Saahityam जून 14

Page 1

हि​िंदस्ु तानी साहित्य सेवार्ष एक शैशव-प्रयास

साहित्यम् जून 2014 - वर्ष 1 - अङ्क 5

अन्तर्जालीय पत्रिकज / सङ्कलक

सम्पजदक – नवीन सी. चतुवेदी


सजहित्यम ् – अन्तरर्जलीय पत्रिकज / सङ्कलक

अनक्र ु माणिका

र्ून 2014

किजनी

मञ्र्री शुक्लज

व्यंग्य

आलोक पुरजणर्क, अनुर् खरे , नीरर्

वर्ा – 1

अङ्क – 5

वववेचनज

मयङ्क अवस्थी

छन्द ववभजग

संर्ीव वमजा ‘सललल’ 9425183144

व्यंग्य ववभजग

किजनी ववभजग

रजर्स्थजनी ववभजग

अवधी ववभजग

भोर्परु ी ववभजग

ववववध सिजयतज

बधवजर, कमलेश पजण्डेय

07897716173 संस्मरर्

प्रजर् शमजा

कववतज/नज़्म

शैलेन्र, अब्दल ु अिद सजज़, िूबनजथ पजण्डेय, सोनी ककशोर लसंि, धमेन्र

कमलेश पजण्डेय

कुमजर ‘सज्र्न’, मयङ्क अवस्थी

9868380502

सोनी ककशोर लसंि

गीत-नवगीत

मोनी गोपजल ‘तवपश’

8108110152

रजर्ेन्र स्वर्ाकजर 9314682626

धमेन्र कुमजर ‘सज्र्न’ 9418004272

िजइकु

रचनज श्रीवजस्तव

छन्द

कुमजर गौरव अर्ीतेन्द,ु त्रबिजरी,

ग़ज़ल

लमज़जा ग़जललब, दजग़ दे िलवी, अमीर गोववन्द गल ु शन, मम ु तजज़ नजज़जं, सजललम शुर्ज अन्सजरी, िजदी र्जवेद, नवीन सी.

9818354784

9457520433

नवीन सी. चतव े ी ु द

मीनजई, मुकेश आलम, सजललम सलीम,

इरशजद खजन लसकन्दर

मोिनजन्शु रचचत

शैलेन्र, अलभलजर्, ककशन सरोर्,

चतुवेदी आञ्चललक गर्लें भोर्परु ी

मनोर् भजवक ु , इरशजद खजन लसकन्दर

अवधी

अशोक अज्ञजनी

रजर्स्थजनी

रजर्ेन्र स्वर्ाकजर

ब्रर्

नवीन सी. चतुवेदी

अन्य

सम्पजदन

नवीन सी. चतव ु ेदी 9967024593

सोनेट छन्दजलय

तफ़ े ी ु ै ल चतव ु द

आ. सञ्र्ीव वमजा ‘सललल’

व्यक्क्तत्व

सञ्र्ीव सरजफ़

प्रयजस

रे ख़्तज

यिजाँ प्रकजलशत सभी सजमग्री के सभी अचधकजर / दजययत्व तत्सम्बक्न्धत लेखकजधीन िैं| अव्यजवसजययक प्रयोग के ललए स-सन्दभा लेखक के नजम कज उल्लेख अवश्य करें | व्यजवसजययक प्रयोग के ललए पव ू ा ललणखत अनम ु यत अयनवजया िै|

सजहित्यम पर अचधकजन्शत: छववयजाँ सजभजर गग ू ल से ली र्जती िैं। अच्छज-सजहित्य अचधकतम व्यक्क्तयों तक पिुाँचजने के प्रयजस के अन्तगात ववववध सजमचग्रयजाँ पस् ु तकों, अनतर्जाल यज अन्य व्यक्क्तयों / मजध्यमों से सङ्ग्रहित की र्जती िैं। यिजाँ प्रकजलशत ककसी भी सजमग्री पर यहद ककसी को ककसी भी तरि की आपवि िो तो अपनी मंशज ववचधवत सम्पजदक तक पिुाँचजने की कृपज करें । िमजरज ध्येय यज मन्तव्य ककसी को नक ु सजन पिुाँचजनज निीं िै।

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


सम्पादकीय परसों यजयन 30 मई 2014 को हदल्ली में मौसम कज सब से तेज़ तजपमजन ररकजडा िोने के

बजद वो आाँधी चली कक उस की ख़बरें मम् ु बई में भी सजहिक्त्यक अंदजज़ में सन ु ने को लमलीं। कुछ रलसक लमर्जज़ लोग चगरती-पड़ती चीज़ों के सजथ िी सजथ उड़ती चीज़ों कज भी क्ज़क्र

कर रिे थे। र्न-र्ीवन बिुत िी अस्त-व्यस्त िुआ, मगर क्यज करें कुदरत पर ककस कज ज़ोर चलज िै भजई? वपछलज अङ्क पढ़ने के सजथ िी िमजरे एक वररष्ठ सजथी ने सन्दे श हदयज कक आप के

सम्पजदकीय में रजर्नीयतक चचजा िै इसललये भववष्य में उन तक अङ्क न पिुाँचजयज र्जये। मझ ु े निीं लगतज कक सवाज्ञजत

समि ू ववशेर् की तज़ा पर यि अन्तर्जालीय पत्रिकज ककसी वगा ववशेर् कज समथान यज ववरोध करती िै , किर भी अग्रर् की बजत मजन ली।

तमजम अनम ु जनों को झठ ु लजते िुये मोदी [बीर्ेपी निीं] को अपजर सिलतज लमली और उन के शरु ु आती दौर के चन्द फ़ैसले इस बजत की गवजिी दे रिे िैं कक मोदी र्ी पक्ब्लक से ककये गये वजयदों से मक ु रने कज र्ोणख़म निीं उठजयेंगे। मझ ु े निीं लगतज इतनज भर ललखने से ककसी को सवाज्ञजत समि ू ववशेर् की तज़ा पर मोदी कज अनग ु जमी मजन ललयज र्जये।

हदन-ब-हदन तकनीक के बढ़ते उपयोग और नौर्वजनों की बढ़ती सिभजचगतज अच्छे पररर्जम हदखलज रिी िै । चजर सजल

पिले र्ब फ़ेसबक ु और किर ब्लॉगर के मजफ़ात मैं ने अन्तररजष्रीय अन्तर्जालीय सजहिक्त्यक प्रजसजद की चौखट पर क़दम रखे थे, तब दरू -दरू तक इस बजत कज अंदजज़ज निीं थज कक इतने कम समय में इतने अचधक लोगों से र्ुड़ र्जऊाँगज। मगर

यि सच अब िम सब के सजमने िै । अन्तर्जालीय प्रववृ ियों को लगजतजर कोसने की बर्जय िमें उन कज सदप ु योग करने के बजरे में सोचनज िी श्रेयस्कर िोगज। सजथ िी ककसी भी अन्य क्षेि की तरि सजहित्य में भी नौर्वजनों को पररश्रम करने

की आदत डलवजने की ज़रूरत िै । कभी-कभजर सन ु ने में आतज िै कक उस्तजज़ लोग अपने-अपने शजचगदों [पट्ठों] को ग़ज़ल-

गीत-कववतज वग़ैरि ललख कर दे दे ते िैं। यि प्रववृ ि भले िी ककतनी भी सहदयों से क्यूाँ न चली आ रिी िो, मझ ु े तकासंगत कभी भी निीं लगी। मेिनत-मशक़्क़त से बेितर और कोई डगर िो िी निीं सकती।

शेयर बजज़जर चढ़ रिज िै, सोनज चगर रिज िै, प्रॉपटी वजले भी सिमे-सिमे िुये िैं। आने वजले मिीनों में िमजरे सजमने कई अनपेक्षक्षत पररक्स्थयतयजाँ उपक्स्थत िोने की सम्भजवनजएाँ िैं। उमीद करतज िूाँ कक र्न-सजधजरर् को ज़ोर कज िो यज धीरे कज, ककसी भी तरि कज झटकज झेलनज न पड़े।

इस अङ्क से सजहित्यम के कुछ सजचथयों ने ववभजग ववशेर् कज उिरदजययत्व आपस में बजाँट ललयज िै । उन सभी सजचथयो के नजम और मोबजइल नम्बर शरु ु आत में हदये गए िैं। कुछ अन्य भजर्ज-बोललयों से भी सजचथयों के सियोग की दरकजर

िै । िम सभी अवैतयनक स्वयं-सेवी िैं। वपछले दो-तीन िफ़्तों से लगजतजर सफ़र में िोने के कजरर् इस अङ्क को बिुत िी कम समय दे पजयज िूाँ। भजर्जई स्तर पर वजक्यों / शब्दों / अक्षरों को किलिजल अपेक्षक्षत समय निीं दे पज रिज िूाँ, परन्तु र्ल्द िी इस हदशज में पिल करनी िोगी। अच्छे सजहित्य को अचधकतम सजहित्य-रलसकों तक पिुाँचजने के क्रम में

‘सजहित्यम ्’ कज अगलज अङ्क आप के सजमने प्रस्तत ु िै । पहढ़येगज, अन्य पररचचत सजहित्य-रलसकों को भी र्ोड़ड़एगज और

आप के बिुमल् ू य ववचजरों से अवश्य िी अवगत करजइयेगज। आप की रजय त्रबनज सङ्कोच के िम तक पिुाँचजने की कृपज करें । आपकज अपनज

नवीन सी. चतव ु ेदी, 01 र्न ू 2014 साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


कहानी उजास – मञ्जरी शक् ु ल रे त के कर्ों को समेटने में से मैंने

अपने िजथ सर्जये

िथेली से न र्जने किजाँ

एक उम्र गज़ ु र गई और क्र्न चमकीले कर्ों

वे तो

बड़े

िी यनष्ठुर

यनकले। चमकते िुए मेरी चले गए? मैं लिरों के बीच डूबती-उतरजती सब र्गि

र्जकर दे ख आई परन्तु मेरे िजथ कुछ न लगज। भीगे कपड़ों में गीले आाँसओ ु ं से

तर-ब-तर मैं ककसी तरि बजिर आ गई। दरू किीं सरू र् की लजललमज आधे आकजश

को अपने आगोश में लेने को बेतजब थी। सफ़ेद बजदलों कज एक उर्लज टुकड़ज उसके आगोश से किसलज चलज र्ज रिज थज, मजनों वि इतनी र्ल्दी नींद की गोद में निीं

र्जनज चजितज िो। दे खते िी दे खते लजललमज ने अपने िजथ िैलजये और उस छोटे से नटखट बजदल के टुकड़े को र्ो बिुत शैतजनी से बड़ी दे र से लक ु ज छुपी खेल रिज थज , अपने पजस सटज ललयज। इतने पजस, कक नन्िज सज बजदल इतनज

ववरजट सजयनध्य पजकर एक कोने में दब ु क गयज। डूबते सरू र् ने गवा भरी मस् ु कजन से चजरों ओर दे खज कक िर शय लसन्दरू ी िो चक ु ी थी मजनों अब यि सोने की बेलज कज सङ्केत थज। सरू र् को

पतज निीं क्यज िुआ कक उसने अचजनक िी नदी के दस ू री और डुबकी लगज ली। मैं र्ो ककनजरे पर बैठी कुदरत के इस तमजशे को बिुत गौर से दे ख रिी थी अचजनक समझ िी निीं पजई कक इतनज ववशजल सरू र् क्र्सके बगैर

र्ीवन की कल्पनज भी निीं की र्ज सकती िै वो भी र्ल समजचध ले सकतज िैं। मैंने दे खज कक मैं भी नदी की तेर् धजरज

में धीरे -धीरे आगे बढ़ रिी िूाँ, परन्तु अचजनक साँभल निीं पजती और सन्तल ु न खोकर पजनी में चगर पड़ती िूाँ। मैं डूबते िुए सोच रिी िूाँ कक मझ ु े तो तैरनज भी निीं आतज परन्तु र्ैसे िी डूबने लगती िूाँ और मेरज दम घट ु ने लगतज िैं तो अचजनक मेरी आाँख िड़बड़जकर खुल गई और मजथे कज पसीनज पोंछते िी मैंने सोचज कक आर् र्ीवन में पिली बजर इस बजत को इतनी गिरजई से समझ पजई कक क्यों मैं िर्जरों सय ू ोदय दे खने के बजद भी समझ

निीं पजई कक सरू र् डूबतज

भी िै और र्ब डूबतज िैं तो उसको रजत में कोई निीं यजद करतज ईदयु नयज नींद के आगोश में र्जने से

पिले इस बजत

पर खुश िोती िै कक चजाँद अपनी सफ़ेद खूबसरू त और नजर्ुक सी चजाँदनी लेकर लसतजरों के सजथ आएगज और सपनों की सि ु जनी दयु नयज में ले र्जएगज र्िजाँ उन्िें हदन भर के तमजम ददा , तकलीिों और कष्टों से कुछ समय के मक्ु क्त लमल र्जयेगी। क्यज कभी ककसी ने ये निीं

सोचज कक र्ो सरू र् अस्त िो गयज िै अगर वो कभी

....पर इन सब बजतों को सोचने की किजाँ, ककसके पजस िुसात िैं ,मेरे सेवज करते करते कब मेरे

पजस भी किजाँ

नज यनकले तो क्यज िोगज

थी ...पयत ससरु और सजस की

र्ीवन के बजरि वर्ा बीत गए , पतज िी निीं चलज। कोल्िू कज बैल भी इतनज क्यज घम ू तज िोगज क्र्तनज मेरी सजस ने मझ ु े वैध और िकीमों के दरवजज़ों पर घम ु जयज िै ईककतनी बजर मैंने दबे स्वर में किनज चजिज कक

मेरज

एक बजर अपने लड़के कज तो डजक्टरी चेकअप तजलू नोंचकर

करवज लो पर बजत

र्ुबजन से यनकलने से पिले िी र्ैसे ककसी ने

फ़ेंक हदयज िो। और यिी सब सोचते िुए मैं बरजमदे में बैठे अपने ससरु के पजस उन्िें चजय दे ने गई र्ो अधा ववलशप्त थे और सब उनको पजगल पजगल किकर चचढ़जते थे। मैंने मोिल्ले की औरतों से सन ु ज थज कक मेरी सजस ने िी र्मीन र्जयर्जद पजने के लजलच में अपने पयत को कोई र्ड़ी बट ू ी णखलज कर उनकज हदमजग ख़रजब कर

हदयज थज और उसके बजद वो रजर्रजनी की तरि सब पर िुकुम चलजती रिती थी। मैं र्जनती थी कक ससरु से किने कज कोई िजयदज निीं िोगज पतज निी वो मेरी बजत समझेंगे भी यज निीं और सबसे बड़ज संकोच मझ ु े अपनी भजवनजए उनके सजमने बतजने से िो रिज थज पर पयत के सजमने तो उसकज मि िी निीं सकतज थज और अचजनक मेरज ध्यजन ु ं खल ु अपने र्ले िुए यनशजनों पर गयज र्ो मेरे पयत ने लोिे कज चचमटज गमा करके मेरे ऊपर दजगज थज। मेरी सजस को ककसी ने बतज हदयज थज कक मझ ु पर ककसी ने टोनज टोटकज करवज हदयज िै क्र्सके कजरर् मेरे बच्चे निीं िो रिे िै और िर मंगलवजर मझ ु े अगर गमा लोिे के चचमटे से मेरज पयत दजगेगज तो बिुत िी र्ल्दी उनके वंश को बढ़जने वजलज उनकी गोद साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


में ककलकजररयजाँ मजरे गज। आर् भी सोच कर मैं उन्िें भी विजाँ

थरजा र्जती िूाँ कक मवेलशयों के भी र्ब गमा सररयजाँ

से भजगने की आज़जदी िोती िै और कुछ लोग उन्िें पकड़कर रखते िै मैंने

थज कक कोई नशीली वस्तु थे पर मैं तो उन सभी

दजगज र्जतज िैं तो

तो अपने गजाँव में दे खज भी

णखलजने के बजद वो चुपचजप खड़े अपने नमा मल ु जयम शरीर से अपनी खजल नच ु वजयज करते

र्जनवरों से भी बदतर िूाँ ,क्योंकक मेरी सजस दरवजर्े पर बैठ र्जती थी और तेर् आवजज़ में

भर्न लगज दे ती और ये दे खकर चौके के अन्दर खड़ज रजच्छस र्ैसज मेरज पयत मझ ु े धमकी दे ते िुए कितज कक अगर हिली यज भजगी तो लमटटी कज तेल डजलकर ऐसज र्लजऊंगज कक तू पस ू सज धू धू र्लने लगेगी। र्ब चचमटज आग में गमा िो रिज िोतज तो मन िी मन मैं सजरे दे वी दे वतजओं को पक ु जरती पर कभी मझ ु े कोई भी इस नरक से यनकजलने के ललए कभी नज आतज।

चचमटे के

गमा िोकर लजल िोने पर मेरज

पयत

मझ ु से

कितज कक िजथ आगे कर ...और मैं िूट

िूटकर रोती िुई अपनी पिे से थरथरजती िुई दे ि के सजथ िजथ आगे कर दे ती पर इसके बजद क्यज िोतज मझ ु े कुछ पतज निीं चल पजतज क्योंकक मैं चीख के सजथ ददा के मजरे बेिोश िो र्जती और ये सन ु कर मेरी सजस बजिर बैठी गप्प लड़जती औरतों

को प्रसजद बजंटनज शरू ु कर दे ती। मैंने

अपनी सजस के सजमने िी कई बजर र्जन दे ने की कोलशश की पर िमेशज

उन्िोंने र्ी तोड़ कोलशश िर बजर मझ ु े बचज ललयज। एक हदन मैंने चीखते िुए पछ ू ज - क्यों निीं मर र्जने दे ते िो मझ ु े तम ु लोग। अगर मैं र्जनवरों से भी गई बीती िूाँ तो मझ ु े यतल यतल करके क्यों मजर रिे िो ?" अरे ...ऐसे कैसे मर र्जने दे तझ ु े ?पतज िैं आर्कल कजम वजली बजइयों के ककतने नखरे िैं ककतनी मोटी

पगजर लेती िै , तब भी परू ज कजम

निीं करती। किर कुछ सोचते िुए बोली तू भी उनकी तरि चोरी छुपे चौके में खजती पीती र्रुर िोगी वरनज इतनी मस् ु तंडी कैसे िोती र्ज रिी िैं र्ब अपने बजप के घर से आई थी तब तो यछपकली र्ैसी दब ु ली पतली थी किर अपने

यनठल्ले बेटे की तरि मि ु ाँ करके मेरी ओर यतरछी नज़रे करके दे खते िुए बोली-" सन ु , तू मझ ु े निीं कल निीं बक्ल्क आर् िी एक र्जली वजली अलमजरी लजकर दे दे तजकक दध ू और दिी मैं र्रज तजले में रखनज शरू ु कर द।ू क्यज ज़मजनज आ गयज िैं मझ ु बढ ू ी की िड्ड़डयों में तो लसिा दो लीटर दध ू िी पिुाँच रिज िैं और बजकी पतज निीं ये ककतनज गटक र्जती िोगी" अपमजन और शमा से मेरी आाँखों से आाँसूं बिते िुए मेरे गजल तक आ गए और मैं र्जन िी निीं पजई । मैंने अपने पयत की ओर दे खज कक शजयद वो किे कक र्ब घर में िी दो लीटर दध ू आतज िैं और वो एक कप चजय तक को

तरस र्जती िैं तो दध पीने कज तो सपने में भी निीं सोच सकती पर कुछ भी किने और सन ू ु ने कज कोई अथा निीं थज। ये तो एक ऐसी कजल कोठरी थी क्र्समे उसे आणखरी सजाँस तक रिनज थज और मरने के बजद िी अगर किी सख ु िोतज िोगज तो उसकी अनभ ु यू त उसे तभी लमलेगी। तभी बजिर से भड़जक

की आवजज़ आई। सजस और पयत के सजथ मैं भी

िडबडजकर आाँगन की ओर भजगी। दे खज तो मेरे ससरु र्मीन पर पड़े करजि रिे थे और उनके सर पर एक बड़ज सज गम ु ड यनकल आयज थज ईमैं

घबरजकर उन्िें उठजने के ललए भजगी पर अकेले उन्िें निीं उठज पजने के कजरर्

मदद के ललए

अपनी सजस और बेटे की तरि दे खज। पयत में शजयद बजबर् ू ी के कुछ संस्कजर आ गए थे इसललए वो उसकी ओर बढ़ज पर

मजाँ

ने तरु ं त उसकज िजथ पकड़ ललयज और पजन चबजती िुई बोली-"अन्दर चल मेरे सजथ, मैं समझी थी कक बच्चे किी आाँगन में पड़ी चजरपजई लेकर तो निीं भजग रिे िै । ये चगरनज पड़नज तो सब चलतज िी रितज िै । " और ये किकर वो अपने उस दब्बू और कजयर बेटे कज िजथ पकड़ कर अन्दर की ओर चली गई। मेरज उठज पर मैं

रोम रोम गस् ु से के मजरे र्ल

कर िी क्यज सकती थी ईमैंने बजबर् ू ी की ओर दे खज तो उनकी आाँखों से आाँसूं

बि रिे थे। मैंने अपनी

रुलजई रोकते िुए उनके आाँसूं पोंछे और उन्िी को हिम्मत दे ते िुए ककसी तरि से ले र्जकर उनके त्रबस्तर पर लेटजयज। करीब एक महिनज लगज बजबर् ू ी को उस ददा से उबरने में ...शजयद उनके मजथे की चोट तो ठीक िो गई थी पर र्ब वो

र्मीन पर टूटी िुई सरु जिी के पजनी में गीले पड़े िुए थे और उनकी पत्नी और बेटज घ्रर्ज से मि ु ं िेरकर चल हदए थे, वो घजव तो उनकी म्रत्यु तक िरज िी रिे गज । मैंने तो लजचजर र्मीन पर चगरे बजबर् ू ी की आाँखों में उस वक़्त भी डर सजफ़ दे खज थज र्ब मजाँ उन्िें घरू रिी थी। वो बेचजरे कोिनी से ररसते िुए खून को छुपजने की असिल कोलशश कर रिे थे क्योंकक मजाँ कज बजर बजर सफ़ेद चमकते िुए संगमरमर की िशा की ओर दे खनज इस बजत कज संकेत थज कक

उनके खून से िशा लजल िो रिी िै । पर मझ ु े और बजबर् ू ी दोनों को िी सकास के र्जनवर बनज हदयज गयज थज र्ो अपने ररंग मजस्टर के इशजरे पर िी कजम करतज

