गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई: ििु मैल भाई
(लीला तिवानी का ब्लॉग्स-संग्रह)
भाि – 2
इंग्लैं् के िुिमैल भमिा पि आधारिि ब्लॉग्स लेखमाला नवभािि टाइम्स के अपना ब्लॉि कॉलम में प्रकाशिि
इंग्लैं् के ििु मैल भमिा पि आधारिि ब्लॉग्स लेखमाला नवभािि टाइम्स के अपना ब्लॉि कॉलम में प्रकाशिि
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गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची : प्रतिक्रियाएंएक अनचीन्हा रूप-
अप्रैल 16, 2015
अप्रैल 23, 2015
माि ृ दिवस की वेला, कुलवंि कौि के घि मेलासह ु ाना सफि-
मई 10, 2015
जुलाई 20, 2015
एक नवीन प्रयोि (कहानी)-
दिसम्बि 03, 2015
िुिमैल भाई, सम्मान की बधाईववतनंि मोमें ट्स की िस्वीि-
जनविी 08, 2016
फिविी 02, 2016
उपलब्धधयां िबे पांव आिी है-
अप्रैल 14, 2016
वविाट मन की व्यापक स्मतृ ियां-
जुलाई 10, 2016
10. जन्मदिन हमािा: उद्िाि आपके-हमािे -
ससिम्बि 10, 2016
11. बल ु ंि हौसले को कोई नहीं िोक पाया है : कुलवंि12. कुछ ज़माना बिले कुछ हम-
जनविी 06, 2017
दिसम्बि 25, 2016
1.
गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची : प्रतिक्रियाएं
लीला तिवानी
Thursday April 16, 2015
13 अप्रैल को ििु मैल भाई का जन्मदिन भी होिा है औि उनके वववाह की सालगििह भी. ऐसे स्वर्णडम अवसि पि 13 अप्रैल 2015 को ई.बुक ''गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई:िुिमैल भाई'' का
लोकापडण भी हुआ औि उसी दिन हमािे पास प्रतिक्रियाएं भी पहुंचीं. िुिमैल भाई बहुआयामी व्यब्तित्व के धनी व एक अच्छे इंसान हैं. वे नभाटा औि अपना धलॉि-जिि के जाने-माने क्रकििाि भी हैं. िुिमैल भाई के धलॉग्स पि आधारिि ई.बुक ''गिनेस वर्ल्ड रिकॉ्ड से ऊंची, आपकी ऊंचाई:िुिमैल भाई'' का अत्यंि
उत्साह से स्वािि हुआ है . सबसे पहले प्रस्िि ु हैं, इसके सज ृ न-प्रक्रिया के बािे में चंि पंब्तियां. सबसे पहला सहयोि िो िुिमैल भाई का है , जो वपछले एक साल से हमािे साथ जुड़े हुए हैं. उन्होंने अपने बािे में हमें इिनी महत्त्वपूणड जानकािी व ववषयवस्िु िी, क्रक उन पि आधारिि इिने धलॉग्स का सज ृ न हो सका,
हम िो बस केवल ए्ीटि की भूसमका तनभािे िहे हैं. इस ई.बुक के पी.्ी.एफ. की तनमाडण प्रक्रिया का काम ं किने के काम को हमािे िोहिे मेहुल िजवानी ने संभाला िथा इसे इसे ई.बुक का रूप िे ने व पब्धलस ि हमािे सप ु त्र ु िाजेंद्र तिवानी द्वािा अंजाम दिया िया.
सबसे पहली प्रतिक्रिया िुिमैल भाई की समली-
''लीला बहन , बहुि बहुि धन्यवाि. आप की भेजी ई.बुक समल िई औि पढ़कि यकीन ही नहीं हुआ, क्रक इस में जो सलखा है , वह हमािा ही था. पढ़कि ऐसा लिा, जैसे क्रकसी अन्य लेखक को पढ़ िहा हूं. बहुि सुन्िि लिी.'' िथा
''लीला बहन, इस ई.बुक से सािे साल की घटनाएं याि हो आईं, ऐसा लिा जैसे कल की बाि हो . अंधेिे में बैठा था, िो नी में आ िया. कहिे हैं, 'there is light at the end of the tunnel.' सही ही है औि उस का प्रमाण है आप की ई.बक ु .''
िुिमैल भाई की के प्रतिक्रिया के प्रत्युत्ति में हमािी प्रतिक्रिया- ''मुझे भी यकीन नहीं हो िहा है . इससे पहले मैंने िस ू िों को ई.बुक पढ़िे िे खा है , पि खुि कभी नहीं पढ़ी. मुझे ज़िा भी इर्लम नहीं था, क्रक मैं पहली
ई.बक ु अपनी ही सलखी हुई पढूंिी. सच में इसे पढ़ने का मज़ा ही कुछ औि है . वास्िव में यह एक सख ु ि व ववगचत्र अनुभव है .''
उसके बाि मेल से धलॉिि भाई अनुपम जी की प्रतिक्रिया समली, जो इस प्रकाि है ''आििणीय धलॉिि लीला बहन जी,
आपने तनब्चचि रूप से एक बेहििीन प्रेिणािाई औि प्रचं् जीवनी
ब्ति से भिपूि औि अनुभवी व्यब्ति श्री
िुिमैल भाई जी का परिचय दिया है . जीवन औि प्रकृति से बार्लयकाल से ही इनका लिाव तनब्चचि रूप से, इनके मानविा प्रेमी औि जपुजी साहब का उगचि अनुचि होने का प्रमाण है . िोआ की एक लहि औि
1
फुलवािी में मकड़ी द्वािा बनाया जा िहा जाला भी, इनको प्रेिणा िे िा है . यह केवल उसके साथ हो सकिा है , जो सच्चा जीव हो. िोनों ही उिाहिणों में ब्रह्म द्वािा साक्षाि मािडि डन स्पष्ट है . भाई जी प्रतिदिन
स्वयं को 1.5 घंटा िे िे हैं. मानविा के दहि में 1 घंटा औि जोड़ िें औि सूयोिय औि सूयाडस्ि के समय
30-30 समनट थोड़ी मात्रा में सहन-सीमा िक भब्स्त्रका क्रफि अनुलोम ववलोम का भी प्रयोि भी कि सकिे हैं. पैिासलससस का िो अकाट्य िोड़ है अनुलोम ववलोम.
भाि 3 में उब्र्ललर्खि श्री ििु मैल भाई को समवपडि आपकी कवविा िो बेहििीन है , मन के समस्ि भावों को
धिों के धािे में वपिोकि आपने
ानिाि िचना की है .
कुलवंि भाभी जी का भी उिना ही सुन्िि व्यवहाि है , जो समस्ि भाििीय मदहलाओं का होिा है . पाचवड तनयंत्रक अथवा प्रबंधक, कुल समलाकि सािी सोच बस अपने बच्चों ,पति परिवाि औि अपने नज़िीक समाज िक सीसमि. इसके अतिरिति अन्य कोई महत्वाकांक्षा नह केवल अपनों के सलए ही जीना. अगधकां िः अपना कोई अब्स्ित्व नहीं. इसीसलए मां को सबसे बड़ा स्थान दिया िया है . इनके बाल समत्र श्री ज्ञान की कथा भी पुनः एक ही बाि प्रमार्णि कििी है , क्रक धैयड औि परिश्रम की कभी हाि नहीं होिी. चािपाई की िक ू ान से मंदिि-तनमाडण िक की समाजसेवा यात्रा यही ससद्ध कििी है , संसाि का सबसे बड़ा भ्रम किाड होने का भ्रम है . सन्मािड पि धैयड पूवक ड क्रकया िया परिश्रम तनब्चचि ही उन्नति का िािा होिा है .
ये लीब्जये ्ॉतटि की समझ को िो फेल ही होना है ये जनाब िो पिू े 30 समनट िक अनल ु ोम ववलोम
कििे हैं. प्रमाण (भाि 7 "मेिी पहली कवविा" चौथी लाइन का भाि।) क्रफि िो इस 30 समनट को भब्स्त्रका जोड़िे हुए बढ़ािे जाइए औि समय सूयोिय औि सूयाडस्ि का होना चादहए. सूयड के ि डन हो िहे हैं अथवा नहीं, यह महत्वपूणड िो है लॉन में बैठने के सलए क्रकन्िु समय के चयन हे िु नहीं है . आपकी कवविा आपकी जीवंििा को बयान कििी है . हैं. साक्षाि चलिी-क्रफििी संजीवनी हैं ििु मैल भाई.
ुद्ध भाििीय पंजाबी हैं िुिमैल भाई. जीना जानिे
मेिे जीवन में मुझे कोई भी
िे याि नहीं हुआ, क्रकन्िु िो ऐसे थे ब्जन्हें एक बाि सुना औि कुछ कुछ याि हो िए. उनमें से एक का साक्षात्काि िुिमैल भाई के सलए मैं कि िहा हूं, अिः उनके सलए प्रस्िुि है ''खुिी को कि बुलंि इिना, क्रक हि क़यामि से पहले,
खि ु ा िझ ु से ये खि ु पछ ू े , बिा बंिे, िेिी िज़ा तया है ?'' श्री िुिमैल भाई अत्यंि ही संवेिी हैं. भािि के स्वच्छिा-असभयान पि उनका ध्यानाकषडण उनकी सिलिा िे प्रेम औि सहृियिा का परिचायक है .
उनका उम्िा प्रेमपत्र पढ़ा औि सोचा वे सामर्थयडवान हैं औि उन्होंने ब्ज़ंििी को भिपूि ब्जया है , क्रकं िु संसाि की हि एक पब्त्न, अपने बच्चों औि पति की सिु क्षा के सलए ही पति से झिड़िी है . पब्त्न के झिड़ने का कोई औि प्रयोजन नहीं होिा है . क्रफि इन िो लाइनों ने िो बाि को पूिी ििह से सत्यावपि कि ही दिया है .
उड़ान हौसलों से होिी है पंख से नहीं औि लोि कटी पिंि को ही लूटा कििे हैं आदि. आपको एक बेहििीन प्रका न के सलए मेिा साधुवाि.
श्री ििु मैल भाई औि कुलवंि पिजाई जी को बहुि बहुि हादिड क बधाइयां ईचवि िोनों मानविा के उपासकों को लम्बी उम्र िें . आपका धलॉिि भाई
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अनप ु म उपाध्याय @ 9810069018''
उसके बाि इंग्लै् से जानी-मानी लेर्खका, धलॉिि िथा कॉ्ों की महािानी, मनजीि कौि जी की प्रतिक्रिया समली''आििणीय वप्रय सखी जी, आप के द्वािा आििणीय ििु मैल भाई साहब पि सलखी ई. बक ु पढ़कि दिल
बहुि खु हुआ. उनके जन्मदिन पि आप के द्वािा दिया िया यह उपहाि वाकई काबबले-िािीफ़ है , अति सुन्िि. मेिी ओि से आप को िथा िुिमैल भाई साहब को बहुि-बहुि बधाई औि हादिड क ुभकामनाएं. भाई साहब औि बदहन जी को जन्मदिन व वववाह की सालगििह की कोदट-कोदट ुभकामनाएं.'' अन्य पाठकिण भी मेल, फेसबक ु व ट्ववटि से अपनी नायाब प्रतिक्रियाएं भेज िहे हैं. सभी को इिने स्नेह व अनुग्रह के सलए हमािा हादिड क धन्यवाि.
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2.
एक अनचीन्हा रूप
लीला तिवानी
Thursday April 23, 2015
बहुि दिनों से भािि के क्रकसानों की ख़ि ु कुस यों के बािे में पढ़ औि टीवी पि िे ख िहा हूं, ब्जस से मेिा मन बहुि िःु खी है , आज एक क्रकसान ने वक्ष ृ पि चढ़ कि अपने आप को फांसी लिा ली, वह भी इिने
लोिों के सामने. इस से भी ज़्यािा िःु ख कुछ दिन हुए एक क्रकसान को महज िीस-पैंिीस हज़ाि रुपए की ख़ातिि अपने िोनों बेटों को बेचना पड़ा, सुन कि हुआ था. सािे िे वाससयों को भूख से बचाने वाला अन्निािा खुि भूखा मि िहा है औि आत्महत्या किने पि मजबूि है . एक क्रकसान दिन-िाि क्रकिनी
म तकि कििा है , घि के सभी सिस्य उसका साथ िे िे हैं. बीज बो दिए जािे हैं, फसल िैयाि होने को होिी है , ब्जस से उसे आ ा की एक क्रकिण दिखाई िे ने लििी है . कभी-कभी अचानक वषाड, ओले औि आंधी सब स्वाहा कि िे िी है . यह सब िे ख कि उस की जो हालि होिी है , उस को मुझ से ज़्यािा कौन समझ सकिा है , तयोंक्रक मैंने भी िािा जी के साथ खेिी की है .
