सन:स्वारथ भाव से गाँव के सबकास िें जी जान लगा देले बाड़ी । ना ि बगली के गाँव सख्ु िापरु िें देख लीं कुछ सबकास नइखे । सड़की के हाल बेहाल बा । उहाँ वि ृ ावस्था पेंशन, सवर्वा पेंशन, सवकलांग पेंशन, सिड डे िील के नाव पर खाना पूसिा होला खाली ।" "परर्ासनन ? नाव का ह उनकर ?के करा घर के हई ं? " जज साहेब पछ ु लन । "साहेब,परर्ासनन श्रीि​िी सबिला देवी , दू बेर से लगािार परर्ानी के चनु ाव सजि​ि बाड़ी । बहि दःु ख भोग के इहाँ िक पहचल बानी उहाँ के । सबयाह के बाद आपन कुल गहनागरु रया िरद के पढ़ाई िें झोंक देहली । िरद बड़का अफसर बन के शहर िें दोसर सबयाह कर के बस गइलन ।पर पट्टीदार भी अलग सबलग कर देहलस लोग । सहस्सा िें खाली बगईचा सिलल । ओसे भला कहाँ रोजी रोटी चसलि? उ ि भला होखो पाठशाला के िास्साब के , जे उनका के स्कूल िें सफाई किा चारी िें राख सलहले । बहि हल्ला भईल । बाि बनल । काहे से सक ओ सिय, सवणा औरि लोग अके ले गाँव से बाहर ना सनकलि रहे । नईहर से सबदा भईली ि ससरु ारी िें सिा गईली । ससरु ारी से सनकलली ि सीर्े सिसान खासिर ।

देवठान प लपसी, सोहारी चढ़ावे ,कुआं पूजन ,लावा भज ु ाये खासिर बहरा सनकलल ही उनकर िीरथ भा सपकसनक रहल । अइसने िें स्कूल िें झाड़ू बहु ारी करे िें ि हल्ला होखल कवनो बेजायं न रहल। स्कूल के चाकरी के एवज िें िास्साब उनकर बेटा चन्ु नू के सलखइले-पढइले ।िास्साब ि अब रहले ना उनका जगह पर उनकर बेटा चन्ु नू आजकल हेडिास्टर बाड़े ।" ट्रेक्टर के अपने घर की ओरी िोड़ि ललन कहे लागल । "जब नेवादा के िसहला सीट घोसषि कईल गईल िब सबिला देवी के सेवा भाव देख के ही गाँव के भलिानस लोग उनकरा के खड़ा कईलस लोग। " सशवपरु न सन्ु न के िासफक कुल सनु ि गईलन, अचानक से ललन से कहलन "बाबु हिके रािपूजन ससंह के घरे छोड़ द"। "रािपूजन? ई के ह हि नइखी जानि हिार बाबूजी जानि होइहें " "अच्छा ि परर्ानीन के घरे ले चलs "

"ठीक बा साहेब " कह के ललन ट्रेक्टर घिु ा सलहलन । सशवपरु न कुल देख-सनु के सन्ु न जइसन हो गइलन िनेिने बद्बु दु ईलन "हिार सबिली ही सबिला देवी हई । " चन्ु नू , बाबूजी ,िास्साब..... सपछला कुल इयाद आवेलागल । खेि खसलहान िें कब्बो सजव न लागल, बस पढ़ाई के सनसा रहल । बाबूजी के जोर प िजी के सखलाफ सबयाह हो गईल । 'सबिली' कब्बो पढ़ाई के बीच न अइली, बलुक आपन गहना-गरु रया बेच-बेच के पढाई अउर सकिाब खासिर पइसा जटु ावे िें कवनो कसर भी ना छोड़ली । कब्बो-कब्बो सबिली पूछ भी देस सक "ए जी, जज बने खासिर अउर के िना सकिाब पढ़े के परी ?" ए सवाल प सशवपरु न हंस देस ! पिा न कहाँ-कहाँ के िनिा िान के बईठल रहली सबिली । सशवपरु न के लगन अउर सबिली के त्याग अउर सबस्वास रहल जे पसहलका बेर िें ही िंसु सफ िसजस्ट्रेट िें चयन हो गईल ।

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सशवपरु न िरु िं ट्रेसनंग खासिर चल गईलन । जब वापस अईलन िबले चन्ु नू के जनि हो चक ु ल रहल । सशवपरु न बीिार बाबूजी के सेवा खासिर सबिली के गाँव छोड़ के शहर नौकरी खासिर चल गईलन । कि उसिर िें सबयाह भइला से संकोच अउर लाज िें उ के ह से ना कहलन सक उनकर सबयाह हो गईल बा अउर एगो बेटा भी बा । एकर असर ई भईल सक उनकर सीसनयर जज आपन बेटी से सबयाह के जोर लगावे लगलन । शहर के पढल-सलखल लड़की के सजनगी भर के साथ के लोभ सशवपूरन छोड़ न पवले । अउर सबयाह के बाद फे र गाँव के रुख ना कर पवले । कईगो सचठ्ठी पत्री आईल । सशवपरु न कवनो के जवाब न देहले । दस बररस बाद, एक सदन जब कचहरी से घरे लौटले ि, बरािदा िें के ह के देख के चउंक गईलन । " अरे िास्साब आप कब अईनी ह ? " उनकर गोड़ छुअि कहे लगलन " पसहले बिा देहले रहिी ि स्टेसन प गाड़ी भेज देिीं, अउर ई के ह?" बगली िें दबु कल करीब 11 बरीस के लईका के देख के कहलन । "गनीि​ि बा जज साहेब हिके पसहचान गईलs । ई िहरे खून ह "चन्ु नू " । खैर इयाद कइसे होई नौ िसहना के रहल िब छोड़ के आईल रहलs ! फे र कब्बो नेवादा झांके ना अईलs ।" सनु के सशवपरु न झेंप गइलन । रंग उड़ल बुि श जेकर कई गो ब ाि ू ल रिुिे ,रुखर बार, दुबर-पािर िराईल चेिरा । चुन्नू खाली सउसे घर के हनिारि रिल । पक्का के इिना बड़ा कोठी पसहला बेर देखले होखे जइसे । "बाबूजी के गोड़ छुअs चन्ु नू । अब िोहके इहें रहे के बा खूब िन लगा के पढ़ीहs-सलसखहs । " "ठीक बा ठीक बा । खुस रहs ! " चन्ु नू के सर पर हाथ फे रि सशवपरु न के चेहरा प दोसी भाव अउर लाज, साफ़ झलके लागल । "जज साहब चन्ु नू के िाई के िसबयि अब ठीक रहि नइखे

। जब ले बाबूजी रहलन ठीक रहल, बाकी अब अलगौजी भईला के बाद के ह देख भाल करेवाला भी नइखे । बहि ररसगर कर के चन्ु नू के इहाँ भेजले बाड़ी सक ओकर सजनगी बन जाव । " िास्साब के ई बाि सनु के सशवपरु न बाि बदलि कहे लगलन । "अच्छा अभी आराि करीं सभे । हि खाए सपए के ब्यवस्िा करsिानी । " कह के भीिर चल गईलन ।

भीिर घस ु िे ही के हके सचसचयाये के आवाज आये लागल । "का जी ? उ करझौसी के कर पाप इहाँ भेजले सबया ? उहाँ के राजपाट ि कुल देइये देले बानी रउआ, अब इहाँ भी डाका डाले भेज सदहलस ? खबरदार ! सजयि सजनगी इहाँ हि के ह के हेले ना देब ।" ई ि​ि​िा के आवाज रहल । जज साहब के दोसरकी िेहरारू के । "अरे र्ीरे बोलs िनी । कि से कि खाना-पानी ि पछ ु लs । घर आईल िेहिान से के ह ए िरह से व्यवहार करेला ? जा कि से कि खाए सपए के इंिजाि करs ।" कह के सशवपरु न अपना किरा िें चल गईलन । फाररंग होके सोचे लगलन सक अब कवना िहु से जाई ंबहरे । कुछ सबचार करि उ बाहर सनकललन िगर बरािदा िें के ह भी ना देखाईल । गेट के बहरी आपन गाँव के ओरी जाि देख के भी रोके के बजाय संिोस के सांस लेहलन । "साहेब ! ए साहेब !! आ गईल परर्ासनन के घर । " अचकचा के सशवपूरन होस िें अईलन । एक िन सोचलन सक कवना िहु ें जाई ं ओ लोग के सोझा ? बाकी सिले के लोभ छोड़ न पवलन । पक्का के घर । बािर गे पर "ग्राि प्रधान श्रीि​िी हबिला देिी" के बोडश लागल रिे । पढ के जज सािेब के आपन कद अउर बौना बु ाए लागल । "साहेब अपना ड्राईवर से फ़ोन कर के कह देब सक "रािपूजन" के घरे ना "परर्ानीन" के घर के पिा पूछ के आ जईहन ।" ललन िसु स्कयाि कहलस ।

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"ठीक बा बाबु " कहि ट्रेक्टर से उिर के बरािदा िें पहचं के सशवपूरन अभी सबचार करि रहलन सक का करीं ? का पररचय दी आपन? िबले एगो िेहरारू आके गोड़ छू लेहलस । "आई ं बाबूजी बईठीं । आज ि भाग जाग गईल हिनी के । " कह के उ बाहर खेलि लईका से कहे लगली, "अरे बबलू भाग के बाबूजी के बोला ले आव िs | कसहयs बाबा आइल बाड़े | फे र अन्दर भागि गोहरावे लगली "अम्िा जी देखीं ि के आईल बा ? अरे बाबूजी आईल बाड़े ।" सशवपरु न बझ ु गइले सक ई चुन्नू के िेहरारू हीयs और बबलू हिार नािी ह । ओिने देर िें पिोह कठवि िें पानी लेके गोड़ पखार देहली । शरबि ले अईली । "लीं बाबूजी, इहो बस आविे होइहें। " खशु रहs दसु ल्हन ! बाकी ई बिावs िू हिके सचन्ह्ू कईसे? अम्िा जी के लगे राउर फोटो बा ओही से सचन्ह लेनी हं । रुकीं अम्िा जी के लेके आवि बानी । सशवपरु न के पिािाप के िारे आंखी से लोर बहे लागल । एिना सन्ु दर पररवार छोड़के , शहर िें करकराह िेहरारू के संगे सजनगी सबिावे के पड़sिा । दसु नया भर के लोगन के न्याय सदयावsिानी, िगर अपना पररवार के संगे न्याय न कर पवनी ।

"अम्िा जी ! चली ना, बाबूजी इंिज़ार करsिारे । " सबिली सन्ु न होके जंगला के बाहर आसिान के सनहारि रहली जइसे पिोह के कवनो बाि सनु ाि ना होए । सबिली के देह पर सहु ासगन वाला कवनो ससंगारना रहे । सेनरु सटकुली कब के लगावल छोड़ देहले रहली। पिोह झट से पूजाघर िें से ससन्होरा पोंछि-पाछि ले अइली। "लीं अम्िाजी आज ि राउर सोहाग के सदन ह, बाबूजी से लगवाईब । चली ना !"

"रहे द दसु ल्हन ! अब कवनो ससंगार के जरुरि नइखे । अब ि ई गाँव के ससंगार ही हिार ससंगार हs ।"सबिली सनसवा कार भाव से कहली । पिोह सास के बाि सनु के सन्न रह गईली । जेकरा के राि-राि भर जाग के बाबूजी के फोटो के आगा रोवि देखले रहली , ओकरा िहुँ से अइसन बाि ? सबस्वास ना होि रहल । "बाबूजी बहरा इंिज़ार करsिारे अम्िा जी । " सबिली सर प आँचर राख के सबना कवनो उत्साह के दअ ु रा सनकलली । िगर बाहर कुसी खाली रहल । गेट के बहरी शहर के आपन गाँव से जाि देख सबिली उनका के रोके के बजाय संिोस के सांस सलहली ।

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तबदेतसया के पाती

ग्लोबलाइजेशन, ग्लोबल वाहमिंग, तबदेतसया के पाती ग्लोबल हवले ज आ मिाभारत

बलाइजेशन सपसछलका िीन दशक से एगो अईसन शब्द बा, जेकरा के गाँव सगरांव से लेके बड़का शहर िक िें बच्चा -बच्चा अब जानेला । ग्लोबल सवलेज आउरी ग्लोबल वासि​िंग भी ओईसनके शब्द से बनल बा । ग्लोबल वासि​िंग के वजह से दसु नया िें िचल िबाही से दसु नया परेशान बा ि ग्लोबल सवलेज आउरी ग्लोबलाइजेशन के कारण सांस्कृसिक-आसथा क बदलाव से कुछ लोग खुश बा ि कुछ लोग सचंसि​ि । एके कुल से सनकलल, ई कुसल्ह अईसन शब्द हवन स, जेकर सबसे जादा असर सपसछलका िीन दशक िें दसु नया िें पड़ल बा । चाहे-अनचाहे दसु नया के हर सिदु ाय पर, हर व्यसि पर आउरी हर िरह के बदलाव िें एकर भूसिका बा । उ चाहे सकारात्िक होखे भा नकारात्िक । भारि जईसन देश ि जादे ही सचंसि​ि बा । सांस्कृसिक िूल्य िें आवि सगरावट से, िौसि के बदलि िन-सिजाज से आउर एह बदलाव के कारण भयावह भसवष्य के पररकल्पना से । ई बाि दोसर बा सक सचंसि​ि सिाज उपरे-उपरे सचंसि​ि बा बासक ग्लोबलाइजेशन, ग्लोबल वासि​िंग आउरी ग्लोबल सवलेज के प्रसक्रया के आगे बढ़ावे िें, ओकरा के परवान चढ़ावे िें आपन भूसिका भी जि के सनभा रहल बा ।

ग्लो

एह प्रसक्रया के कुछ सकारात्िक बाि रहल बा बासक िापिान िें बढ़ाव, जल के संकट, खाद्यान्न के संकट, ग्लेसशयर के क्षरण, ऋिु चक्र आउरी पया​ा वरण के स्वभाव िें पररविा न, पशु -पौर्ा आउरी इंसानी सिुदाय पर घािक असर साफ-साफ सदख रहल बा । गाँव के शहर बने के होड़, कांच उिर िें उभरि कािक ु िा, सहंसक होखि लईकाई, सहंसक होखि सिाज, बढ़ि भोगवादी प्रवसृ त्त, उपभोिावादी दशा न के िूल बने के प्रसक्रया आउरी सािासजक-आसथा क-सांस्कृसिक आउरी र्ासिा क कारण से नक्सलवाद से लेके आिंकवाद िक के बढ़ावे िें ईहे नवका प्रसक्रया के बड़ भूसिका िानल जाला । एह पर बाि करेवाला सवशेषज्ञ लोग आज दसु नया भर िें फै लल बा । ससिान्ि गढ़ेवाला, सलाह देबेवाला, आगाह करेवाला आउरी रास्िा बिावेवाला; आउरी दसु नया भर िें होड़ िचल बा सवशेषज्ञ बने के । नोबेल से लेके कई गो सम्िान सिल रहल बा एह पर बाि करेवाला लोगन के ।के ह कहेला सक फलानाजी सबसे पसहले एह बाि के आगाह कईले, एह प्रवसृ त्त के बारे िें बिवले िो के ह कहेला सक फलनवा देश सबसे पसहले एकरा पर बाि कई के दसु नया के बिवलस । बासक एह बाि के हिनी के जाने के चाहीं सक एह सवषय पर सवस्िार से बाि करेवाला

त्रनराला पेशा से पत्रकार , तहिका आ प्रभात खबर खामत िगातार मिखे वािा मनरािा जी , औरं गाबाद मबहार के रहे वािा हईं । इाँ हा के पुरमबया तान बैनर के नीचे भोजपुरी के पारम्पररक गीतन के सहेजे, सररहारे आ ओह के नया किेवर िे प्रस्तुत करे िें िागि बानी । एह घरी पटना िें मनवास बा ।

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भारि के एगो िहान सचंिक, सवचारक आउर लेखक भी रहे जे हजारन साल पसहले बिा देले रहे सक का होखेवाला बा दसु नया िें । ओह लेखक के नाि रहे वेदव्यास । उहे वेदव्यास, िहाभारि के रचसयिा वेदव्यास । िहाभारि के वनपवा - िहाभारि, गीिाप्रेस गोरखपरु , सद्विीय खंड, वनपवा , िारकण्डेय यसु िसष्ठर संवाद, पष्ठृ 1421-1494अध्याय िें. एह अध्याय िें एगो जबरदस्ि प्रसंग बा । संवाद यसु िसष्ठर आउर िाकाण्डेय ऋसष के बीच । यसु िसष्ठर िारकण्डेय ऋसष से कसलयगु के अंि के बारे िें जानल चाहि बाड़े । पूछले ऋसष से सक रउआ ि हर जगु के आरंभ आउर अंि देखले बानी । बिाई ं सक कसलयगु के आसद आउर अंि कईसे होखी, कवना रूप िें होई । िब िारकण्डेय ऋसष जी, यसु िसष्ठर के सजज्ञासा के शांि कईले बानी , सवस्िार से जवाब देई के । उहां के कहनी सक कलजगु के अंसि​ि भाग िें करीब-करीब हर आदिी सिथ्यावादी हो जाई । िनष्ु य के सवचार आउर व्यवहार िें बहि अंिर आ जाई । सकल जगि एक वणा -एक जासि िें बदल जाई । प्रलय के दौर शरू ु होखी, जेकरा खासिर प्रकृसि कि आउर िानवीय सिदु ाय जादा सजम्िेवार होखी । एही काल िें सगु ंसर्ि पदाथा नाससका िें जाई िो गंर्यि ु ना लागी , गंर्हीन होखी । रसीला चीज िें स्वाद ना रही । पेंड़ पर फल कि हो जाई, फूल कि हो जाई । पेंड़न पर बईठेवाला पक्षी के सवसवर्िा खत्ि हो जाई । वन्यजीव, पशु पक्षी लोग के आपन स्वाभासवक बसेरा खि​ि होखी आउर इंसान के बनावल बगीचा, सवहार आउर कै दखाना िें उ लोग सदखायी पड़ी । जंगल आउर पेंड़ के लोग िेजी से काटी, जंगल आउर प्रकृसि के प्रसि लोग सनदा यी हो जाई । भूसि के अंदर जवन बीज डलाई, ओकरा से ठीक से कोपल ना सनकली । खेिन के उपजाउ शसि इंसान खि​ि कर दी । िालाब-चारागाह आउर नदी के िटभूसि पर भी इंसान असिक्रिण करी, ओकरा पर कब्जा करके ओकर असस्ित्व के खि​ि करी । सस्थसि अईसन भी आई जब जनपद के प्रणाली शन्ु य हो जाई । चारो ओर प्रचंड िापिान रही, िय िालाब-नदी के जल सख ु े लागी । बाररस के िौसि िें बरखा -बनु ी बंद हो जाई । लाख उद्यि आउरी िेहनि कइके भी सिाज खाद्यान्न खासिर दोसरा पर सनभा र होखे लागी । थोड़ा र्न संग्रह कई के र्नाढ़ वगा उन्ित्त होखे लागी । सब जनपद के आपन सवसशष्टिा खि​ि होखी, जनपदीय प्रणाली खि​ि होखी ि ओकर असर कई रूप िें सदखी । सब लोग एक स्वभाव के होखे लागी । एक वेशभूषा र्ारण करे

लागी । एके िरीका के खानपान भी होखे लागी । गहृ स्थ लोग शासकीय कर आउर िहंगाई के िार से परेशान आउर भयभीि होके लूटेरा बने लागी । सिाज के ज्ञानी लोग कपटी होके चाहे वेश्यावसृ त्त जईसन राह अपनाई के जीसवका चलावे खासिर िजबूर हो जाई । सब के ह आपन-आपन सचंिा करे लागी आउर आपन सिसृ ि कईसे बढ़ो, एही िें लागल रही । नौजवान लोग यवु ावस्था िें ही बढ़ु ाये लागी । सोलह बररस िें ही बाल पाके लागी । बचपन आउरी सकशोरावस्था िें ही स्वभाव व्यस्क जईसन होि जाई । साि-आठ बररस िें ही बच्ची लोग िां बने लागी । 10-12 साल के बच्चा लोग बाप बने लागी । जादािर लोग एक दस ु रा के र्ोखा देबवे ाला आउर गलि शील स्वभाव वाला हो जाई । कन्यादान के परंपरा खि​ि होखी । ओकरा जगह पर यवु क-यवु िी लोग अपना सनणा य से साथे रहे लागी बासक सववाह ना करी आउर एक दोसरा के सवचार-व्यवहार के जादा ना सही । दोसरा परु​ु ष से संबंर् रखे िें स्त्री के आउर दोसरा स्त्री से संबंर् रखे िें परु​ु ष के िजा आवे लागी आउर ओही जगु ि िें लागल भी रही । अईसनका कई गो बाि िहाभारि के ओह अध्याय िें दजा बा । इ ि संसक्षप्त िें बाि भईल । िारकण्डेय ऋसष आउर यसु िसष्ठर के संवाद आउरी लंबा बा । सीर्े बाि सिझल जा सकि बा सक वेदव्यास के सचंिन के स्िर का रहल । उहांके िहाभारि के जररये खाली एगो सिथकीय भा पौरासणक कथाकहानी नईखी देले । िहाभारि के कहानी सच्चो रहल सक झूठ के पसु लंदा बा, एकरा पर दसु नया भर िें बहस के दौर चलि बा । वािपंथी लोग एक ससरे से नकारे ला । चाहे आलोचना करेला सक िहाभारि भा रािायण जईसन ग्रंथन के रचना नायकत्व के उभारे खासिर कुछ खुराफािी िगज के उपज भर ह । िान लेबल जाव सक ओिने भर बा बासक ओह खरु ाफािी िगज के उपज िें अईसनका भी ढेर बाि बा । ई ि एगो अध्याय उलटला पर सदखल बाि बा । एगो संदभा आईल बा । जे अईसनका ग्रंथन के गहन अध्येिा होखी, उ सवस्िार से बिा सकि बा सक ओह िें का-का बा । लेसकन दभु ा​ा ग्य दोसर बा । जे अईसनका ग्रंथन के अध्ययन कईले बा, घोर के पी गईल बा, उ कथा-कहानी आउर ओकरा िें आपन बाि के सिला के कथा-कहानी आउर प्रवचन के दसु नया से बाहर सनकल नइखे पावि । आउर जे ई कुल ग्रंथन के सवरोर्ी लोग बा, ओकरा भारिीय सबंबन से कउनो वास्िा नईखे । चीन भा रुस के सबंबन के भरोसे उ भारि िें क्रांसि के सपना सौ साल से देख रहल बा आउर संभावना होिे हए भी रसािल के आसखरी िल िें पहचं रहल बा ।

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कहानी श्ंख र ला

मचत्र - स्वयंबरा बक्सी

बज ृ तकशोर ततवारी

दिल, जब बच्चा था जी ( भाग –5) (अब ले- हपछला अंक िें कथाकार के लईकाईन के बदिासी के एगो आउर िजगर हकस्सा पढनी । कईसे एगो िगु ाश के पा ी दू िहिना ले चलल । अब एि अंक िें पढीं आपन नया बदिासी से रउरा सभे के िंसाि​ि लेखक के कारनािा उनके जुबानी)

बचपने के बाि हs कवना क्लास िें पढ़ि रही याद िs नईखे । शायद 4 भा 5 िें होखब… पैदले पढ़े जाई आ आई । िोहल्लवे िें एगो दरजी के दूकान रहे , जान पहचान के ही रहे । ओकरे इहा हिनी के कुल कपड़ा लत्ता ससयाए । एक सदन हि पढ़ के स्कूल से लौटि रही ि ,उ दक ु ान के दसजा या हिरा के बोलवलस आ हिार नाप लेवे लागल । कहलस सक िोहार बाबु जी नाप लेवे के कहले बाडन, ओही सहसाब से कपड़ा कीने के बा । हिह बड़ा खुश भईनी सक हिार कपड़ा ससयाि बा । आ लगनी ओकरा के अपना ओरी ले कुल सडजाईन सिझावे की येह िरे ससहा ,ओह िरे ससहा । ओही िे नाप लेवि घरी िें उ हिरा से पछ ु लस “कवना क्लास िें पढ़ेला बाबू ?कवन कवन कसविा आ पोयि इयाद बा ? याद बा िs सनु ावs !” हि कपड़ा ससयावे के ख़ुशी िें ओकरा के एगो कसविा आ पोयि भी सनु ा सदहनी ।

घरे आ के िाई से पूछनी - िाई हिार कपड़ा ससयाि बा का ? िाई कहनी सक - ना िs ! हिार िs िहु े उिर गईल ।

लेसकन उ दसजा या िs हिार नाप सलहलस हs ,कहि रहल की बाबु जी कहले बानी ! ि, हिरा के नईखे िालुि ,बाबू जी से पसु छहा । लेसकन बाबू जी से पूछे के सहम्ि​ि कहाँ ? हिह िहसटया सदहनी । पर दोसरका सदन उ दसजा या फे रु बोलवलस, कहलस उ नाप सलखे िें भल ु ा गईल ,फे रु से नापे के बा , हिह ख़ुशी ख़शु ी फे रु से नाप देवे लगनी ,आ उ फे रु हिरा से पोयि सनु लस । र्ीरे र्ीरे इ ओकर आदि बनी गईल । इंची टेप लगा के हिरा से पोयि आ कसविा सनु े उ जब भी खाली रहे । बाद िे हिरा बझ ु ा गसयल सक इ हिरा के ककहारा ससखाविा । हिह कहनी सक रुका,िौका सिले दा , हि िोहे सपसपहरी बजावे ससखासयब ।

एक सदन हि ओकरा के एगो ड्रेस के कपड़ा दे देनी, कहनी ला, सी दा । उ फे रु से नाप सलहल । आ बाकायदा । पची ओची बना के दे सदहलस । एक सदन पढ़े जाये घरी पूछनी सक कपड़वा ससया गईल का ? दसजा या कहलस सक हां | हिह ससयलका कपड् वा ले सलहनी, कहनी पैसा बाबू जी ड् यूटी ले असयहे िs दे सदहे । उ हिरा के कपड़ा दे सदहलस । क्लास के एगो लईका हिरा से बसियावे हिार ड्रेस ख़राब हो गईल बा ,हिरा लगे कपड़ा िs बा, पर पूरा ससयावे के पईसा नईखे होखि ,कै से ससयाई ?

