March15

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मासिक भोजपरु ी ई-पत्रिका

2015 मार्च , अंक 2

एगो डेग भोजपरु ी साहित्य खाहि

3 दिसम्बर 1884 - 28 फ़रवरी 1963

8 मार्च

www.aakhar.com

© आखर ● मार्च, 2015 ● 1

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प्रकािन / संपादन िंडल : संजय ससंह , ससवान देवेंद्र नाथ सिवारी , वर्ा​ा शसश रंजन सिश्र , नई सदल्ली नबीन कु िार , दबु ई

आखर पिा ग्राि पोस्ट- पंजवार (पोखरी) ससवान , सबहार 841509 क़ानूनी सलािकार लसलिेिर नाथ सिवारी , पटना

िकनीकी -एहडह ंग, कम्पोहजंग असिनी रूद्र , न्यू यॉका असनिेष कु िार विा​ा , अबू र्ाबी छाया हचत्र सियोग स्वयम्बरा बक्सी पी. राज ससंह

आखर वर्ष: 2015 अंक 2 मार्ष । ई - पत्रिका सब पद अिैिहनक बा .

आजी - िरनामी भोजपरु ी गीत

डॉ. राजेन्द्र प्रिाद डा॰ शैलजा श्रीवास्तव

राज मोहन

पराि​िश िंडल प्रभाष सिश्र , नाससक अिुल कु िार राय , बनारस र्नंजय सिवारी , िुंबई चंदन ससंह , पटना राजेश ससंह , ओिान

चर्िपट केभोजप होलीुरी

बतकूर्न

र्ंदन सिंह

िौरभ पाण्डेय

फगआ ु -एगो पारंपररक उत्िव

रुक्ममणी िीता आ मेहरारुन के दख ु

उदय नारायण सिंह

शचर् समश्रा

िम्मान िमारोह आ भख ु ाइल मन

मेहरारुन खाततर गांव

तंग इनायतपरु ी

मनोरमा सिंह

सुर्ीर पाण्डेय , दबु ई पंसडि राजीव , फ़रीदाबाद असजि सिवारी , सदल्ली बृज सकशोर सिवारी , सोनभद्र

प्रकाहि​ि रचना लेखक के आपन ि आ ई जरुरी नइखे की संपादक के हिचार लेखक के हिचार से हिले । संपका : आपन िौसलक रचना , लेख ,कसविा , फोटो , सवचार आखर के ईिेल-आईडी aakharbhojpuri@gmail.com पे भेज सके नीं । सुसवर्ा खासिर रचना सहंदी यूसनकोड िें ही भेजीं । िुख्य पृष्ठ छाया/आवरण : असनिेष कु िार विा​ा , असिनी रूद्र www.aakhar.com | facebook/Aakhar | Twitter: @aakharbhojpuri

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आखर के रं ग आपन बाि राजेन्द्र बाबू के पािी डा॰ राजेन्द्र प्रसाद जस भीिर िस बािरो औरि, देंहि के भूगोल से परे िहिला हदिस स्िहणशि भारि के उज्जज्जिल पिचान िेिरारुन खाहिर गांि रुहमिणी , सीिा आ िेिरारुन के दुख दोिा फागनु के ि​ि राउर िोली िई ं हपछ्ला फागनु खेल गईलन फगआ ु - एगो पारंपररक उत्सि फगआ ु के बिाने िन आ िरीर के साधना (बिकूचन) िोरी गीि (धनु -पारंपररक ) फगआ ु : भोजपरु रया लोक संस्कृहि के ि​िापिश हचत्रप के िोली नकभेसर कागा ले भागा फगआ ु सभे िनािेला फागून आ गइल का ? ( भाग 1 आ भाग 2) हजम्िेिारी (लघक ु था)

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आखर जिाि हनराला (प्रेषक) डा॰ िैलजा श्रीिास्ि​ि संजय हसंि डा. सोनी पांडे डा॰ रीिा हसन्द्िा ज्जयोत्सना प्रसाद िनोरिा िहच हिश्रा सौरभ पांडे हनराला हनरुपिा हसन्द्िा उदय नारायण हसंि ि​िी रंजन हिहसर जौिर िाहफयाबादी देिरें नाथ हि​िारी चंदन हसंि अिुल कुिार राय िालिी हत्रपाठी प्रिोद कुिार हि​िारी हपयूष हि​िेदी भारिीय

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सम्िान सिारोि आ भुखाइल िन भोजपुरी भाखा आ साहित्य के ि​िशिान हस्थहि िथेली िें सिय (भाग २) बिकुचन दू गो भोजपुरी लघक ु था कहनया िाई िाई बीया दे गाछ उगाईब हफल्ि , भाषा आ कुछ बाि रेंगनी कै थी हलहप कबीर, भोजपुरी एिं चंपारण रंग रंग के इयाद िोछी के लड़ाई आहि रे बालि हचरई : (भाग - 1) चंपारण प्रकृहि के एगो सुन्द्दर उपिार हदल, जब बच्चा था जी (भाग-2) कि , किन पुरूख संग यारी का किीं अब ि किलो ना जाए आ गईल बसंि कि , किन पुरूख संग यारी इयार िो आजी (सरनािी भोजपुरी िे हलखाईल गीि) हभखारी हजनगी राउर बाि हनिोरा

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िंग इनायिपुरी गल ु रेज ि​िजाद डा॰ अहनल प्रसाद सौरभ पांडे गणेि जी बागी अहि​ि झा सरोज हसंि हनहिन चन्द्रा श्वेिाभ रंजन पी. राज हसंि संिोष प ेल िरुण कै लाि डा. उिेिजी ओझा अहसि कुिार हिश्र प्रभंजन कुिार हिश्र बज ृ हकिोर हि​िारी हनलय उपाध्याय डा ॰ एस. के . हसंि नुरैन अंसारी हनलय उपाध्याय अिोक िेरपुरी राज िोिन िन्द्ु ना पांडे (प्रेषक) अजीि कुिार हि​िारी आखर के ओर से आखर के ओर से

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आखर चौपाल

आपन बात

खर के पसहला अंक रउआ सभे के पसंद आईल, हिनी के आभारी बानी जा । जवना आत्िीयिा से भोजपरु रया सिाज एकर स्वागि कइलस, उ सववेचना के बस के नइखे । हिनी के उत्साह आसिान पर बा । आशीवा​ा द खासिर उठल हाथ हिेशा आखर के िाथा पर बनल रहे, एकरा खासिर सचेि बानी जा । अपेक्षा बहुि बा । कोसशश रही सक खरा उिरीं जा ।

अलग सिय िें िेहरारुन के सदसाई ं सिाज के सोच िें भी पररविा न भइल बा । एगो दौर रहे जब कहाि रहेयत्र नाया स्िु पूज्यंिे रिंिे ित्र देविा​ाः ! एगो उहो दौर रहे, जब कहाईल-

अबला जीवन हाय िुम्हारी यहीं कहानी, आँचल िें है दूर् आँखों िें पानी !

फरवरी-िाचा के िहीना हिनी खासिर बड़ा िहत्व राखेला । बसंिी बयार के करा पर असर ना करे ? सरसों के फूल सपयरािे बढ़ु - जवान, िरद – िेहरारू, लसड़का – सेयान सभे एकही रंग िें रँगा जाला । प्रकृसि आनंद के उत्सव िें पल ु सकि होके नाचे लागेले । काहें ना नाचे ? कान्हा के आवे के आस िें गोसपयन के लोर से कररया हो चक ु ल जिनु ा के पानी एही िहीना िें हररयर होखे लागेला । अपना सप्रयि​ि के इंिजार िें भटकि गोसपयन के आत्िा जागिृ होके कन्हैया साथे रास रचावे खासिर व्यग्र हो जाली सन । कान्हा आवेलें । रास रचावेलें । रंग लगावेलें । गल ु ाल उड़ावेलें । जब सवदा होखे के बेरा आवेला ि गोपी लो हँस के सवदा देला आ असगला साल के सनिंत्रण भी-

एगो इहो दौर बा, जब कहाि बा –

खींसच सपिाम्बर कम्िर िैं सु सवदा दई िीसड़ कपोलसन रोरी, नैन नचाय कही िस्ु काय, लला सफरर आइयो खेलन होरी ।

पज ु ेला । बासकर एगो पहलू इहो बा सक सासवत्री, सीिा, आ अनस ु ईु या के आदशा सािने राख के सत्यवान, राि आ असत्र बनल भल ु ा जाला । िेहरारु पररवार के रथ के एगो िहत्वपूणा पसहया हयी सन । रथ के चले खासिर दनु ू पसहयन के बीच िालिेल जरुरी बा । भोजपुररया सिाज भी ई बाि र्ीरे र्ीरे सिझ रहल बा ।

हँस के सवदा सदहल आसान ना होला, बासकर फागनु िें लोर बहे ि कइसे ? प्रकृसि के सखलाफ जाई । ई िहीना उल्लास आ उिंग के हs । जइसे जइसे फागनु िास सरके लागेला, गोपी लो सवरह के वेदना िें सससके लागेला । जिनु ा के पानी फे रु कररया हो जाला सनससदन बहि लोर से । जइसहीं सरसों के फूल सपयराये लागेला, फे र से उहे उल्लास उहे उिंग । उहे जवानी उहे हुड़दंग । 8 िाचा के संसार भर िें िसहला सदवस िनावल जाला । नर-नारी िें भेदभाव ि​ि होखे, नारी के सम्िान सिलो, घरे आ बहरी के उत्पीड़न से सरु क्षा सिलो, अवसर के सिानिा ससु नसि​ि कइल जाव, इहे सब ध्यान िें राख के । हिनी के सिाज िेहरारुन के लेके बड़ा दसु वर्ा िें रहल बा । अलग

जनिीं जे जारल जइबू आग िें दहेज के , पाप नाहीं करिीं ए बेटी ससरु ा िें भेज के । एिें कवनो दू राय नइखे सक हिनी के सिाज नारी शसि के

हमनी के समाज मेहरारुन के लेके बड़ा दुविधा में रहल बा । अलग अलग समय में मेहरारुन के वदसाई ं समाज के सोच में भी पररिर्तन भइल बा ।

देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नाि सनु िे हिनी के सदिाग िें जवन छसव बनेला ओिें लउके ला सादगी, सवनम्रिा आ सवद्विा के साक्षाि संगि । भारि िािा के पक ु ार पर आपन सवा स्व देश के नाि पर लुटा देबे वाला एह बेटा के देश सम्िान सदहलस । शीषा पद पर बइठवलस । इसिहास साक्षी बा सक सादगी के िूरि राजेंद्र बाबू के राष्ट्रपसि बनला से भारिीय गणिंत्र दसु नया के सोझा एगो नया कीसिा िान खड़ा क सदहलस। सवि के सबसे बड़हन लोकिंत्र के सबसे

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राजेन्द्र बाब ू के पाती

बड़ व्यसि के लगे ना कवनो िद, ना कवनो िोह, ना कवनो अहंकार । दसु नया भर के राजनीसिक सचंिक लोग खासिर ई कवनो रहस्य से कि ना रहे । अभी ले प्रसिपासदि सारा राजनीसिक ससद्ांि एकही बाि कहि रहली सन- सत्ता आदिी ह चिट्ठी के राजेंदर बाबू कलकत्ता मे रहत आपन पत्नी के ओकरा िूल प्रवसृ ि (काि, क्रोर्, िद, िोह, लोभ) के ओर र्के लेला । ई सिथक टूटल आ नया इसिहास रचल गइल । 28 राजवंशी देवी जी के नावे चलखले रहनी । एह चिट्ठी के कई गो फरवरी 1963 के ई िहािानव हिनी के बीच सेजोहर स्वगाशाफफयाबादी ससर्ार मायने बा । पचहल बात ई चक राजेंदर बाबू जब घर में चिटठी गइल । आज जब राजनीसिक शसु चिा िार-िार हो रहल बा , चलखत रहलन तो भोजपुरी में ही चलखत रहलन । आपन पत्नी के संवैर्ासनक पद पर बइठल लोग कटघरा िें बा, आदशा रुप िें चलखत रहलन तो कोना में "अंगना के चिट्ठी" चलख देत रहलन ।

पव ू ी

अपना बड़ भाई से लेहाज करत रहलन । अउर ओह से बड़ बात ई बा चक ई चिट्ठी बता रहल चबया चक राजेंदर बाबू के सोि का रहे। जब उ देश सेवा मे उतरे के सोिलन तो आपन पत्नी के भी उपाध्याय सलाह लेले तनलय रहले । उनकर राय जानल िहले । ई उनकर उदारता आउर बड़ सोि के देखा रहल बा…

“विश्व के सबसे बड़हन लोकर्ंत्र केवेसबसे द बड़बदलाई े ईकिनो “हमनी दावामद,नइखे कक हमनी व्यवि के लगेक ना ना किनो मोह, ना भोजपुरी किनो कारष। दबानी वु नया भर के अहं कवशे जाके. राजनीवर्क कवशेष बनेवचंर्कके आससरबाद लोग खावर्र ई किनो रहस्य से कम ना रहे । ” चाह भी नइखे .” आज कल हिनी का अच्छी िरह से बानीं । उहां के

खैर बेमार बर्वा सलाह के चाहींहिी ध्रव ु गुप्त , जे खुसी रहे । आगे एह िरह के हाल ना सिलल,

राजेंद्र बाबू के प्रासंसगकिा आउर बढ़ गइल बा ।

आखर के दस ु ाव आ ु रका अंक रउआ सभे के सोझा बा । सझ प्रसिसक्रया के उम्िीद लगवले

एह से िसबअि अंदस े ा िें बाटे । आगे पसहले-पसहल कुछ अपना िन के हाल खल ु कर के सलखे के चाहि बानी । चाहीं की िु िन दे के पसि के एह पर खूब सवचार कररह अउर हिरा पास जवाब सलसखह । सब के हु जानेला सक हि बहुि पिनी, बहुि नाि भइल, वमाच से के हु के इहे उम्िेद रहेला सक एह से हि बहुि क्जतें रोपेयरा किाईब, हिार पिल-सलखल, सब रोपेया किावे वास्िे बाटे । िोहार का िन हवे से सलसखह । िू हिरा के ससररफ रोपेया किावे वास्िे चाहेलू सक कउनो काि वास्िे ? लडकपन से हिार िन रोपेया किाये से सफर गइल बाटे अउर जब हिार पिे िें नाि भइल ि कबहीं इ उिेिंदतना ोष कइलीं पटे ल सक इ सब रोपेया किावे वास्िे होि बाटे। एही से हि अब अइसन बाि िोहरा से पूछि बानी सक जे हि रोपेया ना किाई ंि िूं गरीबी से हिरा साथ गज ु र कर लेबू सक ना ? हिार िोहार संबंर् जनि भर के खासिर बाटे। जे हि रोपेया किाई ंिबो िू हिरे साथ रहबू ? ना किाई िब्बो हिरे साथे रहबू । बासक हिरा इ पूछे के हवे सक जो ना हि रोपेया किाई ंि िोहरा तनराला कवनो िरह के िकलीफ होई सक नाही । हिार िसबयि रोपेया किाये से सफर गइल बाटे । हि रोपेया किाये के नइखी चाहि । िोहरा से एह बाि के पूछि बानीं सक इ बाि िोहरा कईसन लागी । जो हि ना किाइब ि हिरा साथ गरीब लेखा रहेके होई ।

जात ,पाटी आ पुरस्कार - आखर

िम्भंग भोजपुरी

त्रबदे सिया के पाती

प्रकाहि​ि रचना लेखक के आपन ि आ जरुरी नइखे की इ संपादक के हिचार © आखर ● मार्च, 2015 ● 5


पार्ी गरीबी खाना, गरीबी पसहनना, गरीब िन कर के रहे के होई होखब। बासक घरे रसह के जे िरह से हो सकी, देस के सेवा । हि अपना िन िें सोचले बानीं सक हिरा कउनो करब । हि थोडे सदन िें घरे आइब ि सब बाि कहब । इ िकलीफ ना होई बासक िोहरा िन के हाल जान लेबे के सचठी अउर के हू से ि​ि देखइह। बासक सबचार के जवाब चाहीं । हिरा पूरा सबिास बाटे सक हिरा स्त्री सीिा जी जहां िक जल्दी हो सके , सलसखह । हि जवाब वास्िे बहुि लेखा जइसे हि रहब ओइसहीं रसहहें । दूख िें, सख सफसकर िें रहब । असर्क एह सिय ना सलखब। ु िें हिरा साथे रहला के आपन र्रि आपन सख ु आपन राजेंद्र खुसी जसनह । एह दसु नया िें रोपेया के लालच से शाफफयाबादी लोग जोहर आगे इ चीठी दस बारह सदन से सलखले रहली हवें। बासक िरल जाि बाटै, जे गरीब बाटे सेहू िरि बाटे, जे र्नी बाटै भेजि ना रहली हवें। आज भेज देि बानी। हि जलसदये सेहू िरि बाटै ।सफर काहे के िकलीफ उठावे । जेकरा घरे आइब। हो सके िो जवाब सलसखह। नाही ि अइले पर सबरु बाटे, सेही सख ु से सदन काटि बाटे । सख ु दख ु के हू बाि होई। सचठी के हू से देखइह ि​ि। के रोपेया किइले आ ना किइले ना होला । करि िें जे सलखल होला सेही सब होला। ।अब हि सलखे के चाहि तनलय उपाध्याय राजेंद्र बानी सक हि जे रोपेया ना किाईब ि का करब । पसहले ि भोजपुरी राजेंद्र प्रसाद हि वकालि करेके खेयाल छोड देब, इम्िे हान ना देब, वकालि ना करब । हि देस के काि करे िें कुल सिय 18 सिरजापरु स्रीट लगाइब । देस वास्िे रहना, देस वास्िे सोचना, देस वास्िे कलकिा काि कइल, इहे हिार काि रसह । अपना वास्िे ना सोचना, ना काि करना, पूरा सार्ू अइसन रहे के । िोहरा ( ई पािी हिनी सकं हा , सनराला जी भेजले बानीं ) से चाहे िहिारी से चाहे अउर के हू से हि फरक ना रहब । घरहीं रहब बासकर रोपेया ना किाईब । संन्यासी ना

पव ू ी

वेद बदलाई

िम्भंग भोजपुरी

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िंतोष पटे ल

बे


कविर्ा

डा॰ राजे न्द्र प्रसाद

खादी के अिल र्वल गंगा, जेकरा िन पर सकुचाि रहे l जिनु ा जल श्यािक िख ु ड़ा से, सावन के घन सरिाि रहे l गंगा-जिनु ा के जल िें सिसश्रि, सौम्य भाव के सत्रवेणी l जवना सवभूसि पर दसु नया के , जन-जन के िन ललचाि रहे l जीरादेई र्न्य गाँव अिर, नयका ससवान जनपद अन्दर l जेकर सपूि चिकि भारि के , गगनांगण िें नवज्योसि प्रखर l भारि के पसहला राष्ट्रपसि, हे गांर्ीवादी सेनानी l त्याग-िपस्या के प्रसि​िूसिा , हे जन-जन के अन्िाःवाणीं l काल कोसट कुसटल चाल के , पी गइनी बनके शंकर l कोसट प्रणाि कर लीं स्वीकार, हे नवयगु के बद् ु -िीथंकर l

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डा॰ शैलजा श्रीवास्तव (19 अक्टूबर 1927- 31 सदसम्बर 1989)

जन्ि सपलुई, दाउदपरु , सारण (सबहार ) िें एक प्रबद् ु एवं प्रसिसष्ठि पररवार िें भईल रहे l शैलजा जी के प्रारंसभक और िाध्यसिक सशक्षा क्रिशाः सपलईु और ससवान िें भईल l अरबी-फारसी के सवद्वान सपिा स्वगीय श्याि सकशोर श्रीवास्िव (एि ए, एल. एल. बी.) उहांके उच्च सशक्षा खासिर काशी सहन्दू सविसवद्यालय, बनारस िें नािांकन करवनी l शैलजा जी संस्कृि िें स्नािक और सासहत्याचाया के परीक्षा उिीणा कर स्वणा पदक प्राप्त कईनी l बाद िें सबहार सविसबद्यालय, िज ु फ्फरपरु से संस्कृि िें एि. ए. कईनी l सशक्षा सवभाग, सबहार सरकार िें प्राचाया​ा , िसहला प्रा० सश० सशक्षा िहासवद्यालय, ससवान के साथ साथ सवद्यालय सनरीक्षका, सारण-सह-सीवान एवं गोपालगंज के पद पर काया रि 1985 िें सेवा सनविृ भईनी l उहांके दू गो िहत्वपूणा रचना भोजपरु ी िें प्रकासशि भईल बा: “सचंिन -कुसिु ” (1981) आ “कादम्बरी “ (२००३) जवना पर कई गो परु स्कार भी सिल चक ु ल बा l आ भोजपरु ी –सहंदी – उदा ू कसविा संकलन ‘श्रद्ा-सिु न’ जल्दी ही प्रकासशि होखे वाला बा l उहांके अपना जीवन काल िें असखल भारिीय भोजपरु ी सासहत्य सम्िेलनन िें बहुि ही िहत्वपूणा भूसिका सनभवनी l शैलजा जी के भाषा शैली िें शब्द चयन पाठक के सहज ही आकसषा ि करेला l सवदषु ी और कुशल प्रशासक, शैलजा जी बहुिख ु ी प्रसिभासंपन्न होखे के साथ-साथ एक सहज एवं सरल व्यसित्व के र्नी आउर स्नेह आ सौहाद्रा के प्रसि​िूसिा रहनी l


नजररया

जस भीतर तस बाहरो !

भा संजय त्रसंह सिवान , सिहार के रहे वाला िंजय सिंह जी ,भोजपुरी भाषा िंस्कृ सि आ िासहत्य खासि सनरं िर लागल अपना पंजवार गांव िे ले के असभव्यसि के हर माध्यम िे भोजपुरी खासि पुरजोर आवाज लगवले िानी । िंजय जी एह घरी सिवान मे ही िानी ।

राजेंद्र बाबू जिना भूवमका में रहनी ओह भूवमका के आदर्त प्रस्र्र् ु कइनी । एगो विद्यार्थी खावर्र एह ले बड़का उपलवधध का हो सकेला वक ओकर परीक्षक परीक्षा के कॉपी पर वलखे खावर्र वि​िर् हो जाि वक “परीक्षार्थी परीक्षक ले बविया बा ।”

२ । आखर पत्रिका

. फ़रवरी २०१५

रिीय संस्कृसि िें ईिर के अविार लेबे के परम्परा रहल बा । अईसन िान्यिा बा सक जब जब र्रिी पर असस्थरिा फइलेला िब िब ईिर कवनो िहापरु​ु ष के रुप िें पथ्ृ वी पर अविररि होखेलन । 3 सदसम्बर 1884 के सीवान सजला के सजरादेई गाँव िें कवनो सार्ारण बालक के जन्ि ना भईल रहे बलक ु िाँ भारिी के गल ु ािी के ससकं जा से ि​ि ु करावे खासिर, सिाज िें सादगी आ संजीदगी के प्राण फूँके खासिर एगो दैवी शसि के अविार भईल रहे । जब जब र्रिी पर कवनो संकट, अकस्िाि ही आवेला ! िब नीलगगन के चिकि िारा, िहािनज ु बन आवेला !! देश गल ु ाि रहे । 1857 के क्रांसि असफल हो गईल रहे । अंग्रेजन के शोषण से सिाज सदिा िें रहे । बासकर दिन के बसु नयाद पर एगो ज्वारभाटा भी सल ु गि रहे । क्रांसिकारी नौजवानन के आक्रोश साफ साफ देखल जा सकि रहे। आजाद होखे के िड़प ि रहे लेसकन सीसि​ि संसार्न हिेशा राह के रोड़ा बन गईल । क्रांसि के िशाल लेके चलेवाला हाथन के जला सदहल गईल । क्रांसिकारी लोगन के सिटीश सरकार आिंकवादी बना सदहलस । सनिा ि​िा के नया इसिहास सलखाईल, लेसकन सचंगारी शोला के रुप र् लेले रहे । एही पररवेश िें राजेंद्र बाबू िरुणाई के ओर कदि बढ़वले रहनी । उँहा के सदव्य दृसि साफ साफ देख सकि रहे सक अंग्रेजन के हसथयार आ आिंक के बल पर हरावल नईखे जा सकि । ओकनी के लगे अत्यार्सु नक हसथयार भी रहे आ प्रयोग करे के वैर्ासनक सत्ता भी । बस एगो उपाय रहे – शांसिपूणा सवरोर् । राजेंद्र बाबू जीवन भर एही राह पर चलनी । हि लक्ष्य-िागा पर चल पड़नी, दाःु ख ददा के आंर्ी पानी िें, देखनी चभु ल एगो कील रहे , िाई के चनु ररया र्ानी िें । िाई के आह पर चप्ु पी सर्ले, टुकटुक देखि लोग रहे , असभयो नैनन से ना खून बहल, ि लागो आग जवानी िें ॥ किें उसिर िें अपना प्रसिभा के डंका बजा देबे वाला राजेंद्र बाबू 1905 के स्वदेशी आंदोलन िें स्विंत्रिा संघषा के िंच पर उिरनी । सवदेशी वस्त्रन के होली जलावल गईल । भारि िें राष्ट्रीयिा के उदय के पटकथा सलखा गईल रहे । एने राजेंद्र बाबू के हृदय िें भी सहंदस्ु िान के आजादी के सपना रच बस गईल रहे । गोपाल कृष्ट्ण गोखले से प्रभासवि होके सब कुछ छोड़ के देश सेवा िें खुद के झोंक देबे के सवचार आईल । बड़ भाई िहेंद्र प्रसाद जी के लगे सचट्ठी सलखनी । जब दनु ू भाई के िल ु ाकाि भईल ि भावना के बहि नीर िले ई सवचार कुछ सिय खासिर दबल जरूर, बासकर जान शेष रहे । अवसर सिलिे उ सवचार फे रु जागिृ भईल आ अपना प्रभाव से सिूचा भारिवषा के प्रभासवि कईलस । © मार्च ● 2015 ● 8


1916 िें राष्ट्रसपिा िहात्िा गांर्ी से राजेंद्र बाबू के िल ु ाकाि कवनो सािान्य घटना ना रहे । आरुणी के र्ौम्य से आ नरेंद्र के रािकृष्ट्ण परिहंस से िल ु ाकाि के बाद जवन पररविा न आरुणी आ नरेंद्र के जीवन िें भईल कुछ अइसने पररविा न के शरु​ु आि राजेंद्र बाबू के जीवन िें भी सदखे लागल । जइसे र्ौम्य से सिल के आरुणी संसार भर के सशष्ट्यन के आदशा हो गईलन, परिहंस से सिलके नरेंद्र सववेकानंद हो गईलन, वइसहीं राजेंद्र बाबू गांर्ी जी से िल ु ाकाि के बाद देशरत्न हो गईलन । राजेंद्र बाबू पर राष्ट्रसपिा के सविास के आलि ई रहे सक उँहा के खुलेआि कहीं – “ अगर देश िें के हू अइसन बा जे हिरा कहला से जहर के प्याला भी पी जाई ि उ अके ले राजेंद्र बाड़न।” इसिहास साक्षी बा सक राजेंद्र बाबू जीवन भर गांर्ी जी के देखावल राह पर चलनी । सत्य ,असहंसा, अपररग्रह आ अस्िेय रहे हसथयार । त्याग, सिपा ण के िूल्यन से देश भईल उसजयार ॥ राजेंद्र बाबू जवना भूसिका िें रहनी ओह भूसिका के आदशा प्रस्ि​िु कइनी । एगो सवद्याथी खासिर एह ले बड़का उपलसब्र् का हो सके ला सक ओकर परीक्षक परीक्षा के कॉपी पर सलखे खासिर सववश हो जाव सक “परीक्षाथी परीक्षक ले बसढ़या बा ।” न्याय के िंसदर िें कररया कोट पसहन के वकालि करेवाला व्यसि खासिर एह ले उँचा आदशा का हो सके ला सक “ वकालि के पेशा पइसा किाये खासिर ना हs बलुक पीसड़ि िानविा के सेवा खासिर हs ।” एगो अध्यापक खासिर एह ले बड़का उपिा का हो सके ला सक “अध्यापक राष्ट्रीयिा के वाहक होला ।” गणिंत्र भारि के पसहलका राष्ट्रपसि के रुप िें राष्ट्राध्यक्ष के पद के जवन गररिा आ उँचाई प्रदान कईनी उ आज भी प्रेरणा के स्रोि बा । आज के भोजपरु रया सिाज अपना िािृभाषा के लेके बड़ा दसु वर्ा िें बा । भोजपरु ी से जे जेिना दरू भईल जािा उ ओिने सभ्य कहािा । कुलीन वगा भोजपरु ीया संस्कृसि के अवशेष िात्र से भी परहेज करिा । ई सब देख के ओह िहािानव के ओर ध्यान गईल स्वाभासवक बा । हिद्याथी जीिन से लेके राष्ट्रपहि भिन िक राजेंर बाबू िािृभाषा के आँचर ना छोड़नी । हदन प्रहिहदन साथे रिेिाला गैर भोजपरु ी भाषा भाषी भी भोजपरु ी हसख हलिलन, अइसन रिे उँिा के व्यहित्ि । एक बेर के बाि हs। राष्ट्रपसि बनला के बाद राष्ट्रपसि भवन िें एगो आयोजन भईल । गाँव से भी कुछ लोग आईल रहे । आयोजन के बाद सभे दरी पर बइठल । भोजन परोसाईल। सारा व्यंजन परोसा गइला के बादो के हू कवर उठावि ना रहे । असर्कारी लो हार थाक के

राजेंद्र बाबू के बोलवलस । उँहा के आविे कहनी- “ निो नारायण होखे !” सभे खाईल शरु​ु क सदहलस । सारा असर्कारी अवाक रहे लो । एक जाना पछ ु लन “ई कवनो किांड ह का ?” राजेंद्र बाबू कहनी “ई हिनी के िाटी के ररवाज हs।” िाई भाषा आ िािृभूसि से लागल नेह जीवन भर लागले रह गईल । भारिीय स्विंत्रिा संघषा के इसिहास िें िीन गो घटना के सवशेष िहत्व बा । असहयोग आंदोलन , ससवनय अवज्ञा आंदोलन आ भारि छोड़ो आंदोलन । एह िीनों आंदोलन िें राजेंद्र बाबू बढ़ चढ़ के भाग सलहनी । सवदेशी वस्िुअन के बसहष्ट्कार , स्वदेशी के बढ़ावा , सवदेशी संस्था सन के बसहष्ट्कार, सवदेशी कानूनन के अवज्ञा आसद काया क्रिन के नया र्ार सदहनी राजेंद्र बाबू । आंदोलन के बीच िें जवन भी सिय सिलो उ रचनात्िक काया न िें बीि जाव । 1934 िें सबहार िें आईल सवध्वंसक भूकम्प के सिय इहाँ के सेवा भाव के दोसर उदाहरण खोजल दल ु ा भ बा । डेगे डेगे टुटल फुटल जे सबहारवा से चसल अईले ना । देवदूि बसन रजेंदर बाबू से चसल अईले ना । देश के राष्ट्रपसि बनला के बाद चीन के आक्रिण उँहा खासिर सबसे बड़हन सदिा रहे । सविास रहे सक चीन भी ओसह दंश के झेल के उबरल बा जवना से भारि । दनु ू देश स्वाभासवक सित्र बाड़न सs । अप्रत्यासशि हिला के सिय राजेंद्र बाबू जवना र्ीरज आ त्याग के पररचय सदहनी ओकर दोसर सिसाल नईखे । राष्ट्रपसि भवन से सनकल के गाँव गाँव घिु े लगनी । देश के सैसनकन खासिर हसथयार के किी ना होखे एकरा खासिर र्न के जरुरि रहे । देश के राष्ट्रपसि आि जनिा के सािने आपन फाँड़ पसरलस आ आि जनिा ओकरा के हीरा जवाहरराि से भर सदहलस । एही घरी दिा के बेिारी जोर पकड़ लेले रहे । सबिारी बढ़ि गईल । अंि​िाः 28 फरवरी 1963 के राजेंद्र बाबू एह र्रा र्ाि से सवदा सलहनी । आज 'देशरत्न' हिनी के बीचे नइखीं । बासकर अपना पाछे आदशा के अईसन रेखा छोड़ गइल बानी जेकरा नजदीक जाके भी आदिी ईिरत्व के प्राप्त कर सके ला । शि शि निन एह िहान आत्िा के । िाई के सदहनी हँस के रउआ अपना जीवन के अंसि​ि बूंद,

© आखर ● मार्च, 2015 ● 9


मवहला वदिस प

औरत, दें कह के भू गोल से परे

औ रिहाससएदेंसहपकेपरलभूगोललोगनसे परेके जबले व्यसि के संरचना िे ना िालल जाई िबले सिानिा के बाि बेिानी बा । डा. सोनी पांडे आजमगढ़ युपी के रहे वाली डा. िोनी पांडे जी , अध्यापक हईं । गाथांिर के िंपादक, सहन्दी भोजपुरी िासहत्य मे एगो जानल मानल नाव , मािृभाषा भोजपुरी मे कई गो गीि सलख चुकल िानी । िम्प्रसि इँहा के आजमगढ़ मे िानी ।

एगो सवाल हरमे सा मुँह कबरावे ला कक जेतना कनजज ला व्रत मे हरारुन खातीर बनल बा ओ मे एक्को गो मरदाना खाकत का​ांहे ना ? अवहे लना कइला प मरद मरर जइहे ुँ औरत का​ांहे ना मवेली लो एह कहाकनयन मे ?

हिरी नजर िे िध्यिवगा , अउरी सनम्न वगा के िेहरारुन के सजनगी आजओ ु खंुटा िे बान्हल गाई जइसन ही बा । जप , िप , होि , ि​ि , परम्परा अउरी संस्कार के बररआर रसरी िे जकड़ल , ' िेहरारुन खासि बनल िया​ा दा' के खूंटा िे बासन्ह के िानससक िौर प एह कदर गल ु ाि बनावल गइल बा सक लाख बौसद्क सवकास के बाि कइल जाउ, आसथा क सनभा रिा के बाि कइल जाउ , औरि आजूवो ओसह काठ के कठोलनी के सांचा िे बईठ आर्सु नकिा के दावा करि एगो सजावटी सिान ही हिके लागेले जवन सक सपु र िाल संस्कृसि के दावा हs । एगो सवाल हरिेसा िहुँ सबरावे ला सक जेिना सनजा ला व्रि िेहरारुन खािीर बनल बा ओ िे एक्को गो िरदाना खासि कांहे ना ? अवहेलना कइला प िरद िरर जइहे ँ औरि कांहे ना िवु ेली लो एह कहासनयन िे ? अब घरी आ गइल बा सक औरिन के सपिृसत्ता के एह सासजश के बसु झ के िख्ु य र्ारा से जड़ु े खािीर खुद के सबना ि​िलब के वजा ना सब से ि​ि ु राखे के परी । र्िा िनष्ट्ु यिा के सवकास खािीर होखे के चांही , िानससक गल ु ािी खािीर ना । आज बाजारवाद एह व्यवस्था के पाल- पोस रहल बा आपन झांपी भरे खािीर , अइसे िे िेहरारुन जासि के िख्ु यर्ारा से जड़ु के स्विंत्रिा के बाि बेिानी बा । अभी चेिना िे ले आवे खािीर सचंिन प्रसक्रया के सवकास बहुि जरुरी बा ।

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आखर चौपाल

“मकहला कदवस ”

पु रुष-प्रकृसि,नर-नारी,सशव-शसि नाि से सम्बोसर्ि इहे ससृ ि के िूल आर्ार ह। ससृ ि के संचालन अनवरि चलि रहे,संिुलन बनल रहे ,सािासजक व्यवस्था सदृु ढ़ रहे एकरा खािी स्त्री-परु​ु ष के सहयोग आ सिानिा जरूरी बा। प्राचीन भारि िें स्त्री-परु​ु ष के बराबरी के स्थान रहे। स्त्री सबना कवनों यज्ञ पूरा ना होखे। यद् ु -भूसि िें पत्नी पसि के साथे जाए। कै के यी के कथा सभे जानिा।अगनीयो देविा के खुश करे खािी 'स्वाहा' कहल जाला। संस्कृि सासहत्य िें वासवदत्ता,शकंु िला,रत्नावली,दियन्िी आसद नाररयन के सौन्दया के जादू आ भावभंसगिा के पररचय सिलेला। संसार के सिूचा सार्ना,पसवत्रिा आ सदव्यिा भारि िें भरल पड़ल बा। िध्यकालीन इसिहास िें सस्त्रयन के 'जौहर-व्रि' लेबे वाली घटना से के कर रोवाँ खड़ा ना हो जाला। साच बाि ि ई ह सक सस्त्रयन के िय सिस्या एसह यगु िें आईल। िरह-िरह के आक्रिण कारी भारि िें घस ु ल ि िेरों दगु ा णु लेले आईल। आर्सु नक भा बैज्ञासनक यगु िें सस्त्रयन के अझरु ाइल सिस्या सोझ कइल जा रहल बा।ऐिें कुछ सफलिा सिलल बा। सभे लइकी पढ़े जा सs । अपना देश िें र्नाभाव, दहेज, असशक्षा, सािासजक असरु क्षा आसद िख्ु य कारण नाररयन के लेके बा। वैज्ञासनक यगु िें कन्या भ्रूण हत्या आउर सरल हो गइल बा। आर्सु नक यगु िें भोजपरु ी के प्रविा क राहुल सांकृत्यायन अनेक भाषा के ज्ञािा रहनी िथासप ठेठ भोजपरु ी के भी लेखक रहनी। उहाँ के आठ गो भोजपरु ी नाटक सलखनी जवना िें "िेहरारू के दरु दसा" प्रिख ु रहे। इ नाटक १९४२ ई िें सलखनी। इ नाटक चार अंक आ ,40 पिृ िें सलखले बानी। एहिे स्त्री के ददु ा शा के वणा न बा। दनु ु के सिान असर्कार के चचा​ा बा। स्त्री के स्विन्त्रिा, सम्िान खािी सपिा के जायदाद िें स्त्री के सहस्सा के चचा​ा बा। राहुल जी के नाटक के जवाब िें आजिगढ़ सजला के सनवासी पं गोरखनाथ चौबे सन 1942-43 िें "उल्टा-जिाना"नाटक सलखनी। पस्ु िक िें िहु ावरा, कहावि खूब सलखनी। िसहला-सदवस पर सबसे पहीले कन्या भ्रूण हत्या बंद होखे। खाली सरकार के भरोसे कवनो काि सफल ना होखे जबिक हर नागररक साथ ना देव। ि आज हिनी के इ संकल्प ली जा सक जे जहाँ बा एकर सनंदा करो, लड़सकयन के िहत्त्व सिझाओ, लड़सकयन के पढ़े खािी प्रेररि करो, दान-दहेज के सखलाफि होखो, ओकरा के सभे सम्िान देव, के हू कुदृसि से ि​ि िाको, ओकरा शरीर-स्वास्थ्य पर ध्यान दीहल जाव। एिना करे खािी हरेक औरि,िदा सक्षि बा। एिे दाि नइखे लागे के । खाली ठान लेबे के बा अपना बेटी खािी,बसहन खािी,अपना सहयोसगनी खािी। इ कके आपन परु नका स्त्री-िया​ा दा ही ना पा लीहल जाई,बलुक दोसरा खािी भी रास्िा खुल जाई । ि जे जहाँ बा इ असभयान जारी रखो। © आखर ● मार्च, 2015 ● 11

डा. रीता त्रसन्हा गोपालगंज, सिहार के रहे वाली डॉ॰ रीिा सिन्हा जी MA , Ph.D. हईं । शोध सवषय"भोजपुरी िासहत्य में गीसि काव्य", रहल िा । िेवासनवृि सशसिका वी एम इंटर कालेज के आ सहन्दी भोजपुरी िासहत्य मे िररआर काम । इँहा के सलखल उपन्याि - " धरनी में धिौं कक अकािसह सचरौं " काफी चर्चि​ि रहल िा । "नमक रोटी" िसहि कई गो कहानी पत्र पसत्रकन में रकासशि हो चुकल िा । "अटल स्वराज" नामक पसत्रका में स्िंभकार भी िानी ।


कविर्ा

स्वकणज म भारत के उज्जज्जवल पहचान ?

लकन का कोरवन पर लटकल बा लोर सबलख-सबलख सजयरा िचा रहल बा शोर

कबले सिली घर-बाहर सबसटया के असर्कार?

ज्योत्सना प्रसाद

सजनगी भर काहे रसहहें होके ऊ लाचार?

सिवान , सिहार के रहे वाली ज्योत्िना जी , सहंदी भाषा आउर िासहत्य में िी. ए. (रसिष्ठा), एम्. ए. कइले िानी , अउर पटना सवश्वसवद्यालय िे रोफे िर डॉ नंदककशोर नवल के सनदेशन में महाराण सनराला के गद्य के शैलीगि अध्ययन पर डॉक्टरे ट कईले िानी l सहंदी में उपन्याि “अगिला” रकासशि िा दू गो उपन्याि “अंि​ि:” आउर “मुिकुं िला” , कसविा िंग्रह आउर कहानी िंग्रह रकाशन के रिीिा में िा l अरिी भाषा के मशहूर उपन्याि “अल-रहीना” के सहंदी में “िंधक“ शीषिक िे अनुवाद आउर रकाशन l जॉडिन, चीन आउर अमेररका में आयोसजि िम्प्मेलनन में कसविा पाठ l एह घरी मुि ं ई में रसह रहल िानी ।

कुकुर के छौना ले गोदी िें बैठाईले, प्रेि बरसाई ले अपना जनिल के दूर-दूर कह कुकुर नासहन भगाईले कहे के ि लक्ष्िी कहीं बासकर बेटी के करेनी सनरादर िख ु ासनन आ स्वगा -लालसा िें बेटा के होला आदर

भरभरा के सगरी एक सदन ई परम्परा, आ टूटी गरूर स्वगा -लालसा िें भ्रसि​ि-िानव के भ्रि टूटी जरूर ससदयन परु ान एह परम्परा के अंि अब नइखे दूर बेटी-बेटा दनू ू होला प्रसिभाशाली, यशस्वी, वीर-शूर

बेटी के दरद खासिर ना, िs इनसासनयि के नािे फटबे करी छािी चैन के वंशी कइसे बजा लेब, बेटी के दाःु ख-दरद दे सदन-रासि आसखर कबले बनी िाई के कोख अपना दल ु रुई के श्िशान का इहे होई स्वसणा ि भारि के उज्ज्वल पहचान ?

