Saahityam dec14 jan feb 15

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साहित्यम् दिसम्बर 2014, जनवरी-फ़रवरी 2015 - वर्ष 1 - अङ्क 8 – होली दवशेर्ाङ्क

दहिंिस्ु तानी सादहत्य सेवार्ष एक शैशव-प्रयास अन्तर्जालीय पत्रिकज / सङ्कलक

सम्पजदक – नवीन सी. चतुवेदी


मन मलङ्ग, हु लसै हहया, दूर होंय दुख-ददद सावन हिररया झम ू िी, फागुन फड़कै मदद कहे सुने का बुरा न मानो – ये होली का महीना है। भैया हमारे ब्रज में िो होली याहन एक पररपर् ू द उत्सव। एक ऐसा उत्सव हजस में साल भर मन में जो अवाञ्छनीय / अनपेहि​ि / अ-सरस भावनाएँ उमगिी रहिी हैं, उन्हें रङ्गों के साथ बहा दे ने वाला पवद । शायद इसीहलये इस में नशा और गाहलयाँ अमुक सीमा को ध्यान में रखिे हु ये वीवीकायद हैं। हम में से अहाकान्श को याद होगा हकस िरह हमारे नगर-क़वीबे-गाँव के बड़े -बुजुगद न हसर्द सीमा में रहिे हु ये मन से मलङ्ग बनिे थे बहकक अन्य सदवीयों को भी मुमहकनिन शक़्ल में महवीियाँ करने की खुली छूट दे िे थे। होली के त्यौहार की बड़ी अनोखी रीि मुँह काला करिे हु ये जिलािे हैं प्रीि दुहनया जहान में इस िरह के और भी पवद मनाये जािे हैं। कुल हमला कर नीरस-जीवन-चयाद के भार से मानव-समाज हनरुत्साहहि न हो जाये इसहलये समाज-वेत्ताओं ने समय-पररहवीथहि-ववीिु-दे शकाल-वािावरर् इत्याहद को ध्यान में रखिे हु ये अपनी-अपनी सहू हलयिों के अनुसार हवहभन्न पवों को मि ू द -रूप प्रदान हकया। हमारे समय के हवहशष्ट-हवचारक आदरर्ीय राजेन्र रञ्जन जी इस हवषय पर बड़े ही अहाकार के साथ बािें करिे हैं। पवद याहन त्यौहार याहन र्ै हवीटवल बोले िो अगर हिन्दगी काया है िो उपटन हैं त्यौहार शाश्वि जीवन दशद न का अवगाहन हैं त्यौहार हवकल ह्रदय में सम्बल जागे थका बदन भी सरपट भागे कैसा भी हो कोई हनठकला त्यौहारों में 'हहकले' लागे हनज रूहच के अनुसार सभी को दे िे हैं रुजगार इसीहलये िो कहिे हैं दु​ुःख-भञ्जन हैं त्यौहार चौखट पर जब आिे उत्सव ख़ुहशयों को बरसािे उत्सव नारी और गहृ वीथी का औहचत्य-सार समझािे उत्सव जीवन की ख़ुशहाली का हैं यही सही आा​ार जगिीिल में ररश्िों का अहभनन्दन हैं त्यौहार इनसे ही जीवन में रहि है सदाचार-सौहादद सुमहि है इनके हबना वीथल ू है जीवन ये हैं िो जीवन में गहि है


इनकी महहमा अद्भुि, अनुपम, अहवचल, अपरम्पार प्रगहि-पन्थ-पररवहृ ि हे िु प्रोत्साहन हैं त्यौहार ामों का सङ्काय हहन्द है ित्वों का अहभ-प्राय हहन्द है सुहवचारों का प्रथम प्रर्ेिा पवों का पयाद य हहन्द है हवश्व गुरु का मान िभी िो दे िा है सन्सार मानव में मौिदू ईश का वन्दन हैं त्यौहार ब्रज में वसन्ि के आगमन के साथ ही होली का वािावरर् उमगने लगिा था। अलग-अलग वीथलों के जन्िु [उपरवी व्यहियों के हलये यही वीनेह-हसि सम्बोान उहचि मालम ू होिा है] अलग-अलग िरीक़े से न हसर्द आनन्द लटू िे थे बहकक सामने वाले को भी आनन्द-रस से िर-ब-िर करिे थे। ‘थे’ सायास हलखा है चँहू क अब िो वीव-आनन्द ही सवोपरर प्रिीि होिा है। होली को ले कर बचपन की कुछ वीमहृ ियाँ :कहाँ गईं वे महवीियाँ, कहाँ गई वह मौज वे केशर की क्याररयाँ, गोबर वाले हौज गोबर वाले हौज बीच डुबकी लगवाना कुिे पर ‘पागल’ वाली िख़्िी लटकाना याद आ रहा है हम जो करिे थे अक्सर बीच सड़क पर एक रुपैया कील ठोंक कर आओ हदखलाएँ िुम्हें , सीन और इक यार लकला जी के हजवीम पर, कुरिी अरु शलवार कुरिी अरु शलवार ा​ार जब हनकलें बाबू साँड़ और कुछ बछड़े हो जाएँ बेक़ाबू इस डर से हाथों को पीछे बाँाे डोलें हगर सकिी हैं गेंद अगर हाथों को खोलें होिा ही है हर बरस अपना िो ये हाल जैसे ही फागुन लगे, हदल की बदले चाल हदल की बदले चाल, हाल कुछ यँ ू होिा है लगिा है दुहनया मैना अरु हदल िोिा है फागुन में िौ भैया ऐसौ रङ्ग चढै है भङ्ग हपएँ हबन हू दुहनया खुस-रङ्ग लगै है होली के त्यौहार की, बड़ी अनोखी रीि मुँह काला करिे हु ये जिलािे हैं प्रीि जिलािे हैं प्रीि, रङ्गदारी करिे हैं


साि पुश्ि की ऐसी की िैसी करिे हैं करिे हैं सत्कार गाहलयों को गा-गा कर लेहकन सुनने वाले को भी हँसा-हँ सा कर जीजा-साली या हक हफर दे वर-भाभी सङ्ग होली के त्यौहार में , हखलिे ही हैं रङ्ग हखलिे ही हैं रङ्ग, अङ्ग-प्रत्यङ्ग हभगो कर िाई जी हँसिी हैं फूफाजी को ाो कर लेहकन िब से अब में इिना अन्िर आया पहले मन रँ गिे थे - अब रँ गिे हैं काया सब के हदल ग़मगीन हैं, बेकल सब सन्सार मुमहकन हो िो इस बरस, कुछ ऐसा हो यार कुछ ऐसा हो यार, प्यार की बहगया महकें हजन की डाली-डाली पर हदलवाले चहकें ख़ुहशयों को दुलराएँ , ग़मों को पीछे ठे लें ऐसी अब के साल, साल भर होली खेलें िो हर साल की िरह इस साल भी होली पर क्या हकया जाये – यह मन में हवचार चल रहा था। भाई कमलेश पाण्डे य और हफरोि मुिफ्र्र – ये दो ऐसे साथी हैं जो हक जब-जब मैं थकने लगिा हू ँ िो ये दौनों िथा कुछ और भी ‘अज्ञाि-हवा​ािा’ मुझे मे रा र्िद याद हदला दे िे हैं। ब्रज-गजल-सङ्रह “पुखराज हबा में उड़ रए एँ ” का प्रकाशन, पररवार में कई माङ्गहलक प्रसङ्ग, कारोबारी मसरूहर्याि के अलावा पल-पल बदलिे मौसम ने भी वीवावी्य को हगरा कर इस बार बहु ि परे शान हकया। ख़ैर अब अङ्क ले कर आप के सामने उपहवीथि हू ँ। र्रवरी के दूसरे हफ़्िे में िय हु आ हक आगामी अङ्क को होली हवशेषाङ्क के वीवरूप में हनकाला जाय। सभी साहथयों को ररमाइण्ड हकया। इिने कम समय में हजस से जो बन पड़ा, िक़रीबन सब ही ने सहयोग हकया। इस अङ्क की ख़ाहसयि है मे री कहिन ‘गुहड़या’ याहन अचद ना चिुवेदी। बचपन के बाद इस से कभी हमलना नहीं हो पाया। अन्िजाद ल ही पर मुलाक़ाि हु ई और इस का आलेख ले कर आये कमलेश पाण्डे य जी :-

अचद ना चिुवेदी होली का नाम सुनिे ही हमें अपने मोहकले चच्चा---- की याद बड़ी जोरों से आ जािी है | वैसे िो हमारे चाचा जी बड़े ही शांि शरीफ आदमी टाइप थे पर होली का मौसम आिे याहन फागुन शुरू होिे ही चचा के भीिर कोई शैिान सा घुस जावे था और हफर शुरू होिी चचा की शैिाहनयाँ | चचा के खुराफािी हदमाग में ऐसी ऐसी शैिाहनयाँ आिी हक मजाल है कोई हकिना भी होहशयार हो िो भी उनके हमले से बच नही पािा | उनकी एक टोली बन जािी और हफर शुरू होिा


नाक में दम करने का दौर | यहद कोई चचा को डांटे या उनके माँ बाबा से उनकी हशकायि करे िो चचा ऐसा सबक हसखािे हक वो ससुरा परू ी हजंदगी चचा के रवीिे में आने की हहम्मि ना करिा | एक बार हमारे मौहकले के ही रामचरर् काका ने चचा की हशकायि उनके हपिाजी से कर दी और चचा को पड़ी मार | चचा का खन ू खौल गया अपनी बन्दर टोली के साथ हमलकर रामचरर् काका को सबक हसखाने की सोची| चचा ने गली से गाय का गोबर उठाया और एक दौने में रख बाहर चाट वाले के पास गए उसे रूपये हदए और बोले “इस पर दही सौंठ चटनी सब डार दे जे एक दम दही बड़ा जैसो लगनो चाहहए” चाट वाला उन्हें जानिा था चुप चाप दौना सजाया और दे हदया | हफर चचा ने एक बच्चे को पकड़ा और उसके हाथो वो गोबर वाला दही बड़ा रामचरर् काका के पास हभजवा हदया | काका खाने के शौकीन थे सो अडौस पडौस वाले कुछ ना कुछ भेजिे रहिे थे | बच्चे ने कहा “काका ये माँ ने भेजा है” काका ने चट्ट से दौना लपका और गप्प से चम्मच भर के मुहं में डाला हजस गहि से दही बड़ा मुहं में गया, उसकी दुगुनी गहि से वाहपस भी आ गया | अब िो बेचारे काका हलक में उँ गहलयाँ दे दे कर उहकटयां कर रहे थे और चचा टोली िाहलयाँ पीट पीट कर हँस रही थी और काका रं ग हबरं गी गाहलयाँ बरसा रहे थे | परू ा मोहकला इस फ्री की हफकम का आनंद ले रहा था | पर ये पक्का था अब काका हमारे चच्चा के रवीिे में िो नही आएगा | ये चच्चा और उनकी बन्दर टोली, होली जलाने के हलए गािे बजािे चंदा मांगने आिी “पैसा दे गी जभी टरें गे,नई िौ िेरे घर में मस ू े मरें गे” और जो आनाकानी करिा उसके घर का लकड़ी का सामान ले जाकर फं ू क डालिी | हकसी की चारपाई िो हकसी के हकबाड़ उखार कर ले जािे इसहलए सब चुपचाप चंदा दे िे | होली की हमठाई के नाम पर हकिनों को भांग की बफी या लड्डू हखला डालिे और मे ला करवा दे िे | कभी पीली हमटटी से मे वावाटी बना कर हखलािे | परू े महकले में उनकी ही कौिुक कथाएं चलिी | पर चच्चा हदल के भी बहु ि अच्छे थे, हमारी माँ की िो बहु ि इज्जि करिे | हमारी माँ कभी होली नहीं खेलिी थी ऐसा नही था हक माँ को होली पसंद नहीं उस वि सयुंि पररवार थे, सबकी पसंद के पकवान बनाने के चक्कर में माँ परू ा हदन रसोई में ही रहिी | चच्चा ने कई बार कहा भाभी होली खे लो न पर माँ हर बार मना कर दे िी पापा भी कहिे पर माँ मना कर दे िी और िो और रसोई से बाहर भी नही आिी हक कोई रं ग ना लगा दे | पापा का शायद मन करिा माँ को रं ग लगाने का पर सब को दे खकर चुप ही रहिे ये बाि चच्चा ने िाड़ ली थी | एक बार होली वाले हदन हमारे घर एक सुन्दर सी महहला आई ,उसने सलवार सटू पहना हु आ था, खबू मे क अप भी हकया था हम बच्चों से बोली “जरा अपनी मम्मी को बुलाना बेटा”कहना आपकी सहे ली आई है | हमने माँ को बोला, माँ रसोई में ही थी, सहे ली का नाम सुनकर दौडी आई | अभी माँ पहचानने की कोहशश ही कर रही थी हक उस सुन्दर महहला ने माँ के ऊपर खबू सारा गुलाल डाल हदया ,माँ ने भी एकदम से उनके हाथ से गुलाल छीन कर उनके ऊपर गुलाल डाल हदया िभी पापा भी आ गए हफर िो उस हदन माँ ने खबू होली खेली | बाद जब पिा चला हक वो सहे ली और कोई नही चचा ही थे ये प्लान उन्होंने पापा और हमारे चाचा के साथ हमलकर बनाया था | उस वाकये को सोच कर माँ आज िक हँसिी हैं |