हि पूछनी के िना पैसा बा िोहरा लगे ? कहलस-30

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रूपया बा । लेसकन 40 रूपया लागी ससयावे िें । कहनी ले आवs कपड़ा हि 30 रूपया िें ही ससवा देब । उ लसयकवा हिरे कद काठी के रहे । आपन नाप से ओकर ड्रेस उहे दसजा या से ससवा सदहनी । उहे कपड़वा ओकरा के सलया के दे सदहनी आ 30 गो रूपया ले लेहनी ओकरा से ।

अब का ,अब ि लागे सक टाटा सबरला फ़े ल बा लोग , हिरा आगे रोज़ आठ आना एक रूपया खचा​ा करी । िसहना, डेढ़ िसहना खूब चकल्लस रहल । हिह कहनी दजी राि अब िोहार पैसा सदया चूकल, जवन होई िवन देखल जाई बहि पोयि सनु ले बाड़s ।

भोजपरु रया इलाका में शादी हबयाि

ह घरी सबयाह-शादी के सदन चल रहल बा । जेने से बाराि आवे के बा भा जेने जाए के बा ओने ईना अइसना िें हल्ला-गल्ु ली, गायन-बाजन, हंसी- (पानी के सोिा) के लगे िाटीकोर होला । एकर ि​िलब बा िजाक, बेटी के सबदाई के गि आ कसनया आवे ओ रास्िा के स्वागि बा । एगो सबसे बड़हन बाि ई देखी सक के ख़ुशी लागल रही । जेकरा घरे सबयाह बा देवी-देविा के पजा के साथे अपना सपिर लोग, सिग्र जीवू ओकरा ि चैन नासहये बा, बासकर बासकयों लोग कवनों कि जन्िु-सचउँटा, सचउँटी िक, प्रकृसि-आंर्ी, पानी िक के बेचैन नईखे । नेविा-हकारी करे के बा । नेविा के िैयारी बा नेवि के गोड़ लागल जाला सक रउवा सभे आपन सकररपा ए । जाये-आवे खासि घोड़ा-गाड़ी के इंिजाि, नया कपड़ा के जोड़ी खासि बनाई जेिे जग नीिन से सनबह जाव । सबना अलगे झंझट, अपना छुट्टी के इंिजाि, सटकट खासि सबकर सकररपा के ई शभु काि ना सपरी । भागिभाग ।अउरी जाने के िना काि । एने डा॰ रीता तसन् ा ओह! ई सलखि आँख िें लोर आ गइल । िेहरारु लोग के आपन लागल बा । पायल दसु नया के कवनों संस्कृसि िें ई बडकपन, ई झरवावे के बा, साड़ी के सेट लगावे के बा, भाव ना सिली । कान के झिु का जोड़वावे के बा । लइकन के सजाव अलगे । पसहले से के िनो िइयारी सबयाह के िनी सदन बाद 'कलेवा' जाला भइल होखे, जइसे-जइसे सबयाह के सदन । एिे अनाज, पकवान, कपड़ा आ सबयाह सनकचाई ना जाने कहवा से किवो बढि चल के छूटल-फटकल सािान बाप, भाई, जाई । ए गो नेग -सबसर् होखे िब नू । सिलक, ररश्िेदार आ गाँव के कुछ लोग जाला । िटकोर, सबयाह, सबदाई, कसनया उिराई एिना ि िेन बा । एकर ि​िलब आपन बेटी ससरु ा िें कईसे बाड़ी-देखे जाला । ईिली घोंटाई, कोहबर के भाि, कहा ले गीनावल जाव ? जिाना बदल गइल । अबके लोग ए परम्परा के िजाक भोजपरु रया संस्कृसि पर सबचार कइला पर गरब होला । बनाविा । ओकरा सबचार करे के चाहीं । आपन प्रथा बेवजह अब िनी 'सिलके ' के देखीं । के िना सोचल-सबचारल नइखे । सबके बड़ कारण बा । बेटा -बेटी के सख ु खासि, वंश परम्परा बा । एगो लइका-लइकी नया जीवन शरू ु करे जा बसृ ि खासि िाई-बाप के िना इंिजाि करेला । ई कुल बाि रहल बा ि ओकरा गहृ स्थी खासि बिा न, कपड़ा ,कुछ िोट भोजपरु रया गीि िें गावल जाला । गीि के हर शब्दन िें गूढ़ रुपया चहबे करी । लइकी के िाई-बाप (औकाि ि​िु ासबक) भाव भरल बा । बेटी के गहृ स्थी के इंिजाि क के सिलक रूप िें चढ़ावेला । आज जरूरि बा सबयाह से सम्बसन्र्ि आपन संस्कृसि (पसहले बाप के सम्पसत्त िें सबयाह के बाद बेटी के सहस्सा ना बचावे के । आपन पारम्पररक गीि बचावे के । ई हिनी के होखे ए से बाप अपना सम्पसत्तनस ु ार बेटी के सिलक रूप िें एकिरह से सहस्सा दे देस । भले बाद िें एकर रूप सबगड़ र्रोहर बा ।अपना परु खा के र्रोहर बचावल हिनी के र्रि बा । गइल होखे ।)

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पारं पररक गीतन में श्लीलता आ अश्लीलता

भो

जपरु ी के वैसिक पहचान सिले के पाछे अईसन कवन ित्व बा, जे एकरा के अन्िरा​ा ष्ट्रीय पहचान सदअवलख, ई जानल िजगर होई। बहरसी किाए जाय वाला लोग अपना संगे अऊसन का-का ले गईल, जवन एह लोग के सभका से अलगा एगो पहचान देि एह लोग के टाँठ रखलस । ई हिनीं के जानल जरुरी बा। आज भोजपरु ी के नासाए के नाि पर जवन हाहा-दैया िचल बा, ई ओह भोजपरु ी खासिर ना, जवन परु ािन आ परम्परागि सबया, ई ि आजो सनरऊठ, रसगर, िजगर एगो छुईिईु कसनया लेखा सबया।राि चररि िानस के गटु खा के संगे भोजपरु रया र्रिी के हर ऊ अंश, जवन भोजपरु रया के पहचान ह, ऊ ि गईबे कईल, हिनीं इहाँ के ित्कालीन गीि-गवनई के खाँटी सबआ भी गईल, जवना िें अल्हरपन, फक्करपन के सहलकोरा आठो पहर उफनि रहेला।ई ऊ$ ित्व ह,जवन-आग लागे हिरे िडईया िें, हि गाएब िल्हार-जईसन सवचार भोजपरु रया िानस ु िें भरि रहेला । ऊ गीि ि आजो अऊसहीं राज रजाविा, जईसे पसहले रजावि रहे। नसले बाडें स ऊ गीि, जवन हाँ खानीं सलखईले हँ स$! आ जवन हिनीं के सवरासि के , सड़ल अलूई बन के सभ अलूई के सड़ा देब के भरि पैदा कर देले बाड़े स! ई सिझे खासिर हिनीं के दू-िीन गो पारंपररक गीिन के सोझा राख के एगो सववेचना करेब सs,जवन ई बिाई सक अश्लीलिा कब ना रहल बासकर के िना श्लील रुप िें। आजो ओह गीिन के रस ले-ले के सनु सनहार ि​िाईल सफरेला। ि आई ं, पसहलका गीि िें एगो झिु र रऊआ लोसगन के सोझा राखिानीं- "फर गईले नेिआ ु ,ओलर गईले डसढया सक ना अईलें, परदेसी बलिआ ु से ना अईलें"- एह गीि के दु गो शब्द

आ ओकर िाने प अगर ध्यान सदहल जाउ ि एह शब्द िे सबब छुपल बा । औरि आ िरद के आकषा ण सभे जानि बा आ ई प्राचीन सिय से चलल आ रहल बा । एह गीि िे नासयका नेिआ ु आ डसढया से अपना यौवन के वणा न कई रहल बाड़ी आ एह सिय िे अपना िरद के बहरा रहे के उलाहना अपना ससखयन से देि बाड़ी । एकरा अथा के सिझे के सजम्िेदारी राऊर बनि बा।फर गईले नेंबआ ु , ओलर गईले डसढया से ना अईलें, परदेसी बलिआ ु के सार्ारण भाव िें देखाव ि परदेसी बालि के भूसिका कुछुओ नईखे। आसखर ऊ का कररहेंs, बासकर सवंब पर जा के सोचाव ि एह शब्दन के अथा ऊ प्रभाव छोडि नजर आ रहल बा सक थोडा भी संवेदना आ सासहसत्यक पकड राखे वाला श्रोिा भा पाठक के िन भीिरी ले बेर् दी । अब एह गीि के रउआ भा हि चाहे जवन अथा िें सलहीं स बासकर औरि लोग के एह अथा के भाव बसढया से पिा बा।ऊ लोग ओसह िजा से एह गीि के झूि-झूि के गावेला आ ई झिु र के रूप ले लेवल े ा।एह गीि िें आगे के एगो पंसि बा-जे हि जनिीं सपया िोरे अईहें सटससनए पर सेसजया ले के जईिी । अपने जे सोईिीं, सपया के सिु ईिीं, देवर जी के , सजयरा िरसईिीं । देवर के िरसावे वाला पंसि के बहाने उपर के िख्ु य पंसि आपन परु ा अथा खोल के राख देिा। बऊद आदसिओ बूझ जाई सक नेंबआ ु आ डाढी ओलरल का ह। बासकर िहानिा छुपल बा एह गीि के अनाि रचनाकार के लेखनी िें। सब बझ ु िे रऊआ उनकुस ना लागी। रऊरा एकरा के अके ले िें गाई ं भा हजारो लोसगन के बीच, के ह लाठी ले के चहेटे ना आई,के ह रऊरा के सनु े भा गावे से िना ना करी। का बसहन-का भाई,का ननद-का िाई, बस रऊरा गाई ं आ अपने िस्ि होई ं आ िस्िी सलआई ं। ई ह श्लील ढंग से अश्लीलिा के राखे के भोजपरु रया गवनई के परु ािन जोगार।

उदय नारायण त्रसंह संगीत के मशक्षक , िोकगायक आ भोजपुरी संगीत िें नवीन प्रयोग करे खामतर उदय नारायण हसंह जी जानि जानी । छपरा , मबहार के रहे वािा हईं। इाँ हा के भोजपुरी भाषा सामहत्य आ संगीत िें हरदि कु छ नया, कु छ अिग करे खामतर प्रयासरत रहेनी । अभी छपरा िें बानी ।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 50


अईसही एगो आऊर गीि िन पडिा-"सोरहो ससंगार क के नईहर से अईनीं, हाय रे नेिआ ु लाल, सपयवा सिु ेला खररहान।" आगे के पंसि भी देखल जाव- "सासु ननसदया से सिसलहें वचसनया,आहो नेिआ ु लाल, जेवना ले के जईबो खररहान।" खईब ि खा ल$, ना ि िहुँ वो जसु ठआल$, हाय रे नेिआ ु लाल, रहरी िें बोली अब ससयार।"-एह गीि के सववेचना कईला पर नासयका के कई गो अवस्था के दरसन होिा। एगो लंबा सिय गज ु रला के बाद नासयका नईहर से ससरु ा इईल बाड़ी । ससंगार कर के आवे के भाव ई बा सक ओकरा िन िें पसि से सिले के सिु ल इच्छा जाग उठल बा। ओकर दभु ा​ा ग्य सक पसि खररहान िें सिु ल बाडें । संजोग से सास कहिारी सक खसलहान िें खाना ले के जा । िरद से ई कहल सक-खईब ि खालs ना ि िहुँ वो जसु ठआलs, हाय रे नेिआ ु लाल, रहरी िें बोली अब ससयार-के भाव हिरा नजर िें इहे बा1-िहुँ जसु ठआवल िाने िनीं छे डखासनओ करलीं भा हँसीसठठोली भी कर लीं। 2-रहरी िें बोली अब ससयार िाने सिाज के सिखाह नजर 3-नेिआ ु लाल िाने बऊद, बेवकुफ भा अऊसन िरद,जे इशारा के ना सिझ पावे। एह गीि के अब रऊरो सिीक्षा कर सकिानीं । एह गीिन िें ऊ हर ित्व छुपल बा, जवना बिु े ई अश्लील बन सकि रहे बासकर रचनाकार एगो सहयोगी सवंब ले के एकरा के अश्लील

से श्लील बना देले बा।िाने सब अछईि, कुछुवो नईखे । के ह अंगूरी नईखे उठा सकि । उपर के दनु ों गीि के हिनीं थोडेबहि ही सही, कुछ सबंदअ ु न पर चचा​ा कईनीं स$ । अब एह िें ई साफ लऊकिा सक अश्लीलिा आज के सवषय नईखे। सफसलि-िदर इंसडया-िें एगो गाना रहे-घूघँ ट नहीं खोलूगँ ी सई ंया िोरा आगे । एह गीि िें नासयका के अपना पसि के सोझा होखे िें लाज लागिा । ओसह के उलट आर.डी.विा न जी के संगीि सनदेशन िें एगो गीि सत्तर के दशक िें आईल रहे-बाहों िें चले आवो, हि से सनि क्या परदा । दनु ों गीि श्लीलिा आ अश्लीलिा के पहाडा पढा देिा । के ह ओढनीं के िूड़ी पर से ओढले रहे आ के ह ओढनीं के नीचे से ओढे।इहवें ऊ िोकाि बा, जवन दनु ों शब्दन के अलग-अलग ढंग से प्रभासवि आ पररभासषि करिा$ । ज्यादा अश्लील होई ि का होई, साफा लंगटे होई बासकर फे रु सवाल उठिा सक एकरा बाद का होई?ओह ऊँचाई के बाद फे र ि रऊआ जािरा रोके नईखी जाि, कुछ ना कुछ ि करही के पड़ी । घिु ा-सफरा के कहानी उहँवे आई सक सभ्य भईल ही ठीक बा।ई बाि हिनीं के परु खा-परु सनया बसढयां से बूझि रहे लोग आ एही से एगो डरेर खींचले रहे लोग । ओह घडी के गीिन िें एही से सब कुछ अछईि कुछो ना लउकि रहे,जबसक आज के गीिन िें सासहसत्यक भाव भी नईखे आ ऊ ि कूट-कूट के भर दीहल जािा, जवना से हिनीं के बढु -परु सनया हिेसा बचे के सीख देहि रहल लोग । सांस्कृसिक प्रदूषण के एह दौड िें काहे ना ओह पारंपररक गीिन के शरण िें जाईल जाव, जवना लगे सब कुछ बा आ साँच कहीं ि कुछुवो नईखे।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 51


एगो गीत, एगो कदिता - गोरख प्रसाि

पइसा

तजतनगी

क िठ्ठु ी भोर के कहानी हऽ पइसा दू अँजरु ी लोर के सनसानी हऽ पइसा सबका के अपने िें रखलस अझरु ा के बडा िहँु जोर आ िूफानी हऽ पइसा ना जानी के िना, बेिार करी पइसा

टे

का िोपी, काथी उघार करी पइसा नािा खोिा उँहवे बा जँहवा बा चानी के ह सनहारे नाहीं टूटही पलानी अँसखया के अंगना से नेसहया पराइल देसहया िें के िना दरार करी पइसा।ना जानी

िही डीबरी भईल सजसनसगया, सिल सिल जरर के काटी लें घूप छाँह के र्न रोजे सँसझया, सभनस ु ारे बाँटीलें सिय के दरपन िें झाँकी ि, झलके आपन बीिल नेह गगररया सबकर बा, हिरे ला इहँवा रीिल चनु े चनु सबन सबन बीिल सदन के पेवन ि​ि से साटी लें भरी कुलाँच सिझ ु के रोटी पूनि वाला चंदा के सपना टूटल, िूर ना पवनी, पापी पेट के फं दा के अँसखया कहीं लोराला ि, अपना ही िन के डाँटी लें िउराइल हलास के पिई, सपना सगर सेराइल अकुलाइल, सचरई के खोिा, अँगने िें सछिराइल सरकल सख ु िठु ठी से, दख ु अपना सहस्सा िें छाँटी लें

कसहयो ना चान आइल हिरी अँगनवा सवहँसल नाहीं िसनको हिरी सपनवा दनु ो पख अिावस भइल हिरे ला काहे के िना अंजोररया अन्हार करी पइसा।ना जानी

घन के चाहे दरार अपनापन िें अइसन आइल सज्जी र्रि करि ररस्िा नािा लोग भल ु ाइल आपन देसहया पूल बनाके एह खाई के पाटी लें

किही बटइले बाबू बाड़ी कहीं िाई काहे दू सोहिे नइखे भाई के भाई अजबे स्वारथ के सवर चलल बा किे टूकी अंगना दआ ु र करी पइसा ।

ना जानी ...

गोरख प्रसाद मस्ताना भोजपुरी सामहत्य िे स्थामपत एगो बिहन नाव डा. गोरख प्रसाद 'िस्ताना' बेमतया चम्पारण से । इाँ हा के भोजपुरी भाषा आ सामहत्य खामत काव्य संग्रह , खंड काव्य , िघु कथा संग्रह के कई गो ककताब मिखिे बानी जवना िे से कई गो िेख आ रचना के इग्नू आ कई गो मवश्वमवद्यािय के भोजपुरी के पाठ्यक्रि िे शामि​ि कईि गईि बा । भोजपुरी भाषा आ सामहत्य खामतर इाँ हा के सतत प्रयत्नशीि बानी । एह घरी ईहाँ ा के कदल्िी िे बानी ।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 52


ास्य

तबया कटवा की कलाकार ?

िना बड़ कलाकार सबयाह िय करावे वाला अगआ ु होला, ओह से िसनको कि बड़ कलाकार सबयाहकटवा ना होला। कुछ िाने िें सबयाहकटवा अगआ से बड़हन ु कलाकार होला। एकर कीि​ि का देहाि का शहर चारो ओररया होला। गाँव-देहाि िें ि सबयाहकटवन के बड़ा इज्जि बा। आ इज्जि काहे ना होई? बेटा-बेटी ि सबका घरे बा। जब बेटा-बेटी बा ि सबयाह-शादी होखबे करी। अब रउरे बिाई ं सक डरे ओकर इज्जि के ना करी। कहल बा जे कवनो पूजा करे के पसहले खल के बन्दना जरूरी ह। ओइसे भी शादी-सबयाह ि के ह खड़ा होके करा सकिा, बासकर सबयाह काटल सबका बूिा के बाि नइखे। एह काि खासिर कुछ खास खूबी भइल जरूरी होला। अब सवशेषज्ञिा के कीि​ि ि लागहीं के चाहीं। रउरा आउर कुछ ना देब ि डरहीं सही, कि से कि इज्जि ि दीं। अब रउरा सोचि होखेि जे एिे कवन सवशेषज्ञिा बा? ि जान लीं जे एह काि खासिर कुछ खास खूबी भइल जरूरी होला। उ ई सक घर से र्न-दउलि आ सवांगी से िजबूि भइला के संगे-संगे िंहु जोर आ बेशरि भइल एकर पसहलका शिा ह। अगर सखसीआइल भि ु भोगी, सबयाहकटवन के गररयाविा ि संगे-संगे हँ िें हँ सिलावि खदु े गररयावे के सहम्ि​ि भइल एकर दोसर शिा ह, िासक के ह के शक ना होखे। कवनो काि करे के पसहले आदिी ओकर नाफा-नोकसान सोचेला आ सबना जरूरि एको डेग ना बढ़ावेला। बासक़र सबयाहकटवा के काि िें नाफा-नोकसान ना सोचल सबना जरूरि के रािो-सदन बेचैन रहल एकर िीसरका शिा ह। अपना घर-पररवार के कवनो सज़म्िेदारी सबयाहकटवा के िड़ु ी पे ना होखे के चाहीं, काहे सक सबयाह काटे के बड़हन

सज़म्िेदारी अब ओकरा िड़ु ी पर बड़ले बा ि दोसर कवनो घर के सज़म्िेदारी कइसे सम्हारी? एह सब से लिहर शिा ई ह सक सबयाहकटवा अपना-गैर िें सजयादे फरक ना करे। जबे जहां िौका सिलल सक काि ि​िाि। ओइसे सबयाहकटवा पसटदारी आ पड़ोस के सबयाह काटल आपन परि कत्वा य बझ ु ेले सन। एह सब के एके गो उपाय बा सक सबयाहकटवन के कानो कान खबर ना होखे सक के कर कं हवा सबयाह िय हो रहल बा, जवन हिनी के सिाज िें सछपावल िसु श्कल बा। िब दोसरका उपाय ई बा सक जइसे कवनो अगआ ु आवे ि िहु ल्ला के सबयाह कटवन के बाि-चीि करे खासिर आगे बढ़ा दीं। ठीक ओसहीं जइसे गाँव के लफुआ के गाँव के िसु खया बना देहल जाओ िs गाँव के पंचायि के कवनो फायदा होई चाहे ना बासक़र गाँव के लोग के ि लफुवन से जान बाँसचए जाई। हिरो गाँव के एगो बाबू साहेब िशहर सबयाकटवा हउएँ। सबयाह काटे के सदसाई पर पसटदार से लेके अवार-जवार िक सबका एके आँख से देखेलें। आ देखस काहे ना ? जब भगवान जी जनिजाि एके गो अंसखए देले बाड़ें ि दू आँख से कइसे देखीहें? जब उ कुिा​ा -र्ोिी आ जूिा पेन्ह के गरदन पे चदरा चढ़ा के घर से सनकले ले ि लोग लागेला कहे- लागिा के सनयो िािला उपटल बा। ई आपन कलाकारी जरूरु देखाइहें। लोग ठीके कहेला। हिहँ उनका के कलाकारे िानीले। वजह इ बा सक आपन बाि पहंचावे के जवन हनर उनका हाससल बा ई जानला के बाद उनका के कलाकार िानहीं के पड़ी। उनका पसटदारीिें एक सदन एगो लसड़का के शादी खासिर अगआ ु अइलेसन। इत्तेफाक से पसहले इहे भेटा गइलें ि पूछे लगलेसन - बाबू साहेब ! ई पररवार शादी खासिर कइसन रही ? चटाक से बोल पड़लें- बहि बसढ़याँ, पढ़ाई-सलखाई, सर-सिाज, रहन

तंग इनायतपुरी तंग इनायतपुरी (सुनीि कु िार तंग) जी आजू के सिय िें देश मबदेश िें एगो जानि िानि कमव के रूप िें स्थामपत बानी। इं हा के सीवान के रहे वािा हईं आ पैतक ृ भूमि मपिुई (दाउदपुर) ह। पेशा से हस्तरे खा आ अंगुिांक मवशेषज्ञ हईं तंग जी। हास्य-व्यंग के रूप िें, िजामहया शायर के रूप िें आ िंच संचािक के रूप िें इं हा के भोजपुरी, महन्द्दी आ उदूय के सैकिों कमव सम्ि​िेनन िें देश-मबदेश िें आपन एगो अिग पहचान बना चुकि बानी। देश के शीषयस्थ पत्र-पमत्रका िें तंग जी के रचना प्रकामशत होते रहेिा। दु बररस पमहिे, भोजपुरी िें उं हा के काव्य-संग्रह “के हु िन पि​ि” प्रकामशत हो चुकि बा। भोजपुरी खामतर आखर के संघषय िें इहा​ाँ के बहुत योगदान रहि बा शुरुए से। © आखर ● जन ू , 2015 ● 53


-सहन, बाि-चीि, सहि-नाि, सब एक नम्बर। पररवार के ि​ि पूछीं? आपस िें सनि​ि एिना बा सक कवनो जोड़ नइखे। घर के कवनो नीिन- बेजाँय बहरी के लोग के कानो-कान खबर ना लागे। पांचों सदन उपास काट लेलेसन ि अड़ोस-पड़ोस िक के पिा ना लागे। अब रउरे बिाई ं सक उपास के नाि सनु के कवन बेटी वाला शादी करी? गइलेसन ि आजले देखाई ना देहलेसन । बाह रे कलाकारी ! असहीं एक सदन एगो लसड़का के सवषय िें जानकारी खासिर एगो सबयाह पाटी उनका से पूछे लागल- बाबू साहेब! राऊर पसटदार के लइकवा शादी खासिर कइसन कहाई? बाबू साहेब कुछ देर सोचले आ फे र बोल पड़लें- एजी ! हिरा सनगाह िें बहि अच्छा बा। अब कहाँ ले पढले बा आ का करेला ई ि हि नईखीं जानि, बासक़र चाल सभु ाव िें कवनो किी हि नइखीं देखले। ना ओकरा के आजले दारू सपयि देखनी ना कवनों गलि काि करि। अब लोग के कह देला से ना नू होई? लोग ि िरह-िरह से बदनाि करेला। बासक़र जबले हि अपना आँख से नइखीं देखले, कइसे कवनो गलि बाि कह दीं? बहि अच्छा कहाई। अिना सनु ला के बाद कवन बेटीवाला ठहरी? एह िरह के , िरह-िरह के सकस्सा बाबू साहेब के िशहर बा। एगो लसड़कावाला लड़की के सवषय िें पिा लगावे खासिर पछ ु े लागल- ए बाबू साहेब ! शादी खासिर लड़सकया कइसन कहाई? बाबू साहेब पसहले गंभीर होखे के नाटक कइलें आ फे र िंहु चुसनयावि कहे लगले- देखीं जी, लड़की के सूरि शकल कवनो चीज ना नू ह। खर-खानदान बसढ़याँ होखे के चाहीं। बड़ा नािी पररवार ह। लड़सकया शायद कुछ पढ़लो सलखल सबया। सब कुछ खाली सरु िे ना नू ह? सब देखे के चाहीं। ओइसे शादी -सबयाह िें के ह के लड़की के सशकायि ना करे के । बेटी ि पंच के होले। शादी करीं बहि अच्छा कहल जाई। अिना के बाद कवन लसड़का वाला िैयार होई? ओह सदन बाबू साहेब के गेट जाि हो गइल जब उनका पड़ोस िें शादी खासिर अगआ ु अइलेसन। सबयाह िय हो गइल। बाबू साहेब लाख कोसशश कइलें बासक़र ओकनी से बाि ना हो सकल। हार-पाछ के दू-चार सदन के बाद पूसछये बइठलें- हीि लोग कहाँ से आइल रहल ह ? सनु िे पड़ोससया लोग के कान खड़ा हो गइल। बासकर बिावहीं के पड़ल- ओह पार सदयरा से। सनु िे बाबू साहेब फे र िें पड़ गइलें। अिने िें सदयरा पार हीि लोग से बेटहा के फोन पर बाि करे के जरूरि पड़ल। बाबू साहेब के सबना िांगले िूराद सिल गइल। लगले कहे- ल हई िोबाईल बाि कर लs। बाि करेके ि उ लोग क लेहल बासकर

नम्बर ि िोबाईले िें रह गइल। फे र शभु काि िें देर का? घरे गइले आ नम्बर सिला देहलें- देखीं, हि राउर एगो शभु सचंिक बोलिानी। शादी-सबयाह सभ देख-भाल के करे के चाहीं। लड़सकयो वाला ि कि ना रहे। कहलस- सब पिा ि लगा लेहलें रहनीं ह, खाली अड़ोस-पड़ोस के पिा ना लाग पावि रहल ह, िवन राउर बाि-चीि से पिा लासगये गइल। चलीं अब कवनो बाि नइखे, िन के दग-दग ओरा गइल। बाबू साहेब ि बझ ु ीं सक एकदि से पसेना-पसेना हो गइलें आ हकलाि बोललेउहे िs, हिहँ इहे बाि खासिर फोन कइले बानी। अिना कह के बाबू साहेब फोन काटे के चाहलें, िलेक उ फे न बोल पड़लजब एिना कष्ट कइनी ि एगो सकरपा आउर कइल जाव। रउरा पड़ोससया बानी, िनी उनका से एक बेर बाि करा देहल जाव। एगो जरूरी बाि बसियावे के छूट गउए। रउरा पड़ोससया बानी िनी उनका से बाि करा देहल जाव। बाबू साहेब ि सनु के एकदि घबड़ा गउवन, सक अब का करीं? बासकर फे र बाि सझ ु एु ि के ह िरे इज्जि बचउवन- असल िें आज हि गाँवे नइखीं। अगर जल्दीबाजी ना होखे ि दू-चार सदन बाद गाँवे जाएब ि बाि करा देब। एिना कहके के ह िरे गला छोड़उवन आ फोन काट देहवन। फे र िने-िन सोचे लगुअन सक लागिा जे सिय बदल गइल, अब परु नका फािा ूला ना चली। अइसे बाबू साहेब के कलाकारी के चिक पसहले से ि िसि​ि पसड़ए गइल बा। जब से लोग सदल्ली आ पंजाब आनाजाना शरू ु कइले बा िबसे के ह कान खासिर कउवा के नइखे खोजि। आपन-आपन कान सबका पाले बा। बाबू साहेब भी ि पसहले लेखां नइखन। बढ़ु ापा सबका पस्ि कइए देला। सबसे लिहर बाि इ बा सक एह ईलेक्ट्रोसनक आ साइबर के जिाना िें बाबू साहेब के परु नका फािा ूला के िना काि करी? लभ िैरज े आ इंटरकास्ट िैरज े के जिाना िें एह सबयाहकटवा लोग के के पूछी? सब सिला-जल ु ा के बाबू साहेब अब सार्आ ु ि जा िारे। दोसर उनका लगे अब उपायो का बा? जवन िन्िर जानिारे ऊ साँप नइखे आ जवन साँप बाड़े सन ओकर िन्िर ऊ नइखन जानि। सब सिला-जल ु ा के अब ऊ चपु े रहे िें आपन भलाई बूझिारें। खैर, हिरा एह बाि के अफसोस बा सक, बाबू साहेब जइसन लोग र्ीरे-र्ीरे खि​ि होि जा रहल बा। एगो अइसन कला जवन कि से कि दू शिाब्दी िक हिनी के सिाज पर हकूि​ि कइले बा उ खि​ि होखे के कगार पर बा आ कलाकार लोग िैदान छोड़ के भागे के िैयार बा।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 54


