Saahityam sept oct nov 14

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सि​िंदस्ु तानी िासित्य िेवार्ष एक शैशव-प्रयाि अन्तर्जालीय पत्रिकज / सङ्कलक

सम्पजदक – नवीन सी. चतुवेदी

साहित्यम् सितम्बर-नवम्बर 2014 - वर्ष 1 - अङ्क 7


सजहित्यम ् – अन्तरर्जलीय पत्रिकज / सङ्कलक

अनक्र ु माणिका

हसतम्बर-नवम्बर 2014

वर्ा – 1 अङ्क – 7

किजनी

डज. वरुर् सूथरज

वववेचनज

मयङ्क अवस्थी

व्यंग्य

कमलेश पजण्डेय, आलोक परु जणर्क, नीरर् बधवजर,

07897716173 छन्द ववभजग व्यंग्य ववभजग किजनी ववभजग रजर्स्थजनी ववभजग अवधी ववभजग भोर्पुरी ववभजग ववववध सिजयतज

संर्ीव वमजा ‘सललल’ 9425183144 कमलेश पजण्डेय 9868380502 सोनी ककशोर लसंि 8108110152 रजर्ेन्र स्वर्ाकजर 9314682626

अञ्र्ू शमजा, कजलमनी अग्रवजल, उलमालज म्िव, मोनी गोपजल ‘तवपश’, पर् े ी, ू ज भजहियज ‘प्रीत’ तफ़ ु ै ल चतव ु द सजहिर लुचधयजनवी

िजइकु

गुञ्र्न गगा अग्रवजल

गीत

रर्नी मोरवजल, प्रवीर् पजण्डेय, आ. सञ्र्ीव वमजा ‘सललल’, मिेश दब ु े

छन्द

मनोिर अभय, अशोक कुमजर रक्तजले, रजर्ेश कुमजरी, कल्पनज रजमजनी, मोिनजन्शु रचचत

ग़ज़लें

शेफ़ज कज़गजाँवी, सजगर त्रिपजठी, अलीनज इतरत, सूयभ ा जनु गुप्त, नीरर् गोस्वजमी, मयङ्क

धमेन्र कुमजर ‘सज्र्न’ 9418004272

उलमालज मजधव, परमर्ीत लसंि परम, मङ्गल

आञ्चललक

मोिनजन्शु रचचत 9457520433

व्यक्क्तत्व

तफ़ ु ै ल चतुवेदी

प्रयजस

लफ़्ज़

प्रयोग

प्रतल ु वलशष्ठ

छन्दजलय

आ. सञ्र्ीव वमजा ‘सललल’

अन्य

प्रमोद कुमजर, इरशजद ख़जन लसकन्दर

नवीन सी. चतुवेदी 9967024593

अवस्थी,

नसीम, मनोिर शमजा सजगर पजलनपरु ी

इरशजद खजन लसकन्दर 9818354784

ऋतज शेखर मधु

सम्पजदन

कववतज-नज़्म

गर्लें

नवीन सी. चतुवद े ी

यिजाँ प्रकजलशत प्रतत-एक सजमग्री के सभी अचधकजर / दजतयत्व तत्सम्बक्न्धत लेखकजधीन िैं| अव्यजवसजतयक प्रयोग के ललए

स-सन्दभा लेखक के नजम कज उल्लेख अवश्य करें | व्यजवसजतयक प्रयोग के ललए पव ू ा ललणखत अनम ु तत अतनवजया िै |

सजहित्यम पर अचधकजन्शत: छववयजाँ सजभजर गग ू ल से ली र्जती िैं। सजहित्य के इस क्षरर् कजल को किर से स्वणर्ाम कजल में बदलने के उद्दे श्य के सजथ, अच्छज-सजहित्य अचधकतम व्यक्क्तयों तक पिुाँचजने के प्रयजस के अन्तगात ववववध सजमचग्रयजाँ पस् ु तकों, अनतर्जाल यज अन्य व्यक्क्तयों / मजध्यमों से सङ्ग्रहित की र्जती िैं। यिजाँ प्रकजलशत ककसी भी सजमग्री पर यहद ककसी को ककसी भी तरि की आपवि िो तो अपनी मंशज ववचधवत सम्पजदक तक पिुाँचजने की कृपज करें । िमजरज ध्येय यज मन्तव्य ककसी को नक ु सजन पिुाँचजनज निीं िै । भल ू सध ु जर करने के ललये िम सदै व तत्पर िैं।


सम्पादकीय आप िी की तरि मैं ने भी सन ु रखज

थज कक “सजहित्य समजर् कज दपार् िै ”।

बिुत बजर लगज कक क्यज बकवजस िै – सजहित्य किीं समजर् कज दपार् िो

सकतज िै ? अगर ऐसज िोतज तो सजहित्य की यूाँ दद ु ा शज न

िोती। लेककन निीं सजिब, अग्रर्ों ने एक दम दरु ु स्त फ़रमजयज िै कक “सजहित्य समजर् कज दपार् िै ”। अभी भी यक़ीन निीं िोतज तो दे णखये आप को कुछ उदजिरर् दे तज िूाँ।

सजमजक्र्क मूल्यों कज ह्रजस िो चुकज िै – सजहिक्त्यक मल् ू यों कज असेस्मेण्ि ख़ुद िी कर के दे ख लीक्र्ये।

समजर् आर् उस र्गि पिुाँच चुकज िै कक वि र्ो चजिे

पैसे से ख़रीद सकतज िै – औसत से भी कम स्तर के रचनजधलमायों को ये दे और वो दे िजइप परोसे र्ज रिे

परु स्कजरों की व्यथज इस बजत को सौ फ़ी-सदी सिी सजत्रबत करती िै ।

समजर् भजर्ज-संस्कजरों को भुलज चुकज िै – वतामजन सजहित्य में पररवतान के नजम पर क्र्स भजर्ज कज इस्तेमजल ककयज र्ज रिज िै वि प्रववृ ि भी इस बजत को सिी ठिरजती िै ।

नक ु सजन को कम से कम घिजयज तो र्ज सके। अनेक मोचों पर सजहित्यजनरु जचगयों ने अपने-अपने स्तर पर ऐसे-

ऐसे कजमों बक्ल्क यूाँ कहिये कक प्रकल्पों को सम्िजलज िुआ िै कक पररचय िोते िी उक्त व्यक्क्तत्वों की शजन में सर ख़ुद-ब-ख़द ु झुक र्जतज िै ।

प्रश्न उपक्स्थत िोतज िै कक दपार् को सजफ़ ककयज र्जये

यज कक ऑब्र्ेक्ि को? बच्चज भी उिर दे सकतज िै कक

दपार् झठ ू निीं बोल सकतज। ललिजज़ज िमें अपने चेिरों को िी सजफ़ करनज चजहिये। िमें समजर् को िी उचचत

अवस्थज में लजने के ललये तनरन्तर प्रयजस-रत रिनज चजहिये। बेशक़ आर् के दौर में िम अठजरिवीं यज किर पिली-दस ू री

सदी

में

तो

निीं

र्ज

सकते;

मगर

नोस्िजक्ल्र्यज को गररयजये बग़ैर परु जतन की अच्छी बजतों को अधन ु जतन रूप में पन ु स्थजावपत करने की हदशज में प्रयजस तो कर िी सकते िैं।

छन्द इस हदशज में पिलज प्रयजस िो सकतज िै । छन्द कज मतलब लसफ़ा सवैयज यज घनजक्षरी यज दोिज आहद आहद िी निीं िोतज। बक्ल्क छन्द की पररभजर्ज में

ग़ज़ल,

सोनेि, िजइकु के सजथ-सजथ वि सजरी रचनजएाँ भी आती

िैं र्ो एक तनयत ववधजन कज अनप ु जलन करते िुये मजनवमक्स्तष्क से सिल-सम्यक-सजथाक सम्वजद स्थजवपत करते

समजर् ऑल्मोस्ि भौंड़ज िो चुकज िै – बिुत सजरे

िुये उस की सम्वेद्नजत्मक संचेतनज तक पिुाँचने में सक्षम िों।

की दौड़ में सब से आगे ले र्जने के ललये रजत-हदन

ककसी को लग सकतज िै कक छन्द के रजस्ते पर चल कर

तथजकचथत सजहित्यकजर उन के अपने सजहित्य को भौंड़ेपन भरसक प्रयजस करते स्पष्ि रूप से दृक्ष्िगोचर िो रिे िैं।

आर् आदमी के अन्दर से सम्वेदनज और सरोकजर लुप्त

यि बदलजव कैसे सम्भव िै। छन्द ललखने-पढ़ने-परखने वजले इस बजत की पक्ु ष्ि करें गे कक छन्द यजतन एक भरपरू

िो चुके िैं – कुछ को छोड़ दें तो बिुत सजरे तथजकचथत

अनश ु जसनजत्मक प्रर्जली। ज़रज भी कम यज क्ज़यजदज िुआ कक सौन्दया-बोध ख़त्म। सौन्दया-बोध ख़त्म िोते िी

सरोकजर वविीन हदशज की तरफ़ बढ़ते िुये स्पष्ि रूप से हदख रिे िैं।

छन्द-संरचनज िमें एक सतु नयोक्र्त मजगा पर सव्ु यवक्स्थत

सजहित्यकजर भी सम्वेदनज-शन्ू य रचनजओं की गठरी उठजये

ऐसे अनेक ववर्य िैं र्ो “सजहित्य समजर् कज दपार् िै ” वजले लसद्धजन्त कज प्रततपजदन करते िैं।

मगर, र्िजाँ एक तरफ़ यि दरु जवस्थज िै विीं दस ू री तरफ़ इस पीड़ज को मिसस ू करने वजले तमजम सजहित्यजनरु जगी

बरसों से कमर कस कर मैदजन में डिे िुये भी िैं तजकक

लजललत्य ख़त्म। रसजत्मकतज कज लोप।

पद्धतत से अग्रसर िोने के ललये प्रेररत करती िै । इस

मन्तव्य को व्यजविजररक रूप से अनभ ु व कर के भी समझज र्ज सकतज िै ।

आसजरजम बजपू के बजद रजमपजल प्रकरर् के भी गवजि बन चुके िैं िम लोग। कोई भी चैतन्य-मनज व्यक्क्त ककसी भी सरू त में इन प्रकरर्ों से सरोकजर निीं रख सकतज।


इन प्रकरर्ों ने िमजरी आस्थजओं के सजथ िो रिे णखलवजड़ों

अचजनक िी असिर् िो र्जते िैं? भजई आप को वेद की

अन्य धमों / पंथों के लोग भी इन प्रकरर्ों से सबक

को मेिरबजनी यज obligation यज कुछ और किनज चजिते

की कलई खोल के रख दी िै । उमीद करते िैं कक तमजम

लेंगे। दरअसल धमा िमजरे ललये एक ऐसज उपकरर् िोनज

चजहिये क्र्स की सिजयतज से िम अपने आप को

सतु नयंत्रित पद्धतत को अपनजते िुये, भिकने से बचते िुये परमजथा के ववज्ञजन को समझने कज यत्न कर सकें।

ऋचज को उद्धत ृ निीं करनज, आप की मज़ी। आप उपकजर

िैं – आप की मज़ी। मगर िमें तो अपनी आस्थजओं से र्ुड़ज रिने दीक्र्ये। िम सभी को एक दस ू रे पर अपने

ववचजर थोपने की बर्जय, अपने-अपने बच्चों तक अपने

धमा कज मतलब िम सभी ववचजरधजरजओं वजले लोगों के

पव ा ों के ववचजर पिुाँचजने पर अचधक ध्यजन दे नज चजहिये। ू र् इसे यूाँ भी समझज र्ज सकतज िै कक यहद कोई व्यक्क्त

र्ज रिज िै । इस हदशज में यहद िम गम्भीरतज पव ा ववचजर ू क

िो सकतज िै कक वि नेष्ि िै इसललये ख़द ु को सवा-श्रेष्ठ

यिजाँ यम-तनयम-संयम न िो कर आडम्बर अचधक िोतज

न कर सके तो िमजरी नई पीढ़ी के और अचधक नजक्स्तक आय मीन तनरजशजवजदी िोने के अवसर बढ़ र्जयेंगे।

किे कक विी सवा-श्रेष्ठ िै तो इसकज एक मतलब यि भी सजत्रबत करने के ललये एड़ी-चोिी कज ज़ोर लगजये र्ज रिज िै ।

मोदी सरकजर बनने के बजद से एक अलग िी तरि कज

कोई त्यौिजर आयज कक सजरज मीडडयज दे शी लमठजइयों के

कोई चजिे तो क्र्रि यूाँ भी कर सकतज िै कक पिले मग ु ी

आप ने कभी कृत्रिम सक्ब्र्यों, लमलजविी मसजलों, केडबरी-

उन्मजद ओपनली हदखजई पड़ने लगज िै । िर तरफ़ से।

िुई यज पिले अण्डज? मगर िर क्स्थतत में उन्मजद िमजरे बच्चों से तरक़्क़ी के मौक़े िी छीनेगज। व्िजट्सअप ने

आर्कल ख़जसी धूम मचजई िुई िै । अपने लमिों में सभी ववचजरधजरजओं के व्यक्क्त शजलमल िैं। सभी लमि अपनेअपने ज्ञजन को िमजरे सजथ बजाँिते रिते िैं। इस ज्ञजन-

वजिप में एक ऐसज मेसेर् वजयरल िुआ क्र्स ने इन पंक्क्तयों के लेखक को वजक़ई व्यचथत ककयज। ववर्य अर्मेर वजले चचश्ती सजिब के द्वजरज लजखों हिंदओ ु ं को

पोस्ि-मजिा म में लग र्जतज िै । नो प्रॉबलम। मगर भजइयो पेप्सी के आकजओं द्वजरज नकजरी गईं दवजओं, मशीनों

वग़ैरि के बजरे में सोचनज निीं िोतज िै क्यज? कमी को दरू करनज िमजरज लक्ष्य अवश्य िी िोनज चजहिये, मगर हिन्दस् ु तजन की रीढ़ यजतन कुिीर उद्योग यजतन छोिे -छोिे

कजरोबजररयों को अतनक्श्चत भववष्य की तनचध िजइप नौकररयों की भट्हियों में धकेलने की क़ीमत पर निीं। इशजरज पयजाप्त िै ।

मस ु लमजन बनजये र्जने पर उन्िें उक्त दज़जा लमलने के

हिन्दस् ु तजनी सजहित्य सेवजथा शरू ु ककयज गयज यि शैशव

बजरे में भी कुछ अत्यन्त दख ु द ललखज िुआ थज। एक औसत व्यक्क्त के नजते मेरज तनवेदन यिी िै कक ऐसे

से सीखने कज प्रयजस करते िैं। अपने पजठकों की णख़दमत

बजबत थज। उसी मेसेर् में पथ्ृ वीरजर् चौिजन की पत्नी के

ककसी भी संदेश को वजयरल करने से पिले अच्छी तरि

चेक भी कर लेनज चजहिये, चाँ कू क िमजरे पव ा ों के सजथ ू र् ज़ोर-र्बदास्ती करने वजलों के ललये िमजरे मन में अच्छी भजवनजएाँ निीं िो सकतीं। हिंदस् ु तजन मज़िब को ले कर

कई बजर बड़े-बड़े नक ु सजन झेल चुकज िै । एक और नक ु सजन????????

एक बड़ज िी मज़ेदजर वजक़यज िै कक र्ैसे िी आप कोई शेर सन ा ती शजयर ु जएाँ और अगर उस शेर पर ककसी पव ू व

के ख़यजल की छजयज िुई [र्ो कक अक्सर िोती भी िै ] तो फ़ौरन से पेश्तर लोग उस शजयर कज िवजलज दे ने लगते िैं। मगर बजद के पन्थ के लोगों से अगर िम किें कक

यि बजत वेदों में भी ललखी िै तो पतज निीं क्यों वे लोग

प्रयजस अपने सजतवें चरर् में िै । िम िर बजर ग़लततयों

करने की भरसक कोलशश करते िैं। किर भी चाँ कू क िम

मनष्ु य िैं सो िम से भल ू िोनज स्वजभजववक िै । आप सभी से सजग्रि तनवेदन िै कक िमें िमजरी ग़लततयों से अवगत करजने की कृपज करें । आप के सझ ु जवों की प्रतीक्षज रिे गी। आभजर। नमस्कजर। सजदर

नवीन सी. चतव ु ेदी रचनाएँ दे वनागरी में मङ्गल फोण्ट में टाइप कर के [सम्भवत: अनस् ु वार

ड़, ि, ञ के अलावा चन्द्र-बिन्द्द ु तथा

का

भी

उपयोग

करते

हुये] navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें । अगला अङ्क फरवरी में आयेगा / अद्यतन होगा।


हदिजड़ी पर कजम हदयज थज। उस रजत की ठण्ड में भी

कहानी फ़ोटो जननललस्ट – डॉ. वरुि सूथरा िजगुन मिीने कज एक बेिद ठं डज हदन थज वो, मौसम ववभजग ने भी

उस हदन तजपमजन में एक ररकजडा चगरजवि दर्ा की थी। वपछले चजर हदन से शिर में लगजतजर बजररश िो रिी थी और पिजड़ी इलजकों में बिाबजरी भी िुई थी। इस दौरजन बिुत से घरों में शजहदयजं भी िो रिी थी, लगजतजर बजररश से लोगों को आयोर्न में अचजनक िेरबदल

करने पड़ रिज थज, क्र्नके शजदी-ब्यजि के कजयाक्रम पिले खल ु े में िोने थे अब उन सभी को ककसी न

ककसी बंद िॉल में िी अपने आयोर्न को सीलमत करनज पड़ रिज थज। मनोिर के ललए भी ये सीर्न

बिुत अिलमयत रखतज थज, यिी वो समय थज र्ब वो अपनी िोिोग्रजिी से कुछ रकम कमज सकतज थज।

शजहदयों के सीर्न के बजद तो किर कजम ढीलज िी पड़ र्जतज थज। पिले तो शजहदयों के कजम उसे अकेले िी लमल र्जते थे लेककन र्ब से मजकेि में डडक्र्िल कैमरज आए थे उसे ककसी न ककसी और बड़े िोिोग्रजिर से िी कजम लमलतज थज क्योंकक उसके

मनोिर कज र्ोश कम निीं िुआ थज। लगजतजर बढ़ती ठण्ड में भी उसकी बजतों की गमजाि​ि के कजरर् लोगों को उसके किने के मुतजत्रबक पोर् बनजने में कोई परिे र् निीं िो रिज थज। वो ककसी

को भी र्ब मुस्कुरज कर िोिो णखंचवजने को कितज थज तो लोग िाँस के उसकी बजत मजन लेते थे और

र्ो कोई उसी समय अपनी िोिो दे खनज चजितज, तो वो पजस र्जकर डडक्र्िल कैमरज में उन्िें हदखज दे तज और खद ु िी कि दे तज कक बिुत कमजल की िोिो आई िै । ये दे णखये सर, क्यज लग रिे िैं इस तस्वीर में आप। आपको तो इस िोिो को बड़ज करवजकर अपने बैडरूम में लगजनज चजहिए तजकक आप रोर् सुबि उठकर अपनज ये िं सतज िुआ चेिरज दे खें। अगर आप किें तो मैं ऑडार में ललख दं ,ू िोिो दो हदन में आपके घर पिुंच र्जएगी।

ललख लो भजई, ललख लो बतजओ क्यज पेमेंि करनी िै , िम अभी ककए दे ते िैं। सजहिब उसकी कोई चचंतज निीं, वो तब ले लेंगे र्ब आपको यि िोिो पिुंचग े ी।

कैमरज खरीद सके।

इस तरि मनोिर अपने िुनर और स्वभजव के कजरर् कुछ और रूपये भी बनज लेतज थज क्योंकक एक बजत

लेककन उसे अपने कजम के ललए र्ुनून थज, वो िर

उसके पजस सीर्न रिने तक कज िी मौकज िै । एक

पजस इतनज पैसज निीं थज कक वो एक अच्छज डडक्र्िल

तस्वीर में र्जन डजल दे तज थज। र्ब तक उसे संतोर्

न िो र्जए, तब तक वो एक िी तस्वीर को बजर-बजर खींचतज थज। उसकज लोगों से बजत करने कज ढं ग भी इतनज आकर्ाक िोतज थज कक बजर-बजर किने पर भी, सब त्रबनज ककसी हिचक अथवज गस् ु से के अलग-अलग पोर् में िोिो णखंचवजने को तैयजर िो र्जते थे। उस

हदन शिर के मशिूर व्यजपजरी प्रीतम कुमजर के बेिे की शजदी थी, र्िजं एक बड़े िोिोग्रजिर ने परू े समजरोि की िोिो खींचने कज ठे कज ले रखज थज, उसने मनोिर को भी इस आयोर्न में तीन सौ रूपये

उसके अवचेतन मन में िमेशज िी रिती थी कक

बजर शजहदयों कज सीर्न गयज तो किर गरु बत कज एक लम्बज दौर उसे परे शजन करने के ललए तैयजर

थज। यिी वो समय थज र्ब वो अपने परु जने उधजर चक ु ज सकतज थज तजकक किर से उधजर के नए खजते शुरू कर सके, इसी समय वो अपनी बीवी के सजथ

प्यजर के कुछ पल त्रबतज सकतज थज क्योंकक आने वजलज समय तो किर कलि और क्लेश कज एक लम्बज दौर लेकर आएगज। इसी दौरजन वो अपनी बेिी की कुछ ख्वजहिशें पूरी कर सकतज थज, इस छोिे से समय

में उसे अपनी बेिी को िमेशज झूठ बोल कर िजलनज


निीं पड़तज थज, र्ैसे कक सजल के बजकी समय उसकी

र्ब वो गेि से अंदर प्रवेश करने लगज तो विजं खड़े

िर मजंग पर मनोिर को कोई न कोई बिजनज बनजनज

दरबजन ने उसे रोक ललयज।

पड़तज, यजनी िर रोर् उसे एक झूठे वजदे के सजथ सुलजनज पड़तज तजकक उसकी आस बनी रिे ।

मनोिर र्ब आठ सजल कज थज तो उसके वपतज की एक सड़क िजदसे में मौत िो गई थी, उनकी अपनी िै क्सी थी। एक बजर वो तीन ववदे शी पयािकों को लेकर मनजली र्ज रिे थे तो रजस्तें में गजड़ी किसलकर खजई में चगर गई और उसमें मौर्ूद सभी लोगों की

मौत िो गई। उसके बजद मनोिर कज र्ीवन बिुत मुक्श्कलों भरज रिज, वपतज की मत्ृ यु के तीन मिीने बजद उसकी इकलौती छोिी बिन भी चल बसी, वो

िजं भजई किजं घुसज चलज र्ज रिज िै , कौन िै तू। र्ी मुझे गुप्तज सजहिब से लमलनज िै , उनकज यि िोिो िै मेरे पजस यि मुझे उन तक पिुंचजनज िै । लज ये िोिो मुझे पकड़ज दे मैं पिुंचज दं ग ू ज। निीं ये मैं आपको निीं दे सकतज और वैसे भी मुझे इसके पैसे भी लेने िैं।

उन दोनों में इस बजत को लेकर बिस तछड़ गई,

वपतज के गुर्रने के बजद िमेशज बीमजर िी रिती थी।

तभी गेि पर गुप्तज र्ी की गजड़ी भी पिुंच गई। ड्रजईवर के िजना करने पर भी र्ब दरबजन ने गेि

को आठवीं तक पढ़जयज और किर उसे ककसी िोिोग्रजिर की दक ु जन पर कजम पर लगज हदयज।

निीं खोलज तो पीछे बैठे िुए गुप्तज र्ी ने पूछज कक ये दरबजन ककसके सजथ लगज िुआ िै । वे गजड़ी से

कजम शुरू कर हदयज। कुछ समय के बजद उसकी मजं

पिुंचज, दरबजन उसे ि​िजने लगज तो मनोिर ने गुप्तज र्ी को शजदी के समजरोि कज िवजलज दे ते िुए अपनी

लड़की से उसकी शजदी करवज दी। शजदी के सजत

आदमी को अंदर भेर् दें ।

मजं ने ककसी तरि छोिज-मोिज कजम करके मनोिर

मनोिर ने बिुत मेिनत से कजम सीखज और चजर सजल के अंदर एक दक ु जन ककरजये पर लेकर अपनज

खद ु नीचे उतरे तो मनोिर दौड़ के उनके पजस र्ज

ने अपनी दरू की ररश्तेदजरी में िी लक्ष्मी नजम की

पिचजन बतजई। गुप्तज र्ी ने दरबजन से किज कक उस

मिीने बजद मजं भी चल बसी। मनोिर अपनी बीवी और बेिी पल्लवी के सजथ एक ककरजये के मकजन में रितज थज और अपनी छोिी सी दक ु जन भी चलज रिज थज। मनोिर कज कजम पिले ठीक चल रिज थज लेककन

अब नए आए डडक्र्िल कैमरज ने उसके कजम को खजसज झिकज हदयज थज। उसके पजस अभी नई तकनीक कज कैमरज निीं थज और न िी वो उन्िें खरीदने के बजरे में सोच सकतज थज। उसने कई बजर कुछ पैसे उधजर लेकर अपने कजम को और भी बढ़जने के बजरे में सोचज लेककन अपने पररवजर के िजलजत

दे खकर वो कभी हिम्मत निीं कर पजतज थज। प्रीतम कुमजर के बेिे की शजदी के तीन हदन बजद मनोिर ने उन सभी लोगों के िोिो बड़े करवज ललए क्र्नसे

उसने समजरोि में दे ने को किज थज। उसने सजत लोगों के िोिो बनजये थे, छि िोिो दे ने के बजद वो आणखरी िोिो दे ने के ललए एक बड़ी कोठी के बजिर पिुंचज।

करीब आधे घंिे बजद गप्ु तज र्ी ने मनोिर को अपने

कमरे में बल ु जयज और उसकज खींचज िुआ िोिो दे खने लगे। मनोिर िोिो तो तम ु ने बिुत अच्छज खींचज िै , वजकई तुम्िजरे िजथ में कमजल िै । लेककन िम सोच

रिे िैं कक तुम्िे इसके पैसे न हदए र्जएं। यि सुनते िी यूं तो मनोिर कज मन खट्िज िो गयज लेककन

उसकज र्वजब त्रबल्कुल उलि थज। सजिे ब आपको इस गरीब कज कजम पसंद आ गयज, ये क्यज कम िै और मैंने आपसे पैसे मजंगे िी कब। िमने यि निीं किज कक तम् ु िे कुछ निीं लमलेगज, िमजरे किने कज मतलब िै कक तम ु र्ैसे िुनरमंद आदमी को लसिा पैसे दे नज िी कजिी निीं िै । तम ु

इस कजम से ककतनज िी कमज लेते िोंगे, और किर न तो िमेशज सीर्न रितज िै और न िी िमेशज करदजन लमलते िैं। िम अगले मिीने से एक नयज अखबजर


शुरू करने र्ज रिे िैं, तुम्िजरज कजम िमें पसंद आयज

िजं, यजद आयज, लेककन अब तो िमने एक आदमी रख

नौकरी दे सकते िैं। शुरू में तुम्िें 4500 रूपये मिीनज

थज अब तो अखबजर तनकले भी मिीनज िो गयज िै ।

िै , अगर तुम चजिो तो िम तुम्िें िोिो र्नाललस्ि की

ललयज िै , मैंने तुम्िे दो हदन में र्वजब दे ने को किज

लमलेगज और कजम चल तनकलने पर और भी बढ़ज

दें गे। और िजं यि लो तुम्िजरी मेिनत। मनोिर अपने

सजिे ब मैं आपसे गुर्जररश करतज िूं, मुझे इस वक्त कजम की बिुत र्रूरत िै , तनख्वजि र्ो चजिे वो दे नज

घर के खचा के ललए अपनी पत्नी को दे हदए। उसने

दं ग ू ज। ठीक िै , तम ु िमजरे अखबजर के दफ्तर चले

पैसे लेकर घर वजवपस आ गयज और विी पैसे उसने गप्ु तज र्ी के प्रस्तजव के बजरे में लक्ष्मी को बतजयज। उस कजम में क्यज करनज िोगज आपको ?