© मार्च ● 2015 ● 12


मवहला वदिस

मेहरारुन खाततर गा​ांव

गा

वं के कई गो छबी िन िें बा, जब िक ले बचपना रहे गावं भरसक एगो अइसन जगह रहे जहाँ सब कुछ सबसे संदु र, खरा अउर बनावटपन से दूर रहे । गरिी छुट्टी िें हिनी के गावें गइला पर अपना घरे अउर अगल बगल पट्टीदार लोग के इहाँ िेर बाच्चा लोग भेटां जाि रहे। िहीना -डेढ़ िहीना कै से अंगूरी पर सनकल जाि रहुवे, पिे ना चलि रहे, बासक इ सब के बीच िें कब्बो कब्बो ध्यान जरूर जाि रहे फलाना बो भउजी बाहरे काहे नइखी सनकलि । जंगला अउर िसु क िें से झांकि रहेली बहरा दआ ु री आ दलान पर खाली रसिया नाहीं ि भोरे ही लउके ली बासक िब्बो हड़बड़ी िें रहेली, आपन कोठरी अउर अंगना-छि बस हेिने दरू िें सभनसार से साँझ कर ले ली । भईया किाए बहरा गईल बाड़े उनही के बाट जोहि रहेली का हो ? नाहीं ि सचट्ठी-पिरी के ... ह नू ? बाद िें सिझ भईला पर इ जननी सक िेहरारू लोग खासिर गंउवन के िेर बसढ़या-बसढ़या बाि के पीछे भारी उंच देवाल बा आ ओहिे अउर उंच कइके छोट छोट जाँगला बनावल गईल बा, 'फलाना सचलाना बो ' खासिर बहरी िरद लोग के दसु नयाँ ओिने गो के िोका िें से खुलेला । सांच कहल जाओ ि सपिृसत्ता के जड़ सबसे िजबूि अबहु ँ गावें िें बा अउर इहो ग़ौर करेवाला बाि बा सक गंउवन से िरद लो आपन िेहरारू सिेि बाहर ना सनकलल रसहि लोग िो हिनी के जवार -पथार के बहुि लईकी आ िेहरारू सभे के सजनगी के कहानी आ सदसा कुछो अउर होसखि । सहर, िहानगर के के िनो आलोचना कईल जाव, हिनी के िाई चाची लोग बिावे ली लो पचास साठ के दसक िें बहुि िेहरारू लोग के पसहला बेर खुल के सांस गावं से बाहरे सनकलला पर लेवे के सिलल रहुवे, चाहे एक थररया िें खाए के सख ु होखे आ चाहे गोर-हाथ बाथला आ हारी-बेिारी पर िरद लोग से सेवा, नाही ि औरि िरि िर जाई सदन -दपु हररया िरद अपना िेहररु के पास आवे िें सहचसकचाि रहे, सास ननद के िाना अलगे रहि रहुवे, आ ओसह िें िरद के बहरा किाये चल गईला प अउर पहाड़ हो जाि रहे । सगरहस्िी के कबो ना ओराये वाला काि काज के थकान आ उबन के बीच औरि लो के उदासी दोपिररया िें सािूहिक गीि िें फु पडि रिे, घरे अके ल रि गइली िेिरारू के दहु खया -िकलीफ से नु भोजपुरी िें 'हबदेहसया ' और 'हबरिा ' जइसन लोक संगीि अउर साहित्य जािल बा जेपर सब भोजपुररया लो के गरब बा लेसकन इहो जरूरी बा सक ओकरा पाछे के दसु खया आ िकलीफों असगला पीढ़ी के पास जरूरे चहुपँ े के चासह । ओइसे एने कई गो चीज़ बदल गईल बा बासक असभयों बहुि कुछ पसहलही जइसन बा, गावें गइला प खाली बिु परु सनया भा िेहरारू लइकन सब सिली लो, जवान िरद सब किाए खासिर बाहरा चल गईल बा लोग , बेिौसि गइला प गावं सायं सायं करेला, होली छसठया जइसन रौनक सालो -भर ना नु रहेला । ओहू ँ िें जेकरा िसनयों सािथा हो जाला ि आपन पररवार संगे सलवा ले जाला, साँचहु ँ जे िजबूर बा ओकरे पररवार गावं िें रह गइल बा, एिना सरकार आईल गईल लेसकन साँच

© आखर ● मार्च, 2015 ● 13

मनोरमा सिवान , सिहार के रहे वाली मनोरमा जी , स्विंत्र पत्रकार के रुप मे अपना लेखन शैली िे िहुिे रभासवि कईले िानी । कई गो पत्र पसत्रका आ अखिार खासि इँहा के लगािार सलख रहल िानी । एह िमय इँहा के िंगलोर मे िानी ।

सांच कहल जाओ र् वपर्स ृ त्ता के जड़ सबसे मजबूर् अबहुँ गािें में बा अउर इहो ग़ौर करे िाला बार् बा वक गंउिन से मरद लो आपन मेहरारू समेर् बाहर ना वनकलल रवहर् लोग र्ो हमनी के जिार पर्थार के बहर् लईकी आ मेहरारू सभे के वजनगी के कहानी आ वदसा कुछो अउर होवखर् ।


ई बा सक अबहु ँ सशक्षा, स्वास्थ्य अउर सड़क ई िीनू ससु बर्ा जे िरह के होवे के चाहीं, नइखे ! प्राइिरी अउर सिसडल पढ़ ली लो ि इंटर चाहे कॉलेज दूर होखे के कारन लईका सभे िा रोज़ आयी -जायी के पढ़ लेवे ला लो बासक िेर लइसकनी लो घरे रह जाला लो, दरु भईला के वजह से ना ि सरु क्षा के डरे ! खैर इ एगो अलगे बाि आ िद्दु ा बा जेकरा खासिर बहुि कुछ सलखे बोले आ करें के जरूरि सब सरकार आ पूरा सिाज के बा । हि बाि करि रहीं घरे अके ल रह गईल िेहरारू लोगन के , ई 2015 ह गंउवन िें अब्बो नौकरी नइखे, पईसा नइखे, खेिी सदन प सदन िुसश्कल अउर खसचा ल होि जाि बा सबसे बड़ बाि खेिी करे खासि लोगे गावं िें ना रह गइल बाड़े एही से सक िरद लोग असभयों किाए खासिर बाहरा गईल बा लो, असभयो िहीने िहीने बैन्क िें पईसा आवेला आ िनीआडर दआ ु रे चहुपँ ेला, लेसकन खाली एगो िोबाईल फ़ोन से िेहरारू लो के जीवन िें हेिना फरक आईल बा सक ओकर अलग से सिाजशास्त्रीय अध्ययन होए के चाहीं । टीवी से उ अंिर नाही आईल ह काहे सक एगो ि एक -दू घांटा छोरके सबजली असभयो सपना बा और जेिना देर टीवी देखे के सिलेला ऊ अउर सास-पिोह के ओसह चकरी िें घिु ावि रहेला िका से दूर कुिका के और नजीक आ सपिृसत्ता के और िजबूिे करेवाला होखेला ! बाकी िोबाइल से उ लोग के संवाद के आपन 'स्पेस ' बनल बा, अपना कोठारी िें आपन दाःु ख सख ु जे िन से सबले नजीक बा ओकरा से बसिया के ! संवाद अब ओिना िसु श्कल नइखे रह गइल ,पािा ना शहर के लोग के ई बाि पर कइसन प्रसिसक्रया होई लेसकन अगर कहल जाव सक फ़ोन गावं घर के िेहरारू के अलग िरह से बररयार कइले बा ि कौनो झूठ बाि ना होइ ! पसहले िरद िेहरारू िें खाली बाि ना भईला से भले सािासजक अउर पाररवाररक संरचना प कौनो असर ना होि रहे लेसकन पसि -पत्नी के आपसी संबंर् हरिेशा आपसी संवाद खासिर कौनो कोना जोहि रहे । ओकरा खासिर कसिसाि रहे इहाँ िकले सक सचरट्ठयों िें दू लोग के सनज़िा बड़ी िस ु सकल से सिल पावि रहे । हि ि देखले बानी नाया -नाया सादी के बाद सऊदी गईल लईका के चीठी िेहरारू के लगे आईल ि सासु कोठरी के दआ ु रे से बीना एक एक अछर पढ़वले आ जनले उठि ना रहली । कौनों सदक्कि भईला प भाई सपसिया के िुरिं े खबर हो जाला, साँझ िकले बेटी- बसहन के हाल -चाल लेवे भाई-सपसिया चहुपँ जाला लो, ई छोट बाि ना ह, ऐह से एक सकससि के दबाब अपने आप पड़ रहल बा पिोहू के संगे उंच -नीच नासह करे खासिर, नइकी कसनया लो बगैर िोबाइल के नइखी उिरि आ बाबूजी जी सबसे पहले बेटी के देवे खासिर

िोबाइल खरीदिार हि ि कई गो अइसन नइकी दल ु सहन सबसे सिलनी सजनकर िोबाइल ररचाजा हफ्िे हफ्िे भईया करवावि रहुवे । बासक सब ठीक बा ससरु ाल प भरोसा बा लेसकन आपने बेटी -बसहन के साथ संवाद के ससरा और सनयंत्रण ऊ लोग के भरोसा बनले िक आपने हाथ िें राखल ज्यादा सही लागि बा । िोबाईल के अलावा एगो अउर बाि इहो देखनी ह सक सबहार सरकार के साइसकल स्कीि से सपछला कुछ साल िें सिसडल स्कूल से आगे पढ़े वाली लइकी लोग के एगो नाया आसिान सिलल बा । बगली िें िोबाईल और गोड़ खासिर साइसकल खाली इहे दू गो चीज़ से गावं के लइसकयन िें गज़ब के आत्िसविास आईल बा । जइसे दसु नया हाथ िें होखे आ गोड़ िें पाँख लाग गइल होखे । िब जबसक अबसह स्िाटा फ़ोन उ लो के हाथे िे नइखे । सोचीं जब चाइना के सस्िा स्िाटा फ़ोन सबके हाथ िें होई आ इन्टरनेट आ गूगल के िाफ़ाि सचु ना आ ज्ञान के सवशाल दरवाजा उनका सब के खासिर खुली िब के िना फका आ बदलाव आयी ? एह बदलाव से परु ान लोग डेरािा, रअवा सभे के भी इ खबर प ध्यान गइल होखे शायद सक गोपालगंज के एगो पंचायि लइसकयन सब के िोबाइल राखला के सखलाफ फरिान जारी कइले रहुवे बाद िें ससवानो सजला के एगो गावं के पंचायि अइसही फरिान जारी करुवे । हिरा फे सबक ु प भी एगो-दूगो गावं के लइसकनी लोग जडु ल बा लो, देखsिानी उ लो र्ीरे र्ीरे पढ़ के सिझ बनवला के संगे संगे अंग्रेजी सीखे सिझे के भी कोसशस करि बाड़ी लो, कब्बो कब्बो अंग्रेजी िें किेंट भी सलखेला लो ,हालासक उ सलखला िें कई गो गलिी होखेला लेसकन जे लोग के सकस्ि​ि के कारन बसढ़या बसढ़या पसब्लक स्कूल िें अंग्रेजी पढ़े के ससु वर्ा सिलल बा उ लो इ ना सिझ पायी सक अिनो िक आवे िें इ लइसकयन सब के के िना दूर आ के िना देर िक चले के पडल बा । इहो लो के बराबरी िें सब सिलल रसहि िब बासक लो के असली कॉसम्पसटशन सिझ िें आइि । पिा नाहीं ई लो िसहला सशसिकरण बझ ु ेली लो सक ना लेसकन कि सहम्ि​ि ना चाहीं सब सनु ि-झेलि आ फे र ओसह िें आपना खासिर छोट छोट चीज़ से छोट छोट गंज ु ाईश सनकाले खासिर, कुछ ि जरूर बदलल बा बड़हन बदले खासिर बस हाली हाली सचु ना आ जानकारी के सवशाल दसु नया िें उ लो के आपन सहस्सेदारी बनावे दs ।

© मार्च ● 2015 ● 14


मवहला वदिस

रुतममणी, सीता आ मेह रारुन के दु ख

लो कगीि कौनो सिाज के रीसि ररवाज आ संस्कार -संस्कृसि के दरपन होला । हिरे परु सबया सिाज िें भी गीिन के िाध्यि से हिरे सिाज के सोच, संस्कृसि शत्रि त्रमश्रा गोरखपुर , युपी के रहे वाली शसच समश्रा जी पुना मे रहेनी । इँहा के भोजपुरी लोकगीिन के िंग्रह/ िंकलन प काम कई रहल िानी । सहन्दी आ भोजपुरी िासहत्य खासि इँहा के लगािार सलख रहल िानी। भोजपुरी लोकगीिन प इँहा के सलखल ककिाि भी आवे वाला िा । सहन्दी मे दु गो उपन्याि रकासशि हो चुकल िा , एगो रकाशन मे िा ।

चाहे ई भाई -बवहन , मायी-बापबेटी के प्रेम संबंध होय चाहे सास-ु ननवद , देिरावन- जेठावन के अपेक्षाकृर् कसाह अउर कम रुवचकर संबंध होय । चाहे सिवर् के दख ु अउर मरद के दुसर वबयाह करे के धमकी या दस ु रे मेहरारू में वलप्त होये के मामला , बेटा- बेटी के जनम के फकत , वबवटया के दहेज के समस्या ।

अउर परम्परा पूरा िरह से सदखाई देला ।

हिरा सिाज िें हर संस्कार , ि​ि , िेवहार , खेिी बारी , इंहा िक की जाँिा चक्की पीसि के सिय भी िेहरारू लोग अपने िन के बाि गीि के बहाने अपने सदल के बहरी सनकाले ली । अउर ई गीिन के िाध्यि से अपने सिाज के परंपरा, संस्कृसि अउर अपने पररवार के लोगन के प्रसि संबंर्न के उजागर करेली । चाहे ई भाई -बसहन , िायी-बाप-बेटी के प्रेि संबंर् होय चाहे सास-ु ननसद , देवरासनजेठासन के अपेक्षाकृि कसाह अउर कि रुसचकर संबंर् होय । चाहे सवसि के दख ु अउर िरद के दस ु र सबयाह करे के र्िकी या दस ु रे िेहरारू िें सलप्त होये के िािला , बेटा- बेटी के जनि के फका , सबसटया के दहेज के सिस्या । ई सबके भोजपरु ीया सिाज के िेहरारू लोग अपने गीि िें बड़े गहराई से िहसूस कइले बाड़ी अउर ई लोग के घर के अँगना के गीिन िें कुसल िहक िौजूद बा । रार्ा-रुसक्िणी अउर सीिा के कहानी के हू भारिीय खासिर अनजान नाही बा । अउर भारिीय सासहत्य िें बाल्िीसक, व्यास से ले के िुलसीदास ले रुसक्िनी अउर सीिा के एगो आदशा िेहरारू के रूप िें देखवले बा लोग अउर ओही परम्परा के सनबाहल िेहरारू लोग आपन र्रि सिझली । िेहरारुन के आपन सजनगी जीयल बहुि कसठन होला साथे साथ ऊ आपन दख ु सख ु सबके सािने अपने के ऊपर िारर के नाही कह सकसि रहसलसन एह नािे आपन दख ु िन के भीिर से सनकारे खासिर ओनके सीिा अउर रुसक्िनी ु सख जइसन िेहरारू चररत्र के सहारा लेवे के परल ।

राजा जनक के घरे सीिा के जनि भइल बासकर हिनी के गीि िें सीिा, राजा के इंहा ना बसल्क एक िािूली सगरहस्थ के घरे जनिल बाड़ी अउर उनके जनि​िे उनका खासिर बर खोजे, दान दहेज देवे के सिस्या िहुँ बाइ के खड़ा होइ जाि बा : राजा जनक घरे जनिी कररनवा , र्गररसन अइसलसन बोलाइ । हिरो नार िबै छीनेव र्गररसन , जब बाबा बर खोजे जाँय ।। एिनी बचन जब सनु ेलैं जनक जी , बइठैलै िसु ड़या नवाइ । सपु वा सिु ल बेटी िुहूँ बर िाँगेसलउ , के सह सबसर् होइहैं पार ।। एिनी बचन जब सनु ेली कररनवा , िने िन भइसलसन दलगीर । बारह बररस बाबा बर खोजि लसगहैं , िब जब होबों सयान ।। एह गीि िें कन्या के सम्पन्न घर िें सवयाह के इच्छा के साथ साथ र्न के आभाव © आखर ● मार्च, 2015 ● 15


के पीड़ा भी सपिा के िाध्यि से सािने के ससरु ारर िें कबो राज पररवार के दल ु ार सिलेला कबो सासु ररससयाइ के गररयावे लागेली अउर सीिा भी उनका से जबाबो दे देली-

आइल बा । सीिा िासफक लाड़ भइया भसिजवा के झगरही पिोसह अस

मेहरारुन के आपन वजनगी जीयल बहर् कवठन होला सार्थे सार्थ ऊ आपन दख ु सुख सबके सामने अपने के ऊपर ढारर के नाही कह सकवर् रहवलवन एह नार्े आपन दख ु सुख मन के भीर्र से वनकारे खावर्र ओनके सीर्ा अउर रुवममनी जइसन मेहरारू चररत्र के सहारा लेिे के परल ।

पव ू ी

लीपसल पोिसल ओबररया ि जगर िगर करै हो । घर िें से सनकासल िेहरारू जेकरे नइहरे भी सरन नाही बा िेकर जोहर हे हो िासह पइसठ सूिै श्रीराि ि कोरवाँ सीिसल रानीशाफफयाबादी ।। सचन्िा सीिा के िाध्यि से हिनी सभे के सािने आवेला – भोर भइल सभनस ु हरा सीिल रानी िख ु र्ोवैं हो । हे हो पररगै कौससल्या रानी दीसठ ि सीिसल गररयावैं ।। राि सीिा सनसरलैं गरुहे गरभ से िरे िोर भइया भसिजवा औरो िहु ार बाप िरैं हो । सीिा ठासढ़ जिनु वा के िीर ि नैनन नीर िुरै ।। सीिा बड़े रे कलप के राि अके ले काहें छोड़सलउ ।। के न िोरे आगे पाछे बइसठहैं ,दरसदया हरर लीहैं । उपाध्याय काहें सासु भइया गररयावा भसिजवा िोर खा सलउ हो । केतनलय न रे सछसनहैं नार ि के न होइहैं र्गररसन ।। सासु रेसखया उठि िसस भीजि राि जइहैं िर्बु ुरनी ।। के न िोर असगया जगइहैं , पसनया भरर लइहैं । भोजप जइहैं ि जइहैं बलइया से ने औरो भले से न हो । के न िोर जसगहैं सउररया ि के न गइहैं सोहर ।। िोर देविन बंसद छोड़इहैं लंका गढ़ िुररहैं लौसट सफर अइहैं ।। बन िें से सनसरेसलसन बन िपसी देबी सीिासहं सिझ ु ावैं । सीिा हिसह रहब िहु रे साथे काहे नैन नीर िुरै ।। सीिा के सजउ ननसद के संिाप से नाही बची पाइल । लोकगीि िें ध्रव ु गुप्त अपने िन के भाव प्रकट करे के खासिर लोक िानस कथा िें भी एसह लेखा िरद के छोड़ल िेहरारू जइसे नइहरे जाय के सदन िनिाना बदलाव कइले से कौनो परहेज नाही कइले बा लोग काटेले ओइसे दसु खया िेहरारू लोग राि के घर छोसड़ के चसल । इहाँ सीिा के बनवास के कारण ननद सांिा बनल बाड़ी । सांिा गइले के नया कथा गसढ़ के सीिा के भी नइहरे सासरु सदन सीिा से कहसल की रावन देखे िें कइसन लागल िब सीिा काटि देखा देहले बा लोग । ओकर सचत्र बनाइ के सांिा के देखवली । उ सचत्र सांिा लेइ जाइ क्जतें वमाच गए कसठन दख जेसह सदन रािर सनसरर ु देइ गए । के राि लसछिन के देखाइ के भउजी के बन भेजे के सजद करे चंदन के वसड़या जसजररया चढ़ाइ गए ।। लगली । राि के कहले के बावजूद कहाँर बोलाइ के जंगले अरे अरे लसछिन देवर सबपसिया के साथी । भेजवाइ देहसल । देवर र्ोसिया िें बाँनहु सपसान रिइया खोसज लावहु ।। राि आरे लसछिन भइया आरे एकली बसहसनया हइहों की । गोकुला खोजलैं बंदृ ाबन सगरी अयोध्या हे हो । ए जी राि जी बइठैलै जेवनरवा बसहसनया लइया लावेवी हो ।। एकिंनतोष खोजली गप्तु ार रिइया जहाँ गपु िु हुए ।। पटे ल ए भइया भउजी के दे ना बनबसवा जे रावन उरेहल िसचयसह बइठल सासु बहुअरर अरज करै । े ी हो । सजन सीिा भख सासू सबनु हो परु​ु स के सिररयवा कहाँ हो उसठ बइठै ।। ु ा के भोजन देली आरे लांगा के बहिरवा हो ।। से हो सीिा गहुावा रे असापसि कइसे बन बाससब हो । सबनु हो परु​ु स के सिररयवा नइहर उसठ बइठेसलसन । िोरे सपछवरवाँ कहरवा भइया बेगे चसल आवहु हो ।। सबना हो गोसढ़यवा के नइया जिनु ा बसह लागै ।। भइया सीिा जोगे डँसड़या फनाव सीिा के बन पहुचँ ावाहु हो ।। गढ़हु होइहै िाई से बाप सग औरो बसहसन । तनराला गढ़़ु होइहैं गाँवा के लोग सीिा कब जइहैं ।। पसहले के जिाने िें कौनों भी छोट-िोट गलिी पर िेहरारू के जहाँ जहाँ सीिा बइठैं िहाँ भइु याँ भारी होइ है । नइहरे ओरहन पेठावल , उनका नइहर भेजे के र्िकी बड़ा नइहर के लोग सघनइहै सीिा कब जइहैं ।। िािूली बाि रहल । इंहा सीिा के कसूर नाही ि ननदी के जररए एक बेर राि िोर अविै लवसट सफरर जािै । कारन गसढ़ सलहल गइल बा । दइव के नइया गरजिी िैं सब के बराबर ।।

वेद बदलाई

बेमार बर्वा के हिी

जात ,पाटी आ पुरस्कार

िम्भंग भोजपुरी

त्रबदे सिया के पाती

प्रकाहि​ि रचना लेखक के आपन ि आ जरुरी नइखे की इ संपादक के हिचार लेखक के हिचार से हिले ।

© मार्च ● 2015 ● 16


कौनो कौनो िरद भी एहर ओहर िेहरारुन के बीचे लइया लगावे िें बड़ा िासहर होलै , ओनके चररत्र देखावे खासिर कृष्ट्ण हासजर बाटैं – िथुरा से उठैलैं कन्हइया गोकुलो िें ठाढ़ भए । रार्ा िुहें रुकुसिसन गररयावैं ओरहन लेइ आईला ।।1 लेइ आवो िेल फुलेल पाट रंगील । कररबों िैं सोरहो ससंगार ओरहन हि जाबैं ।। 2 सभिरे से सनकरैं रानी रुकुसिसन सबछावैं सिरंजी । बसहनी एि बड़े भाग हिार दूनों जने आयेव ।। 3 िेहरारू िरद के बीचे िें के झगरा से रार्ा- कृष्ट्न के झगरा िसनको फरकनईखे । कृष्ट्ण िरु ली चोरवले के खासिर नइहरे के सडहवा देखावे के र्िकी देलैं , सरहसज से लहरा लगावैलै घर िें से सनकरेली रार्ा रसनया अँगनवा िें ठासढ़ भइली हो । अरे हँसस के पूछेली जसोदा काहे रे बहुआ बेसदल हो ।।1 लाज सरि के बसिया कहल नाही जाला नूँ हो । सासू पलँग रखल िोर सिलरी नाही रे आज िीलेला हो ।।2 नहाइ र्ोइ अइलैं सकसनु ा , अँगनवाँ िें ठाढ़ भइले हो । आरे हँसस के पूछेली जसोदा काहे रे कान्हा बेसदल हो ।।3

परु ान सिय िें िरदन के िनबढ़ी िनी िेर रहल ,िेहरारू के के हू कुछ सिझि नाही रहल । ि कृष्ट्ण भगवान होखस ि का उहो िरद ि हवें चसल देहलै रुसक्िनी के छोसड़ के कुबरी के साथे अउर कसह गइलैं सक कौनो जरूरि होइ ि सचट्ठी सलसख सदहो कान्हा चलैलै िर्बु न के ि कुबरी गोहने लासग । रानी रुसक्िनी ठाढ़ झरोखवा उलसट नाही सचिवैं ।1 जउ िोर िूढ़ र्िसकहैं अरे देह अलसइहैं हो । कान्हा अंिर सदल के दरसदया कहब हि कइसे ।।2 जउ िोर िूढ़ र्िसकहैं देह अलसइहैं रानी । अंिर सदल के दरसदया सचसठया सलसख भेजहु हो ।।3 के थुआ के करबैं कागज के थआ ु िससहानी हो । कान्हा के के िैं बोलाओं हररकरवा ि सचसठया चहुपावै हो ।।4 जइसे िरद पसहलकी के छोसड़ के , ओकरे िोह से ि​ि ु होइ के सबना पलसट के िकले चसल जाला वइसहीं कृष्ट्ण भी झरोखा पर ठासढ़ रुसक्िनी के सबना िकले कुबरी के साथे घर से सनकरर गइलैं । उहो क्बो वासपस न आवे के खासिर । रुसक्िनी ई जानि बाड़ी सक जो कृष्ट्ण अइबो कररहैं िौ सफर लौसट जइहैं । इ दख ु रुसक्िणी के होय ि िरद के छोड़ल सबहउिी िेहरारुन के भी ।

दोहा फागन ु के

ढ़ल फगनु हट देसह पर, ठनलस जोरि-जोर िान अनंगी झूसि के , िचा रहल बा सोर

ओसद रहल बा रासि-सदन, ठोपे-ठोपे नेह फगआ ु -फगआ ु िन भइल, चइिाइल बा देह कोइन अस िन िें लचक, लप-लप करि बहाव रंग छुआइल साँसझ खा, भइल ओद िन-भाव

सौरभ पाण्डेय

भाव फफाइल देसह िें, फगआ ु छींटे रंग कइसे िन संयि र्रो, देसख रूप के िंग फगनु ाई िन-िन चढ़ल, अइसन र्र्कल आग देसह-देसह िउआ गइल, टेरर रहल बा फाग हि िऽ भाई देस के , जेकर ि​िलब गाँव गली-िहु ल्ले जोसगरा, फगआ ु , कुश्िी-दाँव

नवका टूसा डासढ़ के , भइल आज अँखफोर हे सखड़की से होह गली, िनल आँसख के डोर

© आखर ● मार्च, 2015 ● 17


वबदेवसया के पार्ी

हम राउर होली हई ां !

उआ सब के परनाि…

हि राउर होली हई ं. होली, होरी, फगआ ु ... सब हिरे नाि ह । हिार खुिारी के सदन जस-जस सनगचाि जाि बा, ओईसे-ओईसे हिरा उपर हिला बढ़ि जाि बा। पटना ले लेके रांची िक ले बड़का-बड़का पोस्टर टंगाये लागल बा सक सूखल होली खेलीं, पानी बचायीं. बड़का-बड़का बैनर-पोस्टर-होसडं ग आउर अखबार िें एक-एक पन्ना के सवज्ञापन पर अईसन चीज सलखल हिार जीयरा के डेरवावि बा अउर हिके खुद पर शसिंदगी भी िहसूस होखि बा। ई कुल के देख के अईसन लागि बा जईसे आज पानी के संकट आईल बा ि हि होली ही एकर सबसे बड़ सजम्िेवार बानी । जईसे सालो भर पानी के बचावल जाला आ एक सदन हिरा नाव पर िनी िनी रंग िें पानी लाग जाला िो जईसे हिहीं पानी के संकट के सजम्िेवार िान लेबल जाईना । जे लोग दस -दस गो गाड़ी रखले बा, ओकरा िें एगो-दईु गो के इस्िेिाल करेला, बासकर गाड़ी के रोज ओकर र्ल ु इया होला, ओकरा िें सालो भर पानी लागेला िो ओकरा के ले के िो कब्बो कुछ के हू के बोलि नइखी सनु ले हि ! पानी के का-का खेला होला, सब लोग जानि बा बासकर ओकरा खासिर साल भर िें कब्बो एको बार अपील नईखी देखले बासकर जब हिार सदन आवेला िो एक-पर-एक कुल लोग के अपील जारी होखे लागेगा सक सूखल होली खेले के काि बा, पानी बचावे के काि बा । जानि बानी काहे, ई पानी के बाि ना ह खाली । हि खटकउआ परब हई संभ्रांि लोगन खासिर । हिरा के अश्लील परब िानल जाला । दारूबाजन के परब के लेबल लगावे के कोसशश कईल गईल बा हिरा पर । हिरा के अश्लील परब बनावे िें िो खैर आपने भोजपरु ी के गीिकार-गायक लोगन के बड़ भूसिका बा, जे लोग होली के अविे साड़ीसाया खोलेवाला दसु नया िें रि जाला, बासकर सवाल दोसरो बा हिार । होली के अश्लीलिा पर िो बड़का लोग बड़ िंहु -नाक ससकोड़ेला बासकर आउर दोसर िौका पर जवन अश्लीलिा आउर सबकृसि फै लेला, ओकरा पर िंहु -नाक बनावि देखले बानी कब्बो ? कब्बो ना देखले-सनु ले होखब । हिरा के नशेसड़यन के परब कहल जाला । बिाई ं सक का सालो भर िय शराबखाना िें के हू ना जाला । सालो भर िें दारू के सबक्री ना होला कब्बो ? खाली होसलये िें दारू के दोकान पर सबक्री होला ? असल िें हि एगो बाि बिाई ं. हिरा पर एिना हिला होखे के वजह बा । हि बहुि दोसरा सकससि के परब हई ं । हिरा से बाजार के कवनो खास सरोकार अब ले नइखे कायि हो सकल । िस्िी िें गाना गाई ं, दस रोपेया के रंग अबीर

© मार्च ● 2015 ● 18

त्रनराला पेशा िे पत्रकार , िहलका आ रभाि खिर खासि लगािार सलखे वाला सनराला जी , औरं गािाद सिहार के रहे वाला हईं । इँहा के पुरसिया िान िैनर के नीचे भोजपुरी के पारम्प्पररक गीिन के िहेज,े िररहारे आ ओह के नया कलेवर मे रस्िुि करे में लागल िानी । एह घरी पटना में सनवाि िा।

भोजपुरी लोकगीि सुने खाहिर एि हलंक पे हमलक करीं http://www.lokraag.com/


सलहीं आउर पवु ा-पकवान खाई के िस्िी िनायीं । बस एिने ि िाि झाि बा हिार । कवनो खास देविा के पूजा कईला के काि ना परेला हिरा अईला पर । आपन-आपन कुलदेविा के चाहे गांव िें जेकर िंसदर बा, पूजा कर सलहीं, हो जाई । हि कवनो खास देविा पर अलि नइखी ले ले । हिरा िें बाजार बहुि संभावना जोहलस बासकर कहीं कोई ओर-छोर ओकनी के सिलिे नईखे। आ दोसरका बाि बा सक हिरा से अब भी गांव-सगरांव के लोगन के बेसी जड़ु ाव बा. हिार खुिारी ओही लोग पर िेर चढ़ेला, ओही लोग िें बेसी िस्िी के संचार होला हिार नाव से, एह से भी संभ्राि वगा परब-त्योहार िें हिके छांट के रख देले बा । हिरा नाव प आपन िहंु सबजक ु ावेला संभ्राि वगा ! हिरा खासिर जवन सिाज पानी बचावे के अपील करेला, ओह सिाज के पानी हि बचा के रखले बानी । जाके देख सलहीं, आजओ ु पिा चल जाई दशहरा, सदवाली िें अिीर-गरीब के फका । अब िो अउर भी कई गो नया त्योहार के जोर बा । अक्षयनविी, करवाचउथ से लेके र्निेरस िक ले । सब परब अिीर के ह, सािथ्या वान के ह , जेकरा अंटी िे घोचाह दाि बा ओकरा खासि ह, आ ई बाि साफ पिा चल जाई । सदवाली िें भी, होली िें भी बासकर हि िाने होली ही एगो अईसन बानी जेकरा िे रउआ थाह नइखी लगा सकि सक के

अिीर ह, के गरीब । सबके होली एके लेखा िनेला । एके रंग, एके गल ु ाल, एके अबीर, एके िरीका से होलीगीि । चिकदार कपड़ा पसहरी चाहे, कईसनो, सब होली िें एक रंग हो जाए के बा। हि सिानिा लावेवाला परब हई ं। सालो भर जे अब्बर-सपछड़ा लोग बा, उ अगर सभ्रांि चाहे कुलीन लोग के कुछ नइखे बोल सकि बासकर हिरा नाव पर सब िाफ रहेला । सब टोला के लोग एक दूसरा के सराबोर कर देबेला । एिना छुट होला हिरा नाव प. ई कुसल्ह अखरेला कुछ लोगन के । हि संकट िें नइखीं बासक हि ई कब्बो ना कहब सक हिरा पर संकट बा, हिरा पर हिला हो रहल बा । संकट िें कहला िें आउर हिला कहला िे फरक होला । एह फरक के सिझल जरुरी बा । संकट िें कहब िो रउआ भी बेचारगी के भाव देखाईब हिरा से. हि कवनो संकट िें नइखीं । हिला होि बा बाजार के कुलीन िबका के . संभ्रांि लोगन के राउर आपन होली ( फगआ ु )

कपछ्ला फागन खेल गईलन सपछ्ला फागनु खेल गईलन, ऊ हिरा संग होली बीि गईल सदन िास बररस, सबसरल न सूरि भोली !! श्याि सलोना कान्हा जइसन, छसव िन िें इयाद पड़ावे

प्रेि छुअला के बाद सबरसहन के , जइसे सबरह जरावे !! आवि जाि िौसि के हाथे , भेजीं हि प्रेि के पाि पिा कहाँ बा उनकर बैरन, हवा न कुछु बिावि !! कजरी बन-बन बरसे फागनु उिरि बा अँसखयन िें होके अर्ीर हि टेरीं ओके , लक ु ाईल कवन गसलयन िें अबकी बरस जे अईलन साजन, खेले हिरा संग होरी प्रीि​ि के हि जाए न देब, हि रोक लेब बरजोरी !!

© आखर ● मार्च, 2015 ● 19

त्रनरुपमा त्रसन्हा गोरखपुर , युपी के रहे वाली सनरुपमा सिन्हा जी , एह घरी गासजयािाद मे िानी , इँहा के सहन्दी मे कई गो पसत्रका खासिर रचना कई चुकल िानी , आ लगािार सलख रहल िानी ।


फगआ एगो पारां पररक उत्सव

कर्था / सावहत्य

ह पर कुछ सलखे के पसहले ई सवचारल जरूरी बा सक फगआ ु आसखर ह का?सवरसहणी के आह के कथा,खेि-खररहान िें लहलहाि रबी के हररहरी देख के िन िें फूटि उल्लास, हर भोजपरु रया के देह िें एह घड़ी बहे वाला बसंिी बयार से उठे वाला बाथा ? के िना कारण उभर के आविा, जवन फागनु के फगआ ु बने के आर्ार हो सके ला बासकर कहल िसु श्कल बा । फागनु एगो िहीना िात्र ही बा बासकर अपना भीिर एिना सारा ित्व छुपवले बा सक ओकर व्याख्या कइला प एगो अलगे सवषय बन जाई बासकर इ िय बा सक एकरा के हिनीं के परु खा-परु सनया,जे आया रहे,जे प्रकृसि से जडु ल रहे, ओकरा गसहराई िक जाके िहसूस कर के एगो पवा ,एगो उत्सव के रुप िें परंपरा बना देहलख, एह िे कवनो शक ना हो सके । इ उत्सव आज के ना ह । सिजगु से ले के ,त्रेिा आ द्वापर से ले के कलजगु िक के एकर इसिहास बा। रसि आ कािदेव के शंकर जी पर वार भा होसलकासहरण्यकश्यप आ प्रहलाद के सखस्सा, रािचंद्र जी के अजोध्या के लवटानीं, कृष्ट्ण जी के रास रचवावल , कवनो एगो बाि होखो िब नूँ कहाव, अईसन िेर कुछ बा ,जवन फागनु के फगआ ु बनवलख। आयवु ेद कहेला- राि के ठंिी, सदन िें गरि, फागनु करे एही से बेभरि। देह टूटी, बाथा होई, कफ से पूरा शरीर भरल रही। सबछौना पर जाएि सूिे ि ओह घड़ी ओिना ना चाहीं बासकर भोरे उठेब ि एगो चादर ले के बाहर सनकले के पड़ी। िाने फागनु दू गो ऋिु के संसर्काल ह- ठंिा आ गरिी के । सदन के घाि िीि आ राि के कुहा कँ पसल। एह ऋिु के प्रभाव ि पूरा भारि िें ही होला बासकर भोजपुररया बर्ार खासिर ई खास रुप से िहत्व राखेला। गेहूं के खेिी से पूरा बर्ार हररहराईल

© मार्च ● 2015 ● 20

उदय नारायण त्रसंह िंगीि के सशिक , लोकगायक आ भोजपुरी िंगीि में नवीन रयोग करे खासिर उदय नारायण सिंह जी जानल जानी । छपरा , सिहार के रहे वाला हईं। इँहा के भोजपुरी भाषा िासहत्य आ िंगीि में हरदम कु छ नया, कु छ अलग करे खासिर रयािरि रहेनी । अभी छपरा में िानी ।

इ उत्सि आज के ना ह । सर्जुग से ले के,त्रेर्ा आ द्वापर से ले के कलजग ु र्क के एकर इवर्हास बा। रवर् आ कामदेि के र्ंकर जी पर िार भा होवलकावहरण्यकश्यप आ प्रहलाद के वखस्सा, रामचंद्र जी के अजोध्या के लिटानीं, कृष्ण जी के रास रचिािल , किनो एगो बार् होखो र्ब नूुँ कहाि, अईसन ढेर कुछ बा ,जिन फागन ु के फगआ ु बनिलख।


रहेला। सकसान के िेहनि, हररहरी के रुप िें ओकरा साफा लऊकि रहेला, सपना पूरला जस लागेला ओकरा ।आजो भोजपरु रया बर्ार खेसिए क के ही सजएला। प्रकृसि भी नायानाया फूल-पत्ता,से सजा देवल े े बर्ार के , िन हरसखि रहेला। कहे के ि​िलब सक ई ऋिु सूचक ह सक अब िईयार हो जाई अपना िेहनि के फसल काटे खासिर। बहरसी िें किाए वाला लोग कटनीं खासिर बहरा से किा के चले के िईयारी कर देवेला। एह सब िहीन-िहीन िथ्यन के भोजपरु रया बर्ार अपना लोक सासहत्य भा लोक गवनई िें खुल के चरचा कईले बा। गाँव के डीह बाबा, गढ़ देवी से ले के , लोक देविा िक के प्रसि आस्थावान होके ओह लोग के ससु िरे के प्रसक्रया शरु​ु हो जाला"बाबा हररहर नाथ, सोनपरु िें रंग लुटस" भा "होरी खेले रघबु ीरा अवर् िें होरी खेले रघबु ीरा।" गीि-गिनई के भोजपुररया लोग के सङे खून के ररस्िा ि। फग ुआ के बहाने जवन गवाला हिनीं के बर्ार िें,ऊ दोसरा बर्ार िें देखे के ना सिली-खाँटी िरदन के गवनई ह फगआ ु । दोसरा बर्ार के लोग के ि हाँफ उखड़ जाई, साँस टंगा जाई। गांव के चौपाल पर गवाये वाला एह शैली िें दू-दू गो िोलकसहया,गावे वाला एगो गवैया आ सपछहरी के रुप िें डेसिआ गावे वाला बीस-पच्चीस के सगनिी िें। सभे के हाथ िें झाल आ झांझ। िाल ठोकईला के बाद एगो गांव के गवनई दू गाँव आगे ले सनु ाला। लाऊडस्पीकर उफर पड़स, उन कर सकाने ना सलआई। साँच कहीं ि फगआ ु के गवनई िरदन के गवनई ह आ ऊहो खाँटी भोजपरु रया िरद के ,जेकरा छािी िें टाँसी(िार सप्तक) गावे के औकाि होखो। एह गवनई िें सवरह, हास्य, श्रंगृ ार, करूणा के सङे -सङे शांि रस के भी सासहत्य गवाला आ ऊहो आज से ना,दादापरदादा के जिाना से।

कहे के ि​िलब सक फगआ ु गवनई के बीच िें कई गो प्रयोगवादी परंपरागि शैली भी गवाला,जवन चौिाल, र्िार,पहपट,लटका के रुप िें सोझा आवेला। दीपचंदी िाल िें गवाए वाला ई गवनई लय के िीनों रुप से गज ु रेला आ जब द्रिु िें लय आ जाला ि संसार के िय आनंद एक ओर आ एह गवनई के आनंद एक ओर। लईकन खासिर नाया कपड़ा के रुप िें जानल जाला फगआ ु ,पकवान के ि जवाबे ना। हर घर िें पआ ु -पड़ु ी छनाला। इयार ि इयार,दस ु िन भी आज के सदन दोस्ि बन जाला। रंगअबीर अपना- अपना सहसाब से लगावल जाला। लईकन के गाल िें, हिजोली के िूड़ी िे, भऊजाई भा िजसकया लोग के गाल िें ि बूि-परु सनया लोग के गोड़ पर। आसीरवाद सिलेला ि उसिर साँचहुं बिला अईसन बझ ु ाला। बासकर कहीं कुछ दरकल बा, कुछ बदलल बा, एगो बड़हन अंिर िहसूस करिा बर्ार । ना बहरसी के लोग अब लऊटिा आ ना चौपाल पर िाल ठोकािा। िोलकसहया, गवैया, झलवसहआ खोजलो पर नईखे भेंटाि। अईसन नईखे सक फगआ ु के गीि नईखे बाजsि,बाजिाs, बासकर पसहले के फगआ ु सनु के िन हरसखि होि रहे, जोससआि रहे, गदु गदु ी बरि रहे- आज सनु के शरि लागिा, घृणा बरि बा अपना एह गीिन पर, थूके के िन करिा अईसन गीिन पर। कारण सभे नईखे, कुछ िथाकसथि गवईअन आ कसवअन के ले के हिनीं के परु खा-परु सनअन के सवरासि के सदआका चाटे लागल बा, भोजपरु ी िाई डहकि बाड़ी। लोग जब सनु बे ना करी, गईबे ना करी ि ई िौसखक आ वंशानगु ि सांस्कृसिक सािासजक सवरासि के अईसहीं लोप हो जाई। एह सदब्य आ अद्भुि परंपरा के बचावे िें रऊओ साथ दीं। परु वज लोग के थािी के सहेजीएह साल के फगआ ु िें रऊरो पुरनका शैली के अपनाई ं, दआ ु र पर फगआ ु गवावे के जोगाड़ बईठाई, अपनो गाई ं आ लोगो से गवाई ं।

श्रंगृ ार के िजा लीं"अँसखयाँ भईले लाल, एको नीन सिु े द बलिआ ु " िनीं हास्य देखीं-

फागनु फाग बल ु ाई चदहले, अंग-अंग फुलाई चदहले हे।

"सिुआ खा ल भिार, दही-सचऊरा खईहें इअरऊ।" शायद ससनेिा वाला लोग एही सासहत्य से प्रभासवि हो के गीि बनवलख लोग-"लौंग-इलायची का बीड़ा बनाया,खाये गोरी का यार,बलि िरसे रंग बरसे"।

मइया ओच़ि के वासंती िुनररया, नगररया हरसाई गइले हे।।

- मास्टर अजीज जी © आखर ● मार्च, 2015 ● 21


फगआ के बहाने मन आ शरीर के साधना

बर्कूचन

फा

गनु का आईल सभे बउरा गईल । लईका- सेयान , बढ़ु -जवान, िरदिेहरारू, दपु ाय-चौपाया, कीड़ा- िकौड़ा, जड़ -चेिन सभे पे फागनु सवार हो गइल । आि िें िंजर का लागल आि के पेड़ बउरा गईल , झूिे लागल । िैसथली के कसव सवद्यापसि कहले बानी – आइल ऋिुपसि राज वसंि र्ावल असल कुल िार्वी पंि खेि िें सदखे सपयर फुल सरसो िन िें उिंग सदखे, जैसे खुशी सिलल बरसों । आनंद उिंग के एह परब के िनवला के पाछे िेर कहानी बा आ हरेक कहानी के पाछे कुछ वैज्ञासनक बाि छुपल रहेला । देखल जाय ि एह बसंि-बसंिोत्सव, होली फगआ ु िदनोत्सव के पाछे परु​ु खन के कुछ ना कुछ वैज्ञासनक सोच जरुर बा । ऊजा​ा कईसनों होखो ओकर प्रवाह सनयंसत्रि कइल भी जरूरी होला । ऊजा​ा के बेलगाि भईला पे शारीररक, व्यवहाररक आ सािासजक नक ु सान बेसी होला । एही से परु खा लोग आपन शारीररक ऊजा​ा के बचावे के बाि कहि रहे लोग । िह्मचया के बाँर् लगा के काि ऊजा​ा के रोकल जाि रहे । जाड़ा के िौसि िें शरीर िे गरिी आ ऊजा​ा बरकरार राखे खासिर पसहले के लोग िरह िरह के खान-पान करे । बैदई के नस्ु खा जाड़ा िे बररयार चले । लोग एह नस्ु खा िे सोना-चाँदी ससहि ना जाने के िना गरिी लेि रहे लोग । ऊजा​ा के संभारे के एह उिजोग िें ऊजा​ा नक ु सान भी खूब होए । वैज्ञासनक लोग के कहल सांच बाि सक ऊजा​ा के के हू बाँर् ना सके आ एकर रूप पररविा न होि रहेला । नदी के बाँर् देब ि प्रवाह रुकी आ ओह प्रवाह के सबजली बनायीं ि ऊजा​ा के उपयोग भईल । ना ि जसहया बाँर् टूटी, जान िाल के नोकसान

