गुरमैल भाई

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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: ि​िु मैल भाई

(लीला तिवानी का ब्लॉग्स-संग्रह)

िुिमैल भाई के जन्मदिवस व उनके वववाह की सालगि​िह पि

भमिा िम्पत्ति को उपहाि स्वरूप ई.बुक

इंग्लैं् के िुिमैल भमिा पि आधारि​ि ब्लॉग्स लेखमाला नवभाि​ि टाइम्स के अपना ब्लॉि कॉलम में प्रकाशि​ि


इंग्लैं् के ि​िु मैल भमिा पि आधारि​ि ब्लॉग्स लेखमाला नवभाि​ि टाइम्स के अपना ब्लॉि कॉलम में प्रकाशि​ि

1. गुरमैल-गौरव-गाथा

2. सपना साकार हुआ 3. जन्मदिन का उपहार

4. कहानी कुलवंत कौर की 5. यािों का िरीचा

6. हम तुम्हारे ललए, तुम हमारे ललए 7. मेरी पहली कववता

8. स्वच्छता अलियान से िे श के ववकास तक 9. गुरमैल-गररमा-गाथा

10. जन्मदिन तुम्हारा : प्रेम-पत्र हमारा

11. गगनेस वर्ल्ड ररकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई:गुरमैल िाई 12. 'ई.बक ु ' की बधाई, शि ु कामनाएं गुरमैल िाई


गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: िुिमैल भाई

1. िुिमैल-िौिव-िाथा लीला ततवानी

Monday March 17, 2014

आज हम िारतीय मल ू के एक शख़्स गरु मैल िाई की बात करें गे. उनकी लशक्षा-िीक्षा पंजाबी िाषा में हुई है पर, दहंिी िाषा पर िी उनकी पुख़्ता पकड़ है . वे खुि ड्सेबल हैं. वपछ्ले िस साल से बोल नहीं सकते, बाहर नहीं जा सकते. स्टैं ् के सहारे चलते हैं, वह िी लसर्ड अपने घर में . फर्र िी वे 99% पोजेदटव हैं. इंसान होने के कारण किी ्ोल िी जाते हैं. वे कंप्यूटर ईजाि करने वाले को धन्यवाि िे ते हैं क्योंफक,

पढ़ने और इन्टरनैट पर खो जाने में समय व्यतीत करने का शौक रखते हैं. इससे उन्हें ड्सेबबललटी के बारे में सोचने के ललये वक्त ही नहीं लमलता.उनसे मेरी पहली मल ु ाकात एक ब्लॉग ''आज का श्रवणकुमार'' पर ललखे कामें ट के जररए शुरु हुई. गुरमैल िाई को फकसान के सुपुत्र होने के नाते जानवरों से बहुत मुहब्बत है , इसका प्रमाण िी आपको उनकी कहानी उनकी जबानीके प्रेरक व हौसले से लबालब कथ्य से लमल

जाएगा. लीजजए, अब मैं बीच में से तनकल जाती हूं और आपको उनके रूबरू फकए िे ती हूं, हां, मैं ए्ीदटंग की िूलमका अिा करने की इजाजत अवश्य चाहूंगी. ''लीला बदहन,सच बोलूँ ू तो, कववता में मुझे इतनी दिलचस्पी नहीं है और यह िी सच है फक मुझे साधारण दहन्िी आती है , मुजश्कल लफ्जज समझने में असमथड हू​ूँ लेफकन आप की कववता जो, कबूतरों के बारे में

ललखी है बहुत अच्छी लगी. ज़्यािा मैने पंजाबी पढ़ी है . आप की कववता मुझे बहुत अच्छी लगी शायि इस का कारण यह हो फक, मैं गाय-िैंस को अपने हाथों से चारा खखलाया करता था. उन को सिी में उन के कमरे में ले जाया करता था और िे खता था फक कहीं से हवा अंिर न जा सके जजस से वे सिी महसस ू

करे . िो कुत्ते िी थे जैक और टौमी जजन को, िध ू वपलाया करता था. जब कोई गाय-िैंस मर जाती थी

और उन की लाशों को ले जाने वाले ले जाने लगते थे तो, रोया करता था. फकसान का बेटा होने के नाते जानवरों से मुहब्ब्त की है . उन के साथ बातें की हैं. आप है रान होंगी फक एक िर्ा मैं छकड़ा ललये जा रहा था जजस को, िो बर्लि खींच रहे थे. आगे कीचड़ आ गया और एक बर्लि कीचड़ को िे खकर वहीं बैठ गया.

िस ू रे बर्लि ने उसकी रर गस् ु से से िे खा. बर्लि उठ खड़ा हुआ मगर, िौड़ गया. िस ू रा बर्लि अकेला ही छकड़े को घर तक ले आया. ऐसी और िी यािें हैं. अगर जानवरों को प्यार फकया जाये तो वह बहुत प्यार िे ते हैं. लसर्ड उन से लगाव की जरूरत हैं. जानवर बोल नहीं सकते या हम उन की जवान समझ नहीं सकते, उन

के सीने में िी दिल होता है . अक्सर ्ाक्यूमैन्टरी िे खा करता हू​ूँ और पंतछयों को अपने बच्चों के मुंह में खाना ्ालते हुए िे खता हू​ूँ तो, है रान होता हू​ूँ माूँ की ममता िे ख कर. जब बच्चे अपनी चोंच ऊपर उठाते हैं और उन की माूँ उन को र्ी् करती है तो इस कुिरत के खेल पर आनंदित हो उठता हू​ूँ. आप की कववता ने यािें ताजा करा िीं.

आपने मुझसे अपना पररचय िे ने को कहा था तो, सबसे पहले मैं यह बताना जरूरी समझता हू​ूँ फक 70 वषड का एक ररटाय्ड व्यजक्त हू​ूँ और इंग्लैं् में रहता हू​ूँ. मेरी वाईर् और बच्चे सिी मुझे सपोटड िे ते हैं और

हुकूमत की तरफ़ से िी बहुत मि​ि लमलती है . अगर मैं इंड्या होता तो, आप से मि​ि लेकर अपने को सौिाग्यशाली समझता. आप बहुत अच्छा दिल रखती हैं. अक्सर मैं इंड्यन मीड्या में खबरें िे ख कर सोच में प़् जाता हू​ूँ फक, मेरे िे श में लोग कैसे हो गये हैं, भ्रष्टाचार, बेईमानी, घूसखोरी को िे ख कर मन बुझसा जाता है . लेफकन आप जैसे लोग िी हैं जो, िस ू रों के प्रतत इतनी सहानिूतत रखते हैं. सच है फक, जहां

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बरु ाई है वहां अच्छाई िी है , बरु ाई को हम बड़े ध्यान से िे खते हैं लेफकन, अच्छाई को सरसरी नजर से

िे खते हैं. हाूँ तो, अब मैं अपनी कहानी ललखता हू​ूँ, आप चाहें तो फकसी रसाले में छाप सकती हैं. 2003 में हम लमयाूँ बीवी गोआ आये, फर्र कनाडटक हैंपी रुइंज िे खने गये जो, किी ववजय नगर ऐम्पायर कहलाता

था. वावपस फर्र गोआ आ गये और अंजुना बीच पर घूम रहे थे फक, एक बहुत ऊंची पानी की लहर आई और मुझे पानी में घसीट कर ले गई, मुझे लगा मेरा अंत हो जायेगा. फर्र एक और लहर ने मुझे बीच पर पटक दिया और बहुत चोटें लगीं. जब हम इंग्लैं् आये तो मैं गगरने लगा, आवाज बिलने लगी. शरीर में शजक्त खतम होने लगी. "एक लहर ने ्ुबो दिया, एक ने उबार ललया.

वाह री लहर! तूने मुझे क्या-से-क्या कर दिया?'' और "न जाने कौन मेरे हक में िआ पढ़ता है , ु ्ूबता िी हूं तो, समुंिर उछाल िे ता है .''

्ॉक्टरों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. धीरे -धीरे हाथों की शजक्त इतनी कमजोर हो गई फक, चाय का

कप िो हाथों से पकड़ना पड़ता, िस्तखत करना मुजश्कल हो गया. फर्र, मेरे ्ॉक्टर ने मुझे अस्पताल िेज

दिया. वहां सिी टै स्ट हुए और ्ॉक्टरों ने बताया फक मोटर तनऊरोंन ड्जीज है और तीन वषड में बबस्तरे में पड़ जाऊंगा. एक वषड तक मैं सोर्े में रोता रहता. मेरी आवाज लसर्ड मेरी बीवी ही समझ पाती. मैंने सारी जजंिगी बहुत सख्त मेहनत की थी. इंड्या में खेतों में हल चलाए, बी.ए. तक पढ़ाई िी की और इंग्लैं् आ के 40 वषड काम फकया और इंड्या आ कर चैररटी का काम िी फकया. मैं बहुत फकस्मत वाला हू​ूँ जजसे,

िोस्त जैसी बीवी लमली है . और यहाूँ के स्टैं ्​्ड से हम कोई अमीर नहीं हैं लेफकन, जो है उस में हम संतुष्ट

हैं बजर्लक इतने की हमारी औकात नहीं थी जजतना, िगवान ने हम को दिया है . िो बेदटयाूँ हैं जजन के बच्चे यूतनवसडटी में मैड्सीन पढ़ रहे हैं, एक िोहती है जो ड्ग्री करके एक सीतनयर पोस्ट पर लगी हुई है जजस के, नीचे तीस गोरे काम कर रहे हैं. एक ही बेटा है और िो पोते हैं, सिी हमारा इतना ख़्याल करते हैं फक, वणडन नहीं कर सकता और बहू का तो कहना ही क्या. वह ही मुझे अस्पताल ले कर जाती है . और हमें क्या चादहये. बच्चों को िोस्तों की तरह पाला है और पोते तो स्कूल से आते ही गले लग जाते हैं. सिी

शांत और खुशदिल हैं. और हमे क्या चादहये. अब अचानक स्टै ् सॅदटल होने से जजंिगी बोझ लगने लगी. घर के पीछे एक छोटी-सी र्ुलवारी है , उस में बैठा र्ूलों को िे खता रहता. वाईर् हर तरह मेरी दिलजोई

करती रहती पर, मेरा मन िीतर से खश ु न होता. एक दिन मैं सब ु ह-सब ु ह बाहर आया तो, अचानक नजर सेब के एक िरख्त पर एक स्पाई्र पर पड़ी जो ताना-बाना बुन रहा था.

मैं िीतर से मैग्नीर्ाइंग ग्लास ले आया जजस से, बहुत सार् दिखाई िे रहा था. स्पाई्र इतना अच्छा बुन रहा था जैसे औरतें क्रोलशये से मेज पोश बनाती हैं. मैं िे ख-िे खकर खुश होता. फर्र अचानक पड़ोस के घर के आंगन से खेलते हुए बच्चों की गें ि आ कर उस जाल पर गगरी और उनकी छोटी सी िल ू स्पाई्र के ललए जंजाल हो गई. मुझे बहुत िख ु हुआ और बच्चों को कोसने लगा. हर सुबह मैं र्ुलवारी, जजस को हम यहाूँ गा्डन कहते हैं, में बैठ जाता पर स्पाई्र वहीं एक जगह बैठा होता जैसे, अपना घर टूट जाने का

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मातम कर रहा हो. एक दिन जब आ कर िे खा तो, आूँखों को ववश्वास नहीं हुआ. स्पाई्र ने सारा जाल ररपेयर कर दिया था और एक तरफ़ ऐसे बैठा था जैसे, वह जीत गया हो. मेरी खुशी का कोई दठकाना न

रहा और िोनों हाथों से ताली बजाई. वाईर् मेरी तरफ़ िे खने लगी और मुस्कुराई. बस उसी वक्त मैंने हाथों की ऐक्सरसाइज शुरु कर िी. धीरे धीरे मैं ऐक्सरसाइज बढ़ाता चला गया. किी-किी. हार जाता फर्र,

हौसला करता और लग जाता. एक वषड के बाि कुछ चें ज दिखाई िे ने लगा. जहां मैं चाय का कप िो हाथों से उठाता था, अब िो फकलो के ्ंबल सेट की 100 मव ू मैंट करने की क्षमता आ गई, जहां िस्तखत करने से ्र लगता था, आज मैं कई सर्े ललख लेता हू​ूँ, वह िी अच्छी हैं्राइदटंग से, जहां मैं लेट कर अपनी

टांग को उठा नहीं सकता था, आज मैं 100 िर्ा उठाता हू​ूँ. हर रोज ्ेढ़ घंटा सुबह को ऐक्सरसाइज करता हू​ूँ, फर्र, स्टैं ् के सहारे आधा घंटा कमरे में इधर उधर घूमता हू​ूँ. स्पीच की िी ऐक्सरसाइज करता हू​ूँ लेफकन, कुछ बन पड़ता दिखाई नहीं िे ता. इस का यह मतलब िी नहीं फक मैंने हार मान ली है . हर छह

महीने बाि अस्पताल जाता हू​ूँ और मेरा तनयरू ोसजडन लमस्टर बैन्मर है रान हो जाता है और कहता है फक उस की जजंिगी में मैं पहला पेशेंट हू​ूँ जो, अिी तक सरवाइव कर रहा हू​ूँ. मझ ु े िी पता है फक यह बीमारी

ठीक नहीं होगी क्योंफक अिी तक इस का कोई इलाज नही है . इस बीमारी में जीन लमउटे शन हो जाती है . इस का लसर्ड यह ही आवश्यक है फक, रोजाना ऐक्सरसाइज करनी जरूरी है जजस से जीने के दिन बढ़ जाते हैं. अब मैं अपनी कहानी से िस ू रों को प्रेररत करने की चाहत रखता हू​ूँ फक, कैसे स्पाई्र ने अपनी दहम्मत से ्ैमेज हुआ जाल ररपेयर कर दिया और मैंने अपने को फर्र पटड़ी पर ला खड़ा फकया. बदहनों-िाइयों िख ु से मत घबरार. इंसान वह ही है जो, जहाूँ गगरे वहीं से खुि उठे . रोने से और तो कुछ लमलेगा नहीं, हां ड्प्रैशन आसानी से लमल जाएगा.''