कुछ भी कहो चच्चा परू े मोहकले की जान थे यहद चच्चा नहीं होिे िो होली होली जैसी किई नहीं होिी,जे िो हमें पिा चल ही गया जब चच्चा की नौकरी लग गयी और वो दूसरे शहर चले गए| शुरू में िो होली पर घर आिे हफर आना कम हो गया और हम भी शादी होकर अपने ससुराल हवदा हो गए | पर चच्चा की याद आिे ही हमें अपने मायके की होली याद जरुर आ जािी है | अबकी हम मथुरा गए िो चच्चा हमल गए हमें दे ख बड़े खुश हु ए और बोले “लाली कैसी है री िू हकत्ते साल में दे खी है” मैंने छूटिे ही कहा “चच्चा में िो ठीक हू ँ , जे बिाओ वहाँ शहर में भी वैसे ही होली मनािे हो ना” मे री बाि सुनिे ही चच्चा उदास हो गए और बोले “लाली होली िो हो ली, मैंने कहा, “क्या मिलब चाचा ?” िो चाचा बोले “शहरों का आदमी िो रोटी और पानी के हलए हदनभर खट रहा है | पीने को िो मुहश्कल से पानी हमलिा है, होली कैसे खेलंगे और कैसे रं ग छुडाएं गे | इत्ती महंगाई में कैसे होली जलायंगे और कैसे पकवान बनायेंगे | और हकसके संग होली मनाएं जब हमें ये भी नही पिा हक पडौस के घर में कौन रह रहा है ? सो बेटा होली िो हो ली | याहन हमें जो खेलनी थी खेल चुके चच्चा की आँखों में उदासी थी हमारी आँखों में पुराने चच्चा और पुरानी होली थी |

**** दे खा छोटी सी गुहड़या हकिनी सयानी हो गयी है। खुस रह बे टा, भौि बहिया आहटद कल पिवायौ िैनें। वैसे होली पर हकसी वररष्ठ को वररष्ठ कहना अहिशय गररष्ठ अपरा​ा होिा है, हफर भी, आइये अपने रुप के एक वररष्ठ सदवीय हजन्हें सिीश सक्सेना के नाम से जान हलया जािा है, आइये की क़लम की बेलौस ा​ार का आनन्द उठाया जाये :-

सिीश सक्सेना

अपने घर में ही आँखों पर कैसी पट्टी , बाँा रखी है ! इन लोगों ने जाने कब से , मन में रं हजश पाल रखी है ! इस होली पर क्यों न सुलगिे , हदल के ये अंगार बुझा दें ! मुट्ठी भर कुछ रँ ग, फागुन में , अपने घर में भी, हबखरा दें ! हकिना ददद हदया अपनों को


हजनसे हमने चलना सीखा ! हकिनी चोट लगाई उनको हजनसे हमने, हँसना सीखा ! वीनेहहल आँखों के आंसू , कभी नहीं जग को हदख पायें ! इस होली पर, घर में आकर, कुछ गुलाब के फूल चिा लें ! जब से घर से दूर गए हो , ढोल नगाड़े , बेसुर लगिे ! हबन प्यारों के, मीठी गुहझया, उड़िे रं ग, सब फीके लगिे ! मुट्ठी भर गुलाल फागुन में , फीके चेहरों को महका दें ! सबके संग ठहाका लेकर,अपने घर को वीवगद बना लें ** नमन करूं , गुरु घंटालों के ! पाँव छुऊँ , भि ू हनयों के ! राजनीहि के मक्कारों ने,ान से खेली होली है ! आओ छींटें मारे , रं ग के, बुरा न मानो होली है ! गुरु है, गुड से चेला शक्कर गुरु के गुरु पटाये जाकर ! गुरुभाई से राज पंछ ू कर , गुरु की गैया, दुह ली है ! जहाँ हमला मौका, दे वर ने जम के खेली होली है ! घंघ ू ट हटा के पैग बनािी ! हहंदी खुश हो नाम कमािी ! पंि मैहथली सम्मुख इसके, अक्सर भरिे पानी है ! हव्हवीकी और कबाब ने कैसे, हंसके खे ली होली है ! अामद करके ामद हसखािे ान पाने के कमद हसखािे


निर बचाके,कैसे उसने,दूा में गोली, घोली है ! खद्दर पहन के नेिाओं ने, दे श में खेली होली है !

***** सिीश भाई के ब्लॉग पर जाएँ िो आप को हलखा हमलेगा हक “माँ की दवा को चोरी करिे बच्चे की वेदना हलखंग ू ा”। एक अलग ही सोच वाले सिीश भाई हठामी रचनाकार हैं, बन्ान इन्हें वीवीकायद नहीं और भैया होली हवशे षाङ्क भी बन्ानों को उिनी िवज़्िोह दे ना भी नहीं चाहिा। होली है िो बस होली के रङ्गों का मिा लेिे हैं बस। आइये पहले कुछ काव्य कृहियों को पि​िे हैं और हफर एक सटायर

इवीमि िैदी – हशर्ा किगाँवी

है होली रं गों का त्योहार ये रँ ग बाँटे हैं सब में प्यार न इन में द्वे ष घोलना ये सुंदर भावों का संचार है इक दूजे की ये मनुहार न इन में द्वे ष घोलना है होली नर्रि से इं कार हदलों के बीच न हो व्यापार न इन में द्वे ष घोलना है हपचकारी वो प्रेम की ा​ार हगरा दे नर्रि की दीवार न इन में द्वे ष घोलना


हैं इन रं गों के अथद हिार नहीं हैं केवल ये बौछार न इन में द्वे ष घोल

अनुपमा हिपाठी फागुन की ऋिु घर आई .....!! प्रकृहि गाये माुवंिी .... और बहार राग ... हर सू ऐसा हछटका .... फाग के अनुराग का पराग ... हृदय छं द हु ए वीवच्छं द .... मंद मंद महु आ की गंा ...... िोड़िी मन िटबंा .... हनशा रागवन्िी हदवस परागवंि .... अलमवीि माुमास दे ख ..... ...वहनिा लाजवंि ........ पलाश मन रं ग रं गा ... पुष्प पंखुहड़यों से रं गोली सजाई ...

हककी-फुलकी बािों में से हावीय को िाड़ कर और हफर उसे बग़ैर भौंड़ा हु ये पाठकों को गुदगुदाने के हलये इवीिेमाल करने के उपक्रम ही को व्यङ्​्य कहिे हैं। भाई आलोक पुराहर्क ऐसे ही व्यङ्​्यकार हैं जो हक बड़ी ही आसानी से पाठकों के पेट में गुलगुली मचा दे िे हैं। और कहीं-कहीं हमें सोचने के हलये मिबरू भी कर दे िे हैं। आइये उन के एक व्यङ्​्यालेख का आनन्द लेिे हैं


होली के पासवडद - आलोक पुराहर्क हु जरू वो वि गया जब शब्द की, वडद की कीमि होिी थी। अब िो कीमि पासवडद की है। साफ्टवेयर कारोबारी भी हनकल हलये हैं, नये ांाे करने के हलए। सो नयी कहानी सामने आयी। गोहपयों से कहा गया हक इार मीहडया बहु ि माकेट फ्रेंडली हो हलया है, आपके होली डांस की फुटेज ले जािा है फोकटी में , और टीवी पर हदखा हदखाकर उनसे इहश्िहार वसल ू िा है करोड़ों में । आप अपने होली डांस को पासवडद प्रोटेक्टेड कर लो जी। होली डांस का पासवडद दे ने के हम हसफद लाखों लेंगे, और मीहडया को वो पासवडद बिाने के िुम करोड़ों वसल ू ना। पर िब िो हमारे ्वाल बाल भी हमारे साथ डांस ना कर पायेंगे-गोहपयों ने आशंका जिायीं। नो प्राबलम, हम िुम्हे पासवडद दें गे, िुम हजसे चाहोगी, उसे ये पासवडद दे दे ना। वह िुम्हारे साफ्टवे यर में इसे फीड करे गा और िुम डांस शुरु कर दोगी-टेकनीकल एक्सपटद ने बिाया। पर अगर हम पासवडद भल ू गये, िो-सरल गोहपयों ने सहज आशंका रखी। िो िुम हमारे कवीटमर केयर पर फोन कर लेना, दूसरा पासवडद हमल जायेगा। टम्सद एं ड कंडीशन्स एप्लाई यानी पचास हजार रुपये आपको दे ने होंगे। पचास हजार रुपये दे ने वाली बाि बहु ि ाीमे से कही गयी। गोहपयां िैयार हो गयीं। लाखों दे कर पासवडद खरीद हलये, करोड़ों कमाने की उम्मीद में । साफ्टवेयर वाले हनकल हलये, जाकर गोहपयों के पासवडद बिा हदये अमे ररकनों और उनसे कहा हक आप इन पासवडों के सहारे गोहपयों के साथ डांस करें । उनकी शहू टंग करें । हफर उन्हे महंगे अमे ररकन चैनलों पर हदखायें। अमे ररकनों को पासवडद बिाने के करोड़ों डालर वसल ू े,साफ्टवेयर वालों ने। होली के आसपास सीन ये हु आ हक ब्रजमंडल में हसफद अमे ररकन गर् गोहपयों के साथ डांस कर रहे थे। गोहपयां अहनच्छुक थीं, पर चंहू क उनके साफ्टवेयर से अमे ररकनों का पासवडद मैच कर गया था, इसहलए वो खुद ब खुद डांस कर रही थीं। और हु आ ये था हक गोहपयां अपने पासवडद खुद भल ू गयी थीं, गोहपयों ने कवीटमर केयर सेंटर पर फोन कहा िो सीन ये हु आहलो मैं गोपी नंबर वन बोल रही हैं। क्या मे री बाि कवीटमर केयर एक्जीक्यहू टव से हो सकिी है। जी कवीटमर केयर पर संपकद करने के हलए ान्यवाद। आपका हदन शुभ हो। आप अपनी जन्महिहथ बिायें। जी जन्महिहथ िो मुझे याद नहीं है। अरे िो आप अपना पैन काडद नंबर बिायें।


जी पैन काडद िो मे रे पास है ही नहीं। ओके हफर िो आप को हमारे नजदीकी दफ्िर में जाकर एक फामद भरना होगा। िब आपको नया पासवडद कूररयर से भेजा जायेगा। पर जब िक ये सब होगा, होली हनकल जायेगी। मे री कमाई के सारे चांस खत्म हो लेंगे। दे हखये मैं िो आपको प्रोसीजर बिा रही हू ं, होली हनकलेगी या दीवाली हनकलेगी, ये मुझे नहीं पिा। ओफ्फो, जब आपके एक्जीक्यहू टव पासवडद बेचने आये थे , िब िो बहु ि ही िमीज से बाि कर रहे थे , आप िो बहु ि बदिमीजी से बाि कर रही हैं। दे हखये, िमीज का सारा कोटा हम राहक बनाने में खचद कर दे िे हैं। उसके बाद हमारे पास हसफद बदिमीजी ही बचिी है। मैं आपको प्रोसीजर बिा चुकी हू ं। आप उसे फालो करें । ओफ्फो, डांस िो होली पर करना है। उसके बाद डांस क्यों करना। दे हखये, अब िो डांस साल भर चलिा रहिा है। कोई ना कोई फंक्शन होिा है, उसमें डांस कर सकिी हैं। हमारी सहयोगी कंपनी िमाम शाहदयों में रौनक लगाने के हलए अच्छे डांसर सप्लाई करिी है। आप उस कंपनी में अपना रहजवीरेशन करा दें , परू े साल आपको डांस के आफर हमलिे रहें गे. ओफ्फो, आप बाि नहीं समझ रही हैं, हम िो होली के मवीिी वाला डांस करिे हैं, हनमद ल, सहज आनंद के हलए। दे हखये, हनमद ल, सहज जैसे शब्द जो आप बोल रही हैं। ये िो अच्छे नाम हैं, हनमद ल नाम से घी या मक्खन बेचा जा सकिा है। कोई संि इस पर अपना कारोबार पहले ही चला गये हैं। सहज हकसी योग का ब्रांड हो सकिा है। आप चाहें , िो ये नाम रहजवीटर करा सकिी हैं। इस संबंा में आप हमारी सहयोगी कंपनी से मदद ले सकिी हैं। वह बहु ि सवीिे भावों में आपको सहवद स दे दे गी। ओफ्फो, आप िो मुझे कुछ ना कुछ बेचने पर आमादा हैं। आप मे री प्राबलम को साकव कीहजये ना। चहलये मे री अपने हकसी सीहनयर कवीटमर केयर एक्जीक्यहू टव से बाि कराइये। दे हखये, िमा करें , अभी हमारे सारे कवीटमर केयर आफीसर हकसी ना हकसी गोपी से बाि करने में हबजी हैं। आप राि को दो बजे काल कीहजये, िब वो फ्री होंगे। ओफ्फो, राि को दो बजे काल करने को कौन जगेगा। दे हखये, वो आपकी समवीया है, हमारी नहीं। आपका हदन शुभ हो और राि भी।