© मार्च ● 2015 ● 22

शत्रश रंजन त्रमश्र आरा, सिहार के रहे वाला शसश रं जन समश्र जी , भोजपुरी मे हास्य व्यंग्य के िंगे िंगे गसहर िासहत्य के सिरजना करे खासि जानल जानी , इँहा के सहन्दी आ भोजपुरी भाषा प पकड़ िेजोड़ आ धारदार िा । इँहा के सलखल कई गो लेख सहन्दी भोजपुरी के कई गो पत्र पसत्रकन में रकासशि हो चुकल िा । एह घरी इँहा के कदल्ली मे रहि िानी ।


करी । इहे हाल शरीर के ऊजा​ा के भी होला । ऊजा​ा के संचय (एकट्ठा कईल) के साथ रेचन (सनकालल) भी जरुरी होला । अब परु सनया लोग बड़ा चालाक रहले । स्वास्थ आ शरीर सबसे बड़का र्न ह । सिाज के हरेक व्यवहार िें र्रि करि घस ु ा के सिाज के एह िरह बान्ह देले सक जाने अनजाने िें ही सही लोगन के स्वास्थ के रक्षा होि रहल ह । काि ऊजा​ा के परवाह जब रुकी ि कहीं ना कहीं घाि करबे करी- िन िें सवकार लायी, शरीर के दसू षि करी आ फे र सिाज के । िन के सवकार दरू करे खासिर सिाज िें िरह िरह के बरि- त्यौहार आ उत्सव बनावल गईल । एकर सरु​ु आि कब भईल एकरा के जाने खासिर कुछ पाछे जाय पड़ीबाल्िीसक रािायण िें भी बसंिोत्सव के चचा​ा आईल बा । भसवष्ट्य परु ाण िें भी एक िरह के उत्सव के सलखल गईल बा एह िें कािदेव और रसि के स्थापना आ पूजा कईल जाि रहे । संस्कृि सासहत्य िें एह िरह के उत्सव के बारे िें खूब सलखासयल बा । संस्कृि नाटक ‘चारुदत्त’ आ ‘िच्ृ छकसटकि्’ िें काि देव के जल ु ुस सनकाले के चचा​ा बा । एगो आउरी सकिाब ‘वषा -सक्रया कौिदु ी' ि एह जल ु ूस के जवन रंग रूप बिवले बा ओहिे िोल -नगाड़ा के साथे गाना-बजाना आ फे र एक दूसरा पे कीचड़ फें कल आ अश्लील हास पररहास के भी चचा​ा बा । सांझ के नया कपड़ा पसहर लोगन के िेल जोल के भी चचा​ा बा । कासलदास के ऋिुसंहार िें ि बसंि के जवन वणा न बा अगर एसहजा सलखल जाय ि एह लेख पे सेंसरबोडा बईठ जाई । बस इ सिझ लीं की एह बसंिोत्सव भा िदनोत्सव िें राग रंग आ अश्लीलिा के खुला खेल रहल ह । हषा चररि होखो , दशकुिार चररत्र भा कुट्टनीि​ि​ि् सब जगहा िदनोत्सव के चचा​ा बा । अश्लील हास-पररहास के चचा​ा बा । पं. हजारी प्रसाद सद्ववेदी के सकिाब ‘प्राचीन भारि के कलात्िक सवनोद’ िें भी िदन पूजा बिवले बानी । अब सोचेवाला बाि इ बा की सिाज के एह िरह के उत्सव आ आयोजन के जरुरि काहे पड़ल ? कारण एके बा सिाज के एह उत्सव आ आयोजन के िाध्यि से काि ऊजा​ा के िनोसवकार आ िनोरोगी होखे से बचावे के । अश्लील हास पररहास के छूट देके िन के िानससक सवकार सनकाले के । कहल जाय ि इ परु खा लोग के एह उिजोग िें िेर अईसन चीज अलोि रहे जेकरा के सार्ारण लोग के सिझ से

बाहर रहे । अब िदनोत्सव बा ि राग रंग भी रहबे करी । एह िदनोत्सव के गायन के भी अलगे अंदाज रहे । जे आज भी कहीं कहीं होली भा चईि गावेवाला अनस ु रण करेलें । एकरा बारे िें पाली आ बौद् दशा न के सवद्वान डा० रवीन्द्र कुिार पाठक आपन सकिाब ‘िगर् की रह्सस्याविृ सार्ना संस्कृसि' लिहर चचा​ा कईले बानी । बौद् र्िा िें देविा के िंसदर के चैत्य कहल जाला आ चैत्य िें देविा रहेलें । चैत्य िें सार्ना होि रहे उहो बौद् िंत्र सवर्ी से । जेकरा िें रंग,ध्वनी आ प्रकाश के िाध्यि से सार्ना कईल जाला । ओहिे भी ध्वसन भा आवाज के असर्का उपयोसगिा बा । ि होरी,फाग,बारहिासाभा चईि के गावे के शैली प्रर्ान होला, ख़ास िरह के आवाज सनकालल भी जरुरी बा । गायन करेवाला लोग गोलाकार घेरा िें बसयठेला । एकरा के िंडल कहल जाला । बीच िें िोलक भा नाल बजावेवाला लोग ही बसयठे ला । आ एह घेरा के पररसर् पे गायक लोग झाल, करिाल के साथे बसयठेला । बीच िें इिना दरु ी रहेला के एक-दू लोग िेहरारू के भेस र् के नाच सके इ लोग जोसगन कहाला । पररसर् पे बईठल के हू भी गायन के सञ्चालन करी । एसहजा सभे कोई सािान होला आ के हू एह सिूह के प्रर्ानी ना करे । ि एह िंडल के चैत्य रूप िें लेके गायन कईल जाला । फाल्गनु बसंि के लड़कपन ह ि चईि बढ़ु ापा । इंसान के भाव िें रसि के प्रवाह बसंि िें चरि पे रहेला । फाग के शैली िें जहां िार्यु ा के साथे अल्हड़पन होला (जोगीरा, र्िाल इत्यासद) ओसहजे चईि के गायन िें कडापन होला । गायक आलाप के साथे आरोह के ओर बढ़ेले । एसहजा अवरोह ना होखे… बस चढ़ाव रही दोगनु ,सिगनु , चौगनु िक पूरा सिूह एके भावे एके रागे ऊपर बढ़ि जाई । “हो! रामा एही ठइया​ां... आज चईत हम गाययब ए रामा ! एही ठइया​ां” ओ सिय िन के लगाि कसा जाई, राउर देह दशा के होश ना रही आ रउरा जब आरोह के ऊँचाई पर पहुचं नी की अचानके ‘हा’ के आवाज के साथे अचानक सवराि सदया गईल । ध्वसन एिना लयबद् आ िालबद् होला की बीच िें िन भटकबे ना करे । एही सिय पे िन के चंचलिा रुक जाला । हा आ हू आवाज के भी िहत्व बा सार्ना के अंग ह, शरीर के िसणपरु

© आखर ● मार्च, 2015 ● 23


चक्र भा नासभ के आंदोसलि करेला । चंक्रिण ध्यान के रूप ह आ इ भगवान बद् ु के खोज आ बौद् सार्ना के प्रारंसभक प्रसशक्षण के सवषय ह । चईि गायन के िंडल िें जोसगन चंक्रिणशील आ गायक बौद् उपासक ह । बीच िें बईठल िोलसकया र्वनी के कें द्र भा ध्यान के कें द्र होला । ध्यान के बदलि आवसृ ि से िन ओही आवाज िें डूब जाला । आउर अन्दर के वासना, आक्रोश, गस्ु सा अपने आप संस्कृि , लयबद् आउर िालबद् होके िोलक, िंजीरा के थाप िें संगीि के अंग बन जालें । शील-अश्लील, िक ु ांि-अिक ु ांि पद के साथे िन के सवकार सनकाले एह प्रयोग के परु खा बड़ी जिन से सम्भर लें । बाकी आज के होली आ चईि गायन िें सार्ना पक्ष आ व्यवहार पक्ष गायब हो गईल बा । अश्लीलिा के प्रवाह ही ज्यादा बा । अब

ना उ िंडल रहल ना गायन । फाग –चईि के प्रारंसभक आ जरुरी वाद्य के जगह पे अंग्रेजी बाजा आ जोसगन के जगह पे अश्लील नत्ृ य करि िेहरारुन के प्रवेश से फाग आ चईिा गायन के िहत्त्व कि हो गईल । लोग ससनेिा संगीि पे अबीर उड़वला के , अश्लील गीिन पे िरद िेहरारू के नाचल आ नशाखोरी के ही आज होली के नाि दे देले बा । होली फगआ ु आ चईि ि अब नईखे... होली बेराग आ रंगहीन हो चक ु ल बा । शहरीपन के भीड़ िे प्रेिभाव भी व्यवहाररक आ व्यापाररक बन गइल बा । शहर िे अब ई सार्ना संभव नईखे, एह से एकर व्यवहाररक पक्ष रंग गल ु ाल आ सपचकारी िक ही ठीक बा । सिाज बदल गइल आ सिासजकिा भी । एह से जेिना सर्े ओिने सार्ल ठीक बा । िेर कहा गइल अब ले... रउरा सभे के फगआ ु के बहुि बहुि बर्ाई ।

होरी-गीत(धन-पारां पररक) बिी गइले फगनु ी बयार, ठिकी हबररजिा िें िोरी। कान्द्िा संगे िोई धआ ुँ धार, ठिकी ररजिा िें िोरी। चनु री सम्िारी सखी करेली िइयारी, आज िृन्द्दािनिा िें रंग जिी भारी। छु ी जइिे कान्द्िा के बोखार, ठिकी हबररजिा िें िोरी। कांच-कांच कहलयन पऽ कान्द्िा जे लोभइिे, चकिा िें पड़ी श्याि भारी धोखा खइिे। राधा जी से कररिें गोिार, ठिकी हबररजिा िें िोरी। िारी हपचकारी श्याि लुगा साड़ी फररिें, अचके िें जाने किाँ-किाँ रंग डररिें। रंग-े रंगे िोला उपकार, ठिकी हबररजिा िें िोरी। अि​िा-ि​िुअिा के पके िोजररया, लठिार िोरी खेले बृज के गज ु ररया। जौिर िने हखले कचनार, ठिकी हबररजिा िें िोरी। © मार्च ● 2015 ● 24

जौहर शात्रियाबादी जौहर शाकफयािादी जी शाकफयािाद शरीफ गोपालगंज , सिहार के रहे वाला हई । अपने भोजपुरी खासि ि​ि​िे पसहले १९७० में गोपालगंज अनुमंडलासधकारी के िोझा अनशन कइले रहीं । भोजपुरी िासहत्य के आँचर में हर सवधा में िृजनरूपी खोइछाँ भरे में रउआ नेह-छोह िे जुटल िानी । भोजपुरी में पसहला गजल महाकाव्य 'रं गमहल', ऐसिहासिक उपन्याि 'पुरिी के धाह', लसलि सनिंध िंग्रह ,कसिरा खड़ा िाजार में, 'वेद और कु रान’ िसहि दजिन भर िहुचर्चि​ि कृ सि रकासशि भइल िा । वि​िमान में इहाँ के 'भोजपुरी व्याकरण' सलखे में पूणि मनोयोग िे जुटल िानी ।


कर्था / सावहत्य

फगआ ु : भोजपरु रया लोक सांस्कृतत के महापवव

गआ ु , होली, होरी के नाि सनु िे सबसे पसहले िज के लठ्ठिार होली के दृश्य आँखी के सोझा कौंर् जाला । बासक भोजपरु रया बर्ार के 'फगुआ' के बािे सनराला बा। इ िज के होली से अलग आपन स्विंत्र असस्ित्व रखि बा। िज के होली िें अल्हड़पन बा िऽ भोजपरु रया फगआ ु िें सािसु हकिा के भाव। बसंि पंचिी से एह जवार िें' फगआ ँ े लागेला । खेिी-सकसानी, िेहनि-िजूरी कऽ के साँझी ु ' के िान गूज के के हु के दआ ु के गवनई ु र-बथान िें, झाल-िसजरा आ िोलक के थाप पऽ फगआ शरू ु हो जाला। एह सािसु हक गान िें लोग आपसी राग-द्वेश आ दश्ु िनी के सबसार देले फगआ ु के िस्िी िें सराबोर, आनंसदि अह्लासदि । साँच कहीं िऽ फगआ ु - रंग के रंगीसनयि से सजल, उिंग आ उत्साह से गल ु जार एगो अइसन िहापवा हऽ जहाँ सािसु हकिा के भाव बा, सािासजक सौहादा के भाव बा, अध्यात्ि के भाव बा अिने ना सूफी आ प्रेि​िागी भसि परंपरा के भी भाव इहाँ सिासहि बा । िसलन- 'आज रंग िै री...' ख्वाजा गरीब नवाज के दरगाह पऽ एही कलाि के गा के रंग िहोत्सव के शरू ु आि होखेला । ओही जा अयोध्या जी के िंसदरन िें गूज ँ े लागेला सक िोली खेले रघिु ीरा अिध िें । काशी िें 'आज िसाने िें होली...' के गायन से भगवान भोलेशंकर के भी फगआ ु के रंग िें रंगाये खासि नेवि सदहल जाला । साँच कहल जाए िऽ होली भारिीय संस्कृसि के सवि िें ध्वजवाहक हऽ । इ खासल एगो पवा नाही हऽ इ िऽ हिनी के उत्साह, उल्लास आ सद्भाव से सजावें, सजोंवे वाला एगो प्रिीक हऽ । बहरहाल, जब बाि भाव से जड़ु ल होखे िऽ एह भाव के व्याख्या करे खासि हजार शब्द भी कबो-कबो कि पड़ जाला, फगआ ु भाव से भरल एगो अइसने पवा हऽ जवन गाँव से र्इले शहर-नगर ले अबसहन भी हर ओर अल्हड़पन- िस्िी, आनंद, सद्भावना के रंग िें सराबोर बा । पौरासणक पक्ष से हट के अगर हिनी के फगआ ु के लोक पक्ष के भी देखीं िऽफगआ ु ऋिुचक्र के संसर् पऽ पड़ेला- एगो कहावि िन पड़ि बा, 'गइल िाघ, हदन उन्द्निीस बाहक।' हाड़ कँ पावें वाली ठं िी से राहि सदलावे खासि बसंि ऋिु आवेले । बसंि के िहीना सज ृ न के िहीना हऽ, रोिासनयि के िहीना हऽ । इंसान के कहो चहुओ ँ र प्रकृसि भी रोिासनयि के भाव िें झूिें लागेले। आि के िँजर, टेसू के फूल- सरसो के फूल आ फगनु ी ब्यार- नवस्फुसिा के संचारक होले। जीव-जंिु, बढ़ु परु सनया, लइका-बच्चा आ नौजवान सभे फगआ ु के रंग िें रँगाये खासि िचले लागेला। कहीं फगआ ँ उठेल-े 'भर फागनु बढ़ु िा ु िऽ कहीं जोसगरा के स्वरलहरी गूज

© आखर ● मार्च, 2015 ● 25

देवेंद्र नाथ त्रतवारी देवररया , युपी के रहे वाला देवेंद्र नाथ सिवारी जी , द िंडे इंसडयन भोजपुरी पसत्रका के कॉपी एसडटर रसह चुकल िानी। इँहा के स्विंत्र पत्रकार भी िानी आ एह घरी वधाि महाराष्ट्र मे आगे के पढाई कई रहल िानी । कई गो शोध परक लेख अलग अलग पसत्रकन मे रकासशि हो चुकल िा । आखर पेज िे शुरु िे जुड़ल िानी आ भाषा िासहत्य प कई गो लेख आखर प भी लासग चुकल िा ।


देिर लागे...' फगआ ु आ जोसगरा के आजो कुछ संकुसचि सोचँ के लोग अश्लीलिा आ फुहड़पन के नाि पऽ नक्कारे के कोसशश करेला । बासक इ लोग एह सच्चाई से अंजान बा सक भोजपरु ी एगो सवकससि संस्कृसि के नाि हऽ । एह सिाज िें सािासजकिनौवैज्ञासनक पक्ष के भी भरपूर िहत्त्व सदहल जाला। अइसना फगआ ु आ जोसगरा के िनोवैज्ञासनक पक्ष के भी सिझे के होई । दरअसल, भोजपरु रया संस्कार िें लोकर्सिा िा के भाव कूट-कूट के भरल बा इहाँ अवसाद खासि इसचको जगहा नइखे । कहल जाला सक 'िन के जीिले- जीि आ िन के िारल- िार ।' अगर िन प्रसन्न रही िऽ शरीर सनरोग रही। िन के प्रसन्न रखे खासि हँसी-सठठोली आ चहु लपन जरूरी हऽ। एही खासि फगआ ु आ जोसगरा गावल जाला । सक बढ़ु ऊ िसनका हँस- जीव फरहर रही । बासक िस्िी के िाहौल िें िया​ा दा के ख्याल भी राखल जाला । देवर-भौजाई, ननद-भौजाई जइसन ररश्िा फगआ ु के रंग िें रँगइला-सभंजले के बाद अउर भी िजबूि होखेला। एह ररश्िन के लेके सबसे असर्का फगआ ु के गीि सिलेला । एह फगआ ु गीि के भी अगर सवश्लेषण कइल जाए िऽ काफी िहत्त्वपूणा जानकारी सनकल के सोझा आयी । पाररवाररकसािासजक- आसथा क संरचना के कहानी एह गीिन के िहसूस कइल जा सकि बा । कवनो गीि िें सप्रयि​ि से सवरह के ददा भरल बा- 'फागुन िें जब ना घर सैंया- बज्र पड़ो एि फागनु के ' िऽ किीं िँिगाई के ददश बा ।

'बंगला पऽ उड़ेला अबीर हो लाला, बंगला पऽ उड़ेला अबीर हो बाबू, उहाँ बाबू कुँअर ससंह िेगवा बहादरु बंगला पऽ उड़ेला अबीर हो...' आजु जब देश िें ससयासी वजह से सांप्रदासयिा के राग अलापा जा रहल बा अइसना िें फगआ ु आ ईद जइसन पवा त्योहार सािसजक एकिा के अइसन िजबूि सपलर बा जवना पऽ सिाज नाि के िाँचा सटकल बा । फगआ ु के त्यौहार खाली अल्हड़पन-िस्िी, हँसी-खशु ी आ सािदु ासयक सद्भाव आ िेलसिलाप के पवा ना हऽ बलुक एह त्योहार के िनावे पीछे कईगो वैज्ञासनक कारण भी बा । फगुआ खासल प्रकृसि- पया​ा वरण के खासि ना बलुक िानवीय सेहि खासि भी गुणकारी हऽ । पसहले के होली िें प्राकृसिक रंग िसलन हल्दी- चंदन आ के सर आ फूल से िैयार रंगन से फगआ ु खेलल जाि रहे । इ रंग त्वचा के साथेसाथ काया के भी सनरोग करि रहे। गणु कारी रहे । खैर, ऊपर भइल चचा​ा से स्पि बा सक फगआ ु के रंग िें रंगाये खासि कवनो वजह के िलाश बेिानी बा। आयीं सभें! होली के रंग िें सराबोर हो जाई ं, राग-द्वेष, दश्ु िनी-अदावि के भल ु ा के अपनापराया सभे से गला सिलीं, अबीर-गल ु ाल उड़ाई। हँसी-खुशी आ िोहब्बि के रंग रउआ सजनगी िें हर पल, हर क्षण गल ु जार रहे । रउआ सभे के सपररवार रंगोत्सव के उलाह शभु कािना आ लाख -लाख बर्ाई !

इसिहास गवाह बा सक सन 1857 िें अंग्रेजी हुकुि​ि के सखलाफ़ बगावि के सचंगारी फूँके िें भोजपुररया सबसे आगे रहलन । बाबू कुँअर ससंह, िंगल पांडेय, फिेह शाही, िेग अली िेग जइसन भोजपरु रया वीर एह क्रांसि िें नेिृत्व के िशाल थिलें रहलन । आि जनिा िें क्रांसि के चेिना भरे खासि ओह घरी कई लोकगीिन के रचना भइल। कुछ फगआ ु गीिन िें क्रांसिकारी चेिना के भाव भी देखे के सिलेला'बाबू कुँअर ससंह िोहरे राज सबनु अब न रंगइबो के सररया इि िे अइले घेरी सफरंगी, उि िे कुँअर दईु भाई, गोला बारूद के चले सपचकारी, सबचवा िें होि लड़ाई। बाबू कुँअर ससंह िोहरे राज सबनु अब न रंगइबो के सररया' एह गीि के गा के भोजपरु रया बर्ार आजो बाबू कुँअर ससंह के वीरिा के इयाद करेला सफर-

© मार्च ● 2015 ● 26

जाये के कइसे कहीं परदेसी, रह भर फागनु , िइत में जइह। िीठी चलखा के तुरन्त पठाइह, चतलाक ह जो हमके भुलवइह।। िार महीना घरे रचहह, बरसात का पचहले िचल अइह। धानी दुपट्टा ओ़िा हमके तुहुँ सावन में झुलुआ झुलवइह।।

- मनन्न चिवेदी ' गजपुरी ' जी


कर्था / सावहत्य

कचत्रपट के होली

बी

सवीं सदी िें संगीि के प्रचार-प्रसार िें सवा​ा सर्क योगदान ससनेिा आ ससनेिासंगीि अथा​ा ि 'हचत्रप -संगीि'के बा । आि से ख़ास हर वगा के लोग के ससनेिा आकसषा ि करेला । ससनेिा के अंिगा ि कवनो कहानी, दृश्य, असभनय, संगीि के िाध्यि से सजवंि होला जवना से ऊ दशा कन पर सवशेष प्रभाव छोड़े िें सक्षि होला । कहानी िें वसणा ि सवसशि-सस्थसि के सवस्िार देवे, सजीव करे के उद्देश्य से दृश्य िें गीि के सिावेश कईल जाला जवन या ि सकरदार द्वारा गवावल जाला या आवश्यकिानस ु ार दृश्य के पािा िें बजावल जाला । कभी-कभार कहानी िें कवनो पवा -त्योहार के चचा​ा होला ि ओ त्यौहार से सम्बंसर्ि गीि भी सफल्िावल जाला, जईसे - होली, सदवाली, वैशाखी,करवाचौथ,रक्षाबंर्न,सशवरासत्र, दही-हांडी,गणेशोत्सव आसद । आज चचा​ा सचत्रपट से सम्बंसर्ि होली गीिन के । सफल्ि-जगि िें शायद ही के हु गायक/गासयका होई जे होली-गीि ना गवले होई । नूरजहाँ,शिशाद बेगि,िो रफ़ी,सकशोर कुिार,लिा िंगेशकर, िन्ना डे, िहेंद्र कपूर आसद से लेके सदु शे भोंसले, उसदि नारायण,अलका यासननक,सख ु सवंदर ससंह, ससु नसर् चौहान, शाल्िली खोलगड़े आसद िक । आई ंसचत्रपट के कुछ प्रससद्द होली गीिन पर चचा​ा कईल जाओ । सवाक् ससनेिा के प्रारंसभक काल िें बनल सफल्ि 'आन' (1951) के होली गीि कबो सनु ीं । शकील बदायूनँ ी के सलखल , नौशाद साहब द्वारा संगीिबद् कईल, लिा िंगेशकर आ शिशाद बेगि द्वारा कोरस रूप िें गावल गीि ''खेलो रंग ि​िारे संग, आज हदन रंग रंगीला आया '' गीि के एक-एक शब्द आ ओकर उिार-चढ़ाव के लिा जी आ शिशाद बेगि एिना सर्ल-सहज स्वर िें गवले बा लोग सक सनु के आिया होई, िन िें ई बाि जरूर उठी सक एह गीि खासिर ऊ लोग के िना बेर साथे रेयाज कईले होई ! एगो गौर करे लायक बाि सक, लिा जी के पिला आवाज वाला अलग पहचान 'िाजिहल' आ 'बरसाि' से बन गईल रहे एकरा बावजूद उनका आवाज पर नूरजिाँ के असर रहे । सफ़ल्िी होली गीिन पर लोक-गीिन के स्पि प्रभाव लउके ला । एह सन्दभा िें ि​ि​िाद बेगि के गावल सन 1957 िें ररलीज सफल्ि 'िदर इहन्द्डया' के गीि िन पारीं ''िोली आई रे कन्द्िाई रंग छलके सुना दे जरा बांसुरी । '' अगर सिकालीन गासयका लोग से िुलना कईल जाओ ि होली सम्बन्र्ी , िस्िी, नटखटपन, सरु अदायगी के लटका-झटका जवन शिशाद बेगि के आवाज िें लउकि रहे ऊ बहुि कि लोग िें लउकी । शिशाद बेगि के गायकी वाला अंदाज़ बहुि हद िक आिा भोंसले जी के आवाज िें भी लउके ला, खास कs के जब गीि के सिजाज चंचल होखे। कसव भरि व्यास के सलखल, सी.रािचन्द्र के संगीिबद् कईल आ आशा भोंसले जी के गावल सफल्ि 'निरंग' (1959) के होली-गीि इयाद करीं, सनु ी ि ई बाि प्रिासणि हो जाई । © आखर ● मार्च, 2015 ● 27

िंदन त्रसहं छपरा , सिहार के रहे वाला चंदन सिंह जी , भोजपुरी गजल गायकी के वास्िसवक जनक के रुप में जानल जानी । राष्ट्रीय स्िर प शास्त्रीय आ लोक िंगीि गायन मे कई गो पुरस्कार जीि चुकल िानी। िचपन िे ही िासहसत्यक रुसच िम्प्पन्न । कई गो अखिारन में इँहा के सलखल कथा, कहानी आ गीि छप चुकल िा । सहन्दी में उपन्याि भी सलखले िानी । हर िप्ताह भोजपुरी िंगीि के कड़ी में एगो


'' अरे जा रे ि न ख , न खोल िोरा घघूं , पल के दगूँ ी आज िोिे गाली रे िुझे सिझो ना िुि भोली-भाली रे । '' एह गीि के सफल्िांकन भी बड़ा नाटकीय रहे जवन अंि िक बंर्ले रहेला । गीि के चपल-चंचल बनावे िें 'ठेका' के सवशेष योगदान होला । 'नवरंग' के कुछ ही सदन बाद (1960) िें आईल नौशाद के संगीिबद् कईल सफल्ि 'कोहिनूर' के गाना सनु ी जवन िो.रफ़ी आ लिा िंगेशकर जी के आवाज िें बा'िन रंग लो जी आज िन रंग लो ' शब्द के साथ-साथ कदि कदि पर बदलि ठेका ई गीि के ख़ूबसूरिी के के िना बढ़ा देले बा। कुछ अईसने सिजाज के एगो गीि 'िीर-रांझा' सफल्ि िें रहे , नूरजहाँ, शिशाद बेगि आ जगजीि कौर के आवाज िें ''नाचे अंग िे , छलके रंग िे '' अईसे ि होली शब्द सनु िे सदिाग िें िस्िी-हुड़दंग आसद आवे लागेला बासकर प्रेि के सवसवर् रंग होली िें देखे-सनु े के होखे ि 'रहि' द्वारा संगीि बद्, आशा भोंसले के गावल 'फूल और पत्थर' सफल्ि के गीि सनु ी'लाई िै िज़ारों रंग िोली'' प्रेिी जोड़ा के छे ड़-छाड़ होली के गीि िें सनु े के बा ि 'क ी पिंग' (1970) के गीि, जवन आर.डी.बिा न के संगीिबद् कईल, सकशोर कुिार आ लिा जी के द्वारा गावल बा ''आज ना छोड़ेंगे ि​ि ि​िजोली, खेलेंगे ि​ि िोली '' ससनेिा के अंिगा ि कबो-कबो अइसनो देखल जाला जे कवनो सवशेष गीि से कहानी का कवनो सम्बन्र् ना रहेला बासकर ऊ आगािी दृश्य के िजबूिी देवे िें काफी सहायक होला, उदाहरण के िौर पर 'पराया धन' (1971) सफल्ि िें आर.डी.बिा न के संगीि िें िन्द्ना डे, आशा भोंसले आ कोरस स्वर िें गावल होली गीि सनु ी कबो ''िोली रे िोली , रंगो की डोली, िंिु िो ना छुपा ओ रानी िान भी जा'' एह गीि के कहानी से कवनो सरोकार नईखे ना के हु िख्ु य पात्र ही ई गीि िें शासिल बा बासकर असगला गंभीर दृश्य, जवन बलराज साहनी आ असजि के ऊपर सफल्िावल बा, ओकरा खासिर ई गीि एगो प्लेटफािा िैयार करि बा, ई बाि ई सफल्ि देखि सिय नोसटस करे लायक बा । गाँव -सगरान िें गवाए वाला ठेंठ लोक-गीि होखे , शास्त्रीय-

संगीि के ठुिरी शैली वाला होली होखे चाहे सचत्रपट के होली, होली के चचा​ा होखेला ि श्रीकृष्ट्ण के चचा​ा असनवाया बा । कृष्ट्ण के अलग-अलग रंग सफ़ल्िी होली िें देखीं िन्ना-डे आ उषा िंगेशकर आ कोरस स्वर िें सफल्ि 'दो हदल' के गाना - ''बनिारी ना िारो, ना िारो हपचकारी, पइयां परूँ करूँ हिनिी िजार ।'' पं रसवशंकर के संगीिबद् कईल सफल्ि 'गोदान' (1963) िें िो.रफ़ी आ कोरस के गावल - ''हबरज िें िोरी खेलि नंदलाल, ग्िाल बाल संग रास रचाि​ि , न ख नन्द्द गोपाल ।'' गीिा दत्त के गावल सफल्ि 'लड़की ' के गाना - ''बा चलि नयी चुनरी रंग डारी रे, ऐसो िै बेददी बनिारी '' रफ़ी, िक ु े श, आशा भोंसले आ साथी के गावल 'िस्िाना'(1970) के गाना - '' नंदलाला िोरी खेलें हबरज िें धूि िची '' आ होली के हुड़दंग से हटके 'फागुन' (1973) सफल्ि के होली-गीि िन पारीं जवन लिा िंगेशकर के स्वर िें रहे- '' हपया संग खेलो िोरी , फागनु आयो रे '' | शास्त्रीय-संगीि के झाँक लेले एगो गजब के होली । 'िोले'(1975) के होली के हु कईसे भुला सके ला - 'िोली के हदन हदल हखल जािे िैं ...' सकशोर कुिार आ लिा िंगेशकर के गावल , आर.डी.बिा न के संगीि । ई गीि के साथे 'गब्बर ससंह' के डायलॉग भी िन पड़ जाला - होली कब है, कब है होली ! सवषय से अलग पर एगो सदलचस्प बाि, जवन शोले सफल्ि से सम्बंसर्ि एगो टीवी शो िें बिावल गईल रहे सक, शोले के शूसटंग िें दू साल लागल रहे आ होली वाला गाना के शूसटंग िें पूरा एक िहीना लागल रहे । आर्सु नकिा के साथे लोक-शैली के प्रयोग करे वाला कुछ सगनिी के संगीिकार लोग िें से एगो नाि बा राजेि रोिन (संगीिकार रोिन के लड़का, राके श रोशन के भाई आ ऋसिक रोशन के चाचा) के । 'कािचोर' (1982) सफल्ि िें इनकर संगीिबद् कईल, लिा िंगेशकर आ सकशोर कुिार के गावल गीि पर कभी गौर करीं - 'िल दे गल ु ाल िोिे, आई िोली आई रे ' , गीि के बीच िें बांसुरी आ शहनाई पर उत्तराखंड के लोक र्नु के एिना ख़ूबसूरिी से बजावल बा जवन प्रशंसा लायक बा । कुछ अईसने प्रयोग राजेश रोशन के ही संगीिबद्

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कईल 'आहखर मयों' (1985) के होली गीि - 'साि रंगो िें खेल रिी िै हदलिालों की ोली रे', िें लउकी जवन असि​ि कुिार आ अनरु ार्ा पौडवाल द्वारा गावल बा । िख ु ड़ा आ अंिरा के बीच स्पैसनश सगटार जईसन पािात्य वाद्य पर लोकर्नु अिना ख़ूबसूरिी से बजावल बा जवन िनु र् क देला । अईसे ि 'हृदयनाथ िंगि े कर' जी (लिा जी के छोट भाई) बहुि कि सहंदी ससनेिा िें संगीि देले बाड़ें बासकर 'ि​िाल' (1984) के गीि सकशोर कुिार आ लिा जी के गावल होली-संदसभा ि गीि उल्लेखनीय बा ''िोली आई िोली आई देखो िोली आई रे'' अब बाि होली के सवा​ा सर्क प्रचसलि गीि के , जवन के हु प्रोफे शनल गायक के गावल ना ह …जी , रउआ ठीक बझ ु नी । हि िहानायक अहि​िाभ बच्चन के गावल 'हसलहसला '(1981) सफल्ि के गीि के बाि करि बानी - ''रंग बरसे भींगे चनु रिाली , रंग बरसे '' पंसडि सशवकुिार शिा​ा आ पंसडि हरी प्रसाद चौरससया के संगीि रहे, जे 'हि​ि-िरी' नाि से सफल्ि िें संगीि देि रहे लोग । हालाँसक एह गीि के काफी आलोचना भी झेले के पड़ल । कुछ लोग कहलक सक असि​िाभ बच्चन के आवाज गायकी के अनक ु ू ल नईखे । 'हररवंश राय बच्चन' जी के भी आलोचना भईल दअ ु थी रचना खासिर । ओइसे ई गीि बच्चन जी के िूल रचना ना ह लोकगीि ह, जवना के शब्द िें फे र-बदल क के ई गीि सलखाईल रहे । चाहे जे होखे बासकर ई गीि के अिना प्रससद्द होखे के एगो इहो कारण बा सक एकर गायकी आ संगीि एकदि आि बा जवन सहज जबु ान पर चढ़ जाला । नब्बे के दशक िें भी 'सशव-हरी' के संगीि से सजल एगो आउर गीि बहुि प्रससद्द भईल - ''अंग से अंग लगाना सजन िोिे ऐसे रंग लगाना '' सफल्ि रहे 'डर' (1993) आ अलका यासननक, सदु शे भोंसले आ सवनोद राठौड़ गवले रहे लोग । बाद के सिय िें एक बार फे र असि​िाभ बच्चन के गावल होली गीि बहुि प्रससद्द भईल - ''िोरी खेले रघुिीरा अिध िें, िोरी खेले रघुिीरा'' | सफल्ि रहे 'बाग़बान' (2003) , संग ीि रहे आदेश श्रीवास्िव के आ गीि िें सहयोगी स्वर रहे - सख ु सवंदर ससंह, अलका यासननक आ उसदि नारायण के । साल डेढ़ साल पसहले आर्सु नक संगीि से लबरेज एगो होली गीि बहुि प्रससद्द भईल रहल हs- ''बलि हपचकारी'' सवशाल-शेखर के संगीि से सजल सफल्ि 'ये जिानी िै दीिानी' (2013) के गीि जवन सवशाल ददलानी आ शाल्िली खोलगड़े के आवाज िें रहे ।

होली के आउर गीि सपछला कुछ वषा िें आईल हs , जइसे 'िक़्ि' (2005) के अनु िसलक आ ससु नसर् चौहान के गावल - '' डू िी अ फे िर ले ् स प्ले िोली'' , 'िंगल पांडे' (2005) िें उसदि नारायण, आसिर खान, िर्ु श्री, सचन्ियी श्रीप्रदा आ श्रीसनवासन के गावल - ''देखो आई िोली, रंग लाई िोली '' आसद बासकर श्रोिा के पसंद के कसौटी पर खरा ना उिरल , अस्िु । सहंदी सचत्रपट ही ना क्षेत्रीय भाषा के ससनेिा िें भी होली गीि बनल । भोजपरु ी भी अछूिा नइखे । भोजपरु ी ससनेिा के िीन काल-खंड िें बाँटल जा सके ला । शरू ु के दू दौर िें सगनिी के परन्िु साथा क ससनेिा बनल जवना िें 'नहदया के पार' (1982) के होली-गीि- ''जोगी जी धीरे-धीरे'', जवन जसपाल ससंह, हेिलिा आ चंद्राणी िख ु जी के गावल रहे, उल्लेखनीय बा । भोजपरु ी ससनेिा के िीसरा आ विा िान दौर के सफल्िन िें भी होली गीि बनि बा, खूब बनि बा बासकर ओह गीिन िें साथा क चचा​ा लायक शायद कुछ नईखे , भोजपरु ी के दभु ा​ा नय ।

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कर्था / सावहत्य

नकभेसर कागा ले भागा “ नकभेसर कागा ले भागा

अतुल कुमार राय िसलया युपी के रहे वाला अिुल कु मार राय जी काशी में िंगीि के िाधना कर रहल िानी । भोजपुरी आ सहंदी में सलखे के एगो खाि शैली ह अिुल जी के । भोजपुरी के पारम्प्पररक गीिन प इँहा के सववेचनात्मक ढंग िे सलखाईल लेख आखर प पसहले भी पोस्ट भईल िा । भोजपुरी लोकगीि आ पारम्प्पररक गीिन प इँहा के लगािार सलख रहल िानी । एह घरी इँहा के िनारि मे सनवाि िा ।

िोरा सइयाँ अभागा ना जागा "

जु से दस साल पहीले..ठीक एही बेरा.. रउरा दस बजे रासि खा अपना दआ ु र प सनकलिीं....ि िोलक झाल आ िजीरा के संगे पनरह आदिीन के आवाज एक सूर िें सनकल के रउरा कान से टकराइि....उिंग आ उत्साह से भरल कई सकससि के फगआ ु आ जोगीरा सनु ाइि... इ सनु िे रउरा देहीं िें फगनु हट के असर होखे लागीि....हो सके ला रउरो गावे भा नाचे के िन करे लागीि.... काहें की लोकगीि के सम्बन्र् हिनी के भीिरी शरीर यानी आत्िा से बाटे... रोवाँ रोवाँ कहे लागीि की ना अब फगआ ु आ गइल... इ अइसन िौसि ह की चारो ओर उत्साह ही उत्साह एगो अलग ऊजा​ा आ स्पंदन के आभास करावेला. प्रकृसि से लेके जानवर आ आदिी ले एकर असर रहेला...सभे गायक हो जाला । अर्पक गेंहू िटर ,सपअराइअल सरसों के फूल से सजल खेि..ओने अिवा के िोजर प बइठ के कुहुकि कोयल... आ एने िहुआ के रसदार डाँढ़ी... कल्हूआड़ा िें बनि नया नया गड़ु के संगे िन िीठ हो जाला.. फगआ ु के िैयारी.रोज सांझी का सहसाब ..के का पसहनी.सबके .नया सकनाई की परु ाने से काि चली..की खाली लइकन के सकना जाव.... ओह सदन का बनी..के के के के रंग लासग.. िने आलि ई रहेला की दस सदन पसहले से आदिी िने िने फगआ ु खेले लागेला...ओह िें भीगे लागेला.. जे अपना घर से बाहर रही के किािा ओके घरे लवटे के सचंिा...इहाँ एक साल से राह िाकि घर के िेहरारू... की छठ िें ना अइलें ि हो सके ला फगआ ु िें आ जास.... ओह इंिजार के ददा आ छटपटाहट के बीच कई गो लोकगीि आ फाग भी हिनी के परम्परा िें गावल जाला.....

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एने घर के लहुरा देवर अपना भउजाई से िाजा लेबे लागेला... की "भइया नइखन ि हि बानी न डाले खािी" भउजाई भी िने िने लजा के एक सबिा िड़ु ी सनचे क लेली..... ई सब रंग ह जीवन के ..जेकरा बारे िें जेिने कहाव उ कि बा। साँच पूछीं ि यसद त्यौहार ना रहे ि आदिी के जीवन अजीब नीरस हो जाइि... लेसकन अब बहुि फास्ट सिय िें हो गइल बानी जा हिनी के ..

एह िें दू राय नयखे की कुछ लच्ु चा गायक रूपी कउवा.भोजपरु ी के गररिा रूपी नकभेसर के लेके भाग रहल बाड़े स...अभी से भी जागल ना गइल ि आगे चल के चइिा कजरी होली इ सब संक्रसि​ि हो जाई....जब बाजार िें खाली नकली घीव सिली...ि लोग ओही से काि चलावे लागी..एडजस्ट कइल आदिी के स्वभाव िें बा...भोजपरु ी गीि संगीि के संगे इहे सिस्या बा की लोग असली के अभाव िें नकली संगे एडजस्ट क लेले बा। आवे वाला सिय िें इ बड़ चनु विी बा की गाँव िें गाँव बाचल रहे...

इंटरनेट के स्पीड बहुि कुछ फास्ट क देले सबया..अब िये एक क्लीक प हासजर बा....िेर लोग इंटरनेट प रंग लगाके होली िनाली..

खेि िें खेि बाचल रहे...

अब फगनु हट के एहसास खािी गाना बजाना के जरूरि नइखे..

आ त्यौहार िें त्यौहार

आ गनो बजाना अइसन बा की रउरा लाज शरि रही ि फगआ ु से नफरि हो जाई..

