हििंदस्ु तानी साहित्य सेवार्ष एक शैशव-प्रयास
साहित्यम् जल ु ाई-अगस्त 2014 - वर्ष 1 - अङ्क 6
अन्तर्जालीय पत्रिकज / सङ्कलक
सम्पजदक – नवीन सी. चतुवेदी
सजहित्यम ् – अन्तरर्जलीय पत्रिकज / सङ्कलक
अनक्र ु माणिका
जल ु ाई-अगस्त 2014
वर्ा – 1 अङ्क – 6
किजनी
सोनी ककशोर लसंि
वववेचनज
मयङ्क अवस्थी
व्यंग्य
कमलेश पजण्डेय, आलोक परु जणर्क, नीरर्
बधवजर, अनुर् खरे , शरद सुनेरी, मधुवन-दत्त
07897716173 छन्द ववभजग व्यंग्य ववभजग किजनी ववभजग रजर्स्थजनी ववभजग
संर्ीव वमजा ‘सललल’ 9425183144 कमलेश पजण्डेय 9868380502 सोनी ककशोर लसंि 8108110152 रजर्ेन्र स्वर्ाकजर 9314682626
अवधी ववभजग
धमेन्र कुमजर ‘सज्र्न’ 9418004272
भोर्परु ी ववभजग
इरशजद खजन लसकन्दर 9818354784
ववववध सिजयतज
मोिनजन्शु रचचत 9457520433 ऋतज शेखर मधु
सम्पजदन
नवीन सी. चतव ु ेदी 9967024593
कववतज-नज़्म
सञ्र्ीव ननगम, जर्तेन्र र्ौिर, सम ु ीतज प्रवीर् केशवज, र्ोश मलीिजबजदी नवीन सी. चतुवेदी
िजइकु
भगवत शरर् अग्रवजल
गीत
डज. रजम मनोिर त्रिपजठी, सरस्वती कुमजर
‘दीपक’, पुरुर्ोत्तम दब ु ,े ब्रर्ेश पजठक मौन,
बलवीर लसंि रङ्ग, रजमचन्र पजण्डे श्रलमक, मधु प्रसजद, डज. कमलेश द्वववेदी, डज. उलमालेश, नीलकण्ठ नतवजरी छन्द
बी. के. शमजा ‘शैदी’, सुमन सरीन, सुशीलज लशवरजर्, शैलेंर शमजा, सजगर त्रिपजठी
नवीन सी. चतव ु ेदी ग़ज़लें
मिीपजल, शैल चतुवेदी, श्री िरर, दजननश भजरती,
मेरजज़ फैज़जबजदी, नीरर् गोस्वजमी, पवन कुमजर, अणखल रजर्, मयङ्क
अवस्थी, इरशजद ख़जन
लसकंदर, नवीन सी. चतुवेदी आञ्चललक
पवन श्रीवजस्तव, दे वेन्र गौतम,
गर्लें
लसकंदर,
प्रयोग
कवव रमेश रजर्,
प्रयजस
कववतज कोर्
इरशजद ख़जन
र्ीवन व्यविजर आनन्द मोिनलजल चतुवेदी छन्दजलय
आ. सञ्र्ीव वमजा ‘सललल’
अन्य
हिरे न पोपट, रजर्ू चतुवेदी
यिजाँ प्रकजलशत प्रनत-एक सजमग्री के सभी अचधकजर / दजनयत्व तत्सम्बजन्धत लेखकजधीन िैं| अव्यजवसजनयक प्रयोग के ललए स-सन्दभा लेखक के नजम कज उल्लेख अवश्य करें | व्यजवसजनयक प्रयोग के ललए पव ू ा ललणखत अनम ु नत अननवजया िै |
सजहित्यम पर अचधकजन्शत: छववयजाँ सजभजर गग ू ल से ली र्जती िैं। सजहित्य के इस क्षरर् कजल को कफर से स्वणर्ाम कजल में बदलने के उद्दे श्य के सजथ, अच्छज-सजहित्य अचधकतम व्यजततयों तक पिुाँचजने कज प्रयजस के अन्तगात ववववध सजमचग्रयजाँ पस् ु तकों, अनतर्जाल यज अन्य व्यजततयों / मजध्यमों से सङ्ग्रहित की र्जती िैं। यिजाँ प्रकजलशत ककसी भी सजमग्री पर यहद ककसी को ककसी भी तरि की आपवत्त िो तो अपनी मंशज ववचधवत सम्पजदक तक पिुाँचजने की कृपज करें । िमजरज ध्येय यज मन्तव्य ककसी को नक ु सजन पिुाँचजनज निीं िै । भल ू सध ु जर करने के ललये िम सदै व तत्पर िैं।
िुआ। परम वपतज परमेशर से प्रजथानज िै कक हदवंगत आत्मजओं को चचर-शजजन्त एवम पररवजरी र्नों को इस
सम्पादकीय वपछलज अङ्क आने के बजद लोगों
वज्रजघजत को सिन करने की शजतत प्रदजन करें ।
क्रम में एक सज्र्न कज फोन आयज।
सजहित्यम में सजहित्य से र्ुड़ी बजतें िोनज सजमजन्य बजत
शैशव-प्रयजस को न र्जने ककन-ककन अलङ्कजरों से
र्ी को अलग-अलग व्यजततयों कज शजचगदा न लसफ़ा
िो रिी तजरीफ़ों के गब्ु बजरे में बैठ कर सैर कर रिे थे।
पव ू ा में भी इस बजत पर कई बजर स्पष्टीकरर् दे चुके िैं
तजरीफ़ निीं िो रिी? सो फौरन िी सवजल ककयज
भी ऐसे दो व्यजततयों से इस बजत की पजु ष्ट कर चक ु ज
भजई सजिब आप ने अङ्क पढ़ज?
अपनी बजतों को दन्नजये र्जनज िै । मयङ्क र्ी इस प्रकरर्
शकु क्रयज। आप को सजहित्यम में तयज अच्छज लगज?
इस बजत को स्पष्ट कर दे नज ठीक रिे गज।
व्यंग्य सब कुछ। चुट्कुले [?] और वगा-पिे ली [?] तो मुझे बिुत अच्छे लगते िैं।
मोदी सजिब ने मंत्रियों और अफसरों को कजम पर लगजयज
िैं न वगा-पिे ली। ये र्नजब ककस कज जज़क्र कर रिे िैं?
कुछ समय लगेगज। कुछ मिीनों कज इंतज़जर करने में िज़ा
िजाँ-िजाँ, मेरज एक सुझजव िै कक आप सजहित्यम में छं दों
इस अङ्क से िम ने कुछ नये प्रयजस आरम्भ ककये िैं
लोगों ने उसे सरजिज। इसी सरजिनज उन्िों ने कुछ जज़यजदज िी सरजिज। इस
िै । कुछ लोगों मे अलग-अलग समय पर मयङ्क अवस्थी
नवजज़ज। अपनी तजरीफ़ ककसे बरु ी लगती िै सो िम भी
समझज बजल्क ज़जहिरन किज और ललखज भी। मयङ्क र्ी
परन्तु मन िी मन लग रिज थज कक ये कुछ जज़यजदज िी
कक उन कज कोई भी उस्तजज़ निीं िै । एक बजर स्वयं मैं
अरे र्नजब मैं तो इन्तज़जर में रितज िूाँ कक कब सजहित्यम आये और मैं उसे पढ़ूाँ। िर कजम अच्छज िै सजब। कववतज, किजनी, ग़ज़ल यज
[मैं ने सोचज यजर अपने सजहित्यम में न तो चुट्कुले आते
िूाँ। मगर लोग िैं कक उन्िें न पढ़नज िै न सन ु नज बस
से कजफ़ी व्यचथत िुये और उन्िों ने अपनज दख ु मेरे सजथ सजझज ककयज। अपनज दजनयत्व समझते िुये मझ ु े लगज कक
िुआ िै इस बजत के समजचजर ननरन्तर लमल रिे िैं। अच्छे हदनों वजले समजचजर कज इंतज़जर िै । िम समझ सकते िैं
कफर भी कन्रोल करते िुये...] आप कज कोई अच्छज सझ ु जव िो तो ज़रूर दीजर्येगज।
िै भी निीं।
और गीतों को भी शजलमल करें ।
और आशज करते िैं आप लोगों को पसन्द आयेंग।े
अब मेरज पजरज सटकने की बजरी थी। त्रबनज गजली-गलोच
अब से इसे िैमजलसक ककयज र्ज रिज िै । अगलज अंक
सजथ िी मन में बड़ज क्षोभ िुआ और एक प्रश्न भी उपजस्थत िुआ “तयज वजक़ई लोग पढ़ते िैं उसे र्ो िम
सियोचगयों से सजग्रि-ववनम्र-ननवेदन िै कक अपनी-अपनी
र्ी से बजत िुई तो उन्िों ने किज कक “लोग तो उस पेर्
की कृपज ककयज करें । र्ो सियोगी ककसी कजरर्-वश कुछ
न आये तो ककसी की रचनज में बदलजव कर के छजप कर
कक उन कज योगदजन अगले अङ्क में अवश्य लमलेगज।
तयज कहिये उन स्वनजम-धन्य सजहित्यकजरों को र्ो सजहित्य की दद ु ा शज को ले कर हदन-रजत दख ु ी रिते िैं।
अङ्क को पर् ू त्ा व पर पिुाँचजने में सिजयतज की, उस कज हृदयजतल से बजरम्बजर आभजर। नमस्कजर।
वपछले हदनों आदरर्ीय श्री तफ़ ु ै ल चतव ु ेदी र्ी की मजतज
सजदर
वजली भजर्ज में र्ो कुछ भी थमज सकतज थज, थमज हदयज।
सजहित्यम की वैववध्य-पर् ू ा गर् ु वत्तज बनजये रखने के ललये
अततब ू र के अन्त में आयेगज। समस्त रचनजधलमायों / अच्छी रचनजएाँ / अपनज-अपनज सङ्तलन वडा फजइल में
ढूाँढ-ढूाँढ कर एकत्रित कर रिे िैं? इस ववर्य पर नरिरर
यनू नकोड में ठीक से टजइप कर के शीघ्रजनतशीघ्र भेर्ने
को भी निीं पढ़ते जर्स पर वो ख़ुद छपे िोते िैं। यक़ीन
समय से समय निीं ननकजल पज रिे थे, आशज करते िैं
दे ख लीजर्ये। कोई र्ैत्रबल्लज िी पलट कर आयेगज।“ अब
िर वि व्यजतत जर्स ने प्रत्यक्ष / परोक्ष रूप से इस
र्ी श्रीमती शरद चतव ु ेदी र्ी एवम मम् ु बई में रिने वजले प्रख्यजत िजस्य-मनू ता िुल्लड़ मरु जदजबजदी र्ी कज दे िजवसजन
नवीन सी. चतव ु ेदी
आपको बिुत बड़ज पिकजर समझती थी लेककन आप तो अव्वल दर्े के िरजमी ननकले, अगर कुछ करनज
कहानी
िी निीं थज तो लम्बी-लम्बी फेंक के मेरज टजइम तयों
क्राइम बीट – सोनी ककशोर ससिंह
बबजाद ककयज...लड़की िड़बड़ी में बोलकर फोन रख
वो सुन्दर थी और सुन्दर निीं भी
चक ु ी थी। मुझे लगज कक र्रूर कोई मसजलज िै , स्वजद
तेर् तरजार, स्वस्थ, प्रनतभजशजली
और बॉस के खजसमखजस सत्यर्ीत कज िै तो मेरज
यव ु ती थी लेककन शजरीररक सौन्दया
इण्टे रेस्ट और भी बढ़ गयज। मैंने फौरन लड़की के
िोठ थे, न कजले-कजले मेघों की तरि लिरजते बजल,
एतसतयर् ू मी, दे णखये ये अखबजर कज दफ्तर िै और
थी। मतलब वो अपने हदमजग से
लेने में िर्ा िी ककयज िै और मसजलज भी मेरे कजत्रबल
के मजपन पर औसत थी। न तो उसके गल ु जबी रसभरे
पजस र्जकर लगभग डपटने वजले अंदजर् में किज -
न कर्रजरी आाँखें न उन्नत उभजर। लेककन इन
आपको इस तरि से िल्लज-गल् ु लज करने की र्रुरत
सजंसजररक छद्म कलमयों के बजवर्द ू वो एक िवज कज
निीं िै , अगर कोई लशकजयत िै यज ककसी से कोई
झोंकज थी जर्सकी खश ु बू साँघ ू ते िी मुझे अच्छज लगज
कजम िै तो उसे बतजने कज सभ्य और शजंनतपूर्ा
लमली किजाँ थी, ये कि सकती िूाँ कक मैं खद ु िी
िुआ िै ।
थज। वो पिली बजर मुझे अपने ऑकफस में लमली थी।
उससे लमलने ररसेप्शन पर पिुाँची थी। िुआ कुछ यूाँ थज कक िमजरे अखबजर के दफ्तर में वो ककसी से लमलने आई थी लेककन जर्न मिोदय से लमलनज थज उन्िोंने उस हदन ऑकफस आने की र्िमत निीं उठजई और न लड़की को ये बतजनज र्रूरी समझज
तरीकज भी दनु नयज में िमजरे पुरखों ने इर्जद ककयज
उस लड़की ने मुझे खज र्जने वजली नज़रों से घूरजअच्छज तो मुझे ये बतजइये कक अगर लगजतजर कोई
आपको लमन्नत करके बुलजये, आपके सजमने एड़ड़यजं रगड़े कक आप एक बजर मेरे ऑकफस आ र्जओ और
कक वो ऑकफस आने वजले निीं िैं। तय बजतचीत के
आपके र्जने के बजद वो आपको लमले िी न, फोन
अनुसजर लड़की ऑकफस पिुाँची और ररसेप्शननस्ट से
करने पर बद्तमीर्ी से बजत करे तो आप कौन सज
उन
मिोदय
से
लमलने
की
इच्छज
र्तजई।
सभ्य तरीकज अपनजयेंगी?
ररसेप्शननस्ट के ये किते िी कक सर आकफस में निीं िैं उसने मिोदय को फोन लमलज हदयज। पतज निीं उधर से उन्िोंने तयज किज थज, लेककन इधर लोिज
मुझे कोई र्वजब दे ते निीं बनज तो मैंने फौरन उसे
अपने केत्रबन में आने कज इशजरज ककयज और तेर्
गमा िो चक ु ज थज। वो लड़की चीख-चीख कर उन्िें
कदमों से आगे बढ़ गई।
कमाचजरी इकट्ठज िो गये थे। मैं भी भजगी-भजगी विजाँ
बैठते िी मैंने उसकी तरफ पजनी कज चगलजस बढ़ज
पिुाँची थी ये र्जनने के ललये कक मजमलज तयज िै । पिली झलक में मझ ु े लगज कक वो ककसी नौकरी यज
हदयज। उसने नो थैंतस किते िुये बेरुखी से मनज कर हदयज। कफर मैंने बजत आगे बढ़जई - मैं प्रजची शमजा,
इंटना के ललये आई िोगी और कजम बनते न दे खकर
पिले क्रजइम बीट पर थी आर्कल फीचर पेर् दे खती
चीखनज चचल्लजनज शरू ु कर हदयज िै । मैंने इशजरों में
िूाँ। क्रजइम सत्यर्ीत र्ी दे खते िैं...
इशजरों से बतज हदयज कक लड़की में टल टजइप िै । मैं
आप.... मैम आप प्रजची शमजा िो, आई मीन कक आप
वजपस अपनी सीट पर र्जने के ललये मड़ ु ी िी थी कक
िी िो र्ो... ओि मजइ गॉड.. आई एम सो सॉरी
धोखेबजर्, झूठज, िरजमी आहद बोले र्ज रिी थी। कई
ररसेप्शननस्ट से पछ ू ज कक बजत तयज िै तो उसने भी
उसकी बजतों ने मझ ु े कुछ दे र और विजाँ रुकने के ललये मर्बरू कर हदयज। लम. सत्यर्ीत लमश्रज, मैं तो
कक... आधी आवजर् उसके िलक में िी घट ु कर रि
गई लेककन चेिरे पर गुस्से की र्गि एक उत्सजि और खश ु ी ने दस्तक दे दी थी।
पतज निीं कैसे मैं सत्यर्ीत लमश्रज के पजस चली गई, मुझे तो सीधे आपसे बजत करनी चजहिए थी इस बजरे में ।
तभी चपरजसी वैद्यनजथ चजय लेकर अंदर आयज, उसकी खोर्ी नर्रों को दे ख कर मैं समझ गई कक बजिर से कुछ लोगों ने उसे भेर्ज िोगज ये पतज लगजने
ककस बजरे में - मैंने अचरर् र्तजते िुये पूछज।
के ललये कक अंदर तयज िो रिज िै । वैद्यनजथ िमजरे
रजचगनी मेरी तरफ गौर से दे खने लगी शजयद नर्रों
आकफस कज सबसे बदतमीर् ककस्म कज यनू नयनबजर्
से यि तौलनज चजि रिी िो कक र्ो बजत वो किने
चपरजसी िै इसललये मैंने उसको इग्नोर करते िुये अपनी बजत आगे बढ़जई- तयज नजम िै तम् ु िजरज ?
र्ज रिी िै उसको मैं ककतनी संर्ीदगी से ले रिी िूाँ। उससे मेरी नर्र र्ैसे िी लमली एक बजर तो मझ ु े
र्ी रजचगनी - वि अब सिर् िो रिी थी मेरे सजथ।
रिी िै और मैं लसफा सत्यर्ीत लमश्रज द्वजरज अपनी
रजचगनी एमएमएस एक कफल्म भी आई िै ,,,,आपने दे खी िै तयज... मेरे कुछ बोलने से पिले िी वैद्यनजथ
दजाँत ननपोरते और चजय दे ते िुये कफकरज कस चुकज थज।
भी लगज रजचगनी कोई भजरी भरकम बजत किने र्ज बीट छीन ललये र्जने के कजरर् खन् ु नस में पड़ी िूाँ।
मैम मैं आपको एक बिुत खजस बजत बतजने र्ज रिी िूाँ लेककन आप ये प्रॉलमस कीजर्ए कक इस न्यूर् को ककसी भी िजलत में मैनेर् निीं करें गी - रजचगनी र्ोश में आ गई थी।
िजाँ दे खी िै मैंने और नमकिरजम, नजर्जयज़ औलजद कफल्में भी आई थीं वो दे खी िै तयज तुमने, निीं
व्िजट नॉनसेन्स रजचगनी, न्यूर् मैनेर् कज तयज
र्वजब हदयज। वैद्यनजथ लसटवपटजयज सज चजय रखकर
झल्लज गई, शजयद मन िी मन खद ु को तसल्ली
दे खी तो र्जकर दे ख लेनज- रजचगनी ने वैद्यनजथ को बजिर ननकल गयज।
मतलब, यिजाँ कोई न्यूर् मैनेर् निीं िोती - मैं दे ने लगी कक ऐसज कुछ िोतज निीं िै , र्बकक सैंकड़ों
बजर मेरी आाँखों के सजमने मेरी िी ररपोट्ास को मैनेर् वैद्यनजथ की बद्तमीर्ी के ललये मैंने आई एम सॉरी रजचगनी... किनज चजिज लेककन मेरे माँि ु से ननकलज वेलडन रजचगनी। रजचगनी मुस्कुरज कर चजय पीने
लगी। मैंने रजचगनी पर नर्र र्मजते िुये बजत को आगे बढ़जने की कोलशश की। रजचगनी, दे खो मैं ये निीं पुछूाँगी कक सत्यर्ीत से
तम् ु िजरी तयज बजत िुई, मैं लसफा इतनज किूाँगी कक अगर तम् ु िे मेरी ककसी सिजयतज की र्रूरत िो तो कभी भी त्रबनज ककसी संकोच के मझ ु े यजद करनज।
रजचगनी बिुत शजंत भजव से बोली- मैम मैं आर् भी आपके सजरे आहटा कल्स र्रूर पढ़ती िूाँ, र्ब आप
न्यर् ू चैनल में 'स्टॉप द क्रजइम ' शो करती थीं
तबसे आपकी फैन िूाँ। यू आर मजई आइड़डयल मैम,
ककयज गयज और मैं कुछ निीं कर पजई। प्रजची मैम आप नजरजर् मत िोईये, परिै प्स यू आर
मजई लजस्ट िोप, मेरी बजत सुन लीजर्ये। मैम यिजाँ र्य मजाँ दग ु जा िॉस्टल से लड़ककयजाँ सप्लजई िोती िैं, शिर के नेतजओं और अमीरर्जदों को... रजचगनी बिुत धीमी आवजर् में बोली। िम्म्म्म्म, मझ ु े पतज िै , मैंने कई बजर इसके बजरे में
ररपोटा छजपी थी लेककन पलु लस ने कुछ खजस ककयज
निीं, वैसे तम ु तयों इतनी परे शजन िो रिी िो, तम ु भी उस िॉस्टल में रिती िो तयज? - मझ ु े लगज थज
रजचगनी कोई नई बजत किे गी लेककन उसकी नघसी-
वपटी पुरजनी स्टोरी में कुछ दम लगज निीं तो मैं
कुछ अर्ीब सज लग रिज थज, प्रजची मैम। डरी सिमी
निीं, मैं निीं रिती उस िॉस्टल में , िजाँ कभी-कभजर
मुझे अर्ीब ये लगज कक र्ब मैं विजाँ पिुाँची तो विजाँ एक-दो कमरे अंदर से लॉक थे और उसमें से लड़कों
ननरजश सी िो गई।
र्जती िूाँ विजाँ। प्रजची मैम आपके ललये ये पुरजनी बजत िोगी यज कफर ककसी न्यूर् कज हिस्सज, मेरे ललये न
तो ये परु जनी बजत िै न इग्नोर करने लजयक। इस गलत कजम को बंद करवजने में मझ ु े आपकी मदद चजहिए। प्लीर्- रजचगनी बौखलज गई थी।
लड़ककयजाँ, अाँधेरे और गंदे कमरे और सबसे ज्यजदज
की आवजर्ें आ रिी थीं। मैंने र्ब वजडान को बोलज कक ये सब तयज िो रिज िै तो उसने मुझे बुरे तरीके से डजाँटज और िॉस्टल से ननकल र्जने को किज।
मैम, उस हदन मैं गस् ु से और अपमजन की पीड़ज में
र्ल उठी। घर आकर पजपज को सजरी बजत बतजई और आवजर् नीचे करो, बजिर लोग सन ु ें गे....और अगर
ये भी कक वजडान विजाँ गलत कजमों को बढ़जवज दे रिी
बजर पैसे निीं लमले यज तुमने ज्यजदज पैसे की
बोले- रजचगनी तुम अपनी पढ़जई पर ध्यजन दो बजकी
विजाँ गलत कजम िोते िैं तो तम ु तयों र्जती िो, इस
िै लेककन मेरे पजपज बर्जये नजरजर् िोने के मझ ु से
फरमजईश कर दी - गुस्से में मैंने कई बेिूदज सवजल
सब कफर्ूल बजतों में न पड़ो। मैं सजरज मैटर सॉल्व
दजग हदये।
तयोंकक र्य मजाँ दग ु जा िॉस्टल मेरज िै , मेरज मतलब
कर लाँ ग ू ज। लेककन पतज निीं मुझे तयों लग रिज थज कक पजपज मुझसे झूठ बोल रिे िैं...
मेरे पजपज कज इसललये मुझे विजाँ की सजरी गलत-सिी
गुण्डों कज सरदजर िै तुम्िजरज बजप, उसके णखलजफ
कजम में मेरज भजई भी मेरे पजपज कज सजथ दे तज िै ...