भोजपरु ी िोहा

मचत्र- राजीव रं जन

कसह दीहल आसान बा, सब देला उपदेश । उहे करे के जब परे, बड़हन बहि कलेश ॥

राखे फन सछिराइके , हटे उहे फनकार । फनफनाि जे ना रहे, उ फन बा बेकार ॥

सदन कइसे बहरी भला, कइसे छूटी रोग । जबले संग िें ना जटु ी, सिय अउर सनजोग ॥

लूट िचल होखे कहीं, जसन सनकलो आवाज । आसखर के ह का करी, बा चोरन के राज ॥ खूबे पररयाबरन पर, कइलs अत्याचार । हाथ पसहलही कसट चक ु ल, गनु ल-िथल बेकार ॥

र्िा-चउकड़ी रोज बा, भाग-दौड़ बा रोज । बासकर सब बेकार बा, भौसिकिा के खोज ॥ भूख रहे जब पेट िें, चाहीं रोटी-भाि । भरल पेट रही िबहीं, रुची कवनो बाि ॥ िँहगाई के िार से, लोग भइल बेहाल । अबहीं अइसन हाल बा, आगे कवन हवाल ॥ दइु सकलो चाउर बदे, िरसे के िने लोग । दइु सकलो हीरा कहीं, ई कइसन दरु जोग ॥

अत्याचार करि गइलs , खेलि गइलs खेल । जब प्रकृसि सखससया गइल, काहें बि ु ी फे ल ॥ चक्रवाि आन्ही-पानी, होई रोज भूडोल । र्रिी अब उसबया गइल, खोजs नाया खोल ॥ र्रिी कब्जा हो गइल, पकड़s अब आकाश । बाटे एकरा बाद अब, खाली िहासवनाश ॥

अशोक कुमार त्रतिारी ‘एडिोके ट’ बमिया उ. प्र. के द्वाबा क्षेत्र के मनवासी अशोक कु िार मतवारी पेशा से वकीि हई , इाँ हा के मिखि भोजपुरी काव्य संग्रह ' पमहिका डेग " प्रकामशत हो चुकि बा । इाँ हा के मिखि कई गो कमवता िेख पमत्रका पाती आ अउरी भोजपुरी पत्र पमत्रका िे प्रकामशत भईि बा । एह सिय इाँ हा के बमिया िे बानी ।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 55


कहानी

दू गो लघ ु कथा उघ ा पुराण

हो

ि फजीरे रिेसर बो फूलिसिया के दआ ु र पर जा के ओकरा िाई के बोलवली । उनका कान के लगे िहुँ क के कहे लगली, - ‘बहीन जी, फूलि​िी के उिीर अब उठान पर बाऽ, अब िनी डेग र्रे के शउर ससखावल करीं ।’ ‘का भइल?’ ‘अबके रघवु ीर बाबा के छोटकू के साथे बसिआवि देखनी हँऽ ।’ ‘ि का हो गइल । दूनो संघहीं पढ़ेले सs । आज इम्िहान बाऽ, कुछ बाि होई । एहीिें िू भर िहुँ िाटी काहें लेि बाड़ू ?’ रिेसर ब के ि िहुँ े िाहर हो गइल । भनभनइली, - ‘सचहँ कहल बा सक साँच के र्ाह बड़ा िेज होला । परपरा गइल होई ।’ - कसह के चले के भइली िले बहीन जी के बरिंडे जरर गइल । लपक के उनकर झूला फारे के चहली बासकर अँचरवे हाथ िें आइल । - ‘का कहलू ह? हिरा के साँच सनु ावे से पसहले आपन इगआ ु र-सपछुआर देख लऽ । चलनी हँसे सूपा के , जवना िें अपनहीं सछहत्तर गो छें द बा ।’ बाि बढ़े लागल । आवाजो िेज हो गइल । अड़ोससयोपड़ोसी लहार लेबे लगले । हिहँ जिु गइली । रिेसरो ब जि गइली, - ‘ए बहीन जी, सहऽ िानी िऽ िड़ु ी पर ि​ि चढ़ऽ । ..... िहार नइहर-ससरु ा दनू ो जानऽ िानी । िहार बाप कई बेर पछीि टोला िें पकड़ाइल बाड़े ।’

‘रे फूलिसिया, हई ना देख रेऽऽ! .... िनी लेअइबे जरि लुआठी सक एकर िहुँ वा झऊँस दींऽ । रे हई हँससिआ! एकर िाई पिा ना कवना-कवना घाट के पानी सपअलस, िब जाके एकर नटूरा भाई भइलस, आ ई हिरा के हँससिआ ? हिार आँख सबके देखि रहे बासकर कान खाली ओही दूनो जने के सनु ि रहे । ओह लोग के उघटा-परु ान सनु ि रहे । दसु नया आगे बढ़ल िऽ कई चीज छूट गइल । आजओ ु हिार गाँव अपना प्रीि-अिरख, सेवा-सहयोग आ लड़ाई-भलाई िें जीअि ओही िरे अपना िस्िी िें जी रहल बा ।

बा

ि​िुाँ नोचिा

ि 2002-2003 के हऽ । देश के अलगेअलगे कोना िें एगो जीव के चचा​ा रहे । लखनऊ-गोरखपरु , सीवान-छपरा से ले के गाँवो-देहाि िें साँझ के अन्हररया झोहिे ओह जीव के भय सबके िन िें पइसे लागे । लोग के िन िें एिना डर रहे सक के ह सदशो-फराकी करे सबना टाचा , सढबरी आ लालटेन के ना जाव । अचरज ि ई रहे सक सबके करेजा िें आपन डर भरे वाला उ िहुँ नोचवा कहीं लउकबे ना करे । पिा ना कहाँ से आवे आ झपट्टा िार के िहुँ वे नोच ले जाव । कासिक के साँझ िनी उिस से भरल रहेला । िकई के खेि िें िचान के नीचे गोई ंठा के आसग पर गनपि बाल होरहि रहले । खेि के परु​ु बवार कोना िें कुछ खुरखरु ाइल सनु ले िऽ उनकर कान खड़ा हो गइल । लागल सक जरुर कुछ बा । जागरुक हो गइले । जागरुकिा के चेिना वाला िन के डरो डेरावे लागल । ‘कहीं िहुँ नोचवा िऽ ना हऽ?’

के शि मोहन पाण्डेय : तिकु ही रोड, सेवरही, कु शीनगर, उ. प्र. के रहे वािा के शव िोहन पाण्डेय, एि.ए.(हहंदी), बी. एड. बानी। अिग अिग िंच िा दजयनो नाटक मिखिे आ मनदेमशत कइिे बानी। अनेक सिाचार-पत्र आ पत्र-पमत्रकन िें अढ़ाई सौ से अमधका िेख, आधा दजयन कहानी, आ अनेक कमवता प्रकामशत। भोजपुरी कहानी संग्रह 'कठकरे ज' प्रकामशत। आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहामनयन के प्रसारण, टेिी किल्ि औिाद सिेत भोजपुरी किमि​ि ‘कब आई डोमिया कहार’ के िेखन-मनदेशनकइिे बानी। के शव जी ए घरी कदल्िी िें रहेनी। © आखर ● जन ू , 2015 ● 56


खरु खरु इला के आवाज आहि गनपि एक-एक डेग बढ़ावि गइले िऽ देखले सक कवनो लइकी बाल िुरसिआ । ओकर पीठ उनका ओर रहे आ पीठीया पर ओकर करीका बाल रहराि रहे । सोचले सक आज िऽ खेि के पहरेदारी के फल सिल गइल । आज चोर पकड़ा गइल । पीछे से ओकरा के भर अँकवार पकड़ले सक ऊ लइकनीया एक्के झटका िें अपना के छोड़ा लेहलस आ गनपि के िहुँ पर एक झपट्टा िार के भाग गइल । ओकरा नोह से गनपि के िहुँ वा नोचा गइल रहे

बासकर ऊ सचन्ह लेहले सक ऊ उनकर चचेरी बहीन चंचलीया रहे । लोग जानीि िऽ का कहीि । गनपि के साँच बोल के एगो लइकी के बेभरि कइला से अच्छा झूठ बोल के ओेकर िान बचावल लागल, से लोग के पूछला पर परपराि िहुँ पर गिछा से भाप देि कहले, - ‘अरे िहुँ नोचवा हिार िहुँ नोच सलहलस रेऽऽ ।’

गईु या​ाँ गईु याँ , आवा चला बचाली ँ आपन बचल िनीसी गाँव सनसबया क ठाँव चला बचाली ँ बाग - बगईचा परु वईया क झो ँका आँगना िे ँ रोपीजाँ िुलसी दवु रे पूरी ँ चौका जहाँ पहली बेर र्ईली अम्िा पाँव

गईु याँ चला बचाली ँ आपन बचल िनीसी गाँव

चला बचाली ँ सदयना -बािी वन िुलसी क चौरा पोखरा िे ँ से सपयरी िाटी ले आई भर ँ अँचरा छा छोय के सचक्कन क देई ँ दवु रा पर िाखा जहाँ सलखाईल बाबा के नावँ गईु याँ चला बचाली ँ आपन बचल िनीसी गाँव

डा॰ सोनी पाण्डेय आजिगढ़ युपी के रहे वािी डा. सोनी पांडे जी , अध्यापक हईं । गाथांतर के संपादक, महन्द्दी भोजपुरी सामहत्य िे एगो जानि िानि नाव , िातृभाषा भोजपुरी िे कई गो गीत मिख चुकि बानी । सम्प्रमत इाँ हा के आजिगढ़ िे बानी ।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 57


कहानी

गरीबी के फसरी

गंगीआ के ने है रे िू ? कब िक सोएगा ? " - के आवाज जब बंसिी के कान िें पड़ल ि उनकर नीन खुल गईल । ऊ आंख खोल के देखुवी ि अभी िनी - िनी सकररन फुटे के शरु​ु भईल रहे । ऊ फे नु आंख बन कई के नीन लेबे लगली । बासकर फे नु द-ू िीन बेरा आवाज आईल - " अरे काहे नहीं खोलिा है रे ? कबसे हिलोग िोरा दआ ु रे ठड़ा हैं । गंगीआ खोल हाली से । देख हिरा संगे हिारा सिर्ी आया है ।" ई सब आवाज सनु के शनीचरी , सजन बसंिी के लगही सिु ल रहली , ऊठ के अपना िड़ई के दआ ु री पर लागल टाटी काऊरी देखुवी । जब ऊ देखुवी की टाटी ठीक से लागल बा ि फे नु ऊ बसंिी के आ के जगsवी - रे बसंिीआ । ऊठ ना भोर हो गईल , जो खेि घिु आव । बसंिी उठ के अपना िाई शनीचरी से कहली - " गंगीआ के पलानी िें हेिना फजीरहीं पीए खासिर आ गईल बाड़े सन , िनी आऊरु साफ होखे दे िब हि जाएि । अभी ि िड़ई िें से गईलो नीिन नईखे । सब पीअक्कड़ बईठल बाड़े सन ।" शनीचरी - "आछे ठीक बा । ि जो झाड़ू - बहारु लगा दे । िलेक ले भोर हो जाई । बसंिी के घर के बगल िें गंगीआ के घर रहे । गंगीआ के काि िाड़ी छे वल आ बेचल रहे । गंगीआ के पलानी िें सदनसदनभर सपअक्कड़ सन के जटु ान भईल रहि रहे । बासकर आज ि एक भोरे से ही सपअक्कड़न के जटु ान हो गईल रहे । बसंिी के गाँव िें हरेराि के लईकी के बाराि आईल रहल ह । ओह बाराि िें नाचो आईल रहल ह । काल्ह राि िें िय बरसिआ खूबे पी - पी सढिल ु ाि आ अनाब - शनाब बकि गंगीआ के पलानी िें खूबे रासि ले आवि - जाि रहले सन । अभी फजीरही - फजीरही हरेराि अपना सिर्ी के ले के

पीअे खासिर पहंचल बाड़ें । बसंिी अपना अंगना आ चूल्हा िर झाड़ू - बहारु लगा लेहवी । िले शनीचरी खेि िें से आ गईली आ ऊ बसंिी के कहवी -" जो बसंिीआ । खेि से घिु ले आव । देख अब साफ हो गईल ।" बसंिी आपन दपु ट्टा िाथा पर र् के िड़ई के दआ ु री पर राखल टाटी के र्ीरे से फईला के टपका गोड़ राखि खेि काऊरी सनकल गईली । एने शनीचरी चाह बना के रािलाला के जगवली - "लीहीं ना । हई चाह पी लीहीं । '' रािलाला उठ के , कुला- गलाली क के शनीचरी के संगे खसटया पर अंगना िें बईठ के चाह पीअे लगलें । एही बीच िें बसंिी खेि से आ गईली । शनीचरी कहली - चूल्हा पर िहरो चाह बा , ले लs । बसंिी चाह लेके पीढ़ा पर बईठ गईली । रािलाला - "गंगीआ सकं हा ि अब लुकरार् िचा देले बाड़े सन । फजीरे से रासि ले हरिेशा पलानी िें लड़ी लागले रहिा । का कहीं कुछ बझ ु ाि नईखे । आज सोचिानी सक पसु लस िें रपट सलखवा दीं । ई हरािजादा एक भोरे से रासि ले िाड़ी बेचि रहिा आ घर से िेहरारुन - लईसकन के सनकलल िसु श्कल भईल बा ।" शनीचरी - "अरे । रऊरा काहे के पसु लस- थाना के चक्कर िें पड़ल बानी । ऊ हिनी गरीब के कवनो बाि सनु ी नु भला । पसु लस िें नासलस सलखवाईओं देि ि गंगीआ कुछ पईसा दे के आ पसु लस आला लोग के िाड़ी पीआ के िना ली । ओपर से सदन - राि हिनी से लड़ि रहीहे सन । रऊरा ि काि करे खेि िें भा कहीं िजरू ी करे चल जाएि , बासकर हिरा आ बसंिी के जीअल िुसश्कल क सदहें सन । गंगीआ सदनभर एहींगs हिनी के घरे िाकि - झांकि रहेला । रउरा एक बार िसु खया जी से ही ई बाि बिाई ंआ उनके से गहु ार लगाई ं सक ऊ ओकरा के डांटस , सिझावस ।"

प्रभाष त्रमश्र छपरा, मबहार के रहे वािा प्रभाष मिश्रा जी भोजपुरी िें िगातार मिख रहि बनी आ आखर के साथे जुि​ि बानी। इहा​ाँ के कहानी आ कमवता दुनु िें हाथ सधि बा। कि​िहाि इहा​ाँ के नामसक िें काययरत बानी।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 58


रािलाला - अरे , िसु खआ ठीक रसहिे ि ईहे हाल होईि । ऊ ि खुदे पीअे आवेला एजी , ऊ हिनी के का बाि सनु ी । ओकरा से कहला से बाि ना बनी । पसहसलका िसु खआ जी रसहिे ि एगो बािों रसहि । ऊनकर र्ौंस चलि रहल ह आ ऊ सही - गलि के फै सला ठाढ़े ले लेि रहवन । अभी ि ई जब से आरक्षण लागू भईल बा सभ डोढ़ - िंगरु िसु खआ बनल सफर िरे सन । देख ना , अपने गाँव िसु खआ बाड़ी नन्हक बो , आ ऊ एको बार गाँव - जवार घिु ले होईहे ? सब काि करे ला नन्हईए । आ नन्हईआ पईसा िें चूर बा , दु - चार गो अिला फिला लोग हरिेशा ओकरा आगे सपछे झूलि रहे ला लोग । ऊ सदनभर िास आ दारु के सपछे भागि रहेला , ऊ का हिनी के बाि बझ ु ी । का कहले बारु , सरकारों अईसन- अईसन िलेछन के िसु खया आ सरपंच बनईले बीआ जवन ना ि पढ़ल - सलखल बारे सन ना बड़ जाि के फै सला कर सके ले सन ; आ ऊपर से जवन ऊल्टा- सीर्ा किा िरे सन ि ऊहों पीपा के दारु - लबनी के दोकान गल ु जार कईले रह िरे सन । छोड़ ई सब कवनो फायदा नईखे िसु खआ के कहला से , कवनो आऊरु उपाय होखे ि देखे के पड़ी । शनीचरी - बासकर एहंग कबले चली । जब अपने घरआंगन िें रहल िसु ससकल हो जाई ि कब ले हिनी के चड़ु ी पसहनले रहेि सन । रऊरा बाबू साहेब लो के जा के ई बाि बिाई , ओह लोग के कहला सनु ला से कही बाि बनो । रािलाला - अरे , अब िुह अईसन कहलु । आर्ा बाबू साहेब के लईका लोग ि लबनी खींचे एहीजी आवेला । छोड़ ई सब , अब हि ि सोचिानी सक बसंिी खासिर लईका देख के हाली से सबआह क सदआव । ना ि के करा - के करा से लड़ेि झगड़ेि आ के करा - के करा के पलानी आवे से रोके ि । शनीचरी - अरे , सबआह शादी करे खासिर दाि - पानी नु चांही । कहां बा हिनी के लगे । कईसे करेि एिना हाली सबआह । एह घरी ि दहेजों नीिने देबे के पड़ी , िब जाके कवनो नीिन लईका भेटाई । रािलाला - आछा , छोड़ ई सब ि हि देख लेि । पसहले कपारी पर के बोझा ि उिारल जाव । हि आजु जाएि लईका खोजे िु िनी हाल्दी खाना बना द । शनीचरी आ बसंिी सिल के हाली - हाली खाना बना देहवे लोग । रािलाला खाना खा के कवलेसर भाई के ले के लईका खोजे चल गऊवन ।

एने गंगीआ िाड़ी छे वे िरकुल पर चढ़ल । ऊ ऊपर पहचं के एकटसकए बंसिी के घर िें घरु े लागल । बसंिी के िाई जब ई लीला देखली ि ऊ बसंिी से घरे िें रहे के कहवी । बेचारी बसंिी हारल िन से िने िने गररआवि अपना िाटी के घर िें नीचे चटाई पर बईठ के आपन फाटल कपड़ा हाथहीं सूई से सीए लगली । बीच - बीच िें जब शनीचरी िरकुल काऊरी िाकस ि गंगीआ िरकुल के फाफर पिई के सपछे आपन िूंह सछपावे लागे । आ जब शनीचरी अंगना िें ना रहस ि फे रु ओकर लीला शरु​ु । एही बीच िें एकबार शनीचरी अंगना से बाहर गईली ि बसंिी अंगना िें आ के आपन चप्पल गंगीआ काऊरी देखावि िअ ु ली के िार िारे के ईशारा कईली । फे नु गंगीआ ि ऊपरे से आपना हाथ के अंगरु ी के अपना ओठ िर सटा के बसंिी काऊरी बढ़वलस । बेचारी बसंिी , घर िें से झाड़ू ले आ के ओकरा काऊरी िारे के ईशारा कईली आ फे रु आ के चपु चाप घर िें बईठ गईली । इहें खेला र्ीरे- र्ीरे रोजो - रोजो के हो गईल रहवे । गंगीआ जब अपना पलानी िें िाड़ी बेचे िबो ऊ बसंिी के घर के दआ ु री पर लागल झांख के टाटी के छे दा िें से आंख फाड़ - फाड़ के देखे । कबो- कबो ि ऊ आऊरो सपअक्कड़ लईकन सन के संगे - संगे अनगा ल बािो कहे । सांझ भईल ि रािलाला घरे चहपवु न । शनीचरी पानी पीअे के सगलास बढ़ावि पछ ु ली - कहीं बाि िय भईल ह ? रािलाला - ना , आज कहीं बाि फाईनल ना भईल ह । कवनो जगहा ररस्िा पसन ना परल ह । ह देख काल्ह एक जगहा जाएि , ओजी ठीक हो जाए के उम्िेद बा , काहे सक लईका के फूफा खुदे हिरा के ऊ लईका बिईले ह आ काल्ह हिरा संगे जा के सबआह ठीक करावे के कहले ह ।

शनीचरी - चली ठीक बा , काल्ह चल जाएि । दीहीं आपन कुिा​ा आ र्ोिी , ऐकरा के एकबार सोड़ा िें साफ कर देि बानी । काल्ह जाए बेरर ले सख ु जाई । शनीचरी रािलाला के कुिा​ा र्ोिी र्ो के रेंगनी पर टांग देहली । असगला सदने भोरे चाह - ओह सपअला के बाद रािलाला , शनीचरी से कहले - का हो , कह ि एकबार गंगीआ के िाई फूलन से एकबार ई बाि कहल जाव , कहीं ऊ गंगीआ के सिझावस - बझ ु ावस । शनीचरी - अरे ना जी , का रऊरा एकनी के चक्कर िें पड़ल बानी , ऊ भलिानषु रसहि ि एहींग होईि । ऊ ि टोला भर िें

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कहि सफरे ले सक हिरा बबआ ु से नीिन के ह हईए नईखे । ऊ गंगीआ के ओरहन सनु ी नु भला । रािलाला - आछा , रोकs िु िनी , एकबार देखिानी । ना ि आज ि सबआह िय कईए देि । रािलाला , गंगीआ के दआ ु र पर पहचं के ओकरा िाई के आवाज देहवन - " कहां बारु भऊजी । " ओने से फुलन आवाज देहली - ह आविनी । फुलन - का हs ? कईसे - कईसे भोरे - भोरे । रािलाला - देख भऊजी , िहार गंगीआ हिरा घर के लईकी - जनाना के सजअल िसु श्कल क देले बा । िाड़ी छे वे चढ़े से ले के पलानी िें िाड़ी बेचे ले सदन भर हिरे घर पर िाका िाकी करिा । ऊ ि आऊरु सपअक्कड़न सन के संगे अनाप शनाप बकि रहिा । िु ि एगो लईकी - औरि के सदक्कि बझ ु िारु । एह से िु िनी ओकरा के सिझईिु । िाड़ी के दोकान के दोसरा जगहा लगावे के कहs ।घर के सािने इ सब ठीक नईखे । ई सनु ि भईल सक फुलन एकदि सपन- सपना गईली । एकदि गरि होके ककास आवाज िें ऊ कहली - देख फे नु ऐ ंग कहि ि​ि होईहे ना ि िूंह िें से जीभ खींच लेि । िहार का औकाि बा हिरा से बसिआवे के । हिार िरक्की देख के िे एिना जरिारीस । हिरा दअ ु रा आ पलानी िें गाँव - जंवार के लोग आविा ि िे काहे र्नकsिारीस । आ गंगीआ के ऐको शबद उल्टा - सीर्ा कहलीस ि हिरा से बेजाए के ह ना होई । िे अपना लईकी आ िेहरारु के सम्हार , िे हिरा दल ु रुआ के ऊपर लांछन लगावsिारीस । हिरा लगे ि बैल बा ऊ छुटा घिु बे करी , िोरा डर बा ि अपना गाय - बछडु सन के बांर् के राख । आ भाग हिरा दअ ु रा से ना ि िोर हड् डी - पसली अभीए िड़ु वा देि । ई सब बािचीि ऐिना गरिा- गरिी आ िेज आवाज िें भईल सक अगल - बगल के लोग पंहच गईल । शनीचरी झट से आ के अपना िरद काऊरी से लड़े लागल बासकर जब लागल सक लंगा से गंगा हरान रहे ली , ि एकनी से के जीिी , ि ऊ रािलाला के हाथ पकड़ के घरे ले अईली । रािलाला घरह आके एकदि परेशान रहले । इहें सब होि रहे िलेक ले लईका के फूफा आ गईले । रािलाला ऊनका संगे साईसकल ऊठा के चल देहवन ।

आजु सांझ के जब रािलाला घरे अऊवन ि ऊ सबसे पसहले शनीचरी के लड् डु के पोसलथीन देि कहवन जा िनी जरिी िाई िर चढ़ा आव । देख बसंिी के सबआह िय क के आ गईल बानी । शनीचरी बहिे खुशी से हाथ - गोड़ र्ो के लड् डु चढ़ावे जरिी िाई िर चल गईली । ओजी से आ के लईका आला सकं हा का - का बिकही भईल ह सब सहसाब पूछ लेहली । बसंिी के सबआह पांचे सदन बाद िंसदर िें होखे के िय भईल रहे । रािलाला आ शनीचरी असगले सदन से सबआह के िइआरी िें लाग गऊवे लो । पईसा के जगु ाड़ करे से ले के कपड़ासाड़ी , नेग , सखआवल - सपआवल के सिान सब खरीदाए लागल । पांच सदन बाद पंदरह साल के बसंिी के सबआह पचीस साल के अनूप से हो गईल । सबआह के बाद बसंिी , िंसदरे िें से अनूप के घरे चल गईली । एह सबआह के बाद रािलाला आ शनीचरी के एगो बड़हन बोझा हल्का हो गईल । रािलाला अपना बसंिी के पढ़ावे के चाहि रहवन बासकर गरीबी आ अपना आस - पास के गंदा िाहौल के देख के ऊ हसथआर डाल देहवन आ बसंिी के घरहीं रहे के कह देले रहवन । शनीचरी आज बहिे खुश सबआ सक आज से ओकरा सदन - सदनभर आपन घर आ अंगना ना ओगोरे के पड़ी । अब ओकरा ना ि गंगीआ के िाड़ी के गाछ से टकटकी लगईला से िन िें आग जरी आ ना हीं िड़ई के टांटी से झंकला पर । ऊ अब घर - अंगना छोड़ के कुछ देर खासिर आराि से कहीं जा सके ली । बासकर ईहो एगो सवसर् के सवंडबना बा सक बंसिी जवन अपना नईहर के सख ु , िाई- बाप-भाई के संगे ढ़ेर सदन सबिा के , पढ़ाई- सलखाई कके , आजादी से घूिे - सफरे के िजा ले के , बाग- बगईचा , िेला- पूजा , सब देखि एगो सबआह लायक ठीक-ठाक उसिर भईला पर अपना ससरु ा पहचं िी बासकर आज ऊ बाल - सबआह के घंटा अपना गला िें लटका के जीवन िें फसरी लगावे आला सरकवासी पर हाथ राख देले बारी ।

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सामतयक बतकही

जज के ऊपर केिु बा का ?