आ गाना िें गाना बाचल रहे।

आदिी िें आदिी बाचल रहे होली िें होली

फगआ सभे मनावेला “संिसि िईया जरर गईली पूआ पका के र् गईली अलाइ-बलाइ ले गईली उज्जर सदनवा दे गईली”

पआ ु सोहारी अउरी पौड़सकया सजसभया के िरसावेला हिनी जवन खा लेहनी आजु ना बचवा पावेला नया फससलया हररहर फे ड खूटँ सबके िनवा भावेला झरु झरु बहे फगनु हट बेयररया नवकन के िरसावेला कहवाँ हउवन िोर पहुनवा करेजवा िें पीर उठावेला

आत्ि अउरी परिात्ि सिलन के अइसन लहररया आवेला सपचकारी िें रंग भरल कान्हा के इयाद सदआवेला भाँग के गोला बि-बि भोला चारु ओर घोराइल बा भगसि प्रेि अरू असरु सिजाज के सिलल-जल ु ल ई िेला हs सनिन-बाउर सब सबसरा के बसहया बढ़ा के गरे लगा के फगआ ु सभे िनावेला होसलका दहन के उठि लहररया जीनगी के पावन बनावेला I

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मालती त्रिपाठी िंगीि िे स्नािक , दु गो सवषय मे एम. ए. मालिी सत्रपाठी जी िनारि, युपी के रहे वाली हईं । इँहा के िंगीि , योग आ िासहत्य के िेत्र मे िहुि काम कईले िानी । भोजपुरी पत्र पसत्रकन में लगािार सलखि रहेनी । आकाशवाणी में रस्िुसि दे चुकल िानी । कफलहाल िनारि में िानी |


गीर् / कविर्ा

फागन आ गइल का !!! (एक)

प्रमोद कुमार त्रतवारी भभुआ सिहार के रहे वाला रमोद कु मार जी , कें द्रीय सवश्वसवद्यालय गांधीनगर , गुजराि मे असिस्टेंट रोफे िर िानी । इँहा के भोजपुरी आ सहन्दी िासहत्य खासिर लगािार काम कर रहल िानी । पत्र पसत्रकन में रमोद जी के रचना आकषिण के कें द्र होली ि । भोजपुरी भाषा आ िासहत्य के इँहा के अपना लेखनी िे िररआर चोख धार देले िानी । एह घरी गांधीनगर गुजराि मे िानी ।

ई भोरहररए से िन काहे बउआि बा, कोइलररया ि बझ ु ािा पगला गइल सबया बोल बोल के कपार दख ु वा सदहलस जइसे ओकरो सवांग कहीं चल गइल होखे सरू ु ज बाबा के िनी देखीं देह िोड़ि, थथि-थथि के आ रहल बाड़े, ई सबेर, सांझ नीयन काहे लागि बा, एक िोड़ अउर सूि सलहीं का ! असदिी के का कहीं अलसा के पसर गइल सबया 'दपु हररया' अंगना िें अल्हड़ घरघिु नी र्ल ू सगरी गाँव के चक्कर लगा रहल बा आँख-कान िें घस ु के जइसे खेलि होखे 'र्ल ु ंडी' जिीन प गोड़ र्रे के नांवे नइखे लेि हे शोख परु वइया के का कहीं र्ोिी खींच-खींच कर रहल सबया सठठोली, बड़ बज ु गु ा के कवनो सलहाज नइखे एकरा लजार्रु र्रिी के देहीं प भर हीक उबटन लगवला के बाद पूछ रहल सबया सरसों एक बेर अउर लगा दीं का ! ‘सांझ’ आि के बगइचा िें गिे से उिरल सहय गाँव िें घस ु ि घरी डगिगाि रहल हऽ ओकर गोड़, िहुँ से आवि रहे कच्चा बउर के गंर् कोयल के 'कबीरा' पऽ 'कहरवा' के ठेका लगा रहल बा 'कठफोड़वा', िाल के जलिरंग पर नाच रहल सबया चाँदनी, बूढ़ऊ बरगद के सनु ा रहल बा िहुआ नशीला आवाज िें कवनो आसदि प्रेि कहानी

२ । आखर पत्रिका

. फ़रवरी २०१५

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हवा के थाप प झूि रहल सबया िािल 'राि' ओकरा िसनको सर्ु नइखे अपना सरकल अंचरा के पत्िा के आड़ ले सटटकारी िार रहल बा िआ ु 'सटसटहा' हिरो देह एिना काहे टूट रहल बा आज फगआ ु आ गइल का हो?

फागुन आ गइल का? (दो) िईु ऊ ‘पसहलकी छुअन’ जाने काहें आज िन पागल कइले सबया पंडीज्जी के कहला प जब कांपिी अंगरु ी से पकड़ले रहले हिार हाथ जब पूरा देह ससिट गइल रहे हाथ के अंगरु ी िें पंडीज्जी के िंत्र के जगही गूंजि रहे र्ड़कन अरे छोड़ीं सभे, घर िें हेिना काि बा बाबूजी के नस्िा देबे के बा.... िन बार-बार चाहि बा िोजराइल आि के गझीन गंर् िें भीगि रहीं भर राि रोि-रोि िें बसा लीं सरसों के पीयरई ना-ना, रोि-रोि के कपाट बंद कर लीं कइसहूं सटे न पावे कोयल के कराल कूक अबहीं ि अम्िाजी खासिर पानी गरि करे के बा... िोहरा बारे िें ि भूलाइयो के ना सोचब सक पूरा साि िसहना हो जाई िहरा देखले एह एकादशी के । गेंदा के गंर् हइसे ि ना चढ़ि रहे कपार पर जाने का हो गइल बा बयार के लागि बा उड़ा के ले जाई कहीं घािो के िसबयि ठीक नइखे बझ ु ाि कबो सिावि बा कबो िनावि बा. हाय राि, बरिन कटकटा गइल रखले रखले...

घूि सफर के सब काहें बसियावि बा िोहार बाि के कर सवांग ना जाले बाहर हि कहां कुछ िंगले बानी िोहरा ससवा पड़ल रहे दऽ खेि के रेहन ना चाहीं हिरा के चांपाकल िो लेसहब ससवान के ईनार से पानी. सचरइयो चरु गनु से गइल बीिल बानीं हि भाग के लेखा थोड़े नू बदल देही परदेशी सेठ ई का हो रहल बा िोह करिजली के फागनु आ गइल का?

गारी किेसरा के दादी, कांपि आवाज िें गररयावि रही िह्मा सवष्ट्णु िहेश के , उनका झरु रा यन िें अंटकल रहे िेर सारा लाज के लाली। नटवर नारायन ि हरिेसे से चालू ठहरले आ िह्मा के बढ़ु ौिी के खयाल ि भाई करहीं के पड़ेला िेर होई ि उनका सन जइसन दाढ़ी िें कररखा पोिा जाई। बासकर हर बार पकड़ा जाले बेचारे बिभोला अड़भंगी, नसेड़ी, शंभु के खूब होला िलाि​ि सक कीरा सबच्छी वाला बौड़ि के हाथे पड़ गइली सक ु ु िारी गउरा। खेि-खरीहान िक पसरल जाि गारी के सरु , का जाने का रहे गारी िें सक सास के िार भल ु ा गइल फुलिसिया नयका पाहुन के गररयावे के बोलावा पा के । आ रससक राजा दशरथ से िोछिंडु ा देवर िक सरपट दउड़े लागल गारी के सरु गनेस बो ि, एिना डूब के जोड़ि रही ररश्िेदारन के नया संबंर् सक बेिानी हो गइल रहे अंचरा र्र के रोवि लइका के आवाज

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इंसडया गेट जइसन पेट वाला भसरु जी गवसनहाररन के दीहले दू गो कड़कड़ सौटसकया नोट

बहुि सदनन से िंहु फुलवले अलिगीर भाई के कबीरा के बहाने एिना गररयवले सगररर्र पंसडि सक ‘ससरु ा ससठया गइल बा’ कहि उनका गले लगवहीं के पड़ल। िन भर पाहुन के गररया लेला के बादो बहुि कुछ बांचल रह गइल रहे जवना के अँचरा के खूंट िें बान्ह के घरे ले गइल रसर्या अउर जवना के कई सदन िक चभल ु ावि रहले पोपला िंहु वाला असजया ससरु ।

चउठारी आइल बढ़ु उ के गारी सबना एकदि फीका लागल खाना खूब सरपले गाँव वालन के संस्कार के । बी.एच.यू. के सबरला छात्रावास के परु ान छात्र थररया पीट-पीट नाचि, फागनु के एगो राि िें यौन संबंर् प कइलस ररसचा सबेरे गदा न प चूना थोप के सनकलल डी.सलट. के सडग्री जइसन।

बासकर िईु ! का जाने कइसन गारी रहे ओह बचवा के सक हो गइल दंगा अउर र्ह-र्ह जरे लागल पूरा के पूरा शहर जवना के बझ ु ावि रहे लोग एक दस ू रा के ख़ून से।

िंत्रीजी चेलन से पूछि रहने आहो, कुछ भाव सगर गइल बा का एह साल अस्सी के होली िें ससरु ा ना लेहले स हिार नाि

ि

कजम्मेवारी (लघकथा) “िसहिा! उठ।उठ।हिार ऊ नवका कुिा वा कहाँ बा।जल्दी

सहिा रोज की िरे आजओ ु सबहाने पांच बजे अर्नीन से उठ गईली। उसठ के घर के झारल-बहारल क के चाय बनवली अऊर फे र अजय के जगा के चाय सदहली। अजय चाय पीके फे रु सिु गईलन। एने िसहिा सोनू के जगा के स्कूले जाये खासिर िईयार करे लगली। सोनू स्कूल चल गईल। अब िसहिा अजय के कपड़ा इस्त्री कईली, नाश्िा बनवली आ फे र अजय के जगवली। अजय उठले अऊर िसहिा के एने-ओने द-ू चार गो सीख-सिझ देि-देि िईयार भईलें। अऊर करि-र्रि नौ बजे आसफस चल गईलें। उनका गईला के बाद िसहिा नहा-र्ो के िसन पूजा-पाठ कईली, फे र लंच बनवली आ लंच लेके सोनू के स्कूले गईली। दपु हररया के बारह बजि रहे। लंच दे के घरे अईली आ ,आके खाना खईली, फे र रसोई के साफ़-सफाई िें लगली। करि-र्रि दू बज गईल। बहुि थकान लागि रहे ि ऊ िसन आराि करके सोचली सक िबे सोनू स्कुल से आ गईले। ऊ सोनू िें लाग गईली। एह सबिे बज गईल चार। एकरी बाद ऊ िसन लेटली सक िबले अजय आ गईलें। आविे िसहिा के जगवलें। कहलें,

द।” “कुिा​ा ि अलिारी िें होई।बाकी इस्त्री ना होई।अबे क दे िानी।” “का ि​िलब ? इस्त्री नईखे !” अजय गरजलें, “का करेलू िू सदन भर घरे ? सिु ले आ एने-ओने के बिकूचन से िोका सिली िब न करबू इस्त्री । िरद काि प गईल ना सक िहार सफजूल के बिकूचन शरू ु ।घर-सगरहस्थी के ि कौनो सफसकर बा ना ! पिा ना, कब सिझबू िू आपन सजम्िेवारी!” कसहके अजय चल गईलें।

पीयूष त्रिवेदी भारतीय

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रा

सम्मान समारोह आ भखाइल मन

ि हिरा फे र सम्िान सिलल बा। के देहल आ काहे खासिर सिलल ह, ई पूछे वाला रउआ के हई ं? खैर जानहीं के चाहिानी ि जान लीं सक भोजपरु ी िें कुछ सलखला पढ़ला खासिर एगो व्यसिगि संस्था हिरा के भोजपरु ी िें बड़हन उपासर् दे के फे र सम्िासनि कइले बा। अब रउरा पछ ु े ब सक काहे खासिर? ि जब हि खूदे नइखीं जानि सक काहे खासिर, ि रउरा के का बिाई ं ? ओइसे भोजपरु ी िें एह िरह के सम्िान लेब-े देबे खासिर कवनो वजह के जरूरि नइखे। जबे िरजी िबे ई शभु काि सम्पन्न। आ सम्पन्न काहे ना? जब आपन चद्दर, आपन िाला, आपन आवेजाये के सकराया आ कवनो आयोजन िें आपन चंदा देवे के िाकि हिरा पाले बा, ि एगो का ? एक बोलावे चौदह र्ावे। जहां िक उपासर् के सवाल बा, ि ‘भोजपरु ी श्री’, भोजपरु ी िहारथी, भोजपरु ी रिन, भोजपरु ी गौरव जइसन उपासर् के हु के बाप के ना नू ह ? हिरा जवन िन करी िवन, कवनो पासकट संस्था से ले लेब। जब सिलला के खबर हि अखबार िे सनकलवायब ि रउरा पिे के बेरा आँख ना नू िून्द लेब ? आ दू घड़ी खासिर िान सलयाव सक रउरा आँख िूंदीये लेब ि दसु नया के पढ़े से ना नू रोक देब? रउरे बेटा इ सिाचार अखबार िें पढ़ीं आ रउरा से जा के कही सक िंग साहेब के अक्कीलपूर सदयरा िें पसण्डि हजारी परसाद सद्ववेदी भोजपरु ी संस्थान का िरफ से ‘भोजपरु ी सम्िान’ सिलल ह, ि रउरा का करेब ? अपना लइका के िारेब ? रउरा ना उपासर् रोक सकिानी ना आयोजन स्थल कहाँ रही, इहो रोक सकिानी। रउरा ि रउरा, जवन अखबार छापिा ओकरो पूछे के पावर नइखे, ि रउरा के हई ं जी ? पईसा फें क ि​िाशा देख। काल्ह चलहीं के बेरा बेटा आ िेहरारू दनु ू जाना गरि हो गइल लोग। िेहरारू डांटे लगईु – अिना सदन से गांवा-गाई ं से भोजपरु ी के सम्िान-पत्र सबटोर के ले आविानी बासकर आज ले ि कुछ ना बझ ु ाइल। कं ही से सम्िान सिलला से अड़ोस-पड़ोस आ संवसे सिाज िें प्रसिष्ठा बिेला , रउरा के िs आज ले एगो कुकुरो ना पूछलस। बड़का बेटा ि िनी अउर गरि रहुअन। कहे लगअ ु न- बाबूजी, सम्िान पत्र ि ले आविानी बासकर चदररया का क दीलें ? कि से कि सम्िान के साथे चदररयो ले अंइिीं ि जाड़ा िें दू-चार आदिी के काि चसलि आ अइला-गइला के खरचो के कुछ सार्न होइि। बासकर बड़कू के का पिा सक आज ले सब सम्िान एके गो चद्दर पे हो गइल। अब फोटो िें चद्दर थोड़े सचन्हाला जे हर बेरा बदलल जरूरी बा। िाई जीअिीआ, िेहरारू आ लइका दनु ू जना के डंटुए आ बड़कू लइका से लगएु कहे- िोर िाई का जाने कवना खानदान से आइल सबया बासकर कि से कि िें ि एह खानदान के हइस। अिना सदन से हि बरदाश्ि कर िानी आ िोहनी के आजएु घबरा गइले सन। इहे ना हिरो बाबूजी एक बक्सा सम्िान पत्र एकठ्ठा कइले रहनी जवना के उंहा के िुअला के बाद भज ु ा बेचवे ाला के हाथे सबकाइल। अइसे भी सम्िान का पढ़ला सलखला से कवनो ररश्िा आज के दौर िें नइखे रह गइल। िुलसी दास, कबीर दास, िीरा बाई, रसखान आ चाहे नयका दौर िें प्रेिचन्द वगैरह के नाि के सम्िान भले दोसरा लोग के सिल जाव बासकर एह लोग के सजयि © आखर ● मार्च, 2015 ● 35

व्यंग

तंग इनायतपुरी िंग इनायिपपुरी (िुनील कु मार िंग) जी आजू के िमय में देश सिदेश में एगो जानल मानल कसव के रूप में स्थासपि िानी। इंहा के िीवान के रहे वाला हईं आ पैिृक भूसम सपलुई (दाउदपुर) ह। पेशा िे हस्िरे खा आ अंगुलांक सवशेषज्ञ हईं िंग जी। हास्य-व्यंग के रूप में, मजासहया शायर के रूप में आ मंच िंचालक के रूप में इंहा के भोजपुरी, सहन्दी आ उदूि के िैकड़ों कसव िम्प्मलेनन में देशसिदेश में आपन एगो अलग पहचान िना चुकल िानी। देश के शीषिस्थ पत्र-पसत्रका में िंग जी के रचना रकासशि होिे रहेला। दु िररि पसहले, भोजपुरी में उं हा के काव्य-िंग्रह “के हु मन पड़ल” रकासशि हो चुकल िा। भोजपुरी खासिर आखर के िंघषि में इहाँ के िहुि योगदान रहल िा शुरुए िे।


सजनगी कवन उपासर् भा सम्िान सिलल रहे ? सिलबो कइल ि िअ ु ला के बाद। ई ि हिरे जइसन जीवट के आदिी बा जे एिना सम्िान पा गइल। सनु के िेहरारू बोल पड़ली – एगो बड़हन व्यंगकार सलखले बाड़े सक सिाज िें सम्िान दू िरह के लोग के सिलेला। एगो ऊ, जेकरा के देला से सम्िान खूदे सम्िासनि हो जाला। आ एगो ऊ, जेकरा के देला से िेर सदन ले सनिना जगे जाये से डेराला। उहे व्यंगकार आगे सलखले बाड़ें सक जब के हु शहर िें नाकारा चाहे दीवाना नजर आवे लागे ि ओकरा के सम्िासनि कर देवे के चाहीं, िासक भटकल आत्िा के ठेकाना सिल जाव। आज हि जइसे लवट के घरे अइनी हं िले िेहरारू आके लगे बइठ गइली ह। कहे लगली ह- उंहवो राउर सम्िान भइल ह का जी? हि िस्ु कइनी हं ि ऊ फे र बोल पड़ली- एजी, ई कवन लोग ह? आज ले ि रउरा घरे इज्जिे ना सिलल। बहरी लागिा जे रउरा बारे िें िेर जानिे नइखे लोग। हि झपट पड़नी हं- आज ले बहरी ओकरे इज्जि सिलल बा जेकरा घरे कवनो इज्जि ना रहे। देख ल आसद कसव काली दास के , लोक नायक िुलसी बाबा के आ कबीर दास के । हिरो उहे हाल बा। िेहरारू ज़ोर से हंसे लगली ह- चलीं, उदाहरणे के बहाने रउरा कालीदास, िुलसी बाबा आ कबीरदास के लाइन िें ि खाड़ा भइनी। उनकर हंसी हिरा ओसहीं लागल ह जइसे चीनी के लेप िें कुनैन। हि सिलसिला गइनी हं आ ऊ हो-हो क के हंसे लगली ह। अिने िें दरवाजा पर लागल घंटी बाजल ह, ि हि िेहरारू के अंदर जाए के इशारा करि लपक के दरवाजा खोलनी हं। एगो उज्जर कुिा​ा पायजािा पसहरले भद्र

आदिी हिरा घर िें दासखल भइल ह। हि जइसे पररचय पछ ु नी हं उ शालीनिा से बोल पड़ल ह – हि अइसे ि अखबार िें काि करीले। अखबार िें हि सवज्ञापन सवभाग के प्रभारी बानी। आउर सासहसत्यक आयोजनो कइल हिार खास र्ंर्ा ह। एिना कहिे उ सोफा पर बइठ गइल ह। हि कुछ कहिी ओकरा पसहलहीं उ लागल कहे- असगला िसहना पच्चीस िारीख के एगो सवराट सासहसत्यक आयोजन बा जवना के बारे िें हि अपने से कुछ सवस्िार से चचा​ा करे के चाहिानी। हि अन्दर से चाय ले आवे के पक ु ार लगा के उनका से कहनी हं- हँ, कहल जाव। उ लगले कहेएह आयोजन के एिना परचार अखबार के िाध्यि से होई सक हजारों के िादाद िें लोग दशा क बन के आई। अखबार आ इलेक्रोसनक िीसडया के भरपूर व्यवस्था रही। एिना सनु िे हिार िन उपर-नीचा होखे लागल ह। पछ ु नी हं जे के करा- के करा के बोलवले बानी ? उ कहले लगले हँ- अभी हि असिसथ के नेविा नईखीं देले। सबचार ई बा सक जे पचास हजार रूसपया दी उ उदघाटन करी, जे चालीस हजार दी उ िख्ु य असिसथ बनी, जे िीस हजार दी उ अध्यक्षिा करी, जे बीस हजार दी उ सवसशष्ठ असिसथ बनी आ पाँच-पाँच हजार रूसपया कसव लोग से लेके ओह लोग के अंग वस्त्रि देके सम्िासनि कइल जाई। सवशेष असिसथ आ सम्िान पावे वाला लोग के संख्या कइ गो हो सके ला। उदघाटन खासिर राउर नाि कुछ सवद्वान सासहसत्यक सित्र लोग सझ ु वले बा। सनु के हिरा िहुँ िें पानी आ गइल ह, बासकर पईसा के सवाल बा। हि कुछ देर सोच के कहनी हं- देखीं, कई िहीना से सपनससन नइखे सिलल। पईसा के बड़ा कड़की बा। घरे कहेब ि िूफान खड़ा हो जाई। एह से हिरा के सम्िासनि होखे वाला कसव िें राखल जाव। उ फे र नहला पे दहला िारले हं। देखीं, अइसन िौका बेर-बेर ना आवे। एके बेर िें सासहत्य िें अिर हो जायेब। असस्थर िन से सोच लीं। हि फे र कालह आयेब। एिना कह के उठ के चल गइले ह। जबसे उ गइल बाड़ें, कई जगह फोन सिला चक ु नी। अभी कहीं से कवनों हथफे र के गंज ु ाइस लागि नइखे। हि आपन िन खींच के पाँच हजार वाला सम्िासनि कसव पर ले आविानी बासकर बेर-बेर उ िख्ु य असिसथ पर चल जािा। देखीं काल्ह का होला ?

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भोजपरी भाखा आ साकहत्य के वतज मान कस्थकत भो

जपरु ी भाखा आ सासहत्य के एह घरी के चाल आ लय संिोषजनक ना कहल जा सके ला। कसविा आ गीि के सस्थसि सजयादा सचन्िाजनक बा। सपयवा, बलिआ ु , र्सनया, गोररया, कजरा, चनु री से आगहुँ कुछो बा की ना ? भले कहानी कि सलखल जा रहल बा बासकर कहानी जिने संख्या िें बा ओह िें सरोकार भी बा, िाटी के गंर् भी बा आ जिीनी सच्चाई भी बा। कसविा जादे संख्या िें सलखािा बासकर जादेिर रचना िें नयापन ना लउके । अब सवाल ई खाड़ा होिा सक आसखर कब ले पानी पर परु ान लाठी पटकाई ? दोसर भाखा आ सासहत्य से भोजपरु ी के िल ु ना कइला पर बहुि सनरासा होला। बहुि दूर गइला के गरज नइखे। रउवा िैसथली पर नजर दउरा के देखीं ि आपन सज ृ न के बजबजाि जिीन के हकीकि लंगटे लउकी। िैसथली िें जिना पसत्रका सनकल रहल सबया, जिना पस्ु िक-पोथी छप रहल बा आ िैसथली भासी लोग आपन बोली-बानी खासिर जिना लागल-जटु ल बा लोग ओह िक ु ाबला िें भोजपरु ी आ भोजपरु रया लोग कहवां बाड़ें ? सबसे दिगर सिय बा, जेकरा साथे चाहे-अनचाहे सब के जडु ल रहे के बा । िांग हिेसा सिय के होला आ सिय के िांगन के पूरा कइल जरूरी होला ना िs रेस िें अपन कउनो सगनिी ना होखी। भोजपरु ी ससनेिा आ एलबि से भोजपरु ी के िंहु पर जउन कररखा लागल बा ओकरा के पोंछे खासिर ना जाने किना लिहर कोस नापे के पड़ी, कहल िोससकल बा। सत्तासासन िें बईठल किना बड़ नाि वाला भोजपरु ीया कपूि सब भोजपरु ी से वेश्यावसृ ि करवावे के भारी अपरार् कई रहल बाड़ें । ओ लोग के कबो िाफ़ ना कईल जा सके ला। ससनेिा एगो दिगर िाध्यि बा। एकर परभाव लोग सिाज पर जादे पड़ेला। ससनेिा के गीि िें अश्लीलिा जरूर बा बासकर ओह िें नवका रेंड के अपनावे के छि​िा बा। नवका सब्द आ उपिा गढ़े के क़ाबसलयि ई गारी सनु े वाला गीिकारन िें बा। ठीक ओईसे जइसे एक आदिी के हाथ िें थिल बन्दूक के सवचारर्ारा के कारिूस होखे आ दूसर िें अपरार् आ पाप के । बासकर पाप के कारिूस इस्िेिाल करे वाला रचनाकार सबके सनसाना पर कउनो संदेह नईखे। हं,सनसाना गलि जगहा जरूर बा। कहे के ि​िलब ई बा सक एह िरह के रचनाकारन से भी सीखे के गरज बा। सबरह आ प्रेि रचना के िूल जरूर बा बासकर सजनगी के दूसर रंग के उठावल भी जरूरी बा। सबसय के कउनो किी नईखे अंखगर बने के पड़ी। प्रेि आ सबरह के पारंपररक बखान के दोसरा भरे भी कुछो बा ओकरा के , देखी। हिार िकसद कउनो कसविाई पर भासन देवे का चाहे आपन कासबसलयि बघारे के नईखे। हि सासहत्य के एगो गंभीर सबद्याथी हई।ं हि ओह रूप िें आपन बाि रख रहल बानीं।हि जब उदा ू,सहंदी,फारसी,अंग्रेजी आ िैसथली के रचना से गज ु रीले िs भोजपरु ी खासिर िन िें एगो टीस उठेला। भोजपरु ी िें अिक ु ांि कसविा काियाबी के झंडा ना गाड़ सकल। काहे सक भोजपरु रया सिाज सरु लय के भासा बझ ु ेला। सरु​ु आिी सदन से भोजपरु रया लोग गीि गवनई का जवरे आपन परब-पबनी,संस्कार आ नेह-छोह बान्हल रहल बा। एह से अिक ु ांि कसविा भोजपरु ी िें ऊ जघे ना बना पाईल। गीि भोजपरु ी िांटी © आखर ● मार्च, 2015 ● 37

व्यंग

गुलरेज शहजाद मोसिहारी , सिहार के रहे वाला गुलरे ज शहजाद जी , भोजपुरी सहन्दी आ उदूि िासहत्य के एगो िड़हन नाव , िीनो भाषा मे लगािार सलख रहल िानी । मंच िे रस्िुसि के िंगे िंगे मैसथली अंग्रेजी िे अनुवाकदि रचना मे भी इँहा के िररआर िासहत्य के सिरजना कईले िानी । एह घरी इँहा के मोसिहारी मे ही िानी ।

सत्ता-सासन में बईठल कतना बड़ नाम वाला भोजपरीया कपत ू सब भोजपरी से वेश्यावकृ त करवावे के भारी अपराध कई रहल बाड़ें


िें बा। सिय के संगे कसविा आ गजल पर जोर आजिावल सरु​ु भईल। कसविा जंहवा से चलल ओह से बहुि आगे ना बढ़ सकल, बासकर गजल के रफ़्िार िेज बाटे - चाहे उ कउनो भाखा िें होखे। गजल के सोहरि ओकर सवसय के साथे ओकर गसि आ लय िें बा। दोसर भाखा खानी भोजपरु रयो िें गजल रफ़्िार पकड़लस आ िजबूि भईल जािा। भोजपूररओ िें भेंसड़यार्सान गजल के रचनाकार बा लोग, बासकर भोजपरु ी गजल िें सहंदी आ उदा ू सबदन के भरिार बा। भोजपरु ी के खांटी सबदन के जटु ान आ बईठाव से भोजपरु ी गजल के रंग सनखरी आ िजबूि होखी।

के पड़ी। जवन कसविा आपन सिाज, िाटी अउर ओकर दख ु सख ु से कट जाला, ओकर िरल िय बाटे। अभी ई बाि कहे िें कवनो लाज नईखे सक भोजपरु ी कसविा िई रहल बा। एकरा के सजयावे के जिन करे के परी ।

कुल्ह सिला के भोजपरु ी गीि, ग़ज़ल, कसविा के जसद बचावे के अउर आपन भाखा के र्सनक बनावे के बा ि भोजपरु रया कसव आ कसवलांठ लोग के िेहरारू के झोंटा आ अंचरा से बाहर सनकले

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धारािावहक

हथेली में समय (भाग : 2)

डा॰ अत्रनल प्रसाद मूलिःहथुआ, सिहार के रहेवाला हयीं । अंग्रेजी िासहत्य में शोध । िासहत्य अकादमी खासिर यशपाल के ‘झूठा िच’ के कु छ अंशन के अंग्रेजी में अनुवाद । भारि, समसडल ईस्ट, अमेररका, चाइना, कनाडा अउरी ऑसस्िया में आयोसजि अन्िरािष्ट्रीय िम्प्मेलनन में पेपर रेजेंटेशन अउरी कसविा पाठ । अंग्रेजी, सहंदी अउरी भोजपुरी में लेखन । यमन, लीसिया, पटना अउरी मुंिई के सवश्वसवद्यालयन में अध्यापन । िऊदी अरे सिया में अंग्रेजी भाषा आ िासहत्य के रोफे िर िानी ।

कहानी अब ले- कयनष्क यबदेश मे भूमध्य सागर के तट पर आपन साथी सांगे बईठल आपन बीतल बचपन आ समय के इयाद करत बाड़न | कयनष्क बाबू द्वाररका प्रसाद के दूसरका बेटा हवें | जब ई चायमिं ग लाल पैदा भइलें त इनकर रांग कररया रहे आ गला मे घेघा रहे | एक ओर द्वाररका प्रसाद के भाई बाबू कायलका चरण ओह घेघ खायतर ओझाई करवाए के सोचत बाड़न दोसरा ओर लोयहया यवचारधारा वाला बाबू द्वाररका प्रसाद लईका के डाक्टर से देखावल चाहत बाड़ें... एयहजा से आगे पढ़ीं.

ि

हाराजा के अिला लोग के घर के आ टोला िहल्ला के िेहरारू लोग के सिूह-गान िें अचानक बार्ा पड़ गइल जब बाबू कासलका चरण के डेरा के सािने एगो िोटर-गाड़ी रुकल आ ओसहिे से पंसडि िंगल दत्त आ उनका साथे िहारानी सवक्टोररया अस्पिाल के डॉo र्न्वन्िरी फड़के उिरले l बाबू कासलका चरण पंसडि िंगल दत्त के सनहोरा कइले रहले डाक्टर साहेब के घरे बल ु ाके ले आवेके चूसँ क डाक्टर साहेब राि के सिय ‘कॉल’ िें ना जास चाहे के िनो जरुरी होखे कारन सक उनका नाि के संगे एगो लोग के िन िें अन्र्सवस्वास रहे सक अगर उ जे कवनो िरीज के राि के देखे चल जइहें ि उ िरीज बसचहें ना l बाबू कासलका चरण अपना सिय से बहुि आगे रहले उ अन्र्सवसवासी ना रहले l चासिंग लाल के कररया चेहरा अन्हार कोठरी िें सबेरे के उगि सरू ु ज अइसन चिकि रहे आ उनका हल्का बख ु ार भी हो गइल रहे l लम्बा आ भारी-भरकि कद-काठी के िासलक डाक्टर साहेब चासिं ग लाल के ध्यान से देखले आ अपना ख़ास कड़ा लहजा िें अंग्रेजी िें बाबू कासलका चरण जे राि के बेरा भी एकदि उजर र्प-र्प र्ोिी कुरिा आ चिकि कररया पनही पसहरले उनका बगल िें खड़ा रहले, से बोलले, “अकाउंटेंट बाबू घबडाए के कवनो बाि नईखे, बस थोडा आयोडीन के किी हो गईल बा l सबु ह िें हि वाडा बॉय से दवा भेजवा देब l बच्चा एकदि स्वस्थ बा l देखि नईखीं कईसे िस्ु की छोड़िा आ हिरा आला के पकड़े के कोसशश कर रहल बा l” ओकरा बाद डॉक्टर साहेब लसड़का के िहिारी के िरफ देख के अंग्रेसजये िें ‘गॉड ब्लेस सहि’ कहले आ कुसी पर से उठ के खड़ा हो गईले l बाबू कासलका चरण लाल उनका के सवदा करके खासिर उनका साथ बसियावि बाहर के दरवाजा के िरफ र्ीरे-र्ीरे आगे बढ़ले l भारी-भरकि देह वाला पेट के उपर िक बेल्ट बंर्ले डॉ र्न्वन्िरी फड़के बाबू द्वाररका प्रसाद के हिेशा लुईस कै रल के पात्र हम्प्टी डम्प्टी अइसन लसगहें ओह

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घरी जब ख़ास करके उ आपन एके िरह के बाि कररहें आ अपना िका से सनु सनहार के िाश के खेल ‘सिज’ आ फ्रेंच के िशहूर लेखक िोंपासा के कहानी के बारे िें आपन बाि िनवावे पर िजबूर कररहें l जब कसनष्ट्क बी. ए. िें लंगलटनपरु िें पढ़ि रहले आ जब छुट्टी िें घरे आवस ओह घरी डॉ फड़के अंग्रेजी सासहत्य के बारे िें उनका से बाि करस l एक बार उनका के उ लुईस कै रल के उपन्यास ‘थ्रू द लूसकं ग नलास’ के एक उद्रण के बारे िें बिवले जेकरा िें हम्प्टी डम्प्टी आ एसलस एक दूसरा से बसियावि बा लोग l बाद िें कसनष्ट्क के भाषा आ ओकर अथा सिझे िें ई प्रसंग कभी भल ु ाइल ना l “हिरा नइखे बझ ु ाि की रउआ ‘िसहिा’ शब्द से का कहेके चाहिानी,” एसलस कहली l हम्प्टी डम्प्टी सिरस्कृि भाव से िस्ु करा के कहले, “ सनसि​ि रूप से िहरा ना बझ ु ाई – जब िक हि िहरा के बिाएब ना l हिरा कहे के ि​िलब ई रहल ह की ‘िहरा के हरावे खासिर अच्छा िका बा एसहिे!’ ”

“लेसकन ‘िसहिा’ के ि​िलब ‘हरावे खासिर एक अच्छा िका’ ना होला.” एसलस आपसत्त कइली l “जब हि एगो शब्द के प्रयोग करीले, “हम्प्टी डम्प्टी सिरस्कृि भाव से िाना िारि कहले, “ ओ शब्द के उहे अथा होला जे अथा हि चासहले – न जररको कि ना बेसी l“ “सवाल ई उठिा, “ एसलस कहली, “ की का रउआ शब्दन से कई िरह के अथा सनकाल सकीले l”

“सवाल ई उठिा. “हम्प्टी डम्प्टी कहले, “ की कइसे शब्द के अथा के सिझे िें दक्षिा हाससल कईल जाव...बस एिने बाि बा l” डॉ र्न्वन्िरी फड़के बाबू कासलका चरण के पररवार के बहुि नजदीक रहले l उ उनकर करीबी दोस्ि आ पाररवाररक डाक्टर भी रहले l िहाराजा के अउरइयो अिला लोग खानी उहो उपनवेसशक शान-शौकि आ आसथा क लाभ से आकृि होके बाहर से आ के इंद्रपरु िें बस गईल रहले l लेसकन बाबू कसलका चरण के ठीक

उलटा, देश के आजादी सिलला के बाद, उ सरकारी नौकरी िें चल गईले l उनकर दोस्ि बाबू कसलका चरण अपना भीिरी द्वन्द आ िहाराजा के दबाब के चलिे सरकारी नौकरी करे से इनकार कर सदहले l निीजा ई भाईल की उ िहाराजा कीहाँ काि करि रह गईले आ इंद्रपरु िें बस गईले l उनका ई बाि के कयास ना भईल की इंद्रपरु िें र्ीरे-र्ीरे बदलाव आ रहल बा; इंद्रपरु िूक दशा क रहे उ बदलाव के जब जिींदारी के उिराव के चलिे ड् योढ़ी के भव्य आ रोबदार देवार के चिक-दिक आ रोब-दाब िें किी आवे लागल आ ओकरा साथे-साथे रोल्स रोवाएस कार , हेलीकाप्टर, हासथयन, कचहरी, िसन्दरन, आि के बगीचा, फुलवारी, ऊँचा सवचारशील िद्रु ा िें कई बरीसन से खड़ा िहोगनी के पेड़, आ बारहिासी सलची के पेड़ के संख्या आ ओकरा रख-रखाव िें भी किी आवे लागल l िहाराजा आ उनकर पररवार भी र्ीरे-र्ीरे इंद्रपरु से ररश्िा िोड़के कुसिु परु शहर िें जहाँ ओह लोगके सवशाल राजप्रासाद रहे हिेशा खासिर रहे लागल लोग l आजादी के बाद जनिा से जईसे राजनेिा लोग सािंिी अलगाव आ उदासीनिा रखे लागल लोग आ दूर होखे लागल वइसेही जिींदारी प्रथा के ख़ि​ि भईला के बाद िहाराज इंद्रपरु के जनिा से दूर होखे लगले आ कभी-कभार कुसिु परु से अपना िोटर गाड़ी के कासफला के साथ आवस आ सीर्े ड् योढ़ी िें चल जास l शायद इंद्रपरु के जनिा सवदेसी आ स्थानीय सत्ता के दोहरा उपसनवेशीकरण से अपना नया सिलल आजादी िें इिना व्यस्ि रहे की ओह िेजी से जाि िोटर गाड़ी के कासफला के ओइसने आिया सिसश्रि भय से देखे जईसे एगो छोटा बच्चा जे सिलस्िी कहानी के गैरहकीकी कल्पना-लोक के रोिांच आ अचरज के असिरेक से सनंदआ ु गईल होखे l बाबू कासलका चरण लाल के डेरा पावा िी जी के पोखरा के उत्तर सदशा िें रहे, उ ओह एलाका के सबसे बड डेरा रहे l द्वाररका प्रसाद के दोसरका बेटा के जन्ि भईला से घर िें काफी चहल-पहल रहे l राि ससंगारी के व्यस्ि​िा बढ़ गईल रहे l उनकर घर िें काि करे वाला नोकर इिीरिी नाि के करीब पचास बरीस के एगो सबन सबआहल आदिी रहे l एक सदन सबेरे सबेरे जब बरािदा

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िें घाि िें बईठल राि ससंगारी चासिं ग के िेल लगावि रहली ओसहबेरा इिीरिी अँगना बहारि रहले, नाली के पास एगो चीज चिकि लउकल ओकरा के उ उठा के अपना िलसकनी के देहले l राि ससंगारी देखिे पहचान लेहली की ई ि उनका कान के झिु का ह, सोना के झुिका ! अचानक उनकर हाथ दासहना िरफ के कान के िरफ उठ गईल l अरे जा ओसहिे ि झिु का रहबे ना कईल ! उनकर िहुँ अचरज, भय आ कवनो असनि के आशंका से खुलल रह गईल आ उ घबडा के चील्लईली l िुरत्ते उ आँख बंद करके काली िाई के ध्यान कईली आ उनका के बहुि र्न्यवाद देहली l िन िें सोचली अच्छा भईल सिल गईल ह ना ि सोना के भल ु ाईल अच्छा ना िानल जाला l ई सोचला के बा उ चासिंग के दल ु ार कईली, जईसे उनकर िंहु चासिं ग के हाथ के नजदीक आईल उ अपना दादी के नाक पर के िस्सा के छुए के कोसशश करे लगले, जे िस्सा अईसन बझ ु ाव जईसे राि ससंगारी नाक िें लवंग पसहरले होखस l राि ससंगारी बहुि िेजी से चासिंग के देह िें सरसों के िेल के िासलश करे लगली आ गीि गनु गनु ाए लगली l सबेरे के घाि िें चासिंग के कररया देह आबनूस अईसन चिकि रहे l आ अपना दादी के गाना सनु के उ आउर जोर-जोर से हाथ पैर चलावे लगले l भल ु ाईल सोना सिलला के ख़ुशी िें चासिंग के दादी के िंहु से सनकलल, “जगु जगु जीय ललनवा हिार जगु जगु जीय ललनवा हिार....” फे र अचानक उनका चेहरा पर एगो नटखट भाव आईल आ उ चासिंग के कोिल छोट-छोट हाथ पैर के अपना दूनू हाथ से िलि िस ु कुराि गनु गनु ाए लगली. “चक ु चक ु िेसलया रगड़े बेसलया बाबू िोटईहें बेल अईसन...र्ोसबया के पाट अईसन, पोखरा के घाट अईसन...” चासिं ग लाल के उनकर िहिारी, बाबा आ ईया बहुि िाने लोग l बाबू द्वाररका प्रसाद भी कि ना िानस लेसकन उ अपना सािासजक आ राजनीसिक काि के व्यस्ि​िा के चलिे उ अपना पररवार के ज्यादा सिय ना दे सकस l कुछ सदन पसहले इंद्रपरु के नया नया बनल कालेज िें छात्रावास के उद्घाटन जे. पी. के करके रहे l जब बाबू द्वाररका प्रसाद जे. पी. के उनका गावें से इंद्रपरु लावे खासिर गईले ओही सिय

आवि घरी रास्िा िें जब गाड़ी ख़राब हो गईल रहे जे. पी. उनका के नोकरी छोड़ के व्यवसाय करके राय सदहले l जबसे जे. पी. उनका के नोकरी छोड़ के व्यवसाय करके राय सदहले िबसे उनका सदिाग िें ई बाि घिु े लागल आ िानससक रूप से उनकर व्यस्ि​िा आउर बढ़ गईल l जब चासिं ग चार-पांच बरीस के हो गईल रहले िब बाबा उनका के अपना संगे ले जास जब सबेरे कालेज के फुटबाल के िैदान िें टहले जास l कालेज करीब डेढ़ सौ एकड़ जिीन िें फईलल रहे, सब ससु वर्ा रहे लेसकन फुटबाल के िैदान के छोर जहाँ दसक्खन िरफ जंगल िें सिल जाि रहे वहीं पर देसी शराब के भठ्ठी आ वेश्यालय रहे l राि के सिय भठ्ठी िें से लौटि नशा िें र्त्त ु सपयक्कड़ लोग कालेज के हािा िें घस ु के उपद्रव करे लोग आ ओह भव्य सशक्षा के िंसदर के गौरव के दागदार करे लोग l िुरत्ते के नया सिलल आजादी के कुछ लोग यही ि​िलब सिझे l ई सािासजक कुरीसि के सिझल एिना सहज आ आसन ना रहे l बाबू कासलका चरण लाल के डेरा के बहुि नजदीक बसकं घि स्कूल रहे .उनका डेरा से सनकल के पसि​ि के िरफ थोड़ी दरू चलला के बाद फे र दासहने हाथ पर िडु ला के बाद एक लाइने से िास्टर साहेब लोग के डेरा रहे l ओही के सािने हररहर घास के चौड़ा पट्टी जवना के एक छोर से दोसरा छोर िक सवशालकाय िहोगनी के पेड़ लगावल रहे जहाँ झण्ु ड के झण्ु ड लसड़का सब सिझररया के बेरा हॉकी, फुटबाल आ ‘आईस-पाईस’ खेलs सन l रोज ओसहबेरा कांिा चासिं ग के लेके आवस जब उ दू-िाई बरीस के रहले l कांिा उनका के लेके लेक्चर पंडी जी के डेरा के बरािदा िें बईठ जास आ उनका इहाँ बईठल आउर औरि लोग से बाि करस आ ओह लोग के बाि सनु स l पूरब िें पावा िी जी के पोखरा से लेहले पसि​ि िें सशव जी के िंसदर िक आ इन्द्रपरु बाजार के दसक्खन छोर से उत्तर िें िहारानी सवक्टोररया अस्पिाल के आसखरी छोर िक के जेिना पाररवाररक आ सािासजक ख़बर रहे उ कांिा के ज्ञान के स्रोि रहे !