ललयज िै यज बस झण्डज उठजकर क्रजजन्त करने चल
चीर्ें मजलूम िै , अबतक डर के कजरर् चप ु थी, इस
र्जओगी तो कफर घर में कैसे रिोगी। ये सब सोच पड़ी- मैंने तीर छोड़ज, शजयद मैं उसकज ररएतशन
मुझे ड़डटे ल्स में बतजओ, सब कुछ। मैं तुम्िजरी िे ल्प करूाँगी, आई प्रॉलमस- किते िुये मैं अपनी चेयर से उठकर रजचगनी के पजस गई और उसके कंधे को
िल्के से थपकी दी। मुझे लग रिज थज कक अब मेरे अंदर की पिकजर एक स्िी में तब्दील िो रिी िै और
मुझे ददा के घेरे में लेने की, एक स्िी की पीड़ज को समझने की शजतत दे रिी िै ।
रजचगनी धीमे-धीमे बतजने लगी-
करीब दो सजल
दे खकर कन्फमा िोनज चजिती थी कक वो अपनी बजत पर अड़ी रिे गी यज ररश्ते-नजते की दिु जई दे कर उसके घर वजले उसे पीछे िटने पर मर्बूर कर दें गे।
मुझे न तो ऐसे घर वजलों की परवजि िै न अपने पजपज की। र्ो इन्सजन दस ू रे की बेहटयों से गंदज कजम
करवज कर पैसे बनजतज िै वो अपनी बेटी को कबतक सुरक्षक्षत रखेगज- रजचगनी ने मुझे आश्वस्त ककयज िजलजाँकक ये बजत किते किते रजचगनी की आाँखें भीग
पिले मैं एक बजर पजपज को त्रबनज बतजये यूाँ िी िॉस्टल
चक ु ी थी।
की लड़ककयों को एक बजर दे ख लाँ ू लेककन विजाँ र्जने
तम ु कुछ और भी बतजनज चजि रिी िो रजचगनी यज
चली गई थी। बस इसललये कक िॉस्टल और विजाँ
पर मझ ु े वजडान ने िॉस्टल में घस ु ने से मनज कर हदयज। मैंने र्ब उसे ये बतजयज कक ये मेरज िी िॉस्टल
िै तब भी वो टस से मस न िुई। गस् ु से में मैंने पजपज को फोन लगजयज तो उन्िोंने वजडान से बजत की और मझ ु े अंदर र्जने की इर्जर्त लमली। विजाँ सब
लसफा इतनी सी बजत िै - मैंने कफर पछ ू ज।
कुछ लड़ककयों को ब्लैकमेल कर उन्िें ये सब करने के ललये मर्बरू ककयज र्ज रिज िै मैम।
ब्लैकमेललंग ककस बजत की ? अपनी पढ़जई और कुछ दस ू रे खचे पूरे करने के ललये
मैम, वो लड़ककयजाँ प्रॉस्टीट्यूट निीं िैं, उनकज अपनज अजस्तत्व िै , वो मेरी दोस्त िैं, वो र्य मजाँ दग ु जा
िॉस्टल में रिने वजली छजिजएं िैं, वो अपने मजाँ-बजप
उनमें से कई ये कजम वीकेंड में करती िैं, वजडान ने
की बेहटयजाँ िैं, वो मेरे पजपज के ललये आसजन सज
मेरे पजपज की मदद से ये सब पतज लगज ललयज और
टजगेट िैं और आपके ललये एक मसजलेदजर खबर िै ....
अब उन्िें धमकी दी र्ज रिी िै कक वो मेरे पजपज के
वो सब कुछ िैं, बट दे आर नॉट प्रॉस्टीट्यूट।
ललये कजम करें - रजचगनी एक िी सजाँस में बोल गई। आर दे प्रॉस्टीट्यट ू ? - मुझे झटकज सज लगज।
सॉरी, रजचगनी, आय डोंट वॉन्ट टू िटा यू- रजचगनी की बजत ने मझ ु े शलमान्दज कर हदयज।
प्रॉस्टीट्यूट, मजइंड योर लैंग्वेर् मैम, कम से कम
आप तो इस तरि मत बोललये। अगर पेट की भख ू
प्रजची मैम, मैं चजिती िूाँ कक उन लड़ककयों को ककसी तरि की कोई तकलीफ न िो और मेरे पजपज कज ये
लमटजने के ललये, अपनी पढ़जई र्जरी रखने के ललये,
सर छुपजने की एक र्गि पजने के खचे पूरे करने के
नघनौनज कजम भी बंद िो र्जये, आप प्लीर् कुछ करो....
ललये वो ककसी की दै हिक र्रूरतों को पूरज करके अपने ललये कुछ पैसे इकट्ठज भी करती िैं तो वो
सत्यर्ीत को तयज-तयज बतजयज तुमने ?
आप तयज किें गी र्ो इस बजत कज फजयदज उठज रिज
अभी तक कुछ भी निीं, उन्िें बस इतनज बतजयज थज
प्रॉस्टीट्यूट िो गईं। और मेरे बजप र्ैसे लोगों को िै ? रजचगनी गुस्से में थी और मैं चप ु िोकर उसकी बजतें सुन रिी थी।
तभी चजय कज कप उठजने के बिजने वैद्यनजथ एक बजर कफर केत्रबन में दजणखल िुआ। रजचगनी भी चप ु िो गई, लेककन वैद्यनजथ अभी तक खन् ु नस खजये
कक आपके ललये मेरे पजस एक धमजकेदजर खबर िै ,
उसके बजद वो खबर र्जनने के ललये मुझे बजर-बजर फोन लमलजकर आकफस बुलज रिे थे और आर् यिजाँ आई तो खद ु िी गजयब िैं.... िमममम- मैं मुस्कुरजई।
थज- खींसे ननपोरतज िुआ बोलज- ये प्रॉस्टीट्यूट तयज िोतज िै मैडम। मैं उसे डजाँटती इससे पिले िी रजचगनी
तुम निीं र्जनती रजचगनी, ये सत्यर्ीत तुम्िजरे बजप
चचल्लजई- प्रॉस्टीट्यूट वो िोती िै र्ो तुझ र्ैसे िरजमी
टें शन मत लो र्ब तक वो कुछ कर पजयेगज िम
के वपल्लों को र्नती िै ...
के सजथ गोहटयजाँ कफट कर रिज िोगज, लेककन तुम अपनज कजम कर दें गे। कम ऑन लेट्स गो- रजचगनी और मैं दोनों तेर् कदमों से बजिर ननकले और बॉस
वैद्यनजथ मेरी तरफ मुखजनतब िुआ लेककन मैंने उसे डपटते िुये किज- वैद्यनजथ अभी बिुत र्रूरी बजत
के केत्रबन की तरफ मुड़ गये।
बल ु जऊाँ तब आनज। वैद्यनजथ गस् ु से में पैर पटकतज
घस ु कर िी पछ ू ज।
चल रिी िै और तम ु फौरन यिजाँ से ननकलो र्ब िुआ चलज गयज।
िजाँ रजचगनी, गजललयजाँ दे ने में एतसपटा िो, गड ु ।
तयज िमलोग अंदर आ सकते िैं- मैंने लगभग अंदर
अब तो तम ु अंदर आ िी गई िो, फोमेललटी छोड़ो
और बतजओ तयज कजम िै प्रजची- बॉस ने मुस्कुरजते िुये पछ ू ज।
सर ये रजचगनी िै , र्य मजाँ दग ु जा िॉस्टल के बजरे में
दे खो प्रजची, मुझे इस तरि कज मर्जक त्रबल्कुल पसंद निीं िै - सत्यर्ीत िकलज रिज थज।
कुछ न्यूर् िै इसके पजस और मैं चजिती िूाँ कक आप मुझे परमीशन दे कक वो न्यूर् मैं िैंड़डल करूाँ ?
मुझे इस तरि कज मर्जक तो पसंद िै लेककन इस
ओफ्फो, प्रजची तुम भी न, तुम्िे पतज िै न कक ये
तुम्िजरे ललये बेितर यिी िोगज कक तुम अपने
तम् ु िजरी बीट निीं िै , कफर तयों बजर-बजर सत्यर्ीत के कजम में अड़ंगज डजलने की कोलशश करती िो।
तरि की सजजर्श त्रबल्कुल पसंद निीं िै सत्यर्ीत, कक्रलमनल मजईंड को इस केस में मत लगजओ, निीं
तो तम् ु िे यजद हदलजनज पड़ेगज कक मैं कौन िूाँ..... मैंने अपनज आणखरी वजर ककयज।
लेककन सर ये रजचगनी कि रिी िै कक सत्यर्ीत.... मैंने रजचगनी की तरफ दे खते िुये किज।
रजचगनी के सजमने तम ु मेरी इमेर् खरजब कर रिी िो
ं , नजऊ र्स्ट आई डोंट वजन्ट टू लललसन एनीचथग
प्रजची, मैं बॉस को बतजऊाँगज ये बजत- किते िुये सत्यर्ीत अपनी कॉफी विीं छोड़कर भजग ननकलज।
मैं और रजचगनी माँि ु लटकजकर बजिर ननकले िी थे
रजचगनी मेरी तरफ टकटकी लगजये िुये थी और मैं अपने कॉफी के मग से ऊपर नर्र निीं उठज पज रिी
कक सत्यर्ीत सजमने से मुस्कुरजतज िुआ आ रिज थज।
थी।
अरे ... रे ... रजचगनी र्ी आप यिजाँ िैं, प्रजची मैडम से
मैं चलती िूाँ मैम, आपने कोलशश की, मुझे अच्छज
लीव.... बॉस कज पजरज चढ़ गयज।
गपशप कर रिी िैं, आईए बैठकर एक-एक कप कॉफी पी र्जये ।
लगज। मैं र्जनती िूाँ आप कुछ न कुछ र्रूर करोगीरजचगनी कज ववश्वजस अब भी मुझ पर बरकरजर थज।
रजचगनी के कुछ बोलने से पिले िी मैंने सत्यर्ीत
िजाँ रजचगनी मैं पूरी कोलशश करूाँगी, तुम टें शन मत
तुम र्ैसे दोस्तों के सजथ कॉफी भलज कौन निीं पीनज
विजाँ शजयद तुम्िजरे ललये कोई र्गि निीं िोगी, ये
को कैंटीन की तरफ खींच ललयज- र्रूर सत्यर्ीत, चजिे गज।
कैंटीन में सत्यर्ीत त्रबल्कुल नॉमाल औऱ खश ु हदख रिज थज, लेककन िम दोनों को आग लगी थी। मुझसे
रिज निीं गयज तो मैंने अपनज माँि ु खोल िी हदयजतो सत्यर्ीत रजचगनी की न्यूर् ककतने में मैनेर् की ?
लो और सुनो अब तुम अपने घर निीं र्जओ तयोंकक रिज मेरे घर कज पतज, अभी घर पर मेरी मजाँ िोंगी, तुम र्जकर विजाँ ठिरो, शजम को मैं आती िूाँ कफर बजत करती िूाँ- अपनज ववजर्हटंग कजडा दे ते िुए मैंने उठकर रजचगनी को गले से लगज ललयज।
रजचगनी के र्जने के बजद मैं अपने केत्रबन में आकर आगे की रर्नीनत पर ववचजर कर िी रिी थी कक वैद्यनजथ िजजर्र िो गयज।
रजचगनी और सत्यर्ीत दोनों मेरी तरफ ऐसे दे ख रिे थे र्ैसे उनके सजमने त्रबल्कुल कुछ इंच की दरू ी पर कोबरज सजाँप उन्िे ननगलने के ललये तैयजर िै ।
मैडम, बॉस आपको बल ु ज रिे िैं ? ठीक िै मैं आती िूाँ, तम ु चलो।
इस बजर त्रबनज अलभवजदन के मैं बॉस के केत्रबन में
सत्यर्ीत कफर भड़क उठज- तो कफर मेरज िोनज न
घुस गई। अंदर सत्यर्ीत भी बैठज थज।
िोनज बरजबर िै । मलजई वजली खबरें तुम दबज लो और
बैठो प्रजची- बॉस अभी भी गुस्से में लग रिे थे। मेरे बैठते िी सत्यर्ीत शुरू िो गयज- दे णखये सर,
िम यिजाँ बैठ के .... उखजड़ें...
सत्यर्ीत, मैं बजत कर रिज िूाँ न, तुम चप ु करोबॉस ने िल्की नजरजर्गी में सत्यर्ीत को डजाँटज।
वो बजिर की लड़की के सजमने प्रजची मेरी इज्र्त उछजल रिी िै , मेरी तो छोड़ड़ये अखबजर की सजख कज भी कोई ख्यजल निीं िै इसको, किती िै मैंने ककतने
बॉस ने िजथ मलते िुये र्ोर से र्म्िजई ली- प्रजची, तयों सबके ललये परे शजनी खड़ी करती रिती िो,
में सेहटंग की...
सत्यर्ीत भी तो तम् ु िजरज दोस्त िी िै । चलो एक बीच कज रजस्तज ननकजलते िैं, क्रजइम बीट कज मजमलज
सत्यर्ीत मेरज माँि ु मत खल ु वजओ, मझ ु े सब पतज िै ,
िै सत्यर्ीत िी दे खेगज इसे तो लेककन मैं तम् ु िजरी
िै मैंने- मैं चचल्लजई
आयेगज उसमें 30 परसेंट तुम्िजरज भी यज कफर दो-
तुम्िजरी पूरी कजली करतूतों कज हिसजब-ककतजब रखज
बजतों की भी कर करतज िूाँ इसललये मजमले से जर्तनज तीन लजख अभी लेकर यिी बजत खत्म कर दो....
बॉस ने दोनों को शजंत करते िुये टे बल पर र्ोर से मुतकज मजरज- तयज िै ये, दोनों को बच्चों की तरि
सर, लेककन इतनी बड़ी आसजमी कज लसफा दो-तीन
तुम्िे ककतनी बजर समझजयज िै कक तुमसे पिले
िै ....
लड़ते दे ख कर मुझे शमा आने लगी िै ... सत्यर्ीत
लजख... मैं कोई नौलसणखयज तो िूाँ निीं मुझे भी पतज
'क्रजइम' प्रजची िी सम्भजलती रिी िै उससे सलजि मशववरज लेकर कजम ककयज करो और प्रजची, यजर तुम भी िर छोटी-छोटी बजत कज बखेड़ज मत बनजओ.....
तभी तो कि रिज िूाँ प्रजची कक तुम समझदजर और कजत्रबल िो मजमले को खत्म कर दो, सत्यर्ीत कल
तक पैसे प्रजची को लमल र्जने चजहिए- बॉस ने ऐलजन सर मैं बखेड़ज बनज रिी िूाँ, मैंने तो आपसे किज िी िै कक वो िॉस्टल वजलज केस मझ ु े सौंप दीजर्ए, अगर
कर हदयज।
दीजर्ए...मुझे लगज बॉस पर मेरी बजतें कुछ तो असर
एकजउं ट में पैसे पिुाँच र्जयेंगे, अब प्लीर् यजर मुस्कुरज दो और मुझे भी चैन की सजाँस लेने दो- सत्यर्ीत
बवजल न मचज हदयज तो कफर मेरज नजम बदल
करें गी लेककन वो घजघ कुछ अलग िी रजग अलजपने लगज।
र्ी र्रूर सर, प्रजची आई प्रॉलमस, कल तुम्िजरे
र्ल्दी से बोलज। ओके.... मैंने भी मुस्कुरज कर िजाँ में लसर हिलज हदयज।
प्रजची, संपजदन करते-करते बजल सफेद िोने को आये और तम ु मझ ु े लसखजने लगी। अखबजर चलजनज खेल
कुछ दे र पिले तीन उदजस और खन ु सजये चेिरों को
अगर यिी सब करनज िै तो कोई एनर्ीओ खोल
िाँ सते िुये चेिरों को दे खकर अचजम्भत िो रिज थज। प्लजईवड ु से बनी केत्रबन की दीवजरें िमजरे मतलबी,
निीं िै , िर बजत में बवजल, समजर्सेवज कज ज़ज्बज लो....
दे ख कर मौन सजधने वजलज बॉस कज केत्रबन अब तीन
बनजवटी चेिरों पर चचपकी िाँ सी को झेलने के ललये सर ये रजचगनी वजलज मजमलज मझ ु े सॉल्व करने दीजर्ए प्लीर्- मैंने ररतवेस्ट की।
मर्बरू थीं। ठीक उसी वतत वैद्यनजथ तीन कप कॉफी लेकर अंदर दजणखल िुआ।
आर् से तुम दोनों टें शन खत्म करो, यजर चजर हदन
की जर्न्दगी िै , खश ु ी बजाँटते िुये गुर्जर दो, तयज पतज कल िमलोग कफर किजाँ रिे , र्ब तक िैं तब तक लमल-र्ुल कर मर्े करो- बॉस कॉफी उठजते िुये बोले। िम दोनों ने 'र्ी सर' किकर सिमनत र्तजई।
व्यिंग्य कुछ फेयर और हैंडसम प्रश्नोत्तर - आलोक पुराणिक सवजल-महिलजओं के ललए फेयर एंड लवली क्रीम थी पर पुरुर्ों के ललए
शजम को घर पिुाँचते िी मैंने रजचगनी को सब सचसच बतज हदयज। वि अवजक् िोकर मेरज चेिरज दे खने
फेयर एंड िैंडसम क्रीम आयी िै । तयज परु ु र्ों को लवली निीं िोनज
लगी। आप भी मैम, मैंने तो सोचज थज कक आप मेरज सजथ
चजहिए। उनकज कजम लसफा िैंडसम िोने से चल र्जतज िै तयों।
दें गी- रजचगनी रो रिी थी। रजचगनी, दरू रिकर दश्ु मन पर वजर करनज बिुत मुजश्कल िोतज िै , सत्यर्ीत और बॉस ने सजरी सेहटंग
र्वजब- िैंडसम कज मतलब िै िैंड में सम यजनी
ज्यजदज चीखने-चचल्लजने कज मतलब िै मुझे नौकरी
महिलजओं कज भी िैंडसम िोनज र्रुरी िै । लसफा लवली
कर ली िै , अब मेरे कुछ करने से कुछ निीं िोगज। से ननकजल हदयज र्जयेगज... कफर तयज िोगज, नई
रकम, तब िी पुरुर् कज मजमलज र्मतज िै । उनकज कजम लसफा लवली िोने से निीं चलतज। वैसे अब तो
र्गि पर भी यिी िजल िोनज िै , सब र्गि ऐसे िी
के बजर्जर भजव बिुत डजऊन िैं। िैंड में सम िो बंदे के तो कुछ और िोने की र्रुरत िी निीं िै ।
कफर तयज, कल एकजउं ट में कुछ पैसे आ र्जयेंगे,
सवजल-र्ो पुरुर् फेयर एंड िैंडसम निीं लगजते, वे
लोग भरे पड़े िैं....। कफर....
तुम्िजरे र्ुटजये कुछ सबूतों के बल पर तुम्िजरे बजप
तयज िैंडसम निीं िोते।
को ब्लैकमेल कर उससे भी पैसे उगजिें गे और मौकज दे खते िी ककसी छोटे अखबजर में इन लोगों की
करतूत कज पूरज पदजाफजश करूाँगी, इस बजर इतनी तैयजरी करूाँगी कक तुम्िजरज बजप बचेगज निीं...मैंने रजचगनी के आाँसू पोंछते िुये किज। कफर आपकी र्ॉब कज तयज िोगज मैम ?
र्वजब-निीं चप ु के से लगजते िोंगे। बतजते निीं िै , तयज पतज बजद में बतजयें। र्ैसे बरसों तक अलमतजभ बच्चन की शजनदजर एजतटं ग दे ख कर सब समझते रिे कक अलमतजभर्ी की मेिनत-समपार् इसके पीछे िै । पर उन्िोने अब र्जकर बतजयज कक वो वजलज तेल, ये वजली क्रीम, ये वजलज कोल्ड ड़रंक, वो वजलज
कफर किी र्ॉब कर लेगी, इसे तो बजत-बजत पर र्ॉब
च्यवनप्रजश इसके ललए जर्म्मेदजर िैं। असली बजत
छोड़ने की आदत िै - इस बजर मजाँ ने मुझे प्यजर भरी
लोग बजद में बतजते िैं र्ी। चप ु के-चप ु के कई आइटम
थपकी दे ते िुये किज। एक बजर कफर से तीन मुस्कुरजते िुये चेिरे थे। लेककन इस बजर मेरे घर की चजरदीवजरी में णखलती िुई ये मजसम ू मस् ु कुरजिटें भववष्य कज स्वप्न बन ु रिे थे और ये दीवजरें िमजरी िाँ सी में शजलमल िोकर िमें दआ ु एं दे रिी थीं। सोनी ककशोर ससिंह – 8108110152
इस्तेमजल करके मिजन बन र्जते िैं, बजद में र्ैसज मौकज आतज िै , उस हिसजब से बतजते रिते िैं कक वो वजली क्रीम, वो वजलज पजऊडर उनके उत्थजन के ललेए जर्म्मेदजर िै । सवजल-परु ु र् िैंडसम िो र्जये, तो तयज िोतज िै । र्वजब-बेटज जतलयर िै , ज्यजदज कन्यजएं उसकी ओर आकवर्ात िोती िैं।
सवजल-तयज पुरुर् के र्ीवन कज एकमजि लक्ष्य यिी
करके पुरुर्ों को आकवर्ात करें । इसकज तयज मतलब
र्वजब-निीं इमरजन िजशमी की तमजम कफल्में दे खकर
र्वजब –इसकज यि मतलब िै कक इस दे श की
पतज लगतज िै कक पुरुर्ों कज लक्ष्य दस ू रों की पजत्नयों, वववजहितजओं को आकवर्ात करनज भी िोतज
महिलजएं बिुत त्रबर्ी रिती िैं। सुबि पररवजर के ललए खजनज बनजकर नौकरी करने र्जती िैं। कफर नौकरी
िै ।
से लौटकर बच्चों कज िोमवका करजकर खजनज बनजती
िै कक कन्यजएं उसकी ओर आकवर्ात िों।
सवजल-मैं अगर फेयर एंड िैंडसम लगजऊं और कफर भी संद ु ररयजं आकवर्ात न िों, तो तयज मैं कंपनी पर दजवज ठोंक सकतज िूं।
र्वजब-निीं, तमजम इजश्तिजरों के ववश्लेर्र् से सजफ िोतज िै कक सुंदररयजं लसफा क्रीम लगजने भर से आकवर्ात निीं िोतीं। इसके ललए वि वजलज टजयर भी लगजनज पड़तज िै। इसके ललए वो वजली बीड़ी भी पीनी पड़ती िै । इसके ललए वो वजली लसगरे ट भी पीने
पड़ती िै । इसके ललए वो वजली खैनी भी खजनी पड़ती िै । इसके ललए वो वजलज टूथपेस्ट भी यूर् करनज पड़तज िै । इसके वो वजलज कोल्ड ड़रंक भी पीनज पड़तज िै । सुंदररयों को तयज इतनज बेवकूफ समझज िै कक लसफा क्रीम लगजने भर से आकवर्ात िो र्जयेंगी।
सवजल-बंदज सुबि से शजम तक कोल्ड ड़रंक, क्रीम, खैनी, बीड़ी में त्रबर्ी िो र्जयेगज, तो कफर वि और दस ू रज कजम तयज करे गज। र्वजब-िजं,यि सब इजश्तिजरों में निीं बतजयज र्जतज कक सुंदररयों को आकवर्ात करनज पजटा -टजइम निीं
फुल टजइम एजतटववटी िै । तमजम आइटमों के इजश्तिजरवजलों की इच्छज यि िै कक बंदज
लसफा एक
िी कजम में लगज रिे ,संद ु ररयों को आकवर्ात करने में । सवजल-तमजम इजश्तिजर परु ु र्ों से आह्वजन करते िैं
कक वे ये खरीद कर यज वो खऱीद कर संद ु ररयों को
आकवर्ात करें , पर संद ु ररयों से यि आह्वजन निीं ककयज र्जतज कक वे ये वजलज टजयर खरीदकर यज वो
वजली लसगरे ट पीकर यज बीड़ी पीकर यज टूथपेस्ट यर् ू
िै ।
िैं। उन्िे फुरसत निीं िै कक फोकटी में फजलतू में
परु ु र्ों को आकवर्ात करती बैठें। इस दे श के परु ु र् ननिजयत ठलए ु िैं, सब ु ि से रजत तक लसफा संद ु ररयों को आकवर्ात करने के कजम में लगने में उन्िे कोई गरु े र् निीं िोतज। इस लेख से िमें यि लशक्षज लमलती िै कक इस दे श की महिलजएं बिुत िी इंटेलीर्ेंट और कमाठ िैं और पुरुर् ननिजयत िी ननठल्ले और बेवकूफ िैं। आलोक पुराणिक
मोबाइल-9810018799
व्यिंग्य
वजली मुफ्त सजबुनदजनी निीं दे तज और आप किते िैं
सिंदेसे आते हैं, हमें फुसलाते हैं! - नीरज बधवार
आपकी दो लजख डॉलर की लॉटरी ननकजली िै ! िजय
कक ककसी ने आपकज ई-मेल आईडी सलेतट कर
एक ज़मजने में ईश्वर से र्ो चीज़ें मजंगज करतज थज, आर् वो सब मेरी चौखट पर लजइन लगजए खड़ी िैं।
रे मेरज अंदजज़ज...आपकी जर्स मजसूलमयत पर कफदज
िो मैंने आपसे शजदी की थी, मुझे तयज पतज थज कक वो नेकहदली से न उपर्, आपकी मूखत ा ज से उपर्ी िै !