मुझे भी पूरी तरि पतज निीं िै , शजयद अखबजर में

िोिो खींचने वजलों कज कजम िोतज िै । मैं सोच रिज थज कक वैसे भी दक ु जन से कोई स्थजयी आमदनी तो िोती निीं िै , आठ सौ रूपये तो ककरजयज िी चलज

र्जतज िै अगर मैं सेठ के यिजं कजम कर लूं तो बुरज

आप, लेककन मैं कजम में कोई लशकजयत निीं आने

र्जओ, विजं हदनेश र्ी िोंगे। मैं उनसे कि दे तज िूं, अखबजर कज नजम िै मिजरजर् िजयम्स और दफ्तर नेतजर्ी रोड पर िै । बिुत-बिुत धन्यवजद सजिे ब। मनोिर ने गप्ु तज र्ी के किे अनस ु जर िी ककयज और

र्जकर हदनेश र्ी से लमलज, र्ो कक अखबजर कज मख् ु य

िी क्यज िै और किर र्ब कभी सीर्न यज कोई खजस

संपजदक थज। तम ु ने पिले ककसी अखबजर में कजम

समजरोि िुआ तो अखबजर के कजम के सजथ वो भी ककयज र्ज सकतज िै । उस रोर् की चचजा के बजद किर

मतलब लसिा शजहदयों में िी कजम ककयज िै , गुप्तज

वो अपने कजम में लग गयज। अब दक ु जन से आमदनी

ककयज िै । निीं सर, बस अपनज िी कजम ककयज िै । सजहिब भी नज र्जने क्यूं प्रोिेशनल लोगों को छोड़कर

रोर् घिती िी र्ज रिी थी, उसकी कमजई से र्ोड़े

अनजडड़यों को भती कर लेते िैं, बजद में परे शजनी मझ ु े

िुए पैसे बेिी की स्कूल के एडलमशन में िी चले गए थे। िजथ इतनज तंग िो गयज कक घर कज रजशन परू ज

सजइककल िै ।

करनज भी मक्ु श्कल िो गयज। ऊपर से मकजन और

दक ु जन कज ककरजयज लसर पर आ गयज। ककसी तरि से वो चक ु जयज तो अब िजथ और तंग िो गयज, दो हदन तक मनोिर लसिा एक वक्त िी रोिी खजकर रूपयों के इंतर्जम के ललए र्जतज रिज। तीसरे हदन सब ु ि उठते िी उसे गप्ु तज र्ी के प्रस्तजव की यजद

आई, उसने उनकज कजडा तनकजलज और घर के सजमने िोन बूथ से र्जकर नंबर लमलजयज। गुप्तज र्ी बोल रिे िैं। यस, कौन बोल रिज िै ।

िी िोती िै । अच्छज ये बतजओ तुम्िजरे पजस मोिर

निीं सर। हदनेश ने अपने िोिो र्नाललस्ि, मिे श को बुलजयज और उससे किज कक शिर में एक नए रे स्तरजं कज उद्घजिन िो रिज िै विजं चलज र्जए और सजथ में मनोिर को भी ले र्जए। उसने मनोिर से कि हदयज कक र्ब तक वो कजम निीं सीख लेतज तक तक उसे मिे श के नीचे िी कजम करनज िोगज और र्ब वो कजम को समझ लेगज तो उसे एक अलग डडक्र्िल कैमरज

लमल

र्जएगज।

मिे श

उसे

अपनी

मोिरसजइककल पर ले गयज और रजस्ते में उसके बजरे में भी सब समझ गयज और उसे अपने बजरे में भी

सजहिब मैं, मनोिर लजल बोल रिज िूं क्र्सने आपकी िोिो णखंची थी और आपने अखबजर में कजम करने

अच्छे से समझज हदयज। उसने इशजरे में कि हदयज

कज प्रस्तजव हदयज थज।

उसी को अपनज गरु ु मजनकर चलनज िोगज। िजलजत

कक मनोिर को यहद अखबजर में कजम करनज िै तो कज लशकजर मनोिर तो कुछ भी मजनने को तैयजर थज


किर मनोिर के अिम को स्वीकजर करनज तो कुछ बड़ज यज कहठन कजम निीं थज।

वो दोनों रे स्तरजं पिुंच गए, उनके पिुंचते िी उनकज स्वजगत ढे र सजरे व्यंर्नों से ककयज गयज। मिे श ने

बजद मनोिर को भी कम्पनी की तरि से एक कैमरज लमल गयज। अब उसे मिे श से अलग अकेले िी कजम पर भेर्ज र्जतज थज, उसकी दोस्ती अब दस ू रे अखबजर वजले िोिो र्नाललस्ि से भी िो गई। रं र्ीत उसकज

मनोिर को इशजरज ककयज और खद ु भी खजनज शुरू

खजस दोस्त बन गयज, वो दोनों एक-दस ू रे की बिुत मदद करते थे, उनमें से एक से अगर कोई स्पॉि

तो ये ईश्वर के वरदजन से कम निीं थज, शजहदयों के

छूि र्जतज थज तो दस ू रज उसे अपनी खींची िुई िोिो भेर् दे तज थज। अक्सर वे दोनों िोन पर िी तय कर

कर हदयज। दो हदन से भूख सि रिे मनोिर के ललए सीर्न के बजद पिली बजर उसने इतनज लर्ीर् खजनज खजयज थज, खजते समय उसे ख्यजल आ रिज थज कक कजश वो इसमें से कुछ अपनी बीवी और बेिी के

ललए भी ले र्ज सकतज। उसके बजद मिे श ने िंक्शन के िोिो खींचे और वो दोनों विजं से र्जने लगे , तभी आयोर्कों ने उन दोनों की ओर दो पैकेि बढ़ज हदए। अरे इसकी क्यज र्रूरत िै सर, मिे श बोलज। क्यज बजत करते िैं र्नजब, आप िमजरज इतनज ख्यजल रखते िैं, उसके आगे यि तुच्छ भें ि क्यज मजयने रखती िै ।

मिे श ने पैकेि ले ललयज और मनोिर से भी लेने को किज। बजिर तनकलते िी उसने मनोिर से किज कक अब वो इस पैकेि को लेकर सीधे अपने घर चलज र्जए और दो घंिे के अंदर वजवपस दफ्तर आ र्जए तब तक वो भी आ र्जएगज और बजकी कज कजम उसे विीं समझजएगज। मनोिर ने र्ब घर पिुंचकर पैकेि खेजलज तो उसमें िजस्ि िूड और कुछ चजकलेि थज। वो सब दे खते िी उसे बिुत खश ु ी िुई उसने लक्ष्मी से किज कक वो और छोिी लमलकर खज लें और छोिी को चजकलेि दे ते िुए प्यजर र्तजयज। रे स्तरजं में िुई खजततर और सम्मजन से मनोिर बिुत खश ु थज। अब मिे श के सजथ रिकर उसने कजम को सीख भी ललयज और

समझ भी ललयज। मिे श हदन भर उसे अपने सजथ रखतज और शजम को कंप्यूिर पर खींचे िुए िोिो को एडडि करनज भी लसखजतज थज। किर एक मिीने

लेते थे कक र्िजं उनमें से एक र्ज रिज िोगज, विजं दस ू रज निीं र्जएगज और बजद में वे लोग आपस में

िोिो बजंि लेंगे। मनोिर के पजस लैपिॉप और कजडा रीडर भी थी, इसललए अब लक्ष्मी और छोिी की र्रूरतें भी पूरी कर हदयज करतज थज। धीरे -धीरे वे समजर् के वररष्ठ लोगों के संपका में आने लगज।

उसके िोन पर र्ब कभी शिर के ककसी बड़े पुललस

के अचधकजरी यज ककसी बड़े नेतज कज िोन आतज थज तो बिुत शजन से लक्ष्मी को बतजतज थज और कभीकभी र्ब शजम को प्रेस क्लब से शरजब के कुछ पैग मजरकर घर आतज थज तो अपनी मक्ल्लकज के आगे खल ु कर अपनी मिजनतज कज बखजन करतज थज। एक रजत र्ब वो शरजब के सरू ु र में थज तो त्रबस्तर पर लक्ष्मी को अपनी बजिों में लेकर बोलज, र्जनती िै तू ककसकी पत्नी िै । िजं सब र्जनती िूं मैं, अभी शरजब कज नशज िै तो बिुत प्यजर आ रिज िै , वरनज हदन में कभी र्ो तुम्िे

िोन करो तो खजने को आते िो। अरे तू तो मेरी रजनी िै , यि दे ख मेरज आई कजडा, मनोिर लजल िोिो र्नाललस्ि, मिजरजर् िजयम्स, अरे बड़े-बड़े मंिी इस कजडा को दे खकर सलूि मजरते िैं। िजं तभी तो मंिी

करोड़ों कमजते िैं और सलजमी लेने वजले मुक्श्कल से

तीन िर्जर िी बचज पजते िैं, लक्ष्मी ने िं सते िुए किज। तू चचंतज क्यूं करती िै मेरी र्जन, िम भी कमजएंगे। और किर मनोिर उसे चम ू ते िुए उसके आगोश में खो गयज और वो भी मनोिर में लीन िो गई।


उनके िजलजत में कोई खजसज सुधर निीं िुआ थज, िजं लसिा इतनज िका पड़ज थज कक कुछ खचे तनकल र्जते

छोड़तज िै तो र्ो लोग उसके एक बजर किने पर

बच र्जते थे। लेककन अभी मनोिर की पिचजन

िोगज और मजललकों की गुलजमी को चप ु चजप सिनज

उसकज कजम कर दे ते िैं वो घजस भी निीं डजलेंगे और

थे और र्जन-पिचजन बन र्जने के कजरर् कुछ खचे

अगर कजम करतज रितज िै तो यि सब उसे मजननज

लसक्के के दस ू रे पिलु से निीं िुई थी। एक हदन वो हदनेश र्ी के पजस गयज और उससे इर्जर्त मजंगी

भी िोगज। उसके पजस कोई ऐसी खजस कजत्रबललयत

यज डडग्री डडप्लोमज भी निीं थज कक ककसी और

कक सीर्न के हदन िैं इसललए उसे दफ्तर के कजम

अखबजर में िजथ पैर मजर सके और अगर उसने ऐसज

के बजद कुछ शजहदयों के िंक्शन करने हदए र्जएं।

कुछ ककयज तो ये कंपनी उसे तनकजलते दे र न

ऐसज करने पर उसके और कंपनी दोनों के नजम को

वजले िोिोग्रजिर थे र्ो एक बजर ककसी अखबजर में

धक्कज लगेगज। तम ु एक िोिो र्नाललस्ि िो और

कजम करने कज मौकज ढूंढ रिे थे। शिर में ककसी

नजम बन चक ु ज िै , र्ब तम् ु िें लोग शजहदयों के िोिो

में दं गे तछड़ गए। मनोिर को भी हदनेश ने िोन

हदनेश ने सजि इंकजर कर हदयज और किज कक उसके

िमजरज अखबजर अब इस रजज्य कज एक र्जनज-मजनज खींचते दे खेंगे तो क्यज नजम रि र्जएगज िमजरज।

दोबजरज ऐसी बजत सोची भी तो तनकजल हदए र्जओगे।

लगजएगी। क्योंकक शिर में ऐसे िर्जरों सीर्न खींचने

नेतज के वववजदजस्पद बयजन के कजरर् दो समद ु जयों

कर के किज कक वो र्जकर दं गों और र्ुलूसों के िोिो खींचकर ले आए। मनोिर अपने दोस्त रं र्ीत को

वो मजयूस चेिरज लेकर दफ्तर से बजिर तनकल आयज।

सजथ लेकर तनकल गयज, उन्िोंने दो र्गि कज िोिो

कक अब अखबजर के आठ पेर् और बढ़ज हदए र्जएंगे।

विजं सबसे अचधक अिरज-तिरी थी और एक बड़ज

अखबजर को बढ़तज दे खकर गुप्तज र्ी ने िैसलज ककयज

खींचज और शिर के मुख्य चौक पर चले गये क्योंकक

एक मीहिंग की गई और सबसे कजम बढ़जने को किज

र्ुलूस तनकल रिज थज, विजं पिुंचकर उन्िोंने दे खज कक पुललस भीड़ पर लजहठयजं भजंर् रिी थी, वे दोनों उस

गयज, अब ये तय िुआ कक दोनों िोिोग्रजिर भी ज्यजदज िोिो हदयज करें गे। मनोिर को कम्पनी की तरि से एक मोिर सजइककल भी दी गई लेककन अब उसे पूरज हदन दौड़नज पड़तज थज, उसकी तनख्वजि कज

घिनज की तस्वीरें खींचने लगे। तभी मौके पर िी खड़े पुललस के एक वररष्ठ अचधकजरी की नर्र उन

दोनों पर पड़ी, उसने अपने लसपजहियों से किज कक

एक अच्छज हिस्सज तो अब पेट्रोल खचा में िी चलज

उन दोनों से कैमरे छीन लें और उनकी भी वपिजई

र्जतज थज। एक बजर वो हदनेश र्ी के पजस तनख्वजि

करें । लसपजहियों ने उन दोनों की र्मकर वपिजई की,

बढ़जने की खजततर गयज तो हदनेश र्ी ने किर उसे

रं र्ीत के िजथ में मनोिर की उं गललयों में फ्रैक्चर

खरी-खोिी सुनज डजली।

िो गयज और इसके अलजवज उन्िें लसर पर भी चोिें

तुम कजम क्यज करते िो। तुम्िे रखज िै यिी तुम पर

करवजयज गयज और शिर की बजकी मीडडयज ने घिनज

एक बिुत बड़ज एिसजन िै , अरे वरनज क्र्तने िोिो तुम खींचते िो नज, उससे दग ु ुने और किीं बेितर तो मैं यिीं बैठे मंगवज सकतज िूं, िर्जरों एर्ेंसी वजले तैयजर बैठे िैं। किर िम तुम्िें क्यूं झेलें, पिले अपने कजम में क्वजललिी लजओ किर बजत करनज आकर।

मनोिर समझ गयज थज कक वो एक ऐसे अर्ीब से र्जल में िंस चक ु ज िै क्र्से भेद पजनज अब उसके ललए संभव निीं िै। उसे लगज कक यहद वो नौकरी

आई। उन दोनों को इलजर् के ललए अस्पतजल भती की तनंदज की। मीडडयज के दबजव में पुललस के सवोच्च अचधकजरी ने उन दोनों के इलजर् कज खचजा और

मआ ु वर्ज हदयज लेककन इस घिनज से लक्ष्मी और

उसकी बेिी बिुत सिम गए थे उनके अंदर एक असरु क्षज की भजवनज घर कर गई थी। घिनज को िुए

एक मिीनज बीत चक ु ज थज, मनोिर घर पर िी आरजम कर रिज थज, तभी हदनेश र्ी कज िोन आयज।


मनोिर बिुत िो गयज आरजम, अब तो तुम ठीक िो चक ु े िोगे। कल से कजम पर वजवपस आ र्जओ। इतनज

भी उसके पैसे मजंग रिज थज। र्बकक उस समय उसने

किकर उसने िोन कजि हदयज। लक्ष्मी, र्ो कक

में और अब उसने िोन करके किज मनोिर मैं

मनोिर के पजस िी बैठी थी, बोली, ये उसी मनिूस कज िोन िै नज, र्ो इंसजन को इंसजन निीं समझतज

शरजित से बोल रिज िूं, लसिा रोिी के पैसे दे दो, िॉल कज ककरजयज तो मैं मजंग िी निीं रिज िूं।

कि दो उससे कक अब तुम ये कजम निीं करोगे। क्यज तीन िर्जर के ललए तम् ु िजरी र्जन ले लेंगे ये

लोग, एक मिीनज िो गयज तम् ु िे त्रबस्तर पर पड़े िुए कोई मआ दे खने तक निीं आयज। भगवजन नज करे ु

कल को तम् ु िे कुछ िो गयज तो, िम दोनों कज क्यज

िोगज और वैसे भी तम ु अपनज कजम कर सकते िो, भले िी पैसे कुछ कम आएं पर र्जन तो सलजमत

किज थज ये मेरी बेिी पिले िै और मनोिर की बजद

लेककन सेठ आपने तो किज थज, कक सजरज खचजा मेरज िोगज। अरे भजई खचे से मेरज मतलब ये निीं थज कक तुम

मफ् ु त कज मजल समझ लो, मेरज तो िॉल कज ककरजयज िी एक लजख िै ।

रिे गी। मनोिर चप ु चजप लक्ष्मी की सब बजतें सुनतज

मेरे पजस तो एक पैसज भी निीं िै ।

रिीं।

तो ठीक िै मैं तम् ु िजरी बेिी को उठजकर ले र्जतज िूं। मनोिर चचल्लजने लगज, उसे छोड़ दो सेठ, उसकज क्यज

रिज, उस रजत उसके हदमजग में यिी सब बजतें घूमती

मनोिर ने लक्ष्मी के र्ोर दे ने पर अखबजर की नौकरी

छोड़ दी और किर से अपनी िोिोग्रजिी की दक ु जन करने लगज। उसने दे खज कक र्ैसे िी उसकी कजम

छोड़ने की बजत लोगों कज पतज चली, तो र्ो लोग उसे हदन-रजत िोन करते थे और एसएमएस कर करके उसके मोबजइल को भर दे ते थे, अब विी लोग उसकज िोन उठजनज बंद कर चक ु े थे। क्र्न वररष्ठ लोगों के यिजं उसे कभी भी र्जने की इर्जर्त थी

अब उनके दरबजन िी उसे वजवपस भेर् दे ते थे। बेिी के स्कूल में उसे कभी भी िीस र्मज करवजने की इर्जर्त थी, उसके ललए कोई अंततम ततचथ निीं िोती

थी, क्योंकक वो िमेशज वप्रंसीपल के किने पर उनके स्कूल के समजरोि की िोिो खींचकर अखबजर में लगवज दे तज थज लेककन अब स्कूल की तरि से उन्िें

र्ल्द िीस र्मज करवजने कज दबजव थज और ऐसज न िोने पर उसकी बेिी को तनकजलने की धमकी भी लमल चक ु ी थी। उसने सोचज निीं थज कक लोगों कज रूख इस तरि बदल र्जएगज, क्र्न लोगों ने उसे खुद पैसे हदए थे विी लोग अब उसे पैसे वजवपस करने के ललए िोन करते थे। शिर के एक रे स्तरजं के मजललक ने एक बजर अपनी ओर से मनोिर के बेिी के र्न्महदन पर पजिी करवजई थी लेककन अब वो

कसरू िै , उसे छोड़ दो...। अचजनक मनोिर की नींद खल ु ी और उसे समझ आयज कक वो एक सपनज दे ख रिज थज। लक्ष्मी और

बच्ची सो रिे थे। वो उठज और त्रबनज निजये िी अपनज कैमरज उठजयज और बजिर आकर मोिरसजइककल चजलू की और तनकल पड़ज।


व्यंग्य

कजयदे से िो र्जयेगज। ववधजयकर्ी ने आि हद ररकजडा

दऊआ पहलवान गली - आलोक पुराणिक

िैं। शिीद की र्जतत के वोि उन ववधजयक को कभी

मुझे बतजयज कक शिीद कैप्िन उनकी र्जतत के निीं

निीं लमलते, तो वि क्यों इस मसले पर रुचच लें।

भर नजम थज उस सड़क कज ववद्यजतनचध

सवानजथ

र्ैसज नजम चल रिज िै , चलने दें -र्ौली छोले चौरजिज।

चंरजलंकजर

मजगा। पर सब उसे दऊआ पिलवजन गली के नजम से िी र्जनते थे। दऊआ

मझ ु े समझ में आयज कक शिीद भले िी ककसी र्जतत

के मजन ललये र्जयें, पर छोले को र्जततयों से ऊपर

पिलवजन स्थजनीय गंड ु े थे एक र्मजने में , उनकज

मजनज र्जतज िै । भजरतवर्ा में छोलों की अपील शिीद

डरजते थे और नवोहदत गड ंु े दस ू रे मि ु ल्ले के गंड ु ों को

र्जतत

डरजते थे। गली कज आचधकजररक नजम यद्यवप

रक्षज कर सकते िैं। वरनज तो शिजदत भी छोलों में

चंरजलंकजरर्ी के नजम पर थज, पर र्न-र्न में

घुलकर गजयब िो र्जती िै।

ं े पलु लस को नजम लेकर उस गली के शरीि बजलशद

प्रलसद्चध दऊआ पिलवजन की थी। गली उनके नजम

की अपील से ज्यजदज िै ।

ये भी समझ आयज कक

के हितैर्ी ववधजयक िी स्वर्जतीय बंधु की

पर चल रिी थी। चंरजलंकजरर्ी के बिुत पढ़े -ललखे पररर्न दऊआ पिलवजन के णखलजि भन ु भुनजते िुए

एक और शिर में शिर की मुख्य सड़क कज नजम

बिुत कुछ गली में क्यज, इस दे श में िी िो गयज िोतज।

गैंदजमलर्ी कुख्यजत थे लमलजवि के ललए। पर इससे

पजये र्जते थे। पर भुनभन ु जने से कुछ िोतज तो, तो

रखज गयज-गैंदजमल घी वजलज मजगा।

क्यज िोतज िै । स्वर्जतीय बंधओ ु ं कज नगरपजललकज में

मुझे समय़ में आयज कक आचधकजररक तौर पर चजिे

बिुमत थज, मजगा गैंदजमल कज िुआ। बजद में एक भ्रष्ि ठे केदजर ने इस नजम की मयजादज रखी। गैंदजमल

र्ो कर दो, िोतज विी िै , र्ो दऊआ पिलवजन की

मजगा के तनमजार् में सीमें ि में रे त की ववकि लमलजवि

मर्ी िोती िै । गली की बजत करो, तो बजत दे श तक

की। गैंदजमलर्ी की आत्मज को शजंतत लमली िोगी।

पिुंच र्जती िै । क्षमज करें , गली-चौरजिों के नजम पर लौिें । मेरे शिर में एक चौरजिे कज आचधकजररक नजम

मजगों, गललयों के नजमों में ववकि घोिजले िैं। पर

कजरचगल में शिीद िुए कैप्िन के नजम पर रखज गयज िै । र्ौली नजमक बंदज इस चौरजिे पर छोले बेचज

उससे क्यज िोतज िै । दे श चलजने में ककिे घोिजले िैं,

करतज िै । र्न-र्न में यि चौरजिज र्ौली छोले चौरजिे

धमा वगैरि के वववजदों में सड़कों, गललयों के नजम

पर दे श चल रिज िै नज। मेरज सुझजव ये िै कक र्जतत,

के नजम से प्रलसद्ध िै । कजरचगल कज शिीद क्यज

नज िंसजये र्जयें। सीधे लसंपल नजम रखे र्जयें, र्ैसे

करे । पक्ब्लक छोले में िी र्ौली िुए र्ज रिी िै । मैंने उस इलजके के ववधजयक से लशकजयत की। मैंने किज