मेिे पैिा होने से पहले, मेिे िािा जी खेिी क्रकया कििे थे, लेक्रकन बाि में मेिे वपिा जी ने अफ्रीका जाने के बाि िािा जी से खेिी छुड़वा िी थी. इससलए सािी ज़मीन, जो िो जिह पि होिी थी, िो क्रकसानों को िे िी िई थी. वे क्रकसान हमािी ज़मीन पि खेिी कििे थे औि फसल होने पि सब आधा-आधा बांट लेिे थे. िािा जी इस से संिुष्ट नहीं थे. उन का कहना था, क्रक ये लोि खेिों को अच्छी ििह नहीं िखिे थे औि खिपिवाि, जड़ी-बदू टयों आदि को खेिों से नहीं तनकालिे थे, इससे खेि खिाब हो िए थे एक दिन उन्होंने
फैसला कि सलया, क्रक अब वे खुि खेिी किें िे. जब वपिा जी को अफ्रीका में पिा चला, िो उन्होंने िािा जी को पत्र सलखा क्रक वे खेिी न किें , तयोंक्रक लोि बािें किें िे क्रक बेटा अफ्रीका में है औि बाप खेिों में पसीना बहा िहा है . िािा जी भी ब्ज़द्िी स्वभाव के थे, उन्होंने काम
ुरु कि दिया. सब से पहले उन्होंने िो बलि
खिीिे , क्रफि खेिी में काम आने वाले हल बनाए, तयोंक्रक वे खुि एक अच्छे कािपें टि भी थे. उन्होंने एक छकड़ा बनाना
ुरु क्रकया. उसके सलए िो बड़े वक्ष ृ ों को काट कि उन पि तन ान लिाए औि उन बड़ी-बड़ी
लकड़ड़यों को क्रकसी औि के छकड़े पि लािकि
हि ले िए औि उन लकड़ड़यों को एक लकड़-समल में
गचिवाया. क्रफि घि लाकि दिन-िाि मेहनि किके एक सुन्िि छकड़ा औि नए पदहए बनाए. िािा जी ने हल चलाना
ुरु कि दिया. मैं भी स्कूल से फािि हो कि िािा जी के साथ काम किवािा. था िो मैं अभी बहुि छोटा, लेक्रकन िांव में सभी लड़के ऐसे ही काम कििे थे. िािा जी ने मुझे हल चलाने को मना कि दिया था, तयोंक्रक उन का ववचाि था, क्रक हल चलाने से बच्चों की टांिे टे ढ़ी हो जािी थीं. हल चलाने को छोड़
कि मैंने बाकी सब काम क्रकए. बाि यह नहीं, क्रक मुझे कोई मजबूिी थी, मुझे खुि ही खेिी का काम किना बहुि किना अच्छा लििा था.
खेिों में हम िेहूं, चने, मसिू , कुछ औि िालें , मतकी, बाजिा, ज्वाि, िन्ने, बासमिी, कपास औि कुछ सब्धज़यां-जैसे किे ले, फूल िोभी, बंि िोभी, बैंिन, प्याज़, जो साल भि के सलए उिािे थे औि ख़िबूज़े,
ििबूज़ ब्जको पंजाब में हिवाने बोलिे हैं, कद्ि,ू टमाटि औि लौकी के अलावा औि भी बहुि कुछ बोिे थे, जैसे मूसलयां, िाजिें औि सिसों का साि िो सािा साल ही खत्म नहीं होििे थे. इिनी सब्धज़यां हम खा िो
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सकिे नहीं थे, इससलए कुछ लोि, जो साइक्रकलों पि सब्धजयां बेचने जािे थे, हम से सस्िे भाव में ले जािे
थे, ब्जस से उन की भी िोज़ी िोटी चल जािी थी. इस में एक बाि िो मज़ेिाि होिी थी, क्रक अपने खेिों से िाज़ी मूसलयां, िाजिें , खिबूज़े खाने का मज़ा ही कुछ औि होिा था, तयोंक्रक उस समय सब कुछ ऑिैतनक ही होिा था, यहां िक क्रक कुएं का पानी भी ऐसा होिा था जैसे क्रफर्लटि क्रकया हुआ हो.
इिना कुछ हम उिािे थे, यह कहने-सुनने में िो बहुि आसान लििा है , लेक्रकन जो इस काम में म तकि होिी है , उस को लफ़्ज़ों में वणडन किना अत्यंि कदठन है . एक-एक बाि को सलखने लिूं, िो बहुि अध्याय सलखने पड़ेंिे, लेक्रकन एक उिाहिण ही िं ि ू ा. ब्जस खेि में हल चलाना हो िािा जी सुबह मुंह अंधेिे में ही बैलों को ले कि चले जािे थे औि जब िक मैं स्कूल जाने से पहले िोटी िे ने जािा, उन्होंने आधा खेि
खत्म कि सलया होिा था. खेि के क्रकनािे बैठ कि मैं िािा जी का इंिज़ाि कििा. कुछ िे ि बाि िािा जी बैलों को हाथ से उन की पीठ पि
ाबा ी िे िे औि मेिी ओि आने लििे. पहले मैं पानी से िािा जी के
हाथ धुलवािा औि मतकी की िोदटयां, साि या सधज़ी, िही, मतखन औि हिी समचड या आम का आचाि
िे िा. िािा जी खाने लििे औि मैं एक गिलास लस्सी का भिकि भी िे िे िा. बहुि बाि िािा जी साि को कटोिी से तनकाल कि िोटी के ऊपि ही िख लेि.े इस ििह िोटी खाने का मज़ा कुछ अलि ही होिा था.
मतकी की िोटी एक प्लेट जैसी ही होिी थी, ब्जस के बािे में एक जोक भी प्रचसलि था, क्रक एक िफा एक अग्रेज़ क्रकसी िांव में िया, उस को भूख लिी हुई थी. उस ने क्रकसी क्रकसान को कुछ खाने के सलए िे ने को कहा. क्रकसान एक मतकी की िोटी पि साि िख कि ले आया, अंग्रेज़ ने साि खा सलया औि क्रकसान को िोटी वावपस कििे हुए बोला, लो मैन अपनी प्लेट.
िािा जी के िोटी खाने के बाि मैं घि वावपस आ कि स्कूल चला जािा, लेक्रकन िािा जी हल चलािे िहिे औि िमी बढ़ने िक सािा खेि खत्म कि िे ि.े इस के बाि वे म ीन से चािा, ब्जस को पट्ठे बोलिे थे
औि इस में हिा औि सूखा समतस होिा था, कुिििे औि बैलों के आिे, उनकी खुिली में िो टोकिे भि कि
्ाल िे ि.े बैल खाने लििे ब्जस से िािा जी को िसर्लली का अनुभव हो जािा औि वे खुि भी आम के वक्ष ृ के नीचे चािपाई पि लेट जािे. इस चािपाई पि कोई कपड़ा नहीं होिा था. िांव के सभी लोि इस ििह
चािपाई पि सोने के आिी थे. कई बाि िो िसमडयों के दिनों में बबना कमीज़ के ही लोि लेट जािे थे, ब्जस से जब वे उठिे, िो उन की पीठ पि चािपाई की िब्स्सयों के तन ान पड़ जािे थे. स्कूल के बाि िोटी खा
कि, मैं भी सीधा खेिों में चला जािा औि िािा जी की मिि कििा था. यह मिि मौसम के मुिाबबक ही
होिी थी. जब िेहूं का मौसम होिा, िो खेिों को पानी िे ना होिा था. कुएं से पानी तनकालने के सलए बलि काम आिे थे, जो एक लकड़ी से बंधे िस्से को िोल िायिे में खींच कि चलिे िहिे थे, ब्जस से कुएं से
पानी तनकलकि, एक पॉ े में गिििा िहिा था औि वह पानी आिे एक िड्ढे में गिििा था, ब्जस को चलह कहिे थे. इस के आिे वह पानी छोटी नाली में बहिा हुआ खेि को जािा था. खेि कई दहस्सों में बांटा हुआ होिा था. ब्जस को तयािे कहिे थे. जब एक तयािा भि जािा, िो उस का मुंह समट्टी से बंि किके,
िस ू िे तयािे को पानी छोड़ दिया जािा था. इस ििह सािा खेि भि जािा था. कुएं से पानी खींचिे हुए बैलों के पीछे भी एक आिमी पीछे -पीछे घम ू िा िहिा था, विना वह थककि खड़े हो जािे थे. उस लकड़ी के ऊपि एक सीट सी बनी हुई होिी थी ब्जस पि वह आिमी भी कई बाि थक कि बैठ जािा था. इन कुओं के जो गियि होिे थे, उस के साथ एक छोटा सा लीवि लिा होिा था, जो लिािाि िीयिों के िांिों पि लि कि
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दटक-दटक की आवाज़ कििा िहिा था, ब्जस को न जाने तयों कुत्ता कहिे थे. यह इस सलए होिा था, क्रक
कंु आ खड़ा होने पि, पानी के भाि से पीछे की ओि न घूम जाए. इसका एक फायिा यह होिा था, क्रक इस दटक-दटक से लोिों को सुबह-सुबह पिा चल जािा था, क्रक कुआं चल िहा था औि कुछ लोि जो खेिों में
जंिल-पानी जािे थे, साबुन-िौसलया भी साथ ले जािे थे औि कुएं के चलहे में बैठ कि स्नान भी कि लेिे औि साथ-साथ पाठ भी कििे िहिे. हमािे ये खेि िो िांव के साथ ही थे औि नज़िीक होने की वजह से हम जािे ही िहिे थे. खेिों का वािाविण बहुि सुहावना होिा था , सिसों के फूलों से हि ििफ बसंि का सुन्िि नज़ािा िे खने को समलिा था. जब जी चाहा, खेि से मूली उखाड़ ली, जब चाहा िाजिें उखाड़ ली औि जब जी चाहा िात्री से िन्ना काट कि चूसना
ुरु कि दिया. लोि आिे-जािे िहिे, उन से बािें होिी िहिीं. कभी-कभी क्रकसी के
खेिों में िड़ ु बनने की खु बू आिी िहिी औि हम उधि ही चले जािे औि वहां क्रकसान हमें िाज़ा-िाज़ा
ििम-ििम िुड़ खाने को िे िे ब्जस का मज़ा ही बिाना असंभव है . इस स्विीय नज़ािे के पीछे एक कड़ी
मेहनि औि बहाया हुआ पसीना होिा, ब्जस का फल क्रकिना समलेिा, इस की आ ा किना इिना आसान न होिा. आज जब वैसाखी का मौसम लोि मना िहे हैं, िो क्रकिने क्रकसानों का मन खु हुआ होिा औि क्रकिने तनिा ा में ्ूब िए होंिे, यह जानना बहुि कदठन है . ििु मैल भमिा
यहां हम िुिमैल भाई की एक नई ववधा 'आत्मकथा' ब्जसे उन्होंने 'मेिी कहानी' का नाम दिया है , के 19वें भाि से आपको रूबरू किवा िहे हैं. हमें उनका यह अनचीन्हा रूप बहुि अच्छा लिा, इससलए हम आपके समक्ष प्रस्िुि कि िहे हैं. ------------------------------------------------
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3.