उनकी कथा पढ़कर मेरे जेहन में आ रहा है "तू नवाजने पे आये तो नवाज िे जमाना,

तू करीम है , जो ठहरा तो करम का क्या दठकाना । मुझे इसका ग़म नहीं फक बिल गया जमाना,

मेरी जजन्िगी है तुमसे कहीं तुम बिल न जाना ॥'' गुरमैल िाई, स्पाई्र से प्रेररत होकर आपने खुि तो हौसले का पररचय दिया ही, साथ ही अपने कीमती

समय में से इतना अगधक समय तनकालकर, आपकी िस ू रों को प्रेररत करने की चाहत ने िी हमें बहुत कुछ लसखा दिया है . आपके हौसले और "गुरमैल-गौरव-गाथा'' को कोदट-कोदट सलाम और हौसले से जीने की शुिकामनारं के साथ कोदट-कोदट शुफक्रया और धन्यवाि.

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2. सपना साकाि हुआ लीला ततवानी

Monday March 31, 2014

'''लीला बदहन, मैं बोलना सीख गया, मैं बोलना सीख गया. आपकी और सबकी िआ ु रं से मैं बोलना सीख गया.'' अचानक गुरमैल िाई गचर्ललाए, ठीक वैसे ही जैसे आफकडलम्ीज नहाते-नहाते टब में से बाहर तनकल

आए और गचर्ललाने लगे, "यूरेका, यूरेका यानी लमल गया, लमल गया.'' इस प्रकार उन्होंने 'घनत्व' के लसद्ांत का आववष्कार फकया. गुरमैल िाई को िी मनचाहा गुर लमल गया था. अरे िाई, अिी तो यह सपने की ही

बात है , हो सकता है फक, जर्लिी ही यह सच िी हो जाए. असल में यह सपना मुझे रात को आया था. कल रात तक तो उनकी मेल नहीं आई पर, रात को वे और उनकी पजत्न कुलवंत कौर जी मेरे सपने में जरूर आ गए. मैंने सोने से पहले लमत्रता पर एक कववता ललखनी शुरु की-थी''कुछ ख़्वाब बांटने थे हमें कुछ राज सुनने थे हमें

किम-िर-किम मेल से, जजंिा कर परु ानी यािों को एक साथ मुस्कुराना था हमें .''

यों तो मुझे इस बार कैलें ्र का ब्लॉग ्ालना था जो फक तैयार िी है लेफकन, फर्लहाल आप इस ब्लॉग का ही आनंि लीजजए. अलग-अलग िे शों के अलग-अलग समय के चलते मुझे मालूम है फक, गुरमैल िाई के

कामें ट व मेल आदि शाम से रात तक आते हैं. रात को ग्यारह बजे तक िी उनकी मेल नहीं आई तो, मैंने

लैपटॉप बंि कर दिया और सोने चली गई. थोड़े-से दिन पहले ही एक ब्लॉग पर उनसे मेरी मुलाकात हुई थी और उसके बाि उन पर ब्लॉग िी आपने पढ़ा और कामेंट्स द्वारा िी आपको उनकी ढे रों ववशेषतारं से रूबरू होने का अवसर लमला. फर्र िी कई बातें अनकही रह गईं. आपको याि होगा फक, वे एक हािसे के कारण उनकी बोलने की शजक्त िले ही मंि हो गई है पर, हौसलों की उड़ान बाकायिा बुलि ं है . इस बार

बह ृ स्पततवार को रे ड्यो पर उनकी कहानी फकसी और द्वारा पढ़ी गईं. उस पर तरु ं त प्रततफक्रयाएं आईं होंगी,

वे तो आपको बाि में पता चलें गी. वे अपनी स्पीच थैररपी बहुत जोशोखरोश से कर रहे हैं. मेल दहंिी में थी और इसके ललए हमने बहुत मेहनत की थी क्योंफक, यू.के. से दहंिी में मेल नहीं आ पा रही थी और मेरी दिली आकांक्षा थी फक, उनकी मेल को ही मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकंू . आखखर कामयाबी लमली और धमाकेिार लमली. गुरमैल िाई ने इंजग्लश में तो लेखन में महारत हालसल की ही हुई है , उन्होंने दहंिी, पंजाबी और उिड ू में मेल ललखकर हमें चफकत कर दिया. मेल इस प्रकार है -

''लीला बदहन, आज सारा दिन अपने गा्डन में बैठा रहा कयोंफक, आज बहुत दिनों के बाि थोड़ी- सी धूप तनकली है जो, यहाूँ एक कीमती चीज है . इंग्लैण्​् का मौसम ितु नया में सि से बरु ा है . जब किी धूप तनकलती है तो, लोग अपने-अपने गा्डन में बैठे होते हैं. र्ूलों की क्याररयों से जड़ी बूदटयां तनकालते है ,

लॉन को मावर से काटते हैं, खाते पीते हैं. सो, आज हम िी बैठे रहे . कुलवंत बोली, "तम् ु हारा स्पाइ्र तो अिी आया नहीं.'' मैंने कहा, "आएगा, जब िरख्तों में पजत्तयां लगने लगें गी.'' आपको पता है न फक, गुरमैल िाई कुछ बोल पाएं या नहीं उनकी सहधलमडणी कुलवंत कौर सब आसानी से समझ लेती हैं.

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''आज रात को घडड़यां एक घंटा आगे हो जाएंगी और दिन बड़े होने लगें गे. २३ जन ू तक बढ़ते रहें गे और

रात के िस वजे तक लौ रहे गी. मेरी स्पीच थैररपी जारी है . आज सुबह मैं बाथ रूम में जा कर सारे जोर से सा रे गा मा पा बोलता रहा, आप के blessings से थोड़ा िी बोलने योग्य हो सकंू तो, फर्र मैं बहुत खुश रहने लगूंगा. जब रे ड्यो पर आज की कहानी के बारे में लोग अपने अपने view िे रहे थे तो िो

बदहनों ने िावुक हो कर मुझे कहा, हम चाहते हैं फक गुरमेल िैया बोलने लगें और रे ड्यो पर आयें. लोग बहुत आशीवाडि िे ते हैं जो, मझ ु े बहुत हौसला िे ता है . आप तो हर िफ़ा हौसला अफ़जाई करती ही हैं. यह सच है मुझे ड्सऐबबललटी महसूस ही नहीं होती. यह radioxl का एक पररवार-सा बन गया है . बबन िे खे और बबन पहचाने सिी एक िस ू रे को जानते हैं और िुःु ख सुख में शरीक होते हैं.''

गुरमैल िाई, यही लेखन-कला तो आपकी पहचान है . अब िे खखए न! ब्लॉग के जररए िी आपके फकतने

साथी बन गए! आपकी मेल पढ़कर मझ ु े बहुत-से कररश्मे याि आ गए. मेरी एक सहे ली को जबरिस्त पैरालललसस हुआ था. वह सब नकारात्मक बातें िूल गई पर, सुंिरकां् और जो िजन उसे कंठस्थ थे, वे

नहीं िूली और बाकायिा सुर में गाती थी. बाि में तो उसने हमारे साथ सारी टीम के साथ स्टे ज-प्रोग्राम िी फकए. िस ू री सखी को न्यूरो की प्रौब्लम हुई थी. वह िी काफ़ी कुछ पुरानी नकारात्मक बातें िूल गई थी फर्र, धीरे -धीरे , आपकी तरह साहस और जज़्बे के बल पर अपनी पुरानी स्टे ज पर फर्र से पहुंच गई. ऐसे

बहुत-से कररश्मे हुए हैं. आशा है आप िी शीघ्र ही एक दिन हमें र्ोन करके अपने मख ु ारववंि से यह शुि समाचार सुनाकर साबबत कर िें गे फक, हमारा सपना साकार हुआ. फर्र मुखाततब होने की तमन्ना के साथआपके सिी शुिाकांक्षी.

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3. जन्मदिन का उपहाि लीला ततवानी

Tuesday April 08, 2014

इंसातनयत को पहचानने की नेमत लमली है जजनको, दहम्मत और साहस का जज़्बा लमला है जजनको, माललक ने अपनी कृपा का सप ु ात्र बनाया है जजनको, वे हैं गुरमैल िाई, वे हैं गुरमैल िाई.

आनंि प्राप्त करने का अनोखा गरु लमला है जजनको, जीवट से जीवन जीने की युजक्त लमली है जजनको, प्रेम की तरं गों ने तरं गगत फकया है जजनको, वे हैं गुरमैल िाई, वे हैं गुरमैल िाई. मह ु ब्बत से महकते रहने की कला लमली है जजनको,

सद्गुणों की अनमोल-बेशकीमती सौगात लमली है जजनको, मुसीबतों से उबरने-उबारने की इनायत लमली है जजनको, वे हैं गुरमैल िाई, वे हैं गुरमैल िाई.

माललक ने सकारात्मक लेखनी का जािग ू र बनाया है जजनको,

अपने पावन हाथों से तकिीर में कीजत्तड की आिा का अवसर दिया है जजनको, अपनी मस्ती की हसीन ितु नया में मस्त रहने की इबाित लमली है जजनको, वे हैं गुरमैल िाई, वे हैं गुरमैल िाई.

उनको हम क्या िे सकते है कोई जन्मदिन का उपहार, उनके तो जीवन की इंसातनयत ही कर सकती है कुल ितु नया का उपकार, हम तो बस िे सकते हैं जजनको केवल िआ ु रं का नन्हा-सा आधार, वे हैं गुरमैल िाई, वे हैं गुरमैल िाई.

आइए सब लमलकर िे कोदट-कोदट िआ ु एं इनको,

माललक शीघ्र ही सुरीली आवाज से फर्र से नवाजें इनको,

सबकी संगदठत िआ ु एं और अगधक साहस िे सकती हैं जजनको, वे हैं गुरमैल िाई, वे हैं गुरमैल िाई.

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4. कहानी कुलवंि कौि की लीला ततवानी

Monday April 14, 2014

गरु मैल-गौरव-गाथा तथा तत्संबंगधत ब्लॉग्स आप पढ़ चक ु े हैं लेफकन, 'कहानी कुलवंत कौर की' के बबना वे सब ब्लॉग्स अधूरे ही लगें गे. मैंने गुरमैल िाई से उनकी सहधलमडणी के बारे में िी कुछ ललखने-बताने के

ललए कहा था.उन्होंने अपनी सहधलमडणी कुलवंत कौर जी से कहा फक, "लीला बदहन ने आपके बारे में िी

कुछ ललखने को कहा है , क्या ललखूं ?'' वे पहले तो यह बोलीं फक, ''जो आपके मन में आए, ललख िें .'' फर्र कालीन सार् करते-करते उनके मन में अचानक आया फक, "हमारी शािी की बात ही ललख िीजजए न! वह

िी फकसी रोचक फकस्से से कम नहीं है .'' सो, गरु मैल िाई ने कुलवंत कौर की उस बात की स्वीकृतत िे कर तुरंत "कहानी कुलवंत कौर की'' ललखकर िेजी है . प्रस्तुत है कुलवंत कौर की कहानी गुरमैल िाई की जुबानी.

"लीला बदहन, यों तो शांदियां होती ही रहती हैं और इस में कोई खास बात नहीं होती. मेरा ललखने का मकसि लसफ़ड यह है फक, आज इंग्लैण्​् में हर तीन में से िो शांदिआं तलाक में खत्म हो रही हैं. मां -बाप इतना खचड करते हैं फर्र, बच्चे पढ़े ललखे िी होते हैं , शािी से पहले लमलते हैं, खुल कर अपना-अपना

नजररया बताते हैं. इतनी आजािी के बाि िी एक िस ू रे की बात क्यों सह नहीं पाते ? इंड्या में कुछ कम

होगा लेफकन, हो तो वहां िी यही रहा है . यह बात मुझे समझ नहीं आती. अब मैं अपनी रर आता हू​ूँ. यह 1955 की बात है . मैं 12 वषड का रहा हूंगा. मेरे बाबा जी फकसी काम के ललए जलंधर जाया करते थे जो, हम से 15 मील की िरू ी पर था. बाई साइफकल पर जाते थे. रास्ते में कुलवंत के बाबा जी के खेत थे और वहां कंु आं लगा हुआ था. वहां बाबा जी एक दिन पानी पीने के ललए कंु एं पर चले गए. िोनों बजुगड आपस में बातें करने लगे और बातों-ही-बातों में बच्चों के बारे में बातें होने लगीं. मेरे बाबा जी ने मेरे बारे में बताया फक मेरा पोता 12 वषड का है . कुलवंत के बाबा जी ने बताया फक उस की पोती 9 वषड की है . िोनों

बजुगों ने वहीं हमारा ररश्ता पक्का कर दिया. मेरे वपता जी िी केन्या से आये हुए थे. जब उन को मेरे ररश्ते के बारे में पता चला तो वपता जी बाबा जी से झगड़ने लगे. बाबा जी कहने लगे फक, वे जब ु ां िे चक ु े हैं, अगर उन की बात नहीं मानी गई तो वे घर छोड़ िें गे. वपताजी को मानना पड़ा और हमारी सगाई हो गई. न मुझे पता था फक कुलवंत कौन है , न कुलवंत को पता था फक मैं कौन हू​ूँ. बी.ए. में पढ़ रहा था और हम कुछ िोस्त लमल कर लाइब्रेरी में बैठ कर बहुत-सी बातें िी फकया करते थे. हम चार िोस्तों ने

र्ैसला फकया फक, जब हमारी शािी होगी तो हम बगैर िान-िहे ज के करें गे और बरात में िस आिलमयों से ज़्यािा नहीं ले जायेंगे. हम सिी िान-िहे ज की बरु ाइयों को जानते थे. एक लड़के की शािी छुः महीने बाि

ही हो गई और उस ने वैसे ही फकया जो, हम ने प्लैन बनाया था. फर्र अचानक मेरे सबसे वप्रय िोस्त का प्लैन इंगलैं् आने का बन गया, उसके ्ै्ी जी वहां रहते थे. मेरे ्ै्ी िी केन्या से यहां आ कर रहने लगे थे. मगर, मैंने यहां आने के बारे में किी सोचा ही नहीं था. िोस्त के बाहर जाने से अपसैट हो गया और मैंने िी ्ै्ी को ललखकर उन की मि​ि से जाने की तैयारी शुरू कर िी और िोस्त से एक हफ्जता पहले ही यहां पहुंच गया. कहानी ब्रीर् रखंू,1962 में मैं यहां आया और 1967 में हमारी शािी की बात होने लगी और माूँ बाप की इजाजत से हम िोनों एक-िस ू रे को खत िेजने लगे. वे जजंिगी के हसीन पल थे. उस

वक्त टे लीर्ोन हुआ नहीं करते थे और हम हर रोज खत ्ालते. अब वे सिी खत संिालकर रखे हुए हैं. कुछ वषों बाि उन्हें पढ़ते हैं तो, हं सी आती है . फकतना पागलपन था !! लेफकन वे हमारी हसीन यािें हैं.