िैं चजिे रो कर करे यज किर नकली मस् ु कजन िोंठो पर चचपकजकर ईखैर अब

हदन थे तो बीतने िी थे। कभी कभी सोचती िूाँ साहित्यम्

कक ववधजतज भी बिुत बड़ज र्जदग ू र िैं उसने सबके हदमजग में ये भ्रम वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


बैठज रखज िैं कक प्रत्येक मनष्ु य अमर िै इसललए आदमी कत्रब्रस्तजन से लौटते िुए भी अपने बजप की र्मीन , र्जयदजद और बेंक अकजउं ट के बजरे में चचंतज करतज आतज िैं वरनज अपने िी िजथ से अपने र्न्मदजतज कज सर िोड़ने के बजद उसको आग के िवजले कर कोई पैसे के बजरे मैं सोच भी कैसे सकतज िैं। पर यिी भल ै ज िी तो सबको बिलज रिी िैं वरनज ू भुलय मेरे ससरु के सजथ र्ो मेरी सजस कर रिी िै वो सपने

में भी कभी न करती।

र्ब भी मैं र्रज सी भी गलती करती तो मेरी सजस तरु ं त मेरे पयत की दस ू री शजदी की बजत करती पर मेरे हदल में ख़श ु ी की यि उम्मीद ज्यजदज दे र तक निीं

के ककस्से दरू दरू तक मशिूर िो चक ु े थे और लड़की तो क्यज कोई कजनी चचरै यज तक इस घर में ब्यजिने को तैयजर निीं थज। मेरज इस अनंत ओर छोर वजले संसजर में

रिती क्योंकक मेरी सजस की दष्ु टतज

ईश्वर के अलजवज दे खने और सन ु ने वजलज कोई निीं थज इसललए मैं घंटो

थी। पर उस

अपने घर के मंहदर में बैठकर रोती रिती

हदन मेरे सब्र की िद पजर िो गई र्ब मेरी सजस ने घर में एक अनष्ु ठजन रखज और क्र्समें ककसी सजधू

को बल ु वजयज ईर्टजधजरी सजधू के तन पर ढे र सजरी भभत ू और सजधू की आाँखों मैं वजसनज के लजल डोरे दे खते िी में समझ गई थी कक अब मेरे बजाँझ िोने से भी ज्यजदज कुछ अयनष्ट इस घर में िोने र्ज रिज िैं।

उस की लजल लजल गजंर्े और अिीम के नशे से लजल िुई भयजनक आाँखें मझ ु े अन्दर तक भेद रिी थी। डर के मजरे में लसिर उठी और मेरे रोएाँ खड़े िो गए। मैं कुछ किू इससे पिले िी मेरी सजस बोली -" र्ज इनको कमरे में ले र्ज और

तेरी सन ू ी गोद को भरने के ललए एक पर् ू ज रखी िैं वरनज तझ ु र्ैसी बजाँझ के मनिूस क़दमों से िी मेरज पयत पजगल िो गयज। मैंने आाँसूं भरी नज़रों से अपने ससरु की ओर दे खज र्ो बड़ी िी बेबसी से मझ ु े दे ख रिे थे। इतनज यघनौनज इलज़जम भी ये औरत मझ ु पर लगज सकती िैं , इसकी मैंने कल्पनज भी निीं की थी ।

पर अभी बिुत कुछ ऐसज िोनज बजकी थज र्ो कल्पनज से परे थज। सजस के पीछे पीछे दम हिलजतज उनकज पजलतू बेटज ु भी सर झुकजकर खड़ज िो गयज। कमरे में पर् ू ज की कोई तैयजरी निीं दे खकर मैं र्ैसे िी बजिर र्जने को िुई उस लम्बे चौड़े सजधू ने मेरज रजस्तज रोक ललयज। मैं कुछ किू इससे पिले मेरे सजस कमरे के बिजर र्जते िुए बोली-"मैं र्रज भर्न चलजकर आाँगन में बैठने र्ज रिी िूाँ।

आ र्जउं गी दोपिर तक वजपस। तब तक र्ैसज सजधू बजबज किे वैसज िी करनज ,

आणखर तझ ु र्ैसी यनपत ू ी को लेकर कब तक अपने घर के अन्न से भरे बोरे ठुसजउं गी

मैंने आशज भरी नज़रों से अपने पयत की ओर दे खज र्ो मेरी नज़रों कज सजमनज नज करते िुए मेरी सजस के पीछे र्जकर छुप गयज। मैंने मन िी मन अपने कजयर पयत को चधक्कजरते िुए सोचज कक ककस मनिूस घडी में पंड़डत के किने पर

इस लचर से आदमी ने मेरी रक्षज करने के वचन हदए थे। तभी मेरी सजस मेरी तरि इशजरज करते िुए उस सजधू से बोली" अरे ,परू ज मोिल्लज र्जनतज िै कक मेरी बिु सजरे र्िजाँ में कटी पतंग सी डोलती रिती िै । कभी इसकी छत पर तो कभी उसकी दे िलीर्

पर। ये तो आपके सजमने बड़ी सती सजवविी बनने कज ढोंग कर रिी िै । इसके बजल पकड़ कर खींचों

और इसे कमरे के अन्दर बंद कर दो। '

अपने ऊपर इतनज गन्दज इल्ज़जम सन ु कर मैं िूट िूट कर रोने लगी ईसजरज मोिल्लज र्जनतज थज कक मैंने कभी घर के बजिर पैर भी निीं यनकजलज थज। र्ब मैं इन लोगों की मजर खजकर रोती और चचल्लजती थी तब भी अपने आपको बचजने के ललए मैंने कभी ककसी कंधे कज सिजरज निीं ललयज। सजधू ये सन ु कर बड़ी िी ध्रष्टतज

से मस् ु कुरजयज और अपनी भजरी

आवजज़ में बोलज -" इसमें इस बेचजरी की गलती निीं िैं इसकी मजाँ भी ऐसी िी िोगी क्र्सने सजरे र्ीवन गल ु छरे िोगे तो लड़की को किजाँ

साहित्यम्

साँभजलने की िुसात लमलती "

वर्ष 1 अङ् क 4

उड़जए

www.saahityam.org


मेरज सवजांग गस् ु से से यतललमलज उठज और मेरी आखों के आगे मेरी ववधवज मजाँ कज उदजस चेिरज आ गयज क्र्न्िोंने वववजि

के मजि दो वर्ा बजद िी अपने अपने पयत को खो दे ने के बजद चचलचचलजती धप ू और बरसते पजनी में घर-घर र्जकर पजपड़ और बड़ी

बेचकर िम भजई बिन को इतनज लशक्षक्षत करके वववजि करजयज ।

मझ ु े अपने आप पर शमा िोने लगी। एक तरि मेरी अनपढ़

मजाँ थी क्र्सने अपने नजर्ुक कन्धों पर घर की सजरी

क्र्म्मेदजररयों कज बोझ अकेले दम पर सजरे समजर् को मि ु ाँ तोड़ र्वजब दे ते िुए यनभजयज और दस ू री तरि मैं िूाँ एमए उिीर्ा करने के बजद भी इस मररयल से आदमी से रोर् वपट रिी िूाँ , क्र्समे नज ईमजन िैं और नज धमा । इस क्रूर आदमी से हदन रजत

दयज की भीख मजाँग रिी िूाँ । तभी मेरी तन्रज अपनी सजस की ककाश आवजज़ से टूटी र्ो अपनी झुकी िुई कमर को लजठी के सिजरे पकड़े िुए खड़ी थी। वो मेरी मजाँ के चररि पर लजंछन लगजते िुए र्ोर र्ोर से चीख रिी थी। वो क्र्तने अपशब्द मेरी मजाँ को कि रिी थी उतनज

िी भजवनजत्मक सजिस पतज निीं मेरे अन्दर किजाँ से आ

रिज थज। और र्ैसे िी सजधू मेरी सजस की रर्जमंदी पजकर मेरी ओर बढ़ज मैंने त्रबर्ली की गयत से सजस के िजथ से डंडज

ललयज क्र्ससे वो िड़बड़जकर नीचे चगर पड़ी और तजबड़तोड़ मैंने उस सजधू पर उसी डंडे से प्रिजर करनज शरू ु कर हदयज। बजरि वर्ो कज दुःु ख और ददा र्ैसे लजवज बनकर मेरे अन्दर बि रिज थज और आर् वो परू ी तरि से इन पजवपयों को अपने

सजथ बिज ले र्जनज चजितज थज। र्ब सजधू लिुलि ु जन िो गयज तो मैंने र्लती िुई नज़रों से अपने पयत और सजस की ओर दे खज र्ो डर के मजरे थर थर कजाँप रिे थे। मैं कुछ किूाँ , इससे पिले िी मेरी सजस बोली-" तू िी तो मेरी इकलौती बिू िैं, क्यज अपनी मजाँ पर तू िजथ उठजएगी। ये ले आर् से ये सजरज घर तू िी संभजलेगी और ये किते िुए उन्िोंने चजलभयों कज गच् ु छज कजंपते िजथों से मेरे िजथ में थमज हदयज । अपने िजथों में पड़े ि​िोलो ओर नीले दजगों को दे खकर अन्दर से लगज की ये दोनों भी मेरी मजर के परू े िकदजर िैं पर

बचपन में िी मजाँ के हदए िुए संस्कजर एक बजर किर आगे आ गए और मैंने ईश्वर से िी उन्िें दंड दे ने को किज क्योंकक उसकज ककयज िुआ न्यजय त्रबलकुल सिी और सटीक िोगज। मैंने यतरछी नज़रों से अपने पयत की ओर दे खज र्ो िमेशज की तरि एक कोने में दब ु कज खड़ज थज। मैं उन कजयरों को उस ढोंगी सजधू के सजथ छोड़कर एक िीकी मस् ु कजन के सजथ चजलभयों कज गच् ु छज घम ु जती िुई चल दी अपने ससरु को ककसी अच्छे

डॉक्टर के पजस ले

र्जने के ललए.....

मञ्र्री शक् ु ल , इलजिजबजद 9616797138

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


व्यंग्य अकबर का ललप-लाक – आलोक परु ाणिक इयतिजस के पन ु लेखन की र्रुरत पड़नेवजली िै । नयी पीढ़ी इयतिजस को अपने तरीके से गढ़

रिी िै , टीवी दे खकर, टीवी सीररयलों के बजरे में पढ़कर। दो टीन-एर्र बजललकजओं की बजत कुछ यंू सन ु ी-

वजऊ, अकबर, यू नो, र्ोधज से ललप-लजक करनेवजलज िै। सप ु बा ककस दे खने को लमलेंगे। रीयली, अकबर इस सो कूल नज।

अकबर, हद ग्रेट, ऐसज परु जनी पीढ़ी ने पढ़ज िै । अकबर, हद कूल, यि नयी पीढ़ी समझ रिी िै । ग्रेट से बन्दज कूल िो

र्जतज िै, एक र्नरे शन के िजसले में । टीवी भी इस दौरजन ग्रेट से कूल िो गयज िै । मेरी चचन्तजएाँ दस ू री िैं, ललप-लजकवजले अकबर अगर हिट िो गये,

तो कोई सीररयल यनमजातज सन्नी ललयोनी को लज सकते िैं अकबर की ककसी रजनी के रुप

में । सन्नीर्ी लसिा ललप पे नज रुकेंगी!!!!!!!!!!!!! अकबर के सजथ ये क्यज िो रिज िै ।

औरङ्गज़ेब पर कोई टीवी सीररयल बनजने में ककसी की हदलचस्पी नज िोगी, क्योंकक औरङ्गज़ेब को अपने वपतज शजिर्िजाँ

को आगरज के लजल ककले में लजक करते िुए हदखजयज र्ज सकतज िै । पर औरङ्गज़ेब कज कैरे क्टर ललप-लजक हदखजने के ललए उपयक् ु त निीं िै । ललप-लजक नज िो, लसंपल लजक िो, तो सीररयल के प्रमोशन में हदक्कत आती िै । सीररयल कज प्रमोशन नज िो पजये, तो किर सीररयल बनजने कज िजयदज क्यज।

सीररयल क्यज किल्म बनजने कज भी क्यज िजयदज। के. आलसि की शजिकजर किल्म मग ु ले आर्म अगर आर् बनी िोती, तो सप ु र-पसानल्टी के धनी अकबर पथ् ु ले आर्म कज प्रमोशन कर ृ वीरजर् कपरू कजमेडी नजइट्स ववद कवपल के सजथ मग

रिे िोते। कवपल किते -मिजबली अकबर र्रज वो वजलज डजयलजग तो बोलकर सन ु जओ, पक्ब्लक को। और मधब ु जलज-प्यजर

ककयज तो डरनज क्यज-ये डजंस गत्ु थी यज चुटकी के सजथ करके हदखजइये नज। मिजबली अकबर मिजरजर्ज प्रतजप से र्ीतकर आते, पर कवपल की ड़डमजंड के आगे िजर र्जते।

टीवी के आगे बड़े-बड़े मिजबली ललप-लजक करने लगते िैं। खैर मसलज यि िै कक अकबर के खजते में सल ु िकुल, भजईचजरज, ितेिपरु सीकरी भी िै , पर नज नज नज नज सजरज अकबर लसिा ललप-लजक पर िोकस िो रिज िै । बक्ल्क र्ोधज अकबर सीररयल दे खकर इयतिजस समझने वजले बच्चों के मन में

सवजल उठे गज, भई रजयनयों की पजललहटक्स में इतनज टजइम खचा करनेवजले अकबर को बजकी के कजम के ललए टजइम कब लमलतज िोगज। कब तो उन्िोने ितेिपरु सीकरी बनवजयी िोगी। कब उन्िोने गर् ु रजत िति ककयज िोगज। अकबर इस कदर

बेगमों में त्रबर्ी रिते िैं, कैसे और क्यज ककयज िोगज। बच्चे किीं ये नज समझें कक इयतिजस र्ो ललखज गयज िै, वि सजरज कज सजरज झूठ िै । असल में तो अकबर बेगमों में िी त्रबर्ी रिते थे।

र्ोधज अकबर दे खकर अकबर को कूल किनेवजली बजललकजएं इयतिजस की छजिजएं निीं थीं, अकबर के परू े योगदजन को वि कैसे समझ पजयेंगी, यि चचंतज मझ ु े रिती िै । पर चचंतज करने से क्यज िोतज िै । टीवी र्ो हदखजयेगज, उसके पजर कुछ समझजनज बिुतै मक्ु श्कल िो गयज िै ।

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


इधर कई टीन-एर्र समझने लगे िैं कक दे श की िर समस्यज कज िल आलमर खजन के पजस िै । आलमर खजनर्ी बिुत मेिनत से सिर् भजर्ज में तमजम मित्वपर् ू ा मद् ु दों को सजमने रख रिे िैं। पर आलमर खजन समजर्शजस्िी निीं िैं। आलमर खजन कूड़े के ढे र के संभजववत प्रयोगों के ववशेर्ज्ञ भी निीं िैं। बच्चे उनसे ऐसी अपेक्षजएं पजल सकते िैं। िर समस्यज कज

िल आलमर खजन के पजस निीं िै , ऐसज समझजनज इन हदनों बिुत मक्ु श्कल िै । आलमर खजन िर समस्यज िल कर सकते िैं, ऐसी उम्मीद ठीक निीं िै । पर मेरे ठीक मजनने यज नज मजनने से क्यज िोतज िै। टीवी को लगतज िै , तो ठीक िी िै। एक टीवी चैनल में मैंने दे खज कक भजरत की रक्षजत्मक तैयजररयों पर एक पेनल-ड़डस्कशन में आलमर खजन को

बल ु जये

र्जने की बजत चल रिी थी। मैंने यनवेदन ककयज-आलमर खजन ड़डिेंस के एक्सपटा निीं िैं। एक बंदे ने किज-एक्सपटा तो वो कूड़े के भी निीं थे, पर उस पर एक कजयाक्रम कर गये नज। कूड़ज कौन दे खतज िै , आलमर खजन को दे खज र्जतज िै ।

उफ्ि अकबर को कौन दे खतज िै , सजिब, अकबर कज ललप-लजक दे खज र्जतज िै । दे णखये, दे णखये और अकबर को उसके ककस के ललए यजद कीक्र्ये। आलोक परु जणर्क

मोबजइल-9810018799

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


भगवान के भी बस की नहीं नेतागीरी – अनज ु खरे घोर कलयग ु िै । चुनजव लसर पर िै । िुल चचल्लपों मची िै । अवतजर लेने कज बखत आ चुकज िै - भगवजन मस् ु कुरजए। मस् ु कुरजिट कम िुई तो चचंतज सतजने लगी-कौनसज अवतजर लें। भगवजन र्ब चचंयतत िोते िैं तो चंिुओर खलबली मच र्जती िै । दे वतज

हिल र्जते िैं। चूंकक इंर के पजस एड़डशनल क्र्म्मेदजरी िै सो उसकज लसंिजसन डोलतज िै । वैसे लसंिजसन ककसी कज भी िो डोलनज िी उसकज मख् ु य धंधज िै । चन ु जवी हदनों में डोलने कज कजिी कजम यनकल आतज िै ।

तो अवतजर की घड़ी िै । चचंतज बड़ी िै । बजत यिीं अड़ी िै ककस रूप में अवतररत िो

र्जवैं। भगवजन ने त्रिकजलदशी वजलज मॉनीटर ऑन ककयज। र्नतज कज उद्धजर करें ! दे श

कज भी कल्यजर् करें ! नेतज बन र्जवैं! वैसे भी र्नतज ऊपर की तरि िी यनगजिें लगजए िै । भगवजन ने खुद को संयत

ककयज। घबरजिट िै लेककन इनकजर निीं ककयज र्ज सकतज िै । पीछे निीं िटज र्ज सकतज िै । तय रिज नेतज रूप में िी

अवतररत िोंगे। अब भगवजन ने अवतजर की बेलसक क्वजलीकिकेशन पर गौर करनज शरू ु ककयज। पजटी लगेगी। ववचजरधजरज रखनी पड़ेगी। मेनीिेस्टो में वजदे िोंगे। पिले िी मद् ु दे पर भगवजन द्वन्द में डूब गए। पजटी कौनसी िो।

ईश्वर ककसी पजटी में कैसे िो सकते िैं। भरोसेमद ं परं परज रिी िै । ईश्वर न्यर ू ल रिें ग,े िर तरि की पजटीबजर्ी से बचें गे।

इलेक्शन तो ईश्वरत्व के ललए िी चन ु ौती हदख रिज िै । किर ववचजरधजरज! तो िमेशज से सवािजरज के उत्थजन की रिी िै। लेककन सवािजरज की बजत करने पर किीं लेक्फ्टस्ट मजनकर ककसी खजंचे में न डजल हदयज र्जए। और ववश्वकल्यजर् तो िर्जरों सजलों से खद ु जई मेनीिेस्टो रिज िै इसमें क्यज चें र् िोगज भलज! लेककन अगले िी पल भगवजन किर चचंतज में डूब

गए। इस मेनीिेस्टो से मजनवर्जयत तो एड्रेस िो रिी िै , र्जयतयजं एड्रेस निीं िो पजएंगी। उसे एड्रेस ककए त्रबनज तो इस दे श में खद ु खद ु ज भी चुनजव निीं र्ीत सकतज िै । ईश्वर व्यजविजररक िैं र्जनते िैं ववकट क्स्थयत िै । लेककन िै तो िै । एकजएक उन्िें नजरे की भी यजद िो आई। चुनजव में खड़े िोंगे तो कोई सॉललड सज नजरज भी तो लगेगज। `अबकी बजरी, िरर-

िरर...` र्जंचज-परखज-खरज सज नजरज उन्िें कुछ र्मज भी। लेककन लगज चुनजवी मौसम में कोई अपने बजप पर भी भरोसज निीं करतज िै किर? नजरज पॉपल ु र बनज पजएगज।

बजकी चुनजवी र्रूरतों पर ववचजर ककयज तो लगज चमत्कजरी की आदी र्नतज को कुछ आलौककक हदखज हदयज र्जए तो

कजम बन सकतज िै । किर यजद आयज, चमत्कजरों से र्नतज कज वपंड छुड़जनज िी तो उद्दे श्य िै । किीं चमत्कजर हदखज भी हदए तो अपनी यनक्श्चत िी लशकजयत िो र्जएगी। आयोग कजरा वजई कर दे गज। चुनजव लड़ने के िी अयोग्य िो र्जएंगे। िजय रजम! भगवजन ववपदज में डूबे भक्तों कज कल्यजर् निीं कर सकते िैं। अवतजर िी उद्दे श्य की पयू ता निीं कर पज रिज िै ।

भगवजन ने िे ! ईश्वर वजली मर ु ज में अपने िजथ ऊपर उठज हदए। ऊपर से सबसे दजगी उम्मीदवजर कज चुनजवी पैम्िलेट िजथों में आ चगरज- सच्चे-ईमजनदजर को चयु नए। दणु खयों कज कल्यजर् क्र्सकज लमशन- दे श चलजने कज क्र्समें ववर्न िो। धोखज मत खजइए, ऐसे एकमजि उम्मीदवजर के यनशजन पर बटन दबजइए।

भगवजन समझ गए वे भगवजन िो सकते िैं, नेतजचगरी उनके बस की बजत निीं िै । तबसे, भक्त िर पजंच बरस में उम्मीद लगजते िैं बेचजरों को पतज निीं िै भगवजन कभी नेतज के रूप में अवतररत निीं िोने वजले..! - अनर् ु खरे

8860427755 साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


अपने-अपने गौरव द्वीप! - नीरज बधवार बुक स्टॉल पर ककतजबें पलटते िुए अचजनक मेरी नज़र एक मैगज़ीन पर पड़ती िै । ऊपर ललखज िै , ‘गीतग़ज़लों की सवाश्रेष्ठ िैमजलसक पत्रिकज’। ‘सवाश्रेष्ठ िैमजलसक पत्रिकज’, ये बजत मेरज ध्यजन खींचती िैं। स्वमजल्यजपार् कज ये अंदजज़ मुझे पसंद आतज िै । मैं सोचने लगतज िूं कक पिले तो बजज़जर में गीत-ग़ज़लों