माि ृ दिवस की वेला, कुलवंि कौि के घि मेला
लीला तिवानी
Sunday May 10, 2015
आज 'ववचव माि ृ दिवस' की पावन वेला है . आज कुलवंि कौि के घि ही नहीं, हि एक मािा के घि में मेला है . जी हां, आज के दिन बच्चे कहीं पि भी एकबत्रि होकि मािा-वपिा के साथ िहने की हि संभव कोस
कििे हैं. वे अपनी पूजनीय मां को उपहाि िे िे या भेजिे हैं, उन्हें
ुभकामना-कॉ्ड व संिे
भेजिे
हैं, स्काईप या वीड़्यो कॉन्फ्रैंस से संपकड कििे हैं. कहने का िात्पयड यह है , क्रक इस अवसि पि, उस मां को, ब्जसे पल भि भी भूलना असंभव है , वव ेष रूप से याि क्रकया जािा है , सम्मान दिया जािा है . उनकी पसंि के पकवान भी बनाए जािे हैं औि कुछ औि वव ेष काम भी क्रकए जािे हैं.
हमने भी मां समान अपनी बड़ी भाभी कुलवंि कौि जी को उपहाि िे ने के सलए एक वव ेष प्रयत्न किने की कोस
की है . यहां यह बिाना अत्यंि आवचयक है , क्रक इस वव ेष प्रयत्न में कहने को हमािा कुछ वव ेष
नहीं है . आज हम उपहाि-स्वरूप कुलवंि जी को एक ई.बक ु भेज िहे हैं. इस ई.बक ु के लेखक स्वयं उनके
पति यानी हमािे बड़े भाई साहब िुिमैल जी हैं. इस ई.बुक का नाम है 'मेिी कहानी', जो िुिमैल भाई जी के 'जय-ववजय' पबत्रका की वेबसाईट पि प्रकास ि संस्मिणों का संग्रह है . हमािे अनुिोध पि 'जय-ववजय'
पबत्रका के संपािक-संयोजक श्री ववजय ससंघल जी ने इसका पी.्ी.एफ. बनाकि हमें भेज दिया. हमािे सुपुत्र िाजेंद्र तिवानी ने इसकी ई.बुक बनाकि भेज िी. हम िो बस इसमें प्रस्िुिकिाड की भूसमका मात्र में हैं. हम
आज के पावन दिवस पि कुलवंि कौि जी को इस ई.बक ु का सलंक भेजकि इसका ववमोचन कि िहे हैं. इस ई.बुक को हम कुलवंि कौि के नाम इससलए भेज िहे हैं, तयोंक्रक यह माि ृ दिवस के अवसि पि ही िैयाि
हुई है . अभी-अभी िुिमैल भाई जी के 21 एपीसो् पूिे हुए औि िुिंि ई.बुक िैयाि भी हो िई. कुलवंि जी ने स्नेह-प्याि की ्ोि से सािे परिवाि को जोड़े िखा है . आ ा है , कुलवंि कौि जी को यह उपहाि पसंि आएिा. आप लोिों को भी चाहने पि पहली ई.बुक की भांति इसका सलंक भेज दिया जाएिा.
िुिमैल भाई जी,
''आपको ई.बुक के प्रका न के सलए बहुि-बहुि मुबािकवाि. आपने हमें अपनी कहानी संभालने को िी थी, हमने उसे सहे ज दिया है . आपको पी.्ी.एफ. भी भेज िहे हैं, िाक्रक आप उसे वप्रंट किवाना चाहें िो किवा लें , जो आिे इसकी क्रकिाब छपने के बहुि काम आएिी. हमें आ ा ही नहीं पण ू ड ववचवास है , क्रक यह पुस्िक सबसे श्रेष्ठ आत्मकथा की श्रेणी में गिनी जाएिी. हमने ई.बुक भाभी जी को इससलए भी भेजी है ,
क्रक उन्होंने आपके बहुि पहले सलखे कुछ पष्ृ ठों को बहुि संभालकि िखा था औि ब्जस पल आपने नेट पि ्ालने के सलए मांिा, िुिंि लाकि िे िी. आप लोि स्वस्थ औि सक्रिय िहकि मानविा की सेवा कििे िहें , यही हमािी
ुभकामना है .''
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4.
सुहाना सफि
लीला तिवानी
Monday July 20, 2015
ब्जनको सलखने-पढ़ने का
ौक हो, उन्हें कभी-कभी बहुि अच्छी-अच्छी बािें भी पढ़ने को समल जािी हैं औि क्रफि उन पि अपनी प्रतिक्रिया प्रकट किने का भी ौक हो, िो सोने पे सुहािा हो जािा है . वे पढ़े -सलखे को अच्छी ििह समझकि प्रतिक्रिया सलखिे हैं. उनमें से कुछ ममडस्प ी बािें उनके मन का संबल बन जािी हैं. संबल भी ऐसा-वैसा नहीं, ऐसा सुदृढ़ संबल, क्रक उसे 'फेवीकोल का मज़बूि जोड़' बब्र्लक 'फेवीकोल से भी
मज़बूि जोड़' कहा जा सकिा है . यह बाि भले ही कभी सपने की बाि िही हो, पि अब वही सपने की बाि न केवल सत्य में परिवतिडि हो िई है बब्र्लक एक वह ु ी है . ृ ि आकाि ले चक
ऐसे ही एक तनयसमि पाठक औि कामें टेटि पुस्िकें पढ़ने के साथ-साथ बिाबि अनेक समाचाि पत्रों के
समाचािों व सादहत्य की अन्य ववधाओं पि अपने कामें ट्स सलखिे िहे . वे सही लिने वाली बािों के िो खुले दिल से प्र ंसक िहे ही हैं, ब्जस बाि से इनके मन को इवत्तफ़ाक न हो, उस पि भी नम्रिा से अपनी बेबाक प्रतिक्रिया सलखने से वे ितनक भी नहीं कििािे. कामें ट्स सलखने वालों के मन के एक कोने में अतसि यह उम्मीि ्ेिा ्ाले िहिी है , क्रक उनकी प्रतिक्रिया लेखक या अन्य पाठकों को कैसी लि िही है , इसका पिा चल जाए िो बेहिि है . ज़ादहि है , क्रक उन के मन में भी अवचय ही िही होिी.
समाचािों व सादहत्य की अन्य ववधाओं के तनयसमि पाठक होिे हुए भी कवविा में उनका मन कम ही िमिा था. कािण है , कदठन-अमूिड कवविाओं का समझ में न आना. लेक्रकन 'हि अच्छी चीज़ के िलबिाि' होने के कािण वे उसके मुख्य भाव को िो ग्रहण किने में सफल ही िहिे हैं. एक दिन उन्होंने पढ़ा''नाव संकर्लप की वापस नहीं मोड़ा कििे काम कोई हो, अधिू ा नहीं छोड़ा कििे
ििू हो लक्ष्य िो कििे नहीं मन को छोटा िास्िे में कभी दहम्मि नहीं िोड़ा कििे.''
इस छोटी-सी, प्यािी-सी कवविा ने उनके मन को छू सलया. बचपन से ऐसे ही सस ु ंस्कािों से ससंगचि उनके मन को यह छोटी-सी कवविा ऐसी भाई, क्रक उन्होंने इसे याि ही कि सलया औि उसे ही अपना संबल
बनाकि वे तनयसमि रूप से कामें ट्स सलखिे िहे . कभी मन में पली हुई औि बलविी होिी हुई आ ा, क्रक कामें ट्स का जवाब आएिा, अब धूसमल पड़ने लिी थी. वे एक-िो नहीं आठ-नौ सौ कामें ट्स सलख चक ु े थे औि कामें टस सलखना छोड़ने का मन बना बैठे थे. एक दिन वे हमािे धलॉि पि पधािे . यह बहुि पुिानी नहीं, वपछले साल की ही बाि है . 12 माचड, 2014 के एक धलॉि ''आज का श्रवणकुमाि'' से कामें ट के ज़रिए हमसे उनका प्रथम परिचय हुआ. इस कामेन्ट का उन्हें उत्ति तया समला, क्रक बस समर्झए क्रक चमत्काि ही हो िया.
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िे खिे-ही-िे खिे एक दिन में ही वे हमािे सभी पाठकों औि िमाम धलॉिसड के चहे िे बन िए. उसी धलॉि में कामें ट्स के ज़रिए इन्होंने हम पि अपने महान व्यब्तित्व की जो छाप छोड़ी, वह अद्भुि है . हमें वहीं पि इनके एक अच्छा व सच्चा इंसान होने के साथ-साथ, इनके एक महान सादहत्यकाि होने की झलक भी समल िई थी. निीजिन 17 माचड को ही उन पि हमािा पहला धलॉि आ िया. उसके बाि िो इन पि धलॉग्स की पिू ी श्रंखला ही आ िई, जो बहुि लोकवप्रय हुई. इसके बाि की कहानी िो आप सब लोिों को ववदिि ही है . आपने उन पि प्रकास ि िो ई.बुतस िो पढ़ ही ली होंिी. सबसे पहली ई.बुक उन पि आधारिि धलॉग्स पि िैयाि की िई है औि िस ू िी उनकी आत्मकथा, जो 'जय-ववजय' पबत्रका में , जहां वे खुि एक धलॉिि हैं, 'मेिी कहानी'
ीषडक से प्रकास ि हो िही है . हमने 21 एपीसोड्स का संग्रह किके एक
ई.बुक िैयाि की थी. अब औि भी 21 एपीसोड्स का संग्रह िैयाि हो चुका है , जो ई.बुक के रूप में आने की प्रक्रिया में है औि
ीघ्र ही आप लोिों को भेज दिया जाएिा. हम िो बस इस आत्मकथा के बािे में केवल
इिना ही कहना चाहें िे, क्रक ऐसी खिी-खिी औि ईमानिािी से सिाबोि अद्भुि आत्मकथा हमािी नज़ि में अब िक िो नहीं ही आई है , यद्यवप सादहत्य के उपासक होने के कािण बहुि-सी आत्मकथाएं पाठ्यिम का दहस्सा होने के कािण हम पढ़ चुके हैं.
ौक्रकया या
ख़ैि अब िक आप को इनका नाम िो याि आ ही िया होिा, नहीं िो हम ही बिाए िे िे हैं- ''िुिमैल
भाई''. कामें ट से आत्मकथा िक का उनका यह सफि बहुि सुहाना िहा है . सवा साल के इस अंििाल में इनकी कलम से एक भी स कायिी बाि नहीं तनकली. आपको पिा ही है , क्रक हम प्रायः अपने धलॉि में कामें ट्स के अलावा औि भी बहुि-सी चुनी हुई बािें सलखिे हैं. ये बािें हमने बहुि पहले चीन की एक तनयसमि पादठका के तनवेिन पि ुरु की थीं. अभी वे हमािे साथ चल ही िही थीं, क्रक ििु मैल भाई हमसे
जुड़ िए. उनको भी यह अच्छा लिने लिा. इससे उन्हें अनेक समाचाि पत्र पढ़ने की ज़रूिि नहीं पड़िी. वे बहुि खु होिे हैं, तयोंक्रक ्ॉतटसड उन्हें नेट पि ज़्यािा बैठने को मना कि चुके हैं. हमने उनसे कई बाि तनवेिन क्रकया-
''वप्रय िुिमैल भाई जी, हम ब्जिने भी कामें ट्स सलखिे हैं, आप के पढ़ने से हमें बहुि अच्छा लििा है , पि हम बाि-बाि आपसे तनवेिन कि चक ु े हैं. क्रक कृपया अपने को थकाएं नहीं. ब्जिना काम आिाम से कि सकिे हैं, किें . अपने स्वास्र्थय का औि आत्मकथा सलखने का ध्यान िखें.'' वे अत्यंि
ांतिपूवक ड जवाब िे िे हैं- ''भई, इसीसलये कामें ट्स छोटे कि दिए हैं.''
हमािा यह प्रयत्न अगधकिि लोिों को बहुि अच्छा लििा है . उन्हें हमािा संवाि ज्ञानवद्डधक औि िोचक लििा है , ऐसा उनके कामें ट्स से पिा चलिा है . िुिमैल भाई के स्वास्र्थय व उनकी मसरूक्रफयि को ध्यान में िखकि जब िक यह प्रयत्न जािी िह सकिा है , िहे िा.