© आखर ● मार्च, 2015 ● 41

(क्रि​िः)


बर्कूचन

बतकू चन

फा

गनु ो एगो गजबे के िहीना ह । अंग्रेजी िहीना के सहसाब से एकर िेर सहस्सा फरौरी िहीना िें परर रहल बा आज-काल । आज-काल एह से कहि बानीं जे परु ान लोगन के इयासद होई, फागनु िीन दसक पसहले ले आर्ा फरौरी आ आर्ा िाचा िें परे । होली िाचा के िीसर हफ़्िा िें आवे । र्रिी आ सरु​ु ज-चाँद के आपसी बेवहारे अइसन बा । एह कुसल्ह िें अिदी के सदिाग ना चले । जानकार लोग सिसथघड़ी आ िौसि के अइला, आ भइला, के खसलहा गणना क सके ला । इन्हनीं के सनयि ना क सके ! फरौरी िें फर-फर करि िन किना अकुिाइल रहेला, एह प का अब कुछऊ कहे के बा ? लइका, जवान आ सयानन के छोड़ीं िहराज, उसिरगरनो के देसह से भर-भर पउआ गदु गूदी झरेले । टेसू-पलास के टूसा भलहीं सनकहा आजु नसि लउको, फगआ ु -फूआ के हहकारी हर साले हुलास सजयौवले रहेले । फे रु-फे रु जीयेले प्रहलाद-बबआ ु , आ फे रु-फे रु र्क ु ाली फगआ ु -फूआ । जेकर जइसन करि ओकर ओइसन गिी ! भोजपरु रहा सिाज फागनु आविे जइसे एक हाली फे र से सघन भइल सरु रया उठेला । दसु नया भर िें फइलल-बसल देस-सवदेसन के बाबू-बबआ ु -बबनु ी लोगन के जटु ान से गाँव ि गाँव, बजार के बजार चहक उठेला । पआ ु -पूरी, गसु झया, अबीर-रंग, ठंिई आसद के एगो अलगे नीसा होला । सेनरु -सटकुली, लूगा-लत्ता लेले िोबाइलररचाजा के िहिही देखे लायक बा । सचकी, दसु नया अब िसन असर्का एडभई ंस भ गइल बीया ! ना ? फगनु हट के लूक, सटकोरा के चटकारी आ िरासि कण्ठ के घरु हू िान प अवर् के राि, सबरज के िोहन आ कै लास के ससउजी के नाँव प टाँसी घींचि सउँसे गाँवजवार अनिनाइल ि​िाइल सिलसिलाइल बहकल सफरेला.. . सदा अनन्द रहे एही द्वारे िोहन खेलैं होरी होऽऽ.. एही फरौरी िें सकससि-सकससि के सिसथयो आवेली स । फलाना डे, सचलाना डे, सि​िकाना डे ! एह प अब का कहे के बा के हू से ? भलहीं पढ़ि खा अंगरेसजया भाईलोगन खासिर कुसल्ह परीक्षा िें िंगर्ोअनी अस उजाड़-पछाड़ करि होखी, बासकर एकर र्ँवक सदन-दूने कपारे चढ़ि जा रहल बा । कवनो सबसेस ’सदवस’ आजकाल ’डे’ कहाला ! एही कुसल्ह सिसथयन िें से एगो सिसथ ह िािृभासा सिसथ - िािृभाषा सदवस । 21 फरौरी के िनावल जाले । िानव सार्न सवकास िंत्रालय का ओरा से छपाइल सवज्ञापन िें भारिीय िाईभासन के एगो सनकहा सूची जारी भइल । िन दोबर हो गइल ! वाह.. ! संस्कृि, ससन्र्ी, नेपाली, सहन्दी.. से लेले िैसथली, संथासलयो ले एह सूची िें दिकि रहली स । पूरब-पसच्छि, उत्तर-दसक्खन से सकससि-सकससि के भासा के जगहा िीलल रहे ! आसहयासह, एह सूची िें भोजपुररये ना रहे । िन दबू र हो गइल !

© मार्च ● 2015 ● 42

सौरभ पांडे िौरभ पाण्डेय जी के पैिृक भूसम उत्तररदेश के िसलया जनपद के द्वािा िेत्र हs । सपछला िीि िरीि में राष्ट्रीय स्िर के अलग अलग कॉपोरे ट इकाई में कायिरि रहल िानी । आजकाल के न्द्रीय िरकार के ग्रामीण-पररयोजना आ स्कीम के िंचालन खासिर एगो व्याविासयक इकाई में नेशनल-हेड के रूप में कायिरि िानी । परों को खोलिे हुए (िम्प्पादन), इकड़याँ जेिी िे (काव्य-िंग्रह), छन्द-मञ्जरी (सवधान) नाव िे ककिाि रकासशि हो चुकल िाड़ी ि । िासहसत्यक िंसलप्तिा के दोिर िेत्र िा - िदस्य रिन्धन िमूह ईपसत्रका ,ओपनिुक्िऑनलाइन डॉट कॉम ; िदस्य परामशिदात्री मण्डल त्रैमासिक पसत्रका ’सवश्वगाथा’; िदस्य िम्प्पादक-मण्डल – ईपसत्रका ’कसविा-रिंग’.

फगुनहट के लूक, वटकोरा के चटकारी आ र्रासर् कण्ठ के घुरहू र्ान प अिध के राम, वबरज के मोहन आ कैलास के वसउजी के नाुँि प टाुँसी घींचर् सउुँ से गाुँिजिार अनमनाइल मर्ाइल वढलवमलाइल बहकल वफरे ला


बिाई ं, बिकूचन अब का कइल जाओ ? गगंु ओ गवनई करी ? हिनी भोजपरु रहा के जीवन किा -प्रर्ान ह । ई सोच अपना जवारी भाई-लोगन के िन िें अिना जब्बर िरीके अँसड़सल बा, जे िाईभासा के सवाल प ई जिाि एक अरसा से करिे कूसट रहल बा । ओने एही सवाल प दिगर भाई-लोग ि​िलब आ दलाली के चदरी प राजनीसि के अदौरी पारर-पारर परर्ानीपरर्ानी खेल रहल बा ! हो गइल नू आपन सिाज ’करिपरर्ान’ ! देखि रहीं आ गीनि रहीं, के किना परले बा, आ के किना पारर रहल बा ! अदौरी !

भोजपरु ी भासा के उत्थान खासिर जे असर्का सचन्िा करि होखे, ओकरा खासिर िसु खयाजी के कहलका इयासद पारर लीहीं जा - ए भोला, लोला लेलऽ.. सख ु ले संख बजावऽ.. ! हिहू ँ एगो ’कोनहा’ संख कीन लेले बानी । एही फरौरी िें सदल्ली ’सवि पस्ु िक िेला’ देखलस । कवन देस आ भासा के सकिाब ना लउकलस इहँवाँ ! आ का सकिाब ना बेचाइल एह जगहा ! खसलहा भोजपरु ी भासा के पत्रकार आ प्रकाशक सोझा ना भइले । काहें ? भोजपरु ी भासा िें पत्रकारन आ प्रकाशकन के किी बा ? भा अबर बा ई लोग ? ना​ाः ! बस, एह जाना के सलहाज आ बेवहार आन भासा के पत्रकारन आ प्रकाशकन के बेवहार से सनकहा फरक बा । ई फरक का ह, कइसन ह, रउआ बूसझये लेले होखब । ि, अबसहयों भोजपरु ी के सम्िान आ िजगर जगहा खासिर रउआ अकुिाइल बानीं ? होस राखीं जी ! भोजपरु ी किहीं सज आ सहा गइल नू, ि किना जाना के दोकान बन हो जाई । दोकान के चलिचलावि रहे के काि बा । जय भोजपरु ी ! फरौरी िें िनि कुसल्ह ’डे’ के चचा​ा से एगो अउरी बाि िने परल । िारीख, दस फरौरी । देस के राजर्ानी करेजऊ के कहला िें झाड़ू उठा सलहलस । िबले फगनु हटो ना चलल रहे ! िबो.. िन ि िने ह ! ’िेर भइल कुसल्ह..’, सोसच के ई कहलस जे अब सफाई होइये जाओ । बसाि फूल-पिई कुसल्ह सबटोरा गइली स । बाकी जाने काहें, बझ ु ािा जे करेजऊ झाड़ू उठाविे हाँफे लागल बाड़े । खोंखी का िारे पसहलहीं से अबर भइल हुनकर देसह ’स्वाइन-फ्लू’ का सोर िें बेदि भइल बझ ु ािा । जसन पूछीं जे ई ’स्वाइन-फ्लू’ ह का ? पक्का लजा जाएब । िबहू ँ ससु न लीहीं, ’फ्लू’ िाने बोखार आ ’स्वाइन’ िाने सूअर ! सअ ु रन के अिेररका िें ’स्वाइन’ कहल जाला । हिनी अस

जिाि के सवद्याथी अनेररये अंगरेजन के ससखावल अंगरेजी घोंटि ’पी से सपग, सपग िाने सूअर’ रटिे रसह गइनीं जा, आ सअ ु ररया जाने कब दो अचके िें ’स्वाइन’ भ गइली स ! िाने बेिररयो ’इश्टाइली’ अंगरेजी िें ! जा हो ए ओबािा ! अब इहे होईऽऽ ? आ, जाने ई सअ ु ररओ काहें अिदी के कान्हा प बेिाल भइल बाड़ी स ! अपनहू ँ गाँव-जवार िें अबकी ररस्िानािा के सनकहा लोग बाहर देस-दसु नया से आ रहल बा । बझ ु ािे नइखे जे ररस्िा बचाई ं, भा खुदे बाँचीं ? ओने फगआ ु अलगे हुिँ चले बा । का कहल जाओ जी.. ? फगनु हट के िेजी बझ ु ाये लागल बा । जले रउआ हिार ई गलथेथरई सनु ब, बजट के भोंपू बासज चक ु ल होखी । आसा आ उिेद िें िन दोबर भइल जािा । लोग-बाग छछािे दू डेग आगा बसढ़ चक ु ल होसखहें । िीन-चार गो चीनी सिल आ पाँच-छौ गो फै क्टरी से र्नी हो चक ु ल होखी पूवांचल ! जवार के देही प उन्नसि के कुरिा सम्हरले ना सम्हराि होखी । गहू,ँ सरसों, दलहन के टीला प टीला बोझल होखी । एह अगूि सबकास के देखसनहार के र्रसनहार लागल होसखहें ! अइसना िें छोट-िोंट कृसष-सम्िेलन से का होला जी ? रहे दीं ई कुसल्ह सम्िेलन आ सबकास दोसर राज्यन आला संगठनन का खािा िें ! एह प उन्हसनये के खूटँ ा गड़ाइल रहो । काहें जे अनेररया के सकसानी करि भोजपरु रहा खेसिहर आजु ले का उपार लेले बाड़े, जे आजु उपार लीहें ? जेकर कवनो काि रद ना होखे ऊ नारद हवे । नारदजी अब िानस ु िात्र आ देस-जवार के खेसिहरन के सफसकर ना करस,ु आजकाल ’एकिारा’ बजावे िें लागल बाड़े । बाजा एक्के सरु रये काहें ना बाजो, बजावल जरूरी बा ! आजु ले भोजपरु रया क्षेत्र िें ईहे भइल बा ।से बाजा बासज रहल बा । िवना प, बबआ ु के सिलका नू रहे ! सबहार के भोजपरु रहा बाछी बबआ ु के खूटँ ा से बन्हाए के बाडी । हदनिा िरेलू िो बे ी.. सबहार के राज-काज आ एने के दासा प कहे के िेर बा, बासकर ई फे र कबो । अबहीं ’हइया-हो..’ करि एगो अइसना खेवनहार के नाँइ बूड़ल सबया, जेकर दावा रहे जे अइसनन के नाँइ ना बूड़े ! बासकर, नाँइ ि नाँइ ह, बूसड़ गइल । से, नीसिअनीसि के बाि प का कहल जाओ ? ई कुसल्ह अबहीं ना । आठ-नौ िहीना के फुरसि सदयाओ । अबहीं नीसि-सनयािकन के कुसी चाहीं । फागनु ो िें सोझ प्रान प बसन आइल बा ! फगआ ु बनल रहो आ बनल रहीं जा हिनी के .. नीसि-अनीसि करि-सनु ि-देखि !


लघु कर्था

1.मन्द्थरा

वना के एक साल बाद गोदी िे चान सनयन बेटी लेके रूपा पसहला हाली नइहर आइल बाड़ी । घर िे िेवहार जइसन िाहौल बा । अँगना िें घर के सभलोग बटोराइल उनक ु ा ससरु ा के हालचाल पूछ्ि बा । "िाई हि उँहवा बहुिे खस ु बानी । िोहार दिादजी हीरा बाड़न, उहाँ का हिेसा हिार र्ेयान राखेनी । हिार सासु लेखा सासु भगवान सभ के देस,ु उनक ु र बेवहार एकदिे पानी अस बा । दूनो ननद-भौजाई ना, बलुक बड़ बसहन लेखा िाने ली लो ।"

गणेश जी बागी गणेश जी िागी भोजपुरी आ सहन्दी िासहत्य के उभरि िासहत्यकार हई , िासहसत्यक वेि​िाइट ओपन िुक्ि ऑनलाइन डॉट कॉम के िंस्थापक आ पथ सनमािण सवभाग सिहार िरकार में िहायक असभयंिाके रूप में कायिरि गणेश जी िागी पटना (सिहार) में सनवाि करे नी. इहा के पैिृक सजला िसलया ह. िागी जी छंद युि आ छंद मुि कसविाई करेनी, इहाँ के लघुकथा िहुिे पिन कईल जाला.

"आ िोर जेठ-जेठानी कइसन बा लो रूपा ?" िाई खुस होके पछ ु ली । "जेठ आ जेठानी दनू ो जाना बहुिे नीक बा िाई । ना लागे जे हि ससरु ा िे बानी । एगो छोट बसहन सनयन िान देवेला ऊ लोग | दूनो भाई राि-लछुिन जइसे रहेलन । उनक ु र दगु ो बेटा आ दगु ो बेटी बाड़ी, सदनभर चाची-चाची कइले रहेलन सन । बड़की बेटी ि इंटर के एह साल परीक्षो दीही ।" िाई लिहर सास खीच के हूक ँ ारी परली । "एगो बाि जानि बाडू िाई ! ससरु जी के गज ु रला का बाद सउँसे पररवार के सज़म्िेवारी जेठ जी उठवले बाड़न । आपन छोटी चक ु ी नोकरी से के हु िरी राजन के पढ़ा-सलखा के अफ़सर बना सदहले । साँचो अइसन आदिी लाख दू लाख िे एगो होला |" रूपा के बाि ससु नके नइहर के सभे लोग गदगद हो गइल । "रूपा ऊ सब ि नीके बा, बासकर एगो बाि हिार िान"ु , िाई र्ीरे से बोलली, "िें राजन से कसह के के हु िरे अलगा हो जो |" "ई का कहि बाड़ू िाई ?" "हि ठीके कहि बानी । अब िोरो एगो बेटी बीया, ओकरो बारे िें िोरा सोचे के चाहीं । िसनका सदन िे िोर जेठ के बेटी के सबयाह-शादी करे के पड़ी आ कुल खचा​ा ......" "छी: िाई, िू अइसन सोचि बाड़ू ? हिार जेठ ि देविा ...." "ि देविा के िसन्दरे िें रहे दे बसु चया" रूपा के बाि बीचे िे कासट के िाई बोल परली |

2.माई-ककररया लफुअन के संगि िें परर के किे उसिर िें गडु ु आ के जआ ु के लि लाग गईल । एक िहीना बाद संघसियन के सनहोरा प ऊ डेराि-डेराि फे नु जआ ु खेले बइठ गइल । घरे आइल ि िाई के र्ेयान से देखे लागल । िाई के िसबयि ठीक-ठाक देख ओकरा िसन संिोष भइल । फे न,ु दोसरा, िीसरा ,चउथो सदना जआ ु खेललस, आ घरे आइ के िाई के र्ेयान से देखलस । िाई एकदिे ठीक रहली, उनक ु ा कुछऊ ना भईल रहे । गडु ु आ अब बसु झ गइल जे ऊ अनेररये डेराि रहे । िाई खसलहा डेरवावे खासिर आपन सकररया सखयवले रहली । एह सकररया-उररया से कुछऊ ना होला ।

© मार्च ● 2015 ● 44


कहानी

कतनया माई दु सदन से बंटी के बम्बई िें िन ना लागि रहे । अईसन लागे जइसे के हु आपन छूट गइल बा। चलि-चलि िन घबराये लागे... करेजा र्क ु र्क ु ाये लागे आ पसीना चवु े लागे । बासक सिझ िें ना आवे का हो रहल बा । अईसहू ँ बम्बई िें चाहे छोट काि करे वाला होखे , भा बड़ काि, काि के दबाव एिना बेसी रहेला सक आदिी के कब कवन बीिारी र्ई ली ई कहल िसु श्कल बा । एसह से, आपन िन हलुक करे खासि बंटी सिन्ु दर के सकनारे घिु ें चल गईलन । सिदंु र के हवा पानी बंटी के नीिन लागे लागल । सिन्ु दर सकनारे लहर के सकनारा छुअि पानी िें टहले लगलन । जब-जब लहर गोड़ के छुये, बंटी के लागे सक के हु अपना ओरर घींच रहल बा । आ अचानक फ़े रु उनक ु र िन बेचैन होखे लागल बासक अबसक बेर उ अपना आप के सम्हार ना पईले आ पानी िें सगर गईलन । अईसे-जईसे के हु गांसछ के कासट के सगरा देले होखे । बंटी के सगरि देसख कुछ लोग उनका ओरर भागल । लसगये भट्टु ा बेचि र्नेसरो बंटी के सगरि देसख उनक ु ा ओर भगले । टांसग के उनक ु ा के लसगये चीकन जगसह देसख के बालू प सिु ावल गईल । र्नेसर अपना भट्टु ा के दक ु ान से एक लोटा पानी लाके बंटी के िहु प सछररकले । बंटी के आंख खुलल िऽ कुछ लोग के अपना अगल – बगल िें खड़ा देख पसहले िऽ ऊ सकपका गईलन । फ़े र अचानक पासकट िें पसा आ िोबाईल टोवे लगलन आ टोविे घरी उनक ु ा िहु से अनसोहािही भोजपरु ी िें सनकलल - “िोबाईल ! िोबईसलया कहां गईल ?” उनक ु ा िूह से भोजपरु ी सनु ि सक कुछ लोग उहां से िंहु घिु ा के चल देहलस । असल िे बंम्बई के बनावट िें इ िंहु फ़े रे वाला उ लोग हऽ जेकर अपन भाखा भोजपरु ीये हऽ, बासक, सबके सोझा बोले बसियाये िें ई लो के लाज लागेला । कुछ लोग अईसन भी रहे; जेकरा भोजपरु ी ना बझ ु ाि रहे ,बासक िोबाईल सिझ िें आ गईल । एह से पसहले सक के हु कुछ पछ ु ीिे र्नेसर कहले - “सचंिा जन करीं राउर िोबाईल हिरा लगे बा | रऊआ पानी िें सगर गईनी ह आ हि उठावे गईनी ि रउरा पासकट से बटुआ आ िोबाइल कहीं भीज के खराब जसन हो जाउ एसह से सनकाल लेहनी हs... हई लीं ।" कसह के र्नेसर बंटी के िोबाईल दे सदहले । बंटी आ र्नेसर के भोजपरु ी िें बसियाि देख... जे दु चार लोग खड़ा रहे उहो उहां से सहन्दी आ अंग्रेजी िें इ बोलि सनकल गईल सक " सब ठीक है। All is well " । आ एने बंटी इ कहि र्नेसर से फ़ोन ले लेहलन सक इ वाटर-प्रूफ़ ह पानी िें खराब ना होई । र्नेसर कहलक बासक राउर कपड़ा ि खराब हो गईल बा, सिन्ु दर सकनारे सभजला के बाद हवा के कारण बंटी के जाड़ भी लागि रहे । र्नेसर के कहला पर बंटी उनक ु ा भट्टु ा के दक ु ान पर , आसग के जरर जा के खड़ा हो गईलन । र्नेसर उनका के एकदि गरि-गरि िुरिे के आसग © आखर ● मार्च, 2015 ● 45

अत्रमत झा मोसिहारी , सिहार के रहे वाला असमि झा जी , भोजपुरी आ सहन्दी सिनेमा आ धारावासहक खासि सस्िप्ट सलखले िानी । भोजपुररया पररवेश प िनल कई गो सहन्दी धारावासहक के सस्िप्ट सलखले िानी । िंगे िंगे स्विंत्र लेखन के रुप मे असमि जी भोजपुरी आ सहन्दी मे लगािार सलख रहल िानी । आखर प इँहा के लेख अक्िर पोस्ट होला । एह घरी इँहा


पर सेकल आ ओपर िेज िररचा-नून-नीबू लगा के भट्टु ा खाये के देहले िासक बंटी के देंसह िे िनी गरिी आवे । िलेले बंटी के फ़ोन के घंटी बाजल , गांव से बाउजी के फ़ोन रहे । बंटी जईसही ँ फ़ोन उठवलें बाउजी पसु छलन - का हो , ठीक बाडऽ नु ? अपना के सम्हारि बंटी कहलन, हं हि ठीक बानी का भईल रउआ अईसे काहे पछ ु ऽ िानी ? बाउजी िनी चीढ़ल िन से कहलन सक िोहर कसनया िाई दु सदन से िबाह कऽ के र् देले बाड़ी, कई सदन से कहि बाड़ी सक पसु छ ना बबुआ कईसन बा, बंटी कईसन बा ? िहरा कसनया िाई के आपन िबीयि दु िहीना से खराब बा, बासक सपछला दु घंटा से आ के दआ ु र पर बईठल बाड़ी, िोहर हाल जाने ला, ल बसिया लs । बंटी के कान िें कांपि आवाज परल- बबआ ु ! बंटी के अईसे लागल जईसे िय बेिारी फ़ुरा हो गईल । उ अपना कसनया िाई के सिझावि कहलन सक हि ठीक बानी चार सदन बाद छुट्टी शरू ु होई हि आवऽ िानी गांवे । रऊआ अपना िबीयि के र्यान रखीं । ओने से कांपिे अवाज िें कसनया िाई कहली " िहार हाल जान गईनी, िू नीिन से बाड़s अब हिरा कुछो ना होई । िु आराि से आवऽ बासक अबसक दबु र हो के अईलऽ ि फे रु घर िें घस ु े ना देब"। बंटी पछ ु लें - सकशोर आवऽ िारन सक ना ? कसनया िाई टुटल आवाज िें बोलली "नाऽ उनका छुट्टी नईखे " । बंटी कसनया िाई के सिझा के सक चार सदन िें उ आवऽ िारन फ़ोन रसख देहलन । कसनया िाई से बसिया के उनका िनी नीिन लागल । एने र्नेसर के जब उ भट्टु ा के पईसा देवे लगलन र्नेसर िना कई देहलन । बंटी के र्नेसर से अपनापन लागल । बंटी िस्ु कुरा के कहलन "हिार िदद कईनी, राउर इ अहसान हिरा उपर बा ।" र्नेसर िना कर सदहले- ना ना सजनगी बचाईला ए पईसा ना लेब"। र्नेसर के बाि ससु न के बंटी कहले सक - घोड़ा घांस से दोस्िी करी िऽ खाई का ? र्नेसर भट्टु ा के आसग पर सेंकि कहलन- बबआ ु अगर घोड़ा के घास से दोस्िी हो जाई ि उ िरर जाई बासक घास ना खाई । चसु क र्नेसर फ़ोन पर बंटी के बसियाि सनु ले रहलन ि पछ् ु लन- छोड़ऽ इ बिावऽ, िोहर िाई ठीक बाड़ी नु ? बंटी कहलन - हिर िाई िऽ पन्द्रह साल पसहले ही स्वगा ससर्ार गईली , इ हिार कसनया िाई रहली हऽ ।

कसनया िाई ? र्नेसर बदु बदु ईलें, फ़े र पछ ु लन सक िोहार उसिर के िना बाऽ? अचानक ई सवाल से बंटी चौंक के पसु छलन काहे ? र्नेसर कहलन ना िने, पच्चीस के िऽ होखबे करबऽ । जब िोहर िाई िरली िब िु दस से उपरे के होखबऽ, िबो िोहार बाउजी दोसर सबयाह कई लेहलन ? बढ़ु ऊिी िें अईसन का जरूरी लागल रहे ? र्नेसर के एह सवाल प बंटी के खीस ना बरल, हंसी आ गईल आ बंटी जाि – जाि फ़े र रूक गईलन । िड़ु ले आ फे रु ओसह बालु पर बईठ गईलन । कसनया िाई हिार िाई जरूर हई बासक हिार बाबज ु ी के िेहरारू ना, उ िऽ भासगरथ काका के िेहरारू हई । आ फ़े र बंटी कसनया िाई के बारे िें र्नेसर के बिावे लगलन । कसनया िाई ! उ हिार िाई ना हई बासक हि उनकरे दर्ु पी के पोसाईल बानी । पिा ना इ संजोग रहे आ सक कवनो दोसरा जनि के ररस्िा । हि चार भाई िें सबसे छोट हई ं, िरे से पसहले हिरा के हिार िाई बिवले रहली। हिरा जनि के ठीक दु िहीना पसहले कसनया िाई के आपन बेटा सकशोर के जनि भईल रहे, हिार जनि भईल बासक हिरा िाई के दूर् ना उिरल आ डाक्टर कह देलस सक िाई बहुि किजोर सबआ, येही से इ सदक्कि बा । बासक जनि​ि लईका के इ का िालूि सक ओकरा िाई के का सदक्कि बा भूख से सबलखि हिर आवाज कसनया िाई के कान िें परल ि उ हिरा अंगना िें आ गईली । डरि- सहि​ि ही उ इ बाि हिरा िाई से कहली सक जब बबुआ बेसी रोअस िऽ हिरा के कसहह दसु ल्हन हि दर्ु सपआ देब, इ बाि जईसे हिरा इया ( दादी ) के कान िें परल उ पूरा घर िाथा पर उठा लेहली । कसनया िाई के बहुि उल्टा सीर्ा लगली बोले । िीन – िीन गो लईका पोस लेले सबआ हिार बहुररया िोहरा अईसन पसहला ना हऽ । अरे दूर्े नु नईखे उिरि, कवनो बाि नाऽ, गाय-बकरी के दर्ू से पोसा जाई बासक दोसरा के देह के दर्ू ना सदयाई । अब इया के , के सिझाओ सक गाय-बकरी के दर्ू भी िऽ दोसरे के देह से आवऽिा । ओ सिय िऽ िाई चपु रह गईली, कसनया िाई भी चार बाि सनु के चपु चाप चल गईली बासक िाई िऽ िाई होले । हिार सबलखल, दनु ु िाई लो से ना देखल गईल । फ़े र इया से चोरा-छुपा के कसनया िाई हिरा आ सकशोर दनु ो के दर्ु सपयावस आ हिनी ला कबो उनकर दूर् कि ना परल, इ बस दैवी कृपा ही रहे ।

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कहानी जब हि डेढ़ साल के रहनी िब एक सदन इया के नज़र हिरा प दर्ू पीयि घरर परर गईल । इया , कसनया िाई के बहुि उल्टा सीर्ा बोले लगली , कहे लगली सक , हिार खानदान नास देहलक, लईका के जाि बदल देहलस । इया, कसनया िाई के उनकर औकाि-जाि सब देखा देहली । आ िब से चार साल, जब ले इया सजअली कसनया िाई हिरा अंगना ना अईली । रउवा इहो कसह सके नी सक इया उनकरा के हिरा अंगना ना आवे देहली ।

भासगरथ काका भले हिनी के पडोसी रहलन बासकर उनकर जाि अलग रहे । हिार घर बाभन टोली के सबसे अंि िें रहे आ भासगरथ काका के नवारटोली के पसहलका घर । एसे हिनी के पडोसी रहलन । हि गाय – भई ंस के दूर् पीये लायक हो गईल रहनी ओसह से ओह घटना के बाद हि ओइसही ँ पोसईनी । बासकर िाई के दूर् िऽ िाई के दूर् ही होला । जब बड़ भईनी िब िालूि भईल सक जाि बदलला से िाई के दर्ू आ ओकर िाकि ना बदले । इया चल बसली आ कसनया िाई गिे-गिे फ़े र हिरा घरे आवे लगली । हि आ सकशोर दनु ो गोड़ा छे टहर हो गईल रहनी जा, आ बाउजी गांव के िसु खया । गिे-गिे पिा चलल सक बाउजी के गांव के िसु खया बने िें कसनया िाई के बढ़ हाथ रहे । बाभन टोली से िऽ उनकरा सिथा न रहबे कईल बासक बाउजी, सगरे गांव िें आपन प्रभाव जिावे ला इ कहि सफ़रले सक " हि उंच-नीच िें कवनो भेद ना सिझी, भासगरथबहु ि हिरा छोटका बेटा के दूर् िकले सपववले बाऽडी । उ बंटी के “कसनया िाई” हऽई " । बस ओह सदन से गांव के िय लईका उनका के कसनया िाई कहे लगलन स । फ़े र कसनया िाई के इ कह देला से सक उ अपना बंटी िें आ हिरा सकशोर िें कवनो फ़रक ना सिझली, बाउजी के र्ाक अऊर जसि गईल । आ नवारटोली से भी बाउजी के खूब सिथा न आ वोट सिलल, उ िसु खया हो गईलें । सिय बीि​ि गईल नाससक िें कंु भ लागल रहे हिार िाई सजद कईली कंु भ नहाये के । बाउजी के पंचायि के सचंिा रहे आ हिरा से बड़ िीनो भाई लोग के अपना पढ़ाई अपना भसवष्ट्य के । के हु के िाई के सचंिा ना रहे, से के हु िैयार ना भईल बासक भासगरथ काका िैयार हो गईलन नाससक जाये ला । हि अभी एिना बड़ ना भईल रहनी की िाई के संगे

हिरा के जाये सदआईि बासक हि स्कुल जाईल शरू ु कई देहले रहनी, से हिहुं साथे ना जा पवनी । कंु भ नहाय के दौरान भगदड िचल आ हिार िाई ओह भीड़ िें का जाने के ने कचरा-दबा गईल दि फुल गईल , बासक भासगरथ काका कईसहू ँ बांच गईलन । छव सदन बाद बहुि जोहला प िाई के लास सिलल, गावें से बाउजी , बड़का भईया और दु - चार लोग गईल रहे । ओसहजा जवन नदी िें नहा के िाई िोक्ष पावे ला गईल रहली ओकरे सकनारे उनकरा के आसग सदआईल । गांव िें सगरो चचा​ा होखे लागल सक बड़ पनु ी औरि रहली हऽ र्ाि पर िरल बाड़ी सीर्ा स्वरग सिलल होई । िाई िऽ स्वरग चली गईली बासक हि उनकर अंसि​ि दरसन भी ना कई पवनी । जब बाउजी आ भासगरथ काका लौटल लोग िब हिरा िालूि पड़ल की अब हिार िाई कबो ना लौटीहें । हि कहे के ि बड़ हो गईल रहनी, बासक िाई सबना सिु ि घरी सचहुक के उठ जाई । डर लागे जेही कारण एक हाली कस के जर ( बोखार ) हो गईल । डागडर दवाई भले सदहले बासक जर िब उिरल जब कसनया िाई के आंचर सिलल । फ़े र िऽ अईसन हो गईल सक सबना कसनया िाई के आंचर के ओिले नीने ना आवे । कसनया िाई के भी हिरा ला अचानक दल ु ार बेसी बढ़ गईल रहे आ भासगरथ काका के इ हुक र्ऽ लेहलस सक इ लईका के हिही टुअर कई देहनी । हिार बेसी सिय कसनया िाई के संगे बीिे लागल । एह सब के बीच ना जाने कब सकशोर अपना सदिाग िें इ बाि के बईठा लेहलक सक ओकर िाई हिरा के बेसी आ ओकरा के कि िानेली । सिय के साथ ओकरा िन िें इ बाि घर बना लेहलस आ हि अपना सबसे अच्छा इयार के , जे हिनी के दनु ो एक संगे कसनया िाई के दूर् पीयले रहनी जा । सपअि घरी िब ना लड़नी जा बासक अब अपना से सकशोर के दूर होि देखनी । शायद उ दरु ी फ़े र कबो ना सिटल । कसनया िाई के आंचर के खूंट से हि जब चासह पईसा खोल के ले ली, बासक सकशोर अब उनकरा हाथ से खाये के भी िना करे लागल । कसनया िाई बड़ा िसु स्कल से ओकरा के सिझा पावस । हं हिार बाउजी जरूर कसनया िाई के एहसान उिारे ला सकशोर के पढ़ाई के खचा​ा भी देवे लगलन । सकशोर पढ़े िें होसशयार भी रहे, सदन सबिल- साल सबिल हि आपन सपना लेके बम्बई आ गईनी आ सकशोर एि.बी.ए. कई के लंदन चली गईल । लंदन खासि सवदा होि बेरा सकशोर ना

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हिरा से गला सिलल ना कसनया िाई के पलट के देखलक । कसनया िाई के आंख िें भी ओकरा के सवदा करि लोर ना रहे, शायद सदन-ब-सदन सकशोर के बेरूखी उ लोर सख ु ा देले रहे । हं, कसनया िाई के उ लोर बहल जब हि बम्बई जाये के बाि कईनी । आ कसनया िाई के गोड़ छुवे गईनी िऽ आससरवाद िें ना जाने के िना ठोप लोर गंगाजल के रूप ले के हिरा िाथा पर सगरल । शायद सांचहू ँ गंगाजल से नहा के भी हि ओिना पसवत्तर ना होईिी जेिना कसनया िाई के आससरवाद िें बहल लोर से नहा के भईनी । आज ओही आससरवाद से फ़ल – फ़ुल रहल बानी । सिन्ु दर सकनारे बईठल र्नेसर के भट्टु ा सेके वाला आग ठंड़ा हो गईल रहे बासक उनका आंख िें पानी रहे । उ कहलन - बबआ ु ! इ दर्ु के कजा​ा िऽ िु ना उिार पईबऽ । बासक चार सदन के इंिजार ि​ि करऽ ... जा के उनकरा से भेंट कऽ आवऽ । बंटी के र्नेसर एकदि आपन लगले । बरबस ओकरा से कह सदहले-र्नेसर भाई, भासगरथ काका इ सब ला हिारा बाउजी के एहसान आजो िानेले । उनकरा सहसाब से बाउजी के पईसा से सकशोर इ लायक बनलें । बासक हिार िन हिेसा कचोटेला सक का हिरा कारन सकशोर अपना िाई से अलग हो गईल ? र्नेसर कहले- बबआ ु , इ सब नसीब के खेल हऽ। आ िोहर कसनया िाई के परिाप के फ़ल जे िु आ सकशोर दनु ो अपना जगह पर फ़लि-फ़ुलि बाडऽ । जा... जेिना जल्दी हो सके अपना कसनया िाई से भेंट कऽ आवऽ । बंटी र्नेसर से सवदा लेहलन, आ अपना घर के ओरर चल देहलन । जईसे जईसे उ अपना बम्बई वाला घर ओरर बढ़े लगलन, ओइसे उनक ु ा के कसनया िाई के याद सिावे लागल । उनकरा एह बाि के एहसास भईल सक जाने इ कवन बंर्न हऽ सक इहां बंटी बेहोश हो के सगरलन ओने कसनया िाई बंटी के बाउजी के फ़ोन करे ला कहली । अपना घरे पहुंचिपहुचं ि उ सनणा य ले चक ु ल रहलन सक सबहाने घर ला सनकले के बा । आसफ़स िें खबर कई के उ घर ला सनकल गईलन। हवाईजहाज र्ई के ऊ भाग के घरे पहुचं लन । बाउजी के खबर ना कईलन ना ि उ कसहिे सक अईसन कवन आफ़ि आईल बा सक हवाईजहाज से आवऽ िारऽ । बासक जब उ दआ ु र पर पहुचं लन िऽ दआ ु र पर भीड़ लागल रहे , बाउजी के हु से कहि रहलन सक अरे सकशोर आ बंटी के खबर कई द लोग । भासगरथ काका पेटकुसनया लगवले िाटी िें लोटाईल

रहन । बंटी के करेजा र्क से रह गईल, सिान हाँथ से छुट के सगर गईल, बंटी ज़ोर से सचल्लईलन, “कसनया िाई ”... सभे बंटी के ओरर देखलस , उ हंकासल सपआसल भाग के कसनया िाई के लगे पहुचं ले, जे उनकरा से सवदा ले के एह दसु नया के छोसड के चल गईल रहली । बंटी कसनया िाई के पकड़ के फ़ुका पार के रोये लगलन । उ कसनया िाई के के िनो आवाज देहलन बासक िाई ना उठली । आसग देवे के बेरा भासगरथ काका आगे आ के बंटी से कहलन सक अपना कसनया िाई के िु ही आसग दऽ , इ उनकर अंसि​ि इच्छा रहे । कसनया िाई के आसग देि बंटी के लागल जईसे करेजा फ़ाट जाई । िब उनकरा बझ ु ाईल सक काहे कुछ सदन से बम्बई िें उनकर िन घबराि रहे , जईसे उनकरा िालूि रहे सक सकशोर ना आई । उनकर अनिु ान सही रहे, सकशोर सवजा के बहाना बना देहलक, उ ना आईल । पिा ना ओकरा अपना िाई से का लड़ाई रहे । आग के लपट बढ़ि गईल , आ ओह आग िें कसनया िाई सब के हू के छोडि बंटी के अंगरु ी के आपन एहसास करावि चल गईली ।

दु सदन बाद बम्बई लऊटि बेरा बंटी देखलन सक दु गो लईका नीि के गांसछ के नीचे लड़ि रहल सन । एगो कहि रहे िु हिरा िाई लगे ि​ि अईहे उ िोहार िाई ना हई । दोसरका कहे सक ना हि आएि, उ हिार “कसनया िाई “ हई । बंटी के आपन बचपन इयाद आ गईल, उ जा के दनु ो के सिझवलन, बबआ ु ि​ि लड़ऽ लोगन ना िऽ कसनया िाई कहीं चल जईहन आ फे रु कबो ना अईहन। दनु ो लड़ल छोड़ देहलन सs, आ कसनया िाई-कसनया िाई सचसचआि गांव ओरर भगलन सन । बंटी अपना कसनया िाई के इयाद लेहले बम्बई रवाना हो गईलन।

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कहानी

माई बीया दे गाछ उगाईब

ज 'असनल बो' के अगरैनी र्रईले नइखे र्राि ।फन हेने फन होने कुल सगरहस्िी सिेटे िें अझरु ाईल बाड़ी । कबो आकस-बाकस कसािा कबो रसोई- बासन बन्हािा । कई बररस के सहेजल सपना आज पूरा हो रहल बा । असनल के िंबु ई िें नौकरी करि 5 साल हो गईल होली-सदवाली के छुट्टी िें ही आईल हो पावि रहल । सबयाह के िुरिं े बाद िंबु ई िें नौकरी लाग गउवे । उहाँ रहे के कवनो ठौर सठकाना रहे ना एसे अके लहीं जाए के पड़ल। असनल जब छुट्टी से आवस ि इंदु के एकही रट लागे "ए जी जल्दी से कवनो घर देखीं ना ,बबलू बड़ हो रहल बा इस्कूल िें भरिी करावे के होई ना िs इहाँ के लईकन के संगे सछसछयाि िाटी हो जाई "। असनल आपन जिा-पूंजी लगा के और बैंक से लोन ले के एगो फ्लैट बीसवां िाला पर बक ु करवा लेहले ,ओकर दखल भी सिल गईल । बबलू भकुअईला लेखां छन आजी के लगे छन बाबा के कोरा चढ़ के इहे बार बार पूछ रहल बा "काहें उहाँ जायेके बा इहे ि आपन घर ह ? सनु के आजी के अँसखयाँ लोरा जािा बाकी बाबा नीक से सिझ ु sवले "बाबु , इहाँ नीक इस्कूल नइखे नू आ िहरा िs पढ़ सलख के बड़ आदिी बने के बा नू ? "ए बाबा, फे र हिार सचरईयन अउर रुसखयन के दाना के सखयाई ? इहे ि हिर संघसिया हई सन" । बबलू के गाछ-सबररछ,सचरई चरु ंग से बहुि िोह रहे, बाबा के संगे बगईचा घिु ल अउर राि िें रािायण-िहाभारि के काथा सनु ल खूब भावे । िाई के आँचर खींच-खींच के ररसगर करे लागल "िाई हि इहें रहब आजी-बाबा लगे" िाई दल ु ार से िनावे लगली अरे बाबु उहाँ नया नया खेलवना सिली खेले के , बैटरी से चलेवाला । आपन घर खूब ऊपर असिान पर बा। उहाँ से नीचे सिन्ु दर लऊकी । साफ़ -सथु रा कवनो जगह ,िच्छर फसिंगा हैरान ना कररहेंसं । ओके असिान वाला बाि बहुि सोहाईल सोचलस चलs जोन्ही चनरिा िs सिसलहें उहाँ संगी साथी । नया जगह, नया फ्लेट िें असनल के पररवार सशफ्ट हो गईल। "असनल बो" अब इंदु बन के बहुि खुस रहली । असनल के भी आसफस से आईला के बाद पररवार के संग और घर के खाना सज से भेटाए लागल । बबलू के दासखला पास के इस्कूल िें हो गईल िगर बबलू उहाँ के िाहौल िें घल ु सिल ना पवलस । इस्कूल से आईला के बाद सदनभर बालकनी िें लटकल रहे । सांझ होए के इंिज़ार करे काहे से सक ओके अके ले सलफ्ट िें जाए के िनाही रहल सांसझ खा इंदु नीचे पाका िें ले जास । बबलू के िब लागे जइसे क़ै द से आजादी सिलल जहाँ खुल के सांस ले सकि रहल । © आखर ● मार्च, 2015 ● 49

सरोज त्रसंह िसलया , युपी के रहे वाली िरोज सिंह जी , सहन्दी भोजपुरी आ िंगला िासहत्य मे उभरि एगो िररआर नाव िानी । हाले मे इँहा के सलखल सहन्दी काव्यिंग्रह " िुम िो आकाश हो " आईल ह । भोजपुरी मे िैकड़न गीि गजल कसविा कहानी के रचना कई चुकल िानी । पाक कला मे दि िरोज जी एह घरी गासजयािाद मे िानी ।


कहानी

असहीं छुट्टी के सदन बबलू बालकनी िें छन हाथ ऊपर करे छन नीचे, असनल कुछ देर से देखि रहले फे र लगे जाके बबलू से कहले"ई का करs िारs ? सखससईला लेखा बबलू जवाब देहलस- "िाई काहे हिरा से झूठ कहली सक हिनी के घर आसिान िें बा, देखs ि हिार हाथ कहाँ जा पावsिा असिान के लगे ? आ ना नीचे जिीन के जरी ? "बाबा कहेले जे न असिान िें रहे अउर न जिीन पs उ "सिरशंकू" होला " हिसन के फे र सिरशंकू भईनी जा नू ? भकुआए के बारी अब असनल के रहे.... फे र बबलू पछ् ु लसपापा, इहाँ सचरई भी ना लऊके -सलसं काहें ? असनल िाथा खजआ ु वि कहलन -" इहाँ गाछ नईखे नू एसे उ सब आपन खोिा कहाँ बनइहेंसं एसहसे सचरई इहाँ ना लउके -सलसं "।

इहाँ गाछ काहे नईखे ? दोसरका सवाल फे र दगा गईल । असनल कहलन काहे से सक, िकान-घर बनावे खासिर िाटी के ऊपर कं करीट सीिेंट बीछावल जाला ...अउर गाछ िाटी िें जािेला नू "। एिना सनु े के रहल सक बबलू के आँख िें चिक उभरल कहलस अच्छा ! सच्चो ? सांझ के जब बबलू असनल के संगे घूि के नीचे से आईल ि ओकरा दनु ु हाथ िें िाटी भरल रहे ...बहुिे उत्साह िें िाई के गोहरा के कह्लस "ए िाई देख िाटी ले आईल बानी,अब जल्दी से बीया दे गाछ उगाईब, गाछ उगी ि फे र सचरई रुखी अइहनसन " असनल आ इंदु के ई बाि सनु के काठ िार सदहलस, बबलू के िन के ब्यथा अब जाके सायेद ठीक से बझ ु ाईल उनका लोग के !!