की पत्रिकजएं िैं िी ककतनी? उनमें भी ककतनी िैमजलसक िैं? बजवर्ूद इसके, प्रकजशक ने घोर्र्ज कर दी कक उसकी पत्रिकज ‘सवाश्रेष्ठ’ िै । अपने मजं-बजप की इकलौती औलजद िोने पर आप ये दजवज तो कर िी सकते िैं कक आप उनकी सबसे वप्रय संतजन िैं! र्ीने के ललए अगर वजकई ककसी सिजरे की ज़रूरत िै तो कौन कितज िै कक ग़लतफ़िमी सिजरज निीं बन सकती। गौरवपूर्ा र्ीवन िी अगर सिल र्ीवन िै , तो उस गौरव की तलजश भी तो व्यक्क्त यज संस्थज को खुद िी करनी िोती िै । दै यनक अख़बजरों में तो ये क्स्थयत और भी ज़्यजदज रोचक िै । एक ललखतज िै , भजरत कज सबसे बड़ज समजचजर-पि समूि। दस ू रज कितज िै , भजरत कज सबसे तेज़ी से बढ़तज अख़बजर। तीसरज कितज िै , सबसे अचधक संस्करर्ों वजलज अख़बजर। और र्ो अख़बजर आकजर, तेज़ी और संस्करर् की ये लड़जई निीं लड़ पजते वो इलजकजई धौंस पर उतर आते िैं। ‘िररयजर्ज कज नम्बर वन अख़बजर’ यज ‘पंर्जब कज नम्बर दो अख़बजर’। एक ने तो िद कर दी। उस पर ललखज आतज िै -िलजं-िलजं रजज्य कज ‘सबसे ववश्वसनीय अख़बजर’। अब आप नजप लीक्र्ए ववश्वसनीयतज, र्ैसे भी नजप सकते िैं। कई बजर तो क्स्थयत और ज़्यजदज मज़ेदजर िो र्जती िै र्ब एक िी इलजके के दो अख़बजर खुद को नम्बर एक ललखते िैं। मैं सोचतज िूं अगर वजकई दोनों नम्बर एक िैं तो उन्िें ललखनज चजहिए ‘संयुक्त रूप से नम्बर एक अख़बजर’! खैर, ये तो बजत िुई पढ़जने वजलों की। पढ़ने वजलों के भी अपने गौरव िैं। मेरे एक पररचचत िैं, उन्िें इस बजत कज बिुत

ग़म ु जन िैं कक उनके यिजं पजंच अख़बजर आते िैं। वो इस बजत पर िी इतरजते रिते िैं कक उन्िोने िलजं-िलजं को पढ़ रखज िै । प्रेमचन्द को पूरज पढ़ लेने पर इतने गौरवजक्न्वत िैं क्र्तनज शजयद खुद प्रेमचन्द वो सब ललखकर निीं िुए िोंगे। अक्सर वो र्नजब कोफ्त पैदज करते िैं मगर कभी-कभी लगतज िै कक इनसे ककतनज कुछ सीखज र्ज सकतज िै । बड़े-बड़े रचनजकजर बरसों की सजधनज के बजद भी बेचैन

रिते िैं कक कुछ कजलर्यी निीं ललख पजए। घंटों पढ़ने पर भी किते िैं कक उनकज अध्ययन कमज़ोर िैं। और ये र्नजब घर पर पजंच अख़बजर आने से िी गौरवजक्न्वत िैं! सजढ़े चजर सौ रूपये में इन्िोंने र्ीवन की सजथाकतज ढूंढ ली। पढ़नज यज ललखनज तो किर भी कुछ िद तक यनर्ी उपलक्ब्ध िो सकतज िै , पर मैंने तो ऐसे भी लोग दे खे िैं र्ो र्ीवन भर दस ू रों की महिमज ढोते िैं। एक श्रीमजन अक्सर ये किते पजए र्जते िैं कक मेरे र्ीर्जर्ी तो एसपी िैं। मैं सोचतज िूं...परीक्षज र्ीर्ज ने पजस की। पढ़जयज उनके मजं-बजप ने। ररश्तज त्रबचौललए ने करवजयज। शजदी बिन की िुई और इन्िें ये सोच रजत भर नींद निीं आती कक मेरे र्ीर्जर्ी तो एसपी िैं। िर र्जनने वजले पर ये अपने र्ीर्ज के एसपी िोने की धौंस मजरते िैं। पररचचतों कज बस चले तो आर् िी

इनके र्ीर्जर्ी कज यनलंबन करवज दें ! उन्िें दे खकर मझ ु े अक्सर लगतज िै कक पढ़-ललख कर कुछ बन र्जने से इंसजन अपने मजं-बजप कज िी निीं, अपने सजले कज भी गौरव बन सकतज िै ! सच...सिलतज के कई बजप िी निीं, कई सजले भी िोते िैं। पद के अलजवज पोस्टल एड्रेस में भी मैंने बिुतों को आत्मगौरव ढूंढते पजयज िै । सिजरनपरु में रिने वजलज शख़्स दोस्तों के बीच शजन से बतजतज िै कक उसके मजमजर्ी हदल्ली रिते िैं। हदल्ली में रिनज वजलज व्यक्क्त सीनज ठोक के कितज िै कक उसके दरू के चजचज कज

ग्रेटर कैलजश में बंगलज िै । उसके विी चजचज अपनी सोसजयटी में इस बजत पर इतरजते िैं कक उनकी बिन कज बेटज यूएस में सैटल्ड िै । कभी-कभी सोचतज िूं तो लगतज िै कक र्ब आत्मववश्लेर्र् में ईमजनदजरी की र्गि निीं रिती तब ‘र्गि’ भी आत्गौरव बन र्जती िै । किर वो भले िी हदल्ली में रिने वजले दरू के चजचज की िो, यज किर यूएस में सैटल्ड बिन के बेटे की! शून्य में क्स्थत गौरव-द्वीप को अपनी सच्ची -नीरर् बधवजर

साहित्यम्

क्यज अपने इस सुदरू यज

उपलक्ब्धयों के मिजद्वीप से र्ोड़ दे ने की इच्छज निीं िोती इन मिजनभ ु जवों को?

- िोन- 9958506724

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


आम आदमी और मसीहा - कमलेश पाण्डेय वो भी एक आम आदमी िी िै , इसमें संदेि की कोई गर् ुं जईश निीं हदखती. इस वर्ि के अलजवज कक सीर्न के सबसे आम िल आम को वो खूब पसंद करतज िै , और भी कुछ तथ्य उसे आम लसद्ध करते िैं. थोड़ज क्यज ठीक-ठजक सज पढ़ र्जने के बजद, उसने एक अदद सरकजरी नौकरी भी र्ुटज ली िै

और गरीबी रे खज को िलजंग कर बड़ी िी मद्धम चजल से मध्यम वगा के प्रवेश द्वजर की ओर बढ़

रिज िै . अपने तमजम आम भजई लोगों के सजथ वो रे ल-बस और िुटपजथ पर चलतज िै और शजम को

अपने दो कमरों के घर में बिीस इंच के टीवी पर दे श-दयु नयज के िजल सन ु कर उिेक्र्त िो र्जतज िै .

किर रोटी खजकर अपने घर-खचों और ककश्तों-ववस्तों की चचंतजएं ओढ़ कर सो र्जतज िै . गजिे -बगजिे चजय सड़ ु कते िुए वो अपने हदमजग में संचचत परु जने और टीवी अखबजर से अक्र्ात नए-तजज़े ज्ञजन कज कॉकटे ल अपने सियोचगयों के सजथ बिसों में बजाँटतज िै . दयु नयज अपनी चजल से चलती रिती िै और वो अपनी.

पर एक मजयने में उसकज आम िोनज खजसज ख़जस िै . आम आदमी िोने के नजते उसके ख़जस िक िै . दे श के िुक्मरजन उस पर नज़रे -करम रखते िैं और उसी को ध्यजन में रख कर दे श चलजने की नीयतयजाँ बनजते िैं. उसे सब सजथ लेकर चलनज चजिते िैं. कोई अपनज िजथ पकडजतज िै तो कोई खद ु िी उस र्ैसज िोने कज दजवज करतज िै . नजरों-पोस्टरों में लसिा उसी के

कल्यजर् की बजत िोती िै और उनपर र्ो चेिरज आम-आदमी बतज कर चचपकज िोतज िै , िू-ब-िू उसी कज िोतज िै . वोट की अपील उसी से की र्जती िै र्ो वो दे भी दे तज िै . उसके िजथों बनजई गई सरकजरें र्ो भी कजम करती िै - भलज उसी कज िुआ मजनज र्जतज िै . पर र्जने क्यों, पजंच सजल बीत र्जने के बजद वि आम कज आम िी रि र्जतज िै, िजाँ, मि ु जवरे वजली गठ ु ललयों के दजम कोई और िी ले र्जतज िै . सजल-दर-सजल, दशक-दर-दशक ये आम आदमी अपनी खोल में बैठज रितज िै , र्ो एक ब्लैक-िोल सरीखज शन्ू य िै क्र्समें

आणख़र उसकी ऊर्जा, प्रयतभज, आशजएं-आकजंक्षजएं आपस में वपस-घल ु कर ितजशज कज घोल बन र्जती िैं. वि उदजस-सज िोकर मत्ु य-ु सी एक सर् ु प्ु तजवस्थज में उतर र्जतज िै . उस नीद में वि बजर-बजर “कुछ भी निीं िो सकतज- कुछ भी निीं!”

बडबडजतज रितज िै . किर एक हदन ये आम आदमी अंगडजई लेतज उठ खड़ज िोतज िै . आाँखे मलकर पिले इधर-उधर दे खतज

िै कक आणखर उसे ककस आवजज़ ने चौंकज हदयज. प्रजयुः चौंकजने वजलज कोई आन्दोलन िोतज िै , क्र्सकज एक अगआ िोतज ु िै और पजंच-दस वपछ्लग्गय ु े िोते िैं.

उसे अगआ के पीछे एक आभज-मंडल कज आभजस िोतज िै . कोई अवतजर, मसीिज यज तजरर्िजर िै ये तो! उसके आगे-पीछे ु

िज़जरों उस र्ैसे आम र्न मट् ु हठयजाँ बजंधे नजरे लगज रिे िोते िैं- उम्मीदों से भीगे और उस मसीिे की वजर्ी को पीते. ये

मंर्र दे ख वो परू ी तरि र्जग उठतज िै और “शजयद कुछ िो सकतज िै ” बद ु बद ु जतज उस भीड़ कज हिस्सज बन कर अगआ ु के पीछे चल पड़तज िै . वो लशद्दत से यकीन करने लगतज िै कक यिी अगआ वो शख्स िै र्ो उसे उसके ब्लैक-िोल से ु बजिर लज सकतज िै . ये यकीन उसे अपनी हदनचयजा और चचंतजओं को भल ू ने और लजहठयजं तक खजने की शक्क्त दे तज िै . वि चलतज र्जतज िै, मगर पीछे िी बनज रितज िै , बढ़कर उस अगआ से कदम निीं लमलजतज, उसके मि ु ुं में अपनी बजतें

डजलने की हिमजक़त निीं करतज. उसे मसीिज अपनी अंतरजत्मज में घस ु ज िुआ और सब कुछ र्जनतज प्रतीत िोतज िै . किर मसीिज उसके भरोसे को सीढ़ी बनज कर ऊपर चढ़ र्जतज िै, चुनजव र्ीततज िै और उसे लक्ष्य बनज कर कल्यजर् के

कजम में लग र्जतज िै . पर, र्जने क्यों कुछ रोज़ मसीिे को यनिजरने के बजद वो किर ितजश िोने लगतज िै . आणखर वो

अवसजद के अपने परु जने खोल में घस ु कर बैठ र्जतज िै - किर से लम्बी नींद सोने और ककसी अगले मसीिे की पक ु जर पर र्जगने को. क्यज आम आदमी और मसीिे के इस अंतसांबध ं को िी लोकतंि किते िैं? कमलेश पजण्डेय- 9868380502 साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


संस्मरि गरु ु की तलाश - प्राि शमा​ा र्ब मैं ग्यजरि - बजरि सजल कज थज तब मेरी रूचच स्कूल की पढ़जई में कम और कफ़ल्मी गीतों को इकठ्ठज करने और गजने में अचधक थी। नगीनज, लजिौर , प्यजर की र्ीत, सबक़

, बजज़जर ,नजक्स्तक, अनजरकली , पतंगज , समजचध , मिल , दल ु जरी इत्यजहद किल्मों के गीत मझ ु े ज़बजनी यजद थे। स्कूल से आने के बजद िर समय उन्िें रे ड़डयो पर सन ु नज और गजनज अच्छज लगतज थज। नई सड़क, हदल्ली में एक गली थी - र्ोगीवजड़ज। उस गली में एक

िलवजई की दक ू जन पर सजरज हदन रे ड़डओ बर्तज थज। घर से र्ब िुरसत लमलती तो मैं गीत

सन ु ने के ललए भजग कर विजाँ पिुाँच र्जतज थज। किल्मी गीतों को गजते - गजते मैं तक ु बंदी करने लगज थज और उनकी तज़ों पर कुछ न कुछ ललखतज रितज थज। ` इक हदल के टुकड़े

िज़जर िुए , ` मैं क्ज़ंदगी में िरदम रोतज िी रिज िूाँ ` र्ैसे कफ़ल्मी गीतों के मख ु ड़ों को मैंने अपने शब्दों में यूाँ ढजल ललयज थज --ऐ सजर्न , तेरज प्यजर लमलज र्ैसे मझ ु को र्ैसे मझ ु को संसजर लमलज , मैं क्ज़ंदगी में खलु शयजाँ भरतज िी रिूाँगज , भरतज िी रिूाँगज , भरतज िी रिूाँगज , मैं क्ज़ंदगी को रोशन करतज िी रिूाँगज। चाँ कू क ककसीने मेरे मन में यि बजत भर दी थी कक गीत-कववतज ललखने वजले भजंड िोते िैं और अच्छे घरजनों में उन्िें बरु ी नज़र से दे खज र्जतज िै इसललए शरू ु - शरू ु में मैं बजऊ र्ी और बी र्ी से लक ु - यछप कर कववतज करतज थज और उन्िें अपने बस्ते और संदक ू में संभजल कर रखतज थज। धीरे - धीरे ` कवव भजंड िोते िैं ` वजली भजवनज मेरे हदमजग से यनकल गई। मैंने दे खज कक बजऊ र्ी और बी र्ी तो कववतज प्रेमी िैं। बी र्ी को पंर्जब के अनेक लोक गीत यजद थे ढे रे ढे रे ढे रे

तेरे - मेरे पयजर हदयजाँ

गलजाँ िोर् संतजं दे डेरे सोिर्ी सरू त दे

पिली रजत दे डेरे ( चगध्दज ) छं द परजगे आइये - र्जइए छं द परजगे आलज

अकलजं वजली सजली मेरी सोिर्जं मेरज सजलज

चजाँद परजगे आइये - र्जइए छं द परजगे केसर

सजस तजं मेरी पजरबती

सिुरज मेरज परमेशवर ( वववजि पर वर द्वजरज गजयज र्जने वजलज छं द ) ये कुछ ऐसे लोक

गीत िैं क्र्न्िें बी र्ी उत्सवों और वववजिों

पर अपनी सिे ललयों के सजथ लमल कर गजती थीं। किर

भी मेरे मन में गीत - कववतज को लेकर उनकज भय बनज रितज थज। साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

मैं निीं चजितज थज कक उनके गस् ु से कज नज़लज

www.saahityam.org


मझ ु पर चगरे और शेरनी की तरि वे मझ ु पर दिजड़ उठें - ` तेरे पढ़ने - ललखने के हदन िैं यज कववतज करने के ? ` बजऊ र्ी सनजतन धमा प्रयतयनचध सभज के प्रमख ु वक्तज थे। चाँ कू क वे मजस में बीस हदन घर से बजिर रिते थे इसललए उनकज भय मेरे मन में इतनज निीं थज क्र्तनज बी र्ी कज। ,

बढ़ती उम्र के सजथ - सजथ मेरी कववतजओं में कुछ - कुछ पररपक्वतज आनी शरू ु िो गई थी। सोलि - सि​ि कज

मैं िो गयज थज।

यौवन कज नयज - नयज र्ोश थज। कइयों की तरि मझ ु में भी यि गलति​िमी पैदज

िो गई कक मझ ु में भरपरू प्रयतभज

िै और कववतज लेखन में मैं कजललदजस , तल ु सीदजस यज सरू दजस से कतई कजम निीं िूाँ। चाँ कू क मैं अच्छज गज

लेतज थज

और रोज़ गज - गज कर कुछ न कुछ ललखतज रितज थज इसललए मैं भी मिजकवव िोने के सलोने सपने संर्ोने लगज थज। मेरी िर रची कजव्य - पंक्क्त मझ ु े बहढ़यज हदखने लगी थी और मैं उसको अपनी अमल् ू य यनचध समझने लगज थज। मेरे

यजर - दोस्त मेरी कववतजओं के ईष्यजालु यनकले। मेरी सब की सब कववतजओं को कूड़ज - कचरज किते थे। वे सझ ु जव दे ते थे - `कवव बननज छोड़ और पढ़जई - वढ़जई में ध्यजन दे । ` मैं उनके सझ ु जव को एक कजन से सन ु तज थज और दस ू रे कजन

से यनकजल दे तज थज। भलज कोई रजत - हदन के कड़े पररश्रम से अक्र्ात कमजई भी कूड़ेदजन में िैं कतज िै ? चाँ कू क मेरी िर रचनज मेरी दृक्ष्ट में बहढ़यज िोती थी इसललए मझ ु े बड़ज क्लेश िोतज थज र्ब कोई दोस्त मेरी कववतज को मिर् तक ु बंदी कि कर नकजरतज थज। शजयद मैं सोलि सजल कथज र्ब मैंने यि कववतज ललखी थी एक नहदयज बि रिी िै और तट से कि रिी िै

तम ु न िोते तो न र्जने रूप मेरज कैसज

िोतज

क्ज़ंदगी मेरी कदजचचत

उस मस ु जकिर सी िी िोती र्ो भटक र्जतज िै अपने रजस्ते से

मैं तम् ु िजरी िी ऋर्ी िूाँ तम ु ने मझ ु को कर यनयंत्रित सीमज में बिनज लसखजयज

तम ु िो र्ैसे शजंत - संयम वैसज िी मझ ु को बनजयज

मैंने कववतज दोस्तों को सन ु जयी। सोचज थज

र्जएगी और उछल

कक इस बजर ख़ूब दजद लमलेगी। सब के चेिरों पर खुशी की लिर दौड़

कर वे कि उठें गे - ` वजि क्यज बजत िै ! कववतज िो तो ऐसी िो !! तन ू े तो अच्छे - अच्छे कववयों

की छुट्टी कर दी िै । भजई , मजन गए तेरी प्रयतभज को। ` लेककन मेरज सोचनज गलत सजत्रबत िुआ। ककसी ने मझ ु े घजस तक निीं डजली। एक ने तो र्जते - र्जते यि कि कर मेरज मन छलनी - छलनी कर हदयज थज - ` कववतज करनज तेरे बस की बजत निीं िै । बेितर िै कक गल् ु ली - डंडज खेल कर यज गड् ु डी उड़जयज कर। ` दस ू रे दोस्त भी उसकज कटजक्ष सन ु कर मझ ु पर िं स पड़े थे। मेरे दोस्तों के उपेक्षज भरे व्यविजर के बजवर्द ू भी कववतज के प्रयत मेरज झक ु जव बरक़रजर रिज।

ये दीगर बजत िै कक ककछ दे र के ललए मझ ु में कववतज से ववरक्क्त पैदज िो गई थी। किते िैं न - ` छुटती निीं शरजब माँि ु से लगी िुई। `

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


प्रभजकर में प्रवेश पजने के बजद कववतज करने की मेरी आसक्क्त किर से पैदज िो गई। कजव्य संग्रि के एक दोिे ने मझ ु में उत्सजि भर हदयज। दोिज थज -

गरु ु गोत्रबंद दोनों खड़े ,कजके लजगाँू पजाँय

बललिजरी गरु ु आपर्ो सतगरु ु हदयो बतजय मेरे मन में यि बजत कौंध गई कक कववतज के ललए गरु ु की लशक्षज अत्यजवश्यक िै । कववतज कज व्यजकरर् उसी

से र्जनज र्ज सकतज िै , कववतज के गर् ु - दोर् उसी से ज्ञजत िो सकते िैं। एक अन्य पस् ु तक से मझ ु े सीख लमली कक

कववतज सीखने के ललए गरु ु कज ज्ञजन प्रजप्त करनज आवश्यक तो िै िी , अध्ययन , परख और ववचजर -ववमशा भी अत्यजवश्यक िै । मैं गरु ु की तलजश में र्ट ु गयज।

एक हदन कवववर दे वरजर् हदनेश मेरे बजऊ र्ी से लमलने के ललए िमजरे घर में आये थे। मेरे लसवजय घर में

कोई निीं थज। बजऊ र्ी से उनकज परु जनज मेल थज।

भजरत ववभजर्न के पव ू ा लजिौर में कवव - सम्मेलनों में िररकृष्र्

`प्रेम` , उदय शंकर भट्ट , शम्भू नजथ `शेर्` , दे वरजर् ` हदनेश` इत्यजहद कववयों की सकक्रय भजगीदजरी रिती थी।

प्रोिेसर वलशष्ठ शमजा केनजम से ववख्यजत बजऊ र्ी सनजतन धमा प्रयतयनचध सभज से र्ड़ ु े िुए थे और पंर्जब में हिन्द ू धमा के प्रचजर - प्रसजर के सजथ - सजथ हिंदीकज भी प्रचजर - प्रसजर करने वजलों में एक थे। चाँ ूकक वे कई कवव सम्मेलनों के सयोर्क थे इसललए पंर्जब के प्रजय सभी हिंदी कववयों से उनकी र्जन - पिचजन थी।

दे वरजर् हदनेश दरू से बजऊ र्ी को लमलने के ललए आये थे। शजयद वे मजलवीय नगर में रिते थे और िम लजर्पत

नगर में । वे कवव कम और पिलवजन अचधक हदखते थे। खूब भजरी शरीर थज उनकज। वे दरवजज़े के सिजरे कुछ ऐसे खड़े थे कक मझ ु े लगज कक थके - थके िैं। मैं उनसे एक - दो बजर पिले भी थोड़ी - थोड़ी दे र के ललए लमल चुकज थज। उनको

अंदर आने के ललए मैंने किज। कुसी पर बैठते िी उन्िोंने चैन की सजंस ली। हिंदी के एक प्रयतक्ष्ठत कवव दे वरजर् हदनेश मेरे गरु ु बन र्जएाँ तो व्यजरे - न्यजरे िो र्जएाँ मेरे तो। इसी सोच से मेरे मन में खश ु ी के लड्डू िूटने लगे। उन्िोंने मझ ु े अपने पजस वजली कुसी पर बैठने के ललए किज। मैं रोमजंचचत िो उठज। अंधे को दो आाँखें लमल गईं। बजतचीत कज लसललसलज शरु िुआ। वे बोले -

` ककस क्लजस में पढ़ते िो ? ‘ - र्ी , प्रभजकर कर रिज िूाँ। - आगे क्यज करोगे ?