ब हि छोट रही ि अक्सर इ सवाल हिरा सदिाग िें घल ु सटया िारि रहे सक जब सभके न्याय जज करेले ि उ जज के हवे ? कवनो भगवान ि नइखन नु भेजले ? ि​िाि िरह के बचकाना प्रश्न उठि रहे।स्कूली पाठ् यक्रि िें भी एह बाि के अहसास सदलावल जाला सवद्याथी लोग के , सक न्यायालय के आगे सभ लोग बराबर बा। गाँव के खेसिहर िजदरू से लेके िंत्रीगण अउरी आला असर्कारी लोग भी।अउरी इ सत्य भी बा, खासकर भारि जइसन लोकिांसत्रक देश िें जवना के चलिे हिनी के गवा करेनी जा।कई गो उदाहरन बा एह कड़ी िें हिनी के देश िें जवना िें, गलिी कईला प िंत्री से लेके िख्ु यिंत्री िक के घटु ना टेके के पड़ गईल बा, अउरी जेल जाए के िजबूर भईल बा लोग, एसहजा िक सक सत्ता िें रहि।हि एह बाि के भी स्वीकार् करिानी सक अभी भी लूप होल बा जवना िें जवाबदेही अउरी सजम्िेदारी के भारी किी देखल गईल बा।एकरा बावजूद सबसे ज्यादा देश िें लोग पसु लस आ सरकार के अपेक्षा न्यायपासलका िें सविास करेला अउरी काफी हद िक एगो इज्जि के नजर से देखेला । लेसकन कई गो अइसन भी के स आइल बा जवना िें न्यायपासलका के सवोच्च कुसी प बईठल जज भी काया पासलका के प्रभाव िें लउकल बा, जवन सक न्यायपासलका के प्रसिष्ठा के गन्दा करि एगो बररआर चनु ौिी सािने आइल बा।अइसना सस्थसि िें एगो प्रश्न उठल स्वाभासवक बा सक सनगरानी, जाँच अउरी आरोपी के ऊपर कारा वाई के कवनो कारगर व्यवस्था नइखे का ? जज के उपरो भी कोई बा का ? जब अइसन प्रश्न उठेला िब राजनीसिक

लोग के एके स्वर िें उत्तर आवेला सक कॉलेसजयि ससस्टि ठीक नइखे ओकरे िें सदक्कि बा।इ बाि भी ठीक ओकरे लेखा हो रहल बा जईसे प्लासनंग किीशन के बरु ा भला कह के , ओकरा िें किी सनकाल के नीसि आयोग ला देवल गईल। फलिः न्यासयक चनु ाव के सन्दभा िें दावा करि राजनीसिक सलाह आइल अउरी सफल हो गईल जवना िें कॉलेसजयि ससस्टि के जगह प NJAC (National Judiciary Appointment Commission) ले लावल गईल। लेसकन एक ससस्टि िें जव के साथे साथे घनु के भी सपसे के कोसशश कईल गईल बा एकरा के सडटेल िें चचा​ा करब । सबसे पसहले अइसन आिूल चूल पररविा न के बारे िें सवचार रख ली। सपसछला 15 अगस्ि के प्रर्ानिंत्री जी अपना भाषण िें एगो प्वाइंट रखले रहन पूरा ससस्टि बदले के पक्ष िें (उ िूल रूप से प्लासनंग किीशन के लेके रहे) । अगर कवनो सािान सबगड़ गईल बा ि पूरा बदल दी बजाए ररपेयररंग के ।सबसे पसहले हि आपन इ राय देहल चाहब सक अइसन एक्शन ठीक नइखे । अगर ससस्टि िें सदक्कि बा, ओकर एसफसशएंसी कि बा ि पूरा ससस्टिवे बदल दी, इ ठीक चीज नइखे स्वस्थ लोकिंत्र के नजररया से।ओकरा िें गलिी ढूंढके ओकर िूल्यांकन करे के चाहीं सक कहाँ गलिी बा ? ओकरा के सर्ु ार करे के चाही, ओकरे िें सर्ु ार करके काफी कुछ बदलाव ले आइल जा सके ला ना सक पूरा बदल के । पूरा एकदि से बदले वाला प्रसक्रया के "आिूल पररविा न" प्रसक्रया कहाला जवन लोकिासन्त्रक शब्दावली से परे बा।िानी रउआ गसणि हल करिानी, उत्तर ना आइल सफर दोसरा पन्ना प कोसशश कईली सबना अवलोकन कईले ि कहाँ से उत्तर आ जाई ? भले ही रउआ पूरा कॉपी भर दी कोसशश करिे करिे उत्तर ना

गौरि त्रसंह रोहतास, मबहार के रहे वािा गौरव जी इं जीन्द्यररं ग के छात्र हईं। भोजपुरी िें िगातार मिख रहि बानी। ए घरी गौरव जी VIT यूमनवर्सयटी वेल्िूर , तमि​िनाडू से पढ़ाई कर रहि बानी।

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आई जब ले ओकर हर स्टेप के िूल्यांकन ना करब।अईसे ि पासला यािेंट्री ससस्टि काि नईखे करि आज, ि का िाने चनु ावी प्रसक्रया बदल देवल जाव ? हर बार लेबोरेट्री के िेढक बनावल ठीक नइखे। सबसे पसहले कॉलेसजयि ससस्टि ह का ? कॉलेसजयि ससस्टि जज लोग के स्थानान्िरण अउरी चनु े के एगो ससस्टि हउवे जवना िें िख्ु य न्यायार्ीश चार गो वररष्ठ जज लोग के साथे सिल के सवचार करेला।सवचार करके राष्ट्रपसि िहोदय के आपन ररपोटा सौपेला, जवना िें राष्ट्रपसि के पूरा असर्कार बा ओह लोग के सवचार प सहि​िी अउरी असहिसि जिावे के । सफर सलाह िशसवरा करके राष्ट्रपसि िहोदय सप्रु ीि कोटा के जज के सनयि ु करेला।हाई कोटा के जज चनु े खासिर इहे प्रसक्रया बा । अंिर इ बा सक हाई कोटा के िख्ु य न्यायार्ीश अउरी राज्य के राज्यपाल के भी सलाह लेवल जाला।सदक्कि एकरा िें इ बा सक एह ससस्टि के संसवर्ान िें जगह नइखे जवना के सर्ु ारल जा सकि रहे।जबकी सप्रु ीि कोटा के जज के सनयसु ि खासिर आसटा कल 124 अउरी हाई कोटा खासिर आसटा कल 217 िें ऊपर सलखल कं डीशन के ब्याख्या कईल बा । अब बाि कईल जाव (NJAC) िंत्र के , एकरा के संसवर्ान िें संसोर्न करके 124A के रूप िें जगह देहल गईल । इ काि कॉलेसजयि के साथे भी हो सकि रहे।एह ससिसि िें िख्ु य रूप से (1) िख्ु य न्यायार्ीश, (2) दू गो सप्रु ीि कोटा के वररष्ठ जज, (3) कानून अउरी न्याय िंत्री, (4) दू गो इसम्िनेंट।इ दनु ु इसम्िनेंट के चनु ाव प्रर्ानिंत्री, िख्ु य न्यायार्ीश आ सवपक्षी नेिा के िरफ से होई।सबसे पसहला लूप होल बा जव के साथे घनु के सिलावल । कानून अउरी न्याय िंत्री आ दू गो इसम्िनेंट के घस ु ावल सनष्पक्ष न्याय के चनु ौिी दे सके ला भसवष्य िें।खाली हि नईखी कहि बलुक ढेर बसु िजीवी लोग के सवचार पढला के बाद सिेट के एगो सवश्लेषण रखि बानी।दस ू रा लूप होल बा वीटो पावर देहल । एकर ि​िलब इ बा सक एकर प्रसक्रया िें एह बाि के व्यवस्था कईल गईल बा सक अगर कोई भी दू आदिी ससिसि के सवचार से सहि​ि ना होई ि ओकरा के पास नइखे कईल जा सकि।अब सोची िीन गो नेिा लोग (कानून िंत्री अउरी दू गो इसम्िनेंट) के प्रत्यक्ष रूप से हस्िक्षेप बा । साथे साथे प्रर्ानिंत्री अउरी सवपक्षी नेिा के अप्रत्यक्ष रूप से । अब एह बाि से अंदाजा लगावल जा सके ला सक सनणा य के झक ु ाव के ने हो सके ला |

सबसे बड सिस्या इ बा सक जसस्टस सडलीवरी सदनोसदन िहंगा होि जा रहल बा जवना िें अच्छा वकील, आि आदिी खासिर सिलल बड़ा िसु श्कल हो गईल बा।एह हालाि िें अगर रउआ NJAC के थ्रू कसिटेड न्यायपासलका देने झाँके के कोसशश करब ि एसफसशएंसी सनसि​ि िौर प घटी।हि एह से कहिानी काहे सक न्यायपासलका कवनो ररप्रेजन्े टेसटव ससस्टि थोड़ी न हवे सक ओकरा िें अल्पसंख्यक सदस्य के सदस्यिा जरूरी बा।रउवा बसढ़या से सूक्ष्ि​िा से नजर गड़ाईि िब एगो अउरी बेजोड़ िजासकया चीज सिली, उ इ सक दू गो इसम्िनेंट लोग िें से एगो SC/ST/OBC/अल्पसंख्यक कम्यसु नटी के होखे के चाही।काहे खासिर ? न्यायपासलका से सनष्पक्ष न्याय के अलावा अउरी कवनो चीज के कािना कईल बेईिानी होई।उलटे न्यासयक प्रसक्रया िें असंिल ु न बढ़ी।ई िीनो बाहरी लोग जज के सनयसु ि करे के कासबल बा सक ना, एह बाि के के िय करी ? न्यायपासलका िूलिः काया पासलका अउरी सवर्ासयका के िनिानी करे से रोके के काि करेले, अपना दायरा िें बांर् के रखेले। अिना िाि झाि के बावजूद न्यायपासलका अपना िख्ु य र्ारा से दूर रह गईल सबया । अपना िूल बसु नयादी चनु ौिी से आजओ ु परे सबया।न्यायपासलका के सजम्िेदारी अउरी जवाबदेही के क्रि िें िीन गो िूल सिस्या बा (1) अझरु ाइल िहासभयोग प्रसक्रया- एह प्रसक्रया िें अिना जसटलिा बा सक दरु ाचार करे वाला जज प िहासभयोग लगावल बड़ा िसु श्कल काि बा।पसहले 50 MPs के हस्िाक्षर होई िब 3 जज के ससिसि बईठी । फे र पासला यािेंट िें जाई बहस खासिर जवन पहचिे पहचिे राजसनसिक स्टैंड लेला।(2) सबसे बड़ भसवष्य के चनु ौिी बा जवन चचा​ा ना भईल एह सबल िें। न्यासयक भ्रष्टाचार के सखलाफ आवाज उठावे वाला वकील के सखलाफ कं टेम्प्ट ऑफ़ कोटा के िक ु दिा । उदाहरण के रूप िें प्रशांि भूषण जी एकर सशकार बनल बानी।उहाँ के ऊपर अइसन के स चलिा।(3) िीसरा भावी चनु ौिी बा जवन एह सबल िें अछूिा रह गईल बा । उ हवे सक RTI(सूचना के असर्कार) से अपना के दरू रखले सबया सप्रु ीि कोटा । कवनो जज के सखलाफ FIR करे खासिर चीफ जसस्टस से सैंक्सन जरूरी बा, जवन वररष्ठ वकील लोग के पहच से भी बाहर बा । िीनो चारो चीज के सिला के एगो सनणा य इ सनकालिानी सक सप्रु ीि कोटा अपना के बंद सकिाब लेखा अब िक रखले सबया जवना के खोलल बहि जरूरी बा िबे सजम्िेदारी लउकी |

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हि कवनो चीज के िबे कटाक्ष करीला जब हिरा ओह से बेहिर हल लउके ला।हि िीन चार लोग के सलूशन प्लान पढली, अउरी जसस्टस विा​ा ससिसि के ररपोटो । ओह सभ िें सबसे बसढ़या सझ ु ाव लागल प्रशांि भूषण जी के द्वारा प्रोपोज कईल 1997 वाला सबल, जवना िें ढेर चनु ौिी सिेटा जािा।जवना िें न्यायपासलका खासिर उहाँ के फुल टाइि अउरी स्विंत्र बॉडी के िांग कईले बानी।फुल टाइि एह से काहे सक िख्ु य न्यायार्ीश के लगे अिना सिय कहाँ बा सक बसढ़या से जाँच परख के जज के चनु ाव करस।जज के चनु ाव खाली कानून जानला के आर्ार प ना होला, उ ि वकील के पिे बा ,बलक ु एह चीज के िूल्यांकन कईल जाला सक भारि के सवसवर्िा के के िना बारीकी ले सिझsिारें । संवैर्ासनक

सविसनीयिा के िना बा, भारि के हर वगा के सिझ बा सक ना ? इ सब िबे हो सके ला जब फुल टाइि बॉडी होखी।एगो अउरी सनक बाि लागल सक अगर बाहरी आदिी के एह प्रसक्रया िें घस ु ावे के बा िब वररष्ठ CVC, वररष्ठ िानवासर्कार काया किा​ा के ले ससकला, कै सबनेट के जगह प।िीसरा सनक बाि इ लागल हिरा सक एह िें ससिसि दू भाग िें िडु ल गईल बा एगो चनु ाव ससिसि से जडु ल अउरी दूसरा सशकायि ससिसि जवन वाचडॉग लेखा काि के सनगरानी भी करि रही अउरी सशकायि भी देखि रही।

छनुकी अरतवन्द्द कुमार पाठक

करि​िा

परेि

दसु नया हिरा के भल ु ादे चाहे हि दसु नया के भल ु ा दीं करिवा ना छोड़ेला िरलो के बाद । ***

अहि हटल परेि बढ़ल । ***

आनन्द देवेवाला लुटावि रहेला आनन्द हि रहनी फँ सल ियवा िें आ अँसखया कर लेनी बन्द । ***

सरजक सरजक अवरु सरजन एके ह िोहर सदखेला ि देखल । ***

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दुहनयादारी िउवि आवेला ि क्रूर ना आवे ि सनष्ठर दसु नयादारी के चक्कर सिझल बहिे कठीन । ***


कहानी

गा

अगुवा वs सभ ससखया अगआ ु के स्वागि िें गारी ।” िाइक पर जइसही ई गाना गंज ु ल िािा के चेहरा पर लाली आ गईल । एकरा बाद ि स्वागि गीिन के बौछार चालू हो गईल ।

“अगआ ु के पाकल पाकल िोछ, जैसे कुकुरे के पोंछ ।" "अगआ ु जवार के सबसे बड़का गंडु ा, हिरा बाबू के ना सदहववले हीरो होण्डा । " ओ बेरा हिार उसिर लगभग नौ साल के होई । भले उसिर कि होखे पर नीिन बाउर के फका ठीक से बझ ु ाव । हि बझ ु गईनी सक अगआ ु के स्वागि ठीक से नईखे होि । “रािायण के दीदी के दसु नया भर के इयार , सदन भर घूिेली उ हाट बजार” इ गारी ि सनु के हिार खून गरि हो गईल । इ गारी ि हिरा िािा के सदहल जाि रहे । ए लोग के एिना सहम्ि​ि सक हिनी के गारी देिा लोग । ओ लोग के जबाब देवे खासिर हि िािा के िरफ देखनी | पर इ का ! गाँव के सबसे बड़का सखससयाह रािायण िािा िुसस्कया के गारी के आनंद लेि रहले । गारी ि दूर के बाि गाँव के के ह उनसे आँख उठा के भी बाि न करे । ओइसन आदिी के उनका बसहन के साथे अइसन गन्दा गारी सदहल जाि रहे और उ िस्ु कराि रहले । “का िािा जी अइसन गन्दा गारी सनु के रउवा िस्ु कुरािानी?” हि बीख से कहनी “हिार ि िन करिा सक हि जाके ओ लोग के िहुँ नोच लीं ।”

“अइसन ना कहल जाला । इ कुल परम्परा ह । ससदयन से चलि आविा । हिनी सकहाँ शादी सबयाह के गीि गारी शादी के शोभा बढ़ावे खासिर सदहल जाला । एह पर सखससयासयल ना जाला ।" िािा सिझावि कहनी । वाकई िें ई परम्परा के ही किाल रहे सक ओइसन सखससयाह आदिी, अभद्र गाना सनु के भी सगल रहे । हिार रोष िनी कि भईल । इ आज से करीब पच्चीस साल पसहले के बाि होई । गिी के छुट्टी िें हि िािा जी सकहाँ गईल रहनी । िािा जी हिके साथे सिलक िें ले गईल रहनी । िािाजी ओ सबयाह के अगआ ु रहनी । सिलक के बाद बाराि िें भी हिके जाए के िौका सिलल और िािाजी के स्वागि िें एक से बढ़ के एक गारी सनु े के सिलल । दनु ु पक्ष के िेहरारू लोग खइँची भर भर के गारी देहले रहे । बझ ु ाि रहे सक िािाजी ओ लोग के खेि काट लेले होई । असल िें इ गारी अगआ ु के काि के ईनाि रहे । अगआ ु के जेिना ढेर गारी सिले, ओकरा अगअ ु ई ओिने सफल िानल जाव । देखे िें एकदि आसान लागे वाला गारी, गावल कवनो अनाड़ी के काि ना रहे । हर गाँव िें एगो चाची, दीदी या फुआ अइसन होखे लोग जे गारी गावे िें एकदि सनपणु होखे लोग । दोसर िेहिान आवे लोग चाहे ना पर ओ लोग के उपसस्थसि के खास इंिजाि होखे ।िनी अगवाहे बोला सलहल जाव । कई सदन िक उ लोग प्रैसक्टस करे । नया सफ़ल्िी गाना के िजा पर नया -नया गारी के सनिा​ा ण होखे । जेिना गारी इ लोग गाना के िजा पर एक सीजन िें बना देव, ओिना आनंद बख्सी या सासहर लुसर्यानवी जैसन गीिकार लोग कई साल िें सलख

र्नंजय त्रतिारी मसवान , मबहार के रहे वािा धनंजय जी आखर पेज से शुरुवात से जुडि बानी । इाँ हा के आखर प कई गो कहानी िामग चुकि बा । भोजपुरी भाषा के िे के इाँ हा के प्रयास सराहनीय बा । िगातार भोजपुरी िें मिख रहि बानी । एह सिय ईहाँ ा के िुम्बई िे बानी । © आखर ● जन ू , 2015 ● 64


पावि होई । गारी सिाप्त भईला पर बाकायदा बाकी िसहला लोग बड़ाई िें कहे -“चाची खूब न भड़नी ह अगआ ु के ।” इहे ओ लोग के इनाि रहे । अइसन ना रहे सक पायरेसी आजएु के दौर िें बा । ओ घरी भी ए गारी कुल के चोरी होखे और सफर िेहरारू लोग दस ू रा शादी सबयाह िें जाके आपन र्ाक जिावे लोग । कई बार गाना के िासलकाना हक़ खासिर लडाई भी हो जाव, और बाकायदा औरि लोग के पंचायि बईठे एके सल ु झावे खासिर । खैर बाि होि रहल ह अगआ ु के । आज से बीस पच्चीस साल पसहले, अगआ ु के सबना शादी के कल्पना कईल ही असंभव रहे, हिनी के भोजपरु रया सिाज िें । आज भी अगआ ु लोग बा पर अब अगअ ु ई के स्वरुप काफी बदल गईल बा । अब सबना अगआ ु के भी ढेर सारा शादी होिा । रािायण िािा अपना जवार के सबसे बड़का अगआ ु रहनी । अपना पूरा सजंदगी िें कि से कि दू सौ से ज्यादा शादी करवले होखेब । गोर्ना कूटईला से पसहले ही लोग आहण कूट देव िािा के दवु ार पर । गोर्ना के बाद एको सदन उहाँके साइसकल पलानी िें ना रहे । अपना काि के सचंिा छोड़ िािाजी लोग के शादी करवावे िें भीड़ जाई ं । एके लेके िािी से कई बार झगड़ा भी होखे, पर िािा जी कभी भी इ काि ना छोड़नी । अइसन लागे सक उहाँ के जनि ही अगवु ाई खासिर भईल होखे । िबे ि जवना उसिर िें लोग सचका बाड़ी खेले ओ उिर िें उहाँ के अगअ ु ई करे लगनी । िात्र चौदह साल के उिर रहे जब अपना अगवु ई िें पसहलका शादी करवले रहनी ।ओबेरा िािा जी के भी सबयाह ना भईल रहे । िािाजी के अगअ ु ई के एिना शोर रहे सक गलिी से भी शादी लायक लईका के दवु ार पर खड़ा हो जाई ं ि लईका िने िन सगल हो जाव । कहीं ओकरा बाबूजी के बारे िें पूछ सदहनी, िब ि उ लजा के घर िें भाग जाव । आज हर जगह टीि भावना के बाि होला पर असली टीि भावना ि परु नका जिाना के अगआ ु लोग िें रहे । अइसन ना रहे सक िािाजी एकलौिा अगआ ु रहनी । उहाँ जईसन दू चारगो अगआ ु लोग हर गाँव िें होखे और सब एक दूसरा से सिल जल ु के शादी सबयाह करावे । िािाजी के भी बाकायदा टीि रहे जेिे चनेसर िािा, गंगासागर नाना, बच्चा बाबा आसद लोग रहे । आज हिनी के आँकड़ा के कं प्यूटर िें जिा करेनी जा पर इ लोग चलि सफरि कं प्यूटर रहे । जेिना जानकारी ए लोग के

डाटाबेस िें रहे ओकर 10% भी हिनी के लगे ना होई । के कर लईका लईकी कब पैदा भईल रहे, के िना रहे, राशी नाि का रहे सब अपडेट रहे । इहाँ िक सक कवन पंसडि छसठयार अउर सिईसा करवले रहले इहो याद रहे । इ कुल जानकारी शादी लगावे िें काि आवे । हिनी खानी ए लोग के गूगल कईला के जरुरि ना रहे । सिनटे िें ए लोग के सदिाग सचा क लेव सक कवना लसड़का के साथे कवना लईकी के कंु डली सिल जाई । नाड़ी दोष से लेके नक्षत्र सिसिैच िक इ लोग िुरिं ही जान लेव ।

देखे िें भले आसान लागे पर अगअ ु ई एगो सवशेषज्ञ वाला काि ह । एिे ि​िाि िरह के चनु ौिी और बार्ा आवेला । िािा के देखा देसख उहाँ के गाँव के बेचू भी एक साल अगअ ु ई शरू ु कईले । उनका लागे सक इ बहि आसान काि बा । पसहलके बाराि िें बेटा और बेसटहा पक्ष िें लाठी लठउअल हो गईल । बीच बचाव िें कपार फूटला के बाद उनकर अगअ ु ई हिेशा खासिर खि​ि हो गईल । अगअ ु ई के काि पन्ु य के साथे साथे बड़ा अपयशी भी होला । सबयाह िें कवनो भी बार्ा खासिर सीर्े अगआ ु के ही सजम्िेदार िानल जाला । लईकी अगर ससरु ा िें जाके सख ु करी ि कवनो बाि ना पर कवनो िकलीफ भईल ि अगआ ु के लोग खईची भर भर के गारी देला । लईकी वाला लोग कहेला “हिरा लड़की के भास अईले” । ठीक एसहंगा बेटहा भी लईकी से नाराजगी भईला पर कहेला सक “अगआ ु हिके डूबा देहलस” । पर िािा और उहाँ के साथी लोग के बाि कुछ और रहे । ओ लोग के रसूख रहे । शादी के बाद शायदे कभी कवनो सशकायि के ह कईल । अगर सशकायि आईल भी ि उहाँके आगे बढ़के , हस्िक्षेप क के , सब कुछ ठीक करा दीं । परु नका सिय िें अगआ ु लोग के सबसे बड़का दश्ु िन रहे सबयाह कटवा । जैसे हर गाँव िें एगो दगु ो नािी सगरािी अगआ ु रहे लोग, ठीक ओईसे ही एकार् गो सबयाह कटवा भी रहलें । ए लोग के िूल काि ही सबयाह काटल रहे ।एसहिे ए लोग के स्वगा लोक के प्रासप्त जईसन आनंद आवे । गिछी िें सिुआ बाँर् के और लोटा िें पानी लेके जवार जवार घूिे लोग सबयाह काटे खासिर । गाँव िें जेकरा भी सबयाह कटवा से दश्ु िनी रहे उ अपना लईका लईकी के शादी सछपा के ही करे ।

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िािा जवन सबयाह करायीं ,उ डंका के चोट पर कराई ं । कवनो सबयाह कटवा लोग के सहम्ि​ि ना रहे सक उहाँ के अगअ ु ई वाला सबयाह काट देस । एक बार सूबदे ार नाना के लईकी के सबयाह उनकर पटीदार जगदीश, जवन की बहि नािी सबयाह कटवा रहले, ई कसहके सक लड़की गूगँ सबया,काट देहले । िािा ओ सबयाह के अगआ ु रहनी । सफर का िािा अपने दआ ु र पर ही पंचायि रख देहनी । अपना खचा​ा से लईका पक्ष के बोलववनी और लईकी पक्ष भी जटु ल । ओ घरी लईकी देखे के परम्परा ना रहे ,ओकरा बावजूद भी लईकी देखववनी और कटल सबयाह सफर से िय हो गईल । जगदीश िािा के डर से चौरा िें भाग गईले । िािा उनके चौरा िें ही लसार लसार के सपटनी । ओ िार के बाद जगदीश और जवार भर के सबयाह कटवा लोग सबयाह काटल छोड़ सदहल । एिना चनु ौिीपूणा और िनाव वाला काि भईला के बाद भी अगआ ु के ईनाि िें सिले एगो र्ोिी और गिछी । जवना के लेबे से अकसर इ लोग िना क देव। शादी सबयाह करवावल ए लोग खासिर पन्ु य के काि रहे, र्रि करि रहे, कवनो पेशा ना ।

ए लोग के बस एकही ध्येय रहे सक लईकी शादी क के जाए ि ससरु ा खूब सख ु करे और ओ लोग के नाि लेव । शराबी कबाबी कुल के इ लोग कभी शादी ना करवावल । कई गो लोग जेकर शादी न होखे, उ पईसा लेके िािा सकहाँ आवे सक, हिार सबयाह करा दीं । िािा इ कसहके िना क दीं सक- हि अगआ ु हई ं दलाल ना । ओ घरी के अगआ ु लोग बड़का उसूल वाला होखे ।

सदल्ली रहे । देखे से सन्ु दर और सशु ील लईका, एिना बड़हन शराबी होई ,इ िािा के िसनको पिा न रहे । शादी के बाद लईकी के बड़ा दःु ख देहलS सन । अंि िें उ आत्िहत्या क लेहलस । ओकरा िौि खासिर िािा और उहाँ के साथी लोग अपना के सजम्िेदार िानके अगअ ु ई हिेशा खासिर छोड़ सदहल । इ परु नका जिाना के अगअ ु ई के बाि रहे । अब ि अगअ ु ई के स्वरुप काफी बदल गईल बा । शादी करवावे से पसहले ही अगआ ु अपना खासिर सूट बूट के फरिाईश क देिारें । ढेर लोग अब किीसन भी लेिा । शादी के बाद लईका लईकी के का होिा एसे के ह के ि​िलब नईखे । इन्टरनेट के आ गइला से भी अगआ ु के िहत्व कि हो गईल बा । लोग ओकरा िाध्यि से शादी क लेिा । शादी िय भईला के िरीका िें बदलाव के साथे शादी सबयाह िें होखेवाला रस्ि िें भी बदलाव आईल बा । दू सदन के बजाय अब एक सदन के शादी होिा । बहि जगह अब शादी सदने - सदने हो जािा । अगर राि िें होिा ि गीि गारी के जगह डी0 जे0 लगा के नासगन डांस करिा लोग । गीि ि अब कवनो बीिल जिाना के बाि हो गईल बा । अब जब गीिे नईखे होि ि अगआ ु खासिर गारी के बाि सोचल, “ए िहािार िें दीवान जी के िसजया” वाल बाि बा । आज के दौर िें हिनी के सबयाह िें अगआ ु के भूसिका कि हो गईल बा । उ सदन दूर नईखे जब अगआ ु एगो इसिहास बन जाई । आवेवाला पीढ़ी शायद यकीन भी ना करी सक एगो अगआ ु भी होखे, जेकर सबयाह िें एिना बड़हन योगदान होखे ।

िािा और उहाँ के टीि आसखरी शादी, जीवन िािा के लईकी के करवले रहे । लईका के ि​िहर गाँव िें ही रहे । सब जान सनु के ही िािा शादी करववनी । लईका के पररवार

© आखर ● जन ू , 2015 ● 66


कहानी

भोर

खबार के पसहला पन्ना पे बड़-बड़ अक्षर िें छपल रहे- ‘बेिौसि बरसाि और ओले ने भारि के सवसभन्न क्षेत्रों के करीब-करीब सौ से भी असर्क सकसानों को आत्िहत्या करने पर िजबरू कर सदया l‘ एह सिाचार के पढ़ के सनम्न– िध्यिवगीय पररवार के िेर्ावी आ सचंिनशील यवु ा सवजय शांि ना रह सकले। काहे सक ऊ ओह वगा के प्रसिसनसर्त्व ि ना करेले लेसकन िेर्ावी आ सचंिनशील होला के बावजूद हाल -साल के बररस िें आसथा क रूप से उनकर पररवार आ ऊ अब वोह रेखा के बहि करीब ले पहचँ जरूर गइल बाड़े । एहसे प्रसिकूल पररसस्थसि िें उ कवनो क्षण ओह वगा िें शासिल भी हो सकिारन एकर आशंका भी बा । जवना के कल्पना िात्र से ऊ भयभीि हो गइले आ ऊ वोह ददा के ठीक-ठीक िहसूस कर पवले जे उनका के एह घटना के पढ़ला के बाद चैन से बइठे ना देहलस ।ई सिाचार पढ़ला के बाद ऊ एकदि से बेचैन हो गइले आ एही बेचैनी िें उनका िन िें िरह-िरह के ऊँच-नीच सवचार गोिा लगावे लागल । उनकर आक्रोश कबो पूंजीपसि-वगा पर सनकले ि कबो स्वाथा के पिु ला बनल नेिा वगा पर । सवजय के आक्रोश से ि िौसि भी बच ना सकल । ऊ सोचे लगले सक गरीबन के एह िस ु ीबि के घड़ी िें अपना स्वाथा खासिर लूटि-खसोटि लोग भला कवनों िजबूर के िदद का करी ? बासकर िौसि के ि गरीबन के साथ देबे के चाहीं । ई िौसि भी ि पसहले नासहन नइखे रह गइल । एकदि से िगरूर हो गइल बा ।एह िगरूर िौसि के िगरूरी ि देखीं सक ओकरा अपना िस्िीखोरी िें दोसरा के दःु ख–ददा के भी िसनको सचंिा नइखे । ओकरा एह बाि के ि िसनको एहसास िक नइखे सक ऊ खेल-खेल िें र्रिी पर जवन उलट-पल ु ट कर रहल बा, िाण्डव िचा रहल बा ओकर असर एह र्रिी