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वसनेमा

कफल्म , भाषा आ कछ बात

सा

त्रनत्रतन िंद्रा डु मरांव , सिहार के रहे वाला युवा सनदेशक , भोजपुरी सिनेमा मे िकारात्मक चचाि के शुरुवाि करे वाला देिवा कफल्म के सनदेशक सनिीन चंद्रा जी , भोजपुरी भाषा आ िासहत्य खासि कलम िे ही ना कै मरा िे भी आपन शि रसिशि दे रहल िानी । एह घरी इँहा के मुम्प्िई मे िानी ।

ल 2010 के बाि बा, हि आपन सफसलि खासि बक्सर सजला िें लोके सन जोहि रहनी । ससनेिाई भासा िें एकरा के "रेकी" कहल जाला । ई सब्द सिसलटरी के शब्द हs । बरहिपरु , डुिरी, नवडेरा ई कुल्ह छोट बड़ कस्बा बा हिनी के भोजपरु इलाका िें । ओकरे िें डुिरी वाला रोड से पसछि, खड़न्जा रास्िा (अब बन गईल होखी) अगवा बढ़ के आवेला बसलहार, बाद िें ओसहजा हि शूसटंग भी कईले रहनी । साँझ िें गांव के कुछ लोग जटु ल रहलन, एक ठो उिरगर आदिी कहलन के भोजपरु ी सफसलि बनावे जा िारs ि "नसदया के पार" नीयन बनइह, सीन - सीनरी कुल एकदि गांव के डसलह । हि कहनी के नसदया के पार ि भोजपरु ी ना रहे, ि कुछ नवका लोग बईठल, कहलन के ना भइया भोजपुररये रहे । हि कुछ कहनी । लेसकन कुछ बूढ़ परु सनया लोग कहलस के हाँ भोजपरु ी ि ना रहे बासकर पिृ भूसि ि भोजपरु रये नु रहे । ओकरा बाद उ लोग आज के भोजपरु ी सफल्ि के लेके दू चार बाि भी सूना देलन, के िू लोग ससनेिा िें अईसे करेल आ वईसे करेल । हि भी चपु रहनी, हि ना पूछनी के उ लोग काहे चपु बा अश्लीलिा के सवाल पर ।

एगो सफल्िकार जिना अपना दरसकन से ससखेला ओिना कवनो सफल्ि स्कूल िें भी ना सीख सके ला । ससनेिा के गूढ़ सीखे खासि सिाज के भीिर सिाज के साथ रहेके पड़ेला । उ जवन २४ फ्रेम्स पर सेकंड कहल जाला, िने एक सेकण्ड िें २४ गो िस्वीर जब आँख से गज ु रेला िब हिनी के िहसूस होला के पदा​ा पर कवनो चीज़ चलल (movement) । ससनेिा प्रोजेक्टर से एक सेकण्ड िें २४ फोटो के देखावल आ दसा क के उ फोटो से जोड़ल, बस अिने िें पूरा ससनेिा के व्यवसाय जडु ल बा । दरसकन से ररस्िा जोड़े के कवायद ससनेिा बा । अब हि कइसन दसा क खाड़ा करीं अपना खासिर उ ससनेिा बनावे वाला के संस्कृसि आ सोच बा । आि िौर पर इहे कहल जाला के ससनेिा सवजअ ु ल िीसडयि बा, िनोरंजन बा आ व्यवसाय के । लेसकन हिरा नज़र िें अऊर भी बहुि कुछ बा ससनेिा । ससनेिा सेलुलॉइड के परि पर, प्रोजेक्टर के उसजयार िें, रौशनी िें नहाईल सकरदार के हाव भाव, रंग रूप, चाल चलन, खान पान, कपड़ा लत्ता, भेस भूसा, घर दवु ार, परम्परा त्यौहार आ का िालूि किना िरह िरह के दृश्य के सिेट के एगो कहानी कहल जाला । अवरी अगर इहे दृश्य कुल से आत्िीय जड़ु ाव हो जाए ि ओकरा के िनोरंजन कहल जाला, कि से कि, हि ि जड़ु ाव (involvement/engagement) कसहला । हि पसहला हाली "नसदया के पार" 90 के दशक िें देखले होखब, हिनी सकहाँ एक ठो भी. सी. आर. रहे पटना िें, ओकरा साथे दु चार गो सहंदी आ भोजपरु ी के

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भोजपररया लोग जवन सामाकजक ढा​ांचा में पलल बढ़ल बा लो, उ ढा​ांचा बहु त बकढया​ां से पररभाकषत बा आ ई कहल जाव के अस्सी के दशक तक बहु त पररभाकषत रहे । लेककन आकथज क उदारीकरण के फायदा, हमनी के क्षेत्र में ना पहु ुँचल । कै सेट हिेसा रहि रहे, हिरा इयाद पड़िा के सहंदी के ब्लफ़ िास्टर, िेज़ाब आ भोजपरु ी के दंगल आ अवर्ी के नसदया के पार रहि रहे । हि अपने भोजपुरी क्षेत्र के बानी ि हि ई पूरा प्रिान आ सजम्िेदारी के साथ कह सके नी के "नसदया के पार" भोजपरु ी सफल्ि नईखे । ई खांटी अवर्ी आ कहीं कहीं सहंदी के सिश्रण बा, कई एक जगह पर जौनपरु िऊ वाला भोजपरु ी के एक आर् वाक्य सिल जाई बासकर सफल्ि भोजपरु ी नईखे । जइसे जब काकी, सिवारी से पछ ु े ली "का हो सिवारी अब िसबयि कईसन हौ ?" बक्सर सजला िें हौ के जगह कईसन बा, बसलया िें कईसन बा/बड़़ु ए, आरा िें कईसन बा/कईसन ह कईसन बाटे/हटे अलग अलग भोजपरु रया क्षेत्र िें अलग प्रयोग होला, आ कई जगह पर अदला बदली भी होला । भोजपरु ी के कई गो प्रकार बा, चंपारण के भोजपरु ी िें नेपाली सरु भी सिल जाला ि कबो सिसथला के सिठास, ि छपरा, सीवान, गोपालगंज िें भोजपरु ी सुगि आ आरा बक्सर बसलया के खांटी लठिार, लेसकन ओकरा िें भी एक अपने र्नु बा, झकझोरे वाला बाि, जवन गल ु ाब बाई अपना गाना "आरा के लोगिा बा कठोर...." िें गवले बाड़ी । लेसकन उ कठोरिा के पीछे रोिांस आ साहस भी बहुि बा आरा के लोग िें । लेसकन "नसदया के पार" िें एक प्रसिशि भी भोजपरु ी भाषा नईखे, ई खांटी अवर्ी सफल्ि सबया । बासकर हिरा आस्चजा नईखे के सिस्ि भोजपरु ी सिाज एकरा के भोजपरु ी सफसलि सिझेला आ एकरा साथे ओिने ररस्िा बनल बा जेिना के "गंगा िइय्या िोहे सपयरी चढ़इबो" चाहे "िाई" आ "दंगल" से बनल ।

के भोजपरु ी एक पररपूणा भाषा बीया, एकर व्याकरण शब्दकोष भी बा । 400 साल िक कै थी सलसप, जवन के भोजपरु ी सलपी सबया, ओकर इस्िेिाल पूवांचल आ सबहार भर के कोटा सब िें होि रहे लेसकन 1872 के बाद एकरा के खत्ि क दीहल गईल । िग़ु ल काल िें भोजपरु ी नस्िलीक़ सलपी िें सलखल जाि रहे, िसु स्लि शासक लोग के सिझे खासिर । भोजपरु रया लोग जवन सािासजक िांचा िें पलल बढ़ल बा लो, उ िांचा बहुि बसियां से पररभासषि बा आ ई कहल जाव के अस्सी के दशक िक बहुि पररभासषि रहे । लेसकन आसथा क उदारीकरण के फायदा, हिनी के क्षेत्र िें ना पहुचँ ल । आसथा क सािसजक सांस्कृसिक आ वैचाररक पिन होि होि होइए गईल, आदिी पलायनवादी गईल । इंन्टरनेट यगु िें हिनी के एकदि कगार पर बानी जा । "नसदया के पार" 1981 िें उ दौर के ससनेिा रहे जहां पर सहंदी ससनेिा के सदनगज चारो िरफ से ससनेिा के घेरले रहे, असि​िाभ, र्िेंदर, राजेश खन्ना, सवनोद खन्ना, के दौर रहे । लेसकन िबो नसदया बनल आ उहो खांटी अवर्ी िें आ एक कल्ट (cult) ससनेिा के स्टेटस पवलस । कारण रहे ईिानदारी से बनावल गईल, पूवांचल रचल बसल एक सफसलि । नसदया के पार िें एक छोट चक ु ी गाँव गंगा िट के सभ्यिा, सूयोदय से सरु​ु आि होला, एकदि जिीनी सख ु

जईसन के हि पसहलहीं कहनी के "ससनेिा सेलल ु ॉइड के परि पर, प्रोजेक्टर के उसजयार िें, रौशनी िें नहाईल सकरदार के हाव भाव, रंग रूप, चाल चलन, खान पान, कपड़ा लत्ता, भेस भूसा, घर दवु ार, परम्परा त्यौहार आ का िालूि किना िरह िरह के दृश्य के सिेट के एक कहानी कहे के कवायद बा ।" भोजपरु रया लोग के "नसदया के पार" से जड़ु े के सपछे कई गो कारण बा । लेसकन उ जाने से पासहले इहो जान सलहीं

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नहीं है, एक का चार वसूलेगा", बहुि अईसन डायलॉग बाड़ी सन जवना िें भोजपुररया सिाज के िानस पटल साफ़ लउके ला । जवन िरीका से गूंजा आ चन्दन के प्रेि परवान चढ़िा, हिनी के भोजपरु रया सिाज िें भी अईसने होला । सन्ु दर छे ड़खानी, िया​ा सदि बाि चीि, भाव के शद् ु िा, जवन के अब कवनो ससनेिा िें नईखे ।

दाःु ख, गीि संगीि, उ जवन कहल जाला नु सिट्टी के खुसबू, उ रहे नसदया के पार िें । खेि, बैलगाड़ी, सकसान, सिटटी के घर, खपड़ैल के झोपड़ी, गांव के कंु आ, िाटी से लीपल आँगन के जिीन आ िांटी से लीपल गांव के सदवार पर सख ु ि िूली के गच्ु छा, आ ई कुल के बीच िें नररयर के रसई से बनल खसटया पर खादी के कुिा​ा अवरी र्ोिी पसहर के सफसलि के िख्ु य सकरदार उंघािा । इहे उ खुसबू बा जवन अचेिन िन प असर करेला आ हिनी के जुड़ जानी । भासा नइखे लेसकन संपका भोजपरु रया बा, हर चीज़ के िाध्यि से । हिनी के सफल्ि इंडस्री िें कहल जाला के "God lies in detailing" िने "सवस्िार िें ईिर के वास बा ।" उहे सवस्िार/detailing से रउवा लोग जड़ु जािानी । भासा के छोड़ दीं ि संस्कृसि एक्के जईसन बा । अब जइसे एक पात्र कहिा के "वैदवा बेवक़ूफ़

"नसदया के पार" जवन सिय आईल रहे, लगभग उहे टाइि पर प्रकाश झा दािल ु बनावि रहलन । नसदया के पार जईसन भाषाई ईिानदारी अगर दािल ु िें रसहि ि आज भोजपरु रया दसा क के लगे अपना भासा िें एगो िास्टर पीस हो सकि रहे । लेसकन उ ऐसिहाससक गलिी हो चक ु ल बा । नसदया के पार देसख के जसहया भोजपरु ी दसा क ससनेिाघर से बहरी सनकलल होई ि अपना साथे फाग, गांव के संस्कृसि, कोहबर के प्रथा, लौंडा नाच के िस्िी, ि​िा बान, रौशनदान, पेरोिैक्स, आ उ िय चीज़ जवन भोजपरु ी पररवेश िें भी सिलेला ऊ ले के सनकलि होई ससनेिा हाल से । आ उ गाना कईसे भल ु ाइल जा सके ला, िुलसी के सेवा चनरिा के पूजा, कजरी चईिा, अंगनवा िें पूजा । इहे हटे भोजपरु रया सिाज आ "नसदया के पार" से नािा ।

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बेबाक बर्कही

रें गनी

हौ ले से सझंगरु के आवाज़ चांदनी िें सुगबकाि हाथ आपन हथेली पे ही रगड़ि ,बार-बार सटस सनयन सदल िें उिड़ि एगो सवाल ,जवाब से पसहलही दगो ु

ना चारगो। अनसगनि ,जाल िकड़ी के जाला सनयन बनु ाि ,सवाल हिरी सदिाग के उपज, अब घेर ले ले बा, िकड़ी के छटपटा के कइसे सनकली, अपने बनल सवाल के जवाब कइसे िुंिी। कबो चाँदनी के दसु र्या रौशनी िें दु िल्ला पे बाँस के बनावल रेंगनी पे आपन नज़र दउरल ,िकड़ी जाल बनु रहल बीआ ।बड़ िेज़ी िें ,हवा िें बस एगो सहारा से आपन ज़िीन घेर के ,सबु ह होखे से पसहले बनु ा जाइ । आदिी के िना सनष्ठुर बा । भोरे कपड़ा रेगनी पे टाँग देिा, सबकुछ बड़ा सार्ारण सा बा ,एगो साँस पे सज़ंदा रहे वाला के िार दे िा । सवाल उहे सक डेग-डेग चले वाला इंसान ज़िीन के कठ्ठा िें नाप देिा , इकठ्ठा करके फे रु जरुरि पे बाँट देिा ।कुछ उकरी सीना के सचर के अनाज बना लेिा, के हु ओकरा िें खोद के सकला बना लेिा विा िान के िनी िाना-बाना देखी, राजनीि, अथा शास्त्र, वासणज्य, िकनीक, भगु ोल, इसिहास, सवज्ञान सभे एक दस ु रा के सबना अर्रु ा बा । अलग-अलग रह के भी इकठ्ठा बा । िबे ि सब चल रहल बा । बाँटे के कोसशश हर क्षेत्र िें परु ान बा । कुछ गहन जानकारी खासिर ि कबो उकर उत्पसि के आर्ार पर ,हर सवषय के िरह िरह के सोच पे बटाइल, लउक जाइ । सिाज भी बटाइल बा , बहुि अलग -अलग आर्ार पे । नव सनिा​ा ण के िरफ बढ़ रहल इंसान अब कुछ अउरी बाँट रहल बा । र्िा बंटा गइल ,सहन्दू ,िस ु लिान ,ससख ,ईसाई । फे नु एिे बाभन , क्षसत्रय ,वैश्य,शद्रु ,ससया ,सन्ु नी,रोिन ,कै थोसलक ... ना जाने का-का । अब ि वासणज्य के पहुचँ देखी । घर वापसी हो रहल बा ,एक्सचेंज ऑफर भी बा, फ्री पोटेसबसलटी । जइसे रउवा आपन िोबाइल के नंबर ऐ कं पनी से दोसरा कं पनी िें बदल ली िेर ससु वर्ा के साथ वइसे हीं । राजनीिी भी िसनको दरू नईखे ,के हु कह रहल बा ,फलनवा पाटी ि के हु अउरी पाटी । खून आ िांस ,चेहरा आ चाल ,सजये खासिर उहे साँस सब एके बा ,फे नु बंटा रहल बानी । इंसान बाँट रहल बा ,बंटा रहल बा। इ बाँटे के सिज़ाज़ से सावर्ान भइल जरुरी बा । लेसकन का कइल जाव ,लइका पैदा होि िाई के पेट से बंटा जाला, भाई-भाई से बंटा जाला, पररवार जोड़ेल, फे र बँटला , पर एक उिर पे िाई के कोरा िें सिाये खासिर छटपटाला । इ सब ससदयों से बा । कठ्ठा -कठ्ठा िें नपाइल सजनगी इंसान के सजये खासिर बा । हर अंश ,इंसान के सोच के सवस्िार खासिर बा । ना ि रोज रािी के रेंगनी पर ,चांदनी राि िें सवाल िकड़ी के जाला सनयन इंसान के चबा जाइ । हाथ हथेली पे हीं लरखरा जाइ । सदल -सदिाग से बंटा जाइ । इंसान के आंिररक लोकिंत्र सिाज के सबगरि िांचा नासहन चरिरा जाइ ।

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श्वेताभ रंजन सिवान , सिहार के रहे वाला श्वेिाभ रं जन जी , सपसछला कु छ िालन िे भोजपुरी िासहत्य के थािी मे गजि के िढोिरी कईले िानी। लगािार गद्य आ काव्य के माध्यम िे भोजपुरी के िासहसत्यक पछ के अउरी िररआर करि , इँहा के भोजपुरी काव्य िंग्रह " कु छ कह रहल िा " रकासशि भईल ह । श्वेिाभ जी एह घरी कदल्ली मे िानी ।


भाषा-वलवप

कैथी कलकप एह लेख के िूल सवषय बा

पी. राज त्रसहं जी छपरा , सिहार के रहे वाला पी राज सिंह जी आर एि कालेज सिवान मे एिोसियेट रोफे िर िानी , नया िकनीकी िे जुड़ल अपना मािृभाषा खासि हर िरह िे लागल भीड़ल , अपना सवशेष कै मरा िे जवार के हर पहलू के कै द करि भोजपुरी भाषा के एगो िासहसत्यक कलात्मक उं चाई दे रहल िानी । एह घरी इँहा के छपरा मे िानी ।

कैर्थी वलवप आज विलोवपर् हो जाये के कगार पर बा । वलखे पिे में अब एह वलवप के प्रयोग नइखे होर् । एकर स्र्थान देिनागरी ले लेले बड़ुिे । जमीन जायदाद के बहर् परु ान दस्र्ािेज के रूप में ई वलवप कबो कबो लऊक जाला । सब केह एकरा के ना पि पािे।

(क) कै थी सलसप आ एकर इसिहास (ख) भाषा आ सलसप िें सम्बन्र् (ग) भोजपरु ी भाषा आ कै थी सलसप िें सम्बन्र्

क सलसप आज सवलोसपि हो जाये के कगार पर बा । सलखे पढ़े िें अब एह सलसप ैके प्रयोगथी नइखे होि । एकर स्थान देवनागरी ले लेले बड़़ु वे । जिीन जायदाद के बहुि परु ान दस्िावेज के रूप िें ई सलसप कबो कबो लऊक जाला । सब के हु एकरा के ना पढ़ पावे। हिार र्ेयान एह सलसप पर हाल सफलहाल िे फे सबुक पर दू गो फोटो देख के गईल । ससवान के राजेश ससंह जी ( ओिान , िस्कट िे बानी ) अपना फे सबक ु टाइिलाइन पर कवनो परु ान सकिाब / दस्िावेज के दू गो फोटो पोस्ट कईले रही । ( फोटो : असगला पन्ना िें) उनकर पूवाज लोगन के एगो संि सिाज लगभग 2000 पेज के दस्िावेज सउंपले रहे । आज ले के हु ओकरा के पढ़ नइखे पावल, अथा नइखे लगा पावल । राजेश जी फे सबक ु पर उपसस्थि सित्रिंडली से कहनी सक शायद के हु एह के पिे िे सहायक हो सके । हि देखनी ि उहाँ के सिझावे के कोसशश कईनी सक कवनो अज्ञाि लोक से आईल ई सलसप आ भाषा ना ह । ई कै थी िें सलखल बा , भाषा भोजपरु ी भी हो सके ला । आजकल ई सलसप बेवहार िें नइखे एह से पढ़े िें कसठनाई ि होइ बासकर पढ़ा जाई । का जाने एही बहाने भोजपरु ी सासहत्य के कवनो अनिोल सनसर् प्रकाश िें आ जाव , एह उिेद िें हि पढ़े आ सिझे के प्रयास क देहनी । एह प्रयास िें कुछ दूर िक अससि सिश्रा भी साथ सदहले। नािकरण : कै थी शब्द संस्कृि के " कायस्थ " से बनल बा। कै थी के एगो दगु ो अउर नावा बावे , जइसे , सबहारी , कै थीनागरी आसद । बासकर प्रचसलि नाि कै थी ही बा । सलखाई पढ़ाई के अनौपचाररक , अर्ासिा क ( Secular ) संदभा न िें जईसे सक राज काज , कोट कचहरी , दस्िावेज सलखाई व्यसिगि संवाद आसद िें कै थी के प्रयोग के चलन असर्क रहल बा । र्ासिा क आ औपचाररक संदभा न िें ( सहन्दी आ संस्कृि भाषा खासिर ) देवनागरी सलसप प्रयोग असर्का होि रहल ह । सलसप के संरचना के गहराई से अध्ययन कईला के बाद आ एकर प्रयोग के क्षेत्र के देखला के बाद भाषाशास्त्री लोग कै थी के नव भारिीय यूरोपीय भाषा सिूह के पूरबी शाखा के रूप िें रखले बा । एही शाखा िें बंगाली , िैसथली आ उसड़या भी आवेला । कै थी के उत्पसत्त के सनसि​ि अवर्ी ना बिावल जा सके काहे सक एह सम्बन्र् िें कवनो प्रािासणक साक्ष्य उपलब्र् नइखे । बासकर अिना िय बा सक 16 वीं शिाब्दी िक एगो स्विंत्र आ सवकससि सलसप के रूप िें कै थी स्थासपि हो चक ु ल रहे । शेर शाह सूरी ( 1486 - 1545 ) िक सब सरकारी दस्िावेजन िें एकर प्रयोग सिलेला । 17 © आखर ● मार्च, 2015 ● 55


बासकर सलसप खसलहा आदिी ही सवकससि कई सकि बा । नोआि चोम्स्की ( Noam Chomsky ) के बाि िानल जाव ि भाषा आदिी के स्वयं प्राप्त हो जाए वाला छि​िा ( Innate capacity) ह । भाषा आदिी के जािीय चेिना ( Racial consciousness ) के भाग ह । जइसे सचरई के उड़े खासिर कवनो प्रकार के रेसनंग के जरूरि ना पड़े , ओइसहीं एगो छोट लईका के आपन िािभृ ाषा के सब रूप के सहजे आि​ि साि ( Internalize ) कर लेला ।

िानव आपन ज्ञान आ अनभु व के वासचक परंपरा से एक पीढ़ी से दोसरा पीढ़ी िक पहुचं ा सके ला । बासकर वचन से प्रसाररि ज्ञान आ अनभु व के एगो सीिा बा । ई शाि​ि ना हो सके । सबला जाये के संभावना बराबर बनल रहेला . कुछ बांच भी जाव ि पररवसिा ि भी हो जाये के संभावना से इंकार ना कईल जा सके । भाषा (ध्वसन ) िें व्यि एह ज्ञानन के बचावे खासिर आदिी कुछ प्रिीकन के , कुछ कोड के सवकास कईलख । इहे प्रिीक सलसखि भाषा के अच्छर ( आखर) ह । जइसे सक नाि से ही अथा सिल जाि बा " अच्छर", जेकर क्षरण नइखे हो सकि । सलसप ,एही अछरं की सिला के सवकास कईल गईल एगो पद्सि ह । अउर सर्ु ार के कहल जाव ि ध्वसन के िाध्यि से व्यि भाषा के सलसखि संकेि के रूप िें व्यि करे के पद्सि सलसप ह । वीं शिाब्दी िकले एकर प्रयोग के क्षेत्र िें अउर सवस्िार भईल., सासहत्य के भी रचना होखे लागल । 1880 िें अँगरेज़ सरकार एकरा के राज काज के भाषा के रूप िें िान्यिा दे देहलस । 1885 िें सर जे सी नेसफील्ड एकर िानकीकरण क के छपाई के फॉण्ट सवकससि कईले। कै थी के सवकास गप्तु कालीन िाह्मी सलसप से सबना शुसद् अशसु द् के ख़याल कईले एगो घसेटउवा लेखन शैली के रूप िें भईल । एह सलसप के राजस्थान के िहाजनी , गज ु राि के िोदी आ पंजाब के लांडा के सिान्िर राखल गईल बा । अथा के ख़याल से कै थी नागरी के सवपरीि अथा वाला ह । नागरी के िाने नगर , नगर के सभ्यिा से सम्बंसर्ि बा । भाषा आ हलहप िें सम्बन्द्ध : इ ससद् हो चक ु ल बा सक भाषा बेवहार पेड़ पौर्ा ससहि सब जीव जंिु िें पावल जाला। सब जीव र्ारी के लगे भाषा बा

आर्सु नक सन्दभा िें सलसप के कुछ अइसे भी सिझ ु ल जा सके ला । फे सबक ु पर बहुि लोग बहुि बार भोजपरु ी भाषा के रोिन सलसप िें भी सलखेला । भारि िें उदा ू भाषा अरबी फारसी सलसप िें ि सलखइबे करेला देवनागरी िें भी सलखाला । गूगल अनवु ाद पर जा के आज के हु रोिन िें टाइप कर के दसु नया के कवनो भाषा के प्रचसलि सलसप िें अनवु ाद ले सके ला । इहाँ देखीं हि देवनागरी िें अंग्रेजी सलख रहल बानी , " इंसडया इज़ िाई कं री । " कै थी आ भोजपुरी : भोजपरु ी आ िगही के पारम्पररक सलसप कै थी ही ह । सग्रयसा न के अनस ु ार भोजपरु ी क्षेत्र से ही कैं थी िगर् िें गईल । एक जिाना िें उदा ू , अवर्ी आ िैसथली भी कै थी सलसप िें ही सलखाि रहे। सगरसिसटया के रूप िें िॉरीशस , सफजी , सत्रसनदाद , सूरीनाि आसद देशन िें गईल भारिवंशी लोग अपना साथे कै थी िें सलखल हनिु ान चालीसा , रािायण आसद ले गईल । एह िरह से एह सलसप के प्रसार ओजा भईल ।

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देवनागरी सलसप िने वाला लोग के दवाब सरकार पर बिे लागल। 1893 िें बंगाल सरकार आपण 1880 के फरिान के बदल देहलख। कै थी असर्क लोकसप्रय सलसप रहे, एह से फे र 1894 िें एकर पछ िें अउर एगो फरिान जारी भईल । बासकर आगे के बररसन िें देवनागरी के पछ िें दवाब बिे लागल। कुछ अउर भाषा ित्व सम्बन्र्ी कारण भी एकरा सवपछ िें लउके लागल , जइसे की शब्दन के अलगा अलगा ना सलख के एके साथे िाथ बान्हल , कोिा , कोलन आसद के ना के बराबर प्रयोग आसद। सबसे बड़ कारण िें ई भी रहे सक भाषा आ बोसलयन के बीच सलसप के एकरूपिा रहे के चाहीं। काशी िें नागरी प्रचाररणी सभा, जइसन की एकर नाि से ही उदेश के पिा चलि बा , देवनागरी के पछ िें जोरदार िंग से प्रचार आ वकालि करे लागल । कोट कचहरी िें 1913 िक कै थी के प्रयोग चलल । ओकरा बाद एकर स्थान देवनागरी ले लेहलस । आज कै थी इसिहास के भाग हो गईल बा एही कारण एकर िहत्व भी । . ( क्रिशाः राजेश ससंह के फोटो के देवनागरी िें रूपान्िर असगला कड़ी िें )

उत्थान आ पिन : 1880 िें बंग ाल के लेसफ्टनेंट गवनार सर एस्ले इडेन एगो फरिान के जररये कै थी के राज काज के भाषा के रूप िें िान्यिा देहले। एकर पासहले अरबी फारसी सलसप वाला उदा ू के प्रयोग होि रहे। 1881 िें फे र कोट कचहरी कै थी के प्रयोग पर रोक लगा देहल गईल। बासकर कै थी के लोकसप्रयिा के देखिे हुए ई रोक एक बाररस बादे हटा लेहल गईल। सं 1885 िें सर जे सी नेसफील्ड कै थी के िानकीकरण कईले आ एकर छपाई वाला फॉण्ट सवकससि कईले । आज़ादी के पूवा देश के सािासजक राजसनसिक पररसस्थसि िें िेज़ी से बदलाव होखे लागल। यह िें कुछ कुछ बदले के , कुछ सररहारे के भाव भी रहल हा। र्ीरे र्ीरे अरबी फारसी आ © आखर ● मार्च, 2015 ● 57


बेबाक बर्कही

कबीर, भोजपरी एां व चांपारण

वीन जागरण यगु के अगआ ु के रूप िें सहंदी सासहत्य िें स्थासपि “कबीर” आजू जनिा के हृदय िें व्यसि के रूप ना बलक ु प्रिीक के रूप िें प्रसिसष्ठि बानी। भगवान् बद् ु के बाद उत्तर भारि िें सािासजक क्षेत्र िें नवचेिना आ िानववाद के स्वर फूँके वालन िें कबीर सवा श्रेष्ठ िहािानव बानी। इहां के सहंदी के आसद कसव िानल जाला। इहां के परंपरागि काव्य भाषा- संस्कृि आ पासल के िेयाग के जनभाषा अपभ्रंश-सिश्रण सहंदी िें आपन बानी िख ु ररि कइनी। एह शोर् आलेख िें इ स्पि करे​े​े के प्रयास कइल गइल बा सक कबीर सहंदीये के खाली ना बलक ु ‘भोजपरु ी भासो’ के आसद कसव हई। उनकर सबहार प्रान्ि के चंपारण क्षेत्र से का सम्बन्र् रहल आ कबीर के चंपारण के संगे संगे भोजपरु ी भाषा से का संबंर् बा ओकरा के परख करि इ शोर् आलेख बा। भोजपुरी भाषा के आहद कहि: कबीर भोजपरु ी सासहत्य आ भाषा के इसिहास के अध्ययनोपरांि आ अलग अलग स्त्रोिन के अवलोकन के बाद इ बाि के ससद् करल सरल हो गइल बा सक जवन कबीर के जनभाषा अपभ्रंश- सिसश्रि सहंदी के कसव िानल गइल उहां के सही िाने िें भोजपरु ी भाषा के आसद कसव हई। डा. उदय नारायण सिवारी, डा. कृष्ट्णा देव उपाध्याय, दगु ा​ा शंकर प्रसाद ससंह ‘नाथ’, राससबहारी पाण्डेय, हवालदार सत्रपाठी सहृदय, पं.गणेश चौबे, निा दिे र सहाय, डा. गदार्र ससंह, डा. िैयब हुसैन पीसडि, डा. राजेन्द्र प्रसाद ससंह आ डा. गोरख प्रसाद ‘िस्िाना’ जइसन भारिीय सवद्वान आपन पस्ु िक, लेख, सनबंर् आ शोर्-सनबंर् के िाध्यि से कबीर के भासा के िय करे के काि कइले बाडे​े़। "कबीर चररत्र बोर्" के िोिासबक कबीर के जनि संवि 1455 वीं (वषा 1398) के ज्येष्ठ पूसणा िा के भइल बा बासकर बाबू श्याि सन्ु दर दास, डा. िािा प्रसाद गप्तु , डा. पीिाम्बर दत्त बड़थ्वाल जइसन भारिीय सवद्वान िें कबीर के जनि के बारे िें ि​िभेद बा। कबीर के जनि के बारे िें कएगो जनश्रसु ि प्रचसलि बा आउर कहल जाला सक उहां के एगो सवर्वा िाह्मनी के बेटा रहनी जे कबीर के जनि​िे उनका लहर िारा नदी के लगे फें क देली जहवाँ से नीरू आउर नीिा नाि के जल ु ाहा दम्पसि उठा के ले अइलें आ उहे बचवा आगे चलके कबीर साहेब कहलइलें। सिश्रबंर्ु एह कथा के िनगढ़ि िानेलें आ उनकर कहनाि बा सक संि कबीर वास्िव िें नीरू जल ु ाहा के बेटा रहस। 1. नागरी प्रचाररणी सभा से प्रकासशि कबीर ग्रंथावली िें कबीर के बानी संकसलि बा। कबीर के बानी के भाषा पर सवचार करि, एकर संपादक सलखि बानी सक “यद्यसप उन्होंने (कबीर ने ) स्वयं स्वीकार सकया है सक की ‘िेरी बोली पूवी है’ िथासप खड़ी, िज, पंजाबी, राजस्थानी, अरबी आसद अनेक भाषाओं का पटु भी उनकी उसियों पर चढ़ा है।’

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संतोष पटेल िेसिया, पसिम चंपारण, सिहार के रहे वाला िंिोष पटेल जी , ररिचि स्कॉलर (भोजपुरी), हई , यूजीिी नेट क्वासलफाइड, एम ए, एम कफल के िंगे िंगे सिसनअर सडप्लोमा - गायन (िंगीि) मे , िंपादक - भोजपुरी सिन्दगी, िह िंपादक पुवािन्कू र, (सहंदी - भोजपुरी ), िासहसत्यक िंपादक - सडफें डर (सहंदी- इंसग्लश- सहंदी), ररयल वाच ( सहंदी), उपािना िमय (सहंदी), हई । कई गो भोजपुरी आ सहन्दी ककिाि सलख चुकल िानी , कु छ शोध परक भोजपुरी ककिाि रकाशन मे िडु वे । राष्ट्रीय आ अंिराष्ट्रीय मंचन िे कसविा पाठ भी करेनी । एह घरी इँहा के कदल्ली मे िानी ।


सांचो कबी र खुदे आपन एगो दोहा िें आपन भासा भोजपरु ी िनले बानी:बोली हिारी पूरब की , हिे लाखे नहीं कोच। हिके िो सोई लखे , र्रु पूरब का होए।। आचाया राि चन्द्र शक्ु ल आपन सहंदी सासहत्य के इसिहास िें एह सम्बन्र् िें सवचार करि सलखि बानी सक “इनकी भाषा सर्क्ु कड़ी है अथा​ा ि् राजस्थानी, पंजाबी, खडी बोली है, पर रिैणी और सबद िें गाने के पद हैं सजनिें काव्य की िजभाषा और कहीं कहीं पूवी बोली व्यवहार है। 2. भोजपरु ी भाषा और सासहत्य के दूसरका अध्याय ‘भोजपरु ी सासहत्य, भोजपरु ी भाषा और सासहत्य’ िें डाे. उदय नारायण सिवारी जी सलखले बानी सक ‘‘यद्यसप अत्यन्ि प्राचीनकाल से बनारस का सांस्कृसिक सम्बन्र् िध्यदेश से रहा है िथासप उसकी भाषा िो स्पि रूप से िागर्ी की पत्रु ी है। यह बोली बनारस के पसि​ि सिजा​ा िरु ाद थाना से दो िीन िील और आगे ि​िन्चाबाद िक बोली जािी है वस्िुिाः यही बोली कबीर की िािृभाषा थी। यह प्रससद् है की कबीर पिे​े़ सलखे न थे अिएव अपनी िािृभाषा िें रचना उनके सलए सवा था स्वाभासवक था। कबीर के अनेक पद आज भी बनारसी बोली अथवा भोजपरु ी िें है।’’ 3 भोजपरु ी भाषा का इसिहास िें ‘कबीर की भाषा भोजपरु ी’ अध्याय िें रास सबहारी पाण्डेय डॉ. सनु ीसि कुिार चटजी के उद्िृ कबीर के चार पद के वणा न कइल बा जेकरा डाँ चटजी खांटी भोजपरु ी िें िानेनी, जइसेाः“कनवा फराई जोगी जटवा बिवलें दाढ़ी बिाई जोगी होई गइलें बकरा कहि कबीर सनु ो भाई सार्ू जि दरवाजा बान्हल जइबे पकरा” जंगल जाई जोगी दसु नया रिौले काि जराय जोगी बन गइले सहजरा।’’ 4 डा. उदयनारायण सिवारी भोजपरु ी सासहत्य के जवना उदाहरण से कबीर के े​े भोजपरु ी भासा के आसद कसव िनले बानी उ अपने िें ससद् बा। कबीर साहेब की शब्दावली (भाग पसहला) पष्ठृ -23, सबद 5 िें“कवन ठगवा नगररया लूटल हो, टेक

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चन्दन काठ कै बनल खटोला, िापर दसु ल्हन सिु ल हो उठो री सखी िोरी िांग संवारी, दूल्हा िोसे रुसल हो आये यिराज पलंग चिी बैठे, नैनन आंसू टूटल हो चारी जने सिली खाट उठाइन, चहु ँ सदसस र्ू र्ू उठल हो (कबीर साहेब की शब्दावली, भाग दूसरा पष्ठृ संख्या 40, शब्द 28) िोर सहरा हीराइल बा कीचडे​े़ िें। टेक। कोई िूंिे पूरब कोई िूंिे पसच्छि, कोई िूंिे पानी पथरे िें।। (कबीर साहेब की शब्दवाली,दूसरा भाग,पष्ठृ संख्या- 69) सिु ल रहलूँ िैं नींद भरी हो, गरु​ु सदहले जगाई ।टेक। चरण कवल के अंजन हो, नैना लेलूं लगाई। (कबीर साहेब की शब्दावाली, चैथा पष्ठृ संख्या-19) अपने सपया की िैं होइबो सोहागसन - अहे सजनी। भइया िसज सइयां संग लागब रे की।। भोजपरु ी के कसव और काव्य के ‘िहात्िा कबीरदास’ अध्याय िें श्री दगु ा​ा नाथ ससंह ‘नाथ’ पष्ठृ संख्या 33 से 47 िक कबीरदास के लगभग 25गो भोजपरु ी पद के उल्लेसखि कइले बाड़े:1.िोर हीरा हेराइल बा कीचड़े िें.... 2. कउन ठगवा नगररया लुटल हो..... 3.का ले जाइबो ससरु घर जइबो .... 4. अइली गवनवा के सारी हो, अइली गवनवा के सारी साज सिाज ले सइयां िोरे ले अइले कहारवां चारी िन सवचार दरसदयो ना बझ ु े जोरि गसठया हिारी सखी सब गावेली गारी।। एह गीिन िें भोजपरु ी शब्द, सक्रया पद आसद के ढ़ेर प्रयोग बा खाली एिना कहल उसचि ना होई वास्िव िें इ कुल्ही गीि भोजपरु ी के ह जेकर सवशेष सववेचना के आवश्यकिा नइखे बझ ु ाि। कबीर के भोजपरु ी भासा के आसद कसव के रूप िें िानि भोजपरु ी भाषा के प्रससद् आलोचक नागेन्द्र प्रसाद ससंह आपन ‘भोजपरु ी सासहत्य के संसक्षप्त इसिहास’ िें सलखि बाड़े सक ‘‘कबीरदास के रचना का प्रसंग िें बीजक के नाव आवि बा। जवना िें 809 साखी, 400 पद आ 07 रिैनी बा बासकर कबीर


सासहत्य के शोर्कत्ता​ा आ सवद्वान डॉ. पारसनाथ सिवारी 200 पद, 744 साखी, आ 21 गो रिैनी िानेनी।’’ आगे श्री ससंह सलखि बाड़े सक ‘‘कबीरदास के रचना के भाषा िूल रूप से ठेठ भोजपरु ी रहे. घिु ंिू सार्ू भइला से सवसभन्न क्षेत्रन के सशष्ट्य परंपरा से स्थानीय संसोर्न का कारन उहाँ का रचनन िें दोसरो भाषा जइसे - राजस्थानी, पंजाबी, िगही, अवर्ी, आसद के शब्द आउर सक्रया पद सिलेला जवन स्वाभासवक बा ।’’ 5

एही िरे कबीर के भासा के सवश्लेषण करि निा दिे र चिुवेदी भोजपरु ी सासहत्य के इसिहास िें काल सवभाजन के क्रि िें संि काल की शरु​ु आि कबीर से िानि बानी। भोजपरु ी के संि सासहत्य (लेखक: निा दिे र चिवु ेदी) िें निा दिे र सलखि बाड़े सक ‘भोजपरु ी के संि सासहत्य के शरु​ु आिे भोजपरु रया िहात्िा कबीर से भइल बा। आपन कथनी आ करनी के सच्चाई से ई आपन बाि सनभीकिा से कहि रहले जवना के असर दोसरो िें आत्िासविास जगावि रहल बा।’ डॉ. राि कुिार विा​ा ‘सहंदी सासहत्य के आलोचनात्िक इसिहास’ ग्रन्थ िें कबीर के भासा भोजपरु ी बिवले बाड़े। उहें डॉ. हजारी प्रसाद सद्ववेदी आपन पस्ु िक कबीर िें कबीरदास के उहे कुल्ह पद के संग्रह कइले बाडे​े़ जवना के भासा िें भोजपरु ी के असर्किा बा। प्रोफे सर िैनज े र पाण्डेय िानि बानीं सक ‘‘कबीर की भाषा िूलिाः भोजपरु ी है। कबीर के सशष्ट्यों की कृपा से उसिे ँ अन्य क्षेत्रीय भाषाएं आ गयी हैं।’’ 6

कबीर आ चंपारण ’’चंपारण’’प्रकृसि के लीला भूसि, पवा िराज सहिालय के आंगन भूसि, चम्पक वन के सवु ास भूसि, बालक ध्रवु के िपोभूसि, आसदकसव िहसषा बाल्िीसक के काव्यभूसि, भगवान बद् ु के यात्रा भूसि, पांडव लोगन के वनवास भूसि, चाणक्य चन्द्रगप्तु के ि​िा भूसि, सप्रयदशी अशोक के र्िा भूसि, अरेराज सोिेिर िहादेव के अनक ु म्पा भूसि, सरभंग संिन के ससद् भूसि, िहात्िा कबीर के उपदेश भूसि, राष्ट्रसपिा िहात्िा गाँर्ी के किा भूसि िथा अन्नपूणा​ा के अन्नभूसि व सदानीरा गण्डकी के सनवास भूसि ह। सांचो इहां के िाटी

आ पानी िें उ गररिा बा जवन शन्ु य के सिग्रिा प्रदान करेला। चंपारण के र्रिी जेिना उपजाऊ बा ओकरो से कहीं जादे सासहत्य सज ृ न खासिर उपजाऊ बा। डॉ शोभाकांि झा आपन शोर् पस्ु िक सहंदी सासहत्य को चंपारण की देन िें सलखले बानी सक ‘सम्पूणा चंपारण के भू भाग पर िूलिाः भोजपरु ी, िैसथली एवं बसज्जका लोकभाषा के रूप िें बोली जािी है सकन्िु जहाँ िक सासहसत्यक योगदान का प्रश्न है भोजपरु ी लोकभाषा िें कई रचनाएँ यहाँ के सासहसत्यक परु ोर्ाओं ने रची है सजसका सवशेष िहत्व है।’ 7 चंपारण के र्रिी पर िहात्िा कबीर एवं उनके सशष्ट्य भि भगवान गोस्वािी के द्वारा स्थासपि छोटे बडे​े़ सैकडों िठ आज भी सवर्िान है जो ससद्ों, िांसत्रको,ें नाथ पंसथयों से पूणा रुपेण प्रभासवि हैं। कुछ ससद्ों का सम्बन्र् सनसि​ि रूप से चंपारण से रहा है। चंपारण से सजन ससद्ों का सनसि​ि सम्बन्र् िाना जािा, उनिें ‘चम्पकपा’ हैं सजनका सिय नयारहवीं शािाब्दी िाना जािा है। डॉ. हजारी प्रसाद सद्ववेदी ने चम्पकपा को चंपारण का ही िाना है और प्रो.कािेिर शिा​ा ने भी इन्हें चंपारण का स्वीकारा है। दस ु रे ससद् कसव ‘कोकासलया’ सनसि​ि ही चंपारण के सनवासी थे। उनका सम्बन्र् सकसी राज खानदान से था इससलए इन्हें चंपारण के राजकुिार के रूप िें याद सकया जािा है। 8 भोजपरु ी के आसद कसव िहात्िा कबीर का साहचया चम्पारण की र्रिी को सिला है इसका पिु प्रिाण चसटया बडहरवा-िर्वा िठ के िहंि रािरूप गोस्वािी के पास सरु सक्षि है। इस प्रकार संि सासहत्य िें कबीर पंसथयों की सदृु ि परंपरा चंपारण िें आज भी है उि िठों से प्राप्त प्रिाणों के आर्ार पर कहा जा सकिा है की कबीर के बीजक की रचना चम्पारण िें ही हुयी है। इसकी पांडुसलसप आज भी िहंि रािरूप गोस्वािी के पास सरु सक्षि है। अिएव चंपारण की पावन र्रिी यगु परु​ु ष कबीर की साहचया एवं सार्ना स्थली अवश्य रही होगी। 9 भोजपरु ी सासहत्यकार आ भोजपरु ी सजसनगी के िख्ु य संपादक डॉ. गोरख प्रसाद िस्िाना के अनस ु ार ‘कबीर आ भगवान गोस्वािी के चरण से पसवत्र चंपारण के िाटी आ भोजपरु ी के बड़ा गसहर सम्बन्र् बा आ एह सम्बन्र् के बनावें िें भगवान गोस्वािी के योगदान बहुिे लिहर बा।