इस होहलका कथा से हमें ये हशिा हमलिी है हक कवीटमर केयर हडपाटद मेंट कवीटमर की केयर के हलए नहीं, कंपनी की कमाई की केयर करने भर के हलए होिा है।

हम में से अहाकान्श लोग पहू र्द मा वमद न जी के प्रककप ‘अनुभहू ि’ के बारे में जानिे होंगे। ककपना जी उस प्रककप का एक महत्वपर् ू द हकरदार हैं। अनुभहू ि को अनुभहू ि हजस टीम ने बनाया उस में ककपना जी का भी शुमार होिा है। मैं इन से बस एक ही बार इन के खारघर हवीथि आवास पर हमला हू ँ। शायद एक दो बार फोन पर बाि हु ई हो। वीवावी्य को लगभग माि दे चुकीं आदरर्ीया ककपना जी साहहत्यसेवा के हलये सदैव ित्पर रहिी हैं। साहहत्य की हवहवा हवा​ाओं में रचनात्मक प्रयास करना इन का हप्रय शगल है। आप के िप को नमन।

ककपना रामानी

ऐ हवा, रं गों नहाओ, आ गया फागुन। ाम ू मौसम की मचाओ, आ गया फागुन। दे श से रूठी हु ई है, राि पन ू म की, चाँद को जाकर मनाओ, आ गया फागुन। वन चमन के फूल आिुर, दे ख लो हकिने, नेह न्यौिा दे के आओ, आ गया फागुन। हफर रहे हैं मन-मुहदि सब, बाल बहगया में , झल ू ना उनका झुलाओ, आ गया फागुन। साज हैं, सरगम भी है, िैयार हैं घुँघरू, िुम सखी, शुभ गीि गाओ, आ गया फागुन। खग, हवहग-वंदृ ों के जाकर, कान में कह दो, मोर कोयल को जगाओ, आ गया फागुन। िान हपचकारी खड़ी है, द्वार पर होली, प्रेम की गंगा बहाओ, आ गया फागुन।


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फगुनाहट से जाग उठी है जग में होली। रं ग पलाशों से लेकर जन हु ए रँ गीले। साथ फब रहे लाल हरे , केसररया पीले। सख ू े को मुँह हचिा रहे रं ग गीले हँ सकर, भंग चिा पकवान हो गए और रसीले। हपचकारी पर हफदा हो रही, कोरी चोली। फगुनाहट से जाग उठी है जग में होली।

मौसम बदला, नमद हवा ने पाँव पसारे । खारे जल के िाल हो गए मीठे सारे । चस ू -चस ू कर आम कोहकला सुर में कुहकी, आए हमलने गले िमी से चाँद हसिारे । हु ररयारों से होड़ ले रहे ढम-ढम ढोली। फगुनाहट से जाग उठी है जग में होली।

शहरों में डीजे गाँवों में बजिी पैंजन। दे श हो हक परदे स,पवद की


एक वही ाुन। खेिों में सरसों हखलिी, उद्यानों कहलयाँ, कर् कर् में रस भर दे िा सुखदाई फागुन। आिा संग ामाल शगुन की भरकर झोली। फगुनाहट से जाग उठी है जग में होली। -----------सार छं द रं ग हदवस फागुन के छन्न पकैया, छन्न पकैया, उड़े रं ग के बादल, पीि, गुलाबी, लाल हु आ है, वसुंारा का आँचल। छन्न पकैया, छन्न पकैया, यह ऋिु सबको भाई, भँवरों की मनुहार दे खकर, कली-कली इिराई। छन्न पकैया, छन्न पकैया, गुमीं घटाएँ िम की, दे ख रही है जलिी होली, जाग राि पन ू म की। छन्न पकैया, छन्न पकैया, वन पलाश हफर दहके, रं ग सुनहरा दे ख गगन में , उड़िे पाखी बहके। छन्न पकैया, छन्न पकैया, हफरे आम बौराया, मोर कोहकला ने बागों को, सुर में गीि सुनाया। छन्न पकैया, छन्न पकैया, दे खा दृश्य हवहंगम, हपचकारी भर खग-मग ृ लाए, रं ग घोलकर अनुपम। छन्न पकैया, छन्न पकैया, हु ई खबू हखलवाई, जब सहखयों ने भंग हमलाकर, ठं डई घोट हपलाई। छन्न पकैया, छन्न पकैया , गाएँ गीि शगुन के। बार-बार जीवन में आएँ , रं ग हदवस फागुन के।


***** अन्िजाद ल पर ‘छन्न-पकैया’ को हमलोगों के बीच सम्भवि: भाई योगराज प्रभाकर जी ले कर आये। रामीर् अञ्चल का साहन्नध्य हजन लोगों को नसीब हु आ हो वह जानिे होंगे हक ‘छन्न पकैया’ या इस िरह के अन्य िहकया कलामों के साथ हमारे लोक-साहहत्य में अपररहमि रचनाएँ हु ई हैं, और उन में से लगभग 99% अब लुप्त भी हो चली हैं। हम जैसों को बावला कहने वालों का हम इसहलये बुरा नहीं मानिे चँहू क इस िरह की बािों को विद मान समय नोवीटाहकजया के नाम से जानिा है। याद आिा है हम लोगों के बचपन में हवज्ञापन वाले हमें बिािे थे हक नमक से दािुन करने पर दाँि ख़राब हो जािे हैं और वही हवज्ञापन वाले अब हमारे बच्चों से पछ ू रहे हैं हक आप के टूट-पेवीट में नमक है हक नहीं? याहन आहख़रकार ये लोग हमारी भोर को ख़चों के साथ शुरू करने में सफल हो ही गये। ख़ैर समय ने कब हकस की सुनी है जो हम लोगों ही की सुनेगा? चहलये अब उस फुरसहिया जी के सटायर से लुत्र्न्दोि हु आ जाये :-

“एक र्ेसबुहकये की डायरी” – अनपू शुक्ल उर्द र्ुरसहिया आजकल र्ेसबुक का जमाना है। लोग कुछ भी करिे हैं उसका वीटेटस FB पर डालिे हैं। समोसा खा रहे है। बोर हो रहे हैं। अच्छा लग रहा है। झुंझला रहे हैं। ब्लॉक/अनफ़्रेंड कर हदया। ऐसा र्ील कर रहे हैं। वैसा महसस ू हो रहा है। कुछ हो रहा है। कुछ-कुछ हो रहा है। कुछ भी हकया जाये अगर उसको र्ेसबुक पर न डाला जाये िो लगिा है वो काम हु आ ही नहीं। र्ेसबुक वीटेटस हबन सब सन ू । हालांहक र्ेसबुक पर लोग सब कुछ कह लेिे हैं लेहकन हर्र भी बहु ि कुछ रह जािा है हजसे शरार्ि के मारे लोग साझा नहीं करिे। ऐसे लोग अपने मन के भाव अपनी डायरी में हलखिे हैं। ऐसी ही कुछ डायररयां हाथ लगीं। उनको दे खकर लगा हक हकिना कुछ छूट जािा है र्ेसबुक आने से। उन डायररयों में से कुछ के अंश यहां प्रवीिुि हैं: 1.आज हर्र उसने अपनी प्रोर्ाइल हपक बदली। बेवकूर् को पिा नहीं हक प्रोर्ाइल बदलने से शक्ल नहीं बदल जािी। मन नहीं था लेहकन लाइक करनी पड़ी। हगकटी र्ील हो रहा है। र्ेसबुक के चलिे हकत्ता झठ ू बोलना पड़िा है। 2.उसने नयी र्ोटो लगायी है। हवा में उड़िे हु ये बाल दे खकर मन हकया हक हलखें- ये बाल नहीं िेरे सर से बची-खुची अकल हनकलकर बाहर भाग रही है। लेहकन हर्र हलखा नहीं। उसको ये खुशर्हमी हो जािी हक उसके पास भी अकल है। हकसी को क्यों ाोखे में रखना। आंख मंदू कर फोटो लाइक कर हदया।


3.उसने आज हकसी को ब्लॉक करने की उद्घोषर्ा नहीं की। मन हकया पछ ू ू ं हक िहबयि िो ठीक है। लेहकन हर्र नहीं पछ ू ा। हकसी के पसद नल मैटर में क्या दखल दे ना। हजत्ती दे र में कमें ट हलखेंगे उत्ते में दस ठो लाइक कर लेंगे। 4.हपछले दस हदन से एक ही आई.डी. से र्ेसबुहकंग करिे-करिे बोर हो रहे हैं। खराब लग रहा है। सोचा था आज पक्का नई आई.डी. बनायेंगे। लेहकन नहीं बनाई। ये क्या हो रहा मुझे। गग ू हलंग करना पड़े गी हक ऐसी मन:हवीथहि को क्या कहिे हैं। कुछ इम्प्रेहसव कहिे होंगे िो उसको अपना वीटेटस बना लेंगे। - र्ीहलंग हडटरमाइन्ड। 5.ब्लॉग दे ख रही हू ं आजकल वो मुई ं उसका वीटेटस सबसे पहले लाइक करिी है। घोटाले के पीछे CAG की िरह उसके वीटेटस से हचपकी रहिी है। पछ ू ना पड़े गा उससे चक्कर क्या है? आजकल चैट भी नहीं करिा। लगिा है नई आई.डी. से चैट करनी पड़े गी। ये भी औरों की ही िरह है। 6.आज उसने हर्र कुत्ते के साथ अपना र्ोटू लगाया है। मन िो हकया मे नका गांाी को हलख दें हक दे हखये आपके रहिे जानवरों के साथ हकत्ता िो अन्याय हो रहा है। लेहकन हर्र छोड़ हदया। कमें ट हकया - (कुत्ते का) र्ोटो बहु ि अच्छा लग रहा है। ब्रैकेट के अंदर वाली बाि मन में कही। ही ही ही ही smile emoticon smile emoticon smile emoticon 7.आजकल हजसे दे खो, कहविा हलखने में लगा है। हकिना िो क्रूर हो गये हैं लोग। शब्दों के साथ अत्याचार दे खकर मन दुखी हो जािा है। कुछ शब्दों से बाि हु ई। बेचारे कह रहे थे -पिा होिा हक हमारे साथ इत्ता बेरहम सलक ू होगा िो हम हडक्शनरी से भाग जािे। र्ीहलंग ………. (खाली जगह रीिा से पछ ू कर भरूंगी। उसको ये सब अच्छा आिा है हक कब कैसे र्ील होना चाहहये। ) 8.िीन हदन से दुष्ट ने हे कलो नहीं बोला। सोचिा है मैं पहले बोलं।ू माई र्ुट। मे रे पांच हजार दोवीि हैं िीन हजार िीस र्ालोवर। उस बेवकूर् के िीन सौ इक्वावन दोवीि। गुवीसा आ गया। उसके वीटेटस पर (हजसको पहले लाइक हकया था) जाकर वीटेटस को सैकड़ों बार हडसलाइक/लाइक हकया। वीटेटस को हझंझोड़ कर रख हदया। कूल र्ील हु आ। हर्र वीटेटस लगाया- भुट्टा चबा रहे हैं, ठं ड़ा पीिे हु ये। smile emoticon 9.कुछ भाई लोग िो ज्ञान की बािें इत्ती बेवकूर्ी से करिे हैं हक मन करिा है एक उन्नाव के डौंहडया गांव में खुदाई के हलये लगी एक ठो जेसीबी इनके हदमाग में भी लगा दें । सारी अकल का मलबा हनकाल के हदमाग को खाली कर दें । लेहकन हर्र लगिा है कूड़ा कूड़े दान में ही रहे िो अच्छा। जमीन पर काहे को र्ै लाया जाये। 10.आज मंडे की भी छुट्टी थी। छुट्टी मिलब संडे समझकर मैंने टीना को संडे वाली आई.डी. से हे कलो बोल हदया। वो घंटे भर िक मुंह र्ुलाये रही। िरह-िरह के बेवकूर्ी के आइकान भेज कर उसको मनाना पड़ा। ये लड़हकयां भी हकत्ती चज ू ी होिी हैं यार। मन िो हकया हक वीटेटस लगाऊं -टाहकंग टू र्ूल, र्ीहलंग इरीटेटेड लेहकन हर्र लगा वो समझ जायेगी िो वीटेटस लगाया- एन्ज्वाइंग संडे, र्ीहलंग रेट