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खैर,मैं इंड्या आ गया और शािी से पहले हम हर रोज लमलते. अपनी शािी के गहने िी हम ने खि ु

खरीिे . कॉलेज के जमाने के िोस्तों के वािे के मुताबबक मैंने बगैर िान-िहे ज और िस बराततयों के साथ

शािी करने की बात की तो, घर में हं गामा खड़ा हो गया लेफकन, मैं अपनी जजद्द पर अड़ा रहा. आखखर सिी को झुकना पड़ा और िस बराततयों के साथ कुलवंत के घर जा पुहंच.े वहाूँ िो आिलमयों ने िाषण दिया और बोले फक, अगर आज के नौजवान ऐसी शांदियां करने लगें तो, फकसी को िी बेटी पैिा होने का बोझ न लगे. आखखर में शािी के बाि हम हनीमन ू पर चले गए और बहुत घम ू े.'' फकस्सा तो सचमुच रोचक और प्रेरणािायक है लेफकन, कुलवंत कौर की तो कोई ववशेष बात आई ही नहीं.

मैंने फर्र कुलवंत कौर के बारे में कुछ खास ललखने को कहा. अब पदढ़ए उनकी जुबानी. "कुलवंत के बारे में कुछ ललख,ूं कुलवंत इस वक्त हूवर से कापेट क्लीन कर रही है तो, मैंने उस को कहा, लीला बहन मुझ से ऐतराज करती है फक तम् ु हारे बारे में कुछ नहीं ललखा. तो वह हं स पड़ी फक, मझ ु अनपढ़ के बारे में क्या

ललखना ? बोली, जो चाहे ललख िे ना, कोई छुपाने वाली बात तो है नहीं. सो, मैं ललखना शुरू करता हू​ूँ. यह सही है फक उस की ऐजुकेशन लसर्ड बेलसक है लेफकन, होलशयार बहुत है . बस, एक ही कमी है , यहां रह कर िी अंग्रेजी सीखने की कोलशश उसने नहीं की. लेफकन, वह फकसी िी अूँगरे ज से टूटी-र्ूटी इंजग्लश में बात करने से दहचकचाती नहीं. वह काफ़ी समझ लेती है . हमारे साथ का घर एक गोरी का है , हम वपछले 35

वषड से पड़ोसी हैं. कुलवंत ने उस को बदहन बनाया हुआ है . किी उस से नए प्लांट ले आती है , किी उस को अपने गा्डन से उखाड़ कर िे आती है . पढ़ने का उस को कोई खास शौक नहीं है , हां किी-किी पंजाबी का अखबार पढ़ लेती है और किी-किी कोई पंजाबी का नानक लसंह का या कोई दिलचस्प नावल पढ़ लेती है लेफकन, उस के और शौक बहुत हैं. किी चैन से बैठ नहीं सकती. तनदटंग का शौक इतना है फक हर वक्त सलाइयां उसके हाथ में रहती हैं. फकसी के घर बेबी आना हो तो बुनना शुरू कर िे ती है . जजतने

ररश्तेिार िोस्त हैं, उन के बच्चों के ललए बनाये हैं. उसकी जजतनी बीमार सहे ललयां हैं, उन के पास जाती है . िो हफ्जते पहले उस की एक सहे ली है जो पाफकडन्सन रोग से पीडड़त है , उस के ललए िो काड्डगन बुने और

बेटे को लेकर उस के घर गई और उस को दिए. वह इतनी खुश हुई फक, वह पैसे िे ने लगी तो कुलवंत ने कहा,आप ठीक हो जाएं, मुझे पैसे लमल गए.'' हमि​िी उसमें कूट-कूट कर िरी हुई है . लेफकन, यह मत समझना फक वह सीधी-सािी है,कड़वी िी बहुत है . जब मुझ से झगड़ती है तो, मैं तो यों ही खामोश रहता हू​ूँ अगर, बोलंू िी तो मेरी आवाज उसके सामने नहीं तनकलेगी. उसका पारा कुछ ही िे र में उतर जाता है . ऐसे ही सार जजंिगी हम ने बबताई है लेफकन, बहुत अच्छी तरह गज ु ारी है . अगर जजंिगी में कोई तकलीर्

ना आये तो, वह जजंिगी नहीं कहला सकती तकलीर्ें तो आएंगी ही, कुछ कम हो सकती हैं. वपछले बहुत सालों से वह िो सहे ललयां लमलकर एक सैंटर चलाती हैं. एक छोटा-सा हॉल है जजसमें , 6० औरतें आ सकती हैं. हर बुधवार को, उस में वे बहुत-सी ऐजक्टववटीज करती हैं. कोई िी दिन हो जैसे आजािी का दिन, गरु ु रं के त्योहार, िशहरा, दिवाली, फक्रसमस आदि मनाती हैं. जब फकसी सहे ली के कोई बेबी आता है तो, वह पाटी िे ती है और खुशी से ्ांस करती हैं. फक्रसमस को होटल में ड्नर करती हैं और वहाूँ िी िंगड़ा पाती हैं. अब गलमडयों का मौसम शुरु होने वाला है फर्र, टूर की बुफकं ग शुरु हो जायेगी. वपछले वषड वे

पाललडयामें ट हाउस िे खने गईं थी और बालकनी में बैठ कर सैशन चलता हुआ अपनी आूँखों से िे खा. लंिन में बहुत चीजें दिखा चुकी हैं जैसे, मै्म तुसा्, लंिन आई बब्रदटश म्यूजजयम, हाइ् पाकड, बैटर सी गा्डन

आदि बहुत सी ऐततहालसक जगहें िी िे ख चक ु ी हैं. जो बहनें सारी जजंिगी काम काज में बबजी रहीं, उनको अब महसूस हुआ है फक वे इंग्लैण्​् में रहती हैं और इन िोनों का बहुत ररगा्ड करती हैं. किी-किी उन को लसनेमा ले जाती हैं तो किी योग-अभ्यास करवाती हैं. कुलवंत बहुत-से रोगों से पीडड़त है लेफकन, अपने

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आप को बहुत बबजी रखती है . खि ु वह हफ्जते में तीन िर्ा पाकड में सैर करने जाती है . वहाूँ ले्ीज का ग्रप ु है जो, काउं लसल की तरर् से बनाया गया है . काउं लसल हर ले्ी को 12० walks के पांच पाउं ् िे कर हौसला अफ़जाई करती हैं ताफक, उन फक सेहत अच्छी रहे . आज नया सीजन शुरु हुआ है और आज कुलवंत ने नया का्ड शुरु फकया है . हर फ्राइ्े को radioxl पर खाने का प्रोग्राम होता है और लोग अपनी-अपनी कोई खाने फक रे स्पी बताते हैं. कुलवंत िी उस में दहस्सा लेती है . फक्रसमस पर पंजाबी कढ़ी बनाने का

कॉम्पीटीशन था. उस में कुलवंत जीत गई और उसे food mixer लमला. जब मैं तंिरु ु स्त था तो गा्डन का सब काम मैं फकया करता था, अब वह करती है . गा्डन में उस की जान है . है तो छोटा लेफकन, गोरे िी

आते हैं तो, िे खते रह जाते हैं. इसके अलावा वह एक पोते को स्कूल छोड़ने और लेने जाती है . बड़ा अब वषड का है , खुि जाता और आता है .

'लीला बहन, जब कुलवंत को लेकर यहाूँ आया था तो, हालात ऐसे नहीं थे जो, अब हैं. कोई गरु द्वरा नहीं था घरों में टे लीर्ोन फकसी-फकसी के पास होते थे, खत ही एक जररया था. मैंने पहले बताया था फक मैं

अपने कॉलेज के िोस्त के कारण ही इंग्लै ण्​् आने का पलैन बनाया था और वह िोस्त ३० फकलोमीटर की िरू ी पर रहता है . हमारी शािी के कुछ महीने बाि वह िी इंड्या आ कर शािी करा कर अपनी वाइर् को

यहां ले आया. आज तक हमारा िाइयों जैसा प्रेम है . उन दिनों बस पकड़ कर किी हम उन के टाउन को चले जाते, किी वे हमारे यहां आ जाते. उस वक्त मेरे बहुत-से क्लास र्ैलो यहाूँ आ गए थे जो अक्सर हमें पब्बों में लमलते थे. उस वक्त हर गली के कॉनडर पर पब्ब हुआ करते थे. हम लोगों की मीदटंग प्लेस पब्ब ही हुआ करते थे. मिड ही काम करते थे, औरतें घर में ही रहती थीं. फर्र बच्चे हो गए. जरा बड़े हुए

तो औरतें बाहर काम पर जाने लगीं. हम लमयां-बीवी लमल-जुलकर घर चलाते. मेरा काम कुछ ऐसा था फक मुझे वक्त कार्ी लमल जाता था,इस ललए िाल-सब्जी मैं बना िे ता और किी-किी कुलवंत को ड्नर बना

कर उस के काम पर िे आता. शॉवपंग वगैरह िी कर िे ता. वह घर के िस ू रे काम कर लेती. वीकैं् पर हम

लसनेमा जाते. फर्र तकलीर्ें िी शुरू हुईं जैसे, कुलवंत को ड्प्रैशन िी हुआ मगर लमलजुल कर वह िी खतम हो गया. बस यों ही जजंिगी बीत गई, पता ही नहीं चला कब बच्चे जवान हुए, शादियां हुईं और अब उन के बच्चे िी जवान हो गए हैं. 14 अप्रैल को मैं 71 का हो जाऊं गा और उसी दिन हमारी शािी की सालगगरह िी है . बच्चे आएंगे और रौनक लग जायेगी. र्ारुख शेख के कहने के मुताबबक़ जीना इसी का नाम है .''

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5. यािों का ि​िीचा लीला ततवानी

Monday April 28, 2014

अब तो आप को गरु मैल िाई का पररचय िे ने की आवश्यकता ही नहीं है . आज प्रस्तुत है उनकी यािों के

िरीचे से एक और नजारा. िरीचे के खुलते ही चारों रर के नजारे खुले दिखाई पड़ते हैं. आपने एक प्रलसद् गजल तो सुनी ही होगी फक, "बात तनकलती है तो, िरू -िरू तक जाती है .'' यािों के लसललसले का स्विाव

िी ऐसा ही होता है . एक बार यह लसललसला शुरु हुआ तो, थमने का नाम ही नहीं लेता. फर्र तो, बचपन से लेकर वतडमान तक, िे श से लेकर वविे श तक और न जाने कहां -कहां तक इसका िायरा बढ़ता चला जाता है . यही हाल गरु मैल िाई का है . प्रस्तत ु है उनकी यािों के लसललसले से एक और वकड उन्हीं की

जुबानी. हां, ए्ीदटंग की िूलमका हमेशा की तरह फर्र से हमारे दहस्से में आई है . अब आइए, चलते हैं गुरमैल िाई के साथ-

''लीला बदहन, िारत को अिी आजािी लमली ही थी और मैं छह-सात वषड का रहा हूंगा और ज्ञान मुझ से िो वषड बड़ा होगा. ज्ञान के वपता जी तीन िाई थे. िो िाई अपने घर में एक मशीन से आइसक्रीम बनाया करते थे, उन के नाम थे रामा और चानण. आइसक्रीम लेकर वे अपने गांव और िस ू रे गांवों में जाते थे.

उन के पास िरख्तों के पत्ते होते थे जजन पर, वे छुरी से काट कर ग्राहकों को आइसक्रीम िे ते थे. यह बात

ललखने का एक ही मकसि है फक, जजस काम को आम लोग छोटा समझते थे वही काम उन के ललए रोजीरोटी तो थी ही, मजे की बात यह थी फक इस आइसक्रीम से वे फकसानों से ज़्यािा पैसे कमा लेते थे, खास कर जब गेहूं का सीजन होता तो, उन की सेल इतनी हो जाती फक, फकसानों से ज़्यािा गेहूं उन के घर आती. ज्ञान के वपता जी एक कपड़ा बबछाकर हमारे स्कूल के बाहर एक चारपाई पर एक छोटी-सी िक ु ान

चलाते. चारपाई पर उस स्कूल की सिी चीजें जैसे कावपयां, पैलसलें , इंक, तनब, तजख्तयां जजन को हम र्ट्टी कहते थे और जो ललखने के काम आती थीं और स्लेटें आदि होती थीं. इस के अलावा खाने के ललए चने की हर्लिी-रं गी िाल, र्ुलीयां, गुड़, मरुं ्ा, संतरे की शक्ल की स्वीट्स और िी बहुत-सी खं् की गोललयां आदि.'' होनहार बबरवान के होत चीकने पात.'' इस सारे काम में ज्ञान अपने वपता जी का साथ िे ता था. स्कूल आने से पहले वह चारपाई सर पर रख कर ले आता, फर्र िब ु ारा घर जा कर िक ु ानिारी का सामान ले आता. इस के बाि स्कूल जाता. इसी तरह शाम को वपता जी की मि​ि करता. वपताजी का नाम था

हररया. िो तीन वषों बाि हररया ने गांव में एक छोटी-सी िक ु ान ले ली जजस का, साइज ज़्यािा-से-ज़्यािा िस फ़ीट बाई आठ फ़ीट होगा. िक ु ान लेने के बाि ज्ञान का काम और बढ़ गया. जब हम छठी क्लस में पढ़ते थे तो, ज्ञान ने स्कूल छोड़ दिया. उस ने बाइलसकल चलाना सीख ललया था और वह हर रोज शहर

जाता और िक ु ान के ललए सौिा ले आता. धीरे -धीरे िक ु ान बढ़ती गई और काम िी बढ़ गया. हररया कुछ बीमार रहने लगे थे, इसललए सारा िार ज्ञान के कंधों पर आ पड़ा. ज्ञान रात को कार्ी िे र तक िक ु ान

खुली रखता था, और रात के समय ही हम कुछ िोस्त ज्ञान की िक ु ान पर आ जाते और ज्ञान के साथ

गप्पें लगाते. ज्ञान ने िक ु ान के तीनों तरर् शैर्लर्ें लगा ली थीं और सिी सामान से िरी पड़ी थीं. उसकी