आयुवेद से नजम उधजर ले ललये र्जयें। ककसी सड़क

कक एक अलभयजन चलजकर पक्ब्लक को र्ौली छोले

नजम रख हदयज र्जये-त्रि​िलज रोड। ककसी गली कज

के बर्जय शिीद कज नजम लेने को प्रेररत ककयज र्जये।

नजम रख हदयज र्जये-िरा -बिे ड़ज गली। पर निीं, निीं,

इस इलजके में आने-र्जने वजले पिों में चौरजिे कज

वववजद वप्रय इस दे श में कोई आयव ु ैदजचजया उठकर

शिीद आधजररत आचधकजररक नजम िी ललखज र्जये।

कज नजम रखज र्जये-आंवलज मजगा। ककसी सड़क कज

किें गे कक निीं आंवलज गली के ठीक सजथ वजली गली

कज नजम त्रि​िलज गली निीं रखज र्ज सकतज

ववधजयक मिोदय अपने असर कज इस्तेमजल करें इस

िै , क्योंकक मेरी सम्मतत में आंवलज के सजथ त्रि​िलज

मजमले में , तो छोलों की र्गि शिीद कज सम्मजन

कज सेवन वक्र्ात िै । कोई आयव ु ैदजचजया यंू भी कि


सकते िैं कक इस गली कज नजम सुबि आंवलज गली

व्यंग्य

त्रि​िलज गली रिे , क्योंकक आंवले कज सेवन सुबि

द ग्रेट इडिण्डयन विंडंग तमा ा - नीरज िधवार

रखज र्जये पर संध्यज के बजद इस गली कज नजम

ठीक रितज िै और त्रि​िलज कज सेवन संध्यजकजल के बजद उचचत पररर्जम दे तज िै । िजय िजय ।

ये मेरे लमि की मतत कज शिजदत हदवस िै । आर् वो शजदी कर रिज िै।

छोडड़ये,

कई

गली-मजगों

के

नजमों

को

दऊआ

पिलवजनों और छोलों के िवजले िी रखज र्जये।

आलोक पुराणिक

मोिाइल-9810018799

मैं तय समय से एक घंिे बजद सीधे वववजि स्थल पिुंचतज िूं, मगर लोग बतजते िैं कक बजरजत आने में अभी आधज घंिज बजकी िै । मैं समझ गयज िूं कक शजदी परू ी भजरतीय परम्परज के मत ु जत्रबक िो रिी िै । तभी मेरी नज़र कन्यज पक्ष की सुंदर और आंलशक

सुंदर लड़ककयों पर पड़ती िै । सभी मेकअप और

गलति​िमी के बोझ से लदी पड़ी िैं। इस इंतज़जर में कक कब बजरजत आए और वर पक्ष कज एक-एक लड़कज खजने से पिले, उन्िें दे ख गश खजकर बेिोश िो र्जए।तभी ध्वतन प्रदर् ू र् के तमजम तनयमों की धक्ज्र्यजं उड़जती िुई बजरजत पैलेस के मख् ु य द्वजर तक पिुंचती िै ।

ये दे ख कक उनके स्वजगत में दस-बजरि लड़ककयजं मुख्य द्वजर पर खड़ी िैं, नजच- नजच कर लगभग

बेिोश िो चक ु े दोस्त, किर उसी उत्सजि से नजचने

लगते िैं। ककरजए की शेरवजनी में घोड़ी पर बैठज लमि पुरजने ज़मजने कज दरबजरी कवव लग रिज िै । उम्र को झुठलजती कुछ आंहियजं सर्जवि में घोडी को सीधी

िक्कर दे रिी िैं और लगभग िुन्न िो चक ु े कुछ अंकल,र्ो पैरों पर चलने की क्स्थतत में निीं िैं,धीरे धीरे िवज के वेग से मैररर् िॉल में प्रवेश करते िैं। अंदर आते िी बजरजत कज एक बड़ज हिस्सज िूड स्िॉल्स

पर धजवज बोल दे तज िै । मख् ु य खजने से पिले ज़्यजदजतर लोग स्नैक्स की स्िॉल कज रुख करते िैं।

मगर पतज चलतज िै कक वो तो बजरजत आने से पिले िी लड़की वजलों ने तनपिज दीं।


ये सुन कुछ आंहियों की बजंछे णखल र्जती िै । उन्िें

अगले दो घंिे के ललए मसजलज लमल गयज। वो चन ु चन ु कर व्यवस्थज से कीड़े तनकजलने लगती िै । एक को मैररर् िॉल निीं पसंद आयज तो दस ू री को लड़की कज लिं गज।

मगर मैं दे ख रिज िूं इन बरु जईयों में एक सक ु ू न भी िै । ये तनंदजरस उन्िें उस आमरस से ज़्यजदज आनंद दे रिज िै, क्र्सकज आने के बजद से वो चौथज चगलजस

अदजयगी के बजद समजरोि आगे बढ़तज िै । कुछ दे र में िेरे शुरू िो र्जते िैं।

मंडप में पंडडत र्ी इनडजयरै क्ि स्पीच में बतज रिे िैं कक कन्यज पत्नी बनने से पिले तुमसे आठ वचन

मजंगती िै । अगर मंज़ूर िो तो िर वचन के बजद तथजस्तु किो। र्ो वचन वो बजत रिे िैं उसके

मत ु जत्रबक लड़के को अपनज सजरज पैसज, अपनी सजरी

पी रिी िैं।इस बीच स्नैक्स न लमलने से मजयस ू लोग

अक्ल,यज किूं सजरज वर्ूद कन्यज के िवजले करनज िोगज।

एक प्लेि में सक्ब्ज़यजं, एक में रोिी।किर भी चेिरे

किर एक र्गि कन्यज किती िै अगर मैं कोई पजप

पर अिसोस िै कक ये प्लेि इतनी छोिी क्यों िै ?

करती िूं, तो उसकज आधज हिस्सज तुम्िजरे खजते में र्जयेगज, और तम ु र्ो पुण्य कमजओगे उसमें आधज

त्रबनज वक्त गंवजए मख् ु य खजने की तरि लपकते िैं।

कुछ कज बस चलतज तो घर से परजत ले आते। कुछ पें ि की र्ेब में डजल लेते। खजते-खजते कुछ लोग

हिस्सज मुझे दे नज िोगज….बोलो मंज़ूर िै ! लमि आसपजस नज़र दौड़तज िै .. लगतज िै …विी दरवजज़ज

बच्चों को लेकर परे शजन िो रिे िैं। भीड़ की

ढूंढ रिज िै र्िजं से कुछ दे र पिले िूिज र्ी भजगे थे!

बजद यिजं कुछ निीं बचेगज। बच्चज किीं हदखजई निीं

नीरर् बधवजर - 9958506724

आक्रजमकतज दे ख उन्िें लगतज िै कक पंरि लमनि दे रिज। मगर उसे ढूंढने र्जएं भी तो कैसे…कुसी छोड़ी

तो कोई ले र्जएगज। यज तो बच्चज ढूंढ लें यज कुसी बचज लें।इसी कशमकश में उन्िें डर सतजतज िै कक वो शगुन के पैसे पूरे कर भी पजएंगे यज निीं। उनकज तनयम िै िर बजरजत में सौ कज शगुन डजल

कर दो सौ कज खजते िैं।मगर लगतज िै कक आर् ये कसम िूि र्जएगी। तभी विजं खलबली मचती िै । कुछ लोग गेि की तरि भजगते िैं। पतज चलतज िै

कक लड़के के िूिज ककसी बजत पर नजरजज़ िो गए िैं। दरअसल, उन्िोंने वेिर को पजनी लजने के ललए

किज थज, मगर र्ब दस लमनितक पजनी निीं आयज तो वो बौखलज गए। दोस्त के पजपज, चजचज और बजकी ररश्तेदजर िूिज के पीछे पजनी ले कर गए िैं। पीछे से ककसी ररश्तेदजर

की आवजज़ सन ु जई पड़ती िै …इनकज तो िर शजदीब्यजि में यिी नजिक िोतज िै । झगड़े की ज़रूरी रस्म


की लेन-दे न कज ररश्तज ऊपर बतजये गये शमजा-

व्यंग्य वो एक पाटी

पररवजरसे र्ोड़ बैठीं। ज़जहिर िै पजिी पिले िमने िी - कमले

पाण्डेय

पूरी दतु नयज में दजवत लेने-दे ने की बड़ी

समद् ृ ध परं परज िै । लोग-बजग बजत-बजत

दी। किर र्ो िुआ पजहिा यों के दशान पर िमजरे नज़ररये में एक नयज पिलू र्ोड़ गयज। विी प्रसंग पजठकों के लजभजथा यिजं प्रस्तुत िै ।

में दजवत दे डजलते िैं और लेने यजनी

ये एक ऐततिजलसक पजिी थी। श्रीमतीर्ी अपनी

मजंगने की क्स्थतत तो कुछ ऐसी िै कक

शजमत यजनी शमजा पररवजर को शजम की पजिी यजनी

दजवत त्रबनज बजत के भी मजंगी र्जती िै । दजवत को

डडनर कज न्यौतज दे कर िमेशज की तरि िरक़त में

हिन्दी में पजिी किज र्जतज िै । वैसे रजर्नीततक दल

आ गईं। ऐसे मड ू में वो लसवज इसके कक क्यज पकेगज

भी अपने आप को पजिी िी किते िैं। इतनज तो तनक्श्चत िै कक पजिी बनजने यज आयोक्र्त करने कजमूल उद्दे श्य खजनज-पीनज िै बशते यि खजनज-पीनज

औरककतनज पकेगज, कुछ भी सोचनज, सन ु नज यज

बोलनज पसंद निीं करतीं। िोते-िोते व्यंर्नों की फ़ेिररश्त लंबी और रं ग-त्रबरं गी िोती चली र्जती िै ।

दस ू रों के ख़चे पर िो।

इसकज भी ध्यजन रखती िैं कक अगले दो हदन तक

कुछ लोग तनयलमत रूप से अपने आस-पड़ोस में

परोसज र्जने वजलज ‘मीठज’ सबसे पिले बनतज िै और

खश ु ी की एक ककरर् कौंधी निीं कक वे र्ज धमके।

भी इसी अंदजज़ में तैयजरी िुई।

संभजववत पजिी-दजतजओं की खोर् में रिते िैं। किीं त्रबनज पजिी कज वजदज ललये वे कभी निीं लौिते। िमजरी

कॉलोनी में भी एक शमजा पररवजर िै क्र्नकी पजिी मजंगने की छजपजमजर शैली से बजक़ी लोग इस कदर आक्रजंत िैं कक मनिूलसयत ओढ़े बैठे रिते िैं और ईश्वर से दआ करते िैं कोई खश ु ु ख़बरी भूले से भी उनकी क्ज़न्दगी में न आ िपके।

पजहिा यजं घर पर भी आयोक्र्त की र्जती िैं। मेरी

घर में खजनज पकजने की नौबत न आये । आणख़र में आठ-दस पररवजरों के ललये कजफ़ी िोतज िै । उस हदन

मेिमजन कुल ढजई िी थे- लमयजं-बीबी और एक बच्चज। शुरुआत तो धीमी रिी पर धीरे -धीरे तीनों की

र्ठरजक्ग्न भभकने लगी। िजथों और मुखों के बीच चल रिी गततववचधयजं रफ़्तजर पकड़ने लगीं तब िमें

एिसजस िुआ कक अब तक तो लसफ़ा ‘वजमा-अप’ कज दौर थज। सरु सज दे वी की सच्ची भक्त प्रतीत िोती लमसेज़ शमजा ने तक़रीबन तीस बजर दो-दो चम्मच

श्रीमतीर्ी कज तो ये ख़जस शगल िै । अक़्सर वो

िर व्यंर्न को चख-चख कर िी िे बल पर रखे सजरे

ककसी को भी घर बुलज लेती िैं और र्ी-भर के

डोंगे

र्ीमजती िैं। इस पजिी के दौरजन और बजद भी वे इन

तनबिज

हदये।

तब

श्रीमतीर्ी

को

अपनज

तप्ृ त मेिमजनों द्वजरज बनजये गये तजरीफ़ों के पल ु

‘ररज़वा’भी खोलनज पड़ज। कड़जिी चढी िुई थी, डोंगे, मताबजन, पतीले और िजंडडयों के ढक्कन खल ु े पड़े थे,

संहितज में सजफ़ ललखज िै कक पजिी लेने वजले को

िी अपने प्लेि भर रिे थे। कचौररयजं तो तीनों मुखों

परखश ु -खश ु ि​िलती रिती िैं। पजहिा यों की आचजरदे नी भी पड़ती िै । श्रीमतीर्ी की इस ख़ब्त के एवर्

मेिमजन िमें परोसने की ज़िमत से आज़जद कर ख़ुद में यों समजती र्ज रिी थीं र्ैसे आंचधयों में पिे उड़-

में दस ू रे भी अक्सर िमें पजिी दे डजलते िैं। िमजरी

उड़ कर ककसी कुएं में चगरते र्जयें। चजवल, रजयतज,

विी फ़का िोतज िै र्ो आकजर के संदभा में कद्द ू और

के सजमने िी उन तीन िवन कंु डों में समज गये।

पजिी और बदले में चक ु जई गई पजिी में कभी-कभी सरसों के दजने में । श्रीमतीर्ी कज उत्सजि आम तौर पर इससे मललन निीं िोतज। पर एक बजर वे पजहिा यों

पजपड़और लमचा के अचजर भी िमजरी ि​िी-ि​िी आंखों

मझ ु े तो ऐसज प्रतीत िुआ र्ैसे ककसी रे चगस्तजन से ऊंिों कज एक पररवजर िमजरे यिजं पड़जव डजले िुये िै


और ककसी लम्बे सफ़र के ललये अपने कूबड़ भर

रिज िै । श्रीमतीर्ी ने बदिवजसी में मीठे कज पूरज डोंगज िी उनके सजमने रख हदयज और समूचे कज

समूचज अपनी आंखों के सजमने िी अदृश्य िोतज दे खते िजथ मलती रिीं। इस पड़जव पर श्रीमतीर्ी के मन

में अपने प्लेि और डोंगों को लेकर भी आशंकज उठी कक किीं वोभी न उदरस्थ कर ललए र्जयें। पर उन्िें लसिा चजिकर छोड़ हदयज गयज। आणख़र छः घंिों बजद ये कजरवजं गर् ु र गयज और िम िे बल पर उड़तज र्ठ ू न

पिुंच तो गये पर रसोई में कोई सुगबुगजि​ि न दे ख पेि की कुलबुलजि​ि बढ़ने लगी। ये अच्छज िुआ कक पकते िुये स्वजहदष्ि खजनों की गंध िवज में न िोने से पूरे शबजब पर र्जगी िुई िमजरी भूख ऊंघने लगी। कुछ दे र और िुई तो वि लोि गई और लगभग

आणख़री सजंसें ले रिी थी कक अचजनक कुछ डोंगे और प्लेि िमजरे सजमने पेश िोकर िमजरी भख ू में प्रजर् िंू क गये।

कज ग़ब ु जर दे खते रिे । अगले दो तीन हदन तो खजनज

िमजरे सजमने दो अनोखे व्यंर्न न दे खे न सन ु े रखे

सजथ मझ े ी बच्चों सहित उसी रजत खजनज बनजने में ु भ

भरज थज। िमने कौति ू लवश उसमें चम्मच हिलजयज

श्रीमतीर्ी इस िजदसे से र्ल्दी िी उबर आईं। उन्िें

वि एक मुगे कज िुकड़ज तनकलज। क्स्थतत को

बनजने कीक्यज ज़रूरत न पड़ती, श्रीमतीर्ी के सजथर्ुतनज पड़ज।

दजवतों की परम्परज पर पूरज भरोसज थज सो आश्वस्त

थीं कक इसकज बदलज पजिी लेने की बजरी के वक़्त चक ु ज ललयज र्जयेगज। अपने स्वभजव के ववपरीत वे अक्सर उन्िें पजिी दे ने के ललये िोकने लगीं। शमजा दं पवि पजिी के दे न-पक्ष से त्रबल्कुल अनर्जन थे।ख़बर

थी कक आर्तक अपने घर में उन्िोंने ककसी को पजनी तक निीं वपलजयज। गज़ब की एकरूपतज थी पररवजर के िर सदस्य में - सब एक से खजऊ और

थे। एक डोंगे में ऊपर तक पतले कीचड़ सज पजनी

तो विजं कुछ ठोस पदजथा भी िोने कज अंदेशज िुआ। ज़रज गिरे पैठ कर िमने चम्मच बजिर तनकजलज तो समझकर मैंने मेज़बजन से एक सुझजवनुमज तनवेदन ककयज कक इस र्लजप्लजववत व्यंर्न में अगर मुगे

की बर्जय मछललयजं िोतीं तो क्यज बेितर निीं िोतज। आगे श्रीमतीर्ी ने, र्ो अबतक भूख और सदमे से

चप ु बैठी थीं, कुढ़ते िुये र्ोड़ज कक आर् तक उन्िोंने मुगों को पजनी में डुबकी लगजते निीं दे खज। मेरे बेिे ने भी लगे िजथों अपने सजमजन्य ज्ञजन की झलक

एक से िी िरकजऊ। उनके बच्चे कज र्न्महदन गुर्रज,

पेश करते िुए किज कक कुछ लोग पजनी में िजथ डजल कर क्ज़ंदज मछललयजं पकड़ लेते िैं और अफ़सोस

से यजद रख िमजरे अचग्रम बधजईयजं दे ने के बजवज़ूद

कर वैसज कर पजते; पर ये तो िो निीं पजयेगज क्योंकक

झलकज। एक रोज़ सुबि-सुबि िमजरे र्जसूसों ने िमें

श्रीमतीर्ी ने तत्कजल इस व्यक्तव्य को सुधजरज कक-

शजदी की सजलचगरि बीती, पर िर बजर परू े एिततयजत

ज़जहिर ककयज कक कजश िम इस डोंगे में िजथ डजल

पजिी दे ने कज इरजदज उनके िजव-भजव से कतई निीं

डोंगे में भरे पजनी में तो मुगे िैं, वो भी क्ज़न्दज निीं।

ख़बर दी कक उनके यिजं कल रजत केक किज िै। िमने तुरन्त एक बड़ज सज गुलदस्तज बनवजयज और उनके यिजं धजवज बोल हदयज। वे िजलने वजले पैंतरे

दे ते रिे पर िमने उनके िी पजिी वसल ू ी के पैंतरों से उन्िें कजिज और उनसे शजम की पजिी मक ु ररा करवज

मुगे निीं मुगजा किो, वो भी पूरज निीं, शजयद एक चौथजई। इस मुग-ा मीन -वववजद पर शमजार्ी ने ये

सूचनज दे कर ववरजम डजल हदयज कक डोंगे में पड़ी वस्तु

वस्तत ु ः‘चचकन करी’ िै इसललये इसमें ‘कफ़श’ डजलने

कज तो सवजल िी निीं उठतज। इस नई र्जनकजरी के

िी ली। अपने यिजं वपछली पजिी कज भोर्न-ध्वंस

बजद मैं‘करी’ शब्द की पररभजर्ज पर चचंतन करने

यजद कर-कर के िमने दोपिर के भोर्न कज त्यजग

लगज।

ककयज। ऊंि वजले कूबड़ तो िमें थे निीं पर अपने इकलौिे पेि अपनी औक़जत-भर खजली रखते िुये िम दे र शजम उनके यिजं पजिी खजने र्ज पिुंच।े

िे बल पर पड़े दस ू रे डोंगे में रखज पदजथा भी िमें

चन ु ौती दे रिज थज कक िमें पिचजनो तो र्जनें। उसे


व्यंर्नों की श्रेर्ी में शजलमल करने से पिले आश्वस्त

चचकन करी को ध्यजन में रख कर ख़जस बनजई गई

िो लेने की ज़रूरत थी। ये एक वर्ासंकर-सी वस्तु

िै कक उसमें अगर इसे सुबि तक डुबज कर रखज

िलवे कज। यों लगतज थज मजनो णखचड़ी बनते-बनते

क्र्स अद्भुत पजक-कलज कज प्रदशान कर इन पदजथों

थी क्र्ससे कभी णखचड़ी कज भ्रम िोतज थज तो कभी

िलवज िो गई िो, यज इसकज उलिज भी िुआ िो सकतज िै । इस संभजवनज से भी मुकरनज ठीक निीं िोगज कक मेज़बजन ने णखचड़ी कज िलवज नजमक कोई व्यंर्न ट्रजई ककयज िो। ये चीज़ दे खने में मल ू तः

श्वेत-श्यजम थी, पर बीच-बीच में िरज और लजल रं ग

र्जय तो मज़बूत दजंत वजले कल ज़रूर खज सकेंगे।

कज तनमजार् ककयज गयज थज उसे नमन कर िमने एक तश्तरी में थोड़ज-थोड़ज सब कुछ लमलज ललयज और

कुछ दे र उससे र्झ ू ते रिे । पिलज तनवजलज ज्यों िी चम्मच पर चढ़कर मंि ु में उतरज गले से एक चीखसी तनकली। गले ने उसे रजस्तज दे ने से सजफ़ इनकजर

भी झलकतज थज। नन्िें -नन्िें कजले कर् तो सब ओर

कर हदयज थज। उधर र्ीभ र्ो थी उस तनवजले को

त्रबखरे थे। संभवतः र्ीरज, चजवल-दजल और सक्ब्ज़यों

बजिर ठे लने में लगी रिी र्बकक औपचजररकतज ने

की मदद से इसे बनजयज गयज थज, पर इस क्षर्

िमजरज मंि ु बंद कर रखज थज। ख़द ु को सजंप किने में

सबकज अक्स्तत्व एक-दस ू रे में यों आत्मसजत िो चक ु ज

थज र्ैसे आत्मज एक रोज़ परमजत्मज में समजहित िो र्जती िै । िम पेशोपेश में थे कक इसे डोंगे से प्लेि में कैसे लजयज र्जये क्योंकक चम्मच की मदद से ऐसज करने की कोलशश में पूरज डोंगज िी िे बल से उठकर प्लेि की ओर लपकज थज। तब मेरे बेिे ने इज़जर्त मजंगी कक क्यज वो इसमें से ज़रज-सी अपनी ि​िी ककतजब की क्ज़ल्द के ललये ले ले। मैंने दररयजहदली

संकोच िोते िुये भी िम इसे सजंप- छछूंदर वजली िजलत किें गे क्योंकक गले में अिकी चीज़ उसी पशुववशेर् सी बू ललये थी। र्िजं तक स्वजद कज सवजल

िै इस लमश्रर् में ज़रूर ककसी दस ू री दतु नयज कज िी िोगज, क्योंकक अगले तनवजले को उठजने से िजथ ने भी सजफ़ मनज कर हदयज। िम क्षमज-सी मजंगते घर लौि आये। िमजरे पीछे एक और डोंगज गुिजर लगजतज रि गयज कक ज़रज िमें भी चख लो। इस डोंगे में

से किज कक ले सके तो ले ले। इससे पिले कक िम

पीले रं ग कज एक मलीदज-सज भरज थज क्र्से मेज़बजन

इस पदजथा की अन्य उपयोचगतजओं के बजरे में ववचजर

ने बड़े इसरजर से िमें पेश कर किज थज कक ‘मीठज

करते, सीन पर तीसरज तत्व प्रकि िुआ।

तो लीक्र्ए!’