11.दोवीि बिा रहा था हक वो आजकल बहु ि व्यवीि है। दो आई.डी. बनाई है उसने। दोनों प्रा​ानमंहियों की िरर् से र्ेसबुक पर जंग लड़िा है। एक आई.डी. हकसी के हखलार् वीटेटस हलखिा है। दूसरी से उसके हखलार् िकद। घंटे दो घंटे एक वीटेटस पर कुश्िी लड़ने के बाद अगला वीटेटस लगा दे िा है। बिा रहा था प्रा​ानमंिी कोई बने उसका चमचा-इन-चीर् बनना पक्का है। राज्यमंिी के दजे की आशा है। मन हकया उसको कहें ’शेखहचकली कहीं के’ लेहकन ’रेट’ कहके बॉय कह हदया। वीटेटस सटाया- र्ीहलंग ररलैक्ड। 12.भाईसाहब ने बहु ि हदन से कोई वीटेटस अपडे ट नहीं हकया। आज एक लड़के को र्ुसलाकर लगभग जबररयन समोसा हखला रहे हैं। पक्का दस हमनट के अंदर वीटेटस लगायेंगे- आज एक भख ू े को भोजन कराया। संिुष्ट महसस ू कर रहा हू ं। मैं सोच रहा हू ं हक मैं कमें ट करूंगा – क्या अजब पाखंड है। लेहकन मुझे पिा है हक मैं हकसी को हटद नहीं कर सकिा। र्ाइनली हदल पर पत्थर रखकर हलखंग ू ा- मानविा की सच्ची सेवा। 13.आज शाम एक फ़्रेंड का र्ोन आया। कहा आज हकसी से र्ेसबुक ब्रेकअप नहीं हु आ। िहबयि घबरा रही है। र्ीहलंग लो। मैंने कहा िो मैं क्या करूं? िो उसने कहा यार िू ही मुझसे लवर बनकर बाि कर ले। आई.डी./पासवडद भेजा है िेरी मे ल में । मैंने कहा -मुझे इस सब झमे ले में नहीं पड़ना। उसने हर्र दोवीिी की कसम दी िो मुझे दया आ गयी। मैंने कहा अच्छा चल लाग इन करिे हैं। मे री हकवीमि अच्छी लाइट चली गयी थी। मैंने उसको एस.एम.एस. हकया। उसका जबाब आया -कोई नहीं मैंने खुद दो ब्राउजर से चैट करके ब्रेक अप कर हलया। िझ ू े हहचहकचाहट हो रही थी। अच्छे से हो भी नहीं पािा िेरे से। नाऊ र्ीहलंग ररलैक्वीड। मैंने वीटेटस लगाया- कैसे-कैसे र्ेस हैं र्ेसबुक के, र्ीहलंग सरप्राइज्ड। ऐसी न जाने हकिनी बािें डायरी में हलखी हु ई हैं। सबको यहां हलखना ठीक नहीं है। नमन ू े बिा हदये। आप अन्दाजा लगाइये हक और क्या-क्या हलखा होगा डायररयों में । आप भी र्ेसबुक डायरी हलखिे हों िो शेयर कररये अपने हवचार। कोई हहचहकचाहट हो िो अनाम नाम से मुझे भेज दीहजये। हम छाप दें गे। **** आया न मिा? और पिना चाहिे हैं इन को? ठीक है थोड़ी दे र बाद। पहले कुछ और रचना​ाहमद यों को भी पि हलया जाय।

डॉ. (सुश्री) शरद हसंह


हदलों में रं ग भर दे प्यार का हफर इस दर्ा होली। हक मौका दे ही दे दीदार का हफर इस दर्ा होली। न हशक़वा हो न कोई हो हगला इक-दूसरे के संग हमटा दे दाग़ हर िक़रार का हफर इस दर्ा होली। ग़मों को दूर सरका दे , खुशी को साथ ले आये रखे माहौल बस इकरार का हफर इस दर्ा होली। मुहब्बि की हसफाररश हो, मुहब्बि की इबादि हो रहे त्योहार इक इसरार का हफर इस दर्ा होली। यं ू होली में सभी के साथ होने का मिा आए लगे हर शख़्स ज्यों पररवार का हफर इस दर्ा होली।

सुशीला हशवरार् कहाँ गए वो चंग-डर्, अपनापन अनुराग। गीिों की रसा​ार हबन, हकिना सन ू ा र्ाग॥ ढोल-चंग की गँज ू पर, मन उठिा था झम ू । अब गहलयाँ सन ू ी हु ई,ं कहाँ गई वो ाम ू ॥ मवीिों की टोली नहीं, नहीं वीवांग के रं ग। बस टी.वी. में रह गया, होली का हु ड़दंग॥ रं ग हर्िा में छा गए, नीले-पीले-लाल। मैं हबरहन सख ू ी रही, मुझको यही मलाल॥ मोहन अब रँ गिे नहीं, रा​ा​ा िेरे गाल। कलयुग है द्वापर नहीं, दुहनया करे सवाल॥


संग अबीर-गुलाल के, मला कौन-सा रं ग। लोग कहें मैं बावरी, जग से हु ई हनसंग॥ साँवररये के रं ग-सा, हमला न दूजा कोय। िन लागे जो साँवरा, हर हदन होली होय।। उसने यँ ू दे खा मुझे, हु ई शमद से लाल। हसरि हदल में रह गई, मलिी खबू गुलाल॥

ामेन्र कुमार ‘सज्जन’ िर् भर चिकर जो हमटे, रं ग बड़ा बेकार साि जनम िक साथ दे , वही रं ग िन डार बदन रँ गा िो क्या हकया, मन को रँ ग ले यार मौका भी, दवीिरू भी, होली का त्योहार रं गों के सँग घोलकर, कुछ टूटे संवाद ऐसी होली खेहलए, बरसों आए याद जाकर यँ ू सब से हमलो, जैसे हमलिे रं ग केवल हप्रयजन ही नहीं, दुश्मन भी हों दंग रं ग सभी फीके पड़े , जब आई मुख लाज इन गालों के रं ग से, आओ रँ ग दँू आज सख ू े रं गों से करो, सिरं गी संसार पानी की हर बँदू को, रखो सुरहि​ि यार फागुन ने आकर कहा, अपने हदल का हाल गोरा मुखड़ा ापू का, हु आ शमद से लाल रं ग न हो िो प्रेम भी, रँ ग दे िा संसार प्रेम न हो िो व्यथद है, रं गों का अंबार


िुझको रँ गने थी चली, पीली पीली ापू गोरा िन छूकर हु ई, उजली उजली ापू आँखों आँखों में चलें, सारे रं ग गुलाल अपनी होली चल रही, यँ ू ही सालों साल

ओबामा जी, अगर हलंकन हिंदा होिे िो ? संजीव हनगम सुबह सुबह चच्चा अपने घर रुपी िोप नली से गोले की िरह जो छुटे िो सीाे हमारे घर में आकर र्टे। उनके हाथ में सुबह का अखबार था और मुँह से दनादन ऐसे शब्द हनकल रहे थे हजन्हें सुन कर पुहलस वाले भी शहमिं दगी महसस ू करने लगें। ऐसी िबरदवीि गोलाबारी के सामने पड़ना अपने खुद के अंहिम संवीकार का इंि​िाम करना जैसा ही था इसहलए हम हाथ में सर्ेद रुमाल थामे उनके शाहब्दक रूप से ठं डा होने की राह दे खने लगे। थोड़ी दे र बाद वह शुभ घड़ी भी आ गयी और वे उस अकसेहशयन की िरह से शांि होकर बैठ गए जो घर आये मे हमान पर भौंक भौंक कर थक गया हो। मैंने हहम्मि करके पछ ू ा , " चच्चा , आप िो ओबामा की िरह से सभ्य आदमी थे , ये अचानक ओसामा कैसे बन गए ? " यह सुनिे ही चच्चा हफर से पाहकवीिानी फौहजयों की िरह से हबना कारर् फायररं ग करने लगे। बोले, " नाम मि लो उस ओबामा का मे रे सामने। जब अभी भारि आया था िो क्या क्या अरमान दे खे थे मैंने उसकी और अपनी दोवीिी के। यह सोच सोच कर मैं हकिना खुश था हक उसे दोबारा यहां दे ख कर चीन हकिना जल रहा होगा , पाहकवीिान हबलख रहा होगा। यहाँ िक हक जब जािे जािे उसने हमें हबन मांगी सलाह दे डाली िब भी मैंने उसे पान के अड्डे पर खड़े हकसी दोवीि की चुहलबािी समझ कर झेल हलया था । " - " पर उसने िो वहाँ जाकर भी ....... " - " अमाँ िुम अपनी िोिे जैसी चोंच बंद रखो। ये हम दो बड़ी हहवीियों के बीच का मामला है , उसमें िुम अरुर् जेटली की िरह से बीच में घुसने की कोहशश मि करो , सुषमा वीवराज की िरह से अलग ही रहो। हमें पिा है हक उसने वहां जाकर भी हमारी िरफ इस बयान की हपचकारी मारी थी हक भारि में ा​ाहमद क असहहष्र्ुिा इिनी बि गई है हक यहद महात्मा गांाी हजंदा होिे िो वे आहि होिे। " - " लेहकन अब िो वहाँ भी …। "


- " हाँ वही िो … बड़ा आया हमें ज्ञान दे ने वाला ? अब उसके अपने यहाँ ा​ाहमद क असहहष्र्ुिा की ऐसी हरकिें हो रही हैं, िो अब समझा ना अपने लोगों को , हमें जो ज्ञान हदया था उसे कॉपी पेवीट करके अपने कंप्यटू र जैसे दे श के होम पेज पर डाल न। " - " सही कह रहे हैं आप , पर ये सब मुझसे कहने से क्या फायदा ? " - " वो िो मैं भी जानिा हू ँ िुम जैसा सवीिे सटू पहनने वाला इन सब बड़ी बड़ी बािों को क्या समझेगा ! ये िो लाखों रुपये का सटू पहनने वालों के समझने की बाि है। " - " िो हफर उन्हें ही समझाईये न , मे रे घर को क्यों राज पथ बना कर 26 जनवरी का शहि प्रदशद न कर रहे हैं।" - " हम यहां कोई शहि प्रदशद न करने नहीं आये हैं बहकक राष्र हहि में िुमसे एक कुबाद नी मांगने के हलए आये हैं। " कहीं गुवीसे में इन्होंने इवीलाहमक वीटेट जैसा कोई आिंकवादी संगठन न बना हलया हो और उसका पहला हफदायीन मुझे ही बनाने का न ठान हलया हो , यह सोच कर मे री साँसें डर के मारे अपने आप िोर िोर से अनुलोम हवलोम करने लगीं। डरिे डरिे आवाि हनकली ," कैसी कुबाद नी चच्चा ? " - " हमें थोड़ी दे र के हलए के हलए िुम्हारा मोबाईल चाहहए। " - "क्यों भला ? " - " ओबामा से बाि करनी है और उससे पछ ू ना है हक आज अगर अब्राहम हलंकन हिंदा होिे िो वे हकिना आहि होिे ? " लेहकन मे री दे शभहि ने ही मुझे मे रे मोबाईल के माध्यम से अमे ररका से सम्बन्ा ख़राब करने से रोक हदया। मैंने मोबाईल में बैलेंस न होने का कारगर बहाना बना हदया। चच्चा ने दुवाद सा की िरह से अहिशय क्रोा से मुझे घरू ा और हफर हकसी सच्चे मोबाईल ा​ारी दे शभि की िलाश में हनकल गए।