पर के ह-के ह िरह आपन जीवन-यापन करेवाला लोगन पर का पड़ी ? कहे खासिर ि कहल जाला सक आँर्ी–िूफान आवेला ि बड़-बड़ पेड़ ही र्राशायी होला । अपना जीवन आ सवकास खासिर संघषा करि छोट-छोट पौर्न आ घास-फूस पर ओकर कोई असर ना होला । बासकर आँख कुछ दस ू रे दृश्य सदखावे ला । आजिक के ह के कोई अइसन घटना सूने चाहे देखे के ना सिलल होई जवना िें कुछे सदन के बेिौसि बरसाि चाहे आँर्ी-िूफान िें कोई र्न्ना सेठ आपन भा अपना घरपररवार के पेट पाले के सचंिा िें एह कदर सवचसलि हो गइल होखे सक अपना ित्ृ यु के ही अंगीकार कर लेले होखे । बासकर अपना देश के िध्यि आ सनम्न श्रेणी के सकसान-िजदूर के बाि का कहेके बा ? कौनों िरह के गाँव िें सवपदा आई लेसकन जान ि ओकरे जाई । सवजय अपना एही िन: सस्थसि के साथे बेचैनी िें उठले आ उद्देश्यहीन गाँव की ओर सनकल गइले । थोड़ा दूर चलला पर सड़क के बाँयी ओर िहेश काका के घर उनका लउकल आ अपने आप उनकर पैर िहेश काका के घर के ओर बढ़ गइल । शायद अपना बीिार काका के देखे के बहाने अपना िन के भी ऊ सस्थर करे के चाहि रहले । िहेश काका अपना घर के परु सनया हउअन आ के िना सदन से बीिार चलिाड़न । उनकर घर बा छोट आ रहे वाला बेकि बा सजयादा । एह से िहेश काका खासिर घर के ओसारा के एक ओर घेर-घार के छोट कोठरी नासहंन बना देहल गइल बा । ओही कोठरी िें िहेश काका खासिर एगो खटोली भी डाल देहल गइल बा । खाँसी के सिावल िहेश काका असप्रल शरू ु भइला ले र्ूपछाँव नासहन गिी-सदी के अइला-गइला से हैरान हो गइल बाड़े आ सदन अच्छा भइला के इन्िजार िें अपना खटोसलए पर से बाहर के ओर आँख गड़वले टुकुर-टुकुर देखि रहस सक कब बरखा-ओला से सपण्ड छुसटि आ ऊ पसहले नासहन गाँव के

ज्योत्सना प्रसाद मसवान , मबहार के रहे वािी ज्योत्सना जी , हहंदी भाषा आउर सामहत्य िें बी. ए. (प्रमतष्ठा), एि्. ए. कइिे बानी , अउर पटना मवश्वमवद्यािय से प्रोिे सर डॉ नंदककशोर नवि के मनदेशन िें िहाप्राण मनरािा के गद्य के शैिीगत अध्ययन पर डॉक्टरे ट कईिे बानी l हहंदी िें उपन्द्यास “अगयिा” प्रकामशत बा दू गो उपन्द्यास “अंतत:” आउर “िुक्तकुं तिा” , कमवता संग्रह आउर कहानी संग्रह प्रकाशन के प्रतीक्षा िें बा l अरबी भाषा के िशहूर उपन्द्यास “अि-रहीना” के हहंदी िें “बंधक “ शीषयक से अनुवाद आउर प्रकाशन l जॉडयन, चीन आउर अिेररका िें आयोमजत सम्िेिनन िें कमवता पाठ l एह घरी िुंबई िें रह रहि बानी । © आखर ● जन ू , 2015 ● 67


एक फे रा लगा अइिन । ई िौसि बा जे बावला बनल बा आ िहेश काका जइसन बीिार आ परु सनया लोग अपना सबछ्वना के ही आपना दसु नया बनावे खासिर िजबूर बा आ सदन-राि खांय-खांय करि अपना खसटये पर पड़ल रहिा । सवजय िहेश काका के लगे थोड़े देर ले बइठले फे र उनका घर से बाहर सनकल गइले बासकर उनका िन के शांसि ना सिलल । उनका आँख के सािने अखबार के उहे घटना फे र से कऊंर्ल आ सत्रभवु न के बाबूजी इयाद पड़ गइले जे सपछला साले अइसने िौसि आ कजा​ा के िार से अइसन बेर्इले सक अँर्रे रया राि िें कुआँ िें कूद के आपन जान दे देहले । आसखर ऊ करबो का करिे ? कजा​ा के ह से सलहल होखे बासकर ऊ वसूलेला एगो सहकारे नासहन । एह से सत्रभवु न के बाबूजी के कई सदन से आँख से नींदे गायब हो गइल रहे । बैंक के लेहल कजा​ा कइसे भराई ? बैंक िननी सक साहकार ना ह बासकर अपना कजा​ा वसूली िें कवनों साहकार से किों ना ह । सवजय के यादन के सपटारा िें दबल एक से बढ़ के एक ददा नाक घटना ऊपर आवे लागल आ सवजय के बेसर्ु करे लागल । िौसि के ई िार खाली रबीए खासिर घािक ि नइखे नू बसल्क साग-सब्जी खासिर भी बा । आलू सिय के पसहलही कोड़ा गइल आ हररयर िरकारी के पौर्ा बसिया सिेि सूख गइल । जे थोड़ा–बहि बाचsलो बा ि ओिे बटई भर के फर लागल बा । कवनों-कवनों पौर्ा िें ि बसिये िूर लेबे के पड़िा ।आि के साथे भी उहे हाल भइल । आि िें िोजर लगला के साथे जे आफि शरू ु भइल रहे ऊ सटकोढ़ा लगला िक लागल रहे । बरखा आ ओला ओकरो के भी कहाँ छोड़लस ? आसखर सकसान सजओ ि के करा भरोसे ? गेह-ँ चना से भी कवनो उम्िीद नइखे । गेहँ –चना के अइसन िअ ु ल –िअ ु ल दाना बा सक बीया आ खाद के पइसा सनकलला के भी कोई सूरि नजर नइखे आवि । सकसानन के ई हाल कवनों एक गाँव के नइखे गाँव के गाँव कुलवाससए बा । के कर दःु ख के करा आगे रोवल जाव ? एही पैदावार के भरोसा पर ि कई लोग अपना –अपना बेटा-बेटी के सबयाह ठनले रहल ह । बासकर िौसि घर िें सबयाह ना बसल्क श्राि करे के सस्थसि पैदा कर देहले बा । कईगो सकसान अपना बेटा के घोड़ी पर बइठावे के सपना अपना आँखन िें सजवले ही एह दसु नया से सवदा हो गइले ि कइगो सकसान अपना दिाद उिारे के लेसकन एह बेिौसि बरसाि आ ओला सबके सपना चकनाचूर क देहलस ।

सवजय थक-हार के अपना घरे वापस लौट अइले । आविे आपन हाथ-पैर र्ोवले । बाल्टी से सनकाल के कई लोसटया पानी अपना आँख-िहुँ पर डललन जइसे सक अपना आँख िें सिाईल सकसानन के वोह हृदय-सवदारक दृश्यन के पीड़ा के र्ो के कि करे के चाहि होखस । चाहे कि से कि कुछ सिय खासिर हटाइए देबे के चाहि होखस जे उनका के चैन से साँस भी लेबे ना देि रहे । ओकरा बाद ऊ अपना िाई से कहलन सक आज उनका भूख नइखे एह से अब ऊ सिु े जा िाड़न । उनकर िाई द-ू चार बेर उनका के खाए के कहली फे र अपना बेटा के िन: सस्थसि के आभास कर चपु रह गइली । सवजय अपना सबछावन पर आ गइले बासकर एिना जल्दी उनका आँखन िें नींद कहाँ आवेवाला रहे ? ऊ ि अपना सबछावन पर आ के भी अपना सवचारन िें डूबल रहले ।ऊ सिझ ना पावि रहले सक राि-सदन एक करके जे सकसान सबके खासिर अन्न उपजावेला वोही अन्न के लाला ओकरे पररवार खासिर कइसे पड़ जाला ? एह संसार िें सबना हाथ – पैर चलवले लाखों लोग के पेट भर जािा ि अपना खूनपसीना एक करके जाड़ा-गिी-बरसाि िें कोल्ह के बैल नासहन खटे वाला लोगन के अइसन ददु ा शा काहे ? आसखर सकसान– िजदूरन के सजन्दगी िें ही अइसन पररसस्थसि काहे आवेला ? आसखरकाल एह लोगन के सजन्दगी िें ई दःु ख कबले सलखाइल रही ? कहे के ि हि इक्कीसवीं शिी िें जीयिानी । रोज-रोज नया-नया असवष्कारे होि रहिा ि फे र सकसानन खासिर कुछ काहे नइखे होि ? व्यथा के बान से सवजय के बेर्ाइल िन के बोझ उनकर थाक के चूर-चूर भइल शरीर बहि देर ले उठा ना सकल आ एने सवजय अपना सवचारन के गसलयन िें चक्कर काटिे रह गइले आ ओने उनकर कब आँख लाग गइल ई उनका पिो ना चलल । सबेरे ऊ जब नींद से जगले ि उनकर िन थोड़ा शांि रहे । देह के टूटल भी अब कि हो गइल रहे । ऊ अपना के सािान्य देखावे के चाहि िें रैक पर र्इल रेसडयो उठवलन आ दअ ु रा के ओसारा िें आ गइले । रेसडयो पर िख्ु य सिाचार देि रहे जवना िें िौसि के िार से घवासहल सकसान भाई के प्रसि सहानभु ूसि जिावि सरकारी घोषणा कहल जाि रहे “ सकसान भाई अपने को अके ला ि​ि सिझे । वे इस देश के अन्नदािा हैं । उनका देश, उनकी सरकार उनके साथ हैं इससलए उनकी यह परेशानी सारे देश की परेशानी है । उनके हर कदि पर सरकार उनके साथ है । उनके नक ु सान की हर

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सम्भव भरपाई सरकार द्वारा की जायेगी । सकसान भाइयों का 70% बरबाद फसल पर िआ ु वजा देने के क़ानून िें सर्ु ार कर उसे 33% कर सदया गया है । िआ ु वजा की रासश भी बढ़ा कर डेढ़ गनु ी कर दी गई है । अब सकसी सकसान को आत्िहत्या करने की जरूरि नहीं है l” सवजय अपना रेसडयो पर ई सिाचार सनु के पसहले ठठा के हँसले । अपना िन ही िन कहलन सक सरकार के सर्ु आइल ह अब जब करीब-करीब सौ सकसान आपन जान दे चक ु ले आ एह घोषणा के काया रूप िें पररणि होि-होि आउर ना जाने के िना सकसान के जान जाओ ? सफर कुछ देर ले शांि रहले आ अपना आदि के अनरू ु प पनु : सोच िें डूब गइले लेसकन एह बेर उनका सोच के ट्रैक बदल गइल रहे । ऊ सोचे लागल रहले सक के िना आसान होला के ह दोसरा पर, चाहे सरकार पर दोष िढ़ देहल ? एक जागरूक आ सक्षि नागररक के का कवनों किा व्य ना होला ? आसखर उहे अब िक एह क्षेत्र िें का िदद कइले बारन ? ई बाि सत्य बा सक ऊ ओिना सािथ्या वान नइखन ।ऊ ि स्वयं ओही लोगन के करीब के बाड़न । सफर भी जे कुछ भी अपना पररसस्थसि के अनरू ु प उनका करे के चाहीं

ऊ करि कहाँ बाड़न ? बूदँ -बूदँ से ही ि सागर भरेला । सिद्रु पर सेिु बनावे िें रािजी के िदद करे खासिर सगलहरी भी ि अपना औकािभर िदद कइले रहे ि फे र ऊ कुछ काहे ना कर सके लें ? ऊ ि एह ससृ ष्ट के श्रेष्ठि​ि प्राणी हउअन । अगर उनका कुछ करे के इच्छा-शसि होई ि उनका के के रोक सकी ? अगर र्न के बल उनका पास नइखे ि ना सही िन आ बसु ि-सववेक के बल ि उनका लगे बड़ले बा । सवजय कुछ देर ले गम्भीर िद्रु ा िें एने-ओने टहलि रहले । सफर कुछ दृढ़ सनिय के िद्रु ा िें अइले । उनका गम्भीर सचन्िन के सचह्न उनका सललार पर स्पष्ट झलके लागल रहे ।ऊ उठले आ अपना गाँव की ओर सनकल गइले । राि बीिल । भोर भइल । सवजय जइसन ना जाने के िना नवजवान अपना इलाका िें अपना ज्ञान से, बसु ि-सववेक से, अपना पररश्रि से, अपना स्वेद से नया सूरज के उदय खासिर प्रयत्न करे लागल । जवना से एक नया उम्िीद जागल आ लोग सवकास के , िरक्की के , सशक्षा के नया सूरज के स्वागि खासिर प्रिीक्षा करे लागल ।

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हमार पतहला पहाड़ के ट्रैतकंग :

यात्रा संस्मरण

सरकंु डी दरा​ा (पतहला भाग)

ना

फोटो साभार :रौशन कुमार

जाने काहे पहाड़ से हिरा बचपने से अपनापन रहे । लसयकायीं गया शहर िें सबिल । गया शहर चारों ओर से पहाड़ से सघरल बा । जहाँ हि रहि रहीं ओसहजा से रािसशला पहाड़ी नगीचे रहे । ओह पहाड़ी उपरे शंकर जी आउर हनिु ान जी के िंसदर बा । िनी सा खुला जगहो बा । हिनी के भोरे भोरे ओसहजा जाि रहीं जा आउर कुछ दंड बैठक लगावि रहीं जा। उ पहाड़ प चढ़े के दू गो रास्िा रहे। ए गो सीढ़ी से आउर दूसरा पगडण्डी वाला पहाड़ी रास्िा। हिनी के पहाड़ी वाला रास्िा से ऊपर जाि रहीं जा। वोही घरी से हिरा िन िें पहाड़ से प्रेि के सबया रोपाइल। जे सक कहानी, आउरी ससनेिा के खाद पानी प भीिरे भीिरे बढ़ि रहल ।

हिार पसहला नोकरी सदल्ली िेट्रो िें लागल ि ओसहजा एगो साथी भेंटईले सजनका से पसहला हाली ट्रैसकं ग के बारे िें सनु े के सिलल । ओह घरी लागल सक हिार पहाड़ प्रेि फे र से

उिड़ के बाहर आइल । बासक काि के व्यस्ि​िा आउर पैसा के किी के कारन ओह घरी ट्रेसकं ग संभव न हो पाइल । फे र जब हि सदल्ली के नोकरी छोड़ के पटना िें अइनी िा ओसहजो अईसन िौका ना बन पाइल सक ट्रैसकं ग हो सके । बाकी पहाड़ प्रेि भीिर भीिर पनपि रहल । उ िअ ु ल ना । जब हि िीसरा नोकरी िें कलकत्ता अइनी िब लागल सक हिार पहाड़ प्रेि एसहजे सफल होई । एसहजा हिनी के एगो सससनअर एवरेस्ट प चढले बाड़न । आउर एसहजा बहि लोग ट्रैसकं ग िें रूसच रखि रहे । फे र अचानक एक सदन नेट प हिारा “सरपास ट्रैसकं ग” के सलंक भेटाइल । उ सलंक रहे “यूथ हॉस्टल असोससएसन ऑफ़ इंसडया” जे सक बहि सस्िा िें सहिालय िें ट्रैसकं ग करवावेला । जवन सिय हिरा उ सलंक भेटाइल रहे ओह सिय सब सीट बक ु हो गइल रहे । दबु ारा बुसकं ग सदसम्बर िें शरू ु होखे वाला रहे । कसह-कसह क के सिय बीिल आउर बसु कं ग के सिय आ गईल । दू सिन गो आउर संघािी लोग भी हिरा साथ

रौशन कु िार भिुनी मजिा रोहतास के रहेवािा हईं । पढ़ाई मिखाई गया से भईि बा । पठन पाठन के अिावे इं हा के नया नया जगह घूिे के शौख रामखिे । इं हा के कि​िहाि किकत्ता िें राजस्व मवभाग िें काययरत बानी ।

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ऐसे ि “यूथ हॉस्टल असोससएसन ऑफ़ इंसडया” के साइट प जरूरी सिान के सलस्ट सदहल ब िबो हिरा सहसाब से ट्रैसकं ग खासिर दु गो चीज़ सबसे जरूरी बा- पसहला बसढ़या ट्रेसकं ग जूिा आ दस ु ी इ ट्रेसकं ग िें जादे ु र बसढ़या गरि जैकेट । चक ऊँचाई प जाए के न रहे एह से हिारा भीरी जवन जाके ट रहे वोहे से काि चल गइल । बाकी रहल जूिा ि उ हि ऑनलाइन िंगइनी । ट्रेसकं ग के जूिा लेवे घरी दु बाि के ध्यान रखे के चाही एक ि सोल ओकर रबर के होखे चाही दस ु रउ टखना के उचाई िक होखे के चाही िासक उबर खाबर रास्िा प गोड़ िरु के के संभावना न रहे । ट्रेसकं ग प जाए के खािी आपन शरीर के सफटनेस प भी ध्यान देवे के चाही । ओह खासिर हि िैरि रही । बाकी ओसहजा जा के पिा लगल की खाली िैरला से काि न चली साथे साथे दौड़ह के चाही आउर हो सके ि सपाट आउर बीि भी । खैर जिना भइल से भइल ।

जाये खािी िैयार भईलन जा । बाकी एह सब करे करे िें “सर पास” के सब सीट बक ु हो गईल । ओही घरी “सरकंु डी पास” के कुछ सीट खली रहे ि ओह िें हिनी के िीन साथी बक ु कइनी जा। “सरकंु डी पास ट्रेसकं ग” के सहिाचल प्रदेश िें िनाली के नजदीक “यूथ हॉस्टल असोससएसन ऑफ़ इंसडया” आयोसजि करेला। सौरकंु ड चाहे सरकंु ड सहिाचल के कुल्लू सजला के ब्यास घाटी िें करीब 13000 फीट के उचाई प ए गो छोट िालाब ह । हालांसक ट्रैसकं ग ओह िालाब िक न होखेला । ओह िालाब से कुछ पसहले ही एगो दरा​ा (पास) बा जेकर नाि भी ओह िालाब प सौरकुन्डी दरा​ा पड़ल बा ओसहजा िक होखेला । सदसम्बर-जनवरी िें बसु कं ग कइला के बाद हिनी के िीनो साथी लोग २७ िई, २०१३ के बेसब्री से इंिजार करे लगनी जा जवन सदन के हिनी के बेस कै म्प प पहचे के रहे। साथही ट्रैसकं ग के बारे िें जिना हो सकि रहे जानकारी जटु ावल शरु​ु हो गईल । जटु ावल जानकरी के सहसाब से ट्रैसकं ग के ियारी शरु​ु भइल ।

हिार यात्रा के शरु​ु वाि 24 िई 2013 के भइल जब हि कलकत्ता से सदल्ली खािी ट्रेन लीहनी। बाकी कलकत्ता से हिरा अके लही सनकले के पडल काहे की हिार दोस्ि आपन प्रोग्राि कै न्सल कर देलन जा । दनू ों जाना के ऑसफस से छुट्टी ना सिल पाइल । खैर हि 25 िई के सदल्ली पहचनी । ओसहजा आपन परु ान दोस्ि यार से िेल सिलाप भइल आउर ओसह सदन शाि के िनाली खािी बस र्इनी । बाकी ओह सदन शायद हिार जात्रा ठीक ना रहे । उ बस सदल्ली से सनकलिही कुछ कुछ खराब होखे लागल । पसहले ओकर एसी खराब भइल फे र उ बीच बीच िे रुके लागल । कईसह कईसह क के उ बस चंडीगढ़ पहचल । ओसहजा कुछ देर रुक के आगे बढ़ल बाकी पहाड़ सरू ु होिही उ बस जवाब दे सदहलस । ओसहजा से हिरा के दोसर बस सिलल । पसहलका बस वॉल्वो रहे , दस ु रका टाटा एसी जे की हिारा के कुल्लू िक पहचइलस। ओसहजा से फे र एगो लोकल बस से आगे के रास्िा िय भइल । जवन हिरा पहचं े के चाहि रहे 8-9 बजे उ हि पहचनी 1 बजे दपु हररया के । कुल्लू पहचं ला के कुछ देर पसहले से ही िनी िनी बूसन पड़े लागल रहे । एक ि अंजान पहाड़ी रास्िा आ ओह प बूसन । िन िे िनी डरो लागि रहे । अगल बगल के लोग से 15 िाइल पछ ु नी जहाँ हिारा उिरे के रहे । बाकी उ लोग के कुछ जानकारी न रहे । िब िनी आउर िन परेशान होखे लागल ।

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िन िे िरह िरह के खयाल आवि रहे । बाि इ रहे की हि आपन सब सािान ट्रॉली सूटके स िे ले गइल रही । हिारा लागि रहे की अगर बेस कैं प सड़क से दूर होखी ि पहाड़ी रास्िा प ट्रॉली ले जाए िे सदक्कि होखी आउर बूसन पडला के चलिे रास्िा आउर खराब होई। फे र एहो डर लागे लागल की बेस कैं प के जानकारी आसपास के लोग के भी नईखे ि हि कै से ओसहजा पहंचब । खैर बूसन आ के गइल आउर बेस कैं प के भी पिा चल गइल । बेस कैं प सबलकुल सड़क के सकनारे रहे । ओसहजा पहचँ के हि स्वागि टेंट िे पहचनी । आ एसहजे से हिार िैयारी के किी लउके लागल । ओसहजा बूसकं ग रसीद के साथे दू गो फोटो भी ले जाए के रहे बाकी हिरा फोटो ले जाए के र्ेयान ना रहल । ओसहजा बिावल गइल की कुछ दूर ए गो बाज़ार बा- पिली कुहल- जहां फोटो सखचवावल जा सके ला। खैर हि कहनी की साँझ िक फोटो सखचा के ले आइब । ओकरा बाद हिरा के ए गो आइडेंसटटी काडा सिलल जे प फोटो साटे के रहे आउर एगो टेंट बिावल गइल जवना िे िीन सदन रहे के रहे । उ टेंट िे हिरा संघे कई लोग आउर रहन जा ओसहजा हि आपन सिान रख के नहाये र्ोयाए गइनी । नहइला क बाद हिरा आपन एगो आउर गलिी लउकल। उ रहे छीपा- सगलास ना ले गइल। ओसहजा सब के ह के आपन आपन छीपा सगलास ले जाए के रहे जे हि न ले गइल रही । जेकरा कारण हि खाना न खा पइसन । आ िब िक 2 बज गइल रहे । भूख ज़ोर से लाग गइल रहे बाकी हिरा भीरी छीपा सगलास रहे न जे िे हि खा पईसि । िब हि बाज़ार जाए के सोचनी आसखर फोटो भी सखचवावे के रहे अब ि आउर भी कई गो काि आ गइल – खाना, छीपा सगलास, सटसपनकारी । खैर बाज़ार जाए खािी गेट प सनकलनी। ि ओसहजा एगो आउर लइका खड़ा रहे बािचीि से पिा चलल की उहो बाजार जािा । हिनी के साथे जाए के सोचनी जा आ बस के राह देखे लगनी। बाकी कुछ देरी िक बस न आइल। िब हिनी के सोचनी जा की पैदल चलल जाओ । कुछ लोग कहले रहे की बाज़ार नगीचे बा, बेसी से बेसी 1 सकिी । बाकी चलला ब बझ ु ाइल की बाज़ार दूर रहे। ओसहजा पहचँ के खाना खइनी, फोटो सखचईनी आउर छीपा सगलास के साथे साथे कुछ आउर जरूरी सािानो सकनाइल (जैस-े सटसु पेपर, संसक्रीि )। लौटे के बेरी िाजा स्ट्रॉबेरी आउर चेरी खइनी । ओसहजा से आईला प सबसे पसहले आपन टेंट बदलनी आउर उ लइका जेकर नाि पवन रहे ओकर टेंट िे आ गइसन। ओह

टेंट िे पसहले से कई लोग रहन जा । ओह िे ए गो कि उम्र लइकन के ग्रपु रहे जे सक आपन इंटर के पररक्षा दे के आइल रहन स । देख के बड़ा बसढ़या लागल। हिनी ईहा ई चीज़ ना लउकि रहे। हिनी के इंटर के परीक्षा के बाद ना ि अिना सिझ रहे आउर न ही हिनी के बाबूजी भीरी अिना पईसा की उ हिरा के आईएससी के बाद ट्रेसकं ग करे जाए सदहिन। खैर सबसे पररचय भइल। पिा चलल सक जादे लोग बैंग्लोर आऊर िहाराष्ट्र से रहन जा । सबहार से एक िात्र हिही रहीं। बेस कैं प प हिनी िीन सदन गज ु रे के रहे। जेकरा िे पसहला सदन कवनों प्रोग्राि न रहे। ओह सदन बस रेपोसटिं ग आऊर आराि। हि टेंट बदलला के बाद आस पास घूिे सनकलनी आपन नया साथी पवन के साथे। बेस कैं प के सपछही ब्यास नदी बहि रही, ि हिनी के ओह नदी के सकनारे कुछ देर बैठनी जा। ओह नदी के सकनारे बड़ा रिणीक लागल। दर्ू सनयन उजर पानी पत्थर से लड़ लड़ के िेज आवाज़ से बहि रहे। पानी िे जैसही गोड डलनी लागल जइसे सबछी िारि होखे। कुछ देर ओसहजा सबिा के आउर कुछ फोटो सखच के हिनी के वापस आ गइनी जा काहे की किह बाहर गइला प 5 बजे िक वापस आ जाए के

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सनयि रहे । सांझ के 7:30 बजे खाना लाग गईल। आउर राि के 8:30 बजे से हिनी के पसहले वाला ग्रपु ए गो रंगारंग काया क्रि प्रस्िुि कइलस। प्रोग्राि के शरु​ु वाि िें कैं प फ़ायर के एगो अजीब ररवाज ओसहजा लउकल। ओसहजा कैं प फ़ायर िे आग ना जलावल जाला । प्रकृसि प्रदूषण कि रखे खािी । ओसहजा कैं प फायर सबजली बत्ती जला के कइल जाला आ “फ़ायर फ़ायर कैं प फ़ायर” ज़ोर ज़ोर से बोलल जाला । ओकर बाद ससटा सफके ट सविररि कइल गइल जे ट्रेसकं ग पूरा क के आइल रहे । उ लोग आपन अनभु व सनु इलख आ सझ ु ाव दीहलस । करीब 9:30 बजे प्रोग्राि खि​ि भइल ओही घरी कैं प लीडर हिनी के असगला सदन के प्रोग्राि बिईले । राि के एगो हैल्थ सड्रंक सिलल शायद गरि पानी िे बोना वीटा जे हिरा िसनकों ठीक ना लागल आउर ठीक 10:00 बजे लाइट ऑफ । ओकर बाद सबके सूि जाए के रहे बाकी हिार टेंट िे लइकन के नींद आविे न रहे आ उ सब अपना िे बािचीि करि रहन सा हंसी िज़ाक करि रहन स, जे प कैं प लेयदार आ के डटले आ सब के सिु े के कहले । बाकी लइकन ि लइकन, उ सब कहा सनु े वाला रहन स । खैर कै सह क के उ सब सिु ल स। भोरे भोरे करीब 5:00 बजे बेड टी खािी सीटी बाज गइल । 6:00 बजे हिनी के दौड़ आउर कसरि खािी जाए के रहे। हिनी के ठंडा िे उठे िे िनी सदक्कि भइल बाकी कवनों उपाय न रहे । खैर उठ के िर-िैदान होके लाइन िे खड़ा भइनी जा जहा से हिनी के दौड़िे हए कुछ दरू ए गो खाली जगहा िक जाए के रहे । हिनी के साथे दू गो इन्सट्रकटर लोग रहन जा आउर साथे साथे कैं प लीडर भी । करीब 1 से डेढ़ घंटा कसरि

करवावल गइल जे सक बेससक स्ट्रेसचंग एक्ससा​ा इज़ रहे बाकी इहो कि भारी न बझ ु ाइल। कसरि के अंि िे ररलैक्स करावे खािी ए गो गीि प देह हाथ िोड़े के रहि रहे जे िे बड़ा िज़ा आइल। उ गीि के जस के िास एसहज दे िानी : Making a melody in my life, king of kings, thumps up, thumps up, thumps down, Elbow bent, elbow up, Knee bent, back bent, neck bent, tongue out… and turn around…

करीब 7:30 िे नास्िा लाग गइल। नास्िा कईला के बाद कुछ सिय सिलल आपन बाकी काि करे खािी । 8:30 िें फे र लाइन िे खड़ा होखे के रहे । एह बार आपन सपट्ठ(रकसैक ) िे दु गो कं बल आउर दो सलटर पानी के बोिल भर के रखे के रहे । ए सब सिान ले के हिनी के एक्लेिेटाएजेसन ( Acclimatization) खासिर जाए के रहे । एक्लेिटे ाएजेसन िे पीठ प बैग भर के पास के पहाड़ी प कुछ उचाई िक जाए के रहे िासक पिा चल सके सक वास्िव िे ट्रेसकं ग िें बोझा ले के चले िे कइसन लागी। एक्लेिेटाएजेसन चढ़ाई िे जाए से पसहले हिनी के ओह ग्रपु के हौसला बढावे के रहे जवन ओह सदन ट्रेसकं ग सरू ु करि रहे । हिनी के करिल ध्वसन से वोहनी के हौसला बढ़इनी जा। ओह ग्रपु के गइला के बाद हिनी के ग्रपु एक्लेिेटाएजेसन चढ़ाई खासिर सनकलल। चढ़ाई ि आसान रहे बाकी िबों हालि खराब हो गइल। उपरे जा के हिनी के ले गइल पानी से शबा ि बनल जे की बरु ांश (Rhododendron) के फूल के रहे । फे र ओसहजे हिनी के ग्रपु पररचय भइल । सब कोई बारी बारी से आपन पररचय सदहलख आ साथही ग्रपु नेिा, वािावरण नेिा आउर संस्कृसि नेिा चनु ल गइल। ग्रूप

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नेिा प पूरा ग्रपु के सज़म्िेदारी रहे, वािावरण नेिा प सज़म्िेदारी रहे की उ साफ सफाई के ध्यान राखी , ई देसख की के ह कूड़ा कचरा कैं प चाहे जंगल िे न फै लावे । संस्कृसि नेिा के सज़म्िेदारी रहे सांझ के होखे वाला सांस्कृसिक काया क्रि । सांझ के सांस्कृसिक काया क्रि िे सब लोग आपन आपन प्रस्िसु ि सदहलस। कुछ नाच, कुछ गवनई, एगो छोट नाटक कुछ कसविा । हिह ए गो कसविा सनु वनी ।

(Rock Climbing & Rappelling) के प्रोग्राि रहे । बाकी बाररश के कारण खाली रस्सी उिराई भइल (Rappelling)। सांझ के हिनी के आपन फालिू सिान जिा करे के रहे आउर ट्रेसकं ग खािी जरूरी सिान आपन रकसैक िे डाल के चेक करावे के रहे । सब फालिू सिान एगो किरा िे रख के ओकरा िे िाला लगा सदयाइल आ चाभी ग्रपु लीडर के सदया गइल ।

असगला सदन सबु ह फे र उहे रूटीन। सबु ह बेड टी फे र दौड़ आउर कसरि । ओकर बाद एगो ग्रपु के उचाई प सवदाई । ओकरा बाद आज हिनी के पत्थर चढ़ाई आउर रस्सी उिरे

(असगला अंक िें जारी...)