इस बजर मेज़बजन ने िमजरी कल्पनजशीलतज की उड़जन

पजिी से लौि कर िमें विी करनज पड़ज र्ो घर पर

पर रोक लगजते िुये एकदम घोर्र्ज कर दी कक ये चीज़-ववशेर् कचौरी िै । िमजरे ललये ये और भी

शमजा पररवजर को पजिी दे ने वजले हदन ककयज थज।

र्ोणख़म कज सजमजन िुआ क्योंकक िजक्ज़र की गई चीज़ कचौररयों के ललये तनधजाररत मजनदं डों के अनुरूप

रजत को िमने आपस में कजम बजंि कर खजनज पकजयज,

न तो िूली-िूली थी, न गोल-गोल, न ख़स्तज, बक्ल्क ग़रीब के पेि-सी सपजि, अंडमजन के द्वीपों-सी

दप ु िर से सुलगते पेिों को ठं ढज करने के ललये आधी यजनी बेिे ने दौड़-दौड़ कर सजमजन र्ुिजयज, श्रीमतीर्ी

ने कजिज, गूंथज, बेलज और पकजयज और मैंने दोनों को

तनदे श हदये। खजने की िे बल पर गमा खजने को िजथ

तछतर-त्रबतर और पत्थरों-सी मज़बत ू हदख रिी थी।

लगजने से पिले िमने ईश्वर को धन्यवजद हदयज और

एक कज आकजर तो ऐसज थज मजनों एक तछपकली

शपथ ली कक पजहिा यों के मजमले में कभी बदले र्ैसी

पकड़ कर बेल दी गई िो। श्रीमतीर्ी ने आणख़र मंि ु

बरु ी भजवनज मन में निीं लजयेंगे।

कर ये बतजने के ललए कक ऐसी कचौरी उस पतनयल

कमलेश पजण्डेय - 9868380502

खोलज, बेशक खजने के ललये निीं, बक्ल्क िुसिुसज


कववता / नज़्म

बेकिक्र िैं कलमों में घुलती चजाँदी से चश्मे के बदलते नंबर से िजमोन्स के असंतुलन से

अवसजद से अक्सर बदलते मूड से

मीनोपजर् की आि​ि के सजइड एिेक्ट्स से ककसे परवजि िै , फ़ेसिक ु पर चालीस साला औरतें – अञ्जू

मान

इन अलसजई आाँखों ने रजत भर र्जग कर खरीदे िैं कुछ बंर्जरज सपने

सजलों से पोस्िपोन की गई उम्मीदें उिजन पर िैं कक परू े िोने कज यिी वक्त तय िुआ िोगज शजयद

अभी नन्िीं उाँ गललयों से र्रज ढीली िी िुई िै इन िजथों की पकड़ कक चथरक रिे िैं वे कीबोडा पर उड़जने लगे िैं उमंगों की पतंगे

ललखने लगे िैं बगजवतों की तनत नई दजस्तजन, साँभजलो उन्िे कक घी-तेल लगज आाँचल अब बनने को िी िै परचम कंधों को छूने लगी नौतनिजलों की लंबजई और सजथ बढ़ने लगज िै

सुसुप्त उम्मीदों कज भी कद और क्र्नके र्ूतों में

समजने लगे िै नन्िें नन्िें पजाँव वे पजाँव नजपने को तैयजर िैं यथजथा के धरजतल कज नयज सिर

ये मस्ती, ये बेपरवजिी, गवजि िै कक बदलने लगी िै ख्वजबों की ललवप वे उठज चक ु ी िैं दबी िाँ सी से पिरे वे मक् ु त िैं अब प्रसतू तगिृ ों से,

मुक्त िैं र्जगकर किी ने’पी बदलती रजतों से, मुक्त िैं

पतत और बच्चों की व्यस्ततजओं की चचंतज से, ये र्ो िैली िुई कमर कज घेरज िै न ये दरअसल अनुभवों के वलयों कज स्थजयी पतज िै

और ये आाँखों के इदा चगदा लकीरों कज र्जल िै वि हिसजब िै उन सजलों कज र्ो अनजर् बन समजते रिे गि ृ स्थी की चक्की में ये चबी निीं ये सेलुलजइड निीं

ये स्ट्रे च मजक्सा निीं ये दरअसल छुपी,

दलमत इच्छजओं की पोिललयजाँ िैं क्र्नकी पदचजपें अब नई दतु नयज कज द्वजर ठकठकजने लगीं िैं ये अलमजरी के भीतर के

चोर-खजने में छुपे प्रेमपि िैं

क्र्सकी तिों में असिल प्रेम की आिें िैं ये ककसी कोने में चप ु के से चखी गई शरजब की घाँि ू ें िै

क्र्सके कड़वेपन से बाँधी िैं कई अकेली रजतें , ये उपवजस के हदनों कज वक्त चगनतज सलजद िै क्र्सकी तनगजिें


लसिा अब चजाँद निीं लसतजरों पर िै , ये अंगवस्िों की उधड़ी सीवनें िैं क्र्नके पजस कई खजमोश ककस्से िैं

वे कम्िल – कालमनी अग्रवाल +91 9930718481

ये भगोने में अंत में बची तरकजरी िै क्र्सने मैगी के सजथ रतर्गज कजिज िै अपनी पव ा ततायों से ठीक अलग ू व वे निीं ढूाँढ़ती िैं दे वजलयों में

दे ि की अनसन ु ी पक ु जर कज समजधजन अपनी कजमनजओं के ज्वजर

आर् उन कम्बलों को दे ख कर मेरी आाँखों में आाँसू आ गये

वे कम्बल मझ ु े बिुत पसन्द थे इलसललये दो खरीदे थे

पर अब वे िाँस दे ती िैं ठठजकर, भल ू र्जती िैं क्र्ंदगी की आपजधजपी

परन्तु

मशगूल िो र्जती िैं

आाँखों के सजमने बेिज-नजती आ गये

कर दे ती शेयर एक रोमजंहिक सज गजनज, ललखने में एक प्रेम कववतज, पढ़ पजओ तो पढ़ो उन्िें

र्ब ओढ़ने की बजरी आयी उन दौनों के त्रबस्तर में वे कम्बल पिुाँच गये

कक वे औरतें

िम बजकी सदस्य

कक उनके चेिरों पर ललखज िै उनकज सजरजंश भी,

उन्िीं में गमजाि​ि मिसूस कर लेते थे

इतनी बजर दोिरजई गई किजतनयजाँ िैं उनके प्रोिजइल वपक सज रं गीन न भी िो उनकज र्ीवन तो भी वे भरने को प्रततबद्ध िैं अपने आभजसी र्ीवन में इंरधनुर् के सजतों रं ग, र्ी िजाँ,

दस ू रे पुरजने कम्बल िी ओढ़ लेते थे

वक़्त गुर्रज

एक और नयज कम्बल आयज वि कम्बल ‘इन के’ त्रबस्तर पर पिुाँचजयज तीनों नये कम्बल बाँि चक ु े थे

िमें पुरजने कम्बल िी चलें गे – सोच कर मजाँ-बेिी चप ु रि गये थे

वे

ऐसज निीं थज

िेसबुक पर मौर्ूद चजलीस सजलज औरतें िैं...

कक कुछ और नये कम्बल खरीद निीं सकते थे परन्तु बढ़ते सजमजन को दे ख कर ववचजर बदल दे ते थे

किर बेिी ने घर ललयज बेिी लशफ्ि िो गयी परु जने कम्बलों की र्ोड़ी वजलज कम्बल घर में िी थज

सफ़जई करते वक़्त मेरे िजथ लगज


सुनो डॉक्टर कह रहे हैं –

समय बीतज किर बेिे ने अपनज घर बसजयज

उलमनला माधव

ख़श ु ी-ख़श ु ी से ख़ब ू नयज सजमजन आयज मज़ी से

दौनों बच्चे अपने-अपने घरों में िैं

सन ु ो,

डॉक्िर कि रिे िैं कक अब मैं ,

परन्तु मेरे हदल को सन ू ज कर गये

अचधक निीं र्ीयाँग ू ी,

भरज-परू ज घर

तम ु क्यज-क्यज करोगे ?

मजाँ के हदल से यिी आवजज़ आयी सब र्िजाँ भी रिें

चलो कुछ बजतें मैं िी बतजती िूाँ, मेरी मौत र्ब तनक्श्चत िोर्जए,

सुखी रिें

तब तुम कुछ तनयमों के पजलन करनज,

तीन हिस्सों में बस गयज

सन्तुष्ि रिें बेडरूम में आयी तो दे खज कक मैं और मेरे पतत

ये बतजओ मेरे मरने के बजद, अच्छज ठीक िै ,

र्ैसे अगर तुम निीं रिते तो मुझे करने िोते, र्ैसे चडू ड़यों कज तोड़नज,

पर तुम चड़ ू ी निीं पिनते,

तब ऐसज करनज अपने िजथ की घड़ी,

बस िम दौनों अकेले खड़े िैं

पररवजर के सियोग से,पत्थर से तोड़ दे नज,

और िमजरे सजमने

और उम्र भर को कसम रिे कक,

सजरे कम्बल पड़े िैं

घड़ी कज पिनज र्जनज एक अपरजध की तरि िो,

यिी िै र्ीवन की यजिज और ऐसी िी िोती िैं र्ीवन की उपलक्ब्धयजाँ मैं रो निीं रिी िूाँ बस गीली पलकों को पौंछ रिी िूाँ आप भी रोइयेगज निीं : कजलमनी अग्रवजल

लसदरू तुम लगजते निीं, बजल मुंडवज लेनज,

र्ब तक सजाँसे चलें ,दोबजरज कभी मत रखनज केश, ककसी भी शुभ कजम में ,कभी झजंकनज भी मत , अगर छू दोगे तो अपशकुन न िो र्जए, इसकज पूरज ध्यजन रखनज, िजाँ तुम्िजरे पैस,े संपवि,

और बिुत सी कीमती चीज़ें कजर,बंगलज ज़मीनें , र्ो भी तम् ु िजरज िोगज सब शभ ु िी रिे गज, अशभ ु लसफ़ा तम् ु िें िोनज िै ,

तम् ु िजरी कीमती चीज़ों को निीं.... ध्यजन रिे ...

उलमालज मजधव...

9873772808


एक कववता

पुरुष मन

– मोनी गोपाल ‘तवप ’

– पूजा भाटटया ‘प्रीत’

तम ु र्जननज चजिते िो मझ ु े ? ककस सीमज तक

यि तनधजाररत करनज िै तम् ु िे िी

दशरथ की पीर कज अनम ु जन ककसे न थज ?

तम ु ने र्जने -अनर्जने ककतनी बजर

कौशल्यज के मन कज भजन

ककतनी उलझन िोती िै

रजम के बनवजस कज िजस

सोचज िै मझ ु े !

ककसे न थज?

ककसी को सम्पूर्ा पजते िुए भी अधरू ज र्जनने पर !

ककसे न हदखज? सीतज की वेदनज

र्जने ककतनी ऐसी बजतें

भरत कज घजव

लोग बतजते िैं तुम्िे

ककसने न मिसूस की ?

मेरे व्यक्क्तत्व की र्ो तम् ु िे लमली िैं

ककसने न भोगज ?

सच यि िै कक मैं केवल अलभनेतज िूाँ

ककस से अनछुआ रिज?

केवल सुनने को,दे खने र्जनने को निीं ! बोल सकतज िूाँ केवल संवजद

क्र्नमे अलभनय की गंध स्वजभजववक िै और तुम ?

िनुमजन कज भक्क्त भजव उलमालज कज ववरि क्रंदन ककस से छुपज रिज?

यिजाँ तक की चंद ववरजि ह्रदय लोगो ने

तुम कलजकजर िो

मंथरज और कैकई को भी

सिर्तज से कि र्जनज

सबने सब मिसूस ककयज

आडम्बरयुक्त बजतों को भी कक आभजस तक न िो आडम्बर कज ववशेर्तज िै तम्िजरी कभी ि​िोलो सवयं को

समझज यज समझने कज प्रयत्न ककयज अपनी-अपनी सीमज तक

क्यज अनछुआ रि गयज रजमजयर् में ?

क्यज ककसी ने लक्ष्मर् के अथजि मन को

मुझे न कुरे द कर

समझज?

आवश्यक िै इस के ललए

क्यों अपनज संसजर मोि छोड़

तुम्िजरे कलजकजर की मौत !

वो चल हदयज रजम संग?

तम ु पजओगे

उलमालज को ववरि ववछोि उपिजर में दे ?

मेरे संवजद

क्यज पजनज ध्येय थज उसकज?

बदल गए िैं अपनत्व में

क्यज भजन थज उसे रजम के भगवन िोने कज?

तम ु दे खोगे

क्यज चौदि सजलों में एक पल भी

शजयद मैं भी निीं र्नतज उतनज सवयं को !

क्याँू नकजर हदयज िमने परु ु र् में

क्र्तनज तम ु र्जनते िो मझ ु े

ववरि न सिज उसने? तछपे स्िी मन को?


र्ो तदपज भी िोगज कभी अपनी उमी की यजद में ? क्यों अनछुआ,अनकिज रि गयज लक्ष्मर् कज मन?

क्यज इस ललए की लक्ष्मर् पुरुर् िैं? क्यज पुरुर् निीं िोते भजवक ु ?

क्यज उन्िें निीं सतजती ववरि-वेदनज? सोचचये..... सोचचये..........क्यों की .... प्रश्न सोचनीय तो िै ..

ब्दों के

ंग ृ ार का उत्सव

- पूजा भाटटया ‘प्रीत’ शब्द ……

आर् कल सजथ निीं दे ते मेरज निीं उतरते...... लजख चजिने पर भी कजगज़ पर और कभी-कभी.…… यूं िी

एक ख़यजल के सजथ लगन कर गुंथ र्जते िैं

मजलज की तरि मैं उत्सव मनजती िूाँ शब्दों के श्रग ंृ जर कज और …….

लोग किते िैं कववतज िो गई


टहन्द्द ू जीवन, टहन्द्द ू तन-मन, रग-रग टहन्द्द ू मेरा पररचय – तुफ़िल चतुवेदी

उपतनर्द्-पुरजर् मिजभजरत वेदजमत ृ पजन ककयज मैंने

अपने पग कजल-कंठ पर रख गीतज कज ज्ञजन हदयज मैंने संसजर नग्न र्ब किरतज थज आहदम युग में िो कर अववज्ञ उस कजल-खंड कज उच्च-भजल मैं आया भट्ि सज खगोलज्ञ पथ् ृ वी के अन्य भजग कज मजनव र्ब किलजतज थज वनचर मैं कजललदजस किलजतज थज तब मेघदत ू की रचनज कर

र्ब िस्त व्यजचधयों से िो कर अगणर्त र्ीवन लमि र्जते थे अश्वतन कुमजर, धन्वन्तरर, सुश्रत ु मेरे सुत किलजते थे

कल्यजर् भजव िर मजनव कज मेरे अंतरमन कज ककसलय हिन्द ू र्ीवन हिन्द ू तन-मन रग-रग हिन्द ू मेरज पररचय मेरी भक ृ ु हि यहद तन र्जये तीसरज नेि मैं शंकर कज

ब्रह्मजण्ड कजंपतज िै क्र्ससे वि तजंडव िूाँ प्रलयंकर कज मैं रक्तबीर् लशर-उच्छे दक कजली की मंड ु मजल िूाँ मैं

मैं इंरदे व कज तीक्ष्र् वज्र चंडी की खड्ग करजल िूाँ मैं मैं चक्र सद ु शान कजन्िज कज मैं कजल-क्रोध कल्यजर्ी कज महिर्जसरु के समरजंगर् में मैं अट्ि​िजस रुरजर्ी कज

मैं भैरव कज भीर्र् स्वभजव मैं वीरभर की क्रोध ज्वजल असुरों को र्ीववत तनगल गयज मैं वि कजली कज अंतरजल दे वों की श्वजंसों से गूंर्ज करतज िै तनश-हदन वि िूाँ र्य हिन्द ू र्ीवन हिन्द ू तन-मन रग-रग हिन्द ू मेरज पररचय


मैं िूाँ लशवव-बलल सज दजन-शील मैं िररश्चंर सज दृढ-प्रततज्ञ मैं भीष्म-कर्ा सज शपथ-धजर मैं धमारजर् सज धमा-ववज्ञ मैं चतुष्नीतत में पजरं गत मैं यदन ु ंदन, यदक ु ु लभूर्र् मैंने िी रजघव बन मजरे मजरीच-तजड़कज-खर-दर् ू र्

मैं अर्य-धनुधन ा अर्ुन ा िूाँ मैं भीम प्रचंड गदजधजरी अलभमन्यु व्यूि-भेदक िूाँ मैं भगदि समजन शूलधजरी

मैं नजगपंचमी के हदन यहद नजगों को दध ू वपलजतज िूाँ तो आवश्यकतज पड़ने पर र्नमेर्य भी बन र्जतज िूाँ

अब भी अन्यजय िुआ यहद तो कर दं ग ू ज धरती शोणर्तमय हिन्द ू र्ीवन हिन्द ू तन-मन रग-रग हिन्द ू मेरज पररचय शत-प्रबल-खड्ग-रव वेगयक् ु त आघजतों को मैंने झेलज

भीर्र् शूलों की छजयज में मेरज र्ीवन पल-पल खेलज

संसजर-ववर्ेतज की आशज मेरे िी आगे धल ू िुई यवनों की वि अर्ेय क्षमतज मेरे िी पग पर िूल िुई मेरी अर्ेय अलस की गजथज संवत्सर कज क्रम सुनज रिज

यवनों पर मेरी ववर्य-कथज बललदजनों कज क्रम बतज रिज पर निीं उठजयी खड्ग कभी मैंने दब ा -पीडड़त तन पर ु ल अपने भजले की धजर न परखी मैंने आित र्ीवन पर इततिजस सजक्षी दग ु ा निीं, िैं बने ह्रदय मेरज आलय

हिन्द ू र्ीवन हिन्द ू तन-मन रग-रग हिन्द ू मेरज पररचय युग-युग से क्र्से संर्ोये िूाँ बजप्पज के उर की ज्वजल िूाँ मैं कजलसम के सर पर बरसी वि दजिर की खड्ग ववशजल िूाँ मैं

अस्सी घजवों को तन पर ले र्ो लड़तज िै वि शौया िूाँ मैं लसल्यूकस को पद-दललत ककयज क्र्सने अलस से वि मौया िूाँ मैं कौहिल्य-ह्रदय की अलभलजर्ज मैं चन्र गुप्त कज चन्रिजस

चमकौर दग ु ा पर चमकज थज उस वीर युगल कज मैं ववलजस रर्-मि लशवज ने ककयज कभी तनश-हदन मेरज रक्तजलभर्ेक

गोववन्द, िकीकत रजय सहित क्र्स पथ पर पग तनकले अनेक वो ज्वजल आर् भी धधक रिी िै तो इसमें कैसज ववस्मय हिन्द ू र्ीवन हिन्द ू तन-मन रग-रग हिन्द ू मेरज पररचय ति ु ै ल चतुवेदी


नज़्म

- ऐ

रीफ़ इन्द्सानो

- साटहर लुधधयानवी

खून अपनज िो यज परजयज िो

नस्ल-ए-आदम कज ख़ून िै आणख़र,

र्ंग मशररक़ में िो यज मग़ररब में,

अमन-ए-आलम कज ख़ून िै आणख़र ! बम घरों पर चगरे कक सरिद पर , रूि-ए-तजमीर र्ख्म खजती िै !

खेत अपने र्ले कक औरों के ,

ज़ीस्त फ़जकों से ततललमलजती िै ! िैंक आगे बढे कक पीछे ि​िे ,

कोख धरती की बजंझ िोती िै !

फ़ति कज र्श्न िो कक िजर कज सोग, क्ज़ंदगी मय्यतों पे रोंती िै !

र्ंग तो खद ु िी एक मसलआ िै

र्ंग क्यज मसलों कज िल दे गी ? आग और ख़ून आर् बख्शेगी

भख ू और एितयजर् कल दे गी ! इसललए ऐ शरीफ़ इंसजनों ,

र्ंग िलती रिे तो बेितर िै !

आप और िम सभी के आंगन में , शमज र्लती रिे तो बेितर िै


हाइकु

हाय रे रोटी ता-उम्र खींचती है दीन की बोटी

गुञ्र्न गगा अग्रवजल 9911770367


गीत

ररश्तों की मधु ाला – रजनी मोरवाल जि से तुम परदे रजनी मोरवाल

र्ब से तम ु परदे श बसे

स्वप्न सभी वीरजन िो गये

िसे हो –

कैसे मन कज दीप र्लजऊाँ खलु शयजाँ पर र्जले िैं,

ररश्तों के द्वजरे पर कब से पड़े िुए तजले िैं सोने के वपंर्रे में पजलाँ ू मोती रोर् चग ु जऊाँ,

सजाँसों की वीर्ज में गजकर

र्ब से तम ु परदे श बसे िो

प्यजरज गीत सन ु जऊाँ

परख ललयज बैरी दतु नयज को

ररश्तों के पंछी ने आणखर

दःु ख में संगी कब कोई िै

डेरे कब डजले िैं

सुचधयों के आाँगन रोई िै ,

ककतनज चजिूाँ और सिे र्ाँ ू

र्ब से तुम परदे श बसे िो

र्न्मों की चजित से परखूाँ

बरसों से त्रबरिज की बदली ररश्ते भी अनर्जन िो गए

भीगज मन रो-रोकर बजाँधे पोर-पोर िूिन की डोरी,

सजवन को हदखलजई िै मैंने

सपनों से नजर्ुक िैं, आाँसू से भजवुक िैं

ररश्तों के मधश ु जलज में तो दृग- र्ल के प्यजले िैं

तन की सब सीमजएाँ कोरी, संवेदन सुनसजन िो गये

पवात -सी ऊाँचजई इनमें

र्ब से तुम परदे श बसे िो

नहदयों से आकुलतज,

सजाँस-सजाँस पर नजम ललखज िै

सजगर-सी व्यजकुलतज

धड़कन भी नीलम िुई िै , लसिरन की बजाँिें अलसजईं दे खो अब तो शजम िुई िै , ददा स्वयं पिचजन िो गये

झीलों- सी गिरजई इनमें

ररश्तों की पीड़जओं के पग छजले िी छजले िैं

र्ब से तम ु परदे श बसे िो

मो. 09824160612


गीत प्रवीि पाण्डेय

सिसज मन में तघर आयी, वो रजत त्रबतजने बैठज िूाँ तम ु से पजये िर सख ु कज अब मल् ू य चक ु जने बैठज िूाँ भजवों कज उद्गजर प्रस्िुहित, आतुर मन के आाँगन में , मेघों कज उपकजर, सरसतज निीं छोड़ती सजवन में ,

र्जने क्यज ऊर्जा बिती थी, सब कुछ िी अनुकूल रिज, वर्ा दौड़ते तनकल गये मध-ु स्मतृ तयों कज स्रोत बिज, िै ककतनज उपकजर-र्तनत अचधकजर, बतजने बैठज िूाँ,

तुमसे पजये िर सुख कज अब मूल्य चक ु जने बैठज िूाँ ।

रम कर पथ के उपकरर्ों में मन उलझजये घूमे थे

तनशज हदवस कज ब्यजि रचजते तनत महदरजये झूमे थे

मगन इसी में , िम र्ीवन में आगे बढ़नज भूल गये, कोमलतज में तघरे रिे , तनस्पि ृ िो लड़नज भूल गये,

उस अशक्त र्ीवन कज ववचधवत भजर उठजने बैठज िूाँ, तुमसे पजये िर सुख कज अब मूल्य चक ु जने बैठज िूाँ ।


मन की पतें भेद रिीं िैं, बजतें र्ो थीं निीं बड़ी, किीं समय में तछपी रिी र्ो कताव्यों की एक लड़ी अनर्जने में , अनचजिे िी, रूठ गयी क्र्न रजतों से, निीं यजद र्ो रखनी चजिीं, चभ ु ती उन सब बजतों से, तनमामतज से बिे हृदय कज रक्त सुखजने बैठज िूाँ, तम ु से पजये िर सख ु कज अब मल् ू य चक ु जने बैठज िूाँ ।

सब किते िैं, र्ीवन मैने, अपने िी अनरू ु प क्र्यज, निीं रिज संवेहदत, न िी संबंधों को श्रेय हदयज,

सत्य यिी िै, मन उचजि सज रिज सदज िी बन्धों में , आत्मज मेरी ठौर न पजती, कृत्रिम तुच्छ प्रबन्धों में , तनश्छल मन को पर समजर् कज सत्य लसखजने बैठज िूाँ, तुमसे पजये िर सुख कज अब मूल्य चक ु जने बैठज िूाँ ।

उिर भी तो पजने थे र्ब प्रश्नों से लजदज तुमने,

आधे से भी क्षीर् रिज मैं - मजाँगज ललयज आधज तुमने,

तुम त्रबन कुछ यों िूाँ र्ैसे उड़नज चजिूाँ पर पंख निीं, एकजंत अन्ध गललयजरों की भिकन कज र्ैसे अंत निीं, सो शजन्तमनज िो कर र्ीवन-त्रबखरजव बचजने बैठज िूाँ, तुमसे पजये िर सुख कज अब मूल्य चक ु जने बैठज िूाँ ।

िूाँ कृतज्ञ सबकज क्र्नसे भी कोई हित स्वीकजर ककयज, कुछ भी सीखज, र्ीवन में कैसे भी अंगीकजर ककयज,

क्यूाँ ववरुद्ध िोऊाँ उन के, र्ो र्ीवन-पथ के ध्येय निीं, र्ो किते िों – किने दो - अब पजनज कोई श्रेय निीं, तरु सहिष्र्ु िूाँ आर्, अिं कज बोझ ि​िजने बैठज िूाँ, तम ु से पजये िर सख ु कज अब मल् ू य चक ु जने बैठज िूाँ ।


वि सुन्दर से भी सुन्दरतम,

वि ज्ञजन लसन्धु कज गभा-गिन,

आचायन सञ्जीव वमान ‘सललल’

वि ववस्तत ृ र्ग कज रव्य-सदन, वि यशो-ज्योतत कज उद्दीपन, वि वन्दनीय, वि आरजधन, वि सजध्य और वि संसजधन,

डॉक्िर खद ु को खद ु ज समझ ले तो मरीज़ को रजम बचजये

वि रत, नभ नत सज अलभवजदन, वि मक् ु त, शेर् कज मयजादन,

लेते शपथ न उसे तनभजते

वि मिजतेर्, वि कृपजिस्त,

अिं कजर की कठपुतली िैं

वि ज्योतत र्गत, अनवरत स्वस्थ,

रुपयों के मरु ीद बन र्जते रोगी को नीचज हदखलजते

वि शजन्त प्रजन्त, वि सतत व्यस्त,

करें अदे खी ददा -आि की

वि सुखद स्रोत, दख ु सिर् अस्त,

िरनज पीर न इनको भजये

वि अनुशजसन से पूर्ा मुक्क्त,

वि द्वन्द्व परे , पररशुद्ध युक्क्त, वि मन तरं ग, एकजग्र शक्क्त,

वि प्रथम चरर्, संपन्न भक्क्त,

डॉक्िर खद ु को खुदज समझ ले तो मरीज़ को रजम बचजये अस्पतजल यज बूचड़खजने? डॉक्िर िैं धन के दीवजने अड्डे िैं ये यम-पजशों के

वि आहद, अन्त कज वतामजन,

माँिगी और्चध के परवजने

सब कर् रजर्े, किर भी प्रधजन,

गैरर्रूरी िोने पर भी

वि प्रश्न, स्वयं िी समजधजन,

चीरज-िजड़ी बेिद भजये

वि आकर्ार् शजलसत ववधजन,

डॉक्िर खद ु को खुदज समझ ले तो मरीज़ को रजम बचजये

वि प्रथम शब्द, वि प्रथम अज्ञ, वि प्रथम नजद, वि प्रथम यज्ञ,

शंकज-भ्रम घबरजि​ि घेरे

गुंर्जयमजन प्रततक्षर् वन्दन,

किीं निीं रजित के िेरे

िै आनक्न्दत मेरज भगवन

निीं सजंत्वनज निीं हदलजसज शजम-सवेरे सघन अाँधेरे

वि सन् ु दर से भी सन् ु दरतम वि सन् ु दर से भी सन् ु दरतम वि सन् ु दर से भी सन् ु दरतम : प्रवीर् पजण्डेय - +91 9794843900

गोली-िॉतनक कैप्सल ू दें

आशज-दीप न कोई र्लजये डॉक्िर खद ु को खद ु ज समझ ले तो मरीज़ को रजम बचजये


मुझमे पूर्न कज शंखनजद मुझमें इस्लजमी एकवजद मेरे बेिे िोकर के तुम

महे

नज र्जने करते क्यों वववजद

दि ु े

मुझको ईसज

मैं गंगज बोल रिी िूाँ मै यमुनज बोल रिी िूाँ मेरे ति पर बसने वजलों मैं तुमको तोल

मैं गंगज बोल रिी िूाँ

रिी िूाँ मै यमन ु ज बोल रिी िूाँ

मेरे ति पर बसने वजलों तम ु ने मझ ु को बबजाद ककयज

उस धरती को भी नज छोड़ज क्र्सने तम ु को आबजद ककयज मजतज कज आंचल िजड़ हदयज

उसकज भी नज सम्मजन ककयज क्र्स वक्ष से दध ू वपयज तुमने उसको िी लिू लुिजन ककयज लो र्खम चगनो

मैं सम्मुख अपनी छजती खोल रिी िूाँ

मैं गंगज बोल रिी िूाँ

मै यमुनज बोल रिी िूाँ

मेरे ति पर र्ो भी आतज उसको न कभी मैंने छजाँिज नज र्जतत

धमा कज भेद ककयज

सबको अपनज अमत ृ बजंिज

िैं हिन्द ू यिजाँ िर िर करते मुक्स्लम भी मेरज गजन करें

उन सबको तप्ृ त करूाँ मैं र्ो श्रद्धज से मेरज पजन करें मैं युगों युगों से

कण्ठों में तनर् अमत ृ घोल रिी िूाँ मैं गंगज बोल रिी िूाँ मै यमुनज बोल रिी िूाँ

से बैर निीं

र्ो करते उनकी खैर निीं क्र्तने भजरत के बेिे िैं सब अपने कोई गैर निीं तम ु कीचड में क्यों धंसते?