कभी मेल तो कभी एसएमएस से हदन में ऐसे सैंकड़ों सि ु जवने प्रस्तजव
दोस्तों, एक तरफ बीवी शजदी करने कज अफसोस
और इंटरनेट कम्पननयों को िैंडओवर कर हदयज िै।
पर शजदी करने के प्रस्तजव आते िैं। बतजयज र्जतज िै
लमलते िैं। लगतज िै कक ईश्वर ने मेरज केस मोबजइल
र्तजती िै तो दस ू री तरफ िर छठे सैककंड मोबजइल
पैन कजडा बनवजने से लेकर, मफ् ु त पैन वपज़्ज़ज खजने
कक मेरे ललए सन् ु दर ब्रजह्मर्, कजयस्थ, खिी र्ैसी
मोबजइल पर दस्तक दे ते िैं! इन कम्पननयों को हदन-
हदखती िै और उससे भी अच्छज कमजती िै । सेल के
तक के न र्जने ककतने िी ऑफर िर पल मेरे
चजहिए, वैसी लड़की ढूंढ ली गई िै । बंदी अच्छी
रजत बस यिी चचंतज खजए र्जती िै कक कैसे ‘नीरर्
आणख़री हदनों की तरि चेतजयज र्जतज िै कक दे र न
बधवजर’ कज भलज ककयज र्जए?
करूं। मगर मैं त्रबनज दे र ककए मैसेर् ड़डलीट कर दे तज
कुछ समय पिले िी ककन्िीं पीटर फूलन ने मेल से
िूं। ये सोच कर िी सिम र्जतज िूं कक त्रबनज ये दे खे कक मैसेर् किजं से आयज िै , अगर बीवी ने उसे पढ़
सूचचत ककयज कक मेरज ईमेल आईडी दो लजख डॉलर
ललयज तो तयज िोगज?
अकजउं ट में रजंसफर कर हदयज र्जएगज। ‘लसफा’ दो
और र्ैसे ये संदेश अपनेआप में तलजक के ललए
िज़जर डॉलर की मजमूली प्रोसेलसंग फीस र्मज करवज
कजफी न िों, अब तो सुन्दर और सैतसी लड़ककयों
के इनजम के ललए चन ु ज गयज िै । िफ्ते भर में पैसज
मैं ये रक़म पज सकतज िूं। ये र्जन मैं बेिद उत्सजहित िो गयज। कई हदनों से न निजने के चलते बंद िो चक ु ज मेरज रोम-रोम, इस मेल से णखल उठज। इलजके
के नजम और नम्बर सहित मैसेर् भी आने लगे िैं। किज र्ज रिज िै कक मैं जर्ससे,जर्तनी और र्ैसी
की सभी कोयलें कोरस में खश ु ी के गीत गजने लगीं,
चजिूं, बजत कर सकतज िूं। त्रबनज ये समझजए कक सुन्दर और सैतसी लड़की के लजलच कज भलज फोन
िजलत दे ख मजतज रजनी ने जस्टमुलस पैकेर् र्जरी
त्रबकनी मॉडल्स के वॉलपेपर मुफ्त में डजउनलोड
मोर बैले डजंस करने लगे। मैं समझ गयज कक मेरी ककयज िै ।
पर बजत करने से तयज तजल्लुक िै । सजथ िी मुझे करने कज अभूतपूवा मौकज भी हदयज र्जतज िै । मजनो, इस ब्रह्मजण्ड में जर्तने और र्ैसे ज़रूरी कजम बचे
पिली फुरसत में मैंने ये बजत बीवी को बतजई। मगर
थे, वो सब मैंने कर ललए िैं, बस यिी एक बजकी
खश ु िोने के बर्जए वो लसर पकड़कर बैठ गई। कफर
रि गयज िै !
संभल र्जओ....मगर आप निीं मजने...अब तो आपकी
दोस्तों, ऐसज निीं िै कक ये लोग मेरज घर उर्जड़नज
मख ा ज को भन ू त ु जने की अंतरजाष्रीय कोलशशें भी शुरू
चजिते िैं। इन बेचजरों को तो मेरे घर बनजने की भी
बोली...मैं न किती थी आपसे कक अब भी वक़्त िै ...
िो गई िैं। मैंने वर्ि पछ ू ी तो वो और भी नजरजज़ िो गईं। किने लगी कक आर् के ज़मजने में दक ु जनदजर तक तो त्रबनज मजंगे आटे की थैली के सजथ लमलने
बिुत कफक्र िै । नोएडज से लेकर गजजज़यजबजद और गड ु गजंव से लेकर मजनेसर तक कज िर त्रबल्डर मैसेर् कर ननवेदन कर कर रिज िै कक लसफा मेरे ललए
आणख़र कुछ फ्लैट बजकी िैं। ये सोच कभी-कभी खश ु ी
व्यिंग्य
कमज ली िै कक बड़े-बड़े त्रबल्डर वपछले एक सजल से
पेड़ों से जुड़े उद्योग- एक ताज़ा ररपोटट
िोती िै कक इतने बड़े शिर में आर् इतनी इज्ज़त
लसफा मेरे ललए आणख़र के कुछ फ्लैट खजली रखे िुए िैं। वपछली हदवजली पर शुरू ककए ‘सीलमत अवचध’ के ड़डस्कजउं ट को लसफा मेरे ललए खींचतजन कर वो
इस हदवजली तक ले आए िैं। उनके इस प्यजर और
- कमलेश
पाण्डेय
पेड़ यज वक्ष ृ दे श के ववशेर् संसजधन िैं. इनकज तनज, इनकी छजल, शजखज
आग्रि पर कभी-कभी आंखें भर आती िैं। मगर
और र्ड़ें सब दे श की िी
मकजन भरी आंखों से निीं, भरी र्ेब से खरीदज र्जतज
िैं. पेड़ इतने उपयोगी पदजथा िैं कक
िै । मैं खजली र्ेब के िजथों मर्बरू िूं और वो मेरज भलज चजिने की अपनी आदत के िजथों। वो संदेश
दे श कज इनके त्रबनज चल िी निीं
भेर् रिे िैं और मैं अफसोस कर रिज िूं। मकजन से लेकर ‘र्ैसी टीवी पर दे खी, वैसी सोनज बेल्ट’ खरीदने
संपवत्त
सकतज, िजलजंकक ये खद ु बेचजरे अपनी र्ड़ें थजमे एक िी र्गि तब तक खड़े रिते िैं र्बतक कोई इन्िें
कजट कर आरज मशीन तक के सफ़र पर न ले र्जए.
के एक-से-एक धमजकेदजर ऑफर िर पल लमल रिे िैं। कभी-कभी सोचतज िूं कक सतयुग में अच्छज संदेश सुन रजर्ज अशकफा यजं लुटजयज करते थे, ख़ुदज न ख़जस्तज
मनुष्य र्जनत के ववकजस में पेड़ सहदयों से वरदजन
उनकज तयज िश्र िोतज.
और पयजावरर् से प्यजर र्तजने कज सबसे आसजन
अगर उस ज़मजने में वो मोबजइल यूज़ करते, तो
सजत्रबत िुए िैं. इन्िें कजटने और उगजने दोनों कक्रयजओं में ववकजस छुपज िोतज िै . पेड़ आदमी के ललए प्रकृनत र्ररयज िैं तयोंकक ये उनके आस-पजस िी खड़े लमल
नीरर् बधवजर - 9958506724
र्जते िैं. भजरत में तो पेट-पूर्ज के बजद एक आम कक्रयज िै पेड़-पूर्ज. धमा-ग्रंथों के अनुसजर नन्िें -से तुलसी के झजड से लेकर ववरजट आकजर के बरगद
तक सब पूर्नीय िैं. उधर आधनु नक ववकजस-ग्रंथों
में भी ललखज िै कक दो-चजर पेड़ लगज दे ने से पयजावरर् के णखलजफ ककये गए सजरे पजप धल ु र्जते िैं. पेड़ िी
आदमी के ललए गुललस्तजन रचते िैं, और पेड़ की िी ककसी शजख पर बैठ कर एक उल्लू कभी-कभी उस
गुललस्तजन को बबजाद कर दे तज िै . पेड़ शजयरों के भी कजम आते िैं जर्नकी र्ुबजन में इन्िें दरख़्त यज शज़र वगैरि किज र्जतज िै . ज़जहिर िै पेड़ इश्क़मुिब्बत को भी छजाँव दे ते िैं. पेड़ों की छजल पर अपनज नजम गोदने के अलजवज प्रेमी लोग इसके चगदा ललपटनज यज गजनज भी पसंद करते िैं. पेड़ बड़े प्रेरर्ज-दजयी िोते िैं. इनके ववशजल, धीर और मज़बत ू ी से र्मे रिने की प्रकृनत से लोग श्रद्धजनस ु जर प्रेररत िोते रिते िैं. एक नेतज को अपनी र्ड़ें र्मज कर बैठने और भीतर िी भीतर उन्िें फैलजते र्जने
कज आईड़डयज पेड़ों से िी लमलतज िै . उधर गरीब
इस पेड़ को उसे दे खने वजलों की भीड़ समेत टीवी
र्नतज को भी पेड़ों की डजललयों पर कब्ज़ज र्मजये
और अखबजरों पर लगजतजर हदखजयज र्जतज िै जर्ससे
बैठे पशु-पक्षक्षयों के घोंसले दे ख किीं भी छप्पर डजल
एक अन्यथज वपछड़े इलजके में वि एक अल्प-कजललक
कर झोंपड़-पट्टी बनज लेने की प्रेरर्ज लमलती िै .
पयाटन-स्थल की िै लसयत पज लेतज िै . ये सरकजर के संज्ञजन में िै कक कई ऐसे पेड़ों के आस-पजस कज
पेड़ कज ढजंचज लकड़ी कज िोतज िै , जर्सकी डजललयजाँ
स्थल मेले यज पयाटन के ललिजर् से ववकजस के
अतसर झल ू ज झल ू ने र्ैसे दीगर ककस्म के कजम आती
उपयत ु त निीं िोतज िै . इसललए र्िजं-तिजं इस उद्यम
पेड़ों के िर अंग कज मोितजर् िै . िमजरे मकजन के
प्रजचधकृत पेड़ों को िी चन ु ज र्जय तो बेितर िोगज.
रिी िैं. पर िमजरे दे श कज कुटीर उद्योग तो मजनों चौखट-दरवजज़े से लेकर कुसी-टे बल-पलंग सबमें ये
को संपन्न करने की बर्जय यहद प्रशजसन द्वजरज इस कजम के ललए िरे क र्नपद में थजनेदजर की
लकड़ी िी कजम आती िै . फल-फूल, पत्ते, नतनके,
अध्यक्षतज में एक अनौपचजररक प्रजचधकरर् बनजयज
समेट लेतज िै . इधर पेड़ सम्बन्धी उद्योग में एक
र्ैसे पेड़ ककसी झुरमुट में न िो और उसके इदा -चगदा
छजलें सब आदमी ककसी न ककसी कजम के ललए र्ड़तज-सी आ रिी थी कक अपने दे श के एक प्रदे श में पेड़ की डजल कज एक नयज उपयोग दे खने में
र्ज सकतज िै . पेड़ चन ु ने कज आधजर सरल िोगजइतनी र्गि िो कक बीस-तीस न्यूज़-चैनलों की
गजड़ड़यजं, दो-चजर िज़जर लोगों कज धरनज और अफसोस
आयज. कुछ उद्यलमयों ने इन डजललयों पर लड़ककयजं
र्तजने आये नेतजओं और उनके समथाक सब समज
को नई हदशज दी. इससे विजं समजर् में कजफी उत्सजि
पेड़ को प्रजथलमकतज लमले. िमजरे यिजाँ सब प्रकजर के
लटकजने कज व्यजपक स्तर पर प्रयोग कर उद्योग
र्जएाँ. पजस से कोई पतकी सड़क गुर्रती िो तो ऐसे
कज मजिौल पैदज िुआ िै . िजलजंकक इस उद्यम को कजनूनी मजन्यतज निीं िै , पर उत्सजिी र्न इसे चोरी-
उद्यमी मौर्ूद िैं. र्ैसे एक बड़ी फैतटरी के चगदा
आम तौर पर लघु-उद्योग ककये र्जते िैं. आणखर
खड़ज कर लेंगे. अपने दे श में र्गि िो तो मेले और
ढे रों छोटी फैतटररयजं उग आती िैं, यिजाँ भी संभजवनज
छुपे उसी तरि संपन्न कर रिे िैं र्ैसे िमजरे दे श में
हदखते िी लोग कजम-चलजऊ पयाटन इंफ्रजस्रतचर
एक उद्योग र्मजने के ललए चजहिए तयज, ज़रज सी
मर्में कज समजाँ किीं भी बंध र्जतज िै .
हिम्मत और थोडज पुललस-प्रशजसन कज सियोग. सूिों के अनुसजर प्रदे श सरकजर इस नई गनतववचध में
प्रदे श के शजसकीय गललयजरों में आशज व्यतत की र्ज
िै कक इस उद्योग को कजनूनी तौर पर प्रोत्सजिन तो
से प्रेरर्ज लेकर ननयलमत रूप से ननधजाररत पेड़ों पर
ववकजस की नई संभजवनजएाँ दे ख रिी िै . उसकज मजननज
रिी िै कक विजं के युवज उद्यमी पुरुर् अपने नेतजओं
निीं हदयज र्ज सकतज पर अगर कोई इसे करनज िी
लड़ककयजं लटकजने कज उद्योग र्जरी रखेंगे, तजकक
चजिे तो कुछ ववननयमन-ननयंिर् के अधीन कर ले.
प्रदे श के ववकजस को नई हदशज और युवज की ऊर्जा
ववकजस के ललए प्रनतबद्ध और युवजओं को इसके
को नयज ननकजस लमल सके.
ललए उकसजने को प्रजथलमकतज दे ने वजली सरकजर
मजनती िै कक यव ु जओं में कजफी ऊर्जा िोती िै और
उनकी गलनतयों तक में ववकजस की संभजवनजयें छुपी िोती िै .
र्ैसज कक स्पष्ट िै जर्स पेड़ की डजली पर ये उद्यम ककयज र्जतज िै उस पेड़ और आस-पजस के इलजके के सजवार्ननक मित्त्व में ढे र सजरी वद् ृ चध िो र्जती िै .
कमलेश पजण्डेय - 9868380502
व्यिंग्य
इसीललए चजिे फुटबॉल वल्डाकप चले यज कुछ और
बावलों की खाततर हमें भी वर्लडटकप में ले जाओ
शजदी में अब्दल् ु लज टजइप लोग कौन िैं र्ो दस ू री
कक्रकेट के आगे िम इतनज िी सोच पजते िैं बेगजनी
रे ..!! - अनुज खरे
टीमों के ललए लगे पड़े िैं। ऊपर से इनकी ड़डप्लोमेसी भी दे णखए सजिब, फैन भी उसी टीम के िैं र्ो र्ीत
िमें तो र्ंगली टजइप इस खेल से
रिी िै । कई की च्वजइस तो फजइनल तक ओपन िै ।
िी ऩफरत िै , कज करें ..। पसीनज
र्ो र्ीतेगज उसी के संग िैंगे। मंि ु अंधेरे उठकर...पतज
बिजने को कोई खेल कितज िै तो
निीं ककन मैलसयों के पीछे अपनी नींद खरजब कर
िम उसे परू े नब्बे लमनट तक
रिे िैं। कई को तो `ववलज` िी हिलज-हिलज कर र्गज
गररयज सकते िैं चजिे दो ककलो पसीनज कफर्ल ू में
रिे िैं भजई िम मैदजन में आ गए िैं उठ बैठो। भजई
ननकल र्जए। लेककन भजई सजब गंवजरूपने की बजतें
लोग उठ बैठते िैं। अपन कई बजर सोचते िैं कक र्ब
अपन को बदजाश्त िी निीं िैं। तो इस कजर्े िम
कोई र्ोरदजर गोल िोतज िोगज तो इन बजवलों के
फुटबॉल निीं खेलतज िैं..! िमें तो कक्रकेट टीम को
सीने में वो दे सी िूक उठती िोगी र्ो सचचन के छतके पर उठती िै । धजंसू पजस हदल में समज र्जतज
जर्तजने के चतकर में हदनभर टीवी के सजमने फैले
रिने कज मजमलज िी पुसजतज िै । 8 घंटे बजद सजलज
िोगज यज पजस से िी ननकल र्जतज िोगज? लिरजते
नतीर्ज ननकले कक 5 रन से िजर गए। भले िी 100-
रोनजल्डो के सजथ भजवनजओं कज वो लोकल वजलज
150 ग्रजम खन ू छनक र्जए। बॉल टू बॉल ब्लड प्रेशर
फ्लेवर आतज िोगज..?
चचल्लजते रिें । निजने कज िोश न रिे । नजश्तज खजनज टीवी के सजमने करनज पड़े। भले िी केले खजकर
शजयद..! लेककन एक िूक मेरे हदल में र्रूर उठती िै , सवज अरब कज दे श िै 11 णखलजड़ी निीं लमल रिे
नछलके र्ेब में िी रखनज पड़ें। पूरे हदन मैच दे खेंगे
िैं र्ो इन मजसूम बजवलों की खजनतर दे श को फुटबॉल
घटतज-बढ़तज रिे । घरवजले र्रूरी कजमों को लेकर
लेककन 90 लमनट की भजग-दौड़ निीं सिें गे।
और इस खेल में िै भी तयज सजिब, फुटबॉल से
ज्यजदज ककक तो एक दस ू रे को ठोंकते िैं। कदमकदम पर कोिननयों से दस ू रे णखलजड़ी की पसललयों पर डौंचे मजरते िैं। पलहटयजं खजते िैं। चगरते िैं। खड़े
वल्डाकप में ले र्ज सकें। कम से कम सुबि र्जगने कज सपनज तो पूरज करज सकें..!!
बदलाव हो जाते हैं, आपको पता नह िं चल पाता है..! - अनुज खरे
िो र्जते िैं। सजमने वजले से लभड़ र्जते िैं। अरे मैं
`बदलजव लजओ..! कैसे भी लजओ! किीं से भी लजओ!
तो कितज िूं ननिजयत िी र्जहिल तौर तरीके िैं सजब..! ऊपर से नेमजर-लेमजर टजइप नजम भी रखते
आई वजंट बदलजव!` करजरी आवजर्। `सर वे बदलजव
िैं। सजमने वजलज लभड़ने से पिले िी दिशत में आ र्जए कक किीं मजर िी न दे ...इधर दे खो तयज गऊछजप नजम िैं िमजरे वजलों के रजिुल.., लक्ष्मर्...नजम से िी ववनम्रतज की बू आती िै । सजदगी टपकती िै । लक्ष्मर् िै तो आज्ञजकजरी िी िोगज, बतजने की र्रूरत िै किीं...निीं नज..!
के ललए तैयजर निीं िो रिे िैं..! ननवेदन िुआ। `ठस लोगों को िटजओ, मैं कितज िूं बदलजव लजओ..!` इस बजर दिजड़। `सर ढीट टजइप लोग िैं, दे कजंट वप्रपेयर फॉर बदलजव..!` आवजर् में ववनम्रतज कज पट ु ।
ं एल्स, र्ो बदलजव के `आई वजंट बदलजव एंड नॉचथग ललए तैयजर निीं िैं उन्िें व्यवस्थज से उठजकर बजिर फेंको..!` गुस्सैल भजव-भंचगमज कज अंदजर्ज बैठज लें । `सर उनकी र्ड़ें मर्बूत िैं। उखजड़े निीं उखड़ेंगी।
`तुम खद ु निीं सोच सकते। खैर, सोच सकते तो सरकजर में िोते तयज..! `िें ...िें ...िम भी बदल र्जएंगे
सर, अच्छज सर, बदलजव की शुरूआत तो नीनतगत बदलजव के सजथ िी िोगी, ललखवज दीजर्ए नज..!
बरसों से बदलजव के ऊपर कंु डली मजरकर बैठे िैं।
`िजं ललखो, शुरूआत िमें करनी चजहिए इन बड़े कमरों
बजर लमलमयजने सज स्वर। `इसीललए तो बदलजव
`सर, कमरे में पदों के बदलजव से..!`
बदलजव को बकवजस सजत्रबत करते रिते िैं..!` इस चजहिए। संपर् ू ा बदलजव चजहिए। िर िजल में चजहिए।
तरु ं त लजओ। भई र्नतज कब तक इंतर्जर करे गी..!` चचंतज से भीगी आवजर्।
`सर, वैसे बदलजव में आपको तयज-तयज चजहिए..!` अधीनस्थ टजइप जर्ज्ञजसजभरी आवजर्।
के पदों में बदलजव से, बजल्क पदे िटज िी दो..!`
`िजं, पदे िटें गे तो नीनतयों में पयजाप्त मजिज में प्रजकृनतक प्रकजश पड़ेगज। तभी तो उन पर र्मी परु जतन धल ू झजड़ी र्ज पजएगी, समझे..!`
`र्ी, सर आगे..!` `िजं, तो आगे, ललखो- िमें कुलसायजं
`बदलजव में िमें बदलजव चजहिए। न ज्यजदज चजहिए। न कम चजहिए। बस, बदलजव चजहिए..!` सजमने वजले
के प्रनत आंखों औऱ आवजर् में तुच्छतज भरे भजव की कल्पनज लगेगी।
भी बदलनज चजहिए..!` `सर कुलसायजं भी..!` `िजं, नई में बैठेंगे तभी पुरजनी मजनलसकतज से ननकल बदलजव लज पजएंगे, समझे..!` `र्ी सर, ललखज और..!`
`और िमें पुरजनी गजड़ड़यजं िटजकर एकदम नई गजड़ड़यजं भी ले आनज चजहिए..!` `सर, नई गजड़ड़यजं तयों..?`
`सर, कफर भी कुछ हदशजननदे श बदलजव की हदशज में
लमल र्जते.., रॉजफ्टं ग में उपयोगी रितज..!` जर्न आवजर्ों
कज
सरकजरीकजरर्
िो
र्जतज
िै
वैसज
ववचजरें । `आप बरसों से कजम कर रिे िैं और आप बदलजव निीं समझ पज रिे िैं..!`
`अरे तजकक रफ्तजर हदखजई दे । यूथ रफ्तजर पसंद करतज िै , रफ्तजर समझे, और सुनो, कमरों के बजिर
बैठने वजले चपरजलसयों को भी बदल दे नज चजहिए..!` `तयों सर इसमें तयज पॉललसी छुपी िै ..!` `भजई तजकक फ्रेश ववचजर बेरोकटोक भीतर आ सकें, समझे..!`
`सर..! सर..! सर..!` `र्ी सर, समझ गयज, ठस व्यवस्थज में बदलजव इन्िीं `कुछ निीं िै , मैं कितज िूं कुछ निीं िै , एकमजि शजश्वत िै बदलजव। बजकी सब बजतें िैं। आई वजंट
क्रजंनतकजरी उपजयों के मजध्यम से िी आएगज..!`
बदलजव। बदलजव स्थजयी भजव िै । र्जकर बदलजव
बदलजव में दे री बदजाश्त निीं...!`
लजओ। आर् से िी र्ट ु र्जओ, समझे..!` `सर, कफर भी कुछ डजयरे तशन लमल र्जतज तो पजइंट बनजने में सवु वधज..`
`एतसीलेंट, तो र्जओ कजम में र्ट ु र्जओ, िमें
`र्ी सर..!`
सो लमिो, बड़ी व्यवस्थज में बदलजव ऐसे िी पैकेर् में िोतज िै । विजं तो क्रजंनत िो भी र्जती िै । कसरू
तो आपकज िै , आप िी समझने में सक्षम निीं िोते
व्यिंग्य तनमिंत्रि से धन्य हुआ सुदामा - मधव ु न दत्त चतुवेद सुर्मज र्ी ने बुलजयज थज। प्रभु कज कोई ववशेर् कजया सौंपें गी कदजचचत
अनुर् खरे - 8860427755
। ब्रजह्मर्ी निीं चजिती थी सुदजमज
र्जये। डपट हदयज सुदजमज ने -
"धीरर् धरम लमि अरु नजरी, आपद कजल परणखये
चजरी । र्जनती निीं तयज ? लमि िूाँ लमि ने बुलजयज िै तो र्जऊंगज अवश्य।" -"लमि ने तो रजर् प्रजसजद में बुलजयज निीं आर्तक आप चले िैं लमितज ननवजिने । मत र्जओ स्वजमी ! मुझे अननष्ट की आशंकज सतज रिी िै ।" -"व्यथा आशंकज िै तेरी भजगवजन । तू भी बिक रिी
िै मूखा प्रर्जर्नों की तरि । अवतजरी पुरुर् कज कजया लसद्ध करने में कोई र्ोणखम निीं िो सकती ।" एक न चली बेचजरी की । चलज गयज सुदजमज । अत्यंत मद ु ज के सजथ सत्कजर ककयज सुर्मज र्ी ने ृ त
। अनत की लमठजस से अरुचच तो िुई पर प्रभु कृपज कज स्मरर् करते िी नतरोहित िो गयी । -"प्रभु कज तयज अभीष्ठ िै तजई ? अककंचन सुदजमज तयज प्रयोर्न लसद्ध करने के योग्य िै ?"