िक ु ान में स्कूल के बच्चों के सामान के अलावा औरतों के लसंगार की चीजें िी थीं. फफ़र्लमी गानों की छोटीछोटी फकताबें होती थी जो, रात को हम पढ़कर गाते. ज्ञान लमठाई िी रखता था जो, लसर्ड बर्ी, बेसन

मीठी सीरनी, नमक वाली सीरनी और ल्ू तक ही सीलमत थी. अक्सर हम कुछ-न-कुछ लमठाई खरीिते और खाते रहते. किी-किी हमारे एक टीचर हरबंस लसंह िी आ जाते. एक दिन वे आए और फफ़र्लमी गानों की

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कॉवपयों को ध्यान से िे खते रहे , फर्र बोले, ''अरे ज्ञानचंि, यह वनत कौन सी फर्र्लम है , किी सन ु ी नहीं.'' मैंने वह कॉपी उठा ली और गाने पढ़ने लगा. मैंने कहा, ''मास्टर जी ! यह फर्र्लम का नाम गलत ललखा हुआ है , िरअसल यह वचन फर्र्लम है .'' फर्र मैंने मास्टर जी को एक गाना गा कर सुनाया जजसके बोल अिी तक मुझे याि हैं.'' जब ललया हाथ में हाथ तनिाना साथ मेरे सजना, िे खो जी हमें छोड़ ना जाना,

यह साथ किी ना छूटे चाहे िश्ु मन बने जमाना.'' अब ज्ञान ने एक नया काम शुरू कर दिया. उस ने एक

सो्ा वाटर बनाने की छोटी-सी मशीन ले ली, जजस में परु ाने टाइप की बोतलें िरी जाती थीं. बोतल के गले में एक गोली सी होती थी जो गैस के प्रैशर से बोतल को बंि कर िे ती थी. ज्ञान बड़ी-बड़ी बालदटयों में

पानी ्ालता, फर्र उस में शक्कर ्ालता, कोई इसेंस ्ालता, संतरा, रोज या लेमोने् का. फर्र सारी बोतलें िरता. इस में हम िी किी-किी उस का साथ िे ते थे. फर्र वह तीन बोतलें मशीन में ्ालता, फर्र एक हैंड्ल से जोर-जोर से मशीन को घुमाता, गैस का लसललं्र साथ ही होता था. फर्र वह गैस को खोलता,

एक शंू-शंू की आवाज आती, कुछ िे र और मशीन को घम ु ाता, फर्र बोतलें तनकाल कर तीन और ्ाल िे ता. सारी बोतलें बक्सों में रख िे ता. किी-किी मन में आता है , फकतना मेहनती था ज्ञान. गलमडयों के दिनों में ज्ञान सुबह उठ कर शहर को जाता और बर्ड का एक बड़ा बक्सा बाइसाइफकल पर रख कर ले आता.

गलमडयों के दिनों में सो्ा वाटर की सेल बहुत हो जाती थी. हम कुछ िोस्त शहर के एक स्कूल में मैदिक में िाखखल हो गए और ज्ञानचंि की छोटी उमर में ही शािी हो गई. हम िी अपनी स्ट्ी में मसरूफ़ हो गए लेफकन, ज्ञान की वह िक ु ान उसके ललए एक गोर्ल् माइन बन गई. उसी िक ु ान से उस ने अपनी तीन बदहनों की शादियां कीं. उसके तीन बेटे हुए, उन को पढ़ाया-ललखाया. हम िी इंग्लैण्​् आ गए थे लेफकन, जब िी वावपस जाते गले लग कर लमलते, पुरानी बातें याि कर के हं सते, खास कर ''ज्ञानचंि !! वनत कौन सी फर्र्लम है , किी सुनी नहीं.'' इस पर हम हं स पड़ते. हमारी शादियां िी हो गई थीं लेफकन, उस

वक्त तक ज्ञान के बेटे उसका हाथ बंटाने लग गए थे. ज्ञान में एक बात बहुत अच्छी थी, वह गांव के दहत में बहुत िाग लेता था. बचपन से एक मंदिर िे खते आये थे जो ज्ञान की िक ु ान के करीब ही था. अक्सर बच्चे उस में जा कर खेलते रहते. उस में कोई िरवाजा नहीं था, कुत्ते-बबजर्ललयां वहां जा कर सो जाते थे. इस मंदिर के बारे में िं त कथा चली आ रही थी फक. हमारे गांव में एक संत आ कर रहने लगा. वह जब बूढ़ा हो गया तो फकसी ने गाली बक िी. नाराज हो कर उस ने कहा फक, जब वह मरे तो, हमारे गांव का

कोई आिमी उसे हाथ न लगाए बजर्लक, पड़ोस के गांव वाले उस की लाश को नमक में रख इस जगह पर उसका संस्कार कर िें . जब वह परलोक लसधारा तो हमारे गांव वालों ने पछतावे के कारण वहां एक छोटासा मंदिर बनवा दिया जो, धीरे -धीरे खराब होता गया. िस-बारह वषड पहले ज्ञानचंि ने लोगों से पैसे इक्कठे फकये, कुछ अपने से ्ाले और मंदिर फर्र बनवा दिया. अब इस मंदिर में एक पुजारी है और गांव के दहन्ि-ू लसख वहां जाते हैं. ज्ञान की दहम्मत से फर्र से जंगल में मंगल हो गया है . ज्ञान के बच्चों की

शादियां हो चुकी हैं, ज्ञान का पररवार र्ल-र्ूल रहा है . जो उस ने छोटा-सा पेड़ लगाया था, अब उस पे

र्लों के ढे र लग रहे हैं. बहुत वषों से मैं गांव जा नहीं सका हू​ूँ लेफकन, चार वषड पहले मेरी पजत्न और बेटा गांव गए थे और ज्ञान की वीड्यो बना कर लाये थे. है तो वह एक लमनट की लेफकन, उस की याि के ललए वही कार्ी है '' यह था गुरमैल िाई की यािों के िरीचे से छोटा-सा एक नजारा. आशा है आपने इस नजारे का रसास्वािन फकया होगा. अंत में गुरमैल िाई को धन्यवाि तो कह ही सकते हैं जो, अपनी इतनी अनमोल यािें हमारे साथ शेयर करते हैं.

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6. हम िुम्हािे शलए, िुम हमािे शलए लीला ततवानी

Monday August 18, 2014

हमारे एक िाई हैं. हमने न उनको िे खा है , न उनके िे श -शहर को. बस, यंू ही ब्लॉग में कामें ट के सहारे

मुलाकात हुई और वह मुलाकात बढ़ते-बढ़ते िोस्ती और फफ़र सचमुच के िाई-बदहन के ररश्ते में तब्िील हो गई. जजस दिन र्ेसबुक, मेल या कामें ट के जररए उनसे मुलाकात नहीं होती, दिन सूना-सूना-सा लगता है . बड़े हाजजर जवाब, महा ज्ञानी, पररश्रमी, बेहि साहसी और हं समुख िी हैं. उनका सबसे पहला ववशेष गुण

हाजजर जवाबी इसललए कहना बनता है , फक उनकी यािों का िरीचा इतना बड़ा है , फक कोई िी बात ललखो, तरु ं त कोई फकस्सा पेश कर िे ते हैं. यों तो कहा जाता है "यदि करने को कुछ नहीं है ,

तो चुप रहना एक अच्छा ववकर्लप है .'' लेफकन एक ियंकर हािसे ने उनके अतत मख ु र व्यजक्तत्व को, सिै व मौन रहने के ललए वववश कर दिया.

सिै व हं सते-खखलखखलाते और गाते-बततयाते हमारे ये िाई, मात्र इतना ही बोल पाते हैं, फक उनकी अद्ा​ांगगनी तो उनकी बात पूरी तरह से समझ जाती हैं, उनके बच्चे और बच्चों के बच्चे िी काफ़ी कुछ समझ जाते

हैं, हां उनके साहस, जज़्बे, ध्यान, योग, व्यायाम व पररश्रम से उन्हें किी फकसी से आमने-सामने ललखकर बात करने की जरूरत नहीं पड़ी. उनके लमत्र िी अपना लैपटॉप लेकर आते हैं और उनसे बहुत कुछ सीखकर जाते हैं. हमसे िी उन्होंने समय तनयत कर के फ़ोन पर बात की थी, हम िी उनकी बात व हषोर्ललास को पूणत ड या समझ गए. वे पूरे अपनेपन से सोशल मीड्या के जररए, सिी के खुशी व ग़म में बाकायिा सजम्मललत होते हैं.

गोआ में एक समुद्र में गगर जाने के बाि एक लहर उनको बहाकर ्ुबो रही थी, तिी एक और लहर ने उनको समद्र ु के फकनारे लाकर छोड़ तो दिया, साथ ही तन से ववकलांग और वाणी से वंगचत कर दिया. फर्र िी उनका मानना है -

"न जाने कौन, िआ पढ़ता है मेरे हक में , ु ्ूबता िी हूं, तो समुद्र उछाल िे ता है .''

की बो्ड बजाते हुए फर्र्लमी गाने का शौक व हुनर होते हुए िी अब वे गा नहीं सकते और अब तो की बो्ड िी बच्चों को िे दिया है . फफ़र िी गह ृ स्थी को फकस तरह मजे-मजे से प्रेम की ्ोर से बांधकर रखना चादहए, इसका हुनर िी कोई उनसे सीखे. ववनम्रता और धैयड तो मानो उनको ववरासत में लमले हैं. उनका मानना है "फकसी शांत और ववनम्र व्यजक्त से, अपनी तुलना करके िे खखए,

आपको लगेगा फक आपका घमण्​्,

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तनजश्चत ही त्यागने जैसा है .'' और "धैयड (सब्र) ही सबूरी है . इसे किी मत छोड़ो, जब किी तम ु मजु श्कल में पड़ोगे,

तो यही तुम्हें सुरक्षक्षत पार उतार िे गा.'' वे फकसी को पराजजत करने के पक्ष में नहीं हैं, बजर्लक कोई एक किम आगे बढ़ाए, तो वे उसके ललए िस किम आगे बढ़ कर उसे आगे बढ़ने में मि​िगार होने में ववश्वास रखते हैं. उनके बहुत-से वाकयात से तो आप वाफकफ़ होंगे ही और अब तो उनका नाम िी आपने बझ ू ललया होगा. जी हां, गरु मैल िाई. प्रस्तत ु है उनका एक और वाकया, उन्हीं की कलम से-

"लीला बहन, मैं बहुत हे र्लिी था, लेफकन इस कं्ीशन ने मुझे 80 वषड का बना दिया . फर्र िी िगवान का शुक्रगुजार हूं, जो मुझे र्ैलमली की पूरी सपोटड लमल रही है . एक दिन कुलवंत कहने लगी, "मैं ज़्यािा िे र

तक जीना चाहती हू​ूँ, ताफक मैं आप की िे ख िाल कर सकंू .'' मैं ने हं स कर जवाब दिया, "मैं िी ज़्यािा िे र जीना चाहता हूं, ताफक ज़्यािा िे र तक तुम को कम्पनी िे सकंू .'' फर्र हम कुछ िावुक-से हो गए . लेफकन यह किी-किी ही होता है , ज़्यािातर हम खुश ही रहते हैं . िीतर से तो मैं अिी िी यंग हूं, किी बूढ़ा हुआ ही नहीं. सच ही तो है ''ररश्तों की खब ू सरू ती,

एक-िस ू रे की बात बिाडश्त करने में है , खुि जैसा इंसान तलाश करोगे, तो अकेले रह जारगे.''

कहते हैं, फक िगवान एक रास्ता बंि करता है , तो िस रास्ते खोल िे ता है . वे गा-बोल नहीं सकते हैं तो क्या, उनको माललक ने ललखने का हुनर तो दिया है न! लसर्ड इतना ही नहीं िुःु ख में िी दहम्मत से हं सकर जीने का जज़्बा िी तो माललक ने उन्हें प्रिान फकया है , साथ ही िी है , अत्यंत प्रेम और नेक दिल वाली एक अत्यंत ऊजाडवान अद्ा​ांगगनी. एक दिन उनकी सुशील-सुघड़ अद्ा​ांगगनी ने ही उनको प्रेरणा िी फक, "आप

को ललखने का हुनर माललक ने दिया है , उसका प्रयोग आप रे ड्यो पर कहानी िेजने में इस्तेमाल कररए न!'' वक्त अच्छा था, बात उनके मन को िा गई. उन्होंने आनन-र्ानन एक कहानी ललखी और रे ड्यो पर प्रसारण के ललए िेज िी. तुरंत सूचना आ गई, फक जर्लिी ही उनकी कहानी को प्रसाररत फकया जाएगा.

बाकी लोग तो सब कुछ खुि सुनाते हैं, पर वववशता के चलते, इनकी कहानी फकसी और द्वारा पढ़ी गई.

तुरंत बहुत-सी प्रततफक्रयाएं उसी समय आ गईं. तब से अब तक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं िे खा. उनकी कहातनयां बहुत लोकवप्रय हो गई हैं. अब तो पबत्रकारं से िी जुड़ गए हैं और अपने को बहुत व्यस्त रखते हैं. िस ू रों की रचनाएं व पस् ु तकें पढ़ने का लसललसला िी जारी रखे हुए हैं, ताफक ववचारों की सररता को प्रवादहत होने के ललए ताजा-तनमडल जल उपलब्ध होता रहे . जब सशक्त थे, तो तन-मन से सबका िला

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करते थे. अब तन से न सही मन से और कलम से तो सबके िले में अपना िला समझते हैं. उनका मत है फक"न कोई राह आसान चादहए, न कोई मंजजल पास चादहए, एक ही चीज मांगते हैं रोज उस रब से, अपनों के चेहरे पर हर पल प्यारी-सी मुस्कान चादहए.'' और "जजस काम से आपको, ज़्यािा खुशी लमलती है , वह सबसे अगधक करें .''

इसललए वे बोल तो नहीं पाते, पर ललखकर अपनी यािों के िरीचे को हरिम खुला रखते हैं. इस प्रकार अपने कायों से वे हमें लसखाते हैं फक''जीवन जीना मुजश्कल िले ही है , नामुमफकन नहीं.''