- र्ी , अभी कुछ सोचज निीं िै । - तम् ु िजरज शौक़ क्यज िै ?

- र्ी , कववतज गीत ललखतज िूाँ। - तम ु भी पजगल बननज चजिते िो ? - क्यज कवव पजगल िोते िैं ? - लोग तो यिी किते िैं।

- अगर कवव पजगल िोते िैं तो मझ ु े पजगल बननज स्वीकजर िै । वे िाँस पड़े। िाँसते - िाँसते िी मझ ु से किने लगे - ` चलो , अब तम ु अपनज कोई गीत सन ु जओ। ` मैं उमंग में

गज उठज -

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


घघ ूाँ ट तो खोलो मौन वप्रये

क्यों बजर - बजर शरमजती िो क्यों इतनज तम ु इतरजती िो मैं तो दशान कज प्यजसज िूाँ

क्यों मझ ु से आाँख चुरजती िो मैंने क्यज िै अपरजध ककये

घघ ंू ट तो खोलो मौन वप्रये

लमलने की मधऋ ु तु िै आई

क्यों तर्ती िो तम ु पिुनजई अब लजर् काँु आरी छोड़ो तम ु आतरु िै मेरी तरुर्जई

कब से बैठज िूाँ आस ललए वे कवव िैं घघ ूाँ ट तो खोल मौन वप्रये

गीत सन ु कर दे वरजर् हदनेश कड़े शब्दों में बोले

- ` दे खो , तम् ु िजरी उम्र अभी पढ़ने की िै । कववतज - गीत

तो तम ु पढ़जई खत्म िोने के बजद भी ललख सकते िो। इनमें अपनज समय बबजाद मत करो। पढ़जई की ओर ध्यजन दो ,

ख़ूब मन लगज कर पढ़ो। िजाँ , भववष्य में कोई गीत ललखो तो इस बजत कज ध्यजन रखनज कक वि िूिड़ कफ़ल्मी गीत र्ैसज निीं िो। छं दों कज ज्ञजन िोनज चजहिए। ` र्जते - र्जते वे कई नश्तर मझ ु े चभ ु ो गए। उनकी उपदे श भरी बजतें मझ ु े अवप्रय लगीं।

उनकज लिज़ज मेरज ह्रदय छलनी - छलनी कर गयज। सजरी रजत चजरपजई पर मैं करवटें लेतज रिज। सोचतज

रिज कक मेरज गीत उनको िूिड़ कफ़ल्मी गीत र्ैसज क्यों लगज ? मेरे गीत में लय किजाँ भंग िोती िै पढ़जई के सजथ सजथ सजथ कववतज यज गीत की रचनज क्यों निीं की र्ज सकती िै ? आशज की एक ककरर् र्जगी थी कक दे वरजर् हदनेश से कववतज करने में मजगा दशान िोगज वि भी र्जती रिी। कुछ हदनों के बजद मन िल्कज िुआ। अचजनक एक हदन लजर्पत नगर की मजकेट में एक चौबीस - पच्चीस सजल के नौर्वजन लमले। आकर्ाक व्यक्क्तत्व थज उनकज। लम्बे - लम्बे घघ ुं रजले केश थे उनके। रे शमी कुतजा और पजर्जमज उनके चेिरे को चजर चजाँद लगज रिज थज। मेरे पछ ू ने पर उन्िोंने बतजयज कक वे कवव िैं और कई लड़के - लड़ककयों को कववतज करनज लसखजते िैं। मैं उनसे बड़ज प्रभजववत िुआ और कि उठज - ` मझ ु े भी कववतज करनी लसखजइये। ` मझ ु े अपने गले से लगज ललयज। बोले - ` अवश्य लसखजऊाँगज लेककन ------- ` ` लेककन क्यज ? `

` गरु ु दक्षक्षर्ज दे नी पड़ेगी आपको सीखने से ` गरु ु दक्षक्षर्ज ? क्यज दे नज पड़ेगज मझ ु े ?

उन्िोंने

पिले। `

` केवल पचजस रूपये। `

सन ु कर मेरे पसीने छूट गए। पचजस रूपये मेरे ललए बड़ी रकम थी। रोज़ बी र्ी से मझ ु े एक रुपयज

िी लमलतज थज र्ेब खचा के ललए। किर भी मैंने ` िजाँ ` कि दी। पचजस रूपये की गरु ु दक्षक्षर्ज मझ ु े एक सप्तजि में िी दे नी थी। र्ैसे - तैसे मैंने रुपये र्ोड़े। कुछ रुपये मैंने दोस्तों से उधजर ललए

कुछ बी र्ी से झठ ू बोल कर। मैंने रुपये

र्ोड़े िी थे कक उनकी पोल खुल गयी। रोज़ की तरि वि मजकेट में लमले। लमलते िी बोले - ` मैंने एक नयी कववतज ललखी िै । ` मैं सन ु ने के ललए बेतजब िो गयज। वि सन ु जने लगे -

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


परू ब में र्जगज िै सवेरज

दरू िुआ दयु नयज कज अाँधेरज लेककन घर तजरीक िै मेरज पक्श्चम में र्जगी िैं घटजएाँ किरती िैं मदमस्त िवजएाँ र्जग उठो मयख़जने वजलो पीने और -----------

वि ज्यों - ज्यों कववतज सन ू ज रिे थे मैं त्यों - त्यों िै रजन िुए र्ज रिज थज। मैंने उनको बीच मे िी टोक हदयज - ` ये कववतज तो उदा ू के शजयर िफ़ीज़ र्जलंधरी की िै । ` सन ु ते िी वि नौ - दो ग्यजरि िो गए। उफ़ , यिजाँ भी यनरजशज िजथ लगी।

किते िैं कक सच्चज गरु ु अच्छे भजग्य से िी लमलतज िै । मेरज भजग्य अच्छज निीं िै , मझ ु े ऐसज लगज। किर

भी मैं सजिस बटोर कर गरु ु की तलजश में र्ुटज रिज। मैं अपने संदक ू से कववतजओं की कॉपी यनकजल कर ले आयज। बी र्ी ने कॉपी को कई बजर चम ू ज और मजथे से लगजयज। मैं यि सब दे ख कर मन िी मन झूम रिज थज। वि एक सजाँस में

िी कई कववतजयें पढ़ गयीं। उनकी ममतज बोली - ` मेरज लजडलज ककतनज प्रयतभजशजली िै ! एक हदन अवश्य बड़ कवव बनेगज। ` बी र्ी को कववतजओं की कुछे क पाँक्क्तयों में दोर् नज़र आये। र्ैसे नील गगन में तजरे चमके यज

आाँधी में दीपक र्लतज िै

वि नम्रतज से समझने लगीं –

` दे ख बेटे , छं द तो कभी भी ठीक ककयज

र्ज सकतज िै ककन्तु कववतज में अस्वजभजववकतज को दरू करनज कहठन िो

र्जतज िै । सजरी पंक्क्त को िी िटजनज पड़तज िै ।

सोच , क्यज नील गगन में कभी तजरे चमकते िैं ? नीलज गगन सरू र्

के प्रकजश से िोतज िै , रजत के अाँधेरे से निीं। र्ब दीपक िवज में निीं र्ल पजतज तो आाँधी में क्यज र्लेगज ? ` तयनक

ववरजम के बजद वे बोलीं - ` मझ ु े एक बजत यजद आ रिी िै , तझ ु े सन ु जती िूाँ भजरत के बंटवजरे के एक - दो सजल पिले की बजत िै । वज़ीरजबजद ( पजककस्तजन ) में मेरी एक सिे ली थी - रुकसजनज। उन हदनों किल्म रत्न के सभी गीत लोकवप्रय थे। उनमें एक गीत थज - लमल के त्रबछड़ गई अाँणखयजाँ ,

िजय

रजमज लमल के त्रबछड़ गयी अाँणखयजाँ। गीत को ललखज थज

डी एन मधोक ने। लोग उनको मिजकवव किते थे। गीत गजयज थज उस समय की मशिूर गजने वजली र्ौिरज बजई अम्बजले वजली ने। रुकसजनज को गीत के मख ु ड़े पर एतरजज़ थज किने लगी - ` मख ु ड़े में िजय रजमज ने गीत कज सत्यजनजश कर हदयज िै । िजय रजमज की र्गि पर िजय अल्लजि िोनज चजहिए। ` मैंने सोचज कक रुकसजनज अनर्जन िै । मझ ु े उसको समझजनज पड़ज –

` दे ख रुकसजनज , कवव ने रजम के दुःु ख की तरि अाँणखयों के दुःु ख कज वर्ान ककयज िै । क्र्स तरि सीतज के ववयोग कज दुःु ख रजम को सिनज पड़ज थज उसी तरि वप्रयतमज की अाँणखयों को सजर्न की अाँणखयों से लमल के त्रबछुड़ र्जने कज दुःु ख झेलनज पड़ रिज िै । `

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


मैं

दो र्मजतें पढ़ी बी र्ी में एक नयज रूप दे ख रिज थज। वि रूप क्र्सकी मझ ु को तलजश थी।

एक

हदन बी र्ी को बजऊ र्ी से मजलम ू िुआ कक मैं कववतज ललखतज िूाँ। यि बजत दे वरजर् हदनेश ने बजऊ र्ी को बतजयी थी। बी र्ी ने मझ ु े अपने पजस त्रबठज कर बड़ी नम्रतज से पछ ू ज - ` क्यज तू वजकई कववतज ललखतज िै ?` मैंने डरते – डरते `िजाँ

` में अपनज लसर हिलज हदयज। मैंने दे खज - उनकज चेिरज मस् ु करजिट से भर गयज िै । मेरे ह्रदय में संतोर् र्जग उठज। मैंने व्यथा िी कववतज को लेकर अपने ह्रदय में भय पजल रखज थज। बी र्ी के बोल मेरे कजनों में गाँर् ू उठे - ` मेरे लजडले , कोई भजग्यशजली

िी कववतज

को बतजयी िोती। चाँ कू क रिस्य

रचतज िै ।रचतज िै । ` कजश , मैंने कववतज रचने की बजत शरू ु में िी बी र्ी और बजऊ र्ी खोलज थज दे वरजर् हदनेश ने इसललए अब उनकज कद मेरी दृक्ष्ट में बड़ज ऊाँचज िो गयज

थज। बी र्ी कज किनज ज़जरी थज - ` क्यज तू र्जनतज िै कक मैं ककतनी खुश िुई थी र्ब तेरे बजऊ र्ी ने बतजयज कक तू कववतज ललखतज िै । तन ू े आर् तक ये बजत िमसे यछपजई क्यों ? तेरे बजऊ र्ी तझ ु से बड़े नजरजज़ िैं। अच्छज हदखज तो सिी अपनी कववतजएाँ , किजाँ यछपज रखी लजडले की कववतजएाँ। `

िैं तन ू े ? दे ख - पढ़ कर मैं अपनी सिे ललयों से मजन से किूाँगी कक दे खो मेरे

बी र्ी की प्रसन्नतज कज कोई हठकजनज निीं थज। उनके उत्सजिवधाक वचन सन ु कर मझ ु े लगज कक र्ैसे मैंने

कई नए कीयतामजन स्थजवपत कर ललए िैं।

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


कववता / नज़्म शैलेन्द्र

िमसे र्ैसज बने, सब सत्कजर करें गे--

ग़ैर करें बदनजम, न ऐसे कजम करें ग,े

िजाँ, िो र्जए भल ू -चूक तो नजम न धरनज, मजफ़ी दे नज नेतज, मन मैलज मत करनज।

लीडर र्ी, परनजम तम् ु िें िम मज़दरू ों कज,

िो न्यौतज स्वीकजर तम् ु िें िम मज़दरू ों कज; एक बजर इन गन्दी गललयों में भी आओ, घम ू े हदल्ली-लशमलज, घम ू यिजाँ भी र्जओ!

क्र्स हदन आओ चचट्ठी भर ललख दे नज िमको िम सब लेंगे घेर रे ल के इस्टे शन को;

'इन्क़लजब' के नजरों से, र्य-र्यकजरों से-ख़ूब करें गे स्वजगत िूलों से, िजरों से !

दशान के हित िोगी भीड़, न घबरज र्जनज, अपने अनग ु जमी लोगों पर मत झझ ुं लजनज; िजाँ, इस बजर उतर गजड़ी से बैठ कजर पर

चले न र्जनज छोड़ िमें त्रबरलज र्ी के घर ! चलनज सजथ िमजरे वरली की चजलों में,

यज धजरवव के उन गंदे सड़ते नजलों में -र्िजाँ िमजरी उन मज़दरू ों की बस्ती िै,

क्र्नके बल पर तम ु नेतज िो, यि िस्ती िै ! िम तम ु को ले सजथ चलेंगे उस दयु नयज में, सक ु ु मजरी बम्बई पली िै क्र्स दयु नयज में,

यि बम्बई, आर् िै र्ो र्न-र्न को प्यजरी, दे सी - परदे सी के मन की रजर्दल ु जरी !

िम तम ु को ले सजथ चलेंगे उस दयु नयज में, नवयव ु ती बम्बई पली िै क्र्स दयु नयज में,

ककन्त,ु न इस दयु नयज को तम ु ससरु जल समझनज, बन दजमजद न अचधकजरों के ललए उलझनज ।

साहित्यम्

र्ैसे िी िम तम ु को ले पिुाँचेंगे घर में ,

िलचल सी मच र्जएगी उस बस्ती भर में, कजनजिूसी िैल र्जएगी नेतज आए--

गजंधी टोपी वजले वीर ववर्ेतज आए । खद्दर धजरी, आज़जदी पर मरने वजले

गोरों की फ़ौज़ों से सदज न डरने वजले वे नेतज र्ो सदज र्ेल में िी सड़ते थे

लेककन र्ुल्मों के णख़लजफ़ किर भी लड़ते थे । वे नेतज, बस क्र्नके एक इशजरे भर से--

कट कर चगर सकते थे शीश अलग िो धड़ से, क्र्नकी एक पक ु जर ख़न ू से रं गती धरती,

लजशों-िी-लजशों से पट र्जती यि धरती । शजसन की अब बजगडोर क्र्नके िजथों में,

िै र्नतज कज भजग्य आर् क्र्नके िजथों में । कजनजिूसी िैल र्जएगी नेतज आए--

गजंधी टोपी वजले शजसक नेतज आए । यघर आएगी तम् ु िें दे खने बस्ती सजरी,

बजदल दल से उमड़ पड़ेंगे सब नर-नजरी,

पंर्ों पर िो खड़े, उठज बदन, उझक कर, लोग दे खने आवें गे धक्कज-मक् ु की कर । टुकुर-मक ु ु र तजकेंगे तम ु को बच्चे सजरे ,

शंकर, लीलज, मधुकर, धोंडू, रजम पगजरे ,

र्ुम्मन कज नजती करीम, नज्मज बद् ु धन की, अस्सी बरसी गस् ु सेवर बहु ढ़यज अच्छन की ।

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


वे सब बच्चे पिन चीथड़े, लमट्टी सजने, वे बढ़ ू े -बहु ढ़यज, क्र्नके लद चुके ज़मजने,

नज़्म, 'ज़ियारत' – अब्दल ु अहद साि

और यव ु कगर् क्र्नकी रग में गरम ख़ून िै, रि-रि उफ़ न उबल पड़तज िै , नयज खून िै । यघर आएगी तम् ु िें दे खने बस्ती सजरी,

बजदल दल से उमड़ पड़ेंगे सब नर-नजरी,

िे च कजय रे कजनजिूसी यि िैल र्जएगी,

िर्ा क्षोभ की लिर मख ु ों पर दौड़ र्जएगी । िजाँ, दे खो आ गयज ध्यजन बन आए न संकट,

बिुत से लोग मझ ु में मर चुके िैं------; ककसी की मौत को बजरि बरस बीते

ऊाँच-नीच कज र्ैसे उनको ज्ञजन निीं िै ,

अब क्र्न की रे िलत को

बस्ती के अचधकजंश लोग िैं त्रबलकुल माँि ु िट,

कुछ ऐसे िैं के तीस इक सजल िोने आए िैं

नेतजओं के प्रयत अब वि सम्मजन निीं िै ।

इधर कुछ सजन्िे तजज़ज भी िैं

उनकज किनज िै, यि कैसी आज़जदी िै,

िफ़्तों मिीनों के

विी ढजक के तीन पजत िैं, बरबजदी िै,

ककसी की िजदे सजती मौत

और पिन लो खद्दर, दे शभक्त किलजओ ।

बिुत से दब गए मलबे में दीवजर-ए-अनज के आप िी अपनी

तम ु ककसजन-मज़दरू ों पर गोली चलवजओ,

अचजनक बेज़मीरी कज नतीर्ज थी

तम ु सेठों के संग पेट र्नतज कज कजटो,

मरे कुछ रजबेतों की ख़ुश्क सजली में

िमें न छल पजएगी यि कोरी आज़जदी,

कुछ ऐसे भी क्र्नको क्ज़न्दज रखनज चजिज मैंने

यतस पर आज़जदी की सौ-सौ बजतें छजाँटो । उठ री, उठ, मज़दरू -ककसजनों की आबजदी ।

अपनी पलकों पर

िो सकतज िै , कड़वी-खरी किें वे तम ु से,

ख़ुदकुशी करली

लेककन तम ु सिसज उन पर गस् ु सज मत िोनज,

रिे बीमजर मद् ु दत तक मेरे बजयतन के त्रबस्तर पर

मगर ख़ुद को क्र्न्िोंने मेरी नज़रों से चगरजकर

उन्िें ज़रज मतभेद िो गयज िै अब तम ु से,

बचज पजयज न मैं ककतनों को सजरी कोलशशों पर भी

लजएाँगे वे र्नतज कज िी रोनज-धोनज ।

त्रबलजणख़र फ़ौत िो बैठे

वे सब िैं र्ोशीले, ककन्तु अलशष्ट निीं िैं,

घरों में , दफ़्तरों में, मेिकिलों में , रजस्तों पर

करें तम ु से बैर, उन्िें यि इष्ट निीं िै ,

ककतने क़बररस्तजन क़जइम िैं

हिन्द,ू मक्ु स्लम, लसख, पजरसी, सभी लमले िैं ।

मैं क्र्न से रोज़ िी िोकर गज़ ु रतज िूाँ

वे तो दयु नयज बदल डजलने को यनकले िैं,

किर, र्ब दजवत दी िै तो सत्कजर करें ग,े ग़ैर करें बदनजम, न ऐसे कजम करें ग,े

क्ज़यजरत चलते किरते मक़बरों की रोज़ करतज िूाँ अब्दल ु अिद सजज़ 9833710207

िजाँ, िो र्जए भल ू -चक ू तो नजम न धरनज, मजफ़ी दे नज नेतज, मन मैलज मत करनज साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


सोमाललया – हूबनाथ पाण्डेय

सोमजललयज वि भी निीं

र्िजाँ बड़ी बड़ी मल् ु कों की

मल् ु कों से भी बड़ी कम्पयनयजाँ खरीद रिी िैं उपर्जऊ ज़मीने कौड़ड़यों के मोल

र्िजाँ उगें गी लिलिजती िसलें बंदक ू ों के सजये में

दयु नयज भर के बजज़जरों के ललए तो किर किजाँ िै सोमजललयज सोमजललयज वि निीं र्ो लट ू लेतज िै

ज़िजर्ों के ज़िजर्

समंदर के खतरनजक सीने पर सोमजललयज वि भी निीं

र्िजाँ उगती िैं बंदक ू ें – लमसजइलें उन ज़मीनों पर

र्िजाँ उगनी थी ज्वजर – मक्के की लिलिजती िसलें

सोमजललयज वि भी निीं

र्िजाँ र्जती िैं संयक् ु त रजष्र संघ की शजंयत सेनजएाँ

और घर लौटते िैं

शजंयत सेनज के र्जंबजज़ लसपजिी डॉलसा और एड्स लेकर सोमजललयज वि भी निीं क्र्सके ललए चचंयतत िै सजरी दयु नयज

पतज निीं क्यों

सोमजललयज वि भी निीं

र्िजाँ चजलीस िीसदी बच्चे

सोमजललयज बच्चों की लजशों के नीचे

दबी घजस की पवियों कक िररयजली में वक़्त से पिले बढ ू ी िो चुकी

िड्ड़डयों के बोनमैरो में िै सोमजललयज एड्स बजंटती औरतों के क्र्स्म के

ककसी कोने में दब ु कज िै सोमजललयज ज़िरीली िवज में िैले वजष्पकर्ों में यछपज िै सोमजललयज और संघहटत िोकर बरसने कज इंतज़जर कर रिज िै सोमजललयज

अफ्रीकज मिजद्वीप कज एक मल् ु क निीं िमजरे अपने मल् ु क में भी

िो सकतज िै एक सोमजललयज रजख बन चुकी ज़मीन को

भरु भरु ी और उपर्जऊ बनजने में र्ुटे केंचुए के पेट के भीतर यछपज िै सोमजललयज । िूबनजथ पजण्डेय 9324207993

एक वर्ा की लम्बी उम्र तक पिुाँचने से पिले लसिा एक ग्लजस सजि पजनी चट ु की भर नमक और शक्कर के आभजव में मर र्जते िैं

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


सपनों की मौत – सोनी ककशोर लसंह

ग्रेववटॉन – धमेन्द्र कुमार ‘सज्जन’

मेरी आाँखों ने दे खे थे िर्जरों सपने

यकीनन ग्रेववटॉन र्ैसज िी िोतज िै

सब िवज में उड़ते रिते

तभी तो ये दोनों मोड़ दे ते िैं

लोककन उन सपनों की निीं थी र्मीन रजतों को आकर चुपचजप

मेरी नींद में खलल डजलते।

आाँखें दे ख लेतीं एक िी रजत में

प्रेम कज कर्

हदक्कजल के धजगों से बन ु ी चजदर कम कर दे ते िैं समय की गयत

कईकई सपने-

इन्िें कैद करके निीं रख पजतीं

किर सब ु ि तक लमट र्जतज उनकज वर्द ू

ये ररसते रिते िैं

और रं गीन िो र्जती आाँखें।

इस र्न्म और मत्ृ यु के बीच िोती

स्थजन और समय की ववमजएाँ

हदन की आिट, रोर्मरजा कज कोलजिल।

एक ब्रहमजंड से दस ू रे ब्रहमजंड में

मेरी आाँखों में आकर ली थी अंयतम सजाँसे

उन स्थजनों तक

िर सपने ने

उनकी मत्ृ यु पर निीं चगरे थे आाँसू क्योंकक उस मौन मौत के वक्त

ले र्जते िैं आकर्ार्

र्िजाँ कवव की कल्पनज भी निीं पिुाँच पजती

बंद िोती थी पलकें।

अब तक ककये गये सजरे प्रयोग

और स्वप्निं तज कज अपरजधबोध छोड़,

इन दोनों कज कोई प्रत्यक्ष प्रमजर्

रोर् मन में मरे सपनों की चचतज र्लती। आाँखे किर ढूाँढ़ लेती एक नयज सपनज।

कभी इसी उधेड़बन ु में कट र्जतज हदन कक िर सपनज अनजथ थज

यज किर मेरी आाँखों में आकर िो गयज थज अपर् ू ,ा अनजथ? सोनी ककशोर लसंि 8108110152

साहित्यम्

असिल रिे

खोर् पजने में लेककन

ब्रहमजंड कज कर्-कर्

इनको मिसस ू करतज िै यकीनन

ग्रेववटॉन र्ैसज िी िोतज िै प्रेम कज कर् धमेन्र कुमजर सज्र्न 9418004272

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


आस्थजओं से सदज इस भजाँयत यहद ललपटे रिोगे,

मयङ्क अवस्थी

लघु कथजओं के कथजनक की तरि लसमटे रिोगे !!