बाि मसरूक्रफयि की चल ही तनकली है , िो आपको बिािे चलें , क्रक िुिमैल भाई प्रति सप्िाह अपनी
आत्मकथा की िो नई कड़ड़यां प्रकास ि कििे हैं. उनका धलॉि, िे ड़्यो, नभाटा पि ढे िों कामें ट्स का काम िो चलिा ही िहिा है . एक वव ेष बाि- उन्हें नई चीज़ें सीखने का बहुि ौक है औि वे ििु ं ि सीख भी जािे हैं. हमािी सिल औि साििसभडि लिने वाली कवविाओं ने िुिमैल भाई को कवविा सलखने के सलए
प्रेरिि क्रकया औि उन्होंने कुछ कालजयी कवविाएं सलखीं, हाइकु वाला धलॉि पढ़कि हाइकु के बाि ाह बन
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िए औि फेसबक ु पि हाइकु में बाि किने लिे. उनके नायाब हाइकु आप भी पढ़ चक ु े होंिे. हि साहसी औि उच्च कोदट के जज़्बे वाले व्यब्ति के समान कुछ भी नया सीखने में उम्र या स्वास्र्थय उनके आड़े नहीं आिे.
अब ितनक
ीषडक की बाि की जाए. हमने इस धलॉि का
ीषडक ''सह ु ाना सफि'' तयों िखा? इसके िो
कािण हैं. एक िो कामें ट से आत्मकथा िक का उनका यह सफि सुहाना िहा यानी मज़े-मज़े में िय हुआ. िस ू िे एक समय था, जब वे क्रफर्लमी िीि 'सुहाना सफि औि ये मौसम हसीं'' बहुि अच्छा िािे औि वपयानो पि बजािे थे, अब भी बोलने के सलए िला खोलने के प्रयास के सलए अभ्यास हे िु वे आधे-एक घंटे िक इसी सुहाने िीि को ज़ोि-ज़ोि से िािे हैं. हमािी यह
ुभकामना है , क्रक उनका यह सुहाना सफि यों ही
मज़े-मज़े में सह ु ाना बना िहे औि हमें उनकी कलम का जाि ू िे खने को समलिा िहे . -----------------------------------------------
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5.
एक नवीन प्रयोि (कहानी)
लीला तिवानी
Thursday December 03, 2015
सौजन्य सेिुिमैल भाई औि लीला तिवानी
आप पहले कहानी का जायज़ा लीब्जए. नवीन प्रयोि के बािे में एक कामें ट में पदढ़एिा. खु ी की खम ु ािी
सुषमा की नज़िीकी रिचिे की जेठानी की सुपुत्री के वववाह का आयोजन था. सुषमा सज-संविकि सपरिवाि वववाह-समािोह में सब्म्मसलि होने िई. सबसे पहले िो बाहि से ही
ानिाि व कलात्मक
ासमयाना िे खकि
वह चकिा िई. अंिि जािे ही फूल व फूलमालाओं से सुसब्ज्जि काि को िे खकि िो उसके हो िए. इससे पहले अपनी अनु ाससि बबिाििी में न इिना काि िे ने का रिवाज़. इस जहां
ािी की
ानिाि व कलात्मक
ािी के बाि सुषमा की िोनों बेदटयों की
ही उड़
ासमयाना ही िे खा था, न
ािी की बािी थी. इससलए बाकी सब
ानिाि िावि का आस्वािन कि िहे थे, सुषमा के मन में ितनक गचंिा ने भी ्ेिा जमा
सलया था. इसी गचंिा के कािण ही वह फेिों से पहले ही कोई बहाना बनाकि वावपस आ िई. गचंिा के मािे उसे िाि को ठीक से नींि भी नहीं आई. सुबह भी जर्लिी ही उठ िई औि सहज होने के सलए उसने अपने
सलए माइिोवेव में चाय बनाई. चाय पीिे-पीिे उसने वपछले दिन का अखबाि खोला, जो उस दिन वववाह में जाने की व्यस्ििा के कािण खुल नहीं पाया था. अखबाि खोलिे ही उसकी एक सुखी ''मं्प 20 किोड़ का, ािी में खचड हुए 55 किोड़'' पढ़कि िो उसकी ससट्टी-वपट्टी िुम हो िई. इस कािण उसको चाय भी बेस्वाि लिने लिी.
ख़्यालों में खोई हुई, सुषमा बहुि िे ि िक सोचिी िही. तया अपनी बेदटयों की ािी में इिना खचड किने की हमािी है ससयि है ? कहााँ से लाएंिे इिना पैसा? तया कज़ाड उठाएंिे? िो तया किें ? ऐसे ही कई सवाल बाि-बाि सष ु मा के दिमाि में हलचल मचा िहे थे. सोचिे-सोचिे उस का दिल बैठा जा िहा था. वह अपने मन को िसर्लली िे ने की नाकाम कोस
कि िही थी, लेक्रकन बिलिे रिवाज़ों या कहें क्रक दिखावों के सामने
यह िसर्लली उस को बेमानी लिने लििी. इसी उधेड़बुन में उसकी चाय भी ठं ्ी हो िई थी. सुषमा ने
आर्ख़िी िो घूंट पी कि कप को िख दिया औि अखबाि को क्रफि से उठा सलया. एक-के-बाि-एक ख़बिें वह पढ़े जा िही थी, लेक्रकन उस का ध्यान िो कहीं औि ही था. वह सोचने लिी,
ािी समािोहों पि लोि
इिना खचड कि िे िे हैं, क्रक िे खने वालों की आंखें चौंगधया जािी हैं. लेक्रकन जब कुछ ही महीनों बाि कुछ
जोड़ों का िलाक हो जािा है , िो तया क्रफि भी कोई इन के घि जा कि िे खिा है , क्रक इन लोिों के घि की हालि तया होिी है ? क्रफि वह सोचने लिी क्रक उस ने अपनी ब्ज़ंििी में क्रकिने
ािी समािोह िे खे थे. एक
दिन की वाह-वाह के बाि अब क्रकसी को तया वे सब याि हैं? अखबाि की ििफ िे खिे-िे खिे उस की तनिाह एक छोटी-सी खबि पि पड़ी. "बिैि िान-िहे ज केवल िस बिातियों के साथ एक मंदिि में खबि पढ़कि सष ु मा की आंखों में एक चमक-सी आ िई.
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ािी''.
स्वभाव से सहज औि संस्कािी होने के कािण मन औि म् ू को कसैला बनाने वाले ववचािों को झटककि सुषमा क्रफि अपने पालनहाि पिमात्मा की
िण में आ िई. उसका हमे ा से ववचाि िहा है-
''पिा है मैं हमे ा खु
तयों िहिी हूं? तयोंक्रक मैं खुि के ससवा क्रकसी से कोई उम्मीि नहीं िखिी.''
वह बचपन से ही यह भी मानिी िही है ''ब्जस पल कोई व्यब्ति खुि को, पूिी ििह समवपडि कि िे िा है ,
ईचवि भी उसके साथ चलिा है .'' अब िक उसी पालनहाि ने ही िो उसकी लाज िखी है औि सब काम सहज भाव से पूिे कि दिए हैं, िो
तया आिे नहीं किें िे? उसे गचंिा क्रकस बाि की है ? उसकी बेदटयां सुंिि, सु ील व सुघड़ हैं. अब िक वे
अपनी मेहनि व प्रतिभा से स्कॉलिस प लेकि उच्च स क्षा प्राप्ि कि सकी हैं. सुषमा की ििह संस्कािी भी
हैं. सष ु मा को नौकिी के साथ भलीभांति घि-िह ृ स्थी को संभालिे हुए िे खकि उन्हें ितु नयािािी की बहुि-कुछ समझ भी आ चुकी है . सुषमा के पति सुनील भी सम्मातनि पि पि तनयत ु ि हैं औि िोनों बेदटयों को भी
कैम्पस रििूटमैंट के द्वािा अच्छी नौकिी समली हुई है . घि में क्रकसी चीज़ की कमी नहीं है . बेदटयों के वववाह के सलए मािा-वपिा ने कुछ प्रॉपटी भी ले िखी है . जन्म से ही उनके नाम 'माससक बचि योजना' भी चालू है , जो वववाह के समय ही समलेिी. उसे ये सब किने की बुद्गध उस पालनहाि ने ही िो िी है . अभी
उसके ववचाि न जाने कहां िक चलिे, क्रक बाकी सबके जिने का समय हो िया. सन ु ील भी चाय पीने आ िया था. िोनों बेदटयों की ऑक्रफस कौन-सी ड्रेस पहनकि जाने की पिाम डमयी खुसुि-पुसुि की आवाज़ें भी आने लि िईं थीं. सुषमा भी सब कुछ भूलकि सबके सलए चाय बनाने औि ऑक्रफस की िैयािी किने में जुट िई.
इसे संयोि कहें या हषडिायक भावी, उसी दिन सुषमा को बॉस ने बुलाया. वह सोच में पड़ िई, क्रक
अकस्माि तयों बुलावा भेजा है ? थोड़ी िे ि बाि वह मन-ही-मन हवषडि होिी हुई बाहि तनकली. बॉस ने अपने सुपुत्र के क्रकए सुषमा की बड़ी बेटी के रिचिे की बाि चलाई थी. बॉस के ववचाि सुषमा को पिा थे. वे लेनिे न में ितनक भी ववचवास नहीं िखिे थे. िो दिन बाि िवववाि को वे लड़की िे खने आए थे औि उसी समय वविा किके उसे ले भी िए थे. सष ु मा औि सन ु ील िे खिे ही िह िए. उनका मन-मयिू िो नाच िहा था, पि घि की िौनक ितनक फीकी पड़ िई थी. छोटी बेटी को समझ ही नहीं आ िहा था, क्रक इस खु ी को
क्रकसके साथ बांटे! सब मौन-से जो थे. पंिह दिन बाि छोटी बेटी के कुलीि भी उसको कुछ इसी ििह से ही ले जाना चाहिे थे. सुषमा औि सुनील ने थोड़ी-सी मुहर्ललि मांिी, िाक्रक कम-से-कम एक बेटी का
कन्यािान िो ववगध-ववधान से कि पाएं. इसी बीच उन्होंने बेदटयों के सलए बैंक में जमा की हुई पूंजी भी तनकाल ली औि अपनी प्रॉपटी भी बेच िी. बड़ी साििी औि ववगध-ववधान से वववाह संपन्न हो िया. बेदटयों की जमा-पूंजी उन्हें िे िी िई िथा प्रॉपटी की िकम भी आधी-आधी बांटकि िे िी िई.
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सबके जाने के बाि सुनील िो चैन की नींि सो िया, सुषमा क्रफि क्रकसी सोच में पड़ िई थी. आज क्रफि
उसे नींि नहीं आ िही थी. इस बाि नींि न आने का कािण गचंिा नहीं, बब्र्लक खु ी की खुमािी थी. बेदटयों की िाि को सोिे समय दिन भि के अनुभवों को साझा किने की खुसुि-पुसुि न होने से सूना-सूना घि भी उसको खल-सा िहा था. सुषमा क्रफि अपने पालनहाि पिमात्मा की नींि ने उसको अपने आिो
में भि सलया.
िण में आ िई. एक ववगचत्र सुकून की
चलिे-चलिे क्रकसी भी क्षेत्र में नवीन प्रयोि कििे िहना हमािा
ौक िहा है . हमने अध्यापन क्षेत्र में भी नवीन प्रयास
किने में भी तनिं िि नवीन प्रयोिों को ििज़ीह िी. हमने ये प्रयोि भले ही
ौक्रकया िौि पि क्रकए हों, पि
इन्हीं प्रयोिों पि हमें िाष्रीय व िाज्य स्िि के स्िि पि सम्मान भी प्राप्ि हुए. आप जानिे ही हैं, क्रक हमने धलॉग्स में भी नवीन प्रयास ुरु क्रकया. पहले हम 'सिाबहाि कैलें ्ि' प्रकास ि कििे थे. क्रफि हमने पाठकों के सहयोि से 'वव ेष सिाबहाि कैलें ्ि' की
ुरुआि की. हमािे इस प्रयास को भी आप लोिों ने
पसंि क्रकया औि बहुि सिाहा. अब हम एक औि नवीन प्रयास किने जा िहे हैं. इंग्लैं् के ििु मैल भाई औि हम समलकि एक कहानी का सज ृ न कि िहे हैं. यह प्रयोि सफल हुआ, िो इसको हम औि भी ववस्िि ृ
किने का प्रयास किें िे. इस कहानी में एक पैिा हमािा औि एक पैिा िुिमैल भाई का होिा. अब आप हमािे नवीन प्रयोि का जायज़ा लीब्जए. एक बाि औि- आप इस प्रयोि में सहभािी होना चाहें , िो आपका हादिड क स्वािि है .