और हां, स्टीफ़न हॉफकं ग को वे अपना गरु ु मानते हैं, क्योंफक वे िी लगिग इनकी उम्र के हैं और इनके

जैसी अवस्था में हैं, इसके चलते िी, अपने असीम साहस और जज़्बे के कारण वे बहुत-सी पुस्तकें ललख रहे हैं. वे अपने समय का सिप ु योग करते हुए अपने को व्यस्त रखते हुए, समाज का कर्लयाण कर खश ु ी

बांट िी रहे हैं और स्वयं िी परमात्मा के शुकराने करते हैं, फक उन्हें फकसी काम का हुनर तो दिया. वे एक साथी ज्ञानी जी को िी अपना गुरु मानते हैं. आप यह तो समझ ही सकते हैं, फक एक ज्ञानी की बात एक ज्ञानी ही समझ सकता है . उनसे इनको अखबार व पस् ु तकें पढ़ने की आित ववरासत में लमली, जो बाि में इनको ववख़्यात लेखक बनाने में सहायक हुई. सच ही तो है -

"सीखने की इच्छा रखने वालों के ललए, पग-पग पर लशक्षक हैं.'' उनके ललए बेशक यह कहा जा सकता है -

"फकस्मत से लड़ने में , मजा आ रहा है िोस्तो, यह मुझे जीतने नहीं िे ती,

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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: िुिमैल भाई

और हार मैं मान नहीं रहा.'' इसमें उनकी परम वप्रय पजत्न कुलवंत जी की िी अहम िूलमका है , जो स्वयं िी घर-बाहर की सिी

जजम्मेिाररयों को कुशलता से तनिाते हुए िस ू रों की िलाई के कायों में िी सफक्रय रहती हैं तथा गुरमैल जी की सिी आवश्यकतारं का िी बहुत ख़्याल रखती हैं. िोनों का यह मानना है फक"हम तुम्हारे ललए, तुम हमारे ललए.''

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7. मेिी पहली कवविा लीला ततवानी

Monday September 01, 2014

वैसे तो इस बार इस महीने का कैलें ्र ब्लॉग के रूप में आना था, लेफकन ब्लॉग जगत के चहे ते फकरिार गुरमैल िाई से पहली बार कववता का सहज सज ृ न हो गया है . यों तो उन पर जजतने िी ब्लॉग्स ललखे गए हैं, वे उन्हीं की कलम की उपज हैं, हम तो मात्र ए्ीटर की िूलमका तनिाते रहे हैं, लेफकन कुछ पाठकों व

कामें टेटसड ने यह प्रबल इच्छा जताई थी, फक वे उनकी कलम का कमाल िे खना चाहते हैं, इसललए इस बार उन्हीं की कलम से उनके द्वारा रगचत पहली कववता का रसास्वािन कीजजए"सुबह उठना और बबस्तरे में ही २० लमनट स्िै गचंग करना, तनत नेम से र्ाररग हो कर नीचे आना,

चाय इंतजार में मेज पर, कुलवंत के साथ एन्जॉय करना,

चालीस लमनट तक योग करना, तीस लमनट लोम ववलोम, फर्र मजे से ब्रेक र्ास्ट चाय के साथ, कुछ अखरोट कुछ कॉनडफ्जलेक्स या िललया कुछ गोललआं जीने के ललए,

बस यही है दिन की शुरुआत। अब चेहरे की कसरत, जीि की कसरत,

ऊंचे-ऊंचे शोर मचाना, हं सना, रोना और मुस्कराना,

फकताब या मैगजीन जोर से पढ़ना, हर अक्षर िोहराना, फर्र गाना, जजंिगी इक सर्र है सुहाना। अब ररलैक्स होना आूँखें बंि, सोर्े में बैठ शांत मन, सो िी जाना किी किी, आधा घंटा या घंटा िी किी किी, फर्र उठना, लैप टॉप की रर जाना। ई पेपर ध्यान से पढ़ना, निाटा िै तनक िास्कर और अजीत, दहन्िस् ु तान टाइम्ज, टाइम्ज ऑर् इंड्या और सहार्त, युवासुघोष, जब्लट्ज, दहन्ि समाचार और जंग ्ेली, जो िी हाथ लगे, वह पढ़ना।

ब्लॉग को पढ़ना ध्यान के साथ, कॉमें ट ललखना जोर लगाके, साफ़ दिल से, बेखौफ़ हो कर, जो मन चाहे वह ही ललखना, किी छोटा किी बड़ा, किी एक लफ़्जज किी २००० लफ़्जज में , किी प्रशंसा किी नुक्ताचीनी, और करारा जवाब।

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ललखता हू​ूँ लघु कथाएूँ िी किी किी,

RADIO XL के प्रबंधक मांगते जो हैं ! नशर जब होती है मेरी कहानी जाम कर िे ते हैं HOTLINE को मेरे प्रशंसक। ववचार िे ते हैं अपने अपने, कुछ अच्छे कुछ बुरे,

उत्सादहत करते हैं मुझ को, जजि करते हैं कुछ और ललखूं, इंग्लैण्​् के मसलों पर जो ललखता हू​ूँ, और घर-घर की कहानी जो है यहां !!

जी हाूँ संगीत िी है मेरी खुराक, सुनता हू​ूँ रोज, फकशोर, मुकेश, रफ़ी, तलत, मन्ना ्े और सहगल िी किी,

लता, आशा, गीता ित्त, शमशाि बेगम और बेगम अख्तर िी किी, अर्लला रखा, जाकर हुसैन, रवव शंकर और चौरलसया जी िी किी। किी चैदटंग, कैसे हैं, खा रहे हैं क्या, किी िजजया, ढोकला या समोसे, किी रे लसपी, कोकोनट लड्​्ू या बेसन बफ़ी, फर्र सोने का समन और शुि राबत्र कहना। बस यही है रुटीन, और फर्र बे् में जाना, कुछ लमनट पढ़ना, पढ़ते-पढ़ते उबालसयों का आना, बत्ती बंि और सपनों में खो जाना, सुबह उठना फर्र वह ही िोहराना।''

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8. स्वच्छिा अशभयान से िे ि के ववकास िक लीला ततवानी

Monday November 03, 2014

हमारे माननीय प्रधानमंत्री मोिी जी ने जो स्वच्छता अलियान प्रारं ि फकया है , इस में िे श की जनता के साथ-साथ वविे श के लोग िी सजम्मललत हैं और अपनी-अपनी तरह से सहयोग िे रहे हैं. अिी-अिी आप इसी ववषय पर इंग्लै् की मनजीत कौर जी की कववता का रसपान कर चुके हैं, अब इंग्लैं् के ही गुरमैल िाई को िी अपना सहयोग िे ने का जोश आ गया और उन्होंने सम्िवतुः पहला आलेख ललखा है , जजसे

हमारे अनुरोध पर उन्होंने इसे ब्लॉग के रूप में प्रकालशत करने की अनुमतत िे िी. वैसे तो इस बार इस महीने का पहला सोमवार होने के कारण कैलें ्र ब्लॉग के रूप में आना था, लेफकन गरु मैल िाई के इस

अलियान पर समसामतयक आलेख को तरजीह िे कर कैलें ्र को अगले सप्ताह के ललए मुर्लतवी कर दिया गया है . सिै व की तरह हम तो मात्र ए्ीटर की िूलमका तनिा रहे हैं, बाकी सब कुछ गुरमैल िाई का है . लीजजए, अब आप लोग उनके आलेख का रसास्वािन कीजजएस्वच्छता अलियान से िे श के ववकास तक हमारे माननीय प्रधानमंत्री मोिी जी ने जो स्वच्छता अलियान प्रारं ि फकया है , इस की खुशी की लहर तो

सारे िारत में र्ैल गई है , लेफकन वविे श में रहते हुए िी, जजतनी खुशी मुझ को हुई, उसका वणडन कर सकना असंिव-सा है . िारत में रहते मुझे अपने घर के िीतर की सर्ाई का तो परू ा शौक था, लेफकन घर के बाहर की सर्ाई की मझ ु े परवाह नहीं के बराबर थी. किी-किार मैं म्यतू नलसपललटी में लशकायत िी

करता, तो उसका कोई लाि नहीं होता था. प्रततदिन सर्ाई वाले हाजजरी लगवाने के ललए एकबत्रत होते िी थे, हाजजरी लगवाने के बाि पाकड में गपशप करना व बीड़ी र्ूंकना उनका तनयलमत काम होता था. सर्ाई वे करते िी कैसे? न उनको ढं ग से झाड़ू मुहय्या होता था, न कूड़ेिान. जब 1962 में मैं इंग्लैण्​् आया, तो मुझे महसूस हुआ फक हम िारतीय िे श की सर्ाई के प्रतत फकतने अनजान हैं. यहां हर तरर् सर्ाई है , यहां तक फक जो पजब्लक टॉयलेट थीं और हैं उन में इतनी सर्ाई और महक, फक मन खुश हो जाता है . जब हम वावपस िारत आते थे, तो एयरपोटड से बाहर तनकलते ही मन उिास हो जाता था. हर बार, जब हम िारत आते थे तो गंिगी पहले से िी ज़्यािा होती थी. अब तो इस की इंततहा ही हो गई है . जब से प्लाजस्टक बैग लमलने शुरु हुए हैं, हर जगह कूड़े के ढे र लगे हुए हैं. नदियों में इं्जस्ियल वेस्ट इतना हो गया है , फक िे ख कर मन खखन्न हो जाता है . इस ग्लोबलाइजेशन के जमाने में हर िे श से लोग िारत आते हैं. क्या सोचते होंगे वे लोग िारत के बारे में ? कहते हैं, जब बुराई की इंततहा हो जाती है , तो कोई इंसान मसीहा बन कर आता है , जो सब कुछ बिल

कर रख िे ता है . गुरु नानक िे व जी के बारे में उन के जन्मदिन पर अक्सर गुरद्वारों में सुना करते हैं "

सतगुर नानक प्रघदटया, लमटी धुंध जग चानण होआ". फकसी नेक और बड़े पुरुष ् का पता उस के जाने के

बाि ही चलता है . जब गरु ु नानक जी जीववत थे, तो बहुत लोग उन पर नक् ु ताचीनी करते थे. जस्थतत आज िी वहीं-की-वहीं है . आज मोिी जी के स्वच्छता अलियान की कुछ लोग आलोचना िी करते हैं, लेफकन

मोिी जी ने सोये हुए िे श को जगाया है . मोिी जी ने अपने हाथ में झाड़ू पकड़ कर जो स्वच्छता अलियान शुरु फकया है और जजस मुस्तैिी से उस पर खुि िी अमल कर रहे हैं और करवा िी रहे हैं, वह इततहास के

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पन्नों में स्वणाडक्षरों में अंफकत फकया जाएगा. यहां वविे श में बैठा हुआ, जब मैं टीवी पर, अलमताि बच्चन, सलमान खान, सगचन तें िल ु कर जैसे और िी बड़े-बड़े लोगों और मंबत्रयों को झाड़ू पक्े सर्ाई करते िे खता हूं, तो मेरी आंखों में खुशी के मारे आंसू छलकने लग जाते हैं. अब तो हर बड़े नेता के जन्मदिवस या पुण्यततगथ को स्वच्छता से जोड़कर वे जनता और सिी कमडचाररयों

को इसकी याि दिलाते है . रे ड्यो के सम्पण ू ड नेटवकड पर जनता से 'मन की बात' कायडक्रम के माध्यम से वे जनता से सीधे वाताडलाप कर इसके बारे में सजग करते हैं. इस बार िी िो नवम्बर को इस कायडक्रम के

माध्यम से वे जनता से सीधे वाताडलाप करें गे. उन्होंने एक गांव को गोि ललया है और संसि सिस्यों को लमलने वाले र्ं् से उसकी स्वच्छता व ववकास का कायड स्वयं िी कर रहे हैं और हर संसि सिस्य से िी जर्लिी ही ऐसा करने को कहा गया है . शायि ही पहले फकसी प्रधानमंत्री ने स्वच्छता अलियान का प्रयत्न इतने बड़े स्तर पर फकया हो. मोिी जी अपने िे श के ववकास व स्वच्छता के ललए जजतना पररश्रम कर रहे हैं, उसे िे ख-सुन-पढ़कर मेरा मन, उनके प्रतत श्रद्ा से पररपूणड हो जाता है . 2 नवम्बर के मनमोहक कायडक्रम 'मन की बात' की प्रस्तुतत ने मन को मोह ललया. उन्होंने जो तथ्य व

अलियान की सर्लता के उिाहरण दिए, वे अपने आप में अनूठे थे. तीन अक्तूबर के कायडक्रम में उन्होंने खािी का प्रयोग करने का अनरु ोध फकया था, िले एक रूमाल ही खरीिने का आग्रह फकया. सचमच ु इस बार िीपावली पर दिए जाने वाले उपहारों में खािी के वस्त्र िी सजम्मललत थे. खािी ग्रामद्योग संघ ने

उनको बताया, फक उनके अनुरोध का सम्मान करने के ललए मात्र एक सप्ताह में ही खािी की बबक्री िोगुनी से िी अगधक हुई. इसी तरह रे लयात्रा का जो फकसी का अनि ु व उन्होंने सुनाया, वह िी अत्यंत अनमोल लगा. जहां लोग इधर-उधर कूड़ा-करकट र्ैंकने नजर आते थे, अब वे िे न में स्वच्छता की रर ध्यान िे ते

और सर्ाई करते नजर आए. इसी प्रकार उनके मातहत केंद्रीय ववद्यालयों व कॉलेजों में ववकलांगों के ललए ववशेष शौचालय बनवाने के ललए एक लाख रुपये की स्वीकृतत का प्रस्ताव लेकर आए. गरीब छात्र-छात्रारं को ववशेष छात्रवतृ तयां िे ने की पेशकश िी हुई. इन सबसे पता लगता है ऊपर से नीचे तक लोग इस अलियान से तन-मन-धन से जुटे हुए हैं.

आइए, हम सब िारतीय िी, मोिी जी ने स्वच्छता अलियान का जो अलख जगाया है , उसे प्रज्जज्जवललत करने में अपना सफक्रय सहयोग िें और िारत को ितु नया की नजरों में ऐसा सुंिर व स्वच्छ बना िें , फक

िारत एक र्ेवररट हॉलल्े ्ेजस्टनेशन बन जाए और हम सब िारतीय पुनुः गवड से यह कह सकें, फक मेरा िारत िे श हमेशा महान था, है और रहे गा. शुिकामनारं के साथ, गुरमैल िामरा, इंग्लैं्.