(एक नज़्म अपनी बिन प्रीयत के नजम ..)

पष्ु प बन अवपात िुये तो पददललत बन त्यज्य िोगे , गर बनो पजर्जर् अववचल पज् ू य बन स्तत्ु य िोगे !!

संशयों के शिर में , अिवजि बन र्जओ निीं तो, अधासत्यों की तरि न ललखे िुये न लमटे रिोगे !! मेरे िक़ में वो इक शम्म: र्लती रिी

लजलसज की वेश्यज को

रोशनी मझ ु कों रजतों में लमलती रिी

स्वजथा की महदरज वपलजओ, और मयजादज सती को

रच रिे थे अाँधेरे नई सजक्र्शें

िो सके तो भल ू र्जओ !!

ज़ख्मे-हदल पर नमक की िुईं बजररशें इस कदर थज लशकंर्े में मैं वक्त के

मस्तरजमो की तरि मदमस्त रिनज चजिते िो ?!!

यज ववरजगी िजथ में , आध्यजत्म के चचमटे रिोगे !!!

खुदकुशी कर रिी थीं मेरी ख्वजहिशें

र्ड़ सदज िी गम ु रिी

उन णखज़जओं में नरचगस मिकने लगी

तजरीि िूलों की िुई िै , िूल किते िैं , िमजरी

एक लौ र्गमगज कर कसकने लगी मेरे ख्वजबों में किर रं ग भरते िुये आाँचधयों के मक ु जत्रबल दिकने लगी

र्ड़ बड़ी िी र्ड़ रिी िै ,

छन्द के उद्यजन कज वैभव तम् ु िीं में शेर् िो यहद,

मक् ु त छन्दों की तरि ववर्बेल बन चचपटे रिोगे !!!

मेरे िक मे वो इक शम्म: र्लती रिी रोशनी मझ ु को रजतों में लमलती रिी

सक्ृ ष्ट के संतजप ककतने िम रिे उर में छुपजये

इक लसयजिी से ललपटी थी ये रिगज़ ु र

तजप कज वचास्व थज लेककन निी आाँसू बिजये

उसने मझ ु को उर्जलज हदयज तजसिर

गल न र्जते थे क्षणर्क सी ऊष्मज में िम समर की

कुछ अाँधेरे यनगल िी गये थे मझ ु े

िम न थे हिमशैल िम पजर्जर् थे

मैं न िोतज किीं, वो न िोती अगर

दृक्ष्टिीनों ने िमें अववचल किज थज , र्ड़ किज थज

क्र्स्म उसकज र्लज र्जाँ वपघलती रिी

यि निीं दे खज कक िम यनललाप्त थे क्स्थर अगर थे

कबा अपने बदन कज यनगलती रिी

दे रिे थे हदशज औ आधजर िम िी यनम्नगज को

मोम के हदल में इक कच्चज धजगज भी थज

पर यनययत के खेल , िम पजर्जर् थे

तंज़ सि कर िवजओं के र्लती रिी

वेदनज अपनी सघन थी , ऊष्मज उर में बिुत थी िम मनर् ु की तक्ु ष्टयों के प्रथम पोर्क भी बने थे

मेरे िक में वो इक शम्म: र्लती रिी रोशनी मझ ु को रजतों में लमलती रिी

हदख रिे अनगढ ववभव थज मयू तायों कज आत्मज में िम न थे ववर् बेल िम पजर्जर् थे

मयंक अवस्थी ( 07897716173 & 08765213905) साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


गीत – नवगीत

िर ज़ोर र्ुल्म की टक्कर में , िड़तजल िमजरज नजरज िै ! तम ु ने मजाँगे ठुकरजई िैं, तम ु ने तोड़ज िै िर वजदज

छीनी िमसे सस्ती चीज़ें, तम ु छं टनी पर िो आमजदज तो अपनी भी तैयजरी िै, तो िमने भी ललकजरज िै

िर ज़ोर र्ुल्म की टक्कर में िड़तजल िमजरज नजरज िै ! शैलेन्द्र िैं सबसे मधरु वो गीत क्र्न्िें िम ददा के सरु में गजते िैं

र्ब िद से गज़ ु र र्जती िै ख़ुशी आाँसू भी छलकते आते िैं िैं सबसे मधुर...

कजाँटों में णखले िैं िूल िमजरे रं ग भरे अरमजनों के

नजदजन िैं र्ो इन कजाँटों से दजमन को बचजए र्जते िैं िैं सबसे मधुर...

र्ब ग़म कज अन्धेरज यघर आए समझो के सवेरज दरू निीं

िर रजत कज िै पैगजम यिी तजरे भी यिी दोिरजते िैं िैं सबसे मधरु ...

पिलू में परजए ददा बसज के िाँसनज िाँसजनज सीख ज़रज

तफ़ ू जन से कि दे यघर के उठे िम प्यजर के दीप र्लजते िैं िैं सबसे मधुर...

साहित्यम्

मत करो बिजने संकट िै , मर ु ज-प्रसजर इंफ्लेशन िै

इन बयनयों चोर-लट ु े रों को क्यज सरकजरी कन्सेशन िै

बगलें मत झजाँको, दो र्वजब क्यज यिी स्वरजज्य तम् ु िजरज िै ? िर ज़ोर र्ुल्म की टक्कर में िड़तजल िमजरज नजरज िै !

मत समझो िमको यजद निीं िैं र्न ू यछयजललस की रजतें र्ब कजले-गोरे बयनयों में चलती थीं सौदों की बजतें

रि गई ग़ल ु जमी बरकरजर िम समझे अब छुटकजरज िै िर ज़ोर र्ुल्म की टक्कर िड़तजल िमजरज नजरज िै !

क्यज धमकी दे ते िो सजिब, दमदजंटी में क्यज रक्खज िै वि वजर तम् ु िजरे अग्रर् अाँग्रज़ों ने भी तो चक्खज िै

दिलज थज सजरज सजम्रजज्य र्ो तम ु को इतनज प्यजरज िै

िर ज़ोर र्ुल्म की टक्कर में िड़तजल िमजरज नजरज िै ! समझौतज ? कैसज समझौतज ? िमलज तो तम ु ने बोलज िै मिं गी ने िमें यनगलने को दजनव र्ैसज माँि ु खोलज िै िम मौत के र्बड़े तोड़ेंग,े एकज िचथयजर िमजरज िै

िर ज़ोर र्ल् ु म की टक्कर िड़तजल िमजरज नजरज िै ! अब संभले समझौतज-परस्त घट ु नज-टे कू ढुलमल ु -यकीन

िम सब समझौतेबजज़ों को अब अलग करें गे बीन-बीन र्ो रोकेगज वि र्जएगज, यि वि तफ़ ू जनी धजरज िै

िर ज़ोर र्ल् ु म की टक्कर में िड़तजल िमजरज नजरज िै !

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


भगतलसंि ! इस बजर न लेनज कजयज भजरतवजसी की,

मझ ु को भी इंग्लैंड ले चलो, पक्ण्डत र्ी मिरजर्,

यहद र्नतज की बजत करोगे, तम ु गद्दजर किजओगे--

बरु ी घड़ी में मैं र्न्मज र्ब रजर्े और नवजब,

यनकलज िै कजनन ू नयज, चुटकी बर्ते बाँध र्जओगे,

कभी न दे खज िरम, चपल छ्प्पन छुररयों कज नजच,

दे शभक्क्त के ललए आर् भी सज़ज लमलेगी िजाँसी की !

दे खूाँ रजनी के लसर कैसे धरज र्जएगज तजर् !

बम्ब सम्ब की छोड़ो, भजर्र् हदयज कक पकड़े र्जओगे ! न्यजय अदजलत की मत पछ ू ो, सीधे मक्ु क्त पजओगे, कजाँग्रेस कज िुक्म; ज़रूरत क्यज वजरं ट तलजशी की !

मत समझो, पर् ू े र्जओगे क्योंकक लड़े थे दश्ु मन से, रुत ऐसी िै आाँख लड़ी िै अब हदल्ली की लंदन से, कजमनवैल्थ कुटुम्ब दे श को खींच रिज िै मंतर से--

प्रेम ववभोर िुए नेतजगर्, नीरज बरसी अंबर से, भोगी िुए ववयोगी, दयु नयज बदल गई बनवजसी की !

तजरे चगन-चगन बीन रिे थे अपने टूटे ख़्वजब,

कलर्ग ु की औलजद, लमली िै ककस्मत बड़ी ख़रजब, दजदी मर गई, कर गई रूप कथज से भी मि ु तजर् ! तम ु क्र्नके र्जते िो उनकज बिुत सन ु ज िै नजम, सन ु तज िूाँ, उस एक छि में कभी न िोती शजम, कजले, पीले, गोरे , भरू े , उनके अनचगन दजस, सजथ ककसी के सजझेदजरी औ' कोई बेदजम,

ख़ुश िोकर वे लोगों को दे दे ती िैं सौरजर् !

गढ़वजली क्र्सने अाँग्रेज़ी शजसन से ववरोि ककयज,

उनकज कजमनवैल्थ कक र्ैसे दोधजरी तलवजर,

अब भी र्ेलों में सड़ते िैं, न्य-ू मजडल आज़जदी िै,

घटे पौण्ड की पाँछ ू पकड़ कर रुपयज मजाँगे भीख,

मिजक्रजक्न्त के दत ू क्र्न्िोंने निीं र्जन कज मोि ककयज, बैठ गए िैं कजले, पर गोरे ज़ुल्मों की गजदी िै,

विी रीयत िै, विी नीयत िै, गोरे सत्यजनजशी की !

एक वजर से िमें क्र्लजवें , करें एक से ठजर,

आग उगलती तोप किीं पर, किीं शद् ु ध व्यजपजर, किीं मलजयज और किीं सवोदय सख ु ी समजर् !

सत्य अहिंसज कज शजसन िै, रजम-रजज्य किर आयज िै,

रूमजनी कववतज ललखतज थज सो अब ललखी न र्जए,

दश्ु मन िी र्ब अपनज, टीपू र्ैसों कज क्यज करनज िै ?

मझ ु े सजथ ले चलो कक शजयद लमले नई स्िूयता,

भेड़-भेड़ड़ए एक घजट िैं, सब ईश्वर की मजयज िै !

शजक्न्त सरु क्षज की ख़जयतर िर हिम्मतवर से डरनज िै ! पिनेगी िथकड़ी भवजनी रजनी लक्ष्मी झजाँसी की !

चजरों ओर अकजल, क्र्ऊाँ मैं कजगद-पिर खजय?

बललिजरी वि दश्ॄ य, कल्पनज अधर-अधर लिरजए--सजम्रजज्य के मंगल यतलक लगजएगज सौरजर् !

टीन कनस्तर पीट-पीट कर गलज िजड़ कर चचल्लजनज यजर मेरे मत बरु ज मजन ये गजनज िै न बर्जनज िै

नजच के बदले कमर नचजनज उछल के सकास हदखलजनज भल ू िै तेरी तू समझज िै दयु नयज पजगलखजनज िै

उधर से लेकर इधर र्मज कर कब तक कजम चलजओगे ककसकज रिज ज़मजनज इक हदन मिकफ़ल से उठ र्जओगे

नकल कज धंधज चल निीं सकतज इक हदन तो पछतजनज िै भल ू गयज तू तजनसेन की तजन यिी पर गाँर् ू ी थी सरु के र्जदग ू र बैर्ू की शजन यिीं पर गाँर् ू ी थी

मर के अमर िै सिगल उसकज िर कोई दीवजनज िै साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


अलभलाष

इतनी शक्क्त िमें दे नज दजतज, मन कज ववश्वजस कमज़ोर िो न िम चलें नेक रस्ते पे िमसे भल ू कर भी कोई भल ू िो न..

िर तरफ़ ज़ुल्म िै, बेबसी िै , सिमज सिमज-सज िर आदमी िै पजप कज बोझ बढतज िी र्जये, र्जने कैसे ये धरती थमी िै

बोझ ममतज कज तू ये उठज ले, तेरी रचनज कज ये अाँत िो न ... िम चलें नेक... दरू अज्ञजन के िों अाँधेरे, तू िमें ज्ञजन की रौशनी दे

िर बरु जई से बचते रिें िम, क्र्तनी भी दे भली क्ज़न्दग़ी दे

बैर िो न, ककसी कज ककसी से. भजवनज मन में बदले की िो न ... िम चलें नेक... िम न सोचें िमें क्यज लमलज िै , िम ये सोचें ककयज क्यज िै अपार्

िूल खुलशयों के बजाँटें सभी को सबकज र्ीवन िी बन र्जये मधुबन

अपनी करुर्ज कज र्ल तू बिजकर, करदे पजवन िरे क मन कज कोनज ... िम चलें नेक... िम अाँधेरे मे िैं रौशनी दे , खो न दें खुद को िी दश्ु मनी से

िम सज़ज पजयें अपने ककये की, मौत भी िो तो सि लें खुशी से

कल र्ो गज़ ु रज िै किर से न गज़ ु रे , आनेवजलज वो कल ऐसज िो न ... िम चलें नेक...

संसजर िै इक नहदयज, दुःु ख-सख ु दो ककनजरे िैं न र्जने किजाँ र्जएाँ, िम बिते धजरे िैं

चलते िुए र्ीवन की, रफ़्तजर में इक लय िै इक रजग में इक सरु में, साँसजर की िर शय िै इक तजर पे गहदा श में, ये चजाँद लसतजरे िैं धरती पे अम्बर की आाँखों से बरसती िै

कोई भी ककसी के ललए, अपनज न परजयज िै ररस्श्ते के उर्जले में, िर आदमी सजयज िै कुदरत के भी दे खो तो, ये खेल परु जने िैं

िै कौन वो दयु नयज में, न पजप ककयज क्र्सने त्रबन उलझे कजाँतों से, िैं िूल चुने ककसने बे-दजग निीं कोई, यिजाँ पजपी सजरे िैं

इक रोज़ यिी बाँद ू ें , किर बजदल बनती िैं इस बनने त्रबगड़ने के दस्तरू में सजरे िैं

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


ककशन सरोज

धर गये में िदी रचे दो िजथ र्ल में दीप

र्न्म र्न्मों तजल सज हिलतज रिज मन बजंचते िम रि गये अन्तकाथज

स्वर्ाकेशज गीतवधओ ु ं की व्यथज

ले गयज चन ु कर कमल कोई िठी यव ु रजर् 0581 541004

दे र तक शैवजल सज हिलतज रिज मन

कर हदए लो आर् गंगज में प्रवजहित

र्ंगलों कज दख ु , तटों की िजसदी

सब तम् ु िजरे पि, सजरे चचि, तम ु यनक्श्चन्त रिनज

भल ू , सख ु से सो गयी कोई नदी

धंध ु डूबी घजहटयों के इंरधनु तम ु

और झीने पजल सज हिलतज रिज मन

बद ूं भर र्ल बन गयज परू ज समंदर

पज तम् ु िजरज दख ु तथजगत िो गयज मन

तम ु गये क्यज, र्ग िुआ अंधज काँु आ रे ल छूटी, रि गयज केवल धआ ुाँ

यि नदी िोगी निीं अपववि, तम ु यनक्श्चन्त रिनज

िजथ के रूमजल सज हिलतज रिज मन

छू गए नत भजल पवात िो गयज मन

अश्रु र्न्मज गीत कमलों से सव ु जलसत

दरू िूाँ तम ु से न अब बजतें उठें

थक गयी लड़ती िवजओं से अभजगी नजव

गन ु गन ु जते िम, भरी आाँखों किरे सब रजत सौर्न्य : मोिनजन्शु रचचत

मैं स्वयं रं गीन दपार् तोड़ आयज

मोनी गोपाल ‘तवपश

िजथ अंयतम बजर सबको र्ोड़ आयज

बजत की बजत में क्यज िुआ िै िमैं शब्द धन चुक गयज - सजाँस अवरूद्ध िै !

वि नगर, वे रजर्पथ, वे चौंक-गललयजाँ थे िमजरे प्यजर से र्ो-र्ो सप ु ररचचत

छोड़ आयज वे परु जने लमि, तम ु यनक्श्चंत रिनज

शिर सम्बन्ध कज - तोड़तज िी रिज

लो ववसर्ान आर् वजसंती छुअन कज

भजव से भजव मन - र्ोड़तज िी रिज

गाँथ ु न पजए कनवु प्रयज के कंु तलों में

प्रीत कज ये नमन - ये चलन शद् ु ध िै !

उस कथज कज र्ो न िो पजई प्रकजलशत

ककतने कक़स्से किे - ककतनी बजतें बनीं

सजथ बीने सीप-शंखों कज ववसर्ान

उन अभजगे मोर पंखों कज ववसर्ान

मर चुकज िै एक-एक चररि, तम ु यनक्श्चंत रिनज

नेि की आस मन - में समोए रिे

गजन तो थे परु जतन - नई धुन चुनी​ीँ चजाँदनी की तरि - िम सरसते रिे

सय ू ा िमसे इसी - बजत पर क्रुद्ध िै ! ककतनी टूटन सिी - ककतने तजने सिे नेि की छॉवं से - िम अर्जने रिे

किर ककसी पीर ने िमको समझज हदयज नेि िी कृष्र् िै - नेि िीं बद् ु ध िै !

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


हाइकु

झील में चजाँद

मेरी बजाँिों में तम ु दौनों लर्जएाँ

रचनज श्रीवजस्तव

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


छन्द्द जनक छं द –

कुमार गौरव अजीतेन्द्द ु कजम लसतजरे दें किजाँ

कोयल बैठी गज रिी

दीन-िीन, मर्बरू िैं

आस लगजओ मत यिजाँ

दे ख उसे ललचज रिी

िम तो खुद मर्दरू िैं

उनमें नभ कज दपा िै -

एक चगलिरी पजस िी-

दर् ू ों पर क्यज कुछ ललखें -

वविाँस रिज िै वजन िै

छजयज के मन भीत िै

विी स्नेि की छजाँव िै

प्रीत बड़ी िलकजन िै

र्ग की ये िी रीत िै

आणखर अपनज गजाँव िै

सज्र्नतज लसमटी पड़ी-

सजाँझ ढले लमटनज उसे-

अपनी सी िर इक डगर-

ये कैसे हदन आ गए

मौसम भी बौरज गयज

कजाँटे न िों गल ु जब में

मेघ बदन झुलसज गए

ये पजनी बरसज गयज

नशज रिे न शरजब में

धाँआ सी िै िवजाँु ु -धआ

करी तवपश की कजमनज-

ये तो वो िी बजत ज्यों-

र्ीवन भी िो छं द सम

निीं सदज दष्ु कजया िै

िम कैसे अपनज किें

दरू करे यनत व्यजप्त तम

कभी-कभी अयनवजया िै

क्यों न तम् ु िें सपनज किें

अनश ु जसन पग-पग रिे -

शजंयत िे तु तो यद् ु ध भी-

तम ु िो इक आभजस भर-

बल ु ज रिज कब से गगन

यघरती आती शजम िै

िम र्ल दे ते भजपकर वो लौटजते ब्यजर्भर

पंछी िी असमथा िै -

हदन की चचजा िो रिी-

दोनों के मन में अगन

शनैुः-शनैुः गम ु नजम िै

नौकज में भी छे द िै

गले-गले में प्यजस िै

स्वजलभमजन मत छोड़नज

मजाँझी के मन भेद िै

सख ू ेपन कज वजस िै

कभी न इसको तोड़नज

मन-पंछी र्जए किजाँ

बैरी क्र्सकज लजभ ले

बिे ललयों कज िै र्िजाँ

गप से कोई चजभ ले

र्जए कैसे पजर वो-

दयजवजन दीयज बड़ज

बचज-खच ु ज तम ले शरर्उसके िी तल में पड़ज

नीर गयज िड़तजल पर-

सिमज बैठज नीड़ में -

मेघ न दे ते कुछ िमें-

र्ीवन कज ये रत्न िै -

इतने मीठे क्यों बनें-

कुमजर गौरव अर्ीतेन्द ु 9631655129

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


नवीन सी. चतव ु ेदी तन की दक ू जन दे खी, धन की दक ू जन दे खी

डजाँटने के बजद वजलज प्यजर लमलतज िो क्र्से

िल–िूल, दिी–दध ू , मेवज, तरकजरी, तेल रजग-रङ्ग िजक्ज़र िैं ववववध आकजर में

सई ू में धजगज वपरो के िूलों को बनजते िुये प्यजर कज रूमजल िौले-िौले लसयज र्जतज िै

रक्त त्रबके, बीर् त्रबके, मजनव के अङ्ग त्रबकें

हृदय की बजवड़ी से थोड़ज-थोड़ज खींच कर

लसफ़ा एक चीज़ यि मजनव न बेच पजयज

सौ बजतों की एक बजत यूाँ समझ लें 'नवीन'