मझ ु को दे खो ड़ोल रिी िूाँ मैं गंगज बोल रिी िूाँ मै यमन ु ज बोल रिी िूाँ मैं िूाँ भजरत की आन-बजन मुझसे िी िै भजरत मिजन मेरे ति आये रजम-कृष्र्

तुलसी भी गजते रिे गजन

मैंने धरती को शुद्ध ककयज

पर तुमने इतनज युद्ध ककयज मेरे र्ल में शोणर्त डजलज

मुझको भी परम अशुद्ध ककयज अब नजलज िूाँ, पर, कल तक,

र्नगर्मन कल्लोल रिी िूाँ

मैं गंगज बोल रिी िूाँ

मै यमुनज बोल रिी िूाँ

मुझमें लशवर्ी कज तेर् प्रबल मैं भजगीरथ के मन कज बल र्ब क्रोधोन्मत िो र्जउं गी सब तिस निस कर दे गज र्ल मुझपर नज अत्यजचजर करो

कुछ मजतज कज उद्धजर करो कचरे की ढे री

ड़जल ड़जल

नज दवू र्त र्ल की धजर करो

मत मोल चगरजओ मेरज – प्यजरों मैं - अनमोल रिी िूाँ मैं गंगज बोल रिी िूाँ मै यमन ु ज बोल रिी िूाँ मिे श दब ु े – 9869025184


छन्द्द

चौपई छन्द्द – अ ोक कुमार रक्ताले

दोहे – मनोहर अभय

तछड़ी िुई शब्दों की र्ंग हदखज रिे नेतज र्ी रं ग

+91 9773141385

वैचजररकतज नंगधडंग

िम बरगद र्ैसे वविप िैलीं शजख प्रशजख ,

सुनकर िै रत र्न-र्न दं ग

धप ू सिी छजयज करी पंछी पजले लजख . आठ गन ु ज सम्पद बढ़ी ड्योढ़ी िुई पगजर , बढ़त िमजरी खज गयज बढ़तज िुआ बज़जर | क्यज प्रपंच रचने लगे तम ु सजथी शजलीन,

र्जतत धमा के पत ु े लसयजर इनपर किनज िै बेकजर

बजत-बजत पर हदल पर वजर र्न मजनस पर अत्यजचजर

खल ु ीं मछललयजाँ छोड़ दीं बगुलों के आधीन |

पजंच वर्ा में एक चन ु जव

मिक पूछती किर रिी उन िूलों कज िजल ,

मिाँ गजई भी दे ती घजव

किीं अनछुए झर गए उलझ काँिीली डजल.

डुबो रिी िै सबकी नजव

गढ़े णखलौंने चजक पर मजिी गाँद ू कुम्िजर,

नजरी दोिन अत्यजचजर

छोड़े मन पर कई प्रभजव

िम मजिी से पूछते ककसने गढ़ज कुम्िजर

लमलज निीं अबतक उपचजर

चलो सुबि की धप ू में खुल कर करें निजन,

तनधान किरभी िैं बीमजर

धल ु े र्लर् सी णखल उठे किर अपनी पिचजन सुनो धरज की धड़कनें ऋतुओं के संवजद , चन्दन धोये पवन से करो न वजदवववजद

सरकजरें करती उपकजर

तीर तरजर्ू औ तलवजर

ककसे किें अब क्र्म्मेदजर चढ़ज दे श को अर्ब बुखजर

िर-िर घर-घर इक सरकजर बैर्तनयजाँ बजदल तघरे बाँद ू ें झरी िुिजर,

धप ू निजने में लगी सजरी तपन उतजर

िूल पवियजाँ तीर-कमजन

आमंिर् थज आपकज िम िो गए तनिजल ,

मतदजतज सजरे िै रजन

र्ब तक पिुाँचे भोर् में उखड़ गए पंडजल.

ककसे करें अपनज मतदजन

चौसर पर िैं कई तनशजन


र्ीवन में मत िजर दे ,भजवों में उपकजर दे िे मजाँ श्वेतज शजरदे ,ववद्यज कज उपिजर दे धवल िं स सद्वजहिनी, तनमाल सद्मततदजतयनी र्ड़मतत ववपदज िजररर्ी, भव सजगर तर तजररर्ी उल्लाला छन्द्द – राजे

कुमारी

सब कष्िों से तजर दे ,लशक्षज कज भण्डजर दे िे मजाँ श्वेतज शजरदे ,ववद्यज कज उपिजर दे िे मजाँ श्वेतज शजरदे , श्रद्धजनत िूाँ प्यजर दे

सरस्वती वंदनज

िे मजाँ श्वेतज शजरदे , ववद्यज कज उपिजर दे श्रद्धजनत िूाँ प्यजर दे , मतत नभ को ववस्तजर दे तू ववद्यज की खजन िै ,र्ीवन कज अलभमजन िै

कुण्डललयज छन्द (कल्पनज रजमजनी)

नव शब्दों को रूप दे ,सदज ज्ञजन की धप ू दे

सोने की चचडड़यज कभी, किलजतज थज दे श

भजर्ज कज सम्मजन िै ,ज्योततमाय वरदजन िै िे मजाँ श्वेतज शजरदे ,ववद्यज कज उपिजर दे

कमलं पुष्प ववरजर्ती ,धवलं वस्िं शोभती

वीर्ज कर में सजर्ती ,धन ु आलौककक बजर्ती ववद्यज कलर् अनूप दे ,आखर-आखर कूप दे िे मजाँ श्वेतज शजरदे ,ववद्यज कज उपिजर दे

नोच-नोच कर लोभ ने, बदल हदयज पररवेश। बदल हदयज पररवेश, खलों ने खल ु कर लूिज। भरे ववदे शी कोर्, दे श कज तजलज िूिज।

िुई इस तरि खब ू , सिजई िर कोने की, ढूाँढ रिी अब डजल, लि ु ी चचडड़यज सोने की। पजवन धरती दे श की, कल तक थी बेपीर।

तनष्ठज तू ववश्वजस तू ,िम भक्तों की आस तू

कदम कदम थीं रोहियजाँ, पग पग पर थज नीर।

सद्चचि कज आभजस तू ,करती तम कज ह्रजस तू

पग पग पर थज नीर, क्षीर की बितीं नहदयजाँ,

तम सजगर से तजर दे ,प्रज्ञज कज आधजर दे

तनझार थे गततमजन, रिी िैं सजक्षी सहदयजाँ।

िे मजाँ श्वेतज शजरदे ,ववद्यज कज उपिजर दे

सोचें इतनी बजत, आर् क्यों सूखज सजवन? झेल रिी क्यों पीर, दे श की धरती पजवन।

वजर्ी में तू रस भरे ,गीतों को समरस करे

र्ीवन को रोशन करे ,तझ ु से िी मजाँ तम डरे

कोयल सुर में कूकती, छे ड़ मधरु तम तजन।

िे मजाँ श्वेतज शजरदे ,ववद्यज कज उपिजर दे

मेरज दे श मिजन, सुनजती िै र्न र्न को,

रस छं दों कज िजर दे ,कववतज ग़ज़ल िर्जर दे

कूक कूक किती यिी, मेरज दे श मिजन।

रोक वनों कज नजश, कीक्र्ये रक्षक्षत िमको। किनी इतनी बजत, अगर वन िोंगे ओझल। क्र्स को तेरज ध्यजन िै , मन में तेरज मजन िै तेरे तप कज भजन िै ,मजनव वो ववद्वजन िै

कैसे मीठी तजन, सन ु जएगी किर कोयल।


सार लललत छं द (कल्पना रामानी)

छन्द्द – सागर बिपाठी

छन्न पकैयज, छन्न पकैयज, हदन कैसे ये आए, दे ख आधतु नक कववतजई को, छं द,गीत मरु झजए छन्न पकैयज, छन्न पकैयज, गहदा श में िैं तजरे ,

रचनज में कुछ भजव िो न िो, वजि, वजि के नजरे छन्नपकैयज, छन्नपकैयज, घिी कजव्य की कीमत

ववद्वजनों को वोि न लमलते, मढ़ ू ों को िै बिुमत छन्नपकैयज छन्नपकैयज भ्रलमत िुआ िैं लखकर सद ुं रतम की छजप लगी िै, िर कववतज संग्रि पर छन्न पकैयज, छन्न पकैयज, कववतज ककसे पढ़जएाँ,

चजि निीं दचध-मजखन की ति-तीर कदम्ब की डजर न चजिूाँ स्वजतत की बाँद ू से तक्ु ष्ि मझ ु े

लशव-भजल से गङ्ग की धजर न चजिूाँ पेि की भख ू को अन्न लमले

पजठक भी अब यिी सोचते कुछ ललख कवव किलजएाँ

धन कज मैं अपजर बखजर न चजिूाँ

छन्न पकैयज, छन्न पकैयज, रचें ककसललए कववतज,

पजाँव पखजरर सकाँू िरर के

रचनज चजिे ‘खजस’ न छपती, छपते ‘खजस’ रचतयतज

बड़ दर् ू ो कोऊ उपकजर न चजिूाँ

छन्न पकैयज, छन्न पकैयज, अब र्ो ‘तल ु सी’ िोते, दे ख तपस्यज भंग छं द की, सौ-सौ आाँसू रोते।

सणखयों से खेल िजरी कर अठखेल िजरी हदल से कन्िजई की लमतजई निीं र्जयेगी मन िै अधीर ऐसे मीन त्रबनु नीर र्ैसे मोिनजन्शु रचचत बूझ-बूझ उिर र्ो िुआ मैं तनरुिर तो दे ख मेरे िजल को पिे ली िाँ सने लगी झुमकज पहिन कजन, सुरमज लगज के नैन र्ैसे कोई दल् ु िन नवेली िाँ सने लगी

भजग्य की रे खज में तुझे ढूाँढ-ढूाँढ थक गयज व्यंग्य कर मुझ पे िथेली िाँ सने लगी

बम-बम भोले सङ्ग र्ैसे िी गाँर् ू ी अर्जन ऐसज लगज र्ैसे कक बरे ली िाँ सने लगी

बजत, बैरी-र्ग को बतजई निीं र्जयेगी

किने को लजख किे , सजाँवरज र्ो िजथ गिे रजधज से कलजई तो छुड़जई निीं र्जयेगी अधरों की लजली रजधज तुम ने छुपज ली मजनज रङ्गत कपोलों की तछपजई निीं र्जयेगी


ग़ज़ल

बन गयज ततश्नजलबी की र्ो तनशजनी एक हदन ज़ुल्म की आाँखों में भी लजयज वो पजनी एक हदन ख़ुश्क लिर्ज तल्ख़ र्ुमले और बलन्दी कज नशज

पक्स्तयजाँ हदखलज न दे ये लन्तरजनी एक हदन र्ैसे लमट्िी के णखलौने अब निीं लमलते किीं ख़त्म िो र्जएाँगी लोरी और किजनी एक हदन ऐसे र्ज़्बे र्ो पस-ए-लमर्गजाँ मचलते रि गये आाँसुओं ने कर दी उन की तर्ुम ा जनी एक हदन

िर शय पे ये हदल आतज यूाँ िर हदन भी निीं िै इस दौर में अब इश्क़ तो मुमककन भी निीं िै किने को ज़मजने कज ज़मजनज मेरज अपनज और उस पे लसतम िै कोई मोिलसन भी निीं िै क्यों ख़द ु से क्ज़यजदज मझ ु े उस पर िै भरोसज र्ो शख़्स मेरे शह्र कज सजककन भी निीं िै र्ीने की िवस ने मुझे छोड़ज िै र्िजाँ पर

डाँसने के ललये उम्र की नजचगन भी निीं िै

अपनी िर ख़्वजहिश को तम ु पजमजल कर के चुप रिे

पढ़ िी न सके चेिरज-ए-िस्ती की इबजरत

बन न र्जये रोग ऐसी बेज़ुबजनी एक हदन

अब मेरी नज़र इतनी तो कमलसन भी निीं िै

ख़त्म कर के िर तनशजनी ये तिय्यज कर ललयज

मिफ़ूज़ मेरे ज़ह्न में सहदयों के िैं ख़जके

िम भुलज दें गे सभी यजदें पुरजनी एक हदन

िजलजाँकक मेरे कब्ज़े में एक तछन भी निीं िै

बज-रिज अञ्र्जम से यूाँ बज-ख़बर उस ने ककयज

इस वजसते मुंलसफ़ ने मेरी क़ैद बढ़ज दी

दजर पर चढ़वज न दे ये िक़-बयजनी एक हदन

बेज़ुमा भी िूाँ और कोई र्जलमन भी निीं िै

सोचते िैं तेरे अपने बस तेरे िक़ में ‘शेफ़ज’

सजगर त्रिपजठी

दरू कर ले अपनी सजरी बदगुमजनी एक हदन ‘शेफ़ज’ कर्गजाँवी

+91 9920052915


णख़ज़जं की ज़दा सी रं गत बदल भी सकती िै बिजर आने की सूरत तनकल भी सकती िै र्लज

के शमअ अब उठ उठ के दे खनज छोड़ो

वो क्ज़म्मेदजरी से अज़खुद वपघल भी सकती िै िै शता सब ु ि के रस्ते से िो के शजम आये

अलीनज इतरत

क्ज़ंदज

रिने

तो रजत उस को सिर में बदल भी सकती िै

की ये तरकीब तनकजली मैं ने

अपने िोने की खबर सब र्ब ज़मीं रे त आसमजं

से छुपज ली में ने

की मजतनंद सरकती पजयी

थजम ललयज र्जन बचज ली मैं ने

अपने सूरर् की तमजज़त कज भरम रखने को नमा छजाँओं में

कड़ी धप ू

लमलज ली मैं ने

मरिलज कोई र्ुदजई कज र्ो दरपेश िुआ तो तबस्सुम की ररदज ग़म को उढ़ज ली मैं ने एक लम्िे को तेरी सम्त और

से उट्ठज बजदल

बजररश की सी उम्मीद लगज ली मैं ने

बजद मुद्दत मुझे नींद आई बड़े चैन की नींद ख़जक र्ब ओढ़ ली र्ब ख़जक त्रबछज ली र्ो ‘अलीनज’ ने सरे अशा दआ भेर्ी थी ु उस की तजसीर यिीं

िशा पे पज ली मैं ने

ज़रज सम्िल के र्लजनज

अक़ीदतों के चरजग़

भड़क न र्जएाँ के मसनद ये र्ल भी सकती िै अभी तो चजक पे लमि​िी कज रक़्स र्जरी िै अभी कुम्िजर की नीयत बदल भी सकती िै कोई ज़रूरी निीं वो िी हदल को शजद करे ‘अलीनज’ आप तबीयत बिल भी सकती िै

मौसमे गल ु पर णखज़जाँ कज ज़ोर चल र्जतज िै क्यों िर िसीं मंज़र बिोत र्ल्दी बदल र्जतज िै क्यों याँू अाँधेरे में हदखज कर रौशनी की इक झलक

मेरी मट् ु ठी से िर इक र्ुगनू तनकल र्जतज िै क्यों रौशनी कज इक मस ु जकिर थक के घर आतज िै र्ब तो अाँधेरज मेरे सरू र् को तनगल र्जतज िै क्यों

तेरे लफ़्ज़ों की तवपश से क्यों सल ु ग उठती िै र्जं सदा मेिरी से भी तेरी हदल ये र्ल र्जतज िै क्यों

अब के र्ब लौिे गज वो ,तो िजसलज रक्खें गें िम ये इरजदज उस के आते िी बदल र्जतज िै क्यों

दरू िै सरू र् ‘अलीनज’ किर भी उस की धूप से

बिा की चजदर में ललपिज तन वपघल र्जतज िै क्यों


सजअतें कैसे गुर्जरूं शबे तन्िजई की

तन्िजई के दश्त से अक्सर घबरज कर

मैं न बख्शग ूं ी खतजयें मेरे िरर्जई की

आवजर्ों कज शिर बनजयज र्जतज िै

उस कज मिबूब भी इक रोज़ चलज र्जये किीं

चजाँद ‘अलीनज’

और लमले उस को सर्ज ऐसी शनजसजई की

आनज कजनी करतज िै

तो र्ुगनू से कजम चलजयज र्जतज िै

वस्ल के ख्वजब की तजबीर न मजंगी कोई हिज्र के ददा से ज़ख्मों की मसीिजई की हदल की आवजज़ कज दरवजज़ज मक़ ु फ़्फ़ल कर के बंद कर दीं सभी रजिें तेरी रुस्वजई

की

िवज खद ु पर बिुत इतरज रिी िै अभी सजवन से लमलकर आ रिी िै

उर्ले बजदल पे इशजरे से ‘अलीनज’ ललक्खज मेरे मोिलसन ने मेरी यूाँ भी पज़ीरजई

की

उधर

मल्िजर छे ड़ज िै घिज ने

ज़मीं भी चप ु के चप ु के गज रिी िै छुआ यूाँ चजाँद ने शब ् को के उस की लसयि चजदर उतरती र्ज रिी िै णखर्जं के खौफ़ से अन्र्जन

रजस्तज पिले खद ु िी बनजयज र्जतज िै

पिी

बिजरों कज तरजनज गज रिी िै

किर उस कज िर नक्श लमिजयज र्जतज िै अचजनक रजस्ते दलदल पे उभरे सुबि सवेरे आग र्लज दी र्जती िै

शजम ढले सूरर् को बुझजयज र्जतज िै पिी पिी खब ू सुखजई र्जती िै और णखज़जं में उन्िें उड़जयज

ज़मीं क़दमों में त्रबछती र्ज रिी िै पसे दीवजर र्ो तजज़ज िवज थी दरे क्ज़न्दजन से िकरज रिी िै

र्जतज िै ककसी ज़ंर्ीर में र्कड़े बदन की

ऊपर वजलज ज़मीं हिलज कर कितज िै दतु नयज को ऐसे भी उठजयज र्जतज िै तजरीकी से शब ् की हि​िजज़त करने को चजाँद को पिरे दजर बनजयज र्जतज िै

आणखरी मंज़र र्ब आाँखों से गज़ ु र चक ु े पिलज मंज़र किर दोिरजयज र्जतज िै

ररिजई कज संदेसज लज रिी िै अलीनज इतरत +91 8882688571


रं र् इस कज निीं कक िम िूिे ये तो अच्छज िुआ भरम िूिे सूयभ ा जनु गुप्त

9969471516 हदल लगजने की भल ू थे पिले

अब र्ो पत्थर िैं िूल थे पिले मद् ु दतों बजद वो िुआ क़जइल िब उसे कब क़ुबल ू थे पिले उस से लमलकर िुए िैं कजर-आमद चजाँद तजरे फ़ुर्ूल थे पिले लोग चगरते निीं थे नज़रों से इश्क के कुछ उसूल थे पिले अन्नदजतज िैं अब गुलजबों के क्र्तने सूखे बबूल थे पिले

आर् कजाँिे िैं उन की शजख़ों पर क्र्न दरख़्तों पे िूल थे पिले दौरे -िजक्ज़र की ये इनजयत िै िम न इतने मलूल थे पिले झूठे इलज़जम मजन लेते िैं

िम भी शजयद रसूल थे पिले क्र्नके नजमों पे आर् रस्ते िैं वे िी रस्तों की धल ू थे पिले

एक िल्की सी ठे स लगते िी र्ैसे कोई चगलजस – िम िूिे आई थी क्र्स हिसजब से आाँधी उस को सोचो तो पेड़ कम िूिे कुलसायों कज निीं कोई मज़िब दै र ढि र्जये यज िरम िूिे

लोग चोिें तो पी गये लेककन ददा करते िुये रक़म – िूिे आईने, आईने रिे , गरचे सजफ़गोई में दम-ब-दम िूिे शजयरी, इश्क़, भूख, ख़द् ु दजरी

उम्र भर िम तो िर क़दम िूिे बजाँध िूिज नदी कज कुछ ऐसे

क्र्स तरि से कोई क़सम िूिे एक अफ़वजि थी सभी ररश्ते िूिनज तय थज और िम िूिे क्ज़न्दगी कंतघयों में ढजल िमें तेरी ज़ल् ु फ़ों के पेचो-ख़म िूिे तझ ु पे मरते िैं क्ज़न्दगी अब भी झठ ू ललक्खें तो ये क़लम िूिे


क्र्नके अंदर चचरजग़ र्लते िैं

अपने घर में िी अर्नबी की तरि

घर से बजिर विी तनकलते िैं

मैं सुरजिी में इक नदी की तरि

बफ़ा चगरती िै क्र्न इलजकों में

एक ग्वजले तलक गयज कफ़्यूा

धप ू के कजरोबजर चलते िैं

ले के सड़कों को बन्सरी की तरि

र्ब दरकते िैं पजाँव के छजले

ककससे िजरज मैं, ये मेरे अन्दर

तब किीं रजस्ते तनकलते िैं

कौन रितज िै ब्रस ू ली की तरि

ऐसी कजई िै अब मकजनों पर धप ू के पजाँव भी किसलते िैं

उसकी सोचों में मैं उतरतज िूाँ चजाँद पर पिले आदमी की तरि

बक्स्तयों कज लशकजर िोतज िै

अपनी तनिजइयों में रखतज िै

पेड़ र्ब कुलसायों में ढलते िैं

मुझको इक शख़्स डजयरी की तरि

खद ु रसी उम्र भर भिकती िै

मैंने उसको छुपज के रक्खज िै

िम तो सूरर् िैं सदा मुल्कों के

िूिे बुत रजत भर र्गजते िैं

लोग इतने पते बदलते िैं

मूड िोतज िै तब तनकलते िैं

ब्लैक आउि में रोशनी की तरि

सुख परीशजं िै गज़नवी की तरि बफ़ा चगरती िै मेरे चेिरे पर उसकी यजदें िैं र्नवरी की तरि

क़ैद इतने बरस रिज िै ख़न ू छूिने को तरस रिज िै ख़न ू

वक़्त-सज िै अनन्त इक चेिरज और मैं रे त की घड़ी की तरि

गजाँव में एक भी निीं ओझज और लोगों को डस रिज िै ख़न ू सौ दख ु ों कज लसतजर िर चेिरज

तजर पर तजर कस रिज िै ख़न ू छतररयजाँ तजन लें र्ो पजनी िो

उल्िे सीधे चगरे पड़े िैं पेड़

आसमजाँ से बरस रिज िै ख़न ू

रजत तफ़ ू जन से लड़े िैं पेड़

प्यजस से मर रिी िै ये दतु नयज

कौन आयज थज ककस से बजत िुई आाँसओ ु ं की तरि झडे िैं पेड़

और पीने को, बस, रिज िै ख़न ू


कजम आती निीं कोई छतरी बजग़बजाँ िो गये लकड़िजरे िजल पूछज तो रो पड़े िैं पेड़ क्यज ख़बर इंततज़जर िै ककस कज

बजररशों की िवज िै ख़जमोशी इस के क़जइल िैं आर् भी पत्थर सौ नशे कज नशज िै ख़जमोशी

सजलिजसजल से खड़े िैं पेड़ क्र्स र्गि िैं न िस से मस िोंगे

कंतघयजाँ िूिती िैं लफ़्ज़ों की

र्ोचगयों की र्िज िै ख़जमोशी

कौन सी बजत पर अड़े िैं पेड़ कोंपलें िूल पवियजाँ दे खो

कौन कितज िै ये कड़े िैं पेड़

इश्क़ की कुण्डली में छुररयजाँ िैं िर छुरी पर ललखज िै ख़जमोशी एक आवजज़ बन गयी चेिरज