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13
6.
िुिमैल भाई, सम्मान की बधाई
लीला तिवानी
Friday January 08, 2016
वप्रय ििु मैल भाई जी,
आपको 'जय-ववजय िचनाकाि सम्मान- 2015' समलने की कोदट ः बधाइयां. आपको सम्मान
समलने का समाचाि हमािे सलए तनचचय ही अत्यंि हषडिायक है . इस खु ी को सेलीब्रेट किने के सलए हम एक िाज़ा मज़ेिाि चुटकुला पे
''फास्ट फु्! एक
ेि औि
तनकल िया।
कििे हैं-
ेिनी पेड़ के नीचे बैठे थे, इिने में अचानक एक दहिन उनके सामने से िेजी से भाििा हुआ
ेिनी : यह तया था? ेि : फास्ट फु्।''
भाई, आपकी आत्मकथा यानी 'मेिी कहानी' भी फास्ट फु् की ििह बहुि फास्ट चल िही है . 'जय-ववजय' पबत्रका में सप्िाह में िो बाि प्रकास ि होने वाली इस आत्मकथा का 93 वां एपीसो् आ िया है . ऐसा लििा है , मानो कल की ही बाि हो, क्रक हम आपके बचपन के क्रकस्से पढ़ िहे थे, अब आपके बच्चों औि
क्रफि उनके भी बच्चों के बचपन के क्रकस्से पढ़ने को समल िहे हैं. इस पबत्रका के पाठकिण बहुि स द्िि से आपकी आत्मकथा के नए एपीसो् की प्रिीक्षा कििे हैं. यह महज आत्मकथा-लेखन ही नहीं, अनुभूतियों व अहसासों की अति सुंिि व ममडस्प ी प्रस्िुति भी है . आपकी यािों के ििीचे के बािे में हम कहें िे- 'अति
अद्भुि है .' आपने एक-एक घटना का इिनी बािीकी से वणडन क्रकया है , क्रक लििा है यह घटना 60-70 साल पिु ानी नहीं, अभी-अभी आपके सामने घट िही है .
अब हम बाि कििे हैं, आपको समले सम्मान की. 'जय-ववजय' पबत्रका में पढ़ा था क्रक 'जय-ववजय िचनाकाि सम्मान- 2015' के सलए पाठकिण से िाय ली िई थी. सभी पाठकिण आपकी उत्कृष्ट िचनाओं से
असभभि ू थे, इससलए 'प्रवासी सादहत्य ववधा' के सलए आपको चन ु ा िया. सलहाज़ा आपको नववषड का यह
बहुि सुंिि-सकािात्मक िोहफ़ा समला, जो आपके साथ हमें भी बहुि पसंि आया. बाि प्रवासी की आई है , िो हम इस बाि का भी ब्ज़ि किना चाहें िे, क्रक 9 जनविी को 'प्रवासी दिवस' है . आप बहुि समय से
इंग्लै् में िहिे हुए भी, पूिी ििह से भािि की अब्स्मिा से जुड़े हुए हैं. आपकी िचनाओं व प्रतिक्रियाओं से आपके ववचािों के बािे में हमें बहुि कुछ जानकािी समलिी है . आप मानिे हैं''िाष्रभब्ति ले ह्रिय में हो खड़ा यदि िे
सािा ,
संकटों पि माि कि यह, िाष्र ववजयी हो हमािा.''
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हमािे पाठकिण भी आपकी आत्मकथा की िो ई.बत ु स पढ़ चक ु े हैं. अन्य िो ई.बत ु स भी िैयाि हैं, बस
ं टचेज़ िे ना बाकी है . ब्जस दिन हमािे सुपुत्र को थोड़ा-सा भी समय समलेिा, िोनों ई.बुतस आपके क्रफतनस ि औि पाठकों के सलए उपलधध हो जाएंिी. हम आपकी प्रतिभा औि मेहनि के बािे में तया कहें , पाठकिण सब जानिे हैं. कहावि 'प्रतिभा क्रकसी भी सीमा की मोहिाज नहीं होिी' आप पि खिी उिििी है . आपके सलए हमािी पसंि की िो पंब्तियां''चला जािा हूाँ हाँसिा खेलिा मौजे-हवादिस से, (िघ ड नाओं की लहि) ु ट अिि आसातनयां हो ब्जन्ििी िचु वाि हो जाये.''
हम िो बस अत्यंि हवषडि होिे हुए आपके धिों में यही कहें िे, क्रक ''वािे अतसि भूल जािे हैं, कोस ें कामयाब हो जािी हैं.'' आपके सभी सपने एक-एक कि सच होिे जा िहे हैं. उत्ति समले बबना कामें ट्स िो आप मुद्िि से सलखिे आ िहे थे- अब आपको अनेक पाठकों से उत्ति भी समलने लिे हैं, आप कलम-समत्र बनाना चाह िहे थे- अब आपको अनेक कलम-समत्र समल िए हैं, आपने हमािे धलॉि पि नायाब धलॉग्स सलखे- अब सवडश्रेष्ठ धलॉिि बन िए हैं, आप मुद्िि से आत्मकथा सलखना चाहिे थे- एक बेसमसाल
आत्मकथाकाि बन िए हैं, औि-िो-औि आप पि धलॉग्स की औि आपके द्वािा सलखी िई आत्मकथा की ई.बत ु स बन चक ु ी हैं औि भी बनने की प्रक्रिया में हैं. हम आपके िे ख-े अनिे खे सपनों के पिू ा होने की असभलाषाओं व
ुभकामनाओं से इस आलेख को वविाम िे िे हैं. हम यह भी कहना चाहें िे, क्रक आपको
सम्मान समलने से आप िो सम्मातनि हुए ही हैं, सम्मान स्वयं भी सम्मातनि हुआ है . एक बाि पुनः सम्मान के सलए समस्ि धलॉि-जिि द्वािा बधाइयों व ुभकामनाओं सदहि, आपकी छोटी बदहन लीला तिवानी
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7.
ववतनंि मोमें ट्स की िस्वीि
लीला तिवानी
Tuesday February 02, 2016
िाि को जब हम सोए, उस समय भािि-ऑस्रे सलया के बीच िीसिा टी-20 मैच चल िहा था. सब ु ह उठिे ही चाय की प्याली के साथ हमने उत्सुकिा से मैच का परिणाम िे खने के सलए समाचाि पत्र के प्रमुख समाचाि पि नज़ि ्ाली. भािि के ववतनंि मोमें ट्स की िस्वीि िे खकि मन खु
हो िया. मैच के इस अं
ने िो चाय का स्वाि औि भी बढ़ा दिया- ''मैच के अंतिम ओवसड में भािि की धमाकेिाि बर्ललेबाजी ने टीम इंड़्या को जीि की िहलीज पि खड़ा कि दिया. इस जीि के साथ ही टीम इंड़्या ने न केवल टी20 सीिीज में ऑस्रे सलया का सप ू ड़ा साफ कि दिया, बब्र्लक वह इस फॉमैट में वर्ल्ड िैंक्रकं ि में पहले पायिान पि भी पहुंच िई.''
इस दिलबहाि समाचाि को पढ़ने के बाि हमने याहू मेल की ििफ रुख क्रकया, िो एक औि दिलबहाि मेल हमािी प्रिीक्षा कि िही थी. वह मेल थी हमािे वप्रय ििु मैल भाई की ब्जन्होंने अपनी आत्मकथा ''मेिी कहानी'' का 100वां भाि भेजा था यानी उनकी आत्मकथा के एपीसोड्स ने अपना एक हमने उस अद्भुि एपीसो् को िुिंि पढ़ा औि िुिमैल भाई को बधाई-संिे
िक पूिा क्रकया.
भेजा. इस ववतनंि मोमें ट की
उपलब्धध के अवसि पि
ायि वे भी बहुि भावुक औि िोमांगचि थे, उन्होंने अपने नींि के समय की पिवाह न किके, िुिंि एक बड़ी-सी मेल सलख भेजी. आप भी आनंि लीब्जए उस भावभीनी ई.मेल का-
''लीला बदहन, यह बधाई िो आप को ही है . आप से कॉमें ट-मुलाकाि नहीं होिी, िो यह सब संभव था ही
नहीं. िीन घंटे पहले बड़ी बेटी का फोन आया था. बड़ी बेटी
ुरु से ही बहुि सेंसेदटव है . उस ने सािे ऑक्रफस स्टॉफ को पाटी िी थी. उस दिन जब सम्मान पत्र समला था, उस ने छोलों, पकोड़ों, समोसों औि
नान की प्लेटों की फोटो भी भेजी थी. उस की एक सखी ने िो कुछ दिन हुए मुझे एक सुन्िि फ्रूट-बॉस्केट भी भेजी थी, ब्जस में ििह-ििह के फ्रूट्स थे औि कांग्रैचुले न का्ड भी भेजा था. आज बेटी बिा िही थी क्रक एक िोिी टीचि पूछ िही थी, क्रक यह पाटी क्रकस सलए थी? बेटी ने बिाया क्रक ''मेिे ्ै्ी मै्ीकल
कं्ी न की वजह से उिास बैठे िहिे थे. उनका मन लिाने के सलए हम ने उन को लैपटॉप लेकि दिया औि वे उस पि बबज़ी हो िए. क्रफि उन का संपकड एक लेर्खका से हो िया, ब्जन्होंने ्ै्ी को सलखने के सलए प्रेरिि क्रकया, ब्जस से वे सलखने लिे. आज उन को writers recgonition का सदटड क्रफकेट समला है , जो एक मैिज़ीन के ए्ीटि की ओि से भेजा िया है ." बेटी ने बिाया, क्रक वह िोिी कह िही थी, ''तया वह इस जीवन कहानी को पढ़ सकिी है ?'' बेटी ने जवाब दिया, ''यह दहंिी में है .'' िोिी ने कहा- ''it was an amazing achievement for a disabled person!''
लीला बदहन, सभी बच्चे आत्मकथा औि मुझ पि सलखे आपके धलॉग्स पढ़ने के इच्छुक हैं, लेक्रकन दहंिी क्रकसी को आिी नहीं. आज बड़ी बेटी ने दहंिी सीखने की इच्छा ज़ादहि की है औि मैं धीिे -धीिे ईमेल के
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ज़रिए उसे लैसन िे ने की कोस
करूंिा. एक साल में भी वह कुछ-कुछ सीख जाए, िो वह बाकी सब
बच्चों को इस कहानी को सुना िे िी. आप की सहायिा से सैंचुिी कि िी है औि अब हौसला हो िया है औि कहानी को चलिी िखूंिा.
एक बाि औि ,आज कुलवंि कह िही थी, क्रक आप ने भाई साहब के बािे में कभी कुछ सलखा नहीं, क्रक वह कैसे हैं औि क्रकया कििे हैं? अब सोने का वति हो िया है औि आप को िु् ्े कहिा हूं. आप का भाई िुिमैल
वप्रय ििु मैल भाई जी, हम पहले कुलवंि जी की ब्जज्ञासा का उत्ति िे िहे हैं. हम आपको सलख चक ु े हैं, क्रक अब हम रिटाय्ड हैं औि िोनों ही लेखन में लिे हुए हैं. आपने हमािी साइट पि तिवानी साहब की ग्रीन कलि की ससंधी कवविा की पस् ु िक िो िे ख ही ली है . उनको ग्रीन कलि बहुि पसंि है औि मेिी ससंधी
कवविा की पुस्िक वपंक कलि में है . वपंक ससटी जयपुि की होने के कािण मुझे वपंक कलि बहुि पसंि है . हम िोनों ज़्यािािि वविे में बच्चों के पास िहिे हैं औि सलखने-पढ़ने में मस्ि-व्यस्ि िहिे हैं.