-"तुम सुदजमज बड़े अनुभवी लभक्षुक िो । प्रभु को तुम्िजरे कौशल और अनुभव की आवश्यकतज िै । न तो निीं किोगे न ? यहद कजया ववशेर् में सफल रिे
तो कृतज्ञ रजष्र तुम्िें लभक्षुक-लशरोमणर् की उपजचध से सम्मजननत करे गज ।"
-"अनुभव तो िै पर ये कौशल समझ निीं आयज तजई । मैंने ककसी ववद्यजश्रम में लभक्षज की लशक्षज तो ली निीं िै ।" -"कोई बजत निीं ।कुशलतज कज लशक्षज से कोई
सम्बन्ध निीं िोतज । अपनी स्मनृ त र्ी को िी दे खो । लशक्षज कज पूर्ा प्रभजर संभजल रिी िैं न कुशलतज
से । कल कि रिीं थीं यहद सुदजमज कजया लसद्ध कर ले तो लभक्षजटन को पजठ्यक्रम में शजलमल कर लेंगी
।भववष्य में रजष्र को योग्य लभक्षुकों की आवश्यकतज भी िै और कफर लभक्षजववृ त्त भी तो ववृ त्त िै । अगली
-"तुम न सुदजमज ! तुम प्रश्न बिुत करने लगे िो प्रर्जर्नों की भजंनत । भूल गए तयज ? तयज प्रभु
। उन्िें बेरोर्गजरों की सूची से िटज हदयज र्जयेगज।
दे तज ? पर लोक में अपने भततों को सुयश दे ने के
र्नगर्नज में रजष्र के लभक्षुको को चचजन्ित कर लेंगे प्रभु की अगली सरकजर आयेगी तब तक दे श में
उच्च लशक्षक्षत लभक्षुओ की भरमजर िोगी । सुदजमज , तम ु प्रभु कजया लसद्ध कर दो तो प्रभु से मैं तम् ु िजरी
अगली पीढ़ी को लभक्षजटन की लशक्षज के ललए क्षजिववृ त्त
की लशफजररश कर दं ग ू ी । और छजिववृ त्त तम् ु िजरे िी नजम पर रखवज दं ग ू ी ।"
सद ु जमज कज मन व्यचथत िुआ । पर मौन रिज ।कजया पछ ू ज । -" तम ु न सद ु जमज ! कल र्म ु ज अलववदज पर ईरजक
र्जओ । विजं खलीफज अबू बकर अल बग़दजदी लमलें गे
। बड़े नेक इन्सजन िैं । तम ु लभक्षुकों को तो मंहदरमजस्र्द घजट-मर्जर िर स्थजन पर मजंगने की कलज
में मिजरत िोती िै न ? तो तम ु उनसे ईद की ईदी मजंगनज । नये नए खलीफज िैं । मनज निीं करें गे
।किनज कक आपकी दररयजहदली के चचे हिन्द के गली कूचों में गाँर् ू रिे िैं । आपने हिंदी नसों को
बजअदब रुखसत कर हदयज थज । इस बजर ईद पर िमजरे उन 41 हिन्दी भजइयों को आज़जद कर दीजर्ये जर्न्िें आपके परजक्रमी योद्धजओं ने 45 हदन पिले बंधक बनजयज थज ।" -"तयज ?? तो नसे उन्िोंने अपनी दररयजहदली से लौटजई थीं ।" चोंक गयज सुदजमज ,"पर तजई आप तो
प्रभु परजक्रम कज सुपररर्जम किती थीं । तयज मेरे
प्रभु..." गलज रुं ध गयज गरीब कज । सुर्मज र्ी ने अपने कर कमलो से र्ल वपलजयज । पीठ थपथपजई । -" निीं सुदजमज निीं ! परजक्रम निीं, बजल्क उनके प्रतजप कज पररर्जम थज । उनकी कीनता पतजकज
चतुहदा क फिर रिी िै और कफर अवतजरी पुरुर् कज तयज किनज । यिीं से उनकी मनत फेर दी ।"
"तो कफर अब मनत तयों निीं फेर रिे िैं प्रभु , तजई?"
इच्छज से दय ु ोधन िठ त्यजग कर पजंडवो को िक न
ललए प्रभु उनसे उद्यम करजते िैं । र्ीतते तो विी िैं श्रेय भतत को लमलतज िै । यि कृपज िै उनकी कक ये श्रेय तम् ु िें दे रिे िैं ।"
सुदजमज को पजप बोध िुआ । भजतत में कमी आयी िै , यि प्रभु कृपज की कमी के कजरन िी िुआ िोगज । बजरम्बजर प्रभु की छवव कज स्मरर् कर मन िी मन कोहट कोहट प्रर्जम ककये ।
-"मैं अवश्य र्जऊंगज । तजई आप किनज प्रभु से , मैं अवश्य र्जऊाँगज । मैं र्जकर अपने पूर्ा कौशल से
विजं चगड़चगड़ज कर लभक्षज मजंगंग ू ज । ववश्व मेरे सजथसजथ मेरे रजष्र की लभक्षजववृ त्त को इनतिजस में
स्वर्जाक्षरो से अंककत करे गज । िजाँ यि प्रभु की िी कृपज से संभव िै । प्रभु की र्य िो !"
किज सद ु जमज ने और भजतत में महु दत चल हदयज लचकदजर चजल से ।
सद ु जमज स्वप्न दे खतज चलज आ रिज थज । आने वजले
हदनों में 'लभक्षज रजर्नय' को रजर्नीनत शजस्ि के पजठ्यक्रम में स्थजन लमलेगज । ललखज र्जयेगज कक त्रबर्य प्रजचीन िै परन्तु र्नतजजन्िक भजरत में इसके
प्रयोग कज श्रेय सर् ु मज और सद ु जमज को र्जतज िै ।
इन दोनों व्यजततत्वों ने इस रजर्नय के सफल उपयोग से 41 अपहृत भजरतीयों को ईरजक के खख् ूं वजर आतंकी सगठन के कब्र्े से 45 हदन बजद सकुशल-ससम्मजन ररिज करजने में सफलतज पजई थी
। दे व संस्कृनत कज भजग रिज िै लभक्षज रजर्नय । दे वरजर् इंर कभी दधीच से तो कभी कर्ा से कुछ
न कुछ भीख मजंगते िी रिे िैं । कजया लसद्ध िोनज
चजहिए । परजक्रम र्ब पस्त िो तो लभक्षज कजम आती िै । असुर संस्कृनत भी इस कज प्रयोग कर चक ु ी िै
। स्वयं दशजनन वैदेिी को िरने लभक्षुक रूप में िी गयज थज । इधर ववश्वववध्यजलयो में लभक्षजटन कज पजठ्यक्रम प्रजरं भ िोते िी न केबल स्नजतक और
स्नजतकोत्तर लभक्षुक लमलने लगें गे आवपतु डजतटरे ट
-"निीं । कतई निीं । र्जने कज प्रश्न िी निीं िै ।
की भी र्मजत तैयजर िो लेगी जर्न्िें समय समय
नर संिजरक से लभक्षज मजंगने र्जओगे । आत्मित्यज
की उपजचधयजाँ गले में लटकजकर भीख मजंगने वजलों
पर ववदे श मंिजलय ववशेर् अलभयजनों में आमंत्रित ककयज करे गज । सुदजमज अमर िो र्जयेगज । ऐसे िी सुखद स्वप्न बुनतज संवजरतज सुदजमज आ
पंिुचज अपनी मडैयज पर ।
ब्रजह्मर्ी आग बबूलज खड़ी थी द्वजर पर िी । -"ककतनी बजर किज िै पर मजनते िी निीं िै । बजबज
रजमदे व तक ने किज । बजबजर्ीयों को पर नजररयों से दरू रिनज चजहिए । आप िैं कक सुर्मज र्ी ने न्यौतज
हदयज और र्ज पिुंचे । र्जनते भी िै , मैं मरी र्ज रिी थी चचंतज में ।" -"व्यथा चचंतज थी तेरी कल्यजर्ी । भजरतीय संस्कृनत
के ध्वर् वजिको की सरकजर िै । मजतव ृ त परदजरे र्ु मेरज आदशा िै तो वे सब भी नजररयों कज सम्मजन करते िैं।"
र्जओगे तो तब र्ब मैं र्जने दं ग ू ी । ऐसे खख् ूं वजर करनी िै तो यिीं कर लीजर्ये ।" -"मुखा िो तुम कल्यजर्ी । उदजरमनज और चररिवजन
िै वो । भयभीत नसें भूखी प्यजसी अस्पतजल के तिखजने में छुपी पड़ीं थीं । उन्िीने उन्िें मुतत कर
प्रभु प्रतजप से ररिज ककयज थज । सुर्मज र्ी ने बतजयज िै , प्रभु यिीं से अपनी अलौककक शजततयों कज प्रयोग कर उसे मेरे अनन ु य को स्वीकजर करने की
प्रेरर्ज दे दें गे । मझ ु े तो श्रेय दे नज चजि रिे िैं । मैं तो ननलमत्तमजि िूाँ । अवतजरी िैं न ।"
-"व्यथा बजत मत करो स्वजमी । सन ु ज िै बग़दजदी ने
गैर मस ु लमजनों पर उनके क्षेि में रिने पर धमा-कर लगजयज िै । र्जते िी आपसे धमा-कर मजंग लेगज । तयज िै तम ु पर र्ो दोगे उसे ? ऐसज करो , मझ ु े ले
चलो । िररश्चंर ने कजशी में बेचीं थी , तम ु करबलज में बेच दे नज ।" किकर ववफर उठी ब्रजह्मर्ी । आाँखों
-"खजक सम्मजन करते िैं स्वजमी । सोननयज र्ी बिु िैं तो ववदे शी िैं और सजननयज बेटी िै तो भी ववदे शी
से अश्रध ु जर बि रिी थी । अंग अंग में कम्पन िो
? अगर सोननयज अब भी इटली की िै तो सजननयज
-"इस्लजम के उस नए खलीफज से भीख मजंगने भेर्
अब भजरत की तयों निीं ? पजखंड़डयों की बजत मत करो स्वजमी । ये बतजइए कक तयों बुलजयज थज ? ये बड़े लोग याँू िी तो बल ु ज निीं सकते ।"
रिज थज । आपज खो बैठी ।
रिे िैं र्ो ननमाम िै स्वयं अपने स्वधमी लभन्न मतजबलजजम्बयों तक के प्रनत । वजि री सुर्मज वजि ! तेरे सैननक तो यिजाँ रोर्ेदजर मुसलमजन के मुिं में
-"प्रभु-कजर् कज गुरुतर और ऐनतिजलसक मित्त्व कज
रोटी ठूाँसें और तू खलीफज से भीख मंगवजए गी ।
प्रस्थजन करनज िै । मेरे झोलज-पथजरी शीघ्र लज ।"
उन्िें िी भेर् दे र्ो गोधरज भूलने पर मुर्फ्फर नगर
कजया सोंपज िै । आर् रजत्रि िी आकजश मजगा से -"पिले बतजइए कजया तयज िै ? -"ईरजक र्ज रिज िूाँ । लभक्षज मजंगने ।" -"तयों, भजरत बर्ा में अकजल पड़ज िै तयज?"
उन परजक्रलमयों को तयों निीं भेर् दे ती बग़दजद ? की यजद हदलज रिे िैं मुसलमजनों को । सजफ सुनलो स्वजमी , आप निीं र्जयेंगे । ककंचचत भी निीं । मेरज सुिजग लमलज िै बस उर्जड़ने को ?" ब्रजह्मर्ी ने आवेश में लसर दे मजरज चौखट पर ।
-"निीं । यि रजर्नय िै , लभक्षज रजर्नय । खलीफज
अचेत िो गयी । रतत स्रजव तीव्र थज । सुदजमज की
ररिजई की भीख मजंग कर लजऊंगज । रजष्रहित कज
बग़दजद की फ्लजईट र्ज चक ु ी थी ।
अबू बकर अल बग़दजदी से अपहृत भजरतीयों की कजया िै ।"
एक न चली ।अस्पतजल लेकर दौड़ज , तब तक
राष्ट्र य मौसम - शरद सुनेर कई बजर मैं बड़ी दवु वधज में पड़ र्जतज िूाँ कक पढ़जते समय बच्चों को अपने दे श में मौसमों की ककतनी
संख्यज बतजऊाँ? बचपन से अब एक सजमजन्य भजरतीय की तरि मेरज ज्ञजन कितज िै कक इस दे श में तीन मुख्य ऋतुए-ाँ ग्रीष्म, शीत और वर्जा तथज छः उपऋतुए-ाँ वसंत,
ग्रीष्म, वर्जा, शरद, िे मंत और लशलशर िोती िै । दो दशक पव ू ा एक लोकवप्रय गीत ने मझ ु े नयज ज्ञजन हदयज कक मौसम पजाँच िोते िैं-‘एक बरस के मौसम
चजर, पजाँचवजाँ मौसम प्यजर कज।’ ये पजाँचवजाँ मौसम यजनी प्यजर कज मौसम, बजरिमजसी िोतज िै । शेर् तो उपऋतओ ु ं के समजन आते-र्जते रिते िैं। प्यजर कज मौसम बगीचों, मंहदरो, तजलजबों, नहदयों-सजगर के
तटों अथजात ् यि-ति-सवाि-सदै व हिलोरें मजरतज रितज
िै । जर्स पर कंरज्ल करने के ललए ‘मौसम-ववभजग’ निीं ‘पुललस-ववभजग’ की आवश्कतज पड़ती िै । खैर, इस दे श में आज़जदी के बजद एक मौसम स्थजयी रूप
से प्रनत वर्ा आतज िै । इसके आने की न अवचध ननजश्चत िै , नज तजरीख। ये मौसम िै -मिाँगजई कज मौसम। िमजरे दे श की र्नतज की ववशेर्तज िै कक एक मौसम की अनतरे कतज के पश्चजत ् वि अगले
मौसम की प्रतीक्षज करने लगती िै । ककन्तु मिाँ गजई कज मौसम र्जए तो कभी लौटकर नज आए, यि सबकी िजहदा क इच्छज िोती िै । लेककन सजब ककसके बजप में दम िै र्ो इस मौसम को रोक सके। ये िर बजर नये रूप में पूरी तैयजरी से आती िै, और वपछली
बजर से ज्यजदज धम ू से आती िै । कोई िीटर, कोई अलजव, कोई बरसजती, कोई छजतज इसकी तीव्रतज और प्रखरतज में कमी निीं कर सकतज।
एक ‘दशान’ िै । र्ो प्रधजनमंिी से लेकर लभखजरी, गि ृ स्थ से संन्यजसी, बुद्चधर्ीवी से बुद्चधिीन, उत्पजदक से उपभोततज, पोते से दजदज, प्रेलमकज से पत्नी और प्रेमी से पनत तक सभी को दजशाननक बनज दे ती िै । प्रधजनमंिी कज िर सजल गुर्र र्जतज िै । पर
बेचजरज संसद भवन में अपनी मंडली के सजथ तय निीं कर पजतज कक-‘तयज करूाँ कक कीमत कम िो और लोगों कज गर् ु जरज िो!’ लभखमंगज सोचतज िै कक
‘कुछ अचधक लमले’ तो मेरज गर् ु जरज िो!! संन्यजसी,
गि ृ स्थ को भगवद् प्रजजप्त कज शजटा कट हदखजनज चजितज िै मगर मिाँ गजई गि ृ स्थ को ‘लक्ष्मी’ प्रजजप्त के शजटा कट खोर्ने को प्रेररत करती िै । बद् ु चधमजन
और बुद्चधिीन दोनों मिाँ गजई के मुद्दे पर एकमत
िोकर अपनी प्रनतभज पर भ्रलमत िो र्जते िैं। पजत्नयजाँ और प्रेलमकज इस बजर वपछली बजर से अचधक मिाँ गज उपिजर लेने के मूड में िोती िैं लेककन मिाँ गजई, पनत
और प्रेमी को उसकी औकजत हदखज र्जती िै । पोते के सजमने दजदज र्ी की दजदजचगरी तब धरजशजयी िो
र्जती िै र्ब दजदज र्ी एक रूपयेवजली टजफी हदलजनज चजिते और पोतज पचजस रूपयेवजली चजकलेट पसंद कर लेतज िै । लोग मिाँ गजई कज संबंध अथाशजस्ि से र्ोड़ते िैं। मूखा िैं! मिाँ गजई तो भजरतीयों को दजशाननक बनज दे ती िै ।
उसकज संबंध दशानशजस्ि से िोनज चजहिए। वि भजरतवजसी को आध्यजजत्मक बनज दे ती िै । मेरज तो दजवज िै यहद मिाँ गजई नज िो तो दे शवजसी भगवजन को भी यजद करनज छोड़ दें । किज भी िै - ‘दख ु में
सुलमरन सब करे , सुख में करे न कोई।’ दख ु यजनी
तयज?- इस कलयुग में मिाँ गजई से बड़ज दख ु भलज कोई िो सकतज िै ? मिाँगजई इस दे श को सवाधमा समभजव कज संदेश दे ती िै । िमजरे दे श में अनेक पंथ, धमा, संप्रदजय, र्जनतयजाँ िैं र्ो सहदयों से अपने-अपने
मिाँगजई तयज िै ? वस्तुकी कीमतों कज बढ़नज। र्ी
ववचजरों को लेकर लड़ते रिते िैं
आबजदीवजले दे श में मिाँगजई को इतने कम शब्दों में
िैं। ककन्तु मिाँ गजई सबके मतभेदों और मनभेदों को
निीं र्नजब! िमजरे सवज सौ करोड़ से अचधक
पजररभजवर्त करनज मिाँगजई कज अपमजन िै । इस पर तो पूरी चजलीसज िोनी चजहिए। िमजरे दे श में मिाँ गजई
और अपने
अनुयजनययों को भड़कजते, उकसजते और बिकजते रिते लमटजकर ‘एकमत’ कर दे ती िै । तभी तो किज भी िै
कक-‘भेद बढ़जते मंहदर-मजस्ज़द, बजत समझ में नज
आई! सब लोगों को सजथ मे लजती,एक करजती
िोती। इसललए भजरत शतजजब्दयो से एक ववकजसशील
मिाँगजई।’
रजष्र िै ।
मिाँगजई िमजरे दे श की एकतज की कड़ी िै । ये िमजरी
मिाँ गजई, िमजरे दे श को ववश्व में अजस्मतज और
रजष्रीय एकतज और अजस्मतज कज प्रतीक िै । कश्मीर
पिचजन प्रदजन करती िै । ववश्व के ववकलसत दे शों के
से कन्यजकुमजरी तक और थजर के रे चगस्तजन से
ललए, िम इसललए तो पूजर्त िैं। वे ‘लक्ष्मी र्ी’ की
आचजर-ववचजर, आिजर-संस्कजर, लशक्षज, तीर्-त्यौिजर,
िमजरे कजरर् िी तो इन दे शों कज अजस्तत्व िै । िमजरे
अरुर्जचल की वजहदयों तक िमजरी भजर्जएाँ, भूर्ज,
पूर्ज निीं करते। वे िमजरे दे श की पूर्ज करते िैं।
प्रथज-परं परज लभन्न-लभन्न िो सकते िैं ककन्तु मिाँ गजई,
कजरर् िी तो इन दे शों कज चल् ू िज र्लतज िै । इन्िें
मिाँगजई
चजहिए। मिाँ गजई नज िोती तो इनके डजलर, पजउण्ड,
मिाँगजई पर कोई वववजद निीं। वि एक िै । इस को
आतंकवजद,
नतसलवजद,
र्जनतवजद,
भजर्जवजद, प्रजंतवजद के अलगजववजदी युग में ककसी
वजद से कोई खतरज निीं। अवपतु इसने इन वजदों को एकतज के सि ू में वपरो रखज िै । यिजाँ तक कक एकदर् ू े कज परस्पर माँि ु नज दे खनेवजले कट्टर ववरोधी
रजर्नैनतक दल भी एक िोकर समकजलीन सरकजर की टजाँग खीचने लगते िै । मिाँगजई रजर्नैनतक ववचजरों को र्ोड़नेवजली मज़बत ू कड़ी िै । मिाँगजई, िमजरे दे श
की आत्मज िै और आत्मज अमर िै , इतनज तो िम र्जनते िैं। इसललए वि न सूखती िै , न गीली िोती िै और न िी र्लती िै । बजल्क दे श के सूखने, गीले
िोने और र्लने पर इस आत्मज कज और रूप ननखर र्जतज िै । वि अपनज हदव्यत्व प्रजप्त कर लेती िै । सोचचए, यहद मिाँगजई इस दे श से ननकल गई तो भजरत ननष्प्रजर् िो र्जएगज। कफर िम ककसके बजरे में चचंतन करें गे? मिाँगजई िी िै र्ो िमें पेट भरने के ललए वववश करती िै । यहद पेट भरने की चचंतज न िोगी तो कोई तयों कजम करे गज? मिाँ गजई, र्नतज को ऊर्जा प्रदजन करती िै और दे श को ऊर्जावजन बनजती िै । िमजरे दे श कज ऊर्जा सूया से निीं, मिाँ गजई
से लमलती िै । मिाँगजई दे श को ववकजस के ललए प्रेररत करती िै कक ‘आओ, हिम्मत िै तो मुझे िरजओ।’ ये
िमेशज ववकजसशील रिती िै , कभी ववकलसत निीं
तो िमजरे दे श की मिाँ गजई कज अिसजनमंद िोनज येन, लीरज सब माँि ु तकते रि र्जते। मैंने मौसम से बजत आरं भ की थी। मिाँगजई कज मौसम आते िी लजल टमजटर आग कज गोलज लगने लगते िैं। प्यजर् के कजरर् लोग आाँखों से आाँसू
बरसजने लगते िैं। डीर्ल, पेरोल और गैस के दजम खन ू र्मजने लगते िैं। एक मिाँ गजई एक बजर में सजरे
मौसमों कज मज़ज दे र्जती िै । इसे तो सरकजर को ‘रजष्रीय मौसम’ घोवर्त कर दे नज चजहिए। मिाँ गजई कज अथा र्ो भी िो लेककन वि अनथा कर दे ती िै । ये ईमजनदजरों को बेईमजन बनज दे ती िै । गरीबों को अपनी लजर् कज सौदज करने दे ने को वववश कर दे ती िै । कभी र्ीवन कज आधजर छीन लेती िै तो कभी तलवजरों से धजर छीन लेती िै । इतनज िी निीं वि इंसजन से भगवजन तक छीन लेती िै वह ज़रुरत बहुत बड़ी होगी, जो उसूलों से लड़ पड़ी होगी चोर , भूखे ने कर ल मिंददर में , भूख भगवान से बड़ी होगी
शरद सुनेरी – 9421803149
कववता / नज़्म
मैं अच्छज और अच्छज , जब मौन को शब्द समले ..... सञ्जीव तनगम 9821285194
िमने
कुछ शब्द किे - आपस में ,
और कफर दे र तक सन्नजटज पसरज रिज िमजरे बीच में , िम
सुन्दर और सुन्दर िोतज र्ज रिज िूाँ, इस ववश्वजस के सजथ कक मुझमे ऐसज बिुत कुछ िै र्ो मझ ु े तम ु से र्ोड़ सकतज िै . किीं इसी र्ड़ ु जव कज ववश्वजस
तम् ु िजरी कल्पनजओं में भी तो निीं? िर हदन र्ब घड़ी की सस् ु त रफ़्तजर सई ु यजाँ
मौन िो तकते रिे ,
बड़ी दे र बजद ,
सजमने बैठे िुए - कफर अचजनक , धीरे से रखज उसने अपनज िजथ मेरे िजथ पर,
तुम्िजरे आने के सुखद क्षर् संर्ोने लगती िैं,
और सजरज मौन मुखररत िो उठज.
रे शमी र्जल
और जब शब्दों से बना
मौन ...
कॉफ़ी िजउस के कोलजिल के बीच, िम कर रिे थे बजतें ,इसकी , उसकी ,
मेरे शरीर के भीतर एक सुनिली कंपकंपी बुनने लगती िै .
आाँखों के आगे उगने लगतज िै तुम्िजरज रूप, अच्छज, और अच्छज, सुन्दर ,और सुन्दर,
पववि ,और पववि बनकर.
चीन की, र्जपजन की, सजरे दनु नयज र्िजन की ,
पर न उसने छुआ मेरज प्यजलज,
न मैंने िजथ लगजयज उसके सैंडववच में , इतने शोर शरजबे में लसफा िमीं र्जनते थे कक घूाँट घूाँट कॉफ़ी के सजथ, उतर रिज थज सन्नजटज, िमजरे बीच में
किीं ऐसे िी ककसी मधरु आभजस की
चमक तुम्िजरी आाँखों में भी तो निीं? िजाँ , यहद सचमुच ऐसज िै तो यि मजननज पड़ेगज कक िमजरी संवेदनजएं अभी जर्ंदज िैं.