सपना : कीकत से अंजान (भाग -1) जलज कुमार अनुपम

भाई का हाल बाटे हो ? िनी हेने आवS, िोहरा से कुछ पूछे के बाटे ? एिने कान के चादर ले बाि पहचँ ल रहे सक हि पीछे िड़ु गईनी । देखनी ि पवनी सक एगो बाबू कांख िें कररयाका बेग लटकवले, हाथ िें बड़का वाला िोबाइल लेले हिके इशारा कररके अपना ओरी बोलावि रहले । गईनी हिह िनी अंग्रेसजये सिला के पूछनी- हा सर कहल जाव, का सेवा करी हि राउर ? देखS हि पटना से आइल बानी अउरी हिरा गाँव के बारे िें कुछ जाने के बाटे । िन िें हिरा कगो सवाल एक संगे आइल, लेसकन हि ओिे से एके गो पसहले सनकलनी, काहे खासिर सर ? हि पी एच डी कर रहल बानी " भूिंडलीकरण के यगु िें ग्रािीण जीवन " नािक शीषा क पर । ओही से हि चंपारण के ई गाँव िें अइनी हई । हिरा उनकर बाि पूरा सिझ िें आ गईल रहे सफर भी सदिाग िें कुछ सवाल रहे । हि ओहके िनाविे रहनी सक उ टप से सवाल करी देहलें - िू इहवे रहेलS सक शहर िें ? जी हि गावसहं िें बानी आजकल । बाबूजी हिनी के कुछ जादा पढ़ावे के चक्कर िें शहर िें ले के गईल रहनी, िबो साँच ि इहे बा सक हिनी के पूरा बचपन गाँव के छाव िें ही गज ु रल रहे । हिनी के शहर का अइनी गाँव के सारा खेि बटाई पर चल गईल । हई न देखी आपन पररचय ि

हि रउरा के देबे न कईनी - हिर नाि रिन हवे । कृसष सवज्ञान से स्नािक कईला के बाद अब हिह अपना गाँव िें ही रसहले । कीटनाशक बेचे वाला एगो दूकान चलावेनी, साथे साथे एगो सनजी गन्ना कं पनी से भी जडु ल बानी । ओहिे अपना क्षेत्र के गन्ना के सवेक्षण के सजम्िेवारी बाटे । िन ि हिर करि रहे सक कुछु अउरी कहीं िले शहरी बाबू सबचवे िें टोक देहलें- रिन जी हिरा के गाँव से सम्बंसर्ि लगभग हर सवषय पर िनी िनी बिावल जाव । सर पसहले रउरा आपन नाि बिाई ं हिके ? नाि हिर गोपाल हवे . जी ठीक बा अब हेने आइल जाव का चीज के जल्दीबाजी बा, राउर सारा सवाल के जबाब दे दि हि, पासहले िसनक ठंडा लेहल जाव बड़ी गिी बा आइ हेने घोटा िें बइठल जाव । हिनी के घोटा की िरफ चलनी सन अउरी हि आवाज िरनी, िंगरु हो िेनी दू सगलास कस के चापाकल चला के ठंडा पानी लेआव अउरी भौजी के कह िेनी चाय बनावे के । वह बेरा पी एच डी से सम्बंसर्ि क गो सवाल हिरा भीिर जाग गईल रहे एक एक कररके हि उगले के कोसशश िें लग गईनी । सर एक सदन िें राउर पी एच डी ला जानकारी सिल जाइ बहिे िासूि िरीका से हि ई सवाल अपना िहु से सनकलनी

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कहानी I िब गोपाल बाबू कहल शरु​ु कईले ना जी एक सदन िें कुछु होला ना लेसकन एकरा आर्ार पर हिनी के जवन सववरण िइयार कईल जाई ओहिे बड़ी िदद सिली, हि लक्ष्य रखले बानी कि से कि 10 गो सजला िें जेक हालि के जायजा लेवे के रउरा सजला िें सबसे पसहले आईल बानी । चंपारण के नाि हि बहि पसहले सनु ले रहनी एसह से पसहले हि चंपारण िें ही असयनी । अछे सर पी एच डी के िना साल के होला फे नु हि एक गो सवाल दाग देहनी । साढ़े िीन साल के ऐसे हवे लेसकन पूरा करे िें जादा वक़्ि भी लग सकि बाटे । पानी आ गईल िंगरु लेके पानी एसह बीच िें, पानी लेहल जाव सर हि सगलासवा उठा के उहा के ओरी बढ़ा देहनी । िंगरु जा के देख िेनी चाय के हालि, ले आव । िेले सहसा गोपाल जी पूछ बैठनी ई आर्सु नकरण के यगु िें गाँव िें सबसे बड़का बदलाव का आईल ? सपना सर सपना, हकीकि से अनजान सपना, आजकल गाँव अब गाँव रह नइखे गईल, गाँव के नाि पर अब ससफा बढु लोग रहि बा, गाँव के िायने बदल गईल बा, छोट लईका पढ़े खासिर शहर पकड़ लेहलक अउरी नौजवान किाए खासिर, जेकर इहवा खि बारी बाटे उहो एकरा के हडं ा बाटाई देके शहर पकड़ लेहलक । गाँव बा लेसकन वोकर आत्िा िर गइल बा शहरीकरण के चलिे गाँव िरल जािबाटे के ह पछ ु सनहार नइखे । लोगन के िानससकिा अजीब हो गईल बा लोग के बझ ु ाि बाटे की शहर यासन उन्नि अउरी प्रगसिशील लोग-गाँव यासन गवार लोग . सपछला कुछ दसक से सर िान के चली की शहर गाँव पर असिक्रिण कईल शरू ु कर देले बा । ना अब गाँविें कही पनघट लउकि बाटे ना, नाही सनु ाई देिबा उ लयबध्य पायल के झंकार, अब गाँव के लोग भी नदी, पोखर िें स्नान करे से किरािा कहे की ओहिे प्रदषु ण के भरिार बा । पसहले गाँव के िक ु दिा गाँव िें सल ु झ जाट रल लेसकन अब कोटा जा बा, पसहले सबसे ज्यादा अपना बाप िाई के सेवा के कर लईका करि बा इहे चचा​ा के सवषय रहि

रहे, अब रहि बा की जानि बाड़ हो हनकर बेटा हनका के घर से सनकाल देहलक । गोपालजी चपु चाप टकटकी लगा के हिरा ओरी सनु ि रहनी इिने िें िंगरु आईल कहि भइया चाय लेहल जाव । हिनी के दनु ू आदिी चाय के हाथ िें उठवनी सन, चाय के पसहलका चस्ु की सलयाईल रहे की गोपाल जी पूछ बइठलें अछे हिके िेनी ई सिझायी की लोग शहर के ओरी एिना आकसषा ि कहे बा ? उनकर ई सवाल हिरा बहिे वासजब लागल । सर दसु नया िें हर जगह एके गो रीि होला, उहा के हर आदिी चाहेला की हिर आवे वाला पीढ़ी जवन बा िवन हिरा से बेहिर बने, ओसह िजा पर यह पर भी जे जेिने िें बा प्रयास करि बाटे की कै से अपन अगला पीढ़ी के बेहिर से बेहिर बनावल जाव । गाँव से शहर के ओरी पलायन के एगो िख्ु य कारन बा शहर िें सिले वाला सशक्षा, गाँव के सरकारी स्कूल अब पासहले जइसन ना रह गईल, स्कूल के िाकन ि एकदि नया हो गईल बाटे लेसकन सशक्षा के स्िर उहा खत्ि हो गईल बाटे । गरीब के लइका अब उहा खली सखचड़ी खाए जाि बा, सशक्षा के नाि पर कुछु नइखे भेटि उहवा से, एसह से जे िेनी सिझदार बा उ कोसशस करि बा की हिर लइका िेनी शहर िें पसढ़ि,एगो अंसखया िें सपना बा की हिरो लइकवा िेनी हिर नाि रौशन करीि, कुछ सनिन बनी । ओसह खासिर लोग गाँव के २ रुपया सकलो िरकारी छोड़के शहर के 10 रुपया सकलो िरकारी खाए पर िजबूर होिा । एहिे सबसे ज्यादा दोष राज्य सरकार अउरी कें द्र सरकार के बा सर हि ि इहे िासनले, काहे ही आजादी के बाद से ई जेिना ध्यान शहर के सवकाश पर देहल गईल अगर वोकर 50 % भी ध्यान गाँव के बचावे पर देहल रसहि ि आज ई हालि ना रसहि । का गाँविें बसढ़या स्कूल नइखे खुल सकि ? का गाँव िें बसढ़या स्वास्थ्य के बेवस्था नइखे हो सकि ? हो सकि बा सर लेसकन के ह ईिानदार कोसशश ना कइलक आज ले । सच कही ि अब ि लोग के खेिी िें भी िन जादा नइखे लागि गाँव िें पासहले जेिना भी कुटीर उर्ोग रल सब बंद होि जाि बा । अछे रिन जी एगो बाि बिाई सरकार के जवन एिना

जलज कुमार अनपु म बेमतया, मबहार के रहे वािा जिज जी भोजपुरी िें िगातार मिख रहि बानी आ आखर के पेज पे भी इं हा के कमवता-कहानी प्रकामशत होत रहेिा। कि​िहाि जिज जी कदल्िी रह रहि बानी।

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योजना आवि बाटे गरीब लो ला ओहसे यह लोगन के जीवन जापन पर कुछ असर भईल बा का ? देसख सर आदिी के सस्थसि िब ही जा के सर्ु रेला जब ओकरा ज्ञान होला की हि का करि बानी अउरी हिरा का करे के चाही । चाय हिनी के दनु ू आदिी के खत्ि हो गईल रहे लेसकन बाि असभन बहिे रहे, गोपाल बाबू के िन िें बहि सबंदु पर असिंजस रहे गाँव के ले के । अचानक से गोपाल बाबू पूछ बैठनी,रिन जी एगो बाि बिाई रउरा सहसाब से आजादी के बाद से गाँव के जीवन स्िर, रहन सहन िें का का पररविा न आइल बा, ई ि एगो अइसन सवाल रहे जेकरा उत्तर एिना आसानी से के ह नइखे दे सकि , सफरू हि िन को सिेट के कहल शरू ु कईनी गोपाल सर हिरा ि लागेला की हर गाँव हिनी सब से कुछ सवाल पछ ु े ला की आसखर गाँव के गलिी का बा जैसे लोग ओकरा से ठुकरावि जाि बा, जेभी िेनी बड़का बनल गाँव से शहर के ओरी बढ़ल उ काहे नु शहर के होके रह गईल ? एकदि से भल ु ा देहलक अपना गाँव के अपना सिाज के अपना लोग बाग के ? गाँव ि हरदि बाटे जोहि रह गईल की सब के ह अपना जनि र्रिी पर आईि िेनी हिरा के सवाररि सम्भाररि, कुछ आगे बढासयि, खाली अपने आगे बढ़ल कवनो बढ़ल न होला, बढे के ि​िलब होला की अपना संगे संगे दोसरो के आगे ले के बढ़ल जाव । गोपाल सर अइसन चलल ई बदलाव के बयार की बहि कुछ बदल गईल न अब उ सभ्यिा लउकि बा न उ संस्कृसि, सब कुछ र्ीरे र्ीरे खत्ि होि जाि बा । अब ि यगु ई आ गईल बा की

लोग गाँव के नाि पर लजाि अउरी शिा​ा ि बा, सकुचाि बा एिनो काहे िें की हि हे जगसहया के हई, हिर हई गाँव हवे । हिरा कुछु बदलाव िहसूस न होला उहे रूसढ़वासदिा के सशकार िानससकिा, जासिवाद िें जकड़ल सिाज, सिझदारी से ज्यादा स्वाथा परायणिा से सलप्त लउकि बा I सपना अइसन लोग देख रहल बा जेकर नव र्रािल पर कही हई लही नइखे .आज के यवु ा पीढ़ी के खेिी करे िें लाज लगि बा, गाँव िें िजदूरी या रोजगार नइखे हो सकि लेसकन उहे काि शहर िें आसानी से होि बा । अभी हि येिने कह्नी सक सरु शे काका अवाज देह्े, रिन, जी काका, का हो पंचाईिी िें नइखे चले के का, ना ना चलेि नु रउरा आगे बढ़ी हि पीछे से आवि बानी, ठीक बा काका कहके आगे बढ़ गईनी । सफर हि गोपाल बाबू से पूछनी की आजे सनकल जायेके बा की रहे के बा इहवा, ना बानी आज राि रुकि, िब ि ठीक बा, फे रु बाि होई, अभी खासिर हि िाफ़ी चाहें कहे की हिरा ईगो पंचाईिी िें जाये के बा, ठीक बा कवनो सदक्कि नइखे गोपाल बाबू सहि​िी िें आपन सर सहलवले, गोपाल बाबू :ठीक बा ि हि चलि बानी । जी आवल जाई दबु ारा, जी हि प्रयाश करेि, हिह उठनी , िन िें हिरो बहिे सवाल जाग गईल रहे, िनवा िें हि सोचि रहनी की ई कइसन अनजान सपना बा लोग किाए खासिर गाँव छोड़ के दरू शहर जाला लेसकन हर के ह के जीवन िें एगो अइसन वक़्ि आवेला जब उ फे र शहर से गाँव की ओर लौटेला । ई सपना जे ना करावे इंसान से ... !

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भोजपरु ी में फइलत अश्लीलता के हखलाफ खड़ा -अम्बा

अतवनाश राव

लाकारन के गढ़ ह आरा, िबे इंहवा क टाइट रहेला पारा " । जेठ के घाि होखे भा पूस के जाड़ कलाकारन के जोश िें किी ना देखे के सिलेला । भाग दौड़ के सजनगी िें सभे से सिलल िसु श्कल हो गइल । एही व्यस्ि​िा िें लोगन से जड़ु े खासिर करीब दू बररस पसहले व्हाट् सअप्प पे "रंगिंच" नाि से ग्रपु बनल । एह िें रंगिंच से जडु ल ससनेिा से जड़ु ल लोग ससम्िसलि भईल । सांझे सबहाने चचा​ा होखे , सहन्दी ससनेिा वाले लोग भी दू चार िसहना पे हाय-हैलो करि रहे लोग । 25 सदसंबर 2014 के ग्रपु िें बाि रखाईल की "आज जेिना िरह से भोजपरु ी ससनेिा आउर गाना िे अश्लीलिा बढ़ गइल, ई हिनी के िािृभाषा के बदनाि कर दीहन स , एकरो के रोके के कुछ करे के चासहँ"। एह बाि पे सहन्दी ससनेिा के असभनेिा सत्यकाि आनंद आ ओपी पांडे जे आरा से बाड़ें आपन चप्ु पी िोड़लें । फे र ि लंबा चौड़ा बहस भईल । सवचार सिलल आ सवचार के बल सिलल । एही लोग के प्रेरणा से "भोजपरु रया आटा एण्ड ड्रािा " के ओसफ्फ़स िें 5-6 लोग के उपसस्थिी िें "अश्लीलिा ि​ि ु भोजपरु ी आरा (AMBA)" के नेव पड़ल । 1 जनवरी 2015 बखोरापरु काली िंसदर िें 15-20 गायक गासयका लोग ओसहजा के ग्रािीण लोग के सािने सपथ लेलस सक आज के बाद ना अश्लील गाना गाईब, ना सनु ब , ना बढ़ावा देब ।

"अम्बा " के ग्रपु व्हाट् सअप्प पे भी बनल आ चचा​ा ज़ोर पकडलस । एह िसु हि िें ढेर लोग जडु ल आ फे र सबके सहिसि से "अश्लीलिा ि​ि ु भोजपरु ी आरा" से आरा िे कई जगह पे एसोससयेसन कर सदहल गइल । िब से लेके अब िक अश्लीलिा के सवरोर् िें ढेर काि भईल । ओह घरी सरस्विी पूजा नजदीक रहे, लोग पज ु ा पंडाल आ सवसजा न िक िें भोजपरु ी अश्लील गाना बजावेला । एकरा के रोके के प्रयास भईल । सजला प्रसाशन के सहयोग से एगो नोसटस शहर भर िें लागल- "अबकी बार िूसिा रखे खासिर इजाजि लेवे पड़ी आउर अश्लील गाना बजावला प जिु ा​ा ना आ जेल भी हो सके ला । एकर निीजा ई रहल सक शहर िें अश्लील

गाना बहि कि बाजल । एह प्रयास िें कुछ लोग से कहा सनु ी भी भईल बाकी सरसविी पज ु ा िें हिनी के प्रयास के सफलिा सिलल ि उत्साह िें बढ़ोिरी हो गइल । फे र ि पूरा आरा शहर िें जन जागरूकिा शरू ु भईल, रोजाना दू चार लोग अम्बा से जड़ु े लगले । करीब दू िसहना बाद "अम्बा" खासि िबंु ई से आरा के सफल्ि असभनेिा सत्यकाि आनंद अईले । उंहा के सवशेष सहयोग अम्बा खासिर रहल, आ सहषा एह असभयान के अगआ ु ई करे के स्वीकार लेनी । होली नजदीक आइल ि होली िें भी अश्लील गाना के सवरोर् िें काि शरू ु भईल । रैली, जन जागरण, नक्ु कड़ नाटक, सभा , सभे के िाध्यि से लोग के सिझावे के काि शरू ु भईल । प्रसाशन के डर भी देखावल गइल - "जे बजाई अश्लील गाना, टांग के ले जायी पसु लस थाना" । पूरा शहर िें प्रचार भईल सक जहां अश्लील गाना बाजि सनु ी पसु लस के फोन करीं । जागरूकिा बढल आ लोग के सहयोग सिलल। पसु लस के भी 100 नंबर पे ढेर फोन आइल आ एही क्रि िें ढेर डी० जे० जब्ि भईल । प्रयास सफल रहल आ एह सफलिा िें िीसडया के भी खूब सहयोग रहल । अम्बा आपना प्रयास िें लागल बा- गाँव गाँव नक्ु कड़ नाटक से आपन बाि राखि बडुवे। आवे वाला सिय िें अम्बा के कुछ काया क्रि एह प्रकार से बा 1. अश्लील गाना गावेवाला, बढ़ावा देवेवाला लोगन के सचसन्हि करके उनका पे कानूनी काया वाही कइल जायी । 2. भोजपरु ी खासि भी सेंसर बोडा के स्थापना के िांग 3. साफ सथु रा पाररवाररक ससनेिा के बढ़ावा आ सनिा​ा ण िें सहयोग 4. साफ सथु रा गाना आ ससनेिा के बढ़ावा 5. यवु ा वगा के जागरूक करे आ जोड़े के प्रयास अम्बा से जड़ु ीं आ भोजपरु ी के असस्ि​िा बचावे िें सहयोग करीं ।

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तसनेमा

हसनेमा हबना कवन अकाज िो जाई ?

ह सवाल के पछ ु े से पसहले इ पूछे के चाहीं सक का कहानी कहल, सलखल, सनु ावल जरुरी बा ? बा ि के करा खासिर ? सलखे वाला खासिर के पढ़े भा सनु े वाला खासिर ? हज़ारन साल पसहले राि, सीिा, रावण आ लछिन के कहानी बिावल गईल । का जरुरी रहे बिावल ? अजा नु , कृष्ण के का कहलन कुरुक्षेत्र िें ? काहे जरुरी रहे बिावल गीिा के रूप िें ? ईसा िसीह के होली ग्रेल के घटना का रहे ? बि ु कवन उ आठ बाि कहले रहलन बेहिर जीवन खासि ? सभखारी ठाकुर काहे नाटक करि रहलन जेकरा िें परु​ु ब देस के कहानी आइल आ दोसरा ओरर भोजपरु रया क्षेत्र के गावन के ओह सिय का हालि रहे, इहो पिा चलल । कई बार इसिहास सकं वदंिी के रूप ले लेवेला । आ सकं वदंिी इसिहास हो जाले । ई बहस परु ान बा सक रािायण कहानी बा सक सांचो उ कुल भईल रहे । लेसकन हिार सवाल ई बा सक रािायण सलखे के का जरुरि रहे ? अब आ जाई ं ससनेिा के बाि पर । देखल जाव सक हिनी के देस के पसहला सफसलि भी सासहत्य पर आर्ाररि बा । राजा हररिंद्र 1911 िें बनल । रािायण भी 1987 िें टी वी खासिर बनल । िहाभारि भी टी वी पर आ गईल । हिार एक ठो जान पहचान के लईका बा पटना के । एक सदन कहिा सक बी० आर० चोपड़ा नु सलखें थे िहाभारि ? ि हि कहनी सक सफर ि रािायण रािानंद सागर सलखे होंगे । ि कहिा, हाँ । बाप रे हँसि - हँसि पेट बथा गईल रहे ओ सदनवा । अब दोसर सवाल बा सक जब पन्ना पर सलखाईल रहे ि टी वी सीररयल आ ससनेिा बनावे के का जरुरि बा ? इयाद होखी सक दीसपका आ अरुण गोसवल के लोग पूजा करि रहे । ई ह ऑडीओ सवज़अ ु ल (audio - visual) के असर । हॉलीवडु िें सपछ्ला कुछ साल िें अडाप्टेशन, िने सकिाब

से सफल्ि बनावे के चलन बढ़ल बा । पसहले ि होि रहे सक सकिाब छपला के कई िहीना सदन साल बाद सफसलि बनि रहे । अब ि अईसन हो गईल बा सक सकिाब छपे से पसहले ओकर ससनेिा बनावे के असर्कार सबक जाला । देखीं हैरी पॉटर आ हंगर गेम्स दन्ु नो सीरीज़ के इहे भईल । अईसन बहि बाड़ी सन । अभी "अिेररकन स्नाइपर" आईल रहे हिार पसंदीदा सनदेशक सक्लंट ईस्टवडु के । सपछला साल उपन्यास सलखाईल रहे, लेसकन एह साल ओपर सफल्ि बन गईल । रउवा लोग सनु ले होखब सक चेिन भगि के सकिाब "हाफ गला फ्रेंड" के सफल्ि बनावे के राइट् स (असर्कार), सकिाब आवे के पसहले एकिा कपूर खरीद लेले रहली । िसन सोंची सक अगर सहंदी सफल्ि इंडस्ट्री बंद हो जाए ि सहंदी भाषा पर का असर पड़ी ? आज अगर लोग, आ खासकर सहरुआ लोग सहंदी से जड़ु ल बा ि ओकरा पीछे ससनेिा के छोसड़ के कवनो दोसर अिना िजबूि िाध्यि नईखे । आ र्ीरे र्ीरे छोट शहर जइसे पटना, इलाहाबाद, बोकारो, रांची िें भी ई चीज़ र्ीरे - र्ीरे ढुक गईल बा । हि एक कोरोलरी भा थेओरी देबे के चाहब । हि चाहब सक के ह एकरा के गलि ससि करे िासक हिनी इ फे नोिेना के अवरी सिझीं । "भाषा के भहिष्य, हसनेिा के िा​ाँथ िें सुरहि​ि बा । भाषा उिे बा​ाँची जेकर हसनेिा िोखी आ जेकर साहित्य बररयार रिी । हसनेिा ओकर बहियां िोखी जिन सिाज आपन भाषा से दूर नइखे गईल । नया युग के साहित्य हसनेिा ि े ।" अब इ सथयरी भोजपरु ी ससनेिा पर लगाई ं । सासहत्य बा लेसकन सिाज भाषा बोलि नईखे । ि ससनेिा उजड़ गईल । Mass Communication के पढ़ाई िें एक चीज़ कहल जाला । "Media shapes society and society shapes Media". िने ई कहल जा सके ला सक "ससनेिा सिाज के आकार सदही आ सिाज ससनेिा के " । ससनेिा एसहसे जरुरी बा काहे

त्रनत्रतन चन्द्र डु िरांव , मबहार के रहे वािा युवा मनदेशक , भोजपुरी मसनेिा िे सकारात्िक चचाय के शुरुवात करे वािा देसवा किल्ि के मनदेशक मनतीन चंरा जी , भोजपुरी भाषा आ सामहत्य खामत कि​ि से ही ना कै िरा से भी आपन शत प्रमतशत दे रहि बानी । एह घरी इाँ हा के िुम्बई िे बानी ।