दजदज-दजदी सङ्ग खूब खेलते थे खेल और

ववर् कज वमन कभी कीक्र्ये निीं र्नजब

पजस के िी निीं दरू दरू के भी ररश्तेदजर

अमत ृ बिजनज यहद सम्भव न िो सके तो

सच र्जयनये िमजरी छोटी-छोटी ख़लु शयों पे

प्यजर के दो मीठे बोल भी न बोल पजओ यहद

िजाँ मगर एक और बजत िै कक यिी लोग

ये भी र्ो न िो सके तो ऐसज कीक्र्ये ‘नवीन’

वस्ि और आभर् ू र् शजलमल व्यजपजर में

विी र्जनतज िै प्यजर कैसे ककयज र्जतज िै

मजटी – पजनी – िवज त्रबके सील पैक ज़जर में

अम्मज की दआ ु एाँ निीं लमलतीं बजज़जर में

नजनी-नजनज सङ्ग िम गप्पें भी लड़जते थे

िर तिवजर पर बोिनी करजते थे

पजस औ पड़ौस वजले िूले न समजते थे

भल ू करने पे िमें डजाँट भी लगजते थे

प्यजर कज अमत ृ िौले-िौले वपयज र्जतज िै

प्यजर पजनज िो तो ववर्-पजन ककयज र्जतज िै

कीक्र्ये तो अमत ृ की धजर भी बिजइये

प्यजर के दो मीठे -मीठे बोल िी सन ु जइये

मस् ु कुरजते िुये हदलों में र्गि पजइये

र्ज के ककसी दरपन से ललपट र्जइये बबहारी [बबहारी सतसई वाले नहीं]

आर् सपने सेर् सजाँवरौ लमल्यौ री मोहि

लीन्िी अङ्क आयन, सबै कजयन-कुल गई री मोिन महु दत मो सों मन की करन लजग्यौ मदन-मनोरथ पै मैं िू तल ु गई री

क़ित ‘त्रबिजरी’ र्ो िोनी सो न िोन पजई

कज किों कैसें किों री बद् ु चध डुल गई री अङ्ग खल ु गये, रयत-रङ्ग खल ु गये, नीबी – बन्ध खुल गये, तौ लौं आाँख खुल गई री

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


ग़िल एक ख़जस पेशकश भजई आनन्द पजठक र्यपरु वजलों के ब्लॉग से एक ज़मीन तीन शजयर : ’ग़जललब’ ’दजग़’ और ’अमीर’ लमनजई -सरवर आलम रजज़ ’सरवर’

िम सब लमज़जा ’ग़जललब’ की मशिूर ग़ज़ल " ये न थी िमजरी कक़स्मत कक ववसजल-ए-यजर िोतज’ से बजख़ूबी वजकक़फ़ िैं.न लसफ़ा इस को सैकड़ो बजर पढ़ चक ु े िै बक्ल्क ककतने िी गल ु -ू कजरों ने अपनी आवजज़ के र्जद ू से इस को र्जववदजं बनज हदयज

िै .ये ग़ज़ल अपने ज़मजने में भी कजिी मक़्बल ू िुई थी."अमीर" लमनजई के शजचगदा मम ु तजज़ अली ’आि’ने अपनी ककतजब "सीरत-ए-अमीर अिम्द ’अमीर’ लमनजई " में ललखज िै कक गो लमज़जा कज कलजम क्र्न अनमोल र्वजिरों से मलजमजल िै उन के सजमने ये ग़ज़ल कुछ क्ज़यजदज आब-ओ-तजब निीं रखती मगर इस कज बिुत चचजा और शोिरत थी.अमीर’ लमनजई उस ज़मजने में(लगभग १८६० में ) नवजब यस ु फ़ ु अली ख़जन’नजक्ज़म’ वजली-ए-रजमपरु के दरबजर से मन्ु सललक थे.नवजब सजिे ब

की फ़रमजईश पर उस ज़मजने में उन्िोने भी एक ग़ज़ल किी थी.र्ो ग़ज़ल-१ के तित नीचे दी गई िै ."अमीर’लमनजई बिुत त्रबसयजर-गो थे(यजनी लम्बी लम्बी ग़ज़लें ललखज करते थे).उन्िोने इसी ज़मीन में एक और ग़ज़ल भी किी थी.र्ो यिजाँ "ग़ज़ल-२" के नजम से दी र्ज रिी िै .लमज़जा ’दजग़’ ने भी नवजब रजमपरु की फ़रमजईश पर इसी ज़मीन में ग़ज़ल किी थी.वो भी पेश-ए-णख़दमत िै . !उम्मीद िै कक यि पेश-कश आप को पसन्द आयेगी. लमिा​ा अस्दल् ु लाह खान ’ग़ाललब’ यि न थी िमजरी कक़स्मत कक ववसजल-ए-यजर िोतज

किूाँ ककस से मैं कक क्यज िै, शब-ए-ग़म बरु ी बलज िै मझ ु े क्यज बरु ज थज मरनज अगर एक बजर िोतज !

यतरे वजदे पे क्र्ए िम तो यि र्जन झूट र्जनज कक खशी ु ु़ से मर न र्जते अगर ऐयतबजर िोतज

िुए मर के िम र्ो रुस्वज, िुए क्यों न ग़क़ा-ए-दयजा न कभी र्नजज़ज उठतज , न किीं मज़जर िोतज

यतरी नजज़ुकी से र्जनज कक बाँधज थज अहद बद ू ज

उसे कौन दे ख सकतज कक यगजनज िै वो यकतज

कोई मेरे हदल से पछ ू े यतरे तीर-ए-नीमकश को

ये मसजइल-ए-तसव्वफ़ ु ,ये यतरज बयजन ’ग़जललब’

यि किजाँ की दोस्ती िै कक बने िैं दोस्त नजसेि

ववसजले-ए-यजर = प्रेलमकज से लमलन, तीरे -ए-नीमकश = आधज

रग-ए-संग से टपकतज वो लिू कक किर न थमतज क्र्से ग़म समझ रिे िो वो अगर शरजर िोतज

=ग़म में सिजनुभूयत हदखजने वजलज , रग-ए-संग =पत्थर की

अगर और र्ीते रिते यिी इक्न्तज़जर िोतज !

कभी तू न तोड़ सकतज अगर उस्तवजर िोतज

यि ख़ललश किजाँ से िोती र्ो क्र्गर के पजर िोतज ?

कोई चजरज सजज़ िोतज, कोई ग़म गस ु जर िोतज !

ग़मअगचे र्जं गस ु ल िै पे किजाँ बचें कक हदल िै

र्ो दईु की बू भी िोती तो किीं दो-चजर िोतज

तझ ु े िम वली समझते र्ो न बजदज-ख़्वजर िोतज

णखंचज िुआ तीर, अहद = प्रयतग्यज ख़ललश = ददा उस्तुवजर = पक्कज चजरजसजज़ =उपचजर करने वजलज, ग़मगुसजर नस, र्जं गुलसल = र्जन लेने वजलज, यगजनज/यकतज = एक िी

,अद्ववतीय, मसजइल-ए-तसव्वफ़ ु = अध्यजक्त्मकतज की समस्यजयें, बजदजख़्वजर =शरजबी , नजसेि =प्रेम त्यजग कज उपदे श दे ने वजलज

ग़म-ए-इश्क़ गर न िोतज ,ग़म-ए-रोज़गजर िोतज ! साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


नवाब लमिा​ा ख़ान "दाग़’ दे हलवी

अमीर अहमद ’अमीर’ लमनाई - ग़िल – १

अर्ब अपनज िजल िोतज र्ो ववसजल-ए-यजर िोतज

लमरे बस में यज तो यजरब ! वो लसतम-लश’आर िोतज

कोई कफ़त्नज तज-कक़यजमत नज किर आशकजर िोतज

पस-ए-मगा कजश यूाँ िी मझ ु े वस्ल-ए-यजर िोतज

र्ो तम् ु िजरी तरि िमसे कोई झूटे वजदे करतज

यतरज मयक़दज सलजमत ,यतरे खम ु ु़ की ख़ैर सजक़ी !

ग़म-ए-इश्क़ में मज़ज थज र्ो उसे समझ के खजते

लमरे इविक़ज कज बजइस तो िै मेरी नज-तवजनी

न मज़ज िै दश्ु मनी में , न िी लत्ु फ़ दोस्ती में ु़ ु़ कोई गैर गैर िोतज , कोई यजर यजर िोतज !

मैं िूाँ नज-मरु जद ऐसज कक त्रबलक के यजस रोती किीं पज के आसरज कुछ र्ो उम्मीदवजर िोतज

ये मज़ज थज हदल लगी कज, कक बरजबर आग लगती

निीं पछ ू तज िै मझ ु को कोई िूल इस चमन में

यतरे वजदे पर लसतमगर ! अभी और सब्र करते

वो मज़ज हदयज तड़प ने कक यि आरज़ू िै यजरब !

ये वो ददा -ए-हदल निीं िै कक िो चजरजसजज़ कोई

दम-ए-नजज़ भी र्ो वो बत ु मझ ु े आ के माँि ु हदखज दे

गये िोश तेरे ज़जहिद !र्ो वो चश्म-ए-मस्त दे खी

र्ो यनगजि की थी ज़जललम तो किर आाँख क्यों चुरजयी?

मझ ु े मजनते सब ऐसज कक उद ू भी सर्दज करते

मैं ज़बजं से तम ु को सच्चज किो लजख बजर कि दाँ ू

तझ ु े नजज़ िो नज क्योंकर कक ललयज िै ’दजग’ कज हदल

लमरी ख़जक भी लिद में न रिी ’अमीर’ बजक़ी

कफ़त्नज = फ़सजद उद ू =बड़े लोग भी

लसतम-लश’आर =र्ुल्म करने की कफ़तरत पस-ए-मगा = मरने

इक्फ़्तख़जर = मजन-सम्मजन

मलक =फ़ररश्ते लहद-कफ़शजर= मुसलमजनों के धमा के अनुसजर

कभी र्जन सदक़े िोती कभी हदल यनसजर िोतज

यतरे हदल पे कजश ज़जललम मझ ु े इक्ख़्तयजर िोतज

तम् ु िीं मक्ु न्सफ़ी से कि दो, तम् ु िें ऐयतबजर िोतज

ये वो ज़िर िै कक आणख़र मय-ए-ख़ुशगवजर िोतज

न तझ ु े क़रजर िोतज , न मझ ु े क़रजर िोतज

अगर अपनी क्ज़न्दगी कज िमें ऐयतबजर िोतज

अगर एक बजर लमटतज तो िज़जर बजर िोतज

मझ ु े क्यज उलट न दे तज र्ो न बजदज-ख़्वजर िोतज ?

दर-ए-यजर कजबज बनतज र्ो लमरज मज़जर िोतज

ये रक़म नज िजथ लगती,नज ये इक्फ़्तख़जर िोतज !

आशकजर = र्जहिर िोनज रक़म =धन-दौलत

ये न थज तो कजश हदल पर मझ ु े इक्ख़्तयजर िोतज !

वो सर-ए- मज़जर िोतज ,मैं ति-ए-मज़जर िोतज !

लमरज नश्शज क्याँू उतरतज मझ ु े क्याँू ख़म ु जर िोतज ?

र्ो मैं तौबज तोड़ सकतज तो शरजब-ख़्वजर िोतज !

हदल-ए-दजग़दजर िोतज तो गले कज िजर िोतज

लमरे दोनो पिलओ ु ं में हदल-ए-बेक़रजर िोतज

तो ख़ुदज के माँि ु से इतनज न मैं शमासजर िोतज

वो िी तीर क्यों न मजरज र्ो क्र्गर के पजर िोतज

उसे क्यज करूाँ कक हदल को निीं ऐयतबजर िोतज

उन्िें मरने िी कज अब तक निीं ऐयतबजर िोतज !

के बजद, इविक़ज =संयम बजइस =वज़ि ,कजरर् पजपी मनुष्यों को क़ब्र बड़े ज़ोर से खींचती िै

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


अमीर अहमद ’अमीर’ लमनाई - ग़िल – २

नवीन सी. चतव ु ेदी

नयी चोटें चलतीं क़जयतल र्ो कभी दो-चजर िोतज

मेरे रुतबे में थोड़ज इज़जफ़ज िो गयज िै

यतरे अक्स कज र्ो क़जयतल! कभी तझ ु पे वजर िोतज

अब अिलेदौर इस को तरक़्क़ी िी किें गे

रिी आरज़ू कक दो-दो यतरे तीर सजथ चलते

छबीले तेरी छब ने ककयज िै ऐसज र्जद ू

यतरे नजवक-ए-अदज से कभी िजरतज न हिम्मत

वो ठिरी सी यनगजिें भलज क्यूाँ कर न ठुमकें

लमरे हदल को क्याँू लमटजयज कक यनशजन तक न रख़्खज

अर्ल से िी तमन्नज रिी सरतजर् लेककन

यतरे तीर की ख़तज क्यज ,लमरी िसरतों ने रोकज

तेरे ग़म की नदी में बस इक क़तरज बचज थज

मैं क्र्यूाँ तो ककसकज िोकर निीं कोई दोस्त मेरज

न कोई कि रिज कुछ न कोई सन ु रिज कुछ

र्ो उधर से वजर िोतज तो इधर से वजर िोतज

अर्ब तो थज मगर अब अर्ूबज िो गयज िै

तो यनसजर िोने वजलज येिी र्जाँ यनसजर िोतज

र्िजाँ दगरज थज वजाँ अब खरञ्र्ज िो गयज िै

कोई हदल को प्यजर करतज,कोई हदल के पजर िोतज

क़बीले कज क़बीलज छबीलज िो गयज िै

क्र्गर उसके आगे िोतज र्ो क्र्गर के पजर िोतज

कक उन कज लजड़लज अब कमजतज िो गयज िै

मैं ललपट के रो तो लेतज र्ो किीं मज़जर िोतज !

तलब कज तर्म ुा ज अब तमजशज िो गयज िै

नज ललपटतीं ये बलजयें तो वो हदल के पजर िोतज

वो आाँसू भी त्रबल-आणख़र रवजनज िो गयज िै

ये र्ो हदल िै दश्ु मन-ए-र्जं यिी दोस्तदजर िोतज

चलो सजमजन उठजओ इशजरज िो गयज िै

लमरे िूलों मे र्ो आते तो नये वो गल ु णखलजते तो कलजईयों में गर्रे तो गले में िजर िोतज

यतरे नन्िें हदल को क्यों कर लमरी र्जन मैं दख ु जतज

कजम आनज िो तभी कजम निीं आते िैं

लमरज हदल क्र्गर र्ो दे खज तो अदज से नजज़ बोलज

धूल-लमट्टी की तरि िम भी कोई ख़जस निीं

सर-ए-क़ब्र आते िो तम ु र्ो बढ़ज के अपनज गिनज

वो र्ो कुछ भी निीं उस को तो लट ु जते िैं सब

दम-ए-रुख़्सत उनकज किनज कक ये कजिे कज िै रोनज ?

सजरज हदन सस् ु त पड़ी रिती िै ग़म की हिरनी

शब-ए-वस्ल तू र्ो बेख़द ु नो िुआ ’अमीर’ चक ू ज यतरे आने कज कभी तो उसे इक्न्तज़जर िोतज !

शह्र थोड़े िी बदलते िैं ककसी कज चेिरज

वो धड़कने क्यज न लगतज र्ो मैं बेक़रजर िोतज ?

धप ू के पजाँव हदसम्बर में उखड़ र्जते िैं

यि यतरज लशकजर िोतज ,वो लमरज लशकजर िोतज

बस, िवज-पजनी की सि ु बत में साँवर र्जते िैं

कोई िूल छीन लेतज र्ो गले कज िजर िोतज

तम् ु िें लमरी क़समों कज भी निीं ऐयतबजर िोतज ?

साहित्यम्

और र्ो सब-कुछ िै, उसे बजाँट निीं पजते िैं

शजम ढलते िी मगर पङ्ख यनकल आते िैं

आदमी ख़ुद िी यिजाँ आ के बदल र्जते िैं वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


मक ु े श आलम

साललम सलीम

इतनी भीड़ में तेरज चेिरज अच्छज लगतज िै

कुछ भी निीं िै बजकी बजज़जर चल रिज िै

मद् ु दत गज़ ु री आर् अचजनक यजद आए िो तम ु

वो र्ो ज़मीं पे कब से एक पजाँव पे खड़ज थज

तम ु ने अतज फ़मजायज िै सो मझ ु को िै प्यजरज

वनजा ककसको हदल में शरजरज अच्छज लगतज िै

कुछ मज़् ु महिल सज मैं भी रितज िूाँ अपने अन्दर वो भी कई हदनों से बीमजर चल रिज िै

मैं तेरे हदल कज तजललब और दै रोिरम के वो-

शोरीदगी िमजरी ऐसे तो कम न िोगी

सौदजई, पजगल, आवजरज, दीवजनज, मर्नूं

तम ु आओ तो कुछ उस की लमट्टी इधर-उधर िो

तेरी रजनजई से आाँखें र्जग उठीं र्ब से

मज़् ु महिल – थकज-मजाँदज, शोरीदगी – र्ुनन ू , िमवजर –

र्ज़ीरज=टजप।ू शरजरज=अंगजरज। तजललब=चजिने वजलज।

9540601028

बीच समन्दर एक र्ज़ीरज अच्छज लगतज िै

गिरी रजत के बजद सवेरज अच्छज लगतज िै

मझ ु को दररयज उनको ककनजरज अच्छज लगतज िै

तम ु ने मझ ु को र्ो भी पक ु जरज अच्छज लगतज िै

तब से मझ ु को आलम सजरज अच्छज लगतज िै

दै रो-िरम=मंहदर-मक्स्र्द। रजनजई=रोशनी/चमक।

साहित्यम्

ये कजरोबजरे -दयु नयज बेकजर चल रिज िै

सन ु ते िैं आसमजाँ के उस पजर चल रिज िै

दे खो वो िो के ककतनज तैयजर चल रिज िै

अब तक तो हदल कज रसतज िमवजर चल रिज िै

सपजट, सीधज, चचकनज, त्रबनज ऊबड़-खजबड़ वजलज

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


गोववंद गल ु शन

हदल में ये एक डर िै बरजबर बनज िुआ लमट्टी में लमल न र्जए किीं घर बनज िुआ इक ’लफ़्ज़’ बेवफ़ज किज उसने किर उसके बजद मैं उसको दे खतज रिज पत्थर बनज िुआ

र्ब आाँसओ ु ं में बि गए यजदों के सजरे नक्श आाँखों में कैसे रि गयज मंज़र बनज िुआ

लिरो! बतजओ तम ु ने उसे क्यूाँ लमटज हदयज धप ू के पेड़ पर कैसे शबनम उगे,

बस यिी सोच कर सब परे शजन िैं

मेरे आाँगन में क्यज आर् मोती झरे , लोग उलझन में िैं और िै रजन िैं

तम ु से नज़रें लमलीं ,हदल तम् ु िजरज िुआ, धड़कनें यछन गईं तम ु त्रबछड़ भी गए

इक ख़्वजब कज मिल थज यिजाँ पर बनज िुआ वो क्यज थज और तम ु ने उसे क्यज बनज हदयज इतरज रिज िै क़तरज समंदर बनज िुआ मम ु ताि नािां

आाँखें पथरज गईं,क्र्स्म लमट्टी िुआ अब तो बत ु की तरि िम भी बेर्जन िैं डूब र्जओगे तम ु ,डूब र्जउाँ गज मैं

और उबरने न दे गी नदी रे त की

तम निीं मैं भी िूाँ बेख़बर, ु़ ु भी वजककफ़ प्यजर की नजव में ककतने तफ़ ू जन िैं

डूब र्जतज ये हदल, टूट र्जतज ये हदल, शक्र ु िै ऐसज िोने से पिले िी खद ु ु़

तख़य्यल ु के फ़लक से किकशजएाँ िम र्ो लजते िैं लसतजरे ख़ैरमक़दम के ललए आाँखें त्रबछजते िैं

मेरी तनिजई के दर पर ये दस्तक कौन दे तज िै मेरी तीरजशबी में ककस के सजए सरसरजते िैं

हदल को समझज ललयज और तसल्ली ये दी

िक़ीक़त से अगरचे कर ललयज िै िम ने समझौतज

अश्क आाँखों में कुछ पल के मेिमजन िैं

हिसजर-ए-ख़्वजब में बेकस इरजदे कसमसजते िैं

ज़ख़्म िमको लमले,ददा िमको लमले

मज़ज तो ख़ूब दे ती िै ये रौनक़ बज़्म की लेककन

और ये रुस्वजइयजाँ र्ो लमलीं सो अलग

बोझ हदल पर क्ज़यजदज न अब डजललए आपके और भी ककतने एिसजन िैं

मेरी तन्िजइयों के दजयरे मझ ु को बल ु जते िैं

त्रबलखती चीख़ती यजदें ललपट र्जती िैं क़दमों से िज़जरों कोलशशें कर के उसे र्ब भी भल ु जते िैं

ज़मीरों में लगी िै ज़ंग, ज़िन-ओ-हदल मक ु फ़्फ़ल िैं र्ो ख़ुद मद ु जा िैं, र्ीने की अदज िम को लसखजते िैं वो लम्िे , र्ो कभी िजलसल रिे थे क्ज़ंदगजनी कज

वो लम्िे आर् भी “मम ु तजज़” िम को ख़ूाँ रुलजते िैं

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


साललम शज ु ा अन्द्सारी

हादी जावेद

9837659083

8273911939

गब ु जर-ए-कफ़क्र को तिरीर करतज रितज िूाँ मैं अपनज ददा िमजगीर करतज रितज िूाँ

क्ज़न्दगी के िसीं मक़जम पे िूाँ ऐसज लगतज िै रजिे आम पे िूाँ

ररदज-ए-लफ़्ज़ चढ़जतज िूाँ तरु बते-हदल पर ग़ज़ल को ख़जके-दरे -मीर करतज रितज िूाँ

सजथ दे ते निीं िैं पजाँव मेरे

नवदा -आज़मज िो कर ियजत से अपनी

लफ्ज़ ख़जमोश िो गए सजरे

न र्जने कौन सज ख़जकज कमजले-फ़न ठिरे

सब्ु ि के दर पे लोग आ पिुाँचे

बदलतज रितज िूाँ चगरते िुए दरो-दीवजर मकजने-ख़स्तज में तजमीर करतज रितज िूाँ

पक्स्तयों के भाँवर में उलझज िूाँ

लिू रगों कज मसजफ़त यनचोड़ लेती िै मैं किर भी ख़ुद को सफ़र-गीर करतज रितज िूाँ

अब भी सरसब्ज़ िूाँ मैं ज़ख़्मों से मन् ु िलसर ददे -न-तमजम पे िूाँ

उदजस रिती िैं मझ ु में सदजक़तें मेरी

लोग पीते िैं चश्मे-सजकी से

र्जने ककस रजिे तेज़गजम पे िूाँ

िमेशज फ़त्ि की तजबीर करतज रितज िूाँ

कौन सी मंक्ज़ले-कलजम पे िूाँ

िर इक ख़यजल को तसवीर करतज रितज िूाँ

मैं अभी तक मि ु जज़े-शजम पे िूाँ

किर भी लगतज िै और्े-बजम पे िूाँ

मैं लब कुशजई में तजखीर करतज रितज िूाँ

मत ु मईन मैं शरजबे-र्जम पे िूाँ

सदजएाँ दे ती िैं ‘सजललम’ बल ु क्न्दयजाँ लेककन

र्ीस्त की इक्ब्तदज न कर पजयज

ज़मीं को पजाँव की ज़ंर्ीर करतज रितज िूाँ

उम्र के आखरी मक़जम पे िूाँ

एक किजनी िूाँ मैं कोई 'िजदी ' यज फ़सजनज कक इक्ख़्ततजम पे िूाँ

तिरीर करनज – ललखनज, शब्दजंककत करनज, ररदज-ए-लफ़्ज़ – शब्दों की चजदर, तुरबत – क़ब्र, ियजत – र्ीवन, तजबीर – कोलशश,