सम्वेदनाएँ अभी मर नह िं हैं. िर हदन र्ब िम एक दस ू रे के पजस से
िमजरी कल्पनजओं में
पररचय अपररचय कज धप ू छजाँिी आभजस ललए,
िमजरे जर्स्मों में
चप ु चजप गुज़रते िैं,
अभी चटख रं ग बजकी िैं.
मेरे मन के छोटे से गमले में \
र्ीवन की मीठी गमी की तपन
ककतने िी सवजलों की कोंपलें फूट पड़ती िैं.
अभी शेर् िै .
तम् ु िजरे मन में भी तो निीं?
भरे
किीं ऐसे िी कुछ सवजल
और, अववश्वजस,अर्नबीपन व अनैनतकतज से
िर हदन र्ब िम एक दस ू रे की ओर
इस बबार र्ंगल में रिते िुए भी ,
मझ ु े मिसस ू िोतज िै कक
िम अभी तक मनष्ु य िैं.
चले आ रिे िोते िैं,
उफ़ सुमीता प्रवीि केशवा
एक पूर दतु नया है औरत दे ि से बेख़बर
उफ़! पुरुर्!
एक पूरी की पूरी दनु नयज िै औरत
और स्िी कज वपघल कर
पूरी दे ि में उतजर-चढ़जव
तुम्िजरज उफन के बि र्जनज तुम्िें समेट लेनज
उस की दे ि में बिती िै नदी - बिते िैं नजले कटजव – छं टजव के सजथ
चगड़चगड़जते िो तम ु स्िी के समक्ष
उभरे िैं तमजम पवात-पिजड़ - टीले-मैदजन और
रोप लेते िो अपनी वन्शवेल
जर्न से िो कर गर् ु रती िैं
लट ू खसोट लेते िो उसे भीतर तक
घम ु जवदजर टे ढ़ी-मेढ़ी पगडजण्डयजाँ
उस की तिों में
उस की दे ि की िवजएाँ
और करवज लेते िो दज़ा
वि िवजओं को रोक
अपनी र्ीत ...... अब तप्ृ त िो तम ु
बनजती िै अनक ु ू ल वजतजवरर् बरसने के ललये
उस की कोख तक पिुाँच कर तुम
बजवर्ूद इस के वि रौंदी र्जती िै
आकजर लेने लगते िो
कफर बी बेमौसम-बेपरवजि
एक नये रूप में
और वि खजली िो चक ु ी िै
अपनज अजस्तत्व तुम्िें सौंप कर
यिजाँ भी दे खो तुम्िजरीिी र्ीत िै
कुचली-मसली र्जती िै उग र्जती िै
कभी भी - किीं भी
तुम उसे र्कड़ डजलते िो बेड़ड़यों में
बढ़जती िै अपनी लतजएाँ
तुम्िजरे नये रूप को साँवजरने में
उगजती िै अपनी पौधें
लग र्जती िै वि
सिे र्ती िै बजग-उपवन
अपनज रूप खो कर
बनती िै र्ङ्गल
और धीरे -धीरे तुम
बनती िै िवज
ववरतत िोते र्जते िो उस के सौन्दया से
बनती िै वज़्ि र्ीवन-सञ्चजलन की
वि सौन्दया अब बाँट चक ु ज िै नये रूप – नये आकजर में
छोड़ दो उसे
उस की कजयज लशचथल िो चक ु ी िै
ननर्ान सुनसजन टजपू पर
और तुम ननकल पड़ते िो कफर से
बसज लेगी औरत
तुम्िजरे अक़्स को आकजर दे ने में एक नये रूप की तलजश में
यज छोड़ दो उसे मङ्गल-ग्रि पर एक परू ी की परू ी दनु नयज
अपनी दे ि की लमट्टी से तयोंकक तम् ु िें
अब वि निीं लगती
कभी भी किीं भी
पिले र्ैसी सम ु ीतज प्रवीर् केशवज – 9773555567
गोपनीय गठबंधन कर
प्रीत के अतीत से
शीर्ा-संयोग की झोली में जजतेन्र 'जौहर'
9450320472
ववयोग कज रुदन भरज िै , कफर भी अववरजम... अलभरजम...
न र्जने ककतनी बजर...
अन्तस के उपवन में
प्रीनत में राँगी
प्रेम-परजग िी झरज िै ...!
ककन्तु...
प्रतीनत में टाँ गी एक प्रर्यजतरु प्रतीक्षज नैरजश्य के अाँधेरे में लससककर रोयी िै , पंथ ननिजरती एक र्ोड़ी आाँखों ने 'अ-योग' की उदजसी ढोयी िै ... न र्जनेsss ककतनी बजर...! ● न र्जने ककतनी बजर... भजवों की कल्लोललनी लिरों ने ककनजरों के चरर् पखजरे िैं सीमजओं के सदके उतजरे िैं; उपेक्षज के तटस्थ प्रस्तरों से टकरजकर प्रत्यजवतान की 'वतल ुा जकजर' पीड़ज भोगी िै ; अिजसस्स...
यि प्रेम...कफर भी एक ननष्ठजवजन कमायोगी िै ...!!
● न र्जने ककतनी बजर... अनुभूनतयों कज लिूलुिजन गौरव वववशतज के काँटीले उद्यजन से सजस्मत लौटज िै -
अनचगन खरोंचों कज पजररतोवर्क लेकर...! ● न र्जने ककतनी बजर... एक यजचक मन भजवनज की भीख पर धनवजन िुआ िै , यि र्जनते िुए भी कक-
लभक्षजटन पर ननकलज कोई आदमक़द स्वजलभमजन कभी कुबेर बनकर निीं लौटतज... कफर भी
प्रेम के गीले नयन एकल द्वजर पर
●
दृजष्ट पसजरकर
न र्जने ककतनी बजर...
एकटक...
एक आरोिी ने
अपलक...
लशखर-यजिज के बीच
न र्जनेsss ककतनी बजर...!!
'सय ु ोग' के संभजवनजशील पलों में केन्रे तर दय ु ोंगों से
अिननाश ननिजरते रिे
●
न र्जने ककतनी बजर... ववडम्बनजओं ने
पेङ, पयाटवरि और कागज – नवीन सी. चतुवेद कटते र्ज रिे िैं पेङ
कुछ यूाँ वववश ककयज िै
पीढी दर पीढी
एक र्ीते िुए योद्धज ने अपने िी रर्-लशववर में आकर
सीढी दर सीढी
कक-
परजर्य-बोध को जर्यज िै ...!! ● न र्जने ककतनी बजर... र्ीवन छद्म के िजथों लुटज िै , कफर भी
भस्मीभूत अजस्तत्व कज फीननतस अपनी िी रजख से र्ी उठज िै
नयी उड़जन नये गजन कज िौसलज लेकर...! न र्जने ककतनी बजर...! न र्जनेsss ककतनी बजर...!! न र्जने...ककतनीsss बजर...!!!
बढतज र्ज रिज िै धआ ु ाँ अपने अजस्तत्व की रक्षज के ललये , चचजन्तत िै – कजग़ज़ी समद ु जय िजवी िोतज र्ज रिज िै कम्प्यट ू र, हदन ब हदन, कफर भी समजप्त निीं िुआ - मित्व, कजग़ज़ कज अब तक बजवर्ूद इन्टरनेट के,
कजग़ज़ आर् भी प्रजसंचगक िै नजनी की चचठ्हठयों में , दद्द ू की वसीयत में
कजग़ज़ िी िोतज िै इस्तेमजल , िर मोङ पर जर्न्दगी के परन्तु अब थकने भी लगज िै कजग़ज़ त्रबनज वर्ि छपते छपते
कजग़ज़ के अजस्ततव के ललये जर्तने र्रूरी िैं पेङ, पयजावरर्, आहद आहद , उतनज िी र्रूरी िै उनकज सदप ु योग सकजरर्
अकारि नह िं
नज़्म
- ररश्वत – जोश मल हाबाद
ये िै लमल वजलज, वो बननयज और वो सजिूकजर िै ये िै दक ू जाँदजर वो िै वैद्य वो अत्तजर िै वो अगर ठग िै तो वो डजकू िै वो बटमजर िै
आर् िर गदा न में कजली र्ीत कज एक िजर िै
िै फ़, मल् ु क़-ओ-क़ौम की णख़दमत-गज़ ु जरी के ललये रि गए िैं इक िमीं ईमजनदजरी के ललये भख ू के क़जनन ू में ईमजनदजरी ज़ुमा िै
और बे-ईमजननयों पर शमासजरी ज़म ु ा िै डजकुओं के दौर में परिे ज़गजरी ज़ुमा िै
लोग िम से रोज़ किते िैं ये आदत छोड़ड़ये ये नतज़जरत िै णख़लजफ़ेआदमीयत – छोड़ड़ये
इस से बदतर लत निीं िै कोई, ये लत छोड़ड़ये रोज़ अख़बजरों में छपतज िै कक ररश्वत छोड़ड़ये
भल ू कर भी र्ो कोई लेतज िै ररश्वत – चोर िै आर् क़ौमी पजगलों में रजत-हदन ये शोर िै
ककस को समझजएाँ इसे खो दें गे तो कफर पजएाँगे तयज िम अगर ररश्वत निीं लेंगे तो कफर खजएाँगे तयज क़ैद भी कर दें तो िम को रजि पर लजएाँगे तयज यि र्ुनन ू ेइश्क़ के अंदजज़ छुट र्जएाँगे तयज
मल् ु क़ भर को क़ैद कर दें ककस के बस की बजत िै ख़ैर से सब िैं कोई दो चजर दस की बजत िै ये िवस ये चोर-बजज़जरी ये मिाँगजई ये भजव
रजई की कीमत िो र्ब परबत तो तयों आये न तजव अपनी तनख़्वजिों के नजलों में िै पजनी आध पजव
और लजखों टन की भजरी अपने र्ीवन की िै नजव
र्ब तलक ररश्वत न लें िम, दजल गल सकती निीं नजव तनख़्वजिों के नजलों में तो चल सकती निीं
र्ब िुकूमत ख़जम िो तो पख़् ु तजकजरी ज़ुमा िै लोग अटकजते िैं तयों रोड़े िमजरे कजम में
जर्स को दे खो ख़ैर से नङ्गज िै वो िम्मजम में दे णखये जर्स को दबजये िै बगल में वो छुरज
फ़क़ा तयज इस में कक मर् ु ररम सख़्त िै यज भरु भरु ज
ग़म तो इस कज िै, ज़मजनज िी िै कुछ-कुछ खरु दरु ज एक मर् ु ररम दस ू रे मर् ु ररम को कितज िै बरु ज
िम को र्ो चजिें सो कि लें, िम तो ररश्वत खोर िैं वजइज़-ओ-नजसेि-ओ-मस ु कफ़क अल्लज रतखे चोर िैं तोंद वजलों की तो िो आईनजदजरी वजि वज
और िम भख ू ों के सर पे चजाँदमजरी वजि वज
उन की ख़जनतर सब्ु ि िोते िी निजरी वजि वज और िम चजटज करें ईमजनदजरी वजि वज
सेठ र्ी तो खूब मोटर में िवज खजते कफरें
और िम सब र्नू तयजाँ गललयों में चटखजते कफरें इस चगरजनी में भलज तयज गच ुं -ए-ईमजाँ णखले
र्ौ के दजने सख़्त िैं तजाँबे के लसतके वपलवपले
र्जएाँ कपड़ों के ललये तो दजम सन ु कर हदल हिले र्ब चगरे बजाँ तजबज दे कर आएाँ तो कपड़ज लमले
र्जन भी दे दें तो सस्ते दजम लमल सकतज निीं आदमीयत कज कफ़न िै दोस्तो कपड़ज निीं
हाइकु
बोये सपने सींचे इन्द्र-धनुष फले कै क्टस
-भगवत शरर् अग्रवजल
गीत डा. राम मनोहर त्रत्रपाठी
सरस्वती कुमार ‘द पक’ यि मेरज अनुरजगी मन रस मजाँगज करतज कललयों से लय मजाँगज करतज अललयों से संकेतों से बोल मजाँगतज
तकलीफ़ों के बजद तननक आरजम िै तुम किते िो गीतों से तयज कजम िै गीतों कज बजदल मझ ु को निलजतज िै
स्वर कज गंर् ु न घजवों को सिलजतज िै यि िर दख ु में मेरज मन बिलजतज िै मेरज र्ीनज िी इस कज पररर्जम िै
तम ु किते िो गीतों से तयज कजम िै यिी सोच कर तुम को भी िै रजनी िै र्ो दणु खयजरज िै मेरी पहिचजनी िै
सब से पररचचत मेरी रजम किजनी िै मेरे ललए यिी पैसज िै दजम िै
तुम किते िो गीतों से तयज कजम िै भजवुकतज के वेश िर्जरों धरतज िूाँ मध-ु ऋतु सज ललख कर, पतझर सज झरतज िूाँ ध्यजन लगज कर स्वर की पूर्ज करतज िूाँ गीतों के मजन्दर में मेरज रजम िै
तुम किते िो गीतों से तयज कजम िै
हदशज मजाँगतज िै गललयों से र्ीवन कज ले कर इकतजरज कफरतज बन बजदल आवजरज सुख-दख ु के तजरों को छू कर गजतज िै बैरजगी मन
यि मेरज अनुरजगी मन किजाँ ककसी से मजाँगज वैभव
उस के हित िै सब कुछ सम्भव सदज वववशतज कज ववर् पी कर भर लेतज झोली में अनुभव अपनी धन ु में चलने वजलज
परहित पल-पल र्लने वजलज त्रबन मजाँगे दे दे तज सब कुछ मेरज इतनज त्यजगी मन यि मेरज अनुरजगी मन
गीत पुरुषोत्तम दब ु े
ब्रजेश पाठक मौन
मैं ने दे खज िै धरती को बड़े पजस से
दे िरी तयों लजाँघतज िै आर् गदरजयज बदन
केवल दे खज निीं दे ख कर परखज भी िै
तयज मनमीत कज संदेश ले आयज पवन
धरती जर्स पर फूल त्रबलखते, कजाँटे िाँसते
यज ककसी शिनजई के स्वर ने कोई र्जद ू ककयज
लमट्टी के पत ु लों से पवात टकरजते िैं
कंचक ु ी के बन्ध ढीले िो रिे तयों बजर-बजर
मरुस्थलों के पैर पर् ू तज िै गंगजर्ल
िररयजली पर कोड़े बरसजतज दजवजनल
यज हदखजई दे गयज िै स्वप्न में मन कज वपयज तयों लर्जये र्ज रिे िैं आर् कर्रजये नयन
मैं ने दे खज िै धरती को बड़े पजस से केवल दे खज निीं दे ख कर परखज भी िै दनु नयज जर्स में शजजन्त कफ़न बजंधे कफरती िै और अशजजन्त पर चाँवर डुलजतज िै लसन्िजसन दनु नयज जर्स में दनु नयज की गोली से पीड़ड़त
और िी िै रं ग कुछ गजलों पे तेरे मनचली
फूल र्ैसी णखल रिी कचनजर की कोमल कली बजग ने सींचज कक भाँवरों कज बुलजवज आ गयज र्ो िथेली से नछपजयज र्ज रिज पूरज गगन
डोलज करतज रुग्र् अहिंसज कज पद्मजसन
मौन अधरों में दबी िै बजत ककस के प्यजर की
मैं ने दे खज िै धरती को बड़े पजस से
दे रिी त्रबंहदयज, उलिनज आर् तयों, शंग ृ जर की
केवल दे खज निीं दे ख कर परखज भी िै र्ीवन जर्स कज सत्य लससकतज िै कुहटयों में और झूठ मिलों में मौज़ उड़जयज करतज
र्ीवन जर्स कज न्यजय सड़ज करतज र्ेलों में और अन्य ख़लु शयों के दीप र्लजयज करतज मैं ने दे खज िै धरती को बड़े पजस से
केवल दे खज निीं दे ख कर परखज भी िै र्िजाँ चजाँदनी धोती िै कलंक र्ीवन भर और अमजवस तजरों से सम्मजननत िोती र्िजाँ भटकते मोती-मजणर्क अाँचधयजरे में और कौयलों [coal] को प्रकजश की ककरर्ें धोतीं मैं ने दे खज िै धरती को बड़े पजस से केवल दे खज निीं दे ख कर परखज भी िै
गरम सजाँसें उठ रिी िैं मन ये बेक़जबू िुआ र्ैसे शजदी के ककसी मण्डप में िोतज िै िवन
गीत बलवीर ससिंह रङ्ग
रामचन्र पाण्डे श्रसमक मैं प्रकजश की गररमज को पहिचजन सकज अन्धकजर कज मुझ पर यि उपकजर िै
और सत्य के ननकट छोड़ कर गयज मझ ु े झठ ू मेरे घर आयज जर्तनी बजर िै
ओ ववप्लव के थके सजचथयो ववर्य लमली – ववश्रजम न समझो उहदत प्रभजत िुआ िै कफर भी छजई चजरों ओर उदजसी ऊपर मेघ भरे बैठे िैं ककन्तु धरज प्यजसी की प्यजसी
र्ब तक सुख के स्वप्न अधरू े पूरज अपनज कजम न समझो
ववर्य लमली – ववश्रजम न समझो पदलोलुपतज और त्यजग कज एकजकजर निीं िोने कज
दो नजवों पर पग धरने से सजगर पजर निीं िोने कज युगजरम्भ के प्रथम चरर् की
गनतववचध को – पररर्जम न समझो ववर्य लमली – ववश्रजम न समझो तुमने वज्र-प्रिजर ककयज थज परजधीनतज की छजती पर दे खो आाँच न आने पजये र्न-र्न की सौंपी थजती पर समर शेर् िै – सर्ग दे श िै सचमुच युद्धववरजम न समझो
ववर्य लमली – ववश्रजम न समझो
कैसे िोतज मंद समीर कज अनभ ु व
अगर न िोतज मौसम झञ्झजवजत कज रोज़-रोज़ आ-आ कर मन-भजवन सपने िमें अथा बतलज र्जते िैं रजत कज पतझर में र्ब झर र्जते िैं पजत सभी लिरजती सी आती तभी बिजर िै सोच रिज िूाँ भूख न िोती दनु नयज में
तो कफर इस रोटी कज तयज मतलब िोतज मजनव तब खेतों में गें िू के बदले
सचमुच तयज चजाँदी बोतज, सोनज बोतज
उस समजर् में भी तयज ऐसज िी िोतज आर् िो रिज र्ैसज कजरोबजर िै तुम अपने सच में थोड़ज झूठ लमलज कर के दे खो दनु नयज के अन्दर कैसज लगतज िै
सब अनजयजस मजलूम तुम्िें चल र्जयेगज
आदमी किजाँ ककस-ककस को कैसे ठगतज िै सम्बन्धों में अपनेपन कज एिसजस किजाँ अपनज पन बरसों से बीमजर िै
गीत मधु प्रसाद
डा. कमलेश द्वववेद
एक तुम्िजरज सजथ तयज लमलज
आर् सजफ़ की अलमजरी,
छन्द, त्रबनज लय-तजल-सरु ों के –
उन्िें पढ़ज तो ककतने मञ्ज़र
सजरे तीरथ धजम िो गये
कुछ पि पुरजने पजये
वेद ऋचज औ सजम िो गये
िमें नज़र कफर आये
अनचगन शैल-प्रवजल बि गये
पिले, पि पढ़ज – र्ो तम ु ने
एक तम् ु िजरे दल ु रजने में
कङ्कड़-पत्थर सीप बन गये, आाँखों के घर तक आने में एक तुम्िजरज सजथ तयज लमलज आर् ददा नीलजम िो गये
धप ू , धप ू लगती थी पिले,
पिली बजर ललखज थज
तम ु करते िम को ककतनज ज़्यजदज प्यजर – ललखज थज
आर् प्यजर के सजगर में , िम कफर डूबे-उतरजये
आर् सजफ़ की अलमजरी, कुछ पि पुरजने पजये
पर, अब, मेघ, तरल लगते िैं
कफर क्रमशः वे पि पढे –
कहठन-कहठन सजरे प्रश्नों के,
र्ो तुम ने भेर्े अतसर
उत्तर सिर्-सरल लगते िैं एक तुम्िजरज सजथ तयज लमलज सपनों के भी दजम िो गये
अन्तर के मधम ु य कोर्ों में
नछपी िुईं मध-ु स्मनृ तयजाँ क्षर् की हदनकर के उगते िी उभरीं, स्वर्ा-रजश्मयजाँ आत्म-लमलन की एक तुम्िजरज सजथ तयज लमलज प्रेलमल आठों यजम िो गये
जर्न में से कुछ के तो अब तक िम न दे सके उत्तर
अजन्तम पि तुम्िजरज पजयज
र्ब तुम िुये परजये आर् सजफ़ की अलमजरी, कुछ पि पुरजने पजये जर्समें तुमने िमें ललखज थज अब िम तुम्िें भुलज दें
और तुम्िजरे पिों को िम रतखें निीं – र्लज दें
पर अपने िी हदल को कैसे रूपजन्तररत िुआ िै र्ीवन, अथा लमलज िै िर तलजश में सिर् िो रिी शब्द-सजधनज, भजतत-पर् ू ा पजवन उर्जस में
एक तम् ु िजरज सजथ तयज लमलज गीत-गीत अलभरजम िो गये
कोई आग लगजये आर् सजफ़ की अलमजरी, कुछ पि परु जने पजये
गीत डा. उसमटलेश
नीलकण्ठ ततवार
ढल न र्जये जज़न्दगी की शजम
बेच दो ईमजन तुम, दनु नयज की दौलत लूट लो
आओ प्यजर कर लें जज़न्दगी कज िै यिी पैगजम आओ प्यजर कर लें
मैं ग़रीबी में पजलज ईमजन केवल चजितज िूाँ तम ु धरज के फूल नभ के चजाँद-तजरे लट ू लो
मैं धरज की धल ू कज वरदजन केवल चजितज िूाँ
आर् ख़लु शयजाँ िैं उमङ्गें िैं, र्वजनी िै
ऐ ववर्ैली प्यजस वजलो! तम ु सदज प्यजसे रिोगे
आओ प्यजर करलें
मैं स्वयं र्लती चचतज िूाँ – आग अपनी िी वपयूाँगज
लसफ़ा तम ु िो और मैं िूाँ – रुत सि ु जनी िै कल न र्जने तयज लमले पररर्जम
तयज ख़बर कब वक़्त की सरगम बदल र्जये गन्ध र्न्मे रूप कज मौसम बदल र्जये इसललये अब छोड़ कर सब कजम आओ प्यजर करलें
खन ू तम ु इन्सजननयत कज िी सदज पीते रिोगे
मैं चचतज से चजाँदनी कज दजन केवल चजितज िूाँ चजहिये मेवज तुम्िें , तुम ढोंग सेवज कज रचजओ झूठ के बजज़जर में दक ू जन तुम अपनी सर्जओ बीन लो नतनके सभी तुम िर लससकती झोंपड़ी के
उलझनों के दौर आणख़र कम निीं िोंगे यजद भर िोगी िमजरी – िम निीं िोंगे मौत कर दे गी सपन नीलजम आओ प्यजर कर लें िोंठ पर र्ब-र्ब तुम्िजरज नजम िोतज िै और िजथों में सर्ीलज र्जम िोतज िै गीत गजते िैं उमर-ख़ैयजम आओ प्यजर कर लें प्यजर में यहद ददा के उत्सव निीं िोते तो कभी ववह्वल यिजाँ उद्धव निीं िोते तम ु बनो गोपी, बनाँू मैं श्यजम आओ प्यजर कर लें
मैं तो टैंकों में नछपज तूफ़जन केवल चजितज िूाँ तुम बुरे कजमों से मजाँगो भीख ऊाँचे नजम की
मरघटों में भी सर्जओ सेर् तुम आरजम की
रजख़ बन कर ककन्तु मैं तो मरघटों की खजक से प्रेम-मजन्दर कज नयज ननमजार् केवल चजितज िूाँ ननबालों की लजश पर तुम स्वजथा को नङ्गज नचजओ