वप्रय िुिमैल भाई जी, आपको अपनी आत्मकथा ''मेिी कहानी'' के एपीसोड्स का कोदट ः बधाइयां औि
िक पूिा किने की
ुभकामनाएं. भाई, आपने सािा-का-सािा श्रेय हमें िे दिया है , हम इसे आपका
ुभ
आ ीवाडि समझकि ववनम्रिापूवक ड स िोधायड क्रकए लेिे हैं, बाकी हमािा िो यह मात्र कथन ही नहीं, अटल
ववचवास है , क्रक ववतनंि मोमें ट्स की इस िस्वीि का श्रेय आपके साहस औि समवपडि अद्भि ु लेखन-प्रतिभा को है , ब्जसके कािण आपको इिनी सफलिाएं हाससल हो िही हैं, अलबत्ता इसका थोड़ा-सा श्रेय हमािी
'कॉमें ट-मुलाकाि' को भी जािा है . उसमें भी श्रेय क्रफि से आपको ही जािा है . आपका पहला कॉमें ट ही इिना
ानिाि था, क्रक उसने िुिंि आपके ऊपि धलॉि सलखवा दिया, जो अब िक जािी है . बहिहाल, यह
सब िो होना पहले से तनब्चचि ही था, हम-आप िो केवल कठपुिली मात्र ही हैं. हमें तनसमत्त बनाकि ववधािा ने इिनी खब ू सिू ि 'ववतनंि मोमें ट्स की िस्वीि' दिखाई, उनका भी कोदट ः बधाइयां औि
ुभकामनाएं.
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ुक्रिया. आपको एक बाि पन ु ः
8.
उपलब्ब्धयां िबे पांव आिी है
लीला तिवानी
Thursday April 14, 2016
अब िक िो हमने सन ु ा था, बबब्र्ललयां िबे पांव आिी हैं, लेक्रकन हमािा अनभ ु व कहिा है , क्रक ”उपलब्धधयां
भी िबे पांव आिी हैं.” जी हां, ज़्यािा भूसमका न बांधिे हुए हम सीधे-सीधे ववषय पि ही आ जािे हैं. आज हम िुिमैल भाई की बाि कििे हैं. आज उनका जन्मदिन भी है औि वववाह की सालगििह भी. आज हमने िुिमैल भाई जी को उपहाि के रूप में उनकी आत्मकथा के पांचवें भाि का सलंक भेजा है , ब्जसे आप सब भी िे ख सकिे हैं. िुिमैल भाई जी को िोहिी खु ी जन्मदिन औि वववाह की सालगििह के अवसि पि सपरिवाि हादिड क बधाइयां औि कोदट ः
ुभकामनाएं.
अब िे र्खए न! हम िुिमैल भाई को जानिे िक नहीं थे. यह िो भला हो अपना धलॉि का, ब्जस पि एक
दिन एक ज़ोििाि कामें ट के साथ िुिमैल भाई नमूिाि हुए, िब से िो साल हुए हैं, प्रतिदिन उनके कामें टि डन औि कलम-ि डन (ये िोनों धि ििु मैल भाई के अपने िढ़े हुए हैं) होिे ही िहिे हैं. फेसबक ु पि चैदटंि भी होिी ही िहिी है औि कभी-कभी फोन पि बाि भी हो जािी है . माचड 12, 2014 को ‘आज का श्रवणकुमाि’ धलॉि में उनके उस कामें ट के िुिंि बाि उनकी जो उपलब्धधयां हमें दिखाई िीं, हमने क्रकसी
भी व्यब्ति के जीवन में इिनी अगधक उपलब्धधयां इिनी जर्लिी-जर्लिी आिी िे खी नहीं हैं, भले ही पढ़ी-सुनी बािें बहुि हैं, ब्जन्हें हम अपने धलॉग्स में उजािि भी कििे िहिे हैं. माचड 17, 2014 से ही ‘िुिमैल-िौिविाथा’ नामक धलॉि से उन पि धलॉि आने ुरु हुए, जो ससलससला अभी िक बिाबि जािी है .
बच्चों के वविे
में होने के कािण वविे
में अतसि हमािा आना-जाना लिा ही िहिा है . हमने िे खा, क्रक वे
ई.बुतस पढ़िे हैं. उन्होंने हमें भी ई.बुतस ्ाउनलो् किके पढ़ना ससखाया. ई.बुतस पढ़ने में बहुि आनंि आया. िभी हमािे मन में एक ववचाि आया, क्रक तयों न ििु मैल भाई पि आए धलॉग्स की एक ई.बक ु बनाई जाए. इसी ववचाि के साथ उन पि ई.बुक भी आ िई, ब्जसका सलंक है http://issuu.com/shiprajan/docs/gurmail_bhai_ebook
इसके साथ ही वे जय ववजय पबत्रका में धलॉिि बन िए औि अपने साहस औि जज़्बे के कािण अपना धलॉि के चहे िे लेखक व कामें टेटि िुिमैल भाई, जय ववजय पबत्रका के भी चहे िे लेखक व कामें टेटि बन िए. उनके लेखन के अिले सफि में
ुरु हुई उनकी आत्मकथा, जो आप ”मेिी कहानी” के रूप में पढ़ सकिे हैं. अब उसके 121 एपीसोड्स प्रकास ि हो चुके हैं. ”मेिी कहानी” के 21-21 एपीसोड्स की पांच ई.बुतस भी िैयाि हो चुकी हैं, ब्जनका सलंक इस प्रकाि है -
http://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_1-21_gurmail_singh
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http://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_22-42_gurmail_singh
https://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_43-63_gurmail_singh
https://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_64-84_gurmail_singh
https://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_85-105_gurmail_singh
अभी कुछ समय पहले ही िुिमैल भाई के पास सूचना आई, क्रक जय ववजय पबत्रका 2015 के सलए उन्हें
”जय ववजय िचनाकाि सम्मान” से सम्मातनि कि िही है औि उनको सम्मातनि कि, बहुि खूबसूिि सम्मान पत्र भी भेज दिया िया, जो उनकी अद्डधांगिनी ने ििु ं ि फ्रेम किके िीवाि पि सस ु ब्ज्जि कि दिया औि उसका फोटो हमें भी भेज दिया. एक औि उपलब्धध िबे पांव आ िई. अब आप ही बिाइए, क्रक तया
आपने एक व्यब्ति के जीवन में इिनी जर्लिी-जर्लिी इिनी अगधक उपलब्धधयों को िबे पांव आिे हुए िे खा है तया? इससलए ही हमने सलखा है - ”उपलब्धधयां िबे पांव आिी हैं.”
हमें आ ा ही नहीं पूणड ववचवास है , क्रक आपके जीवन में भी अनेक उपलब्धधयां आई होंिी. हम िो अपने अनुभव कामें ट्स में साझा किें िे ही, आप भी अपने अनुभव इस अनुपम मंच पि
ेयि किें िे, िो हमें बहुि खु ी होिी. अपना धलॉि जिि की ओि से िुिमैल भाई को कोदट ः प्रणाम औि आिामी उपलब्धधयों के सलए ढे िों
ुभकामनाएं.
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9.
वविाट मन की व्यापक स्मतृ ियां
लीला तिवानी
Sunday July 10, 2016
स्मतृ ियों की ितु नया बहुि अनोखी है . मधिु स्मतृ ियों की इस मायावी ितु नया में सभी िं ि, सभी िस उपलधध होिे हैं, जो हं सािे हैं, िुििुिािे हैं, सिसािे हैं, कभी-कभी उलझािे भी हैं. इन स्मतृ ियों के न े का सुरूि एक बाि चढ़ जाए, िो इस सुरूि में मिमस्ि होकि िहना ही मन को िास आिा है .
अभी कुछ दिन पहले हमने स्मतृ ियों पि एक धलॉि सलखा था. हमािे एक सध ु ी पाठक ने प्रतिक्रिया में बहुि सुंिि पंब्ति सलख भेजी थी- ''मानव मन काफी वविाट है , स्मतृ ियां काफी व्यापक.'' इसी पंब्ति से आज हमािे धलॉि का
ीषडक तनःसि ृ हुआ है .
हमािे एक औि सध ु ी पाठक ने प्रतिक्रिया में सलखा था- ''विडमान पल भि के सलए ही िो आिा है . अिीि हमािी वास्िववक पूंजी औि धिोहि है .'' यह पंब्ति भी एक धिोहि के समान लिी, इसका भी हमािे आज के धलॉि से वव ेष संबंध है . इसी से समलिी-जुलिी प्रतिक्रिया हमािे एक अन्य सुधी पाठक ने सलखी''अिीि िो होिा ही है याि किने के सलये.'' क्रकिनी सुलझी हुई प्रतिक्रियाएं सलखिे हैं हमािे पाठक!
हमने एक प्रतिक्रिया के जवाब में सलखा था- ''वप्रय िुिमैल भाई जी, अिीि की स्वर्णडम यािें सलख-पढ़कि
मज़ा ही आ जािा है . हम भी आपकी आत्मकथा में आपके अिीि की स्वर्णडम यािें पढ़कि मज़ा ले िहे हैं.'' इस पि एक पाठक की ब्जज्ञासा थी- ''आििणीय िुिमैल सि की आत्मकथा को मैं कहां पढ़ सकिा हूं?''
वप्रय िुिमैल भाई जी का कहना है , क्रक वे पहले केवल प्रतिक्रियाएं ही सलखिे थे. लिभि 1000 प्रतिक्रियाएं उन्होंने सलखीं, पि एक भी प्रतिक्रिया का जवाब नहीं समला. क्रफि उन्हें एक प्रतिक्रिया का जवाब समला औि उसी प्रतिक्रिया से एक धलॉि बना, इस धलॉि के बनने की कहानी आपको उन पि सलखे िए पहले धलॉि में ही समल जाएिी. इसी एक धलॉि से एक ई.बुक. इस ई.बुक में भी अगधकिि उनकी स्मतृ ियां ही तछििी हुई हैं. इसका सलंक है -
http://issuu.com/shiprajan/docs/gurmail_bhai_ebook
इसके बाि िो िुिमैल भाई जी की कलम की धाि बह तनकली औि उनकी स्मतृ ियों का ववस्िि ृ ििीचा खुल िया. उन्होंने अपनी आत्मकथा सलखनी
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ुरु कि िी. आप िो जानिे ही हैं, क्रक आत्मकथा में स्मतृ ियों का
ख़ज़ाना होिा है . हमने स्मतृ ियों के उस ख़ज़ाने की 21-21 कड़ड़यों की एक ई.बक ु बना िी. ''मेिी कहानी'' नाम से उनकी इस आत्मकथा की 6 ई.बुतस बन चुकी हैं, ब्जनके सलंक इस प्रकाि हैंhttp://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_1-21_gurmail_singh http://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_22-42_gurmail_singh https://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_43-63_gurmail_singh https://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_64-84_gurmail_singh https://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_85-105_gurmail_singh https://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_106-126_gurmail_singh_3 इन छः ई.बत ु स में आप ििु मैल भाई जी की स्मतृ ियों का जायज़ा ले सकिे हैं. हमें िो ििु मैल भाई जी की लेखनी इिनी मनभावन लििी है , क्रक मन कििा है पढ़िे ही जाएं, आप भी आनंि लीब्जएिा. सचमुच िुिमैल भाई जी के वविाट मन की व्यापक स्मतृ ियां अद्भुि हैं. -------------------------------------------------
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10. जन्मदिन हमािा: उद्िाि आपके-हमािे लीला तिवानी
Saturday September 10, 2016
पहले आपके हमािे जन्मदिन पि इंग्लैं् के िुिमैल भमिा के मन के कुछ काव्यात्मक उद्िाि"जन्मदिन मुबािक ! जन्मदिन मुबािक ! खुछ िहो हि िम , जहां भी िहो ,
ऑस्रे सलया या इंड़्या. ले लो बच्चों से खुस यां बहुि , हम भी कििे थे यही कभी, मां-बाप की खु ी थी हमािी भी कभी.