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9. िुिमैल-िरिमा-िाथा लीला ततवानी

Monday November 24, 2014

आज हम आपसे गरु मैल-गररमा-गाथा शेयर करें गे, लेफकन उससे पहले हम आपको संक्षेप में एक कहानी सुनाना चाहें गे-

एक तांगेवाले िाई बुजुगड सज्जजन थे. उनके सुपुत्र धन की तंगी के कारण इलाज के अिाव में , तुरंत इस ितु नया से कूच कर गए. फकसी तरह बड़ी मजु श्कल और सािगी से उसका अंततम फक्रयाकमड करके, बज ु ग ु ड

सज्जजन रात के िोजन के जुगाड़ के ललए तांगा लेकर तनकल पड़े. उनका उिास चेहरा फकसी ने नहीं िे खा, बस सब मोल-िाव करके फकराया कम करवाने के चक्कर में थे. सबसे पहले चार मदहलाएं उसके तांगे में सवार हुईं. बुजुगड सज्जजन उनसे अपने सुपुत्र के िे हावसान की व्यथा-कथा सुनाने की फफ़राक में थे, पर मदहलारं को इससे क्या लेना-िे ना! बस उन्हें तो मंजजल तक पहुंचने की जर्लिी थी. पुरुषों, नौजवानों, लड़कों, लड़फकयों में से, सबका वैसा ही रवैया था. परम शजक्त की तरर् से िौततक धन की कमी वाले लोगों के मन में संतोष धन पयाडप्त मात्रा में होता है . जैसे ही उनकी उस दिन की जरूरत पूरी होती है , वे

संतुष्ट होकर अपने आलशयाने को लौटते हैं, ठीक उन पररंिों की तरह जो संध्या होते ही चोंच में बबना कोई िाना ललए अपने घोंसले की रर चल पड़ते हैं, यह सोचकर, फक जजसने आज चुग्गा दिया है , वह कल िी

िे गा. हमारे इन बुजुगड सज्जजन को तो अपनी व्यथा-कथा फकसी को सुनाकर अपना मन हर्लका िी तो करना था. आखखर एक वक्ष ृ के तले एक बगधर सज्जजन को बैठा िे ख, वहीं तांगा रोककर उसके पास बैठ गए और उनसे अपनी व्यथा-कथा कह सुनाई. उनका मन हर्लका हो गया और वे उन सज्जजन को धन्यवाि िे ते हुए बोले, ''िाई, आप बहरे हैं, तो क्या हुआ! आपके पास, मेरी व्यथा-कथा को सुनने का समय तो है ! आपने बहुत धैयड से सुनी िी, आपका बहुत-बहुत शुफक्रया और तांगे पर सवार होकर घर को चल दिए.

हमारे गुरमैल-गररमा-गाथा के नायक गुरमैल िाई िारतीय मूल के इंग्लै् में रहने वाले एक शख़्स हैं, जो

अब फकसी पररचय के मोहताज नहीं हैं. हमारी उनसे प्रथम मुलाकात Wednesday March 12, 2014 को प्रकालशत हमारे ब्लॉग 'आज का श्रवणकुमार' में दिए गए एक कामें ट के जररए हुई. उससे पहले, वे कई ब्लॉगसड को व निाटा के समाचारों आदि पर कई सौ कामें ट्स ललख चुके थे, लेफकन उनको कहीं से कोई उत्तर नहीं लमला या लमला िी तो संतोषजनक नहीं. ऐसे में मन का मरु झाना स्वािाववक था. वे हमारे

ब्लॉग्स कार्ी समय से पढ़ रहे थे और उन पर दिए गए उत्तर िी, पर न जाने क्यों कामेंट ललखने में संकोच कर रहे थे. आखखर एक दिन दहम्मत जुटाकर उन्होंने एक कामें ट ललख ही दिया. उनको, जो उत्तर लमला, वह उन्हें संतोषजनक क्या काफ़ी संतोषजनक लगा और उसी ब्लॉग के कामें ट्स में उन्होंने अपनी सारी गाथा उजागर कर िी.Monday March 12, 2014 को उन्हीं कामें ट्स के आधार पर, उनकी सहज अनम ु तत से, उनकी जीवन-गाथा पर आधाररत हमारा पहला ब्लॉग 'गरु मैल-गौरव-गाथा' प्रकालशत हुआ. तन से तो वे व्यगथत थे ही, उसकी कथा िी एक बार फर्र हम आपको संक्षेप में सुनाएंगे, पर कामें ट्स का उत्तर न लमलने के कारण, मन से िख ु ी गुरमैल िाई प्रसन्नता से गद्गि हो गए. उन्होंने स्वप्न में िी

नहीं सोचा था, फक उन पर किी कोई ब्लॉग िी ललखा जाएगा. उनका उत्साह बढ़ता गया और वे कामें ट्स

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में , मेल पर, र्ेसबक ु पर अपनी कथा सन ु ाते चले गए और उन पर जर्लिी-जर्लिी कई ब्लॉग्स आ गए. हम सप्ताह में एक ही ब्लॉग ललख पाते हैं, इसललए जर्लिी का मतलब है , उनकी ही बारी आती चली गई, जो अब तक जारी है .

यों तो उन्हें पररवार वाले परू ा सहयोग िे ते हैं, सम्मान करते हैं, उनकी छोटी-छोटी खश ु ी का िी ध्यान रखते हैं और टूटी-र्ूटी िाषा में बोली गई, उनकी हर बात को बड़े ग़ौर और धैयड के साथ सुनते व

तिनुसार चलते हैं, पर िोस्त से बातें शेयर करने की बात ही कुछ तनराली है . यह हमारी खुशनसीबी है ,

उन्होंने अपने ढे र सारे लमत्रों में हमें िी शुमार कर ललया है और वे हमसे ललखकर और किी-किी र्ोन से िी अपनी बातें शेयर करते हैं.

उनकी शजख़्सयत के अनेक पहलू, उन पर ललखे अनेक ब्लॉग्स में उजागर हो चुके हैं. असल में लगिग 14 साल पहले, वे आमी की जानिार-शानिार नौकरी से ररटायर होकर सपररवार सैर करने गोआ आए थे. वहीं समुद्र की एक शरारती लहर उनको अपने साथ ले गई और िस ू री उिार लहर उनको फकनारे तक ले आई.

इसी िौरान उनके चलने और बोलने की शजक्त जवाब िे गई. एक शानिार गायक, वािक, नायक दिलिार शख़्स, चाल से लाचार और वाणी से मूक हो गया. अपने मन की शजक्त से उन्होंने अपनी लेखन कला से समय का सिप ु योग फकया और कम्प्यूटर पर दहंिी, इंजग्लश, पंजाबी व उिड ू ललखने में महारत हालसल की.

उनकी कुछ रचनाएं हमारे ब्लॉग्स पर िी ववद्यमान हैं. इंग्लै् के रे ड्यो के वे चहे ते कथाकार हैं और बहुतसी पबत्रकारं के ब्लॉगर िी. अब शीघ्र ही एक पबत्रका में हमारे ब्लॉग्स व कामें ट्स पर आधाररत उन पर एक लेखमाला िी आने वाली है .

हमने अपनी रर से उनके ललए कई आयुष, होम्योपैथी व ऐलोपैथी वाले ्ॉ. व ब्लॉगसड ्ॉ. से िी परामशड

ललया. सबने अपनी-अपनी राय ललखी, हम उन्हें मेल से िेजते रहे . वे सब कुछ आजमा चुके हैं और अपनी सेहत के ललए बहुत कुछ कर रहे हैं, जो आप हमारे एक ब्लॉग ''मेरी पहली कववता'' में िे ख सकते हैं. ्ॉक्टसड का कहना है , फक उनसे फकसी तरह उनके मन की बात तनकलवाइए, सो हम उनको और तो कोई सहयोग िे नहीं सकते, हां कामें ट्स के जररए उनका हौसला अवश्य बढ़ा सकते हैं. कामें ट्स में िी कार्ी पररश्रम हम खुशी से करते हैं, ताफक उन पर ज़्यािा स्िै स न आए. वे कामें ट्स छोटे ललखने की कोलशश

अवश्य करते हैं, पर उनकी ''यािों का िरीचा'' इतना बड़ा है , फक हर बात पर उनका कोई-न-कोई संस्करण तनकल ही आता है , और उसे अंफकत करने से वे अपने को रोक नहीं पाते. इससे उनका मन िी हर्लका हो जाता है . आज हमने र्ेसबुक पर उनकी खुशी के ललए एक छोटा-सा वीड्यो िी बनाया है . उनकी खुशी ही

हमारी खुशी है और उनका स्वास्थ्य ठीक हो जाए, तो आप लोगों को िी अवश्य खुशी होगी. बस, यही हमें कहना है , बाकी तो आप ब्लॉग्स में पढ़ ही सकते हैं. हमारी शुिकामनाएं गुरमैल िाई के साथ हैं. ------------------------------------------------------

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10. जन्मदिन िम् ु हािा : प्रेम-पत्र हमािा लीला ततवानी

Monday December 29, 2014

अपनी परम वप्रया के जन्मदिन या अन्य खश ु ी के अवसर पर अक्सर लोग फ़लक से लसतारे और न जाने क्या-क्या तोड़कर ले आते हैं, (िले ही वे ख़्याली ही क्यों न हों!) एक शायर िीवाना अपनी परम वप्रया के

ललए अपना खास मौललक तराना लेकर आता है . इसी तरह किी-किी मन मचल उठता है कुछ ललखने को, अपने प्यारों को और वो िी, जब अपनी जान से िी प्यारी, कुलवंत कौर जैसी प्यारी पजत्न हो और उसका जन्मदिन हो, तो एक लेखक का िावुक मन उसे एक ''प्रेम-पत्र'' के अततररक्त और कौन-सी उत्तम िें ट िे सकता है ! हमारे गरु मैल िाई का बावरा मन िी मचल उठा है , ऐसा ही एक ''प्रेम-पत्र'' ललखने को. उनकी

बलवती आकांक्षा है , फक यह प्रेम-पत्र मीड्या में उजागर होकर उनके सच्चे प्यार की तरह अमर हो जाए. हमें तो बस अपने ब्लॉग में , इसे स्थान िे ने की गुजाररश की गई, जो हमने अपना सौिाग्य मानकर

स्वीकार कर ली. यह उनका तनजी पत्र है , इसललए ए्ीदटंग करने को िी कुछ खास नहीं था. लीजजए, अब हम बीच में से हट ही जाते हैं और कुलवंत जी को सपररवार जन्मदिन की ढे रों शुिकामनाएं िे ते हुए, प्रस्तत ु करते हैं, यह नायाब ''प्रेम-पत्र''.

''प्यारी बीवी, 25 दिसंबर को फक्रसमस ्े िी है और तुम्हारा जन्मदिन िी. तुम 68 साल की हो जारगी और मैं िी

अप्रैल में 72 वषड का हो जाऊंगा. तम ु सोचोगी, फक मझ ु े इस उम्र में प्रेम-पत्र की क्या सझ ू ी? क्या इस उम्र में कोई प्रेम-पत्र ललखता है िला? बहुत दिनों से सोच रहा था फक तुम को जन्मदिन का क्या तोहफ़ा िं ? ू अचानक मेरे जेहन में हमारी शािी के वक्त की यािें ताजा हो आईं. फकतने प्रेम -पत्र हम ललखा करते थे.

उस में से बहुत-से हम ने अिी िी संिाल कर रखे हुए हैं, जजन को पढ़ने का अब हौसला नहीं पड़ता, क्योंफक वो जवानी के दिन थे और उस में फकतनी अजीब-अजीब बातें हम ने ललखी हुई हैं और खास कर, जो तकरीबन आधा घंटा हम ने अपनी िोनों की बातें ररकॉ्ड की हुई थीं, जजन को इतने वषों बाि कुछ हफ़्जते पहले ही हमने सुना था, फकतने है रान हो गए थे और झेंप-से गए थे हम! सोचा, शािी के बाि अब

तक हम एक दिन िी जुिा नहीं हुए, इस ललए प्रेम-पत्र कैसे ललखते? अब तो हम बुजुगड हो गए हैं, सोचा वपछली बातों को ही ताजा कर लें और तुम तो जानती हो, फक जो मजा ललख कर बताने में है , वो बोल

कर बताने में नहीं है . इस उम्र में जजंिगी का क्या िरोसा, अगला सांस आए-न-आए. एक बात और िी है . आज के जमाने में तलाक इतने बढ़ गए हैं, फक समझ में ही नहीं आता, फक आज के यव ु ा लोग आखखर चाहते क्या हैं? इसी ललए मैं इस प्रेम-पत्र को मीड्या में िी हाई लाइट करना चाहता हूं, ताफक आज के नए जमाने के लोग सोचें फक क्या हम ग़लत थे या वो ग़लत हैं. लो, अब कथा शुरु करता हूं.