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भगवान गोस्वािी द्वारा कबीर बाबा के सवचारर्ारा पर आर्ाररि भगिाही पंथ के स्थापना करके के एगो लिहर काि भइल। जसद कबीर के सासहत्य सलसपबद् ना होईि ि सासहत्य जगि कबीर के खाली सकस्से कहानी िें झांसकि। उनकरा सासहत्य से पररसचि ना हो पाईि। येह हालि िें सनसवा वाद सत्य बा सक आज दसु नया जवन कबीर सासहत्य पढ़ि बा, भोजपरु ी के सराहि बा ओकर श्रेय कबीर के चेला भगवन गोस्वािी के जािा। 10 डॉ शक ु देव ससंह, संि कबीर और भगिाही पंथ पस्ु िक िें भगिाही पंथाः वत्त ृ अध्याय िें सलखि बानी सक ‘‘ भगवान गोस्वािी संि कबीर के साथ काशी और गंगा का िट पकड़े हुए नारायणी नदी के संगि स्थल से होिे हुए नारायणी के सकनारे सकनारे एक ऐसे वीरान स्थल पर पहुचं े सजसे चसटया कहा जािा है। चसटया के नारायणी िटविी एकान्ि िें उन्होंने कबीर के द्वारा सनदेसशि अनाहद नाद की सार्ना की िार पकड़ कर सहजकार की भूसिका िें अि​िृ पान सकया। दरअसल कबीर के वचनों की श्रसु ि इसी चसटया िें उनके आपने आत्िबोर् के रूप िें प्रत्यक्ष हुई .......भगवान गोस्वािी के सलए संि कबीर का सिलवाना और बीजक का संग्रह सजिने िहत्वपूणा हैं उिने ही िहत्वपूणा चसटया िें उनके आत्िसाक्षार के क्षण भी।’’ 11 शक ु देव ससंह आगे सलखि बानी सक ‘भगवान गोस्वािी संि कबीर के साथ साथ घिु ाने लगे। सशसक्षि थे, सवद्वान थे, शायद भगवान गोस्वािी कबीर के अनगु ासियों िें पहले िहत्वपूणा व्यसि थें सजन्होंने कबीर के वचनों को सलसपबद् करने का यथा संभव प्रयास सकया। रिैनी, सबदी, सखी और सबदी के सवसभन्न रूपों - चांचरी, बेली, सवरहुली,चैसिसा इत्यासद को उन्होंने इस ग्रन्थ गुसटका का नाि बीजक रखा। बीज अथा​ा ि िूलिन्त्र बीजक अथा​ा ि्े् कबीर के अनेक प्रकार के कथनों का िारिम्यबद् सनसि​ि प्रकार के कें द्रीय सवचारों से असभप्रेररि उसियों का संग्रह। भगवान गोसाई का बीजक र्ीर र्ीरे कबीर का प्रिीक बन गया।’ 12 भगवान गोस्वािी के भगिाही पंथ प्रविा क िानल जाला जे चंपारण के चसटया िें कबीर वाणी के लेखन के परंपरा बीजक ग्रन्थ किा​ा के रूप िें शरू ु कइलें। भगिाही पंथ के दोसर संि- िहंि लोगन िें घनश्याि गोस्वािी (बेसिया),

उदह् ोरण गोस्वािी (दरभंगा से आकर चसटया गादी संभलले), दवन गोस्वािी, गणु ाकर गोस्वािी, गणेश, कोसकल, बनवारी नयन, भीषण भूपाल, क्षत्र, राि प्रसाद, िुला, गोपाल राि लगन, राि खेलावन यदवु ंशी बानी सभे आ अब राि रूप गोस्वािी एह संि परम्परा के े​े आगे बढ़ा रहल बाड़ें। भगिाही पंथ के संिन लोगन के े​े वाणी िें भोजपरु ी भासा के स्पि देखल जा सके ला:जइसे: 1. िन्हंि घनश्याि गोस्वािी (बेसिया) ध्यानिद्रु ा िें जाके आपन कुसटया िें पंचि सरु के गाना शरू ु करसे करब हि कवन बहाना, गवान हिरो नसगचाना। सब ससखयाँ िें िैली चनु ररया हरिो सपयर घर जाना।। 2. एक डर लागे िोरे सासू ननद के दस ु रे सपया िारे िाना बसटया चलि िोसह सद्गरु​ु सिसल गए, राि नाि को बखाना।। भगिाही पंथ के दोसरो संि लोगन के उपदेश िें भोजपरु ी आइल बा बासकर गणु ाकर गोस्वािी के उपदेश िें भोजपरु ी खूब सनखर के आइल बा फुलवा भार न सही सके , कहे ससखन से रोय ज्यों ज्यों भीजें किरी, त्यों त्यों भारी होय। िहंि रािरूप गोस्वािी खुद भोजपरु ी के एगो उद्भट सवद्वान बाड़े। उनकर काव्य संग्रह चैरासी िें भोजपरु ी के चैरासी भसि र्ारा व प्रवचन के काव्यरूप बा। श्री रािरूप गोस्वािी के प्रभाव से खगनी गांव, िोसिहारी, पवु ी चंपारण के प्रससद् कसव श्री र्नषु र्ारी कुशवाहा के अजगिु कबीर नािक खंड काव्य भोजपरु ी भाषा िें रचले िहंि रािरूप गोस्वािी के कसविा के एक बानगी देखीं -

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सनंदक सनिन एह दसु नया िें, जानेला सब कोई आदिी छूई आकाश के , जबले सनंदा होई। 13


कबीर िठ के बारे िें सहंदस्ु िान टाइम्स सलखि बा सक:

4.कबीर:एक सवश्लेषण रू डॉ. प्रकाश चंद गप्तु , पष्ठृ संख्या-22

"Champaran is known for the experiment with truth and non-violence of Mahatma Gandhi year back in 1914 but it is also the first preaching place of Saint Kabir-Chatia & Badaharwa the first preaching place of great saint is 10 km away from Areraj, a subivision under East champaran district which his first Math of the Firke Bhaktahi Branch of Kabir Panth was established year back in 1577-" (14)

5.नागेन्द्र प्रसाद ससंह ‘भोजपरु ी सासहत्य के संसक्षप्त इसिहास, पष्ठृ संख्या- 31-32, लोक प्रकाशन, पटना 6.भोजपरु ी भाषा का इसिहास, प्रो.गदार्र ससंह, नालंदा खुला सविसवर्ालय, एि.ए. भोजपरु ी भाषा, पसहलका-पत्र, पष्ठृ संख्या- 214 7. सहंदी सासहत्य को चंपारण की देन, चंपारण की सासहसत्यक सवर्ाओं, पष्ठृ संख्या-149, लसलि प्रकाशन,1994 8.उपररवि्, पष्ठृ संख्या- 58 9.डॉ शोभा कान्ि झा, िहसषा कबीर और चम्पारण, प्रकाशकआचाया िहंि रािरूप गोस्वािी, भगिाही पन्थ, िर्वा िठ, पं चंपारण, पष्ठृ संख्या 21-22, प्रथि संस्करण, 2003

हनष्ट्कषश: अब सवाल इ बा सक कबीर के िूल भाषा का ह ? एह कुल्ह िथ्यन के र्ेयान िें रखल जाय ि स्पि होिा सक कबीर चंपारण के सकिना नजदीक रहले जहवाँ आजूओ 8085 लाख लोगन के िािृभाषा भोजपरु ी ह । कबीर के सिय िें राजस्थान िें सडंगल सासहत्य के भासा रहे उहें िजभाषा के सपंगल कहल जाि रहे बासकर एकर प्रचार प्रसार एिना ना रहे जेिना अिछाप कसवयन के सिय िें भइल। सदल्ली िें सहन्दवी रहे। दक्कन क्षेत्र िें हैदराबाद, दौलिाबाद आ गल ु बगा​ा दक्कनी सहंदी कहल गइल। एकरा अलावे अवर्ी आ भोजपरु ी के क्षेत्र रहे। भोजपरु ी सबहार, उत्तर प्रदेश िध्य प्रदेश के कुछ सजलन िें आ झारखण्ड के कइ गो क्षेत्र िें नागपरु रया के नाि से बोलल जाला आ आजो चलन िें बा। सवद्यापसि सिसथला के , ससद् लोग िगर् क्षेत्र और नाथ पंथ के गोरखनाथ के गोरखपरु भोजपरु ी के क्षेत्र ह। अवर्ी आ भोजपरु ी िें सिानिो िे​े़र बा। एह सब िथ्यन के देखि हिनी के िानल जा सके ला सक कबीर के भासा िूलिाः भोजपरु ी ह।

10. भोजपरु ी सजसनगी, सि​िाही भोजपरु ी पसत्रका िें प्रकासशि डॉ गोरख प्रसाद िस्िाना का आलेख भोजपरु ी के परु ािन आ पसवत्रभूसि- चंपारण, पष्ठृ संख्या-28, जनवरी-िाचा , 2009, इन्द्रप्रस्थ भोजपरु ी पररषद,् नई सदल्ली 11. संि कबीर और भगिाही पंथ, भगिाही वत्त ृ लेखकाः शक ु देव ससंह, प्रकाशकाः सविसवद्यालय प्रकाशन चैक, बनारसी -01, पष्ठृ संख्या-06, 1998 12.उपररवि पष्ठृ संख्या- 05 13. चैरासी, भोजपरु ी काव्य संग्रह, कसव िहंि रािरूप गोस्वािी, प्रकाशनाः र्नषु र्ारी कुशवाहा, वषा सवक्रि सम्वंि 2056, पष्ठृ संख्या-24 14. Hindustan Times, Thursday, November 27, 1997

संदभशः1.सहंदी सासहत्य का इसिहास- आचाया दगु ा​ा शंकर सिश्र पष्ठृ संख्या- 77 2.सहंदी सासहत्य का इसिहास, पं.राि चन्द्र शक्ु ल, संशोसर्ि प्रवसद्ि संस्करण पष्ठृ -98 3.डा.उदय नारायण सिवारी, भोजपरु ी भाषा और सासहत्य, पष्ठृ संख्या-254

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संस्मरण

रां ग रां ग के इयाद

िरा गाँव देस के कइ गो चीझु इयाद परेला। आजु सोचनी हां सक ई िय इयाद के एक जगहा सररहार के राख दीहीं रउवा सब के सोझा। हिरा आसा बा सक कहीं ना कहीं एह िें रउवो आपन कवनो ना कवनो बाि िन पर जाई। जब छोट रहनी िब हिरा िन परेला सक दिु का िें सपिाजी के पोसस्टंग रहे। ओ घरी हई सबहार झारखंड के बांटा बांटी ना भईल रहे आ सबहार सरकार िें कं गाली ना आईल रहे। दआ ु र प एगो आसिानी रंग के एम्बेस्डर कार आ एगो खाकी रंग के सरकारी जीप, आगा पाछा नौकर चाकर दऊरि रहलन स। कहे के ि​िलब ई सक एगो अफसर घर के सजसनगी रहे बाकी ई सब रहला के बादो, साल भर िें सदवाली, दसहरा आ होली - खासलसा ईहे िीन गो परब िें नाया कपड़ा कीनाि रहे। अब ि कई सेट रेडीिेड िहंगा कपड़ा हर िहीने अदिी कीनि बाड़े आ िबो ऊ खुसी ना होखे जवन ओह परु ाना जबाना िें कपडा सीयावे िें होि रहे। होली िें हिरा खेयाल से उजरका कुरुिा पैजािा सीयाि रहे लईकन के , आ ना ि टेरीकॉट भा टेरीलीन के बूसट पाएट, आ भा िेर भईल ि चनु चनु ाये आला नायलोन कपड़वा के टी-सट। सदसदया "िक ु द्दर का ससकद्दर" स्टाइल पठानी सूट खासिर रुसल रहली, एक बार आ िाई के गज्जी सससलक के साड़ी कीनाि रहे। अगर गाँवे जाए के होि रहे ि गाँव प के सबका खािी कपडा लािा, लुगा र्ोिी कीनाि रहे। ई कुल्ह िइयारी कई िहीना पासहले से सरु​ु हो जाए। गाँवे जाए खािी "जयराि चसम्पयन" के सभसडयो "कोच" बस चलि रहे जवना िें आदिी "कोचा कोचा" के जास। रस्िा िें "सपया सनरिोसहया" आ "सौिन" ससनेिा र्ईले दू भा कबो कबो नीिन संजोग रहला प िीन गो ससनेिा सझलसझलाि टीभी प राि भर देखावि रहलन स। आर्ा रस्िा िें रासि खा कुल्ह सभसडयो कोच कौनो लाइन होटल, बल ु ा औरंगाबाद, िें रुकि रहली सन। हररयर ऊजर िरकरी, झालर बल्ब के रोसनी आ पान के दोकानी प बाजि कै सेट िदा​ा ना नीयन भारी अवाज िें कौनो नाच प के गावल "सईयां र्ीरे र्ीरे घंघु टु ा उठावे लगले ना" टाईप के गाना ले ऊ जगहा िनसाएन भईल रहि रहे। हिनी के पररवार के लाईन होटल प सपिाजी कबो ना जाए देस। सहन्दस्ु िान पेपर िें लपेटल घर के बनल पूरी आ आलू-परवल के िनी िेरे िेल िें छवंकल भसु जया आ ओह प आि के अचार, िाई भा चाची सनकालस लो आ सभका के खाए के सदयाए। अिना नीिन लागे ऊ खाए िें सक ओह खाना के आगा िय बगा र सपज्जा फे ल बा। सपिाजी िले ओह लाईन होटल िें ले खीर ले आवस। गाढ़ दूर् के िनी िनी जलीयाईन स्वाद आला ऊ खीर आजो िन पड़ेला। गाँवे पहुचँ ला प पीिर के पराि िें इनार के ठंिा पानी से गोड़ र्ोवाये सक बबआ ु बहरा से आईल बाड़े थाकल होईहे। िाई अपना ननद लोग से सिलिे

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तरुण कै लाश आरा , सिहार के रहे वाला िरुण कै लाश जी , एह घरी अमेररका के िैन-होिे शहर मे याहू कम्प्पनी मे काम करि िानी । अमेररका मे भोजपुरी लोकगीि पारम्प्पररक गीि िांस्काररक गीिन के रचार रिार मे लागल िानी । आखर पेज प इँहा के एक िे िकढ के एक भोजपुरी कसविा आ लेख पोस्ट हो चुकल िा ।


खुसी के िारे िय जानी रोये लासग लो ि छोटी चक ु ी बच्चा के िन िें ई ना बझ ु ाि रहे सक काहे रोविा लो। सभका खािी रहरेठा आ गोइंठा जोर के आ फुँकनी ले फूंक फूंक भौजी लो खाना बनावस लो। अगर कौनो लईका भूख के िारे रोहा रोहट करे ि गरि गरि िाड़ भाि आ एगो अचार एके कटोरा िें सान के दे सदयाओ। रोटी के बेरा रहे ि गरि गरि रोटी िें िेल नून चभोर के गोल गोल लपेट के हाथे र्रा सदयाओ - ओह सर्ारण रोटी के आगा आजके िय "िेड-रोल" फे ल बा। दपु हररया िें घर के जाँि के पीसल सािू के अपना अपना पसन के सहसाब से नून िें के सलबरी आ भा िीठका घेंवड़ा, इया पूछ पूछ बनइहें। सांझी खा बजार से लकठो, खीरिोहन आवि रहे आ सबके बराबर बराबर बटाि रहे। बाबा एक एक चीझु के ससलेट सपंससन से सहसाब करस। उनकर सगनिी "एक" से ना

सरु​ु होि रहे, ऊ सगसनहें "राि, दू, िीन..." रासि खा िय छोट लईका आ िेहरारू कोठा प सिु ो आ िदा​ा ना दआ ु र प । ठंिा-ठंिा लेवा प सिु ल, चि-चि चिकि िारा गीनि, भगजोगनी देखि आ झरु​ु -झरु​ु नीसिया के गांछी के भूि सपचास के सखस्सा सनु ि का जाने कब ऊहाई लाग जाि रहे - ओइसन ऊहाई अब एसी आ डनलपो प ना लागे। सैन फ्रांससस्को नीगचाईल बा, हि हजारो िील आ सािो सिन्ु दर पार आपन गाँव ले घूि अईनी, अभी किने अइसन इयाद बा जवन अदिी जहाँ जाई अपना करेजा िें सटले जाई.… आछा फे न कबो!

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बेबाक बर्कही

मोछी के लड़ाई

बा

डा. उमेशजी ओझा जमशेदपुर झारखंड के रहे वाला डा. उमेश जी ओझा , सपसछला कई िाल िे भोजपुरी मे सलख रहल िानी । इँहा के िैकड़न लेख कई गो अलग अलग पत्र पसत्रका अखिार मे छसप चुकल िडु वे । पत्रकाररिा मे सडप्लोमा के िंगे िंगे एम काम भी कईले िानी आ एह घरी जमशेदपुर मे रसह के झारखंड िरकार के िेवा दे रहल िानी ।

ि ओह घरी के ह जब अंगरेजन के शासन रहे। लोग पैदल आ हाथी घोड़ा के सवारी करि रहले । जेकरा लगे हाथी-घोड़ा होि रहे ओकर सिाज िें बडी इजि होि रहे आ अंगरेजन के शासन िें भी बसिआ पहचान रहि रहे। िोछी के लड़ाई भी जि के होि रहे। िोछी की लड़ाई के ि​िलब की उनकर िान िया​ा दा के लड़ाई । ई कहानी ओसह िे से एगो साँच घटना प आर्ाररि बा। कहानी के सच्चाई के देखि एह िें गाव आ पात्र के नाव बदल सदहल गईल बा। ई कहानी ससरसा आ कुन्दा गाव के अईसन पररवार के ह जेकरा िें ससरसा के र्िा वीर ससंह के लगे हाथी, घोड़ा, ऊट, िोर आसद करीब दजा न भर जानवर रहे। जबसक कुन्दा गाेव के अजीि ससंह के लगे भी र्िा वीर ससंह से कुछ कि हाथी, िोर ना रहे। उ लोग आपन गाेव के र्नी-िनी िाने जाये वाला िें सबसे उपर रहले लो । दनु ो जाना के नाव एक दस ु रा गाव िें काफी दरु िकले फइलल रहे। र्िा वीर ससह के एगो बेटा रहले। ओहु िें ओह जिाना िें अंग्रज े न के फउज िें नोकरी लगला से उनकर िान िाया​ा दा अउर बढ़ गईल रहें। ि​िलब सक र्िा वीर ससंह के िछ ु अपना कद से दु ईचं बि गईल रहे। हरदि उ अपना िछ न प हाथ चलावि रहले सक ु कही उ झक न जाय । िोसछ झ क ना सदहल ि एगो बहाना रहे बाकी ि िोछी प हाथ ु ुे फे रल अपना प्रसिष्ठा के एहसास लोगन के सदलावि रहले। दोसरा ओरी बाबू अजीि ससंह के िोछी भी उनका से िनीको कि ना रहे। ई आपन बड़ाई के पल ु अपने बांर्े िें िासहर रहले िजाल बा सक के हु इनका आगे टीक जाउ। इनका एगो बेटी र्िा शीला बड़ी होनहार आ खबु सरु ि रहली। उनका के देखला प अईसन बझ ु ाि रहे सक सरग से कवनो परी जिीन प उिर आईल सबआ। अजीि ससंह कहि रहले सक हि अपना राजकुिारी के सबआह आपना से भी र्नीिनी घर िें करब, िासक हिार बेटी रानी बनी के रहें। ई सभ सोचि आ बोलि रहले िसही उनकर सरु िे न काका िपाक से बोलले । ‘‘ का रे असजिवा काहे अिना आपन बेटी के सबआह खासिर उिावला हो रहल बाड़े , जो ना, अगर िोरा िें िाकि बा िो ससरसा के र्िा वीर ससंह के बेटा जे अंग्रेजन के फउज िें बहाल भईल बा ओकरा से आपन राजकुिारी के सबआह क दे, उ ओहीजा राज करी राज । चार-चार गो हाथी, छाः गो ऊट, आ अनसगनि िोर बाड़न स उनक ु ा लगे । र्न जयदाद के ि सहसाबे नईखे। ‘‘ ‘‘ ह काका, उहे र्िा वीर के घरे ओकरे लईका से आपन राजकुिारी के सबआह करsब, देखीह ।‘‘ ‘‘ िब देर कांहे के उठाव बालटी लोटा चल जा ससरसा आ अबही बाि क के आव।‘‘ ‘‘ ह काका, जाि बानी ‘‘।

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अजीि ससंह अपना बेटी के सबआह के बाि करे खासिर आपन गाव के पचास आदिी के लेके र्िा वीर ससंह के गांव ससरसा चल सदहले। ओह घरी बेटी के बाप आपन बेटी के सबआह ठीक करे खासिर अपना साथे कुछ आदिी के लेके जाि रहे लोग आ देखि सनु ि आ अनिु ान लगावि रहन सक लईका वाला उनकर किना आदर खासिर कर सकि बा। ओह घर िें उनकर बेटी राज करी की ना। एही सवचार से अजीि ससंह भी आपन गांव के लोग के लेके ससरसा गाेव र्िा वीर ससंह के लगे चल सदहले। एक दि ठेठ दपु हररया िें खाना खाये के सिय प अजीि ससंह आपन फउज के साथे र्िा वीर ससंह के दआ ु री प पहुच गईले। दआ ु री प पहुचिे र्िा वीर ससंह खशु होखि.............।

के सबआह आपना से भी उचे घर िें कईल चाहि रही, बाकी राउर बेटी के हि देखि बानी आ ओकर सनु रिा के भी खबु चरचा सनु ले बानी। एह से रउरा कीहा अपना बेटा के सबआह करे के िन रउरा अईला के बाद बनवनी हाे , बाकी डर लागि बा सक हिार जे बरसिहा रउरा कीहा जईहे उनकर रउरा आदर सागि कर भी पाईब की ना। बरािी िें अंगरेज अफसर भी रसहहे। ‘‘

‘‘अरे अजीि ससंह हिरा दआ ु र प ? आजु अचानक सबना कुछु कहले आ बिवले ई फउज लेके का िन बा हिरा घर प र्ावा बोले के ?‘‘

‘‘ ये र्िा वीर ससह जी अिना ि​ि इठलाई साफ बोली सबआह करेके बा की ना हिार ईज्जि ि​ि उच्छाली आजु िकले के हु हिरा से अईसन बाि नईखे कईले , अपना बेटी के सबआह करे आईल बानी एह से चपु बानी ना ि हि का करिी हिरो पिा ना रहेला। ‘‘

‘‘अरे ना र्िा वीर जी ना अईसन ि​ि कही हि ि आपन बेटी र्िा शीला के सबआह रउरा बेटा से करे खासिर आईल बानी।‘‘ ‘‘ओ हो.....हिार बेटा के सबआह, अच्छा पहीले बईठी ि ओकरा बादे नु बाि होई।‘‘ र्िा वीर ससह अपना नोकरन के आवाज लगवले । ‘‘अरे ये सगु ना, शक ु रा, कलआ ु , जलदी दउर के आवसs आ देखसs के आईल बा . हिरा बेटा के सबआह खासिर, बाबू अजीि ससंह के फउज, जासs जलदी से एह लोगन के बईठे आ जलपान, ओकरा बाद खाये सपये के िेयारी करस।‘‘ अजीि ससंह के फउज चपु चाप िक ु दशा क बनी के र्िा वीर ससंह के बाि सनु ि रहले सक उनकर नोकर देखि देखि िें पचासों आदिी के बईठे आ आराि करे के इंिजाि के साथे जलपान भी लेके आ गईलन। थोड़ही देर बाद सभ आदिी के खाना खाये के बल ु ावा आ गईल । र्िा वीर ससंह, अजीि ससंह के साथे बईठ के खाना खईले आ सभ लोग के खाना सखलवले। खाना खईला के बाद अजीि ससंह के साथे आईल सभ आदिी र्िा वीर ससंह के खबु बड़ाई कईल। अब बारी रहे सबआह के बाि करे के । आपन बडे-बडे िोछी प िाव देि र्िा वीर ससंह, बाबू अजीि ससंह के ओरी देखनी ि अजीि ससंह भी आपन िोछी प हाथ फे रि एहसास सदलावि रही सक हिहु रउरा से कि नईखी । िबही र्िा वीर ससंह।

‘‘ह ि भाई अजीि ससंह हि ि आपन बेटा सयु ा देव ससंह

अिना सनु ला प अजीि ससंह आग बबल ु ा हो गईले आ अपना साथे आईल लोगन के ओरी देखी के सोचे लगले सक ई र्िा वीरवा ि उनकर ईज्जि के र्ज्जी र्ज्जी उड़ा रहल बा।

‘‘ अरे ि, का करब रउरा गांव िें जब राउरे घर ही खपड़ाफोस बा ि गांव के का कही, सोचि बानी सक जब बरािी िें हिार हाथी, घोड़ा आ उट जईहे से ि किने घर के छपर उजाड सदहे स, देखी हिार घर, किना बसिया आ िजबिु ईटा के बा।‘‘ ‘‘ देखी र्िा वीर ससंह जी अइसन बाि ि​ि करी साफ बोली। बराि लेके हिरा गांव िें ि आई हि कईसन सआ ु गि करीब रउरा देखि रह जाईब।‘‘ ‘‘ ठीक बा अजीि ससंह जब अिने कहि बानी ि हि बराि लेके आईब बस रउरा अिने करब की हिार जे भी बरािी जाई उनकर िन से सआ ु गि करब कवनो सशकायि ना होखे चासहए । अगर सशकायि भईल ि अपना हाथी से रउरा घर के खपड़ा नोचवा देब। ‘‘ ‘‘ठीक बा सरि िजरु बा के करो कवनो सशकायि ना होई बाकी अिना ईयाद राखब सक हिार िेर सिान बरबाद ना होखे के चाही।‘‘ ‘‘ठीक बा ि जाई आपन बेटी के सबआह के िेयारी करी आजु के आठवा सदन हि बराि लेके रउरा दआ ु र प आईब।‘‘ अजीि ससह आपन फउज लेके र्िा वीर ससह के गाेव से आपन घरे आ गईले आ आपन बेटी के सबआह के िेयारी िें लाग गईले। र्िा वीर ससंह के सरि के ि​िु ासबक अजीि ससंह डेरा गईल रहले सक सबआह िें कही कवनो कसर रह

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गईल ि उ पागल आदिी साचो के उनक ु ा घर के खपड़ा हाथी से नोचवा सदही। इ सब सोची के अजीि ससंह आपन गाेव के चारो आरी बीस फुट उचा ईट्टा के सदवाल सदलवा सदहले, िासक र्िा वीर ससंह के हाथी के सिु उनका छपर िक ना पहुच पाओ। ओने र्िा वीर ससंह आपन बेटा के सबआह िे बाराि जाये खासिर आपन गाेव के आ अंगरेज के अफसर के नेविा दे सदहले। ओह घरी सबआह होखे चाहे कवनो परोजन आदिी के खाये खासिर हाथी के कान अिे-अिे पडु ी बनावल जाि रहे। ओह पडु ी के भी पचीस - पचीस जोडी खाये वाला लोग भी रहले। आजओ ु उ पडु ी बनेला बाकी हाथी के कान के आर्ा आ शहर िे ि एगो सगलास के िहु के अकार के पडु ी रह गइल बा। उ हाथी के कान अिहि बड पडु ी सर्ु सरसो के िेल आ घीउ िें आटा गथु ी के बनावल जाि रहे। ओकरा के अगर चार पाेच सदन िक रासखओ सदही ि खराब होखे वाला ना रहे आ ना ओकर सवाद। िाजा आ गरि खाई ि सवाद का कहे के बा । र्िा वीर ससंह अपना गाेव के लोगन के बराि जायेके नेविा देके सभ लोग के सहदायि देले रहले सक अबहीए से भख ु ल रह लोग िासक अजीि ससंह के गाेवे जा के बराि िे बसिया-बसिया व्यंजन के खबु सवाद लेके खा सकs लो। देखि-देखि बराि जाये के सिय आ गईल। र्िा वीर ससंह के गाेव के बाहर बराि सजे लागल। हाथी , ऊट आ घोड़ा सईगो ले रहले। बराि जाये वाला के संख्या एक हजार । ‘‘अरे जलदी कर सरु ज डुबे से पहीले पहुचे के बा िबहीये नु हाथी घोड़ा के िजा सिली फे रू फे रु हिरा बेटा के सबआह थोडे ही होई।‘‘

लगाके बनावल गईल रहे उहाे चली गईले। वोसहजा सभ के हु के बईठिे जलपान नास्िा आ गईल। हाथी घोड़ा खासिर भी ससियाना के बाहर बान्हे के आ चारा के भरपरु बेवस्था रहे। के सनओ से कवनो किी ना लउकि रहे। ओने अजीि ससंह बारािी के संख्या देखि बोरा के बोरा सचनी आपन गाेव के इनार िें डलवा के इनार के पानी के शरबि बनवा देले रहले। िासक सभ बरािी के आसानी से पानी के जगह शरबि से सआ ु गि कईल जा सके । अब बारी रहे दआ ु ा के अजीि ससह बड़ बसिआ द्वारपज ु ा कईले । एह ु र पज िें भी कवनो किी र्िा वीर ससह के ना सिलल । र्िा वीर ससंह बराि िें खाली अजीि ससंह के कसिये खोजि रहले। इहाे िक ि ठीक ठाक रहल बाकी र्िा वीर ससंह सोचि रहले सक देखि बानी सक अजीि ससंह बरासियन के भोजन कइसे परु ा करि बाडे । बारािी भोजन प बईठले, बारािी द-ु दु सदन के भख ु ल िीस-िीस जोडी पडु ी खीच सदहले। सब बसिया से सम्पन्न हो गईल। सबरे बाराि सबदाई के सिय आ गईल ,बाराि भी बसिया से सबदाई हो गईल। बाकी र्िा वीर ससह ई सोचीके हैरान रहले सक उ लईका वाला ठहरले आ अजीि ससंह से िेर र्न सम्पसत्त भी बा एकरा बावजूद अजीि ससंह उनकर बराबरी के कईसे हो गईले। आसखर िे उनका कवनो किी ना सिलल ि अजीि ससंह के अपना लगे बोला के कहले........ ‘‘भाई अजीि ससंह सब ि ठीक -ठाक रहल बाकी िरकारी िें नीिक िसन आ सा कि रहल हा।‘‘ ‘‘सिर्ी जी अिना ि कि रहही के चासहए ना ि हि लइ़की वाला होके राउर बराबरी के ना हो जाईब ।‘‘ दनु ो सिर्ी हंसि गला से सिलले । र्िा वीर ससंह आपन खबु सरु ि बहू के अपना साथे लेके चली गईले । आ अजीि ससंह के बेटी आजओ ु र्िा वीर ससंह के घर िे रानी बनी के सभ प हुकूि चलावि बाडी।

बाराि सिय से सनकलल आ सिय से अजीि ससंह के कुन्दा गाेव के बाहर पहुच गईल । जब र्िा वीर ससंह आपन बरािी लेके पहुचले ि देखले सक अजीि ससंह उनका से िसनको कि ना उनका बराबरी के उनकर सवु ागि िें हाथी , र्ोड़ा रखले बाडे दनु ो ओरी हाथी र्ोड़ा खाड रहे देखे िें अइसन लागि रहे सक दु गो राजा जद् ु के िेयारी िें खाड़ बाडन । थोड़ही देर िे दनु ो के िक ु ाबला शरू ु भईल हाथी घोड़ा आपन-आपन करिब देखावे लगले। ई सभ करीब एक घंटा चलल। एह बीच घोडदवल िे जिीन से उडि र्रु ी से सभ लोग के शरीर भरी गईल आ चेहरा पहचानल सदकि होखे लागल। बाराि सिलन भईल । ओकरा बाद बरािी जनिासा जे गाेव के बाहर खेि िे टेन्ट (ससियाना) © आखर ● मार्च, 2015 ● 67


धारािावहक-कहानी

आकह रे बालम कचरई : भाग - 1

गाँ

अत्रसत कुमार त्रमश्र सिकं दरपुर िसलया युपी के रहे वाला असि​ि कु मार समश्र जी भाषा सहन्दी आ भोजपुरी प िररआर पकड़ रखले िानी । भोजपुरी मे ठे ठ आ खांटी भोजपुरी के अपना लेखनी िे परोिे के िमिा इँहा के लेख मे देखल जा िके ला । स्विंत्र रुप िे कई गो पत्र पसत्रका अखिार मे इँहा के लेख आ चुकल िा । एह घरी इँहा के िसलया मे ही िानी ।

फजीरे से दरी जावजम लाईट आ बईठला के बेिस्र्था हो रहल बा । नोवनया टोली के छोट छोट लईका बीछािल दरी प पटका-पटकी करर्ारन स । काररन्दा गररयाके भगा देर्ा ।

व के चारों पांचों टोला िें बस एकही चरचा बा काल्हु साँझ से । चंपाबाई के नाच आविा ठाकुर सकरपाल ससंघ कींहे । जे पसहले चंपा के नाच देखले बा ऊ बिा बनल बा बाकी सभ सनु े वाला । का नाचे ले,लागेला सक करेजा सहलिा । किर लचका दे ि लाठी चलेला, लाठी । सपछला साल चइि के दगु ा​ा पूजा िें ओकर नाच आईल रहे,हिहू ँ खाड़ा होके असगला पांसि िें देखि रहनीं । चंपा हिरा के देसखके िस्ु की िरली । िेला भर के लोग हिसे जरे लागल, बासकर रऊवां ि पचासा पार लागिानी जी- गोबरर्ना टोक सदहलस । सिु ेसर बाबू िने िें पचास गारी सदहलन- भाक ! साला बीचे िें टोकल जरुरी रहल हs । अरे सपसछला साल ले हि जवान रहनी । पहलवान काका के अखाड़ा िें दगु ो पहलवान लड़sिालो । दन्ु नो के हाथ एक दस ु रा के गरदन िें बा । पसहलका र्ोसबयापाट लगावे के फे रा िें बा । िले दस ु रका कहलस-अरे सनु ले हs काल्हु नाच आविा चंपा के ।पसहलका िनी नरि भईल । कब ? कहवाँ ? ठाकुर सकरपाल ससंघ कींहे ।पहलवान काका देखलन सक ई दन्ु नो खाली गरदन िें हाथ डाल के अखाड़ा के चक्कर काटिरन सs ि सचल्ला के कहलन- ई भरि सिलाप करिर स का रे ! िार दांव । रघवु ा, सदनआ ु , किलेसवा के आंसख सनसनए नइखे ।आर्ा रासि बीसि गइल बा ।जब आंसख बंद करिारन स ि चंपा के काल्पसनक नाच सोझा आ जािा । चोली आ घाघरा िें चंपाबाई बोलाविारी । रघवु ा स्टेज पर पहुचं गईल बा ।चंपा िस ु क ु ाइ के रघवु ा के किर िें हाथ डाल दे िारी । रघवु ा के पेट िें गदु गुदी होिा... बस अब बरदास ना होई । उसठ के पानी सपयिा । फे रु सूिे के कोससस करिा । फे रु चंपा के नाच...फे रु किर िें हाथ... फे रु पानी... आर्ा रासि बीि गईल । दीनआ ु ि बकायदा सबयाहे कs लेले रहुवे चंपा से । बासकर कूकुर भूंक सदहवन स ि सपना टूट गउवे,ना ि सोहागरािो... ठाकुर सकरपाल ससंघ इलाका के बड़का जिीनदार हवन । उनकी बड़का लईका सदनेश ससंघ के लईका सिईसा िें परल बा । पंडीजी के कहनाि बा सक िूल रासस के सिईसा के लच्छन नीक ना होला । एिे सबयाह बरोबर खरचा होला । सदनेश ससंघ गरह टाले खासिर के िनो खरचा क दीहन । आ साचो सदल खोसल के खरचा होिो बा । चंपाबाई के नाच क दीहल आसान बाि ना ह । फजीरे से दरी जासजि लाईट आ बईठला के बेवस्था हो रहल बा । नोसनया टोली के छोट छोट लईका बीछावल दरी प पटका-पटकी करिारन स । काररन्दा गररयाके भगा देिा । बासकर ऊ फे रु आइए जा िरन स । जे जहां बा ऊ ओसहजा से नाच देखला के िैयारी करिा । िंगला ससंघ सार्ू आदिी हई ं । नाच-गाना से सचढ़ेलन । बासकर का

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करसु । दयादी के िासिला बा ि सबकी साथे बईठहीं के परी न । हासकि हुक्काि के कुरसी एक ओर लगा सदहल बा । सनु ािा सक इलाका के एस डी एि से लेके थाना के िंस ु ी ले आविा । ठकुराइन लोसगन के करेजा प सांप लोसटयािा... । सगरो इलाका रोसनी से नहा गईल बा । पण्डाल ि एिना बड़ बा जेिना ठाकुरसाहेब के दआ ु र । एक िरफ ठाकुर साहब लोग कुरसी पर बईठल बा । दोसरी ओर गाँव के दयाद पसटदार लोग । िंच के सािने दरी आ जासजि बीछल बा,जेपर अगल-बगल के टोला के लोग आ के बईठल बा । गोड़ रखे के जगह नइखे अब । िंच पर जगह-जगह लाईट आ िाएक लागल बा । पट्टीदारन वाला लाईन िें के हू खांस उठिा ि के हू बाि बे बाि ठठा देिा । िने सजला के साहबन के देखाविा लोग सक देखs हिहू ँ ठाकुर साहेब के भाईए दयाद हई ं । बईठल भीड़ िें से रसह रसह के एगो बसना उठिा । कुछु लोग नाक बन्द क लेिा । के हू कहिा-कवन ह रे सरवा ! सिुआ खा के आईल बाड़सs का रे । आ हर बेरु कवनो छोट लईका, कई थपरा सपटािा सक ईहे ह । परदा उठिा अब गिे-गिे ,देखवईयन के सांस भी ओसहिरे ऊठिा गीरिा । एगो जोकर नीयर आसदिी आईल बा पूसलस के भेष िें । सबना सीसा के चसिा लगवले बा । सबके परनाि बोलिा आ कलाकारन के पररचै बिाविा । सभ कलाकार ईठला ईठला के हाथ जोररके लाईन िें खाड़ा हो गईल बा लोग । सबके जेकर इन्िज़ार बा ओकर नांव सबसे बाद िें बोलिा-हं ि साहेबान कदरदान अब आ रहल बाड़ी सबकर करेजा के हलचल, िन के सकून सघु राई के खजाना चंपाबाई ! आ सब देखिा हक िंच पर नीला साड़ी पहिरले चांद उिर आईल बा । एक ओर सी ी आ थपरी के िल्ला रुकिे नइखे । िले किलेसिा रघुिा के कान िें किलस हक-ई ि जसी गाय के दधू जइसे गोर हबया िो । चंपा िसन ससर नवाके सबसे परनाि कहली ह । ठाकुर साहेब के ठीक पीछे बईठल उपसर्या जी के हाथ आसीरबाद देबे खासिर अपने आप उठ गइल बा, जइसे खाली उनहीं के परनाि भईल होखे । हरिसु नया से टें-पें के आवाज़ आवे लागल बा । सभ कलाकार लाईन िें खाड़ा बा लोग । परारथना होई पसहले

सरसिीजी के । ईहे िंच के असूल ह । ससन्टुआ िने िें कहिा सक-ई टोटरि से का फायदा बा । जल्दी नाच-गाना सरु​ु होखो... । परारथना खि​ि हो गइल बा-'िोहार जै जैकार करीं हि ए सरसिी िाई' एपर खुस होके ठाकुर साहेब बीस के नोट देले बाड़न । रासर्का ससंघ भी बीसे रुसपया दींहे । दयादी के िासिला बा न ! दोनाली बन्दूक ऊहो ि राखेलन । के वनो नाया नचसनया नाचसिया । शाईद एके बार िें चंपा के नाच पच ना पाईि लोगन से । असगला गाना प नाच चंपा के होई,एही सोच िें िीन गो गाना बीि गइल ।ठाकुर साहेब के इसारा बूसझके अलाउंसर िाएक पर कसह गइल हs- हं ि दोस्िों, करेजा कासढ़ के अँगरु ी प र्र लीं सभे । काहें सक अब आविरी .....चंपाबाई ! िले थाना प बाचल दगु ो ससपाही िें से एकजाना हाँफि दउरि आके दरोगा जी के कान िें कुछु कहलन । उनकर थुलथुल पेट िें लाल पेटी सरक के नीचे आ गइल बा ।दरोगा जी सचहुक ँ के कहलन सक-का बकिरे रे ! ससपाही िनी नरभस भईल ,बासकर कहलस सक हं साहेब दस बसजयवा सिाचार िें बीबीसी कहल स । कनफरि सनयूज बा । दरोगा जी िुरिं े उठलन । आ एस डी एि साहेब के कान िें जाके अदब से बिवलन । एस डी एि साहेब भी िुरिं े खाड़ा हो गईलन ।आ पूछलन सक कवन कहलसs? कहां से पिा चलल हs? दरोगा जी बिवलन सक-दस बसजयवा सनयूज िें बोललससहs । एस डी एि साहेब ठाकुर सकरपाल ससंघ के इसारा से उठा के कोना िें बोलवलन । ठाकुर साहेब के आवेके िसनको िन ना रहे ।कांहे सक अबले चंपा िंच पर आ गईल रहली । बासकर जाके बेिन से पूछलन-का जी ! का बासि हs? एस डी एि साहेब बिवलन सक परर्ान िंत्री राजीव गांर्ी गज ु र गईनीं ।अबे बीबीसी िें बोलल स । ई रास्रीय सोक के बासि बा । ई काररक्रि असभए रोकवाई ं। ठाकुर साहेब ि सगरि सगरि बचलन । चट्टी-चौराहा वाला एगो-दगु ो कांग्रेसी नेिन से हेल-िेल उनहू ँ के रहबे कईल ।छोट-िोट भासन भी देले रहलन । िाईक सोझा परिे देस, आजादी, गांव-सगरांव, जोस िारे लागे । कहलन सक-ई ि बड़ अनरथ भईल ।आ िंच के िरफ देखलन ि चंपा िीना कुिारी के िजा प घघु टु कासढ़ के

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बईठल रहली ।शाईद िज ु रा वाला कोनो गाना होखे के रहे । साज-बाज से र्नु सनकलल सरु​ु हो गइल रहे ।िन िें सोचलन सक 'हाय रे भाग ! 'आ िंच की ओर बसढ़ गइलन ।

उठल िब्बो हि गांर्ी जी के सचट्ठी भेजले रहनीं । हिहूं सभा कइनीं,अन्दोलन कइनीं ।कब्बो र्रईनी ना,ना िSआजु हिहूं सेनानी कहईिीं.... ।

एलाउन्सर देखलस सक खुदे ठाकुर साहेब िंच की ओर आविानीं ि सोचलस सक अब भारी ईनाि सिली । आ लपक के ठाकुर साहेब के लगे पहुचं गइल ।ठाकुर साहेब कहलन सक -हट ! िंच पर जाए के बा । गंभीराह बासि सबया । एनी गीि के बोल सरु​ु भईल, ओसन ठाकुर साहेब िाएक के सोझा खाड़ा होके बोललन-सासथयों ! .... िंच पर सन्नाटा छा गइल । सब भौंचक । सक ई का जे खुद ठाकुर साहेब िंच पर आ गइनीं ।

एस डी एि साहेब इसारा कईलन सक ई भासन के बेरा नइखे । ठाकुर साहेब िनी रुकलन ।सफर कहलन-अब एसे भारी देस के अभाग ना होई ।हिनी के परर्ान िंत्री ससरी राजू गांर्ी जी के स्वगा वास हो गइल ।अबे अबे एस डी एि साहेब से िालूि भईल ह ।अब ई काररक्रि ना होई । देस पर संकट आ गईल, आ हि नाच-गाना करीं ? हिनी के दु सिनट के िौन र्ारन करब जा फे रु सब अपनी अपनी घरे चसल जाई ।

ठाकुर साहेब आगे कहलन-देस खासिर हि भा हिार पूरा पररवार कब्बो पीछे ना रहल । देस के जब बंटवारा के बासि

औरु अहगला भाग िें...