और हदन के रतत से तम ु रजत अपनी र्गमगजओ
जर्न आाँसुओं से कृष्र् ने धोये सुदजमज के चरर् उन आाँसओ ु ं कज मैं सबल बललदजन केवल चजितज िूाँ
छन्द दोहे – बी. के. शमाट ‘शैद ’
दोहे – सुमन सर न
तुलसी पूर्े कजलमनी, कैसज शजन्त स्वभजव
र्ग में ढूाँढज प्रेम, तो, अब तक अचरर् िोय
कैसी िुई मिजवरी, उस कदम्ब की छजाँव र्ल में िोती के हिलें , माँिदी वजले पजाँव
तवजरे पन के रतर्गे, बिकी-बिकी बजत
वप्रयतम नयनों में बसे, र्ब िों पलकें बन्द
खजकी वदी दे ख कर, बौरजयज उन्मजद
र्ैसे – मोती सीप में ; कललयों में मकरन्द
जर्स हदन लौटज डजककयज, सजरज हदन बबजाद
लमलज पुरजने बतस में , आर् तुम्िजरज पि
पीपल के पत्ते बाँधी, चचट्ठी की सौगजत
यजदों की शिनजइयजाँ, गाँर् ू उठीं सवाि
भौर्ी करे हठठोललयजाँ, रिे लगजये गजत
अधरों पर ननश्छल िाँसी, तन की मजदक लोच
मिुये के रस से भरे , बड़े-बड़े दो नैन घुङ्घर वजले बजल ने, लट ू ज हदल कज चैन
रीनत-कजल कज रूप िै भजतत-कजल के भजव
तुलसी की चौपजइ में , कजललदजस की सोच
कजन्िज तो लजखों लमले, मीरज लमली न कोय
छत पर िजये भीगनज, सजरी सजरी रजत
िोली में लभर्वज हदयज, बैरी ने सन्दे श दोहे – सुशीला सशवराि
कफर तो फजगुन रूठ कर, र्ज पिुाँचज परदे श
दे ख ज़िर इंसजन कज, निीं नजग िी दं ग॥
इक कचनजरी आग में , तपे गुलजबी-गजल
चगरचगट भी िै रजन िैं, दे ख बदलते रं ग। मन की पीड़ज कज यिजाँ, कौन करे एिसजस। पत्थर की चट्टजन से व्यथा नमी की आस ॥ तन-मन से सींचज जर्से, उस बचगयज कज फूल। मज़दरू ी दे ने लगज, गयज भजवनज भूल॥
जर्सकी छजयज मे पली, पज कर शीत बयजर । उस िी तरू को खज गई, दीमक खरपतवजर॥ धन-दौलत की चजि में , भटके लोग तमजम। ववद्यज र्ैसज धन किजाँ, गरु ु पद र्ैसज धजम॥
ककस ने फेंकज िै भलज – ये सम्मोिन-र्जल लजल चड़ू ड़यों से बर्े, भरे -भरे दो िजथ
दो पल में िी िो गयज, र्ीवन भर कज सजथ
छन्द दोहे – शैलेन्र शमाट
सागर त्रत्रपाठी
मौसम के कोडे पडे , सूखज बेबस तजल और कुदजले पूछतीं अब कैसज िै िजल
थीं अपनी मर्बूररयजाँ , टूटे उम्र तमजम वनजा बि कर धजर संग िोते
शजललग्रजम
जर्नके कजरन नट बने करतब ककये िर्जर ननगल गयी वो रोहटयजाँ सपनों कज संसजर अधरो पर चचपकी रिे दे ढ इंच मुस्कजन ऐसे चेिरो से बचज मुझको दयजननधजन
िै ऐसी अनुभूनत कुछ , रोम-रोम प्रत्यंग
तडपे-उछले चगर पडे , ज्यो परकटज वविं ग दजवज करते नेि कज , ककंतु चभ ु ोते डंक
ररश्तो ने छोडज ककसे तयज रजर्ज तयज रं क ररश्तो के संसजर कज यि कैसज दस्तूर
ज्यो ज्यो घटती दरू रयजाँ , हदल से िोते दरू र्ो ररश्तज जर्तनज अचधक अपने रिज करीब
सवैया
गङ्गज में पजप धल ु ें र्ग के
पर पजवन नीर मलीन न िोगज कर्ा सज स्वर्ा लुटजतज रिे
पर दजनी कभी धनिीन न िोगज सौम्य-उदजर-ववनीत न िो धनवजन कभी वो कुलीन न िोगज स्नेि की गजगर से भररये कभी ‘सजगर’ ये र्लिीन न िोगज
र्डी उसी ने पीठ पर उतनी बडी सलीब
मुक्तक
अपनो ने िी िै हदयज कुछ ऐसज अपनत्व
प्रसव कज भजर तो बस मजाँ िी विन करती िै
मन मे खजरे लसन्धु सज, बढतज गयज घनत्व एक ककये जर्सके ललये घजटी और पिजड विी नीड लगतज कभी खद ु को र्ेल नतिजड गजाँव शिर मे आर्कल हदखते यिी चररि पोर पोर मे ववर् भरज ऊपर मिके इि उन ररश्तो से कीजर्ये , िर पल नछन अनुबन्ध जर्न ररश्तो से ववश्व मे फैले धप ू सुगन्ध
वक्ष में दग्ु ध कज लसिरजव सिन करती िै इक र्नजनी िी धरज पर िै धरोिर ऐसी
अपनी सन्तजन पे अजस्तत्व दिन करती िै भर दे हृदय के घजव वो मरिम ननकजललये िजरे -थके हदलों में बसे ग़म ननकजललये अब युद्ध की रर्-नीनत में बदलजव लजइये
रर्-दन्ु दभ ु ी से िो सके – सरगम ननकजललये सजगर त्रिपजठी – 9920052915
छन्द दोहे – नवीन सी. चतुवेद
सोरठे – नवीन सी. चतुवद े
घजटे कज सौदज रिज, बजररश कज व्यजपजर।
कन्यज कज कौमजया - उस कज िी जर्म्मज निीं।
गरर्े तो सौ-सौ र्लद, बरसे बस दो-चजर॥
सुनो गौर से आया! - ये िम पर भी फ़ज़ा िै ॥
इस दनु नयज को छोड़ कर, उस दनु नयज कज नजम।
िररक सजर कज सजर - दो बजतों में िै ननहित।
र्जने ककस ने रख हदयज, परम-धजम, सख ु -धजम॥
मधक ु र की मनि ु जर - और कली कज उन्नयन॥
विी िमजरी जज़न्दगी, और विी मजमल ू ।
सच पर निीं वववजद - ककन्तु झठ ू ये भी निीं।
न तो बजदलों कज वर्न, न िी धरे कुिसजर।
मछुआरों की नजव - र्ब डीर्ल पीने लगीं।
न तो ननम्न िै तम र्िजाँ, न िी प्रकजश मिजन।
भरते िैं आलजप - मन-मद ृ ड़्ग साँग िर सुबि।
अपने मन के गजाँव के, लसफ़ा यिी लसरमौर।
तयज बतलजऊाँ यजर - पिले िर हदन पवा थज।
अाँगनज, पौरी, दे िरी, बचपन वजले दौर।।
लेककन अब तो भजर - लगते िैं त्यौिजर भी॥
कफर बेशक़ तू भजड़ की, कमी चगनजनज लजख।
वो अपनज अवसजद - भलज भूलते ककस तरि।
अक्षर मेरज इष्ट िै , शजतत, शब्द-सन्धजन।
लड़्कज वजली पीर - कोई भी िरतज निीं।
गुर सीखे वजल्मीकक से, ये मेरी पहिचजन॥
ननष्कजसन के तीर - ले कर सब तैयजर िैं॥
तन-धजरी िोते सदज, तन के िी आसतत।
कैसे िोती बन्द - पुरखों की छे ड़ी बिस।
ज्यों तर कपड़े तजर पर चजट रिे िों धल ू ।।
लेककन पलकें ढो रिीं लजखों टन कज भजर॥
ऐसे इक दरबजर के िजकक़म िैं रिमजन॥
लेककन पिले भजड़ के भुने चने तो चजख।।
पूर् रिे आकजर को, ननरजकजर के भतत॥
िररश्चन्र के बजद - सत्यवजहदतज कम िुई॥
मत्स्य-मनस के घजव - हदन-दन ू े बढ़ने लगे॥
घोड़ों की पदचजप - बजयलसककल की घजण्टयजाँ॥
बजरि वर्ों बजद - जर्न को लजक्षजगि ृ लमलज॥
िम बोले मकरन्द - वो परजग पर अड़ पड़े॥
ग़ज़ल मह पाल
शैल चतुवेद
प्यजर कज दीप ककसी रजधज ने बजलज िोगज दरू मीरज पे गयज उस कज उर्जलज िोगज वो मिल की िो कथज यज कक व्यथज कुहटयज की उन्िीं र्ल-थल िुई आाँखों कज िवजलज िोगज तम ु ने कैसे ऐ मस ु म्मजत फटे आाँचल में दध ू और ददा कज सैलजब साँभजलज िोगज
फट गयज िोगज हिमजलय कज कलेज़ज घुट कर तब ककसी िुक ने गङ्गज को ननकजलज िोगज
चजाँद कज सौदज ककयज घर में अमजवस कर ली दोस्त! तयज चजाँद के टुकड़ों से उर्जलज िोगज
बुत की पजयल र्ो िसीं तुमने तरजशी ‘महिपजल’ उस में बर्ने कज गुमजाँ ककस तरि डजलज िोगज
अपनी-अपनी कजरस्तजनी किनज-सुननज िै बेमजनी मुखड़ज-मुखड़ज एक मुखौटज
आखर-आखर ग़लत-बयजनी महदरज-महदरज घूाँट ककसी को कोई पुकजरे पजनी-पजनी
रो कर पूछज – दे श किजाँ िै
िाँ स कर बोले – िम कज र्जनी िाँ सी बजाँटते र्ीवन बीतज िम से कौन बड़ज िै दजनी शब्द-शब्द से अथा ननकजलज अथा लमलज तो अक़्ल हिरजनी पररचय ‘शैल’ िमजरज इतनज उमर सयजनी – पीर पुरजनी
ग़ज़ल श्री हरर
दातनश भारती
ऐसे भततों की भीड़ आई िै सिमे-सिमे सभी नज़जरे िैं हठठकी-हठठकी सी सरयू की लिरें ख़ौफ़ खजये िुये ककनजरे िैं चजदरें रजम-नजम की ओढ़े दोस्त खञ्ज़र ललये पधजरे िैं दोस्ती के दरख़्त मरु झजये
िजथ में मुल्लज र्ी के आरे िैं इन की आवजज़ में भरी तल्ख़ी उन की तक़रीर में शरजरे िैं इस तरफ़ िैं घर् ृ ज के व्यजपजरी उस तरफ़ नफ़रतों के मजरे िैं
िर तरफ़ आाँचधयों कज आलम िै और गहदा श में सब लसतजरे िैं भूल कर भी न लोग किते िैं तुम िमजरे िो िम िमजरे िैं
वो भली थी, यज बुरी, अच्छी लगी
जज़न्दगी, र्ैसी लमली, अच्छी लगी बोझ हदल कज, घल ु के सजरज, बि गयज आंसओ ु ं की वो नदी अच्छी लगी
चजंदनी कज लत्ु फ़ भी तब लमल सकज र्ब चमकती धप ू भी अच्छी लगी
र्जग उट्ठी ख़द ु से लमलने की लगन आर् अपनी बेखद ु ी अच्छी लगी
सबको, सब कुछ तो कभी लमलतज निीं इसललए थोड़ी कमी अच्छी लगी दोस्तों की बेननयजज़ी दे ख कर दश्ु मनों की बेरुखी अच्छी लगी आ गयज अब र्ूझनज िजलजत से वक़्त की पेचीदगी अच्छी लगी
ज़िन में 'दजननश' उर्जलज छज गयज इल्मो-फ़न की रोशनी अच्छी लगी
ग़ज़ल मेराज़ फैज़ाबाद
तेरे बजरे में र्ब सोचज निीं थज मैं तन्िज थज मगर इतनज निीं थज तेरी तस्वीर से करतज थज बजतें मेरे कमरे में आईनज निीं थज
ररश्तों की किकशजं सरे बजज़जर बेचकर घर को बचज ललयज दर-ओ -दीवजर बेचकर शोिरत की भूख िमको किजाँ लेके आ गयी िम मुितरम िुए भी तो ककरदजर बेचकर
वो शख्स सूरमज िै ..मगर बजप भी तो िै रोटी खरीद लजयज िै तलवजर बेचकर
जर्सके क़लम ने मद् ु दतों बोए िैं इन्क़लजब अब पेट पजलतज िै वो अख़बजर बेचकर
अब चजिे र्ो सुलूक़ करे आपकज ये शिर िम गजाँव से तो आ गये घर बजर बेचकर
समन्दर ने मझ ु े प्यजसज िी रखज
मैं र्ब सिरज में थज प्यजसज निीं थज वो जर्सने तोड़ दी सजंसों की र्न्र्ीर वि थज मर्बरू दीवजनज निीं थज मनजने रूठने के खेल में िम त्रबछड़ र्जयेंगे मैं यि सोचज निीं थज सुनज िै बन्द कर ली उसने ऑ ंखें कई रजतों से वि सोयज निीं थज
गुज़र र्ज इस तरि दनु नयज से मेरजर् कक र्ैसे तू यिजाँ आयज निीं थज
िम ग़ज़ल में तेरज चचजा निीं िोने दे ते तेरी यजदों को भी रुसवज निीं िोने दे ते कुछ तो िम खद ु भी निीं चजिते शुिरत अपनी और कुछ लोग भी ऐसज निीं िोने दे ते
अज़मतें अपने चरजगों की बचजने के ललए
िम ककसी घर में उर्जलज निीं िोने दे ते
आर् भी गजाँव में कुछ कच्चे मकजनों वजले घर में िमसजये के फ़जक़ज निीं िोने दे ते जज़क्र करते िैं तेरज नजम निीं लेते िैं िम समन्दर को र्ज़ीरज निीं िोने दे ते मुझको थकने निीं दे तज ये ज़रूरत कज पिजड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ज निीं िोने दे ते
ककसी से यूाँ भी कभी रस्मो रजि िो र्जये
कक अपने आप से लमलनज गुनजि िो र्जये तअल्लुक़जत की इस दजस्तजाँ को तूल न दे यिी बिुत िै कक दो हदन ननबजि िो र्जये वि जर्सने तेरी मुिब्बत खरीद ली र्जनजाँ खद ु ज करे कक विी बजदशजि िो र्जये
सब ु त ू िम से िमजरी वफ़ज कज र्ब मजंगे
तो उसकज हदल िी िमजरज गवजि िो र्जये बलजन्दयों पे नज़र आ रिे िैं कुछ बौने
अर्ब निीं कक ये दनु नयज तबजि िो र्जय
जज़न्दगी में र्ो ग़म निीं िोतज
ग़ज़ल नीरर् गोस्वजमी 9860211911
समझेगज दीवजनज तयज बस्ती तयज वीरजनज तयज ज़ब्त करो तो बजत बने िर पल िी छलकजनज तयज िजर गए तो िजर गए इस में यूाँ झल्लजनज तयज दश्ु मन को पिचजनोगे ?
अपनों को पिचजनज तयज
नजम रब कज अिम ् निीं िोतज तझ ु में बस तू बचज िै मझ ु में मैं अब के ररश्तों में िम निीं िोतज
क़त्ल अब खेल बन गयज तयूाँ की सर सज़ज में कलम निीं िोतज दोस्ती िो के दश्ु मनी इसमें
यजर कोई ननयम निीं िोतज रोहटयों के लसवज ग़रीबों कज और कुछ भी इरम निीं िोतज आप मुड़ कर न दे खते तो िमें प्यजर िै , ये भरम निीं िोतज
चीखतज िै विी सदज " नीरर्"
जर्सकी बजतों में दम निीं िोतज
दःु ख से सुख में लज्ज़त िै
त्रबन दःु ख के सुख पजनज तयज ? इसकज खजली िव्वज िै दनु नयज से घबरजनज तयज फूलों की तरिज झररये
पत्तों सज झड़ र्जनज तयज ककसने ककतने घजव हदये छोडो भी, चगनवजनज तयज 'नीरर्' सुलझजनज सीखो
मद् ु दों को उलझजनज तयज
बंद रणखए तो इक अाँधेरज िै खोललए आाँख तो सवेरज िै सजाँप यजदों के छोड़ दे तज िै शजम कज वतत वो साँपेरज िै फ़जसलज इक बिुत र्रूरी िै यजर के भेर् में बघेरज िै तजर्पोशी उसी की िोनी िै मुल्क में र्ो बड़ज लुटेरज िै मरिलज िै सरजयफजनी ये चजर हदन कज यिजाँ बसेरज िै रूि बेरंग तयों नज िो सजिब िर कोई जर्स्म कज चचतेरज िै शजम दर पे खड़ी िै ऐ नीरर् अब समेटो जर्से त्रबखेरज िै
पवन कुमजर
9412290079 तम् ु िें पजने की धुन इस हदलको अतसर यूाँ सतजती िै बाँधी मट् ु ठी में र्ैसे कोई नततली फड़फड़जती िै
चिक उठतज िै हदन और शजम नगमे गन ु गन ु जती िै तम् ु िजरे पजस आतज िूाँ तो िर शय मस ु कुरजती िै
मझ ु े ये जज़न्दगी अपनी तरफ़ कुछ यूाँ बल ु जती िै ककसी मेले में क़ुलफ़ी र्ैसे बच्चों को लभ ु जती िै विी बेरङ्ग सी सब्ु िें , विी बे-क़ैफ़ सी शजमें
मझ ु े तू मस् ु तकक़ल ऐ जज़न्दगी तयूाँ आर्मजती िै क़बीलों की रवजयत, बजन्दशें, तफ़रीक़ नस्लों की मि ु ब्बत इन झमेलों में पड़े तो िजर र्जती िै
ककसी मजु श्कल में वो तजक़त किजाँ र्ो रजसतज रोके
मैं र्ब घर से ननकलतज िूाँ तो मजाँ टीकज लगजती िै
ज़रज सी चोट को मिसस ू करके टूट र्जते िैं सलजमत आईने रिते िैं चेिरे टूट र्जते िैं
पनपते िैं यिजाँ ररश्ते हिर्जबों एिनतयजतों में बिुत बेबजक िोते िैं तो ररश्ते टूट र्जते िैं
हदखजते िैं निीं र्ो मद् ु दतों नतश्नजलबी अपनी सब ु ू के सजमने आकर वो प्यजसे टूट र्जते िैं
ककसी कमर्ोर की मज़बत ू से चजित यिी दे गी कक मौर्ें लसफ़ा छूती िैं ,ककनजरे टूट र्जते िैं
यिी इक आणखरी सच िै र्ो िर ररश्ते पे चस्पज िै र्रूरत के समय अतसर भरोसे टूट र्जते िैं
गज़ ु जररश अब बज़ ु ुगों से यिी करनज मन ु जलसब िै जज़यजदज िो र्ो उम्मीदें तो बच्चे टूट र्जते िैं
अणखल रजर् 9827344864
न र्जने ककस तरि कज क़ज़ा वजजर्ब थज बज़ ु ुगों पर िमजरी नस्ल जर्स की आर् तक कक़स्तें चक ु जती िै िवजलज दे के त्यौिजरों कज, रस्मों कज, रवजज़ों कज अभी तक गजाँव की लमट्टी इशजरों से बल ु जती िै
र्िजं िमेशज समंदर ने मेिरबजनी की
उसी ज़मीन पे ककल्लत िै आर् पजनी की
उदजस रजत की चौखट पे मत ुं जज़र आाँखें
िमजरे नजम मि ु ब्बत ने ये ननशजनी की
तम् ु िजरे शिर में ककस तरि जर्ंदगी गज़ ु रे
यिजाँ कमी िै तबस्सम ु की ,शजदमजनी की ये भल ू र्जऊं तम् ु िें सोच भी निीं सकतज
तम् ु िजरे सजथ र्ुड़ी िै कड़ी किजनी की उसे बतजये त्रबनज उम्र भर रिे उसके
ककसी ने ऐसे मि ु ब्बत की पजसबजनी की
रूई डजल के सोये िो तयज कजनों में सरू र् चीख रिज िै रौशन-दजनों में इन कज बजप तो सर पे तजर् पिनतज थज और ये बजली पिन रिे िैं कजनों में बजप िमेशज दीन की बजतें करतज िै बेटज गम ु रितज िै कफल्मी गजनों में शह्र में उस को ढूाँढ रिज िै पजगल तू ख़जमोशी रिती िै कत्रब्रस्तजनों में
िम ने तेरे इश्क़ में अपनी र्जाँ दी िै नजम िमजरज भी ललखनज दीवजनों में भूख-ग़रीबी-बेकजरी में जज़न्दज िैं
अज़्म िमजरज दे खो इन तूफ़जनों में
खल ु ती िी निीं आाँख उर्जलों के भरम से
ग़ज़ल
शबरं ग िुआ र्जउाँ मैं सूरर् के करम से
मयङ्क अवस्थी
तरकीब यिी िै उसे फूलों से ढकज र्जय
सच ये िै कक डरतज िूाँ मैं पत्थर के सनम से इक झील सरीखी िै गज़ल दश्ते-अदब में र्ो दरू थी, र्ो दरू रिी, दरू िै
िम से
आणखर ये खल ु ज वो सभी तजजज़र थे ग़िु र के जर्नके भी मरजलसम थे मेरे दीदज-ए-नम से नींदों के घर में घस ु के चक ु जये हिसजब सब
सजक़ी के लसवज और उसे यजद निीं कुछ
इक धन् ु ध ने सिर को किजनी बनज हदयज
ये मेरे तख़ल्लुस कज असर मुझ पे िुआ िै अब यजद निीं अपनज मुझे नजम कसम से
बेदजररयों ने तोड़ हदये ख़्वजब –वजब सब
मिफूज़ अब तलक िैं लसयजिी के बजब सब
तयों ररन्द की ननस्बत िो तेरे दै रो-िरम से
तनिजइयों में ऊब रिी िै मशीनगन र्जने किजाँ फरजर िुये इंकलजब सब तयों चजर हदन के िब्स से बैचन ै िो लमयजाँ बरसेगज अभी आसमजाँ कज इजज़्तरजब सब
सुख़ा फूलों सी मेरी नज़्म की तस्वीर िुई मेरी िस्ती मेरे र्ज़्बजत की र्जगीर िुई
इस मजदरे - चमन की लसयजसत पे वजर र्जऊाँ
तूर पे बक़ा र्ो चमकी तो गनीमत ये रिी
पंर्े में फजख़्तज के दबे िैं उकजब सब उड़ र्जयेंगे ये िोश ककसी रोज़ आणखरश रि र्जयेगी धरी की धरी आबोतजब सब िो बेतकल्लुफी,
कक तककल्लुफ की शक़्ल में
आते िै मिकफलों में पिन कर नकजब सब
एक लम्िज िी मेरे ख़्वजब की तजबीर िुई
सब थे खश ु रं ग ललबजसों में बरिनज लेककन कोई शै जर्स्म पिनकर िी मिजवीर िुई
उसको पिचजन के तस्वीर र्लज दी उसकी चश्मे-बेदजर मेरे ख़्वजब को शमशीर िुई डूबतज छोड़ के सरू र् को लसयजिी में मयंक रौशनी चजाँद लसतजरों की बगलगीर िुई
कोई दस्तक कोई ठोकर निीं िै तुम्िजरे हदल में शजयद दर निीं िै
बचपन में इस दरख़्त पे कैसज लसतम िुआ र्ो शजख़ इसकी मजाँ थी विजाँ से कलम िुआ
उसे इस दश्त में तयज ख़ौफ़ िोगज
मुंलसफ िो यज गवजि
वो अपने जर्स्म में िोकर निीं िै
, मनजयेंगे अपनी ख़ैर
गर फैसलज अनज से लमरी कुछ भी कम िुआ
इसे लजनत समणझये आइनों पर
इक
रोशनी
ककसी के िजथ में पत्थर निीं िै
तयाँू
आसमजाँ कज नरू घटजओं में ज़म िुआ
तेरी दस्तजर तझ ु को ढो रिी िै