यह बात 1955 की है जब मैं लसर्ड 12 वषड का था. मेरे वपताजी ईस्ट अफ्रीका से, जो आज केन्या के नाम से जाना जाता है , इंड्या आये हुए थे. मेरे बाबा जी किी-किी कोटड -कचहरी के काम से जालंधर जाया करते थे जो हमारे गांव से तकरीबन बीस फकलोमीटर िरू है . रास्ते में तुम्हारा गांव आता था. एक दिन

बाबा जी को प्यास लगी और पानी पीने के ललए पास के कुएं पर चले गए जो िाग्य से तुम्हारे बाबा जी

का ही था. तुम्हारे बाबा जी ने मेरे बाबा जी को पानी वपलाया और जजद्द करके चाय िी वपलाई. फर्र बातें

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चल तनकलीं और एक िस ू रे के बच्चों के बारे में बततयाने लगे. तम् ु हारे बाबा जी ने बताया फक उस की पोती साढ़े आठ साल की है और मेरे बाबा जी ने बताया फक उस का पोता 12 वषड का है . फर्र क्या था, तुम्हारे बाबा जी और मेरे बाबा जी ने हमारा ररश्ता वहीं पक्का कर दिया. न मुझे उस वक्त सगाई का कुछ पता था, तुझे तो क्या ही पता होना था, लेफकन जब घर आ कर मेरे बाबा जी ने, मेरे वपताजी को बताया, तो

घर में बहुत हं गामा हुआ. वपताजी बाबा जी से झगड़ने लगे. बाबा जी ने अर्लटीमेटम िे दिया, फक अगर उनकी बात मानी नहीं गई, तो वो घर छोड़ कर चले जाएंगे. उन्होंने फकसी को वचन दिया हुआ है . आखखर वपताजी को हगथयार ्ालने ही पड़े और कुछ दिन बाि तुम्हारे बाबा जी कुछ अन्य सागथयों के साथ आए

और मेरी झोली में शगुन ्ाल दिया, जजस में एक नाररयल, कुछ बताशे और कुछ मेवे थे. मुझे कहा गया, फक मैं ये बताशे अपने सागथयों में बांट िं .ू बुजुगड हं स रहे थे, फक इन लड़कों की सगाई िी जर्लिी हो

जायेगी. बात आई-गई हो गई और जजंिगी आगे बढ़ने लगी. जब मैं काललज में िाखखल हुआ, तो हम िोस्त र्गवाड़े में पढ़ते थे और किी-किी जालंधर लसनेमा िे खने जाया करते थे, हम साइफकलों पर होते थे और जीटी रो् पर जाया करते थे. जब हम तुम्हारे गांव के नजिीक आते तो मुझे िोस्त छे ड़ते, फक यार तुम्हारा ससुराल आ गया है . मैं िी मन में सोचता फक तू कैसी होगी, तरह-तरह के ख़्याल आते थे. एक दिन हम

िो िोस्त ही थे, पता नहीं क्या सूझी, फक गांव में जाने के ललए तैयार हो गए. सड़क से तुम्हारा गांव एक

र्ला​ांग ही है . हम गांव में चलने लगे, बग़ैर यह जाने, फक तुम कैसी होगी और तुम्हारा घर कहां होगा. जब

हम गांव की एक गली में गए, तो तम् ु हारे बाबा जी को िे खा, जजन को मैं पहचानता था, क्योंफक उन्होंने ही मेरी झोली में शगुन ्ाला था. मैंने िोस्त से कहा, यार! चलो िाग चलें नहीं तो कहर टूट पड़ेगा. हम ्र के मारे िाग खड़े हुए फक कहीं पता न चल जाए. बाि में जीटी रो् पर आ कर हम बहुत हं से.

1962 में मेरे िोस्त का इंग्लैण्​् आने का चांस बन गया. मेरी रातों की नींि उड़ गई, क्योंफक यह मेरा

िोस्त बहुत प्यारा था. मेरे वपता जी इंग्लैण्​् में आ गए थे, लेफकन मैंने किी इंग्लैण्​् आने का सोचा ही नहीं था. मैंने िी इंग्लैण्​् में लंिन के एक कॉलेज को, जजस का नाम था ''र्ैरा्े हाऊस इंजीतनयररंग कॉलेज'' एक पत्र ललखा, फक मैं ए्लमशन लेना चाहता हू​ूँ. िो हफ्जते बाि मुझे फ़ॉमड आ गए, जो मैंने िर

कर िेज दिए. कुछ हफ्जते बाि मुझे ए्लमशन की कन्र्मेशन आ गई. मैंने पासपोटड के ललए अप्लाई कर

दिया. मेरा पासपोटड मेरे िोस्त से िी पहले आ गया और मैं सीट बुक करवा कर िोस्त से एक हफ्जता पहले इंग्लैण्​् आ गया. यहां आ कर जजंिगी का असली पता चला. पढ़ना तो क्या था, काम िी नहीं लमलता था. हम लोग ऐसे रहते थे, जैसे हम ररफ्जयूजी कैम्पों में रहते हों. एक घर में बीस-बीस पचीस-पचीस लोग रहते थे. एक बै् पर िो-िो सोते थे. फर्र मुझे फकसी की लसफ़ाररश से एक र्ैक्टरी में काम लमला, लेफकन जब पहला दिन काम पर गया, तो मेरा शरीर टूट चुका था. घर आ कर मैं बहुत रोया, फक कहां र्ंस गया! सिी लोग इकट्ठे हो गए और मुझे हौसला िे ने लगे. फर्र धीरे -धीरे जजंिगी चलने लगी और मैंने कुछ पैसे

जमा फकए. बहुत िोस्त बन गए थे. हम ववलायत की सैर करते, हर शतनवार और रवववार को िरू -िरू तक फफ़र्लमें िे खने जाते. पता ही नहीं चला, फक कब पांच साल परू े हो गए. वपताजी वावपस इंड्या चले गए थे

और मुझे खत ललखते फक मैं इंड्या आ जाऊं, क्योंफक तेरे वपताजी शािी के ललए जोर िे रहे थे. मैंने अपने वपताजी को ललखा, फक मैं अपनी वाइर् को खत ललखना चाहता हूं. वपताजी ने तेरे वपताजी से पूछा और मुझे इजाजत लमल गई. बस फर्र क्या था, प्रेम-पत्र शुरु हो गए. ये पत्र एक पेज से शुरु हो कर अनेक पेजेज के बन गए. पता नहीं कहां से बातें आती थीं. खत ललखना शुरु करता, तो रात-रात िर ललखता

रहता. तुझे याि है , एक खत मैंने सात रं गों में सात बड़े-बड़े पेजेज पर ललखा था, इतना बारीक लफ़्जजों में

था, फक आज िी है रानी होती है , फक कैसे यह ललखना संिव हो गया. सच मानो, यही वो सुनहरे दिन थे,

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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: िुिमैल भाई

फर्र किी-किी मैं तम ु को फकसी के घर टे लीफ़ोन िी करता था, जब फक उस समय तीन लमनट टे लीफ़ोन करने के पांच पाऊं् हुआ करते थे, जो उस समय आज के सौ पाऊं् के बराबर थे, लेफकन पैसों की फकस को परवाह थी! फर्र मैंने और एक िोस्त ने इंड्या आने के ललए सीटें ररजवड करा लीं. एयर अर्गान में हम ने जाना था. सारा ऐरोप्लेन पंजाबबयों से िरा हुआ था. लं्न गैटववक एयरपोटड से उड़े और पहले काबुल आ कर लैं् हुए. उस समय फकतने अच्छे लोग हुआ करते थे अर्गातनस्तान के! इतने फ़्रैं्ली थे,

फक सोच कर अब के अर्गातनस्तान पे तरस आता है . िो घंटे बाि फर्र प्लेन उड़ा और हम अमत ृ सर आ

गए. वपता जी आए हुए थे और तीन-चार घंटे बाि हम गांव आ गए. सारी रात तेरे बारे में सोचता रहा और सुबह उठ कर साइफकल उठाई और तुझ से लमलने के ललए चल पड़ा. जीटी रो् पर हमारा लमलने का वािा था. जब मैं तुम्हारे गांव के बस स्टैं ् पर पुहंचा, तो तू अिी आई ही थी, तेरे साथ तेरी छोटी बहन िी थी. मैंने तुझे र्ोटो पर ही िे खा हुआ था, इस ललए खझझकते- खझझकते मैंने तुझे सत लसरी अकाल बोला. तम ु ने िी बड़ी मासलू मयत से जवाब दिया. फर्र हम अपनी-अपनी साइफकल ले कर पैिल ही चल पड़े. मैं बातें कर रहा था, लेफकन तू खझझक-खझझक कर जवाब िे रही थी . फर्र हम जालंधर शहर आ

गए, बहुत घूमे, कुछ शॉवपंग की और मैंने फ्रूट की टोकरी बनवाई, तुम्हारे घर ले जाने के ललए. वावपस जालंधर से आ कर पहली िफ़ा तुम्हारे घर के िशडन फकए. तम् ु हारी मां, यानी मेरी सासू मां ने िरवाजे के िोनों तरर् पर तेल ्ाला और मुझे अन्िर आने का शुि संकेत लमला. मेरी बहुत सेवा की गई .

इस दिन के बाि तो मानो हम को लाइसैंस ही लमल गगया और हम रोज लमलने लगे. शािी के गहने और कपड़े िी हम िोनों ने लमल कर खरीिे . एक बात मैंने तुझ को बताई नहीं थी, फक कॉलेज के जमाने में हम चार िोस्तों ने वािे फकये हुए थे, फक हम अपनी शािी बगैर िान-िहे ज और िस बराततयों के साथ करें गे. िो सागथयों ने तो ऐसा कर िी दिखाया, लेफकन एक साथी घर वालों के आगे हार गया. जब मेरी बारी आई, तो मैंने िी अपनी इच्छा घर वालों को बताई, जो कुछ नाराजगी के बाि मान ली गई. िस बराततयों के

साथ, बगैर बैं्-बाजे के हमारी शािी हो गई. कुछ लोगों ने इस को बहुत अच्छा माना और कुछ ने िानिहे ज के बारे में लैक्चर िी दिए. इस के बाि हम घूमने-फर्रने के ललए चं्ीगढ़ आ गए. झील पर हम

बोदटंग करने के ललए जाते, बहुत मजे फकये . फर्र हम मं्ी, कुर्ललू और मनाली िी गए. िो हफ्जते घूमफर्रकर, मजे करते हुए, हम वावपस आ गए और कुछ हफ़्जते रह कर हम इकट्ठे इंग्लैण्​् आ गए. यहां आकर जजंिगी इतनी बबजी, हो गई फक सारे लव लैटर िल ू गए.

प्यारी बीवी कुलवंत, यह तो हो गई हम िोनों की कहानी. अब मैं कुछ और िी कहना चाहूंगा फक मैं फकतना िाग्यशाली हूं, फक तुम मेरी जजंिगी में आईं, मेरी जजंिगी को तुम ने स्वगड बना दिया. मैं नहीं

जानता फक कहीं और स्वगड है , लेफकन मेरी जजंिगी की झोली में तो तुम ने स्वगड के सिी सुख ्ाल दिए. पहले मैं अकेला था, फर्र तू आई और अब हमारा पररवार बढ़ कर एक बड़ा वट-वक्ष ृ -सा हो गया है , क्या

यह स्वगड से कम है ? हम जानते हैं, फक हमने जजंिगी में बहुत तकलीफ़ें िी उठाईं, लेफकन िोनों ने लमल कर तकलीफ़ों को पछाड़ दिया. हा हा माना, फक जरूरत पड़ने पर तुम कुछ कड़वी िी हो, लेफकन मेरी

लमठास ने तुम्हारे कड़वेपन को िी अपनी लमठास में घोल ललया. जजंिगी में पता नहीं फकतनी बार हम ने

बहस िी की, लेफकन याि ही नहीं फक फकस बात पर बहस की थी. आज मैं तुम्हारे बाबा जी और मेरे बाबा

जी का धन्यवाि करूंगा, क्योंफक उन बज ु ग ु ों के आशीवाडि से ही यह सब मम ु फकन हुआ है . बच्चे हुए, उन्हें पाल-पोसकर बड़ा फकया, पढ़ा-ललखाकर काम से लगाया और उनकी शादियां कीं. फर्र पोते-िोहते और िोहती

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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: िुिमैल भाई

िी हुई, अब वो िी बड़े हो गए और हम बज ु ग ु ड हो गए. सिी बच्चे हमें खश ु रखते हैं, बस हमें और क्या चादहए? इसीललए, मैंने तुम्हारे जन्मदिन पर यह तोहफ़ा यानी "प्रेम-पत्र" िे ना ही उत्तम समझा है .'' प्यार सदहत, तुम्हारा अपना गरु मैल

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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: िुिमैल भाई

11. गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई:िुिमैल भाई लीला ततवानी

Monday January 19, 2015

वप्रय गरु मैल िाई जी, सािर प्रणाम,

आपका एक िाविीना कामें ट आया था, फक काश! मेरा नाम िी गगनेस बुक ऑर् वर्ल्ड ररकॉड्डस में िजड होता. िाई, गगनेस बुक ऑर् वर्ल्ड ररकॉड्डस में नाम िजड होने के ललए फकसी ववशेष योग्यता की

आवश्यकता नहीं होती है . हम अपने वपछले ब्लॉग ''गगनेस बक ु ऑर् वर्ल्ड ररकॉड्डस का'' में यह बात

ववस्तार से बता चुके हैं. यहां तो बस हम ''गगनेस बुक ऑर् वर्ल्ड ररकॉड्डस'' में आपकी काबबललयत के बारे में ही बात करें गे. तो अब आपकी बात शुरु की जाए. हमने तो बस केवल पढ़ा-सुना ही है ''उड़ान हौसलों से होती है , पंखों से नहीं.'' आपका तो जीवन ही इसका जीता-जागता उिाहरण है . आपसे हमारा सबसे प्रथम सम्पकड एक 12 माचड, 2014 ब्लॉग ''आज का श्रवणकुमार'' से कामें ट के जररए हुआ. इसी ब्लॉग के सबसे पहले कामें ट में आपने अपना दिल खोलकर रख दिया. आपने ललखा था''लीला बदहन,आप के इस लेख ने, जो सच है , मेरी आंखें नम कर िीं, क्योंफक मैं खुि ड्सेबल हू​ूँ. वपछले िस साल से बोल नहीं सकता, बाहर नहीं जा सकता. स्टैं ् के सहारे चलता हूं, वह िी लसफ़ड अपने घर में .

लशयांग जो अपने बेटे के ललये कुबाडनी िे रहा है , उस की लमसाल कहीं नहीं लमलेगी. मैं 99% पौजेदटव हूं, फर्र िी इंसान हूं, किी ्ोल िी जाता हूं. िला हो उसका, जजसने कम्प्यूटर ईजाि फकया है . पढ़ने का मुझ को बचपन से शौक था. इस ललये सारा वक्त पढ़ने और इंटरनैट पर खो जाने में व्यतीत हो जाता है . मझ ु े ड्सेबबललटी के बारे में सोचने के ललये वक्त ही नहीं लमलता.''