िमजगीर – िैलजने के संदभा में, तजमीर – यनमजार्, मसजफ़त – यजिज, सफ़र-गीर, यजिज में व्यस्त, लबकुशई, तजखीर,

मक़जम - स्थजन, तेज़गजम - तेज़ रजस्तज, कलजम - गफ् ु तग,ू मि ु जर् -

मोचजा, पक्स्तयों - गिरजइयजाँ , यनचजइयजं, और्े-बजम—उं चजइयजं, सरसब्ज़- िरज भरज, मुन्िलसर – यनभार, ज़ीस्त -- क्ज़ंदगी इक्ब्तदज – शुरुआत, इक्ख़्ततजम - खत्म

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


आञ्चललक गजलें

भोजपरु ी गजलें – मनोज भावक ु

अबकी हदयरी के परब अइसे मनजवल र्जये मन के अाँगनज में एगो दीप र्रजवल र्जये

रोशनी गजाँव में, हदल्ली से ले आवल र्जये कैद सरू र् के अब आर्जद करजवल र्जये

हिन्द,ू मस ु ललम नज, ईसजई नज, लसक्ख, ए भजई अपनज औलजद के इंसजन बनजवल र्जये

र्ेमें भगवजन, खुदज, गौड सभे सजथ रिे एि तरि के एगो दे वजस बनजवल र्जये

रोज़ हदयरी बज किीं, रोज़ किीं भख ू मरी

कजश ! दयु नयज से ववर्मतज के लमटजवल र्जये सप ू , चलनी के पटकलज से भलज कज िोई

श्रम के लजठी से दललद्दर के भगजवल र्जये क्र्यनगी पिजड़ र्इसन लजगे कबो-कबो

सख ु लज में बजढ़ र्इसन लजगे कबो-कबो कुछुओ किजाँ बज आपन, झठ ू ो के बज भरम सजाँसो उधजर र्इसन लजगे कबो-कबो

सभकर बज िजथ पसरल मंहदर में दे खलीं दयु नयज लभखजर र्इसन लजगे कबो-कबो डोली ई दे ि लजगे, दल ु हिन ई आत्मज

क्र्यनगी काँिजर र्इसन लजगे कबो-कबो

लजख रस्तज िो कहठन ,लजख दरू मंक्र्ल िो आस के िूल िीं आाँणखन मे उगजवल र्जये

र्ेकरज यजदन में र्ले हदल के हदयज के बजती

ए सखी, अब ओिी ‘भजवक ु ’ के बोलजवल र्जये

नयज-नयज संसजर में बजनी सजत समन् ु दर पजर बजककर हियरज मे बजटे , इिवों तिरे संसजर

क्र्न्दज रणखिऽ अपनज मन में िमरज खजयतर प्यजर िम दयु नयज मे आइब तिरज खजयतर सौ-सौ बजर

िोखे मिल यज मड़ई पर प्यजर के त्रबनज सगरो उर्जर र्इसन लजगे कबो-कबो

रोक नज लेबे िमरज के केिू के छलकत आाँख चलनी तऽ पीछे मड़ ु के दे खनी नज एको बजर

र्हियज से नेि लजगल ‘भजवक ु ’ के गीत से

एगो रजर्कुमजरी के अक्सर आवत बज िोन

निरत दल ु जर र्इसन लजगे कबो-कबो

कब ले अइबऽ लौट के बोलऽ-बोलऽ रजर्कुमजर मर्बरू ी में िीं यछयछयजलज केिू दे श-ववदे श नज तऽ सभकज भजवे अपनज घर के रोटी यजर

9971955234

साहित्यम्

ए-बबआ नइखे िमरज पजउण्ड-डजलर के कजम ु रिऽ आाँख के सोझज िरदम मजई किे िमजर वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


इरशाद खान लसकन्द्दर

3--

ख्वजहिश बज कवनो अइसने र्जद ू दे खजई दे िम दे खीं आइनज त उिे ऊ दे खजई दे

अइसे ऊ िमरज यजद में आवस कबो कबो र्इसे अन्िररयज रजत में र्ग ु नू दे खजई दे

अइसे भी क्ज़ंदगी में त आवेलज केतनज लोग र्इसे केिू के आाँणख में आाँसू दे खजई दे कई शब्द ललणख ललणख के कजटल रिे तबो गम न रचनज में आाँटल रिे

भरल दुःु ख के गगरी से घर बज भरल एिी से त मनवज उचजटल रिे

बजटे िो रोम-रोम में खुशबू वो िूल के

चजिे लज मन कक सजमने खुशबू दे खजई दे पजवे करजर कइसे ई मोर बेकरजर हदल

कवनो न उनके दीद के पिलू दे खजई दे

लमलन,बेविजई,र्द ु जई,तड़प

सिर केतनज हिस्सज में बजाँटल रिे किीं कज किजनी ल एतने समझ

मोिब्बत के पन्नज भी िजटल रिे ‘लसकन्दर’ के कोलशश भइल नज सिल कक नेहियज से धरती ई पजटल रिे 2-

हदल में िलचल मचवले बज कजिो चजाँद पजगल बनवले बज कजिो

एतनज बेकल तू किाँवज र्जतजरज केिू अाँणखयज त्रबछौले बज कजिो तू अकेले में मस् ु कुरजतजरज

िूल त्रबर्ली चगरवले बज कजिो

4-

कोरे कजगर् पे प्यजर ललणख ललणख के ऊ लमटजवेलज यजर ललणख ललणख के रजस आ गइल बजटे पतझड़ कज

कजट दे लज बिजर ललणख ललणख के चजाँदनी रजत के त्रबछौनज पर

सत ु गइल ऊ अन्िजर ललणख ललणख के आर् ले कुछ र्वजब नज आइल

चचट्ठी भेर्नीं िर्जर ललणख-ललणख के चल ‘लसकन्दर’ तें कजिें रोवेले

दुःु ख के बोझज उतजर ललणख ललणख के

पजाँव चथरके के समझीं कज मतलब नजच नेहियज नचवले बज कजिो

कजिे अइसे चचिुाँक के उठ गइलज नींद, सपनज उड़वले बज कजिो

साहित्यम्

9818354784 वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


अवधी गजल आपयन भजसज आपयन बजनी अम्मज िैं। भल ू ी त्रबसरी कथज किजनी अम्मज िैं। धरी िुवैं दजलजन म र्इसे बेमतलब, गठरी िटिी अउर परु जनी अम्मज िैं। नीक लगै तौ धरौ, निीं तौ िेंकक हदयौ, घर कज बजसी खजनज – पजनी अम्मज िैं। मि ु त म मजखन खजाँय घरै यज सबै, मल ु ज

एक काकिया ब्रज-गजल [ग्रामीि] कुिजसौ छाँ ट गयौ और उर्ीतौ हवै गयौ ऐ गगनचर चल गगन काँू सबेरौ हवै गयौ ऐ ितो बौ इक र्मजनौ कहयौ कत्वो र्मजनौ चलौ र्मनज ककनजरें - सबेरौ हवै गयौ ऐ

बौ रजतन की पढ़जई और अम्मज की हिदजयत अरे तयन सोय लै रे - सबेरौ हवै गयौ ऐ

अगल-बगलन छतन साँू किजाँ सयु नबौ लमलै अब कक अब र्जमन दै बैरी - सबेरौ हवै गयौ ऐ

हदन भर नजचैं एकु मथजनी अम्मज िैं।

किूाँ र्जमन की र्ल्दी, किूाँ र्ज बजत कौ गम यनसज उतरी ऊ नजाँय और सबेरौ हवै गयौ ऐ

परू े घरु क भजरु उठजये खोपड़ी पर,

न कुकड़ूाँ-काँू भई और न र्ल झरत्वै िबज साँू

र्स रजली मज परी कमजनी अम्मज िैं।

तौ किर िम कैसें मजनें - सबेरौ हवै गयौ ऐ

र्जड़ु, घजम,ु बरखज ते रच्छज कीन्ि करैं, बरिौं महिनज छप्पर-छजनी अम्मज िैं।

न र्जनें चौं बौ औघड़ िमन पै वपल पयौ’तो

लररकज चजिे र्ेतनज झगड़ज रोर्ु करैं,

भजर्ज-धमा और कथ्य के अचधकतम यनकट रिते िुये भजवजथा ग़ज़ल

कहयौ र्ैसें ई बज साँू - सबेरौ हवै गयौ ऐ

लररकन ते न कबौ-ररसजनी अम्मज िैं। नज मजनौ तौ वपछुवजरे की गड़िी िैं, मजनौ तौ गंगज मिरजनी अम्मज िैं।

कुिजसज छाँ ट गयज और उर्जलज िो गयज िै

गगनचर चल गगन को सवेरज िो गयज िै वो भी थज एक ज़मजनज, कक कितज थज ज़मजनज

‘अग्यजनी’ न कबौ र्वजनी र्जयन परी,

चलो यमन ु ज ककनजरे - सवेरज िो गयज िै

बप्पज ते पहिलिै बढ़ ु जनी अम्मज िैं।

वो रजतों की पढ़जई और अम्मज की हिदजयत

__ कवव अशोक ‘अग्यजनी’

ज़रज कुछ दे र सो ले - सवेरज िो गयज िै

बगल वजली छतों से किजाँ सन ु नज लमले अब कक अब र्जने दे बैरी - सवेरज िो गयज िै

किीं र्जने की र्ल्दी, किीं इस बजत कज ग़म शब उतरी भी निीं और सवेरज िो गयज िै

न कुकड़ूाँ-काँू िुई और न र्ल झरतज [िै ] िवज से तो किर िम कैसे मजनें सवेरज िो गयज िै न र्जने क्यूाँ वो औघड़ त्रबिर उठ्ठज थज िम पर किज र्ैसे िी उस से - सवेरज िो गयज िै

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


राजस्थानी गजल

* रजर्स्थजनी ग़ज़ल में प्रयक् ु त शब्दों के अथा *

राजेन्द्र स्विाकार

ज़ैर रळग्यो = ज़िर घल ु गयज / सन ू = सन ु सजन /

सगळजं = समस्त ् /

लजगै = लगतज िै - लगती िै - लगते िैं / अठीनैं = इधर / बठीनैं = उधर / कीं = कुछ

नीं वपछजर्ीर्ै = निीं पिचजनी र्जती िै / इर्जं री = इनकी /

घजत मनड़ै री = मन की घजत /

िवज में ज़ैर रळग्यो , सन ू सगळजं गजंव घर लजगै अठीनैं कीं कसर लजगै , बठीनैं कीं कसर लजगै

ककं यजं = कैसे /

शकल संू नीं वपछजर्ीर्ै इर्जं री घजत मनड़ै री

ठज' = मज'लम ू - र्जनकजरी िोनज /

अळगजं री = दरू स्थ की /

ककं यजं अळगजं री ठज' र्द कै , न नैड़जं री ख़बर लजगै

नैड़जं री = समीपस्थ की /

कठै ऐ पछ ूं हिलकजवै , कठै चरर्जं में लट ु र्जवै

ऐ = ये /

कठै = किीं - किजं /

ऐ मत ु ळब सूं इंयजं डोलै , कॅ ऐ डुलतज चंवर लजगै

डुलतज चंवर = गरु ु द्वजरों में गरु ु ग्रंथसजहिब तथज मंहदर

ककचर न्िजखै लमनख - ढजंढज ; चलजवै कजर इर् तररयजं

ककचर न्िजखै = कुचल दे ते िैं /

में ठजकुरर्ी के आगे डुलजयज र्जने वजलज चंवर

सड़क ज्यूं बजप री इर्रै ; ऐ नेतजं रज कंु वर लजगै

लमनख - ढजंढज = मनष्ु य - पशु /

यनकळ' टीवी सूं घस ु गी नेट में आ , आर् री पीढ़ी

अठै रै सरू सूं = यिजं के सय ू ा से /

र्द = तब /

त्रबसरगी संस्कृती अर सभ्यतज , र्द श्रजप वर लजगै

चजंनर्ो = प्रकजश /

अठै रै सरू सूं लमलतो र्गत नैं चजंनर्ो पैलजं

चौतरिै = चजरों तरफ़ /

पैलजं = पिले /

अबै इर् दे श , चौतरिै धुंवो कळमर् धंवर लजगै

धुंवो कळमर् धंवर = धआ ु ं कल्मर् धध ुं /

र्गत सूं र्झ ू सी रजक्र्ंद , कलम ! सजगो यनभज दीर्े

कथजं रळ' सजच = लमल कर सत्य - सर् ृ न करें /

कथजं रळ' सजच , आपजंनैं ककस्यो ककर् संू ई डर लजगै

सजगो यनभज दीर्े = सजथ यनभज दे नज / आपजंनैं = िमको - िमें /

ककस्यो ककर् सूं ई = कौनसज ककसी से भी /

9414682626

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


सोनेट – तफ़ ु ै ल चतव ु ेदी

सोनेट मल ू तुः योरोपीय शजयरी की अच्छी-ख़जसी मक्ु श्कल कक़स्म िै . 14 लमसरों की इस कजव्य ववधज के यनयम ख़जसे

पेचीदज और कहठन िैं। ये ववधज इतनी कहठन िै कक ववश्व सजहित्य में सोनेट कि सकने वजले 50 नजम भी हदखजयी निीं

दे त।े मजनज र्जतज िै कक ये ववधज इटली में र्न्मी और विजं से िैली। एस्पें सर, शेक्सवपयर, वपटरजका, टजमस िजडी,

िौपककन्स, र्ॉन मैसफ़ील्ड, ब्रक ु , र्ी.एम. िौककं सन, मैथ्यू औनाल्ड, वड्ासवथा, कूलररर्, शैली, कीट्स आहद इसके प्रमख ु

नजम िैं। िमजरे यिजं पिले सोनेटयनगजर अज़ीमद् ु दीन अिमद िुए िैं। इनकज पिलज सोनेट 1903 में सजमने आयज। 1928 में अख्तर र्न ु जगढ़ी के सोनेट कज संकलन लम्िजते-अख्तर के नजम से छपज। 1930 में नन ू . मीम. रजलशद कज सोनेट कज संकलन क्ज़न्दगी सजमने आयज। इस ववधज के प्रमख ु रचनजकजरों में डॉ. िनीफ़ कैफ़ी, डॉ. नजक्ज़म र्जफ़री, डॉ. अज़ीज़ तमन्नजई, आज़जद गल ु जटी, ख़लीलरु ा िमजन रजज़, नजहदम बलखी, मि ु म्मद इरफ़जन, यनसजर अयोलवी आहद िुए िैं।

सोनेट मल ू तुः तीन प्रकजर के िैं मगर िमजरे लोगों ने इसके लसवज भी उठज-पटक की िै और उदा ू सोनेट की नयी शक्लें भी बनजयी िैं।

1:- इटजललयन यज वपटरजकान 2:-शेक्सपेररयन 3:- एस्पें सेररयन वपटरजकान:- ये सोनेट की बन ु यजदी शक्ल िै । इसके र्नक इटली के शजयर वपटरजका िैं। इस सोनेट में 8 तथज 6 लमसरों के दो कक़तए िोते िैं। पिले 8 लमसरों के कक़तए में 1,4,5 तथज 8वजं लमसरज िमक़जकफ़यज िोतज िै और 2,3,6 तथज 7वजं

लमसरज िमक़जकफ़यज िोतज िै । शेर् 6 लमसरों कज कक़तआ दो तरि से शक्ल पजतज िै । 9,11,13वजं लमसरज और 10,12 और 14वजं लमसरज िमक़जकफ़यज िोतज िै । दस ू री शक्ल में 9वजं तथज 12वजं, 10वजं तथज 13वजं और 11वजं तथज 14वजं लमसरज िमक़जकफ़यज िोतज िै

शेक्सपेररयन सोनेट:- सोनेट की यि शैली मल ू तुः अला ऑफ़ सरे की ईर्जद िै मगर शेक्सवपयर के अचधक प्रलसद्ध िो र्जने के कजरर् उनके नजम से पक ु जरी र्जती िै । ये सोनेट दो की र्गि चजर हिस्सों में बंटज िोतज िै । चजर-चजर लमसरों के तीन बंद और अंत में बैत सोनेट कज यनचोड़ पेश करतज िै

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


एस्पें सेररयन सोनेट:- इस शैली कज सोनेट शेक्सपेररयन सोनेट की िी तरि िरकत करतज िै । उसी की तरि इसके िर बंद

में पिलज और तीसरज लमसरज तथज दस ू रज और चौथज लमसरज िमक़जकफ़यज िोतज िै । अंतर इतनज िै कक िर बंद के चौथे लमसरे कज क़जकफ़यज अगले बंद के पिले लमसरे में अपनज ललयज र्जतज िै वपटरजकान सोनेट कुछ निीं ऐ हदले-बीमजर अभी कुछ भी निीं

ककतनी तकलीफ़ अभी सीनज-ए-इफ़लजस में िै सोक्ज़शे-ज़ख्मे-क्र्गर लशद्दते-अिसजस में िै

हदल धड़कने की ये रफ़्तजर अभी कुछ भी निीं इक ख़लज िै पसे-दीवजर अभी कुछ भी निीं

क्ज़न्दगी दरू बिुत दरू ककसी आस में िै इक तअस्सब ु की मिक िूलों की ब-ू बजस में िै कक़स्सज-ए-गेस-ु ए-रुख़सजर अभी कुछ भी निीं इसी उमीद पे रौशन िैं ये पलकों के चचरजग़ इसी उमीद पे क्ज़ंदज िैं कक आयेगी सिर

लमल िी र्जयेगज कभी मंक्ज़ले-िस्ती कज सरु जग़

िमने मजनज कक िर-इक अपनज मख़ ु जललफ़ िै मगर मरिमे-वक़्त से लमट र्जयेगज सीने कज ये दजग़

और कुछ दे र ठिर और अभी और ठिर ………………….डॉ. नजक्ज़म र्जफ़री

ऐ लमरे चजंद, लमरी आंख के तजरे , लमरे लजल

ऐ लमरे घर के उर्जले लमरे गल ु शन की बिजर तेरे क़दमों पे िर इक नेमते-कौनैन यनसजर िो लसतजरों की बल ं ी पे यतरज इस्तक़बजल ु द

तेरी मंक्ज़ल बने इन्सजन की मेरजर्े-कमजल

तेरी मिकफ़ल में िो दोशीज़ज-ए-गेती कज लसंगजर तेरज मक़सद ू िो लैलज-ए-तमददन ु कज यनखजर

तेरज मशिूद िो मिबब ू ज-ए-कफ़तरत कज र्मजल ककसने दे खज िै मगर आि रुख़े-मस् ु तक़त्रबल

कब धआ ु ं बन के त्रबखर र्जये ये नैरंगे-मर्जज़ रं गे-मिकफ़ल िी उलट दे न त्रबसजते-मिकफ़ल

लशद्दते-नग़मज िी बन र्जय न वीरजनी-ए-हदल और्े-फ़दजा के तसव्वरु से लरज़ र्जतज िै हदल

क्यज दआ ु दाँ ू लमरे बच्चे िो यतरी उम्र दरजज़ ………………..डॉ. िनीफ़ कैफ़ी िमें न चजिो कक िम बदनसीब िैं लोगो साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


िमजरे चजिने वजले क्र्यज निीं करते

ये उनसे पछ ू ो र्ो िमसे क़रीब िैं लोगो

ख़ुशी के हदन कभी िमसे वफ़ज निीं करते बझ ु ी-बझ ु ी सी तबीयत, उड़ज-उड़ज सज हदमजग़ िमजरे सीनज-ए-इफ़लजस में हदले-मिरूम

तलजश करने से पजतज निीं िै अपनज सरु जग़ मचल रिज िै मगर मद् ु दआ निीं मजलम ू

िमजरी ज़ीस्त थी सजदज वरक़ प क्यज करते लसयजिी वक़्त ने उलटी थी इस सलीक़े से

ककसे िम अपनी िक़ीक़त से आशनज करते कक नक़्श कोई न उभरज ककसी तरीक़े से

वो यतश्नगी िै कक प्यजसे ख़यजल आते िैं

िमजरे ख़जबों में दररयज भी सख ू र्जते िैं ………………….डॉ. नजक्ज़म र्जफ़री

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


व्यज़क्तत्व सञ्जीव सराफ़

संर्ीव सरजफ़ पॉललप्लेक्स कजपोरे शन लल. के संस्थजपक, अध्यक्ष और मख् ु य अंशधजरक िैं। यि कजपोरे शन दयु नयज में पी.ई.टी कफ़ल्में बनजनेवजली सबसे बड़ी कंपयनयों में शजलमल िै ।

श्री संर्ीव सरजफ़ ने आरं लभक लशक्षज लसंचधयज स्कूल में िजलसल की और किर आई.आई.टी खड़गपरु से 1980 में ग्रेर्ए ु शन ककयज। इसके बजद उन्िोंने ओड़डशज में अपनज पश्ु तैनी कजरोबजर संभजलज और किर पॉललप्लेक्स के रूप में औद्योचगक र्गत में अपनी ववलशष्ट छवव बनजई। इस कंपनी की पिचजन उन्िोंने अनश ं नीय मल् ु स ू यों के आधजर पर बनजई क्र्सकी औद्योचगक र्गत में बिुत सरजिनज िुई। पॉललप्लेक्स भजरत और थजईलैंड की एक पंर्ीकृत कंपनी िै ।