सुमीिा प्रवीर् केशवा रं ग लगाके िू न जा मुझे रं ग लगाके अपने अंग लगाले सांवररया रे … पवन बसंिी िू बनके संग बहा ले अपने हदल में बसा ले सांवररया रे … फागुन ने जुकफ खोलीं मदहोशी नभ में घोलीं ा​ानी आकाश हु आ ारिी भी उसकी होली रं गों से रं ग हमले सिरं गी फूल हखले पंखुरी लाज खोए भंवरा जो उसपे डोले बांहें पसारे , नदी के दोनों हकनारे , इकदूजे को पुकारे बलम आजा रे ..सांवररया रे … लरजे कपोल लाल सैंयां रं गे गुलाल भावभरा रं ग घुला िन मन हु ए सब लाल सजना के संग सखी ऐसे मैं रं ग रं गी खुद से ही प्रीि हु ई खुद से ही जंग हु ई प्रीि लगाके, अपनी नींद गवां के सजन संग बन गई मैं िो बावररया रे .. सांवररया रे …

काव्य करन कों चले हैं हम भ्रािा । सच पँछ ू ौ िौ हमें कुछ नहीं आिा ।01। हफर हु हमने बुहि िहनक लगाई । झट सों यों एक युहि बुझ आई ।02।


एक शब्द, हैं िाके अनेक हवकार । इनकौ कीजै िजद - बन्द व्यवहार।03। शब्द-हवकार पै पुन-पुन करौ प्रहार। ठोको- ठाँसौ और नैंक लेउ हनहार ।04। जस-जस शब्द वीव- पुकार सुनावें । िस-िस काव्य पंहि बन आवें ।05। अब िौ भईया हम हु कहव कहाएं । मन ही मन यों मवीि मोद मनाएं ।06। एक हदन जमौं बड़ौ काव्य व्यापार। कहव-कुल कौ कछु कहें आर न पार।07। सब ने अपने-अपने जब पाठ हकये। श्रंग ृ ार, हावीय, वीर रस के ठाट हकये।08। अलंकारन के अद्भुि उपयोग हकये। वक्रोहिन के हवलिर् प्रयोग हकये।09। छन्दन सौ ँअनठ ू े से अनुबन्ा हकये। चमत्कृहि के अत्यंि सुप्रबन्ा हकये।10। हमने हु हहम्मि अपनी नैंक न हारी। काव्य में काव्य की युहि कह डारी।11। अब हनर्द य कौ अवसर ज्यों आयौ। हमरौ नाम उननें सवद - श्रेष्ठ सुनायौ।12। हलयौ पंचन नैं हमें पुनुः मंच बुलाय। हदयौ टूटे जि ू न कौ एक हार हपराय।13। िब वे बोले मन्द-वीवर ये मदृ ु भाखा। नीचे से आपकौ नम्बर एक है आँका।14। यह सब दुखद दृश्य दे खि घर-वारी। घर पहु ँचि ही वाकी हवकट सवारी।15।


बड़े चले हौ िुम हनि कहव बनन कौं। आयी न नैंक हु लाज या झठ ू े रन कौं।16। बालक भख ू े , घर सौं मस ू े हु हफरि हैं। टूटे हैं पाि, वस्त्रन के पैबन्द फटि हैं।17। मुद्दि से हर बाररस यह छत्त चुआनी। बस अब की बार है सच फशद पै आनी।18। कहव-जन! एक बाि मैं कहौं सुहवचारी। मानौ न मानौ, हौ अब आप अहाकारी।19। रोजी-रोटी जब लौं नहीं हसि जुगाड़ी। कहव नहीं, कबहु कहव 'नन्द' अनाड़ी ।20। :- एन. एल. चिुवेदी नगीना उर्द ‘नन्द’ साहहत्यम पर आप लोग जो रसीले और चुटीले व्यङ्​्यालेखों का रसावीवादन करिे हैं उस का हजम्मा भाई कमलेश पाण्डे य जी ने उठाया हु आ है। कहने की आवश्यकिा नहीं हक साहहत्यम का कुल कामकाज वीवैहच्छक और अवैिहनक है। आज के दौर में ऐसे साहथयों का हमलना सौभा्य ही कहा जायेगा। वैसे भी पैसा सब कुछ खरीद सकिा है मगर समपद र् की भावना नहीं। कमलेश जी वीवयं भी एक बेहिरीन व्यङ्​्यकार हैं। कमलेश जी के सटायसद की हवशेषिा “बारीक़ी” है। आप बड़े ही हनराले अन्दाि में पाठक को अपने साथ बहा ले जािे हैं। आइये कमलेश जी के एक रसीले और चुटीले व्यङ्​्यालेख का रसावीवादन करिे हैं:-

फाह्यान की हफकमी डायरी कमलेश पाण्डे य उस रोि फू-ची ने बिाया हक भारि-भ्रमर् पर जाने से पहले वहां की कुछ हफकमें दे ख लं ू िो पयाद प्त मागद दशद न हमल सकिा है. फूची कहिा है हर्कमें हकसी भी समाज का दपद र् होिी हैं सो इन्हें दे ख लो संभव है भारि जाने की आवश्यकिा ही न पड़े . यहीं बैठे-बैठे भारि पर एक वहृ द् रंथ हलख सकिे हो. कल बािार से विद मान काल में बनी डे ि-दो सौ भारिीय हफकमो की सीडी के जलदवीयु संवीकरर् ले आया, जो पे-ईहचंग के चोर-बािार में मोमो के एक प्लेट से भी सवीिी हमल गईं. आज प्रािुः काल भजन-पज ू न के उपरांि उनके अवलोकन के हलए बैठ गया हू ँ. ये एक नया ही संसार प्रिीि होिा है. फू-ची ठीक कहिा था हक चीन में फै ली भारि सम्बन्ाी भ्रांहियों पर कर्द न ारो. मुझे सही मागद दशद न दे ने वाले फू-ची को सा​ाुवाद कहिे हु ए अब आरम्भ करिा हू ँ. एक आठ प्रहर से हनरं िर भारिीय जीवन की इन्रानुषी छहवयाँ दे खिे-दे खिे नेि चुंहाया गए हैं और महष्िष्क िो मानों हनहष्क्रय ही हो गया है. अभी थोड़े सुरा-पान के उपरांि जी


हकका हु आ िो भारि- जो अब ईहन्डया कहलाने लगा है – की आकृहि कुछ-कुछ दृहष्टगोचर होने लगी है. ये िो हनहि​ि ही है हक इहण्डया अत्यंि समि ृ दे श है. हफकम का नायक जो वीवयं को आमआदमी और हनाद न मनुष्य बिािा है, एक बड़े से भवन में रहिा है, हडिाइनर पररा​ान पहनिा है, चमकिे वाहन पर यािायाि करिा है और एक सुन्दरी से प्रेम करिा है. कभी-कभी सुंदररयों की संख्या एक से अहाक हो सकिी है पर जब वह नत्ृ य रि होिा है िो संुदररयां अनंि होिी हैं. हजन ानाढ्य लोगों से उसकी शिुिा होिी है उनके िो क्या कहने. उनकी जीवन शैली चीन के सम्राट को भी लजा दे ने वाली है. वैसे अहाकाँश हफकमों में नायक पुहलस अहाकारी हैं. ऐसा प्रिीि होिा है हक इंहडया में सभी पुहलस अहाकारी बनना चाहिे हैं हजसका कारर् यही मालम ू होिा है हक उनके घर और ठाट-बाट राजाओं से प्रहिवीपा​ाद करिे दीखिे हैं. इससे िो यही लगिा है हक इंहडया में अब सवद हारा कोई नहीं बचा. दो आम आदमी पर आा​ाररि एक हफकम का अवलोकन करने के बाद इस हनष्कषद पर जा पहु ंचा हू ँ हक इंहडया के आम-आदमी सैर-सपाटे के शौकीन होिे हैं और प्रायुः अपनी प्रहमका के साथ मनोरम वीथलों पर भ्रमर्शील रहिे हैं. उसकी प्रेहमका वीवयं को अत्यंि हनाद न बिािी है जो उसके अत्यकप वस्त्रों को दे ख कर िो सत्य प्रिीि होिा है, परन्िु जब उसके आभषू र्ों और चरर् पादुका पर दृहष्ट जािी है िो थोड़ा संदेह भी उत्पन्न होिा है. प्रायुः ये लोग कहीं आकाश से प्रसाररि होिे संगीि पर गायन करने लगिे हैं िो हर बदलिे लय के साथ वस्त्र, वीथल और वाहनाहद बदल दे िे हैं. समहृ ि का िब चरमोत्कषद हदखिा है जब ये लोग गीि का हर अंिरा हकसी अन्य दे श की भहू म पर गािे हैं और पलक झपकिे ही उन्हें वहां पहु ंचा दे ने वाला वाहन कहीं नहीं हदखिा. हनिय ही वहां का हवज्ञान अभि ू पवू द प्रगहि कर चुका है. संभव है वहां हर आम आदमी के पास अपना हनजी वायुयान हो. िीन आम आदमी की मोहक छहवयों वाले दृश्यों को दे खिे जी ही नहीं भरिा. यह भी ज्ञाि हु आ हक इंहडया एक अत्यंि सुन्दर दे श है जहां एक ही वीथल पर समुर, हहमाच्छाहदि पवद ि, रे हगवीिान और झरने हैं. कई एक वीथल िो हू -ब-हू हवीवटिरलैंड नामक दे श के सामान हैं. ये भी सम्भव है हक आम आदमी के भ्रमर्-लाभ हे िु इंहडया में ही कहीं-कहीं यरू ोप-अमरीका आहद महादे शों की प्रहिकृहि रच ली गई है. गीिों के दृश्यों में िो ये बाि एक दम हसि हो जािी है. जैसे ही नायकनाहयका गायन प्रारम्भ करिे हैं, ढे र-सारी सुंदररयां नाचिी-गािी उनकी संगि करने आ जािी हैं. ये भी वस्त्रों की दृहष्ट से अत्यंि हनाद न लगिी हैं, परन्िु हवीथहि पर गौर करने से वीपष्ट हो जािा है हक ऐसा नहीं है. क्या समुरिट पर सटू पहन कर जाया जािा है या हक राहि-क्लबों में बुकाद ओि कर. इससे ये भी वीपष्ट है हक इंहडया में नाररयों को इच्छा-नुसार पहनने-ओढने, घुमने-हफरने, नाचने-गाने की वीविंि​िा है. चार फूची गलि कहिा है हक इंहडया में बहु ि गरीबी है. उसे ऐसा कुछ हर्कमें ही दे खकर लगा था. उसकी सलाह पर आज ऐसी कुछ हर्कमें दे खीं. इनमें टूटे-फूटे घरो में कुछ हभिुकप्रकार के प्राहर्यों का जीवन हदखाया गया था. सक्ष्ू म दृहष्ट डालने पर इन बहवीियों के पीछे खड़े हवशाल महल हदख जािे थे, जहां से कुछ आम आदमी आकर इन बहवीियों को हगराना चाहिे हदखाए गए थे. पर उनका उदे श्य इन झोपहड़यों की जगह महल बना कर परू े इहण्डया को एकाकार कर दे ना था. समयाभाव में इनका बनाना हदखाया नहीं जा सका. एक राजनेिा ने बिाया हक गरीबी को प्रचाररि करने के पीछे हवरोाी राजनीहिक दलों का दुष्प्रचार है, जो मुझे सो सत्य लगा. मुझे िो इसमें