पहले ही कामें ट में अपनी सारी शारीररक कमजोररयों का जजक्र कर िे ना अत्यंत हौसलेिरा काम है . एक पोस्टर का कहना है ''अपनी कमजोररयों का जजक्र, किी न करना जमाने से, लोग कटी हुई पतंग को, जमकर लूटा करते हैं.'' आपने इसकी कोई फफ़क्र नहीं की और अपने पररवार के सहयोग के बारे में िी ववस्तार से ललखा. सचमुच इतनी गंिीर आपिा झेलने और पररणामस्वरूप, शारीररक कमजोररयों के चलते िी आप जजतना हौसला दिखा रहे हैं, वह एक स्वस्थ व्यजक्त में लमलना िी अत्यंत िल ड है . ब्लॉग्स व समाचारों पर कई सौ ु ि

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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: िुिमैल भाई

कामें ट्स ललखने और फकसी िी कामें ट का उत्तर न लमलने तथा हमारे उत्तर से अत्यंत प्रिाववत होने की बात िी आपने इसी ब्लॉग में ललख िी थी. कहने का तात्पयड यह है , फक पहले ही ब्लॉग में आपने हम सबको अपने बारे में सब कुछ ववस्तार से बता दिया. उसके बाि आपने मुड़कर पीछे नहीं िे खा. यहीं से शुरु होती है , आपकी हौसले की ऊंचाई की गाथा. आपने अपने बारे में कामें ट्स-ही-कामें ट्स में इतना कुछ बता दिया, फक तुरंत आप पर ब्लॉग आने शुरु हो गए, जो फक हमारे द्वारा फकसी के बारे में ललखे गए सबसे

अगधक ब्लॉग्स हैं और यह िी अपने आप में आपका ही एक ररकॉ्ड है , क्योंफक इनके बारे में जानकारी तो आपसे ही लमलती थी, ववषय-वस्तु िी आपकी जुबानी होती थी, हम तो मात्र ए्ीटर की िलू मका तनिाते थे. इन ब्लॉग्स की सूची इस प्रकार है -

1.गुरमैल-गौरव-गाथा-17 माचड 2014.

2.सपना साकार हुआ-31 माचड 2014. 3.जन्मदिन का उपहार-08 अप्रैल 2014. 4.कहानी कुलवंत कौर की-14अप्रैल 2014. 5.यािों का िरीचा-28अप्रैल 2014.

6.हम तुम्हारे ललए, तुम हमारे ललए-20 अगस्त 2014. 7.मेरी पहली कववता-01 लसतंबर 2014.

8.स्वच्छता अलियान से िे श के ववकास तक-03 नवंबर 2014. 9.गुरमैल-गररमा-गाथा-24 नवंबर 2014.

10.जन्मदिन तुम्हारा : प्रेम-पत्र हमारा-29 दिसंबर 2014.

इनमें से तीन ब्लॉग्स तो हैं ही आपके ललखे हुए, जो फक तीनों अलग-अलग ववधा पर आधाररत हैं. हमारी कववतारं को पढ़कर आप के अंतमडन में कववता ललखने की रुगच ववकलसत हुई और बन गया ब्लॉग ''मेरी पहली कववता''. इंग्लैं् में रहते हुए िी आपका िारतीय मन िारत के साथ जुड़ा रहता है . िारत में स्वच्छता अलियान ने जोर पकड़ा, तो आपने िी एक आलेख ''स्वच्छता अलियान से िे श के ववकास तक'' ललख दिया, जो फक सम्िवतुः आपका पहला आलेख है . अपनी परम वप्रय पजत्न कुलवंत कौर जी के

जन्मदिवस को िी आपने खास बना दिया, उनके नाम एक प्रेम -पत्र ललखकर और आपका ब्लॉग बन गया, ''जन्मदिन तुम्हारा : प्रेम-पत्र हमारा''. यहां हम आपको एक मजेिार बात बताना चाहें गे, फक जब आपने यह प्रेम-पत्र ललखा, तो एक दिन हम गूगल पर ''गुरमैल िाई के प्रेम-पत्र'' सचड कर रहे थे, तो आपका यह प्रेम -

पत्र तो नहीं आया, अलबत्ता माननीय प्रधान मंत्री जी को ललखा गया आपका ब्लॉग ''स्वच्छता अलियान से िे श के ववकास तक'' आ गया. मजे की बात यह है , फक ''स्वच्छता अलियान'' पर अनेक लेखकों व ब्लॉगसड द्वारा ढे रों ब्लॉग्स ललखे गए थे, उनमें से ''स्वच्छता अलियान'' पर केवल आपका ही ब्लॉग आ रहा था, शायि इसललए. फक आपने उसे पत्र के रूप में ललखा था. आप 12 माचड से अब तक जजतने कामें ट्स ललख चुके हैं, वह िी अपने आप में एक अनोखा वर्ल्ड ररकॉ्ड बनने के ललए पयाडप्त है . इनसे कहीं िी आपकी

ड्सेबबललटी व अन्य फकसी िी शारीररक कमजोरी का ततनक िी आिास नहीं होने पाता. आपके एक अच्छे गायक व कैलसयो-वािक होकर िी, आपने अपने न गा-बजा सकने की अपनी अक्षमता का किी िी आिास तक नहीं होने दिया है . आप अिी िी बराबर एक घंटे तक जोर-जोर से गाने का अभ्यास करते रहते हैं, जजससे आपकी आवाज िी अब काफ़ी खुलने लगी है , जैसा फक आपने र्ोन पर हमसे बात की थी, तो हमें

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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: िुिमैल भाई

पता लगा. आप िारत की इस मान्यता का साकार रूप हैं, फक 'हर पररजस्थतत में समिाव रखना ही योग है '. आप तन-मन-धन से सेवा को ही धमड समझते हैं, इसका जीता-जागता उिाहरण है , इंग्लैं् की ही सुप्रलसद् लेखखका मनजीत कौर जी से हमारी मुलाकात करवाना, जो तुरंत ही हमारी अलिन्न लमत्र बन गईं

और उनको िी हर तरह से ऊंचा उठाने में आपका सहायक होना. आपकी यािों और ज्ञान का िरीचा इतना ववस्तत ृ है , फक कोई िी बात हम ललखें, तुरंत उससे लमलता-जुलता कोई फकस्सा या िे खी-सुनी बात आप

तरु ं त प्रस्तत ु कर िे ते हैं. एक और अहम बात, आप कुलवंत जी सदहत सिी को परू ा मान-सम्मान व समय िे ते हैं, खुि िी हमेशा खुश रहते हैं, ठहाके लगाकर हं सते व सिी को हं साते रहते हैं.

आपके लेखन का िायरा यहीं तक सीलमत नहीं है , वह तो बहुत बड़ा है . आप इंग्लैं् रे ड्यो के चहे ते कहानीकार हैं और एक पबत्रका में ब्लॉगर िी. ठीक इसी तरह आप पर आने वाली रचनारं का िायरा िी बहुत ववस्तत ू ों से पता चला है , फक आप पर एक लेखमाला तैयार हो रही है , जो फक ृ है . हमें ववश्वस्त सत्र तनकट िववष्य में ही प्रकालशत िी हो सकती है . हमें ज्ञात है , फक आपकी सिी ववशेषतारं का वणडन एक ब्लॉग में तो करना मुजश्कल-सा ही है , हम तो बस आपके हौसले से उत्सादहत होकर ही कुछ ललख पाते हैं. माललक आपको ऐसे ही हौसले से नवाजे रखे और आपका जीवन ऐसी ऊंचाइयों को छू ले, फक स्वयं ''गगनेस बक ु ऑर् वर्ल्ड ररकॉड्डस'' िी अचंलित हो जाए. आपके स्वस्थ व सफक्रय जीवन की शुिकामना के साथ, आपकी छोटी बदहन लीला ततवानी

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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: िुिमैल भाई

12.'ई.बुक' की बधाई, िभ ु कामनाएं िुिमैल भाई लीला ततवानी

Sunday April 12, 2015

बहुआयामी व्यजक्तत्व के धनी व एक अच्छे इंसान गरु मैल िाई निाटा और अपना ब्लॉग-जगत के ललए फकसी पररचय के मोहताज नहीं हैं. वे ब्लॉग जगत की जानी मानी हस्ती हैं. सिी को प्रेम का तोहफ़ा िे ने वाले और सिी के कामें ट्स को गहराई से िे खकर, उन्हें प्रेम से प्रत्युत्तर िे कर अपना बना लेने वाले,

गुरमैल िाई सबके चहे ते फकरिार िी हैं. वास्तव में जजस िी प्रततफक्रया या रचना में लेखक अपना दिल

तनकालकर रख िे ता है , वह र्ूल की तरह अपने आप महक जाती है , उसके ललए कोई कोलशश नहीं करनी पड़ती. गरु मैल िाई खि ु को सादहत्यकार तो क्या, लेखक िी नहीं मानते, पर हम तो यही जानते हैं, फक

इनके ललखे हर कामेन्ट में िी इनकी महान सादहजत्यकता की झलक लमलती है . इनसे हमारा सबसे प्रथम सम्पकड निाटा में अपना ब्लॉग, 'रसलीला' पर, हमारे 12 माचड, 2014 के एक ब्लॉग ''आज का श्रवणकुमार'' से कामें ट के जररए हुआ. िे खते-ही-िे खते वे एक दिन में ही गुरमैल िाई हमारे सिी पाठकों और तमाम ब्लॉगसड के चहे ते बन गए. उसी ब्लॉग में कामेंट्स के जररए इन्होंने हम पर अपने महान व्यजक्तत्व की जो छाप छोड़ी, वह अद्भत ु है . हमें वहीं पर इनके एक अच्छा व सच्चा इंसान होने के साथसाथ, इनके एक महान सादहत्यकार होने की झलक िी लमल गई थी. नतीजतन 17 माचड को ही उन पर

हमारा ब्लॉग 'गुरमैल-गौरव-गाथा' आ गया. उसके बाि तो इन पर ब्लॉग्स की पूरी श्रंखला ही आ गई, जो बहुत लोकवप्रय हुई. वह श्रंखला इस प्रकार है -

1.गुरमैल-गौरव-गाथा-17 माचड 2014.

2.सपना साकार हुआ-31 माचड 2014. 3.जन्मदिन का उपहार-08 अप्रैल 2014. 4.कहानी कुलवंत कौर की-14अप्रैल 2014. 5.यािों का िरीचा-28अप्रैल 2014.

6.हम तुम्हारे ललए, तुम हमारे ललए-20 अगस्त 2014. 7.मेरी पहली कववता-01 लसतंबर 2014.

8.स्वच्छता अलियान से िे श के ववकास तक-03 नवंबर 2014. 9.गुरमैल-गररमा-गाथा-24 नवंबर 2014.

10.जन्मदिन तम् ु हारा : प्रेम-पत्र हमारा-29 दिसंबर 2014.

11.गगनेस वर्ल्ड ररकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई:गुरमैल िाई-जनवरी 19 2015.

गगनेस वर्ल्ड ररकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई:गुरमैल िाई ब्लॉग प्रकालशत होते ही, हमने यों ही एक दिन

गग ू ल पर 'गगनेस बक ु ऑर् वर्ल्ड ररकॉड्डस' ललखकर सचड फकया, तो सबसे ऊपर यही रचना आ रही थी.

हमारी खुशी का दठकाना नहीं रहा. हमने तुरंत गुरमैल िाई को मेल ललखी. गूगल पर यह नजारा िे खकर

उनके हषड का अंिाजा लगाना, आपके ललए िी मुजश्कल नहीं होगा. हर वषड वैसाखी के पावन पवड 13 अप्रैल के दिन वे अपना जन्मदिन मनाते हैं. इसी दिन कुलवंत कौर जी के साथ इनके वववाह-समारोह की

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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: िुिमैल भाई

सालगगरह िी है . हमारी यह हादिड क तमन्ना थी, फक इस परम पावन अवसर पर उन पर ई.पजु स्तका

''गगनेस वर्ल्ड ररकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई:गुरमैल िाई'' प्रकालशत हो सके. अब वह ई.पुजस्तका तैयार हो

चुकी है और 13 अप्रैल के परम पावन दिन को इसे गुरमैल िाई को िेजकर इसका ववमोचन फकया जाएगा. 'अपना ब्लॉग' के साथ उन सिी पाठकों व कामें टेटसड को िी इस के ललए बधाई, जजन्होंने गुरमैल िाई को अपने प्रेम व स्नेह से लसंगचत फकया तथा िमरा पररवार को जन्मदिन व वववाह की सालगगरह की कोदटकोदट शुिकामनाएं.

चलते-चलतेगुरमैल िाई की जजन ववशेषतारं और सादहजत्यक ववधारं का उर्ललेख हम ब्लॉग्स में

कर चक ु े हैं, उनकी पन ु रावजृ त्त तो हम नहीं ही करें गे, लेफकन िो नई बातें हम आपके समक्ष अवश्य रखना

चाहें गे. एक तो वे आजकल 'जय-ववजय' मालसक पबत्रका के सम्मातनत ब्लॉगर बन चुके हैं. वपछले मास इस पबत्रका में इनको एक पूरा पष्ृ ठ िी समवपडत फकया गया था, जजसमें इनकी सुपुत्री 'वपंकी हं सपाल' के, अपने पापा के ललए िाविीने व अमनमोहक उद्गार िी अंफकत हैं. िस ू रे , शारीररक रूप से, ललखने में बहुत कदठनाइयां होने के बावजूि 'जय-ववजय' मालसक पबत्रका में प्रतत सप्ताह तनयलमत रूप से इनकी आत्मकथा

के एक या िो एवपसो् प्रकालशत हो रहे हैं, जजसकी श्रेष्ठता का असली आकलन तो इसे पढ़ने वाला ही कर सकता है . इसे इन्होंने 'मेरी कहानी' नाम दिया है . हम तो इससे इतने अलि​िूत हैं, फक हमारे ललए तो इसके ललए कुछ कहना, गूंगे के ललए गुड़ का स्वाि बताने की िांतत है .

इस अवसर पर हम सिी कामेंटेटसड िाई-बदहनों से ववनम्रता पव ड तनवेिन करना चाहें गे, फक जो िी िाईू क बदहन इस ई.पुजस्तका को मंगाने के इच्छुक हों, बस वे अपनी ई.मेल आई.्ी. सदहत अपनी इच्छा से हमें अवगत करा िें , उन्हें तुरंत यह ई.पुजस्तका सप्रेम िेज िी जाएगी. हमारे ख़्याल से तो गुरमैल िाई पर

आधाररत इन ब्लॉग्स को ई.पुजस्तका के रूप में पढ़ना एक सख ु ि व ववगचत्र अनुिव होगा. गुरमैल िाई के ललए तो सम्िवतुः यह एक ररकॉ्ड उपलजब्ध ही होगी. इस पुजस्तका में िमरा िम्पजत्त की छपी र्ोटो में गरु मैल िाई जी की चश्मे में से झांकती अनि ु वी आंखें ही बहुत कुछ कहने में सक्षम हैं. एक बार पन ु ुः गुरमैल िाई व पूरे िमरा पररवार को कोदटशुः शुिकामनाएं.

'रसलीला' ब्लॉग की लेखखका लीला ततवानी --------------------------------------------------

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