श्री सरजफ़ ने व्यजपजर के दस ू रे क्षेिों में भी उत्कृष्ट सिलतजएाँ प्रजप्त की िैं। उन्िोंने ‘मनप ु ि’ नजमक क़जनन ू ी सच ू नज

उपलब्ध करनेवजली वेबसजइट भी बनजई िै । पयजावरर् से अपने गिरे सरोकजर को दशजाते िुए उन्िोंने अक्षय उर्जा के क्षेि में भी यनवेश ककयज क्र्सके िलस्वरूप पंर्जब, उिरजखंड और लसक्क्कम में पन-त्रबर्ली प्रॉर्ेक्ट स्थजवपत ककये गए। वि कई कंपयनयों के बोडा के सकक्रय सदस्य भी िैं।

श्री सरजफ़ उदजर और मजनवतजवजदी व्यक्क्त िैं र्ो कंपनी की लोकहितकजरी गयतववचधयों में भी रूचच रखते िैं। इन गयतववचधयों के अंतगात एक चैररटे बल स्कूल भी चलजयज र्ज रिज िै क्र्समें 1200 बच्चे लशक्षज पज रिे िैं। श्री सरजफ़ को पढ़ने कज ज़बदा स्त शौक़ िै । उन्िें उदा ू शजयरी से गिरज भजवनजत्मक लगजव िै और उन्िोंने उदा ू ललवप भी सीखी िै । उन्िें चचिकलज और संगीत से भी गिरज प्रेम िै ।

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


प्रयास

www.rekhta.org ‘रेख़्ता’ उर्दू शायरी का ऑन-लाइन ख़जाना वपछले कुछ वर्ों से िमजरे दे श के सजंस्कृयतक नक्शे में एक बड़ी ख़ब ू सरू त और िै रत में डजलनी वजली तब्दीली

आ रिी िै । यि बदलजव अभी परू ी तरि सति पर निीं आयज िै, इसललए लोगों की नज़रों में भी निीं आ सकज िै , लेककन बिुत र्ल्द यि अपनी तजकतवर मौर्द ू गी कज एलजन करने वजलज िै । यि बदलजव िै उदा ू शजयरी से उन लोगों की बढ़ती िुई हदलचस्पी र्ो उदा ू निीं र्जनते लेककन उदा ू ग़ज़ल की शजयरी को हदल दे बैठे िैं। उदा ू शजयरी से दीवजनगी की िद तक

बढ़ी िुई यि हदलचस्पी इन लोगों को, क्र्नमें बड़ी तजदजद नौर्वजनों की िै, ख़ुद शजयरी करने की रजि पर ले र्ज रिी िै । इसके ललए बिुत से लोग उदा ू ललवप सीख रिे िैं। इस वक़्त परू े दे श में उदा ू शजयरी के दीवजने तो लजखों िैं मगर कम से कम पजाँच िज़जर नौर्वजन लड़के-लड़ककयजाँ िैं र्ो ककसी न ककसी रूप और सति पर उदा ू शजयरी पढ़ और ललख रिे िैं।

उदा ू शजयरी के इन दीवजनों को क्र्नकी तजदजद बढ़ती र्ज रिी िै , कुछ दश्ु वजररयों कज सजमनज भी करनज पड़तज िै ।

सब से बड़ी मक्ु श्कल यि िै कक परु जने और नए उदा ू शजयरों कज कलजम प्रमजणर्क पजठ के सजथ एक र्गि िजलसल निीं िो

पजतज। ज़्यजदजतर शजयरी दे वनजगरी में उपलब्ध निीं िै, और िै भी तो आधी-अधूरी और त्रबखरी िुई। ककतजबें न लमलने की वर्ि से अचधकतर लोग इंटरनेट कज सिजरज लेते िैं मगर विजं भी उनकी तलजश को मंक्ज़ल निीं लमलती। लेककन अब उदा ू शजयरी पढ़ने और सन ु ने की प्यजस और तलजश की एक मंक्ज़ल मौर्द ू िै - वि िै सजरी दयु नयज

में उदा ू शजयरी की पिली प्रमजणर्क और ववस्तत ृ वेब-सजइट ‘रे ख़्तज’ ..... । उदा ू शजयरी की इस ऑन-लजइन पेशकश कज लोकजपार् 11 र्नवरी, 2013 को केंरीय सच ू नज एवं प्रसजरर् मंिी र्नजब कवपल लसब्बल र्ी ने ककयज थज। इस वेब-सजइट कज दफ़्तर नोएडज में िै ।

‘रे ख़्तज’ एक उद्योगपयत श्री संर्ीव सरजफ़ की, उदा ू शजयरी से दीवनगी की िद तक पिुाँची िुई मोिब्बत कज नतीर्ज िै । दस ू रों की तरि उन्िें भी उदा ू शजयरी को दे वनजगरी ललवप में िजलसल करने में दश्ु वजरी िुई, तो उन्िोंने अपने र्ैसे लोगों

को उनकी मिबब ू शजयरी उपलब्ध करजने के ललए ‘रे ख़्तज’ र्ैसी वेब-सजइट बनजने कज िैसलज ककयज, और इसके ललए ‘रे ख़्तज िजउं डेशन’ की नींव रखी गई। साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


शरू ु िोते िी यि वेब-सजइट एक ख़श्ु बू की तरि हिन्दोस्तजन और पजककस्तजन और सजरी दयु नयज में मौर्द ू उदा ू

शजयरी के दीवजनों में िैल गई। लोगों ने इसकज स्वजगत ऐसी ख़ुशी के सजथ ककयज र्ो ककसी नदी को दे ख कर बिुत हदन के प्यजसों को िोती िै । हदलचस्प बजत यि िै कक उदा ू शजयरी की इतनी भरपरू ी वेब-सजइट आर् तक पजककस्तजन में भी

निीं बनी, र्िजाँ की रजष्रभजर्ज उदा ू िै । ‘रे ख़्तज’, सजरी दयु नयज के उदा ू शजयरी के आलशकों को, उदा ू की मजतभ ृ लू म हिन्दोस्तजन कज ऐसज तोिफ़ज िै र्ो लसिा विी दे सकतज िै ।

रे ख्तज की सबसे बड़ी ववशेर्तज यि िै कक इसमें 300 सजल की उदा ू शजयरी कज प्रमजणर्क पजठ, उदा,ू दे वनजगरी और

रोमन ललवपयों में उपलब्ध करजयज गयज िै । अब तक लगभग 1000 शजयरों की लगभग 10,000 ग़ज़लें अपलोड की र्ज चक ु ी िैं। इनमें मीर, ग़जललब, ज़ौक़, मोलमन, आयतश और दजग़ र्ैसे क्लजलसकल शजयरों से लेकर फ़ैज़ अिमद फ़ैज़, सजहिर

लचु धयजनवी, अिमद फ़रजज़, शिरयजर, यनदज फ़जज़ली, कैफ़ी आज़मी र्ैसे समसजमययक शजयरों कज कलजम शजलमल िै । कोलशश की गई िै प्रलसद्ध और लोकवप्रय शजयरों कज अचधक से अचधक प्रयतयनचध कलजम पेश ककयज र्जये। लेककन ऐसे

शजयरों की भी भरपरू मौर्द ू गी को सयु नक्श्चत ककयज गयज िै , क्र्नकी शजयरी मश ु जयरों से ज़्यजदज ककतजब के पन्नों पर चमकती िै । शजयरी को पढ़ने के सजथ-सजथ ऑड़डयो सेक्शन में इसे सन ु ज भी र्ज सकतज िै । इस के अलजवज बिुत से शजयरों की प्रलसद्ध गजयकों द्वजरज गजयी गई ग़ज़लें भी पेश की गई िैं। ‘रे ख़्तज’ कज अपनज ऑड़डयो और वीड़डयो स्टूड़डयो भी िै र्िजाँ शजयरों को बल ु जकर उनकी ऑड़डयो-वीड़डयो ररकजड़डांग

की र्जती िै । नवोहदत शजयरों को एक र्ीवंत प्लेटिजमा दे नज ‘रे ख़्तज’ कज एक ख़जस मक़सद िै , क्र्सके तित कवव-गोक्ष्ठयजाँ की र्जती िै और उनकी ररकजड़डांग पर उपलब्ध करजई र्जती िै ।

उदा ू शजयरी सन ु ने और पढ़ने वजले गैर-उदा ू भजर्ी लोगों को यि मक्ु श्कल भी पेश आती िै कक उन्िें बिुत से शब्दों कज अथा मजलम ू निीं िोतज। इस मक्ु श्कल को िल करने के ललए एक ऑन-लजइन शब्दकोर् भी ‘रे ख़्तज’ पर मौर्द ू िै र्िजाँ

वेबसजइट में शजलमल िर शेर के िर शब्द कज अथा हदयज गयज िै । आप स्क्रीन पर नज़र आने वजले ककसी भी शब्द पर

क्क्लक करके उसकज अथा र्जन सकते िैं। इसके अलजवज शब्द-समि ू ों यज तरकीबों के अथा भी पेश ककए गए िै । ‘रे ख़्तज’ पर उदा ू ग़ज़ल की परम्परज, प्रतीकों और रचनजत्मक ववशेर्तजओं की व्यजख्यज भी की गई िै , तजकक नवोहदत शजयरों को रचनज प्रकक्रयज में आसजनी िो सके।

‘रे ख़्तज’ कज एक और ख़जस पिलू इसकज ‘ई-लजइब्रेरी’ सेक्शन िै र्िजाँ उदा ू की परु जनी अनप ु लब्ध ककतजबों को एक

ऑन-लजइन आकजाइव में सरु क्षक्षत ककयज र्ज रिज िै । इस सेक्शन में शजयरी के अलजवज दस ू री ववधजओं की ककतजबें और आर् के लेखकों की ककतजबें भी अपलोड की र्ज रिी िैं। ‘रे ख़्तज’ की ‘ई-लजइब्रेरी’ में अब तक लगभग 1000 ककतजबें

शजलमल की र्ज चक ंु ी नवल ककशोर प्रेस द्वजरज प्रकजलशत दल ा पस् ु ी िैं। मश ु भ ु तकों को रे ख़्तज पर अपलोड ककयज र्ज रिज िै । साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


प्रलसद्ध उदा ू लेखक सआदत िसन मंटो की मित्वपर् ू ा किजनी संग्रि को रे ख़्तज पर अपलोड ककयज र्ज चक ु ज िै। िजल िी

में रे ख़्तज को यज़ ू र फ़्रेंडली बनजयज गयज िै क्र्ससे रे ख़्तज पर उपलब्ध सजम्रगी को मोबजइल िोन पर भी आसजनी से पढ़ज र्ज सकतज िै । रे ख़्तज पर पिली बजर ग़जललब के ख़तों कज संग्रि भी उपलब्ध करजयज गयज िै ।

उदा ू की परु जनी, नई ककसी भी शजयरी यज शजयर के बजरे में ककसी को र्ो कुछ भी र्जननज िो, उसकज र्वजब

‘रे ख़्तज’ पर मौर्द ू िै । अगर सवजल कज र्वजब न लमले तो यि सवजल ‘कमें ट’ सेक्शन में पोस्ट ककयज र्ज सकतज िै । कोलशश की र्जती िै कक यि र्जनकजरी र्ल्द से र्ल्द उपलब्ध करजई र्जये। ‘रे ख़्तज’ की तरफ़ से नवोहदत शजयरों को शजयरी करने में आने वजली दश्ु वजररयों को दरू करने में मदद दे ने के ललए ‘मशवरे ’ कज लसललसलज भी शरू ु िोने वजलज िै ।

‘रे ख़्तज’ नए हिन्दोस्तजन के हदलो-हदमजग़ में उठने वजले ववचजरों और अनभ ु वों की उथल-पथ ु ल और चकजचौंध को

स्वर दे ने कज एक सशक्त ऑल-लजइन मजध्यम िै । ‘रे ख़्तज’ दे श की नई नस्ल के वैचजररक और भजवनजत्मक सशक्तीकरर्

कज एक ऐसज ज़ररयज िै, क्र्ससे िमजरे दे श के सजंस्कृयतक भववष्य को एक नई वैचजररक रक्ष्ट और नयज सौन्दया बोध िजलसल िो सकतज िै ।

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


छन्द्दालय

आचजया सञ्र्ीव वमजा ‘सललल ॐ

हिंदी के मजत्रिक छं द : १

८ मजिज : अखंड, छवव,मधुभजर, वजसव,

संर्ीव *

ववश्व वजर्ी हिंदी कज छजंदस कोश अप्रयतम, अनन्य और असीम िै । संस्कृत से ववरजसत में लमले छं दों

के सजथ-सजथ

अंग्रेर्ी, र्जपजनी आहद ववदे शी भजर्जओीँ तथज पंर्जबी, मरजठी, बर् ृ , अवधी आहद आंचललक भजर्जओं/ बोललओं के छं दों को अपनजकर तथज उन्िें अपने अनस ु जर संस्कजररत कर हिंदी ने यि समद् ृ धतज अक्र्ात की िै । हिंदी छं द शजस्ि के ववकजस में ध्वयन ववज्ञजन तथज गणर्त ने आधजरलशलज की भलू मकज यनभजयी िै ।

ववववध अंचलों में लंबे समय तक ववववध पष्ृ ठभलू म के रचनजकजरों द्वजरज व्यवहृत िोने से हिंदी में शब्द ववशेर् को एक अथा में प्रयोग करने के स्थजन पर एक िी शब्द को ववववधजथों में प्रयोग करने कज चलन िै । इससे अलभव्यक्क्त में

आसजनी तथज ववववधतज तो िोती िै ककं तु शद् ु घतज निी​ीँ रिती। ववज्ञजन ववर्यक ववर्यों के अध्येतजओं तथज हिंदी सीख रिे ववद्यजचथायों के ललये यि क्स्थयत भ्रमोत्पजदक तथज असवु वधजकजरक िै । रचनजकजर के आशय को पजठक ज्यों

कज त्यो

ग्रिर् कर सके इस िे तु िम छं द-रचनज में प्रयक् ु त ववलशष्ट शब्दों के सजथ प्रयोग ककयज र्ज रिज अथा ववशेर् यथज स्थजन दे ते रिें गे।

अक्षर / वर्ा = ध्वयन की बोली यज ललखी र्ज सकनेवजली लघत ु म स्वतंि इकजई। शब्द = अक्षरों कज सजथाक समच् ु चय।

मजिज / कलज = अक्षर के उच्चजरर् में लगज समय। लघु यज छोटी

मजिज = क्र्सके उच्चजरर् में इकजई समय लगे।

चंरत्रबंदी वजले अक्षर

भजर १, यथज अ, इ, उ, ऋ अथवज इनसे र्ुड़े अक्षर,

दीघा, हृस्व यज बड़ी मजिज = क्र्सके उच्चजरर् में अचधक समय लगे। भजर २, उक्त लघु अक्षरों को छड़कर शेर् सभी अक्षर, संयक् ु त अक्षर अथवज उनसे र्ुड़े अक्षर, अनस् ु वजर (त्रबंदी वजले अक्षर)। पद = पंक्क्त, चरर् समि ू ।

चरर् = पद कज भजग, पजद। छं द = पद समि ू ।

ययत = पंक्क्त पढ़ते समय ववरजम यज ठिरजव के स्थजन।

छं द लक्षर् = छं द की ववशेर्तज र्ो उसे अन्यों से अलग करतीं िै । साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


गर् = तीन अक्षरों कज समि ू ववशेर् (गर् कुल ८ िैं, सि ू : यमजतजरजर्भजनसलगज के पिले ८ अक्षरों में से प्रत्येक अगले २ अक्षरों को लमलजकर गर् ववशेर् कज मजिजभजर िोतज िै )।

तक ु = पंक्क्त / चरर् के अन्त में

/ वज़्न तथज मजिजक्रम इंचगत करतज िै . गर् कज नजम इसी वर्ा पर

ध्वयन की समजनतज ।

गयत = छं द में गरु ु -लघु मजत्रिक क्रम।

सम छं द = क्र्सके चजरों चरर् समजन मजिज भजर के िों।

अद्ाधसम छं द = क्र्सके सम चरर्ोँ कज मजिज भजर समजन तथज ववर्म तथज ववर्म चरर्ोँ क़ज मजिज भजर समजन न िों।

चरर्ों कज मजिज भजर एक सज

िो ककन्तु सम

ववर्म छं द = क्र्सके चरर् असमजन िों।

लय = छं द पढ़ने यज गजने की धन ु यज तज़ा। छं द भेद = छं द के प्रकजर।

वि ृ = पद्य, छं द, वसा, कजव्य रचनज । ४ प्रकजर- क. स्वर वि ृ , ख. वर्ा वि ृ , ग. मजिज वि ृ , घ. तजल वि ृ । र्जयत = समजन मजिज भजर के छं दों कज समि ू नजम।

प्रत्यय = वि रीयत क्र्ससे छं दों के भेद तथज उनकी संख्यज र्जनी र्जए। ९ प्रत्यय: प्रस्तजर, सच ू ी, पजतजल, नष्ट, उद्हदष्ट, मेरु, खंडमेरु, पतजकज तथज मकाटी।

दशजक्षर = आठ गर्ों तथज लघु - गरु ु मजिजओं के प्रथमजक्षर य म त र र् भ न स ल ग । दग्धजक्षर = छं दजरं भ में वक्र्ात लघु अक्षर - झ ि र भ र्। दे वस्तयु त में प्रयोग वक्र्ात निीं। गरु ु यज संयक् ु त दग्धजक्षर छन्दजरं भ में प्रयोग ककयज र्ज सकतज िै । अष्ट मजत्रिक छं द / वजसव छं द

र्जयत नजम वजसव (अष्ट वसओ ु ं के आधजर पर), भेद ३४, छवव,मधुभजर आहद।

संकेत: वस,ु लसद्चध, ववनजयक, मजतक ु य छं द: अखंड, ृ ज, मख्

वजसव छं दों के ३४ भेदों की मजिज बजाँट यनम्न अनस ु जर िोगी: अ. ८ लघ:ु (१) १. ११११११११,

आ. ६ लघु १ गरु ु : (७) २. ११११११२ ३. १११११२१, ४. ११११२११, ५. १११२१११, ६. ११२११११, ७. १२१११११, ८. २११११११, इ. ४ लघु २ गरु ु : (१५) ९. ११११२२, १०. १११२१२, ११. १११२२१, १२, ११२१२१, १३. ११२२११, १४, १२१२११, १५. १२२१११, १६. २१२१११, १७. २२११११, १८. ११२११२,, १९. १२११२१, २०. २११२११, २२. १२१११२, २३. २१११२१,

ई. २ लघु ३ गरु ु : (१०) २४. ११२२२, २५. १२१२२, २६. १२२१२, २७. १२२२१, २८. २१२२१, २९. २२१२१, ३०. २२२११, ३१. २११२२, ३२. २२११२, ३३. २१२१२ उ. ४ गरु ु : (१) २२२२

छं द की ४ यज ६ पंक्क्तयों के में इन भेदों कज प्रयोग कर और अनेक उप प्रकजर रचे र्ज सकते िैं. छं द लक्षर्: प्रयत चरर् ८ मजिज लक्षर् छं द:

अष्ट कलज चन ु / वजसव रचचए

साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


उदजिरर्: १. करुर्जयनधजन! सयु नए पक ु जर

रख दजस-मजन, भव से उबजर

२. कर ले लसतजर, दें छे ड़ तजर

यनत तजनसेन, सध ु -बध ु त्रबसजर

३. र्ब लोकतंि, िो लोभतंि

बन कोकतंि, िो शोकतंि

--------

अखण्ड छं द *

छं द-लक्षर्: वजसव र्जयत, ४ चरर् (प्रयत चरर् ८ मजिज), कुल ३२ मजिजओं कज छं द िै . लक्षर् छं द: चजर चरर् से दो पद रचचए, छं द अखंड न बंधन रणखए।

चरर्-चरर् िो अष्ट मजत्रिक,

गयत लय भजव त्रबम्ब रस लणखए। उदजिरर्:

१. सन ु ो प्रर्ेतज, बनो ववर्ेतज

किो किजनी यनत्य सि ु जनी

तर्ो बिजनज वचन यनभजनज

सर्न सर्ज नज! सजर् बर्ज नज! लगज ड़डठौनज, नजचे छौनज चजाँद चजाँदनी, पत ू पजवनी

िै अखंड र्ग, आठ हदशज मग पग-पग चलनज, मंक्ज़ल वरनज

२. कवव र्ी यग ु की करुर्ज ललखज दो कववतज अरुर्ज-वरुर्ज ललख दो सरदी-गरमी-बरखज ललख दो

बझ ु नज र्लनज चलनज ललख दो

रुकनज, झक ु नज, तननज ललख दो चगरनज-उठनज-बढ़नज ललख दो साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


पग-पग सीढ़ी चढ़नज ललख दो छवव छं द *

छं द लक्षर्: र्जयत वजसव, प्रयत चरर्

८ मजिज, चरर्जन्त गरु ु गरु ु (यगर्, मगर्)

लक्षर् छं द: सछ ु वव हदखजनज, मत तरसजनज

अष्ट कलजएाँ , य-म गर् भजएाँ उदजिरर्:

१. करुर्जयनधजन! सयु नए पक ु जर

रख दजस-मजन, भव से उबजर

२. कर ले लसतजर, दें छे ड़ तजर

यनत तजनसेन, सध ु -बध ु त्रबसजर

३. र्ब लोकतंि, िो लोभतंि

बन कोकतंि, िो शोकतंि

मधुभजर छं द : ८ मजिज *

छं द लक्षर्: मधुभजर अष्टमजत्रिक छं द िै . इसमें ३ -५ मजिजओं पर ययत और चरर्जन्त में लघ-ु गरु ु -लघु (र्गर्) िोतज िै . लक्षर् छं द : वस,ु लसद्चध, ववनजयक, मजतक ृ ज चन ु अष्ट कलज, िै - पजंच भलज यर्र् चरर्जन्त, मधुभजर ढलज उदजिरर्: १. सिे मधुभजर / सम ु न गि सजर

त्रिदल अरु पजाँच / अष्ट छवव सजाँच

२. सन ु ो न हिड़डम्ब / चलो अववलंब

बनो मत खंब / सदय अब अंब

सञ्र्ीव वमजा ‘सललल’ 9425183144 साहित्यम्

वर्ष 1 अङ् क 4

www.saahityam.org


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.