चीन का हवीि होने की भी सम्भावना हदखी, क्योंहक ऎसी एक हफकम में हनाद न लोग बार-बार माओ का नाम ले रहे थे. पांच ऐसा प्रिीि होिा है हक इंहडया में सभ्य लोगों की भाषा हहन्दी है. ये भाषा अंरेजी के शब्दों और वीथानीय भाषा के कारकों से बनी है. हबना पिे -हलखे लोग कई वीथानीय भाषाएँ बोलिे हैं. प्रायुः लोग केवल अंरेिी भी बोलिे पाए जािे हैं पर आम िौर पर अंरेिी के दो एक वाक्यों के बाद हहन्दी पर उिर आने की प्रवहृ त्त है. नाहयकाएं और हस्त्रयाँ अंरेिी बोलना पसंद करिी हैं पर जब वो हहन्दी बोलिी हैं िो भी ध्वहनं अंरेिी-सी ही आिी है. ऐसा प्रिीि होिा है हक उन्हें भाषा की दीिा मल ू िुः अंरेिी में हमली है और हहन्दी उन्होंने हकसी हहन्दी हफकम में काम करने के उद्दे श्य से सीखी है. गाने अहपिु हहन्दी में ही गाये जािे हैं, पर वहां और भी कई भाषाओं का मे ल हदख पड़िा है. एक गीि िो ऐसा था हजसमें बड़े -बड़े नगाड़ों की िाल पर पंजाबी नामक भाषा में बहु ि सारी अंरेिी और थोड़ी हहन्दी हमलाई गयी थी. ऐसे कुछ गीिों के रचहयिा कोई ‘यो यो’ नामक महाकहव हैं जो अपने गीिों में युवाओं को कम महदरा या मादक पदाथों के सेवन करने जैसे सांवीकाररक संदेश दे िे रहिे हैं. इन गीिों के भावाथद जो भी हों, इसमें कन्याओं का नत्ृ य अद्भुि है- शब्दों को समझे हबना ही सभी अथद वीपष्ट हो जािे हैं. छह आज दहिर् इंहडया की कुछ हर्कमें दे ख कर पिा चला हक इहण्डया के इस भख ू ंड में पुरुष अहि-शहिशाली और नाररयां खबू भरी-परू ी होिी हैं. नायक िो इिना चपल होिा है हक चश्मा, हसगरे ट या हपवीिौल जैसे उपकरर् पलक झपकिे ही अपने शरीर के हवहवा हहवीसों पर अंिररि कर लेिा है. इस नायक के एक आघाि से खलनायक कई पलों िक वायुमंडल में गोिे खािा है और कभी-कभी िो आकाश में ही हवलीन हो जािा है. उार नाररयां रं ग-हबरं गे कलशों और इन्रानुषी आकृहियों के बीच मादक नत्ृ य करिी रहिी हैं. वहां का एक नायक िो सवद -शहिमान ईश्वर के समकि है. उसकी शहियों के हवषय में अनेक हकंवदंहियाँ प्रचहलि हैं, जो फू-ची के अनुसार रजनी-जोक्स नामक रंथ में संगहृ ीि हैं. साि कुछ राजनीहिक हर्कमें दे ख कर ऐसा प्रिीि हु आ हक इहण्डया में सभी नेिाओ की अपरा​ा करने-कराने में गहरी रूहच है. प्रायुः समाज में खलनायक नेिा ही होिा है. ये लोग सुरासुंदररयों, हहथयारों, सुन्दर प्रासादों और चमकिे वाहनों के बीच ही रहना पसंद करिे हैं. आवश्यकिा पड़ने या न पड़ने हकसी भी हवीथहि में हकसी की ह्तत्या कर दे ना इनके वाम-हवीि का कमद है. बलात्कार हे िु इन्हें यों िो सभी हकवीम की नाररयां पसंद हैं पर नायक की बहन या प्रेहमका पर हवशेष कृपा रखिे हैं. ऐसा लगिा है हक इनकी हदनचयाद हकसी षड्यंि से आरम्भ होकर हकसी ह्तत्या पर समाप्त होिी है. इनके अंगरिक चीनी युि कला में हसिहवीि होिे हैं और अवसर पािे ही सा​ा​ारर् मानवों पर ईया-ऊआ करिे टूट पड़िे हैं. एक राजनेिा की क्रूरिा दे ख कर िो मे रा हघघ्घी नामक अंग बंा ही गया. इंहडया में इन्हीं अहिमानवों में से जनप्रहिहनहा चुनने का प्रावा​ान मालम ू होिा है. चुन हलए जाने के बाद ये प्रायुः श्वेि वस्त्र ा​ारर् करिे हैं और सभाओं में भाषर् दे िे हफरिे हैं. पर अंि​िुः अपरा​ा के सभी सि ू उनसे ही जुड़े होिे हैं. चुनाव एक रोचक अवसर होिा है, जब ढे र सारे वाहनों में लोग रं ग हबरं गी झंहडयों के साथ नारा लगािे घुमिे हैं. आठ इंहडया का ये रं ग दे ख कर िो दंग रह गया हू ँ. एक मैदान में लाल, पीले, हारे , नीले िात्पयद ये की सभी प्रकार के रं गों से सराबोर हिारों मनुष्य एक साथ नत्ृ य कर रहे हैं. सबके


वस्त्र श्वेि हैं िाहक रं गों की छाप गहरी उभरे . गाजे-बाजे के साथ एक समहू गीि गाया जा रहा है हजसमें गोररयों की चोली पर रं ग डालने की प्रेरर्ा दी जा रही है. चुनररया को हभगोने पर हवशेष जोर है. सुंदररयां पुरुषों से जोड़े बना कर मादक नत्ृ य कर रही हैं. रं ग जो हैं, उड़ भी रहे हैं, बौछार बन कर बरस रहे हैं और चेहरों पर पोिे भी जा रहे हैं. इंहडया की इस रं गीन छहव को दे ख कर हपछली सारी छहवयाँ ांुाली हो गई हैं. ऐसा प्रिीि हो रहा है हक मानो परू ा दे श एक ही रं ग में रं गा है, भले ही वह हिारों रं गों में व्यि हो रहा हो. पिा चला है हक ये एक त्यौहार है हजसे होली कहिे हैं. एक हदन पहले इंहडया के लोग होहलका जलािे हैं हजसमें अपनी बुराईयों की आहु हि डालिे हैं. मैंने भी आज इंहडया की बुरी छहव बनाने वाली हपछली हफकमों की सीडी एकि कर उनकी होहलका जला दी और उसकी राख इन बरगलाने वाली हर्कमें दे खने की सलाह दे ने वाले फू-ची के मुंह पर मल आया. आज इहण्डया की यािा की िैयारी परू ी कर ली है. दो हदनों के पिाि होली है. उसे दे खे हबना इंहडया की यािा कैसे सम्पर् ू द होगी? ***** ये हैं कमलेश पाण्डे य जी और ये है उन का अनोखा वाला रङ्ग जो मुझे बेहद पसन्द है। इस आहटद कल को चाहें िो माि मनोरञ्जन के हलये भी पिा जा सकिा है और अगर कोई व्यहि समय हनकाल कर इस की थाह को नापना चाहे िो नप्प भी सकिा है। कमलेश भाई जी के एक हमि हैं हवनोद हमश्र। हवनोद जी ररसेण्टली बरसाना हो कर आये हैं। हवनोद जी ने साहहत्यम के हलये बरसाने की होली की दो बहु ि ही सुन्दर-सुन्दर िवीवीरें भेजी हैं। हवनोद जी का बहु ि-बहु ि आभार। ये हैं वह दो िवीवीरें :-


डा. वी. के. भकला

हजज्जा संग होली लगा कर भोग महावीर को, और चिा कर फूल बिीसा, बड़े भहिभाव से पि रहे थे हम िो हनुमान चाहलसा, "महावीर जब नाम सुनावें, भि ू हपचास हनकट नहीं आवें". िभी मे री साहलयाँ आ कर बोली, खेलेंगे हम जीज्जा संग होली, और मे री हसट्टीहपट्टी गुम होली, कािर वीवर में हमने पुकारा,


हे हनुमंि अब िेरा सहारा, सुन पुकार मे री हनुमानजी ध्यान में आए, और मुझसे यँ ू र्रमाए, वत्स मैं िो ठहरा बाल ब्रह्मचारी, कैसे हरूँ मैं हवपदा िुम्हारी, इस लर्ड़े में मुझे न लाओ, िुम्हारी घंहटयाँ हैं िुम्ही बजाओ, पड़ा संकट मोचन नाम भी झठ ू ा, हदखा गए हनुमानजी भी अंगठ ू ा, मे री साहलओं ने जी भर की मे री पुिाई, दे िा रहा हाए मैं दुहाई, िभी श्रीमिी जी बाहर से आई, मुझे दे खिे ही हचलाईं, अजी सुनिे हो जरा बाहर आओ, कोई लर्ंगा घर में घुस आया है, उसे मार कर बाहर भगाओ, ाीरे से मैंने खंखारा, अरी भागवान ये मैं हू ँ पहि िुम्हारा, िो श्रीमिी जी िुनक कर बोली, वाह मे रे छैला बहु ि भाए हो, सुबह सुबह कहो हकससे, मुँह काला करवा कर आए हो, मैंने अपनी करुर् गाथा उसे सुनाई, िो श्रीमिी जी हभन्नाई और अपनी बहनों को आवाि लगाई, क्या मे रा ही पहि हमला था, मँुह काला करने के हलए, िो वो बेहयाई से बोली, दीदी अगली होली में , िुम हमारे पहियों का मुँह काला कर दे ना, िुम्हारा सारा हशकवा हमट जाएगा, हहसाब एक दम बरोबर हो जाएगा, हमने कुछ वि के हलए, बाहर हनकलना बंद कर है, यह सोच कर हक अगर हकसी ने पछ ू ा हक िुम्हारा मुंह हकसने काला हकया, िो क्या जवाब दँूगा..


हवजेन्र शमाद सरहद से आया नहीं , होली पर क्यँ ू लाल ! माँ की आँखें रं ग से , करिी रही सवाल !! आँखों को भी है हगला , करे हशकायि गाल ! बैरी ख़ुद आया नहीं , हभजवा हदया गुलाल !! कौन बजावे फाग पे , ढोल नगाड़े चंग ! चारों िरर् उदाहसयाँ , गायब हु ई उमंग !! मौक़ा था पर यार ने , डाला नहीं गुलाल ! मुरझाये से ही रहे , मे रे दोनों गाल !! हैरि में थे यार सब , दुश्मन भी था दंग ! मैंने उसके गाल पर , लगा हदया जब रं ग !! इंि​िार के रं ग में , गयी बावरी डूब ! होली पर इसबार भी , आया ना महबबू !!

******* और अब र्ुरसहिया जी का एक और ा​ाँसू सटायर। ा​ाँसू इसहलये हक समझ में नहीं आ रहा हक इन्हें खाङ्रेसी कहा जाये हक हफर भीजेफी बाला

आजकल बेचारे कालेान की मरन है कोई भी घपला होिा है, काले ान पर िोहमि लगिी है। ब्लैक मनी की थ-ू थू होिी है. जैसे नेिा चमचे के हबना, महन्ि चेले के हबना, आई.पी.एल. हर्हक्संग के हबना अारू ा लगिा है वैसे ही कोई भी घपला काले ान की चचाद के हबना अारू ा लगिा है. घपला अगर कोई


आाुहनक जहटल कहविा है िो काला ान उसका आम जनिा की समझ में आने वाला सरल अनुवाद है. घोटाला यहद कोई अबझ ू हसिांि है िो काला ान उसकी सहज टीका है. जैसे पाहटद यां चंदे के हबना, नेिा लफ़्र्ाजी के हबना, लेखक अपनी उपेिा का रोना रोये हबना नहीं रह पािा वैसे ही दुहनया का कोई भी बड़ा ान्ा​ा हबना काले ान के नहीं पनप सकिा. दुहनया में हजिने भी मजबि ू ान्ाे हैं चाहे वह हहथयार का हो, ामद का हो या हर्र हशिा का ही क्यों न हो, सबकी बुहनयाद में काले ान की सीमे न्ट लगी है। काला ान न हो िो हवीवस बैंक र्ुवीस बैंक होकर रह जाये. अपने दे श में हपछले बीस सालों में हजत्ता हवकास हु आ है, काला ान उससे कई गुना ज्यादा बिा है. गहर्ि की भाषा में कहें िो हकसी भी आाुहनक समाज का हवकास उस समाज में मौजदू कालेान की मािा का समानुपािी होिा है. इस सबके बावजदू कालेान को लोग इज्जि की हनगाह से नहीं दे खिे. काला​ान कमाने वाला िक खुलेआम उसकी आलोचना ही करिा है. राजनीहिज्ञ चुनाव भले काले ान के सहारे लड़ें लेहकन सावद जहनक रूप से कालेान की ऐसी बुराई करिे हैं जैसे वामपंथी, दहिर्पंहथयों की करिे हैं, अमे ररकी क्यबू ा की करिे हैं, पाहकवीिान वाले भारि की करिे िरह हैं. अपने प्रहि दुहनया का यह द्वंदात्मक इज्जिवाद दे खकर बेचारे कालेान के हदल पर क्या बीि​िी होगी. दुहनया के ाोखे को दे खकर उसका मन भी हजया खान की िरह लटककर हनपट जाने का करिा होगा. उसका भी मन करिा होगा हक सरकारी गवाह बन जाये और सबकी पोल खोल दे हक कैसे िमाम लोगों से उसके अंिरं ग संबंा रहे . कैसे लोगों ने उसका सहारा हलया, आगे बिे , और सहारा हलया लेहकन जब सर्लिा के हकवीसे सुनाने की बारी आयी िो श्रेय अपनी मे हनि, लगन और बुहि को हदया। कालेान के योगदान की सरासर उपेिा कर दी. यह वैसा ही है हक हकसी दे श के इहिहास में राजा राहनयों के हकवीसे हलखे जायें लेहकन मे हनिकश जनिा की कहानी गोलकर दी जाये. लेहकन हर्र काला​ान शायद यह सोचकर चुप रह जािा होगा हक अपरा​ाी कोई भी हो लेहकन बुराई उसी की होनी है. बेइज्जिी िो उसी की खराब होनी है. इसके बाद शायद वह यह सोचकर चुपचाप अपनी करि​ि ू ों में जुट जािा होगा हक आजनहीं िो कल उसको वह इज्जि अवश्य हमलेगी हजसका वह हकदार है। उसको भी खुले आम उिनी ही वीवीकायद िा हमलेगी हजिनी की आज समाज में जाहिवाद, संकीर्द िा, भाई भिीजावाद, भा्यवाद और काहहली को हमली है. काला ान सोचिा होगा- जैसे बाहकयों के हदन बहु रे क्या पिा वैसे ही उसके भी बहु रैं. *******