र्ठ ू े
िैं लब
ये दनु नयज असमजाँ में उड़ रिी िै
यकलख्त आ के आर् वो मुझसे ललपट गयज
तेरे कजाँधों पे तेरज सर निीं िै
ये लगती िै मगर बेपर निीं िै
र्ो बदनसीब
तड़प के ये किती
िै बजरिज
नतरे ये उसे कुछ ख़बर निीं शख़्स
तम् ु िजरज ख़सम िुआ
र्ो फजसलज हदलों में थज अश्कों में ज़म िुआ
लमयजाँ कुछ रूि डजलो शजयरी में अभी मंज़र पसेमंज़र निीं िै
इक चजाँद तीरगी में समर रोशनी कज थज कफर भेद खल ु गयज वो भाँवर रोशनी कज थज सूरर् पे तूने आाँख तरे री थी , यजद कर
बीनजइयों पे कफर र्ो असर रोशनी कज थज सब चजाँदनी ककसी की इनजयत थी चजाँद पर
लमयजाँ मर्बूररयों कज रब्त अतसर टूट र्जतज िै
वफ़जयें ग़र न िों बुननयजद मे , घर टूट र्जतज िै लशनजवर को कोई दलदल निीं दररयज हदयज र्जये
र्िजाँ कमज़फा बैठे िों सख ु नवर टूट र्जतज िै
अनज खुद्दजर की रखती िै उसकज सर बल ु न्दी पर
ककसी पोरस के आगे िर लसकन्दर टूट र्जतज िै
उस दजग़दजर शै पे कवर रोशनी कज थज
िम अपने दोस्तो के तंज़ सुनकर मुस्कुरजते िैं
मग़ररब की मदभरी िुई रजतों में खो गयज इस घर में कोई लख़्ते –जर्गर रोशनी कज थज
मेरे दश्ु मन के र्ो िजलजत िैं उनसे ये ज़जहिर िै
दररयज में उसने डूब के कर ली िै खद ु कुशी
जर्स शै कज आसमजाँ पे सफर रोशनी कज थज र्रे को आफतजब बनजयज थज िमने और धरती पे किर शजमो-सिर रोशनी कज थज
मगर उस वतत कुछ अन्दर िी अन्दर टूट र्जतज िै
कक अब शीशे से टकरजने पे पत्थर टूट र्जतज िै संर्ो रतखी िैं हदल में कीमती यजदें मगर कफर भी
बस इक नजज़क ु सी ठोकर से ये लॉकर टूट र्जतज िै
ककनजरे पर निीं ऐ दोस्त मैं खद ु िी ककनजरज िूाँ मझ ु े छूने की कोलशश में समन्दर टूट र्जतज िै मयङ्क अवस्थी – 8765213905
इरशाद ख़ान ससकिंदर
तककये कज िजल दे खके लगतज िै रजतभर सब आाँसुओं ने ख़्वजब की बरसी मनजई िै र्बसे सन ु ज कक इश्क़ नतर्जरत मफ़ ु ीद िै
िमने भी हदल हदमजग़ की पाँर् ू ी लगजई िै
रूि से तोड़के सबने बदन से र्ोड़ हदयज ररश्तज-ए-इश्क़ के धजगे को धन से र्ोड़ हदयज िै लमरज कजम मुिब्बत की पैरवी करनज
र्बसे इक चजाँद ने मुझको ककरन से र्ोड़ हदयज मैं उसे ओढ़के कफरतज थज दश्त भर लोगो तयों लमरज जर्स्म ककसी पैरिन से र्ोड़ हदयज वक़्त ने तोड़ हदयज थज मगर तअज्र्ुब िै
आपने हदल को लमरे इक छुअन से र्ोड़ हदयज मेरी ग़ज़लों ने मि ु ब्बत की नींव रतखी िै
बेवतन र्ो थज उसे भी वतन से र्ोड़ हदयज शह्र के लोगों को ये बजत नजगवजर लगी गजाँव कज ददा भी िमने सुख़न से र्ोड़ हदयज अब तो लजजज़म िै लसयजसत के कुछ िुनर सीखें शजि ने िमको भी इक अंर्म ु न से र्ोड़ हदयज कल रजत पूरी रजत नतरी यजद आई िै
र्जनजाँ ये मेरे इश्क़ की पिली कमजई िै
शजइस्तगी बनी िी लमरे ख़जनदजन से लिर्े में ये लमठजस बुज़ुगों से आई िै इक पल भी इस र्िजन से ननभनी मि ु जल थी िमने ककसी के इश्क़ में र्ग से ननभजई िै
तस्वीर कज ये रुख भी ‘लसकन्द’ िै तयज अर्ब र्ब रं ग उड़ गयज तो ग़ज़ल रं ग लजई िै
तेरे अल्फ़जज़ के पत्थर लमरे सीने पे लगे मेरे अिसजस के टुकड़े लमरे चेिरे पे लगे िमने उनको भी कलेर्े से लगज रतखज िै संग र्ो भी िमें मिबूब के सर्दे पे लगे इतनज सन ु ने से तो अच्छज थज कक मर िी र्जतज मेरी आवजज़ पे पिरे नतरे किने पे लगे
मैं नतरे इश्क़ में ऐसज िूाँ तो ऐसज िी सिी लगे इलज़जम अगर तौर तरीक़े पे लगे इश्क़ ने तेरी बिजली की त्रबनज रतखी िै दे णखयो! कोई न धब्बज नतरे ओिदे पे लगे
मैं इन हदनों िूाँ हिज्र की लज़्ज़त में मब्ु तलज इक उम्र कजम करके ये तनख़्वजि पजई िै
इससे पिले तो ज़मीं थी, वो फ़लक थज, हदल थज
िजजज़र िूाँ अपने हदल की मैं खजतज-बिी के सजथ ये मैं िूाँ और ले ये नतरी पजई-पजई िै
तयज नज़जरज थज गले आर् लगे वो ऐसे
ख़जररर् लसरे से कर हदयज सबकी दलील को
वो तो िम थे र्ो कभी आि तयज उफ़ तक भी न की
ये तो दीवजर से िम आपके आने पे लगे
र्ैसे र्ुमलज कोई आकर ककसी र्ुमले पे लगे
र्ब भी चलजई इश्क़ ने अपनी चलजई िै
र्ब कक सब तीर नतरे सीधे कलेर्े पे लगे
इरशजद खजन लसकन्दर – 9818354784
टस से मस भी र्ो िुआ मैं तो ‘लसकंदर’ कैसज लजख कैंची लमरे मज़बत ू इरजदे पे लगे
नवीन सी. चतुवेद
कक़तआ…………………………………
वेद-परु जर् और उपननर्दों कज पीछज कर के
िो न िो रोर् को अनुरजग बिुत थज मुझ से
िजाँ र्ी! िमने शेर किे िैं - चरबज कर के
भव-सजगर के तट-बन्धों से ककनजरज कर के
कब कज सब कुछ त्यजग चक ु े िम, दजवज कर के
सोच बदलाँ ू तो बदल र्जतज िै सजरज मञ्ज़र
बख़्शनी थी उन्िें दनु नयज को नयी तज़े-िुनर शजयद इस वजस्ते मजाँगज िो अाँगूठज मुझ से
ककसी ने िम को मआ ु फ़ ककयज और ये समझजयज िजथ निीं लगनज कुछ भी, मन मैलज कर के
जर्न कज र्लवज िै, वोि तो छुप कर बैठी िैं
भर दप ु िरी में किज करतज िै सजयज मझ ु से
डजल और पत्ते झूम रिे िैं - सजयज कर के
धप ू से तङ्ग िूाँ कुछ दे र ललपट र्ज मझ ु से
दे ख के तम ु को िम तयों बन्द करें गे आाँखें
आर् की रजत मुझे पेश करोगे ककस को
िम तो उर्जले ढूाँढ रिे थे, अाँधेरज कर के
दनु नयज के माँि ु लगने कज अञ्ज़जम िुआ यि उलटज पजठ पढ़ज डजलज िै - सीधज कर के िर कजिू की णख़दमत िम से िो न सकेगी चजकर िैं िम रजधजरजनी के चजकर के
शजम ढलते िी ख़मोशी ने ये पूछज मुझ से तेरे कजम आ के इसे चैन लमलेगज शजयद आ मेरी र्जन! मेरी र्जन को ले र्ज मुझ से पिले मजमूल की मजननन्द झगड़ते थे िम
अबतो कुछ भी निीं किती लमरी बिनज मुझ से ककस से लमलते िो किजाँ र्जते िो तयज करते िो
फ़ुर्ूल चल ु बुले र्ुमलों की ओर तयों ले र्जऊाँ
ग़ज़ल को लसफ़ा लतीफ़ों की ओर तयों ले र्जऊाँ ग़ज़ल की रूि ज़मजनों की प्यजस ढोती िै परजई प्यजस वपयजलों की ओर तयों ले र्जऊाँ निीं ये बजत निीं िै कक भीड़ से िै गुरेज़
मगर तलजश तमजशों की ओर तयों ले र्जऊाँ न र्ी भरज िै सफ़र से न िी थकज िै बदन अभी से नजव ककनजरों की ओर तयों ले र्जऊाँ जर्रि के मोड़ कई रजसते सझ ु जते िैं
अभी से बह्स नतीज़ों की ओर तयों ले र्जऊाँ
कजश ये पूछते रिते लमरे पजपज मुझ से मैं न िजककम, न िुकूमत, न िवजलज, न िुर्ूम तयों सवजलजत ककयज करती िै दनु नयज मझ ु से विशतों ने र्िजाँ विमों की वकजलत की थी पछ ू ते रिते िैं लम्िे वो हठकजनज मझ ु से दे नज िोगज तुझे एक-एक ज़मजने कज हिसजब विशते-इश्क़ तू आइन्द: उलझनज मुझ से चल ु बुले शेर िसीनों की तरि िोते िैं
और िसीनजओं को रखनज निीं ररश्तज मुझ से
आञ्चसलक गजलें
इरशाद खान ससकन्दर खेते ईंट उगजवल छोड़ज
भोजपुर गजल - पवन श्रीवास्तव
धरती के तड़पजवल छोड़ज
Mob.09471237644
उल्टज-सीधज पजठ पढ़ज के पहिले त भरमजवल र्जई
आधी रजत के खोंखी आई
नज मननिें त सोंटज लेके बबुआ के सरीआवल र्जई .
साँझवे से मुंि बजवल छोड़ज
गमा लमर्जर्न के गमी के सपनज से सेरवजवल र्जई
र्ून र्मजनज गइल ऊ कजकज
झठ सजाँच में आाँच लगजवल र्जई ू के इंधन बजरके बबआ ु अब्बर दे बी र्ब्बर बोकज ,सजंकल पंड़डत ,बिकल पूर्ज अबकी बोकज के बेदी पर दे बी-मुंड चढ़जवल र्जई
र्बतक उनकर तेल र्रत बज सगरी गजाँव अाँर्ोर भइल बज बजकक र्हियज उ णखलसअहिएाँ ,कइसे दीप
र्रजवल र्जई ?
तूाँिूाँ चेत$ " पवन’’ कक लगले अब खतरज के घंटी बजर्ी
लइकन के गररयजवल छोड़ज
बजत समझ में आवत नइखे बेसी बजत बनजवल छोड़ज कजम अचधक बज छोट ि जर्नकी र्जाँगर तू लुकवजवल छोड़ज
आणखर ई कब तक ले-दे के आपन कजम चलजवल र्जई
भाँइस के आगे बीन बर्जके रुसल रजग मनजईं कईसे
आपन गुन झलकजवल छोड़ज
प्रेम के चगनतयज गजईं कईसे िम सजवन के बजदर नइखीं लिकत गजाँव बुतजईं कईसे मजरू बजर्ज बजर् रिल बज धीरे िम
बनतआईं कईसे
र्ेकरज मनत में भजाँग परल बज ओकरज के समझजईं कईसे दे बी दे वतज सुनते नइखन रजछस से बनतयजईं कईसे
पजर पिजड़न के मंजर्ल बज अतनज सजाँस र्ट ु जईं कईसे बोललज में खतरज बज ,बजकी जर्लभयज के समझजईं कईसे
छूटल आपन दे स ववधजतज
गजाँव भइल परदे स ववधजतज केिू रजि ननिजरत िोई
लजगी हदल पर ठे स ववधजतज र्ोित र्ोित आाँख गइल अब कब आई सन्दे स ववधजतज उखड़ल उखड़ल मुखड़ज सबके कजिे त्रबखरल केस ववधजतज
चररये हदन में खब ू दे खवलस जर्नगी आपन टे स ववधजतज ओिी खजनतर धइले बजनी र्ोगी के ई भेस ववधजतज
दे वेन्र गौतम
08527149133
सब से पीछे खड़ज अिें र्ो उन के कछु दरकजर भी िोये फतकड़ बौडम भलें लगें ये इन कै घर पररवजर भी िोये सच सल ू ी पे लटकजवज बज
मन में नेि के तजर बिुत बज ई नहदयज में धजर बिुत बज तननको चक ू के मौकज नइखे
खलु ल के अत्यजचजर भी िोये रजम इिीं से उतरे 'सजगर' अपनौ बेड़ज पजर भी िोये
गदा न पर तलवजर बिुत बज सौ एके छप्पन के आगे पचो भर अख़बजर बिुत बज
चन्द अशआर सङ्कलन कताट – दहरे न पोपट
के अब केकर दःु ख बजाँटेलज
आपस के व्यविजर बिुत बज लमल र्जए त कम मत बुणझि चट ु की भर संसजर बिुत बज
शब ्-ए-ववसजल िै गुल कर दो इन चरजगों को
कजिें गजाँव से भजगत बज’ड़
- मोलमन खजाँ मोलमन
गजाँव में कजरोबजर बिुत बज
ख़श ु ी की बज़्म में तयज कजम र्लनें वजलों कज !
मैंने इस डर से लगजयें निीं ख़्वजबो के दरख़्त कौन र्ंगल में उगेँ पेड़ को पजनी दे गज !
अवधी गर्ल – सजगर त्रिपजठी
- दजरजब बजनो वफ़ज
रजनत भ तौ लभनसजर भी िोये
रतर्गे, ख्वजब-ए-परीशजाँ से किीं बेितर िै ,
कर्री भै उजर्यजर भी िोये
लरज़ उठतज िूाँ अगर आाँख ज़रज लगती िै । - अिमद फ़रजज़
दे खज हियजाँ गुलजब णखलज बज
इिीं कतौ कफर खजर भी िोये नदी इिजाँ ठिरी-ठिरी बज लख्यज इिीं घररयजर भी िोये
ककतनी मजसूम सी तमन्नज िै ...
नजम अपनज तेरी ज़बजं से सन ु ाँ.ू .. - शिरयजर
जर्स ख़त पे ये लगजई उसी कज लमलज र्वजब ...
णखलोने पज ललये मैंने लेककन,
इक मोिर मेरे पजस िै दश्ु मन के नजम की...
मेरे अंदर कज बच्चज मर रिज िै ।
- दजग दिे लवी
- परवीन शजककर
सोचो तो लसलवटों से भरी िै तमजम रूि
नई सुब्ि पर नज़र िै मगर आि ये भी डर िै
दे खो तो इक लशकन भी निीं िै ललबजस में - शकेब र्लजली
ये सिर भी रफ़्तज-रफ़्तज किीं शजम तक न पिुाँचे - शकील बदजयन ू ी
कजबे र्जने से निीं कुछ शेख़ मझ ु को इतनज
नज र्जने शजख से कब टूट र्जये
शौक़
चजल वो बतलज कक मैं हदल में ककसी के घर करूाँ
- मीर तक़ी 'मीर
वो फूलों कक तरि िाँ सतज बिुत िै - नस ु रत बर िर शख़् दौड़तज िै यिजाँ भीड़ की तरफ कफर यि भी चजितज िै , उसे रजस्तज लमले
रजत तो वक़्त की पजबंद िै ढल र्जएगी
- वसीम बरे लवी
दे खनज ये िै चरजग़ों कज सफ़र ककतनज िै - वसीम बरे लवी
ककसी को र्ब लमलज कीर्े सदज िाँ स कर लमलज
कफ़क्र यि थी के शब ् ए हिज्र कटे गी तयूाँ कर,
उदजस आाँखों को अतसर लोग र्ल्दी भूल र्जते
- नजलसर कजज़मी
- ए.एफ.'नज़र'
भूले िै रफ़्तज-रफ़्तज उन्िें मुद्दतों में िम
िर वफ़ज एक र्ुमा िो गोयज
- खम ु जर बजरजबंकवी
- सुदशान फ़जककर
लुत्फ़ यि िै के िमें यजद न आयज कोई
ककश्तों में ख़द ु कुशी कज मज़ज िमसे पूनछए
कीर्े िैं
दोस्त कुछ ऐसी बेरुख़ी से लमले
# हिरे न पोपट 9824203330
मस्तानी यादें
रजर्ू भजई िमजरे बचपन के सजथी िैं। मथरु ज से ले कर मम् ु बई तक उन्िों ने अनेक बजर यि कववतज
सन ु जई िोगी िमें । बिुत प्यजरी कववतज िै । ककस की िै ? यि उन्िें निीं पतज – मगर बड़े िी मस्तजने अंदजज़ में सन ु जते िैं। आप भी पहढ़ये एक हदन मैं बजलूसजई की सड़क पर दौड़ लगज रिज थज आगे बढ़ज मुझे शबात की नदी लमली उस में
समोसे की नजव तैर रिी थी उस में बैठ कर मैं ने नदी पजर की आगे बढ़ज तो मुझे लमश्री कज मिल हदखजई पड़ज उस की छत पर बाँद ू ी के लड्डू
तोप तजने िुये खड़े थे मैं अन्दर गयज तो मुझे तयज हदखजई हदयज कक इमरती रजनी
चमचम कज तककयज लगजये ववश्रजम कर रिी थीं उन्िों ने र्ैसे िी मझ ु े दे खज
बाँद ू ी के लड्डुओं वजली सेनज बल ु वजई और उस के िजथों मझ ु े उठवज कर
रबड़ी की दलदल में कफकवज हदयज और मुझ पे
रसगुल्लों को तोपगोले दजगे र्जने लगे बस तभी
आाँख खल ु गयी
बड़ज िी मीठज सपनज थज यजर
प्रयोग - नव किंु डसलया 'राज' छिं द
लमिो
!
'नव कंु डललयज 'रजर्' छं द' , छं द शजस्ि और सजहित्य-क्षेि में मेरज एक अलभनव प्रयोग िै | इस छं द की
रचनज करते िुए मैंने इसे १६-१६ मजिजओं के ६ चरर्ों में बजाँधज िै , जर्सके िर चरर् में ८ मजिजओं के उपरजंत सजमजन्यतः (कुछ अपवजदों को छोडकर ) आयी 'यनत' इसे गनत प्रदजन करती िै | परू े छं द के ६ चरर्ों में ९६ मजिजओं कज समजवेश ककयज गयज िै |
'नव कंु डललयज 'रजर्' छं द' की एक ववशेर्तज यि भी िै कक इसके प्रथम चरर् के प्रजरजम्भक 'कुछ शब्द' इसी छं द के अंनतम चरर् के अंत में पन ु ः प्रकट िोते िैं | यज इसकज प्रथम चरर् पलटी खजकर छं द कज अंनतम चरर् भी बन सकतज िै |
छं द की दस ू री ववशेर्तज यि िै कक इस छं द के प्रत्येक चरर् के 'कुछ अंनतम शब्द ' उससे आगे आने वजले चरर् के प्रजरम्भ में शोभजयमजन िोकर चरर् के कथ्य को ओर्स बनजते िैं | शब्दों के इस प्रकजर
के दिु रजव कज यि क्रम सम्पूर्ा छं द के िर चरर् में पररलक्षक्षत िोतज िै | इस प्रकजर यि छं द 'नव कंु डललयज 'रजर्' छं द' बन र्जतज िै |
'नव कंु डललयज 'रजर्' छं द' में मेरज उपनजम 'रजर् ' िो सकतज िै बिुत से पजठकों के ललये एतरजर् कज ववर्य बन र्जए यज ककसी को इसमें मेरज अिं कजर नज़र आये | इसके ललये ववचजर-ववमशा के सजरे रजस्ते खुले िैं |
'नव कंु डललयज 'रजर्' छं द' पर आपकी प्रनतकक्रयजओं कज मकरं द इसे ओर्स बनजने में सिजयक लसद्ध िोगज | --
----रमेश रजर्
कवव की कववतज में खल बोले खल बोले, ववर् र्ैसज घोले घोले सिमनत में कड़वजिट कड़वजिट से आये संकट संकट में सजाँसें र्न-र्न की र्न की पीड़ज रिी न कवव की |
--रमेश राज --
प्रयास – कववता कोष
कववतज कोश भजरतीय भजर्जओं के कजव्य कज सवाप्रथम और सबसे ववशजल ऑनलजइन ववश्वकोश िै । र्ल ु जई
2006 में प्रजरम्भ िुई इस ऐनतिजलसक पररयोर्नज ने अन्य कई पररयोर्नजओं के ललए भी प्रेरर्ज कज कजम ककयज िै । कववतज कोश के बजद सजहिजत्यक कोश बनजने के कई प्रयजस आरम्भ िुए िैं। सरकजरी व ननर्ी संस्थजओं द्वजरज इन नई पररयोर्नजओं को आचथाक व अन्य सभी तरि के संसजधन उपलब्ध करजए गए िैं। कववतज कोश की खब ू ी िै कक यि आरम्भ से िी स्वयंसेवज पर आधजररत पररयोर्नज रिी िै । कववतज कोश
को यिजाँ तक पिुाँचजने और एक रजष्रीय धरोिर बनजने में बिुत-से व्यजततयों ने श्रमदजन हदयज और हदनरजत ननस्वजथा कजया ककयज िै । इन लोगों को अपनी अथक मेिनत कज कोई वेतन निीं लमलतज लेककन इसके बजवर्ूद िमजरज यि प्रयजस निीं रुकज। मैंने वपछले वर्ों के दौरजन कई ऐसी असजधजरर् घटनजएाँ दे खी िैं र्ो इस कोश के प्रनत लोगों के अपजर
स्नेि और कहटबद्धतज को दशजाती िैं। स्कूल र्जने वजले एक ववद्यजथी ने एक बजर अपनी पॉकेट-मनी दे ने
कज प्रस्तजव रखज तजकक कववतज कोश को कुछ आचथाक सिजयतज लमल सके। िमजरे योगदजनकतजाओं के पजस
कजम करने के ललए कम्प्यूटर निीं थज तो उन्िोनें दोस्तों / ररश्तेदजरों से रोज़जनज कुछ दे र के ललए कम्प्यूटर मजंग कर कोश के ललए कजम ककयज िै । बिुत से इलजके ऐसे िैं र्िजाँ रिने वजले योगदजनकतजाओं के घरों में केवल कुछ घंटे के ललए त्रबर्ली आती िै । ये योगदजनकतजा बस इसी इंतज़जर में रिते िैं कक कब त्रबर्ली आए और कब वे अपनज यथजसंभव योगदजन कववतज कोश के ववकजस में दे सकें। िममें से
कई लोग सुबि-सवेरे उठकर कोश पर कजम शुरु करते िैं और आधी रजत के बजद तक यि लसललसलज
चलतज रितज िै । अपने व्यव्सजय से बेिद कम आय प्रजप्त करने वजले योगदजनकतजा भी इस बजत से तननक गुरेज़ निीं करते कक वे अपने पजररवजररक खचों से बचजकर सौ-दो-सौ रुपए कोश के कजम के ललए कुछ
धन खचा कर दें । समय के र्ो सुन्दर पल अपने पररवजर व लमिों के सजथ त्रबतजए र्ज सकते थे –कववतज कोश के योगदजनकतजा वे पल को इस पररयोर्नज को भें ट दे दे ते िैं। कई योगदजनकतजाओं ने अपने अच्छे खजसे कररयर तक इस कोश के ललए त्यजग हदए। ये कोई सजधजरर् बजतें निीं िैं। और लजखों पजठकों के ललए तो कववतज कोश र्ीवन के एक अंग की तरि िै िी!