जन्मदिन मुबािक !जन्मदिन मुबािक ! दिन थे वे भी ,जब बच्चे थे छोटे , िोिली ज़ुबां , मासम ू -से चेहिे ,
हं सिे, कभी िोिे, नाचिे औि िािे,
जािे स्कूल, बस्िे में क्रकिाबें उठाए, कििे
िाििें , लििे थे अच्छे .
जन्मदिन मब ु ािक ! जन्मदिन मब ु ािक !
हुए जवान िो पढ़ाई कालेज में , कुछ ख़ु ी, कुछ क्रफ़ि, न ा जवानी का , वे ही िो थे दिन कुछ बनने-बनाने के , पढ़िे थे िहिे, जब िाि भि सािी, जािे थे िे ने गिलास भि िध ू ,
कमजोिी न हो, यही थी क्रफ़ि.
जन्मदिन मुबािक ! जन्मदिन मुबािक ! हुई ादियां, इतिहास िह ु िाया, िं ि बबिं िे र्खले जो फूल, ज़ुबां िोिली, वही कहकहे , क्रफि िूंज उठा आंिन ,
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वही कॉवपयां, वही पैंससलें , लेक्रकन, कैलकुलेटि-इंटिनेट नया, खु
िहें , आबाि िहें , पढ़ें औि खूब पढ़ें .
जन्मदिन मब ु ािक ! जन्मदिन मब ु ािक ! भि कि जीएं, मनाएं जन्मदिन, खाएं केक , बच्चों के हाथों , र्खचवाएं फोटो, चािों ििफ से, लतकी ्े है आज आप का , happy birthday to you , happy birthday to you . जन्मदिन मुबािक ! जन्मदिन मुबािक !
---------------------------------------------------------------------------------िुिमैल कुलवंि अब हमािे पॉकड में सैि कििे हुए सर्खयों को अचानक मेिे जन्मदिन का पिा लिने पि-
इन्द्रधनष ु था हाथ में आया जन्मदिवस की पावन वेला, मन में था खुस यों का मेला. सर्खयों ने वह िं ि जमाया, इन्द्रधनुष था हाथ में आया. एक सखी ने लाल फूल िे , मझ ु पि प्रेम-प्याि ि ाडया.
उन फूलों ने उस पल मेिे, मन का आनंि औि बढ़ाया. एक सखी ने चवेि सुमन िे , अपना पावन दिल दिखलाया. उन फूलों ने उस पल मेिे, मन को पावन औि बनाया.
एक सखी ने सुमन िुलाबी, िे कि मन को मस्ि बनाया. उन फूलों ने उस पल मेिे, इन्द्रधनुष को औि सजाया.
एक सखी ने पीले फूल िे , मन में मानो जाि ू जिाया.
उन फूलों ने उस पल मेिे, मन को साहस से सिसाया. आसमान का इन्द्रधनुष िो, होिा बस पल भि की माया.
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फूलों के उस इन्द्रधनष ु ने, कई दिनों िक मझ ु े लभ ु ाया. सर्खयों ने वह िं ि जमाया, इन्द्रधनुष था हाथ में आया,
इन्द्रधनुष था हाथ में आया, इन्द्रधनुष था हाथ में आया. लीला तिवानी
पुनचच-
अभी-अभी हमािे जन्मदिन के उपलक्ष में
ुभकामना संिे
के रूप में हमािे एक पाठक वप्रय िाजकुमाि
भाई जी औि मनजीि कौि जी के भी धलॉि समले हैं, हरि इच्छा हुई िो उसे अिले धलॉि के रूप में प्रकास ि क्रकया जाएिा. --------------------------------------------------------------
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11. बुलंि हौसले को कोई नहीं िोक पाया है : कुलवंि लीला तिवानी
Sunday December 25, 2016
कुलवंि जी, जन्मदिन (25 दिसम्बि) मब ु ािक हो कहिे हैं''कॉतनडया ही मानव
िीि का एकमात्र ऐसा दहस्सा है , जहां िति की सप्लाई नहीं होिी है . यह सीधे हवा से
ऑब्तसजन ग्रहण कििा है .''
''ऐसे ही खुि पि ववचवास िखने वाली मदहला
ब्ति समाज से नहीं, सीधे पिमात्मा से ग्रहण कििी है .''
यह मानना है , कुलवंि जी का, ब्जनका आज जन्मदिन है . यह िो आप जानिे ही होंिे, क्रक कुलवंि जी
िुिमैल भाई जी की अद्डधांगिनी हैं. वही िुिमैल भाई जी, ब्जनका नाम िूिल पि सलखकि सचड किने से उन पि पिू े 11 पेज आ जािे हैं. आज हम कुलवंि जी के बल ु ंि हौसले के बािे में कुछ बाि कििे हैं.
कुलवंि जी ने सालों पहले पढ़ा था-
''िास्िे खुि मंब्जलों िक ले जायेंिे िुमको, हौसला िखो बल ु ंि न िम ु नाकािा बनो.''
इन्हीं पंब्तियों से कुलवंि जी को हौसला बुलंि िखने में सहायिा समलिी है . खुि पि पूणड ववचवास के साथ ही कुलवंि जी पिमात्मा पि पूणड ववचवास िखिी हैं. उनका मानना है - ''भिवान की कथाएं महज सुनने से नहीं, बब्र्लक उनको जीवन में उिािने की जरूिि है . जो प्रभु की इच्छा का पालन कििा है , उस पि प्रभु वव ेष कृपा कििे हैं.'' यही िो असली िाज़ है उनकी हौसला-बुलंि ब्ज़ंििी का.
समय की धािा ने भले ही उन्हें आज इंग्लैं् पहुंचा दिया हो, पि उनकी पैिाइ भािि भूसम की ान पंजाब के िांव की है . 1946 में आज ही के दिन कुलवंि जी का जन्म हुआ था. इसी पंजाब की उपजाऊ धििी पि िुिमैल जी के साथ उनकी प्रेम-िाथा भी ववकससि हुई थी. िोनों के िािा जी ने इस रिचिे पि मुहि लिाई थी, उसके बाि इनका समलना-जुलना चलिा िहा. वह ज़माना साइक्रकलों का था. िोनों ने साइक्रकलों पि ही अपने प्रेम की पींिें बढ़ाई थीं, ब्जसका खूबसूिि वणडन िुिमैल भाई ने अपनी आत्मकथा -'मेिी
कहानी' में बखूबी क्रकया था. असभभावकों की स्वीकृति के बाि खूबसूिि प्रेमपत्र भी चलिे िहे , जो आज भी इनकी प्रेम-िाथा को िाज़ाििीन बनाए िखिे हैं.
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इसी बीच ििु मैल भाई इंग्लैं् आ िए थे, 1967 में वववाह के बाि कुलवंि जी भी इंग्लैं् आ िईं. यहां
उन्होंने अपनी भाििीयिा को बनाए िखिे हुए पब्चचमी संस्कृति से पूिा िालमेल बबठाया. इंग्लैं् में जन्मे अपने बच्चों को वहां की संस्कृति के साथ-साथ भाििीय संस्कृति से भी जोड़े िखा. िोनों के परिवािों के धन-सम्पन्न होिे हुए भी िुिमैल भाई की इच्छानुसाि उनकी ािी बहुि ही सािे ढं ि से हुई थी, उन्होंने अपने बच्चों की ादियां भी यथासम्भव बबना क्रकसी अगधक आ्म्बि व दिखावे के कीं, हां सुसंस्कािों का
िान-िहे ज भिपिू दिया, िभी बेदटयों-िामािों का औि बेटे-बहू औि नािी-पोिों का भिपिू प्याि-सम्मान उन्हें आज भी समल िहा है .
कुलवंि जी की ब्ज़ंििी सपाट चलिी िही हो, ऐसी बाि नहीं है . सभी की ििह उन्हें भी कई संकट-बाधाओं का सामना किना पड़ा. कुलवंि जी ने पहले िो ROSE FROM THE GRAVE, यानी बहुि िंभीि ड़्प्रे न पि फिह हाससल की. इसमें िुिमैल भाई के खोजे-बिाए नुस्खों पि चलिे हुए, उन्होंने ड़्प्रे न से
छुटकािा पाया औि आज से बीस साल पहले उनको ्ॉतटि ने कहा था, क्रक वह व्हील चेअि में पड़ जाएिी की ्ॉतटि बाि को झुठला दिया है , भिवान की कृपा से सब अच्छा चल िहा है .
बच्चों के छोटे होने पि भी कुलवंि जी ने बहुि-सी कपड़े की फैब्तरयों में बखूबी काम क्रकया. 70 साल की होने पि वविे में आज भी वे अपने सूट खुि ससलिी हैं, अपने औि सर्खयों औि उनके बच्चों के सलए
स्वेटि भी बन ु िी िहिी हैं. 1998 में उन्हें स्टे ट पें न समल िई, लेक्रकन वे बेकाि नहीं बैठीं. िोनों पोिों का
पालन-पोषण क्रकया, कुछ बड़े हुए िो उन को स्कूल छोड़ने जाना औि ले आना भी बहुि ब्ज़म्मेिािी से तनभाया. बड़ा पोिा चाि साल हुए सैकं्िी स्कूल में जाने लिा, इस साल ससिंबि से छोटा भी जाने लिा है औि कुलवंि की स्कूल लाने-ले जाने की ब्ज़म्मेिािी िकिीबन ख़िम ही हो िई है . स्नेदहल िािा-िािी के
पोिे अब भी स्कूल से आ कि पहले उनके यहां ही आिे हैं औि कुलवंि जी उन के सलए खाना िैयाि किके िखिी हैं. बेटा-बहू काम से आने के बाि खाना खा कि बच्चों को लेकि अपने घि चले जािे हैं.
बच्चों की िे ख भाल के साथ-साथ ही 15 साल हुए कुलवंि ने ले्ीज़ कम्युतनटी सेंटि जॉएन कि सलया था, ब्जस का नाम है हमजोली ग्रप ु . यह ग्रप ु हफ्िे में िो दिन होिा है . पहले कुलवंि की सखी ि पाल यह ग्रप ु
चलािी थी, क्रफि कुलवंि जी भी उन के साथ हो लीं, तयोंक्रक ले्ीज़ ज़्यािा आने लिी थीं. ये सभी मदहलाएं रिटायि हो चुकी हैं. कुलवंि-ि पाल समलकि मदहलाओं के सलये ििह-ििह के कामों का प्रबंध कििी हैं. सब त्योहाि, जैसे लोहड़ी, ि हिा, िीपावली, क्रिसमस आदि मनािी हैं. कभी-कभी कोई मदहला आकि ले्ीज़ को योि किािी हैं. कई बाि काउं ससल की ओि से भी कोई आकि सेहि के बािे में बिािा है . कभी क्रकसी साल टाऊन के मेयि को बल ु ाया जािा है औि वह इन के साथ समोसे-पकौड़े खािा है . िसमडयों के दिनों में ये िोनों सर्खयां ले्ीज़ को कोई सीसाइ् या ऐतिहासक जिह ले जािी हैं.
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इस सब के साथ-साथ कुलवंि जी ने वाक्रकं ि ग्रुप भी जॉइन क्रकया हुआ है औि हफ्िे में िो-िीन बाि वे पॉकड में सर्खयों के साथ वाक किने जािी हैं, ब्जस के सलए कभी-कभी साल बाि मेयि सब सर्खयों को टाउन बुला कि उन की अचीवमें ट के सलए सदटड क्रफकेट िे कि उनका सम्मान कििा है औि सािी सर्खयां मेयि के साथ खड़ी हो कि फोटो र्खंचवािी हैं.
कुलवंि जी के बुलंि हौसले की एक औि िाथा आज से लिभि 14 साल पहले
ुरु हुई, जब िोवा-भ्रमण के समय िुिमैल भाई को एक लहि समुद्र में बहा ले िई, िस ू िी लहि ने उनको क्रकनािे पि िो ला दिया, लेक्रकन उनको
ािीरिक रूप से लिभि अपंि-सा कि दिया. यहां ििु मैल भाई के बल ु ंि हौसले ने भी उनकी
पिीक्षा ली औि कुलवंि जी ने भी अपने बुलंि हौसले से उनकी िीमाििािी की. आज िोनों के बुलंि हौसले का परिणाम है - िुिमैल भाई की आत्मकथा मेिी कहानी के 190 एपीसो् प्रकास ि होना, ब्जसकी 8
ई.बुतस बन चुकी हैं. इसके लेखन का श्रेय भी कुलवंि जी को जािा है . बहुि साल पहले िुिमैल भाई ने कािज़ों पि 'मेिी कहानी' सलखनी ुरु की, जब उन्होंने कम्प्यूटि पि सलखना चाहा, िो कुलवंि जी ने बड़े जिन से सहे जकि िखे हुए वे कािज़ लाकि दिए औि इच्छा कििे ही 'मेिी कहानी' कम्प्यूटि पि उििने लिी.