और साहथयो चलिे-चलिे अपनी जड़ों की ओर :ब्रह्मलीन सन्ि कहव हशवदीन राम (जोशी) की सन्ि-वार्ी आप ही के आध्याहत्मक हशष्य आदरर्ीय श्री हकशोर पारीक [खण्डे ला] जी के सौजन्य से

गोकुल व बरसाने की नार, बजाय-बजाय बजा रही िारी। अरू वन्ृ दावन की बनी वे बनी, बनके ठनके अरी दे रही गारी। श्याम को श्यामा सजाय सजी, अहो और गुलाल लगावि प्यारी। हशवदीन वे जोरी से जोरी हमली,ब्रज खेलि होरी हैं बांके हबहारी। मंगल सुमंगल सदा ही, आनन्द रहे नंदलाल, िू गुलाल डार दे ख सखी आ रही। रा​ाे मिवाली आली चाली रं ग डारन को, गोहपयां हनराली गाली श्याम को सुना रही। सुन-सुन के श्यामलाल, संग-संग गुवाल बाल, बाजि मदृ ंग िाल रा​ाे जी गा रही। कहिा हशवदीन लाल ऐसी गुलाल उड़ी, बादर बन लाल लाली चहु ँ ओर छा रही। ब्रज वन्ृ दावन ा​ाम रँ ग से रँ गा रं गीला, हरा मोहियां लाल रँ ग है प्यारा पीला। ाम ू ा​ाम से खेल, खेल रहे होरी दे खो, श्यामा श्याम सुजान और संग गोरी दे खो। चहु ं ओर हपचकाररयां रं ग-रं ग की ा​ार, हशवदीन सरस रस रहसक जन पीवें करर-करर प्यार। राम गुर् गायरे ।।

भारि की लोक सम्पदा: फागुन की फागें - आचायद संजीव वमाद 'सहलल' भारि हवहवावर्ी लोक संवीकृहि से संपन्न- समि ृ परम्पराओं का दे श है। इन परम्पराओं में से एक लोकगीिों की है। ऋिु पररविद न पर उत्सवामी भारिीय जन-


मानस गायन-वादन और निद न की हिवे र्ी प्रवाहहि कर आनंहदि होिे हैं। फागुन वषािं ि िथा चैि वषाद रम्भ के साथ-साथ फसलों के पकने के समय के सच ू क भी हैं। दहिर्ायनी सय ू द जैसे ही मकर राहश में प्रवेश कर उत्तरायर्ी होिे हैं इस महाद्वीप में हदन की लम्बाई और िापमान दोनों की वहृ ि होने की लोकमान्यिा है। सय ू द पज ू न, गुड़-हिल से हनहमद ि पक्वान्नों का सेवन और पिंगबाजी के माध्यम से गगनचुम्बी लोकांनंद की अहभव्यहि सवद ि दे खी जा सकिी है।मकर संक्रांहि, हखचड़ी, बैसाखी, पोंगल आहद हवहवा नामों से यह लोकपवद सकल दे श में मनाया जािा है। पवद राज होली से ही मध्योत्तर भारि में फागों की बयार बहने लगिी है। बुंदेलखंड में फागें, बज ृ भहू म में नटनागर की लीलाएँ हचहि​ि करिे रहसया और बा​ाई गीि, अवा में राम-हसया की जुगल जोड़ी की होली-क्रीड़ा जन सामान्य से लेकर हवहशष्ट जनों िक को रसानंद में आपादमवीिक डुबा दे िे हैं। राम अवा से हनकाकर बुंदेली माटी पर अपनी लीलाओं को हववीिार दे िे हु ए लम्बे समय िक हवचरिे रहे इसहलए बंुदेली मानस उनसे एकाकार होकर हर पवद -त्यौहार पर ही नहीं हर हदन उन्हें याद कर 'जय राम जी की' कहिा है। कृष्र् का नागों से संघषद और पांडवों का अज्ञािवास नमद दांचली बुन्दे ल भहू म पर हु आ। गौरा-बौरा िो बुंदेलखंड के अपने हैं, हशवजा, हशवात्मजा, हशवसुिा, हशवहप्रया, हशव वीवेदोभवा आहद संज्ञाओं से सम्बोहाि आनन्ददाहयनी नमद दा िट पर बम्बुहलयों के साथ-साथ हशवहशवा की लीलाओं से युि फागें गयी जाना वीवाभाहवक है। बंुदेली फागों के एकछि सम्राट हैं लोककहव ईसुरी। ईसुरी ने अपनी प्रेहमका 'रजउ' को अपने कृहित्व में अमर कर हदया। ईसुरी ने फागों की एक हवहशष्ट शैली 'चौघहड़या फाग' को जन्म हदया। हम अपनी फाग चचाद चौघहड़या फागों से ही आरम्भ करिे हैं। ईसुरी ने अपनी प्राकृि प्रहिभा से रामीर् मानव मन के उच्​्वासों को सुर-िाल के साथ समहन्वि कर उपेहि​ि और अनचीन्ही लोक भावनाओं को इन फागों में हपरोया है। रसराज श्रंग ृ ार के संयोग और हवयोग दोनों पि इन फागों में अद्भुि मा​ाुयद के साथ वहर्द ि हैं। सद्यवीनािा युविी की केशराहश पर मु्ा ईसुरी गा उठिे हैं: ईसुरी रा​ा​ा जी के कानों में झल ू रहे िरकुला को उन दो िारों की िरह बिािे हैं जो रा​ा​ा जी के मुख चन्र के सौंदयद के आगे फीके फड़ गए हैं: कानन डुलें राहाका जी के, लगें िरकुला नीके आनंदकंद चंद के ऊपर, िो िारागर् फीके ईसुरी की आराध्या राहाका जी संुदरी होने के साथ-साथ दीनों-दुहखयों के दुखहिाद भी हैं: मुय बल राि राहाका जी को, करें आसरा की कौ दीनदयाल दीन दु​ुःख दे खन, हजनको मुख है नीकौ पहटयाँ कौन सुगर ने पारी, लगी दे हिन प्यारी रं चक घटी-बड़ी है नैयाँ, साँसे कैसी ढारी िन रईं आन सीस के ऊपर, श्याम घटा सी कारी 'ईसुर' प्रार् खान जे पहटयाँ, जब सें िकी उघारी


कहव पछ ू िा है हक नाहयका की मोहक चोहटयाँ हकस सुघड़ ने बनायी हैं? चोहटयाँ जरा भी छोटी-बड़ी नहीं हैं और आिी-जािी साँसों की िरह हहल-डुल रहीं हैं। वे नाहयका के शीश के ऊपर श्यामल मे घों की िरह छाईं हैं। ईसुरी ने जब से इस अनावत्त ृ केशराहश की सुनदरिा को दे खा है उनकी जान हनकली जा रही है। ईसुर की नाहयका नैनों से िलवार चलािी है: दोई नैनन की िरवारें , प्यारी हफरें उबारें अलेपान गुजरान हसरोही, सुलेमान झख मारें ऐंच बार् म्यान घंघ ू ट की, दे काजर की ा​ारें 'ईसुर' श्याम बरकिे रहहयो, अँहायारे उहजयारे िलवार का वार िो हनकट से ही हकया जा सकिा है नायक दूर हो िो क्या हकया जाए? क्या नाहयका उसे यँ ू ही जाने दे गी? यह िो हो ही नहीं सकिा। नाहयका हनगाहों को बरछी से भी अहाक पैने िीर बनाकर नायक का ह्रदय भेदिी है:

छूटे नैन-बार् इन खोरन, हिरछी भौंह मरोरन नोंकदार बरछी से पैंने, चलि करे जे फोरन नायक बेचारा बचिा हफर रहा है पर नाहयका उसे जाने दे ने के मड ू में नहीं है। िलवार और िीर के बाद वह अपनी काहिल हनगाहों को हपवीिौल बना लेिी है: अँहखयाँ हपवीिौलें सी करके, मारन चाि समर के गोली बाज दरद की दारू, गज कर दे ि निर के इिने पर भी ईसुरी जान हथेली पर लेकर नवयौवना नाहयका का गुबखान करिे नहीं अघािे: जुबना कड़ आये कर गहलयाँ, बेला कैसी कहलयाँ ना हम दे खें जमि जमीं में , ना माली की बहगयाँ सोने कैसे िबक चिे हैं, बरछी कैसी भहलयाँ 'ईसुर' हाथ सँभारे ाररयो फुट्ट न जावें गहदयाँ लोक ईसुरी की फाग-रचना के मल ू में उनकी प्रे हमका रजऊ को मानिी है। रजऊ ने हजस हदन गारो के साथ गले में काली काँच की गुररयों की लहड़यों से बने ४ छूँटा और हबचौली काँच के मोहियों का हिदाने जैसा आभषू र् और चोली पहहनी, उसके रूप को दे खकर दीवाना होकर हार झल ू ने लगा। ईसुरी कहिे हैं हक रजऊ के सौंदयद पर मु्ा हु ए हबना कोई नहीं रह सकिा। हजयना रजऊ ने पैनो गारो, हरनी हजया हबरानो छूँटा चार हबचौली पैंरे, भरे हफरे गरदानो


जुबनन ऊपर चोली पैरें, लटके हार हदवानो 'ईसुर' कान बटकने नइयाँ, दे ख लेव चह ज्वानो ईसुरी को रजऊ की हे रन (हचिवन) और हँसन (हँसी) नहीं भल ू िी। हवशाल यौवन, मिवाली चाल, इकहरी पिली कमर, बार् की िरह िानी भौंह, हिरछी निर भुलाये नहीं भल ू िी। वे निर के बार् से मरने िक को िैयार हैं, इसी बहाने रजऊ एक बार उनकी ओर दे ख िो ले। ऐसा समपद र् ईसुरी के अलावा और कौन कर सकिा है? हमख़ाँ हबसरि नहीं हबसारी, हे रन-हँसन िुमारी जुबन हवशाल चाल मिवारी, पिरी कमर इकारी भौंह कमान बान से िानें, निर हिरीछी मारी 'ईसुर' कान हमारी कोदी, िनक हरे लो प्यारी ईसुरी के हलये रजऊ ही सवद वीव है। उनका जीवन-मरर् सब कुछ रजऊ ही है। वे प्रभु-वीमरर् की ही िरह रजऊ का नाम जपिे हु ए मरने की कामना करिे हैं, इसहलए कुछ हवद्वान रजऊ की सांसाररक प्रेहमका नहीं, आद्या माि ृ शहि को उनके द्वारा हदया गया सम्बोान मानिे हैं: जौ जी रजऊ रजऊ के लाने, का काऊ से कानें जौलों रहने रहि हजंदगी, रजऊ के हे ि कमाने पैलां भोजन करैं रजौआ, पाछूं के मोय खाने रजऊ रजऊ कौ नाम ईसुरी, लेि-लेि मर जाने ईसुरी रहचि सहस्त्रों फागें चार कहड़यों (पंहियों) में बँाी होने के कारन चौकहड़या फागें कही जािी हैं। इनमें सौंदयद को पाने के साथ-साथ पज ू ने और उसके प्रहि मन-प्रार् से समहपद ि होने के आध्यात्मजहनि भावों की सहलला प्रवाहहि है। रचना हवा​ान: ये फागें ४ पंहियों में हनबि हैं। हर पंहि में २ चरर् हैं। हवषम चरर् (१, ३, ५, ७ ) में १६ िथा सम चरर् (२, ४, ६, ८) में १२ मािाएँ हैं। चरर्ांि में प्रायुः गुरु मािाएँ हैं हकन्िु कहीं-कहीं २ लघु मािाएँ भी हमलिी हैं। ये फागें छं द प्रभाकर के अनुसार महाभागवि जािीय नरें र छं द में हनबि हैं। इस छं द में खड़ी हहंदी में रचनाएँ मे रे पिने में अब िक नहीं आयी हैं। ईसुरी की एक फाग का खड़ी हहंदी में रूपांिरर् दे हखए: हकस चिुरा ने छोटी गँथ ू ी, लगिीं बेहद प्यारी हकंहचि छोटी-बड़ी न उठ-हगर, रहीं सांस सम न्यारी मुकुट समान शीश पर शोहभि, कृष्र् मे घ सी कारी हलये ले रही जान केश-छहव, जब से हदखी उघारी नरें र छं द में एक चिुष्पदी दे हखए:


बाि बनाई हकसने कैसी, कौन हनभाये वादे ? सब सच समझ रही है जनिा, कहाँ फुदकिे प्यादे ? राजा कौन? विीर कौन?, हकसके बद-नेक इरादे ? हजसको चाहे 'सहलल' हजिा, मि चाहे उसे हरा दे * बुन्दे ली लोकरं ग की सािी : ईसुरी की फागें संजीव . बुंदेलखंड के महानिम लोककहव ईसुरी के काव्य में लोकजीवन के सांवीकृहिक, साहहहत्यक, सामाहजक पि परू ी जीवन्ि​िा और रचनात्मकिा के साथ उद्घाहटि हु ए हैं. ईसुरी का वैहशष्ट्य यह है हक वे िथाकहथि संभ्रांि​िा या पांहडत्य से क्य, भाषा, शैली आहद उा​ार नहीं लेिे. वे दे शज रामीर् लोक मकू यों और परम्पराओं को इिनी वीवाभाहवकिा, प्रगाि​िा और अपनत्व से अंहकि करिे हैं हक उसके सम्मुख हशष्टिा-शालीनिा ओिहि सजद ना​ारा हवपन्न प्रिीि होने लगिी है. उनका साहहत्य पुवीिकाकार रूप में नहीं श्रुहि परं परा में सुन-गाकर सहदयों िक जीहवि रखा गया. बुंदेलखंड के जन-मन सम्राट महान लोककहव ईसुरी की फागें गेय परं परा के कारर् लोक-वीमहृ ि और लोक-मुख में जीहवि रहीं. संकलनकिाद कुंवर श्री दुगद हसंह ने १९३१ से १९४१ के मध्य इनका संकलन हकया. श्री इलाशंकर गुहा ने ाौराद राम (जहाँ ईसुरी लम्बे समय रहे थे) हनवाहसयों से सुनकर फागों का संकलन हकया. अपेिाकृि कम प्रचहलि हनम्न फागों में ईसुरी के नैसहगद क कारहयिी प्रहिभा के साथ-साथ बुन्दे ली लोक परं परा, हावीया एवं श्रीनगरहप्रयिा के भी दशद न होिे हैं: कृष्र्-भि ईसुरी वन्ृ दावन की माटी का महात्म्य कहिे हु ए उसे दे विाओं के हलए भी दुलदभ बिािे हैं: अपनी कृवीन जीभ सें चाटी, वन्ृ दावन की माटी दुरलभ भई हमली ना उनखों, दे ई दे विन डाटी हमल ना सकी अनेकन हारे , पावे की पररपाटी पायो वीवाग काहू ने नइयाँ, मीठी है की खाटी बाही रज बज ृ बाहसन ‘ईसुर’, हहसदारी में बाटी कदम कुञ्ज में खड़े कन्हैया राहगीरों को रावीिा भुला दे िे हैं, इसहलए पहथक जमुना की राह ही भल ू गये हैं अथाद ि जमुना से नहीं जािे. हकसी को भुला कर मजा लेने की लोकरीि को ईसुरी अच्छा नहीं मानिे और कृष्र् को सलाह दे िे हैं हक हकसी से अहाक हँ सी अच्छी नहीं होिी: आली! मनमोहन के मारें , जमुना गेल हबसारें जब दे खो जब खडो कुञ्ज में , गहें कदम की डारें जो कोउ भल ू जाि है रवीिा, बरबस आन हबगारें जादा हँसी नहीं काऊ सें, जा ना रीि हमारें


‘ईसुर’ कौन चाल अब चहलए, जे िौ परू ी पारें राि भर घर से बाहर रहे कृष्र् को अपनी सफाई में कुछ कहने का अवसर हमले हबना ‘छहलया’ का हखिाब दे ना ईसुरी के ही बस की बाि है:

ओइ घर जाब मुरहलयाबारे !, जहाँ राि रये प्यारे हे रें बाट मुनइयां बैठीं, करें नैन रिनारे अब िौ कौनऊँ काम िुमारो, नइयाँ भवन हमारे ‘ईसुर’ कृष्र् नंद के छौना, िुम छहलया बज ृ बारे

फगुआ हो और रा​ा​ा न खेलें, यह कैसे हो सकिा है? कृष्र् सेर हैं िो रा​ा​ा सवा सेर. दोनों की लीलाओं का सजीव वर्द न करिे हैं ईसुरी मानो सािाि् दे ख रहे हों. रा​ा​ा ने कृष्र् की लकुटी-कमररया छीन ली िो कृष्र् ने रा​ा​ा के हसर से सारी खींच ली. इिना ही हो िो गनीमि... होली की मवीिी चरम पर हु ई िो रा​ा​ा नटनागर बन गयी और कृष्र् को नारी बना हदया: खेलें फाग राहाका प्यारी, बज ृ खोरन हगरा​ारी इन भर बाहू बाँस को टारो, उन मारो हपचकारी इननें छीनीं लकुहट मुरहलया, उन छीनी हसर सारी बे िो आंय नंद के लाला, जे बषृ भान दुलारी अपुन बनी नटनागर ‘ईसुर’, उनें बनाओ नारी अटारी के सीिी चि​िे घुंघरू हनशब्द हो गए. फूलों की सेज पर बनवारी की नींद लग गयी, रा​ा​ा के आिे ही यशोदा के अनाड़ी बेटे की बीन (बांसुरी) चोरी हो गयी. कैसी सहज-सरस ककपना है: चोरी गइ बीन हबहारी की, जसुदा के लाल अनारी की जाहमन अमल जुगल के भीिर, आवन भइ रा​ा​ा प्यारी की नपू ुर सबद सनाके हखंच रये, हछहड़या चड़ि अटारी की बड़ी गुलाम सेज फूलन की लग गइ नींद मुरारी की काि ‘ईसुरी’ घोरा पै सें, उठा लई बनवारी की कृष्र् रा​ा​ा और गोहपयों के चंगुल में फँस गये हैं. गोहपयों ने अपने मनभावन कृष्र् को पकड़कर स्त्री बनाने का उपक्रम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कृष्र् की बनमाला और मुरली छीनकर हसर पर साड़ी उिा दी गयी. रा​ा​ा ने उन्हें सभी आभषू र्ों से सजाकर कमर में लंहगा पहना हदया और सहखयों के संग फागुन मनाने में लीन हो गयी हैं. श्रंग ृ ार और हावीय का ऐसा जीवंि शब्द हचि ईसुरी ही खींच सकिे हैं: पकरे गोहपन के मनभावन, लागी नार बनावन छीन लई बनमाल मुरहलया, सारी सीस उड़ावन


सकल अभषू न सजे राहाका, कहट लंहगा पहरावन नारी भेस बना के ‘ईसुर’, फगुआ लगी मगावन ईसुरी प्रेहमका से हनवेदन करा रहे हैं हक वह अपने िीखे नयनों का वार न करे , हजरह-बख्िर कुछ न कर सकेंगे और दे खे ही दे खिे नयन-बार् हदल के पार हो जायेगा. हकसी गुर्ी वैद्य की औषहा भी काम नहीं आएगी, ईसुरी के दवाई िो हप्रयिमा का दशद न ही है. प्रर्य की ऐसी प्रगाि रसहसि अहभव्यहि अपनी हमसाल आप है: नैना ना मारो लग जैहें, मरम पार हो जैहें बखिर हझलम कहा का लैहें, ढाल पार कर जैहें औषद मरू एक ना लहगहै, बैद गुनी का कैहें कहि ‘ईसुरी’ सुन लो प्यारी, दरस दबाई दैहें हनम्न फाग में ईसुरी नयनों की कथा कहिे हैं जो परदे शी से लगकर हबगड़ गये, बबाद द हो गये हैं. ये नयना अंाे हसपाही हैं जो कभी लड़कर नहीं हारे , इनको बहु ि नाि से काजल की रे खा भर-भरकर पाला है हकन्िु ये खो गए और इनसे बहिे आंसुओ ं से नयी की नयी सारी भीग गयी है. कैसी माहमद क अहभव्यहि है: नैना परदे सी सें लग कें, भये बरबाद हबगरकें नैना मोरे सरू हसपाही, कबऊँ ना हारे लरकें जे नैना बारे सें पाले, काजर रे खें भरकें ‘ईसुर’ भींज गई नई सारी, खोवन अँसुआ ढरकें श्रंग ृ ार के हवरह पि का प्रहिहनहात्व करिी यह फाग ईसुरी और उनकी प्रेहमका रजऊ के हबछड़ने की व्यथा-कथा कहिी है: हबछुरी सारस कैसी जोरी, रजो हमारी िोरी सङ्गेसङ्ग रहे हनहस-बासर, गरें हलपटिी सोरी सो हो गई सपने की बािें, अन हँस बोले कोरी कछू हदनन को हिया अबादो, हमें बिा दो गोरी जबलो लागी रहै ‘ईसुरी’, आसा जी की मोरी ईसुरी की ये फागें श्रंग ृ ार के हमलन-हवरह पिों का हचिर् करने के साथ-साथ हावीय के उदात्त पि को भी सामने लािी हैं. इनमें हँ सी-मजाक, हँसना-बोलना सभी कुछ है हकन्िु मयाद हदि, कहीं भी अश्लीलिा का लेश माि भी नहीं है. ईसुरी की ये फागें २८ मािी नरे न्र छं द में रहचि हैं. इनमें १६-१२ पर यहि का ईसुरी ने परू ी िरह पालन हकया है. सम चरर्ान्ि में गुरु की अहाकिा है हकन्िु २ लघु भी प्राप्य है. इक फाग में ४, ५ या ६ िक पंहियाँ हमलिी हैं. एक फाग की सभी पंहियों में सम चरर्ान्ि समान है जबहक हवषम चरर्ान्ि में लघु-गुरु का कोई बंान नहीं है. *******


हम ने गर हु वीन और ख़ुशबू ही को िोला होिा हफर िो हर पेड़ गुलाबों से भी हकका होिा उदाहरर् के रूप में समझा जाये िो एक मिद बा यँ ू भी समझा जा सकिा है हक परम्पराएँ हमे शा पेड़ या हफर पौाे की िरह होिी हैं और उन पर लगने वाले फूल और उन फूलों की ख़ुशबएू ँ आाुहनक हवचारा​ारा समान। यहद हम आाुहनक हवचारा​ाराओं ही को सबकुछ समझ बैठेंगे िो ये फूल और ख़ुशबएू ँ क्या आसमान से टपकेंगे? समझने वाले इशारों को बहु ि जकद समझेंगे। बाय द टाइम आप इस अङ्क को पि रहे हों, मुमहकन है दुहनया का एक बड़ा हहवीसा आप को होली की बुराइयाँ हगना रहा हो। हम इिना ही हनवेदन करें गे हक “सपू ” की िरह-िरह सार-सार को गहें और थोथे को उड़ा फेंकें। नीर-िीर-हववेक हम सब की ामहनयों में युगों-युगों से प्रवाहमान है। अपने हववेक का सदुपयोग करिे हु ये अच्छी बािों को आगे बिाएँ । हमठाइयों के कारोबाररयों द्वारा परोसे जा रहे अशुि माल से परहे ि करिे वक़्ि याद रहे हक केडबरी भी कोई अमि ृ नहीं है। हर गली के नुक्कड़ पर रङ्ग, हपचकारी वग़ैरह बेचने वाले हमारे कुटीर उद्योग के खेवनहार हैं। आप सभी को सपररवार होली की शुभ-कामनाएँ । खुहशयों का वीवागि करे , हर आँगन हर द्वार| कुछ ऐसा हो इस बरस, होली का त्यौहार||

होली हवषयक और भी सामरी मसलन छं द, ग़िल, हजल, नज़्म, कहविा, गीि-नवगीि, रहसया, आलेख, कहानी, कथा वग़ैरह पिने के हलये यहाँ हक्लक करें


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