र्ीत कर कौन इस ज़मीं को गयज

कजन कज आईनज िै ख़जमोशी

परचमों की तरि गड़े िैं पेड़ अपनी दतु नयज के लोग लगते िैं

कुछ िैं छोिे तो कुछ बड़े िैं पेड़ उम्र भर रजसतों पे रिते िैं

नैन भूले पलक झपकनज भी सोच कज केमेरज िै ख़जमोशी भीगती रजत की िथेली पर र्ैसे रं गे-हिनज िै ख़जमोशी

शजयरी पर सभी पड़े िैं पेड़ मौत तक दोसती तनभजते िैं आदमी से बिुत बड़े िैं पेड़ अपनज चेिरज तनिजर लें ऋतुएाँ

पेड़ क्र्स हदन से बे-ललबजस िुये बफ़ा कज क़िक़िज िै ख़जमोशी घर की एक-एक ईंि रोती िै बेहियों की ववदज िै ख़जमोशी

आईनों की तरि र्ड़े िैं पेड़

रूि तो दी बदन निीं बख़्शज ककस ख़तज की सज़ज िै ख़जमोशी घर में दख ु झेलती िर इक मजाँ की आतमज की दआ िै ख़जमोशी ु इश्क़ की इक्ब्तदज िै ख़जमोशी आि​िों कज पतज िै ख़जमोशी चजाँदनी िै , घिज िै ख़जमोशी भीगने कज मज़ज िै ख़जमोशी

गफ़् ु तेगु के लसरे िैं िम दौनों बीच कज फ़जसलज िै ख़जमोशी दे गई िर ज़ब ु जन इस्तीफ़ज

इस क़दर लब-कुशज िै ख़जमोशी


बक्स्तयों की िररक अदजलत में

ककस को मन के घजव हदखजयें िजल सन ु जयें र्ी के

इक रुकज फ़ैसलज िै ख़जमोशी

इन्सजनों से क्ज़यजदज अच्छे पत्थर ककसी नदी के

रजत-हदन भीड़-भजड़, िं गजमे

सजरी उम्र छुड़जते गज़ ु रे मिजर्नों से - चेिरे

इस सदी की दवज िै ख़जमोशी लफ़्ज़ मत िेंक ग़म के दररयज में सब से ऊाँची दआ िै ख़जमोशी ु दे वतज सब नशे के आदी िैं और उन कज नशज िै ख़जमोशी

बाँधुआ मज़दरू ों से अब तो र्ीवन िुये सभी के िर कजाँधे पर अनचगन चेिरे चगनती क्यज एक दो की रजवर् से भी क्ज़यजदज चेिरे इस आधतु नक सदी के िै ज़ज, िी. बी.,चेचक से मरती थी पिले दतु नयज

मक्न्दर, मसक्र्द, नेतज, कुरसी िैं ये रोग अभी के भल ू ी-त्रबसरी यजदों के ओ र्ोगी आते रहियो

ख़द ु से लड़ने कज िौसलज िो अगर

र्ी िल्कज कर र्जते तेरे िेरे कभी-कभी के

र्ंग कज तक्िबज िै ख़जमोशी

दोसतो! ख़द ु तलक पिुाँचने कज मुख़्तसर रजसतज िै ख़जमोशी

िम तो क़जततल िैं अपने ख़द ु सजहिब तीन सौ दो दफ़ज िै ख़जमोशी

िर मुसजकफ़र कज बस ख़द ु ज-िजकफ़ज़ डजकुओं कज क्ज़लज िै ख़जमोशी

ढूाँढ ली क्र्स ने अपनी कस्तूरी

उस हिरर् की हदशज िै ख़जमोशी लोग तस्वीर बन गये मर कर क्ज़न्दगी कज लसलज िै ख़जमोशी ककतनी िी बजर िम गये-आये िर र्नम की कथज िै ख़जमोशी कैकफ़यत िै बयजन के बजिर क्यज बतजएाँ कक क्यज िै ख़जमोशी थक के लौि आईं सजरी भजर्जएाँ लजपतों कज पतज िै ख़जमोशी

िर लम्िज क्ज़न्दगी के पसीने से तंग िूाँ

मैं भी ककसी क़मीज़ के कॉलर कज रं ग िूाँ मुिरज लसयजसतों कज, मेरज नजम आदमी

मेरज वुर्ूद क्यज िै , ख़लजओं की र्ंग िूाँ ररश्ते गुज़र रिे िैं ललए हदन में बवियजाँ मैं आधतु नक सदी की अाँधेरी सुरंग िूाँ

तनकलज िूाँ इक नदी-सज समन्दर को ढूाँढ़ने कुछ दरू कक्श्तयों के अभी संग-संग िूाँ मजाँझज कोई यक़ीन के क़जत्रबल निीं रिज तनिजइयों के पेड़ से अिकी पतंग िूाँ ये ककसकज दस्तख़त िै , बतजए कोई मझ ु े

मैं अपनज नजम ललख के अाँगठ ू े - सज - दं ग िूाँ


मयङ्क अवस्थी +91 8765213905

ये बेगुनजि शम्म: र्लेगी तमजम रजत

उसके लबों से छू गये थे लब शरजर के सीलन को रजि लमल गयी दीमक को सैरगजि अंर्जम दे ख लीक्र्ये घर की दरजर के सर्ती निीं िै तम ु पे ये तिज़ीब मग़ररबी इक तो ि​िे ललबजस िैं वो भी उधजर के

ख़श्ु क आाँखों से कोई प्यजस न र्ोड़ी िमने आस िमसे र्ो सरजबों को थी, तोड़ी िमने

बजदल निीं िुज़रू ये आाँधी िै आग की आाँखो से दे णखये ज़रज चश्मज उतजर के

िमने पजयज िै शरर अपने लिू में िरदम अपनी दख ु ती िुयी रग र्ब भी तनचोड़ी िमने र्ो साँवरने को ककसी तौर भी रजज़ी न िुई भजड़ में िेंक दी दतु नयज वो तनगोड़ी िमने इस तरि िमने समन्दर को वपलजयज पजनी अपनी कश्ती ककसी सजहिल पे न मोड़ी िमने र्ब कोई चजाँद लमलज दजग़ न दे खे उसके आाँख सूरर् से लमलजकर न लसकोड़ी िमने ग़दा ग़ैरत के बदन पर र्ो नज़र आयी कभी तब तो तजदे र , अनज अपनी णझंझोड़ी िमने

त्रबखर र्जये न मेरी दजस्तजाँ तिरीर िोने तक

ये आाँखें बझ ु न र्जयें ख़्वजब की तजबीर िोने तक चलजये र्ज अभी तेशज कलम कज कोिे –ज़ुल्मत पर लसयजिी वक़्त भी लेती िै

र्ू-ए-शीर िोने तक

इसी ख़जततर मेरे अशआर अब तक डजयरी में िैं

ककसी आलम में र्ी लेंगे ये आलमगीर िोने तक तेरे आग़जज़ से पिले यिजाँ र्ुगनू चमकते थे

ये बस्ती मफ़ ु ललसों की थी तेरी र्जगीर िोने तक मझ ु े तंज़ो-मलजमत की बड़ी दरकजर िै यूाँ भी

अनज को सजन भी तो चजहिये शमशीर िोने तक

क़ैदे - शबे- ियजत बदन में गुज़जर के

उड़ र्जऊाँगज मैं सुबि अज़ीयत उतजर के इक धप ू क्ज़न्दगी को याँू सिरज बनज गयी आये न इस उर्जड़ में मौसम बिजर के

मि ु ब्बत आणखरश ले आयी िै इक बन्द कमरे में तेरी तस्वीर अब दे खग ूाँ ज खद ु तस्वीर िोने तक


उलमालज मजधव

परमर्ीत लसंि परम +91 9868170118

ग़ज़ल ककस तरि िोगी क्ज़ंदगी की किी िम से गई हदल की न र्ी की. िमजरी अक़्ल पर पत्थर पडे थे, आंचधयजं चल रिी िैं लिरज कर मैं भी रख आऊं इक हदयज र्ज कर िर तरि रौशनी कज आलम िै , तीरगी क्यज रिे गी अब आ कर,

र्ो िम ने र्जत चन ु ली आदमी की. तुम्िजरे िी ललए पैदज िुए िम, मुरजदें कर लो पूरी रिबरी की. न लिर्ज नम न आाँखें िी लभगोईं,

इन चरजगों में कुछ न कुछ तो िै , लौि र्जती िै अब िवज आकर,

बिे वो बजढ में सूखी नदी की. अंधेरज क्यों चरजग़ों के तले िै ,

अब विजं र्जने कज ख्यजल न कर, हदल र्िजाँ िूितज िै र्ज-र्ज कर, मुझको कंदील लसफ़ा कजफ़ी िै ,

ख़बर तो लो ज़रज इस रौशनी की. सभी प्रश्नों के लमल र्जएंगे उिर, ज़रूरत िै ज़रज संर्ीदगी की.

इसमें रुक र्जये िै िवज आकर.... चरु जयज थज यक़ीनन शब ने सूरर् र्मजनत िो गई पर चोरनी की.

ये मजनज कोइ तेरी इक न मजने, “परम” तूने भी कब मजनी ककसी की.


खज गयज वक्त िमें नमा तनवजलों की तरि िसरतें िम पे िसीं ज़ोिरज—र्मजलों की तरि रूि की झील में चजित के काँवल णखलते िैं ककसी बैरजगी के पजक़ीज़ज ख़यजलों की तरि मनोिर शमजा सजगर पजलमपुरी

[आप की ग़ज़लें आप के सुपुि भजई द्ववर्ेंर द्ववर् [+91 9418465008] र्ी से सजभजर प्रजप्त िुईं]

ख़ंर्र—ब—क़फ़ िै सजक़ी तो सजग़र लिू—लिू िै सजरे मयकदे िी कज मंज़र लिू—लिू शजयद ककयज िै चजाँद ने इक़दजम—ए—ख़द ु कुशी पुरकैफ़ चजाँदनी की िै चजदर लिू—लिू

िर—सू दयजर—ए—ज़ेह्न में ज़ख़्मों के िैं गुलजब िै आर् फ़स्ल—ए—गुल कज तसव्वुर लिू—लिू अिले—र्फ़ज तो मिव थे ऐशो—तनशजत में िोते रिे ख़ल ु ूस के पैक़र लिू—लिू लजयज िै रं ग ख़न ू ककसी बेक़ुसूर कज

दे खी िै िमने चश्म—ए—लसतमगर लिू—लिू डूबी िैं इसमे मेह्र—ओ—मरव्वत की कक्श्तयजाँ िै इसललए िवस कज समंदर लिू—लिू

क्यज किर ककयज गयज िै कोई क़ैस संगसजर? वीरजन रजस्तों के िैं पत्थर लिू—लिू ‘सजग़र’ लसयजि रजत की आगोश के ललए सरू र् तड़प रिज िै उफ़क़ पर लिू—लिू.

थे कभी हदल की र्ो िर एक तमन्नज कज र्वजब

आर् क्यों ज़ेह्न में उतरे िैं सवजलों की तरि ? सजथ उनके तो िुआ लम्िों में सजलों कज गुज़र उनसे त्रबछुड़े तो लगे लम्िे भी सजलों की तरि ज़ख़्म तलवजर के गिरे भी िों भर र्जते िैं लफ़्ज़ तो हदल में उतर र्जते िैं भजलों की तरि िम समझते रिे कल तक क्र्न्िें रिबर अपने पथ से भिके विी आवजरज ख़्यजलों की तरि इनको कमज़ोर न समझो कक ककसी रोज़ ये लोग

मोड़ दें गे इसी शमशीर को ढजलों की तरि िूल को शूल समझते िैं ये दतु नयज वजले

बीते इततिजस के ववपरीत िवजलों की तरि आफ़रीं उनपे र्ो तौक़ीर—ए—वतन की ख़जततर दजर पर झूल गए झूलने वजलों की तरि िम भरी भीड़ में िैं आर् भी तन्िज—तन्िज अह्द—ए—पजरीनज के वीरजन लशवजलों की तरि ग़म से नज—आशनज इंसजन कज र्ीनज िै फ़ज़ल ू

ज़ीस्त से ललपिे िैं ग़म पजाँवों के छजलों की तरि अब कन्िै यज िै न िैं गोवपयजाँ ब्रर् में ‘सजग़र’ िम िैं फ़ुक़ातज़दज मथरु ज के गवजलों की तरि.


िै ककतनी तेज़ मेरे ग़मनवजज़ मन की आाँच

णख़ज़जाँ के दौर में िं गजमज—ए—बिजर थे िम

िो क्र्स तरि ककसी तपते िुए गगन की आाँच

ख़ल ु ूस—ओ—प्यजर के मौसम की यजदगजर थे िम

र्िजाँ से कूच करूाँ तो यिी तमन्नज िै

चमन को तोड़ने वजले िी आर् किते िैं

मेरी चचतज को र्लजए ग़म—ए—वतन की आाँच

वो गुलनवजज़ िैं ग़जरतगर—ए—बिजर थे िम

किजाँ से आए ग़ज़ल में सरू ु र—ओ—सोज़ो—गद ु जज़?

शर्र से शजख़ थी तो िूल शजख़ से नजलजाँ

उदजस रूिों में र्ीने की आरज़ू भर दे

िमें तो र्ीते —र्ी उसकज किीं तनशजाँ न लमलज

िुई िै मजाँद चरजग़—ए—शऊर—ए—फ़न की आाँच

लतीफ़ इतनी िै ‘सजग़र’ मेरे सख़ ु न की आाँच.

चमन के िजल—ए—परे शजाँ पे सोगवजर थे िम

वो सब्ु ि क्र्सके ललए मिव—ए—इंतज़जर थे िम िुई न उनको िी र्ुरात कक आज़मजते िमें वग़नजा र्जाँ से गुज़रने को भी तैयजर थे िम

छोड़े िुए गो उसको िुए िै बरस कई लेककन वो अपने गजाँव को भल ू ज निीं अभी

र्ो लि ु गए सर—ए—मिकफ़ल तो क्यज िुआ ‘सजग़र’

अज़ल से र्म ा ए—वफ़ज के गन ु — ु जिगजर थे िम.

वो मदररसे, वो बजग़, वो गललयजाँ ,वो रजस्ते मंज़र वो उसके ज़ेह्न पे िैं नक़्श आर् भी लमलते थे भजई भजई से, इक—दस ू रे से लोग िोली की धम ू — धजम िो यज ईद की ख़श ु ी

मज़िब कज थज सवजल न थी ज़जत की तमीज़ लमल—र्ुल के इविफ़जक से किती थी क्ज़न्दगी लजयज थज शिर में उसे रोज़ी कज मसअलज किर बन के रि गयज विी ज़ंर्ीर पजाँव की िै ककतनी बेललिजज़ कफ़ज़ज शह्र की र्िजाँ नज—आशनज िैं दोस्त तो िमसजये अर्नबी मजनज िज़जरों खेल तमजशे िैं शह्र में ‘सजग़र’ िै अपने गजाँव की कुछ बजत और िी.

अपनी मंक्ज़ल से किीं दरू नज़र आतज िै

र्ब मस ु जकफ़र कोई मर्बूर नज़र आतज िै घि ु के मर र्जऊाँ मगर तझ ु पे न इल्ज़जम धरूाँ मेरी कक़स्मत को ये मंज़ूर नज़र आतज िै

आर् तक मैंने उसे हदल में छुपजए रक्खज

ग़म—ए—दतु नयज मेरज मश्कूर नज़र आतज िै िै कररश्मज ये तेरी नज़र—ए—करम कज शजयद ज़रे —ज़रे में मुझे नूर नज़र आतज िै उसकी मौिूम तनगजिों में उतर कर दे खो उनमें इक ज़लज़लज मस्तूर नज़र आतज िै खेल िी खेल में खजयज थज र्ो इक हदन मैंने ज़ख़्म ‘सजग़र’ विी नजसूर नज़र आतज िै


नीरर् गोस्वजमी +91 9860211911 तुम्िजरे ज़िन में गर खलबली िै

बड़ी परु -लत्ु फ़ किर ये क्ज़न्दगी िै अर्ब ये दौर आयज िै कक क्र्स में ग़लत कुछ भी निीं िै , सब सिी िै मस ु लसल तीरगी में र्ी रिे िैं

ये कैसी रौशनी िम को लमली िै मुकम्मल ख़ुद को र्ो भी मजनतज िै यक़ीं मजनें , बिुत उस में कमी िै

र्ुड़ज तुम भीड़ से िो कर तो दे खो

अलग रजिों में ककतनी हदलकशी िै समन्दर पी रिज िै िर नदी को िवस बोलें इसे यज ततश्नगी िै निीं आती िै ‘नीरर्’ िजथ र्ो भी िर एक वो चीज़ लगती क़ीमती िै

मुक्श्कलों की बड़ी िैं यिी मुक्श्कलें

आप र्ब चजिें कम िों – तभी ये बढ़ें अब कोई दस ू रज रजसतज िी निीं

यजद तुझ को करें और क्ज़न्दज रिें बस इसी सोच से झूठ क़जयम रिज

बोल कर सच भलज िम बुरे क्यों बनें डजललयों पे िुदकने से र्ो लमल गयी

उस ख़श ु ी के ललये क्यों फ़लक पर उड़ें िम दररन्दे निीं गर िैं इनसजन तो आईनज दे खने से बतज क्यों डरें क्ज़न्दगी ख़ब ू सरू त बने इस तरि

िम किें तम ु सन ु ो तम ु किो िम सन ु ें आ के िौले से छू लें वो िोठों से गर तो सरु ीले मरु ललयज से ‘नीरर्’ बर्ें


अगर इंसजन की उम्मीद िी दम तोड़ र्जती िै तो अक्सर आरज़ू-ए-ज़ीस्त भी दम तोड़ र्जती िै मेरज घर भी उर्जलों के शिर की िद में िै लेककन

मङ्गल नसीम िाँस के लमलते िैं भले हदल में चभ ु न रखते िैं

िम से कुछ लोग मोिब्बत कज चलन रखते िैं पजाँव थकने कज तो मम ु ककन िै मद ु जवज लेककन लोग पैरों में निीं मन में थकन रखते िैं

ठीक िो र्जओगे किते िुए मंि ु िेर ललयज िजय! क्यज खब ू वो बीमजर कज मन रखते िैं

यिजाँ तक आते आते रौशनी दम तोड़ र्जती िै र्ो आ कर कोई पिज भी मेरी णखड़्की से ट्करजये

मेरे कमरे में छजई ख़जमुशी दम तोड़ र्जती िै

र्िजाँ से दोस्ती में फ़जयदज-नुक्सजन िो शजलमल िक़ीकत में विीं पे दोस्ती दम तोड़ र्जती िै

मैं अपनज ग़म सन ु जते वक्त दजतनस्तज निीं चुप िूाँ

लबों तक आते आते बजत िी दम तोड़ र्जती िै

दौर-ए-पस्ती िै सबज! वरनज तुझे बतलजते;

अपनी परवजज़ में िम ककतने गगन रखते िैं िम तो िजलजत के पथरजव को सि लेंगे नसीम बजत उनकी िै र्ो शीशे कज बदन रखते िैं

र्ो बरसजते ललखीं थीं बदललयों पर उतर आयीं छतों पर छर्ललयों पर र्लजयज िमने ख़द ु अपनज नशेमन निीं इल्ज़जम कोई त्रबर्ललयों पर

क्यज सीरत क्यज सूरत थी मजाँ ममतज की मूरत थी

भले इंसजन अब चगनती के िोंगे क्र्न्िें चजिो तो चगन लो उं गललयों पर

पजाँव छुए और कजम बने अम्मज एक मिूरत थी

बिुत भख ू ज िै ये मर्दरू दे खो न मजरो ठोंकरें यंू पसललयों पर

बस्ती भर के दख ु सुख में

'नसीम' इस दौर में मम ु ककन निीं िै

अम्मज अह्म ज़रूरत थी सच किते िैं मजाँ िमको तेरी बिुत ज़रूरत थी

ग़ज़ल किनज गुलों पर तततललयों पर


नवीन सी. चतुवेदी

िाँ सते-िाँ सते गुर्जर दे ते िैं

िर गुर्रते िुये समय के लोग ख़जमुशी को ज़ुबजन दे ते िैं शोर करते िुये समय के लोग

िम ने सजहिल बनजये दररयज पर और आततश को िैलने न हदयज िजय! क्यज-क्यज समेि लेते थे उस त्रबखरते िुये समय के लोग ऐ तरक़्क़ी र्वजब दे िम को िम विी नजदजाँ िैं र्ो ख़्वजबों को धरकर तजक पर

र्जगते िी रोज़ रख दे तज िै ख़द ु को चजक पर हदल वो दररयज िै क्र्से मौसम भी करतज िै तबजि

बोल ककस-ककस पे रड़्ग उाँ ड़ेल आयी इतनज बेरड़्ग िो निीं सकते रड़्ग भरते िुये समय के लोग

ककस तरि इलज़जम धर दें िम ककसी तैरजक पर

र्ो भी उस पजर उतर गये एक बजर

िम तो उस के ज़ह्न की उरयजतनयों पर मर लमिे

तैरनज भूल र्जते िैं शजयद

िम बख़ब ू ी र्जनते िैं बस िमजरे र्जते िी

सूर तुलसी कबीर के ककरदजर

दजद अगरचे दे रिे िैं क्र्स्म और पौशजक पर

कैसे-कैसे गुल णखलेंगे इस बदन की ख़जक पर और कब तक आप ख़द ु से दरू रक्खेंगे िमें अब िमजरे घर बनेंगे आप के अफ़लजक पर आइये अज़दजद की तिज़ीब से मजाँगें पनजि कर हदयज शबख़न ू किर ततरयजक ने इदरजक पर बजत और ब्यौिजर िी से र्जन सकते िैं इसे

किर कभी लौि कर निीं आये पजर उतरते िुये समय के लोग

िम को ये िी सबक लसखजते िैं ऊाँची-ऊाँची उड़जन भरते िैं पर कतरते िुये समय के लोग स्वगा र्ैसी वसुन्धरज अपनी

र्जने कब की बनज चक ु े िोते रोक लेते िैं एक तो िजलजत

और डरते िुये समय के लोग

इल्म की इमलज ललखी र्जती निीं पौशजक पर

बन्दगी सब से आलज कोलशश िै

उन के िी रू, आब की ख़जततर तरसते िैं 'नवीन'

इसललये िी तो मस्त रिते िैं

ग़ौर फ़रमजते निीं र्ो ज़ह्न की ख़रू जक पर

और इबजदत मशक़्क़ते-उम्दजि रब सम ु रते िुये समय के लोग


उठज के िजथ में खञ्र्र मेरी तलजश न कर

पिले तो िम को पड़्ख िवज ने लगज हदये

अगर िै तू भी लसकन्दर मेरी तलजश न कर

और किर िमजरे पीछे फ़सजने लगज हदये

दरस-परस के लसवज कौन र्जन पजयज मुझे

दतु नयज िमजरे नूर से वैसे भी दड़्ग थी

अगर सग ु न्ध की मजतनन्द उड़ निीं सकतज

तजरे बेचजरे ख़द ु भी सिर के िैं मन् ु तक्ज़र

अभी अाँधेरों के दर तक क्ज़यज निीं पिुाँची िसीन रजत के लश्कर मेरी तलजश न कर

ऐ कजरोबजरे -प्यजर ख़सजरज िी कुछ उतजर

मैं वो िूाँ क्र्स को अनजलसर सलजम करते िैं

कुछ यूाँ समय की र्ोत ने रौशन ककये दयजर

ककसी के हदल को दख ु जनज मुझे दख ु जनज िै

कमज़ोर यजददजश्त को मज़बूत यूाँ ककयज

मुझी से आाँख चरु ज कर मेरी तलजश न कर

तो घर में बैठ त्रबरजदर मेरी तलजश न कर

ख़लज के खोल के अन्दर मेरी तलजश न कर

ककसी के हदल को दख ु ज कर मेरी तलजश न कर

और उस पे चजर-चजाँद वपयज ने लगज हदये

सरू र् ने उगते-उगते ज़मजने लगज हदये

सजाँसों ने बेशम ु जर ख़ज़जने लगज हदये

िम र्ैसे बे-हठकजने हठकजने लगज हदये

यजदों के इदा -चगदा तरजने लगज हदये

मैं ख़द ु ख़ुदज िूाँ किीं भी रिूाँ मेरी मरज़ी तू लसफ़ा अपनी डगर पर मेरी तलजश न कर

सरू ज बनने की धनु में काया झल ु सा ली? क्या किने हजस को घर किते थे वो कुहिया भी जला दी? क्या किने ऐसज ठुकरजयज िै ककसी की यजदों ने

नैन-मिक्का करती िै मतलब पर चक ू निीं सकती हतस पर ख़दु को बतलाती िै सीधी-सच्ची – क्या किने

उस पत्थर-हदल को शजयद मजलूम निीं

उड़-उड़ कर कब तक उड़ती, हतस पर ऊँचा रिने का शौक़ हततली ने आहख़र िाथी से शादी कर ली – क्या किने

हदल िूिे , सजाँसें उखड़ीं तब रजज़ खल ु ज

इधर उधर से तस्वीरें ले कर कम्​्यिू र में डालीं जोड़-तोड़ कर एक नयी तस्वीर बना ली – क्या किने

इश्क़ इसे कहिये यज किर कहिये बैरजग

ठीक-ठाक सा एक हमसरा भी किना हजनको दभू र िै उन के नाम पचीसों ग़ज़लें!! वो भी अच्छी!!! क्या किने

र्ैसे वपंर्ड़े खोल हदये सय्यजदों ने

लैलज को मशिूर ककयज फ़ररयजदों ने

मिल सम्िजले रक्खे थे बुतनयजदों ने

ठण्डज कर डजलज िै सल ु गती यजदों ने रजम तो बन गये अवध-नरे श मगर सजिब मन कज मन्दर लि ू ललयज मरयजदों ने