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चांपारण: प्रकृकत के एगो सन्द्दर उपहार

यात्रा िर् ृ ांर्

प्र

कृसि हिनी के का नइखे देले । उ प्रकृसि के देन एगो अइसन जगह बा जेकर इसिहास सारगसभा ि ि बड़ले बा औरी ओकर विा िान ओकरो से ज्यादा िनिोहक बाटे । संजोग देखीं की उ सबहार के िानसचत्र के सबसे ऊपर िें सबहार आ नेपाल के ससवान (सीिा) पर सस्थि बा भगौसलक दृसिकोण से देखल जाव ि पसि​िी चंपारण सजला के सजला िख्ु यालय बेसिया से 102 सक.िी. दूर ई जगह बा जेकर नाि बा “वाल्िीसक नगर” । इ छोटा क़स्बा वाल्िीसक व्याघ्र पररयोजना के भीिर के एगो ग्राि पंचायि बा । ओइसे ि इ संसदीय क्षेत्र के नाि 2009 के लोक सभा चनु ाव िें बगहा से बदल के वाल्िीसकनगर कर सदहल गइल बा । इ स्थान के इसिहास बड़ी ही बसढ़या रहल बा एसहजा िहसषा वाल्िीसक के आश्रि बा जहवा भगवान राि के दूनों बेटा लव आ कुश के जनि भइल रहे । इहे ना इ स्थान के बखान िहाभारि के वनपवा िें भी बा । ओिे गण्डकी नदी के सदानीरा कह के पक ु ारल गइल बा । परु ाण िें एगो औरी कथा के बखान बा की एक बार हाथी के राजा आ ग्राह (िगरिच्छ) िें यद् ु सछड़ गइल ि इ यद् ु इहे से आरम्भ भईल रहे जवन सक सोनपरु के हररहर क्षेत्र ले चलल आ ओकरा बाद भगवान सवष्ट्णु के द्वारा ग्राह के सदु शा न चक्र से उद्ार भईल । इ क्षेत्र सबहार के अके ला व्याघ्र सरु सक्षि क्षेत्र बा । इ बन सम्पदा से भरल परु ल बा आ एकरा िें लकड़ी के साथे साथे औषसर् से भी क्षेत्र भरल बा । इ उत्तर िें नेपाल के सचिवन वन्य क्षेत्र से सटल बा । एकरा िें बाघ, सचिा, सहरन, बारहससंगा, भालू, जंगली सूअर, बन्दर, लंगूर, भांसि-भांसि के सचरई, साँप (गेहुअन, अजगर) आसद के सरु सक्षि सनवास स्थान ह। एकर फै लाव 899.38 वगा सक.िी. िें बा आ एकरा िें भारि के सबसे बड़का घास के िैदान बाघ ला उपजावल बा । चली जा अब हिनी के ई जगहा पर चलल जाव । इंहा जायेला सबसे एकिात्र सार्न सड़क बा । हिनी के रासष्ट्रय राजिागा 28B से जाये के पड़ी । बगहा शहर से लगभग 10 सक.िी. आगे बढ़ला पर रािपरु चेक पोस्ट आवेला जहाँ सक बड़का- बड़का साइन बोडा लागल बा -“िस्ु कुराइए आप वाल्िीसक व्याघ्र क्षेत्र िें हैं”। अब इहाँ से सबहार सरकार के वन्य क्षेत्र शरू ु हो गईल बा आगे 6 सक.िी. आगे गईला पर िदनपरु गाँव के बाद अब रासष्ट्रय राजिागा 28B छोड़ के उत्तर के सदशा िें घूि जाये के बा । अब इहा से शरू ु हो गइल असली जंगली सफ़र... अब जंगल के बीचो बीच सनु सान पक्की सड़क से अब गाड़ी एगो बसढ़या रफ़्िार सरसराि सनकलल चल जायी । ना के हू के रोक बा ना के हू के कवनो टोक बा । आ ओसहिे बीच-बीच िें छोट-छोट गाँव थारू (जनजासि) लोग के । एिना बसढ़या जंगल के सफ़र बहुि कि देखे के सिलेला बीचबीच िें सवसचत्र-सवसचत्र प्रकार के जीव जंिु सदखी, कबो-कबो ि बाघ आ गैंडा भी

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प्रभंजन कुमार त्रमश्र नरकरटयागंज , पसछमी चम्प्पारन , सिहार के रहे वाला रभंजन कु मार समश्र जी िी-डैक नोयडा िे िकनीकी िेत्र मे उच्च सशिा ले रहल िानी । इँहा के कई गो रचना पत्र पसत्रकन में छप चुकल िाड़ी िन । कु छ पुरस्कृ ि भी भईल िाड़ी िन । एह घरी इँहा के नोयडा मे िानी ।


लउके ला। पूरा 28-30 सक.िी. जंगल के रोिांचकारी सफ़र के बाद अब वाल्िीसकनगर िें पहुंचब । अब इहाँ छोट-छोट होटल बा जेिे नाश्िा-खाना के खूब बसढ़या व्यवस्था बा । नाश्िा ि हो गइल अब आगे चलल जाव, आगे 3RD चौक से उत्तर सदशा िें सत्रवेणी नहर के पसि​ि वाला बांर् पकड़ के 500 िी । बढ़ला पर आ जाई गंडक नदी पर भारि-नेपाल सरकार के सहयोग से 1965 िें बनल 36 फाटक वाला बैराज, जेिे सक 18 गो फाटक भारि िें आ बासक 18 गो फाटक नेपाल िें बा । इिना सन्ु दर दृश्य, दरू - दरू ले खाली पानीये लउकिा । उत्तर िें सहिालय के गोदी िें बसल सशवासलक (िदररया) पहाड़, पूरुब िें पहाड़ के सीना के सचरि गंडक नदी के र्ार आ ओकरा ऊपरे जंगल के हररयाली एिना िनसायन दृश्य देखे के किे सिलेला । एसहजा पानी के ज्यादा दबाव के कारण गडगडाहट के आवाज़ आ ओकरा िें से देह पर पडि पानी के हल्का हल्का फुहार िन के सहला के रख देला । रुकल पानी िें बनि बड़का बड़का भंवर िसनयक िन िें डर ि जरुर उठावेला लेसकन चारो ओरी पानी के आसिानी रंग िन के सवल्कुल ही आसिानी बना देला । बैराज के दूनों ओरी से ससचाई ला नहर सनकालल बा। ई नहरन पर छोटा-छोटा पनसवजली कें द्र सरकार के द्वारा बैठावल बा जवन बगहा से आवे के क्रि िें सदखाई देला। इ नहर सत्रवेणी नहर के नाि से जानल जाला। इ नहर आगे सकशनगंज िक ले पानी िो के ले जाला । आगे इ नाहर बहुि सारा भाग िें बट गइल बा। एसहजा ससचाई सवभाग द्वारा फुल के सन्ु दर वासटका आ वैराज के सञ्चालन गहृ बा। बैराज के सञ्चालन िीन प्रकार से होला । पसहला कं प्यूटर से, दूसरा इलेसक्रकल बटन से आ िीसरा हाथ से िजदरु द्वारा, इहे ना इ पानी के दबाव, बहि पानी के िात्रा(क्यूसेक) िें सब के सब बिावेला । इ सीर्े पटना से जोड़ल गइल बा आ एकर सञ्चालन पटना से भी कइल जा सकिा ।

खैर, अब हिनी के आगे बढ़ल जाव । आगे बैराज के दसक्खन बांर् के सहारे आगे बढ़ला पर सबहार सरकार के रेस्ट हॉउस आ गेस्ट हॉउस सिली, ओसहजा से पसि​ि िें देखला पर बैराज के सन्ु दरिा सािने दरू दरू िक पानी ही पानी आ पूवा िें पहाड़ के करेज सचरि गंडक नदी । अगर कुछ सदन गज ु ारे के होखे ि रेस्ट हॉउस िें बसु कं ग हो जाला । अब औरी आगे बढ़ल जाव, आगे बन-सवभाग से आदेश लेला के बाद फे नु एक बेर जंगल िें कच्ची सड़क से होि आगे लगभग 3 सक.िी. बढ़ला पर बेसिया िहाराज के द्वारा बनवावल जटाशंकर सशव िंसदर सिली । इ सशव िंसदर गंडक, ि​िसा आ सोनभद्र नदी के संगि स्थान से िात्र 500 िी. दूर बा । इंहा िाघ के नहान के सदने बड़ा भयंकर िेला लागेला, दूर- दूर से श्रद्ालु संगि पर नहाये आवेले आ एसहजा से जल भर के ले जायेले । भगवान के दशा न के बाद अब जंगल िें करीब 5 सक.िी. आगे बढ़ला पर वाल्िीसक आश्रि आई । ओइसे वाल्िीसक आश्रि ि नेपाल िें बा लेसकन ओसहजा जाये के एगो रास्िा भारि होके ही गज ु रेला । बीच िें हल्का- हल्का सछप- सछप पानी वाला दू गो नदी सिली । पसहले ि ि​िसा आ ओकरा बाद सोनभद्र नदी । सोनभद्र नदी भारि आ नेपाल के कसथि सीिा ह । पूरा के पूरा जंगल, ओकरा िें भयंकर जंगली जानवर आ कच्चा रास्िा, डर के साथे रोिांच । जंगली लकड़ी िें सखुआ के प्रिख ु िा बा । आ इ सखुआनी िें सनचे घना झाड़ीदार झाड़ीझंखाड़ जािल बा ओिे नरकट प्रिख ु बा । झाड़ी अिना झंखाड़ बा की ओिे आदिी खड़े-खड़े लुका जाई ि बाहर से ना बझ ु ाई । ओइसे डरे के बाि नइखे जंगल िें सस्त्र सीिा बल के बटासलयन हिेशा गश्िी िें सिली । जंगली उच्च नीच रास्िा से होके अब हिनी के वाल्िीसक आश्रि पहुचँ गइल बानी जा । वाल्िीसक आश्रि के सम्बन्र् िहसषा वाल्िीसक से बा । वाल्िीसक आश्रि िें लवकुश जन्िस्थान, खम्भा जवना िें उ

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लोग घोडा के बनहले रहे, सीिा जी के भूसि िें प्रवेश के स्थान, अिर बेल, वाल्िीसक जी के हवन कंु ड के स्थान सब के सब देखे के सिली। आज से 25 साल पसहले सीिा जी के भूसि प्रवेश वाला जगह पर कंु ड रहे जहाँ बाद िें िंसदर बनवा सदहल गइल। अिर बेल 14-20 इंची के पररसर् के िोट िोट बेल(लिा) एगो गाछ से दूसरा गाछ पर पसरल बा एकरा बारे िें कहल जाला सक इ अिर बा आ इ आज िक ले नइखे ख़राब भईल । इ जगह के प्रकृसि सन्ु दरिा आ शोभा के शब्द िें नइखे सलखल जा सकि । अब एसहजा कुटी बना के िपस्या नइखे करके , हिनी के इंहा से वासपस आवे के भी पड़ी । वापस ओही रास्िा से जवना से हिनी गइल रहनी। उहाँ से वन्य सवभाग के िख्ु य द्वार िक वासपस आईला के बाद िख्ु य द्वार के बाये िरफ से सनकलेला एगो पािर गोडीयारी रास्िा सिली । ओइसे इ रास्िा से आराि से गाड़ी चल जाई । एह रास्िा से लगभग 2 सक.िी. भीिर गईला के बाद से थारू जनजासि के कुलदेवी िाँ नरदेवी िें बड़ा जगिा िंसदर सिली । ऊंहा के िूल सनवासी के अनस ु ार एसहजा अन्हररया के बाद बाघ िािा के रखवारी करेल सन ओसहसे वन्य सवभाग द्वारा राि िें रुके के अनिु सि नइखे । आिया के बाि ि इ बा की एह जंगल िें परु ान सख ु ल इनार आ िहल भीि के घर दनु ु भीिरी के जंगल िें सिलेला । इहा के लोग एहो बिावेला की अल्लाहरुदल के जन्ि-किा रहे एही वन िें भइल रहे । इ जगह नरदेवी स्थान से 2 सक.िी. भीिरी जंगल िें बा जहाँ पसहले एगो सन्ु दर बस्िी होखि रहे । आज ओसहजा वन्य सवभाग द्वारा जाये से िना बा । अब िािा के दशा न करीं आ वासपस फे नु गोल चौक होिे हुए बैराज पर पहुचँ जा ई। अब एकरा बाद हिनी के नेपाल जाइल जाई आ ओसहजा एगो पौरासणक कथा के प्रिाण देखल जाई। घबराई ि​ि ज्यादा दरू नइखे जाएके िात्र 3 सक.िी. ।

पहाड़ी के सचरि गंडक नदी आहाहा... आ ओकर एकदि साफ सनिा ल पानी। एही जगह से गज-ग्राह के लड़ाई आरम्भ भइल रहे। इहा पत्थर पर हाथी के गोड जे िरे जे िरे र्सल रहे ओह िरे के सनशान आज भी सिल जाई । चईि -बैसाख के िसहना िें जब गंडक नदी के पानी कि होला िब बसढ़या से सदखाई देला । एसहजा सन्ु दर सुन्दर िंसदर बा, बसढ़या फुल के बगईचा बा। एसहजा गंडक नदी के स्वरुप िनी पािर सदखी बासक नदी के गहराई आ पानी के बहाव िन िें डर जरुर ला दी । अब अगर हिनी कुछ िसाला भा चाइनीज सािान कीने के होखे ि सत्रवेणी िें सकन सकिानी । बाजार ि छोटे बा लेसकन जेिने िें बा ठोस बा । अब एसहजे नइखे रहेके अब वासपस भी आवे के बा । ि अब वासपस भारि िें हिनी आईब जा आ 3RD चौक पर जलपान करी फे र वासपस आ जाई बेसिया । उन्हा जायेला नजदीकी स्टेशन बगहा बा । एसहजा से हर 30 सिसनट पर वाल्िीसक नगर खासिर बस खल ु े ला । ओइसे बस के ससु वर्ा बेसिया से भी बा। लेसकन सबसे बसढ़या सार्न ि आपन गाड़ी बा जवन भाडा पर बेसिया, बगहा आ वाल्िीसकनगर कही से भी आराि से सिल जाई। एसहजा सबहार सरकार के छोट हवाई पट्टी भी बा जवना पर छोटाका चाटा र प्लेन उिरेला। लेसकन इ सेवा खाली नेिा आ िंत्री लोग ला हीं उपलब्र् बा । आशा कर िानी की रउआ सभे के हिार इ यात्रा विृ ांि पसंद आइल होई ।

बैराज पर भारिीय ससस्त्र सीिा बल के द्वारा गाड़ी जाँच करवावला के बाद अब हिनी के बैराज िें भरल पानी के आनंद उठावि बैराज के पल ु से नेपाल िें प्रवेश कर सलहल जाई। ध्यान रहे की अगर आपन गाड़ी बा ि ओकर सारा कागज वास्िसवक होखे के चाही छाया सचत्र से काि ना चली साथे िें ड्राइवरी लाइसेंस भी वास्िसवक होखे के चाही। नेपाल िें घस ु ला के बाद फे नु से नेपाल के सरु क्षा बल द्वारा जाच के प्रसक्रया होला अब हिनी के पूवा के सदशा िें बैराज के बांर् पकड़ के 2 सक.िी. गईला पर एगो छोटे क़स्बा सिली जेकर नाि सत्रवेणी ह। इ क़स्बा पार करिे ही हिनी एगो एइसन जगह पर पहुचँ ेि की हिनी अपना आँख पर सविास न होई। © आखर ● मार्च, 2015 ● 73


कहानी-धारािावहक

बृजत्रकशोर त्रतवारी पलामू झारखंड के रहे वाला िृजककशोर सिवारी जी एह िमय शसिनगर िोनभद्र मे कायिरि िानी । भोजपुरी मे हास्य व्यंग्य के रचना इँहा के एगो अलग आ उं च पहचान िनावेला । आखर पेज िे जुड़ल िृजककशोर जी भोजपुरी मे लगािार रचना कई रहल िानी भोजपुरी मे सलख रहल िानी ।

तदल, जब बच्चा था जी (भाग-2) अब ले रउरा पढ़नी - आपन सहपाठी के छत पे खेलत खेलत कथाकार के लघुशांका बुझाईल आ उ बाररस के पानी के यनकास के पाइप में फाररग भययलें। बाकी जेकरा उ बाररस के पानी के यनकार के पाइप बुझ्लें असल में उ चुल्हा के यचमनी रहे आ चुल्हा पे दूध चढल रहे। कथाकार के जैम के कूटम्मस भईल। अब आगे :

ईल सिस्या ! अब उ दर्ू के का होखो ? उ दूर् ि पसहले रखाइल अंगना िे, लल ु वु ा के घरे के लोग उ दर्ु वा के खूब सनहार सनहार के देखे जईसे उ दर्ु वा िें कौनो गोजर चलि होखे । बड़ा देर ले लोग िसौदा बनवलस, लेसकन उ ि उहे होखे के रहे, जवन सनयि रहे ! िन िें बहुि बड़ बोझ लेके आसखर उ सबशद् ु सिंद्रु ी दूर्, सिनु दर के रस्िा िय करे के पसहला सफ़र अंगना के नाली िें सिासहि भईली । लिहर सखस्सा िs अब नु भईल ! सदन के सिय,पानी ओह घरी आवे ना । पांच सकलो दूर् लुलुवा के घरे ले सकलोिीटर िक नाली के सफ़े द कs सदहलस ।अब लागल िाँिा, लुलुवा के घरे। का बाि बा, दर्ू नाली िें काहें बहावल जािा ? अब का बिावल जा ये भाई लोग ! अब ि, घर के बाि,चट्टी-बाज़ार िें आ गईल ! अब ि हि जवन ना फे िस भईनी सक रउवा सभे अंदाजा ना लगा सके नी ! जे भी अपना पररवार आ के हू संघे घिु , हिरा देन अँगरु ी उठा देओ आ कहे - इहे ह, इहे ह ! इहे रहल ह आ जाने का का ? लेसकन ओकर निीजा बड़ा शानदार रहल । सभे आपन घर के र्वंु ा दान चेक कईलस। जेकरा इन्हा गन्ु जाईस रहे, िुरि फुरि िें र्आ ंु दान ऊँचा करावल गईल । कि से कि चार फुट ऊँचा ि करायी सदहल लोग ! आ िने िन थाह भी लेि रहे सक हेिना ऊँच रही ि दघु ा टना के संभावना कि बा, आ अब के हु सीढ़ी लेके ि आई ना । पाईप के दक ु ान वाला हिरा देख के िस्ु की काटे । िने िन कहे-वाह रे ! पंडी जी, िू ि हिार सबसक्रया चिका देला । हिरा ऊपर अघोसषि करफू लाग गईल । के हू अपना घरे िें घस ु े ना देओ,ि​ि पूछी... एकदि अछूि हो गईनी । आ अब बड़ भईनी ि कबो-कबो लागेला सक इहे हिार करिूि के वजह से कुछ चीजन के असवष्ट्कार भी भईल होखी । हो सके ला इ कुल सनु ला के बाद वैज्ञासनक लोग र्आ ुँ रसहि चूल्हा खासिर सोचले होसखहे ! ना रही र्आ ुँ ,आ ना अईसन इसिहास फे रु से दोहरावल जाई , आ ओही के बाद "हीटर" ,"िट्टी िेल वाला स्टोप", आ सफर बाद िें "गैस चूल्हा" खासिर सदिाग िें बाि आईल होखी ।आ ई कुल्ही के खोज हो गईल | हो भी सके ला (आसखर सब असवष्ट्कार के पीछे कौनो ना कौनो घटना जडु ल रहेला )

२ । आखर पत्रिका

. फ़रवरी २०१५

© मार्च ● 2015 ● 74


कह , कवन परूख सांग यारी

बेबाक बर्कही

ब परब के सवभाजन भईल ि रक्षा बन्र्न पंसडजी लोग के सिलल । दशहरा क्षसत्रय लोग के दीपावली वैश्य के होली शूद्र लोगन के सिलल। बासक इ परब अिना रंगदार सनकलल सक िय सवभाजन के िुरर िारर के सछन्न-सभन्न कई के दबंग बन गइल। एह दबंगई िें सबसे बड़हन योगदान गीिन के बा । एगो गीि देखी। बन ठन के रािजी आ लछुिन जी साथे अपना ससरु ाल गईल बाड़े। साली भोभ-नाके र् लेली स। हंसस हंसस पूछे जनक परु नारी एक बाि ऎसी सनु ी , लागि अचरज भारी िािु कौशल्या खीर खाई के जनिाए सिु चारॊ अब का कहब ए रािजी ! का कवनो गलि बाि बा सक नकार देब। के नईखे जानि सक दसरथ के बिु ापा िें कईसे चार जना जनिले। सीिाजी बोलले रसहिी ि राि जी जबाब देिे बासक इ ि साली लोग पूछले बा। कायदा से जबाब लक्षिन के देबे के बा। सदिाग काि नईखे करि। बेईज्जिी हो रहल बा, आ सखससआए के नईखे, िहिारी कह के भेजले बाड़ी । राि जी नोह से िाटी कोड के बिाव-िारे आ लछुिन जी के बझ ु ाईल सक कुसी पर से कूद जईहे। देख हंस लोग। हि ठहाका लगाईला।सूपवा हंसे ि हंसे चलसनया ि​ि हंसे जेकरा िे 734 गो छे द बा । साली लोग कहल सक एह िरे ना।लक्ष्िण के जबाब सनु ी।

त्रनलय उपाध्याय आरा , सिहार के रहे वाला सनलय जी , सहन्दी आ भोजपुरी िासहत्य मे उत्कृ ष्ट रचना कईले िानी । इँहा के सलखल सहन्दी नाटकन के मंचन भी होला । कई गो भोजपुरी सिनेमा आ सहन्दी धारावासहक के सस्िप्ट भी सलखले िानी । हाले कफलहाल इँहा के गंगा यात्रा ( गंगोत्री िे गंगािागर िक ) भी कईनी ह । भोजपुरी भाषा आ िासहत्य मे िहुिे गुढ़ आ पोढ़ जानकारी इँहा के जरी िा । िम्प्रसि मुम्प्िई में िानी ।

यह सनु सबहसस लखन बोले बसिया,सनु हु ससख सक ु ु िारी बल िे बने नहीं राजा जनक को, हर से सनकारे कुिारी एकरे के कहल जाला, अब ना बनल अउरी बनल। आपन घाव ना लउकsल आ दोसरा के फ़ुसरी लउकsिा। अब सहेली लोग सोचे लागल। सोच ना रे, इ ि बडा कुकाठ जबाब दे देलस लछुिानवा। िहरा का पिा बा, उ कररयाठा राि इशारा कईले रहे। नया सवाल सिल गईल सखी लोग के । सांवर होखे िें रहस्य बा। सखी िरली उ बि जेकरा से बाचल नाि​िु सकन बा गोरे अवर्पसि नपृ दशरथ जू गोरी कौसशल्या नारी कारे भए कईसे राि लला, कह कवन परू ु ख संग यारी

भी ...सपिसपिा गईले । रािजी कुछ कहस ओकरा पसहले लछुिन के खीस िरकुल पर रहे। छोटी छबीली रसीली बडी हॊ, िुि सब अबसह कुिारी जानसि ही रस बािन कईसे,कह कवन परू ु ख संग यारी गीि िें राि आपन िया​ा दा नईखन छोडि ऎह से लागिा सक इ िुलसी दास के गीि ह ।

अब ि िसिला गंसभरा गईल। हईसे भला लईकी के बोले के चासह। कह कवन परू ु ख संग यारी। आ बाि सांच । इ ि शसि वान बा। लाग गईल । शेष नाग भगवान भीिरे फ़ुफ़ुकारे लगले। इ ि सीर्ा िहिारी पर कलंक लाग गईल... राि जी © आखर ● मार्च, 2015 ● 75


गीर् / कविर्ा

का कहीं अब त कहलो ना जाये का कहीं अब ि कहलो ना जाये, कहला सबनु रहलो ना जाये । बांह गहे के आिरु हउवें, बांहवां उनकर गहलो ना जाये । सख ु वा-दख ु वा छटकि बाटे, देसख हा ससु बर्ा सबछहलो ना जाये । पईसा पाके दऊरि बारन, हिरा से अबहीं टहलो ना जाये ।

डा. एस के त्रसंह िसलया, युपी के रहे वाला डा. एि के सिंह जी एह घरी िनारि मे असिस्टेंट कसमश्नर िानी ।भोजपुरी आ सहंदी िासहत्य में िमान दखल राखेनी । भोजपुरी भाषा प लगािार सलख रहल िानी ।आखर पेज प इँहा के सलखल कई गो सववेचनात्मक लेख , भोजपुरी कसविा आ चुकल िा ।

इनरा के पानी गंदा कईके , कुइयां उनसे उरहलो ना जाये । हाथी डूबलन घोरा डूबलन, आज के पानी थहलो ना जाये ।

खत्ति उनकर अँसखया के पानी, लाज के िारे दहलो ना जाये । िट्ठु ी उनकर अइसन सचक्कन, रूसपया पईसा रूपहलो ना जाये ।

कसविा गजल सलखेनी , एह िमय इँहा के कलकत्ता मे कायिरि िानी ।

रास्िा िाकि अँसखया पाथर, उनकर बाट अब जोहलो ना जाये । खेिवा के घसवा जंगल भईलस, झंखर ई सब सोहलो ना जाये ।

चाि के देहवा बज्जर भइलस, अंगरु ी से अब खोबहलो ना जाये । कब्जा उनकर कागज उनकर, िहला अटारी दिु हलो ना जाये । िऊगि बाटे सजनगी के आछा, सांसवा के बोझा सहलो ना जाये ।

© मार्च ● 2015 ● 76


कविर्ा

आ गइल बसां त सरदी, सठठुरन, शीिलहरी के जइसहीं भईल अंि । झिु ि, गावि, हंसि - हँसावि आ गइल बसंि । िोजर र्इलस आि पर,गिके लागल फुलवारी । खेि सजल सरसों के ,जईसे कवनो राजकुिारी । झरे लागल पिई परु नका, फूटे लागल नया कपोल । साँझ सबेरे सनु े के सिले, कोइलर के िीठे बोल । जब बहे बयररया परु वईया, फसल खेि लहराय । देख के सफल िेहनि आपन,खेसिहर खूब अगराय । जईसे सार्ना सफल भइला पर खुश होखस संि । झिु ि, गावि, हंसि हँसावि आ गइल बसंि ।। चूिे िाथा र्रिी के उगिे सकररसनया भोर िें । चादर हररयाली के पसरल गँउआ के चारू ओर िें । रसिया ि लागे सहु ावन, सनिन लागे र्पु भी । हल्का ठंडी, हल्के गिी, बदलल िौसि के रूप भी । खसटया िें गटु ीयाइल बढ़ु ऊ, खड़ा भईलन िन के । एह रंग-गल ु ाल के िौसि िें, सचरई चहके ले िन के । पंख लगा के ईच्छा सबकर, उड़े चलल अनंि । झिु ि, गावि, हंसि हँसावि आ गइल बसंि ।।

© आखर ● मार्च, 2015 ● 77

नुरैन अंसारी गोपालगंज , सिहार के रहे वाला नुरैन अंिारी जी , भोजपुरी आ सहन्दी मे लगािार गजल आ कसविा के सिरजना कई रहल िानी । आखर प शुरु िे ही नुरैन जी के सलखल भोजपुरी कसविा आ गजल पोस्ट हो रहल िा । इँहा के एह घरी कदल्ली मे िानी ।


गीर् / कविर्ा

इयार हो

ि

हिरा लागल रहे बड़ा शरि हार एक-एक बाि हिरा इयाद बा इयार हो-

िब, सदन हिार पािर रहे, कवनो खुसी हिरा खासिर बाँिर रहे हँसल रहे पाप, िस ु काईल गनु ाह

आ बे खदी बदी के सब के रहे हिरा से डाह ि लोग जरे, िुहूँ करs वार हो िहार एक-एक घाि हिरा इयाद बा इयार हो

बासकर िू छोडल ना कईए देले रह बेभरि आ ले लेले रह ओह सूई के डाँड़ हो, िहार एक-एक काँि हिरा इयाद बा इयार हो िहार एक-एक बाि हिरा इयाद बा इयार हो। अब, भगवान ि​ि करस िहरो पर अईसन सदन आ जाव, बरसाि िें आफि लाग जाव,

िहार एक-एक बाि हिरा इयाद बा इयार हो।

राि भर देवाल के ठीक टीक पर पानी भभको

िब, ना जाने काहे रह-रह के िन घबड़ा जाय,

आ भँस जाव िहार देवाल सभनसार के पसहले,

सजया डेरा जाय।

थऊस जाव िहार घर ि घबड़ईह ि​ि,

रहल ना गईल, िहरा से कहनीं आपन बाि आ िू उडवलs हिार सखल्ली हिरा पीआसल करेज पर राख देले रहs िू अंगार हो िहार एक-एक सौगाि हिरा इयाद बा इयार हो। िहार एक-एक बाि हिरा इयाद बा इयार हो। िब, एक सदन िहार एगो सूई भूला गईल रहे हिरा से

हिार घर बा नू!ँ ई ना होई हिार िहरा पर कवनो उपकार हो एसे सक इयार हो आपन एक-एक बरसाि हिरा इयाद बा इयार हो, बरसाि के एक-एक कँ पसल राि हिरा इयाद बा इयार हो आ ओह पर िहार एक-एक बाि हिरा इयाद बा इयार हो। िहार एक-एक बाि हिरा इयाद बा इयार हो

© मार्च ● 2015 ● 78

अशोक शेरपुरी छपरा, सिहार के अशोक कु मार सिंह जी , िासहत्य जगि मे अशोक सशवपुरी के नाव िे जानल जानी । भोजपुरी कफल्म सिहुला के गीिकार , भोजपुरी गीिन मे यथाथिवाद के िेजोड़ आ िररआर रुप देखवले िानी । इँहा के सलखल कई गो कसविा , सवश्वसवद्यालयन के पाठ्यिम मे


गीर्

आजी (सरनामी भोजपरी मे कलखाईल गीत)

अं

टावल बा एगो देंसह कुरसी के नरि िसकया प लागे है िू बइठल बाकी रोके बा िोहके लकड़ी दूनों बगल, पीठी सम्हारे गीरे ि खाली आगे बाटे िो हार आजी रे आजी इ हालि िें िोहके पहचान ना पाइला अउर जासनला हिे िू भी ना परलोक ससर्ारे बररसन िो होइगे पूछे है िब्बो के आजा ना आइल बोली - ना आजी उ थक्कल सस्ु िा है आज पहुचँ ना परल पािर झूर होंठ से िस ु कईले िू जबरन सनु के जईसे दख ु ना भईल लास होइगे सफनो िन िोहार जाने कईसन लोक िे कउंची के लालच रोके बा िोंहके छोरे खाि सांस काहे रुकल बा सजनगी फं सल ह िौि के जाल िें आसा रह गईले बन के िू कईसन ि​िासा

िूहं से चवु ि थूक के सनेसा देखि ना बने आउर इ ददु ा सा कुरसी के लांकी से घस्कल जब हाथ ि घंटन िू िहरा से सोझा ना होवे हई छूटगे है देंही से हाथ के नािा रहे करि अब दस ु रे क सहारा कबले सजयाये िू अपन बेईज्जिी के कर आसा सहे इ दाःु ख आये के कई दफे लौट के चलगे अंस चवु ाई के सरनाि (सूरीनाि) के पहुना सह्रु ाई के िूडी जोर के हाथ देखे िू सब के िाके ना कौनो के सबच्चे िें रह के िू साथे ना बाटे अब ना जटु े हर हफ्िा पलवार नेविा दआ ु री ना देखे िोहार िब्बो िोर ऐसन सप्राय के आजी के कोई न बोली िू कहूं ना जा हई नजर कं वारी पे ऐसन सटकै ले के ली के बाराि अब्बे आजा पर्ारी

© आखर ● मार्च, 2015 ● 79

राज मोहन उत्रेच , नीदरलैंड के रहे वाला राज मोहन जी िरीनामी भोजपुरी के वि​िमान िमय के िहुि िड़हन रभावशाली आ ख्यासिरसिद्ध गायक हई , नया धुन िकनीकी आ अंदाज मे 200 िररि पसहले पलायन के ददि के इँहा के अपना गीिन के माध्यम िे आवाज दे के एगो िहुि उं च स्थान प भोजपुरी के ले के गईल िानी । कनाडा अमेररका भारि आ अउरी कई गो देिन मे आपन रस्िुसि दे चुकल िानी , एह घरी नीदरलैंड ( हालैंड) मे िानी


कविर्ा

कभखारी तारके श्वर राय (लेखक) मुन्ना पांडे (प्रेषक) गोपालगंज सिहार के रहे वाला मुन्ना कु मार पांडे जी , भोजपुरी भाषा खाि कई के सभखारी ठाकु र प िररआर शोध कईले िानी , इँहा के ररिचि के सवषय ही सभखारी ठाकु र जी रहनी । भोजपुरी नाटक आ सभखारी ठाकु र के नाटकन प गसहराह लेख सलखले िानी । सहन्दी आ भोजपुरी मे इँहा के लगािार सलख रहल िानी । एह घरी असिटेंट रोफे िर के रुप मे कदल्ली मे कायिरि िानी ।

गौ री गणेश पद, बोली िें भरल िद गावि बानी गीि िें बनाई के सभखारी के । गाँव के कगररया िें,सड़क बघररया िें चलि डगररया िें गीि बा सभखारी के । चिकि चिचि,गिकि गिगि िह िह िहकि सगरो सभखारी के । खेिवा सकसनवा िें,जंिवा सपसनवा िें बंसरु ी के िानवाँ िें सनु ी ने सभखारी के । गंगा के लहररया िें,गाँव आ सहररया िें घर घर हर हर बहि बा सभखारी के । सबदेसी सनरिोसहया के , बनी के बटोसहया जे

तारकेश्वर राय जी अांजोर पकत्रका के अप्रैल जलाई 1976 के अांक के पष्ठ ृ 17 पर एगो ककवता कभखारी ठाकर जी के ऊपर कलखले रहली ुँ । इ ऐकतहाकसक महत्व के ककवता के हमनी सभन के आुँकख के सोझा राखल जरुरी बा। इ दरअसल कभखारी ठाकर के मउवत से पा​ांच बररस बाद ' कभखारी' शीषज क से कलखल गईल रहे ।

गोरवा के िोरवा खींचि बा सभखारी के । ननदी भउसजया के खोज बाटे कंु सजया से, गलवा िें िुलसी के िलवा सभखारी के । गोखल ु ा नगररया िें,नन्द कचहररया िें ओरहन रगररया िचल बा सभखारी के । भाई के सबरोर् के करि अनरु ोर् रोज, लाश न सिलि बा िलाश से सभखारी के । गबर-सघचोर के अंजोर,पत्रु बर् बाटे सबरहा बहार िें अलाप बा सभखारी के । कीरिन के भालावा भालावा सिान देखीं,

नशवा के दशवा उिारल बा सभखारी के ।

पथल$पर लोसहया घिु ल बा सभखारी के ।

दोहा चौपाई छं द,पल ना परि िंद,

बेसटया सबयोगवा के ,रोगवा सिुसझकर

बोल-चौबोला के बोललबा सभखारी के ।

छसिया जरि बा सभखारी के । सबर्वा सबलाप,उदबास के आलाप सनु ी दख ु वा िसलन बा सभखारी के । ु वा से िख गंगा असनान आ दहार के बहार सलखी

© मार्च ● 2015 ● 80

गीि वो कसवि सनि,लोग के करि सहि पूरबी के खुरपी बनावल बा सभखारी के । हरवा से रसवा चअ ु ि नवो दसवा िें,


कविर्ा

कजनगी िड़ु ी पर लदले सउंसे खईचा सदनभर घूिे बाग-बगईचा,

अत्रजत कुमार त्रतवारी

सख ु ल-पाकल पिई बटोरे

महाराजगंज सिहार के रहे वाला अजीि कु मार सिवारी जी , शुरु िे ही आखर िे जुड़ल िानी आ लगािार भोजपुरी मे गसहराह आ भावात्मक रचना लेख सलख रहल िानी । एह घरी अजीि जी कदल्ली मे रहि िानी ।

िन पर लुगरी फाटल अंगौछा । अिवारी के आि ललचावे , भूख, दख ु िे आऊर सिावे पेट िरोरे देख के ससरफल काि ना डगरे कंु डी बिावे । राि के भख ु ल, भोरहु सख ु ल देह से लक़लक़, करेज के टुटल, भार से भरीि जे पेट छछाईल बिु ल गोसार के खपड़ी फुटल । सबर्ना के सबर्ान अलबेला, खूंट िे बा ना एकहू र्ेला, बाज़ार के बसनया बाजरा जोखि, सलखि उर्ारी िन सिकवेला ।

२ । आखर पत्रिका

. फ़रवरी २०१५

© आखर ● मार्च, 2015 ● 81


पाठक कोना

राउर बात एिना बसढ़या कलेवर ि सहंदी भा अंग्रेजी के कवनो सासहसत्यक पसत्रका के नईखे । िटेररअलो एकदि र्ांसू बा । बहुि बसढ़या काि । जे भी िेहनि कईले बा प्रशंसा के पात्र बा । कोसशश होखे जे रेलवे प्लेटफािा पर ई सिल जाऊ । गोरखपरु से लेके सिस्िीपरु िक िें कवनो प्लेटफािा पर भोजपरु ी पसत्रका ना भेंटासलसन । एही िरे सलखाि आ छपाि रहो । बर्ाई ।  हिंध्य हिश्रा, िेजपुर असि बहुि सनक बा... पिनी हा, भोजपरु ी के सवकास खासिर बहुि जरूरी रहे के एगो आपन पसत्रका होखे । कोसट कोसट र्न्यवाद रही संपादक िंडल के ।  हिनोद हिश्र हि भोजपरु ी भाषी नही है लेसकन आप लोगो का प्रयास पसत्रका सक सडजाईन और रंग िनिोहक है खुबसरु ि है , उम्िीद करिे है कं टेंट भी बेहिरीन होगा  सेंहथल, दुबई एगो सनम्िन आ क्रांसिकारी सरु​ु वाि आ भोजपरु ी के सम्िासनि सवस्िार खासि एगो असगला डेग.........!  आहदत्य दुबे, गोरखपुर,उ.प्र. आखर प्रस्ि​िु करे वाला संपादक जी से सनवेदन बा सक एहिें अईसन शब्द या कवनो अईसन फोटो ना डालब जेह से आपन भोजपरु ीया सिाज बदनाि होखे । र्न्यवाद !  नरेंदर पांडे, फरीदाबाद, िररयाणा संपादक जी आखर भर ठेहुन बर्ाई ! सांच के आंच का । बड़ सनिन काि भईल भाई लोग । शसश बबआ ु बड़े बसियां सिाचार देलs । आखर के सभी भाई बंर्ू के यथायोग प्रणाि आसशबा​ा द । भोजपरु ी िैं सलखे हिार िन बहुि करि रहेला, कुछ सलखले भी बानी आउर सलखब भी । आभार बा रवा सभी के  अरहिन्द्द कुिार पाठक, नागदा, उज्जजैन

आज िािृभासा सदवस पर आपन िािृभासा भोजपरु ी के बसियां पसत्रका के सलंक www.aakhar.com शेअर कर रहल बानी । भोजपरु ी पढ़ीं । भोजपरु ी बोलीं ।  नीिू चंरा , हफल्ि अहभनेत्री , प ना , हबिार जगु जगु ले जीयि रहो "आखर " । इ सब ईिरीय प्रेरणा से हो रहल बा, "आखर" के द्वारा परिात्िा के एह पसु नि काि खासिर परु ा टीि के हिार बर्ाई आ शभु कािना बा । जय भोजपरु ी, जय िाई भाखा… जय जय हो।  हबपीन बिार , िम्ु बई भगवान से इहे प्राथा ना बा की एह पसत्रका के सवस्िार सदन दून राि चौगनु ा होखे । जय हो पूरा भोजपरु रया सिाज के  अिुल हिश्रा , छपरा , हबिार सस्ु वागि​ि्....पूरा टीि के अनघा बर्ाई आ आभार । जे हिना सघ्ु घर पररकल्पना के भरपूर िेहनि आ प्रयास से साथा क रुप िें परोसल लोग । "जय भोजपरु ी- सजहीं भोजपरु ी"  िनोज दबु े , हदल्ली गजब , एकदि गरदा लागि बा जी । िाने हिरा ि अंदाजो ना रहल ह सक फे सबक ु प रावा सब जसु ट के हिना हड़ाह काि कई देब । गजब ! बेजोड़ लागि बा । हि गांवे कई लोगन के देखवनी ह । गजब उत्सासहि बा लोग । सप्रंट वाला पसत्रका के इंिेजार बा ।  अिोक कुिार, बहलया नीिन ! आखर भोजपरु ी के बेहिरीन पसत्रका बनो एकर शभु कािना बा । हर भोजपरु रया सासहत्य के अिृप्त िन के िसृ प्त प्रदान करिा इ पसत्रका ।  िब्द प्रकाि, जसी हस ी, अिेररका

© मार्च ● 2015 ● 82


लेखक कोना

तनहोरा

भो

जपरु ी सासहत्य खासि एगो डेग हिनी के बढ़ल, अब एगो डेग रउआ भी हिनी के साथे बढ़ायीं इहे सनहोरा बा | कसविा, गीि, कहानी, व्यंनय, इसिहास, सवज्ञान जईसन सवषय पे भोजपरु ी िें सलखीं | आखर नवका सासहत्यकार लोगन के एक िंच दे रहल बा | आपन रचना के हिनी िक पहुचँ ायीं, राउर बाि सनु े आ पढ़े खासिर भोजपरु रया सिाज आँख सबछवले बा | असगला अंक (अप्रैल) िें िहेंदर सिससर जी, बाबू कंु अर ससंह (पण्ु यसिसथ-२३ अप्रैल) , सिआ ु न (१४ अप्रैल), सबहार सदवस, वैशाख के िहीना जईसन सवषय पे रउरा सभे आपन रचना (कसविा,गीि, कहानी, व्यंनय, लेख) जरुर भेजीं |

ध्यान रहे राउर रचना िें कवनो असंसदीय आ अश्लील भाषा भा उदाहरण ना होखे |

राउर रचना के स्वीकृसि के सूचना िेल भा िैसेज से सदयाई |

रचना के साथे आपन पासपोटा साइज के फोटो आ आपन पररचय (नाि, पिा, काया आ आपन प्रकासशि सकिाबन के बारे िें यसद होखे ि) जरुर भेजीं |

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पसत्रका खासिर राउर हाथ के खींचल फोटोग्राफ, राउर बनावल रेखासचत्र, काटूान जे सवसभन्न सवषय के अनरू ु प होखे, उहो भेजीं |

छोट-छोट लईकन के कलाकारी के भी प्रोत्सासहि करे खासिर स्थान सदयाई | ओहनी के सलखल रचना भा सचत्र भेजीं |

रचना भेजे के कुछ जरुरी सनयि 

आपन िौसलक रचना यसु नकोड फॉन्ट/कृसिदेव फॉन्ट िें टाइप करके भेजीं |

रचना भेजे से पसहले कि से कि एक बार अपने से प्रूफ रीसडंग जरुर कर लीं | कौिा, हलंि, पूणासवराि पे सवशेष ध्यान दीं | रचना िें डॉट के जगहा ससफा पूणासवराि राखीं |

© आखर ● मार्च, 2015 ● 83


© मार्च ● 2015 ● 84


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