िमजरे पजस कजम करने के ललए न कजयजालय िै , न आवश्यक धन िै , और न िी िमें वेतन लमलतज िै ... लेककन िमजरे पजस लगन िै ... मेिनत करने कज र्ुनून िै ... स्वयंसेवज करने की इच्छज िै ... िमजरे पजस भजरत की भजर्जओं, संस्कृनत और सजहित्य को पूरे ववश्व में पिचजन हदलजने कज स्वप्न िै ... बस यिी सब िमजरे संसजधन िैं। अन्य पररयोर्नजओं की नींव धन पर रखी र्जती िै -लेककन कववतज कोश की नींव में केवल ननस्वजथा मेिनत भरी िै ... और कूट-कूट कर भरी िै । सरकजरी और ननर्ी क्षेि ने इस पररयोर्नज के प्रनत बेरुखी हदखजई िै और िमजरी कोई सिजयतज निीं की गई; लेककन िमने अभी तक िजर निीं मजनी िै । कववतज कोश के िम सब योगदजनकतजा चगनती में चजिे कम िों लेककन इस पररयोर्नज को िमसे जर्तनज संभव िोगज उतनज आगे ले र्जने की परू ी कोलशश अवश्य करें गे।
यि पररयोर्नज आप सब की अपनी पररयोर्नज िै और इससे र्ड़ ु ज िर व्यजतत अपनी सीमजओं से भी आगे ननकलकर इसके ववकजस िे तु अपनज योगदजन दे तज िै ।
िमें ववश्वजस िै कक भजरत, संस्कृनत, भजर्ज और सजहित्य से प्रेम करने वजलज समजर् िमजरे वर्ों के त्यजग,
लगन और मेिनत को असफ़ल निीं िोने दे गज। प्रचरू मजिज में धन व अन्य संसजधन उपलब्ध िों तो कोई कजम कहठन निीं -लेककन कववतज कोश भजरतीय समजर् में स्वयंसेवज कज एक चमकदजर उदजिरर् िै । िमने धन निीं बजल्क केवल मेिनत और इच्छज के बल पर इस कोश को तैयजर ककयज िै ।
सभी व्यजततयों व संस्थजओं से गुर्जररश िै कक इस पररयोर्नज को अथा, ज्ञजन यज श्रम कज सियोग दें । लगजतजर बढ़ती और फैलती इस पररयोर्नज को अब सिजरे की आवश्यकतज िै ।
कववतज कोश र्ैसी सुन्दर पररयोर्नज अथक श्रम द्वजरज पल्लववत िोने के बजवज़ूद यहद संसजधनों के अभजव में दम तोड़ दे गी तो यि एक सुन्दर स्वप्न के टूटने र्ैसज िोगज... स्वप्न र्ो सजकजर िो सकतज थज... लेककन संसजधन-सम्पन्न समजर् की उदजसीनतज ने उसे सजकजर निीं िोने हदयज।
कववतज कोश के योगदजनकतजा अपनज कजम वर्ों से कर रिे िैं। अब समजर् की बजरी िै कक वि भी अपन दजनयत्व ननभजए। लललत कुमजर
संस्थजपक, ननदे शक कववतज कोश टीम
जीवन व्यवहार धमा कज अनुसरर् करे वो धजलमाक धजलमाक
र्जनतओं में अगर चगनती शुरू की र्जये तो , सबसे पिले ब्रजह्मर् समजर्
की चगनती िोती िै | र्ो धजलमाक कक्रयज कलजपो पर िी र्ीवन यजपन करते िै | मजनव मजि अपने आप को र्जनें कक िम ककन
संस्कजरी मिजत्मजओं के अंश िै , उनके र्ीवन कज ककस तरि
रिन-सिन-बतजाव - र्ीवन शैली, करने न करने योग्य र्ो भी बजतें थी ,वो सब ककसी-न-ककसी ग्रन्थ में उल्लणखत िैं | र्ैसे -- स्मनृ तयजाँ ( ४५) - परु जर् ( 19 ) - धमासूि ( ६ ) - गह् ( ३ ) - उपननर्द्( ३) - ज्योनतर् ू ृ यसि (२)
- आयव ु ेद ( ४)
- तंि ( ४) - नीनत
( ७) - ववववध ( १५) --
[{ १) मिजभजरत
, २) वजल्मीक
रजमजयर् , ३) श्रीमद्भगवतगीतज ,४) धमालसन्धु ,५) ननर्ायलसंधु , ६) भगवन्तरभजस्कर , ७) यनतधमासंग्रि ,
८) प्रजयजश्चत्तेन्दश े र ु ख
,९) भति ा ृ ररशतक ,
१०) कौलशक रजमजयर्
,
११) गुरुगीतज
, १२)
वद् ा ीयम ृ धसूयजारुर्कमाववपजक , १३) लसद्धलसद्धजंतसंग्रि ,१४) सवावेदजंतलसद्धजंतसजरसंग्रि , १५) ककरजतजर्ुन }]
लगभग १०५ ग्रंथों में से कुछ सूि ननकले गए िैं , जर्न्िे सिर् में अपने वपत ृ अपनजते थे | जर्से
एक नजम हदयज र्ज सकतज िै - ""आचजर-संहितज"" |
हिन्द ू संस्कृनत अत्यंत ववलक्षर् िैं | इसके सभी लसद्धजंत पूर्त ा ः वैज्ञजननक और मजनवमजिकी लौककक
तथज पजरलौककक उन्ननत करनेवजले िै | मनुष्य मजि कज सुगमतजसे एवं शीघ्रतजसे कल्यजर् कैसे िो इसकज जर्तनज गम्भीर ववचजर हिन्द-ू संस्कृनतमें ककयज गयज िै , उतनज अन्यि उपलब्ध निीं िोतज | र्न्म
से लेकर मत्ृ युपयान्त मनष्ु य जर्न-जर्न वस्तुओं एवं व्यजतयओं के संपका में आतज िै और र्ो-र्ो कक्रयजएाँ करतज िैं , उन सबको िमजरे क्रजंनतदशी ऋवर्-मुननयोंने
बड़े वैज्ञजननक ढं ग से सुननयोजर्त, मयजाहदत एवं
सुसंस्कृत ककयज िै और सबकज पयावसजन परमश्रेयकी प्रजजप्त
में ककयज िै | इसललए भगवजनने गीतज में
बड़ें स्पष्ट शब्दों में किज िै ---य: न
स
शजस्िववचधमुत्सुज्य
लसद्चधमवजप्नोनत
तस्मजच्छजस्िं प्रमजर्ं ज्ञजत्वज
ते
शजस्िववधजनोतत्तं
न
वताते
कजमकजरत: |
सुखं न
परजं गनतम ् ||
कजयजाकजयाव्यवजस्थतौ | कमा
कतलुा मििा लस ||
( गीतज १६/२३-२४ )
" र्ो मनष्ु य शजस्िववचधको छोड़कर अपनी इच्छजसे मनमजनज आचरर् करतज िै , वि न लसद्चध (अन्तः करर्की सद् ु चध) - को, न सख ु (शजन्ती) - को और न परमगनत को िी प्रजप्त िोतज िै |. अतः तेरे ललये कताव्य-अकत्ताव्यकी और व्यवस्थजमें शजस्ि िी प्रमजर् िै - ऐसज र्जनकर तू इस लोकमें शजस्िववचधसे ननयत कताव्य -कमा करनेयोग्य िै अथजाता तझ ु े शजस्िववचधके अनस ु जर कत्ताव्य -कमा करने चजिीये|”
तजत्पया िै कक़ िम 'तयज करें , तयज न करें ? - इसकी व््वस्थजमें शजस्ि को िी प्रमजर् मजननज चजिीये | र्ो शजस्ि के अनुसजर आचरर् करते िैं, वे 'नर' िोते िैं और र्ो मनके अनस ु जर (मनमजनज) आचरर् करते िैं, वे 'वजनर’ िोते िैं मतयो
यि गच्छजन्त ति गच्छजन्त वजनरजः .|
शस्िजणर् यि गच्छजन्त ति गच्छजन्त ते नरजः .|| गीतजमें भगवजनने ऐसे मनमजनज आचरर् करनेवजले मनष्ु योंको प्रववृ त्तं च ननववृ त्तं च र्न न ववदरु जसरु ज: |
( गीतज १६/७)
'असरु '
किज िैं|
वतामजन समय में उचचत लशक्षज , संग , वजतजवरर् आहद कज अभजव िोने से समजर् में उच्रं खलतज बिुत बढ़ चक - इस नयी पीढ़ी ु ी िै | शजस्ि के अनस ु जर तयज करनज चजिीये और तयज निीं करनज चजिीये के लोग र्जनते भी निीं और र्जननज चजिते भी निीं | र्ो चजिे
तो उनकी बजत
शजस्िीय व्यविजर र्जनते िै , वे बतजनज
न मजनकर उनकी िं सी उड़जते िैं | लोगों कक़ अविे लनज के कजरर् िमजरे
अनेकधमाग्रन्थ लुप्त िोते र्ज रिे िै | र्ो ग्रन्थ उपलब्ध िैं , उनको पड़ने वजले भी बिुत कम िैं| पढ़ने की रुचच भी निीं िै और पढ़ने कज समय भी निीं िै | शजस्िों को र्जननेवजले , बतजनेवजले , और तदनुसजर आचरर् करने वजले सत्पुरुर् दल ा -से िो गए िै | ऐसी पररजस्थनत ु भ
में यि आवश्यक समझज गयज कक़
एक ऐसे उपक्रम कज कज प्रयजस ककयज र्जये जर्ससे कक जर्ज्ञजसु-र्नों को शजस्िों में आयी आचजर-व्यविजर - सम्बन्धी आवश्यकबजतों की र्जनकजरी प्रजप्त िो सके | इसी हदशज में यि प्रयत्न ककयज गयज िै |
शजस्ि अथजि समुर की भजंनत िै | र्ो शजस्ि उपलब्ध िुए, उनकज अवलोकन करके अपनी सीलमतसजमथ्यासमझ-योग्यतज और समयजनुसजर र्जनकजरी प्रस्तुत की गयी िै | जर्न बजतों की र्जनकजरी लोगों को कम िै , उन बजतों को मुख्यतय: प्रकजश में लजने की चेष्टज की गयी िै | यद्यवप पजठकों को कुछ बजतें वतामजन
समय में अव्यविजररक प्रतीत िो सकती िै , तथजवप अमुक ववर्य में शजस्ि तयज कितज िैं - इसकी र्जनकजरी तो उन्िें िो िी र्जयेगी| पजठकों से प्रजथानज िै कक वे इन सूिो को पढ़ें और इसमे आयी बजतों को अपने र्ीवन में उतजरने की चेष्टज करे | यि मजि मेरज संकलन िै |
कोलशश की गयी िै कक प्रत्येक
कक्रयज-कलजप, ककये र्जने वजले कमा से सम्बंचधत सूि एक सजथ एकत्रित िो। प्रथम कड़ी - सदजचजर 1 लशक्षज , कल्प , ननरुजतत, छं द,व्यजकरर् और ज्योनतर् - इन छ: अंगों सहित अध्यन ककये िुए वेद भी आचजरिीन मनष्ु य को पववि निीं कर सकते | मत्ृ यक ु जल मे आचजरिीन मनष्ु य को वेद वैसे िी छोड़ दे ते िै ,र्ैसे पंख उगने पर पक्षी प्रशंसज /२/१)
अपने घौंसलेको | (वलशष्ठ स्मनृ त ६|३, दे वी भजगवत ११ सदजचजर -
2. मनष्ु य आचजर से आयु, अलभलवर्त संतजन एवम अक्षय धन को प्रजप्त करतज िै और आचजर से अननष्ट लक्षर् को नष्ट कर दे तज िै | (मनु स्मनृ त ४/१५६)
3. दरु जचजरी पुरुर् संसजर में ननजन्दत , सवादज द:ु ख भजगी , रोगी और अल्पजयु िोतज िै | (मनु स्मनृ त ४/१५७ ;वलशष्ठ स्मनृ त ६/६)
4. आचजर िी धमा को सफल बनजतज िै , आचजर िी धनरूपी फल दे तज िै , आचजरसे मनुष्य को संपवत्त प्रजप्त िोती िै और आचजरिी अशुभ लक्षर्ो कज नजश कर दे तज िै | (मिजभजरत, उद्धयोग . ११३/15)
5. " गौओं , मनष्ु यों और धन से सम्पन्न िोकर भी र्ो कुल सदजचजर से िीन िैं, वे अच्छे कुलोंकी गर्नज में निीं आ सकते | परन्तु थोड़े धनवजले कुल भी यहद सदजचजर से सम्पन्न िै तो वे अच्छी कुलोंकीगर्नजमें आ र्जते िैं और मिजन यश प्रजप्त करते िै . (मिजभजरत उद्योग. ३६/२८-२९) 6.
" सदजचर की रक्षज यत्न पव ा करनी चजहिए | धन तो आतज और र्जतज रितज िै | धन क्षीर् िो ू क
र्जनेपर भी सदजचजरी मनुष्य क्षीर् निीं मजनज र्जतज ; ककन्तु र्ो सदजचजर से भ्रष्ट िो गयज, उसे तो नष्ट िी समझजनज चजहिए" | (मिजभजरत उद्योग. ३६/३०)
7. " मेरज ऐसज ववचजर िै कक सदजचजर से िीन मनुष्यकज केवल ऊाँचज कुल मजन्य निीं िो सकतज; तयोकक नीच कुलमें उत्पन्न मनुष्यों कज सदजचजर श्रेष्ठ मजनज र्जतज िै , | (मिजभजरत उद्योग ३४/४१) 8.
आचजर से धमा प्रकट िोतज िै और धमा के स्वजमी भगवजन ववष्र्ु िैं | अत: र्ो अपने आश्रमके
आचजर में संलग्न िै , उसके द्वजरज भगवजन श्रीिरर सवादज पूजर्त िोते िैं | ( नजरद पुरजर् , पूव.ा ४/२२)
9. सदजचजरी मनुष्य इिलोक और परलोक दौनौं को िी र्ीत लेतज िै | "सत" शब्दकज अथा सजधू िै और सजधू विी िै , र्ो दोर्रहित िो | उस सजधु पुरुर् कज र्ो आचरर् िोतज िै , उसीको सदजचजर किते िैं | ( ववष्र्ु पुरजर् ३/११/२-३) 10.
आचजरिीन मनुष्य संसजर में ननजन्दत िोतजिै और परलोक मैं भी सुख निीं पजतज | इसललए सबको
आचजरवजन िोनज चजहिए | (लशवपुरजर् वज. उ. १४/५६)
11. "आचजर से िी आयु , संतजन तथज प्रचरु अन्न की उपलजब्ध िोती िै | आचजर संपूर्ा पजतकों को दरू
कर दे तज िै | मनुष्यों के ललए आचजर को कल्यजर्कजरक परम धमा मजनज गयज िै | आचजरवजन मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में सुखी िोतज िै | (दे वी भजगवत ११/१/१०-११)
12. " (भगवजन नजरजयर् बोले -) नजरद ! आचजरवजन मनष्ु य सदज पववि, सदज सख ु ी, और सदज धन्य िै - यि सत्य िै , सत्य िै |
( दे वी भजगवत ११/२४/९८)
ववनीत -- आनंद मोिनलजल चतव ु ेदी ( नंदज ) 9022588880
छन्दालय
ॐ हिंदी के मजत्रिक छं द : २ ९ मजिज के आंक र्जतीय छं द : गंग / ननचध संर्ीव * ववश्व वजर्ी हिंदी कज छजंदस कोश अप्रनतम, अनन्य और असीम िै । संस्कृत से ववरजसत में लमले छं दों
के सजथ-सजथ अंग्रेर्ी, र्जपजनी आहद ववदे शी भजर्जओँ तथज पंर्जबी, मरजठी, बर् ृ , अवधी आहद आंचललक
भजर्जओं/ बोललओं के छं दों को अपनजकर तथज उन्िें अपने अनस ु जर संस्कजररत कर हिंदी ने यि समद् ृ धतज अजर्ात की िै । हिंदी छं द शजस्ि के ववकजस में ननभजयी िै ।
ध्वनन ववज्ञजन तथज गणर्त ने आधजरलशलज की भूलमकज
ववववध अंचलों में लंबे समय तक ववववध पष्ृ ठभूलम के रचनजकजरों द्वजरज व्यवहृत िोने से हिंदी में शब्द ववशेर् को एक अथा में प्रयोग करने के स्थजन पर एक िी शब्द को ववववधजथों में प्रयोग करने कज चलन
िै । इससे अलभव्यजतत में आसजनी तथज ववववधतज तो िोती िै ककंतु शुद्घतज निीँ रिती। ववज्ञजन ववर्यक ववर्यों के अध्येतजओं तथज हिंदी सीख रिे ववद्यजचथायों के ललये यि जस्थनत भ्रमोत्पजदक तथज असुववधजकजरक िै । रचनजकजर के आशय को पजठक ज्यों
कज त्यो ग्रिर् कर सके इस िे तु िम छं द-रचनज में प्रयुतत
ववलशष्ट शब्दों के सजथ प्रयोग ककयज र्ज रिज अथा ववशेर् यथज स्थजन दे ते रिें गे।
अक्षर / वर्ा = ध्वनन की बोली यज ललखी र्ज सकनेवजली लघुतम स्वतंि इकजई। शब्द = अक्षरों कज सजथाक समुच्चय।
मजिज / कलज / कल = अक्षर के उच्चजरर् में लगे समय पर आधजररत इकजई। लघु यज छोटी मजिज = जर्सके उच्चजरर् में इकजई समय लगे। भजर १, यथज अ, इ, उ, ऋ अथवज इनसे र्ुड़े अक्षर, चंरत्रबंदी वजले अक्षर
दीघा, हृस्व यज बड़ी मजिज = जर्सके उच्चजरर् में अचधक समय लगे। भजर २, उतत लघु अक्षरों को छड़कर शेर् सभी अक्षर, संयुतत अक्षर अथवज उनसे र्ुड़े अक्षर, अनुस्वजर (त्रबंदी वजले अक्षर)। पद = पंजतत, चरर् समूि।
चरर् = पद कज भजग, पजद। छं द = पद समि ू ।
यनत = पंजतत पढ़ते समय ववरजम यज ठिरजव के स्थजन। छं द लक्षर् = छं द की ववशेर्तज र्ो उसे अन्यों से अलग करतीं िै ।
गर् = तीन अक्षरों कज समूि ववशेर् (गर् कुल ८ िैं, सूि: यमजतजरजर्भजनसलगज के पिले ८ अक्षरों में से प्रत्येक अगले २ अक्षरों को लमलजकर गर् ववशेर् कज मजिजभजर
/ वज़्न तथज मजिजक्रम इंचगत करतज
िै . गर् कज नजम इसी वर्ा पर िोतज िै । यगर् = यमजतज = लघु गुरु गुरु = ४, मगर् = मजतजरज = गुरु
गुरु गुरु = ६, तगर् = तज रज र् = गुरु गुरु लघु = ५, रगर् = रजर्भज = गुरु लघु गुरु = ५, र्गर् =
र्भजन = लघु गुरु लघु = ४, भगर् = भजनस = गुरु लघु लघु = ४, नगर् = न स ल = लघु लघु लघु = ३, सगर् = सलगज = लघु लघु गुरु = ४)। तक ु = पंजतत / चरर् के अन्त में
शब्द/अक्षर/मजिज यज ध्वनन की समजनतज ।
गनत = छं द में गरु ु -लघु मजत्रिक क्रम।
सम छं द = जर्सके चजरों चरर् समजन मजिज भजर के िों। अद्ाधसम छं द = जर्सके सम चरर्ोँ कज मजिज भजर समजन तथज ववर्म
चरर्ों कज मजिज भजर एक सज
िो ककन्तु सम तथज ववर्म चरर्ोँ क़ज मजिज भजर समजन न िों। ववर्म छं द = जर्सके चरर् असमजन िों।
लय = छं द पढ़ने यज गजने की धन ु यज तज़ा। छं द भेद = छं द के प्रकजर।
वत्त ृ = पद्य, छं द, वसा, कजव्य रचनज । ४ प्रकजर- क. स्वर वत्त ृ , ख. वर्ा वत्त ृ , ग. मजिज वत्त ृ , घ. तजल वत्त ृ ।
र्जनत = समजन मजिज भजर के छं दों कज समूिनजम।
प्रत्यय = वि रीनत जर्ससे छं दों के भेद तथज उनकी संख्यज र्जनी र्जए। ९ प्रत्यय: प्रस्तजर, सूची, पजतजल, नष्ट, उद्हदष्ट, मेरु, खंडमेरु, पतजकज तथज मकाटी।
दशजक्षर = आठ गर्ों तथज लघु - गुरु मजिजओं के प्रथमजक्षर य म त र र् भ न स ल ग । दग्धजक्षर = छं दजरं भ में वजर्ात लघु अक्षर - झ ि
र भ र्। दे वस्तुनत में प्रयोग वजर्ात निीं।
गुरु यज संयुतत दग्धजक्षर छन्दजरं भ में प्रयोग ककयज र्ज सकतज िै । नौ मजत्रिक छं द / आंककक छं द
र्जनत नजम आंक (नौ अंकों के आधजर पर), भेद ५५,
संकेत: नन्द:, ननचध:, ववववर, भजतत, नग, मजस,
रत्न, रं ग, रव्य, नव दग ु जा - शैल पुिी, ब्रह्मचजररर्ी, चंरघंटज, कुष्मजंडज, स्कंदमजतज, कजत्यजनयनी, कजलरजत्रि, मिजगौरी एवं लसद्चधदजिी। गि ृ स्पनत, मंगल, बुध, शुक्र, शनन, रजिु, केतु, ृ : सूय/ा रवव , चन्र/सोम, गुरु/बि कंु द:, गौ:, नौगर्ज नौ गर् कज वस्ि/सजड़ी, नौरजत्रि शजतत ९ हदवसीय पवा।, नौलखज नौ लजख कज (िजर), नवमी ९ वीं नतचथ आहद। वजसव छं दों के ३४ भेदों की मजिज बजाँट लघु-गरु ु मजिज संयोर्न के आधजर पर ५ वगों में ननम्न अनुसजर िोगी:
अ वगा. ९ लघ:ु (१)- १. १११११११११ आ वगा. ७ लघु १ गरु ु : (८)- २. १११११११२ ३. ११११११२१, ४. १११११२११, ५. ११११२१११, ६. १११२११११, ७. ११२१११११, ८. १२११११११, ९. २१११११११
इ वगा. ५ लघु २ गुरु: (२१)- १०. १११११२२, ११. ११११२१२, १२. १११२११२, १३. ११२१११२, १४, १२११११२,
१५. २१११११२, १६. २११११२१, १७. २१११२११, १८. २११२१११, १९. २१२११११, २०. २२१११११, २१. १२२११११, २२. ११२२१११, २३. १११२२११, २४. ११११२२१, २५.१२१२१११, २६. ११२१२११, २७.१११२१२१, २८.१२११२११, २९.११२११२१, ३०. १२१११२१ ई वगा. ३ लघु ३ गरु ु : (२०) ३१. १११२२२, ३२. ११२१२२, ३३. ११२२१२, ३४. ११२२२१, ३५. १२१२२१, ३६.
१२१२१२, ३७. १२११२२, ३८. १२२११२, ३९. १२२१२१, ४०. १२२१२११, ४१. २१११२२, ४२. २११२१२, ४३. २११२२१, ४४.२१२११२, ४५. २१२१२१, ४६. २१२२११, ४७. २२१११२, ४८. २२११२१, ४९. २२१२१२, ५०. २२२१११ उ वगा. १ लघु ४ गरु ु : (५) ५१.१२२२२, ५२. २१२२२, ५३. २२१२२, ५४. २२२१२, ५५. २२२२१ छं द की ४ यज ६ पंजततयों में ववववध तुकजन्तों प्रयोग कर और भी अनेक उप प्रकजर रचे र्ज सकते िैं। छं द-लक्षर्: प्रनत पंजतत ९ मजिज लक्षर् छं द: आंक छं द रचें , नौ िों कलजएं। मधरु स्वर लिर गीत नव गजएं। उदजिरर्: सूरर् उगजयें,
तम को भगजयें। आलस तर्ें िमसजफल्य पजयें। *** ननचध छं द: ९ मजिज * लक्षर्: ननचध नौ मजत्रिक छं द िै जर्समें चरर्जन्त में लघु मजिज िोती िै . पद (पंजतत) में चरर् संख्यज एक यज अचधक िो सकती िै . लक्षर् छं द: नौ िों कलजएं, चरर्जंत लघु िो
शलश रजश्मयजं ज्यों
सललल संग ववभु िो उदजिरर् :
१. तजर्ए न नौ ननचध भजर्ए ककसी ववचध चप ु मन लगजकर-
गहिए 'सललल' लसचध २. रिें दै व सदय, करें कष्ट ववलय लमले आर् अलमय, बिे सललल मलय लमटें असरु अर्य, रिें मनर् ु अभय रचें छं द मधरु , लमटे सब अववनय
३. आओ ववनजयक!, िर लसद्चध दजयक करदो कृपज अब, िर लो ववपद सब सुख-चैन दजतज, मोदक ग्रिर् कर
खश ु िों ववधजतज, िर लो अनय अब ===================== गंग छं द: ९ मजिज * लक्षर्: र्जनत आंक, पद २, चरर् ४, प्रनत चरर् मजिज ९, चरर्जन्त गुरु गुरु लक्षर् छं द: नयनज लमलजओ, िो पूर्ा र्जओ, दो-चजर-नौ की धजरज बिजओ
लघु लघु लमलजओ, गुरु-गुरु बनजओ आलस भुलजओ, गंगज निजओ उदजिरर्: १. िे गंग मजतज! भव-मजु तत दजतज िर दःु ख िमजरे , र्ीवन साँवजरो संसजर की दो खलु शयजाँ िर्जरों
उतर आस्मजं से आओ लसतजरों ज़न्नत ज़मीं पे नभ से उतजरो िे कष्टिजतज!, िे गंग मजतज!!
२. हदन-रजत र्जगो, सीमज बचजओ अरर घजत में िै , लमलकर भगजओ तोपें चलजओ, बम भी चगरजओ सेनज अकेली न िो साँग आओ ३. बचपन िमेशज चजिे किजनी िाँसकर सन ु जये अपनी र्ब ु जनी सपनज सर्जयें, अपनज बनजयें िो जज़ंदगजनी कैसे सुिजनी?
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