तुझ को तेरे िी ख़तजवजर सम्िजले िुये िैं हदल तेरी बज़्म को हदलदजर सम्िजले िुये िैं

आप कज क्ज़क्र िै सो बोल रिे िैं, वरनज

इश्क़ एक ऐसी अदजलत िै क्र्से र्नमों से

थक चक ु े क्ज़स्म तो अब दौड़ लगजने से रिे

उस के अपने िी गुनिगजर सम्िजले िुये िैं र्ब भी गल ु शन से गर् ु रतज िूाँ ख़यजल आतज िै बे-वफ़जओं को वफ़जदजर सम्िजले िुये िैं तोड़ िी दे ती अदजवत तो न र्जने कब कज प्यजर के तजरों को फ़नकजर सम्िजले िुये िैं बीलसयों लोग िैं घर-बजर सम्िजले िुये और बीलसयों लोगों को घर-बजर सम्िजले िुये िैं

रम्ज़ की रजि की रफ़्तजर सम्िजले िुये िैं वजक़ई आप तो बजज़जर सम्िजले िुये िैं िम से उठतज िी निीं बोझ परजये ग़म कज िम तो बस अपने िी ववस्तजर सम्िजले िुये िैं एक हदन ख़द ु को सर्जनज िै तेरे ज़ख़्मों से इसललये सजरे अलंकजर सम्िजले िुये िैं

आि, अरमजन, तलजश और तसल्ली कज भरम अपनज सन्सजर यिी चजर सम्िजले िुये िैं वो सध ु र र्जयें तो शुरूआत सुधरने की िो

अरबों-खरबों को र्ो दो-चजर सम्िजले िुये िैं

लफ़्ज़ तो आाँखों के रसते भी तनकल सकते िैं

िजाँ! मगर वक़्त की रफ़्तजर बदल सकते िैं

हदल में संयम की अगर बफ़ा र्मज लें तो 'नवीन'

ऐन मुमककन िै कक सूरर् को तनकल सकते िैं

उदू का हज़क्र आते िी अक्सर मैं उछलता िँ ऐसे नक़्ु ता रखने पर मक्त ु ा-माहिक हमल जायेंगे जैसे ऐन-ग़ैन की बह्सों में हशरकत करता िँ कुछ ऐसे जैसे िर इक तकू पे मझु को हमलने वाले िों पैसे चन्द्र-हबन्द्दु और अनस्ु वार का अन्द्तर भी अब याद निीं निीं जानता िँसने वाला आहख़र िन्द्सेगा कै से (िसं ेगा) ड़ ि ञ का इस्तेमाल हकये इक अरसा बीत गया हदल - दल वाले िर्ू मगर पढ़ लेता िँ जैसे-तैसे सरू दास बन कर हदन-हदन भर मीरा को पढ़ता िँ और मीरो-ग़ाहलब बन जाता िँ रोज शाम पौने छै से क्षमजनुरजग सतत पज रिे क्षरर् लमिो

किीं अतनष्ि न कर दें दरु जचरर् लमिो िमें बस एक दशजनन-कथज स्मरर् िै बस अनेक बजर िुआ िै लसयज-िरर्

लमिो

समजर्-शजस्ि अलभप्रजय को तरसतज िै किीं त्रबगजड़ न दें िम समीकरर् लमिो

िम अगर चजिें तो बे-बजत मचल सकते िैं और चजिें तो णखलौनों से बिल सकते िैं उम्र बस इतनी समझ लीर्े कक र्ब चजिें तब पजका में र्ज के किसलनी पे किसल सकते िैं

स-िर्ा नष्ि करे िै ववरोध के अवसर तनतजन्त नेष्ि निीं िै वशीकरर् लमिो भववष्य उज्ज्वलतम ककस तरि बनजयेगज उदजरवजद प्रवततात तनर्ीकरर् लमिो


आञ्चललक गजलें

लसपजहियों की बिुररयों [पक्त्नयों] कज दीप-दजन अर्ब वपयज के नेि में अपनज क्र्गर [र्लजते] र्लजती िैं [नेि प्रेम / तेल]

ब्रर्-गर्ल

- नवीन सी. चतुवेदी

तरस गये िैं तकत बजि चचिकूि के घजि

न रजम आते न भगतों की ततस बझ ु जते िैं

अाँधेरी रै न में र्ब दीप र्गमगजवतु एाँ अमज काँू बैठें ई बैठें घम ु ेर आमतु एाँ

अबन के दध ू साँू मक्खन की आस कज करनी दिी त्रबलोइ कें मठ्ठज ई चीर पजमतु एाँ

पिलज ब्रर्-गर्ल संग्रि “पख ु रजर् िबज में उड़ रए एाँ“

प्रेस में िै । र्ल्द िी आप के िजथों में िोगज। दआ ु ओं की दरख़्वजस्त।

अपेक्षक्षत िै ।

सजहित्यजनुरजचगयों कज सियोग

अब उन के तजईं लड़कपन किजाँ साँू लजमें िम र्ो पढते-पढते कुिम्बन के बोझ उठजमतु एाँ िमजरे गजम ई िम काँू सिेर्त्वें सजिब

सिर तौ िम काँू सपिौ ई लील र्जमतु एाँ लसपजहियन की बिुररयन कौ दीप-दजन अर्ब वपयज के नेि में हिरदे न काँू र्रजमतु एाँ तरस गए एाँ तकत बजि चचिकूि के घजि

न रजम आमें न भगतन की ततस बुझजमतु एाँ

भजवजथा : अाँधेरी रजत में र्ब दीप र्गमगजते िैँ

अमज [अमजवस] को बैठे िी बैठे चक्कर आते िैं आर् कल के दध ू से मक्खन की आस क्यज करनी

मराठी गजल – नवीन सी. चतव ु ेदी सवा सख ु असतजनज िी अडचर् िवे कजिी लोकजंनज सतत भजण्डर् िवे

कजिी लोकजंनज र्मत नजिीं प्रयजस हठकहठकजर्ी बस्स आरक्षर् िवे ज्यजंनी घर र्ङ्गल बनववलज त्यजंनज िी आर् त्यजंच्यज सजठी संरक्षर् िवे लशक्षर्जथ्यजांनज प्रलशक्षर् द्यजयलज आर् गुरु लोकजंनज िी लशक्षर् िवे आपली प्रगतीच्यज दपार् बघ ‘नवीन’ आर् िसण्यज सजठी िी कजरर् िवे

दिी त्रबलो कर मठ्ठज िी चीर पजते िैं

भजवजथा :

अब उन के वजसते बचपन किजाँ से लजएाँ िम

सब सुववधजएाँ िोते िुये भी असुववधजएाँ चजहिये कुछ लोगों को बस झगड़ज चजहिये

िमजरे गजाँव िी िम को सिेर्ते िैं र्नजब

कुछ लोगों को प्रयजस निीं र्मतज

र्ो पढते-पढते कुिम्बों के बोझ उठजते िैं

शिर तो िम को समच ू ज िी लील [तनगल] र्जते िैं

िर र्गि बस आरक्षर् चजहिये


क्र्न्िों ने घर र्ङ्गल बनजयज उन को भी

दे श-भजर्ज-र्जतत-मज़िब चगने, मगर

आर् उन के ललये संरक्षर् चजहिये

मनुष्यों को चगननज रि गयज

ववद्यजचथायों को प्रलशक्षर् दे ने के ललये

सभी लोग िमजरी[मेरी]-तम् ु िजरी किते रिे

आर् गुरु लोगों को भी लशक्षर् चजहिये

िमजरी [िम-सब की] बोलनज रि गयज

अपनी प्रगतत कज आईनज दे ख ‘नवीन’ आर् िाँ सने के ललये भी कजरर् चजहिये गज ु राती गजल – नवीन सी. चतव ु ेदी

एक ततलज ववसरजयलज रजिून गेले अन स्वत: बदलजयलज रजिून गेले ते स्वत: घेऊन आले िोते उिर प्रश्न र्े सोडजयलज रजिून गेले गजाँवजिून आले शिर र्े मजनवी, ते गजाँवजलज परतजयलज रजिून गेले

दे श-भजर्ज-र्जतत-मज़िब मोर्ले, बस मजनवी मोर्जयलज रजिून गेले आमची तुमची म्िर्त बसले सकल-र्न आपली बोलजयलज रजिून गेले

કહેવા દે શ ું કામ રોકે છે મને તારા સમ ત ું વ્હાલી લાગે છે મને આવ કૂદકો મારી ને બ ૂડાઈ જા તારી આંખો ઍજ બોલે છે મને તારા થી કોણે કહ્,ું તનહાઈ માું હસ્ન નો પડ્કાર ભાવે છે મને મારા થી અભભમાન લઈ તારું હૃદય પ્રેમ ના વરસાદ ધીરે છે મને

दे वनजगरी ललवप में : किे वज दे शुं कजम रोके छे मने

भजवजथा :

तजरज सम तुं व्िजली लजगे छे मने

एक उसे भूलनज रि गयज

आव कुदको मजरी ने बूडजई र्ज

और ख़द ु बदलनज रि गयज

तजरी आाँखो एर् बोले छे मने

वो स्वयं उिर ले कर आए थे

तजरज थी कोर्े कियु – तनिजई मजं –

क्र्न प्रश्नों को िल करनज रि गयज

िुस्न नुं पडकजर भजवे छे मने

गजाँव से र्ो लोग शिर आये, उन कज

मजरज थी अलभमजन लई, तजरूाँ हृदय

गजाँव वजपस र्जनज रि गयज

प्रेम नज वरसजद धीरे छे मने


दे वनजगरी ललवप में : भजवजथा : किने दे क्यों रोकती िै मुझे

छे ते दे खजतु नथी, दे खजय छे ते छे र् क्यजं

आवी घिनजओ मुसलसल थजय छे िर दौर मजं

तेरी कसम तू प्यजरी लगती िै मुझे

आधतु नकतज नज वकीलो ए कदी कितज नथी

आ इन में गोतज मजर कर ड़ूब र्ज तेरी आाँखें यिी किती िैं मझ ु े

सदीओ वीती शोधतज, थजकी गयो, पर् नज र्ड़ी

तझ ु से ककस ने किज, तनिजई में िुस्न की चन ु ौती भजती िै मझ ु े

मुझसे अलभमजन ले कर, तेरज हृदय प्रेम की बजररशें उधजर दे तज िै मुझे

केिलज गजमो गुमजव्यज शिर नज ववस्तजर मजं

मजरी ओर्ख आर् पर् वखर्जय छे मुझ गजम मजं िे प्रभो केवी रीते आ भर् ू मजरज थी थयी

बेकफ़न रुख़सत कयजा छे खेतड़ो कजपूस नजं स्वप्न बीर्ज पर् घर्ज’तज, पर् किूाँ तो शुं ‘नवीन’

છે તે દે ખાત નથી દે ખાય છે તે છે જ ક્ાું આવી ઘટનાઓ મસલસલ થાય છે હર દૌર માું આધનનકતા ના વકીલો ઍ કદી કહતા નથી કેટલા ગામો ગમાવ્યા શહર ના નવસ્તાર માું સદીઓ વીતી શોધતા,

થાકી ગયો, પણ ના જડી મારી ઓણખ

आख्खी नी आख्खी उम्मर वीती छे एकर् ख़्वजब मजं भजवजथा : र्ो िै वो हदखतज निीं िै और र्ो हदखतज िै वो िै िी किजाँ ऐसी घिनजएाँ तो लगजतजर िर दौर में िोती िैं आधतु नकतज के वकील कभी ये निीं बतजते

कक शिर के ववस्तजर में ककतने गजाँव गाँवजने पड़े ढूाँढते-ढूाँढते सहदयजाँ बीत गईं,

આજ પણ વખણાય છે મ ૂઝ ગામ માું

थक गयज िूाँ, मगर लमली निीं मेरी पहिचजन कज बखजन

હે પ્રભો કેવી રીતે આ ભ ૂણ મારા થી થયી

आर् भी मेरे गजम में िोतज िै

બે-કફન રખ્સત કયા​ા છે ખેતણો કાપ ૂસ નાું સ્વપ્ન બીજા પણ ઘણા'તા પણ કહ ું તો શ ું 'નવીન' આખ્ખી ની આખ્ખી ઉમ્મર વીતી છે ઍકજ ખ્વાબ માું

िे प्रभो ककस तरि मझ ु से यि भल ू िो गयी मैं ने कपजस के खेतों को

त्रबनज कफ़न रुख़सत कर हदयज स्वप्न और भी थे पर क्यज किूाँ ‘नवीन’ सजरी की सजरी उम्र एक िी ख़्वजब में बीत गयी


चन्द्द अ आर

उनके कदमों पे न रख सर कक ये िै बेअदबी . पजाँव नजर्ुक तो सर आंखो पे ललए र्जते िैं अब तो दश्ु मन के इरजदो पे भी प्यजर आतज िै तेरी उलित ने मोिब्बत मेरी आदत कर दी

सङ्कलन कतान – प्रमोद कुमार +91 8860830902

[सङ्कलन कतजा अच्छे शेर यजद रखने के र्बदा स्त शौकीन िैं। सभी शजयरों के नजम उन्िें यजद निीं िैं, ललिजज़ज शोरज िर्रजत के नजम निीं हदये र्ज रिे िैं] त्रबछड़ते वक़्त मड़ ु कर दे ख लेतज

मोिब्बत के ललए इतनज बिुत थज तुम मुझे भूल भी र्जओ तो ये िक़ िै तुमको मेरी बजत और िै मैंने तो मोिब्बत की िै

इक ऐसज वक़्त भी आतज िै चजाँदनी शब मे मेरज हदमजग मेरज हदल किीं निीं िोतज

तेरज ख्यजल कुछ ऐसज तनखर के आतज िै तेरज ववसजल भी इतनज िंसी निीं िोतज

उनकज ख़यजल उनकी तलब उनकी आरर्ू

क्र्स हदल मे िो वो मजंगे ककसी मेिरबजाँ से क्यज किजाँ तक आाँख रोएगी किजाँ तक हदल को गम िोगज

मेरे र्ैसज यिजाँ कोई न कोई रोर् कम िोगज

तझ ु े पजने की कोलशश मे कुछ इतनज खो चक ु ज िूाँ मै

कक तू लमल भी अगर र्जए तो अब लमलने कज गम िोगज

यज इलजिी तू कभी वो हदन न हदखलजनज मुझे

मै अज़ीज़ों से किूाँ - क्यज तुमने पिचजनज मुझे

िम तो त्रबक र्जते िैं उन अिले करम के िजथों करके एिसजन भी र्ो नीची नर्र रखते िैं मै रोनज चजितज िूाँ खब ू रोनज चजितज िूाँ मै किर उसके बजद गिरी नींद सोनज चजितज िूाँ मै अगर वो पूछ लें िमसे - तुम्िें ककस बजत कज ग़म िै

तो किर ककस बजत कज ग़म िै - अगर वो पूछ लें िमसे

वो क्र्नके घर मे हदयज तक निीं र्लजने को ये चजाँद लसिा उन्िीं के ललए तनकलतज िै वो झूठ बोल रिज थज बड़े सलीके से

मै एतबजर न करतज तो भलज क्यज करतज मै बोलतज गयज िूाँ, वो सुनतज रिज खजमोश ऐसे भी मेरी िजर िुई िै कभी कभी वो सर्दज क्यज - रिे एिसजस क्र्समे सर उठजने कज

इबजदत और बक़ैदे -िोश - तौिीने इबजदत िै उसने मुसकज के िजल पूछज िै तंज़ करने मे भी सलीक़ज िै

बढ़ज दे र्ुरत ्ा ें ररंदजनज दस्ते शौक बढ़ज नकजब ख़द ु निीं उठते उठजए र्जते िैं

इक ऐसे बज़्म ए चरजगजं कज नजम िै दतु नयज र्िजं चरजग़ निीं हदल र्लजए र्जते िैं


प्रयोग

अतत कजम — क्र्समें शंग ृ जर, िजस्य, अद्भुत नजम के िुतीले णखलजड़ी खड़े ककये।

मध्य कजम — क्र्समें वीर, करुर्, वजत्सल्य नजम के शजरीररक सौष्ठव वजले णखलजड़ी खड़े ककये। धचंतन की रस यािा – प्रतुल वल ष्ठ "एक बजर कजव्य-सजधनज के समय सिसज मेरज चचंतन सजहिक्त्यक रसों के पथ पर तनकल पड़ज। समस्त रसों को 'कजम' की तीव्रतज के आधजर पर ववभजक्र्त करके समझने लगज। पिले पिल अततकजम, मध्यकजम, और शन् ू यकजम करके सभी

रसों को इन श्रेणर्यों में रखज। किर श्रेणर्यों के नजम बदलकर उसे किर से ववभजक्र्त ककयज। .... अद्भुत आनंद लमलज।" र्ब कोई कजव्य-सजधक नयज चचंतन करतज िै तो वि मन में उपर्े स्थजयी-अस्थजयी भजवों को कुछ

कक्षजओं में अनुशजलसत करने कज खेल खेलतज िै।

आने वजले समय में यहद कजव्य-अभ्यजलसयों और कजव्य-रलसकों को वि रुचतज िै तो वे उसके ज्ञजतअज्ञजत रूप से प्रचजरक िो र्जते िैं। 'कजव्यशजस्ि की लशक्षज वतामजन समय में अपनी मि​िज कैसे स्थजवपत करे ?' – इस चचंतज से कई ववद्वजन ् और ववदवू र्यजाँ अपने-अपने प्रयजस ज़जरी

रखे िुए िैं। कुछ कजव्यशजस्ि पर अच्छी कक्षजएाँ दे रिे िैं तो कुछ उत्कृष्ि कजव्य-लेखन कर रिे िैं। सभी के प्रयजसों से कजव्य की समद् ृ ध परम्परज चलजयमजन िै ।

एक सुबि क्र्स चचंतन ने 'कलम' णखलौनज लेकर

खेल आरम्भ ककयज उस 'चचंतन-क्रीड़ज' में आप भी सक्म्मललत िो सकते िैं : पिले पिल कलम ने पजलज खींचज :

शन् ू य कजम — क्र्समें शजंत, वीभत्स, रौर,

भयजनक नजम के णखलजड़ी रि गए र्ो िजर-र्ीत की चचंतज से मक् ु त हदख रिे थे। पजलज खींचने के बजद संतोर् निीं िुआ। चचंतन ने खींचे िुए पजले को नए नजम हदए : रत ु कजम — क्र्समें णखलजड़ी विी थे -- शंग ृ जर, िजस्य, अद्भुत

श्लथ कजम — क्र्समें णखलजड़ी विी थे -- वीर, करुर्, वजत्सल्य अकजम — क्र्सके दो उपभजग ककये -- तनष्कजम / दष्ु कजम तनष्कजम में – शजंत को खड़ज ककयज दष्ु कजम में – वीभत्स, रौर, भयजनक (दस ू रे उपभजग में ) खड़े िो गए।

शंग ृ जर — अतत, मध्य, मंद अतत शंग ृ जर : संयोग (तनःशब्द रतत-व्यजपजर) / ववयोग (प्रसप्ु त ववरि-ज्वजर) मध्य

शंग ृ जर

:

संयोग

(आकर्ार्,

परस्पर

वजतजालजप, सजतनध्य) / ववयोग (सख ु द स्मतृ तयजाँ, दख ु दजयी परदे शगमन, मजन, पव ू रा जग)


मंद शंग ृ जर : संयोग (सजक्षजत शब्द संवजद, चजिनज) / ववयोग (कथन मजि, कववतजई)

अलक्ष्य सजध्य (व्यथा मौन) : प्रततकक्रयजिीनतज,

प्रौढ़ : अट्ि​िजस, अपिलसत, अततिलसत :

िलसत

(णखलणखलजि​ि),

प्रततकक्रयज भजव, ज्ञजनपरक तप, वैरजग्य भजव युक्त ऋवर्-मुतनयों की सजधनज

िजस्य — प्रौढ़, युवज, बजल

यव ु ज

लक्ष्य सजध्य (अथा मौन) : ववपरीत क्स्थतत में

उदजसीनतज, तिस्थतज वविलसत

वीभत्स —

(पररिजसजत्मक िाँसी) बजल : सक्ु स्मत (मस् ु कजन)

क्षोभर् (शुद्ध) : पजपी (अपरजधी) से घर् ृ ज, रुचधर आहद से उत्पन्न घर् ु दरी के उरु-उरोर्ों के ृ ज, सन्

करुर् — आभ्यंतर, बजह्य

प्रतत वैरजग्य

आभ्यंतर : मजनलसक वेदनज से उपर्ज कजतर स्वर

उद्वेगी (अशुद्ध) : पजप (अपरजध) से घर् ृ ज, कृलम

बजह्य : शजरीररक वेदनज से उपर्ी करजि अद्भुत* — ववश्वसनीय, अववश्वसनीय, कपिपूर्ा ... [इस पर कभी और क्रीड़ज रचें गे]

ववष्ठज, शव आहद से उत्पन्न घर् ृ ज। रौर —

अत्यंत क्रोध : ववनजश भजव (अतनष्ि), पूर्त ा यज समजप्त कर दे ने की इच्छज

वीर* — उदजि, लललत, प्रशजंत, उद्धत यज, युद्धवीर, कमावीर, धमावीर, दजनवीर [शजस्िोक्त] वजत्सल्य — प्रौढ़, युवज, बजल

क्षीर् क्रोध : क्षत-ववक्षत करने कज भजव, चोि यज घजत करने की इच्छज भयजनक —

प्रौढ़ : मजतज-वपतज (अलभभजवक) कज अपने बच्चों से

र्ड़ भय : स्तब्ध रि र्जनज, क्स्थर रि र्जनज, अवजक रि र्जनज, कंठजवरुद्ध िोनज

युवज : प्रत्येक बड़े कज प्रत्येक छोिे से, प्रत्येक सबल कज प्रत्येक तनबाल से, प्रत्येक सक्षम कज प्रत्येक असिजय से

चेतन भय : कम्पन िोनज, भजगनज-दौड़नज, सुरक्षज

के ललए चीख-पक ु जर करनज, िकलजनज, तछपते किरनज, सजमने न आनज, नज़रें नीची कर लेनज,

बजल : र्ीवों से वस्तओ ु ं से और स्थजन से।

ववपरीत कजया करने लगनज।

शजंत —

चचजा कज उद्दे श्य– ववचजर-ववमशा / मजगादशान / भल ू -सध ु जर [यहद कोई िो]


किज र्जतज िै कक इस्लजम पूवा अरब में ग़ज़ल कज

वव ष े

र्न्म िुआ! ग़ज़ल से पिले अरब प्रजंत में क़सीदे (लम्बी कववतज, प्रशंसजगजन) कज चलन थज! एक लेख

में

प्रख्यजत

कथजकजर

प्रोफ़ेसर

अब्दल ु

त्रबक्स्मल्लजि सजिब फ़रमजते िैं-‘क़सीदे में र्ब प्रेम

कि पररपक्व होगी भोजपुरी ग़ज़ल - इर ाद खान लसकन्द्दर

कज प्रवेश िुआ तो ग़ज़ल कज र्न्म िुआ और इसकज श्रेय र्जतज िै इमरउल क़ैस (539ई.)को! अरबी सजहित्य के ववशेर्ज्ञों कज मजननज िै कक इमरउल क़ैस ज़मजनज-ए-र्जहिललयज (अंधकजर यग ु ) कज पिलज शजयर िै क्र्सने ग़ज़ल किी! उसी ने

ग़ज़ल और उसकज व्यजकरर् नजमक पस् ु तक के पिले िी अध्यजय में ललणखत पंक्क्तयों पर ज़रज ग़ौर कीक्र्ये ‘’यहद कोई व्यक्क्त यि प्रश्न करतज िै कक ग़ज़ल क्यज िै तो, मेरे

ववचजर में , इस

ववर्य की प्रजरं लभक चचजा के समय उसे यि उिर हदयज र्जनज चजहिए कक ग़ज़ल र्ो कुछ भी िो लेककन वि गीत कदजवप निीं िै ! इस बजत कज उल्लेख इसललए आवश्यक िै क्योंकक भोर्पुरी में

आर् भी ऐसे लोगों की संख्यज बिुत अचधक िै र्ो ववरि गीत को िी ग़ज़ल समझते िैं! ग़ज़ल कज शजक्ब्दक अथा ‘प्रेमजलजप’ यज मिबूब से बजतें

करनज अवश्य िै ककन्तु प्रेमजलजप यज मिबूब से की गयी सभी

बजतें ग़ज़ल निीं िोतीं! यिजाँ ये

भी स्पष्ि करनज आवश्यक िै कक अब ग़ज़ल अपने शजक्ब्दक अथा के दजयरे से बजिर तनकलकर समूचे ब्रम्िजंड और ब्रम्िजंड के सब ववर्यों पर

गंभीर ववमशा कर रिी िै ! ग़ज़ल िोने के ललए ग़ज़ल के मूल लसद्धजंत एवं व्यजकरर् कज पजलन

अतत आवश्यक िै ! ग़ज़ल अपने िुस्न में ततनक भी कमी बदजाश्त निीं कर सकती; और अगर ककसी ने र्बरन इससे कोई छे ड़छजड़ की तो स्वयं ये उसे अपने प्रजंगर् से बजिर धकेल दे ती िै ! आर् के समय में र्िजाँ कजव्य की दस ू री ववधजएं दम

तोड़ रिी िैं विी​ीँ ग़ज़ल प्रततहदन अपने दीवजनों की तजदजद बढ़ज रिी िै !