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सक जवन जगु िें हिनी के बानी जा, इहां से उ जगु के सरु​ु आि भईल बा; जहां लोग "गांर्ी" आ "सहटलर" के ना पढ़ी ना देखी । जहां लोग सभखारी ठाकुर के जीवन पर सलखल "सूत्रर्ार" ना पढ़ी ना ओकरा ऊपर बनल ससनेिा देखी । छपरा के बहि यवु ा के िालूि भी नईखे सक सभखारी ठाकुर के रहलन, , लेसकन एगो सफल्ि छपरा के पंकज ससनेिा िें लग जाए ि सब लोग जान जाई । पढ़े वाला लोग के संख्या सदन पर सदन घट रहल बा । सासहत्य से ससनेिा आ ससनेिा से सासहत्य सनकलिा लेसकन अब ई बाि िान सलहीं सक नया सासहत्य "ससनेिा" ह । रउवा र्ेयान से देखीं, जवन लोग के सासहत्य िजबूि रहे, उ लोग के ससनेिा िजबूि बा । िजबूि ससनेिा वाला सब राज्य कवनो ना कवनो िरीका से सवकससि बा । खासिौर पर जहां पर शरु​ु से भाषा आ सासहत्य रहे । लेसकन उ राज्य जहां सासहत्य रहे आ ससनेिा किजोर पड़ गईल, उ राज्य आ सिाज के सवकास ना भईल । सीर्ा बाि बा सक हि बाि भोजपरु ी के कर रहल बानी। भोजपरु ी िें जईसन ससनेिा बनी ओकर पहचान वइसने होखी । बिावे के जरुरि नईखे सक का हालि बा । एक साल पसहले िक हि इहे सोचि रहनी सक यवु ा के भोजपरु ी िें बाि करे के चाहीं । िाँ सपिा के भोजपरु ी िें बाि करे के चाहीं । लेसकन काहे ? हिनी सकहाँ सबसे पसहला सवाल इहे पछ ु ल जाला सक बड़ होके का बनबs ? आ साँच बाि बा सक हिनी के कुछुओ बनी जा, चाहे हिनी के बच्चा बसनहन सन, ओकरा िें भोजपरु ी के लेके कुछो बने के उिेद नईखे । ि जनरल िािा सपिा इहे सोचेला सक बच्चा के भसवस का होई । इहे हाल हि िैसथली के देख के आ रहल बानी । लेसकन देस के कई राज्यन के सरकार ई बाि सिझ गईल सबया सक ससनेिा खाली कला आ िनोरंजन के सार्ने नईखे बसल्क सबजनेस के साथे संस्कृसि आ राज्य के पहचान के िाध्यि भी बा । अगर सबहार सरकार के बाि कईल जाव ि उ लोग के िैयारी सन्ु ना बटा सन्नाटा जोड़ कटहर बा । हि कई हाली सबहार सरकार के लोग से सिलल बानी 2011 से लेके आज िक । कई िंत्री अइलन गइलन लो, बासकर ससनेिा ओसहजा के ओसहजे बा । हि सबहार सरकार के नीसि देखनी हs । "सबहार राज्य सफल्ि प्रोत्साहन" नीसि । लेसकन सच पूछीं ि प्रोत्साहन नीसि नईखे ई हिोत्साहन नीसि बा । एकरा िें अभी भी ई लोग सफल्ि सनगेसटव के बाि करिा | ई लोग के पिा होखे के चाहीं सक देश के सब लैब अब बंद हो चक ु ल बा । बस एक ठो खल ु ल बा । सनगेसटव सप्लाई खासिर फुजी आ कोडेक आपन ऑसफस बंद क देले सबया । लेसकन अभी उ लोग एकरे पर

चलिा । सबसे बड़ बाि सक ई लोग सफल्िकार के 10-12 प्रसिशि ब्याज पर पैसा सदही । उहो कुछो बनकी रख के । जेकर िाथा खराब होखी उहे नु सबहार सरकार के गाईडलाईन िें सफल्ि बनाई । उहो पइसा ब्याज पर लेके । िासछयो के िड़ु ी जिना असकल रसहि ि कि से कि दोसरा राज्यन के नीसि देख लेबे के चाहि रहे ई लोग के । उत्तर प्रदेश सीर्ा सीर्ा कहिा सक हि 2 करोड़ देब 90 प्रसिशि शूसटंग होखी ि । भोजपरु ी बंदु ल े ी अवर्ी के अिना देब आ बाकी लोग के ओिना । िहाराष्ट्र सरकार िें िराठी बनावे वाला के 50 लाख रुसपया देबे के प्रावर्ान बा । कना​ा टक िें भी । हर राज्य िें सरकार स्थानीय ससनेिा खासिर बहि कुछ करसिया , लेसकन हिनी सकहाँ नेिा सब के िालुिे नईखे सक करे के का बा ? अगर 2025 के आगे भाषा के ले जाए के बा ि इ काि खाली ससनेिा कर सके ला, काहेसक इहे नवका जगु के सासहत्य बा । उपन्यास आ दोसर सासहत्य पढ़े के ना ि रूसच बाँचल बा ना सिय । आ ई िय भाषा िें भईल बा । भोजपरु ी के िनी िासिला इहो गड़बड़ बा सक लोग बोलबो कि करेला । एसहसे अवरी बबा​ा दी भईल बा । आज हिनी के किनो भोजपरु ी के कागज़ पर सलखीं लेसकन उ सेलल ु ॉइड पर ना गईल ि इ खाली कुछ लोग के शौक़ आ प्रेि बनके रह जाई । भोजपरु ी के 100 साल दबावल गईल, िेपर भी हिनी के सकिाबी सासहत्य से शरु​ु वाि नईखीं कर सकि । रोड पर बैलगाड़ी ना िोटर कार चाहीं । बसढ़या ससनेिा आई ि भाषा के भी बल सिली । ि आसखर िें हि इहे कहब सक भोजपरु ी से प्रेि करेवाला लोग के अच्छा ससनेिा खासिर सािने आवही के पड़ी। काहेसक दोसर कवनो रास्िा नईखे । चाहे किनो उपन्यास सलखाए, ससनेिा ना होखी ि चीज़ ना बदली । ससनेिा ना होखी ि भाषा खत्ि हो जाई । एकरा से बड़ अकाज का हो सके ला ? "We will have to repent in this generation not merely for the vitriolic words and actions of the bad people, but for the appalling silence of the good people. " - MARTIN LUTHER KING.

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भोजपरु ी हसनेमा: अब गा​ाँव आ माटी के मिक बा नदारद - धीरें द्र राय फोटो : संकल्प संस्था , बसलया

भो

जपरु ी के सिठास, गाँव-जवार के वािावरण और भाषा के सरलिा, सहजिा कुछ अइसन गणु हवे जेकरा चलिे ऊ रग-रग िें संजीवनी के िरह बहि रहेले । एही चलिे साि सिंदु र पार गइला के बाद भी भोजपरु ी भाषी लोग आपन बोली और संस्कृसि के गवा से जी रहल बाड़े । भोजपरु रया सिाज अपने आप िें बहिे अनूठा सिाज हवे । एह सिाज के बह-आयािी संस्कृसि, सभ्यिा अउर रीसि-ररवाज के जाने ला जेिना भी कोसशश कइल जाव, आकषा ण ओिने बढ़ि जाला । भोजपरु रया िाटी पर सगरो िीज-त्योहार अउर व्रि िनावल जाला जवन एगो सभ्य सिाज के पोढ़ थािी हवे । इहाँ के लोक कथा, लोक गीि एकर सांस्कृसिक अउर सािासजक संस्कार के थािी ह ।

बच्चा-बिु ुरू, जवान-बूढ़ सबका बीच सकस्सा, कहानी, गीि सनु े-सनु ावे के भी आपन खास िहत्व हवे । एही कथा-कहानी, भाषा अउर संस्कृसि के जन-जन िक पहचं ावे के प्रयोजन से ही भोजपरु ी ससनेिा के जनि भइल । भोजपरु ी ससनेिा के लोकसप्रयिा िें ओकर गीिन के बड़हन हांथ रहे । सफल्ि के अलावा भोजपरु ी सिाज िें शादी-सबयाह, िीज-त्योहार, उत्सव, व्रि, छठी-बरही चाहे कउनों भी छोटबड़ जलसा होखे गीि के चलन बहि पसहले से चलल आ रहल बा । देखल जाय ि भोजपरु ी सफल्ि के सफलिा िें ओकर िजगर संगीि पक्ष के बड़हन योगदान बा । जइसे एकाद सफल्ि के गीि पर सर्यान सदहल जा सके ला । सफल्ि सपया के गाँव के

र्ीरेन्द्र राय गाजीपुर(उत्तर प्रदेश) के रहे वािा धीरे न्द्र राय जी िहात्िा गा​ाँधी अंतराष्ट्रीय हहंदी मवश्वमवद्यािय से ककसान आंदोिन पऽ पीएचडी करत बानी। काशी महन्द्द ू मवश्वमवद्यािय से स्न्नातकोत्तर हईं। भोजपुरी मसनेिा पे एि॰कि​ि॰, मवमभन्न पत्र-पमत्रका िें आिेख प्रकामशत, मसनेिा पर सशक्त िेखन, भोजपुरी मसनेिा एवं एिबि िें गीत/संवाद िेखन से संबंध राखेनी।

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गा​ाँव : तसनेमा गीि- ए डॉक्टर बाबू बिाव दवाई..., चिु ही बइठे ली अम्िा घसटहाई अउर अश्लीलिा के छौंक से गरीब सबना पढ़ल ररक्शा सोहासगन सशवशंकर हरर…., आँख से आँख सिलके जे चार हो ठेला वाला के सोचे सिझे के शसि के नक ु सान पहचावल जा गइल, साँच िान सजसनसगया िोहार हो गइल..., आँख िें रहल बा । बासकर भोजपरु ी ससनेिा के पक्ष लेवे वाला लोग बड़ा सरु सिया िोहरी िाँथ पर सबपसिया हाय कहंवा जाई ं सगरो हल्के िें इ कह देले सक जब सिाज बदल रहल बा ि सफल्िों अन्हररया हो राि... । सफल्ि गंगा िइया िोहे सपयरी चढ़इबो के िें बदलाव अइबे करी । बासकर उ लोग इ भूल जालन सक गीि- काहे बसरु रया बजवल…, सोनवा के सपजरा िें बंद भइले सफल्ि सिाज िें बदलाव के हसथयार होले । कला के बड़प्पन हाय राि..., हि ि खेलि रहली अम्िा जी के गोंसदया । सफल्ि अउर उपयोसगिा सिाज के सही सदशा िें होवे वाला बदलाव गंगा सकनारे िोरा गाँव के गीि- गंगा सकनारे िोरा गाँव हो..., से जड़ु ल होला बासकर का सांचो आज के भोजपरु ी सफल्ि कहे के ि सब के हं आपन..., जइसे रोज आवेलू िू टेर सिाज के सही सदशा देवे िें िसनको सचंसि​ि सबया? अगर उ ससु नके ... एही िरह सफल्ि सबदेससया अउर दंगल के गीि​िसनकों भी एकरा प्रसि जागरूक रसहि ि संवाद, गीि अउर नीक सइयाँ सबन गवनवा नाही लागे ससखया..., हंसी-हंसी नत्ृ य के एिना अश्लील अउर बदरंग चेहरा सफल्ि िें देखे के पनवा सखयाये बेइिनवा…, िोरे होठवा से नथुसनया कुलैल ना सिसलि । एह गीिन के सनु ला पर इहे लागेला सक गीि करेला…, पटना से बइदा बल सलखल खाली िुकबंदी अउर सद्वअथी शब्द ु ाई दा जइसन बहिे उदाहरण भरल पड़ल बा । के खेल हो गइल बा । जइसे लागि बा सक सफल्ि सबहारी बाबू के एगो गीि जवना िें एके सलखे वाला लोगन के चेिना लोक आज जेतना तेज रफ्तार से सिाज िें बढ़ रहल दहेज के चलन पर संस्कृसि से जड़ु ले नइखे । एह लोगन भोजप र ी तफल्म बन रहल बा ु सचंिा जिावल गइल बा । गीि- सनर्ा न खासिर लोक के अथा बस ररक्सा अउर दसु खया के सबसटया ह भईया सबन सबयहल ओतने तेज रफ्तार से ओकर टैक्सी ड्राइवर के भीड़, आ िहानगर िें रसह जाय, शादी भईल अब व्यापार िोरे गण ु वत्ता अउर तवश्वास में कमी यू.पी अउर सबहार से जाके बसल झग्ु गीभईया देखीं आज दल झोपड़ी वाले लोग बाड़े । अइसना िें ‘गंगा ु हा सबकाय... । एह आ रहल बा । दरअसल क्षे त्र ीय गीिन िें गाँव के संस्कृसि अउर परंपरा िें िइया िोहे सपयरी चढ़इबो और ‘गंगा पड़े वाले अवसर पर गावल जाये वाला भाषा में तसनेमा एह सोच के देन सकनारे िोरा गाँव‘ जइसन सफल्ि के गीि लोकगीि अउर लोकर्नु के जड़ देखल ह तक उ अपना माटी से जुड़के ही के िरह शब्द अउर र्नु भला कइसे जा सके ला । भोजपरु ी के पसहला दू दौर सनकल सके ला । आपन बात मजब त ी से कह पाई । ू के सफल्िन िें एह िरह के िीठास भरल गीि के बहिे लम्बा सचठ्ठा बा । आज के पीढ़ी के एह सिय के सफल्िकार लोग जवना िरह से िोहार चढ़ल जवानी रसगल्ु ला, गिछा सबछाइ के , हिरा हउ चाही, जोबना िें आइल सनु ािी, िोहार लंहगं ा उठा देब ररिोट से, लालीपाप लागेली, सनरहआ सटल रहे, चोसलए िें िगु ा​ा जइसन गीि परोस रहल बाड़ें । का ओकरा िें भोजपरु ी लोकित्व के िसनको खोजल जा सके ला? एह सिय िें बनल कुछ चसचा ि सफल्िन के गीि के ओर ध्यान सदहल जाये ि सफल्ि सपयवा बड़ा सिावेला के गीि- काहें देसहयां से देसहयां रगरेलू..., सफल्ि फौजी के गीि- बटसनया हो गइल टाइट..., साि सहेसलया के गीि- िार के ब्लेड जींस िोहार फार दी कौनो..., खैर एह िरह के गीिन के एगो बड़हन सूची बा जेकर खाली एकहीं यथाथा हवे असर्का से असर्का लाभ किाइल । सद्वअथी शब्द अउर सहरोइनन के उघार देखा के

गीि चाहे उ सफल्ि के होखे चाहे लोक के उ िबे िक गीि होला जब िक ओकरा िें आदिी के सजयरा झकझोर देवे वाला िाकि होला । शरीर के भड़कावे वाला ित्व गीि ना होला । गीि नाहीं ि सद्वअथी शब्द के घूरा होला अउर ना ही फटहा बांस के आवाज । गीि एक िरह के सार्ना होला, योग होला जेके सनु ला पर करेजा के ठंडक सिलेला न सक अउर बउखला जाला । दभु ा​ा ग्य से सांचो आज के सफल्िी गीि जे िरह से लोगन के भावना से सखलवाड़ कर रहल बा आगे चलके ओसे जवन फसल पैदा होई ओकरा बारे िें सोच के िन कांप उठिा । बाि खाली गीिे िक रसहि ि अउर बाि रसहि । एकरा दृश्यांकन पक्ष पर एक नजर डालीं ि इहां कै िरा के भी बहि किाल सदखाई देई । सफल्िकार के हर िरह से इहे कोसशश रहेला सक दशा क के सहरोइन के छलछलाि देह के सछसटका से

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भींगा देई । आप लोग भी उहे देख सकीला जवन कै िरा देखावल चाही । पदा​ा पर कै िरा पूरा नाच के दौरान सहरोइन के उघार जांघ अउर सीना पर सटकल रहेला । सद्वअथी गीि, आर्सु नक बाजा अउर िड़क-भड़क वाला र्नु िें सहरोइन के एह िरह के िादक रूप देखावल जाला जइसे नाच-नौटंकी नाहीं उघार देह देखावे वाला कउनो दंगल होि होखे । सफल्ि िें सहरोइन के अइसना िौका पर छोट-छोट कपड़ा पसहनावल जाला ि एह खासिर नाहीं सक उ भोजपरु रया गाँव-सिाज के पारंपररक पहनावा हवे बलुक एह खासिर सक दशा कन के नाच के सिय असर्का से असर्का उघार देह देखावल जा सके । सफल्ि से जड़ु ल लोग छािी पीट के कह रहल बा सक आज हिनी के िकनीकी रूप से बड़ा िजबूि हो गइल बानी जा । बासकर आप सच्चाई जाने के कोसशश करब ि पसहले के दौर िें बनल सफल्ि के सफल्िांकन आज के एह सफल्िन से लाख दजा​ा उपर बा । का िकनीकी िजबूिी के बस एिने फायदा सिलल बा सक ज्यादा से ज्यादा अंग प्रदशा न करावल जाय । भोजपरु ी के पसहला दौर अउर आज के सिय के ससनेिा िें गाँव के यथाथा के प्रस्िुसिकरण एक जइसन नइखे अउर न ही गाँव के यथाथा खाली सकसान अउर गरीब के आसथा क शोषण से ही जड़ु ल बा बलुक एकर कई गो अलगा आयाि भी बा । अगर हि सपछला पांच दशक िें बनल भोजपरु ी सफल्ि के बारे िें सोची ि इ बाि आसानी से सिझल जा सके ला सक कवना िरह सिाज के बदलि यथाथा सफल्ि के कहानी अउर प्रस्िुसि पर असर डालि आ रहल बा । सफल्ि ‘गंगा िइया िोहे सपयरी चढ़इबो‘ िें गरीबी, लाचारी अउर सािंिी जीवन के सफल्ि के कहानी बनावल गइल ि ‘सबदेससया‘ िें सिाज िें फइलि जासि-पांसि के दलदल िें जूझि गाँव-सिाज ि ‘सपया के गाँव‘ िें र्ासिा क एकिा अउर दहेज के आर्ार बनावल गइल । ओही िरे ‘सबहारी बाबू‘ िें दहेज के लेके सिाज के चेिावे के पहल कइल गइल ि ‘गंगा सकनारे िोरा गाँव‘ िें प्रेि अउर पररवार के एगो बड़हन िूल्य स्थासपि कइल गइल । ससनेिा के कहानी, पररवेश, कलाकार, गीि-संगीि हर एक चीज भोजपरु ी के आपन रहे । सफल्ि के ढेर शूंसटग गाँव िें कइल गइल बा जेिे भोजपरु ी क्षेत्र अउर गाँव के बड़ा बारीकी से देखावल गइल बा । सफल्ि िें गीि-संगीि, खेि-खसलहान, हक्का-बीड़ी कहनी-कहावि, खेल, घर-दवु ार सब सजयिार पोंथी के िरह बाटे ।

नया दौर िें हि भाषा ि दूर भोजपरु ी के कुछउ खोजल

चाहीं ि सनराशे हाथ लागी । कहानी सीर्े-सीर्े सहन्दी सफल्ि के नकल बाटे । अगर आज भोजपरु ी सफल्ि िें भोजपरु ी लोकित्व के छोड़के बाकी कउनों चीज खोजीं ि उ सिल जाई । आज भोजपरु ी ससनेिा के बढ़ि बाजार के देख के अलग भाषा के सफल्ि सनिा​ा िा सनदेशक लोग भी एकरा ला रूसच देखावे लगले । कि सिय अउर कि पइसा िें चपकस किाई के देख के लोग एह र्ंर्ा िें खूब पइसा लगइले अउर किा रहल बाड़े । ‘ससरु ा बड़ा पइसा वाला‘ से शरू ु होखे वाला इ नया दौर हर िरह से िंबु इया सफल्ि के पजरा बाटे । आज के सिय के भोजपरु ी सफल्िन के ससनेिा के कसौटी पर कसल जाय ि गणु वत्ता के सलहाज से एकदि सनचला सीढ़ी पर नजर आ रहल बा । इहा आज के भोजपरु ी सफल्ि के सनिा​ा ण के आसथा क पहलू पर सर्यान देहल बड़ा जरूरी बाटे । भोजपरु ी के पसहला अउर दस ू रा दौर के सफल्ि िें सिान्य रूप से पाँच से पच्चीस लाख िक के पॅूजी लागि रहे बासकर नया दौर के िात्र िीस लाख के पॅूजी से बनल ‘ससरु ा बड़ा पइसा वाला‘ के करोड़न िें भइल किाई के चलिे बड़वार पइसा वालन के एहरो दबदबा बढ़े लागल । सफल्ि बनावे के लागि भी करोड़ो िक पहचं गइल । अइसना सिय िें जहां सफल्ि पइसा किाये के बस एगो जररया भर रह गइल उहां कला के असभव्यसि िान के सािासजक सच के पदा​ा पर उजागर कइल खाली कोरा कल्पना के अलावा कुछ नइखे । अथा शास्त्र के िहत्वपूणा ससिान्ि के िरह भोजपरु ी ससनेिा भी िाँग अउर पूसिा के अलावा कुछ खास नइखे रह गइल । बड़हन पूज ँ ी वाला एह सफल्ि अथा व्यवस्था िें अगर आज भी 'देसवा' जइसन एकार् गो यथाथा वादी सफल्ि कबो-कबो आ भी जाले ि ओकर अवकाि बरगद जइसन बड़वार पेड़ के नीचे जािल कुकुरित्त ु ा से असर्का ना होला काहें सक उ जोश उ आंदोलन जवन कबो शरू ु भइल रहे उहे जब आज खि​ि हो चक ु ल बा ि ओकरा सवषय िें ढेर का कहल जा सके ला । इसिहास गवाह रहल बा सक पूज ँ ीवादी व्यवस्था अपना लाभ खासिर लोगन के हिेशा अपना शिा पर सजये के िजबूर कइले बा । कला के प्रदशा न िें जब भी ढेर पूज ँ ी लागी ि अइसन व्यवस्था के जन्ि होई जवन एह िाध्यि के उपयोग झूठ के साँच बनाके सदखावे िें करी, एही िें ओकर किाई बा । साफ-साफ कहल जाय ि आज के भोजपरु ी ससनेिा खाली एगो सबकाये वाला सिान बनके रह गइल बा ।

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भोजपरु रया पररवेश िें िट्ठु ी भर र्नी-िनी लोगन के अलावा बहिे बड़ अइसन सिाज बा जवन अबो अपना जीये के बसु नयादी लड़ाई लड़े िें बाझल बा । इ उ लोग हवे जेकरा के गाँव के िड़ई-टाटी और झोपड़ा िे देखल जा सके ला । दू जून के रोटी किाये शहर गइल लोगन के झग्ु गी-झोपड़ी बस्िी िें देखल जा सके ला । ए िेहनि अउर जझ ु ारू गरीबन िें हर जासि -र्रि के लोग बाड़े जवन आपन जीवन चलावे खासिर, पेट भेरे खासिर ररक्शा खींचि, पत्थर फोरि, भट्ठा पर ईटा ढोवि अउर बड़-बड़ पररवार िें बिा न िाजि, खाना बनावि, उनकर गाड़ी पोछि, होटल अउर चाय के दक ु ान पर सगलास पलेट र्ोवि सिल जइहें । एह िें िसहला परू ु ष सभे शासिल बाटे । लेसकन सपछला एक दशक िें र्ड़ार्ड़ जारी भोजपरु ी सफल्ि के लेखा-जोखा एह बाि के गवाही देि बा सक हाल के सिाज के यथाथा एह दौर के सफल्िन से पूरी िरह गायब बाटे । आज जेिना िेज रफ्िार से भोजपरु ी सफल्ि बन रहल बा ओिने िेज रफ्िार से ओकर गणु वत्ता अउर सविास िें किी आ रहल बा । दरअसल क्षेत्रीय भाषा िें ससनेिा एह सोच के देन ह सक उ अपना िाटी से जड़ु के ही आपन बाि िजबूिी से कह पाई । लेसकन आज के भोजपुरी ससनेिा एगो अलगे र्ारा िें ठहर गइल बा । इहां से बाहर सनकले खासिर ओके अपना के सहन्दी के छाप से अलग करे के पड़ी । कहानी कहे खासिर अपना गाँव-सिाज अउर िाटी से जड़ु े के होई । आज के हीन सबचार अउर भावना से बाहर सनकल के एगो नया सूत्र अउर खुद के िहु ावरा गढ़े के पड़ी । एह खासिर जरूरी बा एगो नया बदलाव के िासक उ आपन नैसिकिा अउर अंिरआत्िा के बचा सके । जवना सिाज अउर दशा क से एिना किाई कर रहल बा ओकरा खासिर कुछ सजम्िेदारी सनभा सके । उ जनिा के सविास सदला सके सक भोजपरु ी सफल्ि लोक संस्कृसि, परंपरा, सिाज अउर सभ्यिा के रक्षक अउर ओकरा सविास िें सहायक हवे । उनके इ सर्यान रखे के पड़ी सक दशा क के हं के न होला । आपन बोली, आपन कलाकार, आपन भाषा अउर अपना सिाज से जड़ु ाव ही ओके भोजपरु ी सफल्ि देखे खासिर अपना ओर खींचेला । अगर ससनेिा के हालि अउर नयापन के ओर सर्यान ना देहल जाई ि एक सदन इ दशा क ओकर साथ छोड़ देई अउर इ बाि भोजपरु ी ससनेिा खासिर बहि ठीक ना होई । इ सोचे वाला बाि बा सक जवना पररवेश अउर गाँव के र्रु ी िें रख के भोजपरु ी सफल्ि संसार के बसु नयाद खड़ा कइल गइल आज उ गाँव भोजपरु ी ससनेिा से गायब हो रहल बा । जब भोजपरु ी ससनेिा के नींव रखल गइल िब के हं इ ना सोचले

रहल सक एकर आवे वाला सदन अइसन दख ु दाई होई जवन हिनी के देख रहल बानी जा । आज के दौर के िख्ु य र्ारा के सफल्िन िें इ असर खास िौर पर देखे के सिलि बा सक कहानी पूरा-पूरा बॉलीवडु के िजा पर गढ़ल जा रहल बा । संवाद भी पूरा भोजपरु ी के नइखे । जवन सचत्रण कईल जा रहल बा ओकरे आर्ार पर कहल जाय ि हीरोइनन के पूरी िरह यौन कुण्ठा के पूसिा के सार्न िान लेहल गईल बा । आज के सिय के भोजपरु ी सफल्ि िें हीरोइन के काि िख्ु य रूप से हीरो के अहि के सोहरावल होला । सफल्ि के कहानी से गाना के कउनो संबंर् होई इहो जरूरी नइखे । भोजपरु ी ससनेिा आज अपना उम्र के पचास साल पूरा कर सलहले बा । एकर शरू ु वाि करे वाला असर्किर लोग सहन्दी ससनेिा के स्थासपि कलाकार रहलें सजनके आपन भाषा, िाटी अउर आपन लोगन के प्यार भोजपरु ी िें सफल्ि बनावे खासिर प्रेररि कइलस । िेहनि, लगन, अउर त्याग के बाद बड़ा िजबूिी से हिार पूवाज लोग भोजपरु ी ससनेिा के नींव रखले । बड़-बड़ कलाकार, गायक, लेखक अउर राजनेिा जइसे नासजर हसैन, कन्हैयालाल, असीि, कुिकुि, जद्दनबाई, िोिी बीए, सचत्रगप्तु , डा. राजेन्द्र प्रसाद जइसन लोग सिलके एकर बीज बोइले । एह बीज के रोपले आज पचास साल हो गइल । एह पचास साल िें एहिा बहिे उिार-चढ़ाव आइल लेसकन ि​िाि नीक-खराब सिय के झेलि जब एकर जड़ िजबूज होइल अउर डाल पूरा सवि िें आपन छाप छोड़े लागल ि लोग एकर जडेा़ काटे िें लग गइले । भाषा खाली एगो भाषा ना होला बलुक उ एगो सिाज के अंग अउर ओह सभ्यिा के अगआ ु होले । भारिीय भाषा िें भोजपरु ी एगो िात्र अंिरराष्ट्रीय भाषा ह जवना के दायरा दसु नया के कई देश िें फइलल बा । आज कई देश िें इ िािृ भाषा के िरह प्रयोग िें बा बासकर भोजपरु ी सफल्ि के ना ओह दसु नया से कउनो सरोकार बा अउर ना ही भोजपरु ी सिाज से । भोजपरु ी पट्टी के सिस्या के परछाई भी आज के भोजपरु ी सफल्ि िें नइखे लउकि । अससलयि पूरी िरह गायब बा । बॉलीवडु के फूहर नकल, अश्लील गीि, नाच-गाना ही एकर पया​ा य बन गइल बा । लोक अउर सिदु ाय से अलगा, सिाज अउर संस्कृसि के बहरी ढके लि एगो नया िरह के सफल्िी संसार खड़ा कइल जा रहल बा । आज के भोजपरु ी ससनेिा भोजपरु ी भाषा अउर सिाज के का छसब बना रहल बा इ एगो बड़हन सिस्या बा । जेकरा पर गंभीरिा से सवचार कइल गइल अबे बाकी बा ।