कुलवंि जी के बल ु ंि हौसले को एक धलॉि में समेटना बहुि मब्ु चकल है . उन्होंने अपने को िे ड़्यो से भी जोड़ िखा है . लाइव िे ड़्यो पि वे चुटकुले भी सुनािी हैं औि भाििीय भोजन की िे ससपी भी ससखािी हैं.
िुिमैल भाई कहीं बाहि आ-जा नहीं पािे, कुलवंि जी हि फंत न में जािी हैं औि घि आकि उनको इिना चटपटा आंखों िे खा हाल सुनािी हैं, क्रक िुिमैल भाई को वहां जाने की कमी नहीं खलिी है . कहने का
िात्पयड यह है , क्रक अपने बुलंि हौसले से कुलवंि जी ने घि-बाहि अपने को पूणि ड ः स्वस्थ औि सक्रिय बना िखा है . कुलवंि जी को उनके 70वें जन्मदिन, बल ु ंि हौसले औि उज्ज्वल भववष्य के सलए कोदट ः ुभकामनाएं.
Image result for 70th birthday greetings
कुलवंि जी, जन्मदिन के उपहाि-स्वरूप आपको औि िुिमैल भाई जी को हम सहषड िुिमैल भाई द्वािा सलखी 'मेिी कहानी' की ई.बुक-8 भेज िहे हैं-
https://issuu.com/shiprajan/docs/meri_kahani_148-168_gurmail_singh
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चलिे-चलिे हम आपको क्रिसमस के अवसि पि आपके सलए अपना सलखा एक कैिोल प्रस्िुि कििे हैं, जो यहां सस्नी में सभी को बहुि पसंि आया है Jesus is here, here is, Jesus is here Happiness for ever, here is, happiness for ever Merry Xmas to you Merry Xmas to me Merry Xmas for all Merry Xmas to you Merry Xmas to you सभी को बड़े दिन (Merry Xmas) की
ुभकामनाएं.
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12. कुछ ज़माना बिले कुछ हम लीला तिवानी
Friday January 06, 2017
परिविडन प्रकृति का तनयम है औि हम भी प्रकृति का ही एक दहस्सा हैं. इससलए हमािे ववचािों में परिविडन आना भी स्वाभाववक है . कभी-कभी हम सोच में पड़ जािे हैं, क्रक हम भाििीय कहां खड़े हैं? एक ििफ िो
हम अपनी भाििीय संस्कृति की बािें कििे हैं औि िस ू िी ििफ हम बिल भी िहे हैं, क्रफि कहिे हैं लो जी! अब ज़माना बिल िया! हम अपनी पुिानी सभ्यिा को पकड़े हुए कलयुि यानी machine age में धंसिे जा िहे हैं. इस संिम के बीच में हम मुब्चकलें भी झेल िहे हैं. पुिाने ज़माने में पुरुष ही घि के बाहि काम कििे थे, औििें घि में िह कि िस ू िे काम क्रकया कििी थीं. बेदटयों को बाहि जाने की इजाजि नहीं थी,
तयोंक्रक बेदटयों की इज़्ज़ि को बहुि ऊंचा माना जािा था. बस यह ही होिा था क्रक बेदटयों को मां, घि के सािे कामों में तनपुण कि िे िी थी औि उस की ािी कि िे िे थे. यह हमने अपनी ब्ज़न्ििी में िे खा है . हमािी मािाएं-बदहनें भी अनपढ़ िही थीं. क्रफि भी उस समय बहुि-सी मदहलाएं िाजनीति में भी आईं औि कॉलेजों की वप्रंससपल भी बनीं. ये वो मदहलाएं थीं, ब्जनके मािा-वपिा प्रिति ील ववचािों के थे औि वे चाहिे थे, क्रक उनकी अपनी भी कुछ पहचान बने. उनकी िे खािे खी अन्य बेदटयों को भी आिे बढ़ने का
मौका समला. पहले पहल हमािे िांव में चाि लड़क्रकयां हमािी तलास में आईं. स्कूल में िो हम छोटी-मोटी बाि लड़क्रकयों से कि लेिे थे, लेक्रकन स्कूल के बाहि बबलकुल उन से कोई बाि नहीं कििे थे. यह उस ज़माने की बाि थी औि सोच थी.
अब बाि घि की कििे हैं. उस वति सासू मां का घि में िाज होिा था. हि मां का सपना होिा था क्रक
बहुएं घि में आएंिी, िो उस को सुख समलेिा. उस समय यही मानससक सोच होिी थी. बहुओं पे िाज किने की सोच अब भी बिकिाि है , इसी सलए िो पोिी के जनम पि बहुओं को बहुि िःु ख दिए जािे हैं.
पहले समट्टी के िेल से क्रफि िसोई िैस से बहुओं की हत्याएं हो िही हैं. संयुति परिवाि हमािी मजबूिी है , इस सलए िो-िो, िीन-िीन बहुएं औि उन के बच्चे एक घि में िहिे हैं. जो लड़ाइयां-झिड़े इन परिवािों में होिे हैं, वो भी हमने अपनी आंखों से िे खे हैं. थोड़े-बहुि सुखी परिवाि भी िे खे हैं, लेक्रकन ब्जस को हम संयुति परिवाि बोलिे हैं, वह आगथडक मजबूिी ही है . संयुति परिवाि में अिि इिफाक हो िो यह एक
कोऑपिे दटव सोसाइटी की ििह होिा है , ब्जस में सब समलजल ु कि काम कििे हैं. यह भी पहले की सोच थी, अब ये ववचाि भी बिलिे जा िहे हैं. भाििीय संस्कृति में पाचचात्य संस्कृति की पैठ होिी जा िही है औि एक नवीन भाििीय संस्कृति उजािि हो िही है .
अब नए युि की बाि कििे हैं, जो लड़क्रकयां कभी घि के बाहि नहीं जािी थी, आज बाहि जा कि िफ्ििों में काम कििी हैं. एक ििफ भाििीय संस्कृति है , क्रक सास ही घि की है ् होिी है औि िस ू िी ओि आज
की पढ़ी-सलखी बहुएं जो अब नुतिाचीनी सहाि नहीं सकिीं, लेक्रकन छोटे बच्चे होिे हैं, काम पि भी जाना होिा है औि आज कल अच्छे -से-अच्छे स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की प्रतियोगििा है , इस सलए बहू को सब
कुछ सहन किना पड़िा है . यहां भी समगश्रि ववचाि दिखाई िे िे हैं. कई बहुएं अपना घि, अपना िाज चाहिी हैं औि उसके सलए कुछ भी किने-सहने को िैयाि िहिी हैं.
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कहा जािा है , क्रक हि बीस साल बाि जेनिे न िैप आ जािा है . मेिी बेटी इंग्लैं् की जम्पल है . वह कहिी है , क्रक उस की 27 साल की बबदटया के सामने वह अनपढ़ महसूस कििी है , तयोंक्रक आज की जेनिे न
बहुि आिे है . जैसे ही बहू अच्छी ििह पैि जमा लेिी है , िब िक सास बूढ़ी हो चुकी होिी है , लेक्रकन उस की पुिानी िाज किने वाली आििें जािी नहीं हैं, ब्जस से िह ृ -तले होने लििा है . अब सास अपनी बहू के िहमोकमड पि तनभडि हो जािी है . कई घिों में िो सास-ससुि को बहुि िःु ख झेलना पड़िा है औि क्रफि सास के हक में कथाएं बनने लििी हैं औि पीठ पीछे लोि बहू की तनंिा कििे हैं. यह कोई नहीं सोचिा, क्रक
कभी इस सास ने भी बहू पे क्रकिने ज़ुर्लम क्रकये थे. हम सब चाहिे हैं क्रक अपने पोिे-पोतियों के साथ वति िुज़ािें , लेक्रकन आज कल सभी भाग्य ाली नहीं हैं. ायि यह सब नवीन युि के कािण है . पहले ज़माने के संयुति परिवाि में घि के क्रकसी सिस्य ने काम न भी क्रकया, िो काम चल जािा था. आज क्रकसी को एक छुट्टी लेना भी मुब्चकल हो जािा है , तयोंक्रक काम की सुिक्षा पहले है . आज की पीढ़ी पि यह एक बड़ा
बोझ है . यहां भी परिविडन आने लिा है . आज सािा काम लैपटॉप से होने लिा है औि क्रकसी को छुट्टी
लेने की भी ज़रूिि नहीं है . Work from home का Massage िे िो, घि में िहो औि घि-ऑक्रफस िोनों संभालो. यहां भी परिविडन दिखाई िे िा है . एक समय था, जब घि की ब्ज़म्मेिािी पब्त्न की थी. अब पतिपब्त्न आपस में मुति रूप से पिाम ड कििे हैं, ब्जसका काम ऑक्रफस में ज़्यािा ज़रूिी होिा है , वह ऑक्रफस जािा है , िस ू िा घि में िहकि िोनों काम संभालिा है . यहां यह बिा िे ना भी ज़रूिी है , क्रक अब लड़कों को भी बचपन से ही सब काम किना ससखाया जािा है , िाक्रक आिे जाकि उसे पिे ानी न हो.
क्रफि भी सास ससुि के िाज की बािें समय-समय पि बाहि आने लििी हैं, ब्जस से संयुति परिवाि को
ग्रहण लिने लििा है , इसी से "सास, बहू औि साब्ज " जैसे सीरियल बनिे हैं औि यही कािण है आज कल के वद् ृ धाश्रम, जो अभी बहुि कम हैं बन िहे हैं, लेक्रकन धीिे -धीिे इनमें इज़ाफ़ा हो िहा है . इस सलए हम को चादहए क्रक हम भी अपनी सोच को बिलें औि मान लें , क्रक यह नया ज़माना है . ऐसा हो भी िहा है . बहुि-से लोि वद् ृ धाश्रम, ब्जनको अब 'रिटायि होम' कहा जाने लिा है , में िहकि बहुि खु उन्हें अपनी पीढ़ी के साथी समल जािे हैं.
हैं. वहां
अंि में हम यही कहना चाहें िे, क्रक हम बड़े अब अपनी सोच को बिलें औि बच्चों पि ज़्यािा बोझ न ्ालें . अपनी old age के सलए व्यवस्था किें , िाक्रक अिि बहू िंि किे , िो अपनी सेतयोरिटी होने पि भी बुढ़ापा अच्छी ििह बीिेिा. इमो नल हो कि अपना सािा सिमाया बच्चों को िे ना उगचि नहीं है . अिि आप धनसम्पवत्त से भी सक्षम हैं, िो आप की सेवा ठीक-ठाक होिी िहे िी. आर्खि में िो सब बच्चों को ही जाना है . अिि वद् ृ धाश्रम में जाना पड़ भी जाए, िो इस के सलए भी िैयाि िहना चादहए. सभी के बच्चे बिु े नहीं
होिे, बच्चे जरूि समलने आिे हैं. हम को भी खुििज़ड बन कि बच्चों की इमो नल धलैकमेल नहीं किनी
चादहए. आपसी समझ से ही युि-परिविडन को िोनों पीदढ़यां स्वीकाि कि सकिी हैं. इसका सीधा-सीधा अथड हुआ-
''कुछ ज़माना बिले कुछ हम,
क्रफि क्रकसी को नहीं कोई िम.''
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ििु मैल भमिा िुिमैल भाई, आपने बहुि सोच-ववचाि के बाि अत्यंि परिश्रमपूवक ड सलखे िए इस लेख को अपना धलॉि में धलॉि के रूप में प्रकास ि किने की अनुमति िी है , हम आपके हादिड क आभािी हैं. ----------------------------------------------------------
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