सवाप्रथम प्रेलमकज के उर्ड़े दयजर पर रूककर उसकी यजद में अपने दोस्तो के सजथ लमलकर रोने की कजव्यजत्मक परम्परज की नींव डजली’’ इमरउल क़ैस से शुरू िुई ग़ज़ल, पीढ़ी दर पीढ़ी अपनज सफ़र तय करती िुई पिले ईरजन किर हिन्दस् ु तजन पिुंची! तब हिन्दस् ु तजन में उदा ू कज

र्न्म निीं िुआ थज! हिंदी यज हिन्दवी में र्ो सबसे पिली ग़ज़ल किी गयी वो संभवतः अमीर ख़स ु रो सजिब ने किी क्र्सकज मतलज यूाँ िै र्ब यजर दे खज नैन भर हदल की गयी चचंतज उतर ऐसज निीं कोई अर्ब रजखे उसे समझजयकर मुग़लों के शजसन कजल में बजदशजि के लोगों और

मक़जमी लोगों की बजत चीत से र्ो तीसरी भजर्ज र्न्मी उसे रे ख़्तज कज नजम हदयज गयज ! रे ख़्तज यजनी लमलीर्ुली भजर्ज रे ख़्तज यजनी उदा ू कज पुरजनज

नजम! रे ख़्तज यजनी ग़ज़ल की नयी भजर्ज! ग़ज़ल अरबी, फ़जरसी, हिन्दवी से िोती िुई अब रे ख़्तज में प्रवेश कर चक ु ी थी! और ये किनज अततश्योक्क्त न िोगी कक ग़ज़ल परू ी तरि र्वजन

रे ख़्तज यजनी उदा ू में िी िुई और र्वजनी भी ऐसी कक र्ो ढलने कज नजम िी निीं लेती मशिूर शजयर मन ु व्वर रजनज सजिब फ़रमजते िैं-

ये सच िै उम्र सभी औरतें छुपजती िैं मगर शबजबे-ग़ज़ल वजक़ई सलजमत िै


ग़ज़ल ने उदा ू फ़जरसी में इतनी ख़्यजतत अक्र्ात

कर ली कक हिन्दस् ु तजन की दस ू री ज़बजनें भी इस ववधज की तरफ़ णखंचती चली आईं! हिंदी में

में भोर्पुरी की िजलत दयनीय िै ! िजलजंकक

सजहित्य की सभी ववधजओं में भोर्पुरी की िजलत दयनीय िै ककन्तु बजत ग़ज़ल पर िो रिी िै

इसललए ग़ज़ल ववधज कज िी मैंने उल्लेख ककयज,

भजरतें द ु िररश्चंर समेत समय समय पर तमजम

मेरे इस कथन कज यि अथा कदजवप निीं िै कक

आर् भी र्जरी िै , ककन्तु केवल दष्ु यंत कुमजर को

तो खब ू िो रिज िै यिजाँ तक कक ग़ज़ल के संग्रि

रचनजकजरों ने इस ववधज में कोलशशें कीं! र्ो कक छोड़ कोई स्थजवपत न िो सकज!

पंर्जबी ज़बजन में भी तमजम शजयरों ने ग़ज़लें किीं क्र्नमें

लशव कुमजर बिजलवी सजिब कज नजम

भोर्पुरी में ग़ज़लों पर कजम निीं िो रिज, कजम प्रकजलशत िो रिे िैं, ककन्तु अचधकतर लोग ग़ज़ल के नजम पर कूड़ज-कचरज परोस रिे िैं, और र्ो

रचनजकजर ग़ज़ल किने में सक्षम िैं वो कोई लजभ न लमलतज दे ख अपने आप को इससे अलग ककये

उल्लेखनीय िै ! आर् गर् ु रजती, मरजठी, लसन्धी,

ब्रर्, मैचथली, भोर्पुरी, अवधी समेत भजरत की

िुए िैं! इन त्रबन्दओ ु ं पर भोर्परु ी के रचनजकजरों को गंभीरतज से ववचजर करनज िोगज! और नए

तमजम ज़बजनों में ग़ज़लें किी र्ज रिी िैं.ककन्तु

रचनजकजरों को ग़ज़ल की बजरीककयजाँ सीखकर िी

उदा ू वजलज मज़ज ककसी दस ू री ज़बजन की ग़ज़ल में मौर्ूद निीं िैं बक्ल्क अचधकतर तो ऐसी िैं क्र्न्िें

इस ववधज में प्रयजस करनज िोगज तभी वो खद ु को और भोर्पुरी ग़ज़ल को सम्मजन हदलज पजयेंगे!

ग़ज़ल किनज ग़ज़ल की तौिीन िोगी! इसकज

सबसे बड़ज कजरर् दस ू री ज़बजन के शजयरों कज ग़ज़ल के मौललक स्वरुप से अनलभज्ञ िोनज िै !

िम ऊपर चचजा कर चक ु े िैं कक ग़ज़ल अरबी फ़जरसी से िोती िुई उदा ू ज़बजन तक पिुंची लेककन इस यजिज में एक र्ो सबसे मित्त्वपूर्ा बजत शजलमल िै वो यि िै कक ग़ज़ल के मौललक स्वरुप

में कोई पररवतान निीं िुआ थज अथजात ग़ज़ल के छं द विी थे और इस ववधज को अपनजने वजले रचनजकजर इससे भली भजंतत पररचचत थे! िजाँ आगे चलकर इसमें ज़बजन की तरजश-ख़रजश एवं इसे और बेितर बनजने के ललए ववशेर्ज्ञों ने ख़ब ू कजम

ककयज! र्ो कक इसके िुस्न और कलशश को आर् भी बरक़रजर रखे िुए िै ! मैंने इस लेख के शीर्ाक में किज कक ‘कब पररपक्व िोगी भोर्परु ी ग़ज़ल’ इसकज मख् ु य कजरर् ये िै

कक दस ू री ज़बजनों की ग़ज़लें धीरे धीरे ग़ज़ल के मौललक स्वरुप तक पिुाँच रिी िैं, और दस ू री ज़बजनों के रचनजकजर इस हदशज में गंभीरतज से कजया कर रिे िैं ककन्तु बड़े दःु ख के सजथ इस

किु सत्य को स्वीकजर करनज िोगज कक इस हदशज


िर्जरो गज़ल पसन्द

व्यडिक्तत्व

करने वजलो और सीखने

वजलो के ललये परक्स्तश और प्रशंसज कज सबब बन गयज। अमरीकज िो यज पजककस्तजन , तुिैल सजिब र्िजाँ भी गये िैं विजाँ के अदबी िल्कों और समजचजर

पिों ने उन्िें िजथों िजथ ललयज िै ।ति ु ै ल िूलों कज गल ु दस्तज िै -िमजरे अिद की सबसे खश्ु बद ू जर फलक पर नरू का

जरा –"तफ ु ि ल चतव ु ेदी" एक

स्केच : मयङ्क अवस्थी

दे वनजगरी ललवप मे ग़ज़ल की लोकवप्रयतज चजर नजमो की कृतज्ञ िै –पंडडत अयोध्यज प्रसजद गोयलीय –सरदजर बलवंत लसंि यजनी प्रकजश

पक्ण्डत –नरे न्र नजथ और क्र्नके बजरे मे िम आगे बजत कर्ं गे –यजनी र्नजब मुि​िरम तुिैल चतुवेदी क्र्नकज पूरज नजम ववनय कृष्र् चतुवेदी तख़्ल्लुस "तुिैल" िै और यि नजम आर् गज़ल

के दयजर मे प्रेम, प्रशंसज, ,भय ,आतंक और अन्य मजनस के संचजरी भजवों के सजथ ललयज र्जतज िै क्र्समे सबसे ऊपर कज भजव आदर कज भजव िै – एक ऐसज व्यक्क्त क्र्सकी ग़ज़ल किने और समझने की प्रततभज तनववावजद श्रेष्ठतम की श्रेर्ी मे आती िै –र्ो दे वनजगरी की सबसे दमदजर और सबसे प्रशंलसत ग़ज़ल पत्रिकज लफ़्ज़ के सवेसवजा िैं और क्र्नकी आवजज़ अदब के बेशुमजर शोर गुल मे भी चप ु रि कर सुनी र्जती िै ।

पिले नैनीतजल और अब ऊधमलसंि नगर की कजशीपुर स्िे ि के कुलदीपक "तुिैल सजिब"चजाँदी

कज चम्मच माँि ु मे ले कर पैदज िुये और मिर् 18 बरस की उम्र मे िकीरी ले कर आध्यजक्त्मक यजिज पर

तनकल गये –लेककन ग़ज़ल ववधज को

अपनज सबसे बडज पैरोकजर और नम ु जइन्दज लमलनज थज इसललये मरिूम कृष्र् त्रबिजरी नरू के शजइरी के घरजने मे अदब के इस चश्मो चरजग़ की तबीयत और परवररश िुई और बजद मे यिी नजम

आवजज़ के मजललक र्ैसज कक उनको िोन पर सन ु

कर आपको मिसस ू िोगज। ये बि​िर तनश्तरों वजले

तनक़ीदकजर भी िैं र्ैसज कक अपनी गज़ल उनको सन ु ज कर आपको मिसूस िोगज। ये पत्थर की

तनगिबजनी मे शीशे की हि​िजज़त के पैरोकजर िैं। चजिे करजची िो यज न्यूयजका िर र्गि उन्िोने

अपनी अप्रततम और ववलक्षर् प्रततभज कज लोिज मनवजयज िै । कुल लमलज कर र्ैसे आध्यजत्म मे ओशो रर्नीश पर प्रततकक्रयज दे नज इस दौर के िर

तजललबे इल्म की मर्बूरी िै वैसे िी ग़ज़ल के

शिर मे तुिैल के परचम को सलजम करनज अदीबों की ज़रूरत िी निी मर्बूरी भी िै । इनके यिजाँ अच्छी ग़ज़ल को वि ृ िर क्षक्षततर् हदये र्जते िैं –

नजमचीन िोनज कोई पजबन्दी निी िै लफ़्ज़ मे छपने के ललये लसिा ग़ज़ल पजएदजर और ऊंचे मेयजर की िोनी चजहिये । वो सच किते िैं लसिा सच किते िैं और सच के लसवज और कुछ निी किते क्र्सकी तस्दीक़ उनकी ग़ज़ले और उनके

सोशल इश्यूर् पर हदये गये तमजम बयजनजत करते िैं।

ववभजर्न के बजद भजरत की भजर्ज हिन्दी उदा ू के संक्रमर्

कजल

से

भी

गुज़री

और

आर्

हिन्दस् ु तजन मे क्र्स भजर्ज मे संवजद ककयज र्जतज

िै उसमे हिन्दी , उदा ू और अंग्रेज़ी के शब्द बेिद सिर् रूप मे शम ु जर िैं। अब सवजल यि िै कक

"भजर्ज बितज नीर" के इस दै नक्न्दन पररवती स्वरूप मे सजहित्य और समजर् के ललये स्वीकजया अंश की तनशजनदे िी और पैरवी कौन करे गज ?!! तो हिन्दस् ु तजन के ललये और ग़ज़ल िजमेि के


ललये कौन सी भजर्ज सिीक और उपयुक्त िो

िजमेि और भजर्ज के ववकजस के लशखर पर रि

सकती िै इसकी मुिर आर् तुिैल चतुवेदी के

कर वे इसकी नुमजइन्दगी करते िैं।

एक मोतबर शजइर ने मंच पर ये शेर सुनजयज –

अपने उस्तजद मरिूम र्नजब कृष्र् त्रबिजरी "नूर" के घरजने को उन्िोने आबजद कर रखज िै और इस

घरों की तत्रबायत क्यज आ गई िी वी के िजथों मे

घरजने की चौथी –पजंचवी पीढी के शजइर भी आर्

कोई बेिज अब अपने बजप के ऊपर निीं र्जतज

गज़ल के मंच पर अपनज र्ल्वज त्रबखेर रिे िैं।

तो “बेिज बजप के ऊपर निी र्जतज”

–के भजर्ज –

र्िजाँ तक सजहित्य सेवज कज प्रश्न िै उन्िोने

दोर् पर िौरन आपतत करने वजले ति ु ै ल िी थे –

पजककस्तजन के श्रीलजल शक् ु ल र्नजब मश्ु तजक

क्यों न ककयज गयज िो लेककन इस संवजद मे र्ीत

"खोयज पजनी" –"मेरे माँि ु मे ख़जक" और "धनयजिज"

पजस िै । र्ब भजरत पजककस्तजन ग़ज़ल मंच के

भले िी इस पर प्रकरर् मे ककतनज िी

वववजद

तुिैल सजिब की िी िुई। इसी प्रकजर र्ब बशीर बर र्ैसे वररष्ठ शजइर ने

अिमद यस ू ि ु ी सजिब के कजयों कज अनव ु जद – बेिद कम समय मे ककयज और ऐसे समय मे ककयज र्ब वो अनेक पजररवजररक उलझनो मे तघरे थे।

शेर किज -गुसलखजनज की चचलमन मे पडे ककमख़्वजब के पदे

सोशल नेिवककांग सजइट्स पर तुिैल चतुवेदी अपने इस्लजलमक कट्िरपंथ के ववरोध के कजरर्

नये नोिो की खरखर िै पुरजनी रे ज़गजरी मे

एण्िी –िीरो की छवव रखते िैं। "क्र्िजद" शब्द

तो "गुसलखजनज" निी सिी लफ़्ज़ "गुस्लखजनज" िै

व्यजख्यज करने वजले इस नजम से खजसे आतंककत

और कुरआन पजक की आयतों की मनमजनी

ये किने वजले पिले पिले शख़्स तुिैल िी थे।

रिते िैं और उनके बयजन को अपने धमा मे

भले िी इस आपवि पर उनके बरसों के मरजलसम

िस्तक्षेप की श्रेर्ी मे रखते िैं –लेककन सच यि

शल िो गये –लेककन भजर्ज और उसकी पववितज

िै कक उनकी तनववावजद मेधज अकजट्य तका शक्क्त

पर उन्िोने रजई रिी आाँच निी आने दी। सजहित्य

के सजमने सभी बौने सजत्रबत िोते िैं।

और ग़ज़ल ववधज अंतस की गिरजइयों से इस व्यक्क्त की कृतज्ञ िै ।

शजइर तुिैल के इक्ब्तदजई दौर से बजबस्तज िोने

तुिैल चतुवेदी छि िुि के 52 बरस के नौर्वजन

संकलन" सजरे वरक तुम्िजरे " िजलसल करनज िोगज

िैं, इनके कुते मे सोने के बिन लगते िैं और

इनकज बयजन सोलि सोने कज िोतज िै –शकर निीं खजते लेककन इसके मआनी ये निी कक उनके लिर्े मे शकर निी िै – वो बेिद आत्मीयतज से ककसी के सजथ भी संवजद करते िैं –लेककन उनके आलोचक किते िैं कक इस व्यक्क्त कज लिर्ज करख़्त िै और चजल ख़स्र ु वजनज िै । इसकज कजरर् पिले िी स्पष्ि ककयज र्ज चक ु ज िै कक ग़ज़ल

के ललये आपको उनकज आर् से 22 बरस पुरजनज र्ो ककसी भी अच्छे बुक स्िजल पर आर् भी

आपको आसजनी से लमल र्जयेगज। तब के नौर्वजन और यव ु ज शजइर की भजर्ज इतनी सवाग्रजिी और सजि सथ ु री थी कक तम्िीद ललखते समय

ववख्यजत तनकीदकजर गोपीचन्द नजरं ग भजवक ु िो गये और उनकी तम्िीद कज मकाज़ इनकी भजर्ज िी रिी। आप भी इन सजि सथ ु रे , चमकदजर

और हदल को छू लेने वजले नमा नजज़क ु अशआर कज ज़जयकज लीक्र्ये --


गयज िै र्ो दजयरे इनसे तिस्थ िैं विजाँ इनको मेरे पैरों

मे चभ ु र्जयेंगे लेककन

मिसूस ककयज गयज िै और र्ो दजयरे िमलजवर िैं

इस रस्ते के कजाँिे कम िो र्जयेंगे

विजाँ इन्िे बदजाशत ककयज गयज िै ।यजनी कक अदीबों के प्रततकक्रयज उनकी तनर्ी भजवनज के अनुसजर िै

क्र्गर के िुकडे मेरे आाँसुओं मे आने लगे

लेककन ऐसज कभी निी िुआ कक कोई इस व्यक्क्त के स्पशा के बजद खुद को प्रततकक्रयजवविीन रख

बिजव तेज़ थज पुश्तज नदी ने कजि हदयज

पजयज िो। कुल लमलज कर ति ु ै ल "र्जकी रिी भजवनज र्ैसी ....." के मजनदण्ड पर खरे उतरते

िम तो समझे थे कक अब अश्कों की ककस्तें चुक गयीं रजत इक तस्वीर ने किर से तकजज़ज कर हदयज

ति ु ै ल सजिब मे अनज अचधक िै यज वपन्दजर इस

ज़रूरत पेश आती दश्ु मनी की

पर बिस दीगर िै क्योंकक िमजरे ललये वो सबसे

तआल्लुक इस कदर गिरज निी थज

आदरर्ीय नजमो मे से एक िै –लेककन यि मैं दजवे के सजथ कि सकतज िूाँ कक उनमे धैया स्नेि

अपनज ववरसज िै ये ककरदजर, संभजले िुए िैं इस िवज में िमीं दस्तजर संभजले िुए िैं

क्षमतज और समपार् र्ैसे कमयजब मजनवीय गुर्

औरो से बिुत अचधक िैं और यिी कजरर् िै कक अपने ववरोचधयों की तमजम सजक्र्शों के बजवज़ूद

कोई वीरजनज बसजनज तो बिुत आसजं थज िम ततरे शिर में घर-बजर संभजले िुए िैं

ये नजम आर् सजहित्य के सबसे सशक्त नजमो मे से एक िै ।

तमजम शिर को िूलों से ढाँ क हदयज मैंने मगर बिजर को उसने बिजर मजनज क्यज छोड़ दे तज िै हदन ककसी सूरत शजम सीने पे बैठ र्जती िै

हदन निीं आतज मेरी दतु नयज में रजत र्जती िै रजत आती िै

दतु नयज ततरे अिसजस में नमी भी चभ ु न भी रस्ते में लमले िूल भी घमसजन कज रन भी अच्छज िै कक कुछ दे र लमरी नींद न िूिे

िै ख़जब के आग़ोश में त्रबस्तर भी बदन भी अदब मे तुिैल सजिब की र्ो िै लसयत िै उसको एक वजक्य मे यूाँ किज र्ज सकतज िै कक

िैं।

–इस

शख़्सीयत को अदब के बेशतर दजयरों मे सरजिज


बजद िी इस पत्रिकज ने अपनी अन्य समकजलीन

प्रयास

सभी पत्रिकजओं को मीलों पीछे छोड हदयज और खद ु अपनज मजनदण्ड बन गई। बिस इस बजत

पर निी िोती थी कक कौन पत्रिकज ग़ज़ल की सरतजर् पत्रिकज िै बिस इस पर िोती थी कक रस रं ग कज िलजाँ अंक सबसे अच्छज िै । मोतबर मक ु जम पर खडे उदा ू अदीबों को दे वनजगरी के वपछले कुछ बरसों से दे वनजगरी मे ग़ज़ल कज

ववशजल पजठक वगा तक रसजई कज एक सन ु िरज

मे तअज़्ज़ुब और कौतूिल कज ववर्य िै । ककसी

संघर्ाशील शजइरों को एक खब ू सरू त लजंचचंग

र्ल्वज क्र्स रफ्तजर से बढज िै वो अदबी िल्को भी ववधज कज रचनजधमी ग़ज़ल ज़रूर किनज

चजह्तज िै क्र्सके कजरर् स्पष्ि िैं – ग़ज़ल मिर् एक ख्यजल पर केक्न्रत बयजन निीं दे ती –ये एक िी मजलज मे अनेक ववचजरों के मोती वपरोने कज कजम िै । इसललये िजमेि मे अलभव्यक्क्त के

मौकज

लमलज

और

प्रततभजशजली

और

यव ु ज

प्लेट्िजमा लमलज।

लेककन खद ु गज़ा और आत्ममुग्ध कचथत शजइरों

को एक आइनज भी लमलज। रस-रं ग मे प्रकजलशत िोने की शते बेिद आसजन और बेिद कडी थीं।

बेशुमजर आयजम िैं –इसकज दस ू रज पिलू ये भी िै

आसजन

यूाँ

कक

आपको

तनर्ी

पररचय

की

की ककतनी भी नैसचगाक क्षमतज आपके पजस क्यों

प्रकजलशत िोने से पूवा "ति ु ै ल" नजमक आइनेखजने

कक ग़ज़ल किनज आसजन निीं िै !! कजव्य सर् ृ न

आवश्यकतज निी, कडी इसललये कक ग़ज़ल को

न िो गज़ल किने के ललये आपको मशक्कत

से गुज़रनज िोतज थज। इस पत्रिकज की लोकवप्रयतज

करनी िी पडेगी। ख़ैर यिजाँ गज़ल के वैभव की

ऐसी बढी कक सन 2004 से इसे िैमजलसक कर

तफ़्सील से व्यजख्यज करनज मकसद निी िै । बजत

हदयज गयज और इसकज नजम "लफ़्ज़" िो गयज।

र्िजाँ से शुरूअ िुई िै विी से आगे बढजई र्जय – कक दे वनजगरी ललवप मे गज़ल आर् की तजरीख़

िैं।"लफ़्ज़" के बजरे में कुछ बजते सवामजन्य िैं --

मे बेिद लोकवप्रय िै । क्र्सकज कजरर् अगर तलजश

लफ़्ज़ के अंक ग़ज़ल के सिर मे मील के पत्थर

ककयज र्जय तो बिुत वववजद निी करनज पडेगज।

दे वनजगरी ललवप मे ये ग़ज़ल की एकमजि पत्रिकज

दे वनजगरी मे ग़ज़ल बलबीर लसंि "रं ग" ने किी

पत्रिकजओं से ऊपर रे ि करते िैं।

दष्ु यंत कुमजर ने किी , शबजब मेरठी ने किी ,

िै क्र्से हिन्दी वजले िी निीं उदा ू वजले भी उदा ू

सय ा जनु गप्ु त ने किी ज़िीर कुरे शी ने किी और ू भ

लफ़्ज़ मे प्रकजलशत ग़ज़ल ववश्वसनीयतज और

–लेककन इस ललवप में ग़ज़ल कज दबदबज तभी

लेती िै ।

अनेक अनजम लोगों कज भी इसमे योगदजन रिज कजइम िो सकज र्ब ति ु ै ल सजिब ने अपनी पत्रिकज

रस-रं ग

आरम्भ

की।"रस-रं ग"

पिले

वजवर्ाक किर अधावजवर्ाक प्रकजलशत िोती थी। अपने पिले िी अंक के सजथ ऐसज लगज कक "रस-रं ग" कौमी यकज़िती और सुलिे कुल कज एक ववशजल मंच िै ऐसज लगज कक उदा ू –हिन्दी को संवजद कज

एक मर्बूत सेतु लमल गयज िै । दस ू रे अंक के

मेयजर की बुलन्दी छपने के सजथ िी िजलसल कर

लफ़्ज़ कज सम्पजदकीय बिरे बेकरजाँ र्ैसज िोतज िै क्र्सकज वैचजररक पक्ष ज़बदा स्त िलचल पैदज करतज िै । लफ़्ज़ एक पत्रिकज भर निी , एक परचम , एक तरकश , एक आन्दोलन भी िै क्र्सने समकजलीन


सजहिक्त्यक र्गत के इलीि क्लजस को वस्तुत: सम्मोहित

कर रखज िै ।

तुिैल सजिब आर् के सजहित्यकजर की सोई िुई चेतनज को र्गजनज र्जनते िैं। प्रसंगवश एक बजर उन्िोने अपने सम्पजदकीय मे एक शेर किरजक़ के नजम से क़्वोि कर हदयज –लेककन अगले अंक मे उन्िोने बजखबर सजहित्यकजरों के बेखबरी की खजसी खबर ली कक "भई !! क्यों आप लोग शेर और शजइर की तनशजनदे िी करने से चक ू गये"। ऐसे सजहिक्त्यक पररिजस वो अक्सर करते िैं –लेककन

वो िर कदम सजहित्य की सम्रद्चध के ललये िी उठजते िैं। इसललये कोई तजअज़्ज़ुब निी कक मुज़फ्िर िनिी, रजर्ेन्र नजथ रिबर, मुनव्वर रजअनज र्ैसे वररष्ठ और प्रततक्ष्ठत अदीबों ने लफ़्ज़ मे अपने ललये

ललखे गये बयजनजत को लम्बी र्द्दोर्िद के बजद अन्तत: स्वीकजर ककयज। लफ़्ज़ मे ग़ज़ल और व्यंग्य आलेख प्रकजलशत ककये र्जते िैं। व्यंग्य के मजमले में पत्रिकज बडज दजवज निी करती।लेककन ग़ज़ल के मुआमले मे भी यि पत्रिकज बडज दजवज

इसललये निीं करती कक इसे चन ु ौती दे ने वजलज कोई िै िी निीं।

र्नवरी 2012 से लफ़्ज़ की वेवसजइि आरम्भ की गई क्र्समे गज़लें प्रकजलशत की र्जती िैं। और तरिी मुशजयरे आयोक्र्त ककये र्जते िैं!! िेसबुक र्ैसे ख्यजततलब्ध पोिा लो के मुकजबले भी लफ़्ज़ की तरिी नलशस्त एक ववशेर् आकर्ार्

रखती िै ।लफ़्ज़ के प्रशंसको को इसके पुरजने अंक इस वेवसजइि पर उपलब्ध िैं।

कजमनज यिी िै कक इस पत्रिकज कज अखण्ड गौरव बनज रिे और बढतज रिे । :- मयङ्क अवस्थी


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