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हसयासत के आपन ताकत देखावे के पड़ी जपा सांसद अउर भोजपरु रयन के कसथि खेवनहार ‘िनोज सिवारी’ जी के एगो गीि के ई पंसि सबहारी लोगन के राजनीसिक जानकारी के उजागर करि बा बाकी ससयासी सपना के हर बार चकनाचूर भइला के बाद ई साफ़ कहल जा सके ला सक सबहारी बाजार के बिकही संसद बना ि सके ला बाकी अपना आंखी िें बसावल सपना के सज़ंदा होि ना देख सके ला । जी हाँ हि ओही सपना के बाि कर रहल बानी जवन सपछला कई दशक से भोजपरु रयन के आंखी िें हिनी के नेिा लोग अपना स्वाथा सससि ला सजावि आ रहल बा बाकी आज िक कवनो अईसन असली रहनिु ा ना सिल पाईल भोजपुररया सिाज के जे भोजपरु ी के ओकर वासजब हक़ सदला सके । हर चनु ाव िें हर पाटी के हर नेिा से भोजपरु रया लोगन के ई आिासन इसिहास के कुछ शब्द ही बन के रह जाला सक अबकी बार भोजपरु ी संसवर्ान के आठवी अनस ु ूची िें शासिल हो जाई ।

रहलन सक, ‘हि रउरा सब के भावना सिझS िानी’। भोजपरु रया सिाज के भावना सिझे के ई बाि एगो ससयासी चाल ही बन के रह गईल । िानसून सत्र के सिय देहले रहलन पी सचदंबरि जी बाकी एगो का कई गो िानसून सत्र बीि गईल पर भोजपरु ी आज भी ओही ददु ा शा से दो-चार हो रहल सबया । पिा ना ई ससयासी िजबूरी ह या सत्ता सिलला के बाद के व्यस्ि​िा, कांग्रेस के सिय िें पक्का भोजपरु रया खेवनहार सदखे वाला ि​िाि नेिा जी लोग आज भोजपरु ी के बारे िें एक शब्द भी बोलि नईखे सदखि । सरकार के रूप िें कांग्रेस के सवफलिा अउर भोजपरु ी के हक़ के आवाज सनु े वाला नेिा ढूंढि भोजपरु रया सिाज के परेशानी के नरेन्द्र िोदी भी भरपूर फायदा उठवले । 27 अिूबर के पटना के गांर्ी िैदान िें जब िोदी जी आपन भाषण भोजपरु ी िें शरू ु कईले ि पूरा भोजपरु रया लोगन के एगो आस जगल सक ई आदिी सत्ता िें अईला के बाद जरुर ही भोजपरु ी के काया कल्प करी । पर अफ़सोस सक भाजपा के ि​िाि भोजपरु ी भाषी नेिा जी लोगन के ई बाि एगो सबना असर वाला खबर ही बन के रह गईल सक ‘िोदी बसनहे पीएि ि भोजपरु ी शासिल होई आठवी अनस ु ूची िें ।

भोजपरु ी भाषी क्षेत्र से आवे वाला सांसद सवर्ायक लोग के वादा आ सपना के सबसार दी िब भी इसिहास के पन्ना पलटला पर पिा चलेला सक कई गो हक्िरान लोग भी भोजपरु ी के ओकर वासजब हक़ सदलावे के बाि कईले बाड़न । हालाँसक अब िक के पररणाि इहे बिावि बा सक सत्ता पक्ष होखे भा सवपक्ष, नेिा जी लोगन के उ आवाज भी ससयासि के चक्रव्यूह िें फं स के रह गईल । 3 साल से ज्यादा बीि गईल जब 17 िई 2012 के सहन्दी भी ठीक से ना बोले वाला गहृ िंत्री पी. सचदंबरि, सदन िें भोजपरु रया लोगन के सांत्वना देि कहले

इ सोच के दःु ख होला सक भारि िें सहन्दी के बाद सबसे ज्यादा बोलल जाए वाली भाषा आज आजादी के लगभग 7 दशक बाद भी संवैर्ासनक िान्यिा से दूर सबया । लानि बा ई देश के ससयासी सिाज पर जवन सक ओह भाषा के संवैर्ासनक िान्यिा ना दे सकल जवन भारि के पसहलका राष्ट्रपसि राजेन्द्र प्रसाद के साथ-साथ दू गो प्रर्ानिंत्री लाल बहादरु शास्त्री अउर चंद्रशेखर के भी िािृभाषा ह । ए से ज्यादा शिा के बाि का हो सके ला सक अपना देश िें ही उपेक्षा के सशकार भोजपरु ी के िॉररशस जईसन देश िें संवैर्ासनक िान्यिा

‘.. िर गंउआ िें बड़े-बड़े नेिा,

भा

संसद से बढ के बा बजररया...’

त्रनरंजन कुमार त्रमश्र पमि​ि चम्पारण, बेमतया (मबहार) के एगो गा​ाँव जयहसंहपुर के रहे वािा ‘मनरं जन कु िार मिश्रा’ जी, अभी कदल्िी के एगो कॉिेज ‘इआन स्कू ि ऑफ़ िॉस कम्युमनके शन से पत्रकाररता स्नातक के पिाई कर रहि बानी। पढ़ाई के साथ-साथ मवमभन्न सिाचार पत्र/पमत्रका िें भी मनयमित िेख मिखे नी। राजनीमत, सिाज, सामहत्य-मसनेिा आ संस्कृ मत पऽ इहा​ाँ के सअमधकार िेखनी। सोशि िीमडया के संघ-े संघे इहा​ाँ के आपन ब्िॉग http://niranjankinajar.blogspot.in/ पर भी सक्रीय बानी। © आखर ● जन ू , 2015 ● 84


सिलल बा । सरकार के हर एक कदि के आंकडा के नजर से देखे वाला हिनी के नेिा लोग के ई आंकडा भी पिा ही होई सक देश-दसु नया िें 20 करोड़ से ज्यादा लोगन के भाषा भोजपरु ी उत्तर प्रदेश के 17, सबहार के 9, झारखंड और िध्यप्रदेश के 2-2 सजला के साथ-साथ सदल्ली, िम्ु बई, कोलकािा अउर चेन्नई जईसन िहानगर िें भी बोलल जाला । ससयासी उपेक्षा के सशकार भोजपरु ी भाषा के ई सम्िान भी हाससल बा सक िॉररशस, सत्रसनदाद, सफजी, टोबैगो अउर सूरीनाि जइसन देश िें भी भोजपरु ी बोले वाला लोग रहेला । पूरा देश के ससयासी अउर राजनीसिक फै सला के जिीन, सदल्ली के ही जिीनी पड़िाल कईल जाव ि पिा चल सके ला सक सदल्ली के सत्ता पर कासबज होखे वाली सरकार पूवािंचली लोगन के उंगली के िोहिाज सबया ।

राजनीसि ही उ एकिात्र कारण बा जवन हिनी सब के िािृभाषा के संवैर्ासनक िान्यिा से दरू रखले बा । इसिहास गवाह बा सक सरकार के ओर से सिले वाला कवनो भी असर्कार संसद के बाट जोहला से ना सिलेला एकरा ला सड़क पर उिर के आपन हक़ जनावे के पड़ी अउर अपना िाकि से ससयासि के अवगि करावे के पड़ी । हि ि इहे कहब, ‘’अब छोड़ दी आसरा, सरकार बाि कुछ करी, ि ई भूले िाला जाि का ई याद कुछ करी, ई आपन भाषा अउरी संस्कृहि के बाि बा, चली उठी ि​ि​िी रउरा िी आज कुछ करीं’’

सामातजक चररत्र (लघुकथा)

पं

सडि के सव शास्त्री जी अपना पररवार के पारंपररक सशक्षा, दीक्षा, ज्योसिष, करिकाण्ड आसद के दरसकनार कइके आपन लइका नबीन के नाव कान्वेंट इस्कूल िें करववले रहीं | दलील इ रहे सक जिाना बदलि बा, आ हिनी के सिाज के संगे गोड़ से गोड़ सिला के चले के चाही | एकही सचज िें बनहाइल रहल सिय के िांग नइखे | बाि सही भी रहे आ सिाज के लोग एहके सराहल भी |

नबीन िनेजिेंट के पढ़ाई कके एगो नािी कं पनी िें नोकरी करेलगलन ि उनका अपना एगो िसहला सहकिी सजनकर नाव नाजनीन रहे से नेह लासग गइल जेकर निीजा उ अपना बाबज ु ी के सोझा नाजनीन से सबआह करे के सबचार रासख सदहलन | नबीन के बासि सुसन के पंडी जी सिलसिला गइनी आ जासि-र्रि, कुल-खानदान के बाि इयाद सदयावे लगनी साथ िें सिाज िें होखे वाली बदनािी के भी सजरह भइल |

त्रिज भूषण चौबे बक्सर के रहे वाला बिज भुषण चौबे जी , भोजपुरी गद्य साहहत्य मे युवा उभरत नाव बानी । इाँहा के लेख कहानी पहहले भी आखर प आ चुकल बा । एह घरी इाँहा के मुम्बई मे रहह रहल बानी ।

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पयाटन : गप्तु धाम, रोितास से ि सबहार िें ढेर परु ाण िंसदर बा बाकी रोहिास सजला के बाबा गप्तु ेिर र्ाि के गफ ु ा िें सस्थि भगवान सशव के िंसदर अपने आप िें अनूठा बा । सजला के िख्ु यालय सासाराि से लगभग 50 सकलोिीटर दूर दसक्षण-पसि​ि कोना पर कै िूर पहाड़ी के प्राकृसिक सषु िा से सस ु सज्जि वादी िें एह गफ ु ा िें सस्थि सशवसलंग पर जलासभषेक से िनई के सब िनोकािना पूणा होला अइसन प्राचीन काल से ही िान्यिा ह ।

जब सबहार आ झारखण्ड के बंटवारा भइल ि भोजपरु रयन के सौभाग्य वश भगवान भोले सबहार के ही सहस्सा िें परलन । अइसन सकवंदिं ी ह सक जब कै लास पवा ि पर भगवान भोले भस्िासरु के िपस्या से प्रसन्न हो "एविस्िु " के वरदान सदहले ि उ दष्टु सबसे पसहले शंकरे जी के आपन सनशाना बनवलस । उ िाँ पावा िी के सौंदया पर िोसहि हो गइल आ सबसे पसहले अपना राह के सबसे बड़का रोड़ा भगवान भोले के ही सनशाना बना सलहलस । ई सोच के सक भोले जवन वरदान देले बाड़ें उ साँच बा की ना । अब िहाराज जब वरदान दे देले रहीं ि ओकरा से िक ु रल खुद शंकर भगवान के भी बस के ना रहे ।

गइला पर एगो बहि गहरा खड् ड सिलेला जवना िें सालों भर पानी भरल रहेला, एह से ए जगह के पािालगंगा कहल जाला । एह गफ ु ा के अंदर प्राचीन काल के दल ु ा भ शैल सचत्र आज भी िौजूद बा । आगे चल के िुलसी चौरा पार कइला के बाद गफ ु ा के अंदर प्राकृसिक सशवसलंग के दशा न होइ । गफ ु ा के अंदर ऊपर से सशवसलंग पर हिेशा पानी टपकि रहेला जवना के भि लोग भगवान के प्रसाद सिझ अपना िहु ं िें रोक के ग्रहण करेला । सावन भर जलासभषेक के काया क्रि चलेला । लाखों श्रिालु बक्सर से कांवर िें गंगा जल भर के जलासभषेक क के अपना सख ु शांसि के प्राथा ना करेला । सावन िहीना के अलावा िहासशवरासत्र और बसंि पंचिी के अवसर पर भी एसहजा भारी िेला लागेला । एसहजा पहंचे के दू गो रास्िा बा पसहला रास्िा सासाराि से बस द्वारा आलिपरु सफर आलिपरु से उिर के कुछ दूर पैदल सफर पनारी घाट से पहाड़ी रास्िा शरु​ु हो जाला गफ ु ा िक पहचं े के । दूसरा रास्िा सासाराि से बस से चेनारी उिर के सफर सवारी गाडी से स्थल पर पहचं ल जा सके ला ,लेसकन चेनारी से सवारी वाहन खाली िेला के सिय ही सिलेला ।

अब ओह दानव से बचे खासिर भोले िहाराज के एगो सरु सक्षि स्थान के िलाश रहे जवना के गप्तु स्थान के नाि सदहल गइल । आगे चल के इहे जगह गप्तु र्ाि के नाि से सवख्याि भइल । अपना भागि -भाग के क्रि िें भगवान एह गफ ु ा िें भी प्रवास कइलन एह से एकर नाि गप्तु र्ाि पड़ल । भगवान सवष्णु जी से शंकर जी के सववशिा देखल ना गइल एह से उ िोसहनी रूप र्ारण क के भस्िासरु के नाश कइलन । िब जाके भगवान भोले के जान बाचल । भगवान के एह प्रवास स्थान के गप्तु र्ाि नाि पड़ल । पहाड़ी पर सस्थि एह पसवत्र गफ ु ा के द्वार 18 फीट चौड़ा आ 12 फीट ऊंचा िेहराबनिु ा ह । गफ ु ा िें लगभग 363 फीट अंदर

आदशध त्रतिारी रोहतास के रहमनयार आदशय मतवारी जी स्वतंत्र पत्रकाररता के क्षेत्र िें सकक्रय बानी। इहा​ाँ के राजनीमत-सिाज आ भोजपुरी सामहत्य-संस्कृ मत पऽ आपन कि​ि चिावेनी। पूवय िें इहा​ाँ के दैमनक जागरण से संबद्ध रहि बानी ।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 86


तसनेमा

दू ठो कहवता इिंसानी ररश्िा रीस रहि बा

ई इंसानी ररश्िा रीस रहल बा उ िल्खी िें के ह के पीस रहल बा

कलि के नोक िें इ सख्िी शब्द के िायने िें इ िल्खी जर -जवांर ,घर -दवु ार ई इंसानी ररश्िा …रीस रहल बा उ िल्खी िें के ह के पीस रहल बा

बाबू के बड़का कमाई राि ख्याल िें सढबरी सडबडीबाि रहे गाँव के चौराहा से दू िील के फासला खेि के डरेर पे कुदकि िन चहपं गइले बथानी

उन्िाद ,उिंग से बेदि ,घिंड नजर सिरछा से , सोझा गावं िें पगडण्डी के सहसाब शहर के सीर्ा सड़क पे ई सिरछी चाल ई इंसानी ररश्िा रीस रहल बा उ िल्खी िें के ह के पीस रहल बा

सख ु ल पिइ सछटाइल घपु अँर्रे ा पसराइल कबो ऐजा बाबूजी के िहसफ़ल लागि रहे असभयो लागेला शहर के सबचो - बीच बालकोनी के शीशा से झाँकि …… आँख के ससकुरन उहे खोज रहल बा

सांझ राि से पसहले ,आ सदन के बाद बदल रहल बा सलबास सक बेशक ,लुका जाये के बाद ना सचन्हा पाये के िकसद बेनकाब,बेसलबास हो जाये के डर ई इंसानी ररश्िा रीस रहल बा उ िल्खी िें के ह के पीस रहल बा

बाबू के बड़का किाई बथानी के बइठकी लुट सलहलस..........

अख़बार के खबर बेसहसाब साँझ के सजल दरबार शब्द के िल्खी िें ससिट के अलग-अलग िायने िें सबकाि भावहीन ,िस्ु कुराि ,बदचलन आँख घरु रहल बा , अर्नंगा से नंगा सोच सदल -सदिाग के ररश्िा िें

िन अब डेगे -डेगे बढ़ रहल बा दवु रा र्पु ,सूखल पेड़ के सख ु ा रहल बा के वाड़ी के कोन से , आँगन िें सछिराइल रौशनी ,बड़ा िसि​ि लागल

श्वेताभ रंजन मसवान , मबहार के रहे वािा श्वेताभ रं जन जी , मपमछिा कु छ सािन से भोजपुरी सामहत्य के थाती िे गजब के बिोतरी कईिे बानी। िगातार गद्य आ काव्य के िाध्यि से भोजपुरी के सामहमत्यक पछ के अउरी बररआर करत , इाँ हा के भोजपुरी काव्य संग्रह " कु छ कह रहि बा " प्रकामशत भईि ह । श्वेताभ जी एह घरी कदल्िी िे बानी । © आखर ● जन ू , 2015 ● 87


तसनेमा अम्िा के आवाज़ दवु रा के इन्नार ………सब सख ु गइल

पर भोरे बालकोनी के उहे कोना पे सूरज सनहारेले …रोज उ जल ढारेले

अम्िा असभयो सोचेले , िनी गजन होला

बाबू के बड़का किाई इन्नार के पानी

भोजपुरी दो ा खेिी के घाटा बढ़ल, भक्ु खे िरस सकसान । दोषी कवना के कहीं, िसु खया जी र्नवान ॥

पन्ना ठंढाई भइल, सपछड़न के पहचान । कोला पेप्सी पेग बस, असगड़न के अरिान ॥

सहरन िें सजनगी भइल, कंु ठा-दःु ख-संत्रास । दख ु वा कवना से कहीं, सभ कररहें उपहास ॥

िसहिा आपन देस के गावे बेद-परु ान । राउर सबटवा रसट रहल, पसच्छि रहल िहान ॥

बेर-बेर छटनी भइल, हरदि लूट-खसोट । दगु ा ि भइल िजूर के , लगल चोट पर चोट ॥

सावन सल ु गल जेठ अस, साँस भइल बा भार । बसले सपया सवदेस िें, बरखा ओद कटार ॥

आपन गलिी के िढ़े, दोसरा प इल्जाि । ि​िलब से दरकार बा, भारी-भरकि नाि ॥

घाटा के सौदा बनल, खेि-सकसानी आज । गाँव-गली िें भोर से, दारू सपयलस लाज ॥

राउर आपन देस िें, हँसल छाँव सँग र्ूप । सकस्सा आपन देस के , इि खाई उि कूप ॥

परसउिी के का दरद, िरि न बूझे बाँझ । दपु हररया के घाि का, कइसे बूझे साँझ ?

सचउड़ा-सलट्टी ना रुचे, सबरयानी के चाह । चलल बहररया िेि बन, घर फूँकन के राह ॥

इकवसटये सजसनगी भइल, अब कवना से आस ? डूबि सूरज जासन के , के ऽह न आवे पास ॥

आचायध सज ं ीि िमाध 'सत्रलल' जन्द्िस्थान - िंडािा (िप्र), बाककर अब जबिपुर िें स्थायी मनवास । बुन्द्दि े ी भासा-भासी भइिा के बावजूद महन्द्दी िें सामहत्यकिय करे के अिावा बुन्द्दि े ी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, अवधी, ब्रज आकद भासा िें काव्य-िेखन प जोर । शास्त्रीय छन्द्द प गहन अध्ययन । सम्प्रमत अवकाश प्राप्त काययपािक अमभयंता, िोक मनिायण मवभाग, अमधवक्ता िप्र उच्च न्द्यायािय । प्रकामशत पुस्तक - कि​ि के देव (भमक्त गीत), िोकतंत्र का िकबरा (कमवता-संग्रह), िीत िेरे (कमवता-संग्रह), भूकंप के साथ जीना सीखें (िोकोपयोगी तकनीकी), एकरा अिावा कई पत्र-पमत्रका, स्िाररका, संकिन के संपादन आ शोधपरक िेख प्रकामशत । 12 राज्यन के मवमवध संस्था द्वारा 100 से अमधक सम्िान आ अिंकरण । © आखर ● जन ू , 2015 ● 88


तसनेमा

कसव-पाठक के बीच िें, कसविा बड़हन सेिु । सलखल-पढ़ल आनंद बा, सभ के जोड़े-हेिु ॥ र्इले हाथ करेज पर, खोजे आपन दोष । अइसन नर के ही सदा, सिलल 'ससलल' संिोष ॥ सरस सरल जब-जब भइल, 'ससलल' भाव-अनरु सि । कहले पाठकगण सदा, इहे काव्य असभव्यसि ॥

िन अइसन हहरल परल, जइसन नसदया र्ार । गले लगल दरू ी सिटल, टूटल लाज पहार ॥ कुसल्ह कहानी काल्ह के , गइल जवानी साँच । प्रेि-पसत्रका छाँड़ के , क्षेि-पसत्रका बाँच ॥ जिने बीिे सज़न्दगी, बढ़ि गइल असभिान । िन जिने सँइिा गइल, िन होला बलवान ॥

नेह-छोह राखब 'ससलल', र्न-बल के कर िीि । राउर िन से िन सिलल, साँस-साँस संगीि ॥

पीर सपये आ प्यार दे, इहे सज ृ न के रीि । अंिर से अंिर भइल, दरू - कहाइल गीि ॥

िड़ाई हक के बा अपना, जिावि भी जरूरी बा। बिावि भी जरूरी बा, बुझावि भी जरूरी बा ।।

सही अक्षर के खासिर मश्क करहीं के पड़ी बाबू। बनावि भी जरूरी बा, समटावि भी जरूरी बा ।।

कबो ई सा​ाँप बसहरा ना सनु ी कवनो मधुर भाषा। बिावि भी इहे दशतन से दशतन सजन्दगानी के । कड़क सछिंउकी आ पैना से जगावि भी जरूरी बा ।। उगावे खासिर अपना के , डूबावि भी जरुरी बा ।। खड़ा िूफान में होके बचावे के पड़ी टोपी। कबो जौहर ना देखस कोरा सपना सदन में कवनो। धड़ी भर माथ के अपना झुकावि भी जरूरी बा ।। एही से आज उनका के घटावि भी जरुरी बा ।। डा॰ जौहर शसफयाबादी

© आखर ● जन ू , 2015 ● 89


पाठक कोना

राउर बात आखर नीिन प्रयास बा , सडजाईन बहिे नीिन लागल ह , भोजपरु ी िे अईसनो सलखािा हिरा सविास ना रहल ह। आखर टीि के बर्ाई हवे , पसत्रका से जड़ु ल सभ सवद्वि जन के बर्ाई हवे ।  अंजना

कुंिर रिीद्र, गाजीपुर

हिनोद हसंि, रोि​िास

प्रदीप राय, बहलया

हिना नीिन सलखािा भोजपरु ी िे , हिनी के ि सविासे नइखे होि । दरु दरु देस के आदिी सलख रहल बा भोजपरु ी इ कुसल्ह देसख के बहिे नीिन लागि बा । अईसही बढि रही रउवा सभे । आखर टीि के शभु कािना बा । 

रत्नेि कुिार, हसिान

छपरा िे शोरा के व्यवसाय के बारे िे जानकारी भईल बड़ा बसढिा लागल । अईसने जानकारी देि रही सभे । खेिी बारी प भी कुछ सलखाि रहे ।

बड़ा बसढिा प्रयास होिा भोजपुरी , खुब जि​िा , बहि बर्ाई बा , सप्रंट सनकाली सभे । 

हत्रलोकी चौबे, बनारस

जबरजस्ि रहल अबकी के , आखर हिनी सब के भोजपरु ी से बांर् के राखि बा , बड़ रुचि बा ।

पाण्डेय, गोरखपुर

बड़ नीिन लागल , बिकुचन से ले के िय लेख । बहि नीिन कोसशश । 

आखर टीि के आभार हवै , शभु कािना के साथ । लेख बहिे जब्बर हवन स एह अंक िे बानी ।

आखर के िई अंक पढ़नी । बड़ाई करे खासिर शब्द ना जटु ल । का कहीं, के िना कहीं । 

गुड्डू कुिार िाि

संिोष कुिार, बहलया

आखर पसत्रका के फ़रवरी से िई िक के 4 अंक देखनी । फरवरी प्रवेशांक और होली अंक के िख्ु यपष्ठृ बहि अच्छा बनल बा । चारो अंक िें रचना के चयन से गागर िें सागर के उसि चररिाथा होिा । खली बाचल जगह के भी िस्वीर आ छोट कथा देके उपयोग भइल बा । बहि अच्छा । कलेवर आ प्रस्िुसिकरण ि देश के प्रसिसष्ठि सहंदी पसत्रका से भी बसढ़या बा । पसत्रका से जडु ल सभी लोग , चाहे उ संपादक िंडल हो , चाहे िकसनकी संपादक ; सिन्यवय ठीक बा । पसत्रका के भसवष्य संदु र हो , एही कािना के साथ ।  लहलिेश्वर नाथ हि​िारी

भोजपरु ी सासहत्य के संभारे खािी आ नया ऊंचाई देवे खािी राउर सहयोग के जरूरि बा । भोजपरु ी िें सलखीं आ "आखर" के साथे भोजपरु ी सासहत्य के बढ़ावे िें सहयोग करीं ।

© आखर ● जन ू , 2015 ● 90

~आखर पररिार


लेखक कोना

हनिोरा

य भोजपरु ी ! िाई, िािृभाषा आ िािृभूसि के कवनो सवकल्प नइखे। इनका आँचर के नीचे जवन सख ु के अनभु सु ि होखेला ऊहे स्वसगा क सख ु हऽ। रोजी-रोटी के िजबूरी िें ना चाहिे करीब सभे अपना िाई आ िाटी से दरू बा। एह किी के िऽ ना भरल जा सके ला बासक िािृभाषा से दूरी के पाटे के काि आखर करि बा।

आपन िौसलक रचना यसु नकोड फॉन्ट/कृसिदेव फॉन्ट िें टाइप करके भेजीं ।

रचना भेजे से पसहले कि से कि एक बार अपने से प्रूफ रीसडंग जरुर कर लीं । कौिा, हलंि, पूणासवराि पे सवशेष ध्यान दीं । रचना िें डॉट के जगहा ससफा पूणासवराि राखीं ।

आखर के नींव भी एही उद्देश्य के पूरा करे खासि रखल गइल बा। आखर रउआ सभे से बा, रउआ सभे खासि बा। इ राउर आपन िंच हऽ जहाँ रउआ आपन िाई, िाटी आ िािृभाषा भोजपरु ी से जड़ु ल अनभु व यथा -कथा कहानी, व्यंग्य, संस्िरण, ररपोिाजा , गीि-गज़ल, कसविा, सचत्रकारी भेज सकि बानी। आखर के अहगला अाँक ( जुलाई) सांस्कृहिक योद्धा हभखारी ठाकुर जी के श्रधांजहल देि ( 10 जुलाई ) , अिर ि​िीद िंगल पांडे जी जन्िहदिस के िनाि​ि (19 जुलाई) आ सािन ि​िीना पऽ कें हद्रि रिी। एि अाँक िें सािन के िीज, त्योिार, कजरी, ुलुआ, हिंडोला, रोपनी जइसन लोकगीि-लोक संगीि पऽ हि​िेष आलेख , हभखारी ठाकुर जी के भोजपुरी साहित्य आ िेत्र खाहि योगदान , िंगल पांडे जी के जीिन काल प कें हद्रि लेख कहि​िा आिंहत्रि कइल जा रिल बा। राउर बाि सनु े आ पढ़े खासिर भोजपरु रया सिाज आँख सबछवले बा ।

ध्यान रहे राउर रचना िें कवनो असंसदीय आ अश्लील भाषा भा उदाहरण ना होखे ।

राउर रचना के स्वीकृसि के सूचना िेल भा िैसेज से सदयाई ।

रचना के साथे आपन पासपोटा साइज के फोटो आ आपन पररचय (नाि, पिा, काया आ आपन प्रकासशि सकिाबन के बारे िें यसद होखे ि) जरुर भेजीं ।

रचना भेजे के पिा बाaakharbhojpuri@gmail.com

पसत्रका खासिर राउर हाथ के खींचल फोटोग्राफ, राउर बनावल रेखासचत्र, काटूान जे सवसभन्न सवषय के अनरू ु प होखे, उहो भेजीं |

छोट-छोट लईकन के कलाकारी के भी प्रोत्सासहि करे

रचना भेजे के कुछ जरुरी हनयि -

© आखर ● जन ू , 2015 ● 91



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